Book Title: Gurumurti Pratishtha Vidhi
Author(s): Mangalsagar
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि० सं० २०१७ ] www.kobatirth.org श्री जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड (सुरत) ग्रन्थांक: - ६५ || नमः श्रीप्रवचनप्रणेतृभ्यः ॥ ॥ श्रीगुरुमूर्ति प्रतिष्ठा - विधिः ॥ ( श्री दादागुरु स्तूप - पादुका - प्रतिष्ठाविधिश्च ) सङ्कलनकर्ता - मुनिमङ्गलसागर चैनाचार्य - श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरीश्वर - शिष्योपाध्यायपदालङ्कृत- मुनिसुखसागरोपदेशान् श्रेष्टिषयः - घेवरचंद्रादिवितीर्णद्रव्यसाद्दायेन प्रकाशितः । : प्रकाशक : श्री जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार, मु० सुरत [ सप्रेम उपहार ] For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ प्रति ५०० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ २ ॥ द्रव्य साहाय्यक १००) श्रीयुत् वेवरचन्दजी मानकचन्दजी मालु मु० सीवनि । ५१) " आसुलालजी प्रतापमलजी मालु, मु० वाडमेर । ५१) कोजमलजी भणसालि की धर्मपत्नी स्व० रतनीबाई श्रेयार्थ, मु० गढसिवाना । ५१) ५१) 99 39 29 www.kobatirth.org एक सद्गृहस्थ के तरफ से मु० कच्छ । छोगमलजी नाहटा की धर्मपत्नी सौ० नवलबाई मु० सीवनी । मुद्रक: अमरचंद बेचरदास महेता श्री बहादूरसिंहजी श्री प्रेस, पालीताणा (सौराष्ट्र) For Private and Personal Use Only प्रकाशक: श्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार ठि० गोपीपुरा - शीतल वाडी, मु० सुरत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २ ॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir निवेदनपावयणी-धम्मकही-वाई-नेमित्तिो -तवस्सी य । विज्जा-सिद्धो य कवी अठेव पभावगा भणिया । (प्रव० सा०) आठ प्रभावक प्रवचनना कह्या, पावयणी धुरि जाण । वर्तमानश्रुतना जे अर्थनो, पार लहे गुणखाण ॥ धन धन शासन मंडन मुनिवरा ॥१॥ धर्मकथी ते बीजो जाणीए, नंदिषेण परे जेह । निज उपदेशे रे रंजे लोकने, भंजे हृदय संदेह ।। ध० ॥२॥ वादी त्रीमो रे तर्क निपुण भणी, मल्लवादी परे जेह । राजद्वारे जय कमला वरे, गाजतो जिम मेह ।। ध० ॥३॥ भद्रबाहु परे जेह निमित्त कहे, परम तजीपण काज । तेह निमित्ती रे चोथो जाणीए, श्री जिनशासन राज ।। ध० ॥४॥ तप गुण ओपे रे रोपे धर्मने, गोपे नवि जिन आण । आभव लोपे रे नवि कोपे कदा, पंचम तपसी सुजाण ॥ ३० ॥५॥ छट्ठो विद्या रे मंत्रतणो बळी, जिम श्री वयर मुणींद । सिद्ध सातमो रे अंजनयोगथी, जिम कालिक मुनिचंद ॥ ३० ॥६॥ काव्य सुधारस मधुर अर्थ भर्या, धर्महेतु करे जेह । सिद्धसेन परे राजा रीझवे, अट्ठम वर कवि तेह ।। ध० ॥७॥ जब नवि होवे प्रभावक एहवा, तब विधिपूर्व अनेक । जात्रा पूजादिक करणी करे, तेह प्रभावक छेक ॥ १०॥ ८॥ (उपाध्यायजी यशोविजयजी समकित ६७ बोल सज्झाय) CrPCCORPCOCCORDCORDC * अइसेस इडिट-धम्मकहि-वादि-आयरिय-खवग-णेमित्ती। विज्जा-राया गण सं-मया य तित्यं पभावेति ॥ नि० चू० ॥ For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IN 2ccccceeeeccaecreen उपरोक्त गाथाओ से विदित होता है कि पूर्व के प्रभावक आचार्योंने जैनधर्म की महान् सेवा की है, परंपरागत प्रभाव01 कोने भी राजा, महाराजा, मुगल बादशाह, मंत्री, महामंत्री, सेनापति आदि पुरुषों को प्रभावित कर जैनशासन की प्रभावना की, इतना ही नहि बल्कि जैनधर्मी भी बनाये । अतः उन्हों के गुणस्मरणार्थ गुरुमूर्तियों का निर्माण हजारों वर्षों से भारतवर्ष में होता आ रहा है, उसी प्रकार विधिग्रन्थो का भी निर्माण हुआ। प्रस्तुत, ग्रन्थ उन में से एक है । सूरिसम्राट् के परंपर पट्टधर, आचार्य श्री १००८ श्री नन्दनसूरिजी के उदार कृपा से प्रतिष्ठा प्रन्थ की प्राचीन अर्वाचीन प्रति उपलब्ध हुयी है, अतः आभार मानते है। प्रकृत ग्रन्थ में अठारह अभिषेक काव्य नवीन सम्मिलित किये गये है। इस ग्रन्थ का संशोधन करने का प्रयास उपरोक्त सूरीश्वरजी महाराज ने किया है। तथापि अशुद्धि रह गइ हो तो पाठकगण उसको सुधार कर पढे। पूज्य गुरुवयं १०८ श्री उपाध्याय मुनि सुखसागरजी महाराज के उपदेश द्वारा ग्रन्थ प्रकाशनार्थ सहायता की है अतः वे श्रुतभक्ति के कारण धन्यवाद के पात्र है। CPCRPopeececoccaer. पालीताणा सं. २०१७ शुभाकाक्षी, मुनि मंगलसागर ॥४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुरुमूर्त्ति ॥ १ ॥ www.kobatirth.org || श्री स्तम्भनपार्श्वनाथाय नमः ॥ श्री गुरुमूर्त्ति प्रतिष्ठा विधिः [ गुरुपादुका - स्तूपप्रतिष्ठा विधिश्च ] अज्ञान तिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया । नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ १ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननु - गुरूणां स्तूपस्य प्रतिमायाश्च प्रतिष्ठा क्रियते, तत्र को विधिः प्रतिपादितोऽस्ति १ । उच्यते अत्र गुरुपरम्परागतपत्रलिखितविधिः प्रमाणम् । स चाऽयम् - शुभदिने शुभनक्षत्रे शुभवेलायां च गुरूणां स्तूप- प्रतिमा प्रतिष्ठा क्रियते । For Private and Personal Use Only प्रतिष्ठाविधिः ॥ १ ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अमिषेक ॥२॥ IN Donormomoonam तत्र पूर्व भूमिकाशुद्धिं कृत्वा तत्र रात्रिजागरणमहोत्सवपूर्वकं प्रातः संघसमक्षं सपुत्र-कलत्राः पवित्राः कृतस्नानाः परिहितधौतवनाः चत्वारः श्रावकाः समागच्छन्ति । तत्करेषु 'चतुरश्चलाः श्राविकाः सधवाः कङ्कणं बध्नन्ति, तद्भाले च कुकुमतिलकं कुर्वन्ति । अथ नमस्कारत्रयपूर्वकं श्रीशान्तिनाथप्रतिमा स्थापयित्वा स्नात्रपूजां विधाय शांतिकलशं मणित्वा ते चत्वारोऽपि पुरुषाः उत्कृष्टतोऽष्टोत्तरशततीर्थजलौषधीभृतान् , तदभावे एकविंशतितीर्थजलोषधीभृतान् कलशान् लात्वा ऊर्वीभूय तिष्ठन्ति । ततो दशदिक्पालस्थापना क्रियते । सा च एवं कार्या "ॐ हों इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय अस्गिन् जंबुद्वीपे दक्षिणभरतादक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकस्थाने इह प्रतिष्ठायां आगच्छ आगच्छ, बलिं गृहाण गृहाण, उदयमभ्युदयं च कुरु कुरु स्वाहा ॥