Book Title: Hidayat Butparstiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Pruthviraj Ratanlal Muta
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir INDEX.VEVIESANLEAVENXNX.SPESALEVEANVAR कहिदायत बुतपरस्तियेजैन.. जिसको जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न महाराज-शांतिविजयजीने मुरतिब किया. मुकाम-निपाणी S इसमें मुनि कुंदनमलजीके लेखका जवाब और मूर्तिपूजाके बारेमे उमदा दलिले दर्ज है. oras [इसको शेठ पृथवीराजजी रतनलालजी मुता-साकीन आकोलामुल्क बराडने फायदे जैनश्वेतांबरसंघके छपवाकर जाहिर किया. .6539623099ACJaLoo.30 प्रथम आवृति (२०००), (दोहा.) क्यों किजे ऐसा जतन-याते काज न होय, पर्वतपर खोदे कुवा-कैसे निकले तोय. मन चिंते बहु जीव यह-उदय बडा बलवान्, क्रोड उपाव करे कोउ-फले कृतकर्म निदान. १ MAGE अहमदाबाद-धी " डायमंड ज्युबिली” प्रिन्टिग प्रेसमें परीख देवीदास छगनलालने छापा. (संवत् १९७३.) मूल्य ०-४-.. (सन १९१६.) SYC SICOM EDY MICRO P HOJowa... ०८. JOUSE For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir RECERGREEEEEEEEEEEESESSERTENSESSEEEEEEEEEEEEE (दिबाचा.) किताब-हिदायत बुतपरस्तियेजैन-बहुत अर्सेसे बनाई गइ थी, मगर बसबब कमफुरसतके छपवाकर जाहिर करना, नही बनाथा, अब जाहिर किई गई है. जैनमुनियोने जैनसमाजके लिये कई ग्रंथ बनाये है, में यह चार फार्मका एक छोटासा ग्रंथ बनाकर जैनोके सामने रखताहूं, इसको पहिये और अगर मूर्तिपूजाके बारेमे शक हो तो इसे बगौर देखिये! इसमें मुनि कुंदनमलजीके लेखका जवाब और मूर्तिपूजाके बारेमें ऊमदा दलिले दर्ज है. मूर्ति-उसदेवकी यादि दिलानेमें एक सहारा है, जैसे धर्मशास्त्र-सर्वज्ञके फरमानकी मूर्ति है, वैसे प्रतिमा सर्वज्ञके शरीरके आकारकी मूर्ति है. निराकारका शरीर नही होता और विना शरीरके निराकार आत्मा उपदेशभी नही देसकता, क्योंकि बोलनाचलना साकारकाही होसकता है, मूर्ति-प्रतिमा-प्रतिकृति-चैत्यअक्स और तस्वीर ये सब मूर्तिहीके तरीके है. मूर्तिको नहीं माननेवाले कई हुवे, मगर मूर्तिका मानना हमेशांस वला आया, धर्मसाधन करने के लिये मकान बनाना, दीक्षा दिलानेका जलसा करना, और अपने धर्मगुरूवोके दर्शनोंको जाना, अगर धर्मका काम है, तो तीर्थयात्रा जाना, मंदिरमूर्ति मानना, पूजना, धर्मका काम क्यों नहीं. इसीके बारेमें ऊमदा दलिले इस किताबमें देखोगे. ( ग्रंथकर्ता.) #昭四EK掀热热热热热熙熙必职恐农禁职职熙熙熙映照职必匹匹配照此些呢明明朗非照映地积的專热水恐群起熙那照的如無职职用昭熙與典晚防姓 92908198888999 9 99999999 For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir (हिदायत बुतपरस्तिये जैन.) (जिसकों,) जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजीने मुरतिब किया. इसमे मुनि कुंदनमलजीके लेखका जवाब और मूर्तिपूजाके बारेमें उमदा दलिले दर्ज है. ( शुरुआत किताब.) शेयर.11 रौनके महताबभी देखो, गर्मीये आफताबभी देखो; और हासिलहै मुफ्त घरबैठे, लो! हमारी किताबभी देखो. १ जैनमजहबमें जिनमंदिर और जिनमूर्तिका मानना कदीमसे चला आया, भरतराजाने तीर्थअष्टापदपर चौईसतीर्थकरोके मंदिर तामीर करवाये, और जमाने तीर्थंकर महावीरस्वामीके गौतमगणधर उनकी जियारतकों गये, अमर जैनमजहबमें मंदिरमूर्तिका मानना मना होतातो ऐसापाठ क्यों होता? जब गौतमस्वामी जैसे जैनमुनि जिनको गणधरपदवीथी-तीर्थकी जियारतकों गये तो, दुसरे जैनमुनि क्यों न जावे ? मूर्तिपूजासे एक नागकेतु महाशयकों केवल ज्ञान पैदा हुवा, और जिनमूर्त्तिके दर्शनसे आर्द्रकुमारको जातिस्मर्ण ज्ञान हुवा. तीर्थ शंखेश्वरपार्श्वनाथ, तीर्थ केशरीयाजी और तीर्थ अंतरिक्षजीमें निहायत पुरानी जैनमूर्ति मौजूद है, अगर जैन For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जन. मजहबमें मूर्तिका मानना कदीमसे न होतातो ये पुरानी मूर्तियें क्यौं होती? और पुराने जैनतीर्थभी क्यों होते ? बाद निर्वाण तीर्थंकर महावीरस्वामीके (२९०) वसं पीछे एक संप्रतिराजा जैममजहबमें कामीलएतकात हुवा, जिसके तामीर करवाये हुवे जैनमंदिर हिंदमें कइजगह अवतक मौजूद है, तीर्थशत्रुजय, गिरनारपर इसीराजासंप्रतिके बनाये हुवे पुराने जैनमंदिर अबतक खडे है, आबुके जैनमंदिर मुल्कोमें मशहूर है, शेठ विमलशाह, दिवान वस्तुपाल, तेजपाल और शेठ भेसाशाहके बनवाये हुवे जैनमंदिर आबुपहाडपर क्याही! ऊमदा कारिगिरीके नमुने खडे है, जिसका बयान लिखना कलमसे बहार है, बडे बडे शिल्पकार इनमंदिरोको देखकर ताज्जुब करते है, राजाकुमारपालका बनाया हुवा जैनमंदिर तीर्थतारंगापर किसकदर मजबूत और पावंदवना है जिसकी तारीफ बेंमीशाल है. जैनागमज्ञातासूत्रमें सतरांहतरहकी पूजाका बयान है, खयाल करो कि अगर जैनमजहबमें मूर्तिपूजा न होतीतो औसा वयान क्यों होता? जैसे हफोंकों देखकर ज्ञान पैदा होता है, मूर्तिको देखकरभी ज्ञान होता है, जिसने पुस्तककी इज्जत किइ ऊसने मूर्तिकीभी इज्जत किइ समजो, चाहे वो मूर्तिपूजासें अतराज करे मगर ऊसके दिलसे मूर्तिकी इज्जत साबीत होचुकी. . इसकिताबके बनानेका सबब यह दवा कि जब मेने संवत् (१९७१) का चौमासा बमुकाम शहरधुलिया, जिले खानदेशम किया, मुकाम वरोरा, जिले चांदासे भेजा हुवा एक “मिथ्याभर्मनास्ति' नामका इस्तिहार बजरीये डाक मुजकों मिला, इसके लेखक मुनि कुंदनमलजी है और प्रसिद्धकर्ता जौनी गटुलाला कस्तुरचंदजी खानदेश है. इसमें मेरी बनाइ हुइ किताब सनम परस्तिये जैनपर कुछ विवेचन दिया है. इसमे न किसीमूत्रका पाठ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन दिया न किसीमत्रका हवाला दिया, सिर्फ ! थोडासा लिखाण लिखकर चैत्यशब्दके वारेमें कुछ पुछा है. _ विवेचनपत्रकी शुरूआतमें मुनि कुंदनमलजी लिखते है किदेखिये ! पितांबरी मूर्तिपूजक शांतिविजयनीको हमारे स्वधर्मी सुश्रावक बंब खूबचंदजी साकीन ऊन्हेल-मुल्क मालवेवालेने जैनपत्र तारिख २९-५-११ के अंकद्वारा (२२) सवाल पूछे थे और उत्तर जैनसिद्धांतोंके मूलपाठसे मागेथे, उक्त प्रश्नोके जवावम शांतिविजयजीने सनम परस्तिये जन-इस नामकी किताब छापके जाहीर किइ है. (जवाब.) बेशक ! किताब सनम परस्तियेजैन मेरी तफैस बनाइ गइ है, जोकि जैनश्वेतांबरश्रावक धुलजी गणेश-साकीन महेंदपुर मुल्क मालवेने फायदेआमके छपवाकर जाहिर किइ है, इसमें मेने जो बाइससवालोके जवाब दिये है, कइजगह जैनसिद्धांतोके मूलपाटभी दिये है, जिनको शकहो मजकुर किताब मंगवाकर देखे, जैनसिद्धांतोके मूलपाठही मानना या वतीसमूत्रहीं मानना जैसा किसी जैनसिद्धांतमें नहीं लिखा, अगर लिखा है तो कोई पाठ बतलावे, मेरेसे कोई महाशय जैनसिद्धांतोके मूलपाठ लेना चाहे, तो वे अपने लेखमे मूलमूत्रके पाठदेकर पेंश आवे, आप पाठ देना नहीं, और दुसरोसें पाठ मांगना, यह कौन इन्साफे है ? जैनसिद्धांतोमें सूत्र, भाष्य, टीका, नियुक्ति और चूर्णि ये पंचांगी मंजुर रखना फरमाया, मूलसूत्रोपर जो वालावबोध यानी टबा बना है, टीकाके आधारसे बना है, टीकाकों मंजुर नहीं रखना फिर टवाकों मंजुर क्यों रखना ? कइजगह मूलमत्रमें जो बात नहीं है और टवेमे है, बतलाइये ! वे बाते कहांसे लाइ गई ? अगर कहा जाय टीकासे लाइ गई है, तो फिर टीकाकों मंजुर क्यों न किई जाय? नंदीमत्रमे पेंतालीस जैनागमके नाम लिखे है, और एवमादि