Book Title: Jain Pratima Lekh Sangraha
Author(s): Yatindrasuri, Daulatsinh Lodha
Publisher: Yatindra Sahitya Sadan Dhamaniya Mewad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અહો રતનાના ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર 300 000000 1000000 -: સંયોજક : શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫. મો. ૯૪૨૬૫ ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૦૭૯-૨૨૧૩૨૫૪૩ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II સુરિ રામ-મહોદય-હેમભૂષણ સરિભ્યો નમઃ II “અહો શ્રુતજ્ઞાનમ” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૧૩ જૈન પ્રતિમા લેખ સંગ્રહ : દ્રવ્ય સહાયક : પૂજ્ય રામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાવર્તિની પૂજ્ય સાધ્વીજી શ્રી જયવર્ધનાશ્રીજી મ.સા. તથા પૂજ્ય સાધ્વીજી શ્રી સુરક્ષિતાશ્રીજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી વિક્રમ ફ્લેટ, શ્રેયસ ક્રોસીંગ પાસે, પાલડી, અમદાવાદની શ્રાવિકા ઉપાશ્રયના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી - સંયોજક: શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005 (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 સંવત ૨૦૬૭ ઈ.સ. ૨૦૧૧ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પૃષ્ઠ 238 286 54 007 810 850 322 280 162 302 અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯- સેટ નં-૧ ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ કર્તા-ટીકાકાસંપાદક 001 | श्री नंदीसूत्र अवचूरी पू. विक्रमसूरिजीम.सा. 002 | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी पू. जिनदासगणिचूर्णीकार । | 003 श्री अर्हद्रीता-भगवद्गीता पू. मेघविजयजी गणिम.सा. 004 श्री अर्हच्चूडामणिसारसटीकः पू. भद्रबाहुस्वामीम.सा. 005 | श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं | पू. पद्मसागरजी गणिम.सा. 006 | श्री मानतुङ्गशास्त्रम् | पू. मानतुंगविजयजीम.सा. अपराजितपृच्छा | श्री बी. भट्टाचार्य 008 शिल्पस्मृति वास्तु विद्यायाम् | श्री नंदलाल चुनिलालसोमपुरा 009 शिल्परत्नम्भाग-१ | श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 010 | शिल्परत्नम्भाग-२ | श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 011 प्रासादतिलक श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 012 | काश्यशिल्पम् श्री विनायक गणेश आपटे 013 प्रासादमञ्जरी श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 014 | राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र श्री नारायण भारतीगोसाई 015 शिल्पदीपक | श्री गंगाधरजी प्रणीत | वास्तुसार श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 017 दीपार्णव उत्तरार्ध | श्री प्रभाशंकर ओघडभाई જિનપ્રાસાદમાર્તડ શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા | जैन ग्रंथावली | श्री जैन श्वेताम्बरकोन्फ्रन्स 020 હીરકલશ જૈનજ્યોતિષ શ્રી હિમ્મતરામમહાશંકર જાની न्यायप्रवेशः भाग-१ | श्री आनंदशंकर बी.ध्रुव 022 | दीपार्णवपूर्वार्ध श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 023 अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग पू. मुनिचंद्रसूरिजीम.सा. | अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग२ | श्री एच. आर. कापडीआ 025 | प्राकृतव्याकरणभाषांतर सह श्री बेचरदास जीवराजदोशी तत्पोपप्लवसिंहः | श्री जयराशी भट्ट बी. भट्टाचार्य | 027 शक्तिवादादर्शः श्री सुदर्शनाचार्यशास्त्री 156 352 120 88 110 018 498 019 502 454 021 226 640 452 024 500 454 188 026 214 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 028 414 192 824 288 520 578 278 252 324 302 038 196 190 202 | क्षीरार्णव | श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 029 वेधवास्तुप्रभाकर श्री प्रभाशंकर ओघडभाई | 030 શિલ્પપત્રીવાર | श्री नर्मदाशंकरशास्त्री 031. प्रासाद मंडन पं. भगवानदास जैन 032 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃત્તિ વૃતિ અધ્યાય પૂ. ભવિષ્યમૂરિનમ.સા. 033 श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्यायर पू. लावण्यसूरिजीम.सा. 034 | શ્રીસિમ વૃત્તિ ચૂક્યાસ અધ્યાય છે પૂ. ભાવસૂરિનીમ.સા. 035 | શ્રસિહમ વૃત્તિ ચૂદાન અધ્યાય (ર) (૩) પૂ. ભવિષ્યમૂરિનીમ.સા. 036 | श्री सिद्धहेम बृहद्वृति बृहन्न्यास अध्याय५ पू. लावण्यसूरिजीम.सा. | 037 વાસ્તુનિઘંટુ પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા તિલકમન્નરી ભાગ-૧ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 039 | તિલકમન્નરી ભાગ-૨ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 040 તિલકમઝરી ભાગ-૩ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી સપ્તસન્ધાન મહાકાવ્યમ પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી 042 સપ્તભીમિમાંસા પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી ન્યાયાવતાર સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 045 | સામાન્ય નિયુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 046 | સપ્તભળીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 047 વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી 048 | નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 050 ન્યાયસમુચ્ચય પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 051 સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ પૂ. લાવણ્યસૂરિજી દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ પૂ. દર્શનવિજયજી 053 | બૃહદ્ ધારણા યંત્ર પૂ. દર્શનવિજયજી જ્યોતિર્મહોદય સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી 041. 480 228 043 6o 044 218 190 138 296 2io 049. 274 286 216 052 532 13 112 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પાદક | પૃષ્ઠ ! 160 202 48 322 અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૬ (ઈ. ૨૦૧૦ - સેટ નં-૨ ક્રમ પુસ્તકનું નામ ભાષા કર્તા-ટીકાકા(સંપાદક 055 | श्री सिद्धहेम बृहद्वत्ति बूदन्यास अध्याय-६ पू. लावण्यसूरिजीम.सा. 296 056 | विविध तीर्थ कल्प पू. जिनविजयजी म.सा. 057 | भारतीय हैन श्रम संस्कृति सने मना शु४. पू. पूण्यविजयजी म.सा. 164 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः | सं श्री धर्मदत्तसूरि । 059 व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका श्री धर्मदत्तसूरि 0608न संगीत राजमाता | . श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी 306 061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश) | श्री रसिकलाल एच. कापडीआ | 062 व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय सं श्री सुदर्शनाचार्य 668 | 063 चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी पू. मेघविजयजी गणि 516 064 विवेक विलास सं/J. | श्री दामोदर गोविंदाचार्य 268 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध सं पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. 456 066 सन्मतितत्त्वसोपानम् |सं पू. लब्धिसूरिजी म.सा. 0676शमादा ही गुशनुवाई | गु४. पू. हेमसागरसूरिजी म.सा. 638 068 मोहराजापराजयम् सं पू. चतुरविजयजी म.सा. 192 069 | क्रियाकोश सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया 428 070 | कालिकाचार्यकथासंग्रह सं/J. श्री अंबालाल प्रेमचंद | 071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य | 308 072 | जन्मसमुद्रजातक सं/हिं श्री भगवानदास जैन 128 073| मेघमहोदय वर्षप्रबोध सं/हिं श्री भगवानदास जैन 532 0748न सामुद्रिनi iय jथी J४. श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी 0758न यित्र इल्पद्र्भ साग-१ ४४. श्री साराभाई नवाब 374 420 406 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 076 | જન વિને જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 7 સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 7 | ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 079 | શિલ્પ ચિતામણિ ભાગ-૧ 080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧ 114 08 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ 082 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083 આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ 084 | કલ્યાણ કારક 085 | વિશ્વનયન વોશ 086 | કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 087 કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 હસ્તસગ્નીવનમાં | ગુજ. | શ્રી સારામાકું નવાવ 238 | ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવાવ 194 ગુજ. | શ્રી સારામારૂં નવાવ 192 ગુજ. | શ્રી મનસુહાનાન્ન મુવમન | 254 ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારીમ 260 ગુજ. | શ્રી નાગનાથ મંવારમ 238 ગુજ. | શ્રી નવીન્નાથ મંવારમ 260 ગુજ. | પૂ. વરાન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પાર્શ્વનાથ શાસ્ત્રી 910 सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा 436 ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન કોશી 336 | ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન તોશી | 230 સં. | પૂ. મે વિનયની પૂ.સવિનયન, પૂ. पुण्यविजयजी | आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 560 088 . 322 114 089 એ%ચતુર્વિશતિકા 090 સમ્મતિ તક મહાર્ણવાવતારિકા Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार पृष्ठ 272 92 240 93 254 282 95 118 466 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम पुस्तक नाम कर्ता/टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक |91 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-४ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-५ वादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना 96 पवित्र कल्पसूत्र पुण्यविजयजी सं./अं साराभाई नवाब 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग-१ | भोजदेवसं . टी. गणपति शास्त्री समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव टी. गणपति शास्त्री 99 . | भुवनदीपक पद्मप्रभसूरिजी सं. वेंकटेश प्रेस | 100 | गाथासहस्त्री समयसुंदरजी सं. सुखलालजी भारतीय प्राचीन लिपीमाला गौरीशंकर ओझा हिन्दी मुन्शीराम मनोहरराम 102 शब्दरत्नाकर साधुसुन्दरजी हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश न्यायविजयजी सं./गु हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर ओरीएन्ट इस्टी. बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३ माणिक्यसागरसूरिजी आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मतितर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी सन्मतितर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण एसियाटीक सोसायटी 342 98 362 134 70 101 316 224 612 307 250 514 107 454 354 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 109 सं./हि 337 110 सं./हि 354 111 372 112 सं./हि सं./हि सं./हि 142 113 336 364 सं./गु सं./गु पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार अरविन्द धामणिया यशोविजयजी ग्रंथमाळा | यशोविजयजी ग्रंथमाळा | नाहटा ब्रधर्स | जैन आत्मानंद सभा जैन आत्मानंद सभा | फार्बस गुजराती सभा फार्बस गुजराती सभा | फार्बस गुजराती सभा 218 116 656 122 जैन लेख संग्रह भाग-१ पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-२ पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-३ पुरणचंद्र नाहर | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१ कांतिसागरजी जैन प्रतिमा लेख संग्रह दौलतसिंह लोढा 114 राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह विशालविजयजी प्राचिन लेख संग्रह-१ । विजयधर्मसूरिजी बीकानेर जैन लेख संग्रह अगरचंद नाहटा 117 प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री 120 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 122 __ इन मुंबई सर्कल-१ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 123 इन मुंबई सर्कल-४ ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन । इन मुंबई सर्कल-५ कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत पी. पीटरसन __ इन्स्क्रीप्शन्स | 126 | विजयदेव माहात्म्यम् जिनविजयजी 764 सं./हि सं./हि सं./हि सं./गु सं./गु सं./गु 404 404 121 540 रॉयल एशियाटीक जर्नल 274 रॉयल एशियाटीक जर्नल 41 124 400 अं. रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपार्टमेन्ट, भावनगर जैन सत्य संशोधक 125 320 148 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Yateendra Sahitya Sadan Series No. �* Jain Inscriptions of Metal Images Tharad and Other Villages (With Introduction, Notes, Index of Places Etc,) Collected & Compiled By Acharaya Yateendra Suriji V. S. 2008 ] Edited & Translated By D. S. Arvind, b. a, Rs. 3. "Aho Shrut Gyanam" {A. D. 1951 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजैनप्रतिमा-लेखसंग्रह। -- --- संग्राहक और संयोजकइतिहासप्रेमी-व्याख्यानवाचस्पतिजैनाचार्य श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज संपादक और अनुवादकबैन-जगती के लेखक और प्राग्वाट-इतिहास-कर्ता दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद' बी. ए. "Aho Shrut Gyanam" Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ وعده ماهه عععجعجعجاعیالممحاهها श्रीजैनप्रतिमा-लेखसंग्रह । संग्राहक और संयोजकइतिहासप्रेमी-व्याख्यानवाचस्पतिजैनाचार्य श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज। संपादक और अनुवादकजैन-जगती के लेखक और प्राग्वाट इतिहास-कर्ता दौलतसिंह लोढ़ा ' अरविंद' बी. ए. سعد سمعه معمايعجبهم استعدادهاسعدالغالعنابيع MINS अर्थसहायक काव्यप्रेमी मुनिराजश्री विद्याविजयजी के सदुपदेश से मरुधरदेशान्तर-बालीनगरवास्तव्य-प्राग्वाटज्ञातीयसौधमबृहत्तपोगच्छीय-श्वेताम्बरजैनसंघ । mmar प्रकाशक عيالها श्री यतीन्द्र-साहित्य-सदन, धामणिया (मेवाड़) Jammermamerameronmrnamamyst "Aho Shrut Gyanam" Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्तिस्थान-- . १ श्री राजेन्द्रप्रपा -कार्यालय, खुडाला पो० फालना (मारवाड) २ श्री यतीन्द्र-साहित्य-सदन, धामणिया (मेवाड) पो. काछोला-राजस्थान, प्रथम संस्करण मूल्य रु. ३) वीर सं. २४७४. वि. सं २००८. ई स १९५१ राजेन्द्र सं. ४५. शाह गुलाबचंद लल्लभाई, श्री महोदय मिन्टींग प्रेस, दाणापीठ-भावनगर. "Aho Shrut Gyanam" Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना श्रीसौधर्मबृहत्तपागच्छीय आचार्यदेव श्रीमद् विजय. यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का विक्रम संवत् २००४ में चातुर्मास थराद (थिरपुर) बनासकांठा, उत्तरगुजरात में था। कार्तिक माह में आपश्री डबल निमोनिया से इतने अधिक पीड़ित हुए कि जीवन की आशा भी नहीं रही। दूर-दर के नगर, ग्राम एवं प्रान्तों से अनेक भक्तगण दर्शमार्थ दौड़े जा रहे थे, मैं भी गया था। स्थिति सुधार पर थी, परन्तु आपको अधिक भाषण करने से तथा आये हुए भक्तजनों को दर्शन तक देने में भी होनेवाले श्रमसे बचने की चिकित्सकों की सम्मति थी। मुझ को दर्शन करने की आज्ञा मिल गई थी । आचार्यदेवने मुझ को कर-सङ्केत से धर्मलाभ देकर चिकित्सक महोदय की ओर देखा। चिकिसक आचार्यदेव की अमिलाषा को समझ गये और मुझ से कुछ क्षण चर्चा करने की सम्मति दे दी। आचार्यदेवने पुस्तकों की एक ग्रन्थी खोली और उसमें रही हुई शिलालेखों के अक्षरान्तर की दो प्रतियाँ देखने को दी। मैंने प्रतियों को सहज दृष्टि से देखीं तो ऐतिहासिक दृष्टि से वे ममल्य प्रतीत हुई। चर्चा के अन्तर में आचार्यदेवने कहा "Aho Shrut Gyanam" Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) कि-मैं इतना अस्वस्थ और अशक्त हूं कि शिला-लेखों का अनुवाद, अनुक्रमणिकां आदि करने में अपने को असमर्थ पाता हूं। मेरी प्रार्थना पर वे प्रतियें मुझको दे दी गई । मुझ से जैसा बन पड़ा, वैसा संपादन एवं अनुवाद पाठकों के सामने हैं। संपादन कला ऐसी पुस्तकें नहीं तो मैंने लिखी ही हैं और नहीं संपा. दित ही की हैं। शिला-लेख सम्बन्धी पुस्तकों का संपादन भी एक अलग कला है । उस पर दो शब्द लिखना कभी मी अप्रासंगिक नहीं है। शिला-लेखों का अनुवाद करने बैठने के पूर्व शिला-लेख सम्बन्धी साधन-सामग्री अधिक से अधिक संग्रह करनी चाहिये । तत्पश्चात् प्रारम्भ में प्रतिष्ठा करानेवाले आचार्यों की वर्णानुक्रम से अनुक्रमणिका का गच्छ, संवत् और लेखाडों के उल्लेख के साथ साथ निर्माण करना अत्यन्त लामदायक है। जब यह अनुक्रमणिका विनिर्मित हो जाय तब ऐसी अन्य पुस्तकों की अनुक्रमणिकाओं को इस दृष्टि से देखिये कि आप की पुस्तक में आये हुए आचार्यों के नाम उन पुस्तकों की कनुक्रमणिकाओं में आये हैं ? एक ही नाम के अनेक आचार्य हो गये हैं, लेकिन इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं। एक ही नाम के यद्यपि एक और विभिन्न-विभिन्न गच्छोंमें "Aho Shrut Gyanam" Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनेक आचार्य हो गये हैं, परन्तु वे आगे पीछे हुए हैं और अगर कुछ एक ही नाम के एक ही समय में भी हो गये हैं तो भी गच्छ अलग अलग होने से वे थोड़े श्रम से अलग अलग वर्गीकृत किये जा सकते हैं। एक ही गच्छ में एक नाम के दो या अधिक आचार्य कभी भी एक समय में नहीं हो सकते, उनमें कुछ अन्तर रहता ही है ऐसी मर्यादा है । ऐसा करने से संवतों की भूल भले न निकले, लेकिन आचार्यमय गच्छ अनुक्रमणिकाओं में परस्पर एक और अनेक संवतों में मिल जाते हैं। कभी कभी गुरुपरम्परायें भी मिल जाती हैं। कभी एक ही आचार्य के दो या अधिक कुछ या सर्वांशतः मिलते हुए लेख एक या अन्य पुस्तकों में इस प्रकार यत्न और श्रम से निकल आते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि संवतों की त्रुटिया भी यथासंभव दूर की जा सकती हैं और शासनकाल और शताब्दियों की त्रुटियाँ तो अनेक सुधारी जा सकती हैं। लेखों में आये हुए गृहस्थों के नामों की भी अगर वर्णानुक्रम से अनुक्रमणिकायें ज्ञाति, गोत्र और संवत् लेखाङ्क के साथ साथ हो तो एक ही दिन, तिथि और माह-संवत् के कमी कभी एक ही वंश के एक ही पुरुषों या कुछ पुरुषों के नामों से गर्मित एक-दो लेख एक या अन्य पुस्तकों में क्रम से मिल जाते हैं और आचार्य के नाम और गच्छ में रही त्रुटियाँ बहुत अधिक दर की जा सकती है और इनसे उनकी "Aho Shrut Gyanam" Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी । उक्त अनुक्रमणिका के बन जाने तथा उसकी तुलना अन्य पुस्तकों की अनुक्रमणिकाओं से कर लेने के पश्चात् अनुवाद का कार्य उठाना अधिक उपयुक्त एवं सुविधाजनक होता है, क्योंकि उस समय तक शिला-लेखों का अनेक समय अवलोकन जैसा अनुक्रमणिका बनाने के कारण बारबार करना पड़ता है, हो गया होता है और लेखों का सुधार एवं संशोधन भी जो इसी कार्य के साथ साथ अनिवार्यतः चलता था समाप्त हो जाता है । अन्य अनुक्रमणिकायें अनुवाद कार्य के पश्चात् बनाई जा सकती हैं। शिला-लेखों का क्रम आचार्यदेव का चतुर्मास थराद में होना निश्चित हो गया था और खुडाला ( मारवाड़) से आपका विहार एतदर्थ थराद की ओर जुलाई सन् १९४७ में प्रारम्भ हो गया था । जीरापल्ली से लगा कर आपके मार्ग में जितने ग्राम, नगर, पुर पड़े आपने अधिकांश मन्दिरों के और प्रतिमाओं के लेख उतारे, जिनका उतारना सुविधा, अवसर से बन सका। जैनप्रतिमा-लेखसंग्रह का निमित्त कारण थराद में चतुर्मास का निश्चित होना है तथा स्वयं थराद के २७३ दोसौ तिहत्तर धातुप्रतिमा एवं पाषाणप्रतिमा लेख हैं। इन दो कारणों से इस पुस्सक में अधिक प्रमुखता थराद की है। अतः लेखों का क्रम थराद के लेखों से ही प्रारम्भ किया "Aho Shrut Gyanam" Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। थराद के लेखों के पश्चात् जीरापल्ली (जिरावला) तीर्थ से मार्ग में आये हुए गांवों के लेखों का अक्षरान्तर क्रम से दिया है । जैनघरों की तथा मन्दिरों की संख्या तो आपने अपने मार्ग में आये प्रत्येक ग्राम, नगर की ली है जो अलग विहार-दिग्दर्शन शीर्षक से लिखी गई है। अनुवाद १. भले कोई समझे कि अनुवाद में अधिक श्रम नहीं पडता है, क्योंकि आदर्श और आधार सामने होते हैं । लेकिन अनुवाद एक ऐसा निश्चित, सीमित निर्दिष्ट पंथ है कि जिसमें होकर सफलता पूर्वक पार हो जाना भाग्यशाली का कर्म है। यतीन्द्र जैनलेखसंग्रह के लेखों की रचना प्रायः अधिकतर एक-सी मिलती हुई होने पर वाक्य-विन्यास इतना शिथिल है कि अभीष्ट की प्राप्रि में उलझन पड़ जाती है। सर्व से अधिक जो द्विधा रहती है, वह है लेख के न्यास करनेवाले को शोधने की। अनेक लेखों से पता ही नहीं चलता कि प्रतिमा का करानेवाला कौन व्यक्ति है ?, जैसे देखिये 'धरणा पुत्र वेला भार्या विमलादे पुत्र खेमा, गेला, गजादिनि०' प्रतिमा करानेवाला धरणा है या वेला ? 'धरणापुत्र वेला' इस प्रकार के लेखन से तया धरणा की स्त्री का नामोल्लेख भी नहीं होने से तथा वेला तीन या अधिक लडकों का पिता है से यही धनि निकलती है कि "Aho Shrut Gyanam" Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) इस प्रतिमा का करानेवाला वेला था और प्रतिष्ठा के समय से पूर्व संभवतः मातापिता मर चुके थे। यही अनुमान सत्य है - मेरा यह दावा नहीं है । २. लेखाङ्क ७७ में 'जीवितस्वामि' पद का प्रयोग किया गया है। इसका अर्थ यह हो सकता है कि देवराजने अपने माता-पिता की जीवितावस्था में ही शीतलनाथविम्ब प्रतिष्ठित करवाया, परन्तु इससे यह सिद्धान्त स्थिर नहीं किया जा सकता कि जिस लेख में 'जीवितस्वामि' पद का प्रयोग नहीं हुआ हो वहाँ लेख के लिखानेवाले के माता, पिता, या पति उस समय से पूर्व मर चुके थे ? लेखाङ्क १८, ३१, ३६, ३७, ४३, ४६, १३९, १६१ में भी इस पद का प्रयोग है | श्रेयकर्म करानेवाली केवल स्त्रियाँ हैं । इससे यह सिद्ध होता है कि 'जीवितस्वामी ' पद का प्रयोग सौ० स्त्रियों के शिलालेखों में 'अधिक' मिलता है । ३. केवल मंगलसूचक शब्दों एवं कुछ पदों को छोड़ कर शेष प्रत्येक लेख का पूरा पूरा अनुवाद किया है । जहाँ एक ही वंश के अधिक लेख प्राप्त हुए हैं, वहा उनका वंशचक्र भी देने का प्रयत्न किया गया है। परस्पर मिलनेवाले दो या अधिक लेखों के नीचे चरण-लेख दिया गया है । जिन लेखों में दुर्बोधता एवं अस्पष्टता है, उनको यथाशक्या स्पष्ट करने का पूरा पूरा यत्न किया गया है । प्रत्येक लेख "Aho Shrut Gyanam" Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) के अनुवाद को तत्सम्बन्धी ग्राम, तीर्थ, नगर और जिनालय के नाम से तथा देवकुलिका की क्रम-संख्या से शीर्षाङ्कित किया गया है। अर्थात् प्राम, तीर्थ, नगरवार; सेरी, मोहला और मन्दिरवार तथा देवकुलिकाओं की संख्यावार उनको वर्गीकृत किया गया हैं। ऐसा करने का उद्देश्य पाठकों को सुविधा देना तो है ही, परन्तु कार्य को सुगम बनाना प्रथम है और अतः अनिवार्य है। लेखों की भाषा, शैली और लिपि-- __ लेखों में वर्णित विषय गद्य में है। समूचे पुस्तक में केवल ५ श्लोक आये हैं । लेखों की भाषा संस्कृत होते हुए भी अशुद्धता लिये हुए है, परन्तु निश्चित और संमत है और वाक्यविन्यास की दृष्टि से अप्रौढ़ है, फिर भी व्यवहारिक है। वाक्यों में शब्दों का क्रम कलापूर्ण नहीं है परन्तु, सोद्देश है। अशुद्ध, अप्रौढ, कलाविहीन होते हुए भी भाषा निश्चितसी हो गई है। ग्यारहवीं शताब्दि के और सतरहवीं अठा. रहवीं शताब्दि के लेखों की भाषाओं में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता । निम्न उदाहरण देखिये: लेखाङ्क ३३१-सं० १.११ आषाढसुदि ३ शनीश्वरे सनहमार्या नयणादेवी पुत्र वसीया भार्या वयजलदेवी पुत्र लाखसिंह तेन श्रीपार्श्वयुग्म कारितः, बृहद्गच्छीयपरमानन्द. सरिशिष्यश्रीयक्षदेवसूरिभिः प्र० । "Aho Shrut Gyanam" Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखाङ्क ३१९-सं० १८६९ पौषमुदि १२ गुरौ श्रीऋषमदेवजी पादुकाभ्यो नमः, म. श्रीविजयलक्ष्मीसरिमिा प्रतिष्ठितं लोटीपुरपट्टणे। भाषा का यह रूढरूप आज तक ज्यों का त्यों चला आ रहा है । आज के प्रतिमा लेखों में भी, जब कि भाषाओं की उन्नति आशातीत होती चली जा रही है, हमारे शिलालेख लिखनेवाले भाषा को विकाश नहीं दे रहे हैं। उसी रूढरूप को आप्त और शास्त्रीय मान बैठे हैं, और शैली को मी रुड़ बना दिया है। १ अ-प्रत्येक लेख की आदि में संवत् । ब-तत्पश्चात् माह, तिधि और दिवस । अधिक प्राचीन लेखों की आदि में अधिकतर केवल संवत् का ही उल्लेख मिलता है। जैसे लेखाङ्क १८७, ३२१, ३२३, ३३३ को देखिये। तेरहवीं शताब्दि से संक्त् , माह, तिथि, दिवस का उल्लेख नियमित रूप से मिलता है। २ संवत्, दिवसादि के पश्चात् व्यवहारी, श्रेष्ठि के ग्राम, ज्ञाति, गोत्र और कहीं गच्छ का उल्लेख होता है। ग्राम का नाम लेखों के अन्त में भी पाया जाता है। किसी किसी लेख में ये सर्वाङ्ग न होकर कम भी होते हैं । ३ तत्पश्रात् व्यवहारी-प्रेष्ठि का नाम या उसके पूर्वजों "Aho Shrut Gyanam" Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के नाम मय-विशिष्ट पद चिल जैसे संघवी, मंत्री और महचम आदि अनुक्रम से होते हैं। कहीं कहीं आचार्यादि नाम भी इस स्थल पर मिलते हैं। ऐसे लेख बहुत कम हैं जिनमें श्रेष्टि पुरुष के नाम नहीं है। ऐसे भी लेख हैं जिनमें पूर्वजों के नाम नहीं है। ४ तत्पश्चात उस स्त्री और पुरुष का नाम होता है जिसके श्रेयार्थ वह पुण्यकार्य किया जाता है । अगर व्यवहारी अपने श्रेयार्थ ही वह पुण्यकार्य करवाता है तो वहाँ आत्मश्रेयार्थ या स्वश्रेयार्थ लिखा होता हैं । ५ तत्पश्चात् विम्ब और पट्ट का उल्लेख होता है। ६ तत्पश्चात् गच्छ, गच्छान्तर, शाखादि के साथ प्रतिष्ठा करनेवाले आचार्य, साधु का नाम, उनके गुरु आदि पूर्वाचायाँ के नाम- अनुक्रम से होते हैं । गच्छ का नाम कहीं कहीं लेखों के अन्त में भी होता है। ऐसे पांच लेख हैं जिनमें प्रतिष्ठा-कर्ता आचार्यों के नाम नहीं हैं। अन्य उगन्तीस लेख ऐसे हैं जिनमें से नौ में गच्छ और आचार्य के और चीस में गच्छ के नाम नहीं हैं। ७क्रियापद कहीं आचार्यादि के नाम के पहिले . और कहीं पश्चात् होता है। ८ शुभं भवतु, श्री श्री आदि मंगलसूचक शब्द हमेशा नहाँ कहीं भी होते हैं लेखों के अन्त में रहते हैं। "Aho Shrut Gyanam" Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) शिला और प्रतिमा के लेखों की लिपि देवनागरी होती है । अक्षरों का आकार शास्त्रीय लिपि का होता है । परन्तु यह कहना पड़ेगा कि समय की गति के साथ लिपि की गति भी परिवर्तित होती रही है। अक्षरों का आकार उचरोचर परिमार्जित होता चला आया है। अधिकतम प्राचीन लेखों के अक्षरों का आकार इतना विचित्र होता है कि उनका पढ़ना उस पुरुष के लिये ही संभव और शक्य है कि जो प्राचीनतम् लेखों के पढ़ने का अभ्यासी हो । दो बातें जो खटकती हैं-- एक यह है कि ऐसे भी लेख हैं जिनकी रचना से यह पता नहीं लगता कि लेख को उत्कीर्ण करानेवाला तथा पुण्यकर्म करने करानेवाला व्यक्ति कौन है ? तथा उस लेख में वर्णित व्यक्तियों में से कौन उस दिन उपस्थित या जीवित था ? कोई एक सिद्धान्त स्थिर करके ही यह जाना १ जा सकता है । दूसरी बात यह है कि ऐसे भी लेख हैं जिनसे प्रतिष्ठा कहाँ हुई १ किस ग्राम के वासीने करवाई का पता चलना भी कठिन होता है । जैसे 'राजपुरे' अर्थात् प्रतिष्ठा राजपुर में हुई, परन्तु प्रतिष्ठा करानेवाले श्रेष्ठि राजपुर का था या अन्य ग्राम का ? प्रश्न रह जाता है । ऐसी स्थिति में वह श्रेष्ठि राजपुर का ही निवासी था मानना अधिक उपयुक्त एवं संगत होता है । इसी प्रकार राजपुर निवासीने प्रतिष्ठा करवाई का अर्थ 'राजपुर ' शब्द के अभाव में राजपुर में "Aho Shrut Gyanam" Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा करवाई अर्थ लेना पड़ता है । जहाँ प्रतिष्ठा हुई हो, अगर ग्राम का नाम भी दिया हो तब तो कोई प्रश्न ही नहीं बनता है। व्यवहारी, श्रेष्ठि के नामों की विचित्रता प्रथम बात जो यहाँ कहनी है वह यह है कि नामों में आजकल जो लाल, चन्द्र, राज, सिंह, देव, मल आदि प्रत्यय होते हैं वे १६ वीं शतान्दि से पूर्व के नामों में प्रायः नहीं मिलते, अर्थात् नाम एक-शब्दात्मक ही होते थे या लिखे जाते थे । एक-शब्दात्मक नाम का रूप भी कहीं कहीं ऐसा विचित्र मिलता है कि इस विकाश के युग में भी जिसका अर्थ और रूप समझना बड़ा कठिन हो जाता है। उस समय के पुरुषों और त्रियों के नामों के उच्चारण की ध्वनि उस युग के वातावरण की अनुमारिणी थी-यह ऐतिहासिक या वैज्ञानिक तत्व इन नामों की बनावट में ओत-प्रोत समाया हुआ है, या यों कहना चाहिये कि उस युग ने ही नामों की ऐसी एक शब्दात्मक रचना की । दशवीं शताब्दी से भारत में यवनों के आक्रमणों का जोर बढ़ चला था। चारों ओर क्रोध, उत्साह, घृणा, जुगुप्सा, आक्रोश के भाव बढ़ते चले जा रहे थे, जिनका अन्त अकबर बादशाह के समय में जा कर होना प्रारम्भ हुआ | अकबर बादशाह के समय में बाहरी आक्रमणों का अन्त पूर्णतः हो गया था और सर्वत्र "Aho Shrut Gyanam" Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) अत्याचार, बलात्कार रुक-से गये थे। प्रेम और शान्ति का वातावरण पुनः जाग्रत होने लगा था। मनुष्य जब क्रोधातुर, बाक्रोश में होता है, अथवा राग-द्वेष भरे शब्दों में बोलता है या किसी अन्य पुरुष के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करता है, उस समय वह मेघराज के स्थान पर मेवा, रामचन्द्र के स्थान पर रामा बोलता है। युद्ध करते समय देल्हण, परहण, मल्हण, साजण, राउल आदि नामों का प्रयोग प्रिय, सहज एवं उत्साह वर्धक होता है। रामादे, माल्हणदे, साजणदे आदि स्त्रियों के नामों से हमें उस समय के वीरपुरुषों की देवी अर्थात् रणचण्डिका के प्रति आस्था और श्रद्धा का परिचय मिलता है और साथ ही स्त्रियों में भी रौद्रभाव अथवा औजस्व मरा होता है और उस समय में स्त्रियों में रहे हुए ये भाव जाग्रत और पृद्धिगत रहने चाहिये थे का परिचय मिलता है। रामा और राम का प्रयोग प्रेमभरा भी कहा जा सकता है, लेकिन मात्र बच्चों के लिये । एक ही नाम को भिन्न भिन्न रसातिरेक में किस प्रकार तोड़मरोड़ कर अपभ्रंसित कर बोला जाता है का उदाहरण नीचे देखिये । इस उदाहरण के देने का मूल अर्थ यह है कि उस काल में किस रस का अतिरेक था। पाठक भलिविध समझ सकेंगे। शृङ्गार, शान्त और करुण रस सतोगुणी हैं; हास्य, वीर और रौद्र रजोगुणी तथा भया. नक, बीभत्स और अद्भुत रस तमोगुणी हैं। "Aho Shrut Gyanam" Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ शृङ्गार--रामचन्द्र, रामलाल, प्रेमचन्द्र, वृद्धिचन्द्र। शान्त राम, प्रेम, वृद्धिचन्द्र, वृद्धा। करुण--राम, राम, प्रेम, प्रेमू, वृद्ध, वृद्धा । २ वीर-रामसिंह, रामल, प्रेमल, प्रेमसिंह, वृद्धिसिंह । रौद्र रामसी, प्रेमसी, वृद्धसी, वरदसी। हास्य-रामो, प्रेमो, वरदो। ३ भयानक-रामा, प्रेमा, वरदा । बीभत्स-रामला, प्रेमला, वरड़ा। अद्भुत-राम्या, प्रेम्या, वरद्या । प्रस्तुत पुस्तक में आये हुए नाम रजोगुणी एवं तमोगुणी रसों की रचना है। यवन आततायियों का हिन्दुओं पर अत्याचार, राजा राजाओं में परस्पर मान एवं मिथ्या गौरव को लेकर द्वन्दता और उसमें भोली प्रजा का सर्वनाश, व्यापार एवं कृषिकी हानि, तलवार के अनियों का निर्बलों पर, व्यापार एवं कृषिप्रियतथा शुद्ध जातियों पर आतंक और अत्याचार, रात-दिन युद्ध में लगे रहनेवालों के लिये व्यापारी एवं कृषकवर्ग को तथा शूद्रों को आयुभर बैठ और बैगार करते रहना, योद्धाओं का म्यान और योद्धाओं की सुविधा के लिये व्यापारी, शूद्र और कृषकवर्ग के इस प्रकार अमानुषिक उपयोगने युग की शान्ति को भंग कर दिया, गृहस्थ का सुखमरा जीवन "Aho Shrut Gyanam" Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४ ) नष्ट कर दिया, प्रेम, स्नेह और सहानुभूति की इतिश्री कर दी । इस प्रकार व्यापारी, शूद्र एवं कृषकवर्ग लगभग ५०० वर्षों तक पददलित और आतंकित रहा, उस समय विप्र पूजनीय और क्षत्री योद्धा होने के कारण सम्माननीय थे। क्षत्री लोग, व्यापारी, शूद्र एवं कृषकवर्ग के पुरुषों को एक-शब्दात्मक और वह भी अपमान जनक नाम लेकर बोलाते थे । जैसे मूलचन्द्र को मूला, मूले, मूलिया, मूल्या और योद्धाओं को मल्हण, मल्लण, मूलसी एवं मूलसिंह कह कर बोलाते थे। इस प्रकार यह हुआ कि इन वर्गों के नाम ऐसे ही रहने और पड़ने लगे । अंतर इतना हुआ कि मूला, मल्हण, मूल्लण व्यापारी एवं कृषकवर्ग के पुरुषों के नाम रहे और मृलिया, मूल्या, मृला शूद्रवर्ग के पुरुषों के नाम पड़े । मेरे विचार से अब पाठक समझ गये होंगे कि नामों की इस वैचित्र्यपूर्ण रचना और प्राकृति में वह अशान्त युग झलक रहा है । ये नाम उस युग की वैज्ञानिक एवं रासा. यनिक प्रन्थियाँ हैं, उस युग के वातावरण के, पारस्परिक न्यवहार के, सभ्यता नैतिकतापूर्ण सम्बन्ध के घट हैं, पाठ हैं। नामों की यह आकृति उपहास एवं विस्मय की वस्तु नहीं, वरन इतिहास की संरक्षणीय एवं संग्रहणीय संपत्ति है। अनुक्रमणिका का महत्व.. बिना कुंजी के एक ताला खोलने में कितना समय "Aho Shrut Gyanam" Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) लग जाता है और इसके उपरान्त चित्त को कितनी बैचेनी और पीड़ा होती है, मस्तिष्क में कैसा धक्का लगता है-यह या तो वे जानते हैं जो अनुभवी हैं, या वे जिनकी कभी कुंजियाँ गुम गई हो, जहाँ सैकड़ो तालों की कुंजियाँ हों ही नहीं या गुभ गई हों, फिर वहाँ तो व्याकुलता का पार ही नहीं रहता । अनुक्रमणिकाओं के बिना ऐसी ऐतिहासिक पुस्तकें अकारण झंझट हो जाती हैं । लेखक या संपादक अनुक्रमणिकायें बना कर पाठकों को एक अद्भुत सुविधा तो प्रदान करते ही है, साथ में पुस्तक की उपयोगिता भी अनन्त बढ़ जाती है । इस पर--सुविधा के अतिरिक्त लेखक तथा संपादक को अनुक्रमणिकामें विनिर्मित करते समय लेखों में स्थान तथा आचार्य और पुरुषों के नामों में, वर्ष, माह, तिथि और दिनों में, जाति, गोत्र, संप्रदाय, गच्छ, सन्तानीय, शाखा, प्रशाखा, आचार्य और पुरुषों की सन्तति की परम्पराओं में जो त्रुटियाँ नेत्रदोष के कारण लेखों की प्रतिलिपि करते समय आ जाती हैं, अथवा मूल लेखों में वर्षा, आतप, भूकंप, जैसे प्रकृति के सगों के कारण शीर्णता और भग्नता, अधिक काल व्यतीत हो जाने के कारण जीर्णता, और विधर्मी आततायियों के दुष्प्रहारों के कारण भन्न होने से विकृति, और अस्पष्टता आ जाती है, वे पूर्ण समान अथवा कुछ अंशों में मिलनेवाले लेखों के परस्पर मिलान से अत्यधिक दूर हो जाती हैं । लेखक का श्रम सफल हो "Aho Shrut Gyanam" Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) जाता है और पुस्तक अत्यन्त उपादेय और एक ऐतिहासिक सत्य बन जाती हैं । ज्यों ज्यों अनुक्रमणिकायें बनती जाती हैं, लेखकमें अधिकाधिक साधन सामग्री जुटाने के भाव बढ़ते जाते हैं और लेखक में अथक श्रम, अनुशीलन, मनन और विवेचन करने की मधुर रुचि बढ़ती जाती है और इस प्रकार पुस्तक अधिकतम सत्य एवं सुन्दर बन जाती है। शिला एवं प्रतिमा -लेखों में आये हुए संवत्, ज्ञाति, गोत्र, कुल, शाखा, ग्राम, नगर, तीर्थ, गृहस्थ, गच्छ, आचार्य, राजा, मंत्री, श्रेष्ठी आदि सर्व की परिचायिका अनुक्रमणिका है। शोधकों का यह समय और धन बचानेवाली हैं। इन सब बातों को दृष्टि में रखते हुए प्रमुख प्रमुख सर्व प्रकार की अनुक्रमणिकायें देने का प्रयत्न किया है । अन्तिम निवेदन | मैंने पुस्तक को साधनसामग्री एवं योग्यतानुसार अधिकतम ऐतिहासिक एवं रुचिकर और उपादेय बनाने का प्रयत्न तो किया है, लेकिन फिर भी अनेक त्रुटीयों एवं कमियों का रह जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । मेरी शक्ति के बाहर की बातों के लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूँ । एक बात जो मेरे साथियों से निवेदन करनी है वह यह है कि मैंने इस कार्य को जिस शैली एवं मार्ग से पूर्ण किया है "Aho Shrut Gyanam" Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और वह शैली एवं मार्ग किस प्रकार असुविधाओं से खाली पाया जा सकता है जिसका विवेचन मैंने स्थल स्थल पर दिया है को वे मनन, अनुशीलन कर अपने श्रम, समय और पैसे की पर्याप्त बचत कर सकते हैं। ___ आचार्यदेवने मुझको यह कार्य देकर जो मेरा मान और अनुभव बढ़ाया है, मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ और उसके लिये आपका अमर आभारी रहूँगा। मुनि श्रीविद्याविजयजी साहब तथा सागरविजयजी का भी इस पुस्तक में अनेक मांति से श्रम मिला हुआ है, वे भी अनेक धन्यवाद के पात्र हैं। महावीरजयन्ती ) श्रीवर्धमान जैन संपादकचैत्र शु. १३ बुधवार इ बोर्डिंग हाउस दौलतसिंह लोड़ा जैन विक्रम सं० २००५ ) सुमेरपुर(मारवाड) [ 'अरविन्द' बी. ए. "Aho Shrut Gyanam" Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनवस्ती. १ विहार-दिग्दर्शन। [ जीरापल्लीतीर्थ से प्रारंभ हुआ ] प्राम, नगर. अंतर( कोष). जैनमंदिर. घरमाण मंडार आरखी कूचावाड़ा फनदोतरा राको जाबल वईवाड़ा बनोदा बदनाल भीलड़िया vrrrrrr नेहड़ा शेरगढ़ मानपुर नारायण वात्यम वासमा . ०३. "Aho Shrut Gyanam" Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुआणा खोरला मसुपुर थराद पावद मोदी जेतढ़ा पड़ादर ग्राम. पिंडवाड़ा भीलड़िया तीर्थ नेसड़ा ३ 11 ३ Ni he ( १९ ) ० ० १२ १ २५' २ लेखोंकी ग्राम, नगर, तीर्थ क्रम से अनुक्रमणिका . नगर, तोर्थं. थराद ( बनासकांठा ) जीउला तीर्थ ( सिरोही ) लोटाणा तीर्थ सेलवाड़ा "" महावीर मुछाला ( घाणेराव ) वरमाण आरखी दयाणा तीर्थ काछोली "Aho Shrut Gyanam" O ६०० १८ २५ O लेखाङ्क. १ से २७३ २७४ से ३१७ ३१८ से ३२१ ३२२ ३२३, ३२४ ३२५ से ३२८ ३२९, ३३० ३३१ ३३२ ३३३ ३३४ से ३४४ ३४५, ३४६ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) वात्यम वासणा ( पालनपुर) ভুঙ্গামা मोटी पावड़ (वाव) नेतड़ा (थराद) ३४७, ३४८ ३४९ से ३५३ ३५४ से ३६८ ३६९ ३७० से ३७४ ३ लेखों की स्थान क्रम से अनुक्रमणिकाथराद- भोजकों की सेरी-- सेठों की सेरी- ४ बृहद्ऋषभदेव चैत्य १ वीरचैत्यान्तर्गत धातुमय मूर्तियाँ २०५ से २२७ वासुपूज्य चैत्य देशाईयों की सेरी धातुमय पंच . तीर्थयाँ । ५ विमलनाथ चैत्य १ से २२ । चौवीसी, पंच२ वीरचैत्य में तीर्थयाँ २२८ से २५१ चौवीसी, पंच सुनारों की सेरीतीर्थयाँ २३ से ३४ । ६ पार्श्वनाथ चैत्य ३ वीरचैत्य में धातु चौवीसी, बादिनाथ चैत्य पंचतीर्थी २५२, २५३ चौवीसी पंच-. आमली सेरीतीर्थयाँ ३४ से २०४ | सुपार्श्वनाथ चत्य.. "Aho Shrut Gyanam" Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) धातु चौवीसी, ३ मंडपगत सपरिकर पंचतीथियाँ २५४ से २५९ । प्रतिमा ३२. राशिया सेरी- १ धातुमय पंचतीर्थी ३२१ ८ अभिनन्दनस्वामी चैत्य सेलवाडाधातु पंचतीर्थी धातुमय पंचतीर्थी ३२२ चौवीसी २६०, २६१ महावीर मुछाला.. मोदियों की सेरी-- १ मन्दिर की भमती ९ विमलनाथ चैत्य-. __ की छत में ३२३ धातुपंचतीर्थी २ प्राचीनखंडित चौवीसिया २६२ से २६७ पद्मासन ३२४ सुतारों की सेरी-- वरमाण तीर्थ-- १० शान्तिनाथ चैत्य . १ कायोत्सर्गस्थ-प्रतिमा धातुपंचतीर्थी, चोवी ३२५, ३२६ सिया २६८ से २७३ २ षटचतुष्किका के जीराउलातीर्थ-- स्तम्भ पर ३२७ १ देवकुलिकाओं ३ पद्मशिला पर ३२८ के लेख-२७४ से ३१६ आरखी-- २ चतुष्किका स्तंभ पर ३१७ लोटाना तीर्थ-चैत्य-- धातुमय पंचतीर्थी १ कायोत्सर्गस्थ-- ३२९, ३३० प्रतिमा ३१८ दयाणा तीर्थ२ ऋषभदेव-पादुका ३१९ | कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा ३३१ "Aho Shrut Gyanam" Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) काछोली. वात्यम-- पार्श्वनाथ-परिकर ३३२ | १ धातुमय पंचतीर्थी ३४७ पिंडवाडा-- २ चरणपादुका ३४८ वीरचैत्य में धातु प्रतिमा३३३ वासणा । १ धातु पंचतीर्थी ३४९ भीलडिया तीर्थ- २ चन्द्रप्रभ बिंब के १ पंच तीथियाँ ३३४, ३३५ वाम भाग में ३५० २ पादुका युगल ३३६,३३७ ३ चन्द्रप्रभ बिंब के . ३ भूमिगृह पंच दाहिने भाग में ३५१ तीर्थयाँ ३३८, ३३९ । ४ चन्द्रप्रभ-बिंब ४ पद्मासन की भीत मूलनायक ३५२ ५ पनासन के नीचे ३५३ ५ सोपान के पास लुआणा। __ स्तम्भ पर ३४१ । १ विमलनाथ बिम्ब ३५४ भीलड़ीग्राम (गृहमन्दिर में) २ महावीरजिन बिम्ब ३५५ ३ धातु चोवीसी पंच१ मूलनायक प्रतिमा ३४२ तीर्थयाँ ३५६ से ३६८ २ अम्बिका मूर्ति ३४३ मोटी पावड़। ३ अधिष्ठायक मूर्ति ३४४ धातु चौवीसी ३६९ नेसडा-- जेतड़ा (गृहमंदिर) . पार्श्वनाथ मन्दिर ३४५,३४६ । ३७० से ३७४ पर "Aho Shrut Gyanam" Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .०९१ 10 ( २३ ) ४ संवत्सरवार अनुक्रमणिका । संवत् संवत् लेखा ग्यारहवीं शताब्दि। १२४२ ३२८ १००१ १२४४ २१६, ३४५ १०११ ३२१, ३३१ । १२६१ २०३ १०४६ १८७ १२६३ ५१, ३०८ (अ) १०६२ ३२३ । १२९१ १२ बारहवीं शतान्दि। चौदहवीं शताब्दि । ३३२ ११४४ १०६, १९९ ११४८ १८० १३३४ २२७ १३४१ १४९ ३४३, ३४४ तेरहवीं शताब्दि। १३४९ २० १२०४ १७३ १३५१ ३२५, ३२६ १२०९ २५९ १२१४ ३२४ १३५९ “१२१५ २०० १३६४ १११ १२२० १३६५ ३३४ १२४० ५७, ३४६ ३२० ३३९ १५८ "Aho Shrut Gyanam" Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) १३७३ ३२९ । १४३२ १३७७ १९२ १४३३ १३८७ १७९ १४३४ १३९२ २४९ १४३५ १३९४ १९३ १४३६ १३९९ १४३७ १४४२ पन्द्रहवीं शताब्दि। १४४९ १४०१ १४५० १४०४ १४५२ १४०६ १४५३ २२४, ३१० १४५६ १४१२ २०१, ३११ ९९ ११२, १७० २०२ १६१, ३२८ १५९, ३४७ २२ १८१ ६२, १८४ ३३० १८२ १०३ ३०९ १४१७ १४२१ १४२२ १४२४ १४७१ ७५, १५२ ६, ३०३ (अ) १४७२ ३६९ ३०४ (अ) १४७४ २८७ २४५ १४७९ ६६, ११३, २०६ २९२ (अ) १४८० ३७२, ३७४ १४८१ २१८, २७४, २७५, २७६ १०५ | १४८२ ६०, १५४ १५ १४२९ १४३० "Aho Shrut Gyanam" Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८३ २३,२०८,२६८, । सोलहवीं शतान्दि । ___ २७८ से २८६, । १५०१ ४,१६, ६५, ९१, २८८, २८९, २९० ९६, १५३ से ३०१,३०३ (ब), १५०३ १५०, १६०, ३०४ (ब), ३०५ से १६२,२१०,२१९ ३०८, ३१२, ३१३ १५०५ १, २४, ६९,९७, १४८४ १६९, १८६ १३९,१४२, २०९, १४८५ ७०, १७६, २३० १४८६ ३२७ १५०६ ४३, ४६, ७७, १४८७ २७७,२७८, ३१६ १०४,११९, १५६, १४८८ ५८, २३७, ३७३ २२८, २४३ १४८९ १८८, १९८ १५०७ ६४, १४८, १९७, १४९२ ३१४ २४८, ३३८ "१४९३ ७३, ९८, १६३, १५०८ ४५, ७४, २५२, २४४ २५४, २५६ १४९४ १९६, २७३ १५०९ १९, २२ १४९५ १५१० ४२, ४८, ८१, १४९६ ८८, १००, १४७, १४.९७ १५७, २२१, ३६५ १४९९ ५०, ७८, १३२, १५११ १८, ६७, ८६, १९०,२३८,२५५ ९४, ११८, १२१, ११०१। . ३५६ १८५ "Aho Shrut Gyanam" Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) १५१२ ९, २२९ । १५२८ ५, १२, २६, ३६, १५१३ ३, १७, २८,१३३, ४९, ३२२ . १७४,२२०, ३६३ १५२९ ८२, १४६, १७१ १५१५२, ३६,५६,१४४, १५३० १५४, १९१, २१२, १५३२ १२४, १७२, २६२, ३६८ २३६, ३६१ १५१६ ३२, ६१, ८३, १५३३ ३९, १६८, २१५ १४०, १४१ १५३४ ३८, ५२, १३५, १५१७३०,४४, ५९,७१, ३०२ ८४, ९३, १३०, १५३५ ६३, ७२, ३३५ १९५, ३५९ १५३६ ११,९५, १२०, १५१८ २३५, २६९ १२९ १५१९ ८, ३५, २६१, १५३७ १३७, १६७, १७५ २६३, २७२ १५२० १४३, २३९, २६४ १५३८ १५२१ १२३ १५४३ १२६ १५२२४०, ३५७ १५४५ १५२३ १२८,२४२, ३५८ १५१७ १९४ १५२४ ९२, १४५, १५५ १५४८ १३१ १५२५ २५, ८७, २१४, १५५२ १६६, १८९ २४० १५५३ ६८, २६० १५२७ ४९, १३४, १३८, १५५४ १२५ १५१, १६५ । १५५५ २१३ २१७ १ "Aho Shrut Gyanam" Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ २५८ (२७) १५६० १२२, १२५ । १६१२ २२५ १५६१ ११७ १५६३ ५३, ८७ १५६४ २४६ १६५७ २७, ११४,११५, १५६५ २५३, २७१ ४७ १५६७ १६२४ २५१, ३६२ १५६८ २३३ १५६९ २३४ १५७२ १०१, २०४ २६५ १६६२ ११०, २६६ १५७८ १६६५ ३६६ १५८० १६८१ २५० १५८१ ८०, २४१, २४७ १६८३ १०९, २५७ १५८२ २०७, ३६७ १५८३ १५८४ २३१ अठारहवीं शताब्दि। १७०८ २७० १५८७ १०८ १५९० १७५७ १५.... १७७ ३४८ १७८२ १७८५ २२३ ३ सतरहवीं शताब्दि। । ___ उनीसवीं शतान्दि । १६११ २३२ | १८३३ ३७०, ३७१ "Aho Shrut Gyanam" Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३७ १८५१ १८६९ १८९२ (२८) ३३६, ३३७ । वीसवीं शताब्दि। ३१७ । १९९५ ३५०,३१,३५२, ३५४, ३५५ ३४२ १९९७ ३५३ गच्छ. ५ गच्छवार अनुक्रमणिका । गच्छ. लेखा. गच्छ. लेखाङ्क. अचलगच्छ १६, २६, ६३, उएसगच्छ १०,४०,३०३ ६४, १२०, १३७, उपकेशगच्छ | उकेशगच्छ । १४६, १७५, १८९, (अ)३२१. १९४, १९५, २०९, काछोलीगच्छ ३३२ २३७, २३९, २५४, कृष्णर्षिगच्छ २८८, २९१ २६३, २७२, २७७, कडुआमतिगच्छ १०८,१०९, २९४, २९५ (ब) २२३, २६५ २९६, २९७, २९८, २९९, ३००, ३०१, कोरंटगच्छ नन्ना... ३४७, ३०८ (अ) ३६१. खरतरगच्छ ४८, ६६, ७२, आगमगच्छ १, ७५, ८२, ७३, ८४, ९५, २४५, ३०४ (अ). | १३६, ३३९. चार्य सन्तानीय १७, २०५. "Aho Shrut Gyanam" Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९) चैत्रगच्छ ३,१५,३७,६७, ३५०, ३५१,३५२, धारणपदीय । . १०६, १५५, ३५३, ३५४, ३५५, J२१३, ३६७. ३५७, ३५८, ३६४, जीरापल्लीगच्छ(वृहद्गच्छीय) ३६६, ३७०, ३७१, ६२, ९९, १३८, २५६, ३०९,३१०. थारापद्रीगच्छ ६१, ६५, तपागच्छ ) ३०,३८,४१, १४२, १६५, १७२, वृद्धशाखा ४७,४९, ८५, संविज्ञपक्ष ) ९२, १२५, २०६, २२९, २६८. १२७, १२८, १३५, निगमप्रभावक ८०, २४१. १४७, १५१, १५४, नितिकुल ३१८ १६३, १६७, १७९, पिप्पलगच्छ ५, २१०, २१४, २३६, त्रिभवियापिष्पल १२, २४२, २७१, २७४, धर्मदेवसूरिसंतानीय ) १३, २७५, २७६, २७८, २२, ३४, ३५, ३६, २७९, २८०, २८१, ४२, ४३, ४६, ५०, २८२, २८३, २८४, ५८,५९, ६०, ६८, २८५, २८६, २८९, ७४, ७७, ७८, ८१, २९३, ३०३, (ब) ८३, ८६, ८९, ९०, ३०४, (ब) ३०५, १००, १०२, १०५, ३०६, ३०७, ३०८, ११२, ११८, १३०, ३१२, ३३५, ३३६, १३१, १३२, १३४, ३३५, ३३८, ३४२, [ .