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THE FREE INDOLOGICAL
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श्री जिनेन्द्राय नमः न्यामत सिंह रचित जैन ग्रंथ माला-अंक ४
जैन भजन तरंगनी
१-स्तुति-प्रार्थना
श्रीमहाबीर भगवान की स्तुति ।
चाल-मेरे मौला चुनालो मदीने मुझे। तूने राहे सिदाकत दिखाया हमें ॥ है यह दुनिया अनादि बताया हमें ॥ टेक ॥
हो रहा है बेजुबानों पर जलम यहां रात दिन ।
बे खता गर्दन पे खंजर चल रहे हैं रात दिन ॥ ऐसे पापों से स्वामी बचाया हमें ॥ १ ॥
था गलत करताका हाऊकी तरह दिलमें खयाल ।
आपमे युक्तीसे कर खंडन दिया दिलसे निकाल । सच्ची बातों का हामी बनाया हमें ॥ २ ॥
झूट चोरी और दिलाजारी जिनाकारी दगा ।।
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जैन भजन तरंगनी। क्रोध जूवा मान लालच मांस मद्रा बेश्वा ॥ ऐसी बातों का त्याग बताया हमें ।। ३ ।।
आत्मा परमात्मा में कर्म ही का भेद है ।।।
काट दे गर कर्म तो कुछ खेद है ना भेद है। बनकर ईश्वर आप दिखाया हमें ॥ ४ ॥
सच्चिदानंद रूप हूं उसर कोई मुझमें नहीं। न्यायमत फिर कौनसा वस्फे खुदा मुझमें नहीं । तूने जल्या हकीकत दिखाया हमें ॥ ५ ॥
श्रीभगवान महावीर स्वामी की स्तुति ।
(चाल नाटक) यूए हर गुलमें परवरदिगार है। तेरी महिमा यह सबसे महान है-हा। जरे जर्रे का भी तुझको ज्ञान है—हां ॥ टेक ।। .
ले हितंकरका अवतार आया यहां । ..
तूने देखा कि है दुखमें सारा जहां। दुखी हर एक इन्सां हैवान है-हां ॥ १॥ .
तुने मुक्ती का मारग दिखाया हमें। .. . . ___सुख शान्ती का रस्ता बताया हमें । सच्चा तुझमें दया का निशान है-हां ॥ २ ॥
दूर हिंसा का व्यवहार तूने किया ॥ .... ' दयामय धर्म परचार तूने किया।
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जैन भजन तरंगती ।
तेरा ममनूं जमीन आसमान है -हां ॥ ३ ॥ न्यायमत ध्यान ईश्वर लगाया करो || प्रेम भक्ती से गुण उसके गाया करो || वह बिलाशक गुणों का निधान है - हां ॥ ४ ॥
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-:0:
३
श्रीभगवान महावीर स्वामी की स्तुति ।
चाल - मेरे मौला बुलानी मदीने मुझे ।
स्वामी सच्चा हितेषी बनादो हमें । करना पर उपकार सिखादो हमें ॥ टेक ॥ तू हितकर सर्व दर्शी दुष्करमका वेखंकन | सब चराचर पर दया का है तुही साएं फ़िगन || सातों तत्वों का रोज बतादो हमें ॥ १ ॥ घटा अज्ञान की चारों तरफ छाई हुई । फूट की गर्मी से कलियां प्रेम मुर्झाई हुई ।
प्याला प्रेम दयाका पिलादो हमें ॥ २ ॥ नाव खुदगर्जी के तूफां में है चकराने लगी । हा मती मल्लाह की भी अब तो वोहराने लगी || वनकर आप खिवय्या लंघा दो हमें ॥ ३ ॥
१ जड़ से उखाड़ने वाला ॥ २ साया करने वाला || ३ मद ।
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जैन भजन तरंगनी। बीरता दिलमें हो दुखियों की मदद के वास्ते । हो दयाका भाव भूकोंकी मदद के वास्ते ।
अर्जुन और करण सा बनादो हमें ॥४॥ है मोहब्बत सबमें सब नफरत हिकारत छोड़ दें। न्यायमत परचार विद्या हो जहालत छोड़ दें।
स्वामी यह गुरुमंत्र सिखादो हमें ।। ५ ।।
-:0:
चाल---कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारी में है। अय दयामय विश्व में मंगल करन तूही तो था।
सब चराचर का हितु और दुख हरण तूही तो था।१ थे जो करता के गलत मसलों के हामी हर तरफ ।।
उनका नय परमाण से दन्दाशिकन तूही तो था ॥२॥ यज्ञ में चलते थे खंजर बेजुबानों पर सदा।
सुनने वाला उनका फर्यादी सखुन तूही तो था ॥३॥ खून के बहते थे दरिया रात दिन इस हिन्द में ।
इस जुलम का और सितम का बेखकैन तूही तो था ४ रहम करता कोई उनपर कौन था किसकी मजाल ।
बस दया का रहमका साँएफिगन तूही तो था ।। ५॥ रागसे और देशसे न्यामत कोई खाली नहीं।
अय प्रभू इक बीतरागी पुर अमन तू ही तो था ६॥ १ मुंह तोड़ उत्तर देना ॥ २ करुणारूपी वचन ॥ ३ जड़ से उखाड़नेवाला || ४ साया करने वाला ॥५शान्तमय ।
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जैन भजन तरंंगनी ।
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चाल - तौहीद का डंका श्रालम में बजवा दिया कमलीवाले ने |
जिन धर्मका डंका आलम में बजवा दिया केवल ज्ञानी ने। करता के मसलेका खंडन कर दिया सार जिनवाणीने १ जब कुंडनपुर में आन लिया अवतार बीर सुखदानी ने | हिंसा की अग्नी शान्त करी महावीर की अमृतवाणीने २ मिथ्यात घटा पाखंड हटा माना हर मतके ज्ञानी ने !
