Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला द्रव्य सहायक- श्रीमान् कल्याणमलजी भुरालालजी पालड़ेचा धनोप (वाया - भिणाय, जिला - अजमेर ) प्रकाशक अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ सैलाना (म. प्र. ) -- Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमावृति २५०० वीर संवत् २४६१ विक्रम सं. २०२१ सन् १९६५ मूल्य २) रुपये स्वाध्याय संघ के सदस्यों को १५० प्रतियाँ भेट Vart - - मुद्रक--श्री जैन प्रिंटिंग प्रेस, सैलाना (म. प्र.) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निवेदन हमारे समाज मे आगमो के मलपाठ का स्वाध्याय करने की रीति चाल है । त्यागी वर्ग के अतिरिक्त उपासको मे से भी कई धर्मप्रिय बन्धु, माताएँ और वहिने दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, सुखविपाक और नन्दीसूत्र आदि आगमो के मल पाठ का स्वाध्याय तथा स्तोत्र स्तुति का पाठ करती है । कुछ प्रशस्त आत्माओ के तो ऐसा नियम होता है कि प्रति दिन अमुक परिमाण मे मूलपाठ का स्वाध्याय करना ही। यद्यपि ऐसी प्रशस्त आत्माएँ कम ही हैं और बहुत वडा भाग प्रात.काल मे समाचार पत्र पढने या रेडियो न्यूज तथा गायन सुनने का शौकीन हैं, फिर धमिाण अात्माएँ भी हैं । वे आगम स्वाध्याय करती है क उनकलिए पुस्तक का साधन होना आवश्यक है। स्वाध्याय पाठमाला की विभिन्न स्थानो से कई पुस्तके 'निकली है और उनका उपयोग हुआ है, फिर भी वर्तमान समय मे वैसी पुस्तक अलभ्य होगई। और हमारे सामने कई दिनो से मांग आ रही थी, किंतु हम अन्य कामों मे लगने से टालते रहे । किंतु गत जुलाई मे खीचन निवासी स्व श्रीमान् सेठ अगरचंदजी सा. गोलेच्छा की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती हुलासवाई की ओर से उनकी सुपुत्री विदुषी सुश्राविका श्रीमती लीलावाई एव पौत्र श्री पूर्णचन्द्रजी (कोयम्बटुर) की प्रेरणा हुई। उन्होने बहुश्रुत श्रमण श्रेष्ठ प. मुनिराज श्री समर्थमलजी म सा के विद्वान सुशिष्य पं श्री घेवरचंदजी म वीरपुत्र द्वारा पूर्व की संशोधित प्रति मुझे भेजी और उस पर से मुः हुआ। किंतु उस संशोधित प्रति का पूरा उपयोग नहीं हो सका। - Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रफ देखने का ध्यान रखा गया, किंतु कार्य की अधिकता आदि से कुछ खास अशुद्धियाँ दिखाई दी। उनका शुद्धि पत्र दिया गया है। इस पुस्तक की १५० प्रतियाँ श्रीमान् सेठ कल्याणमलजी भुरालालजी पालडेचा धनोप (वाया-भिणाय, जिला-अजमेर) निवासी ने अग्रिम क्रय करके जैन स्वाध्याय संघ के सदस्यो को भेट स्वरूप प्रदान की। अतएव धन्यवाद । स्वाध्याय एक प्राभ्यन्तर तप है । ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होकर सम्यग्ज्ञान मे वृद्धि होने का साधन है । इससे धर्म मे स्थिरता होती है। भावपूर्वक किये हुए स्वाध्याय से आत्मा पवित्र होती है । अतएव मन की अस्थिरता को दूर कर गात भाव से अर्थ मे ध्यान रखते हुए स्वाध्याय करना चाहिए। साधुमार्गी जैन सघ, सम्यग्ज्ञान का प्रचार करने के लिए आगम साहित्य का प्रकाशन कर रहा है । अबतक छोटी बडी १५ पुस्तको का प्रकाशन कर चुका है और अब भगवती सूत्र भाग २ का कार्य चालू किया है । यदि संघ को धर्मप्रिय उदार महानुभावो का सहयोग प्राप्त होता रहा और अनकलता रही, तो यह विशेषरूप से सेवा करता रहेगा। वीर सं २४६१ चैत्र कृ १ वि. सं. २०२१ । ता. १८-३-६५ मानकलाल पोरवाड़-अध्यक्ष रतनलाल डोशी-प्रधान मन्त्री बाबूलाल सराफ-मन्त्री जशवंतलाल शाह-मन्त्री । ४ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि पत्र पंक्ति DU mr m mr mr mro mr mr १२ २१ mr 0 अशुद्ध न इक्कमे विसोहिया अससओ सविदिय घट्टिताणि य हिंगुलुए भत्त-सेस सजाण पडिच्छिन्नम्मि सम्ममालोय कारण-समुपण्णे चिट्ठत्ताण m शुद्ध नाइक्कमे विसुत्तिया य ससमो सन्विदिय घट्टियाणिय हिंगुलए भुत्तसेसं सजयाण पडिच्छन्नम्मि सम्ममालोइयं कारणमुपण्णे चिट्ठित्ताण विवण्ण m 9 mr m विवि सपन-- सपन्ने ४८ सति मे सतिमे ur arm Mr & AMMA आदी "."." .. ओसदी। उउपसने....उउप्पसणे तु पयपुर ति वेइलोयाई... लोइयाइ २० ५५ CC SYN मन्बुकसघ आसाहु ७ आयारपण्हिी णाम अट्ठम सुव्व अरह सव्वुक्कसं असाहु सुवक्कसुद्धी णाम सत्तम सव्वं अरइ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्ति अशुद्ध १ खिप्पमप्पाण वीय, खिप्पमप्पाण, वीय १४ ण त सपव डिज्जड सपडिवज्जइ हियाणुसायण हियाणुसामण अणोहाणुप्पेहिणा ओहाणुप्पे हिणा G6 वहु . दाढुद्धियं दाढुड्ढिय २१ इवेव ___ इहेव ७४ ७४ २१ ७५ ७५ १२ ७७ ७७ ७॥ चेवडा १६ १६ २२ उवितिवाया उवतवाया अप्पावही अप्पोवही सवच्छर सवच्छर संपिक्स सपेहए रहम्म रहम्से उरूणा उरुणा चवेडा निच्चे निच्च भुज्जई भुजइ उवज्जइ उववज्जई भवय भयव इणमवी इणमब्बवी नमि रायरिससि णमी रायरिसी पढवि पुढवी आणगारस्स अणगारस्स विउववी विउव्वी तहोमुयारो तहेसुचारो आसासय असासय तणुव तणय २ १ ११६ ११७ ११६ (६ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट पंक्ति ११६ मुत्तो १२१ जीविय उपज महिसी देवो वयण १ सुकुमालो हुसी २१ अशुद्ध मत्तो जीवय उप्पजई माहिसी देवे वायण सकुमालो हु सी समत्तण दुक्खभायणिय चउरते सिद्धि अणुसट्टि अ णगारियं गयमा झोसोयरो रेवययम्मि पासिए तद्दन्वणिसरो परिभायम्मि दुहवो-वि १६ समणत्तणं दुक्खभयाणिय चाउरते सिद्धि अणुसिद्धि मणगारिय गोयमो झसोयरो रेवययम्मि प्पसाहिए तद्दब्वऽणिस्सरो परिभोयम्मि दुहमो वि वुत्ता अलोलुय २१ २० १६५ १६६ १६८ ता काला १६६ .. सुक्ता १७१ प्राकृत शीर भासली अ - चउथीइ खलकिज्ज 'नायव्वा चउत्थीइ खलुकिज १७८ 403 ( क्रमाक लाकज्ज on • कम्यकवी (७) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट १८० १८७ १८६ १६२ १६६ २०० २०४ २२८ २३३ २३८ २३६ २४७ २४६ २५३ २५३ २६१ २६४ २६४ २६८ २६६ २७१ २७१ २७२ २७८ २८४ २८६ " पक्ति १७ ६ १६ २० १३ १३ १६ १६ w x १४ ६ १४ २२ २३ ६ १४ २ १० १३ १६ १ ४ १२ १८ w १८ ६ २० अशुद्ध आहरपच्च पच्चखाणेण भते । सागरोवउत्ते इगिय सेण समोयओ मुहत्त जलयरायण पढम्मि चेवरुवी चडुलिय अगलसेढी मित्ते सजयासजय गव्भवक्कति मणुस्साण सद्दीति खओसमेण निरिक्खय अकिरियाईण अगट्टायाए अज्जयणसए नायधम्मक हासु अगुओगदारा मासाण अब्भणुणाए आयामणभूमिए सोलम शुद्ध आहारपच्च पच्चवखाणेण ण भते । सागारोव उत्ते इगिय दोसेण समो य जो मुहुत्त जलयराण पदमम्मि चेवारुवी चडुलिय अगुलसेढी मित्ते सजयासजय गव्भवक्कतियमणुस्साण सद्दोत्ति खमवसमेण निरिक्खिय अकिरियावाईण अगट्टयाए अज्झयणसए नायाधम्म कहासु जणुओगदारा आसाण अन्भणुष्णाए आयावणभूमिए सोलसम (5) Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्ति . ܝ ܐ ܗܵ > ܝ ܕ ܐ ܢ ܀ 8 mr mr ३३० mr अशुद्ध २६१ उझियधम्मयं उज्झियधम्मियं २६६ अज्झयण्णस्स अज्झयणस्स वत्तीस्सओ बत्तीसको ३१२ मतिश्रुतावघयो मतिश्रुतावधयो जगत्स्त्रितयो जगत्रितयो ३२७ १८ परस्तात पुरस्तात् ३२८ २३ कान्तम कानम् बद्धक्रमः वद्धक्रमः पेष शेप __ १८ प्रपयति प्ररूपयति ३३५ ११ सितोऽपि सतोऽपि ३३७ निजप्टप्ठलग्नान् निजपृष्टलग्नान् मदभ्रमीम मदभ्रभीमं विश्रुतोऽसि विवृतोऽसि ३३६ विधेय विधाय २१ प्राभास्वरा प्रभास्वरा ३५३ २ वलतीर बलती ३६६ १८ पलेटी लपेटी २३ वयासी बयासी ३७६ १८ ता तथा इस प्रकार अशुद्धियाँ रहगई है। कई अशुद्धियां दृष्टिदोप से और कई छपाई के समय होगई । इसके सिवाय कही कही मात्रा और अनुस्वार बरावर नही उठे हैं । कृपया पहले अपनी प्रति शुद्ध करके फिर स्वाध्याय करे। टाइप सम्बन्धी असुविधा से अनेक स्थानो पर 8 के स्थान पर ट्ठ, ड्ड के स्थान पर ड्ढ किया है। वास्तव मे इन दो रूपो मे एक ही उच्चारण के सयुक्त अक्षर हैं । (६) in m Myrmer/M ३७५ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमणिका -~ १ सुखविपाक सूत्र २. उववाईसूत्र की २२ गाथाएँ ३ पुच्छिस्सुण ४. मोक्षमार्ग ५. दगवैकालिक सूत्र ६. उत्तराध्ययन सूत्र ७. नन्दी सूत्र ८ प्रणुत्तरोववाइयदसा सूत्र ६. चउसरणपइण्णा १० वैराग्यकुलकम् ११. सुभाषित १२. तत्त्वार्थसूत्र १३. भक्तामर स्तोत्र १४ कल्याणमन्दिर स्तोत्र १५. रत्नाकर पंचविंशति १६ प्रार्थना पचविंशति १७. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्रम् १८ मेरी भावना १६. लघु साधु- वंदना २० बड़ो साधु- वदना २१. वृहदालोयणा २२. बहुश्रुत श्रीसमर्थ गुणाष्टक ५ पृ. १ ११ १३ १६ २० ७६ २४१ २८३ ३०१ ३०७ ३०६ ३१२ ३२३ ३३२ ३४० ३४२ ३४४ ३४७ ३४६ ३५० ३६० ३८१ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्वाध्याय निम्न लिखित चौतीस कारण टालकर स्वाध्याय करना चाहिये। आकाश सम्बन्धी १० अस्वाध्याय कालमर्यादा १ वडा तारा टूटे तो एक प्रहर २ उदय अस्त के समय लाल दिशा जबतक रहे ३ अकाल मे मेघगर्जना हो तो दो प्रहर ४ " बिजली चमके तो एक प्रहर ५ " बिजली कड़के तो दो प्रहर ६ शुक्ल पक्ष की १-२-३ की रात प्रहर रात्रि तक ७ आकाश मे यक्ष का चिन्ह हो जबतक दिखाई दे। ८-६ काली और सफेद धूअर जबतक रहे १० आकाश मण्डल धूलि से आच्छादित हो औदारिक सम्बन्धी १० अस्वाध्याय - ११-१३ हड्डी, रक्त और मास । ये तिर्यञ्च के ६० हाथ के Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भीतर हो । मनुष्य के हों, तो १०० हाथ के भीतर हो । मनुष्य की हड्डी यदि जली या धुली न हो तो १२ वर्ष तक। १४ अशृचि की दुर्गन्ध आवे या दिखाई दे तब तक १५ श्मशान भूमि- सौ हाथ से कम दूर हो तो १६ चन्द्रग्रहण-खंड ग्रहण मे ८ प्रहर, पूर्ण हो तो १२ प्रहर १७ सूर्य ग्रहण " १२ " १६ " १८ राजा का अवसान होने पर, जबतक नया राजा घोषित न हो। १६ युद्ध स्थान के निकट जब तक युद्ध चले। २० उपाश्रय मे पचेन्द्रिय का शव पड़ा हो, जब तक पड़ा रहे। २१-२५ आषाढ, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमा दिन रात २६-३० इन पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा ३१-३४ प्रात, मध्यान्ह, सध्या और अर्द्ध रात्रि १-१ महर्त । उपरोक्त अस्वाध्याय को टालकर स्वाध्याय करना चाहिए । खुले मुंह नही बोलना तथा दीपक के उजाले मे नही वाचना चाहिए। नोट-- मेघ गर्जनादि में अकाल, आर्द्रा नक्षत्र से पूर्व और स्वाति के वाद का माना गया है। (१२) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जैन स्वाध्यायमाला श्री सुखविपाक सूत्र (१) तेण कालेन तेणं समएण रायगिहे णाम णयरे होत्था । रिद्धित्थिमियसमिद्धे गुणसिलए चेडए । सुहम्मे अणगारे समोसढे । जंबू जाव पज्जुवासइ एव वयासी-जइ णं भते ! समणेण भगवया महावीरेण जाव सपत्तेणं दुहविवागाण अयमट्ठे पण्णत्ते । सुहविवागाण भते । समणेण भगवया महावीरेणं जाव सपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? तएण से सुहम्मे अणगारे जवू अणगार एवं वयासी - एव खलु जबू । समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्तेणं सुहविवागाण दस अज्झयणा पण्णत्ता । तजहा - १ सुबाहू २ भद्दणदी य ३ सुजाए ४ सुवासवे ५ तहेव जिणदासे ६ धणवई य ७ महब्वले ८ भद्दणदी & महचदे १० वरदत्ते । 1 जइ णं भते । समणेण भगवया महावीरेण जाव सपत्तेण सुहविवागाण दस प्रज्भयणा पण्णत्ता । पढमस्स णं भते । अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेण भगवया महावीरेणं जाव सपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? तएणं से सुहम्मे अणगारे जबू अणगारं एवं वयासी- एव खलु जबू | तेण कालेन तेण समएणं हत्थिसीसे Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुख विपाक सूत्र णामं णयरे होत्या । रिद्धिस्थिमियसमिद्धे । तत्थण हत्थिसीसस्स गयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए एत्थण पुप्फकरडए णामं उज्जाणे होत्था। सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे, रम्मे, णदणवणप्पगासे पासाईए दरिणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे । तत्थ ण कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था दिवे । तत्थ णं हत्थिसीसे णयरे अदीणसत्तू णामं राया होत्था । महया हिमवते, रायवण्णो । तस्स ण अदोणसत्तुस्स रणो धारिणीपामोक्ख देवीसहम्स ओरोहे यावि होत्था । तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइं तसि तारिसगसि वासभवणसि सीह सुमिणे जहा मेहजम्मण तहा भाणियन्व । णवर सुबाहुकुमारे जाव अलं भोगसमत्थे यावि जाणति, जाणित्ता अम्मापियरो पंच पासायडिसगसयाइ करेति अभुग्गयमसियपहसिय विव भवण । एवं जहा महब्बलस्स रण्णो । णवरं पुप्फचूला पामोक्खाण पचण्ह रायवरकण्णासयाण एगदिवसेणं पाणि गिण्हावेइ तहेव पचसयाइ दामो जाव उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणमत्थेहि जाव विहरइ। तेण कालेण तेण समएण समणे भगव महावीरे समोसढे । परिसा णिग्गया । अदीणसत्तू जहा कोणिए णिग्गए । सुबाहुकुमारे वि जहा जमाली तहा रहेण णिग्गए । जाव धम्मो कहिओ, राया परिसा य पडिगया । तए णं से सुबाहुकुमारे समणस भगवो महावीरस्म अतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हतुठे ५ उदाए उठेइ जाव एव वयासीसद्दहामि णं भंते ! णिग्गयं पावयण जाव जहा ण देवाणु प्पियाण Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला अतिए बहवे राईसरसत्थवाहपभइयो मुडे भवित्ता अगारामो अणगारिय पव्वइया । णो खलु अह तहा सचाएमि मुडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारिय पव्वइत्तए । अहं ण देवाणुप्पियाण अतिए पचाणुव्वयाइ सत्तसिक्खावयाई दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह । तए ण से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए पंचाणुव्वयाइ सत्तसिक्खावयाइं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता तमेव रहं दुरूहइ, दुरूहित्ता जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए । तेण कालेण तेणं समएण समणस्स भगवनो महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभई णाम अणगारे जाव एव वयासी, अहो ण भते ! सुबाहुकुमारे १ इठे इटरूवे २ कते कतरूवे ३ पिये पियरूवे ४ मणुण्णे मणुण्णरूवे ५ मणामे मणामस्वे सोमे सुभगे पियदंसणे सुरूवे, बहुजणस्सवि य ण भंते ! सुबाहुकुमारे इढे इट्ठरूवे ५ सोमे जाव सुरूवे । साहुजणस्सवि य ण भते ! सुबाहुकुमारे इठे इट्ठरूवे ५ जाव सुरूवे । सुबाहुणा भंते ! कुमारेण इमा एयारूवा उराला माणुस्सरिद्धी किण्णा लद्धा, किण्णा पत्ता, किण्णा अभिसमण्णागया ? को वा एस आसी जाव किं णामए वा कि गोत्तए वा किं वा दच्चा किंवा भोच्चा किं वा समायरित्ता कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि पायरियं धम्मियं सुवयण सोच्चा जेण इमेयारूवा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। एवं खल गोयमा । तेण कालेणं तेणं समएण इहेव जंबहीवे Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखविपाक सूत्र दीवे भारहे वासे हथिणाउरे णामं णयरे रिद्धिस्थिमियसमिद्धे वण्णो । तत्थ ण हत्थिणाउरे णयरे सुमुहे णाम गाहावई परिवसइ अड्ढे दित्ते जाव अपरिभूए । तेणं कालेण तेणं समएणं धम्मघोसे णाम थेरे जाइसपण्णे जाव पंचहिं ममणसएहिं सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिणाउरे णयरे जेणेव सहस्सववणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छ इ उवागच्छित्ता प्रहापडिरूव उग्गह उग्गिण्हइ उग्गिण्हित्ता सजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ । तेण कालेण तेण समएण धम्मघोसाण थेराण अतेवामी सुदत्ते णाम अणगारे उराले जाव तेउलेसे मास मासेण खममाणे विहरइ । तएण सुदत्ते अणगारे मासखमणपारणगसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ । जहा गोयमसामी तहेव धम्मघोसं थेर पापुच्छइ जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिह अणुपविठे । तएण से सुमुहे गाहावई सुदत्त अणगार एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हतुठे आसणायो अभुठेइ अभुद्वित्ता पायपीढायो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाग्रो प्रोमुयइ प्रोमुइत्ता एगसाडिय उत्तरासग करेइ, करित्ता सुदत्तं अणगार सत्तट्ठपयाइ अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिखुत्तो आयाहिण पयाहिण करेइ, करित्ता वंदइ णमसइ वदित्ता णमसित्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयहत्थेण विउलं असण पाण खाइम साइमं पडिलाभिस्सामि त्ति कट्ट तुठे, पडिलाभेमाणे वि तुठे, पडिलाभिए वि तुझे। तए ण तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेण दव्वसुद्धेण दायग Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला सुद्धेण पडिग्गाहगसुद्धेण तिविहेण तिकरणसुद्धेण सूदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे ससारे परित्तीकए। मणुस्साउए णिवद्धे । गिहंसि य से इमाइंपच दिव्वाइ पाउभूयाइ। त जहा-१ वसुहारा वुटा २ दसवण्णे कुसुमे णिवाइए ३ चेलुक्खेवे कए ४ पाहयाओ देवद्दुहिरो ५ अतरा वि य ण आगास सि अहो दाण अहों दाण घट्टे य । तए ण हस्थिणाउरे णयरे सिंघाडग जाव पहेमू बहजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ ४ धण्णे ण देवाणुप्पिया सुमुहे गाहावई जाव त धण्णे ण देवाणुप्पिया सुमुहे गाहावई । तए ण से सुमुहे गाहावई बहूइ वासाइ आउय पालेइ पालित्ता कालमासे काल किच्चा हेव हत्यिसीसे णयरे अदीणसत्तुस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे । तए ण सा धारिणी देवी सणिज्जसि सुत्तजागरा उहीरमाणी उहीरमाणी तहेव सीहं पासइ । सेसं त चेव जाव उप्पि पासाए विहरइ । त एवं खलु गोयमा । सुवाहुणा कुमारेणं इमे एयारूवा माणुस्सरिद्धि लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। प ण भते । सुबाहकुमारे देवाण प्पियाण अतिए मुडे भवित्ता अगारामो अणगारिय पव्वइत्तए ? हता पभू । तएण से भगवं गोयमे समण भगव महावीर वदइ णमसइ वंदित्ता णमसित्ता सजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ । तए ण से समणे भगव महावीरे अण्णया कयाइ हत्थिसीसाओ णयरामो पुप्फकरंडयाओ उज्जाणाओ कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खाययणायो पडिणिक्ख मइ,पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहार विहरइ। तए ण से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिला मेमाणे विहरइ । तए ण Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुखबिपाक मूत्र मे मुबाहुकुमारे अण्णया कयाई चाउदसट्टमुदिठ्ठपुण्णमामिणीमु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणं भूमि पडिलेहेड, पडिले. हित्ता दमसंचारग सथरेड संयरित्ता दमसंथारंग दुरूहइ, दु:हित्ता अट्ठमभत्त पगिण्हड, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए अट्टमभत्तिए पोसह पडिजागरमाणे विहरइ। तए ण तस्स मुवाहुस्स कुमारस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमे एयारूवे अज्झत्यिए ५ समुप्पण्णेधण्णा णं ते गामा-गर-णगर जाव सण्णिवेसा जत्थं ण समणे भगव महावीरे विहरइ । धण्णा णं ते राइमर जाव सत्यवाह पभइयो जे णं समणस्स भगवनो महावीरस्स अतिए मुंडे भवित्ता अगारायो अणगारियं पन्वयति, धण्णा णं ते राइसर जाव सत्यवाह पभइयो जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म पडिसुणति । तं जइ णं समणे भगव महावीरे पुत्राणपुचि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा तए णं अहं समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए मुडे भवित्ता जाव पत्रएज्जा। तए णं समणे भगव महावीरे सुवाहुस्स कुमारस्स इमं एयारूव अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता पुव्वाणुपुत्रि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे णयरे जेणेव पुप्फकरडे उज्जाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गह उगिहित्ता संजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ । परिसा, राया Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला णिग्गया। तए णं तस्स सुवाहुस्स कुमारस्स तं मया जहा पढमं तहा णिग्गयो । धम्मो कहियो । परिसा राया पडिगया। तए ण से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवो महावीरस्स अतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठ-तुझे। जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छइ । णिक्खमणाभिसेग्रो तहेव जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तवभयारी । तए ण से सुबाहु अणगारे समणस्स भगवो महावीरस्स तहारूवाण थेराण अतिए सामाइयमाइयाइ एक्कारस अंगाइ अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बाहिं च उत्थछट्ठट्ठमतवोविहाणेहिं अप्पाण भावित्ता बहूइ वासाई सामण्णपरियाग पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाण झसित्ता सद्धि भत्ताइ अणसणाइ छेदित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे काल किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उबवण्णे। से ण ताओ देवनोगाओ आउक्खएण भवक्खएण ठिइक्खएण प्रणतरं चय चइत्ता माणुस्स विग्गह लभिहिइ, लमिहित्ता केवलंबोहि वुझिहिइ वुज्झिहित्ता तहारूवाण थेराण प्रतिए मुडे भवित्ता जाव पव्वइस्सइ । से ण तत्थ बहूइ वासाइ सामण्णपरियाग पाउणि हिइ, पाउर्णािहत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे काल किच्चा सणकुमारे कप्पे देवत्ताए उबवण्णे। से ण ताओ देवलोगाओ माणुस्सं जाव पव्वज्जा । बंभलोए। तो माणस्स । महासुक्के । तो माणुस्सं । आणए देवे । तयो माणुस्स तो आरणे । तो माणुस्स (तो) सव्वट्ठसिद्धे । से ण तो अणतर चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाव अड्ढे जहा दढपइण्णे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वा. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखावपाक हिइ सन्वदुवखाणमंतं करेहिइ । एवं खलु जंबू । समणेण भगवया महावीरेण जाव सपत्तेण मुहविवागाण पढमस्स ग्रज्भयणस्स प्रथमट्ठे पण्णत्ते, त्तिबेमि । ॥ इइ सुहविवागस्स पढमं अज्झयण सम्मत्तं ॥ १ ॥ (२) बिईयस्स उक्खेवो । एव खलु जबृ | तेण कालेण तेणं समएणं उसभपुरे णाम णयरे थूमकरडग उज्जाण । धण्णो जक्खो | धणवही राया, सरस्सई देवी । सुमिणदमण, कहण, जम्म बालत्तणं, कलाओ य जोव्वणे पाणिगहण, दाम्रो पासाया य भोगा य जहा सुबाहुस्स णवर भद्दणंदी कुमारे । सिरीदेवी पामोक्खाणं पचसया । सामिस्स समोसरण सावगधम्म पडिवज्जे पुग्वभव पुच्छा | महाविदेहवासे पुडरीगिणि णगरीए विजए कुमारे जगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए, मणुम्साउए विद्धे, इह उववण्णे | सेस जहा सुबाहुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहि परिनिव्वाहि सव्वदुक्खाणमतं करेहिइ । एव खलु जंबू । समणेण भगवया महावीरेणं जाव सपत्तेण सुहविवागाण विईयस्स ग्रज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते त्तिबेमि । || इइ सुहविवागस्स बीय अज्झयण सम्मत्त ॥२॥ ( ३ ) तईयस्स उक्खेवो । वीरपुरे णामं णयरे । मणोरमे उज्जाणे वीरकण्हे जवखे, मित्ते राया, सिरीदेवी सुजाए कुमारे। चलसिरी पामोक्खाणं पचसयाकण्णा । सामी समोसरिए । पुव्वभव पुच्छा । उसुयारे णयरे उसभदत्ते गाहावई पुप्फदते अणगारे Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला पडिलाभिए, मणुस्साउए णिवद्धे इह उववण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ।। ॥ इइ सुहविवागस्स तईयं अज्झयण सम्मत्त ।३। (४) चउत्थस्स उखेवो। विजयपुरे णयरे । णंदणवणे उज्जाणे । असोगो जक्खो। वासवदत्ते राया । कण्हसिरी देवी। सुवासवे कुमारे। भद्दा पामोक्खाण पंचसया जाव पुत्वभव पुच्छा। __ कोसंबी णयरी। धणपालो राया। वेसमणभद्द अणगारे पडिलाभिए, इह उववण्णे जाव सिद्धे । || इइ सुहविवागस्स चउत्थ अज्झयण सम्मत्त ।।४।। (५) पंचमस्स उक्खेवो । सोगंधिया णयरी । णीलासोगे उज्जाणे सुकालो जक्खो। अपडिहय राया, सुकण्हादेवी, महचदे कुमारे । तस्स अरहदत्ता भारिया । जिणदासो पुत्तो । तित्थयरागमण । जिणदासो पुव्वभवपुच्छा । मज्झमिया णयरी मेहरहे राया । सुधम्मे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे । || इइ सुहविवागस्स पंचम अज्झयणं सम्मत्त । ५।। (६) छट्ठस्म उक्खेवो । कणगपुरे णयरे । सेयासोए उज्जाणे । वीरभद्दो जक्खो । पियचदे रया । सुभद्दादेवी । वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरीदेवी पामोक्खाण पंचसया । तित्थयरागमणं धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुन्वभव पुच्छा । मणिवइयाणयरी । मित्तेराया, संभूइविजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे ।।६।। || इइ सुहविवागस्स छट्ठ अज्झयणं सम्मत्त ।।६।। (७) सत्तमस्स उक्खेवो । महापुरे णयरे । रत्तासोगे Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखविपाक सूत्र अ. ८ से १० उज्जाणे । रत्तपानो जक्खो । बले राया सुभद्दादेवी | महाबले कुमारे, रत्तवई पामोक्खाण पचसया । तित्थयरागमणं जाव पुव्वभव पुच्छा | मणिपुरे णयरे । नागदत्ते गाहावई, इंददत्ते अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे । ॥ इइ सुहविवागस्स सत्तमं अज्भयण सम्मत्त ||७|| 1 ( ८ ) अट्ठमस्स उक्खेवो । सुघोसे णयरे । देवरमणे उज्जाणे । वीरसेणो जक्खो । अज्जुणो राया । रत्तवई देवी । भद्दणदी कुमारे । सिरीदेवी पामोक्खाण पचसया जाव पुव्वभव पुच्छा | महाघांसे णयरे । धम्मघोसे गाहावई । धम्मसीहे अणगारे | पडिलाभिए जाव सिद्धे । ॥ इइ सुहविवागस्स ग्रमं अभयणं सम्मत्त ||८|| ( ९ ) णवमस्स उक्खेवो । चपा णयरी | पुण्णभद्दे उज्जाणे पुण्णभद्दो जक्खो | दत्ते राया । रत्तवई देवी । महचदे कुमारे जुवराया । सिरीकता पायोक्खाण पंचसया जाव पुव्वभव पुच्छा । तिमिच्छा णयरी | जियसत्तुराया | धम्मवीरिए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे । || इइ सुहविवागस्स णवमं अज्झयण सम्मत्तं ॥ || (१०) जइ ण भंते ! दसमस्स उक्खेवो । एव खलु जवू ! तेण कालेन तेणं समएण साइए णाम णयरे होत्था | उत्तरकुरू उज्जाणे, पासामिन जक्खो । मित्तणंदी राया । सिरीकता देवी | वरदत्ते कुमारे वीरसेणा पामोक्खाणं पचदेवी सया । तित्थयरागमणं सावगधम्म पुग्वभव पुच्छा । सयदुवारे णयरे । विमल 3 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ११ 1 वाहणे राया । धम्मरुड अणगारे पडिलाभिए, मणुस्सा उए णिबद्धे इह उववण्णे | सेस जहा सुबाहुम्स चिंता जाव पवज्जा कप्पतरिए जाव सव्वसिद्धे । तश्रो महाविदेहे जहा दढपइण्णे जाव सिज्जिहिइ ५ । एवं खलु जब । समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सपत्तेण सुहविवागाण दसमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । सेव भते, सेवं भते त्तिबेमि । || इइ सुहविवागस्स दसम अज्झयण सम्मत्त ॥ णमो सुदेवयाए । विवागसुयस्स दो सुयखधा दुहविवागे य सुहविवागे य । तत्थ दुहविवागे दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिजति । एव सुहविवागे वितेस जहा भारती अका आयारस्स || १०॥ त ॥ इति सुखविपाक्तं सूत्रम् ।। कमांक 9.75.8 उववाइ सूत्र की बाईस गाथाएँ जयपुर कहि पहिया सिद्धा ? कहिं सिद्धा पट्टिया ? | कहि बोदि चइत्ताण, कत्थ गतूण सिज्झइ ॥१॥ अलोगे पहिया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्टिया । इहं बोदि चइत्ताण, तत्थ गतूण सिज्झइ ||२|| ज सठाण तु इह भवे, चयंतस्स चरिमसमयंमि । श्रासी य पएसघण, त संठाण तहि तस्स ॥३॥ दीह वा हसं वा जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं । yog Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ उववाई सूत्र तत्तो तिभागहीणं, सिद्धाणोगाहणा भणिया |४| तिण्ण सया तेत्तीसा, धणुत्तिभागो य होइ बोधव्वा । एमा खलु सिद्धाणं, उक्कोसोगाहणा भणिया | ५ | चत्तारि य रयणी, रयणितिभागूणिया य बोधव्वा । एसा खलु सिद्धाण, मज्झिमप्रोगाहणा भणिया | ६ | एक्का य होइ रयणी, साहिया प्रगुलाई अटु भवे । एसा खलु सिद्धाणं, जहण्णश्रोगाहणा भणिया | ७ | प्रोगाहणाए सिद्धा, भवत्तिभागेण होइ परिहीणा । संठाणमणित्थथं, जरामरण विप्प मुक्काण | जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ प्रणता भवक्खयविमुक्का । अण्णोष्णसमोगाढा, पुट्ठा सन् य लोगंते || फुसइ अणते सिद्धे, सव्वपएसेहिं पियमसो सिद्धो । ते विप्रसखेज्जगुणा, देसपए से हि जे पुट्ठा ॥ १० असरीरा जीवघणा, उवउत्ता दसणे य णाणे य । सागारमणागार, लक्खणमेय तु सिद्धाण | ११ | केवलणाणुवउत्ता, जाणति सव्वभावगुणभावे । पासति सव्वओो खलु केवल दिट्टिश्रणंताहिं | १२ | वि अत्यि माणुसणं, त सोक्खं ण वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं मोक्ख, श्रव्वावाह उवगयाणं । १३ । जं देवाण सोक्ख, सव्वद्धापिडियं प्रणतगुण । णय पावइ मुत्तिसुह, ताहि वग्गवग्गूहिं | १४| सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धापिडिग्रो जइ हवेज्जा । सोऽणत वग्गभइओ, सव्वागासे ण माएज्जा ॥ १५॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १३ जह णाम कोइ मिच्छो, णगरगुणे बहुविहे वियाणतो । ण चएइ परिकहेउ, उवमाए तहिं असंतीए ।१६। इय सिद्धाणं सोक्ख, अणोवमं णत्थि तस्स प्रोवम्म । किंचि विसेसेणेत्तो, अोवम्ममिणं सुणह वोच्छ ।१७। जह सव्वकामगुणिय, पुरिसो भोत्तूण भोयण कोई । तण्हाछुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो।१८। इय सव्वकालतित्ता, अतुल णिव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वाबाह, चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ।१६। सिद्धत्ति य बुद्धत्ति य, पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुक्ककम्मकवया, अजरा अमरा असंगा य ।२०। णिच्छिण्णसम्बदुक्खा, जाइजरामरणबधणविमुक्का। अव्वाबाह सुक्ख, अणुहोति सासय सिद्धा ।२१॥ अतुलसुहसागरगया अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता । सव्वमणागयमद्धं, चिट्ठति सुही सुह पत्ता ।२२। पुच्छिस्सुणं पुच्छिस्सु णं समणा माहणा य, अगारिणो या परतित्थिया य । से केइ गतहियधम्ममाहु, अणेलिसं साहु समिक्खयाए ।११ कहं च णाणं कह दसण से, सील कह णायसुयस्स आसी ? जाणासि ण भिक्खु जहातहेण, अहासुय बूहि जहा णिसत २॥ खेयण्णए से कुसले महेमी, अणंतणाणी य अणतदसी । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुच्छिस्सुणं जससिणो चक्खुप हे ठियस्स, जाणाहि धम्म च धिइ च पेहि |३| उड्ढ हे तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । से णिच्चणिच्चेहि समिक्ख पण्णे, दीवे व धम्मं समियं उदाहु |४| से सव्वदसी श्रभिभूयणाणी, णिरामगधे धिइमं ठियप्पा | श्रणुत्तरे सव्वजगसि विज्ज, गया प्रतीते अभए प्रणाऊ |५| से भूइपणे प्रणिएयचारी, प्रोहतरे धीरे प्रणंतचक्खू | प्रणुत्तरं तप्पइ सूरिए वा, वइरोयणिन्दे व तम पगासे | ६ | प्रणुत्तरं धम्ममिण जिणाण, णेया मुणी कासव आसुपण्णे । इदे व देवाण महाणुभावे, सहस्सणेया दिवि णं विसिट्ठे ॥७॥ से पण्णया प्रक्खयसागरे वा, महोदही वा वि श्रणंतपारे । अणाइले वा प्रकसाइ मुक्के ( भिक्खु), सक्के व देवाहिवई जुइमं | ८ | से वीरिएण पडिपुण्णवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसेट्ठे । सुरालए वासी मुदागरे से, विरायए णेगगुणोववे सयं सहस्साण उ जोयणाण, तिकडगे पडगवेजयते । से जोयणे णवणवइसहस्से, उद्धस्सितो हेट्ठ सहस्समेग | १० | पुट्ठे णभे चिट्ठइ भूमिवट्ठिए, ज सूरिया अणुपरिट्टयति । से हेमवण्णे बहुणदणे य, जसि रई वेदयंति महिंदा | ११ | से पव्वए सद्दमहप्पगासे, विरायइ कंचणमट्टवण्णे । प्रणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे, गिरिवरे से जलिए व भो । १२ । महीइ मज्झमि ठिए गिदे, पण्णायते सूरिए सुद्धलेसे । एवं सिरीए उ स भूरिवण्णे, मणोरमे जोयइ चिचमाली | १३ | सुदसणस्सेव जसो गिरिस्स, पवच्चइ महतो पव्वयस्स । एतोवमे समणे णायपुत्ते, जाइजसो दसणणाणसी ले |१४| १४ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनस्वाध्यायमाला गिरिवरे वा णिसहाऽऽययाण, रुयए व सेठे वलयायताण । तोवमे से जगभूइपण्णे, मुणीण मज्झे तमुदाहु पण्णे ।१५॥ अणुत्तर धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तर झाणवरं झियाइ । सुसुक्कसुक्कं अपगंडसुक्क, सखिंदुएगतवदातसुक्क ।१६। अणुत्तरग्गं परम महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धि गए साइमणंतपत्ते, णाणेण सीलेण य दसणेण ।१७। रुक्खेसु णाए जह सामली वा, जंसि रइं वेदयंति सुवण्णा । वणेसु वा णंदणमाहु सेट्ठ, णाणेण सीलेण य भइपण्णे ।१८॥ थणिय व सहाण अणुत्तरे उ, चदो व ताराण महाणुभावे । गधेसु वा चदणमाहु सेट्ठ, एवं मुणीण अपडिण्णमाहु ।१६। जहा सयभू उदहीण सेठे, णागेसु वा धरणिंदमाहु सेठे । खोप्रोदए वा रसवेजयते, तवोवहाणे मुणिवेजयंते ।२०। हत्थीसु एरावणमाहु णाए, सीहो मियाण सलिलाण गंगा । पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो, णिव्वाणवादी णिह णायपुत्ने ।२१। जोहेसु णाए जह वीमसेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु । खत्तीण सेठे जह दतवक्के, इसीण सेढे तह वद्धमाणे ।२२॥ दाणाण सेठं अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवज्ज वयति । तवेसु वा उत्तम बभचेर, लोगुत्तमे समणे णायपुत्ते ।२३। ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेट्ठा । णिबाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि णाणी ।२४। पुढोवमे धुणइ विगयगेहि, न सण्णिहि कुव्वइ आसुपण्णे। तरिउं समुद्द च महाभवोघ, अभय करे वीर अणतचक्खू ।२५॥ कोह च माणं च तहेव माय, लोभ च उत्थं च अज्झत्थदोसा । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ मोक्षमार्ग एयाणि वता रहा महेसी. ण कुव्वइ पात्र ण कारवेइ | २६ | किरिया करिय वेणइयाणुवाय, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाण | से सव्ववाय इइ वेयइत्ता, उवट्ठिए सजमदीहरायं |२७| से वारिया इत्यी सराइभत्तं, उवहाणव दुक्खखयट्टयाए । 1 लोगं विदित्ता प्रारं परं च सव्वं पभू वारिय सव्ववार |२८| सोच्चा य धम्म अरहतभासियं समाहिय प्रदूपदोवसुद्ध | 1 तं सहाणा य जणा प्रणाऊ, इंदा व देवाहिव प्रागमिस्सति |२६| मोक्ष मार्ग कयरे मग्गे अक्खाए, माहणेण मइमया ? ज मग्ग उज्जु पावित्ता, ग्रह तरइ दुत्तर |१| तं मग्ग णुत्तर सुद्धं सव्वदुक्ख विमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू, तं णो बूहि महामुनी |२| जइणो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा | तेस तू कयरं मग्ग, ग्राइखेज्ज कहाहि णो | ३ | जइ णो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । ते सिमं पडिसाहिज्जा, मग्गसारं सुणेह मे |४| प्रणुपुवेण महाघोर, कासवेण पव्वेइयं । जमायाय इम्रो पुव्वं, समुद्द ववहारिणो |५| श्रतरसु तरतेगे, तरिस्संति प्रणागया । तं सोच्चा पडिवक्खामि, जतवो तं सुणेह मे | ६ | Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १७ पुढवीजीवा पुढो सत्ता, आउजीवा तहाऽगणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुक्खा सबीयगा ।७। अहावरा तसा पाणा, एव छक्काय आहिया। एयावए जीवकाए, णावरे कोइ विज्जई ।। सव्वाहिं अणुजुत्तीहि भइमं पडिलेहिया। सव्वे अक्कतदुक्खा य, अग्रो सव्वे न हिंसया ।। एयं खु णाणिणो सार, जं न हिंसइ किंचण । ___अहिंसा समयं चेव, एयावंतं वियाणिया ।१०। उडढ अहे य तिरिय, जे केइ तसथावरा। सम्वत्थ विरइं कुज्जा, सति णिव्वाणमाहिय ।११॥ पभू दोसे णिराकिच्चा, ण विरुज्झज्ज केणई। मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अतसो ।१२। संवुडे से महापण्णे, धीरे दत्तेसण चरे। एसणासमिए णिच्च, वज्जयते अणेसण ।१३। भूयाइं च समारभ, तमुद्दिस्सा य ज कडं। तारिसं तु न गिण्हेज्जा, अण्णपाणं सुसजए ।१४। पूइकम्मं न से विज्जा, एस धम्मे वुसीमनो। जं किंचि अभिकंखेज्जा, सव्वसो त न कप्पए ।१५॥ हणतं णाणुजाणेज्जा, पायगुत्ते जिइदिए । ठाणाइं सति सड्ढीणं, गामेसु णगरेसु वा ।१६। तहा गिरं समारब्भ, अत्थि पुण्णंति णो वए। श्रहवा णत्थि पुण्णति, एवमेयं महब्भय ।१७। दाणट्ठया य जे पाणा, हम्मति तस-यावरा । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्षमार्ग तेसिं सारक्खणढाए, तम्हा अत्थि त्ति णो वए ।१८। जेसि त उवकप्पति, अण्णपाण तहाविहं ।।। तेसिं लाभंतरायति, तम्हा णस्थित्ति णो वए ।१६। जे य दाणं पसंसंति, वहमिच्छंति पाणिणं । जे य णं पडिसेहंति, वित्तिच्छेय करति ते ॥२०॥ दुहओ वि ते ण भासति, अस्थि वा पत्थि वा पुणो । आय रयस्स हेच्चा णं, णिव्वाण पाउणति ते ॥२१॥ णिव्वाण परमं बुद्धा, णक्खत्ताण व चंदिमा। ___ तम्हा सया जए दते, णिन्वाणं संधए मुणी ।२२। बुज्झमाणाण पाणाणं, किन्चंताण सकम्मणा । आघाइ साहु तं दीव, पइट्ठेसा पवुच्चइ ।२३। पायगुत्ते सया दते, छिण्णसोए अणासवे । जे धम्म सुद्धमक्खाइ, पडिपुण्णमणेलिसं।२४॥ तमेव अविजाणता अवद्धा बुद्धमाणिणो । वुद्धा मोत्ति य मण्णंता, अंत एते समाहिए ॥२५॥ ते य वीनोदगं चेव, तमुहिस्सा य ज कड । भोच्चा माणं झियायति, अखेयण्णाऽसमाहिया ।२६। जहा ढका य कंका य, कुलला मग्गुका सिही। मच्छेसणं झियायति, झाण ते कलसाहम ।२७। एवं तु समणा एगे, मिच्छद्दिट्ठी अणारिया । विसएसण झियायंति, कंका वा कलुसाहमा (२८१ सुद्धं मग्ग विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मई। उम्मग्ग-गया दुक्खं, घायमेसंति तं तहा ।२६) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला जहा आसाविणी नावं जाइअधो दुरूहिया। - इच्छइ पारमागतु, अतरा य विसीयइ ।३०। एवं तु समणा एगे, मिच्छविट्ठी प्रणारिया । सोयं कसिणमावण्णा, आगंतारो महन्भयं ।३१॥ इम च धम्ममायाय, कासवेण पवेइयं । तरे सोय महाघोरं, अत्तत्ताए परिव्वए ।३२। विरए गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा। तेसिं अत्तुवमायाए, थामं कुव्व परिव्वए ।३३। अइमाण च मायं च, त परिणाय पडिए । सव्वमेय णिराकिच्चा, णिव्वाणं संधए मणी ।३४। संधए साहुधम्म च, पावधम्मं गिराकरे। उवहाणवीरिए भिक्ख कोहं माण ण पत्थए ।३५॥ जे य बुद्धा अइक्कंता, जे य बुद्धा प्रणागया । ___ संति तेसिं पइट्ठाणं, भूयाणं जगई जहा ।३६। अह ण वयमावण्ण, फासा उच्चावया फुसे । ण तेसु विणिहण्णेज्जा, वाएण व महागिरी ।३७। सवुडे से महापण्णे, धीरे दत्तेसण चरे। णिव्वुडे कालमाकखी,एव केवलिणो मयं ॥त्तिबेमि।३८॥ ॥ इति सूत्रकृतागे मोक्षमार्गनामक एकादशमध्ययनम् ।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र ॥ दुमपुफिया पढमं अज्झयणं । धम्मो मगलमुक्किठें, अहिंसा संजमो तवो । देवावि तं णमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ।१। जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो प्रावियइ रसं । ण य पुप्फ किलामेइ, सो य पीणेइ अप्पयं ।२। एमए समणा मुत्ता, जे लोए सति साहुणो । विहगमा व पुप्फेमु, दाणभत्तेसणे रया ।३। वयं च वित्ति लव्भामो, ण य कोइ उवहम्मइ । अहागडेसु रीयते पुप्फेसु भमरा जहा ।४। महगारसमा बद्धा, जे भवंति अणिस्सिया । णाणापिंडरया दता, तेण वच्चंति साहणो 11 त्ति बेमि । || इति दुमपुस्फियानामं पढमज्झयणं समत्तं ।। ॥सामण्णपुब्वयं दुइअं अज्झयणं॥ कहण्ण कुज्जा सामण्णं, जो कामे ण णिवारए । पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गयो । वत्थ-गन्ध-मलकारं इत्थीनो सयणाणि य । अच्छदा जे ण भुजति, ण से चाइति वुच्चइ ।२। जे य कंते पिए भोए, लद्धे विपिट्ठीकुम्वइ । साहीणे चयइ भोए, से हु चाइत्ति वुच्चइ ।६। समाइ पेहाए परिव्वयंतो, सिया मणो णिस्सरइ वहिद्धा । ण सा महं णो वि अहपि तीसे, Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला .ss २१ इच्चेव ताम्रो विणएज्ज रागं |४| आयावयाहि, चय सोगमल्लं, कामे क्रमाहि, कमियं खु दुक्खं । छिदाहि दोस विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि सपराए |५| पक्खंदे जलिय जोइ, धूमकेउ दुरासय णेच्छति वंतय भोत्तु, कुले जाया गधणे | ६ | धिरत्थु तेऽजसोकामी, जो त जीवियकारणा । वतं इच्छसि आवेडं, सेयं ते मरण भवे ॥७॥ ग्रह च भोगरायस्स, त च सि अधगवण्हिणो । मा कुले गधणा होमो, सजमं णिहुस्रो चर |८| जइ त काहिसि भाव, जा जा दिच्छसि णारीश्रो । वाया विद्धव्व हो, अद्विअप्पा भविस्ससि | तीसे सो वयणं सोच्चा, सजयाइ सुभासियं । अंकुसेण जहा णागो, धम्मे सपडिवाइन |१०| एवं करेति संबुद्धा, पडिया पवियक्खणा । विणियदृति भोगेसु, जहा से पुरिसुत्तमो । ११ । त्ति बेमि । ॥ इति सामण्णपुव्वय नाम अज्झयणं सम्मत्तं ॥ || खुड्डियायारकहा तइयं श्रज्झणं ॥ ३॥ सजमे सुट्टिअप्पाण, विप्पमुक्काण ताईण | तेसिमेयमणाइण्ण, णिग्गथाण महेसीण | १ | उद्देसियकीयगड, णियागं अभिहडाणि य । राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य वीयणे । २ । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ दशवकालिक सूत्र में ३ सपिणही गिहिमने य, रायपिंड किमिच्छए । सवाहणा दतपहोयणा य, सपुच्छणा देह-पलोयणा य ।३। अट्ठावए य णालीए, छत्तस्स य धारणट्ठाए । तेगिच्छं पाणहा पाए, समारम्भ च जोइणो ।४। सेज्जायर-पिण्ड च, प्रासदी पलियंकए । गिहंतरणिसेज्जा य, गायस्सुव्वट्टणाणि य ।। गिहिणो वेयावडियं, जा य आजीववत्तिया । तत्तानिव्वुडभोइत्तं, आउरस्सरणाणि य ।६। मूलए सिंगबेरे य, उच्छुखण्डे अनिव्वुडे । कदे मले य सच्चित्ते फले बीए य आमए ।७। सोवच्चले सिंघवे लोणे, रोमा-लोणे य श्रामए । सामुद्दे पंसु-खारे य, काला लोणे य आमए ।। धूवणेत्ति वमणे य, वत्थीकम्मविरेयणे । अंजणे दतवणे य, गायन्भगविभूसणे 18। सव्वमेयमणाइण्ण णिग्गंयाण महेसिण। सजमम्मि य जुत्ताण, लहुभयविहारिणं ।१०। पंचासवपरिण्णाया, तिगुत्ता छम संजया । पचणिग्गहणा धीरा, णिग्गथा उज्जुदंसिणो ॥११॥ आयावयंति गिम्हेसु, हेमतेसु अवाउडा । वासामु पडिसलीणा, सजया सुसमाहिया ।१२। परीसहरिउदंता, धूयमोहा जिइदिया । सव्वदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमंति महेसिणो ।१३। दुक्कराई करेत्ताणं, दुस्सहाई सहित्तु य । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनस्वाध्यायमाला के इत्थ देवलोएस. केइ सिज्झति णीरया ।१४। खवित्ता पुवकम्माइ, सजमेण तवेण य । सिद्धिमग्गमणुप्पत्ता, ताइणो परिणिव्वुडा ।१५। ति बेमि। ॥ खुड्डियायारकहा नाम तइयमज्झयणं समत्त ।। । छज्जीवणिया नामं चउत्थं अज्झयणं ॥४॥ सुय मे पाउसं तेणं भगवया एवमक्खाय, इह खलु छज्जीवणिया णामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेण पवेइया सुयक्खाया सुपण्णत्ता सेयं मे अहिज्जिउ अझयण धम्मपण्णत्ती । कयरा खलु सा छज्जीवणिया णामझयण समणेण भगवया महावीरेण कासवेण पवेइया सुयक्खाया सुपण्णत्ता सेय मे अहिज्जिउं अज्झयण धम्मपण्णत्ती। ___ इमा खलु सा छज्जीवणिया णामज्झयण समणेण भगवया महावीरेण कासवेण पवेडया सुयक्खाया सुपण्णत्ता सेय मे अहिज्जिउ अज्झयण धम्मपण्णत्ती । तं जहा-१ पुढविकाइया २ अाउकाइया ३ तेउकाइया ४ वाउकाइया ५ वणस्सइकाइया ६ तसकाइया । पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अण्णत्थ सत्थ-परिणएण । आऊ चित्तमतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अण्णत्थ सत्थ-परिणएण । तेऊ चित्तमतमक्खाया अणेग-जीवा पुढोसत्ता अण्णत्थ सत्थ-परिणएण । वाऊ चित्तमंतमक्खाया अणेग-जीवा पुढोसत्ता अण्णत्थ सत्थपरिणएण । वणस्सई चित्तमंतमक्खाया अणेग-जीवा पुढोसत्ता अण्णत्थ सत्थपरिणएण । त जहा-अग्ग-बीया, मूल-बीया, पोर-बोया, खंधबीया बीयरुहा, सम्मुच्छिमा, तणलया वणस्सइकाइया, स बोया, Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र चित्तमतमक्खाया अणेग-जीवा, पुढोसत्ता, अण्णत्थ सत्थपरिणएणं । से जे पुण इमे अणेगे बहवे तसा पाणा, जहा. अडया,पोयया, जराउया, रसया, ससेइमा, सम्मुच्छिमा, उब्भिया, उववाइया, जेसि केसिं च पाणाण, अभिक्कतं पडिक्कंत संकुचिय पसारियं रुयं, भंत, तसिय, पलाइयं आगइ-गइविण्णाया, जे य कीडपयंगा जा य कुंथ-पिवीलिया, सव्वे वेइदिया, सव्वे तेइंदिया, सव्वे चरिंदिया, सव्वे पंत्रिदिया, सव्वे तिरिक्खजोणिया, सव्वे णेरइया, सव्वे मणुया, सव्वे देवा, सव्वे पाणा, परमाहम्मिया । एसो खलु छठो जीवणिकाओ तसकाओ त्ति पवुच्चइ। इच्चेसि छण्हं जीवणिकायाण णेव सयं दंडं समारम्भिज्जा, णेवण्णेहिं दंडं समारम्भाविज्जा, दंडं समारम्भंतेवि अण्णे ण समणुजाणेज्जा, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेण वायाए काएण न करेमि न कारवेमि करंतंपि अण्ण न समणुजाणामि । तस्स भते । पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाण वोसिरामि ।। पढमे भंते । महन्वए पाणाइवायाओ वेरमण । सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच्चक्खामि । से सुहुम वा, वायरं वा तसं वा, थावर वा, णेव सय पाणे अइवाइज्जा,णेवण्णेहिं पाणे अइवायाविज्जा, पाणे अइवायतेवि अण्णे ण समजाणेज्जा, जावज्जीवाए तिविह तिविहेण मणेण वायाए कारण ण करेमिण कारवेमि करतपि अण्ण न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाण वोसिरामि । पढमे भते ! महत्वए उवद्विप्रोमि सव्वा पाणाइवायाप्रो वेरमणं 1१।। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला अहावरे दुच्चे भते ! महव्वए मुसावायाप्रो वेरमणं । सव्वं भंते ! मुसावाय पच्चक्खामि । से कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, णेव सय मुस वइज्जा णेवण्णेहिं मुस वायाविज्जा, मसं वयते वि अण्णे ण समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेण मणेणं वायाए काएण ण करेमि ण कारवेमि करतपि अण्ण न समणजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । दुच्चे भते । महव्वए उवढिओमि. सव्वानो मुसावायानो वेरमणं ।। अहावरे तच्चे भते । महन्वए अदिण्णादाणाम्रो वेरमण । सव्वं भते । अदिण्णादाणं पच्चक्खामि । से गामे वा, णगरे वा रण्णे वा, अप्पं वा, बहुं वा, अणु वा, थूल वा, चिमत वा, अचित्तमंत वा, णेव सयं अदिण्णं गिव्हिज्जा, जेवण्णेहिं अदिन्नं गिण्हाविज्जा, अदिण्णं गिण्हते वि अण्णे ण समणुजाणेज्जा, जावज्जीवाए तिविह तिवेहेण मणेणं वायाए काएण ण करेमि ण कारवेमि करतपि अण्णं ण समणुजाणामि । तस्स भंते । पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । तच्चे भंते ! महव्वए उवट्टिप्रोमि सव्वानो अदिण्णादाणाप्रो वेरमणं ।३। अहावरे चउत्थे भते । महव्वए मेहुणाम्रो वेरमणं । सव्वं भंते ! मेहुणं पच्चक्खामि । से दिव्वं वा, माणुस वा, तिरिक्खजोणियं वा णेव सयं मेहुण से विज्जा णेवण्णेहिं मेहुण सेवाविज्जा मेहुणं सेवंते वि अण्णे ण समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं ण करेमि ण कारवेमि करतपि अण्ण ण समणजाणामि । तस्स भते पडिक्कमामि जिंदामि गर Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ दसवैकालिक सूत्र अ ४ __ हामि अप्पाणं वोसिरामि । चउत्थे भते । महन्वए उवडिप्रो मि सव्वाग्रो मेहुणाम्रो वेरमणं ।४। अहावरे पचमे भंते ! महन्वए परिग्गहारो वेरमणं । सव्वं भंते ! परिगह पच्चक्खामि । से अप्प वा बहु वा अणु वा थूल वा चित्तमतं वा अचित्तमंत वा । णेव सयं परिग्गहं परिगिण्हेज्जा, णेवण्णेहिं परिग्गहं परिगिण्हाविज्जा, परिग्गहं परिगिण्हतेवि अण्णे ण समाजाणिज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिवि. हेण मणेण वायाए कारण ण करेमि ण कारवेमि करतंपि अण्णं ण समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । पचमे भते ! महव्वए उवदियो मि सव्वाओ परिग्गहारो वेरमण ॥५॥ अहावरे छटठे भते ! वए राइ भोयणाओ वेरमण सव्व भते ! राइ-भोयणं पच्चक्खामि । से असण वा पाण वा खाइमं वा साइमं वा व सय राइ भुजिज्जा, णेवण्णेहि राई भुजाविज्जा, राइं भुजतेविअण्णे ण समणुजाणेज्जा। जावज्जीवाए तिविह तिविहेण मणेणं वायाए काएणं ण करेमि ण कारवेमि करतपि अण्ण ण समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । छठे भते । वए उवद्वियोमि सव्वानो राइ-भोयणामो वेरमण । इच्चेयाइ पच महन्त्रयाई राइभोयण-वेरमण-छट्ठाइ अत्तहियट्ठयाए उवसपज्जित्ता ण विहरामि ।६। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय पावकम्मे, दिग्रा वा, राम्रो वा, एगो वा, परिसागग्रो वा, Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २७ सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से पुढवि वा, भित्ति वा, सिल वा, लेलु वा ससरक्ख वा कायं, सस रक्खं वा वत्थ, हत्थेण दा, पाएण वा कट्ठण वा, किलिचेण वा, अंगुलियाए वा, सिलागए वा, सिलागहत्थेण वा ण प्रालिहिज्जा,ण विलिहिज्जा, ण घट्टिज्जा,ण भिदिज्जा अण्ण ण प्रालिहाविज्जा, ण विलिहाविज्जा, ण घट्टाविज्जा, ण भिदाविज्जा अण्णं प्रालिहतं वा, विलिहतं वा, घटुंत वा, भिदत वा ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेण वायाए काएण ण करेमि ण कारवेमि करतपि अण्णं ण समाजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ।७। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे दिया वा, राम्रो वा, एगो वा, परिसागरो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से उदगं वा, ओसं वा, हिम वा, महिय वा, करगं वा, हरितणुग वा, सुद्धोदगं वा, उदउल्लं वा कायं, उदउल्लं वा वत्थ, ससिणिद्ध वा काय, ससिणिद्ध वा वत्थ, ण प्राम. सिज्जा ण संफुसिज्जा ण प्रावीलिज्जा, ण पवीलिज्जा, ण अक्खोडिज्जा, ण पक्खोडिज्जा, ण आयाविज्जा, ण पयाविज्जा, अण्ण ण आमुसाविज्जा,ण सफुसाविज्जा,ण आवीलाविज्जा ण पवीला. विज्जा,ण अक्खोडाविज्जा,ण पक्खोडाविज्जा,ण आयाविज्जा, ण पयाविज्जा,अण्ण प्रामुसतं वा, सफुसंतं वा,आवीलतं वा, पवीलंतं वा, अक्खोडत वा, पक्खोडंत वा, पायावतं वा, पयावत वा ण समाजाणिज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविहेण मणेण वायाए काएण ण करेमि ण कारवेमि करतंपि अण्णं ण समणुजा Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ दशवकालिक सूत्र अ ४ णामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाण वोसिरामि ।२। से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, सजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे, दिया वा, राम्रो वा, एगो वा, परिसागयो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से अणि वा, इगाल वा, मुम्मुर वा, अच्चि वा, जालं वा, अलाय वा, सुद्धागणि वा, उक्क वा, न उजिज्जा, न घटिज्जा न भिदिज्जा न उज्जालिज्जा, न पज्जालिज्जा, न णिवाविज्जा, अण्ण न उज्जाविज्जा न घट्टाविज्जा, न भिदाविज्जा न उज्जालाविज्जा, न पज्जालाविज्जा न णिव्वाविज्जा, अण्णं उज्जत वा घट्टत वा, भिदत वा, उज्जालंतं वा, पज्जालत बा, निव्वावत वा, न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविह तिविहेण मणेण वायाए काएण न करेमि न कारवेमि करतपि अण्ण न समणुजाणामि तस्स भते ! पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ।३।। से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, सजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे, दिया वा, रामो वा, एगो वा, परिसागो वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से सिएण वा, विहुयणेण वा, तालियटेण वा, पत्तेण वा, पत्तभगेण वा, साहाए वा, साहाभगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुणहत्येण वा, चेलेण वा, चेलकण्णेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा, अप्पणो वा काय, बाहिरं वावि पोग्गल न फुमिज्जा, न वीएज्जा अण्ण न फुमाविज्जा, न वीग्राविज्जा, अण्ण फुमत वा, वीयतं वा न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेण मणेण वायाए कारण न करेमि न कारवेमि करतपि अण्ण Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६ न समणुजाणामि, तस्स भते । पडिक्कमामि जिंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ।४। से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे, दिया वा, राम्रो वा, एगो वा, परिसागो वा सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से बीएसु वा बीयपइठेसु वा, रूढेसु वा, रूढपइट्ठेसु वा, जाएसु वा, जायपइठेसु वा, हरिएसु वा, हरियपइट्ठेमु वा, छिण्णेसु. वा, छिण्णपइट्ठसु वा, सचित्तेसु वा सचित्तकोलपडिमिस्सिएसु वा न गच्छेज्जा, न चिट्ठज्जा, न णिसीइज्जा, न तुयट्टिज्जा, अण्ण न गच्छाविज्जा, न चिट्ठाविज्जा न णिसीयाविज्जा, न तुयट्टाविज्जा, अण्णं गच्छतं वा चिट्ठतं वा, णिसीयत वा, तुयटुंत वा न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविह तिविहेण मणेण वायाए काएण न करेमि न कारवेमि करतपि अण्ण न समणुजाणामि । तस्स भते | पडिकमामि जिंदामि गरहामि अप्पाण वोसिरामि ।। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, सजय-विरय-पडिह-पच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राम्रो वा, एगो वा, परिसागो वा सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से कोड वा, पयग वा, कुथं वा, पिवी लिय वा, हत्थं सि वा, पायसि वा, बाहुसि वा, उरुसि वा, उदरसि वा, सीसंसि वा, वत्थ सि वा, पडिग्गहसि वा, कंबलसि वा, पायपुछणसि वा, रयहरणसि वा, गुच्छगसि वा, उडग सि वा, दंडगसि वा, पीढगसि वा, फलगसि वा, सेज्जसि वा, सथारगसि वा, अन्नयरसि वा, तहप्पगारे उवगरणजाए तो सजयामेव पडिलेहिय-पडिले हिय पमज्जिय पमज्जिय एगंतमवणिज्जा, Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवैकालिक सूत्र अ ४ नो ण सघायमावज्जिज्जा | ६ | श्रजयं चरमाणो य, पाणभूया हिंसइ । , बधइ पावय कम्मं त से होइ कडुय फल | १| अजय चिट्ठमाणो य, पाणभूयाई हिंसइ । वधइ पात्रय कम्म त से होइ कडुय फलं | २ | अजय आसमाणो य, पाणभूयाइ हिंसइ । बधइ पावग्रं कम्मं, त से होइ कडुय फल |३| अजय सयमाणो य, पाणभूयाइ हिसइ । वधइ पावय कम्म, त से होइ कडुय फलं ॥४॥ श्रजयं भुंजमाणो य, पाणभूयाइ हिंसइ । बंधइ पावय कम्मं त से होइ कडुय फल |५| } अजय भासमाणो य, पाणभूयाई हिंसइ । बधइ पावय कम्मं, त से होइ कडुय फलं | ६ | कह चरे कह चिट्ठे, कहमासे कह सए । कहं भुजंतो भासतो, पावकम्मं न बधइ ||७| जय चरे जय चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो भासतो, पावकम्मं न बंधइ || सव्व भूयप्प भूयस्स, सम्म भ्याइ पासओ । पिहिया सवस्स दंतस्स, पावकम्म न बंधइ || पढमं नाणं तम्रो दया, एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अण्णाणी कि काही, किंवा नाही सेयपावगं |१०| सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । उभयंपि जाणइ सोच्चा, जं सेय 'तं समायरे | ११ | Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३१ जो जीवे वि न याणेइ, अजीवे वि न याणइ । जीवाजीवे अयाणतो, कहं सो नाहीइ संजम ? | १२ | जो जीवे विवियाणेइ, प्रजीवे वि वियाणइ । जीवाजीवे वियाणतो, सो हु नाहिइ सजम | १३ | जया जीवमजीवे य, दोवि एए वियाणइ । तया गइ बहुविह, सव्वजीवाण जाणइ | १४| जया गइ बहुविह, सव्वजीवाण जाणइ । तया पुण्ण च पावं च बधं मुक्खं च जाणइ । १५ । जया पुण्ण च पावं च, बंधं मुक्ख च जाणइ । तया निव्विदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे |१६| जया निव्विदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ सजोगं, सभितर बाहिर |१७| जया चयइ सजोगं, सभितर बाहिर । तया मुडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारिय |१८| जया मुडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारय । तया संवरमुक्किट्ठ, धम्मं फासे अणुत्तरं |१६| जया सवरमुक्किट्ठ, धम्म फासे अणुत्तरं । तया धुणइ कम्मरय, प्रबोहि-कलुसकड | २० | जया धुणइ कम्म-रय, अबोहि-कलु संकड | तथा सव्वत्तग नाणं, दसणं चाभिगच्छइ । २१| जया सव्वत्तग नाणं, दमणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोग च, जिणो जाणइ केवली २२| जया लोगमलोग च, जिणी जाणइ केवली 1 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ दशवकालिक सूत्र अ ५ तया जोगे निलंभित्ता, सेलेसिं पडिवज्जइ ।२३। जया जोगे निरुभित्ता, सेलेसि पडिवज्जइ । तया कम्म खवित्ताण, सिद्धि गच्छइ नीरो ।२४। जया कम्म खवित्ताण, सिद्धि गच्छइ नीरो । तया लोगमत्थयत्थो, सिद्धो हवइ सासयो ।२५। सुह-सायगस्स समणस्म, सायाउलगस्स निगामसाइम्स । उच्छोलणा पहोयस्स, दुल्लहा सुगइ तारिसगस्स ।२६। तवो-गण-पहाणस्स, उज्जुमइ-खति-सजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स, सुल्लहा सुगई तारिसगस्स ।२७। पच्छा वि ते पयाया, खिप्प गच्छति अमर-भवणाई। जेसि पियो तवो संजमो य, खति य बंभचेर च ।२८। इच्चेयं छज्जीवणियं, सम्मद्दिट्ठी सया जए । दुल्लह लहित्त सामण्ण, कम्मणा न विराहिज्जासि ।२६त्ति वेमि ।। इति छज्जीवणिया णाम चउत्थ अज्झयण सम्मत्त ।४। ॥पिडेसणा णामं पंचमज्झयणं ॥५॥ संपत्ते भिक्ख-कालम्मि, असभंतो अमुच्छियो। इमेण कम्म-जोगेण, भत्त-पाण गवेसए ।१। से गामे वा नयरे वा, गोयरग्गगो मुणी । चरे मंदमणु विग्गो, अवदिखत्तेण चेयसा ।२ पुरो जुगमायाए, पेहमाणो मही चरे। वज्जतो वीयहरियाई, पाणे य दगमट्टियं ।३। प्रोवायं विसम खाणु विज्जलं परिवज्जए । संकमेण न गच्छेज्जा, विज्जमाणे परक्कमे ।४। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ ५-१ पवडते व से तत्थ, पक्खलंते व सजए । हिंसेज्ज पाण-भूयाइ, तसे अदुव थावरे ।५। तम्हा तेण न गच्छिज्जा, सजए सुसमाहिए । सइ अण्णेण मग्गेण, जयमेव परक्कमे ।। इंगालं छारियं रासिं, तुस-रासिं च गोमयं । ससरोहिं पाएहिं, सजो तं न इक्कमे ।७। न चरेज्ज वासे वासते, महियाए व पडतिए। महावाए व वायंते, तिरिच्छ-संपाइमेसु वा ।। न चरेज्ज वेस-सामते, बंभचेरवसाणुए । बंभयारिस्स दंतस्स, होज्जा तत्थ विसोहिया ।। अणाययणे चरंतस्स, संसगीए अभिक्खण । होज्ज वयाणं पीला, सामण्णम्मि असंसो ।१०॥ तम्हा एय वियाणित्ता, दोसं दुरगइ-वड्डणं । वज्जए वेस-सामंतं, मुणी एगंतमस्सिए।११॥ साणं सूइयं गावि, दित्तं गोणं हय गयं । संडिब्भं कलहं जुद्ध दूरओ परिवज्जए ।१२। अणुन्नए नावणए, अप्पहिढे प्रणाउले। इंदियाइ जहाभाग, दमइत्ता मुणी चरे ।१३। दवदवस्स न गच्छेज्जा, भासमाणो य गोयरे। हसंतो नाभिगच्छेज्जा, कुलं उच्चावयं सया ।१४। आलोग्रंथिग्गलं दार, संधि दग-भवणाणि य । . चरतो न विणिज्झाए, संकट्ठाणं विवज्जए।१५॥ रन्नो गिहवईणं च, रहस्सारक्खियाणि य। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैन स्वाध्यायमाला सकिलेस - करं ठाणं, दूरश्रो परिवज्जए |१६| पडिकुठं कुलं न पविसे, मामगं परिवज्जए । अचियत्तं कुल न पविसे, चियत्तं पविसे कुलं ॥१७॥ साणी-पावार-पिहियं अप्पणा नावपगुरे । कवाड नो पणुल्लिज्जा उग्गहंसि प्रजाइया | १८ | गोयरग्ग-पविट्ठो य, वच्चमुत्तं न धारए । प्रोगासं फासूयं नच्चा, श्रणुन्नवि य वोसिरे |१६| नीयं दुवारं तमसं, कुट्टगं परिवज्जए । अचक्खु - विसो जत्थ, पाणा दुप्पडिलेहगा | २० | जत्य पुप्फाई बीयाई, विप्पइण्णाइ कोट्टए । ग्रहणोवलित्तं उल्लं दट्ठणं परिवज्जए |२१| एलगं दारगं साणं, वच्छग वावि कोट्टए । उल्लंघिया न पविसे, विउहित्ताण व संजए । २२० असंसत्तं पलोइज्जा, नाइदूरावलोयए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए, नियद्विज्ज श्रयंपिरो | २३ | अइभूमि न गच्छेज्जा, गोयरग्ग-गो मुणी । कुलस्स भूमि जाणित्ता, मियं भूमि परक्कमे |२४| तत्थेव पडले हिज्जा, भूमिभागंवियक्खणो । सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं परिवज्जए |२५| दग - मट्टियआयाणे, वीयाणि हरियाणि य । परिवज्जतो चिट्टिज्जा, सव्विदिय समाहिए । २६ । तत्य से चिट्ठमाणस्स श्राहारे पाण- भोयण । कप्पियं न इच्छिज्जा, पडिगाहिज्ज कप्पियं । २७| Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूत्र अ ५-१ ३५ आहारंती सिया तत्थ, परिसाडिज्ज भोयणं । दितियं पडियाइक्खे, "त मे कप्पइ तारिसं” |२८| संमद्दमाणी पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य । श्रसंजम - करि नच्चा, तारिस परिवज्जए |२६| साहट्ट निक्खिवित्ताणं, सचित्त घट्टिताणि य । तहेव समणट्टाए, उदगं संपणुल्लिया |३०| ओगाहइत्ता चलइत्ता, श्राहारे पाण- भोयणं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं " |३१| पुरेकस्मेण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा । दितियं पडियाइक्खे "न मे कप्पइ तारिस" | ३२ | एवं उद उल्ले ससिणिद्धे, ससरक्खे मट्टियाउसे । हरियाले हिंगुलए मणोसिला श्रजणे लोणे ॥ ३३॥ गेरुय वण्णियसेढिय, सोरट्ठियपिट्ठकुक्कुसकए य । उक्किमसंसठ्ठे, संसठ्ठे चैव बोद्धव्वे |३४| असंसट्ठेण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा । दिज्जमाणं न इच्छिज्जा, पच्छा कम्मं जहिं भवे । ३५| ससट्ठेण य हत्येण, दव्वीए भायणेण वा । दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा, जं तत्थेसणियं भवे । ३६ । दुहं तु भुजमाणाणं, एगो तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं न इच्छिज्जा, छंद से पडिलेहए |३७| दुह तु भुजमाणाणं, दोवि तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा, ज तत्थेसणिय भवे । ३८ | गुव्विणीए उवत्रत्थ, विविह पाण- भोयणं । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जैन स्वाध्यायमाला भुजमाणं विवज्जिज्जा, भत्त - सेस पडिच्छए । ३६ सिया य समट्टाए, गुव्विणी कालमासिणी । उट्टिश्रा वा निसोईज्जा, निसन्ना वा पुणुट्ठए |४०| त भवे भत्तपाण तु, संजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" । ४१॥ थणगं पिज्जमाणी, दारगं वा कुमारियं । तं निक्खिवित्तु रोयंतं, आहारे पाणभोयणं ॥ ४२ ॥ तं भत्रे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस " |४३| जं भवे भत्तपाण तु, कप्पाकप्पम्मि सकियं । दितिय पडियाइक्खे " न मे कप्पइ तारिसं” | ४४ | दग-वारेण पिहियं, नीसाए पीढएण वा । लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणइ ॥४५॥ तच उभिदिया दिज्जा, समणट्टाए व दावए । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" | ४६ | असणं पाणग वा वि, खाइम साइम तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "दाणट्ठा पगडं इमं । ४७ । त भवे भत्तपाणं तु, सजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" | ४८ | श्रमण पाणग वा वि, खाइमं साइमं तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "पुण्णट्ठा पगडं इमं ॥४६॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" 1५०| Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र ५-१ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "वणीमट्ठा पगडं इम" ॥५१॥ त भवे भत्तपाणं तु, सजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" ॥५२॥ असण पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "समणट्ठा पगडं इम" |५३। त भवे भत्तपाण तु, संजाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" १५४ उद्देसियं कीयगड, पूइकम्म च आहडं । अज्झोयरपामिच्चं, मीस-जायं विवज्जए ।५५॥ उग्गम से य पुच्छिज्जा, कस्सट्टा केण वा कडं। सुच्चा निस्संकियं सुद्धं, पडिगाहिज्ज संजए ॥५६॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइम तहा । पुप्फेसु हुज्ज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा ।५७। तं भवे भत्तपाण तु, सजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" ।५८ असण पाणग वावि, खाइम साइमं तहा । उदगंमि हुज्ज निक्खित्त, उत्तिंग-पणगेसु वा ।५६। तं भवे भत्तपाण तु, सजयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" ।६०१ असण पाणगं वावि, खाइम साइम तहा । अगणिम्मि होज निक्खित्त, त च संघट्टिया दए ।६११ त भवे भत्तपाण तु, सजयाण अकप्पिय । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ जैन स्वाध्यायमाला दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" १६२॥ एक उस्सक्किया अोसक्किया, उज्जालिया पज्जालिया निव्वाविया उस्सिचिया निस्सिचिया, उववत्तिया प्रोवारियादए ।६३। त भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" ।६४। हुज्ज कट्ठ सिलं वावि, इट्टाल वा वि एगया । ठवियं सकमट्टाए, तं च हुज्ज चलाचलं ॥६५॥ न तेण भिक्खू गच्छिज्जा, दिट्ठो तत्थ असंजमो। गम्भीरं झुसिरं चेव, सबिदिय-समाहिए ।६६। निस्सेणि फलग पीढ, उस्स वित्ताणमारुहे। मंचं कीलं च पासायं समणट्ठाए व दावए ।६७। दुरुहमाणी पवडिज्जा, हत्थ पायं व लसए। पुढवी जीवेवि हिंसेज्जा, जे य तन्निस्सिया जगे।६८। एयारिसे महादोसे, जाणिऊण महेसिणो । तम्हा मालोहडं भिक्ख, न पडिगिण्हति संजया ।६६ कंद मूल पलं वा, आम छिन्न व सन्निरं। तुवागं सिंगबेरं च, आमगं परिवज्जए ।७०॥ तहेव सत्तु-चुण्णाई, कोलचुन्नाइं आवणे । सक्कुलि फाणिय पूय, अन्न वावि तहाविह ।७१। विक्कायमाण पसढं, रएण परिफासियं । दितियं पडियाइक्खे 'न मे कप्पइ तारिसं १७२। बहु-अद्वियं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहु-कटयं । अत्यियं तिदुयं बिल्ल, उच्छु-खडं व सिंबलि ।७३ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसवैकालिक सूत्र अ ५-१ ३६ अप्पे सिया भोयणजाए बहु-उझिय-धम्मिए । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" ७४। तहेवुच्चावय पाण, अदुवा वार-धोयण । संसेइम चाउलोदग, अहुणाधोय विवज्जए ७॥ ज जाणेज्ज चिराधोय, मईए दसणेण वा । पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा, ज च निस्सकिय भवे ७६! अजीवं परिणयं नच्चा, पडिगाहिज्ज संजए । अहसकिय भविज्जा, प्रासाइत्ताण रोयए ७७। "योवमासायणट्ठाए, हत्थगम्मि दलाहि मे। मा मे अच्चबिलं पूय, नाल तिण्ह विणित्तए १७८। त च अच्चबिल पूय, नाल तिण्ह विणित्तए । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" ७६। त च हुज्ज अकामेण, विमणेण पडिच्छिय । त अप्पणा न पिवे, नोवि अन्नस्स दावए 1८० एगतमवक्कमित्ता, अचित्त पडिलेहिया । जय परि?विज्जा, परिठ्ठप्प पडिस्कमे ।८१॥ सिया य गोयरग्गगयो, इच्छिज्जा परिभुत्तुय । कुट्ठग भित्ति-मूल वा, पडिलेहित्ताण फासुयं ।८२। अणुन्नवित्तु मेहावी, पडिच्छिन्नम्मि सवडे । हत्थग सपमज्जित्ता, तत्थ भुजिज्ज सजए ८३। तत्थ से भुजमाणस्स अट्ठिय कटो लिया । तण-कट्ठ-सक्कर वावि अन्न वावि तहाविहं ।८४॥ त उक्खिवित्तु न निक्खिवे, आसएण न छड्डए । Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जैन स्वाध्यायमाला हत्थेण तं गहेऊणं, एगंतमवक्कमे |८५ | एगतमवक्कमित्ता, अचित्त पडिलेहिया । जय परिवेज्जा, परिट्ठप्प पक्किमे | ६ | सिया य भिक्खु इच्छिज्जा, सिज्जमागम्म भुत्तुय । स- पिंडपायमागम्म, उडुयं पडिलेहिया | ८७ | विणएण पविसित्ता, सगासे गुरुणो मुणी । इरियावहियमायाय, आगो य पडिक्कमे || भोत्ताण नीसेस, अइयारं च जहक्कम | गमणागमणे चेव, भत्तपाणे व संजए |८| उज्जुप्पन्नो अणुविग्गो अवक्खित्तेण चेयसा । थालोए गुरुसगासे, जं जहा गहियं भवे ॥ ६०॥ न सम्ममालोय हुज्जा, पुत्रि पच्छा व ज कड | पुणो पडिक्कमे तस्स, वोसिट्ठो चितए इमं ॥१॥ अहो ! जिणेहि सावज्जा. वित्ती साहूण देसिया | मोक्ख- साहणहे उस्स, साहु - देहस्स धारणा | १२ णमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथव । सभायं पवित्ताण, वीसमेज्ज खणं मुणी ॥६३॥ वीसमतो इमं चिते हियमट्ठ लाभमट्टियो । जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू हुज्जामि तारिओ | १४ | साहवो तो चियत्तेण, निमंतिज्ज जहक्कमं । जइ तत्य केइ इच्छिज्जा, तेहि सद्धि तु भुजए |५| अह कोइ न इच्छिज्जा, तनो भुजिज्ज एगओ । आलीए भायणे साहु, जयं परिसाडियं । ६६ । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूत्र अ ५-२ ४१ तित्तग च कडुयं च कसायं अंबिल च महुरं लवणं वा, एयलद्धमन्नत्थ- पउत्तं, महु-घय व भुजिज्ज सजए ॥६७॥ अरसं विरसं वावि,सूइयं वा असूइयं । उल्लं वा जइ वा सुक्क, मंधु कुम्मास- भोयणं ह उप्पण्णं नाइहीलिज्जा, श्रप्पं वा बहु फासूयं । मुहालद्ध मुहा - जीवी, भुजिज्जा दोसवज्जिय ॥६६॥ दुल्लहा मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा । मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छति सुग्गई । १००| ॥ इति पिण्डेसणाए पढमो उद्देसो समत्तो ॥ ॥ पिण्डेसणाए बीओ उद्देसो ॥ १ ॥ पडिग्गहं संलिहित्ताणं, लेव-मायाइ संजए । दुगधं वा सुगधं वा, सव्वं भुंजे न छड्डुए | १ | सेज्जा निसीहियाए, समावण्णो य गोयरे । अयावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेणं न संथरे |२| तो कारण समुपणे, भत्तपाण गवेसए । विहिणा पुव्वउत्तेण इमेणं उत्तरेण य | ३ | काले निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे । अकाल च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे |४| "काले चरसि भिक्खू, कालं न पडिलेहसि । अप्पाणं च किलामेसि, सन्निवेसं च गरिहसि ” | ५ | सइ काले चरे भिक्खू, कुज्जा पुरिसकारियं । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ जैन स्वाध्यायमाला "अलाभो" त्ति न सोइज्जा,"तवो" ति अहियासए।६। तहेवृच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया। त उज्जय न गच्छिज्जा, जयमेव परक्कमे ७। गोयरग्ग-पविठ्ठो य, न निसीइज्ज कत्थइ । कहं च न पबधिज्जा, चित्ताण व सजए । अग्गल फलिहं दारं, कवाड वावि संजए। अवलबिया न चिद्विज्जा, गोयरग्ग-गयो मुणी ।। समण माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं । उवसकमतं भत्तट्ठा, पाणढाए व संजए ।१०॥ तमइक्कमित्तु न पविसे, न चिठे चक्खु-गोयरे । एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्ठिज्ज संजए ।१११ वणीमगस्स वा तस्स, दायगस्सुभयस्स वा । अप्पत्तिय सिया हुज्जा, लहुत्त पवयणस्स वा ।१२। पडिसेहिए व दिन्ने वा, तो तम्मि नियत्तिए । उसकमिज्जा भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व सजए ।१३। उप्पल पउमं वावि, कुमयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ-सचित्तं, त च सलुचिया दए ।१४। तं भवे भत्तपाणं तु, सजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" ॥१५॥ उप्पलं पउमं वावि, कुमय वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ-सच्चित्तं, तं च सम्मद्दिया दए ।