Book Title: Jain Dharm par Lokmat
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । क्रम संख्या काल नं. वीर सेवा मन्दिर दिल्ली । ओरसे इसमें लिखा है वह माचार पत्रोंके तथा देशनेता प्रगट की हैं 22,५१ . जैन सरावगी से ओतप्रेत ऐसी संभ्रान्त अथवा हिन्द....... ... ... ... ... ... ., re .सर्फ २५०० वर्ष पराना है, जैनधर्मकी प्राचीनता बावत जनताको सच्ची जानकारी हो, ५०० प्रतियां अपनी ओरसे छपवाकर अमूल्य वितरणकी हैं। आपको इस प्रशस्त भावनाके लिये खण्ड धन्यवाद इसके अलावा जिन बन्धुओंको जैनधर्मके प्रति * अन्यान्य और विद्वानोंकी शुभ संमतियां मिलें, या उनके कास हो व मुझको भेजनेकी कृपा करें ताकि अग्रिम संस्करण इससे भी अधिक सुन्दर बन सके । बस ! ता. १-३-४८ १ भाप सबका--" स्वतंत्र " परत । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनधर्म पर लोक मत । 10000008000 000 0 0 0 0 8 • TO CAT LOAD 2.00 मैं विश्वास के साथ यह बात कहूंगा कि महावीर स्वामीका नाम इस समय यदि किसी सिद्धान्तके लिये पूजा जाता है तो वह भहिसा है । हिंसा तत्वको यदि किसीने अधिक से अधिक विकसित किया है तो वे महावीर स्वामी थे । -स्व० महात्मा गांधी | जैनोंका अर्थ है संयम और अहिंसा । जहां अहिंसा है वहां द्वेषभाव नहीं रह सक्ता । दुनियोंको यह पाठ पढ़ानेकी जवाबदारी आज नहीं तो कल अहिंसात्मक संस्कृतिके ठेकेदार बननेवाले नैनियोको ही लेना पड़ेगी। - सरदार वल्लभभाई पटेल, गृहमंत्री- भारत सरकार । हिन्दु संस्कृति भारतीय संस्कृतिका एक अंश है, और जैन तथा बौद्ध यद्यपि पूर्णतया भारतीय हैं परन्तु हिन्दू नहीं हैं। मंत्री पं० जवाहरलालजी नेहरू (डिस्कवरी ऑफ इंडिया ) । श्री महावीरजी के उपदेशों पर अमल करने से ही वास्तविक शांति प्राप्ति होती है। इस महापुरुषके बताये हुवे पथका अनुसरण कर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] हम शांति काम कर सक्त हैं । आजका संघर्षशील और अशांत संसार तो हम सधु पुरुषके उपदेशोंपर ही चल कर सुख शांति प्राप्त कर सका है। -डा. राजेन्द्रप्रसाद मती भ० महावीरस्वामी जैनधर्मको पुनः प्रकाश लाये। वे २१ वें अवतार थे, इनके पहिले ऋषभ, नेमि, पार्श्व आदि नामके २३ मातार और हुवे हैं, जो कि जैनधर्मको प्रकाशमें लाये थे, इस प्रकार इन २३ मवतारोंके पहिले भी जैनधर्म था, इससे जैनधर्मकी प्राचीनता सिद्ध होती है। -स्व० लोकमान्य तिलक। महावीरका सन्देश हृदयमें भ्र तृभाव पैदा करता है। --हिज एक्सरसी सर कर हैदरी गवर्नर, आसाम । मानदतःकी बुनियाद पर स्थित हुई विश्वधर्म-भावना भडिमा पौर प्रेमके आधार द्वारा प्रबट करना यह " श्री महावीर " का देश्य समझाना है। -श्री जी० बी० मावलंकर प्रेस डे ट लेजे० एसेम्बली । अहिंसा और सर्वधर्म समभार जैनधर्म के मुख्य सिद्धान्त हैं। -~-मर जनक राय बहादुर ठा• अमरसिंह गृहमंत्री जयपुर । माजकरके बिगड़े हुवे वातावरणमें जबकि जातीय भावनायें अपना भयंकर रूप धारण कर देशको हिंसाकी ओर ले जा रही है तब 4. महावीस्की अहिंसा सर्व धर्मकी एकताका पाठ पढ़ाती है। ---श्री पं० देवीशंकरजी