१४३, १४४, १४५, "Aho Shrut Gyanam" Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) १५२, १५६, १६१, | १२१९, १६४, १८५, १८६, वडगच्छ, सत्यपुरीय) २२०, १९०, १९६, १९८, २९२ (अ), ३३१ २०२, २२८, २३०, ब्रह्माणगच्छ १४,२३,२४, २३८, २४५, २४८, २५, ४४, ६९, ८७, ३१६, ९१, १२९, १३३, पूर्णिमा गच्छ) २, ८, ११, १४८, १४९, १५८, काछोलीय | १८, २९, १६०, १७१, १७७, हीमाणिया (३१, ३२, १७९, १८८, २००, प्रधानशाखीय ५३, ५४, २२४, २३३, २४०, भीमपल्लीय ५६, ७०, २४३, ३११, ३२२, साधुपूर्णिमा / ७१, ७९, ३२५, ३२६, ३२७, ९३, ९४, ९५, १०१, ३२८, ३७१ भावडारगच्छ ) ९, ११९, १२१, १२६, कालिकाचार्यसंतानीय) २०, १३९, १४०, १४१, ८८, ११३, १२४, १६६, १६८, १७८, १५०, १५७, १६२, २०७, २१७, २२१, १७६, १९१, २३५, २२६, २४६, २६०, २५५ २६१, २६२, २६५, मडाहडीयगच्छ १०३, ३३४ २७३, ३५६, ३६०, मलधारीयगच्छ २९२ (ब) ३६२, ३६३, ३६८ | यशोभद्रसूरिसंतानीय ३२४ "Aho Shrut Gyanam" Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) विभळगच्छ ३५९ पंडेरकगच्छ १७३, २०८ सरस्वती गच्छ १७४, २६४ सैद्धान्तिक गच्छ ४, १९, ज ४५, १५३, २१२, २५२ मिश्रित १५,२१,३३,५१, ५२, ५५, ७६, १०४, १०७, ११०, १११, ११४, ११५, ११६, ११७, १५९, १७०, १८०, १८१, १८२, १८४, १८७, १९२, १९३, २०१, २०३, २०४, २११, २१६, २२२, २२५, २२७, २३१, २३२, २३४, २४४, २४९, २५०, २५१, २५३, २५७, २५८, २५९, २६६, २७०, ३८७, ३०२, ३१३, ३१४, ३१५, ३१७, ३१९, ३२०, ३२३, ३२९, ३३०, ३३३, ३४०, ३४१, ३४३, ३४४, ३४५, ३४६, ३४८, ३४९, ३७४ ६ आचार्य, साधुओं की अनुक्रमणिका । आचार्य गच्छ लेखाङ्क अभयदेवसूरि १११ अमरचन्द्रसूरि (पिप्पल) ३५, ९० अमरदेवसूरि (चैत्र) २१३ अमरप्रभसूरि (धर्मघोष) १९९ आचार्य गच्छ लेखाइ अमररत्नसूरि ( आगम ) ८२. अमरसिंह सूरि (आगम) ७५ आनन्दसागरसूरि (निग• मप्रभावक ) ८०,२४१ "Aho Shrut Gyanam" Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) उदयचन्द्रसूरि (जीरा- गुणसमुद्रसूरि (पूर्णिमा) ___पल्ली) १३८, २५६ ७१, १४०, ३६० उदयदेवसूरि (पिष्पल) " (नागेन्द्र) ३६५ २२,७७,८३,११८,१४५ । गुणाकरसूरि (नागेन्द्र) ६ उदयानन्दसूरि (पिष्पल) शानचन्द्रप्रि (धर्मघोष)१९९. ज्ञानदेवसूरि (चैत्र) ३७ ककरि ( उपकेश ) ४०, ज्ञानविमलरि (तपा) ४१ ३०३ (अ) ज्ञानसागरसूरि (नागेन्द्र)२७ , (कोरंट) २०५ " (वृत्तपा) ४९ कमलप्रममारि (पूर्णिमा) चन्द्रप्रभसूरि (पिष्पल)२४८ __५३,१६८,२०७ चन्द्रसिंहसूरि (मडाहर)३३४ कमलकसूरि ( तपा ) १२५ चारित्रचन्द्रसूरि २६० कमलसूरि (पूर्णिमापक्ष) जजगसूरि १४, १७९ १६८, ३६३ जयकीर्तिसूरि (अंचल) १६, कीर्तिदेवसूरि(सरस्वती)१७४ २७७, २९४, क्षेमशेखरहि (पिपल) ८१ २९५, २९६, २९७, गुणधीरसूरि (पूर्णिमा) ३२, २९८, २९९, ३००, ९५, १४० ३०१, गुणदेवसूरि (नागेन्द्र) ३९, - जयकेसरसूरि (अंचल) २६, २१५ ६३, ६१, १२०, , (पिष्पल) १३ १३७, १४६, १७५, गुणरत्नमरि (पिष्पल) १३० १९५, २०९, २३९, "Aho Shrut Gyanam" Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) २५४, २६३, २७२, । जिनदेवसूरि (भावडार)१९१ जिनप्रबोधसूरि(खरतर)३३९ जयचन्द्रसूरि (तपा) २७८, जिनभद्रसूरि (खरतर) ४८, २७९, २८०, २८१, ६६, ८४, ९७ २८२, २८३, २८९, जिनमाणिक्यसूरि १०४ २९३, ३०३ (१)३०४ जिनरत्नसूरि (बृहत्तपापक्ष) (ब)३०५, ३०६,३०७ ३५७ ३३८ जिनराजसूरि (खरतर) ४८ जयतिलकसरि (पिष्पल)२०२ जिनवल्लभसूरि (खरतर)१३६ जयप्रभसूरि (पूर्णिमा) २६१, जिनसुन्दरसूरि (बृहत्तपा) १२७, ३०३ (ब) जयविजय ३४८ ३०४ (ब) जयवल्लभसूरि जिनहर्षसूरि (खरतर) २६७ जयशेखरसूरि (पूर्णिमा) २८, जिनेश्वरसूरि (खरतर) ३३९ जयसिंहसूरि (कृष्णर्षि) दिनविजयसूरि (बृहद्) २८८, २९१ २९२ (अ) , (पूर्णिमा) २६१ देवगुप्तसूरि (उपकेश) जिनचन्द्रसूरि (पूर्णिमा) ७२, ३०३ (अ) ३२१ ८४, देवचन्द्र (पिष्पल) ३१६ देवचन्द्रसूरि (पूर्णिमा) १४१, , (बृहद्)३०९, ३१० । ,, (वृहद्)३०९, ३१० २७३, २४९ "Aho Shrut Gyanam" Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देव सुन्दर सूरि (पूर्णिमा) २१७ ५१,१९२ देवसूरि देवाचार्य ( ३४ ) ३२० २४९ १८४ धनरत्नसूरि (बृहत्तपा ) ३६४ बनेश्वरसूरि देवेन्द्रसूरि धनतिलक सूरि ३३० घरसंघसूरि (नागेन्द्र) २७ धर्मघोषसूरि (कृष्णर्षि) ३०८ ( अ धर्मदेवसूरि (पिप्पल) १०५ धर्मप्रभसूरि (पिपल ) ५८, ६०, ८९, १५२ धर्मशेखरसूरि (पिष्पल) ४३, ४६,५०,६०,७८, ८६ १३२,१४३,१५६, ३१६ धर्मसुन्दरसूरि (पिपल ) ८९ धर्मसूरि ( पिष्पल ) १४३ धर्मसागरसूरि (पिपल ) ५, १२,५९,८९,१००, नरप्रभसूरि नित्य विजय ३५९ १५, २१ ३४८ पज्जूनसूरि (ब्रह्माण) १४, ४४ ६९, ९१,१६०, २४३ पद्मचन्द्रसूरि (नागेन्द्र) ५७ पद्मशेखरसूरि (धर्मघोष) ९८ पद्मानन्दसूरि ६८, ९६, १२३, १३१, १९७, २१८, २६९, ३२९ परमानन्दसूरि (बृहद् ) ३३१ पार्श्वचन्द्रसूरि १५९, १७०, २१९ पुण्य तिलकसूरि १८१ पुण्यप्रभसूरि (कृष्णर्षि) २८८ २९१, ३२७, पुण्यरत्नसूरि (पूर्णिमा) ११, २९, ७१, ७९ २४,२०० प्रद्युम्न सूरि प्रसन्नसूरि ३४५ प्रीतिसूरि ( पिष्पल ) १०५, ३२४ बुद्धिसागरसूरि (ब्रह्माण ) १२९, ३२२, ३७२ भद्रेश्वरसूरि (ब्रह्माण) ३२७ "Aho Shrut Gyanam" Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) भावदेवसूरि (भावडार) १२४ । मुनिप्रभसूरि (पिष्पल)१०२, २३५ " (कोरंटक ) ७ मुनिसिंहसूरि (पिपल) ३५, भुवनचन्द्रसूरि (तपा) २७९, ९० २८०, २८१, २८२, ,, (पूर्णिमा) ९३ २८३, २८४, २८५, मुनिसुन्दरसूरि (तपा) ३८, २८६, २८९, २९३, २७८, २८९, २८०, ३०८ (ब) ३१२ २८१, २८२, २८३, भुवनप्रभसूरि (पूर्णिमा) १०१ २८४, २८५, २८६, भुवनानन्दसूरि (नागेन्द्र) ५७ २८९, २९३, ३०३(ब) मतिप्रभसूरि २१६ ३०४ (ब) ३०५, मणिचन्द्रसूरि (ब्रह्माण) २३, ३०६, ३०८, ३१२ १३३, १४८ मेरुतुंगसूरि (अंचल) २७७, मलयचन्द्रसूरि (धर्मघोष) २९५ (ब) २९६, २९० २९७, २९८, २९९, महिमाविजयसूरि ३३६, ३००, ३०१, ३४७, ३३७ यक्षदेवसूरि (ककुदाचार्यसंतामहेन्द्रसूरि नीय) १० माणिक्यसूरि , (बृहद्) ३३१ मुनिचन्द्रसूरि २३३ यशोदेवसूरि ३४९ ___" (पूर्णिमा) २६० । ३२४ " , ३४६ । रंगविमलसूरि " ३४६ / यशोभद्रसूरि "Aho Shrut Gyanam" Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ( ३६ ) रत्नदेवसूरि (पिष्पल) १३१, | लक्ष्मीदेवसूरि (चैत्र) ३,१७, १४५ ६७, १५५ " (चैत्र) २१३ लक्ष्मीसागरसूरि (तपा) ३०, रत्नप्रभसूरि १८२ ३८, ९२, १२८, रत्नशेखरसूरि (सपा) ३०, १३५, १५१, १६७, ३८, ९२, १४७, २१४, २३६, २४२, २१० ३३८, ३५८ ___३३५, ३५८ रत्नशेखर सूरि (पूर्णिमा)२४६ लब्धिसागरसूरि (ब्रह्माण) रत्नसिंहसूरि (तपा) १५४, २७४, २७५, २७६, वयरसेनसूरि ५१ " (नागेन्द्र) १८३, विजयचन्द्रसूरि (धर्मघोष) ९८, २९० रत्नाकरसूरि (ब्रह्माण) ३११, विजयजिनेन्द्रसूरि (तपा) ३२७ ३७०, ३७१ रविकर (मड़ाहड़) ३३४ विजयदानसूरि (तपा) ४७, राजतिलकसूरि (पूर्णिमा) २७१ १८, ९४, १२१, ३५६ विजयदेवसूरि (चैत्र) ३६७ राजेन्द्ररि (तपा) ३५०, , (पिष्पल) १३४, ३५१, ३५२, ३५३, १४४, १५६ ३५४ विजयराजसूरि (पूर्णिमा) रामचन्द्रसूरि (बृहद्) ३०९, ३१० | विजयलक्ष्मीसूरि ३१९ "Aho Shrut Gyanam" Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) विजयप्रभसूरि (तपा) ४१ । वीरपन्द्रसरि (जीरापल्ली) " (पिष्पल) ११२ ६२,९९ विजयसिंहसूरि (भावडार) वीरप्रभसरि (पूर्णिमा) ५३, ११९, १३९ , (थिरापद्र) ६१, । वीरसिंहसूरि ( जीरापल्ली) ६५, १४२, १६५ विजयसेनसूरि २२७ वीरसरि (भावडार) ९, ८८, , (ब्रह्माण) ३११, १५०, १५७, १६२, ३२७ १९१, २५५ विजयसोमसूरि (तपा) ३३६ 1, (ब्रह्माण) २३, २५, विधाचन्द्रसूरि (पूर्णिमा) ८७, १५८, २४० ३६२ शान्तिसूरि (थिरापद्र) १६५ विद्याशेखरसूरि (पूर्णिमा) ७० १७२, २०६, २६८ विद्यासागरसूरि (मल्लधारी) " (पंडेरक) १७३, २९२ (ब) विनयप्रभसूरि (नागेन्द्र) ९६, १९७ ,, (मल्लधारी) २९२(ब) विमलसूरि (ब्रह्माण) १७१, शालिभद्ररि (पिष्पल) १७७, ३२२ १३४, १४४ विमलेन्द्रसूरि (सरस्वती) शुक्लविजय शुभचन्द्रसूरि (पिष्पल) ७४ वृद्धिसागरसूरि (ब्रह्माण) शेखरसूरि ३१८ १७१ | श्रीधरसूरि २०८ १४९ "Aho Shrut Gyanam" Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) श्रीसूरि (अंचल)२३७, ३४७ | साधुसुन्दरसूरि (पूर्णिमा ) ,, (पूर्णिमा) १२१, २१७, २६२ सार्वदेवसूरि (कोरंट) ७ , ५२, ७६, १२६, सिद्धान्तसागरसूरि (अंचल) २११, २४४, २५१, १८९, १९४ २७०, ३४६ सुमतिरत्नसूरि (पूर्णिमा) २९ सकलकीर्तिदेव (सरस्वती) सुमतिप्रमसूरि (पूर्णिमा) ३१ १७४ सोमचन्द्रसूरि (सद्धान्ती) ४, समरचन्द्रसूरि (पिष्पल) ७४ १९, ४५, १५३, सर्वदेवसूरि (पिष्पल) ३४ २१२, २५२ , (पिष्पल) २२, ७७, (थारापद्र) ६५ ८३, १९८ , (बड़गच्छ) २२० ,, (पूर्णिमा) २२६ सागरचन्द्रसूरि (जीरापल्ली) सोमरत्नसूरि (नागेन्द्र) १२२ १३८ , (आगम) २४७ ,, (पिपल) १६१ सोमसुन्दरसूरि (तपा) ३८, , (साधुपूर्णिमा) २२६ १२५, १६३, १६९, सागरतिलकसूरि (पूर्णिमा) २७८, २७९, २८०, ३६८ २८१, २८२, २८३, सागरभद्रसूरि (पिष्पल) १६४ २८४, २८५, २८६, साधुप्रभमुनि ५५ २८९, २९३, ३०३(ब) साधुरत्नसूरि (पूर्णिमा) २,८, ३०४(ब) ३०५, ३०६, ५६, २२१, २६२ । ३०७, ३०८(ब) ३७३ "Aho Shrut Gyanam" Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोभागरत्नसूरि (पूर्णिमा) । हेतविजयगणि (तपा) ३३६, ३३७ हरिचन्द्रसूरि (चैत्र) १०६ हेमचन्द्रसूरि (कुमारपालगुरु) हरिभद्रसूरि (भडाहड़ा)१०३ हर्षविजय मुनि (तपा) ३५३ हेमरत्नसूरि (आगम) १ हीरविजय (तपा) ३४८ हेमविमलसूरि (ब्राह्मण)३२७ हीरविजयसूरि (तपा) ३३६, ] हेमसिंहसूरि (नागेन्द्र) १२२ ३३७, ३६६ लेखाङ्क. ७ कालक्रमसे आचार्य-मुनियों की गच्छवार अनुक्रमणिका. प्रतिष्ठा-संवत् प्रतिष्ठाकर्ता (अंचलगच्छ) १२६३ आषाढ कृ० ८ गुरु धर्मघोषसूरि ३०८ (अ) १४४९ वैशाख शु० ६ शुक्र मेरुतुंगसूरि के उपदेश से श्रीसूरि १४८३ वैशाख कृ० १३ गुरु मेरुतुङ्गपट्टोद्धरण जयकीर्तिसूरि २९४, २९५ (अ) २९५ (ब) २९६ से ३०१ १४८७ पौष शु० २ रवि २७७ "Aho Shrut Gyanam" Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) १४८८ कार्तिक शु० ३ बुध जयकीर्तिरि के उपदेश से श्रीसूरि २३७ २५०१ पौष कृ. ९ शनि , , , १६ १५०५ माघ शु. १० रवि जयकेसरसूरि १५०७ माघ शु० १३ शुक्र १५०८ ज्येष्ठ शु० ७ बुध २५४ १५१७ मार्ग शु० १० सोम १९५ १५१९ मार्ग शु० ५ शुक २६३ " , ६ शनि २७२ १५२० वैशाख शु० ५ बुध २३९ १५२८ चैत्र कृ० १० गुरु १५२९ फा० शु० २ शुक्र १५३२ वैशाख शु० १० शुक्र ३६१ १५३५ पौष कृ० १२ रवि १५३६ माघ कृ. ७ सोम १२० १५३७ वैशाख शु० १० सोम १३७ १५३७ ज्येष्ठ शु० २ सोम १५४७ वैशाख शु. ३ सोम सिद्धान्तसागरसूरि १८९ १५५२ वैशाख ३० ३ शनि , १९४ (आगमगच्छ) १४२१ फा० शु० ५ रवि अमरसिंहसूरि ३०४(अ) १४७१ वैशाख शु० ३ रवि , २६ "Aho Shrut Gyanam" Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१ ) १५०५ माघ शु० ९ शनि हेमरत्नसूरि १५२९ ज्येष्ठ कृ. १ शुक्र अमररत्नरि १५८१ माघ शु० ५ गुरु सोमरत्नसूरि (उपकेशगच्छ) १०११ देवगुप्तसूरि ३२१ जगदेवसन्तानीय१४२१ ज्येष्ठ कृ० १० बुध ककसूरिपट्टे देवगुप्तसरि ३०३(अ) १५२२ पौष कृ. १ गुरु ककुदाचार्यसन्तानीयककसूरि ४० १५८३ ज्येष्ठ शु० ११ शुक्र ,, , यक्षदेवसूरि १० (काछोलीगच्छ) १३०३ मेरुमुनि (कृष्णर्षिगच्छ) १४८३ भाद्रपद कृ०७ गुरु पुण्यप्रभसूरिपट्टे जयसिंहसूरि २८८ . " " " , २९१ १६६१ फा० कृ० १ शुक्र (कडूआ (कटुक) मतिगच्छ) २६५ १६८३ ज्येष्ठ शु. ३ १०९ १७०८ मार्ग शु० २ रवि .१७८५ मार्ग शु० ५ २२३ (कोरण्टगच्छ) १४३३ वैशाख शु० ९ शनि नन्नाचार्य सन्तानीय मानदेवसूरि ७ . "Aho Shrut Gyanam" Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) १४८० [फा० शु० १० बुध ककसूरि ( खरतरगच्छ ) १३३४ वैशाख कृ० ५ बुध १४५० माघ कृ० ९ सोम १४७९ माघ शु० ४ १४९३ फा० कृ० १ १५०५ वैशाख शु० २ बुध १५१० आषाढ कृ० १ शुक्र जिनेश्वरसूरिशिष्य जिनप्रबोधसूरि ३३९ जिनवल्लभसूरि १३६ जिनभद्रसूरि ६६ ७३ ९७ 19 जिनराजसूरिपट्टे "" जिनभद्रसूरि ४८ जिनभद्रसूरिपट्टे जिनचन्द्रसूरि ८४ : ७२ १५१७ चैत्र शु० १५ १५३५ माघ शु० ३ रवि जिनचन्द्रसूरि ( चैत्रगच्छ ) १३०९ माघ कृष्ण २ १५११ माघ शु० ५ १५१३ पौष कृ० ५ रवि १५२४ चैत्र कृ० ५ १५२८ पौषध कृ० ३ सोम १५३८ वैशाख शु० ५ बुध - १५८२ वैशाख शु० १० शुक्र विजयदेवसूरि १०६ हरिचन्द्रसूरि लक्ष्मीदेवसूरि (धारणपद्रीय ) ६७ ३, १७ १५५ " 91 २०५ 99 99 "Aho Shrut Gyanam" ३७ ज्ञानदेवसूरि रत्नदेवसूरिपट्टे अमरदेवसूरि २१३ ( धारणपदीय ) २६७ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) (जीरापल्लीगच्छ) १४११ कृ० ६ बुध देवचन्द्रपट्टे जिनचन्द्वपट्टे रामचन्द्रसूरि ३०९ १४१३ फा० शु०. १३ , , , ३१० १४३५ माघ कृ० १२ सोम वीरसिंहसूरिपठे वीरचन्द्रसूरि ९९ १४५३ वैशाख शु०२ सोम वीरचन्द्रसूरिपट्टे शालिभद्रसूरि ६२ १५०८ ज्येष्ठ शु० १० सोम उदयचन्द्रसूरि २५६ १५२७ माघ कृ. ७ रवि उदयचन्द्रपट्टे सागरचन्द्रसूरि १३८ (बृहत्तपागच्छ) १२२० ज्येष्ठ शु० ९ रवि हेमचन्द्राचार्य १४८१ वैशाख शु० ३ रत्नाकरसूरिसे अनुक्रमसे अभय सिंहसूरिपट्टे जयतिलकसूरिपट्टे रत्नसिंह सूरि २७४, २७५, २७६ १४८३ प्रथम वै० कृ. ७ रवि देवसुन्दरसूरिपट्टे सोम सुन्दरसूरि, मुनिसुन्दरसूरि, जयचन्द्रसूरि ३०५, ३०६ १४८३ वैशाख शु० ७ देव० सोम० भुवनसुंदरसूरि जिनसुंदरसूरि ३०३(ब) ३०४(ब) , , १३ देवसुन्दरसूरिपट्टे सोमसुन्दरसूरि जयचन्द्रसूरि ३०७ १४८३ भाद्र० कृ. ७ गुरु देवसुन्दरसूरिपट्टे सोमसुन्दर सूरि मुनिसुन्दरसूरि २७९ ___ से २८६, २८९ "Aho Shrut Gyanam" Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) जयचन्द्रसूरि भुवनसुन्दरसूरि २९३, ३०८(ब) ३१२ १४८४ सोमसुन्दरसूरि १४८७ पौष शु० २ रवि देवसुंदरसूरिपट्टे सोमसुन्दरसूरि __ मुनिसुन्दरमरि जयचन्द्रसूरि जिनचन्द्रसूरि २७८ १४८९ मार्ग० कृ० ५ गुरु सोमसुन्दरसूरि ३७३ १६३ १५०३ माघ शु० १३ रत्नशेखरसूरि २१० १५०७ माघ सोमसुन्दरसूरि जयचन्द्रसूरि शिष्य रत्नशेखरसूरि ५ रनशखरसूार ३३८ १५१० वैशाख शु० ३ रलशेखरसूरि १४७ १५ माघ कृ० २ बुध जिनसुन्दर (रत्न, चन्द्र)सूरि १२७ १५१५ ज्येष्ठ कृ० १ शुक्र रत्नसिंह (शेखर)सूरि १५४ १५१७ वैशाख शु० ३ रत्नशेखरपट्टे लक्ष्मीसागरसूरि ३० १५२२ माघ शु० ९ शनि जिनरत्नसूरि ३५७ १५२३ वैशाख शु० ३ रत्नशेखरपट्टे लक्ष्मीसागरसूरि ३५८ १५२३ वैशाख शु० १३ लक्ष्मीसागरसूरि १२८, २४२ १५२४ माघ कृ० २ रत्नशेखरपट्टे लक्ष्मीसागरसूरि ९२ १५२५ माघ कृ. ६ लक्ष्मीसागरसूरि २१४ १५२७ माघ कृ. ५ गुरु , १५१ १५२८ वै० शु० ५ गुरु ज्ञानसागरसूरि ४९ १५३२ ज्येष्ठ कृ० ३ रवि लक्ष्मीसागरसूरि २३६ "Aho Shrut Gyanam" Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ १५३४ ज्येष्ठ शु० १० सोमसुन्दरसूरि मुनिसुंदरसूरि रत्नशेखरसूरिपट्टे लक्ष्मीसागरसूरि ३८ १५३४ पौष कृ० १० लक्ष्मीसागरसूरि १५३५ माघ कृ. ९ शनि १५३७ ज्येष्ठ शु० २ सोम १६७ १५६० वैशाख शु० ३ सोमसुन्दरपट्टनायक कमलसूरि १२५ १५९० वैशाख शु० ५ धनरत्नसूरि १६१७ ज्येष्ठ शु० ५ सोम विजयदानसूरि २७१ १६१८ माघ शु० १३ १६६५ वैशाख शु० ६ बुध हीरविजयसूरिपट्टे विजय सोमसूरि ३६६ १७५७ माघ शु० ५ विजयप्रभसूरिपट्टे संविज्ञपक्षे ज्ञानविसलसूरि ४१ १८३३ माघ शु० ७ शुक्र विजयजिनेन्द्रसूरि ३७०, ३७१ १८३७ पौष कृ० १३ हेतविजयगणिपादुका, महिमा विजयगणिपादुका ३३६, ३३७ १८९२ वैशाख शु. १३ शुक्र तपागच्छ (सौधर्मबृहत्तापागच्छ) १९५५ फा० कृ० ५ गुरु राजेन्द्रसूरि ३५०, ३५१, ३५२, ३५४, ३५५ १९९७ फा० ० ६ सोम विजययतीन्द्रसूरि के आदेश से हर्षविजय ३५३ "Aho Shrut Gyanam" Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (थिरापद्रीयगच्छ) १४७० चैत्र कृ० २ गुरु शान्तिसूरि २०६ १४८३ ज्येष्ठ शु० ९ मंगल शान्तिसूरि २६८ १५०१ पौष कृ. ६ बुध सर्वदेवसूरिपट्टे विजयसिंहसूरि ६५ १५०५ वैशाख शु० ३ शुक्र , , १४२ १५१२ ज्येष्ठ शु० ५ रवि , २२९ १५१६ पौष कृ. ५ गुरु , १५२७ कार्तिक कृ०५ सोम विजयसिंहसूरिपट्टे शान्तिसूरि१६५ १५३२ वैशाख शु० १३ सोम , १७२ (धर्मघोषगच्छ) १३०९ फा० शु० १३ बुध अमरप्रभसूरि शिष्य ___ ज्ञानचन्द्रसूरि १९९ १४८३ भाद्र० कृ. ७ गुरु मलयचन्द्रसूरिपट्टे विजयचन्द्रसूरि २९० १४९३ वैशाख शु० ५ बुध पद्मशेखरसूरिपट्टे १५१८ फा० कृ. १ सोम पद्मानन्दसूरि १५२१ ज्येष्ठ शु० ९ सोम , (नागेन्द्रगच्छ) १३६९ वैशाख कृ० ८ भुवनानन्दसूरि शिष्य पद्मचन्द्रसूरि ५७ १४२१ वैशाख शु० ५ शनि गुणाकरसूरि २६९ १२३ "Aho Shrut Gyanam" Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६९ ( ४७ ) १४६५ वैशाख शु० ३ गुरु रत्नसिंहसूरि १८३ १४७२ ज्येष्ठ कृ० ११ सोम , १४८१ पौष कृ. ८ शुक्र पद्मानन्दसूरि २१८ १५०१ पौष कृ० ६. शुक्र पद्मानन्दसूरिपट्टे विजयप्रभसूरि ९६ १५०७ माघ शु० १० सोम , , १९७ १५१० फा० शु० ३ गुरु गुणसमुद्रसूरि ३६५ १५३३ वैशाख शु० ६ शुक्र गुणदेवसूरि ३९, २१५ १५६० वैशाख शु०३ बुध सोमरत्नसूरिपट्टे हेमसिंहसूरि १२२ १६१७ ज्येष्ठ शु० ५ घरसंघसूरिपट्टे ज्ञानसागरसूरि २७ (निगमप्रभावक) १५८१ माघ कृ० १० शुक्र आणन्दसागरसूरि ८०, २४१ (निवृतिकुल) ११३० ज्येष्ठ शु० ५ शेखरसूरि ३१८ (पिष्पलगच्छ) १२९१ माघ शु० ५ गुरु सर्वदेवसूरि १४१७ वैशाख शु० २ रवि उदयानन्दसूरिपट्टे गुणदेवसूरि १३ १४२२ ज्येष्ठ शु० ५ शुक्र मुनिप्रभसूरि २४५ १४३० माघ कृ. ८ सोम धर्मदेवसूरिसन्ताने प्रीतिसूरि १०५ १४३४ वैशाख कृ० २ बुध मुनिप्रभसरि १०२ १४३६ वैशाखकृ० ११ मंगल विजयप्रमसूरिपट्टे __ उदयानन्दस्त्रि ११२ "Aho Shrut Gyanam" Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ (४८) १४३७ वैशाखशु० ११ सोम बय(धर्म)तिलकस् ि२०२ १४४२ वैशाखक. १० रवि सागरचन्द्रसूरि १४७१ माघशु० ३ धर्मप्रभसूरि १५२ १४८२ वैशाखकू० ४ गुरु धर्मप्रभसूरिपट्टे धर्मशेखरसरि " , सागरभद्रसरि १६४ १४८४ वैशाखकृ० ११ रवि धर्मशेखरसरि १८६ १४८५ माघशु० १० शनि धर्मशेखरसूरि २३० १४८७ , , धर्मशेखरसरि शिष्य देवचन्द्र ३१६ १४८८ ज्येष्ठशु०३ सोम धर्मशेखरसरि १४८९ वैशाखशु० १ सोम सोमचन्द्रसूरि १९८ १४९४ श्रावणकृ. ९ रवि धर्मशेखरसरि ११९६ फा० कृ. ३ रवि प्र.नरत्नसरि १८५ १४९९ कार्तिककृ०२ रवि धर्मशे रसरि २३८ १४९९ कार्तिकशु० १५ गुरु , ५०, ७८, १३२, १९० १५०६ वैशाखशु०८ रवि , ४३, ४६, २२८ १५०६ माघशु० १० शुक्र धर्मशेखरसरिपट्टे विजयदेवसरि १५०६ माघशु०१० शुक्र सोमचन्द्रसूरिपट्टे उदयदेवसूरि १५०७ वैशाखशु० ११ सोम चन्द्रप्रभसूरि १५०८ चैत्रशु०५ बुध समरचन्द्रसूरिपट्टे शुभचन्द्रसूरि ७४ "Aho Shrut Gyanam" Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४९ ) १५०९ माघशु० १० शनि सोमपन्द्रसूरिपट्टे उदयदेवसूरि १५१० का० १० ४ रवि क्षेमशेखरसूरि १५१० (१५१७) पौष क० ५ गुरु धर्मसागरसूरि ५९, १०० १५१० माघशु० ५ रवि . धर्मशेखरसूरि ४२ १५११ ज्येष्ठक० ९ रवि उदयदेवसरि ११८ १५११ माघशु० ५ गुरु धर्मशेखरसरिपट्टे धर्मसुन्दरसरि १५१५ वैशाखक० २ गुरु चन्द्रप्रभसूरि १५१५ वैशाखशु० १३ रवि विजयदेवसरि के उप देश से शालिभद्रसूरि १४४ १५१६ आषाढशु० १ शुक्र सोमचन्द्रसूरिपट्टे उदयदेवसरि १५१७ वैशाखशु० १२ मंगल गुणरत्नसरि १३० १५१९ माघक० २ शनि मुनिसुन्दरसूरिपट्टे अमरचन्द्रसूरि . १५२० चैत्रक० ५ बुध धर्मशेखरसूरिपट्टे धर्मसरि १४३ १५२४ बैशाखशु० ३ सोम उदयदेवसूरिपट्टे रत्नदेवसरि ८३ "Aho Shrut Gyanam" Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५, १२ ९० ( ५० ) १५२७ पौषकृ० ४ गुरु विजयदेवसूरि शिष्य शालिभद्रसूरि १५२८ वैशाखशु० ३ शनि धर्मसागरसूरि १५३० कार्तिकशु० १२ सोम मुनिसिंहसूरिपट्टे अमरचन्द्रसरि १५४८ वैशाखकृ० १० रवि रत्नदेवसूरिपट्टे पमानन्दसूरि १५५३ बैशाखशु० १३ सोम पद्मानन्दसूरि १५६१ माघकृ० ५ शुक्र धर्मसागरसरिपट्टे धर्मप्रभसूरि (पूर्णिमागच्छ) १४०४ कार्तिककृ० ९ सोम श्रीसरि १४८५ माघशु० १० शनि विद्याशेखरसूरि १४९४ माघशु० ५ सोम जयप्रभसूरि १४९७ वैशाखक०६ शुक्र जयशेखरसूरि १५०५ वैशाखकृ. ९ शुक्र वीरप्रभसूरि १५०५ माघशु० ५ रवि गुणसमुद्रसूरि १५०६ चैवकृ. ५ गुरु वीरप्रभसूरि १५१० माघशु० १० बुध साधुरत्नसूरि १५११ माघशु० ५ गुरु राजतिलकसूरि के उपदेश से श्रीसूरि . . " " " " ___" " " " " २७३ ५४ १३९ ३६० ११९ "Aho Shrut Gyanam" Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ ३६३ २८ ३६८ २६२ ___३२ १४० १५११ माघशु० ९ सोम राजतिलकसूरि १५१३ पौषक. ३ शुक्र कमलसूरि १५१३ माघकृ० ७ बुध जयशेखरसूरि १५१५ ज्येष्ठशु० ९ शुक्र साधुरत्नसूरि १५१५ भाषाढशु०५ सागरतिलकसूरि १५१५ माघशु० १ शुक्र साधुरत्नसूरि १५१५ फा० शु० ४ शनि साधुरत्नसूरिपट्टे साधुसुन्दरसूरि १५१६ ............... गुणधीरसूरि १५१६ आषाढशु० ३ रवि गुणसमुद्रसूरिपट्टे गुणधीरसूरि १५१६ माघकृ० ९ सोम देवचन्द्रस्त्रि १५१७ पौषकृ० ५ गुरु मुनिसिंहसूरि १५१७ माघकृ० ८ वुध गुणसमुद्रसूरिपट्टे पुण्यरत्नसूरि १५१९ मार्गशु० ४ गुरु साधुरत्नसूरि १५१९ माघशु० ६ सोम जयसिंहसूरिपट्टे जयप्रभसूरि १५२७ ज्येष्ठशु० १० बुध । पुण्यरत्नसूरि १५३३ माघशु० १३ सोम कमलप्रभसूरि १५३६ ............... पुण्यरत्नसरि २५३६ फा०शु० ३ सोम गुणधीरसूरि २६१ "Aho Shrut Gyanam" Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४३ ज्येष्टशु० ११ १५४५ फा०कु० २ मंगळ श्रीसूरि, सौभाग्यरत्नसूरि १२६ साधुसुन्दरसूरिपट्टे देव सुन्दरसूरि विजयराजसूरि १५५२ फा० शु० ३ १५५३ आषाढशु० २ शुक्र चारित्रचन्द्रसूरिपट्टे मुनिचन्द्रसूरि सुमतिप्रभसूरि १५६३ फा० शु० ८ शनि १५६४ वैशाखशु० ३ गुरु रत्नशेखरसूरि १५७२ वैशा०कृ० ४ रवि भुवनप्रभसूरि १५८० वैशास्त्रशु० १३ शुक्र पुण्यरत्नसूरिपट्टे सुमतिरत्नसूरि कमलप्रभसूरि जिनहर्षसूरि १५८२ वैशा० शु० ३ १५८.. वैशाखकृ० ५ १६१५ चैत्रकृ० ४ गुरु ( ५२ ) १६२४ शकसं० १४८९ वीरप्रभसूरिपट्टे कमलप्रभसूरि विद्याचन्द्रसूरि सागरचन्द्रसूरिपट्टे सोमचन्द्रसूरि (बृहद्गच्छ ) १०११ आषाढशु० ३ शनि परमानन्दसूरि शिष्य यक्षदेवसूरि "Aho Shrut Gyanam" २१७ १६६ २६० ३१ २४६ १०१ २९ २०७ २६७ ५३ ३६२ २२६ ३३१ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) १४२४ वैशाखक० ३ गुरु दिनविजयसूरि २९२ (अ) १५०३ ज्येष्ठशु० ९ बुध पार्श्वचन्द्रसूरि २१९ १५१३ माघशु० ३ शुक्र सर्वदेवसूरि २२० (ब्रह्माणगच्छ) १२१७ वैशाखकृ० १ प्रद्युम्नसूरि २०० १२४२ चैत्रशु० १५ ३२८ १३४१ श्रीधरसूरि १४९ १३५१ माघकृ० १ सोम ३२५ १३५१ ३२६ १३५९ वीरसूरि १५८ १३८७ वैशाखशु० २ रवि जजगसूरि १७९ १४११ ज्येष्ठक. ९ शनि लब्धिसागरसूरि २२४ १४१२ आश्विनकृ० ४ बुध विजयसेनसूरिशिष्य रत्नाकरसूरि १४२५ यशाखशु० ११ बुद्धिसागरसूरि ३७२ .१४८३ ज्येष्ठकृ० ८ रवि वीरसूरिपट्टे मणिचन्द्रसूरि २३ १४८६ वैशाखकृ० १ बुध पुण्यप्रभसरिपट्टे भद्रेश्वर सूरिपट्टे विजयसेनसूरिपट्टे रत्नाकरसूरिपट्टे हेम विमलसूरि ३२७ १४८९ वैशाखशु० ३ बुध क्षमासूरि १८८ "Aho Shrut Gyanam" Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० ० ० २४३ (५४ ) १४९५ भाषाढशु० ९ रवि जबगसूरिपट्टे पज्जूनसूरि २५०१ फा०शु० ५ गुरु पतनसरि १५०३ ज्येष्ठक० ७ १५०५ चैत्रकृ० १३ रवि प्रद्युम्नसरि (पजूनसरि) २४ १५०५ वैशाखशु० ३ शुक्र पज्जूनसूरि १५०६ माघशु० ५ रवि । १५०७ फा०कृ० ११ गुरु मणिचन्द्रसूरि १४८ १५१३ माघशु० ३ शुक्र १५१७ माघशु० १० बुध पज्जूनसूरि १५२५ ज्येष्ठशु० ५ सोम वीरसूरि ८७, २४० १५२५ फा०शु० ७ शनि १५२८ वैशाखक० ५ गुरु बुद्धिसागरसूरि ३२२ १५२९ माघशु० १ बुध १७१ १५३६ पौषकृ. २ बुध बुद्धिसागरसूरि १२९ १५६८ माघशु० ५ शुक्र मुनिचन्द्रसूरि २३३ १५... पौषकृ० १० बुध विमलसूरि १७७ १३३ ० २५ (भावडारगच्छ) १३४९ ज्येष्ठशु० २... विजयसिंहसूरि १४७९ माघक० ७ सोम विजयसिंहसरि २० "Aho Shrut Gyanam" Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ ( ५५ ) १४८५ माघकृ. ९ गुरु विजयसिंहसूरि १७६ १४९९ वैशाखक० ४ गुरु वीरसूरि (कालिकाचार्यसन्तानीय) २५५ १५०३ ज्येष्ठक० ३ सोम , १५० १५०३ मार्गकृ० ५ .... " १६२ १५१० फा०शु०११ शनि , ८८, १५७ १५१२ मार्ग०शु०१५ सोम , १५१५ कार्तिककृ० १४ शुक्र वीरसूरिपट्टे जिनदेवसूरि १९१ १५१८ फा० शु० ९ सोम भावदेवसूरि १५३२ ज्येष्ठशु० १३ बुध " १२४ __ (मडाहगच्छ) १३६७ वैशाखशु० ९ चन्द्रसिंहसूरि शिष्य रविकरसूरि १४६२ वैशाखशु० ५ शुक्र हरिभद्रसूरि १०३ (मल्लधारीगच्छ) १४८३ भाद्र०० ७ गुरु शांतिसागरसूरिपट्टे विद्यासागरसूरि यशो भद्रसूरिसन्तानीय २९२ (ब) १२१४ फा०शु० ५ प्रीतिसूरि ३२४ (विमलगच्छ) १५१७ फा०शु० ३ शुक्र धर्मसागरसूरि "Aho Shrut Gyanam" Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) (पंडेरकगच्छ) १२०४ वैशाखशु० ३ गुरु शान्तिसूरि १७३ १४८३ वैशाखशु०५ गुरु शान्तिसूरि २०८ (सरखतीगच्छ) १५१३ वैशाखशु० ३ ..... कुन्दकुन्दाचार्यसन्तानीय सकलकीर्तिदेव सत्पट्टे १७४ १५२० पौषकृ०५ शुक्र विमलेन्द्रकीर्त्तिगुरु २६४ (सैद्धान्तिकगच्छ) १५०१ पौषक० ६ सोमचन्द्रसूरि १५०१ पौषक० ९ १५०८ वैशाखक० ४ सोम ४५, २५२ १५०९ माघशु० ५ सोम १५१५ वैशाखकृ० २ गुरु ८ गच्छ, गच्छ और आचार्य या संवत आदि से अगर्भित लेखों की अनुक्रमणिका । संवत् गच्छ और आचार्य लेखाङ्क १००१ ........... .... ३३३ १०४६ चैत्रक० १ १८७ १०६३ ३२३ ११४४ ज्येष्ठक०४ . देवाचार्य ३२० १९ २१२ "Aho Shrut Gyanam" Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७ ) ५५ ११४८ ११५९ विजयसेनसूरि २२७ १२०९ २५९ १२४० माघशु० १३ ........यशोदेवमूरि ३४९ १२४४ माघशु० १० सोम ........प्रसन्नसूरि ३४५ २२४४ फा०शु० ३ बुध ........मतिप्रभसूरि २१६ १२६१ २०३ १२६३ वैशाखशु० ६ गुरु देवसूरिशिष्य क्यरसेण ५१ १३४४ ज्येष्ठशु० १० बुध ................ ३४३, ३४४ १३५७ वैशाखकृ० ५ शुक्र साधुप्रभसिंह १३६४ वैशाखशु० १३ महेन्द्रसूरिपट्टे अभयदेवसूरि १३५९ फा०शु० ५ सोम ........श्रीसूरि ३४६ १३७३ वैशाखशु० ११ शुक्र ........पद्मनन्दी १३७७ चैत्रक० ८ मंगल .......देवमूरि १९२ २१३९२ वैशाखक० ७ शुक्र देवेन्द्रसूरिपट्टे जिनचन्द्रसूरि २४९ १३९४ वैशाखशु० ९ बुध ........जयवल्लभसूरि १९३ २३९९ फा०शु० १३ सोम ................. १४०६ फा०शु० १० गुरु ........धनेश्वरसूरि ३३० १४१२ ज्येष्ठशु० १३ गुरु ........माणिक्यसूरि २०१ १४२५ माघशु०८. ३७४ ३२९ "Aho Shrut Gyanam" Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८७ ( ५८ ) १४२९ माघकृ० ५ सोम ........नरप्रमसूरि १५ १४३२ फा-शु० २ शुक्र ...... १४३६ वैशाखक. ११ ........पार्थचन्द्रसूरि १७० १४४९ वैशाखशु० ६ शुक ............ . १५९ १४५२ वैशाखशु० ५ गुरु .........पुण्यतिलकसूरि १८१ १४५३ वैशाखशु० ३ गुरु धनतिलकसरि १८४ १४५६ ज्येष्ठशु० १३ गुरु ........रत्नप्रभसूरि १८२ १४७४ श्रावणशु० ५ शनि १४८३ भाद्र०कृ० ७ गुरु ३१३ १४९२ मार्ग० कृ. १४ रवि ............. ३१४ १४९३ फा०शु० १० शुक्र ........श्रीसूरि २४४ १५०६ वैशाखशु० ६ सोम ....जिनमाणिक्यसूरि १०४ १५३४ वैशाखकू० १० रवि (सोम)........श्रीसूरि ५२ १५३४ , , सोम (रवि)............ ३०२. १५५५ वैशाखशु० ३ शनि ............, १५६५ ज्येष्ठक० २. ........मुनिमेरु २२२ .१५६७ ज्येष्ठशु० ५ बुध ................ २५८ १५६९ ज्येष्ठशु० ५ बुध ........ २३४ १५७२ कार्तिकशु० २ सोम ........ २०४ १५७८ माघक० ५ शुक्र .... १५८४ माघकृ० ११ रवि २३१ १५८७ वैशाखक० ७ सोम ........श्रीसूरि २११ "Aho Shrut Gyanam" Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ .... .... ... .... ... .... .... .. ................ २५० २५७ १६११ वैशाखशु१० बुध । १६१२ पौषशु० १ गुरु .... १६१३ वैशाखशु० १० गुरु ............ १६१७ पौषकृ० १ गुरु ........ ११४, ११५, २५३ १६२४ फा०शु० ४ मंगल २५१ १६५१ फा०कृ० १० शनि १६६२ फा०कृ० शुक्र (बुध) ११०,२६६ १६८१ ................ १६८३ वैशाखशु० ७ गुरु १७८२ वैशाखशु० १५ गुरु ................ १८५१ आषाढशु० १५ ....रंगविमलसूरि १८६९ पौषशु० १३ गुरु ....विजयलक्ष्मीसूरि ३१९ माघशु० १२ शुक्र ........श्रीसूरि .......... ............ ..... ___........ ३१५, ३४०, ३४१ ९ ज्ञाति, गोत्र एवं कुल की अनुक्रमणिका । उपस (वंश) ७, १०,४०,४८,६२, ६३,७२, ७३,१०५, उएसवाल १२०, १२३, १२४, १३८, १४८, १५९, सकेश वंश १९३, १९५, २०५, २०८, २११, २३५, २५५, २६९, २७१, २७९, २८०, २८१, उपकेश २८२, २८४, २८५, २८६, २८९, २९०, उसवाल २९१, २९२, २९४, २९५, २९६, २९७, सोसवंश | २९८, २९९, ३००, ३०३ (ब), ३०८, ओसवाल ३११, ३१२, ३६२ । "Aho Shrut Gyanam" Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६० ) गुर्जरज्ञाति . २१४ दीसावाल ५४, ३४५ प्राग्वाट २८, ३०, ३८, ४७, ४९, ५२, ७६, ९२, १०३, १२७, १२८, १४१, १४७, १५१, १५४, १६७, १६९, १७०, १९४, २१२, २४२, २५६, २६०, २६७, २७२, २७४, २७५, २७६, २७७, २७८, ३२०, ३२२, ३२५, ३३४, ३३५, ३५२, ३५७, ३५८ । मोढवाल ३६४ वीरवंश ६४, १३७, १७५ श्रीकुल ३२९ श्रीवंश २६, ४४, १८९, २३९, ३२४, ३६१ श्रीमाल १, २, ३, ४, ५, ६, ८, ९, ११, १२, १३, १४, १५, १७, १८, १९, २१, २२, २३, २४, २५, २७, २८, २९, ३१, ३५, ३९, ४१, ४२, ४३, ४४, ४५, ४६, ५०, ५३, ५६, ५७, ५८, ५९, ६०, ६१, ६५, ६७, ६८, ६९, ७०, ७१, ७४, ७५, ७७, ७८, ७९, ८०, ८१, ८२, ८३, ८४, ८६, ८७, ८८, ८९, ९०, ९१, ९३, ९४, ९५, ९६, ९९, १००, १०१, १०२, १०४, १०५, १०६, ११२, ११३, ११४, ११५, ११७, ११८, ११९, १२१, १२२, १२६, १२९, १३०, १३१, १३२, १३३, १३४, १३६, १३९, १४०, १४२, "Aho Shrut Gyanam" Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) १४३, १४४, १४५, १४९, १५०, १५२, १५३, २५५, १५६, १५७, १५८, १६०, १६१, १६४, १६५, १६६, १६८, १७१, १७२, १७६, १७७, १७८, १७९, १८३, १८४, १८५, १८६, १८८, १९०, १९१, १९६, १९७, १९८, २०२, २०३, २०७, २०९, २१०, २१३, २१५, २१६, २१७, २१८, २१९, २२१, २२३, २२४, २२५, २२८, २२९, २३०, २३२, २३३, २३८, २४०, २४१, २४३, २४४,२४५, २४६, २४७, २४८, २४९, २५२, २५३, २५४, २५७, २६१, २६२, २६३, २६८, २७०, २७३, २९३, ३०१, ३०३ (ब), ३०४ (ब.), ३२२, ३३०, ३४६, ३५३, ३५६, ३५९, ३६०, ३६५, ३६६, ३६७, ३६८, ३६९, ३७०, ३७२, ३७३। १० ग्राम एवं नगरों की अनुक्रमणिका बहमदाबाद १५४, ३५९ । कलवर्षी २७९, २८०, आहिआणा २४७ २८१, २८२, बाहोर ३५०, ३५१, २८३, २८४, २८५, २८६, ३५२ २८९, २९०, ईडर ३५२ २९३, ३१२ उढव १४७ | कवियरि "Aho Shrut Gyanam" Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) वहीआणा १२९ २१५, २२५, काकर ११,१७,३७, २२८, २३२, १५३, २६१, कालुआ कुतबपुर ३३५ दोलावाड़ा ७१ काहर ३५ धंधुका गूजरवाड़ा १२ पट्टण २९६, २९७, गेला ३७०, ३७१ २९८, २९९, चन्दपुर २८८ जीरावला ३०३ पडपलि जीराउल ३४० पत्तन झनाकूप १६८ १३१, १३७, तइड़वाड़ा २५ १४५, २०७, तंडेडा २६०, ३६४, तसन २७८ पारकर' ४० तिउरवाड़ा ११९ पुंगल २७७ थिरपुर २२,३१, ३९, पुंजपुर १२३ थराद्र,थराद्री ४१, ४२, ४३, बालहत ११८ थराद ५०,५९,६१, भीलडिया ३४२ थिरपद्र, ६५, ८१, ९४, भोयली थिरापद्र १०९, ११०, मजोह १४४ स्थिरपद्र ११४, ११५, महड़का ४४ स्थिरपुर १३२, १४२, | माद्रीपुर ७६ "Aho Shrut Gyanam" Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूजिगपुर १२८, २४२ योगिनीपुर ३०५, ३०६ २७२, ३०७ 'रत्नपुर राजपुर ३५६ राढबढ़ ९३ लयता लीमपुर २८ ३२२ लूदा ३६७ लोटानक ३२०, ३२१ छोटीपुरपट्टण ३१९ लोड़ाडा ३६१ बइरवाड़ा ८७, २४० वडली ५४, २२९ वराउद्र १३३ वराणपुर ८२ बागुड़ी ६३ वाराही वालुकर बावड़ी ३६५ १३० १७७ ( ६३ ) वावी बासनगर विडास १७, ६८ ३५३ २२३ विशालपुर २७४, २७५, २७६ बीजापुर २११ वीरम ३५८ वेलागरी २६७ शविनगर २६२ श्रावती १७५ सत्यपुर ३६, १२४ सरवास १३५ सहूआला स्तम्भतीर्थ साणी साथू सियाणा सिरोही हड़ियाम "Aho Shrut Gyanam" १२७, ३५७ ३०१, ३०८ ९५ ३५० ३५४ ३१७ ५६ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ सांकेतिक काव्यो की समझ । ओ०, औ० औसवाल भ० भगवान् ,भट्टारक का० कारितम् भट्टा. भट्टारक क. कृष्णपक्ष भण. भणसाली ज्ञाति, जाति म. महाजन गो० गोष्ठिक महं० महत्तर, मंत्री ४०, ठा० ठकुर, ठाकुर म. मंत्री दे० देवी . ल०, लघु० लघुशाखीय निक निर्मित वव्य,व्यव. व्यवहारी परि, परी० परीक्षक गोत्र वा० वास्तव्य पं० पन्यास व्या० व्यापारी पुत्र, पुत्री पूर्णिः पूर्णिमागच्छ शाह प्र० प्रतिष्ठितम् शु० शुक्लपक्ष प्रा. प्राग्वाट श्रेष्ठी, सेष्ठि विम्ब | सं० संघवी, संन्ताभं० भंडारी नीय, संवत् बृहत् शा० वि० "Aho Shrut Gyanam" Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमोत्थूणं समणस्स सिरिमहावीरवीयरायस्स | श्री धातुप्रतिमा लेखसंग्रहः । ( ऐतिहासिक ) थरादचैत्यप्रतिमालेखाःवीरचैत्यान्तर्गत- वासुपूज्यचैत्ये धातुमूर्त्तयः । ( १ ) संवत् १५०५ वर्षे माघशु० ९ शनौ श्रीमालज्ञातीय व्य० परवत भार्या वीमलदे सुता मांजूदेव्या आत्मश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिम्बं कारितं, श्रीआगमगच्छे श्रीहेमरत्नसूरिगुरूपदेशेन प्रतिष्ठितं धंधकावास्तव्ये । - ( २ ) सं० १५१५ वर्षे ज्येष्ठस्रुदि ९ शुक्रे श्रीमालज्ञातीय गूंजरवाडा वास्तव्य व्य० जेसा भा०जानू सुत "Aho Shrut Gyanam" Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) ? मूलाकेन श्रीसुविधिनाथबिम्बं का० प्र० श्रीपूर्णिमासाधुरत्नसूरीणामुपदेशेन विधिना । ( ३ ) सं० १५१३ वर्षे पौषवदि ५ रवौ श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० महा० धना सारंग गेला धर्मा राजा दूदा नारद समस्त कुटुंबैः पूर्वज सांगानिमित्तं श्रीअजितनाथविम्बं का०, प्र० भ० श्रीलक्ष्मीदेवसूरिभिः । ( ४ ) सं १५०१ वर्षे पौषवदि ६ श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० संताने पिता से० जेसिंग माता बाईपत्रापदी, भा० राजूसुतेन मातापिताश्रेयसे श्री कुन्थुनाथविम्बं कारापितं प्रति० सिद्धांती श्रीसोमचन्द्रसूरिभिर्गृहे सर्वत्र सौभाग्यं भवतु । ( ५ ) सं० १५२८ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ श्रीश्रीमालज्ञा० व्य० वापा भा० रतनू सुत वणवीरेण भा० शाणी पितृमातृपितृव्यनिमित्तं आत्मश्रेयसे च श्रीविमलनाथविषं का०, प्र० पिष्पल० त्रिभविया भ० श्रीधर्मसागरसूरिभिः भोअलीवास्तव्य | "Aho Shrut Gyanam" Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६७ ) ( ६ ) सं० १४२१ वर्षे वैशाख सु० ५ शनौ श्रीमालपितृजयता मातृजयतलदे पितृव्य कर्मणश्रेयोधं सुतहेलाकेन पार्श्वनाथबिंबं का०, प्र० नागेन्द्रगच्छे श्रीगुणाकर सूरिभिः । ( ७ ) सं० १४३३ वर्षे वैशाख शु० ९ शनौ दिने श्रीकोरंटगच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने उपकेशज्ञातौ भंड पुत्रशाखायां महिमदेव भा० मंदोदरी पुत्र नरश्रेष्टिना पितृमातृश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीभावदेवसूरिभिः | ( ८ ) सं० १५१९ वर्षे मार्गशिर सुदि ४ गुरौ श्रीमालज्ञा० लघुसंतानीय व्य० जेसा भा० हरखू पुत्र व्य० राजाकेन भार्या भवकुयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्रीपार्श्वनाथविं कारितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमापक्षे श्री साधुरत्नसूरीणामुपदेशेन । शुभं भवतु श्रीः । ( ९ ) सं० १५१२ वर्षे मार्गशिर सुदि १५ सोमे श्री भावडारगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० पदमा भार्या "Aho Shrut Gyanam" Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) पाल्हदे पु० माला भा० माल्हणपदे पु० रतना पर्वत संद्या मोकल देवा जाणा सहितेन व्यव० मालाकेन पितामहभ्रातृ व्य० घडसी निमित्तं श्रीसुमतिनाथ. विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीकालिकाचार्यसं० पूज्य श्रीवीरसूरिभिः। सं० १५८३ वर्षे ज्येष्ठ सु. ११ शुक्रे उएस० श्री ककुदाचार्यसंताने उए. ज्ञा. श्रेष्ठिगोत्रे सा० मह. ताजू पुत्र सलखण भार्या पूंजरी पुत्र हरिराजेन भा० हेमादे पु० भीमराजसहितेन श्रीशांतिनाथविध कारितं प्र०.श्रीयक्षदेवमूरिभिः । (११) सं० १५३६ वर्षे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. नाथा भा० धर्मिणी पु० रलामण भा० गूरी, शिवदत्तेन भा० कुअरी प्रभृति कुटुंषयुतेन स्वभ्रातृश्रेयसे श्री. आदिनाथर्षियं श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीपुण्यरत्नसूरीणामु. पदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना काकरग्रामे । (१२) सं० १५२८ वर्षे वैशाख शु०३ शनी श्रीश्री. मालज्ञा. व्य. ऊदिरा भा० फदू सु० भोटाकेन "Aho Shrut Gyanam" Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पितृमातृपितृव्यवापानिमित्तं आत्मश्रेयसे च श्री शांतिनाथविध का०, प्र. पिष्पलगच्छे त्रिभविया भट्टा० श्रीधर्मसागरसूरिभिः भोयलीग्रामे। (१३) सं० १४१७ वर्षे वैशाख सुदि २ रवी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० लींबा भार्या नामलदे सुत सहजाकेन भा० सहजलदे पितृ लीवाश्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंब कारापितं प्र० श्रीपिष्पलगच्छे श्रीउदयानंदसूरिपट्टे श्रीगुणदेवसूरिभिः। श्रीः । (१४) सं०१४९५ वर्षे आषाढसुदि ९ रवी श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमा. व्य. गोरा भा० देल्हणदे सुत भा. रमल भार्या पोमादे सुत डूंगर भाखराभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंबं का०, प्र. श्रीजज्जगसूरिपट्टे श्रीपज्जुन्नसूरिभिः। सं० १४२९ वर्षे माधवदि ५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० अभयसिंह भा० आल्हणदेव्या पितृव्यकमा श्रीमूलराजपार्श्वश्रेयस्करबिवं का० श्रीनरप्रभसूरीणामुपदेशेन। "Aho Shrut Gyanam" Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) (१६) सं० १५०१ वर्षे पौषवदि ९ शनौ श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन सा० कालूपत्नी कमलादे सुत सा० हरिसेनेन पत्नी माल्हणदेश्रेयोर्थ श्रीअजितनाथथिंबं कारित श्रीसंघप्रतिष्ठितं च । सं० १५१३ वर्षे पौषदि ५ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० तिहुअण भा० कर्मादे सुत डाहाकेन भा० धारणापद्री मेचू सुत भाखरसहितैर्मातृपितृ. श्रेयसे श्रीअजितनाथविवं का, प्र. चैत्रगच्छीय भ. श्रीलक्ष्मीदेवसूरिभिः वाविग्रामवास्तव्यः । (१८) ___ सं० १५११ वर्षे माघशु०५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. वानरसुत जोधराज भा० रतूदेव्या पतिनिमित्तं आत्मश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथजीवितस्वामिबिंचं का०, प्र. श्रीराजतिलकसूरीणामुपदेशेन श्रीसूरिभिः। १ लेखाइ ९४, १२१, ३५६ को देखते हुए लेखाङ्क १८ में सोमे के स्थान में गुरौ चाहिये । "Aho Shrut Gyanam" Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) ( १९ ) संवत् १५०९ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० सोनमलेन भा० राजी, स्वभ्रातृ वदा भार्या पूरी निमित्तं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं सिद्धांतीगच्छे सोमचंद्रसूरिप्रतिष्ठितं । ( २० ) सं० १३४९ ज्येष्ठ शु० २ श्री भावडारगच्छे सा० सोमा भार्या सोमश्री पुत्र छाडा-नागा-गयवरैः स्वमातृश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथवियं कारितं प्रतिष्ठितं श्री विजयसिंहसूरिभिः । ( २१ ) सं० १४३२ वर्षे फा० सु० २ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० व्य० वागा भार्या विजयश्रीश्रेयसे पुत्र विजयकर्णेन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं श्रीनरप्रभसूरीणामुपदेशेन । ( २२ ) सं० १५०९ वर्षे माघ सुदि १० शनौ श्रीश्रीमालज्ञा० पितामह हापा पितामही हांसलदे सुत चूंडा भा० चांपलदे सुत देवाकेन भार्यालूणादे सहितेन पि० ० मा० पितृव्य चांपा हेमा भ्राता बीजा सर्वपूर्वज "Aho Shrut Gyanam" Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) निमित्तं श्रीशीतलनाथचतुर्विशतिका पहः का, प्र० पिष्पलगच्छे श्रीसोमचंद्रसूरिपट्टे श्रीउदयदेवसूरिभिः थिरापद्रवास्तव्यः । वीरप्रभुचैत्ये धातुमूर्तयः (२३) संवत् १४८३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ८ रवीश्रीश्रीमाल. व्यव. सिंवा भा० लखमादे पुत्र सलखा भा० प्रीमलदे पुत्र गोला लीया सींहारव्यैः पितृमात. श्रेयोथै श्रीनेमिनाथविंबं का, प्र. ब्रह्माणगच्छे श्रीषीरसूरिपट्टे श्रीमणिचन्द्रसूरिभिः । (२४) सं० १५०५ चैत्र वदि १३ रवी राथरवास्तव्य श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमाल. व्य. वाघणसुत मेघा भा०प्रीमलदे सुत क्षीमा गोसल देसल गोसल भा० सिंगारदे सुत बडुआ कर्मसिंहाभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीविमलनाथचतुर्विंशतिपट्टः का०, प्र० श्रीप्रद्युम्न(पज्जून )सूरिभिः। (२५) संवत् १५२५ वर्षे फा० शु०७ शनौ श्रीश्रीमालज्ञातीय साहु रामा श्रे. कुंभा भा० कसमीरश्री "Aho Shrut Gyanam" Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) सुत लापाकेन भा० फली सुत धन्ना भा० शावली पांची सुत मेहादि कुटुंबयुतेन स्वश्रेयो) श्रीशांतिनाथचतुर्विंशतिपट्टा कारितःप्रतिष्ठितः ब्रह्माणगच्छे श्रीवीरसूरिभिः शुभं भवतु तइडवाडावास्तव्य । (२६) ___ संवत् १५२८ वर्षे चैत्र वदि १० गुरौ श्रीश्रीवंशे .. मं० सांगा भार्या टीबूपुत्र मं० रत्ना सुश्रावकेण भा० धारिणी पुत्र वीरा हीरा नीना बाबा सहितेन पितृव्य मं० सहसा पुण्यार्थ श्रीअंचलगच्छ गुरु श्रीजयकेसरिसूरिरुप० श्रीसुविधिनावियं का प्र. श्रीसंघेन श्रीः। (२७) संवत् १६१७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने काकरवास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० नवा भा० बाई धनीसुत श्रे० धरणा भार्या प्रोमीसुत जेसा रत. नाभ्यां श्रीविमलनाथस्य बिंवं कारार्पितं श्रीनागे. न्द्रगच्छभट्टारक श्रीधरसंघसूरि तत्पढे भद्दारक श्रीज्ञानसूरिभिः। (२८) सं० १५१३ वर्षे माघवदि ७ बुधे प्रा. ज्ञा. लघुसं० परी० वाला भा० डाहीसुत भोजाकेन "Aho Shrut Gyanam" Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४ ) भा० लाछी पुत्र नाथा साजन सहितेन पितृमातृश्रे० श्रीशांतिनाथविषं का० प्र० पूर्णिमा० क्षीमाणिया भ० श्रीजयशेखरसूरीणामुपदेशेन लायताग्रामे । , ( २९ ) * सं १५८० वर्षे वैशाखवदि १३ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० मं० हीरा भार्या राखीसुत महं० हेमा भा० हमीरदे सु० में तेजाकेन भा० नीतिसुतडूंगर - मूंगर - भाणायुतेन स्वश्रेयसे श्रीसुपार्श्वनाथविषं श्रीपू० श्रीपुण्यरत्नसूरिपट्टे श्रीसुमतिरत्नस्रीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं विधिसंयुक्तं । (३०) सं० १५१७ वर्षे वै० शु० ३ प्राग्वाट व्य० कूंपा भा० रुडीसुत देवसी भा० वाल्हीसुत देपालन भांडादिकुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं का०, प्र० तपाश्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः कालुआवासी श्रीः । ( ३१ ) सं १५६३ वर्षे फा० सु० ८ शनौ श्रीश्रीमाल* जैन धातुप्रतिमा लेखसंग्रह द्वि. भाग का लेखाङ्क ८९५ और यह दोनों एक ही हैं । "Aho Shrut Gyanam" Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५ ) ज्ञातीय आजूसखा व्यव. मेघासुत आशा भार्या अमरी नाम्न्या आत्मश्रेयसे जीवितस्वामि-श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिध कारापितं प्रतिष्ठितं भ० सुमतिप्रभसूरिभिः, थिरापद्रनगरवास्तव्य पूर्णिमापक्षे । (३२) * सं० १५१६ वर्षे सं० गेलाकेन सपरिवारेण (पूर्णिमापक्षे) श्रीगणधीरसूरीणामुपदेशेन श्रीगौतम मूर्तिः कारापिता। (३३) सं० १६५१ वर्षे फाल्गुन वदि १० शनी श्रीथिराद्रवास्तव्येन श्रीमुनिसुव्रतबिंब प्रतिष्ठितं । वीरचैत्ये प्रस्तरमय कायोत्सर्गमूर्ति-- संवत् १२९१ वर्षे माघ सुदि ५ गुरौ पिष्पल: पक्षगच्छे वीरसुत झांझणेन तथा सुत नेनक नेटक ब्रह्मा केथु तथा आम्रदेवेन श्रीरिषभदेवचैत्ये जिनयुग्मद्वयं कारितं, वला. अभयकुमारकुटुंबसमुदायेन जीर्णोद्धारः कारितः प्रतिष्ठितं श्रीसर्वदेवसूरिभिः । * लेखांक १४०-४१ के अनुसार ये आचार्य पूर्णिमा पक्षीय है. "Aho Shrut Gyanam" Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६ ) वीरचैत्यान्तर्गत आदीश्वरचैत्ये धातुमूर्तयः सं० १५१९ वर्षे माघव. द्वितीया शनौ श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० लापा भा० लाछनदे पुत्र वस्ता, इला, भा० हमीरदे सुत वेला गेलाकेन वेलाभा० वयअलदेयुतेन पितृमा तृम्रातृस्वपूर्वजनिमि०श्रीशीतल. नाथ चतु० पट्टः का०, प्र. पिष्पलगच्छे श्रीमुनिसिंहसुरिपट्टे श्रीअमरचन्द्रसूरिभिः कोहरवास्तव्यः । (३६) संवत् १५१५ वर्षे वैशाखवदि २ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय परी० खेता भा० खेतलदे पु० ईसर भा० राजलदे पु० मोकल भा० महिंगलदेव्या पु० वऊलासहितेन पित्रोनिमित्तं स्वश्रेयोथै च जीवितस्वामी श्रीआदिनाथचतुर्विशतिपट्टः का०, प्र० श्रीपिपलगच्छे श्रीचन्द्रप्रभसूरिभिः श्रीसत्यपुरवास्तव्यः श्री। (३७) संवत् १५२८ वर्षे पौष वदि ३ सोमे श्रीश्री. मालज्ञातीय भंडारी भोला भा० बालीदेव्या स्व. पुण्यार्थ जीवितस्वामी श्रीविमलनाथविध कारितं "Aho Shrut Gyanam" Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७) प्रतिष्ठितं चैत्रगच्छे धारणपद्रीय भहारक