Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ धर्मना दरवाजाने जोवानी दिशा अथवा तत्त्वाऽतत्त्व विचारः श्रीमदानंद विजय मूरीश्वर (प्रसिद्ध नाम श्री मदात्मारामजी) लघुशिष्येन अमरमुनिना संकलितः ॥ प्रसिद्ध करनार, मुनि अमरविजय जैनपाठशाला. गाम सीरशाला-तालुका आमलनेर. _(जिल्ला खानदेश.) सत्यविजय प्रेस,-पांचकुवा नवा दरवाजा, अमदावाद. वीर संवत २४३४. संवत १९६४. सने १९०७. कीमत आना पांच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अनुक्रमणीका - ॥ प्रकरण श्रीजं. विषय -- १. ग्रंथोनी स्तुतिरूप मंगलाचरण दुहा२ सम्यक् एटले साचाने साचु जाणवुं ते. ३ समकितना नवभेद अने तेनो विचार. ४ नवभेदनी अयोग्यतामां जीवना भेदोनुं उदाहरण. ५ सम्यक्त्वना भेदो विषयमां श्लोकोथी स्वरूप. ६ वाडीलालना लेखनो आपस आपसथी विचार. ७ व्यवहार समकित अने तेनो विचार. ८ दीपक समकित अने तेनो विचार. इति प्रकरण त्रीजानो विचार. हवे प्रकरण चोथुं - २५ बोलनं. ९ पचीश (२२) बोलनो सामान्य विचार. १० पचीश बोलना केटलाएक नमुना. ११ ते केटलाएक नमुनानो विचार. १२ ते पचीश बोलमांना प्रमाण विषयनो विचार. १३ ते पचीश बोलमांना नयोना विषयनो विचार. १४ चार निक्षेपना विषय संबंधी वाडीलालनोज लेख. १५ निक्षेप संबंधी ढकना लेखनो विचार. १६ प्रथम नाम निक्षेप सूत्र अने तेनुं लक्षण. १७ वीजो स्थापना निक्षेप, सूत्रपाठ अने तेनुं लक्षण. १८ तृतीय द्रव्य निक्षेप, सूत्रपाठ अने तेनुं लक्षण. १९. चतुर्थ भावनिक्षेप, सूत्रपाठ अने तेनुं लक्षण. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पृष्ट.. ८ ९. ११ १२ १६ १८ २१ २३ २४ २३ (७) 9. २७ ३३ ३७ ४४ ५० ५१ ५५ ५८ ६१ www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ १२६ २० ढूंढके बतावेला प्रथम नाम निक्षेपनो विचार. २१ ढूंढके बतावेला द्वितीय स्थापना निक्षेपनो विचार, २२ ढूंढके वतावेला तृतीय द्रव्य निक्षेपनो विचार. २३ ढूंढके वतावेला चौथा भाव निक्षेपनो विचार. २४ चार निक्षेपना विषयनो तात्पर्य. २५ ढूंढकना सूत्र विषयिक चार निक्षेपनो विचार. १०५ २६ निक्षेपाना बोधना माटे किंचित् विचार. २७ सामायिक उपर घटावीने बतावेल। चार निक्षेपोनुं स्वरुप.११८ २८ चार निक्षेपना विषये शंकित्त पुरुषनो पूर्व पक्ष. १२५ २९ हवे ते शांकित पुरुष, समाधान. ३० फरीथी बीजी शंका अने तेनुं समाधान. १२८ ३१ बधीदुनीया पण चार निक्षेप माने छे. तेनो सामान्य विचार. १३१ ३२ ढूंढक अने मूर्तिपूजकनो निक्षेपोना विषय संवाद. १३४ ३३ जैन सिद्धांतोमा वर्णन करेली क्रियाओना निक्षेपोर्नु ११७ ३४ ढूंढके अगडं बगडं रूपे लखेगुं सात नयोनुं स्वरूप.. ३५ जिन प्रतिमा उपर स्तवन बे. ३६ सम्यक्त्वना ६७ बोलनु प्रकरण ५ मुं. ३७ एज वोलनो सिद्धांत अने ढूंढकना लेखनो मुकाबलो करीने बतावेलो छे. १८१ ३८ मिथ्यात्व नामना प्रकरण सातमानो विचार. ३९ दूंढकना दया नामना ध्रुव तारानु स्वरूप. २०१० - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॐ नमो वीतरागाय. ॥ ॥ प्रस्तावना ॥ पाठकवर्ग ! पार्वती नामनी ढूंढनीए, अनुयोगद्वारसूत्रनो किंचित् मात्र पण आशय समज्या वगर, गणधर महाराजाओथी विपरीत थइने, आपणी मतिकल्पनानी जाल पाथरवाने, सत्यार्थचंद्रोदय नामना पुस्तकनी रचना करी, अनेक लोकांने अंधाकुवामां नाखवानो उपाय कयों हतो. ते पुस्तक मारा वांचवामां आववाथी, भव्य पुरुषोना हितमाटे तेनुं, किंचित् मात्र दिगदर्शन थवा उत्तर लखी रह्यो हतो. । एटलामांज फरीथी एक बीजू पण पुस्तक जोवामां आव्युं, तेनुं नाम जोतां, सम्यक्त, अथवा, धर्मनो दरवाजो, परंतु विचार करी जोतां, जैनमतना क्रम विना, तत्वना विषयोथी अस्त व्यस्तपणे घणेक ठेकाणे रचायलं होवाथी, केवल भ्रम - चक्रमांज पाडी दे तेवं मालम पडयुं । आ पुस्तकनो रचनार कोन हशे तेनी तपास करतां, प्रकाशक होवो जोइये, एम अर्पणपत्रिका विगरेथी निश्चय थयो । केमके त्यां लखेलुं छें के, पूज्यपाद श्री मणिलालजी महाराज म्हारी दक्षिणनी मुसाफरी वखते आप श्रीनां दर्शन थतां आपे, सम्यक्क, विषयमां म्हारी केटलीक शंकाओनं समाधान करी म्हने ते विषय उपर स्वतंत्र लेख लखवा शक्तिमान कर्यो, रहेना स्मरणार्थ आ न्हानकडुं पुस्तक आप श्रीनेज सविनय अर्पण करवानी रजा लउंछं. इत्यादि आभारी बाल. वा. मो. शाह. आ अर्पणपत्रिका उपरथी स्पष्टपणे समजाय छे के, प्रकाशक अने ग्रंथनो योजक एकज पुरुष छे । जणाववानुं एज छे के, अमारा ढूंढक श्रावको पण लखाण करवाने सर्व महा पुरुषोथी निरपेक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थइ घणा आगल वधवाने जाय छे, परंतु एक पण वातनो विचार पुक्तपणाथी कर्या विना जैन सिद्धांतोथी, तेमज जैन ग्रंथोथी तदन विपरीतपणे मोटा मोटा विचारो करवाने उत्तरी पडे छे. । अने परमार्थ समज्या विना महान् महान् आचार्योने, तेमज गणधर महापुरुषोने पण, दूषित करीने जे मनमां आवे छे ते बकी कहाडे छे. । जेमके सत्यार्थचंद्रोदय पृष्ट ७५ ओ. ७ मां ढूंढनी पार्वतीए बकी काहयुं छे के. सूत्रोंमें ठाम ठाम जिन पदार्थोसे हमारा विशेष करके आत्मीय स्वार्थभी सिद्ध नहीं होता है उनका विस्तार सैंकडे पृष्टों पर लिखधरा है. ... अही विचार करवानो एटलोज छे के, गणधर महाराजाओथी पण, ढूंढनी पार्वतीनी बुद्धि, केटली बधी आगल दोडीने गइ छ । केमके शास्त्रोमां तो अर्बु लखेलुं छे के, एक सूत्रनो अर्थ पण अनंत छे, एवी महा गंभीरवाणीथी गणधर महाराजाओए सूत्रनी गूंथनी करेली छे, ते महा गंभीरवाणीने, सैंकडो पृष्टोंपर निरर्थकपणे कहेतां, ढूंढनी काइ पण विचार कर्यों होय तेम जणातु नथी. । ते ढूंढनी पार्वतीनुंज अनुकरण, शाह वाडीलाल मोतीलाले पण कर्यु होय एम जणाय छे, परंतु आपणा दरजानो विचार बिलकुल कर्यो नथी, अने जे मनमां आव्युं ते बकी काहडी, केवल समज्या विना अडदा लु भइडी काहडयु छे. । परंतु एक पण महापुरुषनो आश्रय लइ लेख करवामां उतरेला होय एम जणातु नथी । केमके तेोज उपोदघातना पृष्ट. १२ मा लखे छे के, ज्ञाननो दरवाजो केम खोलवो स्हेने माटे तेओ कुंचियो मुकता गया छे, एम लखी. पृष्ट. १३ मां लखे छे के, वाचक ए महाजनोनां नाम पुछवा इछा करशे, परंतु ज्यां सर्व महाजनोनी नोंध एक सरखी छे त्यां कोतुं नाम देव । एम कही छेवटमां कहे छे के जो वाचकने नामनो कहोवाट न होय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो ते नाम जैन छे, अन हुँ तो वीतरागनी नोंध ए नामथी