मुख नीचाकर लिया स्यादवाद सुनकर कुरानी पूराणी नं ३ अंगीकार किया जिनमत सुन इन्द्रभूत अभिमानी ने |
शरण बीर ली पत्रके श्री सब वेदों के ज्ञानीने ॥ ४ ॥ सिक्का मान लिया जिनमतका चीन और जापानीने ।
तिब्बत स्याम अनाम और ब्रह्मा नेपाल हिन्दोस्तानीने ५ न्यामत कुफर हुवा गारत मूह ढक लिया कुतव अस्मानीने । शीस झुकाया जैन न्याय आगे पटमत शर्धानी ने |
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६
जिनेन्द्र भगवान की स्तुति |
जय जिनेन्द्र हित्कार नमस्ते । दुखहारी सुखकार नमस्ते || जय शिवमगनेतार नमस्ते । करम अचल भेतार नमस्ते १ पाप ताप हरतार नमस्ते । जग शान्ती कर्नार नमस्ते || विश्वतत्व ज्ञातार नमस्ते । लोकालोक निहार नमस्ते २
१ पीछे श्रीविद्यानन्द स्वामी नाम रक्सा ।
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जैन भजन तरंगनी। बिसिष्ट शिष्टाचार नमस्ते । शान्त सरूपाकार . नमस्ते ।। दया धरम परचार नमस्ते । विश्वहितंकर सार नमस्ते ३ ज्ञान अनंता धार नमस्ते । महिमा अपरमपार नमस्ते ।। भव्य भवोदधि तार नमस्ते । पतित जीव उद्धार नमस्ते ४ अष्ट करम संघार नमस्ते । शिवरमणी भरतार नमस्ते ।। तिर्थकर अवतार नमस्ते । तीन भवन में सार नमस्ते ५ मोह बिमोचनहार नमस्ते । विषय कषाय निवार नमस्ते ॥ पावन परम अबिकार नमस्ते। शिवसरूप शिवकार नमस्ते ६. महादान दातार नमस्ते । शर्मा मृत सितसार नमस्ते !! जय रन त्रय धार नमस्ते । पूरण ब्रह्म अविकार नमस्ते ७ निराकार साकार नमस्ते । एकानेक आधार नमस्ते ।। तीनलोक श्रृंगार नमस्ते ! भुक्ति मुक्ति दातार नमस्ते ८ सत्य धरम परचार नमस्ते । मिथ्यातिमर निवार नमस्ते ॥ न्यामत बारम्बार नमस्ते । कर जिन चरण मंझार नमस्ते९
(चाल) सोरठिया प्यारी बोलोजी भरने दे जल नीर । टुक अरज हमारी सुनियो जी स्वामीजी महाबीर | टेक !!
तुम हो प्रभू जग हितकारी ।
तुमहो सबके सुखकारी। तुम पर दुखहारी काटोजी करमन की जंजीर ॥ १॥
यह कर्म महा अन्याई । . हैं भवभव में दुखदाई।
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जैन गमन तरंगनी। नहीं जगमें कोई सहाईजी तुम आन बंधाओ धीर ।। २ ।। - अब शिव मारग दर्शा दो। - मोहे सीधे घाट लगादो। न्यामत का भरम गिटादोजी जो हटे करम की पीर ॥ ३ ॥
चाल-दोहा। शिव कारण सब सुख करन, सम्यक दर्शन रूप । विधन हरण मंगल करन, पावन शुद्ध सरूप ॥ १ ॥ सम्यक दर्शन ज्ञान युत, शुद्धातम सुखकार । जग भूपण दूषण रहित, सब जीवन हितकार ॥२॥ निजानन्द रस लीन नित्य, वीतराग भगवान । शिवमारग दर्शाय के, किया जगत कल्याण ॥३॥ भरम हरण निर्भय करन, जगनायक जगमान बंदूं जग चूडामणी, जिन पारश भगवान ॥ ४ ॥
चाल-( लायनी) बीतराग सर्वज्ञ हितंकर सब जग जीवन सुखकारी। ज्ञान प्रकाशक तिमर विनाशक तु दुखहारी हितकारी ॥१॥ तीन भवन में रतन अमोलक विद्या तुमने सिखलाई । चौदा विद्याकला वहत्तर जो दुनिया में सुखदाई ॥२॥ स्यादवाद और नय प्रमाण से मिध्या मतका नाश किया।
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जैन भजन तरंगनी। तत्वोंका उपदेश सुना जगमें सतका पर्काश किया ॥३॥ दूर हटाकर आलश को पुरुपास्थ करना बतलाया । मैत्रि प्रेम दया सबही जीवन पर करना सिखलाया ॥ ४ ॥ है यह जीव स्वतंत्र अनादि जब खुद को लख पाता है। करम काटकरके आतम से परमातम बन जाता है ॥ ५ ॥ है तुही सत हित उपदेशी सत्य सदा तेरी बाणी। न्यामत महिमा देख आपकी बन गया सम्यक श्रद्धानी ६।।
२-अध्यातम (वहदानियत )
(चाल) खुदाया कैसो मुसीवतों में यह ताज वाले पड़े हुए हैं। खुदा को ढूंडा कहीं कहीं पर खुदा को लेकिन कहीं न पाया। जो खूब देखा तो यार आखिर खुदा को हमने यहीं पे पाया| नमसजिदों में न मंदिरों में समंदरों में न कंदरों में ॥ . छुपा हुवा था हमारे अंदर हमी ने ढूंडा हमी ने पाया ।। २ ॥ अरब में कहते हैं रूह जिसको उसीको आतम यह हिंदवाले ॥ जिनेन्द्र ईश्वर है गोड वह ही फरक ज़रा भी कहीं न पाया३ ।। मतों के धोके में आके यूंही जगत में लड़लड़ के मर रहे हैं। भरमका परदा हटा के देखा तो एक नकशा सभी में पाया ४॥ है सच्चिदानन्द रूप जिसका है ज्ञान दर्शन संरूप जिसका। वही तो तू है बिचार न्यामत कि जिसने ढूंडा उसी ने पाया।
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जैन भजन तरंगनी ।
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चाल -सत्र पड़ जायगा एक दिन बुलबुले नाशाद का ।
आपही अपने में हमने अपनी सूरत देखली । इस अमूरत की जो सूरत है वह सूरत देखली ॥ १ ॥ अब तलक पर्दा रखा पर्दे में था पर्देनशीन ॥ अब नहीं पर्दा रहा पर्दे में सूरत देखली || २ || काट के दानों की माला मुद्दतों फेरा करी || छोड़ दी जब अपने गुणमाला की सूरत देखली ॥ ३ ॥ न्यायमत हरवक्त निज आनन्द रसमें लीन हूं ॥ कुछ नहीं दुनिया की लज्जत सबकी सूरत देखली ॥ ४ ॥
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३ - उपदेशी भजन |
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चाल-किसके खरामे नाज़ने में दिन हिना दिया ।
अय वैशजाती गौरकर किसने तुझे गिरा दिया || तेरी खराबियों ने है नीचा तुझे बना दिया ॥ १ ॥ हो वदरसूमका बुरा जिसने हमें तबाह किया || बुद गर्जियों ने देखले हैं खाक में मिला दिया ॥ २ ॥ बचे यतीम आपके मारे फिरें हैं दरवदर ।
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जैन भजन तरंगती ।
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घटती है कौम दिन व दिन है क्ल तेरा घटा दिया || ३ || औरों को देख किस तरह आगे कदम बढा रहे । विद्या में धन में धर्म में पीछे तुझे हटा दिया ॥ ४ ॥ तेरी तबाहियों का ही सुनते हैं जिक्र जावजा - तेरी ही गफलतों ने है बुजदिल तुझे बना दिया ॥ ५ ॥ गर उन्नति चाहे तो चल संसार की रफ्तार पे न्यामत ने रार्ज़ खोलकर सारा तुझे सुना दिया || ६ ||
ૐ
वाल--प्रभू भक्ती में प्रेम लगाये सना ॥
प्रेम भक्ती सभी को सिखाते चलो । सबकी सेवा में सरको झुकाते चलो ॥ टेक ॥ माने न माने कोई उनकी मर्जी । तुम अपनी तरफ से मनाते चलो || १ ||
कुरीति में दौलत लुटी जा रही है । बचा तुम सको तो बचाते चलो || २ ||
जुलम का सितम का बुरा है नतीजा | दया में कदम को बढाते चलो ॥ ३ ॥
है बिगड़ी हुई बैश जाती की हालत । जो तुमसे बने सो बनाते चलो || ४ || आपस के झगड़े घरों की लड़ाई |
१ कम हिम्मत २ मामला
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जैन भजन नरंगती। सुलह उनकी हो तो कराते चलो !! ५ ॥
की मदद कुछ यतीयों की भाई ॥ जो मरते हैं भूके बचाते चलो ॥६॥
कीना हसंद खुदगर्जी की आदत ॥ जहां तक बने सो घटाते चलो।। ७ ।।
सुनाकर घरम सबको धर्मी बनाओ। पापों से दामन वचाते चलो ॥ ८॥
झूटे खयालों को दिलले हटाओ। सत्य बातों के हामी बनाते चलो ॥९॥
न्यामत घर घर विद्या फैला दो। जहालत को जड़से मिटाते चलो ।। १०॥
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चाल-कौन करता है कि मैं मेरे गदाग में । ( नीचे लिखे ६ बल यथा शक्ति प्रत्येक माता का सामना करने चाहिये ) उन्नति चाहो तो वल विद्या का हामिल कीजिये। इसके आगे और वल निर्बल है सत्र सुन लीजिये १ ॥ रूप तप परिवार धन बल धर्म बल और मित्र बल । राज बल काया का बल नव बल निश्चय कीजिये ।। २ ।। होके निर्वल न्यायमत जग में कमी रहना नहीं। इसलिये कोई तो वल अपने में पैदा कीनिये ॥ ३॥ .