श्रीज्ञानदेवरिभिः, काकरवास्तव्यः। (३८) (सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ शु० १० दिने प्राग्वाट व्य गोपाल भा० लखीसुत व्य० लाखा भा० कीमी प्रमुखयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्रीशांतिजिनर्विषं कारितं प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्री रत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । (३९) सं० १५३३ वर्षे वैशाख शु. ६ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० कर्मसी श्रा० लाछु सु० श्रे० मामाकेन भा. देवलीसहितेन पितृमातृनिमित्वं आत्मश्रेयसे श्रीसुविधिनाथर्षिबं का०, प्र० नागेंद्रगच्छे भ. श्रीगुण देवसूरिभिः थरादनगरे । (४०) सं० १५२२ वर्षे पौष वदि १गुरौ उपकेशज्ञाती श्रेष्ठिगोत्रे म० मोखापुत्र म० धन्नाकेन भा० साल्हीकेन च महाजनीखीदापुण्यार्थ श्रीशीतलनाथर्विवं कारितं प्र० श्रीउपकेशगच्छे श्रीककुदाचार्यसंताने श्रीकक्कसूरिभिः पारकरनगरे। "Aho Shrut Gyanam" Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ ) ( ४१ ) सं० १७५७ वर्षे माघसुदि ५ दिने श्रीधिरापद्र वास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय वृद्धशाखायां वो० देवराजेन भा० मानी सुत वो० वासा सांकला सुत भोजराजादि सहितेन [स्व] पुण्यार्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भ० श्रीविजयप्रभसूरि पट्टे संविज्ञपक्षे म० श्रीज्ञानविमलसूरिभिः । ( ४२ ) सं० १५१० वर्षे माघसुदि ५ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृभोला मातृभावदेवि सुत लूणसिंहेन आतृ हेमला निमित्तं निजकुटुबश्रेयसे श्रीशांतिनाथपंचतीर्थीका०, प्रति० पिष्पलगच्छे त्रिभवियागच्छनायक श्रीधर्मशेखरसूरिभि: थिरपद्रपुरे श्रीः । ( ४३ ) सं० १५०६ वर्षे वैशाखसुदि ८ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० भोला सुत सं० लूणसी भा० लूणादेव्या आत्मश्रेयसे जीवितस्वामी श्रीश्रेयांसनाथपंचतीर्थीर्वि कारितं प्रतिष्ठितं श्रपिष्पलगच्छे त्रिभ० भ० श्री धर्मशेखरसूरिभिः धारापद्रवास्तव्यः । ( ४४ ) सं० १५१७ वर्षे माघसुदि १० बुधे श्रीब्रह्माण "Aho Shrut Gyanam" Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९) गच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० सादूल सुत भारमलेन भा० कपूरदे सुत डाहा वेला मातृपितृश्रेयसे श्रीअजितनाथविवं कारितं प्र. शीपज्जूनसूरिभिः महडकापामे। (४५) सं० १५०८ वर्षे वैशाखवदि ४ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० नयणेन भा० टहिकु सु० लाखा हेमा दूदादि कुटुंषयुतेन पितृव्यकतुहणा भा० हांसू श्रेयोर्थ श्रीशीतलनाथर्षियं का०, सिद्धांतीगच्छे श्री सोमचंद्रसूरिभिः प्रतिष्टितं । शुभं भवतु श्रीः । (४६) सं० १५०६ वर्षे वैशाखवदि ८ रवी श्रीश्रीमाल. ज्ञातीय व्यव० वरसिंघ भा० तिलुश्रिया आत्मश्रेयोथै जीवितस्वामी श्रीश्रेयांसनाथर्षिवं कारा०, प्रति० श्रीपिष्पलगच्छे त्रिभविया श्रीधर्मशेखर. सूरिभिः । (४७) सं० १६१८ वर्षे माघसुदि १३ प्रारवाट सोनी सामा पुत्री सोनीदेव्या श्री आदिनाथबि कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीविजयदानसूरिभिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८० ) ( ४८ ) संवत् १५१० वर्षे आषाढवदि १ शुक्रे उपकेशवंशे भण० गोत्रे म० माला भा० माल्हणदे पु० कावाश्रावकेन बंधव गुणिया डूंगर पुत्र मदा वदा राजा प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीशांतिनाथवियं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपडे श्रीजिन भद्रसूरिभिः । ( ४९ ) सं० १५२८ वर्षे वैशाखसुदि ५ गुरौ श्रीप्राग्वाट ज्ञा० स० काला भा० माल्हणदे सुत सं० रत्ना भा० लाबू सं० भीमाकेन भा० देमति सु० कुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्त पापक्षे श्रीज्ञानसागर सूरिभिः । ( ५० ) संवत् १४९९ वर्षे कार्त्तिकसुदि १५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० खीदा भा० काउं पुत्र धीरा केन आत्मश्रेयोर्थ श्रीशीतनाथबिंबं कारितं, प्र० पिष्पल० त्रिभवीया भ० श्रीश्रीधर्मशेखरसूरिभिः श्रीधिरापद्रे । ( ५१ ) सं० १२६३ वर्षे वैशाखसुदि ६ गुरौ सा० टीला "Aho Shrut Gyanam" Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८१ ) सुत सा. लूणेन मातृपितृश्रेयोथं श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्रीदेवसरिशिष्य श्री वयरसेणसूरिभिः। (५२) सं० १५३४ वर्षे वै०व०१० रवी (सोमे) प्राग्वाट व्य. सेला भा० तेजू पुत्र अजा भा० वमी पु० नरपालेन पितृव्य व्य० वाछा डाहा पांचादि कुटुंबयुतेन श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सरिभिः डीसामहास्थाने । (५३) सं० १६१५ चैत्रवदि ४ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय महाजनी सोमा भार्या झमकलदे द्वितीया मिरगादे सुत वाछाकेन मातृपितृपितृव्यनिमित्तं आत्मश्रेयोर्थ श्रीचंद्रप्रभबि कारापितं श्रीपूर्णिः श्रीवीरप्रभसूरिपट्टे श्रीकमलप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं विधिभिः । (५४) सं० १४९७ वर्षे वैशाखवदि ६ शुके वडली. वास्तव्य डीसावालज्ञातीय श्रे० कउझा भा० मांकू १ ले. ३०२ में सोमवार लिखा है। "Aho Shrut Gyanam" Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) पुत्र समधरेण भा० लाछीयुतेन पितृप्रेयोश्रीसु. पार्श्वविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णिमापक्षीय क्षीमाणिया श्रीजयशेखरसूरीणामुपदेशेन । (५५) सं० १३४७ वैशाख वदि ५ शुक्रे श्रीमन्मंडलाकिन] गुरूपदेशेन साघुप्रभसिंहमुनिकारितेन विषं। सं० १५१५ वर्षे माघशुदि १ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृदेपाल भा० धापुश्रेयोथै सु. खीमा खेताम्यां श्रीन मिनाथर्षि कारितं श्रीपूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन इडिवास्तव्यः। सं०१३६९ वर्षे वैशाखवदि ८ श्रीश्रीमालज्ञातीय परी० भंडाश्रेयोथै सुत पांताकेन श्रीचतुर्विंशति. तीर्थकराणां बिंब कारितं प्रति० श्रीनागेंद्गच्छे श्रीभुवनानंदसूरिशिष्य श्रीपनचंद्रसूरिभिः । (५८) सं० १४८८ ज्येष्ठ शु० ३ सोमे श्रीमालज्ञातीय माहणसी जहता भा० जइतलदे पु० वीरधवल हरि "Aho Shrut Gyanam" Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३ ) धवल विक्रमैरेकमतीभूय मातृपितृजस्वश्रेयसे श्री विमलनाथचतुर्विशतिपः का०, प्र० त्रिभवियापिष्पलाचार्य श्रीधर्मशेखरसूरिभिः। (५९) सं० १५१७ वर्षे पौषवदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० माहणसुत व्य. सूरा भा० सुहवदे सुत व्य० रूदाराणाभ्यां आत्मश्रेयो) श्रीशांतिनाथचतुर्विशति पट्टः कारिता प्रति श्रीपिष्पलगच्छे त्रिभविया भट्टा० श्रीधर्मसागरसूरिभिः थारापद्रवास्तव्यः शांतिवर्धनार्थं सर्वेषां पूर्वपुरुषाणां भवतु । (६०) . सं० १४८२ वर्षे वैशाखवदि ४ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. ऊदिर भा० हांसलदे सुत भोला भा० भावलदे सु. नेमा-लूणा सिंहाभ्यां मातृपितृ तथा भ्रातृ हेमला श्रे० चतुर्विशतिपदा श्रीअजितनाथस्य का०, प्र. पिष्पलगच्छे त्रिभवीया श्रीधर्मप्रभसूरिपट्टे श्रीधर्मशेखरसूरिभिः, शुभं । (६१) सं० १५१६ वर्षे पौषवदि ५ गुरौ थिरापद्रगच्छे १ ले. ५१ और १०० एक ही कुल के लेख है। "Aho Shrut Gyanam" Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यः सूरा भा० श्रियादे सुत बीसलेन भा० नीनादे सुत धीरा काला कुटुंबयुतेन स्वमातृपितृश्रे. श्रीश्रेयांसनाथचतुर्विंशतिपट्टः का० प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः थिरापद्रवास्तव्यः। श्री श्रीः। (६२) सं० १४५३ वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे २ सोमे उएशवंशे महं० माहण भार्या आल्हणदे सुत लूणा वाछा वइरमल केल्हा प्रभृति भ्रातृसमुदायेन निजमातृभ्रातृसर्वजननिमित्तं चतुर्विंशतिजिनपट्टः कारापितः, प्रतिष्टितः श्रीजीराउलीपुरीयगच्छे श्री. वीरचन्द्रसूरिपट्टे श्रीशालिभद्रसूरिभिः। श्रीसंघस्य शुभं भवतु । संवत् १५३५ वर्षे पौषवदि १२ रवी श्रीउएस. वंशे श्रे• हीरा भा० हीरादे पुत्र श्रे० पासासुश्रावकेण भा० पूनादे पुत्र खीमा भूता देवा सहितैः स्वश्रेयोर्थ श्रीअंचलगच्छे श्रीजयकेसरसूरीणामुपदे. शेन श्रीसंभवनाथबिंचं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन वागुडीग्रामे। "Aho Shrut Gyanam" Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८५ ) ( ६४ ) सं० १५०७ वर्षे माघसुदि १३ शुक्रे वीरवंशे सं० लीबा भार्या मोटी पुत्र सं० नारदसुश्रावकेण भा० जयरू सहितेन श्रीअंचलगच्छेश श्री. जयकेसरिसूरीणामुपदेशात् श्रीधर्मनाथबिंबं पितुः श्रेयसे कारितं श्रीसंघेन च प्रतिष्ठितं श्रीर्भवतु पूज्यमानं विजयतां । ( ६५ ) सं० १५०१ वर्षे पौषवदि ६ बुधे गोत्रजा वाराही श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० महिपाल सुत व्य० सिंहा भा०- सुहवदे सुत नाथा राउल धरणाकेन स्वमातृश्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारापितं प्रति० धारापद्रगच्छे श्री सर्वदेवसूरिपट्टे श्री विजयसिंहसूरिभिः । ( ६६ ) सं० १४७९ वर्षे भा० सु० ४ काकसवंशे वोहराशाखीय सा० राणिगसिंघ पुत्र गांगा भा० महंचलदे सुत सांवलाकेन पुत्र वस्ता तेजा सहितेन भा० खेतलदे वल्लालदे श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रति० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः । ( ६७ ) सं० १५११ वर्षे माघसुदि ५ श्रीश्रीमालज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam" Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) व्य० सांडासुत अदऊ भा० गेलीसुत हरराजेन मा० पाऊसहितेन स्वपितृश्रेयसे श्रीआदिनाथर्षि कारितं प्रतिष्ठितं चैत्रगच्छे धारणपद्रीय श्रीलक्ष्मीदेवसूरिभिः। (६८) सं० १५५३ वर्षे वैशाखसुदि १३ सोमे श्रीश्रीमाल. व्य० मना भा० डाही सुत रहिआकेन भा० रंगीसहि• पितृमातृपितृव्यभ्रातनि० आत्मश्रे० श्री. सुमतिनाथविषं का०, प्र. पिष्पलगच्छे श्रीपना. नंदमूरिभिर्वाविवास्तव्या। (६९) सं० १५०५ वर्षे वैशाखसुदि ३ शुक्रे श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमाल. व्य० मेघा सुत गोसलेन भा० सिणगारदे सुत कर्मसीसहितेन पितृदेसल मातृमहंगदे निमित्तं श्रीनमिनाथविध का०, प्र० श्रीपज्जुन्नसूरिभिः। (७०) सं० १४८५ माघसुदि १० शनी श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० ठाकुरसी भा० झनकु पुत्र मं० काला. केन पित्रोः श्रेयसे श्रीपद्मप्रभवियं का०, प्रति. "Aho Shrut Gyanam" Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) पूर्णिमापक्षे श्रीविद्याशेखरसरीणामुपदेशेन विधिना श्रेयः शुभं। (७१) सं० १५१७ वर्षे माघवदि ८ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे. वीरा भा० शाणी सुत जोगाकेन भा० मानू सु० महीराज कुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथ. विषं श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीगुणसमुद्रसूरिपट्टे श्रीपुण्यरत्नसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना दोलावाड़ाग्रामे । (७२) सं०१५३५ वर्षे माघमृदि३ रवी श्रीउकेशवंशे रायथला सेठियागोत्रे धरणा पुत्र वेलाकेन भा० विमलादे पुत्र खेमागेलागजादिनि० श्रीनमिनायविवं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभि । श्री। (७३) सं० १४९३ वर्षे फागुणवदि १ दिने उकेशवंशे नवलक्षशाखायां सा० पाल्हा पुत्र सा०पीचा फमण. श्रावकाभ्यां श्रीआदिनाथविषं का०, प्रतिष्ठितं श्री. खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः । "Aho Shrut Gyanam" Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८) (७४) सं० १५०८ वर्षे चैत्रसुदि ५ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय प्रपिता पेथा प्रपि. प्रथमादे पि. नींबा पिता कर्मादे पितृ मेघउ भा० आशादे सुत परखा लल्लुभ्यां पूर्वजश्रे. मातृपितृश्रेयो) श्रीशीतलनाथ. चतुावशतिपक्षिवं का०, प्र० पिष्पलगच्छे श्री. समरचंद्रसूरिपट्टे श्रीशुभचंद्रसूरिभिः । कावेयरिवास्तव्यः। (७५) सं० १४७१ वर्षे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे. केरहुआ भा० मंजु सुत वालइ[ केन भ्रातृलालाश्रेयो) चतुविशतिपदः कारिता श्रीआगमगच्छे श्रीअमरसिंहसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना । (७६) सं० ....६५ वर्षे माघसुदि १२ शुफे माद्रीपुरवास्तव्य श्रीप्राग्वाटज्ञातीय व्य. जेसाश्रेयोर्थ सुत पूनाकेन श्रीशांतिनाथविंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री. सूरिभिः । (७७) सं० १५०६ वर्षे माघशुदि १० शुक्रे श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८९ ) ज्ञा० श्रे० चूणा भा० वापलदे सुत देवाकेन मातृपितृ श्रे० श्रीजिवीतस्वामी श्री शीतलनाथबिंबं का०, प्र० पिष्पलगच्छे श्रीसोमचंद्रसूरिपडे श्रीउदयदेवसूरिभिः पडघलिया ग्रामे । ( ७८ ) सं० १४९९ वर्षे कात्तिकसुदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मांडण भा० माहणदे पुत्र ववाधरड़ाकेन भ्रातृकर्मा, राघवनिमित्तं श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्र० पिष्पलत्रिभविया भट्टारकश्रीधर्मशेखरसूरिभिः । (७९) सं० १५२७ वर्षे ज्येष्ठसुदि १० बुधे श्रीश्रीमालज्ञा० ० संदा सुत श्रे० सूराकेन सुत देवा पोपट प्रभृति कुटुंबयुतेन भार्या बागश्रेयसे श्रीकुंथुनाथबिंबं पूर्णिमापक्षे श्रीपुण्यरत्नसूरीणामुपदेशेन का०, प्र० विधिना श्रेयोर्थ | (60) सं० १५८१ वर्षे माघवदि १० शुक्रे श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय वृद्धशाखायां मं० लाला [ केन ]भा० लीलादे १ ले ०५०, १९० के अनुसार १५ पूर्णिमा होना चाहिए । "Aho Shrut Gyanam" Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुत आशा भा० ऊमादे सुत लाखा हीरा कुटुंब. युतेन श्रीनिगमप्रभावक श्रीआनंदसागरसूरिभिः श्रीशांतिनाथषिवं प्रतिष्ठितं कारितं च । सं० १५१० वर्षे कार्तिकवादि ४ रवी श्रीश्रीमालज्ञा० व्य० लूणसिंह भा० लूणादेवि सु० संग्रामसी हनभा०वल्हादेविश्रेयसे श्रीशांतिनाथषिवं कारितं प्रतिष्ठितं पिष्पलगच्छे त्रिभविया श्रीक्षेमशेखर. सूरिभिः श्रीथिरापद्रे । (८२) सं० १५२९ वर्षे ज्येष्ठवाद १ शुक्र श्रीश्रीमालज्ञा. श्रे. धना भा० धांधलदे सुत पेमाकेन भा० आसू सुत चांपायुतेन पितृव्यश्रेयसे श्रीपद्मप्रभादि: पंचतीर्थी आगमगच्छे श्रीअमररत्नसूरिणामुपदेशेन कारापिता प्रतिष्ठिता विराणपुरवास्तव्यः । (८३) सं० १५१६ वर्षे आषाढसुदि १ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० कान्हा भा० कमलादे सु० गुहिमा. सुराभ्यां पितृमातृनिमित्तं आत्मश्रेयसे श्रीनमिनाथविषं का प्रतिष्ठितं पिप्पलगच्छे श्रीसोमचंद्र सूरिपट्टे श्रीउदयदेवसूरिभिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) (८४) सं० १५१७ वर्षे चैत्रसुदिपूर्णिमायां श्रीमालज्ञातीय खेडरियागोत्रे सं० कानू पुत्र सं० रणवीर श्रावकेन भा०हरखूश्राविका पुन्यार्थ श्रीशांतिनाथर्षि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। (८५) सं० १२२० ज्येष्ठसुदि ९ रवो श्रियाहठेन श्री. पार्श्वनाथप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता प्रभुहेमचंद्रसूरिभिः। (८६) सं० १५११ वर्षे माघसुदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० सायर भा० संसारदे सुत व्य. कुरसी भा० नयणादे सुत व्य. जेसिंगेन श्रीधर्मनाथविवं का०, प्रति० पिष्पल० त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसरिपट्टे श्रीधर्मसुंदरसूरिभिः।। (८७) सं० १५२५ वर्षे ज्येष्ठसुदि ५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० गोला भा० गुरदेसुत हेमाकेन भार्या हीरादे माधु सुत धइजादिकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोर्य "Aho Shrut Gyanam" Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९२ ) श्रीअजितनाथविषं कारितं प्रतिष्ठितं ब्रह्माणगच्छे श्रीवीरसूरिभिर्वइरवाड़ावास्तव्यः । (८८) सं० १५१० वर्षे फागुणसुदि ११ शनी श्रीश्री. मालज्ञा. व्यव. पूनपाल भा० पाल्हणदेवी पुत्री. हीराहरियाभ्यां सुपूर्वजैनिमित्तं श्रीआदिनाथविध कारितं प्र० श्रीभावडारगच्छे श्रीकालिकाचार्यसं० श्रीवीरसूरिरुपदेशेन । (८९) सं० १५६१ वर्षे माधवदि ५ शुक्रे श्रीश्रीमाल. ज्ञातीय व्य० देवड भा० पावीपुत्र खीमा भा० वरजू पुत्र आर्जुनेन पितृमातृ आत्मश्रेयसे श्रीनमिनाथ. बिंब कारितं प्रतिष्ठितं पिष्पलगच्छे त्रिभवीया भ. श्रीधर्मसागरसूरिपट्टे भद्दारक श्रीधर्मप्रभसूरिभिः । सं०१५३० वर्षे का० स० १२ सोमे श्रीश्रीमा० व्य० लींबा भा० ला सु० धर्मसी भा० धांधलदे भ्रा० वीना आत्मश्रे० श्रीशीतलनाथधर्व का०,प्र. पिष्पल० श्रीमुनिसिंघसूरिपट्टे श्रीअमरचंद्रसूरिभिः। सं० १५०१ वर्षे फागुणसुदि ५ गुरौ श्रीब्रह्माण माण "Aho Shrut Gyanam" Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९३ ) गच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० तेजपाल भार्या मूली सुत लाखा केन] भा० ललितादे सुता रतनू पितृमातृश्रेयोर्थ श्रीवासुपूज्यर्षिवं का०, प्र. श्रीपजूनसूरिभिः । (९२) __ सं० १५२४ वर्षे मार्गवदि २ प्राग्वाट व्य. तेजा भा० सीरी पुत्र व्य० पोपाकेन भा. पांतीदे पु० वांग देपाल प्रमुखकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्रीसुवि. धिनाथर्वियं का०, प्र. तपागच्छेश श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । (९३) __ सं० १५१७ वर्षे पौषवदि ५ गुरौ श्रीमालज्ञातीय श्रे. वीरम भा० विल्हदे तयोः सुतौ श्रे० राउल भीमा भा० धीरु सुत हापाकेन स्वमातृपितृश्रेयोर्थ श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमापक्षे श्रीमुनिसिंहसूरिभिः, राडवडवास्तव्यः । (९४) सं० १५११ वर्षे माघसुदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० कर्मसी भा० मदी सुत महिपाकेन पितृमातृनिमित्तमात्मश्रेयोर्थ श्रीसुमतिनाथविर्ष "Aho Shrut Gyanam" Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४) कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीराजतिलकसरिभिः स्थिरापद्रे । (९५) सं० १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३ सोमे श्रीश्रीमाल• श्रे० लूणा भा० वमकु सुत भोजाकेन भा० श्रमकु सुत रहिआदि कुटुंबयुतेन मातृपितृश्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथघि पूर्णि० श्रीगुणधीरसूरीणामुप० का० प्रतिः विधिना साणीवास्तव्यः। (९६) सं० १५०१ वर्षे पौषवदि ६ शुक्र श्रीश्रीमालझातीय व्य० बगसा भा० जेसलदे सुत धडसिंहेन स्वपितृभ्रातृश्रेयोर्थ जीवंतस्वामि-श्रीसुमतिनाथर्षि कारितं प्रति. नागेंद्रगच्छे श्रीपद्मानंदमूरिपट्टे श्रीविनयप्रभसूरिभिः। (९७) सं० १५०५ वैशाखसुदि २ बुधे लठाउरागोत्रे सं० नगराज भा० लाड़ी सु० सं० धनराजेन भा० सोनाई पु० सं० कालुप्रमुखपरिवारेण स्वश्रेयो) श्रीसुविधिनाथविवं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीगुड़श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । "Aho Shrut Gyanam" Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९५ ) ( ९८ ) सं० १४९३ वर्षे वैशास्त्रसुदि ५ वुषे फलऊषीयागोत्रे सा० छाहू भा० छाजुई पुत्र सावाकेन आत्मपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथविंवं कारापितं प्र० श्रीधर्मघोषगच्छे भ० श्रीपद्मशेखरसूरिपट्टे भ० श्रीविजयचंद्रसूरिभिः । ( ९९ ) सं० १४३५ वर्षे माघ वदि १२ सोमे श्रीश्रीमाल झा० सं० खेडसिंग सुत सं० हादाकेन का० शांतिनाथ बिंबं प्र० श्रीवीरसिंहसूरिपट्टे श्रीवीर चंद्रसूरिभिः । (800) सं० १५१७ वर्षे पौषवदि ५ गुरौ श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय व्य० सूरा भा० सुहवदे सुत रूदाराणाम्यां मातृपितृनिमित्तं श्रीशान्तिनाथबिंबं का०, प्र० पिप्पल • त्रिभवीया श्रीधर्मसागरसूरिभिः । ( १०१ ) सं १५७२ वर्षे वैशाखचदि ४ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० भूवर सुत व्य० पोपट [ केन ] भा० प्रीमलदे भ्रा० गोपाल सुत हादासहितेनात्मश्रेयोर्थ श्री सुविधिनाथवियं कारापितं श्री पूर्णिमापक्षे प्रधानशाखायां श्रीभुवनप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीः । "Aho Shrut Gyanam" Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९६ ) (१०२) सं० १४३४ वर्षे वैशाखवदि २ बुधे श्रीमालज्ञा. व्य० जाठिल भा० खेमलदे श्रेमालाकेन श्रीशांतिनाथर्षिवं का०, प्रतिष्ठितं पिप्पलाचायश्रीमुनिप्रभसूरिभिः। (१०३) सं० १४६२ वर्षे वैशाखसुदि६ शुक्रे प्राग्वाटज्ञा प्रलेपन मा० साथलदे पुत्र मालणकेन श्रीआदिनाथविध का०, प्र० मडाहड़ा श्रीहरिभद्रसूरिभिः। (१०४) सं० १५०६ वर्षे वैशाखसदि ६ सोमे श्रीश्रीमा लज्ञातीय श्रे० लाखा भा० पातली सुत कीकाकेन आत्मश्रेयोथं श्रीनमिनाथर्विवं कारितं प्रतिष्ठित श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः । (१०५) सं०१४३० वर्षे माघवदि ८ सोमे ओसवंशीय व्य० आशधर भा० रामलदे पित्रोः श्रेयसे [सुत] व्य. सादाकेन श्रीआदिनाथः कारितः प्र. पिष्पलाचार्यश्रीधर्मदेवसूरिसंताने श्रीप्रीतिसूरिभिः । (१०६) सं० १३०० माघवदि २ श्रीश्रीमाल पितृव्य श्रे० "Aho Shrut Gyanam" Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९७ ) नरसिंह भा० नयनादे खीमा साहा पु० करणाकेन श्रीशांतिनाथषिवं का०, प्र० चैत्रगच्छे श्रीहरिश्चंद्रसूरिभिः। (१०७) सं० १३९९ फागणसुदि १३ सोमे श्रीमूलसंघेन वयउठी [प्रतिष्ठा कारिता] (१०८) सं० १७०८ मागसरसुदि २ रवौ सा. यक्षराजेन पुण्यार्थ श्रीपाश्वविवं कडुआमतगच्छे भाणाजी लाधाजीकेन [ का प्रतिष्ठितम् ] (१०९) सं० १६८३ ज्येष्ठसु० ३ कडुआमती थरादरा ठाकुर रत्नपाल मा रमादेव्या सुमतिनाथविध का तेजपालेन प्र०। (११०) सं० १६६२ फागणसु. २ बुचे हारापित्रासाजनसी [श्रे०] श्रीवासुपूज्यविषं का० थरादनगरवास्तव्ये। "Aho Shrut Gyanam" Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ९८ ) ( १११ ) सं० १३६४ वर्षे वैशाखशुक्ले १३ श्रे० छाडा पुत्र खीमउ भा० जयतु पुत्र केल्हण भा० लूणी पु० हरपाल भा० कपूरदे सुत रत्नसिंहेन भा० गउरादे सहितेन पितृव्यदेवल पूनपाल पितापितृव्य नरपालश्रेयसे आदिनाथप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्री महेंद्रसूरिपट्टे श्रीअभयदेवसूरिभिः । ( ११२ ) सं० १४३६ वैशाख वदि ११ भोमे श्रीमालज्ञा० aro बीया भा० हमीरदे सुत भूदेवेन पितृश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथविषं का० प्र० पिष्पलगच्छीय श्री विजयप्रभसूरिपट्टे श्रीउदयानंद सूरिभिः । ( ११३ ) सं० १४७९ माघवधि ७ सोमे श्रीभावडारगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० भरमा पुत्र सरवणेन पुत्र पर्वतश्रेयसे श्री चंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रति० श्री विजयसिंहसूरिभिः । ( ११४ ) सं० १६१७ वर्षे पौष वदि १ गुरौ राजाधिराज श्रीअश्वसेन राणी वामादेवी तयोः पुत्र श्री श्री पार्श्व "Aho Shrut Gyanam" Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९९ ) नाबिंबं कारितं श्रीथिरापद्रवास्तव्य लघु० श्रीमाल. ज्ञातीय श्रे. वीजा पूना मूलादिकेन स्वकर्मक्षयार्थ । (११५) सं० १६१७ वर्षे पौष वदि १ गुरौ राजा श्री कुम्भाराणा राणीश्रीप्रभावती तयोः पुत्र श्रीश्री मल्लिनाथस्य बिवं कारितं श्रीथिरानवास्तव्य श्री श्रीमालज्ञातीय महं० धड़सी रंगा उदयवंत धनपाल संघवी कर्मक्षयार्थ प्रतिष्ठितं बिंबं श्रीशुभं भवतु । (११६) सं० १५७८ वर्षे माहवदि ५ शुक्रे महाराजाधिराज श्रीहढरथ राज्ञीश्रीनंदादेवी पुत्र श्री श्री श्री श्री श्री शीतलनाथबिंब कारितं श्रेयसेस्तु । (११७) सं० १६१३ वर्षे वैशाखसुदि १० गुरौ राजाधिराज महाराज श्रीनाभिनरेश्वर माता श्रीमरुदेवी तत्पुत्र श्री श्री श्री श्री श्रीआदिनाथबिंबं कारितं श्रीथिरानवास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय बाई नीनू कर्मक्षयार्थ कारितं । . (११८) सं० १५११ वर्षे ज्येष्ठवदि ९ रवीश्रीश्रीमालज्ञा० "Aho Shrut Gyanam" Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) मं० सोना भा० खेतलदे सुत गाडा भा० भोली सुत काला भा० कामलदे भ्रा० धर्मण, नरियाभिः पितृमातृश्रेयसे श्रीनमिनाथविषं का, प्र. श्री पिष्पलगच्छे भ. श्रीउदयदेवसूरिभिः, वालहरग्रामे। (११९) सं० १५०६ वर्षे चैत्रवदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० जेसिंग भा० वापू सु. वनाकेन पितृ व्यसारंग भ्रा० कर्मणश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथर्षिषं पूर्णिमापक्षे श्रीवीरप्रभसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना तिउरवाड़ाग्रामे श्रीः । (१२०) सं० १५३६ वर्षे माधवदि ७ सोमे श्रीउएसवंशे सा० राणा भा० रयणादे पुत्र सा० खरहर्षश्रावकेण भा० माणिकदे पुत्र लखमण केसवण कीर्ति पौत्र मदन सूरा माणिक सहितेन पुत्ररावणपुण्यार्थ श्रीअंचलगच्छे श्रीजयकेसरीसूरीणामुपदेशेन संभवनाथषिवं कारितं प्रतिष्ठितं च । (१२१) सं० १५११ वर्षे माघवदि ५ गुरौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्यव० कर्मसिंह भा० मदी सु० वाघाकेन "Aho Shrut Gyanam" Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) पुत्र मातृश्रेयो) श्रीअजितनाथर्षिषं कारापितं श्रीपू० भ० राजतिलकसूरेरुपदेशेन प्र. श्रीसूरिभिः धिरपद्रे । (१२२) सं० १५६० वर्षे वैशाखसदि ३ बुधे श्रीश्रीमालज्ञा. व्य. सारंग भा० रंगी सुतलखमणकेन भा० पालू सुत रहिया देपाल सहितेन स्वपितुनिमित्तं आत्मश्रेयो) श्रीशांतिनाथबिंब का० श्रीनागेंद्रगच्छे भ० श्रीसोमरत्नसूरिपट्टे भ० श्रीहेमसिंघसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (१२३) सं० १५२१ ज्येष्ठसुदि ९ सोमे उप. ज्ञातीय नाहरगोत्रे कुशला भा० कल्हणदे पुत्र महणाकेन पितृव्यपुण्यार्थमात्मश्रेयसे श्रीसुमतिनाथषिवं का०, प्र० धर्मघोषगच्छे श्रीपद्मानंदसूरिभिः पुंजपुरवास्तव्यः। (१२४) सं० १५३२ वर्षे ज्येष्ठसुदि १३ बुधे उपकेशज्ञा. तीय व्यव. कीका भा० सरसइ सुत खेता भा० रंगी सुत रूपाकेन भ्रातृदेवराजनिमित्तमात्मश्रेयसे "Aho Shrut Gyanam" Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) श्रीaarafia कारापितं प्रतिष्ठितं भावडारगच्छे श्रीभावदेवसूरिभिः सत्यपुर वास्तव्यः । ( १२५ ) सं० १५६० वर्षे वै० सु० ३ सं० खेता भा० हांसलदे पुत्र सं० खेटाभ्रातृ सं० अर्जुनेन भा० अधिकादे पुत्र सं० मांडण भ्रातृज डूंगर वना जैसा प्रभृति कुटुंबयुतेन वृद्धपितृव्य सं० मेहा श्रेयसे प्रीतये श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीसोमसुंदरसूरिपट्टे नायक श्रीकमलसूरिभिः । ( १२६ ) सं० १५४३ वर्षे ज्येष्ठसुदि ११ श्रीश्रीमालीय व्य० समधर भा० जीविणी पुत्र व्य० धर्मसिंहन भा० माणिकी पुत्र महिराज वरजांगादियुतेन स्वश्रेयसे श्रीशीतलनाथवियं का० प्र० श्रीसूरिभिः पूज्यश्रीशौभाग्यरत्नसूरिभिः । ( १२७ ) सं० १५.... वर्षे माघ व. २ गुरौ श्रीप्राग्वाद ज्ञा० श्र० धांगा भा० पंगादे सुत पर्वतकेन भा० मटकू पुत्र कर्मणादि कुटुंबयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं का०, प्र० वृद्धतपापक्षे भ० श्रीजिन सुंदरसूरिभिः । सहआलावास्तव्यः श्रीः । "Aho Shrut Gyanam" Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) (१२८) सं० १५२३ वर्षे वैशाखसुदि १३ प्राग्वाट व्य. मुंजा भा० जसू पुन व्य० हापाकेन भा० रत्नादे पुत्र जावड़ जीवा जगादि कुटुंबयुतेन स्वश्रेयोथ श्रीअभिनंदनबिंब का०, प्र० तपागच्छाधिराज श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः मूजिगपुरे । (१२९) सं० १५३६ वर्षे पौष बदि २ गुरौ श्रीब्रह्माण. गच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठिरामा भार्या रत्नादे सुत वरदेवेन भा० वील्हणदे सुत मांजर भाखर सहितैः स्वपितृमातृश्रे० श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः कहीआणावास्तव्यः। (१३०) सं० १५१७ वर्षे वैशाखसुदि १२ भोमे श्रीश्री. मालज्ञातीय श्रे० हला भा हेली सुत सवसीकेन पितृमातृस्वपूर्वजश्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथपंचतीर्थी कारिता प्र. पिष्पलगच्छे भ. श्रीगुणरत्नसूरिभिः वालुकडग्रामे। (१३१) सं० १५४८ वर्षे वैशाखवदि १० रवी श्रीश्री. "Aho Shrut Gyanam" Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) मालज्ञा० सिद्धशा० श्रेलखमसी भा०मांजू सुत मदा भा० मांकू सुत तेजाकेन भा० मल्हईसहितेन पितृमातृभ्रातृनिमित्तमात्मश्रेयसे श्रीशीतलनाथषि का०, प्र० पिष्पलगच्छे श्रीरत्नदेवरिपट्टे श्री. पद्मानंदसूरिभिः पत्तनवास्तव्यः । (१३२) सं० १४९९ वर्षे कार्तिकसुदि १५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० सूरा भा० सुहवदे पुत्र पतारूदाभ्यामात्मश्रेयोर्थ श्रीसंभवनाथबिंवं कारितं प्रतिष्ठितं पिष्पलगच्छत्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरिभिः थारापद्रे । (१३३ ) सं० १५१३ वर्षे माघसुदि ३ शुक्र श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० सूरा भा० नोडी सुत हापाकेन भा० कली सु० समधर सहसा वरदेव वीरा पंवायण महिराज सहितेन पितमात श्रे० श्रीआदिनाथविंबं का०, प्र० श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीमणिचंद्रसूरिभिः, वराउद्रवास्तव्यः। (१३४) सं० १५२७ वर्षे पौषवदि ४ गुरौ श्रीसिद्धशा "Aho Shrut Gyanam" Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) खीय श्रीश्रीमाल व्यव० दूदा भा०माणिकदे सुत राणाकेन सभ्रातृयुतेनात्मश्रेयोर्थ श्रीसुमतिनार्षिक का०, प्र० श्रीपिपलगच्छे श्रीविजयदेवसूरिशिष्यशालिभद्रसूरिभिः। (१३५) सं० १५३४ वर्षे पौषव० १० दिने श्रे० मांजा भा० माल्हणदे सुत भावड भा० ट्वीनाम्न्या निजश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंब का०प्र० भ० श्रीलक्ष्मी सागरसूरिभिा संखारवास्तव्यः । (१३६) सं० १४५० वर्षे माघवदि ९ सोमे श्रीमालज्ञातीय धांधीयागोत्रे ठकुर हरिराज पु० ठ० हापा ठ०जयपालनिमित्तं ठ० हेमाकेन श्रीअजितनाथर्विबंका० प्र. खरतरगच्छे श्रीजिनवल्लभसूरिभिः। (१३७) सं० १५३७ वर्षे वैशाखसुदि १० सोमे श्रीवीरवंशे श्रे० मोखा भा० रामति पुत्र श्रेष्देवा सुश्रावकेण पुत्र नारद पूना युतेन निजश्रेयो) श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीअनन्तनाथर्षियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन पत्तननगरे । "Aho Shrut Gyanam" Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) (१३८) सं० १५२७ वर्षे माघवदि ७ रवी उपकेशज्ञातीय व्य० मांडण भा० करण सुत मोका[केन] भा० ऊदी द्वि० भा० समू सुत आल्हण पांचायु. तेनात्मश्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंबं का०प्र० श्रीजीरा. पल्लीय श्रीउदयचंद्रसूरिपट्टे भ० श्रीसागरचंद्र. सूरिभिः शुभं भवतु। (१३९) सं० १९०५ वर्षे वैशाखवदि ९ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय म. साल्हा भा० फरकूदे सुत खेमा भा० खेतलदेव्या सुत राजासहितेन स्वश्रेयोर्थ जीवितस्वामिश्रीनमिनाथबिंबं का० श्रीपू० भ० श्रीवीरप्रभसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठिता थिरापद्र वास्तव्यः। (१४०) सं० १५१६ वर्षे आषाढसुदि ३ रवी श्रीश्री. माल श्रे० वत्सा भा० चीझलदेसुत श्रे. शिवाकेन मातृपितृश्रेयोर्थ श्रीअजितनाथषिवं पूर्णिमापक्षे श्रीगुणसमुद्रसूरिपट्टे श्रीगुणधीरसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना तडेडाग्रामे । "Aho Shrut Gyanam" Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) (१४१) सं० १५१६ वर्षे माघवदि ९ सोमे प्राग्वाट व्य० खोखा भा० कील्हणदे पु० देवा[ केन] भा० सूलेसिरी सुत भरमादिसहितेनात्मश्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं का०, प्र. पूर्णिमापक्षे श्रीदेवचंद्रसूरीणामुपदेशेन । . (१४२) सं० १५०५ वर्षे वैशाखसु. ३ शुक्र थिरापद्रगच्छे श्रीश्रीमाल ध्रु० धीरा भ्रातृ नरसी धीरा भा० धांधलदे सुत इला, अर्जुन गोलाकेन स्वपितृमातृश्रे० श्रीआदिनाबिवं का०, प्र० श्रीविजयसिंहसूरिभिः थराद्रवास्तव्यः (१४३) सं० १५२० वर्षे चैत्रवदि ५ बुधे श्रीश्रीमालज्ञा० पितृकान्हा मातृरूपिणि निमित्तं पुत्र सालिगेन भा० गेरीयुतेनात्मकप्रेयसे श्रीकुंथुनाथविध का, प्र. पिष्पलगच्छे त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरिपट्टे श्रीधर्मसूरिभिः। (१४४) सं० १५१५ वैशाखसुदि १३ रवौ श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) व्य. मेहा भा० खेतलदे सुत जयसिंघेन भा० जयमादेसहितेन पितृभ्रातृनिमित्तमात्मश्रेयो) श्री चंद्रप्रभस्वामिबिंबं का०, प्र. पिष्पलगच्छे भ. श्रीविजयदेवसूरिरुपदेशेन श्रीशालिभद्रसूरिभिः, मजोहग्रामे। (१४५) सं० १५२४ वर्षे वैशाखसुदि ३ सोमे श्रीसिद्धसंताने श्रीमालज्ञा. श्रे. लखमसी भा. मांजू सुत गणियाकेन भा० वीजू सुत आशधरसहितेन पितृमातृश्रेयोर्थ श्रीश्रेयांसनाथविध का०, प्र० श्रीपिष्पलगच्छे श्रीउदयदेवसूरि पट्टे श्रीरत्नदेवसूरिभिः श्रीपत्तने । (१४६) सं० १५२९ वर्षे फागुणसुदि २ शुक्रे श्रीउएसवंशे बड़हराशाखायां सा० दरगा भा० लीलादे पुत्र विक्रमसुश्रावकेण भा० पल्हादे पुत्र व्याघ्रसिंह भोजा खीमा खेता सहितेन पितृव्यसाजनपुण्यार्थ अंचलगच्छे गुरुश्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन वि. मलनाबिंब का प्रतिष्ठितं च । (१४७) सं० १५१० वर्षे वैशाखसुदि ३ प्राग्वाटज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam" . Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०९ ) व्य० वीरम भा० झनु सुत राघवेन भ्रातृ हेमा हीरा बीसल भा० मचकू सुत अर्जुन सांगा सहजादि कुटुंबयुतेन पितृश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथविंबं कारितं प्र० तपाश्रीरत्नशेखरसूरिभिः, ऊढववासी । ( १४८ ) सं० १५०७ वर्षे फागुणवदि ११ गुरौ व्यव० गोला [केन] भा० महगलदेनिमित्तं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारापितं ब्रह्माणगच्छे श्रीमणिचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । ( १४९ ) सं० १३४१ श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० साहडश्रेयोर्थं सुत लापाकेन बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधरसूरिभिः । ( १५० ) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठवदि ३ सोमे श्रीभावडारगच्छे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० सोना भा० महीदेव्या स्वपुण्पार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्र० कालिकाचार्य संताने पूज्य श्रीवीरसूरिभिः । ( १५१ ) सं० १५२७ वर्षे माघवदि ५ दिने गुरौ प्राग्वादज्ञातीय सा०करणा भा० मापूपुत्र सा० बी ढाकेन भा० "Aho Shrut Gyanam" Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९०) राजलदे पुन्न सा० पालादिकुटुंबयुतेन श्रीसंभवनाथविंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । __ (१५२) सं० १४७१ माघसुदि ३ श्रीश्रीमालज्ञातौ श्रे० देदा भा० देल्हणदे सुत दूदाकेन पित्रोः श्रे० श्रीविमलनाथबिवं का०, प्र०पिष्पलगच्छे त्रिभविया श्रीधर्मप्रभसूरिभिः। (१५३) सं० १५०१ वर्षे पौषवदि ९ श्रीश्रीमालज्ञातीय से० नयणा सुत कर्णेन पितृव्य तुहणा मना डूंगर वदा मातव्य पातीनिमित्तं श्रीनेमिनाथबिंब कारा. पितं प्र० सिद्धांतीश्रीसोमचंद्रसूरिभिः। (१५४) सं० १५१५ वर्षे ज्येष्ठवदि१ शुक्रे अहमदाबादीय प्रारवाट मं० लीया भा० मथू पुत्र अदा भा० मांजी. नाम्न्या स्वश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंब कारितं प्र० वृद्धतपापक्षे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः । (१५५) सं० १५२४ वर्षे चैत्रवदि ५ श्रीमाल श्रे. भावा भा० लालू सुत राजा भा० राजू पुत्र जीवउ लाडण "Aho Shrut Gyanam" Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१११) रतनासहितैः पिनोनिमित्तं स्वश्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथ विं का०प्र० घारणपद्रीय भ० श्रीलक्ष्मीदेवसूरिभिः । सं० १५०६ वर्षे माघसुदि....श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० सूरा [केन] भा० रूपादे सुत धर्मानिमित्तं श्राविका सूख्यात्मश्रेयसे श्रीसंभवनाथविवं का०, प्र० पिष्प श्रीधर्मशेखरसूरिपट्टे श्रीविजयदेवमूरिभिः। (१५७) सं० १५१० फागुणसुदि ११ शनी श्रीश्रीमालज्ञा० व्यव० पूनपाल भा० पाल्हणदे पुत्र हीरा हरियाकेन पुत्र नगउ नरपालयुतेन भ्रातृनिमित्तं श्री. अभिनंदनस्वामिबिंब का० श्रीभावडारगच्छे श्रीकालिकाचार्यसंताने श्रीवीरसूरिपुरन्दरैः। (१५८) सं० १३५९ श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० झांझाकेन पितथिरपाल्हश्रीमंत श्रेयसे श्री. शांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीवीरसरिभिः । (१५९) सं०१४४९ वर्षे वैशाखसुदि ६ शुक्रे श्रीउपकेशज्ञा० पितृकुरसिंह मातृकामलदेः श्रेयसे सुत "Aho Shrut Gyanam" Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२) वीकाकेन श्रीसुमतिनाथविवं कारितं श्रीपार्श्वचन्द्र सरीणामुपदेशेन । (१६०) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठवदि ७ ब्रह्माणगच्छे मोरिवावास्तव्य श्रीश्रीमाली व्य० हीरा सुत वपरा भा० लाड़ी सुत मांडण भा० पालूदे सुत समधर धनराज सहितेनात्मश्रयोथै श्रीवासुपूज्यषिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपजूनसूरिभिः। (१६१) सं० १४४२ वर्षे वैशाखवदि १० रवी श्रीश्रीमा. लज्ञा. श्रे. हरपाल भा० हीरादेव्यात्मश्रेयसेजीवित स्वामिश्रीआदिनाथबिंबं का०प्र०पिष्पलगच्छे श्रीसागरचन्द्रसूरिभिः। (१२) सं० १५०३ वर्षे मार्गशिरवदि ५ श्रीभावडारगच्छे (श्रीककुदाचार्य सं०) हादा पु० सं० काला भा० कमलादे पुत्र भीडा वेला मालाकेन स्वपुण्यार्थ श्रीनमिनाथ कारापितं प्र० श्रीवीरसूरिभिः । (१६३) सं० १४९३ प्रा० श्रे० माडलसी भा० माणिकदे "Aho Shrut Gyanam" Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११३ ) सुत ठाकुरसिंहेन भा० पातू सुत वानरादियुतेन श्रीसुमतिनाथर्षियं का०, प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरिभिः । ( १६४ ) सं० १४८२ वर्षे वैशाखपदि ४ गुरौ श्रीश्रीमाल - ज्ञा० पितृ आपमल मातृऊमादेवी पितृव्यरणसिंघश्रेयसे सु० देवाकेन श्रीसंभवनाथर्थिवं कारितं प्र० पिष्पलगच्छे श्रीसागर भद्रसूरिभिः । ( १६५ ) सं० १५२७ वर्षे कार्तिकवदि ५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञा० सं० वृद्धशाखायां व्य० कर्माण भा० हमीरदे सुत नाभाकेन स्वपितृमातृ श्रे० श्रीअजितनाथविवं का० प्र० श्रीविजयसिंहसूरिपट्टे श्रीशांतिसूरिभिः थिरापद्रगच्छे श्रीः । ( १६६ ) सं० १५५२ वर्षे फागुणसुदि ३ श्रीश्रीमालज्ञातौ नियूगोत्रे व्य० जीता भा० वानू पुत्र भीमा भा० बरजू कामलदे पुत्र रामारंगाम्यां श्रीसुमतिनाथबिंबं का०, प्र० कंछोली पूर्णिमापक्षे भ० श्रीविजयराज - सूरिभिः । "Aho Shrut Gyanam" Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) ( १६७ ) सं० १५३७ वर्षे ज्येष्ठसुदि २ सोमे श्रीप्राग्वाटज्ञातौ लघुशाखायां श्रे० हरदास भा० गोली पुत्र राणा पत्नी दबकुनाकन्या स्वपुण्यार्थं श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । ( १६८ ) सं० १५३३ वर्षे माघसुदि १३ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० ठाकुरसी भा० करमी सुत मेहाजल भा० माल्ही सुत संधारण जगमालसहितेन द्वि० भार्या देकूनि० श्रीसुमतिनाथबिंबं का०, पूर्णि० भ० श्रीकमलप्रभसूरिणा प्रतिष्ठितं शनाकुयो वास्तव्यः । ( १६९ ) सं० १४८४ वर्षे प्राग्वादज्ञातीय व्य० सायरसुत व्य० गदाकेन स्वभ्रातृपद्मा श्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं प्र० तपाश्रीसोमसुंदरसूरिभिः । ( १७० ) सं० १४३६ वर्षे वैशाख वदि ११ प्राग्रवादज्ञातीय व्य० जसवीर भा० बांसलदे पु० मामाकेन निजपित्रोः श्रेयसे श्रीमहावीरबिंबं कारितं श्रीपास चंद्रसूरीणामुपदेशेन । "Aho Shrut Gyanam" Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) सं० १५२९ वर्षे माघसुदि १ बुधे श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीमालज्ञातीय श्रे० भावा भा० भावलये सुत रामाकेन भार्यालाडीनिमित्तं पुत्र बजूरसहितेन स्वपूर्वजश्रेयोर्थ श्रीसंभवनाथर्षिब का०, प्र० श्री. विमलसूरिपट्टे श्रीवृद्धिसागरसूरिभिः । (१७२) सं० १५३२ वर्षे वैशाखसुदि १३ सोमे थारापद्रीयगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० ठाकुरसी भा० पाल्हणदे पुत्र ऊदा केन] भा० अहिवदे पितृव्य०] फाफा कालुआ झलीआ निमित्तं श्रीअजितनाथविवं का०, प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः । (१७३) - सं० १२०४ वर्षे वैशाखसुदि ३ गुरौ श्रीषंडेरकगच्छे देल्हा भा० देल्ही सुत रत्नसिंहश्रेयोर्थ कुमरसिंहेनश्रीपार्श्वनाविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः। (१७४) सं० १५१३ वर्षे वै. सु० ३ श्रीमूलसंचे सरस्वतीगच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्यसंतानीय भ० सकल "Aho Shrut Gyanam" Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६) कीर्तिदेव तत्पद्दे श्रीविमलेंद्रकीर्तिगुरुणा प्रतिष्ठितं हुंवडज्ञा. श्रे. वनड भा. वानू सुत काला भा० वाल्ही भ्रा.