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અહો રતનાના
ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર
300
000000
1000000
-: સંયોજક :
શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫. મો. ૯૪૨૬૫ ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૦૭૯-૨૨૧૩૨૫૪૩
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“અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૧૧
જૈન લેખ સંગ્રહ ભાગ-૩
: દ્રવ્ય સહાયક :
1
%
પૂજ્ય બાપજી મ.સા.ના સમુદાયના
પૂજ્ય આચાર્ય નરરત્નસૂરીશ્વરજી મ.સા.ના આજ્ઞાવર્તિની
પૂ. સાધ્વીજી શ્રી જયવંતાશ્રીજી મ.સા. તથા અન્ય ઠાણાની પ્રેરણાથી
સુરત અઠવાગેટ પૌષધ શાળા, સૂરત જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી
: સંયોજક :
શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર
શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005 (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543
ઈ.સ. ૨૦૧૧
સંવત ૨૦૬૭
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"Aho Shrut Gyanam"
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પૃષ્ઠ
238
286
54
007
810
850
322
280
162
302
અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯- સેટ નં-૧ ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ
કર્તા-ટીકાકાસંપાદક 001 | श्री नंदीसूत्र अवचूरी
पू. विक्रमसूरिजीम.सा. 002 | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी
पू. जिनदासगणिचूर्णीकार । | 003 श्री अर्हद्रीता-भगवद्गीता
पू. मेघविजयजी गणिम.सा. 004 श्री अर्हच्चूडामणिसारसटीकः
पू. भद्रबाहुस्वामीम.सा. 005 | श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं
| पू. पद्मसागरजी गणिम.सा. 006 | श्री मानतुङ्गशास्त्रम्
| पू. मानतुंगविजयजीम.सा. अपराजितपृच्छा
| श्री बी. भट्टाचार्य 008 शिल्पस्मृति वास्तु विद्यायाम्
| श्री नंदलाल चुनिलालसोमपुरा 009 शिल्परत्नम्भाग-१
| श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 010 | शिल्परत्नम्भाग-२
| श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 011 प्रासादतिलक
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 012 | काश्यशिल्पम्
श्री विनायक गणेश आपटे 013 प्रासादमञ्जरी
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 014 | राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र
श्री नारायण भारतीगोसाई 015 शिल्पदीपक
| श्री गंगाधरजी प्रणीत | वास्तुसार
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 017 दीपार्णव उत्तरार्ध
| श्री प्रभाशंकर ओघडभाई જિનપ્રાસાદમાર્તડ
શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા | जैन ग्रंथावली
| श्री जैन श्वेताम्बरकोन्फ्रन्स 020 હીરકલશ જૈનજ્યોતિષ
શ્રી હિમ્મતરામમહાશંકર જાની न्यायप्रवेशः भाग-१
| श्री आनंदशंकर बी.ध्रुव 022 | दीपार्णवपूर्वार्ध
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 023 अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग
पू. मुनिचंद्रसूरिजीम.सा. | अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग२
| श्री एच. आर. कापडीआ 025 | प्राकृतव्याकरणभाषांतर सह
श्री बेचरदास जीवराजदोशी तत्पोपप्लवसिंहः
| श्री जयराशी भट्ट बी. भट्टाचार्य | 027 शक्तिवादादर्शः
श्री सुदर्शनाचार्यशास्त्री
156
352
120
88
110
018
498
019
502
454
021
226
640
452
024
500
454 188
026
214
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028
029
030
031
032
033
034
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036
037
038
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040
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045
046
047
048
049
050
051
052
053
054
क्षीरार्णव
वेधवास्तु प्रभाकर
शिल्परत्नाकर
प्रासाद मंडन
श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय?
श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्यायर
श्री सिद्धम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय३ (१) श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय (२) (३) श्री सिद्धम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय ५ વાસ્તુનિઘંટુ
તિલકમન્નરી ભાગ-૧
તિલકમન્નરી ભાગ-૨
તિલકમન્નરી ભાગ-૩
સપ્તસન્માન મહાકાવ્યમ્
સપ્તભઙીમિમાંસા
ન્યાયાવતાર
વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક
સામાન્યનિયુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક સપ્તભઙીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા
નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી
નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી
ન્યાયસમુચ્ચય
સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ
દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ
બૃહદ્ ધારણા યંત્ર
જ્યોતિર્મહોદય
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई
श्री नर्मदाशंकर शास्त्री
पं. भगवानदास जैन
पू. लावण्यसूरिजीम. सा.
પૂ. ભાવબ્યસૂરિનીમ.સા.
પૂ. ભાવન્યસૂરિનીમ.સા.
पू. लावण्यसूरिजीम. सा.
પૂ. ભાવબ્યસૂરિનીમ.સા.
પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી
પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી
સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ
શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા)
શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી
પૂ. દર્શનવિજયજી
પૂ. દર્શનવિજયજી
સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી
414
192
824
288
520
578
278
252
324
302
196
190
202
480
228
60
218
190
138
296
210
274
286
216
532
113
112
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અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર – સંવત ૨૦૬૬ (ઈ. ૨૦૧૦)- સેટ નં-૨ ભાષા કર્તા-ટીકાકાસંપાદક
પુસ્તકનું નામ
सं
सं
ક્રમ
055
श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहद्न्यास अध्याय - ६ 056 विविध तीर्थ कल्प
057 ભારતીય જૈન શ્રમણ સંસ્કૃતિ અને લેખનકળા
058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः
059 | व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका
જૈન સંગીત રાગમાળા
064 | विवेक विलास
065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध
066 सन्मतितत्त्वसोपानम्
067 ઉપદેશમાલા દોઘટ્ટી ટીકા ગુર્જરાનુવાદ
068 | मोहराजापराजयम्
069 | क्रिया
070 कालिकाचार्यकथासंग्रह
071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका
060
061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश )
062 व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय सं
063 | चन्द्रप्रभा मकौमुदी
सं
072 जन्मसमुद्रजातक
073 | मेघमहोदय वर्षप्रबोध
074
075
शुभ.
सं
सं
જૈન સામુદ્રિકનાં પાંચ ગ્રંથો
જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૧
गु.
सं
4.4.9
सं/गु.
सं
सं
पू. लावण्यसूरिजीम. सा.
पू. जिनविजयजी म. सा.
शुभ.
गु४.
पू. पूण्यविजयजी म. सा.
श्री धर्मदत्तसूरि
| श्री धर्मदत्तसूरि
श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी
श्री रसिकलाल एच. कापडीआ | श्री सुदर्शनाचार्य
पू. मेघविजयजी गणि
श्री दामोदर गोविंदाचार्य
पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा.
पू. लब्धिसूरिजी म.सा.
પૃષ્ઠ
296
160
164
202
48
306
322
668
516
268
456
420
शुभ.
पू. हेमसागरसूरिजी म. सा.
सं पू. चतुरविजयजी म.सा. सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया सं/गु. श्री अंबालाल प्रेमचंद
406
सं.
श्री वामाचरण भट्टाचार्य
308
सं/ हिं
श्री भगवानदास जैन
128
सं/ हं
श्री भगवानदास जैन
532
श्री हिम्मतराम महाशंकर जान 376
श्री साराभाई नवाब
374
638
192
428
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076 | જન વિને
જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 7 સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 7 | ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 079 | શિલ્પ ચિતામણિ ભાગ-૧
080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧
114
08 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ 082 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083 આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ 084 | કલ્યાણ કારક 085 | વિશ્વનયન વોશ 086 | કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 087
કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 હસ્તસગ્નીવનમાં
| ગુજ. | શ્રી સારામાકું નવાવ
238 | ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવાવ
194 ગુજ. | શ્રી સારામારૂં નવાવ
192 ગુજ. | શ્રી મનસુહાનાન્ન મુવમન | 254 ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારીમ
260 ગુજ. | શ્રી નાગનાથ મંવારમ
238 ગુજ. | શ્રી નવીન્નાથ મંવારમ
260 ગુજ. | પૂ. વરાન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પાર્શ્વનાથ શાસ્ત્રી
910 सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा
436 ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન કોશી
336 | ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન તોશી |
230 સં. | પૂ. મે વિનયની
પૂ.સવિનયન, પૂ.
पुण्यविजयजी | आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 560
088 .
322
114
089 એ%ચતુર્વિશતિકા 090 સમ્મતિ તક મહાર્ણવાવતારિકા
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श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
पृष्ठ
272
92
240
93
254
282
95
118
466
संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com
शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन
हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम पुस्तक नाम
कर्ता/टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक |91 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-४
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-५
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना 96 पवित्र कल्पसूत्र
पुण्यविजयजी
सं./अं साराभाई नवाब 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग-१
| भोजदेवसं . टी. गणपति शास्त्री समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव
टी. गणपति शास्त्री 99 . | भुवनदीपक
पद्मप्रभसूरिजी
सं. वेंकटेश प्रेस | 100 | गाथासहस्त्री
समयसुंदरजी
सं. सुखलालजी भारतीय प्राचीन लिपीमाला
गौरीशंकर ओझा हिन्दी मुन्शीराम मनोहरराम 102 शब्दरत्नाकर
साधुसुन्दरजी
हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश
न्यायविजयजी
सं./गु हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर
ओरीएन्ट इस्टी. बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३
माणिक्यसागरसूरिजी
आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मतितर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी सन्मतितर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण
एसियाटीक सोसायटी
342
98
362
134
70
101
316
224
612
307
250
514
107
454
354
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109
सं./हि
337
110
सं./हि
354
111
372
112
सं./हि सं./हि सं./हि
142
113
336
364
सं./गु सं./गु
पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार अरविन्द धामणिया यशोविजयजी ग्रंथमाळा | यशोविजयजी ग्रंथमाळा | नाहटा ब्रधर्स | जैन आत्मानंद सभा
जैन आत्मानंद सभा | फार्बस गुजराती सभा
फार्बस गुजराती सभा | फार्बस गुजराती सभा
218
116
656
122
जैन लेख संग्रह भाग-१
पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-२
पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-३
पुरणचंद्र नाहर | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१
कांतिसागरजी जैन प्रतिमा लेख संग्रह
दौलतसिंह लोढा 114 राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह
विशालविजयजी प्राचिन लेख संग्रह-१ ।
विजयधर्मसूरिजी बीकानेर जैन लेख संग्रह
अगरचंद नाहटा 117
प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री 120 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री
गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 122 __ इन मुंबई सर्कल-१
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 123 इन मुंबई सर्कल-४
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन । इन मुंबई सर्कल-५
कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत पी. पीटरसन
__ इन्स्क्रीप्शन्स | 126 | विजयदेव माहात्म्यम्
जिनविजयजी
764
सं./हि सं./हि सं./हि सं./गु सं./गु सं./गु
404
404
121
540
रॉयल एशियाटीक जर्नल
274
रॉयल एशियाटीक जर्नल
41
124
400
अं.
रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपार्टमेन्ट, भावनगर जैन सत्य संशोधक
125
320
148
Page #10
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________________
JAIN INSCRIPTIONS
JAISALMER ( With Introduction, totes, Index of Places, fo.)
Collected & Compiled
BY Puran Chand Natar, M.A.B.L., M.R.A.S., Vakil, High Court, Calcutta, Member, Asiatic Society of Bengal, Bilar & Orissa Research Society, Bhandarkar Institute, Poona, Jain Sivetambar Education Board, Bombay; Hon. Correspondent, Archæological Departaient,
Government of India, &c.
PART III ( With Plates )
1929
Price Rs 874
"Aho Shrut Gyanam"
Page #11
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________________
Printed by G. N. Sharma
at the VISWAVINODE PRESS
Published by the Compiler, • 48, Indian Mirror Street
CALCUTTA
"Aho Shrut Gyanam"
Page #12
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________________
जैन लेख संग्रह
जैसलमेर
( भूमिका, टिप्पणी, संवत् की सूची इत्यादि घ्यावश्यकीय विषयों से युक्त )
संग्रह कर्चा
पूरण चंद नाहर एम. ए. बि. एल,
वकील हाईकोर्ट एयेल एसियाटिक सोसाइटी, एसियाटिक सोसाइटी
अफ बंगल, रिसार्व सोसत विहार- उड़ीसा, भण्डारकर
स्टिटियु पूना आदिके मेम्बर अनरारी करेस्पण्डेंट सरकारी पुरातत्व विभाग, इत्यादि
चीन सम्बत २४१५
तृतीय खंड [ सचित्र ]
कलकत्ता
विक्रम सम्बत् १६८५
"Aho Shrut Gyanam"
६० सन् १६२६
मूल्य ८ रु०
Page #13
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"Aho Shrut Gyanam"
Page #14
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विषय-सका
विषय
1-iv
xi-xviii
सूचीपत्र चित्र सूची Foreward Appendix Bibliography नुमिका नूमिका-परिशिष्ट खेख संग्रह
जैसलमेर अमरसागर लोदवा देवीकोर ब्रह्मसर
गजरूासागर परिशिष्ट যুক্তিত্ব
३५-५०
१-१६ १-१३६, १९५-१६६
१३७-२५६
१८६-१९२ १९३-१४ रा -२
श्र
"Aho Shrut Gyanam"
Page #15
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"Aho Shrut Gyanam"
Page #16
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________________
सचा-पन्न
माम
पत्रांक
नाम
...
Foreword Appendix A
Translation of Dr. Btuhler's
letter Appendix B
I'rof. Bhandarkar's
Report (1904-06) Bibliography
English Hindi
। ब्रह्मसर महत्व के लेख ओसवाल झाति भणशाली वंश बाफणा वंश शिल्पकला
...
नूमिका
जैसलमेर के राजवंश
जैन भंडार किले के मन्दिर शहर के मन्दिर - के देरासर * के उपासरा दादाजी के स्थान अमरसागर लोवा देवोकोट
चूमिका-परिशिष्ट - [क] कल्याणक पट्ट ( आवू तीर्थ ) xr, xviii
[ख] चैत्यपरिपाटी (जिनसुखसूरि कृत ) ... [ग] (महिमासमुद्रजी कृत ) ... घ] श्रीअष्टापदजो शांतिनाथजी का स्तवन
(समयसुन्दरजी हेत ) ... [4] श्रीआदीश्वर स्तवन ( . ) ... [२] लोद्रवपुर रूसवन ( जिनलाभसूरी कन ) ....
जैसलमेर किले पर
श्रीपार्श्वनाथजी का मंदिर श्रीसंभवनाथजी का मंदिर श्रीशांतिनाथजी का मंदिर
श्रीअष्ठापदजी का मंदिर . ... २२ । श्रीचंद्रप्रभजी का मंदिर
BB
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________________
पत्रांक
माम
गणांक
लोइया
श्रीशीतलनाथजो का मंदिर श्रीऋषभदेवजी का मंदिर श्रीमहावीर स्वामी का मंदिर बड़ा भंडार ... स्तंभ पर
श्रीपार्श्वनाथजो का मंदिर मंदिर नं मंदिर नं०२ मंदिर नं०३ मंदिर नं.४
बहर में
देवीकोट
श्रीभादिनाथजी का मंदिर
दादा स्थान
श्रीसुपार्श्वनाथजी का मंदिर श्रीधिमलनाथजी का मंदिर सेठ थोख्शाहजी का देरासर सेठ केसरीमलजी का देरासर सेठ चांदमलजी का देरासर अनय सिंहजी का देरासर रामसिंहजी का देरासर घनराजजी का देरासर बेगड़गच्छ का उपासरा वृहत् खरतरगच्छ उपासरा उपगच्छ उपासरा
ब्रह्मसर
श्रीपार्श्वनाथजी का मंदिर दादा स्थान
.... १५
गजरूप सागर ।
दादा स्थान
दादा स्थान
दादावाड़ो श्रीजिनचंद्रसूरि का स्थान प्रमशान भूमि
परिशिष्ट (क) संवत् की सूची ... (ख) राजाओं की सूची
... २०५ (ग) श्रावकों को शातिगोत्रादि की सूचो . ... २०७ (घ) आवार्यो के गच्छ और संवत् की सूची ... २११ (ब) स्थानों की सूत्रो
अमरसागर श्रीआदिनाथजी का दिर बाफणा सवाईरामज़ो का मंदिर ... पाफणा हिम्मतरामजी का मंदिर ...
.... १४३ / शुद्धिपत्र
SUSHLESSERIESELEASE
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________________
何
श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर प्रशस्ति नं० १
नं० २
.
श्रीसम्भवनाथ मन्दिर प्रशस्ति तपपट्टिका
श्रीशांतिनाथ मन्दिर प्रशस्ति श्रीसुपार्श्वनाथ मन्दिर प्रशस्ति श्री शत्रु 'जय गिरनारावतार पट्टिका श्रीवेगड़गढ़ उपासरा प्रशस्ति
लेखों के चित्र
जैसलमेर
लोडवा
पावली पट्टक ( रंगोन ) फोरवर्ड
शतदल यंत्र
मन्दिर नं०
ܕ
मन्दिर में० २
मन्दिर २०३
मन्दिर नं ४
·
20
...
स्तम्भ पर
मूर्ति पर
स्तम्भ पर
मूर्ति पर
स्तम्भ पर
मूर्ति पर
स्तम्भ पर
मूर्ति पर
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चित्र-सची
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पत्रांक
१६
२२
३६
४६
१०
१०८
१०६
१६९
१०२
१७३
१७६
नाम
अमरसागर
वाणा हिम्मतराजो का मंदिर प्रशस्ति
आबू तीर्थ
कल्याणक पड़
दृश्यों के चित्र
जैसलमेर
श्रीशांतिनाथजो के मन्दिरका शिखर
दुर्ग का प्रवेश द्वार शिल्पकला का नमूना थोपार्श्वनाथ मन्दिर का तोरण
हिम्मतरामजी का मन्दिर
...
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***
अमरसागर
A
ded
जाली का कारू कार्य
लोsar
थोपार्श्वनाथ मन्दिर का सन्मुख भाग ...
पश्चात् भाग
...
भूमिका पृ०
श्रीशांतिनाथजी के मंदिर के समूर्ति दो पाषाण हस्तो ४२ श्रीचन्द्रप्रभजी और ऋषभदेवजो के मन्दिर
५८
गढ़ीसर
१२१
...
भूमिका पृ० १
भूमिका पृ० ६ भूमिका पृ० ३३ १
..
⠀⠀
पत्रक
***
१५१
...
३५.
१३६
१४३
भूमिका पृ० २१
भूमिका पू० ४८
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श्री श्रीमहावीर
AA
40
दीवा
11
श्रीमद श्रीगु
AA
कति
Miamond
हाकठ प्रयत्
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石出部
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40 100
सात
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10
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-पट्टावली पड़क (नं० २५७४ )
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INSCRIPTION OF PATTAVALI-LODRAVA
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11
आयनिक कारख
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Foreword.
It is with considerable satisfaction and relief on account of my continued ill health that I present my third volume of Jain Inscriptions in the hands of those who feel especially interested in the history and antiquity of the Jains. The inscriptions collected in this volume are all from Jaisalmer, a place of unique importance as a great store-bouse of the activities of the Swetambara Jains.
For a considerable time I had been planning to pay a visit to this important place, My imagination was naturally stimulated by various writers and the glowing references to the richness of the materials stored there. Dr. Buhler was the first to bring to light before the general body of sekolars that the great Jain Bhandar, deposited in the Jain temple within the fort of Jaisalmer, contains a large number of ancient and important palm-leaf manuscripts which would require years of hard work even in merely cataloguing them, Dr. Hermann Jacobi, the great German scholar, also visited the place in his company. It was late Prof. S. R. Bhandarkar, who had beeu there in his official capacity, and who gave us a more detailed account and list of manuscripts of the several Bhandars both in the city and within the fort. Extracts from Dr. Buhler's letter (1874) aud from Prof. S. R. Bhandarkar's Report (1909) will be found in Appendix A and B, and I draw attention of my readers to the same.
Professor Bhandarkar in his Report for 1904-05 and 1905-06 published in his appendix I, portions of only 6 Jain inscriptions, which he collected there. Lately, Mr. Chimanlal Dahya Bhai Dalal, M. A. Sanskrit Librarian, Baroda Central Library visited the place with the object of cataloguing the manuscripts of the Bhandars and collected several inscription. of the various temples both at Jaisalmer and at Lodarya. Unfortunately he died before he could publish his work, Pundit Lalchandra Bhagwandas Gandhi, Jain Pundit, Central Library, Baroda, published the posthumous work, and 22 inscriptions
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have found place in the appendix of the same. Of these 22 inscriptions one is from a Hindu temple of Sri Lakshmikantji in the fort and Nos. 20 and 21 are two portions of the same inscription and actually therefore there are only 20 Jain inscriptions in the work. I have seen one more vernacular inscription from Amarsagar published in "Jain Sahitya Samsodhaka," a quarterly from Poona. Altogether there are, therefore, only 21 published inscriptions from Jaisalmer. The total number published in this volume is 479 and so the reader:will get here 458 new inscriptions
Towards the end of 1925 I visited Jaisalmer via Barmer route. The first sight of the temples with large number of images within them convinced me th stay, the utmost I could spare at the time, will hardly suffice in taking rubbings of all the various interesting Prasastis and inscriptions on the pedestals of images preserved there. However, my stay in the city was for about 10 days, after which I visited Lodarva, Amarsagar, Devikote and other places. The present volume is the result of
I need hardly say that many of these inscriptions will be found useful, but I think it ny duty to draw the attention of scholars to at least a few of the most interesting and unique among them. The first one which deserves attention is Tapapattika inscription (No. 2144 ).
Tapapattika :- A glance at the plate will show that austerities and penances laid down in Jaiu Agamas, looked upon with great veneration, are inscribed on the stone along with the five Kalyanak Tithis of the 24 Tirthankars or the great Teachers of the present cycle of years. The five important events in a Tirthankar's life namely conception, birth, initiation, attainment of omniscience and final emancipation are known as Kalyanaks and the dates of such events are held sacred by the Jains,
I have come across only one inscribed tablet in Dilwara temples on Mt. Abu containing these Panch Kalyanak Tithis. No plate has yet been published of this Mt. Abu inscription and with a view to satisfy the curiosity of the general reader and as a material for the student of Jain Antiquity, I pulist the same on a separate plate and hope it will be found useful,
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HI
The next unique inscripticn of this collection is the Prasasti or dedicatory stone of the Parshwanath temple at Lodarya, the old ruined capital town. This temple was built in the 17th century on the site of the old temple. This is the first and the only specimen I have come across of a Prasasti written in versc within Satadala Padma Yantra, that is, hundred petalled lotus ( page 160 ). It is also very interesting to note that the letter in the centre, which is generally the beginning letter of every foot of the verse, is the last letter of each line in the inscription. This shows high technical achievement of the author and perfect mastery over the lexicography of classical, sanskrit. The whole thing is in eulogy of Parshwanath, the 23rd Tirthankar to whom the temple is dedicated. Other details on top, sides and bottom, are in prosc.
The last and not the least important, is the inscription of Pattawali (page 177 ) deposited in one of the corner temples at Lodarra which deserves special notice. It enumerates the long series of teachers from Lord Mahavira, the last Tirthankar of the Jains up to the Devardhi Gani Kshamashramana under whose supervision the whole of the then existing Jain canons were reduced to writing at the council at Vallabhi in Guzrat.
As a lay observer I can hardly do justice to the architectural excellence of these ancient monuments at Jaisalmer but even a layınan can appreciate the beautiful carvings over the porch of the Parshwanath temple and the magnificient dome of Santinath temple. The whole thing is in such a nice proportion that the view is really very pleasing. There is no clumsiness inspite of the numerous carved figures and the appearance is not heavy. The Architecture reminds us of the similar works of art found at Boro Bodur in Java. I also take this opportunity to present to my readers some specimens of the type of sculpture found in the Jain temples on a separate plate.
A short note on the State, its rulers, and the places from where the inscriptions were collected are given in the introduction. The reader will also find some more useful informations regarding the important temples, their consecrators and a brief
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a ccount of the leading Oswal families, who have left behind some lasting monuments to posterity.
A bibliography on Jaisalmer has also been prepared and will be found after appendix B. I have received much help from the Bibliography on Jaisalmer published in Rajputana Gazetteer Vol. III A. Page 39 ( 1909 ) and from the general Biblio. graphical list on Rajputana in the revised edition of Col. Tod's "The Arrals and Antiquities of Rajputana" by William Crooke ( 1920 ). The yolume contains five appendices after the text showing :
(1) the different dates, (2) names of sovereigns and ruling princes, (3) list of clans and gotras, ( 4 ) names of gachhas with list of Acharyas,
(5) places of consecration &c., found in the inscriptions. These appendices will be found very useful for reference. The plates of the important inscriptions and other interesting views have been prepared and inserted in their proper places in the text. I do sincerely hope that the collection will be welcomed both here in India and outside.
48, INDIAN MIRROR STREET,
Calcutta, February 1929.
P. C. NAHAR.
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Appendix A.
Extract from Mr. S. P. Pandit, M. A.'s translation of Dr, Buhler's letter on Jaisalmer Bhandar,
published in the transaction of the Berlin Academy, March, 1874.
(From Indian Antiquary, Vol. IV. Pages 81-83.)
"In Jessalmir, which was founded about the middle of the twelfth century, after the destruction of Lodorva, the old capital of the Bhatti Rajputs, there is a large colony of Jains. According to tradition the forefathers of these people came from Lodorra along with the Rajputs, and from thence brought with them to Jessalmir a most holy image of Parasnath (Parşvanatha ). For this image a temple was built in the fifteenth century under the pontificate of Jina Bhadrasuri, to which were gradually added six other temples dedicated to different
Tirthankaras. Through this temple and the wealth of the Jain community, which has spread its trade and banking business over the whole of Rajputana, Malva, and Central India, Jessalmir has obtained a high fame as one of the principal seats of the Jain faith. Especially, however, is the renown of the Bhandar or Library everywhere celebrated, whichi, according to the statements of the Gujaratis, surpasses all similar Bhandars in the world. It was therefore Oite of the chief objects of my journey to obtain admittance to this Bhandar, and to make its contents accessible to science. After some trouble I succeeded in solving the mystery, and it turns out that the magnitude of the Bhandar has been very much exaggerated, but its contents are nevertheless of great value."
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Appendix B.
Fxtract from Appendix I of the Report of a second tour in scarch of Sanskrit Manuscripts made in Rajputana and Central India in 1904-05 & 1903-06 by S. R. Bhandarkar M. A.,
Prosessor of Sanskrit, Elphinstone College, Bombay, 1907.
Inscriptions at Jaisalmer.
No. I.
From the Chintamani-Parsvanatha Temple.
The juscription is intended to be a prasasti of the festivities in connection with the consecration, etc., of the teniple. Most of it is in prosc. A long genea. logy is giren of the Sreshthins ( merchants ) who built the teniple, who were of Ukesa vamsa and Rankanvaya. The notable pilgrimages of some of their ancestors are mentioned with their dates. Then a Kharatara pattavali is given from Jinakusala to Jinaraja and Jinavardhana is mentioned as being on the Patta at that time. It was Jinavardhana, who had the pratishtha ( consecration) of the temple built by the Sreshthins performed and also that of the idols therein in Samrat 1473 during the reign of Lakshmanaraja. The prasasti was composed by Jayasagaragani.
No. II.
From the same. $
This is wholly in verse. The first two stanzas are devoted to the praise of Parsvanatha and the third one to that of Jaisalmer. Then a genealogy is given Ct king Lakshmana. The kings of the dynasty are mentioned as belonging to the
See Inscription No. 2113, pages 3--7 See Inscription No. 2112, pages 1-5
$
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VII
Yadukula. The genealogy given begins with Jaitrasimha. Jaitrasimha's sons Muladeva (or Malaraja) and Ratnasimha, who righteously protected the earth as Lakshmana and Rama did of old. Ratnasimba's son was Ghatasimha who like a lion tearing up the elephants in the shape of the Mlechchhas forcibly wrested their Vapradari from them. Mularaja's son was Devaraja; Devaraja's son was Kehari and the latter's son was Lakshmana. The last one receives general praise in six stanzas in which it is stated that he worshipped the feet of Surisvara, Sagarachandra. Then a pattavali of the Chandra Kula from Jinakusala to Jinaraja is given. By the advice of Jinaraja the building of the temple was commenced by the Kharatara Samgha during the reign of Lakshmana and by his orders Sagarachandra in Samvat 1459 Naveskuvardhindu ) placed the idol in the innermost sanctuary (garbhagriha). Under the direction of Jinavardhana the temple was completed in Samvat 1473. Then the city which has got such a temple, the king in whose reign it was built, the Samgha who built it and those who would see it in future ages are all congratulated on their good fortune. The Jina temple is called. Lakshmana-vihara. The Prasasti was composed by Sadhu Kirtiraya.
No. III.
From the same.
This refers to the setting up of an idol of Parsvanatha in the temple in Samvat 1493 during the reign of Vayarasimha.
No. V.
From the Sambhavanatha Temple. +
(The temple underneath which is the big Bhandar).
Jaisalmer is herein praised as being acknowledged even by powerful Mlechchha kings to be difficult to capture even for thousands of enemies. Thea is praised
See inscription No. 2114, page 8 † See inscription No. 2139, pages 15-20
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Vuit
the family of the Yatia kings. A genealogy of the vamsa ( dynasty ) in proge follows, beginning with Raula Sri Jaitasimha, with Raula Sci Duda interposed between Ratnasimha and Ghatasimha. Kehari is here called Kesari. The genealogy ends with Vairasimha. A pattayali of the Kharatara Vidhipaksha of the Chandra kula (a sect of the Jainas ) follows, beginning with Vardhamana. It meations a few facts, literary and others, in connection with many of the names, most of which facts are well-known. The following may be noted :
That Jinadatta (the successor of Jigavallabha) had the title Yugapradhana given him bę Ambikadevi. This is referred to in Jayasagara's commentary on Jinadatta's Samdehadolavali.
The pattavali ends with Jinabhadra. Jinarardhana has been omitted, naturally for the reason given in Klatt's Onomasticon (page 34). Jinabhadra's character, learning and teaching are praised. By his advice Viharas ( temples) were built and idols: put up in various places and in places like Anahillapataka, the Vidhipaksha Sraddhasamgha formed treasures of pearls of knowledge f libraries ). His feet, the inscription says, are worshipped by the kings Vairisimha, Tryambakadasa and Kshitindra.
A genealogy is then given of the builders who were of the Chopada gotra, Ukesa vamsa. In Samvat 1487 they performed a pilgrimage to Satrumjaya and Raiyata and made the Panchamyuddyapana in 1490. By the advice of Jinabhadra they built this temple in 149$ during the reign of Vairisimha. The festivities in connection with the pratishtha took place in Samvat 1497, when Jinabhadra put up 300 idols of Sambhavanatha and others, Sambhavanatha being the Mulanayaka among them. Vairisimha took part in the festivities. Then a wish is expressed for the victory, throughout the three worlds, of some Jinakusala Munindra of the Kharatara Vidhipaksha. Thé Prasasti was composed by Vachanacharya Somakunjara, pupil of Vachaka Jayasagara.
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IX
No. VI.
From the same.
This contains the Kharatara pattavali referred to, in my report on the Svetams bara Jaina Mss purchased for Government in 1888-84, as mentioned in Dharmasagara's Pravachanapariksha (Dr. Bhandarkar's Report for 1883-84, page 152 ). It goes down to Jinabhadra, omitting Jinavardhana. The inscription states that a tapahpattika was put up by the advice of Vachanacharya Ratnamurtigani in Samvat 1393, while Jinabhadra was on the patta and Chachigadeva on the throne,
No. VII.
From The Santinatha temple. $ This is an inscription mostly in Gujarati prose. Towards the end there is one sentence in Sanskrit prose and two Sanskrit verses. In the beginning also there is one Sanskrit verse. The performance of pilgrimages and building of temples are recorded in the inscription. It contains the following genealogy :- Raula Chachigadeva, Raula Devakarna, Raula Jayatasimha. The last is mentioned as being on the throne in Samvat 1583 and Lunakarna as being heir-apparent. Devakarna is mentioned as ruling in Samvat 1536, in which year it seems the pratishtha of this temple was nade. Jayantasimha is referred to as being on the throne in Samvat 1581 also.
* See inscription No. 2144. pages 22-32 $ See inscription No. 2154. pages 35-40
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संस्कृत और हिन्दी ग्रंथों की सूची
अभिधान राजेंद्र चतुर्थ भाग विजयराजेंद्र सूरि कृत (रतलाम, सं० १९७४ ) पृ० १५८६ आवार रत्नाकर, प्रथम प्रकाश-पं० मोहनलालजी कृत (बम्बई, सं० १६४६) पृ० १२२ इत्यादि जेसलमोर भाण्डागारीय प्रधानां सूची, G. 0. S. No. XXI-(खरौदा, ई० ११२३ ) जैन प्रथावली–प्रसिद्धकर्ता, श्रीजैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस (बम्बई, सं० १९६५) जैनतरवादर्श-कर्ता, आत्मारामजी (बम्बई, ई० १८८४ ) १०५८४ इत्यादि जैन ( श्वेताम्बर ) तीर्थ प्रकाश-यति मोहनलालजो कृत, पृ. २६ जैन तीर्थावली प्रवास -लखामसि नेणसि सवाणि कृत (बम्बई, सन् १९०२) पृ० ३३ जैन श्वेताम्बर कान्फरेंस हेरल्ड, खंड १३-(बम्बई, ई० १९१७) १०४३ जैन साहित्य सम्मेलन, २२ भाग--प्र०, अभयचंद भगवानदास गांधी (भाषनगर, ई० १९१६) पृ. ३६, ३८ जैन साहित्य संशोधक, प्रथम खंड-मुनि जिनविजयजी सम्पादित (पूना, सं० १९७७ ) पृ. १००-११२ जैसलमेर का इतिहास-पं० हरिदत्त गोविन्दजी व्यास कृत (बीकानेर, ई० १९२०) टाड राजस्थान, दूसरा खंड-अनु०, सपाइलाल छोटमलाल व्होरा ( भावनगर, ई० १६११) पृ०७८५-४८८ तीर्थमाला अमोलकरत्न- शीतल प्रसाद छाजड़ (कलकत्ता, सं० १८९३) पृ. १५ प्राचीन जेन लेख संग्रह, द्वितीय भाग-संपादक, मुनि जिनविजयजी (भावनगर, ई० १९२१) लेखांक २६, ४५७ प्राचीन जैन स्मारक ( मध्य प्रान्त-राजपुताना )--सं०, ० शीतल प्रसादजी (सूरत, सं० १९८२) पृ० १६८ प्राचीन तीर्थमाला संग्रह, प्रथम भाग - संशोधक, विजयधर्म सूरि (भावनगर, सं० १९७८) पृ० १४६ इत्यादि भारत के प्राचीन राजवंश, तुतीय भाग-ले०, पं० विश्वेश्वरनाथ रेउ (बम्बई, ई० १९२५) पृ. २६८ इत्यादि भारतीय नरेश- जगदीश सिंह गहलो त (जोधपुर, सं०१६८०) पृ० ४३ नं.१७७ मारवाड़ के मर्दुमसुमारी का रिपोर्ट --- भाग १-३ (जोधपुर, ई० १८६४) पृ०६ मुद्रित जेन श्वेताम्बरादि ग्रंथ --बुद्धिसागर सूरि (पादा, ई० १९२६) पृ० ६६, २७०, ३०१ यात्रादर्पण ( दिगम्बर )-ठाकुरदार लगवानदास कृत (बम्बा, ई० १९१३) पृ० १४१ विश्वकोष (हिन्दी) भा० ८. संचालक, नगेन्द्रनाथ वसु (कलकत्ता, ई० १९२४) पृ०६९-४ विज्ञप्ति त्रिवेणी- मुनि जिनविजय इत ( भावनगर, ई० १६१६) पृ०५८ इत्यादि सरस्वती (मासिक) भा० २६, र , सं० ५-ले० नेपालचंद्र दत्त (प्रयाग, ई० १९२८) १९५१३-२८
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BIBLIOGRAPHY (Cont)
Annual Address of the A. S. of Bengal. Cambridge History of India. Vol. III.
by II. P. Shastri. Calcutta, 1920. p. 10. ed. by W. Haig. Cambridge, 1928. pp. 502, 520-22, 531 ff. Descriptive Catalogue of Sanskrit Mss. in Calcutta Sanskrit College. Vol. X. by H. Shastri. & N. Chakravarty. Calcutta, 1909. pp. 76, 141, 149, 237, 256. London, 1904 pp. 344–375.
From the Land of Princes. by G. Festing. Handbook for travellers in India, Burma & Ceylon. History of the Rise of Mahomedan Power in India. by J. Briggs. London, 1829.
London, 1926. p. 190.
Vol. II. p. 92.
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Modern Review, The. February, 1929. ed. by R. Chatterjee. Calcutta. pp. 194-203.
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हिन्दी ग्रंथों की सूची
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अभयरससार – सं० काशीनाथजी जैन (बीकानेर, ई० १९२७) पृ० २६८, ४२२ आनन्द काव्य महोदधि, सप्तम भाग – सं० मुनिसंपतविजय ( बम्बई, सं० १९८२ )
भूमिका पृ० २०-२२, २४, २६, ३४-३५,
"कविवर समयसुन्दरजी' पृ० २४–२८, ३६, ७, ५, इत्यादि चारे दिशाना तीर्थों नी तीर्थमाला - प्र. जैन धर्म प्रसारक सभा ( भावनगर, सं० १९८२ ) पृ० २३-२४ जैन सम्प्रदाय शिक्षा --- यति श्रीपालमन्द्रजी कृत (बम्बई, सं० १९६७ ) पृ० ६३०, ६३२ तवारोख जैसलमेर * - लक्ष्मीचन्द्रजो कृत ( अजमेर, सं. १६४८) लिथो भक्तिपद संग्रह - सं० यति श्रीवृद्धिचन्द्रजी (जैसलमेर, सं० १९८५ ) पृ० ३, ६, ११ इत्यादि महाजन वंश मुक्तावली - उ. रामलाल गणि विरचित ( बम्बई, सं० १९६७) पृ० २८-३० रत्नसागर – मुक्तिकमल मुनि संगृहीत (कलकत्ता, सं० १९३६ ) पृ० १७८ वृद्धि नमाला - की वृद्धिम्न मुनि (रतलाम, सं० १९७१)
है. यह पुता बहुन खोज करने पर भी नहीं मिली थी, भूमिका छप जाने पर प्राप्त हुई। इसमें कई विषयों का अच्छा संग्रह है, हिासमो पाठकों के पढ़ने योग्य है ।
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जेसलमेर श्री शांतिनाथ मंदिर के शिखर का दृश्य ।
UPPER VIEW OF SHRI SHANTINATH TEMPLE-JAISALMER.
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परम पूज्य परमात्मा की कृपा से जैन और जैनेतर इतिहास प्रेमी सज्जनों के सम्मुख जेसलमेर और उसके निकटवत्तों स्थानों के जेन लेखों का संग्रह उपस्थित करने का आज मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । जैन लेख संग्रह द्वितीय खंड की भूमिका में मैंने सूचित किया था कि जैसलमेर के लेखों को शीघ्र ही प्रकाशित करूंगा, परंतु ऐसो आशा नहीं थो कि इतने अल्प समय में यह छप कर तैयार हो सकेगा। कुछ दिनों से मेरे नेत्रों में पीड़ा और स्वास्थ्य भंग होने के कारण इस संग्रह को यथाशक्ति शीघ्रता के साथ प्रकाशित करने को प्रवल आकांक्षा हुई । यही कारण है कि दो वर्ष व्यतीत होने के पूर्व ही आज यह खंड तैयार हुआ है । यदि भन्यान्य साधन अनुकूल रहा तो आगामो खंड में 'मथुरा' आदि के प्राचीन जेन लेखों का संग्रह भो सदृदय पाठकों के करकमलों में अर्पित करने की इच्छा है !
मैं चाल्यावधि से जैसलमेर के नाम से परिविन था! जैन प्रतिमाओं को संख्या की अधिकता के कारण जैसलमेर का नाम तीर्थ स्थानों की गणना में है । ताडपत्र के प्राचीन जेन अन्यों के संग्रह के कारण भा यहां का भंडार विशेष उल्लेखयोग्य है। जैसलमेर से पश्चिम इस माइल पर 'लोद्रपुर' नामका एक प्राचोन विशाल पत्तन था और वहां के श्रीपार्श्वनाथखामो का जिनालय भी बहुत काल से प्रसिद्ध था । विक्रम प्रयोदश शताब्दि में लोद्रपुर विध्वंस होने के सपर वह मंदिर नष्ट हो गया होगा और संभव है कि उसी स्थान पर विक्रम सप्तदश शताब्दि में सेठ थाहरू साह भणशालो ने वर्तमान मंदिर बनवाया है।
जैसलमेर के ताड़पत्रों के जैन-ग्रन्थों के संग्रह को विशेष प्रसिद्धि के कारण ई. १८७३ में पाश्चात्य विद्वानों में से डाक्टर बुलर साहे। उक भंडार निरीक्षण करने के लिए वहां प्रथर गये थे और
आपके साथ डाक्टर हारमेन जे कोदो भो थे। इस दौरे का हाल 'इंडियन एस्टिक्वेरो' नामक पत्र में जो प्रकाशित हुआ था उसका कुछ अंश अन्यत्र प्रकाशित किया गया है । पश्चात् लगभग ३० वर्ष बाद डाक्टर आर० जी० भण्डारकर साहेब के सुपुत्र स्वर्गीय एस. आर० भण्डार कर, एना, ए., वहां पधारे थे । आप ई० १६०४.२५, १९०५.०६ के अपने रिपोर्ट में वहां के भंडार को सूवी और संक्षिप्त विवरण के साथ जैन मंदिरों के कई लेखों के कुछ आवश्यकीय अंश प्रकाशित किये । उस पर आपके ऐतिहाधिक विवेवन जो उक्त रिपोर्ट में छपे है।
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यह भी पाठकों को अंगरेजी परिशिष्ट में मिलेंगे। जैसलमेर के किले पर के बाठ मंदिरों में से केवल तीम मंदिरों के छ: शिलालेखों के कुछ अंश उक्त रिपोर्ट में हैं। पुनः विद्वोत्साही श्रीमान् गायकवाड़ नरेश की आशा से बरौदा सेन्द्रल लाइनरी के संस्कृत पुस्तकाध्यक्ष जैनी विद्वान् स्वर्गीय साह विमनलाल डाह्या भाई दलाल, एम, ए०, ई० १६१६ में जैसलमेर भंडार. के जैनग्रन्थों की विशुद्धरूप से सूची तैयार करने के लिये गये और वहां कई मास ठहर कर लोद्रवा आदि खान के जिन-चैत्यालयों को भी अवलोकन किये थे। आपने बड़ी योग्यता के साथ वहां के भंडारों के पुस्तकों का विवरण लिखा था तथा जैन लेखों का संग्रह भी किया था । परंतु दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि यह परिश्रम पुस्तकरूप में प्रकाशित होने के पूर्व ही आप का स्वर्गवास हो गया। पश्चात् उक्त पुस्तकालय के जैन पंडित लालचंद्रजी भगवानदासजी गांधी द्वारा गायकवाड़ मोरिएन्टल सिरोज नं० २१ की 'जैसलमेर भाण्डागारीय ग्रंथानां सूची' नामक पुस्तक ई० १९२३ में प्रकाशित हुई जिसके परिशिष्ट में जैसलमेर के किले, सहर और लोद्रपुर के सब मिलाकर कुल २१ लेख छपे, परंतु नं० २० और २१ एक ही लेख के दो अंश है । जैसलमेर के निकटवर्ती अमरसागर नामक स्थान के पटुओं के मंदिर का एक लेख 'जैन साहित्य संशोधक' (त्रैमासिक पत्रिका ) प्रथमखंड सं० १९७७, पृ० १०८ में प्रकाशित हुआ है। इस के सिवाय और किसी जगह जैसलमेर के कोई लेख मेरे देखने में नहीं आये । जैसलमेर सहर के मंदिर, घर देरासर आदि स्थानों की मतियों के लेखों के अतिरिक्त किलेपर के आठ मंदिरों में हजारों लेन सहित विंय वर्तमान हैं। समयाभाव से मैं वहां की बहुत थोड़ी ही मूर्तियों के लेखों का संग्रह कर सका था, इस कारण इस खंड में कुल ४८१ लेख भाये हैं। जिन में भ्रम से दो लेन दुवारा छप गये हैं अर्थात् ४७६ लेख हैं। वे इस प्रकार है:
किले पर आठ मंदिरों के २८६, सहरके मंदिर और देरासरों के १५, अमरसागर के २४, लोदपुर के ३२, देवोकोट के ६,
गजरूपसागर के २ तथा पार्श्ववत्ती दादास्थान, श्मशानभूमि, देदानसर आदि अन्यान्य स्थानों के २५
आशा है कि इतिहास प्रेमी पाठकगण मेरी जो कुछ त्रुटियां रह गई हो उसे सुधारेंगे और भविष्य में जैसलमेर के अप्रकाशित जो हजारों मूर्तियों के लेख विद्यमान हैं उन्हें शोश ही प्रकाशित करने का उद्यम करेंगे ।
मेवाड़, मारवाड़, बीकानेर, जयपुर की तरह राजपुताने का जैसलमेर मी एक विख्यात राज्य है। इस राज्य का वर्तमान विस्तार १६०६२ वर्गमाइल है । इसके उत्तर सीमान्त में पञ्जाब का भावलपुर स्टेट, पश्चिम में सिंध प्रदेश, दक्षिण तथा पूर्व में मारवाड़ राज्य और उत्तर पूर्व में बीकानेर का राज्य है। सुविस्तृत होने पर भी ज्यादे अंश
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शुष्क मरुभूमि होने के कारण इस राज्य की जनसंख्या और आय अधिक नहीं है। पाठकों को आश्चर्य होगा कि ऐसे शांति के समय में भी राज्य की जनसंख्या जो ई. १८९१ में ११५७०१ थी वह घट कर ई. १९११ की जनसंख्या में ८८३११ रही । पुनः गत ई० १९२१ की जनसंख्या में केवल ३३३. हुई है। राज्य में रेलवे, तार वगैरह के अभाव के कारण न तो कोई व्यापार है और न यहां किसी तरह की उन्नति दिखाई पड़ती है । प्रसिद्ध जेन भंडार, मंदिर और कईएक प्राचीन कीर्तियों के सिधाय यह राजधानी और विशाल राज्य ऊजड़ सा दिखाई देता है। यहां और भी एक नई बात यह देखने में आई कि और २ देशी राज्यों की तरह चुंगी (Octroi) कर तो लगता ही है, एक मुंडकर ( per capita ) भी देना पड़ता है। अर्थात् बाहर से जो मनुष्य जैसलमेर आते हैं, लौटते समय एक को सरकार में आठ आने के हिसाब से कर चुकाना पड़ता है केवल ब्राह्मण, सन्यासी, यति, साधु वगैरह से नहीं लिये जाते हैं। जैसलमेर नरेश की विशेष कृपा के कारण दरबार के हुकम से मुझे तथा मेरे साथ के लोगों को कर मुक्त किया गया था। यह एक राजकीय सम्मान समझा जाता है।
वारण भाटों के दफ्तरों में और मुता नैनसी की ख्यात आदि राजपुताने के ख्यातों में जो कुछ राजस्थान के विवरण मिलते हैं इन के सिवाय कोई भी प्राचीन श्रृंखलावद्ध इतिहास, कर्नल टाड साहेब के प्रसिद्ध राजपुताना के इतिहास के अतिरिक्त देखने में नहीं आता है। और २ देशी राज्यों की अपेक्षा जैसलमेर का इतिहास कम मिलता है। टाड साहब के मेमोयर्स ( Memoirs) से मुझे जहां तक उपलब्ध है वे स्वयं भी जैसलमेर नहीं गये थे। ई० १६२० में श्रीमान् पं० हरिदत्त गोविंद व्यासजी ने जैसलमेर का इतिहास' नामक पुस्तक प्रकाशित किया है और वहां मेरी अवस्थिति के समय आपने मुझे उक्त पुस्तक की एक प्रति देने की रूपा की थी । पंडितजो ने ऐतिहासिक सामग्री संग्रह कर के पुस्तक तैयार करने में जो परिश्रम उठाया है इस कष्ट के लिये पाठकगण अवश्य कृतज्ञ रहेंगे। परन्तु मुझे खेद के साथ लिखना पड़ता है कि ऐसे ऐतिहासिक प्रय में आप ने न तो कोई सूची
और न कोई अध्याय अथवा विषय विभाग ही दी है 1 मैं यहां पुस्तक को समालोचना की दृष्टि से लिखना नहीं चाहता । परन्तु इतना सूचित करना कर्त्तव्य समझता हूं कि पण्डितजी ने पुस्तक में कई बातें विशेष खोज किये बिना ही लिखी है। आप उक्त पुस्तक के पृ० १४७ में लिखते हैं :
"सम्वत् १८८८ में करनल लाकेट साहब जैसलमेर पधारे । येही प्रथम यूरोपियन है जिन्होंने भाटी राजधानी को अवलोकन करने का प्रथमावसर प्राप्त किया था।"
परन्तु यह उक्ति भ्रमपूर्ण है। मुझे जहांतक ज्ञात है ई० १८३५ में सरकारी कार्य के उपलक्ष में बृटिश गवर्णमेन्ट की ओर से लेफ्टनेन्ट पोइलो, ट्रिवेलियन और मकेसन आदि कई. अंगरेज जैसलमेर गये थे और वहां कई दिनोंतक ठहरे थे, इसका हाल उन लोगों के पुस्तकों में मिलते हैं। उसी ई० १८३५ में महारावल गजसिंहजी ने स्वयं अंगरेजीका अभ्यास करने के लिये क्लिचर साहब नामक एक युरोपियन शिक्षक को नियुक्त करके उनको कलकत्ते से जैसलमेर थुलवाया था। इसके सिवाय मैं पूर्व में ही लिन चुका हूं कि ई० १८७४ में डा० बुलर और कोपी दोनों प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् जैसलमेर के जैन भंडार देखने पधारे थे।
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सची और पकी इतिहास सामनिशं इतनो दुष्प्राप्य हैं कि प्राचीन काल की सिलसिलेवार इतिहास रचना केवल लेखक महाशय की कल्पना मात्र प्रतीत होती है । वर्तमान में जो कुछ साधन मिलते हैं उस से यह ज्ञात होता है कि जैसलमेर राज्य में लोद्रपुर (लोदरवा ) नामक स्थान ही उस प्रान्त की प्राचीन राजधानी थी और वहां पर “लोड” जाति के राजपूत बसते और शासन करते थे । पश्चात् कालवक से विक्रम एकादश शताब्दि में भाटी राजपूतों के नेता देवराज लोद्रवा पर आक्रमण कर के वहां के राजा नृपभानु को जिनका नाम पं० हरिदत्त व्यासजी के इतिहास में “जसमान” लिखा है, परास्त कर के “लोद्पुर" को अपने अधिकार में कर लिया । पश्चात् सं० १२१२ तक भाटो राजपूतों की बराबर लोद्रवा में राजधानी रही। इसी देवराज से भाटी नरेशों की महारावल पदवी प्रारम्भ हुई है। भाटियों को उत्पत्ति के विषय में मारवाड़ दरवार के महकुमा तवारिज के सुपरिन्टेंडेन्ट प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान्. स्वगीय मुन्सी देवो प्रसादजी मुनसिफ कृत "मारवाड़ को कामो का हाल" नामक पुस्तक के पृ० ६ में भाटीवंश की उत्पत्ति इस प्रकार वर्णित है:--
"भाटी अपनी परमपरा चांद से उसो तरह मिलाते हैं जिस तरह से कि राठौड़ सीसोदिये और म.छपाहे सूरज से चन्द्रग्रंशियों की पुरानी शाखार्य कौरव पांडव और यादव थीं महाभारत की मशहूर लड़ाई इसी खानदान में आपस को ईषा से हुई थी जिसमें कौरव और पाण्डयों का खातमा करीब तयार केहो गया था कोम यादव जिसके अधिष्ठाता श्री कृष्णजो थे महाभारत के पीछे आपस में लड़कर कट मरी। और थोड़े से आदमी जो जीते बवे वे द्वारिका से काबुल. ग़ज़नो और बलख बुखारा की तरफ चले गये वहां बहुत मुद्दतों तक उनका राज रहा। फिर तुओं ने ज़ोर पकड़ कर उनका पंजाय की तरफ हटा दिया यहां भी बहुत मुद्दत तक रहे बल्कि यह शाख भारियों को पंजाब में हो भटनेर में रहने से पैदा हुई है । भटनेर से तनोट तनोट से देरावर और देवर से जेसलमेर आये जहां अब उनको
राजधानी है।" परन्तु इतिहास से स्पष्ट है कि भाटी देवराज विजयी होने के पश्चात् देरावल से लोवा राजधानी ले गये और जैसलमेर दुर्ग और नगर स्थापित होने के पूर्व सं० १२१२ तक लोद्रवा हो भाटी राजपूतों की राजधानी रहो।
जैसलमेर की उत्पत्ति के विषय में यह विवरण मिलता है कि सं० १२१२ में रावल दूसाजी के ज्येष्ठ पुत्र जैसल ने भाने भ्रातप्पुत्र महारावल भोजदेव को मुसलमान शहायुदोन घोरो को सहायता से मार कर लोदवा के राजा हुए। परन्तु उस स्थान को निरापद न समझ कर वहां से ५ कोस दूर एक छोटी डुंगरी पर नवोन जैसलमेर नाम से दुर्ग और उसी नाम का नगर उप्ती समय बनवाया था।
महारावल देवराज से लेकर जैसलमेर के वर्तमान नरेश तक इतिहास और लेखों से इस प्रकार महारावल राजाओं के नाम पाये जाते हैं:
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१ देवराज (महारावल )-भाटी बिजेराव के पुत्र थे। जन्म सं० ८९२ (१०८२६)। अपने राज्य में बहुत से
तालाब खुदवाये और देरावर ( देवगढ़) का किला भी सं0 101 में अपने नाम से बनवाये थे। १३. वर्ष की अवस्था में बलूचों द्वारा सं० १०२२ (ई. १६६ ) में मारे गये । इन के पाल्प.
जोवन की घटनायें विस्मयपूर्ण हैं । २ मंजी (मण्ड, चामुण्ड )-देवराज के पुत्र थे। सं० १०२२-१०६५ (ई० ६६६-१..) । ३ घाजी (बछेर )-मंधजो के पुत्र थे । भारत पर महम्मद गज़नी के आक्रमण के समय आपने इनका सामना
किया था । राज्यकाल सं० १०६५ - ११०० (१० १०६-१०४४) । " दूसाजी (दूसाज)-बछेर के ज्येष्ठ पुत्र थे। सं० ११०० (६० १०४४ ) में राज्याधिकारी हुए थे। ५ विजेराव (लंज-दूसाजी के ३य पुत्र मेवाड़ के सीसोदनी रानी के गर्भजात थे । अहिलपुर पाटन के
सोलंकी धवलराज की कन्या से विवाह किया । राज्यकाल का संवत् मिला नहीं। ६ भोजदेव - जिराव के पुत्र थे। राज्यप्राप्ति के स्वल्पकाल के पश्चात् ही सं० १२१२ ( ई० ११५६ ) में अपने
वितव्य जेसल से मारे गये।
जैसल ( अयशाल )-सं० १२१२ (ई. १९५६ ) में अपने नाम से जैसलमेर नामक दुर्ग बनाया और नगर
दसाया । मृत्यु सं० १२२४ (ई० ११६८ ) । ८ शालिवाहन (१)-जैसल के २ य पुत्र थे। सं० १२२५ ( ई० ११६८) में राज्य मिला। ६ वीजलदेव-शालिवाहन के ज्येष्ठ पुत्र थे । पिता के जीवितकाल में गद्दी पर बैठे परंतु थोड़े ही काल में
मारे गये । राज्यप्राप्ति और इनके पिता के मृत्यु का संवत् मिला नहीं । मृत्यु सं० १२५६
(ई० १२००)। १. केलणजी-जैसल के प्रथम पुत्र थे। सं० १२५६ -१२७५ (३० १२००-१२१६) तक राज्य किये थे।
* जैसलमेर के इतिहास में व्यासजी इनका संवत् १०३५ लिखते हैं। कर्णेल टाड साहेब इस संवत् को भ्रमात्मक और सं० १०५५ या १०६५ होना संभव लिखते हैं। व्यासजो फिर किस आधार पर सं० १०३५ लिखे हैं, स्पष्ट नहीं है । टाड के पश्चात् भो और २ पाश्चात्य विद्वानों के पुस्तकों में इनका ई० १००६ (सं० १०६५ ) मिलता है।
और २ इतिहासों में
. + व्यासजी इनकी राज्यप्राप्ति सं० १२४७ और राज्यकाल २६ वर्षे लिखते है, परन्तु राज्यप्राप्ति सं० १२५६ (ई० १२०० ) और राज्यकाल १६ वर्ष मिलते हैं ।
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११ वाकदव (१) कलमजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। सं० १२९५-१३०६६ (ई० १२१६-१२५० ) तफ लगभग ३२
वर्ष राज्य किये थे।
१२ करण सिंह (१) चाचकदेव के कनिष्ठ पौत्र थे। सं० १३०६-१३२७ (६० १२५०.--१२०१ )। १३. लहमसेन—करण सिंह के पुत्र थे। सं० १३२७–१३३१ (० १२७१ - १२०५ ) तक राज्य किये। १४ पुण्यपाल-लखनसेन के ज्येष्ठ पुत्र थे। अल्पकाल राज्य भोग के पश्चात् आपका स्वर्गवास हुआ ।
सं० १३३१-१३३२ (१० १२७५-१२७६ ) । १५ जेतसी (जैत्र, जयतसिंह) (१म)-करण सिंह के ज्येष्ठ भाई थे। इनके राजत्वकाल में खिलजी यवनों
द्वारा घों भाक्रमण चलता रहा । ये बड़े योद्धा थे और आठ वर्ष युद्ध के पश्चात् दुर्ग में ही
मर। मंदिरों के का शिलालेखों में इनका नाम मिलता है। सं० १३३२--१३५० ( ई० १२७६ - १२६४ ) । १६ मूलराज (१म-जैतसो के ज्येष्ठ पुत्र थे। यवनों के आक्रमण के समय में इन्हें सिंहासन मिला |
घोड़े काल में हो युद्धक्षेत्र में प्राण विसर्जन किये । लेखों में इनका नाम भी मिलता है ।
सं० १३५० १३५१ (१० १२६४–१२९५)। १७ दूदानी (मशाल)-भाटी उसोड के पुत्र थे। मूलराज की मृत्यु के पश्चात् जैसलमेर यवनों के अधिकार
में हुआ। राठौड़ जगमाल के राज्य पर आक्रमण की तैयारी करने के कारण भाटियों ने दूदाजी को गद्दी पर बैठाया। फिर कई वर्ष तक युद्ध होता रहा पश्चात् ये भी प्राण त्याग किये । लेख
में भी इन का उल्लेख है। सं० १३५१-१३६२ (ई० १२१५–१३०६ )। १८ पड़सी (घट सिंह )- मूलराज के भाई रतनसी के पुत्र थे। ये भी बड़े घोर थे। दूदाजी के मृत्यु के बाद
भी राज्य पर यवनों का अत्याचार चलता रहा और दिल्ली के सिंहासन पर इसी समय मुगलों का भी आक्रमण हुआ था। दिल्ली सम्राट् से अपने राज्य उद्धार की व्यवस्था करके जैसलमेर अधिकार किये थे। लेखों में भी इनका नाम मिलता है और इनके नाम का तालाब भो अब तक विद्यमान
है। ये विश्वासघातकों के द्वारा सं० १३९१ (६० १३३५) में मारे गये। १६ केहर-मूलराज के पौत्र थे। लेखों में इनके पिता देवराज का भी नाम मिलता है। इनका राज्यकाल
लगभग ६० वर्ष है । इन को मंडौर से बुलवा कर राज्यतिलक दिया गया था । लेखों में भी इनके नाम हैं।
* व्यासजी इनकी राज्यप्राप्ति सं० १२०५ और राज्यकाल ३२ वर्ष लिखते हैं मोर है। इस गणना से कुल २४ वर्ष होता है।
की मृत्यु सं० १२६६ बताते
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- प्रवेश द्वार ।
जैसलमेर दुर्ग
FORT GATE – JAISALMER.
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२.
स्मणजो-केहर शो के पुत्र थे और सं० १४५१ में गहो पर है। इनके शासनकाल में राज्य को उन्नति
होती रही। दुगे के श्री चिंतामणि पाश्चनाधनो का मंदिर इन्हीं के समय में बना था। प्रशस्तियों में सविशेष उल्लेख है। मृत्यु सं० १४६३ (०.१५३६) ।
२१ बरसी (षयर सिंह )-लक्ष्मणजी के पुत्र थे। इनके समय में बहुत से मंदिरों की प्रतिष्ठा हुई थी। बारह
वर्ष राज्य भोग करने के पश्चात् इनका स्वर्गवास .हुआ ! सं० १५६३५-१५०५ (१० १४३६--- १४४८) 1..
२२ वाचकदेव (चाविगदेव, चाबजी) (२य)-बरसीजो के ज्येष्ठ पुत्र थे । सं० १५०५ (ई. १४४८ ) में
सिंहासन पर बैठे और लेन नं० २१४४ से भी यह संवत् मिलता है। किले पर के श्रोसंभवनाथजी के मंदिर को 'तपपष्टिका' को प्रतिष्ठा इन्हीं के समय में हुई थी। ये सोडाजाति के राजपूतों द्वारा षड्यंत्र से मारे गये थे। लेखों से इनका सं० १.१८ (ई. १४६१ ) तक राज्यकाल मिलता है।
२३ देवीदास ( देवकर्ण )--वाचकदेव के पुत्र थे। इनके राजत्वकाल में नाना प्रकार आभ्यंतरिक विप्लव रहने
के कारण उस समय का इतिहास ठीक नहीं मिलता है। व्यासजो संवत् १५१३ में इनका राज्य. तिलक लिखते है, लेकिन लेखों से संवत् १५१८ तक चाचिगदेव का शासनकाल मिलता है । इनके संवत् १५३६ के कई लेख मिले हैं। इनका स्वर्गवास सं० १५५३ (६० १४६६ ) में हुआ था ऐसा व्यासजी के इतिहास में है।
२५ अंत सिंह (जयत सिंह) (२ य }-देवकर्ण के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनके समय में राज्य पर बीकानेर राज्य का
आक्रमण हुआ था। दुर्ग पर के श्रीशांतिनाथजी और थ्रोअष्टापदजी के प्रशस्ति से इनका सं० १५८१ और १५८३ स्पष्ट है। इनके खावास का संवत् देखने में नहीं आया । संभव है कि सं० १५८३ और १५८५ के बीच में इनका देहान्त हुआ होगा।
• व्यासजी सं० १६ में इनका राज्याभिषेक लिखते हैं । शिलालेख (नं० २११४) से इनके राज्यप्राप्ति का संवत् १we मिलता है और श्रोसंभवनाथजी के मंदिर को प्रशस्ति (नं०. २१३६ ) से तथा दुर्ग के कुओं पर के स्तंस के लेख नं० २५१ से संवत् १४६४ में इनका राज्यकाल स्पष्ट है। इन सत्रों के अतिरिक्त दुर्गस्थित भोलस्मोकान्तजी के प्रसिद्ध मंदिर की प्रतिष्ठा मी सं० १४६४ में महारत्रल परसोजी ने कराई थी, यह उक्त मंदिर की शास्ति में लिखा है। यहां भी आपने सं० १४६४ में लक्ष्मणजी द्वारा श्रीलक्ष्मीकान्तजी के मंदिर की प्रतिष्ठा होना किस कारण लिखा, समझ में नहीं आया।
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२५ लूणकरण (नूनकरण )--जयत सिंह के पुत्र थे। संवत् १५८५* के माघ महीने के पहले ही राज्याधिकारी
हुये थे, यह लेख नं० २१५५ से सिद्ध है। ई० १५४१ (सं० १५९८ ) में इन्हों ने सम्राट् हुमायू का सामना किया था। परन्तु इतिहास में इनके राज्यकाल का और कोई संवत् मिला नहीं। व्यालजी
ने इनका स० १५८६-- १६०७ (ई० १५२८ -१५५० ) लिखा है। २६ मालदेव-लूणकरण के ज्येष्ठ पुत्र थे। टाइ साहेब अपने इतिहास में इनका राज्य करना नहीं लिखे हैं।
लेखों में भी नाम नहीं मिला । राज्यकाल सं० १६०७--१६१८ (ई. १५५० -१५६१ )। २७ हरराज-मालदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। टाड इनको लूणकरणजी के प्रथम पुत्र लिखते हैं परन्तु इनका
राज्य करना नहीं लिखे हैं । लेखों में भी इनका नाम नहीं मिला। सं० १६१८-१६३५ ( ई० ११६१
- १५७७ ) तक सिंहासन पर थे। २८ भीमनी (भीमसेन ) हरराज के ज्येष्ठ पुत्र थे। सं० १६३४ (६० १५७७ ) में सिंहासन पर बैठे । लेख
० २५६४ और. २५०५ से इनका संवत् १६५० और १६६३ में राज्य करना स्पष्ट है । सम्राट मकबर के 'आरन अकबरी' में इनफा हाल मिलता है।
• व्यासजी के इतिहास में है कि महारावल जंत सिंह के स्वर्गवास के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र कम्सो रिता को गद्दी पर बैठे, परन्तु एक पक्ष राज्य करने के याद हो उनके लघुभ्राता लू गकरण यवनों को सहायता से उनको सिंहासन च्युन करके संवत् १९८६ में राज्य पर अपना अधिकार किया। प्रशस्ति का शिलालेख (नं० २९५५ } में वर्णन है कि संवत् १५८१ में जैतसिंह के समय लूणकरण (कुमर) और संवत् १५८३ में लूणकरण ( युवराज } विद्यमान थे। जैनसिंह के ज्येष्ठ पुत्र कसो (करणसो ) का लेखों में कोई उल्लेख पाया नहीं जाता है।
* इस समय के इतिहास के खोज की आवश्यकता है । टाड साहेब अपने इतिहास में लिखते हैं कि लणकरणजी के हरराज (१), मालदेव (२) और कल्याण दास (३) नामक तीन पुत्र थे । हरराज के पुत्र भोम थे जिनको लूणकरण के बाद राज्य करना लिखते हैं और लूणकरण के तीनों पुत्रों में किसा को राज्या.
नहीं लिखे हैं। आप भीमजो के बाद, कल्याणदासजी के पुत्र मनोहरदासजो का राज्य करना लिखते हैं । व्यासजी अपने इतिहास में लूणकरण के पुत्र मालदेव का ११ वर्ष राज्य करना और मालदेव के पुत्र हरराज का १६ वर्ष राज्य करना लिखते हैं और हरराज के भोमजी और कल्याणजी आदि चार पुत्र लिखते है। इनमें से हररराज के पश्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र भीमजो का सरत् १६३४ में गद्दी पर पैठना और ४६ वर्ष राज्य के पश्चात् संवत् १६८० में इनके देहान्त के बाद इनके भ्राता कल्याणजी का उसो संवत् मैं गद्दी पर बैठना लिखते हैं। लेखों में कल्याणदासजी का महारावल होना और राज्य करना स्पष्ट वर्णित है । टाड साहेब को इस समय का सटीक इतिहास नहीं प्राप्त हुआ होगा । 'राजपुताना गजेटिअर' में भी मोमजी के बाद कल्याणदासजी का राज्य करना. लिखा है।
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२६ कल्याणदास ( कल्याण सिंह )-भीमजो के कनिष्ठ भ्राता थे। भीमजी के सात वर्ष के कुअर को दिए
प्रयोग से मरवा कर स्वयं राजसिंहासन पर बैठे। व्यासजी सं० १६८० में इनका गद्दी पर बैठना लिखते हैं परन्तु लेख नं० २४६७ से इनका सं० १६७२ में शासनकाल सिद्ध है। सं० १६७५ में इनके समय में लोद्रवा मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था परन्तु प्रशस्ति में तथा वहां के मूर्तियों के लेखों में इनका उल्लेख नहीं है। संभव है कि उस समय इनके कुकृत्य के कारण इनकी प्रना
इन पर असंतुष्ट होगी। लेख नं० २५१५ से सं० १६८३ में इनका राज्य काल मिलता है। ३. मनोहरदास-कल्याणदात के पुत्र थे। लगभग सं० १६८४ में गद्दी पर बैठे होंगे। लेख से सं.
१६८५ में इनका राज्यकाल मिलता है। इनके स्वर्गवास का समय मिला नहीं। ३१ रामचन्द्र—मनोहरदास के पुत्र थे। उद्धत स्वभाव होने के कारण सं० १७०७ (ई. १६५१ ) में राज्य
च्युत हुए थे। लेख में इनका उल्लेख नहीं मिला। ३२ सबल सिंह-मालदेव के प्रपौत्र थे। रामचन्द्र के स्थान पर इनको राज्याधिकार मिला। इनके समय से
जस रमेर का पौकरण परगना राज्य से अलग हुआ। दिलो की बादशाही दरबार में जैसलमेर के
आप प्रथम सामंत हुए थे। राज्यकाल सं० १७०७-१७१७ ( ई० १६५१.---१६६१ ) । ३३ अमर सिंह-सबल सिंह के २ य पुत्र थे । इनके समय में राज्य का विस्तार हुआ था। अमरसागर
नामक प्रसिद्ध तालाब और पार्श्व.स्थत सुरम्य उद्यान इनकी कीर्ति भद्यावधि वर्तमान है। शिलालेखों
में इनका नाम नहीं है। राज्यकाल सं० १७१७-१७५८ ( ० १६६१-१७०२ ) । १४ जसवंत सिंह-अमर सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। राज्यकाल सं० १७९६-१७६४ ( ई० १७०३-९७८) । १, बुध सिंह -जसवंत सिंह के पौत्र थे । इनके पिना के राज्यपद् में बैठने के पहले हो देहान्त होने के
कारण अल्प वयस में ही इनको गद्दी मिली थी। इनके राज्यकाल का सं. १७६६ शिलालेख
नं० २५५०६ में मिला है। राज्यकाल सं० १७६४ - १७६६ । ई० १७०८-.-१७१३) । ३ तेज सिंर जसवंत सिंह के पुत्र थे। ये अन्याय से सिंहासन पर बैठे और घराबर घोर अशांति चलती
रही। थोड़े ही काल पश्चात् इनकी मृत्यु हुई ! र सर्ग सिंह...तेज सिंह के पुत्र थे। पिता की तरह ये भी गद्दी पर बैठने के अल्प समय के पश्चात्
राज्यभ्रष्ट हुये । इनके पिता के तथा इनके समय के संवत् मिले नहीं।
___* टाड साहेब अपने इतिहास में इनको जगत सिंह के द्वितीय पुत्र लिखे हैं परन्तु प्रथम पुत्र होना संभव है
और इनकी पसंत रोग से मृत्यु होने के पश्चात् इनके पितय, तेज सिंह का गद्दी पर बैठना लिखते है। न्यासजो लिखते हैं कि ये तेज सिंह द्वारा विष प्रयोग से मारे गये थे।
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( १० )
२८ भने सिंह - जसवंत सिंह के पौत्र थे
।
इनके समय में देरावर आदि कुछ प्रदेश राज्य से निकल गये थे। इनके समय में जैसलमेर में टकसाल स्थापित हुई थी और वह मुद्रा 'अखेशाही' नाम से अभी तक प्रसिद्ध है। राज्यकाल सं० २००८ - १८१८ (६० १०२२ - २०६२) ।
३६ मूलराज ( २ ) - अबे सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। सं० १८१८ (६० २०६२) में गद्दी पर बैठे और दोघं काल तक ५८ वर्ष राज्य किये। इनके समय की विशेष उल्लेखयोग्य घटना यह है कि सं० १८१४ में इनके पिता के समग्र पलासी युद्ध के पश्चात् अंगरेज राज्याधिकार और शान बढ़ता रहा और वे लोग दिल्ली सिंहासन पर पूर्ण अधिकार जमा कर ईष्ट इंडिया कम्पनी की ओर से देशी राजाओं से मैत्री स्थापन करते हुए राज्य विस्तार करना आरम्भ किया। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर आदि के राजाओं से सन्धि होने के पश्चात् सं० १८७४ (६० १८१८) में इनके समय में जैसलमेर का सन्धिपत्र लिखा गया और दो वर्ष के बाद ही सं० १८०६ (६० १८२० ) मैं इनका स्वर्गवास हुआ
इनके समय में ओसवाल न्यात की पंचायती के कायदे बने थे जो अभी तक प्रचलित हैं। ये विद्वान् और साहित्य प्रेमी थे और स्वयं भी ज्योतिष आदि के कई अन्य रचना किये थे ! विद्वान होने पर भी राजनीति कुशल नहीं थे । गद्दी पर बैठने के पश्चात् प्रथम इनके अमात्य मेहता स्वरूप सिंह के पूर्ण अधीमता में रहे और प्रकाश्य दरबार में उनके मारे जाने के बाद उनके पुत्र मेहता शालिम सिंह के वश में उसी प्रकार रह कर राज्य किये जुल्मी थे। इनके अत्याचार से समस्त राज्य की प्रजा दुखी रहतो थी राज्य के प्रधान २ सामंतो के साथ इन्होंने किस प्रकार नृशंस व्यवहार
।
मेहता शालिम सिंह बहुत
युवराज से लेकर समस्त और स्वार्थ सिद्धि के लिये
* व्यासजो अपने इतिहास में इनको जगत सिंह के द्वितीय पुत्र लिखे हैं । डाड साहेद इनको प्रथम पुत्र लिखते हैं परन्तु यह संभव नहीं है कारण ये प्रथम पुत्र होते तो बुध सिंह के पहले ही राज्याधिकारी होते व्यासजी इनकी राज्य प्राप्ति सवाई सिंह के स्थान पर सं० १७७० में विना किसी प्रकार के उपद्रव के लिखते हैं परन्तु टाड साहेब के इतिहास में लिखा है कि तेज सिंह के पश्चात् इनके तीन वर्ष के लड़के सवाई सिंह के गद्दी बैठने पर अ सिंह इनको मार कर स्वयं सिंहासन पर बैठे और यही घटना अधिक संभव मालूम पड़ती है । अ सिंह का राज्यकाल व्यासजी सं० १८१८ तक लिखकर ३२ वर्ष बताते है। इतिहास के ग्रन्थ में गणना का इस प्रकार भ्रम नहीं होना चाहिये। सं० २००० से १८१८ तक ४८ वर्ष होते हैं। बुध सिंह के राज्य का शिलालेख ( नं० २५०१ ) स्पष्ट है । पश्चात् तेज सिंह और इनके पुत्र वर्षो तक राज्य में नाना प्रकार अशांति रही, यह भो इतिहास से प्रकट है। अतः अ गद्दी बैठना संभव नहीं । संवत् १७८१ के पूर्व का इनके समय का कोई लेख मिला के ग्रन्थों में इनका राज्यकाल ई० १०२२-१७६२ तक ४० वर्ष दिखा है।
सं० २०६६ का
सवाई सिंह के समय में
सिंह का सं० १७०० में पाश्चात्य विद्वानों
नहीं ।
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कहां तक कूट नोति का प्रयोग किया था उसका वर्णन पाठकों को जेसलमेर के हरेक इतिहास में मिलंगे। __ शहर के तपगच्छोय श्री उपाश्वनाथजी के मंदिर • को प्रतिष्ठा इनके राजत्वकाल में सं० १८६६ में
हुई था और देवोकोट का मंदिर भो सं० १८६० में इनके समय में बना था । ४० गज सिंह- मूलराज के पौत्र थे। इनके समय में भाटो सामंतो द्वारा लूट खसोट के कारण सीमान्त के
राजाओं से विवाद हुआ था, लेकिन वृटिश राज्य को मध्यस्थता में शांतिपूर्वक मिट गया था । इनके राजत्वकाल में गजरूपसागर नामक तालाव और गजविलास प्रासाद यने थे। इनके राज्यकाल में सेठों ने शत्बुजय तीर्थ का प्रसिद्ध संघ निकाला था जिसका विशेष वर्णन लेख नं०
__ प्रथम काबुल की चढ़ाई में वृटिश सरकार को इनने विशेष सहायता दी थी। ये प्रजाप्रिय शासक थे और राज्योन्नति में तत्पर रह कर २६ वर्ष राज्य किये थे। राज्यकाल सं० १८७६ -
१६०२ ( ई० १८२०-१८४६ ) । ४१ रणजीत सिंह-गज सिंह के भ्रातप्पुत्र थे । गज सिंह के पुत्र नहीं रहने के कारण इनके लघुभ्राता के
तीन वर्ष के पुत्र रणजीत सिंह को गद्दी मिली और १८ वर्ष राज्य के पश्चात् इनका भी निपुत्रक अवस्था में स्वर्गवास हुआ । इनके शासन काल में ई० १८५७ ( सं० १९१४ ) में भारत का प्रसिद्ध सिपाही विद्रोह हुआ था । अमरसागर के पंचायती मंदिर की प्रतिष्ठा इनके समय में
सं० १९०३ में हुई थो। राज्यकाल सं० १९०२-१९२० ( ई० १८४६---१८६४ ) । ४२ बरोशालजो-रणजीत सिंह के भ्रातपुत्र थे। इन्हीं के समय में ईष्ट इंडिया कम्पनी से महागणी
विक्टोरिया ने भारत सम्राज्य का शासन अपने हाथ में लिया था और इस उत्तव पर दिल्ला में सं० १९३३ (६० १८७७ ) में प्रथम दबार हुआ था । अमरसागर स्थित पटुओं के प्रसिद्ध मंदिर को प्रतिष्ठा सं० १९२८ में इनके गज्यकाल में हुई थी। गजरूपसागर के दादाजी के चरण की प्रतिष्ठा सं० १९२१ में और ब्रह्मसर के मंदिर की प्रतिष्ठा सं० १६४४ में इनके समय में हुई थी। राज्यकाल सं० १९२१-१६४८ (ई. १८६४---१८६१ ) ।
__.
.