१ घर जलन।
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जैन भजन तरंगनी।
(चाल पंजायी ) अड़ गई अड़ गई हो हो जिंदड़ी अड़ गई नाल कृश्न के। फिर गई फिर गई हो हो, पछवा फिर गई देख जगत में ।।टेका।
देष करे भाई से भाई-बात बात में करे लड़ाई ।।
झूट कपट जाने चतुराई-~~-फूट अटरिया चढ़ गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में | फिर गई० ॥ १॥
कलयुग खोटा पहरा आया-क्रोध लोभ हृदय में छाया ।
हिंसा करम सभी मन भाया-नाव भमरिया पड़ गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में। फिर गई० ॥ २ ॥ विद्या हीन भए नर नारी-बन गए सारे पापाचारी।
कौन करे भाई रखवारी-खेत को चिड़ियां चुग गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में | फिर गई० ॥ ३ ॥ न्यामत दया धरम नहीं जाने-गुरू बचन चेला नहीं माने।
ना कोई पंडित ना कोई स्याने-भांग कूचे में पड़ गई हो। पछवा फिर गई देख जगत में । फिर गई० ॥ ४ ॥
( चाल ) सखी सावन बहार चाई झुलाए जिसका जी चाहे । दिला क्यों रंजोराम करता है क्यों मरने से डरता है। वही होता है बस जो कुछ करम इजहार करता है ॥ १ ॥ करम बलवान है जग में नहीं टारे से टलता है। यकीन करले बिन आई नहीं कोई भी मरता है ।। २ ॥
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जैन मसान तरंगती अटल है देख लीजे कायदा खानून करमों का। खता हरगिज़ नहीं देखो कजा का तीर करता है ।। ३ ।। न्यायमत छोड़ दे संशय करो शान तत्वों का।। रतन त्रिय धर्म को जानो यही उद्धार करता है ।। ४ ॥
१७ नोट-यह भजन अपने पुत्र राजकुमार के वास्ते सन् १९२२ में बनाया था और उसने स्कूल में सुनाया था।
(चाल ) पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं। डीअर क्लास फैलो सुनो मेग गुफ्तगू ।। . गर ठीक पास होने की है तुमको आयें ॥ १ ॥
मत कर खराब खेल में तिफलीकी आय को ।।
खोना न भूल ऐश में अःहदे शवावको ।। २ ।। तहसील इल्म करना यही अपना काम है ।। दिनको हमारे वास्ते सोना हराम है ॥ ३ ॥
सीधा व सादा आपका सारा लिबास हो।
शय कोई टीपटाप की हरगिज न पास हो ॥ ४ ॥ जबतक विद्यार्थी हो ब्रह्मचर्य को पालो ।। हरगिज़ न बुरी बात कोई मुंह से निकालो ॥ ५ ॥
कीजे लिहाज मास्टर आली जनाव का ॥
और याद सवक कीजिये अपनी किताब का ॥ ६ ॥ न्यामत है इम्तिहान खड़ा सरपे जान लो । हिम्मत से काम कीजिये मुश्किल आसान हो ॥ ७॥
रजबानी र यिचा पटना ३ चोला
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Šta na nái
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( चाल ) कौन करता चाहे गरमी से बरफ इकदम पिघलना छोड़ दे । चाहे पूरव से कभी सूरज निकलना छोड़ दे ॥ १ ॥ पानी सरदी छोड़ दे और आग गरमी छोड़ दे || संग सख्ती छोड़ दे और मोम नरमी छोड़ दे | २ | चाहे बुलबुल बाग में जाकर चहकना छोड़ दे । चाहे बिजली बादलों में आ चमकना छोड़ दे | ३ | पूर्व में शुकर सितारा टिमटिमाना छोड़ दे || चाहे उत्तर में घुरू अपना ठिकाना छोड़ दे ॥ १ ॥ न्यायमत वह है अवम जो प्रण निभाना छोड़ दे || मैं नहीं छोडूं धरम चाहे जमाना छोड़ दे | ५ |
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४ - जीवनधर नाटक संबंधी भजन ।
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नोट- जीवनधर चरित्र जैन शास्त्र के अनुसार धर्मवीर जीवनधर नाक तय्यार किया जा रहा है जो शीघ्र ही छपकर प्रकाशित होना यह भजन इसी नाटक के सम्बन्ध में हैं | अर्थात् रानी विजियासुन्दरी ( जीवनधर की माता ) ध मंत्री को राजा सत्यघर को राजनीति समझाना और काप्रागार (लकड़ हारा ) को राज देने से रोकना ॥
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रानी का राजा को समझाना ।
(बाल) खुदाया कैसी मुसीबतों में यह ताजवाले पड़े हुए हैं ।
प्रभू से हरदम यही दुआ है कि मुझको प्यारी स्वतंत्रता हो ।
१ प्रार्थना |
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जैन भवन नरंगनी ।
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बला से बन जाऊं वन में पक्षी परन्तु प्यारी स्वतंत्रता हो ||१|| जो जीव जलथल आकाश मंडल विहार करते स्वतंत्रता से । उनहीं को धन है कि जगमें जिनको सदा ही प्यारी स्वतंत्रताहो हैं उनको विकार धनकी खातिर तो खुद पराशन हो रहे हैं । नहीं हैं हम राज धनके खवाहां यही तमन्ना स्वतंत्रता हो ॥३॥ नहीं हैं परवाह अगर विधाता बनादे मछली पतंग कुछ भी ॥ बनादे घर चाहे जा नरक में मगर वहां भी स्वतंत्रता हो ||४|| सुखों को भोगूं प्रतन्त्र होकर नहीं है मंजूर मुझको राजा ॥ चाहे फिरूं वन में बनके जोगन मगर यह प्यारी स्वतंत्रता हो ५ हो आज खुद मुखतियार राजा हूं मैं भी तुमरी स्वतंत्र रानी । दिया जो ग़ैरों को राज तुमने तो कहिये कैसे स्वतंत्रता हो ६।।
२०
मंत्री का राजा को समझाना |
