Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतमा नाम जपो निशदीश संकलन उपाध्याय धरणेन्द्रसागरजी श्रीमहावीर जैज आराधना केन्द्र,कोबा. For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TODAARE A अनंतलब्धिनिधान गुरु गौतमस्वामी For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ गौतम नाम जपो निशदीश For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || नमामि वीरं गिरि सार धीरं ।। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथमाला पुष्प : १ गौतम नाम जपो निशदीश श्रीगौतमस्तोत्रसंग्रह) विविध प्राचीन मनीषियों द्वारा संस्कृत, प्राकृत एवं मारु-गुर्जर भाषाओं में विरचित गणधर गुरु श्री गौतमस्वामी के प्राचीन स्तोत्रादि का संग्रह संकलन : शासन प्रभावक राष्ट्रसंत आचार्यदेवेश श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रथम शिष्य उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर, ३८२००९ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Compiler : Copy Right : आवरण चित्र : चित्र सौजन्य : आवृत्ति प्रति वि. सं. इ. सन् उपलक्ष्य (ŚRĪGAUTAMASTOTRASANGRAHA) (Hyms in honour of Gaṇadhara Śri Gautamasvāmi by various ancient poets in Sanskrit, Prakrit and Maru-Gurjar languages) मूल्य प्राप्ति स्रोत प्रकाशक GAUTAMA NAMA JAPO NISA DISA अक्षरांकन मुद्रक : : : www.kobatirth.org : ५०० २०५७ २००१ : श्री महावीर जन्मकल्याणक २६००वां वर्ष : रू.४०/- (रू. चालीस मात्र ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. Upadhyaya Dharanendrasagarji आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री अष्टापद तीर्थ (कैलास, मानसरोवर ) श्री भरत शाह (दिल्ली) प्रथम : श्रुत सरिता (पुस्तक विक्रय केन्द्र) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२००९ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर, ३८२००९ फोन : (०२७१२) ७६२०४, ७६२०५, ७६२५२ : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा. : चंद्रिका प्रिन्टरी मिर्जापुर अहमदाबाद ३८० ००१ For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रम अनुक्रमणिका १. पुरोवाक् 'जे कीजे गौतमनो ध्यान ते पर विलसे नवे निधान' लेखक : आचार्यदेवेश श्री पद्मसागरसूरि. ..............७ २. प्रकाशकीय.......... ............ १० ३. प्रस्तावना.............. .....११ ९. श्रुत-भक्त पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. के जीवन की एक झलक...... .........१७ गौतमस्तोत्रसंग्रह प्राकृत-संस्कृत विभाग (पृष्ठ : २-३२) कृतिनाम कर्ता पृष्ठ (आदिवाक्य) १. श्री गौतमस्वामीअष्टक देवानन्दसूरि...........२ (श्रीइन्द्रभूतिं वसुभूतिपुत्रं...) २. श्रीगौतमाष्टक पूर्वाचार्य...............३ (ॐ नमः सकलकल्मष...) ३. श्री गौतमस्वामीअष्टक गुणसागरसूरि ......... (वसुभूतेः श्रेष्ठः ...) ४. श्री गौतमस्वामीअष्टक अमृतसूरि ............. (तमोध्वान्तपतङ्गाय...) ५. श्री गौतमगणधरस्तोत्र मुनिसुन्दरसूरि .........६ (जयसिरिविलासभवणं...) ६. श्री गौतमस्वामीस्तोत्र मुनिसुंदरसूरि.......... (जयश्रियां सेवधिमेघमान...) ७. मन्त्रगर्भितश्री गौतमस्वामीस्तोत्र जिनप्रभसूरि...........९ (ॐनमस्त्रिजगन्नेतु...) ८. श्री गौतमस्तोत्र जिनप्रभसूरि.........१० (श्रीमन्तं मगधेषु...) For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९. श्री गौतमस्तोत्र जिनप्रभसूरि ...........१४ (स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्रकमले...) १०. श्री गौतमस्तोत्र जिनप्रभसूरि ...........१६ (जम्मपवित्तियसिरिमगहदेस...) ११. श्री गौतमस्वामी स्तोत्र धर्महंस................ (गौतमं गोत्ररत्नं पवित्रं...) १२. श्री गौतमस्वामी दीपालिका मंगल स्तोत्र ..................... (श्रीवीरवाक्यात् प्रगतः)... १३. श्रीमन्त्राधिराजगर्भित श्री गौतमस्वामीस्तवन................ (नमोऽस्तु श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्मी...) १४. श्री गौतमस्वामीस्तवन गुणसागरगणि........ (गुणपुंगव! गौतम!...) १५. श्री गौतमस्मरण ................२४ (सुखमूलं गणधर...) १६. श्री गौतमस्वामीस्तोत्र अजितसागरसूरि ......२५ (श्री गौतमस्तोत्रमुदारभावं...) १७. श्री गौतमप्रशस्तिः ................ (श्रीवर्द्धमानं प्रणिपत्यपूज्यं...) १८. श्री गौतमस्वामी-गणधर-चैत्यवन्दन भद्रंकरसूरि ............३२ (माहात्म्यं सकलातिशायि...) मारूगूर्जर विभाग (पृष्ठ : ३४-६६) छंद विभाग १. श्री गौतमस्वामीनो रास उदयवंत/विजयभद्र... ३४ (वीरजिणेसर-चरणकमल-कमला...) २. श्री गौतमस्वामीनो छंद लावण्यसमय..........४२ (वीर जिनेश्वर केरो शिष्य...) ३. श्री गौतमस्वामीनो छंद रूपचंद गणि..........४३ (जयो जयो गौतम गणधार ...) For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. श्री गौतमस्वामीनो छंद सुजस. (मात पृथ्वी सुत प्रात उठी नमो...) ५. श्री गौतमस्वामीनो छंद धीर................... (पेलो-गणधर वीरनो रे...) ६. श्री गौतमस्वामी, अष्टक ............... (अंगूठे अमृत वसे...) ७. श्री गौतमस्वामी सवैया तेवीसा लब्धिनिधान.......... ४८ (गौतम नाम प्रभात जपो...) चैत्यवंदन विभाग १. चैत्यवन्दन ज्ञानविमलसूरि ........४९ (विरुद धरी सर्वज्ञर्नु...) २. चैत्यवन्दन ज्ञानविमलसूरि ........४९ (नमोगणधर नमोगणधर, लब्धिभंडार...) ३. चैत्यवन्दन नय.................... ४९ (इंद्रभूति पहेलो भj, गौतम जस नाम) स्तवन विभाग १. गणधर श्री गौतमस्वामीनुं स्तवन ज्ञानविमलसूरि........५० (सकल समीहित पूरणो...) २. श्री गौतमस्वामी विलाप स्तवन वीरविजय............. (वीर वेला आवो रे, गौतम कही बोलावो रे...) ३. श्री गौतमस्वामी विलाप स्तवन (अपूर्ण).............. (वीर विभु आज्ञा थकी...) ४. श्री गौतमस्वामी विलाप स्तवन माणेकसूरि ............ (वर्धमान वचने तदा...) ५. श्री गोतमस्वामी विलाप स्तवन (शासन नायक प्राण प्रभु हे वीरजी...) ........................५४ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. श्री गौतम-महावीरस्वामीनुं स्तवन दर्शन.................५६ (महावीर स्वामी मोक्षे पधार्या...) ७. श्री गौतमस्वामीनुं स्तवन जस..................५७ (गौतम गणधर नमीये, अहोनिश...) स्तुति विभाग १. श्री गौतमस्वामी चतुष्पदिस्तुति ज्ञानविमलसूरि...... ५८ (इंद्रभूति अनुपम गुणभर्या...) २. श्री गौतमस्वामी चतुष्पदिस्तुति ज्ञानविमलसूरि ...... ५९ __(गुरु गणपति गाउं, गौतम ध्यान ध्याउं...) सज्झाय विभाग १. सिद्धस्वरूपवर्णनमय श्रीगौतमस्वामी सज्झाय नय................... (श्री गौतम पृच्छा करे, विनय करी शीष...) २. श्री केशी ने गौतम गणधरनी सज्झाय रूपविजय............६२ (ए दोय गणधर प्रणमीये...) ३. श्री गौतमस्वामीजीनी गहुँली कर्पूर..........६४ (गुब्बरवासी गौतम गुरूने...) ४. श्री गौतमस्वामीनो विलाप सज्झाय (अपूर्ण)............. (आधारज हतो रे एक वीर ताहरो रे...) अन्य लघु गौतम पृच्छा..... ........६७-८० प्रकीर्णक. .......८१-८२ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र : संक्षिप्त परिचय........८३.९३ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरोवाक् जे कीजे गौतम नो ध्यान, ते घर विलसे नवे निधान आचार्यदेवेश श्री पद्मसागरसूरि जैन परम्परा के सामाजिक अङ्ग में गौतमस्वामी का वही स्थान है, जौ वैदिक परम्परा में विघ्नहर गणेश का. जो लोग भगवान महावीर के इन प्रथम शिष्य की महिमा से अपरिचित भी हैं - उनके घर में भी हर शुभ कार्य के आरंभ में गौतमस्वामी को याद किया जाता है. यह उनके केवल भगवान महावीर के प्रथम गणधर होने के कारण अथवा केवलज्ञान उपलब्धि के पश्चात मोक्ष प्राप्त करने के कारण ही नहीं है, इसके पीछे कारण है उनके द्वारा आत्म-शुद्धि के मार्ग पर दृढ़ता से चलते हुए प्राप्त विशेष लब्धियाँ तथा उनके परम कल्याणमय स्वभाव के परिणाम स्वरूप इन लब्धियों से जन-जन को पहुँचा लाभ. गौतमस्वामी को जन सामान्य विघ्नहर रूप में जानता है तो विद्वद समुदाय तथा त्याग मार्ग के अनुगामी उन्हें भगवान महावीर के परम्परा के प्रथम पुरुष तथा तीर्थंकर वाणी को शब्दों में गुंफित करने वाले प्रथम गणधर के रूप में जानते हैं. आज जो भी जैन वाङ्गमय हमें उपलब्ध है, उसका प्राथमिक स्रोत गौतमस्वामी ही हैं. गणिपिटक के रूप में सङ्कलित तीर्थंकर वाणी गौतमस्वामी के नेतृत्व में गणधरों ने सङ्कलित की और सुधर्मास्वामी ने परम्परा को प्रदान की. आश्चर्यजनक संयोग यह है कि जिन इन्द्रभूति गौतम ने तीर्थंकर द्वारा प्रदत्त समस्त को धारण किया वे वैदिक परम्परा के शीर्षस्थ विद्वान भी थे. मीमांसक और यज्ञाचार्य के रूप में सभी ओर इनकी प्रसिद्धि थी. वेद-विद्याओं में पारंगत इन्द्रभूति के स्तर के दूसरे विद्वान उस काल में समस्त उत्तर भारत में नहीं था. ७ For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसे परम विद्वान जब भगवान महावीर के सान्निध्य में आये तो उनके जाज्वल्यमान आत्म-ज्ञान के समक्ष नतमस्तक ही नहीं पूर्ण रूप से समर्पित ही हो गये. क्षण मात्र में महापण्डित इन्द्रभूति गणधर गौतम बन गये और आत्म शुद्धि के पथ पर चल पड़े. “भगवत् तत्त्व क्या है?'' इस वाक्य से एक प्रश्न श्रृंखला आरंभ हुई जिसके फलस्वरूप वह ज्ञान प्रवाह आरंभ हुआ जिसने केवलज्ञानी तीर्थंकर के उद्बोधन के रूप में क्षेत्र और काल की सीमाएं लांघ जन-जन को प्रभावित किया. यह उल्लेखनीय बात है कि जैनागमों में तीर्थंकर द्वारा दिये उपदेश में स्थान-स्थान पर गौतम शब्द मिलता है. मात्र भगवती सूत्र में छत्तीस हजार प्रश्नों में से ज्यादातर के उत्तर 'हे! गौतम' शब्द से वाक्य आरंभ होते हैं. परमज्ञानी होने के साथ-साथ गौतम उग्र तपस्वी भी थे और फलस्वरूप विविध लब्धियों के धारक भी. ऐसे लब्धिशाली होने पर भी अहंकार का लेश मात्र भी उनमें नहीं था. वे परम विनयी, गुरु भक्त एवं सेवाभावी थे. गणाधिपति तथा सैंकड़ों शिष्यों के गुरु होने पर भी गोचरी अथवा भिक्षा के लिए वे स्वयं जाते थे. भगवान द्वारा आनन्द श्रावक के कथन को सत्य बताने पर अपनी भूल स्वीकार कर तत्काल क्षमा याचना के लिए जाना गौतम के विनय चारित्र का ज्वलन्त उदाहरण है. जैन वाङ्गमय गौतमस्वामी के जीवन की ऐसी अनेक घटनाओं स भरा पड़ा है, जो वर्तमान संदर्भो में भी उतनी ही प्रेरणादायक है. आत्मलब्धि के बल पर सूर्यकिरणों का आधार ले अष्टापद की यात्रा करना और वापस आकर अक्षीणमहानसी लब्धि के प्रभाव से सैंकड़ों तापस मुनियों का पारणा कराना संभवतः उनके जीवन की अंतिम For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चमत्कारिक घटना थी, जो आज भी भक्तों को प्रेरित करती है. गौतमस्वामी के लिए परम गुरु विशेषण शब्दशः चरितार्थ होता है. जैन इतिहास में संभवतः ऐसा दूसरा उदाहरण मिलना कठिन है, जिसके शिष्यों की इतनी विशाल संख्या केवलज्ञान को प्राप्त हुई हो. शिष्य की उपलब्धि गुरु के प्रताप का प्रमाण है. ऐसा प्रतापी गुरु और उनमें स्वयं में इतनी गहरी गुरु भक्ति कि स्वयं के मोक्षमार्ग की बाधक बन जाए. अनोखा उदाहरण है कि गुरु-भक्ति के पाश से वे तभी मुक्त हुए जब गुरु निर्वाण को प्राप्त हो गया. एक ज्ञानदीप की अनन्त यात्रा और दूसरे ज्ञानदीप का उद्भव जैनों को दीपोत्सव की परम्परा दे गया. संस्कृत-प्राकृत व मारुगुर्जर भाषाओं में गणधर भगवंत श्री गौतमस्वामीजी के विविध विद्वानों द्वारा रचित स्तोत्रों के इस संग्रह को मेरे अंतरङ्ग अन्तेवासी स्वर्गीय उपाध्याय धरणेन्द्रसागरजी ने बड़ी लगन से संकलित किया था. जिसको श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र (कोबा) द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है. इस प्रकाशन से गौतमस्वामीजी के विषय में बहुत सी जानकारी लोगों को मिल सकेगी. उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी म. की श्रुतभक्ति की मैं अनुमोदना करता हूँ. उनकी अन्तिम इच्छास्वरूप यह ग्रंथ वाचकों को समर्पित है. पद्मसागरसूरि For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकाशकीय जिनेश्वर देव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी की कृपा से परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरि म.सा. के प्रशिष्य राष्ट्रसंत आचार्य देवेश श्री पद्मसागरसूरि म.सा. के प्रथम शिष्यरत्न उपाध्याय श्री धरणेन्द्रसागरजी द्वारा अपने जीवनकाल में संकलित गणधर गुरु श्री गौतमस्वामी की प्राचीन मनीषिओं द्वारा संस्कृत, प्राकृत व मारूगुर्जर भाषाओं में रचित स्तोत्रादि का यह प्रकाशन चतुर्विध संघ के हाथों में सौंपते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. इस विशिष्ट संकलन कार्य में श्री गौतमस्वामी के यथासंभव सभी महत्वपूर्ण प्राचीन स्तोत्रों को चयन करने का विद्वान संकलनकार ने पूरा प्रयास किया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकाशन कार्य में पाठों की शुद्धता हेतु प्रशंसनीय कार्य किया गया है. हमें विश्वास है कि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथमाला के इस प्रथम पुष्प का समाज में स्वागत किया जाएगा. विद्वानों से आग्रह है कि इस प्रकाशन हेतु अपने सुझाव अवश्य लिखें जिससे अगली आवृत्ति में सुधार किया जा सके. इस प्रकाशन हेतु पूज्य उपाध्याय श्री धरणेंद्रसागरजी म.सा. को कुछ दाताओं ने आर्थिक सहयोग किया था, जिनके नामों की सूची हमें उपलब्ध नहीं हो सकी है. पूज्यश्री के इन सभी भाविकों के प्रति इस अवसर पर हम आभार व्यक्त करते हैं. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबा, गांधीनगर १० For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना अनन्तलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामी विषयक संस्कृत, प्राकृतादि भाषा निबद्ध कृतियों का यह पुष्पगुच्छ आपके सामने प्रस्तुत है. बरसों पहले इसे प्रकाशित करने का सुनहरा स्वप्न ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय मग्न पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म. ने देखा था. पूर्व प्रकाशित अनेक प्रकाशनों व हस्तलिखित प्रतियों में बिखरे इन पुष्पों को पूज्य उपाध्यायजी ने बड़े परिश्रम से एकत्र कर संकलित करने का सुप्रयास किया था. छपवाने की तैयारी हो ही रही थी कि अचानक पूज्य उपाध्यायजी म. स्वर्ग सिधार गए. इस बीच समय काफ़ी गुज़र गया. परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के निर्देशानुसार इस महापुरुष के स्वप्न को साकार करना भी हमारे लिए उनके प्रति श्रद्धांजलि का अर्घ्य बन गया. इस आत्मतोष से प्रेरित हो कार्य को पुनः आरंभ किया गया. पूज्यश्री द्वारा संगृहीत सभी कृतियों को एक नज़र देखकर आवश्यक स्थलों को संशोधित करना तय हुआ. तदनुसार आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा के विशाल भंडार से विविध हस्तप्रतों एवं प्रकाशनों को एकत्र कर पाठ शुद्धि का कार्य प्रारंभ हुआ. पूर्व के प्रकाशनों में रह गई स्खलनाओं को परिमार्जित कर प्रस्तुत प्रकाशन में शुद्धि का शक्य ध्यान दिया गया है. जैसे कि गौतमस्वामी के प्रसिद्ध रास- वीर जिणेसर चरण कमल कमला कयवासो... में ढाल ६, गाथा ५७ में पुर पुर वसता कांइ करीजे, देश देशान्तर काई भमीजे... इस गाथा में एक ही बात पुनरुक्त हुई है. किसी जगह शब्द ही बदला हुआ मिलता है. जैसे परघर वसता कांई करीजे... इस स्थान पर कर्ता को पर परवशता शब्द ही इष्ट है, ऐसी छोटी-छोटी अशुद्धियाँ ११ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भी अर्थान्तर कर देती है. इसी प्रकार मुनिसुन्दरसूरि रचित गौतमगणधरस्तोत्र (जयसिरिविलासभवणं...) में गाथा ६ में उत्तरपाद में सूरिगण भगव वसियं पाठ कई जगह छपा है, जिसका अर्थ मेल होता ही नहीं है. यहाँ पर हमने सूरिगणझाणविसय... पाठ उचित तय कर परिशोधित किया गया है. ___ इसी तरह की अशुद्धियाँ संस्कृत-प्राकृतादि भाषा निबद्ध अनेक स्तोत्रादि में मिलती हैं. पाठकों को पठन, पाठन, गुणन में सुविधा हो और शुद्ध पाठ मिले एतदर्थ पूरा प्रयास किया गया है. जिन कर्ताओं के नाम वैकल्पिक मिले हैं वहाँ दूसरा नाम भी साथ ही दे दिया गया है. जैन शासन में गौतम गुरु के नाम से आबालवृद्ध सभी परिचित है फिर भी हम उनके वृत्तांत को संक्षेप में देना उचित समझते है. गुरु गौतमस्वामी के पूर्व के पाँच भवों का वृत्तांत मिलता है. प्रथम भव में वे मंगल श्रेष्ठि, दूसरे भव में मत्स्य, तीसरे भव में ज्योतिर्माली देव और चौथे भव में सुवेग राजा के पुत्र वेगवान नाम से हुए. चौथे भव की आयु पूर्ण कर देव हुए. देवायु पूर्ण कर वेगवान का जीव इन्द्रभूति बना. प्रभु श्री महावीर देव के प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी के नाम से ही लब्धियों का अनायास ही स्मरण हो जाता है. उनका जन्म राजा विक्रम के ५५० वर्ष पूर्व गुब्बर गाँव में गौतम गोत्रीय उच्च ब्राह्मण कुल में हुआ था. माता का नाम पृथ्वी और पिता का नाम वसुभूति था. तत्कालीन विद्वानों में वे उपाध्याय पदवी से अलंकृत और सैकड़ों शिष्यों के गुरु थे. भगवान श्री महावीर की देशना के श्रवण निमित्त जब देववृंद समवसरण में आ रहे थे तब पास ही में यज्ञ कर रहे For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रभूति गौतम ईर्ष्यावश महावीर देव से वाद करके प्रभु को पराजित करने हेतु गए. वहाँ उनकी अपार ऋद्धि और शोभा देखकर वे हतप्रभ से हो उठे. परंतु दिग्गज पंडित के रूप में उन्होंने प्रभु से वाद करने की ठान ही ली. प्रभु से साक्षात्कार होने पर वे प्रभु के स्नेह युक्त मीठे वचनों से प्रभावित हुए. प्रभु महावीरस्वामी ने भी उन्हें योग्य समझ कर उनके संशयों को युक्ति प्रयुक्तियों से निरस्त किया व वेदों के रहस्यों को अनेकांत दृष्टि से समझाया. इन्द्रभूति गौतम के मिथ्यात्व एवं सब संशय दूर हो गए और सम्यक्त्व प्रगट हुआ. वैराग्य वासित देखकर भगवान ने उन्हें दीक्षा देकर अपने प्रथम शिष्य और प्रथम गणधर के महान पद पर आरूढ़ किया. उनका चरित्र बड़ा अद्भुत व महिमावन्त है. शास्त्रों में जगह-जगह हे गोयम! संबोधन से भगवान ने तत्त्व का उपदेश दिया है. ___ गुरू गौतमस्वामी के जीवन में एक अद्भुत चमत्कारी प्रसंग घटित हुआ, जिससे हमें उनकी आत्म लब्धियों का किंचित परिचय मिलता है. भगवान की देशना में उन्होंने सुना कि स्व-शक्ति से जो आत्मा अष्टापद पर्वत तीर्थ की यात्रा करती है और वहाँ रात्रि वास करती है, वह उसी भव में मोक्षगामी बनती है. यह सुनते ही लब्धिवन्त गौतमस्वामीजी भगवान से अनुज्ञा लेकर चारण लब्धि (आकाश गमन की लब्धि) से थोड़े ही क्षणों में अष्टापद की तलहटी में पहुँच गए. तलहटी में पहले से ही अनेक तापस ऋषि मुनि मोक्षप्राप्ति हेतु कठोर तप करके तीर्थयात्रा का प्रयास कर रहे थे. उन तापस मुनियों ने देखा कि हम जैसे तप करके दुबले शरीर धारी भी उपर नहीं पहुंच पा रहे है तो यह हृष्ट पुष्ट विशालकाय साधु कैसे जाएगा? वे सब सोच रहे थे कि गौतमस्वामी लब्धि बल से सूर्य की किरणों का अवलंबन कर अष्टापद १३ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर चढ़ गए. आश्चर्यकारी इस दृश्य को देखकर उन कोडिन्न आदि तीन मुख्य तपस्वियों ने अपने-अपने पाँच -पाँच सौ शिष्यों के परिवारों सहित मन ही मन हृदय में उन्हें अपना गुरू बनाने का निश्चय कर लिया. जब गौतमस्वामी