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HINDI-GUJARĀTI DHĀTUKOSA
A COMPARATIVE STUDY OF HINDI-GUJARATI VERBAL ROOTS
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भारतीय
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Education Internationa
अहमदाबाद
L. D. SERIES 87
GENERAL EDITORS
DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH
BY
RAGHUVEER CHAUDHARI
DEP. OF HINDI
SCHOOL OF LANGUAGES GUJARAT UNIVERSITY AHMEDABAD-9
L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9.
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HINDI-GUJARĀTĪ DHĀTUKOSA
A COMPARATIVE STUDY OF HINDI-GUJARATI VERBAL ROOTS
BY:
L. D. SERIES 87 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH
RAGHVEER CHAUDHARI Department of Hindi School of Languages Gujarat University Ahmedabad-380 009.
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L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY
AHMEDABAD-380 009,
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Publisher : Nagin J. Shah Director, L. D. Institute of Indology, Ahmedabad-380 009,
First Edition March 1982
Price : Rs. 450€
Printer : Bhailal Y. Patel, Aakar Printers, 1105/3, Bhavanpura, Shahpur, Ahmedabad-1.
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
[हिन्दी और गुजराती की क्रियावाचक धातुओं का तुलनात्मक अध्ययन ]
रघुवीर चौधरी
हिन्दी विभाग, भाषा-साहित्य भवन, गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद-380009
लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद-९
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अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्वं शब्देन भासते — भर्तृहरि
It has been my intention to err rather upon the side of Liberality of inclusion than the opposite.
-W. D. Whitney
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प्रस्तावना
'हिन्दी-गुजराती धातुकोश' डा. रघुवीर चौधरी का शोधप्रबन्ध है । गुजराती भाषा में साहित्यसर्जन तथा समीक्षा के क्षेत्र में देढ़ दशक तक उल्लेखनीय योगदान देने के बाद प्रो. चौधरी ने यह शोधकार्य हाथ में लिया । और डा. हरिवल्लभ भायाणी जैसे समर्थ भाषाविद् का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ । फलतः यह शोधप्रबंध पीएच.डी. के लिए प्रस्तुत प्रबंधों की सीमाओं से मुक्त है। इसमें कहीं पिष्टपेषण या अनावश्यक विस्तार नहीं ।
डा. भायाणी ने गुजरात विश्वविद्यालय से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण किया और श्री ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में मानाई सेवाएँ देना शुरू किया इसके साथ गुजराती तथा अन्य भाषाओं के लेखक तथा प्राध्यापक डा. भायाणी से मिलने के निमित्त भी हमारे यहाँ आने लगे। प्रो. चौधरी प्रस्तुत शोधकार्य के मार्गदर्शन के लिए तो आते ही थे, हमारी व्याख्यानमालाओं तथा गोष्ठियों में इनकी सक्रिय उपस्थिति सदा सूचित करती रही कि वे इस संस्था के प्रति कैसा गहरा लगाव रखते हैं। अतः जब शोधप्रबंध के प्रकाशन का समय आया तो पंडित दलसुखभाई मालवणियाजी और मैंने इसमें रुचि दिखाई । प्रो. चौधरी की विद्याप्रीति और निष्ठा के हम गवाह हैं । इसलिए भी प्रस्तुत शोधप्रबंध के प्रकाशन के अवसर पर हमें नैसर्गिक आनंद का अनुभव हो रहा है।
'हिन्दी-गुजराती धातुकोश' के प्रकाशन से तुलनात्मक भाषाविज्ञान तथा कोशविज्ञान के अध्येताओं को एक महत्त्वपूर्ण संदर्भग्रंथ सुलभ होगा। श्री. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर ने ऐतिहासिक भाषाशास्त्र को भी अपना कार्यक्षेत्र माना है । प्राकृत-अपभ्रंश ग्रंथों के संपादन तथा प्रकाशन के क्षेत्र में संस्था ने विशिष्ट योगदान दिया है। ____ मैं जानता हूँ कि प्रो. चौधरी ने कोशविज्ञान तथा ऐतिहासिक-तुलनात्मक भाषाविज्ञान की शोधपद्धतियों के अनुशासन में अपने आपको बाँध कर कुछ समय के लिए सर्जनात्मक लेखन छोड़ दिया था। इनके संनिष्ठ पुरुषार्थ को डा. भायाणीजी के द्वारा सुयोग्य दिशा प्राप्त हुई । हिन्दी-गुजराती धातुओं का यह पहला तुलनात्मक कोश है । शोधकर्ता ने पूर्वकार्य के अध्ययन के अंतर्गत पूर्वसूरियों के निष्कर्षों को समादर के साथ देखा है और युक्तिसंगत मूल्यांकन किया है। धातुकोश ग्रंथ का प्रमुख एवं समृद्ध अंग है । टिप्पणियों में भी परिश्रम लक्षित होगा ही। अंत में विश्लेषण और वर्गीकरण के अंतर्गत आधुनिक भाषाविज्ञान की मान्य शोधपद्धतियों का आलंबन लिया गया है। लेक्सिको स्टेटिस्टिक्स के द्वारा निकाले गए निष्कर्ष बहुत संक्षेप में हिन्दी-गुजराती धातुओं की तुलनात्मक झाँकी करवाते हैं। ग्रंथ के परिशिष्ट भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रो. चौधरी का प्रस्तुत शोधकार्य विषय के विद्वानों के लिए एक ध्यानाह संदर्भ सिद्ध होगा। एक मूल्यवान ग्रंथ हमारी ला. द. ग्रंथमाला के अंतर्गत प्रकाशित करने का अवसर देने के लिए मैं डा. रघुवीर चौधरी का अनुगृहीत हूँ।
श्री. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद-380009. २ मार्च 1982
नगीन जी. शाह
निदेशक
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पुरोवचन
भारतीय भाषाओं के इतिहास, व्याकरण, कोश, तुलना जैसे विषयों में अर्वाचीन युग में जो सामग्रीमूलक शोधकार्य प्रायः एक शताब्दी से अच्छी तरह चल रहा था उसमें, भाषाविज्ञान की नई सैद्धान्तिक उद्भावनाओं के प्रभाव से १९५०-६० से रुकावट-सी आ गई । भाषाओं का इतिहास, तुलना, कोशरचना आदि अध्ययन-क्षेत्र से हट गये । भाषाओं का प्रवर्तमान स्वरूप, प्रादेशिक वैविध्य, संरचना आदि अध्ययन के केन्द्रवर्ती विषय बने । केवल भाषासिद्धान्त के प्रस्थापन, उत्थापन या परीक्षण के लिए ही भाषासामग्री की उपयुक्तता मानी जाने लगी । फलतः सामग्री-संचयन के कार्य का अवमूल्यन हुआ। इन नये प्रवर्तनों से भारतीय भाषाओं के अध्ययन को लाभ तो हुआ ही, हानि भी कम नहीं हुई। भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में सामग्रीमूलक ठोस अध्ययन उतना ही मूल्य रखता है जितना सिद्धांतमूलक अध्ययन।
डॉ. रघुवीर चौधरी के प्रस्तुत तुलनात्मक धातुकोश का मूल्य स्वयंस्पष्ट है । भारतीय आर्यभाषाओं के व्युत्पत्तिविज्ञान एवं काशविज्ञान के विषय में टर्नर आदि के भगीरथ-कार्य की नींव पर हमें इस तरह कार्य आगे बढ़ाना है।
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प्राचीन भारतीय-आर्य से लेकर नव्य भारतीय- आर्यभाषाओं तक क्रियावाचक धातुसमूह का कितना अंश बचा, कितना बदला, कितना नये स्रोतों से आया उसकी गवेषणा भारतीय-आर्य के इतिहास की तथा भाषा-परिवर्तन की कई समस्याओं पर मूल्यवान प्रकाश डाल सकती है। इस प्रकार का अध्ययन भारतीय भाषाओं के बीच जो साम्य है उसके प्रति ध्यान आकृष्ट करता है, जब कि वैयक्तिक विशिष्टताओं पर अब तक अधिकतर बल दिया गया।
हिन्दी, गुजराती आदि के उपलब्ध कोश कई दृष्टियों से अपूर्ण हैं। विभिन्न बोलियों की सामग्री की. प्राचीन साहित्य की सामग्री की तथा विभिन्न धात्वर्थों की स्पष्टता के बारे में और व्युत्पत्तियों की वैज्ञानिकता के बारे में अभी बहुत करना बाकी है । ऐतिहासिक-तुलनात्मक निष्कर्षों की प्रामाणिकता की मात्रा इन सब पर निर्भर करती है ।
डॉ. चौधरी ने जो व्यवस्थित और चुस्त परिश्रम किया है इससे हमें विश्वास होता है कि वे इस दिशा में अपना मूल्यवान कार्य जारी रखेंगे। सृजन, समीक्षा आदि विविध क्षेत्रों में सतत कार्यशील रहते हुए भी उन्होंने इस शोधकार्य को सम्पन्न किया है इससे भी हमारा यह विश्वास साधार प्रतीत होगा । दिनांक १५-३-८२
हरिवल्लभ भायाणी
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1. पूर्व भूमिका
गुजरात विद्यापीठ से स्थानान्तर करने पर 1965 में मैं डा. हरिवल्लभ भायाणी का पड़ौसी बना । इससे पहले डा. प्रबोध पंडित की आज्ञा से ब्लूमफिल्ड पढ़ चुका था । गोलोकबिहारी धल तथा पंडितसाहब के लेखों की सहायता से विद्यापीठ में हिन्दी बी. एड्. के विद्यार्थियों को ध्वनिविज्ञान एवं अन्य शाखाएँ पढ़ाता था । भाषाविज्ञान के एक अच्छे विद्यार्थी तथा गुजरात के संदर्भ में बोलीविज्ञान के क्षेत्र में सविशेष कार्य करनेवाले डा. शान्तिभाई आचार्य मेरे मित्र रहे । उनके कारण भी भाषाविज्ञान की कुछ गतिविधियों से मैं अवगत रहता था । परन्तु 1973 तक तो सोचा भी नहीं था कि इस विषय से सम्बन्धित शोधकार्य करूँगा | खयाल था साहित्य-सर्जन और समीक्षा के क्षेत्र में ही कार्य करना होगा ।
शोधकार्य के प्रति आदर था अवश्य । पुरानी पीढ़ी के गुजराती आलोचक स्व. विश्वनाथ भट्ट के 1930 में प्रकाशित 'पारिभाषिक कोश' के द्वितीय शोधित वर्धित संस्करण की जिम्मेदारी उठाई थी, विद्यापीठ छोड़ने के कारण | यह 1966 की बात है। गुजराती भाषा के आलोचनात्मक तथा चिन्तनात्मक ग्रंथों के लेखकों ने जहाँ कहीं अंग्रेजी के पारिभाषिक शब्दों के लिए गुजराती पर्यायों का प्रयोग किया हो, पहुँच जाना था। मैंने सम्बन्धित वाक्य चुने, कार्ड बनाये और विविध पर्यायों का तुलनात्मक अध्ययन किया । यह कोई बड़ा शोधकार्य नहीं था परन्तु इसमें प्राप्त होनेवाला आनंद बड़ा था ।
1970 में भायाणीसाहब बम्बई युनिवर्सिटी के लिए शैलीविज्ञान विषयक व्याख्यान तैयार कर रहे थे । आधुनिक भाषाविज्ञान साहित्य-समीक्षा के निकट पहुँच चुका है इसका पता चला और प्रतीत हुआ कि साहित्यसमीक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए भी भाषाविज्ञान का प्रशिक्षण पाना होगा । इस अवबोध ने जिम्मेदारी बढ़ाई ।
बाद में हिन्दी विद्वानों के साथ 'गुजरात राज्य शाला पाठ्यपुस्तक मंडल' के लिए हिन्दी पाठ्यपुस्तकों का संपादन करने की जिम्मेदारियाँ आईं । साहित्य को एक भाषिक संरचना के रूप में देखना अनिवार्य था । व्याकरण की दिशा से मैं हिन्दी - गुजराती क्रियाओं के बारे में सोचने लगा । लगा कि ऐसे किसी विषय में कुछ ठोस कार्य हो सके तो कितना अच्छा ।
शोधकार्य के संदर्भ में एक बार डा. अम्बाशंकर नागर ने बताया कि गुजरात युनिवर्सिटी के नियम 0-68 के अंतर्गत अनुस्नातक अध्यापन का पाँच वर्ष या इससे अधिक अनुभव रखनेवाला अध्यापक बिना किसी मार्ग - दर्शक के, स्वयं शोधकार्य कर सकता है । 'अनुभव' का 'मूल्य' पहली बार सामने आया, परन्तु दूसरे ही क्षण मैं सोच में पड़ गया : भाषाविज्ञान से सम्बन्धित शोधकार्य स्वयं करने का अर्थ होगा मौलिक गलतियाँ करना । भायाणीसाहब से मिला । वे सभी नये लेखकों के अनधिकृत किन्तु वास्तविक मार्गदर्शक तो हैं ही। सच्चे उपनिपदवादी । साथ बैठकर दूसरे ही दिन उन्होंने कार्य की रूपरेखा तैयार करवाई | दो जुलाई 1973 को मैं गुजरात युनिवर्सिटी में प्रस्तुत विषय का शोधछात्र बना !
2. शोधपद्धति
हिन्दी - गुजराती कोशों से क्रियाओं के कार्ड बनाना शुरू किया । प्रत्येक क्रिया की सभी अर्थच्छायाएँ का पर लिखता था । हिन्दी के 2364 तथा गुजराती के 2404 कार्ड बनाने में काफी समय गया। इस विषय के लिए समय देने का संतोष तो आरंभिक दो वर्षों में ही हो गया था परन्तु बौद्धिक जिज्ञासा संतुष्ट नहीं होती
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थी । विषय से सम्बन्धित कोई पुस्तक मिल जाती तो पढ़ लेता । भायाणीसाहब मेरी इस पढ़ने की प्रवृत्ति की प्रशंसा नहीं करते थे, कहते थे वर्गीकरण करे। । शुरू किया । तत्सम तद्भव, देशज आदि वर्गों के कार्ड अलग करने लगा । तब तक मैं विषय को थोड़ा बहुत समझने लगा था इसलिए यह भी समझ गया कि जो कुछ कर रहा हूँ वह सब सही नहीं है । भायाणीसाहब से समय माँगना पड़ा। वर्गीकरण का सही तरीका बताने के साथसाथ उन्होंने प्रेरणार्थक आदि क्रियारूपों के कार्ड एक और रख देने को कहा । वर्गीकृत मूल धातुओं का लिख लेने के बाद सभी धातुओं का संमिलित तुलनात्मक एवं व्युत्पत्तिदर्शक धातुकोश तैयार किया ।
हिन्दी क्रियाओं के चयन के लिए ज्ञानमंडल के 'बृहत हिन्दी कोश' के तृतीय संस्करण का तथा गुजराती क्रियाओं के चयन के लिए गुजरात विद्यापीठ के 'सार्थ जोडणी कोश' के पाँचवे संस्करण का आधार लिया था । कोई प्रचलित क्रिया छूट न जाए इस दृष्टि से 'शब्दसागर' के दो खण्ड देखे और कुछ सोचकर विकल्प के रूप में 'मानक हिन्दी कोश' का साद्यंत देख गया । धानुकाश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई । जहाँ किसी क्रिया के सकर्मक अकर्मक दोनों रूप अस्तित्व में हों, वहाँ इनमें से एक को ही पसंद करने का प्रयत्न रहा है परन्तु ध्वन्यात्मक वैविध्यवाले सभी रूप संगृहीत किए हैं। टर्नर के काश से व्युत्पत्तियाँ खोजते समय भी कुछ कालग्रस्त धातुएँ संगृहीत करने योग्य लगीं। धातुकोश में सभी सुलभ धातुओं का समावेश करने की आकांक्षा से बोलीविषयक शोधकार्यों से तथा अन्य पुस्तकों से भी धातुएँ ली हैं। धातुरूपों की संख्या चार हजार से भी बढ़ गई (4270) ; इसका रहस्य यही । एक ही धातुरूप के अंतर्गत समाविष्ट तथापि व्युत्पत्ति तथा अर्थ की दृष्टि से भिन्नता रखनेवाली 185 धातुओं की अलग से गणना करने पर संख्या बढ़कर 4455 होगी ! रूपवैविध्य से मुक्त होकर वर्गीकरण के लिए तृतीय खण्ड में 2981 धातुएँ पसंद की हैं ।
प्रस्तुत अध्ययन - विषय का सम्बन्ध व्याकरण से भी स्थापित किया जा सकता था। इसका ऐतिहासिक भाषाविज्ञान की दिशा प्राप्त हुई इसका श्रेय भायाणीसाहब को है । अब तो ऐसी चाह जगी है कि बंगाली - मराठी का साथ लेकर चार भाषाओं का तुलनात्मक धातुकोश तैयार करूँ । धातु के निकट परिचय के बिना भाषा के भीतर पहुँचना संभव नहीं। और एक चुनौती भी दे रखी है कुछ विदेशी विद्वानों ने ! टर्नरसाहब ने 'नेपाली डिक्शनरी' तथा 'कम्पेरेटिव डिक्शनरी आफ इण्डो-आर्यन लैंग्वेजिज' के संपादन में अर्धशताब्दी का जो भव्य पुरुषार्थ किया है वह हमारे लिए उद्दीपन विभाव क्यों न बने ?
काशविज्ञान के क्षेत्र में गुजराती की अपेक्षा हिन्दी में विशेष कार्य हुआ है । हिन्दी में 110 से अधिक उल्लेखनीय कोश प्रकाशित हुए हैं। गुजराती में भी शब्दकोश - ज्ञानकोश की परंपरा शतायु हो चुकी है । 'भगवद्गामंडल कोश' ' शब्दसागर' जैसा ही विराट प्रयत्न था । इन दिनों श्री के. का. शास्त्री द्वारा संपादित 'बृहत गुजराती काश' भी सुलभ हो चुका है। गुजराती के उल्लेखनीय कोशों की संख्या 60 के आसपास
1
इस पुरुषार्थ के बावजूद आधुनिक भाषाविज्ञान तथा व्युत्पत्तिशास्त्र के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में हिन्दी या गुजराती में पूर्णरूप से वैज्ञानिक कोश सुलभ नहीं हैं । हिन्दी कोषविज्ञान के विद्यार्थी डा. युगेश्वर ने ठीक ही कहा है कि अब कोश- कार्य किसी एक व्यक्ति के द्वारा संभव नहीं ।
संस्कृत में 'धातुपाठ' की एक समृद्ध परंपरा है। हिन्दी कवि रत्नजित ने सन् 1713 में भाषा-व्याकरण के अंतर्गत धातुमाला दी है। 1969 में डॉ मुरलीधर श्रीवास्तव ने 1028 धातुओं का समावेश करनेवाला 'हिन्दी धातुकोश' प्रकाशित किया है। गुजराती में हरिदास हीराचंद ने सन् 1865 में 'धातुमंजरी' तथा टेलर ने 1870 में 'धातुसंग्रह' का प्रकाशन किया था । 'गुर्जर - शब्दानुशासन' नामक व्याकरण में स्वामी भगवदाचार्यजी ने गुजराती धातुपाठ दिया है । इसमें सकर्मक, प्रेरक आदि रूपों समेत 1972 धातुएँ संग्रहीत हुई हैं। मैंने परिशिष्ट में 2136
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गुजराती धातुएँ दी हैं । हिन्दी-गुजराती का कोई तुलनात्मक धातुकोश नहीं है। इस क्षेत्र में मेरा यह प्रयास प्रथम होगा जो विद्वानों की सहायता से भविष्य में अधिकाधिक निर्दोष भी हो सकता है।
आधुनिक भाषाविज्ञान का आरंभ तुलनात्मक भाषाशास्त्र से हुआ। हिन्दी और गुजराती दोनों परस्पर प्रभावित आधुनिक भारतीय आर्य-भाषाएँ हैं। एक के गहरे अध्ययन के लिए दूसरी भाषा का ज्ञान उपयोगी हो सकता है। जब राष्ट्रीय और शैक्षणिक दृष्टि से हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन का प्रचार और प्रसार आवश्यक हो तब ऐसे प्रयत्नों की उपयोगिता स्वयं स्पष्ट है, परन्तु शोधकर्ता का प्रथम लक्ष्य तो वह संतोष है जो अज्ञात के ज्ञात होने से प्राप्त होता है।
दो भाषाओं की धातुओं के बीच साम्य-वैषम्य की सैद्धान्तिक भूमिकाएँ स्पष्ट करने के साथ-साथ उम्मीद है कि यह प्रयत्न शब्दकोशीय सामग्री-संरक्षणशास्त्र - 'लेक्सिको-स्टेटिस्टिक्स' की दृष्टि से भी कुछ उल्लेखनीय निष्कर्ष तक पहुंचेगा।
प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के प्रकाशन के लिए डा. नगीनभाई जी. शाह, पंडित दलसुखभाई मालवणिया तथा एल. डी. इन्स्टीटयुट आफ इण्डालाजी का अनुगृहीत हूँ। और भायाणीसाहब ? इस युग में भी होते हैं ऐसे दाता, निर्हेतुक विद्यादान के लिए सदा उत्सुक और प्रसन्न !
रघुवीर चौधरी
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हिन्दी और गुजराती की क्रियावाचक धातुओं का तुलनात्मक अध्ययन
प्रथम खण्ड पूर्वकार्य का अध्ययन
द्वितीय खण्ड व्युत्पत्तिदर्शक तुलनात्मक धातुकोश
धातुकोश-टिप्पणी
तृतीय खण्ड ऐतिहासिक वर्गीकरण विश्लेषण तथा निष्कर्ष
परिशिष्ट गुजराती धातुसूची महत्त्वपूर्ण शब्दकोश
संदर्भसूची
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अ. पूर्वकार्य का अध्ययन
1. संस्कृत - धातुचर्चा
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2. पाश्चात्य धातुचर्चा 3. हिन्दी - धातुचर्चा
4. गुजराती - धातुचर्चा
5. धातु - संख्या
6. धातुओं के मूल रूप
7. धातु: स्वरान्त या व्यंजनान्त ?
8. धातुओं का वर्गीकरण 9. धातुओं की व्युत्पत्ति
खण्ड प्रथम
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पूर्वकार्य का अध्ययन १ संस्कृत-धातुचर्चा :
ईसा पूर्व ८वीं सदी में यास्क ने शब्दों को चार पद-विभागों में बाँटा है :
'चत्वारि पदजातानि नामाख्यात चोपसर्ग-निपाताश्च ' (निरुक्त १. १.)-पद चार प्रकार के होते हैं : नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात.
वेंकटमाधव ने आख्यात और नाम को स्व-अर्थदर्शी बताया है और कहा है कि उपसर्ग तथा निपात स्वतन्त्र नहीं हैं.
यहाँ 'आख्यात' शब्द क्रिया का निर्देश करता है : 'क्रियावाचकम् आख्यातम् ।'
पाणिनि ने ईसा पूर्व ५वीं शताब्दी में इसे 'तिङन्त ' कहा है और नाम, उपसर्ग, निपात का समावेश सुवन्त के अंतर्गत किया है. अव्यय को भी वे इससे अलग नहीं रखते..
यास्क ने प्रधानता की दृष्टि से ही आख्यात और नाम में भेद किया था : आख्यात में क्रिया की प्रधानता है और नाम में द्रव्य की. नाम का भी धातु के समान प्रयोग किया जाता था. पाणिनि ने अधिकांश शब्दों को धातुज माना है.
संस्कृत वैयाकरणों की दृष्टि से धातु शब्द, बड़ा ही व्यापक था. नाम, आख्यात और अव्ययों में - सभी प्रकार के पदों में धातु मूल रूप में विद्यमान मानी जाती थी. इस संदर्भ में डा. युधिष्ठिर मीमांसक ने लिखा है :
'दधाति शब्दरूपं यः स धातुः' सर्वथा सत्य है, परन्तु इसका वास्तविक तात्पर्य 'विभिन्न प्रकार के शब्दरूपों को धारण करनेवाला जो मूल शब्द है वह धातु कहलाता है' है. अर्थात् जो शब्द आवश्यकतानुसार नाम-विभक्तियों से युक्त होकर नाम बन गए, आख्यात-विभक्तियों से युक्त होकर क्रिया का द्योतन करने लगे और उभयविध विभक्तियों से रहित रहकर स्वार्थमात्र का द्योतक हुए, वह (तीनों रूपों में परिणत होनेवाला) मूल शब्द ही धातु-पद-वाच्य कहलाता है." ____ धातु एक संकल्पना है. 'वाक्य ' और 'पद' से भिन्न 'शब्द' भी संस्कृत वैयाकरणों की एक संकल्पना है.
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पूर्वकार्य का अध्ययन “भर्तृहरि ने कहा भी है कि प्रकृति, प्रत्यय आदि की सारी व्यवस्था कल्पना ही है. शब्दों की इस प्रकार से क्रमबद्ध रचना नहीं होती.""
व्यवहार में पाए जाते हैं पद, जो प्रत्ययान्त होते हैं. शब्द 'अव्युत्पन्न हो सकते हैं. प्रत्यय-रहित तथा एकशब्दात्मक होने के कारण वे 'मूल' (रूट ) कहे जाते हैं. ये 'मूल' ही 'धातु ' हैं, शेष प्रातिपदिक.
"पाणिनि ने धातु और प्रत्यय को छोड़कर बाकी सब सार्थक शब्दों को प्रातिपदिक ( नामिनल स्टेम) की कोटि में रखा है. हम कह सकते हैं कि पाणिनि के अनुसार शब्दभेद ( पार्ट्स आफ स्पीच ) सिर्फ दो ही हैं : (1) प्रातिपदिक (2) धातु.” ___डा० राजगोपाल बताते हैं कि धातुबोधित 'व्यापार' के लिए प्रयुक्त होनेवाला प्राचीन पारिभाषिक शब्द है 'भाव' जिसे नैयायिकों ने 'कृति' नाम दिया और मीमांसकों ने इसके लिए 'कृति ' ऐवं 'भावना' शब्द का प्रयोग किया :
“धातु से दो अंशों का बोध होता है - एक 'फल', दूसरा व्यापार, अर्थात् 'फलानुकूल व्यापार. ' प्रत्येक धातु से किसी फलविशेष के अनुकूल व्यापार-विशेष का बोध होता है. "*
कुछ पाश्चात्य विद्वानों को यह धातु-लक्षण चिन्त्य लगता है. बेयर ने कहा है कि व्यापार की सूचना क्रिया देती है, धातु नहीं. प्रत्ययों से युक्त होकर क्रिया का रूप धारण करने के बाद ही धातु व्यापारसूचक हो सकती है.
यह तो स्वयं स्पष्ट है कि व्यवहार में हमारे सामने क्रियाएँ आती हैं, धातुएँ नहीं.
इसलिए धातुओं से व्यापार के बोध होने का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता. परन्तु क्रिया और धातु के बीच विरोध है ही कहाँ ? 'क्रिया' प्रयुक्त रूप है. 'धातु' इसकी संकल्पना है, मूल है. अतः व्यापार क्रिया-मूल की संकल्पना में निहित नहीं है ऐसा कैसे कहा जा सकता है ?
पाणिनि ने धातुओं के वर्गीकरण में ध्वनि और संचरना को ही आधार बनाया हो और अर्थ को विश्लेषण का आधार माना ही न हो ऐसा नहीं है. 'पाणिनीय विश्लेषण-पद्धति के आधार' नामक लेख में डा. विद्यानिवास मिश्र लिखते हैं: __" इसका यह अर्थ नहीं कि बीसवीं सदी के प्रारम्भिक संघटनावादी भाषा-शास्त्रियों की तरह वे अर्थ को विश्लेषण की परिधि से बाहर रखना चाहते थे, बल्कि ठीक उलटे, शब्दों के जिन अर्थो में प्रयोग वर्गीकृत किये जा सकते हैं, उन्होंने उनको वर्गीकृत करने का भी यत्न किया है, जैसे गत्यर्थक धातु, बुध्यर्थक धातु आदि का उल्लेख करके उन्होंने अर्थ की समानक्षेत्रता के आधार पर शब्दों का राशीकरण जगह-जगह किया है."
शाकटायन ने कुछ शब्दों के एक से अधिक मूलों या प्रकृतियों का निर्देश किया है. यास्क ने शाकटायन के दो मत व्यक्त किये हैं : 'पदों में इतर पदार्थों का संस्कार' तथा 'पदों का द्विप्रकृति होना' 'द्विप्रकृति' के दो अर्थ हैं : दो धातुओं से बननेवाले शब्द तथा मूलतः एक किन्तु दो भिन्न मूलार्थों को वहन करनेवाली धातु.
संस्कृत व्याकरण में धातुचर्चा केवल वर्गीकरण और विश्लेषण के रूप में ही नहीं मिलती, एक तात्त्विक भूमिका के साथ भी प्रस्तुत होती है. 'शब्द ' संज्ञा के अंतर्गत जो चिन्तन है
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश वह व्याकरण और दर्शन दोनों क्षेत्रों की उपलब्धि के रूप में हमें प्रभावित करता है. क्योंकि 'शब्द की सीमा के अंतर्गत प्रातिपदिक, धातु आदि संकल्पनात्मक संज्ञाओं का भी समावेश है. भारतीय चिन्तन के वाक्केन्द्रित होने का रहस्य स्पष्ट करते हुए मिश्रजी ने भर्तृहरि की यह उक्ति उद्धृत की है : 'अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्व शब्देन भासते' - प्रत्येक ज्ञान शब्दविद्ध होकर ही ग्राह्य बनता है. ' 'शब्दविचार - भारतीय दृष्टिकोण' नामक लेख में डा. मा. गो. चतुर्वेदी ने कहा है :
"संस्कृत वैयाकरणों ने जिस प्रकार दार्शनिक स्तर पर शब्दों को ब्रह्म आदि माना है, उसी प्रकार भाषा-वैज्ञानिक स्तर पर भी शब्द को मूलतः एक आंतर यथार्थ ही माना है, जो मानवीय बुद्धि, मन और प्राण में प्रतिष्ठित रहता है तथा वक्ता में विवक्षा के होने पर, वही वर्णात्मक ध्वनियों के रूप में व्यक्त होता है. पतंजलि ने अपने महाभाष्य में शब्द की जो परिभाषाएँ स्थान-स्थान पर दी हैं, उनसे भी यही सिद्ध होता है कि 'शब्द' के दो पक्ष हैं, एक आंतरिक और दूसरा बाह्य. शब्द के आंतरिक पक्ष को उन्होंने भी स्फोट कहा है और बाह्य पक्ष को ध्वनि.""
'शब्द' के ये दोनों पक्ष धातु-विचार के संदर्भ में भी प्रस्तुत हो सकते हैं. परन्तु हमें यहाँ तो केवल भारतीय व्याकरण-शास्त्र की सीमा में रहकर ही कहना है कि क्रियावाचक रूप का मूल है धातु.
संस्कृत धातुपाठ पर उल्लेखनीय शोधकार्य करनेवाले डा० गजानन पलसुले कहते हैं :
By the term dhato, then, the grammarians understood that souud-unit which characterized by a certain meaning ( action ), was found to be a kernal of a group of related words. 7
-वैयाकरणों की दृष्टि से सम्बन्धित शब्दों के वर्ग में समान रूप से व्याप्त किसी अर्थविशेष ( क्रिया) करनेवाली ध्वनि-इकाई ही धातु है.
भाष्यकार ने इसे 'क्रियावचनो धातु : ' और यहाँ तक कि 'भाववचनो धातुः' भी कहा है:
(1) a root; the basic word of a verbal form, defined by the Bhasyakara as क्रियावचनो धातु : or even as भाववचनो धातु : a word denoting a verbal activity, Panini has not defined the term as such, but he has given a long list of roots under ten groups, named dasagani, which includes about 2200 roots which can be called primary roots, as contrasted with secondary roots. The secondary roots can be divided into two main groups (1) roots derived from roots (धातुजधातवः) and (2) roots derived from nouns (नामधातवः) The roots derived from roots can further be classified into three main subdivisions : (a) causative roots, or णिजन्त, (b) desiderative roots or सन्नन्त, (c) intensive roots or यङन्त and यङगन्त while roots derived from nouns or denominative roots can further be divided into क्यजन्त, काम्यजन्त, क्यङन्त, क्यबन्त, णिङन्त, क्विबन्त, and the miscellaneous ones (प्रकीर्ण) by the application of the affix यक् or from nouns like सत्य
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पूर्वकार्य का अध्ययन
वेद, पाश, मुण्ड, मिश्र, etc. by the application of the affix णिचू. Besides these, there are a few roots formed by the application of the affix आय and ईय ( ईयडू ).
C
'भाष्यकार ने क्रियावाचक रूप के मूल शब्द धातु को 'क्रियावचनो धातुः' कहा है, यहाँ तक कि 'भाववचनो धातुः ' भी कहा है, 'धातु' क्रियात्मक गतिविधि का निर्देश करने वाला शब्द है. पाणिनि ने कहीं स्पष्ट रूप से इस शब्द की परिभाषा नहीं दी है परन्तु दस विभागों के अंतर्गत उन्होंने दशगणी नाम से धातुओं की विस्तृत सूची दी है, जिसमें लगभग 2200 मूल धातुओं का समावेश हुआ है, जो साधित धातुओं से भिन्न हैं. साधित धातुओं को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है ( 1 ) धातुओं से निष्पन्न धातुएँ - धातुज धातवः ' तथा (2) संज्ञाओं से निष्पन्न धातुएँ - नाम - धातवः. ' धातुज धातुओं को तीन मुख्य उपविभागों में बाँटा जा सकता है : (अ) प्रेरक धातुएँ अथवा णिजन्त, (आ) इच्छावाचक धातुएँ अथवा सन्नन्त, (इ) पौनः पुन्यवाचक धातुएँ अथवा यङन्त और यङगन्त; जब कि ': प्रत्यय अथवा 'णिचू' प्रत्यय लगाकर सत्य, वेद, पाश, मुण्ड, मिश्र आदि संज्ञाओं से बनी धातुओं को क्यजन्त एवं प्रकीर्ण के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त आय तथा ई (ई ) प्रत्ययों से बनी कुछ धातुएँ भी मिलती हैं. "8
यकू
संस्कृत वैयाकरणों ने इन सभी धातुओं को परस्मैपदिन्, आत्मनेपदिन् तथा उभयपदिन् के रूप में विभाजित किया है. स्वर-व्यंजन ध्वनियों के प्रत्ययान्त भेदोपभेद के साथ जो वर्गीकरण किया गया है, उस वर्गीकरण में जो विश्लेषण - प्रद्धतियाँ प्रयुक्त हुई हैं उनकी वैज्ञानिकता से आधुनिक भाषाविज्ञानी प्रभावित हुए हैं.
पाणिनि ने ' धातु' शब्द अपने पुरोगामी वैयाकरणों से प्राप्त किया. 'निरुक्त' और 'प्रातिशाख्य ' कृतियों में इसकी चर्चा हुई है, जिसका निर्देश पहले हो चुका है. निरुक्तकार तथा शाकटायन तो सभी संज्ञाओं को भी धातुज मानते हैं.
कुछ विद्वानों ने धातुओं को छः श्रेणियों में वर्गीकृत किया है :
(1) परिपठिताः
भूवादयः आन्दोलयत्यादयः
(2) अपरिपठिताः
(3) परिपठितापरिपठिता: ( सूत्रपठिताः ) :
स्फुस्कम्भस्तम्भेत्यादयः
(4) प्रपयधातवः
(5) नामधातवः
,
सनादूयन्ताः
कण्डूवादयः
(6) प्रत्ययनामधातवः
होडगल्भक्लीवप्रभृतयः
अंग्रेजी संज्ञा 'रूट' तथा संस्कृत संज्ञा 'धातु' को कुछ विद्वान समानार्थी मानकर चलते हैं. डा. सत्यकाम वर्मा ने भेद की रेखाएँ स्पष्ट की हैं. 'रूट' का अर्थ ' मूल शब्दमात्र ' है, 'धातुमात्र' नहीं. गणित की दृष्टि से इस इकाई को 'महत्तम समापवर्तक' और वैज्ञानिक दृष्टि से लघुतम योजक' ( स्मालेस्ट कांस्टीट्युएण्ट ) कहना चाहिए. डा. वर्मा कहते हैं कि 'धातु' वह छोटी से छोटी इकाई है, जिसका पुनः विभाजन
किसी भी रूप में
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संभव नहीं हो सकता. फिर यह भी आवश्यक नहीं कि प्रत्येक प्रातिपदिक को धातुमूलक सिद्ध किया ही जा सकता है.
डा. वर्मा का ' व्याकरण की दाशर्निक भूमिका' ग्रंथ भर्तृहरि पर आधारित है. इन्होंने धातु को अव्यावहारिक बताकर इस ख्याल की शास्त्रीय चर्चा की है. कुछ उदाहरण देकर वे इस निष्कर्ष तक पहुँचे हैं :
64
'अतः यह स्पष्ट है कि शुद्ध ' धातु' का प्रयोग, भाषातत्त्व की दृष्टि से, सम्भव नहीं है. रूपात्मक दृष्टि से ऐसा सम्भव दीखने पर भी अर्थात्मक दृष्टि से ऐसा असम्भव है. इस बात को समझकर हम उन भाषाओं में भी 'धातु' और 'क्रिया' के भेद को पहचानने में समर्थ हो सकेंगे, जिनमें या तो प्रत्यय नहीं होते, या जिनमें प्रत्ययसंयोग मूल शब्दरूप को प्रभावित नहीं करता. १३०
संस्कृत धातु चर्चा व्यवहृत भाषिक स्वरूपों के संदर्भ में होती थी या केवल शास्त्रचर्चा हुआ करती थी यह प्रश्न कुछ अन्य विद्वानों ने भी उठाया है. व्हिटनी का कहना है कि पाणिनि के धातुपाठ में जिन दो हजार धातुओं का समावेश हुआ है वे सभी व्यवह्नत नहीं होती थीं. इस धारणा का बुचर तथा एडग्रेन ने विरोध किया है. इन्होंने परिवर्तित भाषिक रूपों से भी संस्कृत धातुओं का संबंध बताया है. कई प्राकृत, पालि तथा देशज धातुओं के मूल रूप संस्कृत धातुओं में मिलते हैं.
सतत परिवर्तनशील भाषा में कुछ धातुओं का किसी न किसी रूप में बना रहना अध्ययन का एक रसप्रद विषय है. डा. सुनीतिकुमार चेटर्जी ने तो सामान्य भाषक के धातु विषयक अवबोध के बारे में भी एक उल्लेखनीय बात कही है :
16
एक भाषा के शब्द जब कि धातु और प्रत्ययों के संयोग से बने होते हैं, तब उसका प्रत्येक जन्मजात बोलनेवाला व्यक्ति साधारणतया स्पष्ट रूप से यह जानता है कि किसी एक शब्द का धातुभाग कौनसा है, और प्रत्यय भाग कौनसा हाँ, यदि चिन्तन तथा अभिव्यक्ति, आलस्यादि अन्य प्रभावों से आच्छादित हो गई हो तो बात दूसरी है. उदाहरणार्थ - एक जन्मजात आर्य भाषी 'धर्म' शब्द में धातुभाग 'घर' तथा प्रत्ययभाग 'म' है, इतना तो कम-से-कम जानता होगा ही. 'धर्म' शब्द का उच्चारण करते समय स्वभावतः उसके मन में इस शब्द का 'धर / म ' इस प्रकार विश्लेषण हो जाता होगा " 11
सुशिक्षित एवं भाषा का सजग प्रयोग करनेवाले भाषकों तक ही चेटर्जी महोदय के कथन की व्याप्त हो सकती है, इसे व्यापक नियम मानकर चलना तर्कसंगत नहीं है. केवल धातुरूप में तो धातु भाषा में नहीं चलती.
समान अर्थबाली तथा कुछ ध्वनिसाम्य रखनेवाली धातुओं के दो रूप मिलते हैं तो क्यों मिलते हैं, तथा इनके बीच सम्बध है तो किस प्रकार का इस प्रश्न का उत्तर सुलभ नहीं हुआ. डा. गजानन पलसुले ने कहा है कि चेतति, चेतयति, चित्त, चेतना आदि रूपों में 'चित् ' तथा चिन्तयति, चिन्तयामास, चिन्तन आदि में 'चिन्त्' धातु खोज निकाली परन्तु 'चित् ' और 'चिन्त्' के बीच कोई सम्बन्ध है या नहीं यह नहीं बताया. विद्वानों ने इस विषय में अभी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया. 12
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पूर्वकार्य का अध्ययन ऐसे कुछ निरुत्तर प्रश्नों के साथ भी संस्कृत वैयाकरणों ने जो 'शब्द-चिन्तन' किया है उसकी सराहना जितनी की जाय, कम है. धातुपाठ पर सतत शास्त्रार्थ करते हुए संपादन करने को संस्कृत में जो परंपरा बनी रही वह विरल है.
'ए डिक्शनरी आफ संस्कृत ग्रामर' के लेखकों ने धनंजय, वरदराज, पाणिनि, शाकटायन, नागेश, धर्मकीर्ति, काशीनाथ, चोक्कनाथ आदि वैयाकरणों द्वारा रचित धातुपाठ के चौदह ग्रंथों के नाम दिए हैं. इससे पता चलता है कि संस्कृत व्याकरणशास्त्र ने इस विषय के अध्ययन का महत्त्व सतत बनाए रखा है. ईसा पर्व 8वीं सदी से लेकर ईसा की ७वीं सदी त होते इन संस्कृत ग्रंथों में धातुचर्चा होती रही और शास्त्रीय पद्धति से धातुओं के संचय किये गए. इस संदर्भ में संस्कृत-प्राकृत के कुछ वैयाकरणों का विशेष उल्लेख किया जा सकता है : कच्चान, स्थ वेर संघर देखत, भिक्षु अग्गवंस, मैत्रेयरक्षित, हेमचन्द्र, त्रिविक्रम, जुमरनन्दिन, नारायण, चोक्कनाथ, मोग्गल्लायन महाथेर आ.दे. इन विद्वानों ने व्याकरण के साथ धातुपाठ देने की परंपरा अक्षुण्ण रखी. इस शताब्दी में पाश्चात्य भाषाविज्ञान के संदर्भ में संस्कृत व्याकरणशास्त्र का अध्ययन शुरू हुआ है और भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों ने संस्कृत वैयाकरणों की वैज्ञानिक उपल.ब्धयों को बड़े गौरव के साथ हमारे सामने प्रस्तुत किया है. २ पाश्चात्य धातु-चर्चा :
एम० बी० एमेनो ने लिखा है कि भारतीय व्यकरणशास्त्र के गहन अध्ययन का प्रभाव ब्लूम फेल्ड की विश्लेषण-पद्धतियों पर पड़ा है. स्वयं ब्लूम फेल्ड ने भी कहा है कि 'पाणिनि का व्याकरण' उनकी उन पुस्तकों में था जिन्हें वे विश्राम के क्षणों में सदैव पढ़ा करते थे.16
पाश्चात्य परंपरा में शब्द शब्द-रूप में ही वाक्य में प्रयुक्त होता है. ब्लूम फल्ड 'मिनिमन फ्री फार्म' - लघुतम मुक्त रूप को शब्द कहते हैं. संस्कृत व्याकरण के अनुसार वाक्य के घटक के रूप में प्रयुक्त होने से पहले ही शब्द का रूपान्तर पद के रूप में हो जाता है. पश्चिम में शब्दों के वर्गीकरण की परंपरा ग्रीक-लेटेन काल से है परन्तु इसकी वैज्ञानिकता से विद्वान संतुष्ट नहीं हैं. एम. बी. एमेनो लिखते हैं :
"लेटेन के चार प्रकार के क्रिया-रूपों (कन्जुगेशन्स) के विवेचन को लिया जा सकता है जिसमें क्रियाओं के धातुरूपों (रूटूस), मूल प्रत्ययों (स्टेम साफे क्सस) तथा विकारी प्रत्ययों ( इन्फ्लेक्शनल साफे क्सस) के अन्वेषण का कोई विशेष प्रयास नहीं किया गया है तथा विविध क्रियारूपों में प्राप्त सादृश्य की ओर भी कम ही ध्यान दिया गया है. " ।
पाश्चात्य वैयाकरणों द्वारा किया गया अन्वेषण एवं विश्लेषण भले ही प्रभावक न हो परन्तु वे ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी से लेकर प्रस्तुत विषय की चर्चा करते रहे हैं. प्लेटो (ईसा पूर्व 429 से 347 ) प्रथम विद्वान हैं जिन्होने संज्ञा तदा क्रिया के बीच स्पष्ट रूप से भेद किया तथा वाक्य में उनके कार्य को भी समझाया :
As defined by Plato. nouns' were terms that could function in sentences as the subjects of a predication and 'verbs' were terms which could express the action or quality predicated 15
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. क्रियाएँ कार्य अथवा निर्धारित लक्षण व्यक्त करती हैं- प्लेटो की यह स्थापना उनके समय की दृष्टि से उल्लेखनीय लगती है. अरस्तू ने प्लेटो का वर्गीकरण मान्य करते हुए उन दो वर्गो में जिनका समावेश नहीं होता ऐसे उभयान्वयी का एक नया वर्ग सूचित किया. मध्यकाल तक पहुँचने के बाद ही पाश्चात्य व्याकरण संज्ञा, क्रिया और विशेषण के भेद करता है.
जोन लायन्स कहते हैं कि भारतीय व्याकरणशास्त्र की परंपरा स्वतंत्र होने के साथ-साथ पाश्चात्य ग्रीक - रोमन परंपरा से अधिक वैज्ञनिक भी थी. ध्वनिविज्ञान तथा शब्दों की आंतरिक संचरना की दृष्टि से तो भारतीय विद्वानों का कार्य अनेक विद्वानों ने सराहा है. "
रोबर्ट ए. होल बताते हैं कि लेटिन और रोमन भाषाओं में क्रियाओं के 'स्टेम' हुआ करते थे जिनके साथ विविध एण्डिंग्स - प्रत्यय लगते थे. 17
(
अब हम पश्चिम के कुछ भाषाविदों द्वारा दी गई 'क्रिया' तथा धातु' की कुछ परिभाषाएँ देखें. डायोनिसियस थ्रेक्स के अनुसार :
The verb is a part of speech without case-inflextion, admitting inflextions of tense, person and number, signijying an activity or a being acted upon. 18 - क्रिया एक ऐसा पदप्रकार है जिसे नाभिक विभक्तिप्रत्यय लगते हैं और जिसका अर्थ क्रिया या तो क्रिया-विषयक कोई व्यक्ति होता है.
— अवस्थावाचक क्रियापद तथा वर्क्स आफ एक्शन - व्यापारवाचक क्रियापद के बीच भेद किया है.
पाश्चात्य विद्वानों ने स्टेटिक वर्ब
सम्बन्धित रूपों के साथ धातु के लक्षण स्पष्ट करते हुए होल धातु के प्रति भाषक की सर्तकता तथा भाषिक संरचना को लक्ष करते हुए लिखते हैं:
When we speak of " roots" and "stems we are of course referring to elements which are to be abstracted from sets af related forms (nouns, verbs, etc.) by the process of observing and standing partial similarities. We do not imply, in setting up roots or stems that they are noun or must necessarily have been separate entities or free forms. Speakers of different languages vary greatly in their awarness of the existence and interplay of roots; in the English speech community, Such awareness seems relatively uncommon, where as it is said that speakers of Russian are very much aware of the role of roots and stems in their language. Nor are roots' or 'stems' determinable by any aprioristic principles; the analyst can define them as best suits his convenience in describidg the structure of the language. Our criteria will often differ from one language to another, 19
धातु तथा स्टेम अंग के विषय में बात करते समय हम आंशिक साम्य का ध्यान रखते हुए (संज्ञा, क्रिया आदि ) सम्बद्ध रूपों के वर्गों से निकाले हुए मूल तत्त्वों को लक्ष करते हैं, धातु या अंग का वर्गीकरण करते समय उनको अलग और स्वतंत्र इकाइयाँ सूचित करना हमें अभिप्रेत नहीं होता. धातुओं के अस्तित्व एवं आंतर - विनियोग के बारे में सभी भाषाओं के
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पूर्वकार्य का अध्ययन भाषक समान रूप से सतर्क नहीं होते, बल्कि उनके अवबोध में बड़ा अंतर होता है. अंग्रेजीभाषी समुदाय में यह अवबोध कुछ असामान्य-सा लगेगा, जब कि कहा जाता है कि रशियन भाषाभाषी अपनी भाषा में धातु तथा अंग के कार्य के बारे में बड़े सतर्क होते हैं. किसी पूर्वनिर्धारित सिद्धान्त के आधार से धातु तथा अंग के लक्षण निश्चित नहीं किए जा सकते. भाषा-विशेष की संरचना के संदर्भ में ही सर्वाधिक सफलता से इनका विश्लेषण किया जा सकता है. हमारे मानदंड भाषा-विशेष के अनुसार बदलते रहेगे.
अब हम 'डिक्शनरी ऑफ लिंग्विस्टिक्स' में दी गई क्रिया और धातु की परिभाषाएँ देखें :
Verb is that part of speech which expresses an action, a process, a state or condition or mode of being.30
-क्रियापद घाणी का वह अंश है जो क्रिया, व्यापार, सत्ता की अवस्था, स्वरूप या प्रकार को व्यक्त करे.
धातु की पाश्चात्य परिभाषा भारतीय दृष्टि से मिलती-जुलती है. केवल क्रियारूप की नहीं परन्तु किसी भी शब्दरूप की मूल इकाई को लक्ष्य किया गया है :
The ultimate constituent element common to all cognate words, that is the element of a word which remains after the removal of all flexional endings formatives etc The root is usually present in all members of a group of words relating to the same idea and is thus capable of being considered as the ultimate semantic vehicle of a given idea or concept in a given language. 31
इसका तात्पर्य है :
- 'शब्दों की वह अन्तिम इकाई ही धातु है जो प्रत्यय आदि को निकालने पर समान अर्थों के शब्दों में रहती है. निष्कर्ष यह है कि धातु यह ध्वनि-समुदाय है जिसके खण्ड नहीं हो सकते और जिसके साथ प्रत्यय जोड़कर 'पद' निष्पन्न किया जाता है." ___ आधुनिक पाश्चात्य भाषाविज्ञान ने भाषा-परिवर्तन के संदर्भ में भी क्रियावाचक धातुओं की चर्चा की है, और शास्त्रीय सूक्ष्मताएँ सिद्ध की हैं. उनका निर्देश करना भी एक बहुत बड़े क्षेत्र में प्रवेश करना होगा. यहाँ इतना कहना पर्याप्त होगा कि प्राचीन भारतीय वैयाकरणों की उपलब्धियों को आत्मसात् करने के साथ हम गौरव भी ले सकते हैं और आधुनिक पाश्चात्य भाषाविज्ञान से हमें अभी बहुत कुछ सीखना है. ३ हिन्दी-धातुचर्चा ... डा. धीरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि धातु की धारणा वैयाकरणों के मस्तिष्क की उपज है, भाषा का स्वाभाविक अंग नहीं है. डा. वर्मा सभी शब्दरूपों के मूल अंश को नहीं, केवल क्रिया के उस अंश को 'धातु' कहते हैं जो उसके सभी रूपान्तरों में पाया जाता है.
"जैसे चलना, चला, चलेगा, चलता आदि समस्त रूपों में 'चल' अंश समान रूप से मिलता है, अतः 'चल्' धातु मानी जायगी."36
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___ डा. भोलानाथ तिवारी भी इसी प्रकार के उदाहरण देते हुए 'धातु' को वैयाकरणों की कल्पना बताते हुए लिखते हैं : __ " हाँ, धातु की कल्पना या उसे खोज लिए जाने के बाद उसके आधार पर उपसर्ग, प्रत्यय आदि की सहायता से अवश्य शब्द एवं रूप बनाए जा सकते हैं, और बनाए गए हैं. "34
ब्रजेश्वर वर्मा द्वारा संपादित 'भारतीय भाषाओं का भाषाशास्त्रीय अध्ययन' नामक पुस्तक में कु. श्री. रा. रंगमणि ने 'कन्नड क्रियारूपों की संरचना' नामक लेख में हिन्दी व्याकरणों से धातु की कुछ परिभाषाएँ दी हैं, जिनमें से कामताप्रसाद गुरु, किशोरीलाल वाजपेयी और दुनीचंद द्वारा दी गई परिभाषाएँ इस प्रकार हैं :
" जिस मूल शब्द में विकार होने से क्रिया बनती है, वह धातु है." __ "क्रियाओं के मूल रूप धातु हैं - विविध क्रियापदों में जो चीज़ व्यापक दिखाई देती है, जो उपादान रूप से सर्वत्र विद्यमान है, वह धातु कही जाएगी. ” ।
"क्रिया का वह अंश जो उसके प्रायः सभी रूपों में पाया जाएगा; धातु कहलाता है."36
इन तीनों परिभाषाओं में सभी प्रकार के शब्दों के मूल रूपों को धातु नहीं परन्तु केवल क्रिया के मूल रूप को धातु कहा गया है.
च वर्ती कृत 'दि लिंग्विस्टिक स्पेक्युलेशन्स आफ हिन्दुस' का संदर्भ देते हुए 'अवधी की साधित धातुएँ' नामक (अप्रकाशित) शोधकार्य में श्रीमती मालती देवी दुबे ने उन मल रूपों को धातु कहा है जो सभी शब्दों के उद्गम हैं. संस्कृत-परंपरा के निकट रहकर वे लिखती हैं:
___ "प्रकृति को समझने के लिए हमें केवल धातु की और ध्यान देना चाहिए, दूसरे शब्दों की ओर नहीं. शब्दों की एक प्रकृति होती है और वह धातु के अतिरिक्स दूसरी नहीं है।"26
सभी शब्दों को धातुज मानना अधिकांश हिन्दी विद्वानों को स्वीकार्य नहीं है. 'बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन' के लेखक डा. रामेश्वर अग्रवाल ने कई शब्दों को अधातुज मानकर चलने का सुझाव दिया है :
"संस्कृत के लिए कहा गया है कि उसके सभी शब्द किसी-न-किसी धातु पर आधारित हैं. वस्तुतः यह बात सर्वांशतः संस्कृत पर भी लागू नहीं होती और हिन्दी के लिए जिसमें न जाने कितने विदेशी शब्द भी आ गये हैं. किस प्रकार धात निर्धारित की जा सकती है? संस्कृत के शब्द 'कर्म' को ही लीजिए. संस्कृत में कृ धातु स्पष्ट है पर काम, चाम, धाम, हिन्दी शब्दों का विश्लेषण करके क्या 'का', 'चा', 'धा' धातु निकाली जा सकती हैं ? वस्तुतः ऐसे तथा अन्यान्य विदेशी शब्दों को हम हिन्दी व्याकरण की दृष्टि से 'अधातुज' मानकर ही चलेंगे."
संस्कृत वैयाकरणों को भी इस बात का अवबोध था कि अनेक शब्दों को धातु-प्रत्यय की विश्लेषण-पद्धति के अनुसार समझाया नहीं जा सकता. डा. अनन्त चौधरी पाणिनि की शब्दनिर्वचन-पद्धति तथा धातुपाठ की विशेषताएँ बताते हुए लिखते हैं:
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पूर्वकार्य का अध्ययन " उनके (पाणिनि के) पूर्व शाकटायन ने भी यह स्वीकार किया था कि शब्द धातुओं से बनते हैं, किन्तु उन्होंने अपने मत को आग्रह का रूप दे डाला था और व्युत्पन्न एवं अव्युत्पन्न सभी प्रकार के शब्दों को धातु-प्रत्ययों से सिद्ध करने का क्लिष्ट प्रयत्न किया था, जिसके कुछ उदाहरण यास्क ने अपने निरुक्त में उद्धृत किये हैं. पाणिनि दुराग्रही नहीं, समन्वयवादी थे... लोक में शब्दों का भण्डार बहुत बड़ा है, जिसमें अनेक शब्द ऐसे भी हैं, जिनमें धातु-प्रत्यय की दाल नहीं गलती."28 ___डा. अनन्त चौधरी ने हिन्दी के प्रमुख व्याकरणों का विस्तृत परिचय देते हुए क्रिया-धातु से सम्बन्धित चर्चा का भी जिक्र किया है. हिन्दी वैयाकरणों ने धातुओं का वर्गीकरण अलगअलग ढंग से किया है परन्तु सभीने क्रिया-मृल को ही धातु मानना उचित समझा है. प्रमुख व्याकरणकारों द्वारा दी गई धातु की कुछ और परिभाषाएँ देखना रसप्रद होगा :
'वाक्य अर्थात् बात क्रिया से पूरी होती है और क्रिया धातु से बनती है. धातु उसे कहते हैं, जिसके अर्थ से देह वा मन का कुछ व्यापार अर्थात् हिलना-चलना आदि पाया जाय..१७
‘क्रिया से मूल को धातु कहते हैं और उसके अर्थ से व्यापार का बोध होता है.' 80
पं. श्रीलाल, विलियम एथरिंगरन के ये उद्धरण पं. कामताप्रसाद गुरु, पं. किशोरीलाल वाजपेयी और दुनीचन्द के उन इस रणों की तरह प्रायः एक ही विचार को दोहराते हैं. इन समर्थनों से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि और शन्द अधातुज हो सकते हैं परन्तु क्रियाएँ तो धातुज ही हैं. ४. गुजराती - धातु-चर्चा
गुजराती व्याकरणों में परिभाषाएँ देने की अपेक्षा विश्लेषण-वर्गीकरण करने की परंपरा अधिक विकसित हुई है. 1921 में प्रकाशित नरसिंहराव दिवेटिया कृत 'गुजराती लेंग्वेज एण्ड लिटरेचर' में 'द कोर्पस आफ गुजराती वर्बल रूट - इट्स फार्मेशन' नामक एक उत्सर्ग दिया गया गया है जिसमें धातुओं का ऐतिहासिक तथा स्वरूपगत वर्गीकरण सोदाहरण किया गया है. डा. टी. एन. दवे की पुस्तक 'द लेंग्वेज आफ गुजरात' में गुजराती क्रिया तथा उसके रूपों की भाषाविज्ञान तथा व्याकरण की दृष्टि से चर्चा की गई है. टेलर, क. प्रा. त्रिवेदी, म. झवेरी, के. का. शास्त्री, ह. भायाणी, ज्योर्ज कार्डोना, जयंत कोठारी, योगेन्द्र व्यास आदि के गुजराती व्याकरण विशेष उल्लेखनीय हैं. इनमें से कुछ विद्वानों ने नई स्थापनाएँ की हैं तो कुछ ने सुलभ सामग्री का शास्त्रीय विनियोग किया है.
श्री के. का. शास्त्री अन्य विद्वानों की तरह धातु को वैयाकरण की कल्पना बताकर कहते हैं कि यास्क और पाणिनि ने स्तोत्र धातुएँ दी हैं. वे लिखते हैं : ___" वस्तुस्थितिए भाषाना बधा ज शब्द कई क्रियावाचक धातुओमाथी न होई शके; डित्थ डपित्थ वगेरे यहच्छा शब्दोनु अस्तित्व व्याकरणकारो स्वीकारे छे अने पारकी भाषाओना शब्द पण उछीना लेवाया होय छे ... आपणने आ रीते जे क्रियापदो मळ्यां छे तेओने ते ते क्रियापदना मूळ धातु कहिये छिये."1
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हिन्दी गुजराती धातुकोश
हिन्दी व्याकरणकार जिसे 'धातु' कहते हैं उसे यहाँ ‘क्रियावाचक धातु' कहा गया है. संस्कृत परंपरा के अनुसार किसी भी शब्द के मूल रूप को 'धातु' की संज्ञा दी है. डा. ऊर्मि देसाई लिखती हैं कि शब्द की प्रमुख इकाई के लघुतम अंश को धातु कहा जा सकता है. इस परिभाषा को इन्होंने इस प्रकार स्पष्ट किया है :
“धातु ए शब्दना मध्यवर्ती अंश माटेनी संज्ञा छे. एटले के बधा ज शब्दोना मध्यवती अंश धातुना बनेला होय छे. अने आ धातुओ ज घणुखरु अर्थना मुख्य वाहक होय छे.
धातुओ एटले संस्कृतमा जेने आपणे क्रियावाचक अंग कहीए छीए ते नहीं. परंतु अर्थनी दृष्टिए गुजराती भाषानी कक्षाए जेनु आगळ पृथक्करण न करी शकीए अने जेनो अथे अधातुओनी तुलनाए कंइक वधु 'स्थूल' होय ते. आम धातुओ ते भाषानो पायानो आधार छे. उदा. “हाथ, पग, टेबल, बोल, शाल, जीव, गाय, धन, फूल" वगेरे.
एक शब्दमां एक ज धातु आवे एवु कंई नथी. एक करतां वधु धातु पण आवी शके." 81
यहां कहा गया कि (1) सभी शब्दों के मध्यवर्ती अंश धातओं से बने होते हैं, (2) ये धातुएँ प्रमुख अर्थवाहक होती हैं, (3) धातु पृथक्करण के बाद की स्थिति है, धातु तक पहुँचने के बाद पृथक्करण संभव नहीं, (4) कुछ शब्दों में -समासादि में एक से अधिक धातुएँ हो सकती हैं. . लेखिका ने इस प्रतिपादन के लिए इ. ए. नायूडा के ग्रंथ 'मार्कोलोजी- द दीस्क्रिप्टिव एनालिसिस आफ वर्ड्स' का आधार लिया है. लेखिका की स्थापनाएँ नई हैं फिर भी गुजराती व्याकरणशास्त्र की परंपरा में आगंतुक नहीं लगती. रूपरचना को (1) धातु और (2) अधातु में बांटकर, धातु को शब्द का मध्यवर्ती अंश मानने में औचित्य है. हिन्दी व्याकरणकारों ने क्रियावाचक धातु को ही धातु कहा है जब कि गुजराती व्याकरण के अनुसार धातुएँ दो प्रकार की हैं : (1) संज्ञावाचक धातुएँ और (2) क्रियावाचक धातुएँ.
अभी गत वर्ष (1977 में ) प्रकाशित डा. योगेन्द्र व्यास के व्याकरण में 'नामपद में प्रविष्ट होते रूप', 'क्रियापद में प्रविष्ट होते अन्य रूप' तथा 'द्वैती येक रचनाएँ' जैसे प्रकरण भी इसी वर्गीकरण का समर्थन करते हैं. डा. व्यास के अनुसार 'क्रियापद जैसी रचना में प्रविष्ट होते रूपों में जो प्रमुख या केन्द्रित रूप होते हैं उन्हें धातु अथवा क्रियापद के मूल रूप (- वर्ब बेस ) कहते हैं.'
'क्रियापद के मूल रूप' को 'क्रियावाचक धातु' कहना अधिक युक्तिसंगत है. आख्यातिक रूपों के पदसाधक प्रत्ययों को अलग करने पर जो सरल मूल अंग अर्थात् प्रकृति शेष रहती है इसे डा. भायाणी ने क्रियावाचक धातु बताकर प्रस्तुत प्रबंध में हिन्दी-गुजराती 'धातुओं' का नहीं परन्तु 'क्रियावाचक धातुओं' का तुलनात्मक अध्ययन करने का सुझाव दिया था. ५. धातु-संख्या
संस्कृत 'धातुपाठ' में कुल 1880 धातुओं की गणना है. यह उल्लेख श्री बाबूराम सक्सेना ने किया है. श्री भोलानाथ तिवारी के हेसाब से संस्कृत धातुओं की संख्या 800 है. वे लिखते हैं :
'हिटनी की गणना के अनुसार इनमें 800 से कुछ ही अधिक का साहित्य (विशेषत: वैदिक तथा प्राचीन लौकिक ) में प्रयोग मिलता है. इन 800 के तीन वर्ग हैं. प्रथम वर्ग लाभग
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पूर्वकार्य का अध्ययन 200 धातुओं का है जो केवल वैदिक संस्कृत तक सीमित है, दूसरा वर्ग 150 से कुछ कम धातुओं का है जो केवल लौकिक साहित्य में मिलती हैं. तीसरे वर्ग में लगभग 500 धातुएँ आती हैं जो वैदिक तथा लौकिक दोनों ही साहित्य में प्रयुक्त हुई हैं." 33 ___ डा. भोलानाथ तिवारी के निर्देशन में डा. कृष्णगोपाल रस्तोगी ने 'हिन्दी क्रियाओं का अर्थपरक अध्ययन' किया है, जिसमें 772 धातुओं के क्रियारूप पसंद किये गए हैं.
गुजराती के विद्वान श्री के. का. शास्त्री ने इनमें से कुछ बातों को दोहराते हुए कुछ नई जानकारी दी है:
___ "संस्कृत भाषामां बधा मळी 2200 थीये वधु धातु पाणिनिना धातुपाठमां जोवा मळे छे. आमांना एकना एक धातुना जुदा जुदा गण थता होई एवडी संख्या थई छे; पण सामान्य रीते 1700 जेटला धातु आवी रहे छे. ए 1700 धातुस्वरूप टूकामां टूकां छे अने एनाथी टू का रूप न मळी शके. परंतु आ धातुओमां पण एकबीजामांथी विकसेला धातओ तारववामां आव्या विटनीए लगभग 800 धातुओ ज होवान बताव्यु छे. एनाथी आगळ वधी, भारत-युरोपीय भाषाकुळना मूळ धातुओनी संख्या कदाच 50 मौलिक धातुओथी वधु नहि होय एवू पण भाषाशास्त्रीओ कहे छे." 38
शास्त्री जी का संस्कृत धातुकोश को केवल 50 की संख्या में सीमित कर देना यादृच्छिक लगता है. ऐसा माननेवाले अन्य भाषाशास्त्रियों के इन्होंने संदर्भ दिये होते तो इस धारणा का शास्त्रीय आधार परखा जा सकता. इसके अभाव में विटनी की गणना अधिक प्रतीतिजनक लाती है.
संख्या की अनिश्चितता हिन्दी-गुजराती धातुओं के बारे में भी है. भाषाविदों की धारणाएँ एवं गणनाएँ अलग-अलग हैं. स्वामी श्रीभगवदाचार्यजी ने 'गुर्जर-शब्दानुशासन' के अंत में धातुपाठ दिया है. इसमें 1972 धातुओं का समावेश है. स्वामीजी ने सकर्मक, प्रेरक आदि रूपों को भी स्वतंत्र धातु माना है. इसी कारण संख्या लगभग द्विगुणित हो गई है. कई धातुएँ उनसे छूट भी गई हैं. इस प्रबंध के परिशिष्ट में 2136 गुजराती धातुओंका समावेश हुआ है.
डा. हानले के अनुसार संस्कृत से हिन्दी में आई हुई मूल धातुएँ 393 तथा यौगिक धातुएँ 189 हैं. डा. भोलानाथ तिवारी हिन्दी धातुओं की पूरी संख्या 2000 बताते हैं. लगता है कि इस संख्या में आपने मूल धातुओं का ही नहीं, क्रिया के सकर्मक, अकर्मक तथा प्रेरक रूपों का भी समावेश कर लिया है.
डा. श्रीराम शर्मा ने 'दक्खिनी हिन्दी का उद्भव और विकास' में परिशिष्ट के रूप में दक्खिनी का धातुपाठ दिया है, जिसमें 459 धातुओं का समावेश है. लेखक ने यहाँ स्पष्टता की है कि यह सूची पूर्ण नहीं है. इसकी संख्या में वृद्धि हो सकती है तो दूसरी ओर दक्खिनी की सभी धातुएँ हिन्दी में व्यापक रूप से प्रचालत नहीं है. 'कचवाना' (असंतुष्ट होना) जैसी गुजराती में विशेष प्रचलित धातुएँ भी इस सूची में समाविष्ट हैं.
प्रस्तुत प्रबंध में बोली-विषयक शोधकार्यों से प्राप्त धातुओं का भी समावेश किया है. सकर्मक, अकर्मक तथा प्रेरक जैसे रूपों में से एक ही रूप देने का प्रयत्न किया है किन्तु विविध ध्वन्यात्मक रूपों को बिना छाँटे एक साथ देने में औचित्य समझा है. तुलनात्मक धातु-कोश
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हिन्दी-गुजराती धातु कोश को अध्ययन-सामग्री के रूप में तैयार किया है. इन सब कारणों से यहाँ दी गई धातुओं की संख्या चार हजार से आधिक ( 4269) हुई है. बोलियों का विशेष अध्ययन होने पर इस संख्या में वृद्धि हो सकती है. डा. श्रीराम शर्मा ने ठीक ही कहा है :
"आजकल की साहित्यिक हिन्दी की अपेक्षा उससे संबंधित बोलियां और उपभाषाएँ 'धातु' की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं. पुरानी हिन्दी में सीधे धातु से बने क्रियापदों का प्रयोग अधिक होता था. धीरे-धीरे क्रियापदों में कृदन्त शब्दों के साथ सहायक क्रियाओं का उपयोग बढ़ा. इन दिनों साहित्यिक भाषा में संज्ञाओं से अधिक कार्य लिया जाता है. क्रिया के द्योतन के
नामधातु अथवा क्रियार्थक संज्ञा के स्थान पर संज्ञा के योग की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है, बोलियों में आज भी इस प्रकार के प्रयोग मिलते हैं." 34 ___डा. शर्मा ने अपने समर्थन में 'पिडाना', 'दूहना', 'बतियाना', जैसी धातुओं के उदाहरण दिए हैं, साहित्यिक हिन्दी में इनके स्थान पर 'पीडा होना', 'दूध निकालना', 'बात करना' जैसे प्रयोग होंगे. वैसे, यहाँ कहना चाहिए के नये लेखक नामधातुओं का सविशेष प्रयोग करने लगे हैं और साहित्यिक भाषा तथा बोली के बीच की दूरी कम करने के साथ साहित्यिक भाषा की धातु-समृद्धि बढ़ा रहे हैं.
बोलियों में देशज धातुओं का आधिक्य हो और तत्सम-अर्धतत्सम धातुएँ न हों ऐसा भी नहीं है. कुछ धातुओं के उदाहारण देकर डा. शुकदेव सिंह ने कहा है कि भोजपुरी में कुछ ऐसी भी अर्ध-तत्सम धातुओं का प्रचलन है, जो संस्कृत की मूल धातुओं से प्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध हैं, जिनमें तत्सम चिह्न अधिकांश सुरक्षित हैं. 35
धातुओं के अध्ययन की सुलभ सामग्री के आधार से यहाँ संचय-संकलन किया है और विश्लेषण-वर्गीकरण के बाद धातु-संख्या ( 2981) तय की है. ६. धातुओं के मूल रूप : ___कुछ धातुएँ अकर्मक होती हैं, कुछ सकर्मक होती हैं, कुछ धातुएँ विना रूप-परिवर्तन के एकसाथ अकर्मक तथा सकर्मक होती हैं. परन्तु जिनके अकर्मक रूप अलग अला होते हैं उनमें से एक को ही पसंद करना हो तब किसे पसंद किया जाय ऐसा प्रश्न यहाँ बार-बार खड़ा हुआ. एक पद्धति के रूप में अकर्मक क्रियाओं को ही प्रस्तुत प्रबंध के धातु-कोश में अध्ययनविषय बनाने में औचित्य था परन्तु जिन धातुओं के सकर्मक रूप ही मूल रूप लगते हों और अकर्मक रूप उनके आधार से बने दिखाई देते हों उनका क्या ? और कुछ धातुएँ तो केवल सकर्मक ही हैं.
_ 'अकर्मक', 'सकर्मक' तथा 'प्रेरणार्थक' व्याकरणशास्त्र के पारिभाषिक शब्द हैं और वे क्रियाओं के लक्षण सूचित करते हैं. क्रियाओं के मूल रूपों-धातुओं तक पहुँचने पर भी ये लक्षण क्या अक्षुण्ण रहते हैं ?
व्याकरण के अनुशासन से 'धातु' मुक्त है, 'क्रिया' नहीं, और ये दोनों एक ही तत्त्व के दो रूप हैं. 'क्रियापद' व्यवहार में दिखाई देते हैं, धातुएँ संकल्पनाएँ हैं. यदि धातुओं की ही सतत बात होती रहे तो चर्चा में बड़ी अमूर्तता आ जाऐगी इसलिए धातुओं के कुछ वर्गीकरण क्रियाओं के वर्गीकरण की भूमिका का निर्वाह करते हैं. इस प्रक्रिया में विद्वानों ने कहीं
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पूर्वकार्य का अध्ययन कहीं तो 'धातु' तथा 'क्रिया' का एकदूसरे के विकल्प के रूप में भी प्रयोग किया है. सकर्मकअकर्मक की चर्चा करते समय इस प्रकार की अशास्त्रीयता से बचना कुछ मुश्किल भी लगता है. हिन्दी-गुजराती दोनों भाषाओं के विद्वानों के इस विषय के गंभीर लेख भी ऐसा ही सूचित करते हैं. रूपतत्त्व तथा रचनातत्त्व में से किस आधार से वर्गीकरण हो रहा है इसकी स्पष्टता सतत बनी रहती तो यह संकरदोष न होता.
दोनों भाषाओं में कुछ क्रियाओं के द्वितीय प्रेरणार्थक रूप भी बनते हैं. प्रस्तुत अध्ययन में प्रेरणार्थक क्रियाओं को नहीं लिया. फिर भी प्रेरणार्थक क्रिया के क्षेत्र से मुक्ति नहीं मिल सकती. क्योंकि कुछ क्रियाओं के विषय में सकर्मक तथा प्रेरमार्थक की भेदरेखा स्पष्ट नहीं है. डा. उदयनारायण तिवारी ने कहा है कि संस्कृत की कुछ णिजन्त धातुएँ हिन्दी में सिद्ध धातुओं के रूप में चली आई हैं. इनमें से प्रेरणा' का अर्थ लुप्त हो गया है और ये अन्य सकर्मक क्रियाओं के समान व्यवहृत होती हैं. ७
धातुओं की रूपरचना को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखने पर मूल संस्कृत अकर्मक रूप उत्पन्न होने के कई उदाहरण मिलेंगे. संस्कृत के आत्मनेपदी और परस्मैपदी भेदों की रक्षा भी नहीं हुई. हिन्दी की कुछ प्रेरणार्थक धातुएँ कुछ प्रयोगों में सकर्मक के रूप में काम करती नज़र आती हैं. डा. मुरलीधर श्रीवास्तव लिखते हैं :
"कई वैयाकरण बताते हैं कि चलना क्रिया का चलाना और चलवाना दोनों रूप ही प्रेरणार्थक हैं. हमें यह बात जंचती नहीं. 'वह दुकान चलाता है', इस वाक्य में 'चलाना' क्रिया प्रेरणार्थक नहीं है. 'वह' किसीको प्रेरित नहीं करता, स्वयं चलाने की क्रिया करता है. पर, चलाना की धातु 'चला' को मूल धातु नहीं कह सकते हैं. 'चला' धातु तो अवश्य है, पर 'चल' ही मूल धातु है. अतः मूल धातुशब्द का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए. हिन्दी में एक धातु से दूसरी धातु बनती देखी जाती है." . कुछ अकर्मक धातुओं से सकर्मक धातुएँ निकली हैं तो सकर्मक से अकर्मक निकलने के उदाहरण भी बहुत बड़ी संख्या में हैं. जहाँ अग्रताक्रम निश्चित नहीं हो पाया तथा जहाँ अकर्मक-सकर्मक में विशेष अर्थभिन्नता है वहाँ दोनों रूप देने में ही औचित्य समझा है. 'जाँचना' सकर्मक है, इससे निकला है 'अँचना'. अर्थभिन्नता के लिए ये वाक्यप्रयोग आप इस लेख को जांचिए; मुझे आपकी बात अँचती है.
___ डा. उदयनारायण तिवारी का यह कथन सही है कि कुछ संस्कृत धातुओं के प्रेरणार्थक रूप हिन्दी में सकर्मक के रूप में प्रयुक्त होने लगे. इस प्रक्रिया में 'अ' के स्थान पर 'आ', 'वा' या 'ओ' से नया प्रेरणार्थक रूप बना.
हिन्दी क्रियाओं के कुछ उदाहरण ऐसे भी मिलते हैं जो सकर्मक होने के साथ-साथ प्रेरणार्थक भी हैं. इस स्थिति में इन्हें केवल प्रेरणार्थक या केवल सकर्मक कहने में व्याप्तिदोष होगा. बैठाना, भिगोना, हंसाना, चलाना में 'बैठा', 'भिगो', 'हँसा' और 'चला' सकर्मक : भी हैं, प्रेरणार्थक भी. डा. भायाणी ने 'थोडोक व्याकरण-विचार' में रूपरचना की दृष्टि से गुजराती भाषा के प्रेरक आख्यातिक अंगों की क्रेया के प्रथम एवम् द्वितीय प्रेरणार्थक रूपों की विस्तृत चर्चा की है. इसमें इन्होंने सकर्मक-प्रेरक की भेदरेखा स्पष्ट करना आवश्यक नहीं समझा.
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश यह भेद अर्थगत अधिक है और सविशेष तो वाक्यरचना पर अवलम्बित है. केवल इन धातुओं के शब्दरूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि सभी प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं परन्तु सभी सकर्मक क्रियाएँ प्रेरणार्थक हों ही ऐसा नहीं है.
गुजराती में 'कापवु' सकर्मक रूप है और 'कपावु' इसका कर्माणि रूप. हिन्दी में उनके लिए क्रमशः 'काटना' और 'कटना' रूप हैं. अर्थ को ध्यान में रखते हुए वर्गीकरण करें तो गुजराती 'काप' तथा हिन्दी काट' धातुओं को अग्रता देनी चाहिए. परंतु हिन्दी 'कट' को प्राथमिकता न देने का शास्त्रीय आधार क्या है ? कहीं-कहीं अनिर्णय की स्थिति में या कहिए कि गलती से बचने के लिए एकाधिक धातु-रूप दिए हैं और जैसा कि अभी बताया, जहाँ ध्वनिगत अंतर है वहाँ संदर्भ के लिए विभिन्न रूप दिए हैं. ७. धातु : स्वरान्त या व्यंजनान्त? __ डा. धीरेन्द्र वर्मा लिखते हैं :
“क्रिया के 'ना' युक्त साधारण रूप से–'ना' हटा देने पर हिन्दी धातु निकल आती है, जेसे खाना, चलना, देखना आदि में खा, देख, चल धातु हैं. "88 ___ इसके अनुसार गुजराती क्रिया के 'वु' युक्त साधारण रूप से-वु' हटा देने पर गुजराती धातु निकल आएगी. उपयुक्त क्रियाएँ गुजराती में भी समान रूप से प्राप्त होती हैं : खावु, देखवू, चालवु. इनसे-'वु' हटा देने से या इनका द्वितीय पुरुष एकवचन आज्ञार्थ रूप पसंद करने से खा, देख, चल रूप प्राप्त होंगे. इनमें 'खा' तो आकारान्त होने के कारण स्पष्ट रूप से स्वरान्त है परन्तु 'देख' या 'चल'-'चाल' को स्वरान्त माने या व्यंजनान्त ?
___ उच्चारण की दृष्टि से तो 'करना' या 'कर' रूप ही सही हैं. 'कर' लिखने पर भी हम पढ़ते हैं 'कर'. नियमों की दृष्टि से भी धातुरूपों को हलन्त लिखने में ही शास्त्रीयता का निर्वाह होगा. परन्तु कामताप्रसाद गुरु ने धातुओं को हलन्त नहीं माना. शायद इन्होंने हिन्दी धातुओं के ध्वनि-रूपों के बारे में नहीं सोचा. जैसा कि डा. मुरलीधर श्रीवास्तव कहते हैं : हिन्दी में जब ध्वन्यात्मक पाठ के लिए फोनेटिक रीडर बनेंगे, तो पढ़ना और चल्ना लिखना आवश्यक होगा." ___ सन 1885 में प्रकाशित भाषा प्रभाकर' के लेखक बाबू रामचरण सिंह ने तो धातुओं को 'ना' प्रत्यय-सहित लिखना आवश्यक समझा था :
हाँ, केवल जा, आ, गिर आदि धातु हैं पर उनकी धातुता का चिह्नरूप एक दूसरा 'ना' प्रत्यय ( संस्कृत के इक् स्तिप् की भाँति ) लगायें तो किसी भाँति उनका लिखना ठीक हो सकता है. 4. ___बाबू साहब ने व्याकरणिक आवश्यकताओं के अनुसार धातु को देखा है इसलिए उनके सारे तर्क दूसरी दिशा में आगे बढ़ जाते हैं. वे 'ना' जैसा प्रत्यय जोड़ने की चिन्ता में 'गिर' धातु स्वरान्त है या व्यंजनान्त-इसकी चर्चा नहीं कर पाते. पं. किशोरीदास वाजपेयी हिन्दी की सभी धातुओं को स्वरान्त मानते हैं :
"संस्कृत की सभी धातुएँ प्राकृत-पद्धति से हिन्दी में आकर स्वरान्त हो गई हैं. हिन्दी में एक भी धातु व्यंजनान्त नहीं है. 11
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पूर्वकार्य का अध्ययन - वाजपेयी के अनुसार सभी धातुओं को स्वरान्त मान लेने पर धातुओं से क्रियारूप बनते समय संधि-नियमों का पालन होता दिखाई नहीं देता. डा. श्रीवास्तव 'चल', 'पद्' आदि धातुओं को व्यंजनान्त मानने के पक्ष में हैं. वे अपने समर्थन में संस्कृत की हलन्त धातुओं की याद दिलाते हैं और इस निष्कर्ष तक पहुँचते हैं कि हिन्दी धातुएँ दो प्रकार की है : स्वरान्त और व्यंजनान्त.
प्रश्न यह उठता है कि क्या हम हिन्दी भाषा को उच्चारण के अनुसार लिपिबद्ध करते हैं ? क्या शत-प्रतिशत ऐसा करना संभव भी है ? पद, चल, कर, गिर आदि धातुओं को व्यंजनान्त मानने पर भी लिपि की सुविधा के लिए तथा प्रणालि के अनुसार इनको हलन्त न लिखकर स्वरान्त लिखा जाता है ऐसा समाधान कर लेने पर धातुओं को इनके मूल ध्वन्यात्मक रूपों में स्वरान्त-व्यंजनान्त मानना-मनवाना सरल हो जाएगा. ८. धातुओं का वर्गीकरण
व्युत्पत्ति के आधार पर विद्वानों ने धातुओं के दो भेद किए हैं : (1) मूल (Primary) (2) यौगिक ( secondary )
कामताप्रसाद गुरु के अनुसार इनकी परिभाषाएँ इस प्रकार हैं :
“ मूल धातु वे हैं जो किसी दूसरे शब्द से न बने हैं; जैसे करना, बैठना, चलना, लेना. (2) जो धातु किसी दूसरे शब्द से बनाए जाते हैं वे यौगिक धातु कहलाते हैं; जैसे 'चलना' से 'चलाना', 'रंग' से रंगना', 'चिकना' से 'चिकनाना'.
'धातु' शब्द को पुल्लिंग माननेवाले गुरुजी की एक स्पष्टता दृष्टव्य है :
" संस्कृत अथवा प्राकृत के धातु चाहे यौगिक हों चाहे मूल, परन्तु उनसे निकले हुए हिंदी धातु मूल ही माने जाते हैं." ..
-यह दृष्टि व्याकरणकार की है. डा. धीरेन्द्र वर्मा यौगिक के अंतर्गत उन धातुओं की गणना करते हैं जो संस्कृत धातुओं से नहीं आई हैं किन्तु जिनका सम्बन्ध या तो संस्कृत रूपों से है या तो वे आधुनिक काल में गढ़ी गई हैं. जैसे संस्कृत 'जन्म' से नामधातु 'जनम(ना)', संस्कृत 'च्युत+कृ' से हिन्दी संयुक्त धातु चुक(ना)और 'फड़फड़ना' आदि अनुकरणात्मक धातुएँ.
हिन्दी की 'सुन' धातु मूल मानी जाएगी, परन्तु संस्कृत की मूल धातु 'शृ' है और इसके साथ ‘णु' गणचिह्न लगता है. हिन्दी धातु ‘पसीजना' मूल मानी जाएगी, परन्तु संस्कृत में वह उपसर्गयुक्त है : प्र+स्विद्. पालि-प्राकृत-अपभ्रंश के तुलनात्मक व्याकरण में डा. सुकुमार सेन ने लिखा है :
"म.भा.आ. में व्यंजनों में जो वर्ण-विकार हुये, उनके फलस्वरूप धातु-प्रत्यय-विभाग का प्रा.भा.आ.कालीन स्पष्ट ज्ञान धुधला पड़ गया. अ-तथा-अय-विकरणवाली ऐसी धातएँ जिनमें संयुक्त व्यंजन नहीं थे तथा आकारान्त एकाक्षरीय धातुओं को छोड़, अन्य धातुओं में धातु का अन्तिम व्यंजन विकरण ( अथवा प्रत्यय ) के साथ समीकृत हो गया, जिसके कारण धातु, विकरण तथा प्रत्यय का स्पष्ट विभाग कर पाना संभव न रह गया. इस प्रकार यह समीकृत अंग ( अर्थात् धातु+विकरण ) म.भा.आ. में नयी धातु अथवा अंग समझा जाने लगा."
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
-इस प्रकार के शास्त्रीय निष्कर्षों को लक्ष में रखते हुए हिन्दी धातुओं का मूल तथा यौगिक की श्रेणियों में वर्गीकरण करना होगा. डा. ना. नागप्पा ने यौगिक धातु के तीन प्रकार बताये हैं : (क) मूल धातु से व्युत्पन्न धातु, (ख) संयुक्त धातु-जो दो या अधिक धातुओं के संयोग से बनती है, तथा (ग) नामधातु जो क्रियेतर शब्द से बनती है. . डा. उदयनारायण तिवारी गुरु जी द्वारा प्रयुक्त 'मूल' तथा 'यौगिक' शब्दों के विकल्प में "सिद्ध' तथा 'साधित' शब्दों का प्रयोग करते हैं. इनके अनुसार मूल रूप में सुरक्षित धातुएँ सिद्ध, तथा मूल में किसी प्रत्यय के योग से बनी धातुएँ साधित हैं.
डा. वर्मा, डा. तिवारी आदि विद्वान डा. सुनीतिकुमार चटर्जी द्वारा किये गए धातु-वर्गीकरण को अधिकृत मानकर चले हैं, जो इस प्रकार है:
| १ तद्भव (१) साधारण (२) उपसर्गयुक्त क | २ प्रेरणार्थक तद्भव मूल । ३ संस्कृत से गृहीत ( तत्सम, अर्धतत्सम ) । ४ संदिग्ध व्युत्पत्तिवाली ( देशज)
|- प्राचीन | १ आकारान्त प्रेरणार्थक । - *तद्भव | - मध्ययुगीन २ नामधातु*
- नवीन (क्रिया के अतिरिक्त, किसी ! - *तत्सम, अर्धतत्सम
अन्य व्याकरणिक रूप से
बनाई गई. ) यौगिक
-- विदेशी ३ संयुक्त एवं प्रत्यययुक्त । | ४ ध्वन्यात्मक
५ संदिग्ध
मूल (क) के अंतर्गत जिन्हें प्रेरणार्थक तद्भव कहा है वे धातुएँ हिन्दी में आकर सकर्मक बनकर रह गई हैं. अन्यथा इनका समावेश यौगिक के अंतर्गत करना पड़ता.
डा. उदयनारायण तिवारी ने उपयुक्त वर्गीकरण को ही साधारण शाब्दिक स्पष्टता के साथ माना है इसलिए उसको दोहराना आवश्यक नहीं.
धातुओं के वर्गीकरण का प्रयत्न शताब्दि से अधिक पुराने व्याकरणों में भी पाया जाता है. 'भाषा-चन्द्रोदय' (1855) के लेखक पं. श्रीलाल ने हिन्दी धातु को (1) सिद्ध धातु और (2) अनुकरण धातु - इन दो वर्गों में बाँटा था. सिद्ध धातु के अंतर्गत 'करना' तथा अनुकरण धातु के अंतर्गत हिनहिनाना, चिग्घारना आदि को स्थान दिया था. राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने
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पूर्वकार्य का अध्ययन स्वभाविक और कृत्रिम तथा अकर्मक और सकर्मक जैसे भेद किए थे. फिर, सकर्मक के एककर्मक, द्विकर्मक और त्रिकर्मक - ऐसे तीन प्रकार माने थे. पं. कालीप्रसाद त्रिपाठी ने अपने 'भाषा-व्याकरण-दर्पण (1886 ) में कृत्रिम और स्वाभाविक के भेदों को मान्यता दी थी.. ___पं किशोरीदास वाजपेयी ने 'हिन्दी शब्दानुशासन' (1958) में एक शब्दप्रयोग किया है: 'उपधातु.' वे लिखते हैं :
"मूल धातुओं से कुछ उपधातुएँ बन जाती हैं और फिर उन ‘उपधातुओं के प्रयोग उसी तरह होते हैं, जैसे कि मल धाओं के....जो कुछ उन धातुओं से बनता चलता है, वही सब इन उपधातुओं से. परन्तु स्वरूपभेद तो है ही. इस भेद के ही कारण तो 'उपधातु' इन्हें हम कहते हैं. इन उपधातुओं की दो श्रेणियां हैं. एक श्रेणी को तो हम मूल धातुओं का विकसित
कह सकते हैं और दसरी को संकचित रूप. 'उपधात' से बनी क्रियाएँ प्रेरणा-प्रक्रिया में आती हैं और संकुचित-रूप 'उपधातु' से बनी क्रियाएँ 'कर्मकर्तृक क्रियाएँ' कहलाती हैं."
पंडितजी ने संयुक्त क्रिया, नामधातु, किया की द्विरक्ति आदि की चर्चा भी की है. उनकी चर्चा वाक्यगत विशेष है. चटर्जी की तरह शास्त्रीय पद्धति से धातुओं का ऐतिहासिक वर्गीकरण वाजपेयी ने नहीं किया. 'उपधातु' शब्दप्रयोग भी स्वीकार्य नहीं लगता. एक वाक्य में लगता है कि वे यौगिक धातु को उपधातु कहते हैं परन्तु दूसरे वाक्य में इसकी दो श्रेणियाँ बताते है : (1) मूल धातुओं का विकसित रूप और (2) मूल धातुओं का संकुचित रूप. ये विकसित-संकुचित शब्दप्रयोग भी साधु नहीं हैं. दोनों श्रेणियों में परिवर्तन लक्षित होता है यही मूल बात थी
और इसीलिए दोनों की श्रेणी एक ही थी. ____ आधुनिक हिन्दी का प्रारम्भिक व्याकरण-ए बेसिक ग्रामर आफ माडर्न हिन्दी' (1958) में आर्येन्द्र शर्मा ने प्रेरणार्थक क्रिया, संयुक्त क्रिया और नामधातु के विषय में कुछ उल्लेखनीय चर्चा की है. वाजपेयी जी और शर्माजी के बीच हुए व्याकरणिक विवाद ने इस विषय के छात्रों में बड़ी दिलचस्पी जगाई थी परन्तु प्रस्तुत विषय इससे लाभान्वित नहीं हुआ था.
_1966 में प्रकाशित डा. ज. म. दीमशित्स की पुस्तक 'हिन्दी व्याकरण की रूपरेखा' में स्वतंत्र मूल धातुओं को अव्युत्पन्न बताया गया है. यह वर्गीकरण मृल-यौगिक तथा सिद्ध-साधित की परंपरा का ही है.
धातुओं के वर्गीकरण को भाषाविज्ञानियों ने वैयाकरणों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण समझा. पूर्वचर्चित चटर्जी महोदय के वर्गीकरण को अधिकांश भाषाविज्ञानियों ने ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया है परन्तु डा. भोलानाथ तिवारी ने उस वर्गीकरण में कुछ सीमाएँ देखी हैं. वे कहते हैं कि अनेक ध्वन्यात्मक धातुएँ आधुनिक काल में अनुकरण (धड़धड़) से बनी हैं किन्तु कुछ परंपरागत रूप में संस्कृत से भी (खटखट) चली आ रही हैं. इन दोनों को ऐतिहासिक दृष्टि से एक साथ नहीं रखा जा सकता. इन धातुओं को ध्वन्यात्मक कहने में भी भोलानाथ जी को आपत्ति है क्योंकि 'जगमगाना' जैसी धातुएँ, ध्वन्यात्मक नहीं हैं. गुजराती में 'ध्वन्यात्मक' के लिए रवानुकारी' शब्द प्रचलित था, आधुनिक भाषाविज्ञान के विद्वान अब 'अनुकरणात्मक' शब्द का प्रयोग करते हैं.
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
भोलानाथ जी की एक आपत्ति यह है कि जिन धातुओं को प्राकृत काल तक ही खोजा जा सकता है उनको प्रस्तुत वर्गीकरण में कैसे रखा जा सकता है ? जैसे हिन्दी 'ऊँघ', प्रा. 'उँघ' मूल तद्भव में सामान्य के अतिरिक्त कर्मवाच्यवाली धातुएँ ( उत्+पद्, उत्पद्यते, प्रा. उपज्जह, उपजना ) भी हैं. इन्हें ऐतिहासिक दृष्टि से अलग रखना चाहिए. - भोलानाथ जी को यह भी अखरता है कि यौगिक के अंतर्गत सादृश्य के आधार से बनी धातुओं के साथ न्याय नहीं हुआ है. वे मानते हैं कि आधुनिक भाषाओं के प्रामाणिक व्युत्पत्तिमूलक कोशों का निर्माण होने से पहले धातुओं को सर्वमान्य रूप से वर्गीकृत करना सम्भव नहीं है, फिर भी वर्तमान ज्ञान की परिधि में उनकी दृष्टि से निम्नांकित वर्गीकरण अधिक निर्दोष है :
क, मूल ख. उपसर्गयुक्त | ग. प्रत्यययुक्त - घ. संयुक्त
अ. कर्तृवाच्य आ. कर्तृवाच्येतर इ. प्रेरणार्थक
-तद्भव |-संस्कृत--परव” तद्भव - परंपरागत
-तत्सम -प्राकृत (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश)
|-निर्मित -
-धातु से ( अकर्मक, सकर्मक, प्रेरणार्थक)
संज्ञा
विशेषण -अन्य (नाम ) से
सर्वनाम क्रियाविशेषण
क. तद्भव | ख. परवर्ती तद्भव | ग. तत्सम
घ. विदेशी ड.संदिग्ध व्युत्पत्तिवाली
|-अनुकरणात्मक (ध्वनि, दृश्य आदि)
-संदिग्ध व्युत्पत्ति की
इस वर्गीकरण में भी व्याप्तिदोष तो होता ही है. प्रथम विभाग परंपरागत के अंतर्गत संस्कृत उपविभाग में ऐतिहासिक, रूपगत तथा रचनागत आधार एक साथ लिए गए हैं.
संदिग्ध व्युत्पत्ति की धातुएँ स्वतंत्र वर्ग के अंतर्गत कैसे रखी जा सकती हैं ? व्युत्पत्ति ज्ञात होने पर तो उनका वर्ग निश्चित होकर बदल जाएगा. तब तक उनको अवर्गीकृत धातुओं के रूप में ही देखना चाहिए.
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पूर्वकार्य का अध्ययन डा. मुरलीधर श्रीवास्तव ने स्वर-व्यंजन के भेद के आधार पर (१) स्वरान्त धातुएँ और (२) व्यंजनान्त धातुएँ - ऐसे दो वर्ग सूचित किये हैं. अक्षर-संख्या के आधार पर (१) एकाक्षरी, (२) द्वयक्षरी और (३) यक्षरी वर्ग बताए हैं. मूल और यौगिक से स्वतंत्र रूप से (1) उत्पाद्य, ( 2 ) अनुत्पाद्य और (3) अल्पोत्पाद्य - ऐसे भेद भी सोदाहरण बताए हैं और कुछ सोचकर आखिर कहा है कि इन्हें एक ही धातु के रूपान्तर कहना चाहिए. डा. श्रीवास्तव 'संयुक्त धातु' को भी स्वतंत्र वर्ग मानते हैं; वास्तव में वे बात करते हैं संयुक्त क्रियाओं की.
गुजराती के भाषाविद् नरसिंहराव दिवेटिया ने सन् 1921 में गुजराती धातुओं को तीन वर्गों में बाँटा था : (क) तत्सम, अर्धतत्सम (ख) उपसर्गयुक्त धातुएँ तथा तद्भव के रूप में संक्षिप्त. ये दोनों वर्ग साधित धातुओं के अंतर्गत आ सकते हैं. (ग) नामधातुएँ. यह वर्गीकरण पर्याप्त नहीं है परन्तु लेखक के समय-संदर्भ को खयाल में रखने पर आदर जगाता है. नरसिंहराव जी ने व्युत्पत्ति के बारे में विस्तार से विचार किया है.
श्री के. का. शास्त्री ने ऐतिहासिक संदर्भ में रूप-रचना विषयक परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए गुजराती धातुओं को सात भागों में बाँटा है :
(1) विभिन्न विकरण-प्रत्ययों के निकल जाने के बाद अकारांत अंग के रूप में. (२) विकरण-प्रत्यय निकल गया न हो और धातु अकारांत हो. (3) मूल संस्कृत धातुओं के प्रेरक रूपों से जो 'आप' है उसके 'अव' होने पर प्राप्त
होते रूप. (4) कुछ भूतकृदंत से बने गुजराती भूतकृदंतों के द्वारा प्राप्त रूप. (5) जिनमें अकारांत अंग नहीं हैं ऐसी मूल धातुएँ, (6) कुछ नाम-विशेषण के आधार से केवल क्रियावाचक अंग के रूप में प्राप्त तथा (7) अनुकरणवाचक स्वतंत्र धातुएँ. * 5
शास्त्रीजी ने साधित धातुओं के वर्ग के विषय में भी अलग से लिखा है. इन्होंने नरसिंहराव के वर्गीकरण से कुछ आगे बढ़ने का प्रयत्न अवश्य किया है परन्तु वे चटर्जी के वर्गीकरण को लक्ष्य करके गुजराती धातुओं के बारे में सोचते तो निश्चित भूमिकाओं पर और भी व्यापक वर्गीकरण कर सकते. ९ धातुओं को व्युत्पत्ति :
___ डा. सुनीतिकुमार चटर्जी ने बंगला भाषा का इतिहास लिखा है वैसा कोई व्युत्पन्न ग्रंथ हिन्दी या गुजराती भाषा में उपलब्ध नहीं है. डा. उदयनारायण तिवारी, डा. धीरेन्द्र वर्मा तथा डा. भोलानाथ तिवारी आदि विद्वानों ने हिन्दी भाषा के इतिहास लिखे हैं जो अनुस्नातक विद्यार्थियों के लिए सविशेष उपयोगी हैं. प्राचीन, मध्ययुगीन तथा नव्य भारतीय आर्यभाषाओं के विकास का निर्देश करती सामग्री के लिए इन विद्वानों को कुछ पाश्चात्य भाषाविदों तथा चटर्जी महोदय आदि का सहारा लेना पड़ा है. हिन्दी क्षेत्र में संस्कृत के पंडित बहुत हैं और उनमें से कुछ तो चोटि के हैं परन्तु प्राकृत-अपभ्रंश-पुरानी हिन्दी में से किसी एक को अपना अध्ययनक्षेत्र बनानेवाले विद्वान् ( उस कोटि के) नहीं हैं.