--
* इस मंदिर की प्रशस्ति ( लेख नं० २१७५ ) में स्वरूप सिंह और इनके पुत्र शालिम सिंह का वर्णन है । टाड साहेब अपने इतिहास में इनको जेम बताये है, यह सर्वथा भ्रम है। ये माहेश्वरी जाति के वैष्णव धर्माबलम्बी थे। राजपुताना में ही ओसवाल वंश की सृष्टि हुई थी और वे लोग जेनी थे। मेराड़, मारवाड़, बीकानेर भादि समस्त प्रधान २ राज्य में यही ओसवाल वंशज जेनो लोग अमात्य मेहता होते थे। इसो भ्रम से शायद टाउ साईब इनको जैनी लिख दिये हैं।
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४३ शालिवाहन-रीशालजी के कोई पुत्र नहीं रहने के कारण ये केवल चार वर्ष को अवस्था में दत्तक रूप
से लिये गये और सं० १९५८ में पूर्ण अधिकार प्राप्त करके अपना नाम साम सिंह से शालिवाहन प्रसिद्ध किये थे । राज्यकाल सं० १९४८-१६७१ ( ई. १८६, १६१४) ।
४४ जवाहिर सिंह-शालिवाहन के कोई पुत्र नहीं रहने से वृटिश. सरकार की ओर से आप राज्याधिकारी
मनोनीत होकर सं० १९७१ ( ई० १९१४ ) में गद्दों पर बंडे और वर्तमान राज्याधीश है।
उपरोक्त जैसलमेर नरेशों की नामावली और संक्षिप्त विवरण से भली भांति ज्ञात हुआ होगा कि अयाधि इस रेासत का इतिहास अपूर्ण है। ऐतिहासिक दृष्टि से इन जेन लेवों को उपयोगिता भी पाठक अच्छी तरह उपलब्ध किये होंगे | मैं पहले हो कह चुका हूँ कि मेरे संग्रहीत लेखों के अतिरिक्त वहां सैकड़ों लेख वर्तमान हैं। आशा है कि वे सब प्रकाशित होने से वहां के इतिहास में और भी प्रकाश पड़ेंगे।
वर्तमान जैसलमेर नरेश महाराजाधिराज महाराघल सर जवाहिर सिंह जी साहेब बहादुर के० सी० एस. आई. का जन्म सं० १९३६ गोपाष्टमी के दिन हुआ था । बाल्यावस्था में आप ने मेयो कालेज, अजमेर में अध्ययन किया था । पश्चात् देहरादून के काडेट कोर में कईएक वर्ष तक रहकर वहां को शिक्षा प्राप्त की थी । सं० १९७१ में गद्दी पर बैठने के बाद हो वृटिश गवर्णमेट ने आपको सर्व प्रकार से योग्य समझ कर राज्य का पूर्ण अधिकार दिया है और अद्यावधि आप प्रशंसनीय राज्यशासन कर रहे हैं, आप का साहित्य, शिल्प में भी अच्छा प्रेम है। मुझे भी
आप के दर्शनों का और दरबार में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तथा आप मुझे इस कार्य में प्रोत्साहित किये थे। ऐसे प्रजाप्रिय धार्मिक दयालु राजाओं की संख्या अधिक देखने में नहीं आती है। आप के दो पुत्र है। प्रथम महाराज कुमार युवराज गिरधरसिंहजो साहेब, दूसरे महाराज कुमार हुकुमसिंहजी साहेब। स्टेट के दीवान साहेब भी अच्छे विधान है। इन से भी मिल कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई थी। स्टेट इंजिनियर बाबू नेपालचन्द्रजी इत्त भी बड़े सुयोग्य अफसर है। आपने हाल में ही “सरस्वनी” ( मई. १९२८ ) नामक सुप्रसिद्ध पत्रिका में 'स्थापत्य शिल्प' शोषक, और “मडान रिवीऽ” प्रसिद्ध अंगरेजी पत्रिका ( फरसे. १९२६ ) में जैसलमेर
और यहां की प्राचीन और नई इमारतों के विषय में विद्वनापूर्ण चित्रमय प्रचंध प्रकाशित किये हैं। यहां लिखते हर्ष होता है कि जैसलमेर आदि स्थानों के विश्व संग्रह करने के विषय में आपने मुझे बड़े ही प्रेम के साथ सहायता की है और इस के लिये मैं आप का कृतज्ञ हूं ।।
लिखना बाहुल्य है कि जैसलमेर में प्राचीन काल से श्वेताम्बर जैनियों का और खास करके ओसवाल श्रीमतों का विशेष प्रभाव विद्यमान था। उन लोगों के धर्मगुरु जैनाचार्यों का भी वह केन्द्रस्थान था। इस नगरी में खरतरगच्छ के विद्वान् और प्रभावशाली जैन साधु मंडलो तथा आचार्य्यगणों का बराबर समावेश होता था। इन लोगों के सदुपदेश से हो वहाँ बड़े २ मंदिर बने थे और भव्य मूर्तियों की समय २ पर पहु संख्या में प्रतिष्ठा हुई भी। विधम्मी लोगों के अत्याचार से बचाने के लिये मंदिरों के साथ ही भंडारों में प्राचीन ताइपमादि के अमूल्य जैन अन्य सुरक्षित किये गये थे ।
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( १३ )
इन भंडारों के कुछ संग्रहों का विवरण 'जेललनेर भाण्डावारीय ग्रन्थानां सूवो' में प्रकाशित हुए हैं। इनमें से " कई मंडारों के निरीक्षण करने का मुझे अत्रवर मिला था। बड़े भंडार में बड़े २ ताड़पत्र के ग्रन्थ पत्थर के बजे कोठों में सुरक्षित है, तथा कुछ न म हो गये हैं । अयावधि वहां विनलिखित भंडार मौजूद है :
:—
( १ ) बृहत् भण्डार - किले पर श्रीनाथजी के मंदिर के तल भूमि में है । (२) तपगलोय भण्डार - सहर के रूप गच्छ के उपासरे में है ।
( ३ )
आचार्यगच्छीय भण्डार - सहर के आचार्य गच्छ के उपासरे में है ।
( ४ )
( ५ ) लुपगच्छाय भण्डार सहर के लौंका गच्छ के उपासरे में है ।
( ६ ) यति गरजों का संग्रह- यह भण्डार सहर के उक्त यतिजी के उपासरे में है ।
(७) सेठ थोरूसाहजो का भण्डार- सहर में थीरूसाहजी की हवेली में है ।
बृहत् खररच्छ्रीय भण्डार - सहर के खरतर गच्छ के पड़े उपासरे में है ।
हाल में खरतरगच्छीय बाचार्य महाराज कृरामदसूरिजी के उपदेश और प्रेरणा से वहां के भंडारों के जीणोद्धार का कार्य आरम्भ हुआ है परन्तु द्रव्याभाव के कारण यह कार्य विशेष अग्रसर नहीं हो सका है।
जिनने प्राचीन तीर्थमाला, स्तवन
वहां के मंदिरों के विषय में कुछ परिवr देना भी आवश्यक है । देवने में आते हैं उन सत्रों में अधिकतया जैसलमेर का नाम मात्र उल्लेख मिलता है । स्वर्गीय उपगच्छावार्य विजयधर्मसूरियो संग्रहोत 'प्राचीन तीर्थमाला - संग्रह' प्रथम खंड में प्रकाशित तीर्थमालाओं के से में केवल जंकरे का नाम मात्र है !
बहुत
जेसलमेर चैत्य परिगयो स्तनों में केवल जेसलमेर के किले पर के आठ मंदिरों के वर्णन मिलते हैं । सं० १७०१ में खरतरगच्छावार्य जिनमुखसूरिजी कृत जेसलमेर-- वेत्यपरिपाटी में आठ मंदिरों को वर्णना के साथ उन सबों के सूर्तियों की संख्या भी हैं और यह परिपाटी उक्त तीर्थमाला संग्रह पृ० १४६ में छपी है । सं० १७०८ में महिमासमुद्रो कृत जैसलमेर चेत्य परिपाटी स्तान में भी उक्त आठ मंदिरों के उल्लेख हैं । इन्हें उपयोगी समय र परिशिष्ट में प्रकाशित किये गये । इन सब मंदिरों में कोई आधुनिक परिवर्तन तो देखने में नहीं आये परतु चाहे ओर किसी स्थान से आई हुई हों चाहे और कोई कारण से हो मंदिरों की मूर्ति संख्या वर्तमान में आगे से कुछ अधिक हुई हैं । वहां के कई मंदिरों में मूर्ति संख्या अधिक होने के कारण कुछ
मायें भूमि पर भी विराजमान देखने में आये । अवस्थित मूर्तियां वेशे पर विराजमान किये गये है
इनमें से कुछ वर्ष पहले श्रीआदिनाथजो के मंदिर की जिनका विवरण लेख नं० २५६२ में पाठकों को मिलेंगे ।
* (१) सं० १६६३ में शांतिकुराउजो विवित गोड़ो पार्श्वनाथ स्तवन' ( पृ० १६६ ), ( २ ) सं० १७१७ में विजयसागरजी कृत 'समेत शिखर तोर्थमाला' ( पृ० १२ ), ( ३ ) सं० १७२१ में मेवविजयजी कृत 'पार्श्वनाथ नाममाला' ( पृ० १५२ ) ( ४ ) सं० १७४६ में शोलविजयजो विचित 'तीर्थमाला' ( पृ० १०७ ), ( ५ ) सं १७०० में सौभाग्यविजयजी कृत 'तीर्थमाला' ( पृ० ६७ ) ।
H
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( १४ )
किले के मंदिर
( १ ) श्रीपश्विनाथजी का मंदिर : - किले के भीतर यह विशाल बावन जिनालय सहित दिर है और मूलनायक श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ हैं । यहां प्रशस्तियों के दो शिलालेख लगे हुए हैं ।
प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि निर्माण के समय मंदिर का 'लक्षण विहार' नामकरण हुआ था। उस समय जैसलमेर में महारावल लक्ष्मणजी राज्य करते थे और इस कारण उन को राजभक्त प्रजा अपने मंदिर का नाम उनके नाम पर रखा । प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि स मंदिर के तैयार होने में १४ वर्ष लग गये थे । सं० १४५६ में खरतरगच्छाघोश जिनराजसूरिजी के उपदेश से सागरचन्द्रसूरिजी ने मंदिर की नींव डाली थी और सं० १४७३ * मे जिनचंद्रसूरिजी के समय में निर्माण कार्य समाप्त होने पर प्रतिष्ठा हुई थी । साधु कीर्त्तिराजजो ने प्रशस्ति की रचना की थी, वाचक जयसागरगणिजी ने संशोधन किया था और कारीगर धन्ना ने प्रशस्ति खोदी थी। ओसवंश के शंका गोत्रीय सेठ जयसिंह नरसिंह वगैरहों की यह प्रतिष्ठा कराई हुई है ।
जिनसुखसूरिजी अपने जेसलमेर - चैत्यपरिपाटी में इस मंदिर की बिंद संख्या बावन देहरी में ५४५, दोनों चौक में १४२, ऊपर के मण्डप में १२, मूल गंभारे में ११४, तिलक तोरण में ६२, दूसरे तोरण में १२ और मंडप के समीप २३ कुल ११० लिखते हैं । वृद्धिग्नजी 'वृद्धिरत्न-माला' में इस मंदिर की मूर्त्तिसंख्या १२५२ लिखे हैं ।
श्रोचिंतामणि पार्श्वनाथजी के मंदिर के विषय में खरतगच्छाचार्य जिनभद्रसूरिजी के पाट महोत्सव पर सप्त 'भ-कार' की कथा मुनि मोहनलालजी कृत 'आचार रक्षाकर' दूसरा प्रकाश पृ० १२२ में इस प्रकार लिखो है
“सं । १४६१ श्री सागर चन्द्राचार्य श्री जिनराज सरि पट्टे श्री जिनवर्द्धन सूरि को स्थापन कीर थे, तिके एकदा जेशल मेरंगढ में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथके पास में रही क्षेत्रपालकी मूर्त्ति देखके खामी सेवकका atar ना अयुक्त है, ऐसा विचार करके क्षेत्रपालकी मूर्त्तिकों उठायक दरवज्जेके विषे स्थापन करी तब starrera Her थका क्षेत्रपाल जहां तहां गुरुमहाराज का चतुर्थ व्रतका + मंगपणा दिखलाने लगा, इसीतरे
* स्वरतरगच्छोय मुनि वृद्धिरत्नजी कृत 'वृद्धिरत्न माला' में इस मंदिर की प्रतिष्ठा का समय सं० १२१२ लिखा है परन्तु यह जेसलमेर नगर की स्थापना का समय है । मंदिर दो अढाई सौ वर्ष बाद घने थे। मंदिर प्रतिष्ठा का वर्णन और संवत् प्रशस्ति में स्पष्ट है ।
* जैनियों के पंच महाव्रत हैं। चतुर्थ ये है अवशिष्ट ( १ ) प्राणातिपात, (२) मृषावाद, ( ३ ) अदत्तादान, ओर ( ५ ) परिग्रह |
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एकदा गुरुमहाराज वित्रकूटके विये गए, तहां पिण देवता तिसो तरेसे करा, तब सबै श्रावक चतुर्थ व्रतका भंग जानके यह पूज्य पदके योग्य नहि है ऐसा विचार करा कलर्स वर्द्धमान सूरि व्यंतर प्रयोग करके प्रथलीभूत भए थके दिप्पलक प्राममें जा रहे, कितनेक शिष्य पासमें रहे, तय सागर चन्द्राचार्य प्रमुख समस्त साधु घर्ग एकत्र होक, गच्छ की स्थिति रखणे वास्ते, नवीन आवाये स्थापन करना, ऐसा विचार करा, तय नवीनगोरा नाम क्षेत्रपालको आराधन करके, और सर्व देशके खरतरगच्छोय संघकी अनुमति हस्ताक्षर मंगवायके सर्व साधुमंडला
कट्टो करक भाणसोल ग्राम आये, तहां श्रीजिनराजसूरिये एक अपणे शिष्यकों वाचक शोलचन्द्रगणीकेपास पढ़नेकेवास्ते रक्खा था सो समस्त शास्त्रका पारगामी भया, भणसाली गोत्रीय, भादोमूल नाम सं । १४५१ दीक्षा ग्रहण करी, अनुक में पंचवीस वर्षके भए, तब तिनकों योग्य जानके श्रीलागरचन्द्रावायं सातभकाराक्षर मिलाय के सं । १४७५ माघ सुदि पूर्णमासीकेदिन, भणशालो नाटासाहने सवा लक्ष रुपये खरच करके नंदोमहोच्छव सहित सूरि पदमें स्थापन किए ॥ सप्त भकार लिखे है ॥१ भाणसोल नगर ॥२ भणशालिक गोत्रीय ३३ भादो नाम ॥ ४ भरणी नक्षत्र ॥ ५ भद्राकरण ॥ ६ भट्टारक पद ॥ ७ जिनभद्र सूरि ।" (२) श्रीसंजवनाथजी का मंदिर :-यह मंदिर तीन वर्ष में तैयार हुआ था। इसी मंदिर
के नीचे भूमिगृह में जैसलमेर का सब से बड़ा सुप्रसिद्ध जैन भंडार अवस्थित है। जिनभद्रसूरिजी के उपदेश से चोपड़ा गोत्रीय सा० हेमराज पूना वगैरह ने सं० १४६४ में इस मंदिर को बनवाना आरंभ किया और बड़ी धूमधाम से प्रतिष्ठा महोत्सव सं० १४६७ * में कराई । ३०० मूर्तियों को प्रतिष्ठा सूरिजी के हाथ से हुई थी और महारावल वैरोसालजी स्वयं उपस्थित रहकर शुभकार्य सम्पन्न कराये थे । पाचनाचार्य सोमकुजरजी ने प्रशस्ति रची, भानुप्रभगणि पत्थर पर लिखे और शिलावट शिवदेव ने खोदो थो। जिनसुखसूरिजी इल मंदिर को विंब संख्या बाहर के चौक में २००, भीतर चौक में २८१, मंडप में ३६, गंभारे में २५ और भमतो में १२ कुल ५५३ लिखते हैं । वृद्धिरत्नजी मंदिर की मूर्ति संख्या ६०४ लिखे हैं।
(३-४) श्रोशांतिनाथजी और श्रीअष्टापदजी के मंदिर :--ये दोनों मन्दिर एक ही हाते में
हैं। ऊपर भूमि में श्रीशांतिनाथजो का और निम्न तल में श्रीअधापदजी का मंदिर बना हुआ है। निन्न तलके मंदिर में १७ वें तीर्थंकर श्रीकुथुनाथजी की मूर्ति मूलनायक रूप से प्रतिष्ठित हैं। इन दोनों मन्दिों की प्रशस्ति ( लेख नं० २१५४ ) एक हो है और जेनी हिंदी में लिखी हुई है। जैसलमेर के संखवालेचा और चोपड़ा गोत्रीय दो धनाढ्य सेटों ने इन मन्दिरों की प्रतिष्ठा
* वृद्धिरतमाला { पृ०४ ) में मन्दिर प्रतिष्ठा का समय सं० १४८७ बताते हैं परन्तु यह भ्रम है ।
* प्रशस्ति में संखवाल नाम के ग्राम का उल्लेख है। संभव है कि इसो स्थान के नाम से 'संखवालेचा' गोत्र की उत्पत्ति हुई होगी।
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सं० १९३६ में कराई थी। संखपालेवा गोबोय घेता और वोपा गोत्रीय पांचा में वाहिक सम्बन्ध था और इन दोनों ने मिल कर दोनां मन्दिर बनवाये थे। संबो प्ता ने सकुटुम्य बड़ी धूमधाम से शत्रुजय, गिरनार, आबू आदि तीर्थों को यात्रा कई वार को थो और श्रीसंभवनाथजी के मन्दिर को प्रसिद्ध तपपट्टिका आदि की प्रतिष्ठा कराई थी। इनके पश्चात् सं० १५८१ में इनके पुत्र वीदा के समय में यह प्रशस्त लगाई गई थो 1 ये सब विवरण प्रशस्ति में हैं। मन्दिर के बाहर दाहिने तरफ पाषाण के सुन्दर बने हुए दो बड़े २ हाथी रखे हुए हैं। इन दोनों पर धातु की मूर्तियां हैं जिनमें एक पुरुष की और दूसरी त्रो की है। मन्दिर प्रतिष्ठा कराने वाले सं० घेता और उनको भार्या सरसती की मूर्ति उनके पुत्र संघवी वादा ने सं० २५८० में प्रतिष्ठा कराई थी। इन में से केवल एक पर लेख (नं० २१५४ ) खुदा हुआ है। ___ उस समय जैसलमेर के गद्दी पर महारावल देवकरणजी थे। सं० १५३६ में प्रतिष्ठा के समय खरतरगच्छ के जिनसमुद्रसूरिजो उपस्थित थे । पश्चात् उनके प्रशिष्य जिनमणि कसूरिजी के समय में देवतिलकजी उपाध्याय मंदिर को प्रशस्ति लिखे थे और शिलावट घेता ने खोदो थो ।
जिनसुखसुरिजी रचित चैत्य परिपाटी स्तवन जो प्रकाशित हुआ है उस में श्रोशांतिनाथजी के मंदिर की मूर्ति संख्या के वर्णन में एक चरण लुटक हैं। मूर्ति संख्या बार प्रदक्षिणा में २५० और चौक में ४०० लिखा है। वृद्धिरतमाला में विंब संख्या ८४ है।
श्रोअष्टापदजी के मंदिर की मूर्ति संख्या जिनमुखसूरिजी बाहर के प्रदक्षिणा में १३७, एक गंभारे में २६०, दूसरे में २८ गणधर के, कुल ४२५ लिखते हैं । वृद्धरत्नमाला में मूर्ति संख्या ४४४ है ।
---इस मन्दिर में कोई प्रशस्ति देखने में नहीं आये। मृत्ति पर के लेख (नं० २३२८ ) से मिलता है कि सं० १५२६ * में भणशाली गोत्रीय सा० बोदा ने मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई थी। चैत्य परिपाटी स्तवनों में भी भणसाली गोत्रीय द्वारा मन्दिर धनवाये जाने का वर्णन है। इसी मन्दिर के द्वितल के एक कोठरी में बहुत सी धातुओं की पंचतीर्थी और मूर्तियों के संग्रह हैं। इन सवों में से जितने लेखों का मैं संग्रह कर सका हूं वे यथास्थान में मिलेंगे। यह मन्दिर तेमझिला बना हुआ है और प्रत्येक में चौमुखजी विराजमान हैं। जिनसुत्रसूरिजो के ईत्यपरिपाटी में यहां की मूर्ति संख्या प्रथम तल में १६०, दूसरे में १२६, और तीसरे में ४६३ कुल ८९ लिखा है । वृद्धिरत्नमाला में विंद संख्या १६४५ है ।
र स्वरतरगच्छोय प्रसिद्ध वाचक समयसुन्दरजी महाराज जैसलमेर में बहुत समय तक थे। उन्होंने यहां के भन्दिरों के बहुत से स्तवनों को रचना की थी। श्रीशांतिनाथजी और श्राअापदजो की स्तुति में मन्दिर के प्रतिष्ठा का आदि का विवरण मिलता है। यह भी परिशिष्ट से मिलेगा । . * वृद्धिरत्नमाला में मन्दिर प्रतिष्ठा का सं० १५६५ है परन्तु यह किस आधार पर लिखा गया ज्ञात नहीं होता।
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(६) श्रोशीतलनाथ जी का मंदिर :--इस मंदिर में कोई प्रशस्ति नहीं है। मैंने यहां के मूल
न यकजी के मूर्ति पर का लेख पढा नहीं था पश्चात् स्तनों से मालूम हुभा कि मंदिर के मूलनायक श्रोशांतिनाथजो है । जेसलमेर चैत्य परिपाटी स्तवनों से यह मन्दिर वहां के ओसवाल दागा गोत्रीय सेठों का यनवाया हुआ मिलता है । यहां के पट्टिका के लेख में सं० १४७६ + में ढाणा गोत्रीयों को प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है। संभव है इसो सय मन्दिर को प्रतिष्ठा मी हुई होगी। जितनुसूरितो के चत्र परिपाटो में इस मन्दिर को मूक्ति संख्या ३१४ और वृद्धिरत्नमाला में ४३० लिखा है।
(3) श्रीज्ञानदेवजी का मंदिर :--इस मन्दिर को भी कोई प्रशस्ति नहीं मिली । मूर्तियों के
लेखों से ज्ञात होता है कि सं० १५३६ * में जिस समय श्रोशनिाथजी के मंदिर को प्रतिष्ठा हुई थी उसी समय ग गधर चोपडा गोत्रीय सं. धन्ना ने खरतरगच्छोय आचार्यों से इस मंदिर को प्रतिष्ठा करवाई थो और 'त्य परिपाटी स्तनों में भो निर्माण करता का उलेख है। जिनसु बसूरिजी को चत्य परिपाटो में मूाते संख्या भीति में ५९५ और गंभारे में ३६ कुठ ६३१ है । वृद्धरत्नमाला में मूत्ति संख्या ६०७ लिखा हुआ है ।
(5) श्रीमहावीरस्वामी का मंदिर :- इ मन्दिर ओर मन्दिरों से कुछ दूरी पर है। वहां के
शिलालेख से ज्ञात होता है कि सं० १४२३ में यह मंदिर बना था। जिन उबमूरिजो लिखते है कि ओसवंश के वडिया गोत्राय सा० दोपा ने इस भन्म मंदिर को प्रतिक्षा कराई थी और वहां के मूर्तयों को संख्या पहली प्रदक्षिणा में १११ और गंभारे में १२१ कुल २३२ है । वृद्धिस्तमाला में मूर्ति संख्या २६५ लिखा है।
इन मंदिरों के सिवाय यहां कोई जैनो रइते नहीं हैं। फिले के भोजर श्रोहयोगजों का मन्दिर भो दशनाय है। यहां भो प्रशस्ति का शिलालेख है ।
... वृद्धिरतमाला (पृ. ४में प्रतिष्ठा संवत् १५०८ है ।
• वृद्धिरनाला में प्रतिष्ठा संवत् १५३७ लिखा है परन्तु लेखों पर १५३६ स्पष्ट है । उक्त पुस्तक में मंदिर के प्रतिष्टा करानेवाले धन्ना' के पिता 'सच' का नाम है । लेखों से घना का हो नाम पाया जाता है ।
* वृद्धिस्तजो सं० ११५८१. में मंदिर प्रतिष्ठा होने का समय लिखते हैं। वाचनाचार्य समयसुन्दरजी मो इस मंदिर के महावीरस्वामीजो के स्तवन रचे हैं परन्तु उसमें प्रतिष्ठा संबन का कोई उल्लेख नहीं है।
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( १८ )
शहर के मंदिर
( १ ) श्री सुपार्श्वनाथजी का मंदिर :- इस मन्दिर को प्रतिष्ठा तपगच्छीय श्रावकों को ओर से जैसलमेर सहर में सं० १८६६ में हुई थी । यद्यपि इस राज्य में स्वरतरगच्छीय आचार्यों का हो प्राधान्य था तथापि तपगच्छ के आचार्य लोग भी यहां 'विहार प.रते हुए काते जाते थे । तपगच्छाचार्य विजयदेवसूरिजी के प्रतिष्ठित कई मूर्तियां इस मंदिर में हैं । वत्तमान मन्दिर को प्रतिष्ठा के विषय में जहां तक प्रशस्ति से उपलब्ध है तपगच्छ के प्रसिद्ध आवश्यं होरविजय सुरिजो की शाखा में गुलारविजयजी के दो शिष्य दीपवियजो और नगविजयजी ने प्रतिष्ठा कार्य कराया था | नगविजयजी ने प्रशस्ति भो लिफी थी । इस की रचना गद्यपद्य युक्त पांडित्यपूर्ण किट संस्कृत भाषा में है ।
( २ ) श्री विमलनाथजी का मंदिर : -- यह मन्दिर आचार्यगच्छ के उपासरे में है । मन्दिर प्रतिष्ठा की कोई प्रशस्ति मिलो नहीं । मूलनायकजी की मूर्ति के लेख से मालूम होता है कि सं० १६६६ में तपगच्छाचार्य विजयसेनसूरिजी के हाथ से प्रतिष्ठा कार्य हुआ था ।
शहर के देरासर
देरासर : -- इनके हवेली के पास हो यह
( १ ) सेव धीरूसाहजी का देरासर है । मेवाड़ के THINE की तरह सेठ थाहसाह को भी यहां पर विशेष ख्याति 1 यह भणसाली गोत्र के थे। लोद्रवा का वर्तमान मंदिर इन्हीं का जीर्णोद्वार कराया हुआ है जिसका विवरण यथा स्थान में मिलेगा। शहर के बाजार में जहां ये व्यापार करते थे वे सव स्थान अद्यावधिक नाम से प्रसिद्ध है ।
वाफा गोत्रीय इंदौर वाले सेठों की हवेली में यह देशसर है और वहां की प्रशस्ति में उल्लेख है कि इसकी प्रतिष्ठा सं० १६०० में हुई थी । यहां चांदी के मुलनायकजी सं० १६०१ की प्रतिष्ठित हैं ।
( २ ) सेठ केशरीमलजी का देरासर :
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(३) से चांदमलजी का देरासर :--शाफमा गोप्रोय रतलाम पाले सेठों को होतो में यह
देरासर है।
(४) अखयसिंहजी का देरातर :-~-वाफा गोत्रीय झालरापाटन वाले सेठ अवयसिंहजी की हवेली
__ में यह देशसर है।
(५) रामसिंहजो का देरासा :---नेता रामसिंहजी बरड़िया की हबेलो में यह देरासर है ।
(६) धनराजजो का देरासर :--मेहता धनराजजो यड़िया की हवेली में यह देरासर है। यंत्र के
लेख से सं० १८६३ में इस देरासर की प्रतिष्ठा शात होती है।
शहर के उपासरा
(१) वेगडगड उपासरा :-यह उगसरा जे. दशा में है। बाहर के दोकर पर है ।
शिलालेख विद्यमान है उससे सं० १६१ में यह आलरा बारे का सपर मालूम होता है। सं० १४२२ में खरतरगच्छीय जिनोदयसूरिजी से यह वेगड़गच्छ शाखा निकली थी।
(१) वृहरखरतरगल उपासरा :-यहां देरासर भी है जिसमें श्रीगौड़ीपार्श्वनाथजी मूलनायक हैं।
मैं जिस समय यहां गया था उस समय पूज्य यति महाराज वृद्धिचंद्रजी आदेशी थे। और उनके सुयोग्य शिष्य १० लक्ष्मीचन्द्रजी भी उपस्थित थे। आपने मुझे लेख संग्रह के कार्य में विशेष सहायता दी थी । उपासरे में परम पूज्य गुरुमहाराज श्रीजिनदत्तप्पूरिजी को चादर जो वहां बड़े यत्न के साथ सुरक्षिा है और जिसको अयावधि पूजा होतो है उसे यतिजो ने मुझे दिखाई थी। आप के यहां हस्तलिखित और मुद्रित ग्रन्थों का भी संग्रह है।
(३) तपगम नपालरा :--राइर में तपाच्छोघ धनाढय थावकों के भी बहुत से घर थे। उन
लोगों के श्रीसुपार्श्वनाथजी के मंदिर के निर्माण के समय के लगभग ही उपासरा बना होगा । सादर में और भी बहुत से गच्छयालों के उपासरे मौजूद हैं परन्तु वहां भ्रायकों की संख्या हास हो जाने के कारण सब ऊजड़ पड़े हैं।
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दादाजी के स्थान
सहर के बाहर कई ओर दादाजी के स्थान, पटसाल और श्मशान भूम में स्तंभों पर लेख है । उन सबों के काो लेने का मुझे अकास न मिला इस कारण खरमच्छ के भादेश यति वृद्धिबन्द्रजो महाराज के शिष्य यति लक्ष्मीवन्दजो और जोधपुर निवाली साहित्यरत्न पं० रामकर्णजी जो मेरे साथ में थे ये दोनों सजा वहां के लेखों का संग्रह किये थे। ये सघ लेख अधिकतया विकत के १७ वी शहान्दि के हैं। सहर के उत्तर में देदानतर दादाजो और गामगड़ा दादाजों हैं। इन दोनों के मध्य में आड़ा एक छोटा सा पहा है इस कारण दोनों स्थानों में एक माइल का अन्तर है । पश्चिम की ओर सहर के दरवाजे के बाहर श्र.जिनकुश लसूरिजो का स्तम्भ है और दक्षिण की तर्फ गंगासागर नामक एक तालार है। वहां गोडावेजो महाराज को पादुका है । इसी दिशा में सहर के पास गड़सोसर तालाब है । उसके अप्रभाग में गोडोचेज) को पटसाल है और श्रोजिनदत्त. सरिजी का स्तम्भ है । इसी दिशा में श्रीजितकुशलसूरिजो का स्थान है । सहर के उत्तर की तफै लगा दो माइल पर 'गजरूपलागर' नामक तालाय है । यह सरोवर प्रायः सो वर्ष हुये महारावल गजसिंहजो अपने नाम से बनवाये थे। उक्त गजरूरसागर के समोर में भो श्रीजितकशालसरिजो का स्तंभ है पस्तु यहां कोई देख नहीं है।
अमरसागर
यह स्थान जैललमेर से पश्चिम पांच माइल पर और मूलसागर से एक माइल पर अवस्थित है। यहां जिन मंदिर की संख्या तोन है और तीनों के मूलनायक श्रोआदीश्वरजो है। इन में से एक मन्दिर जिसको प्रतिष्ठा सं० १९०३ में हुई थो वह पंचायतो को तरफ से बना था । अवशिष्ट दो मन्दिर वहां के प्रसिद्ध बाफणा सेठों के यनवाये हुए हैं। छोटा मंदिर याफणा सवाईगमजी का सं० १८६७ में और बड़ा मन्दिर बाणा हिम्मतराजी का सं० १६२८ में बना था । इन दोनों मन्दिरों को प्रतिष्ठा खरतराच्छाचार्य जिनमहेंद्रसूरिजी के हाथ से हुई थी। बड़ा मंदिर बहुत हो सुन्दर दोमझिला विशाल बना हुआ है । सन्मुख में सुरम्य उद्यान है और उसको कारोगरो प्रशंसनीय है । मंदिर के दृश्य का चित्र पाठकों को पुत्ता में मिलेंगे और वित्रों से यहां के मकराने के जालियां के शिलपकार्य का सौंदर्य कुछ अनुभव होगा। रिशा मरुभूमि में ऐला मूल्यवान् भारतीय शिपाला का नमूना एक दर्शनोय वस्तुओं को गणना में रखा जा सकता है। इस मंदिर में प्रशस्ति के शिवाय पोडे पाण में खुश हुआ तोयात्रा के संघ वर्णन का एक १६ पंक्तियों का शिलालेख ( नं० २५९० ) है । इतने पंकियों का लेख मेरे देखने में नहीं आया । यह राजस्थानी हिन्दी में लिखा हुआ है।
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लोद्रवा - श्री पार्श्वनाथ मंदिर के सम्मुख का दृश्य
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लोद्रवा
लोछ । लोद्र ) एक राजपून * को शाखा का नाम है । लोद्रपुर प्राचीन काल में इन्हीं लोढ़ राजपूतों को राजधानो थो! इतिहासों में मिलता है कि भारी देवगज जिनने प्रथम रावल की उपाधि ग्रहण को थी वे लगभग सं० ६०० ( ई० ८.२३ ) के देवगढ 4 में प्रथम राजधानो स्थापित किये थे। पश्चात् लोढ़ राजपूतों से लोद्रपुर ( लोवा ) छोन कर वहां र'जधानी ले गये ! उस समय लोद्रवा एक समृद्धिशाला बड़ा शहर था ! इसके बारह प्रवेशद्वार थे। इसी लोदवा का ध्वंसावशेष आज भी जैसलमेर शहर के उत्तर पश्चिम दस माइल एर वर्तमान है । रावल देवराज ने लोड़ों को पराजय करके इस नगर को सं० १०८२ में अपने अधिकार में किया था और रात्रल जेसल तक लोद्रवा भा देयों की राजधाना रहा । प्राचीन काल से ही यहां पर श्रीपार्श्वनाथजी का मंदिर था । भोजदेव रावल के गद्द। यंठने पर उनके काका जेसल ने महम्मद घोरी से सहायता लेकर लोदवा पर चढाई को थी। वहां रण में भोजदेव मारे गये थे और लावा नगर भी न हुआ था । पश्चात् राज्याधिकारी होने पर जेसल लोया का निरापद नहीं समझ वहां से राजधानी हटा कर सं० १२१२ (ई. ११५६ ) में जसलमेर नाम से दुर्ग बनाया था ।
सं. १६७ में भणसालो गात्राय सेठ थाहरूसाहजो ने वहां के श्रीपार्श्वनाथजी के उक्त मंदिर को, जो लोया विध्वंस होने के समय नष्ट हो गया था, पुनरुद्धार कराकर यह वर्तमान मंदिर बनवाया था और खरतरगच्छोय जिनराजसूरिजी से प्रतिष्टा कराई थो । यहाँ एक हो कोट में मेरु पर्वत के भाव पर पांच मंदिर बने हुए हैं। मध्य में श्रोचिंतामणि पाश्वनाथजी का बड़ा मूल मंदिर है और वारो कोने में चार छोटे मंदिर बने हुए हैं। मूल मंदिर के सभामंडप में शतदलपद्म यंत्र की प्रशस्ति का शिलालेख लगा हुआ है।
मंदिर नं०१-४:- मूल मंदिर के (१) दक्षिण पूर्व, ( २ ) दक्षिण पश्चिम, (३) उत्तर पश्चिम, और ( ४ ) उत्तर पूर्व दिशा में ये वार मंदिर हैं। सं० १६६३ में उक्त थाहरूसाहजो अपनी भार्या, कन्या, पुत्र
टाड साहेब लिखते हैं कि लाद राजपून कौनसो राजपूत शाखा से निकली थी निश्चित ज्ञात नहीं है, संभव है कि प्रमार से हुए होंगे। साहित्यावार्थ पं० विश्वेश्वरनाथजो अपने भारत के प्रावोन राजवंश' प्रथम भाग पृ. १६ में इन लोगों को प्रमार को शाखा बतलाये हैं। व्यासजो पृ० ३५ में इन लोगों को 'पडिहार राजपूतोद्धव लिखते हैं। *यह देरावर नाम से प्रसिद्ध है और वर्तमान में रायलपुर स्टेट के अन्तर्गत है ।
* खरतरगच्छावार्य जिनलाभपूरिजो का 'लोद्रपुर स्तम' में यहां के प्रदिर का पन्छा वन है और वह उपयोगी समझ कर परिशिष्ट में प्रकाशित किया गया ।
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( २२ )
पौत्रादि परिवार के पुण्यार्थ इन मंदिरों को बनवाये थे। चारों मंदिरों के मूलनायकजी के मूत्तियों को प्रतिष्ठा मूल मंदिर के साथ हो सं० १६७५ में हुई थो, यह उन पर के लेखों से स्पष्ट है। मंदिर नं० ४ में पट्टापलो का शिलालेख ( नं० २५७४ ) रखा हुआ है। मंदिर नं. ३ ओर नं ४ के योव में अलग ही एक त्रिगड़ा के ऊपर श्रोअष्टापदजी का भाव और धातु का सुदृश्य कल्पवृक्ष बना हुआ है जिसमें नाना प्रकार के फल लगे हैं। प्रवाद है कि यह त्रिगड़ा और श्रीअष्टापदजी का भाव बहुत प्राचीन है अर्थात् थाहरूसाहजो के जीणोद्धार के पहिले का है और आप उस त्रिगड़ पर कल्पवृक्ष बढाये थे। ५० लक्ष्मीचन्द्रजी लिखते हैं कि 'कल्पवृक्ष जीर्ण हो जाने से सं० १६४४ द्वि० क्षेत्र सु० १२ रौ में यह नवोन संघ की तरफ से बहाया गया है।
जिस रथ पर प्रभु मूर्ति को बैठा कर सेठ थाहरूसाहजी ने संघ निकाल कर श्रोसिद्धक्षेत्रजी यात्रा की थी वह रथ अभी तक मंदिर के हाते में रखा हुया है।
देवीकोट
यह मान बहुत प्राचीन है। यह जैसलमेर से १२ कोस पर दक्षिण पूर्व की ओर अवखित है। यहां पुराना किला है और प्राचीन हिन्दू मन्दिर है। यहां का जैन मन्दिर छोटा है। यह श्रीसंघ की ओर से सं. १८६१ में बना था। यहां प्राम के बाहर दादा स्थान भी है।
ब्रह्मसर
आज कल ब्रह्मसर में बहुत थोड़े श्रावकों के घर रह गये हैं। मैं यहां न जा सका था। यति लक्ष्मीचन्द्रजी से मालूम हुआ कि यह स्थान चार कोस उत्तर की ओर है और थोड़े ही दिन हुए यहां मोहनलालजी महाराज के उपदेश से श्रीपार्श्वनाथजी का नया मन्दिर बना है। आपने उस मंदिर के जितने लेख भेजे ये सब यथास्थान प्रकाशित किये गये हैं। हसर के दादा खान के सम्बन्ध में उन्होंने विवरण लिखे हैं वह इस प्रकार है:
ब्रह्मसर से एक भाईल उत्तर की ओर कुशलसूरिजी महाराज का स्थान है। यह स्थान लणिया गोत्र का धनाया हुआ है लेकिन इसका कोई स्पष्ट लेख नहीं है। इसका प्रचाई यह प्रसिद्ध है कि देरावर, जो कि
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वत्तमान सिंध प्रांत के मालपुर स्टेट में है. नवाब का राज्य था। उनके कोषाध्यक्ष लूणिया गोत्रीय एक धावक थे। उन के दो लड़किया थों जिनको सौन्दर्य को प्रशंसा उन के किसी शत्रुने नवाब से की थी। नवाब ने दूसरे दिन अपनो कुवासना चरितार्थ करने के लिये प्रयत्न करने का विचार किया। किन्तु किसी सजन से ये सब बात उक्त कोषाध्यक्ष को मालूम हो गई। वे इतने थोड़े समय में पा उपाय कर सकते थे। वे विशेष उदास और चिन्तित हुए । इसी बीच में एक यतिजी महाराज श्राषकों का घर खोजते २ आ पहुंचे । श्रावक भी यतिजी का आगमन सुनकर उनके सम्मुख उपस्थित हुए । यतिजी ने उनका मलान मुख देखकर कारण जानने का आग्रह किया। जिस पर उन्होंने सर्व वृत्तान्त कह सुनाया । यतिजी ने कहा कि स्त्रियों और बचों को भेष बदला कर यहां से बाहर कर दो। और तुम लोग कोई पहाना करके अपने २ सामान ऊंट पर लाद सहर के बाहर चले जाओ, सर अच्छा हो होगा। उन्होंने यह भी आदेश दिया कि तुम पीछे फिर कर नहीं देखना और निश्चिन्त रहना । इसी प्रकार जब प्रातःकाल हुआ उस समय ये लोग प्रसार के पास, जहाँ दादा साहब का स्थान है पहुँचे । तब उन लोगों को संकल्प विकल्प पैदा हुआ और यह जानने की इच्छा हु कि कहां तक आये हैं। उन लोगों ने पीछे फिर कर देखा तो महाराज को एक पत्थर पर खड़ा पाया । उस वक्त महाराज ने यह कहा कि यदि थोड़ी देर और पीछे फिर कर न देखते तो जैसलमेर पहुंच जाते । खैर यहां से आध कोस पर ब्रह्मसर ग्राम है और चार कोस पर जैसलमेर सहर है । देरावर अस्तो कोस पीछे रह गयी, अब चिन्ता न करो। यह कह कर वे अदृश्य हो गये ।
___ उस कोषाध्यक्ष ने उसी जगह उस पत्थर पर एक कील से पादुका का चिन्ह करके पूजनीय मान लिया,
और सदेष दर्शन का नियम रखा और वहाँ सान भी निर्माण करा दिया । जब वे लोग जैसलमेर में आकर स्थित रूप से रहने लगे तो बहुधा वहां जाने आने में कष्ट होता था। देदानसर के पीछे को तरफ एक टेकरी आ गई है, वहां से वह स्थान भी दिखाई पड़ता है। इसी कारण वहां दादा साहब को पादुका स्थापित की गई। वहां हमेशा वे पूजा करने जाते थे और उसो पहाड़ पर से उस स्थान को भी नित्य दर्शन करने का नियम रखा था। इसी प्रकार इस स्थान की किंवदन्ती है।
खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनदत्तसूरि और श्रीजिनकुशलसूरि बड़े प्राभाविक हुए थे। इन लोगों की असामान्य शक्ति के दृष्टांत में प्राचीन काल से ही बहुत से अलौकिक घटनाओं को कथा मिलती है। सं० १४८१ में उपाध्याय जयसागरजी रवित जिनकुशलसूरिजी का कवित्त पाठकों के देखने में आये होंगे। यही जयसागरजी गणि किले के श्रीपाश्वनाथजी के मंदिर को प्रशस्ति सं० १४७३ में संशोधन किये थे। श्रीसंभवनाथजी के मंदिर की प्रशस्ति में भी इनका नाम है ।
इसी प्रकार पाठक श्रीसाधुकीर्ति रचित श्रीजिनकुशलसूरि का कवित्त बिलसे मृद्धि समृद्धि मिलो' इत्यादि विशेष प्रसिद्ध है। इस स्तवन में देरासर भय टाल दूरे' उल्लेख मिलता है और यह उक्त कथा को पुष्टि करता है
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महत्व के लेख
ओर प्रेम
जैसलमेर के जिनने लेख इस संग्रह में छपे हैं उन में से कईएक शेिष महत्व के हैं। इस रखने वाले सज्जनों की दृष्टि निम्न लिखित लेखों पर आकर्षित करता हूं :----
(१) तपपट्टिका :- जैसलमेर दुर्ग पर श्रीसंभवनाथजी के मंदिर में पोले पापान में खुदा हुआ नापट्टिका का एक विशाल शिलालेख रखा हुआ है। यह कुछ ऊपर की तरफ से टूटा हुआ है ! यह लेख { नं० २१४४ ) पृ० २२---३२ में छपा है । आज तक मैंने जितने शिलालेख देखे कहों पर भी अपने जैनागम के अनुसार तपविधि का कोई शिलालेख मुझे नहीं मिला । और २ लेखों के संग्रह में भी ऐसे कोई शिलालेख का उल्लेख नहीं है । इस पट्टिका में तपविधि के साथ तीर्थंकरों को पांचों कल्याणक की , तिथियां भी सुटी हुई हैं। श्रीशांतिनाथजी के मंदिर बनवाने वाले सा० घेता ने इसकी प्रतिष्ठा कराई यो ।
आमूतीर्थ में कल्याणक तिथियों का एक शिलालेख है जो वहां के देलवाड़ा मन्दिर की प्रदक्षिणा में देवडो के द्वार पर लगा हुआ है । यह भो अद्यावधि किसो जगह प्रकाशित देखने में नहीं आया ! परिशिष्ट में यसका अक्षरान्तर और चित्र भी उपयोगो समझ कर दिया गया है ।
... (२) शतदलपन यंत्र प्रशस्ति :-- लोगपुर के वर्तमान मंदिर की प्रशस्ति जो इस पुस्तक के पृ० १६०-१६६ में छपी है वह भी एक अपूर्व शिलालेख है । पाठक उस लेख के नोट को अवश्य पई और प्राचीन कीर्ति और विद्वता. को स्मरण कर आनन्द अनुभव करें।
(३) पट्टावली पट्ट:- लोद्रपुर के उसी मंदिर के चार कोने में जो चार छोटे मंदिर हैं उन में से उत्तर पूर्व को तरफ के मंदिर ६० ४ में श्रीमहावीरखामा से लेकर श्रीदेवद्धिंगणि क्षपाश्रमण तक जो पट्टावली का शिलालेख है ऐवा पट्टायली पट्टक भो देखने में कहीं नहीं आया। प्राचीन जैन इतिहास लेखकों के लिये यह कड़े काम की है । यह लेख नं० २५७४ पृ० १७५-१८४ में नोट के साथ छपा है । - इन जैसलमेर के महत्वपूर्ण लेखों के छाप संग्रह करने में मुझे बहुत ही कठनाई पड़ो थो। मैं वगैदा सेंट्रल लाइब्रेरी से इन सों के छार मंगवाने की कोशिश की थी पन्नु वहां से प्राप्त नहीं हुआ । इस सुंदर मरुभूमि के ऐसे आवश्यकीय लेखों के चित्र अप्रकाशिन रखना भो कर्तव्य न था। जो छाप छोड़े समय में वहां से लेकर साथ में लाये थे वे ब्लक बनवाने के अयोग्य थे । अन्त में यहीं बड़े परीश्रम और अर्थव्यय से उन छापों को ही सुधार कर ब्लकस् तैयार कराये गये हैं और उनसे जो वित्र बने है वे पाठकों की सेवा में उ.स्थिन किये गये।
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ओसवाल ज्ञाति
आजक र ओर २ उन्नति के साथ इतिहास प्रेम को भी जागृति दिखाई पड़ती है। लोग अपने २ कौम को उत्पत्ति और प्राचीन इतिहास के सोध खोज में तत्पर है । वेद इसो विषय का है कि इतिहास पर सच्चे प्रेम को नूसना से अपने नामवरी को ओर हो ज्यादे ध्यान रखते हैं। पूरी सोध खोज और परिश्रम से विशुद्ध प्रमाण संगृहीत होने पर जो कुछ लिखा जाता है वह बड़े काम को होती है।
ओमान्द्रों की उत्पत्ति के विषय में इतना कहना यथेष्ट है कि प्राचीन जैनावार्यों द्वारा राजपूत लोग प्रतियोधित होकर जेन धर्म में दीक्षित हुए थे। पश्चात् उपवेश अर्थात् 'ओसवाल' नाम की सृष्टि हुई थी । इस सृष्टि के समय का अब तक कोई निर्दोष प्रमाण नहीं मिलेगा, तब तक ओसवाल ज्ञाति की उत्पत्ति के समय का कोई निश्चित सिद्धान्त करना अनुचित सा है । इतना तो निविवाद कहा जा सकता है कि 'ओसवाल में 'मोस' शब्द हो प्रधान है । 'ओस' शब्द भी 'ऊपस' शब्दका रूपान्तर है और 'एस' 'उपकेश' का प्राकृत है। इसी प्रकार मारवाड़ के अन्तर्गत 'भोशियां' नामक स्थान भी 'उपकेश नगर' का रूपान्तर है। जनावार्य रत्नप्रभसूरिजो वहां के राजपूतों की जीवहिंसा छुड़ा कर उन लोगों को दीक्षित करने के पश्चात् वे राजपूत लोग उपकेश अर्थात् ओसवाल नाम से प्रसिद्ध हुए।
भाट भोजकों के कवित्त और जैन यतिओं के दफ्तर में इस उत्पत्ति के समय की कथा कई प्रकार की मिलती है । अद्यावधि इस समय को निश्चित करने का कोई भी ऐतिहासिक विश्वसनीय प्रमाण मेरे देखने में नहीं आये । जहां तक मैं समझता हूं-( मेरा विवार भ्रमपूर्ण होना भी असम्भव नहीं } प्रथम राजपूतों से जैनी बनाने वाले श्रीपाश्वनाथ सन्तानोय श्रीरतप्रभसूरि नामके अनाचार्य थे । उक्त घटना के प्रथम श्रीपार्श्वनाथस्वामी के पट्ट परंपरा का नाम उपकेशगच्छ भी नहीं था । श्रीवोर निर्वाण के ६८० वर्ष के पश्चात् श्रीदेवर्द्धिगण क्षमाश्रमण जिस समय जैनागम को पुस्तकारूढ़ किये थे उस समय के जेन सिद्धान्तों में और श्रोकल्पसूत्र की स्थविरावली आदि प्राचीन ग्रन्थों में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं है । उपरोक्त कारणों से संभव है कि सं० ५०० के पश्चात् और सं० १००० के पूर्व किसो समय उपकेश (ओसवाल ) ज्ञाति की उत्पत्ति हुई होगो और उस समय से उपकेशगच्छ नामकरण हुआ होगा। जहां तक मैं समझता हूँ उस स्थान का उपकेश पत्तन (ओशियां ) भी प्राचीन नाम नहीं था । उच्चवर्ण के हिन्दुओं को जैनो बनाने की क्रिया तो प्रथम से हो जारी थो । विक्रम को १४ वीं शताब्दि तक यह कार्य अबाधा से होता रहा और ओसवंश भी बढ़ता रहा । गोत्रों की सृष्टि का इतिहास तो और भी रहस्यपूर्ण और अलौकिक घटनाओं की कथा में समबद्ध है। कहीं स्थान के नाम से कहीं प्रभावशाली पूर्वजों के नाम से, कहीं आदि वंश्न के नाम से, कहीं शरापारिक कार्य की संज्ञा से, और कहीं अपने प्रशंसनीय
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( २६ )
कार्यकुशलता के नाम से ओसवालों के गोत्रों को जो सृष्टि मिलती है वह पाठकों से छिपी नहीं है 1 शिलालेखों से जहां तक मेरा इस विषय में ज्ञान हैं, विक्रम को ११ वीं शादि से पूर्व के कोई लेखों में न तो उपकेशगच्छ का ही उल्लेख मिलता है और न कोई भलवंश अथवा उनके गोत्रों का नाम पाया जाता है । ओशियां में मुझे एक लेखसहित धातु की प्राचीन परिकर और एक खंडित पत्थर की मूर्ति की चरण चौकी मिली थी। वे 'जैन लेख संग्रह' प्रथम खण्ड के लेख नं० १३४, ८०३ में प्रकाशित हुए हैं। वे विक्रम सं० १०११ और ११०० के हैं। इनमें से सं० १०११ के लेख में केवल “उपकेशीयवत्य" मिला है। आचार्य देवगुप्तसूरि के नाम के साथ उपकेशगच्छ नाम नहीं है। दूसरा लेख स्पष्ट पढा नहीं गया परन्तु उसमें भी उपकेशगच्छ मालूम नहीं होता है । मुनि जिनविजयजो के प्राचीन जैन लेख संग्रह के द्वितीय खंड के लेख नं० ३१४ ( पृ० १७४ ) में प्रतिष्ठा कर्त्ता के गच्छ का नाम भोसवाल गच्छ लिखा है। यह उपकेशगच्छ का ही अपर नाम ज्ञात होता है । १३ वीं, १४ वीं शताब्दि के कई लेखों में प्रतिष्ठा कर्त्ता के गच्छ का उल्लेख नहीं है केवल प्रतिष्ठा कराने वालों की संज्ञा 'ऊशवंश' मात्र मिलते हैं । मैं यहां इस विषय पर अधिक लिखकर पाठकों का धैर्य नष्ट नहीं करना चाहता हू परन्तु लिखने का सार यही है कि इस विषय का वर्तमान साधन संतोषजनक नहीं है ।
ऊपर लिखा जा चुका है कि राजपूत आदि उच्च वर्णवालों को जैनी बना कर ओसवाल आदि वंशों को सृष्टि का कोई प्रामाणिक इतिहास आज तक नहीं मिले हैं। विक्रम को १७ वीं शताब्दि में बोकानेर राज्य में ओसवाल वंश के चच्छायत गोत्रीय दोवान कर्मचन्दजी हुए थे। इन के विषय में संस्कृत का 'कर्मचंद प्रबंध नामक अन्य मिलता है परन्तु इस में भी ओसवालों की उत्पत्ति का सन्तोषजनक विवरण नहीं है । इसकी सोपज्ञ टीका जैसलमेर के बड़े उपासरे में मैंने देखी थी । इस प्रकार जैनेतरों को दीक्षित करके ओसवाल बनाने का एक भी इतिहास प्राचीन जैनाचार्य का लिखा हुआ नहीं है। यदि ओसवालों की उत्पत्ति का समय विक्रम ष्ट शताब्दि के पश्चात् भी रक्खा जाय तो भी इस दीर्घ काल में बड़े २ विद्वान् जैमी आचार्यो की कमी नहीं थी । अतः इस विषय पर कुछ भी नहीं लिखे जाने का अवश्य कोई गूढ कारण होगा ।
श्रीमाल शाति की उत्पत्ति के विषय का भी यही हाल देखने में आता है । दन्त कथा और प्रवादों पर इतिहास नहीं लिखा जा सकता। ओसवाल थोमालों में घनिष्ट सम्बन्ध है अर्थात् इन दोनों में 'रोटी बेटी' एक हैं। धार्मिक fare में भी दोनों समकक्ष है । ओसवालों में जो अपना श्रीश्रीमाल गोत्र बताते बे अपने को श्रीमालों से भिन्न समझते हैं और ओसवालों के और २ गोत्रों की तरह श्रीश्रीमाल भी एक ओसवालों का गोत्र कहते हैं । यह भी रहस्यमय है । मैं यहां कोई सवाल अथवा श्रीमालों का इतिहास नहीं लिखता हूँ' । लेखों में ऐसी २ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । लेखों में जहां २ श्रीश्रीमाल पाये गये हैं उनकी अलग बालिका करके पुस्तक की सूत्रों में दिये गये हैं। परन्तु यह लेखों के 'श्रीश्रोमाल' ओसवाल ज्ञाति की शाखा हैं। अथवा केवल श्रीमालों के आगे 'श्री' विशेषण युक्त श्रीमालों का रूप है, यह ज्ञात नहीं होता। ऐसे २ विषय पर खोज को आवश्यकता है ।
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जैसलमेर में कई प्रभावश लो धर्मात्मा ओसवंश वाले अपनी कोर्ति छोड़ गये है। इन में से शा वंशजों के विषय में लिखना आवश्यक । “भांडशालिक' ( भणशालो ) और 'बहुफणा' ( वाफणा ) इन दो वंशों के नाम विशेष उल्लेख योग्य है ।
भणशाली वंश ऐसा प्रवाद सुनने में आता है और 'लोद्रवः' के शतदलान यंत्र के लेख नं० २५४३ से सूवित होता है कि प्रावोन काल में सगर राम के दो पुत्र श्रीधर और राजधर जैन धर्म में दीक्षित होकर लोद्रपुर पत्तन में श्रोविन्तामणि पानाथजी के मंदिर बनवाये थे । वही प्राचीन मंदिर नष्ट हो जाने से सं० १६७५ में जैसलमेर निवासी भाशाली गोत्रीय सेठ थाहरूसाहजी ने उसका जीर्णोद्धार कराया । अपने पास भवन में भी आपने देरासर को प्रतिष्ठा कराई थी और शास्त्र भंडार भराये थे जो अद्यावधि वर्तमान है। सेठ थाहरूसाहजी लोवा के मंदिर को प्रतिष्ठा के कुछ समय के बाद हो बड़ा संघ निकाल कर तीर्थयात्रा को पधारे थे और श्रोशत जय तीर्थ की यात्रा करके वहां खरतराचार्य श्रीजिनराजसरि से सं० १६८२ में श्रीआदिनाथजो से लेकर श्रीमहायोरस्वामो तक २४ तीर्थ करों के १४.२ गणधरों की पादुका यहां के स्वर रवशी में प्रतिष्ठा कराई थी। यह सब हाल वहां के शिलालेख से मिलते हैं। भारत सरकार के तरफ से प्रकाशित एपिग्राफिश इंडिका द्वितीय स्वंड में० २६ में यह लेख * छपा है और यह पुस्तक दुष्प्राप्य होनेके कारण लेखे यहां प्रकाशित किया जाता है :(१) ॥ओं ॥ नमः श्रीमारुदेवा दिवईमानांततार्थ कराणां श्रीपुण्डरीकाध गौतम(२) स्वामापयतेच्यो गणधरेच्यः सन्यजनैः पूज्यमानेच्यः सेव्यमानेच्यश्च संवत । (३) १६०५ ज्येष्ठ वदि १० शुक्र श्री नेसलमेरूवास्तव्योपकेशवंशीयनांडशालिके (४) सुश्रावककर्त्तव्यताप्रवीणधुरीण सा श्रीमद नार्या चापलदे पुत्र पवित्र चरित्र । (५) लोडवापत्तनकारितजोर्णोद्वारविहारमंडनश्रीचिंतामणिनामपार्श्वनाथाजिराम(६) प्रतिष्ठाविधायकप्रतिष्ठासमयाईसुवर्णलजनिकाप्रदायकसंघनयककरणीय(9) देवगुरुसाधम्मिकवात्सल्यविधानप्रनासितसितसम्यक्त्वशुद्धिप्रसिद्धसप्तक्षेत्रव्ययविदि. (प) तश्रीशत्रुजयसंघलब्धसंघाधिपतिलक सं थाद [डूनामको ] द्विपंचाशत्तरचतुर्दश(ए) शत १४५३ मितगणधराणां श्रीपुंडरीकादिगौतमानानां पाडुकास्थानमजातपूर्वम(१०) चीकरत् खपुत्रहरराजमेघराजसहितः समेघमानपुण्योदयाय प्रतिष्ठितं च श्रावह. (११) खरतरगठाधिराज श्रीजिनराजसूरिसूरिराजैः पूज्यमानं चिरं नंदनात् ॥
• यह लेक मुनि जिनविजयजी कृत प्राचीन जैन लेख संग्रह ( नं० २६ ) पृ० ३४ में छपा है।
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. प्रथम अवस्था में सेठ थाहरुसाह सामान्य स्थिति में थे। पश्चात् उनके लक्ष्मोत्र होने को कथा स्वगाव यति भोपालजी कृत 'जैन संप्रदाय शिक्षा' नामक पुस्तक के पृ० ६३० में इस प्रकार लिखो हुई है :
भण्डशालो गोत्र में थिरुसाह नामक एक बड़ा भाग्यशाली पुरुष हो गया है. इसके विषय में यह बात प्रसिद्ध है कि- यह घी का रोजगार करता था, किसी समय इसने रूपासिया गांव की रहनेवाट धो बेचने के लिये आई हुई एक स्त्री से चित्रायेल की एंडुरी (दोणी ) किसो चतुराई से ले लो था । यह स्त्रो जाति को जातिको थो और यह घो बचने के लिये रुपासियां गांध से लोद्रयापुर पट्टन को चली थी. इसने रास्ते में जंगल में से एक हरो लता (येल) को उखाड़ कर उसकी एंडुरी बनाई थी और उस पर घो को हांडो रखकर यह थिरुसाह को दूकान पर आई, थिस्साह ने इसका घी खरीद किया और हांड़ी में से धो निकालने लगा, जब घो निकालने २ घहुत देर हो गई और उस हांड़ी में से घी निकलता हो गया तब थिस्साह को सन्देह हुआ और उसने विचारा कि इस हांडी से इतना घी कैसे निकलता जाता है, जब उसने एंडरी पर से हांडो को उठा कर देखा तो उसमें घो नहीं दोखा, पत वह समझ गया कि यह एंडुरी का ही प्रभाव है, यह समझ कर उसने मनमें विचार कि इस एंडुरी को किसी प्रकार लेना चाहिये, यह विचार कर थिरुसाह ने कौड़ियां लगी हुई एक सुन्दर एंडरों उस जाटिनी को दो और उस वित्रायेल की एंडुरी को उठाकर अपनो दूकान में रख लिया। उसो एंडुरो के प्रभाव से थिरूसाह के पास बहुत सा द्रव्य हो गया था ।
घोकामेर निवासी 3. रामलालजी गणि कृत 'महाजन वंश मुक्तावली' में भी इसी प्रकार का वर्णन है । उक्त यति श्रीपालजी तथा आप लिखते हैं कि सेट थाहरूसाह ने आगरे में बड़ा मंदिर बनवाया था और अभी वर्तमान है। परन्तु मुझे वहां उनका बनवाया हुआ कोई मंदिर का पता नहीं मिला । जैसलमेर से इनका आगरे जाने का और यहां कोई मंदिर प्रतिष्ठा कराने का हाल कहीं मेरे देखने में नहीं आया ।
इस भणशाली गोत्र की उत्पत्ति के विषय में मुझे बोकानेर निवासी उपाध्याय ५० जयचन्द्रजी गण महोदय के पास की प्राचीन संग्रह में निम्नलिखित विवरण मिले हैं वह इस प्रकार है । इस में सेठ थाहरूसाहजी के पुत्र पौत्रादिकों के कई पोढ़ियों तक के नाम मिलेंगे !
___ संवत् १११ श्रीलोद्रवपुर पट्टण माहै यादव कुल भाट्टो गोत्र श्रीसागर * नांमै रावल राज कर तेहने श्रीमती नामै राणी है तेहनै ११ पुत्र हुवा मृगोरे उपद्रव सुं८ मरण पाम्या । तिण अवसर श्री खरतरगच्छ माहे श्रीवर्द्धमान सूरि आचार्य शिष्य श्री जिनेश्वर सूरि विहार करता श्रोलोद्रपुर आया है तिवारै सागर रावल श्रीमतो राणो प्रमुख वांदणने आया बंदना कर हाथ जोड़ राजा बोनती को स्वामो माहरे ८ पुत्र मृगोरा उपद्रव सु मरण पांच्या हिवं पुत्र है सो कृपा कर जीवता रहै तिम करौ तिवार। श्रीजिनेश्वरसूरि बोल्या, सुण राजा थारा पुत्र
* लेख २० २५४३
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( २३ )
जीवता रहे जिण मैं म्हाने किसो लाभ ? जो तीन पुत्र मांहिसु १ ने राज दौ २ दोय पुत्र म्हारा धावक हुई तो म्हेरिख्या करां, तिवारे कुलधर ने राज्य दोयो श्रोघर नै १ राजभर ने २ * श्रीजिनेश्वर सूरि वासक्षेप को श्रावक कला तिवारे श्रीधर १ ने राजघर १ नं १ श्रीपार्श्वनाथजीरा देहरा कराया श्रीजिनेश्वरसूरिजी गणो द्रव्य खरवायौ प्रतिष्ठा करो भंडार साल मां araar aat इण वास्तै भंडासाली गोत्र हुत्र, तिवारे पछे श्रीधर ५ पांच पुत्र हुवा पोलो १ भोमसी २ जगली ३ रुपसो ४ देवसो ५ तिणमें श्रीमतो पोढ़ी चाली वाकोरांरी पीड़ी आगे न वाली इण वास्ते पामसा पुत्र कुलचन्द ३, तपुत्र देव ४. तत्पुत्र धनपाल ५ तत्पुत्र साधारण ६. तत्पुत्र पुन्यपाल ७, तत्पुत्र सजू ८, तत्पुत्र देदु ६, तत्पुत्र गजमाल १० तत्पुत्र जयतौ ११ तत्पुत्र घेतसी १२, तत्पुत्र वस्तौ १३, तत्पुत्र पुजौ १४, तत्पुत्र आसकरण १५, तत्पुत्र यशोधवल १६, तत्पुत्र पुन्यसी * १७, तत्पुत्र श्रीमल्ल १८, तत्पुत्र थाहरू $ १६, तिवारे थाहरू लोद्रवेजोरा देहला पज्या देवने जीर्णोद्वार करायो श्रीविन्तामणि पार्श्वनाथजीरो मूरति युगल देह थापी, श्रीजिनराजसूरिजी प्रतिष्ठा करो, घणा पुस्तक लिवाया, श्रीसिद्धाचलजी संघ कढायो, इण भांत धर्मt aut उन्नति करी, थाहरूसा पुत्र २ मेघराज + १ हरराज + २ पुत्र मूलबन्द, तत्पुत्र लालचन्द, तत्पुत्र हरकिशन, तत्पुत्र जेठमल १ लघुपुत्र जसरूप २ जेडमल पुत्र २ गोडोदास १ जीवराज २ गोडोदास पुत्र ऋ इति थिरुसाह वंशावलो ।
उपरोक्त विवरण से ज्ञात होता है कि सगर राजा के पश्चात् १८ थाहरू साहजी को ६ पोढो बाद ऋभदासजी हुए, और इनके समय में में भणशालो वंशवाले अभीतक सम्मान की दृष्टि से देखे जाते 1
पीढो बाद सेठ धाहरुसाहज हुए थे और यह वंशावली लिखो गई होगी | मारवाड़
'महाजन वंश मुक्तावली' और 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा' के कर्त्ता लिखते हैं कि भणशाल गोवाले जैसलमेर में 'कच्छवाहे' कहलाने लगे परन्तु इसका कुछ कारण नहीं लिखा है । खोज करने पर मालूम हुआ कि सेठ थाहरूशाह के वंशवालों को जैसलमेर दरवार से ही यह उपाधी प्राप्त हुई थी। कुछ समय के पूर्व यहां कलकत्ते में जैसलमेर के सुलतान कन्दजी काछवा थे और उनको बुद्धिमत्ता कि प्रशंसा अभीतक सुनने में आती है। राजपूताना के बड़े २ समस्त स्थानों में ओसवालों कि चस्तो है और वहां प्रायः समस्त सहरों में भणशाली वंशवालों के घर पाये जाते हैं ।
* लेख नं० २५४३
+ लेख ० २५४३-४४, २५७२ । इनकी भार्या का नाम चापलदे था ।
क लेख नं० २५४३ – ४४, २५६६-०३ । इनकी दो भार्यायें थों जिनका नाम कनकादे और सोहाग था ।
+ लेख नं० २५४३ - ४४, २५७१-७२ । यह वंशावली में इनके बाद के वंशजों का वर्णन नहीं है परन्तु लेख नं० २५७१ से ज्ञात होता है कि इनके भोजराज और सुखमल नामक दो पुत्र ये
+ लेख नं० २५४३ - ४४, २५६८-६६, २५७२/
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( ३० )
बाफणा वंश
जैसे विक्रम के १८ वीं शताब्दि के शेषार्द्ध में ओसवाल वंश के गेहलड़ा गोत्रवाले पूर्वदेश में समृद्धिशाली और राज सन्मान से विभूषित हुए थे उसी प्रकार राजपूताना में १६ वीं शताब्दि के प्रारम्भ से हो जैसलमेर निवासी areer वंशवाले भी विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुये थे। इस गोत्र की उत्पत्ति के विषय में 'महाजन वंश मुक्तावली' मैं कुछ वर्णन है । 'जैन सम्प्रदाय शिक्षा' के पृ० ६३१ में इस गोत्र की उत्पत्ति का इस प्रकार संक्षिप्त विवरण है :
1
'धारा नगरी का राजा पृथ्वीधर पवार राजपूत था, उसकी सोलहवीं पीढी में जोवन और सच्चू, ये दो राजपुत्र हुए थे, ये दोनों भाई किलो कारण धारा नगरी से निकल कर और जांगलू को फतह कर वहीं अपना राज्य स्थापित कर सुख से रहने लगे थे, विक्रम सं० ११७७ ( एक हजार एक सौ सतहतर ) में युग प्रधान जैनाचार्य श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज ने जोवन और सच्चू ( दोनों भाइयों ) को प्रतिषोध देकर उनका महाजनवंश और बहूफणा गोत्र स्थापित किया ।"
मैं आगे ही कह चुका हूं कि उस प्रांत में बाफणा वंश वाले विशेष रिद्धि और प्रसिद्धिशाली हुए थे । इनके वंशजों का प्राचीन इतिहास मेरे देखने में नहीं आया । इनके पूर्वज देवराजजी से इनके वंशजों का विवरण लेख नं० २५३० में है । इनके पुत्र गुमानचन्दजी थे । उनके पुत्रों ने ही उस प्रांत के मुख्य २ नगरों में व्यापार बारम्भ किया था । इनके पांचों पुत्र यथाक्रम (१) बहादुरमलजी कोटा सहर में ( २ ) सवाईरामजी झालरापाटन में (३) मंगनीरामजी रतलाम में ( ४ ) जोरावरमलजी उदयपुर में और ( ५ ) परतापचन्दजो ने जैसलमेर में अपनी २ कोठियां खोली थी । इन लोगों के हाथ में बहुत से रजवाड़ों का सरकारी खजाना भी था। इसके शिवाय राजस्थान के और भी बड़े २ व्यापार केन्द्र और शहरो में इन लोगोंने महाजनी और तिजारती आरंभ किये थे और प्रायः उन्होंने सब जगह बहुमूल्य इमारतें भी बनवायो यो जो अद्यावधि पटुवों की हवेलीके नामसे प्रसिद्ध I उस समय इन लोगों की प्रतिष्ठा बहुत कुछ बढो चढो थी । राजस्थान के कई दरवारों से इन लोगों को सोना Dear गया था और 'सेट' की उपाधि से भी ये लोग सम्मानित किये गये थे । इन मैं से सेठ बहादुरमलजी और जोरावरमलजी उस समय के राजनैतिक कार्यों में भी पूरा भाग लेते थे ।
औरंगजेय की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली सिंहासन क्रमशः हीनवल होता गया। इसी अवसर में महाराष्ट्रगण भारत के बहुधा प्रांत में स्वार्थवश नाना प्रकार अत्याचार करते थे । उसी समय वृटिश सरकार भी प्रायः सर्वत्र राजनैतिक नामा कौशल से भारत में शांति स्थापन के लिये और दुखी प्रजाजनों का कष्ट दूर करके राज्य विस्तार
* ये लोग किस प्रकार से 'पटुवा' कहलाने लगे इसको कोई विश्वासयोग्य ऐतिहासिक कथा मुझे मिली नहीं । इस वंश के कई स्थानवाले आज तक पहुंबे के नाम से प्रसिद्ध हैं ।
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( ३१ )
करने की चेष्टा में लगे थे । ये लोग जिस समय राजस्थान में राजपूत राजाओं के साथ मैत्री स्थापन और उन लोगों के errerita darस्य हटाने का प्रयत्न कर रहे थे उस समय सेठ बहादुरमलजी और जोरावरमलजी का बीकानेर, मारवाड़, जैसलमेर आदि स्टेटों में विशेष प्रभाव था और उस समय वृटिश सरकार को भी इन लोगोंने अच्छो सहायता पहुंचाई थी । ये विवरण सरकारी कागजात और अंगरेज अफसरों के पुस्तकों से प्रमाणितहै । हर्ष का विषय है कि आज भी इनके वंशज कोटा निवासी सेठ केशरीसिंहजी 'दीवान यहादुर' की उपाधि से विभूषित हैं । उदयपुर निवासी राय बहादुर सेठ सिरेमलजी बाफणा स्वनाम विख्यात हैं । आप आज इंदौर स्टेट के प्रधान मंत्री का पद सुशोभित कर रहे हैं । सरकार की ओर से राय बहादुर आदि पदवी प्राप्त करने के अतिरिक्त स्वयं उच्च शिक्षित हैं और आपने विश्वविद्यालय के एम० ए० की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। आप दो बार यूरोप की यात्रा भी कर आये है ।
लेखों से और खोज करने पर इन लोगों के वंशजों की वर्तमान समय तक की नामावली स प्रकार मिलो है :
सेठ देवराजजी + ( १ ) के पुत्र गुमानचन्दजो + ( १,२,३ ) थे । इनकी भार्या का नाम जैता + ( १२ ) था। इनके ५ पुत्र और २ कन्यायें थीं । ये लोग ही जैसलमेर से राजपूताना के और २ सहरों में जाकर बसे थे । इनके पुत्र, कन्या, पौत्रादि के नाम इस प्रकार मिले है ।
इनकी भार्या का नाम चतुरा + ( १ ) था । इनके पुत्र दानमलजी + नहीं रहने के कारण रतलाम से भभूतसिंहजो के श्य पुत्र हमीरमलजी राजमलजी के पुत्र दीवान वहादुर केशरीसिंहजी हैं और इनके पुत्र
[१] चहादुरमलजी + ( १२ ) । ( १,२ ) थे । दानमलजो के भो कोई पुत्र गोद आये थे । इनके पुत्र राजमलजो थे ! राजकुमार सिंहजो हैं ।
[ २ ]. सवाईर मजी + ( १,२,३ ) 1 इनकी भार्या का नाम जीवां + ( १ ) था । इनके सामसिंहजी और माणकचन्दजी + ( १ ) दो पुत्र थे और सिरदारी, सिणगारी और नानूडी + (१) ये तीन कन्यायें थीं । साम सिंहजी के पुत्र रतनलालजो + ( १ ) थे । रतनलालजी के पन्नालालजी और सूरजमलजी ये दो पुत्र थे । इन लोगों के पुत्र कोई न था । अखयसिंहजी को गोद लिया गया और इनके विजयसिंहजी गोद् आये हैं ।
[३] मगनोरामजी । ( १२ ) । इनकी भार्या परतापां + ( १ ) थीं । इनके एक पुत्र भभूतसिंहजी + ( १ ) और दो कन्यायें हरकँवर और हसतू + ( १ ) थीं । भभूतसिंहजी के पूनमचन्दजी, दीपचन्दजी + (१) और
See Boileau's Personal Narrative, London,1823. pp. 3, 44, 85, 133, &c. + अमरसागर और सहर के घर देरासर वगैरह के जिन लेखों में इन लोगों का उल्लेख मिला है उन लेखों के नंबर इस प्रकार चिन्हित है :- ( १ ) लेख नं० २५३० (२) लेख नं० २५२४ (३) लेख नं० २५३१
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( ३२ )
मोरमलजी ये तीन पुत्र थे । हमीरमलजी कोटे गोद गये । दीपवन्दजी के दो पुत्र सोभागमलजी और चांदमलजो * (१) थे । इन लोगों के कोई पुत्र नहीं रहने के कारण कोटे के केशरीसिंहजी रतलाम को गद्दी के भो मालिक हुए । सेठ चांदमलजी ने सं० १९६२ में बड़े धूमधाम से जैसलमेर में अट्ठाई महोत्सव किया था के उस समय यहां महारावल शालिवाहनजी गद्दी पर थे और वे स्वयं उत्सव में उपस्थित थे । चांदमलजी की भार्या फूलकुंवर बाई वर्त्तमान हैं और कलकत्ते में रहती हैं तथा रतलाम की सेठानी के नाम से परिचित हैं ।
[४] जोरावरमलजी (२,३,४ ) । इनकी भार्या का नाम चौथा * ( ४ ) था । इनके सुलतानमलजो और चांदमलजी * ( ४ ) दो पुल थे। सुलतानमलजी के दो पुत्र गम्भीरमलजी और इन्दरमलजी ( ४ ) थे | गंभीरभलजी के पुत्र सरदारमलजी * (१) थे । इनके समोरमलजी गोद आये । इंदरमलजी के कुन्दणमलजी गोद आये और इनके भी कोई पुत्र नहीं रहने के कारण संगराम सिंहजो गोद आये ।
जोरावरमलजी के द्वितीय पुत्र चानणमलजी के जुहारमलजी और छोगमलजी ये दो पुत्र थे । जुहारमलजी के एक मात्र कन्या थीं जिनका विवाह जावरा हुआ था | छोगमलजी के चार पुत्र छगनमलजो, सिरेमलजो, देवीलालजो, खगराम सिंहजी हैं । स्वनाम ख्यात सिरेमलजों के विषय में ऊपर लिखा गया है। कनिष्ठ संगरामसिंहजी कुणमलजी के गोद गये हैं । छगनमलजी के धनरूपमलजी और सावतमलजी दो पुत्र हैं। सिरमलजी के कल्याणमलजी और परताप सिंहजी ये दो पुत्र और दो कन्यायें हैं । कल्याणमलजी के जसवंत सिंहजी और धमकमलजी नामके दो पुत्र हैं ।
[५] परतापयन्दजी * (१३.५ ) । इनको भार्या माना थीं। इनके हिम्मतरामजो, जेठमलजी, नथमलजो * (१,४,५ ) सागरमलजी और उमेदमलजी * (१,५ ) ये पांच पुत्र थे । हिम्मतरामजो के जीवणलालजी ( ४ ) ऋषभदाजो, चिन्तामणदासजो, और भगवानदासजी * (१) ये चार पुत्र थे । विन्तामणदासजी के कन्हैयालालजो * (१) और धनपतलालजी नाम के दो पुत्र हैं । परतापचन्दजो के द्वितीय पुत्र जेठमलजी के दो पुत्र मूलचन्दजी ( १,४ ) और सगतमलजी (१) हैं। परनापचदजो के ३५ पुत्र नथमलजी के पुत्र केशरीमलजी # (१)
悲
थे। इनके दो पुत्र लूणकरणजी (१) और बेमकरणजी हैं। परतापचन्दजी के चतुर्थ पुत्र सागरमलजी के दो पुत्र
बागमलजी और सांगोदासजी (१) नामके थे। जिनमें सांगीदासजो अपने काकाजो के गोद गये हैं । परताप
चन्दजी के पंचम पुत्र उमेदमलजी भातच्युत सांगोदासजो को गोद लिये हैं और इनके आईदानजी नामक पुत्र हैं ।
( ६-७ ) सेठ गुमानचन्दजी के नू और बीजू * ( ४ ) नाम की दो कन्यायें थीं ।
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★ अमरसागर और सहर के घर देरासर वगैरह के जिन लेखों में इन लोगों का उल्लेख के नंबर इस प्रकार चिन्हित है :(२) लेख नं० २४६०
(१) लेख नं० २५३१
(४)
२५३०
(५)
२४५६
+ वृद्धिरतमाला पृ० ५
23
"Aho Shrut Gyanam"
35
मिला है उन लेखों (३) लेख नं० २५२४
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SPECIMENS
OF
SCULPTURES.