१६। तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" ११७। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ ५-२ सालयं वा विरालियं, कुमुयं उप्पलनालियं । मुणालियं सासव-नालियं, उच्छृखंडं अनिव्वुडं ॥१८॥ तरुणगं वा पवाल, रुक्खस्स तणगस्स वा । अन्नस्स वावि हरियस्स, प्रामगं परिवज्जए ।१६। तरुणियं वा छिवाडि, आमियं भजियं सयं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" ।२०॥ तहा कोलमणुस्सिन्नं, वेलुयं कासव-नालियं । तिल-पप्पडगं नीम, आमग परिवज्जए ।२१॥ तहेव चाउल पिढें, वियर्ड वा तत्तनिव्वुड । तिल-पिट्ठ पूइ-पिन्नागं, प्रामगं परिवज्जए ।२२। कविट्ठ माउलिंगं च, मूलग मूलगत्तियं । आम असत्थ-परिणयं, मणसा वि न पत्थए ।२३। तहेव फलमथूणि, बीयमंथूणि जाणिया। विहेलगं पियालं च, आमगं परिवज्जए.।२४। समुयाण चरे भिक्खू , कुलमुच्चावयं सया । नीयं कुलमइक्कम्म, ऊसद नाभिधारए ।२५॥ अदीणो वित्तिमेसिज्जा, न विसीइज्ज पंडिए। अमच्छिो भोयणम्मि, मायणे एसणारए ।२६। "बहुं परघरे अस्थि, विविहं खाइमसाइम" । न तत्थ पडिगो कुप्पे, इच्छा दिज्ज परो न वा।२७! सयणासण-वत्थं वा, भत्तं पाण च संजए। अदितस्स न कुप्पिज्जा, पच्चक्खेवि य दीसत्रो।२८॥ इत्थिय पुरिस वावि, डहर्र वा महल्लग। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जैन स्वाध्यायमाला वंदमाणं न जाइज्जा, नो य णं फरुसं वए ।२६। जे न वंदे न से कुप्पे, वदियो न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स, सामण्णमणुचिट्ठइ ।३०। सिया एगइनो लद्ध, लोभेण विणिगूहइ । "मामेय दाइय सत, दळूण सयमायए" ॥३१॥ अत्तट्ठा-गुरुप्रो लुद्धो, बहुपाव पकुव्वइ । दुत्तो सो य से होइ, निन्वाणं च न गच्छइ ।३२। सिया एगइरो लद्ध, विविहं पाण-भोयणं । भद्दगं भद्दगं भुच्चा, विविन्न विरसमाहरे ।३३। जाणंतु ता इमे समणा, 'आययट्ठी अय मुणी"। संतुट्ठो सेवए पंत, लह-वित्ती सुतोसयो ।३४। पूयणट्ठा जसोकामी,माण-सम्माण-कामए । बहुं पसवई पावं, माया सल्लं च कुव्वइ ।३५॥ सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा भज्जगं रस । ससक्खं न पिवे भिक्खू, जसं सारक्खमप्पणो १३६॥ पियए एगो तेणो, “न मे कोइ वियाणइ" । तस्स पस्सह दोसाई, नियडि च सुणेह मे ।३७। वड्ढइ सुंडिया तस्स, माया-मोस च भिक्खूणो । अयसो य अनिव्वाणं, सययं च असाहुया ।३८॥ निच्चविग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं दुम्मई । तारिसो मरणतेवि, न धाराहेइ संवरं ।३६॥ आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। निहत्थावि णं गरहति, जण जाणंति तारिसं १४०॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र ५-२ ४५ एवं तु अगुणप्पेही, गुणाण च विवज्जए । तारिसो मरणंतेऽवि, ण पाराहेइ संवरं ।४१॥ तवं कुम्वइ मेहावी, पणीयं वज्जए रसं । मज्ज-प्पमाय-विरो, तवस्सी अइउक्कस्सो।।२। तस्स पस्सह कल्लाणं, अणेग-साहु-पुइयं । विउलं अत्थ-सजुत्तं, कित्तइस्स सुणेह मे ४३॥ एवं तु गुणप्पेही, अगुणाणं च विवज्जए। तारिसो मरणतेऽवि, आराहेइ संवर ।४४। आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्थाऽवि ण पूयति, जेण जाणति तारिस ।४५॥ तव-तेणे वय-तेणे, रूव-तेणे य जे नरे। आयार-भाव-तेणे य, कुव्वइ देव-किन्विसं ।४६। लद्धण वि देवत्त, उववत्री देव-किदिवसे । तत्था वि से न याणाइ,"कि मे किच्चा इमं फलं"?।४७/ तत्तो वि से चइत्ताणं, लब्भइ एल-मयगं । नरग तिरिक्ख -जोणि वा. बोही जत्थ सुदुल्लहा ।४८॥ एयं च दोस दट्ठण, नायपुत्तेण भासिय । अणुमायऽपि मेहावी, माया-मोसं विवज्जए ।४९। सिक्खिऊण भिखेसण-सोहिं, संजयाण बुद्धाण सगासे । तत्थ भिक्खू सुप्पणिहिदिए, तिव्वलज्ज-गुणवं विहरिज्जासि ।५० ॥ इति पिण्डेसणाए बीमो उद्देसो ॥ इति पिण्डेसणाए पंचमझयणं समत्त Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जैन स्वाध्यायमाला ॥ छठें धम्मत्थकामज्झयणं ।। नाण-दसण-सपन्नं, सजमे य तवे रयं ।। गणिमागम-संपन्न, उज्जाणम्मि समोसढं ।११ रायाणो रायमच्चा य, माहणा अदुव खत्तिया । पुच्छंति निहुयप्पाणो, कहं भे आयारगोयरो ।२। तेसिं सो निहुओ दतो, सव्व-भूयसुहावहो। सिक्खाए सुसमाउत्तो, आयक्खइ वियक्वणो ३॥ हंदि धम्मत्थ-कामाण, निग्गथाणं सुणेह मे । आयार-गोयरं भीम, सयलं दुरहिद्विय ।४। नन्नत्य एरिसं वृत्त, जं लोए परम-दुच्चरं । विउल-ढाणभाइस्स, न भूयं न भविस्सई 1॥ सखुड्डग-वियत्ताण, वाहियाणं च जे गुणा । अक्खंडफुडिया कायन्वा, तं सुणेह जहा तहा।६। दस अट्ठ य ठाणाई, जाई बालोऽवरज्झइ । तत्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंथत्तायो भस्सई ।७। वय-छक्कं काय-छक्क, अकप्पो गिहि-भायणं । पलियकनिसिज्जा य, सिणाणं सोह-वज्जणं 11 तस्थिमं पढम ठाणं, महावीरेण देसियं । . अहिंसा निउणा दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो 181 जावंति लोए पाणा, तसा अदुव थावरा । ते जाणमजाणं वा,न हणे णो वि धायए।१०॥ सव्वे-जीवावि इच्छंति, जीविउंन मरिज्जिउं । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र म ६ ४७ तम्हा पाणि-वह घोरं, निग्गंथा वज्जयति ण ।११॥ अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया । हिंसग व मुस बूया, नोवि अन्नं वयावए ।१२। मुसा-वानो य लोगम्मि, सव्व-साहूहिं गरिहियो । अविस्सासो य भूयाणं, तम्हा मोस विवज्जए।१३। चित्तमतमचित्त वा, अप्प वा जइ वा बहु । दंतसोहणमित्तंपि, उग्गहसि अजाइया ।१४। तं अप्पणा न गिण्हति, नोवि गिण्हावए परं । अन्न वा गिण्हमाणपि, नाणुजाणति सजया ।१५॥ अवभ चरिय घोरं, पमाय दुरहिट्ठिय । नायरंति मुणी लोए, भेयाययण-बज्जियो ।१६॥ मूलमेयमहम्मस्स, महादोससमुस्सयं । तम्हा मेहुणसंसग्ग, निग्गंधा वज्जयति णं ।१७। विडमुन्भेइम लोण, तिल्ल सपि च फाणियं । न ते सन्निहिमिच्छति, नायपुत्त-वो-रया ।१८ लोहस्सेस-अणुफासे, मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहिं कामे, गिही पव्वइए न से ।१६। जंऽपि वत्थं व पायं वा, कम्वल पायपुछणं । तंऽपि संजम-लज्जट्ठा, धारंति परिहरति य १२०॥ न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा । "मुच्छा परिग्गहो वुत्तो," इइ वुत्तं महेसिणा ।२१॥ सव्वत्थुवहिणा बुद्धा, संरक्खण-परिग्गहे । अवि अप्पणोऽवि देहम्मि, नायरत्ति ममाइय ।२२। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ जैन स्वाध्यायमाला अहो निच्च तवो-कम्म, सव्वबुद्धेहि वन्नियं । जाय लज्जा-समावित्ती, एग-भत्तं च भोयणं ।२३। सति में सुहुमा पाणा, तसा अदुव थावरा । जाइ राम्रो अपासंतो, कहमेसणियं चरे ।२४। उदउल्ल बीयससत्तं, पाणा निवडिया महि । दिया ताई विवज्जिज्जा, रामो तत्थ कहं चरे ।२५। एयं च दोसं दट्ठणं, नायपुत्तेण भासिय । सम्वाहारं न भुजंति, निग्गथा राइभोयण ।२६॥ पुढविकायं न हिंसति, मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करण-जोएण, संजया सुसमाहिया ।२७। पुढविकायं विहिंसतो, हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे, चक्खुसे य अचक्खुसे ।२८) तम्हा एय वियाणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढण। पुढविकाय-समारंभ, जावज्जीवाए वज्जए ।२६। आउकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करण-जोएण, संजया सुसमाहिया ।३०। पाउकायं विहिंसतो, हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे, चक्खुसे य अचक्खुसे ।३१॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइवणं । आउकायसमारंभ, जावज्जीवाए वज्जए ।३२॥ जायतेयं न इच्छंति, पावगं जलइत्तए । तिक्खमन्नयरं सत्थं, सन्वो वि दुरासयं ।३३३ पाईणं पडिणं वावि, उड्ढ अणुदिसामवि । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ६ ४९ अहे दाहिणो वावि, दहे उत्तरमोवि य ।३४। भूयाणमेसमाघाओ, हव्ववाहो न ससप्रो। तं पईव-पयावट्ठा, संजया किंचि नारभे ॥३५॥ तम्हा एवं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइ-बड्डण । तेउकाय-समारभं, जावज्जीवाए वज्जए ।३६। प्रणिलस्स समारभं, बुद्धा मन्नति तारिसं। सावज्ज-बहुल चेयं, नेय ताईहिं सेवियं ।३७॥ तालिअंटेण पत्तेण, साहाविहुयणेण वा। न ते वीइउमिति , वीयावेउण वा परं ।३८॥ जऽपि वत्थं च पायं वा, कबलं पायपुछणं । न ते वायमईरति, जयं परिहरंति य ।३६। तम्हा एय वियाणित्ता, दोसं दुग्गइवड्डणं । वाउकायसमारभ, जावज्जीवाए वज्जए ।४०॥ वणस्सइ न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करण-जोएण, संजया सुसमाहिया ।४१॥ वणस्सई विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे, चक्खुसे य अचक्खुसे ।४२। तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइ-वड्ढणं । वणस्सइ-समारंभ, जावज्जीवाए वज्जए।४३॥ तसकाय न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करण-जोएण, सजया सुसमाहिया।४४। - तसकायं विहिंसतो, हिंसई उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे, चक्खुसे य अचक्खसे ।४५॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० जैन स्वाध्यायमाला तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइ-बड्डण । तसकाय-समारभ, जावज्जीवाए वज्जए।४६। जाइ चत्तारिऽभुज्जाइ, इसिणा-हार-माइणि । ताई तु विवज्जतो, संजम अणुपालए ।४७१ पिंड सिज्जं च वत्थं च, चउत्थं पायमेव य । अकप्पियं न इच्छिज्जा, पडिगाहिज्ज कप्पियं ।४८॥ जे नियागं ममायंति, कीयमद्देतियाहड । वहं ते समणुजाणति, इह वृत्तं महेसिणा ।४६1 तम्हा असण-पाणाई, कोयमुद्देसियाहडं । वज्जयंति ठिअप्पाणो, निग्गथा धम्म-जीविणो १५० कंसेसु कस-पाएसु, कुंड-मोएमु वा पुणो । भुजंतो असणपाणाई, पायारा परिभस्सइ ।५१॥ सीयोदग-समारभे, मत्त-धोरण छडूणे। जाई छनति भूयाइ, दिट्ठो तत्थ असञ्जमो १५२। पच्छाकम्म पुरेकम्म, सिया तत्य न कप्पइ । एयमझें न भुजति, निगथागिहि-भायणे १५३। प्रासदी पलिय केसु, मच-मासालएसु वा । अणायरियमज्जाण, आस इत्तु सइत्तु वा ।५४॥ नासदी-पलियकेसु, न निसिज्जा न पीढए । निग्गथाऽपडिलहाए, बद्ध-वृत्तम हिटगा । ५५॥ गंभीर-विजया एए, पाणा दुप्पडिलेहगा। आदी पलियंको य, एयमट्ठ विवज्जिया (५६ गोयरग्ग-पविट्ठस्स, निसिज्जा जस्स कप्पइ । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ६ इमेरिसमणायारं, आवज्जइ अबोहिय ।५७। विवत्ती बभचेरस्स, पाणाणं च वहे वहो। वणीमग-पडिग्घाओ, पडिकोहो अगारिण ।५८॥ अगुत्ती बंभचेरस्स, इत्थीमो वा वि सकणं । कुसील-वड्डण ठाणं, दूरओ परिवज्जए ।५। तिण्हमन्नयरागस्स, निसिज्जा जस्स कप्पड । जराए अभिभुयस्स, वाहियस्स तवस्सिणो ।६०॥ वाहियो वा अरोगी वा, सिणाण जो उ पत्थए । वुक्कतो होइयायारो, जढो हवइ संजमो ।६११ संतिमे सुहुमा पाणा, घसासु भिलगासु य । जे य भिक्खू सिणायतो, वियडेणुप्पिलावए ॥६॥ तम्हा ते न सिणायति, सीएण उसिणेण वा। जावज्जीवं वय घोर, असिणाणमहिढगा ।६३। सिणाणं अदुवा कक्क, लुद्ध पउमगाणि य । गायस्सुन्वट्टणट्ठाए, नायरंति कयाइ वि ।६४। नगिणस्स वावि मुडस्स, दीह-रोम-नहसिणो । मेहुणाओ उवसतस्स, किं विभूसाए कारियं ॥६॥ विभूसावत्तिय भिक्खू, कम्म बंधइ चिक्कण । संसार-सायरे घोरे, जेण पडइ दुरुत्तरे ।६६। विभूसावत्तियं चेयं, बुद्धा मन्नति तारिस । सावज्ज बहुलं चेय, नेयं ताईहिं सेविय १६७। खवति अप्पाणममोह-दसिणो,तवे रया सजम अज्जवे गणे। धुणंति पावाई पुरे-कडाइ, नवाई पावाई न ते करति ।६८। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ५२ जैन स्वाध्यायमाला समावसंता अममा अकिंचणा, सविज्जविज्जाणगया जससिणो। उउ-पसन्ने विमले व चर्दिमा, सिद्धि विमाणाई उर्वति ताइणो।६६। || तिमि॥ छठ धम्मत्यकामज्झयण समत्त ।१६|| ॥सुवक्कसुद्धी णाम सत्तमं अज्झयणं ॥७॥ चउण्हं खलु भासाणं, परिसंखाय पन्नव । दुहं तु विणयं सिक्खे दो न भासिज्ज सव्वसो।। जा य सच्चा अवत्तव्वा, सच्चामोसा य जा मुसा । जा य बुद्धेहिं नाइन्ना, न तं भासिज्ज पण्णव ।२१ असच्चमोसं सच्च च, अणवज्जमकक्कस । समुप्पेहमसदिद्धं, गिरं भासिज्ज पण्णवं ।। एयं च अट्टमन्न वा, जंतु नामेइ सासयं । स भासं सच्चमोसं च, तपि धीरो विवज्जए ।४। वितह पि तहामुत्ति, ज गिरं भासए नरो। तम्हा सो पुट्ठो,पावेणं, कि पुण जो मुसं वए ।५। तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वा णे भविस्सइ । अहं वा णं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ ।६। एवमाइ उ जा भामा, एस-कालम्मि सकिया। संपयाईअमट्ठे वा, तं पि धीरो विवज्जए १७१ अईयम्मि य कालम्मि, पचुप्पण्णमणागए। जमझें तु न जाणिज्जा, "एवमेय" तु नो वए 141 अईयम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पण्णा-मणागए । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवैकालिक सूत्र अ. ७ ५३ जत्थ संका भवे त तु, "एवमेयं" ति नो वए || अईयम्मिय कालम्मि, पच्चुप्पण्ण-मणागए । निस्संकियं भवे ज तु, " एवमेयं" ति निद्दिसे |१०| तहेव फरुसा भासा, गुरु-भूश्रोवघाइणी । सच्चा विसा न वत्तव्वा, जो पावस्स श्रागमो |११| तहेव काण 'काणे-त्ति, पडग 'पडगे- त्ति' वा । वाहिय वावि रोगित्ति, तेणं चोरेत्ति नो वए | १२ | एएणन्त्रेण प्रट्ठेण, परो जेणुवहम्मइ । आयार-भाव दोसन्नू, न त भासिज्ज पण्णवं ॥ १३ ॥ तहेव 'होले' 'गोलि-त्ति' 'साणे' वा 'वसुले त्ति' य । दमए दुहए वा वि, न त भासिज्ज पण्णवं । १४ । अज्जिए पज्जिए वावि, अम्मो माउस्सियत्ति य । पिउस्सिए भार्याणज्जत्ति, धूए णत्तुणित्ति य ॥१५॥ हले हल्लेत्ति अन्नेत्ति, भट्टे सामिणि गोमणि । होले गोले वसुलेत्ति, इत्थिय नेवमाल | १६ | णामधिज्जेण णं बूझा, इत्थी-गुत्तेण वा पुणो । जहारिहम भिगिज्भ, आलविज्ज लविज्ज वा ॥१७॥ श्रज्जए पज्जए वावि, वप्पो च्चुल्ल पिउत्ति य । माउला भाइणिज्जत्ति, पुत्ते णत्तृणित्रत्ति य | १८ | हे हो । हलिति अन्नित्ति, भट्टा सामि य गोमि य । होल गोल वसुलित्ति, पुरिस नेवमालवे |१| नामधिज्जेण ण बूया, पुरिसगुत्तेण वा पुणो । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ जैन स्वाध्यायमाला जहा रिमभिगिज्भ, आलविज्ज लविज्ज वा ॥२०॥ पंचिदियाण पाणाणं, 'एस इत्थी अयं पु' | जाव णं न विजाणिज्जा, ताव जाइत्ति ग्रालवे |२१| तहेव मणुसं पसुं, पक्खिं वा वि, सरीसिवं । 'थूले पमेइले वज्, पाइमित्ति' य नो वए |२२| परिवुडति णं ब्रूया, बूया उवचिएत्तिय । संजाए पीणिए वा वि, महाकायत्ति ग्रालवे |२३| तहेव गाम्रो दुज्झाओ, दम्मा गो-रहगत्तिय । वाहिमा रह-जोग्गत्ति, नेवं भासिज्ज पण्णवं |२४| जुवं गवित्ति णं बूया, वेणु रसदयत्ति य । रहस्से महल्लए वा वि, वए संवह्णित्ति य ॥२५॥ तहेब गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि य । रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासिज्ज पण्णवं । २६ । अलं पासायखभाणं, तोरणाण गिहाण य । फलिहग्गलनावाणं, भलं उदगदोणिणं ॥ २७ पोढए चंगवेरे य, नंगले मइयं सिया | जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिया व अल सिया |२८| ग्रासणं सयणं जाणं, हुज्जा वा किंचुवस्सए । भूवघाइणि भास, नेवं भासिज्ज पण्णवं |२६| तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि य । रुक्खा महल्ल पेहाए, एव भासिज्ज पण्णवं । ३०| जाइमंता इमे रुक्खा, दीहवट्टा महालया । पयायसाला विडिमा, वए दरिसणित्ति य |३१| Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ ७ तहा फलाई पक्काइ, पायखज्जाइं नो वए। वेइलोयाइ टालाई, वेहिमाइत्ति नो वए ।३२॥ असथडा इमे अंबा, बहुनिव्व डिमा फला। वइज्ज बहुसंभूया, भूयरूवित्ति वा पुणो ।३३। तहेवोसहिरो पक्कामो, नीलियारो छवीइ य । लाइमा भज्जिमाउत्ति, पिहुखज्जत्ति नो वए ।३४॥ रूढा बहुसंभूया, थिरा प्रोसढा वि य । गभियानो पसूयाओ, संसाराउत्ति आलवे ॥३५॥ तहेव सखडि नच्चा, किच्चं कज्ज ति नो वए । तेणग वावि वज्झित्ति, सुतित्पित्ति य आवगा ।३६॥ संखडि संखडि बूया, पणिप्रत्ति तेणगं । बहुसमाणि तित्थाणि, आवगाण वियागरे ।३७। तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिज्जत्ति नो वए । नावाहि तरिमाउ त्ति, पाणिपिज्ज त्ति नो वए ।३८। बहुवाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा। बहुवित्थडोदगा यावि, एव भासिज्ज पण्णवं ।३९। तहेव सावज्ज जोग, परस्सट्ठा य निट्टिय । कीरमाणंति वा णच्चा, सावज्ज न लवे मुणी ।४०। सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुछिण्णे सुहडे मडे । " सुणिट्ठिए सुलट्ठित्ति. सावज्ज वज्जए मुणी ।४१॥ पयत्तपक्कत्ति व पक्क्रमालवे, पयत्तछिन्नत्ति व छिन्नमालवे । पयत्तलट्ठित्ति व कम्महेउय, पहारगाढति त गाढमालवे ।४२। सन्बुक्कसघ परग्धं वा, अउल नत्थि एरिसं। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ... जैन स्वाध्यायमाला अविक्कियमवत्तव्वं, प्रचियत्त चेव नो वए |४३| सव्वमेयं वइस्सामि, सव्वमेयं त्ति नो वए । अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ, एवं भासिज्ज पण्णवं ॥४४॥ सुक्कीय वा सुविक्कीयं, श्रकिज्जं किज्जमेव वा । इमं गिण्ह इमं मुच, पणीयं नो वियागरे ॥४५॥ अप्पग्घे वा महग्घे वा, कए वा विक्कए वि वा । पणिट्ठे समुप्पण्णे, अणवज्जं वियागरे | ४६ | तहेवासंजयं धीरो, आस एहि करेहि वा । सयं चिट्ठ वयाहीत्ति, नेत्रं भासिज्ज पण्णवं ॥४७॥ बहवे इमे साहू, लोए बुच्वंति साहुणो । नलवे साहु साहुत्ति, साहुं साहुत्ति प्रालवे |४८ | नाणदसणसंपन्न, सजमे य तवे रयं । एवं गुणसमाउत्त, सजयं साहुमालवे |४६ | देवाणं मणुयाणं च तिरियाण च बुग्गहे श्रमुयाणं जो होउ, मा वा होउत्ति नो वए । ५० 1 वाओ वुट्ठ च सीउण्हं, खेमं धायं सिवं ति वा । , > कयाणु हुज्ज एयाणि, मा वा होउत्ति नो वए । ५१ । तहेव मेहं व नहं व माणवं न देव देवत्ति गिरं वइज्जा । समुच्छिए उन्नए वा पत्रोए, वइज्ज वा वुट्ठ बलाहइति । ५२ । अंतलिक्खत्ति णं वया, गुज्झाणुचरिअत्ति य । रिद्धिमंतं नर दिस्स, रिद्धिमंतंत्ति आालवे । ५३ । तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा, श्रहारिणी जा य परोवधाइणी । से कोह लोभ भय हास माणवो, न हासमाणो वि गिर वइज्जा । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ. ८ ५७ सुवक्कसुद्धि समुपेहिया मुणी, गिर च दुटुं परिवज्जए सया। मियं अदु→ अणुवीइ भासए, सयाण मज्झे लहई पसंसणं ॥५॥ भासाइ दोसे य गुणे य जाणिया, तीसे य दुठे परिवज्जए सया। छसु संजए सामणिए सया जए, वइज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ॥५६॥ परिक्खभासी सुसमाहिइंदिए, चउक्कसायावगए अणिस्सिए । स निझुणे धुण्णमलं पुरेकडं, पाराहए लोगमिणं तहा पर १५७। ॥ इति आयारपणिही णामं अट्ठममझयण समत्तं ।।८।। ॥पायारपणिही अट्ठममज्झयणं ॥८॥ आयारप्पणिहिं लड़े, जहा कायव्व भिक्खुणा। तं भे उदाहरिस्सामि, आणुपुवि सुणेह मे ॥१॥ पुढविदगअगणिमारुस, तणरुक्खा सबीयगा। तसा य पाणा जीवत्ति, इइ वृत्तं महेसिणा ।। तेसिं अच्छणजोएण, णिच्चं होयव्वयं सिया मणसा कायवक्केण, एवं हवइ सजए ।३। पूढवि भित्ति सिलं लेलं, नेव भिदे न सलिहे। तिविहेण करणजोएण, संजए सुसमाहिए ।४। सुद्धपुढवी न निसीए, ससरक्ख म्मि य पासणे । पमज्जित्तु निसीइज्जा, जाइत्ता जस्स उग्गहं ।। सीओदगं न सेविज्जा, सिलावुठं हिमाणि य । उसिणोदगं तत्तफासुयं, पडिगाहिज्ज संजए।६। उदउल्लं अप्पणो कार्य, नेव पुछे न संलिहे । समुप्पेह तहाभूयं, नो णं संघट्टए मुणी ७। इंगालं अगणि अच्चि, अलायं वा सजोइयं । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला न उंजिज्जा न घट्टिज्जा, नो णं निब्वावए मुणी ।। तालियंटेण पत्तेण, साहाए विहुयणेण वा । न वीइज्जऽप्पणो कार्य, वाहिर वावि पुगगलं ।। तणरुक्खं न छिदिज्जा, फलं मूल च कस्सई । आमग विविहं बीयं, मणसा वि न पत्यए ।१०। गहणेसु न चिट्ठिज्जा, बीएसु हरिएसु वा । उदगम्मि तहा निच्चं, उत्तिंगपणगेसु वा ।११॥ तसे पाणे न हिसिज्जा, वाया अदुव कम्मुणा। उवरो सव्वभूएसु, पासेज्ज विविहं जग ।१२। अट्ठ सुहुमाइं पेहाए, जाइ जाणित्तु संजए। दयाहिगारी भएसु, पास चिट्ठ सएहि वा ।१३। कयराइं अट्ठ सुहमाइ, जाई पुच्छिज्ज सजए। इमाइं ताई मेहावी, आइक्खिज्ज वियक्खणो ।१४। सिणेह पुप्फसुहुमं च, पाणुत्तिगं तहेव य । पणगं बीयहरियं च, अंडसुहुम च अट्ठमं ।१५१ एवमेयाणि जाणित्ता, सव्वभावेण संजए। अप्पमत्तो जए णिच्चं सबिदियसमाहिए ।१६॥ धव च पडिलहिज्जा, जोगसा पायकंबल । , मिज्जमुच्चारभूमि च, सथारं अदुवासणं ।१७। उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण जल्लियं । फासुयं पडिलेहित्ता, परिद्वाविज्ज संजए ।१९। पविसित्तु परागार, पाणट्ठा भोयणस्स वा। जयं चिट्टे मियं भासे, न य रूवेसु मणं करे ।१६॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ.८ बहुं सुणेइ कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पिच्छइ । न य दिळं सुयं सुन्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ ।२०। सुयं वा जइ वा दिट्ठ, न लविज्जोवघाइयं । न य केण उवाएण, गिहिजोग समायरे ।२१॥ निट्ठाणं रसनिज्जूढं, भद्दग पावगं ति वा । पुट्ठो वा वि अपुट्ठो वा, लाभालाभं न निद्दिसे ।२२। न य भोयणम्मि गिद्धो, चरे उछं अयपिरो। अफासुयं न भुंजिज्जा, कीयमुद्देसियाहडं ।२३। सनिहिं च न कुन्विज्जा, अणुमाय पि सजए । मुहाजीवी असबद्धे, हविज्ज जगनिस्सिए ।२४। लुहवित्ती सुसंतुठे, अप्पिच्छे सुहरे सिया। आसुरत्त न गच्छिज्जा, मुच्चा णं जिणसासणं ॥२५॥ कण्णसुक्खेहिं सद्देहिं, पेम्मं नाभिनिवेसए । दारुण कक्कसं फास, काएण अहियासए ।२६। खुहं पिवास दुस्सिज्ज, सीउण्हं अरहं भय । अहियासे अव्वहिरो, देहदुक्खं महाफलं ।२७। अत्थगयम्मि आइच्चे, पुरत्था य अणुग्गए। आहारमाइयं सव्व, मणसा वि न पत्थए ।२८॥ अतितिणे अचवले, अप्पभासी मियासणे । हविज्ज उअरे दते, थोव लद्धं न खिसए ।२६। न बाहिरं परिभवे, अत्ताण न समुक्कसे । सुयलाभे न मज्जिज्जा, जच्चा तवस्सिबुद्धिए ।३०1 से जाणमजाणं वा, कटु आहम्मियं पयं । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० -GB जैन स्वाध्यायमाला , संवरे खिप्पमप्पाण बीयं तं न समायरे ॥ ३१॥ प्रणायारं परक्कम्म, नेव गृहे न णिण्हवे । सुई सया वियडभावे, असंसत्ते जिइंदिए |३२| अमोहं वयणं कुज्जा, आयरियस्स महप्पणो । तं परिगिज्भ वायाए, कम्मुणा उववायए । ३३ । अधुवं जीवियं णच्चा, सिद्धिमग्गं वियाणिया । विणियट्टिज्ज भोगेसु, श्राउं परिमियमप्पणो ॥ ३४ ॥ बलं थामं च पेहाए, सद्धामारुग्गमप्पणो । खित्तं कालं च विण्णाय, तहप्पाणं निजुजए |३५| जरा जाव न पीलेई, वाही जाव न वढई । जाविंदिया न हायति, ताव धम्म समायरे | ३६ | कोह माणं च मायं च, लोभं च पाववड्ढणं । वमे चत्तारि दोसे उ, इच्छंतो हियमप्पणी |३७| कोहो पीई पणासेइ, माणो विणयनासणो । माया मित्तानि नासेइ, लोभो सव्वविणासणो |३८| उवसमेण हणे कोह, माण मद्द्वया जिणे । मायमज्ज मावेण, लोभं सतांसो जिणे | ३६ | कोहो य माणो य प्रणिग्गहीया, माया य लोभो य पवडमाणा । चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाइ पुणब्भवस्स |४०| रायणिएस विषयं पउंजे. ध्रुवसोलय सययं न हावइज्जा । कुम्मुव्व अल्लीणपलीणगुत्तो, परक्कमिज्जा तवसंजमम्मि |४१ | निद्दं च न बहु मण्णिज्जा, सप्पहास विवज्जए मिड़ो कहाहिं न रमे, सज्झायम्मि रओ सया |४२ / Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ.८ जोगं च समणधम्मम्मि, जुजे अणलसो धुवं । जत्तो य समणधम्मम्मि, अळं लहइ अणत्तरं।४३। इहलोगपारत्तहियं, जेणं गच्छइ सुग्गई। बहुस्सुय पज्जुवासिज्जा, पुच्छिज्जत्थविणिच्छयं ।४४। हत्थ पायं च कायं च, पणिहाय जिइंदिए । अल्लीणगुत्तो निसिए, सगासे गुरुणो मुणी ॥४५॥ न पक्खो न पुरो, नेव किच्चाण पिट्ठयो। न य ऊरुं समासिज्जा, चिट्ठिज्जा गुरुणंतिए ।४६॥ अपुच्छिो न भासिज्जा, भासमाणस्स अंतरा । पिट्टिमंस न खाइज्जा, मायामोस विवज्जए ।४७। अप्पत्तियं जेण सिया, आसु कुप्पिज्ज वा परो।। सव्वसो त न भासिज्जा, भासं अहियगामिणि ४८। दिळं मिय असदिद्ध, पडिपुण्णं वियं जिय । अयंपिरमणुव्विग्ग, भासं निसिर अत्तवं ।४६। आयारपण्णत्तिधर, दिद्विवायमहिज्जगं । वायविक्खलिय णच्चा, न त उवहसे मुणी ।५०। नक्खत्तं सुमिण जोगं, निमित्तं मंतभेसज । गिहिणो तं न प्राइक्खे, भूयाहिगरण पय ।५१। अण्णहें पगड लयण, भइज्ज सयणासणं । उच्चारभूमिसपण्णं, इत्थीपसुविवज्जियं ।५२। विवित्ता य भवे सिज्जा, नारीण न लवे कहं । गिहिसंथव न कुज्जा, कुज्जा साहुहिं संथव ।५३। जहा कुक्कुडपायस्स, णिच्चं कुललओ भय । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ میں जैन स्वाध्यायमाला भयं । ५४ । एवं खु वंभयारिस्स, इत्यीविग्गह चित्तभिति न णिज्भाए, नारि वा सुअल कियं । भक्खरं पिव दट्ठणं, दिट्ठि पडिसमाहरे 1५५ | हत्य पायपलिच्छिन्नं कण्णनासविगप्पियं । अवि वासस्यं नारि, वंभयारी विवज्जए । ५६ । विभूसा इथीससग्गो, पणीय रसभोयणं । नरस्तगवे सिस्स, विसं तालउडं जहा । ५७ । अगपच्चंगसठाण, चारुल्ल वियपेहियं । इत्थीणं तं न णिज्झाए, कामरागविवड्ढणं । ५८। विसएस मणुण्णेसु, पेमं नाभिनिवेसए । अणिच्चं तेसि विण्णाय, परिणाम पुग्गलाणय | ५६| पोग्गलाणं परिणामं, तेसि णच्चा जहातहा | विणीयतिहो विहरे, सीईभूएण पणा । ६० । जाइ सद्धाइ णिक्खंतो, परियायद्वाणमुत्तमं । तमेव प्रणुपालिज्जा, गुणे प्रायरियसम्मए । ६१॥ | तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया हिट्ठए । सूरे व सेणाइ समत्तमाउहे, अलमप्पणो होइ अलं परेसिं । ६२ । सज्झायसज्भाणरयस्स ताइणो, अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झई जं सि मलं पुरेकडं, समोरियं रूप्पमलं व जोइणा ॥ ६३॥ से तारिसे दुक्खसहे जिइदिए, सुएण जुत्ते अममे श्रचिणे । विरायई कम्मघणम्मि श्रवगए, कसिणव्भपुडावगमे व चंदिमे । ६४ । ॥ इति आयारपणिही णामं अठ्ठममज्झयणं समत्तं ॥८॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र अ. ६ उ १ ॥विणयसमाही णाम नवमज्झयणं ॥६॥ पढमो उद्देसो थंभा व कोहा व मयप्पमाया, गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे । सो चेव उ तस्स अभूइभावो, फल व कीयस्स वहाय होइ ।११ जे यावि मंदित्ति गुरुं विइत्ता, डहरे इमे अप्पसुए त्ति णच्चा। हीलंति मिच्छ पडिवज्जमाणा, करंति प्रासायण ते गुरूण ।२। पगईइ मंदा वि भवति एगे, डहरा वि य जे सुयबुद्धोववेया। आयारमंता गुणसुदिअप्पा,जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा।३। जे यावि नाग डहरं ति णच्चा, पासायए से अहियाय होइ । एवायरियं पि हु हीलयतो, नियच्छइ जाइपहं खु मदो ।४। आसीविसो वा वि पर सुरुट्ठो, किं जीवनासाउ परं नु कुज्जा। आयरियपाया पुण अप्पसण्णा, प्रबोहि आसायण नत्थि मुक्खो।। जो पावगं जलियमवक्कमिज्जा, पासीविसं वावि हु कोवइज्जा। जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी, एसोवमाऽसायणया गुरूणं ।६। सिया हु मे पावय नो डहिज्जा, आसीविसो वा कुविओ न भक्खे। सिया विसं हालहल न मारे, न यावि मुक्खो गुरुहीलणाए ।७। जो पव्वय सिरसा भित्तुमिच्छे, सुत्त च सीहं पडिबोहइज्जा। जो वा दए सत्तिअग्गे पहार, एसोत्रमाऽमायणया गुरूण || सिया हु सीसेण गिरि पि भिदे, सिया हु सीहो कुविनो न भक्खे। सिया न भिदिज्ज व सत्ति अग्ग, न यावि मुक्खो गुरुहीलणाए।९। आयरियपाया पुण अप्पसण्णा, अबोहि आसायण नत्थि मुक्खो। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૪ जैन स्वाध्यायमाला तम्हा अणावाहसुहाभिकखी, गुरुप्पसायाभिमुहो रमिज्जा | १० | जहाहिग्गी जलणं नमसे, नाणाहुइमंतपयाभिसित्तं । एवायरिय उवचिट्ठइज्जा, श्रणंतनाणोवगओ वि संतो । ११ । जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे, तस्संतिए त्रेणइयं पउंजे । सक्कारए सिरसा पंजलीग्रो, कार्यग्गिरा भो मणसा य णिच्चं | १२ | लज्जा- दया-संजम वभचेरं, कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति, तेऽहं गुरू सययं पूययामि | १३ | जहा णिसते तवणच्चिमाली, पभासई केवलभारहं तु । एवायरि सुयसील बुद्धिए, विरायई सुरमज्भे व इंदो | १४ | जहा ससी कोमुइजोगजुत्ता, नक्खत्ततारागणपरिवुडप्पा | खे सोहई विमले प्रभमुक्के, एवं गणी सोहइ भिक्खुमके | १५ | महागरा आयरिया महेसी, समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए । सपाविउकामे श्रणुत्तराई, चाराहए तोसइ धम्मकामी | १६ | सुच्चाण मेहावी सुभासियाई, सुस्सूसए प्रायरियप्पमत्तो । आराहइत्ताण गुणे अणेगे, से पावई सिद्धिमणुत्तरं |१७| ॥ इति वियणसमाहिज्भयणे पढमो उद्देसो समत्तो ॥ बोओ उद्देसो मूलाउ खंधप्पभवो दुमस्स, खंधाउ पच्छा समुविति साहा । साहप्पसाहा विरूहति पत्ता, तत्री सि पुष्पं च फलं रसो य । १ । एवं धम्मस्स विणश्रो, मूलं परमो से मुक्खो । जेण कित्ति सुयं सिग्धं, नीसेसं चाभिगच्छइ |२| जे य चंडे मिए थद्धे, दुव्वाई नियडी सढे । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूत्र अ ६ उ २ वुज्झइ से श्रविणीयप्पा, कट्ठ सोयगय जहा |३| विणयम्मि जो उवाएणं, चोइनो कुप्पई नरो । दिव्व सो सिरिमिज्जति, दडेण पडिसेहए |४| तहेव प्रविणीयप्पा, उववज्झा हया गया । दीसंति दुहमेहंता, श्राभिश्रोगमुट्ठिया | ५ | तहेव सुविणीयप्पा, उववज्झा हया गया । दीसति सुहमेहता, इड्ढि पत्ता महाजसा | ६ | तहेव श्रविणीयप्पा, लोगसि नरनारियो । दोसंति दुहमेहता, छाया ते विगलिंदिया |७| दंडसत्थपरिजुण्णा, प्रसन्भवयणेहि य । कलुणा विवण्णछंदा, खुप्पिवासपरिगया || तहेव सुविणीयप्पा, लोगंसि नरनारिश्रो । दीसंति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महायसा । तहेव अविणीयप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा । दोसति दुहमेहता, श्राभिश्रोगमुवट्टिया ॥१०॥ तहेव सुविणीयप्पा, देवा जक्खा य गुज्झगा | दीसति सुहमेहता, इढिपत्ता महायसा | ११ | जे आयरियउवज्झायाणं, सुस्सूसावयणंकरा । तेसि सिक्खा पवति, जलसित्ता इव पायवा । १२ । अप्पणट्ठा परट्ठा वा, सिप्पा णेउणियाणि य । गिहिणो उवभोगट्ठा, इहलोगस्स कारणा | १३ | जेण वंध वहं घोरं, परियाव च दारुणं । सिक्खमाणा नियच्छति, जुत्ता ते ललिइंदिया |१४| ६५ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ते वि तं गुरुं पूयंति, तस्स सिप्पस्स कारणा। सक्कारंति नमंसति, तुट्टा निद्देसवत्तिणो ॥१५॥ किं पुण जे सुयग्गाही, अणतहियकामए । आयरिया जं वए भिक्खू, तम्हा त नाइवत्तए ।१६॥ नीय सिज्ज गई ठाण, नीयं च आसणाणि य। नीय च पाए वदिज्जा, नीय कुज्जा य अंजलि ।१७। सघट्टइत्ता काएण, तहा उवहिणामवि । खमेह अवराह मे, दइज्ज न पुणुत्ति य ।१८॥ दुग्गो वा पोएणं, चोइनो वहई रह । एवं दुबुद्धिकिच्चाणं, वुत्तो वुत्तो पकुव्वई । १६॥ आलवते लवंते वा, न निसिज्जाइ पडिसुणे । मुत्तूणं आसणं धीरो, सुस्साए पडिसुणे ।२०। कालं छदोवयारं च, पडिलेहित्ताण हेउहि । तेण तेण उवाएण, त ण सपडिवायए ।२१। विवत्ती अविणीयस्स, सपत्ती विणीयस्स य । जस्सेयं दुहरो नायं, सिक्ख से अभिगच्छइ ।२२। जे यावि चडे मइइड्डिगारवे, पिसुणे नरे साहसहीणपेमणे । अदिधम्मे विणए अकोविए, असविभागी न हु तस्स मुक्खो॥२३॥ निद्देसवित्ती पुण जे गुरूणं, सुयत्थधम्मा विणयम्मि कोविया । तरित्तु ते अोघमिण दुरुत्तरं खवित्तु कम्म गइमुत्तम गया।२४। ॥इति विणयसमाहिणामज्झयणे वीमो उद्देसो समत्तो।। ___ तइओ उद्देसो आयरियं अग्गिमिवाहिअग्गी, सुस्सूममाणो पडिजागरिज्जा। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशर्वकालिक सूत्र अ ९ उ. ३ ६७ श्रालोइयं इंगियमेव गच्चा, जो छंदमाराहयई स पुज्जो |१| श्रायारमट्ठा विजय पउजे, सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइट्ठ अभिकखमाणो, गुरु तु नासाययई स पुज्जो ॥२॥ रायणिएसु विणयं पउजे, डहरा वि य जे परियाय जिट्ठा । नीयत्तणे वट्टइ सच्चवाई, उवायव वक्ककरे स पुज्जो |३| अण्णाय उछं चरई विमुद्ध, जवणट्टया समुयाणं च णिच्चं । अलद्धुयं नो परिदेवइज्जा, लडुन विकत्थयई स पुज्जो ॥४॥ संथारसिज्जासणभत्तपाणे, अप्पिच्छया इलाभेऽवि संते । जो एवमप्पाणभितोसइज्जा, सतोसपाहण्णरए स पुज्जो |५| सक्का सहेउ श्रासाइ कटया, अनोमया उच्छया नरेणं । अणासए जो उ सहिज्ज कंटए, वईमए कण्णसरे स पुज्जो ॥६॥ मुहत्तदुक्खा उ हवति कटया, अनोमया तेऽवि तत्र सुउद्धरा । वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ॥७॥ समावयंता वयणाभिघाया, कण्णं गया दुम्मणियं जणंति । धम्मुत्ति किच्चा परमग्गसूरे, जिइदिए जो सहई स पुज्जो |८| श्रवण्णवाय च परम्मुहस्स, पच्चक्खन पडिणीयं च भासं । नोहारिणी श्रप्पियकारिणी च, भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो ॥१॥ अलोलुए प्रक्कुह प्रमाई, अपिसुणे या वि अदीणवित्ती । नो भावए नो विय भाविअप्पा, अको उहल्ले य सया स पुज्जो ॥१०॥ गुणेहिं साहू ग्रगुणेहि साहू, गिण्हाहि साहू गुण मुचसाहू | वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो | ११| तहेव डहरं च महल्लग वा इत्थि पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नोहीलए नो विय खिसइज्जा, यभं च कोहं च चए स पुज्जो | १२ | 1 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ जैन स्वाध्यायमाला जे माणिया सययं माणयंति, जत्तेण कण्णं व निवेसर्यात | ते माणए मारिहे तवस्सी, जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो | १३| तेसिं गुरुण गुणसायराणं, सुच्चाण मेहात्री सुभासियाई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउक्कसायावगए स पुज्जो | १४ | गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी, जिणमयणिउणे श्रभिगम कुसले । क्षुणिय रयमलं पुरेकर्ड, भासुरमउलं गइ गम्रो । १५ । ॥ विणय समाहीए तइओ उद्देसो समत्तो ॥ चउत्थो उद्देसो सुयं मे प्रउस तेणं भगवया एवमक्खाय इह खलु थेरेहि भगवतेहि चत्तारि विषयसमाहिद्वाणा पण्णत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिद्वाणा पण्णत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं चत्तारि विणयसमाहिद्वाणा पण्णत्ता तंजा - विणयसमाही सुयसमाही तवसमाही आयारसमाही । विणए सुए य तवे, आयारे निच्चपंडिया | अभिरामयंति अप्पाणं, जे भवति जिइदिया | १ | चविवहा खलु विजयसमाही भवइ तजहा - १ श्रणुसासिज्जतो सुम्सूसइ, सम्मं संपवडिज्जइ, वेयमाराहइ, न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चउत्थं पय भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो | पेइ हियाणुसासण, सुस्सूसई त च पुणो अहिट्ठए । न यमाणमएण मज्जइ, विणयसमाहि प्राययट्टिए |२| चविवहा खलु सुयसमाही भवइ तजहा सुय मे भविएसइ त्ति अभाइयन्वं भवइ । एगग्गचित्तो भविस्यामित्ति Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ दशर्वकालिक सूत्र अ. ६ उ ४ अज्झाइयव्वं भवइ । अप्पाणं ठावइस्सामित्ति अज्झाइयव्वं भवइ । ठिम्रो परं ठावइस्सामित्ति अज्भाइयव्वं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो । नाणमेगग्गचित्तो य, ठिम्रो य ठावइ परं । सुयाणि य अहिज्जित्ता, रम्रो सुसमाहिए | ३ | चविवहा खलु तवसमाही भवइ, तंज़हा-नो इह् लोगट्टयाए तवमहिट्टिज्जा, नो परलोगट्टयाए तवमहिट्टिज्जा, नो कित्तिवण्णसद्द सिलोगट्टयाए तवमहिट्टिज्जा, नन्नत्य णिज्जरट्टयाए तवमहिट्टिज्जा । चउत्थ पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो । विविहगुणतवोरए णिच्चं, भवइ निरासए णिज्जरट्ठिए । तवसा धुणइ पुराणपावगं, जुत्तों सया तवसमाहिए |४| चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ तंजहा - नो इह लोट्टयाए आयाम हिट्टिज्जा, नो परलोगट्टयाए आयारमहिद्विज्जा, नो कित्तिवण्णसद्द सिलोगट्टयाए श्रायार महिट्टिज्जा, नत्रत्थ श्रारहंतेहि हेऊहिं श्रायारमहिट्टिज्जा । चउत्य पयं भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो । जिणवयणरए अतितिणे, पडिपुण्णाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसवडे, भवइ य दते भावसधए । ५ । अभिगमचउरो समाहिश्रो, सुविसुद्ध सुसमाहियप्पो । विउलहियं सुहावह पुणो, कुब्वइ य सो पयखेममप्पणी | ६ | जाइमरणाप्रो मुच्चइ, इत्थथं च चएइ सव्वसो । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्डिए ७| ॥ इति विणयसमाही नाम चउत्थो उद्देसो || नवमज्झयण समत्तं Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला ॥ सभिक्खू नामं दसममज्झयणं ॥१०॥ निक्खम्ममाणाइ य वृद्धवयणे, निच्च चित्तसमाहिओ हविज्जा । इत्थीण वसं न यावि गच्छे, वंतं नो पडियायइ जे स भिक्खू ॥१॥ पुढवि न खणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पियावए । अगणिसत्थं जहा सुनिसिय, त न जले न जलावए जे स भिक्खू ।२। अनिलेण न वीए न वीयाव ए, हरियाणि न छिदे न छिदावए। वीयाणि सया विवज्जयंतो सच्चित्तं नाहारए जे स भिख ३१ वहणं तसथावराण होइ पुढवीतणकट्ठनिस्सियाणं । तम्हा उद्देसियं न भुजे, नो वि पए न पयावए जे स भिक्खू ।४। रोइअ नायपुत्तवयणे, अत्तसमे मन्निज्ज छप्पिकाए । पंच य फासे महन्वयाई, पचासव संवरे जे स भिक्खू ।५। चत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी हविज्ज बुद्धवयणे । अहणे निज्जायरूवरयए, गिहिजोग परिवज्जए जे स भिक्खू ।६। सम्मदिट्ठी सया अमूढे, अत्थि हु नाणे तवे संजमे य । तवसा धुणई पुराणपावर्ग, मणवयकायसुसंवुडे जे स भिक्खू ।७। तहेव असणं पाणग वा, विविहं खाइम साइमं लभित्ता। होही अट्ठो सुए परे वा,तं न निहे न निहावए जे स भिक्खू ।। तहेव असणं पाणगं बा, विविहं खाइमं साइमं लभित्ता। छंदिय साहम्मियाण मुंजे, भुच्चा सज्झायरए जे स भिक्खू ।। न य वुग्गहिय कहं कहिज्जा, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमे धुवं जोगेण जुत्ते, उवसते अविहेडए जे स भिक्ख ॥१०॥ जो सहइ उ गामकंटए, अक्कोसपहारतज्जणायो य । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र में १० ७१ भयभेरवसहसप्पहासे, समसुहदुक्खसहे य जे स भिक्खू । ११॥ पडिम पडिवज्जिया मसाणे, नो भीयए भयभेरवाइ दिस्स। विविहगुणतवोरए य निच्च, न सरीरं चाभिकंखए जेस भिक्खू १२॥ असइ वोसट्टचत्तदेहे, अक्कुठे व हए लूसिए वा। पढविसमे मुणी हविज्जा, अनियाणे अकोउहल्ले जे स भिक्खू ।१३। अभिभूय काएण परिसहाइ, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विइत्तु जाइमरणं महन्भय,तवे रए सामणिए जेस भिक्खू ।१४। हत्थसंजए पायसंजए, वायसजए सजईदिए। अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा, सुत्तत्यं च वियाणइ जे स भिक्खू ॥१५॥ उवहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अण्णायउंछं पुलनिप्पुलाए । कयविक्कयसनिहिरो विरए, सव्वसगावगए य जे स भिक्खू ॥१६॥ अलोलभिक्खू न रसेसु गिज्झे, उछ चरे जीविय नाभिकंखे । इडि च सक्कारणपूयण च, चए ठियप्पा अणिहे जे स भिक्खू ।१७। न परं वइज्जासि अय कुसीले, जेणं च कुप्पिज्ज न तं वइज्जा। जाणिय पत्तेयं पुण्णपाव,अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ॥१८॥ न जाइमत्ते न य रूवमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते। मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता,धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥१६॥ पवेयए अज्जपय महामुणी, धम्मे ठियो ठावयई परं पि। निक्खम्म वज्जिज्ज कुसीललिंगं,न यावि हास कुहए जे स भिक्खू २० तं देहवासं असुई असासय सया चए निच्च हियद्विअप्पा । छिदित्तु जाईमरणस्स बधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गइ ।२॥ ॥ इति सभिक्खू नामं दसममज्झयण ॥१०॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ॥ रइवक्का पढमा चूलिया ॥१॥ इह खलु भो ! पव्वइएण उप्पण्णदुक्खेण संजमो अरइसमावण्णचित्तेणं अणोहाणुप्पेहिणा अणोहाइएण चेव हयरस्सिगयकुस-पोयपडागाभूयाई इमाइं अट्ठारसठाणाई सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवंति । तं जहा ह भो ! १ दुस्समाए दुप्पजीवी २ लहुसगा इत्तरिया गिहीण कामभोगा ३ भुज्जो असाइबहुला मणुस्सा । ४ इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सई ५ अोमजण-पुरकारे ६ वतस्स य पडिप्रायणं ७ अहरगईवासोवसपया ८ दुल्लहे खल भो ! गिहीण धम्मे गिहिवासमझे वसंताणं । प्रायंके से वहाय होइ १० सकप्पे से वहाय होइ ११ सोवक्केसे गिहिवासे, निरुवक्केसे परियाए १२ बधे गिहिवासे, मुक्खे परियाए १३ सावज्जे गिहिवासे, अणवज्जे परियाए १४ बहुसाहारणा गिहिण कामभोगा १५ पत्तेय पुण्णपाव १६ अणिच्चं खल भो ! मणुयाण जीवियं कुसग्गजलविदुचचंल १७ वहु च खलु भो ! पावं कम्मं पगड १८ पावाण च खलु भो । कडाण कम्माण पुचि दुच्चिन्नाणं दुप्पडिकताण वेइत्ता, मुक्खो, 'नत्यि अवेइत्ता' तवसा वा झोसइत्ता । अद्वारसम पयं भवइ । भवइ य इत्य सिलोगो। जया य चयइ धम्म, अणज्जो भोगकारणा। से तत्य मुच्छिए वाले, प्रायइं नाववृज्झइ १ जया पोहाविप्रो होइ, इदो वा पडियो छमं । सम्वधम्मपरिभट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ।२। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूत्र चू. १ ७३ 1 जया य वदिमो होइ पच्छा होइ अवदिमो । देवया व चुया ठाणा, स पच्छा परितप्पई |३| जया य पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो । राया य रज्जपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पड़ |४| जया य माणिमो होइ, पच्छा होइ श्रमाणिमो । सिट्टिव्व कव्वडे छूढो, स पच्छा परितप्पइ |५ जया य थेस्लो होइ, समइक्कंत जुव्वणो । मच्छुन्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पइ |६| जया य कुकुडुबस्स, कुतत्तीहि विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥७॥ पुत्तदारपरिकिण्णो, मोहसंताणसंतो । पकोसण्णो जहा नागो, स पच्छा परितप्पइ १८ अज्ज ग्राह गणी हुतो, भाविश्रप्पा बहुस्सु । जssहं रमतो परियाए, सामण्णे जिणदेसिए || देवलोगसमाणो य, परियात्रो महेसिणं । रयाणं अरयाण च, महानरयसारियो । १०। अमरोवम जाणिय सुक्खमुत्तम, रयाण परियाइ तहाऽरयाणं । नरोवमं जाणिय दुक्खमुत्तमं रमिज्ज तम्हा परियाय पंडिए |११| धम्माउ भट्ठ सिरिश्रो श्रवेय, जण्णग्गि विज्झायमिवऽप्पतेय । होलति णं दुव्विहियं कुसीला, दादुद्धियं घोरविस व नागं ॥ १२ ॥ sasaमो प्रयसो अकिंत्ती, दुन्नामधिज्ज च पिहुज्जणम्मि । चुयस्स धम्माउ अहम्मसेविणो, सभिण्णवित्तस्स य हिदुओ गई । १३० भुजित्तु भोगाई पसज्मचेयसा, तहाविहं कट्टु श्रसंजमं बहुं ! , Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला गइंच गच्छे अभिज्झियं दुह, बोही य से नो सुलहा पुणो पुणो।१४॥ इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो, दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो । पलिनोवमं झिज्झइ सागरोवम,किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुई।१५॥ न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सइ, असासया भोगपिवास जतुणो। न चे सरीरेण इमेणऽविस्सइं, अविस्सई जीवियपज्जवेण मे ।१६। जस्सेवमप्पा उहविज्ज निच्छियो, चइज्ज देह नहु धम्मसासणं । तं तारिस नो पइति इंदिया,उवितिवाया व सुदंसणं गिरि ।१७। इच्चेव संपस्सिय बुद्धिम नरो, प्राय उवाय विविहं वियाणिया । काएण वाया अदु माणसेण, तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिटिज्जासि । ॥ रइवक्का पढमा चूला समत्ता ॥१॥ ॥ विवित्तचरिया बीआ चूलिया । चूलियं तु पवक्खामि, सुयं केवलिभासियं । जं सुणित्तु सुपुण्णाणं, धम्मे उप्पज्जए मई ११॥ अणुसोअपट्ठिए बहुजणम्मि, पडिसोय-लद्ध-लक्खेण । पडिसोयमेव अप्पा, दायव्वो होउकामेण ·२१ । अणुसोयसुहो लोओ, पडिसोयो आसवो सुविहिसाणं । अणुसोत्रो ससारो, पडिसोप्रो तस्स उत्तारो ।। तम्हा पायारपरक्कमेणं, संवर-समाहि-बहुलेणं । चरिया गुणा य नियमा य, हुंति साहूण दट्ठव्वा ।४। अनिएयवासो समुयाणचरिया, अण्णायउछ पइरिक्कया य । •. अप्पोवही कलहविवज्जणा य, विहारचरिया इसिण पसत्था ॥५॥ पाइन्न-ओमाण-विवज्जणा य, ओसन्न-दिवाहड-भत्तपाणे। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक सूत्र चु २ ७५ ससटकप्पेण चरिज्ज भिक्खू , तज्जायसंसट्ठ जई जइज्जा।६। अमज्जमंसाति अमच्छरीया, अभिक्खण निन्विगई गया य । अभिक्खणं काउस्सग्गकारी, सज्झाय जोगे पयो हविज्जा।७। न पडिण्णविज्जा सयणासणाइ, सिज्जं निसिज्ज तह भत्तपाणं । गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तभावं न कहिं पि कुज्जा ।। गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा, अभिवायण वंदण पूयणं वा । असंकिलिडेहि सम वमिज्जा, मुणी चरित्तस्स जो न हाणी।। न वा लभेज्जा निउण सहायं, गुणाहिय वा गुणो समं वा । इक्को वि पावाइं विवज्जयंतो, विहरिज्ज कामेसु असज्जमाणो। सवच्छर वा वि परं पमाणं, बीय च वासं न तहिं वसिज्जा । सुत्तस्स मग्गेण चरिज्ज भिक्खू, सुत्तस्स अत्थो जहाणवेइ।११। जो पुव्वरत्तावररत्तकाले, सपिक्ख अप्पगमप्पएणं । कि मे कड किं च मे किच्चसेस,कि सक्कणिज्जन समायरामि।१२। कि मे परो पासइ किं च अप्पा, किंवाऽह ख लियं न विवज्जयामि । इच्चेव सम्म अणुपासमाणो, अणागयं नो पडिबध कुज्जा ।१३॥ जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, काएण वाया अदु माणसेण । तत्थेव धीरो पडिसाहरिज्जा, आइण्णो खिप्पमिवक्खलीणं॥१४॥ जस्सेरिसा जोग जिइदियस्स, धिइमो सप्पुरिसस्स निच्चं। तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी; सो जीवई सजमजीविएणं ।१५॥ अप्पा खलु सययं रक्खियन्वो, सविदिएहिं सुसमाहिएहिं ।। अरक्खिो जाइपहं उवेइ, सुरक्खिो सव्वदुहाण: मच्चइ ॥१६॥ ॥ विवित्तचरिआ बीआ चूला समसा ॥२॥ इह दसवेालिम सुतं समत्तं ।। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... ॥ उत्तरायण सुत्तं ॥ . विणयसुयं पढमं अज्झयणं संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि, प्राणुपुचि सुणेह मे ॥१॥ प्राणानिद्देसकरे, गुरुणमुववायकारए । इगियागारसंपन्ने, से विणीए त्ति वुच्चइ ॥२॥ आणाऽनिद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंवृद्धे, अविणीए त्ति बुच्चइ ।।३।। जहा सुणी पूइ-कण्णी, निक्कसिज्जई सव्वसो। एवं दुस्सील-पडिणीए, मुहरी निक्कसिज्जइ ।४। कण-कुण्डगं चइ-ताणं, विट्ठे भुंजइ सूयरो। एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीलें रमई मिए ।५॥ सुणिया भावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज्ज अप्पाणं, इच्छन्तो हिय-मप्पणो ।६। तम्हा विणय-मेसिज्जा, सीलं पडि-लभेज्जओ। बुद्ध-पुत्त नियागट्ठी, न निक्कसिज्जइ कण्हुई 1७। निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए संया । अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा, निरट्राणि उ वज्जए । अणुसामियो न कुप्पिज्जा, खेति सेदिज्ज पण्डिए । खुडडेहि सह संसरिंग हासं कोडं च वज्जए II मा य चण्डालियं कासी, वयं मा ये आलवे। कालेण य अहिज्जित्ता, तो झाइज्ज एगो ११०॥ आहच्च चण्डालियं कटु, न निण्हविज्ज कयाइवि । कडं कडेत्ति भासेज्जा, अकडं नो कडेत्ति य ।११॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अं.१ ७७ ७७ मा गलियस्सेव कसं, वयण-मिच्छे पुणो-पुणो । कसं व दट्ठ माइण्णे, पावगं परिवज्जए ।१२। .. अणासवा थूल-वया कुसीला, मिउपि चण्डं पकरन्ति सीसा । चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयंऽपि।१३१ नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए । कोहं असच्च कुवेज्जा,धारेज्ज पियमप्पियं ॥१४॥ अप्पा चेव दमेयचो, अप्पा हु खलु दुद्दमों।। अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य ।१॥ वरं,मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । - ', माह परेहि दम्मतो, बंधणेहिं वहेहि य ।१६॥ पडिणीय च बुद्धाणं, वायां अदुव कम्मुणा । । भावी वा जइ वा रहस्सं, नेव कुज्जा कयाइवि ।१७। न पक्खो न पुरो, नेव किच्चाण पिट्ठो । . न जुजे उरूणा उरु, सयणे नो पडिस्सुणे ॥१८॥ नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्ख पिण्ड च संजए । पाए पसारिए वावि, न चिठे गुरुणन्तिए ।१६। पायरिएहि वाहित्तो, तुसिणीमो न कयाइवि। पसायपेही नियागट्ठी, उवचिठे गुरु सया ॥२०॥ आलवन्ते लवन्ते वा, न निसीएज्ज कयाइवि।। चइ-ऊणमासणं धीरो, जो जुत्तं पडिस्सुणे ॥२॥ : पासणगो न पुच्छेज्जा नेव सेज्जागो कयाइवि । आगम्मुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छिज्जा पजलीउडो ।२२॥ — एवं विणय-जुत्तस्स, सुत्त अत्थं च तदुभयं ।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला पुच्छ-माणस्स सीसस्स, वागरिज्ज जहा सुयं ।२३। मुसं परिहरे भिक्खू, न य अोहारिणि वए । भासा-दोसं परिहरे, मायं च वज्जए सया।२४। न लवेज्ज पुट्ठो सावज्ज, न निरठं न मम्मय । अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सऽन्तरेण वा ॥२५॥ समरेसु अगारेसु, सधीसु य महापहे। एगो एगित्थिए सद्धि, नेव चिट्ठे न संलवे ।२६।। जं मे बुद्धाणुसासंति, सीएण फरुसेण वा । मम लाभोत्ति पेहाए, पयो तं पडिस्सुणे ।२७। अणु-सासण-मोवायं, दुक्कडस्स य चोयण । हियं त मण्णई पण्णो, वेसं होइ असाहुणो ।२८ हियं विगय-भया बुद्धा, फरुसंपि अणुसासणं । वेस त होइ मूढाण, खतिसोहिकर पय ।२६। आसणे उव-चिट्ठज्जा, अणुच्चे अकुक्कुए थिरे ।। अप्पुढाई निरुट्ठाई, निसीएज्जऽप्पकुक्कुए ॥३०॥ कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे । । अकालं च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे ॥३॥ परिवाडीए न चिट्ठज्जा, भिक्खू दत्तेसण चरे । • पडि-रूवेण एसित्ता, मियं कालेण, भक्खए ।३२॥ नाइदूरमणासन्ने, नाऽन्नेसिं चक्खुफासमो। एगो चिट्ठज्ज भत्तट्ठा, लंघित्ता तं नाऽइक्कमे ॥३३॥ नाइउच्चे व नीए वा, नासन्ने नाइ-दूरो। फासुयं परकडं पिण्डं, पडिगाहेज्ज संजए ।३४१ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १ ७६ अप्पपाणेऽप्पवीयम्मि, पडिच्छन्नम्मि सवुडे । समयं सजए भुजे, जय अपरिसाडिय ।३५१ सु-कडित्ति सु-पक्कित्ति, सु-च्छिन्ने सु-हडे मडे । सु-णि ठ्ठिए सु-लद्धित्ति, सावज्ज वज्जए मुणो।३६॥ रमए पण्डिए सास, हय भ व वाहए। बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ।३७। खड्डया मे चेवडा मे,अक्कोसा य वहा य मे। कल्लाण-मणु-सासंतो, पाव-दिट्ठित्ति मन्नई ॥३८॥ पुत्तो मे भाय नाइत्ति, साहू कल्लाण मन्नई। पाव-दिदि उ अप्पाणं, सासं दासित्ति मन्नई ॥३६ न कोवए आयरियं, अप्पाणपि न कोवए। बद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए 1४०। प्रायरियं कुवियं नच्चा, पत्तिएण पसायए । विज्झवेज्ज पजलीउडो, वएज्ज न पुणोत्ति य ४१ धम्मज्जिय च ववहारं,बुद्धेहिं पायरियं सया। तमायरतो ववहारं, गरहं नाभिगच्छई।४२॥ मणोगय वक्कगय, जाणित्तायरियस्स उ। तं परिगिझ वायाए, कम्मुणा उववायए ।४३॥ वित्ते अचाइए निच्चे, खिप्पं हवइ सुचोइए। जहावइलैं सुकयं, किच्चाइ कुव्वई सया ।४४। नच्चा नमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए । हवई किच्चाण सरण, भूयाण जगई जहा ।४५॥ पुज्जा जस्स पसीयति, सबुद्धा पुव्वसंथुया। , Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ἐ 'जैन स्वाध्यायमाला पन्ना लाभ- इस्संति, विउलं ट्ठियं सुयं ॥४६॥ सज्ज सत्ये सु-विनियसंसए, मणोरुई चिट्ठइ कम्म संपया । तवो समायारि- समाहि- संवुडे, महज्जुइ पच वयाइं पालिया ॥ ४७ ॥ स देव-गंध- मणुस्सइए, चइत्तु देहं मल-पक- पुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्डिए ।४८। ,, || विजयसूय नाम पढम अभयण समत्त ॥ १ ॥ 4 || दुइयं परिसहज्झयणं ॥ २ ॥ J सुय मे आउस तेणं भगवया एव मक्खायं । इह खलु बावीसं परीसहा समणेण भगवया महावीरेण कासवेणं पंवेइया ! जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा श्रभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तो पुट्ठो नो विहिण्णेज्जा । कयरे ते खलु वावीसं परीसहा समणेण भगवया महावीरेण कासवेण पत्रेइया जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा ग्रभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहिन्नेजा ? इमे ते खलु बावीसं परीसहा समर्पणं भगवया महावीरेण कासवेण पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा श्रभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विनिहन्नेज्जा; तं जहा - दिगिछा- परीस १ विवासा- परीसहे २ सीयपरीसहे ३ उसिण- परीस हे ४ दंस-मसय-परीसहे ५ अचेल परीसहे ६ अरइपरीसहे ७ इत्यी- परीसहे ८ घरिया परीसहे हे निसोहिया परीसहे १० सेज्जा - परीसहे १९ अक्कोस परीसहे १२ वह परीस १३ जायणा-परोसहे १४ अलाभ- परीसहे १५ रोग-परीसहे १६ aणफास-परीसहे १७ जल्ल परीसहे १८ मक्कार पुरस्कार-परीसहे १६ पना-परीमहे २० प्रमाण-परीसहे २१ दंसण-परीस हे २२ । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २१ परीसहाण पविभत्ती, कासवेण पवेइया । तं भे उदाहरिस्सामि, प्राणुपुचि सुणेह मे ।११ दिगिछा-परिगए देहे, तवस्सी भिक्खू थामवं । ण छिदे ण छिदावए, ण पए ण पयावए ।२। काली-पव्वंग-सकासे, किसे धमणिसतए । मायण्णे असण-पाणस्स, प्रदीण-मणसो चरे।३। तो पुट्ठो पिवासाए, दुगुछो लज्जसजए । सीओदगंण सेविज्जा, वियडस्सेसणं चरे।४। छिण्णावाएसु पथेमु आउरे सुपिवासिए । परिसूक्कमहाऽदीणे, तं तितिखे परीसहं ।। चरत विरय लूह, सीयं फुसइ एगया । णाइवेलं मणी गच्छे, सोच्चाणं जिण-सासण ।६। ण मे णिवारणं अत्थि, छवित्ताण ण विज्जइ । अहं तु अरिंग सेवामि, इइ भिक्खू ण चितए १७। उसिण परियावेणं, परिदाहेण तज्जिए । घिसु वा परियावेण, सायं णो परिदेवए।८। उण्हाहितत्तो मेहावी, सिणाणं णोऽवि पत्थए । गायं णो परिसिंचेज्जा, ण वीएज्जा य अप्पयं ।।। • पुढे य दस-मसएहिं, समरे व महा-मुणी । णागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं ॥१०॥ ण संतसे ण वारेज्जा. मणंऽपि ण पोसए । उहे ण हणे पाणे, भुजते मंस-सोणियं ।११॥ परिजुण्णेहिं वत्थेहि, होक्खामित्ति अचेलए। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ उत्तराध्ययन सूत्र अ. २ अदुवा सचेले होक्खामि, इइ भिक्खू ण चितए | १२ | एगयाऽचेलए होइ, सचेले या वि एगया । एयं धम्महियं णच्चा, णाणी णो परिदेवए | १३ | गामाणुगाम रीयतं, अणगार अकिंचणं । अरई श्रणुप्पवेसेज्जा, नं तितिक्खे परीसहं | १४| अरइं पुट्ठो किच्चा, विरए प्राय-रक्खिए । धम्मारामे णिरारंभे, उवसंते मुणी चरे । १५ सगो एस मणूसाण, जायो लोगम्मि इत्थियो । जस्स एया परिण्णाया, सुकड तस्स सामण्णं । १६ । एवमादाय मेहावी, पंकभूया उ इत्थिश्रो । णो ताहि विहिणेज्जा, चरेज्जत्तगवेसए | १७ | एग एव चरे लाढे, अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि, णिगमे वा रायहाणीए |१८| श्रसमाणो चरे भिक्खू, णेव कुज्जा परिग्गहं । असत्तो गिहत्थेहि, श्रणिए परिव्वए |१६| सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले व एगो । कुक्कुप्रो णिसीएज्जा, ण य वित्तासए परं । २० तत्थ से चिट्टमाणस्स, उवसग्गाभिधारए । सकाभी ण गच्छेज्जा, उट्टित्ता अण्णमासणं |२१| उच्चावयाहि सेज्जाहि, तवस्सी भिक्खू थामव । णाइवेलं विहणेज्जा, पाव- दिट्ठी विहरणइ |२२| पइरिक्कमुवस्सयं लडु, कल्लाण अटुत्र पावगं । किमैगराई करिस्सेइ, एवं तत्थऽहियासए |२३| Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ८३ ... अक्कोसेज्जा परे भिक्खु, ण तेसिं पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू ण सजले ।२४॥ सोच्चाण फरसा भासा, दारुणा गाम-कंटगा। तुसिणीअो उवेहेज्जा, ण तारो मणसीकरे ॥२५॥ हो ण संजले भिक्खू, मणंपि ण पोसए । तितिक्खं परम णच्चा, भिक्खू धम्म समायरे ।२६। समणं संजय दंतं, हणिज्जा कोइ कत्थई । पत्थि जीवस्स णासुत्ति, एवं पेहेज्ज सजए ।२७। दुक्कर खलु भो णिच्चं, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइय होइ, णत्यि किंचि अजाइय ।२८॥ गोयरग्ग-पविट्ठस्स, पाणी णो सुप्पसारए । सेश्रो अगारवासुत्ति, इइ भिक्खू ण चिंतए ।२६। परेसु घासमेसेज्जा, भोयणे परिणिहिए। लद्धे पिंडे अलद्धे वा, णाणतप्पेज्ज पडिए ।३०। अज्जेवाह ण लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो त ण तज्जए ।३१॥ णच्चा उप्पइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्ठिए । अदीणो ठावए पण्ण, पुट्ठो तत्थऽहियासए ।३२। तेगिच्छं णाभिणदेज्जा, सचिक्खऽत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्ण, जं ण कुज्जा ण कारवे ।३३। अचेलगस्स लूहस्स, सजयस्स तवस्सिणो । तणेसु सयमाणस्स, हुज्जा गायविराहणा ।३४। प्रायवस्स णिवाएणं, अउला हवइ वेयणा । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ उत्तराध्ययनसूत्र अ २ एवं णच्चा ण सेवंति, ततुजं तणतज्जिया । ३५| किलिण्णगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा । घिसु वा परियावेण, साथ णो परिदेवए | ३६ | वेज्ज णिज्जरापेहि, श्रारिय धम्मऽणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जल्लं काएण धारए |३७| श्रभिवायण-मभुट्ठाण, सामी कुज्जा णिमतण | जे ताइ पडिसेवति, ण तेसि पीहए मुणी |३८| अणुक्कसाई श्रपिच्छे अण्णाएसी अलीलुए । रसेसु णाणुगिज्भेज्जा, णाणुतप्पेज्ज पण्णव |३६| से णूण मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा । जेणाह णाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुई |४०| अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माऽणाणफला कडा एवमस्सासि अप्पाण, णच्चा कम्मविवागयं । ४१| णिरद्वगम्मि विरो, मेहुणा सुमंवुडो । जो सक्खं णाभिजाणामि, धम्मं कल्लाण पावगं |४२ | तवोवहाण-मादाय, पडिमं पडिवज्जओ । एवंवि विहरत्रो मे छउमं ण नियदुइ |४३| णत्थि पूर्ण परेलोए, इड्ढी वावी तवस्सिनो | अदुवा वंचिग्रो-मित्ति, इइ भिक्खू ण चितए |४४ प्रभू जिणा श्रत्थि जिणा, प्रदुवा वि भविस्सइ । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू ण चितए |४५ | एए परीसहा सव्वे, कासवेण पवेइया । जे भिक्खूण विहम्मेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई । त्तिवेमि ४६ । || दुइअ परीसहज्भयण समत्त ॥२॥ , Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंन स्वाध्यायमाला ८५ ॥ तइयं चाउरंगिज्जं श्रज्झयणं ॥ ३ ॥ चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जतुणो । माणुमत्तं सुई सद्धा, सजमम्मि य वीरियं । १ । समावण्णाण संसारे, णाणागोत्तासु जाइसु । कम्मा णाणाविहा कट्टु, पुढो विस्संभया पया | २| एगया देवलोएसु, णरएसु वि एगया । एगया आसुर काय, अहाकम्मेहिं गच्छइ | ३| एगया खत्ति होइ, तो चण्डालबुक्कसो | तो कीड - पयंगो य, तो कुथु - तो कुथु पिवीलिया |४| एवमावट्ट - जोणीसु, पाणिणो कम्म किव्विसा । ण णिविज्जति ससारे, सव्वट्ठेसु व खत्तिया । ५ । कम्म-सर्गेहिं सम्मूढा, दुक्खिया बहु-वेयणा । माणुसासु जोणीसु, विणिहम्मंति पाणिणो | ६ | कम्माण तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययति मणुस्सयं |७| माणुस्सं विग्गहं लद्ध, सुई धम्मस्स दुल्लहा । जं सोच्चा पडिवज्जति, तवं खतिमहिंसय ८ आहच्च सवण लद्ध, सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चा नेप्राउयं मग्गं, बहवे परिभस्सइ || सुइ च लद्ध सद्धं च वीरियं पुण दुल्लह । बहवे रोयमाणा वि, णो य ण पडिवज्जए | १०| माणुसत्तम्मि प्रयाश्रो, जो धम्मं सोच्च सद्दहे । तवस्सी वीरियं लद्ध, सवुडे णिढणे रयं । ११ । - Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३ सोही उज्जुयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठइ । णिव्वाण परमं जाइ, घयसित्तिव्व पावए ।१२। विगिच कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु खंतिए । सरीर पाढवं हिच्चा, उड्ढं पक्कमई दिसं ११३। विसालिसेहिं सीलेहि, जक्खा उत्तर उत्तरा । महासुक्का व दिप्पता, मण्णंता अपुणच्चव ।१४। अप्पिया देवकामाणं, काम-रूव-विउविणो। उड्ढ कप्पेसु चिट्ठति, पुव्वा वाससया बहू ।१५। तत्थ ठिच्चा जहा-ठाणं जक्खा आउक्खए चुया । उवेति माणुस जोणि, से दसंगेऽभिजायई ।१६। खेत्तं वत्थु हिरण्णं च, पसवो दास-पोरुस । चत्तारि काम-खंधाणि, तत्थ से उववज्जई ।१७। मित्तवं णायव होइ, उच्चागोए य वण्णव । अप्पायंके महा-पण्णे, अभिजाए जसोबले ।१८॥ भोच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरुवे अहाउय । पुवि विसुद्ध-सद्धम्मे, केवल वोहि बुझिया ।१६। चउरंग दुल्लह णच्चा, सजम पडिवज्जिया। तवसा ध्यकम्मसे, सिद्धे हवइ सासए ।२०। त्ति वेमि ॥ इति चाउरगिज्ज णाम तइम अज्झयण समत्त ॥३॥ ॥ चउत्थं असंखयं अज्झयणं ॥४॥ असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु णत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते, किण्णु-विहिंसा अजया गहिति ॥१॥ जे पाव-कम्मेहिं धण मणूसा, समाययति अमइ गहाय ।। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनस्वाध्यायमाला ८७ हाय ते पास-पयदिए णरे, वेराणुबद्धा णरय उवेति ।२। तेणे जहा सधिमहे गहीए, सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । एव पया पेच्च इह च लोए कडाण कम्माण ण मुक्ख अस्थि ।। संसारमावण्ण परस्स अट्ठा, साहारण जं च करेइ कम्म । मस्स ते तस्स उ वेयकाले, ण बधवा बधवय उवेति ।४। | पेण ताण ण लभे पमत्ते, इमम्मि लोए अदुवा परत्था । पणठेव अणत-मोहे, णेयाउयं दद्रुमदठ्ठमेव ।। यावि पडिबुद्धजीवी, ण वीससे पडिए पासुपण्णे । मुहुत्ता अवलं सरीरं, भारंडपक्खी व चरेऽप्पमत्तो ॥६॥ गाइं परिसंकमाणो, जं किंचि पासं इह मण्णमाणो । विय व्हइत्ता, पच्छा परिणाय मलावधसी ७। उवेइ मोक्खं, पासे जहा सिविखयवम्मधारी । • चरेप्पमत्तो, तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मोक्खं १८॥ ण लभेज्ज पच्छा, एसोवमा सासयवाइयाण । सिढिले आउयम्मि, कालोवणीए सरीस्स भेए ।९। केइ विवेगमेउ, तम्हा समुदाय पहाय कामे । यं समया-महेसी, आयाणुरक्खी चरेऽप्पमत्तो।१०। मोह-गुणे जयंत, अणेग-रूवा समण चरतं । सा फुसति असमजसं च, ण तेसि भिक्खू मणसा पउस्से । ११॥ मंदा य फासा बहुलोहाणिज्जा, तहप्पगारेसु मण ण कुज्जा । रक्खिज्ज कोहं विणएज्ज माणं,मायं ण सेवेज्ज पहेज्ज लोहं ।१२। जेऽसंखया तुच्छपरप्पवाई, ते पिज्ज-दोसाणगया परज्झा। एए अहम्मेत्ति दुगुछमाणो,कखे गुणे जाव सरीरभेए ।१३।त्ति बेमि - ॥ इति असखय चउत्थ अज्झयण समत्त ।। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नगायन मृत्र न. ५ ।।मकाममरणिन्नं णामं पंचमं अज्झयणं । अण्णवमि महोमि, एगे तिग्ण दुन्न्तरे। तन्य गं महापर्ण, इमं पण्हमदाहरे। मंनिमे य दुवे ठाणा, अक्वाया मरणतिया । अकाम-मरण वेव, मुकाम-मरणं तहा १२१ बालागं तु अकामं तु, मरणं असई भवे । पंडियाणं सकामं तु, क्रांसण सई भवे ।। नत्यिमं पदमं ठाणं, महावीरेण देसियं ।। काम-गिद्धं जहा बाल, भिमं कमाई कुबई ।४। जे गिद्धे काम-भागेमु, एगे कूड़ाय गच्छई। ण मे दिठे परे लोए, चक्खदिट्टा इमाई | हत्यागया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जाणड पर लोए, अस्थि वा णत्यि वा पुणो ।६। जणेण सद्धि होक्वामि, इह वाले पगभई । काम भोगाणराएण, केसं संपडिवज्जई 1७1 तग्रो मे दढ समारमई, तमेमु थावरेसु य । अट्टाए य अणट्ठाए, भूयगामं विहिंसई 101 हिमे वाले मुसाबाई, माइल्ले पिपुणे सढे । भुजमाणे मुरं मंस, सेयमेयंति मण्णई ।।। कायमा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिम् । दुहयो मलं संचिणड, मिसुणागुव्व मट्टियं 1१०1 तो पुट्ठो प्रायंकणं, गिलाणो परितप्पई । पमीग्रो पर-लोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो ॥११॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ६ पोसहं दुहरो पक्खं, एगरायं न हावए ।२३। एव सिक्खा-समावन्ने, गिहि-वासेवि सुव्वए । मुच्चई छविपव्वानो, गच्छे जक्खसलोगय ।२४। अह जे सवुडे भिक्खू, दोण्हमन्नयरे सिया। सव्व-दुक्खप्पहीणे वा, देवे वावि महिड्ढिए ।२५। उत्तराई विमोहाई, जुईमताऽणुपुव्वसो । समाइण्णाई जखेहि, अावासाइ जससिणो ।२६। दीहाउया इड्ढिमंता, समिद्धा कामरूविणो। अहुणोववन्नसंकासा, भुज्जो अच्चिमालिप्पभा २७१ ताणि ठाणाणि गच्छति, सिक्खित्ता संजम तवं । भिक्खाए वा गिहत्थे वा, जे संति परिणिन्वुडा ।२८। तेसिं सोच्चा सपुज्जाण, संजयाणं वुसीमनो। न संतसति मरणंते, सीलवंता बहुस्सुया ।२६! तुलिया विसेसमादाय, दया-धम्मस्स खंतिए । विप्पसीएज्ज मेहावी, तहाभूएण अपणा ।३०। तो काले अभिप्पेए, सड्ढी तालिसमतिए । विगएज्ज लोमहरिसं, भेय देहस्स कखए ।३१॥ अहकालम्मि सपत्ते, आघायाय समुम्सय । सकाममरण मरई, तिण्हमन्नयरं मुंणी १३२। ॥ इति आकममरणिज्ज पंचम अज्झयण समत्तं ॥५॥ ॥ खुड्डागनियठिज्जं छठें अज्झयणं ॥६॥ जावतऽविज्जापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसभवा । लुप्पति वहुसो मूढा, संसारम्मि अणंतए ।१। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला समिक्ख पण्डिए तम्हा, पासजाई पहे बहू। अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्ति भूएसु कप्पए ।२। माया पिया ण्हुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा। नाल ते मम ताणाए, लुप्पतस्स सकम्मुणा ।३। एयमझें सपेहाए, पासे समियदसणे। छिन्दे गेहिं सिणेहं च, न कंखे पुत्वसंथवं ।।। गवासं मणि-कुण्डलं, पसवो दास-पोरुसं । सव्व-मेयं चइत्ताणं, काम-रूवी भविस्ससि ।। थावरं जगमं चेव, धणं धन्नं उवक्खरं । पंच्चमाणस्स कम्मेहि, नाल दुक्खाउ मोयणे।६। अज्झत्थं सव्वनो सव्वं, दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए ७। आयाण नरयं दिस्स, नायएज्ज तणामवि । दोगुंछी अप्पणो पाए, दिन भुजेज्ज भोयणं ।। इहमेगे उ मन्नति, अप्पच्चक्खाय पावगं । प्रायरियं विदित्ताणं, सव्व-दुक्खाण मुच्चई ।। भणता अकरेता य, बघ-मोक्ख-पइण्णिणो । वाया-विरिय-मित्तेण, समासासेति अप्पयं ।१०। न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं । विसन्ना पाव-कम्मे हिं, बाला पंडियमागिणो ।११॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रूवे य सव्वसो। मणसा काय-बक्केणं, सव्वे ते दुक्ख-सम्भवा ।१२ आवन्ना दीहमदाणं, ससारम्मि अणंतए। Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला समिक्ख पण्डिए तम्हा, पासजाई पहे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेति भूएस कप्पए |२| माया पिया हुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नाल ते मम ताणाए, लुप्पतस्स सकम्मुणा | ३ | एयमट्ठ सपेहाए, पासे समियदंसणे । छिन्दे गेहि सिणेहं च, न कंखे पुव्वसंथवं ॥४॥ गवासं मणि- कुण्डलं, पसवो दास - पोरुसं । सव्व - मेयं चइत्ताणं, काम रूवी भविस्ससि | ५ | थावरं जंगम चेव, धणं धन्न उवक्खरं । पंच्चमाणस्स कम्मेहि, नाल दुक्खाउ मोयणे | ६ | प्रज्झत्थं सव्व सव्वं, दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराम्रो उवरए |७| श्रयाण नरयं दिस्स, नायएज्ज तणामवि । दोनुंछी अप्पणो पाए, दिन्न भुञ्जेज्ञ्ज भोयणं इहमेगे उ मन्नति, अप्पच्चक्खाय पावगं । श्रायरियं विदित्ताण, सव्व - दुक्खाण मुच्चई || भणता अकरेता य, बध - मोक्ख-पइण्णिणो । वाया - विरिय मित्तेण, समासासेति श्रप्पय | १०| न चित्ता तायए भासा, कुप्रो विज्जाणुसासणं । विसन्ना पाव - कम्मेहि, बाला पंडियमाणिणो । ११ । जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रूवे य सव्वसो । मणसा काय-बक्केणं, सव्वे ते दुक्ख सम्भवा | १२ | श्रावन्ना दीहमद्धाणं, ससारम्मिश्रणंतए । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ७ तम्हा सव्व-दिसं पस्सं, अप्पमत्तो परिव्वए ।१३। बहिया उड्डमादाय, नावकखे कयाइवि । पुव्व-कम्म-क्खय-ट्ठाए, इमं देह समुद्धरे ।१४। विविच्च कम्मुणो हेडं, कालकंखी परिव्वए । मायं पिंडस्स पाणस्स, कड लभ्रूण भक्खए ।१५॥ सन्निहिं च न कुविज्जा, लेव-मायाए संजए। पक्खीपत्तं समादाय, निरवेक्खो परिव्वए ।१६। एसणा-समियो लज्ज, गामे अणियनो चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहि, पिण्ड-वायं गवेसए ।१७। एवं से उदाहु अणुत्तर-नाणी अणुत्तर-दसी अणुत्तर-नाण-दसण-धरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियाहिए ॥१८॥ ॥ खुड्डागनियठिज्ज छठ्ठ अज्झयण समत्त ॥ ६॥ । एलयं सत्तमं अज्झयणं ॥७॥ जहाएसं समुद्दिस्स, कोइ पोसेज्ज एलयं । प्रोयणं जवसं देज्जा, पोसेज्जावि सयगणे ।१। तो से पुढे परिवूढे, जायमेए महोयरे । पीणिए विउले देहे, आएसं परिकंखए ।२। जाव न एड पाएसे, ताव जीवइ से दुही। अह पत्तम्मि आएमे, सीसं छेतूण भुज्जई ।३। जहा से खलु उरव्भे, पाएसाए समीहिए । एवं वाले अहम्मिठे, ईहई नरयाउय ।४। हिंसे बाले मुसावाई, श्रद्धाणमि विलोवए । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला अन्न-दत्तहरे, तेणे, माई कण्णु हरे सढे ॥५॥ इत्थी-विसय-गिद्धे य, महारंभ-परिग्गहे । भुजमाणे सुरं मसं, परिवूढे परंदमे ।। अयकक्करभोइ य, तुंदिल्ले चिय-लोहिए । आउयं नरए कंखे, जहाएस व एलए।७। . पासणं सयण जाणं, वित्तं कामे य भुजिया । दुस्साहड धणं हिच्चा, बहु सचिणिया रयं ।। तो कम्मगुरू जतू, पच्चुप्पन्न-परायणे । अएव्व आगयाएसे, मरणतम्मि सोयई ।। तो पाउ-परिक्खीणे, चुयादेह विहिंसगा। आसुरीयं दिसं बाला, गच्छति अवसा तम ।१०॥ जहा कागिणिए हेउ, सहस्सं हारए नरो। अपत्थं अम्बग भोच्चा, राया रज्ज तु हारए । एवं माणुस्सग! कामा, देवकामाण अतिए। सहस्स-गुणिया भुज्जो, पाउं कामा य दिग्विया ॥१२॥ अणेग-वासानउया, जा सा पन्नवो ठिई। जाई जीयति दुम्मेहा, उणे-वास-सयाउए ।१३। जहा य तिन्नि वाणिया, मूलं घेत्तण निग्गया। एगोऽत्थ लहई लाभं, एगो मूलेण आगयो ।१४। एगो मूलंपि हारित्ता, प्रागओ तत्थ वाणिो । ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ॥१५॥ माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं, नरग-तिरिक्खत्तणं धुवं ॥१६॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ ७ दुहनो गई बालस्स, आवई वहमूलिया। देवत्त माणुसत्तं च, ज जिए लोलयासढे ।१७। तो जिए सई होइ, दुविहं दोग्गइं गए । दुल्लहा तस्स उम्मग्गा, अद्धाए, सुचिरादवि ॥१८॥ एवं जिय सपेहाए, तुल्लिया वाल च पण्डियं । मूलिय ते पवेसति, माणुस्सं जोणिमेति जे ।१६। वेमायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहि-सुव्वया । उवेति माणुस जोणि, कम्मसच्चा हु पाणिणों ।२०। जेसि तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया । सीलवता सविसेसा, अदीणा जंति देवयं ॥