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हिन्दी गुजराती बलुकोश .. गुजराती के पास पंडित बेचरदासजी तथा डा. भायाणी जैसे प्राकृत-अपभ्रश के विशेषज्ञ
आज़ भी हैं परन्तु उन्होंने भी गुजराती भाषा के उद्भव और विकास का क्रमिक इतिहास नहीं लिखा. डा. प्रबोध पंडिस ने गुमशती का, ध्वनि-संरचनागत अध्ययन सविशेष किया. भाषा का इतिहास वे भी दे सकते, पर हमारे दुर्भाग्य से वे रहे नहीं. ... ... .. ..गुजराती के ऐतिहासिक अध्ययन के लिए प्राथमिक सामग्री की स्थिति हिन्दी की अपेक्षा
बेहतर है. महान जैनाचार्य हेमचन्द्राचार्य ने (-1088 --1172 ई.) प्राचीन गुजराती के आरभिक काल. की सारी सामग्री ग्रंथस्था की है.. उनके प्राकृत व्याकरण में पश्चिमी अपभ्रंश के उदाहरण भी' सुलभ हैं.. हाँ, ये उदाहरण भाषा के साहित्यिक रूपों के हैं, उस युग में उच्चरित भाषा के नहीं. कुछ उदाहरणों के लिपिबढ़े होने और उनके रचनाकाल के बीच भी अंतर 'है. इससे भी कालनिर्णय में और भाषा का क्र मेक विकास समझने में कठिनाइयाँ पैदा होती हैं. डा. प्रबोध पाडत तथा डा. भायाणी ने इस संदर्भ में अध्येताओं को सावधान किया है. ___जहाँ तक प्राप्त सामग्री के आधार पर व्युत्पत्ति-विषयक निकर्ष तक पहुँचने का प्रश्न है, टर्नर आदि प्राश्चात्य विद्वानों ने तथा नरसिंहराव, के. ह. ध्रुव, के. की. शास्त्री, दी. एमे. दवे, भोगीलाल सांडेसरा, प्रबोध पंडित, मधुसूदन मोदी आदी गुजराती ।वद्वानों ने उल्लेखनीय कार्य किया है. डा. भायाणी प्रस्तुत विषय के विरल विद्वान हैं. 1975 में 'व्युत्पत्तिशास्त्र' नामक इननी बहुमूल्य पुस्तक भी प्रकाशित हुई है. वे व्युत्पत्ति को केवल शब्दों का इतिहास नहीं मानते. वे कहते हैं कि उच्चारण, संचरण, अर्थ, व्याकरणगत स्थान या वर्ग, प्रचलन, सामाजिक दरजा आदि शब्द-अध्ययन के तमाम पहलुओं के क्रमिक विकास का इतिहास देखना आवश्यक है. डा. भायाणी ने पुस्तक के चतुर्थ खंड में भाषाविज्ञान के संदर्भ में भी व्युत्पत्तिशास्त्र पर विचार किया है, जिसमें सोशुर आदि पाश्चात्य विद्वानों की मान्यताओं की चर्चा बड़ी रसप्रद है. निष्कर्ष के रूप में याकोव मेलकोल के समर्थन में वे कहते हैं :
"आधुनिक काल के प्रवाही से सुपरिचित जिन भाषाविज्ञानियों ने व्युत्पत्ति के क्षेत्र में गंभीर कार्य किया है उनका अनुसरण करते हुए हम ऐतिहासिक भाषाविज्ञान की एक शाखा के रूप में ऐतिहासिक कोशविज्ञान को स्वीकार करेंगे और ऐतिहासिक कोशावज्ञान की एक शाखा के रूप में शब्दों के मूल की खोज से सम्बद्ध व्युत्पत्तिविज्ञान को स्वीकार करेंगे.” 46
प्रस्तुत शोधकार्य में धातुओं की सुलभ और संभव व्युत्पत्तियों का समावेश करने की भूमिका यह थी. संदर्भ 1. पृ. 15, सं. ब्या. इ. भाग - २. 2. पृ. 43, भा. भा. चि. 3. पृ. 48, भा. भा. चि. 4. पू. 156, भा. भा. चि. ५. पृ. 133, भा.भा. चि. 6. पृ. 37, भा. भा. चि. 7. पृ. 165, दि. सं ग्रा. 8. दि. डि. आ. सं. ग्रा. पृ. 207 9. दे. पृ. 144, व्या. दा. भू. 10. पृ. 145, व्या. दा. भू. 20?. 11. पृ. 96. भा. आ. औ. हि. 12. दे. पृ. 166, दि. सं. धा. 13. पृ. 21, भा. भा. चि. 14. पृ. 17, भा. भा. चि. 15. पृ. 11, इ. टु थी. लिं. 16. दे. पृ. १९-२०, इ. टु थी. लि. 17. दे. पृ. 151, इ. लि. 18. पृ. 85, भा. भा. तु. अ. 19. पृ. 151, ई लिं. 20. पृ. 221, डि. आ. लिं. 21. पृ. 177 डि. आ.
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२२
26.
लिं. 22. पृ. 88, भा. भा. भा. अ. 23. पृ. 290, हि. भा. इ. 25. पृ. 177, भा. भा. भा. अ. अ. सा. धा. अप्रकाशित 28. पृ. 47, 48 हि. व्या. का. इ. 29. पृ. 94 भा. च. गु. भा. 2. 31. पृ. 12, गु. भा. अं. प्र. 32. गु. भा. २. 34. पृ. 230, द. हि. का. उ. औ. वि. अ. 36. पृ. 472, हि. भा. उ. औ. वि. भा. इ. 39. 13, हि. धा. को.
35. पृ: 69, भो. औ. हि. का. तु. 37. पृ. 15, हि. धा. को. 38. पृ. 290, हि. 40. पृ. 51, भा. प्र. 41. पृ. 38, हि. श. 163, तु. व्या. 43. दे. पू. 197-8, अ. हि. व्या. 44. पृ. 456, हि. श. पू. 107 से 114, गु. भा. २-३. 46. पृ. 250, व्यु. वि.
42. पु.
45.
पूरी विस्तृत संदर्भ सूची के लिए देखिए परिशिष्ट
पूर्वकार्य का अध्ययन
24. पृ. 611, हि. भा. 27. पृ. 160. बु. का. भा. अ. 30. पु. 42 भा. भा. 31. पृ. 107. पृ. 612, हि. भा. 33. T. 106
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व्युत्पत्तिदर्शक तुलनात्मक
धातुकोश
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संकेत -सूची अं.- अंग्रेजी
फा. - फारसी अ. - अकर्मक धातु
भव - तद्भव अ. व्यु. - अज्ञातव्युत्पत्तिक
वि. - विदेशी अनु. - अनुकरणात्मक
विशे. - विशेषण अर. - अरबी
सं. - संस्कृत अर्धसम - अर्धतत्सम
स. - सकर्मक धातु अव्य - अव्यय
सम - तत्सम कृ. - कृदंत
इआले - ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी आफ इण्डोगुज. - गुजराती
आर्यन लेंग्वेजिज छ. का. उ. - छत्तीसगढ़ी का उद्विकास
पा. स. म. - पाइअ-सद्द-महण्णवो तु. - तुर्की
मा. हि. को. - मानक हिन्दी कोश तुल. - तुलनीय
सा. जो. को. - सार्थ गुजराती जोडणीकोश दे. - देखिए
ह. भा. - हरिवल्लभ भायाणी देश. - देशज
हि. दे. श. - हिन्दी में देशज शब्द दे. श. को - देशज शब्द-कोश
हि. त. श - हिन्दी की तद्भव शब्दावली ना. - नामधातु
हि. श. - हिन्दी शब्दसागर पा. - पालि
* धातु के साथ यह चिह्न कालग्रस्त रूप का पु. - पुरानी
निदेश करता है, कोष्टक में होने पर कल्पित प्रा. - प्राकृत
रूप का.
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
अँक अ. दे. 'आँक' 1. अँकवार स. ना. भव अँकवार संज्ञा; सं. अङ्कपालिका; प्रा. अँकवारिया दे. पृ. २; मा. हि. को. ) गले लगाना; आलिंगन करना 2 अंकुर अ. ना. भव ( अंकुर संज्ञा सं. अङ्कुरः प्रा. अंकुर दे. इआलें 109 ) अंकुर उगना; अँखुआ फूटना. गुज. अंकुर 3
७
अंकुरा अ. दे. 'अंकुर' 4
अंकूला अ. दे. 'अंकुर' 5 अँकोर स. दे. 'अँकवार' 6
अँखुआ अ. ना. भव आँख संज्ञा: सं. अक्षिः प्रा. अक्खि: दे. इआलें 43 ) अँखुआ फेंकना. तुल गुज. आँख संज्ञा 7
अंग स. ना. सम ( अंग संज्ञा सं. अङ्ग ) अपने ऊपर लेना; अंगीकृत करना. तुल. गुज. अंग संज्ञा 8
अँगडा अ. देश. अंगडाई लेना आलस्य, शिथिलता आदि के कारण शरीर के अंगों को तानने या फैलाने की क्रिया करना 9
अँगरा अ. दे. 'अँगड़ा' 10
अँगव स. दे. 'अंग' 11
अँगा स. दे. 'अंग' 12 अँगिरा अ. दे. 'अँगड़ा' 13 अँगुरिया स. ना. भव ( अँगुरी संज्ञा सं. अङ्गुलि, प्रा. अंगुली दे. इआलें 135 ) हैरान करना. तुल. गुज, आँगळी संज्ञा 14 अँगुसा अ. ना. देश. ( अँगुसा संज्ञा दे. पृ. 4, मा. हि. को. ) अंकुरित होना 15 अँछ स. दे. 'अँगोछ' 16
अंगूठ स. दे. 'अगूठ' 17
अंगेज स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 4 मा. हि. को . ) सहना; अंगीकार करना 18
४
२५
अँगेर स. दे. 'अँगेज' 19
अँगोछ स. भव ( अँगोछा संज्ञा: सं. अङगोञ्छ; प्रा. अंग+उँछ; 'उंछ' का मूल सं. प्रोञ्छः दे. इलें 139 ) गीले गमछे से बदन पोंछना. तुल. गुज. अंगोछेा संज्ञा 20 अंगोज स. दे. 'अँगेज' 21 अँघ अ. दे. 'अघा' 22 अँच स. दे. 'अचा' 23 अँचव स. दे. 'अचा' 24 अँज स. दे. 'आँज' 25 अँजोर स. दे. 'अजोर' 26 अँट अ. दे. 'अट' 27 अँटक अ. दे. 'अटक' 28
अटिया स. ना. देश. ( अंटी संज्ञा दे. पृ. 10, मा. हि. को. ) उंगलियों के बीच से छिपा लेना; तागे की पिंडी बनाना, तुल, गुज. अटवा 'उलझना'; आंटी संज्ञा 29
अँड अ. दे. 'अड' 30
अँडर अ. देश. ( दे. पृ. 10; दे. श. को. ) ( धान का ) रेंडना, गरभाना 31
अँडस अ. देश. चारों और के दबाव में फँसना 32 अँडा स. दे. 'अडा' 33
अँडुआ स. ना. भव ( अंड संज्ञा; सं. अण्ड, प्रा.
अंड दे. इआलें 111 ) बधिया करना; बैल के अंडकोश को कुचलना जिससे वह नटखटी न करे और ठीक चले 34
अंतरा स. ना. भव ( अंतर संज्ञा; सं. अन्तर + इ; प्रा. अंतर दे. इआलें 370 ) भीतर करना; अलग करना. गुज. आंतर 'अलग करना; घेरना' 35 अथ अ. दे. 'अथा' 36
अदा. स. देश. बचाना, संपर्क न होने देना 37
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अँधेर अँधेर स. ना. भव ( अँधेरा संज्ञा; सं. अन्धिकार अकार्य प्रा. अकज्ज; ह. भा.) हानि करना;
संज्ञा; दे इआलें 386 ) अंधेर करना; अधेरा अ. नष्ट करना 51
करना. तुल. गुज. अंधारुं संज्ञा 38 अकुता अ. दे. 'उकता' 52 अँसुआ अ. ना. भव ( आँसू संज्ञा; सं. अश्रुः प्रा. अकुला अ. ना. भव ( आकला विशे; सं.
अस्सुः दे. इआलें 919 ) आंसू बहाना, रोना आकुल; दे. इआले 1012 ) घबड़ाना, विह्वल तुल. गुज. आंसु संज्ञा 39
___ होना. गुज. अकळा 53 अउलग अ. भव ( सं उल्ल ङघ; प्रा. उल्लंघ) अकोस स. देश. कोसना, भला-बुरा कहना 54
उल्लंघन करना; प्रवास करना. गुज. ओळ ग 40 अखर अ. देश. खलना, बुरा लगना 55 अउहेर अ. भव (सं. अव हेल; प्रा. अवहेल) अखग स. देश. प्रहार करना, मारना 56 अवज्ञा या अवहेलना करना. गुज. अवहेल 41
अखार स. भव (सं. आ + क्षलू; अक्खाल ; अऊल अ. देश. तप्त होना, जलना; स.
'पखार' के आधार से द्विरक्त प्रयोग - ह. भा.) गरम करना 42
पखारना 57 अएर स. भव (सं. अंगीकर : प्रा. अंगिअ. ; दे. अखुट अ. ना. देश. (प्रा. अखुट्ट, अखुट्टिअ
पृ. 24 मा. हि. को) अंगीकार करना, विशे; दे. पृ. 16 पा. स. म.) समाप्त ग्रहण करना 43
न होना 58 अक अ. देश. (दे. पृ. 10, दे. श. को.) अगट अ. देश. एकत्र होना 59 घबड़ाना; उकताना 44
अगम अ. ना. अर्धसम (आगमन संज्ञा; सं. अकचका अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. आगमन) आगमन होना, आना 60 95 हि. दे. श.) चकित होना; इक्का
*अगर अ. भव (सं. अग्र + ल : प्रा. अग्गल विशे; बक्का होना 45
ह. भा.) आगे बढ़नाः आगे आगे चना 61 अकड़ अ. ना. देश. ( अकड़ संज्ञा; दे. इआले
*अगरा स.दे. 'अगर. मन वढाना. अ. प्यार से 1013) सूखकर कडा होना; घमंड करना. गुज. धष्टता करना 62 अकडा 46
अगव (1) अ. ना. भव (अगुआ विशे; अकन अ. भव (सं. आ+कणं: प्रा. आ
__ सं. अग्र: प्रा. अग्गः ह. भा.) कोई काम करने अण्ण , आकण्ण ; दे. इआले 101 ) सुनना,
__ के लिए आगे बढ़ना: अगवानी करना ध्यान देना 47
(2) सहना, अंगेजना, दे. 'ॲगव' 63 अकबका अ. ना. अनु. (अकबक संज्ञा)
अगसर अ. ना. अधसम (अगसर क्रि. वि.. चकित होना; घबराना: अकबक या व्यर्थ की
सं. अग्रसर दे. पृ. 37 मा. हि. को. प्रा. अग्गसर; बातें करना 48
ह.भा.) अग्रसर होना, आगे बढना 64 अकरख स. देश. आकृष्ट करना; तानना 49
___अगिया अ. ना. भव (आग संज्ञाः सं. अग्नि प्रा. अकस अ. देश. बराबरी बरना, बैर करना अग्गि, दे. इआले 55) गरम होना; उत्तेजित _ वि. अर. अक्स संज्ञा 'बैर' 50
होनाः स. बरतन को आग में डालकर शुद्ध करना. अकाज स. ना. भव (अकाज संज्ञा; सं. गुज. तुल. आग संज्ञा 65
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
अगुआ स. ना. भव (आगे अन्य; सं. अग्र; अछवा स. भव ( अच्छा विशे; सं. अच्छ, प्रा.
प्रा. अग्ग; द. इआले 68) अगुआ बनना; अच्छ; ह. भा. ) साफ करना; संवारना 81 अ. आगे जाना तुल. गुज. आगेवानी संज्ञा अजमा स. दे. 'आजमा' 82 'अगुआनी' 66
अजोर (1) स. ना. भव (अँजोरा संज्ञा; सं. अगुता अ. देश. उकताना 67
उज्ज्वल; दे. पृ. 10 मा. हि. को. ) प्रकाशित अगुसर अ. ना. अर्धसम (अगसर क्रि. वि; करना
सं. अग्रसर प्रा. अग्गसर; दे. पृ. 39, मा. (2) स. ना. भव (अँजुरी संज्ञा; सं. अंजलि; हि. को.) दे. 'अगसर' आगे बढना 68 दे. पृ. 10, मा. हि. को.) बटोरना; अजुली अगूठ स. देश. चारों ओर से घेरना, घेरा में भरना या लेना .83 डालना 69
अट (1) अ. देश. ( अटूट; दे. इआलें 178) अगोट (1) स. देश. आड़ करना; चारों ओर समाना; जुडना से घेरना; अ. ठहरना; फँसना
(2) अ. भव (सं. अद्: प्रा. अट्, अट्ट; (2) स. देश. अंगीकार करना; चुनना 70 दे. पृ. 25, पा. स. म. तथा पृ. 83 हि. अगोर स. ना. (आगल संज्ञा; अगला विशे. सं. त. श.) भ्रमण करना. गुज. अट 84
अग्र अव्य, प्रा. अग्गल, दे. इआले 68) रख- अटक अ. ना. देश ( अटक संज्ञा;*अट्ट; दे. वाली करना, बाट जोहना 71
इआलें 182) रुकना; उलझना. गुज. अटक अघा अ. भव (सं. आघ्रा, प्रा. अग्घा- 85
इज्जू अग्धाइ दें. इआलें 1062) भरपेट भोजन अटकर स. दे. 'अटकल' 86 करना; तृप्त होना; छकना 72
अटकल स. ना. देश. ( अटकल संज्ञा; अटूटकला; अघ्रान स. ना. सम (सं. आघ्राण ) गंध लेना, दे. इआले 183) अनुमान करना. गुज. अटसूघना 73
कळ 87 अच स. दे. 'अचा' 74
अटपटा अ. ना. अनु. ( अटपटा विशे.; पृ. 53 अचकचा अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 96, हि. दे. मा. को.) अटकना; हिचकना 88
दे. श. ) भौचक्का होना, चौंक उठना 75 अटा अ. दे. 'अट' 89 अचय स. दे. 'अचा' 76
अटेर स. देश. ( आँटी;*अट्ट; दे. इआलें 181 अचव स. दे. 'अचा' 77
तथा 1414) सूत की आँटी बनाना; लपेअचा स. भव (सं. आ+चम्, प्रा. आयाम; दे. टना गुज. अटेर 90 इआले 1069 ) आचमन करना. गुज. आचम अठला अ. दे. 'इठला' 91
अठव अ. देश. जमना, ठनना 92 अछक अ. ना. देश (अछक विशे. ) तृप्त न अठा (1) अ. ना. भव ( आठ विशे. सं. अष्ट; होना, न छकना 79
प्रा. अट्ठ; दे. इआले 941) आठ (प्रथाओं) अछता-पछता अ. अनु. बार बार पछताना या से युक्त होना खेद करना 80
(2) स. दे. 'अठव' 93
78
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२८
अठिला
अठिला अ. दे. 'इठला' 94
अदबदा अ. ना. देश ( अ. व्यु. दे. पृ. 97, अड़ अ. देश. ( *अड; दे. इआले 187; प्रा. हि. दे. श. ) हठ करना 112
अड्रड विशे; पा. स. म.) अटकना. गुज. अद्धय स. न. अर्धसम ( सं. अध्ययनः पृ. 70 अड स. 'छूना'; अडक 95
मा. हि. को.) अध्ययन करना; पढ़ना 113 अड़का स. दे. 'अड़ 96
*अधिका स. ना. सम (अधिक विशे; सं. अडप स. देश. डाँटना-डपटना 97
अधिक ) अधिक होना. गुज़. तुल. अदकु अड़रा अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 96, हि. दे. विशे. 'अधिक' 114
श. ) जहाँ-तहाँ बातें करते फिरना; अभिमान अधिया स. ना. भव (आधा विशे; सं. अर्ध; दिखाना 98
प्रा. अद्ध; दे. इआळे 644) आधे आध बाँट अड़ा स. ना. देश. ( आड़ संज्ञा, पृ. 57, दे. लेना. गुज. तुल. अधुसार 115
मा. हि. को.) आड से मार्ग रोकना; उल- अधीज अ. ना. भव (अधीज संज्ञा; सं. अधैर्यः झाना 99
अर्धज्ज;-ह. भा.) अधीर होना 116 *अडार स. देश. डालना; देना 100
*अधीन अ. ना. सम (सं. अधीन विशे. दे. *अडूल स. देश. ( दे. पृ. 12, दे. श. को.) पृ. 80, मा. हिं. को.) अधीन होना; स. ढालना, उड़ेलना 101
अपने अधीन करना 117 अढ़ अ. देश. लगना 102
* अनंग अ. ना. सम (सं. अनंग विशे.) बेसुध अढव स. देश. आज्ञा देना 103
होना, विदेह होना 118 अढुक अ. देश. ठोकर खाना; सहारा लेना 104
अनंद अ. ना. सम (सं. आनंद संज्ञा ) आनंदित
होना गुज. आनंद 119 अतीत अ. ना. सम ( अतीत विशे; सं.
*अनक स. भव (सं. आ + कर्ण; प्रा. आकण्णन; अतीत) बीतना; गुजरना 105
दे. 85 मा. हि. को.) सुनना, चुपचाप *अतुरा अ. ना. सम (आतुर विशे.; सं.
सुनना 120 आतुर ) आतुर होना, जल्दी मचाना गुज. तुल. आतुर विशे. 106
अनख अ. दे. 'अनखा' 121 *अथ अ. दे. 'अथा' 107
अनखा अ. देश. (प्रा. अणक्ख) दुष्ट होना, अथय अ. दे. 'अथा' 108
खीझना; स. रुष्ट करना, खिझाना. गुज. अथब अ. दे. 'अथा' 109
अणख 122 अथा (1) अ. भव ( सं. अस्त, एते; प्रा. अस्थम् ।।
___ अनग अ. देश. जानबूझकर देर लगाना; टूटे या दे. इआलें 976 ) अस्त होना गज. आशम टपकत हुए खपरैल की मरम्मत करना 123 (2) स. देश. थाह लेना; हूँढना 110 अनगव अ. दे. 'अनग' 124 अदरा अ. ना. सम ( आदर संज्ञा; सं. आदर) अनगा अ. दे. 'अनग' स. ( केश आदि) सुल
आदर-मनुहार से गर्ववृद्धि होना गुज. आदर झाना 125 'शुरू करना' 111
*अन स. दे. 'आन' 126
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२९
130
हिन्दी-गुजराती धातुकोश अनभव अ. दे. 'अनुभव' 127
अनुसार स. दे. 'अनुसर' 142 *अनमोल स. अर्धसम (सं. उद् + मिलू से. *अनुहर स. भव (स. अनु + हृ: प्रा. अणुह :
दे. पृ. 91, मा. हि. को.) आँखें खोलना, दे. इआले 341 )- के समान दीखना; नकल खिलना 128
करना 143 *अनर स. ना. देश, अनादर करना 129 अनुहार स. दे. 'अनुहर' 144 *अनरस अ. देश. उदास होना, खिन्न होना अनैस अ. ना. देश. (अनेस विशे.) रूठना,
___अप्रसन्न होना 145 अनवाँस स. देश. नये बरतन आदि को प्रथम अन्हा अ. भव (सं. स्ना, प्रा, व्हा; ह. भा.) बार काम में लाना 131
__ नहाना. गुज. नहा 146 *अनसा अ. देश. झुझलाना; क्रुद्ध होना 132 अपड अ. देश. पहुँचना 147 अनुकूल अ. ना. सम (सं. अनुकूल विशे.) अपडर अ. ना. भव (अपडर संज्ञा; स. दर; प्रसन्न होना; मुआफिक होना 133
प्रा. डर: ह. भा.) डरना, शंकित होना 148 *अनुभव स. ना. सम (अनुभव संज्ञा; सं. अपडा अ. देश. खींचातानी करना, झगड़ना; स. अनुभव ) अनुभव करना; बोध करना. गुज.
पहुँचाना 149 अनुभव 134
अपना स. ना. भव (अपना सर्व, सं. आत्मनः *अनुमान स. ना. सम (अनुमान संज्ञा; सं.
प्रा. अप्पणो दे. इआलें 1135) स्वीकार कर अनुमान) अनुमान करना, सोचना. गुज. तुल. लेनाः अपना बना लेना. गुज. अपनाव 150 अनुमान संज्ञा 135
___ *अपमान स. ना. सम (अपमान संज्ञा; स. अनुमाप स. ना. सम. (अनुमापन संज्ञा; सं...
अपमान) अपमान करना. गुज. तुल. अपमान अनुमापन) अनुमान या कल्पना करना: सम
संज्ञा 151 झना 136
अपस अ. देश. भागनाः चुपके से चल देना 152 *अनुराग स. ना. सम (अनुराग संज्ञा; सं. *अपसव अ. दे. 'अपस' 153
अनुराग) प्रेम करना; अ. अनुरागयुक्त हाना. अपसोस अ. ना. वि. भव (अपसोस संज्ञा; फा. गुज. तुल, अनुराग संज्ञा 137
अफसोस ) अफसोस करना. गुज. तुल. अफ*अनुराध स. ना. सम (अनुराध संज्ञा; सं.
सोस संज्ञा 154 अनुराध) बिनती करना 138
अपसौ अ. देश. जाना; प्राप्त होना 155 अनुरूप स. ना. सम (अनुरूप विशे; सं. अनुरूप)
__ अपहर स. ना. सम ( अपहरण सज्ञा, स. अप सदृश बनाना. गुज. तुल. अनुरूप विशे. 139 अनुसंधान स. ना. सम (अनुसंधान संज्ञा. सं ह्र + ) अपहरण करना गुज. अपहर 156 अनुसन्धान) ढूँढ़ना; विचारना.. गुज, तुल. अपुटूठ अ. देश. पीछे लौटना, वापस आना 157 अनुस धान संज्ञा 'संधान' 140
अपूठ स. देश. नष्ट करना, चीरना-फाड़ना अनुसर स. भव (सं. अनु + स: प्रा. अणुसर;
158 दे. इआले 338) अनुसरण करना. गुज. अपूर स. भव (सं. आ + पृ, प्रा. आपूर , दे. अनुसर 141
इलाले 1231) भरना 159
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अप्पन
176
अप्प स. ना. भव (सं. ऋ, प्रा. अप्पू ) अर्पण मिलाना; अ. मिलना. गुज. तुल. आमेज विशे.
करना, देना. गुज, आप 160 अफना अ. दे. 'उफुना' 161
अमेठ स. देश. उमेठना 177 अफर अ. भव (स. आ + स्फ., दे. इआले अमेठ स. दे. 'अमेठ' 178 1527 ) जी भर खाना, पेट फूलना. तुल. गुज. अरंभ अ. ना. सम (आरंभ संज्ञा; सं. आ + रम्भ) आफर, आफरो संज्ञा 162
बोलना, आरंभ करना; स. आरंभ करना. गुज. अफरा अ. दे. 'अफर' 163
. आरंभ आरंभ करना' 179 अफ्फ स. दे. 'अप्प' अर्पित करना. देना 164 अर (1) अ. दे. 'अड़' अबुहा अ. दे. 'अभुआ' 165
__(2) अ. देश. (दे. पृ. 13, दे. श. को.) अभिनंद अ. ना. सम (अभिनंदन संज्ञा, सं.
शीध्रता करना 180 अभि + नंदु ) अभिनंदन करना. गुज. अभिनंद अरक अ. अनु. (दे. पृ. 172, मा. हि. को.) 166
टकराना; दरकना. तुल. गुज. अड 181 अभिर अ. दे. 'अभेर' भिड़ना, सहारा लेना 167 अरगा अ. दे. 'अलगा' अलग होना; चुप्पी अभिलाख अ. ना. अर्धसम (अभिलाख संज्ञा, साधना 182..
सं. अभिलाष ) इच्छा करना. गुज, अभिलाख अरच स. ना अर्धसम ( अर्चन संज्ञा; सं. अर्च) 168
अर्चन करना. गुज. अर्च 183 अभिसर अ. ना. सम (अभिसरण संज्ञा, सं. अरज (1) स. ना. अर्धसम (अर्जन संज्ञा; सं.
अभि + सृ) जाना, संकेत स्थल पर प्रिय से अ ) अर्जन करना मिलने के लिए जाना. गुज. अभिसर 169
___ (2) स. ना. वि. (अर्ज संज्ञा; का अर्ज) अभिसार अ. दे. 'अभिसर' 170
अरज करना 184 अभुआ अ. अनु. ('अभू अभू' से अनु. दे. अरझ अ. दे. 'अरुझ' 185 पृ. 157, मा. हि. को.) सिर हिलाना और
___ अरड़ अ. भव (सं. आ + रट्, प्रा. आरडू, दे. हाथ-पैर पटकना, जिससे सिर पर भूत का आना समझा जाता है. तुल. गुज. आभु विशे.
___इआले 1302) चीखना, चिल्लाना. गुज. 'चकित, स्तब्ध' 71
आरड़, अराड 186 अभेर स. देश. (प्रा. अभिड) संयुक्त करना, अरथा स. ना. अर्धसम (अरथ संज्ञा, सं. अर्थ) मिलाना तुल. गुज. भेळव 172
समझाकर कहना, व्याख्या करते हुए कहना 187 अमा अ. भव (सं. उन् + मा; दे. इआले 2124) *अरद स. ना. अर्धसम. मसलना, मसल-कुचलसमाना, अँटना 173
कर मार डालना 188 अमात स. भव (सं. आ + मन "; प्रा. आमंत्) अरप (1) स. अर्धसम (सं. अर्प) अर्पण करना
आमंत्रित करना, न्योतना गुज. आमंत्र 174 अमाव अ. दे. 'अमा' 175
(2) अ. देश. अ. व्यु. दे. पृ. 98, हि. अमेज स. ना. वि. (आमेज़ विशे. फा. आमेज़न) दे. श.) आरूढ़ होना, चढ़ना 189
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
अरबर अ. दे. 'अरबरा 190 अरबरा अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 98, हि. दे. श. अनु. दे. पृ. 174, मा. हि. को. ) गड़बड़ाना, लड़खड़ाना, घबड़ाना. गुज. तुल. अडवड 'लड़खड़ाना ' 191
अरर स. अनु. । दे. पृ. 174, मा. हि. कुचलना, पीसना, बुरी तरह से नष्ट
192
को. )
करना
अरर-दरर स. अनु. पीसना, दलना 193
अररा अ. ना. अनु. ( अरर अव्य, दे. पृ. 174, मा. हि. को. ) अरर शब्द करते हुए सहसा गिरना या टूटना 194 *अरस अ. देश. ढीला या * अरस - परस स. ना. भव
सुस्त लगना 195 (सं. परस्पर अव्य. से सम्बद्ध, ह. भा. ) छूना, आलिंगन करना. तुल. गुज. अरस - परस अव्य. 196
* अरसा अ. दे. 'अरस ' 197 *अरह स. ना. अर्धसम (अर्हण आराधना करना, पूजा करना 198 अराड़ अ. देश. ( अ. व्यु. प्र. 98, हि. दे. श. तथा पृ. 13, द. श. को.) पशुओं का गर्भस्राव होना 199
*अरूल अ. देश. छिलना, छिदना -09
अरेर स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 48, हि. दे. श. )
रगड़ना 210
अरेह स. देश. रगड़ना, दे. 'रेह' 211 अध स. दे. 'आरोध' 212
अरोग अ. दे. 'आरोग' 213
अरोह अ. भव (सं. आ + रुहू, प्रा. आरोह, दे. इलें 1335 ) सवार होना, चढ़ना गुज. आरोह 214
संज्ञा, सं. अर्ह ) अर्थ स. सम (स. अर्थ ) याचना करना, माँगना. गुज. तुल. अर्थे अव्य. ' के लिए' 215
* अराध स. ना. सम ( आराधना संज्ञा: सं. आ + राधू आराधना करना; मन में किसी का ध्यान करके कुछ मनाना गुज. आराध 200 * अरिया स. ना. अनु. भव ( अरे अव्य. सं. अरे; प्रा. अरे) 'अरे' कहकर, तिरस्कारपूर्वक बातें करना. तुल. गुज. अरे अव्य. 201 अरुगा अ. देश, अच्छी तरह समझाकर कोई बात कहना 202
अरुझ अ. दे. 'उल्झ' 203
* अरुना अ. ना. मव ( अरुन विशे. सं. प्रा.
३१
अरुण ) अरुण या लाल होना, स. अरुण या लाल करना. तुल. गुज. अरुण विशे. 204 *अरुर अ. देश, (अ. व्यु. दे. पृ. 48, हि. दे. श.) सिकुड़ना, बल खाना 205
* अरुरा अ. दे. 'अरुर' 206
* अरूझ अ. देश. उलझना 207 * अरूर ( 1 ) अ. देश. व्यथित होना (2) अ. दे. 'अरुर' 208
अर्था स. दे. 'अरथा' 216
अर्द अ. ना. सम (सं. यर्द ) कष्ट देना, स.
दूर करना 217 अर्प स. सम
'अरप' 218
अर्रा अ. अनु. दे. पृ. 185, मा. हि. को. ) चिल्लाना, व्यर्थ की बातें करना 219 अलग स. ना. भव ( अलग विशे. सं. अलग्न, प्रा. अलग्ग, दे. इआलें 10893 ) अलग करना, छाँटना, अ. अलग होना. गुज. तुल. अलग विशे. 220
अलबला अ. दे. 'अरबरा' 221
अलला अ. अनु. ( ह. भा. ) बहुत जोर से. चिल्लाना 222
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३२
अलस.
अलस अ. ना. सम (अलस विशे. स. अलस) अवट अ. ना. भव (स'. आवर्तन, प्रा.आवटू
थकावट या सुस्ती मालूम होना. गुज. आळस टन, दे. पृ. 196, मा. हि. को.) व्यर्थ घूमना 223
___या मारे-मारे फिरना दे. औट. 237 अलसा अ. दे. 'अलस' 224
अवडेर स. देश. किसी का डेरा इस प्रकार उजाअलाप अ. ना. सम (आलाप संज्ञा, सं. आलाप ड़ना कि उसे भागकर दूर जाना पडे, झंझट
गाने के समय लंबा स्वर खींचना, बात करना. में डालना 238 गुज. आलाप 225
अवतर अ. ना. सम (अवतार संज्ञा, सं. अव अलुझ अ. दे. 'उलझ' 226
+ तृ) अवतार लेना, प्रकट होना, उतरना. गुज. अलुट अ. देश. ( *आ + लो', दे. इआले अवतर 239 1407) लोटना, लड़खड़ाना गुज. आळोट 'लोटना' अवधार स. ना. सम ( अवधारणा संज्ञा; सं. 227
अव + धृ) ग्रहण करना, धारण करना; मानना. अलोक (1) स. ना. सम (आलोक संज्ञा. स. गुज. तुल. अवधारणा संज्ञा 240
आलोक ) प्रकाशित या प्रकाश से युक्त करना, *अव अ. देश. आना, आस्तित्व में आना 241 अ. आलोक से युक्त होना. गुज. आलोक अवमान अ. सम (अवमान संज्ञा; सं. अव+ (2) स. अर्धसम (सं. अव + लोक्) मन ) अवमान करना. गुज. अवमान 242
अवलोकन करना, देखना. गुज. आलोक 228 *अवराध स. ना. ( अवराधन सशा; सं. अव अलोप अ. देश. लुप्त होना. तुल. गुज. अलोप + राथ् ) पूजा करना 243 विशे. 229
अवरेख स. अर्धसम (स. अवलेखन) उरेहना; अल्ला अ. दे. 'अलला' 230
तसवीर खींचना; देखना 244 *अव अ. देश. 230 A
अवरोध सं. ना. सम (अवरोध संज्ञा; सं. अव अवकल अ. ना. सम (अवकलन संज्ञा, स. अव + रुधू) रोकना; बाधा डालना. गुज. अवरोध __ + कलू) ज्ञान होना, समझ में आना 231 245 अवगत स. ना. सम ( अवगत वि.सं.अवनाम) अवरोह अ. ना. सम (अवरोह संज्ञाः सं. अव
सोचना. गुज. तुल. अवगत विशे. 232 ___ + रुहू) उतरना; चढ़ना स. रोकना, अंकित *अवगाध स. दे. 'अवगाह' 233
करना. गुज. तुल अवरोह संज्ञा 246 अवगार स. द. जतलाना, समझाना, बुरा-भला अवलंघ स. ना सम (अवलंघन संज्ञा: सं. अव कहना 234
+ लङ्घ) लाँधना 247 अवगाह (1) ना. सम (अवगाहन संज्ञा, सं. *अवलंब स. ना. सम ( अवलंब सज्ञा; स.
अव + गाह) थहाना, अ. डुबकी लगाना. तुल. अव+लम्ब्) आश्रय लेना, गुज. अवलंब 248 गुज. अवगाहन संज्ञा
अवलच्छ स. अर्धसम (सं. उप + लक्ष) देखना (2) बिलोड़मा, हलचल मचाना 235
249 अवज्ज स. देश. पुकारना, अ. जोर का शब्द अवलेख स. ना. सम (अवलेखन संज्ञा; सं. करना 236
अव + लिखू ) खुरचना; चिह्न करना 250
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश अवलेप अ. ना. सम ( अवलेप संज्ञा; सं.अव + *अहक स. ना. अर्धसम ( अहक संज्ञा; सं. लिपू अपने आपको दूसरों से बहुत बढ़ाचढ़ा ईहा संज्ञा) कामना करना 265 समझना; किसी पर दोष लगाना. गुज. तुल. अहट अ. दे. 'अहुट' 266 अवलेप संज्ञा 251
अहटा (1) अ. ना. देश ( आहट संज्ञा) आहट - अवलोक स. ना. सम : अवलोकन स ज्ञा; सं. लेना( 2 ) अ. देश. दुखना 267 अव + लोक् । देख्ना . गुज. अवलोक 252
अहर स. देश. लकड़ी को छलकर सुडौल करना *अवलोच स. ना. अर्धसम (सं. आलोचन 268 संज्ञा निवारण करना; दूर करना 253
अहल अ. देश ( *हल्ल, प्रा. आहल्ल; दे. *अवसाद अ. ना. सम ( अवसाद संज्ञा; सं. इआलें 1542) हिलना, काँपना 269
अव + सद्) अवसाद से युक्त होना; स. विर्स को अहार (1) स. दे. 'अहर' । अवसाद से युक्त करना 254
(2; स. ना. भव (अहार संज्ञा; सं. *अवांग स. ना. अर्धस्म ( अवाँग विशे. सं. आहार; प्रा. आहार) आहार करना;
अवाकू) नीचे की ओर मोड़ना या इकाना लेई लगाकर लसना. गुज. आहार 255
'आहार करना' 270 अवसेर स. ना. अर्धस्म ( अवस्ज्ञा : स. अक्सर अविघटट स. ना. अर्धसम (सं. अभिघटनम विशे.) उलझाना: बेचैन करना; अ. विलंब करना दे. पृ. 236, मा. हि. को.) अभिघटित करना 256
271 अवांस स. दे. 'अनवाँस' 257
* अहुट अ. देश. हटना, अलग होना 272 अवार स. ना. अर्धसम (अवार संज्ञा; सं. वृ.) आँक स. ना. भव (अंक संज्ञा; सं. अडूक संज्ञा
रोकना, वारण करना; स. वारना - निछावर दे. इआलें 140) निशाना लगाना; अनुमान करना 258
करना. गुज. आंक 273 अविलोक स. दे. 'अवलोक' 259
आँच स. ना. भव (आँच संज्ञा; स. अर्च; प्रा. असंध स. ना. अर्धसम ( स. संधि संज्ञा) अलग अच्चि संज्ञा ) जलाना, तपाना. गुज. आंच करना 260
संज्ञा 274 असकता अ. ना. अर्धसम ( स. अश्वत विशे.) आंज अ. भव (सं. अजू; प्रा. अंज; दे. इआलें आलस्य अनुभव करना 261
____169 ) अंजन लगाना. गुज. आंज 275 असीस स. ना. भव (असीस संज्ञाः सं. आशिषः आँट अ. दे. अँट' स. देश. (दे. पृ. 278, प्रा. आसिसा, असीसा; दे. इआले 1457) छ. का. उ.) कसना 276 आशिष देना 262
आंदोल स. सम. (स. आ + दुल; प्रा. आंदोल; अस्वीकार स. ना. सम (अस्वीकार संज्ञाः सं. दे. इआले 384) झलना. गुज. आंदोलन संज्ञा
अस्वीकार ) स्वीकार न करना. गुज. अस्वीकार 277 संज्ञा 263
आँध अ. ना. देश. (आँधी संज्ञा) हल्ला बोलना, *अह अ. देश. वर्तमान रहना, होना 264 टूट पड़ना 278
"4IT
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સ
आँवड़ अ. देश. उमड़ना, बह निकलना 279 आँस अ. ना. देश. ( आँस संज्ञा ) खटकना, चुभना 280
आ अ. भव ( सं . आ + या; प्रा. आव; दे. पा. स. म.; तुल. इआलें 1045, 1288, 2534 ) एक जगह से चलकर दूसरी जगह पहुँचन्म; लौटना. गुज. आव 281
* आकरख
स. ना. अर्धसम (सं. आकर्षण ) आकृष्ट करना, खींचना गुज. आकर्ष 282 * आकरस स. ना. अर्धसम (सं. आकर्षण ) आकृष्ट करना. गुज. आकर्ष 283
आकर्ष स. सम (सं. आ + कृष) खींचना गुज. आर्ष 284
आख स. भव (स ं. आ + ख्या; प्रा. अक्खू दे. इआलें 1041 ) कहना. गुज. आख 'बोलना '
285
आगम अ. ना. अर्धसम ( आगमन संज्ञा; सं. आ + गम् ) आना 286
अघ अ. दे. 'अघा' 287
आछ अ. भव (सं. आ + क्षि; प्रा. अच्छू दे. इआलें 1031 ) होना, मौजूद होना. तुल. गुज. छे कृ. 'है' 288
आज स. देश. बिछाना 289
आज़मा स. ना. वि. ( आजमाइश संज्ञाः फा. आजमूदन ) जाँच करना; परीक्षा के लिए प्रयोग करना. गुज. अजमाव 290
आट स. दे. 'अट' 291
आड़ स. ना. देश. ( आड़ संज्ञा * अडूड दे. इलें 189 )
(i) सेकना; बाँधना
( 2 ) स्त्रियों का शोभा के लिए आपने मुख पर विशेष ढंग से बिंदियाँ लगाना; आड
मांच
चितरना तुल गुज. आडुं विशे. आड
संज्ञा 292
आण स. दे. 'आन' 293
आतुरा अ. दे. 'अतुरा' 294
आथ अ. भव (सं. असू प्रा. अस्थि दे. प्र. 262; मा. हि. को. ) होना 295
आदर अ. ना. भव ( आदर संज्ञा; सं. आ + ह; प्रा. तुल. आअर; दे. इआले 1161) आदर होना. गुज. आदर 'शुरू करना'; आदर संज्ञा
296
आनंद अ. दे. 'अनंद' 297
आन स. भव ( सं . आ + नी; प्रा. आण दे. इआ 1174) लाना. गुज. आण 298 आपूर अ. दे. 'अपूर' 299
आम अ. देश आना 300
आमरख अ. ना. अर्धसम ( आमरख संज्ञाः स. आ + मृषू) क्रोध करना 201 आमेज स. दे. 'अमेज' 302
आरंभ स. भव (सं. आ + रभू प्रा. आरभ संज्ञा दे. इआलें 1305) आरंभ करना अ. आरंभ होना. गुज. आरंभ 303
*आराध स. सम. (सं. आ. राधू) आराधना करना. गुज. आराध 304
आरूँघ स. अर्धसम (स. आ + रुधू: दे. इअ.ले 1325 ) गला दबाना 305
आरोग स. देश. ! आसेग संज्ञा; सं. अरोग्म्; प्रा. आरोग्गू दे. प्र. 118 पा. स. म. ) भोजन करना. गुज, आरोग 306
* आध स. ना. अर्धसम ( आरोध संज्ञा, सं. आ+रुधू ) बाधा या रुकावट खड़ी करना, काँटों की बाढ़ लगाना, गुज, तुल. अवरोध
307
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हिन्दी गुजराती धातुकोश *आरोप स. ना. सम (आरोपण सज्ञा; आ + इच अ. दे. 'एच' 321
रुह् आरोपण करना, लगाना. गुज. आरोप इछ स. देश. इच्छा करना. गुज. इच्छ 322 308
इखर अ. अनु. (बिखरना का अनु. दे. पृ. 305, आरोह अ. ना. सम (आरोहण संज्ञा; सं. आ मा. हि. को.) इखरना-बिखरना 323 + रुह ) ऊपर चढ़ना. गुज. आरोह 309
इचक अ. देश. (दे. पृ. 15, दे. श. को.)
R देता है । आलाप अ. दे. 'अलाप' 310
क्रोध से दाँत या खीस निकालना 324 आलिंग स. ना. सम ( आलिंगन संज्ञा; सं. आ *इच्छ स. सम. (सं. इच्छू) इच्छा करना, + लिंगू । गले लगाना, भेटता. गुज. आलिंग गुज. इच्छ 325 311
इछ स. दे. 'इच्छ' 326 आलुझ अ. देश. उलझना 312
इठला अ. ना. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 101, आलोड़ स. भव (सं. आ + लुड्; प्रा. आलोङ, हि. दे. श.) ऐंठ या बड़प्पन दिखाना, इतराना
दे. इआले 1393) मथना गुज, आलोडन गुज. तुल, एंट 'गर्व करना' 327 संज्ञा 313
इतरा अ. ना. भव (सं. इत्वर संज्ञा; प्रा. इत्तर; दे. आवट । । ) स. दे. 'औट' .
इआले 1566) गर्व से एंठना, इठलाना 328 2) स. ना. भव (सं. आवतः प्रा. ईच स. दे. ऐंच 329 आवटूट; दे. पृ. 287, मा. हि. को.) उलट- . ना-पलटना; उहापोह या संकल्प-विकल्प
- *ईख स. भव (सं. ईक्षण, प्रा. इक्खन; दे. करना 314
पृ. 313, मा. हि. को.) देखना 330 आधर स. ना. अर्धसम ( आवरण संज्ञा; सं.
*ईछ स. दे. 'इछ' 331 आ + ; प्रा. आवर : दे. इआले 1414) ईठ स. देश. चाहना; अ. इष्ट या वांछित होना आवरण से युक्त करना; अ. आवृत्त होना.
332 गुज, आवर 315
उँगला स. ना. भव ( उँगल संज्ञा; सं. अगुल; आवाह स. ना. भव (आवाहन संज्ञाः सं. अ प्रा. अंगुल; दे. इआलें 134) तंग करना
+ वह प्रा. आवाहू दे. इआलें 1435) आमं- 333 त्रित करना. गुज. आवाह 316
उंच (1) स. भव (सं. उद् + अञ्चू; प्रा. उदंचू: *आष स. देश. आखना 317
दे. इआलें 1924) अदवान कसना आस अ. देश. होना 318
(2) अ. दे. 'उच' 334 *आसर स. अर्धसम (सं. आ + शर् ; दे. इआले
उस अ. देश. उलझना 335 1445) आश्रय लेना. गुज. आसरों संज्ञा
उँडेर स. दे. 'उडेल' 336 319
उडेल स. दे. 'उडेल' 337 आहूला अ. भव (सं. आ + हूलाद्; प्रा. तुल.
उँदल स. दे. 'उडेल' 338 आलाय संज्ञा; दे. इआलें 1549) आहलाद उदाल स. दे. 'उडेल' 339 होना. गुज. आह्लाद 320
उअ अ. देश. उगना 340
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*उकच अ. देश. उखड़ना; हट जाना 341 इआले 1954) उदय होना; उपजना. गुज. उकट स. भव (सं. उत् + कृतः प्रा. उक्कतः उग 348
दे. इआलें 1712) उघाटना; कोसना 342 उगच अ. देश. बढ़ना 359 उकठ अ. देश. सूखकर ऐंठ जाना 343 *उगट स. दे. 'उघट' 350 उकढ़ अ. भव (सं. उत् + कृष्ट, प्रा. उक्कड्ढ; उगद अ. देश. कहना 361 - ह. भा.) कढ़ना - बाहर निकलना 344 *उगर अ. दे. 'उगार' 362 उकता अ. देश. ऊबना; अधीर होना 345 उगल स. भव (सं. उद् + गृ; प्रा. उग्गिल् ; दे. उकल (1) अ. देश (* उत्कल् ; दे. इआलें इआले 1957, 1960 ) मुँह में ली हुई चीच 1716) उबलना. गुज. ऊकळ
को थूक देना. गुज. तुल. उगर 'बचना' 363 (2) दे. 'उकेल' 346
उगव स. दे. 'उग' 364 उकस अ. भव (सं. उत् + कृषु ; प्रा. उक्करिसू; उगसा स. दे. 'उकसा' 365
दे. इआलें 1715 तथा 1718) उभरना; उगसार स. देश. कहनाः प्रकट करना 366 अंकुरित होना. गुज. उकांस 347
उगह अ. दे. 'उगाह' 367 उकिल अ. दे. 'उकल् (2)
उगार स. अर्धसम (सं. उद् + गल्लू ; दे. इआलें उकेल स. भव (सं. उत् + कि प्रा. उक्केल्लाविय विशे; दे. इआले 1734 ) खोलना, उधे
___1953) कुएँ की मिटूटी आदि निकालकर ड़ना. गुज. उकेल 349
सफाई करना 368 उकीर स. देश. खोदकर निकालना; उभाड़ना
उगाल स. दे. 'उगार' 369 350
उगाह स. भव (सं. उद् + ग्राहू ; प्रा. उग्गाहू; *उकुस स. दे. 'उकस' 351
दे. इआले 1967 ) बहुत से लोगों से लेकर
इकट्ठा करना, वसूल करना. गुज. उखट स. देश; खोंटना; कुतरना; अ. लड़खड़ाना
उघराव तुल. उघराणी 370 352
उगिल स. दे. 'उगल' 371 उखड अ. दे. 'उखाड' 353
उग्रह स. ना. सम (सं. उग्रह संज्ञा) छांड़ना, उखर अ. दे. 'उखड़' 354
उगलना 372 उखाड स. भव (सं. उत् + कृष्ट; दे. पृ. 139 उघट स. देश. किसी पर अपने उपकारों या हि. वि. अ. यो.) गड़ी, जमी, बैठायी हुई चीज उसके अपकारों की उद्धरणी करना; कोसना
को अपनी जगह से हटा देना, नष्ट करना. 373 गुज. उखाड 355
उघड़ अ. दे. 'उघाड़' 374 उखाल अ. भव (सं. उत् + क्षलू ; दे. इआले
उघर अ. दे. 'उघाड़' 375 1748) कै करना 356
उघाड़ स. भव (उद् + घाट ; प्रा. उध्घाड; उखेल ख. दे. 'उरेह' 357
दें. इआले 1968) खोलना, अनावृत करना. उग अ. भव (सं. उद् + गा; प्रा. उग्गू; दे. गुज. उघाड 376
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
३७ उधेड़ स. दे. 'उघाड़' 377
उछल अ. भव (सं. उत् + शल: प्रा. उच्छल ; उघेल स. देश. उघाड़ना 378
दे. इआले 1843) तेजी के साथ नीचे से उच अ. ना. भव (सं. उच्च प्रा. उच्च; दे.
ऊपर उठना, गुज. ऊछळ 394 इआले' 1634) उचकना, ऊपर उठना: स. उछाँट स. दे. 'उचाट' 395 उपर उठाना 379
*उछीन स. ना. भव ( उच्छिन्न विशे. सं. उत् + उचक अ. भव (सं. उच्च विशे. प्रा. उच्च: दे. छिद्; प्रा. उच्छिण्ण; दे. इआलें 1955)
इआले 1634 ) एडी के बल खड़ा होना; जड़ से उखाड़ना; नष्ट-भ्रष्ट करना 396
उछलना; स. उठा लेना. गुज. ऊँचक स. 380 उजड़ स. देश. (* उज्जट, प्रा. तुल. उज्जाडिय उचट अ. भव (सं. उच्च ; प्रा. उच्चडू ; दे. विशे; दे. इआले 1661) वीरान होना;
इआले 1635) अलग होना; भड़कना. गुज. बर्बाद होना गुज. उजड 397 उचेड़ 'छिलना'; तुल. उचाट संज्ञा 381 उजर (1) अ. ना. वि. ( उन संज्ञा अर. दे. उचड़ अ. दे. 'उचट' गुज. उचड 382 पृ. 325, मा. हेि. को.) उजड़ना उचर (1) स. दे. 'उचार'
(2) दे. उजड़ 398 (2) स. भव (सं. उत् + चर् ; प्रा. उच्चर उजरा स. देश. उजला करना; अ. उजला होना दे. इआले 1641 ) (फोडे ) उठना. गुज. गुज. तुल. उजाळ 399
ऊचर 'बोलना' 383 उचल (1) अ. भव (सं. उत् + चल्, प्रा.
उजल अ. ना. भव (सं. उत् + ज्वल ; प्रा.
उज्जलू : दे. इआले 1671) (गहने आदि उच्चल्ल् ; दे. इआले 1642) अलग होना
___ का) मैल साफ होना, निखरना. गुज. तुल. (2) अ. देश. उचकना, उचटना. गुज. ऊचल
उजाळ स; अजवाळ 'दिया जलाना: निखारना' 'ऊँचा होना' 384
400 उचा स. देश. ऊँचा करना, उठाना 385 उचार स. भव (सं. उत् + चर ; प्रा. उच्चार . उजार स. दे. 'उजड' 401
दे. इआले 1641) उचारण करना, बोलना. उजास अ. दश. प्रकाशित हाना. गुज. उजास गुज. उचार 386
संज्ञा 402 उचेड़ स. दे. 'उचड़' 387
उजिया अ. देश. उत्पन्न करना; प्रकट करना
403 * उच्चर स. सम (सं. उत् + चर् ) उच्चारण करना. गुज. उच्चार 388
*उजियार स. देश. रोशन करना; बालना 404 *उच्छर अ. देश. उछलना 389
उजेर स. देश. उजालना 405 *उच्छल अ. सम. (सं. उद् + शल् ) उछलना उज्जार स. देश. उजारना 406 390
उझक अ. देश. उचकना; चौंकना 407 *उछक अ. देश. चौंकना; होश में आना 391 उझप अ. देश. खुलना 408 उछट अ. देश. उचटना 392
उझर अ. देश. हटना; ऊपर की ओर खिसकना; *उछर अ. देश. उछलना गुज. ऊछळ 393 स. उड़ेलना 409
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३८
करना 431
उझल अ. देश. ( * उज्झरः प्रा. उज्झ लेअ; दे. उदर क. दे. 'उढार' 425
इआले. 1676) एक बर्तन से दूसरे बर्तन उढ़ार (1) स. भव (सं. उत् + हवलू; दे. में पहुँचना 410
इआलें 2032) किसी विवाहिता को निकाल उझांक अ. दे. 'उझक' 411
या भगा जाना उझिल अ. दे. 'उझल' 412
(2) स. देश. उद्धार करना 426 उटक स. देश. अटकल से पता लगाना; अ.
उढुक अ. दे. 'उढक' 427 अटकना 413
उतपन अ. ना. अर्धसम ( उत्पन्न विशे. सं. उत्पन्न * उठ्ठ अ. दे. 'उठ'
दे. पृ. 125, है. भा.) उत्पन्न होना. गुज.
तुल. उतपत संज्ञा 428 उठेग अ. देश. (* उपादेग; दे. इआले 2172)
उतपाट स. सम (सं. उत् + पाट) उखाड़ना; किसी ऊँची वस्तु का सहारा लेना; टेक लगाना. गुज. उठंग; तुल. ओठिंगग संज्ञा 415
नष्ट-भ्रष्ट करना 429 उठ अ. भव (सं. उत् + स्था; प्रा. उट्ठः दे.
उतपात स. दे. 'उतपाद' 430 इआले 1900 ) नीचे के तल या स्तर से उतपाद स. अर्धसम (से उत् + पाद) उत्पन्न ऊपर के तल या स्तर की ओर चलना या बढ़ना. ऊँचाई की ओर या ऊपर जाना अथवा उतपा स. दे. 'उतपन' 432 बढ़ना गुज. ऊठ 116
उतर अ. भव (सं. उत् + तृप्रा. उत्तर; दे. इआले उठक अ. दे. 'उठंग' 417
1770) ऊपर से या किसी सपाटी से नीचे उड़ अ. भव (सं. उन् + डी; प्रा. उड्ड; दे. आना गुज़. ऊतर 433
इआले 1697) पंख के सहारे हवा में चलना- उतरा अ. देश. पानी में पड़ी हुई चीज़ का फिरना: फैलना. गुज. ऊड 418
ऊपर तैरना, पानी के ऊपर आना; विपत्ति उड़का स. देश. ( दे. पृ. 16, दे. श. को.) से उद्धार पाना. गुज. तुल. तर 'तैरना' 434 लगाना, बन्द करना 419
*उतला अ. देश. आतुर होना; उताचल करना उड़ास स. अर्धसम (सं. उत् + दम्श; दे. इआले 435 ___1984) (बिस्तरा आदि ) समेटना 420
*उत्तार स. सम (सं. उत् + तृ) पार उतारना, उडीक स. देश. प्रतीक्षा करना 421
दूर करना 436 उडेर स. दे. 'उडेल' 422
*उत्थव स. देश. आरंभ करना; ऊपर उठना उडेल स. भव ( सं. उत् + लण्ड प्रा. उल्लंडिअ 457 विशे. दे. इकाले 236)) किसी तरल पदार्थ *उत्साह अ. ना. सम (सं. उत्साह संज्ञा).
को एक पात्र से दूसरे पात्र में गिराना या उत्साहित होना. गुज. उत्साह संज्ञा 438 डालना गुज. तुल. उलांट संज्ञा 'कलाबाजी, उथप स. अर्धसम (सं. उत् + स्थापू) ऊपर
उठना या खड़ा करना; उखड़ना; अ. उठना उदक अ. ना. देश. 'प्रा. उड्ढंक संज्ञाः दे. पू. गुज. उथाप 439
153 पा. स. म. ) ठोकर खाना; सहारा लेना उथरा अ. भव (सं. उत् + स्तृ? प्रा. उत्थर् ) 424
किंचित् उठना. उन्नत होना 440
कूद' 423
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
उथल अ. देश. डगमगाना; उलट जाना. गुज. ऊथल 441
उथाप स. दे. 'उथप' 442
उस स. देश. उखाड़ना; अ. उखड़ना 443 उदक अ. देश. उछलना-कूदना छटकना 444 डदगर अ. ना. अर्धसम ( उद्गार संज्ञा; सं. उद्गार) निकलना, उभड़ना, डकार लेना 445 उदगार स. दे. 'उदगर 446
उदघट अ. सम. ( सं उदित होना 447
उद् + घट् ) प्रकट होना;
उदबास स. भव ( स. उद् + वास) किसी स्थान से हटा देना, उजाडना 448
* उदमद अ. देश. उन्मत्त होना, सुधबुध खो देना 449
उत्
*उदमान अ. देश, उन्मत्त होना 450 * उदय अ. ना. सम ( उदय संज्ञाः सं + इ; प्रा. उदय इआलें 1931 ) उदय होना. गुज. उदय संज्ञा 451 *उदर अ. देश विदिर्ण होना; (मेड़, दिवार आदि का ) कटकर अलग हो जाना; अ. उतरना 452
*उदव अ. दे. 'उदय' 453
उदस अ. भव (सं, उद् + वस्; प्रा. *उद्दस ह. भा. ) उजड़ना, उध्वस्त होना 454
* उदास (1) स. ना. सम ( उदास विशे. सं. उदास उदास होना. गुज. उदास विशे. ( 2 ) स. देश. उजाड़ना; ( बस्ता ) समेटना 455
उदिया अ. देश उद्विग्न करना 456 *उद्ध अ. देश. ऊपर उठाना, उडना 457 *उद्धर स. दे. 'उद्धार 458
उद्धार स. ना. सम ( उद्धार संज्ञा; सं. उद्धार; दे.
३९
प्र. 198; व्र. ख. तु. अ.) उद्धार करना. गुज. उद्धार 459
उधक अ. दे. 'उधड़' 460
उधड़ अ. भव (सं. उद् + धृः प्रा. उद्घड विशे. दे. इआले 2009 खलना बिखरना गुज. उधेड स. 'चमडी उधेडना' 461
उधर अ. देश. संकट आदि से उद्धार पाना या मुक्त होना, स. उद्धार करना 462
के
उधरा अ. ना. देश. ( उधर अव्य. } हवा झोंके में पड़कर इधर-उधर छितराता या बिखराना; नष्ट-भ्रष्ट हो जाना 463 उधल अ. दे. 'उदर' 464 उस स. देश. बिखरना; फैलना 465
उधिया अ. ना. दश. (ऊधम संज्ञा ) ऊधम मचाना अ. उधड़ना गुज. ऊधम संज्ञा 466
उन स. देश. बुनना: अ. उनवना 467 उनच स. देश. चारपाई की बुनाहट को खींचकर कड़ा करना, ऐचना 468
उनमा अ. अर्धसम (सं. उन् + मद् ) उन्मत्त होना: बिहूवल होना 459
माथ स. अर्धसम (सं. उन्मथ ) मथना 470 अ. देश. अनुमान करना; सोचना
* उनमान 471
* उनमल स. ना. सम (सं. उन + मूल ) उखाड़ना; नष्ट करना 472
उनमे स. ना. अर्धसम उनमेख संज्ञा: सं. उन्मेष ) विकसित होना; आँख खुलना 473 अ. दे. 'उनव' झुकना; लटकना 474 *उनर अ. देश. ऊपर उठना या बढ़ना; छाना 475
*उनय
उनव अ. भव (सं. अव + नमः प्रा. ओणम्ः दें. इलें 788 ) झुकना; गिरना 476
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४०
* उनै अ. दे. 'उनव' 478
उन्मील स. ना. सम (सं. उन्मीलन ) विकसित करना, अ. खुलना, खिलना गुज. उन्मीलन संज्ञा 479
उप अ. दे. 'उपज' 480
* उपकर स. ना. अर्ध सम ( उपकार संज्ञा; सं. उपकार ) उपकार करना. गुज. उपकार संज्ञा 481
* उपच अ. ना. अर्धसम ( सं . उपचय संज्ञा ) उन्नत होना; फूट पडना 482
उपचर स. दे. 'उपचार' 483
उपचार स. ना. सम ( उपचार संज्ञा; सं. उपचार ) व्यवहार करना, विधान करना. गुज. उपचार संज्ञा 484
उपज अ. भव ( सं . उत् + पद्; प्रा. उपज्ज् दे. इआले 1814) उत्पन्न होना; मन में उठना गुज. ऊपज 485
उपट अ. भव ( स. उद् + वृत्; प्रा. उव्वत्त्; दे. इआलें 2071 ) उभरना; दाग या निशान पड़ जाना. गुज. ऊपट 486 उपहार स. दे. 'उपट' 487
उपड़ अ. देश. उखड़ना; दे. 'उपट' गुज. ऊपड़ 'उभरना, जाना' 488
* उपदेश स. ना. अर्धसम ( उपदेश संज्ञा; स. उपदेश ) उपदेश, शिक्षा देना. गुज. उपदेश
489
*उपधर अ. सम (सं. उप + धृ ) 490 * उपन (1) अ. दे. 'उपज'
( 2 ) स. देश. उदाहरण देना; तुलना करना
491
* उपमा स. ना. सम ( उपमा संज्ञा; सं. उपमा ) तुलना करना. गुज. उपमा संज्ञा 492
उपय अ. दे. 'उपज' 493
*उनै
उपर अ. दे. 'उपट' 494
उपरा अ. ना. भव ( ऊपर अव्य; सं. उपरि; प्रा. उप्परिं, उप्पिअं; इआले; 2333 ) ऊपर होना; सं. ऊपर करना. गुज. तुल. उपर अव्य
495
उपराज स. अर्धसम (सं. उपार्ज) उत्पन्न करना; उपार्जन करना 496
* उपराह स. देश. प्रशंसा करना 497 उपला स. दे. 'उपरा' 498
उपव अ. देश. उड़ जाना; उदय होना 499 उपस अ. दे. 'उबस' 500
उपसव अ. देश. कहीं से भाग या हटकर चले जाना 501
उपाट स. भव. ( सं उत् + पद् प्रा तुल. उप्पड़ दे इआले 1809 'जड से नोचना, उजाडना. गुज. उपाट 502
उपाठ स. देश. दृढ या पक्का करना; पमाना 503
उपार स. ना. भव ( उपाड़ संज्ञा: सं. उत्पाट; प्रा. उप्पाड, दे. इआलें 1819 ) उखाड़ना. गुज. उपाड 504 .
* उपेख स. देश. उपेक्षा करना 505 *उपै अ. देश. उड़ जाना 506 * उपड अ. देश उफनना: उबलना 507 उफन अ. ना. अर्धसम ( उफान संज्ञा; सं. उत् + फणू दे. इआले 1836 ) उबलना. गुज. तुल. उफाणो संज्ञा 508
उफना अ. दे. 'उफन' 509
उफाल अ. भव (सं. उत् + स्फल : प्रा. उत्फाल : दे. आले 1837 ) निर्मूल करना; उजाड़ना
510
उब (1) अ. अर्धसम (सं. उद् + वप्; दे. इआ 2059 ) उकताना, घबराना. गुज. ऊब, उबा 'फफूदी जमना'
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
(2) स. देश. उगना; उन्नति करना 511 उभड अ. दे. 'उभर' 526 उबक अ. ना. देश. (उबक संज्ञा; * उब्बक्क; उभर अ. भव (सं. उद् + भृ; प्रा. उम्भलिअ%B
प्रा. उव्वक्क; दे. इआले 2337) कै करना. दे. इआले 2038) ऊपर उठना, प्रकट होना.
गुज. तुल. उबक, उबको संज्ञा 'उबकाई' 512 गुज. ऊभळ 527 उबछ स. ना. भव (सं. उत्प्रेक्षण; प्रा. उप्पोक्खन, उभा अ. दे. 'अभुआ' 528
दे. पृ. 373, मा. हि. को.) कपड़ा पछाडकर उभाल स. देश. (प्रा. उब्भालण; दे. पा. स. म.
धोना; सिंचाई के लिए पानी खींचना 513 तथा पृ. 102, हि. त. श.) सूप आदि से उबाक अ. दे. 'उबक' 514
साफसुथरा करना 529 उबट अ. भव (सं. उद् + वृत्; प्रा. उब्बत्त, उभास अ. ना. भव (अवभास संज्ञा; सं. भासू; उब्बटूट; दे. इआले. 2071) मालिश करना. प्रा. ओभास् , अवहा संज्ञा दे. इआले 798 गुज. ऊटवा 515
तथा पृ. 88 हि. त. श.) चमकना 530 उबर अ. दे. 'उबार' 516
उभिट अ. देश. हिचकना, अटकना 531 उबल अ. देश ( * उब्बल; प्रा. उव्वर; दे. इआले उमंग अ. दे. 'उमग' 532
2339) खौलना, उफनना. गुज. तुल. उबाळो उमग अ. भव (उन्मग्न विशे. सं. उन्मग्न; प्रा. संज्ञा 517
उम्मग्ग; दे. इआले 2110) उमंग में आना, उबस अ. भव (सं. उद् + वास् ; दे. इआले जोश में आना. गुज. तुल. उमग 'स्फुरित होना,
2084) सड़ना, सडौंध पेदा होना 518 उत्पन्न होना' 533 उबह अ. भव (सं. उद् + वहू; प्रा. उव्वह; दे. उमच अ. देश. हुमचना; चौंकना 534
इआले 2076) उभरना; तलवार आदि ऊपर उमड़ अ. देश. (* उम्मड; दे. इआले 2344) उठाना 519
बढ़कर फैलना, जोश में आना. गुज. ऊमड, उबार स. भव (सं. उद् + वृ; प्रा. उव्वार, दे. ऊमट 535 इआले 2082 तथा 2356) बचाना. गुज. तुल. उमद अ. दे. 'उमग' 536 उगार 520
उमस अ. ना. देश. (उमस संज्ञा) उमस होना उबिठ स. भव (सं. अव + इष्ट; प्रा. ओइट्ठ; 537 दे. पृ. 374 मा. हि. को.) अरुचि पैदा
उमह अ. दे. 'ऊमह' 538 करना; उबाना. अ. ऊबना 521 उबीठ स.दे.'उबिठ, 522
उमाक स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 102, हि. दे. उबीध अ. भव (सं. उद + व्यध्ः प्रा. उव्विद्धः
श.) उखाडकर फेक देना 539 ह. भा.) फँसना; चुभना 523
उमेठ स. भव (सं. उद् + वेष्ट, प्रा. उव्वेद्; दे. उभ अ. ना. भव (सं. ऊर्ध्व विशे; प्रा. उब्भाह.
इआले 2091) मरोड़ना, ऐंठना 540 भा.) उठना. गुज. ऊभु विशे 'खडा' 524
उमेड स. दे. 'उमेठ' 541 उभट अ. अर्धसम (सं. उद्भट ?) अहंकार *उमेल स. देश. प्रकट करना; वर्णन करना 542 करना; उभरना 525 .
उम्म अ. देश. उमड़ना 543
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उयबा अ. देश. अँभाई लेना 544
उलट-पलट अ. दें, 'उलट' 566 उर अ. दे. 'उड़' 545
*उलठ अ. दे. 'उलट' 567 उरक अ. देश. (* उद्रोक्क, प्रा. उल्लक्क, दे. *उलथ अ. देश. ऊपर-नीचे होना; उछलना. __ इआले 2068) रुकना, ठहरना 546
गुज. ऊथल 568 उरग स. देश. झेलना, अंगीकार करना 547 *उलद स. देश. उडेलना; ढालना; अ. खूब उरा अ, भव (सं. उप + सन्ध् ; प्रा. उअरुज्ज; बरसना 563
दे. इआले 2221) उलझना, विधाग्रस्त *उलर (1) अ. भव (सं. उत् + लल् ; प्रा. होना. गुज. ऊरझ 'लटकना'; उरझा 'उलझाना' उल्ललू; दे. इआले 2373) उछलना; झपटना. 548
गुज. उलळ उरधार स. देश. फैलाना, उधेड़ना 549 (2) अ. दे. 'उलट' 570 उरम अ. देश. लटकना, झूलना 550
* उलल अ. देश. ढरकना; उलट-पलट होना; उरर अ. अनु. (दे. पृ. 377, मा. हि. को.) स. उलट-पलट करना. गुज. उलळ 571 उमंगित होना 551
* उलस अ. भव (सं. उत् + लस् ; प्रा. उल्लसू; उरस स. देश. उठाना-गिराना; ढाँकना 552
दे. इआले 2375) शोभित होना. गुज. ऊलस उस अ. देश. खतम हो जाना, चुक जाना, ओराना;
___ भव्य दीखना, प्रसन्न होना' 572 स. के. 'उड़ा 553
उलसा अ. दे. 'उलस' 573 उराह स. ना. उलाहना देना 554
उलह अ. देश. उमड़ना; उत्पन्न होना 574 *उरुज अ. दे. 'उरझ' 555
उलाँघ स. भव (सं. उत् + लछूघु ; प्रा. उल्लांघ; *उरेख स. दे. 'उरेह' 556
दे. इआले 2366) लाँघना, (आज्ञा का) उल्लंउरेह स. भव (सं. उद् +रिख ; प्रा. उल्लिहू;)
घन करना. गुज. उलंघ 575 दे. इआले. 2060) तसवीर बनाना 557 उलार स. दे. 'उला' 576 उरेड स. देश. उँडेलना, गिराना 558 उलाल स. देश. पालन-पोषण करना 577 *उलंग स. देश. लाँघना 559
उलाह अ. भव (सं. उप + आ + लभ ; प्रा. उवा*उलंघ स. ना. अर्धसम (सं. उल्लंघन संज्ञा) लड्ः दे. इआले. 2312) गिला करना, दोष __ उल्लंघन करना गुज. उलंघ 560
देना. गुज. तुल. उपालंभ संज्ञा 578 उलड स. दे. 'उड़ेल' 561
उलीच स. देश. कोई तरल पदार्थ बाहर फेंकना उलच स. दे. 'उलीच' 562
579 उलछ स. दे. 'उलीच' 563
उलेड स. दे. 'उडेल' 580 उलझ अ. दे. 'उरझ' 564
उलेट स. दे. 'उलट' 581 उलट अ. देश. (* उल्लट्ट; प्रा. उल्लट्ट विशे. उलेड स. दे. 'उडेल' 582
दे. इआले 2368) सीधे का औंधा होना. उलेढ स. देश. कपड़े के शेर या सिरे को थोड़ा गुज. ऊलट 565
उलट या मोड़कर तथा अन्दर की ओर करके
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश ऊपर से सीना 583
ऊँग स. दे. 'औंग' 603 उलैंड स. दे. 'उडेल' 584
ऊँघ अ. देश. (* उद्ध् ; प्रा. उंघ , उग्घ् : दें. उल्लंघ स. सम (सं. उद् + लङ्कथ् ) उल्लंघन इआले 1632) नींद लेना. गुज. ऊंघ 604 करना. गुज. उल्लंघ 585
ऊँछ स. भव (सं. उन्छु ; दे. इआले 1680) उल्लास स. ना. सम (सं. उद् + लस् ) उल्लसित कंघी करना 605 होना. गुज. उल्लास संज्ञा 586
ऊ अ. देश. उअना, उगना 606 उव अ. दे. 'ऊअ' 587
ऊअ अ. भव (स. उद् + इ, प्रा. उइ, दे. इआले उस स. दे. 'ओसा' 588
___1944) उदित होना 607 उसक अ. भव (सं. उत् + सुच: प्रा. उससक्क. ऊक अ. भव (सं. उत् + क्रम् , प्रा. उक्मम् : दे.
दे. इआले 1886) उत्तेजित होना 589 इआले 1737) चूकना, सं. छोडना 609 उसन स. दे. 'उसिन' 590
ऊकट स. देश. उकठना 609 उसर अ. दे. 'उसार' 591
ऊकस अ. दे. 'उकस' 610 *उसल अ. दे. 'उसार' 592
ऊग अ. दे. 'उग' 611 *उसस अ. देश. गहरी या ठंढी साँस लेना: अ. ऊगर स. दे. 'उगल' 612 खिसकना 593
ऊछज अ. देश. (अन आदि) ऊपर उठाकर अपने उसा स. दे. 'ओसा' 594
बचाव के लिए तैयार होना 613 *उसार स. भव (स. अव + Y; प्रा. ओसारु: दे. *ऊट अ. दे. 'औट' 614
इआले 862) उखाड़ना; पूरा करना 595 *ऊड़ स. दे. 'ऊढ (2) उसाल स. देश. उखाड़ना; दूर करना 596 ऊढ (1) अ. ना. सम. (सं. ऊद) सोच-विचार उसिन स. भव (सं. उत् + श्रा; दे. इआले 1863 प्रा. उसिण विशे.) उबालना, पकाना.
(2) अ. ना. सम. (सं. ऊद) विवाह करना
616 गुज. तुल. ओसामण संज्ञा 'माँड' 597 उसाज स. भव (सं. उत् + श्राः दे. इाले. ऊथाप स. दे. 'उथप' 617 ___1865) उबालकर पकाना 598
___ ऊधर अ. दे. 'उधर' 618 उसीझ स. भव (सं. उत् + सिधूः दे. इआले ऊन अ. ना. सम. (ऊन विशे.) कम करना.
1854) धीमी आग से पकाना. तुल. गज. गुज. तुल. अणु विशे. 'कम' 619 सीझव 599
*ऊप अ. देश. उपजना 620 उसे स. देश. उबालना 600
ऊब अ. भव (सं. उद् + विज् ; प्रा. उब्वियू , उहट अ. देश. उघड़ना; हटनाः स. उघाड़ना दे. इआले 2087) उकताना, घबराना. गुज. 601
तुल. अब, उबा 'उबसमा' 621 उहर अ. दे. 'ओहर' 602
ऊभ (1) अ. ना. देश. (ऊभ संज्ञा, *उब्ब,
करना
उत् + श्रा; दे. इआले
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ऊम
प्रा. उव्व दे. इआले. 2340) गरमी से ऊबना ओगर अ. देश. टपकना, रसना; (कुएँ आदि का) पीडित होना,
__ साफ किया जाना. तुल. गुज. गाळ 639 (2) अ. दे. 'उभ' 622
ओछ स. दें. 'ऊँछ' 640 ऊम अ. भव (सं. उन् + मद् दे. इआले 2115) ओज स. अर्धसम (स. अव + तुद दें. इआले विजय से आनंदित होना 623
778) रोकना, झेलना 641 ऊमट अ. दे. 'उमड़ 624
ओट (1) स. देश (*ओटूट; दें. इआले 2544) ऊमह अ. भव (सं. उन् + मथू ; प्रा. उम्महू दे. कपास के बिनौले को अलग करना; किसी इआले 2115) उमंग में आना 625
बात को बारबार कहना. गुज. ओट *ऊल अ. देश. प्रसन्न होना; उछलना 625
'कोकना' ऊलह अ. दे. 'उलह' 627
(2) स. भव (सं. अव + वृत् ; प्रा. ओवत्त् ऊवड़ अ. दे. उमह 628
दे. इआले 840) वाद्य के तार छेड़ना
642 एँच स. दे. 'ऐच' 629 पेंच स. भव (सं. अति + अच्च् : प्रा. ऐंच ; दे.
र ओग अ. दे. 'उठग' 643 इआले 210) खींचना. गुज. पंच 630
' ओड स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 103, हि. दे. श.) ऐंछ स. देश. झाड़ना; (बालों में) कंघी करना
ऊपर लेना; (हाथ) पसारना 644 631
ओढ़ स. देश. (*ओड्ढ; प्रा. ओड्ढिगा-उड्ढिया पेंट स. दे. 'ऐंठ' 632
संज्ञा दे. इआले 2547) किसी कपड़े, खाल
___ आदि से बदन को ढकना; अपने जिम्मे लेना. ऐंठ स. भव (सं. आ+ वेष्ट ; प्रा. आवेढिम विशे.
गुज. ओढ 645 दे. इआले 1448) मरोड, घुमाव देना. गुज. तुल. एंट 'गर्व करना' 633
ओदर (1) अ. भव (स. अव+द प्रा. अवदाल
दे. इआणे 782 तथा 784) किसी ऐंड स. दे. 'ऐंठ' 634
सही चीज का उखड़ना; फटना ओइछ स. देश. निछावर करना, औंछना 635
(2) अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 103, हि. *ओंक (1) अ. दे. 'ओक' ।
दे. श.) उदास होना 646 (2) अ. भव (सं. अप + क्रम् ; प्रा. अव
| ओध अ. भव (स.अव + बन्ध् ; प्रा. ओबद्ध विशे. क्कम् ;-दे. पा. स. म. तथा पृ. 182,.
दे. इआले 795) फँसना, उलझाना; (काम में) हि. दे. श.) हटना 636
लाना 647 ओंग स. अर्धसम (स. उप + अम्जू ; दे. इआले 2293) गाडी की धुरी में तेल लगाना. गुज.
ओनच स. दे. 'उनच' 648 ऊंग, ऊंज 637
ओनव अ. दे. 'उनव' 649 ओक अ. देश. (*ओक्क; दे. इआले 2538: प्रा. ओना अ. किसी ओर उठना पा लगना; स. कान
ओक्किअ संज्ञा; दे. प्रा. स. म.) के करना लगाकर सुनना; झुकाना 650 भैंस की तरह चिल्लाना. गुज. ओक 638 ओप अ. देश (*ओप्पः प्रा. ओप्प विशे. दे.
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५
हिन्दी-गुजराती धातुकोश इआले 2556) चमकना; स. चमक लाने के औंछ स. दे. 'ओझ्छ' 669 लिए मांजना. गुज. ओप 651
औंज अ. देश. उबना, व्याकुल होना; स. ओपा अ. दे. 'ओप'. दूध की हँडिया आदि गरम उलझना 670
करते समय अधिक आँच लग जाने से उस आँट स. दे. 'औट' 671 में धुआँ-मिश्रित गंध का आने लगना 652
औंड अ. देश. उमड़ना 672 ओरम अ. दे. 'ओलम' 653
औंद अ. देश. उन्मत्त होना; व्याकुल होना ओरख अ. दे. 'ओलम' 654
673 ओरा अ. देश. समाप्त होना, चुकना 655 *आँध अ. ना. भव (आँधा विशे; सं. अवमूर्धन् ओल स. ना. देश. (ओल संज्ञा) परदा करना; प्रा. ओमुद्धण; दे. इआले 804) औंधा होना; __ ओढ़ना; रोकना 656
स. उलट देना. तुल. गुज. ऊंधु विशे. 674 ओलग अ. दे. 'अलग' 657
औंस अ. दे. 'औस' 675 ओलम अ. भव (स. अव + लम्ब् ; प्रा. ओलंब; औगाह अ. अर्धसम (सं. अव + गाह्) अवगादे. इआले 827) लटकना; झुकना. गुज. तुल. हना. गुज. अवगाह 676 ओळबो संज्ञा 658
औघूर अ. देश. घूमना, चक्कर खाना 677 ओलर अ. दे. 'उलर' 659
औछा अ. देश. छाना 678 ओलिया स. देश. गोद में भरना; घुसना 660 औट स. भव (सं. आ + वृत्; प्रा. आवद् दे. ओसन स. ना. भव (श्लक्ष्ण विशे. सं. उव + इआले 1420) दूध आदि को आँच देकर
श्लक्ष्ण; दे. इआले 657) आटा गूंधना 661 गाढ़ा करना. गुज. तुल. अवटवा "चम्मच से ओसर अ. देश. बरसना 662
हिलाये जाते हुए उबलना' 679 ओसा स. अर्धसम (सं. अप + श्री: दे. इआले औतर अ. अर्धसम (सं. अव + तृ) अवतार ग्रहण 963) दाना-भूसा अलग करने के लिए अनाज करना, जन्म लेना. गुज. अवतर 680 को हवा में उड़ाना. गुज. ओसाव 'पसाना'; *औदक अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 104, हि. तुल. ओसामण संज्ञा 'माँड' 663
दे. श.) चौंकना 681 ओह स. देश. डंढलों आदि को ऊपर उठाकर औंधार (1) स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 104, हिलाते हुए नीचे गिराना 664
हि. दे. श. ) इधर-उधर हिलाना-डुलाना ओहर अ. भव (सं. अव +भः प्रा. ओहरिअ (2) स. अध सम (सं. अव + धृ) अवविशे. दे. इआले 797) शमित होना; कमी धारना; प्रारंभ करना 682 पर होना. गुज. तुल. ओसर 665
औन अ. दे. 'ऊन 683 औंग स. दे. 'ओंग' 666
और अ. देश. आगे बढ़ना; सूझना 634 औंघ अ. देश. ( *अवोंधू ; दे. इआले 901) औरस अ. देश. रूठना, अनखाना 685 ऊँघना 667
औल अ. दे. 'अऊल' 686 आँघा अ. दे. 'औंघ' 668
औस (1) अ. भव (सं. आ + वास् ; प्रा. तुल.
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४६
ख आवास संज्ञा; दे. इआले 1433 तथा 458) कचार स. अनु. (दे. पृ. 428, मा. हि. को.) ऊमस होना, फलादि का सूखकर पकना पछाडकर पानी से कपडे धोना 700 (2) अ. भव (सं. आ + तपू ; दे. इआले कचिया अ. ना. देश. (कच्चा विशे.) कच्चा 1120) गरम होना 687
पड़ना या होना; हिम्मत हारना; स. किसी *कंख (1) अ. देश. किसी बात की इच्छा होना को साहसरहित करना 701 (2) अ. दे. 'काँख' 688
कचो स. दे. 'कचोक' 702 कँजिया अ. ना. देश. (कँजा संज्ञा ) कंजई रंग कचोक स. अनु. (दे. पृ. 428, मा हि. को.)
का बनना, कुछ नीलापन लिए काला पड़ना; किसी को कोई नुकीली चीच चुभाना 703
दहकते हुए कोयलों का बुझना; झंवाना 689 कचोट अ. अनु. देश. (अ. व्यु. पृ. 104, हि. कँटिया अ. ना. भव (काँटा सं. कण्टक; प्रा. देश.) चुमना, गड़ना; किसी प्रिय जन को
कंटिय; दे इआले. 2668) काँटों से युक्त याद करके दुःखी होना; रह रहकर पीड़ा होना; रोमांचित होना; स. कटि लगानाः रोमां उठना 704 चित करना गुज. कांटो संज्ञा 690
कजरिया स. ना. भव (काजर संज्ञा, काजल; कंथ स. ना. सम (कंथा संज्ञा) कंथा पहनना. सं. कज्जल, प्रा. कज्जल; दे. इआले 2622) गुज. कंथा संज्ञा 691
बच्चों को नजर से बचाने के लिए काजल की कंप अ. दे. 'काँप' 692
बिंदी लगाना; काला करना 705 कष स. अर्धसम (सं. कांक्ष) इच्छा करना; कजला अ. दे. 'कजरिया' 706 देखना 693
कट अ. दे. 'काट' 707 कउँध अ. दे. 'कौंध' 694
कटकटा अ. ना. अनु. ( दे. पृ. 432, मा. हि. ककोर स. देश. (अ. व्यु. पृ. 104, हि. दे. श.) को.) क्रुद्ध होने पर दाँत पीसना. गुज. तुल. खरोंचना; मोडनाः कुरेदना 695
कचकचाव 708 कचक अ. दे. (*कच्च, दे. इआले 2610) कटका स. दे. 'कटकटा' 709 किसी अंग या वस्तु का दब जाना, कुचला कटमटा अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 105; हि. दे. जाना; स. दरार पड़ना; स. कुचलना. गुज. श.) काटनी-सी नजर से देखना 710 कचक 'कसकर बाँधना' 696
*कटाष्प स. ना. अर्धसम (सं कटाक्ष ) कटाक्ष कचकचा अ. अनु. (*कच्च; दे. इआले 2612) करना 711 'कचकच' की आवाज होना; दाँत घुसाना.
कटिया अ. दे. 'कँटिया' 712 गुज. कचकचावः कचकच संज्ञा 697 कचर स. दे. पैरों से रगड़ना; कुचलना; बहुत ।
- कटूर अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 105, हि. अधिक भोजन करना. गुज. कचर 698
' दे.श.) उपेक्षा या क्रोधपूर्वक देखना, घूरना 713 कचा अ. ना. देश. ( कच्चा विशे. ) डरकर पीले कट्ठ स. देश. काटना; काढना; अ. कटना 714
हटना; कच्चा पडना; स. ऐसा काम करना *कट्या अ. दे. 'कंटिया' 715 जिससे कोई धैर्य छोड दे 699
कठिया अ. ना. भव (काठ संज्ञा; सं. काष्ठ;
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
प्रा. कट्ठ; दे. इआलें 3120 ) सख्त हो जाना; सूखकर कड़ा हो जाना 716 कठुआ अ. दे. 'कठिया 717
*कठठ अ. देश. बाहर आना; निकलना; स. निकालना 718
कड़क अ. ना. अनु. ( कड़कड़ संज्ञा ) ' कड़कड़ शब्द करना; घी - तेल का गरम हो जाना; गुस्सा करना; स. बहुत गरम करना, गुज. ककळ 719
कड़कड़ा अ. दे. ' कड़क ' 720
कडुआ अ. ना भव ( कडुआ विशे. सं. कटु; प्रा. कडु; दे. इआलें 2641 ) कडुआ लगना; बिगड़ना. गुज. तुल. कडवु विशे. 721 कढ़ अ. दे. 'काढ़' 722
* कढरा स. देश. किसीको घसीटकर बाहर निकालना 723
, 726
* कढला स. दे. 'कढ़रा 724 * कढ़िए स. दे. ' कढ़रा 725 * कढ़ोर स. दे. 'कढ़रा कतकता अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 105, हि. दे. श. ) अतिशय क्षीण हो जाना. गुज. तुल. कंता 727
कतर स. भव ( सं . कृत: तुल. प्रा. कत्तरी संज्ञा दे. इआलें 2858) कैंची या सरौते से काटना. गुज. कातर 728
* कत्थ स. अर्धसम ( सं . कथ् ) कथन करना; कहना 729
कथ स. सम. ( सं . कथ् ) कहना: बुराई करना. गुज. कथ 730
कदबा स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 105; हि. दे. श. ) ( खेत का ) जोतने योग्य होना 731 कदरा अ. ना. देश. ( कादर विशे.) कायरता दिखलाना 732
४७
कनकना (1) अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 105; हि. दे. श. ) चौकन्ना होना; रोमांचित होना; स. चुनचुनी या सुरसुरी उत्पन्न करना (2) अ. अनु. भव. ( सं . क्वण्; प्रा. कणकण्; पृ. 183, हि. दे. श. ) 'कनकन' की ध्वनि उत्पन्न करना 733
कनखिया स. ना. भव ( कनखी संज्ञा; सं. काणाक्ष, प्रा. काणक्ख; ह. भा. ) कनखी से देखना इशारा करना 734
कनमना अ. अनु. ( अ. व्यु. दे. पृ. 105; हि. दे. श. ) सोने में आहट पाकर या बेचैनी से हाथ-पांव हिलाना, सिकोड़ना 735 कना अ. ना. देश. ( कना संज्ञा ) ऊख की फसल
में कना नामक रोग होना 736
कनिया अ. ना. देश ( कन्ना संज्ञा ) आँख बचाकर किसी ओर निकल जाना; गुड्डी या पतंग का किसी ओर झुकना 737
कपट स. ना. सम (सं. कपट ) छल से किसी चीज में से कुछ अंश निकाल लेना; वस्तु को ऊपर से थोड़ा तोड़-नोच लेना. गुज. कपट संज्ञा 738
कफ़ना स. ना. वि. ( कफ़न संज्ञा, अर.) मुर्दे को कफ़न में लपेटना; अ. कफ़न में ढक जाना तुल, गुज. 'कफन' 739
कबूल स. ना. वि. ( कबूल संज्ञा, अर. ) स्वीकार करना, मान लेना. गुज. कबूल 740
कम अ. ना. वि. ( कम विशे. फा. ) ( किसी वस्तु का ) कम पड़ना, थोड़ा होना 741 कमा स. भब ( सं. क्रम्; प्रा. कर्म; दे. इआलें 3579 ) उपार्जन करना; काम देने योग्य बनाना. गुज. कमा 742
कर स. भव ( सं . कृ; प्रा. कर्; दे. इआलें 2814 ) किसी काम में सक्रिय होना; बनाना गुज. कर 743
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करक
करक अ. दे. 'कड़क' 744
कल शब्द होना; शरीर के किसी अंग में करख अ. दे. 'करष' 745
हलकी खुजली होना; सुरमुराहट होना; गुज. करखा (1) अ. ना. भव. (सं. कालव्य संज्ञा;
कलकल जी जलाना, चीत्कार करना.' तुल.
कलकल संज्ञा 759 कालिख, कारिख; ह. भा.) कालिख से युक्त होना; काला पड़ना
कलप अ. देश. कल्पना करना; विलाप करना; (2) अ. देश. घूरना ( दे. पृ. 278, छ. दुःख पाना. गुज. कळप 'विलाप करना' 760 का. उ) 746
कलप्प अ. दे. 'कलप' 761 *करबर अ. अनु. पक्षियों आदि का कलरव करना; कलम स. ना. देश. (कलप संज्ञा ) कलम करना; हो-हल्ला करना. गुज. कलबल 747
काटना. तुल. गुज. कलम संज्ञा 762 करबरा (1) अ. अनु. खड़बड़ाना
कलमल अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 106, (2) अ. दे. 'करबर' 748
हि. दे. श.) कसमसानाः बेचैन होना. 763 करवर अ. दे. 'करबर' 749
कलमला अ. दे. 'कलमल' 764 करज अ. अधेसम ( करब संज्ञाः सं. कृष ) अपनी कला स. अधसम ( सं. कल दे. इआलें 2919: ओर खींचना, खींचकर निकालना: सोखना 750 प्रा. कल्लविअ विशे; दे. पृ. 212, पा. स.
म.) हिलाना, मिश्रित करना. गुज. कालव 765 करस स. दे. 'करष' 751 करार अ. अनु. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 106,
कलिया अ. ना. भव (कली संज्ञा; सं. कलि, हि. दे. श. ) कर-कर अर्थात् कठोर शब्द
कली; प्रा. कलिआ; दे. इआले' 2934)
कलियों से युक्त होना; पंखियों का नया पंख करना 752
निकलना. तुल. गुज. कळी संज्ञा 766 कराह अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 106,
कलोल अ. ना. भव (सं. कल्लोल संज्ञा; प्रा. हि. दे. श.) आह-आह करना. पीड़ासूचक
कल्लोल; दे. इआले 2955) क्रीड़ा करना. ध्वनि निकालना 753
गुज. कल्लोल 767 करो स. दे. 'करोद' 754
कल्ला अ. देश. जलन के साथ दर्द होना 768 करोद स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 106, हि.
हि. कल्हार स. ना. देश. (दे. पृ. 485, मा. हि. दे. श.) करेदना, खुरचना 755
___को; प्रा. काहल्ली; दे. पृ. 241. पा. स. म.) कर्रा अ. ना. देश. कड़ा होना; सख्त होना; कहाड़ी में डालकर या तवे पर रखकर कोई
'करकर' शब्द होना; ' करकर' शब्द करना. चीज़ तलना, भनना 769
गुज. करडा; तुल. गुज. करडु विशे. 756 कवर स. देश. कौरना, सेंकना 770 कर्ष स. सम. ( सं. कृष् ) खींचना. गुज. करख, कविता स. ना. सम. (सं. कविता संज्ञा) करष, करस 757
काव्यात्मक लिखना, भावुकता से लिखना. कलक (1) अ.दे. 'कलकला,
तुल. गुज. कविता. कवेताई संज्ञा 771 (2) चीत्कार करना. तुल. गुज. ककळ कस (1) स. भव (सं. कृष् ; प्रा. करिस्, 758
कास्; दे. इआलें 2908) बंधन को खींचकककला स. अनु. कलकल शब्द करना; अ. कल कर मजबूत करना. गुज. कस
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
( 2 ) स. भव ( सं . कषू प्रा. कस्; दे. इआलें 2972 ) परीक्षा करना. गुज. कस 772 कसक अ. भव. (सं. कष्; प्रा. कस्; दे. इआले
2972) पीडा होना; सालना. गुज. कसक 773 कसमसा अ. ना. अनु. ( कसमस संज्ञा; अ. व्यु. दे. पृ. 106; हि. दे. श. ) भीड के कारण आपस में रगड खाते हुए हिलना, बेचैन होना. तुल. गुज. कसमस संज्ञा 774 कसरिया अ. ना. वि. ( कसर संज्ञा; अर. ) घाटा
सहना. तुल. गुज. कसर संज्ञा 775 कसा अ. ना. भव ( कषाय विशे; सं. कषाय;
प्रा. कसाय दे. इआले 2974 ) कसैले स्वाद से युक्त होना. तुल. गुज. कषाय विशे. 776 कसिया अ. दे. 'कसा' 777
*कसीट स. देश. कसना 778
कसीस स. ना. वि. भव ( कसीस संज्ञा; फा. कशिश दे. पृ. 492, मा. हि. को. ) खींचना; चढ़ना 779
कहर अ. दे. ' कराह ' ( वर्ण - विपर्यय) 780 कह स. भव (सं. कथ्; प्रा. कह; दे. इआलें
2703 ) शब्द द्वारा भावप्रकाश करना; बताना गुज. कहे 781
कहर अ. दे. 'कराह ' 782
कहल अ. देश. ( दे. पृ. 493, मा. हि. को . ) उमस के कारण बेचैन होना, अकुलाना 783 काँख अ. भव (सं. कांक्षू ; प्रा. काँख्; दे. इलें 3002 ) मलत्याग में जोर लगाने या भारी बोझ उठाने आदि से गले से खाँसने की-सी आवाज़ निकलना; पीडित होना. तुल. गुज, कराँख 784
काँछ स. दे. ' काछ 785
काँड़ स. भव (सं. काण्ड : प्रा. कंडू दे. इआलें 2686) कुचलना 786
;
४९
काँद अ. भव (सं. क्रन्द् प्रा. कंद्; इआलें 3574) रोना - चिल्लाना 787
काँध ( 1 ) स. ना. भव ( काँध संज्ञा; सं.
स्कन्धू ; प्रा. खंधा, कंधा दे. इआले 13627) उठाना, भार सहना. तुल, गुज. कांध संज्ञा ( 2 ) स. ना. भव (सं. स्कन्ध संज्ञा दे. इआ 13632 ) एकत्रित करना 788 काँप अ. भव (सं. कम्प्; प्रा. कंप्; दे. इआलें
2767 ) हिलाना; लरजना. गुज. कांप 789 काछ स. भव ( काछ संज्ञा; सं. कक्ष्य प्रा. कक्खा, कच्छा दे. इआले 2592) लांग को पीछे ले जाकर खोंसना सवारना गुज. काछ काछsो संज्ञा 790
काट स. भव (सं. कृत्; प्रा. कत्तू, कट्ट दे. इ 2854) टुकड़े करना; दाँत धँसाना. गुज. काट; तुल. गुज. काप 791
काढ़ स. भव (सं. * कड्द्; प्रा. कडूद; दे. इआले 2660 ) निकालना; बेल-बूटे बनाना. गुज. काढ, काड 792
कात स. भव ( सं . कृत्; प्रा. कत्तू दे. इआले 2855) चरखे या तकली पर रुई या ऊनसे धागा निकालना. गुज, कांत 793 किकिया अ. अनु. (दे. पृ. 528, मा. हि. को. ) रोना, चिल्लाना; कीं कीं शब्द करना. तुल. गुज. किकियारी संज्ञा 794 किचकिचा अ. अनु. ( दे. पृ. 528, मा. हि. को. ) खिजलाकर दाँत पीसना, कोई काम करने के समय सारी शक्ति लगाने के लिए दाँत पर दाँत रखना. गुज. कचकचाव 795 किचड़ा अ. ना. देश. (कीचड़ संज्ञा ) कीचड़ से युक्त होना; स. कीचड़ से युक्त करना 796 किटकिटा अ. अनु. भव (सं. किटकिट संज्ञा; प्रा. किडकिडिया दे. पृ. 184, हि. दे. श. ) दाँत का बजना; स. क्रोध से दांत पीसना,
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५०
व्यर्थ की कहासुनी करना 797
कीलिअ; दे. इआले 3204) कील ठोंकना; किड़क अ. अनु. (दे. पृ. 528, मा. हि. को.) वश में करना. गुज.खील 'सीना' 812 खिसक या हट जाना 798
कुचल स. दे. 'कुचल 813 किडकिड़ा अ. दे. 'किटकिटा' 799
कुदेर स. ना. भव (कुदेरा संज्ञा; सं. कुन्दकार; किर अ. देश. किसी चीज़ में से उसके छोटे दे. इआले 3297 ) खरादना, छीलना 814
छोटे कण धीरे धीरे गिरना 800 ___ *कुभिला अ. देश. कुम्हलाना 815 किरकिरा अ. ना. अनु. (किरकिरा विशे.) किरकिरे कुकड़ अ. ना. भव (कुकड़ संज्ञा; कुक्कुट; प्रा.
खाद्य पदार्थ का मुँह में किरकिर शब्द करना; कुक्कुड; दे. इआले 3209) मुरगे की तरह किरकिरी पड़ने की-सी पीड़ा करना. तुल. गुज. दब या सिकुड़ जाना 816 करकरुं विशे. 801
*कुच अ. सम. (सं. कुच ; दे. इआले 3221) किररा अ. अनु. (दे. पृ. 531, मा. हि. को.) सिकुड़ना; किसी वस्तु का कोचा जामा 817 क्रोध आदि से दाँत पीसना: 'फिरफिर,
कुचकुचा स. अनु. बारबार हलके हाथों कोंचना शब्द करना. तुल. गुज. करड ‘काटना' 802
818 किरिर अ. देश. किचकिचाना 803
कुचल स. दे. 'कुच' किसी भारी चीज से दबामा; किरोल स. देश. कुरेदनाः खुरचना 804 रौंदना. तुल. गुज. कचर 819 किलक अ. देश. 'किलकिला' 805
कुटना स. ना. भव (कुटनी, कुटना संज्ञा; सं किलकिला अ. ना. भव (किलकिल संज्ञा; सं. कुट्टणी; प्रा. कुट्टणी; दे. इआले 3240)
किलकिल, प्रा. किलकल् ; दे. इआले 3160) कुटने या कुटनी का स्त्रियों को भुलावा देकर किलकिल ध्वनि करना 806
कुमार्ग पर ले जाना. तुल. गुज. कुटणी संज्ञा
820 किलबिला अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 107; हि..
दे. श.) चंचल होना; बहुत से कौड़ों आदि कुड़क अ. देश. मुरगी का अंडे देना बंद करना; का छोटी-सी जगह में एक साथ हिलना- कुड़बुड़ाना. गुज. कूड 'कुढ़ना' 821 डोलना 807
कुड़कुड़ा अ. अनु. देश. (प्रा. कुरुकुरु; दे. पृ. फिलस अ. भव (सं. क्लिश ; प्रा. किस्स; दे. 254, पा. स. म.) मन ही मन खीझकर
इआलें 3623) दर्द होना: बिलख-बिलख कर अस्पष्ट रूप से बड़बड़ाना; कुड़-कुड़ शब्द रोना गुज. कणस 808
करके पक्षियों आदि को खेतों से भगामा 822 कीक अ. अनु. 'की-की आवाज़ के साथ कुड़प स. देश. कँगनी के खेत को उस समय चीखना 809
जोतना जब फसल थोड़ी उग आये 823 कीड अ. ना. अर्धसम (सं. क्रीड्) क्रीड़ा करना.
कुड़बुड़ा अ. दे. 'कुड़कुड़ा' 824
कुड़मुड़ा अ. दे. 'कुड़कुड़ा' 825 तुल, गुज. क्रीडा 810
कुड़ेर स. देश. (दे. पृ. 26, दे. श. को.) कीन स. भव (सं. क्री; प्रा. कीण , दे. इआले
राब के बोरों को एकदूसरे पर इस प्रकार 3594) खरीदना 811
रखना कि उनकी जूसी बहकर निकल जाय कील स. ना. भव (कील संज्ञा; सं. किल, प्रा. 826
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
कुढ़ अ. भव (सं. क्रुध् * क्रूध्; दे. इआलें 3598) भीतर ही भीतर जलना 827 कुतकुता अ. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 107, हि. दे. श. ) सर्दी से सिहरना 828
कुतर स. देश. (* कोत्र; दें. इआलें 3512 ) दाँतों से किसी चीज़ का कुछ अंश काट लेना; किसी को मिलनेवाली रकम में से कुछ काट लेना. गुज. कोतर; तुल. खोतर 829 कुदक अ. दे. 'कूद '830
कुन अ. देश. ( कुन्द संज्ञा; दे. इआलें 3295 ) खरादना 831
कुनकुना अ. ना. देश. ( कुनकुना विशे. अ. व्यु.