अष्टापद के ऊपर की यात्रा के बाद लौटकर आए तो सभी तापस गुरु गौतमस्वामी को समर्पित हो गए. गौतमस्वामी उन १५०० तापस शिष्यों को लेकर भगवान के पास आने लगे. रास्ते में भोजन का समय होने पर शिष्यों को तप का पारणा कराने की इच्छा से एक छोटा पात्र लेकर आसपास के गाँव में जाकर खीर ले आए. उन तापस शिष्यों ने सोचा इतनी छोटी सी कटोरी-भर खीर से क्या होगा ? किसको देंगे, किसको नहीं ? इस प्रकार संकल्प-विकल्प करने लगे. गौतम गुरु ने सब को पंगत में बैठाकर एक के बाद एक सब को भरपेट पारणा कराया. तापस मुनि वृंद आश्चर्यचकित हो उठा. परंतु यह तो उन महान गुरु के अँगूठे में बसी अक्षीणमहानसी लब्धि का प्रभाव था. आज भी हम मांगलिक रूप में गाते है - अंगूठे अमृत वसे लब्धि तणा भंडार... शिष्यों को बड़ी श्रद्धा हो गई की हमारा बेड़ा पार हो गया. सच्ची श्रद्धा से तत्काल समकित पाकर तापस क्रमशः केवलज्ञानी हो गए. यह उनके अद्भुत महिमावन्त चरित्र का एक अंश है. हम भी सच्चे भाव से उनका नाम स्मरण करते है तो इच्छित की प्राप्ति तुरंत होती है, यह अनुभव गम्य है. गौतमस्वामी के जीवन का एक सुंदर गुण था . प्रभुभक्ति, अनहद भक्ति! गुरु गौतमस्वामी अपनी साधना की उस उच्चतम सीमा पर पहुँच गए थे कि अब प्रभुभक्ति का यही गुण उनके केवलज्ञान की प्राप्ति में बाधक बन रहा था. भगवान स्वयं यह जानते थे अतः उन्होंने अपना निर्वाण नज़दीक जानकर, गौतमस्वामी को १४ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवशर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिवोध देने हेतु भेज दिया. क्योंकि भगवान का विरह गौतमस्वामी से सहन नहीं होने वाला था और यही घटना उनके कैवल्य का निमित्त बनने वाली थी. । भगवान के निर्वाण का वृत्तांत जानकर गौतमस्वामी खूब रोए, पत्थर को भी पिघला दे ऐसा विलाप करने लगे. कुछ ही पलों में उनके विचारों में परिवर्तन आया और पश्चात्ताप करने लगे, अहो ! मैं मोहवश हूँ, प्रभु तो वीतरागी है. थोड़े ही समय में वे शुक्ल ध्यानारूढ़ होकर केवलज्ञानी हुए. उस समय उनकी आयु ८० वर्ष की थी. उन्होंने ५० साल की उमर में भगवान से दीक्षा ली थी. केवल ज्ञान के बाद १० वर्ष तक उपदेश द्वारा भव्य जीवों का उद्धार कर, ९२ की आयु पूर्ण कर, अंत समय में राजगृह नगर के समीप वैभारगिरि के ऊपर एक माह का अनशन कर वे महानिर्वाण पद को प्राप्त हुए, सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए. कैसा अनुपम चरित्र ! उन्होंने जिस किसी को भी दीक्षा दी वे सब मोक्षपद को प्राप्त हुए. सचमुच वे अनंतलब्धियों के भंडार थे. ___ गौतमस्वामी के नाम मात्र से सिद्धियाँ आविर्भूत होती है. गौतमस्वामी से संवद्ध मंत्र गर्भित अनेक स्तोत्रादि महर्षियों ने रचे है. जैसे गौतमाष्टक, गौतमस्वामी रास, गौतम गणधर स्तोत्र इत्यादि; जो कि इस संग्रह में भी दिए गए है. चतुर्विध संघ बड़ी श्रद्धा और आदर से गुरु गौतम का नाम लेता है. कहा जाता है कि प्रातःकाल उनके रास व स्तोत्र का पाठ करने वाले भव्यों के दुःख दारिद्र्य देखते ही देखते दूर हो जाते है. ___ अंत में हम उन सभी गुरु भगवन्तों के आभारी हैं जिन्होंने कई कृतियों में पाठ शुद्धि करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है. For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से इस कार्य में अपने क़ीमती क्षणों को व्यय किया है. इन कृतियों के परिष्कार में पूर्णतया सहयोग व मार्गदर्शन करके आम जनता के लिए शुद्ध पाठों की उपलब्धि हेतु प्रयत्न किया है. इस पुस्तिका के विविध कार्यों हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के कार्यकर्ता गण भी साधुवाद के पात्र हैं. यह बड़े गौरव की बात है कि एक प्रमाणभूत माहिती से भरी गौतमस्वामीजी की कृतियों की छोटी सी पुस्तिका आराधकों एवं जिज्ञासुओं के कर कमलों तक पहुँच रही है. आराधकों को अपने स्वाध्यायादि नित्यक्रम में इस पुस्तिका की थोड़ी सी भी उपयोगिता होगी तो हमारा परिश्रम पूर्णतया सफल माना जाएगा और उसका अन्तःतोष निरंतर बना रहेगा. पाठकों से निवेदन है कि छद्मस्थतावश कहीं भी कोई त्रुटि रह गई हो तो कृपया सुधार कर लें और हमें भी सूचित करें ताकि पुनरावृत्ति में यथायोग्य सुधार किया जा सके. शुभं भूयात्. संपादक गण For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत-भक्त पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. के जीवन की एक झलक राजपूताना की पावन गौरवमयी वीरप्रसूता भूमि पर आज से लगभग ६५ वर्ष पूर्व जोधपुर नगर जो कि महाराजा जोधासिंहजी ने बसाया था, उसी नगर के महाप्रभावशाली, परम तारक देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा महावीरदेव के परम उपासक, श्रेष्ठिरत्न, दानवीर श्री हुकमचंदजी मोहनोत के यहाँ परम सौभाग्यशालिनी, विदुषी, शीलवती ज्ञानकुँवर देवी की कुक्षि से वि. सं. १९९४ आसो सुदि १४ (दि. १८-१०-१९३७) के प्रातःकाल शुभ वेला में पुत्र का जन्म हुआ. उस बालक का नाम शंकरराज मोहनोत रखा गया. कहते हैं कि, "पुत्र के लक्षण पालने में" इस हक़ीक़त को सही ठहराते हुए वह बालक बहुत ही दयावान था. किसी का दुःख वह सहन नहीं कर सकता था. वालक शंकरराज केवल १२ वर्ष का ही था कि एक बार किसी साइकिल सवार ने एक वृद्ध अंधे व्यक्ति को टक्कर दे दी, वह वृद्ध नीचे गिर गया. शंकरराज उस समय स्कूल जा रहा था. उससे देखा ना गया, उसने तुरंत ही पास में अपने मामा की दुकान पर स्कूल का बस्ता रख दिया और फ़ौरन उस वृद्ध अंधे पुरुष को उठाकर अस्पताल पहुँचाया. जहाँ तक उस अंधे वृद्ध पुरुष को होश नहीं आया वहाँ तक वह वहीं अस्पताल में बैठा रहा. - शंकरराज ने १०वीं अच्छे नंबरों से पास कर गवर्नमेंट के मलेरिया विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में सर्विस स्वीकार कर ली. एक बार उनकी पोस्टिंग फलोदी में हुई. वहाँ शंकरराज मोहनोत ओलीजी की आराधना के निमित्त मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. के १७ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपर्क में आए. उस समय उनकी आयु भर युवावस्था यानि २२ वर्ष की थी. मुनिराजश्री के परिचय से उन्हें संयम जीवन प्राप्त करने की इच्छा हुई. शंकरराज को पता था की माता पिता संयम के लिए कभी भी अनुमति नहीं देंगे. सो उन्होंने मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. से प्रार्थना की कि मुझे चारित्र लेने की उत्कट भावना है पर परिवार वाले मुझे चारित्र नहीं लेने देंगे परंतु मुझ पर कृपा करके आप मुझे चारित्र देवें. मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. के पास मेडता रोड तीर्थ में श्रीफलवृद्धि पार्श्वनाथ भगवान की तीर्थभूमि पर वि. सं. २०१७ के जेठ कृष्ण ५ को संसार से विरक्त शंकरराज ने चारित्र अंगीकार किया. श्री पार्श्वनाथ भगवान के तीर्थरक्षक देव धरणेन्द्र के नाम से शंकरराज का नाम मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. रखा गया. जब परिवारवालों को पता चला कि शंकरराज ने चारित्र ले लिया है तब ऊहापोह तो बहुत ही हुआ पर मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. की अडिगता पर सब शांत हुआ. मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी का प्रथम चातुर्मास पाली में हुआ. वहाँ केवल उन्होंने दो कार्य किए (१) गुरु सेवा और (२) ज्ञानोपार्जन. अपना सारा समय अभ्यास के पीछे लगा दिया. उनका ध्येय रहा कि मुझे ज्ञानप्राप्ति करनी ही है. किसी भी तरह वे समय को व्यर्थ गँवाते नहीं थे. उन्होंने अपने ज्ञान-ध्यान में वृद्धि करने के साथ ही तत्त्वज्ञान का गहन चिंतन प्रारंभ किया. निरंतर शांतभाव से सभी प्रवृत्तियों से हट कर उन्होंने स्वाध्याय, अध्ययन-अध्यापन, लेखन, चिंतन-मनन में अपना समय दिया. संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, गुजराती, मारवाड़ी एवं अंग्रेजी भाषाओं में उन्होंने प्रवीणता प्राप्त की थी. धीरे-धीरे समय व्यतीत होता रहा. गुरुवर्य मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. ने उनको पूज्य दादा गुरूदेव श्री For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. की सेवा में रखा तो गुरु आज्ञा को शिराधार्य करक उन्होंने अपने दादा गुरूदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. की वहुत ही सेवा करके उनके दिल में स्वयं के लिए एक जगह बना ली. हर तरह से योग्य और अपने होनहार शिष्य की प्रगति देखकर आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. काफ़ी प्रसन्न थे. मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. को इसी अरसे में एक शिष्यरत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम है मुनि श्री निर्वाणसागरजी म.. अपने गुरु की ही तरह मुनि श्री निर्वाणसागरजी म. भी आराधना में हमेशा तत्पर रहते हैं. _ वि. सं. २०४१ में जव मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी वासुपूज्यस्वामी जैन संघ, आंबावाडी, अहमदाबाद में चातुर्मास कर रहे थे तब सभी तरह से योग्य जान कर प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने उन्हें पंन्यास पदवी देने की घोषणा की. इस निर्णय से सारे श्रीसंघ में खुशियाँ छा गई और पंन्यास पदवी आंबावाडी जैन संघ में ही देना तय किया गया. वि. सं. २०४२ के फाल्गुन सुदि ३ के शुभ दिन आंबावाडी जैन संघ के प्रांगण में प. पू. प्रशांतमूर्ति गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के दिव्य आशीर्वाद से पू. वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यप्रवर श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्यदेव श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्यप्रवर श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्य देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. आदि विशाल साधु-साध्वीजी म. सा. की उपस्थिति में पाँच दिन के महामहोत्सवपूर्वक मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. को पंयास पद से विभूषित किया गया. वे अब पंन्यास श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. वने, पंन्यास पदवी प्राप्त करने के पश्चात भी १९ For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वे इतने ही सरल और विनम्र थे कि छोटे से छोटा वालक भी उनके पास बिना संकोच चला जाता था. पंन्यास पदवी के पश्चात् बराबर ७ वर्ष व्यतीत होने के बाद जब वि. सं. २०४९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में गुरुमंदिर की प्रतिष्ठा होने वाली थी उसी समय प. पू. गुरूदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने अपने पट्टशिष्य को उपाध्याय पद के योग्य जान कर वैशाख सुदि ५, वि. सं. २०४९ को उपाध्याय पदवी से विभूषित किया. साथ ही साथ उनके लघु गुरुभ्राता गणिवर्य श्री वर्धमानसागरजी म. सा. को भी पंन्यासपद से विभूषित किया गया. सदा मुस्कुराते सरल स्वभावी उपाध्यायजी को जब भी देखो वे कुछ न कुछ पढ़ते-लिखते ही नज़र आते थे. उपाध्याय पद प्राप्ति के पश्चात् उपाध्यायप्रवर श्री ने प्राय: करके राजस्थान, पूर्व भारत, नेपाल, दिल्ली आदि विविध जगहों पर पू. गुरु भगवंत के साथ विहार करते हुए अपनी प्रतिभा से जयपुर में दो मंदिरजी की प्रतिष्ठा आदि करवा कर शासन की शोभा में निरंतर उन्नति की. उपाध्यायप्रवर श्री ने अपने जीवन में विशेषरूप से साधर्मिक उत्थान, पुराने जिनमंदिरों के जीर्णोद्धार एवं शिक्षा अभ्यास के लिए विशेषकर ध्यान दिया. उपाध्यायप्रवर श्री ने जयपुर तपागच्छ श्रीसंघ की वि. सं. २०५५ के चातुर्मास के लिए बहुत ही आग्रह भरी विनंती होने के वावजूद अहमदाबाद स्थित श्री वासुपूज्यस्वामी जैन संघ, नारणपुरा चार रस्ता की विनंती को स्वीकार कर दिल्ली से अहमदाबाद विहार करके पधारे. अतिशय सुंदर धर्म-आराधना करवाते पूज्यश्री प्रवचन, २० For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वाध्याय, ध्यान में अपनी संयमयात्रा सरलता सहजता एवं कुशलता से पसार कर रहे थे कि पर्युषण महापर्व की अतिसुंदर आराधना करने और करवाने के पश्चात् किसी कर्म के संयोग से अचानक बीमार पड़ गए. नारणपुरा श्रीसंघ ने अच्छे से अच्छे डॉक्टरों से निदान करवाया तो कैंसर की व्याधि नज़र के समक्ष आइ. डॉक्टरों ने और श्रीसंघ के अग्रगण्य श्रावकों ने पूज्यश्री की अनुमोदनीय सेवा की. उपाध्यायप्रवरश्री ने इनकी जोरों की वेदना में भी अपना तन-मन परमात्मा की भक्ति में लगा दिया. संपूर्ण रूप से समाधि रख कर कैंसर का ऑपरेशन करवाया पर यह व्याधि बहुत ही खराब निकली. कैंसर बड़ी तेजी से फैला और गाँठ पेट में ही फट गई, जिससे पूज्यश्री को निरंतर कई दिनों तक खून की उल्टियाँ होती रही. पूज्यश्री की यह दारूण वेदना देख कर साथ में सेवारत सभी व्यथित हो जाते थे परंतु पूज्यश्री के चेहरे की प्रसन्नता जरा भी कम नहीं होती थी. ऐसे ही में एक बार उन्होंने सहवर्ती मुनि के चेहरे पर चिंता के भाव जानकर कहा कि "तू क्यों चिंता करता है, मैं तैयार हूँ." पूज्यश्री के ये शब्द सुनते ही प. पू. स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी के ये अंतिम शब्द स्मृतिपटल पर उभर आए कि "मुझे जीने का मोह नहीं है व मरने का भय नहीं है; जिऊँगा तो सोऽहं सोऽहं करूँगा और मरूँगा तो श्री सीमन्धरस्वामी के पास जाऊँगा" दो महापुरूषों के अंतिम उद्गारों के भावों में कितनी समानता! महापुरूषों के आशीर्वाद से जीवन में उत्तम संयम को पालन करने वाले मौत का यही हाल करते हैं, उनकी मृत्यु महोत्सव बन जाती है. २१ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्यायजी का अंतिम समय जानकर आखिर आसा सुदि १४ के दिन अस्पताल से नारणपुरा स्थित उपाश्रय में लाया गया. जब उनको कहा गया कि अस्पताल से आज आपको उपाश्रय जाने की छुट्टी दे रहे हैं तब यह सुनते ही वे बड़े खुश हो गए और कहने लगे कि आज मुझे देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा के दर्शन-वंदन आदि करने का लाभ मिलेगा. इतना कहते ही उनकी आँखों में से हर्ष के अश्रु आ गए. अस्पताल से उपाश्रय आ कर परमात्मा देवाधिदेव वासुपूज्य स्वामी भगवान के दर्शन करते-करते उनकी आँखों में अश्रु की धारा बह चली. उनके मन में यही भावना उत्पन्न हुई कि "परमात्मा! मैं कैसा पापी हूँ कि इतने दिनों तक अस्पताल में आपका दर्शन नहीं कर सका". आखिर वि. सं. २०५५ के कार्तिक कृष्ण ३ (मारवाड़ी), बुधवार के दिन दोपहर १२ बजे संपूर्ण जागृत अवस्था में नवकारमंत्र का स्मरण करते हुए वर्तमान गच्छाधिपति आ. देव श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म. एवं आचार्य देव श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरि म. अपने गुरूदेव आचार्य प्रवर श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में नारणपुरा जैन उपाश्रय में समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. पूज्यश्री से उनके अंत समय पूछा गया कि आप जागृत हैं?, तो उन्होंने कहा कि "हाँ मैं जागृत हूँ और नवकारमंत्र गिन रहा हूँ". उस दिन श्रीसंघ में दोनों ही उपाश्रयों में अखंड नवकारमंत्र का जाप हो रहा था. कालधर्म के दिन दोनों ही उपाश्रयों के आसपास केशर के अमी छांटण हुए. ___ऐसे जिनशासन के नभोमण्डल पर एक चमकते हुए सितारे का अस्त हुआ, कहीं अन्यत्र और भी तेज चमकने के लिए! २२ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्यायप्रवर श्री ने अपने ३७ वर्ष के चारित्र पर्याय में १५ जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार, १० छोटे बड़े नूतन मंदिरों में प्रतिष्ठा, छोटे-बड़े १५ से २० पैदल छ'री पालित संघ व ३७ चातुर्मास गुजरात, राजस्थान, वम्बई, कलकत्ता, अजीमगंज, दिल्ली आदि जगहों पर करके जिनशासन की अपूर्व शोभा को बढ़ाया था. इनमें से ज़्यादातर चातुर्मासों में व अंत समय भी पूज्यश्री के लघु-गुरु भ्राता, विनम्र स्वभावी पूज्य मुनि श्री प्रेमसागरजी ने सदा साथ रहकर पूज्य उपाध्यायजी की सुंदर सेवा की थी. ऐसे साधक पुरुप हमारे सभी के ऊपर अपने आशीर्वाद का प्रवाह वहाएं, जिससे हम शासन की सेवा कर सकें, ऐसी उनसे हमारी प्रार्थना. ऐसे महापुरुष के चरणों में भक्तिभरी श्रद्धांजलि. 1.0.1 For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्राकृत- संस्कृत विभाग ov Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. देवानन्दसूरिरचितं श्री गौतमस्वामि अष्टकम् श्रीइन्द्रभूति वसुभूतिपुत्र, पृथ्वीभवं गौतमगोत्ररत्नम् । स्तुवन्ति देवासुरमानवेन्द्राः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं म ।।१।। श्रीवर्धमानात त्रिपदीमवाप्य, मुहूर्तमात्रेण कृतानि येन। अगानि पूर्वाणि चतुर्दशाऽपि, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ।।२।। श्रीवीरनाथेन पुरा प्रणीतम्, मन्त्रं महानन्दसुखाय यस्य । ध्यायन्त्यमी सूरिवराः समग्राः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ।।३।। यस्याभिधानं मुनयोऽपि सर्वे, गृहन्ति भिक्षाभ्रमणस्य काले । मिष्टान्नपानाम्बरपूर्णकामाः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ।।४।। अष्टापदाद्रौ गगने स्वशक्त्या, ययौ जिनानां पदवन्दनाय । निशम्य तीर्थातिशयं सुरेभ्यः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ।।५।। त्रिपञ्चसङ्ख्याशततापसानाम्, तपः कृशानामपुनर्भवाय ।। अक्षीणलब्ध्या परमान्नदाता, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं म ।।६।। सदक्षिणं भोजनमेव देयं, साधर्मिकं सङ्घसपर्ययश्च ।। कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनाम्, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं मे ।।७।। शिवं गते भर्तरि वीरनाथे, युगप्रधानत्वमिहैव मत्चा। पट्टाभिषेको विदधे सुरेन्द्रैः, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं म ।।८।। त्रैलोक्यबीजं परमेष्ठिबीजं, सज्ञानवीजं जिनराजवीजं; यन्नाम चोक्तं विदधाति सिद्धिं, स गौतमो यच्छतु वाञ्छितं में ।।९।। श्रीगौतमस्याष्टकमादरेण, प्रवोधकाले मुनिपुङ्गवा ये। पठन्ति ते सूरिपदं च देवानन्दं लभन्ते सुतरां क्रमेण ।।१०।। नोट :- अंतिम पंक्ति इस तरह से भी मिलती हैं पठन्ति ते सूरिपदं सदैवानन्दं लभन्ते सुतरां क्रमेण ।।१०।। For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पूर्वाचार्यप्रणीतं श्री गौतमाष्टकम् ... ।।२।। ॐ नमः सकलकल्मपच्छिदे, भूर्भुवःस्वस्त्रितयवंदितांघ्रये । सर्वसिद्धिफलदाय तायिने, गौतमान्वयसरोजभास्वते. 119 ।। वर्धमानपदपंकजालये, सर्वलब्धिपुरुषार्थरूपिणे । श्रीन्द्रभूतिगणभृद्वराय तेऽर्हन्मयाय परमेष्ठिने नमः.. श्रीह्रीलक्ष्मीकान्तिकीर्तिधृतीनामेकावासं मुक्तसंसारवासं । दिव्याकारं ज्ञानरत्नत्रयाद्यं, भक्त्या नित्यं नौमि तं श्रीन्द्रभूतिम............... ।।३।। समग्रवेदागमगीतनादजन्मावनिं शुद्ध-विभूषणांगी। चतुर्भुजैर्या सुभगा सरस्वती, श्रीगौतमं स्तौति निपीड्य पादौ ........... ।।४।। या मानुषोत्तरमहीधरमौलिरत्नं, सुस्वामिनी त्रिभुवनस्य गजाधिरूढा । नानायुधान्वितसहस्रभुजाक्षितारिः, श्रीगौतमक्रमजुषां शिवमातनोतु................... ।।५।। देवी जयादिसहिता निधिपीठसंस्था, देवासुरेन्द्रनरचित्तविमोहिनी या । For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देहप्रभाजितरविः सुकृतोपलभ्या, श्रीइन्द्रभूतिमभिनम्य गुणान् प्रणौति...... ।।