JAISALMER
"Aho Shrut Gyanam"
जैसलमेर
पत्थर की
मूर्तियों के शिल्पकला का
नमूना
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( ३३ )
शिल्पकला
1
भारत के अन्यान्य ऐतिहासिक स्थानों की तरह जैसलमेर में भी प्राचीन शिल्पकला के दृष्टान्त को कमो नहीं है । विस्तृत मरुभूमि के मध्य में अवस्थित रहने के कारण यह स्थान बड़ा ही दुर्गम है और इसी लिये फर्गुसन आदि free विद्वानों के ग्रन्थों में इस स्थान के शिल्पकला की चर्चा नहीं मिलती । 'इंडियन एन्टोक्वेरो' नामक पुरातत्व की प्रसिद्ध पत्रिका के बल्यूम ५ के पृ० ८२-८३ में यहां के जैन मंदिरों और सहर के धनाढ्य लोगों को रमणीय अट्टालिकाओं को प्रशंसा के विषय में उल्लेख है कि उन सबों में पत्थर पर को खुदगारी का काम बहुत हो उत्कृष्ट हैं । मैं पहले लिख चुका हूं कि वहां के वर्तमान स्टेट इंजीनियर ने हाल ही में स्थापत्य शिल नामक प्रबन्ध प्रकाशित किया है जिल में वहां की भी शिल्पकला का चित्र परिचय दिया 1 किले पर जो आठ जैन मन्दिर हैं उन में से कई मंदिरों के शिकार्य के चित्र पाठकों को इस पुस्तक में मिलेंगे । नसों से वहां के शिल्पकार्य की उत्कर्षता अच्छी तरह उपलब्ध हो जायो । विशेषता तो यह है कि यह स्थान इतना दुर्गम होने पर भी वहाँ पर भारत के शिल्पकला कुशल कारीगरों द्वारा जो मंदिर व गये हैं वह केवल वहां के धनाढ्य लोगों को धर्मपरायणता और शिय-प्रेम का ज्वलंत उदाहरण है । वहां के मनोश शिल्पकला के दो नमूने पाठकों के सन्मुख हैं । पाषाण में किस नैपुण्य से शिल्पी मूर्त्तियें बनाई है वह चित्रों के भाव से ही अनुभव होगा | पाठक और भी देखेंगे कि वहां के श्रीशांतिनाथजी के मंदिर के ऊपर का दृश्य क्या हो सुन्दर है । इसे देखकर शिल्प-निपुण विद्वान् यही कहेंगे कि इस में शिल्पकला की सर्व प्रकार द्यमान है। भारत के अन्यान्य स्थानों की प्रसिद्ध कारोगरी का दृश्य साथ ही स्मरण आता है । मंदिर के ऊपर खुदे हुए मूर्तियों के आकार बहुत हो अनुपात से याने मिलान से । यही कारण है कि ऊपर से नीचे तक के सम्पूर्ण दृश्य वाकर्षक हैं। इसके किसी भी स्थान में सौन्दर्य की कमी नहीं पाई जाती। इस में यह भी विशेषता है कि बहुत सी मूर्तियों के रहने पर भी दृश्य भयंकर अथवा सघन नहीं दिखाई पड़ते । सुमात्रा, जाभा आदि द्वीपों में जो प्राचीन भारतीय शिल्पकला का नमूना पाया गया है उससे यहां की कारीगरी बहुधा मिलती जुलती है । जाभा के 'बोरोबोडूर' नामक स्थान के प्राचीन हिन्दू मंदिर के ऊपर का दृश्य और मूर्तियों के अनुपात भी प्राय: इसी प्रकार के हैं । श्रपार्श्वनाथजी के मंदिर की कारीगरी भी अतुलनीय है । इस मंदिर के तोरण द्वार के चित्र से ज्ञात होगा कि वहां को मूर्त्तियां किस सुन्दरता से गढ़ी गई हैं। देखने ही
arat कला की ता झलकती है, इन में सौन्दर्य और गांभीर्य दोनों गुणों का समावेश है । अमरसागर मैं भी वर्तमान शताब्दि की कारीगरों का उज्ज्वल नमूना विद्यमान है। वहां के श्वेत मर के जाली के कारूकार्य का जो दृश्य चित्र में मिलेगा उस से यह स्पष्ट है कि मंदिर के निर्माता को शिर से क तक प्रेम था और इस कार्य की सफलता के लिये उन्होंने सहर्ष कितना प्रचुर aor व्यय किया था ।
M
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( ३४ )
जैसे ग्रन्थारम्भ में रचयिता को नाना प्रकार की कठिनाईयां झेलनी पड़ती हैं वैसे हो ग्रन्थ समाप्ति के समय उन्हें एक अनिर्वचनीय आनन्द का भी अनुभव होता है । आज इस भूमिका की समाप्ति के समय मेरे इस कार्य में सहायता देनेवाले सज्जनों को अपनी ओर से पूर्ण कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए मुझे भी वहो अनुपम आनन्द प्राप्त हुआ है। सर्व प्रथम वयोवृद्ध दधिमति ब्राह्मण कुलोद्भूत स्वनाम ख्यात ऐतिहासिक विद्वान मेरे मिल जोधपुर निवासी पं० रामकरणजी का आभार मैं सर्वान्तःकरण से मानता हूँ | आपने मेरे अनुरोध पर बाधायें रहते हुए भी मेरे साथ सहर्ष जैसलमेर चलने की कृपा को थी । जैसलमेर के प्रसिद्ध बैंकर्स सेठ हजारीमलजी राजमलजी साहब ने भो आज तक मुझे इस कार्य में उत्साहित करने की जो उदारता दिखलाई है वह भी प्रशंसनीय है। वहां के स्टेट इंजीनियर बाबू नेपालचन्द्रजी दत्त के विषय में मैं आगे ही लिख चुका हूं, उनका मैं विशेष कृत हूं। वहां के मेरे सहायकों में खरतरगच्छीय यति महाराज श्रीमान् पं० वृद्धिचन्द्रजी के शिष्य पं० लक्ष्मोचन्द्रजी यति महोदय भी विशेष उल्लेखनीय हैं। इतना ही लिखना बाहुल्य होगा कि दादास्थान आदि सहर से दूरी पर के स्थानों के लेखों के संग्रह करने में मुझको सहायता पहुंचाने के अतिरिक्त लोद्रवा ब्रह्मसर आदि के विषय में जो कुछ यहां लिखा गया है अधिकतया इनकी कृपा से ही प्राप्त हुआ था इस लिये इन का भी मैं सह
आभार मानता हूँ । इस पुस्तक में मेरे मध्यम और तृतीय पुत्र श्रीमान् पृथ्वीसिंह नाहर बी० ए० और श्रीमान् विजय सिंह नाहर बी० ए० उन लोगोंने अपनी योग्यतानुसार मेरे कार्य में जो कुछ सेवा पहुंचाई है इस कारण उन लोगों को आशिर्वाद देता हूँ । पुस्तक प्रकाशित करने में कापो से लेकर जिल्द बंधाई तक जो परिश्रम, कठिनाई और अर्थव्यय होता है वह सुज्ञ पाठक अच्छी तरह जानते ही होंगे। मैं उपरोक्त समस्त विषय में यथाशक्ति कर्त्तव्य पालन करने की चेष्टा की है परन्तु मेरो शारीरिक अक्षमता के कारण बहुत सी बुटियां मिलनी सम्भव हैं। आशा है कि उसे पाठक अपने उदार गुण से क्षमा करेंगे । अलमति विस्तरेण
४८, इन्डियन मिरर स्ट्रीट,
कलकत्ता ।
सं० १९८५ ई० सन् १९२६
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निवेदक पुरणचन्द नादर
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नापति मलना
NROERTON
नाणमालम्म तामासनवम्म १४
आबू तीर्थ
विवषदिति गाणमासम्म विवाविदयह
माउसत्तरस
رسم در همه
मा खानमिया १०
( देलवाड़ा)
हिरवावा
५
कल्याणक
सहवा कातियवाद नाणेमितनम्म ५ ।।जामामुविहिम
जामापा वाणानामिम्म १२ दिकामूविदिशा
दिकापार जमाम २ दिसावीर १०
माद यह रिकामप्स भाखापस्य 11
रिसावंद: ३ मोरगावी रस्मस
नाणसीयलसनियम मागतिरसुदिति पार्सहमरिदि
माहर कानिय तरह मामाघरम्म ५
नानास नामविहिश २ मानध्वरमा १५
नामसलिम
जीमात्तिनंद नाचिरस्म दिमापुरस1
नागाजियम्य ॥ हामाविमनमा ३ नागिन मिस्मत
नारी अनि नाग १४ फागणवरह
तीमामलिमा नागेंधमम्म २५ दिवाविमलास नामुपासमा रिमनिम्मत
मातिय मारतापास)
विक्साहवदिदि विश्वासनियम्यक नगद यह
ईमा प्रतिसा १२ NayaRN दिसातवास
दिखावमा १३ जाBHARn
वा कदम ५ नायंस
विसील
दिदि नाएं वयम्स पणापासस
उवाणामधेना दिकासघंस
KALYANAK
जीमामुख्य नमन। ४
माश्वोमबयक्ष नागतम जामा मितिमा १३
PATTA सिस्तिस्य नामाकनामारदास निस फाomer
दिलासनिम्स 16 साहस
DELWARA वयमझिम ४ नाम ३ स्वर्णसनबम
वैवानिदा ४ | FRA मा सांसतत ५ मारवामविस्मर ववधिमसा 30 मदमस्य- ५
MT. ABU दिसामुक्या
माया प्रतिनरणार मारवामिन ५
वर्गवास जामासुमस माखासुमझ रिरकासुमला
दिकासुपासा१३ वसना समाबीया १३
नाणवीवस्त १०
वाणविमन १२सासोपददिदि IFTIIकविमा
विवर्णनिघ १३ । नानिमिनाहा रसातमिस
ग्रावणहिट साइडाइरिदि जासाठमरिदि
मसापासहिहि। मार अंतर३ वसतिस्मा ॥ वतानं मिस। १५ वववीय
वत निस्स) माखावद यह मान मिस्र
जमानमस्त ववा:सुपासम्म ! मामत तमिया पाते। | वाघुस्सा
SP साडनने ताइवासुदिदि
एसि तामे के बलिनमः पानामुफकारना सरिसफाई तमसियोवार्णसमहम्म । मारितमुदिहिस्सा सपनालापासोमानीम्॥ ५. मटीविचरतविरदान साह |तुमावनिवनानि रमवदेगाने कामात वक सामोलसति मारोपासम्म ! तुनामुपागोवा नं.करावासा वाम
पासमता विपरमानवयामासनस्पती
14साउटरनिकमHOSसतापक्रयपवारमा दिमागउनीस --- रागार
Haiउरमभिगो सीमालमिरारम्सालवरतणावादनानिलिव सिदंर3॥
पट्ट
HaSu
मुपासह १२
महि
लासिमरुपये ११
नापामा १५
सततलिरिकलेमीगाव
যাবার
लिबागमतकिरियामान
उसमेएवढानारमा Eसाएमसिणी
प:उसालावास
पिसावमुY44 साउठाना पवपरिहरिनाले ।
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भामेका-परिशिष्ट
देलवाड़ा मंदिर - धाबू नार्थ
कल्याएक पट्ट।
कातिय वादहिं नाणं संजवस्ल ५ चवणं नेमिस्स १५ जंमो पजमस्स १५ दिक्खा पजमस्स १५ मोरको वीरस्स १५
मागसिर सुदिहिं जंमो अरस्स १० मोरको अरस्स १० दिक्खा थरस्त ११ नाणं नमिस्स ११ जंमो महिस्स ११ दिक्खा मसिस्स ११ नाणं मबिस्स ११ जमो संनवस्स १४ दिक्खा संचवस्त १५
कातिय सुदिहिं नाणं सुविहिस्स २ (३) नाणं अरस्स १५
मागसिर वदिदि जमो सुविहिस्स ५ दिक्खा सुविहिस्स ६ दिक्खा वीरस्स १० मोरको पनमस्स ११
पोसह वदि- * जंमो पासस्स - दिक्खा पासस्स - जमो चंदप्पद - दिक्खा चंदप्पह १३
--
-
-
* इस पट्ट के ऊपर के बांये तरफ का कुछ अंश टूटा हुआ है इस कारण पोस चदि और माह वदि की बहुत सी पंक्तियां शिलालेख में नहीं रही है। यह चित्र से ही स्पष्ट मालूम हो जायगा ।
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नाणं सीयलस्स १४
पोसह सुदिहिं नाणं विमलस्स ६ नाण संतिस्स ए नाणं अजियस्स ११ नाणं अभिनंदण १४ नाणं धमस्स १५
नाणं चंदप्पह ७ चवणं सुविहि ॥ नाणं उसनस्स ११ जमो सेपंसस्स १२ नाणं सुवयस्स १२ दिक्खा सेयंसस्स १३ जंमो वासुपुज्ज १४ दिक्खा वासुपुज्ज १५
नाण सेयंसस्स
फागुण सुदिहिं चवणं अरस्स चवणं मल्लिस्स ४ चवणं संजवस्स मोको महिस्स १२ दिक्खा सुवयस्स १५
माहह सुदिहिं नाणं वासुपुज जमो अनिनंदण ५ जमो विमलस्स ३ जमो धमस्स ३ दिक्खा विमलस्स ४ जमो अजियस्स छ दिक्खा अजियस्सए दिक्खा अभिनंदन १२ दिक्खा धमस्स १३ फागुण वदिदि नाणं सुपासस्स ६ मोरको सुपास ७
४
चेत्रह वदिहिं चवणं पासस्त नाणं पापस्स चवणं चंदप्पड जमो उसनस्स दिक्खा उसनस्ल
५
चेत्रह सुदिदि नाणं कुंथुस्स
३
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मोरको संजव ५ मोरको अयंत ५ मोरको अजित ५ मोरको सुमर ए नाणं सुमश्स ११ जंमो वीरस्स १३ नाणं उपमस्स १५
दिक्खा सुमश्स्स एं नाणं वोरस्त १० चवणं विमल १५ चवर्ष थजिय १३
जेठ वदिहिं चवर्ष सेयंसस्ता ६ जंमो सुब्बयस्त ७ मोरको सुव्वयस्स. ९ जमो संतिस्स ॥१३ मोरको संतिस्स १३ दिक्खा संतिस्त २४
वश्साह वदिहिं मोरको कुंथुस्त १ मोको सीयल २ दिक्खा कुंथुस्स ५ चवणं सीयल ६ मोरको नमिस्स १० जमो अणंतस्स १३ दिक्खा अपंतस्स १४ नाणं अयंतस्स १४ जमो कुंथुनाह १४
जे सुदिदि मोरको धमस्स ५ चवणं वासुपुज्ज ए जमु (मो) सुपासह १५ दिक्खा सुपासह १३
वश्साह सुदिहिं चवणं अजिनंदन ४ चवर्ष धमस्स मोरको अभिनंदन , अंमो सुमश्स्स
छासाढ दिदि चवणं उसजस ५ मोरको विमल .. ७ दिवस नमिस्स ए
R
थासाढ सुदिहि
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aai atree
मreat afree
८
मोरको वासुपुज १४
श्रावण वदिदि
मोरको सेयंसह
३
3
ज
कुंथु ॥ 迎
चवणं तस्स
जंमो नमिस्स ॥
६
श्रावण सुदिहिं
२
चव सुमइस्स जंमो ने मिस्स || दिरका ने मिस्स ॥ ६
Ա
मोरको पासस्स ||
व मुणि सुव्व । १५
नावादिहिं चवणं संतिस्स ||
मोरको चंदष्पह
चचणं सुपासस्स
Ե
9
6
७
जाडवा सुदिहिं मोरको सुविहिस्स ए
( ३८ )
सोय वदिहिं नाणं नेमिवाहस्स १५
सो सुविहिं
चवणं नमिस्स १५
पजमानं वासुपुजो रत्ता ससि पुष्पदंत ससिगोरा
सुव्वय नेमी काला । पासो मी पिगाजा ॥ १ वरतवियमगोरा | सोलस ति
1
करा सुव्वा । एसो वनवजागो चवीसाए जिवराणं ॥ २
सुमइत्थ निश्चत्तणे निग्गयो वासुपुज्जो जियो चलत्थेथ पासो मल्ली विमेण । सेसा उ बहे || निःक्रमण तपः
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मत्ततं मय । पासो
सज मह्निरिनेमी | वसुपुज्जरस चस्थेण । बजतेण से सायं ॥ केवलि तपः
निव्वाणमंत्र किरिया । सा चउसमे पढमनाइस्सं । सेसाथ मासिए वी (र) जिबिंदस्स उणं ॥ निर्वाण तपः ॥ उसो पंचधसए नव पासो सत्त रपियो वोरो
सेसद्ध पंच श्रद्धय पन्ना दस पंच परिहीणा देहमानं ॥
( ३६ )
वङ्गष्ठं वर ससियो सीसेणं नेमिचंद सूरिस्स । जव (?) जयाणंदेणं गपिया लिदियं
सिवं दे ||
* शिलालेख में कल्याणकों की तिथियों के अतिरिक्त तीर्थङ्करों के शरीर के वर्ण, निस्क्रमण, केवली, निर्वाण तप और शरोर प्रमाण की गाथायें भी खुदी हुई हैं। ये सब गाथायें 'आवश्यक सूत्र' को नियुक्ति को द्वितीया araftar में श्लोक संख्या १७२, १७२, ६, ३३, ८४ और १७३ में दी हुई हैं । इस ग्रन्थ के कुछ अंश 'यशोविजय जैन ग्रन्थमाला' नं० ४६, ४७ में छपे थे। इसके पृ० ६३-६४, ४०, ४४, ५१ और ६४ में यथाक्रम से उपरोक्त गाथार्थ मिलेंगी। प्रवचन सारोद्वार' में भी ऐसी गाथायें हैं ।
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[ख]
श्री जिनसुखसूरिविरचित
जैसलमेर चैत्य परिपाटी
[ ढाल १ -
रसियानो ]
जिनवर जैसल जुहारियै, लीजै विषमीनों बाद । विवेक गाजे बाजे बहु गडगाट, चैत्र प्रवाड़े रे चाद ॥ वि० जि० १ पहिली परदक्षणायै प्रणमियै, जगगुरु वीर जिनन्द | वि० वर प्रासाद करायौ बरड़िये, दोपै जान जिनन्द || वि० जि० 2 पहिली जमती मांहि परतमा, एकसौ अधिक इम्यार । वि० गंजारे देहरासर मांदि, गिणौ एकसौ इक्वीस सार ॥ वि० जि० ३ गलि श्री आदिश्वर यावतां जमती बिहुं घर जाव । वि० प्रतिमा पंचाएं नै वलि पांचसै गिनती करि गुणगाव | वि०जि० ४ गंजारै नै वलि उपरि गिहूं, बाजे विंत्र उत्रिस। वि० धन प्रासाद करायौ गणधरे, जोवो धरिये जगोश ॥ वि०जि० ५
[ ढाल २.
- संभायती ]
1
इमचन्द्र प्रभु जिनवर मोहियो, प्रगट बड़ौ प्रासाद । वि० भूमै तीने चौमुख नेटियै, परहो तजिये प्रमाद ॥ वि० जि० ६ जले इकसौ आणूं धूरि भूमिका, एकसी बावीस एड् । वि० तीजे भूमै चालीसे तराणवै, जिनवर राजे जेट् ॥ वि०जि० कीधी यांते जाते कोरणी, चारुं विविध विनांण । fro जपशालीयै लाज लीयो जलो, मोटो जाप विमांन ॥ वि०जि० ०
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[ ढाल ३ -- कागलीयाणो] श्रावो श्रष्टापदै रे, आपद जाय अलग्ग । कुंथ प्रासाद करायौ सिंघवी रे, जेहनौ यशकहै जग्ग ॥ जिए वाहिरली जमती तिम चौकमै रे, जिन एकसौ सेतोस। दोसौ साठ गुजार दूसरे रे, गणधर अहावीश ॥ जि० १० सोलम संति जिनेश्वर सेवोई रे, हितसौ उपर देव । जमती वाहिरली मइ नेटिय रे, दोश्सो चालीस देव ॥ जिए ११
चौक मांहे जिंहा प्रतिमा च्यारस रे, जरियो पुण्य जंडार ॥ जि० १२
[ढाल ४ -- करम परीक्षानो] नमीयै तिहाथी संजवनाथजी रे, तीजौ जिनवर तेह ।। चावो तीरथ कोधो चोपडै रे, एहनो सुयश अ६ ॥ जि० १३ चाहिरले चोकै प्रतिमा दोसो रे, माहि अढ़ी से इकतीस। . त्रीस मंडप विचलै उंची रे, गंचारै चौवीस ॥ जि० १४ वार माहिती जमती वोखीय रे, दोपै थंना दो। रचना सह तपनी पाटे रची रे, यंत्र तिके तूं जोय ॥ जि० १५ डागे जलो रचायो देहरो रे, शीतल नै जिहां शांति । त्रिणसै नै चवदै प्रतिमा तिहारे, जेटीजै तजि ब्रांति ॥ जि० १६
दाल ५ – चरण करणनी] विधि चैत्यालै जिनवर वंदोये, संघचतुर्विध साथ । शकस्तव ए वेकरि शुज विधे, प्रणमा पारशनाथ ॥ जि० १७
____ * यह गाथा 'प्राचीन तोर्थमाला संग्रह' (पृ. १४७) में बुटक है। बहुत खोज करने पर भी दूमा प्रति
नहीं मिली इसलिये वैसा ही प्रकाशित किया गया ।
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देहरी बावनमें विंब दोपतो, पांचसे पेंतालीस । पाटि सेजे जिन्नू प्रजुजीके, प्रेम धरि प्रणमीस ॥ जि० १७ श्कसौ वेतालीस विहूं चौकमें, ऊंचै मएमप वार । मूल गंजारै देहासर नमू, सौ इक चवदे सार । जि० १ए तिसके तोरण वीजे तोरणे, विंब वास नै वार । नेवीस पास मंडप रे तिकै, सो प्रणमुं श्रीकार ॥ जि० २० संवत वारेसे वारोत्तरे, ( १२१५ ) यो जैसलगढ़ जाण । थाप्यो सेते कीरत थंन ज्यूं. मोटो चैत्य मंडाण ॥ २१
[ कलस] इम महा था प्रासाद महेि विंब पेंतालिससै । चौरासी उपर सरब जिनवर वदतां चित्त जब्बसे ॥ उख जाय रै सुख पूरै संघनै संपति कर। संथुण्या श्री जिनसुखसूरै सतरसे कहोत्तरइ ( १७७१ ) ॥ २५ ॥
इति भी जिनसुखसूरि कृत चैत्यपरिपाटी स्तवन सम्पूर्ण ।
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[ग]
श्रीमहिमा समुद्रजो कृत
जैसलमेर चैत्य परिपाटी
[ राग वेलावल }
आज आनन्द वधावना, हुआ जय जय कार जिनवर या जुहारिये, जैसलमेरु मकार ॥ १
जग गुरु श्रीमहावीरजी, जिनवर प्रथम बखाए । शिखर करायो बड़ड़िये, नमता जनम प्रमाण ॥ २ वीजे जिनवर नेटिये, यादिसर अरिहन्त । प्रवर मंढायो गणधरे, सवि जन मन मोदन्त ॥ ३ श्रीचन्द्र प्रन स्वामिनो, चौमुख जवन उदार । अति सुन्दर जयशालीये, करायो सुखकार ॥ ४
भुवन जिनेश्वर कुंधुनो, अष्टापद अवतार । संघविये ये करावियो, कोरणी अधिक उदार ॥ ५ ऊपर जुवन सुहावनो, श्री शान्तिश्वर स्वाम । धन धन वीदो संघवी, जिन राख्यो निज नाम ॥ ६
श्री सम्जव जिन सेविये, जाव जगत उबरंग | चैत्य करायो चोपड़े, बिंब अनेक सुचंग ॥ ७
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( ४४ )
सोम बदन मूरति जलो, श्री शीतल जिन राय । सुयश लियो डागे जलो, महिमा अधिक कहाय ॥ छ मुलनायक सुहावनो, श्री चिंतामणि पास | धन से सरादिये, खरच्यो द्रव्य उल्लास ॥ ७ जिनवर धाव सुहावना, शोजित नलिनी विमान । दंड कलस ध्वज छह लड़े, जग मग कनक ज्युं वान ॥ १० जैसलमेरु नगर जलो, रावल सवल नरीन्द्र । राज प्रजा सुखिया सदा, दिन २ परमानन्द ॥ ११ सम्वत् सतर तोतरे ( १७०० ) श्रावण मास उल्लास । महिमासमुद्र जिनचंदने, होत्रे लील विलाश ॥ १२
इति श्री महिमासमुद्रजो विरचित चेत्यपरिपाटी स्वयन सम्पूर्ण ।
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उपाध्याय श्री समयसुन्दरजा कृत श्री अष्टापदजी शांतिनाथजी का स्तवन
दाल १ -- मोरा साहिब हो पहनी चाल ] अष्टापद हो उपर लो प्रासादको, वोदे संघवी करावीयो । जिण लीधो हो सषमीनो लाइकी, पुन्य जंडार जरावियो ॥ श्र! मोरा साहिव हो श्री शांति जिनन्दकी, मनहर प्रतिमा सुंदरु । निरषतो हो याये नयणानन्दकी, पंडित पूरण सुरतरु ॥ ०१ देहरे में हो पेसंता वार की, सेर्जेज पाटस्युं देखिये। जमती में हो बहु जिनवर विम्ब की, नयणे देखी थानन्दिये ॥ १०३ सतरे सै हो तीर्थकर देव की, विडं पासे नमुं वारणे। गज उपर हो चढीयो माय नै वाप को, मूरति सेवा कारणे ॥ ४ अति ऊंचो हो सोहै श्रीकार की, दंड कलस ध्वज लह लहे । धन्य जीव्यो हो तेह्नो प्रमाण की, यात्रा करी मन गह गहे ॥ श्र०५ जैसलमेर हो पनेरेसे बत्तीस (१५३६) को, फागुण सुदि तीजे यश लीयो। खरतर गल हो जिन समुअसूरीस की, मूलनायक प्रतिष्ठियो । श्र० ६ हित जाण्यो हो श्री शान्ति जिनन्द की, तूं साहिब डे माइरो। समयसुन्दर हो कहे वेकर जोडि को, हुं सेवक बु ताहरो ॥ थ०७
इति उ० श्रो समयसुन्दरजी कृत 4 श्री अष्टापदजो शांतिनाथजी का स्तवन सापूर्ण । * श्री समयसुन्दरजी के पदों से ज्ञात होता है कि आप विद्वान और करिके अतिरिक राग रागणी और देशी बालों के अच्छे वेत्ता थे । अद्यायधि इनके बनाये हुये सैकड़ों पद तथा रास, सिझाय आदि मिलते हैं। प्रवास है कि "समयसुन्दरजीरा गोतड़ा, भोता, वोटरा" अर्थात् इनके रचे हुये पद इतो मिलते हैं कि उनको संख्या करनी कठोन है ।
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उपाध्याय श्री समयसुन्दरजी विरचित
श्री आदीश्वर स्तवन
[दाल १ -- गलियारे साजन मिल्यानी चाल ] प्रथम तीर्थंकर प्रणमिये, हुंवारी लाल, आदिनाथ अरिहन्त रे । हूं गणधर वसही गुण निलो, हुंछ, नत्र जंजन जगवंत ॥ हुँ० प्र० १
दाग २ - अलवेलानी चाल ] सच्चू गणधर शुनमतिरे, ला०, जयवंत जत्रिज जास। मन मान्यारे मिलि प्रासाद मंडावियो रे, ला०, बानो मन उदास ॥ म प्र० ५
[ढाल ३ --- ओलगड़ो नो चाल] ध्रमसी जिनदत्त देवसी, जीमसी मन उबाहो । सुत चारे सच्चूतणा व्ये, लक्ष्मी नो लाहोजी ॥ प्र०३
[ढाल ४ - योगनारो वाल ] फागुण सुदी पांचम दिने रे, पनरे से बतीस ( १५३६ )। जिन चन्द सूरि प्रतिष्ठाया रे, जग नायक जगदीश ॥ प्र०४
ढाल ५ -- देशी वाल] जरत बाहुबल अति जला, जिनजी काउसग्गीया बिलुपास । मरुदेवी माता गज चढ़ी, सिखर मंडप सुप्रकाश ॥ प्र० ५
___ [ ढाल ६ – वेगवती ते बामणो सहनो चाल ] बिहुं नमति विम्बावली, कारणी अति श्रीकारो रे। समोसरण सोहमणी, विहरमान विस्तारो रे ॥ प्र०६
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[ढाल ७ -- जलालियानो वाल] जिम २ जिन मुख देखिये रे, तिम तिम आनन्द थाय । म्हारा (जनजी पाप पुलाये पाबला रे, जन्म तणा मुख जाय ॥ म्हा० प्र०७
[ ढाल ८ -- वीर यखाणी राणी चेलणा ए चाल ] जिन प्रतिमा जिन खारखी जो, ए कह्यो मुक्ति उपाय । नयखें मूरत निरखताजी, समकित निर्मल थाय ॥ प्र०७
[ढाल १ – कर्म परीक्षा करण कुवर चल्यो ए चाल ] थाः कुमार तणी परें जी, सज्यं नव गणधार । प्रतिमा प्रतिबुध्या थकी रे, पाम्या नवनो पार ॥ प्र० ॥
[दाल १० --- वरणाली वामुडा रण व एहनो ए चाल ] नाजिराय कुल सिर तिलौ, मरूदेवी मात महागे रे । लंबन घृषन सोहामणौ युगवा धर्म निवारोरे ॥ प्र० १०
- [ढाल ११ --- कर जोड़ी आगल रही नी चाल ] आज सफल दिन माग, नेट्या श्री जंगवंतरे । पाप सहु पराजव गया, हिवड़ो अति हरखंतो रे ॥ प्र० ११
ढाल १२ -- राग धन्याश्री ] श्ण परि बिनब्यो जैसलमेर मकार । गणदर वसही मुख मंडण जिन सुख कार ॥ संवत सोलहसै एक असी (१६०१ ) नन्न मास । कहै समय सुन्दर कर जोड़ी ए अरदास ॥ प्र० १२
इति उ० श्री समयसुन्दर जी कृत श्री आदोश्वर स्तवन * सम्पूर्ण । * यह स्तवन परिशिष्ट छपते समय मुझे बोकानेर निवासी श्रीमान भंवरलालजी नाहटा की कृपासे मिला है। यदि जैसलमेर जानेके पहिले यह सव स्तवन मुझे प्राप्त हुए होते तो लेखों के संग्रह में विशेष सहायता मिलती। "आनन्द काव्य महोदधि भाग ७ के पृ० २४ में कविवर के सं० १६८१ में जैसलमेर के निवास का उल्लेख है। उसी समय आपने यह सब स्तवनों की रचना की थी।
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श्री जिनवान सूरि कृत लोद्रवपुर स्तवन
[दाल - रसीयानो धन धन धुंनो पाटण खोपबौ, जुनौ तोरथ जयकार । सोनागो पंचानुत्तर नमुनो प्रगटियो, मानव लोक मकार ॥ सो धन० १ चैत्य विराजे च्यार चिहुं दिसे, विचमें मूल विहार । सोग समवसरण रचना तिहां, सोजती तिल का तोरण वार ॥ सो धन ५ मूलनायक प्रतिमा होइ मनहरू, श्री चिन्तामणि पास । सोग मस्तक सहस फणावलि मंडित, फल इस तेज प्रकाश ॥ सो धन०३ जेदवो अनुपम नाम चिंतामणी, अतिशय तेम उवार । सोग ध्यावै सैवै ते पामै सही, वंबित फल विस्तार ॥ सो० धन ४ यादव वंश विजूषण जिहां थया, सगर जिसा नरनाह । सो जगणीसमें पाटे तेहनें जयो, सकजो श्रीमल साह ॥ सो० धन ५ सलहीजै तेहने सुत थाहरु, नपशाली बड़ जाग । सो जिन ए जीर्णोद्धार करावीयौ, जन जग लीध सोनाग ॥ सो धन० ६ नगरां सिरहर नगर सोहामणौ, जयवंतो जी जेशाण । सो धन धन जयवंतो श्रीसंघ जिहां, जैन धरम विधि जाण ॥ सो० धन इण तीरथनी जगति किजे करे, सारे दिन र सेव । सो त्यांसुं सुप्रसन शासन देवता, सुप्रसन शासन देव ॥ सो० धन छ जेहवा समेतशिखर श्रष्टापद, विमलावल गिरनार । सो तण गिणती में ए {पण तेहवो, सहु तोरथ सिणगार ॥ सो धन०ए
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लोद्रवा - श्री पार्श्वनाथ मंदिर के पश्चात् भाग का दृश्य
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SHRI PARSHWANATH TEMPLE (BACK VIEW)-LODRAVA
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परत संसारी जे जे प्राणीया, जबथित पाकी रि जास । सो तेहिज ए तोरथ जेटन तणो, आणे अंग उल्लास ॥ सो० धन० १० पूरव संचित पुण्य तणे उदै, अम्हे पिण दरशन आज । सो पार्यो तेह सुहायौ चित्त में, जिम चातक धन आज ॥ सो धन ११ सुप्रसन आम्ह सु थाज्यौ साहिवा, करिज्यौ नित जयकार । सो आम्हर्नु सगली बाते आपरौ, अविहन एक आधार ॥ सोप धन १५
इम नगर जैसलमेरु परिसर, तीर्थ लोकपुर वरौ । जिहां पास चिन्तामणि सुहकर, जिनवर सिरतिलौ ॥ संवत अवारै सतर (२०१५) मगसिर, बहुल पञ्चमि ने दिने । जिनशान सूरि जिणंद नेट्या, हरष धरि बहु शुज मनें ॥ धन १३
इति श्री जिनलाभ सूरि विरचित श्री लोद्रवपुर पार्श्वजिन स्तवन संपूर्ण ।
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जैसलमेर - श्री पार्श्वनाथ मंदिर के तोरण का दृश्य ।
TORAN CARVINGS SHRI PARSHWANATH TEMPLE - JAISALMER.
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JAIN INSCRIPTIONS.
जैन लेख संग्रह।
तीसरा खंड।
किले पर। श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर ।
प्रशस्ति नं १
(2112] * (१) ॥ ॐ ॥ नमः श्रीपार्श्वनाथाय सर्वकल्याणकारिणे । अहते जितरागाय सर्वज्ञाय
महात्मने ॥ १ ॥ विज्ञानदूतेन निवेदिताया मुक्त्यंगनाया विरहादिवान । रात्रिंदिवं
यो विगत प्रमी ___ * यह मंदिर किले पर के सब मंदिरों में प्रधान है। इस को श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर भी कहते हैं । इस के दक्षिण द्वार के बाई तरफ दीवार पर काले पत्थर में खुदा हुभा २२ पंक्तियों में यह लेख है । इसकी २ फुट ६॥ इञ्च लम्बाई और १ फुट ३॥ चौड़ाई है और इसके अक्षर सुन्दर ॥ श्च से कुछ बड़े ग्बुदे हुए हैं। अधिक ऊंचाई पर लगे रहने के कारण इसकी
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[२] (२) खो विघ्नापनोदं स तनोतु पार्श्वः ॥ २॥ समस्ति शस्तं परमर्द्धिपानं परं पुरं
जेसलमेरुनाम । यदाह सर्वस्वमिव क्षमायाः कुलांगनाया श्व सौवकांतं ॥ ३॥
तत्राभूवन्नखमा यमुकुल (३) कमलोलासमात्तमचंमा दोर्दमाकांतचंमाहितनरपतयः पुष्कला भूमिगलाः । येषा
मद्यापि सोकैः श्रुतितिपुटकैः पीयते श्लोकयूषस्तत्पूर्ण विश्वनाम कुतुकमिद
यतो जा (४) यते नैव रिक्तं ॥ ४ ॥ तत्र क्रमादजवग्रसमग्रतेजाः श्रीक्षेत्रसिंहनरराज इति
प्रतीतः। चिच्छेद शात्रवनृपानसिनांजसा यो वजेण शैलनिवहानिव बज्रपाणिः॥५॥
तस्य प्रशस्यो तन (५) यावनृतां श्रीमूलदेवोथ च रत्नसिंहः । न्यायेन चुंक्तः स्म तथा जुवं यो यथा
पुरा लक्ष्मणरामदेवौ ॥६॥ श्रीरत्नसिंहस्य महोधवस्य बभूव पुत्रो घटसिंहनामा। यः (६) सिंहवन् म्लेलगजान् विदार्य बलादलाहप्रदरीमरिन्यः ॥ ७ ॥ सुनंदनत्वाविबुधैर्नु
तत्वाद् गोरक्षणाच श्रीदसमाश्रितत्वात श्रीमूक्षराजाहातपालसूनुर्यथार्थ । (७) नामाजान देवराजः ॥ ७ ॥ तदंगजो नियचित्तवृत्तिः परैरधृष्यप्रगुणानुवृत्तिः ।
पराक्रमकांतपरहिः श्रीकहरिः केशरिणा समोभूत् ॥ ए ॥ तस्यास्ति सूनुः () स्वगुणैरनूनः श्री लक्ष्मणाख्यः क्षितिपालमुख्यः । राज्ञोपि एस्यातिविसारितेजश्चित्रं
न्यका विबिंबलदमीं ॥ १० ॥ शत्रुघ्नबंधुरिह सन्नपि लक्ष्मणोपिरा
नकल ठीक तरह नहीं ली जा सकी। इस लेख का कुछ अंश एस. आर० भण्डार कर साहब के सन् १९०४-५ और १९०५-६ के "Report of a Second Tour in search of Sanskrit Manuscripts made in Rajputana and Central India"के पृ० १३.४६ में छपा था तत्पश्चात् Gaekwad's Oriental Series No 21 'जेसलमीरभाण्डागारीय ग्रन्थानां सूची" पुस्तक के परिशिष्ट में यह संपूर्ण लेख प्रकाशित हुआ है। इसके सिवाय और किसो स्थान में यह छपा हुआ मेरे देखने में नहीं आया है।
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(ए) मानिधान जिनन्नक्तिपरायणोपि । एतत् कुतूहलमहो मनसाप्यसौ यन्नापीडय
निविडपुण्यजनान् कदाचित् ॥ ११॥ तथा सुमित्रामितनंददायो न दोनबंधे निरतोव (१०) तीर्णः । पुनः प्रजा पालयितुं किसायं श्री लक्ष्मणो लक्ष्मणदेव एव ॥ १२॥ यगुणेंगु.
फिता नाति नवीनेयं यशः पटी। व्याप्नोत्येकापि यहिश्व न मालिन्यं कदाप्य (११) धात् ॥ १३ ॥ गांजीर्यवत्त्वात्परमोदकत्वाइधार यः सागरचं लक्ष्मी । युक्तं स जे
तदिदं कृतज्ञः सूरीश्वरान् सागरचंझपादान् ॥१४॥ प्रासाददेवालयधर्मशालामग
धमेयं सुकृतास्प (११) दं तु। साई कुलेनोद्धृतमार्यसोर्यत्रावनिं शासति भूमिपाले ॥ १५ ॥ इतश्च ।
चांजे कुले यतीशः श्रीमजिनदत्तसूरिराराध्यः । तस्यान्वयश्रृंगारः समजनि जिन
कुशल गुरुसा (१३) २: ॥ १६ जिनपद्मसूरिजिना ब्धिसूरिजिनासूरयो जाताः । समुद्वैयरुरिह गछे
जिनोदया मोदयागुरवः ॥ १७ ॥ तदासनांचोरुहराजहंसः श्रीसाधुलोकाय शिरोक्तंसः। तम
(४)
(१४) स्तमस्तोमनिरासहंसो बभूव सूरिजिनराजराजः ॥ १७ ॥ क्रूरमहरनाक्रांतः सदा
(१) G.0. S. का पाठ वं" है परन्तु लेख में “य" स्पष्ट है। (२) , , , “सूरिः" , , , से “सारः" मालूम होता है। (३) , , , “दै " , , , में “ द्वै” स्पष्ट है।
, के , में "सुनः" लिखकर (?) है. लेख से “गुरवः” स्पष्ट है । , में “स्य" है परन्तु , , “ ग्र” स्पष्ट है ।
, , "तमस्तमतो” स्पष्ट है।
...
देकर “धा"
हे
,
"तमस्त
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[४]
11
सर्वकलान्वितः। नवीनरजनीनाथो नालीकस्य प्रकाशकः ॥ १५॥ तस्य श्रीजिनराज
सूरिसुगुरी (१५) रादेशतः सर्वतो राज्ये व दमणभूपतर्विजयिनि प्राप्तप्रतिष्टोदये । अई धर्मधुरंधु(ध)रः
खरतर: श्री संघजहारकः प्रासादं जिनपुंगवस्य विशदं प्राब्धवान् श्रीपदं ॥२०॥ (१६) नवेषुवा मिनेथ वर्षे निदेशतः श्रीजिनराजसूरेः । अस्थापयन् गर्भगृहेत्र विवं
मुनीश्वराः सागरचं साराः ॥ २१॥ ये चक्रुर्मुनिपा विहारममलं श्री पूर्वदेशे पुरा ये (१७) गळं च समुन्नतो खरतरं संप्रापयन् सर्वतः। मिथ्यावादवदावदछिपकुले यैः सिंह
लीलायितं येषां चंद्रकलाकक्षान् गुणगणान् स्तोतुं नमः कोशवा ॥ २२ ॥ तेषां
श्री जिनव (१७) ईनानिधगणाधीशां समादेशतः श्रीसंघो गुरुनक्तियुक्तिनलिनीलीलनगरालोपमः ।
संपूरणी कृतवानमुं खरतरप्रासादचूडामर्षि विठोपांबुधियामिनीपति (१५) मिते संवत्सरे विक्रमात् ॥२३॥ अंकतोपि संवत् १४७३ । वएण्यं तन्नगरं जिनेशनवनं
यत्रेदमालोक्यते स श्लाघ्यः कृतिनां महीपतिरिदं राज्ये य। (२०) दीयजनि । येनेदं निरमायि सौवविज्ञवैर्धन्यः स संघः हितो तच्या धन्यतरास्तु ते
सुकृतिन पश्यंति येदः सदा ॥ १४ ॥ श्रीलक्ष्मण विहारोयमि(२१) ति ख्यातो जिनालयः। श्रीनंदीवर्द्धमानश्च वास्तुविद्यानुसारतः ॥ २५ ॥ यावद्
गगनश्रृंगारो सूर्यचंझौ विराजतः । तावदापूज्यमानोयं प्रासादो नं
(७) G. U.S. का पाठ "..." है यहां “ रजनी ” स्पष्ट है। (८) , , , " बलोन्म' है परन्नु लेख में " वदाव" स्पष्ट है ।
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जैसलमेर-श्री पार्श्वनाथ मंदिर प्रशस्ति (नं० २११२)
वसासनकनकोतपर
होताना पालाचार मिहना
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inconti nारिण लितरायसायदा मन विज्ञान तेननिवेदिताट्यास तगनाटावरहार्दिवाबारात्रिदिवटोलिन Halaवानादं मनो आ मनिमपि उसलमेसनामा यहादसर्ववमिवकमाया लागनायाश्वासावकीन। इन वारवनवडायजा । कमालाधारमा सादादडाकांनादतनरणत: 'कत्लामियालयमयाजाला के प्रतिननिजटाकावीदतेहावापानरस विश्वहांईजनका निस्यता थानानेवार मदनयताप्रीमिंदरराक तीन विधानपनानांतमा विवाहाणारेलन्निवहानवक्तपालिसाएतराशास्यानमा जानता वीरया याननःस्मानीयाराहामारामावाश्रीरत्नगिंदस्यमही सदस्यबजावासिहनामा (संवा नविदा ननादलादपदरामार-J51 मदन वाहिवतवालागारणावादसमाप्रितवानाबालराजकितिदातरक्षा नामदालतगातानिया वितररथयामिपराकममातपराहासभाकदासाकशासनाचतारताविसमा मयानल मारय:
दिवालमरण:11पिटाखा तिदिसारिनन्दिकाधनावबिंबलदमाश उपवं हरिहसन्नापल हमणो विरा। neuniaकिरायाणगाएततकनलमाहासनापानापाडयनिविडाननानकदाचितारातधाय(मवामितनंददाटीनदीनबंध निरनोवा नीजन: ५
तोलाटाश्रीलो लाजरा दियवा श्याकतानातिनुदानिय्याम्पटाया नात्यापियननमालर काटाणा HARISHAN पसारमा कासारवलायुक्सानादिवतःमरीशनरसापारवंदपादानापासासदवालयधर्मशाशमानयंगतासा। EATमालारशिवशासतिसिंपालापानीम्बकालपती 58Eमहादसातारारामतयाचयागारसमजानाजनराज गुरुमा २०१६पारिस्निनलिन दया जाता हेयरपिहाला यागदपा गुरतमा दासनात्तारूहराउाई सन्त्रासाचाला गाय शागवतंसातम्य
यो सेवा शिशिनरी गारयादरनाकीत:सदासर्वकलानितीनीनायोनालीसाधकाशक: सामाजिनराज गुरा daside सलतनधातातिशया प्रहदशोपमहासाचनहारनपासादाडसाक्षापारवानी IRON कोदाधमितानगावातावावगगनशमन भारासागरसंगारामाटोranicारयममा
मजातोखरतरापाण्यानसवतमानियादा दवदाचदहाजालाय निदलालायित कलाकलानापणागानराधक्षम:कारवाशनम्। INEETAHधीशासमा मधेशमा यातनालनातनमरलोपासपीलवान वरवरचारादत्रामा
विमरविमा॥28 तामिव४३aan घरवनयादमाला कातसमाधानातिना मदीपकस्सिा। दाटोमाटोनेतिर सोचनामेति रामदतोगगनातहातातनापनपतयेदसटामिश्रालापनदारोया।
या याश्रीजीत मानवाविलासारतपयवदगानमारासूरडा वागतालावदीरनामनो टामाटात दा २९
नमानसाला वारसामुदागिना जसागररालिया
SHRI PARSHWANATH TEMPLE PRASHASTI-JAISALMER.
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[५] (२५) दताच्चिरं ॥ २६ ॥ प्रशस्तिर्विहिता चेयं कीर्तिराजेन साधुना । धन्नाकेन समुत्कीरणी सूत्रधारेण सा मुदा ॥ २७ ॥ शोधिता वा जयसागरगणिना श्री।
মহানি নয় ?
[2113 ] * (१) ॥ जगदमितफल वितरण विधिना निरवधिगुणेन यशसा च । यः पूरितविश्वासः
स कोपि जगवा (२) न् जिनो जयति ॥ १॥ मनोनोष्टार्थसिद्ध्यर्य कृतुनम्यनमस्कृतिः । प्रशस्तिमथ
वक्ष्येहं प्रतिष्टाविमहः (३) कृतां ॥२॥ ककेशवंश विशदप्रशंसे रंकान्वये अष्ठिकुवप्रदीपौ । श्रीजाषदेवः
पुनरासदेवस्तजाप (४) देवोद्भवांवटोजून् ॥ ३ ॥ विश्वत्रयी विश्रुननामधेयस्तदंगजो धांधलनामधेयः ।
ततोपि च हो तनयात्र
(५) भृताः(ता) गजूस्त धान्यः किल जीमसिंहः ॥ ४॥ सुतौ गजूनौ गणदेवमोषदेवौ च
तत्र प्रथमस्य जाताः।
* यह लेख मंदिर के दक्षिण दरवाजे की दाहिने तरफ दीवार पर काले पत्थर में खुदा हुआ २४ पंक्तियों का है। इस पत्थर के नीचे तरफ के दक्षिण कोण का कुछ अंश टूटा हुआ है। पंक्तियां सब ठीक है इससे यह प्रतीत होता है कि लेख खोदने के पूर्व से
से खंडित था। इसकी लम्बाई १ फुट ४॥ च और चौड़ाई १ फुट १॥ ञ्च है। इसकी नकल भी दीवार पर ऊंचे में लगे रहने के कारण ठीक से नही ली जा सकी । इस लेख का कुछ अंश भी भण्डारकर साहेब के सन् १९०४-५ और १९०६ के रिपोर्ट के पृ. ६३. 08८ में प्रथम छपा था। G.O.S. No. 21 के परिशिष्ट नं.२ में सम्पूर्ण रूप से छपा है, परन्तु वहां "शांतिजिनालयस्य प्रशस्तिः" ऐसा लेख का परिचय है इसका कारण समझ में नहीं आया।
(१) G. (0. S. का पाठ " कृत " अशुद्ध है, लेख में " कृतु " पढा जाता है। ( लेख में अभूताः" स्पष्ट है परन्तु यह अशुद्ध है यहां "अभूतां" होना चाहिये। G.O.S.में भी “भभता" छपा है।
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[६]
(६) मेघस्तथा जेसलमोद णौ च वेमूरितीमे तनया नयाढ्यः ॥ ५ ॥ तन्मध्ये जेशनस्यासन् विशिष्टाः
( ७ ) सूनवस्त्रयः । श्रांवः प्राच्चोपरो जींदो मूलराजस्तृतीयकः ॥ ६ ॥ तत्र श्री जिनोदयसूरिप्रवरादेशसखिलेश के
(८) शत्रः संवत् १४२५ वर्षे श्रीदेवराजपुरकृतसविस्तरतीर्थयात्रोत्सवस्तथा संवत् १४२७ वर्षे श्री जिनोदयसूरि
( ९ ) संसूत्रितप्रतिष्ठोत्सवांजोदोद कपल्लवितकमनीयको चिल्लोवलयः सं० २४३६ वर्षे श्री जिनराजसू रिसड
(१०) पदेशमकरंदमापीय संजातसंघपतिपदवीको राजहंस इव सं० बाक: श्री शत्रुजयोउजयंताचलादि
(११) तीर्थमानसरो यात्रां चक्रवान् । तथा मोहणस्य पुनः पुत्राः कीटः पासदत्तकः । देल्हो धन्नश्च चत्वारश्च
( ३ )
(१२) तुर्वर्गाश्वांगिनः ॥ १ ॥ शिवराजो मही राजो जातावाम्रसुतावुजौ मूखराजजवश्चास्ति
सखराजनामकः
(१३) ॥ २ ॥ तथा तत्र श्री जिनराजसू रिसदाज्ञासरसी इंसेन संवत् १४४७५ वर्षे श्री शत्रुजय गिरिनारतीर्थयात्रा निरमा
(१४) पि सं० की इट्टेनेति । धामा कान्दा जगन्मला इत्येते की टांगजाः । वीरदत्तश्च विमदतकर्मामकाः ॥ १ ॥ वा
(३) G.O.S. का पाठ " वाय " हैं, यह अशुद्ध मालूम पड़ता है। लेख से " वान " पढा जाता है।
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जैसलमेर-श्री पार्श्वनाथ मन्दिर प्रशस्ति (नं० २११३) सिमसालदेवजानिखायोनयशासानायवरित साशामाता
डायनीहसिद्धाही कीतनमानमति प्रशासनाचा नियामि। - 12.5 कातिमाशशर कान्दारा जिला शाजालदेवः एनासदेवरा .... तानवका बाटातायावत् नारयन्त्र गजाधला मधटपतातान्तिाहातनवाज लानधनकि तमसिंह माला डोगगदवाम बदवातच माता
घसधाकर माहाणारितारतनयायादातमाहाशालासनावाशा नया राधरे) दे मनाउन एकदमोदर सहित दशमला Hasiaantवश्रीराम
यावादावसातारधानिसलाय तिको वातावक (वित कारनायकी वलीलया #07 श्रीशिवराज रिजा Janासकार गजाननाकामजद समोवाक श्रीयुत यादलाबदलाया
नसावादालना (जारमा दिवारा Mansinesina डोटीरानतातायागुतावालाल तर शास्त्रमा सामना .!! BAAREER-1. सदासरसाईकलमा ताराकानारायानरमा साहायतिमाकानदाताटारातामाटारमाBिRIटना HERतपास पाराजासारदको
लापालनशानावर Halgate:ला सिदामा सामान जया महामायान।
|| नासा सस्य रूहानिकानारामदास महाराजवरदाता २. वालदिल कनकला, हिमाली म
त दardaयाऊ , पालाश्री राजपदारणा जनन जस। परिसीद सरित्रीय राजा सामना जिनान स्यबादेवप्रधाहकार " रामसरारातीदलिदासजन हो जातान्त्रधीशलमान का
यEिORAREBEदिन तिणीनिवहरतिप्रायकावयास '
सिम्बायामिवामाटावयासहायता ८NAREमुकतामित्रधारहामासातपरताना
SHRI PARSHWANATH TEMPLE PRASHASTI-JAISALMER.
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[ ] (१५) कुरसिंह इत्येते पासदत्तसुता मताः ॥२॥ देव्हजो साधुजीवंदकुंपो धन्नांगजाः
पुनः । जगपालस्तथा नाथूरमर (१६) श्चेति विश्रुता: ॥३॥ तथा ॥ जीमसिंहस्य पुत्रो जूझाषणस्तस्य मम्मणः । जयसिंहो
नरसिंहो माम्मणी श्रेष्ठिना (१७) वुनौ ॥ ४ ॥ तत्र स्तो जयसिंहस्य रूपाघिदहाजिधौ सुतौ । नारसिंही पुनोंजो
हरिराजश्च राजतः ॥ ५ ॥ इत्थं पुरु (१७) षरत्नौघाकुलं श्रेष्टिकुलं कक्षो। जयत्यधर्मविछेदि निकलंकमदः कलं ॥ १६ ॥
स्तश्च । श्रोवीरतीर्थे श्रीसु (१९) धर्मस्वामिवंशे युगप्रधानश्रीजिनदत्तसूर्यन्वये । श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्म
सूरि श्रीजिनलब्धिसू (२०) र श्रीजिनचं सूरिश्रीजिनोदयसूरयो जाता; । तत्पट्टे श्रीजिनराजसूरय उदेषुः ।
श्रथ तत्पट्टे श्रीखरत (२१) रगणशृंगारसाराः कृत श्रीपूर्वदेशविहाराः श्रीजिनवर्द्धनसूरयो जयंति । अथ
श्रीजेशलमेरो श्रीलक्ष्म (२५) णराजराज्ये विजयिनि सं० १४७३ वर्षे चैत्रसुदि १५ दिने तैः श्रीजिनवर्द्धनसूरिनिः
प्रागुक्तान्वयास्ते (२३) श्रेष्ठिधनाजयसिंहनरसिंहधामा: समुदायकारितप्रासादप्रतिष्ठया सह जिनबिंब
प्रतिष्ठा कारित (२४) त इन् । वा० जयसागरगणिविरचिता प्रशस्तिरियमुत्कीर्णा सूत्रधारहापाकनेति
नंदनात ॥
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प्रशस्ति नं०३
[2114 ] * (१) ॥ ॐ ॥ स्वस्ति श्रीफकेशवंशे गणधर गो (२) त्रे सा रत्नसिंहः स्थापितं खस्ति श्रीसुपार्श्व (३) नाथ श्रीजिणराजपाटे श्रीजिनजासूरिनिः सर्व (४) लक्षणसंयुक्त राज्यं भवति । ककेशवंशे गणधर गो (५) त्रे साह रत्नशह सुत गजशंह तत्पुत्र साप नाथू लार्या (६) धनी तयोः सुन सा पासड ज्रातृ सचा सुश्रावकेद्भवतिः (७) सा पासम नार्या प्रेमलदे सुतु(त) जीवंद साह सचा नार्या सिं (७) गारदे नंदन धर्मसिंह जिणदत्त देवसिंह जीमसिंह सपरिवा (ए) रेण । संवत् १४५३ वर्षे फागुण वदि प्रतिपदादिने श्रीसुग (१०) श्वनाथ बिंध सुपरिकर विधाय(:) प्रतिष्ठितं पूजनीयार्थे श्री (११) संघसहितेन राज श्रीवयरशंहराज्य स्थापित (१५) श्रीसंघसमुदायः पूज्यमानं चिरं (१३) नंदय तिः
* यह लेख मंदिर के रंगमंडप में दाहिने ओर दीवार पर लगा हुआ है। भण्डारकर साहेब के १९०४-५ और १०६ रिपोर्ट के प्र. ५,०५० में इसका कुछ अंश छपा है। यह १३ पंक्तियों का लेख बड़े अक्षण में चतुष्कोण पाषाण पर खुदा हुआ है और इसकी खड़ाई, चौड़ाई १ फुट ५ च है। इस लेख में कई जगहःअशुद्धियां हैं, वे प्लेट से स्पष्ट मालूम होगा। जैसे:- पंक्ति ४ में राज्यं” के स्थान में राय," ६ में “ सुत "
. सत" , ७ में “ भ्रातृ " , , , “भात्रि," में "सुपरिकर"
" सुपरिगिर,” में "सहितेन"
" सहतेन,” में “समुदायः"
“ समदायः" इत्यादि अशुद्धियां है।
龙海市市
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[C]
प्रशस्ति नं० ४
[ 2115] *
( १ ) ॥ ॐ ॥ ई ॥ परमैश्वर्यधुर्याय नमः श्रीश्रार्श्वसेनये । पार्श्व ( २ ) नाथाईते नक्त्या जगदानंददायिने ॥ १ ॥ अमितशतदाता ( ३ ) विश्वविख्याततेजाः परम निरुपम श्रोप्रीणितास्त्येक लोकः । स ( ४ ) कल कुशलवली मातनोतु प्रजानां चरणनंत सुरेंद्र: श्री सुपार्श्वो
( ५ ) जिनेंद्रः ॥ २ ॥ समुप (1) स्य जिनवरेंद्र निजगुरु विशदप्रसादतः सम्य ( ६ ) कू । शस्तप्रशस्तिमेनां लिखामि संक्षेपतः सारां ॥ ३ श्रीमजेसलमेरु
पट्टक नं० १
[2118]+
राजनश्रीवयरसिंहपुत्रराजञ्जश्रीचा चिगदेव विजयिराज्ये विक्रमात् सं० १५१० वर्षे वैशा सुदि १० दिने नाइटासमरापुत्र सं० सजाकेन सं० सासदे सेढा राणा जावड जावक सं० सोई। शंभूवीजूप्रमुखपुत्रपुत्रिकादिपरिवारसदितेन श्रीमंडोवरनगरवास्तव्येन जासूदबदेपुण्यार्थं श्रीनंदीश्वरपष्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगछे श्री जिनचंद्रसूरिनिः ॥
यह लेख मंदिर के रंगमंडप में दक्षिण तरफ दीवार पर लगा हुआ है। इसकी ११॥ फुट लम्बाई और ५|| फुट चौड़ाई हैं । G. O. S. No 17.
मंदिर के सभामंडप के दाहिने तरफ श्रीनंदीश्वर द्वीपादि के भाव सहित पीले पाषाण में चार विशाल पट्टक खुदे रक्खे हुए । इन सभों की कारीगरी देखने योग्य हैं। लेखों का कुछ अंश उपरि भाग में और कुछ अंश नीचे खुदे हुए हैं। ये चारों शिलापट्ट प्रायः एकही साइज़ के हैं और खड़ाई, चौड़ाई लगभग ६ फुट, शा फुट की है। इनमें से G.O.S. में तीन का ही लेख छपा है. जिसमें स्थान का निर्देश नहीं है और पाठ भी छूटे हुये हैं। यहां चारों लेख सम्पूर्ण पाठ के साथ प्रकाशित किये गये हैं।
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[१०]
पट्टक ०२
[2117] * संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठव दि ४ दिने श्रीचाचिगदेवविजयराज्ये गणधरगोत्रे जगस) पुत्रनाथू तत्पुत्र सं० सच्चराजनार्या संघविणि सिंगारदे पुत्र सं० धरमा सं० जिनदत्त देवसो नीमसी पौत्र लापा रिणम देवा अमरा ज़जणा सूग सामलादिपरिवारयुतेन श्रीशत्रुजयगिरनारावतार पट्टिका खनार्या सिंगारदे पुण्यार्थ श्रीशत्रुजय गिरनारावतार पट्टी कारिता । प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगचे श्रीजिन जप्रसूरिपट्टाखंकार श्रीजिनचं सूरिनिः । आखात्रीजदिने लिखितं ॥
पट्टक नं०३
[2118 ] संवत् १५१७ वर्षे वैशाष सुदि १७ दिने गणधरगोत्रे साप नाथूपुत्र सं० पासम नार्या प्रेमलदे पुत्र संग जीवंदसुश्रावकेण पुत्रसधारणधोराप्रमुखपरिवारसहितेन निजमात्राप्रेमलदे पुण्यार्थ नंदीश्वरपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगचे श्रीजिन नमसूरिपट्टे श्रीजिनचंच. सूरिजिः । वा कमलगजगणिवराणां शिष्य उत्तमलानगणिः प्रणमति ॥
पट्टक नं०४
[2119] संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठ मासे प्रथम चतुर्थे दिने श्रीचाचिगदेवविजयराज्ये गणधरगोत्रे सा गजसी पुत्र नाथू तत्पुत्र संघवी सत्ता तत्पुत्र सं० धना जिणदत्त नेतसी जीमसी सुश्रावकैः गोरी हांसू लाखा देवारिणम अमरा सजणा सूरा सामलादि प्रमुख परिवार
**G.O. S. No 18. + G.0. S. Vo 15.
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[११] सहितः । ना सज्जा चार्या सूहवदे पुत्रो धारखदे पुण्यार्थ तत्पुत्री रनूकरजी पुण्यार्थं च श्रीनंदीश्वरपट्टिका कारिता ॥ जिनवराणां शिला श्रीखरतरगळे प्रतिष्ठितर ॥ श्रीजिननासूरिपट्टे श्री जिन चंडसूरिनिः॥
मूर्तियों पर।
[2120 ] * ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीपत्तननगर वास्तव्य स० धणपति सुश्रावकेन श्रीसुमतिनाबिवं का प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगचे श्रीजिनजप्रसूरिपट्टे श्री जिनचंड सूरिनिः ॥ श्रीजेसलमेरमहाऽर्गे श्रीराउल श्रीदेवकर्ण विजयराज्ये । श्रीपार्श्वनाथ विंग चैत्यालये स्थापितः । श्रीउद्योतनसूरि श्रीवर्धमानसूरि श्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीअक्षयदेवसूरि श्रीजिनववनसूरि श्रोजिनदत्तसूरि श्रीजिनचंप्रसूरि श्रीजिनपत्तिमुरि श्रोजिनेश्वरसूरि श्रीजिनप्रबोधसूरि श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्मसूरि श्रीजिनलब्धिसूरि श्रीजिनचंप्रसूरि श्रीजनोदयसूरि श्रीजिनराजसूरि श्रीजिनचंप्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंप्रसूरिनिः श्रीजिनसमुप्रसूरिजिः सहितः प्रतिष्ठितं ॥
___ [2121] - ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ......... पति सुश्रावकेण जा चंपाई पु० गुणराज . . . द... श्रीसुमतिनाथविंबं कारित प्रतिष्ठितं ...... ब धर्मा पु० मं० शिवा ला वरणु पु० मंण् धणा . . . महिपाल प्रमुखपरिवारयुतेन श्रीसुमति ... श्रीजिनसमुन सूरिनिः॥
* रंगमंडप के दाहिने तरफ सर्वधातु की सपरिकर मूर्ति के परिकर पर यह लेख खुदा हुआ है।
सर्वधातु की सपरिकर मूर्ति पर यह लेख है। असुविधायें रहने के कारण सम्पूर्ण लेख पढा नहीं जा सका।
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[१५]
[2122 ] * संवत् १५१७ वर्षे वैशाप मासे धवनपदे १० दिने श्रीजिनचं सूरि ... अत्र प्रतिष्ठित ...... संखवान सा० लाखा पुत्र कुंना नायर्या ......
[2123 ] * संवत् १५१७ पौष वदि ५ दिने ऊकेशवंशे संखवान गोत्रे साए केव्हा नार्यया कबूणदे श्राविकया पुत्रगैत्रासकमानादिपरिवारसहितया श्रीशांतिनाथबिंब का रितं प्रति श्री जिनचंगसूरिनिः श्री कीर्तिरत्नसूरि प्रमुखपरिवारसहिनैः ॥
2124]
संवत् ११४७ वर्षे । श्रोझपनर्विवं ॥ श्रीखरतरगच्छे श्रोजिनशेखर सूरिभिः कारापितं ॥
[2125] संवत् १५१७ वर्षे अहमदावादे कालूपुरवासी प्राग्वाटज्ञाती श्रीसहजा जाए वाजू पुत्र धरणाकेन जाप कुंवरी ज्येष्ठ नात जावड़नाकरप्रमुखकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्रोशीतलनाथ बिंब का प्रण तपा श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे गबनायक श्रीलक्ष्मी सागरसूरिभिः ॥ श्रीः ॥
[2126] सं० १५३६ फागुण सुण ३ ऊकेशवंशे परिक्षगांत्रे सा मूला जा अमरी पुत्र सा0 रालाकेण ना हरखू पुत्र मेवादसेलादिपरिवारयुनेन श्रीसुविधिनाविव का प्रण श्रीखरतरगच्छे श्रीजिननप्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिनिः ॥
2127 ] • ... श्रीसौभाग्यसुंदरसूरिजिः
नसभा मंडप के बांई तरफ पीले पाषाण की कई बड़ी मुत्तियां रक्खी हई है। उनमें से दो मतियों की चरण प्रौको पर के ये लेख है। अक्षर घिस जाने से किसी २ जगह पता नहीं जा सका।
+ यह लेख सफण मूर्ति पर है।
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[१३]
[2428]. सं० १५२० वर्षे ज्येष्ठ सुदि जोमे श्रावक मूजी श्राविका सपूरी श्रा फालू श्रा रतनाई पुण्याय श्रीवासपूज्य चतुर्मुखबिंब कारितं प्रा श्रीखरतरगछे श्रीजिनहर्षसूरिनिः॥
पञ्चतार्थियों पर।
[2120 ] सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ शनो श्रीमान झा मंत्री वानर नार्या बोकमदे सुत मेला ना० लामो सुण धनगल राजा बडुवादेवसी जा सहितैः पितापितामह निमित्तं श्रीश्रादिनाथ पंचतीर्थी बिंब का श्रीपूर्णिमापद श्रीवीरप्रसूरिपट्टे श्रीकमलप्रनसूरीणा. मुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥ १ मोरवाड़ा वास्तव्य ॥
[2130] ॥ संवत् १५१० वर्षे श्राषाढ सुदि ३ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० । वल जा० राजू सु० खाडणेन सुत माडणयुतेन पितृव्यहादाश्रेयसे श्रीश्रेयांसबिवं पूर्णिमा० श्रीगुणधीरसूरिणामुपदेशेन कारित प्रतिष्ठितं विधिना माऊली वास्तव्य ।
[2131] ॥ ॐ ॥ संवत् १५१७ वर्षे माइ सुण १० ऊकेशवंशे गोलवचा गोत्रे सा समरा पुत्र महिराज नार्या रोहणी तत्पुत्र साइ सधारण श्रीअनिनंदन विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगचे श्रीजिनजप्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंप्रसूरिभिः प्रतिष्ठिनं ॥
[24821 संवत् १५३३ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १५ वउहरा गोत्रे साग तीमाषेमी पुत्रेण सा मूसाकेन * यह लेख चौमुखजी पर खुदा हुआ है ।
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[२४]
पुत्र समरा वरिसिंहादिपरिवारपरिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्री सुविधिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री जिनचंद्रसूरिभिः ॥
[2133]
॥ संवत् १५३४ वर्षे चैत्रवदि १० खौ ॥ श्रीएसवंशे ॥ सा० ठाकुर जा० रानादे पुत्र सा० सहिदे सुश्रावके नार्या सूरमदे पुत्र लाखण जातृ सा० जेसा वीकम सहितेन स्वश्रेयोर्थ श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णिमापके श्रीसूरिजिः ॥
[2134]
सं० १८६० वर्षे वैशाखसुदि ३ बुधवारे ऊ० ज्ञातीय सा० ईना जार्या रूपणी पू० धूना ना० धांदे पितृमातृश्रेयोर्थं शीतलनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं जापडीया । ज० श्रीगुणचंद्रसूरिभिः ॥
[2135]
संवत् १६१५ वर्षे ज्येष्ठसुदि १० दिने ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे म० गुणराज सत्पुत्र सo चापसी तत्पुत्र स० सुरताप वर्द्धमान स० थिरसी जार्यो कउडिमदेव्या श्रीशांतिनाथ बिंबं कारापितं थापितं . श्री खरतरगच्छे श्री जिनजप्रसूरिजिः ॥
****
चौवीसी पर |
[2136]
|| सं० १५१२ वर्षे ज्येष्ठवद ए गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० मूंगर जा० वीकलदे सु० बाघा जा० बलदे सु० लूखाकेन जा० चमकू सु० मूला जोजा बोला वयरसीयुतेन स्वश्श्रेयोर्थं श्री सुविधिनाथा दिजीवित स्वामिचतुर्विंशतिपट्टः श्री पूर्णिमापके श्रीगुणसमुद्रसूरीषामुपदेशेन कारितः प्रतिष्ठितश्व विधिना श्रीर्जूयात् सीपीजग्रामे ॥
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[१५] ह्रींकार यंत्र पर।
[2137] ॥ संवत् १५५० वर्षे धपलक वास्तव्य जावसी रमादे सुत कान्हा नार्या नाई पुत्रो... श्रीसिद्धचक्रपट्टः कारितः॥
प्राचार्य के मूर्ति पर ।
[2138] ॐ संवत् १४९३ वर्षे फाल्गुण वदि १ दिने श्रीसागरचंदाचार्यमूर्ति प्रतिधितं श्रीखरतरगछे श्रीजिन नमसूरिनिः ऊकेशवंशे धु... गोत्रे सा० ...... पुत्र सा राखी ॥
श्रीसंभवनाथजी का मंदिर।
प्रशस्ति।
[2180]. (१) ॥ ॐ ॥ अह ॥ स्वस्ति श्रीस्तंजनपार्श्वनाथपादकल्पद्रुमेन्यः ॥ प्रत्यक्षः कल्पवृक्ष
स्त्रिजगदधिपतिः पार्श्वनाथो जिनेंः श्रीसंघ स्येप्सितानि प्रथयतु स सदा शकचक्रा (२) जिवंद्यः । प्रोत्सर्पति प्रकामातिशयकिशलया मंगलश्रीफलाढ्याः स्फूर्ज:आर्थ
वयो यदनुपमतमध्यानशीष श्रयंत्यः ॥ १॥ श्रीशांतितीर्थकरवासरेश्वरः सुप्रा
___ * यह मंदिर की प्रशस्ति पीले पाषाण में ख़ुदी हुई है। यह भी गद्यपद्यमय ३५ पंक्तियों का एक बड़ा लेख है। इसकी लम्बाई २ फुट ४॥ श्च और चौड़ाई १ फुट ७ इञ्च है। यह भण्डारकर साहेब के १६०४-५ और १९०५-६ के रिपोर्ट के पृ०६६ नं० ५२ में प्रथम प्रकाशित हुआ था, परन्तु सम्पूर्ण नहीं था। G.0. S. No. 21 के परिशिष्ठ नं०३ में सम्पूर्ण छपा है।
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[१६] ( ३) तमाविष्कुरुतां स्फुरयुतिः । यस्य प्रतापादशिवपादये पुण्यप्रकाशः प्रससार
सर्वतः ॥ ५॥ कल्याणकाद्रुममेरुभुमिः संपवतोहासनबारिवाहः । प्रजावरत्ना
वखिरोहणाडिः श्री (४) संनवेशः शिवतातिरस्तु ॥ ३॥ प्रासादत्रितये नत्वा मूलनाथत्रयं मुदा । रत्नत्रय
मिवाध्यदं प्रशस्ति रचयाम्यहं ॥ ४ ॥ यत्प्राकारवरं विलोक्य बलिनो म्लेलावनीपा
अपि प्रोद्यत्सैन्यसहस्रऽहमिदं गेहं हि (५) गोस्वामिनः । नग्नोपायवला वदंत इति ते मुंचंति मानं निजं तच् श्रोजेसलमेरु
नाम नगरं जीयाज्जनत्रायकं ॥ ५ ॥ वंशो यथनायकर्नरवरैः श्रोनेमिकृष्णादि
निर्जन्मन प्रवरावदातनिकरैरत्य (६) द्रुतैराख्यतः । तेनासौ खनते गुणं त्रिजुवनं सन्नादतो रंजयेत् कोवा ह्युत्तममानितो
न जवति नाघापदं सर्वतः॥६॥ श्रोनेमिनारायणरोहिणेया मुःखत्रयात् त्रातुमिव
त्रिलोकं । यत्रोदिताः श्रीपु (७) रुषोत्तमास्ते स वएर्णनीयो यदुराजवंशः ॥ ७ ॥ तस्मिन् श्रीयादववंशे । राउलश्री.