२१॥ एवमद्दीणवं भिक्खू, अगारिं च वियाणिया । कहण्णु जिच्च मेलिक्खं, जिच्चमाणे न सविदे ।२२॥ जहा कुसग्गे उदगं, समुद्देण सम मिणे । एवं माणुसग्गा कामा, देव-कामाण अंतिए ।२३। कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धम्मि पाउए । कस्स हेउं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे 1२४। इह कामाणियट्टस्स, अत्तठे अवरज्झई । सोच्चा नेयाउयं मग्गं, जं भज्जो परिभस्सई २५॥ इह कामाणियट्टस्स, प्रत्तठे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं, भवे देवेत्ति मे सुयं ।२६। इड्ढी जुई जसो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उवज्जई ।२७। बालस्स पस्स बालतं, अहम्मं पडिवज्जिया। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला 'चिच्चा धम्म अहम्मिठे, नरए उववज्जई ।२८। धीरस्म पस्स धीरत्तं, सच्च-धम्माणुवत्तिणो । चिच्चा अधम्म धम्मिठे, देवेस उववज्जई ।२६। तुलियाण बालभावं, अबाल चेव पडिए । चइऊण बालभावं, अबाल सेवए मुणि ।३०। ॥ इति एलय सत्तम अज्झयण समत्त ।।७।। ॥ काविलीयं अट्ठमं अज्झयणं ॥८॥ अधुवे असासयम्मि, संसारम्मि दुक्खपउराए । किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाहं दुग्गइं न गच्छेज्जा ? ११ विजहित्तु पुव्वसंजोग, न सिणेहं कहिंचि कुवेज्जा । असिणेह-सिणेह-करेहि, दोस पोसेहिं मुच्चए भिक्खू ॥२॥ तो नाण-दसण-समग्गो, हिय-निस्सेसाय सम्व-जीवाणं । तेसि विमोक्खणट्ठाए, भासई मुणिवरो विगय-मोहो ।३। सव्वं गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्ख । सव्वेसु कामजाएसु, पासमाणो न लिप्पई ताई ।४। भोगा-मिस-दोस-विसन्ने, हिय-निस्सेयसबुद्धि-वोच्चत्थे । बाले य मदिए मूढे, बज्झई मच्छिया व खेल म्मि ।५। दुप्परिच्चया इमे कामा, नो सुजहा अधीर-पुरिसेहि। अह सति सुव्वया साहू, जे तरति अतरं वाणिया वा ।। समणामएगे वयमाणा, पाणवहं मिया अयाणंता । । मदा निरयं गच्छति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ७। न हु पाण-वह अणुजाणे, मुच्चेज्ज कयाइ सव्व-दुक्खाणं । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्यय सूत्र अ.८ एवमारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साहु-धम्मो पन्नत्तो ।। पाणे य नाइवाएज्जा, से समिइत्ति वुच्चई ताई। तो से पावयं कम्म, निज्जाइ उदगं व थलामो ह। जग-निस्सिएहिं भूएहि, तस-नामेहि थावरेहि च । नो तेसिमारभे दंडं, मणसा वयसा कायसा चेव ।१०। सुद्धेसणाप्रो नच्चाणं, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा, रस-गिद्धे न सिया भिक्खाए ।११॥ पंताणि चेव सेवेज्जा, सीपिडं पुराण-कुम्मासं। । अदु वुक्कसं पुलागं वा, जवणदाए निसेवए मंथु ।१२। जे लक्खणं च सुविण च, अगविज्जं च जे पउंजति । न हु ते समणा वुच्चति, एवं प्रायरिएहिं अक्खाय ।१३। इहजीविय अणियमेत्ता, पभट्ठा समाहिजोएहिं । ते काम-भोग-रस-गिद्धा, उववज्जति आसुरे काए।१४। तत्तोऽवि य उव्वट्टित्ता, संसारं बहुं अणुपरियडति । बहु-कम्म-लेव-लित्ताण, बोही होइ सुदुल्लहा तेसि ।१५॥ कसिणपि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, इइ दुप्पूरए इमे पाया ।१६। जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई। दोमासकयं कज्जं, कोडीएवि न निद्रियं ।१७। नो रक्खसीसु गिज्झज्जा, गंडवच्छासुऽणेगचित्तासु । जामो पुरिस पलोभित्ता, खेल्लंति जहा व दासेहिं ।१८॥ नारीसु नोव-गिज्झज्जा, इत्यी विप्पजहे अणगारे । धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्य ठवेज्ज भिक्ख अप्पाणं ।१६। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ६७ इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेण च विसुद्धपन्नेणं । तरिहिति जे उ काहिति, तेहिं पाराहिया दुवे लोग १२०। ॥ काविलीय अट्ठम अज्झयण सम्मत्तं ॥८॥ ॥णवमं नमिपवज्जा अज्झयणं ॥ ६॥ चइऊण देवलोगायो, उववन्नो माणुसम्मि लोगम्मि । उवसत-मोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई ।। जाइं सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया ।२। सो देवलोगसरिसे, अंतेउर-वरगो वरे भोए, भुजित्तु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयई ।३। मिहिलं सपुर-जणवयं, बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खतो, एगंत-महिड्डियो भवयं ।४। कोलाहलगभूयं, पासी मिहिलाए पव्दयंतम्मि । तइया रायरिसिम्मि, नमिम्मि अभिणिक्खमंतम्मि ॥ अन्भुट्ठिय रायरिसिं, पवज्जा-ठाण-मुत्तम । सक्को माहण-रूवेण, इमं वयणमब्बवी ।६। किण्णु-भो ! अज्ज मिहिलाए, कोलाहलग संकुला। सुव्वंति दारुणा सद्दा, पासाएसु गिहेसु य ७। एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तो नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ।। मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे । पत्त-पुप्फ-फलोवेए, बहूण बहु-गुणे सया । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ 390 जैन स्वाध्यायमाला वाएण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे । दुहिया सरणा अत्ता, एए कंदंति भो खगा ॥ १०१ एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण- चोइस्रो । तो नमि रायरिसि, देविदो इणमब्बवी | ११| एस अग्गी य वाऊ य, एयं उज्झइ मंदिरं । भयवं अंतेउरं तेणं, कीस णं नावपेक्खह | १२ | एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ- कारण - चोइश्रो । तो नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी |१३| सुहं वसामो जीवामो, जेसि मो नत्थि किंचणं । मिहिलाए उज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचणं ॥ १४ ॥ चत्त पुत्त - कलत्तस्स, निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जई किचि, अप्पियं पि न विज्जई | १५ | बहु खु मुणिणो भद्दं, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वश्री विष्पमुक्कस्स, एगतमणुपस्स एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ कारण चोइयो । तम्रो नाम रायरिसि देविदो इणमब्बवी |१७| पागारं कारइत्ताण गोपुरट्टालगाणि य । उस्सूलग सयग्घी, तो गच्छसि खत्तिया |१८| एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ- कारण चाइम्रो । ती नमी रायरिसी, देविंद इणमब्वी |१६| सद्धं नगर किच्चा तव -सवर - मग्गलं । खति निउण-पागारं तिगुत्त दुप्पधंसय | २०| धणु परक्कमं किच्चा, जीव च इरिय सया । |१६| Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र म.. धिइं च केयणं किच्चा, सच्चेण पलिमंथए ।२१॥ तव-नारायजुत्तेण, भित्तूणं कम्म-कंचुयं । मुणी विगय-संगामो, भवानो परिमुच्चए ।२२। एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तो नमि रायरिसिं, देविंद इणमब्बी ॥२३॥ पासाए कारइत्ताण, बद्ध-माण-गिहाणि य । बालग्ग-पोइयाओ य, तमो गच्छसि खत्तिया।२४॥ एयमलैंनिसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तमो नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ।२५॥ ससयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं। जत्थेव गंतुमिच्छेज्जा, तत्थ कुवेज्ज सासयं ।२६॥ एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तो नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ।२७। आमोसे लोमहारे य, गंठिभेए य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊणं, तमो गच्छसि खत्तिया।२८॥ एयमलै निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ।। तो नमी रायरिसी, देविदं इणमब्बवी ।२६। असई तु मणुस्सेहिं, मिच्छा दंडो पउंजई। अकारिणोऽत्थ बज्झति, मुच्चई कारो जणो।३०। एयम निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइओ। तो नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ।३॥ जे केइ पत्थिवा तुझं, नानमंति नाराहिवा। वसे ते ठावइत्ताणं, त्तमो गच्छसि खत्तिया ।३२॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र म.६ एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तमो नमी रायरिसी, देविदं इणमन्बवी ।३३। जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जत्रो ।३४। अप्पाण-मेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण वज्झयो । अप्पाण-मेव-मप्याण, जिणित्ता सुहमेहए ।३५॥ पचिदियाणि कोहं, माणं माय तहेव लोहं च । दुज्जय चेव अप्पाणं सव्वं अप्पे जिए जिय ।३६। एयमझें निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो । तो नमि रायरिसि देविदो इणमबवी ।३७। जइत्ता विउले जन्ने, भोईत्ता समण-माहणे । दच्चा भोच्चा य जिट्टा य, तो गच्छसि खत्तिया ।३८॥ एयमझें निसासित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तमो नमी रायरिसी, देविंद इणमब्बवी 1३९। जो महम्स सहम्माण, मासे मासे गवं दए । तम्मावि सजमो मेयो, अदितस्सऽवि किचणं ।४०॥ एयमट्ठ निमामित्ता, हेऊ-कारण-चाइया । तयो नमि गरिमि. देविदो इणमनवा ।४११ घोगसम चइत्ताण, अन्न पत्थेमि प्रासम । इहेब पोमहरग्रा, भवाहि मणयाहिवा ।४२॥ एयमटठ नियामित्ता, हेऊ-कारण-चाइयो। तमो नमी रायरिमी, देविदं इणमन्ववा ।४३। मासे मासे उ जो वालो, कुमरगेण तु भुजए । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला न सो सुयक्खाय-धम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसिं ॥४४॥ एयमठं निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइनो। तो नमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ।४५॥ हिरण्ण सुवण्ण मणिमुत्त, कस दूसं च वाहण । कोस वड्ढावइत्ताण, तओ गच्छसि खत्तिया ।४६। एयमढ़ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो । तमो नमी रायरिसी, देविंद इणमब्बवी ।४७। सुवण्ण-रुप्पस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणंतिया ।। पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह । पडिपुण्ण नालमेगस्स, इइ विज्जा तव चरे ।४६। 'एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तो नमि रायरिसि, देविदो इणमब्बवी १५० अच्छेरग-मब्भुदए, भोए चयसि पत्थिवा । असते कामे पत्थेसि, सकप्पेण विहम्मसि ।५१॥ एयमढं नियामित्ता, हेऊ-कारण-चोइयो। तो नमी रायरिसी, देविंद इणमब्बवी १५२। सल्ल कामा विस कामा, कामा आसाविसोवमा। कामे पत्थेमाणा अकामा जति दाग्गइं ।५३। अहे वयति कोहेण. माणेण अहमा गई। माया गई-पडिग्यायो, लोभाओ दुहा भय । अवउझिऊण माहण-रूव, विउव्विऊण इदत्तं । . वदइ अभित्थुणतो, इमाहिं महुराहिं वग्गूहिं ।५५॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ उत्तराध्ययन सूत्र अ १० अहो ते निज्जो कोहो, अहो माणो पराइयो। अहो ते निरक्किया माया, अहो लोभो वसीको १५६३ अहो ते अज्जवं साहु, अहो ते साहु मद्दव । अहो ते उत्तमा खती, अहो ते मुत्ति उत्तमा ।५७। इह सि उत्तमो भंते, पेच्चा होहिसि उत्तमो। लोगुत्त-मुत्तमं ठाण, सिद्धिं गच्छसि नीरो। ५८१ एव अभित्युणतो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए । पयाहिणं करेतो, पुणो पुणो वंदई सक्को 1५९। तो वदिऊण पाए, चक्कंकुस लक्खणे मुणिवरस्स । आगासेणुप्पइओ, ललिय-चवल-कुंडल-तिरीडी।६०॥ नमी नमेइ अप्पाण, सक्खं सक्केण चोइयो। चइऊण गेहं च वेदेही, सामण्णे पज्जुवढिओ।६१। एवं करेति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियटृति भोगेसु, जहा से नमि रायरिससि १६२। ॥ नमिपन्वज्जा नाम नवमं अज्झयणं समत्तं ॥ ।। दुमपत्तयं दसमं प्रज्झयणं ॥१०॥ दुम-पत्तए पंडयए जहा, निवडइ राइ-गणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए।११ कुसगे जह प्रोस-बिंदुए, थोवं चिट्टइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए।२। इइ इत्तरिय म्मि पाउए, जीवियए बहु-पच्चवायए। विहुणाहि रयं पुरे कडं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥३॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम ! मा पमायए ।४। पढवि-काय-मइगनो, उक्कोस जीवो उ संवसे । - काल संखाईयं, समयं गोयम ! मा पमायए ।५। आउ-क्काय-मइगयो, उक्कोस जीवो उ सवसे । काल संखाईय, समयं गोयम ! मा पमायए ।६। तेउ-क्काय-मइगो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं सखाईयं, समय गोयम ! मा पमायए ।७। बाउ-काय-मइगो, उक्कोसं जीवो उ सवसे । कालं सखाईय, समय गोयम ! मा पमायए।८। वणस्सई-काय-मइगो, उक्कोसं जीवो उ सबसे । काल-मणत-दुरतयं, समय गोयम ! मा पमायए ।। बेइंदिय-काय-मइगो, उक्कोसंजीवो उ संवसे। कालं संखिज्ज-सन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए।१०। तेइंदिय-काय-मइगो, उक्कोस जीवो उ सवसे । काल संखिज्ज-सन्निय, समय गोयम ! मा पमायए ।११॥ चउरिदिय काय-मइगो, उक्कोस जीवो उ सवसे । कालं संखिज्ज-सन्नियं, समयं गोयम ! मा पमायए ।१२। पचिदिय-काय-मइगो, उक्कोसं जीवो उ सवसे । सत्तट्ट-भव-गहणे, समयं गोयम ! मा पमायए ।१३। देवे नेरइए अइगो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । इक्केक-भव-गहणे, समय गोयम ! मा पमायए ।१४। एवं भव-संसारे, ससरइ सुहा-सुहेहिं कम्मेहिं । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ उत्तराध्ययन सूत्र अ १० जीवो पमाय-बहुलो, समयं गोयम ! मा पमायए । १५ । लणऽवि माणुसत्तणं, आरियतं पुणरावि दुल्लह । बहवे दसुया मिलक्खुया, समयं गोयम ! मा पमायए । १६ । लद्धूणवि आरियत्तणं, श्रहीणपचिदियया हु दुल्लहा । विगलिदियया ह दी सई, समय गोयम ! मा पमायए |१७| ग्रहणपचिदियत्तपि से लहे, उत्तम धम्म- सुई दुल्लहा । कुतित्थि - निसेवए जणे, समयं गोयम । मा पमायए |१८| लद्धूणवि उत्तमं सुइ, सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्त निसेवए जणे, समयं गोयम ! मा पमायए |१६| धम्मऽपि हु सद्दहतया, दुल्लहया काएण फासया । इह काम - गुणेहि मुच्छिया, समयं गोयम ! मा पमायए | २०| परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवति ते । से सोय-बले य हायई, समय गोयम ! मा पमायए । २१ । परिजूरइ ते सरीरय, केसा पण्डुरया हवति ते । - । से चक्ख-वले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए | २२| परिजूरइ ते सरीरयं, केमा पण्डुरया हवति ते । से घाण-बले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए |२३| परिजूरइ ते सरीरयं, केमा पण्डुरया हवति ते । से जिव्भ-वले य हायई, समय गोयम ! मा पमायए |२४| परिज़रइ ते सरीरय, केसा पण्डुरया हवंति ते ! से फास-बले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए | २५ | परिजूरइ ते सरीरय, केसा पण्डुरया हवंति ते । से सव्व-बले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए । २६ । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १०५ अरई गण्डं विसूइया, पायंका विविहा फुर्सति ते । विहडइ विद्धसइते सरीरयं, समय गोयम ! मा पमायए।२७॥ च्छिद सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइय व पाणियं । से सव्व-सिणेह-वज्जिए, समयं गोयम ! मा पमायए ।२८॥ चिच्चाण धणं च भारियं, पव्वइनो हि सि अणगारियं । मा वंतं पूणोवि आइए, समयं गोयम! मा पमायए ।२६) अवउझिय मित्त-बंधवं, विउलं चेव धणोह-संचय । मा त बिइयं गवेसए. समयं गोयम ! मा पमायए ।३०॥ न हु जिणे अज्ज दोसई, बहुमए दोसइ मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ।३१॥ अवसोहिय कण्टगापह, ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम ! मा पमायए।३२॥ प्रवले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमे वगाहिया । पच्छा पच्छाणूतावए, समय गोयम ! मा पमायए ।३३॥ तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागो। अभितुर पारंगमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए ।३४॥ प्रकलेवर-सेणि मूसिया, सिद्धि गोयम ! लोय गच्छसि । खेमं च सिव अणुत्तरं, समयं गोयम ! मा पमायए ।३५॥ बुद्धे परि-निव्वुडे चरे, गाम गए नगरे व सजए। संत्ति-मग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए।३६३ बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहिय-मट्ट-पोव-सोहियं । रागं दोसं च छिदिया, सिद्धिगई गए गोयमे १३७। ॥ दुमपत्तय दसम अज्झयण समत्तं ॥१०॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ उत्तराध्ययन सूत्र न. ११ ॥ बहुसुयपुज्जं एगारसं अज्झयणं ॥११॥ संजोगा विप्प-मुक्कस्स, आणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाकरिस्सामि, आणुपुन्वि सुणेह मे ।। जे यावि होइ निन्विज्जे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहुस्सुए ।२। अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पमाएणं, रोगणालस्सएण य ।३। अह अहिं ठाणेहि, सिक्खासीलित्ति वुच्चई । अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे ।४। नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलित्ति वुच्चई ।। अह चोदसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ, निव्वाण च न गच्छइ ।। अभिक्खणं कोही हवइ, पबंध च पकुव्वई । मेत्तिज्जमाणो वमइ, सुय लद्धण मज्जई ७। अवि पाव-परिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पई। सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं ।। पइण्णवाई दुहिले. यद्धे लुद्धे अणिग्गहे। असंविभागी अवियत्ते, अविणीएत्ति वुच्चई ।। अह पन्नरसहिं ठाणेहि, सुविणीएत्ति वच्चई । नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ।१०। अप्प च अहिक्खिवई, पबंध च न कुन्बई । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला १०७ मेत्तिज्जमाणो भयई, सुयं लद्धं न मज्जई ॥११॥ न य पाव-परिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई। ' अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥१२॥ कलह-डमर-वज्जिए, बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसलीणे, सुविणीएत्ति वुच्चई ॥१३॥ वसे गुरुकुले निच्चं, जोगवं उवहाणवं । पियकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्ध मरिहई ।१४। जहा संखम्मि पयं निहियं, दुहनो वि विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥१५॥ जहा से कम्बोयाणं, पाइण्णे कथए सिया । आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ।१६। जहा इण्णसमारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभो नंदिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए ।१७। जहा करेणुपरिकिण्णे, कुजरे सट्ठिहायणे। बलवते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥१८॥ जहा से तिखसिंगे, जायखधे विरायई। वसहे जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।१६। जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए।२०॥ जहा से वासुदेवे, संख-चक्क-गदा-धरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए।२१॥ जहा से चाउरते, चक्कवट्टी-महिड्डिए । चोद्दसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।२२। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० उत्तराध्ययन सूत्र अ. ११ जहा से सहस्सखे, वज्जपाणी पुरंदरे। सक्के देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ।२३॥ जहा से तिमिर-विद्धसे, उचिट्ठते दिवायरे । जलते इव तेएण, एव हवइ बहुस्सुए ।२४। जहा से उडुवई चंदे, नक्खत्त-परिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२५॥ जहा से समाइयाणं, कोट्ठागारे सुररिखए । नाणा-धन्न-पडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ।२६॥ जहा सा दुमाण पवरा, जम्बू नाम सुदंसणा। प्रणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए ।२७। जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवंतपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए ।२८॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी । नाणोसहि-पज्जलिए, एव हवइ बहुस्सुए ।२६। जहा से सयंभूरमणे, उदही अक्खोदए । नाणा-रयण-पडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥३०॥ समुद्द-गम्भीर-समा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । यस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो, खवित्त कम्मं गइमुत्तमं गया।३१॥ तम्हा सुयमहिट्ठिज्जा, उत्तमट्ठगवेसए । जेणप्पाणं परं चेव, सिद्धि सपाउणेज्जासि ।३२॥ ॥ वहुस्सुयपुज्ज एगारसं अज्झयण समत्त ।।११।। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ॥ हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं ॥१२॥ सोवाग-कुल-संभूप्रो, गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम, आसि भिक्खू जिइदियो । इरि-एसण-भासाए, उच्चार-समिईसु य । जो आयाण-निक्खेवे, सजो सुसमाहिओ ।२। मण-गुत्तो वय-गुत्तो, काय-गुत्तो जिइदियो । भिक्खट्ठा बम्भइज्जम्मि, जन्नवाडे उवट्ठियो ।३। तं पासिऊणं एज्जतं, तवेण परिसोसिय । पंतोवहिउवगरणं, उवहसंति प्रणारिया ।४। जाइमयपडिथद्धा, हिंसगा अजिइंदिया । अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ॥५॥ कयरे आगच्छइ दित्त-रूवे, काले विकराले फोक्कनासे। प्रोमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरदूसं परिहरिय कण्ठे ।। कयरे तुम इय अदंसणिज्जे,काए व प्रासाइहमागप्रोसि। प्रोमचेलया पसुपिसायभूया, गच्छक्खलाहि किमिह ठिोसि ।। जक्खे तहिं तिदुय-रुक्खवासी, अणुकम्पो तस्स महामुणिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाइं वयणाइमदाहरित्या ।। समणो अहं सजनो बम्भयारी, विरोधणपयणपरिग्गहारो। परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अन्नस्स अट्ठा इहमागप्रोमि ।। वियरिज्जइ खज्जइ भुज्जई य, अन्नं पभूय भवयाणमेय । जाणाहि मे जायणजीविणुत्ति, सेसावसेस लहऊ तवस्सी ।। उवक्खडं भोयण माहणाण, अत्तट्टियं सिद्धमिहेगपक्ख । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० उत्तराध्ययन सूत्र अ. १२ न ऊ वयं एरिसमन्नपाणं, दाहामु तुझ किमिह ठिओसि ।११॥ पलेसु बीयाइ ववति कासया. तहेब निन्नेसु य पाससाए। एयाए सद्धाए दलाह मज्झ, आराहए पुण्णमिणं खु खित्तं ॥१२॥ खेत्ताणि अम्ह विइयाणि लोए, जहिं पकिण्णा विरुहंति पुण्णा । जे माहणा जाइविज्जोववेया, ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई ।१३। कोहो य माणो य वहो य जेसि, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च । ते माहणा जाइविज्जाविहूणा, ताई तु खेत्ताई सुपावयाइं ।१४। तुभेत्थ भो भारधरा गिराणं, अटुं न जाणेह अहिज्ज वेए । उच्चावयाइं मुणिणो चरंति, ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई १५॥ अज्झावयाण पडिकूलभासी,पभाससे किं तु सगामि अम्हं । अवि एयं विणस्सउ अन्नपाणं, न य णं दाहामु तुमं नियण्ठा ॥१६॥ समिईहिं मज्भं सुसमाहियस्स, गुत्तीहि गुत्तस्स जिइंदियस्स। जइ मे न दाहित्थ अहेसणिज्ज, किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाह।१७। के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं खु दण्डेण फलेण हंता, कण्ठम्मि घेत्तूण खलेज्ज जो णं ।१८॥ अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा। दण्डेहिं वित्तेहिं कसेहिं चेव, समागया तं इसि तालयंति ॥१९॥ रन्नो तहिं कोसलियस्स धूया, भद्दत्ति नामेण अणिदियंगी। तं'पासिया संजय हम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ ।२०। देवाभियोगेण निमोइएणं, दिन्नामु रन्ना मणसा न झाया। नरिंददेविंदभिवदिएणं, जेणामि वंता इसिणा स एसो २१ एसों हु सो उग्गतवो महप्पा, जिइदिओ संजो बम्भयारो। जो मे तया नेच्छइ दिज्जमाणि, पिउणा सयं कोसलिएण रत्ना॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . जन स्वाध्यायमाला १११ महाजसो एस महाणुभागो, घोरव्वरो घोरपरक्कमो य । मा एयं हीलेह अहीलणिज्जं, मा सव्वे तेएण भे निद्दहेज्जा ।२३। एयाई तीसे वयणाई सोच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुभासियाई । इसिस्स वेयावडियट्ठयाए, जक्खा कुमारे विणिवारयति ।२४। ते घोररूवा ठिय प्रतलिक्खे, असुरा तहिं तं जण तालयंति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमते, पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ।२५॥ गिरिं नहेहिं खणह, अयं दंतेहिं खायह। जायतेय पाएहि हणह, जे भिक्खु अवमन्नह ।२६॥ आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्वो घोरपरक्कमो य । अगणि व पक्खंद पयंगसेणा, जे भिक्खुय भत्तकाले वहेह ।२७। सीसेण एवं सरणं उवेह, समागया सव्वजणेण तुन्भे । जइ इच्छह जीवियं वा धण वा, लोगपि एसो कुविनो डहेज्जा ।। अवहेडिय पिटिसउत्तमंगे, पसारिया बाहु अकम्मचिठे। निन्भेरियच्छे रुहिरं वमते, उड्ढमुहे निग्गयजीहनेत्ते ।२६। ते पासिया खडिय कटुभए, विमणो विसण्णो अह माहणो सो। इसि पसाएइ सभारियाओ, हील च निदं च खमाह भते !।३०॥ बालेहिं मढेहि अयाणएहिं, जं हीलिया तस्स खमाह भते! । महप्पसाया इसिणो हवति, न हु मुणी कोवपरा हवंति ।३१। पुचि च इण्हि च अणागयं च, मणप्पदोसो न मे अत्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडिय करेति, तम्हा हु एए निहया कुमारा ।३२॥ अत्थ च धम्मं च वियाणमाणा, तुम्भं नवि कुप्पह भूइपन्ना । तुम्भं तु पाए सरणं उवेमो, समागया सवजणेण अम्हे ॥३३॥ मच्चेम ते महाभाग, न ते किंचि न अच्चिमो। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ उत्तराध्ययन सुत्र म. १२ भुंजाहि सालिमं कुरं, नाणा-वंजण-संजुयं ।३४। इमं च मे अस्थि पभूयमन्नं, तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्टा। बाढति पडिच्छइ भत्त-पाणं, मासस्स उ पारणए महप्पा ।३५॥ तहिय गधोदय-पुप्फवास, दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा । पहयाओ दुदुहीओ सुरेहिं, आगासे अहो दाणं च घुझें ।३६॥ सक्खं खु दीसइ तवो-विसेसो, न दीसई जाइ-विसेस कोई । सोवागपुत्तं हरिएससाहु, जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा।३७। कि माहणा जोइसमारभंता, उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा । ज मग्गह वाहिरियं विसोहिं, न तं सुइटें कुसला वयंति।३। कुस च जव तण-कट्ट-मगि, सायं च पाय उदग फुसता । पाणाई भूयाई विहेडयंता, भुज्जोऽवि मंदा पकरेह पावं १३६१ कह चरे भिक्खु वय जयामो, पावाइं कम्माइं पुणोल्लयामो। अक्खाहिणे संजय जक्ख-पूइया, कहं सुजठं कुसला वयंति ।४०। छज्जीवकाए असमारभंता, मोसं प्रदत्त च असेवमाणा। परिग्गहं इथियो माण-मायं, एय परिन्नाय वरति दता ।४१६ सुसंवुडो पचहिं संवरेहि, इह जीवियं अणवखमाणा। वोसट्ठकानो सुइचत्तदेहो, महाजय जयइ जन्नसिट्ठ ।४२॥ के ते जोई के य ते जोइठाणे, का ते सुया किं च ते कारिसंगं । एहा य ते कयरा संति भिक्खू, कयरेण होमेण हुणासि जोई।४३॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीर कारिसंग। कम्मेहा संजमजोगसती, होमं हुणामि इसिणं पसत्यं ।४४ के ते हरए के य ते सतितित्थे, कहिं सिणाश्रो व रयं जहासि । आइक्ख णे संजय जक्ख-पूइया, इच्छामो नाउं भवनो सगासे।४। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला -19 ११३ धम्मे हर बम्भे संतितित्थे, श्रणाविले अत्तपसन्न लेसे | अहिं सिणा विमलो विसुद्धो, सुसी भूश्रो पजहामि दोस |४६ | एय सिणाणं कुसलेहि दिट्ठ, महासिणाण इसिण पसत्यं । जहि सिणाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमं ठाण पत्ते ॥४७॥ || हरिएसिज्ज बारह अज्झयण समत्त ॥ १२ ॥ ॥ चित्तसंभूइज्जं तेरहमं श्रज्झयणं ॥ १३ ॥ जाईपराजिनो खलु, कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि | चुलणीए बम्भदत्तो, उववन्नो परमगुम्मा |१| कम्पिल्ले सम्भूश्रो, चित्तो पुण जाश्रो पुरिमतालम्मि । सेट्ठिकुलम्मि विसाले, धम्मं सोऊण पव्व ॥ २ कम्पिल्लम्मि य नयरे, समागया दोवि चित्तसम्भूया । सुह- दुक्ख-फल- विवाग, कहेति ते एक्कमेक्कस्स | ३ | चक्कवट्टी महिड्ढीश्रो, बम्भदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेणं, इमं वयणमब्बवी |४| श्रासीमो भायरा दोवि, श्रन्नमन्नवसाणुगा । अन्नमन्नमणूरत्ता, श्रन्नमन्नहिए सिणो |५| दासा दसणे आसी, मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीरे, सोवागा कासिभूमिए । ६ | देवा य देवलोगम्मि, श्रासि श्रम्हे महिड्डिया | इमा णो छट्टिया जाई, अन्नमन्त्रेण जा विणा ।७। कम्मा नियाणपगडा, तुमे राय ! विचितिया । तेसि फलविवागेण, विप्पोगमुवागया || ܐ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ उत्तराध्ययन सूत्र अ..१३ सच्चसोयप्पगडा, कम्मा मए पुरा कडा । . ते अज्ज परिभुजामो, किन्नु चित्ते वि से तहा ।।। सव्व सूचिण्णं सफल नराणं. कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्यहि कामेहि य उत्तमेहिं, आया मम पुण्णफलोववेए ।१०। जाणासि संभूय महाणभाग, महिड्डियं पुण्णफलोववेय । चित्तंऽपि जाणाहि तहेव राय,इड्ढी जुई तस्सवि य प्पभूया ।११। महत्थरूवा वयणप्पभूया, गाहाणुगीया नरसघमज्झे । जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहं जयंते समणोमि जाओ ।१२। उच्चोयए महु कक्के य बम्भे, पवेइया पावसहा य रम्मा । इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं, पसाहि पचालगुणोववेयं ।१३। नद्देहि गीएहि य वाइएहिं, नारीजणाइ परिवारयतो । भुजाहि भोगाइ इमाइ भिक्ख, मम रोयई पव्वज्जाहु दुक्खं ।१४। त पुबनेहेण कथाणुरागं, नराहिव कामगणेमु गिद्ध । धम्मस्सिो तस्स हियाणुपेही, चित्तो इम वयणमुदाहरित्था।१५॥ सव्व विलवियं गीय, सव्व नट्ट विडम्वियं । सव्वे आभरणा भारा, मन्वे कामा दुहावहा ।१६। वालाभिरामेसु दुहावहेमु, न त सुहं कामगणेसु राय । विरत्तकामाण तवोधणाण, जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाण ।१७। नरिंद जाई प्रहमा नराण, सोदागजाई हो गयाणं । जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा, वसीअ सोवाग-निवेसणेसु ॥१८॥ तीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छाम सोवाग-निवेसणेसु । सव्वस्स लोगस्स दुगंछणिज्जा, इह तु कम्माइं पुरे कडाइं ।१९। सो दाणिसिं राय ! महाणुभागो, महिड्डियो पुण्णफलोववेनो। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ११५ चइत्तु भोगाइं असासयाई, आदाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥२०॥ इह जीविए राय असासयम्मि, धणियं तु पुण्णाई अकुव्वमाणो। से सोयई मच्चुमहोवणीए, धम्म अकाऊण परंमि लोए ।२१। । जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अतकाले। न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवंति।२२॥ न तस्स दुक्ख-विभयंति नाइप्रो, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सय पच्चणुहोइ दुक्ख, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ।२३। चिच्चा दुपयं च चउप्पयं च, खेत्त गिहंधण्ण-धन्नं च सव्वं । सकम्मबीओ अवसो पयाइ, पर भव सुदर पावगं वा ।२४। तं एक्कगं तुच्छसरीरगं से, चिईगयं दहिउं पावगेण । भज्जा य पुत्तावि य नायत्रो वा, दायारमन्नं अणुसकमंति ॥२५॥ उणिज्जई जीविय-मप्पमाय, वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं । पंचालराया वयण सुणाहि, मा कासि कम्माइं महालयाइ ।२६। अहंऽपि जाणामि जहेह साहू, जं मे तुम साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे सगकरा हवति, जे दुज्जया अज्जो अम्हारिसे हिं ।२७। हत्थिणपुरम्मि चित्ता, दळूणं नरवई महीड्ढीयं । कामभोगेसु गिद्धेण, नियाणमसुहं कडं ।२८। तस्स मे अपडिकंतस्स, इमं एयारिसं फल । जाणमाणो वि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छियो ।२६। नागो जहा पंकजलावसन्नो, दठ्ठ थलं नाभिसमेइ तीरं। एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ।३०॥ अच्चेइ कालो तरंति राइनो, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा। उविच्च भोगा पुरिसं चयंति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥३१॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६. उत्तराध्यय सूत्र अ. १४ जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, अज्जाई कम्माई करेहि रायं । धम्मे ठिो सवपयाणुकम्पी,तो होहिसि देवो इप्रो विउव्ववी ॥३२॥ न तुज्झ भोगे चइऊण वुद्धी, गिद्धोसि प्रारम्भपरिग्गहेसु। । मोहं को एत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं आमंतिप्रोसि ।३३। पचालराया वि य बम्भदत्तो साहुस्स तस्स त्रयणं अकाउं। । अणुत्तरे भुजिय काम-भोगे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ।३४। , चित्तोवि कामेहि विरत्तकामो, उदग्गचारित्त-तवो-महेसी । अणुत्तर संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगइ गयो ।३५॥ । चित्तसम्भूइज्ज तेरहमं अज्झयण समत्त ॥ १३ ॥ ॥ उसुयारिज्जं चोदहमं अज्झयणं ॥१४॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि, केई चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ।११ सकम्म-सेसेण पुराकएणं, कुलेसु दग्गेसु य ते पसूया । निविण्णससारभया जहाय, जिणिद-मग्गं सरणं पवन्ना ।२।। पुमत्तमागम्म कुमार दोवी, पुरोहियो तस्स जसाय पत्ती । विसालकित्ती य तहोसुयारो, रायस्थ देवी कमलावई य ।३। जाईजरामच्चभयाभिभूया, बहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता। संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दळूण ते कामगुणे विरत्ता ।४। पियपुत्तगा दोन्निवि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । - सरित्तु पोराणिय तत्थ जाइ, तहा सुचिण्ण तव सजमं च ।। ते काम-भोगेसु असज्जमाणा, माणुस्सएस जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकखी अभिजायसडा, तातं उवागम्म इमं उदाहु ॥६॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ११७ सासयं दट्ठ इमं विहारं, बहुअंतरायं न य दीहमाउं । तम्हा गिर्हसि न रई लभामो, श्रीमंतयामो चरिस्सामु मोणं ॥७॥ ग्रह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविप्रो वयति, जहा न होई असुयाण लोगो |८| हिज्ज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिट्ठप्प गिर्हसि जाया । भोच्चाण भोए सह इत्थियाहि, श्रारण्णगा होइ मुणी पसत्था || सोयग्गिणा श्रयगुणिधणेणं, मोहाणिला पज्जलणाहिएणं । संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च ॥ १०॥ पुरोहियं तं कमसोऽणुणंतं, निमतयंतं च सुए धणेण । जहक्कम कामगुणेहिं चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं |११| वेया अहीया न भवंति ताण, भुत्ता दिया निति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न हवति ताणं, को णाम ते अणुमन्नेज्ज एय । १२ । खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा प्रणिगामसुक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी प्रणत्थाण उ कामभोगा । १३। परिव्वयते अणियत्तकामे, अहो य राम्रो परितप्यमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोति मच्च पुरिसे जर च ॥१४॥ इमं च मे प्रत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरतित्ति कहं पमान ? |१५| धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा । तवं कए तप्प जस्स लोगो, तं सव्व साहीणमिहेव तुब्भं ॥ १६ ॥ धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहिं चेव । समणा भविस्सा गुणोहधारी, बहिविहारा श्रभिगम्म भिक्ख ॥ १७॥ जहा य श्रग्गी श्ररणी असतो, खीरे घय तेल्लमहा तिलेसु । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ उत्तराध्ययन सूत्र म १४ एमेव जाया सरीरसिं सत्ता, समुच्छई नासइ नावचिठे ११८॥ नोइदियग्गेज्म अमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो । अज्भत्थहेउं निययस्स बंधो, ससारहेउं च वयंति बंध ।१६। जहा वय धम्म अजाणमाणा, पाव पुरा कम्ममकासि मोहा । मोरुन्भमाणा परिरक्खियंता,तं नेव भुज्जो वि समायरामो ।२०। अन्भाय म्मि लोगम्मि, सव्वंनो परिवारिए। अमोहाहि पडतीहि, गिहंसि न रई लभे । केण अभाहो लोगो, केण वा परिवारियो। का वा अमोहा वृत्ता, जाया चितावरो हमे ॥२२॥ मच्चणाऽभाहो लोगो, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता, एव ताय वियाणह ।२३। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जंति राइनो।२४। जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई। धम्म च कुणमाणस्स, सफला जति राइनो ।२५॥ एगो सवसित्ताण, दुहओ सम्मत्त-सजुया।। पच्छा जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ।२६। जस्सत्थि मच्चुणा सक्ख, जस्स वत्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ।२७। अज्जेव धम्म पडिवज्जयामो, जहिं पवन्ना-न पुणन्भवामो। प्रणागय नेव य अत्थि किंचि, सद्धाखमं णे विणइत्तु रागं ।२८ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो, वासिट्टि ! भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहई समाहि, छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणू ।२६। Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ११६ पंखाविहूणो व्व जहेह पक्खी, भिच्चविहूणो व्व रणे नरिंदो। विवन्नसारो वणिो व्व पोए, पहीणपुत्तोमि तहा अहंपि ।३०। सुसंभिया कामगुणा इमे ते, सपिण्डिया अग्गरसप्पभूया। भुजामु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामु पहाणमगं ।३१। भुत्ता रसा भोइ ! जहाइ णे वओ, न जीवियट्टा पजहामि भोए। लाभं अलाभं च सुहं च दुक्ख, सचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं,।। मा हु तुम सोयरियाण संभरे, जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी । भुजाही भोगाई मए समाण, दुक्ख खु भिक्खायरिया विहारो।३३। जहा य भोई तणुवं भुयगो, निम्मोयणि हिच्च पलेइ मत्तो। एमए जाया पयहंति भोए, ते हं कहं नाणगमिस्समेक्को ।३४। छिदित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरंति ।३५॥ नहेव कुंचा समइक्कमता, तयाणि जालाणि दलित्तु हसा । पलेति पुत्ता य पई य मज्झ, ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ।३६। पुरोहिय त ससुयं सदार, सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुम्बसारं विउलुत्तमं च, रायं अभिक्ख समुवाय देवी ।३७। वंतासी पुरिसो रायं, न सो होइ पससिप्रो। माहणेण परिच्चत्त, धणं आदाउमिच्छसि ।३८। सव्व जगं जइ तुहं, सव्व वावि धणं भवे । सवऽपि ते अपज्जत्तं, नेव ताणाय त तव ।३६। मरिहिसि रायं जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय । एक्को हु धम्मो नरदेव ताणं, न विज्जई अन्नमिहेह किंचि ॥४०॥ नाहं रमे पक्खिणि पजरे वा, सताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र में १४ अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा, परिग्गहारभनियत्तदोसा ।४१॥ दवग्गिणा जहा रण्णे, डज्झमाणेसु जंतुसु । भन्ने सत्ता पमोयंति, रागद्दोसवसं गया ।४२। एवमेव वय मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया। डज्झमाण न बुज्झामो, रागद्दोसग्गिणा जगं ।४३। भोगे भोच्चा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणो। आमोयमाणा गच्छति, दिया कामकमा इव ।४४। इमे य बद्धा फदति, मम हत्थज्जमागया। . वय च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे । ४५॥ सामिस कुललं दिस्स, बज्झमाणं निरामिसं । प्रामिसं सव्वमज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा ।४६॥ गिद्धोवमे उ नच्चाण, कामे संसारवडणे । उरगो सुवण्णपासे न्व, संकमाणो तणुं चरे ।४७। नागो व्व बधणं छित्ता, अप्पणो वसहि वए । एय पत्थं महारायं, उस्सुयारित्ति मे सुयं ।४८॥ चइत्ता विउल रज्जं, कामभोगे य दुच्चए । निव्विसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिग्गहा ।४६। सम्मं धम्म वियाणित्ता, चिच्चा कामगुणे वरे । तवं पगिज्झहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा ।५०॥ एव ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जंममच्चुभउविग्गा, दुक्खस्संतगवेसिणो ।५१॥ सासणे विगयमोहाणं, पुवि भावणभाविया । मचिरेणेव कालेण, दुक्खस्संतमुवागया ।५२। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला राया सह देवीए माहणो य पुरोहित्रो । माहणी दारगा चेव, सब्वे ते परिनिव्वुडे | ५३ | १२१ ॥ उयारिज्ज चोदहम अज्भवणं समत्त ॥ १४ ॥ ||सभिक्खू पंचदह अज्झयणं ॥ १५ ॥ मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन् । संथवं जहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू |१| राम्रोवरयं चरेज्ज लाढे, विरए वेयवियायर क्खिए । पन्ने श्रभिभूय सव्वदसी, जे कम्हि वि न मुच्छिए स भिक्खू |२| अक्कोसवह विइत्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निच्चमायगुत्ते । श्रव्वग्गमणे असंपहिट्ठे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू | ३ | पंत सयणासण भइत्ता, सीउन्हं विविहं च दसमसगं । श्रव्वग्गमणे असंपहिट्ठे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू |४| नो सक्कइमिच्छई न पूयं, नोऽवि य वंदणगं कुश्रो पससं । से संजए सुव्वए तवस्सी, सहिए आायगवेसए स भिक्खू |५| जेण पुण जहाइ जीवयं, मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनारि पजहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं उवेइस भिक्खू | ६ | छिन्नं सरं भोममंतलिक्खं, सुमिणं लक्खण- दण्ड- वत्थु - विज्जं । अंगवियार सरस्स विजयं, जे विज्जाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥७॥ मंतं मूलं विविह वेज्जचित, वमण - विरेयण- घुमणेत्त - सिणाणं । श्राउरे सरणं तिगिच्छिय च तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू खत्तियगण उग्गरायपुत्ता, माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू 181 , Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १६ गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा, अपव्वइएण व संथुया हविज्जा । तेसि इहलोइय-फलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ।१०। सयणा-सण-पाण-भोयणं, विविहं खाइम-साइम परेसिं । अदए पडिसेहिए नियण्ठे, जे तत्थ न पउस्सई स भिक्ख ॥११॥ जं किंचि आहार-पाणगं विविहं, खाइम-साइम परेसिं लद्ध । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, मण-वय-काय-सुसंवुडे स भिक्खू ॥१२॥ प्रायामगं चेव जवोदणं च, सीय सोवीरजवोदगं च । न हीलए पिण्ड नीरसं तु, पंतकुलाई परिव्वए स भिक्खू ।१३। सद्दा विविहा भवंति लोए, दिब्बा माणुस्सगा तहा तिरिच्छा । भीमा भय-भेरवा उराला,जो सोच्चा न विहिज्जई स भिक्खू ।१४। वादं विविहं समिच्च लोए, सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अविहेडए स भिक्खू ।१५। असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइंदिए सव्वो विप्पमुक्के ।। अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी, चिच्चा गिहं एगचरे स भिक्खू ।१६। ॥सभिक्खुय पंचदह अज्झयणं समत्त ॥१॥ ॥ बम्भचेरसमाहिठाण णाम अज्झयणं ॥१६॥ सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहि भगवंतेहिं दस बम्भचेर-समाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म सजमबहुले सवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा कयरे खल ते थेरेहिं भगवतेहि दस वम्भचेरसमाहिठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमवहुले संवरबहुले समाहिवहुले गुत्ते गुर्ति दिए गुत्तबम्भयारी Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १२३ सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ।। इमे खलु ते येरेहिं भगवंतेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गत्तिदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा ॥ तं जहा - विवित्ताइं सयाणासणाइ सेवित्ता हवइ से निग्गंथे । नो इत्थी - पसु -पण्डग ससत्ताइ सयणासणाइ सेवित्ता हवाइ से निग्गथे । तं कहमिति चे । श्रायरियाह । निग्गथस्स खलु इत्थि - पसु -पण्डग ससत्ताइं सयणा-सणारं सेवमाणस्स - बम्भयारिस्स बम्भचेरे सका वा कखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेद वा लभेज्जा, उम्माय वा पाउणिज्जा, दोहकालिय वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थिपसु - पण्डग - संसत्ताई सयणा-सणाई सेवित्ता हवइ से निग्गथे ॥१॥ 1 नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ से निग्गंथे । तं कहमिति चे | आयरियाह । निग्गथस्स खलु इत्थीण कह कहेमाणस्सबम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समूप्पज्जिज्जा, भेद वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माश्रो भसेज्जा | तम्हा नो इत्थीण कह कहेज्जा ||२|| नो इत्थीणं सद्धि सन्नि सेज्जागए विहरित्ता हवइ से निग्गथे । त कहमिति चे । प्रायरियाह । निग्गंथस्स खलु इत्थी हि सद्धि सन्निसेज्जागयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे सका वा कखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेद वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्ना, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा केवलिपन्नत्तान Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ उत्तराध्ययन सूत्र म १६ धम्मानो भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धि सन्निसेज्जागए विहरेज्जा ॥३॥ नो इत्थीण इंदियाइं मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता हवइ से निग्गंथे । त कहमिति चे । पायरियाह । निग्गंथस्स खल इत्थीण इदियाइं मणोहराई मणोरमाइं पालोएमाणस्स निझायमाणस्स-बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कखा वा विइगिच्छा वा सम्प्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माप्रो भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गथे इत्थीणं इदियाई मणोहराइ मणोरमाइ आलोएज्जा निझाएज्जा ॥४॥ नो इत्थीणं कुटुंतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्तंतरंसि वा कूइयसई वा रुइयसई वा गीयसद्द वा हसियसई वा थणियसई वा कंदियसई वा विलवियसई वा सुणेत्ता हवइ से निग्गथे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कुड्डतरंसि वा दूसंतरंसि वा भित्ततरंसि वा कइयसदं वा रुइयसई वा गीयसद्द वा हसियसद्द वा थणियमई वा कदियसई वा विलवियसई वा सुणेमाणस्स वम्भयारिस्स वम्भचेरे सका वा कखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा केवलिपन्नत्तानो धम्मायो भसेज्जा तम्हा खल नो निग्गथे इत्थीण कुटुंतरंसि वा दूमतरसि वा भित्तंतरसि वा कइयसह वा रुइयसदं वा गीयमई वा हसियमई वा थणियसई वा कंदियसइंवा विलवियसद्द वा सुणेमाणे विहरेज्जा ॥५॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १२५ नो निग्गथे इत्थिण पुन्वरय पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ से निग्गंथे । तं कहमिति चे। अयरियाह । निग्गंथस्स खलु इत्थिणं पुव्वरयं पुवकीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छिा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालिय वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्मामो भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गंथे पुव्वरय पुव्वकीलिय अणुसरेज्जा ।।६।। नो पणीयं पाहार आहारित्ता हवइ से निग्गंथे । तं कहा मिति चे । आयरियाह । निग्गंथस्स खलु पणीय आहारं आहारेमाणस्स-बम्भयारिस्स बभचेरे सका वा कखा वा विइगिच्छा वा समप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा केवलिपन्नत्तानो धम्मायो भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गथे पणीय आहार आहारेज्जा ।। नो अइमायाए पाण-भोयण आहारेत्ता हवइ से निग्गंथे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गंयस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे सका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंक हवेज्जा केवलिपन्नत्तायो धम्माओ भसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गथे अइमायाए पाणभोयण आहारेज्जा ___ नो विभूसाणुवादी हवइ से निग्गंथे । तं कहमिति चे । पायरियाह । विभूसावत्तिए विभूसियरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ । तमो णं तस्स इत्यिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १६ बम्भयारिस्स वम्भचेरे संका वा कखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेद वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्मा भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गथे विभूसाणुवादी हविज्जा ॥६॥ नो सद्द-रूव-रस-गध-फासाणुवादी हवइ से निग्गये । तं कहमिति चे | आयरियाह । निग्गथस्स खलु सद्द- रूव-रस-गंध● फासाणुवादिस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दोहकालिय वा रोगायक हवेज्जा केवलिपन्नत्तायो धम्मात्र भसेज्जा । तम्हा खलु नो सद्द - रूव-रस-गंध-फासाणुवादी हवेज्जा से निग्गये । दसमे बम्भचेरसमाहिठाणे हवइ । हवति इत्थ सिलोगा । तं जहा -- जं विवित्त-मणाइण्णं, रहियं इत्थिजणेण य । बम्भचेरस्स रक्खट्ठा, आलयं तु निसेवए |१| भणपत्हाय - जणणी, काम - राग -विवड्डणी | बम्भचेरर भिक्खू, थी - कहं तु विवज्जए |२| समं च संथवं थीहिं, सकहं च श्रभिक्खणं । बम्भचेर भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए | ३ | अंग-पच्चंग-संठाणं, चारुल्लविय - पेहियं । बम्भचेरर थीणं, चक्खु - गिज्भं विवज्जए |४| कइयं रुइयं गीयं, हसियं यणिय-कंदियं । वम्भचेरनो थीण, सोयगिज्भं विवज्जए |५| हासं किडं रदं दप्पं, सहसाऽवित्तासियाणि य । · Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला, १२७ बम्भचेररओ पीणं, नाणुचिते कयाइ वि | ६ | पणीय भत्त-पाणं तु, खिप्पं मय-विवडणं । बम्भचेरर भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥७ धम्म-लद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइ-मत्तं तु भुंजेज्जा, बम्भचेर-रत्रो सया | विभूसं परिवज्जेज्जा, सरीर - परिमण्डणं । बम्भचेर भिक्खू, सिंगारत्य न धारए || सद्दे-रुवे य गंधे य, रसे - फासे तहेव च । पंचचिहे कामगुणे, निच्चसो परिवज्जए । १० आलो थी - जणा - इण्णो, थी - कहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तासि इंदिय-दरिसण | ११ | कूइयं रुइयं गीय, हास - भुत्ता- सियाणि य । पणीयं भत्त-पाणं च अइ-मायं पाण- भोयणं ॥ १२ ॥ 3 1 गत्तभूसण-मिट्ठे च काम भोगा य दुज्जया | नरस्सत्त-गवे सिस्स, विसं तालउडं जहा | १३| दुज्जए काम - भोगे य, निच्चसो परिवज्जए । संका-ठाणणि सव्वाणि, वज्जेज्जा पणिहाणव | १४ | धम्मारामे चरे भिक्खू, धिइमं धम्मसारही धम्मारामे - रए दंते, बम्भचेर समाहिए |१५| देव-दानव गधव्वा, जक्ख- रक्खस किन्नरा । बम्भयारि नमसंति, दुक्करं जे करंति तं |१६| एस धम्मे धुवे निच्चे, सासए जिण देसिए । - सिद्धा सिज्भंति चाणेणं, सिज्झिस्संति तहावरे | १७| ॥ बम्भचेरसमाहिठाण समत्ता ॥१६॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १७ ॥ पावसमणिज्ज सत्तदहं अज्झयणं ॥१७॥ जे केइ उ पव्वइए नियण्ठे, धम्म सुणित्ता विणअोववन्ने । सुदुल्लहं लहिउं वोहिलाभ, विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ।। सेज्जा दढा पाउरणम्मि अत्थि, उप्पजई भोत्तु तहेव पाउं । जाणामि जं वट्टइ आउसुत्ति, किं नाम काहामि सुएण भंते ।२। जे केइ पव्वइए, निबासीले पगामसो।। भोच्चा पेच्चा सुहं सुवइ, पाव-समणेत्ति वच्चई ।३। आयरिय-उवज्झाएहि, सुयं विणयं च गाहिए । ते चेव खिसई बाले, पाव-समणेत्ति वुच्चई।४। पायरिय-उवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पइ। अप्पडिपूयए थद्धे, पावसमणेत्ति वुच्चई।५। सम्मइमाणे पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य । असंजए संजयमन्नमाणे, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।। संथारं फलगं पीढं, निसेज्जं पायकम्बलं । अप्पमज्जिय-मारुहइ, पाव-समणेत्ति वुच्चई ७। दव-दवस्स चरई, पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चण्डे य, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।। पडिलेहेइ पमत्ते, अवउज्झह पायकम्बलं। पडिलेहा अणाउत्ते, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।। पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिया । गुरुपारिभावए निच्चं, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१०। बहुमाई पमुहरे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जन स्वाध्यायमाला १२६ असंविभागी अवियत्ते, पाव-समणेत्ति वुच्चई ॥११॥ विवादं च उदीरेइ, अहम्मे अत्त-पन्नहा । वुग्गहे कलहे रत्ते, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१२। अथिरासणे कुक्कुइए, जत्थ तत्थ निसीयई। मासणम्मि अणाउत्ते, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१३। ससरक्खपाए सुवई, सेज्जन पडिलेहइ । सथारए प्रणाउत्ते, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१४। दुद्ध-दही-विगईओ, आहारेई अभिक्खणं । अरए य तवो-कम्मे, पाव-समणेत्ति वुच्चई ॥१५॥ अत्यंतम्मि य सूरम्मि, आहारेई अभिक्खणं । चोइनो पडिचोएइ, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१६। आयरिय-परिच्चाई, परपासण्डसेवए।। गाणंगणिए दुब्भूए, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१७। सयं गेहं परिच्चज्ज, परगेहंसि वावरे । निमित्तेण य ववहरइ, पाव-समणेत्ति वुच्चई ।१८। सन्नाइ-पिण्ड जेमेइ, नेच्छइ सामुदाणिय । गिहि-निसेज्जं च वाहेइ, पाव-समणेत्ति वुच्चई ॥१६॥ एयारिसे पंच-कुसील-सवुडे, रूवंधरे मुणिपवराण हेडिमे । प्रयसि लोए विसमेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थ लोए ।२०॥ जे वज्जए एए सया उ दोसे, से सुव्वए होइ मुणीण मज्झे । अयंसि लोए अमयं व पूइए, पाराहए लोगमिणं तहा परं ।२॥ ॥ पावसमणिज्जं सत्तदह अज्झयण समत्त ॥१७॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० उत्तराध्ययन सूत्र अ. १८ ।। संजइज्ज अट्ठारहमं अज्झयणं ॥१८॥ कम्पिल्ले नयरे राया, उदिण्ण-बलवाहणे । नामेणं संजए नाम, मिगव्वं उवणिग्गए ।११ हयाणीए गयाणीए, रहाणीए तहेव य । पायताणीए महया, सव्वरो परिवारिए ।२। मिए छुहित्ता हयगो, कम्पिल्लज्जाण केसरे,। भीए संते मिए तत्य, वहेइ रसमुच्छिए ।३। अह केसरम्मि उज्जाणे, अणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाण-सजुत्ते, धम्मज्झाणं झियायइ ।४। अप्फोव-मण्डवम्मि, झायइ खवियासवे। तस्सागए मिगे पासं, वहेइ से नराहिवे ।। अह आसगो राया, खिप्पमागम्म सो तहिं । हए मिए उ पासित्ता, अणगार तत्थ पासई ।६। अह राया तत्थ संभंतो, अणगारो मणाहो। मए उ मंद-पुण्णेणं, रस-गिद्धेण चित्तुणा ।७। आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्स सो निवो। विणएण वदए पाए, भगव एत्थ मे खमे ।। अह मोणेण सो भगवं. अणगारे झाणमस्सिए । रायाणं न पडिमतेइ, तो राया भयदुयो ।। सजनो अहमम्मीति, भगवं वाहराहि मे। कुद्धे तेएण अणगारे, डहेज्ज नरकोडियो ।१०। अभयो पत्थिवा ! तुभं, अभयदाया भवाहि य । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १३१ श्रणिच्चे जीवलेोगम्मि, किं हिंसाए पसज्जसी ? | ११| जया सव्वं परिच्चज्ज, गंतव्व-मवसस्स ते । अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं रज्जम्मि पसज्जसी | १२ | जीवियं चैव रूवं च, विज्जु - संपायचंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं, पेच्चत्थं नावबुज्झसे |१३| दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बंधवा | जीवंत - मणुजीवंति, मयं नाणुव्वयंति य | १४ | नीहरति मयं पुत्ता, पितरं परम- दुक्खिया । पितरोवि तहा पुत्ते, बंधू रायं तव चरे | १५ | तो तेणज्जिए दव्वे, दारे य परि रक्खिए । कोलंतिने नरा रायं, हट्ट - तुट्ट - मलकिया । १६। तेणावि जं कयं कम्मं, सुहं वा जइ वा दुह । कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं |१७| सोऊण तस्स सो धम्मं, अणगारस्स अंतिए । महया सवेग - निव्वेदं, समावन्नो नराहिवो |१८| 'संजनो' चइउं रज्जं, निक्खंतो जिण सासणे । 'गद्दभालिस्स' भगवश्रो, अणगारस्स अतिए | १६ | चिच्चा रट्ठ पव्वइए, खत्तिए परिभासइ । जहा ते दी सई रूव, पसन्न ते तहा मणो | २० | किंनामे किंगोत्ते, कस्सट्ठाए व माहणे । कहं पडियरसी बुद्धे, कहं विणीएत्ति वुच्चसी ॥२१॥ संजो नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो । 'गद्दभाली' ममायरिया, विज्जा-चरण- पारगा । २२ । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १८ किरियं अकिरियं विणयं, अन्नाणं च महामणी। एएहिं चउहि ठाणेहि, मेयन्ने किं पभासई।२३। इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिन्वुए । विज्जाचरण संपन्ने, सच्चे सच्च-परक्कमे ।२४। पडंति नरए घोरे, जे नरा पाव-कारिणो । दिव्वं च गई गच्छंति, चरित्ता धम्म-मारियं ।२५।। माया-वुइयमेयं तु, मुसा-भासा निरत्थिया । संजममाणोऽवि अहं, वसामि इरियामि य ।२६। सव्वेए विइया मज्झं, मिच्छादिट्ठी अणारिया । विज्जमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पयं ।२७। प्रहमासि महापाणे, जुइम वरिस-सप्रोवमे । जा सा पालि-महापाली, दिव्वा वरिस-सोवमे ।२८। से चुए बम्भलोगाओ, माणुस भवमागए। अप्पणो य परेसिं च, आउ जाणे जहा तहा ।२६। नाणारुई च छंद च, परिवज्जेज्ज सजए ! अणट्ठा जे य सव्वत्था, इइ विज्जा मणुसचरे ।३०॥ पडिक्कमामि पसिणाणं, परमतेहिं वा पुणो । अहो उठ्ठिए अहोराय, इइ विज्जा तवचरे।३१॥ जं च मे पुच्छसी काले, सम्म सुद्धेण चेयसा। ताई पाउकरे बुद्धे, त नाण जिण-सासणे १३२॥ किरिय च रोयई धीरे, अकिरियं परिवज्जए। दिट्ठीए दिठीसम्पन्ने, धम्म चरसु दुच्चरं ।३३। एयं पुण्णपय सोच्चा, अत्य-धम्मोवसोहियं । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला 'भरहोऽवि' भारहं वासं, चिच्चा कामाइ पव्वए । ३४ । 'सगरोऽवि' सागरंतं, भरहवासं नराहिवो । इस्मरियं केवलं हिच्चा, दयाइ परिनिव्वुडे । ३५ । चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महड्डियो । पव्वज्ज-मब्भुवगनो, मघवं नाम महाजसो | ३६ | 'सणकुमारो' मणुस्सिंदो, चक्कवट्टी महड्डियो । पुत्तं रज्जे ठवेऊणं, सोऽवि राया तवं चरे |३७| चइत्ता भारह वासं, चक्कवट्टी महड्ढिो । 'संती' संतिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं |३८| इक्खाग-राय-वसभो, 'कुंथ' नाम नरीसरो । विक्खाय - कित्ती भगवं, पत्तो गइ मणुत्तरं |३६| सागरंतं चइत्ताणं, भरह नरवरीसरो । अरो य अरयं पत्तो पत्तो गइ मणुत्तर |४०| ।४०। ܐ १३३ चइत्ता भारहं वासं, चइत्ता बल-वाहण | चइत्ता उत्तमे भोए, 'महापउमे' तवं चरे ॥४१॥ एगच्छत्त पसाहित्ता, महि माणनिसूदणो । 'हरिसेणो' मणुस्सिंदो, पत्तो गइ मणुत्तरं । ४२ । अन्निो रायसहस्सेहि, सु-परिच्चाई दमं चरे । 'जयनामो' जिणक्खायं, पत्तो गइ मणुत्तर |४३| 'दसण्णरज्ज' मुदिय, चइत्ताणं मुणी चरे ।' 'दसण्णभद्दो' निक्खतो, सक्ख सक्केण चोइस्रो | ४४ ॥ 'नमी' नमइ अप्पाणं, सक्ख सक्केण चोइयो । चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुवट्टि |४५३ 1 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ. १६ 'करकण्डू' कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। 'नमी राया' विदेहेसु, 'गंधारेसु' य नग्गई।४६। एए नरिंद-वसभा, निक्खता जिण-सासणे । पुत्ते रज्जे ठवेऊणं, सामण्णे पज्जुट्टिया ।४७। सोवीर-राय-वसभो, चइत्ताण मुणी चरे । 'उदायणो' पन्वइओ, पतो गइ-मणुत्तरं ॥४८॥ तहेव 'कासीराया',सेप्रो-सच्च-परक्कमे। काम-भोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्म-महावण ।४६। तहेव 'विजयो' राया, अणढाकित्ति पन्चए । रज्जं तु गुणसमिद्ध, पयहित्तु महाजसो ५०॥ तहेवग्गं तवं किच्चा, अव्वक्खित्तेण चेयसा। 'महब्बलो' रायरिसी, प्रादाय सिरसा सिरि ५१॥ कहं धीरो अहेऊहिं, उम्मत्तो व महिं चरे । एए विसेस-मादाय, सूरा दढपरक्कमा ।५२। अच्चंत-नियाण-खमा, सच्चा मे भासिया वई। मरिसु तरंतेगे, तरिस्संति प्रणागया ।५३। कहं धीरे अहेऊहिं, अत्ताणं परियावसे । सव्व-संग-विनिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए ।५४| ।। सजइज्ज अठारहम अज्झयणं समत्तं ॥१८॥ ॥ मियापुत्तीयं एगूणवीसइमं अज्झयणं ॥१९॥ सुग्गीवे नयरे रम्मे, काणणुज्जाणसोहिए । राया बलभद्दित्ति, मिया तस्सग्गमाहिसी १२॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला 7 F 1 १३५ तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्तेत्ति विस्सुए । श्रम्मापिऊण दइए, जुवराया दमीसरे |२| नंदणे सो उ पासाए, कीलए सह इत्थिहि । देवे दोगुदगो चेव, निच्चं मुइय-माणसो | ३ | मणि-रण- कोट्टिमतले पासाया लोयणट्टियो । आलोएइ नगरस्स, चउक्कत्तियचच्चरे ॥४॥ अह तत्थअइच्छंतं, पासई समणसंजयं । तव - नियम- सजमधरं, सीलड्ढ गुणागर |५| तं देहई मियापुत्ते, दिट्ठीए प्रणिमिसाए उ । कहिं मन्नेरिस रूव, दिट्ठपुव्व मए पुरा | ६ | साहुस्स दरिसणे तस्स, श्रज्भवसाणम्मि सोहणे । मोह गयस्स संतस्स, जाईसरणं समुप्पन्न |७| देवलोग चुोसंतो, माणुस भवमागो । सन्निनाणे समुपपन्ने, जाई सरणं पुराणय |८| जाईसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते महिड्डिए । सरई पोराणियं जाइ, सामण्ण च पुरा कयं 181 विसएसुरज्जंतो, रज्जंतो सजमम्मि य । अम्मा-पियर मुवागम्म, इम वायणमब्बवी |१०| सुयाणि मे पंचमहव्वयाणि, नरएसु दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु । निव्विण्णकामोमि महण्णवाश्री, श्रणुजाणह पव्व इस्सामि अम्मो ११ अम्म ताय मए भोगा, भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कडुय विवागा, श्रणुबंध दुहावहा । १२॥ इमं सरीरं श्रणिच्चं, असुई प्रसुइसंभव । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ उत्तराध्ययन सूत्र म. १६ असासया-वासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं ।१३। असासए सरीरम्मि, रइ नोवलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुब्बुयसन्निभे ।१४। माणसत्ते असारम्मि, वाहीरोगाण आलए । जरा-मरण-घत्थम्मि, खणपि न रमामहं ।१५। जम्मं दुक्ख जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतवो ।१६। खेत्तं वत्थं हिरण्ण च, पुत्तदारं च बंधवा । चइत्ताणं इमं देहं, गंतव्व-मवसस्स मे ।१७। जहा किम्पाग-फलाण, परिणामो न सुदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो १८॥ प्रद्धाण जो महंतं तु, अप्पाहेरो पवज्जई । गच्छतो सो दुही होइ, छुहातण्हाए पीडियो ।१६। एवं धम्म अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो दुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडियो ।२०॥ अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेरो पवज्जई।। गच्छंतो सो सुही होइ, छहा-तण्हा-विवज्जियो ।२१॥ एवं धम्मऽपि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ।२२। जहा गेहे पलित्तम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभण्डाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ ।२३। एवं लोए पलित्तम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुन्भेहिं अणुमन्नियो ।२४ । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १३७ त वितम्मापियरो, सामण्णं पुत्त दुच्चर । गुणाणं तु सहस्साइ, धारेयव्वाइं भिक्खुणो ।२५॥ समया सव्वभूएसु, सत्तु-मित्तेसु वा जगे। पाणाइ-वाय-विरई, जावज्जीवाए दुक्करं ।२६। निच्चकालप्पमत्तेणं, मुसावाय-विवज्जणं । भासियव्वं हियं सच्चं, निच्चाउत्तेण दुक्कर ।२७। दंतसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेसणिज्जस्स, गिण्हणा अवि दुक्करं ।२८। विरई अबम्भचेरस्स, काम-भोग-रसन्नुणा। उग्गं महव्वयं बम्भ, धारेयव्वं सुदुक्करं ।२६। धण-धन्न-पेस वग्गेसु, परिग्गह-विवज्जण । सव्वारम्भ-परिच्चाओ, निम्ममत्त सुदुक्कर ।३०॥ चउविहेऽवि आहारे, राईभोयण-वज्जणा। सन्निही-संचओ चेव, वज्जेयव्वो सुदुक्कर ।३१॥ छुहा तण्हा य सीउण्ह, दंस-मसग-वेयणा । अक्कोसा दुक्खसेजा य, तण-फासा जल्लमेव य ।३२॥ तालणा तज्जणा चेव, वहबंध-परीसहा । दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ।३३। कावोया जा इमा वित्ती, केसलोबो य दारुणो । दुक्ख बंभव्वयं घोर, धारेउ य महप्पणो ।३४। सुहोइनो तुम पुत्ता, सकुमालो सुमज्जियो । न हु सी पभू तुम पुत्ता, सामण्ण-मणपालिया ।३५॥ जावज्जीव-मविस्सामो, गुणाण तु महब्भरो। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र म. १६ असासया-वासमिणं, दुक्खकेसाण भायणं ।१३। असासए सरीरम्मि, रई नोवलभामहं। पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुन्व्यसन्निभे ।१४ माणुसत्ते असारम्मि, वाहीरोगाण आलए । जरा-मरण-घत्यम्मि, खणपि न रमामहं ॥१५॥ जम्मं दुक्ख जरा दुक्खं. रोगाणि मरणाणि य । ग्रहो दुक्खो हु संसारो, जत्य कीसति जतवो ॥१६॥ खेत्तं वत्थ हिरण्ण च, पुत्तदारं च वंधवा । चइत्ताणं इमं देह, गंतव्व-मवसस्स मे ।१७। जहा किम्पाग-फलाण, परिणामो न सुदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुदरो १८१ अद्धाण जो महंतं तु, अप्पाहेरो पवज्जई । गच्छंती सो दुही होइ, छुहातण्हाए पीडिअो ।१६। एवं धम्म अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो दुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडियो ।२०। अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेप्रो पवज्जई। गच्छंतो सो सुही होइ, छहा-तण्हा-विवज्जियो ।२१॥ एवं धम्मपि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छंतो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ।२२। जहा गेहे पलित्तम्मि, तस्स गेहस्स जो पह। सारभण्डाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ।२३। एवं लोए पलित्तम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहिं अणुमन्नियो ।२४ । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र १६ १३८ गुरूओ लोहमारु व्व, जो पुत्ता ! होइ दुव्वहो ।३६। श्रागासे गंगसोउ व्व, पडिसोउ व्व दुत्तरो। वाहाहिं सागरो चेव, तरियव्वो गुणोदही ।३७) वालुयाकवलो चेव, निरस्साए उ संजमे। असिधारा-गमण चेव, दुक्कर चरिउं तवो ।३८। अही वेगंत-दिट्ठीए, चरित्ते पुत्त दुक्करे । जवा लोहमया चेव, चावेयव्वा सुदुक्कर ।३९। जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होई सुदुक्करो। तहा दुक्करं करेउ जे, तारूण्णे समत्तण ४०॥ जहा दुक्खं भरेउ जे, होइ वायस्स कोत्थलो। तहा दुक्खं करेउ जे, कीवेणं समणत्तणं।४११ जहा तुलाए तोलेउं, दुक्करो मंदरो गिरी। तहा निहुयं नीसंकं, दुक्करं समणत्तण ।४२। जहा भूयाहि तरिउ, दुक्करं रयणायरो। तहा अणुवसंतेणं, दुक्कर दमसागरो ।।३। भुज माणस्सए भोगे, पचलक्खणए तुम। भुत्तभोगी तो जाया, पच्छा धम्म चरिस्ससि ।४४। सो वितऽम्मापियरो, एवमेयं जहाफुड।। इह लोए निप्पिवासस्म, नत्थि किंचि वि दुक्करं ।४५॥ सारीरमाणसा चेव, वेयणाप्रो अननसो।। मए सोढाओ भीमानो, असइ दुक्खभायणि य ।४६। जरामरण-कातारे, च उरते भयागरे।। मए सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य ।४७। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १३९ जहा इह अगणी उण्हो, एत्तोऽणंतगुणो तहिं । नरएसु वेयणा उण्हा, अस्साया वेइया मए ।४८ जहा इमं इह सीयं, एत्तोऽणतगुणो तहिं। नरएसु वेयणा सीया, अस्साया वेइया मए ।४६। कंदतो कदुकुम्भीसु, उड्डपामो अहोसिरो। हुयासणे जलतम्मि, पक्कपुवो अणतसो ।५०। महादवग्गिसकासे, मरुम्मि वइरवालुए। कलम्बवालुयाए य, दड्डपुत्वो अणतसो ।५१॥ रसंतो कदुकुम्भीसु,उड्ढं बद्धो अवधवो । करवत्त-करकयाईहिं, छिन्नपुवो अणतसो ।५२। अइ-तिक्ख-कंटगा-इण्णे, तुगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धेण, कड्ढोकड्डाहिं दुक्करं ।५३। महाजतेमु उच्छू वा, पारसंतो सुभेरवं । पीडियोऽमि सकम्मेहि, पावकम्मो अणंतसो ।५४। कूवंतो कोलसुणएहिं, सामेहिं सबलेहि य । पाडियो फालियो छिन्नो, विष्फुरतो अणेगसो ।५५॥ असीहि अयसिवण्णेहिं, भल्लेहि पट्टिसेहि य ।। छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य, उववण्णो पाव-कम्मुणा ।५६। अवसो लोहरहे जुत्तो, जलते समिलाजुए। चोइनो तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडियो।५७। हुयासणे जलंतम्मि, चियासु महिसो विव । दड्ढो पक्को य अवसो, पाव कम्मेहिं पावियो ।५८ । बला-संडास-तुण्डेहिं, लोहतुण्डेहिं पक्खिहिं । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १३६ जहा इहं अगणी उण्हो, एत्तोऽणतगुणो तहिं । नरएसु वेयणा उपहा, अस्साया वेइया मए ।४८| जहा इमं इह सीय, एत्तोऽणतगुणो तहिं । नरएसु वेयणा सीया, अस्साया वेइया मए।४६। कंदतो कदुकुम्भीसु, उड्डपामो अहोसिरो। हुयासणे जलतम्मि, पक्कपुन्वो अणतसो १५० महादवग्गिसकासे, मरुम्मि वइरवालुए। कलम्बवालयाए य, दडपूवो अणतसो ।५१॥ रसतो कंदुकुम्भीसु,उड्ढं बद्धो अवधवो । करवत्त-करकयाईहिं, छिन्नपुवो अणतसो ।५२॥ अइ-तिक्ख-कंटगा-इण्णे, तुगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धेण, कड्ढोकड्ढाहिं दुक्करं ॥५३॥ महाजतेमु उच्छू वा, पारसंतो सुभेरवं । पीडियोऽमि सकम्मेहि, पावकम्मो अणंतसो ।५४। कूवंतो कोलसुणएहिं, सामेहिं सबलेहि य । पाडियो फालियो छिन्नो, विप्फरतो अणेगसो १५५॥ असीहि अयसिवण्णेहिं, भल्लेहि पट्टिसेहि य । छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य, उववण्णो पाव-कम्मणा ॥५६॥ अवसो लोहरहे जुत्तो, जलंते समिलाजुए । चोइनो तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडियो ।५७। हुयासणे जलंतम्मि, चियासु महिसो विव । दड्ढो पक्को य अवसो, पाव कम्मेहिं पावियो ।५८ 1 बला-संडास-तुण्डेहि, लोहतुण्डेहिं पक्खिहिं। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० उत्तराध्ययन २०१६ विलत्तो विलवतो हं. ढकगिद्धेहिंऽणंतसो ।५६। तण्हाकिलतो धावतो, पत्तो वेयरिणि नई । जलं पाहिति चितंतो, खुरधाराहि विवाइप्रो ।६०। उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडतेहिं, छिन्नपुवो अणेगसो ।