६।। यो यक्षषोडशसहस्रपतिर्गजास्यो, दिव्यायुधप्रबलविंशभुजस्त्रिनेत्रः । स द्वादशांगसमयाधिपतित्वमाप्तः, श्रीगौतमक्रमजुषो गणिपिट्टिनामा.. ............... ।।७।। इन्द्राश्चतुः षष्टिरथापि विद्यादेव्यस्तथा षोडशशासनेशाः । द्विधा चतुर्विंशतिदेवताश्च, श्रीगौतमस्यांह्रियुगं भजंति.............. ।।८।। (३) आचार्य श्री गौतमस्वामी अष्टकम् गुणसागरसूरिकृतम् वसुभूतेः श्रेष्ठः पृथ्वीमातुः सुनंदनः गोबरग्राम वास्तव्यः सेष्टं यच्छतु गौतमः......... देवेन्द्रैर्मानवेन्द्रैर्य संस्तुतः पूजितो गुणी वीर विनयवान् वर्यः सेष्टं यच्छतु गौतमः................. ।।२।। अनंतलब्धिमान् यस्मै दीक्षां यच्छति तस्युत । जायते केवलज्ञानं सेष्टं यच्छतु गौतमः.......................... ||३ ।। त्रिपदीं प्राप्य वीराद्धि द्वादशांगी त्वरं व्यधात् । उपकार्यभवद्वर्यः सेष्टं यच्छतु गौतमः...................... ।।४ ।। त्रिपञ्चशतसाधूनां परमान्नेन पारणम् । अकारयद्धि लब्ध्या यः सेष्टं यच्छतु गौतमः.................... ।।५।। .... ।।१।। For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वीरवीरवदन्वीरं प्रश्नं पृच्छति यः सदा । उत्तरं लभते वीरात्, सेष्टं यच्छतु गौतमः .. यस्य हि स्मरणं संपत् सिद्धिदं विघ्नकष्टहम् । शुभेच्छापूरकं नित्यं, सेष्टं यच्छतु गौतमः . आद्योगणधर स्वामी संघस्य यो महाव्रती । मह्यं सेष्टं यच्छतु गौतमः . ॐ ह्रीं श्रीं असिआउसा गौतमस्वामिने नमः । मंत्र हि चाष्टकं गण्यं लक्ष्मीसिद्धिसमृद्धिदम्.. तमोध्वान्तपतङ्गाय, भावारिवारवैरिणे भव्यारामसुमेधाय, त्रिजगज्जीवनाय च .. मानमातङ्गसिंहाय, कामयोधप्रणाशिने पापपाखण्डचण्डाय, संघाकाशसुधांशवे.. वीरध्यानेषु मग्नाय, शाश्वत्सौख्यविधायिने गंगावारिपवित्राय कल्याणाङ्कुरवारिणे.... शक्रेन्द्रवृन्दवन्द्याय, माङ्गल्यावलिकारिणे मदतामसहारिणे. गुणरत्न समुद्राय, धन्यधन्याय पूज्याय कृत्यकृत्याय धीमते निर्मोहाय विमायाय निर्लोभाय सुचारिणे. सौख्यामृतसरिद्भर्त्रे, मुक्तीन्द्राणीमरुत्वते नाकनारीप्रपूज्याय, ज्ञानभावनमालये ... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।९।। (४) हालारदेशोद्धारक श्री अमृतसूरि कृतं श्री गौतमस्वाम्यष्टकम् For Private And Personal Use Only ।।६।। 11611 ।।८।। ।।9 ।। . ।।२ ।। ।।३।। ।। ४ ।। ।।५।। ।।६।। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तपोधनाय शान्ताय, नोन्मादनविकारिण चिदानन्देन पूर्णाय, मत्सरं नैव कुर्वते . सर्वलब्धिनिधानाय, चतुर्थज्ञानधारिणे गौतमाय गणेशाय नमस्तस्मै त्रिशुद्धितः.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ।८ ।। ५. मुनिसुन्दरसूरि - विरचितं प्राकृतसंस्कृत श्री गौतमगणधरस्तोत्रम् जयसिरिविलासभवणं, वीरजिणंदस्स पढमसीसवरं । सयल गुणलद्धिजलहिं सिरिगोयमगणहरं वंदे... ॐ सह नमो भगवओ, जगगुरूणो गोयमस्स सिद्धस्स । बुद्धस्स पारगस्सय, अखीणमहाणसस्स सया.. अवतर अवतर भगवन् मम हृदये भास्करीश्रियं विभृहि । ॐ ह्रीं श्रीं ज्ञानादि वितरतु तुभ्यं नमः स्वाहा.. वसई तुह नाममंतो जस्स मणे सयलवंछियं दितो । चिंतामणिसुरपायव-कामघडाइहिं पि किं तस्स... सिरिगोयम- गणनायग तिहुअणजणसरण दुरियदुहहरण | भवतारण रिउवारण होसु अणाहस्स मह नाहो... मेरुसिरे सिंहासण-कणयमहासहसपत्तकमलठिअं । सूरिगण झाणविसयं ससिप्पहं गोयमं वंदे.. सव्वसुह-लद्धिदाया सुमरियमित्तो वि गोयमं भयवं । पइट्ठिअ - गणहरमंतो दिज्ज मम वंछियं सयलं.. इय सिरीगोयम -संथुअ मुणिसुंदर थुइ पयं मए वि तुमं । देहि महासिद्धि-सिवफलयं भुवणकप्पतरुवरस्स. ६ For Private And Personal Use Only ।।७।। 119 11 ।।२।। ।।३।। ।।४।। ।।५।। ।।६।। ।।७।। १८ ।। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. श्री मुनिसुंदरसूरिविरचितं श्री गौतमस्वामि स्तोत्रम् जयश्रियां सेवधिमेघमान-समग्रलब्धिहदिनीनदीशम् । सुरासुरेन्द्रालिविधीयमान-क्रमाम्बुजोपासनभासमानम्............... ।।१।। सहस्रपत्राद्भूतहेमप (मध्ये), पद्मासनासीनमदीनमेधम् । जगत्र्यैक प्रभुताप्रभाव प्रभाऽभिरामं मुनिराजिराजम्......... ।।२।। अनुत्तरब्रह्ममयं निरङ्क-मृगाङ्कबिन्बोज्ज्वलकामकान्तिम् । श्रीवर्द्धमानादिमशिष्यनाथं, श्रीगौतमस्वामिनमानुवामि.. .......... ।।३।। [विशेषकम्] निदेशतो वीरजिनेश्वरस्य, दरप्रमश्लोकमितं व्याधाद्यः । श्रीसूरिमन्त्रं त्रिजगद्हितैषी,स गौतमो रातु ममेष्टसिद्धिम्.... ।।४।। सरस्वती विश्वहितावधाना, सूरीश्वरध्यानपदप्रभावा। सहस्रहस्तप्रथिता त्रिलोकस्वामिन्यपि प्रार्थितशस्तदात्री............. ।।५।। श्रीदेवता विश्वविमोहनी चा सुरेन्द्रवर्गस्तवनीयरूपा। यक्षाधिपो विंशतिशस्तहस्तस्फुरज्जगज्जैत्रपराक्रमश्च........ ।।६।। इन्द्राश्चतुः षष्टिरभीष्टदाश्च, त्रिलोकरक्षाप्रभवत्प्रभावाः । यक्षाश्चतुर्विंशतिरार्हताहिसेवापवित्रीक्रियमाणगात्रा:................ ।।७।। देव्योऽपि दिव्याव्ययशक्तियुक्ता,भक्ता जिनेष्वाहतभद्रसक्ताः । उपासते यं गणधारीमन्त्रा-धिष्ठायिका नित्यमचिन्त्यभक्त्या. ।।८।। यन्नाममन्त्रोऽपि जयत्यचिन्त्यशक्तिर्मरुत्कुम्भमणिद्रुमादीन् । तं सर्व चिन्तातिगशर्महेतुं, श्रीगौतमं नौमि भवाब्धिसेतुम्........ ।।९।। पदं यथाऽब्धिस्तटिनीतटीना, खं तारकाणां विटपी लतानाम् । तथा विभो! गौतम! सर्वलब्धिप्रभा महिम्नां भगवंस्त्वमेव. ।।१०।। For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मुक्तिं व्रजंस्त्वं न्यदधाः स्वनाम्नि, स श्रीसखीर्नाथ! निजानुलब्धीः । वसत्यदो यत्र नरे गणेन्द्र, वसन्ति यत्ता अपि तत्र सर्वाः ..... ।।११।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कान्ता: शिवाप्तौ तव लब्धयस्त्वां, दुःखाद् भ्रमन्त्यः किल वीक्ष्यमाणाः । नामापि श्रृण्वन्ति तवेश ! यत्र, सूत्कण्ठयेवानुसरन्ति तं द्राग्... तवाऽऽतपस्यासमयात्कराब्जे, जज्ञे निलीना खलु केवल श्रीः | दीक्षामिषाद्यन्यदधा यदीयशिरस्सु तं ते द्रुतमापुरेताम्.. ।।१३।। त्वयाऽऽत्मनो वीरजिनाधिपेनाऽभेदस्तथाध्यायि वशेन भक्तेः । अनन्तचिद्दर्शनवीर्यसौख्यलाभात्तदात्मैव विभो ! यथाऽभूः ।।१४।। शिवश्रियः कोऽपि दृढोऽनुरागस्त्वयीश सौभाग्यरमात्मकेऽहो ! | नामापि यत्ते जपतः प्रबुद्धानेषाऽखिलान् प्रापयतेश ! शर्म..... ।।१५।। त्वदीयभक्तेः शिवशम्र्म्मलक्ष्म्या, मैत्री प्रभो ! कापि परा नवीना । स्वाराधकान् भव्यजनान् गुणाढ्याँ स्तस्यै पतीन् सा हि ददात्यशेषान् ।।१६।। ८ For Private And Personal Use Only .. न के पदार्था बहवो महान्तस्तव प्रभावे तु विचिन्त्यमाने । पृथ्वी न पृथ्वी न गिरिर्गरीयान्, नाब्धिर्महीयान्न नभोऽप्यदभ्रम् ।। १७ । । विदन्ति मानं जलधेर्भुवो वा, केचित्कथंचिन्नभसोऽपि विज्ञाः । " न ते प्रभावे पुनरस्ति मानं, भवन्त्यमाना अपि किं तदाऽर्थाः । । १८ ।। ब्रह्मास्पदं वा कमलापदं वा वदन्तु पद्मं तव पादयोस्तु । अनाप्य माहात्म्यरमां तु तस्यै, निषेवतेऽम्बूनि सदा तपस्वी..... ।।१९।। भो भोः ! श्रिये किं व्यवहारखेदैराराधितैः किं बहुमन्त्रतन्त्रैः । किं दैवतोपासनकर्मभिश्च, श्री गौतमं ध्यायत नाथमेकम् ।।२०।। ।।१२।। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरा यथा गौतम! तापसादिकान, मिथ्यामतादुद्धरसि स्फुरत्कृपः । तपस्क्रियासंयमयोगदुर्बलं, भवावटान्मामपि तद्वदुद्धर............ ।।२१।। भवाद् विभेम्युत्कटदुःखराशेर्धर्तुं द्विधेशे न च योगशुद्धिम् । गतिर्न मेऽन्यास्ति ततः शिवेच्छोस्त्वमेव तद्धेहि कृपां मयीश! ।।२२ ।। भावद्विषो ये निहतास्त्वयेश!, ते व्यन्तरीभूय भवद्रुषेव । निरौजसं त्वत्कुलजं समीक्ष्य, मां पीडयन्तीति मुनीन्द्र! रक्ष..... ।।२३।। गणिवर! तव सद्गुणैकलीनं, भवतु मनो मम गौतमाविरामम् । विजहतु तदिमे कषायमुख्या, रिपुनिकराश्च मयीति सुप्रसीद ।।२४ ।। एवं श्रीगणनाथ! गौतमगुरो! स्तुत्वा मयाऽभ्यर्थ्यसे, नाम्नाऽहं मुनिसुन्दरोऽभवमथो कुर्याः प्रसादं तथा । स्यां सर्वज्ञ! यथार्थतोऽपि विशदज्ञानादिरत्नत्रयाललब्ध्वा कर्मजयश्रियं शिवपुरे राज्यं लभेचाचिरात्... ........ ।।२५।। ७. श्री जिनप्रभसूरिप्रणितं मन्त्रगर्भितम् श्री गौतमस्वामि-स्तोत्रम् ॐनमस्त्रिजगन्नेतु-र्वीरस्याग्रिमसूनवे । समग्रलब्धिमाणिक्य-रोहणायेन्द्रभूतये........... पादाम्भोजं भगवतो, गौतमस्य नमस्यताम् । वशीभवन्ति त्रैलोक्य-सम्पदो विगतापदः.. ।।२।। तव सिद्धस्य बुद्धस्य, पादाम्भोजरजःकणः । पिपर्ति कल्पशाखीव, कामितानि तनूमताम........ ... ।।३।। श्रीगौतमाऽक्षीणमहानसस्य तव कीर्तनात् । सुवर्णपुष्पां पृथिवी-मुश्चिनोति नरश्चिरम्.... ....... ।।१।। ...... ।।४।। For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिशेषेतरां(चिरां) धाम्ना, भगवन्! भास्करी श्रियम् । अतिसौम्यतया चान्द्री-महो ते भीमकान्तता... .......... ![५ ।। विजित्य संसारमाया-बीजं मोहमहीपतिम ।। नरः स्यान्मुक्तिराज्यश्री-नायकस्त्वत्प्रसादतः. ............... ।।६।। द्वादशांगीविधौ वेधाः, श्रीन्द्रादिसुरसेवितः(सुरेन्द्रादिनतक्रमः)। अगण्यपुण्यनैपुण्यं, तेषां साक्षात् कृतोऽसि यैः................. ।।७।। नमः स्वाहापतिज्योति-स्तिरस्कारितनुत्विषे । ___ श्रीगौतमगुरो! तुभ्यं, वागीशाय महात्मने................... ।।८।। इति श्रीगौतम! स्तोत्र-मंत्रं ते स्मरतोऽन्वहम् । श्री जिनप्रभसूरेस्त्वं, भव सर्वार्थसिद्धये............. ........... ।।९।। (८) श्री जिनप्रभसूरि विरचितं गौतमस्तोत्रम् श्रीमन्तं मगधेषु गोर्बर इति ग्रामोऽभिरामः श्रिया, तत्रोत्पन्नमसन्नचित्तमनिशं श्रीवीरसेवाविधौ । ज्योतिः संश्रयगौतमान्वयविपत्प्रद्योतनद्योमणिं, तापोत्तीर्णसुवर्णवर्णवपुषं भक्त्येन्द्रभूतिं स्तुवे......... ||१|| के नाम नाभगुरभाग्यसृष्ट्यै दृष्ट्यै सुराणां स्पृहयन्ति सन्तः । निमेषविघ्नोज्झितमाननेन्दुज्योत्स्नां मनोहत्य तवापिबद्या. . ||२| निर्जित्य नूनं निजरूपलक्ष्म्या तृणीकृतः पञ्चशरस्त्वया सः । इत्थं न चेत्तर्हिकुतस्त्रिनेत्रनेत्रानलस्तं सहसा ददाह... ।।३।। For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .............. ||४।। .....।।६।। पीत्वा गिरं ते गलितामृतेच्छाः सुराश्चिरं चक्रुरभोज्यमिन्दुम् । सुधाहृदे तत्र मुनीश मन्ये लक्ष्मच्छलाच्छैवलमीक्ष्यतेन्तः सौभाग्यभङ्ग्यापिसमाधिदाने प्रत्येति लोकः कथमेतदज्ञः । यत्त्वां समग्रा अपि लब्धिकान्ताः समालिलिगुः समकालमेव. त्वत्पादपीठे विलुठन्त्यमास्त्वद्गेहभृत्याः किल कल्पवृक्षाः । तैरप्यमा हन्त तवोपमानोपमेय भावः कथमस्तु वस्तु.. पदोर्नखाली तव रोहिणीयं मुदे न कस्याद्भुत कृच्चरित्रा। वन्दारुपुंसां वदनेन्दुरन्तः प्रविष्टबिम्बोऽपि शिवाय यस्याः. यत्केवलज्ञानमविद्यमानमथात्मनि स्वान्तिषदामदात्तम् । लोकोत्तरत्वे ननु तावकानां दिङ्मात्रमेतच्चरिताद्भुतानाम् ... भवद्गुणानां स्तुतयो गुण - विधीयमाना विबुधाधिपाद्यैः | स्तुत्यन्तरस्तोत्रकथागणस्य समाप्तये वृत्करणी भवन्ति. ....... ||७|| ....।।८।। . . . . . . . . . . . . ........... ।।९।। For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।१०।। ||११।। .।।१२।। न रागवान्नो भजसेऽतिचारं नालम्बसे वक्रगतिं कदाचित् । पुरस्कृतेनोऽपि घनाय नासि तथापि पृथ्वीतनयोऽसि रूढः.. प्रभो महावीरमुपास्य सम्यक्त्वयार्जितं यज्ञकलारहस्यम् । गृहे यतित्वेऽप्यभिरूपरत्नत्रयीजुषा कीर्तिरतानि तेन. त्वद्वाणिमाधुर्यजिता पलाय्य सितोपला काचघटी विवेश । तत्रापि भीतिं दधती शलाका व्याजेन जग्राह तृणं तु वक्त्रे... श्रीवीरसेवारसलालसत्वात् त्तद्बाधिनी केवल बोधलक्ष्मीम् । अप्याय(ग)तामादरिणीं वरीतुं तृणाय मत्वा त्वमिमन्वमंस्थाः... अपोढ पङ्के कविभिर्निषेव्ये निरस्ततापे बहुभङ्गजाले | विभो भवद्वाङ्मुखगाङ्गपूरे दुर्वादिपूगास्तृणवत्तरन्ति. राकामये दिग्वलये समन्ताद्यशःशशाङ्केन ध्रुवं कृते ते । कुहूध्वनिः केवलमेव कण्ठदेशं पिकानां शरणीचकार. ।।१३।। ||१४|| र........ .. ।।१५।। १२ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ... ||१८ ।। जगत्त्रयोद्भासि यशस्तवैतत् क्व स्पर्धतां सार्धमनेन चन्द्रः । यस्यापरार्धेऽपि तृणस्य(?) नैव प्रभाप्रभावो लभतेऽवकाशम्... ||१६।। छत्रेन्दुपद्मदिषु रूढिमात्रं त्वन्नाम्नि तु श्रीर्वसतीति पुष्टिः । कुतोऽन्यथा तज्जपदीक्षितानां पुर:पुरो नृत्यति नित्यमृद्धिः.. ।।१७।। वसुभूतिसुतोऽपि कौतुकं वसुभूतेर्जनकः प्रणेमुषाम् । भगवन्नभवोऽपि वर्तसे कथमङ्गीकृतसर्वमङ्गलः, नाधः करोषि वृषमीश गणाधिपोऽपि धत्से सदाशयमपाशमपि प्रचेताः। श्रीदोऽपि सूत्रितयमालयवासकेलिस्त्वं पावको हरसे हरहेतिपातम्. ।।१९।। यत्तपत्यपि कलौ जिनप्रभाचार्य मन्त्रमनुशीलतां स्फुरेत्। हेतुतात्र खलु तत्त्वदेकताध्यानपारमितयैव गृह्यते.. मयैवं दुर्दैवं शमयितुमलंभूष्णुमहिमा स्तुतस्त्वं लेशेनश्रुतरथधरो गौतमगुरो। कुरूद्योतं क्लींवद्दिनपतिसुधाङ्गौ तमसि मे प्रभो विद्यामन्त्रप्रभवभवते गौतम नमः ......... ||२१ ।। ..... ||२०।। For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .... ।।१।। (९) श्री जिनप्रभाचार्य विरचितं गौतमस्तोत्रम् स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्रकमले पद्मासनस्थं मुनि स्फूर्जल्लब्धि विभूषितं गणधरं श्रीगौतमस्वामिनम् । देवेन्द्राधमरावलीविरचितो पास्तिं समस्ताद्भुतश्रीवासातिशयप्रभापरिगतं ध्यायामि योगीश्वरम्..... किं दुग्धाम्बुधि-गर्भगौरसलिलै-श्चन्द्रौपलान्तर्दलैः? किं किं श्वेतसरोज पुञ्जरुचिभिः किं ब्रह्मरोचिः कणैः? किं शुक्लस्मित-पिण्डकैश्च घटिता किं केवलत्वामृतै मूर्तिस्ते गणनाथ! गौतम! हृदि ध्यानाधिदेवि मम............ ।।२।। श्रीखण्डादिपदार्थसार्थकणिकां किं वर्तयित्वा सतां किं चेतांसि यशांसि किं गणभृतां निर्यास्य तद्वाक् सुधाम् । स्त्यानीकृत्य किमप्रमत्तकमुनेः सौख्यानि सञ्चूर्ण्य किं? मूर्तिस्ते विदधे मम स्मृतिपथाधिष्ठायिनी गौतम?. नीरागस्य तपस्विनोऽभुत-सुखवाताद् गृहीत्वा दलं तस्याः स्वच्छेशमाम्बुधे रसभरं श्रीजैनमूर्तेर्महः तस्या एव हि रामणीयकगुणं सौभाग्य भाग्योद्भवं मद्ध्यानाम्बुजहंसिका किमुकृता मूर्तिः प्रभो! निर्मला......... ।।४।। किं ध्यानानल गालितैः श्रुतदलै-राभासिसद्भावनाऽश्मेद् धृष्टैः किमु शीतलचन्दनरसै-रालेपि मूर्तिस्तव? सम्यग्दर्शन पारदैः किमु तपः शुद्धैः रशोधि प्रभो! मच्चित्ते दमिते जिनैः किमु शमेन्दु ग्रावतश्चाघटि... किं विश्वोपकृतिक्षमोद्यममयी? किं पुण्यपेटीमयी? किं वात्सल्यमयी? किमुत्सवमयी पावित्र्य पिण्डीमयी? ...... ।।३।। .... ||५|| १४ For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किं कल्पद्रुमयी मरुन्मणिमयी? किं कामदोग्धीमयी या धत्ते तवनाथ! मे हृदि तनुः कां कां न रूपश्रियम्?...... ।।६।। किं कर्पूरमयी सुचन्दनमयी पीयूषतेजोमयी? किं चूर्णीकृत चन्द्रमण्डलमयी? किं भद्र लक्ष्मीमयी? किं वाऽऽनन्दमयीकृपारसमयी? किं साधुमुद्रामयी-? त्यन्तमें हृदिनाथ! मूर्तिरमला नाऽभावि किं किं मयी?. .......... ।।७।। अन्तः सारमपामपास्य किमुकिं पार्थ्यव्रजानां रसं सौभाग्यं किमु कामनीय सुगुण श्रेणी मुषित्वा च किम्? सर्वस्वं शमशीतगोः शुभरुचे-रोज्ज्वल्यमाछिद्य किं? जाता में हृदि योगमार्ग पथिकी मूर्तिः प्रभो! तेऽमला........ ।।८।। ब्रहमाण्डोदरपूरणाधिकयशः कर्पूरपारीरजःपुजैः किं धवलीकृता तव तनुर्मद्दध्यानसद्मस्थिता। किं शुक्लस्मितमुद्गरैर्हतदलाद् दुष्कर्मकुम्भक्षरद्ध्यानाच्छामृतवेणिभिः प्लुतधरा श्रीगौतम! भ्राजते.. ............ ।।९।। किं त्रैलोक्यरमाकटाक्षलहरी-लीलाभिरालिंगिता। किं चोत्फेनकृपासमुद्रमथनोद्गारैः करम्बी कृता (गारैः) किं ध्यानानलदह्यमान निखिलान्तः कर्मकाष्टावली रक्षाभिर्धवला विभाति हृदि मे श्री गौतमत्वततनुः.......... ।।१०।। इत्थं ध्यानसुधासमुद्रलहरी चूलाञ्चलान्दोलन क्रीडानिश्चल रोचिरुज्वलवपुः श्रीगौतमो मे हृदि? भित्वा मोहकपाटसम्पुटमिति प्रोल्लासितान्तःस्फुरज् ज्योतिर्मुक्तिनितम्बिनी नयतु मां सब्रह्मतामात्मनः................. ।।११।। श्रीमद् गौतमपादवन्दनरुचिः श्रीवाङ्मय स्वामिनी मर्त्यक्षेत्रनगेश्वरी त्रिभुवनस्वामिन्यपि श्रीमती १५ For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेजोराशिरुदात्तविंशतिभुजो यक्षाधिपः श्रीः सुराधीशाः शासनदेवताश्च ददतु श्रेयांसि भूयांसि नः.......... ।।१२।। १०. श्री जिनप्रभसूरिप्रणीतं श्रीगौतमस्तोत्रम् जम्मपवित्तियसिरि-मगहदेस अवयंसगब्बरगाम। गोयमगुत्तं सिरिइंदभूइगणहारिणं नमिमो......................... | 19 ।। वसुभूइकुलविभूसण! जिट्ठाउडुजाय! कंचणच्छाय!। पुहवीउअर-सरोरुहमराल! तं जयसु गणनाह!............. ।।२।। समचउरंसागिइमय! संघयणं वज्जरिसहनारायं । कलयं ते कावि सिरी देहे तुह सत्तकरतुंगे... .................... ।।३।। सह दसदिएहिं जण्णं मज्झिमपावाइ तुह कुणंस्स। ___ माणो विहु वोहिफलो अहेसि तुह वीरदसणओ.... ..........।।४।। वेयपयत्थे तुह जीवसंसए जिणवरेण विच्छिन्ने । निक्खंतो तं पहु! लहु पंचहिं सह खंडिअसएहिं................ ।।५।। वइसाहसुद्धइक्कारसीइ पुव्वण्हदेसकालंमि । महसेणवणे पण्णासवच्छरंतेसि पव्वइओ. ....... । ।।६।। गिहिभावे जं तुमए सम्म आराहिओ महावीरो। तेण ब्भासेण तमेव सेवसे समणभावेवि......................... ।।७।। पण्णासलिले खित्तो जिणेण तिपइक्कतिल्लविंदू ते । वित्थरिओ तह तक्खण दुवालसंगप्पणयणेण ......... ।।८।। इगवीससयक्खरसूरिमंतसवणाउ झत्ति संजाया । आमोसहि-विप्पोसहिपमुहा तुह लद्धिरिंछोली.................... ।।९।। तुह अंगं फरिसिय जं फासइ पवणो जलासयाण जलं । तं पीऊण मणुस्सा उविंति छम्मासमारुगं............... ।।१०।। १६ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तंपि होइ हेमं निट्ठीवणकाइआविलित्तं ते । तिहुयणअच्छेरकरं जयइ अहो जोगमाहप्पं .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नूणं विसिट्ठफलयं थावरतित्थाउ जंगमं तित्थं । इअ अट्ठावयमुज्झिय ते रिसिणो तं चिअल्लीणा....... । ।१२ । । कोडिन्नदिन्न - सेवालि-तावसा तिजुअ पनरस सया य । अप्पा य तपिआ पहु! इग पायसपडिगहेण तए.. अक्खीणमहाणसलद्धिणो अ तुह नामगहणमित्तेण । अज्जवि लहंति भविआ मणचुंबिअरिद्धिसिद्धीओ... पहु ! अन्ने दायारा संतं चिअ वत्थु विअरिउं पइणो । तं पुण सदिक्खिआणं विअरसि केवलमसंतंपि .... ।।99 ।। For Private And Personal Use Only ।।१३।। ।।१४।। ।।१५।। परिसाइ तिसट्ठिअहिअतिसयपासंडिवयणविण्णासा । तु वयणनीरपूरे इक्कंमिवि तणमिव तरंति.. इअरछउमत्थसुअमयपसमत्थं चेव वत्थुवित्तीए । आणंदोहिवइअरे तुह खलिअं सुव्वए नूणं.. अम्हारिसावि विगुणा जं गणहरसद्दमुव्वहंति जए । सो तुम्ह कहि गणहरमंतनिवेसस्स महिमलवो...... ..।।१८।। तीसं वरिसंते पहु ! केवललच्छिं सयंवरमुविति । मुविक्खित्था तं वीरभत्तिभंगप्पसंगभया.. सिद्धे जिमि केवलमिओहरीहिं जिणुव्व तं महिओ । दीवा पवत्तिओ किं न दीवओ तप्पहं भयइ ?. कत्तिअसिअपाडिवए केवलमहिमा सुरेहिं तुह विहिआ । तेणज्जवि तम्मि दिणे दीसइ ऊसवमई पुहई... तु छत्ततलं अप्पं सित्तं जो झाइ अमयबिंदूहिं । सो संतिपुट्ठिकित्तीण भायणं होइ अणुदिअहं.. १७ ।।१६।। ।।१७।। ।।१९।। ।।२०।। ।।२१।। ।।२२ ।। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहतमोहं हरिउं बारसवरिसाइ केवलपहाहिं । अणुगहिअ जणं मुणिमणकमलाई पयासिय रविव्व........... ।।२३ ।। बाणवइवासजीवी निसिरिअ सगणं सुहम्मसामिम्मि। मासं पाओवगओ रायगिहे तं गओ सिद्धिं ............... ||२४ ।। नमिरसुररायसेहरचुंबिअपय! संथुओसि इअ भयवं!। जिणपह! मुणिंद! गोयम! मह उवरिं पसीअ अविसामं....... 1।२५।। (११) श्री धर्महंसविरचितं श्री गौतमस्वामि स्तोत्रम् ..... ||१|| ।।