For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. शब्द से ( १४००० ) प्रकीर्णकशास्त्र मंजुर रखना लिखा है, अगर वतीससूत्रका मूलपाठही मंजुर रखा जाय तो बतलाइये ! महावीरस्वामी सताईसभव किस सूत्रके मूलपाठमें लिखे है ? महावीर स्वामीके शाथ गौतमस्वामीका धर्मचर्चा के बारेमे बाद हुवा कहां लिखा है ? ब्रह्मदत्तचक्रवर्तीकी कथा, ढंढणरिषिका अधिकार, अरिहंतो के वारांगुण, आठ दिनके पर्युषण, तीर्थंकर महावीरस्वामी की जन्मराशिपर भस्मगृह आया, चंद्रगुप्तराजाने सोलहस्वम देखे और सीमंधरस्वामीवगेरा वीशवहेरमानका अधिकार ये बातें बत्तीससूत्रके मूलपाठ में किसजगह लिखी है कोई बतलावे. अव पीतांवरीके बारेमें जवाब सुनिये ! जैनागम निशीथमूत्रम लिखा है कि- जैनमुनिका अगर नयाकपडा मीले तो तीन पसली जितना रंग देना, पीले कपडे पहननेवालेकों कोई पीतांबरी कहे तो इससे क्या हुवा ? पीले कपडे पहनना जैनमुनिकों खिलाफ जैनशास्त्रके नही, अलवते ! जैनमुनिकों मुखपर मुखवस्त्रिका बांधना किसी जैनशास्त्रमें नही लिखा- अगर लिखा है, तो कोई पाठ बतलावे, अगर कोई इससवालकों पेश करे कि मूर्तिपूजा अछी चीज है, तो जैनमुनि खुद क्यों नहीं करते, जवाबमे मालुम हो वंदन नमनस्तवनरूप भावपूजा जैनमुनि भी करते है, पेस्तर लिख चुका हूं कि - गणधर गौतमस्वामी - तीर्थ अष्टापदकी जियारतकों गये थे, साबीत हुवा वंदन नमनरूप भावपूजा जैनमुनि भी करते है. आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्र में बयान करते हैं कि - ऊक्त किताब में कितनेक जैनके असली सिद्धांतो के मूलपाठ दाखल किये है, वह सर्व पाठ अधुरे दाखल किये हैं, संपूर्ण पाठ शांतिविजयजीने दाखल नही किये है, सौचो ! अधुरी बात अकलमंद हुशियार आदमी कोई वजहसे अंगीकार नही करते है. ( जवाब . ) अगर शांतिविजयजीने अधुरे पाठ दाखल कियेथे For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत श्रुतपरस्तिये जैन तो आपने पुरे पाट दाखल करके क्यों नहीं बतलाये ? आपका फर्जथा पुरे पाठ दाखल करके बतलाते, याते बांचनेवालोको मालुम होजाता कि यह अधुरा पाठ है, और यह पुरा है. फिर मुनिकुंदनमलजीने अपने विवेचन पत्रमें तेहरीर किया है, जैसा स्थान होवे वैसा शब्दका अर्थ कियाजाता है, मसलन ! चरण-भूषण यहांपर मुकुट, ताज, पघडी, फेटा, टोपी वगैरा अर्थ कदापि नही होसकते, कर-कंकण यहाँपे बुट, जुते, पगरखी, चपल, खडाऊ जैसे अर्थ कदापि नहीं होसकते, इसी वजह चैत्य शब्दके श्री जैनके प्राचीन असली सिद्धांतोमें अनेक अर्थ किये है. (जवाव.) अगर चैत्य शब्दके अनेक अर्थ किये है तो उनमेसे एक दो अर्थ जरुर कर बतलानाथा, चैत्य शब्दके माइने जिनमंदिर और जिनमूर्ति है, इसमें कोई शक नही, मेने चरणभूषणकी जगह मुकुटताज और करकंकणकी जगह बुट, पगरखी वगेरा अयोग्य अर्थ नहीं किये, योग्य किये है। अगर किसीजगह अयोग्य अर्थ किये हो, तो बतलाइये. आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें इस मजमूनको पेश करते है कि तीर्थकरोके वचनोको शांतिविजयजी धक्का पहुचाके अपनी मतरूढसे एकपक्ष पकडके चैत्य इस शब्दका प्रतिमा एसा एक अर्थ करके अपना मत सिद्ध करना चाहते है, मगर श्री जैनके प्राचीन असली सिद्धांतोके बखिलाफबात अकलमंद हुशियार आदमी कोई वजहसे अंगीकार नहीं करते है, देखो ! चैत्य शब्दकी पुष्टि के बारेमें शांतिविजयजीने हैमकोशका दाखला दिया है, मगर हैमकोशका कर्ता मूर्तिपूजक है, इसलिये यह साक्षी मंजुर कदापि नही होसकती. ___ (जवाब.) अगर हैमकोशके कर्ता मूर्तिपूजक होनेसे उनकी साक्षी मंजुर नहीं, तो मूर्तिनिषेधक जैनाचार्यकी साक्षी दिजिये, For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ६ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. जिनोने जैनकोश बनाया हो. मूर्तिपूजक जैनाचार्यकी साक्षी मंजुर नही, मूर्त्तिनिषेधक जैनाचार्यकी साक्षी दिइ नहीं, फिर जवाब क्या हुवा ? शांतिविजयजीने सनमपरस्तिये जैनमें ऐसा कोई लिखाण नही किया जिससे तीर्थंकरोंके फरमानको धक्का पहुचे, अगर ऐसा कोई लिखाण था तो बतलाना था, एकांतपक्ष भी नही पकड़ा, बल्कि ! चैत्य शब्दका माइना जिनमंदिर और जिनप्रतिमा है, ऐसा जैनशास्त्रो के पाठसे बतला दिया है, अगर कोई कहे कि चैत्यशब्दका माइना ज्ञान या साधु है तो उसका सबुत बतलावे, जैनागम में साधुकी जगह निग्गंथाण वा निरगंधावा साहुवा साहुणीवा भिखुवा भिखुणीवा ऐसा पाठ लिखा है, मगर चैत्यं वा चैत्यानि वा एसा पाठ नही लिखा, तीर्थकर रिषभदेव महाराज के चौराशी हजार साधुये ऐसा लिखा मगर चौराशी हजार चैत्यथे ऐसा नहीं लिखा, इसीतरह तीर्थंकर महावीर स्वामीके चौदह हजार साधु कहे, मगर चौदह हजार चैत्यथे ऐसा नही कहा, अगर चैत्यशब्दका माइना ज्ञान है ऐसा कहे तो taraa ज्ञानकी जगह चैत्यन्द्र क्यों नही कहा ? नंदीसूत्रमे नाणं पंचविहं पन्नतं, ऐसा पाठ कहा, मगर चेइयं पंचविहं पनतं ऐसा पाठ नहीं कहा, जहांजहां ज्ञानी मुनियोका लेख आता है महनाणी पाणी ओहिनाणी मण रज बनाणी केवलनाणी ऐसा पाठ है, मगर किसीजगह मतिचैत्यी श्रुतचैत्यी अवधिचैत्य ऐसा पाठ नही आता, जैनशास्त्रोंमें कई जगह बयान है अमुक जैनमुनिको अवधि ज्ञान पैदा हुवा, अमुक जैनमुनिकों केवलज्ञान पैदा हुवा, मगर ऐसा पाठ नही आता कि- अवधिचैत्य या केवलचैन्य पैदा हुवा, इसलिये कहा जाता है चैत्यशब्दका माइना ज्ञान नही. [ भगवतीसूत्र पाठ है. ] किं निस्साए भंते असुरकुमारा देवा उढं उपायंति, For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन जाव सोहम्मोकप्पो गोयमा असुरकुमारा देवा इत्यादि नणथ्थ अरिहंतवा अरिहंत चेहयाणिवा अणगारे भावि. अप्पणो निस्साए उढं उप्पयंति जावसोहम्मो कप्पो. तीर्थकर महावीरस्वामीसे गौतमगणधरने सवाल किया किअसुरकुमारदेवता आस्मानमें जावे तो कहांतक जावे ? जवावमें तीर्थकर महावीरस्वामीने फरमाया कि असुरकुमारदेवता आस्मानमें सौधर्म देवलोकतक जावे, और जाते वख्त अरिहंतका सरणा लेकर जासकता है, अरिहंतकी प्रतिमाका या भावितआत्मा अणगारका सरणा लेकर जासकता है, देखिये ! यहां चैत्यशब्दका माईना अरिहंतकी प्रतिमा है या नहीं? साबीत हुवा चैत्यशब्दका माईना जिनप्रतिमा है. फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें लिखते है-जैसे घरके घोडे घरके चौकमें कुदाये तो इसमें क्या बड़ी बात करी, हम शांतिविजयजीकी बहादुरी जब समजते कि-जैसी चैत्यशब्दके बारेमें हैमकोशकी साक्षी दिइ वैसे चैत्यशब्दके बारेमें श्रीजैनके प्राचीन असली सिद्धांतोकी साक्षी देते. (जवाव.) शांतिविजयजीने जैनके प्राचीन और असलीसिद्धांत भगवतीमत्रके मूलपाठकी साक्षी ऊपर देदिइ, उसमे देखलो ! चन्यशब्दका माईना जिनप्रतिमा है या नहीं ? किताव सनम परस्तिये नमभी जंघाचारणमुनिके बयानमें भगवतीसूत्रका पाठ देकर चैत्यशब्दका माईना जिनप्रतिमा बतलाचुका हूं, शांतिविजयजीने घरके घोडे घरम नही कुदाये है. बल्कि ! किताव सनम परस्तिये जैन बनाकर छपवा दिइ है, जिसकों आज करीव चार वर्स होगये, और छपवानेवालोंने शहर बशहर भेज दिइ है. पढनेवालोने पढ़ी होगी. For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिय जैन ___ आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें बयान करते है, शयंभवमूरिका