औलखाव वधारे पसंद करुं छं. हवे आ लखथी विचार करवाना ए छे के, ज्यारे जननी के वीतरागनी नोंध करीने बताववी छे तेमां, वाडीलाल शाहने ग्रंथोनुं के सिद्धांतनुं नाम आपतां कोनी चोरी हती अने वाचकने नामथी कहोवाट थवा, पण शुं प्रयोजन हतुं ? केमके पुस्तकनुं नाम, सम्यरक, अथवा धर्मनो दरवाजो राखेखें छे. । अने पृष्ट. १३ ना अंतमा शाह. वाडीलाल पण लखे छ के, धर्मरूपी मेहलमा प्रवेश करवा माटे. प्रथम सम्यत्कनो दरवाजो खोलवो जोइए, ए दरवाजेथीज महेलमा प्रवेश थाय छे, आ वात कोण कबुल नहीं राखे । । हवे आ लेख उपरथी पण विचार करो के, जे जैनधर्मरूपी मेहलमा प्रवेश करवा माटे सम्यकरूपी दरवाजा खोलवाने तत्पर थर्बु छे, ते काइ जेवी तेवी वात नथी, केमके प्रथम दरवाजानीज खबर न पडे तो पछी महेलमां ते प्रवेश शी रीते थइ शके ! वास्ते सूत्रनुं के ग्रंथy नाम अवश्य बतावकुंज जोइतुं हतुं. । केमके ठाम ठेका' जाण्या विना सम्यकना लाभने माटे पाठकवर्गने कइ दिशामां फांफां मारवां. ____ अने जे जैन नाम आप्युं छे, तमां पण विचार करवा जेवू छ. । कमके जैनमा श्वेतांबर, अने दिगंबर. आ वे संप्रदाय घणा वखतथी जूदा पडेलाछे. । अने ढूंढीया, तेमज तेरा पंथी, जे छे तेतो मूल विनानी एक डालरूपे छे. । वास्ते सम्यक्तरूपी धर्मनो दरवाजो जोवाने, सूत्र अथवा महापुरुषोना ग्रंथरूपी दिशानुं अवलोकन जरुर थर्बुज जोइतुं हतुं? - अगर तमो दिगंबरने कबूल न राखतां श्वेतांबरने कबूल राखता हशो तो ते मूर्तिपूजकोज छे ! अगर तमो जोरा जोरी कदी एम कहेवा मागशो के सनातन श्वेतांतरतो अमोज छीये ? तापण अमो, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यक्क, अथवा धर्मना दरवाजानी कुंचीयोना कहेवा बालानां नाम, अने ते सिद्धांतनां नाम तो, अवश्यज पुछीशुं ? केमके जे आकुंचीयो छे ते, अमारा जाणवा प्रमाणे ढूंढकोए मालां बीश सूत्र छे तेमां छेज नही ? तो पछी क्यांथी बतावी शकवाना छो ? वली आश्चर्य तो एज छे के, जेना घरनुं यत्किंचित् लेड भागो छो, तेनो मेल (अर्थात हिशाबे) तमाराधी मली सकतो नथी एटले, यद्वा तद्वा बकी तेमनेज चोरीनु आल मुकवा प्रयत्न करो छो, तो पछी तमारा जेवा गंठीछोडा ते बीजा कोने गणना ? केमके तमो पृष्ट. २११ मां एम लखो छो के, मस्तानी भैशोए सूत्रोना शुद्ध जलने, ग्रंथरूपी शींगडांथी डोहली कादवमिश्र कर्तुं छे. ।। परंतु आ अमारा किंचित् मात्र करेला विचारथी, विचार करी जूवो के, मस्तानी भैशोनुं आचारण करवा वाला, तमारा ढूंढको छे के बीजा कोइ छे ? केमके प्रथम तो ढूंढनी पार्वतीए, गणधर महाराजाओथी पण विपरीत थइने, मस्तानी भैसनुं आचारण करी जैन सिद्धांतोना सैंकडो पृष्टोंना लेखने निरर्थक ठराव्या । अने आ सम्यक्त्त नामना पुस्तकनी रचना करी बधाए जैन तत्त्वोनुं विपरीतपणुं करवाथी तमो भैसानु आचरण करवा तैयार थया छो ? केमके सर्व जैनाचार्योने तुछ समजी, आपणी मूढमतिनेज आगल मुकवा तैयार थया छो. । माटे तमारी जैनतत्व समजवामां बुद्धिनी प्रबलता केटली छे, अने तमो जैनतत्वोना विषयमां शुं समजेला छो, तेनुं दिग्दर्शन थवा माटे, सूक्ष्मविचाराने छोडी दइ, केवल स्थूल विषयोनो विचार करी बताaar, क्रमाक्रम पणानो पण विचार छोडीने सूची धराना न्यायी विचार करवाने उतरी पडीश. ।। के जेथी वाचकवर्गने aadi अने समजतां पण कंटालो आवे नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ धर्मना दरवाजाने जोवानी दिशानु श्रद्धीपत्रक ॥ पृष्ट. ओली. ५-२१ ६–६ ११-६ श्रुद्ध. सम्यक्त्व. हिशाव. सम्यक्त्व आ सम्यक्त्व शब्द ज्यां आवे त्यां समजी लेवी अमो फरी श्रद्धी पत्रकमां दाखल करता नथी. पंचेद्री करलोज ऊप समासउ शेलीने तनाथी १३-२४ १६-१७ २१-१८ ३६ ४२—६ ४३=१० ४६-११ ४७-८ ५१-२१ ५८-१४ ६२-२० ६९-१० अश्रुद्ध. सम्यक्त हिशाबे सम्यत्क ६६-२० ६९-१६ ७३-१७ खरखेरो मोहघरमां जीवरसवा व्त्राव सयं युक्तपणाथी यकाय तिरर्थक पंचेद्री करेलाज सत्रपाठ गड़ताए ६६---३ रूषभ ऋषभ एवी रीते " ऋषभ " शब्द बधे ठेकाणे समजी लेवो वारंवार अमो नांध करता नथी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat उप समासओ शैलीने तेनाथी खरेखरा मोहनघरमां जीवरसवा दव्वावस्तयं सूत्रपाठ गद्भत्ताए पुक्तपणाथी शकाय निरर्थक www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७–६ १०३ - १६ १११-१० १४७ -- ३ १४७–११ १४७-११ १५२–३ १५२-२५ १६१-१० १७९-२१ १७६-१८ १९४–२ १९५ - डेली अनंत आवश्यकथा थयला थयेली नो पाठ बेवडी थयेलो छे । ऋजुसूत्र आ ४ जे हयमां तरत मताना रुजुसूत्र लेस्वनो त्यारे ज्यारथी गौत अनंत आवश्यकथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४ ऋजुसूत्र आ जे हृदयमां तरतमताना ऋजुसूत्र लेखनो त्यारे गौतम समाप्तोजातः समाप्तीकृतः जे सहजपणाथी समजी सकाय तेवा शब्दोनी नांध अमोए शुधी पत्रमां ग्रहण करवानी उपेक्षा पण करी छे त्यां पाठक वर्गज सुधारीने वांचवानी भलामन करुछु. ॥ www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॐ नमो शांतमूर्त्तये ॥ ॥ धर्मना दरवाजाने जोवानी दिशा. ॥ ॥ मंगलाचरण. || दुहा. वीतराग वाणी नमुं, सूत्र समुद्र अगाध । ॥ २ ॥ 11 3 11 प्रवेश करवा तेहमां, प्रकरण नही छे बाध ॥ १ ॥ परंपराना ज्ञाननो, छे जेह मांहि माल । छोडी कुमति तेहने, चाले अपणी चाल गोतां मारे तेहमां, मारि हाथ चउ फेर । कुर्क दरपणनी परें, मनमां बांधे जेर साचे कूं जूठा कहें, जूठेकु कहे साच । अरथ अनर्थ मतिथी करि, नाचे बहु विध नाच ||४|| माटे तत्त्व दिशा ग्रही, ग्रही वली गुरुना पाय । भणे भणावे तेहनो, दुःख सब दुर पलाय ॥ ५ ॥ समकित नथि मिथ्यात्व छे, जिहां नही शुद्ध विचार | दरवाजो नथी धरमनो, छे चउगतिनुं द्वार || ६ || एम जाणी हुं आदरु, समकित तणो विचार । दिशावलोकन कारणे, लखिशुं बोल दुचार ॥ ७ ॥ १ सूत्ररूप समुद्रमां गोतां मारवाथी, अमारा ढूंढक, भाइयो प्रकरणो जूवे छे तेनो पण आशय, गुरु विनाना समज्या वगर, दर्पणमां प्रतिबिंब जोवावाला अज्ञानी कुकडानी परे, ग्रंथकारो प्रति जेर बांधे छे, परंतु योग्य विचार करी सकता नथी । दूहो. ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ धर्मनो दरवाजो, प्रकरण तीजानो विचार ॥ वाडीलाल--पृष्ट. ३४ ओ. ३ थी लखे छे के, गुरु पासेथी मेलववानुं शुं होइ शके ? समकित, अथवा सम्यक्त्क, सम्यक् एटले रुडा प्रकारे जाणवापणुं ते. एनो सरल अर्थ एटलोज के साचाने साचा तरीके ओलखवू ते, आ वात लखवानुं प्रयोजन ए छे के, साचाने साचं जाणवू तेनुं नाम सम्यक छ. ए वात सत्य छे. परंतु धर्मनो दरवाजो ए नामथी पुस्तकना लखवा वालाए, साचे साचुं समजेलं छे के नही ते वातनो विचार अमारा लेखथी वाचकवर्ग करे ते वास्ते आ वात प्रथम टांकी बतावी छे, एमां विशेष विचारवार्नु ए पण छे के, अक्षरना अर्थनी भूल हशे ते सामान्य मात्र के. हवाशे, परंतु जैनतत्वना विषयने, उलट पालटपणे कही, केवल स्वदुराग्रहने स्थापित करवा प्रयत्न करेलो हसे तो ते, तदन विपरीतरूप होवाथी, महा मिथ्यात्वज गणाशे. ते वात उपर वाचकवगने, विशेषपणे ख्याल करी लक्ष राखवानो छे. प्रथम हमारा ढूंढक भाईयो, अक्षरोनो सामान्य मात्र अर्थ पण, उलटपणे समजे छे तो पछी तत्वना विषयने केवी रीते समज्या हशे ! जूवो प्रकरण ३जे, पृष्ट ३६ ओ ११ मांथी तेमने लखेली गाथा अने अर्थ. नथ्यि चरित्तं समत्त विहणं, दसणे उ भइयव्वं ॥ समत्त चरिताई जुगवं, पुव्वं च सम्मत्तं १ अर्थः-समकित विना चारित्र ( मुनिपणुं तेमज श्रावकपणुं ) नथी, दर्शन अथवा समकित ज्यां छे त्यां, उभय ( समकित अने चारित्र बन्ने ) छे, समकित अने चारित्र ए बेना युगलमां प्रथम समाकत आवे छे. हवे ए गाथानो खरो अर्थ शुं छे ते लखी बतावीये छे. नवो उत्तराध्ययन छापानु, पृष्ट ८१० । अध्ययन २८ मां. । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यक विना चारित्र न होय, तेमज सम्यक होवा छतां पण चारित्रनी भजना, अर्थात् होय अथवा ना पण होय. जो कदापि सम्यक अने चारित्र एक साथे थयेट होय, तो पण पूर्वमा सम्यकज थाय, अने पछीथी चारित्र प्राप्त थाय. एवो अर्थ टीकाकारे, तेमज टब्बाकारे, करेलो छे. तेने समज्या वगर कंइन कंइ लखी मायुं छे. दर्शन कहो अथवा सम्यक कहो एकज अर्थ छे, तेने जुदा रूपमा मुकी केवल गोटालो वाली दीयो छे. अने "दसणेउ भइयव्वं" अर्थात दर्शने सति तु भजना, एम अर्थ करवानो हतो तेनो उभय छे, एम अर्थ करी देखाडेलो छ. आ एकज गाथाना अर्थमां केटलो बधों गोटालो छे, ते पाठक वर्गने विचार करवाथी जणाई आवसे. एज प्रमाणे, वधा जैन तत्वोने विपरीतपणे लखी गोटालो वाली दीधो छे, ते अमारा स्थूल मात्रना विचारथी पण वाचक वर्ग सारी रीते समजी सकशे. एवी आशा राखी आ लेखनो प्रारंभ करेलो छे. ॥ हवे तत्वपणाना फरकनो विचार करवाने उतरी पडीये छे. वाडीलाल-पृष्ट ३८ ओ. . मीथी लखे छे के, समकितना ९ भेद छे॥ ? द्रव्य समकिन. । २ भाव समकित. । ३ निश्चय समकित. । ४ व्यवहार समकिन. । ५ निःसर्ग समकित.। ६ उपदेश समकित.। ७ रोचक समकित. ( कारक समकित. । ९ दीपक समकित.।। विचार-प्रथम वाडीलालने, अमो एटलंज पुछीये छे के, जे नमोए आ त्रिजा प्रकरणमां, सम्यक्त्वना नव भेद ल.स्या छे ते. अने प्रकरण पांचमामां, सम्यकना ६७ बोल लरख्या छे ते. तमारा मान्य करेला कया सूत्रथी अथवा मान्य करेला कया प्रकरण ग्रंथथी लग्न्या छे. अने तमोर ते मूत्रनु अथवा प्रकरण ग्रंथतुं नाम कम बताज्यु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नथी, तेनुं कारण काइ समजायु नहि. शुं तमोएं तमारी अफलथी लख्या छे के मूर्तिपूजकोना ग्रंथनी चोरी करीने लख्या छ, तेनुं वाचक वर्गने शुं समजवू ? अमारा जाणवा मुजब तो, तमोए मूर्तिपूजकोना ग्रंथनीज चोरी करीने लख्या होय एम जणाय छे. केमके तमाराथी थरेली मोटी मोटी भूत्यो जोवामां आवे छे. अने भूल पण त्यांज थाय के, जे बीजाना घरनी चोरी करीने साहुकार बनवाने जाय. अगर तमो सूत्रथी, अथवा तमारा मान्य करेला प्रकरण ग्रंथथी, लख्या होय तो तेने सर्वथा प्रकारथी मान्य राखी नाम प्रगट करो ? अगर तमो लखसो के, अमोए अमारी अकलथी लख्या छे. के गमे त्यांथी लख्या छे. तमने पुछवानी शी जरुर छे. तो तेमां जणाववान एटलुंज के, धर्मना दरवाजाने जोवानी इच्छा तो, सर्व प्राणीमात्र ने होय छे, तेम ते धर्मना दरवाजाने, जोवानी अमोने पण पूर्ण अभिलाषा थयेली छे. तेथी ठाम ठेका' पुछवानी जरूरज छे. तमो कहे सो के, अमोए तो अमारी अकलथी लख्या छे. तो तमारा अने अमारा जेवा अल्पमतिना पुरुषो, आ जैनधर्मनो दरवाजो बतावी शके नहि, एवो निश्चय करी तमारा तुछ लेखनी उपेक्षा करी छोडी देइशं. अने ते जैनधर्मना दरवाजाने जोवा सारु, सागर बुद्धिना महापुरुषोने ज, आश्रित थइशं. अने तमो जेना घरनी चौरी करोछो तेमनेज, तुछकार करी, विचार शक्ति पामेलानी पंक्तिमां, दाखल थवा जावोछो, ए कांइ तमारु, सज्जनपणानु लक्षण जनातु नथी. आ अमारा करेला विचारने, एकांतमां बैसी निःपक्षपातपणे, विचार करी जोसो एटले मालम पडशे. अने जो खलपणुज धारण करी, वांकी नजरथी जोसो तो, उलटुज मालम पडशे. तेमां तो तमारी प्रकृतिनोज दोष गणाशे. हवे मूलना विचार उपर आवीये छे. ॥ तमोए जेवी रीते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર सम्यक्कना, नव भेद कर्या छे, तेवी रीते कोइ दिन पण बनी शके नही. अने तेवी रीतना नव भेद, कोइ आचार्याए कर्या पण नथी, केमके तमारा करेला, छ भेद शुधी शास्त्रकारोए, 'विवक्षाना वश थइने, ज़दी जूढ़ी रीते बवे भेदज करीने बतावेला छे. परंतु एकज विवक्षाथी सम्यक्कना छ भेद करीने बतावेला नथी. अने तेम बनी पण शके नहीज. केमके द्रव्य सम्यक, अने भाव सम्यकमां, जेटला सम्यक्कना भेद कर्या होय, तेटला बधाए भेदोनो, समावेश करी शकाय छे, तेथी वीजा बधाए भेदो, तेना अवांतर भेदोज गणाय, माटे द्रव्य सम्यक्क, अने भाव सम्यक्क, ए वे भेदज, विवक्षाना आधीनथी न्यारा गणाय. केमके द्रव्यसम्यत्कम भाव सम्यत्कनो समावेश न थइ शके. अने भावसम्यत्कम, द्रव्य सम्यत्वनो समावेश न थइ शके. माटे विवक्षाना वशथी, सम्यत्कना ए बे भेदोज, गणाय छे. जेमके विवक्षाथी, जीवना बवे भेद करीये. जीव ९ संसारी अने २ मुक्त. । अथवा ३ सूक्ष्म. अने ४ बादर. | अथवा ५ त्रस अने ६ स्थावर. | आ जे जीवना छ भेद छे ते, व भेदनी न्यारी न्यारी विवक्षाथी, करीने बताव्या, तेने, जीवना छ भेद कहीने, खीचड़ो करी शकाशे ! कोइ दाहाडो पण, छ भेद नहीं कहीशकाय मात्र विवक्षाथी बवे भेदज, कहा जाय, पण एवी तिना विवक्षाथी करेला बबे भेदोनो, एक ठेकाणे खीचडो न करी शकाय. अगर जो तेम धतुं होत तो, बंब भेटे न्यारा पाडीने न कहेता, एकज जगोपर छ भेद करी बतावतां शाकारोने, शुं अडचण पडती १ अनेक प्रकारथी शिप्यने, बोध करावव. नी इछाना आधिन थई नाना प्रकारथी करेला भेटो समजवा । आ प्रकारे सर्वत्र समजी लेवु. 