१॥" ___ एवम्-" अग्नये २, यमाय ३, नैऋनाय ४, वरुणाय ५, वायये ६, कुबेराय ७, ईशानाय ८, ब्रह्मणे ९, नागाय १०।" इति । एवं नवग्रहस्थापनाऽपि कार्या । सर्वत्रोपरि बलि-बाकुल-लपनश्रीमोचनं वासक्षेपश्च कार्यः । ततो दशदिक्षु बलि-बाकुलोच्छालनं कार्यम् । ततस्तैः पुरुषैः पादुकोपरि तथा मूर्युपरि स्नानं कार्यम् तद्यथा-स्नात्रादो प्रथम पुष्पाञ्जलि विधेया। तन्मन्त्रो यथा " नानासुगन्धिपुष्पौध-रञ्जिता चञ्चरीककृतनादा। धूपामोदविमिश्रा, पततात् पुष्पाञलिबिम्बे ॥१॥ Demedeoecococcoon ॥ २ ॥ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषेक peacocococom2000 ॐ हा ही हूँ हैं हौ हा परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः पुष्पाञलिभिरर्चयामि स्वाहा । एवं प्रतिस्नात्रमादौ पुष्पाञ्जलिविधेया। (१) अथ प्रथम स्वर्णचूर्णस्नात्रम् । यथा-"मुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गन्धपुष्पसम्मिश्रं । पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मन्त्रपरिपूतम् ॥१॥ सुवर्णद्रव्यसंपूर्ण, चूण कुर्यात् मुनिर्मळम् । ततः प्रक्षालनं वार्मिः, पुष्प-चन्दनसंयुतैः ॥२॥ संगच्छमानदिव्यश्री-घुमृणातिमानिव । विम्ब स्नपयताद् वारिपूरः काञ्चनचूर्णभृत् ॥३॥ स्वर्ण चूर्णयुतं वारि, स्नात्रकाले करोत्वकम् । तेजोऽद्भुतं नवे बिम्बे, भूरिभूतिं च धार्मिके ॥४॥ ॐ हा ही हूँ है हौ हैं: परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः गन्ध-पुष्पादिसम्मिश्रचूर्णसंयुतजलेन स्नपयामि स्वाहा ॥ "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ, जलं गृह्ण गृह्ण स्वाहा"॥१॥ स्नात्रम् “ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु पृथ्वीगन्धं गृह्ण गृह्ण स्वाहा" ॥२॥ चन्दनविलेपनम् “ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनीं पुरु २, पुष्पवती पुष्पं गृह्ण गृह स्वाहा" ॥३॥ पुष्पाधिरोपणम् "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह. महाभूते तेजोधिपतये धू धू धूपं गृह्ण गृह स्वाहा" ॥४॥ धूपदानं च कर्तव्यम् एवं प्रतिस्नात्रं विधेयम् । acroconcercomc02020 For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुरुमूर्ति ॥ ४ ॥ www.kobatirth.org (२) अथ द्वितीयं पञ्चरत्न चूर्णस्नात्रम् । पुष्पाञ्जलिः यन्नामस्मरणादपि श्रुतवशाद् अल्पाक्षरोबारतो यत्पूर्ण प्रतिमाप्रणामकरणात् संदर्शनात् स्पर्शनाद्भव्यानां भवङ्कानिरसकृत् स्यात् तस्य किं सत्पयः स्नात्रेणाऽपि ? तथा स्वभक्तिवशतो स्नात्रोत्सवे तत् पुनः ॥ १ ॥ नानारत्नौघयुतं सुगन्धपुष्पाभिवासितं नीरं पतताद् विचित्रचूर्ण मन्त्रादथं स्थापनाबिम्बे ॥ २ ॥ नानारत्नशोदान्विता पतत्वम्बुमन्ततिर्विम्बे तत्कालसङ्गळाळसमाहात्म्य श्रीकटाक्ष निभा ॥ ३ ॥ शुचिपञ्चरत्नचूर्णाssवूर्ण पयः पतद् बिम्बे भव्यजनानामाचारपश्चकं निर्मलं कुर्यात् ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ हा हाँ हूँ हूँ हाँ द्रः परम गुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः गन्धपुष्पादि सम्मिश्रमुक्ता-स्वर्ण रौप्य प्रवाल- ताम्ररूपपञ्चरत्नचूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा ॥ स्नात्र-चन्दन विलेपनादि । (३) अथ तृतीयं पञ्चगव्यपञ्चामृतं स्नात्रम् । पुष्पाञ्जलिः | द्विम्बोपरिनिपतद् घृत-दधि- दुग्बादिद्रव्यपरिपूतम् । दर्भेदकसम्मिश्रं पञ्चगव्यं हरतु दुरितानि ॥ १ ॥ पुष्प - चन्दनैश्व, मधुरैः कृतनिःस्वनैः । दधि- दुग्ध-घृत मिश्रः, स्नपयामि यतीश्वरम् ॥ २ ॥ For Private and Personal Use Only अभिषेक || 8 || Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषेक 910 chers pencumenezzaeroeceDeewa एकत्र मिलितस्तैः पञ्चभिःस्मृतः सुगन्धिभिः। स्नपनं क्रियमाणं नवविम्बे, हरता विषपञ्चकं नृणाम् ॥ स्नात्रं विधीयमानं, सुगन्धि पश्चामृतेन यतिबिम्बे । भक्तिपह्वजनानां, प्रमादपञ्चकविष हरतात् ॥ ४॥ परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः, गन्ध-पुष्पादिसम्मिश्रपञ्चगव्ययुतपञ्चामृतेन स्नपयामि स्वाहा। उद्धृत्य स्नात्र-चन्दनविलेपनादि । (४) अथ चतुर्थ सदौषधि स्नात्रम् । ___ पुष्पाञ्जलिः। प्रियङ्गु-वत्स-ककेल्लीरसालादि तरूद्भवैः। पल्लवैः पत्रभल्लाते-रेलची-तजसत्फलैः ॥१॥ विष्णुक्रान्ताहिपवाल-लवङ्गादिभिरष्टभिः । मूलाष्टकैस्तथा द्रव्यैः, सदौषधिविमिश्रितैः॥२॥ सुगन्धद्रव्यसन्दोह-मोदमत्तालिसंकुलैः। कुर्वे यतिमहास्नात्रं शुभसन्ततिसूचकम् ॥ ३ ॥ सुपवित्रमूलिकावर्गमर्दिते तदुदकस्य शुभधारा। बिम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपततन्ती॥४॥ बिम्बस्य मयूरशिखा-मूलिका मिश्रितैर्जलैः। स्नात्रं विदधति विशुद्धमनसो, माभूदिव दृष्टिरिति बुद्धया ॥५॥ वशकारि मयूरशिखा-मूलिकामिश्रितैर्जलैः । स्नपनं बिम्बे वशतु, जनानां क्रशयतु दुरितानि भक्तिमताम् ॥६॥ “ॐ हा ही परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः, गन्ध-पुष्पादि सम्मिश्र पियवाद्यौषधि-विष्णुकान्तादि मूलिकाचूर्णसंयुतेन जलेन स्नपयामि स्वाहा"। स्नात्र-चन्दन विलेपनादि । PeermanceroorceCam ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति प्रतिष्ठाविधिः amecommerccccccceeoCemeer (५) अथ पचमं तीर्थोदकस्नात्रम् । पुष्पाञ्जलिः। जलधि-नदी-हद-कण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तै मन्त्रसंस्कृतैरिह, विम्ब स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥१॥ नाकिनदी-नदविदितैः, पयोभिरम्भोजरेणुभिः सुभगैः। श्रीमज्जिनेन्द्रमत्र, समर्चयेत् सर्वशान्त्यर्थम् ॥२॥ तीर्थाम्भोभिबिम्ब, मङ्गल्यैः स्नप्यते प्रतिष्ठायाम् । कुरुते यथा नराणां, सन्ततमपि मङ्गलशतानि ॥३॥ अभिमन्त्रितः पवित्र-स्तीर्थजलैः स्नप्यते नवं बिम्बम् । दुरितरहितं पवित्रं, यथा विधत्ते सकलसङ्घम् ॥४॥ : परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः गन्धपुष्पादि सम्मिश्रतीर्थोदकेन स्नपयामि स्वाहा । स्नात्र-चन्दन विलेपनादि । ततः कर्पूर-कस्तुरी मिश्रित केसर-चन्दनाभ्यां पादुका पूजा कार्या । ततः श्री गुरुणा लग्न समये "वधमान विद्यया" मूर्ति पादुकोपरि वासक्षेपः कार्यः । PRECORPeerococceeoraeem तथा च "ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्ज्ञायाणं, ॐ नमो लोए IN सव्यसाहूणं, ॐ नमो अरिहयो भगवो महइमहाविज्जा वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवारे बद्धमाण वीरे जए | विजए जयंते अपराजिए अणिहए ॐ ह्रीं ठः स्वाहा ।" [उवयारो चउत्थेण साहिज्जइ । पव्वज्जोवठाणा-गणिजोग-पइट्ठा उत्तिमट्ठपडिवत्तिमाइएसु कजेसु सत्तवारा जवियाए] For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततस्तदने अक्षतपुञ्जत्रयं कार्यम् । तदुपरि पुगीफलत्रयं २ मोच्यम् । चतुर्दिक्षुनालिकेरचतुष्य भङ्कत्या सर्वेषां देयम् । ततो गुरुमूर्ति-16 धूपः कार्यः ततः सधवस्त्रियो गायन्ति, वादिनागि वाद्यन्ते दानं च दीयते, गुरुभक्तिश्च क्रियते, साधर्मिकवात्सल्यं च विस्तरेण कार्यम् । तदनन्तरं स्तूपोपरि ( देवकुलिका) कश्मीरज-चन्दनादि छटाः दीयन्ते, ततो मूर्ति-पादुका गदिकाया अधः नाभौ, एलची १, लवंग २, तल ३, तमालपत्र ४, जायफल ५, चन्दन ६, अगर ७, कचूर ८, विरहाली ९, मिरच १०, पीपल ११, सरसव १२, पीपलामूल १३, सतावर १४, रीगणी १५, संखाहोली १६, वज १७, सोआ १८, जटामासी १९, वालो २०, दालचीणी २१, मोथ २२, जेठीमध २३, दोब २४, देवदारु २५, लोद २६, मरोडा फली २७, मीढल २८, इत्यादिक ओषधी, तथा च-सह देवी, वेला, सतावरी, कुमारी, गुहा, सिंही, व्याघ्रो, मयूरशिखा, विरहक, अंकोल्ल, लक्ष्मणा, शंखपुष्पी शरपुंखा, विष्णुकांता, चक्रांका, सर्पाक्षी, महानील, मूलिकाकुष्ठं, प्रियंगु, ववारोवं, उसीरं, देवदारु, दुर्वा, मधुयष्टिका, भेद, महाभेद, क्षीर कंकोल, जीवक, ऋषभकनखी, महानखी, पञ्चरत्नं अधस्तनं रक्षणीयम् , यथाशक्ति तत्र रुप्यनाणकादि क्षिप्यते, | ततो नाभेर्मुखबंधं करोति, ततः कुककुमेन पञ्चाङ्गगुलिहस्तौ दीयते ततः “ॐ पुण्याहं पुण्याह" प्रघोषपुरस्सरं सम्प्राप्ते | | शुभ लग्ने श्री गुरुमूर्तिः गुरुपादुका च "ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ट स्वाहा" इति सप्तका मन्त्रोचार पूर्वक उर्वश्वासेन | कुम्भकेन प्रतिष्ठाप्यते तत “ आचारदिनक" रोक्त यति मुर्तिप्रतिष्ठामन्त्रेणत्रिर्वासक्षेपः कार्यः । मन्त्रोऽयम्आचार्यमूर्ति-स्तूपयोः। “ॐ नमो आयरियाणं भगवंताण नाणीणं पंचविहायारसुद्वियाणं इह भगवंतो आयरिया अवयरंतु, साहु-साहुणी-सावय-सावियाकयं यं पडिज्छन्तु, सबसिद्धिं दीसन्तु स्वाहा" । अनेन मन्त्रेण त्रि सिक्षेपः ।। PaneerCornerecember For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति प्रतिष्ठाविधिः CeweDeewanemelopment उपाध्यायमूर्ति-स्तूपयोः। “ॐ नमो उवज्झायाणं भगवंताणं बारसंग पढग-पाढगाणं, सुभहराणं सज्झायज्झाणसत्ताणं, इह उवज्झाया भगवंतो अवयरन्तु, साहु" शेषं पूर्ववत् । अनेन मन्त्रेण त्रिर्वासक्षेपः । ___साधु-साध्वीमूर्ति स्तूपयोः । “ॐ नमो सव्वसाहूर्ण भगवंताणं पंचमहब्बयधराणं पंचसमियाणां तिगुत्ताणं तवनियम-नाण-दसणजुत्ताणं, मुक्खसाहगाणं साहुणो भगवंतो इह अवतरन्तु, भगवईओ साहुणीभो इह अवयरन्तु, साहु." शेषं पूर्ववत् । अनेन मन्त्रेण त्रिर्वासक्षेपः कार्यः । ___ तदनन्तरं लवणावतारण-मारात्रिकं मङ्गलदीपं च कृत्वा गुरु-स्तुतिं पठित्वा क्षमा पार्थयित्वा दशदिक्पाल नवग्रह विसर्जन विधाय । ततो गीतगान-वाद्यवादन पुरस्सरं श्री संघेन समं धर्मशालायामागत्य श्री गुरुपाचँ प्रतिष्टालाभोपदेशं च श्रत्वासर्वेऽपि स्वस्थानं व्रजन्ति । ततो दिनदशकं यावत् स्तुत पूजा कार्याः । नैवेद्यं मुच्यते, भोगन्ध उत्क्षिप्यते । प्रतिष्ठाकारकश्च दश दिनानि एकाशनं करोति, शीलवतं च पालयति । इति संक्षेपेण गुरुस्तूप प्रतिष्ठा विधिः। eereezeroeDeceae ॥८ ॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ १८ अभिषेक गुरुमूर्ति अभिषेक pezeroecoercedeorepare [तत्र प्रथमं जल यात्रयाऽऽनीतं जलं पवित्र-नवीन-बृहत्कलश मध्ये क्षिप्त्वा ततः स्नात्रचूर्ण मुक्त्वा चत्वारः कलशाः भियंते, ततस्तैः कलशैः पादुकोपरि तथा मूर्युपरि स्नानं कार्यम् तद्यथा-स्नात्रादौ प्रथमं पुष्पाञ्जलि विधेया। ] तन्मन्त्रो यथा " नानासुगन्धिपुष्पौध-रञ्जिता चश्चरीककृतनादा। धूपामोदविमिश्रा, पततात् पुष्पाअलिबिम्बे ॥१॥ ॐ हा ही हूँ हैं हौ हा परमगुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यः पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामि स्वाहा । एवं प्रतिस्नात्रमादौ पुष्पाञ्जलिविधेया । "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आगच्छ, जलं गृह्ण गृह्ण स्वाहा" ॥१॥ स्नात्रम् "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु पृथ्वीगन्धं गृह्ण गृह्ण स्वाहा"॥२॥ चन्दनविलेपनम् “ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते मेदिनि पुरु २, पुष्षवती पुष्पं गृह्ण गृह्ण स्वाहा" ॥३॥ पुष्पाधिरोपणम् | "ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते दह दह, महाभूते तेजोधिपतये धू धू धूपं गृह गृह स्वाहा" ॥४॥ धूपदानं स्नात्रकाव्यानि१ पुष्पालि स्नात्रम्-सुपञ्चवर्णाढ्य-सुगन्धि-पुष्पा-अलि क्षिपस्वीय-विकासवृश्य विकासमाजां सुगुरूत्तमानां, प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥१॥ ZerocceDeveerceezoeaeeee For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुरुमूर्ति ॥ १० ॥ www.kobatirth.org २ हिरण्योदक स्नात्रम् — तीर्थाम्बु- गन्धोत्तमपुष्पपूत - सुवर्णचूर्णामळ - वारिणाहम् । सुवर्णसिद्ध्यै सुगुरुत्तमानां प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥ २ ॥ ३ पञ्चरत्न स्नात्रम् - सुगन्धि - पुष्पाञ्चित - रत्नचूर्णाधिवासिवर्णोज्ज्वळ - वारिणा वै । सुरत्न - सिद्ध्यै सुगुरूत्तमानां प्रक्षालयामीह पदं पदार्थों ॥ ३ ॥ ४ कषाय स्नात्रम् — उदुम्बर - प्लक्षशिरीष- बोधि- दुमाङ्ग - छल्ल्यादि - कषायभावैः । कपाय - मोक्षाय गुरूत्तमानां प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥ ४ ॥ ५ मृत्तिका स्नात्रम् - सरः सरित्सङ्गम - पर्वतादि - सुतीर्थभूमृद्भिरिहाद्भुताभिः । रजोनिवृत्यै सुगुरूत्तमानां प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥ ५ ॥ ६ पञ्चगव्य स्नात्रम् — पयोदधि - स्वाज्य - पवित्रितैस्तै, - सुपञ्चगव्यैश्च सुदर्भपूतैः । पवित्रताय सुगुरूत्तमानां प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥ ६ ॥ ७ सदौषधिवग स्नात्रम् - वळा - कुमारी - सहदेविकामिः सदौषधिस्फार-बलोत्कटाभिः । बलप्रवृद्ध्यै सुगुरूत्तमानां प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥ ७ ॥ ८ मूलिका स्नात्रम् - अकोल्लसल्लक्ष्मण शङ्खपुष्पी - सन्मूलिकाभिश्च रसोत्तमाभिः । समूल - शुद्ध्यै सुगुरूत्तमानां प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥ ८ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिषक 11 20 11 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषेक Pepperrezzaerence ९ प्रथम वर्गाष्टक स्नात्रम्-प्रियङ्गु-दुर्वामधुयष्टिकर्धि-कुष्ठादि श्रेष्ठौषधिनीरपूरैः। रोगापहृत्यै सुगुरूत्तमानां प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥९॥ १० द्वितीय वर्गाष्टक स्नात्रम्-सत्क्षीर ककोलकमेदभेद-वर्गाष्टकोद्भावित-जावनेन । स्वजीवनोद्धारकृते गुरूणां, प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥१०॥ ११ सौंषधि स्नात्रम्-जातीफलै-लौत्तम-जातिपत्रा-वचाहरिद्रा-सकलौषधैश्च । तेजस्वितायै सुगुरुत्तमानां-प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥११॥ १२ कुसुम स्नात्रम्-स्फूर्जत्सुगन्धैः कुसुमैः सुपूताम्भसा रसेनात्म-रसोदयाय । रसारसाधार-गुरुत्तमानां, प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥१२॥ १३-सुगन्धि स्नात्रम्-कस्तूरिका-केसर-चन्दनोद्यत्सुगन्धि-सद्व्यभृतामृतेन । स्त्रीयामृतायैव गुरूत्तमानां-प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥१३॥ १४ वासक्षेप स्नात्रम्-कर्पूरसच्चन्दनचारुवास-क्षेपाभिरामेण जलेन नित्यम् । स्वकीयजाड्य-क्षतये गुरूणां-प्रक्षालयामीह पदं पदार्थी ॥१४॥ १५ चन्दन स्नात्रम्-सुगन्धि-सचन्दन-कल्क-चारू-दकेन ताप-क्षतये समन्तात् । अपापतापात्म-गुरूत्तमानां-प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥१५॥ Reporncreepepeper For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषेक १६ केसर स्नात्रम्-काश्मीरजेनाथ-सुमिश्रितेन-सुमन्त्रपूतेन जलेन भत्तया। तद्भाव-रागाय गुरूत्तमानां-प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥१६॥ १७ तीर्थोदक स्नात्रम्-ज्ञानादि-दीव्यद्गुण-दर्पणार्थ-तीर्थोदकेनाथ महागुणेन । गुणीश्वराणां सुगुरूत्तमानां प्रक्षाळयामीह पद पदार्थी ॥१७॥ १८ कर्पूर स्नात्रम्-कर्पूर-पूरोदक-धारयाई-तद्रूप राजद्गुण धारणाय । धाराव्रतानां सुगुरूत्तमानां-प्रक्षाळयामीह पदं पदार्थी ॥१८॥ ZReporperezoecooledees careezoerneezeezcreezercene ॥ कलश ॥ योबष्टादशकाभिषेकविधिना पूज्यं परं पावनं, भव्यानां सुखसागरं गुणगुरुं श्रीमद्गुरुं पूजयेत् । सोऽत्राष्टादश-कल्मषौध-रहितः स्याद्व्यतो भावतः पूज्यः श्रीहरिसागरोत्तमपदो दिव्यैः कवीन्द्रः स्तुतः ।। ॥ समाप्त ॥ For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गुरुस्तुप० आदिम पत्र श्री गुरुस्तूप-पाकुका-प्रतिष्ठाविधि का आदिम पत्र ॥१३॥ रCorpawar मएकवशिष्टाविमनिका इकरावीयपमानकारक श्रीज्ञानिनाघनीय निमायामीनाबकरा बीमा नयप्रदमापन - मायामीमावास्किा५०२३रोपराविषयमापनासाकस्पनियो१०२६वामपन्यानावादावा JA२७२४ पोलीपदागिनीयादिकपालनाकाम कराबायपाश्श्यमा सुक्या वारसायबाएबनेका वामपमेयनाय 3 3३रुपा43बाय३६अबेर२७३६शनायनामले महाहा.93AnERसायानिदिग्पालासोदाइश्ववादायबानमनदवनामानयज विनासकामकलानिमेश्वरनिभाः श्रीवरुपायुका मामलदेवी १२एसजीनगदेयानाप से समायोनियरो स शाहिले नाक राबाय गायनाटा का दिलेनघटाचावल मलवा बरकमा Direfn.xaaneनागपुरून मतमानाशाबा मरवारश्चालिगण्यकार मिnalRSHAN aranantonमरामRGA२०मालयपनागकमरपलबमाकायकलजात्रामरीज्यमinstama a2012ीही कलाकारकाचा फडावालामुबारामनामरतापण्यचरनवलकामयाका 02641यविसदीयममोककाएकरामवाधिकादाबधाबायकवचामलबहकनक्षिAPER 25346RERAFARRIERRधमातबारामकरानालेसला पावर intenExRTIYRIMARSEPानिलयायामाहामायामोमेमela ARDARSemesRRECENRSaमाकाना विधवाइकाशशEAntEARAN REPARRORRER32वशिविरारलगाउमा वारपाकमाएकसरला DEPEPerence ॥ १३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दादाजिन॥१४॥ कुशलसूरि श्री जिनकुशलमूरिजी का मन्त्रॐ ह्री श्री क्ली ब्लू श्रीजिनकुशलसूरे एहि एहि वरं देहि देहि सुप्रसन्नी भव मम समीहितं कुरु कुरु स्वाहा । १०८॥ cooozocDecemove ॥ जिन कुशलसरिजी ४ DeeroeceTo@e ॥ For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अथ दादागुरुस्तूप-पादुका-प्रतिष्ठाविधिः अभिषेक CamerneDC eemerocrazeere प्रथम भूमिका शुद्ध करावीए । पछी नमस्कार पूर्वक "श्रा शान्तिनाथजीनी" प्रतिमा मांडी स्नात्र 'करावीए । "नवग्रह"२ स्थापना करावीए । दशांग होम करावीए-खारिक १, द्राक्ष २, खजूर ३, टोपरा ४, बदाम ५, अखरोट ६, पिस्ता ७, साकर ८, निवजा ९, सिंघोडा १०, ए दशांग ॥ अथ पश्चामृत-दूध १, दहीं २ घृत ३, गुल ४, पाणी ५ । सधवनी पासि “अष्टमंगल" मंडावीए (स्थापना करीजे) "दिक्पाल" (स्थापना तथा) आह्वान करावीए । ए मन्त्रे "ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय स्वाहा, अत्र मण्डले आगच्छ आगच्छ स्वाहा" एवम्-"ॐ अग्नये २, ॐ यमाय ३, ॐ नैऋतये ४, ॐ वरुणाय ५, ॐ वायवे ६, ॐ कुबेराय ७, ॐ ईशानाय ८, ॐ नागाय ९, ॐ ब्रह्मणे स्वाहा १०, अत्र मण्डले आगच्छ आगच्छ स्वाहा । इति दिक्पालाह्वान मन्त्रः ।। __ पछे सोले थूईए (१८ थुई) देव वांदीए । क्षेत्रशान्ति-जल-देवता-स्तुतित्रयं । १ भला दीवसे उत्तम ग्रहवलयुक्त, स्थिरत्नम ठेरावीजे, पछे प्रतिष्ठानो काम सक करिजे । २ विधिपूर्वक नवग्रह-दश दिक्पाल-स्थापन करिजे। ३ गुरु परंपरागत विधि अनुसार मंत्रपूर्वक दश वस्तु मिलावी होम करिजे । ४ "विधिप्रपा" पृष्ठ ३० अनुसार देव वांदीए। caecoecoecoercedeorapeezes ॥ १५॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरूमूर्ति-|| "यदधिष्ठित जळविमलाः सकलाः सकला जिनेश्वरमतिमाः श्रीगुरुपादुकाः सा जळदेवी पुर-संघ-भूभुजां || अभिषक मङ्गलं देयात्" ॥ १ ॥ पछी सुद्रव्यैः पूजां करोति । अष्ट मोदक आदि पक्वान्न, अष्टधान्य, अष्टफूले, पूजा करावीए । गंगा-यमुना-तटाकादि जलेन घटान् भृत्वा धवलमंगल-वाद्यपूर्वक सत्तावीश तीर्थजलना कलश भरीए । सत्तावीश औषधिना रससुं स्नान करावीए यथा राजहंसी १, मोरशिखा २, सरपुंखा ३, ईश्वरलिंगी ४, चक्राका ५, सतावरी ६, पूहुलेठी ७, अंकोल ८, हलद ९, वच १०, वालउ ११, मोथ १२, एलची १३, तज १४, तमालपत्र १५, नागकेसर १६, लवंग १७, जायफल १८, जावंत्री १९, सहदेवी २०, संघाहोली २१, लजालू २२, चन्दन २३, अगर २४, रतांजणी २५, गोहुंला २६, कपुरकाचरी २७, यह २७ जडी ।। प्रवाल १, सुवर्ण २, मोती ३, रजत ४, ताम्र ५; एवं पंचरत्न जल स्नानम् । पादुका प्रतिष्ठा करणहारने खीरोदक खानजाइ पहिरावीए । सुवर्ण कंकण-कुसुभ कांकण-सुवर्ण मुद्रिका हाथ घातीयइ । पंचामृत-यक्षकदम सहित ओषधिसुं 'पखाल अभिषक करावीए । पछी यक्षकर्दम पूजीए । फूले पूजीए। पूर्वे होभ । "नवग्रह स्थापना" । यथा___इन्द्रमग्नि यमं चैव नैऋतं वरुणं तथा। वायं कुवेरमीशानं नागान् ब्रह्माणमेव च ॥१॥ ॐ इन्द्राय आमच्छ आगच्छ अर्घ प्रतीच्छ प्रतीच्छ पूजां गृह गृह स्वाहा" एवं शेषाणामपि नवानां आह्वानपूर्वकं अर्धनिवेदनं च। (तदनंतरं) ति वारें होम करीये । नालियेर ११, पूगी ६४, राता कपडा १०, द्राख ६४, खारिक ६४, लवंग ६४, एलची १ प्रथम काव्य पढके १८ स्नात्र (अभिषेक) करे, यथा-पुष्पांजलि १, हिरण्योदक २, पंचरत्न ३, कषायचूर्ण ४, तीर्थमृत्तिका ५, पैचगव्य , सदोषधि वर्ग ७, मूलिका ८, अष्टवर्ग प्र. ९, अष्टवर्ग दि.१०, सवौषधि ११, कुमुम १२, सुगंधि १३, वासक्षेप १४, चंदन १५, Secenelevoceeeeeee reOCTerreraceae For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषेक ६४, सिंघोडा ६४, (तिल सवा पाउ, होमीजे, पछी अंतमे होममाहि नालियेर १ होमिये ) बाकी सेस भणी वधारीये । पछी समस्त संघने मधुर आहारे यथाशक्ति भक्ति करीये । इति स्तूप पादुका प्रतिष्ठा विधि । अथ पादुका प्रतिष्ठा विधि-प्रथम गुरु सदश वन खीरोदक तथा टसरीया खानजाई प्रमुख पहेरी, पवित्र थई NI "श्री जिनकुसलमूरि" ना काउस्सग्ग करी बेसे । पछी श्रावक-श्राविका सखरी थालीमांहि श्री गुरुपादुका मूकी निर्मल पाणीसुं पखालीइ। पछी केवल सूखडसुं उंचे-नीचे लेपइ । गाढा मसलइ । पछी पाणीसुं धोवे । पंचामृतसुं "पखालें। पछी गंगाना पाणीथी पखालीए । पछी सात धान्य एकठा करी सरावला भरी आगे मूकीए । दीवा घीना कीजे । पछी केसर-कपूर-कस्तूरीगोरोचनथी पूजा करीए । पछो सौभाग्य मुद्राये "वर्धमान विद्यासु" वासक्षेप करी पछी नवकार गुणी धूप दीजें । पछी आगळ नैवेद्य ढोकीए । इति पादुका प्रतिष्ठा विधिः । ॥ समाप्त ॥ accremcareerce creepecareerepepeaee केशर १६, तीत्थोदक १५, कपूर १८. इति अठारह अभिषेक ॥ २ होम करने का विधान गुरुमुख से जाणना ॥ ३ दादा कुशलसूरिजी का जाप और ध्यान गुरुमुखसे जान लेना ॥ ४ काव्य बोल के अभिषेक करे ।। ५ आचार दिनकरोक्त " यतिमूर्ति प्रतिष्ठा मंत्र" पृ. ७ बोलके मूर्तिपादुका कि स्थापना करे । For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषक RECECRECRememoraveezerner परिशिष्टम् । अथ वज्रपरसोत्रम् । ॐ परमेष्ठिनमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वन-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सिद्धाण, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षातिशायिनी। ॐ नमो उवज्झायाण, आयुधं हस्तयोढम् ॥ ३॥ ॐ नमो लोए सव्वसाहणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज्रमयो तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वो वज्रमयो बहिः । मङ्गलाणं, च सव्वेसि खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढम हवइ मंगळम् । वमोपरि वज्रमयं पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भुता, कथिता पूर्वसरिभिः ॥ ७ ॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥ ८॥ इति ॥ उपरोक्त “ आत्मरक्षा" स्तोत्र से तीन वार आत्मरक्षा करने के बाद फिर दश दिक्पालों का आवाहन करे हाथ में कुसुमाञ्जली लेवे, मन्त्र बोलने पर छिडक दें। Zeeeeeeeeeeeeee ॥ १८॥ For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुरुमूर्ति ॥ १९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशदिग्पाल आह्वान मन्त्र दिक्पाला का अत्र प्रतिदिशं स्वस्वं बलं वाहनम्, शस्त्रहस्तगतं विधाय भगवत् स्नात्रे जगदुर्लभे । आनंदोल्वणमानसा बहुगुणां पूजोपचारोचयं, सन्ध्यायाप्रगुणं भवन्ति पुरुतो देवस्यळब्धासन ॥ १ ॥ ( इस मन्त्र के पढने पर कुसुमाञ्जली पटे पर छिड़क दे और दश दिकपालों के पटे की अष्टद्रव्य से पूजन करे । ) इन्द्रदिग्पाल पूजन मन्त्र (१) ॐ इन्द्राय पूर्व दिग्धीशाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकाय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चंदनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचा रान्मुद्रां गृहाण " ॐ ह्रीं श्रीं इन्द्राय नमः" । शान्ति तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं दृद्धिं उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा | ( यह मन्त्र पढकर इन्द्र दिग्पाल पर पान चढावें । ) (२) ॐ अग्नये ० (३) ॐ यमाय० (४) ॐ नैऋताय० (५) ॐ वरुणाय० ( ६ ) ॐ वायव्याय० (७) ॐ कुबेराय० (८) ॐ ईशानाय० (९ ) ॐ ब्रह्मणे० (१०) ॐ नागाय० ॥ इस प्रकार दश दिग्पालों का मन्त्र पढ कर के जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल वगेरे चढावें ॥ ईति ॥ For Private and Personal Use Only अभिषेक 11 28 11 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति नवग्रह अभिषेक ॥ २० ॥ पनीति फळ दारानेऽत्र ॥ १ ॥ ( छिडके )। 8 नवग्रह आवाहन-पूजन-मन्त्र | सर्वे महा दिनकर प्रमुखा स्वकर्मः, पूर्वोपनीति फळ दानकरा जनानाम् । पूर्वोपचार निकरं स्व करेषु लात्वा, सत्वांगतः सकल तीर्थकरार्चनेऽत्र ॥१॥ इस मन्त्र से कुसुमाञ्जली नवग्रह के पटेपर चढावें (छिडके)। १ सूर्य पूजन मन्त्र-ॐ नमो सूर्याय सहस्र किरणाय रक्तवर्णाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणा भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ | सावधानीभूय बलि गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान् मुद्रां गृहाण अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा । "ॐ सूर्याय नमः" ॥१॥ (इस मन्त्र को पढकर सूर्यग्रह पर पान आदि अष्टद्रव्य चढावें ।) २ चन्द्र पूजन मन्त्र-ॐ नमो चन्द्राय श्वेत वर्णाय षोडशकलापरिपूर्णाय रोहिणी नक्षत्रस्य अधिपते सायुधाप सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वोमे दक्षिणा भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलि गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण. पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान् मुद्रां गृहाण अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा "ॐ चन्द्राय नमः" ॥२॥ (इस मन्त्र को पढ़ कर चन्द्र ग्रह पर पान आदि चढावे ।) Seezeerreraveezoeyzoenezoetreen | ॥ २० ॥ For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवग्रह पूजन CCORRECTROCIDCOPeppeare ३ मङ्गल पूजन मन्त्र-ॐ नमो भौमाय रक्तवर्णाय सायुधाय सबाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे | दक्षिणाई भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजा महोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ साबधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्य गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान्मुद्रां गृहाण अत्रपीठे तिष्ट तिष्ट ठः ठः उ० स्वाहाः “ॐ भौमाय नमः " ॥३॥ (यह मन्त्र पढ कर मङ्गल ग्रह पर पान आदि चढावे । ) ४ बुध पूजन मन्त्र-ॐ नमो बुधाय नीलवर्णाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचत्ये अमुक पूजा महोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नवेद्य गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान् मुद्रां गृहाण अत्रपीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उ० स्वाहा “ॐ नमो बुधाय नमः"। (यह मन्त्र पढ कर बुधग्रह पर पान चढावे। ) ५ बृहस्पति मन्त्र-ॐ नमो बृहस्पतये पीतवर्णाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षि| णाई भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजा महोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारानमुद्रां गृहाण अत्रपीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहाः "ॐ बृहस्पतये नमः"। (इस मन्त्र से बृहस्पतिग्रह पर पान आदि चढावे ।) Recececroecoecoecomes ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नवप्रह ॥ २२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 99 ६ शुक्र मन्त्र — ॐ नमो शुक्राय श्वेतवर्णाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध | N भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजा महोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बळिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण घृपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान्मुद्रां गृहाण अत्रपीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्नुदयं कुरु कुरु स्वाहा “ ॐ शुक्राय नमः ( यह मन्त्र पढ कर शुक्रग्रह पर पान आदि चढावे ) ७ शनि मन्त्र — ॐ नमो शनैश्वराय कृष्णवर्णाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान् मुद्रां गृहाण अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा । "ॐ शनैश्वराय नमः ॥ ७ ॥ ( इस मन्त्र को पढकर शनिग्रह पर पान चढावें । ) 37 ८ राहु मन्त्र — ॐ नमो राहवे पञ्चवर्णाय सायुधाप सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराविते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चन्दनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान् मुद्रां गृहाण अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा " ॐ राहवे नमः " ॥ ८ ॥ ( इस मन्त्र को पढ कर राहुग्रह पर पान आदि चढावे । ) For Private and Personal Use Only पूजन ॥ २२ ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमङ्गल पूजन ९ केतुमन्त्र-ॐ नमो केतवे पञ्चवर्णाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणाई भरतक्षेत्रे | अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चंदनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचारान्मुद्रां गृहाण अत्रपीठे तिष्ट तिष्ठ ठः ठः उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा । "ॐ केतवे नमः" ॥९॥ ( यह मन्त्र पढकर केतुग्रह पर पान चढावें । ) | तथा-स्नात्रकारक एक पाटे पर अष्टमंगल लिखे यथा-स्वस्तिक १, श्रीवत्स २, कुम्भ ३, भद्रासन ४, नंदावर्त ५, वर्द्धमान ६, दर्पण ७, मत्स्ययुगल ८ । | अष्टमंगल पूजन मंत्र-ॐ अहं स्वस्तिक-श्रीवत्स-कुम्भ-भद्रासन-नद्वावर्त-वद्धमान-दर्पण-मत्स्ययुग्माना अत्र महोत्सवे सुस्थापितानि सुपतिष्ठानि अधिवासितानि लं लं लं हों नमः स्वाहा ॥ इति ॥ (दशदिग्पाल-नवग्रहों की स्थापना-पूजा करने के बाद अष्टमङ्गल पूजन करे। बाद दख दिग्पालों को बलिवाकुल शुद्ध स्थान पर निम्न श्लोक बोल कर चढाना चाहिये। बलिवाकुल वासक्षेप मन्त्रॐ हा ही सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ णमो अरिहंताणं । ॐ णमो सिद्धाणं । ॐ णमो आयरियाणं । ॐ णमो उवज्झायाण । ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं । ॐ णमो आगासगामीणं । ॐ णमो चारण 10 लद्धीणं । जे इमे किण्णर-किंपुरिस-महोरंग-गरुड-गंधव्व-जक्ख-रक्खस-पिसाय-भूय-डाइणिप्पभइओ जिणघरणिवासिणो। Deceeroecoerezareezzrecrezcom ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दशदिक्पाल - ॥ २४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नियनियनिलयट्ठिया पवियारिणो सन्निहिया असन्निहिया य, ते सब्वे इम विलेवण-धूत्र-पुष्फ-फल-पई वसणाणं बलिं पडिच्छंता किरा भवन्तु, सिकरा भवन्तु, संतिकरा भवन्तु, सुत्थं जणं कुणन्तु । सव्वजिणाण सन्निहाणप्पभावओ पसन्नभावत्तणेण सव्वत्थ रक्खं कुणन्तु । सव्वत्य दुरियाणि नासन्तु । सव्वाऽसिवमुवसमउ । संति-तुट्ठि-पुट्ठि-सिव-सुत्थयकारिणो भवन्तु स्वाहा । अथ दशदिक्पाल बलिप्रदान मन्त्र - इन्द्रदिक्पाल - अरावतः समारूढः शक्र पूर्व दिशिस्थितः । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलि पूजां प्रयच्छतु ॥ १ ॥ ( पूर्व दिशा की तरफ जल चन्दन बलिवाकुलादि चढावें ) अग्निदिक्पाल - सदावह्नि दिशोनेता पावको मेष वाहनः । संघस्यशान्तये सोsस्तु बलि पूजां प्रयच्छतु ॥ २ ॥ (अग्निकोण में बलिवाकुलादि चढावे ) यमदिक्पाल – दक्षिणस्यां दिशः स्वामी यमोमहिषवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलि पूजां प्रयच्छतु ॥ ३ ॥ ( दक्षिण दिशा की तरफ बलिवाकुलादि चढावे ) नैऋतदिक्पाल - यमापरान्तरालोको नैऋतः शिववाहनः । संघस्य शान्तयेनोऽस्तु बलि पूजां प्रयच्छतु ॥ ४ ॥ (नैऋतकोण में बलिवाकुलादि चढावे ) वरुणदिक्पाल - यः प्रतीचीदिशोनाथः वरुणोमकर स्थितः । संघस्य शान्तयेसोऽस्तु बलि पूजां प्रयच्छतु ॥ ५ ॥ ( पश्चिम दिशा की तरफ बलिबाकुलादि चढावे ) For Private and Personal Use Only बलिप्रदान ॥ २४ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दशदिक्पाल ॥ २५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वायव्य दिक्पाल - हरिणो वाहनं यस्य वायव्याधिपतिर्मरुत् । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ ६ ॥ ( वायव्यकोण में बलिवाकुलादि चढावे ) कुबेर दिक्पाल - निधाननवकारूढः उत्तरस्या दिशः प्रभुः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ ७ ॥ ( उत्तरदिशा की तरफ बलिवाकुलादि चडावे ) ईशानदिक्पाल - सिते वृषेधिरूढव ईशानां च दिशो विभुः । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलिपूजां प्रयच्छतु ॥ ८ ॥ ( इशानकोण में बलिबाकुलादि चढावे ) ब्रह्मदिक्पाल — ब्रह्मलोकविशुर्योऽस्ति राजहंससमाश्रितः । संघस्य शान्तये सोsस्तु बलि पूजां प्रयछतु ॥ ९ ॥ ( उर्द्ध दिशा की तरफ बलिवाकुलादि चढावे ) शान्तये सोऽस्तु वकिं पूजां प्रयच्छतु ॥ १०॥ ( अधो दिशा की तरफ बलिवाकुलादि चडावे ) नाग दिक्पाल - पाताळाधिपतिर्योऽस्तु सर्वदा पद्मवाहनः । संघस्य दशदिक्पालो को बलि चढ़ाने के समय जल, चन्दन, पुरुप, धूप, दीप, १० पैसे, पान आदि चढ़ाने के बाद चम्बर डुलावे, शीशा दीखा है, शङ्ख, घडियाल, झांझ आदि बजावे, इसके बाद अखंड जल की धारा देवे । इति ।। ( दिक्पालादि विसर्जन करते समय हाथ में धुप कुसुमांजलि लेकर मंत्र बोल के चढावे ) * सात अनाजों के नाम गेहुं, चना, उडद, मुंग, जब (जो), मकई, जवार। यह सात अनाज उबालते है और उबाल कर चढातें है । For Private and Personal Use Only बलिप्र दानम् ।। २५ ।। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विसर्जनम् दिक्पालादि | (१) दशदिक्पाल विसर्जनम्(१) ॐ नमः इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां वर्कि गृहाण गृहाण स्वस्थान गच्छ गच्छ स्वाहा । (२) अग्नये (३) यमाय (४) नैऋतये (५) वरुणाय (६) वायवे (७) कुबेराय (८) ईशानाय (९) ब्रह्मणे (१०) नागाय ॥ इति ॥ (२) नवग्रह विसर्जनम्ॐ नम आदित्याय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय० । इत्यादि बोलकर विसर्जन करे । (३) अष्टमंगल विसर्जनम्ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ २ स्वाहा । (४) बलिप्रदान पूर्वक दिक्पाल विसर्जनविधि (१) पूर्वस्यादिशि-ॐ हों इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । (२) आग्नेय्यां-ॐहीं अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । (३) दक्षिणस्यां-ॐ ह्रीं यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । 10 (४) नैऋत्यां-ॐ हीं नैऋतये सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । ReaderPowereeeeee 22CPCRPeerecorporea ॥ २६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रार्थना DeceORomamarpeper (५) पश्चिमाया-ॐ ह्रीं वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा। (६) वायव्या-ॐ हों वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । (७) उत्तरस्यां-ॐ हीं कुबेराय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । (८) ऐशान्यां-ॐ ह्रीं ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजा बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । (९) ऊर्ध्वायां-ॐ हीं ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजां बलिं गृहाण २ गच्छ गच्छ स्वाहा । (१०) अधोदिशि-ॐ हीं नागाय सायुधाय सवाहयाय सपरिजनाय पूजा बलिं गृहाण १ गच्छ गच्छ स्वाहा।। प्रार्थना श्लोकआह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजा विधि न जानामि, त्वं गतिः परमेश्वर ॥१॥ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मंत्रहीन च यत् कृतम् , तत्सर्व क्षमतां देव, प्रसीद परमेश्वर ॥२॥ 20ezzaezzaerseeroerce ne ॥ २७॥ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वासाभि ॥ २८ ॥ OTT www.kobatirth.org अथ वासाभिमन्त्रणविधिः । प्रथमः प्रकारः ततः गुरुः जिनमुद्रयोपविश्य च " क्षिप ॐ स्वाहा हा स्वा ॐ पक्षि” इत्यक्षरैर्यथाक्रमं पादांगुष्ठाग्रजानुसन्धिहृदयमुखभालां तान्यारोहावरोहाभ्यां मध्यांगुलिद्वयाप्राभ्यां स्पृशन् हस्तद्वयेऽप्यंगुष्ठाभ्यां कनिष्ठिकाद्यंगुल्यप्रेषु तर्जन्यप्राभ्यां चांगुष्ठाप्रयोः क्षिपाद्यक्षराणि ( क्रमात् ) क्रमाभ्यां न्यस्य स्वात्मरक्षां करोति, ततः गुरुः सप्त वारानेकविंशतिं वा वारान् " वर्धमानविद्यां " स्मरन् दक्षिणाहस्वांगुलीभिः परिहितधौतपातकृतोत्तरासंगमुखश्रावककरस्थान् स्थालिस्थान् सर्वतः स्पृशन् अभिमंत्रयेत्, ततस्तान् समीकृत्य तदुपरि दक्षिणकरतृतीयांगुल्या स्थालमध्ये ह्रींकाराय निर्गतरेखया त्रिवेष्टितं कौंकारनिरुद्धमायावीजं लिखित्वा स्थालांतवासः ड्रींकारं प्रपूज्य च कृत जिन मुद्रादिमुद्रादर्शनं पुनरपि स्थालांतवासैः ड्रींकारं पूजयेत् ततः सौभाग्यमुद्रया शुक्लध्यानेन समाधिना ड्रीकारं तमेकविंशतिवारान् जपेत् । इति वासाभिमंत्रणविधिः ॥ १ ॥ onecre Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मन्त्रणविधिः ।। २८ ।। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासनिक्षेपजिणमुद्द-कलस-परमिहि, अग-अंजलितहा-सणा चक्का । सुरही पवयण-गरुडा, सोहग्ग, कयंजलो चेव ॥१॥ IN 10 विधि प्रथम ____ अथ वासनिक्षेपविधिर्यथा--निजासने जिनमुद्रयोपविष्टः (क्षिप ॐ स्वाहेति यथाविधि कृतपंचांगात्मरक्षो) गुरुर्भून्यस्त ॥ २९ ॥ जानूद्वयस्य कारितयोगमुद्रस्य वासनिक्षेपान्तं यावदेकाग्रचित्तस्मारितनमस्कारस्य शिष्यस्य, हृदयमुखशिरांसि स्पृशन् शिरः परितो हस्तभ्रमणेन कवचं तिर्यग्मुष्टिबंधेन अस्त्रं च सत्यापयन् यथा ॐ नमो अरिहंताणं मुखे, ॐ नमो आयरियाणं शिरसि, ॐ नमो उवज्झायाणं कवचं, ॐ नमो लोए सव्वसाहणं अखं, इत्यनेन मन्त्रेण त्रिवारं आत्मरक्षां कृत्वा च शिष्यमस्तकोपरि | च हस्तं दत्वा-अटेवय अट्ठसया अट्ठसहस्सं च अट्ठकोडोओ। रक्खंतु ते सरीरं, देवासुरपणमिआ सिद्धा ॥१॥ इति गाथां च त्रिः प्रजप्य "वर्द्धमानविद्या" त्रिवारं सप्तवारं वा जपन् शिरसि प्रदक्षिणावर्त वासान्निक्षिप्य दक्षिणकरतृतीयांगुल्या शिष्य (शिरसि ) तालुनि ह्रींकाराने निर्गतरेखया त्रिवेष्टितं क्रौंनिरुद्धमायाबीजं लिखित्वा (चिंतयित्वा) वासैश्च प्रपूज्य ततः | गुरुः तदुपरि हस्तं निवेश्य शुक्लध्यानेन एकविंशतिवारं तदेव प्रजप्य पुनर्वासान्निक्षिपन् “नित्यारगपारगो होहि संसारसमुई, | नाणंदसणचरित्तलक्खणेहिं गुरुगुणेहिं बढाहि इति त्रिवारं भणतीति । [ सर्वासु नंदिषु तपोऽनुज्ञायां चानशने च वासनिक्षेपः | कार्यों यथा तत्प्रभावादारब्धकार्यान्तं याति रणे शूरश्चापराजितो भवतीति ] । श्री वर्धमानविद्या (प्रथमा) ॐ ही श्री ऐ ॐ नमो अरहमो भगवो महावीरस्स सिज्झउ मे भगवइ महइ महाविजा वीरे वीरे महा-6 वीरे जयवीरे सेणवीरे बद्धमागवीरे जए विजए जयंते अपराजिए सबट्ठ सिद्धे अणहिए महाणसे महाबले स्वाहा । IN| ॐ नमो पुलाकलद्धीणं ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं ॐ नमो बीयबुद्धीणं ॐ नमो पयाणुसारिणं ॐ नमो संभिन्न-INI 20eDeeeeeepersecca For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्धमान || सोयाणं ॐ नमो उज्जुमइणं ॐ नमो विउलमइणं महाविजे मम वंच्छियं कुरु कुरु शत्रुन् निवारय निवारय | विद्या १-२ वर्द्धमानस्वामिन् ठः ठः ठः स्वाहा । इति ॥१॥ ॥३०॥ श्री वर्धमान विद्या (द्वितीया) ___ ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं ॐ ह्री नमो आयरियाणं ॐ हो नमो उवज्झायाणं ॐ ही नमो कोए सव्वसाहूणं ॐ ही नमो भगवओ अरिहंतस्स महइ महावीरवदमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवइ महई महाविज्झा ॐ वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे बद्धमाणवीरे जये विजये जयंते अपराजिए अणिहए ॐ ही ठः ठः ठः स्वाहा ॥ एषा विद्या जयप्रदा-मङ्गलकारिणी साधकस्य सौख्यप्रदा भवतु । इति ॥२॥ अथ वासाभिमन्त्रणविधिः (द्वितीयः प्रकारः) अथ-गुरुः शिरोमुखहन्नाभ्यधोगात्राणि आरोहावरोहारोहक्रमेण " क्षिप ॐ स्वा हा हा स्वा ॐपक्षि क्षिपॐ स्वाहा" इत्येतैरक्षरैर्दक्षिणकरानामिकया स्पृशन् प्रथमं स्वस्यात्मरक्षांकृत्वा ततः शिष्यस्यापि करोति ततः आचार्योपाध्यायौ स्वस्वमंत्रेण तदन्यस्तु ॥ ३० ॥ | "वर्धमानविद्यया" कृतोत्तरासंगमुखकोशजानुस्थभव्यश्राद्धकरयुगधृतगंधभाजनस्थान् गंधानभिमंत्रयते तथाहि- अनामिकाङ्गुल्या | प्रथमं मध्येविशन् दक्षिणावर्तस्तदुपरि स्वस्तिकस्तन्मध्ये प्रणवः “ॐ” तत ऐद्रया वारुण्यंत कौबेर्या याम्यान्तं ऐशान्या नैऋत्यंतं आग्ने RECRPCReprecenecareena CopornococcadCRPCrea For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयतिहुवण " R Decemedeoecomes य्या वाय्याव्यतं च यावदेखाचतुष्टयेनाष्टारचक्रं कृत्वा मध्ये मूलबीजं त्रिवेष्टितं "क्रौं" कारान्तं लिखेत् ऐन्द्यां दिशि मूलबीजाक्षराभि-|| मुखं मंत्राक्षराणि चिंतयन् "ॐ हो नमोऽरिहंताणं" इति-प्रथमपरमेष्टिपदं तत्र स्थापयेत् ॥२॥ एवं यावत्प्रश्चिमायां “ॐ ही नमो कोए सव्वसाहणं वायव्यां ॐ ही नमो नाणस्स कौवे- ॐ ही नमो दसणस्स ऐशान्यां ॐ ह्रीं नमो चारित्तस्स" एवं मनसैव स्थापयेत् ततः स्वमंत्रं स्मरन् सप्तभिर्मुद्राभिर्वासान् स्पृशेत् यथा-"पंचपरमिठिमुद्दा १ सुरही २ सोहग्ग ३ गरुड ४ पउमाय ५ मुग्गर ६ कराय ७ सत्तउ कायव्वा गंधदाणम्मि ॥१॥ प्रत्येकमुद्रयेकैकवारमिति सप्तवारं वासाभिमंन्त्रण “ पव्वज्जोवठावणगणिजोगपइटोत्तमदु पडिवत्तिमाईस कज्जेसु सत्तवाराए जविए गन्धक्खेवे कर नित्यारग पारगो होइ पूयासकारारिहो होइ" । इति वचनात् । ॥ भंडारीजयतिहुयणगाथा सप्रभावा ॥ ॐ परमेसर सिरिपासनाह धरणिंदपयट्ठिय । ॐ पउमावइ वयरुदृदेवि जयविजयालंकिय। ॐ तिहुयणमंत तिकोणजंत सिरिहिरिमहिमडिय। ॐ तियवेढिय महविजदेविथंभणयपुरट्टिय ।१ सत्तमवन्नजुगद्धवन्न सरअविभूसिय । वंजणवन्न दसद्धवन्न सिरिमंडलपूरिय । चिरिमिरिकित्ति सुबुद्धिलच्छिकिरिमंत सुसारय । थंभणपासजिणिंदचंदमहवंच्छिय पूरय ।२ RComperoccoopecipe ॥ ३१ ॥ For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1) प्राप्तिस्थानश्री जिनकपाचंद्रसूरि शानभन्डार, ठि• मोरसलि गलि, जैनमंदिर, मु. इन्दोर. ແ SEAR ຫຼ່ງພອໃຫມໃບມອໃນທີ່ໃດນອນໃນຫນານໃຫຍໃນມຫານຫານມໃນທີ່ໃນ ຫອມທີ່ນະໃນ ॥इति श्री गुरुमूर्ति-प्रतिष्ठाविधिः समाप्तः॥ (2) प्राप्तिस्थानश्री जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार, ठि• गोपीपुरा-शीतलवाडी, मु. सुरत (गुजरात) Title For Private and Personal Use Only