(चाल) कहाँ ले जाऊं दिन दोनों जहां में इसकी है।
महा मृरख कमीने नीच को गुणी जन समझते हो ॥ ग़ज़ब करते हो जो दुर्जन को तुम सज्जन समझते हो ॥ १ ॥ हलाहल को सुधारस नीम को चन्दन समझते हो । ढाक के फूल को गुल नेउ को सावन समझते हो || २ || कंस जालिम को तुम श्रीकृन नारायण समझते हो ! आग को नीर दुःशासन को तुम अर्जुन समझते हो ॥३॥ चोर को शाह छली को संत रजको धन समझते हो ।
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जैन भजन नरंगनी। गधे को अस्व और गीदड़ को पंचानन समझते हो ॥४॥ दुर्योधन को धरमसुत पीत को कंचन समझते हो। ऊंट को फील दशानन को तुम लछमन समझते हो ।॥ ५॥ आग को नीर समझा है रात को दिन समझते हो। काग को हंस नागन को हार चंदन समझते हो ॥६॥ न्यायमत जो हितेपी है उसे दुशमन समझते हो ॥ दगावाज और कमीने गैर को साजन समझते हो ॥ ७॥
२१ मंत्री का राजा को समझाना। (चाल) सखी सावन बहार आई झुनाए जिसका जी चाहे । बना देता है राजा देख वदजन लोभ सज्जन को । सखी धर्मात्मा पंडित मुनीजन को गुणीजन को। १ । राजका काम टेढा है बड़ा राजा समझ लीजे ।। लोभ कर देता है वदजन न देखे गुणको अवगुण को ॥२॥ लोभ ने कर दिया अंधा देख केकई सी रानी को ! निकाला उसने बनमें रामको सीता को लछमन को ३ ॥ जलाने के लिये भेजा था दुर्योधन ने मंडप में। युधिष्टर को नकुल सहदेव कुंती भीम अर्जुन को ॥ ४॥ कतल कर देता है लोभी पिता को और माता को। . बहन को भाई को नाती संगाती यार साजन को। ५। बिलाशक पाप का है बाप लालच न्यायमत देखो। मिटा देता है लोभी लोभ में तन मनको और धनको । ६।
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जैन भजन नरंगनी
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रानो विजियासुन्दरी का राजा को राज्य और प्रजा को रक्षा के लिये विषय भोगों को छोड़ने के लिये राजनीति का उपदेश करना।
(चाल ) मन पड़े जाएगा एक दिन बुजबुले नाशाद का। ग्रहन करलो राजनीति के जरा पैगाम को। छोड़ दो परजा की खातिर ऐश को आराम को । १ । है प्रजा के दुखमें दुख आराम में आगम है ।।। छोड़ दो देखो पती दुनिया के झुटे नाम को । २१ धार्मिक राजा है वह और धर्म का अवतार है। धर्म पर चलता है जो तजकर विपय को काम को। ३ । अपने सुख के कारण छोड़ो नहीं इस राज को ।। सोच तो लीजे: जरा इस काम के अंजामको ।। ४ ।।
रानी का राजा को समझाना। (घास ) युवायां फैली मुसीयनों में यह ताज याने पड़े हुए हैं। जगत में सुखका उपाय क्या है जरा तो सोचो विचार करके। किसी ने संख आज तक न पायाधम को दिलमे विसार करके १ विपों में नुकसान है सरासर जो फायदा है तो है धरम में ।
अगरनं मानो तो आजमालों भामका चश्मास्तार करके २॥ धर्मार्थ काम और मोक्ष चारा यही तो सुखके निशां बताए । इनही को पुरुषार्थ कह रहे हैं ऋपी मुनीजन पुकार करके ॥ सुखोंका करता यही धरम है दुखों का हरता यही धाम है।
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जैन मलन तरंगनी। धरम वही है कि फर्ज अपना अदा करे जो संवार करके ४ ॥ धरम है राजाका राज करना न्याय नीति से कार्य करना। गुणीजनों की समाज करना जो कुछ भी करना संभार करके ५ प्रजा को अपनी खुशहाल करना जो दुष्ट हो पायमाल करना। देश उन्नति का खयाल करना सुखोंको अपने निसार करके ६ मिले न राहत किसीको न्यामत धरम का मारग बिसार करके। विषों में निशदिन गुजार करके या राज अपना विगार करके ७
‘मंत्री का राजा को समझाना। ( चाल ) सनो सावन बहार आई झुलाए जिसका जी चाहे। राजको छोड़ करके सुख नहीं पाया किसी नर ने ।। न ऐसा करना बतलाया किसी मत के शास्तर ने । १। गँवाई हाथ से सीता कहीं मारे फिरे बनमें ।। राज को छोड़कर सुख क्या लिया श्रीरामचन्दर ने ॥२॥ पांच पांडव भी ना नोकर बने वैराट राजा-के॥ बनाई द्रोपदी बांदी राज तजकर युधिष्टर ने ॥ ३ ॥ सही लाखों मुसीवत राज तजकर देख लो राजा ॥ ... सत्ती दमयंती रानी और राजा नल बहादुर ने ॥ ४ ॥. पड़ा सागर चढ़ा शुली हुवा था भेट देवी की ॥ . . तजा जव राज पद श्रीपाल कोटीभट दिलावर ने ॥ ५॥ . १ न्योछावर करना।
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जैन भजन तरंगनी। रहा मंगी के घर मुरदे जलाए जा मसानों में ।। विके रोहतास तारा जब तजा पद हरीश्चन्दर ने।६।
५-ऐतिहासिक भजन।
२५ गोर-तती तिलकासुन्दरी का अपने पापी देवर पधुश्त को समझाना और
शोल की महिमा दिखाकर अपने शील को यचाना। घाल नाटक-पीहरवा उठी कलेजे पार । दोहा-शील हितेपी जीव का शील गुणों की खान ।
शील कभी नहीं खडिये जब लग घट में प्राण ।। परनारी पैनी छरी शहद लपेटी जान ।
सुखदाई मत जानियो छूवत हर ले प्राण । देवरिया कहो हमारो मान-हमारा मत कर तू अपमान । छोड़ो झगड़या-छांडो अँगुरिया। मैं हूँ दुधारी कटार । देवरिया कह्यो हमारो मान १ दोहा-और जो तू माने नहीं हा पापी हा नीच ।