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܙ हती. ? इस वास्ते तमारो लेख विचार पूर्वकज नथी. ॥ जुवो शात्रकारोनो अभिप्राय. सम्यत्कं चैकधाजीवे, तत्त्व श्रद्धानमेवच ॥ निश्वय व्यवहाराभ्यां दर्शनंच द्विधामतं. १ || अर्थः- तत्त्वना श्रद्धान मात्रनी विवक्षाथी, सम्यत्कनो भेद एकजगणाय. अने निश्चय, अने व्यवहारनी विवक्षाथी, तेज सम्यत्कना, वे भेद पण करी शकाय छे. १ ।। एमां समजवानुं एछे के, चेतना लक्षणथी जेम जीवनो एक भेद गणाय. तेम श्रद्धा न मात्रथी, सम्यत्कनो पण, एकज भेद गणाय. केमके ज्यारे चेतना लक्षणथी जीवनुं, ओलखाण कराववा मांडयुं. तो तेमां सर्व जीवोनो, समावेश थड़ जवाथी, एकज भेद गण्यो. तेमज श्रद्धान मात्रना लक्षणमां पण, सर्व सम्यत्कना भेदोनो, समावेश थइ जाय छे. ॥ तेवीज रीते निश्चय अने व्यवहारना सम्यत्कमां पण, बधाए सम्यत्कना भेदोनो, समावेश करी शकाय छे. जेम संसारी अने मुक्त. अथवा सूक्ष्म अने बादर. अथवा त्रस अने स्थावर. जीवोमां जूढ़ा जूढ़ा प्रकारना विवेचनथी सर्व जीवोनो समावेश करी शकीये छे. तेवीज रीते. आ सम्यत्कना विषयमां पण, जूढ़ी जूढ़ी विवक्षाथी, छ भेद शुधी, aa भेद, भिन्न भिन्न पणे समजवाना छे. परंतु अडद मगने भेगा इडी काहाडवाना नथी. हवे जूवो निःसर्ग अने गुरूपदेश सम्यत्कना पण, वे भेद, विवक्षार्थी भिन्नपणेज बताव्या छे. यथा- तीर्थकृत्प्रोक्त तत्त्त्रेषु, रुचिः सम्यत्कमुच्यते || लभ्यते तत्स्वभावेन, गृरूपदेशतो यथा ॥ १ ॥ अर्थः- तीर्थंकर भगवानना कहेला, तत्त्वोमां जे रुचि, तेनुं नाम सम्यक छे. अने तेनी प्राप्ति, वेज प्रकारथी थवानो संभव छे. परंतु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ था. त्रिजा प्रकारथी, प्राप्ति थवानो कोइ रीतथी पण संभव नथी. एक तो स्वभावधी पण, सम्यत्कनी प्राप्ति थाय छे. अने वीजी रीते, गुरु महाराजना उपदेशथी प्राप्त थाय छे. ॥ १ ॥ ___ हवे एमां विचारधार्नु ए छे के, सम्यत्कना, तमो गमे तेटला वीजा भेद, विवक्षाथी करो, पण आ बे प्रकारथी त्रिसरा प्रकारे प्राप्त थवानुज नथी. आ वे भेद, जे वताव्या, ते प्रामिनी विवसाथी करीने बताव्या छे. परंतु तमारी तरें खीचडो रांध्यो नथी. __ हवे गुणनी विवक्षाथी, त्रण भेद, फरीथी पण, करी बतावे छे. ॥ यथा. सम्पक दर्शनमेतच, गुणतस्त्रिविधं भवेत् ।। रोचकं दीपकं चैव, कारकं चेति नामतः । १ ।। अर्थः-आ सम्पक दर्शनना, गुणपणानी विवक्षाथी, त्रण पकारना भेद पण, करी शकाय छे. १ रोचक. । २ दीपक। अने ३ कारक. ॥ १ ॥ एमां समजवानुं एछे के, जेम: स्त्री, पुरुष, अने नपुंसक, । एम जीवना त्रण भेद करतां चौराशीलाख जीवयोनिना, जीवोनो समावेश करी शकाय पण जीव, एके बहार रहे नही. तेम आ त्रण कारना सम्यकमां पण, सम्यत्कना जेटला भेद अवांतरथी करीये, ते बधाए भेदोनो समावेश थइ जाय. ।। इहां शुधी तमारा नव भेद वतावेलानु, सामान्य स्वरूप कही बताव्यु. ॥ हवे एज विषयमां किंचित् स्पष्ट करी बतावीये छे. ॥ जेमके. जीवनी एक भेद-चेतना लक्षणथी. ॥ जीवना वे भेद--१ संसारीने २ मुक्तः । अथवा सूक्ष्म । ने बादर. । अथवा. त्रस ने थावर. ।। जीवना त्रण मंद--१ स्त्री.। २ पुरुष. ! ३ नपुंसक. ॥ जीवना चार भेद -? देवता. । २ मनुष्य. । ३ तिर्यंच. । ४ नारकी. ॥ जीवना पांच भेद. । – एकेंद्री. । बे इंद्री । तेरेंद्री. । चौरेंद्री. । पंचेंद्री. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवना छ भेद--- पृथ्वीकाय. २ अप्काय. । ३ तेउ काय. ४ वाउकाय. । ५ वनस्पतिकाय. । ६ त्रसकाय. ।। हवे आजे छ प्रकार मुधीमां, न्यारी न्यारी विवक्षाथी, जीवाना भेद करी बताव्या, ते वधानो सर्वालो करीने, जीवना २५ भेद करी शकीशुं अने एवी रीते जीवना २५ भेद लखतां योग्य पण थइ शकशे : कोइ दिन एम लखी पण न शकाय. अने लखवाथी योग्य पण न थाय. अने कोइ समज्या वगर लखे तो ते जैनमार्गनी शेलीथी विपरीतज गणाय. तेमज सम्यकना नव भेदमां पण थयंखें छे. जूवी के. प्रथम श्रद्धान मात्रनी विवक्षाथी, सम्यत्कनो एकज भेद, शास्त्रकारोए बताव्यो. ॥ फरीथी. निश्चय. अने व्यवहारनी विवक्षाधी. सम्यत्कना बे भेद, करीने बताव्या. वली प्राप्तिनी विवक्षाने लइने पण, बे भेद, न्याराज कही वताव्या,। जेमके. १ निःसर्ग सम्यत्क. । २ अने गुरूपदेश सम्यत्क. ॥ एज प्रमाणे १ द्रव्य सम्यत्क. २ भाव सम्यत्क. ।। अने एज सम्यत्कने, गुणनी अपेक्षाथी, त्रण प्रकारथी कह्यु. जेमके. १ रोचक सम्यत्क. । २ दीपक सम्यक. । ३ कारक सम्यक । अने एज सम्यत्कना, विवक्षाथी, पांचभेद पण करी वतावेला छे, ते पांच भेदने, तमोए पृष्ट. २१८ थी सम्यत्कनी स्थिरता नामना ९ मा प्रकरणमां, भिन्नरूपे, समज्या विना वर्णव्या छे. ॥ यथाच श्लोकः । आदावोपशमिकंच, सास्वादनमथाऽपरं क्षयोपशमिकं वद्यं क्षायिकं चेतिपंचधा ? अर्थः--१ औपशमिक सम्यत्क. । २ सास्वादन.। ३ क्षयोपशमिक सम्यत्क. । ४ वेदक. । ५ क्षायिक सम्यत्क. । आ पांच भेद पण, विवक्षाथी सम्यत्कनाज करेला छे. तेनो परमार्थ शुं छे, तेनु कांड पण तमो समज्या नथी, तेथी स्थिरता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܪ नामनुं मुं प्रकरण जूदू पाडी, अडढ़, मग भेगा भड्डी जवा जेवं करी मुकेलुं छे । केमके तमोए पृष्ट २१८ मानी. नीचेनी पंक्तिमां एवं लख्युं छेके, । सास्वादन समकित एक भवमां, उत्कष्ट पांच वार फरसी मिथ्यात्वमां पडे । आ लखाण तमारुं केवल समज्या गरज छे, कारण मोक्ष जता सुधी जे जीव, अर्द्ध । पुदगल परावतन संसारमा भ्रमण करे, ते जीवने त्यां सुधीमां पांचज वार सास्वादन समकितनी फरसना थाय. एवो शास्त्रकारोनो स्पष्टपणे लेख छे, परंतु एक भवमां, पांचवार फरसे एवो लेख नथी, अने ए सास्वादन समकालो जीव, अर्द्ध पुदगल परिभ्रमण करें, एवं तो तमो पण लखो छो, त्यारे विचार करो के, एक भवमां पांचवार फरशे तो पछी अर्द्ध पुद्गल कालमां केटली वार फरसे, तेनो पण कोई नियम तो होवोज जोइये ! अने पृष्ट २१९ मां. लखो छो के, क्षयोपशम समकित एक भवमां, उत्कृष्ट असंख्यवार आवे । ए लेख पण तदन विपरीतज छे, केमके क्षयोपशम समकित वालो जीव, मोक्ष जता सुधी जे अनंत संसार भ्रमण करे; तेमां असंख्यवार ते जीवने ते क्षयोपशम समकित उत्कृष्टपणे आवे, परंतु एक भवमां असंख्यवार आबे एवो सिद्धांतमां लेख नथी। मांटेज अमो कही ये लेके, सम्यत्कना विषयमां, सद्गुरुनी प्रसादी लीघा बगर, मूतिजकोना ग्रंथोनी चोरी करीने, तमो सभ्यत्कना विषयने लेई भाग्या छो. तेथीज तमाराथी, कडबंध बेसती थई सकती नथी. तोपन आपणे आपतो सम्पत्कधारी थर्ड बेठा हो, अने जे मूर्त्तिप कोना ग्रंथोनी चोरी करी लेख लखोछों, तेमणे तो चोर ठराववा म यत्न करो छो, ते तो तमो मोटामां मोडं साहासिकपणुंज धारण करो छो, हवे तमाराज लेखथी परस्परनो विचार पण आ सम्यत्कना विषयमां किंचित मात्र करी तावीये छीये. । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जूवो के. पृष्ट. ३९-(१) पेहलु द्रव्य समकित-श्री वीतरागदेव अगर तेमनी आज्ञानुसारी मुनिराजनो, बोध सांभली कोइ माणस, मात्र श्रद्धाथी तेने सत्य माने. इत्यादि.।। पृष्ट. ४५ मां--(६) टुं उपदेश समकित-गुरु आदिना उपदेशे करीने मलेलं समाकित ते.।। पृष्ट. ३९ मां-(२)वीज भाव समाकित.जीव अजीवादि नवतत्व काइया आदि पचीश क्रियाए विगेरे अनेक भेद जाणी, शुद्ध अंतःकरणथी सर्द हे ते.। पृष्ट. ४० मां-(३) त्रिजु निश्चय समकित, ज्ञान दर्शन-चारित्र-तपः एचारने विषे, निश्चय व्यवहारादि २५ बोलनुं स्वरूप जाणे तेवा माणसनुं ।। प्रथम आ बबे भेदनो विचार करीए छे के तमोए, ? ला द्रव्य सम्यत्कमां, अने ६ ठा उपदेश सम्यत्कमा फरक करी बताव्यो ! तमो एज कहेसो के, वीतराग देव अने मुनिनो बोध, द्रव्य सत्यकमां. । अने छठा भेदमां, एकला गुरुनो उपदेश होय, तो शुं आ छठा भेदमां वीतराग देवनो बोध काममा आवतो नथी के ? जे भेद करीने बतावो छो. अने शुं वीतराग देव गुरुपणामां दाखल करी शकाशे नहीं के ? ते पण छटा उपदेश सम्यकमां, आदिपदथी तमोए दाखल तो करेलोज छे. तो पछी तमारा लेखथी द्रव्य सम्यकमां, अने उपदेश सम्यकमां, शो भेद करीने बताववाने मागो छो ? तेनो विचार तमोज एकांतमां बेसी ने करी जुवो, के तमारुं लखाण तमाराथी योग्य रीते, जैनमार्गनी शैली प्रमाणे, थयेटु छे के नही ? । आवी रीते विचार विनानो लेख लखी, विचार शक्ति पामेलानी पंक्तिमां तो भलवाने जावो छो, अने जे वृक्षनी डाल उपर बैसी आराम भोगवो छो, तेने आपणी अल्पबुद्धिनो कुहाडो, हाथमां लेइ कापवान तैयार थया छो. पछी कया विचारवाला पुरुषोनी पंक्तिमां भलवाने मागो छो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोइ मुंडित होत तो वधारे शिक्षानां वचन कहेतो. तमने तो मात्र एटलंज कहुं छु के, विचार पुक्त कर्या वगर, लांबा लांबां जे पगलां भरोछो ने, दुर्भवी अभवी आदि वचनोंने वापरो छो, ते तमाराज आत्माने दुःखदाइ थशे. बीजा कोइ दुर्भवीने अभवी थवाना नथी. आ द्रव्य सम्यत्क, अने उपदेश सम्यत्कनो, विचार किंचित्मात्र करी बतायो.। हवे भाव सम्यत्क. अने निश्चय सम्यत्कनो, विचार तमाराज लेखथी किंचित् मात्र करीये छे. ।। भाव सम्यत्कमां जीवादि नव तत्त्व. अने पचीश क्रिया विगेरेने जाणीने सर्दहे. ॥ अने निश्चय सम्यकमां, ज्ञान, दर्शन, चारित्र तपः ए चारने विषे, निश्चय व्यवहारादि २५ बोलनुं स्वरूप जाने । एमां विचारवान ए छे के, ए बे सम्यत्कना विषयमा तमोए भेद शो करी बताव्यो, ते काइ समजायुं नही. तमो एज केहशो के, भाव सम्यत्कमां नव तत्वादिकने सर्दहे, अने निश्चय सम्यत्कमां ज्ञानादिक चारना स्वरूपने जाणे, तेम कहेवाने तमोने अबकाश नथी. केमके भावसम्यकमां पण नवतत्त्वादिक जाणी शुद्ध अंत:करणधी सर्दहे एम लखेलुं छे. अगर तमो एम कहेशो के, प्रथमना भाव सम्यकमां सर्दहवापणुं छे अने निश्चयसम्यकमां सर्द हवापणुं अमोए लग्यु नथी, ते पण कही शकाशे नही. केमके ज्यां सर्दहवापणुं नही होय त्यां समकितपणुं नथी रेहतुं, तो निश्चय सम्यकपणुं क्याथी रहेशे. छेवट तमो एज केहशो के, निश्चय सम्यक आव्या पछी पार्छ नतुं नथी. अने भावसम्यक पार्छ नतुं रहे छे, ते पण नमारु केहबुं समज्या वगरनुंज छे. । केमके भावसम्यकमां, अने निश्चय सम्यत्कमां, उपशम सम्यक, क्षयोपशम सम्यत्क, अने क्षायिक सम्यक, ए त्रण मूल भेदोनो समावेश थाय. तेथी भाव सम्यत्कमां, तेमज निश्चय सम्यकमां, एक क्षायिक सम्यक विना, बीजा सम्यत्कनो एवो निश्चय नथी थइ शकतो के, आ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेलु जायज नही. मात्र एटलोज निश्चय करी शकाय छे के, ते जीव अंते मोक्षगामी जरुरज थाय. । वास्ते जे भाव छ, तेज निश्चय छे, अने निश्चय छे तेज भाव छे. मात्र नामना भेदथी तमोए समज्या वगर कुटी मारेलुं छे. एमां विशेष ए छे के, द्रव्यसम्यस्कनी साथ भाव सम्यत्क जोडेखें छे. । अने निश्चयसम्यत्कनी साथे, व्यवहार सम्यत्कने विवक्षाना आधीन थइ जोडीने बतावेलु छे. । परंतु बन्ने प्रकारनी विवक्षामां अर्थपाये एकनो एकज निकलवानो छे. मात्र विशेष ए छे के, निश्चय वस्तु शु चिज, अने भाववस्तु ते शुं चिज छे, तेना परमार्थनी तमने खबर न पडवाथी, आपणा मन गोठतो अर्थ करी, पंडिताइ प्रगट करी छे. । परंतु एटलो शोच न कयों के, एवी जुठी पंडिताइ कोण चालवा देशे ॥ वाडीलाल. पृष्ट. ४३ मां ४ थु व्यवहार समकित, संवेगादि पांच लक्षणथी प्रवर्तवं ते. (एक पुस्तकमां लख्युं छे के-६७ बोलमांना ६१ बोलना गुणे करी सहित उपशम. अने क्षयोपशम. समकिती जीवतुं जे समकित ते व्यवहार समकित.। विचार-आ लेख पण प्रकाशकनो समज्या वगरनोज छ, केमके नतो व्यवहार सम्यक समज्या छे, तेमज नतो निश्चय सम्य. त्कने समज्या छे, तेमज नतो सम्यत्कना लक्षणनो अर्थ पण समज्या छे.। केमके, उपशम सम्यत्क, अने क्षयोपशम सम्यत्क, ए बन्ने भेद व्यवहारसम्यत्कना घरना नथी तेतो निश्चय सम्यत्कना घरना कहो, अगर भाव सम्यत्कना घरना कहो, तो पण अर्थ तो एकनो एकज छे. परंतु जुदापणुं कांइज नथी. कारण के जैन सिद्धांतोमा मुख्यपणाथी जीवना निज गुण रूप उपशम, क्षयोपशम, अने क्षायक, ए त्रणज सम्य क छ। एने भाव सम्यक कहो अगर निश्चय सम्यक कहो. परंतु उपशमादि त्रण भाव सम्यक सिवाय मुख्यपणाथी सम्यत्कनो चोथो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भेदज नथी. अन बीजाज जे भेदो शास्त्रकारोए करेला छे ते पण विवक्षाना वशथी थयेला छे, तोपण व्यवहार सम्यत्कना छोडीने, उपशमादिक लक्षण पूर्वक जे सम्यत्कना भेदा छे ने बधाए भेदोंने समावेश ए त्रण सम्यत्कमांज थाय छे.