दे. पृ. 107 हि. दे. श. ) कनमनाना 832 * कुन्न अ. वि. ( कीनः फा. दे. पृ. 552, मा. को. ) क्रोध या रोष करना 833
कुप अ. दे. 'कोप' 834
कुप्प अ. दे. 'कोप :835
कुम्हला अ. देश. (* कोम्हू ; . प्रा. कुम्मण विशे.; दे. आलें 3524 ) मुरझाना; सूखने लगना. गुज. करमा 836
*कुर अ. ना. ( कूरा संज्ञा ) वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना 837
C
कुरकुरा अ. दे. कुड़कुड़ा 838
कुरकुरा अ. अनु. कुरकुर करना; गतिशील होना
839
*कुरल अ. अनु. पक्षियों का मधुर स्वर में बोलना 840
कुरला अ. देश. करुण स्वर में बोलना, आर्तनाद करना 841
कुरिअर स. देश. कोई चीज निकालने के लिए कुछ काटना या खोदना 842 कुरिया स. देश. कुरेदना, कुरैना 843
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कुरेद स. देश. (*कुर्; दे. इआ 3319 ) खुरचना, करोटना 844
कुरै स. ना. भव ( कूरा संज्ञा; सं. कूट प्रा. कूड ह. भा. ) ढेर लगाना; अ. ऊपर से ढेर के रूप में किसी चीज का नीचे आकर ढेर के रूप में गिरना 845
कुरोद स. दे. 'कुरेद ' 845 कुर्र अ. दे. ' कुरल' 847
कुल अ. देश. (*कुल दे. इआलें 3334) दर्द करना, टीसना; स. चोट पहुँचाना 848 कुलक अ. अनु. किलकना 849 कुलकुला अ. ना. अनु. देश. ( कुलकुल संज्ञा; प्रा. कुलकुल; दे. पू. 255, पा. स, म. ) कुल - कुल शब्द होना; विकल होना; स. कुलकुल शब्द उत्पन्न करना. गुज. कळकळ 850 कुलबुला अ. ना. अनु. देश. ( कलबुल संज्ञा; प्रा. कुरुकुरु; दे. पृ. 185, हि. दे. श. ) कीड़ों, मछलियों आदि का एक साथ हिलनाडोलना; बेचैनी प्रकट करना 851
कुलाँच अ. ना. वि. ( कुलाच संज्ञा तु. दे. पृ. 561, मा. हि. को.) चौकड़ी भरना; उछलनाकूदना 852
कुलेल अ. दे. ' कलोल 853 कुसमिसा अ. दे. कसमसा
"
"854
कुहक अ. अनु. कोयल का कुहू कुहू शब्द करना; पिहकना, तुल. गुज. कुहूकार 855
कुहा अ. ना. भव (सं. क्रोध संज्ञा, प्रा. कोह ) क्रुद्ध होना; स. किसीको अप्रसन्न करना 856 कुहुक अ. दे. 'कुहक 857
,
कूँच स. ना. देश. ( कूँचा संज्ञा ) कुचलना 858 कूँज अ. दे. 'कूज 859
कूँथ स. अर्धसम (सं. कुन्थ् ; दें. इआलें 3294 )
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पीडा से ' उँह ' आवाज निकालना; कबूतरों खोंस लेना; फुबती चुनना 874 का ‘गुटुर गूं' करना 860
कोंछिया स. दे. 'कोछ' 875 कूँद अ. दे. 'कुन' 861
कोंप अ. ना. भव (कोंपल संज्ञा; सं. कुछमल; कूक अ. अनु. (कुक्क् ; प्रा. कुक्क् ; दे. इआले प्रा. कुप्पल; दें. इआले 3250) पौधौं, वृक्षों
3390) कोयल, मोर आदि का कू-कू शब्द आदि में नये अंकुर फूटना; कोंपल निकलना. करना; सूरीली ध्वनि निकालना; स. चाबी तुल. गुज. कुंपळ, कोंपळ 876 देना 862
कोक स. ना. वि. (कोक संज्ञाः फा. दे. पृ. कूज अ. सम. (सं. कूज् ) मधुर ध्वनि करना. 586. मा. हि. को.) कच्ची सिलाई करना, गुज. कूज 863
लंगर डालना 877 कूट स. भव (सं. कुट्ट, प्रा. कुट्ट; दे. इआले कोच स. देश. (* कोच्च; दे. इआले 3489)
3241 ) मूसल-मुंगरी से किसी चीज़ को कोई नुकीली चीज़ चुभौना. गुज. कोच 878 लगातार पीटना; मारना-पीटना. गुज. कूट 864 कोड़ स, भव (सं. कुद्; दे. इआले 3495 कूत स. ना. देश (कूत संज्ञा) किसी वस्तु का तथा 3934 ) गोड़ना 879 मान, मूल्य या महत्त्व अटकल से आँकना कोप अ. ना. सम (सं. कोप संज्ञा) कोप 865
करना 880 कूथ अ. दे. 'फॅथ ' 866
कोर (1) स. दे. 'कोड़। कूद अ. अर्धसम (सं. कूर्द ; दे. इआले 3412) (2) स. देश. (*कुर; दे. इआले 3530) किसी ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की ओर खुदाई करना; चित्रादि करना. गुज. कोर 881 एक बारगी तथा बिना किसी सहारे के उतरना; कोल स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 108, हि. स. फाँदना. गुज. कूद 867
दे. श.) नुकीली चीज़ से खोदना; अ. कूह स. देश. मारना-पीटना; बुरी तरह से हत्या विह्वल होना 882 करना 868
कोलिया अ. ना. देश. ( कोलिया संज्ञा ) तंग कॅकिया अ. दे. 'किकिया' 869
गली से जाना 883 केन स. दे. 'कीन' 870
कोस स. भव. (स'. कुशू ; दे. इआले 3612)
निंदा करना; गालियों के रूप में शाप देना 884 केरा स. भव (सं. कृ; दे. इआलें 3467)
__ *कोहा अ. ना. भव (कोह संज्ञा; सं. कुधू; सूप में अन्न रखकर उसे हिलाकर बड़े और
प्रा. कुहण विशे; दे. इआले 3599) क्रोध छोटे दाने अलग करना 871
करना; नाराज होना 885 केवट स. ना. भव (केवट संज्ञा; सं. केवते; कौंध अ. ना. देश. ( कौंध संज्ञा; अ. व्यु. दे. पृ. प्रा. केवटूट; दे. पृ. 579, मा. हि. को.)
108हि. दे. श.) बिजली का चमकना 886 नाव खेना; पार उतारना 872
कौआ अ. ना. भव (कौआ संज्ञा; सं. काक संज्ञा; कोंच स. दे. 'कोच' 873
प्रा. काय; दे. इआलें 2993) कौओं की तरह कोंछ स. ना. देश. (काँछ संज्ञा ) कोंछ भरकर काँव-काँव करना; व्यर्थ शोर या हल्ला करना
आँचल के छोरों को कमर में पीछे की ओर 887
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
कौर स. ना. देश. (कौड़ा संज्ञा ) थोड़ा गरम करना या भूनना; सेंकना 888
खखार अ. अनु. खरखराहट के साथ गले में चिपका हुआ कफ निकलना : संकेत के रूप में खाँसना, गुज. खंखार, खोंखार, खूँखार 904 खखेट स. देश. भगाना; घायल करना 905 खखोड स. दे. 'खखोर' 906
क्रम्य स. ना. सम. (क्रमण संज्ञा; सं. क्रम् ) खखोर स. देश. ( दे. पृ. 5, मा. हि. को. 2 ) लाँघना; आक्रमण करना 890 किसी वस्तु को चारों ओर खोजते फिरना. गुज. खोळ 907
क्रीडा
*क्रीड अ. ना. सम ( क्रीडा सं. क्रीड्) करना. तुल गुज. क्रीडा संज्ञा 891 *कील अ. अर्धसम ( सं . क्रीडू ) क्रीडा करना
892
क्रम अ. ना. सम ( क्रम संज्ञा, सं. क्रम्) क्रम लगाना, क्रम से चलना तुल, गुज. क्रम संज्ञा 889
क्षम स. सम. ( सं. क्षम् ) क्षमा करना 893 खंगार स. दे. ' खँगाल' 894
खंगाल स. भव (खंखालू दे. इआलें 3762 ) मजे - धुले बरतन को पूरी सफाई के लिए फिर से धोना, खाली करना. गुज. खंगाळ, खोळ, खंखेर, खंगाळ 895
घार स. दे. ' खँगाल' 896
* खंड स. सम (सं. खण्डू) खंड करना, गुज. खंड 897
जोड़ना
* खंडर स. दे. (सं. खण्ड संज्ञा प्रा. खंड दे. इआलें 3792; अथवा सं. खण्डघर, प्रा. खंडहर, दे. इआले 3794 ) खंड-खंड करना
898
खंद स. देश. खोदना 899
खँदा स. भव (सं. स्कन्द : दे. इआलें 13626 ) खदेडना; खुदवाना 900
खाँधिया स. देश. ( पदार्थ को ) बाहर गिराना या निकालना; खाली करना 901 खस अ. देश. खिसकना; गिरना 902 खकार अ. अनु. देश. ( *खाट्कार दे. इआलें 3259 ) गला साफ करना. तुल. गुज. खंखार
903
५३
*खग अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 108, हि. दे. श. ) गड़ना, चित्त में बैठना 908 खच अ. सम. (सं. खच् ; इआ 3766) जड़ा जाना; अंकित होना. गुज. खच 909 खचेर स. देश. दबाकर वश में करना 910 खजबजा स. देश. ( अ. व्यु. दे. प्र. 108, हि. दे. श. ) बेचैन करना; अस्तव्यस्त करना 911 खजुला स. दे. 'खुजला ' 913
खट (1) स. भव ( सं. खट्ट दे. इआलें 3779)
6
कठोर श्रम करना, कमाना. गुज. खाट पाना, कमाना
(2) अ. ( अ. व्यं. दे. पृ. 108, हि. दे. श; दे. पृ. 32 दे. श. को. ) 914 खटक (1) अ. अनु. भव (सं. खदखद् प्रा. खटखट्; दे. पृ. 186, हि. दे. श. )
खटखट' की आवाज़ होना, गुज, खटक ( 2 ) अ. अनु. देश. ( प्रा. खुडुक्कंत, दे. पृ. 186, हि. दे. श. ) चुभना; बुरा लगना. गुज. खटक 915
खटखटा स. दे. ' खडखडा 916
खटा अ. ना. भव (खट्टा विशे. सं. खट्ट, प्रा. खट्ट; दे. इआलें 3777 ) खट्टा होना; परख में ठीक उतरना; स. किसीको विशेष परिश्रम करने में प्रवृत्त करना 917
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खड़क अ. दे. 'खटक (1), 918
खळभळ 931 खड़खड़ा अ. अनु. भव (सं. खटखट ; तुल. खभर स. दे. 'खभड़' 932 प्रा. खडखड़ संज्ञा; दे. इआले 3771)
खमक अ. अनु. (दे. पृ. 14, मा. हि. को-२) "खड़-खड़' की आवाज़ होना; स. खड़खड़ 'खम खम' शब्द होना. गुज. खमक 933 आवाज़ पैदा करना. गुज. खखड 919
खमस अ. देश. किसी में मिल जाना; स. मिश्रित खड़बड़ा अ. अनु. (दे. पृ. 8, मा. हि. को.
करना 934 2) घबराना; अस्तव्यस्त हो जाना; स. क्रम उलट-पुलट देना 920
खमा अ. भव (सं. क्षम् ; प्रा. खाम् ; दे. इआले
3673) क्षमा याचना करना. ल. गुज. खम खतिया स. ना. वि. (खत संज्ञा अर.) खाते में
'सहना' 935 चढ़ाना; विभिन्न मदों को विभिन्न खातों में
खय अ. भव (सं. क्षि; प्रा. खय; दे. पृ. 272, चढ़ाना. गुज, खतव 821
पा. स. म.) क्षीण होना; खिसक कर नीचे खदखदा अ. अनु. (* खदखद; दे. इआले
आना 936 3803) किसी चीज़ का उबलते समय 'खदखद' शब्द करना. गुज. खदखद 922
खर स. भव (सं. क्षल ; प्रा. खल ; दे. इआले
3664) ऊनको गरम करके धोना; साफ करना खदबदा अ. दे. 'खदबदा' 923
937 खदेड स. देश. ( *खद्द; दे. इआले 3807)
खरक अ. देश. (दे. पृ. 34, दे. श. को.) बजना, भागना; पीछा करते हुए भागना. गुज. खदेड,
खड़कना 938 खदड, खद 92+ खदेर स. दे. 'खदेड ' 925
खरखरा अ. अनु. भव (सं. खरट; दे. पृ. 186, खन स. सम (सं. खन् ; प्रा. खण् ; दे. इआलें ।
__हि. दे. श.) 'खर-खर ध्वनि उत्पन्न होना. 3811) खोदना. गुज. खण'खरोंचना, खनना'
गुज. खरखर 939 928
खरच स. ना. वि. (खर्च संज्ञा फा.) खर्च करना; खनक अ. अनु. देश. ( दे. पृ. 33, दे. श. को.) काम में लाना. गुज. खर्च, खरच 940 'खनखन' करके बजना, खनखनाना. गुज. खरभर अ. अनु. ('खलबल' से; ह. भा.) खलखणक 927
बलाना; घबराना; स. क्षुब्ध करना. गुज, खळखनखना अ. दे. 'खनक' 928
भळ 941 *खनिया स. ना. भव (खान संज्ञा; सं. खानिः खरभरा अ. दे. 'खरभर' 942
प्रा. खाणी; दे. इआले 3873) खान खोदना; खरहर अ. ना. देश. खरहरे से बहारना; स. खाली करना. तुल. गुज. खाण संज्ञा 929
घोड़े के शरीर पर खरहरा करना 943 खप अ. भव (सं. क्षि: प्रा. खय; दे. इआले
खराद स. ना. वि. (खराद संज्ञा, फा. अर. 3666 तथा पृ. 272 प्रा. स. म.) नष्ट होना;
'खर्रात' से फा. 'खर्राद' दे. पृ. 17, मा. हि. बिकना. गुज. खप 930
को -२) चरख पर चढ़ाकर लकड़ी या धातु खभड़ स. अनु. मिलाना; खलबली मचाना. गुज. को चिकना, सुडौल करना 944
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
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खरिया स. ना. देश (खरिया संज्ञा ) झोली में खाँग अ. ना. भव (सं. खड्ग; संज्ञा प्रा. खग्ग; भरना; दे. 'खलिया' 945 2) पैर में खाँग चलने में असमर्थ
दे. पृ. 22, मा. हि. को निकलने के कारण ठीक से होना 961
खरीद स. ना. वि. (खरीद संज्ञा; फा. ) मोल लेना, दाम देकर लेना. गुज. खरीद 846 खरोंच स. दे. 'खुरच' 957 खरोच स. दे. 'खुरच' 948
खरौंट स. देश. खरोंचना 949 खर्च स. दे. 'खरच' 950
खल अ. भव (सं. स्खल् ; प्रा . खल; दे. इआले 13663) बुरा लगना; चुभना गुज. खळ 'रुकना' 951
खलखला अ. ना. अनु. भव ( खलखल संज्ञा, सं.
खलखलू ; प्रा. खलक्खल ; दे. इआले 3836) 'खलखल' ध्वनि होना; उबलना. गुज. खळखळ 952
खलबला अ. अनु. भव (सं. खलू; * खलभल, प्रा. खलभलिय विशे; दे. इआलें 3837) खौलना; बेचैन होना; दे. 'खरभर' गुज. खळबळ; तुल. गुज. खळभळ संज्ञा 953 खलभला अ. दे. 'खलबला' 954
*खला स. ना. देश. खाली करना; बाहर निकालना 955
खलिया ( 1 ) स. दे. 'खला'
( 2 ) स. ना. देश. (खाल संज्ञा प्रा. दे. इआ 3848) खाल उतारना 956
खस अ. देश. (प्रा. खस्, खसकसू दे. इआले 3856) सरकना, नीचे उतरना, गुज. खस " दूर हटना 957
खसोट स. देश. (* खस्स, दे. इआले नोचना; छीन लेना 960
1
खाँच स. देश. अंकित करना; चिह्न बनाना; खींचना गुज. खच 962
खाँड स. भव (सं. खण्ड; प्रा. खंड् दे. इआले 3795) कुचलना; टुकडे टुकडे करना. गुज. खांड 963
खाँद स. देश दबाना; खोदना 964
* खाँध स. देश. (प्रा. खद्ध, दे. पृ. 271, पा. स. म. ) खाना. तुल गुज. खाधु' 'खाया' 965
खाँप स. देश. खोंसना; जड़ना 966
खाँभ स. ना. भव (सं. स्कम्भ, प्रा. खंभ, दे. पृ. 27, मा. हि. को - 2 ) लिफाफे में बंद करना: दे. 'खाम' 967
खाम स. भव (सं. स्कम्भू; प्रा. खंभ संज्ञा; दे. इआलें 13639 ) आटा, गिली मिट्टी आदि से किसी पात्र का मुंह बंद करना. तुल, गुज, खांभ संज्ञा 'स्तंभ' 971
खसक अ. दे. 'खस' 958
खसिया स. ना. बि. ( खस्सी संज्ञा अर. ) खसी खिंडा स. दे. 'खिण्ड ' दानेदार वस्तु को छितकरना. तुल, गुज. खसी संज्ञा 959
राना या बिखेरना 972
खाँस अ. ना. भव (सं. कासू ; प्रा. कास संज्ञा; दे. इआले 3138) गले से बलगम आदि निकालने या संकेत के लिए फेफडे से झटके और आवाज के साथ हवा का बाहर निकना. गुज, खांस 968
खास. भव (सं. खाद् प्रा. खा दे. इआलें 3856 ) ठोस आहार को चबाकर निगलना; हड़पना. गुज. खा 969 खाग अ. दे. 'खाँग 970
3858) खिजला अ. दे. 'खीजना 973 खिड़क अ. दे. ' खिसक 974
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खिण्ड खिण्ड स. देश. ( * खिण्ड् ; दे. इआले 3882) खिसिल अ. दे. 'खिसल' 990 बिखरना 975
खीच स. देश. (* खींच ; दे, इआले 3881) खिप अ. भव (सं. क्षिप् ; प्रा. खिप्प् ; दे. अपनी ओर आकृष्ट करना; चित्रित करना
इआले 3687 ) खपना; तल्लीन होना; खो गुज. खिंच, खेच 991 जाना 976
खींड स. दे. 'खिण्ड' 992 *खिभिर स. देश. खदेड़ना 977
खीज अ. भव. (सं. क्षि; खीच ; खिज्ज् ; दे. खिया अ. भव (सं.क्षी; प्रा. खीय ; दे. इंआले इआले 3695 तथा 3884) झुंझलाना, क्रुद्ध
3695 ) घिस जाना, क्षीण होना. तुल. गुज. होना. गुज. खीज 993 ख वा 978
___ खीझ अ. दे. 'खीज' 994 खिरिद स. देश. सूप में अनाज रखकर उसे इस
खील स. ना. भव (खील संज्ञा; सं. खील, प्रा. प्रकार हिलाना कि खराब दाने नीचे गिर जाएँ; खुरचना 979
खील; दे. पृ. 33, मा. हि. को. - 2) पत्रों
__ में खील लगाकर दोना, पत्तल आदि बनाना खिल अ. देश. (* खिल् ; दे. इआले 3882)
995 कली का विकसित होना; प्रसन्न होना; सुन्दर .
- * खीस अ. देश, नष्ट होना; नष्ट करना 996 लगना. गुज. खील 980 खिलखिला अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. ७
- खुजला अ. ना. भव (खुजली संज्ञा; स. खर्जु, 109, हि. दे. श.) आवाज के साथ खुल
खजू प्रा. खज्ज : दे. इआले 3827) खुजली कर हँसना, कहकहा लगाना. तुल. गुज. खिल
मालूम होना; किसी काम के लिए बेचैन होना. खिल संज्ञा 981
गुज. खजवाळ; तुल. खुजली संज्ञा 997 खिव (1) स. भव (सं. क्षिप् : प्रा. खिव : खुजा अ. दे. 'खुजला' 998
दे. इआले 3683) फेंकना, भेजना खुद अ. देश. समाप्त होना; कम पड़ना. गज. (2) अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 109, खूट 599 हि. दे. श.) चमकना 982
खुटक स. देश. किसी वस्तु का ऊपरी अंश खिस अ. दे. 'खस' 983
दांत या नाखूनों से नोचना या तोड़ना 1000 खिसक अ. देश. ( *खिस: प्रा. खिस् ; दे. खुदबुदा स. देश (दे. पृ. 37. दे. श. को.)
इआले 3888) हटना, सरकना. गुज. खस, गर्म पानी में उबलने की क्रिया होना 1001 खिस 984
खुनसा अ. ना. वि. (खुनस संज्ञा; फा.) खिसल अ. देश. फिसलना 985
नाराज होकर कुछ कहना, बिगड़ना. तुल. *खिसा अ. दे. 'खिसिया' 986
गुज. खुन्नस सज्ञा 1002 खिसिआ अ. दे. 'खिसिया' 987
खुपखुपा स. देश. (* खुप्प्; दे. इआले खिसिया अ. ना. भव (खीस संज्ञा; * खिस्स: प्रा.
__13656) बेधना, कुपित हो जाना 1003 खिस् ; दे. इआले 3889) लज्जित होकर दाँत खुब अ. दे 'खुभ' 1004 निकाल देना या सिर झुका लेना; किसी पर खुभ (1) अ. भव ( सं. क्षुभ् ; प्रा. खुब् ; दे. बिगड़ना 988
इआले 3723)
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश (2) स. भव ( स. कषु ; प्रा. कस् ; दे. काँद अ. भव (सं. क्रन्द् ; प्रा. कंद्; इआलें
इआले 2972 ) परीक्षा करना. गुज. कस 772 3574) रोना-चिल्लाना 787 कसक अ. भव. (सं. कषु ; प्रा. कस् ; दे. इआले काँध (1) स. ना. भव (काँध संज्ञा; सं.
2972) पीडा होना; सालना. गुज. कसक 773 स्कन्ध् ; प्रा. खंधा, कधा; दे. इआले 13627) कसमसा अ. ना. अनु. ( कसमस संज्ञा: अ. व्य. उठाना, भार सहना. तुल. गुज. कांध संज्ञा दे. पृ. 106; हि. दे. श.) भीड के कारण
(2)स. ना. भव (सं. स्कन्ध संज्ञाः दे. आपस में रगड खाते हुए हिलना,बेचैन होना. इआले 13632) एकत्रित करना 788 तुल. गुज. कसमस संज्ञा 774
काँप अ. भव (सं. कम्प् ; प्रा. कप् ; दे. इआले कसरिया अ. ना. वि. (कसर संज्ञा; अर.) घाटा 2767) हिलाना; लरजना. गुज. कांप 789
सहना. तुल. गुज. कसर संज्ञा 775 काछ स. भव (काछ संज्ञा; सं. कक्ष्य, प्रा. कसा अ. ना. भव ( कषाय विशे; स. कषाय: कक्खा, कच्छा; दे. इआले 2592) लांग
प्रा. कसाय; दे. इआले 2974) कसैले स्वाद को पीछे ले जाकर खोसना सवारना. गुज.
से युक्त होना. तुल. गुज. कषाय विशे. 776 काछ, काछडो संज्ञा 790 कसिया अ. दे. 'कसा' 777
काट स. भव (सं. कृत; प्रा. कत्त् , कट्ट; दे. *कसीट स. देश. कसना 778
इआले 2854) टुकड़े करना; दाँत साना.
गुज. काट; तुल. गुज. काप 791 कसीस स. ना. वि. भव (कसीस संज्ञा; फा... कशिश; दे. पृ. 492, मा. हि. को.) खींचना; ।
काढ़ स. भव (सं. * कड्ढ् ; प्रा. कड्ढ् ; दे.
इआले 2660) निकालना; बेल-बूटे बनाना. चढ़ना 779
गुज. काढ, काड 792 कहर अ. दे. 'कराह' (वर्ण-विपर्यय) 780
कात स. भव (सं. कृत्: प्रा. कत्त् ; दे. इआले कह स. भव (सं. कथ् ; प्रा. कह ; दे. इआलें 2855) चरखे या तकली पर रुई या उनसे 2703) शब्द द्वारा भावप्रकाश करना; बताना
धागा निकालना. गुज. कांत 793 गुज. कहे 781
किकिया अ. अनु. ( दे. पृ. 528, मा. हि. को.) कहर अ. दे. 'कराह ' 782
रोना, चिल्लाना; की की शब्द करना. तुल. कहल अ. देश. ( दे. पृ. 493, मा. हि. को.) गुज. किकियारी संज्ञा 794
उमस के कारण बेचैन होना, अकुलाना 783 किचकिचा अ. अनु. (दे. पृ. 528, मा. हि. कांख अ. भव (सं. कांक्षु ; प्रा. काँख ; दे. को.) खिजलाकर दाँत पीसना, कोई काम
इआले 3002 ) मलत्याग में जोर लगाने या करने के समय सारी शक्ति लगाने के लिए भारी बोझ उठाने आदि से गले से खाँसने दाँत पर दाँत रखना. गुज. कचकचाव 795 की-सी आवाज़ निकलना; पीडित होना. तुल. किचड़ा अ. ना. देश. (कीचड़ संज्ञा) कीचड़ गुज. करांख 784
से युक्त होना; स. कीचड़ से युक्त करना 796 काँछ स. दे. 'काछ' 785
किटकिटा अ. अनु. भव (सं. किटकिट संज्ञा काँड़ स. भव (सं. काण्ड् ; प्रा. कंड् ; दे. इआलें प्रा. किडकिडिया; दे. पृ. 184, हि. दे. श.) 2686) कुचलना 786
दाँत का बजना; स. क्रोध से दाँत पीसना,
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५०
व्यर्थ की कहासुनी करना 797
की लिअ; दे. इआले 3204) कील ठोंकना; किड़क अ. अनु. (दे. पृ. 528, मा. हि. को.) वश में करना. गुज.खील 'सीना' 812 खिसक या हट जाना 798
कुंचल स. दे. 'कुचल' 813 किडकिड़ा अ. दे. 'किटकिटा' 799
कुदेर स. ना. भव (कुदेरा संज्ञा; सं. कुन्दकार; किर अ. देश. किसी चीज में से उसके छोटे दे. इआले 3297 ) खरादना, छीलना 814 छोटे कण धीरे धीरे गिरना 800
*कुभिला अ. देश. कुम्हलाना 815 किरकिरा अ. ना. अनु. (किरकिरा विशे.) किरकिरे कुकड़ अ. ना. भव (कुकड़ संज्ञा; कुक्कुट; प्रा.
खाद्य पदार्थ का मुँह में किरकिर शब्द करना; कुक्कुड; दे. इआले 3209) मुरगे की तरह किरकिरी पड़ने की-सी पीड़ा करना. तुल. गुज. दब या सिकुड़ जाना 816 करकरुं विशे. 801
*कुच अ. सम. (सं. कुच् ; दे. इआले 3221) किररा अ. अनु. (दे. पृ. 531, मा. हि. को.) सिकुड़ना; किसी वस्तु का कोचा जाना 817 क्रोध आदि से दाँत पीसना; 'किरकिर'
कुचकुचा स. अनु. बारबार हलके हाथों कोंचना शब्द करना. तुल. गुज. करड 'काटना' 802
818 किरिर अ. देश. किचकिचाना 803
कुचल स. दे. 'कुच' किसी भारी चीज़ से दबाना; किरोल स. देश, कुरेदनाः खुरचना 804
रौंदना. तुल. गुज. कचर 819 किलक अ. देश. 'किलकिला' 805
कुटना स. ना. भव (कुटनी, कुटना संज्ञा; सं किलकिला अ. ना. भव (किलकिल संज्ञा; सं. कुट्टणी; प्रा. कुट्टणी; दे. इआलें 3240)
किलकिल; प्रा. किलकल ; दे. इआलें 3160) कुटने या कुटनी का स्त्रियों को भुलावा देकर किलकिल ध्वनि करना 806
कुमार्ग पर ले जाना. तुल. गुज. कुटणी संज्ञा किलबिला अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 107; हि.
820 दे. श.) चंचल होना; बहुत से कीड़ों आदि कुड़क अ. देश. मुरगी का अंडे देना बंद करना; का छोटी-सी जगह में एक साथ हिलना- कुड़बुड़ाना. गुज. कूड 'कुढ़ना' 821 डोलना 807
कुड़कुड़ा अ. अनु. देश. (प्रा. कुरुकुरु; दे. पृ. किलस अ. भव (सं. क्लिश ; प्रा. किस्स् ; दे. 254, पा. स. म.) मन ही मन खीझकर
इआलें 3623) दर्द होना: बिलख-बिलख कर अस्पष्ट रूप से बड़बड़ाना; कुड़-कुड़ शब्द रोना गुज. कणस 808
करके पक्षियों आदि को खेतों से भगाना 822 कीक अ. अनु. 'की-की' आवाज़ के साथ
कुड़प स. देश. कँगनी के खेत को उस समय चीखना 809
जोतना जब फसल थोड़ी उग आये 823 कीड अ. ना. अर्धसम (सं. क्रीड्) क्रीड़ा करना.
कुड़बुड़ा अ. दे. 'कुड़कुड़ा' 824
कुड़मुड़ा अ. दे. कुड़कुड़ा' 825 तुल. गुज. क्रीडा 810
कुड़ेर स. देश. (दे. पृ. 26, दे. श. को.) कीन स. भव (सं. क्री; प्रा. कीण् , दे. इआले राब के बोरों को एकदूसरे पर इस प्रकार 3594) खरीदना 811
रखना कि उनकी जूसी बहकर निकल जाय कील स. ना. भव (कील संज्ञा; सं. किल, प्रा. 826
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हिन्दी- गुजराती धातुकोश
५१
कुढ़ अ. भव (सं. क्रुध् * क्रूध् ; दे. इआले कुरेद स. देश. ( *कुर ; दे. इआले 3319) ___3598) भीतर ही भीतर जलना 827 खुरचना, करोटना 844 कुतकुता अ. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 107, हि. कुरै स. ना. भव (कूरा संज्ञा; सं. कूट; प्रा. दे. श.) सर्दी से सिहरना 828
कूड; ह. भा.) ढेर लगाना; अ. ऊपर से कुतर स. देश. (* कोत्र; दे. इआले 3512) ढेर के रूप में किसी चीज़ का नीचे आकर
दाँतों से किसी चीज़ का कुछ अंश काट लेनाः ढेर के रूप में गिरना 845 किसी को मिलनेवाली रकम में से कुछ काट कुरोद स. दे. 'कुरेद' 846
लेना. गुज. कोतरः तुल. खोतर 829 कुरै अ. दे. 'कुरल' 847 कुदक अ. दे. 'कूद , 830
कुल अ. देश. ( *कुलू; दे. इआले 3334) दर्द कुन अ. देश. (कुन्द संज्ञा; दे. इआले 3295) करना, टीसना; स. चोट पहुँचाना 848 खरादना 831
कुलक अ. अनु. किलकना 849 कुनकुना अ. ना. देश. (कुनकुना विशे. अ. व्यु. कुलकुला अ. ना. अनु. देश. (कुलकुल संज्ञा; दे. पृ. 107 हि. दे. श.) कनमनाना 832
प्रा. कुलकुल; दे. पृ. 255, पा. स. म.) *कुन्न अ. वि. (कीनः फा. दे. पृ. 552, मा.
कुल-कुल शब्द होना; विकल होना; स. कुलको.) क्रोध या रोष करना 833
कुल शब्द उत्पन्न करना. गुज. कळकळ 850 कुप अ. दे. 'कोप' 834
कुलबुला अ. ना. अनु. देश. (कलबुल संज्ञा कुप्प अ. दे. 'कोप' :835
प्रा. कुरुकुरु; दे. पृ. 185, हि. दे. श.) कुम्हला अ. देश. (* कोम्ह ; प्रा. कुम्मण विशे.;
कीडा, मछलियों आदि का एक साथ हिलनादे. इआले 3524) मुरझाना; सूखने लगना.
डोलना; बेचैनी प्रकट करना 851 गुज, करमा 836
कुलाँच अ. ना. वि. ( कुलाच संज्ञा तु. दे. पृ. *कुर अ. ना. (कूरा संज्ञा ) वस्तुओं को एक
561, मा. हि. को.) चौकड़ी भरना; उछलनाजगह एकत्र करना 837
कूदना 852 कुरकुरा अ. दे. 'कुड़कुड़ा' 838
कुलेल अ. दे. 'कलोल' 853 कुरकुरा अ. अनु. कुरकुर करना; गतिशील होना कुसमिसा अ. दे. 'कसमसा' 854 839
कुहक अ. अनु. कोयल का कुहू कुहू शब्द करना; काल अ. अन पत्रिों का
पिहकना. तुल. गुज. कुहूकार 855 बोलना 840
कुहा अ. ना. भव (सं. क्रोध संज्ञा, प्रा. कोह) कुरला अ. देश. करुण स्वर में बोलना, आर्तनाद क्रुद्ध होना; स. किसीको अप्रसन्न करना 856 करना 841
कुहुक अ. दे. 'कुहक' 857 कुरिआर स. देश. कोई चीज निकालने के लिए फँच स. ना. देश. (कूँचा संज्ञा ) कुचलना 858 ___ कुछ काटना या खोदना 842
कूँज अ. दे. 'कूज' 859 कुरिया स. देश. कुरेदना, कुरैना 843
कूँथ स. अर्धसम (सं. कुन्थ् ; दे. इआले 3294)
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पीडा से 'उँह' आवाज निकालना; कबूतरों खोंस लेना; फुबती चुनना 874 का 'गुटुर गूं' करना 860
कोंछिया स. दे. 'कोंछ' 875 कूँद अ. दे. 'कुन' 861
कोंप अ. ना. भव ( कोंपल संज्ञा; सं. कुछमल; कूक अ. अनु. (कुक्क् ; प्रा. कुक्क् ; दे. इआले प्रा. कुप्पल; दें. इआले 3250) पौधौं, वृक्षों
3390) कोयल, मोर आदि का कू-कू शब्द आदि में नये अंकुर फूटना; कोंपल निकलना. करना; सूरीली ध्वनि निकालना; स. चाबी तुल. गुज. कुंपळ, कोंपळ 876 देना 862
कोक स. ना. वि. (कोक संज्ञाः फा. दे. पृ. कूज अ. सम. (सं. कूज् ) मधुर ध्वनि करना. ____586. मा. हि. को.) कच्ची सिलाई करना, गुज. कूज 863
लंगर डालना 877 कूट स. भव (सं. कुट्ट; प्रा. कुट्ट; दे. इआले कोच स. देश. (* कोच्च; दे. इआले 3489)
3241 ) मूसल-मुंगरी से किसी चीज़ को कोई नुकीली चीज़ चुभौना. गुज. कोच 878 लगातार पीटना; मारना-पीटना. गुज. कूट 864 कोड़ स, भव (सं. कुद्; दे. इआले 3495 कूत स. ना. देश (कूत संज्ञा) किसी वस्तु का तथा 3934) गोड़ना 879 मान, मूल्य या महत्त्व अटकल से आँकना कोप अ. ना. सम (सं. कोप संज्ञा) कोप
करना 880 कूथ अ. दे. 'फॅथ' 866
कोर (1) स. दे. 'कोड़' कूद अ. अर्धसम (सं. कूर्द ; दे. इआले 3412) (2) स. देश. (*कुर; दे. इआले 3530) किसी ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की ओर खुदाई करना; चित्रादि करना. गुज. कोर 881 एक बारगी तथा बिना किसी सहारे के उतरना; कोल स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 108, हि. स. फाँदना. गुज. कूद 867
दे. श.) नुकीली चीज़ से खोदना; अ. कूह स. देश. मारना-पीटना; बुरी तरह से हत्या विह्वल होना 882 करना 868
कोलिया अ. ना. देश. ( कोलिया संज्ञा ) तंग कॅकिया अ. दे. 'किकिया' 869
गली से जाना 883 केन स. दे. 'कीन' 870
कोस स. भव. (सं. कुश; दे. इआले 3612)
निंदा करना; गालियों के रूप में शाप देना 884 केरा स. भव (सं. क; दे. इआलें 3467)
*कोहा अ. ना. भव (कोह संज्ञा; सं. कुधूः सूप में अन्न रखकर उसे हिलाकर बड़े और
र प्रा. कुहण विशे; दे. इआले 3599) क्रोध छोटे दाने अलग करना 871
करना; नाराज होना 885 केवट स. ना. भव (केवट संज्ञा; सं. केवतः ।
त: कौंध अ. ना. देश. ( कौंध संज्ञा; अ. व्यु. दे. पृ. प्रा. केवटूट; दे. पृ. 579, मा. हि. को.)
____108, हि. दे. श.) बिजली का चमकना 886 नाव खेना; पार उतारना 872
कौआ अ. ना. भव (कौआ संज्ञा; सं. काक संज्ञा कोंच स. दे. 'कोच' 873
प्रा. काय; दे. इआलें 2993 ) कौओं की तरह कोंछ स. ना. देश. (काँछ संज्ञा) कोंछ भरकर काँव-काव करना; व्यर्थ शोर या हल्ला करना आँचल के छोरों को कमर में पीछे की ओर
887
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
कौर स. ना. देश. ( कौड़ा संज्ञा ) थोड़ा गरम करना या भूनना; सेंकना 888
क्रम अ. ना. सम ( क्रम संज्ञा, सं. क्रम्) क्रम लगाना, क्रम से चलना. तुल. गुज. क्रम संज्ञा
889
क्रम्य स. ना. सम. (क्रमण संज्ञा; सं. क्रम्) खखोर स. देश. ( दे. पृ. 5, मा. हि. को. 2 ) लाँघना; आक्रमण करना 890 किसी वस्तु को चारों ओर खोजते फिरना. गुज. खंखोळ 907
क्रीडा
*क्रीड अ. ना. सम ( क्रीडा सं. क्रीड् ) करना. तुल, गुज. क्रीडा संज्ञा 891 *कील अ. अर्धसम (सं. क्रीडू ) क्रीडा करना
892
क्षम स. सम. (सं. क्षम् ) क्षमा करना 893 खंगार स. दे. 'खंगाल 894
A
गाल स. भव ( खालू दे. इआले 3762 ) मजे - धुले बरतन को पूरी सफाई के लिए फिर से धोना, खाली करना. गुज, खंगाळ, खोळ, खंखेर, खंगाळ 895
घार स. दे. ' खँगाल' 896
*खंड स. सम (सं. खण्डू ) खंड करना, जोड़ना गुज, खंड 897
* खंडर स. दे. (सं. खण्ड संज्ञा: प्रा. खंड; दे. इआलें 3792; अथवा सं. खण्डघर; प्रा. खंडहर ; दे. इआले 3794 ) खंड-खंड करना
898
खंद स. देश. खोदना 899
खँदा स. भव (सं. स्कन्द दे. इआलें 13626 ) खदेडना; खुदवाना 900
खाँधिया स. देश. ( पदार्थ को ) बाहर गिराना या निकालना; खाली करना 901 खस अ. देश. खिसकना; गिरना 902 खकार अ. अनु. देश. ( *खाकार, दे. इआलें 3259 ) गला साफ करना. तुल. गुज. खंखार 903
खखार अ. अनु. खरखराहट के साथ गले में चिपका हुआ कफ निकलना : संकेत के रूप में खाँसना. गुज. खंखार, खोंखार, खूँखार 904 खखेट स. देश. भगाना; घायल करना 905 खोड स. दे. 'खखोर' 906
*खग अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 108, हि. श.) गड़ना, चित्त में बैठना 908
खच अ. सम. (सं. खच्; दे. इआले 3766 ) जड़ा जाना; अंकित होना. गुज. खच 909 खचेर स. देश दबाकर वश में करना 910 खजबजा स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 108, हि.
दे. श. ) बेचैन करना; अस्तव्यस्त करना 911 खजुला स. दे. 'खुजला 913
खट ( 1 ) स. भव ( सं. खट्ट दे. इआलें 3779)
कठोर श्रम करना, कमाना. गुज. खाट 'पाना, कमाना '
( 2 ) अ. ( अ. व्यु. दे. पृ. श; दे. पृ. 32 दे. श. को. ) खटक ( 1 ) अ. अनु. भव ( सं. खदखद् ; प्रा. खटखट्; दे. पृ. 186, हि. दे. श. ) खटखट' की आवाज़ होना, गुज. खटक ( 2 ) अ. अनु. देश. ( प्रा. खुडुक्कंत; दे. पृ. 186, हि. दे. श. ) चुभना; बुरा लगना. गुज. खटक 915
खटखटा स. दे. 'खडखडा 916
खटा अ. ना. भव (खट्टा विशे. सं. खट्ट, प्रा. खट्ट; दे. इआले 3777 ) खट्टा होना; परख में ठीक उतरना; स. किसीको विशेष परिश्रम करने में प्रवृत्त करना 917
"
108, हि. दे.
914
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खड़क अ. दे. 'खटक (1) 918
खळभळ 931 खड़खड़ा अ. अनु. भव (सं. खटखट ; तुल. खभर स. दे. 'खभड़' 932 प्रा. खडखड़ संज्ञा; दे. इआलें 3771)
1) खमक अ. अनु. (दे. पृ. 14, मा. हि. को - २) 'खड़-खड़' की आवाज़ होना; स. खड़खड़ खम खम' शब्द होना. गज. खमक 933 आवाज पैदा करना. गुज. खखड 919
खमस अ. देश. किसी में मिल जाना; स. मिश्रित खड़बड़ा अ. अनु. ( दे. पृ. 8, मा. हि. को.
करना 934 2) घबराना; अस्तव्यस्त हो जाना; स. क्रम उलट-पुलट देना 920
खमा अ. भव (सं. क्षम् ; प्रा. खाम् ; दे. इआले
3673) क्षमा याचना करना. तुल, गुज. खम खतिया स. ना. वि. (खत संज्ञा अर.) खाते में
'सहना' 935 चढ़ाना; विभिन्न मदों को विभिन्न खातों में चढ़ाना. गुज. खतव 821
खय अ. भव (सं. क्षि; प्रा. खय; दे. पृ. 272,
पा. स. म.) क्षीण होनाः खिसक कर नीचे खदखदा अ. अनु. (* खदखद; दे. इआले
आना 936 3803) किसी चीज़ का उबलते समय 'खद
खर स. भव (सं. क्षल ; प्रा. खल् ; दे. इआले खद' शब्द करना. गुज, खदखद 922
___3664) ऊनको गरम करके धोना; साफ करना खदबदा अ. दे. 'खदबदा' 923
937 खदेड स. देश. ( *खद्द; दे. इआले 3807)
। खरक अ. देश. (दे. पृ. 34, दे. श. को.) बजना, भागना; पीछा करते हुए भागना. गुज. खदेड,
खड़कना 938 खदड, खद 921 खदेर स. दे. 'खदेड ' 925
खरखरा अ. अनु. भव (सं. खरट; दे. पृ. 186,
हि. दे. श.) 'खर-खर ध्वनि उत्पन्न होना. खन स. सम (सं. खन् ; प्रा. खण् ; दे. इआलें।
गुज. खरखर 939 3811)खोदना. गुज.खण'खरोंचना. खा 928
खरच स. ना. वि. (खर्च संज्ञा फा.) खर्च करना: खनक अ. अनु. देश. ( दे. पृ. 33, दे. श. को.) काम में लाना. गुज. खर्च, खरच 940 'खनखन' करके बजना, खनखनाना. गुज. खरभर अ. अनु. ('खलबल' से; ह. भा.) खलखणक 927
बलाना; घबराना; स. क्षुब्ध करना.गुज, खळखनखना अ. दे. 'खनक' 928
भळ 941 *खनिया स. ना. भव (खान संज्ञा; सं. खानिः खरभरा अ. दे. 'खरभर' 942
प्रा. खाणी; दे. इआले 3873) खान खोदना; खरहर अ. ना. देश. खरहरे से बहारना; स. खाली करना. तुल. गुज. खाण संज्ञा 929
घोड़े के शरीर पर खरहरा करना 943 खप अ. भव (सं. क्षि; प्रा. खय; दे. इआले
खराद स. ना. वि. (खराद संज्ञा, फा. अर. ____3666 तथा पृ. 272 प्रा. स. म.) नष्ट होना; खात' से फा. 'खर्राद' दे. पृ. 17,मा. हि. बिकना. गुज. खप 930
को -२) चरख पर चढ़ाकर लकड़ी या धातु खभड़ स. अनु. मिलाना; खलबली मचाना. गुज. को चिकना, सुडौल करना 944
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश खरिया स. ना. देश. (खरिया संज्ञा) झोली में खाँग अ. ना. भव (सं. खग; संज्ञा प्रा. खग्ग; भरना; दे. 'खलिया' 945
दे. पृ. 22, मा. हि. को - 2) पैर में खाँग खरीद स. ना. वि. (खरीद संज्ञाः फा.) मोल निकलने के कारण ठीक से चलने में असमर्थ
लेना, दाम देकर लेना. गुज. खरीद 846 होना 961 खरोंच स. दे. 'खुरच' 957
खाँच स. देश. अंकित करना; चिह्न बनाना; खरोच स. दे. 'खुरच' 948
खीं चना. गुज. खच 962 खरौंट स. देश. खरोंचना 949
खाँड स. भव (सं. खण्ड् ; प्रा. खंड् दे. इआले खर्च स. दे. 'खरच' 950
3795) कुचलना; टुकडे टुकडे करना. गुज.
खांड 963 खल अ. भव (सं. स्खल ; प्रा. खल ; दे. इआले
वल ; द. इआल खाँद स. देश. दबाना; खोदना 964 _13663) बुरा लगना; चुभना. गुज. खळ । 'रुकना' 951
* खाँध स. देश. (प्रा. खद्ध, दे. पृ. 271, पा.
स. म.) खाना. तुल. गुज. खाधु 'खाया' खलखला अ. ना. अनु. भव (खलखल संज्ञा, सं. 965
खलखल्लू ; प्रा. खलक्खल ; दे. इआले. 3836) 'खलखल' ध्वनि होना; उबलना. गुज. खळ
खाँप स. देश. खोंसना; जड़ना 966 खळ 952
खाँभ स. ना. भव (सं. स्कम्भ, प्रा. खंभ, दे. खलबला अ. अनु. भव (सं. खल्लू ; * खलभल. पृ. 27, मा. हि. को -2) लिफाफे में बंद
प्रा. खलभलिय विशे; दे. इआले. 3837) करना; दे. 'खाम' 967 खौलना; बेचैन होना; दे. 'खरभर' गुज. खळ- खाँस अ. ना. भव (सं. कास् ; प्रा. कास संज्ञा; बळ; तुल. गुज. खळभळ संज्ञा 953 दे. इआले 3138) गले से बलगम आदि खलभला अ. दे. 'खलबला' 954
निकालने या संकेत के लिए फेफडे से झटके *खला स. ना. देश. खाली करना; बाहर निका
और आवाज़ के साथ हवा का बाहर निकलना 955
लना. गुज. खांस 968 खलिया (1) स. दे. 'खला'
खा स. भव (सं. खाद्: प्रा. खा; दे. इआलें (2) स. ना. देश. (खाल संज्ञा; प्रा. दे.
3856 ) ठोस आहार को चबाकर निगलना; इआले 3848) खाल उतारना 956
हड़पना. गुज. खा 969 | खस अ. देश. (प्रा. खस् , खसकस् ; दे. इआले
. खाग अ. दे. 'खाँग' 970
खाम स. भव (सं. स्कम्भू : प्रा. खंभ संज्ञाः 3856) सरकना, नीचे उतरना. गुज. खस
दे. इआलें 13639) आटा, गिली मिट्टी 'दूर हटना' 957
आदि से किसी पात्र का मुंह बंद करना. खसक अ. दे. 'खस' 958
तुल. गुज. खांभ संज्ञा स्तंभ' 971 खसिया स. ना. वि. (खस्सी संज्ञा; अर.) खसी खिंडा स. दे. 'खिण्ड '. दानेदार वस्तु को छितकरना. तुल, गुज. खसी संज्ञा 959
राना या बिखेरना 972 खसोट स. देश. (* खस्स, दे. इआले 3858) खिजला अ. दे. 'खीजना' 973 नोचना; छीन लेना 960
खिड़क अ. दे. 'खिसक' 974
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५६
खण्ड स. देश. (* खिण्ड् ; दे. इआलें 3882 ) खिसिल अ. दे. 'खिसल' 990
बिखरना 975
खिप अ. भव ( सं. क्षिप्; प्रा. खिप्प्; दे. इआ 3687 खपनाः तल्लीन होना; खो जाना 976
*खिभिर स. देश. खदेड़ना 977
खिया अ. भव ( सं . क्षी प्रा. खीय् ; दे. इआले 3695 ) घिस जाना, क्षीण होना. तुल. गुज. खवा 978
खिरिद स. देश. सूप में अनाज रखकर उसे इस प्रकार हिलाना कि खराब दाने नीचे गिर जाएँ,
खुरचना 979
;
खिल अ. देश. (* खिलू दे. इआले 3882 ) कली का विकसित होना; प्रसन्न होना; सुन्दर लगना. गुज. खील 980 खिलखिला अ. अनु. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 109, हि. दे. श. ) आवाज के साथ खुलकर हँसना, कहकहा लगाना तुल, गुज. खिलखिल संज्ञा 981
खिव (1) स. भव ( सं. क्षिप् दे. इआलें 3683 ) फेंकना, ( 2 ) अ. देश. ( अ. व्यु. दे. हि. दे. श. ) चमकना 982 खिस अ. दे. 'खस 983
प्रा. खिव् ; भेजना
पृ. 109,
खिसक अ. देश. (* खिस प्रा. खिस् ; दे इआ 3888 ) हटना, सरकना, गुज. खस, खिस 984
खिसल अ. देश. फिसलना 985 *खिसा अ. दे. 'खिसिया 986 खिसिआ अ. दे. 'खिसिया' 987 खिसिया अ. ना. भव (खीस संज्ञा * खिस्स प्रा. खिस् ; दे. इआले 3889 ) लज्जित होकर दाँत निकाल देना या सिर झुका लेना; किसी पर बिगड़ना 988
ख्रिण्ड
खींच स. देश. (* खींच दे, इआले 3881) अपनी ओर आकृष्ट करना; चित्रित करना गुज, खिंच, खेच 991
खींड स. दे. 'खिण्ड' 992
खीज अ. भव. (सं. क्षिः खीच्; खिज्ज् ; दे. इआ 3695 तथा 3884) झुंझलाना, क्रुद्ध होना. गुज. खीज 993
खीझ अ. दे. 'खीज' 994
खील स. ना. भव (खील संज्ञा; सं. खील; प्रा. खील; दे. पृ. 33, मा. हि. को. 2) पत्रों में खील लगाकर दोना पत्तल आदि बनाना
995
* खीस अ. देश नष्ट होना; नष्ट करना 996 खुजला अ. ना. भव (खुजली संज्ञा; सं. खर्जु,
खजू'; प्रा. खज्ज; दे. इआलें 3827 ) खुजली मालूम होना; किसी काम के लिए बेचैन होना. गुज. खजवाळ; तुल. खुजली संज्ञा 997 खुजा अ. दे. 'खुजला' 998
खुट अ. देश. समाप्त होना; कम पड़ना. गुज. खूट 999
खुटक स. देश. किसी वस्तु का ऊपरी अंश दांत या नाखूनों से नोचना या तोड़ना 1000 खुदबुदा स देश ( दे. पृ. 37, दे. श. को . )
गर्म पानी में उबलने की क्रिया होना 1001 खुनसा अ. ना. वि. ( खुनस संज्ञा फा. )
नाराज होकर कुछ कहना, बिगड़ना तुल. गुज. खुन्नस संज्ञा 1002
3
खुप खुपा स. देश (* खुप्प दे. इआले 13656 ) बेधना, कुपित हो जाना 1003 खुब अ. दे 'खुभ' 1004
खुभ ( 1 ) अ. भव (सं. क्षुभ् ; प्रा. खुब्भ् ; दे. इआ 3723)
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, 1246
हिन्दी-गुजराती धातुकोश घुड़क स. अनु. भव (सं. घुर् ; दे. इआले घुब अ. दे. 'घूम' 1257
1487 तथा प्रा. घुडुक्क्; दे. पृ. 304, पा. घूम अ. देश. (* घूर, प्रा. घुम्म् ; दे. इआले स. म.) धमकी के स्वर में डाँटना; डपटकर 4485) फिरना; लौटना. गुज. घूम 'चक्कर बोलना. गुज. घूरक, घरक 1243
खाना, फिरना' 1258 घुडुक स. दे. 'घुड़क' 124
घूर अ. देश. (* घूर, प्रा. घुल्लू ; दे. इआले घुन अ. ना. भव (* घुन संज्ञा; सं घुण; प्रा. 4488) आँखें गडाकर देखना; काम या क्रोधघुण; दे. इआले 4482) घुन के द्वारा भरी होष्ट से देखना; - लपेटना. गुज. घूर लकड़ी आदि का खाया जाना; चिन्ता आदि 1259 के कारण मनुष्य का शरीर क्षीण होना. तुल. घूस अ. दे. 'घुस' 1260 गुज. घुण, घण 1245
घेप स. देश. (सं. * ग्रहप्रा. घट्ट; दे. इआले घुमँड़ अ. दे. 'घुमड़' 1246
___4509) उँगलियों से लेना, स्त्री के साथ सहघुमड़ अ. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 113, हि. वास करना 1261
दे. श.) बादलों का इधर-उधर से आकर । म. देश. (* घेर: दे. इआले 4474) जमा होना, जाना. गुज. घूमड 'झुलाना; आवेष्टित करना; Vधना. गुज. घेर 1262 घुमाना' 1247
घोंट स. देश. (* घोट्ट; दे. इआलें 4417) घुमर अ. दे. 'घूम' 1248
घुटना; गले को इस तरह दबाना कि सांस घुर अ. भव (सं. घुर्; तुल. प्रा. घोर, दे. रुक जाए. गुज. धूंट 1263
इआले 4487) आवाज़ होना, घुर-घुर शब्द घोंप स. अनु. ( दे. पृ. 177, मा. हि. को-2) होना; स. घुर-घुर शब्द करना. गुज. घोर 1249 भोंकना, चलती सिलाई करना. तुल. गुज. घुरक अ. दे. 'धोर' तथा 'इआले 4496' 1250 घोंच 'भोंकना' 1264 घुरघुरा अ. अनु. (* गुरगुर; प्रा. घुरघुर् ; दे. घोख स. अर्धसम (सं. घुष ) याद रखने के इआले 4486) गले से 'घुर-घुर' आवाज़ लिए बार-बार रटना. गुज. गोख 1266 निकालना 1251
घोट स. देश. (* घोट; दे. इआले 4417) *घुरम अ. दे. 'घूम' 1252
रगड़कर बारीक करना; हल धरना 1266 घुरा (1) अ. दे. 'घर'
*घोर अ. ना. सम (सं. घोर विशे.) जोर का चारों ओर से आकर छा छाना, भर जाना; शब्द करना; गरजना; स. घोलना. गुज. घोर स. बजाना
अ. 1267 (2) स. दे. 'घुला' 1253
घोल स. देश. (प्रा. घोल ; दे. इआलें 4526) घुर्रा अ. दे. 'गुर्रा' 1254
किसी चीज़ को पानी आदि में इस तरह घुस अ. देश. (* घुस्स; दे. इआले 4492) मिलाना कि वह उसमें घुल जाय. गुज. घोळ
भीतर जाना; बलपूर्वक प्रवेश करना. गुज. 1268 घूस 1255
*घोस स. ना. अर्धसम (सं. घोष संज्ञा) चूंट स. दे. 'घोट' घोटना. गुज. घूट 1256 घोषणा करना 1260
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भ्यूट ध्यूँ ट स. दे. 'घूट 1270
चकोट स. मा. देश. (चिकोटी- संज्ञा ) चिकोटी चंग स. ना. वि. (चंग संज्ञा; फा.) कसना, काटनाः चुटकी से मांस नोचना 1287 ___ खींचना; परेशान करना 1271
चख स. देश. (प्रा. चक्खू, दे. पृ. 316, प्रा. चंचना अ. देश. चुनचुनाना 1272
स. म. ) स्वाद लेना. गुज. चाख 1888 'धैंचोर 'स. देश. दाँतों से दबाकर चसना, चिचो- चचोड़ स. दे. 'चंचोर' 1289 . ड़ना ! 273
चटक अ. अनु. ( दे. पृ. 196, मा. हि. कोचॅदरा अ. देश. (दे. पृ. 54, दे. श. को.) 2) 'चट' शब्द करते हुए टूटना, हलकी
जान-बूझकर अनजान की तरह पूछना: पागल आवाज के साथ टूटना. गुज. चटक; तुल. होना 1274
गुज. चटको संज्ञा 1290 चक अ. देश. (* चक : दे. इआले 4537) चटख अ. दे. चटक' 1291 ___ चकित होना; भयभीत होना 1275
चटचटा अ. अनु. 'चट-चट' की आवाज के चकचका अ. देश. (दे. पृ. 188: मा. हि. साद टूटना; चिपकना 1292
को -- 2) रसना: गीला होना: अ. चकित चटपटा अ. ना. देश. ( चटपटी संज्ञा) जल्दी होना 126
मचानाः स. 'किसी को जल्दी करने में प्रवृत्त 'चकचा अ. देश. (दे. पृ. 189, मा. हि. को- करना. तुल. गुज. चटपट अव्य. 1293
2) अधिक प्रकाश में नेत्रों का चौंधियाना चढ अ. देश. ( . चढ : प्रा. चड़ दे. इआले 1277
:4578 ) नीचे से ऊपर को मानाः उन्नति * *चकचूर स. देश. बहुत महीन पीसना; चकनाचूर करना. गुज. चढ़, चड 1204 करना 1278
चतर स. देश. छितराना; अ. छितराया जाना चकचौंध अ. ना. अनु. चकाचौंध होनाः स. 1295 चकाचौंध उत्पन्न करना 1279
चमक (1) अ. देश. चटकना चकचौह अ. देश. (दे. प्र. 5.दे. श. को.) (2) अ. देश. चिटकनाः नाराज़ होना
चाह से देखना: आशा लगाए देखना 1280 1296 चकपका अ. अनु. भौंचक होना 1281 चनख अ. देश. ( देश. पृ. 56, दे. श. को.-2) चकरा अ. ना. अर्धसम (सं. चक संज्ञा ) सिर चिढ़ना; चनकना 1297
का घूमनाः चकित होना. गुज. चकरा 1262 चप अ. ना. देश. (चाप संज्ञा ) नीचे की ओर चकला स. ना. देश. (चकल संज्ञा ) पौधे को धंसना; दबना. गुज. चंपा 1298
दूसरे स्थान पर लगाने के लिए मिट्टी समेत चपक अ. देश. सटना; लिपटना. गुज, चपक, उखाड़ना, चकल उठाना; चौडा करना 1283 चबक 1299 चकवा अ. देश. ( दे. पृ. 5.5, दे. श. को.) चपट अ. दे. 'चिपट' 1200 चकपकाना, हैरान होना 1284
चपत स. दे. 'चौपत' 1301 "यका अ. दे. 'चकवा' 1285
चपतिया स. ना. देश. (चपत संज्ञा ) किसीको *चकास अ. देश. चमकना 1286
चपत लगाना 1302
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
६७
चपर अ. देश. आपस में खूब अच्छी तरह मिलना लेप करना; भाँपना. गुज. चर्य 1318. 1304
चरचरा अ. अनु. देश. (दे. पृ. 57, दे. श. चपरा अ ना. देश. बनाना, झुठलाना 1304 को. 2) 'चर-चर' शब्द करके टूटना, जलना चपला अ. ना. सम (सं. चपल विशे.) चप- तुल. गुज. चरचर संज्ञा; चचळ 'जलन होना' लता दिखाना; धीरे-धीरे आगे बढ़नाः स.
1319 किसीको चपल बनामा. तुल. गुज. चपल विशे. चरज अ. देश. धोखा देगा, बहकाना अनुमान 1305
करना 1320 चपेट स. ना. देश (चपेट संज्ञा ) आक्रमण करना; चरपरा अ. ना. देश. ( चरपरा विशे.) चर्राना; दबोचना 1306
घाव में खुश्की के कारण तनाव से पीड़ा होना, चपेर स. दे. 'चपेट' 1307
चटपटी वस्तु खाने पर मुँह में हलकी जलन चबक अ. अनु. देश. (दे. पृ. 57, दे. श. को.)
होना. तुल. गुज. चटपटी संज्ञा 1321 .टीसना, दर्द करना 1303
चरमरा अ. ना. अनु. ( चरमर संज्ञा) 'चरमर' चबा स. भव (सं. चर्व : तुल. प्रा. चव्विय विशे.
शब्द होना; 'चरमर' शब्द उत्पन्न करना
1322 दे. इआले 4711) दांतों से कुचलना, चूर करना. गुज. चाच 1309
चरी अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 114, चभोर स. ना. देश. (चभकी संज्ञा ) तरल पदार्थ हि. दे. श.-2 ) खाल में खुश्की के कारण में कोई चीज़ अच्छी तरह इबाना: गरदन से हल्का दर्द होनाः चरचर करके टूटना 1323 पकड़कर किसीको गहरे पानी में गोता देना. चल अ. भव (सं. चल् : प्रा. चल; दे. इआलें तुल. गुज. झबोळ 1310
4716) एक से दूसरी जगह जाना; चलन चमक अ. दे. 'चमक' 1311
होना. गुज. चळ; '-से दूर हटना ' तुल. चाल
1324 चमक अ. दे. ( * चम्मक्क; तुल. सं. चमत्कार
सज्ञा; दे. इआले 4676) जगमगाना. प्रसिद चलक अ. दे. 'चिलक' 1325 होना; चौंकना. गुज, चमक 1312
चव अ. देश. चूना; चुआना 1326 चमचमा अ.. देश. ( • चमक, तल. सं. चमत्कार चस (1) अ. देश. मरना; ठगा जाना
संज्ञाः दे. इआले 4676) चमकनाः स. चम- (2) अ. ना. देश. (चाशनी सज्ञाः दे. . काना. तुल. गुज. चमचम 'जलन' 1313 पृ. 223, मा. हि. को -2) दो चीज़ों का चमट स. दे. 'चिमट' 1314
आपस में चिपक जाना: कपड़े आदि का
खिंचने पर मसक जाना. गुज.' चस; चसक चब स. समा (सं. चि) चयन करना 1314
1327 का भव (सं. चर : प्रा. चर; दे. इआले चहक (1) अ. अनु. देश. (* चहक्क; दे. 15 4686) पशुओं का मैदान या खेत में घास इआलें 4731) जलना आदि खाना. गुज. चर 316
(2) अ. वि. ( चहचह संज्ञाः फा. दे. *चरक अ. दे. 'चिटक' 1317
पृ. 190, हि. दे. श.) चिडियों का चहचहाना चरच स. अर्धसम (सं. चर्य ) चंदन आदि का गुज. चहेक 13.8
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ચૂંટ
चहचहा अ. दे. 'चहक ( 2 ) ' 1329 'चहन स. दे. 'चहल ' 1330
चहल स. देश. (दे. पृ. २ ) पैरों से कुचलना;
1331
-
224, मा. हि. कोमस्ती से सैर करना
चहुक अ. दे. 'चिहुक ' 1332
चहूँट अ. दे. 'चिमट' 1333 चहेट स. दे. ' चपेट' 1334 चहोड़ स. देश. चारों ओर से अच्छी तरह दबाते हुए पीटना; पौधों को एक जगह से उखाड़कर दूसरी जगह लगाना. गुज. चोड 1335 चहोर स. दे. ''चहोड़ ' 1336 चाँक स. ना. देश. ( चाँक संज्ञा ) खलियान में अनाज की राशि के चारों ओर मिट्टी, राख आदि के निशान लगाना; चाकना; गोंठना. गुज. चोक 1337
चाँछ स. भव (सं. तक्षू ; प्रा. तक्ख, दे. इआलें 5620 ) पत्थर टाँकना गुज. ताछ 1338 चाँड़ स. ना. भव (चाँड विशे. सं. चण्ड; प्रा. चंड; दे. इआलें 4584 ) रौंदना; खोद डालना. तुल. गुज. चांदरं 'खिलंदरा' 1339 चांप स. देश. (* चम्प प्रा. चंप्; दे. इआलें 4674) दबाना, दाब पहुँचाना. गुज. चांप 1340
चाक स. ना. भव ( संज्ञा; सं. चक्र; प्रा. चक्क; दे. इआलें 4538 ) रेखाएँ खींचकर किसी चीज़ की हद बनाना; पहचान के लिए चिह्न बनाना तुल. गुज. चाक संज्ञा 1341
चाख स. देश. (* चक्षू प्रा. चक्खू दे. इआलें 4557 ) चखना, स्वाद लेना; दे. 'चख ' गुज. चाख 1342
चाट स. देश. ( *चट्ट संज्ञा प्रा. चट्ट; दे. इआलें 4573 ) चटनी जैसी चीजको जीभ से उठा
चहचहा
कर या पोंछकर खाना; जीभ फेरना. गुज. चाट 1343
चाड़ स. 'चाँड़' 1344
चाढ़ स. दे. 'चढ़' 1345 चाप स. दे. 'चाँप 1346
चाब स. दे. ''चबा ' 1347
चाभ स. दे. 'चाब ' 1348
चाल स. भव (सं. चलू; प्रा. चालू दे. इआलें 4772 ) छानना; अ. दुलहिन का पहली बार ससुराल जाना; दे. 'चल'. गुल. चाळ 'छानना '
1349
*
चास अ. ना. देश. ( चासा संज्ञा; चर्ष् ; दे. इआलें 4712 ) जोतना गुज. चास 1350 चाह स. देश. ( * चाह; प्रा. चाह् ; दे. इआलें 4775 ) इच्छा करना; प्रेम करना. गुज. चाह
1351
चिंगुड़ अ. देश. सुखने आदि के कारण ऊपरी तल में झुर्रियाँ पड़ना; सिकुड़ना; एक स्थ में रहने से अंगविशेष की नसों का न फैलना
1552
चिंगुर अ. 'चिगुड़ ' 1353
,
चिंघाड़ अ. देश. (*चिंघाट; दे. इआले 4787 ) चीखना; हाथी का जोर से बोलना 1354 चिंघा अ. दे. 'चिंघाड़ 1355 चिकट अ. ना. देश. ( चिकट विशे; चिक्क; दे. इआले 4780) मैल से ढककर चिपचिपा हो जाना. तुल. गुज. चिकट, चीकणुं विशे.
1356
चिकना स. ना. भव ( चिकना विशे; सं. चिक्कण प्रा. चिक्कण; दे. इआलें 4782 ) चिकना करना; अ. मोटा होना. तुल. गुज. चीकणु विशे. 1357
चिकर अ. दे. 'चिकार 1358 चिकार अ. ना. भव (सं. चीत्कार संज्ञा; प्रा.
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
चिक्कार; दे. इआलें 4839 ) चिंघाड़ना, चित्कार करना. तुल. गुज. चिकारी संज्ञा 1359 चिक्कर अ. दे. 'चिकार ' 1360 चिखुर स. देश. (दे. प्र. 60, दे. श. को. ) जोतने के बाद या निराकर घास निकालना 1361
चिचाव अ. दे. 'चिचया 1362 चिचया अ. ना. अनु. देश. (* चिच्च प्रा. चिच्चि संज्ञा दे. इआले 4789 ) चीखना, चिल्लाना. गुज. चीच 1363
चिचोड स. दे. 'चचोड 1364
190,
चिटक ( 1 ) अ. अनु. भव ( दे. प्र. हि. दे. श. ) सुखका फटना; चिढ़ना ( 2 ) अ. दे. 'चटक' 1365 चिटचिटा अ. दे. 'चिटक' 1366 चिड़चिड़ा अ. अनु. चिटकना, जलने में चिड़चिड़ आवाज़ होना: चिढ़ना तुल. गुज. चीडिय विशे. 1367
चिढ़ अ. देश. (* चिढ़ दे. इआले 4794 ) नाराज होना; बुरा मानना, गुज. चिडा 1368 चिढ़क अ. दे. 'चिढ़' 1369
चितर स. ना. दे. 'चितार' 1370 चितव स. दे. 'चीत' 1371
चितार ( 1 ) स. ना. भव ( सं. चित्रकार संज्ञा; प्रा. चित्तआर; दे. इआलें 4807) चित्र
बनाना
( 2 ) स. दे. ' चेत' 1372 चितौ अ. दे. 'चीत ' 1373
चित्र स. ना. सम (सं. चित्र संज्ञा ) चित्र आदि बनाना; चित्र में रंग भरना. तुल, गुज. चित्र संज्ञा 1374
चिथाड़ स. ना. देश. फाड़ना; जलील करना. तुल. गुज. चीथडु संज्ञा 1375
६९
*चिन स. भव ( सं. चि; प्रा. चिणू; दे. इआलें 4814 ) दीवार उठाना, गुज. चण 1376 चिन्हार स. ना. सम (सं. चह्न संज्ञा ) चिह्नित करना. तुल. गुज. चीं धवु 1377 चिपक अ. दे. 'चपक' 1378
चिपचिपा अ. ना. अनु. ( चिपचिप संज्ञा ) लसीली वस्तु का चिपचिप शब्द करना, चिपक जाना
1379
चिपट अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 115, हि. दे. श. ) चिपकना, सटना 1380
1
चिबला स. दे. 'चबा ' 1381
चिमट अ. देश. चिम्ब दे. इआलें 4822 ) चिपकना, लिचटना. चिंबोळ 1382
*
चियार अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 115, हि. दे. श. ) चकित रह जाना 1383
चिरक अ. देश. थोड़ा-सा पाखाना करना. गुज. चरक 1384
चिरच अ. देश. चिड़चिड़ाना 1385 चिलक अ. देश. * चिल्ल; प्रा. चिल्लअ संज्ञा; दे. इआलें 4827 ) चमकाना; चीखना, गुज. चळक 1386
चिलचिला अ. दे. 'चिलक ' 1387 चिलबिला अ. देश. ( दे. पु. 61, दे. श. को. ) धूप का लगना, तेज धूप का आभास होना
1388
चिल्ला अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 115, हि. दे. श. ) जोर से बोलना; चीखना 1389 चिहुँक अ. देश. चौंकना 1390
चिहुँट स. देश, चिकोटी काटना; चिपटना. तुल. गुज. चीमटी, चूंटी संज्ञा 1391
चींच स. दे. 'सींच' 1392
चीक अ. ना. देश. पीड़ा के कारण चिल्लाना 1393
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चीख
चीख (1) स. भव (* चक्षु ; प्रा. चव : चुग स. देश. ( * चुम् ; दे. इआले 4852)
दे. इआले 4557) स्वाद जानने के लिए चिड़यों का चोंच से चुनचुनकर दाना खाना. किसी चीज को थोड़ी मात्रा में खाना. गुज.
गुज. चुग 1408 चाख
चुचक अ. देश. इस प्रकार सुखना कि ऊपरी (2) अ. दे. 'चीक' 1394
तल पर झुरियाँ पड़ जाएँ; सुखकर सिकुड़ना चीत (1) अ. भव (सं. चित् ; प्रा. चित्त 1403 संज्ञा; दे. इआले 4799) सोचना. गुज. चीत
चुचकार अ. अनु. 'चुच 'कर प्यार करना; (2) स. भव (सं. चित्र संज्ञा; प्रा. चित् ;
चुमकारना. गुज. बुचकार 1410 दे. इआले 4810) चित्र बनाना. गुज. चीतर
चुचा अ. देश. चूना, रिसना 1411 1395
चुचुआ अ. दे. 'चुकचुका' 1412 चीथ स. देश. (* चित्थ; दे. इआले 4802) चुचुक अ. दे. 'चुचक ' 1413
फाड़ना, क्षत-विक्षत कर देना. तुल, गुज. चुटक स. देश. चाबुक मारना; चुटकी से तोड़ना चीथडु, चीथरं संज्ञा 1396
1414 चीन स. दे. 'चीन्ह ' 1397
चुटा अ. ना. देश. (चोट संज्ञा; * चोट ; दे. चीन्ह स. ना. भव (सं. चिहन संज्ञा प्राविधिक इआले 4857 ) चोट खाना, घायल होना: विशे: दे. इआले 4836 ) पहचानना. गज. स. चुटिया. तुल. गुज. चोट संज्ञा 1415 चीन 1398
चुट्ट स. दे. 'चुन' 1416 चीर स. ना. भव ( सं. चीर संज्ञाः दे. इआले चुन स. भव (सं. चि; प्रा. चिण् ; दे. इआले
4844) फाड़ना; राह निकालना. गज. चीर 4814) छोटी चीजों को एक-एक करके 1399
इकठ्ठा करना, पसंद करना, चुगना. गुज. चीस अ. देश. चीखना. तुल. गुज. चीस संज्ञा
चुण, चण 1417 1400
चुनचुना अ. अनु. देश. (अ. ब्यु. दे. पृ. 115, चुंब स. सम (सं. चुम्ब् ) गुज. चुबन संज्ञा ।
हि. दे. श.) जलन के साथ खुजली पैदा 1401
__ होना; ठिनकना. गुज. चणचण, चचर 1418
चुनिया स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 116, हि. चुंभ स. दे. 'चुब' 1402
दे. श.) चिढ़ना 1419 चुअ अ. दे. 'चू' 1403
चुपड़ स. ना. देश. (* चुप्प; प्रा. चुप्प विशे. चुक अ. दे. 'चूक' 1404
दे. इआले 4865 ) तेल आदि चिकनी चीज चुकचुका अ. अनु. रिसकर बाहर आना; पसी- लगाना, चापलूसी की बातें करना. गुज. चोपड जना 1405
1420 चुकट अ. देख. (अ. यु. दे. पृ. 115, हि. चुपर स. दे. 'चुपड़' 1421
दे. श.) चिमटना; सूबकर चिपक जाना चुपा अ. ना. देश. (चुप विशे.) चुप हो जाना; 1406
न बोलना; स. चुप करना. तुला, गुज. चुप चुखा स. दे. 'चोख' 1407
विशे. 1422
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
चुबक स. देश. (* चुब्ब; दे. इआले 4866) (2) अ. दे. 'चहचह ' 1437 - फँसाना, चुभोना 1423
चुह स. देश, चूस 1438 चुबला स. दे. 'चबा' 1424
चुहट स. दे. 'चिहुँट' 1439 चुभ अ. देश. (चुभ् ; दे. इआले 4867)
चुहुँट स. दे. 'चिहुँट' 1440 फँसना, नुकीली चीज़ का भीतर घुसना 1425 चुभक अ. अनु. ( दे. पृ. 266, मा. हि. को- चुहुक स. अनु. बछड़े आदि का भैस, गाय आदि 2) बार-बार गोता खाना, डूबना-उतराना
का स्तन-पान करना; चूसना 1441 . 1426
चुहट स. दे. 'चुहँट' 1442 Fore चुभला स. दे. 'चुवला' 1427
चूँग स. देश. ( * चुग ; दे. इआले 4853) चुमकार स. अनु. बच्चों को प्यार करने, पशुओं धीरे धीरे खाना. तुल. गुज. चगळ 1443
को बुलाने के लिए मुँह से चूमने जैसी आवाज चॅट अभव (सं. चुण्टू ; प्रा. चुंट् ; दे. इआलें निकालना, पुचकारना 14.8
4857 ) चींटी की तरह चिपक जाना, नोचना; चुर अ. देश. पानी में पकना, सीझनाः गुप्त चुटकी से पकड़ना. गुज. चूंट 1444 मंत्रणा होना; अ. चुराया जाना. तुल. गुज. चूंठ स. अर्धसम ( सं. चुण्ठू ; दे. इआले 4857) चड़ 'पकना' 1429
दबाना, नोचना, तोड़ना 1445 चुरक अ. अनु. ( दे. पृ. 26), मा. हि. को - चू अ. भव (सं. च्युत् ; प्रा. चु; दे. इआले
2) चूर-चूर होना; फटना 1430 ___4948 ) टपकना; पके या सूखे फल का झड़ चुरग अ. अनु. ( दे. पृ. 266, मा. हि. को - पड़ना. गुज. चू 1446 .2) प्रसन्न होकर मुँह से शब्द निकालना 1431 चूक अ. देश. (* चुक्क; प्रा. चुक्क् ; दे. इआले चुरचुरा अ. अनु. ( दे. पृ. 266, मा. हि. को- 4848 ) भूल करना; विफल होना; समाप्त 4) चुरचुर शब्द उत्पन्न होना 1432
होना. गुज. चूक 1447 चुरा स. दे. 'चोर' 1433
चूम स. भव (सं. चुम्बू ; प्रा. चुंब् ; दे. इआले चुलचुला अ. अनु. देश. ( * चुल: प्रा. चुलचुलू ;
4870 ) स्नेह-प्रकाश के लिए होठों से किसीके दे. इआले 4874) चुल उठना. संभोग की होठों, गालों आदि का स्पर्श करनाः चुबन प्रबल कामना होना. तुल. गुज. चळ संज्ञा करना. गुज. चूम, चुम्ब 1448 1434
चूर स. देश (* चूर; प्रा. चूर; दे. इआले चुलबुला (1) अ. दे. 'चुलचुला' बार-बार 4888) चूर करना. गुज. चूर 1449 हिलना, चंचलता दिखाना
चूस स. भव (सं. चूष ; दे. इआले 4898) (2) अ. ना. वि. (चुलबुल संज्ञा; फा. दे. होठों और जीभ के योग से रसपान करनाः पृ. 191, हि. दे. श. ) 1435
शोषण करना. गुज, चूस 1450 चुलचुला अ. दे. 'चुलचुला' 1436
चेत स. सम ( सं. चित् ) सोचना; अ. होश चुहचुहा (1) अ. अनु. ( दे. पृ. 269, मा. में आना; सावधान होना. गुज. चेत 'सावधान हि. को - 2 ) इतना भरा होना कि रस होना' 1451 टपकता हुआ जान पड़े
चेप स. ना. देश. (चेप संज्ञा) किसी वस्तु पर
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चेप लगाना; चिपकाना. तुल. गुज. चेप संज्ञा चौआ अ. देश. चकित होना; सतर्क होना 1470 1452
चौड़ा स. ना. देश. (चौड़ा विशे.) चौड़ा करना; चेहा अ. देश. चकित होना 1453
व्यर्थ का विस्तार करना 1471 चोंक स. ना. देश. ( चोका संज्ञा) स्तन से मुँह चौपत स. ना. देश. (चौपत विशे.) चार तहों में लगाकर दूध पीना; पानी पीना 1454
लपेटना; लपेटकर तह लगाना 1472 चोख स. दे. 'चोख' 1455
चौपता स. दे. 'चौपत' 1473 २थ स. अनु. (दे. पृ. 218, मा. हि. को - 2) चौरसा स. ना. भव (चोरस विशे; सं. चतुरू + खोटना; नोचना. गुज. चूंथ 1456
अश्रि; प्रा. चतुरस्स: दे. इआले 4598) चौरस चोख स. देश. थन से मुँह लगाकर पीना, चूसना करना; बराबर करना. तुल. गुज. चोरस विशे. 1457
1474 * चोट-पोट स. ना. देश. (चोटी-पोटी संज्ञा) छद अ. ना. सम. (छद संज्ञा) छेद बनाना; रूठे हुए को मनाना; फुसलाना; अ. चापलुसी कविता करना. तुल. गुज. छंद संज्ञा 1475 की बातें करना 1458
छंदर स. ना. अर्धसम (छद संज्ञा) धोखा चोटा स. दे. 'चाटिया' 1459
देना 1476 चोटिया स. ना. देश. चोट पहुंचाना; चोटी गूंथना छक अ. देश. (* छक्क; दे. इआले 4956) 1460
तृप्त होना; चकराना. गुज. छक; छाक 'पगचोथ स. दे. 'चोथ' 1461
लाना' 1477 चोद अ. देश. (* चोद; दे. इआलें 4929) छटक अ. देश. (* छट्ट; प्रा. छटा दे. इआले संभोग करना. गुज. चोद 1462
4968) तेजी के साथ पकड़ से निकल जाना; *चार स. भव (चोर संज्ञा; सं. चोर संज्ञाः काबू से निकल जाना. गुज. छटक 1478
प्रा. चोरिअ विशे; दे. इआलें 4933) चुराना. छटपटा अ. ना. अनु. देश. (छटपटी संज्ञा; गुज, चार 1463
*छट्ट; दे. इआले 4969) व्याकुल होना; *चोष स. दे. 'चूस' 1464
आतुर होना 1479) चौंक अ. देश. (* चमक्क संज्ञा; प्रा. चमक्क् छड़ स. देश. (* छट; प्रा. छडा संज्ञा; दे. दे. इआले 4676) भय, विस्मय या पीड़ा की इआले 4965 ) चावल आदि छाँटना; खूब अचानक अनुभूति से चंचल हो जाना; भड़- पीटना. गुज. छडक, छड 1480 कना. गुज. चोंक 1465
छत स. ना. भव (छात संज्ञा; सं. छद्; दे. *चौंट स. दे. 'चोंट' 1466
इआले 4971) छत डालना; घर छाना; अ. *चौंध अ. ना. देश. (चौंध संज्ञा ) बिजली घाव होना. तुल. गुज. छत संज्ञा 1481 का चमकना, कौंधना 1467
छतरा अ. ना. भव (सं. छद् प्रा. छत्त संज्ञा; चौंधिया अ. दे. 'चौध' 1468
दे. इआलें 4972) छत्रक की तरह चारों ओर चौरा स. देश. किसीके ऊपर या चारों ओर चँवर फैलना; अधिक विस्तार से युक्त होना. 'तुल. डुलाना; जमीन पर झाड़ देना 1469
गुज. छतरी संज्ञा 1482
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश छतिया अ. ना देश. (छाती संज्ञा) छाती से छरछरा अ. अनु. घाव पर क्षार लगने से पीड़ा
लगाना. तुल. गुज. छाती संज्ञा 1483 होना; कणों आदि का ‘छर-छर' करते हुए छनक स. अनु. (दे. पृ. 298, मा. हि. को- गिरना; स. जलन उत्पन्न करना. तुल. गुज.
चचर 1497 2) 'छन छन' शब्द होना; भड़कना 1484 छनछना अ. अनु. तपी हुई धातु पर जलकण
छल स. भव (सं. छलू ; प्रा. छल ; दे. इआले छोड़ने से 'छन छन' शब्द होना; कुद्ध होना;
5003) धोखा देना; ठगना. गुज. छळ 1498 'छन छन' शब्द उत्पन्न करना. गुज. छछण, छलक अ. अनु. देश. (* छलक; दे. इआले छणछण 1485
___5002 ) मुह तक भरे हुए जल या दूसरे छपक अ. अनु. (दे. पृ. 298, मा. हि. को
तरल पदार्थ का हिलने के कारण बरतन के 2) किसी चीज़ से आघात करना; थोड़े पानी
बाहर गिरना; उछलना. गुज. उल्का; तुल. में हाथ-पैर मारना 1486
गुज. छलक, छालक संज्ञा 1499 छपछपा अ. दे. 'छपक' 1487
छलछला अ. अनु. आँखों का भर आना, आद्र हो
जाना 1500 छपट अ. देश. चिपकना; आलिंगित होना 1488
छलमल अ. दे. 'छलक' 1501 छपरिहा अ. ना. देश. (छप्पर संज्ञा) छप्पर का
छहक अ. देश. (अ. व्यु. दें. पृ. 117, हि. गिरना; छप्पर से गिरना या टूटना 1489
दे. श.) चमकते हुए लहरानाः बिखरना *छब अ. ना. देश. (छबि संज्ञा) छवि से 15020 युक्त होना, सुशोभित होना 1490
छहर अ. देश. छितराना, बिखरना 1503 छम स. देश. क्षमा करना 1491
छहरा अ. दे. 'छहर' 1504 छमक अ. अनु. (दे. पृ. 300, मा. हि. को - छांग स. देश. छिन्न करना; कुल्हाडी आदि से
2) घुघरुओं आदि के बजने का शब्द होना; पेड़ आदि की शाखा काटना 1505 स. छौंकना. गुज. छमक 1492
छाँट स. देश. (* छण्ट् ; प्रा. छाँट संज्ञा; दे. छमछमा अ. अनु. (* छम्म; दे. इआलें 49- इआलें 4970) काटना; चुनना. गुज. छांट
97) 'छम-छम' शब्द करना, 'छम-छम' 'छिटकना' 1506 करते हुए चलना. गुज. छमक; तुल. छमछम छाँड़ स. दे. 'छाड़' 1507 1493
छाँद स. देश. (*छन्द; दें. इआलें 4984) छय अ. ना. देश. (छय संज्ञा) क्षय होना; स. बाँधनाः हाथों से पैर पकड़कर बैठ जाना; क्षय करना 1494
चौंपायों के पिछले दोनों पैरों को सटाकर रस्सी छर स. भव (सं. क्षर्, प्रा. खर्; दे. इआले से बांधना जिससे वह दूर जाने न पाये 1508 ___3663 तथा 4965 ) चूना; छंटना 1495 छाँध स. दे. 'छाँद' 1509 छरक अ. अनु. (दे. पृ. 300, मा. हि. को - छा अ. भव (सं. छद् प्रा. छाय् ; दे. इआले
2) किसी पदार्थ का कभी तल या धरातल 5018) ऊपर फैलना, बसना; स. ढकना; को स्पर्श करते हुए और वेग से उछलते हुए मकान पर छप्पर या खपरैल डालना. गुज. छा आगे बढ़ना.गुज. छरक 1496
1510
१०
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छाक
छाक अ. दे. 'छक' 1511
छिनक स. देश (* छिन; दे. इआले 5044) छाज अ. भव ( सं. छद् प्रा. छज्ज् ; दे. इआले छिड़कना; साँस के साथ नाक का मल बाहर
4982 तथा 5025 ) फबना; सुशोभित होना; निकालना. गुज. छीण 'छीलना' 1527
स. छाजन तैयार करना. गुज. छाज 1512 छिप अ. देश. (* छिप्प; दे. इआलें 4994) छाड़ स. भव (सं. छूद् प्रा. छडूड्; दे. इआले आड़ या परदे में होना; दृश्य न होना. गुज. ___4998) छोड़ना. गुज. छाँड 1513 छूप; छीप 'शमित होना' 1528 । छान स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 117, हि. छींक अ. ना. अनु. भव (सं; छिक्का संज्ञा;
दे. श.)आटे आदि का मोटा अंश छलनी प्रा. छिक्का; छिक्क् ; दे. इआलें 5032)
से निकालना; खोजना. गुज. छण 1514 नथुनों में से भीतर की वायु का वेग आवाज छाप स. देश (* छप्प: दे. इआले 4994) के साथ बाहर आना. गुज. छींक; तुल. गुज. ठप्पा, मुहर, अक्षर आदि का चिहून स्याही छींकणी 'सुँघनी' 1529 या रंग के योग से कागज़ आदि पर उतारना; छींट स. देश. (* छिटूट; दे. इआलें 5035) छापकर प्रकाशित करना. गुज. छाप; तुल, छितराना, बिखेरना. 1530
गुज. छापो संज्ञा; 'छापनेवाला' 1515 छी स. भव (सं. छिद्: दे. इआले 5041 ) *छार स. ना. भव (सं. क्षार संज्ञा; प्रा. खार फटना, थकना 1531
दे. इआलें 3674 ) पूरी तरह से जलाकर राख * छीअ स. दे. 'छू' 1532 करना. तुल. गुज. खार संज्ञा 1516
छीछ अ. देश. क्षीण होना 1533 छाल स. ना. देश. छानना; साफ करना 1517
छीज अ. भव (सं. छिद् ; प्रा. छिज्ज् ; दे. छाव स. दे. 'छा' 1518
इआले 5042 ) उपयोग आदि के कारण छिछ स. देश. चाहना; इच्छा करना 1519 क्षीण होना; हानि होना 1534 छिडा स. देश. छीन लेना 1520
छीत स. भव (सं. छिद् प्रा. छित्ति संज्ञा; दे. छिछकार स. अनु. छिड़कना 1521
इआले 5037) बिच्छू, भिड़ आदि का डंक छिछया स. ना. अनु. धृणा करना: निंदा करना. मारना; चोट पहुंचाना 1535 तुल. गुज. छि छि संज्ञा 1522
छीन स. ना. भव (सं. छिन्न विशे. छिद् प्रा. छिटक अ. देश. बिखरनाः चाँदनी आदि का छिण्ण; दे. इआले 5047) छिन्न करना;
फैलना. तुल. गुज. छिटकोर स. 1523 किसीके हाथ से कोई वस्तु बलात् ले लेना. छिड़क स. देश. (* छिट; दे. इआलें 5035) गुज. छीन 'छेदना', छीनव 1536
जल या दूसरे द्रव द्रव्य के छीटें फेंकना; *छीव स. दे. 'छू' 1537
न्योछावर करना. तुल. गुज. छाँट 1524 छुछुआ अ. ना. अनु. छछूदर की तरह छू-छू' छितर अ. देश. (दे. पृ. 68, दे. श. को.) करते फिरना; बेकार भटकना. तुल. गुज. छु छु बिखरना, फैलना. गुज, छीत 'छिदरे जल में संज्ञा 1538
जहाज का जमीन से चिपकना' 1525 छुनछुना अ. अनु. 'छुन-छुन' आवाज़ पैदा छितरा अ. दे. 'छितर' 1526
करना 1539
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1541
हिन्दी-गुजराती धातुकोश छप अ. देश. ( * छुप्प; दे. इआले 5058) पृ. 333, पा. स. म.) लड़कों का कोई काम __ छिपना. गुज. कूप, छिपा 1540
करने के लिए मचलना; स. किसीको छैलाने छुलक अ. अनु. थोड़ा थोड़ा करके पेशाब करना में प्रवृत्त करना 1554
छोप स. देश (* छोप्प; दे. इआले 5058) छुलठुला अ. दे. 'छुलक' 1542
किसी चीज़ की लुगरी का लेप करना; ढकना छुहा अ. दे. 'छोह' स्नेहयुक्त होना; रंगा 1555 जाना; स. रंगवाना 1543
*छोप अ. भव (सं. क्षुभ्; छुभ् ; दे. इआले छू स. भव (सं. छप् ; प्रा. छन् ; दे. इआले 3721 ) क्षुब्ध होना. तुल. गुज. छोभ संज्ञा
5055) स्पर्श करना; चीज़ से सट जाना; 1556 किसीके पास पहुँचना. गुज. छू 1544 छोर (1) स. भव (सं. क्षुर् ; दे. इआले छूट अ. भव (* क्षुद्; प्रा. छुट्ट विशे; दे. 3753) काटना. अपहरण करना, गुज. खोर इआले 3707 ) बंधन दूर होना; रवाना होना. हिलाना, ऊपर-नीचे करना.' छोर 'खोदना' गुज. छूट 1545
(2) स. भव (सं. छुर् ; दे. इआले 5066) छेक स. ना. भव (छेद संज्ञाः सं. छिदः प्रा. मुक्त करना. छोडना 1557
छेअ संज्ञा; दे. इआलें 5c64) घेरना; अक्षर छोल स. देश. (* छोल्ल, प्रा. छोल्लू ; दे. आदि काटना, रोकना. गुज. छेक; तुल. गुज. इआले 5073 ) छीलना, खुरचना. गुज. छोल
छेको 'छे कने के लिए खींची हुई लकीर' 1546 1558 छेक स. दे. 'छेक' 1547
छोह अ. देश. प्रेम करना; विचलित होना 1.559 छेड़ स. देश. (* छेड; दे. इआले 4794) छोहा अ. दे. 'छोह' 1560 हँसाने, चिढाने के लिए उँगली आदि से छूना; छौंक स. अनु. (दे. पृ. 316, मा. हि. को - 23 आरंभ करना. गुज. छेड 1548
प्रा. छमक्क; ह. भा.) दाल, तरकारी को सुगंछेत स. भव (सं. छिन् ; प्रा. छेत्ता विशे; दे. धित या सौंधा करने के लिए उसमें जीरे,
इआले 5063) तोड़ना, कुचलना 1549 मिर्च, हींग आदि से मिला हुआ कड़कड़ात्य छेद स. ना. भव (छेद संज्ञा; सं छिद: प्रा. घी या तेल छोड़ना; बघारना; हिंसक प्राणी छिदिय विशे; दे. इआलें 5043) छेद करना; का शिकार के प्रति बढ़ना 1561 धाव करना. गुज. छेद 1550
जंता अ. ना. भव (जाँता संज्ञा; सं. यंत्र संज्ञाः छेर अ. देश. (* छकर; दे. इआलें 4955) प्रा. जत; दे. इआले 10412) जाँते आदि
अपच होना. गुज, छेर 'पतला दस्त होना' से दबकर पीसा जाना; कुचला जाना. तुल, गुज. 1551.
जंतरडु, जंतरडो संज्ञा 1562 छेव स. भव (सं. छिद् प्रा. छे; दे. इआले जंत्र स. ना. अर्धसम (सं. यंत्र) जंत्र- ताला
5067 ) चीरा करना, काटना 1552 लगना; बाँध रखना; स. यंत्रणा देना. तुल. *छैल अ. दे. 'छैला' 1553
गुज. जंतर संज्ञा 'तांत्रिक आकृति' 1563 छैला अ. ना. देश. (छैल संज्ञाः प्रा. छइल्ल; दे. *जंप स. भव (सं. जल्प् ; प्रा. जप्प् ; दे.
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जभा इआलें 5163) कहना, बोलना. गुज. जंप (2) स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 118, 'शान्त होना' 1564
हि.दें. श.) चाँपना, दबाना 1580 जॅभा अ. दे. 'जम्हा' 1565.
जन स. भव (सं. जन् ; दे. इआलें 5102) *जंष अ. दे. 'झख' 1566
बच्चे को जन्म देना. गुज. जण 1581 अँहड़ अ. दे. 'जहँड' 1567
जनम अ. ना. अर्धसम (सं. जन्म संज्ञा) जन्म जकंद अ. ना. वि. (जकंद संज्ञा; फा.) उछाल लेना, स. उत्पन्न करना. गुज. जनम अ.
1582 भरना; टूट पड़ना 1568 *जक अ. देश. (अ. व्य. दे. पू. 118, हि. दे. श.) जन्म अ. ना. सम (सं. जन्म संज्ञा) जन्म होना;
स. जन्म देना. गुज. जन्म अ. 1583 स्तंभित होना; भौचक्का होना 1569 जकड़ स. ना. भव (सं. यत् : जय : दे. इआलें जप स. सम. (सं. जप) जप करना; यज्ञ 10400) कसकर बाँधना: अ. (किसी अंग करना. गुज. जप 1584
का) अकड़ना. गुज. जकड 1570 जफील अ. ना. वि. (जफील संज्ञा; फा. जफीरी) जग अ. दे. 'जाग' 1571
सीटी बजाना, सीटी देना 1585 जगजगा अ. देश. (* जग; दे. इआले 5076)
की जम अ. ना. वि. (जमा विशे; अर. जमs)
पतली चीज का गाढ़ी या ठोस होना; बना चमकना. गुज. जगमग 1572 जगमगा अ. दे. 'जगजगा' 1573
रहना. गुज. जाम 1586
जमक अ. देश. (* जम्म दे. इआले 5140) जट स. देश. (दे. पृ. 69, दे. श. को.)
चमकना 1587 ठगना 1574
जमुक अ. देश. (दे. पृ. 69, दे. श, को.) जड स..भव * जड, प्रा. जाड विश; द. आगे बढ़कर किसीके साथ लगना; सहना. तुल.
इआले 5091) एक वस्तु को दूसरी में बैठाना; राज. जामक विशे. 'संलग्न' 1588 ठोंकना. गुज. जड 'जड़ना; खोई हुई चीज का मिलना, 1575
*जमुहा अ. दे. 'जम्हा' 1589
जमोग स. देश. हिसाब की जाँच करना; किसीकी जड़क अ. ना. भव (जड़ विशे; सं. जड विशे;
बात की पुष्टि करना 1590 प्रा. जड; दे. इआलें 5090) जड़ के समान
जम्हा अ. भव (सं. जृम्भू ; प्रा. जंम् , जम्हा; हो जाना. तुल. गुज. जड विशे. 1576
दे. इआलें 5265 ) जम्हाई लेना 1591 जड़ा अ. ना. भव (जाड़ा संज्ञा; सं. जड विशे;
*जय स. भव (सं.जि; प्रा. जय ; दे. इआले प्रा. जड् ; दे. इआलें 5090 ) सरदी से ठिठु- 5143) जोतना. तुल. गुज. जय संज्ञा 1592 रना 1577
*जर अ. भव (सं. ज्वर ; दे. इआलें 5304 ) जदा अ. दे. 'जड़ा' 1578
- ज्वर आना; जलना; स. दे. 'जड़' 1593 जतला स. दे. 'जता' 1579
जरजर अ. ना. अर्धसम (सं. जर्जर विशे.) जता (1) स. भव (सं. ज्ञा; ज्ञप्त विशे; दे. जर्जर होना. तुल, गुज. जर्जर, जर्जरित, जरइआलें 5273) बताना; आग्रह करना जरियु विशे. 1594
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
जल अ. भव (सं. ; प्रा. जलू 5306 ) किसी चीज़ का आग पकड़ना; संतप्त होना. गुज. जळ; तुल, गुज. बळ 1595 जलप अ. ना. अर्धसम (सं. जल्प संज्ञा ) निरर्थक बातें करना, बकना. डींग मारना. गुज. जल्प 1596
जल्प अ. ना. सम (सं. जल्प्) दे. 'जलप ' गुज. जल्प 1597
जहँड़ अ. देश. घाटा उठाना, धोखे में आना; स. धोखा देना 1598
जहद अ. ना. देश. ( जहदा संज्ञा ) कीचड़ होना, थक जाना 1600
जाँच स. भव (सं. याचू दे. इआलें 10449 ) किसी बात के सही-गलत होने का पता लगाना; परख करना 1601
जाँप स. देश. चाँपना, दबाना 1602
जा अ. भव (सं. या प्रा. जा; दे. इआलें 10452) गमन करना; बीतना. गुज. जा, ज 1603 जाग अ. भव (सं. जागृ; प्रा. जग्गू; दे. इआलें
5175 ) नींद का त्याग करना; फलदायक होना. गुज. जाग 1604
जाच स. भव (सं. याचू ; दे. इआलें 10149) माँगना; परख करना. गुज. जाच 1605 जान स. भव (सं. ज्ञा; प्रा. जाणू; दे. इआले 5193) किसी वस्तु, व्यक्ति, घटना का अभिज्ञ होना. गुज, जाण 1606 जाय अ. देश जान पड़ना; स जपना 1607 जाम (1) अ. दे. जम '
6
( 2 ) अ. भव (सं. यम्; तुल. प्रा. जम् ; दे. इआले 10428) जमना गुज. जाम 1608
जार स. भव (सं. ज्वाल्; प्रा. जालू; दे. इआलें 5314 ) जलाना 1609
जहक अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 118, हि. जीत स. भव ( सं . जी प्रा. जित्त विशे; दे. दे. श. ) चिढ़ना; बहकना 1599
فی
जाल स. दे. 'जार 1610
जिअ अ. भव ( सं . जीवू ; प्रा. जीअ दे. इआले 5241 ) जीना. गुज. जीव 1611
6
*जित्व स. दे. जताना' जतलाना; परिचित कराना 1612
"
जी अ. भव (सं. जीव्; प्रा. जीव; दे. इआलें 5241 ) देह में प्राण का बना रहना; जीवनयात्रा करना. गुज. जीव 1613
इआ 5224) युद्ध आदि में शत्रु या विपक्षी को हराना, वश में लाना. गुज. जीत 1614 जीप स. दे. 'जीत' 1615 जीभ स. भव ( जिम् ; प्रा. जेम् ; दे. इआले 5267 ) भोजन करना. गुज. जम 1616
x
जीर अ. भव ( सं . जु; प्रा. जीर् ; दे. इआले 5235 ) जीर्ण होना; कुम्हलाना, गुज. जेरव पचाना 1617
"
जुअ स. दे. 'जोव ' 1618 जुआठ स. ना. भव ( जुआर संज्ञा; सं. युग + धार संज्ञा दे. इआले 10486) बैल आदि को जुए में जोतना, बाँधना 1619 जुगजुगा अ. अनु. झिलमिलाना बढ़ना 1620 जुगा स. दे. 'जोगी' 1621 जुगव स. दे. 'जोगौ जुगा स. दे. 'जोगौ ' 1623
1622
जुगाल अ. देश. जुगाली करना 1624
जुट अ. देश. (* युद्ध; प्रा . जुडिअ विशे; दे. इआलें 10496 ) जुड़ना; पहुँचना 1625 जुठार स. ना. देश ( जूठा विशे; * झुट्ठ; मा. झुठ दे. इआले 5407) जूठा कर देना;
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1626
1.प्रा. जत्तापर.
जुड जूठा करके छोड़ देना. तुल. गुज. जूलु विशे. एक-दूसरे के साथ चिपकाना, जोतना. गुज.
जोड 1640 जुड अ. देश. ( * युदः प्रा. जुडिअ विशे; दे. जोत स. ना. भव (स. योक्त्र संज्ञा; प्रा.