जइतसिंहमूलराजरत्नसिंहराजमश्रीदाराजलश्रीघटसिंहमूखराज पुत्रदेवराजनामा
नो राजानोभूवन् । त (७) तोमुत्केसरी राजा केसरीव पराक्रमी । वैरिवारणसंहारं यश्चकारासिदंष्ट्रया ॥१॥
श्रीमत्केसरिराजसूनुरजवच् श्रीलक्ष्मणो भूपतिर्विवाणखदतोषणशरच् श्रीलक्ष्म
एणस्तेजसा । दाना (ए) शाय करग्रहाच्च सकलं लोकं व्यधावक्ष्मणं यो बिबे मृगलक्ष्मणोपि यशसा सौवा
निधानं न्यधात् ॥ २॥ तदीयसिंहासनपूर्वशैक्षप्राप्तोदयोत्युग्रतरप्रतापः । श्रीवरसिंह क्षितिपाल जानुर्वि
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जैसलमेर-श्री संभवनाथ मंदिर प्रशस्ति (नं० २१३६ )
......
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Msonacilianाना कलापला हातपाबाधाम तापमाना। पतिनातिएकामा निवारक वाला गानापानाहासाखाहर पहचानका दावा करदार युवाला तमा तसार हातियमापता दिया हो पाएमसरोवलम म.सप तामनका बापता शारदा दिवा जनाकापसाततरनतामूलजावरचढावनवासवाचलंडर निरस्टामाटाकारहnिamasthe GER6EJटरो। सामनमानानटारलारदसतातलमातिमान जडान अन्नमन कमाननवादा पाटaaniजावान ना (ChSन ५६775211 इतिच्या नातला (मालल तयब उसवननादातारजाटाकान हस्तम मानितातरवास
न नजान हपापचया लिाका16.78911 समाससवरनायोडायनामोदवानलह मूल्जर नहाल2ी(Rail.३ घाल राड 27001
नरवानासमरामाविरवाल महारयकराचावासाहिवाकालवशीलाल URERA.काबलाAIER-15 काकायदानमललालयितनलागेया नावालाममा नवा नवामनदीबरवाला SALETTERuriमाला। लालतावक्तामा निस्चलबार जनाले स्विकारलाशीवदाजपाका काटा एक्लरCHOTICEMARinc: HTRA 731602/1RI जलजारला. विरलल पक्वालापातर हिलानावर मनात नमaaiikaDMLEEPIPI दिवसानहायकराणकारीलावतानमाविकादिवताका नगर पERधानि0 1725a 125Eall RAमरसास्वादनऊबालसालमा जादास रामलालदरार:0S.राम नाम AREE RS ला REP शामलाजलाध्यापकल्याणवालावाजिमोरया पायावसातवाहनारय
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RamainECREMELEME हाजामहारासालानालामा नाकारावाराचन्वयसाधकानातगाव
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ial मसावटामासानातिरकारकावासादावधियानातिकापासून याहाRAGEER RUPEERIOSITE245लियन HERE-मटारवासास-यापनावादालाककानारामादानला दिलेतन्यूBhimaniमनापासातयन
NABHIडाविडतानापतिताणतानियोगमविद्यादादकारविमा रामाश्रीटसा तिवाचक-महORATEE मायतनामा परमवतातिनवादलायातिरवण्याBEETROORahawn.inरयायाम . Hoan IE विरहामा ३२वनका कारनामा कपमा वालवावधान मारता में रयामा शिक्षा मन
महामुनिःशुली ।
mmm.imase.....
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[ 29 ]
(१०) जासते वैरितमो निरस्यन् ॥ ३ ॥ इतश्च ॥ चंद्रकुले श्रीखरतर विधिपक्षे ॥ श्रीवर्धमानानिवसूरिराजो जाताः क्रमादर्बुदपर्वताग्रे | मंत्री श्वरश्री विमलानिधानः प्राचीकरचनेन चैत्यं ॥ १ ॥ अ
(११) लिपटकपुरे राजपर्षद विवादे । प्राप्तं खरतर बिरुदं जिनेश्वरास्सूरयो जङ्गुः ॥ २ ॥ ततः क्रमेण श्रीजिनचंद्रसूरिनवांगी वृत्तिकारश्री स्तंजन पार्श्वनाथ प्रकटीकार श्री अजय
(१२) देवसूरिश्री पिंड विशुलादिप्रकरणकार श्री जिन व जसू रिश्री अंबिका देवता प्रकाशितयुगप्रधानपद श्री जिनदत्तसूरि श्री जिन चंद्रसूरि श्री जिनपतिसूरि श्री जिनेश्वरसूरि श्री जिनप्रबो
(१३) धसूरि श्री जिनचंद्रसूरि श्री जिनकुशलसूरि श्री जिनपद्मसूरि श्री जिनक्ष ब्धिसूरि श्री जिनचंद्रसूरयः । श्रीजिनशासनं प्रजासितवंतः ॥ ततः । श्रीगबलीधरणे जिनोदयाः प्रकाशित
(१४) प्राइसना जिनोदयाः । कल्याणवादशवाजिनोदयाः पाथोजसा श्रजवञ् जिनोदयाः ॥ १ ॥ जिनराजसूरिराजः कलहंसा इत्र बजुर्जिनमताजे | सन्मानसहित
गतयः सदाम
(१५) रालो श्रिता विमलाः ॥ २ ॥ तत्पट्टे || ये सिद्धांत विचारसारचतुरा यानाश्रयन् पंकिताः सत्यं शीलगुणेन येरनुकृतः श्रीस्थूलनको मुनिः । येज्यः शं वितनोति शासनसुरं । श्रीसंघ तिर्य
(१६) तो येषां सार्वजनीनमाप्तवचनं येष्वद्भुतं सौजगं ॥ १ ॥ श्री उज्जयंताचा चित्रकूटमांगव्यपूर्जा जर मुख्यकेषु । स्थानेषु येषामुपदेशवाक्यान्निर्मापिताः श्राद्धवरैर्विहाराः ॥ २ ॥ पहिल
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[5]
( १७ ) पाटकपुरप्रमुख स्थानेषु यैरकार्यंत । श्रीज्ञानरत्नकोशा विधिपाऊसंघेन ॥ ३ ॥ प्रादनपुर तल पाटका दिनगरेषु । यैर्जिन बरविवानां विधिप्रतिष्ठाः क्रियते म ॥ ४ ॥ यैर्नि
(१०) बुलाने कांत जयपताकादिका महाग्रंथाः । पाठ्यंते च विशेषावश्यकमुख्या अवि मुनीनां ॥ ५ ॥ कर्मप्रकृतिप्रमुख प्रचार्य विचारसारकथनेन । परपक्षमुनीनामपि चमत्कृतिः क्रिय
(१९) ते ॥ ६ ॥ उत्रधरवै रिसिंग्यंबकदासतिन्द्रमहिपालैः । येषां चरणद्वंद्वं प्रणम्यते जक्तिपूरे ॥ ७ ॥ शमदमसंयम निषयः सिद्धांतसमुद्रपारश्वानः । श्रीजिनजड. यतींद्रा विजयंते ते
(२०) गणाधीशाः ॥ ८ ॥ इति श्रीगुरुवर्णनाष्टकं ॥ इतश्च || श्रीमानू केशवंशीयं वर्षतां सरलाशयः । नरमुक्ताफलं यत्र जायते जनमंडनं ॥ १ ॥ तस्मिञ् श्रीककेशवंशे गोत्रे | साहे
( 22 ) मराजः तदंगजः सा० पूनाकस्तदात्मजः सा० दोताख्यस्तत्पुत्राः सा० सोहड कर्मण गणदेव मदिपा सा० पांचा सा० ठाकुरसिंहनामानः षट् । तत्र सा० पांचा जार्या रूपादे तत्पुत्रा इमे य
( १२ ) था | शिवराजमहीराज लोलालाषणनामकाः । चत्वारः श्रीचतुर्वर्गसाधकाः संति पांचयः ॥ १ ॥ एतेषां जगिनी श्राविका गेली । तत्र सा० शिवा जार्या सूवदे तयोः पुत्रः थिराख्यः पुत्री हीराई
(२३) महिरा जार्या महघलदे तयोरंगजाः सादा सहसा साजणांख्याः सुते नारंगदेवल्दीनान्यौ । लोलाजार्या लीलादे पुत्रौ सदसपाल मेलाको पुत्रो लषाई । भाषण जार्या समादे तदात्मजाः
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. [१] (१४) शिखरा समरा मालाख्याः ॥ इत्यादिपरिवारण संयुताः श्रावका इमे । कुर्वति धर्म
कार्याणि शासनोन्नतिदेतवे ॥१॥ विक्रमवर्षचतुर्दशसप्ताशोतो विनिर्ममे यात्रा।
शत्रुजयरैवतगिरितीर्थे संघा (२५) (न्वतैरेनिः॥२॥ पंचम्युद्यापनं चके वत्सरे नवतो पुनः। चतुर्जिबांधवैरेनिश्चतुर्धा
धर्मकारकैः ॥३॥ अथ संवत् १४९४ वर्षे श्रीवेरिसिंहराजलराज्ये श्रोजिनलप्रसूरीणा
मुपदेशेन नवीनः प्रासा (२६) दः कारितः । ततः संवत् १४ए वर्षे कुंकुमपत्रिका निः सर्वदेशवास्तव्यपरः सहस्र .. श्रावकानामंत्र्य प्रतिष्ठामहोत्सवः सा शिवायैः कारितः । तत्र च महसि श्रोजिन
जससूरिजिः श्रीसंभवनाथ प्रमु (१) स्वबिबानि ३०० प्रतिष्टितानि प्रासादश्च ध्वजशेखरः प्रतिष्ठितः । तत्र श्रीसंभवनाथो
मूलनायकत्वेन स्थापितः। तत्र चावसरे सा० शिवामहिरालोलालाषणश्राद्धेः दिन ७
साधर्मिकवात्सख्यं कृतं राउ (२०) ल श्रीवैरसिंहेन साकं श्रीसंघो विविधवस्त्रैः परिधापितः। राउलश्रीवैरसिंहेनापि
चत्वारस्ते बांधवाः स्वबांधववस्त्रालंकारादिदानेन सम्मानिता इति ॥ श्रथ जिन
पतिपार्थो राजतां यस्त्र (ए) सादात् सकससुकृतकार्य सिध्यति ध्यायकानां । जिनकुशलमुनीजास्ते जयंतु
त्रिलोक्यां खरतर विधिपके तन्वते ये सुखानि ॥ १॥ सरस्यामिव रोदस्यां पुष्पदंती
विराजतः । इंसवन्नं (३०) दतात्तावत् प्रासादः संनवेशितुः ॥ ३॥ प्रासादकारकाणां प्रासादविधिप्रतिष्ठिति
कराणां । सूरीणां श्राक्षानां दिने दिने वळतां संपत् ॥ ३॥ सेवायै त्रिजगजनाञ् जिनपतेर्यच्गमूले स्थिता
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[२०] (३१) दंडव्याजभृतस्त्रयः सुपुरुषा धामंत्रयंति ध्रुवं । प्रेखोलध्वजपाणिनी रणरणद्वंटानि
नादेन तत् प्रासादत्रितयं त्रिलोक तिलकं वंदे मुदाई त्रिधा ॥ ४ ॥ प्रासादत्रितयं
नंद्यात् त्रिलोकीतल (३५) मंडनं । त्रिविधेन त्रिधा शुद्ध्या वंदितं त्रिजगज्जनैः ॥ ५ सौभाग्यनाम्यनिधयो
मम विद्यादायकाः कविगजेंडाः । श्रीजयसागरगुरखो विजयते वाचकगरिष्ठ:॥६॥
तशिष्यो वा (३३) चनाचार्यों वर्तते सोमकुंजरः। प्रशस्तिर्विहिता तेन वाचनीया विचक्षणैः ॥ ७॥
श्रीः। श्रीः॥श्रीः॥ लिखित्ता च पं0 जानुप्रजगणिना ॥ सर्वसंख्यायां कवित्वानि ३३॥
शुनं नवतु संघस्य (३४) ॥ ॥ जिनसनगणिश्चात्र चैत्ये कार्षीद बहूयमं । सूत्रभृशिवदेवेन प्रशस्तिरुद
कारि च ॥ १॥ प्रासादे क्रियमाणेथ बहुविघ्नोपशांतये । विज्ञानं रचयामास
जिनसेनो (३५) महामुनिः ॥ २॥ शुनं ।
पट्टिका पर।
[2140] * संवत् १५१७ वर्षे वैशायसुदि १० दिने राउलश्रीवयरसिंहपुत्रराजलश्रीवाचिगदेव विजय. राज्ये चोपडा गोत्रे सा सिवराजमहिराजखोलाबांधव संग साषणसुश्रावकेण संथिग सं० सहसा संप सहजपाल सा सिषरा सा समरामालासहणा•रापात्रश्रीकरण नदयकरणप्रमुख
* यह पट्टिका पीले पाषाण पर खुदी हुई है। इसकी लम्बाई अन्दाज़ ५॥ फुट और चौड़ाई ४॥ फुट है और इन सब पट्टिकाओं पर प्रायः एकही तरह को कारीगरी है।
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[२१]
परिवारसहितेन श्री सितुंजय गिरनारावतारपट्टिका समरा जाय सहजलदे श्राविका पुण्यार्थ कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगछे श्री जिनजसूरिपडालंकार श्रीश्री जिनचंद्रसूरिजिः । श्री वाचनाचार्य कमलराजगणयः प्रत्यहं प्रथमंति ॥ व ॥ श्री ॥ शुनं जयतु ॥ १ ॥
[ 2141 ] +
॥ संवत् १८१७ वर्षे वैशाषसुदि १० दिने संखवालगोत्रे सा० पेथापुत्र सा० श्रासराजश्रावण पुत्र पेता पौत्र वीदामराजप्रमुख परिवारसहितेन निज जार्या गेली पुण्यार्थं वा० कमलराजगणी श्वसयां समुपदेशेन श्री शत्रुंजय गिरनारावतारपट्टिका कारिता || श्रीखरतरग श्री जिनजप्रसूरिपडाकार श्री जिनचंद्रसूरिजिः । उत्तमलाजगणिः प्रणमति सादरं ॥
[2142]*
॥ ॐ ॥ संवत् १४९५७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे चोपडा गोत्रे वो० साव सिवराजम हिराज खोलालापण भावकैः पुत्र घिरा सहसा सहजपाल साजण शिखरा समरा मूला माला प्रमुखपरिवारसहितैः श्रीनंदीश्वरपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे श्री जिनजसू रिजिः ॥
[2143] *
॥ ॐ ॥ संवत् १४९७ वर्षे श्रीककेशवंशे चोपड़ा गोत्रे सा० दीता तत्पुत्र सा० पांचा तदीय पुत्र || चो० सिवराज महिराज लोलालापण भावकैः पुत्र घिरा सहसा सहजपाल सिखस प्रमुख | परिवारसहितैः श्रीविंशति विहरणमाणपट्टिकापुरयार्थं कारिता । प्रतिष्ठिता मार्गशीर्ष बदि ३ दिने बुधे श्रीखरतरगडे श्री जिनराजसूरिपट्टे श्री जिनजऊसूरिगणिः ।
+ पीले पाषाण पर खुदी हुई यह पट्टिका भी लम्बी ६ फुट और चौड़ी लगभग ३|| फुट है।
ये दोनों पट्टिकायें पीले पासप्प पर खुदी हुई हैं। इनकी लम्बाई चौड़ाई ३ फुट है।
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[22] पपट्टिका पर |
[ 2144]*
( सिरोभाग में )
(१) • रत्नमूर्ति गषि ॥ वा० जितसेन गणि । पं० दर्षनप्रगणि। मेरुसुंदर गणि
..
जयाकरगणि जीवदेत्र ग
( ॐ कार्त्तिक) वदि
( २ नाणं सं ) जवस्स
(१२ चवणं ने) मिस्स
( १२ जम्मा १) उमस्स
(१२ दिखा ) प मस्स
******
( मध्यभाग में )
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उ १
उ १
उ
( ॐ का ) र्त्तिक सुदि ।
( ३ ना ) णं सुविद्दिस्त उ (१२) नाणं रस्स
उ श्
(ॐ) मार्गशीर्ष वदि ॥
५ जम्मों सुविदिस्स उ १
६ दिखा सुविदिस्स उ २
१० दिक्खा वद्धमाणस्स उ २
ॐ मार्गशीर्ष सुदि ॥
१० जम्मो रस्स
११ दिक्खा रस्स
११ नाणं नमिस्स
उ १
उ
उ
* यह तपपट्टिका पीले पाषाण में खुदी हुई है। इसके शिरोभाग के दोनों तरफ का कुछ २ अंश टूट गया है। इसकी लम्बाई २ फुट १० इञ्च और चौड़ाई १ फुट १०॥ च है। इसमें बांये तरफ प्रथम २४ तीर्थंकरों के व्यवन, जन्म, दोक्षा और ज्ञान चार कल्याणक की तिथियां कार्त्तिक वदि से आश्विन सुदि तक महीने के हिसाब से खुदी हुई हैं। इसके बाद तीर्थकरों की मोक्ष कल्याणक तिथियां भी महीनेवार हैं। दाहिने तरफ प्रथम ६ तपों के कोठे बने हुये हैं फिर इनके नियमादि खुदे हुये हैं। इसके नीचे वज्रमध्य और यवमध्य तवों के नकरी हैं और एक तरफ श्रीमहावीर तप का कोठा खुदा हुआ है और इन सभों के नीचे दो अंशों में लेख हैं। जो अंश टूट गये हैं, उनकी पूर्ति ( ) में दी गई हैं। आबू तीर्थ में भो ऐसा पंच कल्याणकों का महीनेवार लेख है। लेख के पोष सुदि में '११ नाणं अभिनंदणस्स' और '१४ नाणं भजियस्स' खुदे हैं। ये भ्रम हैं। अंक '११' के बदले '१४' और १४' के स्थान पर '११' होना चाहिये ।
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जैसलमेर श्री संभवनाथ मंदिर तपपटिका (नं० २१४४)
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[३] ११ जम्मो मन्वित उ ११ दिक्खा मजिस्स ११ नाणं महिस्स उ३ १४ जम्मो संजक्स्स उ १५ दिक्खा संजवस्स उश
ॐ माघ वदि . ६ चवणं पलमप्पहस्स उ१ १५ जम्मो सीयलस्स उ १ १२ दिक्खा सीयलस्स उ १५ नाणं सिशंजवस्स उ २
ॐ पोष वदि । १० जम्मो पासनाहस्स. उ. ११ दिक्खा पासस्स ३ १५ जम्मो चंदप्पहस्स उ१ १३ दिक्खा चंदप्पहस्स उ १४ नाणं सीयलस्सल
ॐ माघ सुदि ॥ ५ नाणं वासुपुज्जस्स उ १ २ जम्मो अजिनंदणस्स उ । ३ जम्मो धम्मस्स ३ जम्मो विमलस्स उ १ ५ दिक्खा विमलस्स उ - जम्मो अजियस्स उ १ ए दिक्खा अजियस्स १२ दिक्खा अभिनंदणस्त उ १ १३ दिक्खा धम्मनाहस्स उ २
ॐ पोष सुदि ॥ ६ नाणं विमखनाहस्स उ । ए नाणं संतिनाहस्स उ ५ ११(१४) नाणं अजिनंदणस्स उ ५ १४(११) नाणं अजियस्स उ ५ १५.नाणं धम्मनाइस्स
ॐ फागुण वदि ॥ ६ नाणं सुपासस्स ७ नाणं चंदप्पहस्स
उ.
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[स] ए चवणं सुनिहिस्स उ१ ॐ चैत्र सुदि ॥ ११ नाणं उसनस्स ३ ३ नाणं कुंथस्स १२ जम्मो सिझजवस्स उ. ११ नाणं सुमयस्स १७ नाणं सुबयस्स उ२ १३ जम्मो वीरस्स १३ दिक्खा सिझनवस्स उ १५ नाणं पनमस्स १४ जम्मो वासुपुज्जस्स उ १ १५ दिक्खा वासुपुज्जस्स न ? ॐ वैशाख वदि ॥
५ दिक्खा कुंथुस्स उ ॐ फागुण सुदि।
६ चवणं सीयलस्स उ१ ५ चवणं अरहस्स उ १ १३ जम्मो अणतस्स उ १ ४ चवणं मावस उ१ १४ दिक्खा तस्स उ ७ चवणं संजवस्स १ १४ नाणं श्रपंतस्स उ १२ दिक्खा सुझयस्स २ १४ जम्मो कुंथुनाहस्स उ १
ॐ चैत्र वदि॥ ४ चवणं पासस्स उ? ४ नाणं पासस्स न ३ ५ चवणं चंदप्पहस्स १
जम्मो रिसहस्स न १ विक्खा रिसहस्स ३२
ॐ वैशाख सुदि। ५ चवणं अभिनंदणस्स उ १
चवणं धम्मनाहस्स उ १ 5 जम्मो सुमश्स्स उ १ ए दिक्खा सुमइस्स उ १ .१० नाणं वीरस्स उR
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१२ चवणं विमलस्स १३ चवणं जियस्स
[१५] १ उ१
ॐ श्रावण वदि॥
चवणं अणंतस्स न ? 6 जम्मो नमिस्स उ१ ए चवणं कुंथुस्स १
ॐ ज्येष्ठ वदि ॥ ६ चवणं सिशंजवस्स उ १ ७ जम्मो मुणिसुबय उ१ १३ जम्मो संतिस्स १४ दिका संतिस्स
9
ॐ श्रावण सुदि॥ ३ चवणं सुमश्स्स उ १ ५ जम्मो नमिस्स १ ६ दिका नेमिस्स उ १५ चवणं मुणिसुवयस्स १
D
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ॐ ज्येष्ठ सुदि। ए चवणं वासुपुज्जस्स उ १ ११ जम्मो सुपासस्स उप १ १३ दिका सुणसस्त उप २
ॐ जावा वदि। चवणं संतिस्स चवणं सुपासस्स
उ १
ॐवाषाढ़ वदि॥ ४ चवषं उसजनाहस्स उ ? ए दिका नेमिनाहस्स २
ॐासोज पदि। १३ गजापहार वीरस्स ..१ १५ नाणं नेमिस्स ३३ ॐ थासो सुदि ॥ १५ ववष नमिस्स . उ १
ॐ श्राषाढ सुदि ॥ ६ चवणं वीरस्स
उ१
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[६] इति यस जम्म दीक्षा शानकल्याणकानि समाप्तानि ।
ॐ कार्तिक वदि ॥ १५ मुको वीरस्स
उ ५
ॐ चैत्र सुदि ॥ ५ मुरको अजियस्स उ ३० ५ मुको संजवस्स उ ३० ५ मुको अणंतस्स उ ३० ए मुको सुमस्स उ ३०
ॐ मागसिर वदि ॥ ११ मुको पठमस्स उ ३०
ॐ मागसिर सुदि। १० मुरको अरस्स
उ ३०
ॐ वैशाख वदि ॥ ? मुको कुंथुस्स न ३० २ मुरको सीयलस्स उ ३० १० मुखो नमिस्स ल ३०
ॐ माह बदि॥ १३ मुको उसजस्स उ ६
ॐ वैशाख सुदि॥ ७ मुको अजिनंदनस्स ३०
ॐ फागुण वदि ॥ ७ मुको सुपासस्स ल ३०
ॐ फागुण सुदि ॥ १५ मुस्को महिस्स
ॐ ज्येष्ठ वदि ॥ ७ मुरको मुणिसुवयस्त ३० १३ मुको संतिस्स उप ३०
उ ३०
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[२७]
३ मुक्खो सेयंसस्स उ ३०
ॐ ज्येष्ठ सुदि॥ ५ मुरको धम्मस्स
न ३०
ॐ श्रावण सुदि। ७ मुको पासस्स उ ३०
ॐ श्राषाढ वदि ॥ ७ मुको विमलस्स उ ३०
ॐ नाइवा वदि ॥ ७ मुको चंदप्पहस्स उ ३
ॐ आषाढ़ सुदि ॥ ७ मुको नेमिस्स १४ मुको वासपुज्जस्त
उ ३०
३०
ॐ लाइवा सुदि॥ ए मुको सुविहस्स उ ३० इति मोदकल्याणक
ॐ श्रावण वदि॥
१० ११ . ५ ६
७
८ ।
सर्वतो नसतपः।
महान तपः। दिन १९६ पारणा ४६॥ श्रीः॥
दिन ३९२ पारणा ४६॥3॥
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[२]
नदिन ५ शरणा ५
जसोत्तर दिन
३०५पारणा २५
श्रीधर्म चतुर्थ तपः।
श्रीकर्म चतुर्थ तपः॥
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[ २ ] (१) ज्ञानतपः । उपवास ३ शक्तिं विना एकांतर ज्ञानपूजा ( २ ) ॥ दर्शनतपः । उ० ३ ॥ चारित्र तपः । उ० ३ पूर्वरीत्या ( ३ ) । सौजाग्य कल्पवृक्क एकांतरित उ० १५ एका० १५ चै ( ४ ) त्रमासे परं उद्यापने कल्पवृक्षं वनफलादि दीय०
( २ ) ॥ समवसरण तपः । वर्ष ४ | दिन १६ । १६ उपवास निवी ( ६ ) आंबिल एकासया । पर्युषणा दिने उपवासः ॥ तथा पर (७) म भूषण तपु चामल ३२ पा० ३२ उद्या० देवस्य भूष (८) यानि दीर्यते ॥ धर्मचक्रु व्याचाम्ल २४ उद्या० चक्रं दी० ( ९ ) ॥ धर्मचक्रवाल तपः । अष्टम १ चतुर्थ ३७ पारणे मुनिदा (१०) नं । बत्रीस कल्याण उ तपः । अष्टम २ चतुर्थ ३२ पारण (११) क मुनिदानपूर्वकं च । एतत्तपा इथं दालिनाशकं ।
(१२) सोवृतपु उपवास १७ एका० १८ असोज मा (१३) से ॥ उद्यापने अशोको दीयते ॥ तथा उमालो तपि उपवास १०० सक्ि (१४) विना एकांतरित दिन ३६० ॥ तथा बरसी तपि उप० ३६० सतिं विना ए (१५) कांतरित दिन 920 || तथा पंच मेरु तपः उपवास २५ एकांतरे । तद्या । (१६) पने स्वर्णमय मेरु | पंचवीस जेदः । क्रांतादि ॥ तथा नवकार तपः ( १७ ) उपवास ३० एकांतरे । सक्तिं विना संपदाक्षरे पारणकं ॥ ज्ञानार्थे (१०) स्वर्णाक्षर पट्टिकादि दानं तथा चंदणबालातपः ३ ७० उजमणय स्वर्ण (१९) रूप्यमय सूर्य को माता दीयते ॥ असुत्यष्टमी न था आउने उ० ४ उज्ज्या मोदकं ।
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शुक्लपक्षे यवमध्य
कृष्णपके वनमध्य
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[३१]
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शए बह श्री महावीर तपः ॥ ७ ॥
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[३]
(नीचे भाग में ) (१) ॐ॥श्रीमहावीरतीर्थे श्रीसुधर्मस्वामिसंताने श्रीखरतरगछे श्रीज्योतनसू (१) रि। श्रीवर्द्धमानसूरि । श्रीजिनेश्वरसूरि । श्रीजिनचंप्रसूरि । श्रीअन्नयदेव
सूरि । श्री (३) जिनवखानसूरि । श्रीजिनदत्त सूरि । श्रीजिनचं सूरि । श्रीजिनपति सूरि ।
श्री जिने (४) श्वर सूरि । श्रीजिनप्रयोध सूरि । श्रीजिनचं सूरि । श्रीजिनकुशल सूरि ।
श्रीजिनपद्म (५) सूरि । श्रीजिनसबधि सूरि । श्रीजिनचं सूरि । श्रीजिनोदय सूरि । श्रीजिन
राज सूरि सुगु (६) रुपट्टालंकार श्रीजिनन सूरि विजयराज्ये श्री जेसलमेरु पुर्गे श्री चाचिगदे (७) वे पृथिवीं शासति सति संवत् १५७५ वर्षे (७) श्री शंखवालगोत्रे सा पेथा पुत्र सा० श्रासराज (ए) नार्यया सा० षेता सा० पाता जनन्या गेली श्रावि (१०) कया वाचनाचार्य रत्नमूर्तिगणि समुपदे (११) शेन वा० जितसनर्माण रम्योद्यमेन श्री त (१५) पः पट्टिका कारिता । लिखिता च पंछ मेरुसुंद (१३) र गणिना ॥ शुञ्जमस्तु ॥ सद्भिर्वाच्यमाना चिरं नंद्यात् (१४) । श्रीकीतिरत्नसूर
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[ ३३ ] मूर्तियों पर |
[ 2145] *
( १ ) ॥ ॐ ॥ संवत् १४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ बुधवारे श्री केशवंशे । (१) ॥ चोपड़ागोत्रे सा० दीतात्मज सा० पांचा तद्भार्या रूपी तत्पुत्र सा० सिवराज
महराजलालाप |
(३) ॥ सुश्रावकैः पुत्र यशसह सासह जपाल सिषराइमुरापरिवारसहितैः कायोत्सर्गस्था ( ४ ) ॥ श्रीपार्श्वनाथप्रतिमा कारिता स्वपुण्यार्थं सा० लोला नार्या खोलादे गुणकादे || प्रतिष्ठिता खर
( ५ ) ॥ तरगढ श्री जिनराजसूरिपट्टे श्री जिन नडसूरिनिः ॥ श्री जेसलमेरुनये ( गरे ) श्री रसिंहराज्ये ॥
[2146] +
( १ ) ॥ ॐ ॥ सं० १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने बुधवारे श्री केशवंशे चोपड़ागोत्रे सादीता
(२) त्मज सा० पांचा तार्या रूपी तत्पुत्रैः सा० सिवराजमदिराजमोलाबापण सुश्रावकैः कः पुत्र घरा
(३) सहसा सहजपाल सिषरासमराइमुरापरिवारसहितैः कायोत्सर्गस्थिता श्रीसुरार्श्व प्रतिमा
* मंदिर के रंगमंडप में पीले पात्राण की बाई तरफ खड़ी सफण कायोत्सर्ग मूर्ति के चरण चौकी पर यह लेख खुदा हुआ है। मूर्ति लगभग ५ फुट ऊँची और १४ फुट चौड़ी है
* मंदिर के रंगमंडप में दाहिने तरफ पीले पाषाण की खड़ी सफण बड़ो कायोत्सर्ग मूर्ति के चरण चौकी पर यह लेख खुदा हुआ है। ऊँचाई चौड़ाई बाई तर्फ को मूर्ति के बराबर है।
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[३४] (४) सुगुणाकारिता श्रीलाषण नार्या क्षषमादे श्राविकया प्रतिष्ठिता श्री जेसलमेरु (५) महादुर्गे श्रीवयरसिंह विजयराज्ये श्रोखरतरगच्छे श्रीनवांगवृत्तिकारश्रीअन्नय (६) देवश्रेयोर्थ प्रकटी कारिता अनयदेवसूरिसंताने 'श्री जिन जयसूरिसुगुरुराज्ये ॥
पंचतीर्थयों पर।
[2147] सं० १२०७ ज्येष्ठ वदि... गुरौ देवंग पद्मी श्राविकाच्या स्वश्रेयसे प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीदेवसूरिनिः॥
2148] ॥ सं० १५० वर्षे मार्गशीर्ष सु० ६ दिने जकेशवंशे साधुशाखायां प० जता नार्या जा. म्हणदे पुत्र सा० सदा श्राद्धेन ना० सहजलदे पुत्रहापायावरयुतेन श्रीसुमतिविबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनजप्रसूरियुगप्रवरागमैः ॥ कल्याणमस्तु
[2149] सं० १५१५ वर्षे माघ सुदि १४ श्रीश्रीमाल ज्ञाग व्या जीखर सुत हीरा नाग श्री हरखू सुत जानाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथबिंचं का पूर्णिमापके श्रीराजनिलकसूरीणा. मुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥
[2150] सं० १५२५ वर्षे पौग सु० सा वणू सु सा पार
[2151] ॥ संवत् १५५१ वर्षे वैशाख वदि ६ शुक्रे । सागवाडावास्तव्य प्राग्वाट झातीय वृद्धशाखायां मंत्र वीसाकेन जा टीबू सुत मं० विरसालोलादेढाचांदाप्रमुखकुटुंबयुतेन स्वश्रे. यसे श्री सुमतिनाबि कारितं श्री आनंदविमल सूरितिः प्रतिष्ठितं ॥
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[३५] चौवीसी पर।
[21521 संवत् १५१३ वर्षे वैशाख वदि प्राग्वाट झातीय व्यव हापा नार्या रूपी सुत राणा केन नार्या राजू सुत पेयादिकुटुंबयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्रीकुंथुनाथादिचतुर्विंशतिपः कारापितं प्रतिष्ठितः तपागच्छेश श्रीसोमसुंदरसूरिशिष्यश्रीरत्नशखरसूरिनिः॥ शुभं भवतु श्री॥
आचार्य की मूर्ति पर।
12158] ॥ संवत् १५३६ वर्षे फाल्गुन सुदि दिने श्रीखरतरगबनायक श्रीजिनराजरिपट्टासंकारहारश्रीजिनजप्रसूरिराजानां प्रतिमा । श्रीसंघेन श्रेयोर्थ कारिता प्रतिष्ठिता श्रीजिनचंअसू रिपट्टे श्रीजिनसमुप्रसूरिनिः ॥ श्रीकमलससहोपाध्यायशिष्यश्रीमुनि उपाध्याय..
श्रीशांतिनाथजी का मंदिर।
प्रशस्ति ।
{2154 ]. ११) ॥ ॐ ॥ स्वस्ति ॥ श्रीपार्श्वनाथस्य जिनेश्वरस्य प्रसादतः संतु समो हितानि ।
श्रीशांतिनाथस्य प
* यह लेख ४५ पंक्तियों का पीले पाषाण में खुदा हुआ है । इसकी लम्बाई २ फुट ४ इञ्च और चौड़ाई ? फुट ४ इञ्च है । इस लेखका कुछ अंश भण्डारकर साहेब के रिपोर्ट १९०४-५ और १९०५-६ के नं०५४ में प्रकाशित हुआ था। यह G. O. S. No. 21 के परिशिष्ट के नं०५ में सम्पूर्ण रूप से आया है। यह मंदिर दो महला पत्थर का बना हुआ है। इसके नीचे तले में श्री अष्ठापदजी
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[३६] (२) दप्रसादा विघ्नानि नश्यंतु नवेच्च शांतिः ॥ १॥ संवत् १५७३ वर्षे मागसिर सुदि (३) ११ दिने श्रीजेसलमेरुमहाउग्र्गे राउल श्रीचाचिगदेवपट्टे राजन श्रीदेवकरण (४) पट्टे महाराजाधिराज राउल श्रीजयतसिंह विजयिराज्ये कुमर श्रीलूणकर्णयुव(५) राज्ये श्रीफकेशवंशे श्रीसंखवालगोजे सं० आंबा पुत्र सं० कोचर हूया। जिण
कोरंटई (६) नगरि अनइ संखवाली गामश् उत्तंगतोरण जैनप्रासाद कराव्या। बाबू जीराउल
श्रोसंघि (७) सुं यात्रा कोधी । जिण आपण उदारगुण आपणा घरनउ सर्व धन लोकनां
देई कोरंट कर्ण (७) नामना लीधा । संग कोचर पुत्र सं० मूत्रा तत्पुत्र संग रउता संग हीरा। सं० रजला
नार्या सं० माणिकदे (ए) पुत्र संग आपम सं० देपमछ । सं० पापमय नार्या कमलादे पुत्र सं० पेथा सं०
जीमा सं० जेठा सं० पेथा (१७) नार्या पूनादे पुत्र सं० आसराज सं० मूंधराज पुत्रिका स्याणी । सं० आसराज
श्रीशत्रुजयमहातीथि (११) श्रीसंघ सहित यात्रा करी आरणा वित्त सफइ कोधा । सं० पासराज नार्या
चोप सं यांचा पुत्री गेली (१५) जिण श्रीशत्रुजयगिरनारबाबूतीर्थ यात्रा कोधी । श्रोशत्रुजयादि तीर्थावत.र
पाटी करावी सतोर
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का और ऊपर के तले में श्री शांतिनाथ जी का मंदिर है। यह प्रशस्ति अष्टापदजी के मंदिर में लगी हुई नहीं है परन्तु श्री शांतिनाथ जी के मंदिर के बाहर में है।
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.FAaihindi
hindition
जैसलमेर-श्री शांतिनाथ मंदिर प्रशस्ति (नं० २१५४ ) ॥६० इति श्रीपाश्र्वनावस्यजिनेश्वरस्याप्रसाट्त सँउसमीहितानाशीनिस म्यार
प्रसादादियानिन श्यउ गनेशीतिःसंवत्या श्वार्षमागसिरसुदि २९दिनेत्रीनेसलमेरुम्हाऽर्थेराउलश्रीवादिगदेवपहराउलश्रीदेवकर्स। पटमदाराजाधिराजराउलश्रीजयतसिंहदिजदिराज्येऊमर पोलगाणयुव । राज्य पीज केशवशश्री सरखवालगोरस याबापत्र सपकाचाहया (नगइकोरटई नगरि मना संरखवालीजामा उतंगतोरगाजनपासादकरागाआवजीराउलइनासक्ष संयावाकाया निश्वापर उदारगुएराश्यापणधरनउसवाललोकनादेईकोरटकम् नागनाला संकावरपवसंमलाताव संपरउलासम्हा रासाउला तार्यासं०माणिकदे पुरसं० श्रापमहासन्देपगलासं आपमहातार्याकमलादेसस०पासनामासंगजेता संवद्या जार्यापनादेस त्रसं० यासराज सं०मधराजधिकास्पा स०आसराजश्वीजयमहाताव श्रीसंघसहितया करीआपणवित सफलदीवा सासराजनार्याचोस पांचापागला जि॥ श्री शउँजय गिरनारवाड़तीर्थयात्राकीधाधीशजयादितीवितारमाटीकरावीासतौर रामपरिकरश्रीनेमिनाथना विदरावीश्रीस्तवनावनददरमदायासमतपल्याणकादि कनपनापाटीसलमयकरावी सासराजनार्या संश्य लामापातासंपता संपराउनयागर नारतात्रिीसंघसहितयात्रा की इमवरसताध्यानाकरतासं०५२७ तेरगायात्राकरीश्रीशज यकपरित परीपालनाची श्रादिनामवतीये करनी पूजाकरताउदपकरीबिलापनवकारगुती वाद। वसंधतीनकिकरा रहतावित सफल जीवातली वोपडा संपाचापत्र (सिवराजसमा राजसंबनालास। घवीलाबाविकामगेली। संलापुत्रसँसिएरासिमरा सन्मालास०महासंसहणा सं० ॐ परवपरिवारसहितको संला सवाल- ITS संम्वेता दिगिली श्रीजेसलमेरुनगरिग कप(रविवामप्र मायरम हातावासादकराया सं०१५३६वर्ष कारादिवदिने राउतमीदवकारी राज्य सम्सदेसना संघमेलीजिन मरिश्रीनिनसमरसरिकन लपतिया कराना पाऊ मारवाशानिनाम मूलना। यक्सपायावीसतावकरलीमने कपातमा तरावीवित इ सनसमार पाउमाहरूमानालासहितसम कतलास लाशासनाने प्रायरेश्रीकल्यासही तनापोधा लिदाया। प्रीजिनसम्हारिकाश्रीशतिसागरसूरित्राचायनीय इसापना करावी मीरापरताविरजकारजगतिकरावाविबमामाच्या संपताना चमिसरसतिपक्ष संवीतासानोमा पत्रिका 134560 नोमानायांसनायक संपूनासम्वादासायी संयमराक्षसावमला रेसं०विमलादे पुत्र सं०महसमन्न सं०कर संवरात्रिकाहरष सलाहससिसमासमल्ल ला सं० । कैरी तोलासंगमवीमाहामकरण कनकादेत्रबादापत्रिकालालासावरणमायोगिता विकावापिदिपरिवारसहिता सं0बाद श्री राजयगिरनाराबतीय कासासम कितना दकरताउ साकरनीलादिपिकावीश्रीनिजईस(रगळ नायकवषयावमझौलव करावयरत वाहीपीवामिनी जमणाकीपांव सोनत्याप्रमुख प्रतेकवर ऊ जमरा र महाकल्पसिद्धांतपसकवण वारवायापावदारलाषनवकारशुलीचारमा जोइ मल्लानालाहि (लकामा संसहसमजत्रा जयतीश्यानाकरीतनादिरापुरवारमगामपाटलपारकरिबीमवल्लीलाहकरीघरमाणा परावाद६धरतश्द सरसरश्तलादा पदमासादविजसूमिका कारजगातनाबारण नाटकी करानी1933 साए जाला१४सहणारेहराजपार कायरामशककरायाकाजसमाया श्रीपानापनाविकराव्यानिजहाविर सं०षेत संसरसतिनामूलकरावी यावर्षमागासरवा
रविवारमहाराजाधिराजराजला जयसिंह तथा 3) मरनील कृतवचनातत्रावामनाना
परविवा-इस०बादसावी ऊतनावउवाया। बारगापरसाणकराया विश्ववता बालिकरावा कोहरश्ककारागागाइसहसाजारात पन्नगलतघणीवारषदरसलवादाणा
कनादीयाजसलमेरूगटनीतिणदिसावाददायादहरानासरानघाघराबेऊ नय सदरलन पादसहसवाचकरा या उपकरावादसमजतारसाहतलपमानार याना JANU01410॥ जनादशादतारावताररहित स्वाश्री TISS
निस्यासमियायपरीक्षा 2॥११ सयपारिवाजानाधकरच तासलाक ससाया तो जिनोदामामता प्रयाटमा पा 2hf.भ.गमा सहसमान सं० २०६२ करा विस्पा प्रत्येषाप्रशनःश्रीवरतरगोश्रीन सिरहाकार श्री सरवनायरा श्रीवतिलकोपाध्यायन लिरिकता दलना 3 बार सुन पासधारापत्ता किनगुदकारवाला कोरात्रातवा
SHRI SHANTINATH TEMPLE PRASHASTI-JAISALMER.
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[३७]
(१३) सपरिकर श्रीनेमिनाथनां बिंब जरावी श्रीसंजवनाथनइ देहर5 मंडाव्या । समस्त
कल्याणकादि
(१४) कतपनी पाटो सैलमय करावी । सं० श्रासराज पुत्र सं षेता सं० पाता । सं० पेतः संवत् १५११ श्री शत्रुंजय गिर
(१५) नास्तीर्थ श्रीसंघ सहित यात्रा कोषो । इम वरसइ २ तीर्थयात्रा करता संवत् १५२४ तेरमी यात्रा करी श्री शत्रुंज
(१६) य करिब घरी गजता श्रीयादिनाथप्रमुखतीर्थकरनी पूजा करता व तप करी विलाप नवकार गुणी चतुि
( १७ ) घसंघनी जक्ति करी पण वित्त सफल कीधा || बल्ली चोपड़ा सं० पांचा पुत्र सं० सिवराज सं० मदिराज सं० खोला सं
(१०) घवीलापण पुत्रिका सं० गेली | सं० बाषण पुत्र सं० सिवरा सं० समरा संत्र माला सं० महण सं० सदा सं० कुं.
(१९) प्रमुख परिवारसहित चो० सं० लाषय संखवाल संग यसराज पुत्र संघ बेता एमिली श्रीजेसलमेरु नगरि ग
( २० ) ङ कारि विजूमिक श्री अष्टापदमहातोर्थप्रासाद कराव्या । सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने राजन श्री देवक राज्ये
(२१) समस्त देसना संघ मेलवी श्री जिनचंद्रसूरि श्री जिनसमुद्रसूरि कन्हनि प्रतिष्ठा करावी श्रीकुंथुनाथ श्रीशांतिनाथ मूलन:
( 22 ) यक पाव्या । चवीस तीर्थंकरनी अनेक प्रतिमा जरावी । संव बेत समस्त मारुयाडि माहि रूपनाया सहित समकित लाडू
10
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[३] (२३) लाह्या । सोनाने थाषरे श्रीकल्प सिद्धांतनां पोथां लिखाव्यां । श्रीजिनसमुख
सूरि कन्हां श्रीशांतिसागरसूरि आचार्यनी प. (५४) द स्थापना करावी । श्रीश्रष्टापदतीर्थ विहु नूमिकाए जगति करावी बिंब मंडा.
व्या । संप घेता नार्या सं० सरसति पुत्र (२५) संग वीदा सं० नोडा पुत्रिका धानू वीजू । सं० बोडा नार्या सं० नायकदे सं०
पूनी । सं० वीदा जार्या सं० अमरादे सं० विमला. (२६) दे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल सं० करणा सं० धरणा । पुत्रिका हरवू साधू
हस्तू । सं० सं० सहसमझ नार्या सं० (३) कुंरी पुत्र जोमा सं० सवारी पुत्र डाहा सं० करणा सं० कनकादे पुत्र पीदा।
पुत्रिका लाला सं० धरणा नार्या धरणिगदे पु(२) त्रिका वादही । इत्यादि परिवार सहित सं० वीद श्रीशत्रुजयगिरनाराबूतीर्थे
यात्रा कीधी । समकितमो. (ए) दक घृत षांड साकरनी साहिणि कीधी श्रीजिनइंससूरिगलनायकनी वर्षग्रंथि
. महोब्व कररी अली घर २ प्रत (३०) लाही । पांच मिनां ऊजमणा कीधा । पांच सोनश्या प्रमुख अनेक वस्तु ऊजम
ण मांडी । श्रीकल्पसिद्धांतपुस्तक घणी. (३१) वार वचाव्या। पांचवार लाष नवकार गुणी चारसा जोडी अलीनी साहिणि
कीधी । सं० सड्सम श्रीशत्रु (३२) जयतीर्थ यात्रा करी जूनगढि राणपुर वीरमगाम पाटण पारकरि पांड अही।
खाहणि करी घरे आव्या
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[३]
(३३) पठाइ सं० वीदइ घर ५ प्रत दख २ सेर छूत लाह्या । अष्टापदप्रासादs चिदु भूमिकाए जगविना बारणा
( ३४ ) नी चउकी करावी । पउडसाए जाली १४ सुया देहरा ऊपरि कांगुरा अष्टापद कराव्या । काउसग्गोथा
(३५) श्री पार्श्वनाथनां बि कराव्या । बिहुं हाथिए सं० घेता सं० सरसतिनो मूर्ति करावी | संवत् १५०१ वर्षे मागसिर व
( ३६ ) दि १० रविवारे महाराजाधिराज राजल श्रीजयतसिंह तथा कुमर श्री लूणकर्ण - वचनात् श्रीपार्श्वनाथ
(३१) अष्टापद विचाल सं० वीदइ सेरी बावी । कुतना वड बंधाव्या । बारथा पउडसा कराव्या । वेईबंध बजा
(३०) वलिकरावी । कोदर एक कराव्या । गाइ सहस १ जोडी घृत अन्न गुल रुत घणी वार बदरसण ब्राह्मणा
( ३९ ) दिनां दीधा | श्रीजेसलमेरुगढनी दक्षिण दिई घाघरा बंधाव्या । देहरानी सेरी नइ घाघरा बेऊ० श्रीजय
(४०) तसिंह राजसन आदेस सं० वीद कराव्या । गजप करावी दस अवतार सहित लक्ष्मीनारायणनी मू
( ४१ ) र्त्ति गनुष मंडावी ॥ जिनो दशावतारांप्यवताररहितस्य तु । श्रीषोडस जिनेंद्रस्य समियाय परीष्ट
(४२) ये ॥ १ शुद्धसम्यक्त्वधारित्वाद्भावितीर्थंकरत्वतः । स लक्ष्मीकः समायातो जिनो दातुमिव श्रियं ॥ २ मंडपा
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[ ५० ]
(४३) दिकनी कमठा सं० सहसमल सं० करणा सं०धरणा कराविस्य ॥ इत्येषा प्रश तिः श्रीवृरखरतरगष्ठे श्री जि
(४४) नहंससूरिपालंकारश्री जिनमाणिक्यसूरिविजविराज्ये श्रीदेव तिलकोपाध्यायेन लिखिता चिरं नंदतु ||
(४५) सूत्रधार मनसुख पुत्र सूत्रधारषेताकेन मुदकारि प्रशस्तिरेषा कोरीतं ॥ : ॥ श्री तु #
पट्टक पर
[ 2155]
॥ सं० १५८५ वर्षे माघमासे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीजयतसिंह राउल पट्टालंकार श्रीलूणकर्णराज विजयिराज्ये श्रीशंखवाल गोत्रे सं० कोचर पुत्र सं० मूल पुत्र सं० रोला पुत्र सं० त्र्यापमल्ल पुत्र सं० पेथा पुत्र सं० श्रासराज नार्या गेल्ही पुत्र सं खेता सं० ( जा० ) सरसनी पुत्र सं० दीवा जाय सं० मरादे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल जाय सं० कुरी पुत्र सं० जोला द्वितीय चार्या सं० सवीरदे पुत्र डाहा सं करण जार्या सं० कनकादे पुत्र सं खीदा सं० नरसिंह पुत्र सं धरखा जाय घराणगदे संघ प्रमुख परिवारसहितया संवीदा
...
० (मलादे श्राविकायाः पुण्यार्थं श्री शत्रुंजयमदातीर्थ श्री गिरनारतीर्थपट्टिका श्रष्टमांगलिक्ययुता सं० सहसमल सं० धरणाच्यां काशपिता श्रीवृहत् खरतरगने श्री जिनजद्र सूरिपट्टे श्री जिनचंद्रसूरिपट्टे श्री जिनसमुद्रसूरिपट्टे श्री जिनदंससू रिपद्दालंकारश्री जिनमा णिक्यसूरिराज्ये प्रतिष्ठिता श्रीदेवतिकोपाध्यायेन लिप । कृता प्रशस्तिरेषा चिरं नंदतुष् सूत्रधार धाना पुत्र से सूत्रधारेण प्रशस्तिरुदकारि० श्री शत्रुंजय गिरनारती श्रवितारराटी घटिता | श्रीसंपेन जात्कार्यमाणा पूज्यमाना चिरं नंदतु ॥
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[१] सफण बोटी मूर्ति पर
[2156] सं० १६२२ वा श्रीपार्श्वनाथ सा० धरस सुत तेजपाल सुत ....
पंचतीर्थयों पर।
[2157] ॐ संवत् १४ए७ वर्षे मार्गशीर्षवदि ३ बुधे ऊकेशवंशे चोप दौता पुत्र पांचा पुत्र साषा श्रावकेन सिखरादिसुतयुतेन श्रीपार्श्वनाथथिंबं का रितं प्रतिष्ठितं श्री वरतरगच्छे श्रीजिन जनसूरिनिः ॥ श्रीः॥
2153} संवत् १५०२ वर्षे कार्तिकवदि ५ शनौ ऊकेशज्ञातीय वं गोत्रे साए लोहट सुत सारंग जार्या सुहागदे पुत्र सादा नार्या सुइमादे स्वप्रेयो) श्रीअंचलगळे श्रीगोशश्रीजयकेशरिसूरीणामुपदेशेन श्रोसुमतिनाथविध कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन ॥ श्रीः ॥
[2150 ] ॥ संवत् १५० वर्षे श्राषाढ सुदि शनी उपके शज्ञातो बाजहड़गोत्रे मा कूतो । लसून मई कालू ना कर्मादे पु० मं नोड़ाकेन स्वपुर श्रेयांसविंबं का० प्र० खरतरगच्छे ना श्री. जयशेखरसूरिभिः प्र० ॥
[21601 संवत् १५१३ वर्षे माइसुदि ३ सोमे उपकेशशातीय सां कीहट पुत्र धामा नार्या चांपू तयोः पुत्र सोमाकेन नार्या मकूसहितेन श्रेय से श्रीसुविधिनाथवियं कारितं प्रतिष्ठितं खर. तरगजे श्री जिननप्रसूरिनिः ॥
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[४]
[2461] सं० १५१६ वर्षे वैशाखवदि । उकेशवंशे रोहड़गोत्रे में थकण नार्या वारू पु० जा जेठाकेन जार्या सीतादे पुत्र । बगाईसरप्रमुख पुत्रपौत्रादियुतेन स्वज्येष्ठपु० मंण् मालापुण्यार्थं श्रीश्रेयांसविंबं कारितं श्रीखरतरगछे श्रीजिननप्रसूरिपट्टालंकारश्रोजिनचं सूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीः॥
[2162] सं० १५२७ वर्षे का सु० ४ रवी श्रीओसवंशे वड़हड़ाशाखीय सा० सादा जाप सुहड़ादे पुत्र सा जीवाकेन जा जीवादे त्रातृ सरवण सूरापांचाचांपासुतपूनासहितेन त्रातृ कांक
सोनाश्रेयो) श्रीअंचलगन्छेशश्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीचंप्रजस्वामिबिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन श्रीकोरड़ागामे ॥
12163]
ॐ सं० १५३६ वर्षे फागुनसुदि दिने श्रीजकेशवंशे कूकहाचोण्डागोन्ने खाषण ना० लषमादे पु० सं० कूरपालसुश्रावकेन नार्या कोडमदे पु० सा जोजराजादिपरिवारयुतेन श्रीधर्मनायबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रोजिननमसूरिपट्टे श्रोजिनचंडसूरि "
धातु की मूर्तिपर।
[2164] • सं० १५एवर्षे पौषवदि ३ दिने ॥ श्रीआदिनाथप्रतिमा सेवक...
* यह पाषाण के हस्ती पर सर्वधातु की सेठ की मूर्ति के पीछे का लेख है।
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जैसलमेर – श्री शांतिनाथ मंदिर। पाषाण के हस्तियों पर धातु की मूर्तियां (नं० २१६४)
BRONZE STATUES ON STONE ELEPHANTS, SHRI SHANTINATH TEMPLE -JAISALMER.
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[ ४३ 1
श्री अष्टापदजी का मंदिर । चौवीसी पर |
[2165]
सं० १५१२ वर्षे वैशाखसुदि ५ शुक्रे ऊनड़ावास्तव्य श्रीश्री मालज्ञा० श्रे० पांचा जा० पाल्हादे पुत्र सहिसाकेन जा० जोली जातृ सागामदायुतेन श्रीकुंथुनाथादिचतुर्विंशतिपट्ट: मातृ पितृ श्रेयसे कारितः श्रागमग श्रीहेमरत्नसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितः ॥
[ 2166]
॥ संवत् १५२० वर्षे मार्गशिरसुदि ए दिने नाहड़गोत्रे सा० जयतासंताने सा० बल्दा जार्या षमणि पुत्र सा० मेधा श्रात्मश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोषले श्रीपद्मशेखरसूरिपट्टे ज० श्री माणंद सूरिजिः ॥
पंचतीर्थयों पर ।
[2167]
सं० १३७३ फागुण सुदिप दीसावाला० श्रे० जीमा जार्या बीडहू श्रेयसे तथा चातृ कोचरस्य सुद्धा जार्या कासल जातृ जूविंग जार्या सूवदेवि तेषां श्रेयस ० सहुडाकेन पंचतीर्थी कारिता ।
[ 2168]
सं० १५१० वर्षे फागुण दि ११ शनौ श्रीब्रह्माणगछे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रेष्ठ देपाल जा० देवलदे पुत्र गोगा जा० गंगादे गुरदे नीली पु० लहुटेन बनोडा मागजाजिः स्वपितृमातृयसे नि० श्रीश्रेयांसनाथवं कारितं प्र० श्रोजजगसूरिपट्टे श्रीपज्जगसूरिजिः ॥ नरसाणा ग्रामे ||
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[४]
[2180] ॥ संवत् १५१३ वर्षे माघसुदि ३ शुक्रे उपकेशज्ञातीय बाजहड़गोत्रे मण् देवदत्त नार्या रयणादे तयोः पुत्र मं० गुणवत्तेन नार्या सांतलदे सहितेन श्रीधर्मनाथवि कारितं प्र० श्री. खरतरगछे श्रीजिनशेषरसूरिपट्टे ज० श्रीजिनधर्मसूरिनिः ॥
2170] संवत् १५१५ वर्षे मार्गसुदि १ दिने जकेशवंशे प० सूरा पुत्र नीमा सोमी पुत्रेण प० पारसश्रावकेण नार्या रोहिणि पुत्र घेतारिषापरिवृतेन श्रीचं प्रनस्वामिविवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्री जिनचंप्रसूरि निः निजपुण्यार्थमिति ॥
[2171] सं० १५१६ वर्षे वै० व ४ ऊकेशवंशे साधुशाषायां संर नेमा नार्या सारू सुत सा० रहिया सारा मेधा सा समरानावकैः स्वश्रेयसे सुमतिबिंब कारित प्रतिष्टितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनन सूरिपट्टे श्रीजिनचंप्रसूरि सह गुरुभिः ॥
[2172] ॥ ॐ ॥ संवत् १५१६ वर्षे वैध व० ५ गुरौ ऊकेशवंशे सा० तोला जाय तोलाद सुत सीहाकन नार्या गौरी पुत्र दहा देवा जातृ वाहड़ भातृ जायाहीमादेप्रमुखपरिवारसहि तेन श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः॥ जयजसे ॥
[2173] संवत् १५३३ वर्षे पौषवदि १० गुरू प्राग्वाटझा गांधी हीरा जा० हेमादे पुत्र चाहि. ताकेन ना लाक्ष) पुत्र समरसी नार्या लाडकिप्रमुखकुटुंबयुनेन स्वश्रेयाथ श्रीनमिनाथविवं का प्रा नपागळे श्रीलक्ष्मीसागरसूरि निः ॥ वोसल नगरवास्तव्यः । श्री।
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[४] यंत्र पर ।
12174] (१) ॐ ह्रां ह्रीं नमो देवाधिदेवाय (५) श्रीअरिष्टनमये अविल(३) चिंतामणि त्रिजुवनजनकरूप. (४) वृक्ष ॐ ह्रां ह्रीं सर्व समिहितसिद्धस्तव ( जीव )
र २८
| १० | ११ १७ २३ । ७४
नागे प्रतिष्ठा कृतन्माता सिऊदे हितार्थ नाग सं० १९१० ॐ
* इस लेख में नाग संवत् का उल्लेख है यह संवत् कब और किस राजा के समय से प्रारंभ हुआ मुझे ज्ञात नहीं है, रायबहादुर पं० गौरोशंकरजी के भारतीय प्राचीन लिपिमाला' में जिन संवतों का वर्णन है उन में नाग संवत् नहीं है।
।
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[ ४६ ]
श्रीसुपार्श्वनाथजी का मंदिर ।
प्रशस्ति
[ 2175] *
( १ ) ॥ ॐ नमः श्री सुपार्श्वनाथाय ॥ श्रीनानेयमनुं वृषांकिततनुं पापारिनाशेधनुं । श्रीमां तिजिनं तमोजर दिनं लोकत्रयी स्वामिनं ॥ सर्वानंदकरं महाजयहरं
( २ ) श्री नेमिनाथं परं | वंदे पार्श्वप्रभुं सुरासुरविनुं श्रीवर्द्धमानं सु (शु) नं १ भुवनवनपध्वांतदीपायमानं परमतप्रतिघातप्रत्यनीकायमानं । घृतिकुवल
( ३ ) यनेत्रावश्यमंत्रायमानं जजत विदितकीर्त्ति श्री सुपार्श्व विमानं २ श्रईत ईशाः सकलाश्च सिद्धा आचार्यवर्या अपि पात्र केंद्राः । मुनीश्वराः सर्वसमीहितानि कु ( ४ ) तु रत्नत्रय युक्तिजाजः ३ गजारूढा पीना द्विगुणनुजयुग्मेन सहिता । सद्वियुस्कांतिर्नरसुरजरेः पादमहिता ददाना जक्तेभ्यः प्रतिदिवस मुचैरमरतां शु
( ५ ) नं शांता संघस्य दिशतु सदानंदजननी ४ सत्सर्वर्द्धिसमन्विते शुजयुते दुष्टैर्जनेविच्युते धर्माधिष्ठित चित्तलोकन लिते विद्याविनीतोचिते । श्रीमज्जेशल मेरु
( ६ ) नाम्नि नगरे चैत्यं सुजातं कथं । तं वक्ष्ये ह्यधुना सुपार्श्वजिनपस्यादं तपागल के ५ गांजी यदार्यधैर्यादिगु समुदयैः सद्गुरोर्धर्मचर्या श्रुत्वा युक्तस्य वाण पुरि.
( 3 ) तशत दारामकामे हिमानीं । कंदस्तेपि घत्रां नवजिनजवनोत्पादनेनेत्यजखं मर्त्यः प्राप्नोति नित्यं प्रतिजत्रकृतं यत्पापमाहत्य मुक्तिं ६ ब्रह्मेशदेवासुरन
* यह प्रशस्ति एक पीले पाषाण के लगभग चतुष्कोण पट्ट पर खुदी हुई है। इसकी लम्बाई चौड़ाई २ फुट है। यह प्रथम G. O. S. No. 21. के परिशिष्ट नं० २२ में प्रकाशित हुआ था, परन्तु पाठ में बहुत सी अशुद्धियां रह गई थी, वे मूल से सुधार कर यहां प्रकाशित की गयी हैं।
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श्रा
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Ban:श्रीरूपार्श्वनाथाय|श्रीलालेयमनपा कितनपापारिताशेधी बीमातिजितमोजरदिनलोकवधीस्वामिनासर्वानंदकरंमहानयत्र
Hinायपरंतवैदेवाकरासरवितश्रीवईमानरुतवननवनवापानदीपायमानापरमततधातत्यानीकायमानाजवला य म वायनानीनजाविदितकी तंत्रीरूपाविमा २ अईत ईशासकलालसिहा या वाक्यों अविपाजामुनी-धरासनसनीहिताहिक Saugहिजाज शाजारूढावीताहिजमिनसहिता ल कतिर्नरम रन पारमादिता ददानानत पावतिविम्वरनरी
नामापरिशदानंदजननी सत्सवासमन्वितेन्न यु वचन धर्मावतिविनलोकलसितविद्याविनीतोचितोश्रीबालस निमारतोयंकजातेका नवपया तापालितवस्यदितपाकेपीलीयोददिवहिलसगुटःससुरोधमरवीशुदायुक्त स्पचालीरि
लवजारामका हिमाली का रास्त्रविमानवजितनवनोत्पादनेनेत्यजनमानालिनिय प्रतिशवकन्ययायमादत्यतिबदडाशदेवासरन किलोलितादि६uiजातानालाटामदतनेअपमावाहतस्याग्रीनहिहःपदा धामनकलनजीक्षानितस्वीतकस्प सल्पा
विविदितसारिवातिकस्यशिशेपोमात्ययजनक्रवत तोगनराजा निवानराज्ञःसंवायचाज्ञाऽत्तहतसम्घाकारयामासस स-पास पारिजवनमाSपिपापyinatraमतंजालिका तोरण: तुम बीमालविकतस्पदितिपनि नानपाप
मामाज्याराज्यातदातराजालेदारमानाही सोम्यमार्गस्मिासनमचिएनिमितदलेकम दामादशम्या रम्पासयोगमावतिनयुजिसीका जैसलमेर ताटोमानित कचित्यहिचस्वपिहाटाने जातानवनिनोतरायान ततेतरायस्पानानिति:१० राजदक्षयसिंहनामतृप्तने यहो।
SHRI व्याचार श्रीकान्तयतानीसा विधःसहविद्योदती श्रीनाथस्यपदीबजालिसरशन्यामहितासन्धी माऊमित्रपरिदलोऽदनपंवासिनः।। नामावत: यागमति अपने हितानंदानंद मानवीन नाजाय त्यान्कयामतापतनानारिजांधहतौराज्पराउसमूलनामतपतो।
SUPARवाने चरस कन्नतीजासियोवरायांकितेशदानपातयाजदराबाउमाशस्थत श्रीरायणनतत्परमतिमाहन्वपलथापा सुपाश्व
inope ययातिधा या सोनेवरूहसिंदतितलनामापोत्तमे खज्ञातालकोत्तमेरुदयानंद कंदोपत्र। सर्वामिलमल
तिसरा डोनाहामालिसिंहले मनोविदा तशातले हर्षननदेनवरदानसमाइकमतपतिःसलसितस्यादवराज्या मुलात नाथ
SHWA यो रानियहपतासाम्यानेजारको समSERamसकोटमोमोजमापरायमानिसमन्वित कविपत्तेबलातरमन्नानिमतस्यपारत मंदिर
चियानिटीदारेऽमतेसानाहिनेसोग वेला यतादगवामाममजलविवादजातिमु वातानजामजाकाकतनाकिनागवनिताजातानिरत्तऋताततलहरा NATH
सिलवादित सीमाशुने काल्यालयमदेवेबसणानिमदा बोटादिनिशरत जयरवदा जनाधार तो तपागागस्यदादिलश्यन्तिनानासतारा प्रशस्ति वा "dehदापात्मनामावदात्याका नारा खदामयानगजयेने प्रनिशामुदेव यस्याजदयोश्चकलसम्पाकरिसीदता अनि: उल
TEMPLE क पासनविकासापानवताविमानसराईसा:
सिमिक्षमयनेक नवश्कासाः दश वराहारविजयाहतमाःरादायापकहरा (नं०
सानोमेनासेटामातवासावित्राध्यसोचनामानित्यक्रमताकरेगाचारलायनवालामपूरे १० युमितत्ययादागतात कातवयास
EEनकायह रिकान्तस्मिन्सन्निकर्षविजिनमददनेकानिजमानिदधतिमाहासदननरनं माननीयोमा जनचकवरयरुहन्यजनानंद ने PRASHASTI २१७५)
म २१३तादीनामा नगीनार्योभानवति चेताःला दिलाया हगनमतामाधजलालसर.२२ श्रीदार विजयसूरे वारदायात्री गुलालारजसारखा। वरलेशनरोडालिसमायान २३दीवविजयनाविजवाघस्पतामसॉवतनाच्यामिमाः निहायजदकलवाना २४क्त पार्थपानानता स्टा JAISALMER रितार्थकतासकल्याण बिकाबरलो हनिमहानर्यसंगपजातेजयजयइदेदतेदंदीजनेस सदाने मिटान्नजोजन सेसिकताले २६निकालनमाला
सर्वमनोरधा स्वरवजनाचार विनि लेनमहाजसा २० राज्ञाकी गूजराजेनरमायापसन्मदा ववदितमत्कारपोपहानिकर्म:२८चने वादानकापि दवाशा sताकतसंग:सदाचारःyाताने धर्ममन्चदंबवतानाध्यादिजःखोदयातमानसःापापानीमातिचरेशावारंसमावर ३०मनटनरल राव टोजमस्यते। ततपरसोपेतं सर्वनितकरवपदं वालंय माधविनायका-मरजोजनाहकानेनकार्मेलन पालोनिलिवन शलोकवनंचामविकासका वरदेवमध्यपरमो शिवसंपदी३३निकलनकपरिपालयसचिशविनररतविपुलांकमलाभयावारकातरसिजलनियावत धनजस्व हिस पानासत्यनित्यनियरास्त गोमागुरुवानमः जानिराशविर शिविगास्सत्तममहर्दयुताःप्रदिवान्वायन इन नदना पक्षवापारयोनिमाजनग : सिमानाधिनयाता देवगोरुधामनियोःकार्याधिनिःसर्वदा: साम्राज्यायकर चउर्नजधर वकारिशलेनरी संघस्परूखंदाउसनतंत्रीमाणिनोकतम व पाचारिखलदेवतागजमरवान्लेवानिपानेरवा योगिन्य) बदवासिम वितरशानकारका मन्येन्द्रचरखेचराचनपवितालभूतग्रहाःसानंदा प्रविशंजोगलन रसंघसमेस वर २७ यागासेमारणामवंतिसकलाःसंपणदेदिनी टया सासुरवदितरितगतामावारजनहायासिंघस्याप्यविनस्पतरनिवजानिरसदा ।
RSE-देवता सरयनशानिशानना ३० बारदास्यास्फीतिसम्बना। सुस्वायमेनलारम जूलाई शातिदेवताप यादहिगुपदावरिषभियुतेन्द बलोनिकी याasनिवाकरे रिविस यावर निबरो यावत्संनिधनुवकिलस्वारापरामरल यादवादरिदमोदनदैत्यरातच घालायो। कारिताप्रतिष्ठावाबाऊजत्यनित्यधियान्टाबासोः हस्तंडजलदा-सुवातासंउवालवावधात्यात धिवा सन्मितारक जनोबिल:४२ तास
37:समनिरामयाः साणिवपउमाकनिहरबजागनवेत ४३ नगविजयतमवषाकलाप्रतित्रास्तिरवशेषा। नया हिशेषा गंयस्यमेशपटना दिक नितकोटि कोडगरनारसेनिताकिमलपानीमातरवेशपरपाकरानति वटा मतपत्रावरिशासकिदिनप्रीमनितिशत रापिन
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[४]
( ८ ) र निकरैः सेवितां द्वियस्य । उक्तानां मंगलाय प्रमथि तदनुजेंद्रस्य मायायुतस्य । श्रीमद्वष्णोः पदाब्जामलकलनजलैः क्षालितस्वांतकस्य सन्न्या
ง
(ए) याध्वप्रकर्तुर्जगति च विदितस्यारिवर्गातकस्य निश्शेषोवीशमान्यस्य जनसुखकृतो मूलराजा निधानराज्ञः संप्राप्य चाज्ञां द्रुतत समघः कारयामास सं
(१०) घः सत्प्रासादं प्रसादं सुरजवनसमं नष्टदुष्कृद्विषादं युक्तं पापाद्विमुक्तं गतकुमतमतं जालिकातोरणायैः युग्मं श्रीमह्री विक्रमस्य क्षितिपतिशुभात् प्राज्य(११) साम्राज्यराज्याद्वत्रातेसु जाते दद्दनरसगजेवीं (मते सौम्यमार्गे सूर्ये मासोत्तमाश्वियुजि सितदले कर्मवादयां दशम्यां । रम्यां सद्योगगम्यां वसुपतिज्यु जिसौम्यवा ( १२ ) रान्वितायां त्रिनिर्विशेषकं जातं हि पूर्णं गतवत्सु तुरणं चैत्यं दि पंचस्वपि नेषु जाता प्रतिष्ठा बलिनोंतरायात् ततोंतरायस्य गता निवृत्तिः १० राजेंद्रदयसिंहनामनृपतेः पट्टो
'हाय
(१३) दया रवेः श्रीमन्वयक्षीरनीरधिविधोः सर्वर्द्धिविद्योद (धी ) धेः । श्रीनाथस्य पदांबुजा लिसदृशस्यामर्दितासम्म घोचंडा खंडकु मित्रपद्मिदलने दुर्दनपंचास्थिनः ११ (१४) सत्प्रासाद तडागयागप्रभृतिश्रेयस्कृतेर्वर्द्धितामंदानंदकृदुत्तमानघ पयः पुष्यीकृत प्राषिनः। जाग्रत्प्रोत्कटयत्प्रतापतपना नष्टारिजांधकृतौ राज्ये राजल मूलनामनृपते । (१५) वै विद्यमाने चिरं १२ सर्वाकृत्य निवर्त्तते शुजमते सयौवराज्यांकिते गोषड्दर्शनपा
के गजरावाख्ये कुमारेस्थिते । श्रीनारायणन कितत्परमतिर्माईश्वरीयेन्वये प्रा. (१६) वोभूत्करुणामृतादयः प्राप्तप्रतिष्ठाश्रयः १३ आख्येनैव सुरूपसिंह इति तत्सूना श्रमात्योत्तमे स्वज्ञातो तिलकोत्तमे सुहृदयानंदकंदोपमे । सर्वोषिप्रसक्कृ( १७ ) ति समे सत्पुष्य पुष्पद्रुमे नाम्ना सालिमसिंहके मतवरे विख्यातपृथ्वीतले १४
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[४०] वर्षे इर्षजनप्रदे नवरसाष्टंदो मिते संगते श्रीमविक्रमपतेः सुलखितस्यादवराज्या
द्भुतात् । (१७) ग्रीमत् वृषराशिगे ग्रहपती सौम्यायने जास्करे सरसमाशिनवांशगेषु सकलेषु
व्योमगेषु क्रमात् १५ राधे मासि समन्विते सुविशदे पर बल के सखे श्रीमन्नानि
सुनस्य पारण(१५) दिने शुझे तृतीया तियो । वारे चंद्रसुने शुनर्वसहिते सद्योगमायुने दिग्नामा
मृयुमंजुम्नास्य विशदे जाते सुवासे निजे १६ सवीडीकृतनाकिनागवनितावातानि
र त्यद्भुमे गीते सप्त स्वग (२०) विते च गदिते सीमतिनी निः शुने । काट्याणीयमहोत्सवे बहुकृते जाते महा
डंबरे वादिनध्वनिपूरिते जयरवे वंदीजनोच्चारित १७ सहशेषु तपागणस्य निखि
सेपूत्पत्तिनाजां सतां वृद्धः(२१) चार्यमतानुगेन सुहृदा पुण्यात्मनामाग्रहात् । श्राजानां सुखदा मया नगजयेनैषा
प्रतिष्ठा मुदे चेत्यस्य ध्वजदंडयोश्च कलस (श) स्याकारि पुंसां हिता १७ अष्टनिः
कुल(२५) कं श्रीमत्तथागणसरोजविकाशहंसाः प्राभूत्रनार्षशुचिमानसराजहंसाः सिद्धांत
सिंधुमथनैकनिबद्धकक्षाः सूरीशहीर विजया हतऽष्टमक्षाः १५ दिदयामकब्बर(२३) समस्त कुसार्वजोमेनासेव्यमान चरणाः करुणाईचित्ताः यद्दोधनाऊगति त्यक्तमृता.