| जूवा तत्त्वार्थ महासूत्रं-- औपशमिक क्षायिको भावो मिश्रश्च जीवस्पस्वतत्वं. ___ अर्थ-अपशमिक, क्षायिक, अने मिश्र एवण तत्त्व क्षयोपशमथी, थयेला अथवा कर्मना क्षयथी थयेला ए जीवना स्वतत्वरूप भाव छे, अने एज रूप सम्यत्क छे. अने एज रूपी चारित्र पण छे, अने ज्ञान छे ते वे भावथी छ, एकतो क्षयोपशमिक. अने वीजु क्षायिक भावथी, वास्ते भावरूपथी, के निश्चयरूपथी उपशमादिक लक्षण पूर्वक जे जे दर्शन (सम्यत्क) ना भेदो. अन भावरूपथी, के निश्चयरूपथी, जे जे चारित्रना भेदा वर्णवेला छे. ते बधा, ए त्रण भावमांनाज भेदो छ.। अने ज्ञानना जे जे भेदो छे ते क्षयोपाशमिक अने क्षायिक मात्र बेज भाव रूपना छ. । परंतु ज्ञान दर्शन अंने चारित्ररुप जे-जीवना निज गुण छ ते चोथा भावथी छेज नहीं, । आ बधु कहवानुं प्रयोजन ए छे के, उपशम, अने अयोपशम, सम्यक छ, ते व्यवहार सम्यक नथी परंतु निश्चय सम्यक छ, अने संवेगादि पांच लक्षण छ तेतो, निश्चय सम्यत्कने जणाववावालां तेना चिन्हरूपे छे, जेमके, धुमाडाना गोटा निकलवाथी जाणी शकीय के, अहीं अग्नि बली रही छे, परंतु धुमाडानेज अग्नि नही कही शकीये, नेम संवेगादि पांच लक्षणने, सम्यक पण न कही शकाय. || अन ए पांच लक्षणो पण, जेने निश्चय सम्यकमांनुं एकाद सम्यक प्राप्त थयुं होय, तेनेज ए चिह्नरूपथी प्रगट होय, परंतु व्यवहार सम्यक वालाने जरुर प्रगटरूपे होय, एम कोइ दाहाडो पण निश्चय न करी शकाय.। हवे मूलना विषयपर आवीये छे. ॥ जे नमो संवेगादि पांच लक्षण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थी प्रवर्तवू कहीने, व्यवहार समकित कहो छो. तेतो धुमाडान अग्निरूपथी वर्णन करवा जे कर्यु छे, केमके धुमाडाना लक्षणथी तो अमिनो निश्चय करवानो छे, काइ धुमाडो अग्निरूपे थइ जवानो नथी, तेम अनिरूपे करी देवानो पण नथी, । मात्र संवेगादि पांच लक्षणथी, जे निश्चय रूपथी त्रण प्रकारनां सम्यक कहेलां छे, तेमांथी एकाद सम्यक्त पण प्राप्त थयेलं होवू जोइये, एम अनुमान करवानुं छे. जेमके धुमाडो निकले छे. माटे अग्नि होवीज जोइये. तेमज संवेगादि पांच लक्षणथी सम्यकपणानी मासिन अनुमान करी लेवानुं छे. ॥ वळी एमां विचारवानुं ए छे के, ज्यारे ६७ बोलमांथी. ६? बोलने तमारा करेला सम्यकना नव भेदमांथी, मात्र एक व्यवहार सम्यकमां, दाखल करो छो, तो पछी सम्यकना पाछल रह्या आठ भेद, अने बोल तो रह्या छे छो, तो ते तमारा करेला आठ सम्यकना भेदमां, छो बोलने, केवी रीते वहेंचीने आपशो, अरे देवानां पिय ? महापुरुषोनी आशातना करी जे विपरीत थयेला होय, तेमनी पासे पुछवाथी, आ जैनमार्गनी सूक्ष्म शैलीनुं ज्ञान, कोइ दिन पण न आवे. अने ज्यां ज्यां विचार करवा बेसीशुं त्यां त्यां विपरीते विपरीत, जोवामां आवशे. ॥ इहांजे ६७ बोलमांथी. ६? बोलने, व्यवहार सम्यत्कमा आचार्योए कही वताव्या छे, ते निश्चय, अने व्यवहार नामना, बे भेदनी विवक्षाना आधीन थइनेज कह्या छे. अने वाकीना छ बोलने, निश्चय सम्यकमां समावेश करी दीधा छे. । एवीज रीते द्रव्य, भावमां, पण ६७ बोलतुं वहेचण करवानुं होय तो ते महा पुरुषोज करीने वतावे.। अथवा रोचक, दीपक, कारकमां पण करी बतावे. । वहेंचणी करी आपवी ते तो महापुरुषोनुज काम छे, पण अपणा जेवा अल्पमतिथी वहेचण न करी शकाय. इहांपर समजवानुं घणुं छे, पण थोडामां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܐ ܆ ज विवेचन करी, आंगना विचाराने तपासीशं. हवे ज़वा - पृष्ट. ६७ ओ. १ मी थी - ९ दीपक समकित - दीवा वीजा उपर प्रकाश नाखे पण पोतानी तलेती अंधारुज रहे तेम, दुर्भवी. अने अभवी, जीवों अन्य जनोने प्रतिबोधी मोक्षनां साधनो बतावे, पण पोताने, गंडी भेद, धाय नहीं, संयम लइ द्रव्यक्रिया करे पण अंतर को रंज रहे, एवा पुरुषनुं समकित ते ' दीपक' समकित गणाय छे. " अमो तो परमेश्वरने खोले बैठेला छीए “ एवं समजनारा खुद जैन वर्गनाज केटलाक साधुओ-सफेद वस्त्रवाला पीळां वस्त्रवाळा, तेमज दिशा वस्त्रवाला साधुओं, पण दीपक समकिती होय छे || विचार - आ तमारा लेख उपरथी विचार करतां तमो क पंक्तिमा छो ते कांइ समजातु नथी, केमके, तमारा मान्य करेला सूमां तो आभेदोज नथी, अने जे, दीपक सम्यक्क वाला होय, ते पण जैनना चालता घोरी मार्गमांज होवानो संभव छे, केमके बीजा जीवोने प्रतिबोधी मोक्षनां साधनो बतग्वनार पुरुष, पोते अंतरथी धर्मनी श्रद्धा रहित कोरोकडक होय तोपण, अथवा गंठीभेद न थयो होय तोपण, प्रथम आपणे आप लोकदेखाव पूर्ति पण जैननी शुद्ध क्रिया करी, बीजाने बताव्याविना, तेमज शुद्धरूप जैनमार्गनो ऊपदेश आप्याविना, मोक्षनां साधनो बतावेछे, एम कहीशकायज नही. ते कोण हसे अनेकोन नही, तेनो निश्चय, ज्ञानी महाराज जकरी सके । अनं तमोए जे सफेत वस्त्रवाला, पीला वस्त्रवाला, तेमज • दिशा वस्त्रवालामां, निश्चय करी बताव्यो, तेथी अमोतो एमज कही ये ले के, आ दुनीयामां तमारा जेवो कोई बीजो महापुरुषज नही होय, केमके, आ महागूढ विषयमां वचण करीने बतावी दीधी : अमो " पुछीछे के, तमोए तमारा पक्षना ढूंढक साधुओने, कइ पंक्तिमां दाखल कर्या ? केमके जे दीपक समकितवाला होय तेपण, जैननी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ शुद्ध चालती क्रीया करवावालामां, तेमज शुद्ध प्ररूपणा करवाबालामांज, होवानो संभव करीसकाय । परंतु तमो ढूंढकोतो तेमनाथी ( अर्थात् चालती शुद्ध क्रिया करवावालाथी. अने शुद्ध प्ररूपणा करवावालाथी ) भिन्नपणे थइने वास करोछो तेथी ते श्रुद्ध क्रियावालानी. अने शुद्ध प्ररूपणा करवावालानी पंक्ति मात्रमां पण दाखल थइशकता नथी ते माटेज पुछवं पडयुं छे. आवा मूढपणाना लेखमां तमोने अमारे कहेवं शुं विचार कर्याविना स्वछंदपणे आवा अनुचित लेख लखी फोगट हास्यना पात्र शा वास्ते बनोछो. अने एवा अनुचित लेख लखवाथी कांई तमोने धनना गठडा मलीजाय एम समजवं नही. तेतो न्याय मारगना लेखथीज मलसे. तेम परभवना कार्यनी सिद्धि पण न्यायनाज लेखथी से. परंतु विपरीत लेखथी थवानी नथी एम खास विचार करवानो छे इत्पल मधिकलिखनेन ॥ इतिश्री मद्धिजायानंद सूरीश्वर लघुशिष्येनाऽमरमुनिना धर्मना दरवाजा संबंधि सम्यक्तनाम्नस्तृतीय प्रकरणे तत्वाsतत्व विचार: संकलितः || के चिन्मूलानुकूलाः कतिचिद पिपुनः स्कंध संबंध भाजः छाया मायांतिकेचित्प्रतिपदमपरे पल्लावानुल्लवंति पाणौ पुष्पाणि केचिदधति तदऽपरे गंधमात्रस्यपात्रं वाग्वल्ले: किंतु मूढाः फलमहह नहि द्रष्टुमप्पुत्सते ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ हवे. प्रकरण. ४ थानो विचार. ॥ ॥ पचीश दृष्टि. (पचीशबोल ) पृष्ट. ४९ थी. तथा पृष्ट.