इआले 10496) संयुक्त होना; संभोग करना. जोत्त; दे. इआले 10524 ) घोड़ों, बैलों गुज. जोडा 1627
आदि को गाड़ी, हल आदि से इस तरह जुतिया स. ना. भव
त्त विशे. बाँधना कि वे उसे खींच सके हल से जमीन दे. इआले 10479) जूते लगाना; बुरी तरहू को चीरना. गुज. जोतर 1641
अपमानित करना. तुल. गुज. जू तुसंज्ञा 1628 जोब स. दे. 'जोव' 1642 जूझ अ. भव (सं. युध् ; प्रा. जुझ्, झुज्झ्; दे. जोय स. ना. देश. आग, दीया आदि जलाना इआले 10502 ) लड़ना, लड़ते हुए मर जाना. 1643 गुज. झूझ 1629
जोर स. दे. 'जोड़' 1644 जूम अ. ना. वि. (जमा विशे; अर. ) इकट्ठा जोव म. भव ( स. दयत: प्रा. जोय, जो ; होना; जुटना: इकट्ठा करना 1630
दे. इआले 6612 ) ध्यानपूर्वक देखना. ढूँढ़ना; *जें स. दे. 'जेंव' 16:1
प्रतीक्षा करना. गुज. जो 1645 जेंव स. भव (सं. जेम् ; प्रा. जेम् ; दे. इआले जोह स. दे. 'जोव' 1646
5267) भोजन करना, जीमना. गुज. जम जौंक स. अन. (दे. पृ. 319, मा. हि का-2) ___1632
रोष जतलाते हुए ऊँचे स्वर में बोलना 1647 जैव स. दे. 'जेंव' 1633
ज्वै स. दे. 'जोव' 1648 *जेर स. ना. वि. (जेर विशेः प्रा.) पराजित
झंकार स. भव (सं. झंकार संज्ञा; दे. इआले करना; तंग करना. तुल. गुज. जेर विशे. 1634
5324) 'झन झन' आवाज़ होना. गुज. जो स. दे. 'जोव' 1635
झणकार 1649 जोअ स. दे. 'जोव' 1636
झंकोर स. दे. 'झकोर' 1650 जोख स. देश. ( * जोक्ष ; दे. इआले 10523) बॅकोल स. दे. 'झकोर' 1651 तौलनाः गुज. जोख 1937
झैख अ. देश. दुःखी होना; दुखड़ा रोना. गुज, जोगव स. ना. दे. 'जोगी' 1638
झंख 'तीव्रता से कामना करना' 1652 जोगौ स. ना. भव (सं. युज : प्रा. जेग्गाः दे. झंझना अ. अनु. (दे. पृ. 397, मा. हि. को - इआले 10529) हिफाजत से रखना; इक- 2) 'झन झन' शब्द उत्पन्न करना; स. झन दठा करना; योगाभ्यास करना. गुज. जोगव
ज्ञन शब्द उत्पन्न करना. गुज. झण झण ज्ञन शब्द उत्पन्न कर
1653 'ठीक से काम में लेना, व्यवस्थित करना' 1639
अँझोड़ स. देश. ( * झोट ; प्रा. झोड् दे. इआले
5414; 'झोड' का द्विरुक्त रूप) पककड़र जोड़ स. देश. (+ युट्ट ; प्रा. जोडू दे. झटके देना, नोचना. गुज. झंझेड, झंझोड
इआले 10496) दो चीजों; टुकड़ों को 1654
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
झंप अ. देश. * झप्प; इआलें 5336 ) छलाँग मारना; झेंपना. गुज. झंपाव, झंपलाव 'साहस करना 1655
झँवरा अ. ना. देश ( झांवरा संज्ञा * झामल; प्रा. झामल विशे: दे. इआलें 5369) काला पड़ना; मुरझाना; स. झविला या कुछ काला करना 1656
झँवा अ. ना. देश. ( झांवा संज्ञा सं. झामक संज्ञा प्रा. झाम् ; दे. इआलें 53(6) दे. झँवरा ' 6 गुज. झाम गरम पत्थर पानी में चभोरना 1657
अँस स. अनु. (दे. पृ. 399, मा. हि. को 2 ) शरीर के किसी अंग में तेल आदि लगाना; झाँसा देकर कुछ धन वसूल करना 1658 झक अ. अनु. ( बकना का अनु; दे. पृ. 399, मा. हि. को 2 ) बकना 1659 झकर स. दे. 'झकझोर 1660
झकझोर स. अनु. ( दे. पृ. 399, मा. हि. को - 2 ) पकड़कर जोर से हिलाना, झटका देना. गुज. झकझेोळ 1661
झकझोल स. दे. 'झकझोर 1662
झकुर अ. देश. उदास होना 1663
झकेल स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 119, हि. दे. श. ) झुलाना; झकोरना 1664
*
झकोर अ. देश. ( झक्कोल दे. इआलें 5316 ) झाके के साथ पेड़ों को झकझोरते हुए हवा का बहना; झकोरा मारना, स. झकझोरना. गुज. झकोळ 1665
झकोल स. दे. 'झकोर डालना, मिलाना 1666 * झक्ख अ. दे. 'झीख' 1667
* झख अ. दे. 'झीख 1668
झगड़ अ. देश. ( * झग्गड, दे. इआलें 5321 ) झगड़ा करना; लड़ना, गुज. झघड़ 1669
७९
झगर अ. दे. 'झगड़ 1670
झझक अ. देश. ( अ. व्यु. पृ. 120, हि. दे. श.) यकायक क्रुद्ध होकर बड़बड़ाने लगना; भड़क उठना 1671
झटक स. देश. ( झटका संज्ञा * झटूट प्रा. झडू; दे. इआले 5327) चीज को इस तरह हिलाना कि वह खुल जाय, झटका देना. गुज. झटक; तुल. गुज. झटको संज्ञा 1672 झटकार स. दे. 'झटक' 1673
झड़ अ. देश. (* झट्; प्रा. झड्; दे. इआले 5328 ) टूटकर गिरना; बरसना; साफ होना
1674
झड़क स. देश. (* झटू प्रा. झड्; दे. इआले 5328 ) हिलाना, दे. 'झिड़क' गुज. झाडक
1675
झड़झड़ा स. अनु. ( दे. पृ. 400, मा हि. को - 2 )
झड़ झड़' शब्द करना; झटकारना. तुल, गुज. झाडक, झाटक 'झटकारना' 1676 झड़प अ. देश. (* झट प्रा. झडत्ति अव्य; दें. इआले 5327) हमला करना; उलझना; सं. झटकना, गुज, झडप ' यकायक पकड़ लेना '
1677
झनक अ. अनु. देश. ( * झणत्क दे. इआले 5331 ) झनक होना; पैर को झटका देते हुए चलना. गुज. झणक तुल. गुज. झणको संज्ञा 1678
6
झनकार अ. अनु. भव (सं. झणत्कार संज्ञा; दे. इआले 5332) झनझन ' की आवाज़ निकलना; स. झनझन ' की आवाज़ पैदा करना. गुज, झणकार; तुल. गुज. झणकारो संज्ञा 1679
झनझना अ. ना. भव ( झनझन संज्ञा; सं. झणू; प्रा. झणझणू : इआ 5330) झनकार होना; स. इनकार करना. गुज.
झणझण
1680
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८०
झन्ना अ. दे. 'झनझना' 1681
झप अ. देश. (दे. पृ. 73, दे. श. को. ) छिपना, झुकना गुज. जंप 1682
झपक अ. देश. (* झप्प; दे. इआले 5336 ) पलक गिरना; झेंपना, गुज. झप, शांत होना.
1683
झपट अ. देश. (* झप्प; दे. इआले 5336 ) किसी चीज़ को लेने उसकी ओर बढ़ना; लपकना; स. झपटकर छीन लेना. गुज. झपेट मारना, पीटना ; तुल. गुज. झापट, संज्ञा 1684
झपट
झपडिया अ. ना. देश. ( झापड़ संज्ञा ) लगातार कई झापड़ लगाना. गुज, झापट ' कपडे को झापड़ से साफ करना; फटकारना' 1685 झपस अ. देश. पेड़ पौधों, लताओं आदि का चारों ओर फैलना 1686
झपेट स. दे. 'झपट 1687
झबूँक अ. देश. चमकना; चौंकना 1688 झमंक अ. दे. 'झमक' 1689
झम अ. अनु. ( दे. पृ.
6
403, मा. हि. को 2 ) पलकों आदि का गिरना; नम्रतापूर्वक झुकना गुज. झम रीसना 1690 झमक अ. अनु. देश ( * झम्म: दे. इआलें 5341 तथा 5342 ) चमकना; पाँवों के गहनों की झनकार करते चल्नाः सहसा सामने आना. गुज. झमक 1691
झमझमा अ. दे. 'झनकार ' 1692
झमा अ. दे. 'झम 1693
झर अ. भव (सं. झर्; प्रा. झर्; दे. इआले 5346) झड़ना, बजना; स. बजाना. गुज. झर 'रीसना, टपकना ' 1694
झरक अ. देश. झलकना, स. डपटना. झिड़कना 1695
झन्ना
झरझरा अ. ना. अनु. ( झरझर संज्ञा दे. पृ. 403, मा. हि. को - 2 ) ' झर-झर ' करते हुए बहना; जलना; स. झरझर ' की आवाज़ के साथ गिराना 1696
(
शरप अ. दे. ' झड़प 1697
*झरस अ. अनु. ( दे. पा. 404, मा. हि. को. - 2 ) झुलसना; मुरझाना 1698
झरहर अ. अनु. आवाज़ के साथ पत्तों का नीचे आना, खड़खड़ाना; स. डाल हिलाकर पत्तों आदि को गिराना 1699
झरहरा अ. दे. 'झरहर ' 1700
झल स. देश. ( * झल; दे. इआलें 5351 ) ( पंखा आदि ) हिलाकर हवा करना; अ. हिलना गुज. झाल पकड़ना 1701
(
झलक अ. देश. (* झल दे. इआलें 5352 ) चमकना गुज. जळक 1702
झल्झला अ. अनु. ( दे. प्र. 405, मा. हि. को - 2 ) खूब चमकना; झल्लाना; स. चमकाना.
-
6
गुज. झळ जलना 1703
झलमल अ. ना. अनु. ( झलमल संज्ञा, दे. पृ. 405, मा. हि. को - 2 ) रह रह कर कमी तेज, कभी धुंधली रोशनी देना. गुज. झलमल
1704
झल्ला अ. देश. ( * झल्ल : दे. इआलें 5352 ) बहुत बिगड़ जाना, झँझला उठना : स. चिढ़ानेवाला काम करना. गुज. झल्ला 'जलना ' 1705 झष अ. ना. देश. ( झख संज्ञा ) झख मारना 1706
इस स. दे. 'झस 1707
झहन अ. अनु. ( दे. पृ. 406, मा. हि. को2 ) ' झन-झन ' शब्द होना; झल्लाना 1708 झहर अ. अनु. (दे. पृ. 406, मा. हि. को 2 ) ' झर-झर ' शब्द होना; हिलते-डुलते रहना; झल्लाना 1709
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
1710
झहरा अ. दे. 'झहर झाँक अ. देश. ( दे. पृ. 74, दे. श. को. ) आड़ से, झरोखे से बाहर की वस्तु को देखना. गुज. स. झाँख 'देखना 1711
झिझिड़ा अ. दे. 'झिड़क' 1729 झिप अ. दे. 'झेप' 1730
झाँख अ. देश. (* झंख दे. इआलें 5325) झिमक अ. दे. 'झमक' 1731 दे. 'झाँक' 1712
झाँप स. देश. (* झप्प दे. इआले 5337 ) ढँकना; छोप लेना; अ. झेपना 1713
झाँव स. ना. देश. ( झाँवा संज्ञा ) झाँवे से रगड़कर धोना 1714
झाँस स. दे. 'अँस 1715
झाग अ. ना. देश. ( झाग संज्ञा; * झग्गा; दे. इआलें 5322 ) झाग निकलना, स. फेन
उत्पन्न करना 1716
झाल स. देश. ( * झालू ; दे. इआले 5382 ) धातु की बनी चीज़ को टाँके से जोड़ना; किसी चीज़ को ठंडा करने के लिए बरफ़ या शोरे में रखना, गुज, झाळ 1717 झिंगर अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 120, दे. श. को. ) झगड़ना 1718
* झिगड़ अ. दे. 'झिंगर ' झिंगर अ. दे. 'झिंगर 1723 झिझक अ. देश. (दे. पू. 75, दे. श. को. ) भय या लज्जा के कारण कोई बात करने में हिचकना भड़कता 1724
दे. श. ) डाँटना; तिरस्कार के साथ फेंक देना
1728
सिंगार अ. दे. ' सिंगर
1719
झीझ अ. दे. 'झीझ ( 2 ) 1739
झिंझोड स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 120, हि झींट अ. दे. 'झीख' 1740 दे. श. ) हिलाना - उछालना 1720 झिकझोर स. दे. 'झकशोर
झीप अ. दे. 'झेप' 1741
1721
1722
7
झिमिट अ. अनु. ( दे. पृ. 411, मा. हि. को.
- 2 ) एकत्र होना 1732
झिर अ. दे. 'झर' 1733 झिरक स. दे. 'झिड़क 1734 झिरझिरा अ. दे. 'झिझिड़ा; ' झिरझिर ' करते हुए बहना 1735
झिलमिला अ. ना. देश. (झिलमिल संज्ञा; * मिल; दे. इआले 5391 ) झलमलाना 1736 झीक स. देश (* झिक्क; दे. इआले 5384 ) फेंकना, पटकना; नाक-भौं चढ़ाना गुज, झीक 1737
८१
शीख अ. ना. देश. ( प्रा. झिखण संज्ञा दे. प्र. 367, पा. स. म. ) कुढ़ना, दुःखी होना 1738
झीख अ. दे. 'झीख 1742
झीझ (1) अ. देश. (* झि प्रा. झिज्झ; दे. इआ 5396 ) क्षीण होना
झिझकार स. दे. 'झिझक' 1725
झिटक स. दे. 'शटक 1726 झिटकार स. दे. 'झिटक 1727 झिड़क स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 120, हि. झील स. दे. 'झेल' 1746
११
( 2 ) अ. अनु. ( दे. पृ. 412, मा. हि. 2 ) झुंझलाना 1743
-
*झीड़ अ. अनु. ( दे. पृ. 413, मा. हि. को. - 2 ) बलपूर्वक प्रविष्ट होना; धँसना 1744 झीम अ. अनु. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 121, हि. दे. श. ) झूमना 1745
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हुँमला झुंझला अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 121, हि. दे. श.) झुराना, सूखना 1763 दे. श.) खीझना 1747
झुरस अ. दे. 'झुलस' 1764 झुक (1) अ. देश. (* झुक्क्; दे. इआले झुलस अ. देश. इतना जलना कि सतह स्याह
5399) टेढ़ा होना; दबना. गुज. झूक 'नीचा हो जाय; मुरझाना 1765 होना (2) अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 121,
झुहा स. दे. 'झुठला' 1766
झुहिर अ. देश. (दे. पृ. 77, दे. श, को.) हि. दे. श.) झुंझलाना; क्रुद्ध होना 1748
लदना 1767 झुकर अ. दे. 'झुक (2)' 1749
बँक अ. दे. 'झीख' 1768 झुकझोर स. दे. 'झकझोर' 1750
झूख अ. दे. 'झीख' 1769 झुख स. देश. (दे. पृ. 76; दे. श. को.) सोचना, याद करना 1751
झूब अ. दे. झूम 1770 झुटला स. दे. 'झुठला' 1752
झूस स. दे. 'ॉस'; अ. दे. 'झुलस' 1771 झठका अ. ना. देश. (झठा विशे. * झटठः प्रा. झूब अ. द. झूम' 774 झुट्ठ; दे. इआले 5407) झूठ-मूठ कोई झूम अ. भव (सं. शुभ; प्रा. खुभण संज्ञा; दे.
बात कहकर किसी को धोखे में डालना 1753 इआलें 3726) इधर-उधर हिलना; लहराना. झुठला स. दे. 'झुठका'. किसी को झुठा ठहरानाः गुज. झूम; झझूम ‘जोर लगाते रहना' तुल.
धोखे में डालना. तुल. गुज. जूलु विशे. 1754 गुज. झूमखु संज्ञा 1773 झुठा स. दे. 'झुठला' 1755
झूर अ. दे. 'झुर' 1774 झुठाल स. दे. 'झुठला' 1756
झूल अ. देश. (* झुल ; प्रा. मुल्लू ; दे. इआलें
5406) लटककर आगे-पीछे होना; समाप्त झुनक अ. अनु. ( दे. पृ. 414, मा. हि. को2) 'झुनझुन' शब्द निकलना; स. 'झुन.
___ हो जाना. गुज. झूल 1775 __ झुन' शब्द उत्पन्न करना 1757
- झेंप अ. देश. लजाना 1776
झेक अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 122, झुनझुना अ. अनु. भव (सं. झण् ; प्रा. झण
हि. दे. श.) ऊँट को बैठाने के लिए 'झेकझण् , दे. पृ. 10', हि. दे. श.) दे.
झेक' ध्वनि करना, तुल. गुज. झेह-झेह 'झुनक' 1758
संज्ञा 1777 झुना अ. दे. 'झुनक' 1759
झेर स. देश. छेड़ना, आरंभ करना; दे. 'झेल' झुमा अ. दे. 'झूम' 1760
गुज. झेर 'मथना' 1778 झुमिर अ. दे. 'झूम' 1761
झेल (1) अ. देश. (* झेल ; दे. इआले 5413; झुर स. देश. (* झ; दे. इआले 5405) प्रा. झिलिअ विशे. दे. पृ. 367, पा. स. म.)
दुःख या चिन्ता से क्षीण होना, सूखना, गुज. सहना, ठेलना; हजम करना 1779 झूर 1762
झोंक स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 122, हि. दे. झुरझुरा अ, देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 121, हि. श.) आगे की ओर फेंकना, बुरी तरह डालना;
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश गुज. झाक 1780
वस्तुओं का एक दूसरे से भिड़ जाना; ठोकर जोक स. दे. 'झाँक' 1781
लग जाना; स. दो वस्तुओं को आपस में लड़ा पोहा (रा414) देना. गुज. टकरा; स. टकराव 1797
पीटना, झोर से हिलाना. गुज. झूड 'पीटना' टकूच स. देश. (दे. पृ. 78, दे. श. को.) 1782
खाना 1798 झोर स. दे. 'झोड़' 1783
टकोर स. ना. देश. (दे. पृ. 78, दे. श. को.)
धीरे से आवाज करना, बजाना. गुज. टकोर झोल स. देश. तपाना, जलाना; संतप्त करना; 1799" __ अ. दे. 'झुस' 1784
टगटगा स. दे. 'टकटका' 1800 झऔर स. दे. 'झौर' अ. गूंजना 1785
टगर अ. दे. 'टघर' 1801 सौंस स. दे. 'झुलस' 1786
टघर अ. देश. (दे. पृ. 78, दे. श. को.) और (1) स. देश. (प्रा. झोड; दे. पृ. 368, टिघलना; द्रवीभूत होना 1802 पा. स. म.) दबाने के लिए झपटकर पकड़ना; टटा अ. देश. (* टट्ट; दे. इआले 5438) छोप लेना
सूखना; शरीर या उसके अंगों में पीड़ा होना (2) स. देश. अँड बनाना 1787
1803 शौह अ. दे. 'झौहा' 1788
टटिया अ. दे. 'टटा' 1804 झौहा अ. अनु. (दे. पृ. 421, मा. हि. को-2) टटो स. दे. 'टटोल' 1805 क्रुद्ध होकर झल्लाते हुए बोलना 1789
टटोर स. दे. 'टटोल' 1806 टंकार स. ना. अनु. (टंकार संज्ञा) धनुष का
का टटोल स. दे. 'टकटो' 1807
, रोदा तानकर आवाज़ पैदा करना. तुल. गुज.
*टटोह स. दे. 'टटोल' 1808 टंकार, टंकारव संज्ञा 1790
टनक अ. अनु. टन-टन बजना; गरमी, धूप टंकोर स. दे. 'टंकार' 1791
___ आदि के कारण सिर में धमक या पीडा होना टकटका अ. अनु. 'टक-टक' शब्द उत्पन्न होना; 1809 टकटका लगाकर देखना, स. 'टक-टक' शब्द
टनटना अ. दे. 'टनक' 1810 उत्पन्न करना 1792
टप अ. देश. बिना खाये-पीये पड़ा रहना; कूदना टकटो स. देश. (अ. व्यु. दें. पृ. 122, हि.
गुज. टप 'कूद जाना' 1811 दे. श.) उंगलियों से छूकर किसी वस्तु का पता लगाना, टटोलना. तुल. गुज. टटोळ 1793 टपक अ. अनु. देश. (* टप्प; दे. इआलें 5444)
बूंद-बूंद गिरना: पके फल का आप से आप टकटोर स. दे. 'टकटो' 1794
गिरना. गुज. टपक; तुल. गुज. टपकु, टीपु टकटोल दे. 'टकटो' 1795
संज्ञा 1812 टकटोह स. दे. 'टकटो' 1796
टपर स. अनु. ( दे. पृ. 417, मा. हि. कोटकरा अ. ना. देश. (टक्कर संज्ञा; सं. टक्करा 2) दीवार में मसाला भरने से पहले उसके
संज्ञाः प्रा. टक्कर; दे. इआलें 5424) दो फर्श की दरजों को कुछ खोदकर चौड़ी या
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८
टपरिया बड़ी करना जिससे उनमें मसाला अच्छी तरह खूटी या अलगनी जैसे ऊँचे आधार से अटसे भरा जा सके 1813
काना, फाँसी देना. गुज. टाँग 1826 टपरिया अ. दे. 'टपर' 1814
टाँच स. देश. टाँकना; काट-छाँट करना. गुज. टर अ. दे. 'टल' 1815
टांच 1827 टरक अ. अनु. 'टर-टर' शब्द होना; खिसक
टाँस स. देश. किसी का हाथ या पैर मरोड़कर
उसमें तनाव उत्पन्न करना; टाँकना; राँगे से जाना; दे. 'टल' कर्कश स्वर में बोलना;
बरतन का छेद बंद करना 1828 'टर-टर' शब्द करना. गुज. टरक अ. 'ललचाना' 1816
टान स. दे. 'तान' 1829 टरटरा अ. अनु. 'टर-टर' शब्द होनाः अंड- टाप अ. ना. देश. (टाप संज्ञा: * टप्पः दे. बंड बकना 1817
इआले 5445) घोडों का इस प्रकार पैर टर्रा अ. ना. अनु. (टर संज्ञा; दे. पृ. 417,
पटकना जिससे 'टप-टग' शब्द हो. तुल. गुज.
टपलो संज्ञा 1830 मा. हि. को-2) गर्व के साथ बात करना; सीधे न बोलना. गुज. टरडा 1818
टिक अ. देश. (* टिक्क; दे. इआले 5420) टल अ. भव (सं. टल्लू ; दे. इआलें 5450) ठहरना; स्थिर रहना. तुल. गुज. टक 1831
विचलित होना; अलग होना. गुज. टळ 181 टिघल अ. दे. 'टघर' 1832 टस अ. अनु. (दे. पृ. 428, मा हि. को-2 टिटकार स. अनु. 'टिक-टिक' शब्द करते हए खींच पड़ने के कारण कपड़े आदि का फटना,
घोड़ों आदि को हाँकना 1833 मसकना 1820
टिन्ना अ. देश. क्रुद्ध होना; (शिश्न का) उत्तेटसक अ. देश. (दे. पृ. 79, दे. श. को.)
जित होना 1834 किसी भारी चीज़ का अपनी जगह से हटनाः टिपक अ. दे. 'टपक' 1835 प्रभावित होना. गुज. टसमस 'भीतर से उभर- टिमटिम अ. अनु. देश. (अ. व्यु. पृ. 123, कर फटने को होना' 1821
हि. दे. श.) क्षीण प्रकाश के साथ जलना; टहक अ. अनु. (दे. पृ. 428, मा. हि. को-2)
माहि को-2) मरने के करीब होना. गुज. टमक, टमटम
1836 टिंघलना; रह-रह कर दर्द करना 1822
टिरकार स. दे. 'टिटकार' 1837 टहर अ. दे. 'टहल' 1823
टिर्रा अ. दे. 'टर्रा' 1838 टहल अ. देश. (टहल्ल; दे. इआले 5433) मनोविनोद या स्वास्थ्य की दृष्टि से धीरे
टिलटिला अ. अनु. (दे. पृ. 435, मा. हि. को - धीरे चलना; मंद गति से भ्रमण करना. गुज.
2) पतला दस्त करना 1839 टहेल, टेल 1824
टिहुक अ. देश. ठिनकना; चौंकना 1840 टाँक स. भव (सं भव (सं. टङ्क्; दे. इआले
टिहूक अ. दे. 'टिहुक' 1841 5432 ) सिलाई जोड़ना; हलकी सिलाई करना.
टीक स. ना. देश. (टीका संज्ञा; * टिक्क; प्रा. गुज. टाँक; तुल. टाँको संज्ञा 1825
टिक्क संज्ञा; दे. इआलें 5458) टीका लगाना;
उंगली से रंग लगाकर निशान बनाना. तुल. टाँग स. देश. (* टंग; दे. इआले 5436) गुज. टीको संज्ञा 1842
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश टीप स. देज. (* टिप्प; दे. इआले 5464) टेर स. ना. देश. (टेर संज्ञा; * टेर; दे. इआले
हाथ या उंगली से दबाना: हलका आघात 5473) तार-स्वर में गाना; पुकारना. गुज, करना. गुज. टीप 1843
टेर 'हराना' 1856 टीस अ. ना. देश (दे. पृ. 436, मा. हि. को - टेव स. भव (सं. तिज् ; प्रा. ते; दे. इआले
2) शरीर के किसी अंग में रह-रह कर पीड़ा 5945) दे. 'टे' 1857
होना 1844 ढंग स. देश. (ढुंगा संज्ञा; * टुग्गः दे. इआले टाच स. देश. गड़ाना; सिलाई करना. गुज. टोंच
___1858 5467) ( चौपायों का) टहनी के पत्तों को ऊपर से काटना; थोड़ा-थोड़ा काटकर खाना टो स. देश. ( * टोह; दे, इआले. 5486) 1845
उँगलियों से दबाकर या छूकर मालूम करना; टुघला स. देश. (दे. पृ. 82, दे. श, को.)
टटोलना. गुज. टो 'चिल्लाकर पक्षियों को खेत चुभलाना 1846
से भगाना; बूंद बूंद पानी पाना' 1859 टुपक स. देश. (दे. पृ. 83, दे. श. को.) धीरे
टोक स. देश. (* टोक्क; दे. इआले. 5476) से ऊपरी भाग काटना; डंक मारना; झगड़ा । लगानेवाली बात धीरे से कह देना 1847
रोकना, चलते समय यात्रा के विषय में पूछ
ताछ करना. गुज. टोक 'दोष बताना, रोकना' टुलक अ. दे. 'दुलक' 1848
1860 टुसक अ. दे. 'टसक' 1849
टोप अ. देश. ( * टोप्प; दे. इआले 5481) दूँग स. दे. 'ढुंग' 1850
ढाँकना 1861 टूट अ. अनु. भव (सं. त्रुट ; प्रा. तुटूद, टुट्;
होते
टोर स. देश. (दे. पृ. 85, दे. श. को.) भलीदे. इआले 6055 तथा 6079) भग्न होना
बुरी बात की जाँच करना; थाह लेना. दे. 'टो' सहसा आक्रमण करना. गुज तूट 1851 टूठ अ. दे. 'तूठ' 1852
टोह स. दे. 'टो' 1863 टूम (1) स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 123, हि.
टोहिया स. दे. 'टोह' 1864 दे. श.) शोभित होना
दौर स. दे. 'टोर' 1865 (2) स. अनु. (दे. पृ. 440, मा. हि. को - 2) झटका देना; ताना देना 1853 ठठना अ. अनु. ठंठ' ध्वनि निकलनाः स.
'ठंठ' ध्वनि निकालना 1866 टे स. देश. ( दे. पृ. 44], मा. हि. को -2)
ठंडा स. ना. देश. ठंडा करना. तुल. गुज. धार तेज करने के निमित्त अस्त्र आदि को
___ ठंडं विशे. 'ठंडा' 1867 पत्थर पर रगड़ना; मूछों के बालों में बल डालकर उन्हें खड़ा रखने के लिए उमेठना ठक अ. अनु. (दे. पृ. 447, मा. हि. को-2) 1854
सहारा लगाकर बैठना 1868 टेक स. देश. (* टेक्क; दे. इआले 5420) ठकठका स. अनु. 'ठक-ठक' ध्वनि उत्पन्न करना; थाम लेना; सहारा लेना. गुज. टेक; तुल. खूब पीटना; अ. 'ठक-ठक' ध्वनि होना; गुज. टेक संज्ञा 1855
भौचक्का हो जाना 1869
1862
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८६
ठग
ठग स. देश. (* ठग्ग; प्रा. ठगिय विशे.; दे. ठय स. देश. स्थापित करना; अ. स्थापित होना
इआलें 5489) धोखा देकर लूटना; छलना. 1885 गुज. ठग. 1870
ठर अ. ना. भव (सं. स्थिर विशे.; प्रा. थिर; ठट अ. दे. 'ठठ' 1871
दे. इआले 13771) सरदी से ठिठुरना; ठठ अ. ना. देश (ठाठ संज्ञा ) खड़ा रहना; ठाठ
अत्यंत शीत पड़ना. गुज. ठर 'जमना' 1886 से युक्त होना. गुज. ठठा. 1872
* ठला स. देश. गिराना; निकलवाना. गुज. ठालव
1887 ठठक अ. दे. 'ठिठक' 1873 ठठा स. अनु. देश. ( * ठट्ठ; दे. इआले 5490) ठव स. दे. 'ठय' 1888
आघात करना; जोर से पीटना; अ. अट्टहास ठह अ. अनु. ( दे. पृ. 451, मा. हि. को - 2) करना. गुज. ठठाड 'छू लेना, ठठाना'; ठठार घोड़े का हिनहिनाना; घंटे आदि का शब्द 'बहुत सजाना' 1874
होना; अ. सँवारना, बचाना 1889 ठठिया स. दे. 'ठठ' 1875
ठहर अ, अर्धसम (सं. स्तम्भू दे. इआले ठड़क अ. दे. 'ठिठक' 1876
13680) रुकना; बना रहना. गुज. ठेर 'तय
होना, ठहरना' 1890 ठढ़ा अ. ना. देश. (ठढ़ा विशे.) खड़ा होना। ___1877
" ठाँस स. देश. ( * ठस्स; दे. इआले 5494 ) ठढ़िया स. दे. 'ठढ़ा' 1878
ठूसना, अ. 'ठन-ठन' शब्द करते हुए खाँसना. ठनक अ. अनु. देश. (दे. पृ. 195, - हि. दे. गुज. ठांस, ठेस 1891
श.) 'ठन-ठन' करके बजाना; शंका उत्पन्न ठा स. दे. 'ठान' 1892 करना 1879
ठाक स.देश मना करना 1893 ठनग अ. अनु. ठनगन करना 1880
ठाठ स. ना. देश (ठाठ संज्ञा ) ठाठ खड़ा करना; ठनठना स. ना. अनु. देश. (ठनठन संज्ञा; * अ. सजना 1894
ठन् ; दे. इआलें 5494) 'ठन-ठन' ध्वनि ठान स. देश. कोई काम करने के लिए संकल्प उत्पन्न करना; अ. 'ठन-ठन' करके बजना. करना; कोई काम तत्परता से आरंभ अरना. गुज. ठणठण, ठणक 1881
गुज. ठाण 1895 ठप स. ना. अनु. दश. (ठप्पा सज्ञा; * ठप्प; ठाव स. दे. 'ठान' 1896
दे. इआले 5495) कोई चीज़ इस प्रकार बन्द करना कि ठप शब्द हो, कोई कार्य बन्द
ठास स. दे. 'ठाँस' 1897 करना. गुज. ठपक, तुल. गुज. ठपको 'उलाहना' ठाहर अ. दे. 'ठहर' 1898 1882
ठिक अ. दे. 'टिक' 1899 ठमक अ. अनु. देश. (* ठम्म; दे. इआले ठिकिया स. ना. देश. ( ठीक विशे. ) ठीक करना
5496 ) भय, आश्चर्य आदि से चलते चलते 1900 रुक जाना, हावभाव के साथ चलना. गुज. ठिठक अ. वेश. (दे. पृ. 87, दे. श. को.) ठमक; तुल. गुज. ठम-ठम, ठमको संज्ञा 1883
चलते-चलते सहसा रुक जाना; स्तब्ध होना ठमुक स. दे. 'ठुमक' 1884
1901
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८७
हिन्दी-गुजराती धातुकोश ठिठर अ. दे. 'ठिठुर' 1902
ठेक (1) स. ना. देश. (ठेक संज्ञा) सहारा ठिठुर अ. देश. ( दे. पृ. 87, दे. श. को. ) सर्दी लेना; किसी चीज़ को गिरने से रोकने के से सिकुड़ जाना. गुज. ठूठवा 1903
लिए उसके नीचे टेक लगाना; गुज. ठेक 'कूद
जाना ठिनक अ. अनु. ( दे. पृ. 454, मा. हि. को - 2)
बच्चों का रह-रह कर रोने का-सा शब्द (2) स. अनु. (दे. पृ. 457, मा. हि. को - 2) निकालना; नखरा दिखाते हुए मचलना 1904 ठप्पे से अंकित करना 1917 ठिर अ. दे. 'ठर' 1905
ठेग स. दे. 'ठेक' 1918 ठिलठिला अ. अनु. जोर से हँसना 1906
ठेघ स. दे. 'ठेग' 1919 ठील स. दे. 'ठेल' 1907
ठेल स. देश. (* ठेल्ल; दे. इआले 5512
____ ढकेल कर आगे बढ़ाना, खिसकाना. गुज. ठेल ठुकरा स. ना. देश. (ठाकर संज्ञा; * ठोक्क; दे. 1920 इआले 5513) ठोकर मारना; तिरस्कार करना.
गुज. ठाक; तुल. गुज. ठोकर संज्ञा 1908 ठेस (1) स. देश. (* ठेस्स; दे. इआले. 5511) ठुनक (1) अ. देश. (दे. पृ. 88, दे. श. को.)
ठूसना गुस्सा होना, रुठना
(2) अ. ना. देश (ठेस संज्ञा ) आश्रय लेना,
ठेस लगाकर बैठना. तुल. गुज. ठेसणियु (2) स. अनु. (दे. पृ. 456, मा.हि. को-2) 'सिटकिणी'; ठेस 'ठाकर' 1921 'ठुन' शब्द उत्पन्न करना; ठोकना 1909 ठुमक अ. अनु. देश. (दे. पृ. 195, हि. दे. श.)
ठेर अ. दे. 'ठहर' 1922
टॉक स. दे. 'ठाक' 1923 नाचते समय ताल के अनुसार रह-रह कर पैर पटकना. तुल. गुज. ठूमको संज्ञा 1910 टॉग स. ना. देश. (ठेग संज्ञा; * टोंग; दे.
इआले 5478) चोंच मारनाः मुडी हुई ठुमकार स. ना. अनु. देश. (ठुमका संज्ञा; दे. उंगली से ठोकर मारना 1924 पृ. 88, दे. श. को.) पतंग की दोरी को
ठोक स. ना. अनु. देश. ( * ठोक; दे, इआले ठुमका देना 1911
5513) भारी वस्तु से आघात करना; पीटना. ठुरिया अ. दे. 'ठिठुर' 1912
गुज. ठोक 1925 ठुसक अ. अनु, देश. (* ठुस्स; दे. इआले ठोस स. देश. ( * ठोस्स; दे. इआले 5511 )
5508) सिसकियाँ भरते हुए रोना; 'ठुस' दबा देना; प्रहार करना. गुज. ठोंस; तुल. गुज. शब्द करते हुए पादना. तुल. गुज. ठूसकुंठोसो संज्ञा 'ठोसा' 1926 संज्ञा; 'सिसकी' 1913
डंक स. ना. देश. ( डंका संज्ञा ) डंका बजाना; ह्ग स. दे. 'दूँग' 1914
__ अ. गरजना. तुल. गुज. डंको 'डंका' 1927 ऎस स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 114, हि. दे. डकिया स. ना. देश. ( डंक संज्ञा ) डंक मारना.
श.) दबा-दबाकर भरना; जबरदस्ती कोई अ. दे. 'डाँक' 1928 चीज भरना. गुज. ठाँस 1915
डंड स. ना. देश. (डंड संज्ञा) दंडित करना. ठूस स. दे. 'ह्स' 1916
गुज. दंड 1929
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डैरिया डॅडिया स. ना. देश. (डाँडी संज्ञा ) दो कपड़ों डपट स. ना. देश. (डपट संज्ञा; दे. पृ. 90, __को लंबाई की ओर से मिलाकर सीना 1930 दे. श. को.) झिड़कना; डाँटना, अ. सरपट डंडूर अ. देश. हवा का धूल से भर जाना 1931 दौडना. गुज. डपट 'छिपाना, हथिया लेना'
1948 डंडोर स. देश. ढूँढना 1932
डबक स. ना. देश. (डब संज्ञा) दबाकर कटोरे डंफ अ. देश. जोर से चिल्लाना या रोना 1933 की तरह गहरा करना 1949 डंस स. भव (सं. दंश प्रा. दसू दे. इआले डबडबा अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 125,
6110 तथा 6130) साँप आदि ज़हरीले जंतुओं हि. दे. श.) आँखों में आँसू आ जाना, तुल. का दांत से काटना; डंक मारना. गुज. डस गुज. डबडब संज्ञा 'डूबने की आवाज़' 1950 1934
डबिर स. देश. (दे. पृ. 90, दे. श. को.) खेत डकर आ. देश. सांड. बैल या भैंसे का जोर से में से भेड़ों को निकाल देना 1951 बोलना 1935
डभक अ. अनु. देश. (प्रा. डिफिअ; दे. पृ. 373, डकरा अ. दे. 'डकर' 1936
पा. स. म; अ. व्यु, दे पृ. 125, हि. दे. श.)
जल में इस प्रकार बार-बार डूबना-उतराना डकार अ. ना. अनु. देश. ( डकार संज्ञा; * डकार; कि डम-डम शब्द होः छलकना 1952
दे, इआले 5521) डकार लेना; खाकर तृप्त होना 1937
___डर अ. ना. भव (सं. दृ.; प्रा. डर् ; दे. इआले
6190) भय खाना, सशंक होना. गुज. डर डकाव स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 125, हि. 1953
दे. श.) आगे बढ़ाना; छलांग लगवाना 1938 डरप अ. दे. 'डर' 1954 डगडगा अ. अनु. देश. (* डग; प्रा. डगमग; डस स. दे. 'डॅस' 1955
दे. इआले 5522) अस्थिर होना; काँपना; डह अ. भव (सं दह; प्रा. दहू; दे. इआले
लड़खड़ाना. गुज. डग, डगडग, डगमग 1939 6245) जलना; स. जलाना. गुज. दह 1950 डगडोल अ. दे. 'डोल' 1940
डहक अ. देश. (अ.व्यु. दे. पृ. 125. हि. दे. श.) डगमग अ. दे. 'डगडगा' 1941
(1) वंचना करना, अ. धोखा खाना डगमगा अ. दे. 'डगडगा' 1942
(2) दे. 'डहडहा' 1957 डगर अ. ना. देश. ( डगर संज्ञा) रास्ता चलना
न डहडहा अ. अनु. देश. (अ. व्यु, दे. पृ. 125, 1943
हि. दे. श.) हरा-भरा होना; प्रसन्न होना 1958
डहर अ. दे. 'डगर' 1959 डगरा अ. दे. 'डगर' 1944
. डाँक स. देश. (* डक्क; दे. इआलें 5516) डट अ. ना. देश (डाट संज्ञा ) अड़नाः (कार्य में)
फाँदना; पुकारना; अ. वमन करना 1960 प्रवृत्त होना. गुज. डटा 1945
.. डाँट स. ना. देश. (डाँट संज्ञा) क्रोध में आकर डडक अ. अनु. (दे. पृ. 463, मा. हि. को-2)
. किसी दोषी को कोई कड़ी बात ऊँचे स्वर में जोर से शब्द उत्पन्न होना, बजना; स. जोर कहना 1961
से शब्द उत्पन्न करना; बजाना 1946 डाँड स. दे. 'दाँड' 1962 डढ़ अ. दे. 'दाध' 1847
डाक स. दे. 'डॉक' 1963
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश डाड़ स. दे. 'डाँड' 164
'डुगडुग' शब्द उत्पन्न होना. तुल. गुज. डुगडुग डाढ़ स. दे. 'डह' 1965
संज्ञा 1978 डार स. दे. 'डाल' 1366
डुगर अ. देश. (दे. पृ. 93, दे. श. को.) लुढ़कना,
ढरकना 1979 डाल स. दे. (* डाल; दे. इआले 5545) दुपट स. ना. देश. चुनियाना, तह लगाना 1980 गिराना; मिलाना; रखना 1967
. डुल (1) अ. भव. (सं. दुल; प्रा. डुलः दे. डास (1) स. भव. (सं. ध्वंस्; दे. इआले इआले 6453) हिलना, हटना. गुज. डूल 6896) बिछाना
'डूबना, मिट जाना' (2) स. दे. 'डस' 1968
(2) अ. दे. 'डोल' 1981 डाह स. दे. 'डह' 1969
डूक अ. देश. (दे. पृ. 93, दे. श. को.) घुसना, डिकर अ. देश. (दे. पृ. 92, दे. श. को.) चूकना. गुज. डूक 1982 चिल्लाना, कराहना 1970
डूब अ. अनु. देश. (* डुब्ब; दे. इआले 5561) डिग अ. ना. देश. (डग संगा: * डिग; दे. पानी या अन्य तरल पदार्थ की सतह से नीचे इआले 5522) हिलना; वचनभंग होना. गुज. चला जाना. गुज. डूब 1983 डग 1971
डेरा अ. दे. 'डर' 1984 डिगमिगा अ. दे. 'डगमगा' 1972
डेवढ़ अ. ना. भव (डेवढ संज्ञा; सं. व्यर्ध विशे; डिगर अ. देश. (अ. ब्यु. दे. पृ. 125, हि. दे. प्रा. दिवड्ढ; दे. इआले 6698) डेढ गुना
श.) दे. 'डगर' जाना, प्रस्थान करना 1973 होना; रोटी का फूलकर डेढ़ परतों में होना, *डिढ़ा स. ना. भव (डिढ़ विशे; सं. दृढ विशे. स. कपड़े, कागज़ आदि को कई परतों में दृम्ह; प्रा. दिढ; दे. इआले 6508) दृढ करना; ।
मोड़ना 1985 ठानना; अ. दृढ होना. तुल. गुज. दृढ विशे. डोर अ. ना. भव (डोर संज्ञा) दे. 'डोरिया' 1974
किसीकी डोर पर उसके पीछे चलना. गुज. डिभग स. दे. (दे. पृ. 93, दे. श. को.) मोहित
दोर स. 1986 करना 1975
डोरिया स. ना. भव (डोरी सज्ञा; सं. दवर डीठ अ. ना. भव (डीठ संज्ञा; सं. दृष्ट भू. कृ.
संज्ञा; प्रा. दवर; दे. इआले 6225) डोरी से प्रा. दट्ठ; दे. इआले 6518) दृष्टिगोचर
युक्त करना; बाँधकर साथ ले चलना; अनुयायी होना; स. देखना. तुल. गुज. दीठु भू. कृ.
बनाना. गुज, दोर 1987 'देखा' 1976
डोल अ. ना. भव (सं. डुल; प्रा. डोलाअंत विशे.,
दे. इआले 6585) हिलना, दोलित होना. गुज. डुकिया स. ना. अनु. ( दे. पृ. 472, मा. हि.
डोल 1988 को - 2) घूसे मारना 1977
डोलिया स. ना. भव (डोली संज्ञा; सं. दोल डुगडुगां स. ना. अनु. देश. (डुगडुगी संज्ञा; दे. विशे.; दुल् ; प्रा. डोल संज्ञा; दे. इआले
पृ. 472, मा. हि. को - 2; * डोदछ; दे. 6582) किसीको डोली में बैठाकर कहीं ले इआले 5569) चमड़ा मढ़े बाजे को लकडी जाना; कोई चीज़ चुपके से लेकर चल देना; से बजाकर 'डुगडुग' शब्द उत्पन्न करना; अ. अ. चंपत होना 1989
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९०
डोंडा अ. देश. डाँवाडोल रहना; घबराना, स. विकल करना 1990
डौल स. ना. देश. सुडौल बनाना; अ. युक्ति निकालना 1991
ढँक स. दे. 'ढक' 1992
ढंढोर स. ना. देश. (ढंढोरा संज्ञा दे. पृ. 96, दे. श. को.) ढंढोरा पीटना; ढूँढना गुज. ढंढोळ; तुल. गुज. ढंढेळो संज्ञा 1994
ढंढोल स. दे. 'ढंढोर' 1995
ढक स. दे. 'ढाँक' 1996
ढंकिल स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 126, हि. दे. ढाँस अ. ना. अनु. ( ढाँस संज्ञा दे. पृ 482, श.) ढकेलना 1993 मा. हि. को - 2 ) सूखी खाँसी खाँसना गुज. घाँस 2013
ढकोस स. अनु. (दे. पृ. 480, मा. हि. को - 2 ) अत्यधिक मात्रा में खाना या पीना, जल्दी जल्दी खाना या पीना 1999
नमन अ. अनु. (दे. पृ. 481, मा. हि. को - 2 ) लुढकना; चक्कर खाकर गिरना 2000
ढिसर अ. देश. फिसल पड़ना; प्रवृत्त होना 2016
ढकेल स. देश. धक्का देकर आगे बढ़ाना; ठेलकर ढील स. ना. देश. ( ढीला विशे.; * ढिल; प्रा. गिराना. गुज, धकेल 1997
ढकोर स. दे. 'ढकेल' 1998
ढमक अ. अनु. ( दे. पृ. 481, मा. हि. को - 2 ) 'दमदम' शब्द उत्पन्न होना. गुज. ढमक 2001 ढमला अ. दे. 'ढनमना' 2002
ढय अ. दे. 'दह' 2003
रस. दे. 'ढ' 2004
ढरक अ. दे. 'ढर' 2005
ढरहर अ. दे. 'ढर' 2006
ढल अ. देश. ( * ढल, प्रा. ढलू दे. इआले 5581 ) ढरकना; बीतना. गुज. ढळ 2007 ढलक अ. दे. 'ढल' 2008
ढह अ. देश. ( दे. पृ. 97, दे. श. को. ) इमारत आदि का टूट-फूट कर ज़मीन पर गिरना; ध्वस्त होना. गुज. ढस 2009
डोंडा
ढहर अ. दे. 'दह' 2010
ढाँक स. देश. ( * ढँक्; दे. इआलें 5574 ) छिपाना आच्छादित करना; अ. छिपना; आच्छादित होना. गुज. ढाँक 2011
ढाँप स. 'ढाप' 2012
ढास. दे. 'दह' 2014
ढाप स. देश. (* ढप्प दे. इआले 5579 ) ढाँकना 2015
ढिल्ल; दे. इआले 5590) ढीला करना; सरकने देना. तुल. गुज. ढीलु' विशे. 'ढीला'
2017
ढुक अ. दे. 'हूँक' 2018
दुर अ. दे. 'ढर' 2019 दुरक अ. दे. 'ढरक' 2020
दुल अ. देश. ( * दुल्; दे. इआले 5593 ) ढरकना; ढाया जाना. गुज, ढळ 2021 दुलक अ. दे. 'दुल' 2022
हूँक अ. भव (सं. ढौक्; प्रा. ढुक्क्; दे. इआले 5592 ) घुसना; ताक में बैठना. गुज. ढूंक'पास जाना' 2023
ढूंढ स. देश. ( * ढूण्ढ; प्रा. ढंढल, ढंढोल्ल्; दे. दे. इआ 6839 ) गुज. ढूंढ ढूंड 2024 ढांक स. दे. 'ढकोस' 2025
ढr स. भव (सं. ढौक्; प्रा. ढोइय विशे. दे. इआ 5610 ) बोझ को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचाना 2026
ढाक अ. अर्धसम ( सं. ढौक्, दे. इआलें 5611 ) झुकना 2027
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश ढोर अ. देश. (दे. पृ. 99, दे. श. को.) स. व्याकुल होना, कष्ट पहुँचाना. गुज.
ज़मीन पर लोटना; अनुयायी बनना; स. ढालना तडफड, तरफड 2043 208
*तड़ाग अ. अनु. (दे. पृ. 498, मा. हि. को ढाव स. दे. 'ढ' 2029
-2) डींग मारना; उछल-कूद मचाना. तुल.
गुज. तडाको 'तडाका' 2044 *ढोह स. दे. 'ढो' 2030 ढौंस अ. अनु. आनंद -ध्वनि करना 2031
*तड़िपा अ. दे. 'तड़प' 2045 ढौक स. दे. 'ढकोस' 2032
तणक्क अ. अनु. (दे. पृ. 499, मा. हि. को
-2) तणतण शब्द होनाः स. तणतण शब्द तबिया अ. ना. भव (ताँबा संज्ञा; सं. ताम्र विशे. उत्पन्न करना 2046 प्रा. तंब; दे. इआलें 5779) किसी पदार्थ का
तता स. ना. भव (तप्त विशे; सं. तप; प्रा. तांबे के रंग का हो जाना; खाद्य पदार्थ का
तत्त; दे. इआले 5679) गरम करना. तुल. तांबे की गंध से युक्त होना. तुल. गुज. तांबू,
गुज. तातुं विशे. 'तप्त' 2047 तांबड संज्ञा 2033
ततार स. ना. भव (ततार संज्ञा; स. तप्त + कारि: *तक स. दे. 'ताक' 2034
दे. इआले 5680) गरम जल से धोना तगिया स. दे. 'ताग' 2035
2048 तच अ. देश. तप्त होना; संतप्त होना 2036 *तनक अ. दे. 'तिनक' 2049 तच्छ स. भव ( सं, तक्ष: प्रा. तक्ख, तच्छ्; दे. तनग अ. दे. 'तिनक' 2050
इआले 5620) विदीर्ण करना, फाडना. गु. तनतना अ. भव ('तन्' का द्विरुक्त ? -ह. भा.) ताछ 2037
बहुत तनकर अपनी शान दिखाने के लिए तज स. अर्धसम (सं. त्यज) छोडना गुज. क्रोध प्रकट करना; झुंझलाना 2051 तज, त्यज 2038
तन्ना अ. दे. 'तनक' 2052 तडक अ. ना. अनु. भव ( स. त्रट संज्ञाः प्रा. तप अ. सम (सं. तप्) धूप, आँच आदि से
तडतडम्त विशे.; तडतडा संज्ञा; दे. इआले. गरम होना; किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए 5988) आँच पाकर 'तड्' की आवाज़ के कष्ट सहना. गुज. तप 2053 साथ फटना या टूटना, कर्कश स्वर में बोलना.
__ *तपक अ. अनु. देश. (* तप्प; दे. इआले गुज. तड़क, तडतड 2039
5444) धड़कना; टपकना 2054 तड़तड़ा (1) अ. अनु. भव. दे. 'तड़क
तम अ. दे. 'तमक' 2055 (2) अ. अनु. वि. (तराक अर. दे. पृ. 108, हिं. दे. श.) 2040
तमक अ. ना. भव (ताम्राक्ष संज्ञा; दे. इआले
.. 5781) तथा प्रा. तम दे. पृ. 197, हि. दे. तड़प अ. देश. अत्यंत दुःखी होना, छटपटाना.
श.) आवेश में आना; रुष्ट होना 2056 गुज. तड़प, तलप 2041
तमतमा अ. दे. 'तमक' 2057 तड़फ अ. दे. 'तड़प' 2042
तर अ.. भव सं. तृ; प्रा. तर ; दे. इआले 5702) तड़फड़ा अ. अनु. देश. (* तडफड़; प्रा. . पार होना; तैरना; स. पार करना. गुज. तर
तडप्फड्: दे. इआले 5634 ) बेचैन होना; 2058
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तरक तरक (1) अ. अर्धसम (सं. त) तर्क करना; तलफ अ. देश. (दे. पृ. 101, दे. श. को.) सोच-विचार करना
पीड़ा से व्याकुल होना, छटपटाना. गुज. तलफ, (2) अ. दे. 'तड़क' 2059
तलप 2073 *तरछा अ. ना. भव (तिरछा विशे.; सं..
*तलमला अ. दे. 'तिलमिला' 2074 तिरश्च विशे.; प्रा. तिरिच्छ; दे. इआले 5822 ) तिरछी नज़र से किसी की ओर देखना
तलवास अ. दे. 'तलासि' 2074 (अ) तुल. गुज. तिरछु, त्रांसु विशे. 2060
तलाश स. ना. वि. (तलाश संज्ञाः फा.) तलाश तरज अ. अर्धसम (सं. तर्ज) डाँटकर बोलना;
करना; किसि बात या विषय का अनुसंधान धमकी देते हुए कहना. तुल. गुज. तरज संज्ञा
करना. तुल. गुज. तलाश संज्ञा 2075 'त्रास, भय' 2061
तलासि स. ना. देश. (तलवाँसा संज्ञा; * तरफरा अ. दे. 'तड़फड़ा' 2062
तलपादघर्ष; दे. इआले 5739) पाँवपच्ची तरमा अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 127, हि. दे. करना, दबाना. गुज. तळांस 2076
श.) नाराज होना, किसी पर बिगड़ना 2063 तव अ. भव (सं. तप ; प्रा. तव् ; दे. इआले तररा अ. अनु. (दे. पृ. 155 मा. हि. को.. २) 5671) बहुत गरम होना. गुज. तव 2077 ___ऐंठ दिखाना, स. मरोडना 2064
तह अ. ना. देश. (तेह संज्ञा) क्रुद्ध होना; तेहा तरस अ. अर्धसम (सं. तष) किसी वस्त के लिए दिखाना 2078 व्याकुल होना. गुज. तरस, तलस 2065
तहसील स. ना. वि. (तहसील संज्ञा; अर.) तराश स. ना. वि. (तराश संज्ञा; फा.) काटना, मालगुजारी, चंदा आदि वसूल करना 2079 फाँक-फाँक करना 2066
तहा स. ना. वि. ( तह संज्ञा; फा.) तह लगाना, तरास (1) स. दे. 'तांस'
लपेटना 2080 (2) स. दे. 'तराश' 2067 तरिया (1) स. ना. भव (तरे अव्यः तरा संज्ञाः तहिया स. दे. 'तहा' 2081
सं. तल संज्ञा; प्रा. तल; दे. इआले 5731) ताँक अ. दे. 'ताक' 2082 नीचे करना; ढाँकना; अ. तले बैठना. तुल. ताँवर अ. ना. ( ताँवर संज्ञा) ताप से युक्त गुज. तळ, तळियु संज्ञा 'तल'
होना; बुखार होना. तुल. गुज. तावड संज्ञा (2) स. ना. वि. ( तर विशे. फा.) पानी 2083 आदि के छीटे देकर तर करना 2068
__ ताँस स. भव (सं. त्रस्, प्रा. तास; दे. इआले तरेर स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 127, हि. दे. 6014 ) धमकाना: डराना 2084
श.) तिरछे देखना; थपेडा देना. तुल. गुज. तरेराट सज्ञा 'चीख, क्रोध का आवेग' 2069
ता स. भव. (सं. तपः प्रा. ताव दे. इआलें तर्क अ. दे. 'तरक' 2070
5771) तपाना. गुज. ताव 2085 *तर्ज अ. दे. 'तरज' 2071
ताउ स. दे. 'ता' 2086 तल स. भव (स. तल ; प्रा. तल; दे. इआले ताक स. भव (सं. तक प्रा. तक्क; दे. इआले
5736) घी या तेल में पकाना. गुज, तळ 5716 ) देखना, स्थिर दृष्टि से देखना. गुज. 2072
ताक 2087
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
ताग स. ना. देश. ( तागा संज्ञा ; * त्रागा; प्रा. तग्ग संज्ञा दे. इआलें 6010 ) रजाई आदि में दूर दूर पर सिलाई करना. तुल. गुज. त्रागो, तागडे । संज्ञा 'धागा' ताग 'गहराई नापना' 2088
*ताछ अ. ना. देश. ( ताछन संज्ञा ) वार बचाने के लिए शत्रु के बगल से होकर आगे बढ़ना
2089
ताड़ स. भव (सं. तड्; प्रा. ताडू दे. इआलें 5633 तथा 5752 ) भाँपना, मारना गुज. ताड ' मारना' 2090
तान स. भव ( सं . तन्; प्रा. तानिअ विशे.; दे. इआलें 5669 तथा 5762 ) खींचकर कड़ा करना; खड़ा करना. गुज. ताण 2091 ताप स. दे. 'तप' ताप से अपना शरीर या अंग गरम करना. गुज. ताप 2092
ताम स. देश. ( दे. पृ. 102, दे. श. को. ) खेत जोतने के पूर्व खेत की घास उखाड़ना
2093
तिग स. देश. ( (दे. पृ. 102, दे. श. को. ) देखना, भाँपना 2094
तिडल स. देश. खींचना 2095
तिनक अ. ना. भव ( तृण्ण विशे.; सं. तृद्; दे. इआलें 5908) झल्लाना; रूठना; धडकना 2096 तिनग अ. दे. 'तिनक' 2097 तिनख अ. दे. 'तिनक' 2098 तिनतिना अ. दे. 'तिनक' 2099
तिमा स. देश. (दे. पृ. 548, मा. हि. को - 2 ) भिगोना 2100
तिर अ. दे. 'तर' 2101
तिरछा अ. दे. 'तरछा' 2102 तिरतिरा अ. अनु. ( दे. पृ. 549, मा. हि. को - 2 ) द्रव पदार्थ का बूँद बूँद करके टपकना
2103
९३
तिरमिरा ( 1 ) अ. ना. देश. ( तिरमिरा संज्ञा; * तिरमिरि; दे. इआलें 582 ) ( तिरमिरा के रोगी की ) अधिक प्रकाश के कारण आँखें' चौंधियाना
(2) अ. दे. 'तिलमिला 2101 तिरवरा अ. दे. 'तिरमिरा' 2105
तिरास अ. ना. अर्धसम (सं. त्रास ) भयभीत या त्रस्त होना; स. भयभीत करना. तुल. गुज. त्रास संज्ञा 2106
तिलक (1) अ. देश. गीली मिट्टी या ज़मीन का सूखकर फटना
(2) अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 128, हि. दे. श. ) फिसलना 2107
तिल्छ अ. देश. ( प्रा. तल्लिच्छ दे. पृ. 430; पा. स. म. ) व्याकुल होना, छटपटाना 21 (8 तिलमिला अ. दे. 'तिर मेरा' 2103 तिलौंछ स. भव (सं. तैल + प्रोक्ष; दे. इआलें 5958 तथा 9007 ) किसी चीज़ पर तेल लगाना या रगड़ना; चिकना करना 2110 तिष्ठ अ. सम. (सं. तिष्ठ् ) स्थिर रहना 2111 तिसा अ. ना. भव ( तृषा; सं. तृष् प्रा. तिसा संज्ञा दे. इआलें 5936) प्यासा होना. तुल गुज, तरस 'प्यास' 2112
दिया अ. ना. भव ( तुंद, तोंद, संज्ञा सं. तुण्ड संज्ञा; प्रा. तुंद; दे. इआलें 5858 ) तोंद बढ़ना; स. तोंद बढ़ाना. तुल. गुज, दुड, दुन्द संज्ञा 2113
तुअ अ. देश. चुना; गर्भपात होना 2114 तुक अ. दे. 'तक' 2115
* तुट्ठ स. ना. भव (सं. तुष्ट, तुष प्रा. तुट्ठ विशे; दे. इआलें 5895 ) संतुष्ट होना. गुज. तूठ, ट्रुठ 2116
तुतरा अ. दे. 'तुतला' 2117
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९४
तुतला अ. अनु. शब्दों तथा वर्णों का अस्फुट और कुछ का कुछ उच्चारण करते हुए बोलना. गुज. तोतळा 2118
तुन स. दे. 'धुन' 2119
तुनक (1) अ. ना. वि. ( तुनक विशे.; फा. .) छोटी सी बात से अप्रसन्न होना (2) अ. देश. उँगली से डेार को झटका देना
2120
तुभ अ. देश स्तब्ध होना 2121
तुरप स. भव (सं. त्रुप्; दे. इआले 6068 ) बखिया करने के लिए लंबाई के बल सीधे सीना. गुज. टूप 2122
* तुरा अ. देश. आतुर होता; स. तुडाना 2123 तुरुप स. दे. 'तुरप' 2124
तुर्शा अ. ना. वि. ( तुर्श विशे; फा. ) खट्टा हो जाना; स. खट्टा करना 2125
तँब स. दे. 'तूम' 2126
तू अ. भव (सत्रुपू दे. इआलें 6:67 ) चूना गिरना. गुज. तरवा 'प्राणियों का गर्भपात हो
जाना' 2127
तूख अ. देश. तुष्ट होना; स. तुष्ट करना 2128 तूट अ. दे. 'टूट' 2129
तूठ अ. ना. भव (तुष्ट विशे.; सं. तुष; प्रा. तु विशे.; दे. इआलें 5895) गुज. तूट, दुठ 2130
तूठा अ. दे. 'तूठ' 131
तूम स. भव. (सं. तुब्; दे. इआलें 5870) "उँगलियों से नोच-नोच कर रुई के रेशों को अलग करना; पीटना 2132 तूल (1) स. देश. गाड़ी के पहिए निकालकर उनके भीतरी छेद में तेल डालना; औंगना (2) अ. देश. तुलना करना 2133 * तूम अ. भव (सं. तुष; प्रा. तुस्सू दे. इआलें 5897 ) संतुष्ट होना; सं. संतुष्ट करना 2-34
तुतला
* तृपिता अ. देश. तृप्त होना; स. तृप्त करना. तुल. गुज. तृप्त विशे. 2135
तृप्ता अ. ना. सम. ( सं . तृप्त विशे.) तृप्त होना; तृप्त करना 2136
* तेज स. दे. 'तज' 2137
तेड़ स. दे 'टेर' 2138
तेहरा स. ना. भव ( तेहरा विशे; * त्रिधार; प्रा तिहा; दे. इआलें 6027 ) तीन तहों में करना; तीसरी वार करना 2139
तै अ. देश तप्त होना; दुःखी होना; स. ताना
2140
तैर अ. भव (सं. तृ प्रा. तर दे. पृ. 428, पा. स. म. ) किसी जीव का हाथ-पाँव आदि चलाते हुए पानी पर चलना; उतराना गुज. तर 2141
* तोट अ. दे. 'टूट' 2142 तोतरा अ. दे. 'तुतला' 2143
तोप स. भव (सं. तुप दे. इआलें 5971 ) गाड़ना, छिपाना 2144
तोल (1) स. भव (सं. तुल; प्रा. तोल; दे. इआलें 5970 ) किसी पदार्थ का परिमाण या भारीपन जानने के लिए उसे तराजू या काँटे पर रखना: गुज. तोळ, तोल
(2) स. देश. गाड़ी की धुरी में तेल लगाना
2145
*तोष स. सम. ( सं तुष्) तृप्त करना; अ. तृप्त होना. गुज. तोष 2146 तौक अ. दे. 'तौस' 2147
तौंस अ. भव ( स तपस्यू दे. इआलें 5675) तप जाना; गरमी से झुलस जाना 2148 तौल स. दे. 'तोल' 2149 तौस स. दे. 'तौस' 2150
त्याग स. ना. सम ( त्याग संज्ञा; सं. त्यज् )
त्याग करना 2151
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश *त्याज स. दे. 'त्याग' 2152
थलक अ. देश ( अ. व्यु. दे. पृ. 92, तथा 128, त्यौस अ. ना. सिर घूमना 2153
हि. दे. श.) मोटाई या ढीलेपन के कारण *त्रस अ. सम (स. त्रस्) त्रस्त होना; स. चलने आदि में हिलना; काँपना 2.70 · भयभीत करना 2154
थलथला अ. दे. 'थलक' 2171 *त्रिपिता अ. दे. 'तृपिता' 2155
थलरा अ. दे. 'थलक' 2172 त्रिय अ. देश. तरना 2156 स्ट अ. सम. ( स . त्रुट ) टूटना 2157 थसक अ. देश. नीचे की ओर दबना या बैठना त्वचक अ. ना. देश. ( त्वचा सज्ञा) वृद्धावस्था
2173 के कारण शरीर का चमड़ा झूलना, पुराना थसर अ. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 128, हि. दे. पड़ना 2158
श.) शिथिल होना 2174 थुम अ. दे. 'थम' 2159
*थह स. दे. 'थाह' 2175 थक अ. देश. (* स्थक्क; प्रा. थक्क विशे; दे. थहर अ. दे. 'थर्रा' 2176 दुआले 13737) श्रम के कारण शिथिल होनाः थहरा अ. दे. 'थर्रा' 2177 तंग आना. गुज. थाक 2160
थांब स. दे. थांभ 2178 थप स. भव (स. स्था; प्रा. थप्पिअ; दे. इआले
थांभ स. दे. थाम 2179 13750) स्थापित करना; बैठाना; अ. स्थापित
थाक अ. दे. 'थक' 2180 होना. गुज. थाप 2161 थपक स. अनु देश. प्यार या लाड़-चाव से किसी
थान स. भव (सं. स्था, प्रा. थाण, ठाण संज्ञा की पीठ आदि पर हथेली से हलका करना.
दे. इआले 13753) तय करना 2118 गुज. थपकाव 2162
थाप (1) स. ना. देश. (थाप संज्ञा; थप्प; दे.
इआले 6091) स्थापित करना। थपथपा स. दे. 'थपक' 2163
(2) स. भव (सं. स्था; प्रा. थप्पिअ विशे. थपेड़ स. ना. देश. (थपेड़ा संज्ञा) थपेड़ा दे. इआले 13759 ) दे. 'थप' गुज. थाप लगाना; आघात करना. तुल. गुज. थपाड़, 2182 थपाट संज्ञा 2164
थाम स. भव (सं. स्तम्भ; प्रा. थंभू, ठंभू दे. थर स. अर्धसम (सं. स्तृ; दे. इआले 13687) इआले 13683) अवरुद्ध करना; सँभालना. हथोड़ी से धातु को टीपना. गुज. थर थर गुज. थाम 2183 चढाना, अनाज की सुरक्षा के लिए घास थाम्ह स. दे. 'थाम' 2184 बिछाना' 2165
थाह स. ना. देश. (थाह लेना; गहराई का पता थरक स. अनु. देश. (* थर; दे. इआले 6092)
लगाना 2185 भय से काँपना. गुज. थरक 2166
थिर अ. ना. भव (थिर विशे.; सं. स्थिर विशे.; थरथरा अ. दे. 'थरहरा' 2 67
प्रा. थिर; दे. इआले 13771) किसी द्रव थरहरा अ. देश. (* थर: प्रा. थरहर दे. इआले पदार्थ का हिलना-डोलना बंद होना; दे.
6092) काँपना. गुज. थरथर, थथर 2168 'निथर' तुल. गुज. थीर विशे.; ठर 'जमना'; थर्रा अ. दे. 'थरहरा' 2169
ठेर 'तय करना' 2186
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थिरक अ. अनु. देश. (दे. पृ. 107, दे. श. को. ) चंचलता के साथ पैरों को उठाते या हिलाते हुए नाचना; आगे-पीछे डोलना. गुज.
थरक 2187
थुड अ. ना. भव ( थोड़ा विशे; सं. स्तोक सज्ञा; प्रा. थोग; दे. इआले 13720 ) कम पड़ना. तुल. गुज. थेोडुं विशे. 2188
थुतकार स. दे. 'थुथकारा' 2189
थुथकार स. ना. अनु. भव ( थुथकार संज्ञा; सं. थुत्कार संज्ञा; प्रा. थुत्कार दे. इआले 6103 ) थू थू करते हुए किसी को निंद्य बतलाना. तुल. गुज. थू थू संज्ञा 2190
थुथला अ. ना. अनु. भव (सं. थू थू; दे. आ 6104) दे. 'थुथकार' 2191 था अ. ना. देश. ( थूथन संज्ञा * थुत्थ; दे. इआ 5853 ) थूथन फुलाना, नाराज होकर मुँह फुलाना 2192
थुपर स. देश. महुए की बालों का ढेर इस उद्देश्य से लगाना कि उनमें गर्मी आवे और वे कुछ पक जायँ 2193
थुर (1) अ. दे. 'थुड़'
(2) स. देश कूटना, पीटना 2191
थुरथुरा अ. देश. ( अ. व्यु दे. पृ. 128, हि. दे. श. ) कंपित होना 2195
भूँक स. दे. 'भूँक' 2196
थूक अ. ना. देश. ( थूक संज्ञा; थुक्क; प्रा. थुक्क स ंज्ञा; दे. इआले 6097 ) मुँह से थूक बाहर निकालना या फेकना; धिक्कारना; स. उगलना; निंदा करना. गुज. थूंक 2197 थूर स. दे. 'थुर' 2198
थप स. दे. (* स्तुप दे. इआलें 13723 ) मिट्टी आदि के लोंदे को किसी वस्तु पर इस प्रकार रखना कि वह उस पर चिपक जाय; आरोपित करना. गुज. थोप 2199
थिरक
दंड स. दे. 'दाँड' 2200
दंदा अ. देश. गरमी के प्रभाव में आना; स. सरदी से बचने के लिए आग के पास बैठकर कंबल, रजाई आदि ओढकर अपना शरीर गरम करना 2201
दंश स. सम (सं. दंश ) दाँत से काटना; डंक मारना. गुज. दंश 2202
द्गद्गा अ. अनु. चमकना स. चमकाना 2203 दुध स. ना. अर्धसम (सं. दग्ध विशे.) दग्ध
करना; अ. जलना; दुःखी होना 2204 दगल अ. ना. वि. ( दगल संज्ञा; अर. ) छल करना. तुल. गुज. दगल संज्ञा 2205 दच अ. देश. (दे. पृ. 108, दे. श. को. ) गिरना 2206
दचक अ. अनु. ( दे. पृ. 18, मा. हि. को - 3 ) ठोकर या धक्का खाना; स. धक्का लगाना 2207
दज्झ अ. भव (सं. दह, प्रा. दज्झ; दे. पृ. 439, सा. गु. को तथा दे. इआले 6248 ) दहन होना; जलना. गुज. दाझ 2208
दड़ोक अ. अनु. दहाड़ना 2209
* दढ़ अ. ना. भव (सं. दग्ध विशे; प्रा. दधःदे. इआलें जलना) गुज. दाघ 2210
दत (1) अ. देश. किसी काम में दत्तचित्त होकर
लगना.
(2) अ. दे. 'डट' 2211
दध अ. दे. 'द' 2212 दधक स. दे. 'दाध' 2213
दनदना स. अनु. देश (दे. पृ. 109, दे. श. को) 'दन दन' शब्द होना; स. 'दन दन' शब्द करना; खुशी मनाना 2214 दपट स. दे. 'डपट ' 2215
दफना स. ना. वि ( दफ़न संज्ञा अर) मुरदे को जमीन में गाड़ना; किसी चीज़ को जमीन में गाड़ना. गुज. दफनाव 2216
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश दफरा स. देश. (दे. पृ. 109, दे. श. को.) दर-गुज़र अ. ना. वि. (दर-गुजर विशे; फा.) किसी नाव को दूसरी नाव के साथ टक्कर उपेक्षापूर्वक छोड़कर अलग होना; बाज आना. लगने से बचाना 2217
तुल. गुज. दर-गुजर संज्ञा. 2229 दब अ. ना. देश. (दाब संज्ञा; *दब्ब; दे. दरदरा स. ना. अनु. (दरदरा विशे; ) इस प्रकार
इआले 6173) भार के नीचे आकर ऐसी कोई चीज पीसना जिससे उसके कण दरदरे स्थिति में होना कि इधर-उधर न हो सके; बनते हों 2230 दाब में आना. गुज. दबा 2218
*दरप अ. अर्धसम (दर्प संज्ञा; सं. दृप्) दर्प दबक अ. देश. भय के मारे सिमटकर तंग
से युक्त होना; अभिमान करना 2231 जगह में छिपना; स. पीटकर लंबा करना 2219
दरबरा स. दे. 'दरदरा' 2232 दबोच स. देश. झपटकर दबा बैठना; छिपाना
दरर स. दे. 'दर' 2233 2220
दरशा स. दे. 'दरसा' 2234 *दम (1) अ. ना. वि. (दम संज्ञा; फा.) सांस
दरसा स. अर्धसम (सं. दर्शय् ) दिखलाना; फूलने लगना, थक जाना. तुल. गुज. दम संज्ञा
__ समझाना; अ. देख पड़ना. गुज. दरशाव, दरश
2235 (2) स. सम (सं. दम् ) दमन करना. गुज. दम 2221
दरार अ. ना. भव (दरार संज्ञा; सं. १ः दे. दमक अ. अनु. देश. (अ. व्य. दे. पृ. 129. इआले 6192) विदीर्ण होना; स. फाडना
2236 हि. दे. श.) चमकना; सुलग उठना. गुज. दमक 2222
दरेर स. दे. 'दरर' 2237 दमदमा स. ना. भव (सं. दमदम; दे. पृ. 19२, दर्रा अ. अनु ( दे. पृ. 32, मा. हि. को-2) हि. दे. श.) शोरगुल करना; 'दमदम' ध्वनि तेजी से और बेधड़क चलते हुए आगे बढ़ना करना. तुल. गुज. धमधमा 2223
2238 दमस स. देश. दमन करना; आघात करना दर्शा स. दे. 'दरसा' 2239 2224
दल स. भव (सं. दल; प्रा. दल; दे. इआले *दया अ. ना. देश (दया संज्ञा) दयापूर्ण 6216) चक्की में डालकर दो या अधिक
व्यवहार करना; दयालु होना. तुल. गुज. दया टुकड़े करना; कुचलना. गुज. दळ 2240 संज्ञा 2225
दलक अ. दे. 'दल' किसी चीज़ के ऊपर के दर स. दे. 'दल' गुज. दळ 2226
दल या मोटी तह का रह-रहकर कुछ ऊपर दरक अ. भव. ( सं. दृ; दे. इआले 6192) उठते और नीचे गिरते हुए काँपना; डर के
खिचाव या दबाव से फटना, मसकना 2227 मारे काँपना 2241 दरकच स. अनु ( दे. पृ. 27, मा. हि. को-3) दलमल अ. देश. किसी चीज़ को खूब दलना
हलके आघात से थोडा दबाना: कटकर मोटे और मलना 2242 मोटे टुकड़े करना; अ. उक्त क्रिया से दबना *दव अ. देश. जलना; स. जलाना 2243 2228
*दष्ष स. देश. देखना 2244
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दह अ. भव (सं. दह; प्रा. दह्; दे. इआले *दाध स. ना. भव (दाध संज्ञा; सं दग्ध विशे,
6245) जलना; बहना. गुज. दह 2245 दहा प्रा. द; दे. इआले 6121) जलाना. दहक अ. दे. 'दह' लपट फेंकते हुए जलना: गुजः दाध 4401 तप्त होना 2246
दाप स. ना. भव ( दाप संज्ञा; * द्रप्प; प्रा. दहपट स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 129, हि. दे.
दप्प संज्ञा; दे. इआलें 6619) दबाना; रोकना
2262 श.) ढहाना, कुचल डालना 2247 दहबट स. दे. 'दहपट' 2248
दाब स. ना. देश. ( दाब संज्ञा; * दब्ब; दे. दहर अ. दे. 'दहला' 2249
इआलें 6173) भार या दबाव के नीचे लाना; दहल अ. देश. डरकर काँप उठना. 2250
दमन करना. गुज. दाब, दबाव 2263 दहाड़ अ. ना. दे. 'धाड़' 2251
दाव स. भव (सं. दम् प्रा. दामिय विशे; दे. दाँ स. ना. भव (सं. दामन संज्ञाः दे. इआले. इआल 6284) दमन करना; मिटा देना. 6285) डंठल से दाना अलग करने के लिए
गुज, दाम 'बाँधना' 2264 फसल को बैलों से रौंदवाना. गज. दाम दिढ़ा स. ना. भव ( दृढ विशे; स. दम्ह; प्रा. 'बांधना' 2252
दिढ, दढ विशे; दे. इआले 6508) दृढ करना; दाँड स. ना. भव (सं. दण्ड संज्ञाः प्रा. दंडिअ
पक्का करना. गुज. दड 'दृढ और समतल विशे; दे. इआले 6136) दंड करना. गुज.
करना' 2265 दंड 2253
*दिप अ. दे. 'दीप' 2266 दाँत अ. ना. भव (सं. दन्त संज्ञा; प्रा. दंत; दे.
ही दिस अ. भव (सं. दशः प्रा. दिस्स; दे. इआले इआले 6152) (पशुओं का) जवान होना 6516) दिखना. गुज. दीस 2267 (हथियार का) कुंठित होना. तुल. गुज. दाँत दीठ अ. ना. भव 'सं. दृष्ट भू. कृ.: प्रा. दट्ठ, संज्ञा. 2254
देखना दिठ; दे. इआले 6518 ) तुल. गुज. दाँव स. दे. 'दाँ' 2255
__दीठु भू. कृ. 'देखा' 2268 दाग स. ना. वि. ( दाग़ संज्ञा; फा.) जलाना. *दीप अ. भव. (सं. दीप् : प्रा. दिप्पु; दे.
तपाये हए लोहे या अन्य धात की मदा से इआल 6362) दाप्त होना; चमकनाः स. किसी के शरीर पर विशेष प्रकार का चिह चमकाना. गुज, दीप 2269
अंकित करना. तुल. गुज. दाघ संज्ञा 2255 दीस अ. दे. 'दिस' 2270 दाज अ. दे. 'दाझ' 2257
दुक अ. देश (दे. पृ. 81, मा. हि. को. - 3) दाझ अ. भव (सं. दहा प्रा. दज्झ; दे. इआले लुकना, छिपना 2271 6248) दग्ध होना, जलना; स. जलाना. दुक्क अ. देश. किसा को दोष देना 2272 गुज, दाझ 2258
दुख अ. ना. भव (दुःख संज्ञा; सं. दुःख ; प्रा. दाट स. दे. 'डॉट' अ. जान पड़ना, प्रतीत होना दुक्ख्; दे. इआले 6376) दर्द करना, पीड़ा 2259
होना. गुज. दुख 2273 दाद अ. दे. 'धाड़' 2260
दुग अ. देश. छिपाना 2274
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९९
हिन्दी-गुजराती धातुकोश दुचक अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 129, हि. दे. दुलार स. ना. भव (सं. दुर्लालित; प्रा. दुल्लालिय; श.) दबना 2275
ह. भा.) बच्चों से दुलार करना; बहुत दुलार *दुझार स. देश. झटकारना, झाडना 2276 करके बच्चों को बिगाड़ना. तुल. गुज. दुलारो दुतकार स. अनु. (दे. पृ. 84, मा. हि. को - 3)
__ संज्ञा 'दुलारा पुत्र' 2292 'दुत-दुत' कहकर तिरस्कार करना; धिक्कारना. दुह स. भव (सं. दु: प्रा. दुह; दे. इआले गुज. धुतकार. 2277
6476) स्तन और चुचुक को उँगलियों से दुदला स. दे. 'दुतकार' 2278
दबाकर दूध निकालना; सार भाग निकालना. दुदकार स. दे. 'दुतकार' 2279
गुज. दुह, दोह 2293 दुनर अ. दे. 'दुनव' 2280
दुहर अ. दे. 'दोहर' 2294 दुनव अ. ना. भव ( दोनों विशे; सं. द. विशे; दुहरा स. दे. 'दोहर' 2295
प्रा. दो; दे. इआले 6648) नरम या लचीली दूँद अ. ना. देश. ( ₹द संज्ञा) उपद्रव करना; चीज का इस प्रकार झुकना कि उसके दोनों जोर का शब्द करना 2296 छोर एक दूसरे से मिल जाय; लचकर दोहरा दूख स. देश. किसी पर दोष लगाना; अ. नष्ट हो जाना: स. लचाकर दोहरा करना. गुज. बेवड होना; दुखना 2297 तुल, गुज. बे विशे 'दो' 2281
दूस स. देश. कष्ट देना. गुज. दूझ 'दूध देना, दुबक अ. दे. 'दबक' 2282
रीसना' 2298 दुबरा अ. दे. 'दुबला' 2283
दूभ स. भव (सं. दभूः प्रा. दूभ् ; दे. इआले दुबला अ. ना. भव (दुबला विशे; सं. दुर्बल 6175) दुःखी करना, दिल जलाना. गुज. विशे; प्रा. दुब्बल; दे. इआले 6438) दुबला दूभ, दूभव 2299 होना. तुल. गुज. दूबळु 2284
दम अ. देश. हिलना-डोलना 2300 दुरदुरा स. अनु. दुरदुर करते हुए तिरस्कारपूर्वक दूष स. सम (सं. दुष) दोष लगाना; दूषित दूर करना 2285
___करना. गुज. दूष 2301 दुराना अ. ना. भव (दूर विशे; सं. दूर अन्य; दूह स. दे. 'दुह ' 2302
प्रा. दूर; दे. इआले 6495 ) दूर होना, हटना; दढा स. ना. सम (सं. दृढ़ विशे.) दृढ करना; स. दूर करना; छिपाना. तुल. गुज. दूर विशे. स्थिर करना. तुल. गुज. दृढ विशे. 2303 2286
दे स. भव (सं. दा; प्रा. दा; दे. इआले दुरिया अ. दे. 'दुरा' 2287
___6141 ) किसी वस्तु पर से अपना स्वामित्व दुल अ. भव. (सं. दुल; प्रा. डुल; दे. पृ. 373, हटाकर दूसरे को उसका स्वामी बनाना; मारना.
पा. स. म. तथा इआले 6453) हिलना, 2304 डोलना. गुज. डूल 'मिट टाना' 2288
देख स. भव ( स. दृश; प्रा. देख; दे. इआले दुलक अ. दे. 'दलक' 2289
. 6507 ) नेत्रों द्वारा किसीका ज्ञान प्राप्त दुलख स. देश. बार-बार बतलानाः बार-बार करना; खोजना. गुज. देख. 2305 दोहराना; अ. मुकर जाना 2290
दोंक अ. अनु. (दे. पृ. 122, मा. हि. को-3) दुलरा स. दे. 'दुलार' 2291
गुर्राना 2306
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१००
दोच स. ना. देश. (दोच संज्ञा ) दबाव डालना धँस अ. भव
2307
दोद स. देश. किसीकी कही हुई बात सुनकर भी यह कहना कि तुमने ऐसा नहीं कहा था
2308
दोष स. ना. सम ( दोष संज्ञा; सं. दुष्) किसी पर दोषारोपण करना. तुल. गुज. दोष संज्ञा
2309
दोस अ. ना. भव ( दोष संज्ञा; सं. दुष प्रा. दोस दे. इआले 6589) दोष देना. तुल. गुज. दोष संज्ञा 2310
*दोह स. देश. दोष लगाना; स. दूहना गुज. दोह 'दुह ' 2311
दोहर अ. ना. देश. (* दुधार; दे. इआले 6407) दो परत होना, दोहरा होना; स. दोहरा करना. तुल. गुज. दोहरो संज्ञा 'दोहा '
2312
दोहरा स. दे. ' दोहर' 2313 दौक (1) अ. दे. 'दमक '
(2) अ. देश. ( दे. पृ. 112, दे. श. को. ) गुर्राना, डाकना 2314
दौड अ. भव (सं. द्रु प्रा. दव्; दे. इआले 6624 ) अति वेगसे चलना हैरान होना. गुज. दोड 2315
दौर अ. दे. ' दौड' 2316
* द्रवड अ. ' दौड ' 2317
द्रव अ. सम (सं. द्रव्) द्रवित होना; बहना
2318
धँधला अ. ना. भव ( धाँधल संज्ञा. सं. धन्ध संज्ञा प्रा. धंधा संज्ञा दे. इआलें 6727 ) छल-छंद करना; जल्दी मचाना. तुल. गुज. धांधल, धंधो संज्ञा 2319
* व स. दे. 'धौंक 2320
दोच
सं. ध्वम्स् प्रा. धंसू दे. इआ 6896) किसी कड़ी या नुकीली वस्तु का दबाव पाकर भीतर घुसना; नीचे खसकना. गुज. धस 'जोश के साथ आगे बढ़ना '
2321
धकधक अ. दे. धकधका 2322
धकधका अ. अनु. देश ( *धुक्क; प्रा. धुक्काधुक्कू दे. इआलें 6820 ) भय, उद्वेग आदि के कारण हृदय का धक-धक शब्द करना; (आग) दहकना; स. (आग) दहकाना. गुज. धकधक 2323
धकपका अ. अनु. ( दे. पृ. 145, मा. हि. को 3 ) जी में दहलना; स. किसी को दहलाने में प्रवृत्त करना 2324
-
धकिआ स. दे. ' धकिया' 2325
धकिया स. ना. देश. ( धक्का संज्ञा ) धक्का देना; आगे बढने के लिए प्रेरित करना. गुज.
धकाच 2326
धकेल स. ना. देश. (* धक्क; दे. इआले 6701 ) धक्का देना; धकेलना. गुज. धकेल
2327
धगधग अ. अनु. देश. (* धग्ग प्रा. धगधग्; दे. इंआलें 6704 ) धडकना, चमकना. गुज. धगधग ' जोरों से जलना 2328
J
धस अ. देश. (दे. पृ. 146, दे. श. को - 3 ) शान्त होना, ठहरना. गुज, धस 'जोर से आगे बढना 2329
,
धचक अ. देश. ( दे. पृ. 146, दे.श. को - 3 ) दलदल में धँसना, संकट में आना; स. हलका आघात करते हुए दबाना 2330 धडक अ. अनु. देश ( * धड, प्रा. धडहडिअ संज्ञा दे. इआलें 6711 ) ' धड धड़' शब्द
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हिन्दी-गुजरातो धातुकोश
१०१ उस्पन्न होना; हृदय का स्पदन करना. गुज. धरष अ. दे. 'धरस' 2345 धडक 2332
धरस स. सम (सं. धर्ष , अच्छी तरह कुचलते धडधड़ा अ. दे. 'धड़क' 2333
या रौंदते हुए दबाना; दुर्दशा करना; अ. दबना,
सहम जाना 2346 धतकार स. दे. 'दुतकार ' 2334
धवल स. ना. सम (सं. धवल विशे.) उज्ज्वल धधक अ. अनु. देश. (* धग्ग; प्रा. धगधग; दे.
करना; चमकाना; अ. उज्जवल होना. गुज. इआलें 6704) आग का इस प्रकार जलना धोळ 2347 कि उसमें से उँची लपटें उठे, धायँ धायँ जलना.
धस दे. 'घुस' 2348 गुज. धधक 2335
धसक अ. दे. 'धंस' 2349 धधा अ. दे. 'धधक' 2336
धसमसा अ. दे. 'धस' 2350 धना अ. भव (स.धन्; दे. इआले 6719) धाँक अ. दे. 'धाक' 2351 साँड़ आदि के संयोग से गाय, भैंस आदि धाँग स. देश. कुचलना. रौंदना 2352 का गर्भवती होनाः स. गाय, भैस आदि का धाँध स. देश. (दे. पृ. 136, मा. हि. को. 3) गर्भाधान कराना. 2337
बंद करना, लूंस-ठूसकर खा लेना 2353 धप अ. देश (* धप्प; दे. इआलें 6729) धाँस अ. अनु. (दे. पृ. 164, मा. हि को. 3) वेग से आगे बढ़ना; पीटना. गुज. धप
आगे बढना: पीटना. गज. धप घोड आदि पशुआ का खासना, ढासना. तल 'वेग से आगे बढ़ना' 2338
गुज. धांस ‘सूखी खाँसी' 2354 धबक अ. अनु. (दे. पृ. 153, मा. हि. को 3)
११ धा अ. दे. 'धाव' 2355 चमकना. गुज. धबक 'धडकना' 2:39 धाक अ. ना. देश. (धाक संज्ञाः धाक्क: दे.
इआले 6769) धाक जमाना; किसी धाक से धमक अ. ना. भव (सं. धमनी संज्ञा; प्रा. प्रभावित होना. तुल, गुज, धाक संज्ञा 2356 धमधम; दे. इआलें 6735) 'धम' शब्द
धाड अ. देश. (धाटू; प्रा. धाड्: दे. इआले 6771) उत्पन्न करते हुए गिरना; झपटना. गुज. धमक 2340
___ दहाडना; बहाना; धडना 2357
धाध (1) स. देश. देखना धम स.दे. 'धौंक' 2341
(2) अ. दे. 'धाँध' 2358 धमका स. देश (* धमक्कः दे इआले 6736) धाप अ. भव (सं. धै; दे. इआले 6890) तृप्त
धमकी देना, अहित की चेतावनी देना. गुज. होना. गुज. धरा 2359. धमकाव 'डाँटना' 2342
धार स. भव (सं. धृ: प्रा. धार; दे. इआले धमधमा अ. दे. 'धमक'; कूद फाँद या चल
6791) धारण करना; ऋण लेना. गुज. धार
'अनुमान करना' 2360 फिर कर धम-धम शब्द उत्पन्न करना; धाव अ. भव (सं. धाव प्रा. धाव: दे. इआले अ. धम-धम शब्द होना. गुज. धमधमाव 6802) तेजीसे चलना, दौडना. गुज. धा 2361 2343
धिंगा अ. ना. देश. (धिंगा विशे; *डग्ग; दे. धर स. भव (सं. धृ; प्रा. धर् ; दे. इआले. 6747) इआले 5524) धींगा-धीगी करना; स. पकडना; रखना. गुज. धर 2344
किसीको धींगा-धीगी में प्रवृत्त करना 2362
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१०२
धिमा धिआ सं. अर्धसम (सं. ध्यै दे. इआले 6812) धुआँ अ. ना. भव (धुआँ संज्ञा; सं. धूम; प्रा. ध्यान करना. गुज. ध्यान 2363
धूमाअ; दे. इआले 6859) यूँए से बस जाना, धिक अ. भव (सं. दह्; दे. इआलें 6809) धुएँ की गंध से व्याप्त हो जाना 2380
उपद्रव करना; गरम होना. गुज. धीक, धीख धुक अ. देश. ( प्रा. धुक्काधुक्का दे. पृ. 490, 2364
___पा. स. म.) नीचे की ओर ढलना; टूट धिकल स. दे. 'धकेल' 2365
पडना. 2381 धिक्कार स. ना. भव (धिक्कार संज्ञा; धिक्कार; धुकधुका अ. दे. 'धकधक' 2382
प्रा. धिक्कार; दे इआलें 6808) अनुचित धुकर अ. अनु. (दे. पृ. 175, मा. हि. को. 3) बात के लिए किसी के प्रति निंदा और धुक-धुक शब्द होना. 2383 घृणासूचक शब्दों का प्रयोग करना; लानत धुक्क अ. दे. 'धुक' 2384 करना. गुज, धिक्कार 2366
धुतकार स. ना. अर्धसम (सं. धूत्कार संज्ञा) धिख स. देश. धमकाना. गुज. धख 'तेजी से
काना. गुज. धख तेजा से दुतकारना, धिक्कारना. गुज. धुतकार, 2385 जलना' 2367
धुधक अ. देश. (प्रा. धुधुअ; दे. पृ. ५००, धिया अ. दे. 'ध्या 2368 धिरा (1) स. देश. भयभीत करना
हि. दे. श.) आवाज करना 2336 __ (2) स. देश. धीरज दिलाना: अ. धीरज धुन स. भव (सं. धू, प्रा धुण : दे. इआले 6346)
रुईकी धनकी से इस प्रकार फटकारना कि गंदगी रखना; मंद पडना 2369
निकल जाय और रेशों के फैलने से वह फुलधीज स. देश. ग्रहण करना; बिश्वास करना अ.
फुली हो जाय; बेतरह पीटना. गुज. धूण धैर्य से युक्त होना. 2370
'अभुआना' 2387 धुआ अ. दे. 'धुआँ' 2371
धुनक स. दे. 'धुन' 2388 धुंकार अ. ना. देश. (धुंकार संज्ञा) हुंकारना
धुप (1) अ. ना देश (धूप संज्ञा ) धूप आदि 2372
के धुएँ से सुगंधित होना धुंगार स. ना. देश. (धुंगार संज्ञा) खाने की । चीज़ में तडका देना; बघारना. गुज. धुंगार ।
(2) अ. देश. दौडना; हैरान होना 2389 2373
*धुमिल स ना. देश. ( धूमिल विशे.) धूमिल धुंधरा स. दे. 'धु धला' 2374
करना; धुंधला करना; म. धूमिल होना. तुल. धधला अ. ना. भव ( धंध संज्ञा) धुंधला पडना गुज. धूमिल विश. 2500 __ स. धुंधला करना. गुज. धूधळा 5375 धुर स. देश. मारना-पीटना; आघात करते हुए धुंधा अ. दे. 'धुंधला' 2376
बाजे बजाना 2391 धुंधुआ अ. ना. देश. (धूआँ संज्ञा ) इस प्रकार धुरिया स. ना. भव (धूर संज्ञा) धूल से ढंकना. जलना कि खूब धूआँ उठे; स. इस प्रकार तुल. गुज. धूळ संज्ञा 2392
जलाना कि खूब धूआँ उठे 2377 धुरेट अ. देश. धूल में लेटना; धूल से युक्त करना; धुधुरा अ. दे. 'धुंधुआ' 2378
. स. धूल लगाना 2393 धुंधुवा अ. दे. 'धुंधुआ' धुओं देना. गुज. धुंध स. ना. देश. (धूध संज्ञा ) धोखा देना धुधवा 2379
2394
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश *घूस अ. देश. जोर का शब्द करना; स. नष्ट नंगिया स. ना भव (नंगा विशे; सं. नग्न; प्रा. करना 2395
णग्ग; दे. इआले 6926) नंगा करना; सब कुछ *धूक (1) अ. दे. 'दुक'
ले लेना. तुल. गुज. नागु विशे 'नंगा' 2410 (2) अ. देश. वेगसे आगे बढना; स. धुआँ देनाः *नंग्या स. दे. 'नँगिया' 2411 धुआँ पहुँचाकर केले आदि को पकाना 2396 नंच अ. दे. 'नाच' 2412 धूत स. ना. भव (धूत संज्ञा; धूर्व : प्रा. धुत्त नंद अ. ना. सम (नंद संज्ञा; सं. नन्द् )
संज्ञाः दे. इआले 6865 ) धूर्तता करना, आनंदित होना; स. आनंदित करना. तुल, गुज. छलना. गुज. धूत 2397
नंद 2413 धून स. दे. 'धुन' 2398
नंस स. भव (नंस संज्ञा; स. नशू ; प्रा. णस्स् ,
णासू : दे. इआले 7027) नष्ट करना: अ. धूप अ. दे. धुप (2) 2399
नष्ट होना; गुज. नास 'भागना' 2414 धूस स. दे. 'धूस' 2400
नक (1) स. दे. 'नाँघ' उल्लंघन करना; छोड़ना; *धेय अ. देश. ध्यान करना 2401
अ. चलना धोंक अ. देश. काँपना; स. धौंकना 2402 (2) अ. दे. 'नका'. इतना दुःखी होना कि धो स. भव ( स. धाव; प्रा. धाव : दे. इआले
मानों नाकों दम आ गया हो. तुल. गुज. नाक 6803 तथा 6886) पानी के योग से किसी
संज्ञा 2415 वस्तु पर का मैल दूर करना; अलग करना. गुज.
नकन्या अ. दे. 'नाक' 2416 धो. 2403
नका अ. ना. देश. (नाक संज्ञा; *नक्क; प्रा. णक्क
संज्ञा; दे. इआले 6909) नाक में दम होना; *धोव स. दे. 'धो' 2404
नाक से उच्चारण करना: स. नाक में दम करना. धौंक स. भव (स. धम् ; प्रा. धम् ; दे. इआले तुल. गुज. नाक संज्ञा 2417
6731) आग को तेज करने के लिए उस पर भाथी, पंखे आदिके द्वारा हवाका झोंका पहुँचाना; ।
नकार अ. ना. अर्धसम (स, नकार संज्ञा)
अस्वीकृत करना, इनकार करना. गुज. नकार भार डालना. गुज. धाम 2405
2418 धौंज स. ना. देश. (धौंज संज्ञा) शैदना, पाँव से नकाश स. ना. वि. ( नक्श विशे; अर.) नक्काशी कुचलना; अ. दौड-धूप करना 2406
कस्ना. तुल. गुज. नकशी संज्ञा 2419 धौंस स. देश. दंड आदिके रूप में कोई काम,
नकास स. दे. 'नकाश' 2420
नकिया अ.दे. 'नका' 2421 खरच या भार किसीके जिम्मे लगाना; धौंकना 2407
नक्क स. दे. 'नक' 2422
नख स. दे. 'नांध' 2423 धौक स. दे. 'धौंक' 2408
नखिया स. ना. सम (सं. नख संज्ञा) नाखून ध्या स. ना. अध सम (ध्यान संज्ञा; सं. ध्यै) से खरोंचना; नाखून धंसाना. गुज. नखोर किसी विषय, व्यक्ति आदिका ध्यान करना; 2424 ईश्वर का चिंतन करना. तुल. गुज. ध्यान संज्ञा; नखोट स. देश. (*नख घृष्ट; दे. इआले 6917) ध्या 2409
दे. 'नखिया' 2425
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नघ स. दे. 'नाँघ' 2426
*नत अ. ना. सम (सं. नर्तन संज्ञा) नाचना. नच अ. दे. 'नाच' 2427
गुज. नर्त 2445 नज़र अ. ना. वि. ( नज़र संज्ञा अर.) देखना; नवाज अ. ना. वि. (नवाजिश संज्ञा; फा.) नज़र लगाना; स. नज़र करना. गुज. नजरा
___ अनुग्रह करना. गुज. नवाज 2446 'नज़र लग जाना' 2428
नव अ. दे. 'नौ' 2447 नज़रान अ. दे. 'नजर' 2429 नज़रा अ. दे. 'नज़र 2430
नवार अ. देश. (दे. पृ. 119, दे. श. को.)
चलना; यात्रा करना; स. निवारना 2448 नजिका स. ना. वि. (नजदीक क्रि. वि. फा.) नजदीक पहुँचना; स. नजदीक पहुँचाना. नश अ. सम. (सं. नश) नष्ट होना; स. नाश तुल. गुज. नजीक क्रि. वि. 2431
करना 2449 नट (1) अ. ना. सम (स.नट संज्ञा) अभिनय नष स. देश. फेंकना; रोकना 2450
करनाः नृत्य करना; वचन आदि से मुकरना नस दे. 'नास 2451 (2) स. देश. (*नट्ट; दे. इआले 6935) ठगना 2432.
नह स. भव (स: नह; दे. इआले 7034)
नाधना, काम में लगाना 2452 नटव अ. दे. 'नट' 2433 नठ अ. दे. 'नाठ' 2434
नहा अ. भव (सं. स्ना; प्रा. ण्हा; दे. इआले नढ स. दे. 'नाध' 2435
13786) मेल या थकान दूर करने के लिए
शरीर को मलकर धोना; रजोधर्म के पश्चात् नद अ. ना. सम (सं. नद् ) नाद होना; बोलना;
स्त्री का स्नान करना. गुज. नहा 2453 गरजना. गुज. नद 2436
नांध स. भव (स. लधु ; प्रा. लंध् ; दे. इआले नद अ. दे. 'नाध' 2437 ननकार अ. दे. 'नकार' 2438
10905 ) लाँघना. गुज. लांघ 'भूखा रहना'
2454 नम अ. सम (स. नम्) नत होना; प्रणाम
+ नांठ अ. दे. नाठ 2455 करना; गुज. नम 2439 नय अ. दे. 'नौ' 2440
नाँद (1) स. दे. 'नाध' नरज अ. ना. वि. नाराज़ बिशे; फा.) नाराज (2) अ. भव (सं. नन्द् ; प्रा. णंद्; दे. इआले होना; स. (अर. 'नज़र' से) कोई चीज़ 6950 ) प्रसन्न होना, सुखी होना. गुज. नंद नापना या तोलना. तुल. गुज. नाराज विशे. (3) अ. भव (सं. नद् प्रा. णद् दे. 2441
इआले 6982 ) शोर करना; गर्जना करना 2456 नरमा स. ना. वि. (नर्म विश; फा.) नरम होना; नाक (1) स. नांघ' नम्र होना. तुल. गुज. नरम विशे. 2442
(2) स. ना. देश. (नाक संज्ञा; *नाक्क; दे. नराज अ. दे. 'नरज' 2443
इलाले 7037) चारों ओर के नाके रोकना; नरिया अ. देश. चिल्लाना; नर्राना 2444
कठिनता को पार करना 2457
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष
१०५ नाख स. (सं. ना ; दे. इआलें 6230) नष्ट निंद स. ना. सम (निंदा सज्ञा; सं. निन्द)
करना; फेंकना. गुज. नांख, नाख 2458 निंदा करना. गुज. निंद 2469 नाच अ. भव (सं. नृत् : प्रा. णच्च : दे. इआलें निंदा स. देश. निराना. गुज. नींद 2470
7583) ताल और लय के अनुसार गात्रविक्षेप निअरा स. ना. भव (नीरे अव्य; सं. निकटम् ; करना, नृत्य करना; प्रत्यक्ष-सा प्रतीत होना. प्रा णिअड, णिअल; दे. इआले 7136) निकट गुज. नाच 2459
ले जाना. तुल. गुज. ने. अव्य 2471 नाट (1) स. भव (सं. नृत् ; प्रा. णट, दे. *निकंद स. ना. सम (सं. निकन्दन) नष्ट इआलें 7583) नृत्य करना
करना, संहार करना, अ. नष्ट होना. तुल. गुज. (2) अ. देश. पीछे हटना, मुकरना 2460 निकंदन संज्ञा 2472 नाठ स. भव (नष्ट विशे; सं. नश ; प्रा. णस्सू ;
निकर अ. दे. 'निकल' 2473 दे. इआलें 7027 ) नष्ट करना; अ. नष्ट होना. निकल अ. भव (सं. निः + कल ; दे. इआले तुल. गुज. नालु भू. कृ. 'भाग गया' 24617478) बाहर होना या उगना; उदय होना
गुज, नीकळ 2474 नाथ स. ना. भव (नाथ संज्ञा; सं. नस्ता, प्रा. णत्था; दे. इआले 7031 ) बैल आदि की नाक ।
निकस अ. भव (सं. निः + कस प्रा. णिक्कसू को छेदकर उसमें नाथ पहनानाः एक सूत्र में ।
दे. इआले 7479) निकलना. गुज. नीकस
2475 बन्ध करना. गुज. नाथ 2462
निकिया स. देश. (निका विशे; स. निक्त भू. नाद अ. दे. 'नद' 2453
कृ. प्रा. णिक्क; दे. इआले 7150) किसी नाध स. ना. भव (सं. नाधन, नद्ध विशे; नह;
चीज को इस प्रकार से नोचना कि उसका प्रा. णद्ध; दे. इआले 6944 ) बैल, घोडे आदि
अंश या अवयव अलग हो जाय 2476 को रस्सी या तस्मे के द्वारा सवारी, हल आदि से जोडना या बाँधना; ठानना. 2464
* निकोट स. अनु. ('बकोटना' का अनु. दे. पृ.