६। मुग्गरेहिं मुसुढीहिं, सूलेहि मुसलेहि य । गया संभग्गगत्तेहिं, पत्त दुक्ख अणंतसो ।६२। खुरेहिं तिक्खधारेहि, छुरियाहिं कप्पणीहि य । कप्पिो फालियो छिन्नो, उक्कित्तो य अणेगसो ।६३। पासेहिं कूडजालेहिं, मिनो वा अवसो अहं । वाहियो बद्धरुद्धो वा, बहसो चेव विवाइयो।६४। गलेहि मगरजालेहिं, मच्छो वा अवसो अहं । उल्लियो फालियो गहियो, मारियो य अणंतसो ६५॥ वीदसएहिं जालेहि, लेप्पाहि स उणो विव । गाहियो लग्गो बद्धो य मारियो य अणंतसो ।६६। कुहाड-फरसु-माईहि, वड्डईहि दुमो विव । कुट्टियो फालियो छिन्नो, तच्छियो य अणंतसो १६७। चवेड-मुट्ठि-माईहि, कुमारेहिं अय पिव । कुट्टिो फाणियो छिन्नो, चुण्णिो य अणंतसो १६८। तत्ताई तम्ब-लाहाइं तउयाइ सीसगाणि य। पाइयो कलकलताई आरसतो सुभेरव ।। तुहं पियाई मंसाई, खण्डाई, सोल्लगाणि य । खाइनोमि समसाइ, अग्गिवण्णाइऽणेगसो ७०। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १४१ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरो य महूणि य । पाइप्रोमि जलंतीओ, वसानो रुहिराणि य ७१। निच्चं भीएण तत्थेण, दुहिएण, वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेदिता मए ७२। तिव्वचण्डप्पगाढायो, घोरामो अइदुस्सहा । महब्भयाो भीमाओ, नरएसु वेदित्ता मए ७३। जारिसा माणुसे लोए, ताया दीसति वेयणा । एत्तो अणतगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ।७४। सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेदिता मए । निमेसंतरमित्तंऽपि, जं साता नत्थि वेयणा ७५ त बितम्मापियरो, छदेण पुत्त पव्वया । नवर पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पडिकम्मया ।७६। सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । पडिकम्म को कुणई, अरण्णे मियपविखण ७७। एग भए अरणणे व, जहा उ चरई मिगे। एवं धम्म चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ७८॥ जहा मिगस्स आयंको, महारण्णम्मि जायई । अच्चंतं रुक्खमूलम्मि, को णं ताहे तिगिच्छिई १७९ को वा से प्रोसह देइ को वा से पुच्छई सुहं । को से भत्त च पाण वा, आहरित्तु पणामए।८०॥ जया से सुही होई, तया गच्छइ गोयरं । भत्तपाणस्स अट्टाए, वल्लराणि सराणि य ।८१॥ खाइत्ता पाणिय पाउ, वल्लरेहिं सरेहि य। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ उत्तराध्ययन सूत्र अ १६ मिगचारियं चरित्ताणं, गच्छई मिगचारिय ८२। एवं समट्टिो भिक्खू , एवमेव अणेगए । मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ढ पक्कमई दिसं १८३। जहा मिए एग अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य । एव मुणीगोयरियं पविठे,नो होलए नोवि य खिसएज्जा ।८४ मिगचारिया चरिस्सामि, एव पुत्ता जहासुह । अम्मापिऊहिंऽणुन्नाओ, जहाइ उवहिं तहा ।८५१ मिगचारियं चरिस्सामि, सव्व दुक्खविमोक्खणि । तुभेहिं अमणुनाओ, गच्छ पुत्त । जहा सुहं । ८६। एव सो अम्मापियरो, अणुमाणित्ताण बहुविहं । ममत्तं छिदई ताहे, महानागो व्व कचुयं 1८७। इड्ढी वित्त च मित्ते य, पुत्तदार च नायो। रेणुयं व पडे लगं, निझुणित्ताण निग्गयो 11 पंचमहन्वयजुत्तो, पचहि समिनो तिगुत्तिगुत्तो य । सभितरवाहिरो, तवोकमंसि उज्जुनो ८६ निम्ममो निरहकारो, निस्संगो चत्तगारवो। समो य सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य (६० लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा । समोनिंदापसंसासु, तहा माणावमाणो ।६११ गारवेसु कसाएसु, दण्डसल्लभएसु य । नियत्तो हास-सोगायो, अनियाणो अवधणो ।१२। अणिस्सियो इह लोए, परलोए अणिस्सियो। वासीचदणकप्पो य, असणे अणसणे तहा 1९३ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला १४३ अप्पसत्येहिं दारेहि, सव्वप्रो पिहियासवे । अज्झप्पज्झाण-जोगेहिं, पसत्थ-दमसासणे ।१४। एवं नाणेण चरणेण, दसणेण तवेण य । भावणाहि य सुद्धाहि, सम्म भावेत्तु अप्पयं ॥६५॥ बहुयाणि उ वासाणि, सामण्ण-मणुपालिया । मासिएण उ भत्तेण, सिद्धि पत्तो अणुत्तर ।६६॥ एवं करंति सवृद्धा, पण्डिया पवियक्खणा। विणियट्टति भोगेसु, मियापुत्ते जहारिसी ।९७ महापभावस्स महाजसस्स, मियाइ पुत्तम्स निसम्म भासियं । तवप्पहाण चरियं च उत्तम, गइप्पहाण च तिलोगविस्सुय । वियाणिया दुक्खविवद्धण धणं, ममत्तवंधं च महाभयावह । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेज्जनिव्वाण-गुणावह मह ।६६। ।। मयापुत्तीय एगुणवीसइमं अज्झयण समत्तं ॥१६॥ ॥ महानियंठिज्ज वीसइमं अज्झयणं ॥२०॥ सिद्धाणं नमो किच्चा, सजयाणं च भावो । अत्यधम्मगई तच्चं, अणुमष्टुिं सुणेह मे ।। पभूयरयणो राया, 'सेणियो' मगहाहिवो। विहारजत्तं निज्जाओ, 'मण्डिकुच्छिंसि' चेइए ।२। नाणादुमलयाइण्ण, नाणापक्खिनिसेवियं । नाणाकुसुमसंछन्नं, उज्जाणं नदणोवम ।३। तत्थ सो पासई साहु, संजयं सुसमाहियं । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ उत्तराध्ययन सूत्र अ २० निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ।४।। तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि सजए। अच्चंतपरमो पासी, अउलो रूवविम्हो । अहो ! वण्णो अहो ! रूव, अहो ! अज्जस्स सोमया । अहो ! खंती अहो । मृत्ती, अहो ! भोगे असंगया ।६। तस्स पाए उ वंदित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पजली पडिपुच्छई ७१ तरुणोसि अज्जो | पव्वइयो, भोगकालम्मि संजया । उवट्ठिोऽसि सामण्णे, एयमट्ठ मुणेमि ता 11 अणाहोमि महाराय ! नाहो मज्झ न विज्जई। अणुकम्पग मुहि वावि, कचि नाभिसमेमहं ।। तो सो पहसिनो राया, सेणिो मगहाहिवो। एव ते इड्डिमतस्स, कहं नाहो न विज्जई ।१०॥ होमि नाही भयताण, भोगे भुजाहि संजया । मित्तनाईपरिवडो, माणस्स ख सुदुल्लहं ।११॥ अप्पणाऽवि अणाहोऽसि, सेणिया मगहाहिवा ! अप्पणा श्रणाहो संतो, कस्स नाहो भविस्ससि ॥१२॥ एव बुत्तो नरिंदो सो, सुसंभतो सुविम्हिनो। वयणं अस्सुयपुव्वं, साहुणा विम्हयन्नियो ।१३। अस्सा हत्थी मणुस्सा मे, पुरं अंतेउरं च मे । भुजामि माणुसे भोगे, प्राणा इस्सरियं च मे ॥१४॥ एरिसे सम्पयग्गम्मि, सबकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ, मा हु भंते ! मुसं वए ।१५॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १४५ न तुम जाणे अणाहस्स, अत्थ पोत्थं च पत्थिवा। जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा! ।१६। सुणेह मे महाराय | अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई. जहा मेयं पवित्तयं ॥१७॥ कोसम्बी नाम नयरी, पुराण मुरभेयणी। तत्थ प्रासी पिया मज्झ, पभूयधणसचयो ।१८। पढमे वए महाराय, अउला मे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलो दाहो, सव्वगेसु य पत्थिवा ।१९। सत्थ जहा परमतिक्ख, सरीरविवरतरे । आवीलिज्ज अरी कुद्धो, एव मे अच्छिवेयणा ।२०। तिय मे अतरिच्छ च, उत्तमंगं च पीडई । इदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ।२१॥ उवटिया मे आयरिया, विज्जामततिगिच्छगा। अबीया सत्थकुसला, मतमलविसारया ।२२। ते मे तिगिच्छं कुव्वति, चाउप्पायं जहाहिय । न य दुक्खा विमोयति,एसा मज्झ अणाया ।२३। पिया मे सव्वसारपि, दिज्जाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोयति, एसा मज्झ अणाहया ।२४। मायाऽवि मे महाराय | पुत्तसोगदुहट्टिया । न य दुक्खा विमोयति, एसा मज्झ अणाहया ।२५॥ भायरो मे महाराय । सगा जेट्टकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयति, एसा मज्झ अणाया ।२६। भइणीमो मे महाराय ! सगा जेट्टकणिढगा। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ उत्तराध्ययन सूत्र म २० न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ।२७। भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया। असुपुण्णेहि नयणेहि, उर मे परिसिंचई । अन्नं पाणं च पहाण च, गंध-मल्ल-विलेवण । मए नायमनायं वा, सा बाला नेव भुजई ।२६॥ खणंऽपि मे महाराय ! पासाप्रो मे न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्म अणाहया ।३०। तग्रो ह एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो। वेयणा अणुभविउं जे, ससारम्मि अणंतए ।३१ सयं च जइ मुच्चेज्जा, वेयणा विउला इयो। खंतो दंतो निरारम्भो, पन्त्रए अणगारियं ।३२॥ एव च चितइत्ताण, पसुत्तोमि नराहिवा! । परीयत्तीए राईए, वेयणा मे खय गया ।३३। तो कल्ले पभायम्मि, आपुच्छित्ताण वंधवे । खंतो दंतो निरारम्भो,पव्वइओ अणगाग्यिं ।३४॥ तो ऽहं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सव्वेसिं चेव भूयाणं, तसाणं थावराण य ।३५॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कडमामली। अप्पा कामदुहा घेण , अप्पा मे नंदणं वणं ।३६॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठिय सुपढिो ।३७। इमा हु अन्नाऽवि अणाहया निवा, तमेगचित्तो निहुमो सुणेहि । नियण्ठधम्म लहियाण वि जहा, सीयंति एगे वहुकायरा नरा।३८१ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १४७ जो पव्वइत्ताण महव्वयाई, सम्म च नो फासयई पमाया। प्रणिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलमो छिन्नइ बंधणं से ।३६। ओउत्तया जस्स न अस्थि काइ, इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाण-निक्खेव-दुगुछणाए, न वीरजायं अणुजाइ मग्गं ।४०॥ चिरऽपि से मुण्डरुई भवित्ता, अथिरव्वए तव-नियमेहिं भट्ठे । चिरऽपि अप्पाण किलेस इत्ता, न पारए होइ हु सपराए ४।१। पोल्ले व मुट्ठी जह से असारे, अयतिए कूड-कहावणे वा। राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसू ।४२। कुसीललिग इह धारइत्ता, इसिज्मय जीविय बूहइत्ता । असंजए संजयलप्पमाणे, विणिग्घाय-मागच्छइ से चिरंपि ।४३॥ विस तु पियं जह कालकूड, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं । एसोऽवि धम्मो विसोववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवन्नो।४४॥ जे लक्खणं सुविणं पउंजमाणे, निमित्तकोऊहल संपगाढे । कुहेड-विज्जा-सवदारजीवी, न गच्छई सरण तम्मि काले ।४५३ तम तमेणेव उ से असीले, सया दुही विपरियामुवेइ। सधावई नरग-तिरिक्ख जोणि, मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ।४६। उद्देसियं कोयगड नियागं, न मुचई किंच अणेसणिज्ज । अग्गी विवा सव्वभक्खी भवित्ता, इत्तो चुए गच्छइ कट्ट पावं ।। न तं परो कण्ठ छेत्ता करेइ, ज से करे अप्पणिया दुरप्पया। से नाहई मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण दया-विहूणो ।४८॥ निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तम विवज्जासमेइ। इमेऽवि से नत्थि परेऽवि लोए,दुहनोऽवि से झिज्जइ तत्थ लोए । एमेवऽहाछदकुसीलरूवे, मगं विराहित्तु जिणुत्तमाणं । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ उत्तराध्ययन सूत्र अ २० कुररी विवा भोग-रसाणुगिद्धा, निरसोया परियावमेइ ।५०। सोच्चाण मेहावि सुभासियं इम, अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं, महानियंठाण वए पहेणं ।५१ चरित्त-मायार-गुणन्निए तो, अणुत्तरं सजम पालियाणं । निरासवे संखवियाण कम्मं, उवेइ ठाण विउलुत्तमं ध्रुवं ।५२। एवुग्गदतेऽवि महातवोधणे, महामुणी महापइन्ने महायसे । महानियण्ठिज्जमिण महासुय, से काहए महयावित्थरेणं ।५३। तुट्ठो य सेणियो राया, इणमुदाहु कयजलो। । प्रणाहत्तं जहाभूयं, सुठ्ठ मे उवदसियं ।५४। तुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्म, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी । तुम्भे सणाहा य सबंधवा य, ज भे ठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ।५५। त सि नाहो अणाहाण, सव्वभूयाण सजया । खामेमि ते महाभाग, इच्छामि अणुसासिउं ।५६। पुच्छिऊण मए तुभं, झाणविग्घो य जो को। निमंतिया य भोगेहि, त सव्वं मरिसेहि मे ।५७। एवं थुणित्ताण स रायसीहो. अणगारसीहं परमाइ भत्तीए । समोरोहो सपरियणो सबधवो. धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ।। ऊम-सिय-रोम-कवी, काऊण य पयाहिण । अभिवदिऊण सिरसा अइयाओ नराहिवो ।५६। इयरोऽवि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरो य । विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वमुहं विगयमोहो ।६०। ॥ महानिय ठिज्ज वीसइम अज्झयण समत्तं ॥२०॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैत स्वाध्यायमाला १४६ ॥ समुद्दपालियं एगवीसइमं अज्झयणं ॥२१॥ चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवरो, सीसे सो उ महप्पणो ।। निग्गंथे पावयणे, सावए सेऽवि कोविए । पोएण ववहरते, पिहुंड नगरमागए ।२। पिहुण्डे ववहरंतस्स, वाणिो देइ धूयरं । त ससत्त पइगिज्झ, सदेसमह पत्थियो ।३। अह पालियस्स घरिणी, समुद्दम्मि पसवई । अह बालए तहिं जाए, समुद्दपालित्ति नामए ।४। खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं । सवड्डई तस्स घरे, दारए से सुहोइए ।५। बावत्तरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जोवणेण य संपन्ने, सुरुवे पियदंसणे ।६। तस्स रूववई भज्जं, पिया आणेइ रूविणि । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुदगो जहा ।७। अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठियो। वज्झमण्डणसोभागं, वज्झ पासइ वज्झग ।। तं पासिऊग सवेग, समुद्दपालो इणमब्बवी। अहोऽसुभाण कम्माण, निज्जाणं पावग इमं ।। संबुद्धो सो तहिं भगवं, परम-सवेग-मागो । आपुच्छम्मापियरो, पव्वए अणगारिय ।१०। जहित्तु सग्गथ-महाकिलेस, महतमोहं कसिणं भयावहं। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० उत्तराध्ययन सूत्र अ २१ परियायधम्म चऽभिरोयएज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ।११॥ अहिंससच्चं च अतेणग च, तत्तो य बंभं अपरिग्गह च । पडिवज्जिया पंच महन्वयाणि, चरिज्ज धम्म जिणदेसियं विदू। सव्वेहिं भएहिं दयाणुकम्पी, खंतिक्खमे सजयबम्भयारी। सावज्जजोग परिवज्जयंतो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइदिए ।१३। कालेण काल विहरेज्ज रठे, बलावलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा, वयजोग सुच्चा न असम्भमाहु । उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा, पियमप्पिय सत्र तितिक्खएज्जा। न सव्व सम्वत्थऽभिरोयएज्जा, न यावि पूयं गरहं च संजए । प्रणेगच्छंदामिह माणवेहि, जे भावो संपगरेइ भिक्खू । भय-भेरवा तत्थ उइंति भीमा, दिव्वा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ , परीसहा दुव्विसहा अणेगे, सीयंति जत्था बहु-कायरा नरा। से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्ख , सगामसीसे इव नागराया ।१७। सीओसिणा दस-मसा य फासा, प्रायंका विविहा फुसंति देहं । अकुक्कुप्रो तत्यऽहियासएज्जा, रयाइ खेवेज्ज पुरे कयाई।१८॥ पहाय राग च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सततं वियक्खणो। मेरु व्व वाएण अकम्पमाणो, परीसहे पायगुत्ते सहेज्जा ।१६। अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पूर्य गरहं च संजए । स उज्जुभाव पडिवज्ज सजए, निव्वाण-मग्गं विरए उवेइ ॥२०॥ अरइ-रइ-सहे पहीण-सथवे, विरए आय-हिए पहाण । परमट्ठ-पएहि चिट्ठई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥२१॥ विवित्त-लयणाइ भएज्ज ताई, निरोवलेवाइं असंथडाई। इसीहिं चिण्णाई महायसेहिं, काएण फासेज्ज परीसहाई।२२। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , जन स्वाध्यायमाला - ...१५१.... १५१ सन्नाण-नाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जस्संसी, ओभासई सूरिए वंतलिक्खे ।२३। दुविहं खवेऊण य पुण्ण-पावं, निरंजणे सव्वलो विप्पमक्के । तरित्ता समुदं च महाभवोघं 'समुद्दपाले' अपुणागमं गए ।२४। ॥ समुद्दपालीय एगवीसइमं अज्झयण समत्तं ॥२१॥ ॥ रहनेमिजं बावीसइमं अज्झयणं ॥२२॥ 'सोरियपुरम्मि' नयरे, पासि राया महिड्डिए । वसुदेवृत्ति नामेणं, राय-लक्खण-सजुए।११ तस्स भज्जा दुवे पासी, रोहिणी देवई तहा। तासि दोण्ह दुवे पुत्ता, इट्ठा राम-केसवा ।२। सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । 'समुद्दविजए' नाम, राय-लक्खण-संजुए।३। तस्स भज्जा 'सिवा' नाम, तीसे पुत्तो महायसो। भगव 'अरिट्टनेमित्ति', लोगनाहे दमीसरे ।४। सोऽरिट्टनेमिनामो उ, लक्खण-स्सर-सजुनो। अट्टसहस्सलक्खणधरो, गयमा कालगच्छवी ॥५॥ वज्जग्सिहसघयणो, समचउरंसो झोसोयरो। तस्सरायमईकन्न, भज्ज जायइ केसवो।६। अह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहिणी । सव्वलक्खणसपन्ना, विज्ज-सोयामणि-प्पभा ।७। प्रहाह जणो तीसे, वासुदेवं महिड्डियं । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ 69 उत्तराध्ययन सूत्र अ २२ इहागच्छउकुमारो, जा से कन्नं ददामि हं | ८ | सव्वासही हिं हविप्रो, कय- कोउय मंगलो | दिव्वजुयल-परिहियो, ग्राभरणेहि विभूसि || मत्तं च गधहत्थि, वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहिय, मिरे चूडामणी जहा | १० | ग्रह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए | दसारचक्केण य सो, सव्वग्रो परिवारियो |११| चउरगिणीए सेणाए, रइयाए जहक्कम | तुरियाण सन्निनाएण, दिव्वेणं गगणं फुसे |१२| एयारिसाए इड्डिए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाग्रो भवणाओ, निज्जाश्रो वहिपुगवो |१३| ग्रह सो तत्थ निज्जतो, दिस्स प्राणे भयदुए । वाडेहि पंजरे हि च, सन्निरुद्धे सुदुक्खिए | १४ | जीवियंत तु सम्पत्ते, मंसट्ठा भक्खियव्वए । पासित्ता से महापन्ने, सारहि इणमव्ववी ॥१५॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणो । वाडेहि पंजरेह च सन्निरुद्धा य ग्रच्छहिं |१६| अह सारही तो भणई, एए महा उ पाणिणो । तुज्झ विवाह कज्जम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७॥ सोऊण तस्सवयणं, वहु-पाणि-विणासणं । चितेइ से महापन्ने, साणुक्कोसे जिए हिऊ |१८| जइ मज्झ कारणा एए, हम्मति सुबहू जिया । न मे एय तु निस्सेस, परलोगे भविस्सई | १६ | Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १५३ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो। प्राभरणाणि य सव्वाणि, सारहिस्स पणामए ।२०। मणपरिणामो य को, देवा य जहोइय समोइण्णा । सव्वड्ढीइ सपरिसा, निक्खमणं तस्स काउंजे।२१॥ देव-मणस्स-परिवुडो, सीवियारयणं तो समारुढो। निक्खमिय बारगाो, 'रेवययंम्मि' ट्ठिो भगव १२२॥ उज्जाण संपत्तो, अोइण्णो उत्तमाो सीयायो । साहस्सीए परिवुडो, अह निक्खमई उ चित्ताहिं ।२३। अह सो सुगंध-गधीए, तुरियं मउकुंचिए । सयमेव लुचई केसे, पचमुट्ठीहिं समाहियो ।२४। वासुदेवो य ण भणइ, लुत्तकेस जिइंदियं । इच्छिय-मणोरह तुरियं, पावसु तं दमीसरा ।२५॥ नाणेणं दसणेणं च, चरित्तेण तहेव य । खंतीए मुत्तीए, वड्डमाणो भवाहि य ।२६। एवं ते राम-केसवा, दसारा य बहू जणा । अरिट्टनेमि वदित्ता, अभिगया बारगापुरि ।२७। सोऊण रायकन्ना, पव्वज्ज सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणदा, सोगेण उ समुत्थिया ।२८। राईमई विचितेइ, धिरत्यु मम जीविय । जा हं तेण परिच्चत्ता, सेयं पव्वइउं मम ।२६। अह सा भमर-सन्निभे, कुच्च-फणग-पासिए । सयमेव लुचई केसे, धिइमंता ववस्सिया ।३०॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेस जिइदियं । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ उत्तराध्ययन सूत्र अ. २२ संसार सागर घोरं, तर कन्ने लहुं लहुँ ।३१। सा पव्वइया सति, पब्वावेसी तहिं बहुं । सयण परियणं चेव, सीलवता वहुस्सुया ।३२॥ गिरि रेवतय जंती, वासणल्ला उ अंतरा। वासंते अंघयारम्मि, अंतो लयणस्स ठिया ।३३। चीवराइ विसारंति, जहा जायत्ति पासिया । रहने मी भगचित्तो, पच्छा दिट्ठो य तीइऽवि ।३४। भीया य सा तहिं दट्ट, एगते संजयं तयं । बाहाहि काउ सगोफ, वेवमाणी निसीयई।३५॥ अह सोऽवि रायपुत्तो, समुद्दविजयंगो। भीय पवेवियं दद्य, इमं वक्क उदाहरे ।३६॥ रहनेमी अहंभद्दे ! सुरूवे चाम्मासिणी। मम भयाहि मुयणु न ते पीला भविस्सई ।३७। एहि ता भुजिमो भोए, माणुस खु सुदुल्लहं । भुत्त-भोगी तो पच्छा, जिणमग चरिस्सिमो (३८) दण रहनेमि त, भागुज्जायपराजिय । राईमई असम्भना, अप्पाणं मवरे तहिं ।३६ ग्रह मा गयवरकन्ना. मुट्टिया नियमव्वए । जाई कुलं च सील च, रक्खमाणी तय वए ।४०। जामिण बेगमणो. ललिाण नलकुम्बरी । तहावि ने नाच्छामि, जइमि मक्वं पुरदरी ॥४१ पायदे जलिय जा, धमकई दुगमय । नेति वनयमान.कले जाया प्रगधणे । ४२ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १५५ धिरत्थु तेऽजसोकामी ! जो तं जीविय कारणा । वतं इच्छसि आवेउ, सेयं ते मरणं भवे |४३|अह च भोगरायस्स, त चऽसि धगवहिणो । मा कुले गधणा होमो, संजम निहु चर |४४| जइ तं काहिसि भाव, जा जा दिच्छसि नारियो । वायाविद्धो व्व हो, श्रद्विप्पा भविस्ससि ।४५ | गोवालो भण्डवालो वा जहा तद्दव्वणिसरो । एव अणिस्सरो तऽपि, सामण्णस्स भविस्ससि । ४६ | तीसे सो वयणं सोच्चा, सजयाइ सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे सपडिवाइओ |४७ कोह माणं निगिहित्ता, माय लोभ च सव्वसो ! इदियाइ वसे काउ, अप्पाण उवसंहरे |४८ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइदियो । सामण्णं निच्चल फासे, जावज्जीव दढव्वो ।४६| उग्ग तत्र चरित्ताण, जाया दोण्णिऽवि केवली । सब कम्म खवित्ताण, सिद्धि पत्ता अणुत्तर । ५० एव करेति सबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा । विणियति भोगेसु, जहा से पुरिसुत्तमो । ५१| । || रहनेमिज्ज बावीसइम अज्झयण समत्तं ॥ २२॥ ॥ के सिगोयमिज्जं तेवीसइमं श्रज्झयणं ॥२३॥ - जिणे पासित्ति नामेणं, अरहा लोगपूइयो । सबुद्धप्पा य सव्वन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे 1१1 Page #172 --------------------------------------------------------------------------  Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला एगकज्जपवन्नाण, विसेसे किं नु कारण ।१३। अह ते तत्थ सीसाणं, विन्नाय पवितक्किय । समागमे कयमई, उभओ केसि-गोयमा ।१४। गोयमे पडिरूवन्नू , सीससघसमाउले । जेठं कुलमवेक्खंतो, तिदुयं वणमागो ।११ केसी-कुमारसमणे, गोयम दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्ति, मम्मं सपडिवज्जई।१६। पलालं फासुयं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य । गोयमस्स निसेज्जाए, खिप्प सपणामए ।१७। केसीकुमारसमणे, गोयमे य महायसे । उभयो निसण्णा सोहति, चंद-सूर-समप्पभा ।१८। समागया बहू तत्थ, पासंडा कोउगा मिया । गिहत्थाणं अणेगारो, साहस्सीयो समागया ।१६। देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस-किन्नरा। अदिस्साणं च भयाण, पासी तत्थ समागमो ।२०। पुच्छामि ते महाभाग, केसी गोयममब्बवी । तो केसि बुवत तु, गोयमो इणमब्बवी ॥२१॥ पुच्छ भते जहिच्छ ते, केसि गोयममब्बवी । तो केसी अणुनाए, गोयमं इणमब्बवी ॥२२॥ चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्खियो। देसिनो वद्धमाणेण, पासेण य महामुणो ।२३। एग-कज्ज-पवन्नाणं, विसेसे किण्णु कारणं । धम्मे दुविहे मेहावी, कहं विप्पच्चो न ते ।२४॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ उत्तराध्ययन सूत्र में २३ तो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी । पन्ना समिक्खए धम्म, तत्तं तत्तविणिच्छिय ।२५। पुरिमा उज्जुजडा उ, वंकजडा य पच्छिमा। मज्झिमा उज्जुपन्ना उ, तेण धम्मे दुहा कए ।२६॥ पुरिमाणं दुन्विसोझो उ, चरिमाणं दुरणुपालो। कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसोझो सुपालो ।२७। साहु गोयम । पन्ना ते, छिन्नो मे संसो इमो। अन्नोऽवि ससो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा २८॥ अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो सतरुत्तरो। देसियो वद्धमाणेण, पासेण य महाजसा ।२६। एग-कज्ज-पवन्नाण, विसेसे किं नु कारणं । लिंगे दुविहे मेहावी, कहं विप्पचो न ते ।३०। केसिमेव ववाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विन्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ॥३१॥ पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविगप्पण । जत्तत्थं गहणत्थं च, लोगे लिंगपोयणं ।३२॥ अह भवे पइन्ना उ, मोक्ख-सव्भूय-साहणा । नाणं च सणं चेव, चरित्त चेव निच्छए ।३३। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसनो इमो। अन्नोऽवि संसो मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! 1३४॥ अणेगाणं सहस्साणं, मज्जे चिट्टमि गोयमा ! ते य ते अहिगच्छति, कहं ते निज्जिया तुमे ।३५॥ एगे जिए जिया पच, पंचजिए जिया दस। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १५६ दसहा उ जिणित्ताणं, सव्वसत्तू जिणामहं ॥३६॥ सत्तू य इइ के वुत्ते, केसी गोयममबवी। तो केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।३७। एगप्पा अजिए सत्त, कसाया इदियाणि य । ते जिणित्तु जहानायं, विरहामि अह मुणी।३८। साह गोयम | पन्नाते, छिन्नो मे ससप्रो इमो। अन्नोऽवि ससो मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ३९ दीसति बहवे लोए, पासवद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुन्भूप्रो, कह तं विहरसी मुणी ! ॥४०॥ ते पासे सव्वसो छित्ता, निहंतूण उवायो । मुक्कपासो लहुब्भूप्रो, विहरामि अह मुणी ।४१॥ पासा य इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी।४२। राग-द्दोसा-दो तिव्वा, नेहपासा भयङ्करा। ते छिदित्तु जहानाय, विहरामि जहक्कम ।४३। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नोऽवि ससो मज्झ, त मे कहसु गोयमा ! १४४॥ अंतोहिययसंभया, लया चिइ गोयमा । फलेइ विस-भक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं ।४५॥ तं लय सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलिय । विहरामि जहानायं, मुक्कोमि विसभक्खण ।४६। लया य इइ का वुत्ता, केसि गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवतं तु, गोयमो इणमब्बती।४७। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ. २३ भवतण्हा लया वृत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुच्छित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी ! १४८॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे ससम्रो इमो। अन्नोऽवि ससयो मज्झ, तं मे कहमु गोयमा ! १४६॥ सपज्जलिया घोरा, अग्गी चिटुइ गोयमा । जे डहति सरीरत्थे, कह विज्झाविया तुमे ।५०! महामेहप्पसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तम । सिंचामि सयय देह, सित्ता नो व डहति मे ।५११ अग्गी य इइ के नुत्ता, केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं वुवतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥५२॥ कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवो जल । सुयधाराभिहया सप्ता, भिन्ना हु न डहंति मे 1५३। साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे ससयो इमो। अन्नोऽवि ससयो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! १५४१ अय साहसिनो भीमो, दुट्ठस्सो परिधावई । जंसि गोयमआरूढो, कह तेण न हीरसि ।५५॥ पधावंतं निगिण्हामि, सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग, मग्गं च पडिवज्जई १५६ आसे य इइ के वृत्ते, केसी गोयममव्ववी। केसिमेवं बवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।५७। मणो साहसीनो भीमो, दुदुस्सो परिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्खाइ कंथग ।५८॥ साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसमो इमो। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला अन्नो-वि संसपो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! 1५९। कुप्पहा बहवे लोए, जेहिं नासति जतुणो। अद्धाणे कहं वट्टतो, तं न नाससि गोयमा ! १६० जे य मग्गेण गच्छति, जे य उम्मग्गपट्टिया। ते सव्वे वेइया मज्झं, तो न नस्सामहं गुणी ।६१॥ मग्गे य इइ के.वृत्ते, केसी गोयममब्बवी । केसिमेव बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।६२। कुप्पवयणपासण्डी, सव्वे उम्मग्गपट्ठिया। सम्मग्गं तु जिणक्खाय, एस मग्गे हि उत्तमे ।६३। साह गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे ससमो इमो। अन्नो-वि संसओ मज्झ, त मे कहसु गोयमा !१६४॥ महाउदगवेगेण, बुज्झमाणाण पाणिण । सरण गई पइट्ठा य, दीव कं मन्नसी मुणी ! ६५॥ अस्थि एगो महादीवो, वारिमज्झे महालो । महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विज्जई १६६। दीवे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी। केसिमेव बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।६७। जरामरणवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्टाय, गई सरणमुत्तम ।६८। साह गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संमत्रो इमो । अन्नोऽवि संसपो मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ! १६६। अण्णवंसि महोहसि, नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्ससि ।७०। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ उत्तराध्ययन ॐ० २३ जा उ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी । ७१ । नावा य इइ का वृत्ता केसी गोयममव्बवी । केसिमेवं बुवंत तु, गोयमो इणमव्ववी | ७२ | सरीरमाहु नावत्ति, जीवो वुच्चइ नाविप्रो । संसारो प्रण्णवो वृत्तो, जं तरति महेसिणो ॥७३॥ साहु गोयम । पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नोऽवि संसश्रो मज्भं, त मे कहसु गोयमा ! |७४ | अंधयारे तमे घोरे चिट्ठति पाणिणो बहू । । को करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं ॥ ७५ ॥ उग्गो विमलो भाणू, सव्वलोयप्पभंकरो । सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिण । ७६ । भानु य इइ के बुत्ते, केसी गोयममव्ववी । के सिमेवं बुवतं तु, गोयमो इणमब्बवी ७७ | उग्गो खीणसंसारो, सव्त्रन्नू जिणभक्खरो । I सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोयम्मि पाणिणं ॥७८॥ , साहु गोयम | पन्ना ते, छिन्नो मे समओ इमो । ग्रन्नोऽवि ससश्रो मज्भं, त मे कहसु गोयमा ! ७ सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं । खेम सिव अणावाहं, ठाण कि मन्नसी मुणी ! |८०| अत्थि एग धुवं ठाण, लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्थ नत्यि जरामच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ।८१ ठाणे य इइ के वृत्ते, केसी गोयममव्ववी । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १६३ केसिमेवं बुवंत तु, गोयमो इणमब्ववी ८२ | निव्वाण -ति प्रबाह -ति, सिद्धी लोगग्गमेव य । खेम सिवं अणावाह, जं चरति महेसिणो | ८३| तं ठाण सासयं वास, लोयग्गम्मि दुरारुहं । जं सपत्ता न सोयति, भवोहंतकरा मुणी |८४| साहु गोयम । पन्ना ते, छिन्नो मे संसग्रो इमो । नमो ते ससयातीत, सव्वसुत्तमहोयही । ८५ ॥ एव तु ससए छिन्ने, केसी घोरपरक्कमे । श्रभिवदित्ता सिरसा, गोयमं तु महायसं । ८६ । पंचमहव्वयधम्मं, पडिवज्जइ भावो । पुरिमस्स पच्छिमम्मि, मग्गे तत्थ सुहावहे | ८७॥ केसी - गोयमत्रो निच्चं, तम्मि आसि समागमे । सुयसीलसमुक्कसो, महत्यत्यविणिच्छो तोसिया परिसा सव्वा सम्मग्गं समुवट्टिया । संथुया ते पसीयतु, भयवं के सिगो मे || ॥ केसिगोयमिज्जं तेवीसइम अज्झयण समत्त ||२३|| ॥ समिइओ चउवीसइमं श्रज्झयणं ॥ २४ ॥ श्रट्ट पवयणमाया, समिई गुत्ती तहेव य । पंचैव य समिईो, तो गुत्तीउ आहिया ॥ १ ॥ इरिया-भासे-सणा- दाणे, उच्चारे समिई इय | मण-गुत्ती वय-गुत्ती, काय गुत्तीय अट्टमा |२| Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ उत्तराध्ययन सूत्र अ २४ एयानो अट्ठ समिईओ, समासेण वियाहिया । दुवालसगं जिणक्खायं. मायं जत्थ उपवयणं ।। पालम्बणेण कालेण, मग्गेण जयणाइ य । चउकारणपरिसुद्ध, सजए इरियं रिए ।४। तत्थ पालम्बण नाणं, दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवज्जिए ।५। दव्वनो खेत्तो चेव, कालो भावप्रो तहा। जयणा चउन्विहा वुत्ता, तं मे कित्तयो सुण ।६। दव्वनो चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं च खेत्तप्रो । कालो जाव रीइज्जा, उवउत्ते य भावो ।७। इंदियत्थे विवज्जित्ता, सज्झायं चेव पंचहा । तम्मुत्ती तप्पुरक्कारे, उवउत्ते रियं रिए 141 कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउत्तया। हासे भए मोहरिए, विकहासु तहेव य । एयाई अट्ठ ठाणाई, परिवज्जित्तु सजए । असावज्ज मियं काले, भास भासिज्ज पन्नव । गवेसणाए गहणे य, परिभोगेमणा य जा। आहारोवहिसेज्जाए, एए तिन्नि विसोहए।११। उग्गमुप्पायणं पढमे बीए सोहेज्ज एसणं । परिभायम्मि चउक्कं, विसोहेज्ज जयं जई ।१२। ओहोवहोवग्गहियं, भण्डग दुविह मुणी । गिण्हतो निक्खिवतो वा, पउंजेज्ज इमं विहिं ।१३। चक्खुसा पडिले हित्ता, पमज्जेज्ज जयं जई । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला १६५ आइए निक्खिवेज्जा वा, दुहवो-वि समिए सया।१४। उच्चार पासवण, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहार उवहिं देह, अन्नं वावि तहाविहं ॥१५॥ अणावायमसलोए, अणावाए चेव होइ संलोए । आवायमसलोए, प्रावाए चेव संलोए ।१६। अणावायमसंलोए, परस्सणवघाइए। समे अज्झसिरे यावि, अचिरकालकयम्मि य ।१७। विच्छिण्णे दूरमोगाढे, नासन्ने बिलवज्जिए । तस-पाण-बीय-रहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ।१८। एयाओ पंच समिईओ, समासेण वियाहिया । एत्तो य तो गुत्तीओ, वोच्छामि अणुपुव्वसो ।१६६ सच्चा तहेव मोसा य, सच्चामोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्तिो चउविवहा ।२०॥ सरम्भ-समारम्भे, प्रारम्भे य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेन्ज जयं जई २१॥ सच्चा तहेव मोसा य, सच्चमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, वइगुत्ती चउन्विहा ।२२॥ सरम्भ-समारम्भे, आरम्भे य तहेव य । वय पवत्तमाणं तु. नियत्तेज्ज जय जई ।२३॥ ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघण-पल्लंघणे, इंदियाण य जुजणे ।२४। संरम्भ-ममारम्भे, आरम्भम्मि तहेव य । काय पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई १२५॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ उत्तराध्ययन सूत्र अ २५ | एयाओ पंच समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे गुत्ती नियत्तणे त्ता, प्रभत्सु ससो |२६| एसा पवयणमाया, जे सम्म श्रायरे मुणी । सो खिप्प सव्वसंसारा, विष्पमुच्चइ पण्डिए |२७| || समिईओ चउवीसइमं अज्भयण समत्तं ॥२४॥ ॥ जन्नइज्जं पंचवीसइमं श्रज्झयणं ॥ २५ ॥ माहणकुलसंभू, श्रासि विप्पो महायसो । जायाई जम-जन्नम्मि, 'जयघोसित्ति' नामत्रो | १| इदियग्गामनिग्गाही, मग्गगामी महामुनी । गामाणुगामं रीयते, पत्तो वाणरसि पुरि |२| वाणारसीए वहिया, उज्जाणम्मि मणोरमे । फासुए सेज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए | ३ | ग्रह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसित्ति नामेणं, जन्नं जयइ वेयवी |४| ग्रह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जन्नम्मि, भिक्खमट्ठा उवट्टिए |५| समुट्ठियं हि संतं, जायगो पडिसेहए । न हु दाहामि ते भिक्खं, भिक्खू जायाहि प्रन्नश्रो | ६ | जे य वेयविऊ विप्पा, जनट्ठा य जे दिया । जोइसंगविऊ जे य, जे य धम्माण पारगा |७| जे समत्या समुद्धत्तु, परमप्पाणमेव य । तेसि अन्नमिणं देयं भो भिक्खू ! सव्वकामियं । ८ , Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १६७ सो तत्थ एवं पडिसिद्धो, जायगेण महासुणी । नवि रुट्ठो नवि तुट्ठो, उत्तमट्ठगवेमो नन्नट्ठ पाणहेडं वा, नवि निव्वाणाय वा । तेसि विमोक्खणट्टाए, इमं वयणमब्बवी |१०| नवि जाणासि वेयमहं नवि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुह जं च, जं च धम्माण वा मुह | ११ | जे समत्था समुद्धत्तु, परमप्पाणमेव य । न ते तुमं वियाणासि, अह जाणासि तो भण | १२| तस्सऽक्खेवपमोक्खं तु, अचयतो तहि दिन । सपरिसोपजली होउ, पुच्छई त महामुणि ॥१३॥ वेयाण च मुहं बूहि, बूहि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं बूहि, बूहि धम्माण वा मुह | १४| जे समत्था समुद्वत्तु, परमप्पाणमेव य । एय मे संसयं सव्व, साहू कहसु पुच्छो |१५| अग्गिहुत्तमुहा वेया, जन्नट्ठी वेयसा मुहं । नक्खत्ताण मुह चदो, धम्माण कासवो मुहं |१६| जहा चदं गहाईया, चिट्ठती पजलीउडा । वदमाणा नमसता, उत्तम मणहारिणो | १७| जाणगा जन्नवाई, विज्जा - माहण सपया । मूढा सज्झाय तवसा, भासच्छन्ना इवऽग्गिणो | १८ | जा लोए बम्भणो वृत्तो, श्रग्गीव महिो जहा । सया कुसलसदिट्ठ, त वयं बूम माहणं |१६| जो ण सज्जइ आगंतु, पव्वयंतो न सोयइ । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ उत्तराध्ययन सूत्र अ २५ रमइ अज्जवयणम्मि, तं वय बूम माहणं | २०| जायख्व जहामट्ठे, निद्धतमलपावगं । राग-दोस - भयाईयं, तं वय बूम माहण | २१| तवस्सिय किस दंत, अवचिय-मस-सोणियं । सुव्वय पत्तनिव्वाणं, त वय बूम माहण | २२० तपाणे वियात्ता, सगहेण य थावरे । 1 जो न हिंसइ तिविहेण तं वय बूम माहणं |२३| कोहा वा जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया । मुस न वयई जो उ, तं वयं बूम माहण | २४| चित्तमतमचित्तं वा, श्रप्यं वा जइ वा बहु । न गिण्हइ प्रदत्त जे, त वयं बूम माहणं |२५| दिव्वमाणुसतेरिच्छ, जो न सेवइ मेहुण । मणसा कायवक्केण, त वयं बूम माहणं | २६| जहा पोमं जले जाय, नोवलिप्पइ वारिणा । एव अलित्तं कामेहि, त वय बूम माहण |२७| श्रालोलूयं मुहाजीवि, अणगारं श्रचिणं । असत्त गिहत्थेसु त वय बूम माहण |२८| जहित्ता पुव्वसंजोगं, नाइसगे य बधवे । जो न सज्जइ भोगेसु त वयं बूम माहणं |२| पसुबंधा सव्ववेया, जठ्ठे च पावकम्मणा । न त तायंति दुस्सीलं, कम्माणि बलवति हि |३०| नवि मुडिएण समणो, न प्रकारेण बम्भणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुस चीरेण न तावसो |३१| Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० उत्तराध्ययन सूत्र अ. २६ विरत्ता उ न लग्गति, जहा सुक्के उ गोलए।४३ एव से विजयघोसे, जयघोसम्स अंतिए । अणगारस्स निक्खती, धम्म सोच्चा अणुत्तरं।४४। खवित्ता पुवकम्माइ, सजमेण तवेण य । जयघोस विजयघोसा, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ।४५। ।। जन्नइज्ज पचवीसइम अग्झयण समत्त ॥२५॥ ॥ सामायारी छब्बीसइमं अज्झयणं ॥२६॥ सामायारि पवक्खामि, सम्वदुक्खविमोक्खणि । जं चरित्ताण निग्गथा, तिण्णा संसारसागरं ।। पढमा प्रावस्सिया नाम, विइया य निसीहिया। आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा।२। पंचमी छदणा नाम, इच्छाकारो य छट्टओ। सत्तमो मिच्छाकारो उ, तहक्कारो य अट्ठमो ।३। अन्भुट्ठाण च नवमं, दसमी उवसम्पदा । एसा दसगा साहणं, सामायारी पवेइया ।४। गमणे प्रावस्मियं कुज्जा, ठाणे कुज्जा निसीयि । प्रापुच्छण सयंकरणे, परकरणे पडिपुच्छणा ।५। छदणा दबजाएणं, इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निदाए, तहक्कारो पडिस्सुए।६। अभुट्ठाणं गुरुपूया अच्छणे उवसपदा। एवं दु-पच-सजुत्ता, सामायारी पवेइया ।७। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १७१ पूविल्ल म्मि च उन्माए, आइच्चम्मि समुदिए । भण्डयं पडिले हित्ता, वदित्ता य तमो गुरुं।८। पूच्छिज्ज पजलिउडो, किं कायव्वं मए इह । इच्छ निग्रोइउ भंते ! वेयावच्चे व सज्झाए । वेयावच्चे नि उत्तेण, कायव्वं अगिलायो । सज्झाए वा निउत्तेणं, सव्वदुक्खविमोक्खणे ।१०॥ दिवसस्स चउरो भागे, भिवखू कुज्जा वियक्खणो । तो उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेसु चउसु वि ।११ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीय झाणं झियायई। तइयाए भिक्खायरिय, पुणो चउथीइ सज्झायं ।१२। आसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया। चित्तासोएमु मासेसु, तिप्पया हवइ पोरिसी ।१३। अंगुलं सत्तरत्तेणं, पक्खेणं च दुरगुल । वड्डए हायए वावि, मासेणं चउरगुल ।१४। आसाढबहुले पक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुण-वइसाहेमु य, बोद्धव्वा ओमरत्तायो ।१५॥ जेट्ठामूले आसाढ-सावणे, छहिं अगुलेहिं पडिलेहा । अहिं बीयतइयम्मि, तइए दस अट्टहिं च उत्थे ।१६॥ रतिऽपि चउरो भागे, भिक्ख कुज्जा वियक्खणो। तो उत्तरगुणे कुज्जा, राइभाएसु च उसु वि।१७। पढगं पोरिसि सज्झाय, बीयं झाण झियायई। तइयाए निद्दमोक्खं तु, चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥१८॥ जं नेइ जया रत्ति, नक्खत्ते तम्मि नहचउभाए। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ उत्तराध्ययन अ० २६ सम्पत्ते विरमेज्जा, सज्झाय पोसकालम्मि ।१६। तम्मेव य नक्खत्ते, गयणच उभागसावसेसम्मि । वेरत्तियंपि कालं. पडिलेहित्ता मुणी कुज्जा ।२०॥ पुग्विल्लम्मि चउभाए, पडिलेहिताण भण्डयं । गुरु वदित्तु सज्झायं, कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ।२१। पोरिसीए चउभाए, वंदित्ताण तो गुरुं । अपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ।२२॥ मुहपोत्ति पडिलेहित्ता, पडिले हिज्ज गोच्छग । गोच्छालइयंगुलियो, वत्थाई पडिलेहए ।२३। उड्ढं थिर अतुरियं, पुन्वं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो विइयं पप्फोडे, तइय च पुणो पमज्जिज्जा ।२४) अणच्चावियं अवलियं, अणाणुबधिममोसलि चेव । छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहण ।२५। आरभडा सम्मद्दा, वज्जेयव्वा य मोसली तइया। पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छठो ।२६। पसि ढिल-पलम्बलोला, एगामोसा अणेगरूवधुणा । कुणइ पमाणे पमायं, सकिय-गणणोवगं कुज्जा ।२७। अणूणा-इरित्त-पडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य । पढम पय पसत्थ, सेसाणि उ अप्पसत्थाई ।२८। पडिलेहणं कुणती, मिहो कहं कुणई जणवय-कहं वा। देइ व पच्चक्खाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा ।२६) पुढवी-आउक्काए, तेऊ-वाऊ-बणस्सइ तसाणं । पडिलेहणा-पमत्तो, छह पि विराहयो होइ ।३०। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला पुढवी-याउक्काए, तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणाआउत्तो, छण्हं संरक्खो होइ।३१॥ तइयाए पोरिसीए, भत्तं पाणं गवेसए। छण्हं अन्नतराए, कारणम्मि उवट्ठिए ।३२॥ १ वेयण २ वेयावच्चे, ३ इरियट्ठाए य ४ सजमट्ठाए। ५ तहपाणवत्तियाए, छट्ठ पुण ६ धम्मचिंताए।३३। निग्गयो धिइमतो, निग्गंथी वि न करेज्ज छहिं चेव । ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ ।३४॥ आयके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेउ, सरीर-वोच्छेयणट्टाए ।३५॥ अवसेस भण्डगं गिज्झा, चक्खुसा पडिलेहए। परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणी ।३६। चउत्थीए पोरिसीए, निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं च तो कुज्जा, सव्व-भाव विभावण ।६७। पोरिसीए चउभाए, वदित्ताण तो गुरु । पडिक्कमित्ता कालस्स, सेज्ज तु पडिलेहए ।३८। पासवणुच्चारभूमि च, पडिले हिज्ज जय जई। काउस्सग्गं तो कुज्जा, सव्व-दुक्ख-विमोक्खणं ।३९। देवसियं च अइयारं, चितिज्जा अणुपुव्वसो । नाणे य दसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य ।४०॥ पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तो गुरुं । देवसियं तु अईयारं, आलोएज्ज जहक्कम्मं :४१॥ पडिक्कमित्तु निस्सल्लो, वदित्ताण तमो गुरुं । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ EX - - काउस्सग्ग तो कुज्जा, सव्व दुक्ख विमोक्खण ॥ ४२ ॥ पारिय- काउस्सग्गो, वदित्ताण तो गुरु । थुइ मगल च काऊण, कालं सपडिलेहए |४३| पढमं पोरिसि सज्झाय, विश्यं भाणं भियायई । तइयाए निमोक्ख तु सभाय तु चउत्थिए |४४ | " पोरिसीए चउत्थीए, काल तु पडिलेहया | सज्झायं तु तो कुज्जा, अवहेतो असंजए १४५| पोरिसीय चउभाए, वदित्ताण तो गुरुं । पडिक्कमित्तु कालस्स, कालं तु पडिलेहए |४६| आगए कायवोस्सग्गे, सब्व - दुक्ख - विमोक्खणे । काउस्सग्ग तम्रो कुज्जा, सदव - दुक्ख - विमोक्खण १४७ राइयं च अईयारं, चितिज्ज श्रणुपुव्वसो | नाणमि दसणमिय, चरितमि तवमि य १४८ | पारिय- काउस्सग्गो, वंदित्ताण तो गुरुं । राज्यं तु ग्रईयारं, आलोएज्ज जहक्कमं 1४६ पडिक्कमित्त निस्सल्लो, वदित्ताण तो गुरु | काउस्सग्ग तो कुज्जा, सव्व- दुक्ख विमोक्खणं १५० | कि तवं पडिवज्जामि, एव तत्थ विचितए । काउस्सगं तु पारित्ता, करिज्जा जिणसंथवं । ५१ । पारिय- काउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं । तवं संपडिवज्जित्ता, कुज्जा सिद्धाण संथवं । ५२ । एसा सामायारी, समासेण वियाहिया । जं चरिता वह जीवा, तिण्णा ससार सागरं । ५३ । ॥ सामायारी छवीसइमं अज्भयण समत्त ॥ २६ ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १७५ ॥ खलुंकिज्जं सत्तवीसइमं अज्झयणं ॥ २७ ॥ थेरे गणहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसधए । १ वहणे वहमाणस्स, कतारं अइवत्तई । जोगे वहमाणस्स, ससारो अइवत्तई |२| खलुके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्सई । श्रसमाहिं च वेएइ, तोत्तो से य भज्जई | ३ | एग उसइ पुच्छम्मि, एग विधइ भिक्खणं । एगो भजइ समिल, एगो उप्पहपट्टि |४| एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निवज्जई | उक्कुद्दइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए |५| माइ मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छे पडिप्पहं । मय लक्खेण चिट्ठई, वेगेण य पहावई | ६ | छिन्नाले छिदई सेल्लि, दुद्दतो भजए जुग । से विय सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए |७| खलुड्डा जारिसा जोज्जा, दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि, भजंति धिइदुबला || इड्ढीगारविए एगे, एत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे || भिक्खालसिए एगे, एगे प्रमाणभीरु । द्वे एगे अणुसासम्मि, हेऊहिं कारणेहि य । १० सोऽवि अतरभासिल्लो, दोसमेय पकुब्वई । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ उत्तराध्ययन सूत्र अ २८ पायरियाणं तु वयणं, पडिकूलेइऽभिक्खणं 1११॥ न सा ममं वियाणाइ. नवि सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने, साहू अन्नोत्य वच्च उ ।१२ पेसिया पलिउंचंति, ते परियंति समंतयो। रायट्टि च मन्नता, करेति मिडि महे ।१३। वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेण पोसिया। जायपक्खा जहा हसा, पक्कमति दिसो दिसि ।१४। अह सारही विचितेइ, खलु केहि समागयो। कि मज्झ दुटुसीसेहिं, अप्पा मे अवसीयई।१५॥ जारिसा ममसीसामो, तारिसा गलिगद्दहा । गलिगद्दहे जहित्ताण, दढं पगिण्हई तवं 1१६॥ मिउमद्दवसपन्नो, गम्भीरो सुममाहियो । विहरइ महिं महप्पा, सीलभूएण अप्पणा ।१७। खलकिज्ज सत्तवीसइम अज्झयण समत्त ॥२७॥ ॥ मोक्खमगगइ अट्ठावीसइमं अज्झयणं ॥२८॥ मोक्ख-मग्ग-गई तच्चं, सुणेह जिण-भासियं । चउकारणसंजुत्तं, नाण-दसण-लक्खणं ।१। नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गुत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ।। नाणं च दसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एयं मगमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सोग्गई।३। तत्य पचविहं नाणं, सुयं आभिनिवोहियं । Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ उत्तराध्ययन सूत्र अ. २८ निसग्गुवएसरुई, आणारुई सुत्त - बीयरुइमेव । अभिगम वित्थाररुई, किरियां-संखेव धम्मरुई | १६ | भूयत्येणाहिगया, जीवाजीवा य पुण्ण- पाव च । सह सम्मइयाऽसव-संवरो य, रोएइ उ निसग्गो | १७ | जो जिणदिट्ठे भावे, चउव्विहे सहाइसयमेव । एमेव नन्नह-त्तिय स निसग्गरुइत्ति नायव्वो । १८ । एए चेव उ भावे, उवइट्ठे जो परेण सहई | छउमत्येण जिणेण व, उवएसरुइ-त्ति नायव्वो |१६| रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स वगय होइ । आणाए रोयतो, सो खलु आणारुई नाम | २०| जो सुत्तम हिज्जतो, सुएण श्रोगाहई उ सम्मेत्तं । अंगेण बाहिरेण व, सो सुत्तरुइ-त्ति नायव्वो । २१ एगेण प्रगाई पयाई, जो पसरई उ सम्मत्तं । उद व्व तेल्लविदू सो बीयरुइ-त्ति नायव्वो ॥२२॥ सो होइ श्रभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्यो दिट्ठं । एक्कारस अंगाइ, पइण्णग दिट्टिवाओ य | २३ | दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहि जम्स उवलद्धा ! सव्वाहिं नयविहीहि, वित्थाररुइ-त्ति नायव्वा | २४| दमण-ताण-चरिते, तव विणए सच्च समिइ-गुत्तीसु । जो किरियाभावरुई, सो खलु किरियारुंई नाम २५ प्रणभिग्गहियकुदिट्ठी, सखेवरुइ-त्ति होइ नायव्वो । श्रविसारश्रो पवयणे, अणभिग्गहियो य सेसेसु |२६| जो अस्थिकाय धम्मं, सुय-धम्म खन्नु चरित धम्म च । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १७६ सद्दहइ जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ-त्ति नायव्वो ।२७॥ परमत्थसंथवो वा, सुदिपरमत्थसेवणं वावि । वावन्नकुदसणवज्जणा, य सम्मत्तसद्दहणा ।२८। नत्थि चरित्त सम्मत्तविहणं, दसणे उ भइयव्वं । सम्मत्तचरित्ताइ, जुगवं पुव्वं व सम्मत्त ।२६। नादसणिस्स नाण, नाणेण विणा न हुति चरणगुणा । अगणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्यि अमोक्खस्स निव्वाण ॥ निस्संकिय-निक्कंखिय-निवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी या उववूह-थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ट ।३१॥ सामाइयत्थ पढम, छेदोवट्ठावण भवे बीय । परिहारविसुद्धीयं, सुहुम तह सपराय च ।३२। अकसायमहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स वा । एयं चयरित्तकरं, चारित्तं होइ आहिय ।३३। तवो य दुविहो वृत्तो, वाहिरब्भतरो तहा। वाहिरो छविहो वुत्तो, एवमन्भतरो तवो।३४। नाणेण जाणइ भावे, सणेण य सद्दहे । चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ ।३॥ खवित्ता पुवकम्माइ, सजमेण तवेण य । सव्वदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमति महेसिणो ।३६। ॥ मोक्खमग्गइ समत्तं ॥२८॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १७६ सद्दहइ जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो । २७ | परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवण वावि । वावन्नकुदसणवज्जणा, य सम्मत्तसद्दहणा |२८| नत्थि चरित्त सम्मत्तविहूण, दसणे उ भइयव्वं । सम्मत्तचरित्ताइ, जुगव पुव्व व सम्मत्तं |२६| नादसणिस्स नाण, नाणेण विणा न हुति चरणगुणा अगुणिस्स नत्य मोक्खो, नत्यि मोक्खस्स निव्वाण | निस्संकिय-निक्कंखिय-निव्वितिमिच्छा अमूढ दिट्ठी य । उववूह- थिरीकरणे, वच्छल्ल- पभावणे अट्ट |३१| सामाइयत्थ पढमं छेदोवद्वावण भवे बीयं । परिहारविसुद्धीयं, सुहुम तह सपरायं च । ३२ अकसाय महक्खायं, छउमत्यस्स जिणस्स वा । · एय चयरित्तकरं, चारितं होइ ग्राहिय | ३३॥ तवो य दुविहो वृत्तो, बाहिरब्भतरो तहा । बाहिरो छविहो वृत्तो, एवमब्भतरी तवो |३४| नाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्दहे । चरित्रेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ |३५| खवित्ता पुव्वकम्माइ, सजमेण तवेण य । सव्वदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमति महेसिणो | ३६ | 1 ॥ मोक्खमग्गइ समत्तं ॥ २८ ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ ॥ सम्मत्तपरक्कम एगणतीसइमं अज्झयणं ॥२६॥ सुयं मे आउस ! तेणं भगवया एवमक्खाय । इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं , पवेइए, ज सम्म साहित्ता पत्तिइत्ता रोयइत्ता फासित्ता पालइत्ता तीरित्ता कित्तइत्ता सोहइत्ता आराहित्ता आणाए अणुपालइत्ता बहवे जीवा सिझंति बुझंति मुच्चति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमतं करेति। तस्स णं अयमढे एवमाहिज्जइ, तं जहा - १ सवेगे २ निव्वेए ३ धम्मसद्धा ४ गुरु-साहम्मिय-सुस्सूसणया ५ आलोयणया ६ निंदणया ७ गरहणया ८ सामाइए ९ च उव्वीसत्थवे १० वंदणे ११ पडिक्कमणे १२ काउस्सग्गे । १३ पच्चक्खाणे १४ थव-थुइमगले १५ कालपडिलेणया १६ पायच्छित्तकरणे १७ खमावणया १८ सज्झाए १६ वायणया २० पडिपुच्छणया २१ पडियट्टणया २२ अणुप्पेहा २३ धम्मकहा २४ सुयस्स आराहणया २५ एगग्गमणसंनिवेसणया २६ सजमे २७ तवे २८ वोदाणे २६ सुहसाए ३० अप्पडिबद्धया ३१ विवित्तसयणासणसेवणया ३२ विणियट्टणया ३३ संभोगपच्चक्खाणे ३४ उवहिपच्चक्खाणे ३५ अाहरपच्च. क्खाणे ३६ कसायपच्चक्खाणे ३७ जोगपच्चखाणे ३८ सरीरपच्चक्खाणे ३६ सहायपच्चक्खाणे ४० भत्तपच्चक्खाणे ४१ सम्भावपच्चक्खाणे ४२ पडिरूवणया ४३ वेयावच्चे ४४ सव्वगुणसंपण्णया ४५ वीयरागया ४६ खंती ४७ मुत्ती ४८ मद्दवे ४६ अज्जवे ५० भावसच्चे ५१ करणसच्चे ५२ जोगसच्चे Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १८१ ५३ मणगुत्तया ५४ वयगुत्तया ५५ कायगुत्तया ५६ मणसमाधारणया ५७ वयसमाधारणया ५८ कायसमाधारणया ५६ नाणसंपन्नया ६० दसणसपन्नया ६१ चरित्तसपन्नया ६२ सोइदियनिग्गहे ६३ चक्खिदियनिग्गहे ६४ घाणिदियनिग्गहे ६५ जिभिदियनिग्गहे ६६ फासिदियनिग्गहे ६७ कोहविजए ६८ माणविजए ६९ मायाविजए ७० लोहविजए ७१ पेज्जदोसमिच्छादसणविजए ७२ सेलेसी ७३ अकम्मया । १ सवेगेण भंते | जीवे कि जणयइ ? सवेगेण अणत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए सवेगं हव्वमागच्छइ। अंणताणबधि-कोह-माण-माया-लोभे खवेइ । नवं च कम्मं न बधइ । तप्पच्चइयं च मिच्छत्तविसोहि काऊण दसणाराहए भवइ । दसणविसोहीए य ण विसुद्धाए अत्थेगइए तेणेव भवग्गहणेण सिझई विसोहीए य ण विसुद्धाए तच्च पुणो भवग्गहण नाइक्कमइ। २ निव्वेदेण भते । जीवे कि जणयइ ? निव्वेदेणं दिव्व. माणुस-तेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ । सव्व. विसएमु विरज्जइ । सव्वविसएसु विरज्जमाणे प्रारम्भपरिच्चायं करेइ । प्रारम्भपरिच्चाय करेमाणे ससारमग्ग वोच्छिदइ सिद्धिमग पडिवन्ने य हवइ । ३ धम्मसद्धाए ण भते । जीवे कि जणयइ ? धम्मसद्धाए ण सायासोरखेसु रज्जमाणे विरज्जइ । अगारधम्म च ण चयइ । अणगारिए ण जीवे सारीरमाणसाण दुक्खाण छेयण-भेयण संजोगाईण वोच्छेय करेइ, अव्वाबाह च सुह निव्वत्तेइ.। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ उत्तराध्ययन सूत्र में २६ ___४ गुरु-साहम्मिय-सुस्सूसणयाए णं भते ! जीवे किं जण. यइ ? गुरु-साहम्मिय-सुस्सूसणयाए ण विणयपडिवत्ति जणयइ । विणयपडिवन्ने य ण जीवे अणच्चासायणसीले नेरइय-तिरिक्ख- - जोणियमणुस्सदेवदुग्गईयो निरुम्भइ । वण्ण-संजलणभत्तिबहुमाणयाए मणुस्सदेवगईओ निबंधई, सिद्धिसोग्गइ च विसोहेइ । पसत्थाइ च ण विणयमलाई सव्वकज्जाई साहेइ । अन्ने य बहवे जीवे विणिइत्ता भवइ । । ५ आलोयणाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ? आलोयणाए ण माया-नियाण-मिच्छादसण-सल्लाण, मोक्खमग्गविग्घाणं, अणतससारबंधणाण उद्धरणं करेइ । उज्जभाव च जणयइ । उज्जु भावपडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेय च न बंधइ । पुव्वबद्धं च ण निज्जरेइ । ६ निंदणयाए ण भंते ! जीवे कि जणयइ ? निंदणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ । पच्छाणुतावेण विरज्जमाणे करणगुणसे दि पडिवज्जइ । करणगुणसेढीपडिवन्ने य ण अणगारे मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ । ७ गरहणयाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ? गरहणयाए णं अपुरक्कारं जणयइ । अपुरस्कारगए ण जीवे अप्पसत्थेहितो जोगेहितो नियत्तेइ, पसत्थे य पडिवज्जइ। पसत्थजोगपडिवन्ने यण अणगारे अणतघाइ-पज्जवे खवेई। ८ सामाइएणं भते ! जीवे कि जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरइं जणयइ । ६च उव्वीसत्थएण भते ! जीवे कि जणयइ? चउव्वी Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १८३ सत्यएणं दंसणविसोहि जणयइ । 1 - १० वंदणएण भते ! जीवे किं जणयइ ? बंदणएर्ण नीयागोय कम्मं खवेइ | उच्चागोयं कम्म निबधइ । सोहग्ग च ण पहियं प्रणाफल निव्वत्तेइ । दाहिणभावं च ण जणयइ । ११ पडिक्कमणेणं भते ! जीवे किं जणयइ ? पडिक्कमणं वयछिद्दाणि पिइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए विहरइ । १२ काउस्सग्गेण भते । जीवे किं जणयइ ? काउस्सग्गेर्ण तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वय हियए हरियभरुन्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुद सुहेण विहरइ । १३ पच्चक्खाणेण भंते ! जीवे किं जणयइ ? पच्चक्खापेण प्रसवदाराइ निरुम्भइ । पच्चक्खाणेण इच्छा निरोह जणयइ इच्छानिरोह गए य ण जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सोइभूए विहरई । थव १४ थव - थुइमंगलेण भते । जीवे किं जणयइ ? थुइ मंगलेण नाणदंसणचरितबोहिलाभं जणयइ नाणदसणचरित्तबोहिलाभसपन्ने य ण् जीवे प्रतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहण आराहेइ । १५ काल पडिलेहणयाए ण भंते । जीवे किं जणयइ ? काल- पडिलेहणयाए ण नाणावरणिज्जं कम्म खवेइ । १६ पायच्छित्तकरणं भंते । जोवे किं जणयइ ? पाय Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ पायच्छित्तकरणेण पावकम्मविसोहि जणयइ । निरइयारे यावि भवइ । सम्मं च ण पायच्छित्त पडिवज्जमाणे मगं च मग्गफलं च विसोहेइ, आयार च पायारफल च बाराहेइ । १७ खमावणयाए ण भते ! जीवे किं जणयइ ? खमावणयाए ण पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुवगए य सत्र. पाण-भय-जीव-सत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ मित्तीभावमवगए यावि जीवे भावविसोहि काऊण निभए भवइ । १८ सज्झाएण भते । जीवे कि जणयइ ? सज्झाएणं नाणावरणिज्ज कम्म खवेइ । १६ वायणाए ण भंते । जीवे कि जणयइ ? वायणाए णं निज्जरं जणयइ । सुयस्स य अणुसज्जणाए अणासायणाए वट्टए । सुयस्स अणुमज्जणाए अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्म अवलम्बइ। तित्थधम्म अवलम्बमाणे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भव। २० पडिपुच्छणयाए भते ! जीवे कि जणयइ ? पडिपुच्छणयाए ण सुत्तत्थ तदुभयाई विसोहेइ । कखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिंदइ। २१ परियट्टणयाए ण भंते ! जीवे किं जणयइ ? परियणयाए ण वंजणाइ जणयइ, वंजणलद्धि च उप्पाएइ। २२ अणुप्पेहाए ण भते । जीवे कि जणयइ?अणुप्पेहाए णं पाउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धणियबंधणबद्धामो सिढिलबंधणबद्धानो पकरेइ । दीहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्ठिइयानो पकरेइ । तिव्वाणुभावाप्रो मदाणुभावानो पकरेइ । बहुपए Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १८५ सग्गाओ अप्पपएसग्गाग्रो पकरेइ । आउयं च ण कम्म सिय वधइ, सिय नो बधइ । असायावेयणिज्जं च ण कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणइ । अणाइयं च ण अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंत ससारकंतार खिप्पामेव वीइवयइ । २३ धम्मकहाए ण भंते ! जीवे कि जणयइ ? धम्मकहाए __ण निज्जरं जणयइ । धम्मकहाए ण पवयण पभावेइ । पवयणपभावेण जीवे आगमेमस्स भद्दत्ताए कम्म निबंधइ । २४ सुयस्स आराहणयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? मुयस्स आराहणयाए ण अन्नाण खवेइ न य संकिलिस्सइ। २५ एगग्गमणसंनिवेसणयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? । एगग्गमणसनिवेसणयाए ण चित्तनिरोहं करेइ । २६ सजमेण भंते ! जीवे किं जणयइ ? सजमेण अणण्हयत्तं जणयइ । २७ तवेण भते । जीवे कि जणयइ ? तवेण वोदाण जणय। २८ वोदाणेण भते ! जीवे कि जणयइ ? वोदाणेण अकि. रिय जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तो पच्छा सिझइ, बज्झइ मच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमतं करेइ । २६ सुहसाएण भंते । जीवे कि जणयइ ? सुहसाएण अणुस्सुयत्त जणयइ । अणुस्सुयाए ण जीवे अणुकम्पए अणुब्भडे विगयसोगे चरित्तमोहणिज्ज कम्मं खवेइ। ३० अप्पडिबद्धयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? अप्पडिबद्धयाए ण निस्सगत्तं जणयइ । निस्संगत्तेण जीवे एगे एगग्ग Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ चित्ते दिया य राम्रो य प्रसज्जमाणे अप्पविद्धे यावि विहरइ । ३१ विवित्त-सयणा - सणयाए णं भते ! जीवे किं जणयइ ? विवित्त-सयणा सणयाए ण चरित्तगृत्ति जणयइ । चरित्तगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरिते एगतरए मोक्खभावपडिवन्ने अट्ठहिकम्मट्ठ निज्जरेइ । ३२ विणियट्टणयाए णं भंते । जीवे कि जणयइ ? विणियट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए ग्रव्भुट्ठेइ । पुव्ववाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ । तम्रो पच्छा चाउरंतं संसारकतारं बीइवयइ | ३३ संभोग - पच्चक्खाणेण भते ! जीवे किं जणयइ ? संभोग - पच्चक्खाणेण श्रालम्वणाइ खवेइ । निरालम्वणस्स य प्राययट्टिया जोगा भवंति । सएण लाभेणं सतुस्सइ, परलाभ नो श्रासादेइ, परलाभ नो तक्केइ, नो पीहेइ, नो पत्येइ तो अभिलसइ । परलाभं ग्रणस्सायमाणे प्रतक्केमाणे ग्रपीहेमाणे अपत्येमाणे अणभिलस्समाणे दुच्चं सुहसेज्जं उवसंपज्जित्ता गं विहरइ । ३४ उवहि-पच्चक्खाणेण भंने! जीवे किं जणयइ ? उवहि-पच्चक्खाणेण ग्रपलिमय जणयइ । निरुवहिए ण जीवे निक्कखी उवहिमतरेण य न संकिलिस्साई । ३५ ग्राहार- पच्चक्खाणं भते । जीवे किं जणयइ ? आहार पच्चक्खाणेणं जीवियाससप्पयोगं वांछिदइ । जीविया - संसप्पयोग वोच्छिदित्ता जीवे ग्राहारमतरेण न संकिलिस्मइ । ३६ कसाय-पच्चक्खाणं भते ! जीवे किं जणयइ ? कसाय पच्चक्खाणेण वीयरागभावं जणयइ । वीयरागभावपडि Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १८७ वन्नेवि य ण जीवे समसुहदुक्खे भवइ। ३७ जोग-पच्चक्खाणेण भंते ! जीवे कि जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेण अजोगत्त जणयइ । अजोगी ण जीवे नव कम्म न बधइ, पुवबद्ध च निज्जरेइ। ३८ सरीर-पच्चक्खाणेण भते ! जीवे कि जणयइ ? सरीरपच्चक्खाणेण सिद्धाइसयगुण कित्तण निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ।। ३६ सहाय-पच्चक्खाणेण भंते ! जीवे कि जणयइ ? सहायपच्चखाणेण एगीभाव जणयइ । एगीभावभूएवि य ण जीवे एगर्ग भावमाणे अप्पसद्दे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमतुमे सजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ। ४० भत्तपच्चक्खाणेण भते ! जीवे कि जणयइ ? भत्तपच्चक्खाणेण अणेगाइ भवसयाइ निरुम्भइ। ४१ सम्भाव-पच्चक्खाणेण भंते ! जीवे कि जणयइ ? सब्भाव-पच्चक्खाणेणं अनियट्टि जणयइ । अनियट्रिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलि कम्मं से खवेइ, तं जहा-वेयणिज्जं आउयं नाम गोयं । तो पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमतं करे। ४२ पडिरूवयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? पडिरूव. याए णं लाघवियं जणयइ । लघुभूएण जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्यलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभयजीवसत्तेस वीससणिज्जरूवे अप्पडिलेहे जिइंदिए विउल-तव-समिइ समन्नागए यावि भवइ। Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ ४३ वेयावच्चेण भंते । जीवे कि जणयइ ? वेयावच्चेण तित्थयरनामगोत्त कम्मं निबंधइ । ४४ सव्वगुणसपन्नयाए ण भते ! जीवे किं जणयइ ? सव्वगुणसपन्नयाए पुणरावत जणयइ । पुणरावत्ति पत्तए गं जीवे सारीरमाणसाण दुक्खाण नो भागी भवइ । ४५ वीयरागयाए ण भते ! जीवे किं जणयइ ? वीयरागयाए नेहाणुबधणाणि तण्हाणुबधणाणि य वोच्छिदइ, मणुन्नामणुन्नेसु सद्द-फरिस-रूव- रस- गधेसु चेव विरज्जइ । ४६ खतीएण भंते ! जीवे किं जणयइ ? खंतीएण परिसहे जिणेइ | ४७ मुत्तीए ण भंते ! जीवे कि जणयइ ? मुत्तीए ण श्रचिण जणयइ । प्रचिणे य जीवे प्रत्यलोलाण पुरिसाण अपत्थणिज्जे भवइ | ४८ ग्रज्जवयाए ण भते । जीवे किं जणयइ ? प्रज्जवयाए का उज्जयय भावज्जुयय भासुज्जुययं ग्रविसंवायणं जणयइ | अविसवायणसंपन्नयाए ण जीवे धम्मस्स ग्राराहए भवइ । ४९ मद्दत्रयाए ण भते । जीवे किं जणयइ ? मद्दवयाए अणुसियत जयइ । अणुस्सियत्ते णं जीवे मिउमद्दवसंपन्ने अट्टमय-द्वाणाइ निट्ठावे | ५० भावसच्चेण भते ! जीवे किं जणयइ ? भावसच्चेणं भावविसोहि जणयइ | भावविसोहिए वट्टमाणे जीवे अरहंतपन्न - त्तस्स धम्मस्स प्रराहणयाए श्रव्भुट्ठेइ । अरहतपन्नत्तस्स धम्मस ग्राहणयाए प्रभुट्ठित्ता परलोगधम्मस्स आहए भवइ । Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला 4 १८६ ५१ करणसच्चे ण भते ! जीवे किं जणयइ ? करणसच्चेणं करणसत्ति जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहावाई तहाकारी यावि भवइ । ५२ जोगसच्चेण भंते ! जीवे किं जणयइ ? जोगसच्चेण जोग विसोहेइ । ५३ मणगुत्तयाए णं भते ! जीवे किं जणयइ ? मणगुत्तयाए ण जीवे एगग्ग जणयइ । एगग्गचित्ते ण जीवे मणगुत्ते सजमाराहए भवइ । ५४ वयगुत्तयाए णं भंते ! जीवे किं जणयइ ? वयगुत्तयाए ण निध्वियारं जणयइ । निव्वियारे ण जीवे वइगुत्ते प्रज्भप्पजोगसाहणजुत्ते यावि विहरइ । ५५ कायगुत्तयाए ण भते ! जीवे किं जणयइ ? कायगुत्तयाए ण सवर जणयइ । संवरेण कायगुत्ते पुणो पावासव निरोहं करेइ | ५६ मणसमाहारणयाए ण भते । जीवे किं जणयइ ? मणसमाहारणयाए ण एगग्गं जणयइ । एगग जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ | नाणपज्जवे जणइत्ता सम्मत्त विसोहेइ मिच्छत्त च निज्जरेइ | ५७ वयसमाहारणयाए भंते ! जीवे कि जणयइ ? वयसमाहारणयाए ण वयसाहारण दंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारण दंसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहबोहियत्त निव्वत्तेइ, दुल्लहबोहियत्त निज्जरेइ | ५८ कायसमाहारणयाए ण भते ! जीवे किं जणयइ ? Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र म २६ कायसमाहारणयाए ण चरित्तपज्जवे विसोहेइ, चरित्तपज्जवे विसोहित्ता ग्रहक्खायचरित्तं विसोहेइ । अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ । तो पच्छा सिज्झइ वुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुखाणमतं करेइ । ५६ नाणसपन्नयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? नाणसपन्नयाए ण जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ । नाणसंपन्ने ण जीवे चाउरते ससारकतारे न विणस्सइ । जहा सूइ ससुत्ता, पडियावि न विणस्सइ। तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ।। नाण-विणय-तव- चरित्त-जोगे संपाउणइ ससमय-परसमयविसारए य संघायणिज्जे भवइ । ६० दसणसपन्नयाए णं भते ! जीवे कि जणयइ ? दंसणसपन्नयाए ण भवमिच्छत्तछेयण करेइ, परं न विज्झायइ । परं अविज्झाएमाणे अणत्तरेण नाणदसणेण अप्पाणं सजोएमाणे सम्म भावेमाणे विहरइ। ६१ चरित्तसंपन्नयाए णं भंते ! जीवे कि जणयइ? चरित्तसंपन्नयाए णं सेलेसीभाव जणयइ । सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मं से खवेइ । तमो पच्छा सिज्मा बज्झा मुच्चइ परिनिव्वायइ सव्वदुक्खाणमतं करेइ।। ६२ सोइदियनिग्गहेणं भते । जीवे कि जणयइ ? सोईदियनिग्गहेण मणुनामणुन्नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ । तप्पच्चइयं कम्मं न वधइ, पुत्रवद्धं च निज्जरेइ । ६३ चक्खिदियनिग्गहेण भते ! जीवे कि जणयइ ? चक्खि Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ । तप्पच्चइयं कम्म न बधइ, पुन्वबद्धं च निज्जरेइ। ६४ घाणिदिय निग्गहेण भते ! जीवे किं जणयइ ? घाणिदिय निग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु गधेसु रागदोसनिग्गह जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुन्वबद्धं च निज्जरेइ। ६५ जिभिदियनिग्गहेण भते ! जीवे किं जणयइ ? जिभि. दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्प. च्चइय कम्मं न बंधइ, पुवबद्धं च निज्जरेइ । ६६ फासिदियनिग्गहेणं भंते । जीवे कि जणयइ ? फासिन दियनिग्गहेण मणुन्नामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बघइ पुन्वबद्ध च निज्जरेइ । ६७ कोह विजएणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? कोह विजएणं खति जणयइ, कोहयणिज्ज कम्मन बंधइ, पुववद्ध च निज्जरेइ। ६८ माणविजएणं भते । जीवे कि जणयइ ? माणविजएण मद्दवं जणयइ, माणवेयणिज्जं कम्म न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ। ६९ मायाविजएण भते । जीवे कि जणयइ ? मायाविज. एण अज्जवं जणयइ । मायावेयणिज्ज कम्म न बधइ, पुवबद्ध च निज्जरेइ। ७० लोभविजएणं भंते ! जीवे कि जणयइ ? लोभविजएणं संतोसं जणयइ, लोभवेयणिज्ज कम्मं न बधइ, पुव्वबद्ध च निज्जरेइ । ७१ पिज्जदोसमिच्छादसणविजएणं भते । जीवे कि जण Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૬૨ उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ यइ ? पिज्जदोसमिच्छादसणविजएण नाण-दसण-चरिताराहणयाए अभटठेइ । अविहस्स कम्मस्स कम्मगठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुवीए पदवीस इविह मोहणिज्जं कम्म उग्धाएइ, पचविह नाणावरणिज्ज, नवविहं दसणावरणिज्जं, पचविहं अंतराइयं, एए तिन्निऽवि कम्मसे जगवं खवेइ। तो पच्छा अणत्तरं कसिण-पडिपुण्ण निरावरण वितिमिरं विसुद्ध लोगालोगप्पभाव केवलवरनाणदसण समुप्पादेइ । जाव सजोगी भवइ,ताव ईरियावहिय कम्म निवधइ सुहफरिस दुसमयठिइयं । तं पढमसमए बद्ध विइयसमए वेइय, तइयसमए निज्जिण्णं, तं बद्धं पुट्ठ उदीरियं वेइय निज्जिण्ण सेयाले य अकम्मया य भवइ । ७२ अहाउयं पाल इत्ता अतोमुहत्तद्धावसेसाए जोगनिरोहं करेमाणे सुहम किरिय अप्पडिवाइं सुक्कज्माण झायमाणे तप्पढमयाए मणजोग निरुम्भ इ, वइजोग निरुम्भइ, कायजोगं नितम्भइ, आणपाणुनिरोह करेइ, ईसिपंचरहस्सक्खरुच्चारणट्टाए यण अणगारे समुच्छिन्न किरियं अनियट्टिसुक्कज्माण झियायमाणे वेयणिज्ज आउय नाम गोत्त च एए चत्तारि कम्मसे जुगव खवेद। ७३ तो ओरालियतेयकम्माइं सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसे ढिपत्ते अफुसमाणगई उड्ढं एगसमएण अविगहेण तत्य गता सागरोवउत्ते सिज्झइ बुज्झइ जाव अंत करेइ । एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अझयणस्स अट्ठे समणेणं भगवया महावीरेण प्राधविए पत्नविए परूविए दंसिए उवदंसिए। ॥ सम्मत परक्कमे सम्मत्ते ॥