प्राण तजूं मैं अपने पड़े समन्दर वीच । . मैं हूँ सती शिरोमणी जैन धरम मैं लीन ।
तू सूनी मत जानियो अरे अधम अवलीन |
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जैन भनन तरंगती। देवरिया आदेंगे शासन बीर-हमारी आन बँधाव धीर । देखो देवरिया-छोड़ो झगड़िया । राखूगी शील सँभार ॥ देवरिया कह्या हमारो मान ॥ २ ॥
नोट-अकलवर सन् १९२४ में देहली के करीब दरयाय जमना में सैलाब (पानी की रो)आ गया था जिससे वहुत मे गाँव. प्रादमी व गाय भैन आदि वह गए थे और लोग बड़ो तकलीफ में थे। हम भी स्वयं इस दुखमई दुर्घटना को देखने के लिये देहली गए थे। वहत से मनुप्य और पर जमना में बहते जा रहे थे। जिनमें से कुछ मनुष्य व पशु सेवासमिती के वीरों ने रस्से आदि डाल कर निकाले थे-और देहली के शाही किले के सामने पड़े थे ॥ देहली वालों ने उनके खाने पीने का प्रवन्ध किया हुआ था। उन मनुष्यों पर जो दुख था और जो कुछ वह जुबाने हाल से फरयाद कर रहे थे उसका फोटो इस भजन में संव कर दिखाया गया है।
चाल-मेरे मौला घुलालो मदीने मुझे। . कोई जमना किनारे लगा दो हमें। ऐसी मोजेना से बचा दो हो । टेक! . हाय क्या जमना में अवके जोश है सैलाब का ।
क्या टिहर्सल है यह परलय की राजन गिवि का । कोई इतना तो ठीक बता दो हमें। १ ।
बल्लियों पानी चढ़ा पानी में सब कुछ बह गया।
अब तो पुल जमना का भी फुट एक बाकी रह गया। ऐसी आफ़त से कोई बचा दो हमें २॥ । कांपता है जी ज़रा इनकी हकीकत देखकर ।
है हरइक मगरम दुखियों की मुसीबत देखकर । कीजे क्या तदबीर बता दो हमें ३ ॥
१ प्रलय की लहर ॥२पानी की तेज धारा ॥ ३ आज़माएशी काम ॥ ४ भंवर ५ हाल दरंजीदा।
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जैन भजन तरंग। बस्तियां रस्ते में आई सबकी सब गाव हैं।
क्या बशर हैवान सब तूफान में बेताब हैं । कोई कश्ति लगाकर लंघा दो हमें ।। ४ ।। .. पुल शिकसता हो गए और वंद पुश्ते टूटकर ।
मिट गए मटिया खिलौनों की तरह सब फूटकर ।। कोई बल्ली लगाकर बचा दो हमें ॥ ५॥
देखलो मँझधार में बेहोश इन्सां जा रहे । कोई जिन्दा कोई मुर्दा सब परीशां जा रहे । कोई थाम सके तो थमादो हमें ॥ ६ ॥
भेड़ बकरी का पता किसको भला इस आन में ।
गाएँ भैंसों का ठिकाना है नहीं तूफान में । कोई आ करके धीर बँधादो हमें ७॥
वह गई औरत कही बच्चे कहीं और खुद कहीं।
माल धन सब वह गया पानी तले घर की जमी। कोई विछड़ों को लाके मिला दो हमें ॥८॥
मुर्दे हिम्मत हैं खड़े खतरे में जां को डालकर ।
दे रहे हैं झोलियां दरिया में रस्से डालकर ।। न्यामत ऐसों के दरश दिखा दो हमें ॥ ९॥
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१ पानी में इस गई २ मनुष्य ३ पशु ४ पानी का रेला ५ हट गप ६मनुर ७ ये धन समय हस्यं १० पृथ्यो । वहादुर तारा करना।
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जन भजन तरंगनी।
२७ नोट-सरकार पृटिश की तारीख १९ नोम्बर सन् १९१८ को अर्मन पर
विजय हुई-जिसकी खुशी में हिसार में मिस्टर उसमा लतीफी माय डिपटी कमिश्नर बहादुर ने जस्ता किया-इस जल्से में यह मुबारक पादी सुनाई गई थी।
चाल-अदमसे जानिव हस्ती तलाशे यार में पाए ॥ खुशी का आज यह जल्सा मुबारक हो मुबारक हो । हिन्द इंग्लैंडको जापानको सवको मुबारक हो १ ॥ हुई है जीत बृटिशकी मुबारक हो मुबारक हो। फते है जार्ज पंजम की मुबारक हो सुबारक हो २ ॥ कई वर्षों से आफत में पड़े थे एशिया योरप । आज सुखकी हवा आई मुबारक हो मुबारक हो ३ ॥ मुबारक आज का दिन है खुशी क्योंकर न हो. हम । तार नुसंरत का आया है मुबारक हो मुबारक हो ४ ।। खुशी का बज रहा है आज नकारा ज़माने में । गली कूचे में घर घर में मुबारक हो मुबारक हो ५ ।। मिस्टर उल्मा लतीफी भी शहर में कहते जाते हैं। हुई है जीत बृटिश की मुबारक हो मुबारक हो ६ ।। चढ़ा है औज पर बेशक सितारा जार्ज पंजम का। हुवे मगलूब सब दुशमन मुबारक हो मुबारक हो ७ ।। सुलह नामे पे भी चुपके से सिगनेचर किये सबने । आस्टरिया ने जर्मन और टी ने मुबारक हो ८॥ १ जीत
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जैन भजन तरंगनी ।
करम बलवान दुनिया में किसी की कुछ नहीं चलती । उर्दू सब हो गए क़ायल मुबारक हो मुबारक हो ९ ॥ जुलम से सीनाजोरी से कोई चाहे जो कुछ करले । विजय आखिर धरम की है मुबारक हो मुबारक हो १० ॥ यूनियन जैक ने अपना किया है आज सर ऊंचा । बंधा सेहरा विजय का जार्ज पंजुम के मुबारक हो ११ ॥ प्रेजीडेंट विलसन सा सुलहकुन हो तो ऐसा हो । मिटा दिया खदशा एकदम मुबारक हो मुबारक हो १२ ॥ हिन्द के भी जवां मरदों ने ऐसे हाथ दिखलाए । किया लाचार जर्मन को मुबारक हो मुबारक हो १३ ॥ हिन्द के जाट सिख मुस्लिम गए मैदान में जिस दम । उसी दम हो गई नुसरत मुबारक हो मुबारक हो । १४ बदी का और नेकी का नतीजा देखिये न्यामत | विजय आखिर हुई अपनी मुबारक हो मुबारक हो १५.