कीका भा० गोमति भ्रा. सिंवा भ्रा० पूना वच्छाश्रीशांतिनाथर्विकारितं नित्यं प्रणमंति। (१७५) सं० १५३७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ सोमे श्रीवीरवंशे श्रे० रत्ना भा० रतनू पुत्र श्रे० धन्ना सुश्रावकेण भार्या धनी पुत्र पासा पदमा सहितेन पत्नीपुण्यार्थ श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकेशरिसूरीणामुपदेशेन श्रीमुमतिनाथर्विवं कारित प्र० संघेन श्रावस्तीनगरे । (१७६ ) सं० १४८५ माघ वदि ९ गुरौ श्रीभावडारगच्छे श्रीश्रीमालज्ञा. व्य. धरणा भा० करणादे पुत्र पून. पालेन सुत हीरा हरदेव यशपाल मातृपितृश्रे. श्रीसंभवनाथविष का. प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः। (१७७) . सं० १५९१ वर्षे पौषवदि १. बुधे श्रीश्रीमालजातीय श्रे० पूना सुत डाहा भा० लाखू सुत मेहा समधर भा० लालीदेव्या मातृपितृनिमित्तमात्मा "Aho Shrut Gyanam" Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७ ) श्रेयोर्थ श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीब्रह्माणसच्छे श्रीविमलसूरिभिषवड़ीग्रामे । ( १७८ ) सं० १४०४ वर्षे का० व० ९ सोमे श्रीश्रीमाल व्य० नरिया भा० नीनादेश्रेयसे पितृ[व्य ] खीमा बहजा श्रेयोर्थं भ्रा० नरसिंहादिसर्वेषां नि० सुत तिलकाकेन श्रीपद्मप्रभपंचतीर्थी कारिता श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीसूरिभिःप्रतिष्ठिता । ( १७९) सं० १३८७ वर्षे वैशाखसुदि २ रवौ ब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञा० व्य० वयरा [केन ] स्व श्रेयसे श्रे० कुर सिंहसहितेन श्रीपार्श्वनाथविवं कारितं प्र० श्रीजज्जग सूरिभिः । ( १८० ) सं० १९४८ श्रीनाग करणेन आत्मश्रेयोर्थं कारितं । ( १८१ ) सं० १४५२ वैशाखसुदि ५ गुरौ राठ पुत्र महं० - राणासुत लालाकेन पितृमातृ तथा पितृव्यवहराश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथविवं का० प्र० श्रीपुन्यतिलक - सूरिणा । "Aho Shrut Gyanam" Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८ ) (१८२) सं० १४५६ ज्येष्ठसुदि १३ गुरौ प्रा० श्रे० सांगण भार्या सुगुणादे पु. मेधाकेन भ्रातृ गुणनरपाल ! झगडामातृस्वसाकुरीदे तेषां निमित्तं श्रीसंभवनाथविं का०, प्र० श्रीरत्नप्रभसूरीणामुपदेशेन । (१८३) सं० १४६५ वर्षे वैशाखसुदि ३ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञा० व्य० पीरा भा०वील्हणदे सुत श्रे० पर्वतेन श्रीसंभवनाथविध का० प्र० नागेंन्द्रगच्छे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः। (१८४) सं० १४५३ वर्षे वैशाखसुदि ३ गुरौ श्रीश्रीमालपितृव्य नडीमल मातृ सुहडादे भ्रा० खीमा नडुआ पंचजन श्रेयसे देपाकेन श्रीआदिनाथपंचतीर्थी कारिता श्रीधनतिलकसरीणामुपदेशेन प्र० । . (१८५) सं० १४९६ वर्षे फागुणवदि ३ रवी श्रीश्रीमालशातीय श्रे० फला भा० पोमी भ्रातृजयकुरसीश्रेयोर्थ सुत रहियाकेन श्रीकुंथुनाथर्षिवं का०, प्र० पिष्पलगच्छे भ. प्रीतिरत्नसूरिभिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११९ ) ( १८६३ ) सं० १४८४ वर्षे वैशाखबदि ११ रवौ श्रीश्रीमाल व्य० फूटर भा० हांसलदेव्या पितृमातृश्रेयोर्थ श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्र० पिपलगच्छे श्रीधर्मशेखरसूरिभिः । ( १८७ ) संवत् १०४६ चैत्रवदि १ अचलपुरसंघेन कारापितं । ( १८८ ) सं० १४८९ वर्षे वैशाखसुदि ३ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० हीरा केन ] भा० हीरादे सुत भाखर भा० साणी स्वभ्रातृश्रेयसे श्री आदिनाथबिंबं कारापितं ब्रह्माणगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीक्षमासूरिभिः । (१८९ ) सं० १५५२ वर्षे वै०व० ३ शनौ कुंडीशाखायां श्रीश्रीवंशे व्य० गहिया भा० झाझु सुत करणा भा० तारू सुत पांता भा० रामती पितुः पुण्यार्थं अंचलगच्छे श्रीसिद्धांतसागरसूरीणामुपदेशेन श्री कुंथुनाथवियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन । "Aho Shrut Gyanam" Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) ( १९० ) सं० १४९९ वर्षे कार्तिकसुदि १५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य• अर्जुन भा० कश्मीरदे सुत सायर पौत्र धनराजेन पितामहनिमित्तमात्मश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथ कारितं प्रति० पिप्पलगच्छत्रिभ बीयाभट्टारक श्रीधर्मशेखरसूरिभिः । ( १९१ ) सं० १५१५ वर्षे कार्तिकवदि १४ शुक्रे श्रीभावडारगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मेहाउलेन भा० लालू पुत्र पूना गांगा सांगा पितृव्य गेला सहितेन स्वपुण्थार्य श्रीशीतलनाथबिंबं का०, प्रति० श्रीवीरसूरिपट्टे पूज्यश्रीजिनदेव सूरिभिः । ( १९२ ) सं० १३७७ वर्षे चै०व० ८ भृगौ साखुलागोत्रे सा० कर्मसी भा० चरणश्री पु० सा० झंझणकेन श्री. पार्श्वनाथवियं का० प्र० श्रीमद्देवसूरिभिः । ( १९३ ) सं० १३९४ वर्षे वैशास्त्रसुदि ९ बुधे उसवालज्ञातीय ठा० वेल्हा भा० सुहडा पुत्र झांझणकेन पूर्वजनिमित्तं श्रीपद्मप्रभविवं का० प्र० श्रीजय " वल्लभसूरिभिः । "Aho Shrut Gyanam" Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१ ) ( १९४ ) सं० १५४७ वर्षे वैशाखसुदि ३ सोमे प्राग्वाटज्ञातीय डीसा वास्तव्य व्य० लखमणेन भा० रमकु पुत्र लींबा तेजा जिनदत्त सोमा सूरा युतेन स्वश्रे. योर्थ श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं अंचलगच्छे श्रीश्रीसिद्धांतसागरसूरिभिः । व्य० लखमणेन भा०रमकु पुत्र लींबा भा० दमकू । ( १९५ ) सं० १५१७ वर्षे मार्गसु० १० सोमे श्रीउएसवंशे सा० राणा भा० राणलदे ० पु० खरहत्थ सुश्रावकेण भा० माणकदे ० पुत्र लखमण सहितेन अंचलगच्छे श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन पितृश्रेयोर्थ श्रीचंद्रप्रभस्वामिर्षिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन । ( १९६ ) सं० १४९४ श्रावणवदि ९ रवौ श्रीश्रीमाल व्य० समरा भा० जाल्हणदे श्रेयसे सुत भरमाकेन श्री. सुविधिनाथपंचतीर्थी कारा० प्रतिष्ठिता पिष्पलगच्छे त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरिभिः । ( १९७ ) *सं० १५०७ वर्षे माघसुदि १० सोमे श्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२) ज्ञातीय व्य० पर्वत भा० राजलदे पुत्र सहाद्र मेहा महीपाभिः पितृमातृश्रेयो) श्रीकुंथुनाषि कारितं, प्र. नागेंद्रगच्छे श्रीपद्मानंदसूरिपट्टे श्रीविनयप्रभ'सूरिभिः। (१९८) सं०१४८९ वर्षे वैशाखसुदि १ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० साखा भा० भरमादे सुत सोखाकेन भ्रातृवडुआसुत साजनपुण्याथै श्रीशांतिनाथविर्ष का०, प्र. पिष्पल० श्रीसोमचंद्रसूरिभिः । (१९९) सं० १३०९ वर्षे फागुणसुदि १३ बुधे सोराणगोष्ठी सा हरदेवेन पुत्रार्थ श्रीपार्श्वनाथविषमात्मश्रेयसे कारितं, प्रतिष्ठितं धर्मघोषगच्छे श्रीअमर. प्रभसूरिशिष्यैः श्रीज्ञानचंद्रसूरिभिः। (२००) सं० १२१७ वैशाखवदि १ श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीप्रद्युम्नसूरीश्वरैः प्र० जोगा सुत यिणुचंद्रअयोर्थ का। (२०१) सं० १४१२ वर्षे ज्येष्ठमुदि १३ गुरौ श्रे० लूण.... "Aho Shrut Gyanam" Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२३) पालपुत्र बीजाकेन श्रीअंबिका कारिता प्र० श्रीमाणिक्यसूरिभिः। (२०२) सं० १४३७ वर्षे वैशाखसुदि ११ सोमे श्रीश्री. मालज्ञा पितृव्यमातृ कीसलदे श्रेयोर्थ सुत कालकेन श्रीऋषभदेवर्षिय कारितं प्र० पिपलनायक श्रीजयतिलकसूरिभिः। (२०३) सं० १२६१ सांतू आसल सं० धारण । (२०४) सं० १५७२ वर्षे कार्तिकसुदि २ सोमे श्रीआदिनाथप्रतिमा कारिता। मोठामन्दिर ऋषभदेवचैत्ये धातुमूर्तयः (२०५) ___ सं० १४८० वर्षे फागुणसुदि १० बुधे श्रीकोरंटकगच्छे श्रीनन्नाचार्यसंताने उपकेशज्ञातीय श्रे० हेमा भा० भरमी सुत मना भा० तारू पु० आल्हा भा० १० धा० प्र० ले० सं० मा० २ लेखांक ९३१ में जयतिलकसूरि को धर्मतिलक लिखा है। "Aho Shrut Gyanam" Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) बासू पु० हेमराज सांगण भा० भामिनीदेख्या श्रीआदिनाथचतुर्विंशतिषिवं कारितं प्रतिष्ठित श्रीककासूरिभिः। सं० १४७९ वर्षे चैनवदि २ गुरौ श्रीमालजातीय मंत्री धीरू भा० लखमादे सुत वस्ता भा० रामू योर्थ सुत देवा, धनाकेन श्रीआदिनाथचतुविशतिः कारापिता थारापद्रगच्छे प्रतिष्ठितं श्री. शांतिसूरिभिः। (२०७) सं० १५८२ वैशाखसुदि तृतीयातियो श्रीश्री. मालज्ञातीय श्रे० नरवद भा० जीविनी सुत वीजा हरराज, वीजा भा० वइजलदे सुत धरणाकेन पितामही लीलाश्रेयोर्थ श्रीसंभवनाथषिष कारापितं प्रति. ष्ठितं पूर्णिमापक्षे प्रधानशाखीय श्रीकमलप्रभ. सुरीणामुपदेशात् पत्तनवास्तव्या। (२०८) सं० १४८३ वर्षे वैशाखसुदि ५ गुरौ श्रीउकेशवंशे सं० जेसा [केन भार्या चांपलदे सुत वीसल कन्या क्उलदे स्वश्रेयसे श्रीसंभवनाथर्षिय का, पंढरकगच्छे प्रति० श्रीशांतिसूरिभिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०९) सं० १५०५ वर्षे माघसुदि १० रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० कर्मसी भा० हांसू पुत्र श्रे० नरपतिसुश्रावकेण भा० नयणाये मुख्यसमस्तकुटुंषसहितेन मातृपितृश्रेयोर्थ अंचलगच्छे गच्छाधिराजश्रीश्रीजय. केशरिसूरीश्वराणामुपदेशेन श्रीसुविधिनाथविवं का०, प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन विभु विजयतां । (२१०) सं० १५०३ वर्षे माघसुदि १३ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य मालदेव भा० कामलदे सुत व्य० केल्हा भा० हर्ष सुत व्य० मांडण भा० देहीनाम्न्या सुत व्य. वेला गेलादिकुटुंषयुतया श्रीविमलनाथविध स्वश्रेयसे कारितं प्र०, तपागच्छेश्वर श्रीरत्नशेखरसूरिभिः। (२११) सं०१५५५ वर्षे वै०म०३ शनौ बीजापुरवास्तव्य श्रीओसवंशे दो जेसा भा० जसमादे सुत दो० अमरा भा० देवसिरि सुत दो० कुडाकेन भा० कामलदे द्वितीया हीरू सुत दो० धना दो. वना भा. सोही धनासुत कान्हा दंगडा प्रमुख कुटुंषयुतेन श्रीधर्मनाथबंध कारितं प्र० श्रीसूरिभिः । "Aho Shrut Gyanam" Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) ( २१२.) सं० १५१५ वर्षे वैशाखयदि २ गुरौ प्राग्वाटज्ञातीय श्रेष्ठिवागा[ केन ] भा० पोमी पु० बेला भा० लाबी पुत्र विरुआते-नात्मश्रेयसे श्रीचंद्रप्रभबिंबं का०, प्र० श्रीसिद्धांतीगच्छे भ० श्रीसोमचंद्रसूरिभिः। ( २१३ ) सं० १५३८ वर्षे वैशाखसुदि ५ बुधे श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय श्रे० धीरा [केन] भा० भाली सुत आसु, मनु, धनु, देवु, पांचु, डूंगर, अदु[युतेन] आत्मश्रेयसे श्रीचंद्रप्रभस्वामीबिंबं कारापितं चैत्रगच्छे भ० श्रीरत्नदेवसूरिपट्टे भ० अमरदेवसूरिप्रतिष्ठितं गोत्र........ पावास्तव्यः । ( २१४ ) सं० १५२५ वर्षे माधव० ६ दिने चांपानेरवासि गुर्जरज्ञा० म० नरसिंग भा० आसूदेव्या सुत म० जिनकाम सुत पद्मकिरण श्रीवच्छ पहिराजादि कुटुंबयुतया निजश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं तपाश्रीलक्ष्मीसागर सूरिभिः । ( २१५ ) सं० १५३३ वर्षे वैशाखसुदि ६ शुक्रे श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२७) मा. श्रे० कर्मसी भा० लाडू० सुत श्रे० भरमाकेन भा० देसलदे सहितेन पितृमातृनिमित्तमात्मश्रेयोर्थ श्रीसुविधिनाथर्षि का०, प्र० नागेंद्रगच्छे भ० श्रीगुणदेवसूरिभिः थिरापद्रनगरे । (२१६) सं० १२४४ फागुणसुदि ३ बुधे आम्रयशसुत आमूकेन मातुः राजिमतीश्रेयो) षिवं कारितं श्रीमतिप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीः। (२१७) सं० १५४५ वर्षे फा०व०२ भोमे श्रीमालज्ञातीय मं० भीमा भा० नागिनी सुत कान्हा भा० पूतली. देव्या पितृमातृश्रेयोर्थ श्रीनमिनाथविवं कारितं पूर्णिमापक्षे श्रीसाधुसुंदरसूरिपट्टे श्रीश्रीश्रीदेवसुंदरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना गांफवास्तव्यः। (२१८) __ सं० १४८१ पौषव० ९ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य विरुआ भा० भरमादे सु० बुहथाकेन मातृ. पितृश्रेयसे श्रीसंभववियं का०, प्र. नागेंद्रगच्छ श्रीपद्मानंदसूरिभिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२८) (२१९) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ट सुदि ९ बुषे श्री श्री मालज्ञातीय व्य. मेहण भा० माल्हणवे पु० मांडणेन पुत्र धीरा सहितेनात्मश्रेयोर्थ श्रीसुमतिनाथ विंबं का०, प्र. बृहद्गच्छे सत्यपुरीय श्रीपार्श्वचंद्रसरिभिः श्रीः। (२२०) सं० १५१३ वर्षे माघ सुदि ३ शुक्रे श्रीउपकेशज्ञातीय परवजगोत्रे व्य० सिवा पुत्र देवाकेन भा० देवलसहितेन मातृसंसारदे पुण्यार्थ श्रीपत्रप्रभषिर्ष कारितं श्रीवडगच्छे श्रीसर्वदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु । (२२१) सं० १५१० वर्षे माघ सुदि १० बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ भामट मातृ मीलणदेवि श्रेयोर्थ सुत सरवण काला समधर एतैः श्रीचंद्रप्रभस्वामिविवं कारित पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना वइणाग्रामे। . (२२२) . सं० १५६५ ज्येष्ठ पदि २ वा मुनिमहीमेत श्रीपार्श्वनाथर्षियं कारितं [प्रतिष्ठितं] "Aho Shrut Gyanam" Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९९) (२२३) सं० १७८५ मार्गशिर सुदि ५ श्रीश्रीमालज्ञातीय वोरा जसराजेन पुन्यार्थ श्रीधर्मनाथस्य विवं कारापितं । प्रतिष्ठितं कडुआमतीगच्छे साहाजी श्रीलाधा थोभणजी। (२२४) सं० १४११ ज्येष्ठ व० ९ शनो श्रीमालज्ञातीय महं सायाकेन स्वगोत्रजा वैरुट्यामूर्तिः का०, ब्रह्मागच्छे श्रीलब्धिसागरसूरिभिः। (२२५) सं० १६१२ वर्षे पौषवादि १ गुरौ राजाधिराज, श्रीअश्वसेन माता श्रीवामादेवी तत्पुत्र श्रीश्रीपार्थनाथस्य विवं श्रीथारापद्रवास्तव्य लघुशाखायां श्रीमालज्ञातीय महं. तोला महं. भोला कर्मक्षयार्थं कारित। (२२६) श्रीसाधुपूर्णिमापक्षे श्रीसागरचंद्रसूरिपहे श्रीसो. मचंद्रसूरीणामुपदेशेन प्र० (धातुचतुर्मुखः) (२२७) सं० ११५९ सिवा का पार्श्वनाथषिवं प्र० श्री. जयसेनसूरिभिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) देशाईसेरीविमलनाथचैत्ये धातुमूर्तयः ( २२८) सं० १५०६ वर्षे वैशाखसुदि ८ रचौ श्रीश्रीमा: लज्ञातीय व्यव. मांडण सुत बरदा भा० वाहण: देव्या आत्मश्रेयसे श्रीचंद्रप्रभस्वामिचतुर्विशतिपट्टविवं का०, प्र. पिष्पलगच्छे त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरिभिः थारापद्रवास्तव्यः। ( २२९) सं० १५१२ वर्षे ज्येष्ठमुदि ५ रवी श्रीथारापद्रगच्छे श्रीमालज्ञातीय महं० गोगन भा० नूंजी सुत रसाजण भा० सुहवदे सायर भा० नाईदेव्या स्वपितृमात आत्मश्रेयोर्थ श्रीअदिनाथचतुर्विंशतिपट्टः का०, प्र० श्रीविजयसिंहसूरिभिर्वडलीवास्तव्यः । ( २३०) सं० १४८५ वर्षे माघसुदि १० शनी श्रीश्रीमालज्ञा. व्य. सुहडसी भा० साजणदे अपरा भा० सिरिया सु. लालाकेन स्वपित्रोस्तथा भ्रा० खींदा. श्रेयसे श्रीशांतिनाथचतुर्विंशतिपः का०, प्र० पिष्पलगच्छे त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरिभिः । "Aho Shrut Gyanam" Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३१) (२३१) सं० १५८४ वर्षे माघवदि ११ रवी श्रीराजाधिराज श्रीसुमित्रराजा मातापद्मावती तत्पुत्र श्री श्री श्री श्री श्रीमुनिव्रतस्वामिबिंध कारितं सं. कहरदे सुत वीहड सुत राजाराम कर्मक्षयार्थ श्रेयसे श्रीः । (२३२) सं० १६११ वर्षे वैशाखसुदि १० बुधे श्रीआदिनाथस्य विवं सेवक धूडाहंसराजेन कारितं कर्मक्षयार्थ श्रीथिराद्रवास्तव्य श्रीश्रीमालीय वृद्धशाखायां । (२३३) सं० १५६८ वर्षे माघसुदि ५ शुक्रे श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० जेसा भा० सलखू सुत वासाकेन पितमातश्रेयोर्थमात्मश्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ. स्वामिर्षि कारितंप्र० मुनिचंद्रसूरिभिविडारुआया. (२३४) सं० १५६९ ज्येष्ठसुदि ५ सोमे श्रीपार्श्वनाथबिंब सेवककालेन कारितं । __ ( २३५) सं० १५१८ वर्षे फागुणसुदि ९ सोमे उपकेश "Aho Shrut Gyanam" Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) ज्ञातीय सा० नवा भा० नामलंदे सुत देवा भा० माउदेव्या आत्मश्रेयोर्थं श्रीसंभवनाथपंचतीर्थी कारापिता भावडारगच्छे प्रतिष्ठितं भ० श्रीभावदेव सूरिभिः । ( २३६ ) सं० १५३२ वर्षे ज्येष्ठवदि ३ रवौ पटइलसामंत भा० कमी सुत वांछाकेन भा० दीपीदे रत्नादे भ्रा० हीरू सुत ठाकुर प्रमुख कुटुंबयुतेन श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छनायक श्री श्री श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । ( २३७ ) सं० १४८८ वर्षे कार्तिक सु० ३ बुधे अंचलगच्छे श्रीजयकीर्त्ति सुरेरुपदेशेन नागरज्ञातीय परी० धांधा [केन ] भा० आल्हणदे सुत हापाश्रेयसे भवतु श्रीअभिनंदनबिंबं कारापितं प्र० श्रीसूरिभिः । ( २३८ ) सं० १४९९ कार्तिकवदि २ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वासरे भा० रामलदे सुत धनराजेन तेजपाल भ्रातृश्रेयोर्थ श्रीश्रीतलनाथबिंषं कारितं प्रतिष्ठितं पिष्पलगच्छे त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरिभिः थिरपद्रे | "Aho Shrut Gyanam" Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३ ) (२३९) सं० १५२० वर्षे वैशाखसुदि ५ बुधे श्रीश्रीवंशे ठ० कान्हा सुत सारंग भा० हरखू पुत्र महाराज सुश्रावकेण भा० कुंअरि भ्राता सिवा सिंहा चउथा पु० जेठा सहितेन पितृमातृश्रेयोर्थ अंचलगच्छे श्री. जयकेशरिसूरीणामुपदेशेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठित संघेन। (२४०) सं०१५२५ वर्षे ज्येष्ठसुदि५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञा० व्य. सलखा भा० प्रीमी सुत व्या सिंहाकेन भा० लीलू सुत महीराज भोजादि कुटुंबयुतेन स्वश्रेयो) श्रीकुंथुनाथर्षिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीवीरसूरिभिर्वहरवाडावास्तव्यः । (२४१) सं० १५८१ वर्षे माघवादि १० शुक्र श्रीश्रीमालज्ञा० वृद्धशाखायां सीनारवास्तव्य श्रे०लाला भा० लीलादे सुत वत्सा भा० वीझलदेव्या सुत धना हंसा कुटुंषयुतेन श्रीनिगमप्रभावक श्रीआनंदसूरिभिः श्रीशांतिनाथविष प्रतिष्ठितं । (२४२) सं० १५२३ वर्षे वैशाखसुदि १३ प्राग्वाटज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam" Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३४) व्य. भा० मेहा० लापु सुत महिमाकेन भा. मरघू मुत लटकण भ्रातृ नरववादि कुटुंघयुतेन स्थश्रेयोथ श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री. लक्ष्मीसागरसूरिभिजिगपुरवास्तव्यः । (२४३) सं० १५०६ माघसुदि ५ रबौ श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञा० व्य० पेथा सुत देसल भा० महिः गलेदव्या आत्मश्रेयसे जीवितस्वामि-श्रीसुमतिनाथर्षि का०, प्र० श्रीपजूनसूरिभिः । (२४४) सं० १४९३ वर्षे फा० सु. १० शुक्र श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० आल्हणसी भा० लाड़ी तयोः पुत्रः श्रे० भूभवेन मातृपितृश्रेयोर्थ श्रीशीतलनाथबिंबं का, प्रति० श्रीसूरिभिः। (२४५) सं० १४२२ ज्येष्ठसुदि ५ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ लाखण मातृलाखणदे पितृव्य सिंहकश्रेयसे पुत्र पीपाकेन श्रीविमलनाथविर का०, प्रतिठितं पिष्पलगच्छे श्रीमुनिप्रभसूरिमिः। "Aho Shrut Gyanam" Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५ ) ( २४६ ) सं० १५६४ वर्षे वैशाखसुदि ३ गुरौ श्रीश्रीमा लज्ञातीय व्य० विरुआ भा० सिंगारदे सुत वीरम भा० हीमादे पुत्र वेलाकेन पितृमातृश्रेयोथं श्रीवासुपूज्य पंचतीर्थी कारापिता श्री पूर्णिमापक्षीय श्रीरत्नशेखरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठिता । ( २४७ ) सं १५८१ वर्षे माघसुदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय महं० रत्नासुत... भा० पातमदेव्या कुटुंबीयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिपंचतीर्थीबिंबं कारापितं, आगमगच्छे श्रीसोमरत्न सूरिगुरूपदेशेन प्रतिष्ठितं आदिआणवास्तव्यः । ( २४८ ) सं० १५०७ वर्षे वैशाखसुदि ११ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० जयता भा० वामूणादे सुत आल्हणकेन पितृमातृनिमित्तं स्वश्रेयसे श्रीवासुपूज्यविवं का०, प्र० पिष्पलगच्छे त्रिभवीया भ० श्रीचंद्रप्रभसूरिभिः । ( २४९ ) सं० १३९२ वैशाख ० ७ शुक्रे श्रे० वयरसिंह "Aho Shrut Gyanam" Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६ ) भा० विजयादे....पित्रो श्रेयोथै श्रीपाश्चप्र० का, प्र० श्रीदेवेंद्रसूरिपट्टे श्रीविजयचंद्रसूरिभिः श्रीमाल. ज्ञातीयः । (२५०) सं० १६८१ व० बु० नानजीत्केन श्रीशांतिनानाथर्षि कारितं । (२५१) सं १६२४ फागुणसुदि ४ भौमदिने श्रीसुमतिनाथविषं का प्रति श्रीसूरिभिः । सुनारसेरीपार्श्वनाथचैत्ये धातुमूर्तयः (२५२) सं० १५०८ वर्षे वैशाखवदि४ सोमे श्रीश्रीमालशातीय से० नयणा[केन] भा० टहीकु सुप्त श्रे लाखा हेमा दूदा कुटुबयुतेन पितृमातृश्रेयसे श्री. शांतिनाथविध कारितं सिद्धांतीय श्रीसोमचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभं कल्याणमस्तु । (२५३) सं० १६१७ वर्षे पौषवदि १ गुरौ राजाधिराज श्रीअश्वसेन राणीवामादेवी तयोः पुत्र श्री श्री श्री. "Aho Shrut Gyanam" Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) पार्श्वनाथस्य विवं कारितं श्रीथिराद्रवास्तव्य श्रीश्री. मालज्ञातीय श्रे० कुरा धींगा पुत्राम्यां। आमलीसेरी सुपार्श्वचैत्ये धातुमूर्तयः ( २५४) सं० १५०८ ज्येष्ठ सु. ७ बुधे श्रीश्रीमालवंशे सांडलगोत्रे सा० हापा भा० वीरा पु. सा. पोपट सुश्रावकेण भा० माल्हणदे दोहिनौ लाखा सलखा सहितेन श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन पुत्रभलाश्रेयसे श्रीवासुपूज्यर्षि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन । (२५५) सं० १४९९ वर्षे वैशाखवदि ४ गुरौ उपकेशज्ञा० पितृमाला मातृमोखलदे श्रेयो) सुत कीकाकेन श्रीनमिनाथर्षिय का०, प्रति. भावडारगच्छे भ. वीरसूरिभिः पवित्रे खाटणगोत्रे शुभं भूयात् । __ ( २५६) सं० १५०८ वर्षे ज्येष्ठसुदि १० सोमे प्रा० शा० व्य० मोकलेन भा० दृयड़ी सुत हीरा व्य. सहज सुत ऊतलसहितेनात्मश्रेयसे श्रीश्रेयांसषिवं का, प्र. श्रीजीरापल्लीगच्छे श्रीउदयचंद्रसूरिभिः । "Aho Shrut Gyanam" Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३८) (२५७) सं० १६८३ वर्षे वैशाखसित ७ गुरो राजधन्यपुरवासितः श्रीश्रीमालज्ञातीय सा. हरदासेन भा० हीरादे युतेन श्रीशीतलनाथर्षिबं का प्रतिष्ठितं । (२५८) सं० १५६७ वर्षे ज्येष्ठसुदि ५ बुधे मूलसंधे सा० हीरा भा० हीरादे। (२५९) सं० १२०९ उहूलसूतया दोलिकया चतुर्विंशतिपट्टकोयं कारितः शुभं भवतु । राशियासेरी अभिनंदनचैत्ये धातुमूर्तयः (२६०) सं० १५५३ वर्षे आषाढसुदि २ शुक्रे प्राग्वाटज्ञा वृद्धशाखायां सं० सेंगा भा० हर्षु सुत सं० अमाकेन] भा० लीलाई पु० खीमा सिंधु लखमण अलवा धनादियुतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिविष का०, पूर्णिमापक्षे भीमपल्लीय भ० श्रीचारित्रचंद्रसरिप भ० मुनिचंद्रसरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित श्रीपत्तनधास्तव्यः। "Aho Shrut Gyanam" Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३१ ) ( २६१ ) सं० १५१९ माघसुदि ५ सोमे श्री श्रीमालज्ञातीय गांधिक हापा भार्या हमीरदे सुत जागाकेन भा० जमनादे पुत्र वेला उगम मादा खेदा एतैः सहितेन पितृमातृभ्रातृमांडणश्रेयोर्थ श्रीधर्मनाथचतुर्विंशतिपहं कारितं पूर्णिमापक्षे प्रधानभट्टारक श्रीजयसिंहसूरिपट्टे श्रीजयप्रभसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित थिराद्रवास्तव्यः श्रीः । मोदीसेरी विमलनाथचैत्ये धातुमूर्त्तयः - ( २६२ ) सं० १५१५ वर्षे फागुणसुदि ४ शनौ श्रीश्रीमालज्ञा० पितृ रतना मातृ रतनादे सुत सा० गागच भा० ललितादे सु० गोबल भा० रूपिणीश्रेयोर्थ भ्रातृसं० डूंगर भा० झांझ सुत गोपासहितेन भोजविजयाम्यां श्रीनमिनाथमुख्यश्चतुर्विंशतिपद्यः कारितः पूर्णिमापक्षीय श्रीसाघुरत्नसूरिपट्टे श्री साधुसुंदरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीसविनगरे । ( २६३ ) सं० १५१९ वर्षे मार्ग सुदि ५ शुक्रे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० हीमाला भा० हीमादे सुत वनान "Aho Shrut Gyanam" Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) भार्या चांपू सुत पर्वत नरवर नाइक नाल्हा जागा लाखा सहितेन स्वश्रेयसे अंचलगच्छेशश्रीजयकेसरिसूरीणामुप. श्रीचंद्रप्रभस्वामिषिवं का० प्रतिष्ठितं च। (२६४) सं० १५२० पौषवदि ५ शुक्रे श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे भ० सकलकीर्ति तत्पट्टे भ० विमलेंद्रकीर्तिभिः श्रीआदिनाथबिंबं प्र. जो. कान्हा भा० झबू सु. माणिक भा० वारू सु. हरदासेन का। (२६५) सं. १६६१ वर्षे फागुणवदि २ शुक्रे श्रीश्रीकडुआमति निसमवाई थरावास्तव्य मुहतादे श्रीसुमतिनाथर्षि कारित। (२६६) सं० १६६२ वर्षे फागुणवदि २ शुक्रे उदीवंतगृही भा. हरखादे सुत वापाकेन श्रीअभिनंदनविं कारितं। (२६७) सं० १५८...वैशाखवदि५श्रीमाग्वाट साह दूदा [ केन] भार्या जाणी पुत्र जयवंतसहितेन स्वश्रेयसे "Aho Shrut Gyanam" Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४१ ) श्रीश्रेयांसनाथबिंबं का० प्र० पूर्णिमापक्षे भट्टारक श्रीजिन हर्षसुरीणामुपदेशेन वेलांगरी वास्तव्यः श्रीः सुतारसेरी शांतिनाथ चैत्ये धातुमूर्त्तयः - ( २६८ ) सं० १४८३ वर्षे ज्येष्ठसुदि ९ भौमे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० महीपाल भा० मीलनदे सुत हरिभ्रम पौत्र चांपा व्य० पाल्हा सिंधु नरवदकेन पितृमातृसुतश्रेयोर्थं श्रीआदिनाथप्रमुख चतुर्विंशतिविषं कारापितं प्र० धारापद्रगच्छे श्रीशांतिसूरिभिः । ( २६९ ) सं० १५१८ वर्षे फागुणवदि १ सोमे श्रीउकेशज्ञातीय नाहरगोत्रे व्य० कुशलेन भा० कील्हणदे पुत्र तिहुणा महणा पोमा डामर सहितेन पितृपुण्यार्थ आत्मश्रेयसे श्रीसुविधिनाथचतुर्विंशतिपदं कारापितं धर्मघोषगच्छे प्रतिष्ठितं श्रीपद्मानंदसूरिभिः । ( २७० ) सं० १५८७ वर्षे वैशास्त्रवदि ७ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि साइआ सुत श्रे० सवा[ केन ] भा० वानू पुत्र लटकण भा० लाखणदे समस्त कुटुंब "Aho Shrut Gyanam" Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४२ ) युतेन श्रीशांतिनाथविवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः काकरवास्तव्यः । ( २७१ ) सं० १६१७ वर्षे ज्येष्ठसुदि ५ सोमे उसवालज्ञातीय व्य० रायमल भार्या श्रीबाई सुत हीरा भा० जीवाई सु० सिंघजीत्केन श्रीशांतिनाथर्बिवं कारापितं तपागच्छे श्रीविजयदानसूरिभिः प्रतिष्ठितं । ( २७२ ) सं० १५१९ वर्षे मार्गसुदि ६ शनौ श्रीप्राग्वाट वंशे लघुसंताने मं० अरसी भा० मांई पु० सं० गोपा सुश्रावकेण भा० सुलेसिरि पुत्र देवदास सिवदाससहितेन स्वश्रेयसे अंचलगच्छाधिराज श्रीजयकेशरिसूरीणामुपदेशेन श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन रत्नपुरवास्तव्यः । ( २७३ ) सं० १४९४ वर्षे माघसुदि ५ सोमे श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय व्य० साहवण भार्या सोनलदे पुत्र संग्रामसिंहेन पितृव्य छाडाश्रेयसे पूर्णिमापक्षीय श्रीविजयप्रभसूरीणामुपदेशेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीसंघेन । "Aho Shrut Gyanam" Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) श्रीजीरावलीतीर्थचैत्यदेवकुलिकादेवकुलिकासंख्या २ (२७४) स्वस्तिश्रीसंवत् १४८१ वर्षे वैशाखसुदि ३ बृहत्तपापक्षे भट्टा० श्रीरत्नाकरसूरीणामनुक्रमेण श्रीअभयदेवसूरीणां पट्टे श्रीजयतिलकसूरीश्वरपट्टा. वतंस भट्टा० श्रीरत्नसिंहसरीणामुपदेशेन श्रीवीसलनगरवास्तव्य प्राग्वाटान्वयमंडन श्रे० खेतसिंह नंदन श्रे० देहल (देवल) सिंह पुत्र श्रे० खोखा तस्य भार्या सं० पिंगलदेव्यास्तयोः सुताः सं० सादा सं० हादा सं० मादा सं० लाखा सं० सिधाभिधेरेतैः कारिता। देवकुलिकासंख्या ३ (२७५) स्वस्तिश्रीसंवत् १४८१ वैशाखसुदि ३ वृहत्त. पापक्षे भद्या. श्रीरत्नाकरसूरीणामनुक्रमेण भट्टा० श्रीजयतिलकसूरीपट्टावतंस गच्छनायक श्रीरत्नसिंहसूरीणामुपदेशेन बीसलनगरवास्तव्य प्राग्वाटा. न्वयमंडन श्रे० खेतसिंह नंदन श्रे० देहलसिंह पुत्र "Aho Shrut Gyanam" Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) खोखा तस्य भा०पिंगलदेव्यास्तयोः सुताः सं सादा सं० मादा सं० लाखा सं० सिधाभिधरेतैः स्वश्रेयसेऽत्र तीर्थे श्रीदेवकुलिका त्रयं कारितं शुभं भवतु गुह्यमंडपमुपरिश्रीपार्श्वनाथं प्रणमति । देवकुलिकासंख्या ४ (२७६) स्वस्तिश्री सं. १४८१ वर्षे वैशाखसुदि ३ दिने बृहत्तपागच्छे भट्टा० श्रीजयतिलकसूरिपट्टावतंस गच्छनायक भट्टा.श्रीरत्नसिंहसूरीणामुपदेशेन वीसलनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० खेतसिंहनंदन श्रे० खोखा तस्य भार्या सं० पिंगलदेव्यास्तयोःसुताः सं० सादा सं० हादा सं० मादा सं० लाखा सं० सिधाभिधैरेतैः स्वश्रेयसेऽत्र तीर्थे श्रीदेवकुलिका कारिता शुभं। देवकुलिकासंख्या ६ . (२७७) संवत् १४८७ वर्षे पौषसुदि २ रविदिने श्रीअं. चलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरिपट्टधरगच्छनायक श्रीजयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन श्रीपुंगलवासित प्राग्वाटज्ञा. तीय शा भाणा पुत्र शा० जामद भार्या संयो... "Aho Shrut Gyanam" Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकुलिकासंख्या ७ (२७८) सं० १४८७ वर्षे पौषसुदि २ रविदिने श्रीतपागच्छे श्रीदेवसरिपहोघर श्रीसोमसंदरसूरि श्रीमुनि सुंदरसूरि श्रीजयसुंदरसूरि श्रीजिनचंद्रसूरेरुपदेशेन श्रीपत्तनवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय सा. लाला सुत सा० नाथू सा० मेघा सुत रूपचंद मीमास्थीमाभिः स्वश्रेयोर्थ कारापिता। देवकुलिकासंख्या ८ (२७९) सं० १४८३ वर्षे भाद्रववदि ७ कृष्णपक्षे गुरौ दिने तपागच्छनायक श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचं. द्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसुरेरुपदेशेन कलवावा. उस वालज्ञातीय सा. धणसीसंताने सा० जयता भार्या तिलकू सुत सं० मोखसी श्रीजीराउलाभुवने देवकु. लिका कारिताशुभं भवतु श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् श्री। देवकुलिकासंख्या ९ (२८०) सं० १४८३ भाद्रवावदि ७ गुरौ कृष्णपक्षे श्री "Aho Shrut Gyanam" Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) तपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंबरसूरिश्रीमुनिसुंदरसूरिश्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसूररुपदेशेन कलवानगरे श्रीओसवालज्ञातीय सा० धणसीसंताने सा. जयता भार्या तिलकू सुत सं०समरसी सं० मोखसी श्रीजीराउलाभुवने देवकुः लिका कारापिता शुभं भवतु श्रीपार्श्वनाथप्रसादात्। देवकुलिकासंख्या १० (२८१) सं० १४८३ वर्षे भाद्रवदि ७ कृष्णपक्षे गुरुदिने श्रीतपागच्छे नायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोम. सुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुव. नसुंदरसूररुपदेशेन श्रीकलवानगरे श्रीउसवालज्ञातीय साधणसीसंताने सा० जयता भा० तिलक पुत्र सं० समरसी सं० मोखसी श्रीजीराउलाभुवने देवकुलिका कारापिता शुभं भवतु श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् । देवकुलिकासंख्या ११ (२८२) ... सं० १४८३ वर्षे भाद्रपदकृष्णपक्षे ७ गुरौ तपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरि "Aho Shrut Gyanam" Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसूरेरुपदेशेन श्रीकलवानगरे कोठारी छाहड़सामंतसंताने को० नरपति भा० देमाई पुत्र सं० तुकदे पासदे पूनसी मूला (एतैः) श्रीओसवालज्ञातीय कटारिया श्रीराउलाभुवने श्रीदेवकुलिका कारापिता शुभं भवतु श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् । कटारियागोत्रवरं मदीयं, ताउंपिता मे जननी देमाई। ... श्रीसोमसुंदरगुरुगुरुवंद्यदेवा, श्रीछीलेजमेडतामात्रशाले (१) ॥१॥ देवकुलिकासंख्या १२ (२८३) सं० १४८३ वर्षे भाद्रपद कृष्णपक्षे ७ गुरौ श्री. तपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरिश्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदर. सुरेरुपदेशेन श्रीकलवानगरे श्रीउसवालज्ञातीय बरहडियागोत्र झांझासंताने सा० उदयन पा० छीतू सुत सं० आसपालेन जीराउलाभुवने देवकुलिका कारापिता शुभं भवतु श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् । देवकुलिकासंख्या १३ (२८४) सं० १४८३ वर्षे भाद्रवकृष्णपक्षे ७ गुरौ श्री. १ यह शंकास्पद है। २ यह वाक्यविन्यास अशुद्ध है। - - - - - - "Aho Shrut Gyanam" Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) तपागच्छनायक श्रीदेव सुंदर सूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीमुवनसुंदरसूरेरुपदेशेन श्रीकलवग्रनगरे नाहरगोत्रे उसवालज्ञातीय सा० बीगासंताने सा० उदयसी भा० वामलदे सुत सा० पदमसी श्रीजीराउलाभुवने देवकुलिका कारापिता शुभं भवतु श्री पार्श्वनाथप्रसादेन । देवकुलिका संख्या १४ ( २८५ ) सं० १४८३ वर्षे भाद्रपदकृष्णपक्षे ७ गुरौ श्रीतपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदर सुरेरुपदेशेन कलवग्रनगरे उसवालज्ञातीय सांवलगोत्रे सा० घणसी संताने सं० माला भा० सं० पूनाई पुत्र जगसी सं० खोखसी भा० वा० हीरू सुत सं० कमलसिंहेन स्वमाता कस्तूरीश्रेयोर्थ श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् श्रीजीराउलाभुवने कारापिता । देवकुलिका देवकुलिका संख्या १५ ( २८६ ) सं० १४८३ वर्षे भाद्रवकृष्णपक्षे ७ गुरुदिने श्रीतपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदर "Aho Shrut Gyanam" Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४९) सरि श्रीमुनिसुंवरसुरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसूररुपदेशेन श्रीकलवानगरे उसवालज्ञातीय मलुसीसंताने सं० रतना भार्या पा० धीरू सुत सं० आमलसिंहेन स्वपुत्र सं० गुणराज सं० हंसराजसहितेन श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् श्रीजीराउला. भुवने देवकुलिका कारापिता शुभं भवतु । देवकुलिकासंख्या १७ (२८७) सं० १४७४ वर्षे श्रावणमासे शुक्लपक्षे ५ शनीवासरे खरतरपक्षे मं० लूणासंताने मं० दूला हापल संताने मं० मूला पुत्र भीमा हीर वाल्हण....मं. हीराभिः ... देवकुलिकासंख्या १८ (२८८) सं० १४८३ वर्षे भाद्रपदकृष्णपक्षे ७. गुरुदिने श्रीकृष्णर्षिगच्छतपापक्षे श्रीपुण्यप्रभसारिपट्टे गच्छ. नायक श्रीजयसिंहसूरेरुपदेशेन छामुकीगोत्रे चंद्रपुरीय पद्मसिंह पुत्र चंद्रसिंह पुत्र भाणसिंह पुत्र पूनसिंह भा० पूनसिरि सा० धणसी सं० वावीवाई पुत्र सं० धनराजेन उएसवंशीयेन श्रीजीराउलाभुवने चतुष्किकाशिखरं कारापितं शुभं भवतु श्री। "Aho Shrut Gyanam" Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) देवकुलिकासंख्या १९ ( २८९ ) सं० १४८३ वर्षे भाद्रवावदि ७ गुरुदिने श्रीतपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपडे श्रीसोमसुंदर सूरि श्रीमुनि सुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसूरेरुपदेशेन कलवग्रवास्तव्य सोनीहरगोत्रे उसवालज्ञातीय सं खेतसी पुत्र सं० खीमा सं० महणसी पुत्र सं० करणसी सं० पासवीर भगिनी, भा० तिलकू प्रभृतिमिः श्रीजीराउलाभुवने चतुष्किकाशिखरं कारापितं शुभं भवतु । देवकुलिका संख्या २० ( २९० ) संवत् १४८३ वर्षे भाद्रवावदि ७ गुरुदिने श्रीधर्मघोषगच्छे श्रीमलयचंद्रसूरिपट्टे श्रीविजयचंद्रसुरेरुपदेशेन नाहरगोत्रे उएसवंशे सा० आल्हा पुत्र साल्हा भार्या मणिबाई पुत्र सं० रत्नसिंह पुत्र पासराज कलवग्रवास्तव्येन श्रीजीराउलाभुवने चतुठिककाशिखरं कारापितं शुभं भवतु श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् । "Aho Shrut Gyanam" Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकुलिकासंख्या २१ (२९१) सं० १४८३ वर्षे भाद्रवावदि ७ गुरुदिने श्रीकृष्णर्षिगच्छे तपापक्षे श्रीपुण्यप्रभसूरिपट्टे गच्छनायक श्रीजयसिंहसूररुपदेशेन कलवावास्तव्य गांधीगोत्रे उपकेशवंशे सा० ढाकल पुत्र सं० लोहिग पुत्र सा० आंषा भा० पोमाई पुत्र सा० अजेसी वींधव सं० आसुना श्रीजीराउलाभुवने चतुष्किकाशिखरं कारापितं! . देवकुलिकासंख्या २२ (२९२) सं० १४२४ वर्षे वैशाखवदि ३ गुरौ कलवावास्तव्योपकेशज्ञातीय सा० धवकर्मणेन भा० कर्मादेवी खीमादेवी सहितेन खीमदेवीश्रेयसे श्रीजीराउलीपार्श्वनाथदेवकुलिका कारापिता श्रीबृहद्गच्छेश श्रीदिनविजयसूरेरुपदेशेन । __(२९२१) __ सं० १४८३ वर्षे भाद्रपदवदि ७ गुरौ श्रीमल्लधारीगच्छे श्रीमतिसागरसुरिपट्टे श्रीविद्यासागरसूरेरूपदेशेन कलवग्रावास्तव्य गांधीगोत्रे सा. दहल "Aho Shrut Gyanam" Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२) पुत्र सा० पोपा पुत्र सं० संसुखा भा० संघविगिराज पुत्र तुकये सं० सहदेवाभ्यां उसवालज्ञातीयाभ्यां श्रीजीराउलाभुवने चतुष्किका कारापिता शुभं भवतु। देवकुलिकासंख्या २३ (२९३) ___ सं० १४८३ भाद्रवावदि ७ तपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसूरिगुरूपदेशेन कलवानगरे श्रीमालज्ञातीय ठ० डूंगर भा० चंपाइदे पुत्र मोखसी रतनसीभ्यां श्रीजीराउलाभुवने चतुष्किकाशिखरं कारापितं शुभं भवतु । देवकुलिकासंख्या २८ (२९४) सं० १४८३ वर्षे वैशाखवदि १३ गुरो ओसवंशे बुरखेडशाखे अंचलगच्छे श्रीजयकीर्तिसुरेरुपदेशेन शाह लखमसी सा० भीमल सा देवल सा० सारंग सा० झांझा भार्या पाई मेधू सा पुंजा भजादिभिः देवकुलिका कारापिता। देवकुलिकासंख्या २९ (२९५) सं० १४४३ वैशाखकवि १३ गुरौ उसवंशे "Aho Shrut Gyanam" Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) हुम्हशाखे अंचलगच्छे श्रीजयकीर्तिसूरेरुपदेशेन सा. लखमसी सा० भीमल सादेवल सा. सारंग सुत सा० डोसा भार्या लखमादे सा० चापा सा० डूंगर सा. मोखा देरी करावी सही। (२९५६) सं० १४८३ प्रथमवैशाखवदि १३ गुरौ श्रीजं. चलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां पट्टोद्धरणश्रीजयकीर्तिसूरीश्वरगुरूपदेशेन सा० सारंग भा० प्रतापदे पुत्र डोसी भा० लखमादे सा. चांपा साहूंगर, सारंग सुत भार्या भीखी भा० कौतिकदे पितृव्य पूंजा देहरी श्रीदेवगुरुप्रसादात्कारापितं । देवकुलिकासंख्या ३० (२९६) संवत् १४८३ प्रथमवैशास्त्रवदि १३ गुरौ अंचलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां पटोद्धरणजगचूडामणि श्रीजयकीर्तिसूरीश्वरसुगुरूपदेशेन पट्टणवास्तव्य मोसवालज्ञातीय मीठडिया सा० संग्राम सुत सा. सलखण सुत सा तेजा भायों तेजलदे तयोः पुत्राः सा० डीडा, सा० खीमा, सा० भूरा, सा० काला, सा०. गांगा, साडीडा सुत, सा० नागराज, काला "Aho Shrut Gyanam" Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) सुत सा. पासा, सा. जीवराज, सा० जिनदास, सा. तेजा द्वितीय भ्राता नरसिंह भा० कौतिकदे तयोः पुत्रो सा०पासदत्त सा. देवदत्ताभ्यां श्रीजीरावलापार्श्वनाथस्य चैत्ये देहरीत्रयं कारापिता श्रीदेवगुरुप्रसादात्प्रवर्धमानभद्रं मांगलिकं भूयात् । देवकुलिकासंख्या ३१ ( २९७) - सं० १४८३ वर्षे प्रथमवैशाखबदि १३ गुरौ श्रीअंचलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां पट्टोद्धरणश्रीजयकीर्तिसूरीश्वरसुगुरूपदेशेन पत्तनवास्तव्योसवालज्ञातीय मीठडिया सा० संग्राम सुत सा० सलखण सुत सा तेजा भा० तेजलदे तयोः पुत्राः सा० डीडा सा० खीमा सा० भूरा सा काला सा० गांगा, सा. सीडा सुत सा. नागराज सा० काला सुत सा० पासा सा. जीवराज सा. जिणदास ला तेजा द्वितीयत्राता सा. नरसिंह भार्या कतिगदे तयो। पुत्री सा० पासदत्त सा० देवदत्ताभ्यां श्रीजीराउलापार्श्वनाथस्य चैत्ये देहरी ३ कारापिता श्रीदेव: गुरुप्रसादात्प्रवर्धमानभद्रं मांगलिक भूयात् । .:.:. "Aho Shrut Gyanam" Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकुलिकासंख्या ३२ (२९८) __ सं० १४८३ वर्षे प्रथमवैशास्ववदि १३ गुरौ श्रीअंचलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां पट्टोद्धरणश्रीजयकीर्तिसूरीश्वरसुगुरूपदेशेन पत्तनवास्तव्योसवालज्ञातीय मीठडिया सा० संग्राम सुत सा० सलवणसुत सा० तेजा भार्या तेजलदे तयोः पुत्राः डीडा सा० खीमा सा० भूरा सा० काला सा० गांगा सा० डीडा सुत सा० नागराज सा० काला सुत सा० पासा सा. जीवराज सा. जिणदास सा० तेजा द्वितीयभ्राता सा. नरसिंह भा० कउतिगदे तयोः पुत्राभ्यां सा० पासदत्त सा० देवदत्ताभ्यां श्रीजीराउलापार्श्वनाथस्य चैत्ये देहरी ३ कारापिता श्रीदेवगुरुप्रसादात्प्रवर्धमान भद्रं मांगलिकं भूयात् । सा. डीडा सुत सा० नागराज भार्या नारंगीदेव्या आत्मश्रेयसे देहरी कारापिता। देवकुलिकासंख्या ३३ (२९९) संवत् १४८३ वर्षे श्रीअंचलगच्छे श्रीमहतुंगसुरीणां पट्टे गच्छाधीश्वरश्रीजयकीर्तिसूरीश्वरसुगुरू "Aho Shrut Gyanam" Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) पदेशेन मीठडिया सा० नरसिंहभार्या श्रा० ज्यास्मश्रेयसे देहरी करापिता शुभं भवतु । देवकुलिकासंख्या ३४ ( ३०० ) संवत् १४८३ वर्षे प्र० वैशाखवदि १३ गुरौ श्रीअंचलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां पट्टे श्रीगच्छाधीश्वरश्रीजयकीर्तिसूरीश्वरसुगुरूपदेशेन मीठडिया सा० तेजा भार्या तेजलदे तयोः सुत सा० डीडा सा० स्त्रीमा सा० भूरा सा० काला सा० गांगा सा० डीडा सुत सा० नागराज सा० काला सुत सा० पासा सा० जीवराज सा० जिणदास सा० खीमा भार्या स्वीमादेव्या आत्मश्रेयोर्थ देहरी कारापिता । देवकुलिकासंख्या ३५ ( ३०१ ) सं० १४८३ वर्षे प्र० वैशाखबदि १३ गुरौ श्री. अंचलगच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणां गच्छाधीश्वर श्रीजयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रीस्तंभतीर्थवास्तव्य परीक्षः अमरा भार्या माऊ तयोः पुत्रः परीक्षः गोपाल प० राउल प० ढोला भा० हिवकु पुत्र सा० पूना भा० ऊंदी प० सोमा प० राऊल "Aho Shrut Gyanam" Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) मत प० मोजा, प. सोमा सुत आशा हचकूभ्यामात्मडसे देहरी कारापिता। देवकुलिकासंख्या ३८ स्तंभोपरि ( ३०२) सं० १५३४ वैशाखवदि १० सोमे सं० रतना साथी न्याति श्रीमालगोत्रीयक सं० जीवा पुत्र सं. मांडण, जीवन, जीवदेव, खेता सहित मांडलगढ़थी यात्रार्थ) आया। देवकुलिकासंख्या ४१ (३०३) संवत् १४२१ वर्षे ज्येष्ठसुदि १० बुधे मूलनक्षत्रे सिद्धिनामयोगे श्रीउपकेशज्ञातीय चीचटगोत्रे वीसदान्धये सा० लखण मुत आजडात्मज शाह गोसल सुत सा देसल भार्या भोली पुत्राः सा सहज सा० माहण सा० समर, माहण भार्या भावलवे पुत्र सं० धना सा० कडूआ सा लिंखा भागिनी बाई मुकतु समस्तसाथैः साध्वीभावलदेवीभिरास्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथचैत्ये देवकुलिकाका उपकेशगच्छे ककुदाचार्यसंताने कक्कसूरीणां पट्टालंकारदेवगुप्तसूरीणामुपदेशेन शुभं भवतु। "Aho Shrut Gyanam" Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) (३०३९) सं० १४८३ वर्षे वैशाखसुदि ७ तिथौ हत्तपागच्छाधिपति श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टावतंसं श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभु वनसुंदरसूरि श्रीजिनसुंदरसूरिरुपदेशेन श्रीमालज्ञातीय...सुत उ० सारंग पुत्र सा० गुणराज तत्पुत्र नागराजेन स्वभार्या श्रेयोर्थमग्रेशिखरं कारितं । देवकुलिकासंख्या ४२ (३०४अ) स्वस्तिश्रीजयोभ्युदयश्च श्रीप्रतिष्ठनृपनन्दना, सुसीमाङ्ग भवो विभुः । पचप्रभजिनः पातु, रक्तोत्पलदलद्युतिः ।। सं० १४२१ वर्षे कार्तिकसुदि ५ रवी हस्तनक्षत्रे कोडीनारनगरवास्तव्य मोढज्ञातीय आगमिक गच्छभक्तसुश्रावक ठ० जाल्हा, समदेव ठ० बीना ठ. सणसव, जयता सुत सं० अजितेन भार्या हिवादे प्रभृतिकुटुंबकलितेन भवजयाय पद्मप्रभस्वामिबिंब कारितं । नेहडभार्या अहिवदेव्या श्रीपार्श्वनाथदेवकुलिका कारिता आगमिकगच्छोपदेशेन शुभं भूयात् । "Aho Shrut Gyanam" Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५९) (३०४१) सं० १४८३ वैशाखसुदि ७ भद्दारकश्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजय चंद्रसूरिपट्टे श्रीमुवनसुंदरसूरि श्रीजिनसुंदरसूरिधर्मोपदेशेन श्रीमालज्ञातीय विजयसी सुत सा० जगतसिंह पुत्र सा० गुणपति रतनसिंह कालभायों गज रंगदेवेन कारिता श्रेयोथे। देवकुलिकासंख्या ४३-४४ (३०५-३०६ ) सं० १४८३ वर्षे प्रथम वैशाखववि ७ रवी श्री. तपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरितत्पदालंकारभहारक श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरिणामुपदेशेन योगिनीपुरवास्तव्य रूला सुत हंसराज पुत्री हंसादे अंगजरंगदेवेन कारितः शुभं भूयात् । देवकुलिकासंख्या ४५ (३०७) सं० १४८३ वर्षे वैशाखसु० १३ तपागच्छाधिराज श्रीदेवसुंदरसूरि तत्पद्यालंकार श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसरेरुपदेशेन रतननगरीय सं० लखमण सुत राघव संघवी मंत्री गोसल सुत सोम "Aho Shrut Gyanam" Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६० ) प्रभराज तस्य भार्या रंगावे सुत सोमदेवेन कारितो रंगादेव्याः श्रेयोर्थ । देवकुलिका संख्या ४६ ( ३०८ अ ) सं० १२६३ वर्षे आषाढवदि ८ गुरौ श्रीउपकेशज्ञातीय सं० आंबड पुत्र जगसिंह तत्पुत्र उदय भा० उदयादे पुत्र नेणेन अस्य पार्श्वनाथ चैत्ये देवकुलिका कारापिता श्रीधर्मघोषसुरेरुपदेशेन श्रीधनमेलकार्थे श्रीरस्तु | ( ३०८ ब ) सं० १४८३ वर्षे भाद्रवावदि ७ गुरौ श्रीतपा गच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदर सूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्री भुवनसुंदरसूरिरुपदेशेन खंभाइत वास्तव्य उसवालज्ञातीय सोनी नरिआ पुत्र सो० पदमसिंह भार्या आल्हणदेव्या श्रीजीराउलाभुवने चतुष्किका शिखरं कारापितं । देवकुलिका संख्या ४८ ( ३०९ ) पातु वः पार्श्वनाथोऽयं, निष्कलैः सप्तभिः कणैः । भयानां नारकानां च, जगद्रक्षति संघकान् ॥ १ ॥ "Aho Shrut Gyanam" Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६१) ... संवत् १४१३ वर्षे फा. सु. १३ स्वातिनक्षत्रे बृहद्गच्छीय श्रीदेवचंद्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टालंकारहारोपम श्री श्रीरामचंद्रसूरिभिरात्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथस्य भुवने श्रीपार्श्वनाथदेवस्य देवकुलिका कारिका। यावद् भूमोऽस्ति यो मेरुविचन्द्रदिवाकरः । आकाशे तपतो यावनन्दिता देवगेहिका ॥१॥ शुभं भवतु सकलसंघस्थ जीरापल्लीयगच्छस्यैव ॥छः।। देवकुलिकासंख्या ४९ (३१०) पातु वः पार्श्वनाथोऽयं, सकलैः सप्तमिा फणैः । मयानां नारकानां च, जगद्रक्षति संघकान् ॥ १॥ सं० १४११ वर्षे चैत्रवदि ६ बुधे अनुराधानक्षत्रे बृहद्दच्छीय श्रीदेवचंद्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरीणां तपोवनतपोधनेन तपस्वीकरपरिवृतानां श्रीपार्श्वनाथस्य देवकुलिका जीरापल्लीयैः श्रीरामचंद्रसूरिभिः कारिता छ। यावद्भमोस्ति यो मेरुविचंद्रदिवाकरौ । आकाशे तपतो यावन्नन्दतां देवगेहिका ॥१॥ "Aho Shrut Gyanam" Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२) शुभं भवतु सर्व जयतु। देवकुलिकासंख्या ५० (३११) शिवललाटभ्रमोद, श्रीशांतिनाथतां बलम् । कलानिधिममुं मित्रं, नैव दोषाकरे जने ॥ १॥ संवत् १४१२वर्षे आश्विनवादि ४ बुधदिने कृतिकानक्षत्रे उपकेशज्ञातीय व्य. अभयपाल भार्या राजुलदे पुत्र व्य० वीकमल भार्या पूंजी पुत्र डूंगर पाल्हा दोल्हाकेन समस्तकुटुंबसहितेन श्रीपाचनाथचैत्ये स्वकुटुंबश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथस्य देवगे. हिका कारापिता श्रीविजयसेनसूरीणां शिष्यश्रीरत्नाकरसूरीणामुपदेशेन शुभं भवतु । देवकुलिकासंख्या ५१ (३१२) सं. १४८३ वर्षे भाद्रवावदि ७ गुरौ श्रीतपागच्छनायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि श्रीभुवनसुंदरसूरिरूपदेशेनकलवावास्तव्य उसवालज्ञातीय सा० मांडण सीवी पुत्र देसाकेन श्रीजीराउलाभु. देवकुलिकाशिखरं कारापितं । "Aho Shrut Gyanam" Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३) देवकुलिकासंख्या ५२ (३१३) संवत् १४८३ वर्षे भाद्रवावदि ७ गुरौ वीसा भार्या वामादे पुत्र गो० सोनानी हीरा । (३१४) सं० १४९२ वर्षे मार्गवदि १४ रविदिने घोघावास्तव्य आड भा० बा० अहडदे बेटी झमकुदेव्या शिखरं कारापितं सदाश्रेयो) । पार्श्वनाथदेवकुलिका के छज्जा में (३१५) वामादेसुत सीहड गोठी देहरी कारापिता । मुख्यचैत्य के पृष्ठिभाग की देवकुलिका के स्तंभ पर (३१६) संवत् १४८७ अर्हनमः गूंदीकर पीपलगच्छे त्रिभविया श्रीधर्मशेखर सूरिशिष्य वा० देवचंद्रः नित्यं प्रणमति मुद्राकलासहिता अहँ नमः तालध्वजीय वा० सहजसुंदरः नित्यं प्रणमति ! अहं नमः नमो जिणाणं । "Aho Shrut Gyanam" Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४) षट्चतुष्किका के स्तंभ पर (३१७) संवत् १८५१ वर्षे आषाढसुदि १५ दिने श्रीजीरावलामंदिर शिखरजीरो सकलभद्दारकपुरंदरमहारक श्री श्री श्री श्री १०८ श्रीरंगविमलसूरीश्वरेण जीर्णोद्धार कारापित, हजार ३०२११) रुपिया खरची लाभ लीधो श्रीजीरावलीय गजधर सोमपुरा के० दला, सिरोही द्रव्यसंचिता सा. रूपा सा० जोयता सा० अणदा सा. वीरम सा० रामजी सा० हजादे काम करापितं । लोटानातीर्थचैत्ये कायोत्सर्गस्थ प्रस्तर प्रतिमा (३१८) संवत् ११३० ज्येष्ठ शुक्ल ५ श्रीनिवृतिकुले श्री. नंदेन आसपालेन कारितं पार्श्वजिनयुग्ममुत्तमं प्र. श्रीशेखरसूरिभिः। पादुकोपरि (३१९) सं० १८६९ पौषसुदि १३ गुरौ श्रीऋषभदेव. पादुकाभ्यो नमः, भ. श्रीविजयलक्ष्मीसूरिभिः प्रतिष्ठितं लोटीपुरपत्तने । "Aho Shrut Gyanam" Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६५) मंडपगत सपरिकर प्रस्तर प्रतिमा (३२०) संवत् १९४४ ज्येष्ठवदि ४ श्राद्धव्रती प्राग्वाटवंशीय व्य. यापुश्रेष्ठी देवभार्या श्रीवर्धमानस्वामिप्रतिमा कारिता, श्रीमद्देवाचार्येण लोटानक आदिजिनचैत्ये प्रतिष्ठितं सहदेवेनाहेनगोत्रेण । धातुपंचत्तीर्थी . (३२१) सं०१०११ प्राग्वाट सानल पु० सिंहदेव भार्या जामलदेव्या का० श्रीशान्तिनाथः प्रतिष्ठिता उपकेशगच्छे श्रीदेवसूरिभिः । सेलवाड़ा में धातुचतुर्विशतिः (३२२) सं १३२८ वर्षे वैशाखवदि ५ गुरी ब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय अं. भूभव भार्या गूरी सुत सरवण (श्रवण) भार्या टमकू सुत धर्मा, उदा, पितृव्यजूगणेन श्रीधर्मनाथचतुर्विशतिपट्टे कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीविमलसूरिपट्टे भट्टारक श्रीधुद्धिसागरसूरिभि राणपुरवास्तव्यः। श्रीः श्रीः । "Aho Shrut Gyanam" Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) मुछालामहावीरचैत्य के दहिनी भमती की छत में (३२३) संवत् १०३३ सांबलसिंह । प्राचीनखंडित पवासनोपरि (३२४) सं० १२१४ फाल्गुनसुदि५दिने श्रीवंशज्ञातीय श्रीभांडवगोत्रे यशोभद्रसूरिसंतानीय शिष्य मंत्री सौहार कृतः श्रीप्रीतिसूरिभिः प्र । वरमाणचैत्ये कायोत्सर्गस्थ प्रस्तरप्रतिमा (३२५) संवत् १३५१ वर्षे माधवदि १ सोमे प्राग्वाट. ज्ञातीय श्रे० झांझण भार्या राउलपुत्रेण सिंह भा० पदमा, लजालु पुत्र पद्मा भा० मोहनि पुत्र विजयसिंह पुत्र विजयसिंहसहितेन पार्श्वयुगलं कारितं...। (३२६) सं० १३५१ वर्षे श्रीब्रह्माणगच्छे मेता मडाहडिय श्रे० पूनसी भार्या पदमल पुत्र पद्मसिंहेन जिनयुग्मं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीः । "Aho Shrut Gyanam" Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६७ ) षट्चतुष्किका स्तंभोपरि (३२७) सं० १४८६ वर्षे वैशाखवदि १ बुधे ब्रह्माणीयगच्छे भट्टारक श्रीमत्पुण्यप्रभसूरिपट्टे श्रीभद्रेश्वरसूरिपट्टे श्रीविजसेनसूरिपट्टे श्रीरत्नाकरसूरिपट्टे श्रीहेमविमलसूरिभिः पुण्यार्थे रंगमंडपः कारिता । पद्मशिलोपरि (३२८) संवत् १२४२ वर्षे चैत्र सुदि १५ ब्रह्माण श्रीमहावीरविंष श्रीअजितदेवस्वामिदेवकुलिकायाः पूनिग पुत्री ब्रह्मदत्ता जिणहा पोल्हा नानकदेवी सहितेन पद्मशिलाका कारिता सूत्र० फूहडेन घटिता। आरखीचैत्ये धातुमूर्ती (३२९) सं० १३७३ वर्षे वैशाख सुदि ११ शुक्रे श्रीकुल. संघे भट्टा० श्रीपद्मानंदीगुरूपदेशेन ठ० झांझाकेन मातृ आंजना पुत्रश्रेयोर्थ श्रीचंद्रप्रभषिचं प्रतिष्ठापितं । "Aho Shrut Gyanam" Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८) (३३०). __सं० १४०६ वर्षे फागुणसुदि १० गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. सलखा भार्या सोहगदेव्याः श्रेयोर्थ सुत व्य० धांधाकेन श्रीपार्श्वनाथपिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधनेश्वरसूरिभिः। दयाणा चैत्ये कायोत्सर्गस्थ प्रस्तरप्रतिमा ( ३३१) संवत् १०११ आषाढ सुदि ३ शनिश्चरे सनढ भार्या नयणादेवी पुत्र वसिया भार्या वयजलदेवी पुत्र लास्वसिंहेन श्रीपार्श्वयुग्मः कारितः, वृहद्गच्छीय श्रीपरमानंदमूरिशिष्य श्रीयक्षदेवसरिभिः प्रतिष्ठितं । कासोलीचैत्ये मूलनायक परिकर (३३२) संवत् १३४३ वर्षे कलिका श्रीपार्श्वनाथ गोष्ठिक प्रेष्ठि श्रीपाल भार्या सिरियादेवी पुत्र नरदेव श्रे० वोडा भार्या वीरी पुत्र श्रीरांकदेव महं० देवसिंह महं० सलखा पु० गला श्रे० कर्मा भार्या अनुपमदे पु. महं• अजयसिंहेन श्रे० भ्रातृ खीदा मोहन "Aho Shrut Gyanam" Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६९) सहितेन श्रे० जगसिंह पुत्र श्रे. धनसिंह शंभुपाल श्रे० पूनह पुत्र धीरा श्रे० साहड पु० विजयसिंह श्रे० झांझण पु. रामसिंह प्रभृति सहितेन पितृ मातृश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथपरिकरहारः कारितः कंछोलीगच्छीयगुरूणामुपदेशेन श्रीः। पिंडवाडाचैत्ये धातुप्रतिमा (३३३) सं० १००१ श्रेयांसनाथः श्रीय० पुंवणकारीयं श्रेयो। भीलडियातीर्थचैत्ये धातुपंचतीर्थी (३३४.) सं० १३६७ वर्षे वैशाख सुदि ९ प्राग्वाठे श्रे० तिहणसिंह भायां हांसलश्रेयोर्थ पुत्र सोमाकेन श्रीआदिनाथविषं का०, प्रतिष्ठितं महाडियगच्छीय श्रीचंद्रसिंहसूरिशिष्य श्रीरविकरसूरिभिः । (३३५) सं० १५३५ वर्षे माघ वदि ९ शनौ कुतवपुरवासी प्राग्वाट व्य० काजा भार्या देवी पुत्र भोलाकेन भा० राजू सुत हांसा रताविकुटुंबयुतेन स्व "Aho Shrut Gyanam" Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७०) पितृश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब का०, प्र. तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः। पादुकायुगलोपरि . (३३६-३३७ ), संवत् १८३७ वर्षे पौषमासे कृष्णपक्षे त्रयोद. शीतिथौ चंद्रवासरे भट्टारक श्री श्री श्री १००८ श्री. हीरविजयसूरीश्वरगुरुभ्यो नमो नमः, श्रीहेतविजगयणिपादुका छे श्रीमहिमाविजय ग० पादुका छ। भूमिगृहे पंचतीर्थी (३३८) सं० १५०७ वर्षे माघे कांवलिग्रामे श्रे० डूंगर भा० रूपी पुत्र मालाकेन भा. टीबू पुत्र कमाहेमादिकुटुंग्युतेन श्रीसुमतिनाथबंध का०, प्र० तपा. गच्छेश श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरिशिष्य श्री. श्रीरत्नशेखरसूरिभिः श्रीः । __ (३३९) संवत् १३३४ वैशाखवदि ५ बुधे श्रीगौतमस्वामिमूर्तिः श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्य श्रीजिनप्रबोधसूरिभिः प्रतिष्ठिता कारिता च सा. वोहिल्लसुत "Aho Shrut Gyanam" Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१ ) व्य० वइजलेन मूलदेवादि भ्रातृसहितेन च स्वश्रेयोर्थ स्वकुटुंबश्रेयोर्थं च । पवासनभित्तिस्तंभोपरि ( ३४० ) श्रीजीराउलजी भूः ड ठं कं । सोपानस्तंभोपरि ( ३४१ ) सा० जस बबल संघपति । भीलडी ग्रामगृह चैत्ये प्रस्तरप्रतिमा ( ३४२ ) सं० १८९२ वर्षे वैशाखसुदि १३ शुक्रे श्री भीलडिया महाजनसमस्तेन श्रीनेमिनाथबिंबं कारापितं । सं० १८९२ वर्षे वैशाखसुदि १३ शुक्रे श्रीचन्द्रप्रभविषं कारापितं श्री भीलडीयानगरना संघसमस्तेन श्रीईडरनगरे प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे | अंबिका प्रस्तरमूर्त्तिः - ( ३४३ ) सं० १३४४ वर्षे ज्येष्ठसुदि १० बुधे श्रे० लखमसिंहेन अंबिका ( मूर्त्तिः ) कारिता । "Aho Shrut Gyanam" Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७२) अधिष्ठायकमूर्ति प्रस्तरमयी ( ३४४) सं०१३४४ ज्येष्ठसुदि १० बुधे श्रे० लखमसिंहेन कारिता। नेसडा(पालनपुर)चैत्ये धातुमूर्ती (३४५) सं० १२४४ माघसुदि १० सोमे दीसावाल श्रे० राणा सुत आससेन भ्रातृ प्रेमसेन सा० कलत्र रत्नदेवेन भार्या सिरियादेवीश्रेयो) चतुर्विशतिजिनप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्रीप्रसन्नसूरिभिः । (३४६) सं० १३६९ फा० ५० ५ सोमे श्रीमालज्ञातीय पितृवेता मातृ लाछी श्रेयोर्थ सुत साजनश्रावकेन श्रीमुनिचंद्रसूरीणामुपदेशेन श्रीआदिनाथ (पंच. तीर्थी ) विषं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः। वात्यम(दियोदर)चैत्ये धातुमूर्तिः (३४७) संवत् १४४९ वर्षे वैशाखसुदि ६ शुक्र अंचल "Aho Shrut Gyanam" Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३ ) गच्छे श्रीमेरुतुंगसूरीणामुपदेशेन शाला ठ० राणा भाः भोली सुत ठ. विक्रमेन स्वपित्रोः श्रेयसे श्रीमहावीर( पंचतीर्थी )विंय कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः। पादुकोपरि (३४८) सं० १७८२ वर्षे वैशाखशदि १५ गुरी पं० श्री. जयविजयजी पं० शुक्लविजयजी पं० श्रीनित्यविजयजी पं० श्रीहीरविजयजी पं० श्रीजीवविजयजी पादुका कारिता । वासणा (पालनपुर) चैत्य धातुमूर्तिः ___ (३४९) सं० १२४० माघसुदि १३ दिने लक्ष्मणसी रणसी श्रे. पोणदेवपालेन प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्रीयशोदेवसूरिभिः। वामभागे प्रस्तरप्रतिमा (३५०) सं० १९५५ फाल्गुनवदि ५ सांथुवास्तव्य ओ. वृ० शा० केशरीमल कस्तूरचंवेन (चंद्रप्रभ )बिंब "Aho Shrut Gyanam" Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४) कारितं भहारक श्रीराजेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं प्र. का० असरूपजीतमल्लेन आहोरनगरे श्रीसुधर्मातपा( सौधर्मबृहत्तप) गच्छे । दक्षिणभागे प्रस्तर प्रतिमा (३५१) . सं. १९५५ फा० ३०५ समस्तसंघेन (चंद्रप्रभ) विध कारितं प्रतिष्ठितं श्रीराजेन्द्रसूरिभिः प्र० का जसरूपजीतमल्लाभ्यां आहोरनगरे । मूलनायक प्रस्तरप्रतिमा (३५२) सं० १९५५ फा०व०५ गुरौ प्राग्वाट केरासुत रूपा तल्लाजीत्केन (चंद्रप्रभ ) कारितं, प्र. भ. श्रीराजेन्द्रसूरिभिः, प्र. का. जसरूपजीतेन तपा. गच्छे आहोरे । प्रतिष्ठाप्रशस्ति (३५३) श्रीराजेन्द्रसूरि श्रीधनचन्द्रसूरि श्रीभूपेन्द्रसूरि सद्गुरुभ्यो नमः। संवत् १९९७ वर्षे मासोत्तममासे मारवाडी फागुणकृष्णपक्षे षष्ठि प्रवर्तमाने नन्दातिथी "Aho Shrut Gyanam" Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७५) कुंभलग्ने स्थिरांशे स्वातिनक्षत्रे सोमवासरे प्रभात. समये श्रीवासनानगरवास्तव्य श्रीवीसाश्रीमालीवंशीय श्रीसंघेन श्रीचन्द्रप्रभुत्रयविवं कारितं प्रति. ष्टितं (स्थापितं) भट्टारक श्रीवर्तमानाचार्य श्री १००८ श्रीविजययतीन्द्रसूरिआदेशात् मुनिसत्तम श्रीमत्. हर्षविजयेन भीमसिंहराज्ये श्रीसोधर्म बृहत्तपागच्छे शुभं भवतु । लुआणा(दियोदर) चैत्ये प्रस्तरमूर्ति (३५४) सं० १९५५ फागुण वदि ५ गुरौ प्रतिष्ठितं भ. श्रीराजेन्द्रसूरिभिः, सियाणासमस्तसंघेन विमलनाथ बिंब कारितं सुधर्मतपागच्छे । (३५५) सं० १९५५ फागुणबदि ५ सियाणावास्तव्यसंघेन (श्रीमहावीर) बिषं प्रतिष्ठितं भ. श्रीराजे. न्द्रसूरिभिः, कारितेन जसरूपजीतमलेन सौधर्मतपागच्छे । धातुमय-मूर्तयः (३५६) सं० १५११ वर्षे माघसुदि ९ सोमे श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६ ) शातीय व्य. पाल्हा भा० पाल्णदे सुत वानरेन भा० वीकलदे सुपुत्रसहितेन पितृमातृपैतृव्य. जाल्हा भ्रातृ पीताम्र पूर्वज श्रेयोर्थ श्रीअजितनाथचतुर्विशतिपट्टः का. पूर्णि. श्रीराजतिलकसूरिभिः प्र. जाणदीवास्तव्यः । (३५७) __ सं० १५२२ वर्षे माघसुदि ९ शनौ श्रीप्राग्वाटज्ञातीय श्रेष्ठिविरुआ भार्या आजी सुत सं० मांकड़ भार्या सं० झाली सुत सं० अर्जुनकेन भा० अहिवदेसहितेन अपरा भार्या रामतिनिमित्तं श्रीमुनिसु. व्रतस्वामिबियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्तपापक्षे प्रभुभट्टारक श्री श्री श्री श्रीजिनरत्नसूरिभिः सहु. आला वास्तव्यः । (३५८) __ सं० १५२३ वर्षे वैशाखसुदि ३ प्राग्वाटज्ञा. सं. नापाकेन] भा० लखमादे सुत खोना ठाइय, हांसा जावड भावड तदुभार्या अमरी नाथी कनाई मेघाई आसू तत्पुत्र नाकर झटका रूपा सूरादि. कुटुंषयुतेन श्रीविमलनाथविध का०, प्र. तपागच्छे श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिर्वीरमग्रामवास्तव्यः। "Aho Shrut Gyanam" Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) सं० १५१७ वर्षे फागुणसुदि ३ शुके श्रीश्री. मालज्ञातीय साह नागसी भार्या डाही सुत सा. वानर भार्यया आसीनाम्न्या आत्मश्रेयोर्थ श्री. अजितनाथाविपंचतीर्थीविषं श्रीविमलगच्छे श्रीधर्मसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं विधिना अहमदाबादे। (३६०) सं० १५०५ वर्षे माघसुदि ५ रवी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० वगरसी भा० सामलदे सुत समघरेण पितृश्रेयसे श्रीकुंथुनाथषिवं पूर्णिमापक्षे श्रीगुणसमुद्रसूरीणामुपदेशेन कारितं प्राविधिना । (३६१) सं० १५३२ वर्षे वैशाखसुदि १० शुक्रे श्रीश्रीवंशे मं० धना भार्या धांधलदे पुत्र मं० पांचा सुश्रावकेण भार्या फकू पुत्र महं० सालिगसहितेन पितु: पुण्यार्थ श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीसुविधिनाथविवं कारितं प्रतिष्ठित श्रीसंघेन लोलाडाग्रामे श्रीरस्तु। (३६२) सं० १६२४ वर्षे शाके १४८९ प्रवर्तमाने माघ "Aho Shrut Gyanam" Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मासे सुदिपक्षे १ सोमे ओसवंशज्ञातीय श्रे० धरणाभार्या धरणावे पु. देवचंद भा० सुजाणदे प्रेमलदेव्या स्वकुटुंषश्रेयसे साधुपूर्णिमापक्षे महारक श्री श्री श्री श्रीविद्याचंद्रसूरीणामुपदेशेन श्रीवासुपूज्यनाथस्य विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन। (३६३) संवत् १५१३ वर्षे पौष वदि ३ शुक्र महाजनी सुहडसी भार्या सुहडदे सुत भोजाकेन भा० अमरीमातृपितृनिमित्तं आत्मश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथर्विवं का० श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीकमलसूरिभिः प्रतिष्ठितं । (३६४) संवत् १५९० वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे पंचमीदिने वृद्धशाखायां मोदज्ञातीय भणशाली मांगा भार्या सोनाई सुत तुलखाई कारितं श्रीशांतिनाथविमात्मश्रेयोर्थ प्रतिष्ठितं तपागच्छे वृद्धशाखायां श्रीधनरत्नसूरिभिः पत्तननगरे । ( ३६५) सं० १५१० फा० सु० ३ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे. मोकल भा० सोहगदे पु० गोइंदन मातृपितृश्रेयोर्थ पितृव्य भ्रातृतिहुणा भा० मांगूश्रेयोथं च श्री "Aho Shrut Gyanam" Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७९ ) कुंथुनाथ चतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्र० श्रीनागेंद्रगच्छे श्रीगुणसमुद्रसूरिभिः वाराहीवास्तव्य सोरतिया । ( ३६६ ) सं० १६६५ वर्षे वैशाखसुदि ६ बुधे श्रीराजपुरपुरे श्रीश्रीमालज्ञातीय सा० वहोला नागा भा० मूनी तत्सुत शिवसी [ सिंहेन ] भार्या रत्नादे सुत सा० मेघसिंघ भार्या वीरादे प्रमुखकुटुंबयुतेन श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ का०, प्र० तपागच्छे भट्टा० श्रीहीरविजयसूरि भट्टा० श्रीश्रीविजयसोमसूरिभिः । ( ३६७ ) संवत् १५८२ वर्षे वैशाखसुदि १० शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वलूटा भा० मांकु सुत सोमा भा० सुहवदे सुत श्रीपाल भा० सिरियादेच्या स्वपूर्वजनिमित्तमात्मश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीचैत्रगच्छे धारणपद्रीय भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिर्ल्दाग्राम वास्तव्यः श्रीः । ( ३६८ ) सं० १५१५ वर्षे आषाढ सुदि ५ श्रीश्रीमालज्ञा० परी० हांसा भार्या वरजु सुत भोजाकेन भार्या सोनू कुडुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीविमलनाथर्बिवं कारितं "Aho Shrut Gyanam" Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८०) पूर्णिमापक्षे श्रीसागरतिलकसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीः। मोटीपावड(वावतालुका)चैत्ये (३६९) सं० १४७२ ज्येष्ठवदि ११ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ बुहरा भा० माल्ही पितृमातृनिमित्तं सुत हेमा धूडा धनादियुतः श्रीशांतिनाथश्चतुर्विशतिजिनपः करापितं प्र. नागेंद्रगच्छे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः। जेतडा(थराद)चैत्ये प्रस्तरप्रतिमा (३७०) सं० १८३३ वर्षे माघशुक्ल ७ शुक्र श्वीपार्श्वनाथजिनषिध कारापितं गेलाग्राम समस्तश्रीसंघ श्रीश्रीमालज्ञातीयेन भ. श्रीविजयजिनेंद्रसरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे । _( ३७१) सं०१८३३ माघ सु०७ शुक्रे श्रीचंद्रप्रभजिनषिषं का० ग्रामगेलासमस्तसंघे श्रीश्रीमालज्ञातीयेन भ० श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे । "Aho Shrut Gyanam" Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८१) धातुपञ्चतीर्थी ( ३७२) सं० १४२५ वर्षे वैशाखसुदि ११ दिने श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीमालज्ञातीय पितामही रामादेवी पितृनाथा मातृलीलादेवी श्रेयसे ठ० श्रीपालेन श्रीशांतिनाथविवं कारितं प्र० श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः । (३७३) सं० १४८८ वर्षे मार्गवदि ५ गुरौ श्रीमालज्ञातीय व्य० आंजण भार्या भोली सुत व्य० आकाकेन श्रीपार्श्वनाथर्षि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसोमसुंदरसूरिभिः श्रेयस्करी श्रीः। (३७४) सं० १४२५ वर्षे माघसुदि८ व्य० जयता भायों हांसीदे पुत्र पाहडेन स्वपितुः पितृव्यश्रेयोर्थ श्री श्रीपद्मप्रभाषिवं कारापितं । "Aho Shrut Gyanam" Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखों का अनुवाद और अवलोकन। थरादनगर और उसका प्राचीन गौरव .. थराद जिसको थिराद्र, थिरापद्र या थिरपुर भी कहते हैं, विक्रम सं० १०१ में वसा है । इस नगर का वसानेवाला थिरपालधरु था, जो चौहागवंशीय क्षत्री था। वह भिन्नमाल का रहनेवाला था। वह आशापूरी माता का परम मक्त था। ये दो भाई थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् दोनों माईयों में कलह उत्पन्न हुआ। यह आशापूरी माता की मृति गाड़ी में बिठा कर अपने स्वजनों के सहित भिन्नमाल का त्याग कर उत्तर-गुजरात बनासकांठा की ओर चल पड़ा। इसके साथ में महात्मा मोहनदास और वीरवाडीया कुटुम्ब मी था । अभी जिस स्थल पर थरादनगर वसा है, वहां आते-आते गाड़ी की नाड़( नाण ) टूट गई। उपरोक्त भूमि को पवित्र समझ कर और नार के टूटने को माता Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (. १८३ ) का संकेत मान कर इन्होंने गाड़ी वहीं रोक दी और आशापूरी माता को वहीं प्रतिष्ठित की। नाड़ टूटी, इसलिये माता का नाम भी ' नाणदेवी ' पड़ गया, जो अभी तक चला आता है | नाणदेवी का उपरोक्त स्थान थराद से ईशान कोण में अर्ध-मील के अन्तर पर है। जैन जैनेतर सब ही लोग इसको मानते हैं । प्राचीन लोग शकुन, शुभ लक्षणों और संकेतों में अधिक विश्वास रखते थे । उपरोक्त भूमि पर उन्होंने कुत्तों के पीछे शशकों को दौड़ते हुए देखा। बस, उन्होंने भूमि को वीरप्रस बिनी समझा और वहीं पर बस गये। ग्राम का नाम थिरपालघरु के नाम के पीछे ' थिरपुर' रक्खा, जो आज थराद के नाम से विख्यात है । थराद के उत्तर में मारवाड़, पूर्व में पालनपुर, दक्षिण में सुईग्राम और पश्चिम में बाव है। बढ़ते बढ़ते धराद एक अति विशाल नगर बन गया । धरुवंश के चौहानक्षत्रियों का थराद पर ७६५ वर्ष तक अर्थात् विक्रम सं० १०१ से सं० ८६६ ( ईस्वीसन् ७८० ) तक राज्य रहा । धरुवंश के राजा, वीरवाड़ी एवं महात्मा मोहनदास के वंशजों के सदा आभारी रहे और ठेठ तक उनका अच्छा सम्मान रक्खा । "Aho Shrut Gyanam" Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८४ । घरुवंश के क्षत्री आज भी थराद के आस-पास के ग्रामों में बसे हुए हैं और जैनधर्मी हैं। बाव के नरेशों का जब राज्यतिलक होता है तब वीरवाड़ीवंश का पुरुष अपने अंगूठे को चीर कर रक्त निकालता है और मोहनदास के वंश का पुरुष उस रक्त से सिंहासनासीन होनेवाले नरेश के ललाट पर तिलक करता है। जैनघर भी इन दोनों के वंशजों के पुरुषों को पुत्र लग्न के समय एक एक टक्का प्रदान करते हैं । यह पद्धति उनके पूर्व सम्बन्ध एवं मौरव को प्रकट करती है। धरुवंशियों के दीर्घकालीन शासन में थराद की अच्छी उन्नति हुई। जैन आबादी बढ़ते बढ़ते दो हजार सातसौ घरों तक बढ़ गई । राजा थिरपाल धरु स्वयं जैन था । थराद में जैनियों का सदा अतिशय प्रभाव रहा । अन्य कुलों एवं यवनों का राज्य क्षत्रियों के शासनकाल के पश्चात् थराद में परमारों का राज्य रहा। अन्तिम परमार राजा निस्सन्तान था । यह धर्म से जैन था। उसने नाडोल के राज को, जो उसका भाणेज था थराद का राज्य देकर स्वयं भागवती दीक्षा ग्रहण करली । थराद के ऊपर नाडोल के चोहानों का राज्य "Aho Shrut Gyanam" Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनकी छः पीड़ी पर्यन्त रहा। अन्तिम चौहान राजा पूंजाली के ऊपर मुसलमानोंने आक्रमण किया और थराद को जीत लिया । इस प्रकार संवत् १२३० से १३०० तक थराद पर यवन अधिकार रहा । मुसलमानों के हाथ में थराद के चलेजाने पर राणा पूंजाजी की विधवा राणी अपने शिशु लड़के को लेकर अपनी माता के घर चली गई । कुंचर जब युवावस्था को प्राप्त हुआ तो वीर निकला और थराद के राज्य के लोगों की सहाय पाकर उसने पुनः थरादराज्य पर अपना अधिकार कर लिया। उसने ' वान' नामक नवीननगर को अपनी राजधानी बनाई, जहाँ पर अमी तक भी उसके वंशज राज्य कर रहे हैं। यवनों के भय से थराद से उसने राजधानी उठा ली । अवसर पाकर नाडोल के चौहानोंने थराद पर पुनः अधिकार कर लिया। परन्तु अठारहवीं शताब्दि के उत्तरार्ध में थराद पर राधनपुर के नवाबों का अधिकार हो गया जो विक्रमसं० १८१५ तक रहा । विक्रमसं० १८१५ में वर्तमान ठाकुरों के पूर्वज खानजीने थराद पर अधिकार किया जो अद्यावधि उनके वंशजों के अधिकार में ही चला आ रहा है । थराद के वर्चमान ठाकुर (दरबार ) भीमसिंहजी है और उनके ज्येष्ठ पुत्र युवराज जोरावरसिंहजी हैं। यह तो हुआ थराद के ऊपर शासन करनेवाले राजा और उनके शासनकालों का संक्षिप्त परिचय । "Aho Shrut Gyanam" Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८६ ) वर्तमान ठाकुर का वंशचक T आनन्दसिंह गार सिंह (सं० १९१५ - ४८ ) ' अभयसिंह सं०१९४८- ६६ 1 दौलतसिंह (सं० १९६६ - ७७ ) ठाकुर खानसिंहजी I ( विक्रम सं० १८१५ ) I जसवंतसिंह दडभमसिंह करणसिंह (सं० १८४२ - ७९ ) (सं०] १८७९ - १९१५) भूपतसिंह | चतुरसिंह जगतसिंह तखतसिंह T बनेसिंह उदेसिंह रायसिंह भीमसिंह केसरसिंह (सं० १९७७ वर्तमान ठा० ). युवराज जोरावरसिंह पृथ्वीराजजी ! सामंत सिंह T भगवतसिंह T लालजी "Aho Shrut Gyanam" पर्वतसिंह बखतसिंह 1 खेतोजी ( क्षेत्रसिंह ) वीरमजी ( वीरमसिंह ) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८७) यवन आक्रमण के पूर्व थरादथराद की जाहोजलाली और आभूश्रेष्ठी धरुवंशीय, परमार और नाडोल के चौहान इस प्रकार तीनों कुलों का थराद पर राज्य विक्रम की तेरहवीं शताब्दि के पूर्वार्द्ध तक रहा। इतनी शताब्दियों तक हिन्दू राज्य रहने के कारण थराद व्यापार, कला, वाणिज्य, व्यवसाय, धन और समृद्धि में गुर्जर और सौराष्ट्र के प्रमुख नगरों में गिना जाने लगा। इस नगर में जैनियों का सदा प्रमुत्व रहा । अनेक धनी मानी कोटीध्वज जैन यहां और इसके ग्रामों में रहते थे । विक्रमसं० ११११ में जब मरुधरप्रदेश के प्रसिद्ध, ऐतिहासिक, समृद्ध नगर मिनमाल को जीत कर मुसलमानोंने नष्ट-भ्रष्ट किया, तब वहाँ से ग्यारह कोटीद्रव्य का स्वामी शंखसेठ का वंशज सहसाशाह और श्रीमाली. ज्ञातीय काश्यपगोत्रीय श्रे० जूना का वंशज थरादराज्य के अचवाड़ीग्राम में आकर बसे । इसी प्रकार श्रीमालीशातीय वृद्धशाखीय इक्कीस कोटीद्रव्य के स्वामी सोमासेठ का वंशज तिहुअणसी(त्रिभुवनसिंह) और तीन कोटिद्रव्य का स्वामी श्रीमालीज्ञातीय चंडीसर का वंशज वीरदास खेनप में आकर बसे । इस प्रकार थरादराज्य में विपुल धनशाली श्रीमन्तों का प्रभुत्व बढ़ता ही गया और वह अक्षुण्ण रहा । थराद में श्रीमालीज्ञातीय श्रेष्ठी संघपति आभू अधिक. "Aho Shrut Gyanam" Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८८) गौरवशाली एवं प्रसिद्ध श्रीमन्त हुआ है, वह अपार वैभवशाली था । जैसा वैभवपति था, वैसा ही वह धर्मानुरागी एवं उदार श्रीमन्त था। उसने अपनी आयु में तीनसौ साठ साधारण स्थितिवाले स्वधर्मी ज्ञाति भाईयों को श्रीमन्त बनाया । तीर्थयात्रा में उसने बारह कोड स्वर्ण-महोर व्यय की। उसकी तीर्थयात्रा में ७०० जिनमन्दिर थे। उसने तीन क्रोड़ टंक व्यय करके सर्व आगमसूत्रों की एक एक प्रति सुवर्णाक्षरों में और द्वितीय प्रति स्याही से लिखवाई तथा उसने सातो धर्मक्षेत्रों में सात क्रोड़ द्रव्य व्यय किया। थिरापद्रगच्छ की उत्पत्ति थरादनगर में हुई। थिरापद्रगच्छीय वादिवेताल भीशान्तिमूरि विक्रमसं० ११८५ में विद्यमान थे। इस गच्छ का जन्म थराद की उमति का परिणाम है। थराद के उन्नति काल में वहाँ पर एक अति विशाल जैनमन्दिर बना था, जिसके १४४४ स्तम्म थे। दुःख है कि आज वह नामशेष रह गया है। उस जगह आज केवल मृत्तिकामय जमीन है। यह मुसलमान बंधुओं का कार्य है। आज भी उस जगह पर दो फीट लम्बी इंटें निकलती हैं तथा समय समय पर अपूर्व कारीगरी के अनेक खंडित प्रस्तरखण्ड निकलते रहते हैं। महाराजा गुर्जरसम्राट कुमारपालने भी थराद में एक विशाल चतुर्मुख जिनालय बनवाया था। एक प्रतिमा पर प्रसिद्ध, हेमचन्द्राचार्य का नामोल्लेल भी है। परन्तु तेरहवी शताब्दि के पूर्वार्द्ध में "Aho Shrut Gyanam" Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८९ ) थराद पर यवनों का घातक आक्रमण हुआ और इस आक्रमण से थराद की जाहोजलाली को बड़ा घका लगा । १४४४ स्तम्भों का मन्दिर तथा कुमारपाल का बनवाया मन्दिर तोड़ डाला गया । थराद का व्यापार, वाणिज्य भी नष्ट हो गया। धीरे धीरे थराद की स्थिति सुधरी, परन्तु वह पूर्व की शोभा फिर नहीं आ पाई । सं० १२३० में थराद पर यवनों का आक्रमण हुआ था और सं० १३०० तक थराद यवनों के अधिकार में रहा । चौदहवीं शताब्दि के प्रारंभ में पुनः इस पर नाडोल के क्षत्रियों का और वात्र पर जैसा ऊपर कहा जा चुका है राणा पूंजा के पुत्रने अपना राज्य पुनः स्थापित किया । इस प्रकार थरादराज्य के दो विभाग हो गये, परन्तु यवनराज्य तो समाप्त हो गया । चौदहवीं शताब्दि से थराद यवनों के आक्रमण से बचा और उसकी शोमा एवं समृद्धि तो घटी, परन्तु आबादी पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ पाया। क्योंकि यवनराज्य केवल सत्तर (७०) वर्ष पर्यन्त ही रहा, अधिक नहीं रह सका । इस शिलासंग्रह में २७३ शिलालेख तो केवल थराद के ही हैं। ये लेख थराद के जिनालयों में विराजित धातुमय चौत्रीशियों, पंचतीर्थियों और छोटी बड़ी प्रतिमाओं के हैं । इनमें जूना से जूना लेख ग्यारहवीं शताब्दि का है । शताब्दि वार लेखों की संख्या इस प्रकार है । "Aho Shrut Gyanam" Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शताब्दि ११ १२ १३ १४ गच्छ अंचल आगम उपकेश कडुआमति कोरंट खरतर चैत्र जीरापल्ली तपा धारापद्र धर्मघोषं ( १९० ) लेख संख्या १ २ ८ १३ गच्छवार लेखों की संख्या । लेखसंख्या गच्छ १७ नागेन्द्र ४ निगम २ २ २ ४ २३ शताब्दि १५ १६ १७ १८ ८ पिप्पल पूर्णिमा बृहत्तपा ब्रह्माण भावडार षडेरक सरस्वति सैद्धान्तिक लेख संख्या ६० १६६ २० ३ २७३ लेखसंख्या १० २ ५० ३७ २ २३ १२ ६ २२६ शेष लेखों में गच्छनाम नहीं है । उपरोक्त दोनों अनुक्रमणिकाओं से यह सिद्ध होता है "Aho Shrut Gyanam" Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि थराद में जैन-वस्ती घट अवश्य गई थी, परन्तु इतनी अवश्य रही कि जहा प्रसिद्ध प्रसिद्ध गच्छों का निर्वाह प्राय: हो सकता था। लेखों में सब से अधिक लेख पिष्पलगच्छ के हैं, फिर पूर्णिमा, ब्रह्माण और तपागच्छों के अन्य गच्छों के लेखों से अधिक हैं । परन्तु यह तो स्पष्ट हैं कि थराद में लगभग वीश गच्छों के अनुयायियों के या उनके अनुरागियों के घर रहे हैं। जहाँ एक साथ १०-१५ गच्छों के घर मिलते हों, वह नगर उस काल में अवश्य समृद्ध और उमत ही माना जायगा। शताब्दिवार लेखों में अधिक लेख पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दि के हैं। जिसमें सोलहवीं शताब्दि के तो १६० लेख हैं। ये लेख विविध गच्छों के भिन्न भिम आचार्यों के एवं श्रावकों के नामों से संगर्मित हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि थराद एक बार पुन: पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दियों में समृद्ध, वैभवशाली और धर्मकृत्य, व्यापार-वाणिज्य में आगे बढ़ गया था। लेखों में ७० लेख श्रीमालीज्ञाति के हैं। अतः यह भी सिद्ध है कि थराद में श्रीमालीज्ञाति के घर अधिक संख्या में थे। केवल लेखों की संख्या पर ही गच्छ, समृद्धि और ज्ञाति का लेखन किया गया हो, सो बात नहीं है। विभिन्न संवत् , विभिन्न श्रावक और भिन्न भिभ नाम के आचार्यों पर अधिक जोर रख कर ऐसा लिखा गया है। विक्रमसं. १८६९ में थरादराज्य में भयंकर दुष्काल "Aho Shrut Gyanam" Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९२) पड़ा और अनेक कुल थराद छोड़ कर अन्यत्र चले गये। अहमदाबाद, पालनपुर, राधनपुर, डोसा, धानेरा, धांगधरा, चडोतरा, वीसनगर, वीरमगाम, और काठीयावार नगरों में तथा दक्षिण में पूना आदि नगरों में ऐसे अनेक कुल हैं जो 'थरादरा' कहलाते हैं । इन कुलों में से अनेक लोग जुहार करने के लिये थराद में नाणदेवी और झमकाल देवी के दर्शनों को प्रतिवर्ष आते हैं। इस समय थराद में श्वेताम्बर जैनों के ६०० घर आबाद हैं और ये श्रीमाल जैन कहाते और सभी त्रिस्तुतिक आमनाय वाले हैं। सन् १९४८ में इन पंक्तियों के लेखक को आचार्य देव श्रीमद्विजययतीद्रसूरीश्वरजी महाराज के दर्शनार्थ थराद जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। मैंने थरादनगर को दूर दर तक उसके बाहर घूम कर देखा अनेक ढेर और खण्डेहर देखे । कलापूर्ण प्रस्तर-खण्ड देखे। अधिक आकर्षित करनेवाली एक मस्जिद देखी, जो राजप्रासाद के सिंहद्वार के बाई और है। उसमें जैनमन्दिरों के स्खण्डित पत्थर लगे हुए देखे । आंगन में एक खंड जड़ा हुआ था, जो खुला कह रहा था कि मैं मन्दिर की देहली के बाहर का पत्थर हूँ। काल के अनेक उत्पात सहन करके भी थराद आज भी सुखी, समृद और गौरवशाली है। "Aho Shrut Gyanam" Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९३) श्रीवीरचैत्य में वासुपूज्यमन्दिर की धातु पंचतीर्थियाँ सं० १५०५ माघ शु. ९ शनिश्चरवार के दिन धंधुका निवासी श्रीमालज्ञातीय व्यव० पर्वत भार्या खीमलदेवी पुत्री मांजुबाईने अपने कल्याणार्थ आगमगच्छीय श्री हेमरत्नमरिगुरु के उपदेश से श्रीसुविधिनाथ का पंचतीर्थी विंब प्रतिष्ठित करवाया। (२) सं० १५१५ ज्येष्ठ शु० ९ शुक्रवार के दिन गुर्जरवाड़ा निवासी श्रीमालज्ञातीय व्यव० जेसा भार्या जानूदे पुत्र मूल चंदने पूर्णिमागच्छीय श्रीसाधुरत्नमरि के उपदेश से श्रीसु. विधिनाथ का पंचतीर्थी विम्ब करवा कर उसकी प्रतिष्ठा करवाई। सं० १५१३ पौषकृ० ५ रविवार को श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि-महाजन धना, सारंग, गेला, धर्मा, राजा, ददा, नारद आदि कुटुम्बियोंने चैत्रगच्छीय श्रीलक्ष्मीदेवमरि के द्वारा पूर्वज सांगा के निमित्त श्रीअजितनाथ प्रतिमा(पंचतीर्थी) प्रतिष्ठित करवाई। "Aho Shrut Gyanam" Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) सं० १५०१ पौषक० ६ श्रीश्रीमालज्ञातीय मंत्रीसन्ताने पिता थे. जेसिंग(जयसिंह), माता पत्रापदी, स्वभार्या राजूबाईने माता-पिता, पुत्र के श्रेयोर्थ सिद्धान्तगच्छीय श्रीसोमचन्द्रसरि के द्वारा श्रीकुन्थुनाथजी का बिम्ब प्रतिठित करवाया। घर में सर्वत्र सौभाग्य हो। सं० १५२८ वैशाख शु० ३ शनिवार के दिन भोअलीग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वापा भार्या रतनूदेवी के पुत्र वनवीरने पिष्पलगच्छीय त्रिभवीया भट्टा० भीधर्मसागरसरि के द्वारा श्रीविमलनाथ प्रभु का पंचतीर्थी बिम्ब स्वभार्या शाणीदेवी, माता, पिता और पितृजनों के श्रेयार्थ प्रतिष्ठित करवाया। सं० १४२१ वैशाखशु०५ शनिवार के दिन पुत्र हेलाकने नागेन्द्रगच्छीय श्रीगुणाकरसूरि के द्वारा अपने पिता जयन्त, माता जयतलदेवी और पितृव्य कर्मण (कर्मराज के श्रेय के लिये श्रीपार्श्वनाथ प्रभुका पंचतीर्थी विश्व प्रतिष्ठित करवाया। (७) सं० १४३३ वैशाखशु०९ शनिवार के दिन कोरण्टक "Aho Shrut Gyanam" Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५) गच्छीय श्रीननाचार्यानुयायी ओसवालज्ञातीय मंडपुत्रशाखीय(मणशाली) श्रे० महिमदेव मा० मंदोदरी के पुत्र नरश्रेष्ठीने स्वमाता पिता के प्रेयके लिये श्री शान्तिनाथप्रभु का पंचतीर्थी बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीभावदेवसूरिने की। सं० १५१९ मार्गसिर गुरुवार के दिन श्रीमालज्ञातीय लघुशाखीय व्य० जेसा (जसराज) भार्या हरखू (हर्षाबाई) के पुत्र व्य० राजाने स्वभार्या भवकूनाई सहित अपने कल्यापार्थ पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नसूरि के उपदेश से श्रीपार्थनाथ का पंचतीर्थी विम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (९) सं० १५१२ मार्गसिर शुक्ला पूर्णिमा सोमवार के दिन भावडारगच्छीय श्रीमालजातीय व्य. पाराज, भा० पाल्हणदेवी पुत्र माला( मालराज) मा० माल्हणदेवी पुत्र रत्नराज, पर्वत, संघा, मोकल, देवा, जाणा (ज्ञानराज) सहित व्य० मालाक(मालराज)ने अपने पितामह के भ्राता व्य. घडसिंह के कल्याणार्थ श्रीसुमतिनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीकालकाचार्यसन्तानीय पूज्य श्रीवीरसरि के द्वारा हुई। "Aho Shrut Gyanam" Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) सं० १५८३ ज्येष्ठ शु० ११ शुक्रवार के दिन उएस (उपकेशगच्छीय ) श्रीककुदाचार्यसन्तानीय उपकेशज्ञातीय अष्ठिगोत्रीय (सेठिया) शाह महताजू पुत्र सलखण भार्या पुंजारदेवी पुत्र हरिराजने भा० हेमादेवी पुत्र भीमराज सहित श्रीशांतिनाथ का पंचतीर्थी बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीयक्षदेवसूरि द्वारा हुई। सं०१५३६ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. नाथा भा० धर्मिणीबाई पुत्र स्लामण मा० गूरीबाई, शिवदत्तने स्वभार्या कुअरिचाई आदि परिजनों के सहित श्रीआदिनाथ का बिम्ब अपने भ्राता रलामण के कल्याणार्थ पूर्णिमापक्षीय श्रीपुण्यरत्नमूरि के उपदेश से करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा विधिपूर्वक काकरग्राम में हुई। (१२) सं० १५२८ वैशाखशु०३ शनिवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० उदिरा ( उदयन) भा० फटूबाई पुत्र मोटाक ( मोटमल)ने अपने पिता माता एवं पितामह वापा और अपने कल्याण के लिए श्रीशांतिनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया भट्टारक श्रीधर्मसागरमरिके द्वारा भोयलीग्राम में हुई । "Aho Shrut Gyanam" Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७ ) इस बिम्ब की प्रतिष्ठा होने की तिथि वही है जो लेखाडू ५ में है। दोनों लेखों में आचार्य, संवत और ग्राम भोयली ही हैं । अतः वणबीर और उदिरा सहोदर हैं । (१३) सं० १४१७ वैशाखशु० २ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० लीम्बा, मा० नामलदेवी पुत्र सहजाने भा० सहजलदेवी पिता लींबा के कल्याणार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिच करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीउदयानन्दसूरिके पट्टाधीश श्रीगुणदेवसूरि के द्वारा हुई । ( १४ ) सं० १४९५ आषाढशु० ९ रविवार के दिन ब्रह्माणगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० गोरा मा० देल्हणदेवी के पुत्र भारमल भा० पोमादेवी के पुत्र डूंगर और भाखरने पितृजनों के श्रेयार्थ श्रीधर्मनाथजी का विम्ब करवाया, जो श्रीमद् जजगसूरि के पट्टाधीश पज्जुन्नसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ । ( १५ ) सं० १४२९ माघक्र० ५ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० अभयसिंह मा० आल्हणदेवीने पितृ कमा( कर्मचन्द्र ) के कल्याणार्थ श्रीमूलनायक पार्श्वनाथप्रभु का श्रेयस्कर बिम्ब श्रीनरप्रभसूरि के उपदेश से करवाया । "Aho Shrut Gyanam" Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९८) (१६) सं० १५०१ पौषक. ९ शनिवार के दिन अचलगच्छेश्वर श्रीजयकीर्तिमूरि के उपदेश से शा. कालू भार्या कमलादेवी पुत्र हरिपनने स्वस्नी माल्हणदेवी के कल्याणार्थ श्रीअजितनाथ का बिम्ब करवाया और वह श्रीसंघ द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। (१७) सं० १५१३ पौषकृ. ५ रविवार के दिन वावीग्राम निवासीश्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० तिहुणा( त्रिभुवन) भा० कर्मादेवी के पुत्र डाहाने भा० धारणपद्री और मेच पुत्र भाखर सहित माता पिता के कल्याणार्थ श्री अजितनाथ का विम्ब करवाया, जो चित्रगच्छीय म० श्रीलक्ष्मीदेवसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। (१८) सं० १५११ माघशु० ५ सोमवार (गुरुवार) के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वानर के पुत्र जोधराज की स्त्री रतूबाईने अपने पति के आत्मकल्याण के लिये जीवितस्वामि श्रीकुन्थुनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीराजतिलकसरि के उपदेश से श्रीहरि द्वारा हुई १ लेखाङ्क ९४, १२१, ३५६ को देखते हुए सोमवार के स्थान पर गुरुवार ही चाहिये । "Aho Shrut Gyanam" Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) सं० १५०९ माघशु०५ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० सोना( सोनमल) ने स्वभार्या राजीबाई, भ्राता बदा (द्धिचन्द्र ), भा० पूरीबाई के निमित्त श्रीसुमतिनाथ का विम्ब करवाया, जो सिद्धान्तगच्छीय श्रीसोमचन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। (२०) सं० १३४९ ज्येष्ठशु० २ भावडारगच्छीय शा० सोमा (सोमचन्द्र) मा० सोमश्री के पुत्र छाडा, नागा, गजधरने स्वमात के कल्याणार्थ श्रीपार्श्वनाथ का बिम्ब करवाया, जो श्रीविजयसिंहरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। (२१) सं० १४३२ फाल्गुनशु० २ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० बागमल भार्या विजयश्री के कल्याणार्थ पुत्र विजवकर्णने श्रीनरप्रमसूरि के उपदेश से श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब करवाया। (२२) सं० १५०९ माघशु० १० शनिवार के दिन थिरापद्र निवासी श्रीश्रीमालजातीय पितामह हापा पितामही हांसलदेवी पुत्र चंरा भा. चांपलदे सुत देवाने भा० लूणादे सहित "Aho Shrut Gyanam" Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २००) पिता माता, पितृजन चांपा, हेमा, भात बीजा और अन्य सर्व पूर्वजों के कल्याणार्थ श्रीशीतलनाथ चतुर्विशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगन्छीय श्रीसोमचन्द्ररि के पट्टाधीश श्री उदयदेवमरि के द्वारा हुई। सेठों की सेरी के श्रीवीरचैत्य की चौवीशी तथा पंचतीर्थयां (२३) सं० १४८३ ज्येष्ठक०८ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० सिम्बा मा० लखमादे पुत्र सलखा भा० प्रेमलदे पुत्र गोला, लीम्बा, सिंहने अपने माता पिता के कल्याणार्थ श्री नेमिनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रह्माणगच्छीय श्रीवीरसूरि के पट्टाधीश श्रीमणिचन्द्रसूरिने की। (२४) . सं०१५०५ चैत्रकृ०१३ रविवार के दिन राथरनिवासी श्रीब्रमाणगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. वाघण पुत्र मेघा (मेघराज) भार्या श्रीमलदेवी पुत्र खीमा, गोसल, देसल, गोसल की पुत्री सिंगारदे पुत्र बहुआ, कर्मसिंहने अपने पितृजनों के श्रेयार्थ श्रीविमलनाथ चतुर्विशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीपञ्जुन(प्रद्युम्न)हरिने की। (२५) सं० १५२५ फाल्गुनशु०७ शनिवार के दिन तड़वाड़ा "Aho Shrut Gyanam" Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०१) निवासी श्रीश्रोमालज्ञातीय शाहु रामा श्रे. कुंभा, भा० काश्मीरश्री पुत्र लापाकने मा० फलीपाई, पुत्र धना, मा० शामलीबाई, पांची बाई, पुत्र मेहराज आदि कुटुम्ब सहित अपने कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथ चतुर्विंशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रमाणगच्छीय श्रीवीरसूरिने की। (२६) सं० १५२८ चैत्रक० १० गुरुवार के दिन श्रीश्रीवंशीय मंत्री सांगा मा० टीबूबाई पुत्र मं० सुश्रावक रत्नाने मा० धारिणीदेवी पुत्र वीरा, हीरा, नीना, बावा सहित पितृव्य मंत्री सहसा के श्रेयार्थ अंचलगच्छीय गुरु श्रीजयकेशरमरि के उपदेश से श्रीसुविधिनाथ प्रभु का विम्ब करवाया और प्रतिष्ठा श्रीसंघने करवाई। (२७) सं० १६१७ ज्येष्ठ शु० ५ काकरग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० नवा मा० धनीबाई पुत्र श्रे० धरणा भा० प्रोमी पुत्र जेसा रत्नाने श्रीविमलनाथप्रभु का विम्ब नागेन्द्रगच्छीय भट्टा० श्रीधरसंघसरि के पट्टाधीश महा० श्रीज्ञानसागरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (२८) सं० १५१३ माघक० ७ बुधवार के दिन प्राग्वाटझातीय लधुसन्तानीय परीक्षक बाला (बालचन्द्र) भा० डाही "Aho Shrut Gyanam" Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०२) बाई पुत्र मोजा(भोजराज) ने मा० लाछीबाई, पुत्र नाथा, सजन सहित पिता माता के कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथ का बिम्ब करवाया, जो पूर्णिमागच्छीय क्षीमाणियाभट्टा० श्रीजयशेखरभूरि के उपदेश से लायताग्राम में प्रतिष्ठित हुआ। (२९) सं० १५८० वैशाख शु० १३ शुक्रवार के दिन श्री. श्रीमालज्ञातीय मं० हीरा मा० राखीवाई पुत्र महं० हेमा भा० हमीरदे पुत्र मं. तेजाने मा० नीतिचाई, पुत्र इंगर, मुंगर, भाणा सहित अपने कल्याणार्थ श्रीसुपार्श्वनाथ का धिम्म पूर्णिमागच्छीय श्रीपुण्यरत्नमरि के पट्टाधीश श्रीसुमतिरत्नसरि के उपदेश से विधिपूर्वक प्रतिष्ठित करवाया। (३०) सं० १५१७ वैशाखशु० ३ कालुमा निवासी प्राग्वाटजातीय व्य० कुंपा भा० रुडीबाई पुत्र देवसी( देवसिंह) मा० वाहीवाई पुत्र देपाल( देवपाल )ने भांडा( भंडपाल) आदि कुटुम्ब सहित अपने कल्याणार्थ श्रीविमलनाथ का विम्ब करवाया, जो तपागच्छीय श्रीरत्नशेखरसूरि के पट्टधर श्रीलक्ष्मीसागरसरि द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। (३१) ... सं० १५६३ फाल्गुन शु० ८ शनिवार के दिन थिरा "Aho Shrut Gyanam" Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०३) पद्रनगर निवासी श्रीश्रीमालक्षातीय आजु( अर्जुन ) सखा न्य० मेघा पुत्र आशा भा० अमरीबाईने अपने कल्याणार्थ जीवितस्वामि-श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब करवाया, जो श्रीपूर्णिमापक्षीय भ० श्रीसुमतिनाथप्रभसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। (३२) सं० १५१६ संघवी गेलाने ( पूर्णिमापक्षीय) श्रीगुणधीरसरि के उपदेश से श्रीगौतमस्वामी का बिम्ब सपरिकर करवाया। (३३) सं० १६५१ फाल्गुनकृ० १० शनिवार के दिन थिरापद्र निवासीने श्रीमुनिसुव्रतस्वामी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । (३४) सं० १२९१ माघ शु० ५ गुरुवार के दिन पिष्पल. गच्छानुयायी व्य० वीरा( वीरचन्द्र ) पुत्र झांझणने तथा पुत्र नेनक, नेढक, ब्रह्मा, केथुने तथा आम्रदेवने श्रीऋषभ. देव के मन्दिर में दो कायोत्सर्गस्थ जिन-बिम्ब करवाये । इस चैत्य का जीर्णोद्धार वला अभयकुमार आदि कुटुम्ब समुदायने करवाया। प्रतिष्ठाकार्य श्रीसर्वदेवसूरि के द्वारा हुआ। लेख में दो कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा होने का उल्लेख है, परन्तु वर्तमान में यह एक ही प्रतिमा विद्यमान है जो "Aho Shrut Gyanam" Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०४) भव्य, अति चमत्कार पूर्ण और श्वेतवर्ण ६८ इंची बड़ी प्रस्तर प्रतिमा है। इस समय यह वीरप्रभु के मंदिर में उनके दहिने भाग में स्थापित है। वीरप्रभु की विशाल प्रतिमा के लिये एक निशिखरी मन्दिर थरादसंघ की ओर से बन रहा रहा है, उसीमें वीरप्रभु के साथ यह प्रतिमा स्थापित होगी। आदिनाथचैत्य में चौवीशी-पंचतिथियाँ (३५) सं० १५१९ माघक०२ शनिवार के दिन कोहरनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० लापा भा० लाछादेवी पुत्र वास्ता, हाला, भा० हमीरदेवी पुत्र वेला, गेला ने वेला की स्त्री वयजलदेवी सहित पिता, भ्राहगण और पूर्वजों के श्रेयार्थ श्रीशीतलनाथ चतुर्विंशतिपट्ट करवाया, जो पिष्पलगच्छीय श्रीमुनिसुन्दरसूरि के पट्टधर श्रीअमरचन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। सं० १५१५ वैशाखकृ० २ गुरुवार के दिन सत्यपुर ( सांचोर ) निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय परीक्षक खेता मा० खेतलदेवी पुत्र ईश्वर मा० राजलदेवी पुत्र मोकल भा० महिगलदेवीने पुत्र वऊला सहित अपने पितृजनों के कल्याणार्थ जीवितस्वामि श्रीआदिनाथ चतुर्विंशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीचन्द्रप्रमसरि द्वारा हुई। "Aho Shrut Gyanam" Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०५) (३७) सं० १५२८ पौषकृ० ३ सोमवार के दिन काकरग्राम निवासी श्रीश्रीमालनातीय भंडारी भोला भा० वाहीवाईने अपने कल्याणार्थ जीवितस्वामि श्रीविमलनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा चैत्रगच्छीय धारणपद्री म० श्रीज्ञानदेवरिने की। . (३८) सं. १५३४ ज्येष्ठशु० १० के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० गोपाल भा० लाखीबाई पुत्र व्य० लाखा ( लक्ष्मण ) भा० कीमीबाईने प्रमुख परिजनों के सहित अपने कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथ का बिम्ब करवाया, जिसको तपागच्छीय श्रीसोमसुन्दरसूरि, मुनिसुन्दरसूरि श्रीरत्नशेखरसूरि के पट्टधर श्रीलक्ष्मीसागरसूरिने प्रतिष्ठित किया । (३९) सं०१५३३ वैशाखशु०६ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० कर्मसिंह भा० लाडूबाई पुत्र श्रे० मामाकने अपनी मार्या देवलीबाई के सहित माता पिता और आत्मश्रेयार्थ श्री सुविधिनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा थरादनगर में नागेन्द्र गच्छीय भट्टा० श्रीगुणदेवसूरिने की । (४०) सं०१५२२ पौषकृ०१ गुरुवार के दिन उपकेशज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam" Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०६) श्रेष्ठिगोत्रीय महाजन मोखा पुत्र म० धनराजने भा० साल्हादेवीने म० खीदा के पुण्यार्थ श्रीशीतलनाथ का बिम्ब भराया, जिसकी प्रतिष्ठा पारकरनगर में उपकेशगच्छीय श्रीककुदाचार्यसन्तानीय श्री ककरिने की। (४१) सं० १७५७ माघशु० ५ के दिन थिरापद्रनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय वृद्धशाखा में वोहरा (बहुथरा) देवराजने मा० मानीबाई, पुत्र वो० वासा, सांकला पुत्र भोजराजादि सहित स्वश्रेयार्थ श्रीसंभवनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय मट्टा० श्रीविजयप्रभरि के पट्टाधीश