२६॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला १६३ ॥ तवमग्गं तीसइमं श्रज्झयणं ॥३०॥ जहा उ पावगं कम्मं, रागदोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण |१| पाणिवह मुसावाया, अदत्त- मेहुण - परिग्गहा विरन । राईभोयण - विरो, जीवो हवइ प्रणासवो | २ | पचसमिश्र तिगुत्तो, अकसान जिइदिश्रो । अगारवो य निस्सल्लो, जीवो हवइ अणासवो | ३ | एएसि तु विवच्चासे, रागदोससमज्जिय । खवेइ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण |४| जहा महातलायस्स, सन्निरुद्धे जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे |५| एव तु सजयस्सावि, पावकम्म निरासवे । भवकोडीसचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ | ६ | I } सो तवो दुविहो वृत्तो, बाहिरब्भतरो तहा । बाहिरो छविहो वृत्तो, एवमब्भंत तवो |७| अणसण- मुणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिच्चानो । कायकिले सो संलीणया, य बज्भो तवो होइ | ८ इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इतरिय मावकखा, निरवखा उ बिइज्जिया || जो सो इत्तरियतवो, सो समासेण छव्विहो । सेढितवो पयरतवो घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १०॥ " तत्तो य वग्गवगो, पंचमो छट्टो पइण्णतवो । - Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३० मणइच्छियचित्तत्थो, नायब्वो होइ इत्तरिओ ।११। जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया । सवियारमवियारा, कायचिट्ठ पई भवे ॥१२॥ अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमनीहारी, आहारच्छेप्रो दोसु-वि ।१३। प्रोमोयरणं पचहा, समासेण वियाहियं । दव्वो खेत्तकालेणं, भावेण पज्जवेहि य ।१४। जो जस्स उ आहारो, तत्तो प्रोमं तु जो करे। जहन्नेणेगसित्थाई, एव दवेण ऊ भवे ।१५॥ गामे नगरे तह रायहाणि, निगमे य आगरे पल्ली। खेडे कबड-दोणमुह-पट्टण-मडम्ब-संबाहे ।१६। आसमपए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य। - थलिसेणाखंधारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य ।१७। वाडेसु व रत्यासु व, घरेसु वा एवमित्तिय खेत्त । कप्पइ उ एवमाई, एव खेत्तेण ऊ भवे ।१८। पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्ति-पयग-वीहिया चेव । सम्बुक्कावट्टाययगतु, पच्चागया छठ्ठा ।१६। दिवसस्स पोरुसीण, चउण्हपि उ जत्तिो भवे कालो। एव चरमाणो खलु, कालामाण मुणेयव्व।२०। अहवा तइयाए पोरिसीए, उणाइ घासमेसतो । चऊभागणाए वा, एव कालेण ऊ भवे ।२१॥ इत्थी वा पुरिसो वा, अल किओ वा नालकिओ वावि । अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेण व वत्थेण ।२२। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला १६५ अन्नण विसेसेण, वण्णेण भावमणुमुयते उ ।। एवं चमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयव्वं ।२३। दवे खेत्ते काले, भावम्मि य प्राहिया उ जे भावा । एएहिं प्रोमचरो, पज्जवचरो भवे भिक्खू ।२४। अट्टविहगोयरग्ग तु, तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ॥२५॥ खीरदहिसप्पिमाई, पणीयं पाणभोयण । परिवज्जण रसाण तु, भणियं रस विवज्जण।२६। ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जति, कायकिलेस तमाहियं ।२७। एगंतमणावाए, इत्थी-पसु-दिवज्जिए। सयणासण-सेवणया, विवित्तसयणासणं ।२८। एसो बाहिरगं तवो, समासेण वियाहियो । अभितरं तवं एत्तो, वुच्छामि अणुपुव्वसो ।२६। पायच्छित्त विणो, वेयावच्च तहेव सज्झायो। झाणं च विउस्सग्गो, एसो अबिभतरो तवो ।३०॥ आलोयणा-रिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं । जं भिक्खू वहई सम्म, पायच्छित्तं तमाहियं ।३१॥ अब्भुट्ठाण अजलिकरणं, तहेवासणदायण । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा, विणो एस वियाहियो ।३२॥ आयरियमाईए, वेयावच्चम्मि दसविहे । प्रासेवण जहाथाम, वेयावच्चं तमाहियं ।३३। वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टणा । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ उत्तराध्ययन अ० ३१ अणुप्पेहा धम्मकहा, सज्झायो पंचहा भवे ।३४) अट्टरुद्दाणि वज्जित्ता, झाएज्जा सुसमाहिए। धम्मसुक्काइ झाणाई, झाण तं तु बुहा वए ।३५॥ सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तिो।३६। एव तवं तु दुविहं, जे सम्म आयरे मुणी । सो खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पडियो ।३७) ॥ तवमग तीसइमं अज्झयण समत्त ॥३०॥ ॥ चरणविही एगतीसइमं अज्झयणं ॥३१॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता वह जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥१॥ एगो विरइ कुज्जा, एगो य पवत्तणं । असंजमे नियत्ति च, संजमे य पवत्तण ।२। रागदोसे य दो पावे, पावकम्म-पवत्तणे। जे भिक्खू रुंभई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ।३। दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तिय तिय । जे भिक्खू चयई निच्चं, से न अच्छइ मडले ।४। दिव्वे य जे उवसग्गे. तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहइ निच्चं, से न अच्छइ मंडले 1५। विगहा-कसाय-सन्नाण, झाणाण च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निच्च, से न अच्छइ मडले ।६। वएसु इंदियत्येसु, समिईसु किरियासु य । Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला १६७ जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ७। लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे। जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मंडले ।। पिंडोग्गहपडिमासु, भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयइ निच्च, से न अच्छइ मंडले ।।। मदेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खु-धम्मम्मि दसविहे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मडले ।१०। उवासगाण पडिमासु, भिक्खूण पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मडले ।११। किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मडले ।१२। गाहासोलसएहि, तहा असंजमम्मि य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ।१३। बम्भम्मि नायज्झयणेसु, ठाणेसु य समाहिए। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ।१४। एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले १५॥ तेवीसाए सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मडले ।१६। पणवीस भावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मंडले ।१७। अणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य । जे भिक्ख जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले।१८॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ 85 उत्तराध्ययन सूत्र अ ३२ DCS पावसुयप्प संगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मडले |१६| सिद्धाइगुणजोगे, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मडले | २० | इय एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया | खिप्पं सो सव्वससारा, विप्पमुच्चइ पडियो |२१| ॥ चरणविहीं अज्झयण सम्मत्तं ॥३१॥ ॥ पमायट्ठाणं बत्तीसइमं ज्झणं ||३२|| अच्चतकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो । तं भासो मे पडिपुण्णचित्ता, सुणेह एगंतहियं हियत्यं |१| नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवज्जगाए । रागस्स दोसस्स य संखएण, एगंतसोक्ख समुवेइ मोक्खं |२| तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा | सज्झाय एगत- निसेवणा य, सुत्तत्थसचितणया धिई य |३| श्राहारमिच्छे मियमेसणिज्ज, सहायमिच्छे निउणत्यबुद्धि । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्सी |४| न वा लभेज्जा निउण सहायं, गुणाहियं वा गुणश्रो समं वा । एगोवि पावाइ विवज्जयतो, विहरेज्ज कामेसु प्रसज्जमाणो | ५ | जहा य अंडप्पभवा वलागा, अंड वलागप्पभव जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हा, मोह च तण्हाययण वयति |६| रागो य दोसोऽवि य कम्मबीय, कम्मं च मोहप्पभव वयति । कम्मं च जाइमरणस्स मूल, दुक्खं च जाईमरणं वयति |७| Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जैन स्वाध्यायमाला १६६ दुक्ख हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हमो जस्स न होइ तण्हा । तण्हा या जस्स न होइ लोहो, लोहो हो जस्स न किंचणाई।। रागं च दोसं च तहेव मोह, उद्वत्तुकामेण समूलजालं। जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा, ते कित्तइस्सामि अहाणुवि ।। रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराण । दित्त च कामा समभिद्दवति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी ।१०। जहा दवग्गी परिधणे वणे, समारुमो नोवसमं उवेइ। एविदियग्गी वि पगामभोइणो, न बम्भयारिस्स हियाय कस्सई ॥ विवित्तसेज्जासणजतियाणं, ओमासणाण दमिइदियाणं । न रागसत्तू घरिसेइ चित्तं, पराइनो वाहिरिवोसहेहिं ।१२। जहा विरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बम्भयारिस्स खमो निवासो।१३। न रूव-लावण्ण-विलास-हासं, न जपिय-इगिय-पहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेस इत्ता, दठ्ठ ववस्से समणे तवस्सी ॥१४॥ अदमणं चेव अपत्थण च, अचितण चेव अकित्तण च । इत्थीजणस्सारियझाणजुग्गं, हिय सया बम्भवए रयाणं ॥१५॥ काम तु देवीहि विभूसियाहिं न चाइया खोभइउं तिगुत्ता। तहाऽवि एगंतहियति नच्चा, विवित्तवासो मणिणं पसत्यो ।१६॥ मोक्खाभिकखिस्स उ माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्म धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थियो बालमणोहरायो ।१७। एए य संगे समइक्कमित्ता, सुदुत्तरा चेव भवति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥१८॥ कामाणुगिद्धिप्पभव खु दुक्ख, सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० उत्तराध्ययन सूत्र अ ३२ जे काइयं माणसिय च किंचि, तस्सतगं गच्छइ वीयरागो ।१९। जहा य किम्पागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य भज्जमाणा। ते खडए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगणा विवागे ।२०) जे इदियाण विसया मणुन्ना, न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामणुनेमु मणऽपि कुज्जा, समाहिकामे समणे तवस्सी ।२१॥ चक्खुस्स रूव गहणं वयति, त रागहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो।२२। रूवस्स चक्खु गहण वयति, चवखुस्स रूव गहण वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ।२३। रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालियं पावइ से विणास । रागाउरे से जह वा पयगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ।२४। जे यावि दोसं समुवेइ तिव्व, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुईत सेण सएण जतू, न किञ्चि रूवं अवरज्झई से ।२५॥ एगंतरत्ते रुइरसि रूवे, अतालिसे से कुणई पत्रोसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो।२६॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे। चित्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिठे ।२७। रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निरोगे। वए वियोगे य कहं सुह से, सम्भोगकाले य अतित्तलाभे ॥२८॥ रूवे अतित्ते य परिगहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तदि। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले पाययई अदत्तं ।२६। तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्या वि दुक्खा न विमुच्चई से ।३०॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २०१ मोसस्स पच्छा य पुरत्थरो य, पमोगकाले य दुही दुरंते। ' एवं अदत्ताणि समाययतो, रूवे अतित्तो दुहिनो अणिस्सो १३॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कुत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ॥३२॥ एमेव रूवम्मि गो परोसं, उवेइ दुक्खोह परंपरायो। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।३३। रूवे विरत्तो मणो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण ।। न लिप्पई भवमझेऽवि सतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं :३४। सायस्स सदं गहण वयंति, त रागहेउ तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउ अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ।३५॥ सद्दस्म सोय गहण वयंति, सोयस्स सद्द गहणं वयंति । रागस्स हेउ समणुनमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ।३६। सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ।३७। जे यावि दोस समुवेइ तिव्व, तसि क्खणे से उ उवेइ दुवखं । दुइंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि सद्द अवरुज्झई से ।३८॥ एगंतरत्ते रुइरसि सद्दे, अतालिसे से कुणई परोसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ३६॥ सद्दाणगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे। चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अतद्वगुरू किलिछे।४०॥ सद्दाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निोगे। वए वियोगे य कहं सुहं से, सभोगकाले य अतित्तलाभे।४१॥ सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३२ अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले प्राययई अदत्त ।४२। तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिगहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से।४३। मोसस्स पच्छा य पुरत्थयो य, पभोगकाले य दुही दुरंते। एवं अदत्ताणि समाययतो, सद्दे अतित्तो दुहीनो अणिस्सो ।४४। सदाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेऽवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ।४५॥ एमेव सहम्मि गयो पोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुह विवागे ।४६। सद्दे विरत्तो मणुओं विसोगो, एएण दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमझे-वि सतो,जलेण वा पोखरिणी पलासं ।४७/ घाणस्म गंध गहणं वयति, त रागहेउ तु मणुन्नमाहु । त दोसहेउ अमणनमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो।४८॥ गधस्स घाणं गहण वयति, घाणस्म गंधं गहण वयति । रागस्म हेउ समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुनमाहु ।४६। गंधेमु जो गिद्विमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणास । रागाउरे अोसहिगधगिद्धे, सप्पे विलाओ विव निक्खमने ।५०। जे यावि दोस समुवेइ तिव्व, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुद्दनदासेण सएण जतू, न किंचि गधं अवरुज्झई से ।५१॥ एगतगत्ते रुइरंमि गधे, अतालिसे से कुणई पयोम । दुश्खस्म सपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।५२। गंधाणगामाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अतद्वगुरू किलिडे ।५३। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २०३ गंधाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निभोगे । वए वियोगे य कह सुहं से, सभोगकाले य अतित्तलामे ।५४॥ गधे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धिं ।। अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ।५५॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, गधे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुस वड्डइ लोभदोसा, तत्यावि दुक्खा न विमुच्चई से।५६। मोसस्स पच्छा य पुरत्थरो य, पोगकाले य दुही दुरते । एव अदत्ताणि समाययंतो, गधे अतित्तो दुहियो अणिस्सो ।५७) गधाणुरत्तस्स नरस्स एव, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ।५८॥ एमेव गधम्मि गयो पोस, उवेइ दुक्खोहपरपरायो। पदुकृचित्तो य चिणाइ कम्म, ज से पुणो होइ दुह विवागे ।५९। गधे विरत्तो मणुप्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमझेवि सतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं १६०। जिब्भाए रस गहण वयति, त रागहेउ तु मणुन्नमाहु । त दोसहेउ अमणुन्नमाहु, ममो य जो तेसु स वीयरागो ।६१। रसस्स जिव्भ गहण वयंति, जिब्भाए रस गहण वयंति । रागस्स हेउ समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।६२॥ रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालिय पावइ से विणास । रागाउरे बडिस विभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगगिद्धे ।६३। जे यावि दोस समुवेइ तिव्व, तसि वखणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दतदोसेण सएण जतू, न किंचि रस अवरुज्झई से 1६४। एगतरत्ते रुइरसि रसे, अतालिसे से कुणई परोस । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३२ दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।६५॥ रसाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिट्ठे ।६६। रसाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निनोगे। वए वियोगे य कहं सुह से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ।६७। रसे अतित्ते य परिगहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुद्विदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्त ।६८। तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।६६। मोसस्स पच्छा य पुरत्यो य, पयोगकाले य दुही दुरते। एवं अदत्ताणि समाययंतो, रसे अतित्तो दुहियो अणिस्सो ७०। रसाणुरत्तम्स नरस्स एवं, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि। तत्योवभोगेवि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स कएण दुक्खं ।७१। एमेव रसम्मि गयो पोस, उवेइ दुक्खोहपरंपरागो।। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुह विवागे ।७२। रसे विरत्तो मणुनो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझेवि संतो, जलेण वा पोखरिणी पलास 1७३। कायस्स फासं गहणं वयति, तं रागहेउ तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समोयो तेसु स वीयरागो।७४। फासस्स काय गहण वयति, कायस्स फासं गहण वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोमस्स हेउ अमणुन्नमाहु ७५॥ फासेमु जो गिद्धिमुवेइ तिब्बं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे सीयजलावसने, गाहगहीए महिसे व रणे 1७६। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २०५ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुद्दतदोसेण सएण जंतू, न किंचि फासं अवरुज्झई से १७७। एगंतरत्ते रुइरसि फासे, अतालिसे से कुणई परोसं । दुक्खस्स सपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।७८॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिछे।७६) फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विप्रोगे य कह सुह से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ।८० फासे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धिं । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले पाययई अदत्त ।८१॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुस वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।।२। मोसस्स पच्छा य पुरत्थरो य, पोगकाले य दुही दुते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, फासे अतित्तो दुहियो अणिस्सो।८३। फासाणुरत्तस्स नरस्स एव, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ।८। एमेव फासम्मि गो परोसं, उवेइ दुक्खोहपरंपरायो। पदुदृचित्तो य चिणाइ कम्म, ज से पुणो होइ दुहं विवागे।८॥ फासे विरत्तो मणुप्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमझेवि सतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलास ।८६। मणस्स भावं गहण वयति, त रागहेउं तु मणुन्नामाहु । तं दोसहेउ अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स बीयारागो।७। भावस्स मण गहणं वयंति, मणस्स भावं गहण वयंति । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३२ रागस्स हेउ समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ श्रमणुन्नमाहु || भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, कालिय पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेमु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए गजे वा । ८ जे यावि दोस समुवेइ तिव्व तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दतदोसेण सएण जनू, न किंचि भाव ग्रवरुज्झई से ॥६०॥ एगतरत्ते रुइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पद्मसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो || १ | भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परतावे वाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिट्ठे ॥६२॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्नियोगे । वए वियोगे य कह सुहं से, सभोगकाले य प्रतित्तलाभे ६३ | भावे प्रतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि | अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई प्रदत्त |१४| तण्हा भिभूयस्स ग्रदत्तहारिणो, भावे प्रतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुग वडइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से । ६५ । मोसस्स पच्छा य पुरत्ययो य, पद्योगकाले यदुही दुरते | एवं प्रदत्ताणि समाययंतो, भावे अतित्तो दुहियो ग्रणिस्सो | १६ | भावापुरतस्स नरस्स एव, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्यो मोगेवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स करण दुक्ख | ७| एमेव भावम्मि गयो पत्रो, उवेइ दुक्खोहपरपराओ । पदुदुचित्तोय चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे |१८| भावे विरतो मणुश्रो विमोगो, एएग दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमज्भेवि संतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं । ६६ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २०७ एविदियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो। ते चेव थोवपि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स करेति किंचि ।१००। न कामभोगा समय उवेति, न यावि भोगा विगई उवेति । जे तप्पओसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उवेइ ।१०१ कोह च माण च तहेव मायं, लोहं दुगच्छ अरइं. रइं च । हासं भयं सोग-पुमित्थिवेय, नपुसवेय विविहे य भावे ।१०२। आवज्जई एयमणेगरूवे, एवं विहे कामगुणेसु सत्तो।। अन्ने य एयप्पभवे विसेसे, कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से ।१०३। कप्प न इच्छिज्ज सहायलिच्छू, पच्छाणुतावे ण तवप्पभावं । एव वियारे अमियप्पहारे, आवज्जई इदियचोरवस्से ।१०४। तो-से जायति पोयणाई, निमज्जिउं मोहमहण्णवम्मि । सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा, त्तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ।१०५॥ विरज्जमाणस्स य इदियत्या, सद्दाइया तावइयप्पगारा। न तस्स सब्वेवि मणुन्नय वा, निव्वत्तयती अमणुनय वा।१०६। एव ससंकप्पविकप्पणासु, सजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्ये य संकप्पयनो तओ से, पहीयए कामगुणेसु तण्हा ।१०७। । स वियरागो कयसवकिच्चो, खवेइ नाणावरण खणेण । - तहेव जं दसणमावरेइ, ज चतरायं पकरेइ कम्म ।१०८। सव्वं तो जाणइ पासइ य, अमोहणे होइ निरतराए । अणासवे झाणसमाहिजुत्ते, आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ।१०६। सो तस्स मव्वस्स दुह्स्स मुक्को, ज बाहई सयय जतुमेयं । दोहामय विप्पमुक्को पसत्थो,तो होइ अच्चंतसुही कयत्थो।११०॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३३ प्रणाइकालप्पभवस्स एसो, सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहियो जं समुविच्च सत्ता, कमेण प्रच्चतसुही भवंति । १११ । || पमायद्वाण अभयण सम्मत्त ॥३२॥ ॥ कम्मप्पयडी तेत्तीसइमं अज्झयणं ॥ ३३॥ अट्ठ कम्माई वोच्छामि, आणुपुवि जहक्कम । जेहिं बद्धो अय जीवो, संसारे परिवट्टई |१| नाणसावर णिज्जं, दसणावरणं तहा । वेयणिज्जं तहामोहं, आउकम्म तहेव य |२| नामकम्म च गोय च, अतरायं तहेव य । एवमेयाइ कम्माई, अट्ठेव उ समास | ३| नाणावरणं पचविहं, सुयं ग्राभिणिवोहियं । श्रोहिनाण च तइय, मणनाणं च केवलं |४| निद्दा तहेव पयला, निद्दानिद्दा पयलपयला य । तत्तो य थी गिद्धी उ, पचमा होइ नायव्वा | ५ | चक्खुम चक्खुग्रो हिस्स, दसणे केवले य श्रावरणे । एवं तु नवविगप्पं, नायव्वं दंसणावरण | ६ | वेयणीयपि यदुविहं, सायमसाय च आहियं । सायरस उ बहू भेया, एमेव सायस्सवि |७| मोहणिज्जपि दुविहं, दंसणे चरणे तहा । दसणे तिविहं वृत्तं चरणे दुविहं भवे |८| सम्मत्तं चैव मिच्छत्त, सम्मामिच्छत्तमेव य । एयान तिन्नि पयडीनो, मोहणिज्जस्स दंसणे | ६ | " Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २०६ चरितमोहणं कम्म, दुविह तु वियाहिय । कसायमोहणिज्ज तु, नोकसाय तहेव य | १०| सोलस विहभेएण, कम्मं तु कसायज । सत्तविह नवविहं वा, कम्म च नोकसायज | ११ | नेरइय-तिरिक्खाउ, मणुस्साउं तहेव य । देवांउयं चउत्थं तु, ग्राउं कम्मं चउव्विहं | १२ | 'नामं कम्मं तु दुविह, सुहमसुह चाहियं । सुहस्स उ बहू भेया, एमेव असुहस्स - वि | १३| गोय कम्म दुविहं, उच्च नीयं च आहियं । उच्च ग्रटूविहं होइ, एव नीय-पि आहिय | १४| दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा । पचविहमतरायं, समासेण वियाहिय | १५ | एयाओ मूलपयडीओ, उत्तराओ य श्राहिया । पसग्ग खेत्तकाले य, भाव च उत्तर सुण | १६ | सव्वेसि चैव कम्माण, पएसग्गमणतय । गण्ठियसत्ताईयं, तो सिद्धाण आहियं । १७ सव्वजीवाण कम्म तु, संगहे छद्दिसागय । सव्वेसु विपएसेसु, सव्वं सव्वेण बद्धगं | १८ | उदहीस रिस-नामाण, तीसई कोडिकोडीओ । उक्कोसिया ठिई होइ तो मुहुत्तं जहन्निया | १६ | आवरणिज्जाण दुण्हपि, वेयणिज्जे तहेव य । अंतराए य कम्मम्मि ठिई एसा वियाहिया | २०| उदहीस रिस-न/माण, सत्तरि कोडिकोडीओ । } Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३४ मोहणिज्जस्स उक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥२१॥ तेत्तीससागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया। ठिई उ पाउकम्मस्स, अतोमुहुत्त जहनिया ।२२। उदहीसरिस-नामाण, वीसई कोडिकोडीयो। नामगोत्ताण उक्कोसा, अट्ठ मुहुत्त जहनिया ॥२३॥ सिद्धाणणंतभागो य, अणुभागा हवंति उ। सव्वेसु वि पएसग्गं, सव्वजीवे अइच्छियं ।२४। तम्हा एएसि कम्माण, अणुभागा वियाणिया । एएसि संवरे चेव, खवणे य जए बुहो ।२५। ॥ कम्मप्पयडी णाम अज्झयण सम्मत्त ॥३३॥ ॥ चोत्तीसइमं लेसज्झयणं ॥३४॥ लेसज्झयण पवक्खामि, आणुवि जहक्कम । छण्हं पि कम्मलेसाण, अणुभावे सुणेह मे ।। नामाइ वण्ण-रस-गंध-फास-परिणाम-लक्खण । ठाण ठिइ गई चाउ, लेसाण तु सुणेह मे ॥२॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेस्सा य छट्ठा य, नामाइ तु जहक्कम ।३। जीमयनिद्धसंकासा, गवलग्गिसन्निभा। खंजजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णयो।४। नीलांसोगसकासा, चासपिच्छसमप्पभा। वेरुलियनिद्धसकासा, नीललेसा उ वण्णो ।५। अयसीपुप्फसकासा, कोइलच्छदसन्निभा । Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २११ पारेवयगीवनिभा, काऊलेसा उ वण्णपो।। हिंगुलयधाउसंकासा, तरुणाइच्चसन्निभा। सुयतुडपईवनिभा, तेऊलेसा उ वण्णो ।७। हरियालभेयसकासा, हलिहाभेयसमप्पभा। सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णमो।। सखककुंदसंकासा, खीरपूरसमप्पभा । रययहारसकासा, सुक्कलेसा उ वण्णो ।। जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा। एत्तोवि अणतगुणो, रसो य किण्हाए नायव्वो ।१०। जह तिगडुयस्स य रसो,तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा। एत्तोवि अणतगुणो, रसो उ नीलाए नायव्वो ।११॥ जह तरुणअम्बगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ। एत्तोवि अणतगुणो, रसो उ काऊए नायब्वो।१२। जह परिणयम्बगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसो। एत्तोवि अणतगुणो, रसो उ तेऊए नायब्वो।१३। वरवारुणीए व रसो, विविहाण व पासवाण जारिसओ। महुमेरगस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएण ।१४। खज्जरमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्कररसो वा। एत्तोवि अणतगुणो, रसो उ सुक्काए नायव्वो ॥१५॥ जह गोमडस्स गधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तोवि अणतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाण ।१६। जह सुरहिकुसुमगधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं 1 एत्तोवि अणंतगुणो, पसत्यलेसाण तिण्ह-पि ॥१७॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३४ जह करगयस्स फासो, गोजिब्भाए य सागपत्ताण । एत्तोवि प्रणतगुणो, लेसाण अप्पसत्थाणं ।१८। जह बुरस्स व फासो, नवणीयस्स व सिरीसकुसुमाण। एत्तोवि अणतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हं पि ॥१६॥ तिविहो व नवविहो वा. सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा। दुसरो तेयालो वा, लेसाण होइ परिणामो ।२०। पंचासवप्पमत्तो तीहिं अगुत्तो छसु अविरो य । तिव्वारम्भपरिणतो, खहो साहसिओ नरो ।२१॥ निद्धधसपरिणामो, निस्संसो अजिइदियो । एयजोग समाउत्तो, 'किण्हलेस' तु परिणमे ।२२। इस्सा अमरिस अतवो, अविज्जमाया अहीरिया। गेही परोसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए सायगवेसए य ।२३। प्रारम्भाप्रो अविरो,खुद्दो साहस्सियो नरो। एयजोगसमाउत्तो, 'नीललेस' तु परिणमे ।२४। वके वकसमायारे, नियडिल्ले अणुज्जए । पलिउचगोवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए।२५॥ उप्फालग दुट्टवाई य, तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तो, 'काऊलेस' तु परिणमे ।२६। नीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दते, जोगवं उवहाणवं ।२७। पियधम्मे दधम्मे अवज्जभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो, 'तेऊलेस' तु परिणमे १२८॥ पयणकोहमाणे य, मायालोभे य पयणुए । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २१३ . पसंतचित्ते दंतप्पा, जोगव उवहाणवं ।२६। तहा पयणुवाई य, उवसते जिइदिए। , एयजोगसमाउत्तो, 'पम्हलेस' तु परिणमे ।३०। अट्टरुदाणि दज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए। पसतचित्ते दतप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ।३१॥ सरागे वीयरागे वा, उवसते जिइदिए । एयजोगसमाउत्तो, 'सुक्कलेस' तु परिणमे ।३२॥ असखिज्जाणोंस प्पिणीण, उस्स प्पिणीण जे समया । संखाईया लोगा, लेसाण हवंति ठाणाई।३३। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा 'किंण्हलेसाए' ।३४। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंख-भाग-मब्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा 'नीललेसाए' ३५॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तिण्णुदही पलियमसख-भाग-मब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा 'काउलेसाए' १३६। मुहुत्तद्ध तु जहन्ना, दोण्णुदही पलियमसख-भाग-मन्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायबा 'तेउलेसाए' ।३७। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही होइ मुहुत्तमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा 'पम्हलेसाए' ३८। मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा 'सुक्कलेसाए' ।३६। एसा खलु लेसाण, पोहेण ठिई वणिया होइ। चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिइ तु वोच्छामि ४०। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३४ दस वाससहस्साइं, काउए ठिई जहन्नया होइ । तिण्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ४१। तिण्णुदही पलिमोवम, असंखभागो जहन्नेण नीलठिई। दसउदही पलिग्रोवम, असंखभाग च उक्कोसा ।४२। दसउदही पलिग्रोवम, असखभाग जहन्निया होइ । तेत्तीससागराइ, उक्कोसा होइ किण्हाए ।४३॥ एसा नेरइयाण, लेसाण ठिई उ वणिया होइ । तेण पर वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाण |४४। अतोमुत्तमद्ध, लेसाण जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराणं वा, वज्जित्ता केवलं लेस ।४५॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, उक्कोसा होइ पुवकोडीयो। नवहिं वरिसे हिं ऊणा, नायव्वा सुक्कलेसाए ।४६। एसा तिरियनराण, लेसाण ठिई उ वणिया होइ । तेण पर वोच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाण ।४७। दस वाससहस्साइं, किण्हाए ठिई जहनिया होइ। पलियमसंखिज्जइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए ।४८॥ जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमभहिया । जहन्नेण नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसा ॥४६॥ जा नीलाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमन्भहिया। जहन्नेण काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ।५०। तेण परं वोच्छामि, तेऊ लेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइ वाणमंतर, जोइस-वेमाणियाणं च १५१॥ पलिओवमं जहन्नं, उक्कोसा सागरा उ दुन्नहिया । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २१५ पलियमसंखेज्जेणं, होइ भागेण तेऊए । ५२| दस वाससहस्साइ, तेऊए ठिई जहन्निया होइ । दुन्नुदही पलिश्रवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥ ५३ ॥ जातेऊए ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमन्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मूहुत्ताहियाइ उक्कोसा | ५४ | जा पहाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जन्त्रेण सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमब्भहिया । ५५ । किन्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेस्साओ । एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गई उववज्जई | ५६। तेऊ, पम्हा, सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई |५७| लेस्साहि सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववालो, परे भवे अस्थि जीवस्स १५८ | लेस्साहि सव्वाहि, चरिमे समयम्मि परिणयाहि तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे प्रत्थि जीवस्स | ५६ | तमुहुत्तम्मि गए. अतमुहुत्तम्मि सेस चेव । लेस्साहि परिणयाहि, जीवा गच्छंति परलोयं ॥६०॥ तम्हा एयासि लेस्साण, आणुभावे वियाणिया । अप्पसत्थान वज्जित्ता, पसत्याश्रोऽहिट्ठिए मुशी । ६१ । || लेसज्झयण सम्मत्त ॥ ३४ ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ उत्तराध्ययन ० ३५ || पंचतीसइमं श्रणगारज्झयणं ||३५|| सुणेह मे एगग्गमणा, मग्गं वृद्धेहि देसियं । जमायरतो भिक्खू, दुक्खातकरे भवे |१| गिहवास परिच्वज्ज, पवज्जामस्सिए मृणी । इमे संगे वियाणिज्जा, जेहि सज्जति माणवा १२ | तहेव हिंसं ग्रलियं, चोज्जं श्रवभसेवणं । इच्छा - कामं च लोभ च, सजत्रो परिवज्जए |३| मणोहर चित्तघर, मल्लधूवेण वासियं । सकवार्ड पण्डुरुल्लोय, मणसा वि न पत्थए 16 इदियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसम्म उवस्सए । दुक्कराई निवारेउं कामरागविवढणे | ५ | 2 सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगयो । परिक्के परकडे वा, वासं तत्थाभिरोयए | ६ | फासुम्मि प्रणाबाहे, इत्यीहि अभिद्दए । तत्थ सकप्पए वासं, भिक्खू परमसजए १७) न सय गिहाई कुव्विज्जा, व अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारंभ, भूयाण दिस्सए वहो |5| तसाण थावराण च, सुहुमाण बादराण य । तम्हा गिहसमारंभं, सजो परिवज्जए | तव भत्तपाणे, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयट्ठाए, न पए न पयावए । १० जलधन्ननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २१७ हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए ।११। विसप्पे सव्वनो धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोइं न दीवए ।१२। हिरण्ण जायरूव च, मणसा वि न पत्थए। समलेठुकचणे भिक्खू , विरए कयविक्कए ।१३। किणतो कइयो होइ, विक्किणतो य वाणिो। कयविक्कयम्मि वट्टतो, भिक्खू न भवइ तारिसो ।१४। भिक्खियन्वं न केयन्वं, भिक्खुणा भिक्खुवत्तिणा। कयविक्कयो महादोसो, भिक्खवत्ती सुहावहा ।१५॥ समुयाण उछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिदिय । लाभालाभम्मि सतुझें, पिण्डवाय चरे मुणी ।१६। अलोले न रसे गिद्धे, जिब्भादंते अमच्छिए। न रसट्ठाए भुजिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी ।१७। अच्चण रयण चेव, वंदण पूयण तहा। इड्ढीसक्कारसम्माण, मणसा-वि न पत्थए ।१८। सुक्कज्झाण जियाएज्जा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरेज्जा, जाव कालस्स पज्जयो ।१९। निज्जहिऊण आहार, कालधम्मे उवट्ठिए।। जहिऊण माणुस बोदि, पहू दुक्खा विमुच्चई ।२०। निमम्मे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो। संपत्तो केवल नाणं, सासय परिणिन्वुए ।२१॥ ॥ अणगारज्झयण सम्मत्त ॥३५॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 २१८ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ ॥ जीवाजीव विभत्तो णामं छत्तीसइमं प्रज्झयणं ॥ ३६ ॥ जीवाजीवविभत्ति, सुणेह मे एगमणा इो । जं जाणिऊण भिक्खू, सम्म जयइ सजमे |१| जीवा चेव ग्रजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीवदेसमागासे, अलोगे से वियाहिए |२| दव्व खेत्तो चेव, कालश्री भावग्रो तहा । परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य १३ | रूविणो चेव रूवी य, अजीवा दुविहा भवे । अरुवी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउत्रिहा |४| धम्मत्किाए त, तप्पएसे य ग्राहिए । अहम्मे तस्स देसे य, तप्पएसे य नाहिए |५| आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए । श्रद्धासमए चेव, ग्ररूवी दसहा भवे | ६ | धमाधम्मे य दो चेव, लोगमित्ता वियाहिया । लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए |७| धम्माधम्मागासा, तिन्नि वि एए प्रणाइया । ग्रज्जवसिया चेव, सम्बद्ध तु वियाहिया || समए वि सतइ पप्प, एवमेव वियाहिए । • एस पप्प साईए, सपज्जवसिएवि यहा खधा य खधदेसा य, तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य बोद्धव्वा, रूविणो य चउविवहा | १०| एगत्तेण पुहत्तेण, खधा य परमाणुय । Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २१६ लोगेगदेसे लोए य, भइयव्वा ते उ खेत्तनो |११| सुहमा सव्वलांगम्मि, लोग देसे य बायरा | इत्तो कालविभाग तु, तेसि वच्छ चउव्विहं । १२ । सतइ पप्प तेऽणाई, अपज्जवसियावि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य | १३ | असखकालमुक्कोस, एक्क समय जहन्नय । अजीवाण य रूवीण, ठिई एसा वियाहिया | १४ | प्रणतकालमुक्कोस, एक्कं समय जहन्नय । अजीवाण य रूवीण, अंतरेयं वियाहियं । १५३ वण्णओ गधओ चेव, रसओ फास तहा । सठाण य विने, परिणामो तेसि पंचहा | १६ | वण्णओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया । किण्हा नीला य लोहिया, हलिद्दा सुक्किला तहा | १७| गंध परिणया जे उ, दुविहा ते वियाहिया । सुभिगंध परिणामा, दुभिगंधा तहेव य | १८ | रसश्रो परिणया जे उ, पचहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा |१६| फास परिणया जे उ अट्टहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउआ चेव, गरुया लहुया तहा | २०| सीया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इय फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया | २१ | सठाणों परिणया जे उ, पचहा ते पकित्तिया । परिमण्डला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया । २२| 1 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ वण्णयो जे भवे किण्हे, भइए से उ गधयो। रसग्रो फासो चेव, भइए सठाणो वि य ।२३। वण्णग्रो जे भवे नीले, भइए से उ गंधयो। रसग्रो फासयो चेव, भइए संठाणयो वि य ।२४। वण्णयो लोहिए जे उ, भइए से उ गधग्रो । रसग्रो फामग्रो चेव, भइए सठाणो वि य ।२५॥ वण्णो पीयए जे उ, भइए से उ गंधयो। रसग्रो फासओ चेव, भइए सठाणयो वि य ।२६। वण्णयो सुविकले जे उ, भइए से उ गधनो। रसओ फासयो चेव, भइए सठाणो वि य ।२७। गंधयो जे भवे सुभी, भइए से उ, वण्णयो। रसग्रो फासयो चेव, भइए संठाणो वि य ।२८। गंधयो जे भवे दुव्भी, भइए से उ वण्णो । रसग्रो फासयो चेव, भइए सठाणयो वि य ।२६॥ रसो तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णयो। गंधयो फासयो चेव, भइए सठाणयो वि य ।३०। रसो कडुए जे उ, भइए से उ वणयो । गधग्रो फासयो चेव, भइए सठाणो वि य।३१॥ रसो कसाए जे उ, भइए से उ वण्णो । गंधयो फासयो चेव, भइए संठाणो वि य ।३२। रसग्रो अम्विले जे उ, भइए से उ वण्णो । गंधग्रो फासओ चेव, भइए सठाणनो वि य ।३३। रसो महुरए जे उ, भइए से उ वण्णप्रो। Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २२१ गंधरो फासो चेव, भइए सठाणो वि य ।३४। फासो कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णो । गधयो रसग्रो चेव, भइए सठाणगो वि य ।३५॥ फासो मउए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधओ रसो चेव, भइए सठाणो वि य ।३६। फासो गुरुए जे उ, भइए से उ वण्णयो। गंधो रसओ चेव, भइए सठाणो वि य ।३७। फासो लहुए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधयो रसो चेव, भइए सठाणो वि य ।३८। फासो सीयए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधो रसो चेव, भइए सठाणयो वि य ।३६ फासो उहए जे उ, भइए से उ वण्णो । गधो रसो चेव, भइए संठाणो वि य ।४०॥ फासो निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णयो। गधो रसमो चेव, भइए सठाणो वि य ।४१॥ फासो लुक्खए जे उ, भइए से उ वण्णो । गंधो रसो चेव, भइए संठाणो वि य ।४२॥ परिमडलस ठाणे, भइए से उ वण्णो । गधयो रसो चेव, भइए फासो वि य ।४३। सठाणो भवे वट्टे, भइए से उ वण्णयो। गधो रसओ चेव, भइए से फासओ वि य ।४४। सठाणो भवे तसे, भइए से उ वण्णो । गधयो रसग्रो चेव, भइए से फासो वि य ।४५॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३६ सठाणयो जे चउरसे, भइए से उवण्णओ। गंधमो रसश्रो चेव, भइए फासो वि य ।४६॥ जे पाययसठाणे, भइए से उ वण्णयो। गधनो रसनो चेव, भइए फासयो वि य ।४७। एसा अजीवविभत्ती, समासेण वियाहिया। इत्तो जीवविभत्ति, वृच्छामि अणुपुव्वसो ।४८ ससारत्या य सिद्धा य, दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धा णेगविहा वुत्ता, तं मे कित्तययो सुण ।४६। इत्थीपुरीस सिद्धा य, तहेव य नपुसगा। सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिगे तहेव य १५० उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य । उड्ढं अहे य तिरिय च, समुद्दम्मि जलम्मि य ।५॥ दस य नपुसएमु, दीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिझई १५२। चत्तारि य गिहलिगे, अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई १५३। उक्कोसोगाहणाए य, सिज्झते जुगव दुवे । चत्तारि जहन्नाए, मज्झे अठ्ठत्तरं सय १५.४१ चउरुड्डलोए य दुवे समुद्दे, तो जले वीसमहे तहेव य । सयं च अठ्ठत्तरं तिरियलोए, ममएणेगेण सिज्झई धुवं। कहिं पडिह्या सिद्धा, कहिं सिद्धा पइटिया । कहिं वोदि चइत्ताण, कत्य गंतूण सिज्झई १५६) अलोए पडिया सिद्धा, लोयग्गे य पइडिया । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २२३ इहं बोदि चइत्ताणं, तत्य गतूण सिज्झई १५७। बारसहिं जोयणेहि, सव्वट्ठस्सुवरि भवे । ईसिपब्भारनामा उ, पुढवी छत्तसंठिया ।५८। पणयालसयसहस्सा, जोयणाण तु आयया । तावइय चेव वित्थिण्णा, तिगुणो तस्सेव परिरयो ।५६। अट्ठजोयणबाहल्ला, सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायती चरिमते,मच्छिपत्ताउ तणुयरी ।६०। अज्जुणसुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेण । उत्ताणगच्छत्तगसठिया य, भणिया जिणवरेहिं ।६१॥ सखककुंदसकासा, पण्डुरा निम्मला सुहा । सोयाए जोयणे तत्तो, लोयतो उ वियाहियो ।६२॥ जोयणस्स उ जो तत्थ, कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स छन्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ।६३१ तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गम्मि पइट्ठिया । भवप्पवचओ मुक्का, सिद्धि वरगइ गया ।६४। उस्सेहो जेसि जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणो तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥६५॥ एगत्तेण साईया, अपज्जवसियावि य । पुहत्तेण अणाइया, अपज्जवसियावि य ।६६। अरूविणो जीवघणा, नाणदसणसन्निया । अउलं सुहं सपन्ना, उवमा जस्स नत्थि उ ।६७। लोगेगदेसे ते सव्वे, नाणदंसणसन्निया। संसारपारनित्यिण्णा, सिद्धि वरगई गया ।६८। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ संसारत्या उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चैत्र, थावरा तिविहा तहि । ६६ पुढवी ग्राउ जीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा, तेसि भेए सुणेह मे ॥७०॥ दुविहा पुढवी जीवा य, मुहुमा वायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ॥ ७१ ॥ वायरा जे उ पज्जना, दुविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य बोधव्वा, सण्हा सत्तविहा तहि ॥७२॥ किण्हा नीला य रुहिरा य हालिद्दा सुविकला तहा । पण्डुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसई विहा ॥७३॥ पुढवी य सक्करा वाल्या य, उवले सिला य लोणूसे । अय-तम्ब तय सीसग, रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥७४ | हरियाले हिंगुलुए, मणोसिता सासगजण पवाले । ग्रन्भपडलव्भवालय, वायरकाए मणिविहाणे । ७५ । गोमेज्जए य रुयगे, के फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय-मसारगल्ले, भुयमोयग इंदनीले य ॥७६॥ चदण- गेरुय हसगव्भे, पुलए सोगधिए य बोधव्वे । चंदप्पहवेरुलिए, जलकंते सूरकते य ॥७७॥ एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहिया । एग विहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया |७८ सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोग देसे य वायरा । इत्तो कालविभाग तु, वुच्छ तेसि चउव्विहं । ७६६ संतइ पप्पणाईया, ग्रपज्जवसिया वि य । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३६ एएसिं वण्णओ चेव, गंधयो रसफासो। सठाणादेसमो वावि, विहाणाइ सहस्ससो ।१२। दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो 1६३१ वायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिंया । साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ।१४। पत्तेगसरीरालो, गहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा १६५। वलय पव्वगा कुहणा, जलरुहा प्रोसही तहा। हरियकाया उ वोद्धव्वा, पत्तेगाइ वियाहिया ।६६। सहारणसरीरामो, णेगहा ते पकित्तिया । आलुए मलए चेव, सिंगवेरे तहेव य ।६७। हरिली सिरिलि सस्सिरिली, जावई केयकदली। पलण्डु लसणकदे य, कदली य कुहुवए ।६८। लोहिणी हूयथी हूय, कुहणा य तहेव य । कण्हे य वज्जकदे य, कदे सूरणए तहा ।६६। अस्सकण्णी य वोद्धन्वा, सीहण्णी तहेव य । मुसुण्ढी य हलिहा य, णेगहा एवमायओ ।१००। एगविहमणाणत्ता, मुहमा तत्थ विग्राहिया । सुहमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा १०१॥ सतइ पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइं पड़च्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।१०२। दस चेव सहस्साई, वासाणक्कोसिया भवे । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २२७ वणस्सईण आउ तु, अंतोमुत्त जहन्निया ।१०३। अणतकालमुक्कोस, अतोमुहुत्त जहन्नयं । कायठिई पणगाण, त कायं तु अमुचयो ।१०४। असंखकालमुक्कोसं, अतोमुहुत्त जहन्नय । विजढम्मि सए काए, पणगजीवाण अतरं ।१०५॥ एएसि वण्णो चेव, गधो रसफासो । सठाणादेसमो वावि,विहाणाई सहस्ससो ।१०६। इच्चेए थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया । इत्तो उ तसे तिविहे, वृच्छामि अणुपुव्वसो ।१०७१ तेऊ वाऊ य बोद्धव्वा, उराला य तसा तहा। इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ।१०८॥ दुविहा तेऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ।१०९। बायरा जे उ पज्जत्ता, णेगहा ते वियाहिया । इंगाले मुम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य ।११०॥ उक्का विज्जू य बोधव्वा, गहा एवमायनो । एगविहमणाणत्ता, सुहुमा ते वियाहिया ।१११॥ सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभाग तु, तेसिं वुच्छं चउन्विहं ।११२॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।११३। तिण्णेव अहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई तेऊणं, अतोमुहत्तं जहन्निया ।११४। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २२७ वणस्सईण आउ तु, अंतोमुहुत्त जहन्निया ।१०३। अणतकालमुक्कोस, अतोमुत्त जहन्नयं । कायठिई पणगाण, त कायं तु अमुचओ ।१०४। असंखकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नय । विजढम्मि सए काए, पणगजीवाण अतरं ।१०। एएसि वण्णो चेव, गधो रसफासयो । संठाणादेसओ वावि,विहाणाई सहस्ससो ।१०६। इच्चेए थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया ।। इत्तो उ तसे तिविहे, वृच्छामि अणुपुव्वसो।१०७। तेऊ वाऊ य वोद्धव्वा, उराला य तसा तहा। इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१०॥ दुविहा तेऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ११०९। बायरा जे उ पज्जत्ता, णेगहा ते वियाहिया । इंगाले मम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य ।११०॥ उक्का विज्जू य बोधवा, णेगहा एवमायो । एगविहमणाणत्ता, सुहमा ते वियाहिया ।१११॥ सुहमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभाग तु, तेसिं वुच्छं चउन्विहं । ११२॥ सतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य 1११३। तिण्णेव अहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया। पाउठिई तेऊणं, अंतोमुहुत्त जहन्निया ।११४॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ उत्तराध्ययन सूत्र म ३६ असंखकालमुक्कोस, अतोमुहत्तं जहनयं । कायठिई तेऊण, त कायं तु अमुचयो ।११५। अणतकालमुक्कोस. अतोमुहुत्त जहन्नयं । विजढम्मि सए काए; तेऊ जीवाण अतर ।११६॥ एएसि वण्णनो चेव, गवयो रसफासो । सठाणादेसमो वावि, विहाणाई सहस्ससो ।११७। दुविहा वाउजीवा उ, सुहुमा वायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ।११८॥ वायरा जे उ पज्जत्ता, पचहा ते पकित्तिया। उक्कलिया मण्डलिया, घणगुजा सुद्धवाया य १११६) संवट्टगवाया य, णेगहा एवमाययो। एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ।१२० सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य वायरा । इत्तो कालविभागं तु, तेमि वच्छं चउविहं । १२१॥ संतइ पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।१२२। तिण्णेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई वाऊण, अतोमुहुत्त जहनिया ।१२३। असखकालमुक्कोसं, अतोमुहत्तं जहन्नय । कायठिई वाऊण, तं काय तु अमुचो ।१२४॥ अणतकालमुक्कोस, अंतोमुत्तं जहनय । विजढम्म सए काए, वाऊजीवाण अंतरं ।१२५॥ एएसिं वण्णयो चेव, गंधयो रसफासयो । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २२६ संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ।१२६। उराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया। बेइदिय-तेइदिय, चउरो पचिदिया चेव ।१२७। बेइंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे।१२८॥ किमिणो सोमगला चेव, अलसा माइवाया। वासीमुहा य सिप्पिया, संखा सखणगा तहा ।१२६। पल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा। जलूगा जालगा चेव, चदणा य तहेव य ।१३०॥ इइ बेइदिया एए,णेगहा एवमायो । लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ।१३१॥ सतइ पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य। वासाइ बारसा चेव, उक्कोसेण वियाहिया। बेइदिय आउठिई, अंतोमुत्त जहन्निया 1१३३॥ संखिज्जकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्त जहन्नय । बेइदियकायठिई, तं काय तु अमुचो ।१३४। अणतकालमुक्कोसं, अतोमुत्त जहन्नय । बेइदियजीवाण, अतरं च वियाहियं ।१३५॥ एएसि वण्णो चेव, गधो रसफासयो। संठाणादेसमो वावि, विहाणाई सहस्ससो ।१३६। तेइदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे। . Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ कुंथुपिवीलिउड्डसा, उक्कलुद्देहिया तहा। तणहारकट्ठहारा य, मालूगा पत्तहारगा ।१३८। कप्पासट्ठिम्मिजाया, तिदुगा तउसमिजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इदगाइया ।१३६। इंदगोवगमाईया, णेगहा एवमाययो । लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया ।१४०। सतइ पप्प णाईया, अपज्जवसियावि य । ठिइं पड़च्च साईया, सपज्जवसियावि य ।१४१॥ एगणपण्णहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइदियाउठिई, अंतोमहुत्त जहन्निया ।१४२। संखिज्जकालमुक्कोस, अतोमुहुत्त जहन्नय । तेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुचो ।१४३। अणतकालमुक्कोस, अंतो मुहुत्तं जहन्नयं । तेइदियजीवाण, अंतरं च वियाहिय ११४४। एएसि वण्णा चंव, गधयो रसफासयो। संठाणादेसमो वावि, विहाणाइ सहस्ससो।१४५ चरिदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसि भए सुणेह मे ११४६। अंधिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीडपयंगे य, ढिकुणे कुंकणे तहा ।१४७। कुक्कूडे सिंगिरीडी य, नदावत्ते य विच्छए । डोले भिगिरीडी य, विरिली अच्छिवेहए ।१४८। अच्छिले माहले अच्छिरोडए,विचित्ते चित्तपत्तए । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २३१ श्रोहिजलिया जलकारी य, नीयया तंबगाइया | १४६ | इय चउरिदिया एए, गहा एवमायो । लोगेगसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । १५० । संत पप्प - णाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य । १५१ । छच्चेव य मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया | चउरिदियप्राउठिई, अंतोमुहुत्त जहन्निया । १५२। सखिज्जकालमुक्कोस, अतोर्मुहुत्त जहन्नय । चउरिदियकायठिई, तं काय तु प्रमुच । १५३। प्रणतकालमुक्कोस, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए का, अंतर च वियाहियं । १५४ । एएसि वण्ण चेव, गध रसफास । सठाणादेस वावि, विहाणाई सहस्ससो । १५५ । पचिदिया उ जे जीवा, चउविहा ते वियाहिया । नेरइया तिरिक्खा य, मणुया देवा य ग्राहिया । १५६ । नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सत्तसु भवे । रयणाभ- सक्कराभा, वालुयाभा य आहिया । १५७। पकाभा धूमाभा, तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया । १५८। लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे उ वियाहिया । इत्तो कालविभाग तु, तेसि वोच्छ चउव्विहं । १५६। सतइ पप्प - णाईया, अपज्जवसियावि य । , । * 'लोगस्स एगवेसमि, ते सब्वे परिकित्तिया' पाठान्तर । 1 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।१६०। सागरोवममेगंतु, उक्कोसेण वियाहिया। पढमाए जहन्नण दसवाससहस्सिया ।१६१॥ तिपणेव सागरा ऊ, उक्कोसेण विया हिया । दोच्चाए जहन्नेण, एगं तु सागरोवम ।१६२१ सत्तेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहन्नेण तिण्णेव सागरोवमा ।१६३। दससागरोबमाऊ, उक्कोसेण वियाहिया। च उत्थीए जहनेण, सत्तेव सागरोवमा १६४) सत्तरस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया। पचमाए जहन्नेण, दस चेव सागरोवमा ।१६५॥ बावीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीए जहन्नेण, सत्तरस सागरोवमा ।१६६। तेत्तीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहनेण, वावीस सागरोवमा ।१६७। जा चेव य पाउठिई, नेरइयाण वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नुक्कोसिया भवे ।१६८। अणतकालमुक्कास, अंतीमुहुत्त जहन्नय। विजढम्मि सए काए, नेरइयाण तु अंतर ।१६९। एएसि वण्णनो चेव, गधो रसफासो। सठाणादेसो वावि, विहाणाई सहस्ससो ।१७०। पचदियतिरिक्वायो, दुविहा ते वियाहिया । समच्छिमतिरिक्खायो, गभवतिया तहा ।१७११ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २३३ दुविहा ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा । नहयरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुणेह मे ।१७२। मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य बोधव्दा, पचहा जलयराहिया ।१७३। लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो काल विभागं तु, तेसिं वुच्छ चउन्विहं ।१७४। सतइ पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।१७५॥ एगा य पुवकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । पाउठिई जलयराण, अतोमहत्तं जहन्निया ।१७६। पुवकोडिपुहत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया। कायठिई जलयराण, अतोमुहुत्तं जहन्नयं ।१७७। अणतकालमुक्कोस, अतोमुहुत्त जहन्नय । विजढम्मि सए काए, जलयरायण अतरं ।१७८। चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा, ते मे कित्तयो सुण ।१७६। एगखुरा दुखुरा चेव, गण्डीपय सणहप्पया। हयमाइ गोणमाइ, गयमाइ-सीहमाइणो 1१८०। भोरग परिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे। गोहाई अहिमाई य, एक्केक्काऽणेगहा भवे ।१८१॥ लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया। एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउन्विहं ।१८२॥ सतइ पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ उत्तराध्ययन म० ३६ ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ।१८३। पलिनोवमाइ तिण्णि उ, उक्कोसेण वियाहिया । पाउठिई थलयराण, अतो महत्त जहनिया |१८४। । पुन्वकोडिपुत्तेण, अतोमुहुत्त जहन्निया । कायठिई थलयराण, अंतर तेसिम भवे ।१८५॥ अणतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, थलयराण तु अतरं ।१८६। चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य वोघव्वा, पक्खिणो य च उविवहा ।१८७ लोगेगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया। . इत्तो कालविभाग तु, तेसिं वोच्छं चउविवह ॥१८॥ संतइ पप्प-णाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।१८६। पलिग्रोवमस्स भागो, असंखेज्जइमो भवे । पाउठिई खहयराण अतोमुहुत्त जहन्निया ॥१६॥ मसंखभागो पलियस्स. उक्कोसेण उ साहिया। पुवकोडीपृहुत्तेण, अतोमुत्त जहन्निया ।१६१॥ कायठिई खहयराण अतर तेसिमं भवे । अणतकालमुक्कोस, अंतोमहुत्त जहन्नयं ।१९२। एएसि वण्णयो चेव, गधो रसफासो । संठाणादेसमो वावि, विहाणाई सहस्ससो ।१९३। मणुया दुविह भेया उ, ते मे कित्तयो सुण । संसुच्छिमा य मणुया, गम्भवक्कतिया तहा ।१९।। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २३५ गब्भवक्कतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । कम्म कम्मभूमा य अतरद्दीवया तहा । १६५ पन्नरस तीसविहा, भेया अट्ठवीसइं । सखा उ कमसो तेसिं, इइ एसा वियाहिया | १६६ | समुच्छिमाण एसेव, भेस्रो होइ वियाहियो । लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वेवि वियाहिया । १६७। संतइ पप्प - णाईया, अप्पज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य । १६८ । पलिवमाउ तिन्निवि, उक्कोसेण वियाहिया । } उठिई मणुयाण, अतोमुहुत्त जहन्निया । १६६। पलिप्रोवमाइ तिणि उ, उक्कोसेण वियाहिया । पुव्वको डिपुहुत्ते, अंतोमुहुत्तं जहन्निया |२००| कायठिई मणुयाण, अंतर तेसिम भवे । अणतकालमुक्कोस, अंतोमुहुत्त जहन्नयं । २०१ एएसि वण्णओ चेव, गधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो । २०२। देवा चउव्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयओ सुण । भोमिज्ज-वाणमंतर-जोइस वेमाणिया तहा | २०३ | दसहा उ भवणवासी, अट्टहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा | २०४ | असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया | दीवोदहि दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो । २०५ पिसायभूया जक्खा य, रक्खसा किन्नरा किंपुरिसा । Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ महोरगा य गधब्बा, अट्टविहा वाणमंतरा ।२०६। चदा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा । ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया ।२०७। वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य वोधव्वा, कप्पाईया तहेव य ।२०८। कप्पावगा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा । सणकुमारमाहिंदा, वंभलोगा य लंतगा।२०६। महासुक्का सहस्सारा, पाणया पाणया तहा। प्रारणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ।२१०। कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । गेविज्जाणुत्तरा चेव, गेविज्जा नवविहा तहिं ।२११॥ हेट्ठिमा-हेट्ठिमा चेव, हेछिमामज्झिमा तहा। हेट्रिमाउवरिमा चेव, मज्झिमाहेद्विमा तहा ।२१२। मज्झिमा-मज्झिमा चेव, मज्झिमा-उवरिमा तहा । उवरिमा-हेट्टिमा चेव, उवरिमा-मज्झिमा तहा ।२१३१ उरिमा-उवरिमा चेव, इय गेविज्जगा सुरा । विजया वेजयता य, जयता अपराजिया ।२१४। सव्वत्थसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एए, णेगहा एवमायो ।२१५॥ लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वेवि वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, तेसि वच्छं चउन्विहं ।२१६॥ सतइं पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइ पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ।२१७१ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २३७ साहीयं सागरं एक्कं, उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्जाण जहन्त्रेण, दसवाससहस्सिया । २१८ | पलिनोवममेग तु, उक्कोसेण ठिई भवे । वतरण जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया | २१|| पलिनोवममेगं तु, वासलक्खेण साहिय । पलिश्रोवमट्टभागो, जोइसेसु जहन्निया | २२० दो चेव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया | सोहम्मम्म जहनेण, एगं च पलिश्रोवमं । २२१| सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्त्रेण, साहिय पविम । २२२ सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणकुमारे जहन्त्रेण, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥ २२३ ॥ साहिया सागरी सत्त, उक्कोसेण ठिई भवे । माहिदम्मि जहनेणं, साहियां दुन्नि सागरा ॥ २२४॥ दस चेव सागराई, उनकोसेण ठिई भवे । बम्भलोए जहन्नेणं, सत्त ऊ सागरोवमा | २२५| चउदस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । लंतगम्मि जहन्नेण, दस उ सागरोवमा | २२६ सत्तरस सागराइ, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्त्रेण, चोट्स, सागरोवमा | २२७ अट्ठारस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा । २२८ सागरा प्रउणवीस तु, उक्कोसेण ठिई भवे । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ D उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ ८ श्राणयम्मि जहन्त्रेण, द्वारस सागरोवमा | २२| वीसं तु सागराइ, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्त्रेण, सागरा ग्रउणवीसई | २३०१ सागरा इक्कवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । श्रारणम्मि जहन्त्रेण, वीसई सागरोवमा । २३१| वावीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्त्रेण, सागरा इक्कवीसई | २३२/ तेवीस सागराई, उक्कोण ठिई भवे । पढम्मि जहन्त्रेण, बावीस सागरोवमा | २३३ | चउवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । विइयम्मि जहन्त्रेणं, तेवीस सागरोवमा । २३४| पणवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । तइयम्मि जहनेण, चउवीस सागरोवमा | २३५| छव्वीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्त्रेण, सागरा पणवीसई | २३६ | सागरा सत्तवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । पंचमम्मि जहनेणं, सागरा उ छवीसइ | २३७ सागरा वीस तु, उक्कोसेण ठिई भवे । छट्टम्मि जहन्त्रेण, सागरा सत्तवीसई | २३८ । सागरा अउणतीस तु, उक्कोसेण ठिई भवे । सत्तमम्मि जहन्नेणं, सागरा अट्ठवीसई | २३ | तीसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अट्ठमम्मि जहन्नेणं, सागरा प्रउणतीसई | २४०/ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २३६ सागरा इक्कतीस तु, उक्कोसेण ठिई भवे । नवमम्मि जहन्नेण, तीसई सागरोवमा ।२४११ तेत्तीसा सागराइ, उक्कोसेण ठिई भवे । चउसुपि विजयाईसु, जहन्नेणेक्कत्तीसई ।२४२। अजहन्नमणुक्कोसा, तेत्तीस सागरोवमा । महाविमाणे सव्वळे, ठिई एसा वियाहिया ।२४३। जा चेव उ पाउठिई, देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहण्णुक्कोसिया भवे ।२४४। अणतकालमुक्कोस, अतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, देवाण हुज्ज प्रतरं ।२४५॥ एएसि वण्णो चेव, गधो रसफासओ। संठाणादेसमो वावि, विहाणाइ सहस्ससो।२४६। संसारत्था य सिद्धा य, इय जीवा वियाहिया । रूविणो चेवरूवी य,अजीवा दुविहा वि य ।२४७। अणतकालमुक्कोस, वासपुहुत्त जहन्नयं। . आणयाईणं कप्पाणं, गेविज्जाणं तु अतर ।२४८। संखिज्जसागरुक्कोसं, वासपुहुत्तं जहन्नय । अणुत्तराण य देवाण, अतरं तु वियाहिया ।२४६ । इय जीवमजीवे य, सोच्चा सद्दहिऊण य। सन्वनयाणमणुमए, रमेज्ज सजमे मुणी ।२५०॥ तो बहूणि वासाणि, सामण्णमणुपालिया। इमेण कम्मजोगेण, अप्पाण सलिहे मणी ।२५११ बारसेव उ वासाइ, सलेहुक्कोसिया भवे । Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० उत्तराध्ययन सूत्र अ ३६ संवच्छरमझिमिया, छम्मासा य जहन्निया ।२५२॥ पढमे वासच उक्कम्मि, विगई निजहण करे। विईए वासचउक्कम्मि, विचित्तं तु तव चरे ।२५३। एगतरमायाम, क्? संवच्छरे दुवे ।। तो संवच्छरद्धं तु, नाइविगिट्ठ तव चरे ।२५४। तमो सवच्छरद्ध तु, विगिळं तु तवं चरे। परिमिय चेव आयाम, तम्मि सवच्छरे करे ।२५५। कोडीसहियमायाम, कटु सवच्छरे मुणी । मासद्धमासिएण तु, आहारेण तव चरे ।२५६। कदप्पमाभियोगं च, किदिवसिय मोहमासुरुत्त च । एयाउ दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया होति ।२५७। मिच्छादसणरत्ता, मनियाणा उ हिंसगा। इय जे मरति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ।२५८। सम्मद्दसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा । इय जे मरति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही ।२५६। मिच्छादसणरत्ता, सनियाणा कण्हलेसमोगाढा । इय जे मरति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ।२६०) जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयण जे करेति भावेण । अमला असकिलिट्ठा, ते होति परित्तससारी १२६१॥ बालमरणाणि बहुसो, अकाममरणाणि चेव य वहूणि । मरिहति ते वराया, जिवयण जे न जाणति १२६२। बहुअागमविन्नाणा, समाहि उपायगा य गुणगाही । एएण कारणेण, अरिहा आलोयण सोउ ।२६३। Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २४१ कदप्पकुक्कुयाइं तह, सीलसहाव-हास विगहाई। विम्हावेतो य पर, कंदप्पं भावण कुणइ ।२६४१ मंता जोगं काउ, भईकम्मं च जे पउजति । साय-रस इड्डिहेउं, अभियोगं भावण कुणइ ।२६५। नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूण । माई अवण्णवाई, किग्विसिय भावण कुणई ।२६६। अणुबद्धरोसपसरो, तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवी । एएहिं कारणेहि, प्रासुरियं भावणं कुणइ ।२६७। सत्थगहणं विसभक्खण च, जलणं च जलपवेसो य । अणायारभडसेवी, जम्मणमरणाणि बधति ।२६८। इय पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुए । छत्तीस उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसवुडे ।२६६। ॥ जीवाजीवविभत्ती अज्झयण समत्त ॥३६।। ॥ उत्तरज्झयण सुत्तं समत्त ।। श्री नन्दीसूत्रम् जयइ जग-जीव-जोणी-वियाणो, जगगुरू जगाणदो। जगणाहो जगबंधू, जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥१॥ जयइ सुयाण पभवो, तित्थयराण अपच्छिमो जयइ। जयइ गुरू लोगाण, जयइ महप्पा महावीरो ।। भई सव्व-जगुज्जोयगस्स, भदं जिणस्स वीरस्स । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ नन्दीसूत्र-सघस्तुति भद्द सुरासुरनमंसियस्स, भद्द धुयकम्मरयस्स ।। गुण-भवण-गहण सुय-रयण-भरिय, दसण विसुद्धरत्थागा। सघ-नगर ! भ६ ते, अखड चारित्तपागारा ।४। सजम-तव-तुबारयम्स, नमो सम्मत्त-पारियल्लस्स । अप्पडिचक्कस्स जयो होउ, सया संघचक्कस्स (५॥ भई सील-पडागूसियस्स, तव-नियम-तुरय-जुत्तस्स । सघरहस्म भगवग्रो, सज्झायसुनदिघोसस्स ।६। कम्मरय-जलोह-विणिग्गयस्म, सुयरयण-दीहनालस्स । पंच-महन्वय-थिरकण्णियस्स, गुणकेसरालस्स ।७। सावग-जण-महुयर-परिवुडस्स, जिण-सूर-तेय-बुद्धस्स । सघपउमस्स भई, समण-गण-सहस्स-पत्तस्स ।। तव-संजम-मयलछण, अकिरिय-राहुमुह-दुद्धरिस निच्च । जय संघ-चद ! निम्मल-सम्मत्त-विसुद्ध-जोण्हागा ।।। पर-तिथिय-गह-पह-नासगस्स, तवतेय-दित्त-लेसस्स । नाणु-ज्जोयस्स जए, भदं दम-संघ-सूरस्स ।१०। भद्द धिइ-वेला-परिगयस्स, सज्झाय-जोग-मगरस्स । अक्खोहस्स भगवग्रो, सघ-समुद्दस्स रुंदस्स ११११ सम्म-दमण-वर-वइर-दढ-रूढ-गाढावगाढ-पेढस्स । धम्म वररयण-मडिय-चामीयर-मेहलागस्स ।१२। निय-मूसिय-कणय-सिलाय-लुज्जल-जलंत-चित्तकूडस्स । नदण-वण-मणहर सुरभि-सील-गधुद्धमायम्स ११३। जीवदया-सुदर-कद-रुद्दरिय-मुणिवर-मइद-इण्णस । हे उ-सय-धाउ-पगतंत-रयणदित्तोसहि-गुहस्स ।१४। Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .90 8 जैन स्वाध्यायमाला 5-11 40 २४३ सवर-वर-जल-पग-लिय-उज्झर-पविराय-माणहारस्स | सावग-जण-पउर-रवत - मोर - नच्चत - कुहरस्स | १५ | विणय-नय-पवर- मुणिवर-फुरत - बिज्जुज्जलत सिहरस्स । विविह-गुण- कप्प-रुक्खग- फलभर कुसुमाउल-वणस्स । १६। नाण-वर रयण - दिप्पत- कत-वेरुलिय- विमल-चूलस्स । वदामि विणय पण, सघ महामदर - गिरिस्स | १७| गुण रयणुज्जल-कडयं, सील सुगधि तव मडिउद्देस । सुयवारसंग सिहर, सघ - महामदरं वदे | १८ | नगर-रह- चक्क पउमे, चदे सूरे समुद्द - मेरुम्मि | जो उवमिज्जइ सयय, त सघगुणायर वदे | १६ वदे उसभ अजिय, सभवमभिनदण-सुमइ-सुप्पभ-सुपासं । ससि - पुप्फदत सीयल - सिज्जंस वासुपुज्जं च ॥२०॥ विमल मणंत च धम्मं सति, कुंथु अरं च मल्लि च । मुनिसुव्वय- नमि नेमि, पास तह वद्धमाण च ॥ २१ ॥ पढमित्थ इंदभूई, वीए पुण होइ अग्गिभूइत्ति । तइए य वाउभूई, तो वियत्ते सुहम्मे य | २२| मडि य मोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य । मेयज्जे य पहासे य, गणहरा हुति वीरस्स । २३| निव्वुइ - पह- सासणय, जयइ सया सव्व-भाव - देसणय | कु-समय-मय-नासणय, जिणिदवर - वीर - सासणय |२४| सुहम्म अग्गवेसाणं, जवूनामं च कासवं । पभव कच्चायण वंदे, वच्छ सिज्जंभव तहा |२५| जसभद्द तुगिय वदे, संभूयं चेव माढरं । · Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ नन्दीसूत्र-स्थविरावली भद्दबाहु च पाइण्ण, थूलभदं च गोयमं ।२६। एलावच्चसगोत्त, वदामि महागिरि सुहत्यि च । तत्तो कोसियगोत्तं, बहुलस्स सरिव्वयं वंदे ।२७। हारिय गुत्तं साइ च, वदिमो हारिय च सामज्जं । वदे कोसियगोतं, संडिल्लं अज्जजीयधर ।२८॥ तिसमुद्दखायकित्ति, दीवसमुद्देसु गहियपेयालं । वदे अज्जसमुद्द, अक्खुभियसमुद्दगंभीर ।२६। भणग करगं झरगं, पभावगं णाण-दसण-गुणाणं । वदामि अज्जमगु, सुयसागरपारगं धीरं ।३०। वदामि अज्जधम्म, तत्तो वंदे य भद्दगुत्त च । तत्तो य अज्जवइरं, तवनियमगुणेहिं वइरसम ॥३१॥ वदामि अज्जरक्खियखमणे, रक्खियचरित्तसव्वस्से । रयणकरंडगभूमो, अणुप्रोगो रक्खिनो जेहिं ।३२। नाणम्मि दसणम्मि य, तवविणए णिच्चकालमुज्जुत्तं । अज्ज नदिलखमण, सिरसा वदे पसण्णमण ।३३। वड्डउ वायगवसो, जसवसो अज्जनागहत्थीणं । वागरणकरणभगिय, कम्मपयडीपहाणाण ॥३४॥ जच्चंजणधाउसमप्पहाण, मुद्दियकुवलयनिहाणं । बउ वायगवसो, रेवईनक्खत्तनामाण ।३५॥ अयलपुरा णिक्खते, कालियसुयप्राणुसोगिए धीरे । बभद्दीवगसीहे, वायगपयमुत्तमं पत्ते ।३६॥ जेसि इमो अणुअोगो, पयरइ अज्जावि अडभरहम्मि । बहुनयरनिगायजसे, ते वंदे खदिलायरिए ।३७। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २४५ तत्तो हिमवतमहतविक्कमे, धिइपरक्कममणते । सज्झायमणतधरे, हिमवते वदिमो सिरसा ।३८। कालियसुयअणुप्रोगस्स, धारए धारए य पुन्वाण । हिमवतखमासमणे, वदे णागज्जुणायरिए ।३६। मिउमद्दवसपन्ने, आणुपुन्विं वायगत्तण पत्ते । ओहसुयसमायारे, नागज्जुणवायए वदे ।४०। गोविंदाणपि नमो, अणुनोगे विउल धारिणिदाण । णिच्च खतिदयाण, परूवणे दुल्लभिदाण ।४१। तत्तो य भूय दिन्नं, निच्च तवसजमे अनिविण्ण । पडियजणसामण्ण, वंदामो सजम विहिण्णू ।४२। वरकणगतवियचपगविमउलवरकमलगभसरिवणे । भवियजण हिययदइए. दयागुणविसारए धीरे ।४३। अड्ड भरहप्पहाणे, बहुविहसज्झायसुमुणियपहाणे । अणुयोगियवरवसभे, नाइलकुलवसनदिकरे ।४४॥ जग भूयहियप्पगम्भे, वंदेऽह भूयदिनमायरिए । भवभयवच्छेयकरे, सीसे नागज्जुणरिसीण ।४५॥ सुमुणियनिच्चानिच्चं, सुमुणियसुत्तत्यधारयं वदे । सब्भावुभावणयातत्थ, लोहिच्चणामाणं ।४६। अत्थमहत्यक्खाणि, सुसमणवक्खाणकहणनिव्वाणि । पयईए महुरवाणिं, पयत्रो पणमामि दूसगणि १४७। तवनियमसच्चसजमविणयज्जवखंति मद्दवरयाणं । सीलगुणगद्दियाण अणुप्रोगजुगप्पहाणाण १४८॥ सुकुमालकोमलतले, तेसिं पणमामि लक्खणपसत्थे । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ नन्दीमूत्र-परिपद प्रकार । ज्ञानाधिकार पाए पावयणीण, पडिच्छयसएहिं पणिवइए ।४६। जे अण्णे भगवंते, कालियसुयप्राणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छ ।५०। सेलघण, कुडग, चालणि, परिपूणग, हस, महिस, मेसे य। मसग, जलग, बिराली, जाहग, गो, भेरी, पाभीरी ५११ सा समासो तिविहा पन्नत्ता, तजहा-जाणिया, अजाणिया, दुब्बियड्डा । जाणिया जहा खीरमिव जहा हसा जे घटुंति इह गुरुगुण समिद्धा । दोसे य विवज्जति, त जाणसु जाणिय परिस !५२॥ अजाणिया जहाजा होइ पगइमहुरा, मियछाक्यसीहकुमकुडयभूआ । रयणमिव असठविया, अजाणिया सा भवे परिमा ।५३। दुब्बियड्डा जहान य कत्थइ निम्मानो, न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेण । वत्यिव्व वायपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लयदुवियड्ढो ।५४। सूत्र-१ नाण पचविहं पण्णत्त, तजहा-आभिणिवोहियनाण, सुयनाण, ओहिनाणं, मणपज्जवनाण, केवलनाण । सूत्र-२ तं समासो दुविह पण्णत्त, तजहा-पच्चक्खं च परोक्ख च। सूत्र-३ से किं तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविह पण्णत्तं, तजहा-इंदियपच्चक्खं, णोइदियपच्चक्खं च। सूत्र-४ से किं त 'इंदिय पच्चक्ख ? इदियपच्चक्ख पंचविह पण्णत्त, तंजहा-सोइदियपच्चक्खं, चविखदियपच्चखं, Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २४७ घाणिदियपच्चक्ख, जिभिदियपच्चक्ख, फासिदिय पच्चक्खं, से त इदियपच्चदख । सूत्र-५ से किं तं णोइदियपच्चक्खं ? णोइदियपच्चक्ख तिविहं पण्णत्तं तंजहा-ओहिनाणपच्चक्खं, मणपज्जवनाणपच्चक्ख, केवलनाणपच्चवख । सूत्र-६ से कि तं ओहिनाणपच्चक्खं ? मोहिनाणपच्चक्ख दुविह पण्णत्तं, तजहा-भवपच्चइय च खायोक्समिय च ।। __सूत्र-७ से किं तं भवपच्चइयं ? भवपच्चइयं दुण्हं, तजहा-देवाण य नेरइयाण य । सूत्र-१ से किं तं खामोबसमियं ? खानोवसमियं दुण्ह, तंजहा-मणुस्साण य पंचिदियतिरिक्खजोणियाण य । को हेऊ खायोवसमिय ? खाअोवसमिय तयावरणिज्जाण कम्माण उदिण्णाण खएण अणुदिण्णाण उवसमेण ओहिनाणं समुपज्जइ । सूत्र-६ अहवा गुणपडिवण्णस्स अणगारस्स ओहिनाण समुप्पज्जइ तं समासो छन्विह पण्णत्तं, तजहा-प्राणुगामियं अणाणुगामिय, वड्डमाणय, हीयमाणय, पडिवाइयं, अपडिवाइय । सूत्र-१० से किं तं आणुगामियमोहिनाण ? प्राणगामियोहिनाण दुविहं पण्णत्त, तजहा-ग्रतगय च, मज्भगयं च । से किं तं अतगयं ? अंतगय तिविह पण्णत्त, तजहापुरो अंतगयं, मगगओ अंतगय, पासी अतगय । से किं त पुरओ अतगयं, ? पुरो अतगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्तं वा चडुलिय वा अलाय वा मणिं वा पईव वा जोइ वा पूरो काउ पणुल्लेमाणे पणुल्लेमाणे गच्छेज्जा, से त्त पुरओ अतगयं । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ नन्दीसूत्र-अवधिज्ञान से कि तं मग्गयो अंतगयं ? मग्गयो अतगय-से जहानामए केइ पुरिसे उक्क वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा पईवं वा जोइ वा मग्गयो काउं अणुकड्ढेमाणे अणुकड्ढेमाणे गच्छिज्जा, से त्तं मग्गयो अंतगयं । से किं तं पासो अंतगयं ? पासपो अतगय-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलिय वा अलाय वा मणि वा पईवं वा जोइ वा पासओ काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छिज्जा, से तं पासो अंतगय, से त्तं अंतगयं । से कि त मज्झगय ? मझगयं से जहानामए केइ पुरसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा पईवं वा जोई वा मत्थए काउं समुव्वहमाणे समुन्बहमाणे गच्छिज्जा, से त मज्झगय। अंतगयस्स मज्झगयस्स य-को पइविसेसो ? पुरओ अंतगएण ओहिनाणेण पुरो चेव संखिज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मग्गयो अतगएणं ओहिनाणेण मग्गओ चेव संखिज्जाणि वा असखिज्जाणि वा जोयणाइ जाणइ पासइ । पासो अतगएण प्रोहिनाणेण पासओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मज्झगएणं मोहिनाणेण सव्वो समंता संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ । से त्त प्राणुगामियं अोहिनाणं । सूत्र-११ से किं तं अणाणुगामिय प्रोहिनाण ? अणाणुगामिय प्रोहिनाण से जहानामए केइ पुरिसे एग महत जोइट्टाणं फाउं तस्सेव जोइट्टाणस्स परिपेरंतेहिं परिपेरंतेहिं, परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्टाणं पासइ, अन्नत्थ गए न जाणइ न पासइ.एवामेव अणाणुगामिय मोहिनाण जत्थेव समप्पज्जइ तत्थेव Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 जैन स्वाध्यायमाला २४६ सखेज्जाणि वा प्रसखेज्जाणि वा सद्वाणि वा असबद्धाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ, अण्णत्यगए ण जाणइ ण पासइ । से तं अणाणुगामिय ग्रोहिनाण । 1 सूत्र - १२ से किं तं वमाणय ओहिनाण ? वड्ढमाणयं श्रोहिताण पसत्थेसु श्रज्भवसायट्ठाणेसु वढमाणस्स वड्ढमाण- चरित्तस्स, विसुज्झमाणस्स वितुज्झमाण चरित्तस्स, सवप्रो समता ओहि वड्ढइ- जावा तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पगगजीवस्स । गाहणा जहन्ना श्रोहीखित्तं जहन्न तु ॥ ५५ ॥ सव्वबहुग्रगणिजीवा निरंतरं जत्तियं भरिज्जसु । खित्तं सव्वदिसाग परमोही खेत्तनिद्दिट्ठो । ५६ । अंगुलमात्र लियाण भागमसखिज्ज दोसु सखिज्जा । गुलमावलियतो आवलिया अंगुलपुहुत्त । ५७ । हत्यम्मि मुहुत्ततो, दिवसतो गाउयम्मि बोद्धव्वो । जोयण दिवसपुहुत्तं पक्खंतो पण्णत्रीमायो ५८ रहम् श्रद्धमासो, जम्बुद्दीवम्मि साहियो मासो | वासं च मणुयलोए, वासपुहुत्तं च रुयगम्मि । ५६ । संखिज्जम्मि उ काले, दीवसमुद्दाऽवि हुंति संखिज्जा । कालम्मि असंखिज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा | ६० | काले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइयव्वो खित्तबुड्ढीए । वुड्ढीए दव्वपज्जव, भइयव्वा खित्तकाला उ ।६१। सुमो य होइ कालो. तत्तो सुहुमयर हवइ खित्तं । अंगलसेढी मित्ते, प्रसप्पिणि असंखिज्जा । ६२ । 1 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० नन्दी सूत्र - अवविज्ञान से त्तं वमाणयं ग्रोहिताण । सूत्र - १३ से किंत हीयमाणयं श्रहिनाण ? हीयमाणयं हिना अप्पसत्येहिं ग्रज्भवसायद्वाणेहिं बट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स संकिलिस्समाणस्स संकि लिस्समाणचरित्तस्स सव्व समता ग्रोही परिहायइ से तं हीयमाणयं श्रहिनाण | सूत्र - १४ से किं तं पडिवाइ ग्रहिमाण ? पडिवाइ ओहिनाण जहणणेण गुलस्त असखिज्जयभागं वा संखिज्जयभागं वा वालग्ग वा वालग्गपुहुत्त वा लिक्खं वा लिक्खपुहुत्तं वा, जयं वा जयपुत्तं वा, जवं वा जत्रपुहुत्तं वा, अंगुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा, पाय वा पायपुहुत्तं वा, विहत्थि वा विहत्यिहुतं वा, रण वा रयणिपुत्तवा, कुच्छि वा कुच्चिपुहुत्तं वा, धणु वा धणुपुहुत्तं वा गाउग्र वा गाउयपुहुत्तं वा जोयणं वा जोयणपुहुत्त वा, जोयणसय वा जोयणसयपुहुत्तं वा, जोयणसहस्स वा जोयणसहस्मपुहुत्तं वा, जोयणलक्ख वा जोयणलक्खपुहुत्त वा, जोयणकोडि वा जोयणको डिपुहुत्तं वा, जोयणकोडा कोडि वा जोको कोडित्त वा, जोयणसखिज्ज वा जोयणसंखिज्ज पुहुत्त वा जोयणप्रसखेज्ज वा जोयणश्रसंखेज्जपुहुंत्तं वा उक्कोसेण लोग वा पासित्ता ण पडिवइज्जा से तं पडिवाइ ग्रोहि • ! नाण । सूत्र - १५ से किं तं ग्रपडिवाइ सोहिताण ? ग्रपडिवाइ मोहिनाणं जेण अलोगस्स एगमवि आगासपएस जागइ पासइ तेण पर ग्रपडिवाइ ग्रोहिताण । से त पडिवाइ श्रहिनाण | सूत्र - १६ तं समासग्रो चउब्विहं पण्णत्तं तजहा - दव्वग्रो, 1 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंन स्वाध्यायमाला २५१ खित्तयो, कालो, भावो । तत्थ दव्वो ण ओहिनाणी जहण्णेण अणताइ रूविदव्वाइं जाणइ पासइ, उक्कोसेण सव्वाइ रूविदव्वाइं जाणइ पासइ । खित्तो ण ओहिनाणी जहण्णेण अगलस्स असखिज्जइभाग जाणइ पासइ, उक्कोसेण असखिज्जाई अलोगे लोगप्पमाण-मित्ताई खडाइ जाणइ पासइ । कालो ण ओहिनाणी जहाणेण आवलियाए असंखिज्जइभाग जाणइ पासइ उक्कोसेण असखिज्जाओ उस्स प्पिणीओ अवसप्पिणीओ अईयमणागय च काल जाणइ पासइ । भावनो ण अोहिनाणी जहण्णण अणते भावे जाणइ पासइ, उक्केसे णवि अणते भावे जाणइ पासइ । सव्वभावाणमणतभाग जाणइ पासइ । सूत्र-१७ ओही भवपच्चइयो, गुणपच्चइप्रो वण्णिो दुविहो। तस्स य वहू विगप्पा, दव्वे खित्ते य काले य १६३। नेरइयदेवतित्थंकरा य, प्रोहिस्सऽबाहिरा हुति । पासति सम्वो खल, सेसा देसेण पासति ।६४। से त्त प्रोहिनाणपच्चक्खं । से कि तं मणपज्जवनाण ? मणपज्जवनाणे ण भते ! किं मणुस्साण उप्पज्जइ अमणुस्साण ? गोयमा । मणुम्साणं, नो अमणस्साण । जइ मणुस्साण किं समुच्छिममणुस्साण गब्भवक्कतियमणुस्साण ? गोयमा नो संमच्छिममणस्साण उपज्जई गम्भवक्कतियमणुस्साण । जइ गब्भवक्कंतियमणुस्साण किं कम्मभूमियगभवक्कतियमणुस्साण, अकम्मभूमियगन्भवतियमणस्साण, अतरदीवगगब्भवक्कतियमणुस्साण ? गोयमा । कम्मभूमियगब्भवक्कतियमणुस्साण । नो अम्मभूमियगब्भवक्कतियः Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ नन्दीसूत्र-मन पर्यव ज्ञान मणस्साणं । नो अतरदोवगगम्भवतियमणम्साण । जइ कम्म. भूमियगम्भवक्कतियमणुस्साण, कि सखिज्जवासाउयकम्मभूमियगन्भवतियमणुत्साण, असखिज्जवासाउयकम्मभूमियगमवक्कतियमणुस्साण ? गोयमा ! सखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवक्कतियमणुस्माणं, नो असंवेज्जबागाउयकम्मभूमियगव्भवक्क्रतियमणुस्नाण । जइ सखेज्जवासाउयकम्मभमियगम्भवक्कंतियमणुस्याण, किं पज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगठमवतियमणुस्साण, अपज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवक्कंतियमणुस्साण ? गोयमा ! पज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगमवक्कतियमणुस्साण, नो अपज्जत्तगसखेज्जवासाउय. कम्मभूमियगमवक्कतियमणुस्माण । जइ पज्जत्तगमखेज्जवासाउयकम्मभूमियगन्भवतियमणुस्साण, किं सम्मदिदिपज्जत्तगसंग्वेज्जवासाउयकम्मभूमियगमवक्रतियप्रणुस्साण, मिच्छदिद्विपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगभवक्कतियमणुस्साण, मम्मामिच्छदिदिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगमवतियमणुस्साण ? गोयमा ! सम्मदिट्ठिपज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवक्कतियमणुस्साण, नो मिच्छदिदिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगभवक्कतियमणुस्साण, नो सम्मामिच्छदिद्विपज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगन्भवस्कतियमणुस्साण । जइ सम्मदिट्ठिपज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगम्भवतियमणुस्साण, किं सजयसम्मदिद्विपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्नभूमियगम्भवकनियमणुस्माण, असजयसम्मदिटिपज्ज Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २५३ त्तग सखेज्जवासाउयकम्मभूमियगठन वक्कतियमणुस्साण, सजवासंजयसम्म दिद्विपज्जत्तगसंखेज्जवासा उय कम्मभूमियगन्भवक्कतियमणुस्साण ? गोयमा । संजयसम्म दिद्विपज्जत्तगस खेज्जवासाउयक्रम्मभूमियगव्भवक्कंतियमणुस्साण, नो भ्रमजयसम्मद्दिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगव्भवक्कतियमणुस्साण, नो सजयासजयसम्मद्दिष्ट्ठिपज्जत्त ग सखेज्जवासा उयकम्मभूमियगव्भवक्कं तियमणुस्साण | जइ सजयसम्मदिट्ठिपज्जतगसखेज्जवासा उयकम्मभूमियगव्भवक्कंतियमणुस्साण, किं पमत्तमजयसम्म द्दिद्विपज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगव्भवक्कतियमणुस्साण, अपमत्तसंजयसम्मद्दिष्ट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउय कम्मभूमियगव्भवक्कतियमगुस्साण ? गोयमा | अपमत्तमजयसम्म ट्टिपज्जत्तगसखेज्जवासाउयकम्मभूमियगब्भक्कतियमणुस्साण, नो पमत्तसजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसखेज्जवासा उयकम्मभूमियगव्भ वक्क तिमणुस्साण । जइ ग्रपमत्त संजयसम्म द्दि द्विपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमियगव्भवक्कतियमणुस्साण, किं इड्डिपत्तप्रपमत्तसजयसम्म - द्दिट्ठिपज्जत्तग-सखेज्जवासाउय कम्मभूमिय-गव्भवक्कंतिय-मणुस्साण, प्रणिड्डिपत्तअपमत्त संजयसम्मदिद्विपज्जत्तगसखेज्जव 'साउयकम्मभूमियगव्भवक्कतिय मणुस्साण ? गोयमा । इड्डिपत्तग्रपमत्तसजयसम्मद्दिद्विपज्जत्तगसखेज्जव । साउय कम्मभूमियगव्भवक्कतियमणुस्साण, नो प्रणिपित्तप्रमत्तसंजयसम्मद्दिद्विपज्जत्तगसखेज्जवासाउयक्रम्म भूमिगव्भवक्कतियमणुस्सा, मणपज्जवनाण समुप्पज्जइ । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ नन्दीसूत्र-मन पर्यव ज्ञान सूत्र-१८ त च दुविह उपज्जइ तजहा-उज्जमई य विउलमई य, तं समासो च उम्विहं पण्णत्त, तंजहा-दबो, खित्तयो, कालो, भावग्रो । तत्म दव्वनो ण उज्जुमई अणते अणंतपए सिए खधे जाणइ पामइ, त चेव विउलमई अमहियतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिरतराए जाणइ पासइ । खित्तो ण उज्जमई य जहणणेणं अंगलस्स असखेज्जयभाग उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उरिमहेटिल्ले. खड्ग-पयरे उड्ढ जाव जोइमम्स उवरिमतले, तिरियं जाव अतोमणुस्मखित्ते अड्डा इज्जेमु दीवममुद्देसु पण्णरस्ससु कम्मभूमिसु तीसाए अकम्मभूमिसु छपण्णाए अंतरदीवगेमु सण्णिपंचिदियाणं पज्जत्तयाण मणोगए भावे जाणइ पामइ, तं चेव विलमई अड्ढाईज्जेहिमंगलेहिं अमहियत्तरागं विउलतरागं विमुहतराग वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ । कालो ण उज्जुमई जहण्णण पलिग्रोवमस्स असखिज्जयभाग उक्कोसेणवि पलिनोवमस्स अस खिज्जय भाग अतीयमणागयं वा काल जाणइ पासइ. तं चेव विउलमई अभयितरा विउलतराग विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । भावो गं उज्जमई अणते भावे जाणइ पामइ, सव्वभावाणं अणंतभाग जाणइ पामइ, तं चेव विउलमई अमहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतराग जाणइ पासइ। मणपज्जवनाण पुण, जणमणपरिचितियत्थपागडण । माणुस्सखित्तनित्रद्ध, गुणपच्चइयं चरित्तवयो।६५ से त्त मणपज्जवनाणं । Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २५५ सूत्र-१९ से किं तं केवलनाणं? केवलनाण दुविहं पण्णत्त, तजहा-भवत्थकेवलनाणं च सिद्धकेवलनाणं च । से कि त भवत्थकेवलनाणं ? भवत्थकेवलनाण दुविह पण्णत्त, तजहासजोगिभवत्थकेवलनाणं च अजोगिभवत्थ केवलनाणं च । से किं त सजोगिभवत्थकेवलनाणं ? सजोगिभवत्थकेवलनाण दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयसजोगीभवत्थ केवल नाणं च,अहवा चरमसमयसजोगिभवत्थ केवलनाण च अचरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाण च, से त्तं सजोगिभवत्थ केवलनाण । से कि त अजोगिभवत्थकेवलनाण ? अजोगिभवत्थकेवलनाण दुविह पण्णत्तं, तजहा-पढमसमयअजोगिभवत्यकेवलनाणं च अपढमसमयनजोगिभवत्थकेवलनाण च, अहवा चरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाण च, से त्त अजोगिभवत्थकेवलनाण, से त्त भवत्थकेवल नाण । सुत्र-२० से कि त सिद्धकेवलनाणं ? सिद्धकेवलनाण दुविह पण्णत्तं, तजहा-अणतरसिद्धकेवलनाणं च परपरसिद्धकेवलनाण च । सूत्र-२१ से कि त अणतरसिद्ध केवलनाण ? अणतरसिद्धकेवलनाण पण्णरसविह पण्णत्त तजहा-तित्थसिद्धा, अतित्थसिद्धा, तित्ययर सिद्धा, अतित्ययरसिद्धा, सयबुद्धसिद्धा, पत्तेयबुद्धसिद्धा, बुद्धबोहियमिद्धा, इथिलिंगसिद्धा, पुरिसलिंगसिद्धा, नपुसगलिंगसिद्धा, सलिंगसिद्धा अण्ण लिगसिद्धा गिहिलिंगसिद्धा, एगसिद्धा, अणेगसिद्धा, से त्त अणतरसिद्धकेवलनाण । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ नन्दीमूत्र-मतिज्ञान सूत्र-२२ से कि त परपरसिद्ध फेवलनाणं ? परपरसिद्वकेवल नाणं अणेगविह पण्णत्तं, तजहा-अपढमसमयसिद्ध केवलनाणं दुसमयसिद्धकेबलनाण, तिसमय सिद्धकोवलनाण, चउसमयसिद्धकेवलनाण, जाव दससमयसिद्ध केवलनाण, सखिज्जसमयसिद्धकेवलनाण, अमखिज्जसमयसिद्धकेवलनाणं, अणतसमयसिद्धकेवलनाणं, से त्त परपरसिद्ध केवलनाणं, से त सिद्धकेवलनाण। तं समासयो चउविवह पण्णत्तं, तं जहा-दवो, खित्तयो, कालओ, भावो। तत्थ दवयो ण केवलनाणो सव्वदव्वाई जाणइ पामइ । खित्तनो णं केवलनाणी सव्वं खित्त जाणइ पासइ। कालो णं केवलनाणी सव्वं काल जाणइ पासइ। भावनो णं केवल नाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । अह सव्वदबपरिणामभावविण्णत्तिकारणमणत । सासयमप्पडिवाइ, एगविहं केवल नाण ६६! सूत्र-२३ केवलनाणेणऽत्ये, नाउ जे तत्य पण्णवणाजोगे। ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुय हवइ सेसं।६७।। से त केवलनाण, से त णोइदियपच्चरखं, से त पच्चक्खनाणे। सूत्र-२४ से किं नं परोक्खनाण ? परोक्खनाण विहं पण्णत्त, तजहा-ग्राभिणिनोहियनाणपरोक्खं च, सूयनाणपरोक्स च, जत्थ प्राभिणिवोहियनाण तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थ आभिणिबोहियनाण, दोऽवि एयाई अण्णमण्णमणुगयाइ, तहवि पुण इत्य पायरिया नाणत्त पण्णवयति-अभिनिवुज्झइत्ति माभिणिवोहियनाणं, सुणेइत्ति सुयनाणं, मइपुन्व जेण सुयं न मई सुयपुब्विया। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २५७ सूत्र - २५ प्रविसेसिया मई, मइनाणं च मइग्रण्णाणं च । विसेसिया सम्मद्दिट्ठिस्स मई मइनाण | मिच्छद्दिट्ठिस्स मई मइअण्णाण | अविसेसिय सुयं सुयनाण च सुयप्रण्णाण च । विसेसिय सुय सम्मद्दिट्ठिस्स सुयं सुयनाण, मिच्छदिट्ठिस्स सुयं सुयअण्णाणं । सूत्र - २६ से कि त आभिणिबोहियनाण ? आभिणिबोहियमाण दुविह पण्णत्तं, तंजहा - सुयनिस्सियं च अस्सुयनिस्सियं च । से किं तं अस्सुयनिस्सिय ? अस्सुयनिस्सिय चउव्विह पण्णत्त, तजहा उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मिया, परिणामिया । बुद्धी चउव्हिा वृत्ता, पंचमा नोवल भइ | ६८ । सूत्र - २७ पु०त्र-मदिट्ठमस्सुयमवेइयतक्खण विसुद्ध गहियत्था । अव्वाहयफलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम | ६| भरहसिल, पणिय, रुक्खे, खुड्डग, पड, सरड काय उच्चारे । गय, घयण, गोल, खंभे, खुड्डग, मग्गि, त्थि, पइ, पुत्ते ॥७०॥ भरह, सिल,मिंढ, कुक्कुड, तिल, वालुय, हत्थि, अगड, वणसडे । पायस, अइया, पत्ते, खाडहिला, पंच पियरो य, ।७१। महुसित्थ, मुद्दि, अंके य, नाणए, भिक्खू, चेडगनिहाणे । सिक्खा य, अत्यसत्थे, इच्छा य मह, सयसहस्से ७२ । भरनित्य रणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला । उभग्नो लोगफलवई, विजयसमुत्था हवइ बुद्धी |७३ | निमित्ते, अत्यसत्थे य, लेहे, गणिए य, कूव, अस्से य । गद्दभ, लक्खण, गठी, अगए, रहिए य, गणिया य ॥७४ | सोया साडी दीहं च, तण अवसव्वयं च कुचस्स । Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ नन्दी सूत्र - मतिज्ञान 10 निव्वोदए य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खायो ।७५। उवयोगदिवसारा, कम्मपसगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी | ७६ | हेरणिए, करिसए, कोलिय, डोवे य, मुत्ति, घय, पवए । तुण्णाए, वड्ढइय, पूयइ, घड, चित्तकारे य ॥७७॥ प्रणुमाणहे उदिट्ठतसाहिया, वयविवागपरिणामा । हिय निस्सेय सफलवर्ड, बुद्धी परिणामिया नाम ॥७८॥ अभए, सिट्टि, कुमारे, देवी, उदिनोदए, हवइ राया । साहू य न दिसेणे, धणदत्ते, सावग, ग्रमच्चे ॥७६ खमए, श्रमच्चभुत्ते, चाणक्के, चेव थूलभद्दे य । नासिकसुदरिनंदे, वइरे, परिणामिया बुद्धी |८०| चलणाहण, आभंडे, मणी य, सप्पे य, खग्गि, यूभिदे । परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा |१| से त्त प्रस्सुयनिस्सिय । से कि त सुयनिस्सियं ? सुयनिस्सियं चउव्विह पण्णत्त, तजहा - उग्गहे, ईहा, प्रवाओ, धारणा । सूत्र - २८ से कि त उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तजहा - प्रत्युग्गहे य वंजणुग्गहे य ॥ सूत्र - २६ से किं तं वजणुग्गहे ? वंजणुग्गहे चउव्विहे पण्णत्ते, तजहा- सोइंदियवंजणुग्गहे, घाणिदियव जणुग्गहे जिभिदियवंजणुग्गहे फासिंदियवजणुग्गहे । से तं वंजणुग्गहे । सूत्र - ३० सेकित प्रत्युग्गहे ? प्रत्युग्गहे छव्विहे पण्णत्ते, तंजहा- सोइंदियप्रत्युग्गहे. चक्खिदियप्रत्युग्गहे, घाणिदियप्रत्युहे, जिभिदियअत्युग्गहे, फासि दियप्रत्युग्गहे, नोइ दियप्रत्थुग्गहे । - Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २५६ सूत्र-३१ तस्स ण इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा पच नामधिज्जा भवति, तंजहा-ओगेण्हया, उवधारणया, सवणया, अवलंबणया, मेहा । से त्त उग्गहे । सूत्र-३२ से कि त ईहा ? ईहा छव्विहा पण्णत्ता, तंजहा-सोइदियईहा, चक्खिदियईहा, घाणिदियईहा, जिभिदियईहा. फासिदियईहा, नोइदियईहा, तीसे ण इमे एगदिया नाणाघोसा नाणावजणा पच नामधिज्जा भवति, तंजहा-आभोगणया, मग्गणया, गवेसणया, चिंता, वीमंसा । से त्तं ईहा । सूत्र-३३ से किं त अवाए ? अवाए छविहे पण्णत्ते, तंजहा-सोइदियअवाए, चक्खि दियग्रवाए, घाणिदियअवाए, जिभिदियअवाए, फासिंदियअवाए नोइंदियअवाए, तस्स ण इमे एगदिया नाणाघोसा नाणावजणा पच नामधिज्जा भवति, तंजहा-आउट्टणया, पच्चाउट्टणया, अवाए, बुद्धी, विण्णाणे । से त्त अवाए। सूत्र-३४ से कि त धारणा ? धारणा छविवहा पण्णत्ता, तंजहा-सोइदियधारणा, चक्खिदियधारणा, घाणिदियधारणा. जिभिदियधारणा, फासिदियधारणा, नोइदियधारणा । तीसे ण इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा पच नामधिज्जा भवति. तंजहा-धारणा, साधारणा, ठवणा, पइट्ठा, कोठे, से त्त धारणा। सूत्र-३५ उग्गहे इक्कसमइए, अतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा सखेज वा काल असखेज वा काल । सूत्र-३६ एव अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० नन्दीसूत्र-मतिज्ञान वंजणग्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडिवोहगदिठंतेण मल्लगदिट्टतेण य । से किं तं पडिवोहगदिळंतण ? पडिबोहगदिट्टतेण से जहानामए केइ पुरिसे कचि पुरिसं सुतं पडिबोहिज्जा, अमुगा अमुगत्ति, तत्थ चोयगे पन्नवय एव वयासि-कि एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ? असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहण मागच्छति ? एवं वयंत चोयगं पण्णवए एवं वयासी-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति, नो सखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति, असखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से त पडिवोहगदितेण । से कि त मल्लगदिट्ठतेणं मल्लगदिट्ठतेण से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाम्रो मल्लगं गहाय तत्थेग उदगविद् पक्खेविज्जा, से णठे. अण्णेऽवि पक्खित्ते सेऽवि णठे एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगविदू, जे ण त मल्लगं रावेहिइत्ति, होही से उदगबिंदू, जे ॥ तसि मल्लगसि ठाहिति , होही से उदगविंदू । जे णं तं मल्लगं भरिहिति, होही से उदगविद, जे ण त मल्लग पवाहे हिति, एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहि अणतेहि पुग्गलेहिं जाहे त वजणं पूरियं होइ, ताहै हु त्ति करेइ, नो चेव ण जाणइ के वेस सद्दाइ ? तमो ईह पविसइ, तो जाणइ अमगे एस सद्दाइ, तओ अवायं पविसइ, तो से उवगय हवइ, तमो धारण पविसइ, Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६१ तण धारेइ सखिज्ज वा कालं, असखिज्ज वा काल । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्त सद्द सुणिज्जा, तेण सद्दीत्ति उग्गहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस सद्दाइ, तओ ईह पविसइ, तो जाणइ - अमुगे एस सद्दे, तो ण अवाय पविसइ, तत्रो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तम्रो णं धारेइ सखेज्ज वा कालं असंखेज्ज वा काल । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं ख्व पासिज्जा, तेण रूवत्ति उग्गहिए, नो चेवण जाणइ के वेस रूवत्ति, तो ईह पविसइ, तो जाणइ - अमुगे एस रूवेत्ति, तनो अवायं पविसइ, तनो से उवगय हवइ, तओ धारण पविसइ, तो ण धारेइ सखेज्ज वा कालं, प्रसखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे श्रव्वत्त गधं प्रग्धाइज्जा तेण गंधत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गधेत्ति, तो ईह पविसइ, तमो जाणइ अमुगे एस गंधे, तो अवाय पविसइ, तस्रो से उवगय हवइ, तो धारणं पविसइ, तो ण धारेइ सखेज्ज वा कालं असखेज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रस आसाइज्जा, तेण रसोत्ति उगहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस रसोत्ति । तो ईहं पविमइ, तो जाणइ - प्रमुगे एस रसे, तत्रा अवायं पविसइ, तो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तो ण धारेइ सखिज्ज वा कालं अस खिज्ज वा कालं । से नहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फास पडिसवेइज्जा तेण फासेत्ति उग्गहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस फासोत्ति, तो ईहं पविसइ, तो जाणइ - अमुगे एस फासे, तम्रो अवाय पविसइ, तो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तो ण धारेइ 1 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ नन्दीसूत्र-मतिज्ञान सखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से · जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्त सुमिण पासिज्जा, तेण सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव ण जाणइ के वेस सुमिणेत्ति, तो ईहं पविसइ, तो जाणइ-अमगे एस सुमिणे, तो अवाय पविसइ, तनो से उवगय हवइ, तो धारण पविसइ, तो ण धारेइ सखेज्ज वा काल, असंखेज्जं वा काल । से तं मल्लगदिट्ठतेण। सूत्र-३७ त समासो चउविवह पण्णत्तं, तंजहा-दव्वो , खित्तो, कालो, भावो । तत्य दव्वनो ण आभिणिब्रोहियनाणी पाएसेण सव्वाइ दवाइ जाणइ. न पासइ । खेत्तो ण आभिणिवोहियनाणी पाएसेण सव्वं खेत्तं जाणइ, न पासइ । कालो ण आभिणिबोहियनाणी आएसेण सव्व काल जाणइ, न पासइ । भावनो ण प्राभिणिबोहियनाणी पाएसेण सम्बे भावे जाणइ, न पास। उग्गह ईहाऽवाओ य, धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिवोहियनाणस्स, भेयवत्थू समासेण |८२॥ अत्थाण उग्गहणम्मि, उग्गहो तह वियालणे ईहा। ववसायम्मि अवायो, धरण पुण धारण विति ।८३। उग्गह इक्क समय, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु । कालमसख संख च, धारणा होइ नायव्वा ।८४। पुट्ठ सुणेइ सइं, रूवं पुण पासइ अपुळं तु । गंध रसं च फास च, बद्धपुढें वियागरे ।८५ भासासमसेढीओ, सद्द ज सुणइ मीसिय सुणइ । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला " वीसेढी पुण सद्द, सुणेइ नियमा पराधाए । ८६ । ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा । सन्ना सई मई पन्ना, सव्व श्राभिणिवोहियं ॥ ८७॥ सेतं आभिणिबोहियनाणपरोक्ख । सेतं मइनाण | सूत्र - ३८ से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोइसविह पण्णत्तं, तंजहा - अक्खरसुयं, अणक्खरसुयं, सण्णिसुय, सण्णिसुयं सम्मसुयं मिच्छसुयं, साइयं, अणाइयं, सपज्जवसियं, अपज्जवसिय, गमियं, अगमियं, अंगपविट्ठ, अगंगपविट्ठ । सूत्र - ३९ से किं तं श्रक्खरसुयं ? अक्खरसुयं तिविह पण्णत्तं, तंजहा - सन्नक्खरं वंजणक्खरं, लद्धिक्खरं । से किं तं सन्नक्खर ? सन्नक्खर अक्खरस्स सठाणागिई, से त सन्नक्खर । से किं तं वजणक्खरं ? वंजक्खर अक्खरस्स वंजणाभिलावो, सेतं वंजणक्खर से कि त लक्खि रं ? लद्धिप्रक्खरं श्रक्खरलद्धियस्स लद्धिप्रक्खरं समुप्पजई, तजहा- सोइंदियल द्धिप्रक्खर, चक्खि दियलद्धिश्रक्खरं, घाणिदियलद्धिश्रक्खरं, रसणिदियलद्धिअक्खरं, फासिदियलद्विप्रक्खरं, नोइंदियलद्धिश्रक्खरं, से तं लद्धिक्खरं, से त अक्खरसुयं । 1 से किं तं प्रणक्खरसुय' अणक्खर सुयं प्रणेगविहं पण्णत्तं, तजहाऊस सियं नीससियं, निच्छूढ खासियं च छीयं च । निस्सिघियमणुसारं, अणक्खरं छेलियाईयं वि २६३ , सेतं अणक्खरसुयं । सूत्र - ४० से कि त सण्णिसुयं ? सण्णिसूय तिविहं पण्णत्त, तजहा - कालिनोवएसेण, हेऊवए सेण, दिट्टिवाओवएसेण । Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ नन्दीसूत्र-श्रुतज्ञान से कि त कालिग्रोवएसेण ? कालिग्रोवएसेण जस्स ण अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से ण सण्णीति लगभइ, जस्स ण णत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा गवसणा, चिंता, वीमसा, से णं असण्णीति लभइ, से त्त कालिग्रोवएसेण । से कि त हेऊवएमेणं ? हेऊवएसेण जस्सणं अत्थि अभिसधारणपुब्विया करणसत्ती से ण सण्णीति लन्मइ । जस्स ण नत्थि अभिसधारणपुत्रिया करणसत्ती से ण असण्णीति लभइ । से त हेऊबएसेण । से किं तं दिट्ठिवाग्रोवएसेण ? दिदिवाओवएसेण सण्णिसुयस्स खोवसमेण सण्णी लव्भइ, असण्णिसुयस्स खग्रोसमेण असण्णी लन्भइ । से त दिठुिवाओवएसेण । से त सण्णिसुयं । से तं अस ण्णिसुयं ।। सूत्र-४१ से किं त सम्ममुय ? सम्मसुयं ज इम परहतेहिं भगवतेहिं उप्पण्णनाणदसणधरेहिं तेलुक्कनिरिक्खयमहियपूइएहिं तीयपडप्पण्णमणागयजाणएहि सव्वण्णहि सव्वदरिसीहि पणीय दुवालसंग गणिपिडगं, तजहा-पायारो, सुयगडो, ठाण, समवायो, विवाहपण्णत्ती, नायाधम्मकहानो, उवासगदसाओ, अंतगडदसायो, अणुत्तरोववाइयदसानो, पण्हावागरणाई, विवागसुय, दिट्ठिवानो, इच्चेय दुवालसगं गणिपिडगं चोद्दसपुव्विस्स सम्मसुय, अभिण्णदमपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण पर भिण्णेसु भयणा। से त सम्मसुय । सूत्र-४२ से कि त मिच्छासुयं ? मिच्छासुयं ज इमं अण्णाणिएहिं मिच्छादिट्टिएहिं सच्छदवृद्धिमइविग्गप्पिय, तजहाभारहं, रामायणं, भीमासुक्ख, कोडिल्लय, सगडभद्दियात्रो, Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६५ खोड (घोडग ) मुहं, कप्पासिय, नागसुहुम, कणगसत्तरी, वइसेसिय, बुद्धवयण, तेरासिय, काविलिय, लोगायय, सद्वितत, पाढर, पुराण, वागरण, भागवयं, पायजली, पुस्सदेवयं, लेह, पणियं, सउणरुय, नाडयाई, अहवा बावत्तरिकलाओ, चत्तारि य या संगोवगा, एयाइ मिच्छदिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाइ मेच्छासुय एयाइ चेव सम्मदिद्विस्स सम्मत्तपरिग्गहियाइ सम्मसुय, अहवा मिच्छदिहिस्सवि एयाइ चेव सम्मसुय, कम्हा ? सम्मत्तहेउत्तणो जम्हा ते मिच्छदिट्ठिया तेहिं चेव समएहिं चोइया समाणा केइ सपक्खदिट्टिो चयति । से त मिच्छासूयं । सूत्र-४३ से किं त साइय सपज्जवसिय, अणाइयं अपज्जवसिय च ? इच्चे इयं दुवालसगं गणिपिडग वुच्छित्तिनययाए साइय सपज्जवसिय, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए आणाइयं अपज्जवसिय । त समासयो चउव्विह पण्णत्त, तजहा-दव्वओ. खित्तो, कालम्रो, भावो । तत्थ दव्वनो णं सम्मसूय एगं पुरिस पडुच्च साइय सपज्जवसिय, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, खेत्तओ ण पच भरहाइ पचेरवयाइं पड़च्च साइय सपज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसिय, कालो ण उस्सप्पिणि प्रोसप्पिणिं च पडुच्च साइय सपज्जवसिय, नोउस्सप्पिणि नोप्रोसप्पिणि च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसिय, भावो ण जे जया जिणपन्नत्ता भावा आपविज्जति, पण्णविज्जंति, परूविज्जति, दसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदसिज्जंति, ते तया भावे पडुच्च साइय सपज्जवसिय खापोवसमियं पुण भाव पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, अहवा भवसिद्धि Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ नन्दीमूत्र-श्रुतज्ञान यस्स सुय साइयं सपज्जवसिय च, अभवसिद्धियस्स सुय अणाइय अपज्जवसियं च सव्वागासपएसग्ग सव्वागासपएसेहिं अणतगुणिय पज्जवखरं निष्फज्जइ, सब जीवाणपि य ण अक्खरस्स अणतभागो, निच्चग्घाडियो जइ पूण सोऽवि प्रावरिज्जा तेण जीवो अजीवत्त पाविज्जा, सुवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसूराण । से त साइयं सपज्जवसिय । से त अणाइय अपज्जवसियं । सूत्र-४४ से किं तं गमियं ? गमिय दिद्विवानो । से कि तं अगमिय ? अगमियं कालियं सुयं । से तं गमियं । से त अगमिय । अहवा त समासो दुविह पण्णत्तं, तजहा-अंगपविळं, अगवाहिर च । से कि त अगवाहिर ? अगवाहिर दुविह पण्णत्त, तजहा-ग्रावस्सय च, श्रावस्सयवइरित्त च । से कि तं पावस्सयं ? आवस्सयं छन्विहं पण्णत्त, तजहा-सामाइयं, चउवीसत्थरो, वदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चवखाण, से तं आवस्सयं । से किं तं श्रावस्सयवइरित्त ? अावस्सयवइरित्त दुविहं पण्णत्त, तंजहा-कालिय च, उक्कालियं च । से किं तं उक्कालियं? उक्क्रालिय, अणेगविह पण्णत्तं, तंजहा-दसवेयालियं, कप्पियाकप्पियं, चुल्लकप्पसुयं, महाकप्पसुय, उववाइय, रायपसेणियं, जीवाभिगमो, पण्णवणा, महापण्णवणा, पमायप्पमायं, नदी, अणयोगदाराइं, देविदत्थयो, तलवेयालिय, चंदाविज्झय सूरपण्णत्ती, पोरिसिमंडल, मडलपवेसो, विज्जाचरणविणिच्छग्रो, गणिविज्जा, झाण विभत्ती, मरणविभत्ती, आयविसोही, वीयरागमयं, सलेहणासुय, विहारकप्पो, चरणविही, आउरपच्चक्खाणं, महापच्चक्खाणं, एवमाइ, से तं उक्कालियं । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६७ से किं तं कालिय ? कालियं अणेगविह पण्णत्त, तंजहा-उत्तरज्झयणाइ, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहं, महानिसीहं, इसिभासियाई, जम्बूदीवपण्णत्ती, दीवसागरपण्णत्ती, चंदपण्णत्ती खड्डिया-विमाणपविभत्ती, महल्लिया-विमाणपविभत्ती, अंगचलिया, वग्गचलिया, विवाहचूलिया, अरुणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाए,धरणोववाए, वेसमणोववाए, वेलंधरोववाए, देविदो. ववाए, उट्ठाणसुए, समट्ठाणसुए, नागपरियावलियाओ, निरयावलियाओ, कप्पियायो, कप्पडिसियारो पुप्फियाओ, पुप्फचलियाओ, वहीदसाओ आसी विसभावणाण, दिटिविसभावणाणं, सुमिणभावणाणं महासुमिणभावणाण, तेयग्गिनिसग्गाण, एवमाइ. याइ चउरासीइं पइण्णगसहस्साई भगवो अरहो उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स, तहा संखिज्जाइ पइण्णगसहस्साइ मज्झिमगाणं जिणवराण, चोद्दसपइण्णगसहस्साइ भगवो वद्धमाणसामिस्स, अहवा जस्स जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए, वेणइयाए कम्मयाए, पारिणामियाए, चउविहाए बुद्धीए उववेया तस्स तत्तियाई पइण्णगसहस्साइं, पत्तेयबुद्धावि तत्तिया चेव । से तं कालियं । से तं श्रावस्सयवइरित्तं । से तं अणगपविटठ । सूत्र-४५ से किं तं अगपविट्ठ ? अगपविर्से दुवालसविहं पण्णत्तं, तंजहा-आयारो, सूयगडो, ठाण, समवायो, विवाहपण्णत्ती, नायाधम्मकहाओ, उवासगदसामो, अंतगडदसायो, अणुत्तरोववाइयदसाओ, पण्हावागरणाइं, विवागसूयं. दिट्टिवायो। सूत्र-४६ से किं तं आयारे ? आयारे णं समणाण Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ नन्दीसूत्र-सूयगडाग निगंथाणं आयार-गोयर-विणय-वेणइय-सिक्खा-भासा-अभासाचरण-करण-जायामायावित्तीग्रो प्राथविज्जति. से समासयो पंचविहे पण्णत्ते, तजहा-नाणायारे, दसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे,अायारे ण परित्ता वायणा, संखेज्जा,अणुयोगदारा, संखिज्जा वेढा, सखेज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीयो, संखिज्जाओ सगहणीप्रो, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अगट्टयाए पढमे अंग, दो मुयक्खधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासोइ उद्देसणकाला, पचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साई पयग्गेणं, सखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासयकड-निवद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्ण विज्जति, परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिज्जति, उवदंसिज्जति, से एवं पाया एवं नाया, एव विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ । से तं आयारे (१)। सूत्र-४७ से कि त सूयगडे ? सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ, जीवा सूइज्जति, अजीवा सूइज्जति, जीवाजीवा सूइज्जति, ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ, सूयगडे ण असीयस्स किरि. यावाइसयस्स, चउरासीइए अकिरियाईण, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं वत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिण्ह तेसटाण पासडियसयाणं वहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ, सूयगडे ण परित्ता वायणा, संखिज्जा, अणुयोगदारा, सखेज्जा वेढा, सखेज्जा सिलोगा, सखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, सखिज्जायो सगहणीओ, सखिज्जाओ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६६ पडिवत्तीओ, से ण अंगठ्ठायाए बिइए आगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीस उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीस पयसहस्साई पयग्गेण, सखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासय-कडनिवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति परूविज्जति, दंसिज्जति, निदसिज्जति, उवदसिज्जति, से एवं आया, एव नाया एव विण्णाया, एव चरणकरणपरूवणा आधविज्जइ । से त सूयगडे (२) सूत्र-४८ से कि त ठाणे ? ठाणे ण जीवा ठाविज्जति, अजीवा ठाविज्जति, जीवाजीवा ठाविज्जति,ससमए ठाविज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ, लोए ठाविज्जइ अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ । ठाणे ण टका, कडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुडाइ, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ, आघविज्जति । ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणगविवड्डियाण भावाण परूवणा आघर्विज्जइ । ठाणे ण परित्ता वायणा सखेज्जा अणुअोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, सखेज्जाओ सगहणीयो; संखेज्जायो पडिवत्तीमो से ण अंगठ्ठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे, दसमझयणा एगवीस उद्देसणकाला, एक्कवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरि पयसहस्सा पयग्गेण सखेज्जा अक्खरा, अणता गमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासय कड-निबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिज्जति, उवदंसिज्जति से एवं Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० नन्दीसूत्र-समवायाग, विवाहप्रज्ञप्ति पाया एव नाया, एवं विण्णाया एव चरणकरणपस्वणा आघ विज्जइ। से तं ठाणे (३)। सूत्र-४६ से किं तं समवाए ? समवाए जं जीवा समासिज्जति, अजीवा समासिज्जति जीवाजीवा समामिज्जति, ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमयपरसमए - समासिज्जइ, लोए समासिज्जइ अलोए समासिज्जइ लोयालोए समासिज्जइ । समवाए णं एगाइयाण एगुत्तरियाण ठाणसय. विवड्डियाण भावाण परूवणा प्रावविज्जइ, दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवगे समासिज्जइ, समवायस्स ण परित्ता वायणा सखिज्जा अणुयोगदारा, संखिज्जा वेढा सखिज्जा मिलोगा, सखिज्जायो निज्जत्तीयो सखिज्जाओ संगहणीग्रो, सखिज्जायो पडिवत्तीग्रो, से ण अंगट्टयाए चउत्थे अंगे, एगे। सुमक्खंधे एगे अज्झयणे, एगे उद्देसणकाले, एो समुद्देसणकाले, एगे चोयाले सयसहस्से पयग्गेण, सखेज्जा अक्खरा, अणता गमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासयकड-निवद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा प्राधविज्जंति, पण्णविज्जति परविज्जति दसिज्जति निदसिज्जति, उवदसिज्जंति, से एव पाया, एवं नाया, एव विण्णाया, एवं चरणकरणपल्वणा प्राधविज्जइ । से तं समवाए (४)। सूत्र-५० से कि त विवाहे ? विवाहे ण जीवा विग्राहिज्जंति, अजीवा विवाहिज्जति, जीवाजीवा विआहिज्जति,ससमए विवाहिज्जइ, परसमए विग्राहिज्जइ, ससमए परसमए विआहिज्जइ, लोए विआहिज्जइ अलोए विवाहिज्जइ, लोयालोए, Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २७१ विआहिज्जइ विवाहस्स ण परित्ता वायणा, सखिज्जा अणोगदारा, सखिज्जा वेढा सखिज्जा सिलोगा, सखिज्जाओ निज्जत्तीओ, संखिज्जायो संगहणीओ, सखिज्जायो पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए पचमे अगे, एगे सूयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्जयणसए, दस उद्देसगसहस्साई, दस समुद्देसगसहस्साई, छत्तीसं वागरणसहस्साइ, दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेण, सखिज्जा अक्खरा, अणता गमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासय-कडनिबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा, आघविज्जति, पण्ण विज्जति, परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिज्जति, उवदंसिज्जति, से एवं आया, एवं नाया, एव विण्णाया, एवं-चरणकरण-परूवणा आघविज्जइ । से तं विवाहे (५) । सूत्र-५१ से किं तं नायाधम्मकहानो ? नायधम्मकहासु ण नायाणं नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविमेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, सलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पायोवगमणाई, देवलोगगमणाइ सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अतकिरियायो य आघविज्जति, दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच-पंच-अक्खाइयासयाइं, एगमेगाए अक्खाइयाए पच-पंच-उवक्खाइगा-सयाइ, एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच-पंच-अक्खाइय-उवक्खाइयासयाइ, एवामेव सपुत्वावरेणं अद्भुट्ठामो कहाणगकोडीअो हवंतित्ति समक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा सखिज्जा अणुयोगदारा, Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ नन्दीसूत्र-उपासकदसा संखिज्जा वेढा, सखिज्जा सिलोगा, संखिज्जानो निज्जुत्तीग्रो, सखिज्जास्रो संगहणीप्रो, संखिज्जाबो पडिवत्तीअो । से णं अगट्ठयाए छठे अगे, दो सुयक्खधा, एगूणवीस अज्झयणा, एगूणवीसं उद्देसणकाला, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेण, सखेज्जा अक्खरा, अणता गमा अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति से एवं आया, एवं नाया,एव विण्णाया,एव चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से तं नायाधम्म कहानो (६)। सूत्र-५२ से किं तं उवासगदमाओ? उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाइ, चेइयाई, वणसडाई, समो. सरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ - इहलोइयपरलोइया इडिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जायो, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, सील-व्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणायो, भत्तपच्चक्खाणाई, पापोवगमणाइ, देवलोगगमणाइ सुकूलपच्चायाईयो, पुण वोहिलाभा, अतकिरियो य आघविज्जति, उवासगदसाण परित्ता वायणा, संखेज्जा अगुोगदारा, सखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, सखेज्जाओ निज्जुत्तीग्रो, सखेज्जायो संगहणीप्रो, संखेज्जायो पडिवत्तीओ ! से णं अंगदयाए सत्तमे अगे एगे सुयक्खधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दससमद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, सखेज्जा अक्खरा, अणता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २७३ थावरा, सासय-कड निबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दसिज्जति, निदसिज्जति, उवदमिज्जति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से त उवास गढसा ( ७ ) | सूत्र - ५३ से किं तं अंतगडदसाप्रो ? अतगडदसासु ण अंतगडाणं नगराइ उज्जाणाइ चेइयाइ, वणसडाइ समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिश्रागा, सुपरिग्गहा तवोवहाणाइ सलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइ पाओवगमणाइ, अतकिरिया, श्राघविज्जति, श्रतगडदसासु णं परित्ता वायणा, सखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, सखेज्जाश्रो निज्जुतीप्रो, संखेज्जाश्रो संगहणी, सखेज्जाओ पडिवत्तीओ से ण अगट्टयाए अट्टमे अगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठ वग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला अट्ठ समुद्देसणकाला, सखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेण, सखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा अणता थावरा, सासय- कड - निबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जंति, पण्णविज्जति परूविज्जति, दसिज्जति निदसिज्जंति, उवदसिज्जंति, से एव आया, एव नाया, एव विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से तं अतगडदसाओ (८) । सूत्र - ५४ से किं तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ? अणुत्तरोववाइयदसासु ण अणुत्तरोववाइयाण नगराई, उज्जाणाई, चेइयाइ, वणसडाइ, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मा , Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ नन्दीसूत्र-प्रश्नव्याकरण यरिया, धम्मकहानो, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पन्वज्जाओ, परिवागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई पडिमानो, उवसग्गा, सलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइयत्ति उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अतकिरियानो, आवविज्जति, अणुत्तरांववाइयदसासु ण परित्ता वायणा, सखेज्जा अणुयोगदारा, संखेज्जा वेढा, सखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाबो निज्जुत्तीओ, संखेज्जास्रो संगहणीग्रो, संखेज्जायो पडिवत्तीयो, से णं अगट्टयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिण्णि वग्गा,तिण्णि उद्देसणकाला,तिण्णि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साई पयगेणं, सखेज्जा अक्खरा, अणता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा ग्राघविज्जति, पण्ण विज्जति, परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिज्जति उवदसिज्जति, से एवं आया, एव नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरण: परूवणा प्राधविज्जइ । से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ (8) सूत्र-५५ से किं त पहावागरणाई ? पण्हावागरणेसु णं अठ्ठत्तर पसिणसयं, अठुत्तर अपसिणसयं अठ्ठत्तरं पसिणापसिणसय, तंजहा-अगु?पमिणाई, बाहुपसिणाइ, अद्दागपसिणाइ, अन्नेवि विचित्ता विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धि दिव्वा । सवाया आविज्जति, पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणयोगदारा, सखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जानो निज्जुत्तीयो, संखेज्जाम्रो सगहणीग्रो, संखेज्जाओ पडिवत्तियो. से ण अगट्टयाए दसमे अगे एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २७५ पणयालीस उद्देसणकाला. पणयालीसं समुद्देसणकाला, सखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेण, सखेज्जा अक्खरा, अणता गमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दसिज्जति, निदसिज्जति, उवदसिज्जति, से एव पाया, एव नाया एवं विण्णाया, एव चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ। से त पण्हावागरणाई (१०)। सूत्र-५६ से किं तं विवागसुय ? विवागसुए ण सूकडदुक्कडाण कम्माण फलविवागे अाघविज्जइ, तत्थ ण दस दहविवागा, दस सुहविवागा । से किं त दुहविवागा ? दुह-विवागेसु ण दुहविवागाण नगराई, उज्जाणाई, वणसडाइं, चेइयाई, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाम्रो इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, निरयगमणाई। संसारभवपवचा दुहपरपराग्री, दुकुलपच्चायाईयो, दुल्लहबाहियत्तं, आघविज्जइ से तं दुहविवागा। से कि त सुहविवागा ? सुहविवागेसु ण सुहविवागाण नगराई, उज्जणाइ, वणसडाइं, चेइयाइ, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्वज्जाओ, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, सलेहणाओ, भत्तपच्च. क्खाणाइ, पाअोवगमणाइ, देवलोगगमणाइ, सुयपरपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ, पापवि. ज्जंति, विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुयोगदारा, संखेज्जा वेढा, सखेज्जा सिलोगा, संखेज्जायो निज्जत्तीयो, संखि. Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्दीमूत्र - दृष्टिवाद । ज्जानोस गहणी, सखिज्जाश्रो पडिवत्तीयो । से ण अंगट्टयाए इक्कारसमे अगे, दो सुयक्खधा, वीसं ग्रज्झयणा, वीस उद्दमणकाला, वीस समुद्देमणकाला, सखिज्जाई पयसहस्साइ पयग्गेण, संखेज्जा अक्खरा, प्रणता गमा, ग्रणता पज्जवा, परित्ता तसा, प्रणता थावरा, सासय-कड निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा ग्राघविज्जति, पण्णविज्जति, परुविज्जति, दंसिज्जति, उवदसि - ज्जति से एव प्राया एवं नाया, एव विष्णाया, एव चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त विवागस्य ( ११ ) 1 सूत्र - ५७ से किं तं दिट्टिवाए ? दिट्टिवाए णं सव्वभावपरूवणा ग्राघविज्जइ, से समासो पचविहे पण्णत्ते, तजहा - परिकम्मे, मुत्ताइ, पुव्वगए, अणुयागे, चूलिया । से कि त परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तंजहा- सिद्धमेणिया परिकम्मे, मणुस्स सेणिया-परिकम्मे, पुटुसेणिया-परिकम्मे, योगाढसेणिया-परिकम्मे, उवसंपज्जणसेणिया - परिकम्मे, विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे, चुयाचुयसेनिया परिकम्मे । से कि त सिद्धसेणिया-परिकम्मे ? सिद्धसेणिया - परिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तजहा - मा उगापयाई, एगट्टियपयाई, ऋटु पयाइ, पाढीमागासपग्रटु याइं केउभूय, रासिद्धं, एगगुण, दुगुण, तिगुण, केउभूय, पडिग्गहो, ससारपडिग्गहो, नदावत्त, सिद्धावत्तं, से तं सिद्धसेणियापरिकम्मे (१) । 1 से किं तं मणुस्स सेणियापरिकम्मे ? मणुस्स सेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तजहा - माउयापयाइ, एगट्ठियपयाई टुपयाइ, पाढोग्रागासपयाइ केउभूयं रासिबद्ध, एगगुणं २७६ } Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २७७ दुगुण, तिगुण, के उभूय पडिग्गहो ससारपडिग्गहो, नदावत्तं, मणुस्सावत्त । से त मस्ससेणिया-परिकम्मे (२)। से किं त पुट्ठसेणिया-परिकम्मे ? पुट्ठमेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तंजहा-पाढापागासपयाइ, के उभूय, रासिबर्द्ध एगगुण, दुगण, तिगुण, केउभूय, पडिग्गहो, ससारपडिग्गहो, नदावत्तं, पुट्ठावत्तं । से त पुट्ठसेणिया-परिकम्मे (३)। से कि त ओगाढसेणिया-परिकम्मे ? आगाढसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते तजहा-पाढोग्रागासपयाइ, के उभूय, रासिबद्ध, एगगुण, दुगुण, तिगुण, के उभूय, पडिगहो, संसारपडिग्गहो, नदावत्तं, ओगाढावत्त । से त ओगाढसेणियापरिकम्मे (४)। से कि त उवसपज्जणसेणिया-परिकम्मे ? उवसपज्जणसेणिया-परिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तंजहा-पाढोग्रागाम पयाई, केउभूय, रासिबद्ध, एगगुण, दुगुण, तिगुण, के उभूयं, पडिग्गहो, ससारपडिग्गहो, नदावत्त, उवसपज्जणावत्तं । से त उवसपज्जणसेणिया-परिकम्मे (५)। से कि त विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे ? विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तजहा-पाढोआगासपयाइ, के उभय, रासिबद्ध, एगगुण, दुगुणं, तिगुण, के उभूय, पडिग्गहो, ससारपडिग्गहो, नदावत्तं, विप्पजहणावत्त । से त विप्पजहणसेणिया-परिकम्मे (६)। से कि तं चुयाचुयसेणिया-परिकम्मे ? चुयाचुयसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पन्नत्ते, तजहा-पाढोनागासपयाइ, केउ. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्दीसूत्र - पूर्वगत भूय, रासिद्ध, एगगुण, दुगुण, केउभूयं, पडिग्गहो, संसारपड - ग्गहो, नंदावत्त, चुयाचुयावत्तं । सेत चुयाचुयसेणिया-परिकम्मे । छ चउक्कनइयाई, सत्त तेरासियाइं । से तं परिकम्मे ( १ ) | से कि त सूत्ताइ ? सुत्ताइ बावीस पण्णत्ताइ, तंजहाउज्जसुर्य, परिणयापरिणयं, बहुभगिय, विजयचरिय, अणतरं, परपर, मासाण, संजू हूं। सभिण्ण, ग्राहव्वाय, सांवत्थियावत्तं, नदावत्त, बहुल, पुट्ठापुट्ठे, वियावत्तं एवंभूय, दुयावत्तं वत्तमाणसमभिरूढ, सव्वग्रोभद्दं, पस्सास, दुप्पडिग्गह, इच्चेइयाई बावीस मुत्ताइ छिन्नच्छ्रेयनइयाणि ससमयमुत्तपरिवाडीए, इच्चेइयाई बावीस सुत्ताइं अच्छिन्नच्छेयनइयाणि श्राजीवियसुत्तपरिवाडीए, इच्चेइयाइ बावीस सुत्ताइ तिगणइयाणि तेरासिय सुत्तपरिवाडीए, इच्चेइयाई बावीस सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए, एवामेव सपुव्वावरेणं ग्रट्टासीई सुत्ताइं भवंतित्ति मक्खायं । सेत सुत्ताई ( २ ) | , से कि त पुव्वगए ? पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तंजहांउप्पायपुव्वं, अग्गाणीय, वीरिय ग्रत्थिनत्थिष्पवायं, नागप्पवाय, सच्चप्पवायं, ग्रायप्पवाय, कम्मप्पवाय, पच्चक्खाणप्पवाय ( पच्चखाण) विज्जाणुप्पवायं, अव पाणाऊ, किरिया विसालं, लोकविदुसार | उप्पायपुव्वस्स णं दस वत्थू, चत्तारि चूलियावत्थू, पण्णत्ता । ग्रग्गाणीयपुत्र्वस्स ण चोट्स वत्थू, दुवालस चूलियावत्थू पण्णत्ता । वीरियपुव्वस्स ण अट्ठ वत्थू टु चूलियावत्यू पण्णत्ता । श्रत्थिनत्थिप्पवायपुव्वस्स णं अट्ठारस वत्थू, दस चूलियावत्यू पण्णत्ता | नाणप्पवायपुत्रस्स णं बारस वत्थू २७८ . Gold Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २७६ पण्णत्ता । सच्चप्पवायपुवस्स ण सोलस वत्थू पण्णत्ता । कम्मप्पवायपुवस्स ण तीस वत्यू पण्णत्ता । पच्चक्खाणपुव्वस्स ण वीस वत्थ पण्णत्ता । विज्जाणुप्पवायपुव्वस्स ण पन्नरस वत्थू पण्णत्ता । अवंझपुव्वस्स ण बारस वत्थू पण्णत्ता । पाणाउपुव्वस्स ण तेरस वत्थू पण्णत्ता। किरियाविसाल पुवस्स ण तीस वत्थू पण्णत्ता । लोकबिंदुसारपुवस्स ण पणवीसं वत्थू पण्णत्ता, दस, चोद्दस, अट्ठ, अट्ठारसेव, बारस, दुवे य, वत्थूणि । सोलस, तीस, वीसा, पन्नरस, अणुप्पवायम्मि ।८६। बारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थणि । तीसा पुण तेरसमे, चोद्दसमे पण्णवीसानो ।६।। चत्तारि, दुवालस, अट्ठ चेव दस चेव चुल्लवत्थूणि । आइल्लण चउण्हं, सेसाण चूलिया नत्थि। से त पुव्वगए (३)।११॥ से किं त अणुप्रोगे ? अणुप्रोगे दुविहे पण्णत्ते, तजहामूलपढमाणुओगे, गडियाणुप्रोगे य । सेकिं तं मूलपढमाणुप्रोगे? मूलपढमाणुप्रोगे ण अरहताण भगवताण पुव्वभवा, देवगमणाई, आउं, चवणाइ, जम्मणाणि, अभिसेया, रायवरसिरीयो, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयानो, तित्यपवत्तणाणि य. सीसा, गणा, गणहरा, अज्जपवत्तिणीओ संघस्स चउव्विहस्स ज , च परिमाण, जिणमणपज्जवमोहिनाणी, सम्मत्तसुयनाणिणो य वाई, अणुत्तगई य उत्तरवे उग्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिर च कालं, पाओवगया जे जहिं जत्तियाई भत्ताइ अणसणाए छेइत्ता अंतगडे, मुणिवरुत्तमे, तिमिरोघविप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते, एवमन्ने य Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० नन्दीमूत्र-उपसहार एवमाइभात्रा मूलपढमाणनोगे काया, से तं मूलपढमाणुओगे । से कि त गडियाणुप्रोगे ? गडियाणुयोगे कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियानो, चक्कवट्टिगडियायो, दसारगंडियानो, बलदेवगंडियानो वासुदेवगडियामो गणधरगंडियानो,भद्दवाहुगंडियानो, तवोकम्मगडियायो,हरिवमगडियायो उस्सप्पिणीगडियायो,ओसप्पिणीगडियाओ चित्ततरगडियायो अमर-नर-तिरिय-निरय-गइगमण-विविहपरियट्टणेमू एवमाइयायो गंडियानो पाघविज्जंति, पण्णविज्जति । से त गंडियाणुनोगे, मे तं अणु ग्रोगे (४)। से कि तं चूलियायो ? चूलियाग्रो आइल्लाणं चउण्ह पुवाणं, चूलिया, सेमाई पुवाइ अचूलियाई । मे तं चलियानो (५)। दिद्विवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुयोगदारा, मखंज्जा वेढा, संख ज्जा मिलोगा,संखेज्जायो पडिबत्तीग्रो, सखिज्जायो निज्जत्तीमो, संखेज्जायो सगहणीयो। से ण अंगठ्ठयाए वारसमे अगे, एगे सुयक्खघे, चौदस पुबाई, सखेज्जा दत्थू , सखेज्जा चलवत्थू ,संखेज्जा पाहुडा, संखेज्जापाहुडपाहुडा,संखेज्जायो पाहुडियाओ,संखेज्जासो पाहुडपाहुडियायो, सखेज्जाई पयसहस्साइं पयरगेणं, सखेज्जा श्यक्खरा, अणता गमा, अणता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निवद्ध-निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविज्जति, पहविज्जति, दसिज्जति निदंसिज्जति, उवदासज्जति । से एव पाया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एव चरणकरणपरूवणा आघविज्जति । स त दिदिवाए।१२। सूत्र-५८ इच्चेइयंमि दुवालसगे गणिपिडगे अणंता भावा अणता अभावा अणता हेअ, अणता अहेऊ, अणता कारणा, Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २८१ अणता अकारणा, अणता जीवा, अणता अजीवा, अणता भवसिद्धिया, अणता अभवसिद्धिया, अणता सिद्धा, अणता असिद्धा पण्णत्ता भावमभावा हेऊमहेऊ कारणमकारणे चेव । जीवाजीवा भवियमभविया, सिद्धा असिद्धा य ।।२। इच्चेयं दुवालसगं गणिपिडगं तीए काले अणता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरत ससारकतारं अणुपरियट्टिसु इच्चेइय दुवालसंग गणिपिडग पड़प्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकतार अणुपरियति । इच्चेइय दुवालसंगं गणिपिडग अणागए काले अणता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं ससारकंतारं अणुपरियट्टिस्सति । इच्चेइयं दुवालसगं गणिपिडग तीए काले अणता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंत ससारकतार वोईवइसु । इच्चेइय दुवालसगं गणिपिडग पड़प्पणकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरत ससारकतार वीईवयति । इच्चेइय दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणता जीवा प्राणाए आराहित्ता चाउरत संसारकंतारं वीईवइस्सति । इच्चेइय दुवालसंग गणिपिडग न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, प्रवट्रिए, निच्चे । से जहानामए पचत्थिकाए न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे, एवामेव दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ नन्दीसूत्र-उपसहार न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए सासए, अक्खए, अव्वए अवट्ठिए, निच्चे । से समासो चउन्विहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्वरो, खित्तयो, कालो भावयो । तत्थ दव्वनो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदम्वाइ जाणइ पासइ, खित्तमओ ण सुयनाणी उवउत्ते सव्व खेत्त जाणइ पासइ, कालो ण सुयनाणी उवउत्ते सव्व कालं जाणइ पासइ, भावग्रोण सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ। सूत्र-५६ अक्खर सन्नी सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमिय अगपविठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ।६३। आगमसत्थरगहण, ज बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिछ । विति सुयनाणलभं, तं पुत्वविसारया धीरा ।९४ सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ य, ईहए याऽवि ! तत्तो अपोहए वा, धारेइ करेइ वा सम्म १९५॥ मूग्र हुंकार वा, बाढक्कार पडिपुच्छ वीमंसा । तत्तो पसंगपारायण च, परिणि? सत्तमए ।९६। सुत्तत्यो खलु पढमो, वीनो निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ। तइयो य निरवसेसो, एस विही होइ अणुनोगे १९७। से तं अगपविट्ठ से त सुयनाण। से तं परोक्खनाण। से तं नंदी। ॥ नंदीसुत्तं समत्तं ॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २८३ श्री अणुत्तरोववाइयदसा सूत्र तेणं काले ण, तेण समए ण, रायगिहे णाम णयरे होत्या, सेणियणामं राया होत्था चेलणा देवी, गुणसिलए चेइए वण्णयो। । तेण कालेण तेण समएण रायगिहे णयरे, अज्जसुहम्मस्स समोसरण, परिसा णिग्गया, धम्मोकहियो, परिसा पडिगया ।२। जब जाव पज्जुवासइ एव वयासी-जइ ण भते । समणेण जाव सपत्तेण अट्ठमस्स अगस्स अतगडदसाण अयमठे पण्णत्ते, नवमस्स णं भते । अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव सपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? 1३। तएण से सुहम्मे अणगारे, जंवू अणगारं एवं वयासीएव खलु जंबू ! समणेण जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता ४१ जइ ण भते । समणेणं जाव सपत्तेण नवमस्स अगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तो वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स ण भते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाण समणेण जाव सपत्तेण कइ अझयणा पण्णत्ता ? ।। एवं खलु जबू! समणेण जाव सपत्तेणं अणत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वगस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, त जहाजालि, मयालि, उवयालि, पुरिससेणे य, वारिसेणे य, । दीहदते य, लढदते य, वेहल्ले, वेहासे, अभयेति व कुमारे ।१६। जइ ण भते ! समणेणं जाव सपत्तेणं अणुत्तरोववाइय Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ अनूत्तरोववाइय वर्ग १ दसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेण जाव सपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ?।७। एव खलु जम्बू । तेण कालेणं तेण समएण रायगिहे नयरे रिद्धिस्थिमिय समिद्धे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, धारणी देवी, सीहसुमिण पासित्ताण पडिबुद्धा, जाव जालि कुमारे जाए, जहा मेहो जाव अट्ठट्ठओ दानो, जाव उत्पिपासाए जाव विहरइ । तेण कालेण तेण समएणं समण भगव महावीरे जाव समोसढे, सेणिओ णिग्गओ, जाली जहा मेहो तहा जाली वि णिग्गओ, तहेव णिक्खतो, जहा मेहो, एक्कारस अंगाई अहिज्जइ। तएणं से जाली अणगारे जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ वदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे गुणरयण संवच्छरं तवोकम्म उवसंपजित्ता णं विहरित्तए ? अहासुह देवाणु प्पिया ! मापडि. बध करेह ।१०। तएण से जाली अणगारे समणेणं भगवया महावीरेण अभणुणाए समाणे समण भगव महावीर वदइ नमसइ वंदित्ता णमसित्ता गुणरयण सत्रच्छरं तवोकम्म उवसपजित्ता ण विहरइ । तं जहा पढमं मास च उत्थ चउत्थणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कड़ए सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेणं अवाउडेण य । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २८५ दोच्चं मास छठें छठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्ति वीरासणेणं अवाउडेण य।। तच्च मासं अट्टमं अट्ठमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेण दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे, पायावण-भूमीए आयावेमाणे, रत्ति वीरासणेणं अवाउडेण य ।। चउत्थ मासं दसम दसमेण अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेण अवाउडेण य । पंचमं मासं वारसमं बारसमेण अनिक्खित्तेण तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कड़ए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेण अवाउडेण य।। छट्ठ मास चउदस चउदसमेणं अणि क्खित्तेण तवोकम्मेणं दियाठाणुक्कडुए सुराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेण अवाउडेण य । सत्तम मासं सोलसमं सोलमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सुराभिमुहे पायावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणे अवाउडेण य । अट्ठम मासं अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं अनिक्खित्तेण तवो. कम्मेण दियाट्ठाणुक्कडुए सुराभिमुहे पायावणभूमीए पायावेमाणे, रति वीरासणेण अवाउडेण य ।। णवमं मास वीसइमं वीसइमेण अनिक्खित्तेण तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए, रत्ति वीरासणेणं Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ अनुत्तरोववाइय वर्ग २ से ण भते ! तानो देवलोगानो आउक्खएण भवक्खएण ठिइक्खएण कहिं गच्छहिइ कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा । महाविदेहे वासे सिझिस्सइ जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सइ ।१८। एवं खलु जंबू ! समणेण जाव सपत्तेण अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते । एव सेसाण वि अटण्हं भाणियव्यं । नवर छ धारिणिसुया वेहल्ल-वेहासा चेल्लणाए। अभयस्स णाणत्तं, रायगिहे णगरे, सेणिए राया, णंदादेवी माया, सेस तहेव । पाइल्लाणं पचण्हं सोलस वासाइ सामण्णपरियायो, तिण्हं बारस वामाई, दोण्ह पच वासाइं । पाइल्लाण पचण्ह प्राणुपुवीए उववायो विजए विजयते जयते अपराजिए सव्वदसिद्धे । दीहदते सन्चसिद्धे, अणुक्कमेण सेसा । अभयो विजये। सेसं जहा पढमे । - एव खलु जवू ! समणेण जाव सपत्तेण अणुत्तरोववाइयदसाण पढ मस्स वगस्स अयमढे पण्णत्ते । ॥ इति पढम वग्गम्स' दस अज्झयणा समत्ता ।। द्वितीय वर्ग जइ ण भंते । समणेण जाव संपत्तेण अणत्तरोंववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाण समणेण जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ।। एव खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाण दोच्चस्स वगस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहा Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - A -..ADAI 4w .- N जन स्वाध्यायमाला २९६ दीहसेणे महासेणे, लट्ठदते य गुढदते य । सुद्धदते य हल्ले, दुमे दुमसेणे महादुमसेणे य पाहिए ।१। सीहे य सीहसेणे य, महासीहसेणे य पाहिए । पुन्नसेणे य बोधव्वे, तेरसमे होइ अज्झयणे ।२। जइ ण भते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स ण भते । वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स समणेण जाव सपत्तेणं के अछे पण्णत्ते ? एवं खल जम्बू ! तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहो ___ सुमिणे जहा जाली तहा जम्म, वालत्तणं कलायो, णवर दीहसेणे कुमारे सव्वे वत्तन्वया,जहा-जालिस्स जाव अतं काहिति।। एव तेरसवि, रायगिहे नयरे, सेणियो पिया, धारिणी माया तेरसण्हवि सोलसवासाए परियाय मासियाए सलेहणाए आणुपुवीए उववाओ विजए दोन्नि, वेजयते दोन्नि, जयते दोन्नि, अपराजिते दोन्नि, सेसा महादुमसेणमाइए पंच सव्वट्ठसिद्धे । एव खलु जम्बू । समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमठे पण्णत्ते, मासियाए सलेहणाए दोसुवि वग्गेसु। - ॥ वीओ वग्गो समत्तो।। । तृतीय वर्ग जइ ण भते ! समणेण जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइय Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ अणुत्तरोववाइयदसा-जाली अनगार अवाउडेण य । दसम मासं बावीसाए बावीसईमेण अनिक्खित्तेण दियट्ठाणूक्कडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए पायावेमाणेणं रत्ति वीरासणेण अवाउडेण य । एकारसमं मास चउवीसाए चउवीमईमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेण दियट्ठाणुक्कडुए मूराभिमुहे आयामणभूमीए पायावेमाणे रत्ति वीरासणेणं अवाउडेण य । बारसम मास छब्बीसाए छन्वीसईमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए आयावेमाणे रत्ति वीरासणेण अवाउडेण य । तेरसमं मासं अट्ठावीसाए अट्ठावीसईमेण अनिक्खित्तेण तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए आया वेमाणे रत्ति वीरासणेण अवाउडेण य । । चउदसमं मास तीसइ तीसईमेण अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए आयावेमाणे रति वीरासणेणं अवाउडेण य । पन्नरसम मासं वत्तीसइमं बत्तीसईमेणं अनिविखत्तेणं तवोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए पायावेमाणे रत्ति वीरासणेणं अवाउडेण य । सोलमं मासं चोत्तीसइमं चोत्तीस ईमेणं अनिक्खित्तेणं तबोकम्मेणं दियट्ठाणुक्कडुए सूराभिमुहे पायावणभूमीए आयावेमाणे रति वीरासणेण अवाउडेण य ।११।। तएणं से जाली अणगारे गुणरयणं संवच्छरं तवोकम्म Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला 11 २८७ ग्राहासुतं ग्रहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं समकाएण फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तिरित्ता किट्टित्ता आणाए प्राराहित्ता | १२| जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वदइ नमसइ वदित्ता नमसित्ता बहुहिं चउत्थ छट्ट अट्टम दसम दुवालसेहि मासेहिं श्रद्धमासखमहिं विचित्तेंहि तवो कम्मेहि अप्पाण भावेमाणे विहरइ | १३ | तएण से जाली अणगारे तेण उरालेणं विउलेण पयतेण पग्गहिएणं एव जा चेव जहा खदगस्स वत्तव्वया सा चेव चिंतणा आपुच्छणा थेरेहि सद्धि विउल तहेव दुरूहइ, णवरं सोलस्स वामाइ साम्मण्ण परियाग पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उड्ढ चदिमाई सोहम्मीसाण जाव चारणच्चुए कप्पे नव य गेवेज्जे विमाणपत्थडे उड्ढं दूर वीईवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उवणे |१४| तएणं ते येरा भगवंतो जालि अणगारं कालगय जाणित्ता, परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेति । पत्तचीवराई गिति तहेव उत्तरंति जाव इमे से प्रायारभडए ।१५। भंते त्ति ! भगवं गोयमे जाव एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जाली नामं अणगारे पगइभद्दए, सेण जाली अणगारे कालगए कहि गए कहि उववण्णे ? एव खलु गोयमा ! मम अतेवासी तहेव जहा खदयस्स जाव कालगए उड्ढं चंदिमाई जाव विजयविमाणे देवत्ताए उववण्णे । १६ । जालिस ण भते । देवस्स केवइय कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बत्तीस सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता | १७| NO Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ अनुत्तरोववाश्य वर्ग २ से ण भते ! तायो देवलोगायो ग्राउखएण भवक्खएण ठिइक्खएण कहिं गच्छहिइ कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिभिस्सइ जाव सम्बदुक्खाणमतं करिस्सइ ।१८) एवं खलु जंबू समणेण जाव सपत्तेण अणुत्तरोववाइयदसाण पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अभयणस्स अयमटठे पण्णत्त । एव सेसाण वि श्रढण्ह भाणियव्यं । नबर छ धारिणिसुया वेहल्ल-वेहासा चेल्लणाए। अभयस्स णाणत्त, रायागह णगरे, सेणिए राया, णदादेवी माया, सेसं तहेव । पाइल्लाण पचण्हं सोलस वासाइ सामण्णपरियायो तिण्हं बारस वामाइ, दोण्हं पच वासाइ । पाइल्लाण पचण्ह प्राणपूवीए उववाया विजए विजयते जयते अपराजिए सव्वदसिद्धे । दीहदते सव्वदृसिद्धे, अणुक्कमेण सेसा । अभो विजये। सेसं जहा पढमे । __ एव खलु जव । समणेण जाव सपत्तेण अणत्तरोववाइयदसाण पढमस्स वग्गस्स अयमठे पण्णत्ते । ॥ इति पदम वग्गस्स दस अज्झयणा समत्ता ॥ द्वितीय वर्ग जइ ण भंते । समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाण पढमस्स वग्गस्स अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स ण भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाण समणेण जाव संपत्तेण के अटठे पण्णत्ते ।। एव खलु जम्बू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स बग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहा Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 जैन स्वाध्यायमाला २८६ दीहसेणे महासेणे, लट्ठदते य गुढदते य । सुद्धदते य हल्ले, दुमे दुमसेणे महादुमसेणे य आहिए |१| सीहे य सीहसेणे य, महासीहसेणे य ग्राहिए । पुन्नसेणे य बोधव्वे, तेरसमे होइ अज्झयणे |२| जइ ण भते । समणेणं जाव सपत्तेण प्रणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स ण भंते । वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स समणेणं जाव सपत्तेण के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खलु जम्बू ! तेण कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया, धारिणी देवी, सीहो सुमिणे जहा जाली तहा जम्म, वालत्तणं कलाओ, णवर दीहसेणे कुमारे सव्वे वत्तव्वया, जहा- जालिस्स जाव श्रतं काहिति । १ । एव तेरसवि रायगिहे नयरे, सेणिश्रो पिया, धारिणी माया तेरसहवि सोलसवासाए परियाय मासियाए सलेहणाए ग्राणुपुव्वी उववाओ विजए दोन्नि, वेजयंते दोन्नि, जयंते दोन्नि, अपराजिते दोन्नि, सेसा महादुमसेणमाइए पंच सव्वट्टसिद्धे । एव खलु जम्बू ' समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाण दोच्चस्स वग्गस्स श्रयमट्ठे पण्णत्ते, मासियाए सलेहणाए दोसुवि वग्गेसु । ॥ वोओ वग्गो समत्तो ॥ तृतीय वर्ग जइ ण भंते । समणेण जाव संपत्तेणं प्रणुत्त रोववाइय Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० अणुत्तरोववाइय वर्ग ३ धन्ना अनगार दसाण दोच्चस्म वग्गस्स अयमठे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेण जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? ११॥ एव खलु जम्बू ' समणेण जाव सपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता तजहा धण्णे य सुनक्खत्ते य, इसिदासे य पाहिए । पेल्लए रामपुत्ते य, चदिमा, पिढिमाइ य ।। पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पोट्टिले इ य । वेहल्ले दसमे वुत्ते, इमे य दस ग्राहिया ।२। जइ णं भंते । समणेण जाव संपत्तेण अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स ण भते ! अज्झयणस्स समणेण जाव सपत्तेण के अठे पण्णत्ते ?।३। एव खलु जम्बू ! तेण कालेण तेण समएण काकदो नाम नयरी होत्या रिद्धितियमियसमिद्धा, सहस्संबवणे उज्जाणे सबोउयपुप्फफलसमिद्धे जाव पासाइए, जियसत्तू राया ।४। तत्थ णं काकदीए नयरीए भद्दा णामं सत्यवाही परि. वसइ, अड्डा जाव अपरिभूया ।५। तीसे ण भद्दए सत्थवाहीए पुत्ते धन्ने नामं दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे, पचधाई-परिग्गहिए, तजहा-खीरधाइए जहा महबलो जाव वावतरि कलाओ अहिए जाव अल भोगसमत्थे जाए यावि होत्था ।६।। तए ण सा भद्दा सत्यवाही धण्णदारयं उम्मुक्कवालभाव जाव भोगसमत्थ जाणित्ता, बत्तीस पासायडिसए कारेइ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला , २६१ प्रभुग्गयमूसिए जाव तेसि मज्झे अणेग भवण- खभ-सय- सन्निविट्ठे जाव बत्तीसाए इब्भवरकन्नगाणं एगदिवसे ण पाणिगिण्हावेइ गिण्हा वित्ता बत्तीसा दाम्रो जाव उप्पि पासायवडिसए फट्टतेहिं मुइगमत्यएहिं जाव विहरइ |७| सढे, परिसा निग्गया, जहा कोणि तेण कालेणं तेणं समएण समणे भगव महावीरे समोतहा जियसत्तू णिग्गयो | तए णं तस्स घण्णस्स त महया जणसद्द जंहा जमाली तहा णिग्ग णवरं पायचारेण जाव जं णवर अम्मय भद्दं सत्यवाहि आपुच्छामि, तए ण ग्रह देवाणुप्पियाण अतिए जाव पव्वयामि जाव जहा जमाली तहा ग्रापुच्छइ, मुच्छिया, वृत्तपडिवुत्तया, जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाइया, जहा थावच्चापुत्ते तहा जियमत्तू प्रापुच्छइ, छत्तचामराम्रो, सयमेव जियसत्तू निक्खमण करेइ, जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो, जाव पव्वइए, अणगारे जाए, ईरियासमिए जाव गुत्तबभयारी || तएण से धणे अणगारे, ज चेव दिवस मुडे भवित्ता जाव पव्वइए त चेव दिवस समणं भगवं महावीर वदइ नमसइ वदित्ता नमसित्ता एवं वयासी - एव खलु इच्छामि णं भते । तुभेहि मण्णा समाणे जावज्जीवाए छट्ठ-छट्ठेणं आणिविखत्तेणं आयबिल-परिग्गहिएणं तवोकम्मेण ग्रप्पाण भावेमाणे विहरितए, छट्टम्सवि य ण पारणगसि कप्पइ मे ग्रायविलं पडिग्गहित्तए, णो चेव ण अणायबिल, तंपि य संसठ्ठेण णो चेव ण असंसठ्ठेण, तपि य ण उज्झियधम्मय णो चेव णं प्रणुज्झियधम्मियं तपि य णं जं अन्ने बहवे समणमाहण अतिहि-किवण ? Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ अणुत्तरोववाइय वर्ग ३ धन्ना अनगार वणिमगा णावकखति । अहासुह देवाणुप्पिया मा पडिबंध करेह ।१०१ तएण से धणे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अभणुण्णायसमाणे हट्ठ-तुटु जावज्जीवाए छह-छद्रेण अणिदिखत्तेणं तवोकम्मेण अप्पाण भावेमाणे विहरइ।११ तएण से धणे अणगारे पढम छट्टखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ जहा गोयमसामी तहेव पापुच्छइ जाव जेणेव काकदी णयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता काकंदीए णयरीए उच्चनीय जाव अडमाणे प्रायविलं जाव नावकखइ ।१२। तए ण से धण्णे अणगारे ताए अभुज्जताए पयययाए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जइ भत्त लभइ तो पाणं ण लभइ, अह पाणं लभइ तो भत्तं ण लभइ ।१३। । तए ण धणे अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंतजोगी जयणघडण-जोग-चरित्ते अहापज्जत्तं समुदाण पडिगाहेइ पडिगाहित्ता काकदीयो णयरीओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमइत्ता जहा गोयमे तहा पडिदसेइ ।१४। तए णं से धण्णे अणगारे, समणेण भगवया महावीरेणं अभणुण्णाए समाणे अमुच्छिए जाव अणज्झोपवण्णे बिलमिव पग्णगमूएणं अप्पाणेण आहार आहारेइ आहारित्ता, संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ ।१५। तए णं समणे भगव महावीरे अण्णया कयाइ काकंदीग्रो गयरीनो सहस्सववणानो उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ पहिणि. Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६३ क्खमित्ता बहिया जणवयविहार विहरइ ।१६। तए ण से धणे अणगारे समणस्स भगवो महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अतिए सामाइयमाइयाइ एक्कारस मगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे - विहरइ ।१७। तए णं से घण्णे अणगारे तेण ओरालेणं जहा खदमोजाव सहययासणे इव तेयसा जलते उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्टइ। धन्नस्स ण अणगारस्स पयाण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए सुक्खछल्लोइ वा, कट्ठपाउयाइ वा, जरगोवाहणाइ वा, एवामेव धन्नस्स अणगारस्स पाया सुक्का भक्खा लुक्खा णिम्मसा अट्ठिचम्मछिरत्ताए पण्णायति, नो चेव णं मससोणियत्ताए ।१९ . धन्नस्स ण अणगारस्स पायगुलियाण अयमेयारूवे तव. रूबलावण्णे होत्था से जहानामए-कलसंगलियाइ वा मुग्गसंगलियाइ वा माससगलियाइ वा, तरुणिया छिण्णा उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी मिलायमाणी मिलायमाणी चिटुइ, एवामेव धन्नस्स पायंगुलियाओ सुक्काओ जाव णो मंससोणियत्ताए ।२०। धन्नस्स ण अणगारस्स जघाण अयमेयाल्वे तवरूवलावणे होत्था, से जहानामए-काकजवाइ वा, ककजघाइ वा, ढेणियालियाजंघाइ वा, एव जाव सोणियत्ताए ।२१।। धन्नस्स ण जाणूण अयमेयारूवे तवरूबलावण्णे होत्था, से जहानामए-कालिपोरेइ वा, मयूरपोरेइ वा, ढेणियालियापोरेइ वा, एव जाव सोणियत्ताए ।२२। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ अणुत्तरोववाइय वर्ग ३ धन्ना अनगार धन्नम्सण उरूणं अयमेयारूवे तवरूवलावणे होत्था, से जहानामए-सामकरिल्लेइ वा, वोरी करिल्लेइ वा, सल्लइय. करिल्लेइ वा, मामलिकरिल्लेइ वा, तरुणिया छिन्ना उण्हे दिण्णा जाव चिट्ठइ, एवामेव धनस्म उरूणं जाव सोणियत्ताए ।२३। धनम्स ण कडिपत्तस्स इमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-उट्टपाएड वा, जरग्गपाएइ वा, महिसपाएइ वा, जाव सोणियत्ताए ।२४। ____ धन्नस्स ण उदर मायणस्स अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-मुक्कदिएइ वा, भज्जणय-कभल्लेइ वा, कटकोलवएइ वा, एवामेव उदरमुक्क ।२५॥ धन्नस्स ण पामुलियकडयाण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-थासयावलीइ वा, पाणावलीइ वा, मुडा-, वलीइ वा, एवामेव पामुलियाकडयाण जाव सोणियत्ताए ।२६१ धन्नस्स पिटक रडगाण अय मेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-कन्नावल्लीइ वा, गोलावलीइ वा, वट्टावलीइ वा एवामेव पिट्ठकरंडगाण जाव सोणियत्ताए ।२७। धन्नस्स उरकडयस्स अयमेयारूवे तवस्वलावण्णे होत्था, से जहानामए-चित्तकट्टरेइ वा, वियणपत्तेइ वा, तालियंटपत्तेइ वा, एवामेव उरकायस्स जाव सोणियत्ताए ।२८१ धन्नस्स वाहाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-समिसगलियाइ वा वाहायासंगलियाइ वा, अगस्थिवसंगलियाइ वा, एवामेव वाहाण जाव सोणियत्ताए ।२६। धन्नस्स हत्याण अयमेयारूवे तवरूवलावणे होत्या, से Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६५ जहानामए-सुक्कछगणियाइ वा, वडपत्तेइ वा एवामेव हत्थाण जाव सोणियत्ताए ।३०। धन्नस्स हत्थगुलियाण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-कलायसंगलियाइ वा, मुग्गसगलियाइ वा माससंगलियाइ वा, तरुणिया छिन्ना आयवे दिण्णा सुक्का समाणी एवामेव हत्थगुलियाण जाव सोणियत्ताए ।३१।। धन्नम्स गीवाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-करगगीवाइ वा, कुडियागोवाइ वा, (कोत्थवणाइ वा) उच्चट्ठवणएइ वा एवामेव गीवाए जाव सोणियत्ताए ।३२॥ धन्नस्स ण हणुयाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्ण होत्था, - से जहानामए-लाउयफलेइ वा, हकुवफलेइ वा अवगट्टियाइ वा एवामेव हणुयाए जाव सोणियत्ताए ।३३। धन्नस्स ण ओट्ठाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-सुक्कजोयाइ वा, सिलेसगुलियाइ वा, अलत्तगगलियाइ वा, (अबाडगपेसोयाइ वा) एवामेव प्रोट्ठाण जाव सोणियत्ताए ।३४। धन्नस्स णं जिब्भाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-वडपत्तेइ वा, पलासपत्तेइ वा (उबरपत्तेइ वा) सागपत्तेइ वा एवामेव जिब्भाए जाव सोणियत्ताए ।३५॥ धन्नस्स नासाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था. से जहानामए-अंबगपेसियाइ वा, अवाडगपेसियाइ वा, माउलिंगपेसियाइ वा, तरुणियाइ वा, एवामेव नासाए जाव सोणियत्ताए। धन्नस्स अच्छीण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्या से Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोववाइयदसा - वर्ग ३ धन्ना अनगार जहानामए - वीणाछिड्डेइ वा वद्धीसगछिड्डेइ वा, पाभाइयतारिगाइ वा, एवामेव अच्छीण जाव सोणियत्ताए । ३७। धन्नस्त ण अणगारस्स कन्नाण ग्रयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्या, से जहानामए - मूलाछल्लियाइ वा, वालुकच्छल्लियाइ वा, कारेल्लयच्छल्लियाइ वा, एवामेव कन्नाण जाव सोणियत्ताए । धन्नस्स ण णगारस्स सीसस्स प्रयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए - तरुणगलाउएइ वा, तरुणगएलालुयइ वा सिन्हालएइ वा तरुणए जाव चिट्ठइ एवामेव धन्नस्स अणगारस्स सीस सुक्कं भुक्क लुक्खं निम्मंसं श्रट्ठचम्म छिरत्ताए पन्नाय नी चेवण मंससोणियत्ताए | ३६ | एवं सत्र्वत्थ नवर उदरभायण कन्नजीहाउट्ठा एएसि अट्ठी न भण्णइ, चम्मछिरत्ताए पन्नायइत्ति भण्णइ । धन्ने ण अणगारे सुक्केण भुक्खेणं पायजंघोरुणा विगयतडिकरालेण कडिकडाहेणं पिट्ठमवस्सिएण उदरभायणेण जोइज्जमाहि मुलिकडएहि अक्खमुत्तमालाड वा गणिज्जमालाइ वा गणेज्जमाणेहि पिट्टिकरंडगसंधीहि गंगात रंगभूएणं, उरकडगदेसभाएणं सुक्क सप्पसमाणाहि वाहाहि सिढिलकडाली विव चलतेहि य हत्थेहि कपणवाइओ विव वेवमाणीए सीसघडीए पव्वायवदण-कमले उभडघडामुहे उब्वुडुणयणकोसे |४१ | · जीव जीवेण गच्छइ, जीव जीवेणं चिट्ठइ भासं भासिस्सामित्ति गिलायइ से जहानामए - इंगालसगडियाई वा, जहा खदग्रो तहा हुयासणे इव भान-रासिपलिच्छन्ने, तवेण तेएणं तवतेयसिरीए उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठइ |४२ | २६६ B Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला २६७ तेण कालेण तेण समएण रायगिहे णयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया । समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा णिग्गया सेणियो णिग्गयो, धम्मकहा, परिसा पडिगया ।४३। तए ण से सेणिए राया समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म समण भगव महावीर वंदइ नमसइ वदित्ता नम सित्ता एव वयासी-इमेसि णं भते । इदभइपामोक्खाण चोदसण्ह समणसाहस्सीणं कयरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरत राए चेव ? १४४। एव खलु सेणिया | इमेसिं इंदभूइपामोक्खाणं चोद्दसण्ह समणसाहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेव, महाणिज्जरतराए चेव ।४५। से केणटठेण भते । एव वुच्चइ इमेसिं चउद्दसण्हं समणसाहस्सीण धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव ।४६। एव खलु सेणिया । तेण कालेण तेण समएण काकदी नाम नयरो होत्था, जाव उप्पिपासायवडिसए विहरइ । तए णं अहं अण्णया कयाइं पुव्वाणुपुवीए चरमाणे गामाणगाम दुइज्जमाणे जेणेव काकदी नयरी जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तणेव उवागए उवागइत्ता प्रहापडिरूव उग्गह उग्गिण्हित्ता सजमेण तवसा जाव विहरामि । परिसा णिग्गया, तं चेव जाव पव्वइए जाव बिलमिव जाव आहारेइ । धन्नस्स ण अणगारस्स पायाणं सरीरवन्नो मन्वो जाव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिटुइ । से तेणठेण सेणिया | एवं वुच्चइ इमेसिं चोद्दसण्हं समणसाह Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ अणुत्तरोववाइय सूत्र वर्ग ३ धन्ना अनगार 9 ds स्सीण धन्ने ग्रणगारे महादुक्करकारए चेव महानिज्जरतराए चेव । तण से सेणिए राया समणस्स भगवग्रो महावीरस्स अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट समण भगव महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण पयाहिण करेइ करिता वदइ नमसइ वदित्ता नमसित्ता जेणेव धन्ने अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धन्न अणगारं तिक्खुत्तो श्रायाहिण पयाहिण करेइ करिता चदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एवं व्यासी-धन्ने सि णं तुम देवाणुप्पिया ! सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे सुलद्धे ण देवाणु - प्पिया । तव माणुस्सए जम्मजीवियफले त्ति कट्टु वदइ नमंसइ वदित्ता नमसित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समण भगवं महावीर तिक्खुत्तो जाव वदइ णमंसइ, वंदिता णमंसित्ता जामेव दिसि पाउए तामेव दिसि पडिगए । तए गं तस्स धन्नस्स अणगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयसि धम्म जागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे ग्रज्भयिए चितिए मणोगए संकप्पे समूपज्जित्था, एवं खलु अहं इमेणं श्रोरालेण जहा खदयो तहेव चिता ग्रापुच्छृणं, थेरेहि सद्धि विउल दुरुहइ । मासियाए संलेहणाए नवमासा परिया जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढ चदिम जाव णव य गेविज्ज विमाणपत्थडे उड्ढं दूर विश्वइत्ता सव्वसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववन्ते ||४३|| थेरा तहेव प्रोयरति जाव इमे से आधारभडए ॥५०॥ भते त्ति, भगव गोयमे तहेव पुच्छर जहा खदयस्स Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला २६६ भगवं वागरेड जाव सवसिद्ध विमाणे उववन्ने ॥५॥ धन्नस्सण भते । देवस्स केवइय कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा । तेत्तीस सागरोवमाइ ठिई पन्नत्ता ।।५२।। सेण भते । तारो देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएणं ठिई क्खएण कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा । महाविदेहवासे सिझिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्व दुक्खाणमत करेहिइ ॥५३।। एव खलु जम्बू । समणेण भगवया महावीरेणं जाव __ संपत्तेण पढमस्स अज्झयण्णस्स अयमठे पण्णत्ते ।।५४|| ॥ पढम अज्झयण सम्मत्त ।। जइणं भते । उक्खेवप्रो एवं खलु जम्बू । तेणं कालेणं तेण समएण काकदी नयरी होत्था भद्दा सत्यवाही परिवसइ ।। तीसेण भद्दाए सत्यवाही पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्या, अहिण जाव सुरूवे, पंचधाइ-परिक्खित्ते जहा धन्ने तहेव बत्तीस्सयो दामो जाव उप्पि पासायडिसए विहरइ ॥२॥ तेण कालेण तेणं समएण सामी समोसड्ढे जहा धन्ने तहा सुणक्खत्तेवि णिक्खत्ते जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्त वभयारी ॥३॥ तएण से सुनक्खत्ते अणगारे ज चेव दिवस समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए मुडे जाव पव्वइए त चेव दिवसं अभिग्गह तहेव विलमिव-पणगभूएणं आहारं पाहारेइ, संजमेणं जाव विहरइ जाव बहिया जणवयविहारं विहरइ, एक्कारस Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० ___ अणुत्तरोववाइय-उपसहार अंगाई अहिज्जइ, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तएण से सुनक्खत्ते अणगारे तेण उरालेण जहा खदो। तेण कालेणं तेण समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए, सेणिए राया सामीसमोसढे, परिसा णिग्गया, राया निग्गयो धम्मकहा राया पडिग्गो परिसा पडिगया ।७। तएण तस्स सुनक्खत्तस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्ता वरत्तकालसमयसि धम्म जागरिय जहा खदयस्स बहुवासाम्रो परियायो ।८। गोयम पुच्छा जाव सव्वसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे। जाव महाविदेहवासे सिज्झिहिइ ।। । इति वीय अज्झयण सम्मत्त । एव खलु जम्बू ! सुनक्खत्तगमेण सेसावि अट्ठ भाणियव्वा, णवर आणुपुब्बीए-दोन्नि रायगिहे, दोन्नि साएए, दोन्नि वाणियग्गामे, नवमो हत्यिणापुरे, दसमो रायगिहे ।। नवण्ह भद्दारो जणणीप्रो, नवण्हवि बत्तीसपो दाओ नवण्ह निक्खमण थावच्चापुत्तस्स सरिस, वेहल्लस्स पिया करेइ, नवमास धण्णे वेहल्ल छमासापरियाअो, सेसाण वहुवासाई, मासं संलेहणा सव्वट्ठसिद्धे महाविदेहवासे सिज्झिहिति । एव दस अज्झयणाणि । एवं खलु जम्बू | समणेण भगवया महावीरेण आइगरेण तित्ययरेण सयंसवधेण लोगनाहेण लोगप्पदीवेण लोगपज्जोयगरेण अभयदएण सरणदएण चक्खुदएण मग्गदएण धम्मदएणं धम्मदेसएण धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरनाणदसणधरेण जिणेण जावएणं वुद्धेण वोहएण मुक्केणं Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३०१ मोयगेणं तिन्नेण तारएण सिवमयल मरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तियं सिद्धिगइनामधेयं ठाण संपत्तेण अणुत्तरोववाइयदमाण तच्चस्स वग्गस्स अयमढे पन्नत्ते । अणुत्तरोववाइयदसाम्रो सम्मत्तानो। अणुत्तरोववाइयदसाणं एगो मुयखधो तिणि वग्गा तिसु दिवसेसु उद्दिसिज्जति, पढमे वग्गे दस उद्देसगा, बीए वग्गे तेरस उद्देसगा, तइये वग्गे दस उद्देसगा, सेस जहा धम्मकहा नायव्वा ।।इति।। ॥चउसरण पइण्णा ॥ १ सावज्जजोगविरई, २ उक्कित्तण, ३ गुणवो य पडिवत्ती। ४ खलिअस्स निंदणा,५ वणतिगिच्छ,६ गुणधारणा चेव।१। चारित्तस्स विसोही, कीरइ सामाइएण किल इहय । सावज्जेअरजोगाण, वज्जणासेवणत्तणो ।२। दसणायारविसोही, चउवीसत्थएण किच्चइ य । अच्चब्भुप्रगुण कित्तणरूवेण जिणवरिंदाणं ।३। नाणाईमा उ गुणा, तस्सपन्नाडिवत्तिकरणानो। वदणएण विहिणा, कीरइ सोही उ तेसिं तु ।४। खलिअस्स य तेसि पुणो, विहिणा ज निंदणाइ पडिक्कमणं। तेण पडिक्क्रमणेणं, तेसिपि अकीरए सोही ।। चरणाईयारा ण जहक्कम्मं वणतिगिच्छरूवेण। पडिक्कमणासुद्धाण, सोही तह काउसग्गेण ।६। गुणधारणरूवेण, पच्चक्खाणेण तवइआरस्स। विरिपायारस्म पुणो, सम्वेहि वि कीरए सोही ।७। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ •चउसरण पइण्णा गय वसह सीह अभिसेय. दाम ससि दिणयरं भय कुंभ । पउमसर सागर, विमाण-भवण रयणुच्च य सिहिं च ।। अमरिंदरिंदमुर्णिदवदिअ, वंदिउं महावीर कुसलाणुवधि वधुरमज्झयणं कित्तइस्सामि ।। चउसरणगमण दुक्कडगरिहा, सुकडाणुमोअणा चेव । एस गणो अणवरयं, कायदो कुसलहेउत्ति ।१०। अरहंत सिद्ध साहू, केवलिकहिओ मुहावहो धम्मो । एए चउरो चउगइहरणा, सरण लहइ धन्नो ।१११ अह मो जिणभत्ति-भरुच्छरत-रोमच-कुचुअ-करालो। पहरिसवण-उम्मीस, सीसमी कयंजली भणइ ।१२। रागहोसारीण हंता, कम्मलुगाइ अरिहता। विसय-कसायारीण, अरिहता हुतु मे सरण ।१३। रायसिरिमुवक्कमित्ता, तवचरणं दुच्चरं अणुचरित्ता। केवल सिरिमरिहंता, अरिहंता हंतु मे सरणं ।१४। थुइ-वदणमरिहंता, अमरिंद-नरिदअमरिहता। सासयमुहमरहंता, अरिहता हुतु मे सरण ।१५॥ परमणगयं मुणता, जोइंदमहिंदझाणमरहंता । धम्मकह अरहंता, अरिहता हुतु मे सरणं ।१६। सव्व जिग्राणहिंसं, अरहता सच्चवयणमरहता। बभत्रयमरहता, अरिहता हुतु मे सरण ।१७। ओसरणमवसरित्ता, चउतीस अइसए निसेवित्ता । धम्मकहं च कहता, अरिहता हुतु मे सरण 1१८॥ एगाइ गिराऽणेगे, सदेहे देहिण समछित्ता। Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला तिहुयणमणुसासता, अरिहता हुतु मे सरण ।१६। वयणामएण भुवण, निव्वाविता गुणेमु ठावता। जिअलोअमुद्धरता, अरिहता हुतु मे सरण ।२०। अच्चब्भुयगुणवते, निजसससहरपसाहि अदिअते । निअयमणाई अणते, पडिवन्नो सरणमरिहते ॥२१॥ उज्झिअजरमरणाणं, समत्तदुक्ख त्तसत्त-सरणाण । तिहुअणजणसुहयाणं, अरिहताण नमो ताणं ।२२। अरिहंत-सरण-मल-सुद्धिलद्ध सुविसुद्ध-सिद्धवहुमाणो । पणय-सिर-रइय-कर-कमल-सेहरो सहरिसं भणइ ।२३। कम्मटुक्खयसिद्धा, साहाविअनाणदंसण समिद्वा । सव्वट्ठल द्धिसिद्धा, ते सिद्धा हुतु मे सरण ।२४। तिअलोअमत्थयत्था, परमपयत्था अचितसामत्था । मगलसिद्धपयत्था, सिद्धा सरण सुहपसत्था ।२५। मूलुक्खयपडिवक्खा, अमूढलक्खा सजोगिपच्चक्खा । साहाविअत्त सुक्खा, सिद्धा सरण परममुक्खा ।२६। पडिपिल्लिअपडिणीया, समगाझाण ग्गिदभवबीमा। जोईसरसरणीया, सिद्धा सरणं सुमरणीया ।२७। पावियपरमाणंदा, गुणनीसदा विभिन्न (विइण्ण) भवकदा। लहईकय-रविचदा, सिद्धा सरणं खविपदंदा ।२८॥ उवलद्धपरमबभा, दुल्लहलंभा विमुक्कसरभा। भुवणघरधरणखभा, सिद्धा सरण निरारंभा ।२६। सिद्धसरणेण नवबभ, हेउसाहुगुण जणिअ-बहुमाणो। मेइणिमिलत-सुपसत्यपत्थरो तत्यिम भणइ ।३०। Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ चउसरण पइण्णा जिअलोप्रबंधुणो कुगइसिंधुणोपारगा महाभागा। नाणाइएहिं सिवसुक्खसाहगा साहूणो सरण '३११ केवलिणो परमोही, विउलमई सुग्रहरा जिणमयंमि । पायरिय उवज्झाया, ते सव्वे साहूणो सरण ॥३२॥ चउदस-दस-नववी, दुवाल सिक्कारसगिणो जे य । जिणकप्पाहालदिअ, परिहार-विसुद्धि-साहू य ।३३। खीरासवमहु-आसव ,संभिन्नस्सोअकुतुबुद्धी य। चारणवेउविपयाणुसारिणा साहुणो सरण 1३४। उज्झियवइरविरोहा, निच्चमदोहा पसतमुहसोहा । अभिमयगुणसदोहा, हयमोहा साहुणो सरण ।३५। खडिअसिणेहदामा, अकामधामा निकामसुहकामा । सुपुरिसमणाभिरामा, पायारामा मुणी सरण ।३६। मिल्हिा विसयकसाया, उझियघरघरणिसगसुहसाया । अकलिअहरिसविसाया, साहू सरण गयपमाया।३७। हिंसाइदोससुन्ना, कयकारुन्ना सयंभुरुप्पन्ना (प्पुण्णा)। अजरामरपहखुन्ना, साहू सरणं सुकयपुन्ना ।३८। कामविडवणचुक्का, कलिमलमुक्का विमुक्कचोरिक्का। पावरय-सुरयरिक्का, साहू गुणरयणचच्चिक्का ।३६। साहुत्तसुटिया जं, आयरियाई तो य ते साह । साहूणिएण गहिया, तम्हा ते साहुणो सरण १४०। पडिवन्नसाहुसरणो, सरण काउ पुणोवि जिणधम्म । पहरिसरोमंचपवंचकुचुअचिअतणु भणइ ।४१॥ पवरसुकरहिं पत्त, पत्तेहिवि नवरि केहिवि न पत्त । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३०५ तं केवलि पन्नत्त, धम्म सरण पवन्नोऽह ।४२। पत्तेण अपत्तेण य पत्ताणि अ, जेण नरसुरसुहाई। मुक्खसुह पुण पत्तेण, नवरि धम्मो स मे सरण ।४३। निद्दलिप्रकलसकम्मो, कयसुहजम्मो खलीकय-अहम्मो । पमुहपरिणामरम्मो, सरण मे होउ जिणधम्मो।४४। कालत्तएवि न मय, जम्मण-जरमरणवाहिसय-समयं । अमय व बहुमयं, जिणमयं च सरणं पवन्नोऽहं ।४५॥ पसमिअकामपमोह, दिवादिठेसु नकलिअविरोह । सिवसुहफलयममोह, धम्म सरण पवन्नोऽह ।४६। नरय-गइ-गमणरोह, गुणसदोह पवाइनिक्खोह । निहणिअवम्महजोह, धम्म सरण पवन्नोऽहं ।४७। भासुर-सुवन्न-सुदर-रयणालंकार-गारव-महग्छ । निहिमिव दोगच्चहर, धम्म जिणदेसि वदे।४८। चउसरणगमण सचिअ, सुचरिअरोमच अचियसरीरो। कयदुक्कडगरिहा, असुहकम्मक्खयकखिरो भणई ।४६। इहभविग्रमन्नभविन, मिच्छत्तपवत्तण जमहिगरण । जिणपवयणपडिकुट्ठ, दुट्ठ गरिहामि तं पावं ।५०॥ मिच्छत्ततमंधेण, अरिहताइसु अवन्नवयण जं। अन्नाणेण विरइयं, इण्हि गरिहामि त पावं 1५१॥ सुप्रधम्म-सघसाहुसु, पाव पडिणीअयाइ जं रइयं । अन्नेसु अ पावेसु, इहि गरिहामि त पाव ।५२। अन्नेसु अ जीवेसु, मित्ती-करुणाइ-गोयरेसु कयं । परिआवणाइ दुक्ख, इण्हि गरिहामि तं पावं ॥५३॥ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ चउसरण पइण्णा जं मणवयकाएहिं, कयकारिअ-अणुमईहिं आयरियं । धम्मविरुद्धमसुद्धं, सब गरिहामि तं पावं ।५४॥ अह सो दुक्कडगरिहादलिउक्कडदुक्कडो फुड भणइ । सुकडाणुरायसमुइन्नपुन्नपुलयं कुरकरालो ।५५॥ अरिहत्तं अरिहतेसु, जं च सिद्धत्तणं च सिद्धेसु । आयारं पायरिए, उज्झायत्तं उवज्झाए ।५६। साहूण साहुचरिणच, देसविरइ च सावयजणाण । अणुमन्ने सव्वेसि, सम्मत्त समदिट्ठीण ।५७। अहवा सव्व चिन, वीयरायवयणाणुसारि ज सुकयं । कालत्तएवि तिविहं, अणुमोएमो तयं सव्वं ।५८। सुहपरिणामो निच्चं, च उसरणगमाइग्रायरे जीवो। कुसलपयडीउ वधई, वद्धाउ सुहाणु बंधाउ ५६। मदणुभावा वद्धा, तिव्वणुभावाउ कुणइ ता चेव। असुहाउ निरणुवधाउ, कुणइ तिव्बाउ मंदाउ १६०। ता एयं कायव्वं, वुहेहि निच्चपि सकिलेसम्मि । होइ तिकालं सम्मं, असंकिलेसम्मि सुकयफलं १६११ चउरंगो जिणधम्मो, न करो चउरंगसरणमवि न कयं । चउरंगभवुच्छेयो, न कसो हा हारियो जम्मो ।६२। इअजीवपमायमहारिवीरभदंतमेग्रमज्झयणं । झाएम तिसझमवंझ-कारण निव्वुइसुहाणं ।६३। ।। चउसरण समत्त ।। Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३०७ वैराग्य कुलकम् जम्मजरामरणजले, नाणाविहिवाहिजलयराइन्ने । भवसायरे असारे, दुलहो खलु माणुसो जम्मो (१॥ तम्मिवि आयरियखित्तं, जाइ कुलरूवसंपयाउय । चितामणिसारित्थो, दुलहो धम्मो य जिणभणियो।२। भवकोडिसएहिं परिहिंडिऊण सुविसुद्धपुन्नजोएण । इत्तियमित्ता सपइ सामग्गी पाविया जीव । ।३। रूवमसासयमेयं विज्जुलयाचचल जए जीय । सभाणुरागसरिस, खणरमणीय च तारुण्णम् ।। गयकन्नचचलाओ, लच्छोओ तियसचाउसारिच्छं । विसयसुह जीवाण, बुज्झसु रे जीव । मा मुज्झ ।। किंपाकफलसमाणा, विसयहालाहलोवमा पावा। . मुहमुहरत्तणसारा, परिणामे दारुणसहावा ।६। भुत्ता दिवभोगा, सुरेसु असुरेसु तहय मणुएसु । न य जीव ! तुझ तित्ती जलणस्सव कट्टनियरेहिं ।७। जह सझाएसउणाण सगमो जह पहे य पहियाण सयणाण सजोगो, तहेव खणभगरो जीव ! 111 पियमाइभाइभइणी, भज्जापुत्तत्तणेवि सव्वेवि। सत्ता अणतवार, जाया सव्वेसिं जीवाणं ।।। ता तेसि पडिबध, उवरि मा त करेसु रे जीव ! पडिबध कुणमाणो, इहयं चिय दुक्खिनो भमिसि ।१०। जाया तरुणी आभरणवज्जिया, पाढिो न मे तणओ। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ वैराग्य कुलकम् धूया नो परिणीया, भइणी नो भत्तुणो गमिया ।११। थोवो विहवो संपइ, वट्टई य रिणं बहुव्वरो गेहे । एव चिंतासतावदुमियो दु खमणुहवसि ।१२। का उणवि पावाइ, जो अत्थो सचिनो तए जीव ! सो तेसि सयणाण, सम्वेसि होइ उवयोगी ।१३। ज पुण असुह कम्म, इक्कुचिय जीव त समणुहवास । न य ते सयणा सरण, कुगइए गच्छमाणस्स ।१४। कोहेण माणेण, मायालोभेहिं रागदोसेहिं । भवरंगो सुइरं, नडुन्न नच्चाविमो तसि ।१५॥ पचेहि इदिएहिं, मणवयकाएहिं दुट्ठजोगेहिं । बहुसो दारुणरूवं, दुक्ख पत्तं तए जीव !॥१६॥ ता एअन्नाऊण, संसारसायरं तुम जीव !। सयल सुहकारणम्मि, जिणधम्मे आयरं कुणसु ।१७। जाव न इंदियहाणी, जाव न जररक्खसी परिप्फुरइ । जाव न रोगवियारो, जाव न मच्चु समुल्लियइ ।१८। जह गेहम्मि पलित्ते, कूव खणिय न सक्कई कोवि । तह संपने मरणे, धम्मो कह कीरए जीव !॥१६॥ पत्तम्मि मरणसमए, डझसि सोअग्गिणा तुमं जीव । वग्गुरपडिअोव मो, संवट्टामिउ जहवि पक्खी ।२०। ता जीव । संपयं चिय, जिणधम्मे उज्जम तुमं कुणसु । मा चिंतामणि सम्म, मणुयत्तं निष्फल णेसु ।२१॥ ता मा कुणसु कसाए, इदियवसगोय मा तुम होसु । देविंदसाहुमहियं, सिवसुक्खं जेण पावहिसि ।२२। ॥इति।। Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३०६ सुभाषित पंच- महव्वय सुव्वयमूल, समण-मणाइल साहू सुचिण्ण । वेरविरामणपज्जवसाण, सव्त्रसमुद्दमहोदही तित्यं | १ | तित्थकरेहिं सुदेसियमग्ग, नरग- तिरिय विवज्जियमग्ग | सव्व- पवित्त सुनिम्मियसारं सिद्धिविमाण अवगुददार |२| देव नरिद नमसिय- पूइय, सव्वजगुत्तम-मंगल-मग्गं । दुद्धरिसं गुण-नायगमेग, मोक्ख पहस्स - वडिसगभूय | ३ | धम्मारामे चरे भिक्खू, धिइम धम्म-सारही | धम्मारामे रया-दते, बभचेर - समाहिए |४| देव-दानव - गंधव्वा, जक्ख- रक्खस्स किण्णरा । बंभयारि नम॑सति, दुक्कर जे करति तं | ५| एस धम्मे धुवे निच्चे, सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिज्झति चाणेण, सिज्झिस्सति तहावरे |६| रहत सिद्ध पवयण गुरु थेर बहुस्सुए तवस्सीसु । । वच्छल्लया य तेसि, अभिक्खनाणोवोगे य ॥७॥ दसण विणय वस्सए य, सीलव्वए निरइयारे । खणलव तव च्चियाए, वेयावच्चे समाहीए ८ ग्रपुव्वाणग्गणे, सुयभत्ती पव्वयणपभावणया । एएहि कारणेहिं, तित्ययरत्तं लहइ जीवो | जिणवयणे श्रणुरत्ता, जिणवयण जे करंति भावेण । अमला असं किलिट्ठा, ते हुति परित्तससारि | १० | एव खु नाणीणो सार, ज न हिंसइ किंचण । 1 Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० सुभाषित अहिंसा-समयं चेव, एयावत्तवियाणिया | ११ | जाइ च वुड्ढि च इहेज्ज -पासं, भूतेहि जाणे पडिलेह सायं । तम्हातिविज्जो - परमति णच्चा, सम्मत्तदसी न करेइ पावं । १२८ उम्मुच्च पास इह मच्चिएहि, प्रारंभजीवी उभयाणुपस्सी । कामेसु गिद्धा णिचय करति, ससिंचमाणा पुणरेति गमं । १३ सत्रणे नाणे य विन्नाणे, पच्चक्खाणे य सजमे । royer तवे चैव वोदाणे अकिरिया सिद्धि |१४| एगोहं नत्थि मे कोइ, नाह मन्नस्स कस्सई | एवं अदीणमणस्सा, अप्पाणमणुसासइ | १५ एगो मे सासत्र ग्रप्पा, नाणदसणसजुो । सेसा मे वाहिरा भावा, सव्वसजोग लक्खणा | १६ | जीवियं नाभिगच्छेज्जा, मरणं नो वि पत्थए । दुहप्रोविन इच्छेज्जा, जीवियं मरणं तहा | १७| सारं दंसण नाण, सार तव नियम संजम सीलं । सारं जिणवर धम्म, सार सलेहणा पडियमरणं |१८| कल्लाणकोडिकारिणी, दुग्गइदुहनिठवणी । ससारजलही तारणी, एगत होइ जीवदया । १६ श्रारभे नत्यि दया, महिलासंगेण नासइ वम्भ | सकाए नासइ सम्मत्तं पव्वज्जाग्रत्थग्गणेण | २० | मज्जविसयकसाया, निदाविकहायपचमी भणिया । एए पचप्पमाया, जीवा पाडति ससारे |२१| लब्भंति विउलाभोए, लग्भति सुरसपया । लम्भति पुत्तमित्तं च, एगो धम्मो न लग्भइ |२२| Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३११ न वि सुही देवता देवलोए, न वि सुही पुढवीपइराया । न वि सुही सेठि सेणावइ य, एगत सुही मुणी वीयरागी ।। नगरी सोहति जलमूलबागे, नारीसोहतिपरपुरुषत्यागे। राजासोहता सभा पुराणी, साधुसोहंता अमृतवाणी ।२४। चलतिमेरुचलंतिम दिरं चलतितारारविचद्रमडलं । कदापि काले पृथ्वी चलति, साहुपुरुषवाक्य न चलंति धर्म ॥२५॥ अशोकवृक्ष सुरपुष्पवृष्टि-दिव्यध्वनिश्चामरमासन च ।। भामण्डलं दुदुभिरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥२६॥ अप्पा नई वेयरणी. अप्पा मे कुडसामली। अप्पा कामदुहा धेणू, अप्पा मे नदण वण ।२७। अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठिय सुपदियो ।२८। जो सहस्स सहस्साण, संगामे दुज्जए जिए। एग जिणेज्ज अप्पाण, एस से परमो जो ।२६। लाभालाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा । समो निंदापससासु, तहा माणावमाणो ।३०। चोवीस तीर्थकर नो परिवार, चउदासो बावन गणधार । लाख अठावीस सहस्र अडताल, एहवा जे मुनि वंदु त्रिकाल ।। Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थ सूत्र तत्त्वार्थ सूत्र ।२। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग | १| तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् |२| तन्निसर्गादधिगमाद्वा | ३| जीवाऽजीवाऽस्रव बन्धसवर निर्जरामोक्षास्तत्त्वम् |४| नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यास. 1५1 प्रमाणनयैरधिगम |६| निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरणस्थितिविधानत |७| सत्सख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च | ८ | मतिश्रुतावधिमन पर्यायकेवलानि ज्ञानम् || तत्प्रमाणे | १० | आद्ये परोक्षम् | ११ | प्रत्यक्षमन्यत् | १२| मति. स्मृति सज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् | १३ | तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् | १४ | अवग्रहाऽवायधारणा | १५ | बहुवहुविध- क्षिप्रानिश्रिताऽसंदिग्ध ध्रुवाणा सेतराणाम् | १६ | श्रर्थस्य | व्यञ्जनस्याऽवग्रह | १८ | न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ॥१६॥ श्रुतं मतिपूर्वं द्व्यनेकद्वादशभेदम् | २० | द्विविधोऽवधिः | २१| तत्र भवप्रत्ययो नारकदेवानाम् | २२ | ययोक्तनिमित्त पविकल्प: शेषाणाम् ।२३। ऋजुविपुलमती मन पर्याय | २४| विशुद्धयप्रतिपाताभ्या तद्विशेष | २५ | विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमन पर्याययो । २६ । मतिश्रुतयोनिबन्ध सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्याये | २७ रूपिष्ववधे |२८| तदनन्तभागे मन पर्यायस्य |२| सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य | २०| एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्म्यं । ३१ । मतिश्रुतावघयो विपर्ययश्च ॥ ३२॥ सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् । ३३ । नैगमसङ्ग्रह - व्यवहारर्जुसूत्र शब्दा ( शब्द समभिरूढैव भूता ) नया . |३४| श्रद्यशब्दो द्वित्रिभेदौ ।। ३५|| ॥ इति प्रयमोऽध्याय ॥ ३१२ - Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३१३ || द्वितीयोऽध्यायः ॥ पोपशमिक्क्षायिको भावी मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमोदयिकपारिणामिकौ च ।। द्विनवाष्टादशेकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ।२। सम्यक्त्वचारित्रे।३। ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च ।४। ज्ञानाज्ञानदर्शनदानादिलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदा यथाक्रम सम्यक्त्वचारित्रसयमाऽसंयमाश्च ।। गतिकपायलिगमिथ्यादर्शनाऽज्ञानासयताऽसिद्धत्वलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्येकैकैकैकषड्भेदा ।६। जीवभव्याभव्यत्वादीनि च ।७। उपयोगो लक्षणम् ।८। स द्विविधोऽप्टचतुर्भेद 181 संसारिणो मुक्ताश्च 1१०। समनस्काऽमनस्का ।११। ससारिणस्त्रसस्थावारा. ॥१२॥ पृथिव्यम्बुवनस्पतय. स्थावरा. ११३। तेजोवायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः ।१४। पञ्चेन्द्रियाणि ।१५। द्विविधानि ।१६। निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ।१७। लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम्।१८। उपयोगः स्पर्शादिषु ।१६। स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु श्रोत्राणि ।२०। स्पर्शरसगन्धरूपशव्दास्तेपामर्था ।२१. श्रुतमनिन्द्रियस्य ।२२। वाय्वन्तानामेकम् ।२३। कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैकवद्धानि १२४। संज्ञिन समनस्का १२५ विग्रहगतो कर्मयोगः ।२६। अनश्रेणि गति ।२७। अविग्रहा जीवस्य ।२८। विग्रहवती च संसारिण. प्राक् चतुर्म्य ।२६। एकसमयोऽविग्रहः ।३०। एक द्वी वाऽनाहारक १३१३ सम्मळुनगर्भोपपाता जन्म ।३२. सचित्तशोतसवृत्ता सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनय ।३३। जराय्वण्डपोतजाना गर्भ. ३४। नारकदेवानामुपपात. १३५॥ शेषाणा सम्मछैनम् ।३६। नौदारिकवैक्रियाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ तत्त्वार्यसूत्र अ ३ १३७१ पर परं सूक्ष्मम् ।३८। प्रदेशतोऽसख्येयगुण प्राक्तैजसात् (३६। अनन्तगुणे परे १४०। अप्रतिघाते ।४१। अनादिसम्वन्धे च ।४२। सर्वस्य ।४३। तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्याऽऽचतुर्य: 1४४। निरुपभोगमन्त्यम् ।४५। गर्भसम्म छैनजमाद्यम् ।४६। वैकि. यमोपपातिकम् ।४७। लब्धिप्रत्यय च ।४८१ शुभ विशुद्धमव्याघाति चाहारकं चतुर्दशपूर्वधरस्यैव ।४६। नारकसम्मछिनो नपुसकानि । ५० न देवा: ।५११ प्रोपपातिकचरमदेहोत्तमपुरुपाऽसंख्येयवर्पायुपोऽनपवायुप. १५२। ॥ इति द्वितीयोऽध्याय ॥ ॥ तृतीयोऽध्यायः॥ रत्नशर्करावालुकापट्टयूमतमोमहातम.प्रमा भूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठा सप्ताधोऽध पृथुतरा. ११ तासु नारकाः १२। नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रिया. ।३। परस्परोदीरितदु खा. ।४। सक्लिप्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्या 1५॥ तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिशत्सागरोपमाः सत्त्वाना परा स्थिति ।६। जवृद्वीपलवणादय. शुभनामानो द्वीपसमुद्रा. ७। द्विद्विविष्कम्भा पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः 1८। तन्मध्ये मेरुनाभिर्वत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीप. 18। तत्र भरतहैमवतहरिविदेहरम्यक हैरण्यवतैरावतवर्षा क्षेत्राणि ।१०। तद्विभाजिन पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निपधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वता ।११। द्विर्धातकोखण्डे ।१२। पुष्करार्धे च ।१३। प्राङ् मानुपोत्तरान्मनुष्याः ।१४। आर्या म्ले Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३१५ च्छाश्च ।१४। भरतैरावतविदेहा कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुभ्य ।१६। नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहर्ते ।१७। तिर्य. ग्योनीना च ।१८॥ ॥ इति तृतीयोऽध्याय ।। ॥ चतुर्थोऽध्यायः॥ देवाश्चतुनिकाया ।१। तृतीय पीतलेश्यः ।२। दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पा कल्पोपपन्नपर्यन्ता ।३। इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिशपारिषद्यात्मरक्षलोक-पालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषि काश्चैकश ।४। त्रायस्त्रिशलोकपालवा व्यतरज्योतिष्का ।५। - पूर्वयो-न्द्रा ।६। पीतान्तलेश्या ।७। कायप्रवीचारा आ ऐशा. नात् ।८शेषा स्पर्शरूपशब्दमन प्रवीचारा द्वयोर्द्वयो ।६। परेऽप्रवीचारा ।१०। भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाऽग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमारा ११३ व्यतरा किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगान्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचा ।१२। ज्योतिष्का. सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ।१३। मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नलोके ।१४। तत्कृत कालविभाग ।१५। बहिरवस्थिताः ।१६। वैमानिका ।१७। कल्पोपपन्ना कल्पातीताश्च ।१८। उपर्युपरि ।१६। सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलातकमहाशुक्रसहसारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु अवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्ताऽपराजितेषु सर्वार्थसिद्धे च ।२०। स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविपयतोऽधिका ।२१। गतिशरीरपरिग्रहाऽभिमानतो होना ।२२। (उच्छ्वासाहारेवेदनोपपातानु Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ तत्त्वार्थ सूत्र अ. ५ ...३१६ भावतश्च साध्या ) ।२३। पीतपद्मशुल्कलेश्या द्वित्रिशेपेषु ।२४। प्राग्वेयकेभ्य कल्पा. ।२५। ब्रह्मलोकालया लोकान्तिका ।२६। सारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतायतुपिताव्यावाधमरुतोऽरिप्टाश्च ।२७। विजयादिपु द्विचरमा: ।२८। औपपातिकमनुष्येभ्य. शेषास्तिर्यग्योनयः ।२६। स्थिति ।३०। भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीना पल्योपममध्यर्धम्।३१। शेपाणा पादोने।३२। अमुरेन्द्रयो सागरोपमधिक च ।३३। सौधर्मादिपु यथाक्रमम् ।३४। सागरोपमे ।३५॥ अधिके च ।३६। सप्त सानत्कुमारे ।३७। विशेपस्त्रिसप्तदशैकादशद्वादशत्रयोदशचतुर्दशपञ्चदशभिरधिकानि च ।३८ आरणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु ग्रैवेयकेपु विजयादिपु सर्वार्थसिद्धे च ।३९। अपरापल्योपममधिकं च ।४०। सागरोपमे।४१। अधिके च ।४२। परत परत पूर्वापूर्वाऽनन्तरा ।४३। नारकाणा च द्वितीयादिपु 1४४। दशवर्पसहस्राणि प्रथमायाम् ।४५। भवनेषु च ।४६। व्यन्त. राणा च।४७। परा पल्योपमम् ।४८। ज्योतिष्काणामधिकम् ।४६। ग्रहाणामेकम् ।५०। नक्षत्राणामर्द्धम् ॥५१॥ तारकाणा चतुर्भाग. 1५२। जघन्या त्वष्टभाग: ।५३। चतुर्भाग शेपाणाम् ॥५४॥ ॥ इति चतुर्थोऽध्यायः ॥ ॥ पञ्चमोऽध्यायः ॥ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गला ११ द्रव्याणि जीवाश्च ।२। नित्यावस्थितान्यरूपाणी ।३। रूपिण पुद्गला ॥४॥ आकाशादेकद्रव्याणि || निष्क्रियाणि च ।६। असत्येया: . प्रदेशा धर्माऽधर्मयो ।७। जीवस्य च ।८। आकाशस्यऽनन्ता. 181 Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३१७ सङ्ख्येयाऽसङ्ख्येयाश्च पुद्गलानाम् | १० | नाणो. १११। लोकाकाशेऽवगाह |१२| धर्माधर्मयो कृत्स्ने | १३ | एकप्रदेशादिषु भाज्य पुद्गलानाम् | १४ | असङ्ख्येयभागादिषु जीवानाम् | १५ | प्रदेशसहारविसर्गाभ्या प्रदीपवत् | १६ | गतिस्थित्युपग्रहो धर्माऽधर्मयोरुपकार | १७| ग्राकाशस्याऽवगाह | १८ | शरीरवाड्मन.प्राणापाना पुद्गलानाम् | १६ | सुखदुखजीवितमरणोपग्रहाश्च | २० | परस्परोपग्रहो जीवानाम् | २१ | वर्त्तना परिणाम क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य । २२) स्पर्शरसगन्धवर्णवन्त. पुद्गला; |२३| शब्द बन्ध सौक्ष्म्यस्थौल्य संस्थान भेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च | २४| अणव स्कन्धाश्च | २५ | सघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ।२६। भेदादणु | २७| भेदसघाताभ्या चाक्षुषाः |२८| उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् । २६ । तद्भावाव्यय नित्यम् |३०| अर्पितानपित सिद्धे | ३१ | स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्ध |३२| न जघन्यगुणानाम् |३३| गुणसाम्ये सदृशानाम् | ३४ | द्वयधिकादिगुणानां तु । ३५। बन्धे समाधिको पारिणामिको | ३६ | गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ||३७| कालश्चेत्येके |३८| सोऽनन्तसमय | ३६ | द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा |४०| तद्भाव परिणाम |४१ | अनादिरादिमाश्च ॥४२ | रूपिण्वादिमान् |४३| योगोपयोगी जीवेषु १४४| ॥ इति पञ्चमोऽध्याय ॥ ॥ षष्ठोऽध्यायः ॥ कायवाङ्मन कर्म योग | १ | स आस्रवः | २ | शुभः Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्त्वार्थसूत्र अ ६ पुण्यस्य | ३ | शुभ पापस्य |४| सकपायाकपाययो सापरायिकेर्यापथयो |५| इन्द्रियकपायाव्रतक्रिया पञ्चचतु पञ्चपञ्चविशतिसङ्ख्या पूर्वस्य भेदा | ६ | तीव्रमदज्ञाताज्ञात भाववीर्याधिकरणविशेपेभ्यस्तद्विशेप |७| अधिकरण जीवाऽजीवा |८| श्राद्य संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारिताऽनुमतकपाय विशेषस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकश निर्वर्तनानिक्षेपसयोग निसर्गाद्विचतुद्वित्रिभेदा परम् | १०। तत्प्रदोषनिवमात्सर्यान्तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावरणयो । ११। दुख-शोकतापा क्रन्दन-वध-परिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्य-सद्यस्य | १२ | भूतव्रत्यनुकम्पा दान सरागस्यमादियोग क्षाति शौचमिति सद्वेद्यस्य । १३। केवलि - श्रुत-सङ्घ-धर्म-देवावर्णवादी दर्शनमोहस्य | १४ | कपायोदयातीव्रात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य |१५| वह्वारम्भ-परिग्रहत्व च नारकस्यायुप | १६ | माया तैर्यग्योनस्य |१७| अत्पारम्भपरिग्रहत्व स्वभावमार्दवार्जवं च मानुपस्य | १८ | नि शीलव्रतत्वं च सर्वेपा ।१ । सरागसंयमसयमासयमा कामनिर्जरा-वालतपांसि देवस्य | २०| योगवक्रता- विसंवादन चाशुभस्य नाम्न |२१| विपरीतं शुभस्य |२२| दर्शनविशुद्धि-विनयसम्पन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगसवेगो शक्तितस्त्यागतपसी सङ्घ साधुसमाधि-वैयावृत्त्यकरण-मर्हदाचार्य बहुश्रुत प्रवचन- भक्तिरावश्यकापरिहाणि-मर्गप्रभावना प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थकृत्त्वस्य | २३ | परात्मनिन्दाप्रशसे सदसद्गुणाच्छादनोद्भावने च नीचेत्रस्य | २४| तद्विपर्ययो नीचैर्वृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य ॥२५॥ विघ्नकरणमन्तरायस्य |२६| ॥ इति पप्ठोऽध्याय ॥ ३१८ 1 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३१६ ॥ सप्तमोऽध्यायः॥ हिंसाऽनृतस्तेया-ब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव॑तम् ।१। देशसर्वतोऽणुमहती ।२। तत्स्थैर्यार्थ भावना पञ्च पञ्च ।३। हिंसादिष्विहामुत्र चापायावद्यदर्शनम् ।४। दु खमेव वा ।। मैत्रीप्रमोदकारुण्य-माध्यस्थ्यानि सत्त्व-गुणाधिक-किल्श्यमानाऽविनेयेष ।६। जगत्कायस्वभावौ च सवेगवैराग्यार्थम् ।७। प्रमत्तयोगात्-प्राणव्यपरोपणं हिंसा ।। असदभिधानमनृतम् ।६। अदत्तादानं स्तेयम् । १०। मैथुनमब्रह्म ।११। मूर्छा-परिग्रह ।१२। नि शल्यो व्रती ।१३। अगार्यनगारश्च ।१४। अणुव्रतोऽगारी ।१५। दिग्देशानिर्थदण्डविरतिसामायिकपौषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणाऽतिथिसविभागवतसम्पन्नश्च ।१६। मारणान्तिकी सलेखना जोषिता ११७। शङ्काकाक्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशसासस्तवा सम्य. ग्दृष्टेरतिचारा ।१८। व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम् ।१६। बन्धवधच्छविच्छेदाऽतिभारारोपणाऽन्नपाननिरोधा ।२०। मिथ्योपदेश-रहस्याभ्याख्यान-कूटलेखक्रियान्यासापहार-साकारमंत्रभेदाः ।२१। स्तेनप्रयोग-तदाहृतादान विरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिकमानोन्मान-प्रतिरूपकव्यवहारा ।२२। परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीताऽपरीगृहीतागमनाऽनङ्गक्रीडातीवकामाभिनिवेशा ।२३। क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिकमा १२४॥ ऊधिस्तिर्यगव्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मत्यन्तर्धानानि ।२५। पानयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलप्रक्षेपा ।२६। कन्दर्पकोत्कुच्यमौखर्याऽसमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि ।२७: योगदुष्प्रणि Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० तत्त्वार्थ सूत्र अ ८ धानानादरस्मत्यनुपस्थापनानि ।२८। अप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि ।२६। सचित्तसम्बद्धसम्मिश्राऽभिपबदुप्पक्वाहारा. १३०। सचित्तनिक्षेपपिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिकमा ३१। जीवितमरणाशं. सामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानकरणानि ।३२। अनुग्रहार्थं स्व. स्यातिसर्गो दानम् ।३३। विधिद्रव्यदातपात्रविशेपात्तद्विशेपः ।३४। ॥ इति सप्तमोऽध्याय ॥ || अष्टमोऽध्यायः॥ मिथ्यादर्शनाऽविरति-प्रमाद-कपाय-योगा वन्धहेतवः ।। सकपायत्वाज्जीव कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते ।। स बन्ध. 1३। प्रकृति-स्थित्यन भाव-प्रदेशास्तद्विधय ।४। आद्यो ज्ञान-दर्शनावरण-वेदनीय-मोहनीयाऽयुक-नाम-गोत्राऽन्तराया ।। पञ्चनवद्वयप्टाविंशति-चतु-द्विचत्वारिंशद-द्वि-पञ्चभेदा यथाक्रमम्।६। मत्यादीना ।७चारचक्षुरवाधिकेवलाना निद्रा-निद्रानिद्राप्रचलाप्रचला प्रचला-स्त्यानगद्धिवेदनीयानि च ।८। सदसवेद्ये ।६। दर्शनचारित्रमोहनीयकपायनोकपायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विषोडशनवभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि कपायनोकपायावनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यान प्रत्याख्यानावरणसंज्वलनविकल्पाश्चैकश क्रोधमानमायालोभा हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्साम्त्रीपुनपुसकवेदाः ।१०। नारकतैर्यग्योनमानुपदैवानि ।११ गतिजातिगरीराङ्गोपाड्गनिर्माणबन्धनसड्यातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरुलघूपधातपराघातातपोद्योतोच्छ्वासविहायोगतय प्रत्येकशरीरत्रस Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३२१ सुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्त स्थिरादेययशासि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च |१२| उचैर्नीचैश्च | १३ | दानादीनाम् | १४ | आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटी कोटय परा स्थिति |१५| सप्ततिर्मोहनीयस्य । १६ । नामगोत्रयोविंशति | १७ | त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाण्यायुष्कस्य | १८ | अपरा द्वादशमुहूर्त्ता वेदनीयस्य |११| नामगोत्रयोरष्टौ | २०| शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् | २१ | विपाकोऽनुभाव | २२ | स यथानाम | २३ | ततश्च निर्जरा |२४| नामप्रत्यया सर्वतो योग विशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाढस्थिता सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशा. १२५ | सद्वेद्यसम्यक्त्व हास्य रतिपुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् । २६। ॥ इति अष्टमोऽध्याय ॥ ॥ नवमोऽध्यायः ॥ आस्रवनिरोध सवर |१| स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरिपहजयचारित्र |२| तपसा निर्जरा च ॥ ३ । सम्यग्योगनिग्रहो गुप्ति: |४| ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गा. समितय | ५| उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशोचसत्यसंयमतपस्त्यागा ऽऽ किञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्म | ६ । अनित्याशरण ससा रैकत्वान्यत्वा शुचित्वाऽस्रव संवर निर्जरालोकबो धिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षा ।७| मार्गाच्यवन निर्जरार्थं परिषोढव्या परीषहा || क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यार तिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशत्रध-याचनाऽलाभरोगतृणस्पर्श मलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानाऽदर्शनानि || सूक्ष्मसम्पराय च्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश । १०। एकादश जिने ॥११॥ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ तत्त्वार्यं सूत्र अह बादरसम्पराये सर्वे |१२| ज्ञानावरणे प्रज्ञाऽज्ञाने ११३ | दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ | १४ | चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिपद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्कारा | १५| वेदनीये शेपा | १६ | एकादयो भाज्या युगपदेकोनविंशतै ।१७। सामायिक - छेदोपस्थाप्य - परिहारविशुद्धि-सूक्ष्मसम्पराय यथाख्यातानि चारित्रम् | १८ | अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यान - रसपरित्याग विविक्तश य्यासनकायक्लेशा वाह्यं तप ॥१६॥ प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्याय व्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् | २०| नव चतुर्दश पञ्च द्विभेदं यथाक्रम प्राग्ध्यानात् । २१ । ग्रालोचनप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गत पश्छेदपरिहारोपस्थापनानि | २२ | ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः | २३ | प्राचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षकग्लानगणकुल संघसाधुसमनोज्ञानाम् | २४ | वाचनाप्रच्छनाऽनुप्रेक्षाऽऽम्नायधर्मोपदेशाः ।२५। बाह्याभ्यन्तरोपध्यो । २६ । उत्तम सहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् २७ श्रा मुहर्तात् |२८| प्रातरौद्रधम्मं शुक्लानि । २६| परे मोक्षहेतू |३०| प्रार्त्तममनोज्ञानां सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहार. |३१| वेदनायाश्च |३२| विपरीत मनोज्ञानाम् ||३३| निदान च |३४| तदविरतदेशविरतप्रमतसयतानाम् । ३५। हिंसाऽनृतस्ते यविपयसरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयो | ३६ | श्राज्ञाऽपायविपाकसस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ।३७। उपशान्तक्षीणकपाययोश्च | ३८ | शुक्ले चाद्ये पूर्वविद | ३६ | परे केवलिन |४०| पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरत क्रियाऽनिवृत्तीनि ।४१। तत् त्र्येकका योगाऽयोगानाम् । ४२ । एकाश्रये सवितर्के पूर्वे |४३| अविचारं द्विती 4 - Bu Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला -IP यम् ॥४४॥ वितर्क श्रुतम् । ४५ । विचारोऽर्थव्यञ्जनयोगसक्रान्तिः * । ४६ । सम्यग्दृष्टिश्रावक विरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीण- मोहजिना क्रमशोऽसख्येयगुणनिर्जरा. ॥४७॥ पुलाकबकुशकुशील निर्ग्रन्थस्नातका निर्ग्रन्था: ४८ संयमश्रुत प्रतिसेवनातीर्थंलगलेश्योपपातस्थान विकल्पतः साध्या १४६ ॥ इति नवमोऽध्याय ॥ ३२३ ॥ दशमोऽध्यायः ॥ मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥१॥ बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्याम् |२| कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्ष |३| औपशमिकादिभव्यत्वाभावाच्चान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्य. ।४। तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्या लोकान्तात् । ५ । पूर्व प्रयोगादसंगत्वाद्द्बन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्चतद्गति | ६ | क्षेत्रकाल - गतिलिंगतीर्थं चारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानावगाहनान्तरसख्याल्पबहुत्वत. साध्या ७ ॥ इति दशमोऽध्याय ॥ ॥ इति तत्त्वार्थ सूत्र सम्पूर्णम् ॥ ॥ भक्तामर स्तोत्रम् ॥ भक्तामर प्रणतमोलिमणिप्रभाणामुद्योतक दलितपापतमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ भक्तामरस्तोत्रम् वालम्बन भवजले पतता जनानाम् ।। य सस्तुत सकलवाङ्मयतत्त्वबोधादुद्भूतबुद्धिपटुभि सुरलोकनाथ. । स्तोत्रैर्गत्रितयचित्तहरैरुदारैः । स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथम जिनेन्द्रम् २॥ बुद्धया विनाऽपि विबुधाचितपादपीठ ! स्तोतु समुद्यतमतिविंगतत्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसस्थितमिन्दुविम्बमन्य. क इच्छति जन सहसा ग्रहीतुम् ।३। वक्तु गुणान् गुणसमुद्र ! शशाङ्ककान्तान्, कस्ते क्षम. सुरगुरो प्रतिमोऽपि बुद्धया । कल्पातकालपवनोद्धतनकचक्र, को वा तरीतुमलमम्बुनिधि भुजाभ्याम् ।४। सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश, कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगी मृगेन्द्र, नाभ्येति कि निजशिशो परिपालनार्थम् ।। अल्पश्रुत श्रुतवता परिहासधाम, त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिल किल मधौ मधुर विरोति, तच्चाम्रचारुकलिकानिकरैकहेतु.।६। त्वत्सस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला " श्राक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु, सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् |७| मत्वेति नाथ तव सस्तवन मयेदमारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सता नलिनीदलेषु, मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूद बिन्दु. 1 आस्ता तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्सकथाऽपि जगता दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरण कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभाञ्जि || नात्यद्भुत भुवनभूषणभूत नाथ । भूतैर्गुणैर्भूवि भवन्तमभिष्टुवन्त । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किंवा, भूत्याश्रित य इह्नात्मसमं करोति |१०| हृष्ट्वा भवन्तमनिमेष विलोकनीय, नान्यत्रतोषमुपयाति जनस्य चक्षु । पीत्वा पय शशिकरद्युतिदुग्ध सिन्धो, क्षारं जल जलनिधेरशितु क इच्छेत् । ११ । यै शान्तरागरुचिभि परमाणुभिस्त्व, निर्मापित स्त्रिभुवनैक ललामभूत । । तावन्त एव खलु तेऽप्यणव पृथिव्या, यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति | १२ | वक्त्र क्व ते सुरनरोरगनेत्रहारि, ३२५ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૩૨૬ भक्तामरस्तोत्रम् नि शेपनिजितजगत्स्त्रितयोपमानम् । विम्बं कलङ्कमलिन क्व निशाकरस्य, यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ।१३। सम्पूर्णमण्डलशशाङ्ककलाकलाप ! शुभ्रा गुणास्त्रिभुवन तव लघयन्ति । ये सश्रितास्त्रिजगदीश्वर ! नाथमेकं, कस्तान्निवारयति सञ्चरतो यथेष्टम् ॥१४॥ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशागनाभि त मनागपि मनो न विकारमार्गम् । कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन, किं मन्दरादिशिखरं चलित कदाचित् ।१५॥ निर्धूमवतिरपज्जिततैलपूरः कृत्स्न जगत्त्रयमिद प्रकटीकरोपि । गम्यो न जातु मरुता चलिताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाश. ।१६। नास्त कदाचिदुपयासि न राहुगम्य., स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोदरनिरुद्धमहाप्रभाव., सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्र ! लोके ।१७। नित्योदय दलितमोहमहान्धकारं, गम्य न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखान्जमनल्पकान्ति, विद्योतयज्जगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ।१८। Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३२७ किं शर्वरीषु शशिनाऽह्नि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेदुदलितेषु तमस्सु नाथ ! । निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके, कार्य कियज्जलधरैर्जलभारनम्रः ।१६। ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं, नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु । तेज स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नेव तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ।२०। मन्ये वर हरिहरादय एव दृष्टाः , दृष्टेषु येषु हृदय त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्य , कश्चिन्मनोहरति नाथ भवान्तरेऽपि ॥२१॥ स्त्रीणा शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्यासुत त्वदुपमं जननी प्रसूते । सर्वादिशोदधतिभानिसहस्ररश्मि, प्रच्येवदिगजनयति-स्फुरदशुजालम् ।२२। त्वामामनन्ति मुनयः परम पुमासमादित्यवर्णममल तमस परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु; नान्य शिव शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्था ।२३। त्वामव्यय विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं, ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनंगकेतुम् । योगीश्वर विदितयोगमनेकमेकं, Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ भक्तामरस्तोत्रम् ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्त |२४| बुद्धस्त्वमेव विबुधाचितबुद्धिवोधात्, त्व शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात् । धाताऽसि धोर ! शिवमार्गविधेविधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ २५॥ तुभ्य नमस्त्रिभुवनात्तिहराय नाथ, तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय. तुभ्य नमो जिन ! भवोदधिशोपणाय |२६| को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेपैस्त्वसश्रितो निरवकाशतया मुनीश ! | दो पैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वे, स्वप्नातरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥२७॥ उचैरशोकतरुसश्रितमुन्मयूख माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमोवितानं, विम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववति |२८| सिंहासने मणिमयूख शिखाविचित्रे, विभ्राजते तव वपु कनकावदात्तम् । विम्बं वियद्विलसदशुलतावितानं, गोदयाद्विशिरसीव सहस्ररश्मे |२६| कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं, विभ्राजते तव वपु. कलधौतकान्तम । Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३२६ उद्यच्छशाङ्कशुचिनिर्जरवारिधारमुच्चस्तट सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ।३०। छत्रत्रय तव विभाति शशाङ्ककान्तमुचै. स्थित स्थगितभानुकरप्रतापम् । मुक्ताफलप्रकरजाल विवृद्धशोभप्रख्यापयस्त्रिजगत परमेश्वरत्वम् ।३१। गिम्भीरताररवपरितदिग्विभागस्त्रैलोक्यलोकशुभसंगमभूतिदक्ष । सद्धर्मराजजयघोषणघोषक सन्, खे दुन्दुभिर्वनति ते यशस प्रवादी ।३२। मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजातसतानकादिकुसुमोत्करवृष्टिरुद्धा । गन्धोदबिन्दुशुभमन्दमरुत्प्रपाता, दिव्या दिव पतति ते वचसा ततिर्वा ।३३। शुभ्रप्रभावलयभूरिविभा विभोस्ते, लोकत्रया तिमता द्युतिमाक्षिपन्ती। प्रोद्यदिवाकरनिरन्तरभरिसख्या, दीप्त्याजयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम् ।३४। स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गणेष्टसद्धर्मतत्वकथन कपटुस्त्रिलोक्या। दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थसर्वभाषास्वभावपरिणामगुण प्रयोज्य'] 1३५॥ उन्निद्रहेमनवपङ्कजपुञ्जकान्ति, Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० भक्तामर स्तोत्र पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाऽभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र | धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधा. परिकल्पयन्ति ।३६। इत्थं यथा तव विभूतिरभूजिनेन्द्र ! धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादृक्प्रभा दिनकृत प्रहतान्धकारा, तादृक्कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि ।३७। श्च्योतन्मदाविलविलोलकपोलमलमत्तभ्रमभ्रमरनादविवृद्धकोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धमापतन्त, दृष्ट्वा भय भवति नो भवदाश्रितानाम् ।३८॥ भिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वलशोणिताक्तमुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभाग. । वद्धक्रम क्रमगत हरिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रमयुगाचलसश्रितं ते ।३९। कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्प । दावानल ज्वलितमुज्ज्वलमुत्स्फुलिंगम् । विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं, त्वन्नामकीर्तनजल शमयत्यशेषम् ।४०। रक्तक्षण समदकोकिलकण्ठनील, क्रोधोद्धत फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तगङ्कस्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुस ।४१ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला वलगत्तरंगगजगजितभीमनादमाजौ वल बलवतामपि भूपतीनाम् । उद्यद्दिवाकरमयूखशिखापविद्ध, त्वत्कीर्तनात्तम इवाशु भिदामुपेति ।४२। कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाहवेगावतारतरणातुरयोधभीमे । युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षास्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते ।४३। अम्भोनिधौ क्षभितभीषणनचक्रपाठीनपीठभयदोल्वणवाडवाग्नी । रगत्तरंगशिखरस्थितयानपात्रास्त्रासं विहाय भवतः स्मरणावजन्ति ।४४। उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्ना, शोच्या दशामुपगतारच्युतजीविताशा. । त्वत्पादपङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेहा, मा भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपा. (४५॥ आपादकण्ठमुरुशृखलवेप्टितांगाः, गाढं बृहन्निगडकोटिनिघष्टजंघा । त्वन्नाममत्रमनिशं मनुजा. स्मरन्त , सद्य स्वय विगतबधभया भवन्ति ।४६। मत्तद्विपेन्द्रमृगराजदवानलाहिसग्रामवारिधिमहोदरबन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भय भियेव, Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ कल्याणमन्दिरस्त्रोतम् यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४७॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र ! गुर्णनिवद्धां, भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्र पुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठगतामजस्र, तं मानतुगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४८॥ || कल्याणमन्दिरस्त्रोतम् ॥ कल्याणमन्दिरमुदारमवद्यभेदि, भीताभयप्रदमनिन्दितम घ्रिपद्मम् । ससारसागरनिमज्जदषेषजतुपोतायमानमभिनय जिनेश्वरस्य |१| यस्य स्वयं सुरगुरुर्गरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुविधातुम् । तोर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमके तोस्तस्याहमेष किल संस्तवन करिष्ये |२| सामान्यतोऽपि तत्र वर्णयितु स्वरूपमस्मादृशाः कथमधीश ! भवत्यधीशाः । घृष्टोऽपि कौशिक शिशुर्यदि वा दिवान्धो, रूपं प्रपयति किं किल धर्मरश्मेः |३| मोहक्षयादनुभवन्नपि नाय । मर्त्यो, नूनं गुणान् गणयितु न तव क्षमेत । · ॥ इति ॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला कल्पान्तवान्तफ्यसः प्रकटोऽपि यस्मान्मीयेत केन जलधेर्ननुरत्नराशि ? ।४। अभ्युद्यतोऽस्मि तव नाथ ! जडाशयोऽपि, कर्तुंस्तवं लसदसङ्ख्यगुणाकरस्य ? । बालोऽपि किं न निजवाहुयुग वितत्य । विस्तीर्णता कथयति स्वधियाऽम्बुराशे ? 1५। ये योगिनामपि न यान्ति गुणास्तवेश, वक्तुं कथ भवति तेषु ममावकाशः ? । जाता तदेवमसमीक्षितकारितेयं, जल्पन्ति वा निजगिरा ननु पक्षिणोऽपि ।६। आस्तामचिन्त्यमहिमा जिन ! सस्तवस्ते, नामापि पाति भवतो भवतो जगन्ति । तीव्रातपोपहतपान्थजनान्निदाघे, प्रीणाति पद्मसरस सरसोऽनिलोऽपि ।