२।। गौतम गोत्ररत्नं पवित्रं यदत्रास्ति तत्रोद्भवं वीरसेवाव्रतं भाग्यसौभाग्यशोभोच्चभावाद्भुतं संस्तुवे गौतमस्वामिनं ज्ञानिनम्.... वीरसेवारसास्वादसम्पादितागाधचारित्रपावित्र्यलब्धि प्रथं सौवसद्दर्शनेनैव संदर्शितो दाससंदर्शनं नौम्यहं गौतमम्... मगधेषु गोर्बर इति प्रथितं पदमस्ति तत्र सुभवं विभवं गुणरत्नरोहणगिरिं सुगिरं प्रणमामि गौतमगणप्रगुणम्. नतनाकिमौलिमुकुटप्रकट प्रसरन्मणीरुचिविधूतपदं भविकेक्षणमृतसदञ्जनभं गणधारणं श्रयत भो भविकाः. ।।३।। ..।।४।। १८ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ....... ।।५।। ।।६।। ...... ।।७।। महाशालशालौ विशालौ यशोभिर्यदीयार्यचर्यां विभाव्याति भाव्यां क्षणात् प्रापतुः केवलालोकलक्ष्मी स्तुमस्तं गुरुं गौतमं दीप्रधर्म............. गणाधीश? पृथ्वीसुतोऽपि क्वचित्त्वं न धत्से गतिं वक्ररूपां कदाचित् न रागाकृति तिचारोपचारी सुसौभाग्यभोगप्रतिष्ठानिधानं.. सदष्टापदारोहचर्येक्षणेनाश्रितास्तापसा विस्मिताः पायसान्नं । स्वदन्तः सुभावेन कैवल्यमीयुर्यदेकप्रभावात्स जीयाद्गणेन्द्रः. चरित्रं पवित्रोरु केचिद्यदीयं निरीक्ष्य प्रपन्नाहि कैवल्यलीलां त्रयश्चातुरी केचिदास्यं च केचिद् गति केचिदस्तु श्रियेऽसौ मुनीशः. प्रथमगणधरोऽयं भाग्य सौभाग्य सम्पनिधिरुचितमिहास्तु स्वस्तिभाजोभवेयुः सुभविकनिकरायद्दर्शनेनैव शश्वद्वचनसुरसपानात् किं पुनः सिद्धिसिद्धौ. जननमरणवेलालोलकल्लोलमालाहतिविरतिभृतानामात्मभान्तावतास्तु भयदभवपयोधीभरोव्यापृलोकः प्रथमगणपतेः सद्दर्शनं स्यान्न यावत्. .......।।८।। ।।९।। ।।१०।। For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।११।। तदुचितमिहयच्छ्री गौतमस्याभिधाने निवसति जगतीस्थाशेषसंपत् प्रभुत्वं कथमनुदिनमेतन्मन्त्रजाप प्रभावात् श्रयतिसकललक्ष्मीरन्यथा भक्तभव्यात्. ........... गणधरवरलब्धिविश्वविश्वोपकारा जगति जयतु यस्या द्वादशाङ्गी प्रसूतिः तदनु सकलदेशोदारसत्संयमश्रीः प्रभवति भविकानां मोक्षलक्ष्मी तु यस्याः..... ......।।१२।। चरमजिनपसेवालब्धलब्धिप्रभावश्चरणकरणतत्त्वाराधनैकान्तचित्तः त्रिभुवनजननित्या-नन्दिसद्देशनाभिः प्रथयति गणराजः शुद्धधर्मप्रकाशं. ... ।।१३।। सेवते गणधरक्रमपङ्कजं यः सुधीः सरसभक्तिभावितः ऐहिकं सकलकामितं फलं प्रेत्य चापि लभते तथैव तत्.. ।।१४।। गौतमं सुभगमेव गोत्रकं यत्र गौतमगणेश्वरोऽजनि वीरशासनमद्भुतं बभौ यत्र गौतमगुरुर्गुरोः पदे....... ।।१५।। भक्ति व्यक्ति विशेषनुन्नमनसा श्रीगौतमः सत्तमः स्तुत्यैवं प्रणतस्त्रिलोकमहित-श्रीद्वादशाङ्गी गुरुः सौभाग्याद्भुतभाग्यहर्षविनय-श्रीसूरितत्त्वश्रिया निष्णातस्तनुतां ममोरुमहिमां श्रीधर्महंसोज्ज्वलां..... ।।१६।। For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १२ ) श्री गौतमस्वामी दीपालिका मंगल स्तोत्र श्रीवीरवाक्यात् प्रगतः प्रभाते, यो देवशर्मा प्रतिबोधनाय । प्रातः समायन् किल केवलित्वं तं गौतमं भव्यजना भजध्वम्.. दीपोत्सवे योजितपाणिपद्मः, सुरासुरेशैर्विनयावनम्रः । यदङ्घ्रिपद्मं प्रणतं प्रसद्य, तं गौतमं भव्यजना भजध्वम्. यस्य प्रभावाद् वरहस्तसिद्धेः, प्राप्नोत्यवश्यं स्वविनेयवर्गः । कैवल्यज्ञानमनन्यशक्तेः तं गौतमं भव्यजना भजध्वम्. यन्नाम जापो जगति प्रतीतोऽभीष्टार्थसिद्धिं सकलां प्रदत्ते । कल्पद्रुकल्पं प्रणमद्जनानां, तं गौतमं भव्यजना भजध्वम्. इत्थं स्तुतो वीरजिनेंद्रशिष्यः, मुख्यो मया कोविदवृंदवन्द्यः । दीपालिकाया दिवसे गणीन्द्रः, संघेऽनघे मंगलमातनोतु.. २१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only 11911 ।।२।। ।।३।। ।।४।। ।।५।। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) श्रीमन्त्राधिराजगर्भित श्रीगौतमस्वामिस्तवनम् नमोऽस्तु श्रीह्रीधृतिकीर्तिबुद्धि-लक्ष्मीविलासैकनिकेतनाय । श्रीवीरपट्टाम्बरभास्कराय, लोकोत्तमाय प्रभुगौतमाय............. ।।१।। ॐकारमक्षीणमहानसानां, श्रीमन्तमुज्जृम्भतपः प्रभावैः । ह्रीमन्तमात्मानुगवन्दनेना-ऽर्हन्तं नमस्यामि तमिन्द्रभूतिम्.... ।।२ ।। उन्निद्रसौवर्णसहस्रपत्र-गर्भस्थसिंहासनसंनिषण्णम् । दिव्यातपत्रं परिवीज्यमानं सच्चामरैश्चाऽमरराजसेव्यम्........... । ।३ ।। कल्पद्रुचिन्तामणिकामधेनु-समाननामानममानशक्तिम् । अनेकलोकोत्तरलब्धिसिद्धं, श्रीगौतमं धन्यतमाः स्मरन्ति.... ।।४।। एकैव षड्दर्शनदृक्कनीनिका, पुराणवेदागमजन्मभूमिका । आनन्दचिद्ब्रह्ममयी सरस्वती, सदेन्द्रभूतेश्चरणोपसेविनी... ..... ।।५।। सदा चतुष्पष्टिसुरेन्द्रमानस-व्यामोहिनी पद्महृदाधिवासिनी । सर्वाङ्गश्रृङ्गारतरङ्गितद्युतिः, श्रीगौतमं श्रीरपि वन्दते त्रिधा ।।६।। जयाजयन्तीविजयापराजिता-नन्दासुभद्राप्रमुखः सुरीजनः । प्रतिक्षणोज्जागरभूरिविभ्रमः, श्रीगौतमं गायति गाढगौरवः....... ।।७।। मानुषोत्तरगिरेः शिरः स्थिता, दोः सहस्रसुभगा महाप्रभा । गीतगौतमगुणा त्रिविष्टप-स्वामिनी शिवशतं दधातु मे...... ।।८।। यक्षषोडशसहस्रनायको, दिव्यविंशतिभुजो महाबलः । द्वादशाङ्गसमयाधिदेवता, गौतमस्मृतिजुषां शिवङ्करः........... ।।९ ।। ईशाननाथेन समं शतक्रतुः, सनत्कुमाराधिपतिः सुरान्वितः । श्रीब्रह्मलोकाधिपतिश्च सेवते, सगौतमं मन्त्रवरं पदे पदे.. ।।१०।। २२ For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टनागकुलनायका, मणिप्रोल्लसत्फणसहस्रभासुरः । गौतमाय धरणः कृताञ्जलि-मन्त्रराजसहिताय वन्दते........... ।।११।। रोहिणीप्रभृतयः सुराङ्गना, वासवा अपि परे सदाश्रवाः । गौतमं मनसि यक्षयक्षिणी-श्रेणयोऽपि दधति मुनीश्वरम्... ।।१२।। सज्जलानधनभोगधृतीनां, लब्धिरद्भुततमेहभवे स्यात् । गौतमस्मरणतः परलोके, भूर्भुवः स्वरपवर्गसुखानि..............।।१३।। आँक्रौं श्रींहीं मन्त्रतो ध्यानकाले, पार्थे कृत्वा प्राञ्जलिः सर्वदेवान् । कायोत्सर्गेधूपकर्पूरवासैः, पूजां कुर्यात् सर्वदा ब्रह्मचारी... ।।१४ ।। जितेन्द्रियः स्वल्पजलाभिषेकवान्, शुद्धाम्बरो गुप्तिसमित्यलङ्कृतः। श्रीइन्द्रभूतरुपवैणवं गुणान्, स्मरन्नरः स्याच्छ्रुतसिन्धुपारगः.... ।।१५।। तं श्रयन्ति पुरुषार्थसिद्धयो, भूष्यते विशदसाहसेन सः। गौतमः प्रणयिभुक्तिमुक्तिदो, यस्य भाविविभवस्य नाथते.. ।।१६।। (१४) वाचकचक्रवर्ति महोपाध्याय श्रीधर्मसागरगणि शिष्य पं. गुणसागरगणिना कृतं श्री गौतमस्वामिस्तवनम् गुणपुंगव! गौतम! गोतमगौ-र्गतिभंगगमागतिदुर्गतिवित् । त्वयकाऽग्रहि येन यतित्वमलं, त्रिशलातनयान्तिक अन्तकरे..... ।।१।। त्रिपदीग्रहणोद्यतसद्धिषणः, कृतवीरपदार्थमुनिर्वचनः । वचनामृतहर्षितमर्त्यगणो, गुरुसौख्यभराय भव त्वमिह....... ।।२ ।। यन्नाममंत्रस्मरणेन सर्वं, शशाम विद्युच्चपलायुषां नः । दुःखातिगं कर्म पुराऽनुभूतं, बद्धं निधत्तं भवकोटिभूतम्.......... ।।३।। For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .... ।।१।। सज्ज्ञानसद्दर्शन-सच्चरित्र-रूपं हि रत्नत्रयमत्र पुष्टम् । यद्देहगेहेऽग्रिममुद्बभूव, ध्वस्तादिकान्तं सुरकोटिशस्यम्..... ।।४ ।। विमलगुणाकर! गौतम! भिक्षालब्धिं ददस्व सकलानाम् । साधूनां प्रतिदिवसं, स्तुतो मयेति प्रकारेण..... ........... ।।५।। (१५) श्री गौतमस्मरणम् सुखमूलं गणधर वर्धमानानुयायिनम् । द्वादशांगधरं नित्यं वन्दे तं गौतमं प्रभुम्............... यस्य स्मरणमात्रेण सर्वलब्धि प्रजायते । ऋद्धिः सिद्धिः समृद्धिश्च वन्दे तं गौतमं प्रभुम्............. ।।२।। नेतारं सर्वसंघस्य जेतारं कर्म वैरिणाम् । त्रातारं सर्वजीवानां वन्दे तं गौतमं प्रभुम्..... ......... ।।३।। तनयं वसुभूतेश्च पृथिव्या अंगजातकम् । दिव्यज्योतिर्धरं दिव्यं रूपलावण्यसंयुतम्. दिव्यसंहननं चैव दिव्यसंस्थान शोभितम् । दिव्याद्धिं दिव्यलेश्यं च, वन्दे तं गौतमं प्रभुम्. दिव्यप्रभाव सम्पन्नं दिव्यतेजः समर्चितम् । दिव्यलब्धिधरं दिव्यं वन्दे तं गौतमं प्रभुम्. .......... ।।६।। चतुर्ज्ञानधरं शुद्धं विद्याचरणपारगम् । धारकं सर्वपूर्वस्य वन्दे तं गौतमं प्रभुम.. गौशब्दात् कामधेनुत्वं तकारात् तरुतुल्यता । मकारान्मणिसाम्यं च ज्ञायते गौतमप्रभोः..................... ।।८।। कामधेनुसमोलोके सर्वसिद्धि प्रदस्तथा । कल्पवृक्षसमोवाञ्छा-पूरणचिन्तितेमणिः... .... ।।४।। ..... ।।५।। ....... ।।७।। ..... ।।९।। २४ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अंगुष्ठे चामृतं यस्य यश्च सर्व गुणोदधिः । भंडारः सर्वलब्धिनां वन्दे तं गौतमं प्रभुम् .. आमर्षौषधिलब्धिश्च विप्रुडोषधिरेव च । श्लेष्म- जलौषधी चैव विपुलर्जुमती तथा. संभिन्न श्रोत्रलब्धिश्चावधिलब्धिस्तथैव च । मन:पर्ययलब्धिश्च लब्धिः केवलिनस्तथा. लब्धिर्गणधरस्यापि लब्धिः पूर्वधरस्य च । पदानुसारिलब्धिश्च लब्धिः क्षीरास्रवस्य च. घृतास्रवस्य लब्धिश्च लब्धिर्मध्वास्रवस्य च । वैक्रियाहारलब्धिश्चलेश्यालब्धिस्तथैव च ... अक्षीणमहानसस्य लब्धिजंघाचारादिका । लब्धयः सकलास्तस्य वशे तिष्ठन्ति सर्वदा.. ऋद्धिः सिद्धिः सुखं संपद् यशः कीर्तिर्जयस्तथा । विजयश्चास्य पाठेन लभ्यते नात्र संशयः.. दिव्यं सुखं परभवे तथानन्तं च शाश्वतम् । अव्याबाधं ध्रुवं सौख्यं लभ्यते परमं पदम् .. श्रीगौतमस्तोत्रमुदारभावं, विरच्यते सिद्धिवितानमूलम् । वचस्विनां संस्मरणीयतत्त्वं, प्रातः सदा शुद्धिविधानदक्षम् .. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ For Private And Personal Use Only 1190 11 ।।99 ।। ।।१२।। ।।१३।। 119811 ।।१५।। (१६) श्री अजितसागरसूरीश्वरजी विरचितं श्री गौतमस्वामिस्तोत्रम् ।।१६।। ।।१७।। ।।१ ।। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...... ।।२।। .... ..... ।।३।। .......।।४।। व्यभूषयद् गोबरपत्तनं यो, माता यदीया पृथिवी सुशीला । पिता यदीयो वसुभूतिविप्र स्तमिन्द्रभूतिं गणिनं नमामि. श्रीवाडवज्ञाति-नभोमणिर्यो, वेदान्तविद्यासु महाप्रवीणः । यज्ञादिकार्येषु सदाऽनुरक्तोव्यस्तारयद्दिक्षु गुणान् स्वकीयान्.. येनात्मवंशोन्नतिरुन्नतेन, सतां मतेनोच्चगुणालयेन । तेन महानन्दमयेन शस्त व्रताऽनुयोगेन दयामयेन. सर्वसहानाथनतक्रमेण, क्रमेण लूनाऽखिलविघ्नकेन। येन क्रियाकाण्डरतेन भूतिर्वत्रे जगद्विस्मयदानदक्षा...... योऽदीनभावः शुभभावनाभिविद्यावतां पूज्यमहाप्रभावः । विस्तारयामास गुणानुवादी, ग्रन्थाननेकाजिनवम॑गामी विभावितात्माऽनुभवः सुयोगी, प्रशस्तलब्धिप्रथितप्रभावः । योऽधारयन्मुख्यगणाऽऽधिपत्यं, जिनेशितुः पादसरोजसन्निधौ. ....... ।।६।। . ।।७।। २६ For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संपादिताऽनेकमहर्द्धिको यः, संपादयामास मनोऽर्थितानि । नानाविधान्यक्षतलब्धियोगाच्चारित्रसाम्राज्यविभासितानाम्. वसुन्धरा रत्नवती बभूव, यज्जन्मना शान्तिनिकेतनेन । प्रभाविनां हि प्रभवोऽत्रलोके, लोकोपकाराय बुधैः प्रदिष्टः . यो भूरिभाग्योपचयेन भूमौ, विभूतिसारे वसुभूतिगेहे । क्रीडाविलासं विमलं विधातुमियेष धर्मप्रथनाऽभिलाषः . सुराऽसुरेन्द्रस्पृहणीयशील, आजन्मनः श्लाघ्यगुणाऽनुवादः । तत्त्वोपदेशेन समुद्धरन् यो, वृन्दं जनानां प्रवभौ नतानाम्.. प्रशासको दुर्नयमानवानां, निवारकोऽधर्ममतोद्यतानाम् । प्रभावको यो हि बभूव धर्मतत्त्वस्य भेत्ता भवबन्धनस्य. यः पुण्डरीकाऽध्ययनं ततान, तेनैव संवोधयति स्म नम्रम् । तिर्यङमहाजृम्भकलोकपालं, गुणाऽनुरक्तं गणभृद्वरेण्यः. २७ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।८।। ।।९।। ।।१०।। ।।११।। ।।१२।। ।।१३।। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योऽष्टापदं तीर्थवरं स्वशक्त्या, तपस्विनां विस्मयमादधानः । तीर्थङ्करध्याननिमग्नचेतागत्वा महानंदमियाय योगी.. . ।।१४।। अष्टापदं दिव्यगिरीन्द्रमेतुं, तपस्विनः केचन बद्धकक्षाः । तथाऽपि तद्दर्शनमेव तेषां, जातं न पूर्वाऽर्जितकर्मदोषात्..... ।।१५।। योऽष्टापदं याति धराधरेन्द्र, तस्मिन भवे मोक्षगतिं स याति । दिव्योक्तिमित्थं हि निशम्य वीर गिराऽतिहष्टः प्रययौ गिरिं तम्.. ............ . ।।१६।। अष्टापदं निर्जरराजशैलमासाद्य लोकोत्तरसम्पदाढ्यम् । सुराऽसुरेन्द्रप्रथितप्रभावं, स्वतेजसा निर्जितभानुमन्तम्.. ।।१७।। मुमुक्षुमुख्यायतनं विभान्तं, दिगन्तविश्रान्तविभावितानम् । तीर्थङ्कराणां प्रणतिं विधाय, स्तुतिं व्यधत्त प्रगुणां स भक्त्या ...... ।।१८।। (युग्मम्) विधाय प्रीत्योत्कटचैत्यवन्दनं, प्रदक्षिणीकृत्य जिनेन्द्रराजिम मेने निजं जन्म कृतार्थमिन्द्रभूतिः समुन्मूलितकर्मराशिः.. ...... ।।१९।। २८ For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ........ अथाऽऽप्तसर्वस्व इवाऽतिहृष्टः, पूर्णात्मकामश्च विभुप्रभावात् । स्मरन्गुणाँस्तीर्थकृतां स भव्यानवातरद् भूरिमुदागिरीन्द्रात्.. ।।२०।। तीर्थप्रभावेण पवित्रिताऽऽत्मा, ज्ञानप्रभाभासुरदिव्यदेहः । अक्षीणलब्धिप्रथितप्रभावो, निवर्तमानः स महानुभावः............. ....।।२१।। वह्यभ्रवाणेन्दु(१५०३)मितांस्तपस्विनः, प्रपेदिवान् ध्याननिमग्नचेतसः । मार्गस्थितान् गन्तुमशक्तदेहानष्टापदं तीर्थकृतां दिदृक्षया. ।।२२।। तपः प्रभावेण विराजमानास्त्यक्ताऽशना निर्मलचित्तभावाः । स्थिराशयास्तत्र यियासवस्ते, सर्वे हि वाञ्छन्त्यनुकूललाभम्. ... ।।२३।। समीक्ष्य तत्तापसवृन्दमाराद्व्रतीन्द्र इष्टार्थविधानदक्षः । सभाजितस्तैर्निजदृष्टिल:स्तस्थौ क्षणं तत्र परोपकृत्यै. ।।२४।। महामहिम्नां वरमास्पदं यो, निदानमेकं सुखसम्पदानाम् । नानाऽर्थलब्धिप्रभवो वभूवप्रत्यक्षमूर्तिः शुभभावनानाम्.. ....... ।।२५ ।। २२ For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org योऽपूरयत्कामितमङ्गभाजा. चिन्तामणिश्चिन्तयतामिवाशु | विघ्नौघकाराङ्गणसेविनश्च, निजप्रभावेण चकार मुक्तान्. यो दिव्यलब्धिप्रथितः पृथिव्यां, समुद्दधारेह दयार्द्रचेताः । धर्मक्रियादीनमतीनतीता न्नतिप्रवीणान् भवतापतप्तान्. योऽक्षीणलब्धिप्रचितस्वभावः, श्रियाऽक्षयाऽऽनन्दविभूषिताङ्ग्या । नित्यं समासेवितपादपद्मः, सम्यक्प्रभाभावितमानसो हि. यन्नामाक्षरकीर्त्तनेन मनुजाः प्रातर्मनोवाञ्छितं, सेवन्ते निखिलापदो विषसमा व्यावर्त्तयन्ति क्षणात् । प्रत्यक्षं कलयन्ति दुर्लभतरं वस्तुप्रकाण्डं परं, दुष्टग्राहसमाकुलं जलनिधिं पश्यन्ति कासारवत्.. यदीयनामस्मरणेन नूनं, नश्यन्ति भूतादिमहोपसर्गाः । रुजार्जिताः स्वर्गसमानदेहा दुःस्वप्नभाजोऽपि शुभान्विताः स्युः .. यदीयनाम्नि स्मृतिगोचरं गते, व्यालः करालः सुममालिकायते विरोधिवर्गः शुभकिङ्करायते, पञ्चाननौघः स्वयमाविकायते. ३० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ।।२६।। ।।२७।। ।।२८।। ।।२९।। 1130 || ।। ३१ ।। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्मरन्ति यन्नाम विभातकाले, महाशया ये शिवभूतिकामाः । तेषां न दारिद्र्यपिशाच ईशः, पराजयं कर्त्तुमनर्थमूलः.. मेधाविनो ये स्मृतिमानयन्ति, यन्नाम सद्भूतिविधानदक्षम् । व्रजन्ति ते मङ्गलमालिकाश्च, परत्र संपत्तिमखण्डितां वै. अजितसागरसूरिविनिर्मितां, प्रथितपुण्यमयीं सुखशेवधिम् । पठति यः स्तुतिमाद्यगणेशितुः, स लभते शिवशर्म निरामयः.. गौतमस्वामिनः प्रातः, www.kobatirth.org स्मरणं मङ्गलप्रदम् । सोपानं स्वर्गसम्पत्ते र्मोक्षशर्मनिकेतनम्.. ( १७ ) श्री गौतमप्रशस्तिः श्री वर्द्धमानं प्रणिपत्यपूज्यं, गुरूं च मूर्ध्ना शुभ तत्त्वहेतुम् । श्री गौतमस्य प्रवरस्य वक्ष्ये, गुणान्गुणक्षीरनिधेः प्रभूतान्.. गोवरग्राम आराम-मण्डितोऽभूत्क्षितौ वरः । वसुभूति द्विजस्तत्र वरेण्यः पृथिवी प्रियः. एकदा सुखशय्यायां निद्राणा सा सुलक्षणा इन्द्रसाधं सुधागौरं ददर्श दिग्विभासकम्.. , ३१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ।। ३२ ।। ।। ३३ ।। ।।३४।। ।।३५ ।। ।।१ ।। ।।२।। ।।३।। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रबुद्धाऽचिन्तयस्स्वान्ते, साकिमेतदिति स्वयम् । स्वप्नस्यास्य प्रभावस्तु, ज्ञातव्यः सकलो मया. विचार्येतिप्रगेस्वीयं भर्त्तारं समुपेत्यसा । प्रमोद मेदुरस्वान्ता, स्वप्नवार्तां न्यवेदयत्. ।। ५ ।। (अपूर्णम्) (१८) कर्नाटककेशरिश्रीभद्रंकरसूरिविरचितं श्री गौतमस्वामि-गणधर - चैत्यवन्दनम् (शार्दूलविक्रीडितम्) माहात्म्यं सकलातिशायि विदितं येषां दवीयो गिराम्, निर्णेनेति मलं बलं जनयति प्राज्यर्द्धि-वृद्धिं तथा । कालुष्यं कवलीकरोति मनसो वैदुष्यमावर्द्धयत्, नंनम्ये जनतासुमङ्गलकरान् तान्गौतमस्वामिनः. छमछ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ येनाष्टापदपर्वतं गतवता प्रालम्ब्य सूर्यार्चिषः प्राज्यं पायस - भोजनं वितरता तत्तापसानां ततः । शङ्काऽनाशि तपस्विनां मनसिजा क्षीराह्वया लब्धितः, सोऽव्याद्गौतमनायको गणधरो भव्याङ्गिनां पाततः ..... । । २ । । (उपजातिः) सौवर्णपद्मे सुमनःस्वरूपे, भूयात्स्थितो भाव- सहस्रपत्रे । स्वर्दिव्यसद्गो-तरुरत्ननामा, श्रीगौतमो दीक्षित - सिद्धिकारी .... । । ३ ।। For Private And Personal Use Only 11811 ।।१।। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारूगूर्जर विभाग 33 For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।१।। छंद विभाग (१) श्री गौतमस्वामीनो रास भाषा (ढाल पहेली) वीरजिणेसर-चरणकमल-कमलाकयवासो, पणमवि पभणीशुं सामिसार, गोयमगुरु रासो; मणतणुवयणेकंत करवी, निसुणो भो भविया, जिम निवसे तुम देहगेह, गुणगण गहगहिया. जंबूदीव सिरिभरहखित्त, खोणीतलमंडण, मगधदेश सेणीयनरेस, रिउदल-बलखंडण; धणवर गुव्वर नाम गाम, जिहां गुणगण सज्जा, विप्प वसे वसुभूई तत्थ, तसु पुहवी भज्जा...... ........... ।।२।। ताण पुत्त सिरि इंदभूई, भूवलय पसिद्धो, चउदह विज्जा विविहरूव, नारीरस विद्धो; विनय विवेक विचार सार, गुणगणह मनोहर, सात हाथ सुप्रमाण देह, रूपहिं रंभावर........ नयण वयण कर चरण, जिणवि पंकज जल पाडिय, तेजे तारा चंद सूर, आकाशे भमाडिय; रूवे मयण अनंग करवी, मेलियो निरधाडिय, धीरमें मेरु गंभीर सिंधु, चंगिम चयचाडिय. ...... ।।४।। पेखवि निरूवम रूव जास, जण जंपे किंचिय, एकाकी कलिभीत इत्थ, गुण मेहल्या संचिय; अहवा निश्चे पुव्वजम्मे, जिणवर इणे अंचिय, रंभा पउमा गौरि गंगा रति, हा विधि संचिअ. ..... ।।३।। ३४ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नहीं बुध नहीं गुरु कवि न कोइ, जसु आगल रहिओ, पंचसया गुणपात्र छात्र, हींडे परवरीओ; करे निरंतर यज्ञकर्म, मिथ्यामति - मोहिय, इ छलि होशे चरणनाण- दंसण विसोहिअ. वस्तु छंद जंबूदीवह जंबूदीवह भरहवासंमि, भूमितलमंडण मगधदेस, सेणीयनरेसर, वर गुव्वर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभूई सुंदर, तसु भज्जा पुहवी सयलगुणगण रूवनिहाण, ताण पुत्तविज्जानिलो, गोयम अतिहि सुजाण.. भाषा ( ढाल बीजी) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरमजिणेसर केवलनाणी, चउविहसंघ पट्ठा जाणी; पावापुरी स्वामी संपत्तो, चउविह देवनिकाये जुत्तो.. देवे समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति खीजे; त्रिभुवनगुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंते पेठा. क्रोध मान माया मद पूरा, जाए नाठा जिम दिन चौरा; देवदुंदुभि आकाशे वाजे, धर्म नरेसर आव्या गाजे ... कुसुमवृष्टि विरचे तिहां देवा, चोसठ इंद्र जसु मागे सेवा; चामर छत्र शिरोवरि सोहे, रूपहिं जिणवर जग सहु मोहे...... उपसम - रसभर भरी वरसंता, योजनवाणी वखाण करता; For Private And Personal Use Only ।।६।। ।।७।। 11211 ।।९।। ।।१०।। ।।११।। जाणि वर्धमान जिणपाया, सुरनर किन्नर आवे राया.... । ।१२ । । कांति समूहे झलझलकंता, गयण विमाणे रणरणकंता; पेखवि इंदभूई मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होवंते ........ ३५ ।।१३।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीरतरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहता; तो अभिमान गोयम जंपे, तिणे अवसरे कोपे तणुं कंपे... ।।१४ ।। मूढलोक अजाण्यो बोले, मर जाणंता इम काई डोले, मूं आगळ को जाण भणीजे, मेरु अवर किम ओपम दीजे?..... ||१५ ।। वस्तु वीर जिणवर, वीर जिणवर, नाण संपन्न, पावापुरी सुरमहीय, पत्तनाह संसार तारण, तिहिं देवेहिं निम्मविय, समवसरण बहु सुखकारण, जिणवर जग उज्जोयकरे, तेजे करी दिनकार, सिंहासणे सामि ठव्यो, हुओ सुजय जयकार.... ..... ।।१६।। __ भाषा (ढाल त्रीजी) तव चढीयो घण मानगजे, इंदभूइ भूदेव तो, हुंकारो करी संचरीओ, कवणसु जिणवर देव तो.. जोजनभूमि समवसरण, पेखवी प्रथमारंभ तो, दहदिसि देखे विबुधवहु, आवंती सुररंभ तो. मणिमय तोरण दंड धज, कोसीसे नव घाट तो, वैर विवर्जित जंतुगण, प्रातिहारज आठ तो..... सुरनर किन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो, चित्ते चमक्किय चिंतवे ए, सेवंता प्रभु पाय तो............ ।।२०।। सहस किरण सम वीर जिण, पेखवी रूप विशाल तो, एह असंभव संभवे ए, साचो ए इंद्रजाल तो... .......... ।।२१।। तव बोलावे त्रिजगगुरु, इंद्रभूई नामेण तो, श्रीमुख संशय सामि सवे, फेडे वेदपएण तो. ......... ||२२ ।। ..... ।।१७।। ...... ।।१८।। .....।।१९।। ३६ For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मान मेली मद ठली करी, भगते नाम शीष तो, पंचसयाशुं व्रत लीयो ए, गोयम पहेलो सीस तो. ............. ।।२३।। बंधव संजम सुणवि करी, अग्निभूइ आवेइ तो, नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिवोधेइ तो.............. ।।२४ ।। इण अनुक्रमे गणहर रयण, थाप्या वीरे अग्यार तो, तव उपदेशे भुवनगुरु, संजमशुं व्रत बार(धार) तो............. ।।२५।। बिहुँ उपवासे पारj ए, आपणपे विहरंत तो, गोयम संजम जग सयल, जय जयकार करंत तो......... ।।२६ ।। वस्तु छंद इंदभूईअ इंदभूईअ चडिय बहुमान, हुंकारो करी संचरिओ, समवसरण पुहतो तुरंत; इह संसा सामि सवे, चरम नाह फेडे फुरंत, बोधिबीज संजाय मने, गोयम भवह-विरत्त; दिक्ख लेइ सिक्खा सहिय, गणहरपय संपत्त.. ... ।।२७।। भाषा (ढाल चोथी) आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमां पुण्य भरो, दीठा गोयम सामि, जो नियनयणे अमिय भरो.. .... ।।२८।। सिरि गोयम गणहर, पंचसया मुनि परवरिय, भूमिय करय विहार, भवियणने पडिबोह करे. ........ ।।२९।। समवसरण मझार, जे जे संसा उपजे ए, ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनिपवरो............ ......... ।।३०।। जिहां जिहां दीजे दिक्ख, तिहां तिहां केवल उपजे ए, आप कन्हे अणहुंत, गोयम दीजे दान इम.................. ||३१ ।। ३७ For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु उपर गुरुभक्ति, सामीय गोयम उपनीय, एणि छळे केवलनाण, रागज राखे रंग भरे. जो अष्टापद शैल, वंदे चढीय चउवीस जिण, आतमलब्धि वसेण, चरमसरीरी सोइ मुनि.. इअ देसण निसुणेइ, गोयम गणहर संचलियो; तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए... तप सोसियनिय अंग, अम्ह सगति नवि उपजे ए, किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए.. गिरुओ एणें अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए, तो मुनि चढीओ वेग, आलंववी दिनकर किरण.. कंचनमणि निष्पन्न, दंड कळश ध्वज वड सहिय, पेखवी परमाणंद, जिणहर भरहेसर महिय.. निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संठिय जिणहबिंब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय.. वयरसामीनो जीव, तिर्यक्जृंभग देव तिहां, प्रतिबोधे पुंडरीक, कंडरीक अध्ययन भणी.. वळता गोयमसामी, सवि तापस प्रतिबोध करे, लेइ आपणे साथ, चाले जिम जुथाधिपति.. खीरखांड घृत आणी, अमिय वुठ अंगूठ ठवि, गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे... पंचसया शुभ भाव, उज्ज्वळ भरियो खीर मीसे, साचा गुरु संजोग, कवळ ते केवळरूप हुआ.......... पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकार त्रय, पेखवि केवळ नाण, उपन्नं उज्जोय करे. ३८ For Private And Personal Use Only ....... ।।३२ ।। ।।३३।। ।।३५।। ।।३५।। ।।३६।। ।।३७।। ।।३८ ।। ।।३९।। ।। ४० ।। ।।४१।। ।।४२ ।। ।।४३।। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ............ ... ।।४४।। जाणो जिणवि पीयूष, गाजंती घण मेघ जिम, जिणवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसया..... वस्तु इणे अनुक्रमे इणे अनुक्रमे, नाण संपन्न, पन्नरहसय परिवरिय, हरिय दुरिय जिणनाह वंदइ; जाणवि जगकुरु वयण, तीह नाण अप्पाण निंदइ, चरम जिणेसर इम भणई, गोयम म करिस खेऊ; छेह जइ आपण सही, होस्युं तुल्लां बेउं........... . ।।४५ ।। __ भाषा (ढाल पांचमी) सामिओ ए वीर जिणंद, पुनिमचंद जीम उल्लसीअ, विहरिओ ए भरहवासंमि, वरिस बहुत्तर संवसिअ, ठवतो ए कणय पउमेसु, पाय कमल संघहि सहिअ, आविओ ए नयणानंद, नयर पावापुरी सुरमहिअ............... ।।४६।। पेखियो ए गोयमसामी, देवशर्मा प्रतिबोध करे, आपणो ए त्रिशलादेवी-नंदन पहोतो परमपए; वळता ए देव आकाश, पेखवि जाणिया जिणसमे ए, तो मुनि ए मन विखवाद, नादभेद जिम उपनो ए......... ।।४७ ।। कुण समे ए सामिय देखी, आप कन्हे हुं टालीओ ए, जाणंतो ए तिहुअणनाह, लोक व्यवहार न पालीओ ए; अतिभलु ए कीधलुं सामी, जाण्युं केवल मागशे ए, चिंतविउ ए बालक जेम, अहवा केडे लागशे ए.. ..... ।।४८।। हुं किम ए वीर जिणंद, भगते भोलो भोलव्यो ए, आपणो ए अविहड नेह, नाह न संपे साचव्यो ए; For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साचो ए एक वीतराग, नेह न जेणे लालीओ ए, इण समे ए गोयम चित्त, राग वैरागे वालिओ ए........... ..... ।।४९।। आवतुं ए जे उलट, रहेतुं रागे साहिउं ए, केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहेजे उमाहिओ ए; तिहुअण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए, गणधर ए करेइ वखाण, भवियण भव जिम निस्तरे ए... ।।५० ।। __ वस्तु छंद पढम गणहर पढम गणहर वरिस पचास, गिहिवासे संवसिय, तीस वरिस संजम विभूसिअ; सिरि केवलनाण पुण बार वरिस तिहुयण नमंसिय, रायगिहि नयरि ठव्यो, बाणवई वरिसाउ; सामी गोयम गुणनिलो, होशे शिवपुर ठाउं....................... ।।५१ ।। भाषा (ढाल छट्ठी) जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमहवन परिमल महके, जिम चंदन सुगंधनिधि. ........... ।।५२ ।। जिम गंगाजळ लहरे लहके, जिम कणयाचल तेजे झळके, तिम गोयम सौभाग्य निधि............... जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिम सुरतरूवर कणयवतंसा, जिम महुयर राजीववने... ... ।।५४ ।। जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे, तिम गोयम गुण केलिवने... .......... ||५५ ।। पूनम निसि जिम शशहर सोहे, सुरतरुमहिमा जिम जगमोहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो. ........ ||५६।। ..... ।।५३ ।। ...... ४० For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवइ घर जिम मयगल गाजे, तिम जिनशासन मुनिपवरो.. Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिम सुरतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तम मुख माधुरी भाषा, जिम वन केतकी महमहे ए.. जिम भूमिपति भूयबल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गोयम लब्धे गहगहे ए.. चिंतामणि कर चढियो आज, सुरतरु सारे वंछित काज, कामकुंभ सवि वश हुआ ए... कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिद्धि आवे धामिय, सामिय गोयम अणुसरोए. पणवक्खर पहेलो पभणीजे, माया बीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमति शोभा संभवे ए. देवह धुरि अरिहंत नमीजे, विनय पहु उवजझाय थुणीजे, इण मंत्रे गोयम नमो ए.... पर परवसतां कांई करीजे, देशदेशांतर कांई भमीजे, कवण काज आयास करो.. प्रह उठी गोयम समरीजे, काज समग्गह ततखिण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे..... चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवल दिवसे, ( खंभनयर प्रभु पास पसाए) किओ कवित्त उपगारपरो. ४१ ।।५७ ।। For Private And Personal Use Only ।। ५८ ।। ।। ५९ ।। ।।६० ।। ।।६१ ।। ।।६२ ।। ।।६३ ।। ।।६४।। ।।६५ ।। आदेहि मंगळ एह भणीजे, परव महोच्छव पहिलो लीजे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण करो... धन्यमाता जिणे उदरे धरीया, धन्य पिता जिण कुल अवतरिया, धन्य सद्गुरु जिणे दिक्खियाए . ।।६६।। ।।६७।। ।। ६८ ।। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनयवंत विद्याभंडार, जसु गुण पुहवी न लभे पार, वड जिम शाखा विस्तरो ए................. .......... ।।६९ ।। गौतमस्वामीनो रास भणीजे, चउव्विह संघ रलियायत कीजे;............. सयल संघ आनंद करो..... ......... ।।७० ।। ___ कुंकुम चंदन छडो देवरावो, माणेक मोतीना चोक पुरावो, रयण सिंहासण बेसणुं ए... ......।।७१।। तिहां बेसी गुरु देशना देशे, भविक जीवना कारज सरशे, उदयवंत (विजयभद्र) मुनि एम भणे ए.... ....... ।।७२ ।। गौतमस्वामी तणो ए रास, भणतां सुणतां लीलविलास, सासय सुख निधि संपजे ए....... ....... ।।७३ ।। एह रास जे भणे भणावे, वर मयगळ लच्छी घर आवे, मनवंछित आशा फळे ए........ .. ।।७४ ।। (२) श्री गौतम स्वामीनो छंद वीर जिनेश्वर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निशदीश; जो कीजे गौतमनुं ध्यान, तो घर विलसे नवे निधान. ... ।।१।। गौतम नामे गिरिवर चढे, मनवांछित हेला संपजे; गौतम नामे नावे रोग, गौतम नामे सर्व संजोग. ........... ।।२।। जे वैरी वरूआ वंकडा, तस नामे नावे ढुंकडा; भूत प्रेत नवि मंडे प्राण, ते गौतमना करूं वखाण............... ।।३।। गौतम नामे निर्मल काय, गौतम नामे वाधे आय; गौतम जिनशासन शणगार, गौतम नामे जयजयकार...... ।।४।। शाल दाल सुरहा घृत गोळ, मनवांछित कापड तंबोळ; घरे सुघरणी निर्मल चित्त, गौतम नामे पुत्र विनीत.............. ।।५।। ४२ For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम उदयो अविचल भाण, गौतम नाम जपो जग जाण; मोटा मंदिर मेरू समान, गौतम नामे सफल विहाण........ ।।६।। घर मयगल घोडानी जोड, वारू पहोंचे वंछीत कोड; महीयल माने म्होटा राय, जो तुठे गौतमना पाय................ ।।७।। गौतम प्रणम्या पातक टळे, उत्तम नरनी संगत मळे; गौतम नामे निर्मल ज्ञान, गौतम नामे वाधे वान... ........ ।।८।। पुण्यवंत अवधारो सहुं, गुरू गौतमना गुण छे वहु; कहे लावण्यसमय कर जोड, गौतम तुठे संपत्ति कोड.......... ।।९।। (३) श्री गौतमस्वामीनो छंद जयो जयो गौतम गणधार, मोटी लब्धि तणो भंडार; समरो वंछित फलदातार, जयो जयो गौतम गणधार.. ......... ।।१।। वीर वजीर वडो अणगार, चौद हजार मुनि शिरदार; जपतां नाम हुवे जयकार, जयो जयो गौतम गणधार ...... ।।२।। गयगमणी रमणी जगसार, पुत्र कलत्र सज्जन परिवार; जापे कनक कोडी विस्तार, जयो जयो गौतम गणधार......... ।।३।। घर घोडा पायक नहि पार, सुख आसन पालखी उदार; वैरी विकट थाये विकराल, जयो जयो गौतम गणधार.... ।।४।। प्रह ऊठी जपीए गणधार, ऋद्धि सिद्धि कमला दातर; रूपरेख मयण अवतार, जयो जयो गौतम गणधार..... .......... ।।५।। कवि रूपचंद गणि केरो शिष्य, गौयम गुरु प्रणमे निशदिस; कहे छं(चं)द ए सुमतागार, जयो जयो गौतम गणधार.... ।।६।। ४३ For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (४) श्री गौतमस्वामीनो छंद राग प्रभाती. मात पृथ्वी सुत प्रात उठी नमो, गणधर गौतम नाम गेले; प्रह समे प्रेमशुं जेह ध्यातां सदा, चढती कळा होय वंश वेले. वसुभूति - नंदन विश्वजन-वंदन, दुरित - निकंदन नाम जेहनुं; अभेद बुद्धे करी भविजन जे भजे, मात० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्ण पहोंचे सही भाग्य तेहनुं. मात०. सुरमणि जेह चिंतामणि सुरतरू, कामित पूरण कामधेनुः एह गौतम तणुं ध्यान हृदये धरो, जेह थकी अधिक नहीं महात्म्य केहनुं. मात० ज्ञान बळ तेज ने सकळ सुख संपदा, गौतम नामथी सिद्धि पामे; अखंड प्रचंड प्रताप होय अवनिमां, सुरनर जेहने शिष नामे. मात०. प्रणव आदे धरी माया बीजे करी, स्वमुखे गौतम नाम ध्याये; कोडि मन कामना सकळ वेगे फळे, विघन वैरी सवे दूर जाये. मात० दुष्ट दूरे टळे स्वजन मेळो मळे, आधि उपाधि ने व्याधि नासे: ४४ For Private And Personal Use Only ।।१ ।। ।।२ ।। ।।३।। ।।४।। ।।।५।। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भूतना प्रेतना जोर भांजे वळी, गौतम नाम जपतां उल्लासे. मात० तीर्थ अष्टापदे आप लब्धे जई, पनरसें त्रणने दिक्ख दीधी; अठ्ठमने पारणे तापस कारणे, क्षीर लब्धे करी अखूट कीधी. मात०. वरस पचास लगे गृहवासे वस्या, वरस वळी त्रीश करी वीर सेवा; बार वरसां लगे केवळ भोगव्युं, भक्ति जेहनी करे नित्य देवा. मात०. महियल गौतम गोत्र महिमा निधि, गुणनिधि ऋद्धि सिद्धिदायी; उदय जस नामथी अधिक लीला लहे, सुजस सौभाग्य दोलत सवाई. मात. (५) श्री गौतमस्वामीनो छंद पेलो- गणधर वीरनो रे, शासननो शणगार; गौतम गोत्र तणो धणी रे, गुणगण रयण भंडार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्येष्ठा नक्षत्रे जनमिया रे, वसुभूतिसुत पृथ्वी तणो रे, ए तो नवनिधि होय जस नाम, ए तो पुरे वांछित ठाम, ए तो गुणमणि केरो धाम, ।।६।। For Private And Personal Use Only ।।७।। ।।८।। जयंकर जीवो गौतम स्वाम । ।।९।। जयंकर जीवो गौतम स्वाम गोबर गाम मोझार; मानव मोहनगार . जयंकर जीवो गौतम स्वाम ||२ || ४५ 119 11 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समवसरण इन्द्रे रच्यु रे, बेठां श्री वर्धमान; बेठी ते बारे परषदारे, सुणता श्री जिनवाण. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।३।। वीर कन्हे संजम लघु रे, पंचसयां परिवार; छठ छठ तपने पारणे रे, करतां उग्र विहार. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।४।। अष्टापद लब्धिए चड्या रे, वांद्या जिन चोवीश; जग चिंतामणी तिहां कर्यु रे, स्तविया श्री जगदीश. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।५।। पनरसें तापस पारणे रे, खीर खांड घृत भरपुर; अमिय जास अंगूठडो रे, उग्यो ते केवलसूर. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।६।। दिवाळी दिने उपन्युं रे, प्रभाते केवल नाण; अक्षीण लब्धि तणा धणी रे, नामे ते सफळ विहाण. स्वाम ।।७।। पचास वरस घरवासमां रे, छद्मस्थाए त्रीश; बार वरस लगे केवळी रे, बाणुं रे आयु जगीश. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।८।। गौतम गणधर वंदिया रे, श्री विजयसेन सूरीश; ए गुरुचरण पसाउले रे, धीर नामे निशदिश. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।९।। ४६ For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६) श्री गौतमस्वामीन अष्टक अंगूठे अमृत वसे, लब्धि तणा भंडार । ते गुरु गौतम समरिए, वांछित फळ दातार... ... |19 ।। प्रभुवचने त्रिपदी लही, सूत्र रचे तेणीवार चउदह पूरवमां रचे, लोकालोक विचार................... ।।२।। भगवती सूत्रे धुर नमी, बंभी लिपी जयकार । लोक-लोकोत्तर सुखमणी, भारवी लिपी अढार ..... ......... ।।३।। वीर प्रभु सुखिया थया, दिवाली दिनसार अन्तर्मुहूत ततक्षणे, सुखियो सहु संसार... ........ ।।४।। केवलज्ञान लहे यदा, श्री गौतम गणधार । सुरनर हरख धरी तदा, करे महोत्सव उदार....... ............ ।।५।। सुर-नर परषदा आगले, भाखेश्री श्रुतनाण । नाण थकी जग जाणीए, द्रव्यादिक चउठाण.. ते श्रुतज्ञानने पूजिए, दीप धूप मनोहार । वीर आगम अविचल रहो, वरस एकवीस हजार.............. ।।७।। गुरु गौतम अष्टक कहो, आणी हर्ष उल्लास । भाव धरी जे समरशे, पूरे सरस्वती आश... ........ ।।८।। नोट :- आठवी कड़ी इस प्रकार भी मिलती है। शासन श्री प्रभु वीरनुं समजे जे सुविचार । चिदानंद सुख शाश्वता पामे ते निरधार.. ..... ।।८।। ...... ।।६।। ४७ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (७) श्री गौतमस्वामी सवैया तेवीसा गौतम नाम प्रभात जपो, नित ऋद्धि समृद्धि सहु तेरी, ख्याल खुशाल रहे नित वासर, आस फले दिल ही सदा लेरी; भोजन भीख मिले भलि भांतिसुं, आधि अरू व्याधि टले अब मेरी, लब्धिनिधान प्रधान दिये, मनवांछित घमंड हे तोरी हे तोरी .... । । १ । । छ छ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्यवंदन विभाग (१) चैत्यवन्दन .... ।।१।। .... ।।२।। .........।।३।। बिरुद धरी सर्वज्ञमुं, जिन पासे आवे । मधुरे वचने वीरजी, गौतम बोलावे.. पंचभूतमांहे थकी जे, उपजे विणसे। वेदअरथ विपरीतथी, कहो किम भवतरसे. दानदयादम त्रिहुं पदे ए, जाणे तेह ज जीव ।। ज्ञानविमल धन आतमा, सुखचेतना सदैव.. (२) चैत्यवन्दन नमोगणधर नमोगणधर, लब्धिभंडार । इन्द्रभूति महिमा निलो, वड वजीर महावीर केरो गौतम गोत्रे उपन्यो, गणि अग्यारमाहे वडेरो। केवळज्ञान लघु जिणे दीवाली परभात । ज्ञानविमल कहे जेहना नाम थकी सुखसात...... (३) चैत्यवन्दन ......... ।।१।। इंद्रभूति पहेलो भj, गौतम जस नाम । गौबरगामे उपन्या, विद्यानां धाम................................. ।।१।। पंचसया परिवारशुं, लेइ संयम भार ।। वरस पचास गृहे वस्या, व्रते वर्ष ज त्रीश.... ......... ।।२।। बारवरस केवल वर्या ए, बाणुं वरस सवि आय। नय कहे गौतम नामथी, नित्य नित्य नवनिधि थाय........... ।।३।। ४९ For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।२।। ।।३।। स्तवन विभाग (१) गणधर श्री गौतमस्वामीनुं स्तवन सकल समीहित पूरणो, गुरुगौतम स्वामी । इन्द्रभूति नामे भलो, प्रणमुं शिरनामी ।। हारे प्रणमुं शिरनामी ।।१।। मगध देशमां उपन्यो, गोबर इति गाम । वसुभूति द्विज पृथिवी तणो, नंदन गुण धाम ज्येष्ठा नक्षत्रे जण्यो, सोवनवान देह । वरस पचास घरे वसी, धर्यो वीरशुं नेह त्रीश वरस छद्मस्थनो, पर्याय आराधे। बारवरस लगे केवली, पछी शिवसुख साधे वीरमोक्ष पहोंत्या पछी, लह्या केवल मुक्ते। राजगृहे ते पामीया, सवि लब्धिनी शक्ते बाणुं वरस सवि आउखु, थया मास संलेखे । जेहने सिर निज कर दिये, केवल देखे ।।६।। पंचसया मुनिनो धणी, सविश्रुतनो दरियो । ज्ञानविमल गुणथी जेणे, तार्यो निज परियो (२) श्री गौतम स्वामी विलाप स्तवन वीर वेला आवो रे, गौतम कही बोलावो रे; दरिशण वेला दीजीए होजी, प्रभु तुं निःसनेही; हुं ससनेही अजाण................ ...वीर. ।।१।। ।।४।। ।।७।। For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम भण भो नाथ त, विश्वास आपी छतों; परगाम मुजने मोकली, तुं मुक्ति रमणीने वर्यो; हे प्रभुजी तारा गुप्त भेदोथी अजाण................ वीर. ।।२।। शिवनगर थयुं शुं साकडु के, हती नहीं मुज योग्यता; जो मुजने कह्य होत तो, कोण तुज ने रोकता; हे प्रभुजी हुं शुं मागत भाग सुजाण.......................वीर. ।।३।। मम प्रश्नना उत्तर दई, गौतम कही कोण बोलावशे; सार करशे कोण संघनी, शंका बिचारी कयां जशे; हे पुण्य कथा कही पावन करो मम कान.......... वीर. ।।४।। जिन भाण अस्त थतां तिमिर, मिथ्यात्व सघळे व्यापशे; कुमति कौशिक जागशे वली, चोरी चुगल वधी जशे; हे त्रिगडे बेसी देशना दीयो जिन भाण...................वीर. ।।५।। मुनि चौद सहस छे ताहरे, वीर माहरे तुं एक छे; रडवडतो मने मुकी गयां, प्रभु क्यां तमारी टेक छे; प्रभु स्वप्नांतरमां अंतर न धर्यो सुजाण............. वीर. ।।६।। पण हुं आज्ञावाट चाल्यो, न मळे कोई ईण अवसरे, हुं रागवश रखडं निरागी वीर शिवपुर संचरे; हुं वीर वीर कहुं, वीर न धरे कांई ध्यान................वीर. ।।