२८
यह भजन सुपुत्र राजकुमार ने बनाया था ||
चाल - कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में हूं ॥
एक दिन एक राजवंशी था गया बहरे शिकार । प्यास से लाचार हो करने लगा ऐसे विचार १ | क्या करूं पानी कहीं मुझको नजर आता नहीं | प्यास मुझको लग रही वोला जरा जाता नहीं २ ॥
१ वैरो २ जीत
२३
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जैन भजन तरंगनी |
૪
कोई दरिया नहर कुवां भी नजर आता नहीं | गर करूं तो क्या करूं पानी कहीं पाता नहीं ॥ ३ ॥ जां लबों पर आ रही है शहर से भी दूर हूं || प्यास से लाचार हूं चलने से चकनाचूर हूं ॥ १ ॥ हो गया जब इस तरह लाचार पानी के लिये | तब पढ़ा नवकार मन्तर उसने पानी के लिये ॥ ५ ॥ बस उसी दम आ गया इक देवता उसके लिये | दे गया उसको उसी दम पानी पीने के लिये ॥ ६ ॥ याद रखो हर घड़ी हर दम सदा नवकार को । हो गया है इसका निश्चय आज राजकुमार को ॥ ७ ॥
२९
यह भजन प्रियं सूरजभान जैन ( लाला जुगल किशोर जैन रईस हिसार के पौत्र और लाला कुडुमल के पुत्र ) के व्याह के समय बनाया था जो उसने अपनी, सुसराल (नजीबाबाद ) में पढ़ा था - वरात जेठ के महीने में लाला विमलप्रसाद जैन रईस नजीवाद के यहां गई थी यह भजन ता० २८ अप्रिल सन् १९२३ को घुड़चरी के समय सूरजभान की प्रार्थना पर बनाया गया था ।
(चाल) सत्र पढ़ जाएगा एक दिन चुलबुले नाशाद का ।
है मुबारक आज का दिन क्या बहार आई हुई || हर तरफ़ है शादमानी की घटा छाई हुई || १ || क्यों नजीबाबाद नज़रों में हुवा जन्नत निशां ॥ हां बिमलप्रसाद के घर है बरात आई हुई || २ | आज से इसको अजीबाबाद कहना चाहिये ||
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सेन भजन तरंगनी देखलो है जेठ में सावन बहार आई हुई ॥ ३ ॥ -देखकर महमां नवाजी और महोब्बत आपकी । सबके सब ममनून हैं दिलमें खुशी छाई हुई ॥ ४ ॥ मुद्दतों से थी तमन्ना सबको बस जिस बात की। धन्य है जो आज वह उम्मीद बर आई हुई ।। ५ ।। अब विदा होते हैं हम रखना इनायत की नजर । मुआफ करना गर इधर से कोई कोताई हुई ।। ६ ॥ फिर कभी भी इस तरह आकर मिलेंगे आप से ॥
आपकी जानिब से गर और इजत अफजाई हुई ।। ७ ।। न्यायमत धनबाद श्री जिनराज का जिन धर्म का ।। है जो शादी की खुशी दोनों तरफ छाई हुई ।। ८ ॥
यह भजन डाकटर नारायणसिंह साक्ष्य की प्रेरगा से बनाया था। इसमें श्रीरामचन्द्रजी महागज के गुणों का वर्णन है । डाकटर माय गड़े मजन पुरुष हैं और मेरे परम मित्र है।
(चाल ) फैला हुवा है सारं दुनिया में शान नेरा । है रामनाम प्यारा प्यारा जमाल तेरा। आखों में छा रहा है सबके जलाल तेरा। बलिहारी तेरी शौकत बलिहारी तेरी हिम्मत । हर एक काम जगमें है वे मिशाल तेरा ॥ २॥ ऋषियों का दुख हटाया क्षत्री धरम दिखाया। दिलमें समा रहा है हरदम खयाल तेरा ॥ ३॥
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२६
जैन भजन तरंगनी। मनमोहनी सी सूरत पुरनर तेरी मूरत । भुजबल असीम तेरा मस्तक विशाल तेरा ॥ ४ ॥ लछमन के हो विरादर गम्भीरता के सागर । दुनिया में नहीं कोई दूजा मिसाल तेरा ॥ ५॥ लीलाका तेरी मेला मशहूर रामलीला | होता है हर जगह पर हर एक साल तेरा ॥ ६॥ इस दास नरायण के दिल में है याद तेरी । दिन रात ध्यान तेरा हरदम खयाल तेरा ॥ ७॥ यूं धर्म युद्ध करके कर्मों को फेर हर के। जा मोक्ष में विराजे यह है कमाल तेरा ॥८॥
नोट-जर्मन पर शहनशाह जार्ज पंजस की विजय होने पर कन्या पाठशाला
हिसार में जलसा हुवा था । उस समय यह मजन सुपुत्री कलावतो देवी के लिये बनाया था और उसने यह भजन जरसे में पढ़कर
सुनाया था। चाल-कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में है। जार्ज पंचम की विजय की है सदा आने लगी। ' सुलह की चारों तरफ से अब निदा आने लगी ॥ १ ॥ जीत विर्टिश की हुई आनन्द जग में छा गया ॥ . जैसे आ सावन की लोरें बूंद बरसाने लंगी ॥२॥ यूनियन ऊंचा हुआ है यानी बिर्टिश की ध्वजा ॥. : हर शहर पर्वत समंदर पार लहराने लगी ॥ ३॥
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जैन भजन तरंगनी।
. . २७ वर्ष गुजरे पांच पूरे जर्मनी के जंग में ॥ . आज रण पूरा हुवा ठंडी हवा आने लगी ॥ ४ ॥ मानं जर्मन का घटा इकबाल बिर्टिश का बढ़ा ।। हिन्द में भी बुलबुले शुभ के गीत गाने लगी ।। ५ ।। वाह हैं कैसे बहादुर सारे हरयाने के जाट ! डर गया जर्मन जो जाटों की फौज जाने लगी ।। ६॥ आज कन्या पाठशाला में खुशी क्योंकर न हों। न्यायमत जब हर तरफ सुखकी घटा छाने लगी ।। ७॥
६-स्त्रियों के उपयोगी भजन ।
-:
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३२
मोट-ता० २१ दिसम्बर सन् १९२३ को यह भजन सुपुत्री सितारा देवी
के लिये उसके इम्तिहान के समय बनाया था।
(चाल) हम भी अपने राम की उल्फत में सीता यनगर। वहनो मूरखताई से तुम आप दुखियारों में हो। वनके विद्या हीन और मत हीन नाकारों में हो ॥ १ ॥ हो चुकी सीता दरोपद केकई सी हिंद में।। है बड़ा अफसोस तुम अज्ञान लाचारों में हो ॥ २ ॥ चर्णरज तुमको पुकारें पाओं की जूती कहें। वस अविद्या से सखी तुम सब शरमसारों में हो ॥३॥
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२८ . . . जैन भन्नन तरंगनी। लक्षमी देवी सती तुमको कहें विद्या पढो । तुम जगत की लाज हो और घर के शृंगारों में हो ॥ ४ ॥ है यही उपदेश न्यामत का जरा वहनों सुनो। रात दिन विद्या पढो पढ करके होशियारों में हो ॥ ५ ॥
- यह भजन सुपुत्री कलावती के कहने पर हिसार में बनाया गया था और उसने तीजों के दिन अपनी सहेलियों के साथ मिलकर गाया था।
चाल--अम्मा मुझे दिल्ली को दोपी मंगा दे। अम्मा मुझे रेशम का झूला गिरा दे। झूला गिरा दे हंडोला गड़ा दे। . मोतिया चबेली के हार बनवा दे ।। टेक ।। टीका लगादे मेहंदी रचादे ।। हाथों में नई नई चुरियां पहनादे ॥१॥ रेशम की साड़ी धानी रंगादे॥ कसंबी सुनेहरी मलागीरी रंगादे ।।२।। लाल आसमानी काफूरी रंगादे॥ बसन्ती गुलाबी गुलेनारी रंगादे.॥३॥ गोटालगादे किनारी लगादे ॥ ओरे धोरे सल्मेसितारे टकादे ॥ ४॥ . रेशमका फीता बेल लगवादे ॥ बिचं चांदी सोने तार खचवादे ॥ ५॥ ..