261, मा. हि. को-3) नाखूनों की सहायता नाप स. भव (स. ज्ञा, ज्ञाप्पू, प्रा. णप्प्, दे. सेतोडना. स. कोई चीज गढने या बनाने के उआलें 2583) किसी मानदंड के अनुसार
लिए खोदना. गुज. निकोल 2477 किसी वस्तु के विस्तार, परिमाण, मात्रा का निकोस स. देश. (* निष्कोष: दे. इआले 7481) निर्धारण करना. तुल. गुज. माप 2465 दाँत निकालना; दाँत पीसना 2478 नार सं. भव (संज्ञा, प्रा. णाण संज्ञा; दे. इआलें निखर अ. भव (* नि + क्षर् ; सं. क्षर् ; दे.
5281) जानना; अनुमान करना; भाँपना. गुज. इआले 7095) निर्मल होना; परिमार्जित होना. नाण 2466
गुज. निखर 2479 नाव स. देश. किसीके अंदर कुछ गिराना, रखना; निखट अ. देश. (* खुट्ट; प्रा. खुट संज्ञा; दे. दे. 'नवा' 2467
इआले 3893 ) उपयोग में लाई जानेवाली नास अ. भव (सं. नश; प्रा. णस्स् , नास् ; दे. वस्तु का कोई काम पूरा होने से पहले ही
इआले 7027) नष्ट होना, भागना. गुज. समाप्त हो जाना तुल. गुज. खूट; खूट संज्ञा नास 2468
2480
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१०६
निखेध
Fa लुक छिपकर स्ना शिक्षा को
निखेध स. ना. अर्धसम (सं. निषेध संज्ञा) निझा अ. भव ( स. नि + ध्यै; प्रा. णिज्झा; दे.
निषेध करना. तुल. गुज. निषेध संज्ञा 2481 इआले 7209) लुक-छिपकर देखना; (आग का) निखोट स. दे. 'निखुट' 2482
बुझना; स. आग बुझाना 2497 निखोड़ स. देश. (* निष्खोट; दे. इआलें 7497) निझाट स. दे. 'निझर' झपटकर ले लेना. तुल.
बाहर खींच लेना; नाखून से नोच लेना 2483 गुज. झूटव 2498 निखोर स. अर्धसम (* निः + क्षुर; सं. क्षुर् निझोट स. दे. 'निझाट' 2499
दे. इआले 7104) कुरेदना, बाहर खींचना निथर अ. भव (स. नि + तृ प्रा. णित्थर ; 2484
दे. इआले 7528) जल आदि का स्वच्छ हो निगद स. ना. वि. (निगंदा संज्ञा; फा. निगंद) जाना. गज. नीतर 2500 रुईभरे कपड़े के दोनों परतों में बडे-बडे
निदर स. भव (सं. निः + दृ; दे. इआले 7340) टाँके लगाना 2485
अपमान करना, त्यागना 2:01 निगर स. दे. 'निगल' 2486
निदरस अ. देश. (हिं. नि + दरस; दे. पृ. 268, निगरा स. दे. (* नि + गृ, प्रा. णिग्गिण्ण विशे; दे. इआले 7304) निर्णय करना; स्पष्ट करना;
___मा. हि. को-3) अच्छी तरह दिखलाई देना;
स. अच्छी तरह देखना 2502 अ. पृथक् होना 2487 निगल स. भव (* नि + गल; दे. इआले 7163
निदह स. भव (स . नि + दह, प्रा. णिदह;
दे. इआले' 7313) जलाना; अ. जलना. गुज. गले से नीचे उतार देनाः रुपया या धन हड़प
दह 2503 लेना. गुज गळ 2488 निग्रह स. ना. सम (सं. निग्रह संज्ञा ) निग्रह निनाद स. ना. सम (सं. निनाद ) उच्च या घोर
करना; दमन करना. गुज. निग्रह 2489 शब्द करना. तुल. गुज. निनाद संज्ञा 2504 निघट अ. देश (* निः घट्ट; दे. इआले 7314) निनार स. देश. निकालना 2505 घटना; बीतना; स. मिटाना. गुज-घट 2490
निनौ स. ना. भव (सं. निम्न विशे; प्रा. णिण्ण; निचो स. देश * नि + च्युत्; दे. इआले 7451)
दे. इआले 7244 तथा 7354) नमाना, निचोडना. गुज. निचोव 2491
झुकाना 2506 निचोड स. देश. ( * निश्चोट् ; दे. इआले 7449) दबाकर या एंठकर किसी गीली या रसवाली
4 निप अ. देश. पूरा होना; दे. 'निपज' 2507 वस्तु में से पानी या रस निकालना; किसोका निपज अ. भव (सं. निः + पद्; प्रा. णिप्पज्जू; सब कुछ ले लेना. तुल. गुज. निचोड संज्ञाः दे. इआले 7511 ) उपजना; बनना. गुज, निचोव 2492
नीपज 2508 निचोर स. दे. 'निचोड़ ' 2493
निपट अ. भव (सं. नि + वृत्; प्रा. निब्बटूट; निचोव स. दे. 'निचो' 2494
दे. इआले 7395) कार्य आदि संपन्न होना; निजका अ दे. 'नजिका' 2495
काम पूरा करके निवृत्त होना 2509 निझर अ. देश. (* झटू ; प्रा. ज्ञडू दे. इआले निपात स. ना. सम (सं. निपात संज्ञा) काट,
5328; प्रा. णिज्जर; दे. पृ. 395, पा. स. म.) मारकर या और किसी प्रकार नीचे गिराना; एकदम झड़ जाना; खाली हो जाना 2496 ध्वस्त करना. तुल. गुज. निपात संज्ञा 2510
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2513
हिन्दी-गुजराती धातुकोष
१०७ निपीड स. भव (सं. निः + पीड; प्रा. णिपीडिअ निम्ना स. भव (सं. निः + मि; दे. इआले विशे; दे. इआले 7516) पीडा देना; दबाना. 7372) अच्छे ढंग से पूरा करना 2524 2511
*नियोज स. ना. सम (सं. नियोजन संज्ञा) निपुड अ. देश. (* निष्पुटूः दे. इआले 7518) ।
किसीको काम पर लगाना, नियोजन करना (दाँत) उघरना; खुलना 2512
गुज. नियाज 2525 निफर अ. भव (सं. निः + पृ; दे. इआले' 7512) धंसकर आर-पार होना; स्पष्ट होना
निरख स. भव (सं. नि + ईक्ष प्रा. णिरिक्खू :
दे. इआले 7280) देखना. गुज. नीरख
2526 निबट अ. भव (सं. नि + वृत्; दे. इआले
7395) फैसला होना, समाप्त होना 2514 निरत स. ना अर्धसम (सं. नृत्य संज्ञा) नाचना निबड अ. भव (सं. निः + वृ: प्रा. णिव्वः 2527
दे. इआले 7392) पूर्ण होना; निवृत्त होना. निरधार स. ना. अर्धसम (सं. निर्धार; निः + धार) गुज. नीवड, नीमड (सिद्ध होना, स्पष्ट निश्चित करना; मन में धारण करना. गुज. होना) 2515
निर्धार 2528 निबर अ. भव (सं. नि + वृ, प्रा. णिव्वडू दे. निरबह अ. दे. 'निबह' 2529
इआले 7392) बँधा, फँसा या लगा न रहना; निरम स. ना. अर्धसम (सं. निः + मा) निर्मित निवृत्त होना. गुज. नीवड, नीमड 'सफल करना, बनाना, गुज. निर्म 2530 होना' 2516
निरमा स. दे. 'निरम' 2531 निबह अ. भव (सं. निः + वह; प्रा. णिव्वहू; दे. निरमल स. ना. अर्धसम (निर्मूल विशे. निः+
इआले 7397) बच निकलना; निर्वाह होना. मल) निर्मूल करना; समूल नष्ट करना. तुल.
गुज. निभ, नभ 'काम चल जाना' 2517 गुज. निर्मूल विशे. 2532 निबुक अ. ना. भव (निर्मुक्त विशे; सं. निः निरवार स. दे. 'निवार' 2533 + मुचू ; प्रा. णिमुक्क विशे; दे. इआले
, निरा स. देश. (* निः + दो; प्रा. णिदिणि संज्ञा; 7373) बच निकलना; मुक्त होना 2518
दे. इआले 7542) पौधों की बढ़ती को निभ अ. दे. 'निबह' 2519
रोकनेवाली अनावश्यक घास, तृण आदि को निमज्ज अ. ना. सम (सं. निमज्जन संज्ञा) गाता खरपी से खोदकर दूर करना. गुज. नीद, नींद
लगाकर स्नान करना. तुल. गुज. निमज्जन संज्ञा 2520
निराव स. दे. 'निरा' 2535 निमट अ. दे. 'निपट' 2521
निरुआर स. दे. 'निवार' 2536 निमेख स. ना. अधेसम (सं. निमेष संज्ञा) निरुवर स.दे. 'निवार, 2537
आँख की पलक गिरना या झपकना. तुल. गुज. निरूप अ. ना. सम (सं. निरूपण) संज्ञा निः निमेष संज्ञा 2522
+ रूप) निरूपण करना; निर्णय करना. गुज. निमार स. देश. (सं. नि + मुटू; दें. इआले निरूप 'निरूपण करना' 2538
10186) मरेड़ना. गुज. मेाड, मरड़ 2523 निरेख स. दे. 'निरख' 2539
2534
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१०८
निरोध निराध स. ना. सम (सं. निरोध, निः + रुध) निस्तर अ. ना. सम (स. निस्तरण संज्ञा; निः
निरोध करना; अपने वश में करना. गुज. + तृ) पार होना; मुक्त होना; पार उतारना. निराध 2540
तुल. गुज. निस्तरण संज्ञा 2554 निर्गम अ. ना. सम (सं. निर्गमन, निः + गम) निहन स. ना. सम (स. निहनन) मारना. तुल. बाहर निकलना. गुज. निर्गम 2541
गुज. निहता संज्ञा 2555 *निर्दह स. ना. सम (सं. निर्दह विशे; निः निहबर अ. अर्धसम (सं. निः + क्षरण; दे. पृ. ___ + दह्) दहन करना. गुज. दह 2542 310, मा. हि. को-3) बाहर आना, निकलना निर्बह अ. अर्धसम (सं. निः + वह्) निर्वाह
2556 होना; स. निर्वाह करना. तुल. गुज. निर्वाह
___ निहस स. देश. शब्द करना; अ. शब्द होना संज्ञा 2543
2557 निर्म स. सम. (सं. निः + मा) निर्माण करना.
निहार स.भव(सं. नि + भल्; प्रा.णिभाल. दे. इआले
____7228) गौर से देखना. गुज. निहाळ 2558 गुज. निर्म 2544
निहाल स. दे. 'निहार' 2559 निर्मा स. दे. 'निर्म' 2545
निहुँक अ. ना. भव (सं. नि + भुज; प्रा. णिहुत्त निर्वह अ. ना. सम सं. निर्वाह संज्ञा; निः +
_ विशे; दे. इआले 7229 ) झुकना 2560 __ वह) निभना. तुल. गुज. निर्वाह संज्ञा 2546
निहुड़ अ. देश. (प्रा. णिहोड; दे. पृ. 417, पा. निव अ. दे. 'नव' 2547
स. म. झुकना 2561 नियस अ. ना. सम (सं. निवसन संज्ञा; निः निहुर अ. दे. 'निहुड' 2562 + वस्) निवास करना, रहना. गुज. निवस
निहोर अ. देश. (दे. पृ. 121, दे. श. को.) प्रसन्न 2548
करना; अनुग्रह करना 2563 निवाज स. ना. वि. (निवाज़ संज्ञा; फा.) अनुग्रह नींद अ. भव (सं. निन्द् प्रा. शिंद्दे. इआले करना; दे. 'नवाज' 2549
___7211) निंदा करना; सं. निराना. गुज. नींद निवार स. भव (स. निः + वृ; प्रा. णिवार: 2564
दे. इआले 7419) दूर करना; चुकना. गुज. नीद अ. दे. 'नींद ' 2565 निवार 2550
नीपज अ.दे. 'निपज' 2566 निवेद स. ना. सम (स. निवेदन संज्ञा) निवेदन नीप स. दे. 'लीप' 2567
करना; सेवा में भेंट आदि के रूप में नीर (1) स. भव (सं. नि + गृ; दे. इआले उपस्थित करना. गुज. निवेद 2551
7161 खाना देना निसस अ. भव (सं. निः + श्वस्; प्रा. णिस्सस् (2) अ. ना. सम (स. नीर संज्ञा) जल णिससू दे. इआले 7461) हाँफना, निःश्वास छिडकना. गुज. नीर 'पशुओं को घास देना' लेना. तुल. गुज. निसासो संज्ञा निश्वास' 2568
नीराज स. ना. अर्धसम (स. नीरांजन संज्ञा) निसर अ. भव (स. निः + स; प्रा. णिस्सर; नीराजन में दीप जलाकर किसी देवी-देवता
दे. इआले 7122) बाहर आना, निकलना. की आरती करना. तुल. गुज नीराजन संज्ञा गुज. नीसर 2553
'आरती' 2569
2552
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हिन्दी गुजराती धातुकोष नुक अ. दे. 'लुक' 2570
न्हेर स. दे. 'निहार' 2590 नुका स. देश. (दे. पृ. 319, मा. हि. को-3) पंघला स. देश. (दे. पृ. 123, दे. श. को.) खुरपी से निराना; स. लुकाना 2571
फुसलाना, बहलाना 2591 नुखर अ. देश. (दे. पृ. 319, मा. हि. को-3) पँज अ. दे. 'पाँज'; बरतनों में जोड़ या टाँक __ भालू का चित लेटना 2572
__ लगाना 2592 नुच स. भव (स. लुम्च् प्रा. लुच् : दे. इआले पंजर अ. दे. 'पजर ' 2593
11074) नख से उखाडना, खरोंचना, अ. पँवार स. भव (स. प्र + वृ; दे. इआले 8898) नोचा जाना 2573
तैरना. थाह लेना, फेकना 2594 नुन स. भव (स.ल ; प्रा. लुण; दे. इआले पँसिया स. ना. भव (पाँसा सज्ञा, स. पाशक)
11082) तैयार फसल को काटना. गुज, लण पाँसा फेकना, पासे से मारना 2595 2574
पइठ अ. दे. 'पैठ' 2596 नुहर अ. दे. 'निहुर' 2575
पइस अ. दे. 'पैठ' 2597 नैउत स. दे. 'न्योत' 2576
पक अ. भव (सं. पक्; प्रा. पक्क विशे; दे. नेठ अ. दे. 'नाठ' 2577 नेरा अ. दे. 'नियरा' 2578
इआले 7621) अनाज आदि का पकने की नेवत स. दे. 'न्योत' 2579
अवस्था तक पहुँचना, फल आदि का पकना. *नेवर अ. देश. निवारण होना, दूर होना; स.
गुज. पाक 'फल, घाव आदि का पकना'
2598 निवारण करना 2580
पकड स. देश. (* पक्कड़; दे. इआले 7616) नेवाज स. दे. 'निवाज' 2581
किसी वस्तु को इस ढंग से हाथ में लेना कि नैस स. देश. नष्ट करना 2582
वह इधर-उधर न हो सके; गलती करने या नोक अ. ना. वि. (नेोक संज्ञा; फा.) अनुराग,
बहकने से रोकना. गुज. पकड 2599 लोभ आदि के कारण आगे की ओर बढना पकर स. दे. 'पकड' 2600 2583
पकस अ. अनु. ( दे. पृ. 350, मा. हि. को-3)
ऊमस या गभी की अधिकता के कारण किसी नोच स. दे. 'नुच' 2584
चीज़ का सडने लगना 2601 नोव स. दे. 'नाद' 2585
पखार स. दे. 'पखाल' 2602 नौ अ. भव (स. नम् ; प्रा. णम् , ण्णवू ; दे. पखाल स. भव (स.प्र + क्षाल ; प्रा. पक्खाल, इआले 6959) नत होना; नम्र होना. गुज.
पच्छालू ; दे. इआले 8456) पानी से धोना. नम 2586
गुज. पखाळ 2603 नौत स. दे. 'न्योत' 2587
पगला अ. ना. सम (स. पागल विशे.) पागल न्योत स. ना. भव (न्योता सज्ञा; * निमन्त्र; होना; स. पागल करना. तुल. गुज. पागल
स. नि + मन्त्रः दे. इआले 7233 ) उत्सव विशे. 2604 के लिए निमंत्रित करना. तुल. गुज. नोतरु पगार स. देश. (दे. पृ. 124, दे. श.को.) संज्ञा 'न्योता 2588
फैलाना: पैरों से मिट्टी को रौंदकर गारा न्हा अ. दे. 'नहा' 2589
बनाना 2605
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पगिआ पगिआ स. दे. 'पगिया' 2666
पछिया स. दे. 'पछिआ' 2620 पगिया स. ना. देश. (पाग संज्ञा; * पगगाः पछिल अ. दे. 'पछेल' 2621
दे. इआले 7644) पगड़ी बाँधना. तुल. पछेल स. दे. 'पछिआ' किसीको पीछे छोड़ आगे गुज. पाघडी संज्ञा 2607
निकलना; पीछे की ओर ढकेलना 2622 पगुरा अ. ना. देश. (पागुर संज्ञा; दे. पृ. पछोड़ स. देश. (* प्रक्षोट: प्रा. पक्खोडू दे. 124, दे. श. को.) जुगाली करना 2608
__ इआले 8460) सूप से फटकना 2623 पघर अ. दे. 'पिघल 2609
पछोर स. दे. 'पछोड' 2624 पधिल अ. दे. 'पिघल' 2610
पजर अ. दे. 'पजल' 2625 पच अ, भव (स. पचू ; प्रा. पच्चमान विशे;
पजल अ. भव (सं. प्र + ज्वाल ; प्रा. पज्जल ; दे. इआले 7654) पचाया जाना; खपना
दे. इआले 8518) जलना. गुज. परजळ 2626 गुज. पच 2611 पचक अ. दे. 'पिचक' 2612
पटक स. ना. भव (पट संज्ञा; सं. पट; दे.
इआले 7691) किसी वस्तु या व्यक्ति को पचपचा अ. ना. अनु. किसी वस्तु का बहुत ।
उठाकर झोंके के साथ पृथ्वी आदि पर गिराना; गीला होना; स. ऐसी क्रिया करना जिससे ।
कुश्ती में पछाड़ना. गुज. पटक 2627 किसी गाढ़े तरल पदार्थ में से पच-पच शब्द निकलने लगे. तुल. गुज. पचपच संज्ञा 2613 पटतार स. देश. ( दे. पृ. 124 दे. श. को.) पचार स. देश. (प्रा. पच्चार; दे. पृ. 509,
ऊँची-नीची जमीन को हमवार बनाना, चौरच
करना; अंदाजना 2628 पा. स. म.) कोई काम करने के पहले उन लोगों के सामने उसकी घोषणा करना जिनके पटपटा अ. अनु. भव दे. 'पटक'; भूख या विरुद्ध वह काम किया जाने को हो, ललकारना. गरमी से तड़पना; 'पट-पट' शब्द निकलना गुज. पचार 2614
2629 पछता अ. ना. भव (सं. पश्च + उत्ताप; प्रा. पठा स. भव (सं. प्र + स्था; प्रा. पटूठाव;
पच्छुत्ताव् ; दे. इआले 8010) पश्चात्ताप दे. इआले 8607) भेजना. गुज. पठाव, पाठव करना. गुज. पस्ता 2915
2630 पछर अ. दे. 'पिछड' 2616
पठौ स. दे. 'पठा' 2631 पछाड़ स. देश. ( * प्रच्छाट; प्रा. पच्छाडिय विशे; पड़ अ. भव (सं. पदः प्रा. पड; दे. इआले
दे. इआले 8493) कुश्ती या लड़ाई में पटकना, 7722) गिरना; यकायक जा पहुँचना.गुज. पड परास्त करना. गुज. पछाड 2617
2632 पछार स. दे. 'पछाड़' 2618
पड़ताल स. ना. देश. (पड़ताल संज्ञा ) जाँच पछिआ अ. देश. (* पश्च; प्रा. पच्छ संज्ञा; करना, छानबीन करना. गुज. पडताळ 2633
दे. इआले 7990 पीछा करना; अनुकरण करना. पड़पड़ा अ. अनु. (दे. पृ. 371, मा. हि. को-3) तुल. गुज. पीछो संज्ञा; पछी अव्य. 'बाद में' 'पड़पड़' शब्द होनाः मिर्च आदि तीखी 2618 (अ)
वस्तुओं के स्पर्श से जोभ का जलने-सा लगनाः पछिता अ. दे. 'पछता' 2619
स. 'पड़पड़' शब्द करना 2634
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हिन्दी - गुजराती धातुकोष
पडिया अ. ना. भव ( * पाड्ड प्रा. पड्डय: दे. इआ 8042 ) भैंस का भैसे से संयोग होना; स. भैंसे का भैस से संयोग करना; ऐसा संयोग कराना. तुल. गुज. पाळी आववु अ. 'भैस का संयोग के योग्य होना; पाडो संज्ञा 2635
पढ़ स. भव ( सं पठ् प्रा. पढ्; दे. इआले 7712) लिखे हुए अक्षरों या शब्दों का क्रम से उच्चारण करना; नया सबक सिखाना. गुज. पढ 2636
"
पति स. दे. 'पतिया' 2637 पतिया स. दे. पत्या 2638 पतियार स. अर्धसम ( सं प्रति + पाल ) पालन-पोषण करना. तुल. गुज. प्रतिपालन संज्ञा 2639
पती अ. दे. 'पतीज 2640
पतीज अ. देश. प्रतीति या एतबार करना. गुज. पतीज 2641
पतीत स. दे. पतीज 2642
पत्या स. भव (सं. पति + इ: प्रा. पत्तिअ, दे. इआ 8610 ) विश्वास करना. गुज. पतीज 2643
पथर स. ना. भव (सं. प्रस्तार संज्ञा; पा. पत्थार; दे. इआले 8864 ) औजारों को पत्थर पर रगड़कर तेज करना; अ. पत्थर की तरह ठोस होना 2644
पथरा अ. ना. भव (सं. पत्थर संज्ञा ) सूखकर पत्थर जैसा कड़ा हो जाना; जड हो जाना; स. पत्थर के टुकडे आदि फेंकना तुल. गुज. पथरो संज्ञा 2645
पधर अ. दे. 'पधार' 2646
पधार अ. ना. देश (* पद्धार्; प्रा. पाधार्, दे. इआले 7768) पदार्पण करना, चला जाना. गुज, पधार 2647
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पनप अ. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 131, हि. दे. श. ) पल्लवित होना; फूलना - फालना 2648 पनास स. देश. पोषण करना; 2649
पालना - पोसना
पनिया स. ना. भव ( पानीय; प्रा. पाणिअ; दे. इआ 8082) पानी से सराबोर करना; अ. पानी से पचपचाना. तुल. गुज. पाणी 2650
पनिहा स. ना. भव (पनही संज्ञा, सं. उपानह संज्ञा; प्रा. उवाणहा; दे. इआले 2302) जूतों से मारना; बहुत अधिक मारना पीटना तुल. गुज. वाणही संज्ञा 2651
पन्हा स. दे. 'पहना 2652 पपड़िया अ. ना. भव (पपडी संज्ञा; सं. पर्पट संज्ञा, प्रा. पप्पड दे. इआले 7934) किसी चीज़ पर पपड़ी पड़ना, स. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज़ सूखकर कड़ी हो जाय. गुज. पापड़, पापडी संज्ञा 2653
पपोर स. देश. (दे. पृ. 126, दे. श. को.) बाँहे ऐंठकर उनका भराव देखना 2654
पपोल अ. दे. 'पपोर' दंतहीन का मुँह चुभलाना. तुल गुज. पंपाळ 'सहलाना' 2655 *पब स. देश. पाना 2656
पवार स. देश. ( दे. पृ. 127, दे. श. को.) फेंकना 2657
पमा अ. देश. डींग मारना 2658 पक स. भव दे. इआले
(सं. प्र + मुग्धू, प्रा. पमुक्कू, 8727) छोडना, त्यागना 2660 परक अ. दे. 'परच 2661 परकस अ. दे. 'परकास 2662 परकार स. ना. वि. ( परकार संज्ञा; फा. ) परकार से वृत्त बनाना. तुल. गुज. परकार संज्ञा 2063
परकास स. ना. अर्धसम (सं. प्रकाश संज्ञा; प्र + काश् ) प्रकाशित करना प्रकट करना; अ. प्रकाशित होना. गुज. प्रकाश 2664
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११२
परख स. भव (सं. परि + इक्ष : प्रा. परिरक्ख; परबोध स. अर्धसम (स. प्र + बुध् ) प्रबोधन
दे. इआले 7904) गुण-दोष के निर्धारण के करना, जगाना 2679 . लिए किसी व्यक्ति या वस्तु को भली भाँति
*परवान स. अर्धसम (स.प्रमाण संज्ञा) किसी देखना. गुज. परख, पारख 2665
बात को ठीक मानना, प्रामाणिक समझना, परगट अ. ना. अर्धसम (स. प्रगट विशे.) प्रकट
तुल. गुज. परमाण, प्रमाण 2680 होना, स. प्रकट करना. गुज. प्रगट, परगट 2666
परवाह स. ना. अर्धसम (स. प्रवाह संज्ञा) परगस अ. दे. 'परगास' 2667
प्रवाहित करना. तुल. गुज. प्रवाह संज्ञा 2681 परगास अ. देश. प्रकाशित होना; स. प्रकाशित परस स. भव (स. स्पृश: प्रा. फासू : दे. इआले करना 2668
____13811) स्पर्श करना. गुज. परस 2682 परच अ. देश. (* प्र + राज ; दे इआले 8737) *परहर स. दे. 'परिहर' 2683 किमीसे इतनी जान-पहचान हो जाना कि परहेल स. देश. अवहेलना करना 2684 उससे कोई खटक न रह जाय, चसका लगना. परा अ. भव (स. पलू + इ; प्रा. पलाय : दे. गुज. पळक 2669
इआले 7955) पलायन करना 2685 परछ स. ना. देश. (परछन संज्ञा) द्वार पर बरात पराग अ. ना. सम (स. पराग संज्ञा)
आसक्त होना; पराग से युक्त होना 2686 आरती करना, परछन करना. तुल. गुज. पकि, परिख अ. दे. 'परख' 2687 पोख 2670
* परिगह स. अर्धसम (स. परि + ग्रह ) परजर अ. अर्धसम (सं. प्र + ज्वल) प्रज्वलित
प्रहण करना 2688 होना; बहुत क्रुद्ध होना. गुज. परजळ 2671
परिच अ. दे. 'परच' 2689 परजल अ. दे. 'परजर' 2672 * परज्वल अ. दे. 'परजर' 2673
परिचार स. सम. (सं. परि + चर् ) परिचार
करना 2690 परण स. भव (सं. परि + नी, प्रा. परिण ; दे.
. परिठ अ. देश. देखना 2691 इआले 7819) व्याह करना, अ. विवाहित होना. गुज. परण 2674
परिबेठ स. देश. आच्छादित करना, लपेटना 2692 परत अ. भव (सं परि + वृतः प्रा. परिवत्त ; दे. पारया अ. अधसम (स.प्र + या ) जाना. तुल. इआले 7872) गुज. परत 2675
गुज, प्रमाण संज्ञा 2693 परतार स. ना. अर्धसम (सं प्रतारण संज्ञा)
* परिलेख स. सम (स. परि + लिखू) ठगना. तुल. गुज. प्रतारणा संज्ञा 2676
कुछ महत्त्व का मानना 2694 *परतेज स. अर्धसम (स. परि + त्यज) परिवान स. देश. प्रमाण के रूप में मानना 2695 परित्याग करना 2677
परिहर स. भव (स परि + हृ; प्रा. परिहर ; दे. परपरा अ. अनु. देश. (दे. पृ. 127,दे. श. को.) इआले 7899) छोडना, दूर करना. गुज. मिर्च आदि तीखी वस्तुओं के स्पर्श से जीभ परहर 2696 आदि का जलने लगना 2678
परिहेल स. देश. तिरस्कारपूर्वक दूर हटाना 2697
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष
११३ * परीक्षा स. सम (स. परि + ईष) परीक्षा पलेट स. दे. 'लपेट' 2711 करना. तुल. गुज. परीक्षा संज्ञा 2698
पलेड़ स. देश, धक्का देना, ढकेलना 2712 परेख स. अर्धसम (सं. परि + ईक्ष ; दे. इआले पलोट स. देश. (प्रा. पलोद; दे.पृ. 572 पा. 7912) दे. 'परख' अ. प्रतीक्षा करना; पछताना स. म. * प्रलोत् प्रा. पलोट्ट; दे. इआले 2699
8770) सेवा-भाव से किसीके पैर दबाना; परेह स. देश. (दे. पृ. 128, दे. श. को.) खेत अ. लोटना. गुज. पलोट 'तालीम देकर योग्य में पानी देना 2700
बनाना' 2713 परोर स. देश. मंत्र पढ़कर फूंकना. 2701 पलोव स. दे. 'पलोट' 2714 परोस स. भव (सं. परि + विष् , प्रा. परिएस् ; पलोस स. देश. धोना; अपना काम निकालने के
दे. इआले 7888) खानेवालों के सामने लिए मीठी-मीठी बाते करके किसीको अमुकूल भोजन की वस्तुएँ रखना. गुज. पीरसः परीस, करना 2715 परस 'वफादारी से सेवा करना' 2702
पल्लव अ. ना. सम (सं. पल्लव संज्ञा, दे. पल (1) अ. ना. भव (सं. पल्लव, प्रा. पल्लविअ आले 7970) पल्लवित होना; स. पल्लवित विशे; दे. इआले 7971) पल्लवित होनाः करना. तुल. गुज. पल्लव संज्ञा 2716 पुष्ट होना. गुज. पल 'पलना, जाना' पवार स. दे. 'पँवार' 2717 (2) स. देश. (दे. पृ. 128, दे, स. को.)
पवेर स. देश (* प्र + कृ; दे. इआले 8449) कोई पदार्थ किसीको देना 2703
बीजों को छीटते हुए बोना 2718 पलट अ. देश. उलट जाना; लौटना. गुज. पलट
पसर अ. भव (सं. प्र + सृ; प्रा. पसर: दे. बदलत्य' 2704
इआले 8825) और अधिक दूरी में व्याप्त * पलह अ. दे. 'पलुह ' 2705
होना; बढ़ना. गुज. पसर 2719 पला अ. देश. (* प्र + स्तु; दे. इआले 8876) पसा स. देश. ( * प्र + स्रु: दे. इआले 8891) गाय इत्यादि का पिन्हाना; भागना 2706
पके हुए चावल में से माँड निकालना; जलपलान स. ना. भव (सं. पल्याण संज्ञाः प्रा.
युक्त पदार्थ में से जल के अंश को बहा देना पल्लाणू; दे. इआले 7966) पलान कसना.
2720 गुजः पलाण 2707
पसीज अ. भव (सं. प्र + स्विदः दे. इआले पलास स. देश. (दे. पृ. 444, मा. हि. को-3)
8896) ताप के कारण किसी ठोस चीज़ का सिल जाने के बाद जूते को छांटकर ठीक करना। 2708
ऐसी स्थिति को प्राप्त होना कि उसका जलांश पलुह अ. ना. भव (सं. पल्लव संज्ञा, प्रा.
__रस रसकर बाहर निकले; खिन्न होना 2721 पल्लविअ विशे; दे. इआले. 7971) पौधे पसूज स. देश. (* प्र + सिवः दे. इआले वृक्ष आदि का पल्लवित होना; उन्नति करना
8886) कपड़ो की सिलाई में एक विशेष 2709
प्रकार के टाँके लगाना 2722 पले स. भव (सं. प्लु: प्रा. पाव: दे. आले. पस्ता अ. दे. 'पछता' 2723
9027 खेत जोतने के बाद और बोने से पहचान स. भव (सं. प्रत्यभि + ज्ञा; प्रा. पच्चपूर्व सींचना 2710
भिआणः पच्चहियाण; दे. इआले 8637 )
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११.
पहट किसी पूर्वपरिचित व्यक्ति को या वस्तु को पाक अ. दे. 'पक' 2740 देखकर यह जान लेना कि वह अमुक है; पाग स. देश. खाने की चीज़ को चाशनी या विवेक करना. गुज. पिछाण 2724
शीरे में कुछ समय तक डुबाकर रखना 2741 पहट (1) स. देश. ( * प्रहट्ट; दे. इआले पाछ स. भव (सं. प्र + छो; प्रा. पच्छण संज्ञाः
8899) भागने या पकड़ने के लिए दौड़ना दे. इआले 8505) खून, पछा, रस या दूध (2) स. देश. (दे. पृ. 129, दे. श. को.) निकालने के लिए छुरे आदि के हलके आघात पैना करना 2725
से प्राणी के शरीर पर या पेडपौधे पर चीरा पहन स. भव (सं. पि + नह ; दे. इआले 8198 लगाना 2742
(कपड़े आदि ) शरीर पर धारण करना. गुज. पाट स. ना. भव (सं. पट्ट संज्ञा; प्रा. पट्ट; दे. पहेर 2726
इआले 7694) किसी गड्ढे या नीची भूमि पहर (1) स. अर्धसम (सं. प्र + हर) नष्ट । को भरकर आसपास की जमीन को बराबर कर करना
देना; भर देना; ढकना. तुल. गुज. पाट संज्ञा (2) स. दे. 'पहन' 2727
'तख्त' 2743 पहल अ. दे. 'पलुह' 2728
पाथ स. दे. 'थाप' गीली मिट्टी, ताज़ा गोबर पहिचान स. दे. 'पहचान' 2729
आदि को थपथपाते हुए या साँचों में ढालकर पहिन स. दे. 'पहन' 2730
छोटे छोटे पिंड बनाना; मारना-पीटना 2744 पहिर स. भव (सं. परि + द + धा; प्रा. परिह पाद अ. भव (सं. प; दे. इआले 7933)
पहिर् ; दे. इआले 7835) (कपड़े आदि अपान वायु को गुदा मार्ग से बाहर निकालना;
शरीर पर धारण करना. गुज. पहेर 2731 खेल में विपक्षी द्वारा अधिक दौडाया जाना. पहुँच अ. भव (सं. प्र + भूः प्रा. पभूय विशे; गुज. पाद; पदा 2745
पहुच्च ; दे. इआले 8716) एक स्थान से पाम स. दे. 'पा' 2746 चलकर दूसरे स्थान को प्राप्त होना; व्याप्त पार स. भव (सं. पृ; प्रा. पार ; दे. इआले होना. गुज. पहोंच 1732
8106) पूरा करना; तैयार करना 2747 पहुच अ. दे. 'पहुँच' 2733
*पारोक अ. देश. परोक्ष होना; अदृश्य होना. पहुत अ. दे. 'पहुँच' 2734
2748 पहेट स. दे. 'पहट' 2735
पाल स. भव (सं पृ; प्रा. पाल ; दे. इआले पाँछ स. दे. 'पोंछ' 2736
8129) भोजन वस्त्र आदि देकर बड़ा करना; पाँज स. देश. (* प्र + अँज् ; दे. इआले 8926) जीविका या मनोरंजन के लिए पशु-पक्षी
लोहे, पीतल आदि की वस्तुओं को टाँका आदि को आहार आदि देकर अपने यहां देकर जोड़ना, झालना 2737
रखना. गुज. पाळ 2749 पाँतर अ. देश. गलती करना 2738
पास अ. भव (सं. प्र + नु; दे. इआले 8888) पा स. भव (सं. प्र + आप ; प्रा. पाव : दे. स्तनों में दूध उतरना, पेन्हाना 2750
इआले 8943) प्राप्त करना, समझ जाना. पिंज स. भव दे. 'पीज' 2751 गुज. पा 'पिलाना', पाम 'पाना' 2739 पिअ स. दे. 'पी' 2752
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
पिगल अ. भव (सं. प्र + गल् ; प्रा . पगलंत विशे; दे. इआलें 8468) किसी ठोस पदार्थ का गरमी पाकर तरल होना; होना. गुज. पीगळ 2753
दया आद्र
पिघर अ. दे. 'पिघल' 2754
पिघल अ. देश. ( प्र + घृ दे. इआले 8486) पिगलना. गुज. पीगळ 2755
पिचक अ. भव (सं. पिच्च् प्रा. पिच्चिय विशे;
दे. इआले 8149) फूले या उमरे हुए तल का भीतर की और दबना; सिकुड़ना 2756 पिचपिचा अ. अनु. (दे. पू. 502, मा. हि. को - 3) किसी छेद में तरल पदार्थ का पिच - पिच शब्द करते हुए रसना, घाव आदि में से पंछा निकालना 2757
पिचल स. ना. देश. (पिच्छा विशे; प्रा पिज्छल; दे. इआले 8152) कुचलना ; दे. फिसल’
2758
पिछड अ. ना. देश (* पश्च; प्रा. पच्छ संज्ञा; दे. इआले 7990) पीछे रह जाना. तुल. गुज. पाळ अव्य. 'पीछे' 2759
पिछल अ. दे. 'पिछड' पीछे हटना या मुड़ना 2760
पिछान स. देश पहचानना. गुज. पिछाण 2761 पिटापटा अ. अनु. (दे. पृ. 504, मा. हि. को-3) लाचार होकर रह जाना 2762: पिनक अ. देश. (दे. पृ. 131, दे. श. को.) अफीम के नशे में आगे की ओर झुकझुक पड़ना; ऊँघना. 2763 पिनपिना अ. अनु. देश. (दे. पृ. 131, दे. श. को. ) 'पिन - पिन' शब्द करना; बच्चे का नकिया कर और अस्पष्ट स्वर में रुक-रूक कर रोना 2764
पिपिया अ. ना. देश. ( पीप संज्ञा; *पिप प्रा. पिप्पय संज्ञा दे. इआलें 8.03 ) फोडे आदि में पीप पैदा होना; स. फोड़ा पकाना 2765
११५
पियरा अ. ना. भव ( सं. पीतल संज्ञा; प्रा. पीअल; दे. इआलें 8233 ) पीला होना. तुल. गुज. पीलुं विशे. 2766
पिरा अ. ना. भव (सं. पीड़ा संज्ञा; प्रा. पीड़ा; दे. इआ 8227 ) ( किसी अंग का) दर्द करना, पीड़ा अनुभव करना किसीको दुःखी देखकर दुःखी होना. तुल. गुज. पीड़ संज्ञा 2767
पिरीत अ. अर्धसम (सं. प्रीति संज्ञा ) प्रीति करना; प्रसन्न होना. तुल. गुज. प्रीत संज्ञा 2768
पिरो स. भव (सं. पार + वे; दे. इआले 7869 प्रा. पोइअ विशे; दे. पृ. 616, पा. स. म. ) सुई के छेद में धागा डालना; किसी बारीक छेद में कोई चीज़ डालना 2769
पिल अ. देश. किसी ओर वेग से प्रवृत्त होना; घुस पडना, गुज. पील 'दबाना, कुचलना ' 2770
पिलक स. देश. गिराना, ढकेलना; अ. गिरना; लुढ़कना 2771
पिलच अ. देश. दो आदमियों का भिड़ना; किसी काम में तत्पर पिलपिला अ. अनु. देश. (दे. पृ. को.) पिलपिला होना, किसी चिज़ हाथ इस प्रकार दबाना कि उसका परिवर्तित होकर बाहर निकलने लगे * पिष स. देश. पेखना 2774 पिहक अ. अनु. ( दे. पृ. 514, मा. हि. को - 3 ) कोयल, पपीछे, मोर, आदि का पी पी चहकना 2775
आपस में होना 2772 131, दे. श. को हल्के गूदा रस में 2773
पींज स. ना. भव (सं. पिञ्जा संज्ञा : *पिज् प्रा. पिंज; दे. इआले 8159) (रुई) धुनना गुज, पींज 2776 पीस. भव (सं. पा, प्रा.
पिव्, पिव; दे. इआले 8209) किसी द्रव पदार्थ को घूँट घूँट
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पीक कर पेट में पहुँचाना; किसी बात को सह लेना. पुरै स. दे. 'पूर' 2791 गुज. पी 2777
पुल अ. देश. (दे. पृ. 542, मा. हि. को 3) पीक अ. अनु. (दे. पृ. 514, मा. हि. को-3) चलना 2792 __पी पी शब्द करना 2778
पुलक अ. ना. सम (सं. पुलक संज्ञा) पुलकित पीच अ. दे. 'पिचक' 2779
होना. गुज. पुलक 2793 'पीट स. भव (सं. पिट्ट प्रा. पिट्ट; दे. इआले 8165) किसी वस्तु पर आघात करना,
पुलपुला स. अनु. देश. (दे. पृ. 133, दे. श.को.) मारना. गुज. पीट 2780
किसी पुलपुली चीज़ को दबाना; दबाकर चुराना; पीड अ. भव (सं. पीड् ; प्रा. पीड् ; दे. इआले
अ. पुलपुला होना 2794 8225) पीडा देना; दबाना. गुज. पीड
*पुलह अ. दे. 'पलुह' 2795 2781
पुहत स. दे. 'पहुँच' 2796 पीन स. देश. 'पीज' 2782
पूंछ स. भव (सं.प्रछ: प्रा. पुच्छ : दे. इआले. *पौर स. दे. 'पेर' 2783
8352) किसी वस्तु के संबंध में किसी से कोई
प्रश्न करना' खाज-खबर लेना. गुज. पूछ; प्रीछ पीस स. भव (सं. पिष् ; प्रा. पीस् ; दे. इआले
'समझना, पहचानना ' 2797 8142) झाडकर या दबाव पहुँचाकर किसी , कड़ी वस्तु को चूरे के रूप में बदलना; चूर्ण
पूँज स. देश. (दे. पृ. 549, मा. हि. का.-3) करना. गुज. पीस 2784
नया बंदर पकड़ना 2898 पुकार स. ना. देश. (*पुक्कार; प्रा. पुक्कार् ; दे.
घूग अ. भव (सं. पृ. ; पुज्ज् ; दे. इआले इआले 8246) किसीको नाम लेकर बुलाना;
8342) पूरा होना, खेल के घर में पहुंचना चिल्लाना. गुज. पुकार, पोकार 2735
गुज. पुग 2799 पुचकार स. अनु. देश. (दे. पृ. 132 दे. श.
. पूछ स. दे. 'छ' 2800 को. ) ओठों से चमने का-सा शब्द उत्पन्न पूज स. सम. (स. पूज्) पत्र, पुष्प आदि समाप्त करते हुए किसीके प्रति लाड-चाव प्रगट
___ कर के देवता का आराधन करमा ; संस्कार करना. गुज. पुचकार 2786
करना. गुज. पूज 2801 पुंचार स. देश. (दे. पृ. 132, दे. श. को.) पूर स. भव (सं. पृ. ; प्रा. पूर : दे. इआले पोताना, पुचार देना. 2787
8335 पूरा करना , पूर्ति करना. गुज. पूर 2802 पुटिया स. देश. फुसला कर किसीको अनुकूल
पेंड स. देश. बैंड़ना 2803 या राजी करना 2788
पेख स. भव (सं. प्र + ईक्ष ; पेक्खू ; दे. इआले पुन स. देश. (दे. पृ. 132, दे. श. को.) 8994) देखना. गुज. पेख 2804 गालियाँ देना. 2789
पेच स. ना. वि (पेच संज्ञा ; फा.) दो चीजो पुपला अ. ना. देश. (पोपला संज्ञा; *पोष्प; दे. के बीच में उसी प्रकार की कोई तीसरी चीज इआले 8402) पोपला होना; स. पोपला इस प्रकार बैठाना कि साधारणतः वह ऊपर से करना. तुल. गुज. पोपलु विशे. 'ढीला, दिखाई न पड़े. तुल. गुज. पेच संज्ञा 2805 कमजोर 2790
पेड़ स. दे. 'पेर' 2806
,
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
पैन्हा अ. भव (सं. पयः + स्रव्; प्रा. पणव् ; दे. पृ. 569, मा. हि. को - 3 ) दुहे जाने के समय भैंस आदि के थन में दूध उतरना पहनाना 2807
;
पेर स. भव (सं. पीड़ प्रा. पीडू दे. इआलें 8226) यंत्र से रस या स्नेह निचुड़ना. गुज, पील 2808
स.
पेल स. भव (सं प्र + ईर्; प्रा. पेल्लू; दे. इआलें 9005) दबाकर भीतर पहुंचाना 2809 'पेष' स. 'दै. 'पेख पेस अ. दे. 'पैस
2810 2811
पैंच स. देश (दे. पृ. 571, मा. हि. को - 3) सूप से अनाज साफ करना 2812
पैछान स. दे. ' पहचान 2813
पैठ अ. भव (सं. प्र + विशू ; प्रा. पषिट्ठ, पैठ विशे; दे. इआलें 8803) पैसना, घुसना, तुल. गुज. पेठु 'घुसा 2814 पैना स. ना. भव (पैना विशे; * प्र + तीक्ष्ण ; प्रा. पडिक्खि; दे; इआले 8622) छुरे आदि की धार रगड़ कर तेज करना, टेमा 2815 पैन्ह स. दे. ' पहन 2816
;
पैर अ. भव (सं. प्र + तृ दे. इआले 8536) तैरना 2817
पैरेल स. दे. 'परख 2818
;
अ. भ (स.प्र + विश्; प्रा. पैसू दे. इआले 8803 घुसना; प्रवेश करना. गुज. पेस 2819 पोंक अ. भव (सं. प्र + मुच् : प्रा. पमुक्क विशे; दे. इआले 8727) पतला पाखाना फिरना बहुत अधिक डरना 2820 पोंछ स. देश. (सं. प्रोञ्छ; प्रा. पुंछू दे. इआले 9011 ; यह धातु मभाआ से संस्कृत में गई है ) किसी वस्तु पर हाथ, कपड़ा आदि फेरकर उस पर लगा हुआ तरल पदार्थ उठा लेना; या धूल आदि साफ पुंछ2821
करना. गुज.
११७
पो ( 1 ) स. भव ( स प्र + वे प्रा. पो; दे. इआलें 8785 तथा 8781) गूँथना. सुज, परे । व, परव, पो 'पिरोना'
(2) सं. भव (सं. प्र + तप्; प्रा. पखाव् ; दे. इआले 8539) पकाना 2822
पोख (1) सं. दे. 'पोस ' (2) स. 'पांक 2823 पोछ स. दे. पछ2824
पोढ़ अ. ना. भव ( पोढ़
प्रा. पोढ; दे. इआले
विशे; सं मोढ; 9021) दृढ होना; सं.
3
दृढ करना. गुज पोढ 'सोना 2825 पोढ़ा अ. दे. पढ़ , 2526
पोत स. देश. किसी तरल पदार्थ' को अन्य वस्तु पर फैलाकर लगाना; लेप करना. तुल, ख. पोतुं सज्ञा 2827 पोपला अ. दे. पुपला 2828
6
पोस स. भव (स ं. पुष; प्रा. पोस्; दे. इभाले 8410 आहार आदि देकर बड़ा करना; -पालन करना. युज पोस, पोष 2829
पोह (1) स. देश. (* प्र + उभू दे. आले 8781) गूँथन
(2) स. भव ( संप्र + वहू प्रा. प्रवह; दे. इआले 8792. रखना 2830 पौंड अ. देश. तैरना 2831 पौढ अ. दे. 'पौढ' 2832 पौढ (1) अ. भव (सं प्र + वृध्; प्रा. पद्ध दे. झआले 8789 ) लेटना. गुज. पोढ, पोड,
(2) अ. भव (सं. लवू प्रा. पब्बू दे. पृ. 583, मा. हि. को 3) झूलना 2833 पौर अ. देश. तैरना 2834 पौल स. देश. काटना 2835
-
प्रकटा स. ना. सम (सं. प्रकट विशे. ) प्रकट करना. गुज. प्रगट अ. 2836
प्रकास से. 'ना. अर्धसम (सं. प्रकाश)
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૨૮
प्रकाश से युक्त करना; अ. प्रकाशित होना गुज. प्रकाश 2837
प्रगट अ. ना. अर्धसम (सं. प्रकट विशे.) प्रकट होना; स. प्रगटाना. गुज. प्रगट 2838
प्रजर अ. अर्धसम (सं. प्रज्वलू ) अच्छी तरह जलना; स. प्रजारना. गुज. प्रजळ 2839 प्रज्वल अ. सम (सं. प्र + ज्वल) प्रज्वलित करना गुज. प्रजळ 2840
*प्रतोष स. अर्धसम ( स करना; समझाना - बुझाना 2841
प्र + तो धू) संतुष्ट
* प्रन अ. देश. प्रणाम करना 2842 प्रनम अ. अर्धसम ( स प्र + नम् ) प्रणाम करना गुज. प्रणम 2843
2845
प्रफुल अ. अर्धसम (सं. प्रफुल्ल विशे. ) फूलना गुज. प्रफुल्ल 2844 प्रबिस अ. दे. 'प्रविस प्रबोध स. सम (सं. प्र + बुध् ) जगाना, समझाना - बुझाना. गुज. प्रबोध 2846 प्रमण स. सम. (सं. प्र + भण्) कहना 2847 प्रभास अ. सम (सं. प्र + भास् ) प्रकाशित होना, चमकना; स. प्रकाशित करना 2848 प्रमाण स. दे. 'प्रमान 2849 प्रमान स. ना. अर्धसम (सं. प्रमाण संज्ञा ) प्रमाणित करना, ठहराना गुज. प्रमाण 2850 * प्रमोध सं. दे. 'प्रबोध' 2851
* प्रवेश अ. ना. सम ( सं . प्रवेश संज्ञा ) प्रवेश करना. गुज. प्रवेश 2852
* प्रशंस स. ना. सम (स. प्रशंसा संज्ञा ) प्रशंसा करना, सराहना तुल गुज प्रशंसा संज्ञा 2853
*प्रसंस स. दे. 'प्रशंस 2854
* प्रसव स. ना. सम (सं. प्रसव संज्ञा) प्रसव
प्रगट
करना; अ. प्रसव होना. तुल. गुज. प्रसव संज्ञा
2855
* प्रसार स. सम (सं. प्र + सृ) प्रसारण करना; फैलाना. गुज. प्रसार 2856
प्रहरख अ. ना. अर्धसम (सं. प्रहर्षण संज्ञा ) हर्षित होना 2857
* प्रहार स. ना. सम (सं. प्रहार संज्ञा ) प्रहार करना. तुल. गुज प्रहार संज्ञा 2858
प्राप अ. ना. सम (सं. प्रापण संज्ञा ) प्राप्त होना; स. प्राप्त करना. गुज. पाम 2859 प्रास स. ना. अर्धसम (सं. प्राशन संज्ञा ) खाना, चाटना 2860
फंद अ. ना. वि. फंद संज्ञा फा) फंदे में फँसना, मुग्ध होना; स. फंदा बिछाना तुल. गुज. फंदा संज्ञा 2861
फंफा अ. अनु. (दे. पृ. 1, मा. हि. को - 4 ) बोलने में हकलाना; दूध में उबाल आना 2862
फँस अ. दे. 'फॉस' फँदे में पड़ना; उलझना. गुज. फसा 2863
फगुआ स. ना. ( फगुआ संज्ञा, सं फल्गुः प्रा. फग्गु दे. इआले 9062) फागुन में किसीके ऊपर रंग छोड़ना या उसे सुनाकर अश्लील गीत गाना; अ. फागुन में इतना उच्छृंखल होना कि सभ्यता का ध्यान न रह जाय. तुल. गुज. फाग संज्ञा 2864
फट अ. भव (स. स्फटू: प्रा. फट्ट दे. इआलें 13825) किसी प्रकार के दबाव या आघात से किसी वस्तु का खंडो में विभक्त होना. गुज.
फाट 2865
फटक स. अनु देश (*फट्ट दे. इआले 9038) झाड़ना; सूप आदि के द्वारा अन्न आदि साफ करना. गुज. फटक 'झाड़ना' 2866
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश फटकार स. दे. 'फटक' कोई चीज़ इस प्रकार फनक अ. अनु. (दे. पृ. 6, मा. हि. को-4) हिलाना कि फट शब्द हो, किसीको लज्जित फन-फन शब्द करना; इस प्रकार तेजी से करने के लिए कडी बाते कहना. गुज. फटकार चलना कि हवा से वस्त्र फनफन करने लगे 'पीटना' 2867
2875
फनग अ. ना. देश. (फुनगा संज्ञा ) वृक्षों आदि फटफटा स. अनु. देश. (*फट्ट. दे. इआले ___9038) किसी वस्त से 'फट-फट' शब्द उत्पन्न
का फुनगियों से युक्त होना; उन्नति करना.
तुल. गुज. फणगो सज्ञा 'अंकुर' 2876 करना; बकवास करना; अ. 'फट-फट' शब्द होना. गुज. फटक 'पीटना': फटकार 'फटकारना'
फनफना अ. दे. 'फनक ' मुँह से हवा छोड़कर 2868
'फन फन' शब्द करना 2877
फना स. देश. फंदा बनाना; काम शुरू करना फडक अ. अनु. भव (सं. फर संज्ञा; प्रा. 2878
फरक्किद विशे; दे. पृ. 612, पा. स. म.; फफक अ. अनु. (दे. पृ. 7, मा. हि. को-4.) फट; दे. इआले 9038) रुक रुककर ।
__ रुक-रुक कर और फफ-फफ शब्द करते हुए चलायमान होना. गुज, फरक 2869
रोना 2879 फड़फड़ा अ. अनु. देश. (* फट; दे. इआले. फफद अ. अनु. गोबर आदि का विकार-विशेष 9038) 'फड़-फड़' शब्द होनाः छटकारा के कारण बढकर फैलना; दाद आदि का पाने के लिए प्रयत्न करना: स. कोई चीज वृद्धि को प्राप्त होना या फैलना.गुज. फदफद बार बार हिलाकर 'फड़-फड़' शब्द उत्पन्न
2880 करना. गुज. फड़फड़ 2870
फब (1) अ. ना. भव (सं. फल्फ संज्ञा दे.
इआले 14712) शोभा देना, अनुकूल मालूम फड़ोल स. भव (तुल. सं. स्पंदोलिका संज्ञा; प्रा. होना
उप्फंडोल ह. भा.) किसी चीज़ को उलटना- (2) अ. भव. ( सं स्पृ; प्रा. फव्विहः पुलटना 2871
दे इआले 13808) गुज. फाव; तुल. गुज.
फग 2881 फदक अ. अनु. (दे. पृ. 6, मा. हि. को-4) 'फद-फद' शब्द होना: भात आदि का पकते समय फरक अ. अ. अनु. भव (स. फर संज्ञाः प्रा. फद-फद शब्द करना 2872
फरक्किद विशे; दे. पृ. 201. हि. दे. श.)
फड़कना; शीघ्रता-पूर्वक कोई कार्य करना, फदफदा अ. अनु. ( दे. पृ. 6, मा. हि. को-4) गुज. फरक 2882 'फद-फद' शब्द होना; वृक्षो में नई कोपलें ।
___ फर अ. दे. 'फल' 2883 या पत्तियाँ निकलना; स. 'फद-फद' शब्द
__फरक (1) अ. दे. 'फरंक' उत्पन्न करना. गुज. फदफद 'सडकर पिलपिला होना' 2873
(2) अ. ना. वि. (फ़र्क संज्ञा; अर.) अलग
होना, कटकर निकल जाना 2884 फन अ. देश. काम का आरंभ होना; ठाना जाना फरचा स. ना. देश. (फरचा संज्ञा) साफ करना; दे. 'फान' 2874
आदेश देना 2885
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फाल्फा अभवः (सं. स्फर प्रा. फलक्किद विशेः के इआलें 13820) फड़फड़ाना. गुज़. फरफर, फटका: 2886.
फरमा स. ना. वि. (फ़र्मान संज्ञा: फा. ) कहना, आशा करना, मुजः फरमान 2887
फरहर अ. अनु. भव सं. फरह ; प्रा. फरहर् ; दे. पृ, 621, पा. स. म. ) फरफराना, फहराना गुज, फरहर 2888
फरिया स. देश. चावल आदि का कचरा धोकर साफ करना, निर्णय करना अ. साफ होना; निर्णीत होना 2889
फर्मा, स. दे. ' फरमा' 2890 फलंग अ. दे. 'फलाँग ' 2891
अ. भव (सं. फळ प्रा. फल; दे. इआले 9957 ) ( पेड़ में ) फल आना, फल होना, सुन. फळ- 2892
फलक अ. अनु. ( दे. पृ. 12, मा. हि. को - 4) बालकना, उमगला; दे. ' फड़क 2893
पालोग अ ना. देश. ( फलाँग संज्ञा ) फलाँग भरना, फाँदना, तुल. गुज. फलंग संज्ञा 2894
फलक अ. अनु. देश. (* फरस दे. इआलें 9068) मसकना; धँसना, गुज. फसक 2895 फहर. अ. दे. 'फहरा 2896
फक्त अ अनु, हवा में हिलना, लहराना स. किसी चीज़ को इस तरह खड़ा करना कि हवा में हिले - लहराये 2897
फाँक स. देश. (* फक्क दे, इआले 9034 )
चूर या दाने की शक्लवाली चीज़ को, हाथ को हो से सदाये बिना मुँह में डाल देना : का मारना. गुज, फाक 2898
फाँट स. दे. 'बाँट' 2899
फरफरा
फाँद अ. भव ( सं. स्पन्द् प्रा. फँदू दे. इआले.
13806 ) उछलना; स. कूदकर लाँघना 2900 फाँप सः देश. (* प्र + स्फा दे. इआले 8879 तथा 9066 ) फूलना 2901
फाँस स. अर्धसम ( स स्पशः दे. इआले. 13814 ) फंदे में कसना; दाँव-पेच में बाँधना. गुज, फाँस: 2902
फाट अ दे. 'फट 2903
फाड़ स. भव (सं. स्फटू; प्रा. फाड् ; दे. इआले 13825) चीरना; टुकड़े करना; गुज. फाड 2904
फारस. दे. 'फाँद' (रुई) धुनना, किसी काम को शुरू करना 2905 फार स. दे. 'फाड़ 2906
फाल भव ( सं. स्फलू दे. इआले 13822) कूदना 2907
;
फिकर अ. दे. 'फेंकर 2908
फिट अ. भव (सं) स्फिट् प्रा. फिट्ट के इआले 13838) पिटकर एक होना, गुज. फीट टहलना, शिथिल होना' तुल. गुज. फेड 'दूर
,
करना 2909
6
फिर अ. देश. (* फिर्; फिर्; दे. इआले 9078) कभी इधर, कभी उधर जाना; लौटना, मुज. फर- 2910
फिरक अ. दे. ' फिर फिरकी की तरह घूमना; थिरकना 2911
फिस फिसा अ. अनु. देश. (दे. पृ. 137, दे. श. को. ) फिस होना; ढीला हो जाना 2912 फिसल अ. ना. भव (सं. पिच्छल विशे; प्रा.
पिच्छल; दे. इआले 8152 तथा 8080 ) चिकनाई की अधिकता से पाँव का न टिकना; चूकना 2913
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हिन्दी - गुजराती धातुकोष
फिल्मा स. ना. वि. (फिल्म संज्ञा; अं.) दृश्य को फिल्म में अंकित करना; फिल्म तैयार करना. तुल गुज. फिल्म संज्ञा 2914 फींच स. दे. 'फीच' 2915
4)
फीच स. अनु. (दे. पृ. 23, मा. हि. को, कपड़े को गीला करके बार बार पटक कर साफ करना, कचारना 2916
फुंकर अ. अनु. भव (सं. फूत् + कृ; प्रा. फुक्कार संज्ञा दे. इआले 9104) फुफकारना, फूत्कार करना. गुज. फुंकार 2917
फुदक अ. अनु. देश. (दे. पृ. 137, दे. श. को.) उछलते हुए चलना हर्ष के अतिरेक में उछलना 2918
फुफकार अ. अनु. भव (सं. फूत + कृ प्रा. फुक्कार संज्ञा; इआले 9104) साँप का गुस्से में मुँह से हवा निकालना. तुल. गुज. फुफवाटो, 'फुफवाडा, फुंकारे सज्ञा 2919 फुफुआ अ. अनु. भव (सं. फुफ्फु; प्रा. फुंका; दे. पृ. 202, हि. दे. श. ) दे. 'फुफकार' फूंफू करना 2920
फुर अ. भव (सं. स्फुर्; प्रा. फुर् दे. इआले 13849 फडकना, सत्य होना 2921
फुरफुरा अ. अनु. देश (दे. पृ. को.) इस तरह उडना कि 'फुर फुर ' आवाज़ हो; स. पंख आदि फड़फड़ाना 2922 फुरहर अ. देश. फूटकर निकलना 2923
137, दे. श. परों या डैनों से फुदेरी फिराना;
फुरा अ. दे. 'फुर' स. सत्य सिद्ध करना; कथन आदि पूरा उतारना 2924
फुसकार अ. अनु. (दे. पृ. 27, मा. हि. को4; *फुस्स; दे. इआलें 9099 ) फूँक मारना; फूत्कार छोडना 2925 फुसफुसा अ. अनु. (दे. पृ. 27, मा. हि. को-4) धीमी अस्फुट आवाज में बोलना; ' १६
'फुसफुस'
१२१
शब्द करते हुए कुछ कहना. तुल. गुज. फूस - फासि विशे. 'हलका, तुच्छ' 2926
फुसला स. भव (सं. स्पृश: प्रा. फुस् ; दे. इआले 13815) मीठी बातों से बहलाना, बहकाना. गुज. फोसलाव 2927
फुहार स. ना. देश. ( फुहार संज्ञा ) किसी चीज़ को धोने, रंगने आदि के लिए उस पर किसी तरल पदार्थ की फुहार डालना 2928
फूक स. अनु. ( फूक; प्रा. फुवकू दे. इआले 9102) होठों को मिलाकर मुख के मध्य भाग से हवा छोडना; भरम करना 2929 फूक स. दे. 'फूँक' 2930
फूट अ. भव (सं. स्फुट: प्रा. फुट्ट दे. इआले 13845 तथा 13857) चोट या धक्का खाकर टूटना; तोड़कर निकलना. गुज. फूट 2931 फूल अ. ना. दे.
भव (सं. फुल्ल विशे: प्रा. फुल्लू ; 9093 ) (पेड़-पौधे में फूल आना; गर्व से इतराना. गुज. फूल 2932
फेंक स. देश. (* फेंक दे. इआले 9006) किसी चीज़ को हाथ से ऐसी हरकत देना कि कुछ दूर जा गिरे; पटकना गुज. फेंक
2933
फेकर अ. दे. 'फेकर' 2934
फेंट स. देश. हाथ या ऊँगलियों की हरकत से मिलाना; अच्छी तरह मिलाना 2935
फेकर अ. अनु. देश. (दे. प्र. 138, दे. श. को.) फूट-फूट कर रोना; जोर से चिल्लाते हुए कर्णकटु शब्द उत्पन्न करना 2936
फेकार स. देश. (दे. पृ. 138, दे. श. को.) सिर के बाल खोल कर झटकारना 2937 फेट स. दे. 'फेट' 2938
फेन स. ना. भव (सं. फेन संज्ञा; प्रा. फेण; दें. इआले 9108) ऐसा काम करना जिससे
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१२२
किसी तरल पदार्थ में फेन उत्पन्न होने लगे. बकोट स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 134, हि. दे. गुज. फेण, फीण 2939
श.) पंजे या नाखूनों से नोचना; बलपूर्वक फेर स. देश. (दे. पृ. 138, दे. श. को.) वसूल करना 2953
घुमाना; वापस करना. गुज. फेरव 'घुमाना'; बखस स. दे. 'बख्श' 2954 तुल. गुज. फेरो 'फेरा' 2940
बकसीस स. ना. वि. (बखशिश संज्ञा; फा.) फैल अ. भन (*प्रथिल; प्रा. पहिल्ल; दे. इआले बखशिश के रूप में देना. तुल. गुज. बक्षिश
8652) अधिक स्थान घेरना; प्रसिद्ध या प्रचा- संज्ञा 2955 रित होना. गुज. फेला; तुल. गुज. पहेलु विशे बखान स. ना. भव (बखान संज्ञा; सं. व्या + 'पहला 2941
ख्या; प्रा. व + खाण; दे. इआले 12188) फोंक अ. देश. (दे. पृ. 138, दे. श. को.) वर्णन करना; बड़ाई करना; गालियाँ देना. गुज. आवेश में आकर डीग मारना 2942
वखाण 2956 बंच (1) स. ना. अर्धसम (सं. कचना संज्ञा)
बखिया स. ना. वि. (बखिय; संज्ञाः फा.)
सिलाई करना. तुल. गुज. बखियो संज्ञा 2957 गना; अ. ठगा जाना. गुज. वंच (2) स. ना. अर्धसम (सं. वाचन संज्ञा) पढ़ना;
बखेर स. दे. 'बिखेर' 2958 दे. 'बाँच' 2943
बखोर स. ना. देश. (खोर संज्ञा ) सीधे रास्ते से
किसी ओर रास्ते पर ले जाना 2959 बंछ स. ना. अर्धसम (सं. वाञ्छा संज्ञा ) इच्छा __ करना. गुज. वाँछ 2944
बख्श स. ना. वि. (बख्श विशे, फा.) प्रदान
करना; क्षमा करना. गुज. बक्ष 2:60 बंद स. अर्धसम (सं. वन्द ) वंदना करना...
बग अ. देश. घूमना; फिरना; दौड़ना 2961 गुज. वंद 2945
- बगद अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 134, हि. दे. बंबा अ. अनु. (दे. पृ. 43, मा. हि. को-4) श.) बिगड़नाः गुस्से में अंतु-बंड बकना, गिर
गौ आदि पशुओं का बाँ बाँ शब्द करना, पड़ना 2962 रंभाना 2946
बगबगा अ. अनु. (दे. पृ. 47, मा. हि. को. बउरा अ. दे. 'बौर, 2947
ऊँट का काम-वासना से मत्त होना 2963 बक स. देश. (* बक्क: प्रा. बक्कर संज्ञा, दे. बगर अ. देश, फैलना, छितराना 2964
इआलें 9117 बोलना, मुँह से गालियाँ बगलिया अ. ना. वि. (बगल संज्ञा फा.) बगल निकालनाः अ. बड़-बड़ाना. गुज. बक 2946 से होकर जाना, अलग होकर जानाः स. अला बकठा अ. देश. बहुत कसैली चीज खाने से करना; बगल में करना, तुल गुज. बगल संज्ञा ___ जीभ का कुछ ऐंठना 2949
2965 बकर अ. भव (सं. बर्कर; प्रा. बक्कर संज्ञा; *बगेद स. देश. धक्का देकर गिरा देना,
दे. पृ. 157, हि. दे. श.) अपना दोष स्वीकार विचलित करना 2966 करना; आपसे आप ऊबना; बड़बड़ाना 2950 बघार स. भव (सं. व्या + धृः प्रा. वग्घारिअ बकस स. दे. 'बख्श' 2651
विशे; दे. इआले 12191 ) हींग, जीरा, बकुच अ. देश. सिमटना, सिकुड़ना 2952 प्याज आदि घी में कड़कड़ा कर दाल, तर
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष कारी आदि में डालना; पांडित्य दिखाने के बता स. भव (सं. व्यक्त भू. कृ; प्रा. वत्त; दे. लिए चर्चा करना. गुज, वघार 2967 इआलें 12156) कहना; जताना. गुज. बताव
2982 बच अ. भव (स. वच् प्रा. वंचू दे. पा. स. म.) ।
बाकी रहना; प्राणरक्षा होना. गुज. बच 2968 बतास अ. ना. देश. (बतास संज्ञा; * वातत्रास बज अ. भव (सं, वद् प्रा. यज्ज : दे. इआले दे. इआलें 11493) हवा चलना 2983
11513) आघात से आवाज़ पैदा होना; बतिया अ. ना. भव (बात संज्ञा; सं. वार्ता बाजे से आवाज़ निकलना. गुज. वाज, बज, संज्ञाः प्रा. वत्ता, वट्टा; दे. इआले 11564) वाग 2969
बातचीत करना, तुल. गुज. वात संज्ञा,2984 बजक अ. अनु. (दे. पृ. 51, मा. हि. कों-4) बथ अ. ना. अर्धसम (सं. व्यथा संज्ञा) पीड़ा तरल पदार्थ का सड़कर या बहुत गंदा होकर होना 2985 बुलबुले फेंकना 2970
बद स. देश. ठहराना; दृढ़ता से कोई बात कहना बजबजा अ. दे. 'बजक' 2971
गुज. बद 2986 बझ स. दे. 'बाझ' 2972
बदल अ. ना. वि. (बदल संज्ञा; अर.) एक से बट स. भव. (सं. वृत ; प्रा. वट्टः दे. इआलें दूसरी स्थिति में जाना; स. दूसरा रंगरूप 11356) सूत, धागे के रेशों आदि को देना. गुज. बदल स. 2987 तागा, डोरी आदि बनाने के लिए मिलाकर बध (1) अ. अर्धसम (सं. वध्) वध करना ऐंठना; अ. पिसना. गुज. वाट 'पीसना'; (2) अ. दे. 'बढ़' 2988 वटाव 'भुनाना' 2973
बधिया स. ना. भव (बधिया विशे; सं. वर्ध बटक अ. देश. बचना 2974
दे. इआलें 11381) कुछ विशिष्ट नरबटोर स. ना. भव.
ज्ञा, प्रा. वटुल;
पशुओं का शल्य से अंडकोश निकाल कर दे. इआलें । 1365) समेटना; इकटूठा करना उन्हें बधिया करना. गुज. वाढ, वधेर 2989 2975
बन अ. भव (सं. वन; पा. वण; दे. इआले बटोल स. दे. 'बटोर' 2976
11260) बनाया जाना; नया रूप मिलना. बड़बड़ा अ. अनु. (* बड़बड़; प्रा. बडबड्; दे.
गुज. बन 2990 इआले 9122) बकबक करना; डी ग मारना. *बनज स. ना. भव (सं. वणिज्य संज्ञा; प्रा. गुज. बडबड 2977
वणिज्ज: दे. इआले 11233) व्यापार करना. बड़रा अ. दे. 'बड़बड़ा' 2978
तुल. गुज. वणज संज्ञा 2991 बढ़ अ. भव (सं. वृधू ; प्रा. वधूः दे. इआलें बनरा अ. ना. देश (बनरां संज्ञा; अ. व्यु. दे. ___11376) डील, आकार आदि का अधिक पृ. 134, हि. दे. श.) विवाह कर लेना; होना; आगे जाना. गुज. वाध 2979
छैला बनना 2992 बतरा अ. ना. देश. (बात संज्ञा ) बातचीत करना. बनार स. देश. काटना; काट काट कर किसी तुल. गुज. वात सज्ञा 2930
चीज़ के टुकड़े करना 2993 बतला स.दे 'बता' 2981
बनिज स. दे. 'बनज' 2994
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१२४
ब
हो
।
बप स. अर्धसम (स. वपू) बीज बोना. तुल. बरम्हा स. ना. अर्धसम (सं. ब्रह्म संज्ञा) किसीको गुज. वाव 2995
आशीर्वाद देना 3012 बफर अ. देश. अभिमानपूर्वक लड़ने के लिए बररा अ. दे. बड़बड़ा' 3013 ___ ताल ठोंकना; उत्पात करना. गुज. विफर 2996 बरष अ. अर्धसम (सं. वृष्) बरसना. गुज. वर्ष बबक अ. दे. 'बमक' 2997
3014 बम अ. अर्धसम (स. वम) वमन करना 2998 बरस अ. भव (सं. वृष्; प्रा. वरिसू दे; इआले बमक अ. भव (स. बम्: प्रा. बम; दे. पृ. 202
11394) वायुमडल के जलांश का घनीभूत
की शक्ल में नीचे आना; झड़ना हि. दे. श.) आवेश में अपने बल-पौरुष की डीग मारना; उछलना 2999
गुज. वरस 3015 बय स. दे. 'बो' 3000
बरम स. दे. 'बरम्हा' 3016 . बर स. भव (स. वृ; प्रा. वर् ; दे. इआले 11318) बरा स. दे. 'बार' 3017
वरण करना; व्याहना. गुज. वर 3001 बरिष स. दे. 'बरष' 3018 बरक (1) अ. देश. घटित न होना, बचना. बजे स. दे. 'बरज' 3019 गुज. बरक 'जोरसे बोलना'
बत स. दे. 'बरत' 3020 (2) दे. 'बलक' 3002
बर्रा अ. दे. 'बड़बड़ा' 3021 बरख अ. अर्धसम (स: वृष) वर्षा होना. गुज. बल (1) अ. देश. (* वल; दे. इआले 6654) वरस 3003
जलना. दहकना. गुज. बळ बरज स. अर्धसम (स. वृज) मना करना, रोकना. (2) अ. भव (सवल, प्रा. वलइय विशे; दे. गुज. वर्ज 3004
इआले 11405) मोड़ना गुज. वाळ 3022 बरट अ. देश. सड़ना 3005
बलक अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 134, हि. दे. बरत स. अर्धसम (सं. वृत) काम में लाना; बर्ताव श.) उमगना; इतरा कर बोलना 3023 __ करना; अ. व्यवहार होना. गुज. वतर 3009 बलग अ. दे. 'बलक' 3024 बरद अ. दे. 'बरदा' 3007
बलबला अ. अनु. देश. (दे. पृ. 143, दे. श. बरदा स. ना. देश (बरधा संज्ञा; सं. बलिवर्द; को.) जल या किसी तरल पदार्थ का बलबल
प्रा. बलिवद्, बलिद; दे. इआले 9176) करना 3025 गौ, भैस आदि पशुओं का गर्भाधान कराने बवंड़ अ. देश. बेकार घूमना 3026 के लिए उनकी जाति के नर पशुओं से संयोग बवंडिया अ. दे. 'बवंड' 3027 कराना; अ. गौ, भैंस आदि का जोड़ा खाना. बस (1) अ. भव (स. वसूः प्रा. वम् ; दे. तुल. गुज. बळद संज्ञा 3008
इआले 11435) स्थायी रूप से रहना; आबाद बरधा स. दे. 'भरदा' 3006
होना. गुज, वस बरन स. ना. अर्धसम (स. वर्ण) वर्णन करना. (2) अ. भव (स. वासू दे. इआले 11601) गुज, वर्णव 3010
सुगंधित होना. तुल. गुज. वास संज्ञा 3028 बरबरा अ. दे. 'बड़बड़ा' 3011
बसिया अ. दे. 'बस (2), 3029
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष बह अ. भव (स. वहः प्रा. वह दे; इआले. देना. गुज. वांट, वाट, 'पीसना, बाँटना'
11453) तरल पदार्थ का नीचे की ओर जाना; 3042 धारा या वहाब के साथ आगे जाना. गुज. बाँध स. (सं. बन्ध्; प्रा. बंध; दे. इआले वहे 3030
9139 ) रस्सी, जंजीर आदि से कसना; लपेबहक अ. भव (स'. व्यथू ; प्रा. वहिअ विशे; दे. टना. गुज. बाँध 3043 इआले 12164) ठीक रास्ते से हट कर गलत *बाँव स. देश. (दे. पृ. 145, दे. श. को.) रास्ते पर जाना: बढ़-बढ़ कर बोलना. गुज.. रखना 3044.
वहा; स. वाह, वाहा, वा 'धोखा देना' 3031 बा स. अर्धसम (सं. व्या + दा; दे. इआले बहरा (1) अ. ना. भव (बाहर अव्यः स *बाहिर, 12191) मुँह खोलना; फैलाना 3045
प्रा. बाहिर; दे. इआले 9226) बाहर होना; बाक अ. दे. 'बक' 3046 अलग होना. तुल. गुज. बहार अव्य. 'बाहर' बाग (1) अ. ना. वि. (वाग संज्ञा; फा.) बाग (2) स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 134, हि. में घूमना; सैर करना. तुल. गुज, बाग संज्ञा दे. श.) बहलाना 3032
(2 अ. ना. भव (सं. वाक्य संज्ञा; प्रा. बहरिया अ. दे. 'बहरा (1) 3033
वक्क; दे. इआले 11468) कहना; आक्रमण बहला स. ना. वि. (बहाल विशे; फा.) कष्ट; करना 3047
रोग, विरक्ति आदि की दशा में दुःखी या बाच (1) अ. दे. 'बच' चिन्तित को इधर-उधर की बातो में लगाकर (2) स. दे. 'बाँच' 3048 प्रसन्न, शांत या सुखी करने का प्रयत्न करना. बाछ स. भव (स.व्रश्च् ; दे. इआले 12080) गुज. बहेलाव 3034
छाँटना; जुदा करना 3049
बाज (1) अ. अर्धसम (सं. व्रज्) जाना बहस अ. ना. वि. (बहस सज्ञा; अर.) बहस
(2) अ. ना. अर्धसम (स. वाद संज्ञा) __ करना, होड लगाना 3035
तर्क वितर्क करना; लड़ाई-झगड़ा करना बहार स दे. 'बहार' 3036
(3) अ. देश. कहना. किसी नाम से प्रसिद्ध होना बहिरा स. दे. 'बहरा (2)' 3037
(4) अ. दे. 'बज' 3050 . बहुर अ. भव (सं. व्या + घुट; प्रा. वाहुडिअ कृ; बाझ अ. भव (स. बन्ध्ः प्रा. बञ्झ्: दे. इआले
दे. इआले 12192 ) वापस आना; फिर से 9134 तथा 9206) फँसना, उलझना. गुज, प्राप्त होना 3038
बाझ 3051 बाँक स. देश. टेढ़ा करना; अ. टेढ़ा होना. तुल. बाट स. भव (स. वृतू ; प्रा. वट्ट, वस्तू ; दे.
गुज. वांकुं विशे; 'टेढ़ा' 3039 . इआले 11356 ) मोड़ना, पीसना. गुज. वाट बांच (1) स. अर्धसम (सं. वचू) पढ़ना 'पीसना' 3052
(2) अ. भव (सं. वन्छ । प्रा. वंचू : दे. बाढ़ अ. दे. 'बढ़' 353
इआले 11208) बचना. गुज. वंच 3040 बाद अ. देश. बकवाद करना; तर्क-वितर्क करना बाँछ स. ना. अर्धसम (सं. वाञ्छा संज्ञा) इच्छा 3054
करना; चुनना. गुज. वांछ 3041 बाध स. ना. सम ( स. बाधा; संज्ञा) बाधा बाँट स. भव (सं. वण्ट् ; प्रा. वंद: दे. इआले डालना: कष्ट देना, तुल. गुज. बाधा संज्ञा
11238) हिस्से करना; बहुतों को थोड़ा-थोड़ा 'मनौती' 3055
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बीन
बान स. ना. देश (बाना संज्ञा) किसी प्रकार बिगूच अ. अर्धसम (सं. वि + ग्रुच्ः दे. इआले बाना ग्रहण करना; ठानना. तुल. गुज. बार्नु 11671) उलझना 3072 संज्ञा 3056
बिगूट अ. भव (स. वि + ग्रुच् : प्रा. विग्गुट्ट बापर स. अर्धसम (स. व्या + पृ) व्यवहार विशे; दे. इआले 11671) उलझना. तुल. गुज.
करना; काम में लाना. गुज. वापर 3057 विगूटी संज्ञा 3073 बापूकार स. देश. (* बाप्प; प्रा. बप्प; दे. विगृत अ. दे. 'बिगूच' 3074 इआले 9209) 'बापू' कहकर ललकारना बिगो (1) स. भव (सं. वि + गुप् ; प्रा. 3058
विग्गोवू ; दे. इआले 11667) छिपाना, बिगाबार स. भव (स. वृ; प्रा. वार् ; दे. इआलें ड़ना; बहकाना 3075
11554) रोकना, निवारण करना. गुज. वार बिघट स, अर्धसम (सं. वि + घट्) विघटित 3059
होना. तुल. गुज. विघटन संज्ञा 3076 बाहुड़ अं. दे. 'बहुर' 3060
बिघर स. दे. 'बिगड़' 3077 बाहुर अ. दे. 'बहुर' 3061
बिचक अ. देश. मुँह) इस प्रकार टेढ़ा होना बिंद स. अर्धसम (सं. वन्दु ) वंदना करना. गुज. जिससे अप्रसन्नता, अरुच आदि सूचित हे. वंद 3062
गुज. वचक 3078 बिआ स. दे. 'ब्याह । स्त्री का संतान प्रसव बिचर अ अर्धसम (सं वि + चर) विचरण ___ करना; मादा पशुओं का बच्चे को जन्म देना, करना. गुज. विचर 3079 गुज, विवा 3063
बिचल अ. अर्धसम (सं. वि + चल) विचलित बिआह स. दे. 'ब्याह ' 3064
होना, मुकरना. गुज. चळ 3080 बिकला अ. ना. अर्धसम (सं. विकल विशे.) बिचार अ. ना. अर्धसम (सं. विचार संज्ञा) विचार
व्याकुल होना; स. व्याकुल करना, तुल. गुज. करना. गुज. विचार 3081 विकळ विशे. 3065
बिछड़ अ. भव (सं. वि + छुद्ः प्रा. विच्छबिकस अ. अर्धसम ( स. वि + कस् ) विकसित डिडअ विशे: दे. इआले 11689) साथ छूटना.
होना; बहुत प्रसन्न होना. गुज. विकस 3066 गुज. वछूट 3082 बिखर अ. भव (स. विशू + कृ; प्रा. विक्खर, बिछल अ. अर्धसम (सं. वि + छन् ; दे. 'इआले
दे. इआले 11985) तितर-बितर होना, 11690) फिसलना; डगमगाना 3083 फैलना, गुज. विखेर 3067
बिछला अ. दे. 'बिछल' 3084 बिगड़ अ. भव (सं. वि + घट् : प्रा. विधडू; बिछा स. भव (सं. वि + छद्ः दे. इआले
दे. इआले 11673) गुण-रूप आदि में बिकार 11692) आसन-विस्तर आदि को जमीन आदि हेमा; काम देने लायक न रहना. गुज. बगड पर फैलाना; बिखेरना. गुज. बिछाव 3085 3068
बिछुड़ अ. देश. (*वि + क्षुद ; प्रा. विच्छडिअ बिगर अं. दे. 'बिगड़ 3069
विशे; दे. इआले 1165) जुदा होना; दे. *बिगस अ. दे. 'बिकस' 3070
'बिछड' गुज. वछूट 3056 *बिगुरच अ. दे. 'बिगूच' 3071
बिछुर अ. दे. 'बिछुड़ 3087
, 20GA
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हिन्दी - गुजराती धातुकोष
* बिजो ( 1 ) स. देश अच्छी तरह देखना; अ. बिजली चमकना
(2) स. ना. देश (बीज संज्ञा) बीज बोना. तुल. गुज. बीज संज्ञा 3088
बिटंब अ. भव (सं. वि + डम्बू प्रा. विडं ब्; दे. इआले 11716) तुल. गुज. विटंब संज्ञा 'संताप' 3091
बिदार अ. देश. घँबोलना; घँघोलकर गंदा करना
3092
बिझक अ. दे. 'बिझुक' 3089
बिझुक अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 134, हि. बिदह (1) अर्धसम ( स. वि + दहू ) भस्म करना दे. श. ) बिचकना 3090
(2) स. देश धान या ककुनी आदि की फसल में आरम्भ में पाटा या हेंगा चलाना
3105
बिटल स. देश. (* विट्टाल; प्रा. विट्टाल संज्ञा : दे. इआले 11712) चखना. गुज, विटाळ 'भ्रष्ट करना' 3093
बिडर (1) अ. देश. बिखरना; पशुओं आदि का बिचकना
(2) अ. देश. भयभीत होना. गुज, डर 3094 बिडव स. देश तोड़ना 3095
बितर ( 1 ) स. अर्धसम (सं. वि + तृ) वितरण करना. गुज, वितर
(2) अ. देश. दोष लगाना 3096
बितीत अ. ना. अर्धसम (सं व्यतीत विशे.) व्यतीत होना; स. बिताना गुज. विताव; तुल. गुज. व्यतीत विशे. 3097
बिधक अ. ना. देश. (* विस्थत्रक; प्रा. वित्थक्कंन्: दे. इआले 12012 ) थकना चकित होना 3098
बिथर अ. दे. 'बिथरा 3099
B
बिथरा स. भव (सं. वि + स्तृ; प्रा. वित्थर् दे. इआले 12005 ) बिखेरना, छिटकाना 3100 बिथुर अ. दे. 'बिथरा बिथुल अ. दे. ' बिथरा
१२७
बिदक स. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 135, हि. दे. श. तथा पृ. 231, हि. वि. बो. ) भड़कना, फाड़ना 3103
3101 3102
* बिल अ. अर्धसम (सं. वि + दल ) दलित करना; छिन्नभिन्न करना 3104
बिदार स. भव (सं. वि + दृ; प्रा. विआ; दे. इआले 11735 ) फाड़ना; नष्ट करना. गुज. विदार, विहार 3106
( सं . वि + दूष्) दोष
बिदाह स. दे. 'बिदह ( 2 ) 3107 बिदीर स. दे. ' विदार 3108 बिडूष स. अर्धसम लगाना; बिगाड़ना 3109 बिदोर स. दे. 'विदार' दीनतापूर्वक मुँह या दांत खोलकर दिखाना 3110
बिधँस स. दे. ' बिधाँस' 3111
बिधाँस स. भव (सं. वि + धम्स् प्रा. विदूधंसू ; दे. इआले 11762 ) विध्वंस करना
3112
* बिधुंस स. दे. ' बिधाँस' 3113
बिन (1) स. भव ( स. वि + चि; प्रा. विचिण दे. इआले 11686 ) चुनना डंक मारना. गुज. वीण (2) स. भव (सं. वे प्रा. विणण संज्ञाः दे. इआले 11773 ) बुनना. गुज. वण 3114 * बिनय अ. ना. अर्धसम ( स. विनय संज्ञा ) प्रार्थना करना. तुल. गुज. विनय संज्ञा 3115 बिनव अ. दे. 'विनय' 3116
बिनस स. भव (सं. वि + नशुः प्रा. विप दे. इआले 11770) विनाश होना, गुज. वस 'बिगड़ना' 3117
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१२८
बिनो बिनौ स. भव. (सं. वि + नम् ; प्रा. विणमंत बिरम अ. भव (सं. वि + रम् ; प्रा. विरम् ; दे.
विशे; दे. इआले 11766)विनय करना. गुज. इआले 11846) रुकना, आराम करना. गुज. विनय, विनम 3318
विरम 3136 बिफर अ. अर्धसम (सं. वि + स्फर ; दे. इआले बिरस (1) अ. भव (सं. * वि + रहू; प्रा. विर
12014 ) भड़कना; मचलना. गुज. विफर 3119 हज्जू; दे. इआले 11852) रोकना, रहना बिबछ अ. देश. विरोधी पक्ष में जाना; अटकना (2) अ. दे. "बिलस' 3157 3120
बिरह स. देश. खंडित करना; नष्ट करना 3138 बिबस अ. ना. अर्धसम (सं. विवश विशे) बिरहा अ. ना. अर्धसम (सं. विरह संज्ञा) विरह. विवश होना. तुल. गुज. विवश विशे:121 व्यथा का अनुभव करना. तुल. गुज. विरह *बिबाद अ. ना. अर्धसम (सं. विवाद संज्ञा) सज्ञा 3139 विवाद करना; झगड़ना 3122
* बिराग अ. ना. अर्धसम (सं. विराग संज्ञा) *बिबाह स. ना. अर्धसम (सं. विवाह संज्ञा)
विरक्त होना; संन्यास ग्रहण करना. तुल. गुज.
विराग संज्ञा 3140 ब्याह करना. तुल. गुज. विवाह संज्ञा 3123 बिबेच स. ना. अर्धसम (स. विवेचन संज्ञा)
बिरा (1) स. भव (सं. वि + राधू ; प्रा. विराङ्; __ विवेचन संज्ञा. गुज. विवेच 3124
दे. इआले 11859) चिढ़ाना -बिभा अ. अर्धसम (स. वि + भा) चमकना;
(2) स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 135, हि. सुशोभित होना; स. चमकाना 3125
दे. श.) द्रवित करना 3141 *बिभिना स. ना. अर्धसम ( स. विभिन्न विशे)
बिराज अ. अर्धसम (सं. वि + राज्) शोभित पृथक् करना. तुल. गुज. विभिन्न विशे 3126 हाना; बठना. गुज, विराज 3142 बिमोच स. ना. अर्धसम (स. विमोचन संज्ञा)।
बिरुझ अ. भव (सं. वि + रुध् ; प्रा. विरुज्झ्;
दे. इआले 11866) उलझना; झगडना 3143 मुक्त कराना. गुज. विमोच 3127 बिमोह स. अर्धसम (सं. वि + मोहू ) मोहना;
बिरोध अ. ना. अर्धसम (स. विरोघ संज्ञा)
विरोध करना. तुल. गुज. विरोध संज्ञा 3144 - अ. मोहित होना. गुज. मोह 3128
बिरोल स. दे. 'बिलाड़' 3145 बिय स. दे. 'बीज' 3129
बिलंग (1) अ. भव (सं. वि + लग ; प्रा. विलग्ग ; बिया स. दे. 'व्या' 3130
दे. इआलें 11831) झूलना; लटकना. गुज. बियाह स. दे. 'ब्याह ' 3131
वलग, वळग 'पकडना' ; तुल. गुज. घळगण,: बिरंच स. दे. 'बिरच' 3332
वळगणी *बिरच (1) स. अर्धसम (सं. वि + रच) (2) अ. भव (सं. वि + लः प्रा. विलंघ् ; रचना, बनाना. गुज, रच
दे. इआले 11882)- में कूद पडना 3146 (2) अ. देश. मन उचटना 3133 . विलंब अ. ना. अर्धसम (सं. विलम्ब संज्ञा) 'बिरझ अ. दे. बिरुझ 3134
बिलंब करना, रुकना. तुल. गुज. विलंब संज्ञा बिरबिरा स. अनु. शिकायत की तरह धीरे-धीरे 3147 - कुछ कहना. गुज. बबड 3135
बिलक अ. दे. 'बिलख' 3148
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
बिलख (1) अ. भव (सं. वि + लक्ष प्रा. विलक्ख संज्ञा दे. इ 11877 ) पहचानना;
देखना
(2) अ. देश. ( अ. व्यु. दे. पृ. 135, हि. दे. श. ) विलाप करना 3149 बिलग अ. ना. अर्धसम (सं. वि + लग्न विशे) अलग होना; स. अलग करना 3150 बिलगा अ. दे. 'बिलग' 3151
बिलछ अ. अर्धसम (स. वि + लक्ष) लक्ष करना, ताड़ना 3152
बिलट अ. ना. भव (विनष्ट विशे; सं. वि + नशू ; प्रा. विणठ; दे. इआलें 11771) नष्ट होना, बुरा हो जाना 3153
बिलप अ. ना. अर्धसम (सं. विलाप संज्ञा ) विलाप करना, रोना. गुज. विलाप 3154 बिलबिला अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 135 हि. दे. श. ) दुःख - पीडा आदि से विकल होना; चिल्लाना 3155
बिलम अ. भव (सं. वि + लम्ब्; प्रा. विलंब ;
दे. इआलें 11891) विलंब होना. तुल, गुज. विलंब संज्ञाः विलंबा 3156
बिल्ला अ. अनु. (दे. पृ. 139, मा. हि. को
4) बिलखकर रोना : असंबद्ध प्रलाप करना 3157 बिलस अ. भव (सं. वि + लस्; प्रा. विलस्;
दे. इआले 11894 ) प्रसन्न होना; स. भोगना गुज. विलस 'शोभित होना' 3158 बिल अ. देश. (* वि + लभ्; दें, इआले
11899) देना. गुज, वराव 3159 * बिलाप अ. दे. 'बिलप' 3160 बिलाक स. अर्धसम (सं. वि + लोक्) ध्यानपूर्वक देखना. गुज. विलेाक 3161 बिलोड् स. भव (सं. वि + लोइ; प्रा. विलोड दे. इआले 11911) मथना, गडमड करना, गुज. वरोळ 'बिगाडना' 3162
१७
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बिलो स. भव (सं. वि + लुडू; प्रा. विलोडू; दे. इआले 11911) मथना, (आँसू ) ढालना, तुल. गुज. वलाव 3163
बिलोल अ. ना. अर्धसम (सं. विलोलन संज्ञा ) इधर-उधर लहरें मारना, लहराना 3164 बिलोव स. दे. 'बिलो' 3165 बिल्ला अ. दे. 'बिलला' 3166
बिवर स. ना. अर्धसम (सं. विवरण संज्ञा ) उलझी वस्तुओं को अलग-अलग करना; ( बालों को) सुलझाना. तुल, गुज. विवरण संज्ञा 3167 बिवरा स. दे. 'बिवर' 3168
बिस्तर स. ना. अर्धसम (सं. विस्तार संज्ञा ) विस्तार करना; अ. विस्तृत होना. गुज. विस्तर
3169
बिसम स. ना. अर्धसम (सं. वि + शम् ; दे. इआले 11932) टूटना, विच्छिन्न होना
3170
बिसमर स. अर्धसम (सं. विस्मरण संज्ञा ) विस्मृत करना. गुज. वीसर 3171
बिसर अ. भव (सं. वि + स्मृ प्रा. विम्हर ; विस्सर्; दे. इआलें 12021 ) भूल जाना. गुज. वीसर 3172 बिसस ( 1 ) स. अर्धसम (सं. विश्वसन संज्ञा )
विश्वास करना. तुल. गुज. विश्वास संज्ञा (2) स. अर्धसम ( स. विशसन) मार डालना; काटकर टुकड़े टुकड़े करना 3173 बिसह स. भव (सं. वि + सह प्रा. विसहू;
दे. इआलें 11975) मोल लेना 3174 बिसा (1) अ. देश वश चलना
(2) अ. देश. विष का प्रभाव करना, जहरीला होना; स. दे. 'बिसाह' 3175 बिसाह स. दे. 'बिसह' 3176 बिसुन अ. देश. खाते समय पदार्थ नाक की ओर चढ जाना 3177
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१३०
ब्रिसूर बिसूर अ. देश. दुःखित होना; चुपके चुपके बीध स. ना. भव (विद्ध विशे; सं. व्याधू ; प्रा. रोना 3178
विद्ध्; दे. इआले 11139 तथा 11805) बिसेख स. अर्धसम (सं. विशेष संज्ञा) विशेष छेदना, बेधना. गुज. वींध 3197
प्रकार से वर्णन करना; निश्चित करना 3179 बीन स. 'बिन' 3198 बिस्तर स. दे. 'बिसतर' 3180
बीस स. ना. अर्धसम (सं. वेशन) शतरंज आदि बिहंड स. दे. 'बिहाड' 3181
खेलने के लिए बिसात फैलाना 3199 बिहँस अ. दे. 'बिहस 3182
*बीसर स. दे. 'बिसर' 3200 बिहड अ. दे. 'बिहर' 3183 'बिहर अ. भव (स. वि + ह; प्रा. विहर ; दे.
बुक स. देश. (* बुक्क ; प्रा. बुक्का; दे. इआले
___9262) खाना; चूर्ण होना 3201 इआले 12029) विहार करना. गुज. विहर 3184
बुझ अ. देश. (* वि + झै ; प्रा. विज्झ् ; दे. बिहस अ. भव (स. वि + हम् ; दे. इआले. इआले 11701) (आग, दीपक आदि का) 12030) हँसना 3185
जलना बंद होना; शांत होना. गुज. बुझा.