संविज्ञपाक्षीय मट्टा० श्रीज्ञानविमलसूरिने की। (४२) सं० १५१० माघशु० ४ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० भोला भा० मावलदेवी के पुत्र लूणसिंहने भ्राता हीमला के पुण्यार्थ तथा अपने परिजनों के श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथपंचतीर्थी करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभवियागच्छनायक श्रीधर्मशेखरसूरिने थिरपद्र( थराद ) नगर में की। (४३) सं० १५०६ वैशाखनु० ८ रविवार के दिन थारापद्रनगर "Aho Shrut Gyanam" Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०७) निवासी श्रीश्रीमालजातीय व्यव० भोला पुत्र सं० लूणसिंह मा० लूणादेवीने निज श्रेयार्थ जीवितस्वामि श्रीश्रेयांसनाथ का पंचतीर्थी बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभवीयागच्छनायक भट्टा० श्रीधर्मशेखरसूरिने की। (४४) सं० १५१७ माघशु० १० बुधवार के दिन ब्रमाणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० शार्दूलमल पुत्र भारमलने अपनी भार्या कर्पूरदेवी, पुत्र डाहा, वेला, और माता पिता के कल्याणार्थ श्रीअजितनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा महंडका ग्राम में श्रीपज्जूनसरि (प्रद्युम्नसरि) ने की। (४५) सं०१५०८ वैशाखक०४ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० नयनराजने मा० टही कुबाई, पुत्र लक्षमण, हेमराज, दूदराज आदि परिवार सहित पितृव्य कुतुहण मा० हासूबाई के श्रेयार्थ श्रीशीतलनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा सिद्धान्तगच्छीय श्रीसोमचन्द्रमरिने की। सं० १५०६ वैशाखशु०८ रविवार के दिन श्रीश्रीमाल. ज्ञातीय व्य० वरसिंह भा. तिलूश्रीने निजश्रेयार्थ जीवित "Aho Shrut Gyanam" Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०८) स्वामि श्रीश्रेयांसनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिमवीया श्रीधर्मशेखरमरिने की। (४७) सं० १६१८ माघशु० १३ प्राग्वाट सोनीगोत्रीय सामा की पुत्री सोनीदेवीने श्रीआदिनाथ प्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीविजयदानसरिने की। (४८) सं० १५१० आषाकृ० १ शुक्रवार के दिन उपकेशवंश में भणशालीगोत्रीय महाजन माला भा० माल्हवदेवी के पुत्र कावा श्रावकने अपने बन्धुगण गुणिया, डूंगर, पुत्र मादा, वदा, राजा प्रमुख परिवार सहित श्रीशान्तिनाथ का बिम्ब स्वपुण्यार्थ करवाया, जो खरतरगच्छीय श्रीविजयराजरि के पट्टधर श्रीजिनभद्रसरि के द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। ___सं० १५२८ वैशाखशु०५ गुरुवार के दिन प्राग्वाट. ज्ञातीय संघवी काला भा० माल्हणदेवी पुत्र सं० रत्ना मा० लाम्बूबाई सं० भीमाक(भीमराज)ने भा. देवमति परिवार सहित खकल्याणार्थ बृहत्तपापक्षीय श्रीज्ञानसागरसूरि के द्वारा श्रीसुविधिनाथ का बिम्ब भराया। (५०) सं० १४९९ काकिशु. १५ गुरुवार के दिन "Aho Shrut Gyanam" Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०९ ) श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० स्वीदा भा० काउचाई पुत्र धीराने अपने कल्याणार्थ श्री शीतलनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभवीया म० श्रीधर्मशेखरसूरिने थिरापद्रपुर में की ! ( ५१ ) सं० १२६३ वैशाखशु० ६ गुरुवार के दिन शा० टीला पुत्र शा० लूणाने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीदेवसूरि के शिष्य श्रीवयरसेनसूरिने की । ( ५२ ) सं० १५३४ वैशाखकृ० १० रविवार ( सोमवार) के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्यव० शैलराज भा० तेजूबाई पुत्र अजा ( अजयराज ) मा० वमीबाई पुत्र नरपालने पितृव्य व्य० वाछा ( वत्सराज ) डाहा, पांचा आदि परिजनों सहित श्री श्रेयांसनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा डीसा - नगर में श्रीसूरिने की । ( ५३ ) सं० १६१५ चैत्रक० ५ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमाल - १ लेखाङ्क ३०२ में सोमवार लिखा है । १४ "Aho Shrut Gyanam" Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१० ) ज्ञातीय महाजनी सोमराज भा० शमकलदेवी, द्वितीया भा० मृगादेवी के पुत्र वाळाने माता, पिता, पितृजनों के श्रेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमागच्छीय श्रीवीरप्रभसूरि के पट्टधर श्रीकमलप्रभसूरिने सविधि की । ( ५४ ) सं० १४९७ वैशाखकृ० ६ शुक्रवार के दिन बडलीनगर निवासी डीसावालज्ञातीय श्रे० कउझा भा० माकू के पुत्र समधरने भा० लाछी ( लक्ष्मी ) के सहित अपने पिता के कल्याणार्थ श्रीसुपार्श्वनाथ का विश्व करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीमाणिया श्रीजयशेखरसूरि के उपदेश से हुई । ( ५५ ) सं० १३४७ वैशाखकु० ५ शुक्रवार के दिन श्रीमन्मंडलने गुरु के उपदेश से ... साधुप्रभसिंहमुनि के द्वारा प्रतिमा ( प्रतिष्ठित ) करवाई | ( ५६ ) सं० १५१५ माघशु० १ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पिता देपाल, माता धापूबाई के श्रेयार्थ उसके पुत्र खीमा और खेताने श्रीनमिनाथ का बिम्ब करवाया, जिसकी "Aho Shrut Gyanam" Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २११ ) प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नमरि के उपदेश से हडियानगर के श्रीसंघने की। (५७) - सं० १३६९ वैशाखक. ८ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय परीक्षक मंडराज के श्रेयार्थ उसके पुत्र पाताने श्रीचतुर्विंशतितीर्थकरों का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय श्रीभुवनानन्दमूरि के शिष्य श्रीपमचन्द्रसूरिने की। (५८) सं० १४८८ ज्येष्टशु०३ सोमवार के दिन श्रीमालज्ञातीय माहणसिंह जयन्तसिंह भा० जयतलदेवी पुत्र वीरधवल हरिधवल विक्रमने एकमत होकर मातापिता और स्वकल्याणार्थ श्रीविमलनाथ चतुर्विशति जिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा त्रिभक्यिा पिष्पलाचार्य श्रीधर्मशेखरररिने की। (५९) सं० १५१७ पौषकृ० ५ (गुरुवार) के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्यव० माहण पुत्र व्य. सूरा भा० सुहवदेवी पुत्र व्य० सूदा, राणाने अपने कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथ चतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया भ. श्रीधर्मशेखरसागरसूरिने थरादनगर निवासी सर्व पूर्व पुरुषों की शान्ति बढ़ाने के लिये की। "Aho Shrut Gyanam" Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१२) (६०) सं० १४८२ वैशाखक० ४ गुरुवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्यव. ऊदिर भा. हांसलदेवी पुत्र भोला मा० मावलदेवी पुत्र नेमा, लूणाने माता पिता तथा भ्राता हेमला के कल्याणार्थ श्रीअजितनाथ चतुर्विशति जिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभरिया श्रीधर्मप्रभमूरि के पट्टधर श्रीधर्मशेखरसरिने की। (६१) सं० १५१६ पौषक. ५ गुरुवार के दिन थरादनिवासी थिरापद्रगच्छानुयायी श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० सूरा मा० श्रीदेवी पुत्र वीसलने भा० नीनादेवी, पुत्र धीरा, काला, कुटुम्ब सहित अपनी माता और पिता के कल्याणार्थ श्री श्रेयांसनाथ चतुर्विशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्री विजयसिंहमूरिने की। (६२) सं० १४५३ वैशाखशु० २ सोमवार के दिन ओसवाल.वंशीय महं० माहण भा० आल्हणदेवी पुत्र लूणा, वाछा, वैरमल, केल्हा आदि भ्राताजनोंने अपने माता भ्राता सर्व जनोंके अर्थ श्रीचतुर्विशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा जीराउलीपुरीगच्छीय श्रीवीरचन्द्रसरि के पट्टधर श्रीशालिभद्रसूरिने की। "Aho Shrut Gyanam" Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१३) सं० १५३५ पोषक. १२ रविवार के दिन उपकेशवंशीय श्रे० हीरा भा० हीरादेवी पुत्र सुश्रावक पासु (पारसमल) ने अपनी भार्या पूर्णिमादेवी पुत्र क्षेमराज भूतराज और देवराज सहित अपने श्रेयार्थ अंचलगच्छीय श्रीजयकेशरमरि के उपदेश से श्रीसंभवनाथ का बिम्ब करवाया, प्रतिष्ठा वागूडीग्राम में श्रीसंघने करवाई। सं० १५०७ माघशु० १३ शुक्रवार के दिन वीरवंशीय सं० लीम्बा भा० मोटीबाई पुत्र सं० सुश्रावक नारदने स्वमार्या जयरुदेवी सहित अंचलगच्छीय श्रीजयकेशरसूरि के उपदेश से श्रीधर्मनाथ का विम्ब पिता के श्रेयार्थ करवाया और श्रीसंघने प्रतिष्ठित करवाया। (६५) __ सं० १५०१ पौषक० ६ बुधवार के दिन वराहीगोत्रीय श्रीश्रीमालझातीय व्य० महिपाल पुत्रव्य० सिंह भा० सुहबदेवी पुत्र नाथा, राहुल, धरणने अपनी माता के कल्याणार्थ श्रीश्रेयांसनाथ का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा थारा. पद्रीयगच्छीय श्रीसर्वदेवसरि के पट्टधर श्रीविजयसिंहसूरिने की। (६६) सं० १४७९ माघशु० ४ काकवंशीय वोहराशाखीय "Aho Shrut Gyanam" Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१४) शा०राणिंगसिंह पुत्र गंगासिंह भा० महंधलदेवी पुत्र सांवल. सिंहने पुत्र वत्सा, तेजा सहित स्वमार्या क्षेत्रदेवी और वल्लालदेवी के श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसको खरतरगच्छीय श्रीजिनमद्रसरिने प्रतिष्ठित किया। सं० १५११ माघशु०५ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० सांडा पुत्र अदऊ भा० गेलीबाई पुत्र हरराजने मा० बाऊबाई सहित अपने पिता के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथ का बिम्ब करवाया, जिसको चैत्रगच्छीय धारणपद्रीय श्रीलक्ष्मीदेवमूरिने प्रतिष्ठित किया। (६८) सं० १५५३ वैशाखशु० १३ सोमवार के दिन वावी. नगर निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मना भा० डाहीबाई पुत्र रहिआने स्वमार्या रंगीबाई सहित अपने पिता, माता और पितजनों के एवं भ्राता के निमित्त तथा अपने श्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीपद्यानन्दसूरिने की। सं० १५०५ वैशाखशु० ३ शुक्रवार के दिन ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. मेघाने पुत्र गोसल "Aho Shrut Gyanam" Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (२१५) मा० शृंगारदेवी पुत्र कर्मसिंह सहित पिन देसलदेव, मात् महंगदेवी के श्रेयार्थ श्रीनमिनाथ का बिम्ब करवाया, जिसको श्रीपज्जूनमूरिने प्रतिष्ठित किया। मेघा के पिता देसलदेव थे और महंगदेवी माता थी। प्रथा की दृष्टि से पित्मात् का उल्लेख मेघा के पूर्व होना चाहिये था। सं० १४८५ माघशु० १० शनिवार के दिन श्रीश्री. मालझातीय मं० ठाकुरसिंह मा० अनकूदेवी पुत्र मं० काला ( कल्याणसिंह) ने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीपद्मप्रभस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीविद्याशेखरसूरि के उपदेश से हुई। (७१) ___ सं० १५१७ माघकृ० ८ बुधवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० वीरा भा० शानीबाई पुत्र जोगाने मा०-भानूबाई पुत्र महीराज कुटुम्ब सहित अपने श्रेयार्थ श्रीनमिनाथ का बिम्ब पूर्णिमापक्षीय श्रीगुणसमुद्रसूरि के पट्टधर श्रीपुण्यरत्नसूरि के उपदेश से दोलावाड़ा ग्राम में सविधि प्रतिष्ठित करवाया । (७२) सं० १५३५ माघशु० ३ रविवार के दिन उपकेशवंश "Aho Shrut Gyanam" Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१६) में रायथला सेठिया गोत्रीय धरणा पुत्र वेलराजने मा० विमलादेवी पुत्र खेमा, वेला, गजा आदि के श्रेयार्थ श्रीनमिनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिने की। (७३) सं० १४९३ फाल्गुनशु० १ उपकेशवंशीय नवलक्षाशाखा में शा० पाल्हा पुत्र शा. पीचा, फमणा श्रावकोंने श्रीआदिनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा खर• तरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिने की। (७४) सं० १५९८ चैत्रशु०५ बुधवार के दिन कावेयरिग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० प्रपितामह पेथा प्रपितामही प्रथमादेवी पितामह नीम्बराज पितामही कर्मादेवी पिता मेघराज माव आशादेवी के पुत्र पारखराज, लल्लूने अपने पूर्वज तथा माता पिता के श्रेयार्थ श्रीशीतलनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसको पिष्पलगच्छीय श्रीसमरचन्द्रमरि के पट्टधर श्रीशुभचन्द्रमरिने प्रतिष्ठित किया। (७५) सं० १४७१ श्रीश्रीमालक्षातीय श्रे० करहुआ भा० मंजूबाई पुत्र बालचंद्र ने अपने भ्राता लालचंद के श्रेयार्थ "Aho Shrut Gyanam" Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१७ ) श्रीचतुर्विंशतिजिनपढ़ करवाया, जिसकी सविधि प्रतिष्ठा आगमगच्छीय श्रीअमरसिंहरि के उपदेश से हुई । (७६) सं० x ६५ माघशु० १२ शुक्रवार के दिन भाद्रीपुर निवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य० पूनमचन्द्रने अपने पिता जसराज के श्रेयार्थ श्री शान्तिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीश्रीसूरिने की । ( ७७ ) सं० १५०६ माघशु० १० शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय थे० चूणा भा० वापलदेवी पुत्र देवराजने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीजीवितस्वामि श्रीशीतलनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्री सोमचन्द्रसूरि के पट्टधर श्री उदयदेवसूरिने पड़धलियाग्राम में की। ( ७८ ) सं० १४९९ कार्त्तिकशु० ५ गुरुवार के दिन श्री श्रीमालज्ञातीय व्य० मंडन मा० महणदेवी पुत्र बचा, वरढ़ाने अपने भ्राता कर्मसिंह, राघवसिंह के भेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया भ० श्रीधर्मशेखरसूरिने की । (७९) सं० १५२७ ज्येष्ठ शु० १० बुधवार के दिन श्रीश्रीमाल - "Aho Shrut Gyanam" Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१८ ) ज्ञातीय श्रे० संदा (चन्द्रराज ) ० सूरदेवने पुत्र देव, पोपट आदि परिजनों सहित भार्या वागूबाई के श्रेयार्थ श्री कुन्धुनाथस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्री पुण्यरत्नसूरि के उपदेश से विधिपूर्वक हुई । (८०) सं० १५८१ माघकृ० १० शुक्रवार के दिन श्री श्रीमालज्ञातीय वृद्वशाखा में मं० लाला ने भा० लीलादेवी पुत्र आशराज भा० उमादेवी पुत्र लाखा, हीरा, आदि परिवार सहित निगमप्रभावक श्री आनन्दसागरसूरि के द्वारा श्री शान्तिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( ८१ ) सं० १५१० कार्त्तिकक्र० ४ रविवार के दिन श्रीश्रीभालज्ञातीय व्य० लूणसिंह भा० लूणादेवी पुत्र संग्रामसिंह ने भा० वाल्हीदेवी के श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा थिरापद्र में पिप्पलगच्छीय त्रिभविया श्रीक्षेमशेखरसूरिने की । ( ८२ ) सं० १५२९ ज्येष्ठकृ० १ शुक्रवार के दिन विराणपुर निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० धना भा० धांधलदेवी पुत्र प्रेमराजने भा० आशादेवी पुत्र चांपा सहित माता पिता के "Aho Shrut Gyanam" Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१९) श्रेयार्थ श्रीपबप्रभपंचतीर्थी करवाई जो श्रीआगमगच्छीय श्रीअमररत्नहरि के उपदेश से प्रतिष्ठित हुई । (८३) . सं० १५१६ आषाढशु० १ शुक्रवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्य० कान्हा मा० कमलादेवी के पुत्र गुहिगराज, सूरदेवने मातापिता व आत्मश्रेयार्थ श्रीनमिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीसोमचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीउदयदेवमूरिने की। (८४) सं० १५१७ चैत्रपूर्णिमा के दिन श्रीमालज्ञातीय क्षेडरियागोत्र में सं० कानू (कन्हैयालाल) पुत्र रणवीर श्रावकने मा० हर्षादेवी के सुपुण्यार्थ श्रीशान्तिनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय जिनभद्रसूरि के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसरिने की। (८५) सं० १२२० ज्येष्ठशु० ९ रविवार के दिन श्रियाहडने श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा करवाई जिसकी प्रतिष्ठा प्रभुश्रीहेमचन्द्रसूरिने की। (८६) सं० १५११ माघशु० ५ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२०) ज्ञातीय व्य० सायर भा० संसारदेवी पुत्र व्य० कुरसिंह मा० नयनादेवी के पुत्र जयसिंहने श्रीधर्मनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभवीया श्रीधर्मशेखरसूरि के पट्टधर श्रीधर्मसुन्दरमूरिने की। (८७) सं. १५२५ ज्येष्ठ शु० ५ सोमवार के दिन वइरवाड़ा. ग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० गोलराज भा० गुरु देवी पुत्र हेमराजने भा० हीरादेवी माधु (माध्वी) पुत्र विजयराजसिंह परिजनों के सहित अपने कल्याणार्थ श्री अजितनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्री ब्रह्माणगच्छीय श्रीवीरमूरिने की। (८८) सं० १५१० फाल्गुनशु० ११ शनिवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्य० पुण्यपाल भा. पाल्हण देवी के पुत्र हीराचन्द्र, हरिश्चन्द्रने पूर्वजों के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीमावडारगच्छीय श्रीकालिकाचार्यसन्तानीय श्रीवीरसरि के उपदेश से हुई। सं० १५६१ माघकृ० ५ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० देवउ( देवराज) मा० पात्रीबाई पुत्र क्षेमराज "Aho Shrut Gyanam" Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२१ ) मा० वरजुबाई के पुत्र माजूने अपने पिता माता व आत्मकल्याणार्थ श्रीनमिनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया भट्टा० श्रीधर्मसागरसूरि के पट्टधर भ० श्रीधर्मप्रभसूरने की । (९०) सं० १५३० कार्तिकशु० १२ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० लीम्बराज भा० लाडूबाई पुत्र धर्मसिंह भा० धांधलदेवीने भ्राता बीना के व आत्मश्रेयार्थ श्री शीतलनाथजी का बिम्ब कराया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीमुनि सिंहसूर के पट्टधर श्रीअमरचन्द्रसूरिने की । ( ९१ ) सं० १५०१ फाल्गुनशु० ५ गुरुवार के दिन ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० तेजपाल भा० मूलाबाई पुत्र लाखाने मा० ललिताबाई, पुत्री रत्नू, पिता-माता के श्रेयार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का विम्ब श्रीपज्जूनसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( ९२ ) सं० १५२४ मार्गशिरक० २ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० तेजपाल भा० श्रीदेवी पुत्र व्य० पोपमल मा० पांतीदेवी पुत्र ब्रजांगदेव, देवपालने प्रमुख परिजनों सहित अपने "Aho Shrut Gyanam" Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२२) श्रेयार्थ श्रीसुविधिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छेश्वर श्रीरत्नशेखरसूरि के पट्टधर श्रीलक्ष्मीसागरसरिने की। (९३) सं० १५१७ पौषकृ. ५ गुरुवार के दिन राडबड़ग्राम निवासी श्रीमालज्ञातीय श्रे० वीरमदेव भा० विह्नणदेवी के पुत्र राहुल, भीमदेव भा० धीरजदेवी पुत्र हापाने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीसुविधिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पुर्णिमापक्षीय श्रीमुनिसिंहमूरिने की। (९४) सं० १५११ माघशु. ५ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्यव० कर्मसिंह मा० मदीबाई पुत्र महिपालने पिता माता व आत्मश्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीराजतिलकसरिने स्थिरापद्र (थराद )पुर में की। सं० १५३६ फाल्गुनशु०३ सोमवार के दिन साणीग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० लूणसिंह भा. वमकुबाई पुत्र भोजराजने भा० अमकुबाई, पुत्र रहियादि परिजनों सहित अपने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीश्रेयांसनाथजी का "Aho Shrut Gyanam" Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२३) बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमागच्छीय श्रीगुणधीरसरि के उपदेश से हुई। (९६) सं० १५०१ पौषकृ. ६ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वगसा भार्या जेसलदेवी के पुत्र धड़सिंहने अपने पिता, माता, भ्राता के श्रेयार्थ जीवितस्वामि श्रीसुमतिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय श्रीपमानन्दसूरि के पट्टधर श्रीविनयप्रभसूरि के द्वारा हुई। (९७) सं० १५०५ वैशाखशु० २ बुधवार के दिन लढाऊगोत्रीय सं० नगराज भा. लाठीबाई पुत्र सं० धनराजने मा० सुवर्णादेवी पुत्र सं० कालू प्रमुख परिजनों के साथ अपने श्रेयार्थ श्रीसुविधिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीखरतरगच्छीय गुरुश्रीजिनभद्रसरिने की। (९८) सं० १४९३ वैशाखशु० ५ बुधवार के दिन फलौदिया. गोत्रीय शा० छाहू भा० छाजूबाई पुत्र सावाने अपने पुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा धर्मघोषगच्छीय भट्टा० भीपद्मशेखरसूरि के पट्टधर म. श्रीविजयचन्द्रसरिने की। "Aho Shrut Gyanam" Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२४) (९९) सं०१४३५ माघकृ०१२ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय सं० खेडसिंह सुत सं० हादाने श्रीशान्तिनाथजी का विम्ब करवाया, जीसकी प्रतिष्ठा श्रीवीरसिंहमूरि के पट्टधर भीवीरचन्द्रसरिने की। (१००) सं० १५१० पौषकृ. ५ गुरुवार के दिन भीश्रीमालज्ञातीय व्यव० मुरदेव भा० सुहवदेवी पुत्र रूदा राणाकने अपने माता पिता के कल्याणार्थ श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया श्रीधर्मसागरमरिने की। (१०१) सं० १५७२ वैशाखक० ४ रविवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्य. भूवर पुत्र व्य० पोपटने भा० प्रेमलदेवी, आता गोपाल के पुत्र हादासहित अपने श्रेयार्थ श्रीसुविधिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखा में श्रीभुवनप्रभरिने की। (१०२) सं० १४३४ वैशाखक० बुधवार के दिन श्रीमालज्ञातीय व्य० जाठिल भा० क्षेमलदेवी श्रे० मालराजने श्रीशान्ति "Aho Shrut Gyanam" Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२५) नाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छा. चार्य श्री मुनिप्रभसरिने की । (१०३) सं० १४६२ वैशाखशु० ५ शुक्रवार के दिन प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० प्रलेपनदेव भा० साथलदेवी के पुत्र भापलदेवने श्रीआदिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा भडाहराग्राम में श्रीहरिभद्रसूरिने की । (१०४) सं० १५०६ वैशाखशु०६ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० लाखा भार्या पातलीबाई के पुत्र कीकाने अपने कल्याणार्थ श्रीनमिनाथजीका बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीजिनमाणिक्यमूरिने की। (१०५) सं. १४३० माघक०८ सोमवार के दिन ओसवालजातीय व्य० आशधर भा० रामलदेवी के पुत्र सादराजने पितृजनों के श्रेयार्थ भीआदिनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिप्पलाचार्य श्रीधर्मदेवसरिसन्तानीय भी प्रीतिसूरिने की। "Aho Shrut Gyanam" Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२६) (१०६) सं० १३०९ माघक०२ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे. नरसिंह भा० नयनादेवी, क्षेमराज साहमल पुत्र कर्णदेवने श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा चैत्रगच्छीय श्रीहरिश्चन्द्रमरिने की। (१०७) सं०१३९९ फाल्गुनशु०१३ सोमवार के दिन क्यड्डी ग्राम के संघने प्रतिष्ठा करवाई। ............ (१०८) सं० १७०८ मार्गशिरशु० २ रविवार के दिन शा० यक्षराजने तथा कडुआमतगच्छानुयायी माणजी लाधाजीने श्री पार्श्वनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित किया। (१०९) सं० १९८३ ज्येष्ठशु० ३ के दिन कडुआमतानुयायी थराद के ठाकुर रत्नपाल मा० उकुराणी रमादेवीने श्री सुमतिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा शाहजी तेजपालने की। (११०) सं० १६६२ फाल्गुनशु० २ बुधवार के दिन थराद. "Aho Shrut Gyanam" Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२७ ) नगर निवासी व्य० हारमलने पिताश्री साजनसिंह के पुण्यार्थ भी वासुपूज्यस्वामी का बिम्ब करवाया। सं० १३६४ वैशाखशु०१३ के दिन थे० छाडराज पुत्र क्षेमराज भा० जयतुदेवी पुत्र केल्हण भा० लूणीबाई पुत्र हरपाल भा० कर्पूरदेवी पुत्र रत्नसिंहने मा० गौरादेवी सहित काका देवल, पुण्यपाल, पिता पितृव्य नरपाल के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथ प्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्री महेन्द्र सूरि के प्रधर श्रीअभयदेवमूरिने की। सं०१४३६ वैशाखक. ११ भोमवार के दिन श्रीमालज्ञातीय व्य. वीवा, भा० हमीरदेवी के पुत्र भूदेवने अपने माता पिता के कल्याणार्थ श्रीपार्श्वनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीविजयप्रभसूरि के पट्टधर श्रीउदयानन्दमूरिने की । (११३) सं० १४७९ माघक० ७ सोमवार के दिन भावडार. गच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातिय व्य० भर्मराज के पुत्र सरवण(श्रवण )ने पुत्र पर्वत के श्रेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब श्रीविजयसिंहमूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९८) (११४) सं० १६१७ पौषक० १ गुरुवार के दिन राजाधिराज भीअश्वसेन, राणी श्रीवामादेवी के पुत्र श्रीश्री ५ श्रीपार्थनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा थिरापद्र निवासी लघुशाखा में श्रीमालज्ञातीय श्रे० वीजा पूना मूलाने अपने कर्मों के क्षयार्थ करवाई। (११५) सं० १६१७ पौषकृ० १ गुरुवार के दिन राजा श्रीकुम्भराणा रानिश्रीप्रमावतीदेवी के पुत्र श्रीश्रीमल्लिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा थिरापद्रनगरनिवासी श्रीश्रीमालक्षातीय महं० घडसिंह, रंगराज, उदयवंत, धनपाल संघवीने अपने कर्मों के क्षयार्थ करवाई। (११६ ) सं० १५७८ माघक० शुक्रवार के महाराजाधिराज श्रीवरथ महाराहि श्रीनन्दादेवी के पुत्र श्रीश्रीश्रीश्री श्रीशीतलनाथजी का बिम्ब करवाया। (११७) सं० १६१३ बैशाख शु.१० गुरुवार के दिन राजाघिराज महाराज श्रीनाभिनरेश्वर राज्ञिश्रीमरुदेवी के पुत्र "Aho Shrut Gyanam" Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२९) श्रीश्रीश्री श्रीआदिनाथप्रभु का बिम्ब थिरापद्रनिवासी श्री. श्रीमालजातीय नीतूबाईने अपने कर्मों के क्षयार्थ करवाया। _(१९८) सं० १५११ ज्येष्टक० ९ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० सोना (सुवर्णराज) मा खेतलदेवी पुत्र गाढराज मा० भोलीबाई पुत्र कालचन्द्र भा० कामलदेवी, भाता धर्मा, नरिया ने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीनमिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिम्पलगच्छीय भट्टा० श्रीउदयदेवसरिने बालहर ग्राम में की। (११९) सं० १५०६ चैत्रक० ५ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० जयसिंह मा० वापुदेवी के पुत्र वनराजने पित सारंग, भ्राता कर्मण(कर्मसिंह) के श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी सविधि प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीवीरप्रमसरि के उपदेश से निउरवाड़ा प्रामे में हुई। (१२०) सं० १५३६ माषक सोमवार के दिन उपकेशवंशीय शा० राणा, मा० रयणाबाई के पुत्र खरहत्थ श्रावकने स्वमार्या माणिकबाई पुत्र लक्ष्मण, केशवण, कीर्ति, पौत्र मदराज, सूरराज माणिकराज सहित पुत्र रावण के श्रेयार्थ "Aho Shrut Gyanam" Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३०) श्रीअंचलगच्छीय श्रीजयकेशरसूरि के उपदेश से श्रीसंभव. नाथप्रभु का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (१२१) ___ सं० १५११ माघशु० ५ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमाल. ज्ञातीय व्यव० कर्मसिंह भा० मदीबाई पुत्र वाधा (व्याघ्रसिंह ने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीअजितनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीपू०भट्टा० राजतिलकभूरि के उपदेश से श्रीमरिने थिरापद्रनगर में की। (१२२) सं० १५६० वैशाखशु० ३ बुधवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय व्य० सारंगदेव भा० रंगीवाई के पुत्र लक्ष्मणने स्वभार्या पालूबाई पुत्र रहिया, देवपाल सहित अपने पिता के और अपने श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथप्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय म० श्रीसोमरत्नमरि के पट्टघर मट्टा० श्री हेमसिंहमूरिने की। (१२३) सं०१५२१ ज्येष्ठशु० ९ सोमवार के दिन पूंजपुरनिवासी उपकेशज्ञाति में नाहरगोत्रीय कुशलराज भा० केल्हणदेवी के पुत्र माहणराजने अपने पितृव्य के तथा अपने श्रेयार्थ भी. धर्मघोषगच्छीय श्रीपमानन्दसरि के द्वारा श्रीसुमतिनाथ प्रभु का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३१ ) ( १२४ ) सं० १५३२ ज्येष्ठशु० १३ बुधवार के दिन उपकेशज्ञातीय व्यव० कीका भा० सरस्वती पुत्र खेता मा० रंगीबाई पुत्र रूपचन्द्र ने भ्राता देवराज के तथा अपने श्रेयार्थ श्री मिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा सत्यपुर में भावडारगच्छीय श्रीभावदेवसूरिने की । ( १२५ ) सं० १५६० वैशाखशु० ३ के दिन सं० खेता मा० इांसलदेवी के पुत्र सं० खेटा के भ्राता सं० अर्जुनदेवने स्वभार्या अधिकादेवी, पुत्र सं० भांडन, भ्रातृज सं० डूंगर, वना, जेसा आदि परिजनों के सहित वृद्धपितृव्य सं० मेहराज के श्रयार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीसोमसुन्दरसूरि के पट्टधर श्रीकमलसूरिने की । ( १२६ ) सं० १५४३ ज्येष्ठशु० ११ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय कय० समघर भा० जीवनी देवी के पुत्र व्य० धर्मसिंहने स्वभा० मणिकदेवी पुत्र महिराज, वरजा आदि सहित अपने श्रेयार्थ श्रीशीतलनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीश्रीसूरिने तथा पूज्य श्रीसौभाग्यरत्नसूरने की । "Aho Shrut Gyanam" Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३२) (१२७) सं० १५.... माघक. २ गुरुवार के दिन सहूआला ग्राम निवासी प्राग्वाटजातीय श्रे० धांगा भा० पंगादेवी के पुत्र पर्वतने स्वभार्या मटकदेवी पुत्र कर्मण आदि कुटुम्बी जन सहित श्रीविमलनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा वृद्धतपागच्छीय म० श्रीजिनसुन्दरसूरिने की। (१२८) सं० १५२३ वैशाखशु० १३ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य. मुंजराज भा० जसूदेवी के पुत्र हापाकने स्वभा० रत्नादेवी पुत्र जावड़, जीवराज, जागा आदि कुटुम्बीजन सहित अपने श्रेयार्थ श्रीअभिनन्दनप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागररिने मृजिगपुरमें की। (१२९) सं० १५२६ पौषक.२ गुरुवार के दिन कहीआणाग्राम निवासी ब्रमाणगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० रामा मा० रत्नदेवी के पुत्र वरदेवने स्वमा० वील्हणदेवी पुत्र मांजर, माखर सहित अपने माता पिता के श्रेयार्थ श्री सुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्री बुद्धिसागरमरिने की। "Aho Shrut Gyanam" Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३३) (१३०) सं० १५१७ वैशाखशु० १२ मंगलवार के दिन बालुकर ग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० हलराज भा. हेलीबाई के पुत्र शिवसिंहने अपने पिता, माता तथा पूर्वजों के श्रेयार्थ श्रीश्रेयांसनाथ पंचतीर्थी करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा पिपलगच्छीय भट्टा० श्रीगुणरत्नसूरिने की। (१३१) सं० १५४८ वैशाखक. १. रविवार के दिन पत्तन निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय सिद्धशाखा में शा० लक्ष्मणसिंह भा० मांजूदेवी पुत्र मदा ( मदनसिंह) भा० मांफदेवी पुत्र तेजसिंहने अपनी मा० मल्हादेवी सहित पिता, माता, भ्राता एवं अपने भेयार्थ श्रीशीतलनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीरत्नदेवमरि के पट्टधर श्री पमानन्दरि के द्वारा हुई। (१३२) ___ सं० १४९९ कार्तिकशु० १५ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमालक्षातीय व्यव० सूरा मा० सुहवदेवी के पुत्र पता (प्रतापमल) और रुद्रदेवने अपने कल्याणार्थ श्रीसंभवनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिमविया श्रीधर्मशेखरसरिने थारापद्र नगर में की। "Aho Shrut Gyanam" Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३४) (१३३) सं० १५१३ माघशु० ३ शुक्रवार के दिन वराउद्रग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० सूरा मा० नाड़ीबाई के पुत्र हापराजने स्वभा० कालीदेवी, पुत्र समधर, सहसा, वरदेव, वीरा, पंवायन, महीराज सहित अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा प्रमाणगच्छीय श्रीमणिचन्द्रमरिने की। (१३४) सं० १५२७ पौषकृ० ४ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमाल. ज्ञातीय सिद्धशाखा में व्यव० ददा मा० माणिकदेवी के पुत्र राणाने अपने भ्राता के सहित अपने श्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिपलगच्छीय श्री विजयदेववरि के शिष्य शालिमद्रसरिने की। (१३५) सं० १५३४ पौषकृ० १० के दिन संखारु ग्राम निवासी भे० भांजा मा० माल्हणदेवी पुत्र मावड़ मा० तंवीवाईने अपने श्रेयार्थ श्रीआदिनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा महा० श्रीलक्ष्मीसागरसूरिने की। (१३६) सं० १४५० माघक० ९ सोमवार के दिन श्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३५) जातीय धाँधलियागोत्र में ठकुर हरिराज पुत्र 30 हापराज 3. जयपाल के श्रेयार्थ उ० हेमराजने श्रीअजितनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय म. श्री. जिनवल्लभसरिने की। (१३७) सं० १५३७ वैशाखशु० १० सोमवार के दिन श्रीवीर. वंशीय श्रे० मोखा (मोक्षराज) भा० रामतीबाई के पुत्र सुश्रावक देवराजने पुत्र नारद पूना सहित अपने श्रेयार्थ श्रीअंचलगच्छीय श्रीजयकेशरसूरि के उपदेश से श्रीअनन्तनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पत्तननगर में श्रीसंघने करवाई। (१३८) सं० १५२७ माघकृ० ७ रविवार के दिन उपकेश-. बातीय व्य० मांडन भा० कर्णवाई पुत्र मोका भा. अदीबाई द्वितीया भा० समृपाई के पुत्र आल्हणने माता पांचा सहित अपने श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिमा करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा जीरापल्लीय श्रीउदयचन्द्रसरि के पट्टधर भट्टा० श्रीसागरचन्द्रमरिने की। (१३९) सं० १५०५ वैशाखक०९ शुक्रवार के दिन थिरापद्र.. "Aho Shrut Gyanam" Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३६) नगर निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय महाजनी साल्हा भा० फरकुदेवी पुत्र क्षेमराज मा० खेतलदेवीने पुत्र राजा सहित अपने कल्याणार्थ जीवितस्वामि श्रीनमिनाथजी का बिम्ब श्रीपू० मट्टा० श्रीवीरप्रमसूरि के सदुपदेश से प्रतिष्ठित करवाया। (१४०) - सं० १५१६ आषाढ...रविवार के दिन श्रीश्रीमालजातीय श्रे० वत्सा मा० पीझलदेवी के पुत्र शिवराजने अपने पिता, माता के श्रेयार्थ श्रीअजितनाथजी का बिम्ब पूर्णिमापक्षीय श्रीगुणसमुद्ररि के पइधर श्रीगुणधीरसूरि के उपदेश से तडेडाग्राम में मविधि प्रतिष्ठित करवाया। (१४१) सं० १५१६ माघक० ९ सोमवार के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० खोखा मा० कील्हणदेवी पुत्र देवराजने भा० मुलहश्री, पुत्र भरमा आदि सहित अपने आत्मकल्याणार्थ श्रीशीतलनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीदेवचन्द्रसरि के उपदेश से हुई। (१४२) सं० १५०५ वैशाखशु० ३ शुक्रवार के दिन थिरापद्रनगर निवासी थिरापद्रगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय ध्रु० धीरजमल भ्रात् नरसिंह, धीरजमल भा० धांधलदेवी के पुत्र "Aho Shrut Gyanam" Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २३७ ) इलाराज, अर्जुन और गोलराजने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीविजयसिंहसरिने की। (१४३) सं० १५२० चैत्रक० ५ बुधवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० शालिगने स्वभार्या गेरीबाई सहित पिता काल्हराज, माता रूपमति और अपने श्रेयार्थ भीकुन्धुनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिमविया श्रीधर्मशेखरसूरि के पट्टधर श्रीधर्मसूरिने की। (१४४) सं० १५१५ वैशाखशु०१३ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० मेहा भा० खंतलदेवी के पुत्र जयसिंहने स्वभार्या जयमादेवी के सहित माता, पिता और अपने श्रेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय भडा० श्रीविजयदेवरि के उपदेश से भी शालिमद्रसरिने मजोहग्राम में की। सं० १५२४ वैशाखशु०३ सोमवार के दिन सिद्धसन्तानीय श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० लक्ष्मणसिंह मा० मंजूदेवी के पुत्र गणियाने मा० विजयदेवी, पुत्र आशधर सहित "Aho Shrut Gyanam" Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३८ ) पिता, माता के श्रेयार्थ श्रीश्रेयांसनाथजी का बिम्ब कर. चाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिम्पलगच्छीय श्रीउदयदेवमरि के पट्टधर श्री रत्नदेवमरिने पत्तननगर में की। (१४६) सं० १५२९ फाल्गुनशु० २ शुक्रवार के दिन उपकेशवंशीय बड़हराशाख में शा० दुरगा भा० लीलादेवी के पुत्र सुभावक विक्रमदेवने स्वमा० पल्हादेवी, पुत्र व्याघ्रसिंह, भोजराज, क्षेमराज, क्षेत्रराज सहित पितृव्य साजन के श्रेयार्थ अंचलगच्छीय गुरुश्रीजयकेशरसूरि के उपदेश से श्रीविमलनाथप्रभु का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (१४७) सं० १५१० वैशाखशु०३ के दिन ऊढवग्राम निवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्यव० वीरमदेव भा० मनूबाई के पुत्र राघवदेवने माद हेमा, हीरा, वीसल भा० मचकूबाई के पुत्र अर्जुन, सांगा, सहजा, आदि कुटुम्बीजनों के सहित पिता के श्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीरत्नशेखरमरिने की। (१४८) सं० १५०७ फाल्गुनकु० ११ गुरुवार के दिन व्यव० गोलराजने मा० महगलदेवी के श्रेयार्थ श्रीकुन्थुनाथजी का "Aho Shrut Gyanam" Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३९ ) बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रह्माणगच्छीय श्रीमणिचन्द्रसूरिने की । ( १४९ ) सं० १३४१ ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० साइड के श्रेयार्थ उसके पुत्र लापराजने श्रीधरसूरि के द्वारा बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १५० ) सं० १५०३ ज्येष्ठक० ३ सोमवार के दिन मावडार - गच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० सोनराज भा० महीदेवीने अपने पुण्यार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीकालिकाचार्यसन्तानीय पूज्य श्री वीरसूरने की । ( १५१ ) सं० १५२७ माघकृ० ५ गुरुवार के दिन प्राग्वाट ज्ञातीय शा० करणा भा० भापुदेवी के पुत्र वीढाने स्वभा० राजुलदेवी, पुत्र शा० पालराज आदि कुटुम्बीजन सहित श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीलक्ष्मीसागरसूरिने की । ( १५२ ) सं० १४७१ मात्रशु० ३ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam" Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४०) श्रीदेदा मा० देल्हणदेवी के पुत्र दराजने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीविमलनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा विष्पलगच्छीय त्रिमविया श्रीधर्मप्रमरिने की । (१५३) सं० १५०१ पौषकृ० श्रीश्रीमालक्षातीय श्रे० नयनराज के पुत्र कर्णराजने पितृव्य तुहणा, मना, इंगर, बदा (और) माता पाती के श्रेयार्थ श्रीनेमिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा सिद्धान्ती श्रीसोमचन्द्रसरिने की। (१५४) __ सं० १५१५ ज्येष्ठक. १ शुक्रवार के दिन अहमदावाद. मिवासी प्राग्वाटजातीय मं० लीवराज मा० मंथवाई के पुत्र अदराज भा० भांजीबाईने अपने श्रेयार्थ श्रीअजितनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा वृहत्तपापक्षीय श्रीरत्नसिंहसरिने की। सं० १५२४ चैत्रक० ५ के दिन श्रीमालझातीय श्रे० भावराज मा० लालूदेवी पुत्र राजाने मा० राजू, पुत्र जीवराज, लाडराज, रत्नराज सहित पिता माता और स्वश्रेयार्थ श्रीश्रेयांसनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा धारण. पद्रीय मा० श्रीलक्ष्मीदेवसरिने की । "Aho Shrut Gyanam" Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४१) (१५६) सं० १५०६ माघशु०....... के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० सूराने भा० रूपाबाई, पुत्र धर्मराज के श्रेयार्थ, श्राविका बड़ी तथा अपने श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीधर्मशेखरदरि के पट्टधर श्रीविजयदेवसूरिने की। (१५७) सं० १५१० फागुन...