७।। कोण वीर ने कोण गौतम, नहीं कोई कोईनु कदा; ए राग ग्रंथी छूटतां, वर ज्ञान गौतमने थतां; हे गौतम नामे सुरतरू मणि सम निधान............वीर. ।।८।। कार्तिक मास अमास राते, अस्त भाव दीपक तणो; करे दीप ज्योत देव, लोक दीवाली जाणे । हे वीरविजयना नर नारी करे गुणगान रे................वीर. ।।९।। For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) श्री गौतम स्वामी विलाप स्तवन दुहा साखी वीर विभु आज्ञा थकी, जाप उरे वीर लीज । गया गौतम प्रतिबोधवा, देवशर्म ए द्विज....... ..... ।।१।। प्रतिबोधि ए विप्रने, रात रह्यां त्यां वास । शोक सहित देवो करे, कोलाहल आकाश.... .......... ।।२।। स्तब्ध बनी चित्त जोडीयुं कर्या साबदा कान । पड्या शब्द देवो तणा, वीर लह्या निर्वाण. .................. ।।३।। फाळ पडी तव ऊरमां, उपन्यो कंत शरीर । बाळक जेम रडी पड्या, याद करी प्रभु वीर .. ........... ।।४।। वज्रसम ए छातडी, हाथ रही न लगार । ध्रुसक ध्रुसक लहे ध्रुसका, नेण वहे चोधार. ....।।५।। कंपारी खूब जोसमां, व्यापी अंग उपांग । वपु हाथमा नवि रह्यु, भोंय पडया ते वार................ ।।६।। आव्या शुद्धिमां यदा, बोले तेणी वार । वीर! वीर! बस बोले एक, अन्य नहीं उच्चार. .... ।।७।। प्रीत वीरथी जे हती, उच्चारे ते वार।। भूतकाळ ताजो करी, वळी रहता के वार................. ।।८।। हे प्रभो! आ बालनी, लेशे खबरो कोण? आधार तमे चाल्या गया, सहाय हवे अम कोण?............. ।।९।। उगती शंका माहरी, पूछीश कोने नाथ? देवे उत्तर कोण मुज, कवण राखशे लाज?............. ।।१०।। ५२ For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जनार जो जावा चाहे, रोक्या न रोकाय । न आपे घटतुं कर्यु, आपने जे न सुहाय... पण हती जे प्रीतडी, न याद करी ते काळ । जवा उतावळ मोक्षमां, त्यागी शुं तत्काळ ?.... । । १२ । । (अपूर्ण) (४) श्री गौतमस्वामि विलाप स्तवन दुहो वर्धमान वचने तदा, श्री गौतम गणधार. देवशर्मा प्रति बोधवा, गया हता निरधार. प्रतिबोधी ते विप्रने, पाछा वलीया जाम, तव ते श्रवणे सांभळ्युं, वीर लह्या निर्वाण.. धसक पड्यो तव ध्रासको उपन्यो खेद अपार, वीर वीर कही वलवले, समरे गुण संभार.. 7 पूछीश कोने प्रश्न हुं, भंते कही भगवंत, उत्तर कोण मुज आपशे, गोयम कही गुणवंत. अहो प्रभु आशुं कर्यु, दीनानाथ दयाल, ए अवसरे मुजने तमे, काढ्यो दुर कृपाळ.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शासन स्वामि संत सनेही साहीबा, अलवेसर विभु आतमना आधार जो; आथडतो अहीं मुकी मुजने एकलो, मालीक केम जई बेठा मोक्ष मोजार जो. विश्वंभर विमला तम वहाला वीरजी.. ५३ For Private And Personal Use Only ।।99 ।। ।।१ ।। .. ।।२ ।। ।।५।। ( ढाळ - ओधवजी संदेशो केजो श्यामने - ए देशी) ।।३।। ।।४।। ।।१।। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन मोहन तुमे जाण्यु केवल मागसे, लागसे अथवा केडे ए जेम वालजो; वल्लभ तेथी टाल्यो मुजने वेगळो, भलु कर्यु ए त्रिभुवन जन प्रति पालजो;...........विश्वं. ।।२।। अहो हवे में जाण्यु श्री अरिहंतजी, निःस्नेही वीतराग होय नीरधार जो; मोटो ए अपराध ईहा प्रभु माहरो, उपयाग में दोधो नही ते वार जो.................. विश्वं. ।।३।। प्रेम थकी सणु धिक् एक पाक्षीक स्नेहने, एक ज तुं मुज कोई नथी संसार जो; सूरि माणेक एम गौतम समता भावथी, वरीया केवल ज्ञान अनंत उदार जो................विश्वं. ।।४।। (५) श्री गोतमस्वामी विलाप स्तवन (पंथीडा संदेशो कहेजो श्यामने-ए देशी) शासन नायक प्राण प्रभु हे वीरजी? प्रीतडी तोजी मुज उपरथी साच जो, अलगो कीधो आप कनेथी नाथजी? आवशे जाणे लेवा मुजमां भाग जो, मनमंदिरनावासी व्हाला वीरजी.. ..................ए आंकणी. ।।१।। भूल्या साहिब हठ करतां न आवडे, होत कडं जो अधिक ना मुज पासे जो, कपट करी मुजथी शुं चाली खरेखर नाथ जो..मन. ।।२ । ।(?) ५४ For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप गया नोंधारो मुकी मुजने, दुःखना डुंगर उग्या दीन दयाल जो, भरत भवी तुम प्रेम तळे पागल बन्या, छेह दीधो तेओने पण कृपाळ जो..... .. मन. ।।३।। याद करी तुम दिव्य जीवन ए सौ रडे, शोक त्यजे ना उर थकी दिन रात जो, मित्थ्यामतिनो पार नहीं आ विश्वमां, हाम नथी हिये शुं करीए तात जो... ............ ..मन. ।।४।। वातो शीतळ वायु पण थंभी गयो, नदी सागरना नीर पड्या कंइ स्थिर जो, सरवरमां हंसो चारो चरवो त्यजी, मींची आंखो ऊभा शोके स्थिर जो....... ..मन. ।।५।। करमाया तरुवर सौ आप रवि विना, खरी पड्या कंइ भूपर पर्ण कुसुम जो, त्यजी गुंजन पंखी सौ माळे जई चढ्या, शोक तणी पशुओ पाडे मैं बूम जो... ..मन. ।।६।। भूल्यो साहिब ओलंभो तमने न हो, पाम्यो हुं हुं कर्म तणा फल मुज जो, आप करो तेमां शंका शी माहरे, मान कीधुं हित घणुं छे मुज जो...... ..मन. ।।७।। मनमां मोटी तुमने ए शंका हती, निर्वाणे जो गोयम होशे पास जो, खेद प्रसारी आत्म गुण हानी करे, समज्यो साहिब भलुं कर्यु छे काज जो.............. मन. ।।८।। ५५ For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्य कहुं तो आप हता वीतरागजी, निरागी हो कसुरना तल भारजो, गुण ए तुजमां जाण्यो में आजे विभो ? धिक् धिक् निंदु आतम माहरो तात जो..................मन. ।।९।। गौतम चढीया भाव मिनारा उपरे, भावना आवी एकत्व मन माह्य जो; निर्मल पंचम ज्ञान प्रकाश्युं ते समे, सुरनरगण महिमा आनंद भर गाय जो............मन. ।।१०।। (६) श्री गौतम-महावीरस्वामीनुं स्तवन महावीर स्वामी मोक्षे पधार्या गौतम बोले रे, गुरुनी वातेवात संभाली, हैयुं खोले रे; वीर वीर तें आ शुं कीधुं? शुं वीरतानुं पगलुं लीधुं? टळवळतो तरछोड्यो मुजने, भूमिने खोळे रे. महावीर. ।।१।। हे प्रभु महारा शब्दो द्वारा, कोने संबोधीश प्रभुजी प्यारा; गौतम गौतम मीठी वाणी, हवे कोण बोले रे? महावीर. ।।२।। मारी शंका कोण निवारे, अवळा चश्मा कोण उतारे ? नाथ विना जगने आनंदमां, कोण हींचोळे रे? महावीर. ।।३।। मधुरी वाणीथी लोभाव्यो, शंका टाळी शिष्य बनाव्यो, तो हवे एकलो मूकी जता, लोक शुं बोले रे? महावीर. ।।४।। भय लाग्यो रखे छेडो पकडु, कां तो मांगीश शिव रमकई, एकला मोक्षमा जइने बेठा, मौन अबोध रे. महावीर. ।।५।। हे वीर! वीतरागी! हा! हवे समज्यो तमो वीतरागी, मोह विषे में अवछं धायें, राग भेवे रे. महावीर. ।।६।। For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीतराग छो साचा स्वामी, ए हवे समज्यो अनुभवे, पण एकपखीओ रागज, महारा मनने पामी रे. महावीर. ।।७।। हवे वीतरागी स्वरूप पिछानी, केवलज्ञानी गौतमस्वामी, अन्यत्व भावना चारित्र दर्शन, जयजय बोले रे. महावीर. ।।८।। (७) श्री गौतमस्वामी- स्तवन गौतम गणधर नमीये, अहोनिश-गौतम गणधर नमीये; नाम जपंता नवनिधि प्रगटे, मनवांछित सवि लहीए. अहो. ।।१।। घर आंगण जो सुर तरू प्रगट्यो, कहा काज वन भमीए. अहो. ।।२।। सरस सुरभि घृत जो होवे घरमां, तो क्युं तेले जमीए. अहो. ।।३।। तैसी श्री गुरु गौतम सेवा, ओरठोर क्युं रमीए. अहो. ।।४।। गौतम नामे भवजल तरीये, कहा बहुत तनु रमीए. अहो. ।।५।। गुण अनंत गौतम के समरण, मिथ्यामति विष वमीए. अहो. ।।६।। जस कहे गौतम गुण रस आन, रूचत नहि हम अमीए. अहो. ।।७।। S ५७ For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...... ।।१।। स्तुति विभाग (१) श्री गौतमस्वामी चतुष्पदिस्तुति इंद्रभूति अनुपम गुणभर्या, जे गौतम गोत्रे अलंकर्या । पंचशत छात्रशुं परिवर्या, वीरचरण लही भवजल तक... चउ अठ दस दोय जिनने स्तवे, दक्षिण पश्चिम उत्तर पूरवे । संभव आदि अष्टापद गिरिए, वलि जे गौतम वंदे ललीलली. ।।२।। त्रिपदि पामीने जेणे करी, द्वादशांगी सकल गुणे भरी। दीये दीक्षा ते लहे केवलसिरि, ते गौतमने रहुं अनुसरि. .. ।।३।। जक्ष मातंगने सिद्धायिका, सूरिशासननी परभाविका । श्रीज्ञानविमल दीपमालिका, करो नित्य नित्य मंगल मालिका. .... ।।४।। For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||१।। (२) श्री गौतमस्वामी चतुष्पदिस्तुति गुरु गणपति गाउं, गौतम ध्यान ध्याउं; सवि सुकृत सवाहुं, विश्वमां पूज्य थाउं । जगजीत बजाउं, कर्मने पार जाउं; नव निधि रिन्द्रि पाउं, थई समकित ठाउं. सवि जिनवर केरा, साधुमाहे वडेरा; दुगवन अधिकेरा, चउदसय सु भळेरा। दल्या दुरित अंधेरा, वंदिये ते सवेरा; गणधर गुण घेरा, नाथ छे तेह मेरा.. ..।।२।। सवि संशय कापे, जैन चारित्त थापे; तव त्रिपदि आपे, शिष्य सौभाग्य व्यापे। गणधर पद थापे, द्वादशांगी समापे; भवदुख न संतापे, दासने इष्ट आपे.. . ।।३।। करे जिनवर सेवा, जेह इन्द्रादि देवा; समकित गुण सेवा, आपता नित्यमेवा । भवजल निधि तरेवा, नौ समी तीर्थ सेवा; ज्ञानविमल लहेवा, लीललच्छी वरेवा.. ...... ।।४।। For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सज्झाय विभाग (१) सिद्धस्वरूप वर्णनमय श्री गौतमस्वामिनी सज्झाय श्री गौतम पृच्छा करे, विनय करी शीष नमाय हो प्रभुजी; अविचल स्थानक में सुरुपो, कृपाकरी मुज बताव हो प्रभुजी. शिवपुर नगर सोहामणुं. ।।१।। आठ करम अलगा करी, सार्यां आतम काज हो प्रभुजी; छुट्या संसारना दुःख थकी, तेने रहेवार्नु कोण ठाम हो प्रभुजी. शिव. ।।२।। वीर कहे उर्ध्व लोकमां, मुक्ति शिला एणे ठाम हो गौतम; स्वर्ग छव्वीसनी उपरे, तेहना बारे नाम हो गौतम. शिव. ।।३।। लाख पिस्तालीस जोयणे, लांबी पहोळी जाण हो गौतम; आठ जोजन जाडी वच्चे, छेडे पातळी तंत हो गौतम. शिव. ।।४।। उज्ज्वल हार मोति तणो, गाय दुधने शंख वखाण हो गौतम; एहथी उज्ज्वल अति घणी, समचोरस संस्थान हो गौतम. शिव. ।।५।। अर्जुन सोनामय दीपति, गठारी मठारी जाण हो गौतम; स्फटीकरत्न वच्चे निर्मली; सुंवाळी अत्यंत वखाण हो गौतम. शिव. ।।६।। ६० For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सिद्धशिला ओळंगी गया, अधर रह्या छं विराज हौ गौतम; अलोके शुं जई अड्या, सार्यां आतम काज हो गौतम Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिव ।।७।। जीहां जन्म नही मरण नही, नही जरा नही रोग हो गौतमः शत्रु नही मित्र नही, नही संयोग वियोग हो गौतम. शिव ।।८।। भूख नही तृषा नही, नही हरख नही शोक हो गौतम; कर्म नही काया नही नही विषयारस भोग हो गौतम. , शब्द रूप रस गंध नही, नही स्पर्श नही वेद हो गौतम, बोले नही चाले नही, मौन जीहां नही खेद हो गौतम . शिव । १९ ।। गाम नगर तिहां को नही, नहि वस्ती नहि उज्जड हो गौतम; काळ सुकाळ वरते नही, नही रात दिवस तिथि वार हो गौतम. शिव. ।।99 ।। ६१ शिव ।। १० ।। राजा नही प्रजा नही, नही ठाकोर नही दास हो गौतम; मुक्तिमा गुरु चेला नही, नही लघु वडाई तास हो गौतम . शिव ।। १२ । अनुपम सुखमा झीली रह्या, अरूपी ज्योति प्रकाश हो गौतम; सघळाने सुख सारिखुं, सहुकोने अविचळ वास हो गौतम . शिव. ।।१३।। For Private And Personal Use Only केवलज्ञान सहित छे, केवल दर्शन पास हो गौतम; क्षायिक समकित दीपतुं, कदीय न होये उदास हो गौतम. शिव ।।१४।। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनंत सिद्ध मुक्ति गया, फेर अनंता जाय हो गौतम; और जग्या रूंधे नही, ज्योतिमा ज्योति समाय हो गौतम. शिव. ।।१५।। ए अर्थ रूपी सिद्ध कोई, ओळखे आणी मन वैराग्य हो गौतम; शिवसुंदरी सहेजे वरे, नय नामे सुख अथाग हो गौतम. शिव. ।।१६।। (२) श्री केशी ने गौतम गणधरनी सज्झाय ए दोय गणधर प्रणमीये, केशी गोयम गुणवंत हो मणिंद; बहु परिवारे परिवर्या, चउनाणी गुण गाजंत हो मुणि; ए दोय गणधर, प्रणमीये ।।१।। संघाडा दोय विचरंता, एकदा गौचरीए मीलंत हो मुणिंद; पुछे गौतम शिष्य तिहां, तुमे कुण गच्छना निग्रंथ हो; ___ मु. ए दोय. ।।२।। अम गुरू केशी गणधरु, प्रभु पास तणा पटधार हो मुणिंद; सावत्थी पासे समोसर्या, तिहां तंदुकवन मनोहार हो मु. ए दोय. ।।३।। चार महाव्रत अम तणां, कारणे पडिक्कमणां दोय हो मुणिंद; रातां पीळां वस्त्र वापरू, वली पंचवरण जे होय हो; मु. ए दोय. ।।४।। शुद्ध मारग छे मुक्तिनो, अमने कल्पे राजपिंड हो मुर्णिद; पास जिनेसर उपदिशे, तुमे पालो चारित्र अखंड हो; मु. ए दोय. ।।५।। For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम शिष्य कह सांभलो, अमे पंच महाव्रत धार हो मुणिंद; पडिक्कमणा पंच अम सहि, वली श्वेत वस्त्र मनोहार हो मु. ए दोय. ।।६।। राजपिंड कल्पे नहि, भांखे वीरजिन पर्षदामांही हो मुणिंद; एक मारग साधे बिहुँ जणा, तो एवडो अंतर कांई हो । मु. ए दोय. ।।७।। संशयवंत मुनि बेहु थयां, जई पूछे निज गुरुपास हो मुणिंद; गौतम कोप्ट्रकवन थकी, आवे केसी पास उल्लास हो मु. ए दोय. ।।८।। केशी तव सामा जई, गौतमने दीये बहुमान हो मुणिंद; फासु पराल तिहां पाथरी, बिहु बेठां बुद्धि निधान हो __ मु. ए दोय. ।।९।। चर्चा करे जिनधर्मनी, तिहां मलीया सुरनर वृंद हो मुणिंद; बेहु गणधर सोभे अति भला, जाणे एक सूरज बीजो चंद मु. ए दोय. ।।१०।। एक मुक्ति जावु बिहु तणे, तो आचारे का भेद हो मुणिंद; जीव विशेषे जाणज्यो, गौतम कहे म करो खेद हो। __मु. ए दोय. ।।११।। संशय भांजवा सहु तणा, केशी पुछे गुण खाण हो मुणिंद; गौतम भवि जीव हित भणी, तव बोल्या अमृत वाण हो मु. ए दोय. ।।१२।। वक्र जड जीव चरमना, प्रथमना ऋजु मूरख जाण हो मुणिंद; सरल सुबुद्धि बावीशना,तेणे जुजुओ आचार वखाण हो मु. ए दोय. ।।१३।। For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईम केशीये प्रश्न जे पूछीया, तेना गौतम टाल्या संदेह हो मुणिंद: धन धन केशी गोयमा, तुमे साचा गुणमणी गेह हो मु. ए दोय. ।।१४।। मारग चरम जिणंदनो, आदरे केशी तेणी वार हो मुणिंद; केशी गौतम गुण जपे, ते पामे भवजल पार हो मु. ए दोय. ।।१५।। उत्तराध्ययन त्रेवीशमे, एम भाखे श्री जिनराय हो मुणिंद; विनय विजय उवज्झायनो, शिष्य रूपविजय गुण गाय हो मु. ए दोय. ।।१६।। (३) श्रीगौतमस्वामीजीनी गहुंली राग - (सिद्धाचलना वासी....) गुब्बरवासी गौतम गुरूने, वंदो सौ नरनार गुरूने. वसुभुति भुदेवने व्हालो, माता पृथ्वी नंद लटकाळो; विद्यानो भंडार. गुरूने. ।।१।। मिथ्या मोहथी यज्ञ करंतां, वीर जिनेश्वरने भेटतां; गृहवास तजनार. गुरूने. ।।२।। छात्र सहित दीक्षा लेईने, वीर प्रभुने गुरू पाइने; शिष्य थइ रहेनार. गुरूने. ।।३।। वीर मुखथी त्रिपदी सुणतां, वारे अंग रच्या गुणवंता; पाम्या पद गणधर. गुरूने. ।।४।। गोयम दीक्षा आपे जेने, केवल भानु प्रगटे तेने; अछतुं दान देनार. गुरूने. ।।५।। ६४ For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरू गौतम अष्टापदे चढीया, वळतां तापसो बहु बुझवीया; अनंत बुद्धि दातार. गुरूने. ।।६।। सकल लब्धिना गुरू भंडारा, चार ज्ञानना गुरू धरनारा; शासनना शणगार. गुरूने. ।।७।। साचा गुरूना सुसंयोगा, पारसमणि सम फळ दे चंगा; चिदानंद सुखकार. गुरूने. ।।८।। देवशर्मा प्रतिवोधि वळतां, वीर विभु निर्वाण सांभळतां गोयम खेद अपार. गुरूने. ।।९।। वीर वीर! एम नाम रटंता, वीतराग पद ध्यान चढंता; पाम्या केवल सार. गुरूने. ।।१०।। भावे गौतम नाम ग्रहीने, कर्पूर समामल सुख लहीने; पावे पदामृत सार. गुरूने. ।।१२।। (४) श्री गौतम स्वामिनो विलाप सज्झाय. आधारज हतो रे एक वीर ताहरो रे, हवे कोण करशे मोरी सार, प्रीतलडी जे हुंती रे पेलाभव तणी रे, ते केम वीसरी रे जाय...... मुजने मूक्यो रे टळवळतो इंहा रे, नथी कोई आंसु लोवणहार, गौतम कहीने रे कोण बोलावशे रे, हवे कोण करशे मोरी सार....... अंतरजामी रे अणघटतुं कर्यु रे, मुजने मोकलीयो रे गाम, ६५ For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .३. अंतकाळ वेळा रे हुं समज्यो नहीं रे, जे छेह देशे मुजने आम..... शोभारे भरतना लोकनी रे, हुं अज्ञानी रह्यो छु आज, कुमति मिथ्यात्वी जीम तीम बोलशे रे, कोण राखशे मोरी लाज........ ....... ४ (अपूर्ण) ६६ For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघु गौतम पृच्छा | मङ्गलाचरण ।। मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतम प्रभुः ।। मंगलं स्थूलभद्राद्या, जैनधर्मोस्तु मंगलं......... ।।१।। पाठकों! कैवल्य ज्ञान के धारक श्री भगवान महावीर स्वामीजी से श्री गौतम स्वामीजी ने विनय पूर्वक प्रश्न किये। उन प्रश्नों में से कुछेक यहां उद्धृत करते हैं। (१) प्रश्न- हे प्रभो! मनुष्य निर्धन और कंगाल किस पाप के उदय से होता है? उत्तर- हे गौतम! जिसने दूसरे के धन को चुराया हो, दान देते हुए को मना किया हो वह मनुष्य निर्धन और कंगाल होता है। (२) प्रश्न- हे भगवन्! भोग उपभोग की सामग्रियां सभी स्वाधीन होते हुए भी जो मनुष्य उन्हे भोग नहीं सकते यह किस पाप के उदय से? उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य दान पुण्य कर फिर उसका पश्चाताप करता _है कि मैंने बहुत बुरा किया है वह नर भोग (वह चीज जो एक वक्त ही काम में आ सकती हो जैसे भोजन वगैरह) और उपभोग (जो बार बार काम में आ सकती हो जैसे वस्त्र आभूषण वगैरह) की सामग्रियें स्वाधीन होते हुए भी उन्हें भोग नहीं सकता है। (३) प्रश्न- हे भगवन्! किसी किसी मनुष्य के संतान नहीं होती है वह किस पाप के उदय से? उत्तर- हे गौतम! रास्ते पर हरे भरे वृक्षों को काटने या दूसरों से कटवाने से उस मनुष्य के संतान नहीं होती है। (४) प्रश्न- हे भगवन! स्त्री जो वंध्या होती है वह किस पाप से होती है। ६७ For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर- हे गौतम! औषधि आदि के द्वारा गर्भ गलाने से या सगर्भा मादा (स्त्री जाति) जानवरों को मारने से स्त्री वंध्या होती है। (५) प्रश्न- हे भगवन्! जिस स्त्री के लड़का या लड़की जन्मते ही मर जाते है ऐसी मृतवत्सा किस पाप के उदय से होती है? उत्तर- हे गौतम! बैंगन कंद को हंस हंस कर खाने से तथा मुर्गी आदि के अण्डों के पान करने से स्त्री मृत वंध्या होती है। (६) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य एक आंख से काना किस पाप से होता है? उत्तर- हे गौतम! जो हरी सब्जी (वनस्पति को) शस्त्र आदि से छेदन भेदन करता है। तथा फल फूल बीज आदि में सुंई से छेदन भेदन कर उन्हें धागे में पिरोकर गजरा हार आदि बनाता है वह मनुष्य एक आंख से काना होता है। (७) प्रश्न- हे भगवन्! किसी किसी स्त्री के अधुरे गर्भ गिर जाते हैं वह किस पाप से? उत्तर- हे गौतम! वृक्षों के कच्चे फल तोड़ने से और झाड़ों पर पत्थर फेंकने से स्त्रियों के कच्चे ही गर्भ गिर जाते हैं। (८) प्रश्न- हे भगवन! जो जीव गर्भ में तथा योनि के समीप अटक कर मर जाता है वह किस पाप के उदय से? । उत्तर- हे गौतम! किसी पर आक्षेप करने और झूठ बोलने से गर्भ में तथा योनि के समीप रुककर जीव मर जाता है। फिर उसके शरीर को शस्त्रादि से काट काट कर बाहिर निकालते हैं। (९) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य किस पाप से अन्धा होता है। उत्तर- हे गौतम! शहद के छत्ते के नीचे धूम्र वगैरह का प्रयोग करता हुआ मधुमक्खीयों को जलाकर छत्ता गिरा देने से मनुष्य अंधा होता है। ६८ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य किस पाप के उदय से गूंगा होता है? उत्तर- हे गौतम! छिद्रान्वेषी वन कर जो देव, गुरू की निन्दा करता है वह मनुष्य गूंगा होता है। (११) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य किस पाप के उदय से बहरा होता है? उत्तर- हे गौतम! जो लुक छिप कर दूसरे की निंदा सुनने में रत रहता हो और कपट युक्त मीठे मीठे शब्द बोल कर दूसरे के हृदय का भेद पा लेने में प्रयत्नशील हो। बस! इसी पाप के बोझे से वह मनुष्य बहरा होता है। (१२) प्रश्न- हे भगवन्! जो मनुष्य रात दिन आदि व्याधियों से घिरा रहता हो वह किस पाप के उदय से? उत्तर- हे गौतम! बड पीपल के फलों तथा गुलरों को हँस हँस कर खाने से एवं चूहे आदि जानवरो के पकडने