बनाया हुवा दशवकालिकसूत्र और शामाचार्यका बनाया हुवा पनवणासूत्र क्यों मंजुर रखा गया ? यहांपे सहज सवाल पैदा होनेका वख्त है कि-अगर उक्त दोनो सूत्रोके नाम श्रीजैनके प्राचीन असली सिद्धांतोमें दर्ज होवेगे तो शांतिविजयजीका कथन साफ खोटा है ऐसा निश्चय होगा. (जवाब.) शांतिविजयजीका कथन खोटा जव ठहरसकता है कि-अगर मुनि कुंदनमलजी दशवकालिकमूत्रको और प्रज्ञापना सूत्रकों गणधररचित सावीत करदेवे, आचार्योंके बनाये हुवे दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रको मंजुर रखते हो तो फिर आचार्योंकी बनाइ हुई टीका, भाष्य, नियुक्ति और चूणि क्यों नहीं मंजुर रखना ? इसका कोई जवाब देवे, अगर कहाजाय नंदीसूत्रमें दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रके नाम लिखे है इसलिये हम मानते है, तो जवाबमें मालुम हो, नंदीसूत्रमें पैतालिसआगम वगेराके नाम भी लिखे है उनकोभी मानना चाहिये. फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें तेहरीर करते है, इसके अलावा शांतिविजयजी नियुक्ति माननके वास्ते कोशीश करते है, मगर नियुक्तिमें जो जो अधिकार सावधाचार्योने दर्ज किये है वह सर्व अधिकार श्रीजैनके एकादशांगादि ताडपत्रों के लिखित प्राचीन असली सिद्धांत अगीकार करेंगे, वह नियुक्ति माननेमें आवेगी. (जवाब.) ताडपत्रपर लिखित जैनके एकादशांगादि प्राचीन सिद्धांत मंगवाकर देख लिजिये, उनमें नियुक्तिका मानना लिखा है या नहीं ? ताडपत्रपर लिखित जैनके प्राचीन सिद्धांत के बारेमें हकीकत सुनिये ! तीर्थकर महावीर निर्वाणके वाद (९८०) वर्स पीछे जमाने देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणके वल्लभी नगरीमें ताडपत्रोपर For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन जैनपुस्तक लिखे गये, इतनेवसेंके लिखित जैनपुस्तक अगर आपलोगोके पास हो तो उनमे देखलिजिये, दुसरी दलील यह है कि जिस जिस प्राचीन और असली सिद्धांतमें नियुक्तिका मानना मना किया हो, उस उस जैनसिद्धांतके नाम जाहिर कीजिये, तीसरी दलील यह है कि जिसजिस नियुक्तिमें सावधाचार्योने अपनी तर्फसे अधिकार नहीं दर्जकिये हो ऐसी नियुक्ति कौनसी है बतलाइये याते उसपर अमल कियाजाय. आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें इस मजमूनको पेश करते हैं कि-नियुक्ति मंजुर करनेके बारेमें शांतिविजयजीने भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वारमत्र, समवायांगजीमूत्र, नंदीजीसूत्र, यह चारो मूत्रोके जो उक्त किताबमें पाठ दाखल किये है, वह सर्व पाठ मूर्तिपूजकोके आचार्याने अपने बनाये हुवे ग्रंथोको पूर्ण सहायताके वास्ते श्री जैनके असली सिद्धांतोम नवीन बनाकर दाखल किये है, ऐसा निश्चय होगा, फिर नियुक्ति, नियुक्तिके कर्ता और नियुक्तिकी साक्षी देनेवाला सर्व खोटे ठहरेंगे. ___ (जवाब.) नियुक्ति-नियुक्तिके बनानेवाले और नियुक्तिकी साक्षी देनेवाले खोटे जब ठहर सकते हैं अगर कोई जैनकी द्वादशां गवानीके पुस्तकामे नियुक्तिको गलन साबीत करदेवे, नियुक्ति बनानेवाले चौदह पूर्वधारी जैनाचाय भद्रबाहुस्वामी तीर्थकर महावीरनिर्वाणके बाद (१७० ) वस पीछे मौजूद थे, जिनको आज (२२७०) वर्म हुवे, चौदह पूर्वधारीके वचन प्रमाणीक होते है इससे साबीत हुवा-नियुक्ति और नियुक्ति बनानेवाले अप्रमाणिक नहीं, नियुक्तिकी साक्षी देनेवाले भी अप्रमाणिक इसलिये नही कि-जैनके एकादशादि अंगशास्त्र भगवती और समवायांग वगेरा सूत्रोमें नियुक्तिका मानना मंजुर रखा है. मूर्तिपूजक जैनाचार्योने अगर नवीनपाठ बनाकर दाखल किये है तो ऐसे प्राचीन सूत्र For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir १० हिदायत बुतपरस्तिये जैन. सिद्धांत निकालो कि जो देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणके बख्तके लिखे हुवे हो और उसमें देखो कि - नियुक्तिका मानना लिखा है या नही ? अगर लिखा है तो नियुक्तिकी साक्षी देनेवाले भी अप्रमाणीक नही ठहर सकते. फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्र में लिखते है किअतएव शांतिविजयजीने नियुक्ति के सर्व अधिकार श्रीजैन के एकादशांगादि ताडपत्रपर लिखित प्राचीन असली सिद्धांतों रजुआमसभा में करके दिखलाना चाहिये. ( जवाव . ) शांतिविजयजीने नियुक्ति माननेके पाठ - किताब सनम परस्तिये जैनमें छपवाकर दिखला दिये है. छपवानेवालोने मजकुर किताब छपवाकर शहर वशहर भेज दिइ है, जिसको आज करीव चारवर्स होगये और पढनेवालोने पढीभी होगी, जिनको शक हो - ताडपत्रपर लिखे हुवे पुराने जैन सिद्धांत हिंद के जिस जिस शहरमें मौजूद हो - मंगवाकर देखे, ताडपत्रपर लिखे हुवे पुराने जैनपुस्तक इस वख्त जेसलमेर, पाटन, अहमदावाद वगेरा शहरोंमें मौजूद है, जिस महाशयको जिस बात का शक हो अपना शक मिटाने की कोशिश करे, अगर कहा जाय, जेशलमेर, पाटन और अहमदावाद वगेरा शहरोंमें जो ताडपत्रपर लिखे हुवे जैन के प्राचीन पुस्तक होगें वे मूर्तिपूजक जैनोके होगें. जवाब में मालुम हो अगर मूर्त्तिपूजकजैनो लिखीत प्राचीन जैनपुस्तक मंजुर नही तो मूर्तिनिषेधक जैनो के लिखीत प्राचीन जैनपुस्तक देखिये, मगर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणके वख्तके लिखे हुवे देखना चाहिये क्योंकि ऊनही वरूतमं कंटाग्रज्ञान पुस्तकाकार लिखा गया है. कइ शिलालेख जमीन से निकले हुवे ऐसे है, जिसके देखनेसें जिनमंदिर और जिनमूर्त्तिकी सावीती मिलती है, अगर कहा जाय तीर्थंकर देव मुक्त हवेबाद अरूपी है, फिर मूर्त्ति क्यों बनाना ? For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन ११ जवावमें मालुम हो-मूर्ति उस हालतकी है जब वे केवलज्ञानी देहधारी थे, मूर्तिपूजा जैनमें अवलसे है, जो महाशय फरमाते है बारहवर्षी दुकाल पडाथा. मूर्तिपूजा ऊस वख्तसे चली है, यह बात गलत है, अगर कोई इस दलीलकों पेश करे कि भगवानतो अनमोल थे, उनकी मूर्ति थोडे मूल्यमें क्यों विकती है ? जवाबमें मालुम हो जिनवानी अनमोल है, फिर जैनपुस्तक थोडे मूल्यमें क्यों विकते है ? ____ अगर कोई सवाल करे मूर्ति जड है या चेतन? मूक्ष्म है या बादर? मृत्तिमें गुणस्थान कितने पाइये? जवाबमें मालुम हो, धर्मशास्त्र जड है या चेतन? सूक्ष्म है या वादर? धर्मशास्रमें गुणस्थान कितने पाईये ? किसी जैनमुनिकी फोटोमें ऊतारी हुई तस्वीर हो उसमें गुणस्थान कितने कहना? जड कहना या चेतन? सूक्ष्म कहना या बादर? इस वातपर गौर कीजिये. अगर कोई इस दलिलकों पेंश करे कि-जिनेंद्रोकी मृत्तिमें चौतीस अतिशय और पेतीसवाणीके गुण कहां है? जवावमें मालुम हो कागज, स्याहीके बने हुवे आचारांग वगेरा मूत्रोमें जिनवानीके पेतीसगुण कहां है ? अगर कहा जाय उसके पढ़नेसे ज्ञान होता है तो इसीतरह जिनेंद्रोंकी मूर्तिको देखकरभी ज्ञान होता है, स्थानांगमूत्रमें दशतरहके सत्य कहे उसमें स्थापनाभी सत्य कही, फिर जिनमूर्ति जो जिनेंद्रोंकी स्थापना है, सत्य क्यों नहीं? ज्ञातामूत्रमें जहां द्रौपदीजीका अध्ययन चला है, उसमें द्रौपदीजीकों स्वयंवरमंडपमै जानेकी तयारी हुई ऊस वख्त ऊनोने जिनप्रतिमाकी पूजा किई लिखा है और ऐसाभी पाठ है कि"जेणेव जिणघरे तेणेव उवागछह." जहां जिनमंदिर था वहां द्रौपदीजी गई, सौचो ! ऊसवख्त ऊसमंदिरमें खुद तीर्थकरदेव