११ शनिवार के दिन श्रीमी. मालज्ञातीय व्यव० पुण्यपाल भा० पाल्णदेवी पुत्र हीरा, हरियाने पुत्र नमराज नरपाल सहित अपने भ्राता (हीरा). के श्रेयार्थ श्रीअभिनन्दनप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा भावडारगच्छीय श्रीकालिकाचार्यसन्तानीय श्री वीरसरिने की। (१५८) सं० १३५९ ब्रमाणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० झांझपने पिता थिरपालश्रीमन्त के भेयार्थ श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब श्रीवीरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (१५९) सं० १४४९ वैशाखशु० ६ शुक्रवार के दिन उपकेशज्ञातीय थे० बीका(विक्रम )ने पिता कुरसिंह माता कामल. "Aho Shrut Gyanam" Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४२ ) देवी के श्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का विम्ब श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि के उपदेश से करवाया । ( १६० ) सं० १५०३ ज्येष्ठक० ७ के दिन ब्रह्माणगच्छानुयायी मोरिग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० शा० हीरा पुत्र वयराज भा० लाड़ीबाई पुत्र मण्डनने भा० पालूबाई पुत्र शा० समघर, धनराज सहित अपने श्रेयार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब श्रीपज्जून सूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( १६१ ) सं० १४४२ वैशाशकृ० १० रविवार के दिन श्रीमालज्ञातीय श्रे० हरपाल भा० हीरादेवीने अपने श्रेयार्थ जीवितस्वामि- श्री आदिनाथजी का विम्ब पिष्पलगच्छीय श्रीसागरचन्द्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( १६२ ) ६. सं० १५०३ मार्गशिरक० ५ भावडारगच्छानुयायी.... सं० हादा पुत्र सं० काला भा० कमलाबाई के पुत्र मीमा, वेला, मालाने अपने श्रेयार्थ श्रीवीरसूरि द्वारा श्रीनमिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १६३ ) सं० १४९३ में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० माऊलसिंह भा० "Aho Shrut Gyanam" Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४३ ) माणिकदेवी के पुत्र ठाकुरसिंहने मार्या पातूदेवी, पुत्र वानरराज आदि सहित श्रीसोमसुन्दरसूरि द्वारा श्रीसुमतिनाथस्वामी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १६४ ) सं० १४८२ वैशाखकृ० ४ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० देवराजने पिता आपमल, माता ऊमादेवी, पितृव्यरणसिंह के श्रेयार्थ पिष्पलगच्छीय श्रीसागरभद्रसूरि द्वारा श्री संभवनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १६५ ) सं० १५२७ कार्तिकक्रु० ५ सोमवार के दिन थिरापद्रगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय वृद्धशाखीय व्य० कर्माण मा० हमीरदेव के पुत्र नामराजने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्री अजितनाथप्रभु का विम्ब श्रीविजयसिंहसूर के पट्टधर श्री शान्तिनाथसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( १६६ ) सं० १५५२ फाल्गुनशु० ३ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय नियूगोत्रीय व्य० जीता भा० वानूदेवी पुत्र भीमराज मा० वरजूदेवी द्वि० भार्या कामलदेवी के पुत्र रामचन्द्र, रंगराजने कंछोली पूर्णिमापक्षीय भड्डा० श्रीविजयराजसूरि के द्वारा श्रीसुमतिनाथजी का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया । "Aho Shrut Gyanam" Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४४ (१६७) सं० १५३७ ज्येष्ठशु०२ सोमवार के दिन प्रारवाटज्ञातीय लघुशास्त्रीय ० हस्दास भा० गोलीबाई पुत्र राणा भा० टवकूबाईने अपने श्रेयार्थ श्रीअजितनाथजी का बिम्ब तपागच्छीय श्रीलक्ष्मीसागरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (१६८) सं० १५३३ मापशु० १३ सोमवार के दिन शनाकुयो ग्राम निवासी श्रीश्रीमालझातीय श्रे० ठाकुरसिंह भा० कर्मादेवी पुत्र मेहाजलने मा० माल्हणदेवी, पुत्र संधारणदेव, जगमाल सहित द्वि० भा. देवकुमारी या द्राक्षादेवी के श्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का विन्ध पूर्णिमापक्षीय मा. श्री. कमलप्रमसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। सं० १४८४ में प्राग्याटलातीय व्य. सायर के पुत्र व्य० गदाराजने अपने भाता पनराज के श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथजी का विम्ब तपागच्छीय श्रीसोमसुन्दरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (१७०) सं० १४३६ वैशाखक० ११ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० जसवीर मा० बांसलदेवी के पुत्र मामाने अपने पिता. "Aho Shrut Gyanam" Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९५) माता के श्रेयार्थ श्रीमहावीरप्रभु का बिम्ब श्रीपार्श्वचन्द्रसरि के उपदेश से प्रतिष्ठित करवाया। (१७१) सं० १५२९ माषशु०१ बुधवार के दिन ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीमालज्ञातीय श्रे० भावराज मा० भावलदेवी के पुत्र रामाशाहने स्वभार्या लाडीदेवी के श्रेयार्थ पुत्र बरजू सहित निज पूर्वजों के श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब श्रीविमलहरि के पधर श्रीवृद्धिसागरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । (१७२) सं० १५३२ वैशाखशु० १३ सोमवार के दिन थारापद्रगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. ठाकुरसिंह भा० पाल्हणदेवी के पुत्र उदयसिंहने मा० अहिवदेवी, पितृव्य फांफराज, कालूराज, झालिया के श्रेयार्थ श्रीशान्तिसरि के द्वारा श्रीअजितनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (१७३) सं० १२०४ वैशाखशु० ३ गुरुवार के दिन पंडेरकगच्छानुयायी देल्हा भा० देल्हीबाई के पुत्र रत्नसिंह के श्रेयार्थ कुंवरसिंहने श्रीपार्श्वनाथजी का विम्ब श्रीशान्तिमरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (१७४) सं० १५१३ वैशाख शु० ३ के दिन मूलसंघ में सर "Aho Shrut Gyanam" Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४६) स्वतीगच्छीय कुन्दकुन्दाचार्यसन्तानीय भट्टा० श्रीसकलकीर्ति के पट्टधर विमलेन्द्रकीर्तिगुरु के द्वारा हूम्बरबातीय श्रे० पद मा० बानूदेवी, पुत्र काला भा० बाल्हीदेवी, भ्राता कीका भा० गोमतिदेवी, भ्राता शिवसिंह, प्राता पूनमचन्द्र, वत्सराजने श्रीश्रेयांसनाथनी का बिम्ब करवाया। (यह मर्ति दिगंबरसम्प्रदाय की है)। (१७५) सं० १५३७ ज्येष्ठ शु०२ सोमवार के दिन वीरवंशीय श्रे० रत्ना मा० रत्नूदेवी पुत्र श्रे० धनराज सुश्रावकने भा० धनीवाई पुत्र पार्श्वदेव पबराज सहित अपनी भार्या के भेयार्थ अंचलगच्छीय श्रीजयकेशरपरि के उपदेश से श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसको श्रावस्तीनगर में श्री संघने प्रतिष्ठित किया । (१७६) सं० १४८५ माघ ०९ गुरुवार के दिन भावडारगच्छानुयायी श्रीश्रीमालझातीय व्यव. धरणदेव मा. कर्णदेवी के पुत्र पुण्यपालने पुत्र हीरा, हरदेव, यशपाल तथा माता पिता के श्रेयार्थ श्रीविजयसिंहपरि के द्वारा श्री. संभवनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (१७७) सं० १५९१ पौषक० १० बुधवार के दिन श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४७ ) ज्ञातीय श्रे० पूनमचन्द्र पुत्र डाहाचन्द्र भा० लाखूबाई पुत्र मेहा, समधर मा० लालीबाईने माता पिता के तथा अपने हितार्थ ब्रह्माणगच्छीय श्रीविमलसूरि के द्वारा बावड़ी ग्राम में श्री सुमतिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १७८ ) सं० १४०४ कार्त्तिककु० ९ सोमवार के दिन श्री श्रीमालज्ञातीय व्य० नरदेव भा० नीनादेवी तथा पितृव्य क्षेमराज, विजयराज के श्रेयार्थ तथा भ्राता नरसिंह आदि सर्व के हितार्थ ( नरदेव ) के पुत्र तिलकाने पूर्णिमापक्षीय श्रीसूरि के द्वारा श्रीपद्मप्रभपंचतीर्थी प्रतिष्ठित करवाई । ( १७९ ) सं० १३८७ वैशाखशु० २ रविवार के दिन ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वयराजने अपने श्रेयार्थ भे० कुरसिंह सहित श्रीपार्श्वनाथजी का विम्ब श्रीजगरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( १८० ) सं० १९४८ श्रीनागरदेवने अपने श्रेयार्थ करवाया । ( १८१ ) सं० १४५२ वैशाखशु० ५ गुरुवार के दिन श्रे० राउ पुत्र महं० राणा के पुत्र लालचन्द्रने अपने माता, पिता, "Aho Shrut Gyanam" Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४८ ) श्रेयार्थ श्रीपुण्यतिलकसूरिद्वारा श्री पितृम्य विजयराज के शान्तिनाथजी का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १८२ ) सं० १४५६ ज्येष्ठशु० १३ गुरुवार के दिन प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० सांगण भा० सुगुणादेवी के पुत्र मेघराजने आता गुणपाल, झगडमल, माता कुरदेवी के श्रेवार्थ श्रीसंभवनाथजी का विम्ब श्रीरत्नप्रभसूरि के उपदेश से प्रति ष्ठित करवाया | ( १८३ ) सं० १४६५ वैशाखशु० ३ गुरुवार के दिन श्री श्रीमालज्ञातीय व्यव० वीरा भा० वील्हणदेवी के पुत्र पर्वतने अपनी माता के श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का विम्ब नागेन्द्रमच्छीय श्रीरत्नसिंहरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( १८४ ) सं० १४५३ वैशाखशु० ३ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्यव० देपाकने पितृव्य नड़ीमल, माता सुहडादेवी, भ्राता खीमा, नडुआ, पंचजन के श्रेयार्थ श्रीघनतिलकसूरि के उपदेश से श्रीआदिनाथपंचतीर्थी प्रतिष्ठित करवाई । ( १८५ ) सं० १४९६ फाल्गुनक० रविवार के दिन श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४९) शातीय मे० फला, मा० पोमीबाई, प्राता जयकुरुसिंह के अयार्थ (फलराज) के पुत्र रहियाने श्रीन्युनाथजी का बिम्ब पिष्पलगच्छीय म० श्रीनीतिरत्नसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। ( १८६) सं० १४८४ वैशाखक० ११ रविवार के दिन श्रीश्रीमालक्षातीय व्यव० फूटरमल मा० हांसलदेवीने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीकुन्थुनाथजी का बिम्ब पिपलमच्छीय श्रीधर्मशेसरमरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (१८७) सं० १०४६ चैत्रकृ० १ के दिन अचलपुर के संघने (बिम्ब प्रतिष्ठित ) करवाया। (१८८) सं० १४८९ बैशाखशु०३ बुधवार के दिन श्रीश्री. मालज्ञातीय श्रे० हीराने मा० हीरादेवी, पुत्र माखर भा० साणीवाई अपने माता के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथजी का बिम्ब श्रीब्रह्माणगच्छीय श्रीक्षमासूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। __(१८९) सं० १५५२ वैशाखक. ३ शनिवार के दिन श्रीकुंडी. शासा के श्रीश्रीवंशीय व्य. गहिना मा० शाहपाई पुत्र करणराज मा० तारू पुत्र पांता भा० रामतीबाईने पिता के "Aho Shrut Gyanam" Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५०) श्रेयार्थ अंचलगच्छीय श्रीसिद्धान्तसागरसूरि के उपदेश से श्रीकुन्थुनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसको संघने प्रतिष्ठित करवाया। (१९०) सं० १४९९ कार्तिकशु० पूर्णिमा गुरुवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० अर्जुनदेव मा० काश्मीरदेवी पुत्र सायर पौत्र धनराजने अपने पितामह के तथा अपने श्रेयार्थ श्रीधान्तिनाथजी का बिम्ब पिष्पलगच्छीय त्रिमविया म० श्रीधर्मशेखरसरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । (१९१) सं० १५१५ कार्चिककृ०१४ शुक्रवार के दिन भावडार. गच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मेहाजलने भा० लाछूबाई, पुत्र पूना, गंगा, सांगा, और पितृव्य गेला सहित अपने श्रेयार्थ श्रीशीतलनाथजी का विम्ब श्रीवीरसूरि के पट्टधर श्री. जिनदेवसरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । (१९२) __सं० १३७७ चैत्रक० ८ भृगुवार के दिन साखुला. गोत्रीय शा० कर्मसिंह भा० चरणश्री के पुत्र शा० झांझणने श्रीदेवरि के द्वारा श्रीपार्श्वनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५१) ( १९३) सं० १३१४ वैशाखशु० ९ बुधवार के दिन ओसवालज्ञातीय ठाकुर श्रीदेल्हा मा० सुहदादेवी के पुत्र शा० झांझणदेवने अपने पूर्वजों के श्रेयार्थ श्रीजयवल्लमसूरि द्वारा श्रीपनप्रभस्वामि का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । __ सं० १५४७ वैशाखशु० ३ सोमवार के दिन प्राग्वाटज्ञातीय डीसाग्रामनिवासी व्य० लक्ष्मणने स्वभार्या रमकू. देवी, पुत्र लीवराज भा० टमकूदेवी, तेजराज, जिनदत्त, सोमराज, सूरदेव आदि सहित अपने कल्याणार्थ श्रीशान्ति. नाथजी का विम्ब अंचलगच्छीय श्रीसिद्धान्तसागरमरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (१९५) सं० १५१७ मार्गसिरशु० १० सोमवार के दिन उएसवंशीय शा० राणा भा० राणलदेवि के पुत्र सुश्रावक खरहस्थने स्वभार्या माणिकदेवी तथा पुत्र लक्ष्मण सहित अंचल गच्छीय श्री जयकेशरसूरि के उपदेश से श्री चन्द्रप्रमस्वामी का विम्ब अपने पिता के श्रेयार्थ करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीसंघने करवाई। (१९६) सं० १४९४ श्रावणकृ०९ रविवार के दिन श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५२ ) ज्ञातीय व्य० समरदेव मा० जारहणदेवी के श्रेयार्थ पुत्र भ्रमराजने विष्पलगच्छीय त्रिभविया श्रीधर्मशेखरसूरि के द्वारा श्रीसुविधिनाथ पंचतीर्थी प्रतिष्ठित करवाई । ( १९७ ) सं० १५०६ माघशु० १० सोमवार के दिन श्रीमाल - ज्ञातीय व्य० पर्वत भा० राजुदेवी पुत्र सहाद्रदेव, मेहराज, महीपालने अपने पिता माता के श्रेयार्थ नागेन्द्र गच्छीय श्री पद्मानन्दसूरि दे पट्टधर श्रीविनयप्रभरि के द्वारा श्री कुन्थुनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( १९८ ) सं० १४८९ वैशाखशु० १ सोमवार के दिन श्रीश्री मालज्ञातीय सं० शाखराज मा० भ्रमादेवी के पुत्र शोखराजने अपने भ्राता बहुआ के पुत्र साजन के श्रेयार्थ पिष्पलगच्छीय श्री सोमचन्द्रसूरि के द्वारा श्रीशान्तिनाथजी का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया । · ( १९९ ) सं० १३०९ फाल्गुनशु० १३ बुधवार के दिन सोराणागोष्ठिक शा० हरदेवने अपने पुत्रों तथा अपने श्रेयार्थ श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का बिम्ब धर्मघोषगच्छीय श्रीअमरप्रभसूरि के शिष्य श्रीज्ञानचन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । "Aho Shrut Gyanam" Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५३) (२००) सं० १२१७ वैशाखकृ०१ के दिन ब्रह्माणगच्छीय श्रीप्रद्युम्नमरि के द्वारा व्य० जोगराज के पुत्र विणुचन्द्र के श्रेयार्थ ( बिम्ब ) प्रतिष्ठित करवाया । (२०१) . सं० १४१२ ज्येष्ठशु० १३ गुरुवार के दिन श्रे० लूणसिंह""पाल के पुत्र विजयराजने अपने कल्याणार्थ श्री. अम्बिकाजी का बिम्ब श्रीमाणिक्यसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (२०२) सं० १४३७ वैशाखशु० ११ सोमवार के दिन श्रीश्री. मालक्षातीय कालदेवने पितृव्य तथा माता किसलदेवी के श्रेयार्थ पिष्पलगच्छनायक श्रीजेयतिलकसूरि के द्वारा श्रीऋषमदेवजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (२०३) सं०१२६१ में शान्तू आसल सं० धारणने (बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया ।) १ बुद्धिसागरजी के जैनघातुप्रतिमालेखसंग्रह के द्वितीयभाग के लेखाइ ९३१ में जयतिलक को धर्मतिलक भी लिखा है। "Aho Shrut Gyanam" Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५४) (२०४) सं० १५७२ कार्तिकशु०२ सोमवार के दिन श्रीआदिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। भोजकों की सेरी के आदिनाथचैत्य में धातुमूर्तियां (२०५) सं०१४८० फाल्गुनशु० १० बुधवार के दिन कोरंटगच्छीय श्रीननाचार्यसन्तानीय उपकेशज्ञातीय श्रे० हेमराज मा० भरमीषाई पुत्र मनराज भा० तारू पुत्र आल्दा भा० आशूदेवी के पुत्र हेमराज, सांगण भा० भामिनीने श्रीआदिनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट श्रीककमरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (२०६) सं० १४७९ चैत्रक० २ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय मंत्री वीरदेव भा० लखमादेवो के पुत्र वत्सराज भा० रामादेवी के श्रेयार्थ वीरदेव के पुत्र देवराज, धनराज ने श्री आदिनाथचतुर्विंशतिपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा थारापद्रगच्छीय श्री शान्तिमरिने की। (२०७) . सं० १५८२ वैशाखशु० ३ के दिन पत्तननगर निवासी श्रीश्रीमालझातीय श्रे० नरवद भा० जीविनी पुत्र विजयराज, हरराज, विजयराज भा० वयजलदेवी के पुत्र धरण "Aho Shrut Gyanam" Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५५ ) राजने अपनी पितामही लीलादेवी के श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय प्रधानशाखीय श्रीकमलप्रभरि के उपदेश से हुई ( लीलादेवी नरवद की द्वि० भार्या होगी ) ( २०८ ) सं० १४८३ वैशाखशु० ५ गुरुवार के दिन उपकेशवंशीय सं० जसराजने मा० चांपलदेवी, पुत्र वीसल, कन्या वडलीबाई के सहित स्वश्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा षंडेरकगच्छीय श्रीशान्तिसूरिने की । ( २०९ ) सं० १५०५ माघशु० १० रविवार दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० कर्मसिंह भा० हांसुदेवी पुत्र श्रे० नरपति सुभावकने स्वभार्या नयनादेवी, प्रमुख परिजनों के सहित माता पिता के श्रेयार्थ अंचलगच्छाधिराज श्री श्री जय केशर सूरि के उपदेश से श्री सुविधिनाथजी का बिम्ब करवाया, श्रीसंघने उसकी प्रतिष्ठा की । ( २१० ) सं० १५०३ माघशु० १३ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मालदेव भा० कामलदेवी पुत्र व्य० केल्हा भा० हर्षदेवी पुत्र व्य० मंडन मा० देदीबाईने पुत्र व्य० वेलराज, "Aho Shrut Gyanam" Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५६ ) गेलराज आदि परिजनों के सहित श्री विमलनाथजी का बिम्ब अपने कल्याणार्थ करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीरत्नशेखरसूरिने की । ( २११ ) सं० १५१५ वैशाखशु० ३ शनिवार के दिन बीजापुर निवासी ओसवालज्ञातीय दोशी जसराज मा० जसमाबाई पुत्र दो० अमरचन्द्र भा० देवश्री के पुत्र दो० कुडमलने स्वभा० कामलदेवी, द्वि० भा० हींरूदेवी पुत्र दो० घनराज, दो० बनराज भा० सोही, घनराज पुत्र कान्हा दंगढ़ प्रमुख परिजनों के सहित श्रीधर्मनाथजी का बिम्ब श्रीसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( २१२ ) सं० १५१५ वैशाखक्र० २ गुरुवार के दिन प्राग्वाठज्ञातीय श्रे० वागमलने भा० पोमी पुत्र वेलराज मा० लांबी, पुत्र वीरदेव सहित अपने श्रेयार्थ श्रीचन्द्रप्रमप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा सिद्धान्तगच्छीय भ० श्री सोमचन्द्रसूरिने की । ( २१३ ) सं० १५३८ वैशाख ० ५ बुधवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० धीराने भा० मलीबाई पुत्र आशराज, मनुदेव, धनुदेव देवराज दूंगरजी, अदुराज सहित अपने श्रेयार्थ श्री "Aho Shrut Gyanam" Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५७ ) चन्द्रप्रभस्वामी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा चैत्रगच्छीय म० श्रीरत्नदेवसूरि के पट्टधर भट्टा० श्रीअमरदेवरने की । ( २१४ ) सं० १५२५ माघकृ० ६ दिन चांपानेरनिवासी गुर्जरज्ञातीय महाजन नरसिंहने स्वभा० आशूबाई, पुत्र जिनकाम, पुत्र पद्मकिरण, श्रीवत्सराज, पहिराज आदि स्वपरिजनों सहित अपने श्रेयार्थ श्रीनमिनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीलक्ष्मीसागरसूरिने की । ( २१५ ) सं० १५३३ वैशाखशु० ६ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे० कर्मसिंह भा० लाडूबाई पुत्र थे० भ्रमरराजने मा० देसलबाई सहित अपने पिता-माता के तथा स्वश्रेयार्थ श्री सुविधिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा 'नागेन्द्रगच्छीय भ० श्रीगुणदेवसूरिने थिरापद्रनगर में की। ( २१६ ) सं० १२४४ फाल्गुनशु० ३ बुधवार के दिन आम्रयक्ष पुत्र आमूने अपनी माता राजिमति के श्रेयार्थ प्रभुबिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीमतिप्रभरिने की । १७ "Aho Shrut Gyanam" Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५८ } ( २१७ ) सं० १५४५ फाल्गुन कृ० २ भोमवार के दिन गांफग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय मं० भीमराज भा० नागिनी पुत्र कन्हैया भा० पुतलीबाईने अपने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीनमिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी सविधि प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्री साधुसुन्दरारि के पट्टधर श्री श्री श्रीदेवसुन्दरसूरि के उपदेश से हुई । ( २१८ ) सं० १४८१ पौषकृ० ८ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय व्य० विरूआ भा० भ्रमरदेवी के पुत्र बृहद्रथने अपने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय श्रीपद्यानन्दसूरिने की । ( २१९ ) सं० १५०३ ज्येष्ठशु० ९ बुधवार के दिन व्य० मेहण मा० माल्हणदेवी के पुत्र मंडनने अपने पुत्र धीरजराज के सहित अपने श्रेयार्थ श्रीसुमतिनाथजी का बिम्व करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा बृहदगच्छीय सत्यपुरीय भट्टा० श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिने की । ( २२० ) सं० १५१३ माघशु० ३ शुक्रवार के दिन उपकेश "Aho Shrut Gyanam" Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५९) ज्ञातीय पर्वजगोत्रीय व्य० शिव के पुत्र देवराजने अपनी भा. देवली के सहित माता संसारबाई के श्रेयार्थ श्रीपनप्रमस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा बड़गच्छीय श्रीसर्वदेवमूरिने की। (२२१) सं० १५१० माघशु० १० बुधवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० श्रवण, कालू तथा समधने पिता भामट, माता मीनलचाई के श्रेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नपूरि के उपदेश से सविधि क्यणाग्राम में हुई । (२२२) सं० १५६५ ज्येष्ठक. २ के दिन मुनिमहिमेसने श्रीपार्श्वनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित किया। (२२३) सं० १७८५ मार्गशिरशु० ५ के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय वोरा जसराजने स्वश्रेयार्थ श्रीधर्मनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा कडुआमतानुयायी शाहाजी लाधाजी थोभनजीने करवाई। (२२४) सं० १४११ ज्येष्ठकृ० ९ शनिवार के दिन श्रीश्रीमाल "Aho Shrut Gyanam" Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६० ) ज्ञातीय महं० सायाराजने अपनी गोत्रजा वैरुटथादेवी की मूर्त्ति करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रह्माणगच्छीय श्रीलब्धिसागरसूरिने की । ( २२५ ) सं० १६१२ पौषकृ० १ गुरुवार के दिन राजाधिराज श्रीअश्वसेन माता श्रीवामादेवी के पुत्र श्री श्री पार्श्वनाथप्रभु का बिम्ब थरादनिवासी लघुशाखा में श्रीमालज्ञातीय महं० तोलराज महं भोलराजने कर्मों का नाश होने के लिये करवाया । ( २२६ ) सं० साधुपूर्णिमापक्षीय श्रीसागरचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीसोमचन्द्रसूरि के उपदेश से ( घातुमय चतुर्मुख विम्ब ) प्रतिष्ठित करवाया । ( २२७ ) सं० ११५९ में शिवराजने श्रीपार्श्वनाथजी का विव श्रीविजयसेनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । देशाई की सेरी के विमलनाथचैत्य की धातुमूर्त्तियाँ ( २२८ ) सं० १५०६ वैशाखशु० ८ रविवार के दिन थारापद्रनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० मंडन के पुत्र वृद्धिचन्द्र भा० वाहनदेवीने अपने आत्मकल्याणार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी "Aho Shrut Gyanam" Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६१) चतुर्विंशतिजिनप करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया श्रीधर्मशेखरसूरिने की। ___ ( २२९) सं० १५१२ ज्येष्ठशु० ५ रविवार के दिन बड़लीग्रामनिवासी थारापद्रगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय महं. गोगन भा० नूंजीवाई पुत्र रसाजन मा० सुहरदेवी, सायर भा० नाईबाईने अपने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीआदिनाथचतुर्विशति जिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीविजयसिंहसरिने की। (२३०) ... सं० १४८५ माघशु०१० शनिवार के दिन श्रीश्रीमालजातीय व्य० सुहसिंह मा० साजनदेवी द्वि० भा० श्रीदेवी पुत्र लालचन्द्र ने अपने माता, पिता, भाता खींदा के श्रेयार्थ श्रीशान्तिनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय त्रिभविया श्रीधर्मशेखरसूरिने की। (२३१) . सं० १५८४ माधकृ० ११ रविवार के दिन राजाधिराज श्रीसुमित्रराजा माता पद्मावती देवी के पुत्र श्री श्री श्री श्री श्रीमुनिसुव्रतस्वामी का बिम्ब सं. कहरदेवी के पुत्र वीहड़देव के पुत्र राजारामने कर्मों के क्षय के लिये करवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६२) (२३२) .. सं० १६११ वैशाखशु० १० बुधवार के दिन थिराद्र.. नगर निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय बृहच्छाखा में सेवक धुढ़मल हंसराजने स्वकर्मक्षयार्थ श्रीआदिनाथजी का बिम्ब करवाया। (२३३) ___ सं० १५६८ माघशु०५ शुक्रवार के दिन विडारुआ ग्राम निवासी ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० जसराज मा० सलखणाबाई के पुत्र वासराजने अपने तथा माता, पिता के श्रेयार्थ श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब मुनिचन्द्रसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। ( २३४) सं० १५६९ ज्येष्ठशु० ५ सोमवार के दिन श्रे० सेवक कालराजने श्रीपार्श्वनाथजी का बिम्ब (प्रतिष्ठित) करवाया। (२३५) . सं० १५१८ फाल्गुनशु० ९ सोमवार के दिन उपकेशज्ञातीय शाह नवलमल भा० नामलबाई के पुत्र देवराज भा० भावदेवीने अपने श्रेयार्थ श्रीसंभवनाथपंचतीर्थी करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा भाबडारगच्छीय भ० श्रीभावदेवमूरिने की। (२३६ ) सं० १५३२ ज्येष्ठकु. ३ रविवार के दिन पटेल शा. "Aho Shrut Gyanam" Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६३) सामन्तराज मा० कमीदेवी के पुत्र वत्सराजने स्वमा० द्वीपदेवी, रत्नदेवी, माता हीराके पुत्र ठाकुरदेव प्रमुख कुटुम्बी जनों के सहित श्रीविमलनाथ प्रभु का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिने की। (२३७) सं० १४४८ कार्तिकशु० ३ बुधवार के दिन अंचलगच्छीय श्रीजयकीर्तिसूरि के उपदेश से नागरज्ञातीय परीक्षकगोत्रीय व्य० धंधराजने मा० आल्हणदेवी, पुत्र हापराज के श्रेयार्थ श्रीअभिनन्दनस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीमरिने की। (२३८) सं० १४९९ कार्तिकक० २ रविवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. वासरदेव मा. रामलदेवी (के पुत्र) धनराजने भ्राता तेजपाल के श्रेयार्थ पिष्पलगच्छीय त्रिमविया श्रीधर्मशेखरसूरि के द्वारा श्रीशीतलनाथजी का विन थिरापद्रनगर में प्रतिष्ठित करवाया। (२३९) सं० १५२० वैशाखशु० ५ बुधवार के दिन श्रीश्री. वंशीय ठ० कन्हैयालाल पुत्र सारंगदेव भा० हरखादेवी के पुत्र महिराज सुश्रावकने स्वमा० कुंवरदेवी, भ्राता शिवराज, "Aho Shrut Gyanam" Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६४) सिंहराज, चतुर्थराज तथा पुत्र जेठमल के सहित माता पिता के श्रेयार्थ अंचलगच्छीय श्रीजयकेशरमरि के उपदेश से श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीसंघने करवाई। (२४०) सं० १५२५ ज्येष्ठशु० ५ सोमवार के दिन वयरवाड़ा ग्राम निवासी श्रीश्रीमालजातीय व्य० सलक्षण भा० प्रेमी के पुत्र व्य० सिंहराजने स्व भा० लीलादेवी (लाड़कुमारी) पुत्र महिराज भोजराज आदि कुटुम्बी जनों के सहित परम कल्याण के लिये श्रीकुन्थुनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा ब्रह्माणगच्छीय श्रीवीरसरिने की। (२४१) सं० १५८१ माघकृ० १० शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय बृद्धशाखा में सीनारग्राम निवासी श्रे० लालचन्द्र मा० लीलादेवी पुत्र वत्सराज मा० वीझलदेवीने पुत्र धनराज, हंसराज कुटुम्बीजनों के सहित श्रीशान्तिनाथजी का विम्ब निगमप्रभावक श्रीआनन्दसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। (२४२) सं० १५२३ वैशाखशु० १३ के दिन सुजिगपुर निवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य० मेहराज मा० लांपूबाई के पुत्र महिम "Aho Shrut Gyanam" Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६५ ) सजने स्वमा० मरधू पुत्र लटकनदेव, आता नवद आदि कुटुम्बीजनों के सहित अपने श्रेयार्थ श्रीवासुपूज्यस्वामी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीलक्ष्मीसागरसूरि के द्वारा हुई । ( २४३ ) सं० १५०६ माघशु० ५ रविवार के दिन ब्रह्माणगच्छानुयायी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० येथड़ पुत्र देसल मा० महिगलबाईने अपने श्रेयार्थ जीवितस्वामि श्रीसुमतिनाथजी का विम्ब श्रीपज्जूनसूरि द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । ( २४४ ) सं० १४९३ फाल्गुनशु० १० शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० आल्हणसिंह भा० लाड़ीबाई के पुत्र श्रे० भूमवराजने अपने माता पिता के श्रेयार्थ श्रीसूरि के द्वारा श्रीशीतलनाथप्रभु का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( २४५ ) सं० १४२२ ज्येष्ठशु० ५ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय व्य० पीपाने पिता लक्ष्मण, माता लक्ष्मणी, पितृव्य सिंहराज के श्रेयार्थ श्रीविमलनाथ प्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पिष्पलगच्छीय श्रीमुनिप्रभसूरिने की । ( २४६ ) सं० १५६४ वैशाखशु० ३ गुरुवार के दिन श्रीश्रीमाल - "Aho Shrut Gyanam" Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६६) हातीय व्य० वीरदेव मा० श्रृंगारदेवी के पुत्र वीरमदेव मा० हेमदेवी के पुत्र वेलराजने पिता माता के श्रेयार्थ श्रीवासुपूज्य स्वामी की पंचतीर्थी करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीरत्नशेखरहरि के उपदेश से हुई।। (२४७) सं० १५८१ माघशु० ५गुरुवार के दिन आदियाणपुर• निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय महं० रत्नराज पुत्र....मा० प्रीतमदेवीने अपने कुटुम्बीजनों के श्रेयार्थ श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की पंचतीर्थी आगमगच्छीय श्रीसोमरत्नमरि के उपदेश से प्रतिष्ठित करवाई। (२४८) सं० १५०७ वैशाखशु० ११ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्या जयंतराज भा० वामृणदेवी के पुत्र आल्हणदेवने अपने पिता माता के तथा अपने श्रेयार्थ पिपलगच्छीय त्रिभविया भट्टा० श्रीचन्द्रप्रभसूरि के द्वारा श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (२४९) सं०१३९२ वैशाख कृ. ७ शुक्रवार के दिन श्रीमालज्ञातीय श्रे० वयरणसिंह भा० विजयादेवी....पिता माता के श्रेयार्थ भीपार्श्वनाथ प्रभु का बिम्ब श्रीदेवेन्द्रसरि के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रवरि.के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६७ ) ( २५० ) सं० १६८९ व्यव० नानदेवने श्रीशान्तिनाथप्रभु का बिम्ब ( प्रतिष्ठित ) करवाया । ( २५१ ) सं० १६२४ फाल्गुन शु० ४ मंगलवार के दिन श्रीसूरिने श्री सुमतिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित किया । सुनारों की सेरी के पार्श्वनाथचैत्य में धातुमूर्त्तियाँ( २५२ ) सं० १५०८ वैशाखक० ४ सोमवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० नयनराजने मा० टहिकुबाई, पुत्र श्रे० लक्ष्मणदेव, हेमराज और दूदा कुटुम्बसहित पिता माता के श्रेयार्थ श्री शान्तिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा सिद्धान्तीय श्रीसोमचन्द्रसूरि के द्वारा हुई । ( २५३ ) सं० १६१७ पौषकृ० १ गुरुवार के दिन राजाधिराज श्रीअश्वसेन राशि श्रीवामादेवी के पुत्र श्री श्री श्रीपार्श्वनाथप्रभु का विम्ब थिरापद्र निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० कुरा धींगा के पुत्रोंने कर्मों के क्षय के लिये (प्रतिष्ठित) करवाया । "Aho Shrut Gyanam" Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६८) आमली सेरी के सुपार्श्वचैत्य में धातुमूर्तियाँ (२५४) सं० १५०८ ज्येष्ठशु० ७ बुधवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय सांडलगोत्रीय शाह हापराज भा० चीराबाई के पुत्र शा० पोपट सुश्रावकने मा० माल्हणदेवी, दोहित्र लक्ष्मणदेच, सलक्षण के सहित पुत्र भला के श्रेयार्थ अंचलगच्छीय श्रीजयकेशरमरि के उपदेश से श्रीवासुपूज्यस्वामी का बिम्ब करवाया, और उसकी प्रतिष्ठा श्रीसंघने करवाई। (२५५) . सं०१४९९ वैशाखकृ० ४ गुरुवार के दिन उपकेशज्ञातीय कीकाने पिता भालराज, माता मोखलबाई के श्रेयार्थ श्री नमिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा भावडारगच्छीय भट्टा. वीरमरिने की। (२५६) सं० १५०८ ज्येष्ठशु० १० सोमवार के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० मोकलदेवने भा० उड़देवी, पुत्र हीराचन्द्र, च्य० सहजराज पुत्र ऊतल के सहित अपने श्रेयार्थ श्रीश्रेयांसनाथजी का विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा जीरापल्लीगच्छीय श्रीउदयचन्द्रसरिने की। "Aho Shrut Gyanam" Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६९) ( २५७) सं० १६८३ वैशाखशु०७ गुरुवार के दिन राजधन्यपुर (राधनपुर) निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय शा. हरदासने भा० हीरादे सहित श्रीशीतलनाथजी का विम्ब प्रतिष्ठित करवाया ................(यहाँ आचार्य का नाम होना चाहिये) ( २५८) सं० १५६७ ज्येष्ठशु० ५ बुधवार के दिन मृलसंघीय शा० हीरादेवीने (पंचतीर्थी करवाई) (२५९) सं० १२०९ उहूल की पुत्री दोलिकाने (दौलतदेवी) यह चतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया । राशिया की सेरी के अभिनन्दन चैत्य में धातुमूर्तियाँ (२६०) सं० १५५३ आषाढशु० २ शुक्रवार के दिन पत्तननिवासी प्राग्वाटज्ञातीय वृद्धशाखा में सं० सेंगा भा० हरखू पुत्र सं० अमा (अमृतराज) ने मा० लीलादेवी पुत्र क्षेमा, सिन्धु, लखमण, अलवा, धना सहित अपने कल्याणार्थ श्रीमुनिसुव्रतस्वामी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा "Aho Shrut Gyanam" Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७०) पूर्णिमापक्षीय भीमपल्लीय भट्टा० श्रीचारित्रचन्द्रसूरि के पट्टधर भ० श्रीमुनिचन्द्रसरि के उपदेश से हुई । (२६१) सं० १५१९ माघशु०५ सोमवार के दिन थिरापद्रनगर निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय गांधिक हापराज मा० हमीरदेवी के पुत्र जागराजने स्वभा० यमुनादेवी पुत्र वेला, ऊगम, मादा खेता के सहित पिता, माता, भ्राता मंडन के श्रेयार्थ श्रीधर्मनाथचतुर्विशति जिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय प्रधान भट्टा० श्रीजयसिंहमूरि के पट्टघर श्रीजयप्रभसूरि के उपदेश से हुई। मोदियों की सेरी के विमलनाथचैत्य में धातुमूर्तियाँ (२६२) सं० १५१५ फाल्गुनशु० ४ शनिवार के दिन श्रीश्रीभालज्ञातीय रत्नपाल भा. रत्नादेवी के पुत्र शाह गागचने मा० ललितादेवी, पुत्र गौवल भा० रूपिणी के श्रेयार्थ, प्राता सं० हूंगरने मा० शांझदेवी पुत्र गोपा सहित मोजा, विजयराजने श्रीनभिनाथमुख्य चतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नमरि के पट्टधर श्रीसाधुसुन्दरमरि के उपदेश से सचिनगर में हुई । (प्रतीत "Aho Shrut Gyanam" Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७१) ऐसा होता है कि भोज और विजयराज अविवाहित थे। चारोंने मिलकर पट्ट प्र. करवाया।) (२६३) सं० १५१९ मार्गशिरशु० ५ शुक्रवार के दिन श्रीश्रीभालज्ञातीय व्य. हिमाला भा० हिमादेवी के पुत्र वनराजने अपने श्रेयार्थ मा० चांपू, पुत्र पर्वत, नरवर, नायक, नलराज, जुगराज, लक्षराज सहित श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का बिम्ब अंचलगच्छीय श्रीजयकेशरपरि के उपदेश से प्रतिष्ठित करवाया। (२६४) सं. १५२० पौषक. ५ शुक्रवार के दिन श्रीमूलसंघीय न्य. कृष्णराज मा० झबुबाई पुत्र माणक भा० वारुबाई के पुत्र हरिदासने सरस्वतीगच्छीय भट्टा० सकलकीर्ति के पट्टधर भट्टा० श्रीविमलेन्द्रकीर्ति के द्वारा श्रीआदिनाथ का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । (दिगम्बरमतीय) (२६५) सं० १६११ फाल्गुनक०२ शुक्रवार के दिन कहुआमतानुयायिनी निसमुबाईने और थिरापद्रनिवासी मुहत्ताबाईने श्रीसुमतिनाथजी का बिम्ब (प्रतिष्ठित) करवाया । (२६६) सं० १६६१ फाल्गुन २ शुक्रवार के दिन गृहीउदय "Aho Shrut Gyanam" Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७२ ) वंत भा० हृषाबाई के पुत्र वापराजने श्रीअभिनन्दनस्वामी का बिम्व (प्रतिष्ठित ) करवाया । ( २६७ ) सं० १५८.... वैशाखक० ५ के दिन वेलागरीग्राम निवासी प्राग्वाटज्ञातीय शाह दूदराजने भा० जाणीवाई पुत्र जयवंतराज सहित अपने कल्याणार्थ श्रीश्रेयांसनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा पूर्णिमापक्षीय मट्टा० श्रीजिनहर्षसूरि के उपदेश से हुई । सुतारों की सेरी के शांतिनाथचैत्य में धातुमूर्त्तियाँ ( २६८ ) . सं० १४८३ ज्येष्ठशु० ९ मंगलवार के दिन श्रीश्रीमाल - ज्ञातीय व्य० महिपाल भा० मीनलबाई पुत्र हरिभ्रम, पौत्र चांपा, पाल्हा, सिन्धु, नरवदने पिता, माता, भ्राता, तथा पुत्रों के श्रेयार्थ श्री आदिनाथमुख्यचतुर्विंशतिबिम्बपट्ट कराया, जिसकी प्रतिष्ठा थारपद्रगच्छीय श्री शान्तिरिने की । ( २६९ ) सं० १५१८ फाल्गुनकृ० १ सोमवार के दिन उपकेशज्ञातीय नाहरगोत्रीय व्य० कुशलचन्द्रने भा० कील्हणबाई पुत्र त्रिहुणा, महणा, पेमा, अंमर सहित अपने पिता व स्वश्रेयार्थ श्री सुविविनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीधर्मघोषगच्छीय श्रीपद्मानन्दसूरिने की । "Aho Shrut Gyanam" Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७३) (२७०) सं० १५८७ वैशाखकृ०७ सोमवार के दिन काकरग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय भे० साइआ पुत्र श्रे० सवाने भा० वानूबाई पुत्र लटकण भा० लाखणदेवी समस्त कुटुम्बी जनों के सहित धीशान्तिनाथप्रभु का बिम्ब कर. वाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीमरिने की। - (२७१) सं० १६१७ ज्येष्ठशु०५ सोमवार के दिन ओसवाल. ज्ञातीय व्य. रायमल भा० श्रीबाई पुत्र हीरा भा० जीवाबाई पुत्र सिंहराजने श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय श्रीविजयदानसूरिने की। (२७२) सं० १५१९ मार्गशिरशु० ६ शनिवार के दिन रत्नपुरवासी प्राग्वाटज्ञातीय लघुशास्त्रा में मं० अरिसिंह भा. बाईदेवी पुत्र सं० गोपासुश्रावकने भा० सुलहमी पुत्र देवदास, शिवदास, सहित अपने श्रेयार्थ अंचलगच्छाधिराज श्रीजयकेशरपरि के उपदेश से श्रीसंभवनाथजी का बिम्ब करवाया, श्रीसंघने उसकी प्रतिष्ठा करवाई। (२७३) सं० १४९४ माघशु० ५ सोमवार के दिन भीश्रीमाल. "Aho Shrut Gyanam" Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७४) धातीय व्य. साहवण मा० सोनहलदेवी के पुत्र संग्रामसिंहने पितृव्य छाड़ा के श्रेयार्थ पूर्णिमापक्षीय श्रीजयप्रभसूरि के उपदेश से श्रीकुन्थुनाथस्वामी का बिम्ब करवाया और श्रीसंघने उसकी प्रतिष्ठा करवाई। श्री जीरापल्ली(जीराउला)तीर्थजीरावला पार्थनाथ नाम से यह तीर्थ प्रसिद्ध है। इस पुस्तकगत लेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह तीर्थ पन्द्रहवीं शताब्दि में अधिक प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ है। जिसका प्रारम्भ तेरहवीं शताब्दि का अन्त या चौदहवीं शताब्दि में हुआ होना चाहिये । इस बावन जिनालयवाले सौषशिखरी मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा भगवान् पार्श्वनाथ की है। पहली, पांचवीं, सोलहवीं, चौवीसवीं, पचीशवी, छब्बीसवीं और सचावीशवी देवकुलिका ऐसी हैं कि जिन में से कुछ पर तो लेख है ही नहीं और कुछ पर के लेख अतिजीर्ण और अस्पृष्ट हैं। इनके अतिरिक्त अन्य सर्व देवकुलिकाओं के शिलालेख इस में संग्रहित किये गये हैं। देवकुलिका नम्बर छियालीश, उगुणपचास, पचास और अट्ठावने के शिलालेख क्रमशः संवत १२६३, सं० १४११, सं० १४१२ और सं०१४१३ के हैं। छियालीशवी देवकृलिका का लेख सर्व से प्राचीन है। इनमें से द्वितीय और चतुर्थ में श्रीदेवचन्द्रसरि के पट्टधर श्रीजिन "Aho Shrut Gyanam" Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७५ ) सूरि के पट्टधर श्री रामचन्द्रसूरि का नाम है और तृतीय के लेख में श्रीविजय सेनसूरि के शिष्य श्रीरत्नाकरसूरि का नाम है । सतरहवीं, अडतालीशवीं और बियालीशवीं देवकुलिकाओं के लेखों में किसी मी आचार्य या साधु का नाम नहीं है, परन्तु देवकुलिकाओं के अतिरिक्त एक लेख के सर्व ही लेख पन्द्रहवीं शताब्दि के ही हैं । अन्तिम लेख सं० १४९२ का है । इस तीर्थ की प्रसिद्धि करवाने का अधिक श्रेय तपागच्छ के महान् आचार्य श्रीदेवसुन्दरसूरि के शिष्य श्री सोमसुन्दरसूरि की शिष्य परम्परा में श्री जयचन्द्रसूरि श्री भुवनचन्द्रसूरि और श्री जिनचन्द्रसूरि को है । देवकुलिका नम्बर आठ, नौ, दश, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, उन्नीश, तेवीस और इक्कावन के शिलालेखों में श्रीसोमसुन्दरसूरि के चतुर्थ पट्टधर श्रीभुवनचन्द्रसूरि का नाम है । देवकुलिका नम्बर अठारह के लेख में कृष्णपिंगच्छ के श्रीजयसिंहसूरि का, देवकुलिका नम्बर बीस के लेख में धर्मघोषगच्छ के श्रीविजयचन्द्रसूरि का और देवकुलिका नं० बावीस के द्वितीय लेख में मलधारीगच्छ के श्रीविद्यासागरसूरि का नाम है। ये सर्व लेख सं० १४८३ भाद्रपद कृष्णा सप्तमी गुरुवार के हैं। इन लेखों से प्रगट होता है कि सं० १४८३ में जीरापल्ली तीर्थ में उक्त चारों "Aho Shrut Gyanam" Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७६ ) आचार्यों का एक साथ चतुर्मास था और इन आचार्यों के दशनार्थ अनेक समीपवर्ती ग्राम नगरों से व्यक्ति और संघ आये थे। कलवा नगर का संघ अधिक उल्लेखनीय है। इस संघ के व्यक्तियों द्वारा विनिर्मित उक्त देवकुलिकाओं में श्रीभुवनचन्द्रसरि का नाम है। जिस से प्रगट होता है कि कलवा में अधिकतर जैन तपागच्छ के अनुयायी थे। इस समय तक जीरापल्ली एक प्रसिद्ध स्थान बन गया था और उसकी समृद्धि इतनी बढ़ गई थी कि उक्त चारों महान् आचार्यों के चतुर्मास का भार एक साथ वहन करने की उस में क्षमता थी। पन्द्रहवीं, सोलहवीं, सतरहवीं और उन्नीशर्वी शताब्दि के पूर्वार्ध का कोई लेख नहीं है । अन्तिम लेख बावनवीं देवकुलिका के षट्चतुष्किका के स्तम्भ पर उत्कीर्णित .सं. १८५१ आश्विन पूर्णिमा का है, जब कि श्रीरंगविमलमूरिजी द्वारा इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया गया था और ३०११) रुपये इस शुम कार्य में व्यय हुए थे। एक से एकतालीश तक के शिलालेख इसी तीर्थ के हैं, जिनका हिन्दी अनुवाद नीचे दिया गया है । लेखों में जो तिथियों और दिवसों की अजीब अनमेलता है, भरसक सुलझाने का प्रयत्न करने पर भी कहीं कहीं पूरी असफलता रही है। एक उदाहरण नीचे देखिये "Aho Shrut Gyanam" Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७७) . निर्माण दिवस देवकु० । लेखाक। आचार्य सं०१४८३. वै० १० १३ गुरुवार, २८. . .२१ जयकीसिसूरि " " , | २९ |२३सं० १४८३प्र. वै कृ०१३ गुरुवार ३०,३४ २३,२७ , प्र० कै कृ० ७ रविवार ४३,४४ | ३२,३३ जयचन्द्रसूरि , भाद्र० कृ० २ गुरुवार ५१, ४० भुवनसुन्दसरि ,, भाद्र कृ० ७ शुक्रवार ५२(अ) ४१ । , देवकुलिका नं. २८, २९ के शिलालेख संवत् १४८३ वैशाखकृष्णा त्रयोदशी गुरुवार के हैं और देवकुलिका नं. ३०, ३४ के शिलालेखों में वैशाख के पीछे 'प्रथम' शब्द जुड़ा है, परन्तु तिथि, वार और आचार्य का नाम देखते हुए ये सर्व लेख एक ही दिन और एक ही मास के हैं। हो सकता है दोनों प्रथम लेख वैशाख के हो अथवा द्वितीय के। कभी कभी संभवतः तिथियों की ऐसी भी घटती बढ़ती हो सकती है कि दो महिनों की कुछ तिथियाँ और वार एक ही आ पड़ते हैं । परन्तु अन्तर तो यहाँ आ पड़ता है कि प्र० वैशाख कृष्णा प्रयोदशी को दिन गुरुवार था जो प्र. वै०० सप्तमी को रविवार कैसे पड़ सकता था। इसी प्रकार भाद्रपदकृष्णा द्वितीया को और सप्तमी को क्रमशः गुरुवार और शुक्रवार कैसे पड़ सकते हैं ? जब कि लेखाइ ६, ७, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १६, २० के "Aho Shrut Gyanam" Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७८) अनुसार भाद्रपदकृष्णा सप्तमी को गुरुवार था। दो दो तिथियों के टूटने पर ही ऐसा संभाव्य है, सो प्रायः संभव नहीं, अति कठिन है। (२७४ से २७६) देवकुलिका नं० २, ३, ४. __स्वस्ति श्री सं० १४८१ वैशाखशु० ३ के दिन बृहतपापक्ष महा० श्रीरत्नाकरसरि के अनुक्रम से हुए श्रीअभयसिंहमरि के पट्टारूढ़ श्रीजयतिलकसूरीश्वर के पाट को अलंकृत करनेवाले भट्टारक श्रीरत्नसिंहसूरि के उपदेश से वीसलनगरनिवासी प्राग्वाटवंश को सुशोभित करनेवाले श्रे खेतसिंह का पुत्र श्रे० देहलसिंह का पुत्र श्रे० खोखा भा० पिंगलदेवी उसके पुत्र सं० सादा, सं० हादा, सं० मादा, सं० लाखा, सं० सिधा द्वारा इस तीर्थ के चैत्य में तीन देवकुलिकायें अपने कल्याणार्थ बनवाई। पूर्णचन्द्र नाहर एम.ए.बी.एल.ने अपने 'लेखसंग्रह' प्रथम भाग के लेखाङ्क ९७७ को जो. लेख उद्धृत किया है, इससे बहुत अधिक मिलता है। उन्होंने पिंगलदेवी के स्थान पर पिनलदेवी, सं० मृदा सं० मादा के स्थान पर और देहल, हादा न लिख कर स्पष्ट देवल और दादा लिखा है और सं० लाखा का नाम ही नहीं है जो विचारणीय है। "Aho Shrut Gyanam" Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७९) (२७७) देवकुलिका नं० ६. सं० १४८७ पौषशु०२ रविवार के दिन अंचलगच्छ के भीमेरुतुजसरि के पट्टधर गच्छनायक श्रीजयकीर्तिमूरि के उपदेश से पुंगलनिवासी प्राग्वाटज्ञाति के शा० भाणा पुत्र शा. जामद (झामट) की पत्नी सं०........ (२७८) देवकुलिका नं०७. सं० १४८७ पौषशु० २ रविवार के दिन तपागच्छीय श्रीदेवसुन्दरसूरि के पट्टधर श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीमुनिसुन्दर. सरि श्रीजयचन्द्रसूरि श्रीभुवनमुन्दरमरि श्रीजिनचन्द्रसरि के उपदेश से पत्तन निवासी प्राग्वाटज्ञातीय शा. लाला के पुत्र शा नाच शा० मेघा पुत्र भीमा, खीमाने अपने कल्याणार्थ देवकुलिका करवाई। लेखाङ्क ६,७,८, ९, १०, ११, १२, १३, १६, २० के अनुसार सं० १४८७ भाद्रपदकृ. ७ गुरुवार के रोज तपागच्छ के देवसुन्दरमरि के पट्टधर दुर्घरचारित्र धारक सोमसुन्दरसूरि मुनिसुन्दरसरि जयचन्द्रसरि मुवनसुन्दरसरि के उपदेश से फलवानगर के जिन निवासीयोंने देव. कुलिकायें-आठ, नौ, दश, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, "Aho Shrut Gyanam" Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८० ) पन्द्रह, उन्नीश और वैतीश बनवाई केवल उनका उक्त लेखों में वर्णित वंशो का परिचय ही यथाक्रम दिया जायगा । प्रतिष्ठाकर्ता इन सब के एक ही आचार्य हैं, अंतः प्रतिष्ठाकर्त्ता का नामोल्लेख भी पुनः पुनः नहीं किया जायगा । देवकुलिका नं० ८ ( २७९ ) ××××××× कलवग्रनिवासी ओसवालज्ञातीय शा० घणसिंह की सन्तति में शा० जयता भा० तिलकूबाई के पुत्र समरसिंह, सं० मोखसिंहने जीरावलाचैत्य में देवकुलिका बनवाई । श्रीपार्श्वनाथ की कृपा से मंगल होवे । I ( २८० ) देवकुलिका नं० ९ ××××××× कलवग्रनगर निवासी ओसवाल - ज्ञातीय शा घणसी सन्तानीय शा० जयता बाई तिलकू पुत्र सं० समरसिंह सं० मोख सिंहने श्रीजीरावलातीर्थचैत्य में देवकुलिका करवाई | श्रीपार्श्वनाथ की कृपा से मंगल होवे । ( २८१ ) देवकुलिका नं० १० कलवग्रनगरवासी ओसवालज्ञातीय "Aho Shrut Gyanam" Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८१) शा० धणसी (धनसिंह ) सन्तति में शा० जयता (जयंतसिंह) भा० तिलकूनाई पुत्र सं० समरसिंह सं० मोखसिंहने श्रीजीराउलातीर्थ के चैत्य में देवकुलिका बनवाई। पार्थनाथ की कृपा से मंगल होवे। (२८२) देवकुलिका नं. ११ xxxxxxx कलवर्णानगरनिवासी ओसवाल कटारिया गोत्रीय कोठारी छाहड़ सामन्त की सन्तति में को नरपति भा० देमाई के पुत्र सं० तूकदेव, पासदेव, पुनसी (पुण्यसिंह ), मूलाने जीरापल्लीतीर्थ के चैत्य में देवकुलिका करवाई। श्री पार्थप्रभु की कृपा से मंगल होवे । मेरा श्रेष्ठ कटारिया गोत्र है, मेरे पिता नरपति, मेरी माता देमाई है, और श्रीसोमसुन्दरसरिजी मेरे गुरु हैं जो श्रीछीलन मेड़ता मात्र की पौषालों में वन्दनीय गुरुदेवों के गुरुदेव माने जाते हैं। पूर्णचन्द्रनाहरने अपने ' लेखसंग्रह ' के प्रथम भाग में यह लेख कुछ अंश को छोड कर सारा लेखाङ्क ९७४ में उधृत किया है। उसमें नाहरजीने 'श्रीछालजमंडनमात्रशालं' उल्लिखित किया है, जिसका भी क्या अर्थ बैठता है? समझ में नहीं आया। छालज की जगह छाहड़ होता तो भी कुछ संगति होती। "Aho Shrut Gyanam" Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८२) (२८३) देवकुलिका नं० १२ ___xxxxxxx कलवानिवासी ओसवालज्ञातीय वरहडियागोत्र के शा० झांझा की सन्तति में शा० उदयन मा० छीतू के पुत्र सं० आशपालने जीरापल्ली चैत्य में देवकुलिका करवाई, श्रीपार्धनाथ की कृपा से मंगल होवे । (२८४) देवकुलिका नं० १३ xxxxxxx कलवानिवासी ओसवालजातीय नाहरगोत्र में शा० वीगा की सन्तति में शा० उदयसी (उदयसिंह) भा० वामलदेवी के पुत्र शा० पासिंहने जीराउलातीर्थ के चैत्य में देवकुलिका करवाई। पार्थप्रभु की कृपा से मंगल होवे। (२८५) देवकुलिका नं. १४ xxxxxxx कलवानिवासी ओसवालजातीय सांवलगोत्र में भा० घणसिंह की सन्तति में सं० माला भा० सं० पूनाई के पुत्र जगसिंह, सं० खोखसी भा० बाईहीरू के पुत्र सं० कमलसिंहने अपनी माता कस्तूरी के श्रेयार्थ पार्थनाथ की कृपा से जीराउलाचैत्य में देवकुलिका करवाई। . "Aho Shrut Gyanam" Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८३ ) लेखात आठ में वर्णित वंश में प्रसिद्ध पुरुष धणसींह ही इस लेख में वर्णित धणसिंह है । अन्तर इतना ही हैं कि इस लेख में गोत्र दिया है और उसमें नहीं। दोनों कुल एक ही संतति के हैं । ( २८६ ) देवकुलिका नं० १५ ××××××× कलवग्रनिवासी ओसवालज्ञातीय मं० मलुसिंह की सन्तति में सं० रतना मा० वीरूबाई के पुत्र आमलसिंहने अपने पुत्र सं० गुणराज सं० इंसराज के. सहित पार्श्वप्रभु की कृपा से जीरावलाचैत्य में देवकुलिका बनवाई। ( २८७ ) देवकुलिका नं० १७ सं० १४७४ श्रावण शु० ५ शनिवार के दिन खरतर - पक्षीय मं० लूणा सन्तान में मं० डूला, हापल सन्तान में मं० मूला पुत्र भीमा, हीरु, चाल्हण मं० हीराने... R 1 ( २८८ ) देवकुलिका नं० १८ सं० १४८३ भाद्रपद कृ० ७ गुरुवार के दिन कृष्णर्षि "Aho Shrut Gyanam" Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८४ ) गच्छ में तपापक्षी श्रीपुण्यप्रभसूरि के पट्टधर गच्छनायक श्रीजयसिंहरि के उपदेश से छामुकीगोत्रीय चन्द्रपुरनिवासी पद्मसिंह का पुत्र चन्द्रसिंह पुत्र माणसिंह पुत्र पुण्यसिंह भार्या पुण्यश्री (और) शा० घणसिंह ( मार्या ) बामीबाई का पुत्र धनराज ओसवालज्ञातीयने जीरापल्ली तीर्थ में चतुष्किा पर शिखर बनवाया । ( २८९ ) देवकुलिका नं० १९ ××××××× कलवग्रनिवासी ओसवालज्ञातीय सोनी नाहरगोत्र के सं० खेतसिंह के पुत्र सं० क्षेमसिंह, सं० नहनसिंह के पुत्र सं० करणसिंह सं० पासवीर, भगिनी, भा० तिलकू आदिने जीरावलीतीर्थचैत्य में चतुष्किका शिखर करवाया । ( २९० ) देवकुलिका नं० २० सं० १४८३ भाद्रपद कृ० ७ गुरुवार के दिन धर्मघोषगच्छ के श्रीमलयचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीविजय चन्द्रसूरि (के उपदेश से ) ओसवालज्ञातीय नाहरगोत्र के शा० आल्हा - का पुत्र शा० साल्हा भा० मणिबाई के पुत्र रत्नसिंह के पुत्र पासराजने जीरापल्ली तीर्थचैत्य में चतुष्किा शिखर करवाया । श्रीपार्श्वनाथ की कृपा से मंगल होते । "Aho Shrut Gyanam" Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८५ ) ( २९१ ) देवकुलिका नं० २१ सं १४८३ भाद्रपदक्र० ७ गुरुवार के दिन कृष्णर्षिगच्छ के तपापक्षीय श्रीपुण्यप्रभसूरि के पट्टधर गच्छनायक श्री विजय सिंहरि के उपदेश से कलवग्रनिवासी ओसवालज्ञातीय गोष्ठी ( गांधी ) गोत्र के ढाकल पुत्र शा० लोहिग का पुत्र शा० आंबा भार्या पोमादेवी के पुत्र शा० अजयसिंह के भ्राता सं० आशूने जीरापल्लीतीर्थचेत्य में चतुष्किका शिखर करवाया । ( २९२ अ ) देवकुलिका नं० २२ सं० १४२४ वैशाखकृ० ३ गुरुवार के दिन बृहद्गच्छाघिपति श्री दिन्नविजयसूरि द्वारा कलत्रग्र वास्तव्य ओसवालज्ञातीय धर्वकर्मणने मार्या कर्मादेवी, खीमादेवी के साथ खीमादेवी के कल्याण के लिये श्रीपार्श्वनाथ देवकुलिका करवाई। ( ब ) · सं० १४८३ भाद्रपदक० ७ गुरुवार के दिन मल्लधारीगच्छ के श्रीमतिसागरसूरि के पट्टधर श्रीविद्यासागरसूरि के उपदेश से कलबर्ग्रा निवासी ओसवालज्ञातीय गांधीगोत्र के शा० दलह का पुत्र शा० पोमा का पुत्र सं० शंसुआ भा० "Aho Shrut Gyanam" Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८६) संघविणी राजूदेवी के पुत्र सं० तुकदेव सं० सहदेवने जीराउलीचैत्य में चतुष्किका बनवाई। (२९३) देवकुलिका नं० २३ xxxxxxx कलवर्यानिवासी श्रीमालज्ञातीय ४० हूंगर मा० चंपादेवी के पुत्र ठ० मोखसिंह, रतनसिंहने जीरापल्लीतीर्थचैत्य में चतुष्किका शिखर बनवाया । (२९४) देवकुलिका नं० २८ ___ सं० १४८३ वैशाखकु. १३ गुरुवार के दिन अंचल. मच्छ के श्रीजयकीर्तिरि के उपदेश से ओसवालज्ञातीय दुग्धेड़गोत्र के शाह लक्ष्मण सिंह शा० भीमल शा. देवल शा० सारंग शा० झांझा मा० मेघवाई, शा. पूंजा, भेजा आदिने देवकुलिका करवाई। (२९५ अ) देवकुलिका नं० २९ सं० १४८३ वैशाखक० १३ गुरुवार के दिन अंचलगच्छ के श्रीजयकीर्तिमरि के उपदेश से दुग्धेड( दुधेडिया) शाखा में शा. लखमसी( लक्ष्मण सिंह) शा० भीमल, शा. देवल, शा. सारंग के पुत्र शा० डोसा मा० लक्ष्मीबाई शा० चांपा, शा० डूंगर, शा० मोखाने देवकुलिका करवाई। "Aho Shrut Gyanam" Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८७) (ब) ...............