के पीजरों एवं फन्दों को बेचने से वह मनुष्य दिन रात किसी न किसी रोग से घिरा ही रहता है। (१३) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य इतना स्थूल शरीर वाला, जो कि किसी प्रकार से अपना शारीरिक कार्य भी अपने हाथों से न कर सके, ऐसा बेडोल शरीर किस पाप से होता है? उत्तर- हे गौतम! अपने सेठ की चोरी करने से तथा अपने आप ही साहुकार बन दूसरे का धन हड़प कर लेने से मनुष्य बेडील डोल वाला स्थूल शरीरि होता है। (१४) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य कुष्ट (कोढ़) रोग- वाला किस पाप कर्म के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! मयूर, सर्प, बिच्छू आदि के मारने से तथा जंगल में दावाग्नि लगा देने से मनुष्य कोढ़ी होता है। For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के शरीर में जलन- जलन होती हो ऐसी दाहज्वर की बिमारी किस पाप से होती है? उत्तर- हे गौतम! घोड़े बैल आदि पशुओं को भूखे और प्यासे रखने से तथा उन पर हैसियत से अधिक बोझा लाद (भर) देने से दाहज्वर की बिमारी होती है। (१६) प्रश्न- हे भगवन्! किसी किसी मनुष्य का चित्त भ्रम हो जाता है वह किस पाप से होता है। उत्तर- हे गौतम! अभिमान करने से तथा मद मांस और गुप्त रीति के अनाचारों का सेवन करने से मनुष्य का चित्त भ्रम हो जाता है। (१७) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के पत्थरी की व्याधि किस पाप से होती है? उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पुत्री, बहन, माता, मासी आदि कह कर उनके साथ गुप्त रीति से व्यभिचार सेवन करता है उसके पत्थरी की बिमारी होती है। (१८) प्रश्न- हे भगवन्! स्त्री पुरुष, पुत्र, पुत्री और शिष्य आदि किस पाप के फल स्वरूप से कुपात्र होते हैं। उत्तर- हे गौतम! निष्कारण ही सगे स्नेहियों के साथ या दूसरे मनुष्यों के बीच में बैर को खडा कर देते हैं अथवा बढ़ा देते हैं वे कुपात्र होते हैं! (१९) प्रश्न- हे भगवन! मनुष्य के बड़े ही लाड़ प्यार से पाला पोषा हुआ पुत्र युवावस्था ही में मर जाता है वह किस पापोदय से? उत्तर- हे गौतम! दूसरों की रखी हुई अमानत को हड़प जाने से पाला पोषा हुआ पुत्र मर जाता है। (२०) प्रश्न- हे भगवन! मनुष्य के पेट का रोग किस पाप से होता है! ७० For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर- हे गौतम! पंचमहाव्रतधारी मुनि को निरस और असाताकारी आहारादि देने से मनुष्य के पेट में रोग उत्पन्न होता है। (२१) प्रश्न- हे भगवन्! कोई कोई स्त्री बाल विधवा हो जाती है वह किस पाप से होती है? उत्तर- हे गौतम! अपने आप को तो सती कहलाती है पर अपने पति का पूरा पूरा अपमान करने में राई रत्ती भर भी कोर कसर नहीं रखती है। कपट तो उसके जीवन के साथ साथी होकर रहता है और पर-पुरुष के साथ व्यभिचार सेवन में वह कभी चूकती भी नहीं है वह स्त्री बाल विधवा होती है। (२२) प्रश्न- हे भगवन्! वेश्या किस पाप कर्म के फलस्वरूप होती है? उत्तर- हे गौतम! उत्तम कुल की विधवा स्त्री के दिल में विषय भोग सेवन करने की तीव्र अभिलाषा होते हुए वह अपने माता, पिता सासु, श्वसुर, पीयर, सासरे से अनिच्छा पूर्वक शील को पालन करती है वह स्त्री मर कर वेश्या होती है। फिर चाहे वह स्वर्ग में भी जावे तो उसी श्रेणी की देवीयों में ही उत्पन्न होती है। अगर वह विधवा स्त्री इच्छा पूर्वक शील पाले तो इहलोक परलोक दोनों सुधरे। (२३) प्रश्न- हे भगवन्! किसी मनुष्य की अल्प समय में ही स्त्रियां मर जाया करती हैं इसका क्या कारण है? उत्तर- हे गौतम! जिस मनुष्य ने लिये हुए त्यागी नियमों का भंग किया हो तथा चरती हुई गौ को जोरों से मारी हो उस मनुष्य की स्त्रियाँ थोडे-थोड़े समय में ही मर जाया करती है। (२४) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य काला कुवर्ण किस पाप से होता है। उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य कोतवाल होकर द्रव्यादि की लालसा से ७१ For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोगों से कहे कि तुम अमुक सरकार के गुनेहगार हो ऐसे झूठे इलजाम उनके सिर लगा के उनके मार्मिक स्थान एवं हाथ, पाँव, नाक, कान आदि अवयवों को छेदन भेदन करे तथा जिसने अपने शरीर के सुन्दर रूप का अभिमान किया हो वह काला कुरूप मनुष्य होता है। (२५) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के शरीर में कीड़े किस पाप से पड़ जाते हैं। उत्तर- हे गौतम! जिस मनुष्य ने मच्छी, केंकड़े आदि मूल जीवों को त्रास पूर्वक मार कर खूब खाया हो उस मनुष्य के शरीर में कीड़े पड़ जाया करते हैं। (२६) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य या स्त्री पर मिथ्या कलंक किस पाप से आता है? उत्तर- हे गौतम! जिसने दूसरे के सिर पर जैसा मिथ्या कलंक दिया हो वैसा ही मिथ्या कलंक उस मनुष्य या स्त्री के सिर पर भी आता है। (२७) प्रश्न- हे भगवन् कोई भी रोजी आदि की प्राप्ति में बाधा (विघ्न) आकर खड़ी होती है वह किस पाप से होती है? उत्तर- हे गौतम! अन्य जीवों को भोगोपभोग की सामग्रियां मिलती हों उनमें रोड़े अटका दिये हों तथा रोजी एवं व्यापार आदि में भी बाधा खड़ी कर दी हो उस मनुष्य के प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति में बाधा आ खड़ी होती है। (२८) प्रश्न- हे भगवन् नपुंसक किस पाप से होता है? उत्तर- हे गौतम! जो बैल, घोड़े, मनुष्य आदि के अंडकोषों को शस्त्र पत्थर आदि से छेदन भेदन करता हो तथा औषधि आदि के द्वारा मर्द को नामर्द (नपुंसक) बनाता हो अथवा कपट सेवन ७२ For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org करने में चूर चूर रहता हो वह नपुंसक होता है । (२९) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य मर कर नरक में किस पाप कर्म के उदय से जाता है ? Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर- गौतम ! जुंआ खेलने से, मांस खाने से, मदीरा पीने से, वैश्या और पर - स्त्री गमन करने से, शिकार और चोरी करने से मनुष्य नरक में जाता है । (३०) प्रश्न- हे भगवन्! लक्ष्मीवान् किस पुण्य के फल स्वरूप होता है ? उत्तर - हे गौतम! सुपात्र ( मुनि) पात्र ( श्रावक ) अल्पपात्र ( सम्यग्दर्शी) आदि को साताकारी आहार पानी देने से तथा अनाथ, दीन अनाश्रितों को समय-समय पर उचित दान देने से मनुष्य लक्ष्मीवान् होता है। (३१) प्रश्न- हे भगवन्! जिस मनुष्य के सत्य कहने पर भी उसके वचनों पर कोई विश्वास नहीं रखता है इसका क्या कारण है ? उत्तर - हे गौतम! जिस मनुष्य ने झूठी गवाह ( साक्षी) दी हो उस पाप के फल स्वरूप उसके वचनों को न तो कोई सत्य ही समझता है और न उसके वचनों पर कोई विश्वास ही रखता है । (३२) प्रश्न- हे भगवन्! इच्छित भोगोपभोग की सामग्रियां किस पुण्योदय से मिलती है ? उत्तर- हे गौतम! जिस मनुष्यने जीव दया वगैरह परोपकार खूब ही किया हो उस मनुष्य को इच्छित भोग मिलते हैं । (३३) प्रश्न- हे भगवन् ! सुन्दर रूप, लावण्य, चातुर्यता आदि की प्राप्ति किस शुभकरणी से होती है ? उत्तर- हे गौतम! जिनाज्ञा पूर्वक जिसने ब्रह्मचर्य पाला है और तपस्या की हो वह सुन्दर रूप सम्पदादि पाता है । ७३ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) प्रश्न- हे भगवन्! स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति किस से होती है। उत्तर- हे गौतम! जिस मनुष्य ने सम्यक् प्रकार से तप सयंम की आराधना की हो वह मनुष्य स्वर्ग और मोक्ष के सुखों को प्राप्त करता है। (३५) प्रश्न- हे भगवन! मनुष्य को दुखःमयी दीर्घ जीवन किस दुर्भाग्य से मिलता है? उत्तर- हे गौतम! चलते फिरते त्रस जीवों की हिंसा करने से, मिथ्या भाषण करने से और मुनि को असाताकारी आहार पानी देने से मनुष्य को दुखःमयी दीर्घ जीवन मिलता है। (३६) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य को सुखमयी दीर्घ जीवन किस पुण्य फल से मिलता है? उत्तर- हे गौतम! त्रस जीवों की रक्षा करने से, सत्य भाषण करने से, और मुनियो को निर्दोष साताकारी आहार पानी देने से सुखमयी दीर्घ जीवन मनुष्य को मिलता है। (३७) प्रश्न- हे भगवन्! बहुत ऐसे मनुष्य हैं जिनको भय होता ही नहीं है वह किस पुण्योदय के फल स्वरूप? उत्तर- हे गौतम! भय से भयभीत जीवों को निर्भयी किये हों अर्थात अभयदान दिया हो। (३८) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य ताकतवान किन शुभ कर्मों से होता है? उत्तर- हे गौतम! जिसने वृद्ध, तपस्वी और व्याधि वाले की वैयावृत्य (सेवा) खूब ही जी तोड़ कर की हो वह मनुष्य बलवान होता है। (३९) प्रश्न- हे भगवन्! जिस के वचनों में मधुरता टपकती हो सभी उसके वचनों को सुन कर आनन्द मनाते है वह किस शुभ कर्म के फल स्वरूप? ७४ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर- हे गौतम! सारे जीवन में जिसने सत्य भाषण का ही प्रयोग किया हो वह प्रिय वचनी होता है । उसके वचन श्रवण कर लोक आनन्दित होते हैं । (४०) प्रश्न- हे भगवन् ! कोई मनुष्य ऐसा होता है जो सभी को वल्लभ लगता है इस का क्या कारण है । उत्तर- हे गौतम! जिसने खूब ही धर्म आराधना की हो वह मनुष्य सभी को वल्लभ होता है । ( ४१ ) प्रश्न- हे भगवन्! सर्व मान्य किस कारण से होता है । उत्तर- हे गौतम! पर हित कार्य करने से सर्व प्रिय होता है । (४२) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य नीच जाति में किस पाप से पैदा होता है ? उत्तर- हे गौतम! जाति अहंकार करने से नीच जाति में पैदा होता है ? (४३) प्रश्न- हे भगवन्! हीन कुल में किस पाप से पैदा होता है ? उत्तर- हे गौतम! कुल का अहंकार करने से कुल हीन होता है । (४४) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य किस पाप से दुर्बल होता है ? उत्तर- हे गौतम! बल का घमण्ड करने से दुर्बल होता है । (४५) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य जन्म किन कारणों से मिलता है ? उत्तर- हे गौतम! जो जीव प्रकृति का विनीत हो, भद्रिक हो अमात्सर्यभाविक हो और विषम वाद रहित हो वह जीव मनुष्य जन्म पाता है । (४६) प्रश्न- हे भगवन्! किसी मनुष्य के एक पैसे की भी आमदनी न होती हो वह किस पाप कर्म से ? उत्तर- हे गौतम! पैसे की खूब आमदनी देखकर जिसने घमण्ड किया हो उसे विशेष आर्थिक प्राप्ति नहीं होती है । (४७) प्रश्न- हे भगवन् ! किसी मनुष्य को व्रत उपवास करने में महान् ७५ For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कष्ट होता है जिससे उपवास व्रत एकासना आदि उससे बिलकुल हो नहीं पाते इसका क्या कारण है ? उत्तर- हे गौतम! तपस्या घमण्ड करने से अर्थात ऐसा विचार करे कि मेरे सात सात आठ आठ रोज की तपस्या तो उपवास जैसे निकलती है । और मेरे लिए तपस्या करना बड़ा ही सरल है । दूसरे के लिए उपवास तक करना कठिन है । मेरे सामने दूसरा क्या तपस्या कर सकता है ? इस प्रकार का घमण्ड करने से उससे तपस्या नहीं होती है । (४८) प्रश्न- हे भगवन् ! सूत्र सिद्धान्तों का ज्ञान महान् परिश्रम के साथ अभ्यास करने पर भी प्राप्त नहीं होता है इसका क्या कारण है ? उत्तर- हे गौतम! जिसने बहुत से सिद्धान्तों का ज्ञान संपादन कर घमण्ड किया हो उस मनुष्य को ज्ञान प्राप्त नहीं होता । (४९) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य चाकरपने में किस पाप से पैदा होता है । उत्तर- हे गौतम! ऐश्वर्य का अर्थात् मैं अरबपति हूँ, मैं छत्रपति हूँ, मैं पृथ्वीपति हूँ, मैं सार्वभौम नरेन्द्र हूँ इस प्रकार ऐश्वर्य का घमंड करने से मनुष्य को चाकरपना ( दासवृति) प्राप्त होती है । (५०) प्रश्न- हे भगवन्! सुर, असुर, देव, दानव, इन्द्र और नरेन्द्रों के द्वारा मनुष्य पूजनिक किन शुभ कामों से होता है ? उत्तर - हे गौतम! जिसने मन, वचन और काया से शुद्ध भावना पूर्वक अखंड ब्रह्मचर्य पाला हो वह मनुष्य इन्द्र-नरेन्द्रों के द्वारा पूजनीय होता है ? (५१) प्रश्न- हे भगवन् ! चौदह पूर्व का सार क्या है ? उत्तर - हे गौतम! चौदह पूर्व का सार नमस्कार मन्त्र है । (५२) प्रश्न हे भगवन्! बाल वय ही में माता पिता किस पापोदय से ७६ For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरते हैं? उत्तर- हे गौतम! मनुष्य पशु आदि के छोटे छोटे बच्चों के माता पिताओं को मारने वाले प्राणी के माता पिता बचपन में ही मर जाते हैं। (५३) प्रश्न- हे भगवन्! स्त्री पुरुष के परस्पर विरोध भाव किस कारण से होता है? उत्तर- हे गौतम! पूर्व भव में स्त्री भर्तार के परस्पर का प्रेम-भाव तुडा देने से वैर विरोध होता है। (५४) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य पंगुला किस पाप से होता है? उत्तर- हे गौतम! पैरों से प्राणधारी जीवों को मसल (कुचल) कर मार देने से जीव पंगुला होता है। (५५) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के फोडे फुसी आदि किस पाप से होते हैं? उत्तर- हे गौतम! फलों के अन्दर मसाले भर भर कर भड़ीते किये हों __ तथा उन्हे तल भूज कर के हँस-हँस कर खाये हों उस मनुष्य के फोड़े फुसी होते हैं। (५६) प्रश्न- हे भगवन्! क्रोडों रूपये की सम्पति पाकर के भी उसके द्वारा सुख नहीं भोग सकता इसका क्या कारण है। उत्तर- हे गौतम! जिसने दान देकर अफसोस किया हो वह सम्पति मिलने पर भी सुख नहीं भोग सकता। (५७) प्रश्न- हे भगवन्! अनायास लक्ष्मी की प्राप्ति किस पुण्य से होती है? उत्तर- हे गौतम! गुप्त दान देने से अनायास अखूट लक्ष्मी मिलती है। (५८) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य आँखों से मंजर किस पाप के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में सबको समदृष्टि से नहीं देखे हों वे ७७ For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंजर होते हैं। (५९) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य वामन (छोटे कद का) किस पाप के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! जिस मनुष्य ने पूर्व भव में अपने शरीर का अभिमान किया हो वह मनुष्य वामन होता है। (६०) प्रश्न- हे प्रभो! शरीर में भगंदर रोग किस पाप के फल स्वरूप में होता है? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव पंचेन्द्रिय जीवों के प्राण हरण करता है उसके शरीर में भगंदर रोग उत्पन्न होता है। (६१) हे प्रभो! कंठमाला का रोग किस पाप के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में मछलियों का शिकार करता है उसे कंठमाला का रोग होता है। (६२) हे प्रभो! पथरी का रोग किस कारण से होता है? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में पर-स्त्री के साथ मैथुन सेवन करता है वह पथरी रोग का शिकार होता है। (६३) प्रश्न- हे प्रभो! नारु (वाला) किस पाप के फल रूप होता है? उत्तर- हे गौतम! जो जो जीव बिना छना जल पीते हैं उन्हें नारू उत्पन्न होता है। (६४) प्रश्न- हे भगवन्! शरीर में प्रत्यक्ष कोई रोग न दिखाई दे परंतु जीव अनेकों दुःखों से दुःखित रहता है। वह किस पाप के फल रूप में होता है। उत्तर- हे गौतम जो जीव घूस (रिश्वत) खाकर सच्चे को झूठा बनाता है। उसे यह दुःख होता है। (६५) प्रश्न- हे भगवन्! शरीर काला कुरूप किस पाप से होता है। ७८ For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में अनेक फल वीजादि तोङ कर उनसे अपना रूप सुन्दर बनाया हो वह कुरूप होता है । (६६) प्रश्न- हे भगवन्! कोई कोई जीव बहुत ही मीठे बोलते हैं परंतु वह कटु मालूम होता है । वह किस पाप कर्म के उदय से ? उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में पंचेन्द्रियादि जीवों का भक्षण किया हो उसकी मिष्ट भाषा भी अप्रिय मालूम होती है । (६७) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के सिर झूठा कलंक किस पाप के फल स्वरूप लगता है ? उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पूर्व भव में अठारवां पापस्थान मिथ्यात्व दर्शन शल्य का सेवन बारंबार करता हो देव गुरू धर्म को न मान कर उलट चला हो उसके सिर झूठा कलंक लगता है । (६८) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य को अत्यधिक निद्रा किस पाप के फल से होती है ? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में मदिरा पान करता है उसे नींद अधिक लगती है । (६९) प्रश्न- हे भगवन्! जीव को अधिक रोग किस कारण से प्राप्त होते हैं ? उत्तर- हे गौतम! जो जीव पूर्व भव में अनंतकाय कंदों का आहार खुश होकर करता है, वह अधिक रोगग्रस्त होता है । ( ७० ) प्रश्न- हे भगवन्! कोई जीव संसारी जीवों तथा माता पिताओं को प्रिये नहीं लगते हैं, वह किस पाप उदय से ? उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पूर्व भव में विकलेंद्रिय (कीड़े आदि) जीवों को हनन करते हैं वह अप्रिय मालूम होते हैं । (७१) प्रश्न- हे भगवन् ! तरुण पुरुषों को स्त्री का वियोग किस पाप के ७९ For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! जिस पुरुष ने पूर्व भव में बलात्कार पूर्वक कंदर्प (काम भोग) सेवन किया हो वह तरुणाई में स्त्री का वियोग प्राप्त करता है। (७२) प्रश्न- हे भगवन्! तरुणावस्था में स्त्री को पति का वियोग क्यों होता है? उत्तर- हे गौतम! जो स्त्री पुरुष संयोग की वशीकरणादि औषधियां करती है वह पति-वियोग को प्राप्त होती है। (७३) प्रश्न- हे भगवन्! नासुर रोग किस पाप के फल से होता है। उत्तर- हे गौतम! पूर्व भव में कसाई का कर्म करने से नासुर रोग की उत्पत्ति होती है? (७४) प्रश्न- हे भगवन! शरीर में १६ रोग एक ही साथ किस पाप से होते हैं? उत्तर- हे गौतम! जिसने बहुत से ग्राम नगरों को जलाये हों वह एक ही _साथ १६ रोगों का शिकार होता है। (७५) प्रश्न- हे भगवन्! अनेक मनुष्यों को फांसी पर लटकना पड़ता है। वह किस पाप के फल से? उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में जलचर जीवों को बहुत मारें हों वे फांसी की सजा पाते हैं। e----- ८० For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकीर्णक कविवर श्री सौभाग्यविजयजी गौतमस्वामी के छंद में गौतमस्वामी की महिमा बताते हैं :दुष्ट दूरे टळे स्वजन मेळो मळे, आधि व्याधि ने उपाधि नासे । भूतनां प्रेतना जोर भांजे वली, गौतम नाम जपतां उल्लासे ।। महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म. सा. ने गणधर भास की रचना में सुधर्मास्वामी तक के पांच गणधरों की स्तवना करते हुए श्री गौतमस्वामी की स्तवना उन्होंने इस प्रकार की है :सुरतरु जाणी सेविलो, बीजा परिहारिया बाउलियारे । ए गुरु थिर सायर समो, बीजा तुच्छ वहई वाउळियारे ।। आचार्य श्री पार्थचन्द्रसूरिजी ने श्री गौतमस्वामी के लघु रास में गौतमस्वामी की महिमा का इन शब्दों में वर्णन किया है :गौतम नामे छिपे पाप, गौतम नामे टळे संताप। गौतम नामे खपे सवि कर्म, गौतम नामे होय शिवशर्म ।। कवि श्री शांतिदास के बनाए हुए गौतमस्वामी के रास में गौतमस्वामी की महिमा का वर्णन करती वाणी को पढ़ें :वैरि मित्रज सरीखां थाय, गौतम नामे प्रणमे पाय; राजा माने सहु को नमे, गौतम नाम हृदयमां रमे । जी जी कार सहुको करे, बोल्युं वचन नवि पार्छ फरे; कीर्तिवेळ जग प्रसरे बहु, गौतम नामे छे ए सहु ।। ८१ For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस सदी के विद्वान. मुनिवर श्री दर्शनविजयजी (त्रिपुटी) महाराज श्री गौतमस्वामी के स्तवन में कहते है :गौतम नामे भवभीड हरिये, आत्मभाव संवरिये। कर्म जंजीरीये बांध्या छूटे, उत्तम कुल अवतरिये ।। गौतमस्वामी के स्तवन के रचयिता वर्तमान आचार्यश्री विजयसुशीलसूरिजी म. सा. कहते हैं :गौतम स्वामी जगगुरु, गुणगणनो भंडार लालरे । अनन्त लब्धिनो ए धणी, आपे अक्षय सुख अपार लालरे ।।