तो बेठे नहीं थे, तीर्थंकरदेवकी मृत्तिं बैठी थी, ऊली सबसे ऊसकों For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन जिनघर कहा, अगर जैनमजहबमें जिनमंदिरका मानना न होता तो जिनघर ऐसा पाठ क्यों होता ? सबुत हुवा, उसमें जिनमूत्ति मौजूद थी उसी सबबसे जिनघर कहा, देखलिजिये ! ज्ञातामत्रके मूलपाठसे जिनमंदिर और जिनमूर्तिका होना साबीत होचुका, रायपसेणीसूत्रमें लिखा है कि-मुर्याभदेवताने जिनप्रतिमाकी पूजा किई, अगर अविरति समष्टिकी धमक्रिया गिनतिम नही लेते तो अविरति समष्टि देवेंद्रका का हुवा पाठ गिनतिमें क्यों लेते हो? श्रेणिकराजा अविरतिसमष्टि श्रावक थे जिनोने विनाव्रतनियमके तीर्थकरगोत्र हासिल करलिया, जोकि-एक आलादर्जेकी चीजथी अगर कहा जाय मूर्ति कुछ वोलती नहीं इसलिये उसे क्यों मानना? जवाबमें मालुम हो धर्मपुस्तक भी खुद बोलते नहीं उनकोभी नही मानना चाहिये, अगर कोई कहे मूर्ति त्यागी है या भोगी ? एकेद्रिय या पंचेंद्रिय ? जवावमें मालुम हो धर्मशास्त्र त्यागी या भोगी? एकेंद्रिय या पंचेंद्रिय ? अगर कोई तेहरीर करे जिनप्रतिमाम गतिजाति इंद्रिय कौनसी ? योग उपयोग कितने ? लेश्या कितनी ? जवाबमें मालुम हो आचारांग बगेग धर्मपुस्तकोम गतिजातिइंद्रिय योगऊपयोग और लेश्या कितनी ? जैसे जैनमूर्ति पाषाणकी बनी हुई है, आचारांग वगेरा धर्मपुस्तक कागज-म्याहीके बने हुवे है.. कोई श्रावक किसी जैनमुनिकों अपने शहरमें या गेरमुल्कमें वंदना करने जावे तो उसको पुन्य होगा या पाप ? अगर कहा जाय पुन्य होगा तो शत्रुजय गिरनार बंगरा जैनतीथके दर्शनकों जानेमें पुन्य क्यों नहीं? कोई जैनमुनि अपने शहर में तशरीफ लावे और श्रावकलोग गुरुभक्तिसे कोस दो कोस सामने जावे तो पुन्य होगा या पाप? अगर कहा जाय पुन्य होगा तो बतलाइये रास्तेमें जो वायुकाय वगेरा जीवोंकी हिंसा हुई उसका पाप किसकों लगा? अगर कहा नाग पनःपरिणाम गुरुभक्ति के थे. इसलिये For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir __ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. १३ भावहिंसा नही और विना भावहिंसाके पाप नही, तो यही मिशाल मंदिर मूर्ति के लिये क्यों न समजी जाय ? ___ जैनागम ज्ञातामत्रमें लिखा है कि--थावछापुत्रमुनि और शुकदेवजीमुनि हजार हजार जैनमुनियोक साथ और शेलकराजरिषि पांचशो जनमुनियोके साथ पुंडरीकपर्वतपर मुक्ति गये, पुंडरीकपर्वतका दुसरा नाम शत्रुजयतीर्थ है, रायपसेणीमत्रमें बयान है कि सूर्याभदेवताने तीर्थकर महावीरस्वामीके सामने बत्तीस तरहका नाटक किया, नाटक करनेमें वायुकायके जीवोकी हिंसा हुई, बतलाइये ! उस हिंसाका पाप किसकों लगेगा? अगर कहा जाय सूर्याभदेवताका इरादा धर्मका था इसलिये पाप नहीं तो फिर कोई श्रावक जिनप्रतिमाके सामने इरादे धर्मके नाटक करे तो उसको पाप कैसे लगेगा! तीर्थंकरदेव जबजब विहारकरके एकगांवसे दुसरेगांव जाते थे, ऊसगांव नगरके राजेमहाराजे हाथी, घोडे, डंके निशान, रथ वगेरा जुलुसके सामन आते थे, रास्तेमें वायुकायके जीवोकी हिंसा होती थी, बतलाइये! उसका पाप किसको लगता था? अगर कहा जाय ऊनराजे महाराजेको लगता था तो वें ऐसा क्यों करते थे? तीर्थंकरदेवोने उनको मना क्यों नहीं किया ? अगर कहा जाय उनके मनःपरिणाम धर्मके थे, इसलिये पाप नही लगता था, तो फिर इसीतरह तीर्थयात्रा वगेरामेभी पाप नही, यह साबीत दुवा, जनमुनि दिनमें दोदफे अपने कपडोंकी प्रतिलेखना करते है, इसमें वायुकायके जीवोंकी हिंसा होती है, बतलाइये ! इसका पाप किसको लगेगा? पतिक्रमण करते वख्त ऊठना वेठना पडता है, उसमेंभी वायुकायके जीवोकी हिंसा होगी, व्याख्यान वाचते वख्त, गौचरी जाते वख्त, और गुरुओकी खिदमतमें वायुकायके जीवोंकी हिंसा होगी, खयाल करनेकी जगह है इसका पाप किसकों समजना? या कहा जाय यतनामे ये कार्य किये For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir १४ हिदायत बुतपरस्तिये जैन जाते है, इसलिये भावहिंसा नही, और विना भावहिंसाके पाप नही, तो यही मिशाल दुसरे धर्मकार्यमें क्यों नहीं लाना? किसी श्रावकने दुसरे श्रावकको अपने घर बुलाकर उसके तपका पारना करवाया, रसोइ बनाई, रसोई बनानेमें पानी और अग्निके जीवोकी हिंसा हुई, बतलाइये! उसका पाप किसको लगा? अगर कहा जाय रसोइ बनानेमें जो पानी और अग्निके जीवोकी हिंसा हुई ऊतना पाप लगा, और तपस्वीको जिमानेका पुन्य हुवा. जवाबमें मालुम हो रसोई बनानेमें ईरादा क्या पांच इंद्रियोकी पुष्टिके लिये था जो पाप लगे? अगर कहा जाय ईरादा तो धर्मकी पुष्टिके लिये था तो फिर पाप कैसे लगा? जैनमुनि एक गांवसे दुसरे गांव जावे और रास्तेमें नदी आजाय तो मुताविक फरमान आचारांगमूत्रके एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा. इसतरह नदी उतरे और सामने किनारे जावेः खयाल करनेकी जगह है कि-नदीके पार जानेमें कितने अपकायके जीवोंकी हिंसा होगी? तीर्थंकर गणधरोने नदी उतरनेका हुकम क्यों दिया? अगर कहा जाय जैनमुनि यतनासे नदी उतरते है, और बाद उसके नदी उतरनेका दंड लेते है, जवाबमें मालुम हो इरादे धर्मके जैनमुनियोंको नदी उतरनेका हुकम है और हुकममें दंड नहीं होता, अगर कहा जाय यतनासे देखभालकर जैनमुनि नदी उतरते है, जवाबमें मालुम हो त्रसजीवोको यानी हिलतेचलते जीवोकों यतनासे बचायगें मगर पानीके जीवोको कैसे बचासकेगे? उसकी हिंसा तो होगा या नहीं? अगर कहा जाय मनःपरिणाम हिंसा करनेके नहीं इसलिये द्रव्यहिंसा हुई-भावहिंसा नहीं हुई, और विना भावहिंसाके पाप नही, तो फिर यही दलिल मंदिरमर्तिके बारेमें क्यौं नही लात? दो शख्श एकरास्ते से जारहे थे और असतख्त उस रास्तेमें For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. १५ बहुतसे कीडे-मकोडे फिर रहे थे, एकशख्श जीवोको बचानेके इरादेसे देखभालकर चलता था, दुसरा बिनादेखे बेरहेम होकर चलताथा. जीवोको बचानेका इरादा ऊसका नही था, योगानुयोग ऐसा बना कि देखकर चलनेवालेके पांवसे एककीडा दबकर मरगया, विनादेखे चलनेवालेके पांवसे एकभी कीडा नही मरा, बतलाइये ! पापी कौन ? और पुन्यवान कौन ? अगर कहा जाय देखकर चलनेवाला पुन्यवान है, दशवकालिकसूत्रमें पाठ है कि जयं चरे जयं चिठे-जयं आसे जयं सये, जयं भासंतो भुंजतो-पावकम् न बद्धह. यतनासे देखभालकर चलनेवालेको भावहिंसा नहीं लगती, इसलिये पाप नहीं, जो शख्श विनादेखे बेरहेम होकर चलता था. चुनाचे ! उसके पांवसें कोईभी जीव नही मरा, तोभी उसका इरादा जीव बचानेका नहीं था इसलिये ऊसको पाप है, ज्ञातासूत्रमें बयान है कि एक सुबुद्धिनामके दिवानने जित शत्रुराजाकों धर्मपावंद बनानेके लिये एक मोरीका पानी मंगवाकर ऊसकों कईदफे एक घडेसे दुसरे घडेमें डाला और साफ किया, खूशबूदार चीजोसे लज्जतदार बनाया, इसतरह करनेसे वायुकाय वगेरा जीवोंकी हिंसा हुई. बतलाइये ! ऊसका पाप सुबुद्धिदिवानकों लगा या किसको ? अगर कहा जाय सुबुद्धिदिवानका इरादा पापका नही था, धर्मका था, इसलिये पाप नही, तो इसीतरह दुसरे कार्यके लियेभी खयाल करलेना चाहिये. तीर्थंकर मल्लिनाथजीने गृहस्थापनमें छह राजोको प्रतिबोध देनेके लिये. सुवर्णकी पुतली भीतरसे पोकल बनाइथी, और उसमें हमेशां भोजनका एकएक कवल डालतेथे, उसमें जो जीव पैदा हुवे और चवे बतलाइये ! ऊसका पाप किसकों