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जैन भजन तरंगती। खाने को फल फूल घेवर मंगादे !! हारी पूड़े मीठे सलाने बनादे॥ ६ ॥ मंदिरमें सब मिलके पूजा करेंगी ।। पूजा की सारी सामग्री मंगादे॥७॥ भय्या को माता जी सोनीपत भेजदे । बीवी केवली को बुलाद मिलाद॥ ८॥ दिल्ली में जैसा शहादरेका मेला ॥ यहां भी वैसा तीजका मेला करादे ॥९॥ भाई भतीजों को लेकर के झूलू ।। लामेरी गोदी में सारे विठादे ॥१०॥ छोटी छोटी बुदियां ठंडी पवनिया॥ हारी वारा चम्पा में झूला गिरादे ॥१९॥ झूलेंगे गाएंगे मिल करके सारी॥ भजनों की नई नई पुस्तक मंगादे ॥ १२ ॥ कन्या सुशिक्षित हों विद्याकी वृद्धि । मुझे लो ऐसे तीजों के गीत वनवादे ।। २३ ।। विद्या पढ़ेगी सुशीला बनेंगी। हमारे लिये कन्या पाठशाला खुलादे ।। १४ ।। न्यामत वही है चतुर और सुशीला ॥ धर्म में जो पढ़करके जीया लगादे ।। १५ ।।
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जैन भजन तरंगनी।
• यह भजन सुपुत्री सितारा देवी के लिये तारीख १७ जनवरी सन् १२४ को धनाया था जब कि एक मेम साहियाने गर्लस्कूल हिसार में स्वास्थ्य रक्षार लेकचर दिया था।
___ चाल-फैला हुवाहै सारे दुनिया में ज्ञान तेरा ॥ अय मेरी प्यारी बहनो बिगड़ी दशा संवारो॥ अपनी सेहत का हरदम दिल में खयाल धारो ॥१॥ मरते हैं लाखों बच्चे माता की ग्रफलतों से ।। गफलत की नींद त्यागो आखें जरा उघागे ॥२॥ दांतों को साफ रक्खो नाखून साफ रक्खो बसतर भी साफ रक्खो नित जल से तन पखारो ॥ ३ ॥ नीयत समय पे खावो नीयत समय पे सोवो॥ सूरज उदय से पहले उठ नींद को निवारो॥ ४॥ सब शास्तर किताबें बतला रहे हैं हमको अपनी सेहत की खातिर धन माल सब निसारो॥५॥ विद्या से देवियों में सतियों में नाम होगा। बन करके द्रोपदी सी घर बार को संभारो॥६॥ रामायण और यादव कुल का पुराण पढकर ।। .. सीता के रुकमणी के चारित्र को विचारो ।। ७॥ । जेवर का बहनो हरगिज़ कुछ न खयाल करना। विद्या हमारा भूषण विद्या से तन श्रृंगारो ॥ ८॥ है एक तंदुरुस्ती न्यामत हजार जानो। . रक्षा का इसके हरदम.दिल में खयाल धारो ॥९॥
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जैन गजन तरंगनी।
३५ ध्याकरगा हिन्दी भाषाके माठ कारकों को दिनाने पाजे दोदे। यह दोहे सुपुत्री सितारा देवी के लिये ता० २९ दिसम्बर सन् १९२३ को पार थे जय कि पांचवीं कक्षा की परीक्षा होने वाली थी।
(दोहा) आज बनाया हाथसे मैने सुंदर हार। तेरे कारण हे सखी देखो आंख पसार ॥ १ ॥ लाई अपने बारा से चुन चुन कली संवार ॥ लातेरे गल में डार, मेरा सुंदर हार ।। २॥ .
दिसम्बर सन् १९२३ में यह भजन सुपुत्री मिनारा देशी के लिये पनाया शा--कन्या पाठशाला हिसार में दिल्ली दर्शर की जुटी हुई थी और इस समय यह भजन सय लडकियों ने पढ़कर सुनाया था।
चाल-- आओ बहनों खेलें कूदें मौका खेल रचाने का ॥ दिल्ली में दरगार हुवा था दिन है खुशी मनाने का ॥ १ ॥ सारी मिलकर गाएं वर्धाई समय है गीत सुनाने का। फेर मदरसे में छुट्टी हो हुकम मिले घर जाने का ॥ २ ॥ आहा आहा, ओहो ओहा, हुररा है, फिर हरग है ॥ मौका माज मिला है न्यामत खासा शोर मचाने का ३||
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जैन भजन तरंगनी ।
नोट--सुपुत्री सितारा देवी के लिये यह भजन ता० २५ दिसम्बर सन १९२३ __ को यनाया था इसमें चखें के सय पुर्जी का हाल दिखलाया गया है और
छोटे बच्चों के लिये बड़ा उपयोगों है ।
नोट--भारत की पुरानी कलों और उनके पुजों के सही नाम याद करने के
लिये इस प्रकार के भजन वशी को जबर याद कराने चाहियेविद्वानों को चाहिये कि अन्य पुरानी कन्नी के ( चक्की-ची भई लोढने की कोल्ह आदि ) भी इस प्रकार के भजन पनाकर यञ्चों को याद कराएँ।
चल मेरा चर्खा चरखचूंढीला ढाला वैठा क्यूं ॥ १ ॥ तीनों खूटे अगली सीम-खड़े युधिष्टर अर्जुन भीम ||२|| पिछले खूटे अपनी धाम-जैसे गिरधारी बलराम ॥३॥ . चर्खे के देखो दो चाक-पंखड़ी नारंगी की फांक ॥४॥ भवन लगा चाकों के बीच-फिरकी दो खूटों के बीच ५॥ जंदनी का पूरा है जाल-ला तेरे गलमें डारूं माल ६ ॥ देखो चरमुख दोनों नार-करमें तकला लिया संभार ७॥ नली दमखड़ा दीना डाल-तकले का बल दिया निकाल ८ चर्खा बैठा पटड़ी साज-जं बैठे दिल्ली का राज । ९ । बेलन को दूं चक्कर चार-पूनी में से निकले तार । १०१ तार चढ़े तकले पर सार-कुकड़ी हो जावे तय्यार । ११ । ऐसा. कातूं सुंदर सूत-देख सब मेरा करतूत.। १२ । वाहरे चर्खा तेरी चाल-भारत को कर दिया निहाल ।१३। न्यामत चखा है हितकार-करता है सबका उपकार । १४ ।
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जैन भजन तरंगनी
३८
चाल - माधो घनश्याम को मैं ढूंढन चली री ।
३३.