१।। वाचक शान्तिचन्द्र गणि कहते है :तियसकयकणयपउमे, पउमासण संठिअं पवरपउमे । नमिउं जिअतिअसगुरुं सिरि गोयमगणहरं सुगुरुं ।।१।। अन्य :एकादशाऽऽसन् गणधारि धुर्याः, श्रीइन्द्रभूति प्रमुखा अमुष्य । आर्योपयामे पुनराप्तमूर्ति, रुद्राः स्मरं हन्तुमिवेहमानाः ।।१।। लब्धि अट्ठावीस धरी, गुरु गोयम गणेश । ध्यावो भवि शुभ करूं, त्यागी राग ने रीस।। PRAM PRANA For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र : संक्षिप्त परिचय आधुनिक युग में मोक्षमार्ग के दो आधारस्तम्भ प्रमुख हैं (१) विश्व को आध्यात्मिक प्रकाश देने वाले जिनबिम्ब की भक्तिभाव पूर्ण पूजा और (२) जिनागम की ज्ञानलक्षी उपासना. इन दोनों का समन्वय अर्थात श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा. जिन शासन की प्रतिनिधि संस्थाओं में यह केन्द्र बहुत थोड़े समय में अग्र स्थान प्राप्त कर चुका है. यहाँ धर्म एवं आराधना की एक दो नहीं अनेक प्रकार की प्रवृत्तियों का महासंगम हुआ है. गुजरात राज्य की हरी भरी राजधानी गांधीनगर एवं महानगर अहमदाबाद के मध्य राजमार्ग स्थित कोबा गाँव के समीप विकसित यह केन्द्र परम पूज्य प्रशान्तमूर्ति गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के प्रशिष्यरत्न परम श्रद्धेय युग-द्रष्टा आचार्य प्रवर राष्ट्रसंत श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के कुशल मार्गदर्शन में कार्यरत है. यह संस्थान अपनी विरल सांस्कृतिक परम्पराओं को जीवन्त रखने के लिए धर्म, साहित्य, कला, शिक्षण, साधना एवं संस्कृति के महासंगम की दिशा में दृढ़ निष्ठा के साथ प्रवृत्त है. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आपके समय का सदुपयोग कराते हुए धार्मिक उपासना, साधु-भगवन्तों का दर्शन, जैन एवं आर्य संस्कृति की अनोखी झांकी तथा अध्ययन-मनन हेतु साहित्य इस एक ही परिसर में उपलब्ध कराता है. ८३ For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org महावीरालय : जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर मूलनायक भगवान श्री महावीरस्वामी सहित सभी परम पूजनीय मनोहर एवं चुम्बकीय आकर्षणयुक्त प्रतिमायें आपको मोह लेंगी. इस महावीरालय की विशेषता यह है कि आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के अन्तिमसंस्कार के समय प्रति वर्ष २२ मई को दुपहर समय २.०७ बजे देरासर के शिखर में से होकर सूर्य किरणें श्री महावीरस्वामी के तिलक को देदीप्यमान करें ऐसी अनुपम व अद्वितीय व्यवस्था की गई है. गुरुमंदिर : प.पू. आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन स्मृति में उनके अन्तिम संस्कार स्थल पर निर्मित संगमरमर के कलात्मक मंदिर में स्फटिक की अद्वितीय चरणपादुका व स्फटिक की ही अनन्तलब्धिनिधान गौतमस्वामी की मनोहर प्रतिमा दर्शनीय है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन आराधना भवन : प्राकृतिक हवा एवं प्रकाश से परिपूर्ण इस जैन आराधना भवन ( उपाश्रय) में साधु-भगवन्त स्थिरता कर अपनी संयम आराधना के साथ ही विशिष्ट ज्ञानाभ्यास, ध्यान, स्वाध्याय आदि का योग प्राप्त करते हैं. यहाँ पर साधु-भगवन्तों का दर्शन एवं मार्गदर्शन का लाभ प्राप्त किया जा सकता है. यह उपाश्रय स्थापत्य कला का एक विशिष्ट उदाहरण है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र- कोबा तीर्थ के परिसर में स्थित है. गच्छाधिपति, महान् जैनाचार्य श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्य युगद्रष्टा, राष्ट्रसंत आचार्य प्रवर श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शुभाशीर्वाद एवं प्रेरणा से जिनागम की ज्ञानलक्षी उपासना के साथ ही ८४ For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लुप्त हो रही जैन एवं आर्य संस्कृति के रक्षार्थ तथा मुमुक्षुओं को आत्मोन्नति में सहायभूत अध्ययन हेतु साहित्य उपलब्ध करने हेतु कोबा तीर्थ की पुण्यधरा पर ज्ञानमंदिर का निर्माण करवाया. आपके दादा गुरुदेव की स्मृति को चिरस्थाई करने के लिए इस ज्ञान मंदिर का नामाभिधान आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मन्दिर के रूप में हुआ. __ अपने जैसा पहला व कम्प्यूटर जैसी आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न यह सुविशाल ज्ञानमंदिर पूजनीय साधु-भगवन्तों, मुमुक्षुओं एवं जिज्ञासु गृहस्थों की साहित्य साधना के लिए अभूतपूर्व आयोजन है. यह अपने पाँच विभागों सहित स्वयं में एक विशिष्ट शोध संस्थान है जहाँ जैन धर्म संस्कृति सहित भारतीय कला के नमूनों का अजोड़ संग्रह है. दुर्लभ हस्तप्रतों, पाषाण, धातु एवं काष्ठ प्रतिमायों तथा दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रहालय आपके लिए दर्शनीय है. ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत अग्रलिखित विभाग कार्यरत हैं- १. आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार, २. श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार, ३. श्री आर्यरक्षितसूरि शोध सागर (कम्प्यूटर केन्द्र सहित), ४. सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय. देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार : एक शताब्दी में चार-चार अकाल की परिस्थिति में आपद्ग्रस्त हुए श्रुतज्ञान को वीरात् ९८० (मतान्तर से ९९३) में भारतवर्ष के समस्त श्री संघ समवाय को तृतीय आगम वाचना हेतु वलभी में एकत्रित कर आगम के पाठों की वाचना स्थिर करने वाले पूज्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अमर स्मृति में जैन एवं आर्य संस्कृति की अमूल्य निधि रूप हस्तप्रत अनुभाग का नामकरण किया गया है. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यहाँ आगम, न्याय, दर्शन, योग, साहित्य, व्याकरण, आयुर्वेद, इतिहास, ज्योतिष आदि विषयों से सम्बन्धित लगभग २,५०,००० हस्तलिखित ग्रन्थों का विशाल ज्ञान सागर संगृहित है. इसमें लगभग ३,००० प्राचीन एवं ताड़पत्रीय ग्रन्थ विशिष्ट रूप से संगृहित हैं. इनमें से बहुत से ग्रन्थ ऐसे हैं जो अन्यत्र दुर्लभ होने से अनमोल हैं. इन ग्रन्थों की सुरक्षा हेतु विशेष रूप से हस्तनिर्मित कागज का आवरण लगाया गया है एवं खास ढंग से निर्मित काष्ठ-मंजूषाओं में सुरक्षित रखने का कार्यक्रम है. इस हेतु भूमिगत संरक्षण कक्ष का निर्माण करवाया गया है एवं इनका पारम्परिक ढंग से एवं अद्यतन साधनों द्वारा उपचार किया जाता है जिससे भविष्य में इन्हें और क्षति का सामना न करना पड़े. __ प्राच्य विद्या के विविध विषयों में संशोधन करने हेतु सुयोग्य विद्वानों को इनकी फोटोस्टेट प्रतियां उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. जिसका अग्रगण्य विद्वान लाभ ले रहें हैं. ___ संगृहित हस्तप्रतों की अन्तर्निहित सूचनाओं के सम्यक् उपयोग हेतु कम्प्यूटरीकृत सूचना व्यवस्था विकसित की गई है. इस पद्धति से अभी तक ग्रन्थों में उपलब्ध ज्यादातर कृतियों की सूचनाएँ कम्प्यूटर पर उपलब्ध कर दी गई है तथा कम्प्यूटरीकरण का कार्य तीव्र गति से प्रगति पर है. हस्तप्रत भाण्डागार में संग्रहित अमूल्य एवं दुर्लभ हस्तप्रतों की माईक्रोफिल्म बनवाने की योजना भी है. यह हस्तप्रत भाण्डागार भारत के जैन ज्ञान भंडारों ही नहीं वरन् अन्य ग्रन्थालयों में भी अनूठा एवं अग्रगण्य स्थान रखता है. आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार : जैनागमों के प्रथम वाचनादाता आर्य सुधर्मास्वामी को समर्पित यह विभाग मुद्रित पुस्तकों का व्यवस्थापन For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करता है. इस विभाग में जैन एवं भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित लगभग एक लाख से भी ज्यादा मुद्रित पुस्तकें व मुद्रित प्रतें संग्रहित हैं. इन पुस्तकों की सुरक्षा हेतु आगे पीछे दोनों ओर खुलने वाली आलमारियों की सुन्दर व्यवस्था की गई है. सभी पुस्तकों पर लेमिनेटेड खाखी कागज का आवरण चढ़ाया गया है जिससे पानी तथा धूल से इन्हें क्षति न हो. नियमित समयबद्ध कार्यक्रमानुसार इन ग्रंथों का विशेष रूप से वने चेम्बर में केमिकल्स द्वारा फ्यूमिगेशन किया जाता है. इस संग्रह को इतना समृद्ध करने की योजना है कि जैन धर्म से सम्बन्धित कोई भी जिज्ञासु यहाँ आने पर अपनी जिज्ञासा परितृप्त कर के ही जाए. अभी ९६,००० से ज्यादा पुस्तकों की विशद् सूचनाएँ कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं जो अन्यत्र किसी भी ग्रन्थालय में उपलब्ध नहीं हो पाती. इन पुस्तकों के उपयोगकर्ताओं में विशेष रूप से जैन समाज के साधु-साध्वी भगवन्त, मुमुक्षु वर्ग, श्रावक वर्ग तथा संशोधक विद्वान सम्मिलित हैं. पुस्तकों की उपलब्धता व शोध सहित लेन-देन तक की सभी प्रक्रियाएँ कम्प्यूटर द्वारा बहुत ही सरल एवं सुविधापूर्ण पद्धति से संचालित की जाती है. आर्य रक्षितसूरि शोधसागर : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मन्दिर के इस प्रकल्प का मुख्य ध्येय जैन परम्परा के अनुरूप जैन साहित्य के सन्दर्भ में गीतार्थ निश्रित शोध-खोल/अध्ययन- संशोधन हेतु यथा सम्भव सामग्री व सुविधाओं को उपलब्ध कराकर उसे प्रोत्साहित करना व सरल/सफल बनाना है. ११ कम्प्यूटरों, ४ प्रिंटरों, १ स्केनर तथा १ डिजिटल कॉपियर कम प्रिन्टर व १ फोटोस्टेट मशीन से सुसज्ज इस अनुभाग में अध्येताओं को ज्ञान मंदिर में उपलब्ध सभी ०७ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकार की अध्ययन सामग्री यथा- कृति, पुस्तक, हस्तप्रत, पुरावस्तु आदि के विषय में on line सूचना प्राप्त हो सके इसके लिए विशेष प्रकार की कम्प्यूटर सुविधाएँ यहाँ पर ही विकसित की गई हैं. सभी संग्रहित हस्तप्रतों एवं पुस्तकों की विस्तृत सूचनाएँ कम्प्यूटर पर संग्रहित की जा रही हैं. इस सूचना पद्धति को चार भागों में बाँटा गया है यथा प्रथम वर्ग में कृति से सम्बन्धित, जिसके अन्तर्गत कृति नाम, कृति के एकाधिक अपरनाम, आदिवाक्य, कृति का स्वरूप (जैसे- मूल, टीका, भाष्य, वृत्ति, छायानुवाद, अनुवाद, अध्ययन, सारांश आदि), कृति के कर्ता का नाम, कर्ता के अपर नाम, कर्ता की कुल परम्परा (जिसमें गुरु, शिष्य आदि के नाम तथा समयावधि सम्मिलित है), कृति की भाषा एवं लिपि, परिमाण, अध्याय, आदिवाक्य, अंतिमवाक्य, रचना वर्ष, रचना स्थल, कृति का प्रकार (गद्य, पद्यादि) सूचनाएँ प्रविष्ट की जाती है. दूसरे वर्ग में प्रकाशन से सम्वन्धित सूचनाएँ आती हैं. इस वर्ग में मुद्रित पुस्तकों एवं मुद्रित प्रतों हेतु प्रकाशन नाम, प्रकाशन के एकाधिक प्रचलित नाम, खण्ड एवं भाग आदि, आवृत्ति, प्रकाशक, प्रकाशन स्थल, प्रकाशन वर्ष, पृष्ठ, प्रकाशन से सम्बन्धित विशेष सूचनाएँ. सम्पादक, संशोधक, संग्राहक, संयोजक, संकलनकार, ग्रंथमाला नाम ग्रंथमाला प्रकार एवं ग्रंथमाला संख्या आदि के विषय में सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट की जाती है. __ तृतीय वर्ग में पुस्तक या हस्तप्रत की ग्रन्थालयीय संख्या, ग्रंथालय में उनके रखने के स्थान का संकेत, मूल्य, देय/अदेय, पुस्तक की दशा, प्राप्ति स्रोत (भेंट देने वाले का नाम अथवा पुस्तक विक्रेता का नाम) For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तथा पुस्तक से सम्वन्धित कोई विशेष सूचना हो तो वह आदि . चतुर्थ वर्ग में हस्तप्रतों के लिए प्रत क्रमांक, प्रत का स्वरूप (यथाकागज, ताड़पत्र, भोजपत्र, गुटका आदि), प्रतिलेखक का नाम, प्रतिलेखन स्थल का नाम, प्रतिलेखन वर्ष आदि की सूचनाएँ उपलब्ध की जाती हैं. यहाँ विकसित किये गये इस प्रोग्राम के अन्तर्गत किसी भी प्रकाशन/कृति/पुस्तक हस्तप्रत के विषय में किसी भी प्रकार की छोटी सी छोटी जानकारी मात्र ही ज्ञात हो तब भी उनसे सम्बन्धित सूचनाओं को पलक झपकते ही प्राप्त किया जा सकता है जो शिक्षण जगत में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है. निरन्तर इस प्रोग्राम को आवश्यकता एवं उपयोगिता के अनुसार अद्यतन किये जाने की प्रकिया चल ही रही है. ___ संस्कृत, प्राकृत ग्रंथों के परिशिष्ट में देने योग्य शब्द सूची बनाने हेतु Word Index प्रोग्राम खास तौर पर तैयार किया गया है. इससे संशोधकों का बहुत ही समय अकारादि करने का बच जाता है तथा Double Entry नामक विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम विकसित किया गया है जिससे संस्कृत, प्राकृत आदि ग्रंथों के प्रूफ रीडिंग का कार्य नहींवत स्तर पर लाकर अशुद्धिरहित प्रकाशन हेतु विद्वानों का समय और श्रम बचता है एवं प्रकाशन की विश्वसनीयता बढ़ती है. जिसकी जैन समाज एवं विद्वद वर्ग ने भूरि-भूरि अनुमोदना की है. यह ज्ञान मन्दिर की एक विशिष्ट उपलब्धि है. सम्राट सम्प्रति संग्रहालय : जैन सांस्कृतिक एवं श्रुत परम्परा का रक्षक तथा जैन एवं आर्य संस्कृति की झाँकी का दर्शन कराता सम्राट सम्प्रति संग्रहालय निर्मित हुआ है. भगवान महावीरस्वामी के आदर्श सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार एवं जैन धर्म एवं संस्कृति के प्रति गौरव For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जागृत करने जैन सांस्कृतिक धरोहर और कला संपदा का संरक्षणसंशोधन करने तथा इस हेतु लोक जागरण के उद्देश्य से यह संग्रहालय कार्य करता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संग्रहालय में प्राचीन एवं कलात्मक रत्न, पाषाण, धातु, काष्ठ, चन्दन एवं हाथी दांत की कलाकृतियाँ विपुल प्रमाण में संग्रहित की गई है. इनके अलावा ताड़पत्र, एवं कागज पर बनी सचित्र हस्तप्रतें, प्राचीन चित्रपट्ट, विज्ञप्ति पत्र, गट्टाजी, प्राचीन लघु चित्र, सिक्के एवं अन्य परम्परागत कलाकृतियों का भी संग्रह है. इस संग्रहालय मे विशेष रूप से जैन संस्कृति, जैन इतिहास और जैन कला का अपूर्व संगम है. समस्त संग्रह की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए एक अद्यतन प्रयोगशाला भी स्थापित की गई है. जिसमें समय - समय पर कलाकृतियों का वैज्ञानिक पद्धति से रासायनिक उपचार किया जाता है. संग्रहालय आठ खण्डों में विभक्त है : १. वस्तुपाल तेजपाल खण्ड, २. ठक्कर फेरु खण्ड, ३. परमार्हत् कुमारपाल खण्ड, ४ जगत शेठ खण्ड, ५. श्रेष्ठी धरणाशाह खण्ड, ६. पेथडशा मन्त्री खण्ड, ७. विमल मन्त्री खण्ड, ८ दशार्णभद्र मध्यस्थ खण्ड. प्रथम एवं द्वितीय खण्डों में पाषाण एवं धातु की प्राचीन एवं दुर्लभ कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है. जिसमें प्रवेश करते ही प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव की वि. सं. ११७४ में बलुआ पत्थर से बनी प्रतिमा, वसन्तगढ़ शैली की धातु से बनी तीर्थंकरों आदि की (७-९वीं शताब्दी) की प्रतिमाएँ अपनी अलौकिक एवं अभूतपूर्व मुद्राओं के साथ दर्शकों को आकर्षित करती है. यहाँ पर ईसा की सातवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक की विभिन्न स्थानों एवं शैलियों की पाषाण एवं ९० For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातु निर्मित प्रतिमाएँ भी प्रदर्शित हैं. दूसरे खण्ड में जिन मंदिर के विभिन्न काष्ठ एवं पाषाण निर्मित द्वारसाख, देव देवी, शालभजिका, अप्सरा एवं शाहीदाता आदि आकर्षक कलाकृतियों को रोचक ढंग से प्रदर्शित किया गया है. तृतीय एवं चतुर्थ खण्ड में जैन श्रुत परम्परा से सम्बन्धित सामग्री अनोखेपन के साथ प्रदर्शित की गई है. ईसा पूर्व तीसरी से ईसवी सन् की पन्द्रहवीं शताब्दी तक ब्राह्मी लिपी का विकास, आलेखन माध्यम, आलेखन तकनीक एवं आलेखन संरक्षण के नमूने प्रदर्शित किए गये हैं. इनके अलावा आगम शास्त्र एवं अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित हस्तलिखित ग्रंथ भी प्रदर्शित किये गये हैं. पाँचवे और छठे खण्ड में गुजरात की जैन चित्र शैली के ईसा की ग्यारहवीं से अठारहवीं शताब्दी तक के चित्र, सचित्र हस्तप्रतें, सचित्र गुटके, आचार्य भगवन्तों को चातुर्मास के लिए आगमन हेतु अनुरोध करते विज्ञप्ति पत्र एवं प्राचीन वस्त्रपट्ट, कलात्मक यन्त्र- चित्रादि प्रदर्शित किये गये हैं. सातवें खण्ड में चन्दन, हाथीदाँत एवं चीनी-मिट्टी की बनी कलात्मक वस्तुएँ प्रदर्शित की गईं हैं, जो दर्शकों का मन मोह लेती हैं. साथ ही यहाँ परम्परागत कई पुरा वस्तुओं का प्रदर्शन भी किया गया है. यह सामग्री जो दर्शकों को अपने गौरवपूर्ण अतीत को स्मरण कराने के साथ ही जैन धर्म एवं दर्शन के प्रति चिन्तन-मनन एवं इस सम्बन्ध में और अध्ययन के लिए आकर्षित भी करती है. जैन संस्कृति की प्राचीनता एवं भव्यता के प्रमाण समाज को दिखाना एवं उनके प्रति अनुराग उत्पन्न कर इस विषय में शिक्षित करना इस संग्रहालय का प्रमुख ध्येय है. For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के उद्देश्य १. समग्र उपलब्ध जैन साहित्य की विस्तृत सूची तैयार करना. २. समग्र हस्तलिखित जैन साहित्य की विस्तृत सूची तैयार करना. ३. समग्र मुद्रित जैन साहित्य का विस्तृत सूची पत्र तैयार करना. ४. अप्रकाशित प्रकाशित जैन साहित्य का सूची पत्र तैयार करना. ५. प्राचीन- अर्वाचीन जैन विद्वानों (श्रमण व गृहस्थ- दोनों) की परम्परा व उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से सम्बन्धित जानकारी संगृहित करना. ६. अप्रकाशित अथवा अशुद्ध प्रकाशित जैन साहित्य को संशुद्ध कर प्रकाशित करना तथा प्रकाशित करने के लिए प्रेरित करना. ७. हस्तप्रत तथा पुरावस्तु संरक्षण, ग्रन्थों का एकत्रीकरण, उपयोग/ तथा प्राप्त ज्ञान का बहु उद्देशीय सकारात्मक प्रसार करना. ८. जैन अध्ययन एवं अध्यापन की सुविधा उपलब्ध करना. ९. भारत में यत्र-तत्र विहार कर रहे तथा चातुर्मास के दौरान स्थिरता कर रहे पूज्य साधु-भगवन्तों तथा स्व-पर कल्याणक गीतार्थ निश्रित सुयोग्य मुमुक्षओं को उनके अध्ययन-मनन के लिए सामग्री यथा- संग्रहित सूचनाओं, सन्दर्भो एवं पुस्तकों को उपलब्ध कराने के साथ ही दुर्लभ ग्रंथों एवं हस्तप्रतों की फोटोस्टेट प्रतियाँ उपलब्ध कराना. For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०. विविध विषयों, लुप्त हो रहे ज्ञान तथा नवीन सिद्रियों यथा कृतियों/प्रकाशनों/पारम्परिक तकनीकी ज्ञान-विज्ञान को लोगों के समक्ष रखना. ११. लोगों को उनके गौरवमयी अतीत व पूर्वजों की उपलब्धियों का दर्शन कराना, प्रशिक्षित करना जिससे उन्हें उनके प्रति अनुराग उत्पन्न हो तथा वे जैन धर्म-दर्शन तथा संस्कृति की ओर अपनी जिज्ञासा बढ़ाएँ. १२. पाश्चात्य संस्कृति की ओर उन्मुख बाल-युवा एवं तथाकथित आधुनिक जनमानस की वाह्य सांस्कृतिक क्रमण से रक्षा करने के लिए चारित्र विकासलक्षी प्रवचन, कार्यक्रम, शिविर, गोष्ठी, वार्ता सत्रों आदि का आयोजन करना. १३. श्रुत संवर्धक विविध साहित्य बिना किसी मुनाफे के उचित मूल्य पर प्रकाशित करना. १४. बदलते देश काल व वैश्विक सन्दर्भ में मुद्रित के साथ-साथ इलेक्ट्रानिक माध्यमों आदि से लोक रूचि के अनुरूप तरीकों से जैन ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना. For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाध्याय प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म.सा, For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VIIKONPT For Private And Personal Use Only