3202 बिहा स. अर्धसम (सं. वि + हा) छोडना 3186
बुट अ. देश. (दे. पृ. 149, दे. श. को.) दौड़बिहाड स. भव (स. वि + खण्ड् ; दे. इआले । कर चला जाना, भागना 3203 ___ 11662) टुकड़े टुकड़े करना 3187
घुड़बुड़ा अ. अनु. भव (. बुडबड संज्ञा: दे. प्र. 'बिहार अ. दे. 'बिहर' 3168
203; हि. दे. श.) किसी पदार्थ के पानी में बिहोर अ. देश. बिछुड़ना 3189
डूबने की ध्वनि होना 3204 बीद अ. देश. (दे. पृ. 148, दे. श. को.) बुढा अ. ना. भव बढ़ा विशे; सं. वृध् ; प्रा. __ अनुमान करना; स. बी धना 3190
वृद्ध् : बूढ विशे. ; दे. इआले 12073) बीध स. दे. 'बीध' 3191
बुढ़ा होना. गज. वृध 'बढना, जाना'; वध बीग स. देश. छितराना; बिखेरना 3192
'बढना, विकसित होना' 3205 बीछ स. भव (सं. व्रश्च तथा वृष्य ; प्रा. विच्छअ
. बुत अ. दे. 'बुझ' 3206 __सज्ञा; दे. इआले 12080) पसंद करना 3193 बुदबुदा अ. अनु. देश. (*बुदबुद; दे. इआले बीज स. ना. भव (सं. वीज ; प्रा. विज्जिज्ज ;
9274 तथा दे. पृ. 203, हि. दे. श.) अस्पष्ट दे. इआले 12044) बीज बोना. गुज.वींज,
शब्द निकलना. तुल. गुज. बुदबुद संज्ञा
3207 बीस पंखा करना, घुमाना' 3194 बीझ (1) स. भव (सं व्यध् ; प्रा. विज्झ ; दे. बुन स. भव (सं. वे; प्रा. वुणन संज्ञा; दे. इआले 11759 तथा 11805)
इआले 11773) धागे से कपड़ा बनाना; (२) अ. दे. 'बझ' 3195
कुरसी आदि की खाली जगह भरना; दे. बीत अ. ना. भव (सं. वृत् ; प्रा. वट्ट, वत्त 'बिन' गुज. वण 3208
विशे; दे. इआले 12069) गुजरना; दूर बुनक अ. अनु. (दे. पृ. 152, मा. हि. को-4) होना. गुज. वीत 3196
ढाढ मारकर जोर जोर से रोना 3209
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
बुबुक अ. दे. 'बुनक' 3210
बुरक अ. अनु. (दे. पृ. 152, मा. हि. को - 4) चूर्ण जैसी बस्तु को छिड़कना 3211
बुरबुर स. ना. देश. (* बूर; इआले 9298)
छिटकना 3112
बुरबुरा स. दे. 'बुरबुर' 3213
अ. भव (सं. उद् + वासू दे. इआले 2034 ) सौंध होना 3214
बुहार स. ना. भव ( बुहार संज्ञा; सं. बहुकार संज्ञा प्रा. बौहारी, बहुरिया संज्ञा; दे. इआले' 9188) झाडू देना, झाडना; दे. 'बहार' गुज, बार, बोर, वाळ 5215
बँड अ. देश. (*वुड, प्रा. बुड्ड, दे. इआले' 9272) डूबना. गुज. बूड 3216 बूक स. दे. 'बुक' 3217
बूज स. देश. (दे. प्र. 14), दे. श. को.) धोखा देने के लिए कुछ छिपाना 3218 बूझ स. भव (सं. बुधू ; प्रा. बुज्झू दे. इआले 9279) समझना; जानना, गुज. बूज 3219
बूट अ. दे. 'बुट' 3220
बूठ अ. देश. वर्षा होना 3221
बूड अ. दे. 'डूब' 3222
बूर अ. दे. 'डूब' 3223
बेंच स. दे. 'बेच' 3224
बेंड स. देश. बाढ़ लगाना 3225
बेढ स. दे. 'बेड' 3226
बेंध अ. भव (सं. वे; दे. इआले 11300 ) गूंथा 3227
बेबस दे. 'ब्योंत' 3228
*बेग अ. ना. अर्धसम (सं. वेग संज्ञा ) वेग पूर्वक कोई काम करना; जल्दी मचाना. तुल. गुज वेग संज्ञा 3222
ફ્
बेच स. देश (*वेत्य; प्रा. वेच्चू, विच्चू दे. 12100) दाम लेकर देना. गुज. वेच
इआ
3230
बेझ स. देश. बेधना 3231
बेड़ स. देश. वाड़ लगाना; थाला बनाना 3232. बेढ़ स. भव (सं. वेष्ट्: प्रा. वेट्ठिड विशे; दे. इआ 12132) बाड़ बनाना, ढोरों को घेर कर ले जाना 3233
बेत अ. देश जान पड़ना 3234 बेध स. दे. 'बीध' 3235 बेरस स. दे. 'बेलस' 3236
बेल स. भव (सं. वेल्ल; प्रा. वेल्लू ; दें. इआले 12121 ) चकले पर बेलने से रोटी पूरी आदि बनाना 3237
बेलस स. ना. अर्धसम (सं. विलास संज्ञा ) विलास करना, आनंद करना 3238 बेवत स. दे. 'ब्योंत' 3239
बेवह अ. भव (स. व्यव + हु; प्रा. ववहरू; दे. इआले 12173 ) व्यवहार करना; सूद पर रुपयों का लेनदेन करना. गुज. वोहोर, वोर 'खरीदना' 3240
बेसह स. दे. 'बेसाह' 3241
बेसाह स. देश. (दे. पृ. 152, दे. श. को.) मोल लेना; जान बुझकर अपने ऊपर लेना. तुल. गुज, वसाणु' संज्ञा 'पाक' 3242 बेहँस अ. देश. विहँसना, ठठाकर हँसना 3243 बेहर अ. ना. देश. ( बेहर विशे. दे. पू. 152, दे. श. को . ) किसी चीज का फटना 3244 बैंड स. दे. 'बेड' 3245
बैक अ. दे. 'बहक' 3246
बैठ अ. भव ( स. उप + विशू प्रा. उवविशू, बेस्; दे. इआले 2245 ) इस तरह स्थिर होना कि चूतड़ जमीन या किसी आसन पर
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१३२
द
टिका रहे और कमर के ऊपर का धड़ उसके बहकना; स. बेवफूक बनाना
बल सीधा रहे; सवार होना. गुज. बेस 3247 (2) अ. दे. 'बौर' 3263 बैढ़ स. दे. 'बेढ़' 3248
बौला अ. दे. 'बौरा' 3264 बैरा अ. देश. वातग्रस्त होना; दे. 'बौरा' 3249 बौसा अ. देश. भोग-विलास करते हुए आनन्द बैस स. दे. 'बैठ' 3250
लेना; उन्नति करना 3265 बो स. भव (स. वप् ; प्रा. वव् : दे. इआले व्या स. भव (सं. वि + जन् ; प्रा. विआ; दे. 11282) बीज जमीन में डालना, बिखेरना । इआले 11701) (पशु का) जनना; अ. गुज. बो 3251
बच्चा देना. गुज. विवा 3266 बोच स. देश, झेलना, लोकना 3252
व्याप अ. सम (सं. वि + आप) किसी वस्तु बोझ स. ना. भव (बोझ संज्ञा; स. वह्य सज्ञा; या स्थान में इस प्रकार फैलना कि उसका
प्रा. वाल्झ संज्ञा; दे. इआले 11465) लादना, कोई अंश बाकी न रह जाय; चारों ओर से
बोझ रखना. तुल. गुज. बोझ, बोझो संज्ञा 3253 घिरना. गुज. व्याप 3267 बोध स. ना. सम (बोध संज्ञा ; स. बुध्) बोध ब्याह स. भव (सं. वि + वह ; प्रा. विवाह;
कराना, समझाना-बुझाना. गुज. बोध 3254 दे. इआले 11923) ब्याह करना 3268 बोल अ. देश. (*बोल्ल, प्रा. बोल्ल, बुल्ल ; दे. व्योंच अ. अर्धसम (सं. वि + कुच् ; दे. इआले
इआले 9321) मुँह से शब्द, आवाज निका- 11632) हाथ, पैर आदि के एकाएक मुड़ लना, भाषण करना; रोकटोक करना. गुज. जाने से नस का हट जाना, मोच आना बोल 3255
3269 बोव स. दे. 'बो' 3256
ब्योंत स. दे. 'ब्योत' 3270 बोह (1) अ. ना. देश. (बोह संज्ञा) डुबकी ब्योट स. दे. 'ब्योत' 3271 लगाना
ब्योत स. भव (सं. वि + या + कृत् ; दे. (2) स. दे. 'बो' 3257
इआले 11830) सिलाई के लिए कपड़े को बोहार स. दे. 'बुहार' 3258
नाप से काटना. तुल. गुज. वेतर 3272 बौआ अ. देश. सपने में निरर्थक बाते करना; ब्योर स. भव (सं. वि + वृ: प्रा. विवर् ; दे. बड़बड़ाना 3259
इआले 11916) ब्योरे बार कोई बात बतबौखला अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 135, हि. लाना; सुलझाना; अ. सोचना-समझना 3273
दे. श.) होश-हवास में न रहना, क्रोध से ब्यौत स. दे. 'व्योत' 3274 पागल हो उठना 3260
ब्रज अ. अर्धसम (सं. व्रज ) चलना 3275 बौड़ अ. दे. 'बौर' 3261
ब्वौ स. दे. 'बो' 3276 बौर अ. ना. भव (बौर संज्ञा; स. मुकुल संज्ञा भंग अ. भव (सं. भज् ; प्रा. भंज् ; दे. इआले
प्रा. मौर, दे. इआले 10146) बौर से युक्त 9363) भग्न होना, टूटना; स. तोड़ना. गुज. होना; दे. मौर' तुल. गुज. मोहोर 3262 भांज, भाग 3277 बौरा (1) अ. ना. भव (स. वातुल विशे; प्रा. भंगिया स. ना. भव (भाँग संज्ञा; सं. भंगा
वाउल; दे. इआले 11504) पागल हो जाना, संज्ञा; प्रा. भंगा; दे. पृ. 640, पा. स. म.)
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हिन्दी-गुजरातो धातुकोश
भाँग के नशे में चूर होना; स. भाँग पिला- भक्ष स. सम (सं. भक्ष) भक्षण करना. गुज. कर नशे में चूर करना. तुल. गुज. भांग संज्ञा भक्ष 3296 3278
भख स. ना. भव (सं. भक्ष ; प्रा. भक्ख भैज अ. दे. 'भंग' 3279
संज्ञा; दे. इआले 8340) खाना, निगलना, भंड स. सम. (सं. भण्डू क्षति पहुँचानाः तुल. गुज. भक्ष्य संज्ञा; भक्ष 3297 ___ तोड़ना-फोडना 3280
भग अ. दे. 'भाग' 3298 भभर अ. देश. डरना 3281
भगर अ.देश, खत्ते में रखे हुए अनाज का भभा अ. देश. गौ-भैसों आदि का चिल्लाना,
गरमी पाकर सड़ने लगना 3299 रंभाना. गुज. भांभर 3282
भचक अ. अनु. लंाड़ाते हुए चलना; आश्चर्य भंभाड़ अ. देश. नोच-खसोट कर क्षत-विक्षत
में निमग्न रह जाना 3300 करना 5283
भज (1) स. सम (सं. भज) सेवा, भक्ति भंय अ. दे. 'भंव' 3234
करना: जपना, गुज. भज भंव अ. भव (सं. भ्रम्: प्रा. भम् ; दे. इआले 9648)
(2) अ. भव (सं. भज् ; दे. इआले घूमना. गुज. भम 'घूमना, भटकना' 3285 9 50.) भागना, पहुंचना 3301 भंस अ. भव तैरना, डूबना 3286
भटक (1) अ. देश. (*भट्ट; दे. इआलें 9365) भकट अ. दे. 'भकस' 3287
व्यथे घूमना, रास्ता भूलकर इधर उधर घूमना
गुज. भटक भकभका अ. अनु. (दे. पृ. 187, मा. हि. को
(2) अ. ना. भव (भ्रष्ट विशे; सं. भ्रष्ट; -4) भक-भक शब्द करके जलना, चमकना; स. जलाना, चमकाना. गुज. भभक 3288
प्रा. भट्ठ; दे. इआले 9655) घूमना 3302 भकस अ. अनु. (दे. पृ. 187, मा. हि. को-4)
__ भठिया अ. ना. देश. समुद्र में भाटा आना
3303 खाद्य पदार्थ का अधिक समय तक पड़े रहने के कारण खट्टा और बदबुदार हो जाना भड़क अ. देश. (* भट; दे. इआले 9363) 3289 .
प्रज्वलित होना; क्रुद्ध होना. गुज. भड़क 'सहम भकसा अ. दें. 'भकस' 3290
उठना' 3304 भकुआ अ. ना. भव (सं. भकुआ संज्ञा; सं. भडभड़ा स. अनु. 'भड़भड़' आवाज़ पैदा करना;
भेक संज्ञा; प्रा. भेग, दे. इआले 9600) अ. 'भड़भड़' आवाज़ होना 3305 मूर्ख बनना; स. किसीको मूर्ख बनाना 3291 भडाल स. देश. रहस्य प्रकट कर देना 3306 भकुड़ा स. ना. देश. (भकुड़ा संज्ञा) लोहे के
*भण अ. भव (सं. भण् ; प्रा. भण् ; दे. गज से तोप के मुँह में बत्ती भरना 3292
इआले 9383) कहना. गुज. भण 'कहना,
पढ़ना' 3307 भकर अ. देश. नाराज होना; क्षुब्ध होकर मुँह भणक अ. दे. 'भनक' 3308 डाल देना 3293
*भन अ. भव (सं. भन् ; प्रा. भण् ; दे. इआले भकुवा अ. दे. 'भकुआ' 3294
9383) दे. 'भण' 3309 भकोस स. देश. भक्षण करना; हँसना 3295 *भनंक अ. दे. 'भनक' 3310
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१३४
भनक
*भनक अ. अनु. भव (सं. भन संज्ञा, प्रा. अनुभव करना; भारी करना. तुल. गुज, भार भंकार; दे. पृ. 203, हि. दे. श.) 'भन भन' संज्ञा 3325 शब्द होना; स. बोलना. तुल. गुज. भणभणाट भरुआ (1) अ. दे. 'भरुआ' अभिमान करना संज्ञा 3311
(2) स. देश.. भ्रम में डालना 3326 भनभना स. अनु. देश. (* भन; दे. इआले भर्म अ. ना. अर्धसम (सं. भ्रम संज्ञा) भरमना.
9382) 'भन-भन' आवाज़ करना; गुजार गुज. भरमा 3327 करना; अ. 'भन भन' शब्द होना. तुल. गुज.
भर्रा अ. दे. 'भरभरा' 3328 भणको सज्ञा 3312 भबक अ. दे. 'भभक' 3313
भव अ. देश. घूमना, चक्कर खाना 3329 भभक अ. अनु. देश. (* भभ; दे. इआले
*भष स. अर्धसम (स, भा) भक्षण करना, 9388) जोर से जल उठनाः भडकना. गज. खाना. गुज. भक्ष, भख 5500
भभक; तुल. गुज. भभको संज्ञा 3514 भस अ. भव (सं. भ्रम्श ; प्रा. भस्म् ; दे. इआले भभर अ. दे. 'भरभरा' 3315
9654) तैरना; डूबना 3331 भया अ. ना. भव (स. भय संज्ञाः प्रा. भयः दे. भसक अ. दे. 'भस' 3332
पृ. 645, पा. स. म.) भयभीत होना; स. भासया अ. दे. 'भस' 3333 भयभीत करना. तुल. गुज. भय संज्ञा 3316
भहरा अ. अनु. (दे. पृ. 205,मा.हि. को.-4) यक भर स. भव (स, पृ: प्रा. भर दे. इआले
बारगी ।गर पड़ना; झोंके से फिसल पड़ना 9397) खाली बरतन आदि में कोई चीज़
3334 डालना; ढालना. गुज. भर 3317
भांज स. भव सं. भञ्ज् ; प्रा. भंज् ; दे. इआले भरक अ. देश. (दे. पृ. 155, दे. श. को.) गर्म 363) तह करना; (मुगदर आदि) घुमाना. होना 3318
गुज, भाँज 'तोड़ना' 3335 भरभरा अ. अनु. देश (*भर; दे. इआले 9405) *भाड़ स. भय (स. भण्ड; प्रा. भंड्; दे.
रोएँ खड़े होना; रेरामांच होना; घबराना 33.9 इआले 9512) बिगाड़ना; बदनाम करते *भरम अ. ना. अर्धसम (स. भ्रम संज्ञा) चलना- फिरना; अ. भटकना. गुज. भांड 3336 फिरना; धोखे में पड़कर इधर-उधर होना. भाप स. देश. (दे. पृ. 156, दे. श. को.) तुल. गुज. भम 3320
रंग-ढंग से जान लेना, ताड़ना 3337 भरमा अ. दे. 'भरम' 3321
भाँव स. भव (सं. भ्रम् ; प्रा. भाम् ; दे. इआले मररी अ. अनु. (दे. पृ. 200, मा. हि. को-4) 9677) खराद पर घुमाना; मथना 3338
भररे शब्द करते हुए गिरना; किसी पर (पल मा अ. भव (स. भा: प्रा. भा: दे. इआले पड़ना; स. गिराना 3322
9445) रुचना, फबना. गुज. भाव 3339 भरहर अ. दे. 'भहरा' 3323
भाड दे. 'भा 3343 भरहरा अ. दे. 'भहरा' 3324 भरुआ अ. ना. भव (सं. भार स ज्ञा प्रा. भार, भाग अ. ना. भव (सं. भान विशे; प्रा. भग्ग;
दे. पृ. 649, पा. स. म.) भारी होना; भार दे. इआले 9361) किसी जगह से हट जाने
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष
१३५ के लिए दौड़ना; हारकर पलायन करना. गुज. भिय अ. दे. 'भय' 3354 भाग 3341
भिर अ. दे. भिड़' 3355 भाज (1) अ. भव दे. 'भांज'
भिरम अ. दे. 'भरम' 3556 (2) स. भव (सं. भ्रज्ज् : प्रा. भज्ज् ; दे.
के भींग अ. दे. 'भीग' 3357 इआले 9583) पकाना, सेंकना 3342 भींच स. देश. कसकर खींचना; (आँख या मुँह) *भान स. ना. भव (सं. भग्न; प्रा. भग्ग: दे. इआले
इस प्रकार जोर से दबाना कि वह बहुत कुछ 9361) तोड़ना; नष्ट करना. तुल. गुज.
बंद हो जाय. तुल. गुज. भी स 'कसकर
दबाना' 3358 भाग 3343
भींज अ. दे. 'भींग' 3359 *भार स. भव (सं. भृ; दे. इआले 9463)
भीग अ. भव (सं. भि + अजू; दे इआले बोझ लादना; दबाना. गुज. भार 'गाडना,
___9500) पानी से तर होना, गीला होना. तुल. मोहक लगना' 3341
गुज. भीनु विशे गीला' 3360 भाल स. भव (सं. भल ; दे. इआले 9474) भली भाँति देखनाः तलाश करना. गुज. भाळ
भीच अ. दे. 'भींच' 3361 भार 'मोहित करना' 3345
भीज अ. दे. 'भीग 3362 भाव अ. दे. 'भा' 3346
भीन अ. देश. (भियग्न; प्रा. भग्ग; दे. इआले भाष अ. सम (स. भाष) बोलना, बातचीत 9500) भीगना; किसी चीज़ के छोटे छोटे करना. स. दे. 'भष' 3347
अंशों या कणों का किसी दूसरी चीज़ के सभी भास अ. भव (सं. भासू: प्रा. भासू ; दे. दुआले
भीतरी भागों में पहुँचकर अच्छी तरह एकरस 9481) आभास होना; चमकना. गुज. भास
होना. तुल गुज. भीनु विशे 'गीला' 3363 3348
*भीर अ. ना. देश. (भीरु विशे) भयभीत होना भिटक अ. देश. कोई अप्रिय वस्त सामने आने 5504
पर मन का उससे दूर हट जाने में प्रवृत्त अँक अ. दे. बँक' 3365 होना 3349
भुज अ. भव (स. भुजू : प्रा. भुज् ; दे. इआले भिड़ अ. देश. (भिड़ः प्रा. भिड़ दे. इआले 9579) भागना पकाना; सताना 3566 9490) टकराना, सटना. गुज भिडा-350
भुखा अ. ना. भव (भूख संज्ञा; सं. बुभुक्षा भिनक अ. अनु. देश. (*भिनः दे. इआले ___ संज्ञा; प्रा. बुभुक्खा, मुक्खा; दे. इआले
9362) मक्खियों का भिन-भिनाना; किसी 9286) भूखा होना; स. किसीको कुछ समय (गंदी) चीज़ पर मक्खियों के झुंड का बैठना ___तक भूखा रखना. तुल. गुज. भूख संज्ञा 3367 3351
भुगत अ. ना. अर्धसम सं. मुक्त विशे) भोगना; भिनभिना अ. दे. 'भिनक' 3352
अ. बीतना. गुज. भोगव 3368 भिन्ना अ. अनु. (दे. पृ. 222, मा, हि. को-4) भुतला अ. देश. रास्ता भूलकर इधर-उधर हो
दुर्गध आदि से सिर चकराना; डरकर दूर जाना; कोई चीज़ भूलने के कारण गुम हो रहना; दे. 'भिनभिना' 3353
जाना 3369
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१३६
भुन अ. ना. भव (सं. भग्न विशे. प्रा. भरग
दे. इआले 936 तथा 9577) भूना जाना; रुपये आदि का छोटे सिक्को में बदला जाना 3370
भुराभुरा अ. अनु. (दे. पृ. 229, मा. हि. को - 4) इस प्रकाश किसी चीज़ को स्पर्श करना कि कण या वे अलग-अलग हो जायँ बुरकना. तुल. गुज. भूको संज्ञा 3373
भुनभुना अ दें. 'भनक' 3371
भुरक स. अनु. देश. (दे. पृ. 158, दे. श. को.) भेल स. देश तोड़ना-फोड़ना; लूटना गुज. छिड़कना अ. भुरभुरा होना 3372
भेळाव 3387
भुलस अ. दे. (*भुल; दे. इआलें 9537 ) गरम राख में झुलसना; स. गरम राख में झुलसाना 3374
भँक अ. भव (सं. भष प्रा. भसू दे. इआले 9423) कुत्ते का भौं भौं करना; व्यर्थ बकना. गुज, भस 3375
भूँज (1) दे. 'भुज'
(2) स. भव सं. भ्रज्जू भज्जू ; दे. इआले 9583, 9586) पकाना, सेंकना 3376 भूँस अ. दे. 'भूक' 3377 भूक अ. दे. 'भूँक' 3378
* भूख स. ना. अर्धसम (सं. भूषण संज्ञा ) भूषिक करना; सजाना; अ. सजना 3379 भूल अ. देश. (*भूल्ल; प्रा. भुल्लू दे. इआले 9538 ) याद न रहना; गलती करना. गुज. भूल 3380
भूस अ. दे. 'भूँक' 3382
भेंट स. दे. 'भेंट' 3383
भुन
भेट स. देश. (*भेट्ट प्रा. भिटिज्ज्; दे. इआले 9490) मिलना, गले लगाना. गुज भेट 3385
भेज स. देश. (* भेज्ज; दे. इआले 9603 ) अन्य स्थान के लिए रवाना करना. गुज, भेज
3384
भेद स. सम (सं. भिद्) बेधना गुज, भेद
3386
*भौं अ. दे. 'भरम' 3396 भौंक अ. दे. 'भँक' 3397 भौस अ. दे. 'भँक' 3398 भौ अ. दे. 'भरम' 3399
भ्रम अ. ना. सम (सं. भ्रमण संज्ञा) घूमनाफिरना; अ. भ्रम में पड़ना गुज. भम; भरमा 'भ्रम में पड़ना' 3400
* भूष स. ना. सम (स. भूषण संज्ञा) दे. 'भूख' मंगल स. ना. सम (सं. मङ्गल विशे) किसी
3381
शुभ अवसर पर अग्नि आदि जलाना; अ.
प्रज्वलित होना. तुल. गुज. मंगल विशे. 3401 मँगार स दे. 'मंगल' 3402 मूँझिया स. ना. भव विशे; दे. इआले नाव खेना 3403
*भेष स. ना. देश (भेष संज्ञा भेस बनाना; पहनना 3388
भेस स. दे. 'भेष' 3389
भोंक स. देश. ( *भोक्क; दे. इआलें 9624) शरीर में नुकीली चीज़ घुसेड़ना; अ. भूँकना. गुज. भोंक 3350
भो अ. दे. 'भीन' 3391
भोग स. ना. सम (सं. भोग संज्ञा) सुख-दुःख
का अनुभव करना; सहना. गुज भोगव 3392 * भोगव स. दे. 'भोग' 3393 भोथरा अ. ना. देश (भोथरा विशे.) भोथरा होना
3394
*भोरा अ. देश. धोखे या भ्रम में जाना. गुज. भोळवा 3395
सं. मध्य संज्ञा; प्रा. मज्झ 9804) धँसकर पार करना;
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष मंड स. भव (स. मण्ड; प्रा. मंड्; दे. इआलें *मज्ज अ. दे. 'मज' (1) 3419
9741) सजाना, सँवारना. गुज. मांड ‘सजाना, मझिया स. दे. 'मॅझिया' 3420 शुरू करना' 3401
मटक अ. अनु. देश. ( मट्ट; दे. इआले मँडरा अ. ना. भव (सं. मण्डल संज्ञाः प्रा. मंडल: 9722) चलने में हाथ, आँख, भौ आदि को
दे. इआले 974.) मंडलाकर चक्कर देते नाज नखरे की अदा से हिलाना; हटना. गुज. हुए उड़ना; घूमते रहना. तुल, गुज. मंडळ मटमटा 'तेजी से खुलना-बंद होना' 3421 संज्ञा 3405
मटिआ अ. दे. 'मटिया' 3422 मँडला अ. दे. 'मॅडरा' 346
मटिया अ. दे. 'मिटिया' 3423 मंद अ. ना. अर्धसम (स. मन्द विशे) मंद मठार स. भव (सं. मृष्ट विशे; प्रा. मट्ठ; दे. होना, सुस्त होना. तुल. गुज. मंद विशे इआले 10299) गोलाई लाने के लिए बरतन 3407
को मठरने से पीटना. गुज. मठार 3424 *मंदा अ. दे. 'मंद' 3408
मठोर स. दे. 'मठार' 3425 मंस स. दे. 'मनस' 3409
मठेल स. देश. हस्त-मैथुन करना 3426 . मकड़ा अ. ना. भव (मकडी संज्ञा; सं. मर्कट; मड़मड़ा अ. अनु. मरमराना 3427
प्रा. मक्कड; दे. इआले 9883) मकड़ी की मडरा अ. दे. मडरा' 3428 तरह चलना; अकडकर चलना. तुल. गज. मडला अ. दे. 'मँडरा' 3429 माकड, माकड, 'खटमल' 3410
मढ़ स. देश. (*मढ़; प्रा. मढिअ विशे; दे. मकोर स. दे. 'मरोउ' 3411
इआले 9729) ऐसी चीज जड़ना जिससे मग अ. ना. अर्धसम (सं. मग्न विशे) मगन ।
पूरी वस्तु ढक जायः थोपना. गुज. मढ
3430 होना; डूबना. तुल. गुज. मग्न विशे 3412
मत अ. ना. सम (मति सज्ञा) किसी विषय में मेगन अ. दे. 'मग' 3413 मच अ. दे. 'मांच' 3414
अपना मत निश्चित करना; दे. 'मात' तुल.
गुज. मत संज्ञा 'राय' 3431 मचक अ. अनु. देश. (* मच्च; दे. इआले । 9769) लकडी, चमड़े आदि की चीज़ का
मथ सं. सम (सं. मथ् ; प्रा. महुणित विशे; दे.
इआले 9771: दूध, दही को मथानी आदि दबकर 'मचमच' आवाज़ करना, लचकना; से विलोनाः छान डालना. गुज. मथ 'छानना, स. 'मचमच' आवाज़ पैदा करना. गुज. मच
प्रयत्न करना' 3132 'समाना, जमना' 3415
मनक अ. अनु. (दे. पृ. 287, मा. हि. को-4) मचमचा स. दे. 'मचक' 3416
हिलना-डोलना; दे. 'मिनक' 5433 मचल अ. अनु. देश. (अ व्यु. दे. पृ. 137, मनना अ. अनु. (दे. मृ. 288, मा. हि. को-4) . हि. दे. श.) किसी चीज़ को लेने या न देने गुजारना, गंजना. तुल. गुज. मन संज्ञा 3344 का हठ पकड़ लेना 3417
मनस स. दे. 'मनसा' 3435 *मज (1) अ. ना. अर्धसम (सं. मज्जन संज्ञा) मनसा अ. ना. सम (स. मनस संज्ञा) उत्साहित डूबना, निमज्जित होना
होना: स. संकल्प करनाः संकल्प करवाना. (2) अ. दे. 'मॅज' 3418
तुल. गुज. मानस सज्ञा'मन का दुःख' 3436
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मनुसा मनुसा अ. दे. 'मनसा' 3437
मल्हर अ. दे. 'मल्हार' 3451 मनुहार स. ना. देश. (मनुहार संज्ञा) रुठे हुए मल्हार स. ना. सम (सं. मल्ह संज्ञा) दुलार
को प्रसन्न करने का प्रयत्न करना; खुशामद करते हुए विशेषतः बच्चों को समझाना, करना 3438
चुमकारना 3452 . मन्ना अ. देश. (साँप का) फन उठाना: मन में मस स. दे. 'मसल' 3453 बहुत नाराज होना 3439
मसक स. अनु. देश. (*मषु; दे. इआले 9919 मर अ. भव (सं. मृ : प्रा. मर : दे. इआले किसी नरम चीज़ को दबाकर मलनाः समेटना
9871) जीवन-क्रिया का बंद हो जाना: अति गुज. मसळ 3454 : श्रम करना; माहित होना. गुज. मर :440 मसल अ. दे. 'मसक' 3455 मरक अ. अनु. देश. दबकर टूटना; भडकना तुल. मसिया अ. ना. सम (मांस संज्ञा) शरीर का भली गुज. मरक 'मुस्कुराना' 3441
भाँति मांस से भर जाना; स. ऐसी क्रिया मरमरा अ. अनु. देश (दे. पृ. 163; दें. श. करना जिसमें शरीर मांसल हो जाय, तुल.
को.) 'मर-मर' की आवाज़ करना; डाल आदि गुज. मांसल विशे 3456 का दबकर टूटना; स. इस प्रकार दबाना कि मसूस अ. दे. 'मसोस' 3157 'मरमर' शब्द हो. तुल. गुज. मरमर सज्ञा मसोस अ. ना. वि. (अफसोस संज्ञाः फा.) 'पत्तों के हिलने की आवाज़ 3442
मन ही मन कुढ़ना; मनोवेग को रोकना 3458 मराड़ स. दे. 'मोड'. ऐंठना; मसलना. गुज. मस्ता अ. ना. वि. (मस्तान; विशे; फा.) मस्त मराड 3443
होना; स. मस्त करना. तुल. गुज. मस्त विशे *मद स. सम (स. मृद्) मर्दन करना; कुचलना
3459 गुज. मर्द 3444
मस्मसा अ. दे. 'मुस्मुसा' 3460 मल स. भव (स. मृ; प्रा. मल; दे. इआले
*मह स. भव (सं. मन्यूः प्रा. महेज्जा संज्ञा; दे. 9870) मालिश करना; मरोड़ना 3445
इआले 9766) मथना 3461 मलमला स. दे. 'मल' बार-बार हलका स्पर्श
महक अ. ना. अर्धसम (महक संज्ञा) महक
देना. गुज. महेक, महेक 3462 - करना; (आँख, पलक आदि) बार-बार खोलना
महटिया स. देश. सुनी अनसुनी करना 3463 बंद करना 3446 * मलरा स. दे. 'मल्हार' 3447
*माँख अ. दे. 'माख' 3464
माँग स. ना. भव (सं. मार्ग; प्रा. मग्ग; दे. *मलिना अ. ना. सम (सं. मलिन विशे) मैला इआले 10074) याचना करना चाहना, गुज. होना, म्लान या उदास होना; स. मैला करना.
माग, माँग 3465 तुल. गुज. मलिन विशे 3448
माँच अ. भव (सं. मच्; प्रा. मच्चू दे. इआले मलोल अ. ना. वि. (मलाल संज्ञा: अर.) मन के 9710) शुरू होना; फैलना; लीन होना, गुज. किसी काम या बात के लिए दुःखी होना
मच 3466 3449
माज स. भव (सं. मृज़; प्रा. मज्जू; दे. इआले मल्हप अ. देश. कुछ कहते हुए और इठलाते 10080) रगड़कर साफ करना; चमकाना. गुज. हुए चलना 3450
माज, माँज 3467
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हिन्दी-गुजरातो धातुकोश माँझ स. दे. 'माँज' 3468
मास अ. देश. मिलना 3484 माँड़ (1) स. भव मृद्, प्रा. मद्द; दे. इआले माह अ. भव (स. मन्थू ; दे. इआले 10028)
9890) रौंदना; अनाज की बालों से कुचल- उमड़ना, उमंग में आना; दे. 'उमाह' वाकर दाने निकालना
3485 (2) स. भव (सं. मण्इ प्रा. मंड्; दे.
मिचक स. देश (मिच्च; दे. इआले 10118) इआले 9741) मंडित करना, पहनना. गुज.
(आँखों का) बारबार बंद होना और खुलना मांड 'शुरू करना, व्यवस्थित रखना' 3469
3486 माँत अ. दे. 'मात ' 3470 माँप अ. दे. 'मात' 3471
मिचरा अ. देश. बिना भूख के खाना, अरुचि
से थोड़ा थोड़ा खाना 3487 मा अ. भव (सं. मा; प्रा. मा; दे. इआले 10059) अटना. समाना, गुज. मा 3472
- मिचला अ. देख. (अ. व्यु. दे. पृ. 137, हि. माख अ. ना. भव (माख संज्ञा सं. मया ना. द. श.) मतली आना 3488
प्रा. मक्खिआ दे. इआले 9596) मन में मिचौ स. दे. 'मीच' 3489 अप्रसन्न होना; पश्चात्ताप करना, तुल. गुज. मिट अ. ना. भव (स. मृष्ट विशे; प्रा. मिटिज्ज्; माख, माखी संज्ञा 3473
दे इआले 10299) मिट्टी में मिलना या माग स. दे. माँग 3474
नष्ट होना. गुज. मट, मिट 3490 *माच अ. दे. 'मच' 3475
मिटिया स. ना. भव. (स. मृत्तिका संज्ञा; प्रा. माड स. दे. 'माँड (2), 3476
मट्टी; दे. इआले 10286) मिट्टी लगाकर माण अ. दे. 'माँड़' 3477
या मिट्टी रगड़कर साफ करना. तुल. गुज. *मात अ. ना. भव (सं. मत्त विशे; प्रा. मत्तः माटी सज्ञा 3497
दे. इआले 9750) मत्त होना, तुल. गुज. मिठा अ. ना. भव (मीठा विशे; स. मिष्ट विशे; मत्त विशे 3478
प्रा. मिट्ठ; दे. पृ. 699, पा. स. म. तथा दे. *माथ स. दे. 'मथ' 347)
इआले 10299 मीठा होना; स. मीठा करना. मान स. भव (सं. मन्: प्रा. मण्णः दे. इआले तुल. गुज. मीठु मीठा' 'नमकीन' 3492
9857) स्वीकार करना; योग्यता का कायल मिन स. देश. आयति, विस्तार आदि जानने
होना; मान जाना. गुज, मान 3480 के लिए नापना 3493 माप स. भव (सं. मा; दे. इआले. 10054) मिनमिना अ. अनु. (दे. पृ. 359, मा. हि. को
वस्तु का विस्तार, घनत्व या वजन मालूम -4) 'मिन मिन' करना, अस्पष्ट तथा धीरे करना, नापना. गुज, मार विस्तार नापना, स्वर में बोलना; नाक से स्वर निकालते हुए 3481
बोलना 3494 मार स. भव (स. मृ; प्रा. मार ; दे. इआले मिमिया अ. अनु. (दे. पृ. 360, मा. हि. को _10066) पीटना; चोट पहुँचाना; हत्या करना; -4) बकरी या भेड़ का में-में शब्द करना; दे. 'मर' गुज. मार 3482
बहुत दबी जबान से चापलूसी करना. तुल. माष अ. दे. 'माख' 3483
गुज. बेंबे संज्ञा 3495
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मिल मिल (1) अ. भव (स. मिल ; प्रा. मिल् ; दे. मुकिया स. ना. देश. (मुक्की संज्ञा) मुक्कों से . इआले 10133) स योग होना, भे टना; मारना; मुक्कियों से आटा सवारना. तुल. गुज. प्राप्त होना. गुज. मळ
मुक्की सज्ञा 3010 (2) स. देश. (दे. पृ. 165, दे. श. को.) मगत अ. नर. अर्धसम (सं. मुक्त विशे) गौ आदि का दूध दुहना 3495
मुक्त होना. तुल. गुज. मुक्त विशे 3511 मिलक अ. देश. प्रज्वलित होना; जलना; स. मुच स. दे. 'मुँच' 3512 जलाना 3497
मुटा अ, ना. देश. (मोटा विशे; *मोट्ट; दे. मिस अ. ना. भव (स. मिश्र विशे; प्रा. मिस्स; इआले 10187) मोहा होना; घमंडी हो जाना. __दे. इआले 10137) मिलाया जाना. मला तुल. गुज. मोट विशे 3513
जाना. तुल. गुज. मिश्र विशे 3498 मुठिया अ. ना. भव (मूठ संज्ञा; सं. मुट्ठि मिहा (1) अ डेटा मिड सार108 संज्ञा; प्रा. मुदिटः दे. इआले 10121) बहरा होना
मुट्ठी में भरना मुट्ठियों से हलका आघात (2) अ. देश. वर्षाऋतु में पकवानों का __ करना. तुल. गुज. मुट्ठी संज्ञा 3514 नमी के कारण मुलायम पड़ जाना और कुर. मुडक अ. दे. 'मोड' लचक कर किसी ओर कुरा न रहा जाना 3499
झुकना; लौटना 3515 मीज स. भव (स. मृज् ; दे. इआले 10275) मुरक अ. दे. 'मुडक' 3516 मलना, मसलना 3500
मुरछ अ. दे. 'मुरछा' 3517 मींड स. दे. 'माँड' 3501
मुरछा अ. ना. अर्धसम (सं. मूर्छा) मूर्च्छित मीच स. देश. (* मिच्च; प्रा. मिचण सज्ञाः होना; स. मूर्च्छित करना. तुल. गुज. मूर्छा
दे. इआले 10118) (आँख) मंदनाः बंद सज्ञा 3518
करना. गुज. मीच, मींच, वींच 3502 मुरझा अ. देश. (दे. पृ. 168, दे. श. को.) मीज स. दे. 'मीज' 3503
सूखना, झुलस जाना 3519 मीट अ. दे. 'मीच' 3504
मुरमुरा अ. अनु. देश. (*मुरमुर; प्रा मुरुमुरिअ मीड स. दे. 'मीज' 3505
संज्ञाः दे. इआले 10115) मुरौं या ऐंठ के मुँच स. सम (समुच्च ) मुक्त करना 3506 ___कारण किसी चीज़ का टूट जाना; किसी मुंढ अ. देश. (* मुण्ड; दे. इआले 10187)
कठोर वस्तु के टूटने से इस प्रकार का शब्द मूंडना 3507
होना 3520 मुकर अ. देश. नटना, इनकार करना. गुज. मकर *मुरा स. भव (सं. मृ: प्रा. मुर, दे. इआले 3508
__10211) चुभलाना: चबाना; स. मुडाना. मुकला स. ना. भव (मोकला विशे; * मुक्त;
गुज. मोर, मोळ 'तरकारी काटना' 3521 प्रा. मुक्क; दे. इआले 10157) बन्धन से मुरुछ अ. दे. 'मुरछ' 3522 मुक्त करना; वर का वधू को उसके मायके मुरुझ अ. दे. 'मुरझा' 3523 से पहले-पहल अपने घर लाना. तुल. गुज. *मुलक अ. देश. पुलकित होना: मुस्कराना. गुज, मोकळु विशे 'मुक्त, खुला' 3509.
मलक 3524
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश मुलमुला अ. अनु. देश. (दे. पृ. 168, दे. श. मूद स. दे. 'मूंद' 3543
को.) आँखों की पलकों का बार-बार झपकना मून अ. ना. भव (स. मौन संज्ञा; प्रा. मूण 3525
दे. इआले 10371) शान्त होना 3544 मुव अ. दे. 'मर' 3526
मूरछ अ. दे. 'मुरछ' 3545 मुसकरा अ. दे. 'मुस्का ' 3527
मूव अ. दे. 'मर' 3546 मुसकिरा अ. दे. 'मुस्का' 3528
मूस सं. भव (स. मुष् ; दे. इआले 10222 मुसकुरा अ. दे. 'मुस्का' :529
तथा 10260) चुराना; ठगना 3547 मुसक्या अ. दे. 'मुस्का' 3530
मेंडरा अ. दे. 'मँडरा' 3548... मुस्करा अ. दे. 'मुस्का' 3531
मे स. देश. (दे. पृ. 169, दे. श. को.) मुस्का अ. देश (+ मुस्सा दे. इआले 10227)
पकवान आदि में मोयन देना. गुज. मो इस तरह हँसना कि शब्द न हो, मद-मद
3549 हँसना, गुज. मुस्का 3532
मेल स. भव (स. मिलू; प्रा. मेल. दे. इआले मुस्मुसा अ. अनु. देश. (* मुस्स् ; दे. इआले
___10332) मिलाना; डालना. गुज. मेल रखना, _10227) हिबकियां लेते हुए रोना 3533
जाने देना' 3550 मंड स. ना. भव (स. मुण्ड सज्ञा; प्रा. मुड मेल्ह अ. देश. (दे. पृ. 169, दे. श. को.) दे. इआले 10194) सिर के बाल उस्तरे से ।
क्लेश या पीडा से छटपटाना; काम करने में बनाना; ठगना गुज, मूंड 3534
आनाकानी करना 3551 मँद स. ना. भव (स. मुद्रा स ज्ञा; प्रा. मद् ; मेहर अ. ना. वि. (मेह संज्ञा; फा.) अनुग्रह
दे. इआले 10202) बंद करना; रुद्ध करना करना. तुल. गुज. मेहेर संज्ञा 3552 3535
मेहरा अ. देश. नर्मी आदि के कारण कुरकुरे या मू अ. दे. 'मर' 35:6
मुरमुरे पदार्थ का कुछ आद्र होना. 3553 .मूक स. भव (स. मुचू ; प्रा. मुक्क् ; दे.
मो स. ना. भव (सं. मुद्; दे. इआले 10357) इआले 10157) त्यागना; बधनमुक्त करना.
__ भिगोना. गुज. मो ‘तेल से आटा मलमा'
3554 गुज. मूक रखना, जाने देना' 3537
मोक स. दे. 'मूक' 3555 मूख स. दे. 'मूस' 3538
मोकरा स. दे. 'मोक' 3556 *मूच स. भव (स. मुच् ; प्रा. मुच ; दे.
मोकल स. देश. भेजना. गुज. मोकल 3557 इआले 10182) मुक्त करना, गिराना
मोच स. दे ‘मूच' 3558 3539
मोटा अ. दे. 'मुटा' 3559 मुझ अ. देश. मूर्च्छित होना; मुरझाना 3540 मोड़ स. भव (स. मुद्; प्रा. मोड्र; दे. इआले *मूठ अ. ना.भव (स. मुष्ट सज्ञाः प्रा. मुट्ठ; 10186) घुमाना; टेढ़ा करना, गुज. मोड
दे. इआले 10220) नष्ट होना 3541 3560 मूत अ. ना. भव (स. मूत्र संज्ञाः प्रा. मुत्त् : प्रमोद अ. ना. सम (स. मोदन संज्ञा) मुदित
दे. इआले .0238) पेशाव करना. गुज. मूतर होना; सुगंध फैलनाः स. मुदित करना; सुगंध 3542
फौलना. गुज. मोद 3561
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१४२
*मोर स. दे. ' मोड' मथे हुए दही में से मक्खन निकालना; स. दे. 'मोड़' गुज. मोड़ 3562
मोल स. ना. भव (सं. मौल्य; प्रा. मोल्ल; दे. इआले 10373) खरीदना तुल. गुज. मोल सज्ञा 3563
मोला स. दे. 'मोल'356+ मोव स. दे. 'मो 3565
मोस स. भव (सं. मुषः प्रा. मोसण संज्ञा दे. इआलें 10359) चुराना दे. 'मूस' 3566 मोह स. सम (सं. मुह प्रा. मोहू दे. इआले 10362) मोहित होना. गुज. मोह, मो 3567 मौर अ. ना. भव (सं. मुकुल प्रा. मौल; दे. इआ 10147 ) बौर लगाना; मौर आना. गुज. मोर 3568
मौल अ. दे. 'मौर' 3569
* म्या स. ना. वि. (मियान संज्ञा; फा. ) म्यान में (तलवार) डालना. तुल. गुज. म्यान संज्ञा 3570
याच स. सम (स. याचू) याचना करना, माँगना. गुज. याच जाच 3571
रंग (1) स. ना. भव (सं. रंग संज्ञा; प्रा. रंगू दे इआलें 10570 ) रंग देना, रंग में डुबोना
(2) स. ना. वि. (रंग संज्ञा; फा.) गुज. रंग 3572
* ज स सम (सं. रजू ) रंजन करना, मन प्रसन्न करना; 'रंग' गुज. रंज 'खुश होना; दुःखी होना; रंगना' 3573
रँझ अ. दे. 'र'ज' 3574
रँद स. ना. वि. (रंद संज्ञा; फा.) रंदा फेरना; रदे से लकडी की सतह चिकना ना. तुल. गुज. दो, र धो संज्ञा; रद 3575
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मोर
रंभा अ. भव (स. रम्भू दे इआले 10634) गाय का बोलना 3576
रख स. भव (सं. रक्ष; प्रा. रक्खू दे इआले 10547 ) धरना ठहराना, सौंपना गुज. राख 3577
रंग अ. ना. भव (स. रक्त संज्ञाः रज्; प्रा. रत्त दे. इआले 10854 ) प्रेम में होना
3578
रगड स. देश. * रग्ग; इआले 10558) घिसना; पीसना; अ. विकास न करना; अत्यधिक परिश्रम करता. गुज. रगड 'घिसना' 3579 रगद स. दे. 'रगेद 3580 रंगा अ. देश. (दे. प्र. 466, चुप होना, शांत होना; स. रगेद स. देश. (अ. व्यु. दे. प्र. 138, हि. दे. श.) भगाना, खदेड़ना 3582 रंगेल स. दे. रगेद 3583
मा. हि. को - 4 ) चुप करना 3581
रच स. सम (सं. रच्) उत्पन्न करना; कल्पना करना. गुज. रच 3084
रज अ. दे. 'रंज 3585
रझ अ. भव (सं. रन्धू दे. इआलें 10611)
पकना; उबलना. तुल. गुज. रंधा 3586 रट स. सम (सं. रदः प्रा. रड़ दे. इआले 10590) शब्द आदि की बार बार आवृत्ति करना. गुज. रट 3587 रड़क अ. ना. वि. ( रडक संज्ञा; दरद होना; शरीर में चुभी कष्टदायक अनुभूति होना; स.
3588
अर) हलका हुई चीज़ को धक्का देना
रड़का स. दे. 'रडक 3589 * रढ़ स. दे. 'रट 3590
रता अ. ना. भव (राता विशे; सं. रक्त; प्रा. रत्त दे. इआलें 10539) रत होना; स. रत करना. तुल. गुज, रातुं विशे 3591
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश रन अ. भव (सं. रण संज्ञा; प्रा. रण; दे. इआले रस अ. दे. 'रिस' रसमग्न होना; प्रेमयुक्त होना
10596) घुघरुओं आदि का मन्द और मधुर 3605 शब्द में बजना. गुज. रणरण; तुल. गुज. रसा अ. सम (सं. रसू दे. इआले 10653) रणको संज्ञा 3592
आनंद लूटना. गुज. रस 'मुलम्मा चढ़ाना' रनक अ. दे. 'रन' 3593
3606 रपट अ. ना. वि. (रफ्तन संज्ञा; फा.) चिकनी रह अ. देश. (* रह; प्रा. रह; दे. इआले
या ढालवी जमीन पर पाँव आदि का फिस- 10666) ठहरना; बसना. गुज. रहे 3607 लकर आगे बढ़ना; स. मैथुन करना (बाजारू) रहचट अ. देश. (दे. पृ. 173; दे. श. को.) 3594
चहचहाना 3608 रबक अ. देश. डर से छिपना, दुबकना 3595 रहा अ. दे. 'राह' 3609 रबड़ (1) स. देश. घुमाना-फिराना; अ. घूमना राँच अ. भव (सं. रक्त विशे रजः प्रा. रत्त विशे. (2) स. दे. 'रगड़' 3596
दे. इआले 10584) रंग से युक्त होना, रम अ. भव (सं. रम्; प्रा. रम; इआले 10626 अनुरक्त होना; स. रंगना; अनुरक्त करना.
तथा 10637) विहार करनाः चैन करना. दे. 'रच 'गुज. राच 3610 गुज. रम 3597
राज अ. भव (सं. रज, प्रा. रंज; इआले रमक (1) अ. दे. 'रम' हिडोले पर झलनाः 10588) आँख में काजल लगना; स. रंगना; हिंडोले पर पेंग मारना
राँगे से जोड़ना 3611 (2) अ. देश. किसी चीज़ में किसी दूसरी राँढ़ स. देश. विलाप करना, रोना 3612 चीज़ की हलकी गन्ध, छाया या प्रभाव राँध स. भव (सं. रन्धू: प्रा. रंधू; दे. इआले दिखाई देना 3598
10616) पकाना; पाक करना. गुज. राँध रमड़ अ. देश. रमण करना; युक्त होना 3599 3 613 अ. भव (सं. रदः प्रा. रड्र: दे. इआले राँभ अ. दे. 'रंभा' 3614
_10590) चिल्लाना. गुज. रड रोना, 3600 *राख स. दे. 'रख' 3615 ररक स. देश. (* रइड; प्रा. रड्रड, दे. इआले *राग अ. दे. राँच' रंगा जाना; अनुरक्त होना;
10594) धकेलना: अ. पीड़ा होना. गज. रळ स. रंगना, गीत आदि गाना 3616 'फिसलना' 3601
राच अ. ना. भव (सं. रक्त विशे, रज् ; प्रा. रल अ. देश. (* रुल; प्रा. स्ल; दे. इआले
रत्त; दे. इआले 10584) अनुरक्त होना; 10786) एक में मिलाना; घुलना-मिलना.
प्रसन्न होना. गुज. राच 'प्रसन्न होना' 3617 गुज. रोळ 3602
राज अ. भव (सं. रङ्ग् ; दे. इआले 10583) *रव (1) अ. ना. सम (सं. रव संज्ञा) शब्द होना शोभा देना, चमकना. गुज. राज 'भव्य लगना' (2) अ. दे. 'रम' 3603
3618 रवक अ. देश. तेजी से आगे बढ़ना; झपटना राध स. सम (सं. राध) आराधना करना; युक्ति 3604
से काम निकालना 3619
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राष
राष स. देश. खेत में एक विशेष प्रकार से रुखा (1) अ. ना. वि. (रुख संज्ञा; फा.) किसी खाद डालना 3620
ओर रुख होना; किसी ओर रुख करना राम अ. दे. 'रम' 3621
(2) अ. ना. रूखा होना; सं. नीरस या फीका राल स. देश (*रल्ल; दे. इआले 10640)
करना 3638 मिश्रित करना; गोदना. गुज. रळ 'अर्जित रुच अ. भव (रुच् ; प्रा. रुच्चू ; दे. इआले करना' 3622
10765) प्रिय जान पड़ना, पसंद आना. गुज. राह स. देश. (दे. पृ. 147, दे. श. को.)
रुच 3639 चक्की के पाटों को खुरदुरा करके पीसने रुझ (1) अ. देश घाव आदि का भरना • योग्य बनाना 3623
(2) अ. देश. उलझना; मन का किसी काम रिंग अ. देश. रेग' 3624
में लगे रहना 3640 रिडक स. देश. दही आदि बिलोना; अ. खटकना
रुल अ. देश. मारा-मारा फिरना; दबा रह जाना
3641 3625 रित अ. ना. भव सं. रिक्त विशे; प्रा. रित्त;
रुंद (1) स. दे. 'रौंद' दे. इआले 10729) खाली होना तुल. गुज.
__ (2) स. दे. 'रुंध' 3642 रिक्त विशे. 3626
बैध स. भव (सं. रुधु; प्रा. रुध्ः दे. इआले रिपट अ. दे. 'रपट' 3627
10782) (रक्षा के लिए) कांटेदार पौधों आदि रिर अ. अनु. (दे. पृ. 511, मा. हि. को-4)
से घेर देना; रास्ता बंद कर देना. गुज. ॐध बहुत गिडगिडाते हुए अपनी दीनता प्रकट
'रास्ता बंद करना' 3643 करना 3628
रूच अ. दे. 'रुच' 3644 रिरिया अ. दे. 'रिर' 3629
रूठ अ. ना. भव (सं. रुष्ट; रुष : प्रा. रुट्ठ *रिल अ. दे. 'रल' 3630
विशे; दें. इआले 10791) अप्रसन्न होना. रिस (1) अ. सम (सं. रिश; दे. इआले. गुज. रूठ 3645
10749) नम्हें नन्हें छेदों से तरल द्रव्य रूत अ. दे. 'रता' 3646 का निकलना
रूम अ. अनु. ('झुम' का अनु. दे. पृ. 522, मा. (2) अ. भव (सं. रिए : दे. इआले 10749) हि. को-4) 3647 नाराज होना. गुज. रिसा 3631
रूर अ. देश, ऊँचे स्वर में बोलना; दहाड़ना रिसा अ. दे. 'रिस (2)' 3632
3648 रिसिआ अ. दे 'रिस 2, 3633
रूस अ. भव (सं रुषः प्रा. रूसू ; दे. इआले रीध स. दे. 'राध' 3634
___10794) रोष करना; रूठना, गुज. रूस रीझ अ. भव (सं. ऋधु ; प्रा. रिज्यू ; दे. इआले 3649
2457) प्रसन्न होना; मुग्ध होना. गुज. रीझ रूह (1) अ. दे. 'रोह' 3635
(2) अ. दे. 'सैंध' 3650 रीत अ. दे. 'रित' 3636
रेक अ. अनु. देश. (रेका दे इआले 10734) रीध स. दे. 'राध' 3637
गधे का बोलना; बहुत बुरी तरह से चिल्लाते
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2907
हिन्दी-गुजराती धातुकोष
१४५ हुए गाना या बोलना, गुज. रेंक 'गाय-भैस का रोध स. ना. भव (सं. रुद्ध विशे; रुध्ः प्रा. रूद्ध; बोलना, भद्दे प्रकार से रोना' 3651
दे. इआले 10775) रोकना. गुज. रोध रंग अ. भव (सं. रिङ्गः प्रा. रिंगः दे इआले 0000
10739) कीड़ों, सरीसृपों का चलना; धीरे रोप स. भव (स. रुप ; प्रा. रुप्प ; दे. इआले धीरे चलना. 3652
10783) लगाना; स्थापित करना. गुज. रोप
3666 रेंड अ. देश. गर्भित होना; गेहूँ आदि का इस
अवस्था को प्राप्त होना जिसके कुछ ही समय रोल अ. भव (सं. लुड्: प्रा. लोल् ; दे. इआले बाद उसमें बाले फूटती हैं 3653
11080) घुमाना; साफ करना. गुज. रोळ रे स. देश. (दे. पृ. 526, मा. हि. को-4) किसी वस्तु में डालकर लटकाना 3654
रोव अ. दे. 'रो' 3668 रेख स. ना. सम (सं. रेखा संज्ञा रेखा खींचना, रोस अ. भव (सं. रुषः प्रा. रोस् ; दे. इआले
चित्र आदि अंकित करना. गुज. रेख 3655 10857) वादग्रस्त होना. 3669 रेघा स. ना. अर्धसम (रे, ग, स्वर संज्ञा दे. रोह अ. भव (सं. रुइ ; प्रा. रोहू ; दे. इआले
पृ. 525, मा. हि. को-4) सस्वर गाना, रेंकना 10862) आरोहण करना, चढ़ना 3670 3656
रौंद स. देश. मर्दन करना; पैरों से बहुत अधिक रेत स. ना. भव (रेत संज्ञाः सं. रेत्र संज्ञा दे. मार-मार कर अंजर-पंजर ढीले करना. तुल. इआले 10816) रेती से रगड़कर काटना, गुज. खूद, गूंद 3671
औजार की धार रगड़ना. तुल. गुज. रेत रो (1) अ. भव (सं. रु; दे. इआले 10644) संज्ञा 3657
आवाज़ करना रेह स. ना. भव (सं. रेखा संज्ञा; रिख : प्रा. (2) अ. दे. 'रो' 3672 रेहा; दे. इआले 10810) रेखांकित करना रौरा स. ना देश. (रौरा संज्ञा) व्यर्थ बोलना, 3658
हल्ला करना 3673 रंग अ. दे. 'रंग' 3659
लंगड़ा अ. ना. भव (लंगड़ा विशे; सं. लग रोंस अ. दे. रोस 3660
विशे; दे इआले 10877) लंगड़ाकर चलना, रोथ अ. ना. भव (सं. रोमन्थ संज्ञा; प्रा. रोमथू गुज. लंगडा 3674 दे. इआलें 10853) पगुराना; सोचते रहना लंगरा अ. दे. 'लंगड़ा' 3675
लंबा स. ना. भव (जंबा विशे; सं. लम्ब् ; प्रा. रो अ. भव (सं. रुद् प्रा. रोय् ; दे. इआले 10840 लंब; दे. इआले 10951) लंबा करना. गुज. रुदन करना. गुज. रो. 3662
लंबा 3676 रोक स. देश. ( * रोक्कि; दे. इआले 10827) लकडा अ. ना. भव (लकडी संज्ञा; सं. लकुट गति बंद करना; मना करना. गुज. रोक
प्रा. लक्कुड; दे इआले 10875) सूखकर 3663
लकडी की तरह सख्त हो जाना; हाड-हार रोद अ. दे. 'रो' 3664
हो जाना. तुल. गुज. लाकडी संज्ञा 3677
.
3661
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लख स. भव (सं. लक्ष ; प्रा. लक्ख ; दे. इआले सीधे न चल पाना; विचलित होना. गुज.
10883 तथा 10891) देखना; ताड जाना. लटपट 'स्नेह से सटना' 3689 गुज. लख 3678
लड़ स. देश. (* लड; दे. इआले 10920) लखलखा अ. अनु. देश. (*लक्क; दे. इआले एक पदार्थ, व्यक्ति का दूसरे पदार्थ, व्यक्ति _10876) धूप से हाँफना 3679
से टक्कर खाना; वाग युद्ध करना. गुज. लड लखेद स. दे. 'खदेड' 3680
3690 लखेर स. दे. 'खदेड़' 3681
लड़खड़ा अ. अनु. भव (सं. लट्, दे. इाले लग अ. भव (सं. लग : प्रा. लग्ग् ; दे. इआले 10916) डगमगाना; अस्थिर होना. गुज. लड_10895) जुड़ना; अनुभव होना. गुज. लाग
बड 'लटकना' 3691 3682
लड़बड़ा अ. दे. 'लड़खड़ा' 3692 लच अ. दे. 'लचक' 3683
लताड स. ना. देश (* लत्ता प्रा. लत्ता संझा, लचक अ. देश. (*लच्चू ; दे. इआले 10907)
दे. इआले 10931) रौ दना; लात से मारना. लंबी चीज़ का दबाव आदि से झुकना; स्त्रियों तुल. गुज. लात सज्ञा; लाताट 3693 की कमर का नखरे-नजाकत से झुकना; गुज. ललिया स है 'सताह 3694 लचका, लचक; लांच 3684
लथाड़ स. दे. 'लथेड़' 3695 लछिआ (1) स. अनु. (लच्छा संज्ञा; दे. पृ.
- लथेड़ स. देश. 'अ व्यु. दे. पृ. 140, हि. के. 550, मा. हि. को-4) डोरे, सूत आदि का
श.) कीचड़ आदि लपेटना; भत्र्सना करना लच्छा बनाना
3696 (2) अ. भव (सं. लक्षित भू. कृः प्रा. लक्खिअ; दे. इआले 10885) दिखाई देना
*लद्ध स. ना. भव (सं. लब्ध विशे; प्रा. लद्ध; 3685
दे. इआले 10946) प्राप्त होना; दे. 'लाध'
गुज. लाध 3697 लजा अ. भव (सं. लज्; प्रा. लज्जाद: दे. इआले 10909) अपने अनुचित आचरण का लप अ. अनु. (दे पृ. 559, मा. हि. को-4) अनुभव करके संकुचित होना; शर्मानाः दे. बेत का एक छोर पकड़कर जोर से हिलाने 'लाज' गुज. लजव, लजाव 'बदनाम करना, जाने से इधर उधर झुकना. गुज. लप 3686
'छिपना 3698 लट अ. भव (सं. लट्ः दे. इआले 10916) लपक अ. देश. (* लप्पः दे. इआले 10939)
थककर गिरना; रोग आदि से कमजोर पड़ झटपट चल पड़ना; किसी पर झपटना. गुज. जाना. गुज. लट 'लड़ना.' 3687
लपक; तुल. गुज. लपकारो संज्ञा; लपटु विशे लटक अ. दे. 'लट' ऊँची जगह के आश्रय
3699 से नीचे की ओर अवलंबित होना, टॅगना. लपट अ. दे. 'लिपट ' 3700 गुज. लटक 3688
लपलपा अ. दे. 'लप' 3701 लटपटा अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 139, लपेट स. देश. (* लप्पेट; दे. इआले 10942 हि. दे. श.) कमजोरी, नशे आदि के कारण सूत, कपड़े आदि को किसी चीज़ के चारों
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष
ओर फेरा देकर लगाना; समेटना. गुज. लपेट (2) अ. ना. भव (सं. लल; दे इआले 3702
_10986) लालायित होना 3715 लफ अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 140, हि. दे. लव स. दे. 'लुन' 3716 श.) लपना; झुकना. 3703
लवक अ. दे. 'लोक' 3717 लफलफा अ. दे. 'लप' 3704
लशकार स. अनु. (दे. पृ. 566, मा. हि. कोलबझ अ. देश. (दे. पृ. 179, दे. श. को.) 4) मह से लशलश शब्द करते हुए शिकारी उलझना, फँसना 3705
कुत्ते को उत्तेजित करना 3718 लबड़ अ. ना. देश. (लबाड़ विशे.) झूठ बोलना; ,
ना लस (1) स. भव (सं. लम् ; प्रा. लसूः ल्हसू ; अ. लिबड़ना. तुल. गुज, लबाड विशे: लबड
दे. इआले 10993) चमकना, दिखाई देना. 'लटकना 3706
गुज. लस लमक (1) अ. ना. देश. (लंबा विशे) लंबाई (2) स. देश. (*लस; दे. इआले 10994 के कारण बाल नीचे की ओर लटकना
चिमकाना, सटाना. गुज. लस 'फिसलना' (2) अ. दे. 'लपक' 3707
3719 लरक अ. दे. 'लटक' 3708
लसक अ. दे. 'लस (2), 3720 लरखरा अ. दे. 'लड़खड़ा 3709
लसलसा अ. दे. 'लस (2) 3721 लाज अ. ना. वि. (लज़े संज्ञा; फा.) काँपना; लह स. भव (सं, लभू ; प्रा. लभू , लहू ; दे डर जाना.गुज. लरज 3710
इआले 10948) पाना; लाभ करना. गुज. ललक अ. भव (सं. लल् : दे. इआले 10968) लहे 'ध्यान से सुनना' 3722 . किसी चीज़ के लिए अत्यधिक उत्सुक होना; उमंग से भर जाना. गुज. लळ 'प्रेम से लहक अ. देश. हवा का चलना; लहराना 3723 उत्तेजित होना' 3711
लहकार स. अनु. उभाड़ना; कुत्ता छोड़ना 3724 ललकार स. अनु. ना. देश. (ललकार संज्ञा प्रा. लहट अ. देश. (दे. पृ. 180, दे. श. को.)
लल्लक संज्ञाः दे. पृ. 723, पा. स. म. * परचना 3725 लल्लक्क; दे. इआले 10973) विपक्षीको लहर अ. दे. 'लहरा' 3726 लड़ने की चुनौती देना; उभाड़ना. गुज. ललकार संज्ञा 3712
लहरा अ, ना. भव (लहर संज्ञा; सं. लहरी; प्रा.
लहरी; दे. इआले 10999) हवा के झोंके से ललच अ. देश. किसी अभिलषित वस्तु की प्राप्ति हिलना-डुलना; हवा का चलना. गुज. लहेरा
के लिए उत्सुक होना; लालसा करना. गुज. 3727 ललचा 3713
लहलहा अ. दे. 'लहरा' लहलहानेवाली हरी ललसा अ. ना. भव (लालस संज्ञा; सं. लस; दे.
पत्तियों से भरना; पनपना 3728 इआले 11026) -की लालसा करना. तुल. गुज. लालसा संज्ञा 3714
लहेस स. भव (सं. श्लिषुः प्रा. सिलेसूः लेसण लला (1) अ. ना. वि. (लाल संज्ञा; अर.) लाली संज्ञाः दे इलाले 12742) पलस्तर करना पकडना
टिपकारी करना 3729
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ટ
लाँघ स. भव (सं. लघुः प्रा. लंघू दे इआले 10905) नाँघना, पार करना गुज. लांघ भूखा रहना 3730
4
ला (1) स. भव (सं. लभ्; प्रा. लाय विशे; दे. इआले 10948 ) ले आना; सामने रखना, गुज. लाव (2) सं. भव (सं. लग्; प्रा. ले; दे. इआले 11004) प्रयुक्त करना, तैयार करना, गुज.
लाव 3731
लाख (1) अ. ना. भव ( लाख संज्ञा; सं. लाक्षा; प्रा. लक्खा ; दे. इआले 11002) बरसनों के छेदों पर लाख लगाकर उन्हें बंद करना. तुल. गुज. लाख संज्ञा (2) स. दे. 'लख ' 3732
लाग अ. दे. 'लग 3733 लाज अ. दे. 'लजा ' 3734
लातर अ. ना. देश. (लात संज्ञा; दे. पृ. 181, दे. श. को.) चलते चलते थक जाना; पथभ्रष्ट होना 3735
लाद स. भव (सं. लद्; प्रा. लद्द्; दे. इआले. 10966) अनेक चीज़ों को एक पर रखना; ढोने के लिए बोझ भरना. गुज. लाद 3736 लाध स. ना. मच (लब्ध विशे; स. लभूः प्रा. लदूध; दे. इआले 10946) पाना, लेना. गुज. लाध मिलना 3737
लाफ अ. देश. (* लप्फ दे. इआले 10939) कूदना 3738
लाल स. भव (सं. लालन संज्ञा; ललू प्रा. लालण, दे. इआलें 11025 ) लाड करना; पालन-पोषण करना. तुल. गुज. लालन-पालन संज्ञा 3739
लाव स. देश. लगना; स्पर्श करना 3740. लाष स. दे. 'लाख' 3741 लास अ. दे. लस 3742
6
लाँघ
लिख स. सम (सं. लिख ) कोई बात लिपिबद्ध करना; ग्रंथ रचना. गुज. लख 3743
लिपट अ. भव (सं. लिपूः प्रा. लिपू दे. इआलें
11061) सटना, लग्न होना. गुज, लपेड 3744
लिवड अ. अनु. (दे. पृ. 583, मा. हि. को - 4 लथवथ होना; सनना; स. लथ पथ करना 3745 लिलक अ. दे.
"
ललक 3746
लिशक अ. अनु. (दे. पृ. 583, मा. हि. को - 4 ) बहुत तेजी से चमकना 3747
लिस अ. दे. 'लस 3748
लिह स. भव (सं. लिखू; प्रा. लिहू दे. इआले 11084) दे. 'लिख' 3749
लीप स. भव (सं. लिए; प्रा. लिप्पू दे. इआलें 11061 ) किसी चीज़ पर गाढे या पतले पदार्थ का लेप करना. गुज. लीप, लींप 3750
लील स. देश. (* नि + गलू दे. इआलें 7163 निगलना 3751
लुंडिया स. ना. देश (लुंडी संज्ञा *लुण्ड; दे.
इआले 11076) सूत, रस्सी आदि की लुडी या गोले के रूप में लपेटना तुल. गुज लूंडो संज्ञा 'भ्रष्ट पुरुष 3752
9
लुक अ. भव (सं. लुप् प्रा. लटूट विशे: दे. इआले 11083) छिपना 3753
लुघड़ अ. दे. 'लुढ़क 3754
लुप अ. सम (सं. लुपू) लुप्त होना. तुल. गुज. लुचक स. भव (सं. लुञ्चः प्रा. लुच्; दे. इआले 11074 ) झटके के साथ छीनना 3755
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश लुटक अ. दे. 'लुढ़क' 3756
लुह अ. भव (सं. लुभ् ; दे. इआले 11085) लुटपुट अ.दे. 'लटपटा' 3757
दे. 'लुभा' 3776 लुटर अ. दे. 'लोट' 3753
लूक स. देश. आग लगना; अ. दे. 'लुक' 3777 लठ अ. दे. 'लुढ़' 3759
लूट स. देश. (*लुट्ट; प्रा. लुटू दे. इआले लुडक अ. दे. 'लुढ़क' 3760
1:078) जबरदस्ती छीनना; ठगना, गुज. लुखुड़ा अ. दे. 'लड़खड़ा' 3761
लूट 3778 लडिया स. भव (सं. लुइ; दे. इआले 11050 .लन स. दे. 'लुन' 3779 गोल तुरपना 3762
. ल्म अ. ना. देश (*लुम्ब; प्रा. लुबि संज्ञा; दे. लुढ़ अ. भव (सं. लुटः प्रा. लुद; दे. इआले
इआले 11089) झूलना, लटकना गुजः लूम 11079) चक्कर खाते हुए आगे बढ़ना या 3780
गिरना; रपटना. गुज. लुठः 'रुई साफ करना • लोढ़ना' 3763
लूर अ. दे. 'लुर' 3781 . लुढ़क अ. दे. 'लुढ़' 3704
लूस स. भव (सं. लूप्; प्रा. लूस; दे. इआले लुढ़िया अ. दे. 'लुडिया' 3765
11097) माटयामेट करना; नष्ट करना 3782 लुन स. भव (सं. ल, प्रा. लुण् ; दे. इआले ले स. भव (सं. लभ ; प्रा. ले; दे. इआले
11082) फसल काटना; नष्ट करना. गुज. 10948) प्राप्त करना; थामना; धारण करना. लण 3766
गुज. ले 3783 लुप अ. सम (स. लुपू) लुप्त होना. तुल. गुज. लेट अ. सम (सं. लेट् ; दे. इआले 11109) लोप संज्ञा 3767
किसी आधार पर पड़ा रहनाः आराम करना लुबध अ. ना. अर्धसम (सं. लुब्ध विशे) लुब्ध गुज. लेट 3784
होना. तुल. गुज, लुब्ध विशे. 3768 लेप स. दे. 'लीप' 3785 लुबुध अ. दे. 'लुबध' 3769
लेवर स. दे. 'लेवार 3786 लुभा अ. भव (सं. लुभ प्रा. लुब्भ : दे. इआले लेवार स. ना. देश (लेवार संज्ञा) लेप लगाना
11086) आकृष्ट होना; लालसा करना. गुज. आग पर चढ़ाने से पहले बरतन के पेदे में लोभा 3770
लेवा लगाना 3787 लुर अ. देश (*लात्: प्रा. लोट्; दे. इआले लेस स. भव (सं. श्लिष् : प्रा. सिलेसू , लेसण
11156) ऊपर से तनी चली आई वस्तु का संज्ञा दे. इआले 12742) जलाना; दीवार इधर-उघर हिलना डुलना; अचानक आ पर मिट्टी आदि लेवारना 3788 . पहुँचना 3771
लेह स. दे. लेस 3789 लुरक अ. दे. 'लुढ़क' 3772
_ लोक स. देश. किसी चीज़ को गिरने से पहले लुरिया अ. देश. प्रेम-पूर्वक स्पर्श करना; थप
__ ही हाथों से पकड लेना; रास्ते में ही उड़ा थपाना 3773
लेना 3790 .. लुल अ. दे. 'लुर' 3774 लुलुआ अ. अनु. (दे. पृ. 589, मा. हि. को-4) लोच स. ना. सम (सं. लोचन संज्ञा) प्रकाशित
लूल कहकर के किसीका उपहास करना 3775 करनाः देखना, अ. अच्छा होना 3791
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१५०
लोट
3811
लोट अ. देश. (लोर्ट; दे. इआले 11156) वंछ स. ना. सम (सं. वाञ्छा संज्ञा) चाहना नीचे-ऊपर होते हुए जाना; करवटें बदलना. 3805 गुज. लोट 3792
वदुस स. देश. दोष मढ़ना; भलाबुरा कहना लोड़ स. सम (सं. लुइ; प्रा. लोल: दे. इआले 3:07
11136) आवश्यकता होना; दरकार होना 3793
वध (1) अ. ना. भव (सं. वृद्धि संज्ञा; प्रा.
वद्धि, वुद्धि; दे इआले 12076) बढ़ना, लोढ स. दे. (प्रा. लोढ् ; दे. पृ. 730, पा. स.
उन्नांत करना गुज. वध म.) (पौधों से फूल) तोड़ना; (कपास) ओटना
(2) स. सम. (सं. वधू ; वध करना तुल. गुज. लोढ 3794
गुज. वध सज्ञा 3606 लोढक अ. दे. 'लुढक' 3795
वफर अ. देश. (दे. पृ. 185, दे. श. को.) लोभ अ. ना. सम (सं. लोभ संज्ञा) लुब्ध होना क्रोध से बकना या गुर्राना 3809
स. लुब्ध करना, लुभाना. गुज. लोभा 37:6 वर स. दे. 'बर' 3-10 लोर अ. दे. 'लोल' 3797
बर्गला स. वि. (वर्गलानीदन; फा.) छल-फरेब लोल अ. भव (सं. लुड् ; प्रा. लोलू दे. इआले
से किसीको किसी ओर प्रवृत्त करना, बहकाना - 11080) हिलना-डोलना. गुज. रोळ 'गोल तुरपना, नष्ट करना. 3798
वर्ज स. दे. 'बरज' 3812 लोहा अ. ना. भव (सं. लोह संज्ञा, प्रा. लोहा वल अ. दे. 'बल' (2) किसी ओर घूमना, लौटना
दे. इआले 11158) किसी चीज़ का अधिक 3,13 समय तक लोहे के बरतन में पड़े रहने के । कारण लोहे के गुण, रंग, स्वाद, आदि से।
वस अ. दे. 'बस' 3814 युक्त होना. तुल. गुज. लोदु संज्ञा 3799 वसूल स. ना. वि (वसूल संज्ञा; अर.) वसूल लौक अ. दे. 'लौक' 3800
करना. गुज. वसुलात सज्ञा 3815 लोक अ. ना. अर्धसम (सं. लोकन संज्ञा) वाकार स. देश. ललकारना 3816 - चमकना; दिखाई पड़ना 3801
वाच स. दे. 'बाँच' 3817 लौ अ. भव (सं. लू ; प्रा. लव ; दे. इआले वार स. भव (स. वृ; प्रा. वार; दे. इआले 10986) फसल काटना 3602
11554) निछावर करना; उत्सर्ग करना. गुज. . लौट अ. देश. वापस आना; मुकर जाना; दे.
वार 3818 'उलट' 3803
वाल स. ना. सम (स वलय सज्ञ) गिराना, ल्हेस स. दे. 'लेस' 3804
डालना. तुल. गुज. वळु संज्ञा 'वर्तुल, जमीन
का भाग' 3819 पंच (1) स. भव (सं. कञ्च् ; प्रा. वंचू ; दे. इआले 11:08) छलपूर्वक व्यवहार करना
वाव अ. देश. बजना; स. बजाना. तुल. गुज. गुज. वंच
वाव 'बोना' 3820 (2) स. दे. 'बाँच' 3805
वास स. दे. 'बास' 3821
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
विकला अ. ना. सम (सं. विकल विशे) व्याकुल होना; स. किसीको बेचैन करना. तुल. गुज. विकळ विशे 3822
विकस अ. ना. सम (सं. विकास संज्ञा ) विकास के रूप में होना: फूलों आदि का खिलना. गुज. विकस 3823
विकीर स. दे. 'बिखर' 3824 विचर अ. दे. 'बिचर' 5825 बिचल अ. दे. 'बिचल' 3826 विचार अ. दे. 'बिचार 3827 विछल अ. दे. 'बिछल' 3828
बिडर अ. दे. 'बिडर' 3829 वितता अ. देश. व्याकुल होना 3830
वितर स. सम (सं. वि. + तृ) वितरण करना. गुज. वितर 3831
विथक अ. दे. 'बिथक' 3832
विथरा अ. दे. 'बिथरा' 3833 विदक अ. दे. 'बिदक' 3834
बिबल स. सम (सं. वि + दल) दलित करना; नष्ट करना 38:5
विदार स. दे. 'बिदार' 3836
विधंस स. दे. 'विधाँस' 3837
विध स सम (सं. वि + घृ) प्राप्त करना; अपने साथ लेना 3838
विनव स. दे. 'बिनौ' 3839 विनस स. दे. बिनस' 3840
विभा अ. दे. 'विभा' 3841 विभास अ. दे. 'विभा' 3842 विभूष स. न. सम (सं. विभूषण संज्ञा ) विभूषित करना. तुल, गुज. विभूषण संज्ञा 3843 विभेद स. ना. सम (सं. विभेदन संज्ञा ) भेदन
करना; काटना गुज. विभेद 3844 विमास अ. भव (सं. वि + मृश् प्रा. विमंसिअ त्रिशे: दे. इआले 11821 ) विमर्श करना. गुज. विमास 'सोचना' 3845
१५१
विमोच स. ना. सम (सं. विमोचन संज्ञा ) बिमोचन कराना; निकालना. गुज, विमोच 3846 त्रिमोह अ. ना. सम (सं. विमोहन संज्ञा ) मोहित होना; भ्रम में पड़ना; स. मोहित करना. गुज. विमोह 3847
विरच स. दे. बिरच' 3848 विरम अ. दे. 'बिरम' 3849 विराज अ. दे. 'बिराज' 3850 विरुझ अ. दे. 'बिरुझ' 3851
विलंब स. ना. सम (सं. विलम्ब संज्ञा ) विलंब करना; अ. विलंब होना. गुज. विलंबा 3852
विलख अ. दे. 'बिलख' 3853 बिलगा अ. दे. 'बिलगा' 3854 विलप अ. दे. 'बिलप' 3855 विलम अ. दे. 'बिलम' 3856 विलस अ. दे. 'बिलस' 3857 विला अ. दे. 'बिल्ला' 3858 विलोक स. दे. 'बिलोक' 3859 विलोड़ स. दे. 'बिलाड़' 3860
विलाप स. ना. सम (सं. विलोपन संज्ञा) लेपा करना; नाश करना: अ. लुप्त होना. गुज. विलोप 3861
विवद अ. ना. सम (सं. विवाद संज्ञा) विवाद करना. तुल. गुज. विवाद संज्ञा 3862 विवर अ. दे. 'बिवर' 3863 विवाह स. दे. 'ब्याह' 3864 विहँस अ. दे. 'बिहँस' 3965 विहर अ. दे. 'बिहर' 3866
वीख स. अर्धसम (सं. बीक्षू ) देखना 3667 वेल अ. सम (सं. वेलू) हिलना; विकल होना
3868
बेसास स. ना. अर्धसम (सं. विश्वास संज्ञा )
विश्वास करना. तुल, गुज. विश्वास संज्ञा 3869 वैर स भव (सं. अव + कृ; प्रा. अक्खिणण विशे दे. इआले 732 ) - में डालना, बोना, गुज़. ओर 3870
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व्यतीत
व्यतीत अ. ना. सम (सं. व्यतीत भू. कृ.) सँकुर अ. दे. 'सिकुड' 3888
बीतना; स. बिताना. तुल. गुज. व्यतीत भू. कृ. संकेत (1) अ. ना. सम (स. सइ-केत संज्ञा) ". 3871
संकेत करना. गुज संकेत व्याप अ. सम (सं. वि + आप् ) व्याप्त होना. (2) स. देश. संकट में डालना 3889 गुज. व्याप 3872
सकेल स. देश. समेटना, बटोरना. गुज. सकेल शंक अ. ना. भव (स. शङ्का संज्ञा) संदेह 3890 करना, डरना. गुज. शंक 3873
सँकुचा अ दे. 'सकुचा' 3891 शरमा अ. ना. वि (शर्म स ज्ञाः फा.) लज्जित सँकोच स. भव स. सम् + कुच् ; प्रा. स कोअ; . . होना; स. लज्जित करना. गुज शरमा 3874 दे. इआले 12832) दे. 'सँकुच' 3892 शराप स. ना. अर्धमस (स. शाप सज्ञा) किसीको सँकोप अ. ना. सम (सं. सड्-कोप संज्ञा) शाप देना. गुज. शाप 3875
कोप करना. गुज. कोप 3893. शिथिला अ. ना. समा (स. शिथिल विशे) संकोर स. देश (* सिक्क; दे. इआले 13387)
शिथिल होना; थकना; स. शिथिल करना. तुल. . सिकोड़ना. गुज. स कोर 3894 गुज. शिथिल विशे 3876 .
सक्रम अ. ना. सम (स. सक्रमण संज्ञा) शूल अ. सम (स. शूलू ) शूल की तरह गड़ना; सक्रमण करना. गुज. सक्रम 3895 - शूल गड़ने के समान पीड़ होना; स. शूल *स घर स. देश. संहार करना. गुज. स घर चुभाना. 3877
'रखना' 3896 शृंगार स. ना. सम (स. शृंगार संज्ञा शृंगार
संघरा स. देश (दे. पृ. 186, दे. श. को.) • करना. तुल. गुज. शृंगार संज्ञा 3878
टावी या उदासीन गाय को उसका दध दहने शोध स. सम. (स. शुध) शुद्ध करना; खोज
के लिए परचाना या फुसलाना 3897 _ करना. गुज. शोध 3879
*संघार स. दे. 'संघर' 3898 शोष स. सम (सं. शुष्) शोषण करना. गुज.
*सच स. भव (स. सम् + चि; दे. इआले शोष 3850
12867) जमा करना, बटोरना. गुज. सांच सँउप स. दे. 'सौप' 3881
3899 संक अ. दे. 'शंक' 3882
*संचर अ. भव स. सम् + चर: प्रा. सच; संकरा स. ना. भव (साँकर विशे; :स. सङ्कट दे. इआले 12868) चलना, फिरना. गुज. विशे; प्रा. सं कर; दे. इआले 12817) तंग सांचर, सचर 3900
करना. तुल. गुज. सांकडं विशे 3883 सँजो स. भव (सं. सम् + युजू ; प्रा; संजो; दे. संकलप स. ना. अर्धसम (सं. संकल्प संज्ञा) इआले 12989) सजाना; सज्ज करना. गुज
संकल्प करना; धार्मिक रीति से कोई चीज़ सजाव 3901 दान करना. तुल. गुज. सकल्प सज्ञा 3884 *संताप स. ना. स्म (सं. सन्ताप सज्ञा) संताप सँकला स. दे. 'संकलप' 3885
देना; सताना. गुज. संताप 3902 सका अ. दे. 'शंक' 3886
संतोष अ. ना. सम (सं. सन्तोष) संतोष होना; सँकार स. देश. संकेत करना 3887
सन्तोष करना. गुज. संतोष स. 3903
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश संध अ. ना. अर्धसम (स. सन्धि संज्ञा) संयुः सँवरा अ. ना. भव (साँवरा विशे; स. श्यामल;
क्त होना; स. संयुक्त करना. गुज. सांध 3904 प्रा. सामल; दे. इआले 12665) श्यामल हो संधान स.ना. .सम (स. सन्धान संज्ञा) धनुष जाना. गुज. शामळु विशे 3918
पर बाण चढ़ाकर लक्ष्य करना; निशाना साधना संहार स. दे. संघर 3919 तुल. गुज. संधान संज्ञा 3905
सक अ. भव (स. शक् ; प्रा. सक्कू दे. इआले संप अ. ना. अर्धसम (स. सम्पन्न विशे) पूरा 12252) समर्थ होना संभव होना. गुज. शक होना; समाप्त होना 3906
3920 संपड अ. दे. 'सपड़' 3907
सकपका अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 141 संपाद स. दे. 'संपार' 3908
हि. दे. श) हिचकाना; चकित होना 3921 संपार स. अर्धसम (सं. सम् + पू दे. इआले सकत्रका अ. देश. 'सकपका' 3922 12939) पूरा करना 3909
सकस अ. देश. भयभीत होना, अड़ना 3923 संपेख स. ना. अर्धसम (सं. सम्प्रेक्षण संज्ञा)
सकसका अ. दे. 'सकपका' 3924 देखना 3910
सकार स. ना. अर्धसम (स. सत्कार संज्ञा, प्रा. *संबर स. ना अर्धसम (सं. सम्बरण संज्ञा)
सक्कार; दे. इआले 13108) स्वीकार करना; संवरण करना, रोकना 3911
महाजनी बोलचाल में हुंडी की मिति पूरी *संबोध स. ना. सम (सं. सम्बोधन संज्ञा) होने के एक दिन पहले हुंडी देखकर उस पर
समझाना-बुझाना; बोध कराना. गुज. संबोध हस्ताक्षर करना और उत्तरदायित्व मानना 'संबोधन करना' 3912
3925 सँभल अ दे. 'संभाल' 3913
सकिल अ. भव (सं. सम + क; प्रा. संकिग्ण .
विशे; दे इआले 12823) फिसलना; सिकुड़ना *संभार स. भव (स. सम् + स्मृ; प्रा. संभा
जमा होना; स. जमा करना. गुज. स केल स. रिअ विशे; दे. इआले 13057) स्मरण करना
3926 गुज. संभार 3914 सँभाल स. भव (सं. सम + भः प्राः संभार:
सकुच अ. भय (स. सम् + कुच् : प्रा. संकुल् ;
दे. इआले 12824) संकोच करना; लज्जित दे. इआले 12961) टेकना; पालन करना
होना; स. लज्जित करना. गुज. संकोच, गुज. सँभाळ 3915
संकोचा 3927 *संभ्राज अ. ना. सम (सं सम्भ्राज संज्ञा) सकुचा अ. दे. 'सकुच' 3928 पूर्णतः सुशोभित होना 3916
सकुड़ अ. दे. 'सिकुड़' 3929 संवर (1) अ. भव (स सम् + वृ; दे. इआले *सकुप अ. दे. 'सकोप' 3930
13021) सुन्दर रूप में आना; संवारा जाना *सकेत अ. देश (दे. पृ. 187, है. श. को) गुज. समार 'ठीक करना, सब्जी काटकर संकुचित होना, सिकुड़ना 3931 तैयार करना
सकोड स. भव (स. सम् + कुद् प्रा. संको(2) स. भव (सं. स्मृ; प्रा. समर् ; दे. इआले डिअ विशे; दे. इआले 12833) संकुचित 13863) स्मरण करना. गुज. स्मर 3917 करना; बटोरना 3932
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१५४
सगबगा अ. अनु. (दे. पृ. 251, मा. हि. को - 5) लथपथ होना; फुरती करना; दे. ' सकपका ' दे. साँच 3933
सचर अ. दे. ' संचर
3935
सचा स. ना. भव (साच संज्ञा; सं. सत्य संज्ञा; प्रा. सच्च; दे. इआले 13112) सच्चा कर दिखलाना. तुल. गुज. साच संज्ञा; साधुं विशे
3936
सज अ. ना. भव (स. सज्य विशे, प्रा. सज्जू, दे. इआले 13091) वस्त्राभूषण से अलंकृत होना; स. धारण करना. गुज. सज 3937 सट अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 142, हि. दे. श.) दो वस्तुओं का एक साथ लग जाना, निकट आना. गुज. सट 'फिसल जाना' 3938 सटक अ. देश. (* सट्ट दे. इआलें 13100 धीरे से खिसक जाना; स. नाज निकालने के लिए डाँठ पीटना, गुज. सटक 'लुप्त होना,
भाग जाना' 3939
सटका स. अनु. (दे. पृ. 255, मा. हि. को - 5 ) छड़ी, कोडे आदि से इस प्रकार मारना कि 'सट' शब्द हो; 'सटसट' करते हुए कोई क्रिया करना 3940
शब्द
सटकार स. दे. 'सटका' 3941
सटपटा अ. अनु. देश (अ. व्यु. दे. पृ. हि. दे. श. ) संकोच करना; 'सटपट' करना 3942
142,
शब्द
सठिया अ. ना. भव (साठ विशे; सं. षष्टि; प्रा. सट्ठी; दे. इआले 12804) साठ वर्ष की अवस्था का होना; वृद्ध होना 3943 सठोर स. अनु. ( बटोरना का अनु. दे. पृ. 257, मा. हि. को - 5 ) एकत्र करना 3944
सड़ अ. भव (सं. शद प्रा. सडू दे. इआले ★ 12268 ) किसी चीज़ का गलना, बुरी हालत में रहना. गुज. सड 3945
* सतकार स. ना. सत्कार करना; 3946
सतरा अ. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 142, हि. दे. श. ) इठलानाः क्रुद्ध होना; स. चिढ़ाना 3947 *सत स. ना. अर्धसम (सं. संतर्पण संज्ञा ) भली-भाँति तृप्त करना. गुज. संतर्प 3948 सता अ. भव (सं सम् + तप्; प्रा. संतावू; दे. इआ 12886 ) कष्ट देना. गुज सताव 3949
*सतोख स. ना. अर्धसम (सं. संतोषण संज्ञा ) संतुष्ट करना; प्रसन्न करना. गुज. संतोष 3950
लगबगा
अर्धसम (सं. सत्कार संज्ञा ) इज्जत करना. गुज. सत्कार
सद् अ. भव (सं. स्यन्द्; प्रा. संदूः दे. इआले 13869) रसना; नाव के छेदों से पानी आना
3951
सदर्थ स. ना. सम (सं. सदर्थ संज्ञा ) समर्थन
करना, गुज. सदर्थ 'शुभ अर्थ 3952 सनक अ. ना भव ( सनक संज्ञा; सं. स्वन्; प्रा. सण; दे. इआले 13901) पागल होना; सर में शूल जगना. तुल. गुज. सणको संज्ञा
3953
सन किया अ. दे.
* सनमान स. ना.
"
सनक' 3954
अर्धसम ( स सम्मान संज्ञा )
सम्मान करना. गुज. सन्मान 3955 सनसना अ. भव (सं. सम् + नद्ः दें. इआले 12972 तथा 13901) गतिशील पदार्थ में हवा लगने, चलने या पानी उबलने आदि से ' सन सन' शब्द उत्पन्न होना. गुज. सणसण 3956
सन्मान स. दे. ' सनमान 3957 सपच अ. दे. पूरा होना 3958
सपड़ अ. भव ( स सम् + पत्, प्रा. संपडू दे. इआले 12930) गिरना; फँसना गुज. सांपड प्राप्त होना; पैदा होना 3959
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश सपत अ. देश. किसी स्थान पर पहुँचना 3960 समुझ अ. दे. समझ 3974 सपना अ. ना. अर्धसम (स, स्वप्न संज्ञा) समुहा अ. ना. भव (सं. सम्मुख विशे. प्रा. स्वप्न होना; स. स्वप्न दिखाना. तुल. गुज. समुह, दे. इआले 12982) सामने आना सपनु संज्ञा 3961
या होना; सामने लाना. तुल. गुज. सामु सपर अ. दे. 'संपार' 3962
विशे. 3975 सबुना स. ना. वि. (साबुन संज्ञा; अर.) साबुन समेट स. भव (स. सम् + वेष्ट्र; दे. इआले लगाना. तुल. गुज. साबु संज्ञा 3963
13026) बटोरना; तह करके खाना. गुज. समक अ. देश. चमकना 3964
समेट 3976 समझ अ. भव (सं. सम् + बुध्ः प्रा. संबुझ् ; दे. समो अ. दे. 'समा' 3977
इआले 12959) जान लेनाः विचारना; स. सम्राज अ. सम (स. सम् + रज्) अच्छी तरह किसी बात को जान लेना. गुज. समज 3965 प्रतिष्ठित होना, विराजमान होना 3978 समद (1) अ. देश. (दे. पृ. 188, दे. श. को.) सम्हल अ. दे. 'सँभल' 3979 प्रेमपूर्वक मिलना, भेटना; स. भेट देना,
सर अ. भव (स. स; प्रा. सर ; दे. इआले 13250) विवाह करना
सरकना; काम चलना. गुज. सर 3980 (2) स. ना. अर्धसम (सं. सम्वाद संज्ञा) समाचार देना. तुल. गुज, संवाद 'बातचीत'
सरक अ. दे. 'सर' रेंगना. गुज. सरक 3981 3966
+ सरज स. ना. अर्धसम (स. सर्जन संज्ञा) सर्जन समप स. दे. 'सौंप' 3967
करना. गुज. सरज 3982 समर (1) स. दे. 'सुमिर'
सरदा अ. ना. वि. (सदी संज्ञा; फा.) सरदी (2) अ. दे. 'सँवर' 3968
लगने के कारण ठंडा या शिथिल होना; स. *समर्प स. ना. सम (स. समर्पण संज्ञा) सम- ठंडा करना. तुल. गुज. शरदी संज्ञा 3983 र्पण करना. गुज. समर्प 3969
सरदिया अ. दे. 'सरदा' 3984 समा अ. भव. (सं. सम् + मा; प्रा. समा; दे. सरफरा अ. अनु. (दे. पृ. 298, मा. हि. कोइआले 12975) भीतर आना; अटना; स. 5) व्यग्र होना. घबराना 3985 अटाना, भरना. गुज, समा अ. 3970
*सरबर अ. अनु. (दे. पृ. 298, मा. हि. को*समाचर स. ना. सम (स. समाचरण संज्ञा)
____5) किसीकी समता करना. तुल. सरभर संज्ञा आचरण करना; अ. व्याप्त होना. तुल. गुज.
3986 समाचरण संज्ञा 3971 *समाधान स. ना. सम (स. समाधान संज्ञा) सरस अ. ना. सम (सं. सरस विशे) हरा होना, किसीका समाधान करना; सान्त्वना देना. तुल. सोहना; रसपूर्ण होना. तुल. गुज. सरस विशे गुज. समाधान संज्ञा 3972
____3987 समार (1) स. अर्धसम (स. सम् + मृ; दे. सरसरा अ. ना. अनु. भव (सरसर; स. स; दे.
इआले 12978) मारना, नष्ट करना. गुज. इआले 13257) 'सरसर' आवाज़ होना; साँप 'समार' 'मारना, काटना
आदि का रेगना. गुज. सरसर संज्ञा 3988 (२) स. दे. सँवार 3973
सरसा अ. दे. 'सरस' 3989
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सरसेट
सरसेट स. अनु. (दे. पृ. 300, मा. हि. को- ससक अ' दे. 'सशक' 4005 - 5) फटकार अतलाना 3990
ससर अ. ना. अर्धसम (स. सरण) सरकना सरहत स. देश. (दे. पृ. 300, मा. हि. को -
र 4005 5) साफ़ करने के लिए अनाज फटकना, सस्ता अ. ना. वि. (सस्ता विशे; सुस्त विशे; फा. __ पछोड़ना. 3991
से-ह. भा.) सस्ता होना; स. सस्ता करना. तुल. *सराप स. ना. अर्धसम (सं. शाप संज्ञा) शाप
गुज. सस्तु विशे 4007 देना; कोसना. गुज. शाप 3992
सह स. भव (स. सह; प्रा. सह; दे इआले सराह स. भव (सं. श्लाघ् ; प्रा. सलाह
___13304) झेलना, फल भोगना. गुज. सह, सहे, दे.
से 4008 इआले 12734) प्रशंसा करना. गुज. सराह 3993
सहम अ. ना. वि. (सहस संज्ञा; फा.) भय मरिया स. देश. (दे. पृ. 189.दे. . को
खाना, डरना 4009 अनुसार रखना, तरतीब से लगाकर इकट्ठा
सहर अ. दे. 'सिहर' 4010 करना 3994
*सहरा स. दे. 'सहला' 4011 *सरुह अ. देश. सुधरना; सुलझना 3995 सहला स. ना. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 142, सरेख स. देश. सहेजना 3996
हि. दे. श.) धीरे-धीरे मलना या हाथ फेरना; सलसला अ. ना. अनु. भव (सलसल संज्ञा; सं.
गुदगुदाना. गुज. सहेलाव 4012 सल् ; दे. इआले 13287) रेंगनाः स. सहार स. दे. 'सह' 4013 खुजलाना, गुदगुदाना 3997
सहेज स. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 142, हि, सलाक स. ना. वि. (सलाख संज्ञा; फा.) सलाख दे. श.) सँभालना; जाँचना 4014 'से किसी चीज़ पर लकीर खींचना; किसीकी साँभल स. भव (सं. सम् + भल, प्रा. संभल दे.
आँखों में तपी हुई सलाई फेरकर उसे अंधा इआले 12962) स्मरण करना; सुनना; अ. .....: करना 3998
सँभल. गुज साँभळ 4015 सलाख स. दे. 'सलाक' 3999
*साँस स. भव (स. शासू प्रा. सासू दे. इआले संवाँग अ. ना. अर्धसम (स. स्वाडाग संज्ञा) 12419) दण्ड देना; डाँटना: शासन करना नकली भेस बनाना; रूप भरना. तुल, गुज,
4016 स्वांग संज्ञा 4000
*सा अ. देश. शांत होना; समाप्त होना 4017 सवार स. दे. 'सवार' 4001
साज स. ना. भष (सं. सज्य विशे; प्रा. सज्ज : सशंक अ. ना. सम (सं. सशंक विशे) शंकायुक्त दे. इआले 13091 तथा 13093) सजाना;
होना; डरना. तुल. गुज. सशंक विशे. 4002 तैयार करना. गुज. साज 'स्वच्छ करना' ससंक अ. दे. 'सशक' 4003
4018 सस (1) स. ना. सम (स. ससन संज्ञा) यज्ञ साध स. सम (सं. साधू ; दे. इआले 13339)
में पशु का बलिदान करना; अ. बलिदान होना सिद्ध करना; निशान लगाना. गुज. साध (2) अ. सम (सं. श्वस्) साँस लेना 4004 4019
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हिन्दी - गुजराती धातुकोष
सान (1) स. भव (सं सम् + धा; प्रा. संधा, संधू दे. इआले 12898 तथा 12924) गूँधना शरीक करना. गुज. साँध 'जोड़ना ' ( 2 ) स. ना. भव (सं. शान संज्ञाः प्रा. साण; दे. इआले 12383) सान पर चढ़ाकर धार तेज करना 4020
* साप स. ना. अर्धसम (सं. शाप संज्ञा ) शाप देना, कोसना, गुज. शाप 4021
. साल स. ना. भव (सं. शल्य संज्ञा, शल्; प्रा. सल्लिअ विशे; दे. इआले 2354) कष्ट देना;
चुभाना. गुज. साल अ. 4022
सास स. दे. 'ससि 4023
साह स. देश ग्रहण करना; लेना गुज. साह. 4024
सिंकोर स. दे. 'सकोड' 4025
सिंगार स. ना. भव (सं. शृंगार संज्ञा; प्रा. सिंगारिय विशे; दे. इआले 12593) शृंगार करना; सँवारना 4026
सिकुड अ. देश. (*सिक्क दे. इआले 13387) संकुचित होना 4027
सिकुर अ. दे. 'सिकुड़' 4028 सिटपिटा अ. अनु. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 142,
हि. दे.श.) दब जाना; मंद पड़ जाना 4029 सिधा अ. भव (सं. सिधू प्रा. सिज्झू दे.
इआले 13407) जाना; मर जाना. गुज. सिधाव 4030
सिधार अ. दे. 'सिधा' 4031
सिनक स. देश. अन्दर से जोर की वायु निकालते हुऐ नाक का मल या कफ बहार करना
4032
सिपर स. दे. 'सुमिर' 4033 * सिमेट स. दे. 'समेट' 4034 *सिय (1) स. दे. उत्पन्न करना, रचना (2) स. देश. सीना 4035
१५७
* सिर ( 1 ) स. ना. अर्धसम ( सं सर्जन संज्ञा ) सृजन करना. गुज. सरज (2) स. दे. 'सच' 4036
सिरा ( 1 ) अ. ना. भव. ( सील विशे; स.
शीतल विशे; प्रा. सीअल; दे. इआलें 12487) ठंडा होना तृप्त होना; स. ठंड़ा करना; धार्मिक अवसरों पर गेहूँ, जौ आदि को उगाई हुई बाले या पत्रियाँ किसी जलाशय में ले जाकर प्रवाहित
करना
(2) अ. ना. देश. (सिरा संज्ञा ) सिरे तक पहुंचना; निपटना; स. सिरे तक पहुँचाना 4037 सिसक अ. अनु. (दे. पृ. 376, मा. हि. को - 5 ) 'सीसी' ध्वनि करते हुए रोना, सुबकना. तुल. गुज, सिसकारो संज्ञा 4038 सिसकार अ. दे. 'सिसक' ; जीभ दबाते हुए वायु मुँह से इस प्रकार छोडना जिसमें सीटी का-सा 'सीसी' शब्द होता है; सीत्कार करना. गुज. सिसकार 4039
सिहर अ. ना. भव (सं. शिवा संज्ञा: प्रा. सिहर दे. इआले 12435 ) काँपना; भयभीत होना 4040
सिहला अ. ना. देश ठंडा होना, सरदी खाना
4041
सिहा अ. भव (सं. स्पृहः प्रा. सिंहू दे. प्र. 159, हि. दे. श.) ईर्ष्या करना: ललचना, तुल. गुज. स्पृहा संज्ञा 4042
सिहार स. देश (दे. पृ. 377, मा. हि. को - 5 )
तलाश करना; इकट्ठा करना 4043 सिहिक अ. देश. सूखना, फसल का सूखना 4044 सींग स. ना. भव (सींग संज्ञा; सं. शृङ्ग, प्रा.