लगा? अगर कहा जाय तीर्थकर मल्लिनाथजीका इरादा पापका नहीं था, छह राजोको धर्मपावंद बनानेका For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir १६ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. था, इसलिये पाप नही तो इसीतरह मूर्तिपूजा के बारेमें भी इरादेपर खयाल किजिये, एक कचे पानीके थालमें एक मखी गिरपडी ऊसकों बचाने के इरादेसें तुर्त एक श्रावकने निकाली, बतलाइये ! कचे पानी अंगुलि डालनेसें जो पानीके जीवों की हिंसा उसका पाप किसको लगा ? अगर कहा जाय मखी निकालनेवाले श्रावकका इरादा जीव बचानेका था, इसलिये पानीके जीवोकी जो द्रव्यहिंसा हुई उसका पाप नही, क्योंकि पाप या पुन्य बांधना मनः परिणामके ताल्लुक है, जब मनः परिणाम अशुभ नही तो पाप कैसे बंधे ? इसीतरह मूर्तिपूजा के लिये भी मनः परिणामपर बात है. अगर कोई कहे श्राद्धविधि ग्रंथ में लिखा है जिनमंदिर की धजाकी छाया जिसके घरपर दिनके अवल और अखीरमहरमें पडे ऊस घरवालेका अछा नही, जिनमंदिर तो अछा है, फिर उसकी धजाकी छाया अछी क्यों नही ? जवाबमें मालुम हो, अच्छी चीज भी विधि से सेवन करो तभी फायदेमंद होती हैं, श्रावकों का फर्ज है, जिनमंदिर की आशातना से बचे, और इसीलिये कुछ फासले पर बसे, नजीक जिनमंदिरके अपना घर होनेपर आशातना होनेका सवव है, बात आशातना मिटानेके लियेथी, इसको दुसरे रास्ते ऊतारना मुनासिव नही. जैनशास्त्रमें तीर्थ दो तरह के फरमाये, एक स्थावरतीर्थ दुसरा जंगमतीर्थ, स्थावरतीर्थ, अष्टापद, समेतशिखर, शत्रुंजयगिरनार, चंपापुरी, अयोध्या, पावापुरी वगेरा, और जंगमतीर्थं, साधुसाधवी, श्रावक-श्राविका, जैनागममें दोनों तरहके तीर्थं मंजुर रखना फरमाये, तीर्थकर रिषभदेव महाराज अष्टापदपर मुक्त हुवे, बीस तीर्थंकर समेतशिखरपर मुक्त हुवे तीर्थंकर वासुपूज्य महाराज चंपापुरी नेमिनाथ महाराज गिरनार पर्वतपर तीर्थंकर For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन, १७ महावीर स्वामी पावापुरीमें मुक्त हुने, तीर्थ अष्टापदकी जियारतकों गौतमस्वामी गये. इसीतरह दुसरे जैनमुनि अगर तीर्थंकरोकी निर्वाणभूमिपर जियारतको जावे तो क्या हर्ज है ? सावीत हुवा जैनशास्त्रों जैनतीयोंकी जियारत जाना लिखा है. जीवाभित्र बयान है कि भुवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकदेव ते नंदीश्वरद्वीपके जिनमंदिरोंकी जियारतको जाते है, और जलसा करते है, भगवतीसूत्रमें लिखा हैं, देवलोक में जहां सुधर्मासभाके माणवक चैत्यस्तंभोमें जिनोद्रोकी डाढा रखी हुई हैं, देवतेलोग ऊनका विनय करते है, देखिये ! यह जडवस्तुकी इज्जत हुई या नहीं ? मूर्त्तिपूजाकी पुख्तगीकी यहभी एक उमदा दलिल है, सूत्रऊपाशकदशांग में आनंद और कामदेव वगेरा श्रावकोंने जिनप्रतिमाका वंदन नमन करना मंजुर रखा, ज्ञातासूत्रमें द्रौपदीजीने जिनप्रतिमाकी पूजा किड़, और नमुथ्थुर्णका पाठ पढकर भावस्तत्र किया, रायपसेणीसूत्रमें सूर्याभ देवताने और जीवाभिगमसूत्रमें विजयदेवताने जिनप्रतिमाकी पूजा किई लिखा है, अगर जैनमजहब में मूर्तिपूजा कदीमसें न होती तो जैनशास्त्रों में ये पाठ क्यों होता ? ज्ञातासूत्रमें और अंतगडसूत्रमें कहा है, शत्रुंजय पर्वतपर अमुक जैनमुनि सिद्ध हुवे, मानुष्योत्तरं पर्वतपर और नंदीश्वरद्वीपमें जो जैनमंदिर मौजूद है, जंघाचरंण जैनमुनि ऊनकी जियारतकों जाते है, साबीत हुवा तीर्थभूमि अच्छे इरादे पैदा होनेकी जगह हैं, अगर कहा जाय अढाइद्वीप में सब जगह सिद्ध हुवे है, फिर तीर्थभूमिकी बात ज्यादा क्या हुई ? जवाव में मालुम हो ज्यादा बात यह हुई कि अभी वहां जैनमंदिर और मोक्षगामी जैनमुनियोके चरण - बने हुवे है, इसीलिये कहा जाता है, तीर्थभूमि ज्यादा धर्मपुख्तगीका सव है. जैनशास्त्रोंमें लिखा है, भरतराजा - चतुर्विधसंघकों लेकर For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir १८ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. तीर्थ शत्रुजयकी जियारतको गये थे. कई श्रावक जनमुनिकों वंदन करनेके लिये एक शहरसे दुसरे शहर जावे यह गुरुयात्रा हुई. जब गुरुयात्राम पुन्य है तो देवयात्रामें पुन्य क्यों नहीं? देवलोगोके चित्र-नरकावासोके चित्र-जंबूद्वीप वगेराके नकशे. देखकर जैसे ऊन ऊन चीजोका ज्ञान होता है मूर्ति देखकर उस देवका ज्ञान क्यों न होगा ? ___ तीर्थंकरोके समवसरणमें पूर्व दिशाके सामने खुद तीर्थकरदेव तख्तनशीन होते है, और तीनदिशा तीर्थकरदेवकी मूर्ति बनाकर देवतेलोग जायेनशीन करते है. सबुत हुवा खास तीर्थंकरोके होते हुवे भी मूर्ति मानी जातीथी, खयाल करो ! यह किसकदर मजबूत और पावंद दलिल है कि-जिसपर कोई किसी तरहका ऊन नहीं करसकता. जव तीर्थंकरोकी हयातीमें भी मूर्ति मानी जाती थी तो फिर इसके माननेमें कौन जैन इनकार करसकता है ? दश वैकालिकमूत्रकी नियुक्तिये वयान है. जैनाचार्य शयंभवमूरिने जिनमूर्ति देखकर प्रतिबोध पाया. जैनम नह में जिनमंदिर मूर्ति-जैनपुस्तक साधु-साधवी, श्रावक-श्राविका ये सात धर्मक्षेत्र वयान फरमाये, अगर मंदिरमूर्तिका इनकार करे तो पांच धर्मक्षेत्र रहजाते है, और रखना चाहिये सात समजसको तो समज लो ! मंदिरमूर्ति जैनमें कदीमसे है या नहीं? कई शिलालेख जमीनसे निकले हुवे ऐसे है, जिनोमे जैनमंदीर और जिनमूर्तिके लेख मीलने है, सोचो! अगर जामजावः मूर्तिपूजा होती तो उसके लेख क्यों होते ? अगर क्रिया करनेसे मुक्ति होती हा तो जमालिनीने गौतमगणधर जैसी क्रिया किई फिर ऊनकी मुक्ति क्यों नहीं हुई ? दरअसल ! विनाश्रद्धाके क्रिया कारआमद नहीं होती, कइशख्श विना क्रिया किये अकेली श्रद्धापूर्वक भावनासे केवल ज्ञान पाये है, इसीलिये कहा है श्रद्धा बडी दर्लभ है. For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. जिनप्रतिमाकी पूजामें अगर आरंभ मानाजाय तो फिर बतलाइये ! जैनमुनिकी दीक्षाके जलसेमें आरंभ क्यों नही ? अगर कहा जाय दीक्षा जलसेमें इरादा धर्मका है. इसलिये भावहिंसा नहीं तो फिर जिनमतिमाके जलसेमें रथयात्रामें अष्टान्हिका महोछवमें भी इरादा धर्मका है उसमें पाप कैसे लगेगा ? अगर कहा जाय हम भावनिक्षेपा मंजुर रखते है, तो फिर जैनमुनिका वेप देखकर वंदन क्यों करना? क्योंकि उनके दिलका भाव कैसा है यह शिवाय अतिशयज्ञानीके दुसरा कौन जानसकता है ? गुरूमहाराजके आसनकों या तख्नको अपना पांव लगजाय तो गुनाह हुवा समजते हो सोचो! यह एक तरहकी जडवस्तुकी इज्जत हुई या नहीं? जड वस्तुकी इज्जत किइ या ऊसकों मंजुररखी वात एकही हुई. किसी जैनमुनिकों कोई श्रावक एक गांवले दुसरे गांव वंदना करनेको जावे ऊसवख्त ऊसगांवके श्रावक ऊनको भोजन जिमावे तो बतलाइये ! जिमानेवालेको पुन्य होगा या पाप ? अगर कहा जाय ईरादा स्वधर्मीकी भक्तिका था इसलिये आवहिंसा नही तो फिर इसीतरह इरादेपर बात रखीये, किसी जैनमुनिका इंतकाल होजाय और उनके शरीरका अग्निसंस्कार किया जाय उसमें पुन्य समजना या पाप? कई जगह देखागया है उस जैनमुनिके मृतकलेवरके विमानको जव श्मशानमें लेजाते है ऊसवख्त ऊस विमानके आगे रुपये पैसे उछालते हुवे मयजलसेके लेजाते है, और खुशबूदार चिजोके साथ अग्निसंस्कार करते है. कहिये ! अग्निसंस्कार करनेवाले श्रावकोको पुन्य हुवा या पाप? अगर कहा जाय ईरादा गुरुभक्तिका है इसलिये