अपने धरम की मैं विद्या पढूंगी || विद्या पढूंगी सुशिक्षित वनूंगी ॥ टेक ॥
क्या धन दौलत वस्त्र भूषण और क्या ऊंचे मंदिर || विद्या हीन पशु सम नारी चाहे वनी हो सुंदर || मैंतो -विद्या का ही शृंगार करूंगी ॥ १ ॥
विद्या पढ़कर पंडित वनकर धर्म उपदेश सुनाऊं ॥ जो मेरी बहने मूरख हैं सबको सुधी बनाऊं । न्यामत-विद्या का जा परचार करूंगी || २ |
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चाल सी सावन यहार साई भुतार जिसका जी चाहे ।
घड़ी मेरी सखी है जो समय मुझको बताती हैं । वक्त पर पहोंच जाने की मुझे शिक्षा सुनाती है ॥ १ ॥ खेल में कूदमें में भूल जाती हूं जो काम अपना । तो टिक टिक शब्द करके यह घड़ी घंटी बजाती है ॥ २ ॥ वक्त पर काम करना सीख लो पर्माद को त्यागो । कहे न्यामत सुना बहनो घड़ी तुमको जिताती हैं ॥ ३ ॥
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जैन भजन तरंगनी।
चाल हो वहनो चर्खे पे दारोमदार है। हो बहनो विद्या बड़ी हितकार है। ...... हां विद्या करती बड़ा उपकार है ॥ १॥ .. विद्या बिना गहना भी सब बेकार है। हां विद्या सांचा हमारा श्रृंगार है । २।। बहनो बिद्या सन दुख निवारणहार है । हां विद्या सुख मंगल कार है ॥ ३ ॥ हो बहनो विद्या पे दारोमदार है। हां विद्या सीखो तो बेड़ा पार है।४। बहनो जग में विद्या ही धनसार है। .. हां याको लेवे ना चोर चकार है । ५। बहनो विद्या उन्नति का आधार है। हां विग बिना दुखी संसार है।६। न्यामत विद्या-से. होता सत्कार है ।। हां विद्या भवदधि तारनहार है । ७।
इति जैन भजन तरंगनी समाप्तम्
. ... शुभम्. .
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पवित्र दंत मंजन। १-यह पवित्र दंत मंजन मैने हिसार के श्रीमान पंडित
श्रीदत्तजी वैद्य से अपने लिये बनवाया था-क्योंकि मेरे दांतों में हर समय चीस रहती थी और कभी कभी मसूढ़े फूल जाते थे-सो इसके लगाने से अब मुझे बिल्कुल आराम है और सदैव प्रातःकाल इस
पवित्र मंजन का नियम पूर्वक इस्तेमाल करता रहता हूं २-यह पवित्र दंत मंजन दांतों की हर प्रकार की बीमारियों को फायदा करता है-प्रत्येक स्त्री पुरुप
और आठ वर्ष के बच्चे को प्रातःकाल नहाते समय अपने दांतों को इस पवित्र दंत मंजन से साफ करने चाहियें। जिससे सदैव दांत साफ और मजबूत रहते
हैं और मुंह की रखवत व बदबू भी दूर हो जाती हैं। ३--यह पवित्र दंत मंजन जंगल की जड़ी बूटियों से
बनाया गया है इसमें किसी प्रकार की खड़िया आदि मिट्टी भी नहीं है विलायंती देत मंजन आदि
जो प्रायः बाजारों में तड़क मड़क की शीशियों में बिकता देखते हैं जो हमारे लिये महा अशुद्ध और हानिकारक है-प्रायः उन सब दंत मंजनों से यह पवित्र दंत मंजन शुद्ध है फायदा देनेवाला है और
स्वादिष्ट है। ४---इस पवित्र दंत मंजन को जो बारीक पिसा हुआ
है हाथ की उंगली (चुरुश से भी इस्तेमाल कर सकते
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हैं) से करें। जो भाई नीम व कीकर आदि की दांतन करते हैं वह दांतन के साथ इस पवित्र दंत मंजन
को लगावें ।। नोट-यह पवित्र दन्त मंजन सब भाइयों को एक दफा मंगाकर आज़माना
चाहिये क्योंकि दाँतों से ही मनुष्य की जिंदगी है-इसका मूल्य भी प्रायः लागत मात्र प्रति पेकेट ॥) है जो दो महीने के लिये एक पैकेट काफी है।
हितैषी-रघुबीरसिंह जैन हिसार स्वादिष्ट पाचक चरण । १---यह चूर्ण भी खाने में बड़ा मजेदार है-खाना खाने
के बाद जरा सा खालो तो सब खाना हजम हो जाता है-जिसको बदहज़मी रहती हो-पेट में उफारा रहता हो और खट्टी डकारें आती हों जरा सा खाने से सब बीमारी दूर हो जाती हैं और मुंह का जायका
बहुत अच्छा हो जाता है। २-यह चूरण भी एक वैद्यजी से तय्यार कराया गया है जिसमें सब जंगल की जड़ी बूटी आदि साफ करके
डाली गई हैं-मुल्य प्रायः लागत मात्र प्रति पेकेट, है नोट-उपरोक पवित्र दन्त मंजन व स्वादिष्ट पाचक चूरण वी० पी० द्वारा रवाना किये जाते हैं डाक खर्च सब खरीदार के जिम्मे होगा।
मंगाने का पताः-. . रघुबीरसिंह राजकुमार जैन. Distt. HISSAR ( Punjab) . मु० हिसार (पंजाब)
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________________ नोटिस मित्र लिग्विन मापा छंद यद चरित्र प्राचीन जैन परिदतीने रची जिनको प्रय संशोधन करके मोरे कागज पर.मोटे मन में सर्व साधारण पिनार्थ खवायामय भायां को पढ़कर धर्म HTA उठाना चाहिये-यह दोनो जन शार स्रो पुरुषों के लिए बड़े उपयोगी हैं, उनकी कविता प्राचीन और सुन्दर है / / दोनो शाल जैन मंदिगें में पढ़ने योग्य: (1) भविसदत्त चरित्र:-यह जैन शास्त्र श्रीमान पंडित बनवारी नाराजी नने सम्बत् 1666 में कविना मप चौताई आदि भाषा में बनाया श्रा जिसको कई प्रतियों द्वारा मिलान करके शुद्धता पूर्वक प्रयाया मोर कठिन शब्दोका मर्थ मी प्रत्येक तुके के नीचे लिया गया है इसमें महाराज भविसदत्त मौर सती कमली व तिलकानुन्दरी का पवित्र चारित्र भले प्रकार दर्शाया गया है। मूल्य) (२)धन कुमार चरित्र:-यह जैन शाम्य श्रीमान् पटिन भावान चन्द जी जैन ने कविता रूप चौपाई मादि भाषा में राधा को भी भले प्रकार. संशोजन करके छात्राया है म श्रीमान, धन कुमार जी का जीवन चरित्र अच्छी तरह दिखाया गया है / मूल्य He) (३)नमोकार मंत्र:-फूलदार यदिया मोटा कागज ) पुलक मिलनेका पना:रघुवीर सिंह जैन मैनेजर न्यामत जैन पुस्तकालय हिसार Ifissar { Panjali } मु० हिसार (पंजाब)