सिरंग; दे. इआले 1258) चुराए हुए पशु पकड़ने के लिए उनके सींग देखना और उनकी
पहचान करना. तुल. गुज. सिंग संज्ञा 4045 सींच स. भव (सं सिच्; प्रा. सिंच्; दे. इआले 13394) पेड़-पौधों को पानी देना; छिड़कना गुज. सिंच, सींच 4046
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सी स. भव (सं. सिन् ; प्रा. सिव्व ; दे. इआले नाक के मल को ऊपर की और खींचना; (तल
13444) सुई या सुए से किये हुए छिद्रों से वार) खींचना 4063 तागा निकालकर कपड़े आदि के टुकड़ों को सुड़सुड़ा स. अनु. देश. (दे. पृ. 194, दे. श. जोड़ना 4047
को.) (हुक्का आदि) इस तरह पीना कि 'सुड़सीख स. भव. (सं. शिक्ष ; प्रा. सिक्खू ; दे. सुड़' आवाज़ निकले; कार्य करते समय सुड़
इआले 12430) किसी विषय का ज्ञान प्राप्त सुड़ शब्द करना 4064 करना; अनुभव प्राप्त करना. गुज. सीख, शीख सुडुक स. दे. 'सुड़क' 4065 4048
सुधर अ. ना. भव (*शुद्धकार; दे. इआले 12521) सीज अ. भव (सं श्रा; दे. इआलें 12712 तथा दुरस्त होना, बिगड़े हुए का बनाना. गुज. 13933) आग और पानी की सहायता से । सुधर 4066 पकना; गलना. गुज. सीझ 4049
सुन स. भव (सं. श्रु; प्रा. सुण ; दे. इआले सीझ (1) अ. दे. 'सीज'
__12598) श्रवणेन्द्रिय से शब्द का ग्रहण करना; (2) अ. भव (सं, सिध् ; प्रा. सिज़ ; दे. ध्यान देना. गुज. सुण, सण. 4067 इआले 13408) गुज. सीझ, सीज 4050
सुबक अ. अनु. देश. (अ. व्यु. दे. पृ. 142 सीट अ. अनु. (दे. पृ. 378, मा. हि. को-5) हि. दे. श.) 'सुबक-सुबक' ध्वनि के साथ
बढ-बढ़ कर बातें करना; जीट हाँकना 4051 रोना 4068 सीद अ. सम (सं सीद् ) दुःख पाना; नष्ट होना सुबुक अ. दे. 'सुबक' 4069 4052
*सुभ अ. देश. सुशोभित होना 4070 सील अ. दे. 'सिरा' 4053
सुभा स. भव (सं. शुभ् ; दे. इआले' 12538) सीव अ. दे. 'सी' 4054
सुंदर बनाना 4071 सुकच अ. दे. 'सकुच' 4055
सुमर स. दे. 'सुमिर' 4072 सुकुड अ. दे. 'सिकुड़' 4056
* सुमिर स. भव (सं. स्मृ; प्रा. समर् ; दे. इआले सुकुर अ. दे. 'सिकुड़' 4057
__13863) स्मरण करना. गुज. समर 4073 *सुगबुगा अ. दे. 'सगबगा' 4058
सुरक स. अनु. (दे. पृ. 410, मा. हि. को-5) सुगा अ. देश. दुःखी होना; बिगड़ना 4059
सुर-सुर शब्द करते हुए तथा एक-एक छूट सुचक अ. दे. 'सकुच' 4060
__ भरते हुए कोई तरल पदार्थ पीना 4074 सुच स. दे. 'संच' 4061
सुरझ अ. दे. 'सुलझ' 4075
सुरसुरा अ. अनु. भव (सं. सुरसुर, प्रा. सुरसुरः सुटुक (1) अ. ना. देश. (सुटका संज्ञा) सुटका
दे. पृ. 921, पा. स. म.) कीड़ों आदि का मारना, चाबुक लगाना
सुरसुर करते हुऐ रेंगना; शरीर में हलकी खुजली (2) अ. देश. चुपके से निकल जाना; सिकु
या सुरसुराहट होना; स. कोई ऐसी क्रिया इना 4062
करना जिससे सुरसुर शब्द हो 4076 सुड़क स. अनु. देश (*सुढ; प्रा. सुढिअ विशे; सुरेत स. देश (दे. पृ. 195, दे. श. को.)
दे. इआले 13467) किसी तरल पदार्थ को खराब अनाज को अच्छे अनाज से अलग नाक की राह सांस के साथ भीतर खींचना; करना 4077
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष सुलग अ. ना. भव (सं. सम्लग्न विशे, सम् + *सूद स. सम (सं. सूदु) मार डालना, नष्ट लग ; प्रा. संलग्ग; दे. इआले 12999) करना 4094 (लकड़ी उपले आदि का) आग पकडना कुढ़ना सध अ. ना. अर्धसम (सं. शुद्ध विशे) शुद्ध गुज, सळा 4078
होना; सत्य सिद्ध होना; स. शोधना 4095 सुलझ अ. देश. (दे. पृ. 195, दे. श. को.) सल स. ना. भव (सं. शूल संज्ञा; प्रा. सूल; दे. गुत्थी का खुलना; पेचीदगी का दूर हाना. 4079
इआले 12575) भाले छेदना; कष्ट देना; सुलट अ. देश. (*सम् + उल् + लट्ः दे. इआले ___ अ. दुखना; चुमना. तुल. गुज. शूळ संज्ञा 13237) सीधा होना. गुज. सुलट; तुल. गुज. 4096 सूलटु विशे. 4080
*सूब अ. ना. अर्धसम (सं स्रवण संज्ञा) प्रवासुलाग अ. दे. 'सुलग' 4081
हित होना; स. प्रसव करना 4097 सुसक अ. दे. 'सिसक' 4082
सृज स. सम. (सं. सृज्) सृष्टि करना, रचना. सुसता अ. ना. वि. (सुस्त विशे; फा.) थकावट गुज. सर्ज 4098
दूर करना: आराम करना. तुल. गुज. सुस्त सेक स. ना. देश ( सेक; दे. इआले 13581 विशे. 4083
आग पर पकानाः गरम करना. गुज. शेक, *सुसुआ अ. दे. 'सुसक' 4084
सेक 4099 सुसुक अ. दे. 'सिसक' 4085
सेंध स. ना. देश (सेंध संज्ञा) चोरी करने के सुस्ता अ. दे. 'सुसता' 4086
लिए दीवार में छेद करके मकान में घुसने के सुहा अ. भव (सं. शुभ् ; दे. इआले 12537)
लिए रास्ता बनाना 4100 शोभा देना, फबना. गुज. सुहा 4087
सेक स. दे. 'सेक' 4101 सूंघ स. देश. (* शखः प्रा. सिंघ ; दे. इआले
सेट अ. देश. किसीका महत्त्व आदि स्वीकार करना 12579) नाक से गंध ग्रहण करना; (साँप का)
4102 डसना. गुज. सूघ 4088
सेल अ. देश. चल बसना 4103 . सूख अ. ना. भव (सं शुष्क विशे; प्रा. सुक्ख ; दे. इआले 12552) जलहीन होनाः डरना
सेल्ह अ. दे. 'सेल' 4104 गुज. सुका, सुक 4089
सेव स. भव (सं. सेव्ः प्रा. सेव् ; दे. इआले सूज अ. भव (सं स्वि; दे. इआले 12568) 13593) सेवा करना; अण्डे सेना. गुज. सेव किसी अंग का फूल जाना. गुज. सूज 4090
4105 सूझ अ. भव (सं. सुधू ; प्रा. सुज्झ् ; दे. इआले सेहय स. देश. झाड-बुहारकर साफ-सुथरा 12527) दिखाई देना; दिमाग में आना. गुज. बनाना 4106
संत स. देश. संचित करना; संभालकर रखना सूड स. देश. (देश. दे. पृ. 196, दे. श. को) 4107 घूसना; बंद करना 4092
सोंट स. देश. सुधाराना 4108 सूत अ. ना. भव (सं. सुप्त विशे, स्वप् ; प्रा. सो अ. भव (सं. स्वप् ; प्रा. सुव्, सोव् ; दे.
सुत्त; दे. इआले 13979) सोना, सूथना इआले 13902) निद्राग्रस्त होना, लेटना, 4093
गुज. सू 4109
सूझ 4091
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१६०
सोअ अ. दे. 'सो' 4110
सोक अ. ना. अर्धसम (सं. शोक संज्ञा ) शोकबिह्वल होना: स. सोखना 4111 सोच स. भव (सं. शुच् ; प्रा. सोच्चू दे. इआ 12621) विचार करना; शोक करना. तुल, गुज. सोच संज्ञा 4112
सोज अ. देश. शोभा देना 4113 सोझ स. देश. शुद्ध करना; ढूँढना 4114 सोध स. अर्धसम (सं. शुधू; दे. इआले 12626)
ढूँढ़ना; शुद्ध करना. गुज. शोध, सोध 4115 सोरा अ. ना. देश (सोर संज्ञा ) बोई हुई चीज़ में सोर या जड निकलना 4116
सोह (1) स. भव (सं. शुध्; प्रा. सोहू दे. इआले 12630) (खेत) निराना. गुज. सो. (2) स. भव (सं. शुभ् : प्रा. सोभू, सोह्; दे. इआले 12636) शोभित होना, चमकना. गुज सोह, सो 4117
सोहरा स. दे. 'सहला' 4118
सौंच स. ना. अर्धसम (सं. शौच संज्ञा) मलत्याग
करना 4119
सौंद स. ना देश (सौंदन संज्ञा ) रेह मिले पानी में कपड़े भिगोने का काम करना; दे. 'सान' 4120
सौंध स. ना भव (सं. सुगन्ध संज्ञा प्रा. सौंध; दे. इआले 13454) सुगंधयुक्त करना. (2) स. ना. भव (सं. सम् + उद् + धा; दे. इआले 13235) सानना 4121
सौंप स. भव (सं. सम् + ऋ प्रा. समप्पू दे. इआले' 13192) (वस्तु आदि) किसीके सिपुर्द करना. गुज. सोंप 4122
सौर स. दे. 'सॅवर' 4123
सौज अ. दे. 'सोज' 4124 सौन स. दे. 'सौंद' 4125
सोभ
स्फुर अ. ना. सम (सं. स्फुरण संज्ञा ) प्रकट होना; कोई बात मन में सहसा उत्पन्न होना. गुज. स्फुर 4126
स्यो स. दे. 'सेव्' 4127 * स्रज स. दे. 'सृज' 4128
* स्रव अ. ना. सम (सं. स्रवण संज्ञा ) बहना; टपकना. गुज. स्रव 4129
* स्वच्छ स. ना. सम (सं. स्वच्छ विशे) स्वच्छ करना तुल. गुज. स्वच्छ विशे 4130
* स्वप्ना स. ना. सम (सं. स्वप्न संज्ञा ) स्वप्न दिखाना. तुल, गुज. स्वप्न संज्ञा 4131 स्वहा अ. दे. 'सुहा' 4132 *स्वाँग स दे. सवाँग 4133 *स्वीकार स. ना. सम (सं. स्वीकार संज्ञा ) स्वीकार करना; अपनाना. गुज स्वीकार 4134
कड़ अ. ना. देश ( हाँक संज्ञा ) हँकारना; गला फाड़कर चिल्लाना. तुल. गुज. हाँक संज्ञा 4135 हँकर अ. दे. 'हँकड़' 4136 हँकार अ. ना. देश (* हक्कार: प्रा. हक्कार ; दे. इआ 13941 ) जोर से आवाज़ दे कर किसी दूर के मनुष्य को पुकारना; ललकारना.
गुज. हकार 4137
काल स. दे. 'हाँ' 4138
हँड अ. देश. पैदल चलते हुए चारों तरफ घूमना-फिरना; मारे मारे फिरना, गुज. हृींड 'चलना' 4139
हँडव अ. देश. गौओं आदि का रंभाना; जोर का शब्द करना 4140
हंस अ. दे. 'इस' 4141
हअ स. दे. 'हन' 4142
हकबका अ. ना. अनु ( हक्का-बक्का विशे; दे. पृ. 509, मा. हि. को - 5 ) स्तंभित होना; भौंचक रह जाना 4143
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हिन्दी-गुजराती धातुकोष हकला अ. अनु. देश (दे. पृ. 200, दे. श. को.) हड़हड़ा अ. दे. 'हड़बड़ा' 4156
वाग्यंत्र, विशेषतः जिह्वा के दोष के कारण हत स. ना. सम (सं. हत भू. कृ.) हत्या करना; रुक-रुक कर बोलना 4144
___पीटना 4157 हका (1) स. देश (दे. पृ. 510, मा. हि. को हथ-वाँस स. ना. भव (हिं हाथ + भवाँसना) -5) पाल तानना; झंड़ा उठाना
दे. 'हथिया': किसी व्यवहार में लाई जानेवाली (2) स. दे. 'हंकार' 4145
वस्तु में पहले-पहल हाथ लगाना 4158, हग अ. भव (सं. हद्; दे. इआले 13960) हथिया स. ना. भय (सं. हस्त संज्ञाः प्रा. इत्य,
शौच करना: अत्यधिक मात्रा में देना. गुज. दे. इआले 14024) अपने अधिकार में कर हग, अघ 4146
लेना; हाथ से पकड़ना 4159 ........ हच अ. दे. 'हिचक' 4147
हथ्या स. दे. 'हथिया' 4160 हचक अ. अनु. (दे. पृ. 510, मा. हि. को-5) हदस अ. ना. बि. (हदसा संज्ञा; अर.) डर.
भार पड़ने पर चारपाई, गाड़ी आदि का झोंका जाना 4161 खाना; स. झोंका देना. गुज. अचका 4148
हन स. भव (सं. हन्ः प्रा. हण; दे. इआले
- हट अ. देश. ( हट्ट; दे. इआले 13943) 13963 तथा 14139) वध करना. गुज. किसी स्थान से चला जाना; पीछे हटना. गुज. हण 4162 . हट, हठ संज्ञा 4149
इप स. ना. अनु. (दे. पू. 517, मा. हि.को हटक अ. ना. देश. . (*हट्टक्क; दे. इआले -5) कोई चीज़ हप करते पर मुँह में : 13945) रोकना 4150
रखना या निगलना; तुल. गुज. हप संज्ञा *हठ अ. ना. देश (हठ संज्ञा) हठ करना; संकल्प 4163 करना. गुज. हठ 4151
हबक स. अनु. (दे. पृ. 517, मा. हि को-5) हड अ. देश. तौल में जांचा जाना, तौला जाना झपटकर किसीको दाँत से काटना, किसी 4152
वस्तु, फल आदि को घट से दांत से काटकर हड़क अ. देश (*हट; प्रा. हढा दे. इआले खाना. गुज. हयक चौंकना' 4164...
13942) किसी वस्तु के लिए लालायित होना; इबरा स. दे. 'हड़बड़ा' 4165 चिदना. तुल. गुज. हडकवा संज्ञा 'हडक, हर स. भव (सं.ह; प्रा. हर्; दे. इआहे.
जलातंक'; हडसेल ‘खदेड देना' 4153 13980) हरण कर लेना. छीन लेमा. गुज. हडप स. ना. अनु. देश (दे. पृ. 200, दे. श.. हर 4166
को.) किसी वस्तु की अनुचित साधनों द्वारा हरक अ. देश. किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा कभी न देने की इच्छा से अपने अधिकार में करना 4167
कर लेना; निगलना. गुज. हडप 4154 . *हरख अ. ना. अर्थसम (हरख मंशा; सं. हर्ष इसक्ड़ा अ. अनुः देश. (हडबड्; इआले . संज्ञा) हर्षित होना. गुज, हरख 4168 :
13949) हड़बड़ी में कोई काम करना; स. जल्दी *हरखा अ. दे. 'हरख' 4169 कार्य करने के लिए किसीको प्रेरित करना हरबरा अ. दे. 'हड़बड़ा' 4170 . ....: 4155.
हरवा अ. दे. 'हड़वड़ा' 4171
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*हरष अ. ना अर्धसम (सं. हर्ष संज्ञा) हर्षित पदार्थ को हाथ से या किसी चीज़ से हिलाना, होना. गुज. हर्ष:4172
सूप या अन्य पात्र में अन्न अथवा दूसरी हरस अ. दें. 'हरष' 4173
वस्तुओं को रखकर उन्हें इस प्रकार पछोड़ना हमारा अ. अनु. (दे. पृ. 522, मा. हि. को कि उनका खोखला अंश अलग हो जाय. तुल.
-5) 'हरहर' की आवाज़ होना; स. 'हरहर' गुज. हिलोळो संज्ञा हिलोर' 4185 शब्द उत्पन्न करना. तुल. गुज. हरहर संज्ञा हस अ. भव (सं. हस् ; प्रा. हस् ; दे. इआलें 4174
14021) हँसना. गुज. हस 4186 हरिबरा अ. दे. 'हरिआ' 4175 हरिआ अ. ना. भव (हरा विशे; सं हरित; प्रा.
हहर अ. अनु. (दे. पृ. 536, मा. हि. को-5)
___काँपना; परेशान होना 4187 हरिय; दे. इआले 13985) हरा होना, स.
हहरा अ. दे. 'हहर' 4188 हरा करना. तुल. गुज. हरियाळी संज्ञा 'हरियाली'; हरु विशे 4176
हहल अ. दे. 'हहर' 4189
हहला अ. दे. 'हहल' 4190 हरुआ अ. ना. भव (हरुआ विशे; सं. लघु विशे; हाँक स. भव (सं. हक्कू प्रा. हक्कू दे. प्रा. लहु; दे. इआले' 10896) हलका होना;
इआले 13939) इक्का, बैलगाड़ी आदि जल्दी से जानाः स. हलका करना. तुल. गुज. वाहनों को चलाना: बढ़ा-चढ़ा कर बातें करना हळवु, हलकु विशे 'हलका' 4177
गुज. हाक 'हाँककर भगा देना; चलाना' हर्ष अ. ना. सम (सं. हर्ष संज्ञा) दे. 'हरष'
4191 14178 हलक अ. देश. (* हल; प्रा. हलहलिअ विशे; हाँड़ अ. देश (* हण्ड; दे. इआले 13943)
वे. इआले 14003) हिलना, अस्थिर होना. आवारागदी करना. गुज. हाँड 'चलना' 4192
गुज. हळक 'लटकना'; हलक 4179 हाँत (1) स. देश. अलग करनाः दूर करना हलका अ.. ना. भव (स. लघु विशे; रम्ह, प्रा. (2) स. दे. 'हत' 4193
लहु; दे. इआले 10896) हलका होना; हाँप अ. दे. 'हाँप' 4194 इलकोरना; स. हलक करना. तुल. गुज. हलकु हाँफ अ. देश. (*हम्फ; दे. इआले 13973) विशे. 4180
थकावट, भय आदि के कारण फेफड़ों का हलकार स. ना. वि. (हल संज्ञा; अर.) हल करके जल्दी जल्दी और लम्बे-लम्बे साँस लेने
बहत ही महीन चूर्ण के रूप में लाना; छित- लगना. गुज. हाँफ, आफ 4195 सना. तुल. गुज. हल संज्ञा 'फैसला' 4181
हाँस अ. भव (सं. हस् ; प्रा. हस्स् ; दे. इआले
हाँस हलबला अ. अनु. (दे. पृ. 530, मा. हि. को 14048) हँसना. तुल. गुज. हांसी संज्ञा
-5) भय या शीघ्रता आदि के कारण घब- 4196 प्रना; स. किसीको घबराने में प्रवृत्त करना हार अ. भव (सं. ह; प्रा. हार; दे. इआले "4182.
14061) पराजित होना; थकना; स. खोना; हलरा स. दे. 'लहरा' 4183
त्यागना. गुज. हार 4197 हलहला स. देश (*हल्लू ; प्रा. हल्लाविय विशे; हाल अ. देश (हल्ल; प्रा. हल्लू ; दे. इआले
दे. इआले 14018) घुसेड़ना; हिलाना; अ. 14081) हिलना-डोलना, काँपना. गुज. हाल काँपना. दे. गुज. हलाव 4184
4198 हलोर स. ना. भव (सं. हिल्लोल संज्ञा; दे. हिंकर अ. अनु. (दे. पृ. 5546, मा.हि. को-5)
इआले 14121) जल अथवा अन्य तरल घोड़ों का हिनहिनाना, हींसना 4199
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश हिंच अ. देश. पीछे की ओर हटना 4200 हिलक अ. देश. (हल्लू : दे. इआले 14120) हिंछ अ. भव (सं. अभि +इष; दे. इआले हिहकना; सिसकना; सिकोड़ना 4219
536) इच्छा करना; चाहना 4201 हिलकोर स. देश (हिल्ल् ; दे. इआले 14120) हिंड अ. भव (सं. हिण्ड् प्रा. हिंडा दे. इआले जल को तरंगित करना. गुज. हिल्लोळ 4220 ___14089) चलना. गुज. हीड 4202
हिलग अ. भव (सं अभि + ला; दे. इआले 528) हिंडोर अ. दे. 'हिंदोर' डोलना 4203 हिंदोर स. ना. भव (सं. हिण्दोल; प्रा. हिंडोलण
परचना; फँसना 4221 __ संज्ञा. दे. इआले 14095) घुघोलना 4204 हिलोर स. ना. दे. 'हलोर' हिलकोरना. गज. हिंस अ. दे. 'हीस' 4205
हिलोळ 4222 हिकला अ. दे. 'हकला' 4206
हिहिना अ. दे. 'हिनहिना' 4223 हिच अ. दे. 'हिचक' 4207
हींग अ. दे. 'हीस' 4224 हिचक अ. देश (* हिच्च; प्रा. हिंचिअ विशेः हीच स. दे. 'खींच' 4225
दे. इआले 14083) हिचकी लेनाः हिचकि- हीछ स. दे. 'हिंछ' 4226
चाना. गुज. हीच. हीचक 'झूलाना' 4208 हीड (1) अ. दे. 'हिंड' हिचहिचा अ. दे. 'हिचक' 4209
__ (2) स. देश. धंधोलकर गंदा करना; हुडकना *हिता अ. ना. देश (हित संज्ञा) हितकर होना;
4227 अनुराग से युक्त होना तुल, गुज. हित संज्ञा हीस अ. भव (सं. हे ; प्रा. हेसिअ, हीसमण
4210 हितौ अ. दे. 'हिता' 4211
___संज्ञा; दे. इआले 14166) घोड़े का हिनहिनक अ. दे. 'हिनहिना' 4212
हिनाना 4228 हिनहिना अ. अनु. देश (+ हिन; दे. इआले. हीच अ. दे. 'हिचक' 4229
14092) घोड़े का हीसना. गुज. हणहण हीछ स. दे. 'हीछ' 4230
4213 हिरक अ. दे. 'हिलग' परचने के कारण धीरे
हीठ अ. भव. ( सं. अभि + स्था; दे. इआले
518) जाना: निकट आना 4231 धीरे पास आने लगना; सटना 4214 दें. 'हिरक' 4215
होल अ. दे. 'हिल' 4232 हिर (1) अ. दे. 'हर'
हुँक अ. दे. 'हुँकार' 4233 (2) स. दे. 'हर' 4216
हुँकार अ. अनु. दर्पयुक्त होकर 'हु' शब्द का हिरा (1) अ. देश. खेतों में भेड़, बकरी आदि उच्चारण करना; चिग्घाडना 4234
चौपाये रखना जिसमें उनकी लेडी या गोबर हुआ अ. अनु. (दे. पृ. 559, मा. हि को-5) से खेत में खाद हो जाय
गीदड़ का 'हुआँ हुआँ करना 4235 (2) अ. दे. 'हेरा' 4217
हुक अ. देश (दे. पृ. 559, मा. हि. को-5) हिल (1) अ. देश. ( हिल्ल; दे. इआले भूल जाना; वार या निशाना चूकना 4236
14120) अभिधा होता: कांपना. गज.हिल. हल हकार अ.दे. कार! 4237 (2) अ. देश. ( हिल ; दे. इआले 14116) हुटक अ. देश. (दे. पृ. 203, देश. को.) बच्चों दिलमिल जाना; एक हो जाना. गुज. हळ का रोना 4238 4218
हुडक अ. दे. 'हुटक' 3239
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हुत अ. ना. सम (सं. हुत भू. कृ.) आहुति के हूठ अ. देश. हटना; किसीकी ओर पीठ करना .
रूप में आग में पडनाः स. दे. 'हन' 4240 4254 हुदक अ. देश. उमंग में आकर आगे बढना हूद स. देश. बारबार ठोकर लगाकर तोड़ना
फोड़ना 4255 । 4241
हून स. दे. 'हुन' 4256 हुन (1) स. भव (सं. हुः प्रा. हुण ; दे. इआले 14139) जलाने के लिए कोई चीज़ आग
हूर स. दे. 'हूल' 4257 में छोडना; आहुति देना..
हूल स. ना. देश. (*हूल; दे. इआले 14147) .
गड़ाना 4258 (2) स. दे. 'हन' 4242
*हेर स. देश ( हेर; प्रा. हेर, दे. इआले., हुमक अ. ना. अनु. भव (सं. हुस्कार; प्रा.
____14156) किसी चीज़ को ढूँढना; जासूसी हुंकार; दे. पृ. 949, पा. स. म.) 'हुम्' ध्वनि उच्चरित करना; उल्लासित होना 4243
- करना. गुज. हेर 4259
. हुमग अ. दे. 'हुमक' 4244
हेर-फेर स. दे. 'हेर' + 'फेर' 4260
हेरिया अ. देश. (दे. पृ. 568, मा. हि. को-5) हुमस अ. देश (अ. व्यु. दे. पृ. 143, हि. दे.
जहाज के अगले पालों की रस्सियाँ तानकर श.) इच्छा आदि उठना; उत्तेजित होना । -4245
बाँधना, हेरिया मारना 4261 हुलक अ. ना. वि. (हलक संज्ञा; फा.) के करना इल स. भव (स. *हिइ ; दे. इआले 14115) 4246
क्रीडा करना; पानी में घुसना; अवहेलना हलका स. देश. (दे. पृ. 203, दे. श. को.) करना. गुज. हळ 'अवैध रूप से स्त्री का उकसाना, घावा करना 4247
पुरुष से हिलना-मिलना' 4262 . . हुलस अ. भव (सं. उत् + लसू ; प्रा. उल्लस् ; होकर अ. अनु. (दे. पृ. 570, मा. हि. को
दे. इआले 2375) उल्लसित होना; उमड़ना. 5) हो हो शब्द करना; हकारना 4263 गुज. उलास 4248
हो अ. भव. (स. भू; प्रा. भव, हो; दे. इआले हुश्कार स.. अनु. (दे. पृ. 562, मा. हि. को- 9416 तथा 1031) कायम रहना; परिस्थिति 5) हुश-हुश शब्द करके कुत्ते को किसीकी आदि में परिवर्तन आना. गुज. हो 4264 .
और काटने के लिए उत्तेजित करना. गुज. होड़ अ. ना. देश (होड़ संज्ञा; होड्ड प्रा. हुसकार 4249
होड्ड, हुड्ड संज्ञा; दे. इआले 14175) हुहा अ. अतु. (दे. पृ. 563, मा. हि. को-5) किसीसे होड लगाना. तुल. गुज. होड संज्ञा
हू हू शब्द होना; स.हह शब्द करना. 4250 4265 हूंक (1) अ. दे. 'हुकार'
होम स. ना. सम. (सं. होम संज्ञा) हवन करना • (2) अ. अनु. पीड़ा के कारण गाय का रंभाना 4251
होर स. दे. 'हेर' 4267 -267 ..
. . हूँस स. अनु. (दे. पृ. 563, मा. हि. को-5) होल्द स. देश (दे. पृ. 204, दे. श. को. )
रह रह कर कुढ़ते हुए किसीको बुरा भला धान के खेत में घातपात दूर करने के लिए कहना 4252
हल चलाना 4268 हूक अ. ना. भव (हिक संज्ञा; सं. हिक्का संज्ञा; हौक (1) अ. दे. 'हुकार'
प्रा. हिक्का; दे. इआले 14075) हूक की (2) अ. देश. पंखे से हवा करके आग पीडा उठना. तुल. गुज. हिका संज्ञा 4253 सुलगाना; दे. 'धौंक' 4269+1
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धातुकोश-टिप्पणी ..
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2 'प्रा. अंकवालिया' चाहिए-ह. भा. 7 मा. हि. को. व्यु. अंखुआ संज्ञा, सं. अक्ष, प्रा. रूप नहीं दिया । 8 मा. हि. को. में केवल संस्कृत 'अङ्ग' का दिशेक है। 9 संभवतः 'अंग' से सम्बद्ध 14 यह धातु मा. हि. को, में नहीं है।
यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है।
मा. हिं. को. व्यु. सं. 'अदि' बांधना, बंधन करना । 40 मा. हि. को. व्यु. सं. 'उल्लंघन' से । 41 मा. हि. को. व्यु. सं. 'अवहेलन' से ।
संभवतः 'आ + ज्वल्' या 'अप + ज्वल' से निपन्न, 'उलू' का प्राकृत में 'जुल', जिससे ऊल होकर अऊल या औल हो सकता हैं ।
घ्यु. असंभाव्य 44 मा. हि. को. ब्यु. सं. आकुल से, ? 45 मा. हि. को. त्यु. सं. 'चकित' से, ? . 49 मा. हि. को. व्यु. सं. 'आकर्षण' से, ? 50 मा. हि. को. व्यु. सं. 'आकर्ष' से ?, सं. आ + कृषू, प्रा. आगासिय दे. इअलें 1002
सं. 'आकुल' से सीधे ही निष्पन्न मानने पर तत्सम । 54 मा. हि. को. व्यु. सं. 'आकोंशन' से ? 55 मा. हि. को. व्यु. सं. 'खर' (तीव्र या कटु) से ? 56 मा. हि. को. व्यु. सं. 'एकत्र' से ? 61 मा. हि. को. व्यु. सं. 'अग्र' से ? 62 मा. हि. को. व्यु. 'आगुंठन' से-असंभाव्य, व्यु. 61 के अनुसार स्वीकार्य । दे. श. को. ने इसे
देशज बताया है, दे. पृ. ।।, अस्वीकार्य । 70 (2) मा. हि. को. व्यु. 'सं. अंग + हि. ओट' से ? 71 ह. भा. के अनुसार यह धातु 'आगल' से व्युत्पन्न नहीं हो सकती।
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१६८
हिन्दी-गुजराती धातुकोश
75 मा. हि. को. में यह धातु नहीं है । 78 मा. हि. को. में यह धातु नहीं है । 'अचय', 'अचव' की व्यु. सं. 'आचमन' से दी है। 83 (1) सं. 'उज्ज्वार' से - ह. भा. । 84 मा. हि. को. व्यु. 'सं. आत, प्रा. अटटा' से? अस्वीकार्य। 'अद्' तत्सम - ह. भा. 85 मा. हि. को. व्यु. सं. 'आटङ्कण' से । 86 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 87 मा. हि. को. में सं. 'अर्ध + कल् किंवा अत्तर + कल' - इस प्रकार व्युत्पत्ति सूचित की है ।
गुजराती रूप 'अठकल' दिया है, सही रूप है 'अटकल' । 89 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 90 मा. हि. को. में 'अटेरन' संज्ञा की व्युत्पत्ति सं. इति-ईरण' से दी गई है । 91 इसके मूल में मा. हि. को. ने 'अठखेली' संज्ञा का निर्देश किया है । 92 मा. हिं. को. में व्यु. 'सं. स्थान, पा. ठान' से, ? 95 मा. हि. को. में व्यु. 'सं. अलं = वारण करना या हि. हठ ?' 98 इसको मा. हि. को. ने 'अनु' बताया है। 102 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 103 मा. हि. को. में व्यु. सं. आ + ज्ञा (बोध करना) -- आज्ञापन, पा. अम्पापन, प्रा. आगवन - इस
प्रकार दी गई है। 108 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 112 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । द्विरुक्त -ह. भा. 116 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 122 मा. हि. को. व्यु. 'अनख संज्ञा सं अन् + अक्ष' से, ? 123 मा. हि. को. व्यु, 'सं. अन् + अवगना, आगे बढना' 129 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अनादर' से ? 130 मा. हिं. को. व्यु. “हि. अन=नहीं + सं. रस' । 131 मा. हि. को. व्यु. सं. नव + हि बासन ? 147 इसका प्रयोग पंजाब - राजस्थान में सूचित करके मा. हि. को. ने व्यु. दी है, 'सं. आ + पत्'
से; और 'अपड़ाना', 149 के लिए 'सं. अपर' का निर्देश किया है ।। 150 हि. श. र. में इसकी व्युत्पत्ति 'आप' से सूचित की गई है, दे. पृ. 272 । 152 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अपसरण' से । 157 मा. हिं. को. व्यु. 'सं. आपृष्ठ' से । 158 मा. हि. को. व्यु. 'सं. आपोथन' से । 171 सं. अद्भुत, प्रा. अब्भुअ से सम्बद्ध-ह. भा. । 172 मो. हि. को. व्यु. 'सं. अभेद' से । 173 हि. दे. श. ने इसे अ. व्यु. बताया है। दे. पृ, 97 मा. हि. को. ने 'सं आ-पूरा, पूरा + मान
-माप' से व्यु. सूचित की है।
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धातुकोश-टिप्पणी
186 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है। 188 मा. हिं. को. व्यु. 'सं. अर्दन' से । 192 'दरर' से विरूक्त - ह. भा. । 195 मा. हि. को. व्यु. सं. अलस' से? 196 मा. हि. को. व्यु. सं. स्पर्शन से ? 202 मा. हि. को. व्यु. सं. अनुगायन' से । 209 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अरूस् = क्षत्, घाव' से । 221 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 222 मा. हि. को. 'सं. अट्' से । 228 (2) मा. हि. को, ज्यु. 'सं. अवलोकन' से ? 229 मा. हि. को. व्यु. 'सं. लीप' से । 230 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अर्' से । 236 मा. हि. को. व्यु ? 'सं. आपर्जन या फा. आवाज ? 237 मा. हि. को. व्यु ? 'हिं. अब + डेरा ?' 238 मा. हि. को. आना का पुराना रूप' 263 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 264 मा. हि. को. में व्यु. सं. अस्ति । 272 मा. हि. को. व्यु. सं. हठ' ? 273 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. अंकन' से । 277 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 281 कुछ विद्वान इसे सं. 'आप' से सम्बद्ध बताते हैं -ह. भा. । 289 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 300 मा. हिं. को. ज्यु. 'सामना के अनु. पर' ।
मा. हि. को. व्यु. 'सं. अस्-होना' । 332 मा. हि. को. व्यु. 'सं. इष्ट' से । 333 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 338 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं हैं । 339 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 341 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उत्कर्ण, पा. उक्कस' । 345 मा. हि. को. व्यु. 'सं. आकुल, पु. हिं. अकुताना' । 355 इसके मूल में अ. उखड़ है । छत्तीसगढी में 'उखान' रूप मिलता है। छ. का. उ. के अनुसार
संस्कृत 'उत्खाटयति' से उत्पन्न । 359 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 371 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है।
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश 373 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उद्घाटन, प्रा. उग्धाटन' पा. स. म. में 'उग्घाटन' रूप नहीं है । 394 मा. हि. को. में 'गु. उचला' रूप ? 398 'उजड़' और 'उजर' की व्यु. एक ही है, मा. हि. को. की व्यु. यादृच्छिक है। 400 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है। 409 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उत् + सरण' । 415 मा. हि. को. ज्यु. सं. उत्य + अंग' । 417 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 419 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 420 मा. हि. को. ज्यु. सं. उद्वासन' से, दे. श. को. ने इसे देशज कहा है, दे. पृ. 331 । 421 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 432 यह धातुरूप मा. हिं. को. में नहीं है। 434 मा. हि. को. ब्यु. 'सं. उत्तरण' से । 435 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. आतुर' से । 437 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उत्थापन' । 438 मा. हि. को. व्यु. सं. उत्थापन' । 441 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उत्सादन' से । 452 मा. हि. को. व्यु. सं. उददारण' से । 456 मा. हि. को. ज्यु. सं. उद्विग्न' से । 457 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उद्धरण' से । 462 मा. को. व्यु. 'सं. उद्धारण । 463 मा. हि. को. व्यु. सं. उद्धरण' । 464 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उद्वसन, हिं. उधरना' । 467 मा. हि. को. व्यु. . 'सं. उदंचन ऊपर उठाना या खींचना' । 471 मा. हि. को. व्यु. 'उनमान=सं. उद्-मान' । 473 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उन्मेष' । 474 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उन्नमन' । 475 मा. हि. को. 'सं. उन्नरण ऊपर जाना' । 477 मा. हि. को. ज्यु. सं. उत्पन्न' से । 488 गुज. 'ऊपड' की व्यु. सं. उत् + पत्, प्रा. उप्पड्, दे. इआले 1810 । 491 मा. हि. को. व्यु. (2) 'सं. उपनयन' । 494 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 496 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उपार्जन'। 501 मा. हि. को. व्यु. सं. उपसरण' । 514 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
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धातुकोश - टिप्पणी
517 ह. भा. की दृष्टि से से टर्नर की व्यु. ठीक नहीं है । प्रा. 'उच्च' के मूल में सं. 'उद् + ज्वलू' है । 521 ह. भा. इस व्यु. से सहमत नहीं हैं । अप उच्चि के मूल में सं. उद् + दिवष होगा । 522 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 525 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. उभरना' से । 528 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । मा. हिं. को. व्यु. हिं. उचीटना' ।
531
मा. हि. को. व्यु. 'सं. उन्मञ्च = ऊपर उठना ' |
अ. व्यु. दे. पृ. 88, हि. दे. श.
542 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उन्मीलन' । 544 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. जृंभण' । 549 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. उघडना' । 552 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. उडुसना' । 554 बृ. हि. को. 'दे. ओगारना' ।
561
568
569
570
534
535
मा. हि. को. में यह धातुरूप नहीं है । मा. हि. को. में व्यु. 'सं. उद् + स्थल' ।
मा. हि. को. व्यु. 'सं. उब्लोटन' ।
571
मा. हि. को. व्यु. 'सं. उद् + लर्व' । मा. हि. को. ज्यु. 'हिं उड़ेलना' । 573 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 574 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उल्लंभन' | 579 मा. हि. को. यु. 'सं. उल्लंघन' । यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 588 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
580
590 'उसन' सं. 'उत् + श्राव्' से, दे. इआले 1859 ।
593 मा. हि. को व्यु. 'सं. उच्छ्वसन' ।
596 मा. हि. को. व्यु 'सं. उत् + शाल्न' |
598 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
599 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है । गुज. 'सीझ' का सम्बन्ध सं. 'सिध्यति' से
601 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
613 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उत् + सज्जा' ।
615 मा. हि. को. व्यु. (1) 'सं. ऊह' (2) 'सं. ऊढ' ।
621 दे. श. को. ने इसे देशज बताया है, दे. पृ. 17 । 622 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
626
मा. हि. को. व्यु. "हिं. उछलना' ।
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१७२
हिन्दी-गुजराती धातुकोश 631 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 632 मा. हि. को. व्यु. 'सं. आवर्तन, प्रा. आवहन'; दे. श. को. ने इसे देशज बताया है, दे. वृ. 171 635 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अंचन-पूजा करना' । 636 मा. हि. को. ने इसे अनु. बताया है । 637 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. ऑग्ना ' । 639 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अवगरण' । 641 मा. हि. को. व्यु. 'सं. अवरुन्धन, प्रा. ओरुज्झन, हि. ओझल' । 642 भो. ख. तु. अ. ने. (1) को देशी बताया है । 645 हि. वि. अ. यो. ने 'उप + विष्ट' का निर्देश करते हुए इसे सोपसर्गज धातु कहा है, दे. पृ. 139 । 650 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उन्नयन' । 652 यह धानुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 655 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. ओर= अंत + आना (प्रत्य); । 661 यह धातु मा. हि. का. में. नहीं है । 663 मा. हि. को. व्यु. 'सं. आवर्षग, प्रा. आवस्सन' । 664 मा. हि. का. यु. 'सं. अवधारण' । 670 मा. हि. को. व्यु. 'सं. आवेजन = व्याकुल होना । 673 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उन्माद' । 676 मा. हि. को. व्यु. सं. अन + घूर्णन' । 679 दे. श. को. ने इसे देशज बताया है, दे. पृ. 18 । 684 यह धातुरूप मा. हि. का. में. नहीं है। 685 मा. हि. का. व्यु. 'सं. अव = बुरा + रस' । 686 मा. हि. को. ने इसे अनु. बताया है । 688 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कांक्षा'। 691 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कम् (चाहना)+ थन् - टाप्' । 698 मा. हि. को. व्यु. 'सं. कच्चरण' । 709 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 710 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 718 मा. हि. का. व्यु. सं. कर्षण। 723 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कर्षण, प्रा. कड्न' । 'कर्ष ' से प्रा. करिस् कास् होगा,
हिं. 'कस' । 742 मा. हि. को. व्यु. सं. क्रम, प्रा. कम्मवण, दे. प्रा. कम्मवइ, गु. कमावू , सिं. कमनु, मरा.
कमविणे' गुज. 'कमावु' चाहिए । 744 मा. हि. को. व्यु. 'सं. कर्षण' । 746 मा. हि. का. व्यु. 'हिं. कालिख' । 747 मा. हि. को. ज्यु. सं. कलरव' ।
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धातुकेश - टिप्पणी
753 'सं. कृ.' से, शंकास्पद दे. इआलें 3060 | 760 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कल्पन' । 765 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है । मा. हि. को. व्यु. 'सं. कड् या कलू = संज्ञाशून्य होना' । 780 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 784 दे. श. को. ने इसे देशज बताया है, दे. पृ. 24 |
768
799 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है ।
800 मा. हि. को. व्यु. 'सं. कीर्णन' ।
801
मा. हि. को. व्यु. 'सं. कर्कट' ।
804
मा. हि. को. व्य. 'सं. कर्त्तन' । 813 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है ।
823 मा. हि. का. व्यु. 'हिं. कुंड, हलकी लकीर' । 827 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कुछ, प्रा. कुड्ढ' । 829 मा. हि. को. व्यु. 'सं. कर्तन: कतरना' । 840 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कलव वा कुरव, हिं. कुर्र" । मा. हि. का. व्यु. 'सं. कर्तन' ।
844
865
867 छत्तीसगछी में 'कुद' रूप 868 879
मा. हि. को. व्यु. 'सं मा. हि. का. व्यु. 'सं. 885 मा. हि. को. व्यु. 'सं. क्रुद्ध' |
903 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
मा. हि. को. ज्यु. 'सं. आकृत : आशय' ।
मिलता है। दे. पृ. 275, छ. का. 3. 1
कु+हन' |
कुंड्' ।
904 मा. हि. वा. व्यु. 'सं. क्षरण' । 905 मा. हिं. को. व्यु. 'हिं खदेड़ना' । 906 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 910 मा. हि. को. व्यु. 'हि. खदेरना' । 911
यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । मा. हि. को. ने इसे अनु. बताया है ।
912
921
मा. हि. को. व्यु. 'हिं. खाता' से, सा. जो. को. ने 'खातुं' फा. खत' से व्यु. बताई है । परन्तु यह शब्द अरबी है, दे. पृ. 180, हि. प. फा. अं. प्र. ।
930 छत्तीसगढ़ी में 'खाना' रूप 'रचना' के अर्थ में प्रयुक्त; दे. पृ. 278, छ. का. 3 ।
932 मा. हि. को. व्यु. 'हि भरना' ।
935 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है ।
964 मा. हि. को. व्यु. 'सं. स्कंदन' ।
१७३
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
965 मा. हि. को. व्यु. 'सं. खादन' । 966 मा. हि. का. व्यु. 'सं. क्षेपन, प्रा. खेपन' । 967 व्यु. शंकास्पद - ह. भा. । 968 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कासन, प्रा. खांसन' । 972 मा. हि. का. व्यु. 'सं. क्षिप्त' । 976 मा.हि. का. ज्यु. 'सं. क्षीण, प्रा. खिज्ज' धातुकोश में दी गई व्यु. शंकास्पद-ह. भा.। 979 मा. हि. का. व्यु 'सं. कीर्णन' । 983 टर्नर ने 'खस' रूप नहीं दिया । 991 मा. हि. का. व्यु. 'सं. कृष, प्रा. खंच' । 994 मा. हि. का. व्यु. 'सं खिद्यते, प्रा. खिज्जइ' । 999 मा. हि. का. व्यु. 'सं. खुड्या खोट' । 1004 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 1006 मा. हि. का. 'सं. क्षुब्ध' ।। 1008 मा. हि. का. व्यु 'सं. क्षुरण' । 1009 यह धातु मा. हि. के. में नहीं है। 1011 यह धातुरूप मा.हि. का. में नहीं है। 1012 मा. हि. के. व्य. 'सं. क्षुर, प्रा. खुल्ल,' सा. जा. का. ने इसे वि. बताया है:खला अर. विशे. : 1013 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है । 1021 यह धातु मा.हि. के. मं नहीं है। 1028 यह धातु मा.हि. के. में नहीं है। 1031 मा. हि. को. व्यु. 'सं. कोश + हि. ना प्रत्य.' । 1032 मा. हि. का. व्यु. सं. क्षेपन' । 1042 मा. हिं. वा. व्यु. 'सं. श्वेल' । 1047 मा. हि. का. व्यु. 'सं. ग्रंथन' । 1051 मा. हि. का. व्यु. 'सं. गच्छ' । 1061 यह धातु हिन्दी में पंजाबी से आई होगी -ह. भा.। 1063 मा. हि. कां. व्यु. 'सं. घट्, प्रा. घड्, दे. पृ. 66-2, अस्वीकार्य - ह. भा., टर्नर ने गुज.
'घड' रूप नहीं दिया। 1072 मा. हि. का. व्यु. 'से. गह्वर'।। 1093 छत्तीसगढी में 'गर' रूप मिकता है दे. पृ. 275, छ. भा. उ.।। 1098 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 1104 मा. हि. को. व्यु. 'सं. गद्गद' । 1113 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 1114 मा. हि. का. व्यु. सं. गाहन'।
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धातुश-टिप्पणी
१७५
1121 सा. जो. का. व्यु. 'सं. गर्त, प्रा. गड्ड, हि. गाडना' । 1124 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1129 मा. हि. को. व्यु. 'सं. गाह'। 1138 मा. हि. का. व्यु. 'सं. गूजन'। 1150 मा. हि. को. व्यु. (1) 'सं. गुह', (2) 'सं. गुण' । 1159 मा. हि. का. ज्यु. 'सं. गुम्फित' । 1162 मा. हि. का. व्यु. 'सं. अवरुधन'। 1164 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 1165 मा. हि. का. व्यु. 'सं. गुरु बड़ा+हेरना ताकना' ।' 1170 मा. हि. का. (1) व्यु. 'सं गिल = निगलना' । 1171 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है। 1180 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1184 मा. हि. का. व्यु. 'सं कुंठन' । 1196 मा. हि. का. व्यु. 'हिं. खोदना = गड़ाना' । 1193 मा. हि. का. व्यु. 'सं. गो+ हार (हरण) । 1204 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1212 हि. दे. श. पृ. 89 पर लेखक द्वारा दिया गया टर्नर का संदर्भ सही नहीं है। 1213 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है । 1215 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है।
. . . . . 1216 हि. दे. श. में दिया हुआ प्रा. रूप ? ? दे. पृ. 308, पा. स. मः = घुमघुमिय विशे. 1230 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है । 1231 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है। 1232 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है । 1234 मा. हि. का. व्यु. 'सं. घर्षण, प्रा. घसण' । 1261 दे. श. का. ने इसे देश बताया है, दे. पृ. 53 । 1272 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 1274 मा. हि. को व्यु. 'सं. चन्द्रमा' । 1279 मा. हि. को. व्यु. 'सं. चक्षु ओर अंध' । 1280 मा. हि. को. व्यु. 'हि. चक + चौहना' । 1294 छत्तीसगढ़ी में 'चघ' रूप मिलता है। दे. पृ. 275, छ. का. उ.। 1300 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है 1320 मा. हि. को. व्यु. 'सं. चर्चन'। 1326 मा. हि. को. व्यु. 'सं. च्यवन'।
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हिन्दी-सुनापती भाडा
1327 मा.हि. को.. व्यु. 'सं. चषण' ।
1337 मा. हि. को. व्यु. 'हिं चौ = चार + अक-चिड्न' । ___1366 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
1381 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1388 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1389 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. चीत्कार' । 1390 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. चमत्कृ, प्रा. चर्वाकि' । 1391 मा. हि. को. व्यु. 'सं. चिपिट, हिं. चिमटना' । 1392 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 1393 मा. हि. को. व्यु. 'सं. चीत्कार'। 1394 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1407 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. चूषण' । 1409 मा. हि. को. व्यु. 'सं. शुष्क' । . 1436 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1469 मा. हि. को. व्यु. 'हि. चौर + आना (प्रत्य) । 1482 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. छत्रक' । 1488 मा. हि. को. व. सं. चिमिट' । 1503 मा. हि. को. ब्यु. 'सं. क्षरण' । 1504 मा. हि. को. व्यु. 'सं. छिन्न' । 1519 मा.हि. को. व्यु. 'सं. इन्छ । 1520 यह भातु मा. हि. को. में नहीं है। 1522 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 1533 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. क्षीण' । 1535 यह धातुरूप मा. हिं. को. में नहीं है। 1538 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है। 1539 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है। 1547 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।। 1558 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. छोह = प्रेम +ना (प्रत्य) । 1562. इसका सक. रूप नहीं मिलता। 1572 पा. स. म. ने प्रा. रूप 'जगजग' दिया है, दे. पृ. 344, हि. दे. श. ने इसे देश. बताया है,
दे. पृ. 192 । 1598 मा. हि. को. व्यु. सं. जहन, हि, जहडना' । 1602 मा. हि...को. व्यु. 'हिं. चांपना का अनु.' । 1607 मा. हिं. को. व्यु. 'सं. ज्ञपन' ।
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काश-टिप्पणी
पृ. 69 ।
1611 छत्तीसगढ़ी में 'जिउ' रूप मिलता है । दे. पृ. 275, छ. का. उ. । 1624 मा. हि. को. व्यु. 'सं. उद्विलन = उगलना' । 1632 इसको दे. श. को. ने देश बताया है, 1643 मा. हि. को. व्यु. 'सं. ज्योति' । 1645 मा. हि. का. व्यु. 'सं. जुषण = सेवन' 1654 मा. हि. का. व्यु. 'सं. झर्झन' । 1664 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं
I
1674 सकर्मक रूप 'झाड़ना', छत्तीसगढ़ी में 'झारना' । दे. पृ. 277, छ. का. उ. ।
1689 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 1718 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1720 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1721 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1723 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1743 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1751 यह धातुरूप मा. हि का. में नहीं है ।
1753 टर्नर ने गुज. रूप 'जुठ्' दिया है । 1762 टर्टन ने गुज. रूप 'झबु' या सं. ज्वलू ' ? ?
1766 यह धातुरूष मा. हि. को. में नहीं है ।
1773 हि. दे. श. ने इसे अ. व्यु. बताया है, दे. पृ. 121 ।
1784 मा. हि. को. व्यु. 'सं. ज्वलन' ।
1826 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. टांकना ' | 1834 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं 1 1861 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 1866 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है । 1867 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 1884 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 1906 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 1970 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 1971 यह धातु मा. हि. को.
नहीं है ।
1980
1990
1996
दिया है, चाहिए 'झूखु', मा. हि. का. म्यु. सं. क्षर, प्रा. सूरह
मा. हि. को. व्यु. 'हिं. दो + पट' । मा. हि. को. व्यु. 'हिं. डावाँडोल' ।
मा. हि. को. व्यु. 'सं. स्थग, प्रा. ढक, ढकण |
FAC
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१५८
हिन्दी-गुजराता. भानुको 1997 मा. हि. को. व्यु. “हिं. धक्का' । . 2009 मा. हि. को. व्यु. 'सं. ध्वंसन' । 2016 मा. हि. को. व्यु. 'सं. ध्वंसन' । 2036 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. तपना' । 2037 मा. हि. को. व्यु. 'सं. तक्षण' । 2057 मा. हि. को. व्यु. 'सं. ताम्र, हिं. ताँबा' । 2077 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । 2086 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 2089 मा. हि. को. व्यु. 'सं. तक्षण' । 2096 डॉ. डबासने हि. दे. श. में इस धातु को अ. व्यु. बताया है, दे. पृ. 127; लगता है इन्होंने
टर्नर शब्दसंख्या 5908 को देखा नहीं है। 2107 मा. हि. को. व्यु. 'हि. तडकना' । 2108 मा. हि. को. व्यु. 'अनु' । 2110 मा. हि. को. ज्यु. हि. तिल + औछना (प्रत्य) । 2114 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. चूना, चुकना' ।
2119 मा. हि. को. व्यु. 'सं. त्रुट' = टूटना का अनु. अथवा हिं. तोट' । --2121 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. स्तुभ, स्तोभन' ।
2123 मा. हि. को. त्यु. 'सं. तुर' । 2128 मा. हि. को. यु. 'सं. तोषण' 2130 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2133 मा. हि. को. व्यु. 'सं. तूलन या तुलना' । 2135 मा. हि. को. ज्यु. हिं. तृपित सं. तृप्त' । 2140 मा. हि. को. व्यु. 'सं. तपन' । 2163 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 2172 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2178 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2195 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2210 मा. हि. को. व्यु. 'सं. दग्ध' । 2211 मा. हि. को. व्यु. 'सं. दत्तचित्त' । 2220 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. दबाना' । 2221 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. चमकना का अनु.' । . 2224 भा. हि. को. व्यु. 'सं. दमन' ।
... 2248 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है।.. .
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१७९
2276
धातुकोश-टिप्पणी
-2250 मा. हि. को. व्यु. 'सं. दर = डर + हिं. हलना = हिलना' । 2252 मा. हि. को. व्यु. 'सं. दमन' । 2266 मा. हि. को. व्यु. 'सं. दीपन' ।
मा. हि. को. व्यु. 'हिं. झाड़ना' ।
मा. हि. का. व्यु. 'हिं. दो + लक्षण । 2292 मा. हि. का. ध्यु. 'सं. दुबल; प्रा. दुल्लाउन' पा. स. म. में 'दुल्लाउन' रूप नहीं है । 2297 मा. हि. का. व्यु. सं. दूषण + ना (प्रत्य) । 2298 मा. हि. को. व्यु. 'सं. दुःख'। 2300 मा. हि. को. व्यु. सं. द्रुम । 2325 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2336 टर्नर ने इआले में गुज. रूप नहीं दिया । 2337 मा. हि. को. व्य. 'संधन' । 2346 मा. हि. को. व्य. 'सं. घर्षण' । 2352 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। ..... 2359 दे. श. को. ने इसे देश. कहा है, दे. पृ. 1151 2362 मा. हि. को. ने धिंगा को संज्ञा बताया है, है विशेषण । 2364 टर्नर ने इआलें में 'धीख' रूप नहीं दिया है। 2367 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2369 मा. हि को. ज्यु. (1) 'सं. धर्षण', 'सं. धीरज, धीर' । 2370 मा. हि. का. व्यु, 'सं. धृ, धार्य, धैर्य' । 2382 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है। 2391 मा. हि. को. ब्यु. 'सं. धूर्वण । 2393 मा. हि. को. व्यु. धूर + एटना (प्रत्य) . 2407 मा. हि. का. व्यु. 'सं. दंशन, हिं. धौंस' । 2423 मा. हि. को. व्यु. 'सं. लंघन'। 2449 मा. हि. का. व्यु. 'सं. नक्ष' । 2457 दे. श. को. ने इसे देश. बताया है, दे. पृ. 119 । 2465 हि. दे. श. ने इसे अ. व्यु. बताया है, जो गलत है। 2467 मा. हि. को. व्यु. 'सं. नामन' ।। 2467 मा. हि. का. ने इसे स. माना है। 2482 यह धातुरूप मा. हिं. का. में नहीं है । 2497 दे. श. को. ने इसे देश. बताया है, दे. पृ. 120 । 2507 मा. हि. को. व्यु. 'सं. निष्पन्न ।
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१८०
हिन्दी-गुजराती धातुकोश 2509 मा. हि. का. व्यु. 'सं. निवर्तन, प्रा. निवट्टना. पु. हिं. निबटना, टर्नर ने प्रा. रूप 'णिवट्टण'
दिया है, दे. इआलें 7412। 2527 मा. हि. को. व्यु. 'सं. नर्तन' । 2553 मो. हि. का. व्यु. 'सं. निघोषण' । 2561 दे. श. को. ने इसे देश. बताया है, दे. पृ. 121 । 2563 मा. हि. का. व्यु. 'हिं. निहोरा संज्ञा, सं. मनोहार, हिं. मनुहार' । 2579 छत्तीसगढी में 'नवत' रूप मिलता है। दे पृ. 276,छ. का. उ। 2580 मा. हि. को. व्यु. 'सं. निवारण' । 2582 मा. हि. को. व्यु. 'स' नाशन' । 2591 यह धातु मा. हि. का. में नहीं हैं । 2605 मा. हि. को. ब्यु. 'हिं. पग + गारना' । 2613 मा. हि. को.. ज्यु. 'सं. पच् + अच्, दिबत्व' । . 2614 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. प्रचारण' । 2618 मा. हि. का. ज्यु. 'हिं. पाछे + आना'। 2622 मा. हि. को. ज्यु. 'हिं. पीछे + एलना (प्रत्य) । 2623 मा. हि. को. ज्यु. सं. परितोलन' । 2640 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. प्रतीत + ता (प्रत्य)। 2647 मा. हि. का. व्यु. 'हिं. पर्ग + धारना' । 2648 मा. हि. का. म्यु. सं. पर्ण+पर्ण या पर्णय से; 'पर्ण' से प्रा. पण्ण होगा, हिन्दी पान दे.
इआलें 79181 2649 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. पानाशन' । 2660 मा. हि. को. ब्यु. 'सं. प्र + मुक्त' । 2665 टर्नर ने इसका अर्थ दिया है 'टु आग्टेन, टु सिक्योर', दे. इआले 8736, यह अर्थ मा. हि.
को. में नहीं है। 2668 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. प्रकाशन' । 2675 मा. हि. का. 'सं. परावर्तन' । 2680 मा. हि. का. व्यु. 'सं. प्रमाण' । 2685 मा. हि. का. व्यु. 'सं. पलायन' । 2692 मा. हि. को. व्यु. सं. प्रतिवेष्ठन' । 2700 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है। 2704 मा. हि. को. व्यु. 'सं. प्रलोटन'। 2707 टर्नर ने गुज. रूप नहीं दिया है। 2713 मा. हि. का. व्यु. 'सं. प्रलोठन' । 2720 मा. हि. का. व्यु. सं. प्रसवण' ।
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१८१
भासुकोश-टिप्पणी
2733 यह धातुरूप मा.हि. का. में नहीं है। . 2738 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. पीत्रल' । 2741 मा. हि. का. व्यु. 'सं. पाक' । 2748 मा. हि. का. व्यु. 'सं. परोक्ष' । 2753 यह धातुरूप मा. हि. का. या बृ. हि. को. में नहीं है। यहाँ टर्नर से लिया है। 2769 मा. हि. का. व्यु. 'सं. प्रोत, प्रा. पोइअ, पोअ +ना (प्रत्य) सा. जो. को. ज्यु. 'सं. प्र+वे,
प्रा. पौअ'। 2780 मा. हि. का. में यह धातुरूप नहीं है। 2788 मा. हि. को. ब्यु. 'हि. पुट + देना। 2807 पा. स. म. में प्रा. रूप नहीं है। 2813 यह धातुप मा. हि. को. में नहीं है। 2821 टर्नर द्वारा दिया गया गुज. रूप 'पुंछ सा. जो. को. में नहीं है। 2826 यह धातुरूप मा. हि.का. में नहीं है। 2827 छत्तीसगढी में 'पोखना' रूप मिलता है। दे. पृ. 278, छ का. उ. 2871 मा. हि. को. ब्यु. 'सं. स्फुरण' । 2878 मा. हि. को ब्यु. 'हिं. फांदना'। 2882 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 2884 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. स्पृश्य, प्रा. फरस्स' । 2889 मा. हि. का. व्यु. 'सं. फलन'। 2901 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 2907 यह पातुरूप मा. हि. के.. में नहीं है। 2907 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 2924 मा. हि. का. व्यु. 'सं. स्फुरण' । 2927 दे. श. को. ने इसे देश. बताया है, दे. पृ. 138 । 2928 मा. हि. को. न्यु. 'सं. फुत्कार' 2935 मा. हि. को. व्यु. 'सं. पिष्ट, प्रा. पिंट्ट + ना (प्रत्य) । 2942 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है। 2952 मा. हि. का. न्यु. 'सं. विकुचन' । 2961 मा. हि. को. व्यु, 'सं. वलगन'। 2962 मा. हि. का. व्यु. 'सं. विकृत, हि. बिगड़ना। 2964 मा. हि. का. व्यु. 'सं. विकिरण' ।। 2976 यह भातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2992 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 2998 दे. श. को. ने इसे देश. बताया है. दे. पृ. 1421
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हिन्दी-गुजराती धातुकशि 2999 मा. हि. को. ने इसे अनु. बताया है। 3009 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 3024 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 3026 मा. हि. का. व्यु. 'सं. व्यावर्तन, प्रा. व्यावट्टन'; पा. स. म. में प्रा. रूप नहीं है। 3031 हि; दे श. ने इसे अ. व्यु. बताया है, टर्नर की व्युत्पत्ति लेखक ने शायद देखी नहीं है। 3042 मा. हि, का. व्यु. 'सं. वण' से. अस्वीकार्य । 3058 मा. हि. को. व्यु. 'बापू फा. बाम', हि. बापू + कारना' 3073 यह धातुरूप मा. हिं. को. में नहीं है । . .... . 3092 मा. हि. को. व्यु. 'सं. विलोडन'। 3093 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3095 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. विट् = जोर से चिल्लाना'। 3118 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3119 मा. हि. को. व्यु. 'सं. विपक्ष' । 3134 टर्नर की धारणा से ह. भा. सहमत नहीं हैं, 'विरह' से 'बिरस' नहीं हो सकता। 3138 मा. हि. को. व्यु. 'से. विराधन' । 3156 टर्नर ने गुज. 'विलंब' रूप नहीं दिया । 3163 टर्नर ने गुज. 'वलाव' रूप नहीं दिया । 3166 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3170 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3181 मा. हि. को. व्यु, सं. विघटन, प्रा. विहंडन, दे. पृ. 143 मा. हि. को. 4, अस्वीकार्य । 3194 अर्थ दुराकृष्ट - ह. भा. 3205 टर्नर ने हिन्दी रूप नहीं दिया । 3212 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3213 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3221 मा. हि. को. व्यु. 'सं. वर्षण' । 3227 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है। 3228 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं हैं, 'बेवता' है। 3237 मा. हि. का. व्यु. 'सं. वलन' । 3242 मा. हिं. को. व्यु. 'सं. व्यवसन' ।। 3247 छत्तीसगढ़ी में 'बइठ' रूप मिलता है । दे. पृ. 276 छ. का. उ. । 3259 मा. हि. को. व्यु. 'सं. वायु' । 3262 मा. हि. को. व्यु. 'सं. मुकुल, प्रा. मुउड़' 3265 मा. हि. को. व्यु. 'सं. वम् ।। 3271 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3272 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
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धातुकोश-टिप्पणी
। १८३
3273 मा. हि. को. व्यु. 'सं. विवरण' । 3286 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3294 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3299 मा. हि. को. व्यु. 'सं. विवरण, हिं. बिगड़ना' । 3310 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3315 टर्नर ने गुज. रूप 'भभक' नहीं दिया है । 3334 इसकी व्यु. 'भस' के समान बताई जा सकती है। यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3358 मा. हि. को. व्यु. 'हिं. खींचना' । 3394 यह धातु या विशे. मा. हि. को. में नहीं है। 3398 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3403 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3405 टर्नर ने गुज. रूप 'मंडळ' नहीं दिया । 3460 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3468 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3473 मा. हि. को. व्यु. सं. मक्ष । 3474 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3484 मा. हि. को. व्यु. 'सं. मिश्रण, हिं. मीसना' । 3493 मा. हि. को. व्यु. सं. मान' । 3499 मा. हि. को. व्यु. 'सं. हिमायन, हिं मेंह' । 3508 मा. हि. को. व्यु. सं. मा = नहीं + करना' । 3512 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3532 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3543 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3544 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3545 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3569 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3578 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3584 टर्नर ने गुज. रूप 'रच' नहीं दिया । 3587 टनर ने गुज. रूप 'रट' नहीं दिया । 3597 टर्नर ने हिन्दी रूप 'रम' नहीं दिया । 3600 दे. श. को. ने इसे देश, बताया है, दे. पृ. 1731 3601 टर्नर ने गुज. रूप 'रटु' दिया है।
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१८४
3602
मा. हि. को. व्यु. 'सं. ललन' ।
3606 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
में नहीं है ।
3612 मा. हि. को. यु. सं. रुदन' | 3641 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. लुलन' । 3648 मा. हि. को. व्यु. 'सं. रावण' । 3658 यह धातुरूप मा. हि. को. 3659 यह धातुरूप मा. हि. को 3660 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है । 3661 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है। 3669 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3671 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. मर्दन' ।
में नहीं है ।
3690 छत्तीसगढ़ी में 'करना' रूप मिलता है। दे. पृ. 3691 हि. देश तथा देश को ने इसे अ. ज्यु 3693 हि. वि. बी. ने इसे पश्तो बताया है, दे. पृ. 3711 मा. हि. को. ने इसे देश बताया है, दे. पृ. 3720 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है । 3740 मा. हि. को. व्यु 'हिं लगना' । 3742 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 3770 टर्नर ने गुज, रूप. 'लोभा' नहीं दिया। । 3771 मा. हि. को. व्यु. 'सं. ललनी = झूलना' । 3784 टर्नर इसके मूल में आर्येतर भाषा का निर्देश करते हैं । 3795 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है ।
278, छ. का. उ. तथा देश बताया है।
231
563-4 ।
|
हिन्दी - गुजराती धातुकोश
3807 मा. हि. को. ज्यु. 'सं. विदूषण' ।
3815 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है।
3818 टर्नर ने हिन्दी रूप 'वार' नहीं 'बार' दिया है, इस दृष्टि से इसे तत्सम भी कहा जा सकता मा. हि. को. यु. सं. व्यथा ।
3830
3845 टर्नर ने हिन्दी रूप नहीं दिया, गुज 'विप्रास' दिया है
3870 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है । 3907 यह धातुरूप मा. हि. की. में नहीं है। 3908 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 3909 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है।
3921
यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है ।
3953
डबास ने हि. दे. श. में इसे अ. व्यु. बताया है, जो सही नहीं है ।
1
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धातुकेश टिप्पणी
नहीं है, जो टर्नर ने दिया है। में नहीं है ।
4000 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 4041 यह धातुरूप मा. हि. को. में नहीं है । 4048 सा. जे. को. में 'सीख' रूप 4049 यह भानुरूप मा. हि. को 4058 यह धातुरूप मा. हि. के. 4067 सा. जे. का. में 'सप' रूप 4068 यह भानुरूप मो. हि. के. 4069 यह धातुरूप मा. हि. के. में नहीं है ।
में नहीं है ।
नहीं है, जो टर्नर ने दिया है । में नहीं है।
4078 दयास ने हि. देश में (पृ. 143) इसे अ. व्यु बताया है, जो गलत है ।
4185 1
4079 मा. हि. का. व्यु 'अनु. उलझना का अनु... यह धातु मा. हि. का. में नहीं है।
4080
4090 मा. हि. के. ने 'फा. साजिश' का निर्देश किया है, पृ. 433-5 | 4092 यह धातु मा. हि. को. में नहीं है । यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है।
4101
4104 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है।
4112 सा. जो. का. ने गुज. 'सोच' रूप नहीं दिया है, जो टर्नर ने दिया मा. हि. को. व्यु. 'हिं. सजना ।'
4113
सा. जो. का. में गुज. 'सोध' रूप नहीं है, जो टर्नर ने दिया है । सा. जो. का. में गुज. रूप 'सी' नहीं है, जो टर्नर ने दिया है । 4185 यह धातु मा. हि. का. में नहीं है ।
4115 4117
4186 यह धातुरूप मा. हि. को में नहीं है ।
4202 यह धातु मा. हि. को में नहीं है, टर्नर ने दी है ।
+
4207 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है । 4208 यह धातुरूप मा. हि. का. में नहीं है। 4209 यह भानुरूप मा. हि. का. में नहीं है ।
4214 मा. हि. के. ब्यु. 'सं. हिरुक= समीप' ।
4264 गुज. 'छे' के लिए सं. शि; प्रा. अच्छ दे. इआले 1031 |
1
१८५
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खण्ड-३
वर्गीकरण तथा विश्लेषण
अ. धातुओं का ऐतिहासिक वर्गीकरण
1. तद्भव धातुएँ 2. देशज धातुएँ 3. अनुकरणात्मक धातुएँ 4. तत्सम धातुएँ 5. अर्धतत्सम धातुएँ
6. विदेशी धातुएँ आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
1. वर्गीकरण की शास्त्रीयता का प्रश्न 2. परिवर्तन, वृद्धि तथा क्षति 3. निष्कर्ष 4. फलश्रुति
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१. तद्भव धातुएँ
के
सामने गुजराती धातु दी गई है । (-) गुजराती पर्याय में अर्थ या अर्थच्छाया उसे चिह्नित (+) किया गया है ।)
(हिन्दी धातु जिस धातु के की भिन्नता है अँकवार, अंकुर - अंकुर, अँखुआ, अँगुरिया, अँगोछ, अँडुआ, अउलग, अउहेर, अएर, अकन, अकाज, अकुला-अकळा, अखार, अगर, अघा, अचा-आचम, अछवा, अजोर, अट-अट, अठा, अथा-आथम, अधिया - अधुसार, अधीज, अनक, अनुसरअनुसर, अनुहर, अन्हा - नहा, अपडर, अपना-अपनाव, अपूर, अप्प-आप, अफर- आफर, अमा, अमात- आमंत्र, अरड़ - आरड तथा अराड, अरस-परस, अरुना, अरोह-आरोह, अलगा, अवट, आसीस, अहार-आहार
अंतरा - आंतर, अंधेर, अँसुआ, अगव, अगिया, अगुआ, अगोर,
आँक- आंक, आँच, आंज-आंज, आ-आव, आस-आख, आछ, आथ, आदर - आदर+, आन-आण, आरंभ, आलोड़, आवट, आवाह-आवाह, आहला - आहलाद
इतरा ईख
उँगला, उंच, उकट, उकढ, उकस-उकांस, उकेल - उकेल, उखाड उखाड, उग-ऊग, उगल-ऊगर+, उगाहउघराव, उघाड़ - उघाड, उच, ऊचक - ऊचक तथा ऊंचक, उचट-उचेड +, उचर-ऊचर +, उचल-ऊचल +, उचारउचार, उछल-उछळ, उछीन, उजल- उजाळ, उट-ऊट, रड - ऊड, उडेल, उदार, उत्तर- ऊतर, उथरा, उदवास, उदस, उधड़ - उधेड +, उनव, उपज - ऊपज, उपट-ऊपट, उपरा, उपाट-उपाद, उपार-उपाड, उफाल, उच्छ, उचट -ऊटवा, उबस, उबह, उबार - उगार, उबिठ, उबीध, उभ, उभर-उभळ, उभास, उमगउमग +, उमेट, उरम - ऊरझ+, उरेह, उतर - ऊलळ, उलस -ऊलस +, उलाँघ उलंघ, उलाह, उसक, उसार, उसिन, उसीज, उसीझ - सीझव
ऊछ, ऊअ, ऊक, ऊब ऊब तथा ऊबा +, ऊम, ऊमह
ऐं - ऐंच, ऐंठ
ओइड, ओंक, ओट ओट+, ओदर, ओघ, ओलम, आसन, ओहर - ओसर
औंध, औट-अवटा, औस
कंटिया, कजरिया, कठिया, कडुआ, कतर- कातर, कनखिया, कमाकमा, कर-कर, करखा, कलिया, कलाल-कल्लेाल, कस-कस, कसक - कसक, कसा, कह-कहे, काँख-करांख, काँड़, काँद, काँध, कॉप-कांप, काछ, काट-काट तथा काप, काढ़- काढ तथा काड, काँत-कांत, किलकिला, किलस-कणस, कीन, कील- खील+, कुंदेर, कुकड़ कूड+, कुटना, कुद, कुरै, कुहा, कुट, कूट, केरा, केवट, कोंप, कोड़, कोस-कोस, कोहा, कौआ, खँगाल, खंगाळ तथा खोळ, खंडर, खँदा, खट, खाट +, खटा, खनिया, खप खप खमा-खम +, खय, खर खर +, खल- खळ+, खाँग, खाँड -खांड, खाँभ, खाँस-खाँस, खा-खा, खाम, खिप, खिया-खवा, खिव, खिसिया, खीज - खीज, खील, खुजला - खजवाळ, खुभ, खुरप, खूंद-बूंद तथा गूंद, खे, खेप, खेर, खेव, खो-खो, खोस - खास
गंधा- गंधा +, गँवा - गमाव तथा गुमाव, गट, गप, गम-गम, गरुआ, गल-गळ, गलिया, गह-ग्रह, गहरा, गाँठ-गांठ, गॉथ, गा-गा, गार, गाह, गिन-गण, गिल-गळ, गीध, गुज्झ, गुन-गुण, गुलिया, गृह, गूंज-गुंज, गूंध, गूँथ, गूंथ, गोबरा, गोलिया, गोव
घड-घड, घतिया, घामा-घाम, घरघरा, घा, घाल घाल +, घिना-, घिस - घस, घुन, धुर-धार
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तद्भव धातुएँ
१८९
चबा-चाव, चर-चर, चल-चाल, चाँछ-ताछ, चाँड़, चाक, चाल-चाळ, चिकना, चिकार, चिटक, चितार, चिन- चण, चीख - चाख, चीत-चीत तथा चीतर, चीन्ह-चीन, चीर, चुन-चुण तथा चण, चूँट-चूंट, चू-चू, चूम-चूम तथा चुंब, चूस चूस, चोर-चोर, चौरसा
छत, छतरा, छर, छल-छळ, छाछ, छाज - छाज, छाड़-छांड, छार, छींक, छर, छीज, छीत, छीन छीन तथा छीनव, छू-छू, छूट-छूट, छेक-छेक तथा छेक, छेत, छेद-छेद, छेव, छोभ, छोर
जैता, जंप - जंप +, जकड़ - जकड, जड-जड +, जटक, जड़ा, जता, जन-जण, जम्हा, जय, जर, जल-जळ, जा-ज तथा जा, जाग- जाग, जाच जाच, जान-जाण, जाम-जाम, जार, जी-जीव, जीत-जीत, जीम-जम, जीर जेरच +, जुआठ, जुतिया, जूझ- झूझ, जोगौ, जात-जोतर, जोव-जो
झंकार - झणकार, झनझना-झणझण, झर-झर +, झूम-झूम तथा झझूम +
टल-टळ, टाँक-टांक, टूट- तूट
ठर-ठर+
हँस-डस, डर-डर, डह - दह, डास, डिढ़ा, डीठ, डुल, डेवढ़, डोरिया-दोर, डोल-डोल, डोलिया दूंक दूंक +, ढे
तँबिया, तच्छ-ताछ, ताता, तातार, तमक, तर-तर, तरछा, तरिया, तळ-तळ, तव-तव, ताँस, ता- ताव, ताक, ताड़ - ताड+, तान-ताण+, तिनक, तिलौंछ, तिसा-तरस, तुल-तूठ तथा टुट, तुरप-टूप, तू-तरवा+, तूठ-तूठ तथा द्रुठ, तुरप-टूप, तू-तरवा+, तूट तूट तथा ट्रुट, तूम, तूस, तेहरा, तैर-तर, तोप, तोल-ताळ तथा तोल, तस
थप - थाप, थान, थाम - थाम; थिर, धुड
दज्झ-दाझ; दढ़-दाघ, दमदमा - धमधमा; दरक, दरार, दल-दळ; दह दह, दाँ- दाम +, दाँड - दंड, दाँत, दाशदाझ; दाध-दाध, दाप, दाव - दाम +, दिढ़ा-दड +, दिस-दीस, दरठ, दीप-दीप, दुख-दुख, दुनव-बेवड, दुबला, दुराना, दुल - डूल +, दुलार, दुह- दुह तथा दोह; दूभ-दूभ तथा दूभव दे दे; देख-देख दास, दौड-दोड धंधला, धँस-घस +, धना, धमक-धमक घर-घर, धाप - धरा; धार-धार+, धाव-धा; धीक -धोक, धीख, धिक्कार - धिक्कार, धुँधला- घूँघळा धुआँ धुन-धुण+, धुरिया, धतु-धूत; धो-धो; धक-धाम
नंगिया, नंस - नास +, नह, नहा-नहा; नाँघ - लांघ +, नाँद-नंद; नाख- नाख तथा नाँख; नाच-नाच नाट, नाठ, नाथ-नाथ; नाह; नाप - माप; नार-नाण; नास-नास; निअरा, निकल-नीकळ; निकस - नीकस; निकिया, निखर - निखर; निगल-गळ, निझा, निझोट, निथर-नीतर, निदर, निदह दह निनौ, निपज-नीपज, निपट, निपीड - पीड; निफर, निबट, निबड - नीवड तथा नीमड; निवर, नित्रह - निभ तथा नम; निबुक, निम्ना; निरख-नीरख; निवार-निवार; निसंस, निसर-नीसर; निहार- निहाळ : निहुँक, नींद-नींद, नीर-नीर +, नुच, नुन-लग; नौ-नमः न्योत
पँवार, पँसिया, पक-पाक +, पखाल-पखाळ; पच-पच; पछता-पस्ता; पजल-परजळ; पटक-पटक पठा-पठाव तथा पाठव; पड-ड; पढ़-पढ; पत्या पतीज; पथर, पथरा, पनिया, पनिहा, पपड़िया, पमूँक, परख-परख तथा पारख; परण-परण; परत-परत; परस-परस; परा, परिहर - परहर; परास-पीरस तथा परस +, पल-पलाण; पलह, पले, पसर-पसर, पसीज, पहचान - पिछाण ; पहन-पहेर; पहिर - पहेर; पहुँच - पांच पा पा +, पाछ, पाट, पाद पाद; पार, पाल-पाळ; पास, पिगल-पीगळ; पिचक, पियरा, पिरा-पराव; पींज-पींज; पी-पी; पीट-पीट; पीड - पीड; पीस - पीस; पूँछ - पूछ तथा प्रीछ+, पूरा-पूरा; पूर- पूर; पेख- पेख; पेड़-पील; पेन्हा, पेल, पैठ, पैना, पैर, पैस-पेस, पोंक, पो-पो तथा परोव +, पीढ़, पोस-पोस तथा पोष; पौढ-पोढ तथा पोड तथा पहोड
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१९०
हिन्दी-गुजराती धातुकोश ... फगुआ, फट-फाट; फडक-फरक, फड़ोल, फब-फव तथा फग+, फल-फळ; फाँद, फाड-फाड, फिट-फीट+, फिसल,
फुर, फुसलो-फोसलाव; फूट-फूट; फूल-फूल, फेन-फेण तथा फीण; फैल-फेला
ग
बकर, बखान-वखाण; बघार-वधार; बच-बच; बज-बज तथा वाज तथा वाग; बट-वाट तथा बटाव+,बटोर; बढ़-वाध तथा वध, बता-बताव; बतिया, बधिया-वाढ तथा वधेर; बन-बन; बनज, चमक, बर-बर; बरस-वरस; बल वाळ; बस-वस; बह-वहे; बहक-वहा तथा वा+, बहरा, बहुर, बाँच-वंच; बाँट-बांट तथा वाट+, बाँध-बाँध; बाग, बाछ, बाझ-बाझ; बाट-बाट,बार-वार; बिखर-विखेर; बिगड़-बगड; बिगूट, बिगो, बिछुड-बछूट; बिछा-बिछाव; विटंब, बिथरा, बिदार-विदार तथा विडार; विधांस, बिन-वीण, वण; बिनस-वणस+, बिनौ-विनव तथा विनम; बिरम; बिरस, बिर, बिरुझ, बिलंग-वलग तथा वळग+, बिलख, बिलट, बिलम-विलंबा; बिलस-विलस+, बिलोड-वरोळ; बिलो-वलोव; बिसर-वीसर; बसह, बिहर-विहर; बिहस, बिहाड, बीछ, बीज-वींज तथा बींझ+, बीझ; बीत-चीत; बीध-वींध; बुढ़ा, बुन-वण; बुस, बुहार-बार तथा बोर; बूझ-बूज; बैंध, बेढ़, बेल, बेवह-वोहोर तथा बोर+, बैठ-बेस; बो-बो; बोझ, और-मोहोर; बौरा, ब्या-विवा; व्याह, ब्योत, ब्योर
भंग-भांज तथा भाग; भंगिया, भँव-भम+, भकुआ, भख, भज-भज+, भटक-भटक; भन-भण +, भया, भर-भर; भरुआ, भस, भाँज-भाँज+, भाँड़-भाँड; भाँब, भा-भाव; भाग-भाग; भाज, भान-भाग; भार-भार +, भाल, भास-भास; भीग, मुंज, भुखा, भुन, मूंक-भस; मूंज-भूज १. मँझिया, मंड-मांड+, मंडरा, मंकडा, मठार-मठार; मर-मर, मल, मह, मांग-माग तथा मांग; माँच-मच; मौज-माज तथा मांज; माँड-मांड+, मा-मा; मात्र, मात, मान-मान; माप-मापः+, मार-मार; माह, मिट-मट तथा
मिटिया, मिठा, मिल-मळ; मिस, मींज, मुकला, मुठिया, मुरा-मोर तथा मोळ; मूंड-मूंड, मूंद, मूक,-मूक+, मूच, मूठ, मूत,-मूतर; मून, मूस, मेल-मेल+, मो-मो+, मोड-मोड; मोल; मोस, मौर-मोर
___ रँग-रंग; {भा, रख-राख; रग, रझ, रता, रन-रणरण; रम-रम; रर-रड+, राँच-रच; रांज, राँध-रांध; राचराच; राज-राज+, रित, रिस-रिसा; रीझ-रीझ; (घ- ध+ रुच-रुच; रूठ-रूल; रूस-रूस; रेंग, रेत, रेह, रोंथ, रो-रो; रोध-रोध; रोप-रोप; रोल-रोळ; रोस, रोह, रौ
लंगडा-लंगडा; लंबा-लंबा; लकडा, लख-लख; लग-लाग; लछिआ, लजा-लजव तथा लजाव+, लट-लट+, लद्ध-लाध; ललक-लळ+, ललसा, लला, लस-लस; लह-लहे+, लहरा-लहेरा; लहेस, लांघ-लांघ+, ला-लाव; लाख; लाख, लाद-लाद; लाध-लाध+, लाल, लिपट-लपेड; लिह, लीप-लीप तथा लीप; लुक, लुचक, लुडिया, लुद, लुन-लुण; लुभा-लोभा; लुह, लूस, ले-ले; लेस, लोड़, लोल, लोहा, लौ
वंच-वंच; वध-वध; वार-वार; विमास-विमास+,वैर-ओर;शंक-शंक; संकरा, संकोच-संकोच तथा संकोचा संचसांच; संचर-सांचर तथा संचर; संजो-सजाव; सँभार-संभार; सँभाल-संभाळ; सँवर-समार+,सँवरा, सक-शक; सकिलसंकेल; सकोड़, सचा, संज-सज; साठिया, सड-सड; सता-सताव; सद, सनक, सनसना-सणसण; सपड़-सांपड; समझ-समज; समा-समा समुहा, स्मेट-समेट; सर-सर, सराह-रहार, सह-सह तथा सहे तथा से; साँभल-साँभळ; साँस, साज-साज+, सान-साँध; साल-साल, सिगार, सिधा-सिधाव; सिरा, सिहर, सिहा, सींग, सी-सीव; सींच-सिच तथा. सींच; सीखसीख तथा शीख; सीज-सीझ; सुधर-सुधर; सुन-सुण तथा सण; सुभा, सुमिर-समर; सुलग-सळग; सुहा-सुहा; सूख -सुका तथा सूक; सूज-सूज; सूझ-सूझ; सूत सूल, सेव-सेव; सो-सू, सोच, सोह-सोह तथा सो; सौंध, सौप-सोप ... हग-हग तथा अघ; हथवाँस, हथिया, हन-हण; हर-हर, हरिआ, हरुआ, हलका, हलोर, हस-हस; हाँक -हाक, हाँस, हार-हार; हिंछ, हिंड-हीड, हिंदोर, हिलग, हींस, हीठ, हुन, हुलस-उलासः हेल-हळ+, हो-हो
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२. देशज धातुएँ [प्राकृत, अपभ्रंश आदि में प्रयुक्त (हिन्दी की पूर्वप्रचलित) देशज धातुओं को चिह्नित (0) किया गया है।
अंगडा, अँगुसा, अँगेज, अँटिया-अटवा+, अॅडर, अँदा, अऊल, अक, 0अकड़-अकडा; अकरख, अकस, अकास, अखर, अखाँग, अखुट, अगट, अगुता, अगूठ, अगोट, अचकचा, अछक, 0अट-अट; अटक-अटक; अटकल-अटकळ; 0अटेर-अटेर; 0अड़-अड तथा अडक+, अड़प, अड़रा, अड़ा, अडार, अडूल, अद, अदव, अदुक; 0अथा-आथम; अदबदा, 0अनखा-अणख, अनग, अनर, अनरस, अनवाँस, अनसा, अनैस, अपड़, अपड़ा, अपस, अपसौ, अपुट्ठ, अपूठ, अमेर-भेळव, अमेट, अर, अरप-अर्प+, अरबरा-अडवड+, अरस, अराड़, अरुगा, अरुर, अरूल, अरेर, 0अलूट-आळोट+, अलोप, अवगार, अवज्ज, अव, अवडेर, अह, अहटा, अहर, 0अहल, अहुट.
आँध, आँवड़, आँस, आज, 0आड़, 0आरोग-आरोग, आलुझ, आष, आस इचक, इठला
उँझ, उँडेर, उअ, उकच, उकठ, उकता, 0उकल, उकीर, उखट, उगच, उगद, उगसार, उघट, उघेल, उचल उचा, उच्छर, उछक, उछट, उछर, 0उजड, उजरा, उजास, उजिया, उजियार, उजेर, उज्जार, उझक, उझप, उझर, 0उझल, उटक, 0उठंग-उटंग; उडका, उडोक, उदक, उतरा-तर; उतला, उत्थव, उथल-ऊथल; उदंस, उदक, उदमद, उदमान, उदर, उदास, उदिया, उद्ध, उधर, उधरा, उधस, उधिया, उन, उनच, उनमान, उनर, उपड़ऊपड+, उपन, उपराह, उपव, उपसव, उपाठ, उपेख, उपै, उफड़, उम्र, उबक, उबल, 0उभाल, उभिट, उभच, 0उमड़-ऊमड तथा ऊमट; उमस, उमाक, उमेल, उयबा, 0उरक, उरग, उरधार, उरम, उरस, उरा, उराह, उरैंड, उलंग, 0उलट-ऊलट, उलथ-ऊथल; उलद, उलल,-उलळ; उलह, उलाल, उलीच-उलेच, डलेट, उमाल, उसे, उहट
0ऊंघ-ऊंघ, ऊ, ऊकट, ऊछज, ऊप, 0ऊभ, ऊल
ओक-ओक; ओगर-गाळ; 0ओट-ओट; ओड, 0ओढ़-ओढ़; ओदर, ओना, 0ओप-ओप, ओरा, ओलिया, ओसर, ओह
0औंध, औंज, औंड, औंद, औंधूर, औछा, औदक, औधार, और, औरस
कँख, कँजिया, ककोर, कचक-कचक+, कचर-कचर; कचा, कचिया, कटमटा, क्टूर, कट्ट, कह, कढरा, कतकता-कता; कटबा, बदरा, कन्नना, कना, कनिया, करोद, कर्रा-करडा; कलप-कळप; कलम, कल्ला, कल्हार, कवर, कसीट, कहल, किचड़ा, किर, किरिट, किरोल, किलबिला, कुँभिला, कुड़क, कुड़प, कुड़ेर, कुतकुता, कुतर-कोतर तथा खोतर; 0कुन, कुनकुना, कुम्हला-करमा, कुर, कुरला, कुरिआर, कुरिया, कुरेद, कुल, कूच, कूत, कूह, कोछ, काच-कोचकार-कारः काल, कालिया, ौध, कौर,
__ बँधिया, खस, खजोट, खंखोर-खंखोळ; खग, खचेर, खजबजा, खदेड-खदेड तथा खदड तथा खद; स्वमस, खरक, खरहर, खरिया, खरौंट, खला, खलिया, खस-वस+, खसोट, खाँच-खच, खांद, खाँध, खाँप, खिमिर, खिरिद, खिल-खील; खिव, खिसक-वस तथा खिस, खिसल, 0खींच-खिंच तथा खेच; खीस, खुट-खूट; खटक,
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१९२
हिन्दी - गुजराती धातुकोश
खुदबुदा, खुपखुपा, खुभर, खुरच, खुल-खूल खुलेड़, खूँट - खोड, खेड - खेड +, खेद - खदेड; खेल-खेल; खेवर, खेवरिया, खोंच, खोंस-खोंस; ( खोज - खोज; खोंद-खोद, खोभर, खोर, खौखिया, खौल
गँवन, गँस-ग्रस, गँह-ग्रह; गछ, गढ़-घड, घट; Oगदरा, Oगदला-गद; गभुरा, गमक, गरट, गरथि, गरेट, गरेर, गलगंज, गलगला, गस-प्रस; गहक - गहेक; गहडोर, गहभर, गहर, गहिला, गाँछ, Oगाँज-गांज+, गाँस, 0गाड - गाड; O गाढ़, गाहट, गिर-गर, गींज, गुटला, गुड़-गड, गुढ, गुमक, गुमिट, गुर, गुरच, गुरझ, गुलच, गुलिया, गूम, गैड़, गोंठ-गांठ, गोड-गोड; गोत-गोत; गोद-गोद+, गोहरा, गौल, बैठ
0 घोल, घट-घट घटक, घपचिया, 0घबरा - गभरा; घमंड, घरिया, घसघस, घसक, घसीट-घसड; घहर, घिचोल, घिसक, घिसिआ, वींच, घुट, घुमड़-घूमड +, 0घुस घूस घूम-घूम + 0घूर घूर 0घेप, 0घेर- घेर; Oघोट- घूँट 0घोट, घोल - घोळ
चंचना, चंचोर, चंदरा, चक, चकचदा, चकचा, चकचा, चकचूर, चकचौह, चकला, चकवा, चकास, चोट, 0चख चाख; चटपटा, 0 चढ़-चढ तथा चड; चतर, चनक, चनख, चप-चंपा, चपक-चपक तथा चबक, चपतिया, चपर, चपरा, चपेट, चभोर- झबोळ, चमक - चमक; चमचमा-चमचम +, चरज, चरपरा, चव, चस चस, चसक; चहल, चहोड़-चोड; चांक- चोक, चाँप - चांप, चाख - चाख; (चाट-चाट; (चास - चास; 0 चाह - चाह; चिंगुड़, 0चिंघाड़, 0चिकट, चिखुर, 0चिढ़ - चिडा; चिथाड़, चिपट, 0 चिमट -चिंबोळ, विचार, चिरक - चरक; चिरच, (चिल्क - चटक; चिलबिला, चिल्ला, चिहुँट, चिहूँट, चीक, (चीथ, चीस, चुकट, (चुग-चुग; चुपक, चुचा, चुटक, चुटा, चुनिया, चुपड़-चोपड; चुपा, (चुचक, (चुभ, चुर-चड़ +, 0 चूँग - चगळ, चूक-चूक; चूर-चूर; चैप, चेहा, चोक, चोख, चोट-पोट, चोटिया, चोद चोद; 0चौक-चौक, चौध, चौरा, चौआ, चौडा, चौपत,
छक-छक तथा छाक +, छटक-छटक, छड़-छड तथा छडक; छतिया, छपट, छपरिहा, छ्ब, छम, छय, छहक, छहर, छाँग, छाँट +, 0छाँद, छान-छान : 0छाप - छाप, छाल, छिंछ, छिंडा, छिटक-छिटकोर, छिड़क-छांट; छितर- छीत +, 0छिनक - छीण +, 0छिप-छूप; 0छिंट, छीछ, छुप-छुप तथा छुपा, 0छेड़-छेड, : 0छेर छेर+, कैला, Oछोप, छोल-छोल; छोह
जक, 0जगजगा - जगमग; जट, जता, 0जमक, जमुक, जमोग, जहँड़, जहक, जहद, जाँप, जाप - जप; जुगाल, 0जुट, जुठार, 0जुड-जोडा; जोख-जोख; जोड़-जोड; जाय
झंवा-झाम; झकुर, झकेल,
0झड़प - झड़प +, झप - झंप; 0झल्ला-झल्ला +, झष, झाँक
झख-झंख+, झँझाड़-झंझेड तथा झंझेोड; झप झपाव तथा झंपलाव; झंवरा, 0झकोर - झोळ; झगड़-झघड; झझक, 0झटक-झटक; झड़, 0झड़क - झाडक: 0 झपक - झप +, झपट-झपेट+, झपडिया, झपस, झरस, 0झल - झाल+, झलक झळक; झांख; झाँख-झांख; 0झाँप, झाँव, Cझाग, झाल-झाळ; झिंगर, झिझोड, झिझक, झिडक, 0झिलमिला, 0झींक, 0झींख, 0झीझ, 0झुक-झुक +, 0झुठका, झुर-झूर; झुरमुरा, झुलस, झुहिर, झूल, झूल, झेंप, झेर-झेर +, 0झेल, झोंक-झोंक, Oझोड़ - झूट +, झोल, झौर
टकटो-टटोळ; टकरा - टकरा; टकूच, टकार-टकार, टघर, 0टटा, टप टप +, टसक-टसटस +, 0टहल-टहेल, टेल: 0टाँग टाँग टाँच टाँच टाँस, 0टाप, 0टिक-टक, टिन्ना, 0टीक, 0टीप-टीप; टीस, 0हुँग, टुघला, टुपक, टूम, टे, 0टेक-टेक; टेर+; टोंच-टोंच; 0टो, 0टोक-टोक +, 0टोप, टोर
ठंडा, ठग-ठग; ठठ-ठठ; टढा, ठेय, ठला, Oठाँस-ठाँस तथा ठोस; ठाक ठान-ठाण; ठिकिया, ठिठक, ठिठुर ठूटवा; 0ठुकरा, ठुनक, हँस-ठाँस, ठेक-ठेक+, 0ठेल-ठेल; 0ठेस, 0ठोंग, ठोस
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देशज धातुएँ
१९३
डंक, डंकिया, डंड-दंड, इंडिया, डंडूर, डँडेर, डंफ. डकर, डकाव, डगर, डट डटा; डपट-डपट +, डबक, डबिर, डहक, डॉक, डॉट, Oडाल, डिकर, 0डिंग - डग; डिगर, डिभग, डुगर, डुपट, डूक - डूक; डोर-दार; डौंडा, डौल
ढंकिल, ढंढार-ढंढेाळ; ढकेल-धकेल; 0ढल-दळ; दह- दस; ढाँक-ढांक 0ढाप, ढिसर, ढील, दुल-ढळ:; ढोर
तच, तड़प-तडप तथा तलप; Oतनतना, तरमा, तरेर, तलफ- तलफ तथा तलप; तलास - तळांस; तह, ताँवर, ताग - ताग +, ताछ, ताम, तिग, तिडल, तिमा, 0तिरमिरा, तिलक, 0तिल्छ, तुअ, तुनक, तुभ, तुरा, तूख, तूल, तृपिता, ते, तोल-तोळ तथा तोल; त्यौरा, त्रिय, त्वचक
थक-थाक; थपेड़, 0थरहरा - थरथर तथा थथर, थलक, थसक, थसर, 0थाप - थाप, थाह, थुथा, थुथर, थुर, थुरथुरा, थूक क; थाप थाप
दंदा, दच, दत, दफरा, (दब- दबा दबक, दबोच, दमस, दसा, दलमल, दव, दष्ष, दहपट, दहल, 0 दाब - दात्र, दबाव, दुक, दुक्क, दुग; दुचक; दुझार दुलख दूँद, दूख, दूझ दूझ +, दूम, दोच, दाद, दाह - दोह+, दोहर, दक
धकिया - धकाव; धकेल-धकेल; धस - धस +, धचक, 0धप-धप +, धमका - धमकाव+, धाँग, धाँध, धा, Ofधंगा, धि-ध, घिरा, धीज, धुँकार, धुँगार-धुंगार; बंधुआ - धुंधवा, 0धुक, धुरेट, घूँध, घूँस, धूक, धेय, धोंक ौंज, धौंस
Oनका, नखेोट, नट, नवार, नष, 0 निगरा, 0निघट-घट, निचा - निचाव; तथा मरोड; Oनिरा- नीद तथा नींद; निहस,
धाक, धाड़, धुधक, धुप, धुमिल, धुर,
नाक, नाट, नाव, निंदा-निंद; 0निकास, निचोड़ - निचोड 0निझर, निदिरस, निनार, निप, 0निहुड, निहार, नुका, नुखर, नैवर, नैस
0निखुट - खूट; निखोड, निपुड़, निमोर - मोड
पंघला, Oपकड़-पकड़; पगार, 0पगिया, पगुरा, 0पचार -पचार, पछाड़ - पछाड; पछिया, पछाड़, पटतार, पड़ताल - पडताळ; 0पडिया, पतीज-पतीज; पधार - पधार; पनप, पनास, पपोर, पत्र, पवार, पमा, परगास, 0 परच-पळक; परछ-योंक तथा पोख; परहेल, परिठ, परिबैठ, परिवान, परिहेल, परेह, परार, पल-पल +, पलट-पलट +, पला, पलास, पलेड, (पलोट- पलोठ +, पलास, 0 पवेर, 0पसा, 0पसूज, पहट, पांज, पाँतर, पाग, पारोक, 0 पिघल - पीगळ; 0 पिचल, 0पिछड, पिछान - पिछाण; पिनक, पिपिया, पिल-पील +, पिलक, पिलच, पिष, 0 पुकार - पुकार तथा पोकार; पुचार, पुटिया, पुन, 0पुपला, पुल, पूँज, पेंड, पैंछ, पांछ- पूँछ, पात, पोह, पौंड, पौर, पौल, प्रन
फन, फनग, फना, फरचा, फरिया, फलांग, Oफाँक-फाक, 0फाँप, 0फिर- फर; फुरहर, फुहार, फेंक- फेंक, फेंट, फेकार, फेर-फेरव; फोंक
Oh - क, बकठा, बकुच, वकोट, बखोर, बग, बगद, बगेद, बटक, बतरा, Oबतास, बद-बद बनरा, बनार, बफर - विफर; बरक - वरक+, वरट, 0चरदा, 0वल-चळ तथा वाळ; बलक, बाँड़, बहरा, बाँव, बाज, बाद, बान, (बापूकार, बिचक - वचक्र; 0बिछूड़-छूट; बिजो, बिझुक, बिटार, बिटाल-विटाळ; बिडर-डर; बिडव, बितर, Oबिथक, चिदक, बिदह, बिबछ, बिरच, बिरह, 0बिरा, बिलख, Oबिला - वराव; बिसा, बिसुन, विसूर, बिहार, बींद, बीग, 0बुक, O बुझ-बुझा, बुट, बुरबुर, 0बूड-बूड; बूज, 0 बेच - वेच; बेझ, बेठ, बेत, बेसाह, बैहंस, बेहर, बैरा, बाय, 10 बोल-बोल; बोह, बौआ, बौखला, बौसा
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हिन्दी - गुजराती धातुकोश
भमर, भँभा - मँमोड़, भकुड़ा, भकुर, भकास, भगर, 0भटक भटक; भठिया, 0भड़क-भडक +, भडोल, भरक, भरुहा, भव, भाँप, भिटक, 0भिड़-भिड़ा; भींच - भींस+, भीन, भीर, भुतला, 0भुलस, 0भूल-भूल, Oभेज भेज; 0भेट-भेट; भेल-भेळाव; भेष, 0भोक भोक; भोथरा, भोरा-भोळवा
१९४
मढ़-मढ; मनुहार, मन्ना, मल्हप, महटिया, मास, 0मिचक, मिचरा, मिचला, मिन, मिल-मळ; मिलक, 0मिहा, मीच - मींच तथा भींच तथा वींच; मुंढ, मुकर-मुकर; मुकिया, 0मुटा, मुलक, मूझ, मे - मा, मेल्ह, मेहरा, मोकल - मोकल
रगड़-रगड +, रगा रगेद, रबक, रबड, रमक, रमड़, 0ररक - रळ+, 0रल-रोळ; खक, रह-रहे; रहपट; राँढ़, राब, Oराल-रळ+, राह, रिडक, रुझ, रुल, रूर, रेंड, रे, 0रोक-रोक; रौंद-बूंद तथा गूँद; रौरा
O लचक-लचक तथा लचका तथा लांच, Oलड़-लड; 0 लताड - लाताड; लथेड, 0लपक लपक; लपेट-लपेट; लफ, लबझ, लबड - लबड+, ललच - ललचा; लस लस +, लहक, लहट, लातर, Oलाफ, लाव, Oलील, लुंडिया, लूर, लुरिया, लूक, लूट-लूट; 0लूम-लूम; लेवार, लोक, 0लोट-लोट; 0लाद-लोढ; लौट
वदुस, वफर, वाकार, वाव-वाव +, वितता
सँकार, संकित, संकेल - संकेल; संकार-संकार, संघर-संघर+, संघरा, सकस, सकेत, सट-सट+, Oसटक- सटक+, सतरा, सपत, समक, समद, सरहत, सरिया, सरुह, सरेख, सहला-सहेलाव, सहेज, सा, साह - साह; 0सिकुड, सिनक, सिय, सिरा, सिंहला, सिहार, सिंहिक, सुगा, सुटुक, सुभ, सुरेत, सुलझ, 0सुलट-सुलट 0 सूँघ संघ, सूड, 0 सेंक - शेक तथा सेक; सेंध, सेठ, सेल, सेहथ, सैंत, सोंट, साज, सोझ, सोरा, सौंद हँकड़, हँकार - हकार, हँड-हींड हँडव, हका, हट हट 0हटक, हठ- हठ; हड, Oहलक हळक+ तथा हलक; हलहला - हलाव; ०हाँड; हाँत, 0हाँफ - हाँफ तथा Oहिंचक-हींच तथा हीचक; हिता, हिरा, 0हिल - हिल तथा हल तथा हळ; 0हिलक, हुक, हुटक, हुदक, हुमस, हुलका, ह्ठ, 0हूल, 0हेर - हेर; हेरिया, होड़ हाल्द, हक
0हडक - हडसेल; हरक, आंफ; हाल - हाल; हिंच, Oहिलकोर - हिल्लाळ; हींड,
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अकचका, अकबका, अछतापछता,
अर्रा, अलला
इखर
उरर
३. अनुकरणात्मक धातुएँ
अटपटा, अभुआ, अरक-अड; अरबरा, अरर, अरर-दर, 0 अरिया,
कचकचा कचकचाब; कचार, कचोक, कचोट, कटकटा, कड़क ककळ, Oकनकना, कनमना करवरा-कल करण, करार, कराह, कलकला, कलमल, कसमसा, किकिया, किछकिया- कचकचाव; किटकिटा, किड़क, किरकिरा, किरा, की, कुचकुचा, Oकुड़कुड़ा, कुरमुरा, कुरल, कुलक, कुलकुला कळकळ, कुलबुला, कुहक, (कूक
Oaकार - खंखारः खखर - खंखार तथा खोखर; खटक - खटक; खड़खड़ा - खखड; खड़बड़ा, खदवदा - खदखद; खन कखळक खभड़-खळमळ-खमक सरखरा-खरखर; खरभर-खळभळ; खलखला - खळखळ; खलबला - खळबळ; खिलखिला, खुरखुरा, खाँख, खॉप-खूप
गच, गठक-गटक; गड़क, गड़गड़ा-गडगडाव तथा गगड गड़प, गनगना, गनना-गणगण, गपक - गपकाव तथा गवकाय; गररा, गहगहा; गिड़गिड़ा, गिलबिला, गुंगुंआ, गुटक, गुडगुड़ा, गुदगुदा, गुनगुना-गगण तथा गणगण, गुरेर, गुर्रा- घूरक; गुलगुला गुर, गुरगुर
घड़घड़ा, घनक, घनघना - घणघण तथा घणाण; घमक- घमक; घमघमा, घरर, घिघि, घिचपिचा, घिरा, घुघुआ, घुटक, घुड़क-धुरक तथा घरक घुरघुरा घोंप-पोंच
चकचौध, चकपका, चटक चटक चटचटा, चत्रक, चरचरा-चचण, चचर+, चरमरा, चर्रा, चहक, चिचिया-चीच; चिडचिड़ा, चिपचिपा, चुकचुका, चुचकार-बुचकार; चुनचुना - चणचण तथा चचर; चुभक, चुमकार, चुरक, चुरंग, चुरचुरा, चुलचुला, चुहचुहा, चुहुक, चौंथ
छटपटा, छनक छणक छनछना-छछण तथा छणछण; छपक, छमक छमक छरछरक; छरछरा, छल-छलका उछला, छिछकार, छिछया हुहुआ, खुनना, हुताक, Oछौंक
जुगजुगा, जौंक
,
छमछमा छमक छरक-छरक;
संझना क्षणक्षण संस, झक, सकशोर-सकाळ सदसदा-साहक तथा लाटक+ 0 सनक सगक, Oझनकारणकार शम, शमक क्षमक; झरझरा, झरस, सरहर झलला + शलमल, सहन, सहर, झिमिट, झील, झीड़, झीम, अॅशला, इनक, नाना, शेक, सौहा
,
,
टंकार - टंकार; टकटका, टनक, 0टपक-टपक; टपर, टरक- टरक+, टरटरा, टर्रा-टरडा; टस, टहक, टिटकार, टिमटिमाटमक, टमटम; टिलटिला, टूम
ठेठना, ठक ठकठका, उठा-उठाउ+, उनक, उनग, ठनठना-उगठन, उणक उप; उमक-उमक ठिनक, ठिलटिला, टुनक, ठुमक ठमक; ठुमकार, 0ठुसक, ठेक-ठेक+, ठोक-ठोक
Osकार, डगडगा - उग तथा डगडग तथा डगमग; इडक, डबडबा, दमक, दहडहा, डुकिया, डुगडुगा, 0 डूब-डूब
/
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१९६
हिन्दी - गुजराती धातुकोश
ढकास, दनमन, ढमक-ढमक; ढाँस, ढोंस
Oash - तडक; तडतडा, तड़फड़ा-तडफड तथा तरफड; तड़ाग, तणक्क, तररा, तिरतिरा, तुतला-तोतळा थपक - थपकाव; Oथरक - थरक; थिरक - थरक; 0थुथकार, Oथुथुला,
दगदगा, दचक, दडेोक, दनदना, दमक-दमक दरकच, दरदरा, दर्रा, 0दुतकार - श्रुतकार; दुरदुरा, दोंक धकधका-धकधक; धकपका, धगधग धगधग +, धड़क - धडक; 0धधक-धक +, घाँस, धुकर
निकोट
पकस, पचपचा, पटपटा, पड़पड़ा, पिचपिचा, पिटपिटा, पिनपिना, पिलपिला, पिहक, पीक, पुचकार - पुचकार; पुलपुला
फँफा, Oफटक - फटक +, Oफटफटा-फटक तथा फटकार+, फडक-फरक; Oफड़फड़ा-फडफड फदक, फदफदाफदफद +, फनक, फफक फफदफदफद 0फरक-फरक; 0फरफरा- फरफर तथा फरक; Oफरहर-फरहर; फलक, 0फ,सकः, पहरा, फिसफिसा, फीच, 0फुंकर- फुंकार, फुदक, 0फुफकार, 0कुफुआ, फुरफुरा, 0फुसकार, फुसफुसा फूँक-फूंक; फेकर
बंचा, बगबगा, बजक, बड़बड़ा-बडबड, बलबला, बिरबिरा - बड; बिलबिला, बिल्ला, 0बुडबुड़ा, बुदबुदा, बुनक, बुरक
भकभका-भभक; भक्स, भचक, भड़भड़ा, भनक, भनभना-भणभण; 0भभक - भभक; Oभरभरा, भररा, महरा, 0भिनक, भुरक, भुरभुरा
Oमचक मच +, मटक मटमटा +, मड़मड़ा, मनक, मनना, मरक - मरक +, मरमरा, मसक, मिनमिना, मिमिया, मुरमुरा, मुलमुला, मुमुसा, रिर, रूम, रेंक-रेंक+
लखलखा, लछिआ, लटपटा-लटपट, 0लड़खड़ा-लडबड; लशकार, लहकार, लिड, लिशक, लुलुआ,
सपकना, सगबगा, सटका, सटपटा, सठोर, सरफर, सरफरा, सरबर, सरसरा, सरसेट, सलसला, सिटपिटा, सिसक, सीट, 0सुड़क, 0सुड़सुड़ा, सुबक, सुक्, सुरसुरा
हकबका, हचक, हडप - हडप; हड़लड़ा, हप, हबक-दबक; हरहरा, हलबला, हहर, हिकर, Oहिनहिना, हुंकार, हुआ, हुमक, हुइकार- हुसकार, हुहा, हूँक, हे कर
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४. तत्सम धातुएँ
अंग, अघ्रान, अतीत, अतुरा, अदरा-आदर+, अधिका, अधीन, अनंग, अनंद-आनंद; अनुकूल, अनुभवअनुभव; अनुमान-अनुमाप, अनुराग, अनुराध, अनुरूप, अनुसंधान, अपमान, अपहर-अपहर; अभिनंद-अभिनंद; अभिसर-अभिसर; अरंभ-आरंभ; अरंभ-आरंभ; अराध-आराध; अर्थ, अर्द, अलस-आळस, अलाप-आलाप, अलप; अलोक-आलोक; अवकल, अवगत, अवगाह, अवतर-अवतर; अवधार-अवधार; अवमान-अवमान; अवराध, अवरोध-अवरोध; अवरोह, अवलंभ-उलंघ; अवलेख, अवलेप, अवलोक-अवलोक; अवसाद, अस्वीकार -
आंदोल, आकर्ष-आकर्ष, आराध-आराध; आरोप-आरोप; आरोह-आरोह; आलिंग-आलिंग इच्छ-इच्छ
उग्रह, उच्चर-उच्चार; उच्छल, उतपाट, उत्तार, उत्साह, उदघट, उदय, उदास, उद्धार; उनमूल, उन्मीन, उपचार, उपधर, उपमा, उल्लंघ-उल्लंघ; उल्लास-उल्लास
ऊद, ऊन
कंथ, कथ-कथ; कपट-कपट; कर्ष-करख तथा करष तथा करस; कविता, कूज-कूज; कोप-काप; क्रम, क्रम्य, क्रीड-क्रीड
खंड-खंड; खच-खच; खन-खण+ गद, गाँज, गुढ़, गुण, गोप-गोप; ग्रंथ, आस-प्रस; ग्रास घोर-घोर चपला, चय, चित्र, चिन्हार-चींध; चुंब, चेत-चेत+
छंद
जन्म-जन्म; जप-जप; जल्प-जल्प तप-तप; तिष्ठ, तृप्ता, तोष, त्याग-त्याग; त्रस, त्रूट-त्रुट दंश-दंश; दूध, दृढ़ा, दोष, द्रव-द्रव धरस, धवब-धाळ
नंद-नंद; नखिया-नखार; नट, नद, नम-नम; नर्त-नर्त, नश, निंद-निंद; निकंद, निग्रह-निग्रह; निनाद, निपात, निमज्ज, नियोज-नियोज; निरूप-निरूप; निराध-निरोध; निर्गम-निर्गम; निर्दह-दह; निर्म-निर्म; निर्वह, निवस-निवस; निवेद-निवेद; निस्तर, निहन, नीर-नीर+
पगला, पराग, परिचार, परिलेख, परीक्ष, पल्लव, पूज-पूज; प्रकटा-प्रगट; प्रज्वल-प्रजळ; प्रबोध-प्रबोध; प्रभास, प्रवेश-प्रवेश; प्रशंस-प्रशंश; प्रसव-प्रसव; प्रसार-प्रहार, प्राप-पाम;
भाध, बाध-बोध; व्याप-व्याप भंड, भक्ष-भक्ष; भज-भज; भाष, भूष, भेद-भेद; भोग-भागव; भ्रम-भम तथा भरमा मंगल, मंद, मत, मथ-मथ; मनसा, मर्द-मर्द; मलिना, मल्हार, मसिया, मोद-मोद; माह, मोह तथा मो
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश
याच-याच तथा जाच; रंज-रंज+, रच-रच; रट, रव; रसा-रस; राध, रिस, रेख-रेख लिख-लख; लुप, लेट-लेट; लेोच, लाभ-लाभा
वंछ-वांछ; वध-वधा वाल, विकला, विकस-विकस; वितर-वितर; विदल, विध, विभूष, विभेद-विभेद विमोच-विमोच; विमाह-विमोह; विलंब-विलंबा; विलोप-विलाप; विवद, वेल, व्यतीत, व्यापच्याप
शिथिला, शूल, शंगार, शोध-शोध; शोष-शोष
संकेत-संकेत; संकेोप, संक्रम-संक्रम; संताप-संताप; संतोष-संतोष; संधान, संवोध-संवोध; संभ्राज, सदर्थ, समर्प-समर्प; समाचर, समाधान, सम्राज, सरस, सशंक, सस, साध-साध; सीद, सूद, सृज-सर्ज, स्फुर-स्फुर; स्त्रव-स्रक; स्वच्छ, स्वीकार-स्वीकार
हत, हर्ष-हर्ष; हुत, होम-होम
विला, वित, विष, विष, विभेद-विभेद
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५. अर्धतत्सम धातुएँ अगम, अगसर, अद्धय, अनमील, अभिलाख-अभिलाख; अरच-अर्च; अरज, अरथा, अरद, अरप-अर्प; अरह, अलोक-आलोक; अवरेख, अवलच्छ, अवलोच, अवाँग, अवसेर, अवार, असंघ, असकता, अहक, अहिघुट्ट
आकरख-आकर्ष; आकरस-आकर्ष; आगम, आमरस्त्र, आरूंध, आराध-अवरोध; आबर, आसर.....