भावहिंसा नहीं और विना भावहिंसाके पाप नहीं तो यही बात दुसरे धर्मकार्य के लिये क्यौं न समजी जाय ? मृतकलंबर तो जड है, जड वस्तुकी भक्ति क्यों करना ? कई श्रावक इसवातका अनुमोदन करते है कि अमुक For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २० हिदायत बुतपरस्तिये जैन जैनमुनिके कलेवरका अग्निसंस्कार अछा किया गया. विमान अछा बना था. कहिये ! यह अमुमोदन पुन्यका सबब है या नहीं? प्रकरण संग्रहका थोकडा जोकि पंडितराज पूज्यश्री (७) देवजीस्वामीके शिष्य पूज्यश्री लाधाजीस्वामीके पास शुद्ध करवाके श्रावक भगवानदासजी केवलदासजी साकीन सुरतने गुजराती प्रिंटिंग प्रेस बंबईमें छपवाया है, उसके पृष्ट (११७)पर लिखा है, मेरुके चारबन है. १ भद्रशालवन, २ नंदनवन, ३ सौमनसवन, ४ पांडुकबन, भद्रशालबन मेरुके चौतर्फ जमीनपर है, वह पूर्वपश्चिम बाइस बाइसहजार योजन लंबा और उत्तरदखन अढाइसो अढाइसो योजन चौडा है, उसमें एक पदमवेदिका जोकि चौतर्फ एकवनखंडसे घीरी हुई है. मेरुसे पूर्वकी तर्फ पचासयोजन वनमें जावे तो वहां एक सिद्धायतन है, वह पचास योजन लंबा, पचीसयोजन चौडा और छतीस योजन ऊंचा है, और उसमें अनेकथंभे लगे हुवे है. ऊस सिद्धायतनके तीनदरबजे पूरव दखन उत्तरमें बने हुवे है. वे दरवजे आठआठ योजनके ऊंचे और चारचार योजनके चौडे है. ऊस सिद्धायतनके बीचले विभागमें एक मणिमय पीठिका जोकि चार योजन लंबी चौडी और चार योजन महोटी रत्नमय बनी हुई है, उसपर एक देवछंदा आठ योजन लंबा चौडा और आठ योजनसे कुछ ज्यादह ऊंचा बना हुवा है, उसमे जिनप्रतिमा है, उसका बर्नन, देवछंदा, यावत् , धृपके कडछे वगेरा मौजूद है, इसीतरह चारो दिशामें चार सिद्धायतने जानना. देखिये ! इसमे सिद्धायतन, देवछंदा और जिनप्रतिमाका बयान मौजूद है, जैनमजहबमें अगर जिनमतिमा मंजुर न होती तो ऐसा बयान क्यों होता ? इससे सावीत हुवा जिनमतिमा जैनधर्ममें कदीमसे मानी जाती है, जिनप्रतिमाकी पूजा करना श्रावकोका कर्तव्य है, ऐसा उपदेश जैनमुनि देते हैं. जैनशास्त्रोमें जो बात For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. लिखी हो, ऊसका ऊपदेश करना जैनमुनिका फर्ज है. तीर्थकरोके समवसरणमें सचित फुल बीछाये जाते थे. खुद तीर्थकर महाराज रत्नसिंहासनपर बैठते थे, अपने ज्ञानसे वे जानते थे कि समवसरणमें बैठते वख्त फुलोका स्पर्श जैनमुनियोकों होगा, फिर फुल विछानेकी मनाइ तीर्थकरोने क्यों नही किई ? अगर कहा जाय वे फुल अचित थे तो ऐसा पाठ किसी जैनआगमका कोई जाहिर करे. ___ अगर कोई इस सवालकों पेंश करे कि-जैनमुनिकों मुहपति हाथमें रखना किस जैनशास्त्रमें लिखा है. (जवाव.) ओघनियुक्तिशास्त्रमें लिखा है कि मुहपति हाथमें रखना. मुखपर बांधना किसी जैनशास्त्रमें नहीं लिखा, अगर कहा है तो कोई पाठ बतलावे, मुहपत्ति मुखपर बांधना वायुकायके जीवोकी हिफाजत के लिये नही होसकता. मुखमेसे निकलते हुवे भाषा वर्गणाके पुदगल चारस्पर्शी होते है और वायुकायके जीवोंका शरीर आठस्पर्शी होता है. चारस्पर्शी आठस्पर्शीकी घात नही करसकते. अगर कहा जाय भाषावर्गणाके पुदगल मुखसे बहार निकले बाद आठस्पर्शी होजायगे और फिर वायुकायके जीवोंकी घात करेगें, जवाबमें मालुम हो मुहपत्ति बांधनेसेभी भाषावर्गणाके पुदगल मुखसे बहार निकले बाद आठस्पी होजायगे और वायुकायके जीवोकी हिंसा करेंगे तो फिर बतलाइये ! मुहपत्ति मुखपर बांधनेसे क्या फायदा हुवा ? आचारांगसूत्रके दुसरे श्रुतस्कंधमें दुसरे अध्ययनके तीसरे ऊदेशमें पाठ है कि से भिखुधा भिखुणीचा उसासमाणेवा निसासमाणेवा कासमाणेवा छीयमाणेचा भायमाणेवा उढवाएवा वाणिसग्गेवा करेमाणे पूवामेव आसयंवा पोसयंवा पाणिणा परिपेहिता ततो संजयामेव ओसासेजा जाच वायणिसग्गवा करेजा. For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. स्वासोत्स्वास लेतेवख्त खांसी, आतेवख्त छींक, लेते वख्त ऊबासी, लेतेवख्त और डकार लेतेवख्त जैनमुनि अपने मुखकों अपने हाथसे ढांके खयाल किजिये ! अगर मुहपत्ति मुखपर बांधनेका हुकम होता तो मुखको हाथसे ढांकनां क्यों फरमाते ? इसका कोई जवाब देवे. " अगर कोई तेहरीर करे कि जैनमुनिकों पीले कपडे रखना किस जैनशास्त्रमें कहा है, जवाब में मालुम हो निशीथमूत्र के अठारहमें ऊदेशेमें लिखा है कि जैनमुनि नये कपडेको तीनपसली जितना रंगदेवे, जिनकों कहो वे महाशय ऊसशास्त्रकों देखे, और अपना शक रफाकरे, बत्तीससूत्र में नंदीसूत्र सामील है, उसमें निशीथसूत्र मंजुर रखना फरमाया, इसलिये जैनमुनिकों कपडे रंगनेकी बातकों कौन जैन इनकार करसकता है ? अगर कोई इस दलीलकों पेंश करे कि रात्रीकों पानी रखना जैनमुनिको मुनासिव है ? जवाब में मालुम हो. बेशक ! मुनासिव क्योंकि रात्रीके वख्त फर्ज करो! किसी जैनमुनिकों मलोत्सर्ग करनेकी हाजत हुई तो बतलाइये ! ऊस वख्त अशुचि दुर करनेके लिये पानीकी जरूरत होगी या नहीं ? इसलिये चुना डालकर जैनमुनि रात्रीकों पानी रखे तो कोई हर्ज नही. अगर कोई बयान करे कि जैनमुनिकों रात्रीके वख्त विहार करना किस जैनशास्त्रमें लिखा है ? जवाब में मालुम हो, रात्री के वख्त विहार करना जैनमुनिकों मना है, मगर कोई कारण बनजाय तो औघनिर्युक्तिशास्त्र में कहा भी है, रात्रीकों जैनमुनि विहार करे, ऊत्तराध्यनसूत्रमें बयान है कि एक चंडरुद्रनामके जैनाचार्य और ऊनके शिष्य कारणसे रात्रीको विहार करगये थे. पहले जमाने में जैनमुनि वनखंड में बागबगिचेमें या उद्यान में रहते थे. आजकल गांव में और फिर अछे अच्छे मकान में रहते हैं, कहिये ! यह रवाज Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. २३ कबसे चला? उत्तराध्ययनमूत्रमें जैनमुनिकों तीसरे प्रहर गौचरी जाना कहा, आजकल पहले दुसरे प्रहरमें जानेका रवाज चलता है. यह रवाजभी कबसे जारी हुवा ? पहलेके जमानेमें जैनमुनि लुखासुका आहार लेते थे, अगर कोई पंचमहाव्रतधारी उत्कृष्ट संयमी पूर्ण क्रियापात्र बनना चाहे तो ऊद्यान या बनखंडमें रहे. और लुखासुका आहार लेवे, पहले जमानेमें कई जैनमुनि ऐसे थे जो राग होते हुवेभी औषध नही करवाते थे, अगर कहा जाय कि द्रव्यक्षेत्र कालभाव देखकर ऐसा बर्ताव करना पडता है तो इसी बातपर खयाल किजिये, महत्वता किस बातकी करना. जैसा द्रव्यक्षेत्रकालभाव है और जैसा सत्व संहनन और योग्यता है, मुताबिक ऊसके बर्ताव किया जाता है ऐसा कहना चाहिये. [बत्तीससूत्रके नाम यहां बतलाये जाते है जोकि स्थानकवासी मजहबमें मंजुर रखे गये है.] १ आचारांग. १७ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र. २ मूत्रकृतांग. १८ जंबूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्र. ३ स्थानांग. १९ निर्यावलीसूत्र. ४ समवायांग. २० कल्पावतंसिकासूत्र. ५ भगवतीसूत्र. २१ पुष्पिकासूत्र. ६ ज्ञातासूत्र. २२ पुष्पचुलिकासूत्र. ७ ऊपाशक दशांगमूत्र. २३ वन्हीदशांगसूत्र. ८ अंतकृतसूत्र. २४ ऊत्तराध्ययनसूत्र. ९ अनुत्तरोववाइसूत्र २५ दशवैकालिकसूत्र. १० प्रश्नव्याकरणसूत्र. २६ नंदीमूत्र. ११ विपाकसूत्र. २७ अनुयोगद्वारसूत्र. १२ ऊवाइसूत्र. २८ निशीथसूत्र. For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २४ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. १३ रायपसेणीमूत्र. २९ दशाश्रुतस्कंधसूत्र. १४ जीवाभिगममूत्र. ३० वरत्कल्पमूत्र. १५ प्रज्ञापनासूत्र. ३१ व्यवहारमूत्र. १६ चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र. ३२ आवश्यकमूत्र. ए वतीसमूत्र स्थानकवासी मजहबक लोग मानते है, इनमें जो छविशमें नंबरपर नंदीमत्र कहा है, उसमे पैतालिस आगम वगेरा चौदह हजार प्रकीर्णकशास्त्र मानना लिखे, ऊनको नहीं मानना इसकी क्या वजह है ? स्थानकवासी मजहबके लोग कहा करते है, हम तीर्थंकर गणधरोके वचनको मंजूर रखते है. बतलावे! फिर प्रज्ञापनासूत्र और दशवैकालिकमूत्र जो ऊपर वतीससूत्रोकी गिनतीमें (१५) और (२५)में नंवरपर गिनाये गये है, तीर्थंकर गणधरोके बनाये हुवे नही, आचार्योंके बनाये हुवे है, इनकों क्यौं मंजुर रखे गये. मुनि कुंदनमलजी इसका जवाब देवे, अगर कहा जाय नंदीसूत्रमें इनके नाम दर्ज है, इसलिये मंजुर रखे है, तो दुसरे सूत्रोके नामभी नंदीमत्रमें दर्ज है, उनको क्यों नहीं मानते ? तीर्थकर महावीरस्वामी के बाद (९८०) वर्सके पीछे जब देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण जैनाचार्यने सब जैनाचार्योंकी सलाहसे जैनपुस्तक ताडपत्रपर लिखे, तब दशवकालिक और प्रज्ञापनासूत्रके नाम दर्ज किये है. ___मूर्तिपूजा धर्मी शख्शोकों एतकात बढानेवाली चीज है, जहां जिनमंदिर बने रहेंगें वहां तरकी धर्मकी बनी रहेगी, जिनमंदिर बनवानेवाला श्रावक बारहमे देवलोककी गति हासिल करे, ऐसा महा निशीथसूत्रमें पाठ है, अगर कोई इस दलिलकों पेंश करेकि बतीसमूत्रकी गिनतीमें महा निशीथसूत्र नही गिना है, जवावमें मालुम हो, वतीसमूत्रकी गिनतीमें नंदीसूत्र माना गया है, और ऊस नंदीसूत्रमें महा निशीथसूत्रका नाम दर्ज है, इससे साबीत हुवा For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २५ हिदायत बुतपरस्तिये जैन महानिशीथमूत्र काविल मंजुर करनेके है, बत्तीसमूत्रही मानना और दुसरे नही मानना यह किसी जैनागममें नही लिखा, स्थानकवासी मजहबके श्रावकलोग अपने धर्मगुरुवोकों वंदना करने आनेवाले श्रावकोकों रसोई जिमावे और स्वधर्मी जानकर भक्ति करे तो बतलाइगे ! पुन्य होगा या पाप ? अगर कहा जाय पुन्य होगा, तो फिर स्वधर्मी वात्सल्य करनेमें पुन्य क्यों नही ? अगर कहा जाय दया सुखकी वेलडी है, और हिंसा दुखकी वेलडी है, तो जवाबमें मालुम हो, जैनमुनि विहार करते वख्त जब नदी ऊतरेगे और उनके पांवोसें जो पानीके जीव मरेगें यह दयामें समजना या हिंसामे ? अगर कहा जाय ! नदी ऊतरना ईरादे धर्मके तीर्थकरोका हुकम है, तो फिर जिनमंदिर बनाना तीर्थयात्रा जाना यह ईरादे धर्मके हुकम नहीं है क्या? देखिये ! ईरादेकी सडक कैसी मजबूत है कि-विना इसके काम नहीं चलता, जैनमुनि जब आहार लेनेको गृहस्थोके घर जायगे तो उनके शरीरसे जो वायुकाय वगरा जीवोकी हिंसा होगी, यह दयामें समजना या किसमे ? दीक्षाके जलसेमें बाजे वजवाना, जुलुस निकालना यह दयामे समजना या किसमे ? स्थानक बनानेमे पृथवी, पानी और अग्निकायके जीवोंकी हिंमा होगी यह दयामें समजना या किसमे ? इसका कोई महाशय जवाः देवे. दरअसल ! जहां इरादा शुभ है वहां भावहिंसा नही, और विना भावहिंसाके पाप नहीं, यह सिधी सडक है. ____ अगर कोई इस दलिलकों पेंश करे कि-पथरकी गौ जैसे दुध नही देती, वैसे पथरकी मूर्ति मुक्ति कैसे देयगी ? (जवाव. जैसे कागज स्याहीके बने हुवे जडपुस्तक बोलते नही तो मुक्ति कैसे देयगे? अगर कहा जाय पुस्तकके बांचनेसे ज्ञान होगा तो जवाबमें मालुप हो, इसीतरह मूर्त्तिके दर्शन करनेसे For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २६ हिदायत बुतपरस्तिये जैन. भी ज्ञान होगा, जैसे जंबूद्वीपका नकशा देखकर जंबूद्वीपका ज्ञान होता है, जिनेंद्रकी मूर्त्ति देखनेसे जिनेंद्रोंके गुणोका ज्ञान होगा, ज्ञातासूत्रमें बयान है कि- मल्लिनाथजी की मूर्ति देखकर छह राजाओको जातिस्मर्ण ज्ञान हुवा, जैसे किसी शख्शकी मूर्ति देखकर वो याद आजाता है, जिनेंद्रो की मूर्ति देखकर जिनेंद्रदेव क्यों न याद आयेंगें ? कई शहरोमें राजेमहाराजोकी मूर्त्ति बतौर याददास्तीके खड़ी कि जाती है, हुंडी एकतरहकी स्थापना हैं, और ऊससे रुपये मीलसकते है, देखिये ! स्थापना कितनी आलादर्जे की चीज है, इस बातपर गौर करो. रजोहरण-मुखवस्त्रिका जैनमुनिका वेश है, उनकों धारण करनेवाले जब दिखाई दिये कि तुर्त दुसरोके दिलमें मुनि याद आजाते है, इसी तरह जिनेंद्रो की मूर्ति देखकर जिनेंद्र याद आ जाते हैं, अगर कोई कहे सिंहकी मूर्ति किसीकों मारती नही, वैसे जिनेंद्रकी मूर्त्ति किसीको तारती नही, जवाब में मालुम हो, सिंहकी मूर्ति देखने से जैसे सिंह याद आजाता है, और दिलमें एक तरहका खोफ भी दरपेश होजाता है, वैसे जिनेंद्रकी मूर्त्ति देखने से जिनेंद्र याद आजाते है, और दिलमें वैराग्य भावना पैदा होजाती है, सबुत हुवा मूर्त्ति ऊस चीजकी यादी दिलाने में एक फायदेमंद चीज है, नरकके जीवोके और स्वर्गके जीवो के चित्र देखकर आदमी ताज्जुब करने लगता है, देखिये ! चित्रोने कितना असर पहुचाया, जिसके देखनेसे स्वर्ग-नरक याद आगये, चित्रभी एक areकी स्थापना है. सौचो ! स्थापनायें कितनी बडी ताकात रही है, गेरमुल्कसें आई हुई चीटीके वांचने से घर बैठे सबहाल मालुम होसकते है, कहिये ! हमें कितनी ताकात रही हुई हैं ? ऊसपर खयाल किजिये ! दरअसल ! हर्फ ज्ञानकी स्थापना हैं, और वो स्थापना पुरा काम देती हैं. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन. २७ जैनरामायण में वयान है कि- रामचंद्रजी की भेजी हुई अंगुठीसे सीताजीकों लंका में खुशी पैदा हुई और सीताजी के भेजे हुवे कंकण से किष्कंधा वेठे हुवे रामचंद्रजी कोंभी खुशी हासिल हुई, समजसको तो समजलो ! जडचीजने चेतनकों कितनी खुशी पैदा किई ? पांडवचरितमें बयान हैं, - एक भीलने द्रोणाचार्यजी की मूर्ति बनाकर ऊस मूर्त्तिके सामने अदव किया, ऊस मूर्त्तिकों गुरूसमान मानी और उससे धनुर्विद्याका इल्म हासिल किया ? देखलो ! बदौलत ऊस मूर्त्तिके ऊस भीलकों कितना फायदा हुवा ? - अगर कोई इस मजमूनकों पेश करे कि निराकार परमात्माकी साकार मूर्त्ति कैसे बनाते हो ? जवाब में मालुम हो, निराकारकी मूर्ति नही बनाई जाती, साकारकी मूर्त्ति बनाई जाती है. तीर्थंकरदेव जब देहधारी थे ऊस हालत की मूर्ति बनाई जाती है, निराकार हालतकी नही बनाई जाती, जिसने कागज स्याही के बने हुवे धर्मपुस्तक माने ऊसने मूर्ति एकदफे नही हजारदफे मानी समजो, कोई पुस्तकको मानते है, कोई किसी पहाडको, कोई चरनको और कोई मंदिरमूर्तिकों मानते है, देखलो ! बिना स्थापनाके किसीका काम नहीं चला, सबुत हुवा नाम स्थापना, द्रव्य और भाव ये चारो निक्षेपे काविल माननेके है, गुरुके आसनपर अगर अपना पांच लगजाय तो कहते हो, बेअदबी हुई, कहिये ! आसन एक जडवस्तु थी, जडकी बेअदबी से गुरुकी बेअदबी कैसे हुई ? अगर कहा जाय जडमें चेतनकी स्थापना मानी गई है तो फिर मूर्त्तिमभी परमात्मा की स्थापना मानी गई है ऐसा कहना कौन इन्साफ हुआ ? जब तीर्थकरोका जन्म होता है इंद्रदेवते मीलकर ऊनका जन्म उत्सव करते है, खयाल करो ! ऊस वख्त वे भावतीर्थकर तो हुवे नहीं थे. द्रव्यतीर्थंकरका उत्सव ऊनोने किया या नहीं? अगर द्रव्यतीथकरका उत्सव करना फायदे For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir २८ हिदायत बुतपरस्तिये जैन, था तो इंद्रदेवते ऐसा क्यों करते ? अगर कोई कहे हम तीर्थंकरदेवका ध्यान नही करलेयगे हमको मूर्ति मानने से कोई जरूरत नही. ( जवाव . ) फिर गुरुमहाराजका ध्यानभी मनमेही करलिया करो, गुरुमहाराजके दर्शनोकों एक गांवसे दुसरेगांव जाना क्या ! फायदा ? गाडीघोडे पर सवार होना, रास्ते में खानेपीनेका आरंभ करना, क्या जरूरत ? घरवेठेही गुरुका ध्यान करलेना अच्छा गुरुके दर्शनोकों जाना और तीर्थंकरो के दर्शनोका नही जाना कौन ईन्साफ है ? अगर कोई इस दलिलकों पेश करे कि तीर्थकरदेव त्यागी होते थे, उनकी मूर्तिको गेहने पहनाना क्या जरूरत ? ( जवाब . ) तीर्थंकरदेव खुद जव समवसरण में रत्नसिंहासनपर बिराजमान होते थे, दोनों तर्फ देवते चवर करते थे, ऊनके पीछे भामंडल रखा जाता था, बिहार करते वख्त देवताओंके बनाये हुवे सुवर्ण कमलोपर पांव देकर चलते थे, इन बातोसे ऊनका त्यागीपना नहीं गया था, तो उनकी मूर्तिकों गहने पहनानेसें त्यागीपना कैसे चला जायगा ? स्थानांगसूत्रमें वयान है कि - १ सावद्यव्यापार और सावद्यपरिणाम, २ सावद्यव्यापार और निरवद्यपरिणाम, ३ निरवद्यव्यापार और सावधपरिणाम, ४ निरवद्य व्यापार और निरवद्यपरिणाम, इन चार भेदोंमें पहलाभेद अधर्मीमिथ्यादृष्टिकी अपेक्षा से कहा गया है, ऐसा जानना, क्योंकि अधमी मनपरिणाम पापमय और कर्तव्यभी पापमय होते है. दुसरा भेद सावद्यव्यापार और निरवद्यपरिणाम यह श्रद्धावान् श्रावककी अपेक्षासे कहा गया है, ऐसा जानना. देवपूजा, गुरुवंदन वगेरा धार्मिक कामो व्यापार दिखाई देता है, मगर मनःपरिणाम For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir हिदायत बुतपरस्तिये जैन पापमय नही, इसलिये पाप नहीं, बल्कि ! पुन्यानुबंधिपुन्य और अशुभ अनिकाचितकर्मकी निर्जराका हेतु है, तिसरा भेद निरवद्य व्यापार और सावधपरिणाम यह प्रसन्नचंद्र राजरिषिकी अपेक्षासे जानना, प्रसन्नचंद्रजी राजरिपि काजोत्सर्गध्यानमे खडे थे, उनका व्यापार ऊसवख्न निरवद्य था, मगर मनःपरिणाम हिंसात्मक होनेसे उनको अशुभ कर्मके दलिये संचय होगये थे, चौथा भेद निरवद्यव्यापार और निरवद्यपरिणाम यह भेद सर्व विरतिसाधुकी अपेक्षासे जानना, क्यौं सर्वविरति साधुमहाराजका व्यापार (यानी) कर्तव्य भी निरवद्य और मनःपरिणामभी निरवद्य होते है, इन चारो भेदोको अछीतरह समज लिये जाय तो सब तरहके शक रफा हो सकेंगें. दरअसल ! मनके शुभाशुभ परिणाम पुन्यपापके हेतु है, देखलो ! एलाचिकुमार एक नटिनीपर मोहित होकर अपने घरसे निकला था, और चाहताथा कि-किसी तरह इस नटिनीकों अपनी औरत बनालं. मगर एकदफे जब एकशहरमें बांसपर चढकर नाटक करता था, एक जैनमुनिको भिक्षावृत्ति करते देखे और मनःपरिणाम सुधरे, फौरन ! ऊनकों केवलज्ञान पैदा होगया. देखलो ! निरवद्य मनःपरिणामके सामने सावधव्यापार यानी हिंसात्मक कर्तव्यभी रद होगया इसी लिये कहाजाता है, मनःपरिणाम यानी इरादा बडी चीज है, तीर्थोकी जियारत जानेसे जीवके इरादे पाक और साफ होते है, धर्मपर एतकात नढता है और दुनियाके कारोवार भूलजाते है, अगर तीथामें कोई जैनमुनि पधारे हुवे हो तो शास्त्र सुननेकाभी फायदा मीलता है, जोजो तीर्थकर और मुनिमहाराज ऊस तीर्थसे मुक्ति पाये है वे याद आयगे. पुन्यवान् पुरुषोके निर्मल पुदगल परमाणुओका स्पर्श होनेसे बुद्धि निर्मल होगी. तीथा में फिरनेसे भवभ्रमण कम होगा, तीर्थभूमिकी रज For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ३० हिदायत बुतपरस्तिये जैन. अपने शरीरपर लगनेसें पापरुपीरज दुर होगी, इन इन सबबोसे तीर्थोंकी जियारत और मूर्तिपूजा फायदेमंद चीज सावीत होती है. ___ अगर कोई इस दलिलकों पेश करे कि-तीयामें गये और मनःपरिणाम नही सुधरे तो क्या फायदा हुवा ? ___ (जबाव.) गुरुमहाराजको वंदना करने गये और मनःपरिणाम नहीं सुधरे तो बतलाइये! क्या! फायदा हुवा? दरअसल ! देवगुरुधर्मकी जगह मनःपरिणाम सुधरनेका स्थान है, इतनेपरभी किसीके मनःपरिणाम नही सुधरे तो उस जीवके कर्मोका दोष है, यूतो दीक्षा लेनेपरभी किसीके मनःपरिणाम नही सुधरे तो इसमे कोई क्या करे, उस जीवके पापकर्मका ऊदय जानना, तीर्थकरदेवकी वानी सुनकर अभव्यजीवके मनःपरिणाम नहीं सुधरे तो इसमें तीर्थंकरकी वानीका क्या दोष? ऊस जीवके अशुभकर्मका दोष है, ऐसा जानना. किताब-हिदायत बुतपरस्तिये जैनका लिखान खतम होता है, मुनि कुंदनमलजीके विवेचनपत्रका जवाबभी इसमें देदिया है, आपलोग पढे, और अपने दोस्तोकोंभी दिखलावे, में ऊमेद करता हुं-सबकों यह किताब पसंद होगी और मूर्तिपूजाकी संबुतीपर ऊमदा दलिले मीलेगी. जब कल्म-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजी, मुकाम-पाचोरा-खानदेश. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir [सिद्धचके महात्मपर उमदा लावनी . ] जगतमें नवपद जयकारी - पूजतां रोग टले भारी, प्रथमपद तीरथपति राजे - दोष अष्टादशको त्यागे, आठ प्रातिहारज छाजे - जग्तप्रभु गुण बारे राजे, अष्ट कर्मदल जीतके - सकल रिद्धि थई आय, सिद्ध अनंत नमुं बीजेपद एक समय शिव जाय, गट भयो निजस्वरूप भारी - जग्तमें नवपद जयकारी. १ सूरिपद में गोयम केशी - ओपमा चंद सूरज जैसी, ऊधार्यो राजा परदेशी - एक भवमांही शिव लेसी, चोथेपद पाठक नमुं श्रुतधारी ऊवझाय, सर्वसाधु पंचमपदमांही- धन धन्नो अणगार, वखाण्यो वीरप्रभु भारी - जगत में नवपद जयकारी. द्रव्य खटकी सरधा आवे - समसंवेगादिक पावे, बिना ये ज्ञान नही किरिया - ज्ञानदर्शनथी सब तरिया, ज्ञानपदारथ सातमें - पदमें आतमराम, रमता रहे अध्यातममांही- निजपद साधे काम, देखता वस्तु जगतसारी - पूजतां रोग टले भारी. योगनी महिमा बहु जानी - चक्रधर छोडी सब नारी, यति दशधर्मकरी सोहे - मुनि श्रावक सब मन मोहे, कर्म निकाचित काटवा - तपकुठार करधार, नवमापद जो करे क्षमासु-कर्म मूलकट जाय, भजो नवपद जगसुखकारी-जगतमें नवपद जयकारी. ४ အစာအာဟာ» For Private And Personal Use Only ३ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ححححه جوجه خخخخه Ouru watarawaskar श्री सिद्धचक्र भनो भाइ-आचामल तप नव दिनठाई, पाप तिहु योगे परीहरज्यो-भवी श्रीपालपरे तरज्यो, ओगणीसें सतरांसमे-जयपुर श्रीसुपास, चैत्रधवल पुनदिने-मुज सफल हुई सब आस, बाल कहे नवपद छब प्यारी-जगतमें नवपद जयकारी. ५ (इति नवपद महात्मपर लावनी संपूर्ण.) ९-enereneursansaane [जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजीके बनाये हुवे ___ ग्रंथोकी यादी.] १-मानवधर्मसंहिता. २-रिसाला मजहब ढुंढिये.. ३-जैनसेंस्कारविधि. ४-बयान पारसनाथ पहाड. ये चार ग्रंथ जितने छपे थे तमाम बीक गये, सीलक नहीं रहे. १-जैनतीर्थगाइड-किंमत तीन रूपये. २-त्रिस्तुति परामर्श-आठ आने. ३-सनम परस्तिये जैन-किंमत चार आने. ४-न्यायरत्नदर्पण-मुफत. [अलावा इसके और ग्रंथ छपवाना बाकी है, ऊनके नाम नीचे मुजव.] १-जैनतीर्थगाइड छोटी. २-पंचमकाल पताका. ३-खरतरगछ मीमांसा., ४-जहुरे आलम. ५-प्राचीन श्वेतांबर. ६-निर्णय प्रभाकर. __ कोई श्रावक इन ग्रंथोंकों अपने नाम और अपने खर्चसे छपवाना चाहे-ग्रंथकत्तासे बजरीये पत्रके दरयाफ्त करे. Jerrorrearee wasen) For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir For Private And Personal Use Only