करेण व्यादत्तराज्यनवचित्रिदिग्पुरेण २० युग्मं तत्पश्चात्संव्यतीते कतिपयमुस(२४) मे श्रीजिनेप्राख्यसूरिः कालेस्मिन् सन्निकर्षे विजित महदनेकानिमानिझबूंदः
श्रेष्ठानंतक्षितोशा सदननरभृतां माननीयो मुनींसओ जैन चर्ति राज्यं सुकृत. युनजनानंद पु.
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[ए] (२५) एययुक्तं ५१ शांतो दांतो धीमान् गीतार्थो मानवर्जितसुचेताः खोके हि खब्धसुयशा
दृग्च्छूतमहागाधजलधितटः २५ श्रीहरिविजयसूरेः शाखायां श्रीगुवास विज
योस्ति । पु. (१६) रवरजेशलमेरोस्तविष्यो छौ समायातौ २३ दीपविजयनगविजयी संघस्य तपाग
णस्य विझतेः । ताज्यामिमाः प्रतिष्ठाश्चैत्यध्वजदंडकलशानां ५४ सुपार्श्वपार्श्व जग.
वतो स्वा(२७) त्महितार्थ कृतास्स कल्याणं । बह्वाडंबरयुक्त कृते महातूर्य संरावे २५ जाते जय.
जयशब्दे दत्ते बंदीजनेषु सदाने। मिष्टान्नजोजनेन संतुष्टे सकलनूनगणे ५६
प्रतिष्ठाकृत्ये संपूर्ण (२०) सिझे सर्वमनोरथे । वपूर्वजकृताचारविधिझेन महौजसा २१ राज्ञा श्रीमूखराजेन
गृहमागत्य सन्मुदा । वस्त्रादिकृतसत्कारः परोपकृतिकर्मवः २७ अवएर्णवादी न
क्वापि देवगुर्वो. (ए) श्च पूजकः । कृतसंगः सदाचारैः शृण्वानो धर्ममन्वहं शण दीनानाथादिदुःखो
दयार्कीकृतमानसः । पापनीरुः प्रसिद्धं च देशाचार समाचरन् ३० सर्व मिष्ठान्न
संपूर्ण सर्व (३०) व्यंजनसंयुतं । सर्वसुष्टुरसोपेतं सर्वचित्तसुखप्रदं ३१ संघः सार्मिवात्सल्यं चकारा
मंदाजनं । कुछ नेन कार्येण नरः प्राप्नोति निश्चितं ३२ श्ह लोके धनं चायुकि
कीर्ति सुतं सु. (३१) खं । परत्र देववैतव्यं परमां शिवसंपदा ३३ षडिः कुबकं नई कुरुष्व परिपालय
सर्वविश्व विघ्नं हरस्व विपुओ कमला प्रयछ । जैवातृकार्कसुरसिझजलानि यावत् स्थैर्य जजस्व 18
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[40]
(३२) हि सुपार्श्वज (जि) नस्य नित्यं ३४ रविचंद्रधगसुतसौम्यगुरुशनसः शनिराहुशिखिप्रमुखाः । दित्रियास्सततं मम हर्षयुताः प्रदिशं त्वयि जगन जवत ३५ क्षेत्राधीश्वरयोगिनीजनग
( ३३ ) ः सिद्धैः समाराधितो ध्यातो देवगणैस्तथा सुनिगणैः कार्यार्थिजिः सर्वदा । साम्राज्यार्थ करश्चतुर्भुजधरः खड्गादिशस्त्रैर्जरः श्रीसंघस्य सुखं ददातु सततं श्री माणिको ३६
(३४) होण्यां चाखिलदेवता गजमुखाः क्षेत्राधिपा जैरवा योगिन्यो बटुकाश्च सिद्धवि. तरः पैशाचकाश्चंटकाः । श्रन्ये चरखेश्वरा मृतपगा वेतालनृतमहाः सानंदाः प्रदिशंतु मंगलन
(३५) रं संघस्य मे सत्वरं ३७ यासां संस्मरणा जयंति सकलाः संपणा देदिनां याः सर्वा सुरवंदितास्त्रिजयतामाधारनृताश्च याः । संघस्याप्य खितस्य दुःख निवई कुतु दूरं सदा
( ३६ ) श्रीमठासन देवताः सुनयनाः संपूर्णचंद्राननाः ३८ जयठारवचंद्रास्पा सूर्यकांति समप्रजा । सुखाय से च संघस्य नूयाच्छ्री शांतिदेवता ३५ यावद्विष्णुपदं ध्रुव स्थितियुतं व
( ३७ ) वर्त्ति तेजोनिधी यावश्चंद्र दिवाकरौ दिविसरो यावद्धरित्रीधरौ । यावति घरांबु वह्निखमरुद्धाराधरामंडलं यावतावदिदं प्रमोदजरयं चैत्यं चिरं तिष्ठतु ४० येषां लग्नं द्रव्यं यैश्वे.
(३०) यं कारिता प्रतिष्ठान । तेषां कुलस्य नित्यं वृद्धिर्भुयान यशसोः ४१ सुवृष्टास्संतु जलदाः सुवातास्तु वायवः । बहुधान्यास्तु पृथिवी सुस्थितोस्तु जनोखिल: ४२ सर्वेपि सं
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[१]
( ३ ) तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिदुःखजागू नवेत् ४३ नगविजयेन मयैषा कृता प्रतिष्ठा प्रशस्तिरवशेषा । भृयादवृद्धिरशेषा संघस्य मे शस्य शुभ
( ४० ) रेखा ४४ विनयनतको टिकोट्यमरजरचरसेवितांत्रिकमलस्य । श्रीमचंखेश्वरस्य कृपाकटाक्षातिविशेषात् ४५ संवत् २०६९ वर्षे वैशाखसुदि ३ दिने श्रीसंघेन प्रतिष्ठा करापिता ॥
चौवीसी पर |
[2176]
॥ नागेंद्र श्रीवखेटे ? श्रे० यावा सुत श्रे० धणादेव जार्या धारन त (तत्) पुत्र यामदेवगण देवव्यासदेवादिसमस्तव समदायेन चतुर्विंशति जिवालयं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंह सूरिजिः ॥ सं० १२४७ वैशाख ॥
पंचतीर्थयों पर ।
[2177] +
संवत् १४७ वर्षे ज्येष्ठदि ३ सा० हरिपाल पुत्र सा० पूनपाल पुत्र सा० जेवू सा० मेमा सामाश्रावकैः स्त्रपुष्यार्थ श्री अजितनाथबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्री जिनराजसू रिजिः ॥ चिरं नंद्यात् पूजामानत् ॥
[2178]
सं० २४६३ वर्षे षादि १० बुधे प्रा० ज्ञा० व्य० हेमा जा० हीरादे पु० अजा केन श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथविं कारितं प्रतिष्ठितं मडाइड़गठे श्री सोमदेवसूरिपट्टे श्रीधनचंद्रसूरिजिः + मूल मंदिर के तथा ऊपर के बांये और दाहिने मंदिर के समस्त पंचतीर्थियों के लेख एक साथ प्रकाशित किये गये हैं।
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[ 42 ]
[ 2179]
|| सं० १४८५ वर्षे वैशाखसुदि ५ उपकेशा० बप्पागोत्रे सा० देव्हा जा० देल्हणदे पु० नाथू पूना सोढा नाथू जा० मादी पु० मेडहाकेन सोदापूर्वजनि० श्रीवासपूज्यवियं आत्मश्रेयो० श्रीउपके० कक्कसू० प्र० श्रीसिद्धसूरिनिः ॥
[2180]
सं० १४०३ ० फागु० वदि १ ऊकेशवंशे भे० सोनाजर पुत्र श्रे० ईसरजावडाच्यां श्री. सुमतिनाथ कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगठे श्री जिनजप्रसूरिजः ॥ रांका गोत्रे ॥
[2181]
सं० १४ वर्षे फाल्गुनशुदि ५ गुरौ श्री केशवंशे शंखवाल गोत्रे सा० आसराज नार्या पारस पुत्र तापातादियुतैः श्री बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्री जिनराज सूरिपट्टे श्री जिनचंद्र ( ? ) सूरिनिः ॥ श्रीरेवताचल ॥
[2182]
सं० १९०१ मार्ग ० ० १० ऊकेश सा० हेमा जाय लखमादे पुत्र सा० हीराकेन जार्या धारूः पुत्र अमराश्री मल्ल नोनासोजावाचादियुतेन श्रीशांतिबिंबं का० प्र० तपा श्री सोमसुंदरसूरिशिष्य श्री मुनिसुंदरसू रजिः ॥
[2183]
ॐ ॥ सं० १५११ वर्षे याषाढवदि ए ऊकेशवंशे तेलहरागोत्रे मं० त्राचा जा० चाहिएदे पुत्र म० जादाश्रेयसे वना जा० धांधलदे पुत्र मं० पासा मं० साच्यां पुत्र वढराजसहितो श्री संजवनाथबिंबं का० प्र० खरतर० श्रीजिननडसूरिनिः ॥
[ 2184]
॥ सं० १५११ वर्षे मार्गसु० २ गुरौ श्रीषंडेरगछे श्रीयशेोनद्रसूरि संताने ऊ० ज्ञा० सीसो
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[ ५३ ]
दियागात्रे सं० गेला पु० घेता जा० कान्हू पु० धांधाकंन जा० काऊ पु० नोट्ससहितेन पूर्वज पुण्यार्थं स्वश्रेयसे शीतलनाथविंग का० प्र० । श्रीशांतिसूरिजिः ॥ श्रीः ॥
[ 2185]
ॐ ॥ संवत् १५१३ वर्षे ज्येष्ठवदि ११ दिने श्रीककेशवंशे गोवा गोत्रे सा० कर्मू जा० करमा पुत्र सा० माकन पुत्र जावड़सारंगादियुनेन श्रीमुनिसुनयिं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे प्र० ज० श्री जिनजसू रियुग प्रधानागढ || श्री शुजं जवतु ॥ [2186] संवत् १५१३ वर्षे ज्येष्ठसुदि ११ दिने ऊकेशवंशे लूलियागोत्रे सां सवाल जाय लावणदे पुत्र गेशकेन जार्या गोरदे तत्पुत्र नाथ सीदा सिवा । नाथू पुत्र सा० कुशनादि.. परिवारयुतेन श्रीपार्श्व कारितं श्रीखरतरगष्ठे श्रीजिनराजसू खिट्टे श्री जिननप्रसूरिजिः ॥
{2187]
॥ ॐ ॥ संवत् १५१३ वर्षे श्राषाढ २ दिने ऊकेशवंशे शंकागोत्रे सा० लखा जा० सुगुनी पुत्र श्रे० जावडेन पु० सोनारूपापदव्यादियुतेन श्री कुंघुनाथचिवं कारितं श्रीखरतर - श्री जिनराजसूरिपट्टे श्री जिननद्रसूरियुगप्रधान गुरुनिः प्रतिष्ठितं ॥ शुनं ॥
[2188]
॥ ॐ संवत् १५१३ वर्षे अषाढसुदि २ ककेशवंशे ज० गोत्रे सा० जेठा पुत्र मीधर जाव मंदोयरी पुत्र सोनाकेन चातृ जोजा जा० सोनगदे पुत्र देमाम हिराजसहितेन श्रश्रादिनाथविं कारितं ॥ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥
(2189]
॥ सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठवदि ४ दिने ऊकेशवंशे परीक्षि सोनी पुत्र सा० सुरपति सहिजा करमसिंह करमसी पु० जनदासदेवकर्णाज्यां सुरपति पु० बेला दियुतः पितृव्यराजापुण्यार्थं श्री कुंथुनाथविं का० प्र० श्री जिनचंद्रसूरिनिः श्री खरतरगछे ||
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[५४
..[2190] संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठवदि दिने जकेशवंशे लूणियागोत्रे सा आसकरण पुत्र सto गजा सा रता सा तेजाश्रावकैः सपरिवारैः श्रोश्रयांसावित्रं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर. गळे श्रीजिनजप्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंडसूरिभिः ॥
(2191] ॥ सं० १५१७ वर्षे ज्येष्ठवदि १० रवौ श्रीश्रीमा० श्रे० परवत ना। जबकू सु० नीसलेन जात ठाकुरसी सु० करमस) काहायुतेन मातृपितृश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिविवं पूर्णिमापक्ष श्रीगुणधीरसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रति च विधिना ।
[2192] संवत् १५३३ वर्षे मार्गशीर्षवदि १५ संखवालगोत्रे सा० देपा पुत्र केव्हा केव्हणदे पुत्र सा0 सेखाकेन नार्या सलषणदे पुत्र देवराजादिपरिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्रीचंप्रनाबि कारित प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचं सूरिनिः॥
[2103] ॥संवत् १५५० वर्षे थाषाढसुदि दिने ककेशवंशे शंखवालगोने सा० मेढा पुत्र सा० जाधरणश्रावकेण सपरिवारेण श्रीअजितनानिवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छ श्रीजिन जससूरिपट्टे श्रीजिनचं सूरिनिः॥
21041 सं० १५३३ वर्षे । पोवदि १० गुरू प्राग्वा ज्ञाती व्य० लूणा जा लूणादे मु० राजा जा नीशू सु शकू श्रीसुमतिनाथविवं कारितं तपागले श्रीसोमसुंदरसूरि तत्पटे श्रीरत्नशेखरसूरि तत्पटे श्रीलक्ष्मीसागरसूरि वीसलनगरवास्तव्य शुभं भूयात् ॥
2105] ॥ॐp सं० १५३६ वर्षे माघसुदि ५ दिने श्रीफकेशवंशे कावकगोत्रे साप हीरा जार्या
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[५] श्रा० होरू तत्पुत्र सा० थाहरूश्रावकेण नार्श नयण। पुत्र सा० देवदत्त सा० सांगणादि. परिवृतेन श्रीविमलनाथविवं स्वश्रेयोर्थ कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगचे श्रीजिनहंससूरिजिः॥
[2198] ॥ सं० १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३वाफणागोत्रे सा० मूला जाए महगलदे पु० सा धर्माकेन ना श्रमरी पुरा पेधाकाजासांतासामलसकुटुम्बयुतेन श्रीशांतिनाचित्र कारितं प्रतिक श्रीवहनले श्रीमरुप्रनसूरिनिः॥
[2107] ॥ सं० १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३ दिने अकेशवंशे परीक्षगोत्रे प० हासा पुरा जनणपाल जा रयणादे पु० रिम्माकुंटापरंपर्यायेन करणा पु० वीदादेवादिपरिवारयुनेन श्रीयजिननाबिंब का प्र० श्रीखरतरगछे श्रीजिननप्रसूरिषद्वे श्रीजिनचं सूरिचिः ॥
[2108] ___ संवत् १५३६ वर्षे फागुणसुदि ३ रखो ऊकेशवंशे गोलवलागोदे सा सच्चा नायर्या सिंगा. रदे पु० रिणमा [ल ] सा० राणा नार्या माकूयुतेन श्रीकुंथुनाथविवं कारित प्रखरतरगळे श्रीजिनचंडसूरिनिः ॥
[ 2100 ] ॥ॐ॥ संवत् १५३६ वर्षे का सु०३ केशवंशे दोसीगोत्रे सा सरवण सिरिपादे पुत्र सा जांडाकेन पुत्र रतनाषेतागताप्रमुखपरिवारसहितेन श्रीसुमतिनाथाविवं कारित प्रण खरतरगछे श्रीजिनचं सूरिभिः ॥ साधुशाखायां ॥
[2200] ॥ सं० १५३० वर्षे ज्येष्ठवदि ध नौमे श्रीसोनीगोत्रे कागूसंताने सा० डूंगर पुण् सा० किरना ना रइराही पु० सा आजाकेन जाय रमू पु० नातुश्रीमदयुतेन आत्मपुण्यार्थ भीचंप्रनबिंब कारापितं प्र० जनोदय सूरिषद्धे श्रीदेवसुंदरसूरि चिः ॥
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[५६]
[22011 सं० १५३७ वर्षे फागुणमु० ३ श्रीनपशझानो। वाघमारगोत्रे। मं कुशला नाण कमलादे नाम्न्या पु० रणधीररणवीरगूंगासरवण सादाघरमाधिरासहितया स्वपुण्यार्थ श्री. सुविधिनाथविं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनपके शगले ककुदाचार्यसंताने श्रीदेवगुरुसूरिनिः श्री. भृणीयाणाग्रामे ।
[2202] ॥ संवत् १५५१ वर्षे पोससुदि १३ शुक्र श्रीश्रीमालझा दो सीहा नाग वाबू सुम झो जोला जा रंगी सु० वर्द्धमानवस्तासूटाथात्मश्रेयाथ जीवितस्वामि श्रीशांतिनाथविवं का श्रीपूर्णिमाए। प्रधानशाखायां श्रीजयप्रजरिपट्टे श्रीजुवनप्रसूरीणामु प्रण पत्तनवास्तव्य ।
[2203] ॥ सं० १५५७ वर्षे फागुणवदि ५ बुधे श्रीजावडारगछे उपकेशज्ञा श्रासुत्रियागोत्रे साप घेता जाण खेतलदे पुत्र मांडणमहिपाजीदाकेन पितृमातृत्रातृपुण्यार्थ श्रीशांतिनाथविंब कारा. पितं श्रीकालकाचार्यसंघ न० श्री विजयसिंहसूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥ सीरोहीवास्तव्य ॥ श्री ॥
[2204] ॥ सं० १५५-वर्षे पोषयदि ५ गुरुवासरे श्रीउपकेशज्ञातो डिडिंनगोत्रे सा० मोकन ना हांसू पुत्र ३ सिंघा सादा सिवा सिंघा ना रोहिणी पु० देवाकेन नाण् देव देसहितेन नाडामेघास हितेन च पूर्वजनिमित्तं श्रीअरनाथावं का० प्र० श्रीउपकेशगछे कदाचार्यसंताने श्रीकक्कसू रिपट्टे श्रीदेवगुरुसूरि निः ॥
(2205] संवत् १५६६ वर्षे माहसुदि ४ गुरौ श्रोसवालज्ञातीया बाडेचागोत्रे सा० हांसा नाम
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[9]
हांसलदे पुत्र साथ दोला जा० हीरादे पुत्रलोटासहितेन श्री अजितनाथचिवं का० प्र० श्रीवृह चोक वटके श्रीमलय हंससूरिजिः ॥ श्री ॥
[ 2206]
संवत् १५६७ वर्षे वैशाखसुदि ५ दिने श्रीमाल सा० दोसा जार्या संपूरा पु० सा० उदयराज सा० राजाच्या श्रीचंद्र प्रजबिंबं कारितं वृद्धातृडालणपुष्यार्थं ॥ पु० ॥
[ 2207]
सं० १६०३ यासाढव० ४ जसलमेरुवास्तव्य । को । साडुत्र । सुत देवराजकेन । श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं । तपागच्छाधिराज ज० श्री विजयदेवसूरिजिः ॥
[ 2208 ]
सं० १६०३ आषाढवदि ४ पु । त्रे | जेसलमेरवास्तव्य | को। रायसिंग । जार्या सुहागदे सुत को अर मलूसिंघ जतामानोत । पं । श्रीसंजवनाथ विंचं कारितं । प्र० तपागञ्जाधिराजश्री विजयदेवसूरिजिः ॥
मूर्तियों पर ।
[2209
|| सं० [इलाई ४० सं० १६५ वर्षे वैशाख सित १३ बुधे कोः मि जा सुत को: माता मना कारितं श्री विमलनाथविषं प्रतिष्टिता ष्ठा तपागच्छे श्रीविजयसेन सूरिनिः प्रतिष्ठितं च ॥
[2210 ]
संवत् १६७२ वर्षे मासुदि १३ श्रीपार्श्वनाथविवं
[2211]
संवत् १७५३ वर्षे ज्येष्ठसुदि ५ सोमे सागवाज ( ? ) नगरे सा अगिया मेहनी डोसा: लगिया कोढ़ीय सा० कुंथुदास ॥ उ । इस दजु श्रीपार्श्वनाथ [] तिमा प्रथमति
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[4]
[2212]
श्री पार्श्वनाथबिंब संवत् १७७५ ना श्रावणसुदि ४ श्रीतपागञ्जस्य व आसकरण मुञ्जक
[2213]
संवत् १९२८ माहसुदि १३ बाई सरदारां....
यंत्र पर । x
[2214]
ॐ सं० १६०३ वर्षे ज्येष्ठ सु० ६ गुरौ जेसलमेरुसंघ कारित पट्टः तपागच्छाधिराजनहारकश्री विजयदेवसूरिजिः प्रतिष्ठितः ॥
-XX::>
श्रीचंद्रप्रभस्वामी का मंदिर । *
चौवीसी पर ।
[2215]
ॐ ॥ संवत् ११२५ वैशाखसुदि ए श्रीमत्योकेशस कुकुसर सती सुता अम्बिका कारयामास चतुर्विंशति पट्टकं ॥
[ 2216]
संवत् १४७६ वर्षे मार्गसुदि १० रवौ श्री जसवालज्ञातीय सा० जड़ा जाय रामी पुत्र साए बीमा जार्या रूडी सुत सा नामसीह जार्या मटकू । जार्यो नामलके पुत्र रत्नपालसहि
x धातु के चतुष्कोण यंत्र पर यह लेख खुदा हुआ है।
* इस मंदिर के दो महले के बायें तरफ की कोठरी में सर्वधातु की मूर्ति, चौवीसी और पंक्तीर्थियों का बड़ा संग्रह है। इन सभों के लेख यहां अनुक्रम से दिये गये हैं।
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- श्री चन्द्रप्रभजो और ऋषभदेवजी के मन्दिर - जैसलमेर दुर्ग।
HERE
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SHRI CHANDRAPRABHA AND RISHAVADEVA TEMPLES.
JAISALMER FORT.
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[५] तेन श्रीश्री अंचलगछे श्रीगछेशश्रोमेरुतुंगसूरीश्वरतत्पढ़े। श्री जयकात्तिमूरिउपदेशेन श्री. मुनिसुव्रतस्वामिविवं चतुर्विशतीर्थकरसंयुक्तं कारितं ॥ सकत्र कुटुम्बयात्मश्रेयोर्थ ॥ प्रतिः ष्टितं श्रीसूरिनिः॥
[2217] ॥ सं० १५३५ वर्षे पौषसु० ६ बुधे श्रीजावड़हरागळे उपकेशज्ञा० श्रासात्रागोत्रे सा० धागा पुत्र देवडे नाप नींनादे पुरा तीव्हा ना तीव्हणदे पुत्र कुराकेन जा धमाई सु० गिरराजयुतेन स्वश्रेयसे चतुर्विंशतिपट्ट श्रीमुनिसुब० का प्र श्रीजावदेवसूरिनिः॥
. मूर्ति और पंचतीर्थयों पर ।
[22181 ॥ संवत् ११६२ श्रीवापटीयस्थे वीरदेवेन प्रयाधननिमित्तं कारिता ॥
[2210] सं० १३०१ वैशाखबाद २ सहजली श्राविकया श्रीनेमिनाथप्रतिमा आत्मनेयोर्थ कारिता ॥
[22203 ॐ सं० १२०० श्रीसरवानगछे श्रीजिनेश्वराचार्यः वासचंद किसुणारी मातु महणी. भेयसे कारिता ॥
[22211 ॐ संवत् १५१० वर्षे वैशाखवदि ११ गुरौ श्रेय आसपरसुत जयताकेन मातृ आसदेवि श्रासमतश्रेयसे श्रीमहावीरबिंब कारितं ॥
[2222] सं० १५५५ मार्गसुदि १५ रखौ श्रीसरवालगन्छे श्रीजिनेश्वराजयसंताने व्य० साढदेव जार्या अवियदेवियो) सुत बीकमेन प्रतिमा कारिता ॥
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[६०]
[2223] ॐ ॥ सं० १२ए फाण सु० २ सोमे मातामही विरियांदवियोर्थ उप्रानकेन श्री. महावीरबिवं कारितं । प्रतिष्टितं श्रीपरमानंदसूरिनिः॥
[2224] ॐ संवत् १३१० वर्षे वैशाखवदि ११ गुरौ श्रे० पासधर सुत जयताकेन मातृश्रासादेवि श्रीसमतश्रेयसे श्रीमहावीरबिंब कारितं ॥
[2225] सं० १३१३ फागुणसुदि ६ बुधे श्रेण सूमण ना गांगी पुत्र श्रासचंड तेजपाल सकु. टुम्ब प्र० श्रीदेवेन्द्रसूरिसंताने श्रीश्रमरचंडसूरिनिः शांतिनाथबिंबं॥ ..
[2226] सं० १३१४ वर्षे फागुणसुदि ३ शुके श्रीसके नार्या पन्नदे श्राध्द नार्या अजयसिरि पुत्र गणदेवजाखदेवाज्यां पितृमातृश्रेयोर्थ श्रोनेमिनायबिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्त सूरिलिः ॥
[2227]
.. सं० १३२५ ज्येष्ठवदि १ शुझे उपकेशज्ञा......... पितृमातृश्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथविश्व का प्रतिष्टितं श्रीजिनदत्तसूरिपट्टे श्रीश्रीविजयप्रनसूरिभिः॥
[2223] संवत् १३२५ वर्षे फागुणवदि ७ सोमे जावडरगछे श्रेण स जार्या सपिकया जाता श्रेयोर्थ श्रीगार्श्वनाथवि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीगुणरत्नसूरिनिः ॥
[22291 सं० १३२७ वर्षे फागुणसुदि १५ हरिचंद्रपुत्र जगसीह जनिणि सोहिणि आत्मश्रेयार्थ बिंब का रितं ॥ प्रतिष्ठितं श्रीचैत्रगडे श्रीअजितसिंहसूरिसंताने श्रीकनकप्रसूतिः ॥
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[६१]
[ 22301 सं० १३ए ज्येष्ठयदि ११ श्रीनाणकोयगछे श्रेण बाहण .......... श्रीशांतिनायविं कारितं ॥ प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः ॥
[2231] ॐ ॥ सं० १३३७ वैशाखसु० १३ शनौ वा पदव्या स्वश्रेयोर्थ श्रीमहावीरबिंब कारितं प्रतिष्टितं मलधारिश्रीप्रमानंदसूरिनिः ॥
___[2232] सं० १३३७ ज्ये व १ वायट झातीय राजलाधार ३० अजयसिंहपद्माच्यां पितामह व जयताश्रेयसे श्रीशांतिनाथविध कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीवापटीयगळे श्रीगशिवसूरिनिः॥
[2233] ॥ ॐ ॥ सं० १३४१ ज्येष्ठसु० १५ रवौ सा आसधेरेण पितृव्य गुणाचं श्रेयोर्थ श्री. शांतिनाथर्षिबं श्रीरामजसूरिभिः ।
[2234]
सं० १३४३ माह० १७ शनौ चोपड़ागोत्रे ............ 'श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्र॥ श्रीसूरिचिः ॥
[2235] सं० १३४५ श्रासाढसुण ५ शुक्र श्रीमालझातीय पितृ थिरपाल मातृनायिकिश्रेयसे सुत मूंधाकेन विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिनिः ।।
[2230] सं० १३४५ श्रीउपकेशगछे श्रीककुदाचार्यसंताने नाहह सु० अरसोहश्रेयसे पुन्या पुशादन (१) पंचाच (6) श्रीशांतिनाथः काय प्र० श्रीसिद्धसूरिनिः॥
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[६]
[2237] सं० १३४६ वर्षे ज्येष्ठसुदि १४ श्रीशांतिनार्षिा पुर्घटान्वय सा हरिचंड पुत्र भृणास पर्वतश्रेयसे प्र० श्रीदेवाचार्यसजातीयैः श्रीमुनिरत्नसूरिचिः ॥
122381 संवत् १३४६ वर्षे पोरवाड पहुंदेव नार्या देवसिरिश्रेयसे पुत्रे वुल्हरकांफणकागडादिजिः श्रीश्रादिनाबिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीउवा श्रीसिद्धसूरिभिः।
[2230] सं० १३५२ वर्षे ज्येष्टवाद....." सुत मुराकेन भ्रातृ जयनिमित्तं श्रीशांतिर्विचं कारित प्रतिष्ठित श्री...........
(2240] ॥ सं १३५५ प्राग्वाट । श्रीकुमार पुत्रेण राजरु..... पित्रोः पुण्यार्थ श्रीषजावं का० प्र० श्रीपरमचंऽसूरिनिः।
[2241] संवत् १३५७ वर्षे वैशाखबाद ५ शुक्रे श्रेण् इनेड नायाँ नायधुदे पुत्र कसीवा पित्रा मात्रा
[2242] सं० १३५७ श्रेण पून ला देव्ही पु० श्रजीयाकेन स्वपित्रोः श्रेयसे श्रीश्रादिनाथपिंच कारितं प्रतिष्ठितं मडाड्डीय श्रीयाणंदप्रजसूरिनिः ॥
. (22481 सं० १३६१ श्रीनागेंगछे श्रीपरसोपाध्यायीसंताने नानिकया कारिता ॥
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[६३]
[2244] सं० १३६५ वर्षे वैशाखसुदि १० शनौ जगसीह नार्या लषमसिरि पुत्र नरसीहश्रेयोथ पीरबिंब कारित प्रतिष्ठितं ॥
[2245] ॥ सं० १३६७ वर्षे फागुणसु० २ रवौ नाहड सुत जोता नार्या वाणारकीश्रेयोर्थ सुत घरपिग सुत पदमच्या बिंब गुरू श्रीतपा... प्रसादेन ॥
[2248] सं० १३६० वर्षे माघसुदि ए बुधे प्राग्वाटज्ञा जगसीह नार्या घेतुश्रेयोर्य नार्या जासस सुत अचकेन श्रीलक्ष्मी तिलकसूरीणामुपदेशेन श्रीपार्श्वनाथांचं कारित ॥
122471 संवत् १३१४ वर्षे वैशाखसुदि बुधे आसवाखशातीय सा खींबा सुत धांधा पुत्र नरपास यात्मश्रेयसे श्रीचंप्रन का प्रा श्रीधर्मघोषसूरिनिः॥
122481 संवत् १३६ वर्षे वैशाखमुदि ७ श्रीजावडागछे उपकेशज्ञातीय तिहुणा नार्या तिहुणा देवि पु० महणाकेन श्रीषनदेवबिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीवीरसूरिनिः॥
[2248] . सं० १३०१ वर्षे वेशाखसु १ श्रीचैत्रगछे श्रीमानज्ञातीय.... 'मातुश्रेयोर्य चणसीवि. भाषन श्रीपार्श्व कारितः प्रनिए श्रीधर्मदेवसूरिनिः ॥
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[६४]
[2250] सं० १३७४ माधवदि गुगै प्रा० श्रेण श्रासचंड नार्या पास्त्रण मातृपितृश्रेयोर्थ सुत ननसामाकेन श्रीमहावीर कास्तिं शालिकर्मा तिमकसूरिनिः ॥
[2251] सं० १३८४ वर्षे माघसुदि ५ श्रीकोरेटकगठे श्रावक कर्मण जार्या वसलदे पुत्र जाचा. केन म्रातृव्य नाग [पतृ कर्मणनिमित्तं श्रीमहावीरबिवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीवज्रसूरिनिः ।।
[2252] सं० १३७५ ज्येष्ठव० ४ बुध केकड़ा प्रमिला पितृ पोरिए रामामाबखाकालसदेव्योः श्रेण सुत माजणेन श्रीसूरीणामुपदेशेन श्रीश्रादिनाचिंबं कारितं ॥
[2253] ॐ ॥ सं० १३७६ वर्षे ज्येष्ठव० ५ सोमे श्रोऊएसगछे वप्पनागगोत्रे गोव्हा नार्या गुणादे पुत्र मोखटेन मातृपित्रोः श्रेयसे सुमतिनाथवि कारितं प्र० श्रोककुदाचार्यसं० श्रीकक्कसूरिनिः॥
[2254] सं० १३० वर्षे वैशाखसुदि १५ शनौ श्रीणाणकोयगळे श्रेजोमा जाप सोहिणी पुरा आंबड़ जाण शृंगारदे पितृश्रेयसे श्रीशांतिनाबिंब कारित प्र० श्रीसिद्धसेन सूरिभिः ।।.
[2255] सं० १३७७ महं रजड नाए रयणादे पु० जदाकेन श्रीशांतिनाथविध मातृपितृश्रेयसे कारितं चैत्रगछे श्रीश्रामदेवसूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥
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[ ६५ ]
[ 2256 ]
सं० १३०० वैशाखत्रदि ७ शुक्रे श्रे० नावड़ जा० सेखल पुत्र चाहन जाय लाइक देसहितेन श्रीशांतिनाथ का० प्र० श्रीयशोदेवसूरिपट्टे श्रीधर्मदेवसूरिजिः ॥
[ 2257 ]
ॐ ॥ सं० १३५० वर्षे श्रे० जादा जा० सालुश्रेयसे पु० जयसी विजयसी हाज्यां श्री पार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीमलिषेणसूरिजिः ॥
[ 2258]
संवत् १३०१ मादवदि ११ शनौ प्राग्वाटज्ञा० ० व्य० जगधर जा० दांती पुत्र गोस खेन पित्रोः श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ श्री जिनसिंहसूरी यामुप०
[2259]
सं० १३०१ मादवदि ११ ० महणी जार्या मोहणदे पुत्र घणसीन दिनो श्रेयसे श्री आदिनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिनिः ॥
[ 2260]
सं० १३०१ फागुणवदि वृड्डा० सहजपा [] नार्या लाषणदे पुत्रसहितया श्रीपार्श्ववि कारितं प्र० श्री अजयदेवसूरिनिः ॥
[2261]
सं० १३०१ श्री केशगछे श्री कुकुदा चार्यसंताने सोमदेवजाय लोहिया श्रात्मार्थं श्रीसुमतिर्विवं कारितं प्र० श्रीककसूरिजिः ॥
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[2262] सं० १३९३ वर्षे फागुणसुदि ७ व्या मागा ना मांगसिरि पु षीमधर जाप सोहग श्रीचंतप्रनवि कारितं आत्मश्रेयस् श्रीकांनितिलकमूरिनिः ।।
[2263] संवत् १३ए। चैत्रवदि ६ शनौ । श्रीमालातीय श्रेण देवकुमार जार्य सतषण श्रे तेजाकेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारित.........श्रीरत्न सूरिभिः ॥
[2284] सं० १४४ वैशा सुदि १५ श्रीमालझाए Qरपाल नार्या कुंरदेवि सुत जूठनेन पित्रो श्रेण श्रीपार्श्वनाथः का प्र० [पप्पलगछे श्रीविबुधप्रनसूरिनिः।
[2265] सं० १४०५ वर्षे महं चांपा नार्या वीकलदे पुत्र जुवनपालेन जार्या पदमलदेवी पुत्र मुलाआकामेणादियुतेन पित्रो श्रेण श्रीशांतिनाथ का प्र श्रीहरिप्रसूरिनिः ।।
[2266] ॥ सं० १४१० वैशाखसु... शुक्रे श्रीमालझाती पित, अरसी मातृ श्रादहणदेवेव श्रीश्रादिनायबिंब का सुत सिहाकेन का प्र० श्रीनागेंगछे श्रीगुणाकरसूरिनिः ॥
[22671 ॐ ॥ सं० १४१६ मागव० ५ सा० दहड पुत्र सा० हेमाश्रावकेण खपूना। श्रीपार्श्वनाथबिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रोखरतरगचे श्रीजिनोदयसूरिनिः॥
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[2268] सं० १४२१ वैशा वदि ५ शनी उस माला ना राषोणो पितृ महण दमादे नीतल. श्रे वनहेड़ाकेन श्रीअजितनाथवि का० श्रीधर्मतिलकसूरीणामुण
[2260] सं० १४५१ वैशाखसु० ११ बुधे श्रीबाड्डगडे श्रीयशोजप्रसूरिसंताने उपकेशज्ञातीय जाए खाला सुत मोषसीहेन पित्रोः श्रेयसे श्रीसुमतिवि कारितं प्रतिष्ठितं श्रोईश्वरसूरिभिः ॥
[2270] सं० १४२२ वैशाखसुदि ११ ऊकेशझा श्रेण गोगदेव जा ऊमक्ष पुत्र ३ रणसीहतेजाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिविबं का प्रा श्रीबदमले श्रीमहेंजसूरिनिः ॥
__ [2271] सं० १४२५ वर्षे चै० शु० १५ सु० श्रीसुराणागोत्रे संडीड नार्या सं० देवसिरि सुत संग मेव्ही । कुमरारत्नसीहास्यां श्रेण श्रीशांतिनाथावं का प्रा श्रीधर्मघोषगधे श्रीसामापंजसूरिशिष्यैः श्रीदेवचंगसूरिनिः ।
[2272] सं० १४२३ फागुणसु० सोमे उपकेशझा रामसिंह नार्या लषमादे पुत्री कमलाश्रे० श्रीशांतिबिंबं का० प्र० श्रीसिद्धसूरितिः ॥
122731 सं० १४५० वर्षे वैशाखबदि सोमे उपकेशझा सारा रुजलसिह ना रूपिणी पुत्र हापा ना हांसलदे पु० षीमराजेन सर्वेषां पूर्वजेन । श्रेण श्री श्रेयांसा दिपंचती का प्रय श्रीसूरिनिः॥
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[६]
122741 सं० १४३० वर्षे उपकेशज्ञातीय श्रेण रहिया ना० रही पु० रूपाजाहणजोगाषेतू एनिः पितुः श्रे० विंग का प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्तसूरिजिः ॥
_[2275] सं० १४३३ वैशाखशु० ६ शनो श्रीवृहले उपकेशज्ञात व्या षीमा ना कमणि मु तेजसीषेतसीहयोनिमित्तं घ्राण पूना तेन श्रीविमलनायबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनरदेव. सूर्शिनः ॥
[2278] सं० १४३४ वर्षे वैशाखव० ३ (?) बुधे उकेश ........ मातृक.......श्रीयादिनाथ का श्रीधर्मतिलकसूरीणामु श्रीधन तिलकसूरीणा ..........
[22771 सं० १४३६ वर्षे वैशाखबदि ११ सोमे उपकेशज्ञा० पितृ पाखला मातृ वुडीश्रेयसे सुत श्रासधरेण श्रीवासपूज्यविंब कारितं आंचलगछे सूरीणामुपदेशेन प्रा श्रीसूरिनिः ॥
[22781 सं० १४०० वर्षे पोषसुदि १५ बुये श्री । स । ज्ञातीय पित नामा नामलदेश्रेयसे सुण . सादाकेन श्रीपार्श्वनाथपंचतीर्थी कारापिता प्र० विद्याधरगजे प्र० प श्रीगुणप्रसूरि (निः)
[2279] सं० १४४५ वर्षे फा० वदि १० र श्रीवृहमने श्री [प्राण ] ग्वटज्ञातीय श्रीरत्नाकर सूरिणा नार्या साऊ सुत० धीणकेन बातृधारानिमित्तं श्रीमुनिसुवतस्वामिावि कारितं प्रतिष्ठितं वडगला आचार्येन ।
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[ए]
[2280] ॥ सं० १४५१ वर्षे अषाढवदि १३ डीसावाखशातीय व्य० चांपाकेन ना संसाहदे पुत्र आसादियुतेन पु० राजाश्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंब का प्रति श्रीसूरिभिः ॥
122811 सं० २४५५ वर्षे फागुणवद १ श्रीकरके शशातीय आंचलगळे व्या सोमा नार्या महगलश्रेयोथं व्रातृपु० चाणाकेन श्रोशांतिनाथ कारित प्रतिष्ठिनं श्रीसूरिभिः ॥
[2282] संवत् १४५७ वर्षे वैशाख सुदि ए बुधे काप फांऊण सुत का गुणधर सुत का० ईसरसंभावकेन निजपुण्यार्य श्रोयनितनाथविध कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजि नराजसूरिलिः । श्रीस्वरतरगले ॥
[2283] ॐ ॥ संवत् १४५ए वर्षे मावसु ११ नियौ चो० दीनापुत्राच्यां साहड़कर्मणश्राजाच्या पूर्वजपुण्यार्थं श्रीपार्श्वबिंबं का प्रतिक श्रीजिनराजसूरिनिः ॥ शुभं जवतु ॥
[2284] ॥ सं० १४६१ वर्षे वैशाखसु ४ ऊ प्ला० राजा पुष खेता नार्या लक्ष्मी पुत्र पामू जार्या पामन सिरि पुत्रसायरेण स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्र० श्रोपंडेरगछे श्री. सुमतिसूरिनिः ॥
[2285] ॐ ॥ संवत् १४६१ शंखवालीय सा सादासुश्रावकेन धर्माकापवारतादिपुत्रसहितेन श्रीअजितनाथबिंब का रितं प्रा श्रीजिनराजसूरिनिः॥
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[3]
[2286] सं० १४६५ वैशाखसुदि ३ गुगे दि० उपकेशशातीय श्रेण आका जाप सजखणदे पु० मोकक्ष जारया साम्हणदे रानूसहितेन पित्रोः श्रेण सुमति० वि० कारित प्रा श्रीवृहजछे श्री. धर्मसिंहसूरिनिः
[2287] ॐ ॥ सं० १४६ए वर्षे माघसुदि ६ दिने ऊकेशवंशे दा० श्रासला सुत फमणेन ब्रा० साब्हाकुसलाउद्धरणयुतन श्रीमहावीरबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगळे श्रीजिनवचनसूरिनिः
[2288] सं० १४७३ वर्षे चैत्रसुदिपूर्णिमादिने सोए जीबिंद सोए कूपाश्रावकाच्या श्रीअजित. किंबं कारिए प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनवडनसूरिनिः ॥
[2280] सं० १४७३ वर्षे चैत्रसु० १५ वा सता पुत्र पांचाकेन पुत्र सिवराजमहिराजादियुतेन श्रीअजितनाथावं कारित प्रतिष्ठितं खरतर श्री जिनवर्धनसूरिनिः॥
[22001 सं० १५१६ वर्षे वैशा० वदि १ अञ्चेल० म० चड़का सुत मा राजाकेन प्रा श्रीपार्श्वना० कारितं
[2201] सं० १४७६ वर्षे वैशाखसुदि १५ सोमे श्रीनाणकीयगछे म0 कर्मसिंह जा कस्मीरदे पुत्र साहकेन पित्रोश्रेण श्रीयादि० वि० का प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः
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[ १ ]
[2202]
सं० १४७६ वर्षे चैत्रवदि १ शनौ श्रीश्रीमाल ज्ञातौ सिद्धशाखायां पितृ साल्दा मातृ साङ्गदे श्रेयोर्थ जातु सोमानिमित्तं च श्रे० सिधाकेन श्री अजितनाथपंचतीर्थी का० प्र० पिप्पलगष्ठे श्रीधर्मप्रसूरि जिः ॥
[ 2293]
|| सं० १४०१ वर्षे वैशाखवदि १२ रवौ सा० सारंग पुत्र वीरधवल पु० डाजासाब्हा• सहसासलपणप्रभृतिभिः श्रीवासपूज्यबिंबं पुष्यार्थं वीरधवलेन कारितं प्र० श्रीजयप्रनसूरिनि: श्री शुनं नूयात् ॥
[2204]
सं० १४०१ वर्षे वैशाख १३ (१) रवौ सा सारंग जाय सिंगारदे पुत्र वीसलेन पितृमातृश्रेयसे श्रीयुगादिबिंबं कारितं श्री पूर्णिमापक्षे श्रीदेवेन्द्रसूरिपट्टे ज० श्रीजयप्रज सूरिनिः ॥
[ 2205 ]
सं० १४८२ वर्षे वैशाखवदि १० गुरू उप० झा० सा० बेता जार्या की ल्हणदे पुत्र पूनाक्रेन जार्या पूनादेपुष्यार्थं श्रीश्रदिनाथवित्रं कारितं प्र० जोनमालगछे जय श्रीरामदेव(g) kla: u
[ 2206]
॥ संवत् १४७३ वर्षे द्वि० वैशाखवदि ५ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञा० माहाजनीय मदं सांगा सुहावे पुत्र नीयांकेन स्वपितृनाना श्रीसुमतिनाथबिंबं श्रीयंचलगष्ठे श्रीजयकीर्त्ति सूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन ॥ श्री ॥
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[७]
[2207] सं० १४४ वा वैशाखबदि ११ रवी श्रीश्रीमाली0 व्या षीमल ना० मेलादेयात्मश्रेयोर्थ श्रीसंजूनाथविवं कारित प्र० पिप्पलगछे त्रि। ज० श्रीधर्मशेखरसूरिभिः ॥ श्रांगेचाणे।
[2298]
सं० १४७६ वर्षे महासुदि ५ शनौ प्राग्वाटज्ञातीय म० दा ना प्रोमलदे पुत्र म० कान्हाकेन जा बाबू पुत्र राजायुतेन स्वभेयार्थ श्रीमहावीरबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्री. सोमसुंदरसूरि निः॥
[2200] संवत् १४७६ वर्षे माघसुदि ५ सोमदिने सत्यकिशाखायां साधु सारंग नार्या सिंगारदे पुत्र मूलदेव नाण् देवलदे पुत्र पेथड़ेन श्रीसुमतिनाथबिंब कारित प्र० श्रीजयप्रजसूरिभिः ॥श्री॥
[28001 सं० १४ वर्षे कार्तिकवाद ५ गुरौ श्रीश्रीमालझा .........तृ बीऊलदेश्रेयोर्थ सुत राउसकेन श्रीसुमतिनाथर्षिवं श्रीपूर्णिम् श्रीसाधरत्नसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना ॥
[23011 संवत् १४७ वर्षे मार्गशीर्षसुदि १७ गुरुवासरे सत्यकिशाखायां साए देदा ना देवसदे पुत्र केसवः तेन श्रीपद्मप्रनबिंब कारितं प्रतिष्ठितं पूनिमगळे श्रीदेवेन्द्रसूरीणांपट्टे श्रीजय. प्रनसूरिनिः॥
[23021 सं० १४ वैशाखसुदि ६...... संताने श्री....नार्या रतन श्रीसह ज० सहितेन मातृपितृश्रेयसे श्रीपार्श्वबिंबं का० प्र० श्रीककसूरि निः॥
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[३]
[2303] सं० १४७७ ३० फा व० १ श्रीमालवंशे ....."गोत्रे गए कामा नार्या मानी......... कारिता..... श्री.ज"राजसूरिपट्टे जिनचं सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
[23041 सं० १४ए वैशाखसुदि ३ श्रीब्रह्माणगडे सूनेधना श्रीश्रीमा० व्यव सायरका रोक सुत देवसीपर्वतडूंगरराघवदेव केन पित्रोः श्रेयसे नोविमलनाथवियं का प्रतिष्ठित श्री. पजूनसूरिनिः ॥
[2305] ॥ सं० १धनए वर्षे फा० सुत्र ३ शुक्रे श्रीमाली श्रेण लाइण नाग मंदोगरि पु० कया केडा सुप्ता मरगाद (?) पितृमातृश्रेयोर्थं श्रोसंनवनाविधं का प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णिमागछे श्रीसाधुरत्नसूरिभिः॥
[2306] सं० १४ए० वर्षे वैशाखसुदि ए शनों प्रा व्य० पांदा पुत्र बाहडेन वि श्रीचंप्रनस्वामि का सारा पूरा श्रीहीराणंदसूरीणामुपदेशेन ।
[ 2307] ॥ सं० १४एर वा वैशाखब० ११ शुक्रे उपए पितृ 0 कूपा मातृ कमलादेप्रेयसे पुत्र मामसीवांचाचुंडाकैः श्रीवासपूज्य पंचतीरथी कारापितं प्र० संडेरगजे श्रीशांतिसूरिचिः॥श्री।
[2308] ॥ संग १४एर वर्षे मार्ग० वदि ५ गुरौ श्रीपंडेरकीयगछे का ज्ञाप सा पूनसी पुणरांमा
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[] पुछ बूंटा ना वासा पु० सारंगेन जा रोहि पु० जयगसहितेन पितृपुण्यार्थ श्रीवासपूज्यविक का प्रा श्रीयशोजप्रसूरिसं० श्रीशांतिसूरिनिः ॥
[23001 सं० १४एर वर्षे चैत्रवदि ५ शुके श्रीश्रीमालझातीय श्रेण तोलासुतेन पितृव्य सामा संसारदेश्रेयो सुत ददाकेन श्रीशीतलनाथमुख्यपंचतीर्थों कारापिता पूर्णिमापक्षे श्रीजीमपक्षीय श्रीपासचं सूरिश्रीजयचंसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठिता ॥
12310] संवत् १४९५ वर्षे ज्येष्ठबाद १ शुक्रे उपकेशज्ञातीय श्रासउतागोत्रे मनोगल ना नीतु पुरा मे कडूयाकेन पित्रो श्रेयसे श्रीनमिनाविध कारितं । श्रीजावडारगडे श्री. कालिकाचार्यसंताने प्रा श्रीवीरसूरिनिः॥
[2311] ॥ सं० १४ए६ वैशाखसुदि १५ उप चित्रवालगोत्रे सा सिवराज पु० मौदहा जा सेजूझआत्मपुण्यार्य पु० वरदेवदेवदत्तलूणायुतेन ॥ श्रीशांतिनाथविवं कारितं प्र० श्रीधर्मघोषगछे श्रीमही तितकसूरिभिः ॥
128121 ॥ सं० १४ वर्षे ज्येष्ठसुदि २ धांधूगोत्रे सा० लषमण सा० कुसला पु० सा सोना केन सा सीतादेयु स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंब का प्रा मक्षधारिगछे श्रीगुणसुंदरसूरिभिः॥
123181 ॐ॥ सं० १४ए वर्षे मार्गवदि ३ दिने अकेशवंशे म दरराज नायर्या होरादे पुत्र
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[ ७५ ]
सिंघा जार्या सुहागदे पुत्र म० माला सुश्रावकेन पितृ सिंहापुष्यार्थं श्री आदिनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगष्ठे जिनजप्रसूरिजिः ॥
[2314]
॥ सं० १४९८ वर्षे फाल्गुणवदि १० सोमे घोसवंशे चंडालियागोत्रे सा० बीदलसंताने सा० रेवा जाय माहिषि पुत्र मांडण जांडाच्यां श्रीसुमतिबिंबं कारि० प्र० श्रीकृष्णपिंग [] श्री जयसिंह सूरिश्रम्ये श्रीनयचंद्रसूरिनिः ॥
[ 2315]
सं० १४९००फा० ० ० प्रा० ज्ञा० स० मांडण जा० माध्दपदे सुत पासा जा० वरजू सुत स० वस्ताकेन पितृव्य कोलाकेन जा० मटकू स्वजा० अरथूकुटुंबयुतेनात्मश्रेयसे श्रीसंजवनाथवित्रं तपा श्री सोमसुंदरसूरी यामुपदेशेन का० प्र० श्री सोमचंद्रसूरिनिः ॥
[2316]
॥ सं३ १५०० वर्षे .....म (माघ) सु० ए सोमे सांडशाखार्या सा० ऊढ़ा जा० पूनादे पु०बियाकडूयासादाकेन चातृपितृनिमित्तं धर्मनाथवियं का० प्र० पूर्णिमाप० श्री. जयजद्रसूरिजिः ॥ शुजं जवतु ॥ तस्य दे
[2317]
संवत् १०१ वर्षे ज्येष्ठ १० खौ श्री अंचलगनेश श्रीजय केसरीसूरीणामुपदेशेन श्रीककेशवंशे लालनशाषायां सा० हेमा जाय हीपादे पुत्र सा० जयवभाव केण जयतलदे आर्या सहितेन स्वश्रेयसे श्रधर्मनाथबिंबं कारितं स्वभाव कैः प्रतिष्ठितं ॥
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[ ७६ ]
(2318]
सं० १५०३ वर्षे पावदि १३ सोमे प्रा० सा० मांजू सुन सा० बीमा रणमल जा०
ha श्री
कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजयचंद्रसूरि निः
सं० १५०३ वर्षे याषाढवदि
केन श्री
—
[2319]
सोमे प्रा० सा० सामल जा० माजू सुत सा० खीमा
कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजयजसूरिनिः ॥
[ 2320 ]
सं० १९०३ वर्षे मार्गसिर सुदि ६ चित्रावसग श्रीमाप्रज्ञातीय माला ना० मुगती पुत्र साब्हा जा० सलखू पुत्र दापा कापा देपा स्वश्रेयले ओसुमतिनाथबिंबं काम श्रीमचंद्र सूरितिः ॥ शुनं जवतु ॥
[ 2321]
सं० १५०३ वर्षे माघ पूर्ण सोमे उप० झा० व जगैमालेन चातु डामरपुण्यार्थं श्रीअजितनाथवि० का खरतरग० ज० राजितधर्मसूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥
[ 2322]
संवत् १५०३ वर्षे जांगड़गोत्रे सा० दांसाश्राद्धेन पुत्र जेसासामतनाघरूसी दे: श्री. संजवनाथबिंबं का० प्रति० श्री जिनजसूरिनि ॥
[2323]
॥ ॐ ॥ सं० १५०० वर्षे ज्येष्ठसुदि १ दिने श्रीककेशवंशे लोढागोत्रे सा० देवराज संताने सा० पेडा जाय जरमी पुत्र मूला राणा सा० नयपाश्राद्धैः मूलापुत्रञ्जषमयुतैः पुष्यार्थ श्री. पार्श्वनाथविं कारिण प्रति० खरतरगछे श्री जिनराजसू स्पिट्टे श्री जिनद्रसूरिगणधरैः ॥ श्रोः॥
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[99]
[ 2324]
|| सं० १५०० वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेशवंशे वरद डियागोत्रे सा० देपा श्रावकेण पुत्र काकमादिसहितेन जार्या सोखी श्रेयोर्थं श्रीअनंतनाथचिवं कारितं प्रति श्रीखरतरगछे श्री जिनजप्रसूरिनि ॥
[ 2325]
संवत् १५० वर्षे चैत्र व० ५ शनौ उपकेशज्ञा० कोरंटागोत्रे सा० वीसन जा० नीतू पु० सालिग सत्रसल जेसा जार्यासहितेन आत्मश्रेयसे श्री सुमतिनाथबिंबं का० ऊएसप्रतिष्ठितं श्रीसूरिजिः ॥ श्री ॥
[ 2326]
॥ [सं० १५०० वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातोय श्रे० जरमा सु० भे० असाईन जा० धारू सु० ० सोढा केन जा० वर्जूयुतेन पितृमातृश्रेयोर्थं श्री अजितनाथ बिंबं पूर्णि० श्रीगुणसमुद्रसूयासुरदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना ॥ छ ॥ वडीग्रामे ॥
[ 2327]
॥ सं० १५०० वर्षे माह सुदि ५ गुरौ उप ज्ञातीयकेशगठे कुकुदाचार्यसंताने श्रीसंजवनाथविधं कारितं प्रतिष्ठितं
...करणाज्यां श्रेयसे श्रीउपसूरिनिः ॥
[2328]
|| ॐ || सं० १५०० वर्षे कार्तिक सुदि १३ ऊकेशवंशे जस लिगोत्रे सा० जैसिंह जार्या राजलदे सुत सा वीदाकेन चातुव्य सं० मेरा साथ रणधीराज्यां पुल देवराज वत्सराज प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्री चंद्रप्रतबिंबं कारितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनराजसूरिख श्री जिनजप्रसूरिजिः प्रतिष्ठितं ।
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[ ]
[2329] ॥ संवत् १५६५ वर्षे फागुण सु० ३ गुरौ श्रीश्रीमालझातीय गांधिक जावड़ ना गुटी नाम्न्या सुता रही श्रेयस्ते श्रीधर्मनाथवि कारितं पू० पदे जोमपलोय ना जयचं. सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥
[ 2330] सं० १५११ वर्षे ज्येष्ठ सु० ५ प्राग्वाट श्रे० नांपर ना ऊनी पुत्र समराकेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथविषं का प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरिशिष्य श्रीरत्नशेषरसूरिनिः ॥ श्रीः॥
[2331] ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ वदि ए केशवंशे श्रेष्ठि रांकासंताने सण धन्ना पुत्रेण सं० जगपाल श्रावकेण नार्या नायकदे पुण्यार्थ श्रीशांतिबिंब का रितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिन नासूरिनिः ।
[23321 ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ वदि ए उकेशवंशे श्रेष्ठि राकासंताने सं० धन्ना पुत्रेण सं० जगपाल श्रावकेण नार्या नायकदे पुण्यार्थ श्रीशांतिबियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीस्वरतरगळे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिन नमसूरिभिः ॥
[ 23381 ॥ संवत् १५१५ वर्षे वैशाख सु० ३ श्रीमाल मूसलगोत्रे सा देव्हा पु० मोहण नार्या त्रिपुरादे पु० सिंघा आत्मश्रेयते श्रीकुंथनाथविध का० प्र० श्रीधर्मघोषगछे श्रीपद्मशेखर सूरिपट्टे श्रीपद्मानंदसूरिलिः ॥ श्री॥
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[ ए]]
.. [2334] ॥ सं० १५१५ वर्षे फागुण सु०० शुक्र श्रीउपकेशज्ञातौ श्रेष्टिगोत्रे वैद्यशा० सा० धना जा सखखू पु० जगम ना जगमदे पु० जादाकेन ना० नावल दे युतेन आत्मश्रेयसे मातृपित्रर्थ श्रीविमलनाथर्षिवं कारित उपकेशगल्छे श्रीककुदाचार्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
[23351 ॥ संवत् १५१४ वर्षे फागुण सुदि १० सोमे उपकेशज्ञातौ श्रेष्ठिगोत्रं महाजनीशा० म० मद्मसी पु० म० मोषा ना० महिगलदे पुरा नीवा धन्नाच्यां पितुः श्रेण श्रीश्रेयांसावि० का प्र० उपकेशग श्रीककुदाचार्यसं० श्रीककसूरि निः पारस्कर वास्तव्य
[2336] ॥ संवत् १५१५ वर्षे फागुण सु ७ शनौ श्रीश्रीमालझा० रिसहा पितृ षीमाना कमी सुण्डाहाकेन पितृमातृश्रेयसे श्रीन मिनाथबिंब कारितं श्री पू० श्रीमुनिसिंघसूरीणामुएदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना वानिक वास्तव्य ॥
[2337] ॥ संवत् १५१६ वर्षे श्रा० सु० ए शुक्रे उपकेशज्ञातीय विनाकीयागोत्रे साथिरू सुत सा महणा श्रात्मश्रेयसे सुमतिनाथविं श्रीरुपलीये श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टे श्री. सोमसुंदरसूरितिः प्रतिष्ठित ॥
[23381 सं० १५१६ वर्षे मार्ग वदि ५ उरकेशज्ञातौं गड़गोत्रे सा० सिवराज पु० सं० जिक्खा हांसा नव्हयुत्तो व्रात सोहिल पुण्यार्थ श्रीपद्मप्रनविच का वृहद्गछे श्रीसागरचंडसूरिनिः॥
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[10]
12330] संवत् १५१६ वर्षे मार्गसिर सु० १ प्राण ज्ञा० श्रेण नरसी सुत श्रे० राघव पल्या व्य कर्मसी ना लीबी पुध्या श्रीलवी नाम्न्या भ्रातृ व्या हरिया भ्रातृज व्या महिराज जरण राजादिकुटुंबयुतश स्वश्रेयसे श्रीसंजवर्षिय कारित प्रतिष्ठितं तग श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ।।
[23401 सं० १५१७ वर्षे वैशाख सुदि ४ वो जप सुचीगोत्रे सारा वीसस नाम विमलादे पुस धना ना धाधलदे सामा लाग श्रीश्रादे आत्मश्रेय से श्रीशीतलनायबिंबे कारित श्री. पूर्णिमापक्षी ना श्रीजयनमसूरिमुपदेशेन ॥
[2341] संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने श्रीजकेशवंशे नानहङगोत्रे सा० धना जार्या रेणी पुत्र मा० सालिग श्राद्धेन जईता माला पाना जगमालादियुतेन श्रीधर्मनाथवि कारितं प्र० खरतरगचे श्रीजिनचं सूरिजः ॥
[2342]
॥ संवत् १५१७ वर्षे माह सुदि १३ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातोय व्य० मूजा ना जासू सुन व्य बाबाकेन जा बाबू पुत्र मेला क्रुरपाल युतेन स्वश्रेयसे जीवित स्वामि श्रीचंऽप्रज. बिवं कारितं कुञ्जक्रमायात् गुरुनिः श्रीपूर्णिमापके जीमपल्लोय जद्वारक श्री जयचंसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ ... पुरवास्तव्य ।
[2343] ॥ सं० १५१५ वर्षे वैशाख व० ११ शुक्रे उशवालज्ञातोय हारगोत्रे सं० रामा पु० सामंत
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[१] जार्या सहजदे पु० सं० सिवाकेन आत्मश्रे० श्रीकुंथुनाथविध का वृद्दलीय प्रतण् श्रीदेव. चंतसूर निः ॥
[2344] सं० १५१५ वर्षे वैशाख सुदि ३ गुरौ श्रोश्रीमानशा श्रे० सखण जाण वासू सुग ससधरेण आत्मश्रेयसे ॥ श्रीकुंथुनाथादि पंचतीर्थी आगमगचे श्रीहेमरत्नसूरोणामुपदेशेन कारिता प्रतिष्ठिता च विधिना ॥ धुंधूका वास्तव्य ॥
[2345] संवत् १५१ए वर्षे ज्येष्ठ सु० ए शुके श्रीब्रह्माणगडे श्रीश्रीमालझातीय श्रेण आसा जार्या मेघू सुत गांगा नार्या गंगादे सतबीरा धारा ऊदा सहितेन पितृपूर्तिजश्रेण श्री. विमलनाथवित्र का प्रतिष्ठितं श्रीविमासूरिनिः ॥ कांजरू(नू ?)या ग्रामे ।
[23461 सं० १५१२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ सोमे श्रीश्रीमानहाती व्य० समरा जाप माकु सुप व्य० धनपाल जा रंगाई सुप सिंघा ना० मटकु तथा लघु ना कामा काल्हा प्र० कुटुम्ब युतेन श्रीनमिनाथविंचं कारितं प्र० पूर्णिमापदे। श्रीसाधुरत्नसूरि निः॥
12347] सं० १५२५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ए शुक्रे श्रीश्रीमाखज्ञातीय व्यए हेमा सुत व्य० मेहा जार्या कमी स्वपुत्रपौत्रसहितेन दंपत्योः स्वात्मश्रेयार्थं श्रीजीवतस्वामि श्रीसुमतिनाथबि पूर्णिमापक्षीय ॥ श्रीराजतिलकसूरीणामुप प्रतिष्ठितं ।
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[२]
[2348] संवत् १५२७ वर्षे माघ व० ४ श्रीज्ञानकीयगळे उपकेशज्ञातीय वाघसीण गोष्ठिक सा नरना ना नायकदे पुत्र धरणा जा धारसदे पु० दौता सहितेन स्वपुण्यार्थ श्री. शीतलनाथर्विवं कारितं प्रति० न० श्रीधनेश्वरसूरिनिः शुलं श्रीनाणगलीयः श्री ॥
__ [2340] संवत् १५२० वर्षे कार्तिक सुदि १२ शुक्र श्रीश्रीमालझातीय गा व्यव जगमाल सुत सूरा ना राजसदे सुत ५ व्यव० जाणु राणु मोड मूंगर लषमणनिः पितृमात: श्रेयसे श्रीश्रीसुविधिनायविंचं कारितं श्रीपूर्णिक प्रधानशाखा श्रीजयप्रनसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं कारेरी वास्तव्य ॥
[2350] संवत् १५५७ वर्षे माघ वदि ६ शुक्रे श्रीश्रीमालाण व्य० बाबा नाय वउलदे सुत जोजा जा रही ॥ जात धर्मसी सहितेन पि विरू थान सा पिछ श्रे श्री. शांतिनाथबिंबं का प्र० श्रीपिप्पलगडे श्री उदयदेवसूरिपट्टे श्रीरन देवसूरि निः ॥ १॥ मांडली वास्तव्य
[23511 संवत् १५३१ वर्षे वैशाख सुदि ५ सोमे ॥ श्रीओएसवंशे ॥ क्षालनशाखायां ॥ श्रेण मेलीग जार्या माणकदे पुत्र श्रेप मांका सुश्रावकेण जार्या भूरादे पुत्र देपाल हरदास परवत सहितेन स्वश्रेयो) श्रीचक्षगन्छेश्वर श्रीजयकेस रिसूरीणामुपदेशेन श्रीसुमतिनाबि कारितं प्रतिष्ठितं ॥ श्रोसंघेन ॥
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[ ३ ]
[ 2352]
५
॥ संवत् १५३२ वर्षे वैशाख वदि to होरादे पु० कान्दा जा० प्रेमा प्र० श्री सावदेवसूरिजिः ॥
खौ उतत्रालज्ञातीय नंदवाऐचागोत्रे जिनदे किया आत्मपुण्याचं श्री सुविधनाथा० का०
॥ संवत् १५३४ वर्षे वै० ० १० वणवीर जाप करी नाम्न्या सुत श्रीलक्ष्मी सागरसूरिजिः ॥
[ 2353]
सुरतवासि प्रावाट व्यव धर्मा जा० राजू सुत महाकेन कुंटुंबयुतेन श्रीसुमतिबिंबं का० प्र० तपा
[2354]
॥ संवत् १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सु० १० सोमे श्रीऊ केशवंशे लूथियागोत्रे सा० सांजा जार्या लालू पुत्र सा० महाजन सा० मेला सा० तोला सा० धर्मसी प्रमुखैः स्वपुष्यार्थं श्री वासुपूज्यविवं का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्री जिन नडसूरिपडे श्री जिनचंद्रसूरिजिः ॥
{2355]
संवत् १५३५ वर्षे वैशाख वदि ७ सो० श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० वस्ता जा० नाकू सुत श्रे० जेसा वीमा नागा विमातृश्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनागेंद्र श्रीगुणदेवसूरिभिः ॥ तालध्वजे ॥
[ 2356]
सं० १५३५ वर्षे माघ सु० ५ गु० डीसा० श्रे० जुग जा० अमकू सु० म० जोजा. केन जा० यमकू सु० नाथा जा० बद्र्यादिकुंटुबश्रेयसे श्रीश्री अनंतबिंबं का० प्र० लक्ष्मीसागरसूरिजिः ॥
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[1]
[2357] संवत् १५३६ वर्षे फाय सुदि ५ दिने ऊकेशवंशे आयरीगोत्रे । सा महिराज सा० हपू पुत्र धणदत्त सुश्रावकेण सा वीबहू पुत्र कर्मा गसादियुतेन श्रीशीतलनाथर्विवं कारितं । श्रीखरतरगचे श्रीजिनन्नमसूरिपट्टे श्रीजिनचं सूरि निः प्रतिष्ठितं । चेला लिपि ॥
[2358] ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे सा० जारा नार्या वरसणि पुत्र सा जयसिंघ नार्या करमाई युतेन श्रीवासुपूज्यबिंब कारितं । प्रतिष्ठितं श्री। खरतरगन्छे श्रीजिनचंडसूरि श्रीजिनसमुपसूरि निः । श्रीः।।
[2350) - संवत् १५३७ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने श्री केशवंशे सुझगोत्रे साए उदयसी सु श्रावकेण पुत्र सूरा नार्या हानू प्रमुख परिवारयुतेन श्रीवासुपूज्यविध कारितं प्रण श्रीखरतरगळे श्रीजिनजारिपट्टे श्रीजिनचं सूरिपट्टालंकार श्रीजिनसमुप्रसूरिभिः ॥ श्रीवगतटमरौ
___ [23601 ॥ संवत् १५५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ७ शुक्र श्रोओएमवंशे सा नीमसी जा। गांगी पुत्र सा मेहाजल सुश्रावकेण ना । नावल पु० सा पूना कोकायु बात साह वाहड़ सहितेन चातुः सा । वीका कंसा पुण्यार्थं श्रीमदंचलगन्छेश्वर श्रीसिद्धांतसागरसूरीणामुपदेशेन श्रीसुमतिनाविवं कारितं श्रीसंघेन श्रीपारस्कर नगरे ॥
[2361] ॥ संवत् १५५७ वर्षे माघ सुदि ५ गुरौ ऊकेशवंशे सा० देपा ना हापू पुत्र साण
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[य] समधरेण नार्या कीनाई पु० रोडा प्रमुख परिवारसहितेन बात जाना पुण्यार्थ श्री. कुंथुनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनहंससूरिनिः ॥ श्री ॥
[2362] संवत् १५५७ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रीफकेशवंशे कांकरीयागोत्रे सा लूंना नाए गंगादे पुत्र सा हर्षा जार्या रोहिणि पु० । सा० केला वेला विमल परिवारयुतेन श्रीअजितनाथवि कारितं श्रीखरतरगन्छे श्रीजिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
[2863] ॥ सं० १५७३ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेण चुधा जाम अधकू सुत तेजा जा० माई सुत गोरा कडुश्रा सहितेन पितृमातृनिमित्तं आत्मश्रेयसे श्रीश्रादिनाथर्विबं का प्रण श्रीब्रह्माणगळे श्रीबुद्धिसागरसूरिपढे गछनायक श्रो. विमलसूरिनिः बाजणूया वास्तव्य ॥
[2364] ॥ संवत् १५३५ वर्षे आसोज सुदि ए दिने ऊकेशवंशे गोलवबागाने सा० वीरम नार्या श्रीधर्मा पुत्र क्यरा चोला सूजादिपुत्रपौत्रादिपरिवृतेन श्रेयो) श्रीशांतिनाथविध कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः ॥
[2365] सं० १५७७ वर्षे फागुण वदि ६ सोमे श्रोसशाषा गड । ...... पुत्र सुरजण नार्या स्वरूपदे पुत्र । म करणा पोसा आंवा पितृ श्रेयसे श्रीश्रादिनाबि काराप्तिं श्री श्रीजय.......॥
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[६]
123681 ॥ संवत् १५ वर्षे माघ वदि स्वौ श्रोलसवाल ज्ञातीय ज० जगू ना सहस. मक्ष सुकुटुंबयुतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब कारितं श्रीखरतरगन्छे श्रोजिनसमुपसूरिपट्टे श्री. जिनहंससूरिनिः प्रतिष्ठितं जेसलमेर वास्तव्य ॥
[2367] ॐ॥ संवत् १५७ए वर्षे माघ सुदि ४ श्रीफकेशवंशे सा ताब्हण पुत्र सा लोजा पुत्र सा० वणरा सहितेन सा वक्षाकेन ब्रात कम्मा पुत्र हांसा धन्ना सहसा परिवृतेन स्वपुण्यार्थं श्रीनेमिनाथवि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगचे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिननप्रसूरिनिः॥
[2368] ॥ संवत् १५०१ वर्षे माघ वदि षष्टी बुधे श्रोउपकेशवंशे बाजद्दड़गोत्रे मंत्रि कालू मा० करमादे पुत्र मंण रादे बाहड़ा नयणा सोना नोडा पितृ । मातृश्रेयसे श्रीसुमति. नायविं कारापित प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगळे श्रोजिनइंससूरिजिः ॥
__ [2360] ॐ ॥ सं० १५५३ वर्षे शाके १४५७ प्रवर्त्तमाने महामाङ्गस्यप्रद श्री माह व प्रतिपदादिने गुरौ पुष्यनक्षत्रे ॥ श्रीवापनागोले साल माला पु० वरहदा जाप सिरियादे निमित्ते श्रीकुंथुनाथविवं कारितं ज० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥
[2370] संवत् १६१० वर्षे माघ सुदि १३ रखो श्रीसुमतिनाथ राईधांनपुर वास्तव्य श्रीश्री.