शा. सारंग भा० प्रतापदेवी के पुत्र डोसा भार्या लक्ष्मीदेवी, शा. चांपा, शा० डूंगर, सारंग की पुत्रवधू मीखी और कौतुकदेवी, पितृव्य शा० पूंजाने देवगुरु की कृपा से तीन देवकुलिकायें अंचलगच्छीय श्री. मेरुतुजसरि के पट्टधर श्रीजयकीर्तिरि के उपदेश से जीरापल्लीतीर्थचैत्य में करवाई। शिलालेखों का अध्ययन भी एक कला है। शिलालेखों के अर्थकर्ता ही इस कला की जटिलता को समझ सकते हैं । देवकुलिका नम्बर २८, २९ के लेखों में दुग्धेड़वंशी जिन जिन व्यक्तियों का नामोल्लेख हैं, वह इस ढंग से है कि अधिकांश के पारस्परिक सम्बन्ध का अनम्यस्त पाठकों को सहज पता नहीं पड़ता। लेखाङ्क २९४ के अनुसार लखसी (लक्ष्मणसिंह), भीमल, देवल, सारंग, पूंजा और भजा प्रागण है। इनके मध्य में पुत्र आदि कोई विमाजक शब्द नहीं है। विशिष्ट चिह 'शा' का प्रयोगक्रम भी यही सिद्ध करता है। लेखाङ्क २९५ (अ) के अनुसार उपरोक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए यही प्रतीत होता है कि डोसा, चांपा, डूंगर, मोखा भ्रातृगण हैं और ये सारंग के पुत्र हैं। (ब) के अनुसार सारंग की पुत्रवधू भीखी और "Aho Shrut Gyanam" Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८८ ) शा० लक्ष्मणसिंह, मीमल, देवल या तो इस समय तक मर चुके हैं या निस्सन्तान हैं या देवकुलिकाओं के बनवाने में उनका द्रश्य नहीं लगा है, इसीलिये उनकी सन्तान और स्त्रियों का नामोल्लेख नहीं है। पूंजा और भजा का मी द्रव्य देवकुलिकाओं के करवाने में व्यय नहीं हुआ प्रतीत होता है। झांझा की स्त्री का नामोल्लेख होना और सारंग की स्त्री का नामोल्लेख लेखाइ २९४ में नहीं होना प्रगट करता है कि देवकुलिका नं० २८ झांझाने अपने द्रव्य से बनवाई और अपने भ्राता के नाम सौजन्यता और भ्रातृप्रेम के कारण अपने शिलालेख में उत्कीर्ण करवाये । लेखाङ्क २९५ ( अ ) से भी यही विदित होता है कि डोसाने द्रव्य व्यय किया और लेख में उसके भ्राताओं का नाम होना उसकी सौजन्यता प्रकट करता हैं । लेखाङ्क २९५ ( ब ) में डूंगर, चांपा की स्त्रियों का भी नाम है तथा पितृव्य शा० पूंजा का भी नाम है इस से विदित होता है कि इस लेख में जितने भी व्यक्ति हैं उन सब का द्रव्य लगा है । दुग्धेड़ वंशवृक्ष | क्ष्मणसिंह भीम देवल सारंग ( प्रतापदेवी) झांझा ( मेघूदेवी ) पूंजा भजा डोसा (लक्ष्मीदेवी) चांपा ( भीखीदेवी) डूंगर ( कौतुकदेवी ) मोखा.. "Aho Shrut Gyanam" Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८९) (२९६-३००) देवकुलिका नं० ३०, ३१, ३२, ३३, ३४ । सं० १९८३ वैशाखक. १३ गुरुवार के दिन अंचल. गच्छ के श्रीमेरुतुङ्गसूरि के पट्टधर जगडामणि श्रीजयकीर्तिमरि के उपदेश से पत्तनवास्तव्य ओसवालज्ञातीय मीठडिया गोत्र के शाह संग्राम पुत्र शाह सलखमण पुत्र शा० तेजा भार्या तेजलदेवी पुत्र शा० डीडा, शा० खीमा, शा० भूरा, शा० काला० शा० गांगा, शा डीडा पुत्र शा० नागराज, काला पुत्र शा० पासा, शा० जीवराज, शा० जिनदास, शा तेजा का द्वितीय भ्राता शा० नरसिंह भार्या कौतिकर कौतुक )देवी पुत्र शा० पासदत्त और देवदत्तने जीरापल्लीतीर्थ चैत्य में तीन देवकुलिकायें बनवाई। श्रीदेवगुरु की कृपा से उत्तरोत्तर मंगल वृद्धि होवे । - ३१ से ३४वीं नम्बर की देवकुलिकाओं पर भी लेख इसी प्रकार के सांगोपांग मिलते हुए कुछ परिवर्तन के साथ अलग अलग उत्कीर्णित हैं। उन में अन्तर इतना ही है कि ३२वीं देवकुलिका शा० डीडा के पुत्र नागराज की पत्नी नारंगीने, ३३वी देवकुलिका शा० नरसिंह की पत्नी रूड़ी थाविकाने और ३४वी देवकुलिका शा० खीमा की पत्नी खीमादेवीने अपने जपने श्रेयार्थ बनवाई। उक्त लेख "Aho Shrut Gyanam" Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९० ) में तीन देवकुलिकायें बनवाने का स्पष्ट उल्लेख है, परन्तु ऐसा जान पड़ता है कि दो देवकुलिका उपरोक्त लेख लगाने के बाद में बनवाई गई हों और बाद में उन पर लेख उत्कीर्णित हुए हों। मीठड़िया गोत्रवंश का वृक्ष इस प्रकार है डीडा 1 नागराज मीठड़ियावंशगोत्रवृक्ष | संग्राम तेजा ( तेजलदेवी ) सलखमण I नरसिंह ( कौतिकदेवी) वीमा भूरा काला गांगा पासदत्त जीवराज पासा जिनदास ( ३०१ ) देवदत्त देवकुलिका नं० ३५. सं० १४८३ वैशाख कृ० १३ गुरुवार के दिन अंचलगच्छ के श्री मेरुतुङ्गसूरि के पट्टधर श्रीजयकीर्तिसूरि के उपदेश से स्तम्भतीर्थ निवासी श्रीमालीज्ञातीय परीक्षक अमरा भा० माऊ के पुत्र परीक्षक गोपाल, प० राउल, प० ढोला भार्या हिचकू पुत्र प० पूना भार्या ऊंदी, प० सोमा, "Aho Shrut Gyanam" Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९१) प० राउल पुत्र भोजा, प. सोमा पुत्र आशा और हिचकूने अपने श्रेयार्थ देवकुलिका (जीरापल्ली तीर्थ में) करवाई। पारी, पारीख और पारख गोत्र आज भी विद्यमान है जो परीक्षक का अपभ्रंस शब्द है। शिलालेखकोंने लेखों में परीक्षक न लिख कर 'परीक्ष' लिख दिया है। (३०२) देवकुलिका नं० ३८ के स्तम्भ पर सं० १५३४ वैशाखकृ० १० सोमवार के दिन सं० रत्ना के मित्र, न्याति मलुकगोत्रीय सं० जीवा के पुत्र सं० मंडन, जीवन, जीवदेव, खेता सहित मांडलगढ़ से ( यहाँ अभिवर्द्धित भाव से) यात्रा करने के लिये आया। ' इस लेख की रचना थोड़ी होकर भी अजीबढंग की हैं। फिर भी रत्ना न्याति परिवार से यहाँ यात्रार्थ मांडलगढ से आया इतना तो स्पष्ट हैं। (३०३ अ) देवकुलिका नं. ४१ सं० १४२१ ज्येष्ठ शु. १२.बुधवार के दिन मूलनक्षत्र और सिद्धिनामक योग में उपकेशमच्छीय श्रीककुदाचार्य १ लेखाङ्क ५२ में रविवार लिखा है। "Aho Shrut Gyanam" Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९२) सन्तानीय श्रीककसरि के पट्ट को सुशोभित करनेवाले भीदेवगुप्तहरि के उपदेश से उपकेशज्ञातीय चीवटगोत्र के वीसट के वंशज सा० लखमण पुत्र आजद पुत्र शा० गोसल पुत्र शा० देसल भार्या मोली पुत्र शा० सहज, शा० माहण, शा० समर शा० माहण भार्या मावलदेवी पुत्र सं० धना, शा० कडुआ, शा. लिम्बा, भगिनी मुकतू आदि के सहित साची मावलदेवी के द्वारा श्रीपार्श्वनाथचैत्य में आत्मकल्याण के लिये देवकुलिका करवाई (व्यय समस्ने किया अधिक संभाव्य है) चीवट गोत्र वंशवृक्ष लखमण आजड़ गोसल देसल ( भोलीदेवी) माहण ( भावलदेवी) सहज माहण ( भावलदेवी) धाकडआ लिम्बा मुकदेवी समर धन्ना कडुआ. लिम्बा मुकतूदेवी सं० १४८३ वैशाखक० ७ के दिन बृहत्तपागच्छाधिपति श्रीदेवसुन्दरमरि के पट्टधरों में मुकुट के समान श्री "Aho Shrut Gyanam" Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९३) सोमसुन्दरमरि श्रीमुनिसुन्दरमरि श्रीजयचन्द्रपरि श्रीभुवनसुन्दरमरि श्रीजिनसुन्दरसूरि के उपदेश से श्रीमालज्ञातीय ......पुत्र ठ० सारंग पुत्र 30 गुणराज पुत्र नागराजने अपनी भार्या के कल्याणार्थ यहाँ अग्रशिखर बनवाया। (३०४ अ) देवकुलिका नं० ४२ कल्याणकारी जय और अभ्युदय हो। " प्रतिष्ठराजा के नन्दन और सुसीमाराणी के अंग से उत्पन्न श्रीपद्मप्रमजिनेन्द्र रक्त कमल की प्रभा के समान दिखाई देते हैं वे पवित्र करें।" सं० १४२१ कार्तिक शु० ५ रविवार के दिन हस्तनक्षत्र में कोड़ीनारनगरनिवासी आगमिकगच्छानुयायी मोड़ज्ञातीय सुश्रावक झाल्हा, समदेव, ठ० बीना, ४० सणसव, जयता पुत्र सं० अजितने मार्या हिवा (शिवा) देवी आदि कुटुम्ब परिवार सहित भव को जीतने के लिये श्रीपअप्रभस्वामी का विम्ब करवाया। नेहर भार्या अहिवदेवीने श्रीपार्श्वनाथ की देवकुलिका बनवाई। - सं० १४८३ वैशाखशु०७ के दिन भट्टारक श्रीदेवसुन्दरमरि के पट्टधर सोमसुन्दरसूरि मुनिसुन्दरसूरि जयचन्द्रसरि भुवनसुन्दरसूरि जिनसुन्दरसूरि के धर्मोपदेश से श्रीमालक्षातीय विजयसिंह पुत्र जगतसिंह पुत्र गुणपति, "Aho Shrut Gyanam" Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९४ ) रत्नसिंह पत्नी कालुदेवी पुत्र रंगदेवने ( अपने ) कल्याणार्थ देवकुलिका करवाई । ( ३०५ - ३०६ ) देवकुलिका नं० ४३, ४४ सं० १४८३ वैशाखक्र० ७ रविवार के दिन तपगच्छनायक श्री देवसुन्दरसूरि के पट्ट को अलङ्कृत करनेवाले भट्टा० श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीमुनिसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसूरि के उपदेश से योगिनीपुर के निवासी शा० रूला पुत्र हंसराज, पुत्री हंसादेवी पुत्र रंगदेवने करवाई । (2009) देवकुलिका नं० ४५ सं० १८८३ वैशाखशु० १३ के दिन तपगच्छाधिराज श्रीदेवसुन्दरसूरि के पट्ट को अलङ्कृत करनेवाले श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसूरि के उपदेश से रतनपुर निवासी सं० लक्ष्मण पुत्र सं० राघव, मंत्री गोसल पुत्र सोमप्रभराज भार्या रंगादेवी पुत्र सोमदेवने रंगादेवी के श्रेयार्थ ( देवकुलिका ) करवाई । इन लेखों में भुवनसुन्दरसूरि के नाम संभवतः इसलिये नहीं है कि ये दोनों आचार्य जीरापल्लीतीर्थ में उस समय विद्यमान नहीं थे । देवकुलिका नं० ४१, ४२ के द्वितीय "Aho Shrut Gyanam" Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९५) लेखों में जो पश्चात्वर्ती और वैशाखशुला सप्तमी के हैं, इन दोनों आचार्यों का नाम विद्यमान है। भुवनसुन्दरसूरि और जिनचन्द्रहरि अनुक्रम से श्रीजयचन्द्रसूरि से छोटे हैं, इसलिये श्रीजयचन्द्रमरि के लिये इनके उपस्थित होने पर ही इनका नाम देना मर्यादानुसार उचित है। (३०८ अ) देवकुलिका नं० ४६ सं० १२६३ अढाइक०२ गुरुवार के दिन श्रीधर्मघोषसरि के उपदेश से ओसवालज्ञातीय सं० आंवड़ पुत्र जगसिंह पुत्र उदयसिंह भार्या उदयादेवी के पुत्र नेमसिंहने इस जीरापल्लीपार्श्वतीर्थ में मोक्षरूपी धन प्राप्त करने के लिये देवकुलिका करवाई। धर्मघोषसरि नामक दो प्रसिद्ध आचार्य तेरहवीं शतादि में हो गये हैं। एक वे हैं जो श्रीजयसिंहमूरि के पट्ट को अलंकृत करनेवाले थे और जिनके पश्चात् श्रीमहेन्द्रसिंहपरि हुए । उनका जन्म सं० १२०८, दीक्षा सं० १२२६, आचार्यपद सं०१२३४ और निर्वाण सं०१२६८ में हुआ। द्वितीय श्रीदेवेन्द्रसूरि के पट्टधर और सोमप्रभसूरि के गुरु थे। मांडवगढ़ के प्रसिद्ध महामंत्री पृथ्वीकुमार(पेथड़) के ये गुरु थे। निर्वाण सं०१३३२ में हुआ। दोनों आचार्यों के कालों पर विचार करने से यही उचित प्रतीत होता है कि उक्त "Aho Shrut Gyanam" Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चकुलिका का शिकार के उपदेश सर मीमसिंह ना (२९६) देवकुलिका का शिलान्यास सं० १२६३ में श्रीजयसिंहसरि के पधर श्रीधर्मघोषसरि के उपदेश से हुआ । सं० १२६५ में ये आचार्य जालोर गये थे और वहाँ पर मीमसिंह नामक क्षत्रिय को प्रतिवोध देकर सहकुटुम्ब जैनधर्मी बनाकर ओसवालज्ञाति में सम्मिलित किया था। इस घटना से इन आचार्य का सिरोही प्रान्त में सं० १२६३ में विहार हुआ होना ही चाहिये, प्रमाणित हो जाता है। (ब) सं० १४८३ भाद्रपदकृ०७ गुरुवार के दिन तपागच्छनायक श्रीदेवसुन्दरमरि के पट्टभूषण मट्टारक श्रीसोमसुन्दरसरि श्रीमुनिसुन्दरमरि श्रीजयचन्द्रसरि श्रीभुवनसुन्दरसूरि के उपदेश से खंभातनिवासी ओसवालज्ञातीय सोनी नरिआ पुत्र सोनी पद्मसिंह (लक्ष्मणसिंह) भार्या आल्हणदेवीने जीरापल्लीतीर्थचैत्य में चतुष्किका के ऊपर शिखर बंधवाया। (३०९) देवकुलिका नं०४८ "अपने सप्त-फणों के द्वारा श्रीपार्श्वनाथप्रभु संसारवासियों की और श्रीसंघों की सात भयों और सात नरक के भयों से रक्षा करते हैं, वे पार्श्वनाथ आपलोगों का रक्षण करें।" सं १४१३ फाल्गुनशु० १३ के दिन स्वातिनक्षत्र "Aho Shrut Gyanam" Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९७ ) में बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरि के पट्ट को मुक्ताहार के समान सुशोभित करनेवाले श्रीरामचन्द्रसरिने अपने आत्मश्रेयार्थ जीरापल्लीतीर्थ के चैत्य में देवकुलिका बनवाई । जीरापल्लीयगच्छ के सकल संघ को शुभकर हो। जब तक पृथ्वी रहेगी, सुमेरु रहेगा और सूर्य, चन्द्र गगन में प्रकाशक रहेंगे तब तक यह देवकूलिका लोगों के द्वारा प्रशंसा पाओ।" सकल संघ और जीरापल्लीयगच्छ का मंगल होवे । (३१०) देवकुलिका नं०४९ " श्रीपार्श्वनाथ भगवान अपने सात फणों के द्वारासंसारवासियों एवं संघ समुदायों की सिंहादि और रत्नप्रमादि नरक सम्बन्धि सात भयों से रक्षा करते हैं, वे पार्श्वप्रभु आप लोगों का रक्षण करें।" सं० १४११ चैत्र१० ६ बुधवार के दिन अनुराधा नक्षत्र में बृहद्गच्छीय श्रीदेवचन्द्रसूरि के पदृधर श्रीजिनचन्द्रमरि के गादीघर तप से नमे हुए तफरूप धनवाले तपस्वी साधुओं के परिवार से परिवेष्टित जीरापल्लीय श्रीरामचन्द्रसरिने पवित्र श्रीपार्श्वनाथ के चैत्य में देवकुलिका बनवाई । " जब तक पृथ्वी, सुमेरुपर्वत और आकाश में प्रकाशमान सूर्य चन्द्र स्थिर रहें तब तक यह देवकृलिका अभिनन्दिता ( जयवती) रहो ।" "Aho Shrut Gyanam" Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९८) (३११) देवकुलिका नं. ५० - "श्रीशान्तिनाथप्रभु का आत्मबल मुक्तिरमणी के ललाट स्थित भौओं को आनन्द देनेवाला है और प्रभु के चन्द्रमा का मित्र (मृग) लंछन है जो दोष युक्त लोगों में नहीं पाया जाता।" सं० १४१२ आश्विनकु० ४ बुधवार के दिन कृत्तिका नक्षत्र में ओसवालज्ञातीय व्य० अभयपाल मार्या राजुलदेवी पुत्र व्य. बीकामल भार्या पूंजीबाई पुत्र डूंगर, पाल्हा, दोल्हाने समस्तपरिवार सहित अपने कुटुम्ब के कल्याणार्थ श्रीपार्श्वनाथचैत्यं में श्रीशान्तिनाथ की देव. कुलिका श्रीविजयसेनसूरि के शिष्य श्रीरत्नाकर' के उपदेश से बनवाई। (३१२) देवकुलिका नं० ५१ सं० १४८३ भाद्रपदकु०७ गुरुवार के दिन तपागच्छनायक श्रीदेवसुन्दरसूरि के पट्टधर श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसरि श्रीभुवनसुन्दरसूरि के उपदेश से कलवानिवासी ओसवालज्ञातीय शां० मांडण, शा० शिवि के पुत्र देसाने जीरापल्लीतीर्थचत्य में देवकुलिकाका शिखर बनवाया। , १ लेखाङ्क ३२७ के अनुसार ये आचार्य ब्रह्माणगच्छीय है। "Aho Shrut Gyanam" Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९९ ) ( ३१३ ) देवकुलिका नं० ५२ सं० १४८३ भाद्रपदक ७ गुरुवार के दिन वीसा भार्या वामदेवी, गोष्ठी सोनानी हीरा । ( ३१४ ) सं० १४९२ मार्गशिरकृ० १४ रविवार के दिन घोधाग्रामनिवासी आड़ भार्या अहड़देवी पुत्री झमकुबाईने शिखर करवाया । ( ३१५ ) देवकुलिका के छआ में -वामादेवी के पुत्र सीहड़ गोष्ठीने देवकुलिका करवाई | ( ३१६ ) मूलजिनालय के पीछे देवकुलिका के स्तम्भ पर aldais सं० १४८७ अरिहन्तों को नमस्कार हो । गून्दी कर पीपलगच्छ में त्रिभविया श्रीधर्मशेखरसूरि के शिष्य वाचक देवचन्द्र मुद्राकला से और तालध्वजीय वाचक सहजसुन्दर अर्हन्तों और जिनेश्वरों को नित्य वन्दन करता है । ( ३१७ ) पटचतुष्किका के स्तम्भ पर सं० १८५१ आवादशुक्ला पूर्णिमा के दिन श्रीजीरा "Aho Shrut Gyanam" Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०० ) पल्ली के मन्दिर के शिखर का जीर्णोद्धार सकल भट्टारकपुरन्दर भट्टारक श्री श्री श्री श्री १००८ श्रीरंगविमलसूरि के सदुपदेश से रु० ३०२११) व्यय करके शा० रूपा, शा० जोयता, शा० आनन्दा, शा० वीरम, शा० रामजी, शा० इंजादेवीने सिरोही नगर से द्रव्य संवय कर जीरापल्ली निवासी गजधर सोमपुर केसा दला के द्वारा करवाया । ( ३१८ ) लोटानातीर्थ में कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा सं० ११३० ज्येष्ठशु० ५के दिन निर्वृति-कुल के श्रीनन्द (और) आसपालने श्रीशेखरसूरि द्वारा श्रेष्ठ श्रीपार्श्वजिन की दो प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई । ( ३१९ ) ऋषभदेव पादुका सं० १८६९ पौषशु० १३ गुरुवार के दिन श्रीऋषभदेवजी की पादुका को नमस्कार हो जो श्रीविजयलक्ष्मीसूरिके द्वारा लोटीपुर पत्तन में प्रतिष्ठित हुई । ( ३२० ) मंडप में स्थापित सपरिकर प्रतिमा सं० १९४४ ज्येष्ठकृ० ४ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय व्य० "Aho Shrut Gyanam" Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०१ ) श्रे० यापु भार्या देवीने श्रीवर्धमानस्वामी की प्रतिमा करवाई जो आहनगोत्रीय सहदेवने श्रीदेवाचार्य के द्वारा लोटाणक ( पुरस्थ ) आदिनाथ के मन्दिर में प्रतिष्ठित करवाई । ( ३२१ ) धातुमय पंचतीर्थी सं० १०११ में प्राग्वाट शा० नल का पुत्र सिंहदेव भार्या जामलदेवीने श्री शान्तिनाथ ( पंचतीर्थी ) प्रतिमा उपकेशगच्छीय श्रीदेवगुप्तसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाई | ( ३२२ ) सेलाबड़ा (सिरोही) धातुचतुर्विंशति सं० (१३)२८ वैशाखकृ० ५ गुरुवार के दिन ब्रह्माणगच्छीय श्रीविमलसूरि के पट्टधर म० श्रीबुद्धिसूरि के द्वारा राणपुरनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० भूमव भार्या गूरीदेवी का पुत्र सरवण भार्या टमकुदेवी पुत्र धर्मा और ऊदा पितृव्य जूगणजीने श्रीधर्मनाथ चतुर्विंशतिजिनपट्ट प्रतिष्ठित करवाया । इस लेख का संवत् घिस जाने से पढ़ने में नहीं आया और २८ जो पढ़ने में आया वह भी भ्रमात्मक तो नहीं है। जवाणगच्छ के श्रीविमलसूरि के कुछ लेख जिनविजयजीने "Aho Shrut Gyanam" Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०२ ) अपनी ' प्राचीन जैन लेखसंग्रह ' नामक पुस्तक में संग्रहित किये हैं। उनका अंतिम लेख सं० १३१६ का है। जैसा उक्त पुस्तक के लेखक ४६५ से प्रगट होता है। धातुचोबीसी के उक्त लेख से स्पष्ट प्रगट है कि यह लेख उस समय के पश्चात् का है जब बुद्धिसागर विमलसूरि के पट्ट पर आरूढ़ हो चुके थे । अतः यह लेख सं० १३२८ का होना चाहिये । प्राचीन जैन लेख संग्रह में इनके दो लेख ४९९, ५०० नम्बर के १३२६ के हैं । ( ३२३ ) महावीर मुछाला के मंदिर के छज्जा में संवत १०१३ में संबलसिंहने यह छञ्जा करवाया । ( ३२४ ) महावीरमुछाला चैत्य में सुरक्षित पवासन पर - सं० १२१४ फाल्गुनशु० ५ के दिन श्रीवंशीय मांडवगोत्र के यशोभद्रसूरि सन्तानीय अनुयायी मंत्री श्रीसौहार के द्वारा श्री प्रीतिसूरिजी की तत्वावधानता में पचासन बनवाया । ( ३२५ ) वरमाण के चैत्य में प्रतिमा सं० १३५१ माघकृ० १ सोमवार के दिन प्राग्वाट "Aho Shrut Gyanam" Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०३) जातीय श्रे. झांझण भार्या राउल पुत्र सिंहराजने भार्या पद्यादेवी, लालूबाई पुत्र पवाजी भार्या मोहिनी पुत्र विजयसिंह सहित श्रीपार्श्वनाथजी की (कायोत्सर्ग) प्रतिमा करवाई। (३२६) सं० १३५१ में ब्राह्मणगच्छीय मेता भंडाहड़िय श्रे० पूनसी (पुण्यसिंह) भार्या पालदेवी पुत्र पद्मसिंहने (कायोसर्गस्थ) जिनयुग्म प्रतिष्ठित करवाये । (३२७) षट्चतुष्किा स्तम्भ पर. सं० १४८६ वैशाखकु. १ बुधवार के दिन ब्रमाणगच्छ के भट्टारक श्रीपुण्यामसूरि के पट्टधर श्रीभद्रेश्वरसूरि के पट्टाधिपति श्रीविजयसेनसूरि के पट्टधर श्रीरत्नाकरमूरि के शिष्य श्रीविमलमरि के द्वारा पुण्यार्थ रंगमंडप बनवाया। (३२८) पद्मशिला की छत में सं० १२४२ चैत्र शु० पूर्णिमा के रोज ब्रह्माणगच्छासुयायी श्रीपूनिगपुत्री ब्रह्मदत्ता जिंनहा पोल्हा, नामकी सहित श्री अजितनाथजी की देवकुलिका के लिये वीरप्रभु "Aho Shrut Gyanam" Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०४ ) की प्रतिमा तथा पद्मशिला करवाई । फूहड़ के द्वारा लेख उत्कीर्ण करवाया । ( ३२९ ) सं० १३७३ बैशाख शु० ११ शुक्रवार के दिन ठ० झांझांने माता आंजना ( अंजना ) देवी, पुत्र के कल्याणार्थ कुलसंघीय भट्टारक श्रीपद्मनन्दी के सदुपदेश से श्रीचन्द्रप्रभस्वामी का (पंचतीर्थी ) बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( ३३० ) सं० १४०६ फाल्गुन शु० १० गुरुवार के दिन श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० सुलस की भार्या सोहगदेवी के कल्याणार्थ पुत्र व्य० धधकने श्रीधनेश्वरसूरि के द्वारा श्रीपार्श्वनाथ का (पंचतीर्थी ) बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया | ( ३३१ ) दयाणा (सिरोही) कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा - सं० १०११ आषाढ़ शु० ३ शनिवार के दिन सनड़ भार्या नयनाबाई पुत्र वसिया, भार्या वयजलदेवी पुत्र लक्ष्मणसिंहने श्रीपार्श्वनाथ के युग्म ( दो कायोत्सर्गस्थ ) बिम्ब बृहद्गच्छीय परमानन्दसूरि के शिष्य श्रीयक्ष देवसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाये | "Aho Shrut Gyanam" Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०५) काछोली (सिरोही) मूलनायक के परिकर का___ सं० १३४३ में कलिका-पार्थनाथमन्दिर के गोष्ठिक (कार्यवाहक) श्रेष्ठि श्रीपाल भार्या सिरियादेवी पुत्र नरदेव, ० बोड़ा भार्यावीत्रदेवी पुत्र श्रे० रोकदेव,मंत्री देवसिंह,महं० सलखा पुत्र गला, श्रे० कर्मा भार्या अनुपमादेवी पुत्र महं० अजयसिंहने श्रे० भावखीदा और मोहन के साथ श्रे० जगसिंह पुत्र श्रे० धनसिंह, शंभुपाल, श्रे० पूनड पुत्र धीरा, श्रे० सोहड़ पुत्र विजयसिंह, श्रे० झांझण पुत्र रामसिंह आदि गोष्ठिकों के सहित माता पिता के कल्याणार्थ श्रीपार्श्वनाथ प्रभु का हार परिकर सहित कच्छोलीगच्छ के गुरुओं के उपदेश से करवाया। कच्छोली, कंछोली और कछोलीवाल गच्छ का परिचय अवश्य ग्रन्थों एवं लेखों में मिलता हैं, परन्तु मुनिमेरु (चन्द्र, विजय, सुन्दर) नामक कोई आचार्य या साधु तेरहवीं शतान्दि में हुए हैं, कोई पता नहीं लगता। पिंडवाडा (सिरोही) महावीर मन्दिर में छोटी धातुप्रतिमा- सं० १००१ में श्रीश्रेयांसनाथ का पिम्म पुंवणने अपने कल्याणार्थ बनवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०६) यह लेख इस संग्रह में सर्वलेखों से प्राचीनतम है। परन्तु दुःख है कि यह अति छोटा और वह भी अपूर्ण और अस्पष्ट है । गच्छ, आचार्य, गोत्र, वंश किसीका भी इसमें उल्लेख नहीं है। (३३४) भीलड़ियातीर्थ में धातुपंचतीर्थी सं० १३६७ वैशाखशु० ९ के दिन प्राग्वाटज्ञातीय श्रे. तिहुअणसिंह भार्या हांसलदेवी के कल्याणार्थ. पुत्र श्रे० सोमाने श्रीआदिनाथजी का बिम्ब मडाहडियगच्छ के श्रीचन्द्रसिंहसरि के शिष्य श्रीरविकरसूरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया। सं० १५३५ माघक० ९ शनिवार के दिन कुतुबपुरनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य. काजा मार्या देवीबाई पुत्र मोलाने स्वपत्नी राजुलबाई पुत्र हांसा, स्थ, आदि परिजनों के सहित अपने पिता माता के कल्याणार्थ तपागच्छ के श्रीलक्ष्मीसागरपरि के द्वारा श्रीशान्तिनाथजी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (३३६-३३७) चरणयुगल का लेख सं० १८३७ पौषक० १३ सोमवार के दिन भट्टारक "Aho Shrut Gyanam" Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०७ । श्री श्री श्री १००८ श्रीहीरविजयसूरीश्वर गुरुवर को नमस्कार हो । श्रीहेतविजयगणी के चरणयुगल हैं, श्रीमहिमाविजयगणी के चरणयुगल हैं। (३३८) पार्श्वनाथचैत्य के भूगृह की पंचतीर्थी-- . सं० १५०७ माघमास में काबलीग्रामनिवासी श्रे० डूंगर भार्या रूपी पुत्र मालाने स्वभार्या टीबुवाई पुत्र कर्मा हेमा आदि परिजनों के सहित तपागच्छनायक श्रीसोमसुन्दरसूरि श्रीजयचन्द्रसूरि के शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरि के द्वारा श्रीसुमतिनाथ जी का बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (३३९). सं० १३३४ वैशाखकृ. ५ बुधवार के दिन श्रीजिने. श्वरपरि के शिष्य श्रीजिनप्रबोधरि के द्वारा शा० चोहिल्ल पुत्र शा. वहजलने स्वभाव मूलदेव आदि के साथ अपने और अपने कुटुम्ब के कल्याणार्थ श्रीगौतमस्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई। (३४०-३४१) पवासन की मित्ति के स्तंभ पर 'श्रीजीराउलाजी १ अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंग्रह भा० द्वि० के लेखात ३१० के अनुसर ये आचार्य खरतरगच्छीय है। "Aho Shrut Gyanam" Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०८ ) भूः उ ठं क' और सीढ़ी के पासवाले स्तंभ पर 'सा जस बबल संघपति ' ये दो लेख उत्कीर्णित हैं, परन्तु इनके रचना अर्थ समझ में नहीं आये, इसलिये इनका अनुवाद छोड़ दिया है। भीलड़ियाग्राम के गृहमन्दिर में मूलनायक - इस गृहमन्दिर में मूलनायक प्रतिमा के अतिरिक्त आदिनाथ और चन्द्रप्रभु की प्रतिमायें दोनों ओर विराजमान हैं । इन तीनों प्रतिमाओं के लेख एक ही हैं । ( ३४२ ) सं० १८९२ वैशाखशु० १३ शुक्रवार के दिन भीलड़ी के तपागच्छीय समस्त महाजन संघने श्रीनेमिनाथजी की प्रतिमा करवाई । श्रीईडरनगर में चन्द्रप्रभस्वामी और श्रीआदिनाथस्वामी के बिम्बों की अंजनशलाका हुई ऐसा इन लेखों से सिद्ध होता है । ( ३४३ ) अम्बिका की मूर्ति सं० १३४४ ज्येष्ठशु० १० बुधवार के दिन श्रे० लक्ष्मणसिंहने अम्बिका की मूर्चि करवाई । "Aho Shrut Gyanam" Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०९) (३४४) अधिष्ठायक मूर्ति__ सं० १३४४ ज्येष्ठशु० १० बुधवार के दिन श्रे० लक्ष्मणने अधिष्ठायक मूर्ति करवाई । (३४५) नेसड़ा (पालनपुर ) के पार्श्वनाथ चैत्य में धातुमयमूर्ति सं० १२४४ माघ शु० १० सोमवार के दिन श्री. प्रसनसरि के द्वारा डीसावाल श्रे० राणा पुत्र आशपाल, भ्राता प्रेमसेन, शा० कलत्र रत्नदेवने भार्या सिरियादेवी के कल्याणार्थ यह चतुर्विशतिजिनप्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई। कलत्र का यहाँ क्या अर्थ होता हैं, यह अस्पष्ट है। वैसे कलत्र का प्रचलित अर्थ स्त्री है यहाँ आशपाल और प्रेम सेन के कुटुम्बी जन से अर्थ लिया हुआ अधिक संगत है। सं० १३६९ फाल्गुन कृ. ५ सोमवार के दिन श्रीमुनिचन्द्रसूरि के उपदेशसे श्रीमरि के द्वारा श्रीमालज्ञातीय श्रावक सजनने पिता खेता (क्षेत्रसिंह) माता लच्छवाई के कल्याणार्थ श्रीआदिनाथपंचतीर्थी प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई। "Aho Shrut Gyanam" Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१०) (३४७) वात्यम (दियोदर) के चैत्य में पंचतीर्थी सं० १४४९ वैशाख शु०६ शुक्रवार के दिन अंचल गच्छ के श्रीमेरुतुङ्गसरि के उपदेश से श्रीसूरि के द्वारा शाला. शाह ठ० राणा भार्या भोलीदेवी पुत्र विक्रमसिंहने अपने माता पिता के कल्याणार्थ श्रीमहावीस्वामी (पंचतीर्थी) बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (३४८) ___ सं० १७८२ वैशाख शुरु पूर्णिमा गुरुवार के दिन पं०श्रीजयविजयजी, पं०श्रीशुक्ल विजयजी, पं० श्रीनित्यविजयजी, पं० श्रीहीरविजयजी, पं० श्रीजीवविजयजी की पादुकायें प्रतिष्ठित हुई। वासणा (पालनपुर) के चन्द्रप्रभचैत्य में सं० १२४० माघशु० १३ के दिन लखमसी( लक्ष्मणसिंह), रणसी(रणसिंह) श्रे० पोण(सिंह) और देपाल(सिंह)ने श्रीयशोदेवसूरि के द्वारा (धातुपंचतीर्थी) प्रतिष्ठित करवाई। (३५०) मूलनायक प्रतिमा... सं० १९५५ फाल्गुनकु. ५ गुरुवार के दिन प्रारबाट "Aho Shrut Gyanam" Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३११) केरा के पुत्र रूपा तल्लाजीने श्री(चन्द्रप्रभस्वामी का) बिम्ब करवाया जिसकी प्रतिष्ठाञ्जनशलाका तपागच्छीय आहोरनगर के संघने भट्टा० श्रीविजयराजेन्द्रसरि के द्वारा आहोर में करवाई। (३५१) दक्षिणभाग में स्थापित सं० १९५५ फाल्गुनकु. ५ गुरुवार के दिन आहोरनिवासी तपागच्छीयसंघने श्री( चन्द्रप्रभप्रभु का).बिम्ब करवाया। जसरूप जीतमलने श्रीराजेन्द्रसूरि के द्वारा आहोर में जिसकी प्रतिष्ठा (अंजनशलाका ) करवाई। (३५२) बायें भाग में स्थापित सं० १९५५ फाल्गुनकृ. ५ गुरुवार के दिन सांथ. निवासी वृद्धशाखीय ओसवाल शा० केशरीमल कस्तूरचंदने श्री( चन्द्रप्रमप्रभु का) विम्ब मरवाया, जिसकी प्रतिष्ठा आहोर नगर में मुता जसरूप जीतमलने भ० श्रीराजेन्द्रमूरि के करकमल से करवाई। (३५३) पद्मासन के नीचे के प्रस्तर पर श्रीराजेन्द्रसरि, श्रीधनचन्द्रसरि, श्रीभूपेन्द्रसुरि सत् "Aho Shrut Gyanam" Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१६) गुरुओं को नमस्कार हो । सं० १९९७ मारवाड़ी पंचांग के अनुसार उत्तम माह फारगुनकृष्णा ६ के दिन कुम्मलम स्थिरांश सोमवार को प्रातःसमय वासनानगरनिवासी श्रीभालज्ञातीय बृहच्छारवीय श्रीसंघने वर्तमानाचार्य भट्टारक श्री श्री १००८ विजययतीन्द्रसरि के आदेश से मुनिवर श्रीमद् हर्षविजय के द्वारा ठा० भीमसिंह के राज्यकाल में स्थापित करवाई। श्रीसौधर्मवृहत्तपागच्छ में शुभ कारक हो। (३५४) लुआणा (दियोदर ) के आदिनाथ चैत्य में प्रस्तर प्रतिमाधातु चोवीशी पंचतीर्थयाँ सं० १९५५ फाल्गुनक० ५ के दिन सियाणानगर के समस्त संघने श्रीराजेन्द्रसूरिजी के द्वारा (आहोर में श्रीविमलनाथजी का) बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया। (३५५). सं० १९५५ फाल्गुनक० ५ के दिन सियाणानिवासी संघने (श्रीमहावीरप्रभु का) बिम्ब करवाया । जिसकी प्रतिष्ठा आहोर में जसरूप जीतमलने सौधर्मबृहत्तपागच्छ के भ० श्रीविजयराजेन्द्रसरि के द्वारा करवाई। "Aho Shrut Gyanam" Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१३) (३५६) - सं० १५११ माष९०९ सोमवार के दिन जाणदीग्राम निवासी श्रीमालज्ञातीय व्य. पाल्हा मार्या पाल्हणदेवी पुत्र वानरने अपनी मार्या वीकलदेवी और सुपुत्र सहित पिता, माता, पितृव्य जाल्हा, प्राता पीताम्र और पूर्वजों के कल्याणार्थ श्रीअजितनाथचतुर्विशतिजिनपद्य पूर्णिमागच्छीप श्रीराजतिलकसरि के द्वारा प्रतिष्ठित करवाया । (३५७) सं० १५२२ माघशु०९ शनिवार के दिन सहुआला. ग्रामनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० विरुआ भार्या आजीदेवी पुत्र सं० मांकडा भार्या झालीताई पुत्र सं० अर्जुनने अपनी पत्नी अहिवदेवी सहित द्वितीया पत्नी रामती के कल्याणार्थ बृहत्तपागच्छीय प्रभु भट्टारक श्री श्री श्रीजिनरत्नसरि के द्वारा श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिमा (पंचतीर्थी) प्रतिष्ठित करवाई। (३५८) सं० १५२३ वैशाखशु० ३ के दिन वीरमगाँव निवासी प्राग्वाटज्ञातीय सं० नापाने मार्या लखमा (लक्ष्मी) देवी पुत्र खोना, ढाइय, हांसा, जावड, मावड भार्या क्रमशः अमरादेवी, नाथीदेवी, कनाईदेवी, मेघाईदेवी, आशादेवी उनके पुत्र नाकर, मटका, रूपा, सूरा आदि परिजनों सहित "Aho Shrut Gyanam" Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१४ ) श्रीरत्नशेखरसूरि के पट्टधर श्रीलक्ष्मीसागरसूरि के द्वारा श्री विमलनाथ (पंचतीर्थी ) बिंब प्रतिष्ठित करवाया । ( ३५९ ) सं० १५१७ फाल्गुनशु० ३ शुक्रवार के दिन विमलगच्छीय श्रीधर्मसागरसूरि के द्वारा अहमदाबाद में श्रीमाल - ज्ञातीय शाह नागसिंह भार्या डाहीबाई पुत्र वानर मा० आशीदेवीने स्वकल्याणार्थ श्री अजितनाथ - पंचतीर्थी प्रतिष्ठित करवाई | ( ३६० ) सं० १५०५ माघशु० ५ रविवार के दिन पूर्णिमापक्षीय श्रीगुणसुन्दसूरि के उपदेश से श्री श्रीमालज्ञातीय श्रे० वगरसिंह भार्या सांभलदेवी पुत्र समधरणने अपने माता पिता के कल्याणार्थ श्री कुन्थुनाथ ( पंचतीर्थी ) चिम्ब सविधि प्रतिष्ठित करवाया । ( ३६१ ) सं० १५३२ वैशाखशु० १० शुक्रवार के दिन श्री श्रीवंशीय मंत्री धना ( धनराज ) भार्या धांधलदेवी पुत्र मंत्री पांचा (पंचराज ) सुश्रावकने स्वभार्या फकू, पुत्र महं० सालिग सहित पिता के पुण्यार्थ अंचलगच्छ के श्रीजयकेशरसूरि के उपदेश से लोलाड़ा ग्राम में ( संभवतः लुआणा ) श्रीसंघने श्रीसुमतिनाथ पंचतीर्थी बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । "Aho Shrut Gyanam" Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१५ ) ( ३६२ ) सं० १६२४ विक्रम, शक सं० १४८८ माघशु० १ सोमवार के दिन ओसवालज्ञातीय श्रे० धरणा भार्या धरणादेवी पुत्र देवचन्द्र भार्या सुजाणदेवी, प्रेमलदेवीने अपने वंश के कल्याणार्थ साधु पूर्णिमापक्ष के श्रीविद्याचन्द्रसूरि के उपदेश से श्रीवासुपूज्यस्वामी का ( पंचतीर्थी ) बिम्ब बनवाया और संवने उसको प्रतिष्ठित करवाया । ( ३६३ ) सं० १५१३ पौषकृ० ३ शुक्रवार के दिन महाजनी सुहड़ भार्या सुहड़ादेवी पुत्र भोजराजने भार्या अमरादेवी, माता पिता तथा आत्मकल्याणार्थ पूर्णिमापक्ष के श्रीकमलसूरि के द्वारा श्रीशान्तिनाथ का ( पंचतीर्थी ) बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( ३६४ ) सं० १५९० वैशाखशु० ५ के दिन तपागच्छीय वृद्धशाखा के श्रीधनरत्नसूरि के द्वारा पत्तन नगर में मोदज्ञातीय बृहच्छाखा के भणशाली भांगा भार्या सोनाई (सुवर्णादेवी ) पुत्र तुलखाईने आत्म कल्याण के लिये श्री शान्तिनाथ ( पंचतीर्थी ) बिम्ब प्रतिष्ठित करवाया । ( ३६५ ) सं० १५१० फाल्गुन शु० ३ गुरुवार के दिन नागेन्द्र- "Aho Shrut Gyanam" Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छीय श्रीगुणसमुद्रसूरि के द्वारा वाराही ग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय सोरतियागोत्र के अं. मोकल मार्या सोहागदेवी पुत्र गोईद( गोविन्द )ने माता, पिता, पितृष्यज (चचेरी भाई) तिहुण( त्रिभुवन) मार्या मांगूदेवी के कल्याणार्थ श्रीकुन्थुनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट प्रतिष्ठित करवाया। (३६६) सं० १६६५ वैशाखशु० ६ के दिन राजपुर में श्री. श्रीमालज्ञातीय शाह वहोला नागा भार्या पूनीवाई पुत्र शिवसिंहने भार्या रत्नादेवी पुत्र मेघसिंह भार्या वीरादेवी प्रमुख कुटुम्ब सहित (सर्व या स्व) कल्याणार्थ श्रीपार्थनाथ (पंचतीर्थी) बिम्ब करवाया जिसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय भट्टारक श्रीहीरविजयसूरि के. पट्ट को सुशोभित करनेवाले भट्टारक श्रीविजयसोमसूरि के द्वारा हुई। (३६७) सं० १५८२ वैशाखशु० १० शुक्रवार के दिन लूंदाग्राम निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य. वलूटा भार्या मांबाई पुत्र सोभा भार्या सुहवदेवी पुत्र श्रीपाल भार्या श्री. देवीने अपने पूर्वजों के आत्मकल्याणार्थ श्रीनमिनाथ (पंच. तीर्थी) बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा चैत्रगच्छ में धरणपद्रीय भ. श्रीविजयदेवसरि के द्वारा हुई। "Aho Shrut Gyanam" Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१७) (३६८) सं० १५१५ आषाढशु०५ के दिन श्रीश्रीमालक्षातीय परीक्षक हंसराज भार्या वरतपाई पुत्र भोजराजने स्वभार्या सोनीबाई, स्वकुटुम्ब के सहित आत्मश्रेयार्थ श्रीविमलनाथजी का (पंचतीर्थी) बिम्ब करवाया, जो पूर्णिमापक्षीय भीसागरतिलकसूरि के उपदेश से प्रतिष्ठित हुआ। लेखाङ्क ३५६ से ३६८ तक की धातुमूर्तियाँ बनासकांठा उत्तरगुजरात के छोटे गाँव एटा के समीपवर्ती एक कृषीकार के क्षेत्र में हल चलाते समय प्रस्तरमय श्री आदिनाथजी की सर्वाङ्गसुन्दर प्रतिमा के सहित भूमि से प्रगट हुई हैं । लुआणा के जैनसंघने वहाँ से लाकर अपने गाँव के सौषशिखरी जिनालय में अष्टाहिक-महोत्सव पूर्वक श्री आदि. नाथप्रभुको मूलनायक के स्थान पर और धातुमायों को ऊपर शिखर में विराजमान की हैं। मूलनायक की प्रतिमा पर लेख नहीं है। परन्तु इनके दहिने और बाये भाग में श्रीविमलनाथजी और श्रीमहावीरस्वामी की प्रतिमायें स्थापित हैं, जो अर्वाचीन हैं और इनके लेख लेखाङ्क ३५४ तथा ३५५ में आ गये हैं। एटा गाँव लुआणा से ३ मील दर थराद की ओर है। किसी समय यहाँ भव्यतम जैनमन्दिर होगा और जनों के विशेष घर मी होंगे। वर्चमान में यहाँ न मन्दिर है और उसका न कुछ चिह है और न "Aho Shrut Gyanam" Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१८) एक भी जैन घर है। यह पचीस-तीस कृषक झोपडों का ग्राम रह गया है। यही तो काल की विचित्रता है। (३६९) मोटी पावड़ (वाव-बनासकांठा) सं० १४७२ ज्येष्ठकु० ११ सोमवार के दिन श्रीमालज्ञातीय पीता बुहरा माता माल्हीदेवी पिता माता कल्याणार्थ पुत्र हेमा, धूड़ा, धन्ना आदिने श्रीशान्तिनाथचतुर्विंशतिजिनपट्ट करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा नागेन्द्रगच्छीय श्रीरत्नसिंहसूरि के द्वारा हुई। जेतड़ा (थराद ) के चैत्य में स्थापित मूलनायक की प्रतिमा का लेख घिसा जाने से बिल. कुल वांचा नहीं जाता। इनके दोनों ओर एक पार्श्वनाथ की और दूसरी चन्द्रप्रमप्रभु की प्रतिमायें स्थापित हैं । दोनों पर लेख एक ही व्यक्तियों के हैं। (३७०-३७१) संवत् १८३३ माघशु० शुक्रवार के दिन गेलाग्रामनिवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय समस्तसंघने चन्द्रप्रभस्वामी और पार्श्वनाथप्रभु का बिम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीविजयजिनेन्द्रसूरि के द्वारा हुई। "Aho Shrut Gyanam" Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१९) (३७२) धातुमय पंचतीर्थयाँ सं० १४२५ वैशाखशु० ११ के दिन ब्रमाणगच्छीय श्रीश्रीमालज्ञातीय पितामही रामादेवी, पिता नथमल, माता लीलादेवी श्रे०3० श्रीपालने श्रीशान्तिनाथ की पंचतीर्थी करवाई, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीबुद्धिसागरसरि द्वारा हुई। (३७३) सं० १४८८ मार्गशिरकृ० ५ गुरुवार के दिन श्रीमालज्ञातीय व्य. आंजन( अर्जुन ) भार्या भोलीवाई पुत्र आका( अक्षयराज )ने श्रीपार्श्वनाथजी का (पंचतीर्थी ) विम्ब करवाया, जिसकी प्रतिष्ठा श्रीसोमसुन्दसूरि के द्वारा हुई। (३७४) .. सं० १४२४ माघशु०८ के दिन व्य० जयता भार्या हंसादेवी पुत्र बाहड़( वाग्मट )ने अपने पिता माता के कल्याणार्थ श्रीपचप्रमस्वामी का (पंचतीर्थी) बिम्ब करवाया। "Aho Shrut Gyanam" Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Aho Shrut Gyanam" Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रकम् * अशुद्ध कनुक्रमणिका सकती है पुस्तक में कर्म हैं अतीन्द्र प्राप्रि में सौ. स्त्रियों के वहा मया हैं कम भी होता हैं प्राचीनतम् करानेवाले वर्षों शुद्ध. अनुक्रमणिका सकती हैं पुस्तक में कर्म है धातुप्रतिमा प्राप्ति में सौ सियों के * वहाँ * गया है कम भी होता है प्राचीनतम करानेवाला वर्षों . . * . ~ ~ गुम गुम ~ करते ही है विधर्मी बचानेवाली ~ करते ही विधर्मी बचानेवाली है 3 . . . ~ "Aho Shrut Gyanam" Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अशुरु षटचतुष्किका प्रयाण (२) शुद्ध षट्चतुष्किका ब्रह्माण ब्रह्माण जिनचन्द्र ब्रयाण जिनचन्द्व * - * - चन्द्र काव्यों की व्यव शब्दों की व्यव० वर्षे * - मं० - कुटुब शीपज्जून भातनि० चतुावशति श्रीजिवीतस्वामी माग बुधे बधि भद्रसरि कुटुम्ब श्रीपज्जून प्रातृनि० चतुर्विंशति श्रीजीवितस्वामी मार्ग बुधे बदि चंद्रसूरि - 62 6 . 2 0 बजूर बरजू स्वपुण्यार्थ श्रीराउला ११५ १२० स्वपुण्यार्थ श्रीजीराउला "Aho Shrut Gyanam" Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्ध » 6 १७४ » १९० पदावतंसं प्राग्वाठे असरूप षडेरक स्पष्ट हैं विग्व अचलगच्छे श्रीश्रोमाल बन रहा रहा है टही कुबाई ম| मा० मुनिसिंह जीवितस्वामि श्रीश्रीमालज्ञातिय घडसिंह २०१ पृष्ठ सं० १५० पट्टावतंस १५८ प्राग्वाटे १६९ जसरूप पं(ख)डेरक स्पष्ट है बिम्ब १९४ अंचलगच्छे १९८ श्रीश्रीमाल वन रहा है २०४ टहीकु बाई भा० २१५ मा० २१९ मुनिसिंह २२१ जीवितस्वामी. २२३ श्रीश्रीमालज्ञातीय २२७ घडसिंह २२८ २२९ मांडण श्रेयार्थ २३१ जीवितस्त्राभी २३६ २०७ n , te » » भांडन २३१ अवार्थ जीवितस्वामि "Aho Shrut Gyanam" Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ मशुद्ध भापू भांजीबाई धनतिलकसरि अयने आपदा धनराज प्राग्वाठ मेहण भं० लणा शा पटचतुष्किका सोमपुर " शुख मापू मांजीबाई २४० घनतिलकसरि २४८ अपने २५२ आल्हा २५४ घनराज २५६ प्राग्वाट २५६ मेहण २५८ मं.. लुणा २८३ शा० २८९ षट्चतुष्किका सोमपुरा दो कायोत्सर्गस्थ ३०० सेलवाड़ा ३०१ मडाहडिय ३०३ जिनहा झांझाने ३०४ मिलता है लगता ३०५ कल्याणार्थ श्रीसोमसुन्दरसूरि ३१९ - ------ सकका २९९ " ३०३ "" सेलाबाडा मंडाडिया जिनहा झांझाने मिलता है लमता कल्याणार्थ. श्रीसोमसुन्दरि ३०५ "Aho Shrut Gyanam" Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી જિનશાસના જય હો !!! II શ્રી ગૌતમસ્વામીન નમઃ | | શ્રી સુધમસ્વિામીને નમ: || જિનશાસનના અણગાર, કલિકાલના શણગારા પૂજ્ય ભગવંતો અને જ્ઞાની પંડિતોએ શ્રુતભક્તિથી પ્રેરાઈને વિવિધ હરતલિખિત ગ્રંથો પરથી સંશોધન-સંપાદન કરીને અપૂર્વજહેમતથી ઘણા ગ્રંથોનું વર્ષો પૂર્વેસર્જનકરેલછે અને પોતાની શક્તિ, સમય અને દ્રવ્યનો સવ્યય કરીને પુણ્યાનુબંધી પુણ્ય ઉપાર્જન કરેલ છે. કાળના પ્રભાવે જીણ અને લુપ્ત થઈ રહેલા અને અલભ્ય બની જતા મુદ્રિત ગ્રંથો પૈકી પૂજ્ય ગુરુદેવોની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી સ.૨૦૦૫માં 54 ગ્રંથોનો સેટ નં-૧ તથા .૨૦૦૬માં 36 ગ્રંથોનો સેટ ની 2 સ્કેન કરાવીને મર્યાદિત નકલ પ્રીન્ટ કરાવી હતી. જેથી આપણો શ્રુતવારસો બીજા અનેક વર્ષો સુધી ટકી રહે અને અભ્યાસુ મહાત્માઓને ઉપયોગી ગ્રંથો સરળતાથી ઉપલબ્ધ થાય, પૂજ્યા સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોની પ્રેરણાથી જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી તૈયાર કરવામાં આવેલ પુસ્તકોનો સેટ ભિન્ન-ભિન્ન શહેરોમાં આવેલા વિશિષ્ટ ઉત્તમ જ્ઞાનભંડારોની ભેટ મોકલવામાં આવ્યા હતા. આ બધાજપુસ્તકો પૂજ્ય ગુરુભગવંતોને વિશિષ્ટ અભ્યાસ-સંશોધના માટે ખુબજરુરી છે અને પ્રાયઃ અપ્રાપ્ય છે. અભ્યાસ-સંશોધના જરૂરી પુસ્તકો સહેલાઈથી ઉપલળળની તીમજ પ્રાચીન મુદ્રિત પુસ્તકોનો શ્રુત વારસો જળવાઈ રહે તો શુભ આશયથી આ થોનો જીર્ણોદ્ધાર કરેલ છે. જુદા જુદા વિષયોના વિશિષ્ટ કક્ષાના પુસ્તકોનો જીર્ણોદ્ધાર પૂજ્ય ગુરૂભગવતીની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી અમો કરી રહ્યા છીએ. લો અભાઈ તથા સંશોધના માટે વધુમાં વઘુઉપયોગ કરીને શ્રુતભક્તિના કાર્યની પ્રોત્સાહન આપશી. લી.શાહ બાબુલાલ સરેમા જોડાવાળાની વંદના મંદિરો જીર્ણ થતાં આજકાલના સોમપુરા દ્વારા પણ ઊભા કરી શકાશે...! = પણ એકાદ ગ્રંથ નષ્ટ થતા બીજા કલિકાલસર્વજ્ઞ કે મહોપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી ક્યાંથી લાવીશું...???