तिवारी Hari-anger Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नैन धर्मके भादशीका प्रचार करना यह मानव मात्रका उद्देश होना चाहिये। पर बी० टी० कृष्णचारी प्रधान मंत्री मम It is impossible to find a begining for Jainisur. Jainism thus appears as the earlist faith of India In, The short studies In Science of Comprative Religious. By GT_R FURLONG. The names Bishbha, named cte are welkoown in Vedic Literature. The members of Jain's order apo known as Nirgranths. In Histroical Gleaninge by lir Bimalcharan. जैनधर्म भारतका एक ऐमा प्राचीन धर्म है कि जिसकी उत्पति तथा इतिहासका पता लगाना एक बहुत ही दुर्लभ बात है। -मि० कामजी M. A. संशन जन । पाच नाथजो जैनधर्मके आदि पचारक नहीं थे. इसका प्रचार ऋषभदेवजीने किया था। -श्री बादकांतजी M. A. सबसे पहिले भारतमें ऋषभदेव नामक महर्षि उत्पन्न हुवे, थे. भद्रपरिणामी पहिले तीर्थकर थे। -श्री तुकाराम कृष्णजी शर्मा, B.A. P. H. D. M. R.A. S. Ele. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईर्षा द्वेषके कारण धर्मपचारकवाली विपत्तिके रहते हुवे जैनशास्त्र कभी फाजित न होकर सर्वत्र विजयी होता रहा है। अहंत परमेश्वरका वर्णन वेदोंमें पाया जाता है। -स्वामी विरुणक्षवडियर MA जैनधर्म स्वथा स्वतन्त्र है, मेरा विश्वास है कि वह किसीका अनुकरण नहीं है। --डॉ० हर्मन जेकोबी, M. A. P H. D. जैनियों के २२ वें तीर्थका ने गिनाथ ऐतिहासिक महापुरुष माने गये हैं। -~-डॉ० फुडार। अच्छी तरह प्रमाणित होचुका है कि जैनधर्म बौद्ध धर्मकी शाख नहीं है। ---अबुजाक्ष सरकार - A. B. L. जैन बौद्ध एक नहीं हैं हमेशासे भिन्न नले आये हैं। ___-- जा शिवपमादजी " मिना हिन्द" यह भी निर्विवाद सिद्ध हो चुका है कि बौद्धधर्मके संस्थापक गौतम बुद्ध के पहले जैनियों के २३ तीर्थकर और होचुके हैं। --इम्पीरियल गजेटियर ऑव इण्डिया P. 54 यह बात निश्चित है कि जैनमत बौद्धमतसे पुगना है । __---मिस्टर टी० डब्ल्यू० रईस डेविड । स्याद्वाद जैनधर्मका अभेद्य किला है, उसके अन्दर वादी प्रतिवादियों के मायामय गोले प्रवेश नहीं कर सक्ते । मुझे तो इस बातमें Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [.] किसी तरह का उन्न नहीं कि जैनधर्म वेदान्त आदि दर्शनोंसे पूर्वका है। –६० राममिश्रजी भाचार्य रामानुज सम्पदाय । The duration of the world is equally infinite and unbounded, no end. It has no begining and no end it is no eternity (3) Subs lunce in every where and always in winterrpted orewent und transformation now here is perfcet repose and regidity yet the infinite quantity of matter of externally Changing force roumains" constant. In. The Roddle of the diverse. ____by, m/r HECKAL. नामनाथ श्री कृ.) के भाई थे। ....श्र युत वाये । एक की नि: शतिः, पाणिपात्रो nि: । कदा ग... : भोपामि, यम निलनवा म नाई ग.म. + में गोरा, मवेषु न च में मा शन्तिमासिमिम, स्वामन्यव जिनो यथा ॥ -योगवशिष्ठ, गीता । ऐतिहासिक सामग्रीसे सिद्ध हुआ कि आजसे ५ हजार वर्ष पहिले भी जैनधर्मकी सत्ता थी। ---डा० प्राणनाथ ऐतिहासज्ञ । महाभारी प्रभाव बारे परम मुहृत् भगवान ऋषभदेवजी महाशील Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८] बारे सर कर्मसे विरक्त महामुनिनको भक्तिज्ञान वैगग्य लक्षणयुक्त परमईसनके धर्मकी शिक्षा करते भये। -भागवत् स्कन्ध ५५० ५। शुरदेवजी कहते हैं कि भगवानने अनेक अवतार धारण किये, पान्तु जैमा संमारके मनुष्य कर्म करते हैं वैसा किया। किन्तु ऋषमदेवजीने जगतकी मोभमागे दिवाया, और खुद मोक्ष गये। इसीलिये मैंने ऋषभदेवको नमस्कार किया है -भागस्त भाषाटीका पृ. ३७२ । बगान अपने को सही सिद्धांतों के पवर्तक बतलाते थे जो पूर्ववती उन २३ ग पियों अथवा तीर्थ मर्गकी १८३२ द्वारा जिनका इतिहास अधिकतर सा स्थानों के रूप में मिता है प्रकाशमें लाये थे। वे किसी गये मनके संस्थापक नहीं थे। ई-वी पूर्वको पहिलो शक्षा प्रथम तीर्थ का ऋषभदेवकी नपामना करने वाले मौजूद थे. जिनके पर्याप्त प्रमाण हैं : स्वयं गजुदमें तीर्थकरके पण गौजूद हैं । भागवत्पुराण भी इ. १ पुष्ट करता है : जैनयों का धामार्ग पर लेके अगणित युगोम चला भाया है। In Indian Fhilashphy P. 229. B. Dri-Sir Radha Kirshuman, : Voice Chansler Hindi univerCity BENARES. स्वस्त नम्तायों अरिष्ट नेमिः स्वस्तिों पहपतिर्दधातु ॥ यजु० ५० २५ मंत्र १९। नेमिराजा परियाति विज्ञान प्रां पुष्टि वर्षमानो अम्मै स्वाहा ।। यदु. १. ९ मंत्र २५ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषभ मा समानानां सयज्ञानानां विषा सहिम् । हन्तारं शत्रण कृषि, विराज गोपितं गवाम् ॥ ऋग्देव भ० ८ मंत्र ८ सत्र २४ । जैनधर्म विज्ञानके भाधार पर है, विज्ञानका उत्तरोत्तर विकास विज्ञानको जैन दर्शनके समीप लाता जारहा है। -डॉ० एल० टमी टोरी इटली । महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं थे, किन्तु उन्होंने उसका पुनरुद्धार किया है। वे संस्थापक वजाय सुधारक थे। पर्ट भग्न, ई लैन्ड । मैं आशा करता हूं कि वर्तमान मंER HIन महावीर के भादों पर चल कर आपसमें बंधुत्व और समानता का भाव स्थापित करेगा। _-डॉ० सातौड़ी मुकर्जी। माहिया शो बदनानिक भाषा है, जिस भाषामें म. महावीने मशीद दिया था। -डॉ० कालिदास नाग । म. महावीर द्वारा प्रचारित सत्य और अहिंमाके पालनसे हो संसार. संघर्ष और हिमासे अपनी सुरक्षा कर सकता है। -डॉ० श्यामापमाद मुकर्जी, अध्यक्ष हिन्दु महासभा । जैन संस्कृति मनुष्य संस्कृति है, जैन दर्शन मनुष्य दर्शन नहीं है। जिन देवता' नहीं थे, किन्तु मनुष्य थे। -प्रो० हरिसत्य भट्टाचार्य । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१०] जैनमत तबसे प्रचलित हुआ, जबसे संसारमें सृष्टिका भारम्भ हुआ। मुझे हमें किसी प्रकारकी भापत्ति नहीं है कि जैन धर्म वेदान्तादि दर्शनों से पूर्वका है। -डॉ. सतीशचन्द्र प्रिन्सिपल संस्कृत कोलेज, कलकला। आर्योंके भारत आगमनसे पूर्व भारतमें जिस द्रविड सभ्यताका पचार हो रहा था, वह वास्तधमें जैन सभ्यता ही थी। जैत समाजमें बब भी द्रविड संघ नामसे एक अलग धार्मिक आमाय मिलती है। -घर षण्मुखम् चेट्टी। __ यद्यपि वेदों में पशुबलिको स्वर्ग प्राप्तिका साधन बतलाया है, तथापि उस समयके जैन मुनियों के प्रभार से कुछ तो परिवर्तन हुभा ही। महात्मा तीर्थकरों के अहिंसा तत्वज्ञानका संसारमें बोलबाला हुमा। पनिषदोंमें जैनियों का प्रभाव मानः दृष्टिगोचर होता है। ___ ---हाईकोर्ट जस्टिस सर नियोगी । मुझे जैन तीर्थों की शिक्षा पर अतिशय भक्ति है। -नेपाल चन्द्रराय अधि० शांतिनिकेतन । अब तक मैं जैन धर्मको जितना जान सका हूं मेग हद विश्वास हो गया है कि विरोधी जन यदि जैन साहित्यका मनन कर लेगें तो विरोध काना छोड़ दें । -डा० गंगानाथ झा, एम. ए. डी. लिटो । वैदिक साहित्यमें ऋषभ नेमि आदि नाम प्रसिद्ध हैं, जैनधर्म अनुयायी निन्य कहे जाते थे। -डा० विमलभरण ला। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1११] जैन हिन्दुओंकी सन्तान नहीं हैं। --सर कुमारस्वामी चीफ जस्टिस ऑव् मद्रास हाईकोर्ट जैनधर्मका में प्राचीनतत्व स्वीकार करता हूं। -कोब्रुक । सम्राट अशोकने काश्मीर तक जैन धर्मका प्रचार किया था । - अबुलफजल ( अबका दरबारी स्त)। चन्द्रगुप्त म्वतः जैन था वह श्राणों ( जैन गुरुओं ) से उपदेश सुनता था। -मेगस्थनीज प्रोक इतिहासकार । वृषभदेव जैन धर्मके संस्थापक थे । -श्रीमद्भगत । हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक किंबहुना उससे भी आगे सीलोन तक, व चीस कलात नाअथवा उसमे भी भागे श्याम, ब्राह्मदेश, जात्रा आदि देशों में जैनधर्मी लोग फैले हुवे थे । - गोविन्द वासुदेव अ.प्टे श्री० ५.० इंदौर । अनर्ग हिन्दु धर्मसे सर्वथा स्वतंत्र है। -41. मैक्समूलर। जैनधर्म प्राचीन कालसे है। -~-जगद्गुरु शंकराचार्य । जैनधर्म इस देशमें ब्राह्मण धर्मके जन्म या उनके हिन्दू धर्म कहकानेके बहुत पहिलेसे प्रचलित था। -गनेकर जस्टिस ऑफ बोम्बे हाई कोर्ट । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१२] महावीरके सिद्धान्तमें बताये गये स्याद्वादको कितने ही लोग संशयवाद कहते हैं, इसे मैं नहीं मानता । स्याद्वाद शसंयबाद नहीं है, किन्तु वह एक दृष्टि बिन्दु हमको उपलब्ध करा देता है । विश्वका किस रीनिस भवलोकन काना चाहिये यह हमें सिखाता है। यह निश्चय है कि विविध दृष्टि बिन्दुओं द्वारा निरीक्षण किये बिना कोई भी वस्तु मम्पूर्ण स्वरूपमें भा नहीं सक्ती ! स्याद्वाद (जैनधर्म) पर आक्षा करना यह अनुचित है। -प्रो० आनंदशंकर बाबूभाई ध्रुव, भूतपूर्व प्रो० वाइस चांचलर हिन्दू विश्व विद्यालय काशी । मैं अपने देशवासियों को दिग्वाऊंगा कि कैसे उत्तम नियम और ऊंचे विचार जैनधर्म और जैन आचार्यों में हैं जैन साहित्य चौद्ध साहित्यसे काफी बढ़ चढ़ का है । ज्यौं दी जौं मैं जैनधर्म तथा उनके साहित्यको समझना हूं त्यों ही सों में अधिकाधिक पसन्द करता हूं। -डॉ. नान्स हर्टल, जर्मनी । मनुष्योंकी उन्ननिके लिये जैनधर्मका चारित्र बहुत ही लाम. कारी है। यह धर्म बहुत ही ठीक, स्वतंत्र, सादा, तथा मूल्यवान है। ब्रमणों