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[ ] मामीज्ञातीय मुहवणा नातरंगा नार्या बमह(?)बाई सुत करमसी धरमसी करत श्री. तपागळे श्री विजयदानसूरिनिः॥
[2371] संवत् १६१७ वर्षे माघ सुदि १३ रवौ श्रीवासुपूज्य राधनपुर वास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय महं आना जाय वा अहिदे प्राता दत्ता नार्या बा देमा सु० जुपति जाणा साणा कारितं श्रीतपा श्रीविजयदानसूरिनिः ॥
(23721 संवत् १६२६ फागुण वदि ८ सोंमे उसवंशे घीयागोत्रे सा० दोना नार्या ........ सा पेथा नार्या मनरंगदे सुत नरबद श्रीतपागच्छे सिरोमणि श्रोहीरविजयसूरि प्रतिष्ठितं श्रीसंभवनायविं कारितः श्रीस्तंनतीर्थ श्रीखंजाते नगरं प्र०..........: ।
___ [2373] ॥ संवत् १६४६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि .ए सोमे ऊकेशवंशे सा० वीरजी नान्हा सुत सूरजी युतेन श्रीअजिनंदनबिं प्रतिष्ठितं ............।
[2374] संवत् १६७३ वर्षे थासाङ वा ४ जेसलमेरु वास्तव्य को। देपा सुत कोकवाकेन श्रीधर्मनाथवि कारितं प्रतिष्ठितं च तपागलाधिराज नदारक श्री विजयदेवसूरितिः ॥
[2375] ........ .. श्रीनाणकीयगछे सा धीमड़ जा"पुत्र कीकन... पितृश्रेयसे श्री. शांतिनाथः का प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः ॥ .
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[6]
[23761 सं .................पितृमातृश्रेयोर्थ श्रीसुमतिनाथवि श्रीगुणदेवसूरिनिः॥ ऊमरामी वास्तव्य
का प्र० श्रीनगेंगछे
[2377] ............. नाम्न्या स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथवि कारितं श्रीरत्नसिंहसूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥
[2378] ..... श्रीचंप्रनषिवं कारितं प्रतिष्टितं श्री विजयसेनसूरिभिः तपागछ ।
[23703 संo... अषाढ व० ७ कोरंटकगछे जांषदेव नार्या जासू पुत्र चाहड़देव गीदा जगदेव पासदेव पार्श्वनाथप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्रीककसूरिनिः ॥
[2380] श्रीब्रह्माणगछे.. .सा उसन सुत सा आहल सा.........दुसन देव्या कारिता॥
[2381] ............श्रीसुविधिनायविं० प्र० श्रीदेवगुप्त सूरिनिः॥
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-000000000000
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[ए]
श्री शीतलनाथजी का मंदिर।
मूर्तियों पर।
[2382] संवत् १५१७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने उकेशवंशे संखगालगोत्रे सा केव्हो जाये केव्हणदे श्राविकया .......... धन्ना पुत्र मालादिपरिवारसहितया शांतिनाथविं कारितं प्र० श्रीजिनचंडसूरिभिः । श्रीकीर्तिरत्नसूरि प्रमुख परिवारसहितैः ॥
[2383] संए १५१७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने संखवालगोत्रे सा जेम पुत्र .. चांपादिपरिवारस स्वमातृ जसमादे पुण्यार्थं श्रीसुमतिबिंबं कारित....खरतरगन्छे श्री. जिनचं ..... ..
[2384 ] * ॐ संवत् १५२० वर्षे वैशाख मासे धवलपदे १० दिने श्रीजिनचंडसूरिनिः प्रतिठितं । संखवाल सा लषा पुत्र कुंखा नार्या चो० गकुरसी पुच्या नायकदे श्रा० नेमिबिवं कारितं ॥
* पोले पाषाण की मूर्ति के चरणचौकी पर का यह लेख है।
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[ए] पट्टिका पर।
[2385] + ॐ संवत् १६७७ वर्षे माघ सु० ४ दिने शनिवासरे श्रीचतुर्विशति जि.पट्टकः प्रतिष्ठितं श्रोखरतरगच्छावतंस श्रीजिनदत्तसूरि क्रमेण श्रीजिनदत्तसूरि तशे मुक्ता. मणि श्रीजिनचं सूरि श्रीजिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्मसूरि श्रीजिनलब्धिसूरि श्रीजिनचंडसूरि श्रीजिनोदयसूरि श्रीजिनराजसूरि तत्पट्टाकारहारैः श्रीजिनजप्रसूरिचिः कारितं श्रीलकेशवंशे मागाशाषायां सा० करमा पु० सा० लूणा साहड़ मूलू महणा देव्याः तन्मध्ये साहड़ पुत्राः पंचाजवन सा नोजा जगसिंह हेमा मोहण थाहाख्याः ततः मूलू पुत्राः पंच ............
[2386] ... • स्वनार्या श्रृंगारदे पुण्यार्थ शत्रुजयगिरनारावतारपट्टिका . . . . . . .
पंचतीथियों पर।
[2387] सं० १३३३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्र प्राग्वाटझातीय व्य० पूनपाल सुत लूहः वयणकन पितृ .....प्र . . . . . . . सूरिभिः ॥
[2388] सं० १३४ए वैशाख सु० १ प्राग्वाटझातीय सा गेव्हा ...... चतुर्विशतिपट्टः.... .........""प्रा ..........."सूरिजिः ॥
श्वेत पाषाण की २४ मूर्तियों सहित पट्टिका पर यह लेख है।
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जैसलमेर - श्री शीतलनाथ मंदिर। श्री शत्रुञ्जय गिरनारावतार पट्टिका (नं० २३८६)
MILALLAHABAR
SHATRUNJAYA GIRNARAVATAR PATTIKA. SHRI SHITALNATH TEMPLE - JAISALMER
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[१]
[2380] ॐ संवत् १३४ए मार्ग वदि ५ प्रनु श्रीजिनचं सूरिशिष्यैः श्रीजिनकुशलसूरिनिः श्रीशांतिनाथविवं प्रतिष्ठितं कारितं च सा० पूना पुत्र सा० सहजपाल पुत्रैः साग घाघक्ष मयधर घिरचंड सुश्रावकै स्वपितृ पुण्यार्थ ॥
[2300] संवत् १४५६ वर्षे माघ सुदि ३ शनी उपकेशज्ञातीय पितामह सीहा पितामही खीमिणी पितृ कमूथा मातृ नाव्ह श्रेयसे पुनपाल साहिनीराजैः श्रेयसे श्रीपद्म प्रबिंब कारितं प्र० श्रीसूरिनिः॥ शुनं ॥
[2301] सं० १४५ वर्षे वैशाख सुदि ३ बुधे उपकेशज्ञाती बप्पनागगोत्रे सा० कुडा पुत्र सा० साजणेन पित्रोः श्रेयसे श्रीचं प्रजाबि का प्रण श्रीउपकेशग ककुदा. चार्यसंताने श्रीसिद्धसूरि निः॥
[2302] सं० १४५३ वर्षे फा वदि १ दिने श्रीफकेशवंशे बहरागोने सोमण सुत धनसा जो श्रीश्रेयांसबिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगळे श्रीजिन वंजसूरिभिः ॥
2303] सं० १५२७ वर्षे कार्तिक सु० १३ जौमे श्रीश्रीमालझाय श्रेण केव्हा जाग गांगी पु० जसा जार्या मेचू सुप्त गणीश्रा निरिया मेहा सहितेन पि0 मा० घातृ श्रेयोर्थ श्रीधर्मनाविव का प्रण पिप्पलग जा श्रीअमरचं सूरितिः सिरधरग्रामे वास्तव्य ॥
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[ ए ]
[2394]
संवत् १५३५ वर्षे मार्ग० सुदि ६ शुक्रे ॥ श्रीश्रीवंशे श्रे० रामा जार्या रांजलदे पुत्र श्रे० नीनाकेन जार्या गोमती चातृ श्रे० नंग महोराज सहितेन पितुः पुष्यार्थं श्री चंचल गनेश्वर श्रीजय केसरी सूरीणामुपदेशेन श्रीश्रेयांसनाथबिंबं का प्रतिष्ठितं संन वीचीवाडी ग्रामे ||
[ 2395]
सं० १५३८ वर्षे माघ वदि ए शनौ प्राग्वाट ककरावासी व्य० वस्ता जा० वील्ददे सुत पुंजाकेन जा० सोजागिनी पुत्र पर्वत जा० लावा धूतादिकु० स्वश्रे० श्री. शंव काo प्रo तपा श्रीलक्ष्मीसागरसूरिजिः ॥
[ 2396]
सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने श्रोतकेशवंशे कूकड़ा चोपड़ागोत्रे श्रे० लाखल ० लखमादे पु० स० महणाकेन सामहि० जा० माणिकदे पु० धन्ना वन्नादिसुतेन श्री सुमतिनाथविवं कारि० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्री जिनजसूरिपट्टे । श्रीजिनचंद्र सूरिजिः ॥ श्री जिनसमुद्रसूरिनिश्च ॥
[ 2397]
॥ संवत् १५६० वर्षे माह सु० ४ दिने ऊकेशवंशे कांकरियागोत्रे सा० रुमा पुत्र सा० मूका जा० तारादे पुत्र राजन जा० रगोदे पुत्र हमीरादिपरिवारस हितेन श्रीनमिनाथविं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्री जिनदंससूरिजिः ॥
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श्री ऋषभदेवजी का मंदिर।
मूर्तियों पर।
[2308 ] * सं० १५५१ माघ सु. १५ श ..........
[ 2309 ] संवत् १५३६ फागु० सु० ५ दिने श्रीऊ केशवंशे गणधरगोत्रे संग सच्चा पुत्र सं० धन्ना जाए धारलदे पुत्र सं० झाषाकेन पुत्र रत्ना युतेन ला साउनदे पुण्यार्थ सुपार्श्व बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखर० गछे श्रीजिननप्रसूरिपट्टे श्रीजिनवंजसूरिनिः श्रीजिनसमुपसूरिनिः ॥
[2400] ॥ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीऊकेशवंशे गणधरचोपड़ा. गोत्रे सा पासड नार्या प्रेमखदे पुत्र संप जीवंद सुश्रावकेण नार्या जीवादे पुत्र सा सद्धा धीरा। श्रांवा । हरषा प्रमुख परिवार सश्रोकेण श्रीमरुदेवा स्वामिनी मूर्तिः कारिता प्रनि० श्रीखरतरगछे श्रीजिनजप्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंप्रसूरिनिः ॥ श्री. जेसलमेरु महामुर्गे ॥ श्रीदेवकर्ण विजयराज्ये ॥
* यह एक छोटी मूर्ति पर का लेख है । + पोले पाषाण को मूर्ति पर यह लेख है।
के रंगमंडप के बाई तर्फ पोले पाषाण के हाथी पर धीमरूदेवी माता को हाथ जोड़े बैठी हुई मूर्ति के पीठ पर यह देख खुदा हुआ है।
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[ ए४ ].
[2401 ] *
(१) ॥ संव० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ए जौमवासरे श्रीउपके ( २ )
शवंशे बाजहड़गोत्रे मंत्रि फलधरान्वये मं० जूनिल पुत्र मं० का( ३ ) लू जा० कम्र्म्मादे पु० नया जा० नामलदे तयोः पुत्र मं ( ४ ) सीदा जाया चोपड़ा सा० सा पुत्र सं० जिनदत्त जा० लषाई ( ५ ) पुत्र्या श्राविका अरव नाम्न्या पुत्र समधर समरा संडू सहि ( ६ ) तथा स्वपुण्यार्थं श्रीयादिदेव प्रथम पुत्ररत्न प्रथम चक्रवर्त्ति
1 ) श्रीजरतेश्वरस्य कायोत्सर्गस्थितस्य प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठि (८) हा श्रीखरतरगष्ठमंडन श्री जिनदत्तसूरि श्री जिनकुशलसू(ए) (रिसंतानीय श्री जिनचंद्रसूरि पं० श्रीजिनेश्वरसूरिशाखायां । श्री ॥ (१०) जिनशेखरसूरिपट्टे श्री जिनधर्म्मसूरिपद्यालंकार श्री पूज्य
( ११ ) ( श्री जिनचंद्रसूरि निः ॥ श्रोः ॥ श्राविका सूरमदे कारा पिता )
[2402]+
( १ ) सं० १५३६ फा० सु० ५ श्री ऊकेशवंशे
( २ ) वैदगोत्रे मं० सुरजण पुत्र मं० कला
( ३ ) केन जा० रत्तु पुण्यार्थं मु० शिवकर युते
( ४ ) न श्रीबाहूब लिमूर्त्तिः कायोत्सर्गस्था
( 4 ) कारिता प्रति० श्री जेसलमेरुडुर्गे गए
* यह लेख दाहिने वर्ष विशाल मूर्ति के चरण चौकी पर खुदा हुआ है।
+ यह लेख बांई तर्फ श्रीबाहुबलजी की कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी विशाल मूर्ति के वरणचौकी पर खुदा हुआ है।
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[ए] (६) धर चोपड़ा से० धर्मा कारिन प्रतिष्ठायां (७) श्रीखरतरगळे श्रीजिननप्रसूरिपट्टे (७) श्रीजिनचंप्रसूरिभिः श्रीजिनसमुप्रसूरिनिः...
......
......
...
पट्टिका पर ।
{ दाहिने तर्फ
[2403] संवत् १५३६ वर्षे फागु० सुदि ५ दिने श्रीजकेशवंशे गणधरचोपड़ागोत्रे सं० पासड भार्या प्रेमनदे पुत्र सं० जीवंद सुश्रावकेण नार्या जीवादे पुत्र साप सजा सा धीरा सा आंबा सा० हरपा पौत्र सा० रायम सा० श्रासकर्ण सा० उदयकर्ण साप पारसादिपरिवारसहितेन नगिनी श्रा० पूरी पुण्यार्थ श्रीवासप्ततिजिनवरेअपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगछे श्रीजिनन्नप्रसूरिपट्टे पूर्वाचलसहस्रकरावतार श्रीजिनचंप्रसूरिभिः ॥ तत् शिष्यगज श्रीजिनसमुप्रसूरिनिश्च ॥ श्रीशुनं भूयात् ॥
[2404] ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रोमकेशवंशे। श्रीवांठियागोत्रे सा गांगा नार्या । श्राविका सोहग पुत्र धाडी वाहा सारा रहिया नार्या श्राविका देवलदे पुण्यार्थ पुत्र साप दांमा सुश्रावकेण नार्या श्राविका हासलदे पुत्र सा मंडलिक सा0 ईसर सा० कूरां प्रमुख सारपरिवार सश्रीकेण सप्ततिशत जिनवरेंऽपट्टिका कारयांचक्रे । प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे । श्रीवर्द्धमानसंताने। श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनचं सूरि श्रीजिनपत्तिसूरि श्री जिनेश्वरसूरि श्रीजिनप्रबोधसूरि श्रीजिनचंडसूरि श्री.
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[ए] जिनकुशलसूरि श्रीजिनपद्मसूरि श्रीजिनधिसूरि श्रीजिनचंडसूरि श्रीजिनोदयसूरि श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिननप्रसूरिपट्टे श्रोजिनचंद्रसूर श्रीजेसलमेरुमहापुर्गे श्रीदेवकर्ण राउल विजवराज्ये श्रीगणधरचोपड़ा प्रासादे स्वपुति ...........
... . . . . . . . ' शुनं नक्तु
124083 ॐ संवत् १५३६ वर्षे फागुण वदि ५ दिने श्रीफकेशवंशे श्रीगणधरगोत्रे सं० पासड जार्या प्रेमलदे पुत्र सं० जीबंद सुश्रावकेण स समधर माय बरजू पुण्यार्थ विसति जिनपत्रिका कारिता प्रतिष्ठिता स्वरतर श्रीजिनजारिष श्रीजिनचंद्र ..........
[बाई तर्फ
{2406] ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीफकेशवंशे श्रीगणधरचोपड़ागोत्रे साग नाथू पुत्र सं० सच्चा नार्या सं सिंगारदे पुत्र संजीमसी सुश्रावकेण जाणे श्राप राजलदे पुण्यार्थ पुत्र सा सूरा सारा सामल सा० सरवण सा कर्मसी नाग सूरजदे नार्या सांमझदे प्रमुखै संसार परिवारसहितेन श्रीविंशतिविरहमाण श्रीजिनवरेंऽपट्टिका कारयांचके। प्रतिष्ठिता श्रीखरतरगचे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीमत् श्री. जिनजप्रसूरिपटाखंकार सार श्रीजिनचं सूरिनिः। तछिष्य श्रीजिनसमुप्रसूरि श्रीगुण. रत्नाचार्य श्रीसमय नतोपाध्याय वा मुनि सोमगणि प्रमुख साधु परिवार सहितेन श्रोजेसलमेरुजुर्गे श्रीदेवकर्णेश्वरराज्येदं कारितं प्रासादे मंडिता पूज्यमाना चिरं नंदतु ॥
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[ 19 ]
'चौवीसी पर
[2407]
सं० १५०६ वर्षे माघ वदि ७ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय व्य० वरपाल जा० वीब्दपदे सु० व्य० लाडण जा० मामूं सु० व्यव पासाकेन जा० जांऊण जा० घरपा लादि सर्व कुटुम्बसहितेन श्री विमलनाथादिचतुर्विंशतिप स्वस्तृिश्रेयोर्थं श्री पूर्णिमापक्षे श्रीवीरसूर णामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना ॥ श्रीः ॥ तरजद्र ॥
पंचतीर्थी पर |
[2408]
|| सं० १५६४ वर्षे वैशाख वदि ७ शन उपकेशज्ञा० वा० गोत्रे जूविल वं० मं० निया जा० नामलदे पु० मं० सीहा जा० सूरमदे पुत्र मं० समघर जा० सकादे पुत्र सदारंग कोका युते पुष्यार्थ श्रीश्रेयांसनाथविवं का० श्रख० गते श्रीजिनचंद्रसूरिपट्टे श्री जिनमें " सूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥
समोसरण पट्ट पर |
[2409 ]
(१) ॥ ॐ ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीककेशवंशे श्रीगणधर - नाथू पुत्र सं० सच्चा जार्या शृंगारदे पुत्र [सं० जिनदत्त श्रावण जाय खखाई पुत्र अमरा यावर पौत्र हीरादियुतेन श्रीसमवसरणं.
चोपड़ा
:
कारितं
मंदिर के दाहिने तरफ स्तंभ पर तीन प्राकार सहित यह यह है । इसके प्रत्येक प्राकार में यह लेख खुदे हैं।
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(२) प्रतिष्ठितं श्रीमत् श्रीखरतरगचे श्रीजिनेश्वरसूरिसंताने श्रीजिनकुशससूरि
श्रीजिनपद्मसूरि श्रीजिनसब्धिसूरि श्रोजिनराजसूरि श्रीजिनलप्रसूरिपट्टे श्री.
जिनचंद्रसूरि शिष्य (३) श्रीजिनसमुप्रसूरि प्रमुख सहितः श्रीदेवकर्ण राज्ये ॥
श्री महावीरस्वामी का मंदिर ।
शिलालेख।
[2410] + ॐ सं० १४७३ वर्षे सं० कोहट सा देवदत्त उसजवन धामा कान्हा जीवेद जगमाल स० कपूरी मान्दणदे कर्मी प्रमुख परिवारेण स्वपुण्यार्थ देवाहका कारिता ॥
चौवीसी पर।
[2411) - संवत् १४ए। वर्षे 10 चा प्र... दीता नाग देवा पु० गुणसेन नाद गुरुदे निमित्तं श्रीसुविधिनाबिवं कारापितं प्रतिष्ठितं उपकेशगछे जहारक श्रीसिद्धसूरिनिः । वाघमार ज्ञातीय ॥
न वादन जिनालय के द्वार के ऊपर रे भाग पर यह लेख है।
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[ए]
[24121 सं० १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि .५ सोमे श्रीसूराणागोत्रे सा मुलिचंद पु० सं० जिणदेव नार्या जयतादे पुत्र रांग कामाकेन श्रात्मपुण्यार्थ श्रीकुंथुनाथादिचतुर्विंशतिजिनपट्टः कारितः प्रति० श्रीधर्मघोषगळे श्रीपद्मशेखरसूरिपट्टे श्रीपद्मानंदसूरिभिः ॥
[2418] सं० १५३१ वर्षे वैशाख सु० ३ श्रीश्रीमालशातीय मं० धोका जाप वाबू सुत समवर ना० सूहवदे सुत देवदासेन जात अदा घोधर कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्री. मुमतिनाथादिचतुर्विशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः पूर्णिमापक्षे श्रीमही तिलकसूरिपट्टे श्री. गुणतिलकसूरिचिः वाराही वास्तव्य ॥ श्रीः ॥ .
पंचतीर्थयों पर।
[2414] ॐसं० १९७१ ज्येष्ठ वदौ ६ शुक्रवारे श्रीअजितदेवाचार्यः प्रतिष्ठिता श्रे० प्रमत पाहिणि मुहिता जिंढा सुत ब्रह्मदत्त नार्या सोहिणि श्राविका निमित्तं प्रयत्नेन . . • दानेन कारिता।
[24151 ॐ सं० १२३६ माघ सुदि १३ गुरौ सरवालगछे श्रीवर्धमानाचार्यसंताने रावड पुत्र माणु तथा नार्या वाले वि(?) सहितेन सुत देदा कवडि बासषकेन यात्मश्रेपोर्थ कारिता॥
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[ १०० ]
12416] - संघ १३३ वर्षे श्रेण सोमसीह नार्या हांसल पु० जयतसीह जगसीह कुअरसीद. प्रभृतिभिः पितृश्रेयोर्थ श्रीनेमिनावित्रं कारितं प्रति श्रीक्षेत्रगलीय - श्रीधर्मदेव सूरिजिः॥
[2417] ॥ सं० १४३३ वर्षे । माघ ० ५ लोढ़ागोए मूंगर पु० सा हादाकेन सयणाकेन स्वश्रेयो) प्रण रूमा श्रीहर्षसुंदरसूरिभिः ॥
[2418] संवत् १४५५ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रोआंचलगळे श्रीमरुतुंगसूरीणामुपदेशेन सं० आल्हा सुत सं० लषमासीह युतेन सं० वोडाकेन पितृ सं० पासड़ श्रेयोर्थ श्री. वासपूज्यबिंब कारितं श्रीसूरिनिः प्रतिष्टितं च ॥
[2410] सं० १५०० प्राग्वाट् व्या रूदा नए जनी पुत्र रणसिंहेन ना पूरी ना धणसी गुणा च तथादि कुटुंबवृत्तेन निज श्रेयसे श्रोसुमतिबिंबं कारि० प्र० तपा श्री. रत्नशेखरसूरिजिः ॥
[2420] सं० १५१५ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे अकेशवंशे सा० मूला नाप जामणि पुरु उढर श्राछेन ना अहिवदे पु० महिपाल तेजसी रोहा सहितेन स्वश्रेयसे श्रा. अंचलगलनायक श्रीजय केसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीविमलनाथवि कारितं ॥ प्रतिष्ठितं संघेन ॥
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[२०१1
[2421 ]
॥ [सं०] १५१५ आषाढ व १ (१) मंत्रिदसीयवंशे काणागोत्रे व लीघ्र जा० धरमथि पु० सं० श्रचलदासेन स्वपुष्यार्थ श्रीनमिनाथबिंबं का० उसीयड़गोत्रे उ० वीरनाथ to तिलोकदे पु० उ० करणस्य दत्तं च प्र० श्रीखरतरगछे श्री जिनदर्षसूरिजिः ॥
[2422]
# सं० १२१५ मात्र ६०५ शुक्रे नागरज्ञाति गोवी aart were श्रीमुनिसुव्रतनं कारितं प्रति सूरिनिः श्रे० समधर धीरा विडा वासी ।
लबमा जाय सारू तया श्रतपापक्षे श्रीदयवनः
{2423]
॥ ॐ ॥ संवत् १५२० वर्षे आषाढ सुदि २ सोमे केशवंशे सांदू शाखायां सा० बोहिल जा० रोहिणि पुत्र सा० शिवराजेन जा० सुहवाड़े पुत्र सा० माला सा० बालादियुतेन श्रीकुंथुनाथ त्रिषं कारि० प्र० श्रीखरतरगचेश्वर श्रीजिनद्रसूरिट्टे श्री. जिनचंद्रसूरिजिः ॥
[2424]
पुत्र
॥ संवत् १५३० वर्षे चैत्र वदि ६ गुरौ ॥ श्रीसर्वशे सा० धीरण जार्या धनू योमाकेन जार्या पोमादे जातृ सूरा सीहा सहितेन चा० चापा श्रेयसे श्री चंचलगधेश्वर श्री जयकेसरिसुरीपामुपदेशेन श्रीसुविधिनाथविं कारितं प्रतिष्टितं संघेन ।
[2425]
संवत् १५३५ वर्षे फा० सु० ३ दिने क्रकेशवंशे तातोत्रे सा० धन्ना जा०
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[१०२ ]
रयणा पुत्र सा० मूलकेन जा० रत्नाई नांगू पुत्र रिक्खा तत्पुत्र ऊदा सूदा प्र० परिवारयुतेन श्रीपार्श्वनाथविषं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीखरतरगछे श्री जिनजसूरि. पट्टे श्री जिनचंद्रसूरिजिः ॥
[2426]
॥ संवत् १५३६ व० [फा० सुदि २ दिने चोपड़ाकूकड़ागोत्रे स० लाला जाय लीलादे पुत्र रत्नपाला निघेन जार्या वाढदादे पु० देवदसादि पुत्र परिवार स० श्रीकेण श्रीश्रजितनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्री जिननद्रसूरिपट्टे श्री जिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्रीजेसलमेरो ॥ चोपण प्रतिष्ठायाः ||
[2427 ]
सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे जणसाली सा० रहिया जाय रूपिणि पु० सा० शिपरेण जाय पाई युतेन श्री कुंथुनाथविवं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्री जिनचंद्रसूरिपट्टे श्री जिनचंद्रसूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥
[2428]
॥ सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे कूकड़ा चोपड़ागोत्रे सं० लावण जाय लबमादे पुत्र सा० सदणकेन जार्या श्राव सोहागदे पुत्र सामंता परिवारयुतेन श्रीयादिनाथवित्रं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनजप्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिजिः शिष्य श्रोजिनसमुद्रसूरिजिः श्री श्री नमः ॥
[2420 ]
॥ संवत् १५६३ वर्षे चैत्र वदि ५ शुक्रे श्रीश्रीमाल झा० मं० देवा सुत म० सहिजा
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[ १०३ ] जा गोमति सुण मं० धर्मण जात पहुती सहितेन मातृपितृनिमित्तं श्रात्मश्रेयसे श्रीपार्श्वनायविंबं का प्रतिष्ठितं मधुकरगछे जा श्रीमुनिप्रनसूरिनिः॥ धीणगोत्रेय ॥
[2430] ॥ सं० १५७७ वर्षे वैशाख सुदि ११ गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेण हरराज ना हांसी सुत सोपा हर्षान्यां मातृपितृनिमित्तं श्रीशांतिनाथबिंबं श्रीब्रह्माणगछे श्री. विमखसूरिनिः जांऊरूया।
[2431] ॥ संवत् १६४६ वर्षे मार्गशर सुदि (१) शुक्र श्रीश्रीमालज्ञातीय मंत्रि वीरधवल ला वारू सु० वेनु सहिजड वेशा ना रायाने सु० देषन जा० गोमति सु० वसु स्वपितृमातृनिमित्तं श्रात्मश्रेयसे श्रीजीवतस्वामिबिंबं श्रीशीतलनाथचतु पट्टः कारापिता श्रीपिप्पलगछे श्रीगुणसागरसूरिपट्टे जा श्रीश्रीशांतिसूरिनिः॥
पट्ट पर।
[2432] + (१)॥ॐ॥ संवत् १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ दिने जकेशवंशे डागा जोजा पुत्रेण
सा मेहाकेन स्वजार्या सक्षषण पुण्यार्थ ॥ (२) श्रीचतुर्विशति तीर्थकर मातृ पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता पोखरतरगलाक्षंकार
श्रीजिनराज(३) सूरिपट्टालंकरणैः श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः ॥ जाग्यसूरि प्रजावसूरिभिः ॥
देवकुलिका में पीले पाषाण को चतुष्कोण चौवीस जिन माता के पट्ट पर यह लेख है। पट्टकी शिला २ फुट का है।
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[ २०४] गणधर की मूर्ति पर।
12433]. (१) संवत् १६०६ वर्षे पोस वदि दिने (२) श्रीगोतमस्वामिमूर्ति कारिता सक(३) अ संघेन प्रति श्रीविजयदेवसूरिजि. (४) रुपदेशात् गणि · · सोमविमलगणिनिः ।
पापुका पर।
: [24344 संवत् १५०० बर्षे मिगसर मुदिन... श्रीसंघेन कारित प्रतिक
[24351 संवत् १६७६ वर्षे आश्विन मासे शुक्लपके १५ तिको सोमवार श्रीजिनकुशवमूरि पापुका वर ........
* सभामंडर के दाहिने तरफ हाथ में अपमाला सहित सुखासन में बैठी हुई पोले पाषाण की मूर्ति के चरणचौकी पर यह लेख है।
* सभाडप के बांये तरफ खेत पाषाण के चरण पट्ट पर यह लेख खुदा हुआ है। ___ + ग्रह लेख पाहिले तक है।
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[ १०५ ]
बड़ा भंडार।
मूर्ति पर।
[2436] * ॐ संवत् १४७ वर्षे मार्गसिर वदि ३ दिने श्रीसुमतिबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनननसुरिनिः कारितं सं० सहसा जार्या मसी श्रेण
__[24371 संवत् १५३५ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ उपकेशवंशे बाजहड़गोत्रे सं० वेगड़ा श्रेयोर्थ देवदत्त पुत्र मंत्री गुणदत्त ना सोमखदे तयोः पुत्रेण धर्मसिंहेन पुण् समरयादि परिवारस० ला पुण्यार्थ श्रीनमिनायविंचं का प्र० खरतर श्रीजिनधर्मसूरिपट्टे श्री (जनचंडसूरिनिः ॥
पट्ट पर।
[2438} सं० १४५३ वैए सु० ३ ऊकेश सा देवदत्त नार्या देवलदे पुत्र सा० नगराज जार्या यशोण रामदे नार्या परमादे पुत्र्या श्राप सापू नाम्ना श्रीशांतिनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीसूरिनिः ॥
-
:-::-:
यह लेख श्रीसंभवनाथजी के मंदिर के नीचे बड़े भंडार में रखी हुई खंडित पापण की मूर्ति के वरण चौकी पर सुदा हुआ है।
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[ १०६ ]
शहर
में 1
श्री विमलनाथजी का मंदिर |
मूर्तियों पर ।
[2439 ] *
॥ संवत् १६६६ वर्षे पौष वदि ६ भृगुवासरे वृऊशाखायां ऊकेशज्ञातीय. का० प्र० च श्रीत० श्री विजयसेन
श्री विमलनाथ
*.*......
[2440]
सं० १६१५ वर्षे वैशाख वदि ६ श्री ओसवंशे संखवालगोत्रे सा० राजा पुत्र पंचा येण श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० खरतरगच्छे श्री ज्ञानचंद्रसूरिनिः
[2441] +
सं० २०३१ वर्षे माघ सुदि ९ बिंबं पदमावती पार्श्वनाथ सूरी जरी है ।
*******
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श्रीवि देव
"A
पंचतीर्थयों पर |
[2442]
संवत् १५१३ वर्षे मार्गशीर्ष मासे ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा० करमण सुत साक्ष जेसा जाय मदी पुत्र सा० खोखाकेन जार्या हरषू पुत्रपौत्रादिपरिवारसहितेन श्रीधर्मनाथत्रिवं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्री जिनजप्रसूरि जिः ॥ व ॥
* यह मंदिर श्रीआचार्यगच्छ के उपासरे में है और श्रीमूलनायकजी की पत्थर की मूर्त्ति पर यह लेख खुदा हुआ है। + देवी की मूर्ति पर यह लेख है।
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[१०]
[2443] संवत् १५६७ वर्षे वैशाख सुदि १० ऊकेशवंशे चोपड़ागोत्रे सा महणा जार्या मेखादे पुत्र स० धन्नाख्येन सं० सांगणादि पुत्रपरिवारपरिवृतेन श्रीशांतिनाथविवं का रितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगळे श्रीजिनइंससूरिनिः ॥ जेसलमेर वास्तव्य ॥
रौप्य के यंत्रों पर।
(2444] श्री संवत् १०४३ मिति मार्गशीर्ष तृतीयांतिथौ श्रीमहत्खरतरगळे साहजी श्रीतिलोकचंदजित्कस्यात्मज सा श्रीजसिंघदासजी श्रीसिद्धचक्र कारापितं । जंगमयुगप्रधान जट्टारक श्रीजिनचं सूरिजिः ॥ लिखितं पं० ॥ चातुर्यनंदि मुनिना ॥
[24451 गहो श्रीसिद्धचक्रजी को उमावचंन जंदानी की बहू ने आचारजगढ का उपासरे में चढ़ायो बनायो बबड़ा में संवत् १९२३ माह सु० १५
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[ १८]
वेगड़गच्छ का उपासरा।
शिलालेख ।
[2446 ] * (१) ॥ ॐ ॥ ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ श्रीवागमेशाय नमः (२) ॥ संवत् १७०१ वर्षे शाके १६४६ प्रवर्त्तमाने महामांगट्यप्रदो (३) मासोत्तम चैत्र मासे लीलविलासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां । (४) गुरुवारे उत्तरा फागुनीनक्षत्रे वृजिनामयोगे एवं शुजदि(५) ने श्रीजेसलमेरुगढ़ महाउगें राउल श्री ५ अषैसिंहजी विजैराज्ये (६) श्रीखरतरवेगडगळे नहारक श्रीजिनेश्वरसूरिसंताने जहारक (७) श्री जिनगुणप्रनुसूरिपट्टे न0 श्री जिनेशरसूरि तत्पट्टे जट्टारक श्री ५ (७) जिनचंडसूरिपट्टे नट्टारक श्रीजिनसमुप्रसूरि तत्पट्टालंकारहार सा. (ए) रजट्टारक श्री १०७ श्रीजिनसुंदरसूरि तत्पट्टे युगप्रधान नहारक श्री (१०) ७ श्रीजिनउदयसूरि विजयराज्ये प्राज्यसम्राज्ये ॥ श्रीरस्तुः ॥ श्रीः ॥
[2447 ] + (१) ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १६ चैत्रादि १३ वर्षे जेठ सुदि (२) १५ सोमवारे मूलनक्षत्रे । श्रीजेसलमेरुनगरे राउत श्रीक
* उपासरे के बाहर बायें दीवार पर यह शिलालेख लगा हुआ है। (१. O. S. के परिशिष्ट में यह प्रथम छा था परन्नु भ्रमश दो नंबर में प्रकाशित किया गया है। नीचे का अंश नं० २० में तथा ऊपर का नं० २१ में है।
यह शिलालेख भी वहीं बाहर के दीवार पर लगा है और बीच से टूट गया है। यह (5. .5. के नं0 में छपा है।
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जैसलमेर - श्री बेगड़गच्छ उपासरा प्रशस्ति (नं० २४४६ )
॥दा उनमः श्री या घनाथाय नमः ॥ श्री वाग है शायनमः। संवत् १९०१ वर्ष शाक १६४६ वर्तमाने महामा गल्प प्रदा मासो तमचेत्रमा सलीलविला से श्रुत पक्ष त्रयो द स्प गुरुवारे उत्तराफाल्गुनीन ज्ञने वृद्धिनामयोगे एवं नदि ने श्री जेसलमेरु गुमहाग्रे राउल श्री सिंघजी विजे राज्य श्री खरतरगर नहारक श्री जिनेश्वर सिंताने तहारक श्री जिनगुप्र तु सूरि पट्टे त० श्री जिनेशर सूरित पट्टे नहारक श्रीम जिनचंद्रसूरि पटेसहार के श्री जिन समुद्रसूरितत्य हालेका र हारसा स्तहारक श्री१०१ श्रीजिन सुंदर सूरितत्पट्टे युगप्रधान नहारक श्री श्री जिन उदय सूरिविजय राज्ये प्राज्प सम्राज्य। श्रीरस्तुः ॥ श्रीः
SHRI BEGARH GACHHA UPASARA PRASHASTI-JAISALMER.
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0000m
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जैसलमेर - श्री बेगड़गच्छ उपासरा प्रशस्ति ( नं० २४४७ )
श्री
दि
३ सदरमूलन करे। श्री जे सलाम नगरे गलश्रीको ल्याएाजी विजय राज्य । श्रावर गडराने व श्री जिनेश्वर विजयराज्याना जगाचा कल वरावयाम (वेगड / 93 मुंब | सूरात्पुत्रमादवने 90 रन ब विक्रममसीनानमंत्री सरनाम सजायानमाला वापसी मण्उदय सिद्धान चोकर सीमॅटोरमा देवी उदयन राज्य शहर में लेन से नपाले सहित) नगरि कारित श्रीमंघ स्पा
रणजन
पैदा
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[ १०९] (३) ब्याणजी विजयराज्ये। श्रीखरतरवेगड़गछे । ज० श्रीजिनेश्वरसूरि (४) विजयराज्ये। बाजहड़गोत्रे । म अधरान्वये । मंत्री वेगड़। पुत्र मं० (५) सूरा। तत्पुत्र मंण् देवदत्त । पुत्र मंत्री गुणदत्त । तत्पुत्र मं० सुरजन । मंग (६) वकमा। धरमसी । रना । लषमसी। मंत्री सुरजन पुत्र । मंजीआदे (७) सू । जोया पुत्र मंत्रो पंचाइण। पुत्र मंग चांपसी । मंग उदयसिंह में (७) वांकुरसी । मंग टोडरमस । चांपसी पुत्र देवकर्ण । उदयसिंह पुत्र (ए) महिराज । प्र. राजा मंत्री टोडरमलेष पुत्र सोनपाल सहिते(१०) न उपासस द्वारं सुबट कारितं ॥ विस्जयतु । श्रीसंत्रस्य ॥ (११) ॥ सूत्रधार पांचाकेन कृतं ॥ अंशाणी ।।
सेठ थीरूसाहजी का देरासर ।
मूर्तियों पर।
[2448] संवत् १६१० वर्षे फागुण वदि दिने व्यः अदाकेन आस्मश्रेयोर्थ श्रीयादिनाथ बिवं कारित प्र० श्रीविजयदानसूरिभिः ॥
[24491 सं० १६३६ श्रीपार्श्वनाथ व श्रीबाई....
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[१२० 1 पंचतीर्थयों पर ।
[.2450]
: ॥ सं० १४०० वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे गूजरज्ञाती मंत्री० सामल सुत मं० सायरेण निज ज्येष्ठ चातुः मंत्री सदाकस्य श्रेयसे श्रीअजिनंदन पंचतीर्थीप्रतिमा कारिता प्रति० श्री सर्वसूरिनिः ॥ श्री तिलक सूरिजिः ॥
{2451 ]
॥ ॐ ॥ संवत् १४७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने ऊकेशवंशे चो० दीता पुत्र चो० पांचा पुत्र चो० महिराज श्रावकेण पुत्र सहस साजण प्रमुख परिवारसहितेन श्री शांतिनाथर्थिवं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगले श्री जिनजप्रसूरिगुरुजिः ॥
[2452]
॥ ॐ ॥ संवत् १४७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ दिने बुधे उपकेशवंशे चो० दीता पुत्र चो० पांच पुत्र सा० लोला श्रावकेण पुत्र सहजपाल नूरा प्रमुख परिवारस हितेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्री जिनजप्रसूरिनिः ॥
[2453:]
॥ संवत् १५०३ वर्षे मार्ग० सुदि श्रखौ सुंचियागो० सा० सीरंग जा० सिंगारदे पु० वीरधवल जा० वींकलदे पु० साल्हा सहसा लाखाकेन चातु काजल निमित्तं श्री - कुंथुनाथविवं कारि० प्रतिष्ठि० श्री पूर्णिमापक्षीय श्री जयप्रसूरिपट्टे श्रीजयन सूरिजिः ॥ ॥ शुभं ॥
[2454]
|| संवत् १५२७ वर्षे फागुण सुदि १ शुक्रे | श्रीउएसवंशे ॥ मीवाडयागोत्रे व्य०
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[१११] सायर ना चमकू पुत्र व्य० धनाकेन जाए धनादे पुत्र जेता सहितेन स्वश्रेयोथ श्रीअंचलगञ्जेश श्रीजयकेशरिसूरीणामुपदेशेन श्रोशीतलनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठित संघेन पारकर नगरे
[2455] ॥ संवत् १५३५ वर्षे वैशाख सुदि १३ सोमे उपकेशज्ञा० नाभूगोत्रे सा सजन पुस जरदू जाण मेहिणी पु० देवा जाण देवलदे भ्रातृ मयाऊदा सं० देवाकेन स्वपुण्यार्थ स्वश्नयसे श्रीवासपूज्यमुख्यविवं चतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीरुपलीयगळे श्रीजिनोदयसूरिपट्टे श्रीजिनचंञसूरिनिः ॥ मूक्षताण
[2456] सं० १५४५ वर्षे फागुण वदि । शनौ ओ पलडेवागोत्रे सा0 माला जार्या मोहिणदे पुत्र देला नार्या दाडिमदे पुत्र मांडण मेरा कर्मसी युतेन आत्मश्रेयसे श्रीसंजवनाथविबं कारितं प्रा मडाहडागळे श्रीनयचंचसूरिनिः अरहटवाडा ग्रामे ।
[2457] ॥ सं० १५४५ वर्षे वैशाख सुदि १५ रखो वृद्धप्राग्वाटज्ञातीय श्रेण सिवा जा० धर्मिणी सुग श्रे हांसा जाल हांसलदे जात श्रे० वछा ना माणिकी सुत श्रेण रवा जाण् हरषादे सुत मूक्षा युतेन स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथचतुर्विशतिका कारिता । प्रतिष्ठिता साधुपूर्णिमापके जट्टारक श्रीउदयचंप्रसूरि तस्पट्टे जट्टारक श्रीमुनिचंद्रसूरिनिविधिना ॥ श्रीचंपकनगर वास्तव्य ॥ कल्याणं च
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[११] चौवीसी पर।
[2458] सं० १५१० [६० ज्ये० सु० ३ गुरौ । श्रीसिद्धपुर वास्तव्य ओसवालझातीय AR, सहदे सुत सा सोना लाए गोरी पुत्र सा साधारण सधु घातृ सा देपासेन जार्या करमी सुत श्रीवछ श्रीचं प्रमुख कुटुंषसहितेन स्वश्रेयसे श्रीविमलनाथर्विवं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीवृहत्तपाप जहा श्रीरस्नसिंहसूरिलिः ॥ शुनं ।
00000000000
सेठ केशरीमलजी का देरासर ।
( इंदौरबालों की हवेली) शिलालेख।
[24501 ॥ श्री गुरवे नमः ॥ संवत् १७०७ शाके १७७५ नाइवा सु ७ गुरुवारे श्रीदेरासर. जी को जानत पिता घर सिंघवी प्रतापचंद हनतराम जेठमल नथमल सागरमल शादिमल कारापितं ॥
मूर्सियों पर।
[2480 ] * सं० १९०१ वर्षे पौण् सु० १५ गुरौ पुष्ये श्रीपार्श्वजिनवियं वाफण श्री जोरावरम
* यह लेख चांदी की सफण मूलनायकजी की मूर्ति पर खुदा हुआ है।
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[ ११३ 1
सपरिकरः कारितः प्रतिष्ठितं वृत्खरतरगञ्जाधीश्वर जंगमयुग ज० श्रीजिनमहेंद्रसूरिनिः
रतलाम |
[2461]
सं० १५०८० वर्षे या० सुदिप सोमे । श्रीमालीज्ञा० मं० चांपा जा० जंगी पु० मु० जनाश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथवित्रं कारितं
सं० १७७२ वर्षे चैत्र
[2462] •
रगवते (?) गांदी सहसमल
पंचतीर्थयों पर |
[2463]
|| सं० १८१५ वर्षे आषाढ वदि २ शुक्रे उकेशवंशे परीक्षोत्रे पं० सारंग सुत पं० श्रजा जाय श्रामलदे पु० पं० पर्वत सुश्रावकेण युशस जगमाल परिवारसहि तेन श्रीमतिविं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिननसूरिपहे श्रीजिनचंद्रसूरिनिः ॥
[2464]
• जाय जायणा का
॥ संवत् १५३३ वर्षे कातिक सुदि जार्या वरजू सुत नागा जाय नागलदे
० श्रीधिराद्रागो (?) श्रीविजयसिंह सूरिपट्टे श्रीश्री शांतिसूरिजिः ॥
exte
* सर्वधातु की सफण मूर्ति पर का यह लेख है।
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गुरौ गौतम गोत्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय पालड़ सुत सुंधा सहितेन श्रीशांतिनाथवित्रं का०
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[११४]
सेठ चांदमलजी का देरासर ।
पंचतीर्थयों पर।
[2465] सं० १२०५ श्राषाढ वदि ५ सा सूहवदेन प्र० कारितं ।
12466]
सं० १५३७ वर्षे वै० सु० ५ बुधे पत्तनवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय व्य० सहसा जा० संपूरी नाम्न्या पुत्रमेला जा० फदकू हि पुत्र सिंघादिकुटुंबयुतया खनेयसे श्रीसुमतिनाथर्विवं कारितं प्रतिष्ठितं तपागछनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिनिः ॥
अखयसिंहजी का देरासर।
पंचतीथियों पर।
[24671 सं० १४७ वर्षे माघ सुदि ४ दिने श्रीपार्श्वनाविषं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्री. जिन असूरिनिः कारितं दा सा सादा पुत्र वरसिंह युतेन
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[ ११५ ]
[2488] सं० १५११ वर्षे पोष वदि १ गुरौ श्रीमालज्ञातीय सारा सामस जार्या माकू सुत इरपतिना श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं श्रोतापके ज० श्रीविजयसूरिपट्टे जा श्री. विजयरत्नसूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥
[2460] ॥ सं० १५७५ वर्षे फागुण वदि ४ गुरौ .. ज्ञातीय व्य० गुणपाल ला० देवणी पु० दोसी अखा जा उत्तिमदे पु० जैवंत जैमल श्रेयोर्थ पहीरा पत्नीकनिमित्तं श्री. श्रेयांसर्विचं कारापितं प्र पूर्णिमापके ज० श्री श्री श्रीमुनिचंडसूरिजिः जन्मनामा हासी जार्या श्रीः॥
रामसिंहजी का देरासर।
मूर्तियों पर।
124701 श्रीशांतिनाथ प्र० श्रीहीरविजयसूरि सा । देवचंद
[2471]
। सं० १७७५ वर्षे श्राप गुलाल बाई
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[ १६ ]
धनराजजी का देरासर ।
यंत्र पर |
[2472]
सं० २००३ मा | सु० । १० वरडिया जोरावरमलेन का० ज० श्रीजिनमहेंन्द्रसूरिनि: प्रतिष्ठितं श्रीवृत्खरतरगछे ||
-COCK
बृहत्खरतरगच्छ उपासरा । मूल नायकजी पर |
[2473]
|| ॐ || संवत् १६७० वर्षे वैशाख सु० ५ सोमे श्रीमदा [बाद] वास्तव्य बा० तेज बाई नान्या श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० तपागच्छे जहारक श्री विजय सेन सूरिजिः ॥
पाषाण की मूर्तियों पर ।
[2474]
सं० १७१५ वर्षे पमातसम (2) संधे कारावितं
यह लेख तान के यंत्र पर खुदा हुआ है ।
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[२७]
[2475]
|| सं० १९२८ माघ सुदि १३ प्र० । श्रीजिनमुक्तिसूरिनि: कारापितं जेसलमेरस्थ
श्रीसंघेन
धातु की मूर्ति पर ।
[2476]
ॐ ॥ संवत् २०१६ वर्षे मिति वैशाष सुदि १२ सोमे श्रीनेमिनाथत्रिवं कारापितं गुलेवा सा० तिलोकसी सुन देमसी तत्पुत्र साडुलसी पूजार्थ देदरे चढाई है।
पंचतीर्थयों पर ।
[2477]
सं० १३०२ वर्षे फाल्गु० वदि १० गुरौ साद हरपाल जाय पांइणि पुत्र वीजड जा० लषमादे सोमा जा० संसारदे जातु विरुया श्रेयोर्थे श्रशांतिनाथबिंबं ॥
[2478]
संवत् १४६२ वर्षे माघ वदि ४ शुक्रवारे उ० झा० बाजहड़गोत्रे सं० जश्तकर्ण जार्या दुलहदे पुत्र सं० लषमणेन पितृमातृश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीपनिगछेश्वर श्रीशांतिसूरिनिः ॥
[2479]
सं० १४१३ वर्षे चैत्र पूर्णिमा वो (१) दीता पुत्रेष वो० गुणदेवेन पुत्र चड़ा ईसरादियुमेन श्रीशांतिर्विवं कारितं प्रति श्रीखरतर श्रीजिनवरून सूरिजिः
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[ 10 ]
[2480]
॥ ॐ ॥ संवत् १५११ वर्षे आषाढ वदि ए ऊकेशवंशे रीहड़गोत्रे रतनसी संताने सा० पासड़ जाय हीरू पुत्र साह धर्मा श्रावण चातृ मा पु० साल्हा पद्मा युनेन श्री आदिनाथविवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगष्ठे जिनराजसूरिपद्यालंकार श्री जिमनसूरिजिः ॥
[2481]
॥ सं १६१६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ए शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० बोडा जा० लाबि सु० वा जार्यया वासु नाम्न्या स्वश्रेयसे श्री विमलनाथजीवितस्वामिबिंबं पूर्णिमापक्षे श्री गुणधीर सूरीणामुप० कारितं प्रतिष्टितं च विधिना दिलाडा वास्तव्य ||
[2482]
॥ संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेशवंशे साइला पाव जेसा नार्या जेसादे पुत्र साधारण तेजसी समर सिंहैः कारितं श्रीकुंथुनाथवित्रं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगछे श्रीजिनजसूरिजिः ॥ श्री जिनचंद्रसूरिनिः ॥
[2483]
सं० १५२० वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ खौ श्रीजावडारग० श्रीमालज्ञा० म० त्रास ना० गोमति पु० कमूच्या काला चांदा सहितैः पितृमातृनिमित्तं श्रीनमिनाथबिं० का० प्र० श्री कालिकाचार्य संताने श्रीजावदेवसूरिभिः || गांली वास्तव्यः ॥
[2484]
॥ संवत् १५५३ वर्षे माघ वदि ५ खौ श्रीमाला मंत्रि नांवर जा० धाढं सु०
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[ ११० ] रत्ना ना धरणी स्वतत्रुश्रेयसे श्रीशीतलनाथविबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णिमायण श्री. देवसुंदरसूरीणामुपदेशेन विधिना वीरमग्राम वास्तव्य श्रीः ॥
[2485] संवत् १५५५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ए रवौ श्रीश्रीमालझातीय संण् कान्हा सु० सं० धारा जा पांचु सु० सं० कर्मसी पांचु श्रारमश्रेयोर्थ श्रीमुनिसुवतस्वामिविंबं श्रीश्रागम गछे श्रीअमररत्नसूरिपट्टे श्रीसोमरत्नसूरिगुरुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना धंधुका वास्तव्य ॥
[2486] __ संवत् १५६१ वर्षे वैशाख वदि ११ शुक्रे श्रीमूलसंघे जा श्रीज्ञाननूषण स्तन श्रीविजयकीर्ति गुरुपदेशात् हुँ श्रेण गोंदा नाण पाहू सु० साजण नाम जोंसी सु० भोजा धरणा धांगा श्रीसुमतिनाथ नित्य प्रणमति
[2487] ॥ संवत् १५६१ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे ऊकेशवंशे लालणशाषायां साठ वेला जार्या विदणदे सुत सा जेसा सुश्रावकेण ना जसमादे धु० सुदा वियजा जगमाल सहितेन स्वश्रेयोर्थं श्रीअंचलगढे श्रीनवसागरसूरिणामुपदेशेन श्रीसुमतिनाथ वि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन अमरकोट नगरे ।
12488] ॥ संवत् १५ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरौ उसवालझातीय श्रीसुंधागोत्रे सा० ऊगड़ा पु० सा होला ना होमादे पु० रामा रिणमा पित्रोः पुण्यार्थे श्रीअजितनाथविबं कारापितं प्र० श्रीकोरंटगछे जय श्रीककसूरिनिः
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[१०] देवी की मूर्ति पर ।
[ 2480}+ ॐ सौहिक पल्या मालिकया कारिता सं० ११०१
तपगच्छ उपासरा।
रौप्य के यंत्रों पर।
[24001 संवत् १७५५ मिते श्राषाढ सुदि १० दिने । शुक्रवारे। पद्मादेव्यु गश्रये सत्क समस्त श्राविकानिः श्रीसिद्धचक्र यंत्रोद्धारः कारितः प्रतिष्ठापितश्च ॥ न० ॥ जिन चं. सरिविजयराज्ये । पं० । कृपाकट्याणगणिना प्रतिष्ठिनः ॥
[2491] आ। सरुसां बाई करायो सं० २७ • • • गकरदास कस्तुरे चढ़ायो
[2492] ॥ संवत् १७ .. मिते माघ सुदि ५ दिने वरडिया रै उपाश्रय सत्का श्राविकानिः
+ यह चक्रेश्वरी देवी की बहुत प्राचीन धातु-प्रतिमा पर का लेख है। मस्तक पर भगवान की प्रतिमा के साथ यह देवी सिंहवाहन में सुखासन से बैठी हुई है। इनके दक्षिण जानु के समीप खड़ी पुरुष मूर्ति तथा बांई जानुपर सुखासन से स्थिन बालक पूर्ति है ! यहां बालक की मूर्ति के रहने का कारण समझ में भाया नहीं।
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जैसलमेर का दृश्य- गढ़ीसर की तरफ से ।
VIEW OF JAISALMER. FROM GARHISAR.
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[११] श्रीसिद्धचक्रयंत्रः कारितः प्रतिष्ठितश्च । न । श्रीजिनचंजसूरिनिः। श्रीजेसलमेरुनगरे ॥ श्रीरस्तु ॥ शुनं जवतु॥
ताम्र के यंत्र पर।
[2493] ॥ सं० १९५५ का माघ सुदि गुरुवासरे यंत्र प्रतिष्ठापितं वृ० । ०। श्रीजिनमुक्ति पूरि निः । रतलाम नगरे कारितं । पं० । प्र० सरूपचंदजी स्वश्रेयोर्थ ॥
दादा वाड़ी। श्रीजिनकुशलसूरिजी का स्थान । *
प्रशस्ति x
[2494] (१) ॥ संवत् १६५० वर्षे श्राषाढ मासे शुक्लपक्ष युत नवमीदिने (३) रव(वि)वारे चित्रानक्षत्रे रावन श्रोनोमजीविजयिराज्ये श्री (३) श्रीजिनकुशवसूरोणां पायुके कारिते युग प्र. (४) धान श्रीजिनचंसूरीश्वराणां आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि (५) समलत्क(कृ)तानामादेशेन श्रोपुण्यसागर महोपाध्यायः
* जेसलमेर शइस से उत्तर की तरफ एक मील पर देदानसर तालाब के पास यह स्थान है। * यह शिलालेख श्रोजिन कुशलपूरिजी के स्थान पर पाले में लगा हुआ है।
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[ १२२] (६) प्रतिष्ठिते तत्प्रतिष्ठोत्सवश्च संग पासदत्त सुश्रावकेण (७) नार्या लीलादेः पुत्र सं०. शालिजा केवंना चंद्रसेन(७) प्रमुख पुत्रादि परिवार स० श्रीकेण कारयांचके। कल्या. (ए) एस्तः(स्तु) ॥ श्रीः संजावंश नारंण षेमणी लिखतं ॥
. . पापुका पर ।
[2405] ॥ संवत् १६५० वर्षे श्राषाढ शुक्लपके चं वासरे द्वितीयांतिथौ पुष्यनक्षत्रे सिद्धियोगे नहारक श्री श्री श्रीजिनकुशलसूरिपाका प्रतिष्ठितं ........
[2496] ॥ संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि ए सोमवारे जहारक सवाई युगप्रधान श्री श्री श्री श्री श्रीजिनचंडसूरिपाका प्रतिष्ठिता
स्तंन पर।
[2407] * (१) ॥ संवत् १६७५ वर्षे वैशाख सुदि ए दिने सोमवारे श्रीजेसलमेरु (२) वास्तव्य राउल श्रीकल्याणदासजीविजयराज्ये कुंअर श्री: (३) मनोहरदासजी। सवाई युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर । (४) पाचुके कारिते युगप्रधान जट्टारक श्रीजिनसिंहसूरि ॥ श्रीख (५) रतरसंघेन तेव सर्वदा श्रीसंघस्य समुन्नतिमुख श्रेयोवृद्धि कृ. (६) ते । वाचयेतामिति ॥ पं० उदयसिंघ लिपी कृतं ॥ श्री श्री श्रीः॥ * दादाजी के स्थान से पूर्व की तरफ स्तंभ के आले में यह लेख है।
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[१३]
[2498] (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १६७७ फाल्गुण सित ५ दिने । श्रीजेसलमेरु महा(५) दुर्गे ॥ महाराजाधिराज महाराज महाराजख श्रीकल्याणदास (३) जीविजविराज्ये ॥ कुमार श्रीमनोहरदासजी जाग्रयौवराज्ये । (४) सकस श्रीजैन दर्शन रक्षाकर युगप्रधान श्रीजिनचं सूरिपप्र. (५) नाकर श्रीजाहंगीर प्रातिसाहि श्रोसलेम साहि प्रदत्त युगप्रधान वि. (६) रुदधर श्रीजिनसिंहसूरिराजानां नूपतिवेशः कारितः श्रीजेसन(७) मेरुवास्तव्य सकस श्रीखरतरगलीय श्रीसंघेन । प्रतिष्ठितश्च । यु. (0) गप्रधान श्रीजिनसिंहसू रिपट्टासंकार । श्रीलोजपुरपत्तन मण्डन (ए) सहस्रफणामणि चिंतामणिपार्श्वनाथ श्रीशत्रुजय मौलश्रृंगमौली. (१०) य मानाष्टमोझार प्रतिष्ठाकार । श्रीताणवडनगर प्रवर श्रीशांतितीर्थक(११) र प्रतिष्ठा वसरप्रसग्लो सूरिमंत्र स्मरण प्रकटित पे(पा)यूषयूषवर्षि श्री.
पार्श्वबिंबा(१२) वलोकन जनित जगजन चमत्कार । यवनराज्य मध्य विदित श्रीमदतट ( १३) प्रकट मम्माणीमय जिनालय प्रथाम] श्रीशांतिनाथ प्रभृति प्रतिमा प्रतिष्ठान (१४) समधिष्ठान विधान लब्ध प्रधानातिशय मुंनार। जादिष्टदेव सान्नि. (१५) ध्यविहित पंचपीराद्यनेक यवनदेवाधिष्ठान पुर्गम सिन्धु देश(१६) विहार । बोहित्यवंशमुक्ताप्रकार । सा० धर्मसी घुरखदे कुमार। मंड(१७) ल जट्टारक वृंददारक पुरंदरावतार श्रीजिनराजसूरिसूरिराज्येः॥
* यह लेख वहां के दूसरे स्तंभ पर है।
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[ १२४ ]
[2499 |
॥ संवत् १९९०१ रा वर्षे शाके १७६६ । प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे आषाढमासे शुल पक्ष सप्तम्यतिथौ भृगुवासरे महाराजाधिराज महारामुखजी श्रीगजसिंहजी विजय. राज्ये प्रधानजहारक श्रीजिनचंद्रसूरि वृहत् शिष्य पं० जीतरंगगणि पाडुका कारापितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्री जिन महेंद्रसूरिजिः ॥
पटसाल में ।
[ 2500]
(१) ॥ संवत् १६७४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ५ शुक्रवारे श्रीजेसलमेरो श्रीवृइत्( 2 ) खरतरगाधीश सवाई युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिया के श्रीधर्मनिधानो ( ३ ) पाध्याये | गणधर गोत्रे । हरष पुत्र सा० तिलोक साकेत पुत्र राजसा घिरसा
जामसा
( ४ ) द
तेन प्रतिष्ठा कारिता | विनेयपंडित धर्मकीर्त्तिगण वंदते गुरुवादानां श्री । ( ५ ) प्रमुख सुखसागरगणि पं० समयकीर्त्तिगण पं० सदारंगमुनि प्रमुखाः वंदते ( ६ ) पं० उदयसंघ लि०
[ 2501 ] 'i'
( १ ) ॥ श्री सर्वज्ञाय नमः ॥
( २ ) ॥ स्वस्ति श्रीर्जयो मंगल ज्युदयश्च । श्रीमन्महाराजाधिराज महाराज | ( ३ ) श्रीविक्रमादित्यज्यात् संवत् १७६९ वर्षे श्रीशालिवाहन कृ.
* यह लेख भीत पर है।
+ यह लेख दक्षिणमुखो परसाल में भीत पर लगा हुआ है।
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[१५] (४) त राज्यात् शाके १६३४ प्रवर्तमाने महामांगल्यप्रदे मार्गसिर मासे (५) कृष्णपद पचम्यां पुण्यतिथौ शुकवारे पुनर्वसुनक्षत्रे शुभयोगे (६) महाराजाधिराज महाराज श्रोबुधसियजोविजयराज्ये जहारक (७) श्रीजिनसुबसूरि विजयमानेषु श्री जेसलमेरुमहापुगें ॥ सा (७) लणसालीगोत्रीया साप हाथो तत्पुत्र हेमराज व्रातृ जयरा (ए) ज. तत्पुत्र धारसो बात देवजो तत्पुत्र गंगाराम सारिवारेण (१०) दादा श्रोजिन कुशवसूरि प्रासाद पावें प्रतिशाला कारिता (११) प्रतिष्ठिता च ॥ वाणारस श्रीसत्तासुंदरगणि उपदेशात् ॥ श्रीः ॥ (१३) ॥ शुनं जवतु श्रीरस्तु ॥ सिलावटा थिराकेन कृता॥
[25021
(१) ॥ वस्ति श्रोरस्तु ॥ संवत् १७४० मिति । मार्गशीर्ष मासे। बहु(५) खपहे। पंचम्यां तिथौ शुक्रगारे जेसबमेरुजुर्गे म. (३) हाराजाधिराज महाराजन श्रीमूलराज जीविजयिरा. (४) ज्ये। कुंअर श्रीरायसिंहजीयोवराज्ये । श्रीवृहत्वर(५) तरगबाधीश्वर । जहारक श्रीजिनमानसूरीश्वर पटाखंका(६) र । ज० । श्रीजिनचंद्रसूरीणामुपदेशात् सकल श्रीसंघेन श्री (७) जिनकुशक्षसूरिसद्गुरुस्तूप पार्श्वे पूर्वस्या पश्चिमायां च (७) थनिमुखं प्रतिशासायं कारितं च । तथा । (ए) अग्रतः श्रीजिनमाजसूरि शुरुस्तूपः कारितः स्वश्रेयो
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[१६] (१७) । सर्वमेतत् श्रीसद्गुरुप्रसादानिर्विघ्नं संजात ॥ श्रीः ।। (११) उस्ता ! कंमू बीकानेरिया
WaWONan
श्री जिचंद्रसूरिजी का स्थान।
[2503) (१) ॥ श्रीवषतकुंबरी नाम्नी माऊजी श्रीसोढीजीतः पुण्यकृतमिदं सि (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १७२५ वर्षे शाके १६५० प्रवर्तमाने । मा. (३) र्गशीर्षासित पंचमी सोमे। श्रीजेसलमेरुमहाउगें म. (५) हाराजाधिराज महरावल श्रीमूलराजजीविजयग. (५) ज्ये। सकलसूरि शिरोमणि नट्टारक श्रीजिनकीति(६) सूरिराजानांपनाकर श्रीजिनयुक्तिसूरींक्षाणां । (७) स्तूप निवेशः कास्तिः श्रीजेसलमेरुवास्तव्य श्रीवृहत्(७) खरतराचार्य श्रीसंघेन । प्रतिष्ठितश्च श्रीजिनयुक्तिसूरि (ए) पट्टालंकार जट्टारक वृंददारकावतार श्रोजिनचंछ । (१०) सूरिराजैलिपी कृतं । पंडित जीमराज मुनि निश्च ॥ श्रीः । (११) दरवारसूं ऊपर उठ सिपाही धीरनदे इदानांणी दरोगां ॥ (१५) सिखावटा दरवाररां गछर गोदड़ नरसाँगाणी ॥ श्राचं
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[२२]
(१३) डा विरं च सर्वदा श्रीसंघस्य सुकृत सुख श्रेयो वृद्धि कृते ज ( १४ ) वेत्यमिति ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्रीः ॥
[ 2504] *
( १ ) ॥ ॐ ॥ संवत् १८७५ वर्षे शाके १७४० प्र० । मासोत्तममासे । ( 2 ) कार्तिक मासे शुक्लपके पूर्णिमा १५ तियौ जौमवारे श्रीम. (३) जेसलमेरुमहाडुर्गे महाराजाधिराज महारावल
( ४ ) जी श्री मूखराजजी विजयराज्ये जट्टारक यंगमयुगप्रधा
( ५ ) न श्री १०८ श्री जिन बुकिसूरिजी तत्पट्ट प्रजाकर सक (६) ल जैनदर्शनागम । रक्षाकर। संगमयुगप्रधान । ज० । श्री १०० ( 9 ) श्री जिनचंद्रसूरिजी स्वर्ग प्राप्तः तत्पृष्ठे स्तंज
( 0 ) युता शाखापादन्यासश्च कारापितः ॥ श्रीजेसलमेरु वास्त (v) व्य सकल श्रीवृहत्वरतराचार्यगत्रीय श्रीसंघेन सं० १८७ (१०) ६ व० । शा० ११४१ प्र० मासोत्तममासे महामाले शुक्लपदे २ तिथौ
( ११ ) गुरुवारे महाराजाधिराज महाराज रावल श्रीगजसिंहजी -
( १२ ) विजयराज्ये तत्पट्टे प्रजाकर चं० । यु० । ० । श्री १०८ श्री जिन उदय ।
(१३) सूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन कृतमहोष्ठवेन शिलावट श्र
(१४) सीबषाणी लिपीकृतारियं पं० । प्र० । अजय सोमगणिना । श्रीर(१५) स्तु शुनं जयतु कल्याणमस्तु ||
* यह लेख पटसाल की मौत पर है ।
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[ १२७]
श्मशान भूमि। शिलालेख ।
[2505] (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् । थंज प्रतिष्ठा करावणहारना नाम ॥ प्रशस्ति
शषियबई । ऊकेशवंश बाजहड़गोत्रे । पूर्वई क्षत्रिय ।। (२) ॥ राठौडवंशे । विहां आस्थाम गजा। तिहन पुत्र धांधलादि १३ । धांधल
नो पुत्र दिला तिहनो पुत्र रामदेव । तत्पुत्र काजलाते (३) ॥ संप्रति श्रेष्ठिनई पोल्ने थाप्यो । जिण श्रावकन धर्म श्रादस्य उ । तेह
नइ अनुक्रमी ऊधरण दुवो। तेहनंठ पुत्र कुन्नधर । कुलधर पुत्र श्र (४) ॥ जित । अजित पुत्र सामंता । तेइनो पुत्र हेमराज । हेमराज पुत्र धारा
तत्पुत्र माला मलयसिंह नाम ! माना पुत्र छिन । जूविन पुत्र । (५) ॥ कालू प्रधानः। चहुआण घडसा राजार राज्यनइ विष मंत्रीश्वर
हुवो। रायपुर नगर माहे देहरउ काराव्यउ । तत्पनी सीलालंकार धा(६) रिणी । कर्मादे नामतः । तेहनि कुक्षि संभूत पांच पुत्र । रादे । बाहड नेणा ।
सोनपाल । नोडराजाः। श्ररघू नामी बहिन । तेह माहे सोनपा... (७) ॥ ल मंत्रीश्वर तेहनी नायर्या संग थाहरू तणी पुत्री । सहजलदे नामता पुत्ररस्त
त्रयं प्रसूता। मंत्री सतोपान । तप्रिया चांगनदे। द्वितो.
इस नंबर के लेख से लगायत न०२११२ तक के शिलालेख तालाब के पास के मसान में हैं।
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[१ ] (७) यो देवासः । तस्य प्रिया दाडिमदे । तृतीयो महिराज । तत् प्रिया महिगादे ।
तन् मध्ये मंत्री श्वर देपाल । देपाल नार्या दाडिमदे। पुत्र ३ () ॥ उदयकर्ण । श्रोकर्ण । सहसकिरण । हिवई सहसकिरण नायर्या सिरियाद । ___ तत् कुक्षिसंजूत । मंत्रीश्वर सूर्यमव । मंत्री दादा। सूर्यम(१०) र नार्या मूलादे। कुकिसमुत्पन्न मं० हरिश्चंद्रः। मंत्रीश्वर विजगन नाम
धेशः । मंग दीदा जार्या श्राय सवीरदे । पुत्र त्रयं प्रसूता । श्राद्यो मंत्री (११) श्वर हम्मीरः। द्वितीयो कर्मसिंहः । तृतीयो धर्मदासादयः (ख्यः) में
हमीर नार्या श्राप चांपक्षदे। तत् कुक्षिसंजून देवोदास पुत्रो विजयते ( १५) ॥ मं० विजपाल जार्या श्रा० विमलादे तत् कुदिनून मंत्री श्वर तेजपा.
खेन तेजशन जार्या श्राविका कनकाई प्रभृति समस्त परिवार. (१३) ॥ सहितेन ॥ संवत् १६६३ वर्षे । मार्गशीर्ष मासे बहुअपई। षठ्यां तिथौ ।
सोमवासरे। पुष्यनक्षत्रे । ब्रह्मयोगे। श्रीमत्वरतरवेग(१४) ॥ डगर्छ । श्रीजिनेश्वरसूरि तत्सद्दे श्रीजिन शेषरसूरयः । तत्पट्टालंकार श्री जिन
. धर्मसूरयः । तत्पढे श्रीजिनचंद्रसूरयः । तत्पप्र. (१५) नाकर श्रीजिन मेरुसूरीश्वराः । तत्पहां जोजविकासदिनमणि कयाः ॥ श्री.
जिनगुणप्रनसूरयः । तेषां गुरूणां स्तूपे पाउ. (१६) ॥ का प्रतिष्ठा कारिता । शुजमुहूर्ते प्रतिष्ठिता च श्रीजिनेश्वरसूरिजिः ॥
___ सपरिकरः ॥ श्रीजेसलमेरुमहामुर्गे गउल श्रीजी.
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[ १३०] (१७) मसेन विजयराज्ये । श्रीपार्श्वनाथादिचैत्यविराज्यमाने । चिरनंदतादाचंझार्क
यावत् । श्रीसंघसमयायस्य कल्याणं नूयात् ॥ (?) श्रीजिनगुणप्रनसूरीश्वराणां शिष्य पं० मतिसागरेण एषां पट्टिका लिखिता॥
मंत्री नीमा पुत्र मं० पदा तत्पु० मंत्री माणिके (१५) ॥ न रूपीया १० देहरीन दीधा ॥ तथा धंज सिलावट अषो सिलावट
सिवदास हेमांणीए कीधा । चिरं नंदतु ॥ श्रीः ॥ (२०) ॥ पं० विद्यासागर । पं० श्राणंदविजय । पं० उद्योतविजयादिपरिवारसहितः
शुनं जूयात् ॥ सिलावट जसा वधू आणी ॥ कीधा (२१) समस्त लघुजि संघनइ कल्शणं यात्
[506] (१) ॥ॐ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १६७४ चैत्रतः अषाढात् ७५ वर्षे मार्ग
सिर मासे धवलपके (२) राउल श्रीकल्याणजी विजयराज्ये श्रीमत् श्रीबाजहड़गोत्रे। काजन पुत्र ऊध.
रण । तत्पुत्र कुलधः (३) र । पुत्र अजित । पु० माधव पुत . .... (४) ................. (५)
(६) .......
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[२३१]
[2507] (१) संवत् १६७५ वर्षे मार्गशीर्ष मासे कृष्णपदे (२) द्वितीया[य] तिथौ चंद्रबारे रोहिणी नक्षत्रे शुन( ३ ) योग श्रीमरखरतरवेगडगळे श्रीजिनेश्वर सूरि (४) .............. (५)
() ................... राउल श्रीमनोहरदास विजयते
[2508] (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपाश्र्वनाथाय नमः ॥ संवत् १७०६ वर्षे शाके १६ (२) ३१ प्रवर्त्तमान्ये महामांगट्यप्रदे मासोत्तममासे पौष मासे शुक्लपक्षे ( ३ ) षष्टीतियो नौमवासरे उत्तगजाउपदान त्रे एवं शुजदिने श्रीजेसल (४) मेरगढ महामुर्गे राउल श्री ५ श्रीयसिंहजी विजयराज्ये श्रीखरतरवे (५) गडगळे नद्वारक श्री जिनसुंदरसूरजी तत्पट्टे विद्यमान जद्वारक श्री (६) जिनउदयसूरिनिः तत् जात वा श्रीमुनिसुंदरजी तेषां गुरुणां (७) स्तंनेन पाका प्रतिष्ठितं शिष्य पंडित जसोवन पं० मानसिंघ पं० (७) नवहाट(?) पं0 जगमी पं० वर्धमान सपरिकरैः सिखावटा इथा कांकुवाणी (ए) थंजेन मंडिता चिरं नंदतु शुनं श्रेयात्
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[१३]
[2500] * (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपाश्वनाथाय नमः ॥ संवत् १७१५ वर्षे मार्गशीर्ष मासे बहुलपदे (२) त्रयोदश्यां तिथौ सोमवासरे स्वातिनक्षत्रे शुभयोगे एवं शुभदिने महागनन
श्री(३) पयसिंह जीविजयराज्ये वृहत्वरतरवेगडगळे वेगडा शाष जंगमयुगप्रधान नट्टारक
श्री जिने (४) श्वरसूरिषट्टे जट्टारक श्रीजिनचं सूरि तस्पट्टे नहारक श्रीजिन लमुडमूरि
तत्पट्टे श्री (५) जट्टारक श्रोजिनसुंदरसूरि तपट्टालंकार श्री जट्टारक प्रीजिन नदयापूरीश्वराणा (६) तत् ॥ पूज्यपादुकानि जट्टारक श्रीजिन चंद्रसूरण सुपय स्थापितानि प्रतिष्टानि च
[250] (१) ॥ ॐ ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत् १७४३ वर्षे शाके (१) १७०७ प्रवर्त्तमाने मार्ग मासे कृष्णपदे नवम्यां ए तिथौ शुक्र (३) स्वातिनदात्रे धृतियोग तैतलकरणे एवं पंचांग शुद्धौ ॥ श्रोजेसन (४) मेरुजुर्गे। रावलजी श्री १०५ श्रीमूनराजजी विजयराज्य श्री. (५) मरखरतरवेगडगळे जट्टारक श्री १०७ श्रीजिनेश्वरसूरिविजय (६) राज्ये । महोपाध्याय श्री १०५ श्री जयोवल नजो गणानां धुंन पा.
* इस स्तंभ के उत्तर की तरफ भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरिजी की पादुका, पूरब की तरफ पूज्य भट्टारक धासमुद्रापरि जी को दुका और दक्षिण पूरव मा श्रीजिन पुन्दरमूरिजी की पादुका प्रतिष्ठित है।
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[ १३३ ] (७) सुका कारापितं प्रतिष्ठितं च पंडित । रूपचंडेण तविष्य (७) निरं तिलोकचंद किसनचंद सहिताच्यां ॥ शुनं नवतु ॥ (ए) ॥ सिलावट जेसा तत्पुत्र सिवदान केन कृतं
- [2511] (१) ॥ श्रीपार्श्वजिनं प्रणम्य ॥ सं० १७४६ वर्षे शाके १७११ प्रवर्तमाने महा. (५) मांगल्यप्रदे मासोत्तममासे मिगसर मासे शुक्लरहे तिथि ए दिने ॥ वार
गुरु श्री.
