Book Title: Jain Bhajan Prakash 04
Author(s): Joravarmal Vayad
Publisher: Joravarmal Vayad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * जैनभजन प्रकास र चतुर्थ भाग। र यह कौताव तेरापंथी आमनाय के श्रावक जोरावरमल वयद मु. A रतनगढ़ वालेनै बनाया वा IT संग्रह करके छपाया वा । प्रकाशित किया। गिलने का ठिकाना ( जोरावग्मत बयद ) न० १४ मुगापट्टी बड़ाबजार का गवात्ता भैदान जोरावरमल वयद मु. रतनगढ़ ६२ काटन ष्ट्रीट पण प्रेस में भार० को. ___ टिवडेदान्ता दाग मुद्रित हुआ। सम्बत १८६७ गौतो वैसाख कृष्ण सर्वाधिकार चित। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्ञापन। इस किताबके छपाने में वा संसोधन करने में कोई तरहका हरफ लगमात का भूल हुवा होय तो सुजे मिछामों टुकङ होय वा सज्जन पुष सुद्ध मात्रा कर की माण:नेमें ल्यावे भूल चूक टुसरी आवृत्ती सुद्ध को जायगौ पोठक भूल चूक पर तरक न करें। - इस किताबमें सहायता देनेवाले महासयोंके नाम। बाबू तेजपालजी वृधीचन्दजी सुराणा मु० चूम । रुकमानन्दजौ उदैचन्दजी सुराणा मु० चूरू । भोकमचन्दजी चोरड़िया मु. सरदार सहर बुद्धमलजी पौंचा मु० सरदार सहर । भीकमचन्दनौ छाजेंड मु० .सरदारसहर Page #5 --------------------------------------------------------------------------  Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोरावरमल बयद सु० रतनगढ़ THE INDIAN ART SCHOOL, CALCUTTA Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री ॥ || श्री जनेश्वरदेवाय नमः ॥ श्री चौबीस जिन सत्वन ॥ राग० ' कैसे नोउ मेरो ज्यान सजन विन कैसे जीउरें ॥ एदेशौ• ॥ कुंण तारे भवपारनी जिनंद विन कुंण तारे भवपार || एच० ॥ ऋषभ अजित संभव भजोरे | अभिनंदन सुविलास | सुमति पदम सुपास जीरे ॥ चंद रंथां शिववास ॥ जिनन्द ॥ १ ॥ सुबुद्धि शोतल श्रीयांशजौरे ॥ बास पुज्य भगवंत ॥ बिमल अनन्त धर्म सांत नीरे ॥ प्रणमत भवके अन्त ॥ जिनन्द० ॥ २ ॥ कुंधु भरी मल्लौ तणोरे ॥ समर्ण है सुखकार ॥ मुनिसो व्रत जिनराज कैरे ॥ चरणांकी - धार ॥ जिनन्द० ॥ ३ ॥ नमनाथ एकवीस Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) मारे॥ प्रभु मोटा जगदेव ॥ दुःख दोहग दूरे टलैरे ॥ ज्यो सारै तुमसेव ॥ जिनन्द. ॥ ४॥ नेमौंनाथ बाबीसमारे ॥ पतुख बली अरिहंत ॥ राजुलदेको छाड़ करे ॥ शिव बधुबेग बरन्त ॥ जिनन्द ॥ ५॥ पार्श्वनाथ हड्व मांन जीरे ॥ सर्व जिनन्द चौबीस ॥ भजन करो अवि जीवडा रे॥ तो शिव विसवा बौस ॥ जिनन्द० ॥ ६॥ सम्बत उगणीसै छासठैरे ॥ बैसाख सुदी बुधवार । जोरावर एकाम तिथिरे ॥ प्रणमंत बारंबार जिनन्द० ॥ ७॥ इति । ___अथबोस बहरमान सत्वन ॥ राग० ॥ कंथ तमाखु छोड़ दे॥ मुखड़ा मैं आवै बासजी पालौजा तमाखु छोड़ दे। एदेशो० पात उठी भजिये भवि ॥ प्रभु बहरमान जिन बौसजी ॥ प्रा० एम० ॥ श्री सौमंद्र साहेवा। दुजा युगमन्द्र देवनी ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) भाग्य वली नर नेहके । ते सारे नित प्रत सेववी ॥ प्रा० ॥ १ ॥ बाहु सुबाहु गुण बोला । सुज्ञात जगतको ईसजी ॥ स्वयं प्रभु मोटा महि । जिय जोत्या रागनैरी सनी ॥ प्रा० ॥२॥ क्टषभानन्द मानन्दकर । अनन्त वीर्य गुणखानजी ॥ सूर प्रभु सेव्यांथकां । कोइ पामै पद निरवानी || प्रा० ॥ ३ || बोपाल प्रभु बैरागोया । बजरधर बच्च समानजी ॥ घाती कमीने खयकरी । प्रभु पाम्यां केवल ज्ञानजी ॥ प्रा० ॥ ४ ॥ चंद्रा नन्दजी वारमां । चन्द्र बाहु रद्यां सुखकार बी ॥ सुजंग प्रभु भय मेटिया । जिण बरो शिव सुन्दर नारवी ॥ प्रा० ॥ ५ ॥ इश्वरजी बगरश्वरू । श्रीनेमोंश्वर जिनराय नी ॥ बोरसेन महाभद्रजौ । ज्यांरा लुल २ पूत्रो पायचो ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ देव नश दौवाकक उद्योत करण संसारनी | भजित बौयॅ जिन . Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) घोसमां । ज्याने बां९ बार हजारजी ॥ प्रा. ॥७६ एह वीस वहरमान साश्वता। जघन पदे अवधारजी ॥ उत्कष्टा शत साठही। वौचरै महा विदेह मंझारजी ॥ मा० ॥८॥ प्रभु चौतीस पतिशय दीपती ॥ कोईवाणी गुण पतौसजी ॥ फिटक सिंहासन वैसको। आप जीवांना जगदीसजी ॥ प्रा० ॥ ६ ॥ प्रभुलक्ष चौरासी पुरवां आयु परमाण विचारजी ॥ सहुनो पायु एकसो। नहीं कोडू फेर लिगारजी ॥ प्रा० ॥१०॥ पभु महा विदेहमें वस रहा। हुवसं भर्थ क्षेत्र मंझारजी ॥ पावन सक्त महारी नहीं। थारो नाम जपं जयकारजी ॥ प्रा० ११ ॥ जोरोवरको वौनती। थे मानो प्राणा धारजी । मुजमन भाव जाणो रह्या ॥ प्रभु जानतण अनुसारजी ॥ प्रा० १२ ॥ उगोंसे पैंसठ समैं । काई पोष शुक्ल पक्षसारजौ ॥ नवमी Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिथ गुरुवारन गुण गावत हर्ष अपारजी। ॥ मा० ॥ १३॥ इति । पथ ऋषभ जिन सत्वन ॥ राग०॥ साहेब कैसे करूं तोय राजी॥ एहहरजसकी चालम ॥ देशी० ॥ ५ ऋषभ जिन कैसे कर तोयराजी ॥ पांचं चोर करे कुफराना मोह बड़ी है पाजी। क्ष० ए० नाभि नन्दन जगतक बंदन तुमको कैसे पाउ॥ कर्मों के संग फिर्म' भटकतो सव भव गोता खा॥ कष०॥१॥ में चेतन अनाथ प्रभुजी ॥ कर्म कुबुद्धि पति भारौ॥ तिणमें फिर कुगुरांभरमायो॥ भूल गयो सुधसारौ ॥ ष० ॥ २॥ अब कछु पुन्य पकूर प्रगट भयो॥ साचा सत्त गुरुपाया मुज ऊपर कृपा हदकोनी ॥ तोरा खरूप बतलाया ॥ ऋष० ॥ ३॥ एह संसार असार जि में ॥ तुज समर्ण सुखकारो॥ एही धार तुन Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रटना लगाई। निसदिन साँझ सवारी क्ष ॥ ४ ॥ जोरावर भज आद जिनन्द पदः॥ तन मन अति हुलसाई। भजन करे बिन पारन पावै ॥ या सन्त शुरु फरमाइ ॥ ऋष०॥ ५ ॥ अथ श्री बईमान जिन सत्वन ॥ राग. सोहनौ ॥ एरी जसोदा तोसे लहंगो लराई ॥ एदेशो० ॥ । एरी जिनन्दा तोसे धर्ज हमारी। तुज सलणं कर ऊठ सवारौ। एरी० ए० राय शिवार्थघर अवतारौ। हसला देजी तुज महेलोरी ॥ एरी० ॥१॥ जन्म महोत्सव सुरपति शारी॥ मंगल गावत दौसाजी कूवारीमाएरो० ॥ २॥ बहुविध वृद्धि थई तिणवारी। हड्ड मांन तब नाम दियारी ॥ एरो० ॥३॥ कर शुष्ट करिमेर कंप्यारौ ॥ म्हाबीर जब नाम भयारो॥ एरी• ॥४॥ जंग सुख नहरसमा पुसुशारी॥ बैरागधर संयम व्रतधारी। एरो. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ५॥ बहुविध तपकर कर्म खपागै॥ध्यान धरी क्षेवल उपचारौ ॥ एरी० ॥ ६ ॥ दिस बिंदिसांमें कियो बहु उपगारौ ॥ गोतमादिक एकादश गणधारी ॥ एरो० ॥ ७॥ चउदै संहंस सुनिश्वर तारी॥ भार्यातागे छतीस हजारौं ॥ ए० ॥ ८ ॥ कामदेव बाद श्रावका विचारी ॥ एक लक्ष गुण सठ संहस उद्धारौ ॥ एरो० ॥ ६ ॥ तिरलक्ष सहंस अष्ठा दश सारी ॥ रेवती बाद श्राविका तोरी ॥ एचौ० ॥ १० ॥ लाखांचो डां सुलभबोधि दीया । रेणकादिक बढ़ समकित धारी ॥ एरी० ॥ ११॥ कोणक मत भयो तुज भारौ ॥ वह नो पाप कियो निस्तारी । एरो० ॥१२६. तुमतास्या ज्यारी पारन पारी। पिण अब पाई हम तणौ चारो॥ एरो० १३ ॥ पगट करण तुम समय धारी।एह द्धि कर भेट तुमागै|एरो०१४ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) युग सावन बद एकम सारी ॥ जोरावर प्रभुके गुणगारी ॥ एरी० ॥ १५ ॥ इति० ॥ अथश्री भिक्षणजी खामीके गुणांको सवन ॥ प्रभु जाय चढ़े गिरनारीरे । वोन छाड़ि है राजुल नारी । सुखौ पश्व पुकारी दया चित धारौ । वारी ममताकों मारी बीसारी ॥ एदेशी० ॥ प्रभु भिक्षु भये अवतारीरे । इण पंचम आरे मंभारी ॥ बहु ,aa उद्धारी किय। भवपारी । ज्यांरो सरण सदा सुखकारी ॥ एत्रां• गणि सुच सिद्धांत के भेद भिनो भिन || खोल किया निस्तारी ॥ अन्य मत्तकों छोड दोना । प्रभु सुद्ध घया अण गारौ ॥ प्रभु सुइ वया अणगारीरे ॥ इण० ॥ १ ॥ गणि देश विदेश बिचर भवितास्था । सुलभ किया नरनारी ॥ जट मुटने सौधाकौना । ज्यांरी भिंतर खोड निवारी ॥ ज्यांरी • 1 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) इण० ॥ २॥ पाखंड भेख बध्या बहुतेरा। ज्यानै चरंचासुनौत बिडारी ॥ सुद्ध मार्ग प्रगट कौना। प्रभु बौरवचन उरधारी॥ पभु दूण ॥३॥ दोय अनुकंपके भेद बताया। दया दानको कियो विचारो॥ सावज्ज निरवद्य का छाण कोना। कियो ज्ञान भान उजियारौ ॥ कियो० दुण० ॥ ४॥ घरमजिनंदनो सांसन दिपायो। गणि किया घणा उपगारौ ॥ बहु प्रबंधवांध दीना। प्रभु च्यार तीर्थ हितकारी ॥ प्र० इण• ॥ ५॥ जोरावर गुण गाव यथार्थ। प्रण मतवार हजारौ । तुज चरण मरणमें लौना। थयो आनंद हर्ष अपारी ॥ थयो। पूण ॥ ६॥ सम्बत उगणीसै पैमठ बरसे पौष शुक्ल पक्षसारौ॥ गुण गाय खुसीभया सौना । नाउ बार बार बलिहारौ।। जाउं दूण ॥७॥ दूति. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) अथ श्री डालचंदजी महाराजो गुणांकी ढाल१ पहलौ० राग ॥ मल्हार• तथा पौलु तथा ठुमरी तीन चाल में० ॥ ___ डाल गणि मैंतो दर्थ तिहारो॥ पेखत प्रगटयो हर्ष प्रपारो॥ डाल. एमां निस दिन लाग रहो मुन मनमें । बब देखू प्रभुको दोदारो॥ डाल•॥१॥ चन्तराय कर्म कछु दूर भये बब ॥ पान मिल्यो भवसर दर्शणांरो । डाल० ॥२॥ धन्य घड़ी धन्य माग्य हमारो॥ भेटयोमै नन्द नन्हीयाको प्यागे ॥ डाल. ॥३॥ चरण कमल फरसित हियो हर्षित ॥ तन मन विकस रह्यो पति म्हारो ॥ डाल० ॥ ४ ॥ में पापो तुम तारन हारो॥ भवसायर थौ पार उतारो। डाल. ॥ ५॥ तुम हो दीनानाथ जगतके ।। भसरणको सरणांगत थांरो ॥ डाल. १६ ॥ तुम सम तारक नांही जगतमें । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) मुनकर चढ़ीयो रत्न हजारो॥ डाल. ॥७॥ जोरावर भज डालचन्द पद ॥ लुल २ ध्यावत सांझ संवारो॥ डाल.॥८॥ उगयो से छासठ शुभ सम्बत ॥ पचय रतीया दिन पानन्द अपारो ॥ डाल•॥ इति ॥ __ अथ ढालर दूसरी० राग थौयेटर को. पल पल तन मन धनवारो॥ एचालमें० ॥ पल २ नित समरन थारो २॥ प्रान प्यारो डाल तिहारो॥ दर्शनवाके परसन वासे मनवा मगन भयो॥ तन मन विकसित सारो॥ पल० एम० भिक्षु गणिंदको पाट सातमों डाल दीपा बनहारो॥ मात बड़ाब कनयाको नन्दन ।। लागत मुजकं प्यारो। पल० ॥१॥ च्यार तीर्थ नित करता दर्शन ॥ पेखत तुम दीदारो॥ अमृत वैन सुखी भविजन वहु सफल गिणे अवतारो॥ पल. ॥२॥ पारसको संगत करवे सु लोई Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (: १२ ) कंचन हुवै सारो॥ तुम संगत शिव सुख कं पावै ॥ दुःखसे हो छुटकारो। पल ॥३॥ पोत प्रसंगे सागर मांही॥ पहुंचे पडूले पारो॥ भव सागर बिच जहाज समां तुम। पार उतारन हारी। पल० ॥४॥ कल्पक्ष सम आशा पूरण । चिंत्या चुर्ण मंदारो । तुज गुण ज्यो तन मन सुगाबे । कर देवी रखेवो पारो। पन्न० ॥ ५ ॥ अभय दान जीवों कों आपो। तुम सम कोन दातारो ॥ जोरावर पर मेहर करिने। द्यो शिवपद सुखकारो । पल० ॥ ६ ॥ पैंसठ पौष शल तिथि द्वितीया । कलकत्ता सहर मंझारी। श्रीगुरुदेव तणां गुणगाया । प्रगद्यो आनन्द अपारो। पल० ॥ ७ ॥ इति । · अथ ढाल३ तीसरी राग० जवाइकै मांगक गौतकी बचनारी बांध्यो ढोलोकयोय न माने । एदेशी० बान्दोरे सुन्यानी जीवड़ा Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ( १३ ) डाल गणि वान्दो ॥ बन्दत प्रम भानंद लो ॥ भेटत शिव सुख कंद लो || मुख जिम पूनमचंद लो॥ अमोरे उपनादी खामी डाल गणि बान्हो ॥ अविजनम्तो प्यारो बुनिवर डाल गणि बांदो ॥ एषां ॥ बाद जिनंद ज्यु भिक्षु अधिक उजागर ॥ पंचम भार मंझार लो॥ धर्म प्रगट शियो बहु मवितास्या | जिन सांसण उजियार तो बांहो। ॥१॥ तसपट सप्तमें डाल सुनिंदा ॥ च्यार तीर्थ माधारलो। दर्श पियारो ज्यारो जे बोलू पावै ॥ पुन्य प्रवल तसुधार लो। बांदो। ॥१॥ समो सरण विच जिनार लोहै ।। भविमन मोहै अपार लो। जिम सुग्छ आरे बाप जिनवर जेहवा ।। जानसीरोमा सार लो ॥ बांदो ॥३॥ सभा शुधर्नी इन्द्र दिपावै।। जिम जिन सांसग आयलो। भिक्षु गणियो तखत दिपावो।। थारो हित Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) दिन तेज सवाय लो॥ बांदो० ॥ ४॥ सर नर मुनि थारो दर्शन चावै ॥ ध्यान धरै सुम कारलो। दीनदयाल गोवाल कृपानिधि भविजिव तारण हारलो॥ बांदो ॥५॥ पात उठीनै थांरो समणं करसी॥ तेलासे भवपार लो॥ दुःख संकट ज्यारै कदेयन थासौ ॥ पावा गमन निवार लो ॥बांदो।। ॥६॥ सम्बत उगणीसै छासठ बर्षे ॥ श्रावण धुरपक्ष सारलो ॥ पंचमी तिथ जोरावर थां खुबिनवै बार हजार लो॥बांदो इति. ... पथ ढाल चौथौ । राग० हरजस की. राम नाम रस पौजे पौजे पौजेरे पौजे रस पौजे॥ एचालमें• डाल नोम रट लौजे लौजे लौजेरे लौजे रस पोजे ॥ थारो बंछित कार्य सोझो र सौमेरे सीके रस पीजे ।एमा० निंदा बिकथा भालस तजी ॥ नरभव लाहो खोजे २ लौजेरे लौजे रस पौजे ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) डाल० ||१|| कुगुरु कुदेव कुधर्म कुमारग || प्रबल होन नही दोने २ दौजेरे दौजे रस पौजे ॥ डाल० ॥ २ ॥ डाल गुरुको संगत करके || प्रभु चरचा नित कौने २ कौजेरे कोजे रस पीजे ! डाल० ॥ ३ ॥ जैसा गुरु पडि लाभ हाथसें ॥ सकल मनोरथ सोजेर सीजेरे सीने रस मौजे ॥ डाल • ॥ 8 ॥ ऐसा गुरुको देसन सुणके । ज्ञान सुद्धा स्मृत पौजे २ पोजेरे पीजे रस पीने ॥ डाल० ॥ ॥५॥ एह संसार असार जाणकर || सुकृत करणी कोनें २ कीजेरे कीजे रस पीने ॥ डाल० ॥ ६ ॥ जोरावर सुगुरु सेव्यां धौ ॥ प्रम प्रमातम रोजे २ रौजेरे रोजे रस इति० । पौजे ॥ डाल ॥ ७॥ अथ ढाल ५ पांचमी० राग० कजरीको ० भोला काय रहे काशीमें गिरज्यां पारवती के संग || एदेशौ ० ॥ तुम ध्यावोरे सुज्ञानी ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) 1 नित उठ नंद नंदके नंद । नंद नंद आनंद कंद घर ॥ जन्म लियो सुखकंद ॥ तुम०. ॥ ० ॥ सहर उज्जेौ देश मालवो । ओश बंस कानंद ॥ तुम० ॥ १॥ पौपाडांके कुलमें गणिवर ॥ पायो नाम जबरंद ॥ तुम० ॥२॥ अनुकर्मे थया बर्ष चतुर्दश । छोड़ दिया गृह मंद ॥ तुम० ॥ ३ ॥ बहु सुत्र सिद्धान्त सौंख गणि ॥ देश २ बिचरंद ॥ तुम० ॥ ४ ॥ चोपन माघ वदी द्वितिया दिन । गणिपद हद पावंद ॥ तुम० ॥ ५ ॥ सर्ब संतोंमें सोभ रह्या है । जिम उडुगण में चंद ॥ तुम ॥ ६ ॥ धीर बौर बाण ज्यु कौर ॥ गणि गहरा जेम समंद ॥ तुम० ॥ ७ ॥ इण कन्तु कालमें जिनवर नेहवा । तप रह्यो तेन दिनन्द ॥ तुम० ॥ ८ ॥ मुलक २ में डंको बान रह्यो । पाखण्ड पङ गयामंद ॥ तुम० ॥ १ ॥ दूर टूरके आवै जातरौ । दर्शनकों जन वृन्द । — Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ): तुज बदन कमल दीदार n ॥ तुम• ॥ १० ॥ पेख | भवि रोमराय हुलसंद ॥ तुम• ११ ॥ नोरावर तोरा गुण गावै । हुलस २ पयबंद ॥ तुम• ॥ १२ ॥ द्वितीया सावन बद एकम दिन । लाइणुं सहर मंद ॥ तुम० इति० । ॥ १३ ॥ अथ ढाल ६ छठो राग० माढ० तोरे दांतकी बतौसी ढोला ऐसी प्यारो लागे || तोरी चांख रसीली ढोला सुरमों प्यारो लागैजी । छल बलिया ढोला छान जगाई बैरी नींद मैं | बस करीया ढोला | पदेश ● ॥ ar धारौ गणपत थांरानी चरणांमें म्हांरो जीवजी । बस रह्यो नित प्रतहो । कान्ह नंदनजी सुं लागो म्हांरो मौतजी ॥ एचां० ॥ तोरे सांसनको छिनभारी। नौकी प्यारो लागे ॥ तोरी मुद्रा मोहनी खामी । मुनने प्यारौ लागेनी ॥ यश ० ॥ १ ॥ अधम 1 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) C उद्धारन नाथ निरंजन । भव भंजन भग · वंत ॥ पाखंड गंजन । भवि मन रंजन || जिन मघ मां महंतजी ॥ यश० ॥ २ ॥ षट्दश पोपम थोपै 'गणपत । उत्तराधेन संभार ॥ बेपरकार छतीस गुणोधर ॥ सुव आवश्यक सारजी || यश० ॥ ३ ॥ मेरू सो धौर सयंभु सो गंभीर । तन तावनकों सूर ॥ ज्ञान उच्जास प्रगट कियो जब । भागगयो अव भूरजी ॥ यश० ॥ 8 ॥ षट् खंड ज्य षट् मत्त भगो तुम । साझ लिया धरिखंत || शौल घखंडित पालतागण । नव निधि घाङ सोहंतनी ॥ यश० ॥ ५ ॥ दुर्गा कलु कालमें तुं धणोजी । तुं देवन पति देव ॥ चिन्ता चूरन आशा पुरन । मैं करता तुम सेवजी ॥ यश० ॥ ६ ॥ छासठ सावन युग बदी पांचम | लाडणुं सहर सवाय || जोरापर तोरा गुण गावै ॥ लुल लुल शौभ । । · Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) खुनायजी । यश० ॥ ७॥ ॥ इति । __अथ ढाल ७ सातमी० राग० विहाग. चंदा प्रभु भेटत भव दुःख जावै । एदेशौ० प्रभु तोरा च्चार तीर्थ गुण गावै। थारे सुख सावा नित चावै ॥ प्र० एम० ॥ श्री भिक्षु के सप्तम पाटे। डाल जनेंद्रसा सुहावै ॥ कहां लग कर पोपमा बरणन। सुर गुरु पार न पावै ॥ प. ॥१॥ दोय वर्ष घया सरौरकारण पिण। दिन २ अधिक लखावै ॥ निरवल पणो फुन सोफ इत्यादिक । अन्नको रुच नहीं थावै ॥ पृ०॥२ ॥ कारण करि वेदन बहु तोपिण। स्वकर कार्य करावै ॥ सूरवीर साहासीक पणोप्रभु। खातर मैं नहीं ल्यावै ॥ प्र० ॥३॥ सन्त कुमार चक्रोधया चौथा । सुत्रा मांहे बतावै ।। जेहनी परे प्रभु वेद न खमरह्या । साहसही दरसावै ॥ ५० ॥ ४ ॥ गज सुख माल कुमार Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) बैरागी ॥ सोमल बैर कढावै । खैरका खोरा वया शीशपर ॥ खद बद खीर पकावै। प्र० ॥५॥ सोमल पर कछु हेस न पाण्यों॥ अपां कर्म उड़ावै ॥ जेहनी परे पमु सम. परिणांमें बेदन सहन करावै। पभु तोरा च्यार तीर्थ० ॥६॥ अरजन माली थयो क्षेश्वर । भिच्या अवसर जावै ॥ घणा लोक देखीने त्यांन। बहु विध कष्ट उपजाबै ॥ पु० ॥ ७॥ पिण मुनि रांग हेस नहीं किणपर ॥ अपणांही संच्या हटावै। तेह नौ परे प्रभु पंचम आरैमें ॥ चौथो आरो बरतावै ॥ प्र० ॥८॥ चरम जिनंद सधा कष्ट धणेरा। सम चितनै सम भावै ॥ वह जिसा आप भर्थक्षेत्रमें। दूजो को न लखावै ॥ प्र०॥६॥ बहु बेदन तोही च्यार तीर्थने। भिन २ सौख दिरावै ॥ अमृत धारा बचन अषण सुण। सबै मग्न होय ज्यावै ॥ ५० ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) ॥ १० ॥ महा विदेह सम क्षेतर लाडं । ऐसा पुर्ष उद्धरावे ॥ धन्य घड़ी धन्य भाग्य नेहनो । खाम दर्शन नित पावै ॥ प्र० ॥ ॥ ११ ॥ कोड दीवाली तपो खामजी | एह अविलष करावै ॥ जोरावर प्रणिपत जर घांरा || हर्ष २ यश गावै ॥ ५० ॥ १२ ॥ संबत छासठ द्वितीया सावन सुद | चौध शक कहावै ॥ सभा वौच गुण वरणन करके । - "बार २ बलिजावै ॥ प्र० ॥ १३ ॥ इति० । अथ ढाल ८ आठमी राग हरिवसमें मेरी. सहयोए । आज म्हांरो लालन आवै लोए ॥ एदेशी • सहर ऊजेगी दौपती । जात पौपाडा सार | लाल कन्हयाको लाडली । जडांवां कूच उंजार ॥ म्हांरा ग्यानी गुरुजी वो थांरे । सुख साता अव थाव ज्यो || म्हारो मन हलसावे । म्हांरो तन बिकसावे म्हांरो उमग न मावै ॥ म्हांरा पुन बड़भागी 1 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वो थारै ॥ सुख साता अब थाव ज्यो ॥१॥ एत्रां० ॥ मुनिपट भिक्षुके छजै ॥ डालचंद सुखकार ॥ मर्थं मैं प्रगयो भान ज्यु। मिथ्या ध्वांत बिडार ॥ म्हां ॥२॥ सरीर कारण बहु बिधकरौ। खम रह्या दृढ़ता धार ॥ मंदिर गिर सम खामजौ। पडिग भाव अपार ॥ म्हां ॥३॥ बसेष औषध लवे नहीं। साहा सौक सिरदार ॥ परवा नही कोई बातरी । तरण तारण रो विचार । म्हां ॥४॥ सूरो पुरष रणनै बिखै ॥ अरियण करै संघार॥ जिम प्रभु कम रीपू भणी ॥ कापै 'विवध प्रकार ॥ म्हां ॥ ५ ॥ देश २ मैं थांहरा। चावै शुभ समाचार । बाट जोवे बहु प्राणीयां । व्युचकवी दिनकार ॥ म्हां ॥६॥ हुवै तन द् सती पाप। इम चाहै नर नार ॥ च्यार तीर्थमें पानन्द हुवै। बरतै मंगलाचार ॥ म्हां ॥७॥ साता Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) हुयां श्रीपूजरै। होसी जय जयकार ॥ एह अविखाषा मांहरौ। पुरवसे किरतार ॥ ॥ म्हां ॥८॥ जोरावरको बौनती। मानो प्राणां धार । सावन मुद नवमी दिने । पमणत हर्ष अपार || म्हां ॥ ६॥ इति० __ अथ ढाल है नवौं राग० तरकारी लेल्यो मालण आई बीकानेरकी ॥ तर० ॥ एदेशी० सरणां भवि लेल्यो डाल मुनिन्द गण इन्दके। सर० एम० डाल गणिन्टके सरणां सेती। पामै भव जल पारो॥ दुःख संकट सवही मिट जावै। होज्यावै निस्तारोरे ॥ सर० ॥ १ ॥ खाम भिक्षणको पाट सातमों। डाल दिपा बनहारी॥ भर्थ क्षेत्रमें सिंह जिम गुंजै। साहस जिन अनु हारोरे ॥ सर० ॥२॥ शशी सम श्रोतल बदन तिहारी। वेजखो दिनकारो ॥ भव भय भंजन जन मन रंजन। शिव मगको Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ( २४ ) 1 दातारोरे ॥ सर० ॥३॥ शौल रूप रथ सभ्यो सनौलो । तीन गुति असवारो ! ध्यान रूपी यै गजकर घूमै । बुद्धि तुरंग विचारोरे ॥ सर० ॥ ४॥ पंच महाव्रत सुभट बिकटचति । सैन्या सुयश चावो ॥ तपकौ तोप ज्ञान गोवासें । अन्य मत्तकों फटकारोरे ॥ सर० ॥ ॥ ५ ॥ सुमति रूप कस कमर कटारी । चम्यां खडग करधारो । जयना हुकी ढाल ढक थी । चत कर्म बिडारोरे ॥ सर० ॥६॥ बहु बिव मोह विकट दल ठेल । पाखंड पेलणहारो || सुत्र सिद्धांन्त बचन घन गरजत 'बायत जिम जल धारोरे ॥ सर० ॥७॥ जो भवि जन तोरा गुणगोसी । देसी पूठ संसारो ॥ कर्म खपावी शिवपद बरसो । करसी खेवी पारोरे ॥८॥ पैंसठ जेठ शुक्ल पक्ष बारस लाइं सहर मंकारी । जोरावर तुम चरणां मैं चित ॥ सरणांके आधारोरे ॥ सर० ॥ ॥ इति० " Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ), ' अथ ढाल १. दशौं राग ५ ठेठरकी अम्मा.मुजे अच्छौसी टोपी मंगादे. एदेशी. खामी मोरी नयाको पार लंघादे पार लंघदिर मुक्ति तो मोय बकसादे ॥ खा० ॥ एमां ॥ चरणों मे लेटुंगा." दुःख दंट मे लूंगा ॥ वारूंगा तन मन हां हां हां ॥ प्रान करूर कुरवान हमहम इम ॥ ख़ामो० ॥१॥ राग दुसरी अमवाको डाली.तले प्रालौरी झुलना मुलादे. एदेशी० ॥ मज धारासे नइया ॥ .स्वामौरी पार लंघादे० म० मेरे पुज्य सेती करत घरज ॥ अरजीमे.मरजी करादे० म० एम० लंघांने वाला.तुहीं है सिरताज भला ॥ तिहारी मुद्रा मोहनचंद उजास भला ॥ . छब दिखलाते तखत - जारा भल्ला ॥ दर्थप्रीयारे हय तो सबजनकों लागै भल्ला ॥ 'प्यारौं लासानी है प्यारी नुरानी है सूरत.सोहानी है ॥ तुमुनपार Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) लंघादे ॥ ० ॥ राग• तौसरी चलती चंपला चंचल चाल० एदेशी• मुज लागत प्यारो भारी डाल गर्णिदवि तोरी || सिडान्त बचन भल्ल बोलै ॥ बयनन अमृत रस घोलै ० ० । च भविमन बहु हर्ष भयोरौ ॥ मु० एषां ॥ जलदी तारो मुन भयौ करदे नइर्या धार ॥ सरण ग्रहको बांहकों मकर करो भवं पार | आहाहा बंइयां मोरो ॥ ओहोहो आप गहोरी ॥ भव बार सेतो पार करोरी ॥ सुज० ॥ ३ ॥ राग चौधौ तोरी छल बल है न्यारी तोरी कलबल है प्यारी ॥ एदेसी• तोरे सांसनको विबभारी ॥ जैसे खिलरही केसर क्यारौ ॥ थांरा संत सतौ गुलभारी मोरे खाम० एषां० ॥ च्यार तोर्घनित. करता दर्शन ॥ दर्शन कर होता परसन मोरे स्वाम ॥ नित जपता है जाम || तोरौ धरता है छाप ॥ ज्यारा कटता है माप ॥ एत्रो " Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाबाबा-बावाबा बाबाबा एजी बाबाबा तोरे सांसनको छिब भारो० ॥४॥राग० पांचमी० बटवा गूदण देरे मौनानौडा. एदेशी० नइया पार लंघादे मोरे पुजजी न या पार लंघां० ॥ हारे मोरे प्यारे सुखकार प्रभुजी मोरी नइया पार लंघा ॥ एमां. जोरावर तोरे दर्शको प्यासो॥. हर्षर गुण गाय ॥ नित उठ . तोरा नपन करत है। तन मनथी लिवलाय ॥ मोरे प्यारे. नद्याः • ॥५॥ इति। अथ ढाल ११. एका दशमी० राग. प्रभातीः वा कालौंगडो ॥ प्रात, उठी श्रीडाल गणिंदको भजन करी भवि भाव धरी। संकट कोट कटे भव संचित ज्यो ध्यावै मन उमंग करौ॥ पा. एमां. सहर उन्जेणी देव मालवो ॥ पोश बंश अवतार धरौ। मात बड़ावा तात कनौलाल ॥ तास घरे Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) बहु लौल करी ॥ प्रा० ॥ १॥ उगणौँसे नव के गणि जन्म्या । ते वीसै संयम सखरौं । चोपन माघ बंदी दुतिया दिन ।। भिक्षु गर्णिदको तख्त बरी ॥ प्रा० ॥ २॥ बहु सर्व सिद्धान्त बिलोकी। काव्य लोक अरु छन्द पदरी॥ जोन घटी घण जन घट घाली ।। देश बिदेश माह बिचरी ॥ प्रा०॥ विचरतं २ बर्ष पैंसठे ॥ चौमासी कियो हुलस धरौं ॥ चंदेरी में ठाठ लगायो । बरषायों बहु ज्ञान झरी । प्रा० ॥ढूं. चौमासो उतरौयाँ विहार करायो । पिंण कारण कम संक्ति करौ। बिहार कयो नहीं गयो स्वाम जब ॥ दुसर चौमासी कियो फेरी ॥ प्रो० ॥ ॥ ५ ॥ शरीर निपट गयो छोज दिनोदिन॥ अन्नको रुच पण कमती परौं । सूर बौर साहसीक पणे प्रभु ॥ काचा संचित कर्म बरी || मा०।। च्चार तीर्थनै बहु विध Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) करके सौखामण दीधौ नबरी ॥ सर्व जीवोंसें किया खांमणा ॥ बार वार मुखसे उचरी मा०॥७॥ भाद्रव शद वारस संध्याक ॥ प्रति कमण शुध भावकरौं ॥ अठ दश पाम भालोवौ स्वामजी ॥ पहुंता गणिवर वर्ग सरी । ॥ मा० ॥८॥ दूण कलुकालमें एहवो गणि वर दीपायो जिन माग खरौ ॥ याद आया सनमन विकसावै ॥ भवि जनक हिय उल्लसरी ॥ प्रा० ॥६॥ जीरावर है दाश आपको ॥ नपन करत पल घरी घरी ॥ उर बिच ध्यान लग्यो गणि तेरो॥ एरावत ज्य बन कजरी ॥ प्रा० ॥ १० ॥ छासठ संवत कुंवार शुक्ल पक्षं ॥ परव दशेरो दिन जबरी ॥ हर्षर गणिवर गुण गाया ॥ कलकत्तो है महानगरौ । मा० ॥ ११॥ इति। अथ श्री डालचंदनी म्हाराजके गुणांका समस्या पूरतीका श्लोक ॥ समस्या एह छै Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( . डाल गुरू गणिके गुणगायो० ॥ देश विदेश फिखो वहुतोपिणः॥ डाल जिसी गुरू कोयन पायो । सांसन नंदन बन्न सो.देखक मोमन हर्ष बब्योरे सवायो॥ पुन्य अंकर प्रगट भयो जब । स्वाम भिक्षनको मारगपायो। स्योपुर सुंदर नार बरन कू॥: डाल गुरू गणिके गुण गायो ॥१॥ उदै, भयो उदिया चल सो गणि ॥ भिक्षु को मार्ग भलीही दिपायो । घालत जानकी, जोत घनाघट.॥ मिथ्यात् रूपमधार मिठायोगा सारक खाम . सबे विध लायक ॥ घेख छटा मुज आनन्द भायो । स्योपुर सुंदर नार बरन कुंडाल 'गुरू गणिक गुण गायो ॥ २इति ।। अथ श्री जेठांजी महा सतियांजी रौं ढाल ॥ राग मति जावो परदेश भंवरजी दीय रोटी देणां ॥ एह चालमें ॥ भजी पति नेठांजी भारी ॥ सर्व शत्यांमें शोभरमा Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) है ज्यं केसर क्यारी ॥ ए. ॥ चुरु सहर पोश बंश नौको ॥ जात नाहेठा पधिक दीयता सारां शिरटीको म०॥ पिता सेवा रामजी सुखकारी॥ कानाजी री कुक्ष पान कर लौनो अवतारौ ॥ भ० ॥२॥ उगणीस एक संवत धारी ॥ जन्म भयो शुभ घड़ी नक्षत्र ॥ शुभ बेल्यां सारौ ॥ म० ॥ ३ ॥ मात पितु व्याह रचो भारी ॥ सुगनः मलजी बैद पति वर पायो सुबिचारी ॥ भ० ॥४॥ पूरब कृत कर्म उदै आई ॥ पति वियोगथयो शति मनमैं । वैराग्य हद लाई ॥ भ०॥ ॥ ५ ॥ जगत सुख जहर समां जाणौ ॥ उगपोसै बीसै दिक्षा लोधी ॥ संवेग चित पाणी ॥ भ० ॥६॥ शति मुख निरमल जिमचंदा॥ बीत गोंको सेवा सारी॥ तन मन हुल सन्दा ॥ भ० ॥ ७॥ जीत गणि परसनचित कौनो ॥ पतियां मांहे अधिक कायदो थारो Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) कर दौनो ॥ भ० ॥ ८ ॥ मघवा गणि मांणक यश धारी ॥ तास चाकरौ बहु बिव कोधी ॥ हित चित लिव लारौ ॥ भ० ॥ ८ ॥ डाल गणि गुण संपन जाणो ॥ पवि तरयोको पदवी दोधौ ॥ कौधी अधिकाणी ॥ भ० ॥ १० ॥ गणाधिप डाल जबर गूंजे ॥ तास पुरण मरजी थांउपर ॥ प्रवल पुन्य पुंजै ॥ भ० ॥ ११ ॥ सर्व सतियांनै सुमति देवो । माईत' पणांकी मरजी करके || सह संभाल लेवो ॥ भजो० ॥ १२ ॥ प्रात्त समर्ण थौ कर्म टूटे । मुखड़ी देख्यां पातिक नाठे ॥ दुरगति दुःख छूटै ॥ भजो० ॥ १३ ॥ जोरावर लुल २ शिरनावे | निस दिन ध्यान धरै उर भौतर ॥ मरजी तुम चावै ॥ भजो० ॥ १४ ॥ संवत उगणी से छासठ आयो । श्रावन बदि कठ कलकत्ता में गुण तोरी गायो ॥ भजी ॥ इति । -॥ १५ ॥ . 4 " Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( ३३ ) अथ थी उपदेशको ढोल ॥ राग० मोरा जंगाके जीवन लूटारर ॥ लूटा लुंटा लुंटा ॥ मोरा. एदेशी. जरा जाग निया क्यं सी तारेर ॥ सोता सोता सोता॥ जरा० ए० दोय घड़ीको तड़को रह गयो॥ अहेल जन्म क्यं खोता || जरा० ॥१॥ भव सागर काराग्रह सरिखो ॥ कुटम्ब बिटम्ब दुःख दोता ।। जरा० ॥२॥ जोबन लहरी रंग पतंग सम॥ चपल विजल चम कोता। जरा ॥३॥ पुत्र कल्यवं घर अरु संपत ॥ सहु अथिर समझोता || जरा० ॥४॥ मोह नौंद बस भयोरे दिवानो। निज गुण पम्बु छिपोता ॥ जरा०॥५॥ तुज गुण ज्ञान दर्शन चारित्र तप ॥ जिसकं काय लकोता। जरा० ॥६॥ कुगुरु वैणधार हृदयमै । जहर बौज क्युबोता ॥ जरा० ॥७॥ कुगुरु कु देव प्रसाद चेतानंद ॥ खाय कुगतिमें गोता Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) ॥ जरा०॥८॥ सुगुरु सुदेव सुधर्म प्रसाद। जान दीपक घट जोता ॥ जरा० ॥६॥ अपतप संयम धर सुध करणी ॥ कर्म मेल सहु धोता ॥ जरा० ॥ १० ॥ जोरावर कहै प्रभु भजन बिन ॥ कोई न पार पू गोता ॥ जरा० ॥११॥ इति । __ पथ श्री मांणक गणिक गुणांको सत्वन ॥रागः ॥ छाइ घटा गिगनमैं कारी। राजल कं ब्रहा दुःखभारी ॥ एदेशी० मांणक गणिराज उद्दारी॥ में नाउ तुज बलिहारो॥ एमां० भिक्षु भारी माल ऋषिरायो ॥ जय गणपत कलश चढ़ायो । ज्यांग दिनर तेज सवायो॥ वांसांसण खूब दिपायो। सुयश चिहुं दिश बिच छायो॥ भविजन मन सुण हर्षायो॥ झड़. पंचमें मघरान उदारौ ॥ ज्यांरौ शोम्य प्रकृत सुख कारौ॥ ज्यांने याद करे नर नारी ॥तोड़. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) गणि ऐसा अव तस्याः पीय । मधेरै मायः॥ पाखंड दियो टारीः ॥ में ॥ १॥ मघरान तणे पटवारी ॥ माणक गणि जगमें नहारी। दीपत जिम वेज दिनारी ॥ सहु आय नमै नर नारी ॥ ज्यारो पाट दीप रयो भारी॥ ज्यं खिल रही केसर क्यारौ ॥ झड. ज्यारो तीर्थ जगमें गाजै ॥ नंदन बन पोपमछाने। रमियां भव दुख सह भाजै ॥ तोड. गणि रान तीर्थ सुखकारं ॥ दर्श दिलधार ॥ तिरै भवपारी ॥ में० ॥ २॥ षट् टस गुणे धर खंता ॥ परिसा बाबीस जिपंता ॥ पणचार बावन टारंता शुद्ध महार. पाणी भोगता ॥ गणि सुत्र अर्थ भाषता ॥ घनहिय बीहै समकित तंता । झड० मुनि आगम नै अनुसारै ॥ गणि बचन वटै सुख कारै॥ तरता निन पर जन तारे ॥ तोड़. गणि ऐसी है गुण धारौ ॥ मुक्त दातारी ।। भवन Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ), के बारी ॥ में० ॥ ३ ॥ बर्षे बलधर जिम बांगो बत्ति गंजे सिंह समांणी ॥ बायो रस संवेग पिकां ॥ पिवै जन प्रेम प्रमांणौ ॥ सुण - चावक मन हर्षाणो ॥ के संयम - लै शव प्राणो ॥ भड• गणि भवि जीवांने तारे । भवनां दुःख भंजय हारे ॥ करता गणि पर उपगारे !! तोड़• गणि रतनगढ़ उधार ॥ कियो उपगार ॥ दर्श दियं भारी ॥ में० ॥४॥ षट् खंड नेम षट्मत्ता ॥ गणि चक्रि जिम सार्धंता ॥ चम्यां खडग धरता । गणि नव निधि बाङ सोहंता । गणिनां दर्शण पावंता ॥ केंद्र जग बिरला पुन्यवंता ॥ कड० इम गणि गण अन्तन स्थाये ॥ किम एके नौभ कहाये || बोराजो रतनगढ़ मांये | तोड० एह बौनतो मंगल कार || अर्ज अवधार में ॥ ५ ॥ ॥ इति० । वारो भवपारी । fa Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ॥ अथ ढाल लौष्यते ॥ चाल लावनीकी ॥ ॥ भविगणौमुख चंदा ॥ दर्शनकरहरनैनचकोरनी । भवि० ए० ___ आदनमु अरिहंत आदजिन सांसनमा हाहितकार। चरमजिनंद महाबौरजीसथां. रोपंथसदासुखसार। सुधर्म जंबुादपाटो धर परभवदिकलीयो धार । तिस अनुसारै दूणहीजारै भिक्षुगुणभंडार । उडावनीः ॥ पाटोधरभारिमालजी। रायरीपोरोधवंता जैः मघामांणकलालपाटवी। डालचंदपुनवंतपंथ धरवीरनिनंदा ॥ दर्शन ॥ १ ॥ मनोहरमाल बदेशमैसकाई नगरउजैनी सार । उसबंसछ बधकउपतापीपाडाधरण्यार। साहकनई यालालजीसघरसती जडावांनार। तासकुक्षअवतारलीयो प्रभुगुणमनौरयणभंडार । उ. नौकेमुद आसाढनौ । चोथचंद्रमुभवार । सुतमुखचंद्र विलोकतांसकांड । वरत्याजैजै Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C [८] कार । धारुमनदूधकआनंदा । दर्श य० ॥२॥ पतीवियोग जोगलीयो माता । सहौवीसके साल। दिक्षादिनपटलावद महोकवडू द्रघटाद्रग चाल । सतोगोमांनी हाथहरषस्युं आपअन्ना पुनपाल । तेइस के भादो वदवारस आपः चरणगुणमाल । उ० उमरवरसदश च्यारको । रह्याबालब्रह्मचार | चरणगांवड दोर दिया गुरुहीरालाल अणगार । सारसुखसंयम हंदा | दर्श ॥ ३ ॥ इकतीसैकौसालगणा धिपसिंवाडोसुखकार । संतचहुं नाथसंसकांइकरतो भविनिमतार। कछगुजरातमेवाडमाल वै विबुधकियोउपगार | चोपन घोषवदौ जोधाने चौथगन पदधार! उ० टूजमहावदोलाडनं । च्यारतीर्थजिनचंद । भिक्षुतखतवीराजीयास, कांडू | साहसजेमनिनंद । इदजिमटादि पंदा || दश ॥ ४ ॥ षट्सउपमत्रो पैगनपतउतरानमंभार । दसमें 'गैतीसही चोरासी 1 - Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '[se] अनुयोगहार | युग परकार छत्तीसगुनाधर सुचभावस्यकसार । यतिधर्मदशविधनाधारी सामायंग सुखकार । उ० दोष बयालीस टालता । वाक्नटाले अनाचार पांचदोषमांडलैराटाले । गुनकरग्यानभंडार | घारसंपद अष्टदा ॥ दर्शण ॥ ५ ॥ निमगजरथदाजी प्यादलकर चक्रवरतदलसूर । तिमगणिनाय चरणतपदर्शन मिथ्यातिम्बकरदूर | क्षमाना ल संतोष जामखोग्यांनगोलाभरपूर | मुगत नगरपर दिया मोरचा अष्टकमंदल चूर | उ० सुरत अश्वचढियागयौ । सौलटोप सुखदाय । सुमत कमरकस गुप्त कटारी । मारी च्यारकषाय । नाय अगटूर भगंदा दर्श ॥ ६ ॥ अहिरावण सांसन मदमाता निसदिनधर्म उद्योत । मनमान्ह बस कीबोंजरनो अकुसके समजोत । पंचानन जिमगन मेगु जैदिनकरतेज सोव अविभयभंजन Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४] नरकनिवारण तारण भवनीपोत । उ• दादरजिम हरषितभये । उदैचंद अबदात। संतसत्यागुणमाला गावण । हकमकरोगनी नाथ । तातकनिलालकी नंहा । दर्शण ॥७॥ राम लाल गोबिन्द जुहार मल १३ पृथी-राज ४ मन · रंग ॥ राम सुख ५ गणेश पन्ने लाल ७ छबील ८ माता संग॥ उदै रामः सजोडै ईश्वर १० बागै नारउमंग॥ फोज मल ब्रह्मचारी नवल ॥१२॥ जारी लारै उचरंग ॥ उ. राम चंद १३ छजमालजी ॥१४॥ जवानमल गुणखान । सिवकरण १६ अभैराज १७ अठारा.॥ पनरै कुंवाराजाण आण धरजीत मुनिंदा॥द०॥८॥ भजोकजोडीमल १ चांदमल २ अणंदराम ३ चुनीलाल ॥ ४ अमरचन्द ५ गोरीदास पुनम चंद६ टुजापन्नालाल ८ ॥ मगन मल ६ कालुराम १९, जयचंद ११. वीनु Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४] मातासंगपाल ॥ डायमल १२ मुनि भजो चिरंजी १३ छगनसल १४ गुणमाल ॥ उ. पंचमपट पांचंदमौ मुनिमघवाधरी आण ॥ दोयपरणीज्यावारै कुंवारा॥ एचवदैगुणठाण ॥ जाणलियासहुजगफंदा॥ द०॥६॥ लीलाधर१ सुनिध्यान धरत है दुलीचंह २ दिनकार ॥ दीपचंद ३ मुनिखेमराज ४ सुत साथे संयमभार ॥ मजोभीमजी ५ मातासाथे छोडदियो घरसार ॥ नथराज ६ अग्नी शुभ लग्निनिजर कंवर निस्तार ॥ उ० साकरचंद ७ कस्तूरजी ८ मांणकहदसुनि आठ ॥ बरतारामैतेजमाल ६ चरणदेवबिराज्यापाट-॥ ठाठ गणिराजमुनिंदा ॥ द० ॥ १० ॥ कालु राम साता यासुत ब्रह्मचारी १ सक्तमाल २॥ कल्यानमल ३ नरंजन नथमल ५ विनायक इंपालाल ७॥ पन्नालाल ८ पुयाप्रतबोधी जैमल ! जाणीजाल ॥ फूस Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४३. रोज १० दोलतराम ११ जोरजौ, १२ रुघ'नाथ १३ रंगलाल १४॥ उ० परताबराम १५ होरालालजी १६ सागर १७ बछमल १८ ख्यात ॥ दुजा चंपालाल १६ ठंडीराम २० बैनमनोरांसाथ ॥ हाथगणिडाल मुनिंदा ॥ ॥ द० ॥ ११ ॥ केसरीमल २१ कनकमल २२ कुन्दण २३ छोगमल २४ रणजीत २५॥ घासी सन २६ गुलराज २७ संत सतबीस सहुसुबनौत ॥ केकवारा केयकपरण्या सारी 'पूज्यवनौत ॥ शत्यांदोयसै दस मुनि अड साठे पूज्याण धरप्रीत ॥ उ० ढालकहुँसतियाँ तणौ ॥ संप्रतबिचरैख्यात ॥ रायषिबारासंलेकर ॥ सप्तमपट अवदात ॥ मातसति जड़ावनंदा ॥ द. ॥ १२ ॥ प्रथम पवित्रणी पयप्रणमौ ॥ कहुँरायषिबार ब्रह्मचारण कस्तुरां १ जमा २ परणी संजमधार ॥ जौतचारै अर्थमचूनांनी १ सयकबर २ ब्रह्म Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D [३] चार ॥ भूरांजी ३ सैंजोड सुहागण ॥ धीचंदसंगधार ॥ उ० जेठांजी ४ जुगतोधरी संव सतियां सिरमोड ॥ भवदुःख भंजन ॥ विचित रंजन॥ अरिगंजन अघतोड ॥ मोड दिया मोहंटल फंदा॥द०॥१३॥ तौजां ५सती 'सुहागण ब्रह्मण हस्तु ६ उदैकवार ७ लखुजी ८ इमरतांजौ । भजभुरांजी १० ब्रह्मचार ॥ जडावजी ११ से जोडमयाचंद ॥ मखतु १२ रहीकंवार ॥ चांन्दा १३ सति सुहागणपति इश्वरजी संयमलार ॥ उ० वौगं १४ नडावां १५ लक्षमा १६ दोली १७ सुतसंगधार ॥ फूलकवारी १८ चंदणा १६ चिमना २० चोथां २१ ग्याना २२ सार ॥ तारनांनु २३ 'मुजहंदा० द० ॥ १४ ॥, हरखु २४ कुनणा २५ रोधु २६ तौजां २७ साकर २८ सुन्दर २९ सार ॥ सतिसुहागण मानकंवर ३० कुसमांनी ३१ सतिकुंवार ॥ कसुर ३२ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४४ '] चंदा ३३ बिहुपरणी गंगा ३४ सोरैकुंवार॥ फलांजौ ३६ महादेवां ३७ सुहागण ॥ रायकुंवर ३८ ब्रह्मचार ॥ उ. कस्तुरां ३६ ईदोरको ॥ मोजा ४० जयकवार ४१ बर'जुजी ४२ ॥ नंदु ४३ छोटांजी ४४ सिरदारां ४५ प्राणा ४३ धार ॥ तारहौरां४७ गोगंदा ४८ द० ॥ १५ ॥ चंपाजी ४६ वोरावडकरी कस्तुरां ५० भामेट ॥जडाव ५१ सौरैकंवर ५२ 'बोराबडतोजा ५३ बकाणीनेट ॥ टुजीजमां '५४. सतिचोपनमी । जोत वारा लगठेट ॥ हिन मुनिमघराज बारैनौ ढाल गायकर भेट ॥ उ. लौछमाजी १ ब्रह्मचारणी ॥ नानु २ कुसम ३ राजान ४ नोलां ५ नोल मुनिक लारै॥ लियो चरण गुणखाण ॥ जाणसे जोडदिमंदा ॥ द० ॥ १६ ॥ किस्तुणं ६ गोरांजी ७ नोजां ८ सिणगारां मधुजी१० सति जुहाग ११ सुखां १२ भजल्यो । सिण Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [3] गांरां १३ फुनटुजी ॥ अम्मा १४ रुखमा १५ फूलो १६ गोगां १७ कालांजी १८ पै फूजी १६॥ बालब्रह्म चारणजीतांजी २० रायकंबर २१ रुपूजौ २२ उ० ॥ धन्ना २३ सुत्तसंगसंयमी ॥ चंदा २४ गुलाब कुंवार २५ ॥ हौरा २६ भजो छोगांजी २७ सुव संग कानकंवर २८ ब्रह्मचार ॥ सार छोगा ३८ सुखकंदा ॥ द० ॥ १७॥ सेरा ३० सति गंगाजी ३१ सुतसंग भजल्यो सति जुहार ३२ ॥ भौखां ३३ सति सुहागण मौरा ३४ तोजोसति सिणगार३५॥ केसरजौ ३६ छोगां ३७ वौदासर ॥ सूजांजौ ३८ सुखकार ॥ जडावजी ३६ आसांजी ४० तोजा ४१ जीता ४२ बोजौधार ॥ उ० ॥ पैफा ४३ चानांजी ४४ भजो ॥ सिंणगांरा १५ चोथौ जाण ॥ पैमा ४६ दुसरी सुगनां जो ४७ लग॥ सात चालौस पौछागण ॥ अणि पुरणमल नंदा ॥ द. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [४ ] ॥१८॥ मांणकहद प्रथम लिकमांजी १ विरधा र हस्तु ३ धार ॥ सति सुवटां'४ जड़ाव ५ कंबरा ६ रामकंवर ७ करपार बरजु ८ सोनार सति सुहागण ॥ नानु १० निजरकंबार ११ मधु १२ चूना ॥१३ टुजी सोना १४ अणची १५ बाला १६ सार ॥3. धन्ना १७ चांना १८ लगनमुं ॥ षष्टमपठदश पाठ ॥ अब कहुंहजुरी ढाल सात्यांनी ॥ मेट भर्मओचाट ॥ काट मुज मवके फंदा ॥ द. १६ ॥ सासु १ बहु २ बेहुं नांव दाखांजी वहु सुहागण ख्यान ॥ कालुरामजी पतिसे जोड़े सुत्त सक्तमल साथ ॥ सति सुहागण नमुनाथांजी ३ ष्टयौराज मुनिहाथ ॥ खेमुंजी चंफा ५ इन्द्रजी ६ ओशवंश अखियात ॥ उ० रभो ७ सति सुहागणी ॥ सौरीपालस जोड़ ॥ सुताखुमाणा ८ संग कुंवारी ॥ लाड कंवर ६ कर कोड ॥ छोड़ दिया' सगपण Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । [४० फंदा ॥ द० ॥ २० ॥. इमरता १० सुन्दरजी ११ भूरा १२ सुगना १३ सुगण अपार है दुनी इमरतां १४ होरां १५ सुखां १६ हेतु १७ तखता १८ तार ॥ पैफांजी १६ सोना २० सुखदेवां २१ केसर २२ सेरां २३ सोर ॥ रतनांजी २४ चानाजी २५ भतु २६ लाक्षा २७ चंपा २८ धार ॥ उ० नमना २१ जलजिम निरमली ॥ लिछमांजी. ३० {मास ॥ टुजौचानां ३१ भेजो हगामा ३२ सति अमे दां ३३ खास ॥ पास पन्नालाल मुनिंदा ॥ द० ॥ २१ हेमांजी ३४ पन्नाजी ३५ मघां । ३६ नीवुजी ३७ जगतार ॥ मोलांजी ३८ एजणजी ३६ भजल्यो। बखतावर ४. सिरदार ॥ ४१ भजोहगामा ४२ भूग ४३ग्यानां ४४ ॥ छोगो ४५ पुबीलार ॥ -परताबांजी ४६ भनो सुवटा ४७ दाखांजी ४८ दिलधार ॥ उ० जडाव ४६ फूलांजी ५० भजो Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४८] 4K फनजडाव ५१ . दोनुधार नोजांजी. ५३ लाभुजी ५४ दिरयां ५५ इन्दु ५६ दुजौतारण सारगोगां ५७ सुखदा ॥ द० ॥ २२ ॥ बगसु ५८ मुगना ५८ हुलासांजी ६० फन॥ मंगk६१. पुरमेवाड ॥ भूरां १२ पलाणौ ॥ गोगांजौ ६३ फ न ॥ भूरां ६४ टोटगढवार॥ पारबतां ६५ जतना ६६ भजचानां ६७॥. सोना ६८ बेहंसंगधार ॥ जडाव ७८ चोथी मनोहरकवरी.७० चरणभाइकोलार ॥ उ० भूरां ७१ चानां ७२ नानु ७३ तिहुँ । साथे संजमभार ॥ हुलासांजी ७४ संगकेसर कंवरी ७५ अतिबालक हुसियार ॥ धारचणं लियो मुनिंदा ॥ द० ॥ २३ . सरदार सहर की. सतिजडावा ७६ रोणांसुन्द्र सोअंती. ७७-बीदासर कोभतु ७८ सुतासंग मखु ७६ मुखमुलकंती ॥ सिरसांजी ८० दाखाजी ८१ चोथी. दुजी ग्यानी ८२ गुणवंती॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३] नांनुजी-८३ पारवतां ८४ वेहं चरण संग पुनवंतौ ॥ उ० अजबु ८५ चंपा ८६ तीसरी सति पियारां ८७ सार ॥ हरु ८८ दाखां ८८ मा जादू बैनां चरण संग लियो धार ॥ सार संयम सुख कंदा ॥ द० ॥ २४ ॥ राय टषि बारानी भजल्यो ॥ सतियां दोय जगौस जीत बाराना संत चठारा सतियां युग सांत बोस ।। मुनि मघराज अाद संत चवधा ॥ सतियां सात चालीस ॥ मांग का हद मुनि नव निधि सम ॥ सत्यां तास विमणीस-उ० वारै हजुरौ जांण ज्यो ॥ संत ठाणां सतावीस ॥ सत्यां नव असीधर जुमले ।। ढाइसो नै अठबीस ॥ बीस सात . गुणां धरंदा ॥ द० ॥ २५ ॥ चौमासो प्रथम पचपन को सहर लाडणुं खास ॥ छप्पनको सरदार सहर ॥ सत्तावन को बौदास ॥ अठाव नो रानाणो नारी आप कियो प्रकास ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १४ ] गुण सठ साल जोधपुर | साठे सुजाणगढ सुख वास ॥ उ० इकसठ चूरू फुन लाडणं बासठ बीजी बार सरदार सहर वे सठको ॥ चोसठ बिदासर सुख कार ॥ वार अब म्हांरे सुनिंदा || द० ॥ ॥ २६ ॥ चोसठ माघ सुदो बुधवारौ ॥ चोथ लाडं न्हाल || बैद उदैचंद जोङ बगाइ ॥ संत सत्यां गुणमाल ॥, मैं तो म्हांरी जाण मैं सकांइ ॥ अनुक्रमें कही ढाल || आघो पाछो नाम हुवै - तो ॥ कृपा करो दयाल || उ० चोमासैको अर्ज है ॥ पूरो मनरा कोड राजा रौं का साया पुज्यसे अर्ज करे कर जोड | मोड सिरनमण करंदा० ॥ ॥ , द० ॥ २० ॥ इति• - अथ श्री डालचंदजी महाराजके गुणां को ढाल० रागथियेटर को ० हाय सितम गजब हुआ सापुंने मुजको डस लिया ॥ इहांसे खाये इहांसे खाये इहांसे 1 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • [१५] मुजको तोड लिया । नौलाबदन मेरा हो गया। साघु का जहर चढ़ गया। हाय. एदेशी ॥ वांम चर्ण सर्ण तरण ॥ कर्ण भव पार है। एआंकडी॥ भिक्षु पाट सप्तम थाट ॥ गहगाट गंण माट॥ मिथ्याः छोत खोत धोत ॥ पोत इस धार है ॥ खां०॥ १॥ गुण छतीस बुध वतीस॥ तजी रीस विश्वा वीस ॥ नानखांन मोठीवांन॥ जिम क्षीरोदवार है ॥ खां० ॥ २॥ अहो तुज सांति दांति शांति क्रांति कौर ज्य॥ देखत पेखत परमानंद॥ भविक मन मझार है ॥ खां ॥ १.३॥ अध हटार कर्मविडार ॥ संगत सार तात सम ॥ सोहनी सूरत मोहनी मूरत ॥ इहा पूरत मंदार हैं। खां ॥ ४ ॥ गरीब निवाज ताज आज ॥ साज काज दुःख भाज ॥ दीनदयाल - तु होः कृपाल ॥ अरज निहाल सार है। खां० ॥ ५ ॥ शिव Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] वधु बरवा मवदधि तरवा ॥ करवा तन कल्याणको ॥ टुक महर करी भव फेराहरो॥ तुम चरण सरण जगतार हैं। खां० ६ ॥ दौना नाथ साथ आधं ॥ वार२ जोडी हाथ पल २ वंदु पाप निकंदु ॥ भेटत तुमदी दार हैं ॥ ७॥ खांम० ॥ इति टुलीचंदजी . साम सुखा कत पूज्य गुण वर्णन समाप्त ॥ .. अथ ढाल लोख्यते देसी कृसन गुजरी का ख्याल को : दान देजा गुजर चंद्रावली मोय दान देना गुजर चंद्रावलौः दान हमारो देजा गुजरी जब जाणे ९ आगै व्रज भोम चौरासी बन मै दान हमारो लागेः दान देजा इण चाल मांही छै० डालु गणी फुली है गण फुलवारीः गणौ तोरी फुलौ है गण फुलवारी ॥ एआ. श्री भिक्षुक सप्तम पाटे ॥ डालम गणी बनमाली ॥ अहो खामी श्री भिक्षु के सप्त Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ] मैं पाटे ङालम गणो बन माली ॥ नंदन बन समएह गण नौको सदा रहो खुसयाली ॥ गणौ ॥ १ ॥ संत कुंड सुर तकसा सांचा | श्रावक तरु श्री कारी २ ॥ चिना बेल नाविका सर २ ।। द्रह बौर मुख करुणा बारि । सौंचत सम कित मूल २ ॥ सीमां श्रीट कोट करणीको । तप संजय है फूल || गणि● || ३ || सिचा सूर करत अतोसखरी । कामे कुबदा व्रण पूर २|| ज्ञान गौलोल गोफणीगेरौ । करता बाहर क्रूर लंगूर | गणि० || ४ || सुयश सुगंध छायो विह लोके रहे इंद्रादि लोभाइ ॥ अलौ मन ङालु पंकज सेवी । ल्यो फल शिव सुखदाई || गणि ०||५|| गोर करि नै चरनौ सुणियो नैपुर सहर पधारी ॥ चावग मोर कसौ घन जोवे तो चावै नर 3 श्रमणि है चावि । क्यारी ॥ गणो ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१६] नारी ॥ गणि०॥६॥ बेद रितु गृह सशि भर अदवे सित तपा सप्तमी सारौ॥ सुजाणं मल्ल सुरौ गुण गायाँ । लाङणु सहर मंझारी गणिः ॥ ७॥ इति. ___ अथ श्री भिक्षणजी खामी के गुणांकी ढाल ॥ श्रावक सोमजी कृत श्री जिन आणी सरधाराखौ ॥धरि हंत ज्यं आचारो हैं। मिथ्यात रूपौयो मोटा मुनिखर मेट दियो अधकारोरे॥ को धारोरे २ श्री पुच्च शिक्को शिर धारीरे ॥ १॥ ज्य. को हरो रण मै जुमौ ॥ ज्यं अजियां बिच ब्हारो ॥ ज्य, जिन मत्तमैं पुज्य भिक्षण जी॥ पाषंड पोलण हारोरे । कोइ० ॥२॥ घाट घट्यो मिण शिको पड्यां बिन । कुण झेले हाथ मझारो ॥ ज्युं समकित शिक्को पुच दियो जब ॥ चाल्या तीर्थ च्यारोरे ॥ कोडू ० ॥ ३ ॥ जयं काष्ट को ज्याझ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tte ] चलावे || समुद्र मांखे फारोरे ॥ शोभ कहै थाने भवसागर थी || श्रीपुज्य उतारै पारोरे ॥ कोई ० ॥४॥ पाषंड फूटोज्या सरीखां लेडूवैला लारोरे ॥ असल साध भिक्षणजी स्वामी || निराधारं आधारोंर || कोई ० ॥५॥ श्रीपुज्य भिक्षणजोरी सरधा सुगियां ॥ पडे पाखंड मुवोरोरे || चेला चेली खोया कुमत्यां करकरकनिया कांरोरे ॥ कोइ० ॥६॥ साँध गुणां बिन हिज लूटै ॥ धाडोरे ॥ श्रीपुज्यनी चौडे बतावै परतच पाडे }} अबतो आंख उघाडोर || कोई ० ॥ ७ ॥ तौर्घथापौने धर्म चलायो || नायें बोरनो बारोरे ॥ चौथे चारे बौर प्रगटिया || श्रीपुज्य पंचम आरोरे ॥ कोइ० ॥८॥ ज्योपर भवमै सुख चाहोतो || मानों शोभतणो मनुहारोरे ॥ नहीं मानों तो जोरौदावे ॥ देव पीठ परिहारोरे ॥ कोइ० ॥ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३०] शोभ बचन थी बेमुख हुबोतो ॥ सुब अर्थ शंभारोरे ॥ दश दृष्टान्ते दुरलभ लाधौ॥ ते नर भवकांडू हारोरे ॥ को० ॥ १० ॥ एक दमडौरी हंडिया लेवेतो ॥' कर प्रिक्षा च्यारोरे ॥ पिण सत्तगुरुने पाषंड सत्तरो॥ पाप्यां काढो नहिं निस्तारो॥ को० ॥११॥ पतिमूनां पर बिधवा हुवै ॥ तेसम या सिणगारोरे॥ ज्यूंमुढ़पणैमें मग्न भयापिण ॥ नहीं संत सिर दारीरे ॥ कोद. ॥१२॥ डाकण थकूनै कपड़ा नाखै ॥ बलिहुवै जरख असवारोरे ॥ ज्य ग्रहस्थनै पाषंडी मिलिया ॥ किम उतरै भवपारोरे ॥ कोडू० ॥ १३॥ शोभ कहे में एह सरीखा गुरु ॥ पाम्यांलाख हजारोर ॥ श्रोषुज्य बिना भवभवमै पचियो ॥ ज्यभडभेजानी भाडोरे । कोइ० ॥१४॥ पाषंड मतमै काल करै तो ॥ मावै नर्क मंझारोरे॥'परमांधामी देव नर्कमें। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२१] । देमुगरनौमारोरे । कोइ० ॥१५॥ कुणराजाने कुणग्रहपती ॥ बाल्या जन्म विगाडोरे ॥ काल लपेटा लेय रह्यो है ॥ अब तो आंख उघाडोरे। कोइ० ॥१६॥ हंडानामें काल अवसरपणी ॥ महा दुःखमी आरोरे ॥ असल साध थे कठिन कह्यापिण ॥ एमोटा अणगारोरे ॥ कोइ० ॥ १७ ॥ पुज्य पिटारो बैगुण भरियो। ज्य मोवियनको हारोरे ॥ शोम कहै श्रीपुज्य बुद्धिको ॥ नहीं खूट भंडारोरे। कोइ० ॥ १८॥ शांशण नायक श्रीपुज्य जी॥ अरिहंतज्य इण आरोरे ॥ शोभ कहै श्रीपूज्य सरीखो नहीं कोई भर्थमंझारोरे॥ कोई० ॥ १६ ॥ इति. अथ ढाल श्वार्थ सिद्ध के बरणनको । दूग्यारैसै जोजनरौ महलायत । तेरतना सेती जडियाजौ ॥ साध पणो सुध ने नर पालै । त्यारै पानै पडिया जी ॥ इण खार्थ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२२] सिद्धरे चंद्र वै कांई। मोती भंबक शोहै जी ॥ १॥ तसु झंवकरै बिचलो मोति ॥ चोसट मणरो नाणों जी॥ च्यारू मोती तास पाख तौयां। बतौस २ मणरा बखाणी जो ॥ इण ॥२॥ तेहनै पाखतीयां अति निर्मल। सोलै २ मणरा अठ मोती जी ।। सुदरता देखी हियोहरूँ ॥ आंखडल्यां रहै जोतीजी ॥ इण ॥३॥ तमुपाखतीयां सोले । मोती ॥ त्यामै आठ २ मणरा भारिजी सोभा अधिक बिराजै तेहनी॥ दौठो हर्ष अपारीजी॥ इण० ॥४॥ बतीस मोती तास पाखतीयां च्यार २मणरा तोलोजी ॥ जीवंता टप्त नही हुवै॥ मोती घणा अमोलो जौ॥ दूण ॥५॥ तास पाखतीयां चौसठ मोती ॥ ते दोय २ मणरा तासो नौ ॥ तेज उद्योत करै तिणठामै ॥ त्याछै घणो प्रकासो जी॥ इण ॥ ६ ॥ त्यां पासै मोती मण मणरा ॥ एक सोने अठाइसो Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२३] जी ॥ भूख दृखा मिटै तस देख्यां ॥ भाष गया जगदीशोजी । दूण ॥ ७॥ दोयसोने तेपन मोती ॥ स्वार्थ शिद्दर गिणियां जौ। विसला नंदन वीर जनस्वर केवल ग्यानी धुणीयांजी ॥ दूण ॥८॥ वायु जोगे सौती • श्राफलतो ॥ तोड़ मोती मूल न फुटैजी । मोठा सब्द गहर गंभीरा । त्यां मोत्यां मै सु उठे जौ ॥ दूण ॥६॥ ते सदा काल शाखता मोती ॥ त्यां नै पवन चलावैजी॥ मधुरा सब्द त्यां मै मुनिसरें। ते सुर नै घणा सुहावैजी ॥ इण• ॥ १० ॥ जाणै बतीस विधि नाटक पङ छ। विविध वाज्यंतर सोहै जी ।। छतीस रागणी त्यां मां सु नौकलै ॥ ते सुरना मनडा मोहै जो इण० ॥११॥ बूर बनस्पति नै पोल रूदूरो॥ एसी ओपमां न्हालोजी ॥ माखण नै रेसम ना लच्छा ॥ तिण स्यूं सेज घणी सुहाली जी ॥ दूण ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२४] १२॥ तेतीस हजार वर्ष नौकलियां ।। भूख टखा मनस्या थावैजो ॥ सास उसास थी नीचोमूके ॥ पक्ष तेतीस जावैजौ ॥ दूण ॥ १३ ॥ अवधि ग्यान सुनौचो देखै ॥ नक सप्तमौ हेठे जौ॥ अंचो देखै ध्वजा पताका ॥ तिर्यो ठेटो ठेट जी ॥ इणः ॥ १४ ॥ सवार्थ शिवना सुख भोगवतां ॥ हर्ष बिसवा बोसो जी॥ त्यां एक धारा लेह लीन रह्याछै ।। सुर सागर तेतीशी जी ॥ इण• ॥ १५ ॥ तिण ठामै जे जाय अपना ॥ तेसगला एका अवतारी जी ॥ ते देव चबीनै मनुष्य बहुवै ॥ मोटा कुल मंझारी जी ॥ द्वण ॥ ॥ १६ ॥ साध पणो सुध चोखो पालै । वेद्र सडौ महलायत पावै नौ ॥ थोडा दिन मैं करणौ करनै॥ चवनै मुक्त सिधावै जी ॥ इण० ॥ १७ ॥ इति.. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) || स्वामीजी श्री सतमलजी कृत ॥ अथ श्री डालचंदजी म्हाराज के गुणां की ढाल ॥ पहलौरागः ॥ अपत्सरा करती चारती जिन आगे । हांरे जिन आगरे प्रभु आगे एदेशी ० डाल गणि नित सेविये सुखकारी। हर सुख कारौ रे सुखकारी । हारे थांरी मुद्रा मोहन गारी । हांरे थांरी चरण कमल बलिहारी । डालगण नित सेविये सुखकारी ॥ ए मां० भिक्षु पाटे सप्तमें यश धारी। हां रे यश वारीरे यश धारौ । हारे एहतो साहस जिन अवतारी । हां रे थांरी जगमें कीरत भारी शोभ रह्या चिहुं तौर्थमें सुखकारी ॥ हां रे सुख• ॥ २ ॥ नयर उजेगी दीपती कान के नंदा। हांरे कान के नंदा रे गणि नंदा || हरि धारो मानंद पूनम चंदा । हरि थाने सेवै सुरनर वृंदा ॥ परतच्च देवतख संमां सुखकारी ॥ हारे सुख• ॥ २ ॥ नवके Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) जन्म गणिराजनो। तेवीसै संयम धारी! हारे संयम धारीरे प्रवा धारी ॥ हारे हुवा पंडितां में मुबिचारी। हारे एहतो चौपन पट अधिकारौ ॥ सयल जन कर रह्या क्षमा क्षमा सुखकारी ॥ हारे मुख० ॥ ॥ ३ ॥ गुणषट् टसोपता । असठ संपदा सोहै । हरि संपदा सोहैरे संपदा सोहै। हारे भविपेखित हरषित होवै ॥ हरिगणि चंद चकोरञ्य जोवे । सोहत षोडसं भोपमा सुखकारी ॥ हरि सुख० ॥४॥ सारकतारक आपछोगगिधौरा । हारेगणिधीरारंगणिधौरा० हारे तुमसिंधूजेमगंभौरा ॥ हारे मैंतो पाया अमोलकहीरा ॥ गंधहस्तिज्य पुरषोतमांसुख कारौ । हरिसुख० ॥४॥ दयालगवाल कपाल छोमणि मेस। हारे गणि मेरारंगणिमेरा. हरि मैंतो सरणलिया प्रभुतेरा ॥ हरिमुज मेटो भवभवफेरा। तुमसम नहीको भर्थमा Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखकारी॥ हारेसुख० ॥६॥ संम्बतउगणीसै चोसठी सरोकारो । हारेसरोकारोरे महाप्यारो॥ हरि दितिया कृष्णा सोमवारी। हारे सक्तमल हर्ष अपारो। गुणगावत महामहोत्सवमा मुखबारो ॥ हरिसुख० ॥७॥ इति • __ अथ ढालर टुजी राग० माताजी सभा दर्शन०एदेशी हांजीगणी भिक्षुगणोक पाटकै सप्तम सोहताहो खाम ॥ हांजी गणी पेखत तुम दीदारकै भवि मन मोहता हो वाम ।। हांजौ भवि जपो पूज आनन्द मनिंद मनोहरू हो खाम ॥१॥ हांजी गणि- सदन बदन छिन छाजतरानत चंद्रमुखी होखाम॥ हांजीगणि तुम तारण मुनि नायकै सांसण गण अखो हो खाम ॥ २ ॥ हांजोगणि गुण षट वौंस उदारकै ओपम षट् दस ऊपती हो खांम ॥ हांजी गणी बसु संपद बपुधारकै भक्त उदारण नित प्रतौ हो खाम ॥३॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ( 8 ) हांजी गणी बांगो पति सुखकारके सरस अमृत सहि हो खांम ॥ हांजी गणि श्रवण 'सुणत अति प्यारकै बहु सुख पावही हो खाम ॥ ४ ॥ हांजोगणि तुम गुण अपरम 'पारकै स्वयंभु रमण नेहवाहो प्रवांम ॥ हांजी गणि किम कहिय लघु बुद्ध अधिक गुण गेहवाहो श्वांस ॥ ५ ॥ हांजोग वेद ऋतु ग्रह चंद्र मोष्ट सुक्का - वयोदशी हो खांम ॥ * हांनी गणि सतमल गुण गायकै तन मन , हियो हुलसी हो श्वांम ॥ ६ ॥ इति । अर्थ ढाल ३ तीसरी राग० घुम घुमलो गाघरो म्हांरौ एङौलुलर जावैहो लाल पदेशी ॥ पंचमः आरे भर्थ मंझारे प्रगयां भिक्षु पवतारौ होलाल || न्याय मार्ग सुद्ध बताविभषि मंजन किव निसतारो होलाल । हो जसधारी खांमनौ । थांरो महिमें महिमां भारी हो | लाख || हो सुखकारि वामनी । थे तो 1 * Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) तसप्तमपट अति सुन्दर | सादृसमांनुजेम पुरंदर । शिवछाजतुहै गणवास्तलकरना। लगरह्यो जियरोहमारो गणिवर्णा । वसरधो जीयरोहमारो गणिचरणा० ॥१॥ सरद ससाक बदनशिवसोहै। भविजन चन्दचकोर जुजोवै। वारौजावुनौसुरतियां है मनहरनां ॥ ल. ॥२॥ पांण अखंडन सांसण मङन ।। मिथ्याध्यांत हरणजं मारतंङन । तोरेदिदार निरखेसे शिवपदवरना ॥ ल०॥३॥ वेताषट् मतविवधयौनाणो रसभाषानां समयसुजाणी । तोगवाक्य श्रवणते मिटतभव फिरना । ल० ॥४॥ संवत उगणीसे पेंसठ मासे । तपाश्वत मुनि पाणहुलासे । सत्तामल तोरा लिया है सरणा ॥ ल०॥५॥ इति. __ अथ ढालः ७ सातौं राग० कहगया नांहि मुणग्या मनकी बात कोई म्हे लांको मेवासी० एदेसी० पंचम अर्के प्रगटे भौक्षु Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७० ) " खांम । कोई तमुपट सप्तमै राजैजी बिराजै पूज परम गुरु । देसमालवो नगर उजेगी तांम ॥ कोई कनईया लालके नंदोहो । मुख चंदाजेम पुरंदरु || १ || मात, जडावा ननम्यो सुत सुखकार । कोई सज्जन मन बिकसावे जौ । यशकायोनेम जिनंदनो ॥ कोई भविजन पेषत गणि तुम दौदार ॥ तनु लोम २ हुलसाजी | बरध्यावै ध्यान, गणि' दनो ॥२॥ हरीयरजिम अति गूं जैङालगणीं । कोई तब कौरत अतिभारीजौ | बिस्तारौ चिहुं तौर्थ मे मिथ्यातिन्न विध्वंस जेमदिनंद | भानू समक्रांतौथा रोजौ । जगनहारोईह भर्थमै ॥ ३ ॥ वाग्रत वांणौगणी अमीय समान । कोई जिम वर्षे सहश्राचजी तिमगगोपाखैवाण अपु वही । वंछित पूर्ण हरीचंद्र समजाय ॥ कोई मेरुतौ पर धौराहो । गंभौरा स्वयंभु रमयही ॥ ४ ॥ मधुकर मन चाहत मकरांद | I Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) कोई गोप्याँके नंदलालोजी तिमगणी वालो सुज ने सहौ । अहो निस ध्यावत कांनन । गयंद कोई सियाके रघुरायोनी ॥ तिमगणो मन भायो दास तुज सही ॥ ५ ॥ एक रसना करोकेम कहिवाय । कोई अमर पती ज्यो आवेजी गुण गावै सहस्र जिह्वा करो । गुणतो अगणित पारन लंघाय । कोई एहवाकै मुज स्वांमौहो । महौ नांमीश्रष्ट गुणांवरी ॥ ६ ॥ ईद्रौ रस निधि चंद्रोदय मांय । कोई प्रथम कृष्ण जेठसासेजी ॥ थई हुलासे गणि गुणगावीया । कोई सक्तमलगणि स्तवन सुगाय । गणि वरना गुण गायानी । सुखपाया भविमन भावीया ॥ ७ ॥ इति० ॥ स्वामीजी श्रीकनी रामजी कत ॥ थौडालगणि गुणाको ढाल० राग० खेलण द्यो गणगोर भंवर मांनैनिर खा दोगण गोरजी म्हारिसहियां जोवैवाट भंवर म्हां ॥ एदेशी Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) सातमो पाट भिक्षुगणो केरोङाल किंयो उजियार || आण अखंडित सांस मंडित सादृस जिन अवतार ॥ साहस जिन अवतार थयाधिप साहस जिन अवतार ॥ जीथांरि महिमां अंगम अपार ॥ गणांधिप सांभलतां सुखकार ॥ १ ॥ नयर उजेणौ मनोहर बारु कान कुले अवतार ॥ मात जंडाबां रे कुक्ष उपना बरत्या जयश्कार । बरत्या जयरकार गणांधीप बरत्या जयर कार ॥ जीथांरौ महिमा ॥२॥ नवके जन्म प्रभु तुम पाया ॥ तेवौसे चर्णधार ॥ चोपन गणपद पांट विराज्या || चहुं तौरथे हितकार ॥ जहं तिरथ हितकार गणां धिप चहुं तौरथ हितकार ॥ जौधारौ महिमा ॥ ३ ॥ पाट विराज्या सिंह जिम गाज्या देसना अमृतधार ॥ भविजन सुगर नै प्रति इर्षे पेखत पुज्य दिदार || पेखत पुज्य दिदार गणाधिप पेखत पुण्य दिदार | जौ धारि ॥४॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३) षोडस श्रीपम चोपत सखरि षट् तीस गुणके धार ॥ अष्ट संपदा सोहत सुंदर सोम मुद्रा श्रीकार ॥ सोम मुद्रा श्रीकार गणांधिप सोम मुद्रा श्रीकार ॥ नीधारी० ॥५॥ अन्तरजामी तुम गुन सिन्धु वंछित फलदातार महेर करिने चणीराखो उतारो भवपार । उतारो भवपार गणाधिप उतारो भवपार ॥ जौधारी ॥ ६ ॥ उगणीसै पेंसठ माहा वदि दूज चन्देरो सहर मंकार पाटमहोछवनौ छब अतिभारि हर्षत भवि नरनार ॥ हर्षतभवी नरनार गणाधिप हर्षत भवि नरनार ॥ जीथांरि ॥ ॥ इति ० ॥ महा सतियां श्रीचांदकंवरजी क्वतं ॥ अथश्री डालचंदनी मांहाराजके गुणांकी ढाल पहलौ राग० सोनारो घड़लो रूपारी इढाणी ॥ लालजी० गूजर पाणीडै नाय ॥ लालजी० एदेशी • भिक्षुपंट सप्तम छानताही । खामनी • डालचंद महाराजर। खा० भब Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४ ) दधि तारण वहाज । खा०॥ दूल्हापर भवर न भान ॥ श्वा० ॥ पूज प्रमेसर थाने घणी क्षमा ॥१॥ नगर उजेणी सखर सुरंगी.॥ खा. कान्ह कुले उतपन | खा० मात जड़ा वां धन ॥ श्वा० ॥ जेहनोहै पुत्र रत्न ॥ स्वा० घणारे उजागर थानै घणी क्षमा ॥२॥ गुण षट् हसनै षट् दस ओपम ॥ स्वा० ॥ संपद पष्ट सनर ॥ स्वा० ॥ सुर गिर जेम: सधीर ॥ स्वा० ॥ निरमल गंगानौर ॥ स्वा० ।। तेज दिवाकर थानै घणी क्षमा ॥ ३॥ रसि मंडल बिच तखत बिराज्या ॥ खा. सक ज्युराजै तायः खा. पेख छटा बिकसाय । स्वा मनु, मधुकर लोभाय ॥ स्वा० जग, यश धारक यांनै घणी क्षमां ॥४॥ पंचानन माकम कसैहो ॥ स्वा० पाखंड दियारो हटाय ॥ स्वा पुनवंत भेया. पाय ॥ स्वा० रह्यो तुन . भुज छत्र छांय ॥ स्वा० भगत उधारका थाने Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५ ) घणी क्षमां ॥ ५ ॥ सुंदर कोमल मधुर मनो हर ॥ स्वा० देशना असत रूप ॥ खा. से निसुणे धर चूप ॥ श्वा० ते न पडै भव कूप ॥ खा० ॥ भव सिंधु तारक थाने घणो क्षमा ॥६॥ मुज चित तुज चरणा बस्याहो ॥श्वा॥ षट् पद पुसप सुगन्ध ॥ खा० ॥ ज्यं मोरां धन बुन्द । खा० ॥जेम चकोरा चंद ॥ श्वा० आज मयो आनन्द ॥ श्वा० बंछित सार कथांनै घणी चमां ॥ ७॥ चिंत्यामणी सम नाम तुमारो॥ खा. कल्पतरू रंजीवार ।। पूखा०॥ पाप तणो पाधार ॥ खा. दौज्यो पार उतार ॥ खा. विरद विचारक थाने घणी नमां ॥८॥ संतियां मांहे सखर सिरो मण ॥ खा० जेठाजी यशधार ॥ खा. धणि सुभ दृष्टि उदार ॥ खा. धन्य जेहनो पव तार ॥ बा. पोस दसमी श्रीकार ॥ खा. पार उतारक थानै घणों क्षमा ॥६॥ इतिः ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६ ) ढालर दुसरी राग० आई ए सावन मास सखोरी पवनवाजता सरणणणं ॥ चड तरफ सुं घटाज उमटी इन्द्र गाजता घननननं ॥ बड़ी रे बुन्द वर्षी रोतु बर्षे बीजली चमके कननननं ॥ पौउर पपइया बोलै भरना कर रह्या भननननं ॥ एदेशी० ॥. मंच मैं अरके प्रगटे भिक्षु मिथ्यातम भ्रम हरणणां ॥ तिमल अनोपम युगल नाण, श्रीजिन आणा शिर धरणणणं ॥ भिक्षु, स्वास तो हृदक्यारी मेरो म्हा सुख करणय ॥ आराध्यां भव जलद उद्धरे शिवपुर सुंदर बरणणणं ॥ १ ॥ दुतिय पाट गुरू माल गणांधिप ॥ नृप इंदु जय सरणणणं ॥ - मघवा गणि मनोहर मुद्रा मांणक जनमन हरणगणं ॥ गणि महाराज तणो नित · कौजे समर्ण' महा सुख करणणणं ॥ हरण जन्म जरा मरण तथा दुःख ॥ शिब ॥ २ ॥ • Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७ ) रसपट ज्य गछाधिपराजै ॥ पद मन मधुकर जपनननं ॥ सरद शशांक समो मुख सोहै। उदियाचल जिम तपनननं ॥ डालं गगाधिपनो नित लीजै ॥ सरण सदा सुख करण णगणं ॥ हरण कर्म रोषु करण संपदा ॥ थिव ॥ ३ ॥ मदन जिसौ सन मोहनी मुद्रा !! धरा विच जिम धरणगणं ॥ सभा सुधर्मों सकतणी पर कौरत छाई घगागागाणं ॥ डाल गणि सरना नित वाजे जग यश डंका भणगाणणं । पेखी रचना समो सरणनी ॥ पाखंड भाजै भरणगाण ॥ आ. शिव० ॥४॥ तेजुल ड्र समोतप देखो। कुमति लता गडू फननननं ॥ काम क्रोध सदलोम हटाये क्षांति इसी कर धरणगण॥ पुज्य प्रमेश्वर के नित भेटो चरणांवुन दुःख हरनाराणं । पाल्प तर चिंत्या मन पारस आरा ध्यां सुख आन नननं ॥ ी. शिव०१५। सघन पवन बर्षारितु Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ " बरषै देशन महा सुख करणणणं ॥ सरश्वति कंठे भरण बिराजै॥, हर्ष लेडू जन मननननं ॥ डाल गणाधिप नोनित शांभल बयन रयन हित करणगाणं ॥ अमृत रुपण अधिक अनोपम ॥ उभय बयण सुख सरणण रणं ॥ आ.शिव० ॥६॥ कोड दीवाली तपो स्वामजी ॥ ए अविलाषा मननननं । सतियां में जेठांजी सोहै। घणी मरजीअति, घननननं। उगौसै साठे गुणगाया सहर बौदासर सरणणणं ॥ माघ मोहोत्सव दिन ए नौको रखो मुनिजर नयनननं । आ. शिव० ॥७॥ इति । ___अथ ढाल३ तीसरौ राग. हम तो गई । थी पनियां भरनकं २॥ मेरा यांहीं रह्यारे॥ ओर्टपै हरि ओलंपै ।। बिछवा यांही रह्या ।। मेरी भोली नंनद मेरौ स्ानी नंनद ॥ टुंटि भाय पाई अयां ढूंढि आय आई ॥. वि Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७e ) छवा. एदेशी ॥ जिनवर ज्य उद्योत करन क॥ जिनवर ज्यु उद्योत करन ।। मेग श्वाम छजैरे ॥ गणि डाल छजैरे ॥ गा दीपेहारे गादीपै ॥ गणपत धजा ज्वरे ॥ कौरत छाय रही मगमें धजा ज्यरे॥ मेरा गणिनो सुयश मेरा प्रवामनौ महिमा महकायरई ॥ बाबा विकसाय रही ॥ अया गरणांयरई ॥ मगमें धजा ज्य रे ॥१॥ सहस किरण सम कुमति हरणकु ॥ सहंस कोरण सम कुमति हरण ॥ मेरा वाम तपैरे।। गणिराज तपैरे शीतलता॥ हारे शीतलता गणपत चन्दा ज्य रे ।। सोभा ल्याय रह्या मघमें चंदा ज्युरे ॥ मेरा गणिनो सुयश ।। करुणा सिंधुनोपद नित ध्याय रहा ॥ बाबा बिकसाय रह्या ॥ अशा गुणगायरया मग में चंदा ज्यारे॥ सोभाल्याय रह्या जगमें चन्दा ज्य रे ॥ २॥ पवर बिधि व्याख्यान Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८० ) करणकु२॥ छटा जबर बोरे छिबभारी बीरे॥ पेखण कु हारे पेखण कु॥ गण पत घटा ज्वरे ॥ खामी गुंज रह्या गणमें घटा ज्यरे ॥ गणि बर्षे बचन सुणों हर्षे सुजन ॥ कुमति भूज रह्या ढौला पन्थी धूज रह्या ॥ अया पद पूज रह्या ॥ गणं में घटा ज्युरे॥ वामौ गूंज रह्यो गणमें घटा ज्यरे ॥३॥ भाग्य बलि अब मम हरणकु: २॥ गणि शक्री इत्तार भानो पकी जिसारे॥ सांसण हरि सांसणपे ॥ गणपत पिता ज्यरे ॥ पृथीपाल रहा गछनेपिता ज्यारे॥ गणि बोलें सुमत खलता खोङ कुमत ॥ मद गाल रह्या बाबां फेरा हाल. रह्या ॥ अया, गुण घाल रह्या ॥. गछने पिता ज्यारे ॥ ४॥ इति । ॥ राय कुवाजी म्हा सतियां जी कृत ॥ पथ डालचंदजी म्हाराज के गुणांकी Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८१ ) ढाल | राग० उठ चढ़ीनै लग्यो तावड़ी कर छतरीको छांयां मारा चांदः आपां दोनु मिल चढ़ स्यांजी ॥ मारा० घणामौजाजी चादनी वो थारौ सूरत प्यारोजी ॥ मारा. गुणका सागर चांदजी मारी भीड़ निभावोजी । एदेशो० ॥ भिक्ष सप्तमे पाट गणाधिप डालगणि यश धारौ ॥ मांरा खाम० जग हितकारौरे । मागं घणां उजागर श्वामजीरे थांरा दर्शन पाया २॥ मारा गुणका सागर नाथ जीरे ॥ मन हर्ष उमायारे॥ १ ॥. मात जडावां उदर ऊपन्यां कृष्ण कुले अवतारी ॥ मारा. श्या उपगारौरे ॥ मांरा जिन मघ मंडन वामजौरे थांरी सूरत प्यारीरे ॥ मारा कुमति बिहंडन नाथजीरे थांरो महि यश भारौरे ॥२॥ षट्श ओपम अष्ट संपदा गुण षट स उधारी॥ मारा.कौरत मारौरे ॥ मारा Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) सुमति बधारन श्वामजौरे थांरौ जाउ बलि हारीरे ॥ मांरा भविजन तारणं नाथओरे ॥ घारौ छटा सुप्यारोरे ॥ ३ ॥ समव सरण बिच जिन इन्द्रपर छटामनो हर छाजै ॥ मांरा० सिंह सम गाजैरे || मांरा घणो परतापी खामनीरे ॥ देखी पाखंड लाजैरे ॥ मांरा हो बड़भागौ नाथ जौरे थांरा डंका बाजैरे || १ || चिंत्यामणी सम चिंत्या चूरन आशा पुरण इन्दा मांरा० करण माणंदारे ॥ मांरा दिलका दाता खामनौरे थारौ चाउ सुख सातारे ॥ मांग हो बड़ भागौ नाथजीरे ॥ थांरे चरणां रातारे ॥५॥ इति० ॥ अथ उपदेशको ढाल || राग० ओभलरे सीतापति आयो || पदेशी • सोभव रतन चिन्तामण सरखो || बार बार न मिलसी रे ॥ चेत सके तो चेत नीवडला ॥ एडवो Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८३ ) बोग न मिलसौरे ॥ श्रोभव रतन चिन्तामा सरिखी ॥ ए० ॥ १ ॥ च्या गत चौरासी गत मै जिहां तुरुलतो आयोरे ॥ पुन्न जोगे सुपनांरी संपत || मानवरो भव पायोरे ॥ भ० ॥ २ ॥ बेली घारे बहोला नौवडला ॥ लहै जिनजौ रो नांमोरे ॥ कु गुरु कुदेव कुधर्म छाडीने ॥ कोज्यो उत्तम कासरे || ओ० ॥ ३ ॥ व्यु ब्राह्मणने चिंता मण लाभो || पुन्नतर्ण संजोगोरे ॥ कांकर साटै राजन दीधी ॥ फेर मिलणरो नहीं जोगोरे ॥ ओ० ॥ ४ ॥ धन साधुजो संगम मालै || सूधै मारग चालैरे ॥ खरो न नांगों गांठे बांधे || खोटी दिष्ट न घालैरे || ओ. ॥ ५ ॥ एक काल थारो काल गयी हैं एककाल घारी नेडोरे ॥ ति बिचमें तु' बैठ्यो नवडला ॥ काल आहेड़ी कैडोरे ॥ पो• ॥६॥ मात पिता या सुत बन्धव ॥ बहुते Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) ममता जोडेरे ॥ यां सेती जौवरौ गरज सरैती ॥ साधुजी घर क्यांनै छोडेरे ॥ श्र० ॥ ॥ ७ ॥ मोह मिथ्यात विषय रस छोडी ॥ सम्बर समायक कौजैरे || गुर उपदेश सदा सुखकारी || सुगुरू नो अमृत पौजैरे ॥ श्र० ॥ ८ ॥ उयु अंजली मै नौर समावै ॥ खिणर उणों थावेरे ॥ घडौर मैं घडियाबल बाजै ॥ थारौ खिण लाखोणी जावैरे ॥ ओ० ॥ ९ संयम मारग सुध कर पालो ॥ ' शिव रमणौ फल होवेरे ॥ मिनखरो भव है मुक्तिरो कारण ।। अहली तो मत खोवैरे ॥ श्री० ॥ १० ॥ कायर नर कादा में पार उतरसौर ॥ बाहर भीतर समता राखो || जन्म मरण नहीं करसौर || ओ० ॥ ११ ॥ देव गुरू धर्मं दृढ़ करि सेवो ॥ सम गत सुध आराधोरे ॥ छव काय जीवांरी नयां पालो || मुक्त तथा फूल साधोरे ॥ पड़सी ॥ सूरा Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रो० ॥ १२ ॥ गुरू कंचन गुरू होरा जीवडला ॥ गुरू ज्ञानरा भरियार ॥ ज्यां तुरू उपदेश हृदयमें धारयो ॥ अनंत भवे नौव तिरियारे ॥ ओ० ॥ १३ ॥ इतिः । अथ श्री भव नौवांकी ढाल बैराग की ॥ राग० ॥ पंची गोरीरो छोड़ोहो रसिया बल पड़े। एदेशी० भव जौवां आद जनेश्वर वौन बु॥ सत्त गुरू लागं पाय ॥ भव जौवां मन वचन काया बस करो ॥ छोड़ो च्यार कखाय ॥ भव जोवां करणौं हो की ज्योचित निरमली ॥ ए० ॥ १ ॥ भवजीवां मौनख जमारो दोहेलो ॥ सुत्र संग भवसार ॥ म. साची सरधा दोहेलौ । अत्तम कुल अबतार ॥ भव० ॥ २ ॥ भ. सिकियो इण संसारमै ॥ भड़भूजा को भाड़ ॥ भ. निगरंथ गुर हेला देवै । अब तं आंख उधाड़ ॥ भ० ॥ ३ ॥ भ० - मोह Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८६ ) मिथ्यात रौ नौंद मै ॥ सूतो काल अनाद॥ भ० जन्म मरण बहुला किया ॥ ज्ञान बिना नही याद ॥ भ० ॥ ४॥ भ० नर्क तणां दुःख दोहेला ॥ सुण तां थर हर थाय ॥ भ० पाप कर्म बहुला कौयो । मार अनंती खाय ॥ भव० ॥ ५ ॥ भ० चांद सूर्य सुख दोषै नहीं ॥ दौथै घोर अधार ॥ भ. भाजण नै सेरौ नहीं ॥ जिहां भाजै जिहां मार ॥ भव० ॥६॥ भ० आंधो जीमण रातरो॥ करतो डरतो नहि ॥ भ० बो भर भाटो तेहनै॥ चांपै मुखड़ा रै मांह॥ भव० ॥ ७॥ भ. परमां धामों देवता ॥ ज्यारो पनरै जात | भ० मार देव पापी जीवन ॥ करै अनंती घात ॥ भव० ॥८॥ भ० अर्थ अनर्थ धन कारणे ॥ नल ढोल्यो बिन ज्ञान ॥ भ. बाहेर मुच बहुला किया ॥ भौतर मेल अचान ॥ भव० ॥६॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८७ ) भ. बयतरणी भदौ लोही राधरी ॥ तिणरो तौखो नौर ॥ भ. तिणमै डवोवै पापी जीवनै ॥ छिट २ होय शरीर ॥ भव० ॥१०॥ भ. ढांढे ज्यं चरतो रहतो ॥ गिणतो नहीं तिथ न बार ॥म० पान फल सूख छेदतो॥ दया न आणी लिगार ॥ भव० ॥ ११ ॥ भ० विर्ष तिहां पुले छांवलौ। बैठती तिणरी छांय ॥ भ० पान पड़े तरवार ज्यं ॥ टूक २ हुय ज्याय ॥ भव० ॥ १२ ॥ भ. पराई छाती दामती॥ चोखा बहोत जमाल ॥ भ० धन तो खाधी कुटम्बीयां ॥ मार एकलडी माल ॥ भव० ॥ १३ ॥ भ० धंधेमै खूतो रहतो ॥ जूतो घरकै बार ॥ भ० लोह तणै रथ जोड़ीयो॥ धर ताता अगार ॥ भ० .॥ १४॥ भ० हाथ पांव छेदन करै॥ नाखै अंग मरोड़। भ. तिण नायगां आय अपनो॥ नहोछ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८) किणरो जोर ॥ भव० ॥ १५ ॥ भ० पाप कर्म बहुला किया ॥ कर २ मनरो जोस । भ० बोले परमां धामों देवता ॥ किसी हमारो दोस ॥ भ० ॥ १६ ॥ भ० रंग गतो माती फिरतो॥ पर नास्यां रै संग। भ. अग्न बलती लोह पुतली ॥ चाढ़े तिण अंग ॥ भव० ॥१०॥ भ. खिण जौतक सुखरै कारणे ॥. सागर पलारी मार ॥ भ० बिन भुगत्यां छूट नहीं ॥ अरज करु बार बार । भव० ॥ १८॥ भ• क्रोधमान माया लोभमै ।। छकियो घोर अधाय ॥ भ० साथ श्रावक दोषै नहीं ॥ देतो धर्म अन्तराय ॥ भव० ॥ १६ ॥ भ० जीव हणे धर्म जाणनै । सेव्या कुगुरू. कुदेव ।। भ. निग्रन्थ गुरसेव्या महौं ॥ राखौ कुलको टेक ।। भ० ॥ २० ॥ भ० मूर्य गडैनै भूयो घणों ॥ लेयर पाइलो रात॥ भु Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( e) अथ श्री मंद्रनो खामौरो सलन राग. हुई सुवै नौकस गये तारा मुज छाड चले बनजारा ॥ एदेशी० श्रीमंद्र स्याम तुमारा। मोय दरसण प्राण अधारा। एआंकडी खारथ सिंबंथकी चव आया ॥ सत्तका दे कूछे जायारे॥ श्रीयांश नृप सुखकारा ॥ मो० ॥१॥ सुर इन्दर मंगल गावे ॥ सुगभविजन मन हरखावैरे॥ महोत्सव के अत न पारा ॥ मो० ॥ २ ॥ नारी ककमणी परणी बहु शौल गुणे मन हरणोरे ॥ शशि सूर्य तेज मिलकारा । मो० ३ ॥ संसार सुख जाणि खारा ॥ प्रभु लोधो संयम भारारे ॥ प्रभु गुण कर ज्ञान भंडारा ॥ मो० ॥ ४॥ अतिसय च्यार नै तौसी ॥ बाणी भल पैंतीसोर ॥ जिम धन वर्षे जल धारा ॥ मो. ॥ ५ ॥ स्माटिक सिंहासण छाजे । प्रभु मेघ तणी पर गाजेरे ॥ पाखंडक पौलन Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होरा ॥ मो० ॥ ६ ॥ कंचन बर्णी काया । भल केवल पदवी पायार ॥ प्रभु च्यार कर्म जड जाग॥ मो० ॥ ७॥ आयु पूरब लाख चोरासी । प्रभु मुक्त पुरी ना बासौरे । श्रीजिन सांसण सिरदारा ॥ मो० ॥८॥ तुज सेवै घणां नरनारी ॥ नित प्रति उह सांज वारौरे ॥ भल ध्यान धरै सहु थारा ॥ मो० ॥६॥ संबत् उगणौँसे पैसठ ॥ सावण माश सरे सटरे ॥ चवदस तिथि मंगलवारा॥ मो० ॥१०॥ कनीराम गुण गाया । प्रभु सर तुमारी आधारे। मेरे भव दुःख मैं जो सारा ॥ मो० ॥ ११ ॥ इति। ii. अथ श्री डालचंदजी म्हाराजक गुणांकी ढाल राग ठेठरकी देशी तन मन धन करू तोपे वारीयां ।। तन मन । एआंकड़ी डालचंदगण इन्द दिमंद सम ॥ चर्ण कमल अलिहारीयां ॥ तन मन ॥ १ ॥ श्रवन बेदन Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UY तन अप्रसन मन धन ॥ निरखन चित दौदारीयां ॥ तन ॥२॥ रहिन सक्यो दरशन विन पायें ॥ तब इहां प्राय जुहारीयां ॥ तन ॥३॥ तत खन कनै आय दरिशन पायो ॥ देख अचरिज अधिक करारीयां ॥ - तन ॥ ४ ॥ पुरण महेर कारौ सुन उपर । टुक्क निजर निहारोयां ॥ तन ॥ ५॥ सम चित वेदन सहन मही सम ॥ दिलमें धीरज धारौयां ॥ तन ॥ ६ ॥ मन वलियो वलवंत न टूजी ॥ तुम सम भर्थ मंझारोयाँ । तन ॥ ७॥ असुभ दैत्य बघ चूरण कारण ॥ क्षान्त वचकर धारीयां ॥ तन ॥ ८॥ थाले सुख साता अव जलदौ ॥ चिहुं तीरथ भाग्य मुसारीयां ॥ तन ॥ ६॥ गुलाबचंद सुख में मुख नहिस ॥ जयपुर सहर पधारीयां ॥ तन॥ १० ॥ उगणीसै शासठ श्रावण मैं ।। लाडों हर्ष अपारीयां ॥ ११॥ इति । Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) अथ श्री पुज्य परमेश्वरजौ श्रीकालुराम जी महाराजके गुणांको ढाल १ पहली | राग० सरणाटै कुचामण बहग्यो । मांरें मारुजी रो बंगलो रहग्योनौ || सर० वा बलदेव दुसाले वाला || एदेशी० कालुराम गणिन्द गणधारी ॥ थांरी सूरत लागे प्यारो जो ॥ कालु० थांरी मुद्रा मोहन गारोजी कालु • ऐत्रां• भिक्षु भारी माल नृपचंदा || जय यश मघ मांगिक मुनिंदा जौ । कालु • || १ || सप्तम पट डाल सोभायो ॥ बांसां सण खूब दोपायोजी ।। कालु० ||२|| अष्टम पट कालु छाजै ।। यांग महि यश डंका बाजैजो || कालु० ॥ ३ ॥ मंभारी ॥ लियो ओशवंश अवतारी जी ॥ कालु० ||४॥ मूलेस कुले अवतंसा | कोठारी गीत सुबंशाजी || कालु० ॥ ५ ॥ शतिमात्र छोगांजो थॉरौ ॥ ते तौसे कुछ नारीजी । गणिकापुर सहर Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८३ ) कालु० ॥ ६ ॥ बय एकादश वर्ष थांगे । चारित्र लेवण हुया त्यारोजौ ॥ कालु० 91 माता सुत एकज साथै ।। दिवाली मघवा गशि हाथेजौ ॥ कालु० ॥८॥ वेद वेद सम्बत शुभकारी ।। बीदासर सहर मंझारी नौ ॥ कालु० ॥ ६॥ मघवा मांगाक मिग धारौ ॥ तस सेव करी धर प्यारी, जी ॥ कालु० ॥ १० ॥ दिनर गुण बधत सवायो॥ डालम गणिके मन भायो नी ॥ कालु० ॥ ॥ ११ ॥ बहु सास्त्र सौख हुया जाणों ॥ व्याकरण चन्द्रिका पिछाणो जी ।। कालु। ॥ १२ ॥ छासठ संबत शुभ कारी ॥ घया युग पदना अधिकारी जी ॥ कालु० ॥ १३ ॥ सावन बद एकम नाम लिखायो । कागज पूठे मै रखवायो जी ॥ कालु.॥ २४ ॥ भाद्रव शुद तेरस शुभ बेला ॥ थया च्चार तीर्थ सहु भेला जौ ॥ कालु० ॥ १५ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 28 ) सहु जय ‍ जब नाम प्रगट भयो थांरो ॥ सब्द उचाख्योजौ ॥ कालु० ॥ १६ ॥ सुद पूनम बहु रंगरेला ॥ थया पट महोत्सव ना मेला जौ ॥ कालु० ॥ १० ॥ । गणि गुण षट्वौस उदारी || ओममषोड़स सुबिचारी जौ ॥ कालु० ॥ १८ ॥ थांरी अष्ट सम्पदा सोहै ॥' पेखत भवि जन मन मोहै जो ॥ ॥ कालु ॥ १६ ॥ जोरावर सर्णं तिहारै | यांगे बधो सुयश महिसारे जौ || कालु० ॥ ॥ २० ॥ आशन शुद बेद कहाया ॥ थांरा गुण कलकत्ता में गाया जी ॥ कालु० ॥ २१ अथ ढाल २ दुजी० राग जलै मारुकै गौतनी देशी ० ॥ 1 श्री श्री कालुराम गणिंद गणधारी की ॥ म्हांरा गण सिणगार ॥ थांरी सूरत मुद्रा पेखत लागै प्यारो, जो ॥ म्हाराज० ए० || 1 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८५ ) पुजजी आप० भिक्षु गणिदं रे ॥ अष्टम पट अति छानै नी ॥ म्हां० ॥ घांगे समो सग्य बिच ॥ देशन सिंह सम गाजै जी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ १ ॥ पु० सुत्र सितके भेट् मिनो २ भाषै जो ॥ म्हां० भवि श्रवण सुणीने प्रेम शुधामृतचाखै जो ॥ म्हां० श्री श्री ॥ २ ॥ पु० देवा हो देव ज्युं बिचरी मंभारे जी ॥ म्हां० घांरो यश लच्छी फैलो देश विदेश में सारे जी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ ३ ॥ पु० घरा उपरे होवो घणा बड़ नामी नौ ॥ म्हां० म्हांरा एह मनोरथ लग रह्या अन्तरनामी जी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ ४ ॥ पुन नौ घांरी- मोहनी सूरत वसरहो मुन हिय मांयोंनी ॥ न्हां० घांरो भू पर बध ज्यो दिन २ ते सवायोजी || म्हा० श्री श्री ॥ ५॥ पुजजी यांरा संत शत्या सूं सांसण खिल रह्यो सारोनी ॥ म्हां० घारी गादी अचल Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) रही नब लग ध्रुव तारोजी ॥ म्हां० श्री श्री ॥ ६ ॥ पुनजी आप कृपा करके बौनतडी अब धारोजी ॥ व्हां• घांरी आवतको चौमासो मुज सहर संभारो जौ ॥ म्हां० श्री श्री ॥ ७ ॥ चौमासाकी श्रीमुख सुं फरमावो नौ | म्हां• थांरो जोरावर है दाश आश ॥ पुरावो जी | म्हा० श्री श्री ॥ ८ ॥ पुजजो थांरा गुण अगणित है मोमति केम कहायेनो || म्हां० आशन शद एकम प्रेम धरौने गायेजी | म्हां० श्रीश्री ॥ ६ ॥ इति० । अथ ढाल ३ तौसरी राग सारङ्ग | मोय नोकी लागे सूरत तिहारी ॥ अष्ट में यूजको जाउ बलिहारी ॥ मोय० एत्रां• भिक्षु गणिके बसु पट राजत ॥ कालुराम गणि गणधारी ॥ मोय० ॥ १ ॥ छोगांनी मात मूलेसको नन्दन ॥ ओस बंश अवतारी ॥ मोय० ॥ २ ॥ सोहनी सूरत " T Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८७ ) मोहनी सूरत ॥ सौम्य मुद्रा सुखकारी॥ मोयः॥३॥ तखत वीराजे छटा पति सोहै। दीपत तेज दिनारी ॥ मोय० ॥ ४ ॥ बैठ सभा विच देवो देशना ॥ वाक्य घटा वरसारी॥ मोय० ॥ ५ ॥ श्रवण सुणत अवि जीव आनंद मन ॥ रोम २ हुलसारी ॥ मोय० ॥६॥ धन वंदन को चानक चाहत ॥ ताय चाहत नरनारी ॥ सोय. ।। ७ ॥ जोरावर तोसु अरज करत है। मानो अरज हमारी ॥ मोय० ॥८॥ शद जारस गुण गावत तनमन ॥ मृगसर मास मंझारी ॥ मोय० ॥ ६ ॥ इति ॥ ___ अथढाल ४ चौथौ राग० माढ ॥ म्हारे ढोले छाई बीकानेर ॥ एदेशी० म्हांनै प्यारा लागे खामी कालुराम ॥ म्हानै बाहला लागै खामौ कालुराम ॥ हांनी थांरी जपन करु आठोंयाम ॥ म्हा० ए० पंचमें आरे Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) देव जिनेन्ट्रसा ॥ प्रगटे भर्थमें पान ॥ भिक्षु गणिंदको अष्टम पाटे॥ जिम उदिया चल भान ॥ महारानां आप निम उदिया चल भान ! हा० ॥१॥ शमा सुधर्मों इन्द्रतयो पर पामत शोभ असाम ॥ जिम मुनिगणमें आप तणौ छिब॥ नौको लागै ताम ॥ आठौ छिबनौको लागै ताम ॥ म्हां ॥२॥ भवि जन सेवा सारै आपकौ ॥ कवड़ी लगै न छदाम ॥ प्रात उठी थांरा दर्शन पावै ॥ ज्यांरा कटच्यावै पाप तमाम ॥ हांजी वारा काट ज्यावै पाप तमाम ॥ म्हां ॥ ३ ॥ तुन चरयों में रम रद्याते॥नित गावै गुण ग्राम ॥ गावत २ कर्म खपावै ॥ पावै अविचल धाम ॥ हांजी बैतो पावै अबिचल धाम ॥ म्हां० ॥ ४ ॥ गोप्यांके मन कान्ह बसत नित ॥ सौवाके मन रोम ॥ जिममन मनमें - बसरयाजी ॥ म्हारी सारो बंछित काम ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) म्हाराजा म्हारो सारी वंछित काम ॥ म्हां. ॥ ५ ॥ हाथ जोड़ भरणी करु नौ खामौ ॥ नमन कर सिर नाम ॥ कृपाकर मुज ननपधारो ॥ म्हारी अधिक बधारो मांम ॥ म्हा राजां म्हारी अधिक - वधारो माम ॥ म्हां. -॥ ६ ॥ सडसठ चैत शुक्लपक्ष बारस ॥.कलकत्तो शुभठाम ॥ जोरावर पभणत यशथारा ॥ सफल भई सुजहांम ॥ म्हाराजां म्हारी सफल भई छ हाम ॥ म्हां ॥ ७ ॥ इति ॥ ___अथ ढाल ५ पांचमी० राम कहरवा ॥ मोय प्यारा जो लगता मोर मुकट बंसीहारा ॥ मोय. एदेशी० मोय प्यारी ज्यो लगती ॥ प्यारी ज्यो लगती मोय प्यारौ ज्यो लगतौ ॥ स्याम सांसन फुन्नवारौ। मोय. ए० दून बाडौके धणां जनेश्वर ॥ श्रीवृद्धमांन उवारौ ॥ मोय ॥ १॥ भिक्षु भारी माल रायगणि सौंची। जय नश कर्ण Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) सुधारी ॥ मोय ॥ २ ॥ मघ मुनि मांणक लाल डाल शशौ ॥ दिनर अधिक उजारी || मो० ० ॥ ३ ॥ अब इन बाडीके अधिपति सोहत ॥ कालुराम गणधारी ॥ मोय • ॥४॥ शौतल शरद शशांक बदन छिम || मुद्रा मोहन गारौ ॥ मोय० ॥ ५ ॥ धौर बौर गम्भीर गणाधिप । तप रह्यो तेज दिनारी ॥ मोय • ॥ ६ ॥ इण वाड़ीमें शुर तक जैसा || सन्त श्रावक अति भारी || मोय• ॥ ७ ॥ काम लता सम समणी है गहरी || श्राविका निम गुल क्यारी ॥ मोय ॥ ८ ॥ समकित चरण पुषप बहु फूले ॥ फल शिव पद सुखकारो ॥ मोय ● ॥ ८ ॥ सुयश सुगन्ध फैल्यो O 'ह' लोके ॥ सुण भवि भ्रमर लुभारी ॥ 'मोय० ॥१०॥ इण सांसण में क्रौड़ा करन्ता ॥ पामैं आनन्द कारी ॥ मोय• ॥ ११ ॥ जोरावर तोरा गुण गावत ॥ प्रगंधो हर्ष Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) अपारौ ॥ मोय० ॥ १२ ॥ सड़सठ चैत्र शुक्ल एकम दिन | कलकत्ता शहर मभारी ॥ मोय० ॥ १३ ॥ इति ॥ अथ ढाल छठौ गुरू म्हाराज पधारे जब लुगायां गावनको ॥ राग० ॥ मेरो सहीयां हे आज म्हांरो लालन भावे लीए ॥ एदेशो• ॥ संत सत्यांनां ब्रद सुं ॥ परवरौया गुण धार ॥ बोर जिनदसा दौपता || हिवडां भर्थ संसार || म्हांरी सहियां है वान म्हांरा पूज पधारो याहे ॥ म्हांरो धन दिन पायो || म्हारो पुन प्रगटायो ॥ म्हांरो हियो हुलसायो ॥ म्हांरी० ० ॥ १ ॥ एस० ॥ श्रान नगर रलिया मणों ॥ श्राज भलो दिन कार ॥ चाज कृतार्थ सह थया ॥ पेखत गुरु दिदार | म्हांरो ॥ २ ॥ दर्शन कौधा प्र.मसुं ॥ लुलर भोस लुताय ॥ पुज्य कमल पद भेटोया || पातिक Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ । दूर पुलाय ॥ म्हारी ॥ ३ ॥ बहोत दिनोंकी पाश थौ ॥ से पूरण थई भान ॥ भानन्द भङ्ग मावै नहीं ॥ सरिया बञ्छित कान ॥ म्हारो० ॥ ४॥ सुखे विराजो खामजी ।। करो घणां उपगार ॥ सिंह निसा पूँजी महौ ॥ विनति करां बार बार ॥ म्हारी ॥५॥ ॥ इति ॥ अथ ढाल ७ सातमी गुरू म्हाराज विहार करै जव लुगांयांक गावनको ॥ राग बागां जाज्यो पिवजी थे निम्बु ल्याज्यों च्चारजी। एह गौतनी देशी० ॥ भिक्षण जौरा चेला दर्शन बैगा २ दिज्योनी ॥ बौनतड़ी अब धारो म्हां पर किरपा कोज्यो जो॥ एचां० ॥ पादनाथ पाद प्रवर ज्यं ॥ भिक्षुद्रण पंचम भारी जी ॥ मिथ्या तिम विडार ॥ आन ज्यं कियो उजारो नौ ॥ भि• ॥ १॥ मारग सुद्ध चलायो तिणने । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) दिन २ घणो दिपावोजी ॥ भविजौवां नै तारी ॥ भवसे पार पमावोजी ॥ भि० ॥२॥ बोध बौज आपो बहु जननै ॥ भिन २ रहेस सुणावोजी ॥ खलता खोड़ मिटाय ॥ अभय पद जलदी द्यावोजी॥ भि. ॥३॥ मुखे २ बिचरो महि अपर । करो घणां उपगारो जौ ॥ शुभ दृष्टि से याद करौ ॥ म्हारी लिज्यो बैग संभारो जी ॥ भि० ॥४॥ सावक भाविक्षा तन मन धन कर । हित चितसे गुण्ड गावै जी ॥ लटक २ लटका करै ॥ थारौ सरजी चाये नौ ॥ भि० ॥५॥ ॥इति ॥ अथ श्री१०८ श्रीगणेशलालजी खामो नै गुग्णांकी ढाल ० राग० सोरठ ॥ गजानंद ध्याउ जठ सबेरे॥ मैंतो चरन कमल हु तेरे ॥ गजा० एग्रां. गांव सवाई माधोपुर है। सुत्त शिव लाल जी केरे॥ गजा. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) ॥ १ ॥ मात वरजु जौही उद्उपना ॥ पोर बाल बंस तेरे ॥ गजा० ॥२॥ उगणी सै सत्ताइस वर्षे ॥ उर बैराग्य धरैरे ॥ गजा. ॥३॥ हीरालालजी खाम समौ ॥ दिक्षा बतं गहरे ॥ गजा० ॥ ४ ॥ जय मघ मांणक लाल डाल गणि ॥ सब हौ की सेवकरेरे ॥ गजा० ॥ ५ ॥ कालुराम गणाधिपको अब । थांपर महेर घनेरे ॥ गजा० ॥ ६॥ नीत निरमल शुद्ध संयम पालो ॥ शिर गुरु आण धरे ॥ गजा० ॥ ७॥ बास वेला तेला इत्यादिक ॥ बहु विध तप्प तवेरे ॥ गजा० ॥८॥ सुज उपर कृपा अति कौनौ बहु विध बान दियेरे । गना० ॥ ६ ॥ तुम प्रसाद एह सांसन पायो । दिन २ रंग बढेरे ॥ गजा० ॥ १० ॥ हाथ जोड़ कर कर बौनती ॥ रखो सु निजर घणेरे ॥ गजा० ॥ ११ ॥ सड़सठ साल वैशाख कृष्ण पक्ष । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५ ) अष्टमी तिथ गडेरे ॥ गजा० ॥ १२ ॥ जोरा वर तोरा गुण गावै ॥ कलकत्ता सहर मंझेरे ॥ गजा• ॥ १३ ॥ इति ॥ ! __ ढाल राग भटौयांगोको देशो। बसु पठ पेथट छाजे हो॥ बोराने बौरजिन्द ज्य ॥ हो दुक्ष्म पञ्चमे पार ॥ गणौंवर दीनदयालु हो ॥ कृपालु कालु स्वामजी ॥ हो जनक जेम आधार ॥ खमां घणी गण इन्दु हो । गुण सौंधुराज खमां घणौ ॥ एंआं ॥१॥ सुमत गुप्त व्रत पालक हो काई धारक दम विध धम्मना॥ हो बारक च्यार कषाय ॥ जिन धर्म जोत जगावा हो ॥ सुगै दीपक साचो सुन्दरु ॥ दिधो सोसण कलस चढ़ाय ॥ खमा० ॥२॥ पति सैय तेज दिनन्दा हो ॥ जिन दृदा पंकज नौपरे ॥ ही निरख २ हरषाय ॥ गुघु सम दुःख पावे हो ॥ मुरझावे पाषंड पापिया ॥ हो Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) बुजे हो ॥ तसु तसकर जेम लुकाय || खमा० ॥ ३ ॥ सकर सभावत सोहै हो ॥ मन मोहे सुरपति साहेबो । हो देव ज्यु ं मुनौ स्येवंत ॥ ग्यान घटा दरसावे हो ॥ भङ ल्याबे उप सम नौर थौ ॥ हो क्यारौ गणु सौंचंत ॥ खमा ॥ ॥ ४ ॥ काव्यकोस नये युगती हो ॥ वरंगद - पद छंद खरे करौ || हो भाषित ं भिन २ भेद ॥ खय अनुमति प्रतौ सुजे शिव मग सांभली ॥ हो ज्युं ब्रह्मा मुख बेद ॥ खमा० ॥ ५ ॥ पर उपगारी भागे हो ॥ सोदागर हित सिख मापने ॥ हो सांती सुधा रस पाय ॥ सिंधु सत्नवत बारु हो | जस थारु महियल विपतयो || महि रसना केम कुहाय ॥ खमा ॥ ६ ॥ भव अरणव ए तरणव हो || तव चरणव सफरी न्याव ज्यं ॥ हा बरणव शिव पुर राज || जग बकूल जस धामी हो सिरनामी खामी Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०७ ) मैं करू॥ हो अरज सुणो सिरतान ॥ स्त्रमा ॥ ७॥ कह कर जोड़ि मोड़ी हो। मन किंकर यां कदमां तणों॥ प्रभु दीज्यो लान निभाय ॥ उभय भवे सुख पाऊ हो सुभ दृष्टि चाहु नाथरी || हो मांगू गोद विछाय ।। खमा ॥८॥ आम भलो रवि आयोहो ॥ मै दर्शण पायो देवरों॥ हो जन्म चतार्थ थायः॥ टषि नयेचन्द प्रकासे हो। रितु राग अबद बिद म्हग सरे॥ हो चतुरदसौ चित चाय ॥ खमा ॥६॥ इति ॥ ढाल लिखते. वीर जिनेखर शुणज्योमोरी बीनतो एदेगी। म्हारवर्ष बधावी छापुर सैहरमा ॥ कोई घर घर मङ्गलाचार ॥ उमजो समुद्र श्रावण भाद्रव ॥ कोई हर्ष रया नर नार ॥ म्हारे ॥ ए.१॥ मुन्नचंद कुल में सूरज जगीयो । कोइ मेट तीन अंधार ॥ मात छोंगां जो मन हर्षो घणो । कोइ निरखी सुत दीदार ॥ म्हारे ॥२॥ भात कोठारी कुल्लमें दोपता। कोई चन्वन्त सुरभी दूध ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ), . पुर्ष नतीमां लक्षण आगला ॥ कोई गुणपटवौशध ॥ म्हारे ॥२॥ नांव कालजी अधीको सोहतो ॥ कोई स्याम वर्ण सुख' कंद ॥ धम्म उपदेश देई भवित्यारता ! कोई संप्रति नेमजिनंन्द ॥ म्हारे ॥ ४ ॥ सुत्र सिद्धांत ख्यात करो बांचता ॥ कोई भिन भिन भेद बखाण ॥ दान दयान मुनि पतछाणन ॥॥ कोई तारे जीव अयाण ॥ म्हारे ॥५॥ बाक्य छटा घटा भाङ भोसरें। कोई जलधारा असमान तिप्त सुण २ सारङ्ग जन जिवडा ॥ कोई उषाने अमृत पान || म्हारे॥६॥ यार तिथं मैगणपत ओपता ॥ कोई निमतारों बिच चंद ॥ मुखडो मलियागर शीतल सोहतो। कोई भतर तप्तनिकंद ॥ म्हारे ॥ ७॥ चिंत्या चर्ग चिन्तामण सारखा ॥ कोई , कल्पतरू दातार । वच्छोत पूरण भूरण पाप नैं । कोई सब जोबां आधार ॥ म्हार॥ ८॥ कनक बर्ण तन सुन्दरता घणी ॥ कोई मुद्रता पंडर ॥ छाई उमाई जग. जशवेलडी ॥ कोई बध रयो पुन्य कूर ॥ म्हारे ॥ ८॥ घाट बौषम वर बचोपड रयो॥ को कर द्यो खेबो पार ॥ सरणे अायालज्या राखज्यो॥ कोई थारोही आधार ॥ म्हारे ॥ १० ॥ सम्वत १८६६ पौष मैं ॥ कोई कृष्ण हतीय बधवार ॥ अज' हजारी करजोड़ी कहै ॥ कोई कलकत्ता सहर मंजार न म्हारे ११॥ इति ॥ . Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुचौपल वा आगसे सुभौता। श्रीरूपसैन कुमारनो चरित्र पक्का जिल्द महौत कीमत ११, डाक महसूल अलग। श्रीजैन भजन प्रकास प्रथम भाग कीमत ॥४, डाक महसूल श्रीजैन भजन प्रकास द्वितीय वा तृतीय भागका कौमत आगै ॥, आना छा तका अवसुं कीमत । अाना डाक महसूल , आना। ___ श्रीसालभद्रजी सेठनो शलोको वा श्री नेमीनाथजी भगवाननो नव रसो अगाडौं कीमतः ।, आना छा अवसुं आना रखा है डाक महमूल अलग। सुभम भवतु Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना। इस किताबमें श्रीतीर्थंकर भगवान वा बीस बिहर मण वा श्री १००८ श्री स्वामी भिक्षणजी वा मांगकलालजी बा डालचन्द जौ वा नये गहौधर महाराज धिराज श्री कालुरामजी महाराज के गुणांका सत्वन वा उपदेसको ढाला घोर भी मोकलौ संग्रह कारको सर्व जैनौ भाइयों को बांचवा हितार्थ बनाय कर छपाव्या है इस किताबकों जयणां पुरवज्ञ भगनै गुणने में ल्यावे ओर चपनो लाभ उठावें। मिलनेका ठिकाना। ‘भैरदान जोरावरमल बैयद । मु० रतनगढ़। नं० १४ मंगापट्टी बड़ाबजार कन्नकत्ता । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- _