के पचलित धर्मोसे नह एकदम ही भिन्न है। साथ ही साथ बौद्ध धर्मकी तरह नास्तिक भी नहीं है। -डॉ. ए. गिर नॉट, फ्रान्स । महावीरने रिमडिम नादमें भारतमें ऐसा सन्देश फैलाया कि Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३] धर्म यह केवल सामाजिक रूदि नहीं है, किन्तु पास्तिविक सत्य है। मोक्ष यह बाहिरी क्रियाकाण्ड पालनेसे प्राप्त ही होता । धर्म तथा मनुष्यमें कोई स्थायी भेद नहीं रह सकता । -स्व० कवि सम्राट् ग्वीन्द्रनाथ टैगोर । जिन्होंने मोह मायाको और मनको जीत लिया है ऐसे इनका खिताब "जिन" है, और ये तीर्थकर हैं . इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी। जो बात थी साफर थी। ये दुनियां के जबर्दस्त रिफार्मर जबर्दस्त उपकारी और बहे ऊंचे दर्जेके उपदेशक हो गुजरे हैं। यह इन्सानी व मजा यो बहुत दूर थे, इ. में वगग्य था, इनमें धर्मका कमाल था। __-श्रीयुत् शिवलाल जी मन, अनेक पत्रों के (साधु, तत्वदर्शी, मार्तण्ड, सन्तदश भाद पत्र) 41.2 , नधा अनेकों अन्यों के ( विचार कर द्रुम, कश्या धर्म आदि ग्रंथ . चला, नेर, अशोके (विष्णुपुराण आदि ) अनुवादक प्राचीन कालम दिायर ऋषि ऋषभदेव “ अहिंसा परमोधर्मः " यह शिक्षा देते थे। उनकी शिक्षाने देव मनुष्य सौर इतर प्राणियों के अनेक उपकार किये हैं। -डॉ. राजेन्द्रलाल मिश्र । चौदह मनुओं से पहिले ग्नु स्वयं के प्रपौत्र नाभिका पुत्र ऋषभदेव हुआ, जो दिगम्बर जैन सम्प्रदायका मादि प्रचारक था। इनके जन्मकालमें जगतकी बाल्यावस्था थी। ----भागवत स्कन्ध ५, म०२ सूत्र ६। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१४] जैन ऋषभके चारित्रसे जनता मंत्र मुग्ध भी। --महाभारत, मोक्षधर्म अध्याय । प्राचीनकालके भारतवर्षीय इतिहासमें जैनियोंने अपना नाम मजर अमर रखा है। -कर्नल टॉड साहेब । जैनधर्म, बौद्धधर्मसे अत्यन्त प्राचीन है। -मिटा एडवर्ड थामस | जैनधर्म प्राचीन है. और उसका विश्वास अहिमामें है। जलाचार्य, गवर्नर बंगाल प्रान्त । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . - - मूलबन्न कम्जदार का परियार जैन विजय सि. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ miu-marwa म भगवान वीर और उनका सन्देश । पं० "स्वतंत्र" जीने नवीन ही पद्धतिसे लिखा है, इसमें भ० महावीरका संक्षिप्त जीवन चरित्र देते हुवे उनके पवित्र उपदेश जैसे अहिंसा, सत्य, अपरिग्रहबाद, | कर्मवाद, स्याद्वाद, साम्यवाद, आदि विषयों पर बहुत ही | सुन्दर ढंगसे सरल भाषामें प्रतिपादन किया गया है। महावीर : यन्ति, पयर्पण, रक्षाबन्धन, द पावलि आदि शुभ पत्रों में, एवं विवाह शादी, अथवा अन्य समारोहकः । समय इस ट्रस्टको चोकबंद मंगाकर अंजन जनतामें | "जैनधर्मका सरल ढंगसे प्रसार कीजिये । मूल्य सिर्फ।)। । जन तक-कावे बन्दासजी कृत मूल .०८ आध्यात्मिक संबये, ५० स्वतन्त्री कृत शब्दार्थ व भावार्थ सहित तैयार है। मूल्य बारह अने। मी पता:मैंने नर दिन पुस्तकालय सुरत । marrierrammamyreem a Page #17 -------------------------------------------------------------------------- _