(३) मरचरतर श्रीगडगठशापे । श्रो १७ श्रीनिने श्वासूरीश्वरान्णां ) विजा.
राज्ये पा। (५) श्रीवधमानजी उपरे धुंन कारापिता प्रतिष्ठिता ॥ श्रीमहाराजाधिराज महारा. (५) ज श्रीरावलजी श्री १०७ श्री श्रीमूलराज जी । कुंधरजी श्रीरायसिंघजोविजय (६) गज्ये ॥ उदा ॥ जब लग मेरु अडग है । जब लग ससि हर सूर। जब
लग या धुंज . . . ! र. (9) हिंगो सदा भरपूर ॥ शुनं नवतु । (G) श्रीकट्याणमस्तु ।
12512] (१) ॥ श्रीगणेशायनमः ॥ संवत् २०६१ वर्षे शाके १७२६ मिते वैशाख वरि दिनी (५) [य]यां तिथो श्रीजेसक्षमेरुजुर्गे रावलजी श्री १०५ श्रीमूनराज जीविजय.
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[ १३४ ]
( ३ ) राज्ये पं० इ० श्री १०८ श्रीगांगजीगणिनां घुंजपाडुके कारापि
( ४ ) तं प्रतिष्ठितं च शिष्य । पं० रूपचंदेन चातृव्य पं० बखता सहते.
( ५ ) न ॥ शुनं जयतु ॥ सूत्रधार आजमेन कृतं
[ 2513] *
संवत् १६४४ वर्षे आषाढ वदि ए सनवारे गुहिल पापा धनार्थी देवलोक मत्ता कासपस गोत्रे
[2514] +
(१) ॥ संवत् १६७७ वर्षे शाके १५४१ [ प्रवर्त्तमा ] ( २ ) ने जाइव मासे शुक्लपक्षे २ तिथौ श्रीवाचना
( ३ ) चार्य श्रीवर्णदत्त श्रीकमलोदचगणित
( ४ ) तू शिष्य शिरोमणि प० वर्षकीर्त्ति प० श्री ( 4 ) देवसार ( १ ) ति पाडुका ॥
[ 2515] +
( १ ) ॥ संवत् १६८३ वर्षे मगसिर वदि २ दिने श्री जे
( २ ) सलमेरुकोट्टे रावल श्री कल्याण
( ३ ) जी विजयराज्ये ॥ श्रीखरतरगछे ।
(४) जट्टारक श्री जिनराजसूरिविजय.
* यह कालानसर के मसान की छतरियों का लेख है। इस छतरी में हाथ जोड़े हुए बड़ी स्त्री-मूर्ति है। ++ ये दोनों लेख भी कालानसर के मसान के हैं।
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[ १३५] (५) राज्ये । श्राचार्य श्रीजिनसागरसूरि(६) विजयराज्ये ॥ श्री ............ (७) (6) .......... (ए) ..... (१०) ...
.........................
.....................
पाजुका पर ।
[25161 सं० १६३ वर्षे मिगसर ........... श्रीजिनचंजसरि पाडका ......!
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[ १३६ ]
स्तंभ पर।
[2517] * ॥ॐ॥ स्वस्ति श्रीर्जयोच्युदयश्च पातुवो जसदश्यामाः साई ज्याधात कर्कशाः त्रैलोक्य मंडप स्तंचाश्चत्वारो हरि वाहवः ॥ १॥ संवत् १४ चतुर्दशनृपविक्रमा समयातीत संवत्सरे एव प्रवर्त्तमाने महामांगल्यरकाक्ष संवत्सरे माघ मासे शुक्लपके षष्ठयां तिथौ शुक्रवारे महाराजाधिराज श्रीलक्ष्मण सुत राउल वयर सिंहेन कूपः प्रतिष्टापितः सेठी सामु युतेन लिषितं प्रधान हरा सुत मोजा सुत जयतसी................. । जैतसी शिवदासेन
* यह लेख किले में कोट के भीतर कर के पास चतुष्कोण स्तंभ पर खुदा हुया है।
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अमरसागर - सेठ हिम्मतरामजी का मंदिर।
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SETH HIMMATRAM TEMPLE - AMARSAGAR.
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- अमरसागर
पOTOS
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श्री आदिनाथजी का मंदिर ।
प्रशस्ति ।
{ 2518 ] * (१) ॥ श्रीआदिनाथाय नमः ॥ (१) ॥ ॐ ॥ प्रीयात्सदा जगन्नायकजैनचन्द्रः सदा निरस्ताखिवशिष्टतंडः । स (३) दिष्टशिष्टीकृतसाधुधर्मा सत्तीर्थकृन्निश्चितदृष्टिरागः ॥ १ ॥ पूज्यं श्रीजिनराजि(४) राजिचरणां भोजयंनिर्मलं ये जव्याः स्फुरफुज्ज्वलेनमनसा ध्यायति सौ.
* जेसलमेर से अमरसागर अढाई कोस पच्छिम की ओर विशाल मरूभूमि के मध्य भाग में फल पत्र सुशोभित एक चित्तरावक स्वान है। यहां दरवार का एक राज-प्रासाद सहित रमणीय उद्यान है। यहां कई एक. जैन मंदिर हैं परन्तु जैनियों का एक भी घर नहीं है ! श्रीखरतरगच्छ पंचायती के श्रीआदिनाथजी के मंदिर का यह प्रशस्ति पीले फाषाण में खुदा हुआ है।
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[१३] (५) ख्यार्थिमः । तेषां सर्वसमृभिवृद्धिरनिशं प्रापुर्नवेमंदिरे कष्टानि परिवति (६) सहसा दूरे उरतानि च ॥ २ ॥ सकलाई प्रतिष्ठानमधिष्ठान शिव श्रियः ।
नुवः (७) खस्रयीशानमाहत्यप्रणिदध्महे ॥ ३ ॥ नामाकृतिव्यज्ञावैः पुनंत स्त्रिजगजनं ।
__ क्षेत्रेका(G) ले च सर्वस्मिन्नईतः समुपास्म्यई ॥ ४ ॥ श्रादिमं पृथिवीनाथमादिमं निः प (ए) रिग्रहं । आदिमं तीर्थनाथं च झषजस्वामिनस्तुमः ५ इति मंगलाचरणं ॥ (१०) स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात्संवत् १९०३ शालवाहन कृत शाके १७६७ प्रव. (११) र्तमाने मासोत्तममासे फागुण मासे शुक्लपदो पंचम्यां तियो शुक्रवार घट्य । (१५) ५३ पलानि ३४ रेवतीनदात्रे घट्य १४ पलानि ३० तत्समये । महाराजा
धिराज म (१३) हारावलजी श्री १०० श्रीरणजीतसिंहजी विजयराज्ये । जं० । युए। न । श्री.
जिनचं (१४) असूरि तत्पट्टे श्रीजिनहर्षसूरि तत्पदानाकर श्रीजिनमहेन्मसूरि धर्म
राज्ये श्री (१५) जिनचंडसूरि । वृहत्शिष्य । पं० । श्रीजीतरंगगणिना उपदेशात् श्रीआदिनाथ(१६) मंदिरं कारितं श्रीसंघेन । प्र० । मुंगरसी मुनिना प्रतिष्ठं च । लिम। पं० ।
दानमखेन । श्रीरस्तु।
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[१३]
मात्त पर ।
२७०३ ...........
[2510] श्रीश्रेयांसविंद
[2520] पार्श्वनाथ बोटी
सं० २००३....
पंचतार्थियों पर।
[2521] ॐ ॥ सं० १५१५ वर्षे · · · श्री नकेशवंशे परिदिगोरे प० जयता जरमादे पुत्र प० डूंगरसिंहेन जाप प्रेमलदे पुत्र नगराज गांगा नयणा नरपान सहितेन स्वश्रेयसे श्री. सुविधिजिनबिंबं का० प्र० श्रीखरतरगन्छे श्रीजिनचन्छसूरिनिः ।
[2522] ॥ सं० १५३५ वर्षे वैशाष वदि ५ सोमे श्रीश्रीमाला० सं० वेलाउल ना वेड. लदे सु० सं० कर्पूणेन जा० नानू सु० सय सामल पोमादि कुंटुंबयुतेन सुत गहिला श्रेयसे श्रीधर्मनाथविंबं श्रीपूर्णिमापके श्रीगुणधीरसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना । जांधरीघ(?) ग्रामे ॥
[ 2523] संव० १५३६ वर्षे फागुण सु० ५ दिने उकेशवंशे गणधरचोपड़ागोत्रे सं० सच्चा जार्या श्रृंगारदे पुत्र सं० जिणदत्त सुश्रावकेण नार्या लषाई पुरा श्रमरा थावर पौण हीरादि परिवारयुतेन । श्रीशांतिनाथचिंबं का प्र० श्रीखरतरगम श्रीजिननमसूरिपट्टे श्रीजिनचंधसूरि निः ॥ श्री ॥
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[ १४०]
बाफणा सवाईरामजी का मंदिर ।
प्रशस्ति ।
[2524] (१) ॥ श्रीमदृषनजिने देवानुग्रहात् ॥ संवत् १७ए वर्षे शाके १७ (२) ६५ प्रमिते फाल्गुण मासे धवलपके तृनीयायां तिथौ बुधवासरे म(३) हाराजाधिराज महारावलजी श्री ५ श्रीगजसिंघजी महाराणीजी श्री (४) राणावतजी सहितेन विजयराज्ये श्रीमजेसलमेस्वास्तव्य श्रोसर्व (५) स बाफणागोत्री सिंघवी सेठजी श्रीगुमानमखजो तत्पुत्र बाढ्दर(६) महजी सवाईरामजी मगनीरामजी जोरावरमलजी प्रतापचंदजी (७) दांनम जी सपरिवारयुतैः यात्मपरकल्याणार्थ श्रीसम्यक्त्वो छोपना. (5) थं च श्रीजेसलमेरु नगर सत्का अमरसागर समीपवर्तिना समीचीना (ए) आरामस्थाने श्रीजिनमंदिरं नवीनं कारापितं तत्र श्रीआदिनावि(१०) बं प्राचीन वृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठिनं तत्र श्रीमजिनहर्षसूरि प. (११) द पंकजसेविना वृहत्खरतरगणाधीश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन श्री. (१५) जिनमहेंअसूरीणा विधपूर्वकं महता महोत्सवेन शोननलग्ने स्थापित (१३) तं पुनर्मायावीनं शिलापट्टशं (सं) स्थितं तत्रैव चैत्ये स्थापितं श्रीसंघ(१४) स्य सदा मंगलमालाः समुल्लसंतुनराम् ॥ हा ॥ अचक्ष चैत्य इन
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[ १४१] (१५) उपरै जब लग ग्रहगण वृंद बरतो जवि समकित करण कहत के. (१६) सरीचंद ॥ १॥ श्रीरस्तु ॥ श्रीकल्याणमस्तु ।
मूलनायकजी पर।
[2525] (१) संवत् १५३४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १५ दिने श्रीफकेशवंशे श्रीशंखवाखेचागोत्रे
सा देवा नार्या देवलदे पु० साल सखा सा जादा सा० केव्हा साप लषा
जा सोनसदे (२) पुत्र सा० मणगरेन ना हर्पू पुत्र सा0 कांकण सा जयता प्रमुख परि
वारयुनेन स्वपितुः पुण्यार्थ श्रीआदिनाथावं कारितं प्रतिष्ठिनं श्रोखरतरंगठे
श्रीजिननप्रसूरि (३) शिष्य श्रीजिन चंऽसूरिजिः सा नगराज कारितं प्रतिष्ठायां
मूर्ति पर।
[2528] ॐ॥ संवत् १५५४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि १५ दिने सोमे श्रीनकेशवंशे श्रीषुल(?)गोत्रे सा० पदमा सुन सा तणीश जा नोडा सा धणपति नामानः तेषु सा० धणपति जा मानदे पुत्ररत्न सा शिवदत्त सा नगराज साप लखराज साप जीवराजायाः तेषु सा नवेदत्त जा० धरमाई वरजू सा० न . . . . . ज..' पु० . . . . . . . . . . . . . . श्रीविक्रमपुर महानगरे राजाधिराज श्रीरणमल विजयराज्ये राज श्रोअरडकमय युव.
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[१४२] राज्ये सा धणपति इत्यादि पुत्रपौत्रादि सत्परिवार सहितेन सा नगराज सुश्राव केण श्रीखरतरगचे श्रीजिनजप्रसूरियुगवर शिष्यः श्रीजिनचंप्रसूरिनिः ॥
पंचतीर्थयों पर।
[2527] है सं० १५३४ वर्षे श्राषाढ़ सुदि नौमे श्रोशवंशे चांपशाषायां सा नेता नाण श्रा० धानी स्वपुण्यार्थ श्रीआदिनायविं कारित प्रा श्रीमखधारिगछे श्रीगुपनिर्मल सूरिनिः।
[2528] सं। १५३६ फा० सु० ३ ऊकेशवंशे जण बांधु संताने नए माहा जाए कबू पुत्र नए इराकेन ला न्यमादे पुत्र हर्षा रामा मा नर नमादि परिण युतेन श्री. अजितनाथबिंबं का प्र श्रीखर श्रीजिनजप्रसूरिपट्टे श्रोजिनचं सूरिजिः ॥
यक्षमूर्ति पर।
[2529] ॥ श्रीपार्श्वयमूर्ति प्रतिष्ठिता ॥
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अमरसागर – हिम्मतरामजो के मंदिर के सम्मुख का दृश्य
NETWORK AND CARVINGS IN HIMMATRAMJI TEMPLE
AMARSAGAR
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[ १४३ ]
बाफणा हिम्मतरामजी का मंदिर ।
प्रशस्ति नं १
[2530]. (१) ॥ॐ नमः ॥ इदा ॥ ऋषनादिक चौबीस जिन पुंडरीक गणधार । मन
वच काया एक कर प्रण वारंवार ॥ १ ॥ विघन हरण संप. (२) ति करण श्रीजिनदत्तसूरिंद । कुसल करण कुसलेस गुरु बंडूं खरतरद ॥
२॥ जाके नाम प्रनावतें प्रगटै जय जय (३) कार । सानिधकारी परम गुरु रहौ सदा निरधार ॥ ३ ॥ सं० १७५१ रा मिति
थाषाढ सुदि ५ दिने श्रीजेसलमेरु नगरे महारा. (४) जाधिराज महारावलजी श्री १०७ श्रीगजसिंघजी राणावतजी श्रीरूपजी
बारजी विजयराज्ये वृहत्स्वरतर जट्टारक (५) गछे जंगमयुगप्रधान नद्दारक श्रीजिनहर्षसूरिनिः २ पट्टप्रनाकर जंग । युः।
ना। श्री १०७ श्री जिनमहेंउसूरिनि: ५ उपदेशा
* श्री जैन श्वेताम्बर ओसवाल समाज में पटुआ वंश प्रसिद्ध है। इनका आदि गोत्र तो बाफणा हैं परन्तु ये लोग पटुआ नाम से परिचित हैं। इनके पूर्वजों का निवास स्थान जेसलमेर था। वहां बहुत ही सुन्दर कोड़नी के काम से पुसजित राज-प्रासाद तुल्य इन लोगों का उच्च और विशाल वास-भवन विद्यमान है। अमरसागर के उद्यान सहित प्रस्तर में जाली खुदे हुए इन लोगों का मंदिर भी दर्शनीय है। इस मंदिर के बायें तरफ बाहर की दालान में पच्छिम दीवार पर लगे हुए लम्बे पीले पापाण पर यह प्रशस्ति खुदी हुई है। पुरातत्ववेसा मुनि जिनविजयजो संपादित “जैनसाहित्य संशोधक' नामक पत्रिका के प्रथम खंड के पृ० १०८-१११ तक “जेसलमेर के पटवों के संघका धणेन” शीर्षक लेख में यह शिलालेख प्रथम प्रका. शित हुआ है । इस में शिलालेख की पंक्तियां नहीं दी हुई हैं और पाठ भी स्थान २ में मूल लेख से कुछ भिन्न है।
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[१४४ (६) त् श्रीबाणागोत्रे सा0 श्रीदेवराजजी तत्पुत्र गुमानचंदजी नार्या जैता तरपुत्र ___ ५ बहादरमलजी नार्या चतुरा । सवाईराम (७) जी नायर्या जीवां मगनीरामजी जार्या परतापां जोरावरमसजी नार्या चौथा
परतापचंदजी जार्या मांना एवं बहादरमबजी त() पुत्र दोनमसजी सवाईरामजी तत्पुत्र सामसिंघजी माणकचंद। सामसिंघ
पुत्र रतनलाल । मगनीरामजी तत्पुत्र लभूतसिंघ तत्पुत्र १ (ए) पूनमचंद दीपचंद । जोरावरमलजी तत्पुत्र ५ सुलतानमक बनणमस सुल.
तानमल पुत्र १ गंजीरचंद इंशचंद प्रतापचंदजी पुत्र ३ हिमतरा. (१७) म जेठमल नथमल । हिमलराम पुत्र जीवण जेवन पुत्र मूलो गुमानचंदजी
पुत्र्यां २ कबू बीजू सवाईरामजी पुन्यां ३ सिरदारी सिणगारी नानूमी (११) मगनीरामजी तत्पुयां ५ हरकवर हसत सपरिवारसहितः सिद्धाचलजीरो
संघ कढायो जिणरी विगत जेसलमेरु नमयपुर कोटे सुं कुंकुमपन्या सर्व दे. (१५) सरां में दीव।। च्यार २ जीमण कीया नालेर दीया पबै संघ पाली
जेसो हुवो उचै जीमण ४ कीया संघ तिलकरा संघतिखक [मिति माह
सुदि १३ दिने (१३) न० । श्रीजिनमहेंप्रसूरिजी श्रीचतुर्विधसंघसम के दोयो पबै संघ प्रयाण कीयो
मार्ग में देसना सुणतां पूजा पडिकमणादिक करतं सात (१४) क्षेत्रां में अव्य बगावतां जायगा ५ सामेलो हुतो रथ जात्रा प्रमुख महो.
रसव करतां श्रीपंचतीर्थीजी बनणवाडजी श्राबजी जिरावलोजी तारः
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[ १४५] ( १५ ) गोजी संखेतरोजी पंचासरोजी गिरनारजी तथा मार्ग में सहरांरा गा.
वारा सर्व देहरा जुहास्या इणनांत सर्व ठिकाणे मंदिर ५ दीव चढायो कोयो (१६) मुकुट कुंडल हार कं जुजबंध कडा श्रीफन नगदी चंवा पुखिया इत्या
दिक मोटा तीर्थमाथे चढावतो घणो हुवो गहणो सर्व जडाऊ हो सर्व (१७) ठिकाणे लाइण जीमण कीया सहसा वनरा पगथ्या कराया उचै सूं सात
कोस रै गांव सू श्रीसिगिरिजी मोठ्या सूं बधाय. पालीतांणे बड़ा
हंगाम (१७) सू गाजा बाजतां तलेटी रो मंदिर जुहार डेरो दाखल हुवा दूजे दिन
मिती वैशाख सुदि १४ दिने शांतिक पुष्टिक हुतां श्रीसिद्धगिरिजी पर्वत
पर चढ्या (१५) श्रीमूलनायक चौमुखोजो खरतरवसोरा तथा दूजी वस्यां सर्व जुहारी
मास १ रह्या उठे चढायो घणो हुवो अढाई लाख जानी नेलो हुवो । पू. (२०) रव मारवाड मेवाड गुजरात ढूंढाड़ हाडोतो कउजुज मालवो दक्षरा सिंध
पंजाब प्रमुख देसांरा उठे लहण १) सेर १ मिश्री घर दीव दीवी जीम(२१) ण ५ संघव्यां मोटा कीया। जीमण १ बाई बीजू कीयो और जीमण पिष
घणा हुवा। श्रीचौमुखाजी रै बारणे श्राला में गोमुखयक्ष चक्रेश्व(१५) री री प्रतिष्ठा करायनें पधराई चौमुखैजी रो सिखर सुधरायो १ नवो
मंदिर करावण वस्ते नीव जाई । जूना मंदिरां रा जीर्णोद्धार कराया
जन्म
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[ १४६ ]
( २३ ) सफल की यो थघ गुरुनक्ति इण मुजब कीनी ११ श्री पूज्यजी हा २१०० साधु साध्यां प्रमुख चौरासी गछाधिकारी त्यां प्रथम स्वगत
( २४ ) रा श्री पूज्यजी री जक्ति सांचवी हजार पांच से नकद मात्र दीयो जो खरच जर दीयो अनुकमे सारा पूजा श्रीपूजां री साधु साध्वीयां री जति
(१५) साचवी आहार पाणी गाडियांरो जाड़ो तंबू चीवरो गंणे दीव ४) रुपया दीया नगद सालावालांनें डुसाला दीया सेवग ५०० हा जियांनें जों दीव
(२६) २१) इक्कीस रोट्यां खरच न्यारो मोजा पण रा श्रोषध खरची सारू रुपया चाहीयां जिलानें दीया पबै ज० । श्रीजिनमहेंद्रसूरिजी पासै सिंघ
( 29 ) वियां २१ संघमाला पहरी जिसमें माला २ गुमास्तै सानगरांम महेसरी नै पराई पबै बड़ा घाडंवर सूं तलेटी रो मंदिर जुहार डेशं दाखव दुवा
( २० ) जाचकां नैं दांन दीयो पबै जीमण कीयो साधय नै सिरपाव दोया राजा डेरे यायो जिबनें सिरपात्र हाथो दीया पूजां मार्ग में राजवी न (२०) बाब प्रमुख आया डेरै जियांनै राज मुजब सिरपाव दोया श्रीमूलनायकजी रै जंडार रै ताला ३ गुजरातियां रा दासो चौथो तालो संघव्यां - ( ३० ) परो दीयो सदावरत सरू देई जैसा २ मोटा काम करया पबै संघ कुसल - पेम सूं अनुक्रमे राधनपुर आयो उवै अंगरेज श्रीगोमी -
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[१४]
(३१) जीरा दरसण करण नैं आयो उठे पांणी नहीं यो गैवाऊ नदी नीसरी श्रीगोडीजी नैं हाथी रे होदै विराजमान कर संघ नैं दरसण दि० प्र ( ३३ ) इकलग करायो चढापै रा साढा तीन लाख रुपया आया सवा महीनो रह्या जीमण घणा हुवा श्रीगोडीजी रै विराजण नै वको चोतरो
( ३३ ) पक्का करायो ऊपर बतरी बलाई घणो द्रव्य खरच्यो बडो जस थायो अक्षत नाम कीयो साथै गुमास्तो महेसरी सालगराम हो जिसनें जै
( ३४ ) नग शिवरा सर्व तीर्थ कराया पढ़ें अनुक्रमे संघ पाली थायो जीमल १ करने दानमल कोटे गयो जाई ४ जेसलमेरु याया डेरा दरवाजे
( ३५ ) बाहिर कीया पबै सामेलो बमा घाट सूं हुवो श्रीरावलजी सांम पधाखा हाथी रे हो संघव्यां नैं श्रीरावलजी परे पूवै बैसाण नै
( ३६ ) सारा सदर में हुय देग जुहार उपासरै आय हवेल्यां दाखल दुवा प सर्व मदेसरी वगैरे बत्तीस पोन ने लुगायां समेत पांच पकवान
( ३७ ) सूं जीमायो ब्राह्मणा नैं जये दीव एक रुपयो दिour से दीयो पढे श्री रावलजी जनानै समेत संघव्यां री हवेली पधारया रुप्यां सूं चांतरो
(३०) कीयो सिरपेच मोत्यांरी कंठी कड़ा मोती डुलाला नगदी हाथी घोड़ा पालखी नीजर कीया पाठा श्रीरावलजी इण मुजब हीज सिर.
( ३ ) पात्र दीयो एक लुवोजी ताबां पत्रां पट्टे दीयो इतो इजाफो कीयो आगे पिणारी हवेली उदैपुर गणोजी कोटेश महारावजी
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[१४] (४०) बीकानेररा किसनगढरा बूंदीरा राजाजी इंदोररा हुसकरजी प्रमुख सर्व
देसांरा राजवी जनानै समेत इणारै घरे पधारया देणो (४१) लेणा हजारां रो कोयो दिल्ली रै पानसां । अंगरेजां रै पातसां री दीयोड़ी
सेठ पदवी हे सुविख्यात हीज है पढ़ संघरी लाहण न्यात में (४२) दीवी पुतली १ हेमररी थाली १ मीश्री सेर १ घर दीठ पढ़ बहादरम
जी लारै खाहण कीवी रुपया ५) थाली १ मिश्री सेर (४३) १ घर दोउ दीवी जीमण कीयो पढ़ सहर में गवां ५ . सिरपाव दीया
पढ़ गढ महिला मंदिरा बुझने उपासरे वडै चढाणो कीयो इण (४४) मुजब हीज उदेपुर कोटै देणो लेणो कीयो हिवै संघमें देरासर रो रथ
हा जिणरा ५१००) लागा वगडो सोना रूपेरा १ ।। (४५) जिणरा १००००) लागा मंदिर ग सुनेरी रूपेरी वासणां रा १५०००) लागा।
पूजा फुटकर सरंजामनै लाख एक रुपया (४६) लागा। हमें संघ में जावतो हो तिणरी विगत । तोगं ४ पलटण रा लोक
You असवार १५० नगारे निसांण समेत उदेपुर रा रा. (४७) जीरा असवार ५०० नगार निसाण समेत कोर्ट रा महारावजी रा असवार
१०० नगारै निसांण समेत जोधपुर रै राजाजी (4G) रा असवार ५७ नगारै निसांण समेत । पाला १०० जेसलमेर रा रावलजी रा
असवार २०० हूंक रै नवाब रा असार ४ फु
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[ १४ए ] (ए) टकर असवार २०० घरू और अंगरेजी जावतो चपरासी तिलंगा सोनेरी
रूपैरी घोरेवाला जायगा २ परवाना बोला (५०) वा एवं पालख्यां हाथी ४ म्याना ५१ रथ १०० गाडियां 100 ऊंट
१५०० इत तो संघव्यां रा घरु संघ री गाड्यां ऊंउ प्रमुख न्यारा (५१) सर्व खरचरा तेरेलाख रुपया लागा इति संघ री संक्षेप पणे प्रशस्ति ॥ और
पिण ठिकाणे ५ धर्म रा काम करया सो संषेप (५३) लिखिय के श्रीधूलेबाजो रे मंदिर वारणे नोवत रवानो करायो गहणो चढायो
___ लाख एक सागा मगसीजी रे मंदिर रो जीर्णोद्धार का (५३) रायो उदेपुर में मंदिर ५ दादासाहिब री उतरी धर्मशाला कराई कोटा
में मंदिर ५ धर्मशाला दादासाहिब री उतरी कराई (५४) जेसलमेरु में श्रमरसागर में बाग कगयो जिणमैं मंदिर करायो जयवंतो से
उपासरो करायो बुबैजी में धर्मशा. (५५) ला कराई गढ माथे जमी मंदिरां वास्ते लीवी बीकानेर में दादासाहिब री
बतरी कराई इत्यादिक ठिकाणे ५ धर्मरा था. (५६) होगंण कराया श्रीपूज्यजो रा चौमासा जायगा १ कराया पुस्तकां रा जंडार
कराया नगवतीजी प्रमुख सुण्या प्र(५७) श्न दीठ २ मोती धस्यो कोठी में दोय लाख रुपया देनें बंदीखानो बुढायो
बीज पांचम उम ग्यारस चढदसरा
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[ १५०] (५७) उजमणा कीया इत्यादिक काम धर्म रा कीया फेर ठिकाणे ठिकाणे धर्म रा
काम कराय रह्या है इण मुजब होज (एए) सवैयो ३१ सो ॥ सोचनीक जैसाणे में बाफणा गुमानचंद ताके सुत पांच
पांच पांडव समान है। संपदा में अच. (६०) ल बुध में प्रबल राव राणा ही मानें जाकी कान है। देव गुरु धरम
रागी पुण्यवंत बडनागी जगत सहु वात जाने (६१) प्रमान है देसहू विदेश माह कीरत प्रकास कीयो सेव सहु हेठ कवि
करत बखान है ॥ १ हा ॥ श्रचारसै नि. (६५) नूवै जेठ मास सुदि दोय लेख लिख्यो अति चूंप सू नवियण वांचो जोय
॥ सकस सूरि सिर मुगटमणि (६३) श्रीजिनमहें सूरिद चरण कमल तिनके सदा सेवै नवियण बंद ॥ ५
कीनो अति आग्रह यकी जेश(६४) समेरु चोमारः संघ सहू लक्ति करै चढतै चित्त उलास ॥ ३ ताकी अज्ञा
पाय करि धरि दिल में आणंद ६५) ज्युं थी त्युं रचना रची मुनि केसरीचंद ॥ ४ जुलो जो परमाद मैं अकर
घाट ही बाध लिखत पोट श्रा. (६६) ई हुवै सो पमीयो अपराध ॥ ५ इति ॥ श्रीः ॥ श्रीः ॥
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अमरसागर बाफणा हिम्मतरामजी का मंदिर प्रशस्ति (नं० २५३१ )
11711
॥ श्रीपारस जिनम्॥
जयराम मनोनयन कृतिपर प्रतिदिन तान्येश्री जिनराज जिन भती या स्फुरनिनाति सोनी सर्व सहकिरन रेसाहरं नानिच मी
क्रीशन नीनगरात
पर
दानमा छन दरदास मारा करता मन परिसरकारी सचिन रामदेव जन मन्दिर बेनक्रापितं श्रनिमिनट खरतरंगनाथन प्रतिष्ठित निमपदक जतेदिता र खरतर गला धिश्वरे एचदुर्विधसंघ सरिन दिवानादप्रतिि
मिश्री दादासाहेब को माना मंदा काम जल्द सूचिर पाड़ का नया जिनम गरेका मुरवस्था निर्वात सवा मी घरी नाम से नाग बदली मांजी रेखा मा श्री उ भरदार मलन था की भांजीवर सादरा जी से. या लोकश्रीर
राजधर्मदीक्षा दिली जाई दरबार साहिब परीने सोनी श्रीसंघ समेत शाखा श्री जी महाराजंका वाजिपी थी को माल सबावनथार करने की भागवा में तीन तहगी एपसवाला उस जाय बरु सानो पीना उपजी साहेबतपेलेर प्रमुख सादिरूपी या दूसरो काधीन प्रत्येके प्रत्येक दाना तथा रंग के तीयों को सत्कार यानी तेरे कीनेो श्री सिर कराव की नो घोड़ा सिरानी निरोकी नोवा सर्वने सिरपास का जिसे रुपया
दिनांकीत जावदना जिन इस रिसावायाच जी गल्तिन शिष्यास श्री शान देखीन सरकारी राम मंदिरी ऐजाजी परिवार सैनिकी कंदी माजी नंदीनी नवगेरे साराबदीन मंदिर के मुनादे से दिए नी तरफ परतापचंदजी की पाठी मुरती ताजा पाक मीनि तथापरताप दनीकी सरजायासपरिवारसमुरीया या पिनकीनी समिती निसरदर वाद सगजेबाकी को नहि जनपद नामजो प्रथा जिसे माझे कर्मरोग सभी एवं सुधार
दिन गुरुसी । जितपुरमा ज्योतिमादिक रोप एत्यार सनिरमलजीत जज चीनबान नषसहजसमाना निप्पो जातक टीनसंग सीन
श्री-श्री श्री॥
॥श्र
NEW TEMPLE PRASHASTI-AMARSAGAR.
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[ १५१]
प्रशस्ति नं० २
[ 2531]*
( १ )
॥ श्री ॥
( 2 )
॥ श्रीपारस जिन प्रणम् ॥
( ३ ) श्रीषनदेवो जयतितराम् || मनोजीष्टार्थसिद्धयर्थं ॥ कृतनम्य नमस्कृतिः ॥ प्रशास्तिमथवक्ष्ये ॥ प्रतिष्ठादिमदः कृता ॥ १ ॥ पूज्यं श्रजिनराजिराजि चरणां जोजद्वयंनि
"
I
( ४ ) खं ॥ ये जव्याः स्फुरडुज्ज्वलेन मनसा ॥ ध्यायंति सौख्यार्थिनः । तेषां सर्व समृद्धिवृद्धिरनिशं प्राडुर्जवेरमंदिरे। कष्टादीनि परिवजंति सहसा पूरे पु (5) रंतानि चः ( च ) ॥ २ ॥ श्रादिमं पृथिवीनाथ
( ५ ) मादिमं नी: ( निः ) परिग्रहं । आदिमं तीर्थनाथं च रुषजस्वामिनं स्तुमः ॥ ३ ॥ इति मंगलाचरणं ॥ स्वस्ति श्रीविक्रमादित्यराज्यात् संवत् १७१८ शालि - वादनकृत शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे माघ मासे धव
( ६ ) लपके त्रयोदश्यां तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री श्री १०८ श्री श्री श्रीवैरीशालजी विजयराज्ये श्रीमजेशलमेरु वास्तव्य ओसवंशे बाफणगोत्रीय संघवी सेठजी श्रीगुमांनचंदजी तत्पुत्र परता
* यह प्रशस्ति सभामंडप के बांयें तरफ भीतर की दालान के दक्खिन दीवार पर लगी हुई है। यह "जैन साहित्य संशोधक" के पृ० १११-११२ में छपी है ।
1
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[ १५२ ]
( 9 ) पचंदजी तत्पुत्र हिमतरामजी जेठमलजी नथमलजी सागरमलजी उमेदमलजी तत्परिवार मुलचंद सगतमल केसरीमल रुषजदास सांगीदास जगवानदास जीषचंद चिंतामणदास लुकिरण मना
( ८ ) खाल कनैयालाल सपरिवारयुतैः आत्मपरकल्याणार्थं श्री सम्यक्त्वोद्दीपनार्थ च श्री जेसलमेरुनगर सत्का अमरसागर समीपवर्त्तना समीचिना आरामस्थांने श्री. रुषजदेव जिन
( ७ ) मन्दिर नविनं करापितं तत्र श्री आदिनाथबिंब प्राचिन वृहत्खरतरगणनाथेन प्रतिष्ठितं तत् श्रीमनिमहेंद्रसूरिपद पंकज सेविता वृत्खरतरगयाधिश्वरेण चतुर्विधसंघसहितेन
(१०) श्री जनमुक्तिसूरिया विधिपूर्व महता महोत्सवेन शोजनलने श्रीमूलनायक न स्थापितं पुनर्धनेक विधानामंजन सिलाका विहिता पुनर्युतिय भूमि प्रासादे स्वप्रतिष्ठितं
( ११ ) श्री पार्श्वनाथवित्र मुलनायकस्वेन स्थापितं पुनर्विशवहिरमांण प्रतिष्ठा कृतं मंदिर के पास बाजू जीमणे श्रीदादासाहेब को मंदिर हो जिए मां श्री जिनकुशलसूरिजी
( १२ ) महाराज की मुर्ति विच मांदे विराजमान तथा श्रीजिनदत्तसूरिचरणगडुका तथा श्री जिनकुशल सूरिचरगडुका तथा श्रीजिनदर्षसूरिचरणपादुका तथा जिनम
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[ १५३ ] (१३) हेजसूरिचरणपादुका प्रमुख स्थापितं तथा नाई सवाईरामजी के घर का
श्वे था श्रीरतलाम सुं चिरूं सोनागमल चांदमल सोनागमल की मांजी
वगेरे थाया श्रीउदे. (१४) पुर सुं चिरूं सिरदारमल तथा इणां की मांजो वगेरे आया ओर पण
घणे दिसावरां सुं श्रीसंघ आया सांमीवबन्न प्रमुष करी श्रीसंघ की बड़ी
जक्ति कार तथा पांच ( १५) शिष्या में श्रीपूजजी म्हाराज के हाथ से दीक्षा दिनी जी दिन १५
सुधां श्रीअमरसागर में रह्या वडो गठ श्रोष्ठव सुं नित्य नवि नवि पूजा
प्रनावना हुई श्रीदरबार साहिब (१६) श्रीमंदिरजी में पधारीया तोबां का फेर हुवा पग में सोनो बगसोयो फेर
श्रीसंघ समेत श्रीजेशलमेर आया नजमणा प्रमुख कीना श्रीपूजजी म्हा
राज की (१७) पधरावणी दोय कीनी (जण में हजागं रुपीयां को मान इसबाब तथा
रोकड जेंट कीनो उपाध्यायजी वगेरे गवां गशं गणां ने तथा श्रीवणा
रसवाला उपाध्याय (१७) जी श्रीबालचंद्रजी का पेशा नै रोकड रूपीया तथा साल जोड़ तथा
कपड़े का यान वगेरे अलग अलग दीना उपाध्याय जी श्रीसाहेबचंद्रजी
गणि पं० प्रमेर39
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[१५४ ] (१ए) जी गणि प्रमुख साधू गणे ४१ या ठाणे दिव रुपोया १०) दस रोकड
थांन प्रत्येके प्रत्येके दोना तथा परगछ के यतीयां को सतकार श्राबी
तरे कीनो श्रीसिर ॥ (२७) कार की परांवणी कीनी घोडा सिरपाव वगेरे मोंको निजराणे कोनो
मुसंदी वगेरे गवां गवां सर्व ने सिरपाव दीना सेवकां में जिणे दोन
रुपोया ४) च्या (१) र तो सर्वाले दिना कीतरांक जिणांने सोने का कडा तथा थान वगेरे
सिरपाव दीना श्रीजिनमसूरिसाखायां पं ॥ प्र ॥ श्रीमयाचंजी गणि
तत् शिष्य पं ॥ स(२५) रूपचंऽजी मुनी श्रीजेशलमेरु आदेसी नां श्यं प्रसस्ती रचिता कारिगर
सिलावट वीराम के हाथ सुं श्रीमंदिरजी वणिया जीण के परिवार नां
सोने की कंठीयां (५३) तथा कडा की जोड़ीयां तथा मंदील तथा कुपटा यांन वगेरे सोरपाव
दीना श्रीमंदिर के मुल गंजारे में आसेपासे दिषण नी तरफ परतापचंद
जी की षड़ी मुरती बै उ(२४) तर की तरफ परतापचंद जी को नारजायां की खड़ी मुरती है निज
मंदिर के सामने उगूण को तरफ पलम मुषो चोतरी कराय जिण उपर परतापचंदजी की मुरती
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[ १५५ ] ( २५ ) तथा परतापचंदजी की जारजायां सदपरिवार सहोत की मुरतीयां स्थापित
कीनी सं॥ रए४५ मिती मिगसर सुद र धार बुध द ॥ सगतमल जेठ.
मसाणी बाफले का सुनं (२६) उहा ॥ अष्ट कर्म वन दाह के ॥ जये सिद्ध जिनचंद ॥ ता सम जो
श्राप्पा [गणे ॥ ताकुं वंदे चंद ॥ १॥ कर्मरोग ओषध सजी ग्यान सुधारस
वृष्टि ॥ सिव सुष अमृत बेलमा (२७) जय जय सम्यग् दृष्टि ॥ २॥ एहिज सदगुरु सीष बै॥ एहिज शिवपुर
माग लेज्यो निज ग्यांनादि गुण ॥ करजो परगुण त्याग ॥ ३॥ जेद ग्यांन
श्रावण जयो ॥ समर(२७) स निरमल नीर ॥ अंतर धोधी श्रातमा ॥ धोवै निजगुण चीर ॥ ४ ॥
कर उष अंगुरी नैन पुष ॥ तन कुष सहज समांन ॥ सिष्यो जात हे
कोन सुं॥ सठ जानत थासांन ॥ ५ ॥ (ए) ॥ श्रीः ॥ ॥ श्री श्री श्री ॥ ॥ श्री ॥
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[ १५६ ] मूर्तियों पर।
[2532] • ॥ॐ ॥ जालवृद्धान्वये तुंगे। कुले च ससिसंझके । प्रद्युम्नाचार्य । सकेन वृद्धसंनेद कारित
[2533] + (१) ॥ संवत् १९३७ शाके १४ए३ प्रवर्त्तमाने मिती माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्व.
जिन विंबं प्र. (५) तिष्ठितं श्रीमत्वृहत्खरतरगन्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान जट्टारक श्रीजिनमुक्ति सू. (३) रिनिः ॥ महाराजाधिराज महारावलजी श्रीवैरिसावजीविजयरा (४) ज्ये श्रीजेसलमेर कारितं च संघवी बाफणा हिमतराम न(५) बमल सागरमल उमेदमस मूलचंद सगनमलादिचिः ॥ खश्रेयोर्थ ॥
(2534] (१) सं० १९२० शाके १७९३ मिती माघ सुदि १३ गुरौ श्रीगजिनबिं प्र० । (२) श्रोजिनमुक्तिसूरिनिः ॥ महाराजाधिराज महारावलजी श्रीवैरिसालजी
* यह धातु की मूर्ति बहुत प्राचीन है। सप्तफण सहित पद्मासन की मूर्ति, दोनो तरफ दो खड़ी सवस्त्र कायोत्सर्ग की मूर्ति, नीचे दाहिने तर्फ हस्ती पर पुरुष मूर्सि, यि सिंह पर देवी मूर्ति, गोद में लड़का, नोचे दाहिने तर्फ चार पुरुष मूर्ति, बांये तर्फ धार स्त्री मूर्ति और मध्य में धर्मचक्र है।
* यह दाहिने तरफ की श्याम मूर्ति पर का लेख है। र यह पीले पागण को प्रतिमा पर कालेज है।
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[१५]
[ 2535].
(१) ॥ सं० १९२८ शाके १७९३ मिति माघ सुदि १३ गुरौ श्रीपार्श्व जिन(२) चित्र प्र० । श्री जनमुक्तिसूरिनिः कारितं च । बा । सं । दिमतराम |
[2536] +
|| सं० १९८७२७ शाके १७९३ मि० माघ सुदि १३ गुरौ श्रीक्षेत्रपात्रमूर्त्तिः प्रतिष्ठितं शुनं जयतु |
[ 2537]
|| सं० १९५७ शाके ११९३ मि० माघ सुदि १३ गुरौ श्रीक्षेत्रपाल मूर्त्तिः प्रतिष्ठितं
पंचतीर्थयों पर |
[2538]
सं० १४१३ वर्षे चैत्र सुदि १५ से० पासद
कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगछे श्रीजिनवर्द्धन सूरिजिः
[ 2539]
॥ संवत् १८४२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ सोमे श्रीउपकेशज्ञातौ । बांगरडगोत्र 7 सं० ईसर
पुत्र [सं०] हांसा जा० हांसलदे पुत्र सं० युतेन स्वश्रेयसे श्री शांतिनाथविवं कारितं श्री देवगुप्तसूरिजिः ॥ श्रीपतने ॥
मंडलिकेन जार्या तारू पु० सं० देमराज प्रतिष्ठितं श्री उपकेशगछे ककुदाचार्य संताने
* यह श्याम पाषाण की मूर्ति पर का लेख है। + यह सफेद पाषाण की मूर्ति हैं ।
40
ateria श्रीपार्श्व
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[१५०]
पट्टक पर।
[2540] * (१) ॥ संवत् १९२७ का शाके १९ए३ प्र. (१) वर्तमाने मिति माघ सुदि १३ गुरौ (३) श्रीबीस वहिरमान जिनबिंबा (५) नि प्रतिष्ठितं च श्रीमवृहत्खरतर (५) गठाधीश्वर । जं । यु । प्र। जट्टारक श्री (६) जिनमुक्तिसूरिनिः ५ कारापितं श्री (७) जेशलमेरस्थ श्रीसंघेन स्वश्रे(७) योर्थ ॥ नि । कृष्णचं ॥
यंत्र पर।
[2541] (१) ॥ प्रतिष्ठितमिदं यंत्रं जंगमयुगप्रधान जट्टारकेन्षु श्री १०० श्री श्रीजिनमुक्ति
सूरिवरैः सपरिकरैः श्रीजेसलमेर अमर- : (२) सागरमध्ये महारावलजी श्री १०७ श्रीवैरिसालजीविजयराज्ये कारितं बाफणा
गोत्रीयः संघवी श्रीप्रतापचं पुत्रैः हिमः
* श्री बोस बिहरमाण के पाषाण के पट्ट पर यह लेख खुदा हुआ है। यह ७ इंच लम्बा और ६ इंच चौड़ा आठ पंक्तियों में है।
+ यह ह यंत्र" पोले पाषाण में खुदा हुआ है।
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[ १५ ] (३) तराम जेठमव नाथमच सागरमल उमेदमवादि सपरिकरः स्वश्रेयो संवत् १९३२
वैशाख सुदि १५ (४) सोमे ॥
दादाजी के चरण पर
[2542] . सं० १९१७ रा वर्षे शाके १७०३ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे माधवमासे कृष्णपते नवमी ए तिथौ शनिवारे महाराजाधिराज महारावसजी श्रीरणजीतसिंघजी विजयराज्ये श्रीजेसलमेरुषा हत्खरतरजहारकगछेन श्रीसंघेन श्रीश्रमरसागर मध्ये श्रीजिनकुशखसूरि सद्गुरूणां शासा स्थुग पायुका कारापितं श्रीजिनमहेन्मसूरिषद्दालंकार श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। धर्मराज्ये श्री जिनजऽसूरि शाखायां पं०। पद्महंस मुनि तत् शिष्य पं० १ साहिबचंऊ मुनि प्रतिष्ठितं उपदेशात् पं अगरचंदमुचि नि । जूयात् ॥
* यह छतरी बगोचे में है। चरण श्वेत और परिकर पीले पाषाण का है। मंदिर के दो मंजले में श्रीजिनमहेंद्रपूरिजी के श्याम पाषाण के और श्रीजिनहर्षसूरिजा के श्वेत पाषाण के करण विराजमान है और घोड़े पर बैठे हुए जीवनरामजी की श्वेत पापण की मूर्ति है, जिसमें भी सं० १९२८ खुदा हुआ है।
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(१) श्रीनिवासं सुरश्रेणि सेव्य क्रमं (३) माधवेशादिदेवाधिकोपक्रमं
लोद्रवा
श्रीपार्श्वनाथजी का मंदिर ।
शतदलपद्म यंत्र | [ प्रशस्ति ]
[ 2543] *
।
( मध्य भागमें )
(२) वामकामाग्निसंतापनीरोपमं । (४) तत्रसंज्ञान विज्ञानजव्याश्रमं ॥ १ ॥
आजकल लोद्रवा एक सामान्य स्थिति का ग्राम मात्र रह गया है परन्तु प्राचीन काल में "लोद्रपुर” नामक एक बड़ा समृद्धिशाली पत्तन था। यह स्थान जैसलमेर से पछि लगभग पांच कोल की दूरी पर है और यहां के श्रोपार्श्वनाथजी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। चारों कोने पर चार छोटे मंदिर हैं और मध्य में यह मूल-मंदिर बना हुआ है। ये सब मंदिर एक ही हाते में परकोट से घिरे हुए हैं। फाटकके बांबे तरफ क्षेत्रपाल और भावायों के कई एक चरण भो प्रतिष्ठित हैं।
* यह प्रशस्ति का शिलालेख मंदिर के गर्भद्वार के वांये तरफ दीवार पर लगा हुआ है। इसकी लंबाई २२ इञ्च और चौड़ाई
१७ रश्च है
यह शतदलपद्मयंत्र की प्रशस्ति अपूर्व है। अद्यावधि मेरे देखने में जितने प्रशस्ति शिलालेखादि आये हैं उन में अलंकार शास्त्र का ऐसा नमूना नहीं मिला है। पाठकों को मित्रसे अच्छी तरह ज्ञात होजायगा कि यह शतदलपद्मयन्त्र जो बीचमें खुदा
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शतदलपद्म यंत्र। लोद्रवा - श्री पार्श्वनाथ मंदिर प्रशस्ति (नं० २५४३)
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मलावर्षवारकरनसाररूपयाराका निवेऽसराश्लाविरयातसहायानन्यामितानझामाचार दिनकाकामासलाइ9ATA राशीतितमिहानिहारतत्यहातरुतासारापराधाडातराका लापारनपोतसनान तोट्यसदनाटिका
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नावर गावकयो। नरमावतात्पादित श्रीमानापारमाना निवसहारिसमान भातुकलपुतीकात:मुना ताईन वावरमकमनिरतः स्याताऽखिलायनवतपय पतितपम्पोसारकाकारिता सानामिनसतायाधतस्वमहताबीमाहरूतारामानघतनयाया माधनासामुादापा मीशगंजयत संघरचनादायतमातिमा
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SEWASENवतमलऊवस्वकार्यपक्षानाना
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SHRI PARSHWANATH TEMPLE PRASHASTI - LODRAVA.
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[१६१] (५) नव्यनीरागताके सिकर्मदम (६) य(य)स्य नव्यैर्नजे नाम संपउमं । (s) नीरसं पापहं स्मयते सत्तमं (1) तिग्ममोहार्ति विश्वंसतायाघ्रमं ॥ ॥ (ए) लब्धप्रमोदजनकादरसोरूपधामं (१७) तापाधिकप्रमदसागरमस्तकामं । (११) घंटारवप्रकटिताछुतकोतिराम (१५) नदत्रराजिस्जना(नी)शनताभिरामं ॥ ३ ॥ (१३) घंटापथप्रथितकीर्तिरमोपयामं (१४) नागाधिपः परमनक्तिवशादसवामं । (१५) गंजीरधारसमतामयमाजगाम (१६) मं(म)र्त्यानतं नमत तं जिनपंक्तिकामं ॥४॥ (१७) संसारकांतारमपास्यनाम (१७) कट्याणमालास्पदमस्तशामं । (१९) लानाय वज्राम तवाविराम (५७) लोजानिनूतः श्रितरागधूमं ॥ ५॥ (११) कर्मणां राशिरस्तकिलोकोद्गम (३२) संसृतेः कारणं मे जिनेशावमं । (२३) पूर्णपुरयाढ्य दुःखं विधत्तेऽतिमं (२४) एण(न)क्षमस्त्वां बिना कोऽपि तं दुर्गमं ॥६॥ (२५) कर्मणं निईितुमन्योऽसमः (२६) य(य)कराट्पूज्य तेनोच्यते निर्ममं । (२७) श्रीपते तं जहि जाग् विधायोद्यम (२७) दानशौंडाव मे देहि शरिप्रमं ॥ ७ ॥ (श्ए) यस्य कृशजलधेर्विश्राम (३०) कंगताशुसुनटसंग्राम ।
हुआ है उसके सो परियों में पञ्चीस श्लोकों के सौ वरण हैं और केंद्र में 'म:' जो अक्षर है वही ये सय चरणों के अंत का अक्षर है। शब्दों के आदि अक्षर लेकर पद बनाना उतना कठिन नहीं हैं जितना अंत का अक्षर मिलाना कष्ट साध्य है ।
श्री जेसलमेर-निवासो, ओसवाल कुल भूषण, खरतरगच्छोय संघवी थाहरूसाह भणशाली ने सं० १६७५ में यह पार्श्वनाथ जोके मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था। उसो उत्सव पर आये हुये साधु मंडलियों में से सहजकीर्ति गणि नामक किसी विद्वान को यह कीर्ति है।
यह लेख G. O. S. No. 21 के परिशिष्ट के पृ. ७१-७१ नं. ६ में प्रथम प्रकाशित हुआ है। पाठ में कुछ अशुद्धियां है। यहां शुद्ध पाठ प्रकाशित करने के लिये यथासाध्य प्रयास किया गया है।
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[१६] (২) বনাম
(३५) जेतारं जगतः श्रितया ॥७॥ (३३) कक्षीकृतवसुभृत्पुप्रीम (३४) सापाचारमहामं । (३५) केशोच्चयमिह नयने काम (३६) लिंगति कमला कुरु त देमं ॥ ए ॥ (३३) कलयति जगताप्रेम
(३७) संनयति सौख्य (टतमुदामं । (३ए) काखं हंति च मतपरिणाम (४) महतंमहिमस्तोमं ॥ १७ ॥ (४१) रसनयेप्सितदानसुरद्रुमं (४५) हितमहीरुद्धिजोत्तमं । (४३) तं(त)रुधपुण्यरमोदय संगम (४४) समरसामृतसुंदरसंयमं ॥ ११ ॥ (४५) हिनस्ति सझ्यानवशातस्य मध्यमं (४६) तं तीर्यनाथं स्वमतः वंगभं । (४७) सुरासुराधीशममोधनयम () ः नाथसंपूजितपयुगंस्तुमं ॥ १५ ॥ (४ए) संसारमासाकुम चित्तमादिमं (५०) सास्त्रार्थसंवेदनशून्यमश्रमं । (५१) रम्याप्तनावस्थितपूर्णचिदमं (५५) साकितः शोपितगपकईमः ॥ १३ ॥ (५३) रस्नत्रयालंकृतनित्यहेम (५४) सीमानिसारोपमसत्त्वसोम। (५५) शोनामयो ज्ञानमयं विसामं (५६) पम्वर्ग मां देव विधेयकामं ॥ १४ ॥ (५७) जावविनासकनष्टविलोम (५७) स्कंदितमंदसतं प्रणमाम् । (एए) रंगपतंगनिवारण सुनीम (६०) कंबुदानं जिनपहत ते नौमं ॥ १५ ॥ (६१) मंत्रेश्वरः पार्श्वपत्तिः परिश्रमं (६२) सामाश्रितस्थापनया मनोरमं । (६३) कर्मोस्थितं मे जिनसाधु नैगम (६४) रजाविलासाक्षसनेत्रनिर्गमं ॥ १६ ॥ (६५) रामितिसारशरीरमविचार (१६) हरिनतोत्तमरिता ।
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[ १६३ ] (६७) श्रयत तं नितमाननुजंगमं (६०) फलसमृद्धिविधानपराक्रमं ॥ १७ ॥ (६ए) पर्यशः सृजति श जिनसावनौमः (७०) तारस्वरेण विबुधैः श्रित शतेहीम। (७१) शोका रिमारिविरहयतवात्तदाम (७२) नव्यैः स्तुतं निहतदुर्मतदडपमं ॥ १७ ॥ (७३) माद्यांबुजवसविधौ मह किमं (38) न वाजयत्याशु मनस्तुरंगमं । (७५) मंत्रोपमं ते जिन राम पंचम (७६) स्तवेन युक्तं गुणरत्नकुट्टिमं ॥ १५ ॥ (53) कलिशैलोरु व्याधाम .. (ज) माहात्म्यं हृदयंगमं । (Jए) खब्धश्रितवसुत्राम
(७) यतिवर्गस्तुतं नुमं ॥ २० ॥ (७१) लोकोत्पत्तिविनाशसंस्थितिविदां (७२) व्यारक्तसमाधरं नमत नो मुख्यं जिनं वै स्तुमं
पूजां वगं पाश्चिन। (७३) परपदस्य तव स्तवं त्वन्निमित्तकरी गे (४) तत्तनावमयं वस वदतस्त्रै कान्यस्तर्वद ॥२१॥ (७५) नयनाननसतोमं . (६) संतति तव जंगम । (ड) स्थावराशु(सु)मतां स्याम (ज) नयते शमकृत्रिमं ॥ २२ ॥ (ए) दासानुदासस्य मम
(ए) नवानंद विहंगमं। (?) माद्यति प्राप्य सुमं
(ए) नंपा(नया)दत्तां महामं ॥ २३ ॥ (३) कमाबोहित्यनिर्यामं (ए४) मानवाच्यं महामं । (एए) गुणिपूज्यं प्रोणयाम (ए) (रुचि स्तौमि नमं नमं ॥ २४ ॥ (ए) स्मरंति यं सुंदरयदकई में (ए) रागात् समादाय महंति कोकुमं । (एए) मिथो मिलित्वा मवुजाड्यकुंकुम (१७) चंद्राननं तं प्रविलोकताप्रम ॥ २५ ॥
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[ १६४] ( केंद्र में ) *
( मंः १००
( उपरि भागमें )
( दाहिना अंश)
(१) इत्थं पार्श्वजिनेश्वरो जुवन दिक्कुंच्यंगचं (२) प्रात्मके वर्षे वाचकरनसारकृपया राका (३) दिने कार्तिके । मासे लोऽपुरस्थितः शतद (४) लोपेतेन पझेन सन् नूतोयं सहजादिकी (५) र्तिगणना कल्याणमालाप्रदः ॥ २५ ॥
* केंद्र में जो ‘म: १०० लिखा हुआ है वही सांकेतिक वर्ण है, अर्थात् यंत्र के सौ पखड़ियों में लिखे हुए पञ्चीस श्लोकों के सौ चरणों का अंत अक्षर है।
केंद्र के अतिरिक्त वृत्त के परिधि में सौ पखड़ियों के सौ कोठे बने हुये है। उन सबों के चरणों के जो प्रथम अक्षर हैं उन से भी इस प्रकार श्लोक बनते हैं :
श्रीवामातनयं नीतिलताधं न घनागमं । सकला लोक संपूर्णकायं श्रीदायकं नजे ॥१॥ . कला केलि कलंकामरहितं सहितं सुरैः। संसार सरसी शोष नास्कर कमलाकरं ॥२॥ सहस्र फणता शोजमान मस्तक मालयं । खोडपतन संस्थान दान मानं क्षमा गुरुं ॥ ३॥ स्मरामिचं
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( बायां अंश )
( १ ) ॥ ऐं नमः ॥ श्रीसा हिर्गुणयोगतो युगवरेत्यसंपदं दत्तवान् । येच्यः श्री ( २ ) (जिनचंद्रसूरय इला विख्यात सत्कीर्त्तयः । तत्पट्टे [मिततेजसो युगव ( ३ ) राः श्रजिनसिंहा निधास्तत्पट्टांबुजजास्करा गणधराः श्रीजैन राजाः ( ४ ) श्रुताः ॥ १ तैर्नाग्योदयसुदरैरि
(५)
सरस्वत्योडशाब्दे १६७५
( 9 ) तिष्ठितमिदं चैत्यं
(ए) यस्य प्रौढत
( ११ ) रणे: श्री
(१३) येशि
( दाहिने अंश के नीचे भागमें )
( १ ) सोयं पुण्यजरां तनो
(३) जिनः सर्व ।
( ५ ) व श्रीस
( 9 )
नृपो
( दाहिना अंश )
[ १६५ ]
( १ ) व ( ३ ) कारोव
( नीचे भाग में )
( ६ ) सितद्वादश्यां सहसः प्र
( 0 ) स्वहस्तश्रिया ।
(१०) र प्रतापत
( १२ ) पार्श्वना
( १४ ) तुः
(२) तु विपुषां लक्ष्मी
( ४ ) दा ॥ १ पू
( ६ ) गरो
( ८ ) ज
( २ ) दक्षं
( ४ ) ये यादवे
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[ १६६ ] ( ५ ) पुत्रो श्रीधर
( ६ ) राजपूर्वकधरौ (७) तस्याथ तान्यां वितौ। (७) श्रीमो पुरे जिनेश (ए) भवनं सत्कारितं षोमसी । तत्पु (१८) त्रस्तदनुक्रमेण सुकृती जातः सुनः (११) पूनसो ॥ ३ तत्पुत्रो वरधर्म (१५) सद्गुणैः श्रोमबस्तनयोथ तस्य कर्मणि रतः ख्यातोऽखिले सुकृती श्रीयाहरू ना ।
(१३) मकः । श्रीशत्रुजयतीर्थसंघरचनादीन्युत्तमानि ध्रु
(वायां अंश)
(१) वं
(२) यः का (३) पिय
(४) करोत्त (५) थावसर
(६) फी पूष्णां प्रनि (3) ठाणे ॥४ प्रा
(७) दारसर्वजनस्य जै (ए) नसमयं चालेखयत् (१०) पुस्तकं । सर्वं पुण्य नरेण पा (११) वनमदं जन्म स्वकीयं (१२) यं जुयनस्य यस्य जिनपस्योद्धारकः व्यधात् ॥ तेना
कारितः । सार्ड सद्ध (१३) रराजमेघतनयाच्या पार्श्वनाथो मुदे ॥ ५ श्रीः
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[१६७] मूलनायकजी पर।
[2544] * (१) श्रीलोऽव नगरे । श्रीवृहत्खरतरगचाधीशैः ( ५ ) सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १५ गुरौ लांमशालिक श्रीमन नार्या चांपलदे पुत्ररत्न ( ३ ) थाहरुकेन नार्या कनकादे पुत्र हरराज मेघराजादियुतेन श्रोचिन्तामणिपार्श्वनाथ (४) विवं का० प्र० ज० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसू रिपट्टालंकार ज० श्रीजिनराज सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
पाट पर ।
[2545 ] * (१) संवत् १९११ मिती ज्येष्ठ सुदि ११ तियों श्रीचिंतामणिपार्श्वनाथजी रे सिंघासण
बग(चां)दो रो लालण। वर्षमान चढायो श्रीलोवपुरनयरे (२) सासतो चढीयो रहसी नंडार मध्ये धरसी तो धरमनी सोगन छै कार्ण(कारण) विशेष मोकलो ॥
(३) श्रीशुनं जवतु ॥ धातुकी मूर्ति और पंचतीर्थियों पर।
[2546] संवत् १४२६ फागुण सुदि काग करवाहा."यसुदे सुतेन
* श्याम पाषाण की सहस्राणवालो श्वे र पागण के परिकर सहित श्री मूलनायकजी के मनोज्ञ मूर्ति की चरणचौकी पर यह लेख खुदा हुआ है।
श्रीमूलनायकजी के चांदी के पाट पर यह लेख है। 43
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[१६]
{ 2547] ॥ॐ ॥ सं० १४४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने ऊकेशवंशे ना मगर नाग मेकमादे सुत जउदनकेन पुत्र रतना रासणकलाण (?) ............देव्हा प्रमुख पुत्रादियुतेन सपुण्यार्थं कारितं श्रीवासपूज्य विवं कारित प्रतिष्टितं श्रीखरतरगळे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिन नासूरिभिः । शुभं भवतु ।
[2548] ॥ॐ॥ संवत् १५१० वर्षे माघ सुदि ५ दिने गुरौ श्रीऊकेशवंशे खूणीया गोत्र सा लोहेर ना ईसरदे पुत्र सा सहसाकेन ज्ञात रूपादे पु० जयतादिपरिवारयुतेन श्री शांतिनाथ कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनलप्रसूरिभिः श्रीखरतरगछे ।
[2540] ॥ सं० १५२७ वैशाख वदि ५ दिने श्रीजकेशवंशे चणशाली गोत्रे सा० हरीनां नार्या हांसखदे पुत्रेण सा वणवीर श्रावकेण नार्या नीबू पुत्र दशरथादियुतेन श्रीचंद्रप्रन विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगचे श्रीजिनचं सूरिनिरिति ।
[2550] ॥ संवत् १५६० वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने जकेशवंशे वुहरा गोत्रे सा नारमस जा नोजलदे ना वारिणि पुत्र साप तोला पु० सा अमरा सुश्रावकेण ना सारू पुछ सा महिराज साप मेरा सा० पासा प्रमुख परिवार सहितेन श्रीवासपूज्य बिंब खत्रेयोर्थ कारित प्रतिष्टितं श्रीवृहत्खरतरगछेश श्रीजिनहंससूरिनिः ॥ श्रीशुनं जवतु ॥
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[ १६५]
[2551] ॥ संवत् १५७१ वर्षे वैशाख ३० १३ शुक्रे श्रीश्रीमान जातीय मोरी बासा नाय लोलू सुत श्रेण जीवा जेसंग हरपा लाषा जेसिंग ना जसमादे अात्मश्रेयसे श्रीजीवतस्वामि श्रीचंद्रप्रजस्वामि विंवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीनागेंड गजे श्रीगुणरत्नसूरिभिः ॥ मांडलि वास्तव्य ॥
[2552] सं० १६७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुके फोफलिया गोत्रे जेठा पुत्र धरमसी पुत्र धनजी युन नार्या लाडोदे नार्या पांची । पुत्र रतनसी केन का० श्रीपार्श्वनाथ विंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिनिः खरतरगल्छे ।
चौबीसी पर।
[2553] सं० १५०३ वर्षे पौष सु० १५ गुरू सरसापत्तन वास्तव्य बोलवाल ज्ञातीय सं० वस्ता नार्या लकी सुत वीधा सुद्दड़ा मेघराजेन हंसराज श्रीरंग सुत लोजा जीवराजादि कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ चतुर्विंशतिपट्टः कारितं प्रतिष्ठितं तपागबनायक श्रीजयचंप्रसूरिनिः ॥ शुनं जवतु ॥ श्रीः ॥
[2554]
सं० १५१७ वर्षे चैत्र वदि ७ शुके श्रीश्रीमाल झातीय श्रेष्ठि जीमसीह नाप शणी श्रेयसे सुत वरसाकेन जा रानू पुत्र माणिक सहितेन आत्मश्रेयोर्थः श्रीविमलनाथ चतु. विशतिपट्ट का पिप्पलग श्रीविजयदेवसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीशालिनजसूरिनिः ॥
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[ 190 ]
[2555]
संवत् १५३६ बर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेशवंशे लूणीया गोत्रे सा० लोहर पुत्र सा० महसा जा० रूपादे पु० साहवदे पुत्र पदाकेन जातु सदा महिराज मन्नू प्रमुख परिवार युतेन श्रीश्रेयांस बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनजप्रसुरिपट्टे श्री जिनचंद्र सूरिजिः ।
पाडुका पर ।
[2556]
केशवंशे संपाल गोत्रे सा०
नाम्ना पुत्र सा० पेता
॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० सुदि ५ दिने श्री आप पुत्र सा० मेघा पुत्र सा० आसराज पुत्र पुत्र स० चांदा नोडादि युतया श्री आदिनाथ पाएका युग्मं कारयामास || प्रतिष्ठिता श्री खरतरगछे श्री जिनचंद्रसूरिजिः ॥
[2557 ]
॥ श्र ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ श्रीश्रदिनाथ ना पादपद्म वाई गेली कारिता"
"श्रेयोर्थं
रौप्य पाडुका पर ।
[2558]
श्री केशरियानाथजी
बाई सूना बनाया
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[ ११ ]
रौप्य गट्टाजी पर |
[2559]
॥ बादरमलजी जोगी /दासाथी लूनावत रुपसिया वा० सं० १९३३ जा ॥ कत्तिक सु० १५
{2560]
श्रीपदजी महाराज को चढ़ाई चा साबूदे देदारामजी साणी गांम वैसा - लगवासी श्रीजी चढ़ायो सं० १९५१ रा मिगसर सुदि ३ । सरूपचंद का
[ 2561]
श्री चिंतामण पार्श्वनाथजी रे आगे फाती चढ़ायो कोइ उगवण पावै नही aisaपुरे नवलषोजी रे मंदर में जीदोषी "घरवाओ लबमो चढायो सं० १९२६ पोस सुदिप रोवार
[ 2562]
( १ ) सं० १६७३ मार्गशीर्ष सुदि ए सं० थाहरू क यु
१) तेन जगिनी सजना स्वमातृ चापलदे जरां
(३) बी पाडुकाः ॥ प्र० श्री जिनराज सूरि ... बाहर के चरणों पर |
[ 2563] *
|| सं० १७५० मिगसर यदि ए दिने श्री जिनकुशलसूरि पाडुके । कारापिता
। स । दमसी जेराज श्रेयोर्थं
*
यह श्वेत पत्राण के चरण मंदिर के बाहर घांये तरफ विराजमान हैं ।
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[१२]
[ 2564 ] +
......... कुशलसूरिः
गणपति मूर्ति पर ।
[ 2565] *
) ॐ सं० १३३७ फा० सु० २ श्रीमामा मधोरथ मंदिर योगे श्रीदेव ( 2 ) गुप्ताचार्य शिष्येण समस्त गोष्ठि वचनेन पं० पद्मचंद्रे
(३) अजमेरु दुर्गे गत्वा द्विपंचासत जिन बिंबानि सच्चिकादेवि ग ( ४ ) [ ] पति सहितानि कारितानि प्रतिष्ठितानि
सूरिया
मंदिर नं० १
मूलनायकजी पर ।
[ 2566] +
(१) ॥ सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ न० थाहरू जाय कनकादे पुत्री
वीरां कारितं
+ यह पादुका पीले पाषाण में खुदे हुए हैं।
* यह लेख मकराने की गणपति मूर्ति की चरण चौकी पर खुदा हुआ है और श्रीमंदिरजो को फेरी में दाहिने तर्फ रखा हुआ है।
+ मूल मंदिर के चारों कोने में बार शिखरवंद छोड़े मंदिर अवस्थित हैं। दाहिने तरफ दक्षिण दिशा में यह मंदिर है। इसमें पीले पापा की परिकर सहित श्वेत पाषाण की मूलनायकजी की मूत्तिं विराजमान है। मूर्ति के चरण चौकी पर का यह लेख है ।
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लोद्रवा
PILLAR
मंदिर नं. १
INSCRIPTION
सं२६७३ माविमा दिसणसालासंघका पाटनकपत्राया दिनोवादवरदस्खला घुताया सुदागावा यामकारिता वितश्रीहित राहि।
TEMPLE No.I
(नं० २५६७)
LODRADA
लोद्रवा - मंदिर नं० १ (नं० २५६६)
संEOमार्गशीर्ष मुदिर गुरौता घाहरूलार्याकनकादेवी वीशंकारिन ॥श्रीप्रादिनाचबिंबाप्र० श्रीदतवरत रगच्छाधाशाजनरानमूरिना
INSCRIPTION ON PEDESTAL, TEMPLE No. I
LODRAVA
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लोद्रवा
मंदिर नं० २
( नं० २५६६ )
੧੬੫ਸਾਹਤਿ੬ਦਰੇ साली घात कितिदेव दरदर एक प्रकार श्रीजिन राजसूतित्तिगा
INSCRIPTION ON PEDESTAL, TEMPLE No. II LODRADA
PILLAR
INSCRIPTION
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TEMPLE No. It
लोद्रवा - मंदिर नं० २ ( नं० २५६८ )
श्रीलु द्रपरपत्र ने श्रीमत् श्री वृद खरतरगच्ाधीशैः
||६|| संवत् १६७५मार्गशीर्षसुदिश्य श्री मतिना बिका०सं०बाद रुलाया "कन का दिन हाऊन प्र० युगप्रधान श्रीजिन सिंह सूरिपहना कर श्री जिनेराज सुरिनिः
LODRAVA
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[ १७३ ] (५) ॥ श्रीश्रादिनाथ विवं । प्र श्रीवृहत्खरतरगबाधीश श्रीजिनराजसूरिनिः॥
स्तंन पर।
[2567] : (१) सं० १६९३ मार्गशीर्ष सु (२) दिए जणसाली संघवी (३) थाहरूकेण श्री आ (४) दिनाथ देवगृह स्व स (५) धुनार्या सुहागदेवी (६) पुण्यार्थमकारि प्रति
(७) ठित श्रीजिनराज
मंदिर नं०२
मूलनायकजी पर।
[2568] + ( १ ) श्रीवुअपुरपत्तने श्रीमत् श्रीवृहत्खरतरगनाधीशैः (२) ॥ों ॥ संवत् १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १५ गुरौ ॥ श्रीअजितनाथबिंब काण
सं० थाहरू जार्या श्रा
* प्रथम मंदिर के दक्षिण तरण तोरण स्तंभ पर यह सात पंक्तियों का लेख खुदा हुआ है। इसकी लम्बाई आठ इंच और चौड़ाई सात इंच है। C. O. S. No. 21 के परिशिर न० १० में यह लेख छपा है। इसमें 'श्रीजिनराजसूरिभिः' पाठ है परन्तु लेख की अंतिम पंक्ति में केवल 'जिनराजि' स्पष्ट है।
• यह मंदिर भूल मंदिर के पश्चात् भाग में दक्षिण पच्छिम कोण में अवस्थित है। यह लेख श्वेतपाषाण की मूलनायकजी की मूर्ति पर है और G.O. S. No. 21 के परिशिष्ट नं० ८ में प्रकाशित हुआ है।
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[ १७४ ] (३) कनकादे पुत्ररत्न हरराजेन प्र० युगप्रधान श्री जिनसिंहमूरिपट्टप्रनाकर श्रीजिनराजसूरि निः॥
स्तंन पर।
[2569] * (१) संप १६५३ मार्गशीर्ष सुदि (२) ए जणशाली संघवी थाह (३) रूकण श्रीअजितदेव गृ (४) ह पुत्ररत्न हाराज पुण्या (५) धमकारि प्रा श्रीजिन (६) राजसूरिभिः ।।
मंदिर नं०३ मूलनायकजी पर।
[2570] +
(१) गछाधीशैः॥ (१) ॥ संघ १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १५ गुरौ श्रीसंनवनाथ विंब का न श्री.
मल पुत्ररत्न जा थाहरू नार्या श्राप (३) कनकादेव्या प्र० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रजाकर श्री जिनराजसूरि निः
श्रीवृहत्खरतर
* मंदिर के तोरण स्तंभ पर छ: इंच लम्बा और ७ इंच चौड़ा छः पंक्तियों का यह लेख है। यह (5.0., No. 21. के परिशिष्ट नं० ११ में छपा है।
___ यह मंदिर मूल मंदिर के पश्चात् भाग में उत्तर पच्छिय कोण में है और यह लेख मूलनायकजी की छेत्र पाषाण की मूर्ति पर है । इस लेख का अन्तिम अंश गच्छाधीशैः' ऊपर के भाग में खुदा हुआ है इसलिये यहां पर भी उसी प्रकार दिया गया है।
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'लोद्रवा
PILLAR
मंदिर नं०३
महामार्गशाईस दिसणसालीसा पादाकणवासना वतावादवरदाना महाराजापानलाऊ राजस्वमन्त्रणा मकाश्रिी
INSCRIPTION
TEMPLE No III
(नं० २५७१)
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लोद्रवा --मंदिर नं. ३ (नं० २५७०)
गगधाशा nistuमासिदि१२रोिश्रीसंतवनामबि बकाला प्रामलपत्ररनतावाटसमाधान जनकाट्याप० युगप्रधानश्री ऊनासहमारपघलाकरणानिराऊसरितःशीवटतरता
INSCRIPTION ON PEDESTAL, TEMPLE No. III
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( १ ) सं० १६७३ मार्गशीर्ष सु
( ३ ) याहरुकेण श्रीसंज |
( ५ ) मेघराज पोत्र जोज
( ७ ) धमकारि । प्र० श्री
मंदिर नं० ४
मूलनायकजी पर |
[ 2572] +
( १ ) ॥ श्रीलोडवा नगरे | श्रीवृहत्खरतरगष्ठाधीशैः ॥
(२) सं० २६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरौ जांडशाक्षिक सा० श्रीमल जा० चांपलदे
पंक्ति २ में
६ में
* मंदिर के तोरण स्तंभ पर आठ पंक्तियों का यह लेख है। हैं । यह G. O. S. No. 21. के परिशिष्ट नं० १२ में छपा है । वे इस प्रकार हैं :
इसके
:
"
ޔ
ވ
में
[११]
स्तंज पर ।
[ 2571] *
9
८ में
( २ ) दि ए जयसाली सं० ।
( ४ ) वनाथ देव गृहं पुत्र
( ६ ) राज सुखमच पुण्या ( 6 ) जिनराजैः
'सं०'
'सुखमल'
'कारि
'जिनराजे : '
है; G.O.S. में 'संघवी' छपा है ।
है :
में 'सुखम ( ? )स्य' छपा हैं ।
हैं
में छूट गया है ।
है;
में 'जिनराजसूरिभिः' हैं ।
み
"
"
इसकी लम्बाई ८ इंच और चौड़ाई ७ इंच पाठ से मूल पाठ में कई जगह अंतर है।
1
1. मूल मंदिर के बांये तरफ उत्तर दिशा में यह मंदिर है। इस में मूलनायकजो की श्याम पाषाण की बड़ी aai aantarat मूर्ति प्रतिष्ठित है। मूर्ति की चरण चौकी पर यह लेख खुदा हुआ है। यह G. O. S. No. 21. के परिशिष्ट नं० ७ में प्रकाशित हुआ है ।
45
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[ १७६ ] (३) पुत्ररत्न थाहरूकेण नार्या कनकादे पुत्र हरराज मेघराजादियुजा श्री.