उखाल, उगार, उडास, उतपन, उतपाद, उथप-उथाप; उदगर, उनमा, उनमाथ, उनमेख, उपकर, उपच, उपदेस-उपदेश; उपराज, उफन, उब, उभट, उलंघ .. ओंग---ऊंग, ऊंज, ओज, ओसा-ओसाव+, औगाह-अवगाह; औतर-अवतर; औधार ...
कंष, कटाष, कत्थ, करष, कला-कालव; कीड, कुच, कुंथ, कूद-कूद; क्रील गथ, गरज-गरज तथा गर्ज; गरब, गरभा, गरास-ग्रस; गवेस, गहबर, गहास, गिरास-गरास धोख-गोख; घोस चकरा-चकरा; चरम-चर्च; चूंट
छंदर
जंत्र, जनम-जनम; जरजर, जलप-जल्प; ठहर
ढोक
तज-तज; तरक, तरज, तरस-तरस तथा तलस; तिरास थर
दगध, दरम, दरसा-दरशाव तथा दरश धिआ-ध्या, धुतकार-धुतकार; ध्या-ध्या
नकार-नकार; निखेध, निखोर, निमेख-निमेष; निरत, निरधार-निर्धार; निरम-निर्म; निरमूल, निर्बह, निहबर, नीराज
पतिपार, परकास-प्रकाश, परगट-प्रगट तथा परगट; परजर-परजळ; परतार, परतेज, परबोध-प्रबोध; परवानपरमाण तथा प्रमाण; परवाह, परिगह, परिया, परेख, पहर, पिरीत, प्रकास-प्रकाश; प्रगट-प्रगट; प्रजर-प्रजळ; प्रतोष, प्रनम-प्रणम; प्रफुल-प्रफुल्ल; प्रमान-प्रमाण; प्रहरख, प्रास
फांस-फाँस
बंच-वंच; बंछ-वांछ; बंद-वंद; बथ, बध, बप-वाव; बम, बरख-वरस; बरज-वर्ज; बरत-वरत; वरन-वर्णव बरम्हा, बरष-वर्ष; बाँच-वंच; बांछ-वांछ; बा, बाज-बाज तथा बाझ+, बापर-वापर; बिंद-बंद; बिकला, चिकस-विकस; विगच, बिघट, बिचर-विचर; बिचल-चळ; विचार-विचार; पिछल, बितर-वितर; बिदल, बिदह, बिदूष, बिनय, बिफर-विफर; बिबस, बिबाद, बिवाह, बिबेच-विवेच; बिभा-विभा; बिभिना, विमोच-विमोच; बिमोह-मोहः
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश बिरच-रच; बिरहा, बिराग, बिराज; बिरोध, बिलंब, बिलग, बिलछ, बिलप-विलाप; बिलाक-विलोक; बिलाल, बिवर, बिसतर-विस्तर; बिसम-विशम; बिसमर-वीसर; बिसस, बिसेख, बिहा, बीस, बेग, वेलस, व्यांच, ब्रज
भरम-भम; भर्म-भरमा; भष-भक्ष, भत्र; भुगत-भागव; भूख मग, मज, महक-महेक; मुगत, मुरछा
लुबध, लोक बीख, बेसास शराप-शाप
संकलप, संध-सांध; संप, संपार, संपेख, संबर, सकार-सकार; सतकार-सत्कार; सतर्प-संतप; सतोख-संतोष; सनमान-सन्मान; सपना, समद, समार-समार; सरज-सरज तथा सर्ज; सराप-शाप; सवांग, ससर, साप-शाप; सिरज-सरज; सूध, सूव, साध-शोध तथा सेधि, सैच
हरख-हरख; हरष-हर्ष
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६. विदेशी धातुएँ
अपसोस, अमेज, अरज, आजमा-अजमाव उजर कफ्रता, कबूल-कबूल; कम, कसीस, कुन्न, कुलाँच, काक खतिया-खतव; खरच-खर्च तथा खरच; खराद, खरीद-खरीद; खसिया, खुनसा गंदाल, गड़बड़ा, गरदान, गरमा, गाँज-गांज + गुजर-गुजर; गुम, गुस्सा चंग, चहक-चहेंक; चुलबुला जकंद, जफील, जम जाम, जूम, जेर तराश, तरिया, तलाश, तहसील, तहा, तुनक, तुर्शा दगल, दफना-दफना; दम, दरगुजर, दाग-दाग नकाश. नजर-नजरा+ नजिका, नरज, नरमा, नवाज-नवाज, निगंद, नोक परकार, पेच फंद, फरक, फरमा-फरमाव, फिल्मा बकसीस, बखिया, बख्श-बक्ष; बगलिया, बदल-बदल; बला-बहेलाव; बहस, बाग मलाल, मसोस, मस्ता, महेर, म्या रंग-रंग, रँद-रंद; रडक, रपट, रूखा लरंज-लरज; लला वर्गला, वसूल शरमा-शरमा सबुना, सरदा, सलाक, सस्ता, सहम, सुसता हदस, हलकार, हुलक
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आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
____ 1. वर्गीकरण की शास्त्रीयता का प्रश्न 1.1 प्रस्तुत शोधकार्य के द्वितीय खण्ड के ऐतिहासिक तुलनात्मक धातुकोश द्वारा हिन्दी-गुजराती के अध्ययन की वैज्ञानिक पीठिका का एक अंश तैयार, हुआ। हिन्दी का भाषा-भूगोल बहुत बड़ा है। एक ही मूल धातु विभिन्न बोलियों में रूपवैविध्य रखती है । इन बोलियों में साहित्य-रचना शुरू होने के उपरान्त इनका शास्त्रीय अध्ययन भी होने लगा है। ऐसे अध्ययनों के फलस्वरूप एक ही धातु के विविध रूप सुलभ हुए । इनकी उपेक्षा करने के बजाय इनका वर्गीकरण के द्वारा छाँटना उचित लगा । धातुकोश का संख्याभेद इस प्रक्रिया में दूर हो गया।
1.2 ऐतिहासिक अध्ययन में व्युत्पत्ति अनिवार्य समझी जानी चाहिए। संभव होता तो सभी तद्भव धातुओं का विकासक्रम समझाने के लिए संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश तथा पुरानी हिन्दी, पुरानी गुजराती - सभी के रूप दिए जाते । सुलभ आधार तथा सुगमता दोनों का लक्ष्य करते हुए केवल संस्कृत और प्राकृत रूप ही दिए हैं। इनको टर्नर आदि विद्वानों के संदर्भ से समर्थित किया है इसलिए इनके अधिकृत होने का प्रश्न शायद ही कहीं खड़ा होगा।
___1.3 प्रस्तुत अध्ययन के विषयक्षेत्र की सीमा में धातुओं का अकर्मक, सकर्मक आदि प्रकारभेद बताना आवश्यक नहीं था, यह क्षेत्र व्याकरण का है। परन्तु जहाँ एक ही धातु के अकर्मक-सकर्मक दोनों रूप सुलभ हों वहाँ दोनों का समावेश करने से धामुसंख्या और भी बढ़ जाती । इस दोष से बचने के लिए इस व्याकरणिक वर्गीकरण के संकेतों का धातुकोश में उपयोग किया है।
___ 1.4 कुछ अनुकरणात्मक धातुएँ तद्भव हैं, कुछ देशज । इनका तद्भव या देशज होना दूसरी पहचान है। वर्गीकरण करते समय इनको अनुकरणात्मक के विभाग में रखा गया है । कुछ तदभव भातुएँ अनुकरणात्मक होने का आभास देती हैं किन्तु अधिकारी विद्वानों ने इन्हें केवल तद्भव के रूप में ही पहचाना है। इसी में समाधान पाकर ऐसी धातुओं को तद्भव के अंतर्गत रहने दिया है; जैसे 'झनझना' (1610)।
1.5 संस्कृत से हिन्दी तक पहुँची हुई सभी धातुएँ क्रियावाचक धातुओं के मूल रूप में ही सुरक्षित रहकर कालजयी नहीं हुई हैं। पूर्व-प्रचलित विविध क्रिया-रूपों से कोई रूप आगे बढ़ा। उस सरल रूप में रही मूल धातु फिर से रूपवैविध्य पाकर जी उठी । जसे कि संस्कृत के तिङन्त तथा कृदन्त रूपों के तद्भव एवं इन दोनों के संयोग से बने क्रियारूप अपभ्रंश में प्रयुक्त होने लगे। संस्कृत में तो प्रयोग, काल, पुरुष और वचन के बहसंख्य होने के कारण, प्रत्येक धातु के 6x10x3x3 = 540 रूप होते थे। डॉ. शु. रि उदयनारायण तिवारी आदि की दृष्टि से यह अस्वाभाविक स्थिति थी। नई भाषाएँ सरलीकरण की ओर उः और अपभ्रंश तक पहुँचते पहुँचते केवल एक गण रह गया । संस्कृत की गणव्यवस्था हिन्दी तक पहुँचने से पहेले ही शून्यशेष हो गई। इसे सरलीकरण तथा प्रयत्न-लाघव के रूप में लक्षित होते भाषा-परिवर्तन की सहज प्रक्रिया मानाना होगा। हां तक क्रियारूप के परिवर्तन तथा परस्पर विनिमय का प्रश्न है, विद्वानों ने हिन्दी-गुजराती दोनों भाषाओं के
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२०३
आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
विषय में उल्लेखनीय अध्ययन किया है । जैसे कि अपभ्रंश-कालीन कृदंतों से कई हिन्दी - गुजराती धातुओं का निकलना ।
हिन्दी की सभी नामधातुएँ गुजराती में नहीं हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि गुजराती में नामधातुएँ कम हैं । विदेशी शब्दों से बनी हिन्दी तथा गुजराती नामधातुओं की भिन्नता इस स्थिति का विशेष स्पष्ट करती है । तद्भव धातुओं में से कौन सी धातु किस समय संज्ञा, विशेषण या अव्यय से बनी इसका विशेष अध्ययन भी रसप्रद हो सकता है । यहाँ द्वितीय खण्ड के धातुकोश में नाम - धातुओं के व्यापक वर्ग का केवल निर्देश किया है, इनकी अलग से वर्गीकृत सूची आवश्यक नहीं लगी। क्योंकि ऐसा करने पर फिर संयुक्त क्रियाओं का प्रश्न खड़ा होता और विषयक्षेत्र बड़ा हो जाता, व्याकरणिक अध्ययन अनिवार्य हो जाता । केवल इस गणना से ही संतोष माना है कि हिन्दी में 865 नामधातुसँ हैं जब कि इनके विकल्प के रूप में यहाँ गुजराती की 247 नामधातुएँ तथा 283 संज्ञा, विशेषण, अव्यय जैसे तुलनीय रूप प्राप्त होते हैं ।
शब्दों में क्रियावाचक शब्दों की दिया है। वास्तव में यह अंग्रेजी आदि भाषाओं के बने हैं बल्कि
1.6 हिन्दी - गुजराती के देशज बहुतायत है 2 | - विशेल के इस निर्देश ने देशज धातुओं के अध्ययन का महत्त्व बढ़ा 'देशज' संज्ञा एकार्थक नहीं है । जैसे विदेशी शब्द-वर्ग के अंतर्गत अरबी, फारसी, सभी भाषाओं के शब्दों का समावेश किया जाता है वैसे ही देशज शब्द - वर्ग के अंतर्गत एकाधिक शब्दों का समावेश है । अंतर इतना ही है कि ये शब्द अज्ञात रहकर इस व्यापक वर्ग के अंग वैयाकरणों द्वारा बनाए गए हैं। इन देशज धातुओं को 'देशज' न कहकर 'अज्ञात व्युत्पत्तिक' कहने का सुझाव भोलानाथ तिवारी आदि विद्वानों ने दिया है । यहाँ प्रश्न यह होता है कि आज जो धातुएँ अज्ञातव्युत्पत्तिक कही जाएगी वे क्या सदा-सर्वदा अज्ञातव्युत्पत्तिक ही रहेंगी । हेमचन्द्र द्वारा देखज बताई गई कई धातुएँ अब ज्ञातव्युत्पत्तिक होकर तद्भव के रूप पहचानी जाती हैं। इस क्रम को प्रस्तुत शोधकार्य से (विशेष करके डा. भायाणी के परामर्श के कारण ) कुछ गति मिली है। संभव है बची हुई देशज धातुओं में से भी कुछ को भविष्य में भिन्न अभिधान प्राप्त 1 मुण्डा तथा द्रविड भाषाओं के विशेष अध्ययन से भी शक्यता बढेगी ।
में
1.7 अन्य आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की अपेक्षा गुजराती के अध्ययन के लिए एक विशेष सुविधा यह है कि हेमचन्द्र द्वारा दिए गए उदाहरणों में अपभ्रंश और पुरानी गुजराती के बीच की कडियाँ देखी - परखी जा सकती हैं । परन्तु इसकी भी एक सीमा है। डॉ. हरिवल्लभ भायाणी के अनुसार गुजरात के पांडित्य को प्रतिष्ठित करने के आशय से हेमचन्द्र ने पूर्ववर्ती व्याकरणों के आधार से एक अद्यतन पाठ्यपुस्तक के रूप में 'सिद्धहेम' अपभ्रंश - व्याकरण लिखा था। इस में दिए गए उदाहरण विभिन्न प्रदेश तथा काल के लक्षण सूचित करते हैं । इसलिए हेमचन्द्र द्वारा प्रस्तुत सामग्री छाँटकर ही गुजराती भाषा के इतिहास-लेखन के आधार तैयार किए जा सकते हैं । इस शोधकार्य में हिन्दी - गुजराती की तद्भव, देशज तथा अनुकरणात्मक धातुओं के तुलनात्मक वर्गीकरण से फलित साम्य, दोनों भाषाओं के इतिहास-लेखन का एक पराक्ष, छोटा-सा किन्तु महत्त्वपूर्ण आधार
बन सकता ।
1.8 संस्कृत की जो धातुएँ किसी आधुनिक भारतीय आर्यभाषा के प्राचीन काल में ग्रहण न होकर आधुनिक काल में ग्रहण की गई और जिन्होंने रूप - विकार धारण किया इन्हें यहाँ (डा. ग्रियर्सन तथा चटर्जी महोदय के निर्देशानुसार ) अर्धतत्सम कहा गया है। पंडित किशोरीदास वाजपेयी ने 'अर्धतत्सम' शब्द प्रयोग का मखौल उडाते
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२०४
हिन्दी - गुजराती धातुके श
हुए पूछा है कि क्या 'तिहाई तथा चौथाई तत्सम' जैसे शब्द प्रयोग भी नहीं करने पड़ेंगे ? वास्तव में 'अर्धतत्सम ' शब्दप्रयोग गाणितिक नापतौल के लिए नहीं है । आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं ने अपनी शब्दसमृद्धि बढ़ाने के लिए बिना रूपविकार के जिन संस्कृत धातुओं का व्यवहार शुरू किया उन्हें तत्सम तथा उत्तरकालीन रूपविकार के साथ जिनका प्रयुक्त किया उन्हें अर्धतत्सम कह के हमें भाषापरिवर्तन की एक विलक्षणता को समझना है । परिवर्तन के सहज क्रम में तो सभी संस्कृत धातुएँ तद्भव रूप में ही हिन्दी - गुजराती तक पहुँचनी चाहिए थीं। ग्रियर्सन ने कहा है कि क्रियाएँ तत्सम नहीं हो सकतीं । यदि उनमें से कुछ की धातु किसी प्रकार तत्सम हो भी तो काल - रचना, वाच्य परिवर्तन आदि के कारण वे तद्भव रूप धारण कर लेती हैं 4 । विज्ञान तो यहाँ तक कहता है कि कोई भी शब्द दुबारा उच्चरित होता है तब अपने पूर्वरूप से कुछ भिन्न तो होता ही है । परन्तु सादृश्य आदि के कारण हम उसे उसके पूर्वरूप में ही पहचानते हैं । यह एक हकीकत है कि आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं ने प्राकृत - अभ्रंश की प्रक्रिया से न गुजरने वाली कई धातुएँ संस्कृत से ग्रहण की हैं। यह एक सांस्कृतिक घटना है। इसे कई प्रभावों के संदर्भ में समझा जा सकता है । यहाँ उल्लेखनीय तथ्य यह है कि अन्य तत्सम-अर्धतत्सम शब्दरूपों की अपेक्षा तत्सम और अर्धतत्सम धातुओं की संख्या कम है। हाँ, गुजराती की अपेक्षा हिन्दी में यह प्रवृत्ति कुछ अधिक रही, बोलियों में भी । डा. शुकदेव सिंह ने उदाहरण देकर प्रतिपादित किया है कि भोजपुरी में कुछ ऐसी भी अर्धतत्सम धातुओं का प्रचलन है, जो संस्कृत की मूल धातुओं से प्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध हैं । यह कथन भी डा. सिंह का है कि खड़ीबोली में अर्द्ध-तत्सम धातुओं का अनुपात अधिक है, इसलिए कि खड़ीबोली साहित्यिक भाषा है । बोल्चाल की गुजराती और साहित्यिक गुजराती में उतना अंतर नहीं हैं । फिर भी साहित्यिक एवं शास्त्रीय गद्यलेखन के देढ़ शती के इतिहास ने तत्सम - अर्धतत्सम धातुओं का लगभग इसी अनुपात में प्रयोग किया है। सार्थ गुजराती कोश में मगनभाई देसाई ने जिस प्रकार कुछ अंग्रेजी शब्दों से ''आक्सव', 'क्लेव' आदि गुजराती धातुरूप बनाए हैं इसी प्रकार तत्त्वज्ञान, मनोविज्ञान तथा साहित्य-समीक्षा जैसे विषयों के कुछ विद्वानों ने पारिभाषिक पर्याय खोजते खोजते धातु, क्रियार्थक संज्ञा तथा संयुक्त क्रियाओं के संस्कृताश्रित प्रयोग किए हैं । कुछ प्रयोगशील कवियों ने अश्व, वृक्ष आदि संज्ञाओं के क्रियारूप बनाए हैं । पिछले देढ़-दो दशक में व्याप्त दोनों भाषाओं की इस प्रवृत्ति को आत्यंतिक मानकर ऐका धातुओं का परिशिष्ट में भी समावेश नहीं किया है। अलवत्ता, भविष्य की अनिश्चितता इस नकार को पलट भी संकती है।
1.9 हिन्दी की 2981 धातुओं के पर्याय के रूप में 1126 गुजराती धातुएँ प्राप्त होती हैं । इनमें से 555 धातुओं में पूर्णतया रूपसाम्य है। 571 धातुओं में आंशिक रूपसाम्य है । पूर्णतया रूपसाम्य रखनेवाली • धातुओं में से 468 धातुओं में अर्थसाम्य है, आंशिक रूपसाम्य-युक्त धातुओं में से अर्थ - साम्य रखनेवाली धातुएँ 502 हैं, जब कि थोडा-बहुत अर्थवैषम्य जताती धातुएँ 87 + 69 = 156 हैं। जो धातुएँ समानस्रोतीय नहीं हैं उनके ध्वनिसाम्य का महत्त्व नहीं दिया । केवल देशज धातुएँ ही इसमें अपवाद - रूप हैं क्योंकि इनके स्रोत संदिग्ध हैं । अतः अर्थ तथा प्रयोग की सहायता से इनका चयन किया था ।
2. परिवर्तन, वृद्धि तथा क्षति :
2.1 भाषाविज्ञान के क्षेत्रविस्तार के बारे में विद्वानों के मतभेदों का उल्लेख करते हुए पाल किपास्की ने . हर्मन पाल की इस मान्यता का जिक्र किया है: भाषाविज्ञान से सम्बन्धित सारी स्पष्टताएँ अनिवार्य रूप से
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आ. बिश्लेषण तथा निष्कर्ष
२०५ ऐतिहासिक हैं। बाद में, शोसूर ने प्रत्येक भाषिक स्थिति में एक स्वयंप्राप्त व्यवस्थित संचरना देखी । फलतः भाषाविज्ञान के दो क्षेत्र स्पष्ट हो गए : ऐतिहासिक तथा संरचनात्मक । इन दोनों के अध्ययन की पद्धतियाँ भी भिन्न होती गई।
शोसूर की यह स्थापना भी व्यापक रूप से स्वीकृत हो चुकी है कि परिवर्तन तथा संरचना परस्पर सम्बद्ध
एकर्ष भाषाविज्ञान के सिद्धान्तों के परीक्षण के बाह्य मूर्त आधार हो सकते हैं। दूसरी और ऐतिहासिक समाधान प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी भाषाविज्ञान के सिद्धान्तों ने-विशेष कर के वर्तमान सिद्धान्तों ने नहीं उठाई।
2.2 परिवर्तन के सैद्धान्तिक आधार क्या हैं ? भाषिक परिवर्तन नियमित होता है या उसमें वैविध्य पाया जाता है ?
एण्टिला ने कहा है कि प्रत्येक अनियमितता के पीछे कोई कारण होता है। कभी कभी तो अनियमितताओं: तथा नियमितताओं का प्रमाण समान होता है। इसके बावजूद ऐतिहासिक भाषाविज्ञानियों को ध्वनिपरिवर्तन की. नियमितता की आधारशिला का ही आश्रय लेना है।
पाल किपास्की ने एक प्रश्न यह उठाया है कि पूर्ववर्ती ध्वनिनियम के अनुक्रम में ही क्या नये नियम का स्थान पाना संभव है? जहाँ भी क्रम निर्धारित हो पाया है, ध्वनि-परिवर्तन के अधिकांश नियम अनुपूर्ति के रूप में ही अस्तित्व में आए हैं ? इन नियमों की भूमिका शुद्ध रूप से ध्वन्यात्मक होगी जब कि पूर्ववर्ती काल में अस्तित्व में आ चुके नियम रूपात्मक भूमिका को पहुँच चुके हेांगे।
ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के अध्ययन का विस्तार बढ़ा। इसमें गहराई आई इसके साथ ही परिवर्तन की प्रक्रिया बहुआयामी दिखाई देने लगी । इसको समझने का प्रयत्न भी बढ़ा । ___ 2.3 तुलनात्मक तथा आंतरिक पुनर्गठन की पद्धतियाँ भाषिक परिवर्तन के हमारे ज्ञान पर आधारित हैं । परन्तु क्या भाषाओं के इतिहास केवल परिवर्तन के दस्तावेज होते हैं ? जैसा कि विनफ्रेड लेमान कहते हैं परिवर्तित होने के साथ भाषाएँ क्षतिग्रस्त भी होती हैं।
Besides changing. languges also under go Loss.
क्षति की इस प्रक्रिया को अभी व्यापक रूप से समझने का पुरुषार्थ नहीं हुआ । क्षति या लोप की तरह परिवर्तन के साथ एक और प्रक्रिया देखी जाती है-वृद्धि की। 'धातुकोश' में मूल धातुओं के साथ परवर्ती
करूप हई ध्वनियों के शताधिक उदाहरण मिलेंगे। वृद्धि ध्वनि, रूप तथा अर्थगत ही नहीं होती; पूर्णतया शब्दगत भी होती है। विदेशी भाषाओं से हिन्दी में आया हुआ धातुसमूह इन्हीं घटनाओं का निर्देश . करता है। क्षति की प्रक्रिया का विद्वानों ने अधिक सूक्ष्मता से देखा है। भाषिक सम्बन्धों के क्रम-निर्धारण के लिए शब्दसामग्री में हुई क्षति का कालानुवर्ती अनुपात (रेट) या सुरक्षित शब्दसामग्री का प्रतिशत उपयोग में लिया जाता है। इसे कालानुवर्ती भाषिक परिवर्तन का प्रमाण-ग्लाटोक्रोनोलाजी कहते हैं । ऐतिहासिक हेतुओं के लिए शब्दसमूह के अंकशास्त्रीय अध्ययन की पद्धति का उपयोग होता है। इस व्यापक संज्ञा का शब्दकोशीय सामग्री-संरक्षणशास्त्र---'लेक्सिको स्टेटिस्टिक्स' कहते हैं। लेमान के अनुसार जिन भाषाओं का सम्बन्ध निकट भूतकाल में देखा-परल्या जा सकता है और जो समान सांस्कृतिक विस्तार में बोली जाती हैं उनके विषय में कालानुवर्ती भाषिक परिवर्तन-प्रमाण--'ग्लोटोक्रोनोलोजी' के द्वारा उपयोगी जानकारी प्राप्त हो सकती है।
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हिन्दी - गुजराती धातुकेाश फलस्वरूप, उनमें हुए परिवर्तन
2.4 भारोपीय परिवार की भाषाओं के पिछले देढ सौ वर्ष के अध्ययन के के द्वारा विद्वानों ने उनका इतिहास निर्धारित किया है, उनके पारस्परिक सम्बन्धों को समझाया है । हिन्दी - गुजराती एक ही परिवार की भाषाएँ होने के साथ साथ कुछ विदेशी भाषाओं से विशेष कालखण्डों में लगभग एकसाथ प्रभावित हुई हैं । इन दोनों भाषाओं के विशेष अध्यनन की सामग्री के रूप में इनकी धातुओं के शब्दकोशीय सामग्री - संरक्षणशास्त्रीय 'लेक्सिको स्टेटस्टिकल' निष्कर्ष निम्नलिखित हैं :
२०६
[ इस पद्धति के अंतर्गत सामान्यतया कुछ चुने हुए शब्दों को लेकर विविध भाषाओं में उन के सुलभ रूपका अध्ययन लरके निष्कर्ष निकाले जाते हैं ।]
3. निष्कर्ष :
3.1 विलियम ड्वाइट व्हिटनी ने 'रूट्स, वर्बफेार्ल्स एण्ड प्राइमरी डेरिवेटिव्स आफ ध संस्कृत लेंग्वेज' के अंत में धातुसूची दी है। जिसमें कुल मिलाकर 1014 संस्कृत धातुओं का समावेश है । परन्तु उनमें 85 धातुएँ दा से लेकर पाँच की संख्या में ध्वनिसाम्य रखती हैं । कुल जोड में से इन 85 धातुओं का कम करने पर 829 धातुएँ बचेंगी ।
डा. गजानन पळसुले ने 'ए कान्कोर्डन्स आफ संस्कृत धातुपाठाज' में कुल मिलाकर 3706 संस्कृत धातुओं का ससावेश किया है । इनमें 920 धातुएँ ध्वनिसाम्य के आधार से कम करने पर 2786 संस्कृत धातृएँ बचेंगी। ये धातुएँ वास्तव में 'पुस्तकीय' हैं और निःशेष गणना के प्रयत्न में इनमें संख्यामेद आ गया है। व्हिटनी द्ववारा निर्दिष्ट धातुओं में से 200 धातुएँ संस्कृत के प्रारंभिक काल में पाई जाती है; लगभग 500 धातुएँ दोनों काल- विभागों में तथा 150 से कम परवर्ती काल में पाई जाती हैं । डा. पळसुले ने संस्कृत की गणव्यवस्था के आधार से सभी सुलभ धातुपाठों में प्राप्त धातुओं में कितनी क्षति - वृद्धि हुई इसका गणित दिया है । वृद्धि का प्रमाण उनको क्षति से ज्यादा लगा है । इनके द्वारा निर्दिष्ट सभी धातुएँ किसी भी काल की संस्कृत में एक साथ व्यवहृत नहीं होती होंगी यह तो स्वयंस्पष्ट है, परन्तु जब लिखित सामग्री के उपयोग से ही निष्कर्ष तक पहुँचना अनिवार्य हो तब यह मानकर चलेंगे कि संस्कृत में अधिक से अधिक 2786 धातुएँ प्रयुक्त हुई हैं और एक धातुः एक अर्थ के हिसाब से इनकी संख्या 3706 होती है । धातुसंख्या की गणना डा. पळसुले ने नहीं की, इस शोधकर्ता ने की है।
3.2 प्रस्तुत प्रबन्ध के द्वितीय खण्ड के धातुकोश में 877 तद्भव हिन्दी भ्रातुओं का समावेश हुआ 1 इनमें से 476 धातुओं के गुजराती रूप मिलते हैं। धातुकोश में तो तुलना के लिए संझा, विशेषण आदि का भी निर्देश किया है। इस गणना में केवल धातुओं का ही समावेश है । इन 476 गुजराती धातुओं में 78 धातुएँ ऐसी हैं जिनमें से किसी की एकाध अर्थच्छाया भिन्न है या किसी में पूरे अर्थ की भिन्नता है ।
बालियों तथा प्रयोगों के कारण आए रूप - वैविध्य से बढे संख्याभेद को दूर करने के बाद 2981 हिन्दी धातुएँ शेष रहीं। इनमें तद्भव धातुओं का प्रतिशत 29.4 है । तद्भव विभाग में हिन्दी के साथ दी गई गुजराती धातुएँ 54.2 प्रतिशत हैं ।
3.3 हिन्दी की देशज धातुओं की संख्या 1160 है । इस संख्या के सामने 308 मिलती हैं। इनमें से अधिकांश समानस्रोतीय हैं । यहाँ दी गई 308 गुजराती देशज धातुओं में अर्थच्छाया या अर्थ की भिन्नता लक्षित होती है । हिन्दी में देशज धातुओं का
गुजराती की देशज धातुएँ
धातुओं में से 56 प्रतिशत 39 है।
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आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
२०७ इन धातुओं के साथ गुजराती की 25.7 प्रतिशत देशज धातुएँ प्राप्त हुई हैं। 1160 हिन्दी देशज धातुओं में से 310 पूर्ववती काल में अस्तित्व में थीं। गुजराती को अपनी देशज धातुओं की संख्या उज्लेखनीय रूप से बड़ी है ।
3.4 हिन्दी में 367 अनुकरणात्मक धातएँ हैं। ये कुल संख्या की 12.3 प्रतिशत हैं। इनके साथ गुजराती की अपनी 103 धातएँ मिली हैं। जो हिन्दी धातुओं की 30.8 प्रतिशत है। गुजरातो की अपनी अनुकरणात्मक
ख्या काफी बडी है। ऊपर निर्दिष्ट प्रतिशत केवल तलनात्मक दृष्टि से दी गई धातुओं का है। इनके 15 गुजराती रूपों में अर्थ या अर्थच्छाया की भिन्नता लक्षित होती है। हिन्दी की 367 अनुकरणात्मक वातुओं में से 87 पूर्व-प्रचलित हैं।
3.5 हिन्दी की 246 तत्सम धातुओं के साथ गुजराती की 122 धातुएँ मिली हैं। जिनका प्रतिशत क्रमशः 8.2 तथा 49.6 होगा। पांच गजराती रूप अर्थ या अर्थच्छाया की भिन्नता रखते हैं।
3.6 धातुकोश में दी गई अर्धतत्सम धातुओं में से अधिकांश काव्य में प्रयुक्त ते कुछ कालग्रस्त भी हैं। इनकी संख्या 238 है। हिन्दी की कुल धातुओं की ये आठ प्रतिशत हुई । इनके साथ रखने योग्य गुजराती रूप 96 हैं जिनमें से कई तत्सम हैं। ये धातुएँ हिन्दी अर्धतत्सम की 403 प्रतिशत हैं। इन हिन्दी-गुजराती अर्धतत्समों में केवल दो धातुओं के बीच ही अर्थभिन्नता पाई जाती है।
3.7 हिन्दी-गुजराती में प्रयुक्त होता विदेशी शब्दसमूह बड़ा है। परन्तु संज्ञा, विशेषण आदि की अपेक्षा क्रियाएँ कम मिलती हैं। इनकी केवल 93 धातुएँ ही हिन्दी में प्रयुक्त होती हैं जिनमें से अधिकांश अरबी-फारसी हैं। अंग्रेजी से तो केवल एक ही (नाम) धातु उतर आई है ('फिल्मा')। हिन्दी धातुओं में विदेशी धातुओं का प्रतिशत केवल 3.1 है। इन धातुओं के 22.5 प्रतिशत रूप गुजराती में भी प्रयुक्त होते हैं। इनमें से केवल दो धातुओं में अर्थभिन्नता पाई जाती है।
तुलनात्मक वर्गीकरण : अ
अर्थ या अर्थच्छाया की
हिन्दी की वर्गीकृत धातु हिन्दी संख्या
गुजराती प्रतिशत
भिन्नता रखनेवाली टिप्पणी संख्या* प्रतिशत
धातुएँ
877
29.4
78
तद्भव देशज
476 308
54.2 25.7
1160
39
अनु.
अनु.
367
367
12.3
12.3
103
हिन्दी की 310 देशज-धातुएँ पूर्व
प्रचलित हैं। हिन्दी की 87
अनु. धातुएँ पूर्वप्रचलित हैं।
103
30.8
30.8
15
15
हिन्दी की 87
8.2
122
तत्सम अर्ध सम विदेशी
246 238
8
96
49.6 40.3 22.5
93
3.1
21
6
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२०८
वर्गीकृत धातु
तद्भव
देशज
अनु.
तत्सम
अर्ध
विदेशी
पूर्ण रूप-साम्य रखती हि-गु. धातुएँ
228
162
32
97
21
15
* तुलनात्मक वर्गीकरण : आ
इनमें पूर्ण अर्थसाम्य– इनमें आंशिक आंशिक रूपसाभ्य युक्त धातुएँ
अर्थसाम्य वाली धातुएँ
युक्त हि-गु. धातुएँ
192
123
25
94
20
14
36
39
7
3
1
हिन्दी - गुजराती धातुकोश
248
146
71
25
75
6
इनमें पूर्ण इनमें आंशिक
अर्थसाम्य अर्थसाम्यवाली रखती धातुएँ.
धातुएँ
208
128
64
23
74
5
40
18
721
एक स्पष्टता यहाँ आवश्यक है। जिन हिन्द - गुजराती धातुओं में पूर्ण रूपसाम्य दिखाई देता है उनमें भी वास्तव में पूर्णतया रूपसाम्य नहीं होता । 'उट', 'आज', 'कर', 'खा' आदि धातुरूप हिन्दी और गुजराती में पूर्ण रूपमाम्य रखते हैं, इनके उच्चारण की आकृतियाँ भी समान हैं। परन्तु 'जड', 'पढ़' आदि में रूपसाम्य नज़र आने पर भी पूर्णतया उच्चारण-साम्य नहीं है । यहाँ लिपि की मर्यादा भाषिक अध्ययन की मर्यादा बनती है । दूसरी ओर हिन्दी 'मिल' और गुजराती 'मळ' में पूर्ण नहीं, आंशिक रूपसाम्य दिखाई देता है परन्तु इन दोनों धातुओं के मूल में तो संस्कृत - प्राकृत 'मिल' है । जो ध्वनिभेद - रूपभेद लक्षित होता है वह तो इन दोनों भाषाओं की स्वतंत्र विकास प्रक्रिया का परिणाम है। इस प्रकार 'मिल' 'और 'मळ' मूलतः पूर्ण रूपसाम्य की धातुएँ होने के बावजूद हिन्दी - गुजराती की वर्तमान भाषिक स्थिति के अनुसार इन्हें आंशिक रूपसाम्ययुक्त धातुएँ मानकर उपर्युक्त गणना की गई है। गुजराती में ह्रस्व-दीर्घ के उच्चारण में वैसा अंतर नहीं है जो हिन्दी में है । इसलिए प्रस्तुत गणना में हिन्दी 'उग' तथा गुजराती 'ऊग' आदि को पूर्ण रूपसाम्ययुक्त धातु माना है। गुजराती में दीर्घ लिखे जाते कई रूपों का टर्नर महोदय ने ह्रस्व लिखा है ।
4. फलश्रुति :
इस शोधकर्ता के लिए हिन्दी और गुजराती की क्रियावाचक धातुओं का यह तुलनात्मक अध्ययन जिज्ञासापूर्ति का एक विरल निमित्त बना । जिज्ञासा की आंशिक पूर्ति भी विस्मय जगाती है और विस्मयजन्य आनंद जिज्ञासा की नई यात्रा को जन्म देता है ।
1
यहाँ रवीन्द्रनाथ की वह उक्ति याद आ जाती है: 'कत आजानारे जानाइले तुमि ।' यदि मैं इस अध्ययन से न गुजरता तो कित - कितनी धातुओं से, इनके रूपवैविध्य से अनजान ही रह जाता ! इनकी सृष्टि भी मानवीय सृष्टि की तरह इतनी रसप्रद हो सकती है यह अब तो अनुभव की बात है, पहले कल्पना भी नहीं थी ।
अभी सहज रूप से ही एक बंगला पंक्ति याद आ गई ! हो सकता है कि पंजाबी, मराठी और बंगला को मिलाकर इन पाँचों भाषाओं की धातुओं का तुलनात्मक अध्ययन करने का मौका मिले ! अलग अलग व्यक्तियों के द्वारा दो दो भाषाओं के ऐसे तुलनात्मक अध्ययन भी भविष्य में इतना तो सिद्ध कर ही सकते हैं
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आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
२०९
कि हिन्दी के साथ अन्य कौन-सी आधुनिक भारतीय आर्यभाषा अधिकाधिक निकटता रखती है ? बिना अध्ययन के भी कोई उत्साहमूर्ति इसका जवाब दे दे, परन्तु वह केवल राय होगी जब कि सामग्री के साथ अध्ययन करने के फलस्वरूप जो प्राप्त होगा वह निष्कर्ष होगा-सिद्धान्त का प्रतिपादन होगा।
प्रस्तुत अध्ययन के तुलनात्मक तथा ऐतिहासिक अभिगम के कारण सूचित हुआ कि मूल संस्कृत की धातुसामग्री का कितना अंश सुरक्षित रहा। धातुकोश में हिन्दी की सभी सुलभ धातुएँ देने के फलस्वरूप वृद्धिलोप तथा परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरी सारी सामग्री सामने आ गई। धातुओं के आगमन की घटना से तो भाषा के विद्वान अच्छी तरह से परिचित थे, जहाँ कहीं बहस का मौका आया, पाँच-दस अरबी-फारसी धातुएँ गिना देते थे। इनकी संख्या इतनी बड़ी है यह तथ्य इस अध्ययन के पलस्वरूप सामने आया! अनुकरणात्मक धातुओं का इतनी बड़ी संख्या में अस्तित्व, इनका तथा देशज धातुओं का उल्लेखनीय संख्या में पूर्ववर्ती होना ये तथ्य भी विशेष रूप से स्पष्ट हुए।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के उद्भव और विकास की एक रूपरेखा विद्वनों के पास है अवश्य, किन्तु कौन-सी भाषा कब किससे अलग हुई इसका प्रामाणिक इतिहास हमारे पास नहीं है। डा. प्रबोध पंडित ने ध्वनिमूलक अध्ययन के द्वारा संस्कृत से कब कौन-सी प्राकृत अलग हई इसके क्रम का निर्देश किया है सामग्री से सिद्धान्त और सिद्धान्त से तथ्य तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ केवल धातुओं का तुलनात्मक-ऐतिहासिक अध्ययन किया गया, भविष्य में समग्र शब्दराशि के ध्वनि, रूप तथा अर्थमूलक एवं व्याकरण-विषयक अध्ययनों के द्वारा हम सभी आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के क्रमिक इतिहासेां का साक्षात्कार कर सकेंगे। भाषा भले ही असंलक्ष्य रूप से आगे बढ़ती रहे, हम भूतकाल में जाकर इसका पुननिर्माण करेंगे !
टिप्पणी
लं
1. पृ. 67 भोजपुरी और हिन्दीका तुलनात्मक अध्ययन 2. पृ. 9 हिन्दी में देशज शब्द
पृ. 74 गुजराती भाषाना इतिहासनी केटलीक समस्याओं 4. पृ. 136 हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग
पृ. 205-6 टेस्टिंग लिंग्विस्टिक हाइपोथेसिस 6. पृ. 76-77 गुजराती भाषाना इतिहासनी केटलीक समस्याओं 7. पृ. 309 न्यू होराइजन इन लिंग्विस्टिक्स 8. पृ. 107 हिस्टोरिकल लिग्विस्टिक्स : एन इण्ट्रोडक्शन 9. दे. प्राकृत भाषा
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परिशिष्ट
1. गुजराती धातुसूची 2. महत्त्वपूर्ण शब्दकोश 3. संदर्भसूची
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परिशिष्ट-1
गुजराती धातु-सूची [यहाँ 2136 गुजराती धातुएँ दी गई हैं। रूपवैविध्य के कारण समाविष्ट (काष्टक में दी हुई 191) धातुएँ कम करने पर 1945 धातुएँ शेष रहेंगी]
____ अकडा, अकळा, अखडा, अघ, अचक, (उचका,) अछवा, अछाड, अछाव, अज, अजमाव, अजवाळ, अजोतर, अट, अटक, अटकळ, अटा, (अटवा,) अटेर, अटोप, अठवा, अठिग, (अठींग,) अड, अडक, अडप, अडबड, अडवड, अडवाळ, अडाव, अढेल, अणसार, अणाव, अथड, अदरक, अधरक, अधुसार, अनुकंप, अनुसर, अपसर, अपमान, अफरा, अफाळ, अबगर, अभडा, अभिसींच, अभिवंद, अमळा, अमूंझा, अर्प, अलव, अलाण, अवखोड, अवगण, अवट, अवतर, अवधार, अवरोध, अवहेल, अवेर, अण्टा, अळदा, अळपा, (अळसा,) अळांस, अधोळ, अंजा, अंटवा, (अंटेवा,) अंबोळ - आख, आखड, आखर, आगर, आचक, आचर, आउट, (आछेट,) आछर, आट, आटक, आटोप, आद, आण, (आथड,) आथ, आथम, आथर, आदर, आप, अफरक, आफर, आफळ, आभड, आमळ, आरड, आरंभ, आरोग, आरोह, आलळ, आलाप, आलिंग, आलेख, आलोच, आव, आवकार, आवट, आवड, आवर, आवर्त, आशर, आसरड, आळस, आलेख, आंक, आंगम, आंचक, आंज, आंट, आंतर, आंब
इच्छ, इजार, ईच, ईतग, ईज
उकाण, उकाळ, उकांस, उकेल, उखाड, (खेड,) उगाम, उगार, उघाड, उपराव, टचार, (उच्चार,) उचेड, उचेल, उछेद, उछेर, उजमा, उजा, उजास, उजाळ, उजेर, उझरड, उटांक, उठंग, उठाव, उणाव, उतरड, (उजेड,) उत्थाप, उत्पत, उथाप, उथाम, उद, उद्भव, उधडक, (उधरक), उधेड, उधेर, उना, उपकर, उपज; उपराज, उपाड, उपास, उफरांट, उबा, उबेट, उबेळ, उभार, (उमेळ,) उमेर, उमेळ, उलाळ, उलेच, उल्लेख, उवेश्व, उरोट, उश्केर, उसरड, उसार, उसेट, उसेड, उसेव
ऊकण, ऊग, ऊगट, ऊपळा, ऊचक, (ऊचड,) ऊचण, (ऊचर,) ऊचव, (ऊचळ,) ऊचीज, ऊछळ, ऊज, ऊजमा, ऊजर, ऊजव (ऊझर,) ऊटवा, ऊठ, ऊड, ऊत, (ऊतड,) उतर, ऊथड, ऊदक, ऊधर, ऊधळ, ऊनवा, (ऊपज,) ऊपण, ऊपस, ऊफण, ऊब, ऊभ, ऊभर, (ऊभरा,) ऊभळ, ऊमग, ऊमट, (अमड,) ऊमल, ऊरझ, ऊलट, ऊलस, ऊलळ, ऊसप, ऊसर, ऊंघ, ऊंचक, ऊंज, (ऊबेळ)
एझ, एरा, एलर, एलळ, एंच. एंट
ओक, ओखण, ओखर, ओस्तव, ओखांग, ओगदाळ, (ओगधाळ,) ओगळ, ओघ, आघा, (ओच,) (ओचर) ओला, ओछाड, ओज, ओट, ओठव, ओड, ओडा, ओढ, ओथ, आथर, आध, आथर, ओंनाळ, ओप, ओभा, ओर, ओरप, ओरव, ओलपाव, ओलव, ओलांड, ओवराळ, ओवार, ओवाळ, ओस, ओसर, ओशंक, (ओसंगा.) ओळ, ओळख, ओळग, ओळव, आळंग, आळंड, ओळांस, आता
(1) गुजराती कोशों में अनुस्वारयुक्त असरों का अंत्य क्रममें रखा जाता है।
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हिन्दी-गुजराती धातुकोश ककराव, ककळ, कगर, कचकच, कचड, (कचर) कचव, कचवा, कचूंद, कछ, कजळ, कट, कटकटाव, कटाव, कठ, कडकड, कडवाट, कढ, कढण, कण, कणक, कणकण, कणमण, कणस, (कणसड,) कतरा, कथ, कथळ, कद, कदर, (कदरा,) कनड, कन्ना, कबड, कबडा, कबूल, कमकम, कमण, कमा, कमाव, कर, करकरा, करकोल, (करगर,) करचाव, करड, करप, करब, करमण, करमोड, करांज, (कल,) कलव, कलाव, कल्प, कव, कवठ, कवा, कष्ट, (कष्टा,) कसकस, कसण, कहे, कळ, कळकळ, कळळ, कळा, कळेळ, कंटाळ, कंडार, कंप, का,
। (काजळ,) काट, काढ, कातर, काप, कालव, पांगर, कांत, कांस, (किंगला,) कीकला, कुधर, कुंजरा, कूट, कूड, कूद, कूद, केळव, काकडा, कोकर, कोच, कोप, कार, कोस, कोरांख, काह, काळ, क्षम
खखड, (खखर,) खच, खचक, (खचका,) खचकाव, खट, खटक, खटा, खड, खडक, खडप, खण, खतव, खद, खदड, (खदेड,) खबकाव, खबुक, खबेड, खम, खमण, खर, खरच, खरड, (खरप,) खरपा, खराद, खरीद, खरेट, खल, खला, खलेळ, खस, खसार, खळ, खळक, खळखळ, खळभळ, (खळा,) खळेळ,) खखरोट, खंखळाव, खंखार, खंखेर, खंखार, खंगाल, (खंगाळ,) (खंचा,) खंजबाळ, (खजोळ,) खटा, खंड, खा, (खाखराट,) खोट, खातर, खाप, खाबक, खालव, खाळ, (खांखरोट,) खाँच, खांस, खिला, खीज, खील, (खीसक,) खूत, खूप, खूल, खूखार, खूच, चव, खूट, (खूत,) खूद, खूदाळ, खूप, खेड, खेल, खेच, खा, खोखा, खोज, खोटक, (खाटका,) खोड, खोडंग, (खाडंगा) खोतर, खाद, खेोभ, (खाभर,) खार, खारवा, खास, खोळ, खोळंब, (खोळंभ,) खांखार
गगड, (गडगड,) गच्छ, गटाव, रड, गडथल, गडदार, (गडदाव,) (गडबड,) गग, गद, गदड, (गदर,) गदार, गदाव, गपा, बड, गभरा, गम, गर, गरगड, गरज, गरड, गरमा, गर्ज, (गर्भा,) गलवा, गवेष, गहेक, गळ, गळगळ, गळच, गंचला, गंज, गा, गाच, गाज; गाठ, गाळ, गांगर, गांठ, (गिन्ना,) गीगला, गीरव, गूड, गूंथ, गूद, गुंदर, गोख, (गेखाट,) गोटा, गोट, गोठक, गेोड, गेत, गाथाट, गोद, गोदाब, गोवा, गेल, गाय, गोहा, गांध, प्रथ, ग्रस, ग्रह
पघर, पचड, (घचरड,) घट, (घटकाव,) घड, घडूड, घम, घमक, घर क, घरघ, घरड, घबड, घस, घसरड, घात, घाम, घाल, घास, घांघरड, घीस, (घुघराव,) घुमरड, घुर, घूध, घूघर, (घूघरा,) घस, घूमड, घूरक, धूर का, घूस, चूंट, घेर, घोच, घोर, घोरव, (घांच,) घांघाट, घाट
चकचक, चकास, चग, चगद, (चगदाळ,) चगमग, चगळ, चचर, (चचण,) चट, चटक, चड, चढ, चण, (चणचण,) (चतराव,) चपकाव, चपड, चपस, चपाट, चब, चबकाव, चबोळ, चभड, चमक, चर, चरक, चरच, (चरचर,) चरण, चरेड, (चरेर,) चर्च, चल, चव, चवळ, चस, चसक, चळ, चळचळ, (चळवळ,) (चंतव,) चंदा, चंदर, चाख, चाट, चातर, चाल, चाव, चास, चाळ, चांचाट, चांप, चिकार, चिबाळ, चिला, चिंत, (चितव,) चीच, चीचवा, चीड, चीण, चीत, चीतर, चीतव, चीन, चीप, चीम, चीमळ, चीमळा, चीर, चींध, (चींबाळ,) (चुंब,) चू, चूक, चूग, चूचव, चून, चूप, चूम, चूर, चूस, चूंका, चूंचवा, चूंट, चूंटियाट, चूंथ, चुंप, चेत, चेर, चेब, चा, चोक, चोखाव, चोट, चोड, चोडव, चाद, चोप, चोपड, चाब, चोष, चाळ, (चांट)
छक, छटक, छड, छडक-छण, छपक, छणकार, (छप,) छरक, ठरा, छल, छलक, छंछण, छछेड, छंड, छा, छाक, छाज, (छाण,) छातर, छाप, (छावर,) छांट, छांड, छांद, छिटकार, छिद, छीछर, छीण, छीत, छीन, छीनव, छीप, छीरक, (छील,) छींक, छंछकार, छू, छूट, छून, छूट, छेक, छेड, छेतर, छेद, छेर, छेलार, छेवा, छंटा, छो, छोड, छोर, छोल, छोलार, छोळ
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गुजराती धातु-सूचि
२१५ ज, जकड, जख, जड, जण, जध, जनम, (जन्म,) जम, जर, जवार, जळ, जळजळ, जंतर, जप, (जा) जाग, जाच, जाण, जार, जाळव जीत, जीरव, जीव, जुवार, (जूत,) जूफ, जूहल, जो, जाई, जाख, जोखमा, जोगव, जोड, जोतर, जेाबा, (जोभा)
__ झकझोल, झकझोळ, अकला, झकूल, झग, झगझग, झगमग, झघड, झझम, झट, झटक, झटेर, झडप, झगकार, झणझण, झप, झपट, झपाट, (झपेट,) झत्रक, झबकोळ, झवाळ, झभा, झम, झमक, झमझम, झर, झन्ड, झरप, झरमर, झरसाट, झल, झलक, झलका, झलझल, झल्ला, इळमळ, झणहळ, झळंच, झळेळ, झंग्ख, शंखवा, झंझेड, झंपलाव, झंपा, (संपाव,) झाटक, झाडक, झाड, झाम. झार, शाल, शाळ. झीक. सीप. झाल. (झों सूक, झुड, झूम, झूट, झूफ, झेर, झोक, (झोकार,) झोल, झोळ, ओक, (झोंट,) झांस
टकरा, टकार, टचकार, (टचकाव,) टटकार, टटळ, टप, टपक, टपार, (टपेर,) टमक, टमटम, टरक, टरपर, टवळ, टसटस, टहक, टहेल, टहुक, टळ, टळक, 2ळवळ, टांक, टांग, टांच, टीक, ट.च, टीप, टूंकाव, ट्र, टेर, टेरव, टेव, टेवाळ, टेंकाव, टो, टेक, टोच, टोळव
ठग, ठन्टगाव, ठगळा, ठणठण, ठठकार, टटर, ठटळ, ठठाड, ठटार, टणक, टपक, (ठपका,) ठपकार, ठब, ठबक, (ठबका,) (टबकार,) (टबटबाव,) टमटम, टर, टरड, टलव, ठव, टस, टसक, (टसका,) ठंगरा, ठंठेर, ठंठोर, ठाट, ठाण, (ठालव,) टांस, ठीज, टींगरा, टूटवा, डूंग, ठेक, ठेप, ठेर, ठेरव, टेल, (ठेलव,) ठो, ठोक, ठोकार, ठोर, ठोल, (ठांस)
__ डाळ, डखोळ, डग, डगळ, डघा, डडळ, डपकाव, डपट, डपड़ाव, डप.लाव, डबकाव, डपट, डफडाव, डफणाव, डबक, डमर, डर, डरप, (डरपा,) इस, इसक, डहेक, डहें क, डहेळ, डळ, डळक, डंख, डाग, डाट, डाडड, डाढ, डांभ, डीफ, डीट, (डुमा,) डूक, डूच, डूब, डूल, डूंखराव, डूंगळा, डेपराव, डेरा, डेंड, डा, डोक, (डाका,) डोल, डोळव
____ददळ, दणक, (दणका,) ढबूक, ढबूड, (ढबूर,) ढरड, ढस, (ढसड,) ढळ, ढळक, ढंढोळ, ढांक, ढीच, (ढींच,) टूक, (दूंक,) दूंग, ढूंढ, ढेफ
___ तग, तज, तजगार, तड, तडक, तडप, तडफ, (तडफड) (तडसा,) तडक, (तड्स,) ततड, तनखाव, तप, तपास, तफडाव, तबा, तबडाव, तमतम, तर, तरक, तरछे।ड, तरड, (तरडा,) तरप, (तरपत,) (तरफड,) तरबड, तरभड, तरवर, तरवा, तरस, (तरसा,) (तरो,) तजे, तलप, (तवफ,) तलस, (तवर,) तसतस, दळ, तळवा, तळांस, तंतर, ताक, ताग, ताड, ताडक, ताण, ताप, ताव, तास, तांतर, तिरस्कार, तुच्छकार, (तुल,) तूट, तेड, तोक, तोड, तोतडा, तोतळा, बक, सत्रस, त्राग, त्राटक, त्राड, त्रास, ठ, त्रो, त्रोफ, त्रेहेक, त्रेहेका
__थ, थक, थडक, (थडका,) थडथड, थथडाय, थथर, थथेर, थर, थरथर, थरप, थरेर, थळ, (थाथड,) थाप, थाबड, थाम, थीज, थेप, थाथवा, थोभ
दड, दडब, दडवड, दडूक, दन, ददड, दपट, (दपेट,) दफणाव, दफनाव, दबडाव, दम, दमक, दरम, दरेड, दर्श, दलाव, दलार, दवराव, दवा, दह; दळ, दंड, दा, दाखव, दागव, दाझ, दाट, दाद, दाब, दाप, दार, दीप, दीस, दुणा, दुभाग, दुमा, दुराव, दुवा, (दुह,) दूझ, दूभ, दूम, दूल, दूष, दे, देख, दाट, दोढ, (दाढव,) दोड, दोन, दोर, (दोरव,) दाह, द्रमक, द्रव
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२१६
हिन्दी-गुजराती धातुकोश ____धक, धकाट, धकार, धकाव, धकेल, धख, (धग,) धडूक, धडूस, धगधण, धत, घप, धब, धनक, धबडा, धबधबाव, धबेड, (धोड,) धाव, धम, धमक, धमधम, धमार, धर, घरख, धरा, धर्ष, धलवल, धवराव, धस,
र, धंधोळ, धा, धाग, धात, धाबड, धार, धारव, धाव, धिणो, ध.क, धीर, धुडकाव, धुमा, धूज, धूण, धूत, धूप, धूम, धूंखाळ, धुंध, धूवा, घेणा, धेरवा, धेो, धेोकणाट, धोकाव, धोख, धेोप, धोलाट, धोवार, ध्या, धा ।
पकड, पखाळ, पखाड, पच, पचपच, पचरक, पचार, पछाट, पजव, पटक, पटपट, पटपटाव, पटाव, पड, पडकार, पडख, पडताळ, पढ, पत, परळ, पतीज, पदेड, (पदोड,) पपड, पमर, परख, परजळ, परट, परण, परणम, परत, परभव, परमाद, परवड, परवर, परस, परसेव, परहर, पगंत, परिपोष, परिप्वज, परिहर, परीक्ष, पराव, पल, पलक, पलट, पलपल, पलळ, पलाण, पसर, परवाव, परत, पहाण, परिहार, पहे।च, (पहेांच,) (पहेात,) पळ, पळक, पळेोट, पंका, पंजेट, पंजेल, पंझेट, पंपाळ, पाक, पाच, पछेवा, पाटक, पाटव, पाथर, पाद, पाम, पारख, पारव, पालट, पालव, पाव, पास, पासव, पाळ, पांक, पांगर, पांचमणा, पी, पीख, पीगळ, पीट, पीड, पीरस, पील, पीस, पीख, पीज, पृछ, पूण, पूंख, पूंडल, पूंज, पेख, पेटव, (पेटाव,) पेध, पेर, पेस, (पेंध.) पो, (पोख,) पाढ, पाथाळ, पेमा, (पोरव,) पाव, पास, (पोष,) पोळ, पांक, (पेखि,) प्रकाश, प्रचार, प्रज, प्रणम, प्रतप, प्रयोज, प्रलप, प्रलंबा, प्रवद, प्रवर्त, प्रवेश, प्रशंस, प्रसर, प्रस्थाप, प्रहर, प्रार्थ, प्राश, प्रीछ, प्रेक्ष, प्रेर, प्रो
___फग, फगफग, फम्य, (फगोट,) (फगाळ,) फजेट, फटक, फटकार, (फटकाव,) पडफड, फफड, फर, फरक, फरहर, फल, फमक, फसाव, पळ, फंगोट, फंगळ, फंटा, फफेास, फाक, फाट, फड, फाल, फाव, फाळव, फांक, फाटव, फाफरड, फांस, पि.टकार, फीटव, फीण, फीद, फुत्कार, फुरराव, फूट, फूल, फूल, फेद, फेलाव, फेस, फेंक, फेंकार, (फेंद,) (फेंस,) फेाट, फेाल, फासलाय
बक, वक्ष, बखर, बगड, बच, बचकाट, बचकार, (बचार,) बजाव, अझड, (बाड,) बटक, बटा, बड, बडब, बहुवाव, बढ, ण, घण्टण, बावण, (बताड,) ताव, वाड, बद, बदल, बन, (बनटन,) बरक, बराड, बल, बलव, बहलाव, बह्व, बहार, (बहाव,) बहेक, (बहार,) ळ, बाखड, बाझ, बाण, वाटक, बाथड, बाथ, बाफ, बाप, बांक, बांट, बांध, बांधड, (वोधेड,) विराज, बी, वीज, बीड, (बीन,) बुकाट, बूझव, बृर, बूंग, बेस, बा, बोट, बोड, बाणा, बोदा, बोध, बोल, बोस, बोळ ..
भक्ष, भख, भचक, भचड, (भचरड,) भज, भजय, भटक, भटकार, भड, भडक, भडभड, भण, भगभग, भथ, भभड, भमराव भभूक, भर, भरड, भस, मळ, भळाव, भमेर, भभाळ, भ,ख, भाग, भाज, भाव, भास, भांग, (भांज,) भांभर, भीख, भीज, भीड, भांस, भृडक, (भूरक,) भूल, भूस, भूक, भंज, भूभव, (भूस,) भेज, भेट, भेद, भेरव, भोक, भोगव, भाळव..
मघमघ, मट, मटकाव, मटमटाव, मटार, (मटेर,) मढ, मद, ममळाव, मर, मरड, मरद, मलक, (मलका,) मलाव, मसमस, मसळ, महाल, मळ, मंड, मंतर, मा, माग, माण, मात, माप, माळ, मांज, मांड, मिचकार, मिचाव, मीट, मीच, (मींच,) मुकर, मुस्का, मूक, मूतर, मूरझा, मूर्छा, मूलव, मूझा, मूंढा, मूंड, मेंट, मेल, मो, मोकल, मोटव, मोड, मोर, मारव, मोह, मेळ योज
रखड, रखरख, रखेळ, रखाट, रग, रगड, रगदोड, रगरग, रच, रजोटा, रझळ, रट, रड, रडवड, रणक, रणझण, रपेट, रम, रमझव, रमरम, रव, खड, रखरख, रहे, रहेंस, रंग, रंज, रंद, राख, रागोट, राच, राज, राळ,
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गुजराती धातु-सूचि
२१७
रांध, रिसा, रोख, रीझ, (रीस) रींग, रूच, रूस, रूत, रूम, (रूस) रंम, रेड, रेल, (रेला) रेव, रेळ, रेंक, (रेस) रोक, राध, राळ, रोक, (रोख)
लक्ष, लख, लखोट, लग, लच, लचक, (लज) लड, लडथड, लण, लताड, लथड, लपट, लपडाव, लपरड, लपेड, लपा लपस, लबड, लबदा, लगधार, लरज, ललचा, ललव, लव, लसोट, लाह, लहर, (हलरा, ) लाहे, लहेक, लळ, लळक, लंगडा, लंगर, लंघ, लंब (लंबा) लाख, लाग, लाड, लातूर, लताड, लाद, (लांघ) लांच, लीप, (लींप) लीलव, लुट, लून, लूट, (लूट,) लूम, लूल, (लूट,) ले, लेख, लेप, (लेक) लोच, लोट, लोढ, लोथार, लाद, लोध, लोप, लाल, लोह
वकर, (वकार) वकास, वकाप, वखवख, वखाण, वखोड, वग, वगूत, वगाव, वघळ, वघार, वचक, ( वचका) वचकळ, वचड, वचळ, (वचाळ) वछूट, वट, वटक, वटल, वटवट वटाव, वढ, वण, वणस, वतड, (वतरड) (वताड, ) वद, वधाव, वधेर, वनार, चमास, वर, वरख, वरच, वरज, वरड, वरत, वरांस, वर्ज, वर्णव, वर्त, वर्ष, वलख, वलवल, वलार, वलूर, बलूंद, (वलंद) क्लव, वल्लाव, ववटा, (ववडा) वदळ, वस, वसूक, वह, वहे, वहेमा, वहेर, वहेंच, वहार, वळ, वळग, वळवळ, वळाव, (वळंद,) (वध) वळंभ, वंका, वंच, वंट, वा, वाग, ( वागोल) वागोळ, वाज, वाट, वाढ, वाघ, वापर, वाम, वार, वावर, वास, वाह, वांच, वांछ, विकस, विचर, विचार, विहार, विनर, विताड, विदार, विभा, विमान, विचड, विरम, विराज, विराध, विलग, विलप, विलस, विला, विलाग, विला, विलेोक, विलेाच, विलाप, विवर्त, विवास, विवेच, विशम, विश्रम, विसर, विसाद, विस्तर, विस्मर, विसर्ज, विसाम, दिसज, विहर, विहाण, विहस, वीछळ, वीदार, वीण, वीनव, वीपर, वीसम, वीसर, वींख, वींच, बींझा, वींट, वींदार, बींध, वूट, बूट, वेक, देख, वेगर, वेच, वेट, वेड, वेडफ, वेदव, वेतर, वेध, वेर, वेंढ, वासराव, वाळव, व्रज
शक, राणा, शम, शमशम, शरमा, शंक, शार, शिकार, शिराव, शेक, शेल, शेवाळ, शोच, शोभ, शोर,
शेष, (शांढ)
सकार, सज, सट सटक, सटकाव, सड, सडसड, (सणगा, ) सणसण, सणसार, सता, सताव, सत्कार, सद सदगर, सनकार, सन्मान, (सपा) सपडा, सवड, समज, समण, समर, समसम, समाप, समार, समाल, समेट, समोर, सर, सरक, सरकर, सरखाव, सरस, सरा, सराव, सराढ, सरांछ, सरांढ, सरोड, सर्ज, सलव, सलाड, सलूज, सवल, सवळ, सवा, सस, ससड, ससण, सहरा, सहे, सळ, सळक, सळग, सळवळ, संकडा, संकळा, संकेत, संकेल, संकोच, संकोड, संकार, संक्रोंड, संग्रह, संघर, संच, संचक, संचर, संचार, संजवार, संडाव, संता, संतोक, ( संतोख ) संतोर, संधा, संपेट, संबोध, संभर, संभव, संभाळ, संमान, संमोह, संवर, संवार, संवर्ध, संशोध, संसर संस्कर, संरकार, संहर, साकर, साज, साट, साटव, साथ, सार, साप, सारख, साल, सालव, साह, सांकळ, सांख, सांच, सांचर, सांड, सांतर, सांतळ, सांथ, सांध, सांपड, सांभर, सांभळ, सिदा, (सिधार ) सिधाव, सिंच, सरड, सीझ, सीध, सीप, सीव, (सींच) सुका, सुगा, सुधर, सू, सूज, सूझ, सूड, सूण, सूळ, सूसव, सूंघ, सूंछ, सृज, सेख, सेव, सैड, सेा सीखमा, सोड, सोर, सोरडा, सोराट, सावा, सोस, सोह, सोंठ, सोढ, सांप, सोळ, स्थाप, स्पर्ध, स्पर्श, स्फुर, स्मर, स्वीकार
हकार, हकाल, (हग,) हचमच, हठ, हडफ, हडफाट, हडबड, हडसेल, हडहड, हड्ड, हण, हणहण, हत, हतरड, हर, हरख, (हवा) हरवड, हर्ष, हल, हलक, ( हलफल) हवा, हस, हळ, हळक, हळफल, हंकार, हंखार, हाकट, हाकल, (हाकेट) (हाकोट) हाज, हाटक, हामल, हार, (हाल ) हांक, हांकाट, हांफ, हिमा, हिलाळ, हिंदोळ, हीच, (हींचक, ) हीण, हीमक, (हील,) (हीस,) ह्रींच) (हींचक,) हींड, हुङकार, हुलराव, हुल्लस, हुल्लास, हूक, हूण, हूल, हूंक, हेटास, हेर, हेख, हेल, हेवा, हेष, हेळक, हॅक, हो, होकाट, हार, (होलव) हावा, होळ
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महत्त्वपूर्ण शब्दकोश
परिशिष्ट-2 A Comparative and Etymological Dictionary of The Nepali Language,
-R. L. Turner, London, 1931 A Comparative Dictionary of The Indo-Aryan Languages
--R. L. Turner, London, 1966. A Dictionary of Sanskrit Grammer
-K. V. Abhyankar, J. M. Shukla, Baroda, 1961. Sanskrit-English Dictionary
-M. Monier-Williams, 1899 देशी शब्द-संग्रह
-बेचरदास दाशी, युनि. ग्रन्थ, अहमदाबाद, 1974 पाइयसद्दमहण्णवो
.- हरगोविंददास सेट, वारासणी, (वि. सं.) 1963 बृहद् हिन्दी कोश
~~-कालिकाप्रसाद तथा अन्य, ज्ञानमण्डल, वारासणी, (तृ. सं.) 1964 मानक हिन्दी कोश (1-5)
रामचन्द्र वर्मा तथा अन्य, संमेलन, प्रयाग, 1962-65 हिन्दी शब्दसागर (1-11)
-श्यामसुन्दरदास तथा अन्य, नागरी, काशी, 1929 मुजराती-हिन्दी कोश
---- नानुभाई बारोट, अंबाशंकर नागर तथा अन्य, विद्यापीठ, 1961 बृहत गुजराती कोश-1, 2
-के. का. शास्त्री, युनि. ग्रन्थ, अहमदाबाद, 1977, 81 भगवद्गोमंडल, 1-9
-भगवतसिंहजी, गांडल, 1944-45 सार्थ गुजराती जोडणी कोश
-मगनभाई देसाई विद्यापीट, अहमदाबाद, (पं. सं.) 1967 हिन्दी-गुजराती कोश
-मगनभाई देसाई विद्यापीठ, अहमदाबाद. (तृ. सं.) 1956
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संदर्भ-सूची
परिशिष्ट-3 (विषय से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्बन्धित ग्रंथ तथा लेख) हिन्दी-1 अवधी की साधित धातुएँ (भाषा-संरचना में साधित धातु का महत्त्व)
-मालतीदेवी दुबे (अप्रकाशित शोधप्रबन्ध) आजमगढ जिले की बोली में व्यवहृत प्रमुख धातु और क्रियापद (लेख)
-महेन्द्रनाथ दुबे, प्रज्ञा, अंक 12, भाग-1, 1965 आधुनिक ब्रजभाषा में संयुक्त क्रियाओं का स्वरूप
-अम्बाप्रसाद 'सुमन', भाषा, अंक ३, 1965 आधुनिक हिन्दी के नामधातु और नामिक संयुक्त क्रियाएँ (लेख)
--वि. ए. चेनिशोव, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष 62, अंक-1, 1958 शब्दों का अध्ययन
--भोलानाथ तिवारी, शब्दकार, दिल्ली, 1969 शब्दों का जीवन
-भोलानाथ तिवारी, राजकमल, दिल्ली, 1954 ['शब्द मोटे होते हैं जैसे अर्थविस्तार के निरीक्षणों की पुष्टि के लिए क्रियाओं के उदाहरण लिए गए हैं ।] हिन्दी और तामिल की समानस्रोतीय भिन्नार्थी शब्दावली,
__-वी. रा. जगन्नाथन् , केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा, 1969 हिन्दी की तद्भव शब्दावली,: व्युत्पत्तिकोष
---सरनामसिंह शर्मा, कालेज, जयपुर, 1968 [इस कोश में क्रियारूपों का भी समावेश है। शब्दों के संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी रूप देने के साथ अर्थ भी लिए हैं। हिन्दी शब्द-रचना
-भाइदयाल जैन, ज्ञानपीट, वाराणसी, 1966 नई क्रियाएँ नामक इक्कीसवें परिच्छेद में क्रिया-विषयक शास्त्रीय चर्चा के साथ मनोरंजक अंहा भी हैं। हिन्दी की क्रियाएँ
----चतुर्भुज सहाय, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा, 1968 हिन्दी की 'बनना' क्रिया
-~~~-ज्ञानशंकर पाण्डेय, भाषा अंक 3, 1969 हिन्दी की शब्द-सम्पदा
--विद्यानिवास मिश्र, राजकमल, दिल्ली, 1970
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२२०
हिन्दी-गुजराती धातुकोश |शब्दे की बहुआयामी चर्चा। अर्थविज्ञान तथा समाज-संदर्भ की दृष्टि से एक गंभीर तथा रसप्रद पुस्तक । विस्तृत शब्दानुक्रमणिका के अंतर्गत धातुओं का समावेश ।] हिन्दी कोषविज्ञान का उद्भव और विकास
-~~-युगेश्वर, भारतीय विद्या, वाराणसी, 1971 हिन्दी कोशां की परंपरा (लेख, 'भाषा-चिन्तन' पुस्तक में)
--भोलानाथ तिवारी, स्मृति, इलाहाबाद, 1971 हिन्दी कृदन्तज रूपों का विकास
-~-~-बालमुकुन्द, आनंद, वारासणी, 1968 हिन्दी क्रियाः स्वरूप और विश्लेषण
---बालमुकुन्द, आनंद, वारासणी, 1970 हिन्दी क्रियाओं का अर्थपरक अध्ययन
--कृष्णगोपाल रस्तोगी, रंजना, दिल्ली, 1973 [ग्रंय के परिशिष्ट 'क' के अंतर्गत 772 क्रियाओं की सूची दी गई है। अन्य आठ परिशिष्टों की सागग्री . भी 'धातुपाट' की दृष्टि से विशिष्ट, मूल्यवान ।] हिन्दी क्रिया की कालरचना
-चतुर्भुज सहाय, गवेषणा, अंक 8, 1964 हिन्दी क्रियापद
-जगदेवसिंह, गवेषणा, अंक 6, 1965 हिन्दी क्रिया-संरचना
- ---जयकृष्ण विद्यालंकार, गवेषणा, अंक 13, 1969 हिन्दी क्रियापदों की संरचना
___-जयकृष्ण विद्यालंकार, समन्वय, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा, 1967-68 हिन्दी देशज शब्दकोश
-चन्द्रप्रकाश त्यागी, लिपि, दिल्ली, 1977 [यहाँ समाविष्ट देशज धातुओं में से कुछ नये लेखकों की पुस्तकों से भी ली गई हैं ]. हिन्दी धातुक्रोश
....--मुरलीधरः श्रीवास्तव, शब्दलाक, वारासणी, 1969 लेखक की 'हिन्दी तद्भवशास्त्र' नामक पुस्तक में परिशिष्ट-2 के रूप में तद्भव-कोश दिया गया है इस
पुस्तक में 1028 धातुएँ दी हैं।] हिन्दी धातुसंग्रह
--ए. एफ. रुडोल्फ हानली, आगरा विश्वविद्यालय, 1956 [हिन्दी का प्रथम आधुनिक धातुकोश 1]
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संदर्भ-सूची
२२१
हिन्दी में क्रिया
-डा. ओ. गे. उलत्सिफेराव, पराग, दिल्ली, 1979 [क्रिया का अविधेय रूप' के अंतर्गत 'क्रिया की धातु' पृ. 55 से 58] . हिन्दी में देशज शब्द
—पूर्णसिंह डबास, नेशनल, दिल्ली, 1959 [देशज शब्दों का यहाँ वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है। व्युत्पत्ति की दृष्टिसे भी लेखक ने व्यवस्थित कार्य
किया है ।] हिन्दी में प्रयुक्त संस्कृत शब्दों में अर्थपरिवर्तन
---केशवराम, पाल, प्राची, मेरठ, 1964 हिन्दी में संयुक्त क्रियाएँ
---काशीनाथ सिंह, रचना, इलाहाबाद, 1976 [परिशिष्ट के रूप में हिन्दी संयुक्त क्रियाओं का कोश दिया गया है । समकालीन साहित्य से भी लेखकने
क्रियाएँ चुनी हैं।] हिन्दी-2 अवधी का विकास
–बाबूराम सक्सेना ('एवोल्यूशन आफ अवधी' इण्डियन प्रेस, इलाहाबाद, 1937 का अनुवाद) हिन्दी में संयुक्त किया-अभिव्यक्ति की वैकालिक विधा
-ज्ञानशंकर पाण्डेय, भाषा, अंक 2 1968 हिन्दी में संयुक्त संज्ञार्थक धातुओं का प्रयोग
-स्क्रोवनी, हिन्दी अनुशीलन, धीरेन्द्र वर्मा विशेषांक, प्रयाग, 1960 आगरा जिले की बोली
-रामस्वरूप चतुर्वेदी, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, 1961 [पुस्तक के नवम प्रकरण में क्रियापदों का वि. लैषण हैं। कवीर की भाषा
-~-महेन्द्र शब्दबार, दिल्ली, 1969 [पुस्तक के द्विर्तीय खण्ड के छठे अध्याय में क्रिया तथा धातु मी रूपगत चर्चा है। वर्गीकृत धातुपाठ
उल्लेखनीय । गुजराती और ब्रजभाषा का तुलनात्मक अध्ययन
-जगदीशप्राद गुप्त, हिन्दी साहित्य परिषद, प्रयाग 1967 ग्रामीण हिन्दी वोलियाँ
-हरदेव बाहरी, 1966 छत्तीसगढ़ी का उद्विकास
-डा. नरेन्द्रदेव वर्मा, रचना, इलाहाबाद, 1979 [अध्याय 23, छत्तीसगढ़ी की क्रिया-धातुएँ,274-2847
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२२२
हिन्दी-गुजराती धातुकोश छत्तीसगढ़ी का भाषाशास्त्रीय अध्ययन
-शंकर शेष, मध्यप्रदेश ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, 1973 [अध्याय-३ में 'क्रियापद' के अंतर्गत वर्गीगत धातुपाठ दिया गया है। कुछ तद्भव तथा अर्धतत्सम
धातुओं की व्युत्पत्तियाँ दी गई हैं।] छत्तीसगढीः बोली, व्याकरण और कोश
-- कान्तिकुमार, राधाकृष्ण, दिल्ली, 1959 ताजुबेकी
-भोलानाथ तिवारी, नेशनल, दिल्ली, 1970 दक्खिनी हिन्दी
-बाबूराम सक्सेना, हिन्हुस्तानी एकेडेमी इलाहाबाद, 1952 दक्खिनी हिन्दी का उद्भव और विकास
-~~~-श्रीराम शर्मा, सम्मेलन, इलाहागद, 1964 [पुस्तक के परिशिष्ट-1 के रूप में दक्खिनी हिन्दी का धातपाठ दिया गया है। इसमें 459 धातुओं का
समावेश है। पुरानी राजस्थानी
-एल. पी. तेस्सितोरी (अनु. नामवरसिंह) नागरी, काशी, 1956 [अध्याय-9 में 'क्रिया' नाम से धातुचर्चा तथा क्रियाओं का व्याकरणिक परिचय है। यह अध्ययन गुजराती
और मारवाडी के संदर्भ में तुलनात्मक पद्धति से किया गया है।] प्रारम्भिक अवधी का अध्ययन
–विश्वनाथ त्रिपाठी, रचना, इलाहाबाद, 1972 [क्रिया' के अंतर्गत संक्षिप्त धातु चर्चा तथा क्रियापदों का वर्गीकरण है।] बिहारी सतसई का भाषावैज्ञानिक अध्ययन
-रामकुमारी मिश्र, लोकभारती, इलाहाबाद, 1970 [दूसरे अध्याय के पांचवे विभाग के अंतर्गत धातु तथा क्रियापदों की रूपगत-वाक्यगत चर्चा है ।] बीकानेरी बोली भाषाशास्त्रीय अध्ययन
---रामकृष्ण व्यास, गणेशशक्ति, वीकानेर, 1974 [सातवें अध्याय में 'क्रियापद' के अंतर्गत धातुचर्चा तथा वर्गीकृत पाठ दिए गए हैं।] बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन
--रामेश्वर प्रसाद, अग्रवाल, विश्वविद्यालय प्रकाशन, लखनऊ, 1963 ['पद-विचार' के अंतर्ग धातु तथा क्रियापदां की शास्त्रीय चर्चा उल्लेखनीय है।] भारतीय भाषाओं का भाषाशास्त्रीय अध्ययन
-सं. व्रजेश्वर वर्मा, विनोद, आगरा, 1865 [इसमें मलयालम और हिन्दी की क्रियाएँ-वी. गोपीनाथन् , तथा कन्नड क्रियारूपेां की संरचना-कु. रंगमणि के लेख उल्लेखनीय हैं।]
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संदर्भ-सूची
२२३.
भाषा-व्याकरण
---कवि रत्नजित, विद्या, गुज. युनि., अहमदाबाद, 1972 [इस पद्य-व्याकरण में कविशिक्षा के हेतु धातुपाट दिया गया है। वर्गीकरण के आधार धातुओं के अंत्य
अक्षर हैं।] भीलीः भाषा, साहित्य और संस्कृति
-नेमीचंद जैन, हीराभैया, इन्दोर, 1964 भोजपुरी और हिन्दी का तुलनात्मक व्याकरण
-शुकदेव सिंह, नीलाभ, इलाहाबाद, 1968 [धातु तथा क्रियापदेां की विस्तृत चर्चा आठवें अध्याय में सुलभ है।] भोजपुरी भाषा और साहित्य
- उदयनारायण तिवारी, बिहार गष्ट्रभाषा, पटना, 1954 [छठे अध्याय में क्रियापद नाम से भोजपुरी धातुओं-क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन हुआ है। वर्गीकृत
धातुपाठ भी उल्लेखनीय है। व्रजभाषा
-धीरेन्द्र वर्मा, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, 1954 नवम प्रकरण में 'क्रिया' नाम से व्याकरणिक चर्चा सुलभ है।] व्रजभाषा और खडीबोली का तुलनात्मक अध्ययन
-कैलाशचन्द्र भाटिया, सरस्वती, आगरा, 1962 - [भाग-2 के 'रूपविचार' नामक दूसरे प्रकरण में क्रियाविषयक व्याकरिणक चर्चा की गई है।] मगही भाषा और साहित्य
-सम्पत्ति आर्याणी, बिहार राष्ट्रभाषा, पटना, 1976 [पुस्तक के प्रथम खण्ड में 'क्रिया' नाम से क्रियारूपों की संक्षिप्त सूची दी गई है। अपभ्रंश तथा मगही
रूप देकर उनके हिन्दी अर्थ दिए गए हैं।] मथुरा जिले की बोली
-चंद्रभाण गवत, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, 1967 मध्य पहाडी का भाषाशास्त्रीय अध्ययन
--गोविन्द चातक, राधाकृष्ण, दिल्ली, 1966 ... 'क्रियापद' प्रकरण में कुछ गढ़वाली धातुएँ संस्कृत रूपों के साथ दी गई है। धातुओं की अन्य सूचियाँ
भी दृष्टव्य मालवी - एक भाषाशास्त्रीय अध्ययन
–चिन्तामणि उपाध्याय, 1960 मालवी की उत्पत्ति और विकास
-बंसीधर, बेनी प्रसाद, इलाहाबाद, 1973 [प्रकरण 9 में 'क्रियापद' के अंतर्गत मालवी धातुओं की संक्षिप्त सूची; संस्कृत, मालवी तथा विकरण-रूपे के साथ।
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२२४
हिन्दी-गुजराती धातुकोश राजस्थानी भाषा और साहित्य
-मोतीराम मेनारिया, 1951 पुस्तक के प्रथम खण्ड में राजस्थानी क्रिया-रूपों की संक्षिप्त चर्चा है तथा गुजराती क्रियाओं से साम्य
का निर्देश है। राजस्थानी भाषा और साहित्य
-~-हीरालाल माहेश्वरी, आधुनिक, कलकत्ता; 1960 हाडौती बोली और साहित्य
-कन्हैयालाल शर्मा, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, 1965 [पुस्तक के 'बाली खण्ड' में 'क्रियापद' नामक प्रकरण में वर्गीकृत धातुपाठ के साथ क्रियाओं की व्याकरणिक
चर्चा हैं। हिन्दी और उसकी विविध बोलियाँ
--दीपचन्द जैन, कैलाश तिवारी, मध्यप्रदेश ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, 1972 हिन्दी और बंगला भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन
-संतोष जैन, शब्दाकार, दिल्ली, 1974 [चतुर्थ अध्याय में धातुओं का ऐतिहासिक तथा रूपगत वर्गीकरण दृष्टव्य है।] हिन्दी भाषा : रूप-विकास
-सरनामसिंह शर्मा, चिन्मय, जयपुर, 1968 [अध्याय 11 के अंतर्गत धातुओं की वर्गीकृत सूचियाँ दी गई हैं। उदाहरण सहित व्युत्पत्तिमूलक चर्चा हुई है।] हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग
-नामवरसिंह, साहित्य भवन, इलाहाबाद, 1954 [पुस्तक के पृ. 136-147 के बीच क्रिया-धातुकी सोदाहरण चर्चा है ।। हिन्दी भाषा पर फारसी और अंग्रेजी का प्रभाव
-मोहनलाल तिवारी, नागरी, वाराणसी, 1969
'िख' विभाग में हिन्दी में प्रयुक्त फारसी क्रियाएँ तथा अंग्रेजी संज्ञा या विशेषण के योग से बननेवाली
संयुक्त क्रियाओं के उदाहरण दिए गए हैं।] हिन्दी पर फारसी का प्रभाव
- अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी, सम्मेलन, प्रयाग, 1938 हिन्दी: उद्भव, विकास और रूप
-हरदेव बाहरी, किताब महज, इलाहाबाद, 1965 हिन्दी भाषा
--भोलानाथ तिवारी, किताब महल, इलाहाबाद, 1966 हिन्दी भाषा का इतिहास
--धीरेन्द्र वर्मा, हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद, 1949 हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास
-उदयनारायण तिवारी, किताब महल, इलाहाबाद, 1961 हिन्दी भाषा का स्वरूप-विकास
--अवधेश्वर, अरुण, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना, 1973
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संदर्भ-सूची
२२५ हिन्दी-३ हिन्दी व्याकरण
--कामताप्रसाद गुरु, नागरी, काशी, 1911 हिन्दी व्याकरण और रचना
-भालाशंकर व्यास, भोलानाथ तिवारी, रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव; शै. अनुसंधान, दिल्ली, 1972 हिन्दी व्याकरण का इतिहास
-अनन्त चौधरी, बिहार ग्रन्थ अकादमी, पटना, 1972 हिन्दी व्याकरण की रूपरेखा
ज. म. दीमशित्स, राजकमल, 1966 हिन्दी शब्दानुशासन
-किशोरीदास वाजपेयी, नागरी, काशी, 1958 हिन्दी-4 अपभ्रंश भाषा का अध्ययन
---रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव, भारती, दिल्ली, 1965 तुलनात्मकत पालि-प्राकृत-अपभ्रंश व्याकरण
-सुकुमार सेन, लोकभारती, इलाहाबाद, 1961 [सातवे प्रकरण में धातु तथा क्रियापदों की तुलनात्मक पद्धति से सोदाहरण चर्चा है ।] पाणिनी के उत्तराधिकारी
-उदयनारायण तिवारी, लोकभारती, हलाहाबाद, 1971 प्राकृत भाषा
-प्रबोध बेचरदास पंडित, 1954 प्राकृत भाषाओं का व्याकरण
-पिशल (अनु. हेमचन्द्र जोशी) बिहार राष्ट्रभाषा, पटना, 1958 प्राचीन भारतीय वैयाकरणों के ध्वन्यात्मक विचारों का विवेचनात्मक अध्ययन
सिद्धेश्वर वर्मा (अनु. देवदत्त शर्मा), हरियाणा ग्रंथ अकादमी, चण्डीगढ़, 1973 भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी
-सुनीतिकुमारी चटर्जी, राजकमल, दिल्ली, 1942 भारतीय भाषाविज्ञान की भूमिका
-सं. भोलानाथ तिवारी, तथा अन्य, नेशनल, दिल्ली, 1972 भारतीय भाषाशास्त्रीय चिन्तन
-सं. विद्यानिवास मिश्र तथा अन्य, राजस्थानी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 1976 व्याकरण की दार्शनिक भूमिका
-सत्यकाम वर्मा, मुंशीराम, नई दिल्ली, 1969 हिन्दी 5 आधुनिक भाषाविज्ञान
--भोलानाथ तिवारी, लिपि, दिल्ली, 1978 आधुनिक भाषाविज्ञान की भूमिका
-सं. मोतीलाल गुप्त तथा अन्य, राजस्थान ग्रन्थ अकादमी जयपुर, 1974 तुलनात्मक भाषाविज्ञान
-पी. डी. गुणे, (अनु. भोलानाथ तिवारी) मोतीलाल, दिल्ली, 1968 ध्वनि-विज्ञान
-जी. बी. धल, बिहार ग्रन्थ अकादमी, पटना, (सं. सं) 1975
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२२६
भाषा
भाषा
भाषा और समाज
भाषा, विचार और वास्तविकता
भाषा-विज्ञान
भाषा, सत्य और तर्क
वाक्यविन्यास का सैद्धान्तिक पक्ष
शब्द - भूगोल : सिद्धान्त और प्रयोग
हिन्दी - गुजराती धातुकोश
- ब्लूमफील्ड (अनु. विश्वनाथ प्रसाद) मोतीलाल, दिल्ली, 1968 - वान्द्रियैज्ञ, (अनु. जगवंशकिशोर), हिन्दी समिति, लखनऊ, 1966 - रामविलास शर्मा, राजकमल, दिल्ली, 1961
- बैंजमिन ली व्हो (अनु. रामनिवास शर्मा ) हरियाणा ग्रन्थ अकादमी, चण्डीगढ, 1975
- मैक्समूलर (अनु. उदयनारायण तिवारी) मोतीलाल, दिल्ली, 1970
-सं. याकुब मसीह, बिहार ग्रन्थ अकादमी, पटना, 1973
- नोअम चोम्स्की (अनु. रमानाथ सहाय ) राजस्थान ग्रन्थ, जयपुर, 1975
- हीरालाल शुक्ला, रचना, इलाहाबाद, 1973
गुजराती
अनुशीलनो
कच्छी शब्दावली
गुजराती कोश (लेख. 'इतिहास अने साहित्य' पुस्तक में ) गुजराती पर अरबी-फारसीनी असर
गुजराती भाषा, उद्गम, विकास अने स्वरूप गुजराती भाषाना अंगसाधक प्रत्ययो
गुजराती भाषाना द्विरुक्त प्रयोगो
गुजराती भाषानुं ध्वनिस्वरूप अने ध्वनिपरिवर्तन
- हरिवल्लभ भायाणी, पोप्युलर सुरत, (द्वि. सं.) 1976 - शान्तिभाई आचार्य, विद्यापीठ, अहमदाबाद, 1966
गुजराती भाषानुं बृहद् व्याकरण
गुजराती भाषानुं व्याकरण
गुजराती भाषानुं व्याकरण गुजराती भाषानो कुळक्रम, (लेख. गु. सा. इ. । ) गुजराती भाषाशास्त्र - 1, 2, 3
-भोगीलाल सांडेसरा, गुर्जर, अहमदाबाद, 1966 -छो. र. नायक, विद्यासभा, अहमदाबाद, 1954
-कान्तिलाल व्यास, त्रिपाठी, बम्बई, 1965 - ऊर्मि देसाई, युनि. ग्रंथ, बोर्ड, अहमदाबाद, 1972 - प्र. रा. तेरैया, युनि. ग्रंथ, बोर्ड अहमदाबाद, 1970
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संदर्भ-सूची
गुजराती भाषामा शब्दकोशनी प्रवृत्ति (लेख)
गुजराती रूपरचना
गुर्जर शब्दानुशासन
थोडोक व्याकरणविचार
धातुमंजरी
धातुसंग्रह
पाणिनीय संस्कृत व्याकरणशास्त्रानी परंपरानो इतिहास
बोलीविज्ञान अने गुजराती बोलीओ
भाषा परिचय अने गुजराती भाषानुं स्वरूप
भाषाविज्ञानना अर्वाचीन अभिगमो
भीली - गुजराती शब्दावली
व्युत्पत्तिविचार
शब्द अने अर्थ
शब्दकथा
शब्दपरिशीलन
शब्दार्थ धातुसंग्रह
संस्कृत धातुको
सिद्धमगत अपभ्रंश व्याकरण
हालारी बोली
२२७
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--शान्तिभाई आचार्य, विद्यापीठ, अहमदाबाद, 1965 - हरिवल्लभ भायाणी, युनि. ग्रंथ बोर्ड, अहमदाबाद, 1975 - भोगीलाल सांडेसरा, गुर्जर, अहमदाबाद, 1954
- हरिवल्लभ भायाणी, वोरा, अहमदाबाद, 1963
- हरिवल्लभ भायाणी, गुर्जर, अहमदाबाद, 1973
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