Book Title: Jain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Author(s): H P Porwal
Publisher: Jain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 303562 4655 OSKKKK+KKK+---- -- - -- ॥ॐ॥ श्री जैन गजल मनोहर हीरपुष्पमाला और गजलोंकी चमकती अंगुठी. - संकलन कर्ता एच, पी. पोरवाल. मु० सादरी. (मारवाड.) देश भारत अब हमारा हो गया बेकार है। धार्मिक गजलोंका ये हीर पुष हार है ॥ प्रकाशक मंत्री:-जैन परमार्थ पुस्तक प्रचारक कार्यालय.. मु० सादरी. (मारवाड.) प्रथम आवृति. प्रत २००० संवत १९८५ सन १९२८ मूल्य ०-५-० For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. आ.पीएच. पी. पोरवाल, मन्त्री जैन लायब्रेरी भवन. मु. सादडी (मारवाड.) माग For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ww.kobatirth org Acharya Shri Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ॥ ॥ श्री जैन गजल मनोहर हीरपुष्प माला.॥ और ॥ गजलौ की चमकती अंगुठी.॥ (गजल.) शरणले पार्श्वधरणोंका फिरफिर नहीं मिले मौका ॥ ए राग ॥ देवनके देव ये सोहे, इन्होको देख जो मोहे । हटे तस दुःख दुनियांका, फिर फिर नहि मिले मौका १ इन्होंका नाम जो लेते, उन्होंको शिव सुख देते । मारग यह मोक्ष जानेका, फिर फिर नहि मिले मौका २ अनादि काल भव भटका, जभी तु पार्थसे छटका । मिला अब वख्त ध्यानेका, फिर फिर नहि मिले मौका ३ जिन्होंने सर्पको तारा, नमस्कार मंत्रके द्वारा। वोही तुम तार लेनेका, फिर फिर नहि मिले मौका ४ गुण है पाश्चमे जैसे, नही ओर देवमे ऐसे। वही भवपार लगानेका, फिर फिर नहि मिले मौका ५ कहे लब्धि जिनंद सेवो, एसा है अन्य नहि देवो। भवाब्धि पार कर नौका, फिर फिर नहि मिले मौका ६श० For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला कुंथुजिन मेरी भवभ्रमणा, मिटा दोगे तो क्या होगा-ए राग चोराशी लाख योनिमे, प्रभु मे नित्य रूलता हुँ । दयालु दासको तेरे, बचा लोगे तो क्या होगा। कुंथु०१ घटा घन मोहकी आई, छटा अंधेरकी छाई ।। प्रकाशी ज्ञानवायुसे, हटा दोगे तो क्या होगा ॥ कुंथु० २ अहो प्रभु नामका तेरे, सहारा रातदिन चाहुं । समी प्रेम अन्तरका, विकासोगे तो क्या होगा । कुंथु०३ नही हे काम सोनेका, नहीं चांदी पसंद मुजको।। चहुं मे आत्मकी ज्योति, दिखा दोगे तो क्या होगा कुंथु०४ सच्ची मे देवकी सुरत, तुम्हारेमें निहाली है । लगा हे प्रेम इस कारण, निभालोगे तो क्या होगा ।।कुंथु०५ कमल जैसा तेरा मुखडा, देखा छाया पुरी मांही । बना लब्धि भ्रमर इस्मे, छुपा लोगे तो क्या होगा ।कुंथु०६ गजल कव्वाली-चाहे बोलो या न बोलो सेवक तो हो रहा हूं, चाहे तारो या न तारो । जिन पदम प्रभुजी स्वामी, हो आप शिव गति गामी। चर्णोमे लेट रहा हुं, चाहे तारो या न तारो । से० ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - जिनगुणहीरपुष्पमाला चोरासी लक्ष भटक्यो, जीव मोक्ष से यह अटक्यो। शिव मार्ग चा रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥से०॥२॥ संसार सिन्धु अपारा, नही है मिला किनारा । गोता ही खा रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥से०॥३॥ सादरी का जैन मंडल, शुभ भाव भाते मंजुल । अरदास कर रहा हूं, चाहे तारो या न तारो ॥से०॥४॥ देवचन्द्र मूरि अर्जी, करिये हजूर मर्जी । अति कष्ट पा रहा हूं, चाहे तारो या न तारा ॥से०॥५॥ फरियाद सुनलो मेरी, कर्मों ने आके घेरा ॥ देर ॥ माता पिता व नारी, स्वार्थ के है वसिला। आखिर तो काम मेरे, आवेगा नाम तेरा ॥फरियाद॥१॥ यह माया जाल बिछाके, फंदे के बीच डाला। बचाये कौन आके, हमको भरोसा तेरा ॥फरियाद॥२॥ गुन्हा हुए जो मुजसे, माफी तुंही करेगा। दिलवादो मेक्षि हमको, होगा अहसान तेरा॥फ०॥३॥ चुमु कदम मै तेरे, श्री जिन देव स्वामी । हिराचंद आकर, सरना लिया है तेरा ॥ फरियाद॥४॥ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला ॥ तर्ज मेरे मोला बुलालो मदिने मुझे ॥ मेरे प्रभुजी बुलालो मुक्तीमें मुझे, इन कोने आके सताया मुझे ॥टेर ॥ साथवाले चलबसे मै अवतलक सोता रहा । एसी गफलत नींदमे इस उमर को खोता रहा । नही आके किसीने जगाया मुझे ॥ मेरे ॥१॥ मात और तात कोइ साथ नही चलते मेरे । दिन और रात बडे फिक्रसे निकलते मेरे । तेरे चरणोंका सरणा दिला दो मुझे ॥ मेरे० ॥ २॥ भरोसा दमका नही एकदममे निकल जा दम ये । हर घडी हरसमे तेरी याद मुझको गमये । जिनवाणी का प्याला पिला दो मुझे ॥ मेरे० ॥३॥ कर दिया हैरान मुझको ऐसे पंचम कालने । मानने गुमानने और फरेबो के जालने । नही सीधा राहा बताया किसीने मुझे ॥ मेरे० ॥ ४ ॥ फसके मोह जालमे नाम भुलाया तेरा । लुटते जाते कर्म आन के डेरा मेरा। मै तो सेवक हुँ तेरा बचालो मुझे ॥ मेरे० ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला लाखो गुन्हा मैने किये अब कहां तलक केहुं तुझे । रहम दिल हमपे करो और माफि बक्साओ वझे शिव नगरी की सैर करादो मुझे || मेरे० || ६ || हंस की अरज को दर्ज कर दिलमे प्यारे । भूल जाना न कही याद मे रखना प्यारे | भव सिन्धुसे पार लगादा मुझे || मेरे० ॥ ७ ॥ ( ६ ) ॥ राम नाम रस पिजे प्याला पीजे रे-ए चाल ॥ दर्श ऋषभजिन कीजे भवियां, । कीजेरे कीजेरे कीजे मोक्ष लिजे ॥ तरणि प्रतापे तिमिर विनाशे, तिम गिरिराजे दुःख छीजेरे छीजेरे छीजे मोक्ष लिजे |१| गोहत्यादि हत्या निवारे, गिरि दीठे काज सरीजेरे सरीजेरे सरीजे मोक्ष लिजे |२| आनंदकारी भवेोदधितारी, प्रभु देखे माह खीजेरे खीजेरे खीजे मोक्ष लीजे ॥ ३ । जग दुःखवारी शिव सुख आपे, गिरि भक्तिए मन भीजेरे भीजेरे भीजे मोक्ष लीजे । ४ । For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला आत्म लक्ष्मी कमल निवासी, for भ्रमर मन रीजेरे रीजेरे रीजे मोक्ष लीजे ॥५॥ ( ७ ) ॥ गजल ॥ भजो महावीर के चरणों. छुडा देगा जन्म मरणो । अंचली । जगतमे देव आली है, सुरत सबसे निराली है, सुखके है वशीकरण, छुडा देगा जनम मरणो भजा ० | १ | जिन्होने राज्यको छोडा, स्त्रियादिकसे भी मुह मोडा, जगत अंधेर के हरणो, छुड़ा देगा जनम मरणो भजा० |२| राग जीनमे नही लवलेश नही कीसीसे है उनको द्वेष, सेवा ए देव जग तरणो, छुड़ा देगा जनम मरणो भजो १३ | महा मोहे जगत जित्ता, इन्हे उसको हरा दीत्ता, सदाशिव लब्धके वरण, छुडादेगा जनममरणो भजेो. ॥४॥ ( ८ ) भजले महावीर भगवान, भवसे पार लगाने वाले, सिद्धारथ कुल नभ चंद, राणी त्रिशलाके हे नंद; काटे जन्म मरण के फंद, मोक्षके द्वार पहुंचानेवाले | भज ले || १ || For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला शक इंद्र दिलमे लाया, तब मेरू प्रभुने हिलाया, ताकत हे जिनकी अपार, जन्मसे मेरू चलानेवाले भजले ॥२॥ क्षत्रिय कुंड नगर मोझार, लिया जन्म प्रभुने धार, तारे हे लोक अपार मोक्ष पावामे पानेवाले । भजले ॥३॥ जो स्मर लेवे जिनराज, वो राखे उनकी लाज; सब पूरण कर देकाज, कर्म जडको एहटानेवाले भ० ॥४॥ जंबूपुर नगर विशाल, सेाहे जिनमंदिर नाल; मूलनायक हे प्रतिपाल, ज्ञानलब्धिके पानेवाले भजले० ५ कानुडा तारी कामण करनारी-प राग आदिजिन अदभुत नंदकरणारी, मूरति मनोहर हे तारी। आपे वली झटपट शिवपुर सुखकारी, मूरति मनोहर हे तारी. चरणोमे आयो तुम हरवा, मरण दुःख भारी; हुं चाहुं हुं चाहु शूरवीर थइने शिवनारी १ मूरति० काल अनंता खाइ पुण्ये, मनुज देह धारी हुं पाया हुं पायो समकित लइने सुख भारी २ मूरति आतम आनंदको लेवा, तुम चरण कमल धारी; अब मानुं अब मानुं मिल गइ लब्धि मुझे सारी ३ मूरति० For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला (१०) ऋषभ जिन सुन लियो भगवान अरज तुम से गुजारू हुँ : लगाकर कर्म ने घेरो, योनि लख वेद वसु फेरो जन्म मरणो की धारामें, हा! हा! क्या कष्ट धारू हुँ १ श्वासोश्वास एकमे जिनजी, सतर मरणों जनम लिया; गति निगोद विकारोमे, अनंतो काल हारुं हुं। ऋ० २ नरक दुःख वेदना भारी, निकलने की नहीं बारी; शरण मुहां हे न किसीका, प्रभु ए सच पुकारुं हुं । क्र.३ गति तिर्यचनी पामी, जहां नही दुःखकी खामी; चबी दुःखसे चक्कर आवे, नही आंखोसे भालु हुँ । ऋ०४ मुझे ऐसा करो उपकृत, होउं मे जिससे निर्मल हृतः अठ्ठावीस लब्धि पाइ, मोक्ष लक्ष्मी निहालुं हु। रु. ५ (गजल.) मिला भगवन तेरा चरणा, मुझे फिर और क्या करना. टेर जिसे दाता मिले तुमसा, उसे भिक्षाका क्या करना। १ जो गंगा तटपे है पहुचा, उसे जल ओर क्या करना। २ मिले दौलत मुकतपुरकी, उसे धन और क्या करना। ३ चिन्तामणि रत्न गर पाया, जवाहर ओर क्या करना। ४ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला _____ (कन्वाली.) नाम प्रभु पाच जिनवरका, मेरे दिलमे समाया है, हुआ हे शांत चित्त जिसने, के आकर दर्श पाया है.। अं० साखी-वामा माता जनमिया, पार्श्वनाथ जिनचंद अश्वसेन कुलमें प्रभु, दिन दिन वृद्धि करंद. मिलि सुरलोकसे अमरा, सबी पूजनको आया है ।। ना० १ तीस वरस ग्रहवासमें, वसिया श्रीजिनराज वरसीदान दिया घना, संयम अवसर पाय. लइ दिक्षा कठिन तपसे, कर्म धाति खपाया है ॥ नाम० २ चौरासी दिन बादमे, पाया केवलज्ञान; इन्द्रादिक ओच्छव करे, समोसरण मैदान, दह उपदेश हितकारी, चतुर्विध संघ बनाया है। नाम० ३ दश गणधर प्रभु थापिया, साधु सोल हजार; तीन सहस प्रभुके हुए, चउदा पूर्व धार. ज्ञान श्रुत रूपसागरसे, केवली सम कहाया है ॥ नाम० ४ दो शत एक हजार है, वादी का परिवार; मज्ञा मानो सही, सुर गुरु सम अवतार. बाद कर जैन का झंडा, जगत भर में फिरांया है नाम० ५ For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला विशाखा नक्षत्र मे, पाये पद निर्वाण; ____ मास खमणके पारणे, साधु तेतीस जाण. भवि को मोक्ष नगरीका, सरल रस्ता बताया है ।। नाम०६ मार्थ प्रभु के नाम से सर्व उपाथि जायः दरिशन से भव भय मिटे पूजन पाप पलाय. सिलकने आपका दर्शन गुरु वल्लभने पाया है ।। नाम० ७ (१३) ॥ भेरे मौला बुलाले मदीने मुझे ॥ ए राग ॥ प्यारे प्रभुका ध्यान लगातो सही, . इन पापों को दूर भगातो सही ।। टेर ॥ सो रहा किस नींद मे जिसका न मुझको ज्ञान है; आया था यहां किस लिये क्या कर रहा नादान है. एसी नींद को वेग उडातो सही ॥ प्यारे० १॥ चार दिनकी चांदनी है फिर अंधेरी आयगी साथ कुछ चलता नही दौलत पडी रह जायगी. ऐसी ममता को दूर हटा तो सही ॥ प्यारे० २ ।। मतलब के साथी है सभी नही साथ तेरे जायंगे; जब मोत तेरी आ जायगी, जंगल में घर कर आयंगे, जिन धर्म से प्रेम बढा तो सही ॥ प्यारे० ३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला फिक्र को अब त्याग दे, दिल को लगाले ज्ञान में; आनन्द चित्त हो जायगा, ऐसा मजा है ध्यानमे. शिव रमणी से नेह लगातो सही॥ प्यारे० ४ ॥ हंसका कहना यही नित पाप से डरते रहो; फिरते रहो शुभ काममे उपकारभी करते रहो. ऐसी बातो को दिल में जमा तो सही ॥ प्यारे० ५ ॥ जाना तुम्हे जरूरी, गुमरा रहे क्यों मन में; है वासा चंदरोजा तेरा इस सदन में ॥ टेर ॥ चक्री व राजा राणा धूम्ते थे जहां निशाना; सब छोड माल जरको, वासा किया है वनमें ॥जाना०॥१ यादव पति था वंका, बजता था जिनका डंका; वहभी समा गये है, एक दिन कोशंबी वनमें जाना०॥२ कौणिक कहां है चेडा, किया मानने बरवेडा; लाखो ही शिर कटाये, पछिताये मनही मनमे ॥जाना॥३ रावण भी जोश खाता, फूला नहीं समाता; एक दिन तो वहभी प्यारे, सोता पडाथा रनमें जाना०४ कहता है हंस इनपर, जिनराजका भजन कर; सोता पडा है क्यों कर, सोचो जरा तो दिलमें ।जाना०५ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२ जिनगुणहीरपुष्पमाला ( १५ ) || चाल नाटक. ॥ ( बहार मेरे प्यारे गुलशन आई बहार . ) उतार मेरे प्रभुजी भवजलसे पार उतार उतार मेरे प्रभुजी. काल अनंता भयो भवमांही, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पायो है दुःख अपार अपार मेरे प्रभुजी ॥ १ ॥ करूणा जनक दशा है मेरी, तेरी है दृष्टि उदार उदार मेरे प्रभुजी ॥ २ ॥ जगबन दुःख दावानल दह के, सेवकको लिजो उगार उगार मेरे प्रभुजी ॥ ३ ॥ शीतल जिन शितल अघ करके, आतम वल्लभ उजार उजार मेरे प्रभुजी ॥ ४ ॥ इस निःसार जगत में तिलकको, आज्ञा तुमारी है सार है सार मेरे प्रभुजी ॥ ५ ॥ ( १६ ) ( कव्वाली ताल. ) विना दर्शन किये तेरा नही दिल को करारी है । चुरा कर ले गई मनको, प्रभु सुरत तुम्हारी है । वि० । For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला १३ न कलपाओ दया लाओ, हमे निज पास बुलवाओ । सहा जाता नहीं अब तो, विरह का बोज भारी है । वि० ११ ज्ञानसे ध्यान से तेरा, न सानी रूप दुनियामें । फिदा हो प्रेम में तेरे, उमर सारी गुजारी हैं । वि० । २ दया पूरन कष्ट चूरन करो अब आश मम पूरन । मेहेर की एकही दृष्टी, हमे काफी तुम्हारी है । वि० । ३ विमल है नाम जिन तेरा, विमल कर नाथ मन मेरा । चरण मे आपके डेरा, तिलक भव भव स्वीकारी है । वि० |४ 1 ( १७ ) ( चाल - आसक तो हो चुका हूँ ) पैदा हुवे हे भगवन, दुःखसे छुडानेवाले; भुले हुवे जनोंको, रस्ता बतानेवाले ॥ टेर सिद्धार्थके दुलारे, त्रिशलाके नंद प्यारे; आंखों मेरे तारे, दिलको लुभानेवाले. । पैदा० १ जन्माभिषेक जिस दम, इन्द्रोसे हो रहा था; अंगुष्ट बलसे उस दम, मेरू चलाने वाले । पैदा० २ संसार मोह माया को ध्यान से हटाया, आनंद धाम पाया, करुणा समुद्र वाले. । · पैदा० ३ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला अहो ब्रह्म ज्ञान धारी, शिव मार्गके विहारी; विपदा हरो हमारी, र वीर नाम वाले.। पैदा० ४ दे करके दान जनको, करके निरोध मनका; वपसे सुषाके तनको, शिव धर्म पाने वाले. । पैदा० ५ प्रभु आपके तिलकको, है आप नाम शरणा; संसार पार करणा, करके जगाने वाले। पैदा० ६ (१८) ( आंख विना अंधारू रे-ए राग ) भवजल पार उतारोरे, दयालु देवा भवजल पार उतारो. टे काईके मन वासुदेवा, कोइ करे शिवनी सेवा; मारे मन तुम बिन अवर न प्यारो प्यारो रे. दयालु० १ कोइ मन ब्रह्मा भावे, कोइ राम नाम गावे काइ वली एथी न्यारो न्यारो रे. दयालु०२ मारे मन एथी न्यारी, शरण तुमारी धारी; शिव सुख आपो, कापो भव दुःख भारा रे. दयालु० ३ आतम लक्ष्मी स्वामी, वल्लभ होवे नामी; ललित शिशु प्रभु तिलकनी अरज सीकारो रे. दयालु० ४ For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला ( १९ ) ( तर्ज कव्वाली. ) तेरे दरबार मे हमने, अरज अपनी गुजारी है; १ सुनो या ना सुनो स्वामी, कि यह मरजी तुमारी है. टेक विना दर्शन किये तेरा, कठिन हे जीवना मेरा; विरहने आन कर घेरा नही दिलको करारी हे. चुरा कर दिल मेरा अब क्यों नही दर्शन दिखाते हो; तुम्हारे दर्शकी अब तो, मुझे ऊमेद भारी है. रमा हे नूर आंखोमे, तुम्हारी प्रेम दृष्टिका; न जाने मोहनी सुरत, ये कैसी जादुगारी है. मिले इस प्रेमका बदला, तो जीवन हो सफल मेरा; दयाकी भीख दे दरपें, खडा तेरे भिखारी है. २ ( २० ) ॥ गजल ॥ रोशन तो हो रहा है, दुनियामे नाम तेरा ॥ टेक ॥ सेवा मुझे तुमारी, प्रभु शान्ति लागे प्यारी; तुमसे ही काम मेरा, दुनियामे नाम तेरा ॥ हे वीनती हमारी, जो हो मेहेर तुम्हारी; टारो अनादि फेरा, दुनियामे नाम तेरा ॥ • For Private and Personal Use Only १५ ३ १ २ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १६ जिनगुणहीरपुष्पमाला सेवक मे हुं तुम्हरो, करुणा नजर निहारो; तुम विन सभी अंधेरा, दुनियामे नाम तेरा ॥ रस्ता हमे बतावे, बुरे पंथ से बचावे; वह ज्ञान विश्वव्यापी, भानु समान तेरा ॥ वल्लभ तिलक पामी, गुरु देवको नमामि मुक्तिमे हो बसेरा, दुनियामे नाम तेरा ॥ ( २१ ) ॥ जागृति ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ३ ४ ५ ( गजल ) जागो ० १ जागो ने जैन बंधु, जागा है देश सारा. ॥ टेक ॥ करना समाज सेवा, तुम हो भुलाके बैठे; अब मंद हो रहा है, पुरुषार्थ यो तुम्हारा. । हा हो रही है हानी, तबसे समाज भरकी; कर्तव्य पथ से जबसे, तुमने किया किनारा. | जागो० २ निज स्वार्थमे न पडते, परमार्थतामे अडते; तो उन्नतिमे होता, जैनी समाज सारा. । वीरत्व लेश तुममे, कुछभी नही रहा क्या; जो इस तरह से तुमने, है आज मौन धारा । जागो ० ४ जागो ० ३ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला निहासे अब तो जागो व्यसनांको शीघ्र त्यागो; लो लक्षमे उसीको, है साध्य जो तुम्हारा.। जागो० ५ ए वीर पुत्र प्यारे, बन करके वीर सारे; हिल मिलके अब करो तुम, निज कौमका सुधारा. जा०६ उपकारमय हृदय हो, परदुःखमे सदय हो; जिनधर्मका उदय हो, ऐसा करो विचारा. जागो० ७ स्वधर्मी जो तुम्हारे, फिरते हे मारे मारे; लाओ दया उन्हो पर, तन धनसे दे सहारा. जागो० ८ सब भिन्नभाव छोडो, मन ऐक्यतामे जोडा; होवेगा विश्वभरमे, आदर तभी तुम्हारा. जागो० २ पुरुषार्थ कर दिखाओ, कर्तव्य कर बताओ ए जैन वीरपुत्रो, करता हुं मै इसारा. जागो० १० ॥राग महावीर तमारी मोहन मुर्ति देवी-ए राग ॥ वासुपूज्य जिनेश्वर जाई मारुं दिलडं हरखाय. । अंचली। प्रभु सर्व देव गरिठा, मै जगमां न और दीठा; लागे मुज मन अति मीठारे मन तृप्ति नव थाय. १ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला प्रभु एक अनेकी जगमे, तुज भक्ति मुज रग रगमे । नही माणेक हो नग नगमेरे, तिम दुर्लभ जिनराय. २ प्रभु निगोदमे नही मिलिया, त्यां काल अनंतो रूलिया; थावर द्वितिचउ भूलियारे, विन दर्शन दुःख पाय. ३ अब पुण्य उदय मै पायो, सन्नी पंचेंद्रीमे आयो; तब दर्शन नाथ दिखायारे, लेउं आणा शिर चढाय. ४ प्रभु स्थिरबोधी हुं मागु, निज आत्मभावमा जागुंः मेरी तेरीसे भागुरे, ए आपो महाराय. मुन तत्वत्रयी प्रभु आपो, तुम हस्त शिर पर स्थापो; भव भ्रमणा मारी कापोरे, पामरमें दिल लगाय. ६ खुब गाम बुहारी साहे, तुम ध्यान मुज मन मोहे; प्रभु जोइ मोह अति खोहेरे, अब हटसे मोहराय. ७ मुज आत्म कमल विकसावा, लब्धि लक्ष्मी निवसावा; हुँ राखं तुमथी दावारे, तुम चरणे चित ठाय. ८ . (२३) ( कव्वाली.) नाभिराजा के कुल मंडन, आदीश्वर हो तो ऐसे हो. टेर For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला माता मोरादेवी कुंखे, लिया है जन्म प्रभुजी ने। इन्द्रादि सुर करें ओच्छव, प्रतापी हो तो ऐसे हो। १। धर्म युगलिक हडा करके, बताई रीत जग जनको । चलाइ राजनिति को, राजेश्वर हो तो ऐसे हो । २ । राज लीला सभी छोडी, कुटुंब का प्रेम सब तोडी। संयमसे चित को जोडी, योगीश्वर हो तो ऐसे हो।३। मास बारे करी तपस्या, पाया है ज्ञान अति भारी। तारे है नर अरु नारी, जिनेश्वर हो तो ऐसे हो । ४ । आठों ही करमको जारी, परम सुख मोक्ष अधिकारी। वन्दे अमृत श्री जिनवर को, उपकारी हो तो ऐसे हो।५। ३ (२४) (गजल कव्वाली.) ॥ मेरे मौला बुला लो मदीने मुझे ॥ मेरे निनजी शेजे बुलालो मुजे आदि जिणंदा दरश दीखालो मुजे ॥ टेर ॥ पुनीत परमानंद श्री जीणंद प्रभुजी आप हो, भवीक जन कटे भक्ति से जन्मो जन्मको पाप है, अबतो मायाके फन्दे से छुडालो मुजे ॥ मेरे० ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला नाम तेरा जाम आठो जपने से आराम हो हो कृपा हम पर तुमारी सिद्धगीरी बीश्राम हो, माया मोहकी नींद से जगालो मुजे ॥ मेरे० ॥ २ ॥ खोया लडकपन खेल मे युवा कटी मोह जाल मे, आया बुढाया अब प्रभुजी रहेम करो इस हाल मे, कुकरमीको धरमी बनालो मुजे ॥ मेरे० ॥ ३॥ बीनती मेरी ये ही हयके जीनजी तेरा दीदार हो, वचुभाई कहे प्रभु भक्तीसे भक्तोका बेडा पार हो, शीवपुर पाने की पाथी पटालो मुजे ॥ मेरे० ॥ ४ ॥ ॥ कव्वाली ॥ नजर शुभ दीन पर करके, उधारोगे तो क्या होगा, अतुल बलरूप है प्रभुजी, बतावोगे तो क्या होगा ।।टेर ।। लिया है आसरा तेरा, करो उपकार अब मेरा, चरण का दास तुम केरा, उवारोगे तो क्या होगा ।। १ ।। दयालु देवना देवा, करुं मै आपकी सेवा, चाहुं छु मोक्ष सुख सेवा, चखावोगे तो क्या होगा ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला इस भव पारके माये, भवो भव भटकते आयेः तारक त्रिलोकके पाये, निहारोगे तो क्या होगा. अगम शक्ति प्रभु धारी, तारे है नर अरु नारी; हमारे कर्म णा भारी, हटावोगे तो क्या होगा. सूरि राजेन्द्र गुरु ज्ञानी, जिनकी मीठी है वानी; अतने सत्य दिल जानी, पिलावेोगे तो क्या होगा. ५ २१ ( २६ ) ( गजल ) हमसे दूर रहो तुम यार, नकली जैन कहाने वाले टेर For Private and Personal Use Only ३ भूल्या कुल मर्यादा भान, बन्या अब होटलिया हेवानः hi पयगम्बर क्रिस्तान, फेशन नवी चलाने वाले. हम०१ अभक्ष्य अनंतकाय खाराक, भांग वीडी ब्रान्डीनी छाक; वन्यासे खरेखरा नापाक, पुनर्लग्न कराने वाले हम० २ तज्या नय निक्षेपा प्रमाण, जीवराम मिथ्या अभिमानः मात पिता गुरुनुं न ज्ञान, मत पाखंड बढ़ाने वाले. हम ०३ सटा शेत्रज जुआ रमनार, गरीव जीवना करे संहार: are herरयां करनार, संघमे जंग मचाने वाले. हम०४ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ जिनगुणहीरपुष्पमाला छोड्या धर्म नेम व्रत सर्व खाये धर्मादा देवद्रव्य; छोड्या धर्म तिथी ने पर्व, परनारीको फसाने वाले हम० भुल्या विनय विवेक विचार, ज्यां त्यां करता भ्रष्टाचार; गर्दभ कुकरना अवतार, ब्रधरहुड बनाने वाले हम० ६ काम क्रोध मदमां चकचूर, नख शिख अपलक्षण भरपूर; गुमान्युं मुखडां केरुं नूर, ज्यां त्यां धूल उडाने वाले हम० रामायण से अपरंपार, सुणतां थाके नर ने नार; कामां छे सघला सार, शिवधर्म समजाने वाले हम० ८ ( २७ ) ( गजल कव्वाली. ). मे अरज करूं शिरनामी, प्रभु कर जोड जोड जोड । ए आं० में भव बनमें जा फसिया, वहां काल करि धसमसिया; मुझ लोभ सर्प आ डसिया, अखियां खोल खोल खोल १ क्रोधाने अति बाला, मेरा अंग पड गया काला; मुझे प्यादे प्रेमका प्याला, अमृत ढोल ढोल ढोल २ मद अजगर मुझको खावे, मेरे प्राण पलक मे जावे : जडी जीवन कोण पिलावे, वन मे घोल घोल घोल ३ For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुषमाला तुम नाम मंत्र से साजा, कुछ हो गया प्रभु ताजा: . तो कठोर गाम महाराजा, आया टोल टोल टोल ४ श्री आदि शांति जीन स्वामी, हंसो मागे शिरनामी; गुण मुक्ताफल यो घामा, प्रभु विन मोल मोल मोल में०५ (२८) बलिहारी बलिहारी बलिहारी, जगनाथ हो जाउं तोरी। शांतिजिन शांति सेवक दिजीयेजी. ॥ ए आंकणी ॥ काल अनादि केरा, फिरता हुं जगमे फेरा; अंत न आयो जिन उपकारी. . जगनाथ० १ पुण्य उदय पायो, चरण शरण दायो; और न तुम सम जग दातारी. जगनाथ० २ चिदघन नामी स्वामी, शिवपद गामी पामी खोट न मानें अब हितकारी. जगनाथ० ३ दीन अनाथ नाथ, अहियो मै हाथ साथ; दोष न रंचक गुणभंडारी. जगनाथ०४ आतम सुख आपो, वल्लभ दुःख कापो; फेर न लई भव अवतारी. जगनाथ०५ For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला (तरज-तरकारी ले लो मालन तो आइ विकानेर से ) क्यों भुला बंदे रट ले प्रभु जिनराजको महाराजको. टेर. तन धन जोबन सुपना जगमे, क्यों सोता गफलतमे; प्रभु भक्तिमे मनको लगाले, छोड जगतके धन्दे, १ मात पिता सुत वहन भ्राता, मुखका है सवी नाताः अन्त समय कोइ सथा न आवे, टुट जावे सब फन्दे.. २ महल अटारी बाग बनावे फुला नही समावे; काल बली जब आन दवावे, हो जावे सब गन्दे. ३ विषय भोगमे उमर गमाइ, धर्म वस्तु नही पाइ; अब तो सिमर प्रभु पारसको, तोड' कर्मके फन्दे, ४ यह संसार असार है पाणी; यह तूने नही जानीः एच. पी. जैन, कहे तुमसे, मत फसो कर्मके फंदे. ५ ॥ मजा देते है क्या यार, तेरे बाल गुंगर वाल-ए देशी ॥ नमन करुं पार्श्वनाथ भगवान, भवोदधि पार लगाने वाले. पुरुषा दानी प्रभु पास, नही आसपास तुम वास; आसा कीनो जगदास पास भविजनके हटाने वाले. १ For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिनगुणहीरपुष्पमाला लघुता मता करे नाथ, प्रभुता प्रभु नावे हाथ; कीनेr मै लघुता साथ, नाथ भवपार तराने वाले. प्रभु वीतराग गुणवान, खरे भक्तोंके भगवान, करे सेवा पाये निरवान, निज आतम रूप धराने वाले, ३ दीने द्वारक जिनदेव, सुर नर नारी करे सेव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१ ) ॥ कव्वाली ॥ करे समरण भवि नित्यमेव, परम पद मुक्ति पाने वाले. ४ आतम लक्ष्मी प्रभु नाथ, करो नाथ अनाथ सनाथ; धरी हर्ष जोडी दाय हाथ, प्रभु वल्लभ गुण गाने वाले. ५ चौराशी लाखमे भटक्या, बहुतसी देह धारी है । वेरा मुज कर्म आठाने, गले जंजीर डारी है. दुनियामे देव सब देखे, सभीको लोभ भारी है, केइ क्रोधी के मानी, किसीके संग नारी है. मुसीबत जो पडी मुजपे, उसीको खुद निहारी है; शिशुके आसरो तेरो, यही विनती हमारी है. . For Private and Personal Use Only विना प्रभु पार्श्वके देखे, मेरे दिस बेकरारी हे | आंकणी. • २५ १ २ २ ३. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ जिनगुणहीरपुष्पमाला आप हा जग्तके दाता, अरज मैने गुजारी है; रतनको दास जाणीने, शरण आयो तुमारी है. बिना०४ ( ३२ ) | खुने जीगर को पीते हय, बस गम्मे तेरे यार- प चाल । महावीर ! तमारी मनहर मुरति देखी मन हरखाय. आं० ॥ प्रभु त्रिशला माताना जाया, सिद्धारथ नृप कुल आया । -इंद्राणी मली हुलराया, तोरी कंचनवरणी काय । महा० १ जल कलश भरी न्हवरावुं, पूजन करी अति हरखाउं; भव भवना दुःख गमावु, मुज जन्म कृतारथ थाय । महा०२ वली सुन्दर पुष्प मगावु, तेनी गुंथी माल बनावुं । लइ प्रभु कंठे पहेरा, तारा सुर नर सेवे पाय । महा० ३ भक्ति भरी भावना भावु, गुण गानथी पावन थाउं । निशदिन तुम ध्यान धराउं, जेथी दुर्लभ समकित थाय. महा० ( ३३ ). बोल बोल आदीश्वर दादा, कांई थांरी मरजी रे म्हांसु मुहं बोल चाल चाल आंदीश्वर भेटा, सिद्धगिरी चालो रे के कर्म खपावो रे For Private and Personal Use Only टेर. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला चैत्र वदी आठम दिन जायो, मारूदेवी माता रे । नाभी के तुम नंद कहावो, जग सुख दाता रे के सिद्धगिरी चालो रे ॥१॥ संजम लेई प्रभु कर्म खपाया, राग द्वेश नहीं कीनो रे । प्रथम तीर्थकर केवल पामी, दरीसन दीनो रे के __ सिद्धगिरी चालो रे ॥२॥ सोरठ सम तीरथ नही जगमें, श्री सिद्धांते भाख्यो रे; नाम एकवीस महा गुणवंता, दीलमे राखो रे के सिद्धगिरी चालो रे ॥३॥ बालक युवा वृध्ध नर नारी, सबही चढतां हांफे रे; हिंगलाज देवीरी घाटी. देखत कांपे रे के सिद्धगिरी चालो रे ॥४॥ आदीश्वर दरिशन दो अव तो, आयो शरण तुमारे रे; भव सागरथी पार उतारो, जाउं बलिहारी रे के सिध्धगिरी चालो रे ॥५॥ श्री शुभ चिंतक जैन सभासद, दास मंडली गावे रे; निनाणु जात्रा करवानी भावना भावे रे के सिध्धगिरी चालो रे ॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૮ जिनगुणहीरपुष्पमाला ( ३४ ) ( वारी जाउ रे सांवरिया - ए राग ) वारी जाउं रे जिनवरजी तुझ पर वारना रे || ढेर || पोष वदि दशमी दिन जायो, दिशकुंअरी मिल मंगल गायो; इन्द्रादिक सब हर्ष विधायो, गावे गीत सुहावना रे. वा० १ अश्वसेन राजा कुल नंदन, नगर बनारस शोभा सुन्दर; घर घर लोग करे अमिनंदन, वामा राणीके घर झूले पारणारे. वारी० २ दीक्षा ले प्रभु केवल पाये, अष्ट कर्मको दूर भगाये; समेतशिखर पर मुक्ति सिधाये, आवागमन निवारनारे. वा० श्रीजिनचंद्रसूरि सुपसाये, श्रीजिनहर्ष हिये हुलसाये; सेवक प्रभुजीके चरणे आये, भवसागर निस्तारणारे. वा० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३५ ) [ ठुमरी ] जाओ जाओ नेम पिया तेरी गति जानी रे । sairat अरजी मेरी नही पिया मानी रे || ढेर || अब कहि कियो संग, सहसावन लियो रंग । सोलहसो रानी के बीच, राधा रुकमणी रे ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला पिचकारी जल भरी, विमल कमल करी; अबीर गुलाल बीच कैसी, झीनी छानी रे. ॥ २ ॥ पशुअन दया करी, भये पूर्ण व्रत धारी; आगे ही मिलुंगी तुमसे, सुनो केवल ज्ञानी रे. ॥ ३॥ अधम उधारी मारी, त्रिभुवन उपकारी; कपूर प्रभु के चरने जैसे दूध पानी है. ॥ ४ ॥ ( ३६ ) [ तर्ज- मोहन मुसकाने ] १ कठिन लगनसी पीर एरि एरि मेरो साहब जाने || ढेर || मैं जंगल की हरिणी हो सजनी सदगुरु मार्यो तीर. लाग्यो तो जब शुधि नही मनसी, अब दुःख देत शरीर. २ आनंदघन चहे तुम्हरे मिलनसो, बैग मिलो महावीर. ३ ( ३७ ) [मेरे अंखियोमे रामरल ] निरंजन यार मोहे कैसे मिलेंगे. । टेर । दूर देखु में दरिया डुंगर, उंची बादर नीचे जमीतले रे । निरंजन० १ For Private and Personal Use Only २९ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला धरतीमे गड़े तो न पिछार्नु रे, ___अग्नि सहुं तो मेरी काया जले रे । निरंजन० २ आनंदघन कहे जस सुन बातों, वो ही मिले तो मेरो फेरो टले रे । निरंजन०३ (३८) कानुडा तारी कामण करनारी-प राग शांतिजिन तुमरे दरिशन सुखकारी, देखन आवे नरनारी. मीठी वली मोहक मन वश करनारी, वाणी लागे म्हनेव्हाली समकित आंगी बनी मुख जोतों जावे दुःख भारी.। दे०१ आंखडली अविकारी दिखे सुन्दर जाउं बलिहारी। हीरानो हीरानो हरदम सीस मुकुट भारी.। देखन० २ जगपति जिनवर छो सुखरन्दन आपो भक्ति सारी । उगारी उगारी भव जल सुरजने तारी। देखन० ३ (३९) [ तर्ज-अंग्रेजी बाजे ] जिनंद चंद देखके आनन्द भयो हुँ । टेक । तुही कलंक पंकको निपंककार तुं । बंध कर्म धंधको विडार डार तुं । जि० १ For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला दासको विहार तार वीर नाथ तु । रंग भंग मोहको विरंग जार तु। जि० २ निरख तात रैन रैन नाथ साथ तु । तेरे ही दर्श परसको आनन्द मानु हुं ।जि०३ सुर नूर रंगको अनंगकार तु । आतम आनन्द रंग राज आज हु। जि० ४ [दिवाना तेरे दर्शका ए यार मे मिहु] निर्रजन निराकार अरज सुनीये जरा। तु सबका रहीमकार है, लाचार मै भी हु ॥१॥ रखता हु सरोकार जो तु ही से मै सदा। दातार तु ही है तेरा नादार मै भी हु ॥२॥ कोफी बडे मनसे जहान मे भरा। अव्वल हकीम तु तेरा बीमार मै भी हु ॥ ३ ॥ सुनके सखुन कपुरका पदमामे लौ लगा। तु ही सीरे सरदार ताबेदार मै भी हु । ४ । For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला (४१) (चाल-आसक ता हो चुका हूं) शरणा तो ले चुका हूं, चाहे तारो या न तारो । टेर । जीवनसे अब मै हारा, तब तुपो हे पुकारा। अरजी तो दे चुका हूं, चाहे तारो या न तारो. ॥ सब इन्द्रियों सतावे, मन मैलको बढावे । भवजलमे ये डुवा हुं, चाहे तारो या न तारो.॥ क्या हाल कहु मै सारा, जो दिलमे है हमारा । वल्लभ तो हो चुका हूं, चाहे तारो या न तारो.॥ १ २ ३ [४२] [ कसुबी रंग छाया ] सुसंगी सुसंगी सुसंगी सुसंगी प्रभु मिल गये । सफल हुए मेरे नैन. । नैनों सुसंगी० । टेर। एक तो मे दर्शन में दर्शन मे दर्शनको प्यासो, दर्श विना नहीं चैन.। नयनो०१ एक तो मे पापी मे पापी मे पापी हुँ पाणी। तारण वाले भगवान. । नयनो० २ For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला एक तो मे माया मे माया मे मायाको लोभी। झुठी माया मेरी जान. । नयनो० ३ एक तो मे आया मे आया मे आया तेरे चरणे। जैन युवक गुण गाय.। नयनो० ४ ॥ होरी ॥ जय बोलो ऋषभ जिनेश्वरकी जय बोलो । टेर। जन्म अयोध्या मा मरुदेवा, नाभिनन्दन जगतेश्वरकी. ज. धनुष पांचसो काया जिनकी, लंछन वषम घरेश्वरकी. ज० लक्ष चोराशी पूरव आयु, कुल इक्ष्वाकु करेश्वरकी. ज० ३ दास चुनी प्रभु सेवा चाहे, तारण तरण तारेश्वरकी. ज०४ ( राम दादरा.) मत बच्चों को व्या हो रूलाने को, रूलाने को दुख पाने को ॥ मत० ॥टेरः॥ आठकी तिरीया साठ के बालम; व्याहो का बाबा कहाने की ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला युवा हुइ तिरीया, मर गये बालम; रांड कर दीनी दुःख उठाने को ।। २ ।। रो रो कर वो रूदन मचावे; सुन आवे दया सब जमाने को ॥ ३ ॥ मरियो पापी मा बाप म्हारा; म्हने बेची थी थैली भराने को || ४ || मरियो पंडित व्याह सुझइयो; फेरे बुढढे से आया फिराने को ।। ५ ।। मेरा तरसना दुष्टो ने कीना लोभ; छाया था धन के कमाने को ॥ ६ ॥ रो रो कर मै आंख्या गमाउं जाउं; किसको में हाय सुनाने को ॥ ७ ॥ जिन पंचो का भरोसा गिनेथी; वोह तो शामिल थे लडडू उडाने को ॥ ८ ॥ कैसी ए ओंधी जोडी मिलावे: लोगो के हंस ने हंसाने को ।। ९ ।। वीसकी पुत्री सात के बालम, व्याहो क्या दुध पिलाने को ॥ १० ॥ For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SeeeeeeeeDow BeDeeDER जैन गजलौकी चमकती अंगुठी. लेखक :एच. पी. पोरवाल. मु० सादरी. (मारवाड.) DeeeseDDeteseseDecededa प्रकाशक श्री जैन लाइब्रेरी भवन. मु० सादरी. (मारवाड.) RECEDECEEDEDED प्रथम आवृति. २००० DeceDeseeDeceDeceDes For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पढीये ! www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पढने योग्य पुस्तके. अवश्य पढीये ! रोतोंको हसाने वालि पुस्तके, शुद्ध सुन्दर ओर सस्ती पुस्तके मंगवाये. यदि आप हिन्दी गुजराती जैन पुस्तके उत्तमोत्तम सरल एवं सचित्र पुस्तके पढना चाहते हे तो हमारे यहांसे पुस्तके शीघ्रही मंगवाये. अमदावापके साथ कहते है कि आज तक ऐसी शुद्ध सुन्दर व सस्ती पुस्तके कही नही देखी होगी. हमारे यहांकी पुस्तकोका चित्र भी बडे ही मनोरज्जक है जिनके दर्शनसे आपकी आंखे निहाल हो जायगी. हम आपको विश्वास दिलाकर कहते है कि हमारे यहां की पुस्तके पढने से आपकी आत्माको परम शान्ति एवं आनंद मिलेगा. इस लिये हिन्दी, गुजराती, जाननेवाले भाइयो के लिये यह पहला ही सुयोग है भाषा इतनी सरल है की साधारण लिखा पढा बालक भी बडी आसानिके साथ पढ समज सक्ता है हमारे यहांकि पुस्तको स्त्रियोके लिये भी परम उपयोगी है. एक वार मंगावकर अवश्य परीक्षा कीजिये ओर भी उत्तमोत्तम ग्रंथ चन्दरोज मे प्रकाशीत होगा. पत्ता:- एच. पी. पोरवाल. जैत लाइब्रेरी भवन, सादरी. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिनगुणहीरपुष्पमाला श्री जैन गजलौंकी चमकती अंगूठी. ( १ ) [ गजल. ] देखो नजरसे प्यारे इतना अंधेर क्या है । करलो प्रभुकी पूजा अब हेर फेर क्या है || ढेर || जिसने निघासें देखा, नहि खोट है रतिभर । हीरो मे हाथ डाला कंचनका ढेर क्या है ॥ १ ॥ हे चंद रोज मेला अखिर मे होगा जाना | तुम पूजा क्यो न करते प्रभुसे बैर क्या है ॥ २ ॥ करलो भलाई जगमे आती है काम वोही । सच्चा है नाम उसका अब लहर मेर क्या है ॥ ३ ॥ मिथ्यात्वरुपी मठ है इसका सुधार कीजे । हिराचंद झूट जगकी देखे तुं सेर क्या है ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) [ सवैया ] कलम कान में क्या कहती है जसे उखाडके सुखाय डाले मांही; मेरे प्राण वोट डाले घरी जुओ केम कानमे; For Private and Personal Use Only ३९ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० जिनगुणहीरपुष्पमाला. मेरी गांठ काटे, मोही चाकुसे तरास डारे। - अन्तरमे चीर डारे धरे नही ध्यानमें ।। श्याही माही बोरि बोरि परे मुख कारो मेरो । करो मै उजारो तोही ज्ञान के जहानमें । परे है पराये हाथ तज्यो न परोपकार । चाहे घिस जाउं यो कलम कहे कानहे. ॥१॥ . (३) [ राग गजल.-ताल धमाल. ] शरन जिनवरकी जाने में, जगत छुटे तो छुटन दे। दान दुखियो को देने से, द्रव्य खूटे तो खूटन दे ॥ टेर ।। कठिन माया के फांसी मे; बन्धा है सर्व संसारा। भले जो मोहकी रस्सी, अगर टूटे तो टूटन दे । श०।१। करो सेवा साधुओकी, सुनो प्रभु नामकी चरचा । विषय की आस दुनयासे, अगर भागे तो भागन दे शिकार हमेशां जाय कर बैठो, जहां सतसंग होता है । सुनो नित ज्ञान की चरचा, जगत रूठे तो रूठन दे ।श०।३ काज अरू लाज तज करके, शरण वीतराग की लिजे। हिराचंद जगत तुझसे, अगर लाजे तो लाजन दे । श०।४ For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला ४१ ॥ गजल.॥ कन्याको बेच पैसा, लेता फजूल क्यों हैं । टेर। बेटीको बेच प्यारे, पापोके बांध भारे । दिल क्रोध करके गाली, देता फजूल क्यों हैं। क. १ करता हे काम कैसा, बेटी का लेय पैसा। कन्या का अन्न खाके, जीता फजूल क्यों है । क० । २ हिराचन्द पाहे रसीला, कलियुगकी देख लीला. खोटी है मार जमकी, सहता फजूल क्यों है । क० । ३ [ गजल धुन कव्वाली.] बुरी आदत हमारी है, छुडालो त्रिसलाके नंदा । आपका चर्णरज मुजको, बना दो त्रिसलाके नंदा ॥१॥ लगा तकिया गुनाहोका, पडा दिन रात सोता हुं। मुजे इस रब्वाचे गफलत से, जगा दो त्रिसला के नंदा.२ पडा आके भव दरियामे, भंवर मे खा रहा चक्कर । सहारा दे किनारे से, लगादो त्रिसला के नंदा ॥३॥ मिले जिनराजकी पूजा, धन्य किसमत हमारी है। कहे हिराचन्द घट मे, दिखा दो त्रिसला के नंदा ॥४॥ For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ जिनगुणहीरपुष्पमाला ( ६ ) [ मेरे मौला बुला लो मदिने मुजे ] दाता महेर नजर करी तारो मने. दास तारा छे अनंता, शुं थवानुं एथी, सागर भरेलुं तोयथी, नालाथी कइ फुगतु नथी । प्रभुजी हाथ पकड ले जावो मुने ॥ १ ॥ दास तारो छु प्रभु, तम दासनो पण दास हुँ; छोडाव आ संसारथी, प्रभु भार हवे हुं ना सहुं । व्हाला आप सरिखो बनावो मुने ॥ २ ॥ दास हीराचंदनी अरजी प्रभु उद्धारजो; आश सम्यग रत्ननी कृपा करीने आपजो । दादा भवजल पार उतारो मने. || दा० ३ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) [ गजल धुन कव्वाली. ] अगर दुनियामें हो हुसियार उगाना ना मुनासिव है । टेर । प्रभु का नाम है सच्चा न पलभर उसको भूले तुम, भजन विन जिन्दगी व्यर्था गमाना ना मुनासिब है || १ || For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला तेरे शत्रु है मदमत्सर इन्होको दावते रहना, क्रोध अहंकार कर दिल को दुखाना ना मुनासिब है ||२|| रोक मन भोग विशयोंसे जरा इन्द्री को वश करले, नैन त्रिया पराईपे चलाना ना मुनासिब है ॥ ३ ॥ पटपट काट के भरले हरी रस खूब हृदय में, प्रभु व्यापक हैं घट घट मे भुलाना ना मुनासिब हे ॥ ४ । मगन भक्ति मे हो रहना जबर हे नामकी महिमा, हिराचन्द इस दिलको डिगाना ना मुनासिब हे | अगर० । ५ For Private and Personal Use Only ४३ ( ८ ) [ गजल. ] सत्य मत हार रे सुरो, जो सम्पति जा तो जाने दे । पर उपकार मे तेरी, विके तन तो विकाने दे । १ । अहिंसा जो बडा भारी, धर्म जगमे रहाता है । करो तुम तन व मन धनसे, लोग रिसे तो रिसाने दे |२| पिशाची रूप हे नारी, बिछाई जाल माया की । तु मनको राख काबू मे, वे रिझावे तो रिझाने दे । ३ ये जिव्हा तेरी ऐ प्यारे, अंत कुछ काम नही आवे । हिराचन्द को प्रभुका नाम, निराहर वक्त गाने दे । ४ । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला १ [गजल ताल] अब जाग जा मुसाफर, क्यों निन्दमे पड़ा है। बीती है रेन सारी, यही दिन भी चडा है ॥ अब तो सराय माइ, रहना न होगा भाइ। दो दिन करो हवाइ, छोटा ओर क्या बडा है ।। यो चोर चार रेते, पुंजीको खोस देते। भ्रमजाल डाल देते, क्यों सुस्त हो खडा हे ॥ जूठी हे जिंदगानी, क्या भूलिया से जानी। हीराचंद कहे रे प्राणी, किस बात पर अडा हे॥ ३ ३ . [१०] ॥दोहा॥ शोक हे यदि जैन होकर, नैन हम खोले नहीं, धर्म खो कर पाप बो कर गर्वसे डोले नही; व्यर्थ हे धन केलि होना, शान भी बेकार है, जिनको न निजका ज्ञान है, उनको सदा धिकार है, For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BHATRI जाहेर खबर. श्री जैन परमार्थ पुस्तक प्रचारक कार्यालयको मदद किजिये. (कवीने कहा है.) मागण गये सो मर गये, मरे सेा मागण जाय, सब के पहेला वोह मरे, सो होते ही नट जाय. मागण मरण समान है, मत काइ मागो भीक, मागणसे मरणा भला, येही सत गुरुकी सीख, मर जाऊ मागु नही, नीज स्वार्थ के काज, परमार्थ के कारणे, मांयन आवे लाज, इस संस्थाका यह उदेश हय कि जगे जगे से प्रगट हुइ पुस्तके मंगा कर मारवाड मेवाड मालवा ओर गोलवाडके प्रत्येक गामोमे अनाय श्रावकोको विधवा बहेनोको ओर जिनमन्दिरोमे वह साधु साध्वीओकी सेवामे भेट भेजते है, इस लिये धर्मप्रेमी भाइओका एवं साधु महात्माओका कर्तव्य हय कि इस संस्थाको पुस्तकोकी मदत किजिये, मदत करनेसे आपको बहोत पुण्य होगा; ओर धर्म का प्रचार होगा, ओर दुसरे मुल्कोंमे जैन पुस्तके बहोत हय, मगर For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारवाड मेवाड मालवा व गोडवाडके गामो धर्मकी पुस्तके नही होने से अपने स्वधर्मी भाइ ख्यालोकी नाटकोफ़ी पुस्तको पढ पढ कर दुष्कर्तव्य करने लग जाते हय, इस लिये धर्मकी पुस्तके अगर पढेगा तो अवश्य शुभ मारग पर आ जायगी, से उमेद करता हु के आप उस संस्थाको पुस्तकोकी मदत करके हमारे उत्साहको बढावेंगे. इस संस्थाको बहोनसे साधु महात्माओने, वह संस्थाओने, वह धर्म-प्रेमी सज्जनोंने पुस्तको की मदद दिया हय जिस्की शुभ नामावली दुसरे पेज पर कुछ छपी हय, वह देखकर आप भी मदत करे. एक वर्षका हिसाब तपासनेसे मालुम होता हय कि मास १२ मे कुल २१०७ पुस्तके मेवाड मारवाड विगेरे देशोमे भेजी हय. कार्यकर्ता एच. पी. पोरवाल. मन्त्री – जैन परमार्थ पुस्तक प्रचारक कार्यालय. मु० सादरी ( मारवाद ) For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धन्यवाद, श्री जैन परमार्थ पुस्तक प्रचारक कार्यालयको जिन जिन महा पुरुषोने मदत दिया है जिनोकी शुभ नामावली. १ उ. सुमतिसागरजी मणिसागरजी. २ आचार्य श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी. ३ आचार्य श्री केसरसूरिजी . ४ उ. श्री देववीजयजी महाराज. ५ आचार्य श्री लब्धिसूरीश्वरजी. ६ आचार्य श्री सिद्धिसूरीश्वरजी. ७ मुनि श्री धर्मविजयजी. ८ श्री जैन धर्म प्रसारक सभा. ९. श्री जैन श्रेयस्कर मंडळ. १० यति श्री सूर्यमल जी. ११ बाबु भेरुदानजी हाकीम १२ बाबु शिखरचन्दजी नथमलजी. १३ बाबु शंकरदान सुभेराज. १४ श्री जैन नव युवक समिती. १५ दीवान केसरसिंहजी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ श्री आत्मानन्द जैन टेक्ट सोसायही. १७ बा० चेलाराम चांदाराम. For Private and Personal Use Only भावनगर महेसाना कलकत्ता "" 6 ?? >> "? अंबाला मुलतान Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ शेठ चुनीलाल अमीचन्द. रंगुन १९ धर्मविजय जैन लायब्रेरी. मुरबाड २० मुलतानमलजी सकलेचा, (मद्रास ) सेन्ट थोमस २१ हेमचन्द्रसुरि जैन पुस्तकालय. बीकानेर २२ श्री अगरचन्दजी मेरुदान. बीकानेर २३ शेठ गहेलामाइ प्राणलाल, फलोल २४ शेठ मोतीलाल रामजी. जलालपुर २५ शेठ कान्तिलाल महासुख नाथजी. वेजलपुर २६ शेठ चुनीलाल राइचन्द भरुच २७ शेठ मनसुखभाइ भगुभाइ. अमदावाद २८ शेठ आणदजी कल्याणजीनी पेढी. अमदावाद २९ शेठ नेमचन्दभाइ देवचन्दभाइ. ३० एम. वाडीलालनी कुंपनी. ३१ जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स. ३२ श्री मोहनलालजी जैन लायब्रेरी. मुम्बइ ३३ श्री जीवदया मंडळ. हैदराबाद ३४ शेठ माणेकचंद फुलचंद. अमदावाद. ३५ महावीर जैन प्रेस. उसके सिवाय ओर भी छोटी छोटी मदते आइ है. मुंबई. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंगाये. . जैन धर्मकी शुध्ध सुन्दर ओर सस्ती पुस्तके मिलने के ठिकाणे. एच. पी. पोरवाल, जैन लॉईब्रेरी भवन. मु. पो. सादरी. (मारवाड.) 2 श्री जैन परमार्थ पुस्तक प्रचारक कार्यालय, मु. पो. सादरी. ( मारवाड.) 3 शा, लखमीचंद उमेदमल फेन्सी कपडेवाला, .. ठि. मंगलदास मारकेट, नवी गली, मुंबई, नां. 2. Serving JinShasan to: 015913 gyanmandir@kobatirth.org जैन भास्करोदय प्रेसमां मनसुखला" irth.orgाले एच. पी. पारवाल माटे छाप्यु. धनजी स्ट्रीट, मुंबई, 3. 510 For Private and Personal Use Only