चिंतामणि पार्श्वना (४) य बिंबं का० प्र० च युगप्रधान श्री जिनसिंहसूरिसप्रनाकर जा श्री
जिनराजसूरिचिः प्रतिष्ठितं ।
स्तंल पर।
(१) सं० १६५३ मार्गशीर्ष सु (३) वी थाहरूकेण श्रीपा ( ५ ) अनार्या कनकादेवी (७) श्रीजिनराजसूरि
[2573]x
(२) दिए जणसाली संघ (४) र्श्वनाथ देवगृहस्य वृ (६) पुण्यार्थमकारि प्रण (G) निः॥
LEK
---
--------
x मंदिर के तोरण स्तंभ पर ६ इंच लम्बा और ७ इंच चौड़ा आठ पंक्तियों का यह लेख है। यह (0. S. No.21 के परिशिष्ट नं0 में छपा है।
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P
लोद्रवा
PPMSPIRI
PILLAR
INSCRIPTION
मंदिर नं०४
सं१६९३मार्गशीमा दित्तिणसाला वाघाद साकण्यापा नावदिवशदस्यमा दत्तायांकनकादेव
प्राधमकारिण ग्राडिनराजमणि
TEMPLE No. IV
A
( नं० २५७३)
LODRADA
NRAYANAMAHATEHPurParingingRATO
लोद्रवा - मंदिर नं० ४ (नं० २५७२ )
॥श्रीलोश्वान गरे।श्रीवृ हत्खरतरगच्छाधीशैः।। ।। सं१६०५मार्गशीसातितोगारोनकमालिकसागश्रीमलसाचापलाद बरनवादकमायाकनकाशामराजाध्यिकारीतामाणपाना चाबबका०चयुगपधानशीलतसिंपलाकरनाश्रतिनराऊसारानातानाष्ठता
INSCRIPTION ON PEDESTAL, TEMPLE No. IV
LODRAVA
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[ १७७]
पट्टावली पट्टक। *
श्रीमहावीर ॥१
[2574]
( १) श्रीअनूति १ (२) श्रीअग्निति ५ (३) श्रीवायुजूति ३ (४) श्रीव्यक्त ४ (५) श्रीसुधर्मस्वामि ५ (६) श्रीमंडित ६ (७) श्रीमौर्य पुत्र
# यह शिलालेख मंदिर के उत्तर तरफ दीवार के सहारे रखा हुआ है, परन्तु खेद है कि असावधानता के कारण टूट गया है। मालूम होता है कि शिला को लम्बाई अधिक होने से, और किसी स्थान पर जमा कर सुरक्षित नहीं रहने से ऐसी दशा हुई है। इसकी लम्बाई अन्दाज़ ४ फीट और चौडाई १॥ फीट से कुछ अधिक है। मेरे आजतक जितने शिलालेख देखने में आये हैं और जितने अन्यत्र प्रकाशित हुए हैं उनमें से किसी में भी अपने पट्टावली का शिलालेख देखने में नहीं आया है। इस शिलालेख में श्री महावीर स्वामी से लेकर श्री देवार्द्धगणि क्षमाश्रमण तक आचार्यगण और उनके शिष्यों के नाम चरण सहित खुद्दे हुर हैं। श्री महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् ६८० वर्ष व्यतीत होने पर श्रीदेवद्धि गणि जी जैनागम को पत्रारूढ़ लिये थे। इन के विषय में श्रीकल्पसूशादि में जो कुछ संक्षिप्त परिचय मिलते हैं इस के अतिरिक्त मुझे अद्यावधि कोई विशेष इतिहास ज्ञात नहीं है। शिलालेख में कुल वरणोंकी समष्टि १०६ है, परन्तु देवर्द्धिगण के नाम के बाद ७, १० खुदा हुआ है, यह संकेत समझ में नहीं आया। इस के सिवाय शिलालेख के आदि में दक्षिण तरफ नीचे के भाग में तीन कोष्ठक में अष्ट मङ्गलिक खुदे हुए हैं, और मध्य में तीन कोष्टक में यथाक्रम से ६,८ और ६ पखड़ियों के कमल सुने हुए हैं, और एक कोष्टक में स्वस्तिक है, अन्त में दो कोष्टक में नंद्यावत्ते और स्वस्तिक है। परन्तु लेख में कोई संवत् मिति अथवा प्रतिष्ठा करने वाले आचार्य या करानेवाले कोई श्रावक अथवा खोदनेवाले का नाम अथवा प्रतिष्ठा स्थानादि का उल्लेख नही है।
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[ 1
] (6) श्रीअकंपित (ए) श्रीअचलन्त्राता ए (१०) श्री मेतार्य १० (११) श्रीप्रनास ११
श्रीसुधर्म स्वामि
( श्रीमहावीर स्वामी के पाट पर)
( शिष्य २) (१) श्रीप्रनव स्वामि (२) श्री शय्यं नव
श्रीजंबू स्वामि (श्रीसुधर्मा स्वामी के पाट पर)
प्रनव स्वामि (श्रीजंवू स्वामी के पाट पर)
श्रीशय्यंजव (श्रीप्रभव स्वामी के पाट पर) श्रीयशोजन शिष्य २
(श्रीशय्यंभव स्वामी के पाट पर)
संजूति विजय
(१) संनूति विजय शिष्य १२ शिष्यणी । (५) नमबाहु स्वामि शिष्य चत्वारि ४
(शिष्य-१२) (१) श्रीनंदिन (१) श्रीउपनंद (३) श्रीतो सन्ना ३ (४) श्रीयशोजन ४
(यशोभद्रजी के पाट पर)
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[१
]
(५) श्रीसुवएर्णन ५ (६) श्रीगणिना ६ (७) श्रीपूरणन (७) श्रीथूलिना ७ नश् शिष्य २ (ए) श्रीजुमति ए (१०) श्रीजंबू १० (११) श्रीदीर्घजा ११ (१५) श्रीपांकुलन र
( शिष्यणो-७) (१) यदा १ . (१) यददन्ना (३) नूता ३ (४) जूतदन्ना ४ (५) सेणा ५ (६) वेणा ६ (1) रेणा
(शिष्य-४ (१) श्रीगोदास १ (३) अग्निदत्त २ (३) श्रीयज्ञदत्त (४) सोमदत्त
श्री जवाहु स्वामि (श्रीसंभूतिविजय के पाट पर)
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श्रीस्थूलना (श्रीभद्रवातुस्वामी के पाट पर)
श्रीआर्यमहागिरि (श्रोस्थूलभद्र के पाट पर)
[१०]
( शिष्य - २) (१) श्रीथार्यमहागिरि १
नई शिष्य अष्टौ ७ (२) श्रीसुहस्तिसूरि २ न शिष्य १५
( शिष्य-८) (१) श्रीउत्तर १ (२) श्रीबलिस्तर (३) श्रीधन ३ (४) श्रीसिर (५) श्रीको डिण ५ (६) श्रीनाग ६ (७) श्रीनागमित्त (७) श्रीरोहगुप्त 68
(शिष्य-१२) (१) श्रीरोहण १ (२) भोजप्रयता (३) श्रीमदगणी ३ (४) श्रीकामढ४ ( ५ ) श्रीसुस्थिता ५ (६) श्रीस्ववियुद्ध ६
श्रीसुहस्तिसूरि
(श्रीभार्यमहागिरि के पाट पर)
* स्थविरावलि में इन का 'छलूए रोहगुत्त' और कहीं 'छडुलूए रोहगुत्त' नाम है।
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श्री सुस्थित ५
( श्रीहस्तिरि के पाट पर )
श्रीइदिन्न (श्रीजी के पाट पर )
श्री दिन्न शिष्यो २
( श्रीइंद्रदिन के पाट पर )
श्री शांतिसेन
[११]
(७) श्रीरक्षित
(८) श्री रोहनुस
(ए) श्री रिषिगुप्त ए
(१०) श्री गुप्त १०
(११) श्रीब्रह्म ११
( १२ ) श्री सोम १२
( शिष्य - ५ )
( ( ) »lisha (
( २ ) श्री प्रियग्रंथ 2
( ३ ) श्रीविद्याधर गोपाल ३
( ४ ) श्रीशषिदत्त ४
( ५ ) श्री दत्त ५
( शिष्य---२ )
( १ ) श्री ध्यार्यशांतिसेन १
न शिष्यत्वारि ४
( २ ) श्री सहनिरि २ नइ शिष्य व
( शिष्य - ४ ) ( १ ) श्री सेन १
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[१७]
श्रीसींह गिरि ( श्रोदिन के पाट पर)
(२) श्रीतावस ( ३.) श्रीकुबेर ३ (४) श्रीरिषिपालित ४
(शिष्य--४) (१) श्रीधएणगिरि १ (२) श्रीवयरस्वामि । न शिष्य ३ (३) श्रीसुमित ३ (५) श्रीअर्हदिन्न ४
(शिष्य--३) (१) श्री वयरसेन १ (५) श्रीपद्म २ (३) श्रीआर्यरथ ३
श्रीवयरस्वामि (श्रीसिंहगिरि के पाट पर)
श्रीवत्रसेन (श्रीवयरखामी के पाट पर)
श्रीार्यरथ (श्रीवयरस्वामी के तीसरे शिष्य )
श्रीपुष्पगिरि (श्रीआर्यरथ के शिष्य)
श्रीफल्युमित्त (श्रीपुष्पगिरि के शिष्य )
श्रीधणगिरि (श्रीफल्गुमित्त के शिष्य)
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[१३] श्री शिवनूति ( श्रीधणगिरि के शिष्य)
श्रीआर्यन (श्रीशिवभूति के शिष्य)
श्रीआर्यनदात्र (श्रीमार्यभद्र के शिष्य)
श्रीनाग (श्रोार्यरक्ष के शिष्य )
श्रीजेहल (श्रीनाग के शिष्य)
श्रीविष्णु ( श्रीजेहल के शिष्य) श्रीकालिकाचार्य शिष्यो २
(श्रीविष्णु के शिष्य )
(शिष्य-२) (१) संपलित १ (२) आर्यन
श्रीार्यवृद्धि (संपलित और आर्यभद्र के शिष्य )
श्रीसंघालित ( श्रीार्यवृद्धि के शिष्य)
श्रीआर्यहस्ति (श्रीसंघालित के शिष्य )
---
-
-
. * इनके प्रथम और 'श्रीआर्यनक्षत्र के बाद श्रीमार्यरक्ष' का नाम स्थविरावली में है।
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[२४]
श्रीश्रार्यधर्म (श्रीआर्यहस्ति के शिष्य )
श्रीसिंह (श्रीआर्यधर्म के शिष्य)
श्रीआर्यधर्म (श्रीसिंह के शिष्य)
श्रीसंडिल ३ (श्रीआर्यधर्म के शिष्य ) श्रीधरुतकण्ह १
श्रीधार्यजंबु श्रीआर्यनंदि३
श्रोष्यगणि ४ श्रीस्थिरगुप्ति दमाश्रमण ५ श्रीकुमारधर्म ६
* श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण 9 Qu
-------
-.
......--.-.-.-----
* फिसी २ पट्टावली में इस नाम के स्थान में 'आर्यपम' है। नोट:--'श्रीआर्यधर्म के शिष्य 'श्रीसंडिल्ल' के नाम के नीचे ८३' अङ्क खुदे हैं। इनके बाद 'श्रीइंद्रस्तकण्ह' से लेकर 'श्रीदेवर्द्धिगणि' तक जो सात नाम हैं इनके नामों के साथ १ --७ यथाक्रम है और 'श्रीदेवद्धिगणि' के नाम के साथ १० अङ्क भी खुदे हुये हैं।
श्रीभन्दाहु स्वामी के शिष्य श्रीसोमदत्त के चरणों के दाहिने तरफ नंद्यावर्त के नीचे जो पांच भक्षर खुदे हैं उनके भावार्थ समझ में नहीं आने के कारण यहां उल्लेख नहीं किया गया।
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देवीकोट
श्री आदिनाथजी का मंदिर |
प्रशस्ति नं० १
[ 2575 ] *
( १ ) ॥ संवत् १०६० मिते वैशाख मासे सुदि पके ७ तिथौ गुरुवारे महाराजाधिराज महारावल श्री
( 2 ) मूलराजजी विजे राज्ये श्रीदेवीकोट नगरे समस्त श्रीसंघेन श्रीकृषन जिनदेव गृ ( ३ ) हं कारितं प्रतिष्टितं च श्रीमद्वृत्खरतरगष्ठाधीश जट्टारक श्री जिनचन्द्र ( ४ ) सूरि पट्टप्रजाकर श्री जिनदर्षसूरिभिः श्रेयोस्तु सर्वेषाम् शुनं जयतु श्रीः श्रीः॥
प्रशस्ति नं० २
[ 2576] +
(१) ॥ श्रीम द्विघ्ने विद्वेनमः ॥ श्रीमन्नृपति वीर विक्रमादित्य
* देवीकोट जेसलमेर से पूर्व की तरफ बारह कोस पर | वर्त्तमान समय में यहां यस्ती अधिक नही है । ग्राम के एक तरफ यह मंदिर स्थित है। मंदिर के भीतर दाहिने तरफ उत्तर दीवार में यह शिलालेख पीले पाषाण में है । + यह प्रशस्ति भी मंदिर के भीतर पूर्व की दीवार में लगा हुआ है ।
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[१६] (२) शरात् १७६० शालिवाहन कृत शाके १७२५ प्रवर्त्तमाने (३) मासोत्तममासे वैशाख सुदि दिने श्रीदेवीकोट मध्ये (४) श्रीक्षजदेवस्य मंदिरं विंव सहितं श्री संघेन कारापितं प्र (५) तिष्ठितं च श्रीवृहरखरतरगणाधीश्वरेण जं । यु । न श्रीजिन (६) हर्षसूरिजिः तत्पट्टप्रजाकर जं । यु । न श्रीजिनमहेन्प्रसूरि (७) जिः सं० १७ए वर्षे चैत वदि ७ दिने पधाख्या महामहोछ वेन तत्र (७) मंदिरस्य पुनः गुरुस्यूंनस्य जीर्णोद्धार कारापितं । तठे श्री सं (ए) घरै माहो मांहि दोनोहिवासरे धड़ा था सु कमेक किया व (१०) डो जश हुवो मास १ रह्या धर्म री महिमा घणी दूई पमास (११) मणां प्रमुख री जक्ति विशेख साचवी तस्य प्रशादा (१५) त् श्रीसंघ रै सदा मंगलमाला लवतुतराम् ॥श्रीः (१३) श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमस्तुः
पंचतीर्थयों पर।
{25771 सं० १५१४ वर्षे फागुण सुदि १० सोमे उपकेश झाग श्रेष्टि गोत्रे महाजनी शाखायां मण वानर ना विमझादे पु० नाव्ह ना नाटदणदे पु० पुंजा सहितेन श्रोशांतिनाथविवं का प्र० उपकेश ग० ककुदाचार्य सं० श्रीकक्कसूरिभिः ॥ पारस्कर वास्तव्यः श्री ॥ त्रातृव्यसंग्राम ॥
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[२ ]
[2578] संवत् १५३४ वर्षे आषाढ सुदि ५ दिने उकेशवंशे बायड़ागोत्रे सा० सूरा नाम माणिकदे पुण् सा० कांऊण सुनावकेण जाण पूनी पुरा गांगादी परिवार सहितेन श्री मुनिसुत्रतबिंब कारित प्रति० श्रीखरतरगचे श्रीजिन नासूरिपट्टे श्रीजिनवन्मसूरिनिः ॥
चौवीसी पर।
[2579] संवत् १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १ दिने बुधवासरे श्रोशवाल ज्ञातीय कुंवर गोत्रे सं० जेसन जाग जयश्री पुछ जगसो ला० रूपादे पु० पाया लाए प्रेमनदे पु० समा देता श्रीमल सहितेन संग पोशाकेन श्रात्मपूण्यार्थे श्रीविमलनाथवि कारापितं प्रतिष्ठित श्रीधर्मघोषगडे श्रीविजयचन्प्रसूरिपट्टे न० श्रीसाधुरत्नसूरिनिः॥
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[१ ] दादाजी के स्तूप पर।
[2580 ] * (१) ॥ श्रीसद्गुरुन्योनमः ॥ संवत् १७७४ वर्षे (२) शाके १७३ए प्रवर्तमाने मासोत्तममासे (३) मार्गशिरमासे शुक्लपके दशमी तिथौ यु (४) रुवासरे। श्रीदेवीकोट नगरे श्रीबृहत्व (५) रतरगढीय समस्त श्रीसंघेण दादाजी (६) श्रीश्रीजिनकुशतसूरिजी स्तूपशाला (७) कारापिता ॥ जं । यु । च । श्रीजिनहर्षसूरिजी (G) ""या । जैसारजोगणि । पं । प्र! अमरसिं (ए) .."पं । रिधविलास उपदेशात् (१०) ॥ श्रीरस्तु ॥
* यह लेख ग्राम के बाहर पच्छिम तरफ सरकारी कोट के पास दादाजी के स्थान का है।
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ब्रह्मसर
श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर।
शिलालेख ।
[ 2581] • (१) ॥ स्वस्तिश्री संवत् १ए४४ शाके ॥. (२) १७०५ माघ शुक्ल ७ शनौ प्रवर्त्त ॥ (३) माने ब्रह्मसर ग्रामे पार्श्वजिनचैत्यं (४) महारावलजी श्री श्री १५५ श्रीवैरिशा (५) खजीविजयराज्ये कारापित ओशवंशे (६) वाग(रे)चा गोत्रे गिरधारीलाल नार्या सिण (७) गारी तत्पुत्र हीरालालेन प्रतिष्टितं जै (७) ननिक्कू मोहनमुनिना प्रेरक वाग(रे)चा (ए) अमोलखचन्द पुत्र माणकलालेन कृ (१०) तं गजधर महादान पुत्र श्रादम ना (११) मेण श्रेयोनूयात् शुनं नवतु
* 'ब्रह्मसर' और 'गजरूपसागर' ये दोनों स्थानों के लेख मुझे जेसलमेर के खरतरगच्छ के बड़े उपासरे के पं० लक्ष्मीचंद्रजी यति की कृपा से प्राप्त हुये है। यह स्थान जेसलमेर से उत्तर की तरफ चार कोस पर है। यह लेख मंदिर के बांये तरफ है।
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[१०] मूलनायकजी पर।
[ 2582] (१) ॥ निश्शेषानंता मंडलेन्द्र श्रीमतिक्रमादित्य राज्यात्संवदिग्गजने त्रांकोनिमिते
मासोत्तम माघार्जुन त्रयोदश्यां (२) गुरुयुतायां कम(१)वास्यां ॥ सं० १ए७ का शाके १७७३ प्रवर्तमान माघ शुद
१३ गुरौ श्रीपार्श्वजिनविं (३) बं प्रतिष्ठितं श्रीमवृहत्खरतरगठाधीश्वर श्रीमन्महेन्द्रसूरि पहनाकर जं।
यु। प्र । सकल ज । चक्रचुडामणि (४) श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीमन्महाराजाधिराजा महारावल जी श्रीवैरिशालजी
विजयराज्ये कारितं च श्रीजेशन(५) .......
पंचतीर्थयों पर।
[2583] ___ सं० १५१३ वर्षे प्राग्वाट मं० केव्हा ना कोहण सुत मंण् नाना चांपाकेन जा गुरी पु० मांडणादि कुटुम्बयुतेन स्वपितृव्य मंण् कान्हा श्रेयसे श्रीन मिनायविंय का प्रतिष्ठितं तपा श्रीसोमसुन्दरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ... ल पुर्गे ॥
[25841 ॥ संवत् १५५४ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे श्रीमान झातीय व्यय रत्ना जा रत्नादे सु० हरीया नाग लाली सु० वषमणानिधेन स्वपितृ श्रेयाथं श्रीशांतिनाथविवं श्री पूर्णिमापदे श्रीपुण्यरत्नसूरीणामुपदेशेन कारिय प्रण विधिना वाराहि ग्रामे ॥
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[१९७१]
दादाजी के स्थान पर ।
शिलालेख नं० १
[ 2585] *
(१) ॥ संवत् वह्निग्रहादिनागचन्द्रवर्षे (१८५३) ( 2 ) कार्त्तिकमासे शुक्लपदे अष्टम्यां तिथौ (३) भृगुवारे ऋतो (?) श्री श्रीवृदत्तखरतरग (४)
। श्री जिनसूरिजिः पं० खूबचंद शि ( ५ ) ष्य । पं । प्र । जगविशालमुनि उपदेशात् दादा (६) जी श्रीजिनकुशलसूरिश्वर जीर्ण पाडुका
( 3 ) परि नवीन थुंनशाना कृता श्रीब्रह्मसर ग्रामे ( ७ ) श्रोशवाल समस्त श्रीसंघ सहितेन प्रतिष्ठा कृ ( ९ ) ता महारावल श्रीगजसिंहजी वारे तथा सी (१०) यड़ जोजराज श्रीब्रह्मसर कुंडात् पश्चिम दिशे थुं ( ११ ) नशाल स्थापना कृता १८९३ गजधर सरूपा ॥
शिलालेख नं० २ [ 2586] +
॥ सेव चांदमलजी बाफना की तरफ से मरामत करी सं० २०६२ सांवण सुद २
* ब्रह्मसर से लगभग एक मील उत्तर की तरफ दादाजी का स्थान । यह लेख मंदिर के बांये तरफ दीवार पर हैं ।
मंदिर के नवीन फर्श पर यह लेख है ।
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[ए]
पापुका पर।
{2587] ॥ श्रीगोड़ी पार्श्वनाथ पाषुका कारितं ब्रह्मसर संघेन श्री जं । यु । न । महेन्ऽसूरिनिः प्रतिष्ठितं रणए६ मि० फागुण सुदि ।
[2588] * ॥ सं० १६ वर्षे मिती फागुण सुदि ४ तिथौ शनिवारे श्रीमवृहत्खरतरगच्छे ब्रह्मसर ना समस्त श्रीसंघेन श्री जं । यु । ज। मणियाला जिनचन्दसूरिजी गुरो पाका का रितः श्री जं । यु । जय । श्रीजिनमहेन्प्रसूरिजिः प्रतिष्टितं ॥
[2580] ॥ श्रीजिनदत्तसूरि पाउका ॥
X
* यह लेख माला में स्थित गुरु चरण पर है।
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गजरूपसागर
दादास्थान। शिलालेख ।
[2500 ] * (१) ॥ श्रीमजिनेडो विजयताम् ॥ (२) ॥ संव्वत् १९३१ रा वर्षे शाके १७७६ प्रवर्त्तमाने मा (३) सोत्तममासे माघमासे शुक्लपके नवभ्यां तिथी (४) शनिवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री (५) वैरीशास्रजी विजयराज्ये श्रीजेशलमेरु नयरे (६) वृहत्खरतर जट्टारक गठे समस्त श्रीसंघेन श्री (७) गजरूपसागर ऊपर श्रीजिनकुशक्षसूरि स (७) गुरुणां स्थंन उतरी पाषुका कारापित श्रीजि (ए) नमहेन्प्रसूरिपट्टालंकार श्रीजिनमूक्तिसूरिभिः (१०) धर्मराज्ये श्रीजिन नप्रसूरिशाखायां पं । प्र । पद्मइंश (११) मुनिः तत्शिष्य उपाध्याय साहिबचन्मगणिः पं । अ
* यह खान जेसलमेर से उत्तर की तरफ दो मील पर है और यह शिलालेख वहां के दादेजी के स्थान का है।
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[१९४] (१५) गरचन्दमुनिः उपदेशात् आग्रह नागे बाबेरो ३ (१३) णि बाबेरी जायगारे पास ले गजधर श्रादम विरामाणी ॥
परसाल पर।
[2501]
(१) ॥ श्रोजिनोजयतीतरां ॥ (२) ॥ श्रोशवाल समस्त की पंचायती की परशाल ३ (३) णी तलाव के बंध ऊपरे थी सु बंध को हरजो देख (४) ने परसाल खोसाय कर बंध के पास चोकी करा (५) ई च्यारे पासे पेडालिया घनाया इणी चौकी के सा (६) मने बंध ऊपरे गुरां धर्मचन्द आचार्यगन (७) का जिणांकी परसाल ऊपर सुं खुली डे जिणे के () सामने चोकी कराई सं० । १५३६ के साल में ॥
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जैसलमेर
(किले पर) श्री ऋषभदेवजी का मंदिर।
शिक्षालेख।
[2592]. (१) ॥ वार सं० २४४ए दत्त सू । सं । ७६५ (५) ॥ ओशवं । संघवीगो । बहादरमबस्तत्पु । मुली (३) चन्प्रस्तन्ना । रायकुंवरी स्वांतसमये सर्व शुन (४) योग्य निमित्त योग्य श्राद्धाधीन स्वलक्ष्मी विधा (५) य सं। १ए आश्विन शु। ए चं! का स्वर्गगता प (६ ) श्वाच्च जेसलमेरु जुर्गोपरि श्रीआदिनाथ जिनप्रासा (७) दे श्रेयो निमित्तं तद्धनव्ययेन नवीन रावट्टी । (७) वधाप्य तत्र सं। १९७० वैशाख शुक्लकादश्यां (ए) शुक्रे दादा श्रीजिनकुशक्षसूरि मूर्ति तत्पा
* शहर के किले. पर श्रीभादिनाथजी के मंदिर में श्रीजिनदत्तसूरि और श्रीकुशलसूरि महाराज की पादुकाएं नवोन स्थापित हुए हैं यहां का यह लेख है।
50
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[ १९६ ] (१०) कुका सम्राट अकबरप्रतिबोधक श्री जिन (११) चन्प्रसूरि पाडका नवीनालये चक्रेश्वरी मू (१५) तिश्च श्रीवृहत्खर० गलीय गणि श्रीर (१३) स्नमुनि यतिवर्य श्रीवृद्धिचन्ऽन्यः प्र(ति)स्था। (१४) पता ॥ पुनस्यशीत्यवस्थित जिन बिंद्यानि (१५) प्रतिष्ठाप्योर्ड स्थापितानि ॥ नूयाच्च मू (१६) तिः कुशलाख्यसूरेः सत्पाका श्रीजिन (१७) चन्द्रसूरे श्रीसंघरनाकर वृद्धिचान्या न (१७) कात्मवांबापरिपूरकाय ॥ १ लि । लक्ष्मी (१५) न्यु ॥ लाबुखां बद जादमखो मेणुना कृता ।
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EEEEEEEEEEET ॥ श्री जैन.लेख संग्रह तृतीय खण्ड समाप्तः ॥
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संवत्
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११२६
११४०
११६२
११०१.
१२०१
१२०५
१२०८
१२१०
१२२६
१२४०
ર
१३१०
२३१३
१३१४
१३२५
51
::::::
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
:
:
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
परिशिष्ट क
-
संवत् की सूची।
(विक्रमीय)
लेखांक संवत्
१३२०
१३२६
१३३३
१३२०
१३३८
१३३६
१३४१
१३४३
१३४५
१३४६
१३४६
२४८६
२२१५
२१२४
२२१८
२४१४
२२१६
૨૬.
२१४७ २२२०
२२२१
२१०६
२२२२
२२२३
२२२४
२२२५
२२२६
२२२०-२८
१३५२
१२५५
१३५०
१३५८
१३६१
१३३२
"Aho Shrut Gyanam";
BABA :
::::
:
::::
लेखांक
२२२६
२२३०
२१८७
२२३१, २५६५
२२३२
૨૬
२२३३
२२३४
२२३५-३६
२२३०-३८
२१८८
२९४०
२२४१
*
२२४३
२२४४
Page #343
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२०] लेखांक । संवत
लेखांक
१४२७
२११३
१३६८
१४२८
१३७३
રર૪ ૨૨૪૬
२१६७ २२४७-४८
२३८६
२२६४
१३७४
१४३३
१३७६
२२७६
२२४३
१४४०
२२९३-५१
२२५२
२१६३, २२७७
२२७८ २२७६
१३८६
२२५३
२२५४-५५
१३८६
२२५६ २२५७
२२५८-६१
२११३ २२८०, २४१८
२२८१ २३६० २१७७
२२८२ २११२, २२८३
२२८४-८५
१३६२
१४५८
२४७७ २२६२
१३६४
२२६३
२४०४
२२६४
१४६२
२२६५
२१७८ २२८६
१४०५
१४१६
२२६७
.
१४२१
२२६८-६६
१ ४७३
१४२२
२२७०-७१
२२७२ २११३
२११२-१३. २२८८-८६ २४१०, २४१७, २४३२,
२४७६, २५३८
१४२५
२२१६, २२६०-६२
१४७३
२४६७
"Aho Shrut Gyanam"
Page #344
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२०१] लेखांक संवत् .
संवत्
लेखांक
१५.०५
२१४४
१४८२
२४०७
२३२३-२५
१४८४
१४८६
१४८७
१४८८
२२६६ ... २२६७. २५४७ ... २९७६, २३६१
... २२६८-६६ २१३६, २३००-२१, २४३६
२३०२-०३ ... २३०४-०५ २१३६, २३०६. २४५०
२३०७ ०६ २११४, २२३८, २१८०,
२३६२, २४३८ २१३६, २४१९, २५१७
१४८६
१४६०
२३२६-२७, २४१६ २१४८, २१५६, २३२८-२६ २१२६, २१६८, २४५८, २५४८ २१५४, २१८३-८४, २३३०,
२३३१, २४६८, २४८०
२१३६, २१६५, २३३३, . २३३४, २४२०, २५७६ २१५२, २१६०, २१६६, २५८५, २१८६-८८, २४४२, २५८३
... २३३५, २५७७ २१४६, २१७०, २३३६, २४१२, २४६३, २५२१
२१६१, २१७१-७२. २३३७-३६, २४८१
१४६२
१४६५
१४६६
१५१६
१४६७
२१३६, २६४२-४३, २१४५-४६, २१५७, २१८१, २३१२-१३.
२४५१-५२
२३१४
१४६८
२३१६ ... २१८२, २३१७
.... २१५८ २३१८-२२, २४५३, २५५३ ।
२११६-१६, २१२२-२३, २१२५, २१३०-३१, २१४०-४१,
२१८६-६१, २३४०-४२०
२३८२-८३, २४८२ २३४३-४५.२४२१-२२ ... २१२८, २१६६ ... २४१३
१५०२
१५२०
१५०३
१५२१
"Aho Shrut Gyanam"
Page #345
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २०२]
संवत्
. लेखांक
संवत्
लेखांक
१५२२
२३४६,२३६८
२२०२
१५२३
१५२४
१५२५
२२२३, २३६१
... २१३२, २१९२ २१५४, २५२५-२६, २५८४
... २१५०, २३४७ २१६२, २३४८, २३६३
२१६३, २३४६-५०, २३८४, २४२३ २५४६ ... २४१४, २४८३
२४२५
२३५१ २३५२, २५३७, २४५५, २५२२
२१७३, २१६४, २४६४ २१३३, २३५३-५४,
२११२७, २५७८ २२१७, २३५५-५६,
२३६४-६५, २४२५ २१२७-२१, २१२६, २१५३-५४, २१६३, २१६५-६६, २३५७ ५८, २३६६, २३६६-२४०६, २४०६, २४२६-२८, २५२३, २५२८,
२५५५-५७ २३५६, २४६६
२२०३-०१
२४८६-८७
२५२६ २४०८
२२०५ २२०६, २४४३
१५३४
२३६७, २५५०
१५३५
१५०३
२३६३
२३६४,२४६६
२३६५, २४३०
१५७६
२१५४,२३६८
२१३०
१५८६
"Aho Shrut Gyanam"
Page #346
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२०३] लेखांक । संवत्
२१६४
लेखांक
२४६८
२३८५
२२०७-०८२२१४,
२३६६ ૨૪૮૮
२३७४, २५१५-१६
१६०६
१६८५
२५००
२५६२, २५६७, २५६६
२५७१, २५७३
२४७४
२३७२-७१
२१५६ २१३१ ૨૩૭૨
२२११
१६२६
१७६१
२५०१
१६४४
१७७४
२२१२
२३७३. २४३१ २४६४-१५
२२०६
२४७१
१७६०
२४३६
१८०३
२५२०
२४७३
२४५६
२२१०, २४६६-१७
২৪৪৭ .... २५००, २५०६ २२५४३-४४. २५५२. २५६६०
१८१६
२४७६
२५०३
२५६८.२५७०, २५७२
१६७७
...
...
२५१४
।
२४४१ २५०२
१८५२
52
"Aho Shrut Gyanam"
Page #347
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२४]
लेखांक । संवत्
लेखांक
१८४३
१९२३
२४४१
२४१०
१८६०
२५७५-७६
... २२१३, २४७५ २५३१, २५३३-३६,
२५४०, २५८२
१६३२
१६३३
२५६०
१८७६
२५८१
१८६१
... ...
' २५३० २४३२, २५८५
१८६३
२४६३
१८६६
२५८६
...
१८६० १८१६०१
२५२४, २५७६
२५१२ २४६०, २४६६
(नाग)
१११० ( संवन्)
२१७४
१९०३
२५१८
(इलाही)
४८ (सन् )
२५४२
२५८६
।
"Aho Shrut Gyanam"
Page #348
--------------------------------------------------------------------------
________________
...........
................
,
परिशिष्ट- ख
राजाओं की सूची।
संवत् नाम
लेखांक
संवत् नाम ।
खेखांक
भकबर
२१७२, २५६२
१५१८
चाचिगदेव
२११६-१७, २११६, २१४०
१७८१
भखैसिंह
१५८३
जयत(जैत्र) सिंह
२१५४
१५८३
अरडक्कमल्ल (युवराज)
२११२, २१३६, २१५५
कल्याणदास
७८
जाहंगीर
१६७३
२४४७
...
श्यम्बकदास दुर्लभराज
२१३६
२५०६
२४६८
------
१६८३
१५३६
देवकर्ण
२१२०, २१५४, २४००,
२११२, २१३६
केहरी (केसरी) गजसिंह
१८७६
२४०४, २४०६, २४०१
२११२, २१३६
२५०४
१७६६
देवराज बुधसिंह । भीमसेन)
२५०१
१८६३
२४६४
१६५० १६६३ १६७२
२५०५
मनोहरदास ( कुभर)
घटसिंह
२११२, २१३६
२१४४
२४६८
१५०५
वाचिगदेव
१६८५
, (रावल)...
"Aho Shrut.Gyanam"
Page #349
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत् नाम
मूलदेव
मूलराज [१]
[२]
१८२५
१८४०
ટક્
१४६
१८६०
१८६१
१८७५
१६०३
१६१०
१५२४
૨૮EK
રાય
१८४० /
૨૮૪૬
"
み
み
H
お
[३]
रणजीतसिंह
〃
रणमल
रखसिंह
राणावत (महाराणी ) ..
रायसिंह (युवराज
[ २०६ ]
लेखांक ! संवत् नाम
२११२
२११२२१३६
२५०३
२५०२
२५१०
२५११
१८६१
१४७१
१४६४
૧
२१७५
२५०४
२५१८
२५४२
२५२६
२११२ २१३६
२५३०
२५२४
२००२
२५११ 1 १६७८
******
१४६३
१४९४
१५६०
१९२१
REA
R
१९४४
"Aho Shrut Gyanam";
रूप ( आपली )
लक्ष्मण
"
"
कर्ण (कुमार)
"
विमल (मंत्रा)
(a) सिंह
2)
"
येशाल
श्रीधर
सगर
सलेमसाहि
लेखांक
२५३०
२११२-१३
२५१०
२१३६
२१५४
"
२१५५
२१३६
२११४
२१३२ २५१०
२१३६. २१४५-४६
२११६
२५६०
२५३१. २५३३-३४, २५८२
२५४०४१
२५८१
२५४३
29
૨૪૮
Page #350
--------------------------------------------------------------------------
________________
....१२.१०......११.११.१......P
परिशिष्ट - ग
श्रावकों की ज्ञाति-गोत्रादि की सूची।
-----
eometr
eeces
गणधर
झाति-गोत्र लेखांक, ज्ञाति-गोत्र
लेखांक ओसवाल [5०, न पकेश]
२४०५, २५७० २१३३-२४, २१६२, २१७०. २१७२,
गगधर वोपड़ा ...
२४००, २४०२-०४, २१८२. २२१६, २२२७. २२४७-४८,
२४०६. २४०६, २५२३ २२६९-७०. २२७२-७७, २२८१,
गुलेछा (गोलबच्छा) २१३१. २१८५, २१६८, २२८४, २२८६-८७. २२६५, २३२७--
२३१४, २५७६ ८. २३१३, २३२, २३२७, २३२८, घोया
ર૩૭૨ २३६०-६१, २३६६-६७. . २३७३, २३६०. २४२०. २४२४. २४३८. २४५८
चंडालिया २१५२८,२५४७,२५५३ चांप
२५२७ गोत्र।
विश्वाल भायरी
बोपड़ा (चो०) ... २१५५, २१३९-४२, २१४२-४३, भासउत्रा (आसात्रा) २२०३. २२१७, २३१०
२१४५-४६. २३५४, १५२,२२३४, कासपल
२२८३, २४४२-१३, २४५१-५२ कांकरिया २३६२, २३१७
२१५६, २१६६, २३६८, कुकड़ा चोपड़ा ... २१६३, २३६६, २४२६, २४२८
२४०१,२४०८, २४३७. कारटा ... ... २३२५ । .
२४४.७.२४७८, २५०५-०६ 53
२५१३
"Aho Shrut Gyanam"
Page #351
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति - गोत्र
जंदानी
जांगड़
झावक
अर
डागा
डिंडिंभ
तातड
तेलहरा
लूगड़
बोसी
बांधू
नंदवाणेवा
नानहड़
नाहटा
नाहर
परीक्ष
पलडेवा
बरडिया (बरहड़िया)
बहरा
बाग (१) या
B:BB:
बाघमार
बाघसीप्य
चापड़ा
:
...
:
[२०]
लेखांक
२४४५
२३२२
२१६५
ek
२३८५, २४३२
२२०४
२४२५
२६८३
२३३८, २३६५
२१६६
२३१२
२३५२
구축한
२११६
२१६६.२२३६
२१२६. २१८६.
२१६७, २४६३,
२५२१
२४५६
२३२४, २४७२, २४६२
२३६२
२५८१
२२०१. २४११
२३४८.
कागांव
चाकण (ण्णा बध्यन ग
२१० २१६ २२५३.
२३६० २३६१. २५६०,
२५६४. २०३३ २५३५.
२०३०-३१. २०४१
बांगरड़
२५३६
पांडिया
२४०४
बिना किया
२३३७
चाउचा
२२०५
बोहित्य (बोथरा )
२४६८
भणसाली (भ० भाण्डशालिक) २१८८ २३२८, २४२०
२५०१, २५४४, २५४६, २५६०.
२५६६, २५०१-०३
૨૪
२३३५. २५७७
२४५४
भाभू
महाजनी
मीठाडया
शंका
हड़
लालन
लूनावत
लूणिया
::::
लोढा
चड़हरा (बहडा).
पं
"Aho Shrut Gyanam";
...
लेखांक
:
२११२.२१८०.
२१८७, २३३१
२१६१, २४८०
२३१७, २३५१, २४८७
२५५६
२१८६, २१६०, २३५४.
२५४८, २५५५
९३२३, २४१७
२१३२ २१६२
२१५८
Page #352
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रेष्ठि
सत्यकी शाखा
संघवी
ज्ञाति - गोत्र
बुहरा
वद
२३३४.२४०२
शंखवाळ ( शंखवालेवा ) २१२२-२३, २१४१. २१४४,
२१५४-५५, २१८१. २१६२-६३,
२२८५ २३८२-८४, २४५०,
२५२५, २५५६
साग
सभी
सांडशाखा
सीसोदिया
सुवी
सुविया
सुराणा
सुल्ल ( बुल्ल )
सुधा
सोनो
हार
...
:
::
:
...
:
:
[ 2010 ]
लेखांक
२५५०
२३३४-३५, २५७७
सवाल [ वृद्धशाखा ] ।
२२६६.२३०१
२५८१, २५६२
२४८२
२५६०
२३१६
२१८४
२३४०
२४५३
२२७१, २४१२
२३५६, २५२६
२४८८
२२००
२३४३
२४३६
सवाल [ साधु-साहुशाखा ] ।
२१४८, २११, २१६६, २४२३
ज्ञाति - गोत्र
गोटी
गूजर [गुर्जर]।
"Aho Shrut Gyanam"
दी सवाल [ डीसावाल ] |
दुर्घट |
नागर ।
गोत्र ।
लेखांक
प्राग्वाट् [ प्रा०, पोरवाड़ ] ।
२१६७, २२८०, २३५६
२४५०
प्राग्वाद [ वृद्धशाखा ] |
२२३७
२४२२
२१२५, २१५२, २१७३,
२१७८, २१६४, २२३८,
२२४०, २२४६, २२५०,
२२५८, २२७९,२२६८,
२३०६ २३१५, २३१८
- १६, २३३०, २३३६,
२३४२, २३५३ २३८०
-८८, २३६५, २४१६,
२४६६, २५८३
२१५१,२४५७
Page #353
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २१०] लेखांक : ज्ञाति-गोत्र
खांक
झाति-गोत्र
मंत्रिदलीय।
খ্রিঃ
गौतम
गोत्र।
धीण
उसीयड़
फोफलिया
काणा
....
...
मुहवणा मूसल
बायट।
सिद्ध
श्रीश्रीमाल!
श्रीमाल ।
२१२६, २२०६, २२३५, २२४६, २२६३-६४, २२६६. २३०३, २३०५, २३२०, २४६१, २०६८ २४८३-८४, २०१४
२१३२, २१३६, २१४६, २१६५, २९६८, २०६१. २२०२. २२६२, २९६६-१७ २३०, २३२द्र, २३०६, २३२६, २३३६. २३५४ -४७, २३५६-५२, २३५५० २३६३, २३७२-३१. २६६३, २४०७, २४१३, २४३०-३१.
२४८१, २५२२, २५५१, २५५४ श्रीश्रीवंश। ...
गोत्र । ... ...
गा.
२३४
२३४६ !
-------
"Aho Shrut Gyanam"
Page #354
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-घ
९०
आचार्यों के गच्छ और संवत् की सूची।
संवत्
नाम
लेखांक संवत्
नाम
नाम
लेखांक
अंचल गई।
२२६४ २३६० २४८७
श्रीपूर्ति
. १५६ सिद्धातसागर सुरि
भावसागर सुरि
२४३६ १४५२
...
२२८६, २४१८
मागम गह।
हेमरत्न सूरि ...
१४.२
मेरुजुंग सूरि ...
१४७६
जयकीर्ति सरि
१४८३ १५०१
". " जयकेसरि सूरि
अमररत्न सूरि सोमरल सरि
उपकेश [फकेश] गछ। देवगुप्त सूरि [१६] .... , [१७] - [] ...
१५०२
११५८ । १३६४ २५२० १४३० २१६२ । १५३८
२२२६ २२७४
२४५४१५४२
२५३६
२४२४
१५५
२२०४
...
२३८१, २०६५
54
"Aho Shrut Gyanam"
Page #355
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१३३०
१३४५
१३४६
१४८५
LeK
१३८६
१३११
१४६८
१५०७
१५०८
१५१२
te
नाम
पद्मद्र (पं० )
सिद्धसूरि [१६]
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कसूरि [१०]
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कुदाचार्य
[ » ]
"
[ १७ ]
...
ककुदाचार्य ि
कृष्णपि गन्न ।
नद्रसूरि
यह सरि
...
[ २१२ ]
लेखांक
२२३६
२२३८
२१७६, २३६१
२४११
२२५३
રર૬૩
२३०२
२३२५
२३३५. २००७
२१७६२२०४
२३२०
२२०१, २२०४. २२५३.
२२६१, २३२७. २३६५.
२३६१, २५३६, २५७७
२५३४
२३१४
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१३८४
i
नाम
"Aho Shrut Gyanam";
चजुरि
कसूरि
कोरंट गछ ।
खरतर गद्य |
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वर्द्धमान रि
जिनेश्वर सरि
मिि
लेखांक
२४८८
२१२०, २१६४
२१२०, २१३६ २६.४४
२१२०, २१३६, २१४३,
२४०१ २४०४२.०६
૨૦૦૬
२११२-१३. २१६०,
२१३६.२१४४ २१५३.
२६५५२३५१२३८५
२९८६२५०१ २४०४
-०६, २४४६. २४६६
- २५०० २५०४ २५६६.
२५१८, २५४३. २५०२.
२५०५, २५८०
* संवत् १०८० में अणशिलपुर के दुर्लभ पति की सभा में विजयी होकर श्रीजिनेश्वर रि' 'खरतर विद पाये थे, ऐसा प्रवाद है । इनके पार पर 'श्रीजिनचंद्र सूरि' बैठे थे। इनके पश्चात् खरतरगच्छ में हर चौथे आचार्य का नाम 'श्रीजिनचंद्रसूरि' मिलते हैं। यह प्रथम घोजियचंद्र सूरिजी से लेकर नवमे श्रोजनचंद्रसूरिजी ( १६३५ ५५ ) तक के जितने नामों में खास संवत् नहीं हैं वे सब एक साथ ही यहां दिये गये हैं ।
Page #356
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत् .......
लेखांक
[२१३] लेखाक संवत् ... २१२०, २१३६, ५१६
नाम अनपदेव मूरि
नाम जिनोदय सरि ...
...
२२६७
२११३
१९४७
जिलरोखर सूरि ...
२२६६.२४०१
जिनवल्लभ सूरि ... ....... जिनदत्त सूरि ...
२२२२, २१३६. २१४४ २११२-१३, २१२०,
२११२-१३, २१२०, २१३६,२१४४, २२००, २३८५, २४०४, २४५५:
१४३६
जिनराज सरि
...
१४४६
२५०१, २४०४,२५३२ २५३१, २५८६
२१७७
जिनपति सूरि ...
...
२१२०, २१३६.
...
२११२, २२८३
२१५६६, २५६८, २५७२,
२५७२-७३
२४६८
जिनप्रबोध सृरि ... ... २१२०, २१३६, !
२१५४,२४०४ १६७१ १३७१ जिनकुशल सूरि ... ... २३८६
२२१२-१३, २१२०, २१३६, २१४४, २३८५, २४०१, २४०४, २४०६, २४३५, २४६४-६५, १६८३ २१५०६-०२, २५३१, २५४८, . १६९३ २१६३-६४, २५८०, २५६०, २५६२
...... ....... जिनपद्म सरि २११२-१३, २१२०,
२१३६, २१८, २३८५,
२४०४, २४०६ जिनलब्धि सूर ... २११२-१३, २१२०, २.३६,
२१४४, २३८५, २४०४, २४.
२५६२,२५६७, २५६६,
२५७१, २५७३ ... २१२०, २१३६, २१४३-४५,
२१४८, २१५३. २१८१, २१८५ ---८७, २३०३, २३२३. २३२८, २३३१, २३६७. २३८५, २४०४, २४०६, २४०६, २४३२, २४४२, २४८०,२१४-४८
"Aho Shrut Gyanam"
Page #357
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखाक
नाम जिनभद्र सरि ...
२४८२
संवत् नाम १४५६ सागरचंद्र सूरि ... १४६६ जिनवचन सूरि ... १४७३ ___ कीर्तिराज
__ जयसागरगणि ...
२१७-२०, २१२६, २१३१,
[२१४] लेखांक संवत्
२६१२ । १५१८ २२८७
२११२ २०१२-१३
२१३६ २११२-१३. २२८८ -८६, २४३२, २४७६,
१४७३
जिनवर्द्धन सूरि ...
२१४२, २१५३, २१५५. २१६३, २१७१.२११०, २१६३, २१६७. २३५४, २३५७, २३५६, २३६६, २३९६, २४००, २४०२-०६, २४०६, २४२३, २४२५-२८, २४६३, २५२३, २५२५-२६, २५२८, २५३१, २५४२, २५५५,
२५४८, २५६० जिनचंद्र सूरि ...
ર૪રૂર
प्रभाव सूरि भाग्य सूरि ... जिनमद्र सूरि ...
१४८८
१४७६
२३६७. २३८५, २४६७
२३१२
२१८१
१५८७
१४६३
२१८८ २१७०, २४६३, २५२१
१४६४
२११४, २१३८, २१८०
२१३६ २१३६, २१४२-४३. २१४५-४६, २१५७ २३१३, २४५१-५२
२३२२
... २११६-१६,
२१२२-२३,
१५०३
२१६२, २३४२, २३८२-८३,
२१४२
१५०७
१५२३
...
२१३२, २११२
१५०६
२३२३-२४ .... २१४८, २३२८
२५४८ २१८३, २३३१, २४८० २१६०, २१८५-८७, २४४२ । १५३२
२१३, २३८४, २४२३, २५४६
२४३०
....
"Aho Shrut Gyanam"
Page #358
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
नाम
[१५] लेखांक संवत् नाम २३५४. २५७८८ । १५०५ कीतिरत सूरि ...
लेखांक
१५३४
जिनन्द्र सरि ...
...
२१२३
१५३६
...
२३८२
२१२०, २१२६, २५४, २१६३, २१६७-६६. | १५०६ जयशेखर सुरि २३५५७-५८, २५६६, १५१३ जिनधर्म सूरि २३६१-२४०६, २४०१, २४२६-२८, २५२३,
कमलराज गणि
२४२२, २४३७
२१४०-४१
१६२५
१५१८
२१३५ २४६४
उत्तमलाभ गणि जिनहर्ष सूरि
२११८, २१४१
२४२१
१८२५
२१२८
१८४०
२५०२
२९७१-७६
१८५२
१८६३
२१३६
१५३६
जिनसमुद्र सूरि ...
२५८५ २५१८, २५२४, २५३१ २१२२-२१, २१५३-५४. २३५८. २३६६. २३२६, २४०२-२३, २४०६०
१५०३.
२३२१
२१४४
२४०६, २४२८
जिनसेन गणि भानुप्रभ गणि ... सोमजर (वा) राजितधर्म सूरि ... रत्नमूर्ति गणि ... हर्षभद्र गणि (१०) जितसेन गणि ... जयाकर गणि ... मेरुसुंदर गणि जीवदेव गणि
२५.६ २१५५, २३६६, २४४६
कमलससह (?) मुनि उपाध्याय ... शांतिसागर सूरि ...
५
.
२१५४
55
"Aho Shrut Gyanam"
Page #359
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१६] लेखांक संवत्
नाम
लेखांक
...
१६७२
उदय सिंघ (40)
संवत् नाम १५३६ गुणरतावार्य ...
समयभक्त (उ०) सोम गणि ...
देवसुंदर सूरि ... १५५८ जिनहंस सूरि
___...
२१६५ ।
२४४३ २३६७, २५५०
। १६७५
१७६६
२१०१
१५८१
धर्मनिधान (७०) धर्मकीर्ति गणि ... सुखसागर गणि ... समयकीर्ति गणि सदारंग मुनि रलसार सहजकीर्ति । जिनसागर सृरि ... जिनसुख सूरि ... तरवसुंदर गणि ... जिनलाभ सूरि ... जिनकीर्ति सरि ... जिनयुक्ति सरि ... भीमराज मुनि ... चातुर्यनादि मुनि ... रुपाकल्याण गणि रिधविलास (40) जैसार गणि ... अमर सिं (६०)... जिनउदय सूरि ... अभयसोम गणि...
२५०२
२४०८
१५६४ जिनमें" सरि ... १९८१ जिनमाणिक्य सरि
२५०३
२५०३-७४
देवतिलक (उ०)
२४१०
१५८३ १५८५ १६१५५
ज्ञानचंद्र सूरि ... जिनसिंह मूरि (आ.)
... २१५४ । १८५२
२१५५ । १८७४ २४४० , २४६४
२४७ १८७६ २४१८, २५४३-४४, २५६८,२१७०,२५७२
२४६४ । १८५३
२५०४
जिनमहेंद्र सूरि ...
१६५०
पुण्यसागर (महो०)
"Aho Shrut Gyanam"
Page #360
--------------------------------------------------------------------------
________________
[१७]
संवत्
नाम
लेखांक संवत्
नाम
लेखाक
१८६६
जिनमहेंद्र सूरि ...
२५३०, २०५८७-८८
२५३१
....
२५२४, २५७६
२४६०, २४६६
बालचंद्र (उ०)... प्रमेर गणि मयाचंद्र गणि ... सरूपचंद मुनि ... वीराम कृष्णचंद्र रत्नमुनि गणि ... वृद्धिचंद्र यति ...
२५३१, २५५२, . . २३८२, २५६०
। १९८०
२५४०
२५६२
१८६३
खूबचंद (५०) ... जगविशाल मुनि ... केसरीचंद मुनि ... जीतरंग गणि
१९०३
स्वरतर-आचार्य शाखा।
२५१८
१६३६
धर्मचंद
...
...
२५६१
१६०३
२५१८
दानमल (२०) ... डुंगरसी मुनि जिनमुक्ति सूरि
.
खरतर वेगड़ गन्छ ।
१९१७
२५४२
१६२१
२५१०
२४७५, २५३१, २५३३ -३५, २५४०, २५८२
२६३२
२४४६, २५०५, २५०६ ... २४४६, २५७५ २४४६. २५०५, २५०६ ... २४४६, २५०६ २४४६.२५०८-16
२५०५
१९५२
जिनेश्वर सूरि ... जिनगुणप्रभ सूरि ... जिनचंद्र सूरि जिनसमुद्र सूरि ... जिनसुंदर सूरि ... जिनशेखर सूरि ... जिनधर्म सरि जिनमेरु सूरि ...
२४६३
२५४२, २५६०
पाहंस मुनि ... साहिरचंद्र मुनि ...
२५०५
१९२१
२५०५
. (उ०) अगरचंद मुनि ...
२५३१ ।
जिनेश्वर सरि
२५०५
१९१७
२५४२
२४४७
२५०७
"Aho Shrut Gyanam"
Page #361
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१८४३
१८४६
१६६३
33
53
१८०६
१७८१ जिनउदय सूरि
१८०६
71
"
36
او
21
१८१२
१८४३
नाम
१३२७
थे,
जिनेश्वर सूरि
मतिसागर
विद्यासागर ( पं० )
आनंदविजय ( पं० )
उद्योत विजय ( पं० )
ار
..
मुनिसुदर
यशोवलम (पं)
मानसिंह (पं० )
भहाट (पं० )
जगमी (पं० )
वर्द्धमान ( पं० )
"
***
जिनचंद्रसूरि
...
...
रूपचंद (पं० )
तिलोकचंद ( पं० )
किशनचंद (०)
जयोवलम
...
चैत्र [[चित्रावल ] छ ।
अजितसिंह सूरि
कनकप्रभ सूरि
....
[२०]
लेखांक
२५१०
२५२१
२५०५
+3
22
२४४६
२००८
२५०६
२५.०८
32
२५०८
*
२५११
२५०६
२५१०
23
"
२२२६
संवत्
१३३६
R
१३८८
१५०३
૪૮૬
GEE
१४६६
१५०१
१५०३
१५०८
१५११
१५१३
१५९६
१५१०
६५११
१५६८
१५३३
१५३४
१५३५
"Aho Shrut Gyanam"
नाम
धर्मदेव सूरि
19
आमदेव सूरि
मलचंद्र सूरि
सोमसुंदर सूरि
30
SP
सोमचंद्र सूरि
मुनिसुंदर सूरि
जयचंद्र सूरि
रत्नशेखर सरि
25
"
तप गछ ।
रत्नसिंह सूरि
विजय सूरि
विजयरत्न सूरि
लक्ष्मीसागर सूरि
"
"
"
:
::
::::
लेखांक
२४१६
२९४६
२३२०
२२३८
२३१५
२:५२, २१८२, २१६४,
२३३०, २५८३
२३१५
२१.८२
२३१८, २०५३
२४१६
२३३०
२१५२, २५८३
२३३९
२१२५, २१६४
२३५८
२४६८
२१२५
२१७३, २१९४
२३५३
२३५६, २३६५
Page #362
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
नाम
लेखांक
१५३७ लक्ष्मीलागर सरि १५१६ उदयवल्लभ सरि ... १६१० विजयदान मूरि
[१४] लेखांक संवत् नाम
नाम २४६६ । १४२२ देवचंद्र सूरि ... २४२२ १४६६ महीतिलक सूरि ...
२५४८ पानशेखर सरि २३७०-७१ १०१२ पद्मानंद सूरि ...
...
२२७१ .. २२६६.२३३३. २४१२
२३३३ २४१२
१६२६
हीरविजय सूरि ...
२१४५.२४७०
१६५६
विजयसेन सरि ...
२२०६
२५६
विजयचंद्र सूरि ... साधुरत्न सूरि ...
१५१२
...
২৪ २४७३ २३७८
नागेन्द्र गछ।
१६८३
विजयदेव सूरि ...
२२०७-०८,
२२१४, २३७४
१२४७ विजयसिंह सरि ...
......
१३६१
२२४३
१८६६
दीपविजय নানির गुलाल विजय जिनेंद्र सूरि मोहन मुनि
....... १४१० १५३५
परस (उ० ) ... गुणाकर सूरि ... गुणदेव सूरि ...
२२६६
...
.... ...
२३७६
१९४४
गुणरब सरि
...
थिराधा (?) गन्न ।
नानकीय [ज्ञानकीय] गछ ।
....... विजयसिंह सूरि ... १५३३ शांति सूरि ...
... ...
१३२६
धनेश्वर सूरि ।
२३४८
धर्मघोष गन्छ ।
१३८८ सिद्धसेन सूरि ...
२२५४
सामाचंद्र सूरि ...
२२७१
......
58
"Aho Shrut Gyanam"
Page #363
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२०] लेखांक संवत्
संवत्
नाम
नाम
लेखांक
पति गन्छ ।
१५००
जयभद्र सूरि
२३१६. २४५३
१४६२
शांति सूरि
१५१८ १५२६
२३४०
दरप्रभ सूरि
पिएल गन्छ।
२१२६
१७०८
गुणासमुनदार गुणसमुद स्टूरि
२३२६
१५१२
१५१०
२२६७
कमलप्रभ सूरि राजतिलक सूरि ...
२३४७
१४०४ विवुधप्रभ सूरि १९७६ धर्मप्रभ सूरि १४८४ धर्मशेखर सूरि ... १५२७
शालिभद्र सरि अमरचंद्र सरि
उदयदेव सूरि १५२८ रत्नदेव सूरि १६४६ गुणसागर सूरि ', शांति सूरि ...
१५१५
मुनिसिंघ सूरि
१५१६
गुणधीर सूरि ।
२१३०.२१६१
...
२४१३
१५२१ पूर्णिमा [पक्ष ] गछ ।
१५२४ देवेन्द्र सूरि __... ... २२६४, २३०६, १२३४
! १५३४ जयप्रम सूरि
। १९५३
महीतिलक सरि ... गुणतिलक सरि ... पुण्यरत्न सूरि ... श्रीसूरि ... देवसुंदर सूरि ...
......
२१.३३
२४८४
२२६४
......
पूर्णिमा गठ-प्रधानशास्त्रा।
साधुरत्न सरि
१४८६
२३०५
१५२८
जयप्रभ सूरि
...
...
२३४१
२२०२
२
१४६१
हीरानंद सरि
...
२३४६ २३०६ । १५५१ . भुवनप्रभ सूरि ...
"Aho Shrut Gyanam"
Page #364
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२१] संवत् नाम
लेखांक संवत् नाम
विमल सरि पूर्णिमागछ-नीमपल्ली यशाखा ।
लेखांक
२३४५ २३६३ २४३० २३८०
१५६२
,
पासचंद्र सूरि जयचंद्र सूरि ....
....
___ ...
जावडार [जावड़, जावडहरा] गछ ।
१५१८
,
...
...
२३४२
पूर्णिमापद-साधुशाखा ।
२२४८
...
१३२५ गुणरत्न सूरि ...... कालिकाचार्य
२२०३, २३१०, २४८३ १३७४ वीर सूरि ... १४६५ १९२६ भावदेव सूरि ...
२४८३ १५३५ १५५८ विजयसिंह सूरि ... ____... २२०३
....... उदयचंद्र सरि १५७५ मुनिद्रसूरि
२३१०
...
१५७६
.
...
...
२४५७.
बाहड़ गछ।
नोनमाल गछ।
यशोभद्र सूरि ..... ईश्वर सरि
...
१४२१
१४८२
रामदेव सरि
ब्रह्माण गह।
मडाहड [मडाहडीय] गछ।
१४८६
१९९८
पजून सूरि ... जजग सूरि पजग सूरि बुद्धिसागर सूरि ...
२१७८
आणंदप्रभ सूरि ... सोमदेव सूरि धनचंद सूरि ... नयचंद्र सूरि
१४६३ १५४२
"Aho Shrut Gyanam"
Page #365
--------------------------------------------------------------------------
________________
[२२३ लखक संवत् नाम
संवत् नाम
लेखांक
मधुकर गछ।
वृहना।
१५६३
मुनिप्रभ सूरि
१४२२ १४३३
२.२३५
मझधारि गछ।
१३३७ १४६७ १५३४
प्रभानंद सुरि ... गुणसुंदर सूरि ... गुणनिर्मल सूरि ...
... ... ...
१४६५ १५५६६ १५१६
महेन्द्र सूरि . नरदेव मूरि रत्नाकर सूरि धर्मसिंह सरि सागरचंद्र सूरि ... देवचंद्र सूरि मेरुपम सुरि मलयहस सूरि
२३१२
२३४३
१५३६ १५६६
२२०५
रुपन्लोय गछ।
१४७३
... ...
षं [खं] डेर [क] गछ।
२३३७
१५१६
हपंसुदर सरि ... देवसुंदर सूरि .... सोमसुंदर सूरि ... जिनोदय सूरि जिनचंद्र सूरि
१४६१
सुमति सूरि यशोभद्र सूरि शांति सूरि
... ...
२२८४ ... २१८४, २३०८ ... २३०७-०८ ... २१८४
१५३२
१४९२
वापटीय गन्छ।
सरवाद गह।
२२१८
११६२ १३३८
वोरदेव राशिल्ल सरि
१२०८
जिनेश्वराचार्य ...
...
...
...
२२३२
२२२० રરરર
......
बर्द्धमानाचार्य ...
...
विद्याधर गठ।
२४४०
गुणप्रभ सूरि
...
...
२२७८
"Aho Shrut Gyanam"
Page #366
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखांक
२२५०
२२१७
२२६३
२२६५
[२३] संवत् नाम
लेखांक संवत् नाम
| १३१४ धर्मघोष सूरि जिनमें गत्रों के नाम नहीं हैं । १३.४ तिलक सूरि ... सुधर्म स्वामि ... ... २११३, २१४४
यशोदेव सुरि
१३८६ धर्मदेव सूरि स्थूलभद्र ११७१ अजितदेव (आ.)
१३६० मलिरेण सूरि ... १२०८
जिनसिंह सूरि ... देव सरि ...
१३६१
२१४७ १२६२ परमानंद सूरि
अभयदेव सरि
२२२३ देवेन्द्र सूरि
१३६३ कातितिलक सूरि १३१३ अमरचंद्र सरि
१३६४ रत्न सुरि ... १३२५ विजयप्रभ सूहि
१४०५ हरिप्रभ सरि ...
२२२७ १३३३ ......... सूरि
१५२१ धर्मतिलक सूरि ...
२३८७ १३४१ रामभद्र सूरि ... १३४३ श्रीसूरि
१४२३ सिद्ध सूरि
धतिलक सूरि ... १३४५
२२३५
१४८१ जयप्रभसूरि ... १३६१
२२५६
१४८६
१५६० हर्षतिलक सूरि २२७३ २३६०
१५१६ जयभद्र सूरि
१५३२ सावदेव सूरि ... १३४६ देवाचार्य
२२३७
१५६२ गुणचंद्र सूरि ...
१५५७ मुनिरत्न सूरि
जय....... ...
आनंदविमल सूरि १३४६
१५६१ ......... सुरि ... १३५२ श्री......... ...
१६०६ विजयदेव सूरि ... १३५५ परनवंद्र सरि ...
सोमविमल गणि ... १३६८ लक्ष्मीतिलक सूरि
वर्णदत्त
२२६८ २२७६
२२३३
२२७२
२२७६
२२६३
१३८५
२४५०
२१७२
२३५२
२३६५
२४३३
।
सोनम
M
२५९४
"Aho Shrut Gyanam"
Page #367
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
******
१६७७
"
१८३१
१८६१
5
ਸ਼
नाम
कमलोदय गणि
वर्णकीर्त्ति (पं० )
...
देवसार (,, )
वि देव सूरि
गांग गणि ( पं० )
रूपचंद
(,)
वखता
(,)
आजम
..
जिनमें संवत् नहीं हैं ।
सुंदर नाचार्य
[ २२४ ]
लेखांक | संवत्
२५१४
"
૨૦૦૨
२५१२
29
२१२७
२५३२
१७१५
१५६१
"Aho Shrut Gyanam"
नाम
दिगम्बर संघ |
मातसम संघ |
मूल संघ ।
ज्ञानभूषण
विजयकी ति
लेखांक
२४५४
२४८६
"
Page #368
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्थान
अजमेर
अलिक पुर
अमरकोट
अमरसागर
अरहटवाड़ा
अर्बुद (आबू )
अहमदाबाद
अहिलाड़ा
अंबानी
आगेचाणे
इंदौर
उज्जयंताचल
उदयपुर
उभड़ा
ककरा
कछ
:
परिशिष्ट - च
स्थानों की सूची ।
।
Joey
लेखांक : स्थान
२५६५ काटेरी
२१३६
२४८७
कालूपुर
किशनगढ़
कोटा
कोरड़ा
२४५६
कोरंट
२१३, २१५४, २५३० | खंभात
६.२४, २५३०-३१.
२५४१-४२
२१२५, २४७३ | गजरूपसागर
२४८१
|
२४४७
२२६७
२५३०
२११३. २१३६
२५३०-३१
२१६५
२३६५
२५३०
गां
गिरनार
गुजरात
पफनगर
चित्रकूट
छबड़ा
जिरावला
जूनागढ ( जूनागढ़)
"Aho Shrut Gyanam";
::::::
618
लेखांक
२३४६
२१२५
२५३०
22
२१६२
२१५४
२३७२
२५६०
२४८३
२११३, २१५४,
२५३०
२५३०
२४५०
२१३६
२४४५
२१५४, २५३०
२१५४
Page #369
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्थान
जेसलमेर-नगर
जेसलमेर दुर्ग
जोधपुर
भमरामी
मांजरू (भूया
दुक
दुडाड़
तरभद्र
तलपाटक
ताणवडनगर
तारंगा
ला
दिल्ली
देवीकोट
धपलक
...
E
:
२११२-१३ २११५ २१३२०
२१४५, २१५४, २१७५. २२०७
- ९८, २२१४, २३६६. २३०४.
૨૬, ૨. રાજા, રા
२४६२ २४६० २५०३-०४,
२५२५, २५३० ३१. २५३२.
२५४०-४२, २७८१-८३.२५१०
२१२०, २१४४ २१४६. २१५४
-५५, २४००, २४०२. २४०४,
२४०६ २४४६ २४१८, २५०१
-०२ २५०५, २५०८, २५१०.
२५१२२५१५ २५१२.
⠀⠀
[ २२६]
लेखांक
२५३०
२३०६
२५३०
"
૪૭
२१३४
स्थान
घुलेवा
धुंधुवा
नरसाणा
पत्तन (नगर)
पंचारा
पंजाब
पाटण
पारस्कर (पारकर )
पाली
पालीताणा
प्रल्हादनपुर
बणारस
ब्रह्मसर
वाणूभा
भणवाड
बीकानेर
धुंदो
भोऊऊभा
धरोध
૮
२५३०
२३५५
२१७५, २५३०
२५०५-०६, २५८० मंडोवर
२१३० माऊली
भुज
भूणीयाण
मगली
(पुर)
"Aho Shrut Gyanam".
:
:
::
लेखांक
२.३०
२३४४, २४८५
२१६८
२१२०, २२०२. २४६६. २५१६
२५३०
:
כל
२१५४
२३३, २३१०. २४५४, २५७७
"
२१३६
२५०१. २५३१
२५८१, २५८०, २५८७-८८
२३६२,
२५३०
२५०२. २५३०
२५३०
૨૦
२५५२
२५३०
ઇ.
*
२१३६
२११६
૨૩
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लेखांक
...
.
- २३६४ २१५४, २४८४ २१७३, २१६४
...
मुलताण
२५६२
२११३, २१३६, २१५४, २४६८, २५४३
मेवाड़
२५५३
[ ] स्थान
लेखांक ! स्थान मारवाड़ (मारुयाडि)... ... २१५४, २५३० वीवीयाड़ी
वीरमगाम
२५३० मालवा मांडली
२३५०, २३५१
बीसलनगर
चैसालेरा मेदतट
२४१८ शबुंजय
२५३० मोरवाडा
२१२६
सरसा पत्तन रतलाम
२४६०, २४६३, २५३१
सहसावन
संखवाली राणपुर
२१५४ राधनपुर (राधानपुर)
२३७२-७१, २५३०
संखेसरा
सागवाज रायपुर
१५५ रेवताचल (रेवतगिरि) ...
सागवाड़ा
... २१३६, २१८१ लखणखेट
... २१७६
सिद्धपुर लोदवा (लेद्रपुर-पत्तन) २२५३२, २९६०-६१, २५७२,
सिद्धाचल ( सिद्धगिरि)
सिरधर २४६८.२५४३, २०५६८, २११०४-४,
सिंध ( सिंधुदेश) ...
२३५६ वगतटमक
सीणीज वानिक
सरोही
२१५४
२४५८
२४६८,२५३०
२१३६
२३२६
वाराही
२३३६ २५८४ सूनेध - २९२६ : सूरत
२३०४
विक्रमपुर
विराडा
नोट:--- यद्यपि उजताचल,विन गिरि' आदि गिरनार के ही नाम है तथापि यह सूची अकारादि अनुक्रमिका से मनाये जाने के कारण ऐसे २ जिले नाल इसमें आये है वे वर्णानुसार यथा स्थान में मिलेंगे।
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[
ए]
शुद्धि पत्र।
पृष्ठ
पंक्ति
अशुद्ध
शुद्ध
__... ...
जिनचंद्रसस्पिट्ट ... ... जिनभद्रसूरिपट्टे
जिनभइसुरिभिः ... जिनचंद्रसूरिभिः ... ... नाहड़ ... ... नाहर
१५६६ देवगुरु
देवगुप्त
नाहड़
नाहर
१५७६
१४७६ १६७६
१४७१ ... जिनचंद्रसूरिपट्ट ... ... जिनमतसरिपट्टे ... प्रतिष्ठापितः
प्रतिष्ठितः २०२
२५२५
यह लेख वहां के पंचायतो मंदिर के पीले पाषाण की मलनायक
जी की मूर्ति पर का है। ७८. ... ... १२-१५ ... ( दुबारा ) 2332 ... ... लेख नं० २३३१ १५७ ... ... ७-८ ... (,) 2537 ... ... , २५३६
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PRINTED BY G. N. Sharma
at the VISWAVINODE PRESS, 4%, Indian Mirror Street,
Calcutta,
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________________ શ્રી જિનશાસના જય હો !!! II શ્રી ગૌતમસ્વામીન નમઃ | | શ્રી સુધમસ્વિામીને નમ: || જિનશાસનના અણગાર, કલિકાલના શણગારા પૂજ્ય ભગવંતો અને જ્ઞાની પંડિતોએ શ્રુતભક્તિથી પ્રેરાઈને વિવિધ હરતલિખિત ગ્રંથો પરથી સંશોધન-સંપાદન કરીને અપૂર્વજહેમતથી ઘણા ગ્રંથોનું વર્ષો પૂર્વેસર્જનકરેલછે અને પોતાની શક્તિ, સમય અને દ્રવ્યનો સવ્યય કરીને પુણ્યાનુબંધી પુણ્ય ઉપાર્જન કરેલ છે. કાળના પ્રભાવે જીણ અને લુપ્ત થઈ રહેલા અને અલભ્ય બની જતા મુદ્રિત ગ્રંથો પૈકી પૂજ્ય ગુરુદેવોની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી સ.૨૦૦૫માં 54 ગ્રંથોનો સેટ નં-૧ તથા .૨૦૦૬માં 36 ગ્રંથોનો સેટ ની 2 સ્કેન કરાવીને મર્યાદિત નકલ પ્રીન્ટ કરાવી હતી. જેથી આપણો શ્રુતવારસો બીજા અનેક વર્ષો સુધી ટકી રહે અને અભ્યાસુ મહાત્માઓને ઉપયોગી ગ્રંથો સરળતાથી ઉપલબ્ધ થાય, પૂજ્યા સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોની પ્રેરણાથી જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી તૈયાર કરવામાં આવેલ પુસ્તકોનો સેટ ભિન્ન-ભિન્ન શહેરોમાં આવેલા વિશિષ્ટ ઉત્તમ જ્ઞાનભંડારોની ભેટ મોકલવામાં આવ્યા હતા. આ બધાજપુસ્તકો પૂજ્ય ગુરુભગવંતોને વિશિષ્ટ અભ્યાસ-સંશોધના માટે ખુબજરુરી છે અને પ્રાયઃ અપ્રાપ્ય છે. અભ્યાસ-સંશોધના જરૂરી પુસ્તકો સહેલાઈથી ઉપલળળની તીમજ પ્રાચીન મુદ્રિત પુસ્તકોનો શ્રુત વારસો જળવાઈ રહે તો શુભ આશયથી આ થોનો જીર્ણોદ્ધાર કરેલ છે. જુદા જુદા વિષયોના વિશિષ્ટ કક્ષાના પુસ્તકોનો જીર્ણોદ્ધાર પૂજ્ય ગુરૂભગવતીની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી અમો કરી રહ્યા છીએ. લો અભાઈ તથા સંશોધના માટે વધુમાં વઘુઉપયોગ કરીને શ્રુતભક્તિના કાર્યની પ્રોત્સાહન આપશી. લી.શાહ બાબુલાલ સરેમા જોડાવાળાની વંદના મંદિરો જીર્ણ થતાં આજકાલના સોમપુરા દ્વારા પણ ઊભા કરી શકાશે...! = પણ એકાદ ગ્રંથ નષ્ટ થતા બીજા કલિકાલસર્વજ્ઞ કે મહોપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી ક્યાંથી લાવીશું...???