७। हृत्तिनि त्वयि विभो । शिथिलीभवन्ति, जतो. क्षणेन निविडा अपि कर्मबन्धाः । सद्यो भुजङ्गममया इव मध्यभागमभ्यागते वनशिखण्डिनि चन्दनस्य ।। मुच्यत एव मनुजा सहसा जिनेन्द्र, रोद्ररुपद्रवशतैस्त्वयि वीक्षितेऽपि । गोस्वामिनि स्फुरिततेजसि दृष्टमात्रे, चोरैरिवाशु पशव प्रपलायमानै ६। त्व तारका जिनः ! कथं भविना त एव, Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ कल्याणमदिर स्तोत्रम् त्वामुद्वहन्ति हृदयेन यदुत्तरन्त । यद्वा दृतिस्तरति यज्जलमेप नूनमन्तर्गतस्य मरुत स किलानुभाव ।१०। यस्मिन् हरप्रभृतयोऽपि हतप्रभावाः, सोऽपि त्वया रतिपति क्षपित. क्षणेन । विध्यापिता हुतभज पयसाथ येन, पीतं न किं तदपि दुर्धरवाडवेन ? ११॥ स्वामिन्ननल्पगरिमाणमपि प्रपन्नास्त्वा जन्तव कथमहो हृदये दधाना• ? । जन्मोदधि लघु तरन्त्यतिलाघवेन, चिन्त्यो न हन्त महता यदि वा प्रभाव ।१२। क्रोधस्त्वया यदि विभो । प्रथम निरस्तो. ध्वस्तास्तदा वत कथं किल कर्मचौरा. ? प्लोपत्यमत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके. नीलद्रुमाणि विपिनानि न कि हिमानी ।१३। त्वा योगिनो जिन | सदा परमात्मरूपमन्वेपयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे। पूतस्य निर्मलरुचेर्यदि वा किमन्यदक्षस्य सम्भवि पदं ननु कणिकाया ।१४। ध्यानाज्जिनेश ! भवतो भविन. क्षणेन, देहं विहाय परमात्मदशा ब्रजन्ति । तीव्रानलादुपलभावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः ॥१५॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३३५ अन्त सदैव जिन | यस्य विभाव्यसे त्व, भव्यैः कथ तदपि नाशयसे शरीरम् । एतत्स्वरूपमथ मध्यविवतिनो हि, यद्विग्रह प्रशमयन्ति महानुभावाः ।१६। आत्मा मनीषिभिरयं त्वदभेदबुद्धया, ध्यातो जिनेन्द्र ! भवतीह भवत्प्रभाव. । पानीयमप्यमतमित्यनुचिन्त्यमानं, किं नाम नो विपविकारमपाकरोति ।१७। त्वामेव वीततमसं परवादिनोऽपि, नन विभो ! हरिहरादिधिया प्रपन्ना । कि काचकामलिभिरीश ! सितीऽपि शखो, नो गृह्यते विविधवर्णविपर्ययेण ॥१८॥ धर्मोपदेशसमये सविधानुभावादास्ता जनो भवति ते तरुरप्यशोक । अभ्युद्गते दिनपतो समहीरुहोऽपि, किं वा विवोधमुपयाति न जीवलोक: १६। चित्रं विभो ! कथमकामुखवृन्तमेव, विष्वक पतत्यविरला सुरपुष्पवृष्टि' ? । - त्वद्गोचरे सुमनसा यदि वा मुनीश ', गच्छन्ति नूनमध एव हि बन्धनानि ।२०। । स्थाने गभीरहृदयोदधिसभवाया', पीयूषता तव गिर समुदीरयन्ति । पीत्वा यत. परमसमृदसंगभाजो, Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ कल्याणमदिरस्तोत्रम् भव्या व्रजन्ति तरसाऽप्यजरामरत्वम् ।२१॥ स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचय. सुरचामरोघाः । येऽस्मै नतिं विदधते मुनिपुगवाय, ते नूनमूर्ध्वगतय. खलु शुद्धभावा. ।२२। श्याम गभीरगिरमज्ज्वलहेमरत्नसिंहासनस्थमिह भव्यशिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमच्चश्चामीकराद्रिशिरसीव नवाम्बुवाहम् ।२३। उद्गच्छता तव शितिद्युति मंडलेन, लुप्तच्छदच्छविरशोकतरर्वभूव । सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग !, नीरागता व्रजति को न सचेतनोऽपि ।२४। भो भो प्रमादमवधूय भजध्वमेनमागत्य निर्वृतिपुरी प्रति सार्थवाहम् । एतनिवेदयति देव । जगत्त्रयाय, मन्ये नदन्नभिनभ सुरदुन्दुभिस्ते ।२५॥ उद्योतितेपु भवता भवनेषु नाथ !, तारान्वितो विधुरयं विहताधिकार । मुक्ताकलापकलितोच्छ्वसितातपत्रव्याजात्त्रिाधा धृततनुर्बुवमभ्युपेतः ।२६। स्वेन प्रपूरितजगत्त्रयपिण्डितेन, कान्तिप्रतापयशसामिव सञ्चयेन । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३३७ माणिक्यहेमरजतप्रविनिमितेन, सालत्रयेण भगवन्नभितो विभासि ।२७। दिव्यस्रजो जिन ! नमत्रिदशाधिपानामुत्सृज्य रत्नरचितानपि मौलिबन्धान् । पादौ श्रयन्ति भवतो यदि वा परत्र, त्वत्संगमे सुमनसो न रमन्त एव ।२८। त्व नाथ | जन्मजलधेविपराङ्मुखोऽपि, यत्तारयस्यसुमतो निजष्टष्ठलग्नान् । यक्तं हि पार्थिवनिपस्य सतस्तवैव, चित्र विभो ! यदसि कर्मविपाकशन्य २६ विश्वेश्वरोऽपि जनपालक ! दुर्गतस्त्व, कि वाक्षरप्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश! । अज्ञानवत्यपि सदैव कथञ्चिदेव, ज्ञान त्वयि स्फुरति विश्वविकाशहेतु ॥३०॥ प्राग्भारसभतनभासि रजासि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन यानि । छायापि तैस्तव न नाथ ! हता हताशो, ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं दुरात्मा ।३१॥ यद्गर्जदूजितघनौघमदभ्रमीम, भ्रश्यत्तडिन्मुसलमासलघोरधारम् । दैत्येन मुक्तमथ दुस्तरवारि दधे, तेनैव तस्य जिन | दुस्तरवारिकृत्यम् ।३२॥ ध्वस्तोर्ध्वकेशविकृताकृतिमर्त्यमुण्ड Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याणमन्रिस्तोत्रम् प्रालम्बभद्भयदवक्त्रविनियंदग्निः । प्रेतवजः प्रतिभवन्तमपीरिलो य, सोऽस्याऽभवत्प्रतिभव भवदु खहेतुः ॥३३॥ धन्यास्त एवभुवनाधिप ! ये त्रिसन्ध्यमाराधयन्ति विधिवद्विधुतान्यकृत्याः । भक्त्योल्लसत्पुलकपक्ष्मलदेहदेशाः !, पादद्वय तव विभो । भुवि जन्मभाज: ।३४। अस्मिन्नपारभववारिनिधो मुनीश !, मन्ये न मे श्रवणगोचरता गतोऽसि । प्राकणिते तु तव गोत्रपवित्रमन्त्रे, किं वा विपद्विषधरी सविध समेति । जन्मातरेऽपि तव पादयुग न देव !, मन्ये मया महितमीहितदानदक्षम् । तेनेह जन्मनि मुनीश ! पराभवानां, जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम् ।३६। नून न मोहतिमिरावृतलोचनेन, पूर्व विभो ! सकृदपि प्रविलोकितोऽसि । मर्माविधो विधुरयन्ति हि मामनाः, प्रोद्यत्प्रवन्धगतय कथमन्यथते ? १३७ आकर्णितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि, नूनं न चेतसि मया विधुतोऽसि भक्त्या । जातोऽस्मि तेन जनवान्धव ! दुःखपात्रं, यस्माक्रिया. प्रतिफलन्ति न भावशून्या ।३८ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३३१ त्वं नाथ | दुखिजनवत्सल । हे सरण्य 1, कारुण्यपुण्यवसते । वशिना वरेण्य ! | भक्त्या नते मयि महेश ! दयां विधेय, दुखाकुरोद्दलनतत्परता विधेहि |३६| नि सङ्ख्यसारशरण शरणं शरण्यमासाद्य सादितरिपुप्रथितावदातम् । त्वत्पादपङ्कजमपि प्रणिधानवन्ध्यो, वध्योऽस्मि चेद् भुवनपावन । हा हतोऽस्मि |४०| देवेन्द्रवन्द्य ! विदिताखिलवस्तुसार 1 संसार तारक । विभो । भुवनाधिनाथ | | त्रायस्व देव । करुणाहृद ! मा पुनीहि, सीदन्तमद्य भयदव्यसनाम्बुराशेः । ४१ । यद्यस्ति नाथ । भवदङ्घ्रिसरोरुहाणा, भक्ते फल किमपि सन्ततसञ्चिताया । तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य I भूयाः, स्वामी त्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि ॥४२॥ इत्य समाहितधियो विधिवज्जिनेन्द्र, सान्द्रोल्लसत्पुलककञ्चुकितागभागाः । त्वद्विम्व निर्मल मुखाम्बुजवद्धलक्ष्या, ये सस्तव तव विभो । रचयति भव्या |४३| जननयनकुमुदचद्र-प्राभास्वरा स्वर्गसंपदो भुक्त्वा । ते विगलितमलनिचया, अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते |४४ | - Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० रन्ताकरपञ्चविंशतिः ॥ रत्नाकरपञ्चविंशतिः॥ श्रेयः श्रियां मंगल के लिसद्म !, नरेन्द्रदेवेन्द्रनताघ्रिपद्म ! । सर्वज्ञ ! सर्वातिशयप्रधान !, चिरञ्जयज्ञानकलानिधान ! ११ जगत्त्रयाधार ! कृपावतार !, दुर्वारसंसारविकारवैद्य ! श्रीवीतराग ! त्वयि मुग्धभावा द्विज्ञ प्रभो विज्ञपयामिकिचित् ।२। किं वाललीलाकलितो न वाल , पित्रो पुरो जल्पति निर्विकल्प. । तथा यथार्थ कथयामि नाथ !, निजाशयं सानुशयस्तवाने ।३। दत्त न दान परिशीलितं च, न शालि शील न तपोऽभितप्तम् । शभो न भावोऽप्यभवद भवेऽस्मिन, विभो मया भ्रातमहो मधेव। दग्धोऽग्निना क्रोधमयेन दष्टो, दुष्टेन लोभाख्यमहोरगेण ।। ग्रस्तोऽभिमानाजगरेण माया-जालेन वद्धोऽस्मि कथ भजे त्वां ।। कृत मयाऽमुत्र हितं न चेह, लोकेऽपि लोकेश ! सुखं न मेऽभूत् ।। अस्मादशा केवलमेव जन्म, जिनेश | जज्ञे भवपूरणाय ।६। मन्ये मनो यन्न मनोज्ञवृत्त ' , त्वदास्यपीयूप मयूखलाभात् । द्रुतं महानन्दरस कठोर-मस्मादृशा देव तदरमतोऽपि ।७। त्वत्त सुदुष्प्राप्यमिद मयाऽऽप्तं, रत्नत्रयं भरिभवभ्रमेण । प्रमादनिद्रावशतो गतं तत्, कस्याऽग्रतो नायक | पूत्करोमि 1८! वैराग्यरग परवञ्चनाय, धर्मोपदेशो जनरञ्जनाय । वादाय विद्याऽध्ययन च मेऽभुत्,कियद् ववे हास्यकर स्वमीश ! ६। परापवादेन मुख सदोपं, नेत्र परस्त्रीजनवीक्षणेन । चेतः परापायविचिन्तनेन, कृत भविष्यामि कथं विभोऽहं ।१०। विडम्बितं यत्स्मरघस्मरात्ति-दशावशात्स्व विषयाधलेन । Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३४१ प्रकाशित तद्भवतो हियैव, सर्वज्ञ । सर्व स्वयमेव वेत्सि ।११ ध्वस्तोऽन्यमन्त्र. परमेष्ठिमन्त्र कुशास्त्रवाक्यनिहतागमोक्ति.। . कर्तुं वृथा कर्म कुदेवसंगा-दवाञ्छि हि नाथ । मतिभ्रमो मे ।१२। विमुच्य दुगलक्ष्यगत भवन्तं, ध्याता मया मूढधिया हृदन्त. । कटाक्षवक्षोजगभीरनाभी, कटीतटीयाः सुदृशा विलासा.।१३। लोलेक्षणावक्त्रनिरीक्षणेन, यो मानसे रागलवो विलग्न । न शुद्धसिद्धातपयोधिमध्ये, धौतोप्यगात्तारक कारणं किं ।१४। अग न चग न गणो गुणाना, न निर्मल कोऽपि कलाविलास । स्फुरत्प्रभा न प्रभुता च कापि, तथाप्यहकारकर्थितोऽहं ।१५॥ आयुगलत्याशु न पापबुद्धि-र्गत वयो नो विषयाभिलाष । यत्नश्च भैषज्यविधी न धर्म, स्वामिन्महामोहविडम्बना मे :१६। नात्मा न पुण्य न भवो न पापं, मया विटाना कटुगीरपीयं । अधारि कर्णे त्वयि केवलार्के, परिस्फुटे सत्यपि देव धिग्माम् ।१७। न देवपूजा न च पात्रपूजा, न-श्राद्धधर्मश्च न साधुधर्म । लब्ध्वापि मानुष्यमिद समस्त, कृत मायाऽरण्यविलापतुल्यं ।१८॥ चक्रे मया सत्स्वऽपि कामधेनु-कल्पद्रुचिन्तामणिषु स्पृहात्ति । न जैनधर्मे स्फुटशर्मदेऽपि, जिनेश-मे पश्य विमूढ भाव ।१६। सद्भोगलीला न च रोगकोला, धनागमो नो निधनागमश्च । दारा न कारा नरकस्य चित्ते, व्यचिन्ति नित्य मयकाऽधमेन ।२०। स्थितं न साधोह दि साधुवृत्तात्, परोपकारान्न यशोऽजित च । कृतं न तीर्थोद्धरणादिकृत्यं, मया मुधा हारितमेव जन्म ।२१॥ वैराग्यरगो न गुरूदितेषु, न दुर्जनाना वचनेषु शान्ति । नाध्यात्मलेशो मम कोऽपि देव, तार्य.कथङ्कारमयम्भवाब्धि ।२२। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ प्रार्थना पञ्चविगति -15 पूर्वे भवेऽकारि मया न पुण्य - मागामिजन्मन्यपि नो करिष्ये । यदीदृशोऽहं ममतेन नष्टा, भूतोद्भवद्भाविभवत्रयीश ! |२३| किंवा मुधाऽहं बहुधा सुधामुक्, पूज्य त्वदग्रे चरित स्वकीयं । जल्पामि यस्मात् त्रिजगत्स्वरूप, निरूपकस्त्वं कियदेतदत्र | २४| दीनोद्धारधुरन्धरस्त्वदपरो नास्ते मदन्य कृपा पात्रं नात्र जने जिनेश्वर ! तथाऽप्येता न याचे श्रियं । कि त्वर्हन्निदमेव केवलमहो सद्बोधिरत्न शिवं । श्रीरत्नाकर मंगलैकनिलय ! श्रेयस्करं प्रार्थये |२५| || प्रार्थना पञ्चविंशतिः ॥ सत्त्वेपु मैत्री गुणिपु प्रमोद, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्यभाव विपरीतवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देव | |१| शरीरत. कर्तुमनन्तशक्ति विभिन्नमात्मानमपास्तदोपम् | जिनेन्द्र ! कोपादिव खड्गयप्ट, तव प्रसादेन ममास्तु शक्ति |२| दुखे सुखे वेरिणि बन्धुवर्गे, योगे वियोगे भवने वने वा । निराकृताऽशेपममत्वबुद्धे, समं मनो मेऽस्तु सदापि नाथ ! | ३| य स्मर्यते सर्वमुनीन्द्रवृन्दै य स्तूयते सर्वनरामरेन्द्रे । यो गीयते वेदपुराणशास्त्र, स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ॥४॥ यो दर्शनज्ञानमुखस्वभाव समस्त मंसारविकारवाह्य । समाधिगम्य परमात्ममज्ञ, स देवदेवो हृदये ममास्ताम् |५| निपूदते यो भवदु खजालं, निरीक्षते यो जगदन्तरालम् । योऽन्तर्गतो योगिनिरीक्षणीय, स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ||६| , Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३४३ विमुक्तिमार्गप्रतिपादको यो, यो जन्ममृत्युव्यसनाद्व्यतीतः । त्रिलोकलोकी विकलोऽकलङ्क, स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ।७। क्रोडीकृताशेषशरीरिवर्गा , रागादयो यस्य न सन्ति दोषा. । निरिन्द्रियो ज्ञानमयोऽनपाय , स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ।। यो व्यापको विश्वजनीनवृत्ति , सिद्धो विबुद्धो धुतकर्मबन्ध. । ध्यातो धुनीते सकल विकारं स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ।। न स्पृश्यते कर्मकलङ्कदोषैः, यो ध्वान्तसंधैरिव तिग्मरश्मिः । निरञ्जन नित्यमनेकमेकं, तं देवमाप्तं शरण प्रपद्ये ।१०। विभासते यत्र मरीचिमालि, न्यविद्यमाने भवनावभासि । स्वात्मस्थितं बोधमयप्रकाशं, तं देवमाप्त शरणं प्रपद्ये ।११। विलोक्यमाने सति यत्र विश्वं, विलोक्यते स्पष्ट मिद विविक्तम् । शुद्ध शिवं शान्तमनाद्यनन्त, तं देवमाप्त शरणं प्रपद्ये ।१२। येन क्षता मन्मथमानमूर्छा-विपादनिद्राभयशोकचिन्ता । क्षय्योऽनलेनेव तरुप्रपञ्च-स्त देवमाप्त शरण प्रपद्ये ।१३। प्रतिक्रमण-(प्रभु समीपे स्वात्मचिन्तन) विनिन्दनालोचनगर्हणरह, मनोवच कायकषायनिर्मितम् । निहन्मि पाप भवदु खकारणं,भिषग्विष मन्त्रगुणैरिवाखिलम् ।१४। अतिक्रमं यं विमतेर्व्यतिक्रम, जिनाऽतिचार सुचरित्रकर्मणः । व्यधामनाचारमपि प्रमादत ,प्रतिक्रम तस्य करोमि शुद्धये ॥१५॥ न संस्तरोऽश्मा न तृणं न मेदिनी,विधानतो नो फलको विनिर्मित । यतो निरस्ताक्षकषायविद्विष ,सुधोभिरात्मैव सुनिर्मलो मतः ॥१६॥ न संस्तरो भद्र | समाधिसाधन, न लोकपूजा न च संघमेलनम् । यतस्ततोऽध्यात्मरतोभवाऽनिश,विमुच्य सर्वामपि बाह्यवासनाम्।। Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्रम् न सन्ति बाह्या मम केचनार्था., भवामि तेषा न कदाचनाहम् । इत्थ विनिश्चित्य विमुच्य बाह्य, स्वस्थ सदा त्वं भव भद्र | मुक्त्यै ।। अात्मानमात्मन्यविलोक्यमान-स्त्व दर्शनज्ञानमयो विशद्ध एकाग्रचित्त खलु यत्र तत्र, स्थितोपि साधुर्लभते समाधिम् ॥१६॥ एक सदा शाश्वतिको ममात्मा, विनिर्मल साधिगमस्वभाव , बहिर्भवा सन्त्यपरे समस्ता ,न शाश्वता कर्मभवा स्वकीया ।२०। यस्यास्ति नैक्य वपुपापि साद्धं, तस्यास्ति किं पुत्रकलत्रमित्र, पृथक्कृते चर्मणि रोमकूपा , कुतो हि तिष्ठन्ति शरीरमध्ये ।२१। संयोगतो दुखमनेकभेद, यतोऽश्नुते जन्मवने शरीरो, ततस्विधासौ परिवर्जनीयो, यियासुना निर्वतिमात्मनीनाम् ।२२। सर्व निराकृत्य विकल्पजाल, ससारकान्तारनिपातहेतुम् । विविक्तमात्मानमवेक्ष्यमाणो, निलीयसे त्व परमात्मतत्त्वे ।२३। स्वय कृतं कर्म यदात्मनापुरा, फलं तदीय लभते शुभाशुभम् , परेण दत्त यदि लभ्यते स्फुटं, स्वयकृतं कर्म निरर्थकं तदा ।२४। विमक्तिमार्गप्रतिकूलवर्तिना, मया कषायाक्षवशेन दुधिया, चारित्रशुद्धेर्यदकारि लोपन, तदस्तु मिथ्या मम दुप्कृत प्रभो ! २५ ॥ चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तोत्रम् ॥ किं कर्पूरमय सुधारसमन किं चन्द्ररोचियं । किं लावण्यमय महामणिमयं, करुण्यकेलिमयम् ।। विश्वानन्दमय महोदयमयं शोभामयं चिन्मयं । शुक्लध्यानमय वपुर्जिनपतेर्भूयाद्भवालम्बनम् ।१। Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३४५ पाताल कलयन् धरा धवलयन्नाकाशमापूरयन् । दिक्चक्र क्रमयन् सुरासुरनरश्रेणि च विस्मापयन् ।। ब्रह्माण्ड सुखयन् जलानि जलधे. फेनच्छलालोलयन् । श्री चिन्तामणि पार्श्वसंभवयशोहसश्चिर राजते |२| पुण्याना विपणिस्तमोदिनमणि. कामेभकुम्भे सृणिर्मोक्षे निस्सरणिः सुरेन्द्रकरिणी ज्योति प्रकाशारणि ॥ दाने देवमणिर्नतोत्तमजनश्रेणि कृपासारिणी । विश्वानन्दसुधाघृणिर्भवभिदे श्रीपार्श्व चिन्तामणि । ३ । ' श्री चिन्तामणिपार्श्व विश्वजनता सञ्जीवनस्त्वं मया । दृष्टस्तात ! ततः श्रियः समभवन्नाशक्रमाचक्रिणम् ॥ मुक्ति क्रीडति हस्तयोर्बहुविध सिद्धं मनोवाञ्छित । दुर्देवं दुरित च दुर्दिनभयं कष्टं प्रणष्ट मम ॥४॥ यस्य प्रौढतमप्रतापतपन प्रोद्दामधामा जगज्जघाल' कलिकालकेलिदलनो मोहान्धविध्वसक. ॥ नित्योद्योतपद समस्तकमला केलिगृहं राजते । स श्रीपार्श्वजिनो जने हितकरश्चिन्तामणि पातु माम् |५| विश्वव्यापितमो हिनस्ति तरणिर्बालोपि कल्पाकुरो । दारिद्राणि गजावली हरिशिशु काष्ठानि वह्न कणः । पीयूषस्य लवोऽपि रोगनिवह यद्वत्तथा ते विभो । मूर्ति स्फूर्तिमती सती त्रिजगती कष्टानि हर्तुं क्षमा |६| श्रीचिन्तामणिमन्त्रमेाँकृतियुत ह्रीं कारसाराश्रित । श्री मन्त्र मिऊणपाशकलित त्रैलोक्यवश्यावहम् ॥ द्वेधाभूतविषापहं विषहरं श्रेय प्रभावाश्रयं । Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ चितामणि पार्श्वनाथ स्तोत्रम् - सोल्लासं वसहाङ्कित जिनफुल्लिंगानन्दद देहिनाम् ।७। ह्री श्री कारवर नमोक्षरपर ध्यायन्ति ये योगिनोहृत्पने विनिवेश्य पार्श्वमधिप चिन्तामणिसंज्ञकम् । भाले वामभुजे च नाभिकरयो यो भुजे दक्षिणे। पश्चादष्टदलेपु ते शिवपदं द्विवैभवन्त्यिहो 141 स्रग्धरा-नो रोगा नैव शोका न कलहकलना नारिमारिप्रचारा नैवाधि समाधिन च दरदुरिते दुप्टदारिद्रता नो ।। नो शाकिन्यो ग्रहा नो न हरिकरिगणा व्यालवैतालजाला जायन्ते पार्वचिंतामणिनतिवशत.प्राणिना भक्तिभाजाम् ।। शार्दल -गीर्वाणद्रुमधेनुकुम्भमणयस्तस्यागणे रंगिणो- . देवा दानवमानवा सविनयं तस्मै हितध्यायिनः ।। लक्ष्मीस्तस्य वशाऽवशेव गणिना ब्रह्माण्डसंस्थायिनी। श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथमनिशं सस्तोति यो ध्यायति ।। मालिनी-इति जिनपतिपार्श्व. पाश्र्वपाश्र्वात्ययक्ष प्रदलितदुरितोच. प्रीणितप्राणिसार्थ । त्रिभुवनजनवाञ्छादानचिन्तामणिकः । शिवपदतरुवीज बोधिवीज ददातु ।११॥ अहंतो भगवन्त इन्द्रमहिता सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः, प्राचार्या जिनशासनोन्नतिकरा. पूज्या उपाध्यायका । श्रीसिद्धान्तसुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधका, पचैते परमेष्ठिन प्रतिदिनं कुर्वन्तु नो मगलम् ।। Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३४७ वीर सर्वसुरासुरेन्द्र महितो, वीर बुधा. संश्रिता । वीरेणाभिहत स्वकर्म निचयो, वीरा य नित्य नमः ।। वीरात्तीर्थमिद प्रवृत्तमतुल वीरस्य घोरं तपो।। वीरे श्री धति कीति कान्तिनिचय ,श्री वीर | भद्रदिश ।। ॥ मेरी भावना॥ जिसने राग द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया। सब जीवो को मोक्ष मार्ग का, निष्पह हो उपदेश दिया । बद्ध वीर जिन हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो, यह चित्त उसी मे लीन रहो।। विषयो की आशा नही जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं। निज पर के हित साधन मे जो, निशिदिन तत्पर रहते हैं। स्वार्थ त्याग को कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते है। ऐसे ज्ञानी साधु जगत के, दुख समूह को हरते है। रहे सदा सत्संग उन्ही का, ध्यान उन्ही का नित्य रहे । उन्ही जैसी चर्या मे यह, चित्त सदा अनुरक्त रहे । नही सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नही कहा करूँ । परधन वनिता पर न लुभाऊँ, संतोषामृत पिया करूँ ।। अहकार का भाव न रक्खू , नही किसी पर क्रोध करूँ। देख दूसरो की बढ़ती को, कभी न ईा भाव धरूँ।। रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूँ। बने जहाँ तक इस जीवन मे, औरो का उपकार करूँ ।। मैत्री भाव जगत् मे मेरा, सब जीवो से नित्त्य रहे। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ मेरी भावना दीन दुखी जीवो पर मेरे, उर से करुणा स्रोत बहे ।। दुर्जन क्रूर कुमार्ग रतो पर, क्षोभ नही मुझको अग्वे। साम्य भाव रखू मैं उन पर, ऐसी परिणति हो जावे ॥ गुणी जनो को देख हृदय मे, मेरे प्रेम उमड पावे। वने जहा तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख पावे ।। होऊँ नही कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे । गुण ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषो पर जावे ।। कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी प्रावे या जावे । लाखो वर्षों तक जीऊँ या, मृत्यु आज ही आ जावे । अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच देने आवे । तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न पद डिगने पावे।। होकर सुख मे मग्न न फूले, दु.ख मे कभी न घवरावे । पर्वत नदी स्मशान भयानक, अटवी से नही भय खावें।। रहे अडोल अकम्प निरतर, यह मन दृढतर बन जावे । इष्ट वियोग अनिप्ट योग मे, सहन शीलता दिखलावे ॥ सुखी रहे सब जीव जगत् के, कोई कभी न घवरावे । वैर पाप अभिमान छोड जग, नित्य नये मगल गावे । घर पर चर्चा रहे धर्म की, दुप्कृत दुप्कर हो जावे । ज्ञान चरित उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सव पावे ।। ईति भीति व्यापे नही जग मे, धर्म समय पर हुमा करे। धर्मनिष्ठ होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे । रोग मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे । परम अहिंसा धर्म जगत् मे, फैल सर्व हित किया करे ।। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला ३४६ फैले प्रेम परस्पर जग मे, मोह दूर पर रहा करे । अप्रिय कटक कठोर शब्द नहिं, कोई मुख से कहा करे ।। बनकर सव 'युग वीर" हृदय से देशोन्नति रत रहा करे । वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दु ख सकट सहा करे ।। ।।इति।। ॥लघु साधु वन्दना॥ साधुजी ने वदना नित नित कीजे, प्रात उगते सूर रे प्राणी । नीच गति माँ ते नही जावे. पावे ऋद्धि भरपूर रे प्राणी। साधु ।। मोटा ते पच महाव्रत पाले, छह कायारा प्रतिपाल रे प्राणी। भ्रमर भिक्षा मुनि सूझती लेवे, दोष बियालीस टाल रे प्राणी ।२। ऋद्धि सम्पदा मुनि कारमी जाणी, दीधी ससार ने पूठ रे प्राणी। या पुरुषा री सेवा करता, पाठ करम जाय टूट रे प्राणी। साधु ।३। एक एक मुनिवर रसना त्यागी एक एक ज्ञान भण्डार रे प्राणी। एक एक मुनिवर वैयावच वैरागी,जेना गुणानो नावे पार रे प्राणी॥ गण सत्तावीस करीने दीपे, जीत्या परीसा बावीस रे प्राणी। बावन तो अनाचार जो टाले तेने नमावू मारूं शीश रे प्राणी ।।५॥ जहाज समान ते संत मुनिश्वर, भव्य जीव बैठे आय रे प्राणी । पर उपकारी मुनि दाम न माँगे, देवे मुक्ति पहुचाय रे प्राणी ।६। इण चरणे जीव साता पावे, पावे ते लीलविलास रे प्राणी। जन्म जरा ने मरण मिटावे,नावे फरी गर्भावास रे प्राणी । साध।७। एक वचन श्रीसतगुरु करो, जो पैठे दिल माय रे प्राणी । नरक निगोद मां ते नही जावे, एम कहे जिन राय रे प्राणी ।। प्रात उठी ने उत्तम प्राणी, सुणे साधुजी रो व्याख्यान रे प्राणी। Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० वडी साधु वन्दना एहवा पुरुपारी सेवा करता, पावे अमर विमान रे प्राणी । साथ् ।। सवत अठार ने वर्प अडतीसे, वसी गांव चीमास रे प्राणी। मुनि ग्रासकरणजी इण पर जपे, हुं उतम साधा रो दासरे । १०। बड़ी साधु वन्दना नम अनन्त चौवीसी, ऋपमादिक महावीर । प्रारज क्षेत्रमा, घाली धर्म नी शीर ॥१॥ महा प्रतुल बली नर, शर वीर ने धीर । तीरथ प्रवर्तावी, पहूच्या भव जल तीर ।२। सीमधर प्रमुख, जघन्य तीर्थकर वीश । के अढी द्वीप माँ, जयवता जगदीश ।। एक सौ ने सित्तर, उत्कृष्ट पदे जगीश । धन्य म्होटा प्रभुजी, तेह ने नमा शीश ।४। केवली दोय कोडी, उत्कृष्टा नबकोड़। मुनि दीय सहस्र कोडी, उत्कृप्टा नव सहत्र कोड ५१ विचरे विदेहे, म्होटा तपसी घोर । भावे करी बन्दू, टाले भवनी खोड ।६। चौवीसे जिनना, सघला ही गणधार । चौदसे ने बावन, ते प्रण, सुखकार ।७। जिन शासन नायक,धन्य श्रीवीर जिनंद । गोतमादिक गणधर, वर्तायो अानन्द ।। श्री ऋषभदेव ना, भरतादिक सो पूत । वैराग्य मन प्राणी, संयम लियो अद्भुत है। Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ वडी माधु वन्दना पछि इन्द्र हटायो, दियो छ. काय अभयदान | २१ | करकण्डू प्रमुख, चारे प्रत्येक बुद्ध । मुनि मुक्ति पहुत्या, जीत्या कर्म महाजुद्ध | २२ धन्य म्होटा मुनिवर, मृगापुत्र जगीश | मुनिवर नाथी, जीत्या राग ने रीश | २३ | वलि समुद्रपाल मुनि, राजमति रहनेम । केशी ने गौतम, पाम्या शिवपुर क्षेम | २४| धन्य विजयघोष मुनि, जयघोप वलि जाण । श्री गर्गाचार्य पहुत्या छे निर्वाण | २५ | श्री उत्तराध्ययन माँ, जिनवर करया वखाण । शुद्ध मन से ध्यावो, मन माँ धीरज आण । २६ । वलि खदक सन्यासी, राख्यो गौतम स्नेह | महावीर समीपे, पच महाव्रत लेह |२७| तप कठिन करीने, झोसी अपणी देह | गया अच्युत देवलोके, चवि लेमे भव-छेह | २८ वलि ऋषभदत्त मुनि, मेठ सुदर्शन सार । शिवराज ऋषीश्वर, धन्य गांगेय अणगार |२६| शुद्ध संयम पाली, पाम्या केवल सार । ये चारे मुनिवर, पहुंत्या मोक्ष मँझार |३०| भगवन्त नी माता धन्य धन्य सती देवानदा । वलि सती जयन्ती, छोड दिया घर फंदा । ३१ । सती मूक्ति पहुत्या, वलि ते वीरनी नन्द | महासती सुदर्शना, घणी सतियो ना वृन्द । ३२। Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला वलि कातिक सेठे, पडिमा वही शूरवीर । जम्यो महोरा ऊपर, तापस बलतीर खीर ।३३। पछी चारित्र लीडूं, मित्र एक सहस्र आठ धीर । मरी हुआ शक्रेन्द्र, च्यवि लेसे भव तीर ।३४। वलि राय उदायन, दियो भाणेज ने राज । पछी चारित्र लेडने, सारया आतम काज ।३५॥ गगदत्त मूनि आनन्द, तारण तरण जहाज । कौशल मुनि रोहा, दियो घणाने साज ।३६। धन्य सुनक्षत्र मुनिवर, सर्वानुभूति अणगार। पाराधक होइ ने, गया देवलोक मंझार ।३७। चवि मुक्ति जासे, वलि सिंह मुनीश्वर सार । बीजा पण मुनिवर, भगवती माँ अधिकार ३८१ श्रेणिक ना बेटा, म्होटा मुनिवर मेघ । तनि आठ अन्तेउर, आण्यो मन सवेग ।३६। वीर पै व्रत लइने, बाँधी तप नी तेग । गया विजय विमाने, चवि लेसे शिव वेग ।४०। धन्य थावच्चा पुत्र, तजी बत्तीसे नार । तेनी साथे निकल्या, पुरुष एक हजार ४१॥ शुकदेव सन्यासी, एक सहस शिष्य लार । पचशय सु शैलक, लीघो संजमभार ।४२। सब सहस्र अढाई, घणा जीवो ने तार । पुंडरिक गिरि ऊपर, कियो पादपोपगमन संथार ।४३॥ आराधक हुई ने, किधो खेवो पार । Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला वलि कार्तिक सेठे, पडिमा वही शूरवीर । जम्यो महोरा ऊपर, तापस बलतीर खीर ।३३। पछी चारित्र लोधू, मित्र एक सहस्र आठ धीर । मरी हुआ शक्रेन्द्र, च्यवि लेसे भव तीर ।३४। वलि राय उदायन, दियो भाणेज ने राज । पछी चारित्र लेडने, सारया आतम काज ।३५॥ गगदत्त मुनि आनन्द, तारण तरण जहाज । कोशल मुनि रोहा, दियो घणाने साज ।३६ धन्य सुनक्षत्र मुनिवर, सर्वानुभूति अणगार । आराधक होइ ने, गया देवलोक मंझार ।३७। चवि मुक्ति जासे, वलि सिंह मनीश्वर सार । बीजा पण मुनिवर, भगवती माँ अधिकार ।३८। श्रेणिक ना बेटा, म्होटा मुनिवर मेघ । तजि आठ अन्तेउर, आण्यो मन सवेग ।३९। वीर पै व्रत लइने, बाँधी तप नी तेग । गया विजय विमाने, चवि लेसे शिव वेग ।४०। धन्य थावच्चा पुत्र, तजी बत्तीसे नार ।। तेनी साथे निकल्या, पुरुष एक हजार ४१॥ शुकदेव सन्यासी, एक सहस शिष्य लार । पचशय सु शैलक, लीघो संजमभार ।४२॥ सब सहस्र अढाई, घणा जीवो ने तार । पुंडरिक गिरि ऊपर, कियो पादपोपगमन संथार ।४३। आराधक हुई ने, किधो खेवो पार । Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ वडी साधु वन्दना हुआ म्होटा मुनिवर, नाम लिया निस्तार ।४४। धन्य जिनपाल मुनिवर, दोय धन्ना हुआ साध । गया प्रयम देवलोके, मोक्ष जासे पाराध ॥४५॥ मल्लिनाथ ना छह मित्र, महाबल प्रमुख मुनिराय । सर्वे मुक्ति सिधाव्या, म्होटी पदवी पाय ।४६। वलि जितशत्रु राजा, सुबुद्धि नामे प्रधान । पोते चारित्र लईने, पाम्या मोक्ष निधान ।४७१ धन्य तेतली मुनिवर, दियो छकाय अभयदान । पोटिला प्रतिबोध्या, पाम्या केवल ज्ञान ।४८ धन्य पॉचे पॉडव, तजी द्रोपदी नार। थेवरनी पासे, लोधो संयम भार ।४६ । श्री नेमि वन्दन नो, एहवो अभिग्रह कीध । मास मास खमण तप, शत्रुजय जई सिद्ध १५०॥ धर्मघोप तणा शिष्य, धर्मरुचि अणगार । कीडियो नी करुणा, पाणी दया अपार ॥५१॥ कडवा तुंवा नो, कीधो सगलो आहार। सर्वार्थ सिद्ध पहुँच्या, चवि लिधो भवपार ।५२। वलि पुंडरीक राजा, कुँडरीक डगियो जाण । पोते चारित्र लईने, न घाली धर्म माँ हाण ।५३। सर्वार्थ सिद्ध पहच्या, चवि लेशे निर्वाण । श्री ज्ञातासूत्र माँ, जिनवर कऱ्या वखाण १५४। गौतमादिक कुंवर, सगा अठारे भ्रात । सब अधक विष्णु सुत, वारिणि ज्यारी मात ॥५५॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३५५ तजी आठ अन्तेउर, काढी दीक्षा नी बात | चारित्र लईने कीधो मुक्ति नो साथ । ५६ । श्री अनीकसेनादिक, छये सहोदर भाय । वसुदेव ना नन्दन, देवकी ज्यारी माय । ५७ । महिलपुर नगरी, नाग गाहावई जाण । सुलसा घेर वधिया, साँभली नेम नी वाण । ५८ । तजी बत्तीस बत्तीस अन्तेउर, निकलिया छिटकाय । नल कूबर समाणा, भेट्या श्री नेम ना पाय । ५६ । करी छठ छठ पारणा, मन मे वैराग्य लाय । एक मास संथारे, मुक्ति विराज्या जाय । ६० । वली दारुक सारण, सुमुख दुमुख मुनिराय । कुँवर श्रनादृष्टि, गया मुक्तिगढ माय । ६१ । वसुदेवना नन्दन, धन्य धन्य गजसुकुमाल | रूपे प्रति सुन्दर, कलावन्त वय बाल ।६२। श्री नेमि समीपे, छोड्यो मोह जंजाल । भिक्षु नी पडिमा, गया मसाण महाकाल | ६३ | देखी सोमल कोप्यो, मस्तक बाँधी पाल । खेराना खीरा, शिर ठविया असराल | ६४ | मुनि नजर न खडी, मेटी मननी झाल । परीषह सहीने, मुक्ति गया तत्काल । ६५ । धन्य जाली मयाली, उवयालादिक साध । शास्त्र ने प्रद्युम्न, श्रनिरुद्ध साधु अगाध । ६६ । वलि सत्यनेमि दृढनेमि, करणी कीधी अगाध । Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ ast साधु वन्दना S J दशे मुक्ति पहुचा, जिनवर वचन आराध | ६७ | धन्य ग्रर्जुनमाली, कियो कदाग्रह दूर वीर पै व्रत लईने, सत्यदादी हुआ शूर । ६८ । करी छठ छठ पारणा, क्षमा करी भरपूर । छह मासा माही, कर्म किया चकचूर |६|| कुँवर इमुत्ते, दीठा गौतम स्वाम । सुणी वीर नी वाणी, कीधो उत्तम काम | ७० चारित्र लईने, पहुच्या शिवपुर ठाम । धुर आदि मकाई, ग्रन्त ग्रलक्ष मुनि नाम ॥७१॥ वलि कृष्णराय नी, अग्रमहिपी आठ । पुत्र- बहू दोये, सँच्या पुण्य ना ठाठ ॥ ७२ ॥ जादव कुल सतियाँ, टाली दुख उच्चाट | पहुची शिवपुर माँ, ए छे सूत्र नो पाठ |७३। श्रेणिक नी राणी, काली आदिक दश जाण । दशे पुत्र वियोगे, सॉभली वीरनी वाण |७४ चन्दन बाला पै, सयम लेई हुई जाण । तप करी देह भोसी, पहुची छे निर्वाण । ७५। नंदादिक तेरह, श्रेणिक नृप नी नार । सघली चन्दनवाला पै, लीधो संयम भार ॥७६॥ एक मास सथारे, पहुची मुक्ति गभार । ए नेवुं जणा नो, अन्तगड मॉ अधिकार | ७७ । श्रेणिक ना बेटा, जालियादिक तेवीश । वीर पै व्रत लेईने, पाल्यो विश्वा वीश ।७८ । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला तप कठिन करी ने, पूरी मन जगीश । देवलोके पहुंच्या, मोक्ष जासे तजी रीश ७६। काकन्दी नो धन्नो, तजी बत्तीसे नार । महावीर समीपे, लीधो सयम भार 1८०॥ करी छठ छठ पारणा, प्रायम्बिल उच्छिष्ट आहार । श्री वीर वखाण्यो, धन धन्नो अणगार ८१ एक मास संथारे, सर्वार्थ सिद्ध पहुत । महा विदेह क्षेत्र मॉ, करसे भव नो अन्त १८२॥ धन्नानी रीते, हुआ नवे ही संत । श्री अनुत्तरोववाई मां, भाँखी गया भगवंत ।८३। सुबाहु प्रमुख, पाँच पाँचसौ नार । तजी वीर पै लीधा, पॉच महाव्रत सार 1८४। चारित्र लेई ने, पाल्यो निरतिचार । देवलोके पहुच्या, सुखविपाके अधिकार 1८५॥ श्रेणिक ना पौत्रा, पौमादिक हुमा दस । वीर पै व्रत लेईने, काढयो देह नो कस ।८६। सयम आराधी, देवलोक माँ जइ वस । महाविदेह क्षेत्र माँ, मोक्ष जासे लेई जस १८७। बलभद्र ना नन्दन, निषधादिक हुआ बार । तजी पचास अन्ते उरी, त्याग दियो ससार ।। सहु नेमि समीपे, चार महावत लीध । सर्वार्थसिद्ध पहुच्या, होशे विदेहे सिद्ध ।८६। धन्नो ने शालिभद्र, मुनीश्वरो नी जोड । Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वडी साधु वन्दना नायीं ना बन्धन, तत्क्षण नाख्या तोड़ 1801 घर कुटुम्ब कविलो, धन कचन नी कोड । मास मास खमण तप, टालसे भव नी खोड़। १ श्री सुधर्मा स्वामी ना शिष्य, धन धन जम्बू स्वामी । तजी पाठ अन्ते उरी, मात पिता धन धाम 1९२। प्रभवादिक तारी, पहुच्या शिवपुर ठाम । सूत्र प्रवर्तावी, जग माँ राख्यु नाम ।६३। धन्य ढढण मुनिवर, कृष्ण राय ना नन्द । शुद्ध अभिग्रह पाली, टाल दियो भव फन्द 1९४| वलि खन्दक ऋपि नी, देह उतारी खाल । परीपह सहीने, भव फेग दिया टाल ।९५] वलि खन्दक ऋपि ना, हुया पाँचसौ शिप्य । घाणी माँ पील्या, मुक्ति गया तज रीश ।६६। संभूतिविजय-शिप्य, भद्रबाहु मुनिराय । चौदह पूर्वधारी, चन्द्रगुप्त प्राण्यो ठाय ।९७। वलि आर्द्र कुमार मुनि, स्थूलिभद्र नन्दिपेण । अरणक अइमुत्तो, मुनीश्वरो नी श्रेण ।१८। चौवीसे जिनना, मुनिवर सख्या अठावीश लाख । ऊपर सहस अडतालीम, सूत्र परम्परा भाख TBSI कोई उत्तम वाँचो, मोढे जयणा राख । उघाड़े मुख वोल्या, पाप लगे इम भाख ११००। धन मरुदेवी माता, घ्यायो निर्मल ध्यान । गज होदे पायो, निर्मल केवलज्ञान ।१०१ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला धन्य आदिश्वर भी पुत्री, ब्राह्मी सुन्दरी दोय | चारित्र लेईने, मुक्ति गई सिद्ध होय ॥ १०२ ॥ चौवीसे जिननी, बड़ी शिष्यणी चौवीस । , सती मुक्ति पहुच्या, पूरी मन जगीश । १०३ | चौवीसे जिनना, सर्व साधवी सार । ✓ अडतालीस लाखने, आठसे सित्तर हजार । १०४। चेडा नी पुत्री, राखी धर्म सु प्रीत । राजीमती विजया, मृगावती सुविनीत । १०५ ॥ . पद्मावती मयणरेहा, द्रौपदी दमयन्ती सीत । इत्यादिक सतियाँ, गई जमारो जीत । १०६ । चौवीसे जिनना, साधु साधवी सार । गया मोक्ष देवलोके, हृदये राखो धार । १०७ । इण अढ द्वीप माँ, घरड़ा तपसी बाल । f 1 f ३५६ शुद्ध पंच महाव्रत धारी, नमो नमो त्रिकाल ।१०८ | इण जतियो सतियो ना, लीजे नित्य प्रति नाम । शुद्ध मन थी ध्यावो, एह तिरण नो ठाम ।१.०६। इण जतियो सतियो शुं राखो उज्ज्वल भाव । 1 इम कहे ऋषि जयमल, एह तिरणो तो दाव । ११० । सवत अठारने, वर्ष साते सिरदार | गढ जालोर माँ, एह को अधिकार । १११ । ॥ इति बडी साधु वदना ॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहदालोयणा वृहदालोयणा दोहा सिद्ध श्री परमात्मा, अरिंगजन अरिहंत । इष्टदेव वंदू सदा, भयभंजन भगवत ।११ मरिहंत सिद्ध समरू सदा, प्राचारज उवज्झाय । साध सकल के चरन को, वदू शीश नमाय ।२। शासन नायक सुमरिये, भगवंत वीर जिनंद । अलिय विधन दूरे हरे, प्रापे परमानंद ।३। अगुठे अमृत वसे, लब्धि तणा भंडार । श्रीगुरु गौतम सुमरिये, वाछित फल दातार ४ श्रीगुरुदेव प्रसाद से, होत मनोरथ सिद्ध । ज्यू धन वरसत वेलि तरु, फूल फलन की वृद्ध ।५। पच परमेष्ठी देव को, भजनपुर पंचान । कर्म अरि भाजे सभी, होवे परम कल्याण ।६। श्रीजिन युग पद कमल में,मुझ मन भमर बसाय । कव ऊगे वो दिन करूँ, श्रीमुख दरिसन पाय ।७। प्रणमी पद पंकज भणी, अरिगजन अरिहंत । कथन करूँ अव जीव को, किंचित मुझ विरतत 101 आरंभ विषय कपाय वस, भमियो काल अनंत । लख चोराशी योनि से, अव तारो भगवंत ।।। देव गुरु धर्म सूत्र मे, नवतत्वादिक जोय । अधिका पोछा जे कह्या, मिच्छा दुक्कडं मोय ।१०। Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला मोह अज्ञान मिथ्यात्व को, भरियो रोग अथाग। वैद्यराज गुरु शरण से, औषध ज्ञान वैराग ।११॥ जे मै जीव विराधिया, सेव्या पाप अठार । प्रभ तुम्हारी साख से,वारवार धिक्कार ।१२। बुरा बुरा सब को कहू, बुरा न दीसे कोय । जो घट शोधू आपणो, तो मोसु बुरो न कोय ।१३। कहेवा मे आवे नही अवगुण भरया अनंत। . लिखवा मे क्यु कर लिखू, जानो श्री भगवत ।१४। करुणानिधि कृपा करी, कठिन कर्म मोय छेद । मोह अज्ञान मिथ्यात्व को, करजो ग्रथीभेद ॥१५॥ पतित उद्धारन नाथजी, अपनो विरुद विचार । भूल चूक सब माहरी, खमिये वारवार ।१६। माफ करो सब माहरा, आज तलक ना दोष । दीनदयाल देवो मुझे, श्रद्धा शील संतोष ।१७। आतम निंदा शुद्ध भणी, गुणवत वदन भाव । रागद्वेष पतला करी, सबसे खमत खमाव 1१८॥ छु, पिछला पाप से, नवा न बाँधु कोय । श्रीगुरुदेव प्रसाद से, सफल मनोरथ होय ।१६। परिग्रह ममता तजी करी, पंच महाव्रत धार । अत समय आलोयणा, करू संथारी सार ।२०। तीन मनोरथ ए कह्या, जो ध्यावे नित्य मन्न । शक्ति सार वरते सही, पावे शिव सुख धन्न ।२१। अरिहंत देव निग्रंथ गुरु, सवर निर्जरा धर्म । Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ बृहदालोयणा केवली भाषित शास्त्र, यहि जैन मत मर्म ।२२ प्रारभ विषय कषाय तज, शुद्ध समकित व्रत धार । जिन अाज्ञा परमाण कर, निश्चय खेवो पार ।२३। क्षण निकमो रहनो नही, करनो प्रातम काम । भणनो गणनो शीखनो, रमनो ज्ञान राम ।२४। अरिहत सिद्ध सब साधुजी, जिन आज्ञा धर्म सार । मंगलिक उत्तम सदा, निश्चय शरणा चार १२५ घड़ी घडी पल पल सदा, प्रभु सुमरण को चाव । नरभव सफलो जो करे, दान शील तप भाव ।२६॥ सिद्धा जैसो जीव है, जीव सोही सिद्ध होय । कर्म मेल का प्रातरा, बूझे विरला कोय ।११ कर्म पुद्गल रूप है, जीव रूप है ज्ञान । दो मिलकर बहु रूप है, विछड्या पद निर्वाण ।२। जीव करम भिन्न भिन्न करो, मनुष्य जन्म को पाय । ज्ञानातम वैराग्य से, धीरज ध्यान जगाय ।३। द्रव्य थकी जीव एक है, क्षेत्र असख्य प्रमाण । काल थकी सर्वदा रहे, भावे दर्शन ज्ञान ।४। गभित पुद्गल पिंड मे, अलख अमूरति देव । फिरे सहज भव चक्र मे, यह अनादि की टेव ।५॥ फूल अतर घी दूध मे, तिल मे तेल छिपाय । यू चेतन जड करम संग, बध्यो ममत दुख पाय ।६। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन स्वाध्यायमाला र ३६३ जो जो पूदगल की दिशा, ते निज माने हंस । याही भरम विभावते, बढे करम को वस ।७। रतन बंध्यो गठडी विषे, सूर्य छिप्यो घन माहि । सिंह पिंजरा मे दियो, जोर चले कछु नाहि ।। ज्यु बंदर मदिरा पियाँ, विच्छू डकित गात । भूत लग्यो कौतुक करे, त्यू कर्मी को उत्पात ।। कर्म संग जीव मूढ है, पावे नाना रूप । कर्मरूप मल के टले, चेतन सिद्ध स्वरूप ।१०। शुद्ध चेतन उज्ज्वल दरब, रह्यो कर्म मल छाय । तप सयम सु धोवता, ज्ञान ज्योति बढ जाय ।११॥ ज्ञान थकी जाने सकल दर्शन श्रद्धा रूप । चरित्र से आवत रुके, तपस्या क्षपन स्वरूप ।१२। कर्म रूप मल के शुधे, चेतन चादी रूप । निर्मल ज्योति प्रगट भया, केवल ज्ञान अनूप ।१३। मसी पावक सोहगी, फूंका तणो उपाय । रामचरण चारो मिल्या, मैल कनक को जाय ।१४। कर्मरूप बादल मिटे, प्रगटे चेतन चंद । ज्ञानरूप गुण चाँदनी, निर्मल ज्योति अमंद ।१५॥ राग द्वेप दो बीज से, कर्म बध की व्याध । ज्ञानातम वैराग्य से, पावे मुक्ति समाध ॥१६॥ अवसर बोत्यो जात है, अपने बस कछु होत । पुण्य छता पुण्य होत है, दीपक दीपक ज्योत ।१७। कल्पवृक्ष चितामणि, इण भव मे सुखकार । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ वृहदालोयणा ज्ञान वद्धि इन से अधिक, भवदु.ख भंजनहार 1१८॥ राइ मात्र घट वध नही. देख्या केवलज्ञान । यह निश्चय कर जानके, तजिये प्रथम ध्यान ।१६। दूजा भी नहि चितिये, कर्म वध बहु दोष । जीजा चौथा ध्याय के, करिये मन सतोप २० गई वस्तु सोचे नहीं, आगम वाछा नांहि। - वर्तमान वर्ते सदा, सो ज्ञानी जग माही ।२१॥ अहो समदृष्टि जीवड़ा, करे कुटुब प्रतिपाल । अतर्गत न्यारो रहे, ज्यु धाय खिलावे वाल !२२। सुख दुख दोनु बसत है, ज्ञानी के घट माहि । गिरि सर दीसे मुकर मे, भार भीजवो नाहि ।२३। जो जो पुद्गल फरसना, निश्चे फरसे सोय । ममता समता भाव से, करम बंध क्षय होय ।२४। बाध्या सोही भोगवे, कर्म शुभाशुभ भाव । फल निर्जरा होत है, यह समाधि चित्त चाव ।२५॥ वाध्या विन भुगते नहीं, विन भुगत्या न छुडाय । आप ही करता भोगता, पाप ही दूर कराय ।२६। पथ कुपथ घट वध करी, रोग हानि वृद्धि थाय । यं पुण्य पाप किरिया करी, सुख दुख जग मे पाय ।२७। सुख दिया सुख होत है, दु ख दिया दुख होय । आप हणे नही अवर को, तो पापको हणे न कोय ॥२८॥ ज्ञान गरीवी गुरु वचन, नरम वचन निर्दोप। इन को कभी न छोड़िये, श्रद्धा शील सतोष ।२९। Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३६५ सत मत छोड़ो हो नरा, लक्ष्मी चौगुनी होय । सुख दुख रेखा कर्म की, टाली टले न कोय |३०| गोधन गज धन रत्न धन, कंचन खान सुखान । जब आवे सताष धन, सब धन धूल समान । ३१ । शील रतन महोटो रतन, सब रतना की खान । तीन लोक की सपदा, रही शील मे आन |३२| शीले सर्प न ग्राभडे, शीले शीतल आग । शीले अरि करि केसरी, भय, जावे सब भाग |३३| शील रतन के पारखु, मीठा बोले वैन | सब जग से ऊँचा रहे, जो नीचा राखे नैन |३४| तन कर मन कर वचन कर, देत न काहु दु ख । कर्म रोग पातक झडे, देखत वा का मुख |३५| पान खरंतो इम कहे, सुन तरुत्रर बनराय । अब के बिछुडे कब मिले, दूर पडेगे जाय |३६| तब तरुवर उत्तर दियो, सुनो पत्र एक बात | इस घर एही रीत है, एक आवत एक जात |३७| वरस दिना की गाठ को, उत्सव गाय वजाय । मूरख नर समझे नही, वरस गाठ को जाय |३८| सोरठा- - पवन तणो विश्वास, किण कारण ते दृढ कियो । इनकी एही रीत, आवे के आवे नही || दोहा करज बिराना काढ के, खरच किया बहु नाम । जब मुद्दत पूरी हुवे, देना पडशे दाम |१| Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहदालोयणा विन दिया छूटे नहीं, यह निश्चय कर मान । हँस हँस के क्यु ख रचिये, दाम बिराना जान १२॥ जीव हिंसा करता थका, लागे मिष्ट अज्ञान । ज्ञानी इम जाने सही, विप मिलियो पकवान ।। काम भोग प्यारा लगे, फल किम्पाक समान । मीठी खाज खुजावता, पीछे दुख की खान ।४। जप तप संजम दोहिलो, औषध कडवी जान । सुख कारण पीछे घणो, निश्चय पद निर्वाण ।५। डाभ अणी जल विदुवो, सुख विषयन को चाव । भवसागर दुख जल भरयो, यह ससार स्वभाव ।६।। चढ उत्तग जहा से पतन, शिखर नही वो कप। जिम सुख भीतर दुख बसे, सो सुख भी दुख रूप ७) जब लग जिसके पुण्य का, पहोचे नहीं करार । तव लग उसको माफ है, अवगुण करे हजार।। पुण्य क्षीण जब होत है, उदय होत है पाप । दाजे बन की लाकडी, प्रजले आपोप्राप ।। पाप छिपाया ना छिपे, छिपे तो मोटा भाग। दावी दुवी ना रहे, रुई पलेटी आग ।१०। वह वीती थोडी रही, अव तो सुरत सभार । पर भव निश्चय जावनो, वृथा जन्म मत हार ।११ चार कोस नामान्तरे, खरची वाधे लार । परभव निश्चय जावणो, करिये धर्म विचार 1१२॥ रज विरज ऊँची गई, नरमाइ के पान । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला पत्थर ठोकर खात है, करडाइ के तान ।१३। अवगन उर धरिये नही, जो होवे वक्ष बबल । गण लीजे 'काल' कहे नही छाया मे शूल ।१४। जैसी जापे वस्तु है, वैसी दे दिखलाय । वाका बुरा न मानिये, वो लेन कहा से जाय ।१५। गुरु कारीगर सारीखा टाची वचन विचार । पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहे अपार ।१६। सतन को सेवा कियां, प्रभु रीझत है आप । जाका बाल खिलाइये ताका रीझत बाप ।१७। भवसागर ससार मे, दीपा श्रीजिनराज । उद्यम करी पहोचे तीरे, बैठी धर्म जहाज ।१८। निज आतम को दमन कर, पर आतम को चीन । परमातम को भजन कर, सोही मत परवीन ।१६। समझ शके पाप से, अणसमझ हरपत ।। वे लखा वे चीकणा, इण विध कर्म बधत ।२०। समझ सार ससार मे, समझू टाले दोष । समझ समझ कर जीवडा, गया अनता मोक्ष ।२१॥ उपशम विषय कषाय नो, सवर तीनो योग । किरिया जतन विवेक से, मिटे कुकर्म दुख रोग ।२२। रोग मिटे समता वधे, समकित व्रत पाराध । निर्वेरी सब जीव को, पामे मुक्ति समाघ १२३। ।। इति भूल चूक मिच्छामि दुक्कड ।। Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ बृहदालोयणा सिद्ध श्री परमात्मा अग्गिजन अरिहत । इष्टदेव वद् सदा, भयभजन भगवंत ।११ अनत चौवीशी जिन' नमु, सिद्ध अनंता कोड़। वर्तमान जिनवर सवे, केवली दो कोड़ी नव कोड़ ।। गणधरादिक सर्व साधजी, समकित व्रत गुणधार । यथायोग्य वदन करूँ, जिन आज्ञा अनुसार ।३। यहां एक बार नमस्कार मन्त्र का-स्मरण करना चाहिए। पच परमेष्टी देवनो, भजन पुर पचान । कर्म अरि भाजे सभी, शिव सुख मगल थान १४१ अरिहंत सिद्ध सुमरु सदा, आचारज उवझाय । साधु सकल के चरन को, वंदू शोश नमाय ।। शासन नायक सुमरिये, वर्धमान जिनचद । अलिय विघन दूरे हरे, आपे परमानंद ।६। अगुठे अमृत बसे, लधि तणा भडार। . जय गुरु गोतम सुमरिये, वाछित फल दातार ।७। श्रीजिन युगपद कमल में, मज मन अलिय वसाय । कव उगे वो दिन करूँ, श्रीमुख दरिसन पाय 11 प्रणमी पदपंकज भणी, अरिगंजन अरिहंतः। , कथन करूँ अव जीव को, किंचित मुझ विरतत 181 गाथा - हं अपराधी अनादि को, जनम जनम गुना- किया भरपूर के । लटिया प्राण छकाय नां, सेविया पाप अठारे करूर के । श्रीमुनिसुव्रत साहित्रा। Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३६१ आज दिन तक इस भव मे और पहिले सख्यात असं. ख्यात अनत भवो मे, कुगुरु कुदेव और कुधर्म की सद्दहणा प्ररूपना फरसना सेवनादिक सबधी पाप दोष लगा, उनका मिच्छामि दुक्कडं । मैंने अज्ञानपन से मिथ्यात्वपन से अबतपन से कषायपन से अशुभयोग से प्रमाद करके अपछंदा अविनीतपना किया, श्री अरिहत भगवंत वीतरागदेव, केवलज्ञानी, गणधरदेव, आचार्यजी महाराज, धर्माचार्यजी महाराज, उपाध्यायजी महाराज, साधुजी महाराज, आर्याजी महाराज, तथा सम्यगदष्टि स्वधर्मी श्रावक और श्राविका, इन उत्तम पुरुषो की तथा शास्त्र सूत्रपाठ अर्थ परमार्थ और धर्म सबधी समस्त पदार्थों की प्रविनय अभक्ति पाशातना आदि की, कराई, अनुमोदी, मन वचन काया से, द्रव्य क्षेत्र काल भाव से, सम्यक् प्रकार विनय भक्ति आराधना पालना फरसना सेवनादिक यथायोग्य अनुक्रम से नहीं की, नही कराई, नही अनुमोदी, तो मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कड । मेरी भूल चूक अवगुण अपराध सब मुझे माफ करो । मैं मन वचन काया करके क्षमाता हैं। दोहा मैं अपराधी गुरुदेव को, तीन भवन को चोर । ठग बिराना माल मैं, हा हा कर्म कठोस ।। कामी कपटी लालची, अपछदा अविनीत । अविवेकी क्रोधी कठिन, महापापी * रणजीत ।२। जे मैं जीव विराधिया, सेव्या पाप अठार । * पढने वाचने वाले यहाँ अपना नाम बोले। Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० वृहदालोयणा नाथ तुमारी साख से, बारबार धिक्कार ।३। मैने छकायपन से छकाय की विराधना की, पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेन्द्रिय, तेन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पचेन्द्रिय, सन्नी, असन्नी, गर्भज, चौदह प्रकार के समुच्छिम आदि त्रस थावर जीवो की विराधना, मन वचन काया से की, कराई, अनुमोदी। उठते बैठते, सोते, हालते, चालते, शस्त्र वस्त्र मकानादिक उपकरण उठाते, धरते, लेते, देते, वर्तते वर्त्तावते, अप्पडिलेहणा दुप्पडिलेहणा संबधी, अप्रमार्जना दु. प्रमार्जना सबंधी न्यूनाधिक विपरीत पडिलेहणा सबधी और आहार विहार आदि अनेक प्रकार के कर्तव्यो मे सख्यात असं. ख्यात और निगोद प्राश्रयी अनत जीवो के जितने प्राण लटे। उन सब जीवो का मैं पापी अपराधी हूँ । निश्चय करके बदले । का देनदार हूँ। सब जीव मेरे प्रति माफ करो, मेरी भूल चूक । अवगुण अपराध सब माफ करो। देवसी राई, पक्खी, चौमासी और सम्वत्सरी संबंधी वारंवार मिच्छामि दुक्कडं । वारवार मैं क्षमाता हूँ। तुम सब क्षमा करो। खामेमी सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ति मे सव्वभएसु, वेरं मज्झ ण केणइ ।१। वह दिन धन्य होगा जिस दिन मैं छ काय का वैर बदला से निवृत्त होऊगा । समस्त चौरासी लाख जीवायोनि को अभयदान देउगा, वह दिन मेरा परम कल्याण का होगा। सुख दिया सुख होत है, दुख दिया दुख होय । पाप हणे नही अवर को, आपको हणे न कोय ।१। Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३७१ . . दूजा पाप मृपावाद-झूठ बोलना । क्रोध के वश, मान के वश, माया के वश, लोभ के वश, हास्य करके, भय के वश, मषा (झठ ) वचन बोला, निंदा विकथा की, कर्कश कठोर मरम वचन वोला, इत्यादि अनेक प्रकार से मृषावाद (झूठ) बोला, बोलवाया और अनुमोदा, उनका मन वचन काया से मिच्छामि दुक्कड । थापनमोसा मैं किया, करी विश्वास घात । परनारी धन चोरिया, प्रकट कह्यो नही जात ।११ मझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कड । वह दिन धन्य होवेगा, जिस दिन सर्व प्रकार से मृषावाद का त्याग करूगा । वह दिन मेरा कल्याणरूप होवेगा ।। तीसरा पाप अदत्तादान-विना दी हुई वस्तु चोरी करके लेना । यह बडी चोरी लौकिक विरुद्ध । अल्प चोरी मकान संबंधी अनेक प्रकार के कर्तव्यो मे उपयोग सहित या बिना उपयोग से । अदत्तादान, मन वचन काया से चोरी की, कराई और अनमोदी तथा धर्म सवधी, ज्ञान दर्शन चारित्र और तप श्री भगवत गरुदेव की बिना आज्ञा किया, उसका मुझे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिच्छामि दुक्कडं । वह दिन मेरा धन्य होगा, जिस दिन सर्व प्रकार से अदत्तादान का त्याग करूँगा। वह दिन मेरा परम कल्याण का होवेगा ।३। चौथा मैथुन सेवन करने के लिये मन वचन और काया के योग प्रवर्तीया । नववाड सहित ब्रह्मचर्य नही पाला । नववाड मे अशुद्धपन से प्रवृत्ति हुई । मैंने मैथुन सेवन किया. दूसरो से सेवन करवाया और सेवन करने वाले को अच्छा समझा, उसका मन Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ वृहदालोयणा वचन काया से मुझे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिच्छामि दुक्कड । वह दिन मेरा धन्य होगा, जिस दिन मैं नववाड सहित ब्रह्मचर्य शीलरत्न आराधगा, याने सर्वथा सर्वथा प्रकार से काम विकार से निवतूंगा। वह दिन मेरा परम कल्याण का होवेगा ।४। पाचवां परिग्रह-सचित्त परिग्रह तो दास दासी, द्विपद, चतुष्पद, (पशु) आदि अनेक प्रकार के,और अचित्त परिग्रह-सोना, चादी, वस्त्र, आभूपण ग्रादि अनेक प्रकार के है। उनकी ममता मूर्छा की, क्षेत्र घर आदि नव प्रकार के बाह्य परिग्रह और चौदह प्रकार के आभ्यन्तर परिग्रह को रक्खा, रखवाया और अनुमोदा, तथा रात्रि भोजन, अभक्ष्य आहारादि संबधी पाप दोष सेव्या हो, वह मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कड । वह दिन मेरा धन्य होवेगा, जिस दिन सभी प्रकार के परिग्रह का त्याग कर ससार का प्रपंच से निवर्तुगा, वह दिन मेरा परम कल्याण रूप होवेगा । छठा क्रोध-क्रोध करके अपनी आत्मा को तथा पर आत्मा ___ को दुखी की 1६। . सातवा मान-अहंकार भाव लाया, तीन गारव और आठ मद आदि किया। __ पाठवा माया-धर्म सबंधी तथा ससार संबंधी अनेक कर्तव्यो मे कपट किया ।८। नववा लोभ-मूभिाव लाया, आशा तृष्णा बाछा पादि की ।। Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३७३ दशवां - मनपसंद वस्तु से स्नेह किया ।। १० । ग्यारहवा द्वेप - अपसद वस्तु देख कर उस पर द्वेष किया | ११ | बारहवा कलह-अप्रशस्त ( खराब ) वचन बोल कर क्लेश उत्पन्न किया । १२ । तेरहवा अभ्याख्यान - झूठा कलक दिया | १३ | चौदहवा पैशून्य-दूसरे की चुगली की | १४ | पंद्रहवा परपरिवाद - दूसरे का अवगुणवाद ( श्रवर्णवाद ) बोला |१५| सोलहवा रति श्ररति- पाच इंद्रिय के २३ विषय और २४० विकार हैं । इनमे मनपसंद पर राग किया और पसंद पर द्वेप किया, तथा संयम तप आदि पर अरति की, तथा आरभादिक असयम और प्रमाद मे रति भाव किया । १६ । सत्रहवा माया मृपावाद - कपट सहित झूठ बोला |१७| अठारहवा मिथ्यादर्शनशल्य - श्री जिनेश्वरदेव के मार्ग में शका कखा आदि विपरीत श्रद्धा परूपणा की । १८ । * इस प्रकार अठारह पाप का द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से, जानते, अजानते, मन वचन और काया से सेवन किया, कराया और अनुमोदा, दीया वा राम्रो वा एगो वा परिसागो वा सुत्ते वा जागरमाणे वा इस भव मे पहिले के सख्यात असंख्यात अनत भवो * इत्यादि यहा ग्रठारह पापस्थानो की आलोयणा विशेष विस्तार पूर्वक अपने से बने इस प्रकार कहनी । Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ वृहदालोयणा मे भवभ्रमण करते आज दिन तक रागद्वेप, विषय, कषाय, पालस, प्रमाद आदि पौद्गलिक प्रपच,परगण पर्याय की विकल्प भूल की, ज्ञान की विराधना की, दर्शन की विराधना की, चारित्र को विराधना की, चारित्राचारित्र की व तप की विराधना की। शुद्ध श्रद्धा, शील, सतोष, क्षमा आदि निज स्वरूप की विराधना की। उपशम, विवेक, सवर, सामायिक,पोसह, पडिक्कमणा, ध्यान, मौन आदि व्रत पच्चक्खान दान, शील, तप वगैरह की विराधना की । परम कल्याणकारी इन वोलो की आराधना पालनादिक मन वचन और काया से नही की, नही कराई और नही अनुमोदी। छह अावश्यक सम्यक् प्रकार से विधि उपयोग सहित अाराधा नही, पाला नही, फरसा नही, विधि उपयोग रहित निरादरपन से किया, किंतु आदर सत्कार भाव भक्ति सहित नही किया । ज्ञान के चौदह, समकित के पाच, बारह व्रत के साठ, कर्मादान के पद्रह, सलेषणा के पाच, एव निन्नाणवे अतिचार मे, तथा १२४ अतिचार ने, तथा साधुजी के १२५ अतिचार मे, तथा बावन अनाचार का श्रद्धानादिक मे विराधना आदि जो कोई अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार आदि सेवन किया, सेवन कराया, अनुमोदना की, जानतां, अजानता मन वचन काया से उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारबार मिच्छामि दुक्कडं । मैने जीव को अजीव सद्दह्या परूप्या, अजीवको जीव सद्दशा परूप्या, धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म सह्या + यहां बोलने वाले वर्तमान जो सवत् महिना और तिथि हो वह कहे । Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३७५ प्ररूप्या, तथा साधुजी को असाधु और असाधु को साधु सद्दह्या प्ररूप्या, तथा उत्तम पुरुष साधु मुनिराज महासतियाजी की सेवा भक्ति मान्यता प्रादि यथाविधि नही की, नही कराई. नही अनुमोदी, तथा असाधुनो की सेवा भक्ति मान्यता आदि का पक्ष किया, मुक्तिमार्ग मे ससार का मार्ग, यावत् पच्चीस मिथ्यात्व सेवन किया, सेवन कराया, अनुमोदा, मन बचन और काया से, पच्चीस कषाय सबधी, पच्चीस क्रिया सबंवी, तेतीस आशातना सबंधी, ध्यान के १६ दोष, वदना के ३२ दोष, सामायिक के ३२ दोष, पौषध के १८ दोष सबधी मन वचन और काया से जो कोई पाप दोष लगा लगाया अनुमोदा, उसका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं। महामोहनीय कर्मबध का तीस स्थानक को मन वचन और काया से सेवन किया, सेवन कराया, अनुमोदा, शील की नववाड तथा आठ प्रवचन माता की विराधनादि, श्रावक के इक्कीस गुण और बारह व्रत की विराधनादि मन वचन और काया से की, कराई, अनुमोदी, तथा तीन अशुभ लेश्या के लक्षणो की और बोलो की विराधना की, चर्चा वार्ता वगैरह मे श्री जिनेश्वर देव का मार्ग लोपा, गोपा, नही माना, अछते की थापना की, छते की थापना नही की और अछते की निषेधना नही की, छते की थापना और अछते की निषेधना करने का नियम नही किया, कलषता की, तथा छ प्रकार के ज्ञानावरणीय वध का बोल, ऐसे छ प्रकार के दर्शनावरणीय वध का बोल, आठ कर्म की अशुभ प्रकृतिवध का पचपन कारणो से, पाप की वयासी प्रकृत्ति बाधी, Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ बृहदालोयणा __ बंधाई, अनुमोदी, मन वचन काया करके उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं । एक एक बोल से लगाकर कोडाकोडी यावत् सख्याता असख्याता अनंता बोलो मे से जानने योग्य बोलो को सम्यक् प्रकार जाना नही, सद्दरा और परूप्या नही, तथा विपरीतपन से श्रद्धा आदि की, कराई, अनुमोदी, मन वचन काया से, उनका मझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं । एक एक बोल से यावत् अनंता अनता वोलो मे छोडने योग्य बोल को छोडा नही, उनको मन वचन काया से सेवन किया, सेवन कराया और अनुमोदा, उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं। एक एक वोल से लगा कर जाव अनता अनंता बोलो मे आदरने योग्य बोलो को आदरा नही, आराधा नही, पाला नही, फरसा नही, विराधना खंडना आदि की, कराई, अनुमोदी, मन वचन काया से, उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारवार मिच्छामि दुक्कडं । श्री जिन भगवंतजी महाराज आपकी आज्ञा मे जो जो प्रमाद किया और सम्यक् प्रकार उद्यम नहीं किया, नही कराया, नही अनुमोदा, मन वचन काया करके, त । अनाज्ञा मे उद्यम किया, कराया, अनमोदा । एक अक्षर के अनन्तवे भाग मात्र दूसरा कोई स्वप्नमात्र मे भी भगवत महाराज आपकी आज्ञा से न्यूनाधिक विपरीत प्रवर्त्ता हूँ, तो उनका मुझे धिक्कार धिक्कार वारंवार मिच्छामि दुक्कड । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३७७ दोहा श्रद्धा अशुद्ध प्ररूपणा, करो फरसना सोय । अनजाने पक्षपात मे, मिथ्या दुप्कृत मोय ॥१॥ सूत्र अर्थ जानु नही, अल्प बुद्धि अनजान । जिनभाषित सब शास्त्र का, अर्थ पाठ परमान ।। देव गुरु धर्म सूत्र को, नव तत्वादिक जोय । अधिका अोछा जो कह्या, मिय्या दुष्कृत मोय ।। हं मगसेलियो हो रह्यो, नही ज्ञान रस भीज । गुरु सेवा न करी शकुं, किम मुझ कारज सीज ।४। जाने देखे जे सुने, देवे सेवे मोय । अपराधी उन सबन को, बदला देशु सोय ।। गबन करूँ बुगचा रतन, दरब भाव सब कोय । लोकन मे प्रगट करू, सूई पाई मोय ।६। जैनधर्म शुद्ध पाय के, वरतु विषय कपाय । यह अचंभा हो रह्या, जल मे लागी लाय ।७। जितनी वस्तु जगत मे, नीच नीच से नीच । सबसे मैं पापी बुरो, फँसु मोह के बीच ।। एक कनक अरु कामिनी, दो मोटी तलवार । उठ्यो थो जिन भजन को, बीच मे लिनो मार ।। सवैयो मैं महापापी छाड के संसार छार, छार ही का विहार करूँ, अगला कुछ धोय कोच, फेर कीच बीच रहूं. विषय सुख चारु मन्न प्रभुता वधारी है । करत फकीरी ऐसी अमीरी की Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ वृहदालोयणा पास करूँ, काहे को धिक्कार सिर पगडी उतारी है ।१०। दोहा त्याग-न कर संग्रह-कल, विपय वमन जिम आहार । तुलसी ए मुझ पतित को, वारवार धिक्कार।११। राग द्वेप दो वीज है, कर्म वध फल देत । . इनकी फासी मे वध्यो, छुटू नही अचेत ।१२। रतन वध्यो गठड़ी विपे भानु छियो घन मांहि । सिंह पिंजरा मे दियो, जोर चले कछु नाहि ।१३। वुरा बुरा सबको कहे, बुरा न दीसे कोय । जो घट शोधु पापनो, तो मोसम वुरो न कोय ।१४। कामी कपटी लालची, कठण लोह-को दाम । तुम पारस परसंग थी, सुवरण थाशु स्वाम ॥१५॥ .. श्लोक मै जपहीन हूँ तपहीन हूँ, प्रभु हीन सवर समगत । है दयाल कृपाल करुणानिधि, पायो तुम गरणागतं । प्रभु आयो तुम शरणागतं ।१६। - दोहा - नही विद्या नहीं वचन बल, नही धीरज गुन ज्ञान । तुलसीदास गरीव की, पत राखो भगवान ।१७। विपय कपाय अनादि को, भरियो रोग अगाध । -वैद्यराज गुरु शरण से, पाउ चित्त समाध ।१८। कहेवा मे पावे नही अवगुण भर्या अनंत । लिखवा में क्यू कर लिखू, जाणो श्री भगवंत ।१६। Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३७६ आठ कर्म प्रबल करी, भमियो जीव अनादि । आठ कर्म छेदन करी, पावे मुक्ति समाधि ।२०। पय कुपथ कारण करी, रोग हानि वृद्धि थाय । इम पुण्य पाप किरिया करी, सुख दुख जग मे पाय।२१। बाध्या बिन भुगले नही, विन भुगत्या न छुटाय । आप ही करता भोगता, आप ही दूर कराय ।२२। • हूं अविवेकी मोहवश, आख मीच अधियार । 'मकडी जाल बिछाय के, फसु आप धिक्कार ।२३। सर्व भक्षी जिम अग्नि हू, तपियो विषय कषाय । स्वच्छन्दी अविनीत मैं, धर्मी ठग दुखदाय ।२४। कहा भयो घर छाड के, तज्यो न माया संग । नाग तजी जिम काचली, विप नही तजियो अग।२५॥ पालस विपय कषाय वश, आरभ परिग्रह काज । योनि चौरासी लख भम्यो, अब तारो महाराज ।२६। । आतम निंदा शुद्ध भणी, गुणवत वंदन भाव । राग द्वेष उपशम करी; सब से खमत खमाव ।२७। पुत्र कुपुत्र जो मै हुओ, अवगुण भर्यो अनत । अपनो विरुद विचार के, माफ करो भगवत ।२८। शासनपति वर्द्धमानजी, तुम लग मेरी दौड । जैसे समुद्र जहाज बिन, सूझत और न ठौर ।२६। भव भ्रमण संसार दुख, ताका वार न पार । निर्लोभी सत गुरु बिना, कोन उतारे पार ।३०। भवसागर ससार मे, दीपा श्री जिनराज। . Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० वृहदालोयणा उद्यम करी पहोचे तीरे, बैठी धर्म जहाज ।३१॥ पतित उद्धारन नाथजी, अपनो विरुद विचार । भूल चूक सब माहरी, खमिये वारवार ।३२। माफ करो सब माहरा; आज तलक ना दोष । दीनदयाल देवो मुझे, श्रद्धा शील सतोप ।३३। देव अरिहत गुरु निग्रंथ, संवर निर्जरा धर्म । केवली भापित शास्त्र है, येही जैन मत मर्म ।३४। इस अपार ससार मे, अवर शरण नही कोय । या ते तुम पद कमल ही, भक्त सहायी होय ।३५॥ छट पिछला पाप से, नवा न बाधु कोय । श्री गुरुदेव प्रसाद से, सफल मनोरथ मोय ।३६। प्रारभ परिग्रह त्यजी करी, समकित व्रत आराध । अन्त समय आलोय के, अनशन चित्त समाध ।३७। तीन मनोरथ ए कह्या, जे ध्यावे नित्य मन्न । शक्ति सार वरते सही, पावे शिव सुख धन्न ।३८। श्री पच परमेष्टी भगवन गुरुदेव महाराजजी आपकी आज्ञा है, सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, संयम, सवर, निर्जरा और मुक्तिमार्ग यथा शक्ति से शुद्ध उपयोग सहित आराधने, पालने, फरसने, सेवने की आज्ञा है । वारंवार शुभ योग संवधी, सउभाय ध्यानादिक अभिग्रह. नियम, पच्चक्खाणादिक करने, करावने की, समिति गुप्ति प्रमुख सर्व प्रकारे अाज्ञा है। निश्चय चित्त शुद्ध मुख पढत, तीन योग थिर थाय । दुर्लभ दीसे कायरा, हलुकर्मी चित्त भाय ।। Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३८१ अक्षर पद हीणो अधिक, भल चूक जो होय । अरिहत सिद्ध आत्म साख से, मिथ्या दुष्कृत-मोय ।२। भूल चूक मिच्छामि दुक्कड। . इति श्री श्रावक लालाजी रणजीतसिंहजी कृत बृहदालोयणा संपूर्ण बहुश्रुत श्री समर्थ गुणाष्टक (रचयिता-प० श्री घेवरचन्द्रजी बॉठिया 'वीरपुत्र') ऐदयुगीनमुनिपु ह्यखिलेषु सत्सु, प्राप्तं बहुश्रुतपद विमल तु येन । ज्ञानादि रत्न चय चञ्चित चेतसं त । प्राज्ञ समर्थगुरुराजमहं नमामि ।१। नो दृप्यते तवसमो मुनिमण्डलेऽस्मिन् । गढार्थ विज्जिन गिरा परमागमज्ञ. ।। उत्कृष्टसयमधरो गुणसागरश्च । प्राज्ञ समर्थगुरुराजमह नमामि ।२। आराधना विदधतोत्कट भाव भक्त्या। बद्ध त्वया खलु शुभं जिन नामकर्म ।। मन्ये त्वहं जिनगिरामवलम्ब्य सुझं । प्राज्ञ समर्थगुरुराजमह नमामि ।। .आगत्य तत्र भवता चरणारविन्दे । Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ गुणाप्टक · · नव्या. पुरातनजना विबुधा परेच ॥ पृष्ट्वा समाहितधियो नितरा भवन्ति प्राज्ञ समर्थगुरुराजमह नमामि ।४। प्रश्नोत्तरं वितरता भवतामपूर्वाम् । शैली विलोक्य विवुधाश्चकिता. भवन्ति ।। तुप्टा स्तुवन्ति भवतोऽमित शास्त्रवोधम् । प्राज्ञ समर्थ गुरुराजमहं नमामि ।। दृष्ट्वा भवन्तमजक मदमानिवर्गः । सद्य स्वय भवति खल्वभिमानहीन ॥ श्रीमन्तमेव शरणी कुरुते विनीत.। प्राज्ञ समर्थगुरुराजमह नमामि ।६। उग्रं विहारमनिशं विधिवद् विधाय । धर्मोपदेशमनिश विधिवत्प्रदाय ।। भव्यान् करोति जिनमार्गरतान् सदैव । प्राज्ञ समर्थगुरुराजमहं नमामि ।७। सशुद्धदर्शनधर परमार्थ विज्ञम् । शीलाढयमात्मदमिनं गुणिन गुणज्ञम् ।। शान्तं प्रसन्नवदनं करुणावतारम् । प्राज्ञ समर्थगुरुराजमहं नमामि ।। भक्तघेवरचन्द्रेण, भृगेण ते पदाब्जयो । रचितं वीरपुत्रेण, श्रीसमर्थगुणाष्टकम् । विन्दुमात्रमिदसिन्धोर्भवदीय गुणाष्टकम् । य पठेच्छृणुयाद् वापि शिव स लभते ध्रुवम् ।। Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३८३ पीयूष वर्षि नयन द्वयमास्य पद्म । वाचं विमुञ्चति मधुप्रमिताञ्च यास्य । त ज्ञानचन्द्रगणि गच्छ सरोजसूर्य । पूज्य समर्थमुनिराज मह नमामि ।१। ज्ञान यदीयममलेन्दु विकाशिशुद्धे । चित्ते विहायसि विभात्युदितं सदैव ।। विध्वस्तमोहपटल प्रबलान्धकारं। पूज्य समर्थमुनिराजमहं नमामि ।२। यस्य प्रसादमधिगत्य समस्त तापपाप प्रतापमभिहत्य जनो विभाति ।। नित्य वितत्य सुखमत्यधिक तमायं । पूज्य समर्थमुनिराज मह नमामि ।। शान्त नितान्तमतिकान्त मुख त्वदीय । मालोक्य लोक इहलोकशुच जहाति ॥ प्राप्नोति लोकपरलोकसुखं समर्थ । पूज्य समर्थ मुनिराजमहं नमामि ।४। पर्यायतो रवि रिहैत्य तमो निहन्ति । चन्द्रौऽपि किन्तु समये न च सर्वदा तु । त्व सर्वदा तु जनताजडता निहति । मन्ये त्वमत्र भुवनेऽसि नवीन भानु. 1५। . यत्ते पवित्रमति चित्र चरित्रमत्र । वित्रासयत्यखिलदोषदल सदैव । Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ " गुणाप्टक शक्तो न वक्तुमिह कोऽपि जनो गुणान् ते । पूज्य समर्थमुनिराजमहं नमामि ।६। निर्मोहमानजितसग निरस्त दोष । मध्यात्मतत्वनिरतं नितरां सदैव ।। कन्दर्पदर्पदलने ऽतितरां समर्थ । पूज्यं समर्थमुनिराजमह नमामि ।७। युक्ति प्रयुक्तिरसयुक्त सुबोध रीतिमाधाय धर्म, विधिबोधविधौ समर्थः । एक स्त्वमेव भुवने त्वमिवासि नूनं । भवन्तमानमति घेवरवीरपुत्र' ।। चिन्तामणिर्यत्तुलना न धत्ते । यन्मल्यकं पार्श्वमणिर्न दत्ते ।। एतादृशं जंगम रत्नमेकम् । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीय. ।। ज्ञानेन शीलेन गुणेन वाचा। ध्यानेन मोनेन च सयमेन । शौर्येण वीर्येण पराक्रमेण । ' समर्थमल्लो मुनिरद्वितीय ।। । श्रीज्ञानचन्द्रीय विशाल गच्छे । महत्सु सत्स्वन्य मुनीश्वरेषु । सम्प्राप्तवान् “पण्डितराट्" पदं त्वं । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीय. १३। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३८५ शान्तश्च दान्तश्च बहुश्रुतश्च । शास्त्रस्य गूढार्थ रहस्य वेदी। अज्ञानहन्ता परमोपदेष्टा । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीय ।४। भ्रान्त्वार्य भूमौ सतत ददाति । धर्मोपदेश परमार्थवृत्त्या । करोति भव्यान् जिनधर्म रक्तान् । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीय. १५॥ द्रव्यान्धकार हरतोऽब्जसूर्यो । भावान्धकारं हरसेत्वमेकः ।। अखण्डधामाऽति सदा प्रकाश । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीयः ।। सौम्य मनोज्ञ परमं सुशान्तम् । भव्य विशालं च मुखारविन्दम् । दृष्ट्वात्वदीयं तु भवन्ति भक्त. । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीयः ७१ अलौकिकोऽनुत्तर पाशुप्रज्ञः। विनीतको विज्ञतमो विशुद्ध ॥ त्यागी विरागी च गुणी गुणज्ञ. । समर्थमल्लो मुनिरद्वितीय. 1८।। कृत घेवरचन्द्रेण, श्री समर्थगुणाष्टकम् । भक्त्या नित्यं पठेत् यस्तु, शीघ्र सलभते शिवम् ।। Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ - गुणाप्टक ४ आए समर्थ मनि पाए, हो भव्यो के हृदय विकसाए । जो श्री समर्थ गुण गाए, हो समकित निर्मल हो जाए ।ध्रुव। आगम ज्ञाता बहुश्रुत पण्डित, सभी आपको कहते । सूत्र न्याय से सबके मन का, समाधान नित करते । हाँ कोई न खाली जाए । हो० ॥१॥ तर्क शक्ति अद्भुत है ऐसी, कोई न वादी टिकते।। उदाहरण चुन ऐसे दे कि, फिर प्रति प्रश्न न उठते । हाँ कटुता कभी न लाए। हो० १२। क्रिया आपकी इतनी ऊँची, क्रिया-पात्र कहलाये । दर्शन पा चौथे आरे की, स्मृति सभी को पाए । हाँ बाल वृद्ध हुलसाए । हो० ।३। नाम आपका सुन्दर वैसे, गण भी आप मे मिलते । सेवा विनय क्षमा आदि मे, स्थान अनुपम रखते । हाँ गर्व न किचित् लाए । हो ।४। ज्ञान क्रिया दोनो का आप मे, योग मिला है भारी । दौड़ दौड सेवा मे आते, श्रद्धालु नर नारी । हाँ शीष स्वत झुकजाए। हो० ।५। जिन शासन के सत्य रूप की, झाकी आप मे मिलती। आप सरिखो से ही ऐसी, रीति नीति सब नि भती। हाँ धर्म दीपने पाए । हो ।६। दीप्ति अखंडित ब्रह्मवर्य की, ढकी अग्नि ज्यो दमके । Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्वाध्यायमाला ३८७ ज्ञानचन्द्र मुनि सम्प्रदाय मे, सूरज बनकर चमके । हाँ कीर्ति बहुत ही पाए । हो०७। पा कर आपको लगता जैसे, मैंने सब कुछ पाया। "पारस" ने चरणो मे आपके, तन मन सभी चढाया । हाँ दया आपकी चाहे । हो । वन्दन हम करते नित उठ कर, श्री समर्थ स्वामी को । सन्त शिरोमणि संघ के नायक, ज्ञान-गच्छ स्वामी को ।। आगम ज्ञाता बहुश्रुत पडित, भव्यो के तारणहारे । सूत्र न्याय से समाधान कर, शका दूर निवारे । जडावनन्दन, दु खनिकन्दन, मोक्ष पन्थ गामी को । ११ जिनचरणो मे प्रतिवादी ने, अपना मद विसराया । जिन चरणो मे सन्त सती ने, अपना शीष झुकाया । मुलतान सुत जाति कुल युक्त, धन्य मोक्ष कामी को ।। उत्कृप्ट क्रिया के आराधक, साधक सत्य जिनवाणी। ऐसी नीति रीति पालक, नही है कोविद शानी । धर्म दीपावे कीत्ति पावे, शिव पदवी कामी को 1३। जैसा सुन्दर नाम आपका, वैसे गुण के धारी। सेवा विनय क्षमा आदि मे, स्थान अनुपम भारी । समता धारी ममता मारी,सकल श्रेय कामी को ।४। युग्म रूप से ज्ञान क्रिया का, योग मिला है भारी । Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ गुणाप्टक जैसी कथनी वैसी करनी, मिली है शक्ति न्यारी। महा योगिश्वर गुणरत्नाकर, ब्रह्म तेज धामी को । मुखारविन्द से जिनवाणी का, जो देते सन्देश । आत्मोत्थान मे नही सशय है, जो आवे लवलेश ।। सत्पथ दर्शक धर्म के रक्षक, भव्य हित कामी को ।। ज्ञानचन्द्र मुनि सम्प्रदाय का, गौरव बढ़ता जावे। चिरायु हो समर्थ मुनिवर, धर्म की ज्योति जगावे ।। गावे 'रतन" कर जोडी वन्दन, समर्थ गुण कामी को ।७। ॥ जैन स्वाध्यायमाला सम्पूर्ण ॥ - -- Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए संघ के प्रकाशन ० ०-४६ ० ० ० ० ० ० ०-३५ ० ० ०-०८ 5 ० ०-०८ मूल्य पोस्टेज १ भगवती सूत्र भाग १ ५-०० १-८३ २ मोक्षमार्ग ग्रय ५-०० १-६६ ३ उत्तराध्ययन सूत्र ०-४४ ४ उववाइय सूत्र २-०० ५ जैन स्वाध्यायमाला ०-४६ ६ मतगडदसा सूत्र ०-२५ ७ नन्दी सूत्र १-०० ०-२० ८ दशवकालिक सूत्र १-२५ ०-३४ ६ सिद्ध स्तुति ०-०८ १० स्त्रीप्रधान धर्म ०-२५ ११ सुखविपाक सूत्र ०-२० १२ प्रतिक्रमण सूत्र ०-१६ १३ सामायिक सूत्र ०-०७ •~०५ १४ सूयगडाग सूत्र अप्राप्य १-०० ००० १५ आत्मसाधना संग्रह १-२५ ( श्री मोतीलालजी मांडोत की) . __ भगवती सूत्र भाग २ छप रहा है - सम्यग्दर्शन - अ भारतीय श्री साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ के मुख-पत्र 'सम्यग्दर्शन' के ग्राहक बने। निग्रंथ संस्कृति के प्रचारक, जैनतत्व ज्ञान के प्रकाशक और विकृति के अवरोधक, इस पत्र को अवश्य पढ़ें । आपके सम्यग्ज्ञान मे वृद्धि होगी, आप सस्कार और विकार का भेद जान सकेगे । वार्षिक मूल्य केवल ६) -सम्यग्दर्शन कार्यालय सलाना (मध्य प्रदेश) ० ० ० ,, ०-३५ Page #407 --------------------------------------------------------------------------  Page #408 -------------------------------------------------------------------------- _