५१ थी. ५२ सुधी.। पचीशबोल नीचेप्रमाणे. (१-२ ) निश्चय. अने व्यवहार. ( ३-४ ) द्रव्य. अने भाव. (५-६ ) विशेष. अने अविशेष. (७-८-९-१० ) नाम निक्षेप,स्थापना निक्षेप. ___ द्रव्य निक्षेप. भाव निक्षेप. (४) (११-१२-१३-१४) द्रव्य. क्षेत्र. काल. अने. भाव. (१५-१६-१७-१८) प्रत्यक्षप्रमाण. अनुमान प्रमाण. उपमाप्रमाण. अने आगम प्रमाण. (६) (१९-२०-२१-२२-२३-२४ २५ ) नैगमनय. संग्रहनय. व्यवहारनय. ऋजुसूत्रनय. शब्दनय. समभिरूढनय. अने एवंभूतनय. ॥ इति पचीशदृष्ठि. अथवा. पचीश बोल. ॥ ॥ पचीश दृष्टि ( पचीश बोल)॥ प्रकरण. ४ नी सरुआत. पृष्ठ ४९ थी-वाडीलाल शाह लखेछे के. एक चिजउपर जेम वधारे दिशामांथी दृष्टि पडे तेम ते वधारे स्पष्ट देखाय । जैन तत्वज्ञान दरेक बाबत उपर २५ दृष्टिथी। २५ दिशाथी । २५ आंखोथी नजर फेंके छे. ॥ पृष्ट. ५० ओ. १० थी-ए पचीश बोल धर्मसंबंधी. तेमज व्यवहार संबंधी. दरेक बाबत उपर लागु पाडीसकाय छे.॥-------- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ विचार--जे २५ बोल दरेक चीज उपर लागु पाडवानुं लखो छो ते लखाण यथायोग थयेलु नथी. । केमके ते पचीश बोलने, सात धडाथीज शास्त्रकारोए वहेचण करी आपेला छे, अने ते सात धडाथीज दरेक चीजनी, अने दरेक बाबतनी वहेंचण करवानी छे. परंतु. एकज वखतमां, अने एकज विवक्षाना वशथी, एक चीज उपर ए २५ वोलोने लागु पाडवाना नथी, तेम लागु पण पडी शकता नथी, । अने तमोएजे लागु पाडीने बताव्या छे. तेतो तमोए तमारी मूढता प्रगट करी बतावी छे. । केमके ते साते धडाथी भिन्न भिन्नपणे, अने जूदी जूदी विवक्षाथी, ते ते विषयोथी सर्व पदार्थोने, ते ते विभागमां वहेंचण करीने विचारवाना छे. जेमके. । निश्चय अने व्यवहारनी विवक्षाथी निश्चय. अने व्यवहारमां, सर्व पदार्थोनी वेहचन करवानी छे. । अथवा विवक्षित एक चीजमां निश्चय, अने व्यवहारनी, अपेक्षाने आधीन थइ एवो विचार करवानो छे के, ए चीज निश्चयना घरनी छे के, व्यवहारना घरनी छे, एवी रीते भिन्न भिन्न पणे अने भिन्नभिन्न विवक्षाना आधीन थइ, सात धडाना रूपथी सर्व पदार्थोनो विचार करवानो छे. अने तेज प्रमाणे. प्रकरण रत्नाकर, भाग पेहलामां पाछलना एक प्रकरणमां, पचीश बोलथी भिन्न भिन्न विवक्षाना आधीन थइ नव तत्व उपर उतारीने बतावेला छे, पण एकज विवक्षाना आधीन थइ ते पचीश बोलने बतावेला नथी. । तेनो यथार्थ परमार्थ सद्गुरुनी कृपा वगरना तमो, किंचित् मात्र पण समज्या वगर, भ्रमचक्रमां पडीने, भिन्न भिन्नपणे समजवाना पचीश बोलने, एकज विवक्षाथी जोडीने बतावो छो, तेतो जैन धर्मना निर्मलतत्वोने दृषितज करीने बतावो छो. एम खासपणाथी विचार करवानो छो. कारण के, एकज वखतमां, अने एकज विवक्षाथी, एकज पदार्थनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथे, २५ बोल रूपे, अथवा २५ दृष्टिथी विचार करवानो नथी, अने तेम कोइ दिन थइ शकतो पण नथी, अने तेम करवू एवी जैनशास्त्रकारोनी शैली पण नथी. । एमां दृष्टांत ए छे के, जीवनो एक भेद, चेतना लक्षणथी ।। जीवना बे भेद, संसारी अने मुक्तिना.। अथवा सूक्ष्म अने वादर. । अथवा त्रस ने थावर. ॥ जीवना त्रण भेद-स्त्री, पुरुष, नपुंसक, ॥ जीवना चार भेद-देवता. मनुष्य. तिर्यंच. नारकी. ॥ जीवना पांचभेद-एकेंद्री, बे इंद्री, तेरेंद्री, चउरेंद्री, पंचेंद्री. ॥ जीवना छ भेद-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय वाउकाय, वनस्पतिकाय, अने त्रसकाय. ।। आ लेखथी विचार करवानो ए छे के, चेतना लक्षणथी ज्यारे जीवोनो विचार करवा बेठा त्यारे सर्व जीवोमां चेतना लक्षणनेज तपासी लेवानो छे. ।। अने जीवना संसारी, अने, मुक्तिना, बे भेदनी विवक्षाना वश थइ विचार करवा बेठा त्यारे, संसारी जीवोनो घडो अलग करवो, अने मुक्तिना जीवोनो घडो अलग करवो. । अथवा वे भेदनी विवक्षाने आधीन था कोइ पुछे के, अमुक लक्षणनो जीव, संसारी के मुक्त, तो ते जे विभागमा दाखल थतो होय ते विभागनो वताववो. । एज प्रमाणे सूक्ष्म, अने वादरनी, विवक्षामां विचार करवानो छे. । सूक्ष्म जीवोनी वहेंचण मूक्ष्ममा दाखल करवी, अने वादर जीवोने वादरपणेना धडामां बताववा. ॥ अगर एकनी अपेक्षाथी विचार करवो छे तो, सूक्ष्मने मूक्ष्मपणे विचारवो, अने वादर होय तो तेने बादर कहेवो. ॥ एज प्रमाणे, त्रस अने थावरनी विवक्षाथी त्रस अने थावरनो विचार करवानो छे. ॥ एज प्रमाणे, त्रण लिंगनी विवक्षाथी सर्व जीवोने, त्रण लिंगमां वहचण करी देवा. एज प्रमाणे, चार गतिनी विवक्षाथी, चार गतिमां सर्व जीवोनी वचण करी लेवानी छे. ।। पांच इंद्रियोनी विवक्षाथी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांच इंद्रियोमां. ॥ अने छकायनी विवक्षाथी, छकायमां पण सर्व जीवोनी वहेंचण करी शकाय छे. ।। परंतु, लक्षणनी विवक्षानो एक भेद. । अने संसारी मुक्त । सूक्ष्म. बादर. । त्रस थावर. ए वे प्रकारनी विवक्षाना ६ भेद, । अने लिंगनी विवक्षाना त्रण, । गतिनी विवक्षाना चार, । इंद्रियनी विवक्षाना पांच, । कायनी विवक्षाना छ भेद, ॥ १।६।३ । ४ । ५ । ६ ॥ आ सर्व मलीने २५ नो आंक थाय छे, तेनो पचीश बोलथी, एकज वखतमां, अने एकज विवक्षाथी, अने एकज पदार्थनी साथे, घटावी न शकाय. । अने कोइ घटाववाने प्रयत्न करे तो, ते जैन शैलीथी विरुद्धज गणाय. । यद्यपि एकैकमां एकै.कर्नु अनुगतपणुं जोवामां आवे छे, जेमके, चेतना लक्षण, वधाए भेदोनी विवक्षामां जोइ शकाय छे, तेम मुक्ष्म बादरपणुं पण जोइ शकाय छ, त्रस थावर पणाथी पण अजानने भ्रमित थवा जे जणाय. छे अने लिंगपणाथी पण भ्रमित थवाय छे, अने गतिनारूपथी पण भ्रमितपणुं थाय छे, अने इंद्रियोना विचारथी पण भ्रमितपणुं थाय छे, तेम कायनी अपेक्षार्थी पण भ्रमितपणुं थाय छे, केमके एकनी विवक्षामां, बीजी विवक्षाना स्वरूपर्नु अनुगतपणुं रहेवाथी, अजान वर्गने भ्रमित थवा जेवं मालम पडे छे. परंतु, सूक्ष्म दृष्टिथी बारिकपणे विचार करी जोतां ते २५ बोलथी करेली विवक्षा, जैन तत्वोथी, अने जैन मार्गनी शैलीथी, तदन विपरीत मूढपणार्थाज करेली छे, एम स्पष्टपणे जणाइ आवे छे. ॥ जूवो. पृष्ट. ८१ थी ज्ञान उपर उतारेला २५ बोलना नमुना रूपथी लखी बताएँ छु.॥ १ सम्यक सहित अंतरंग ( अभ्यंतर ) भावे यथा तथ्य जीवादिकनुं जाणपणुं ते. निश्चयज्ञान. ।। २ गुण सहित पदार्थ- यथा तथ्य प्रकाश, ते शुद्ध भाव. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारज्ञान. ।। ३ शुद्ध सर्दहणा रहित मिथ्यावी- जे ज्ञान ते द्रव्यज्ञान. । तेमज आ लोकमां कीर्ति मलवा अर्थे भण ते पण द्रव्यज्ञान. ।। ४ जिन आज्ञा. अने शुद्ध सर्दहणा सहित एकांत निर्जराने अर्थे ज्ञान भणवू ते भावज्ञान. ॥ हवे. पृष्ट. ८२ थी-द्रव्य. क्षेत्र. काल. भाव. आचारमांना. द्रव्य. अने. भाव. ११ द्रव्यज्ञान-पट द्रव्यनुं यथा तथ्य स्वरूप जाणवू. तथा प्ररूप. ते. ॥ १४ भावज्ञान-सर्वभावY* ज्ञान. विचार--आ ज्ञान विषयना लेखमां, नंबर.३-११ मामां, द्रव्य ज्ञान. | अने नंबर, ४-१४ मामां, भावज्ञान. । आ एकेको शब्द बेबे वार, । एकज विषयमां, अने एकज प्रसंगे, तमोए जे लख्यो ते शुं योग्य रीते लख्यो छे के. ? विचार करो के, जेना शब्द मात्रमांज किंचित् फरक नथी, तेनो फरक एकज ज्ञानना विषयमां, अने एकज प्रसंगे, केवी रीते थइ सकसे. १ । कदाच तमो निश्चयज्ञान, अने भावज्ञाननो, अर्थ एक छतां, शब्द मात्रना फरकथी अजान वर्गने भ्रमित करी सकसो, परंतु, द्रव्यज्ञान, अने भावज्ञान, ए बे वाक्यने एकज ज्ञानमात्रना विषयमां, अने एकज वखतमां बबे वार कथन करीने तो, अजान वर्गने पण भ्रमित करी सकवाना नथीज. केमके तेओ पण सामान्य पणाथी एटलो विचार तो जरुर करसे के, जेना शब्द मात्रमा पण किंचित् फरक नथी, * नीच टीपमां लखेलु. ते. अजीवना भाव. वर्ण. गंध. रस. फरस. । जीवनो भाव. उपयोग. एटले. ज्ञान. दर्शन, चारित्र. तप. ख. वीर्य. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेवा शब्दोथी एक ज्ञानमात्रना विषयमां, बबे वारी कथन करी फरक शीरीते करी सकाय. ? अगर विषय भिन्न होय तो फरक पण करी सकाय, परंतु एक ज्ञानमात्रनाज विषयमां, एकज शब्दने ववेवार वापरी फरक करवो एतो दोडडायोज करी सके, परंतु थोडो घणो विचार करवावालो तो नज करी सके, एवो विचार वाचकवर्ग करी लेइ. अमारा तरफथी थयेला बीजा प्रकारना विचारोमां जरुर उत्तरसेज. : एम अमो पूर्ण खातरी राखीये छ । यद्यपि तमोए लखेला सात प्रकारना धडा, विवक्षानावशथी, प्रसंगने अनुसरी, एक पदार्थनी साथे, विचार करवाना छे, अने करी पण सकाय छे, परंतु, एकज प्रसंगने अनुसरी, अने एकज विवक्षानावश थइ, २५ बोलना रूपथी, अथवा २५ दृष्टिना रूपथी, एकज पदार्थनी साथे, लागु पाडी आफ्नार, अथवा सिखवनार, जैन मार्गनी शैलीथी तो अजान, अने गुरु परंपराना ज्ञानथी रहित, जैन मार्गना तत्वोनो चोरज ठरसे. । परंतु जैन मार्गना तत्वोनो जाण छे, एम कोइ दिनपण सिद्ध थइ सकवानुं नथी. । केमके जो कदी एक वखते, अने एकज विवक्षाथी, अने एकज प्रसंगने अनुसरी, तमो जेवी रीते एक पदार्थनी साथे लागु पाडवा उतरी पडेला छो, ते प्रमाणे २५ बोलथी, गणधर महाराजाओ, तेमज महान् महान् आचार्यो, एकज वखते, अने एकज विवक्षाथी, अने एकज प्रसंगने अनुसरी, लखी बताववामां कदी पण चुक करताज नही । अगर तमारी तरां २५ बोलना, अथवा २५ दृष्टिना रूपथी, कोइ पण महापुरुषे, कही बताव्या होय तो. तेनुं नाम प्रगट करो.। अमो पण तेनो विचार करवा उतरी पडीमुं. । बाकी कोइ अर्द्धदग्ध पुरुषे, समज्या वगर, भिन्न भिन्न विवक्षाथी समजवाना प्रकारनो संग्रह करी, २५ बोल ठराव्या छे ते तो जैन मार्गनी शैलीथी तदन वि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परीतज छ, । एम अचुक कही सकी स्युंज. ॥आ जैनमार्गना महागंभीर तत्वो छे, अने एनो विस्तार पण समजावनार प्रकरण ग्रंथोज छे, अने ते प्रकरण ग्रंथोना परमार्थने समज्याविना, महान् महा न आचार्योने निंदी कहाडवाने जे कमरकसो छो, ते तो तमो एवं करो छो के, गंदीखालनो देडको, समुद्रना देडकानो अनादर करी, आपणी गंदीखालनेज समुद्रमानी राखे, ते प्रमाणे तमो करो छो. । परंतु तेम कोइ दाहाडो पण बनी सके नही, समुद्र छे ते तो समुद्रज छे, अने गंदोखाल छे ते तो गंदोखालज गणासे, पण समुद्ररूप तो न गणाय. मात्र गंदीखालना देडकाना गर्वपणानुज विशेष गणाय.।। हवे तमाराज लेखमां ज्ञानना विषयमां परस्परनो विचार जूवा. ? निश्चय ज्ञान-सम्यक सहित अंत रंग भावे यथा तथ्य जीवादिकनुं जाणपणुं. ते. ४ भाव ज्ञान-जिन आज्ञा अने शुद्ध सर्दहणा सहित एकांत निर्जराने अर्थ ज्ञान भण. ते. आ वेमां फरक शो छ ? तेनो विचार करो, मने तो एटलोज फरक लागे छे के, तमोए बे चार ओलीना छटापर लख्यो छे, ते शिवाय बीजो काइ पण फरक जोवामां आवशे नही । कदाच तमो कहेशो के, जाणपणानो अने भणवा रूपनो, फरक छे, ते अमोए लखी वताव्यो छे, तेतो तमोए धिठाइ पकडीने अजान वर्गने भ्रमित करवाने शब्द मात्रनो भेद करेलो छ, वास्तविकमां किंचित् मात्रनो पण भेद नथी. । अगर निर्जरा शब्दथी भेद कहेशो तो, निश्चय ज्ञाननी प्राप्तिथी निर्जरा, शं ! थती नथी. : निश्चय ज्ञाननी प्राप्तिथी निर्जरा नथी थती, एम जैन मार्गनो जाण गुरु तो, कदी पण नही भणावे. । आ विषयने वधारे न लंबावतां एटलंज कहीये छ के. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जे निश्चयज्ञान छे, तेज भावज्ञान छे, अने जे भावज्ञान छे, तेज निश्श्य ज्ञान छे, ए शिवाय बीजो अर्थ करीने बताववो, तेतो जैन मार्गनी शैलीथी भिन्न पडीने, महापुरुषांना आशयने समज्या वगर, भसवा जें थाय छे. अने, नंबर, २ नुं व्यवहार ज्ञान । ३ जानुं द्रव्य ज्ञान. | तेमज नंबर. ११ मा नुं द्रव्य ज्ञान. जे तमोए भिन्नरूपथी वर्णन करी बतायुं छे, ते पण अजान वर्गने भ्रमित करवानुं करेलुं छे. । केमके वीजा नंबरमां, द्रव्य ज्ञान, अने अगीयारमा नंबरमां पण, द्रव्य ज्ञान, शब्द पण एक, अने विषय पण एक, तेमां फरक केम करी शकाय ? अने वखत पण एक, तो पण अर्थमा फरक करीने aalaat आते धिठाइ कया प्रकारनी गणवी ? । ते कांड समजातं नथी । शुं ? समज्या वगरज मोटा मोटा लेख करवा मंडि पडेला छो के ! अमो तो एज कहीये छे के, आ लेखनो लखनार, तेमज बतावनार पण, जैन मार्गनी शैलीथी तदन अजाण अने अर्ध दग्ध थलाएज जैन मार्गथी विपरीत थइ, आपणी मृढपणानी चातुरीज प्रगट करेली छे. ॥ आ विषयमा समजवानुं एछे के, ज्ञानी पुरुषो, ज्यारे तत्वोनो विचार करवामां उतरी पडता हता, त्यारे विवक्षाना वश थ, निश्चय शब्दनी साथे व्यवहार शब्दने जोडीने, निश्चयना पढ़ाथोंने निश्चयमां, अने व्ययहारमां दाखल करवाना पदार्थोंने व्यव हारमा, दाखल करी, सर्व पदार्थोंने बन्ने रूपमा भिन्न भिन्नपणे करीने मुकी देता हता. । अने एज प्रमाणे द्रव्य शब्दनी साथे भाव शब्द ने जोर्डाने, द्रव्य रूपना पदार्थोंने द्रव्यमां, अने भावरूपना पदार्थाने भावमां, वहेंचण करीने मुकी देता हता, । अने ज्यारे विशेष विशेषना विचारमां उतरी पडता त्यारे, विशेष कया, अने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६. अविशेष पदार्थो कया, एम बन्ने रूपमा भिन्न भिन्न पणे वहचन करीने मुकता हता. || अने ज्यारे, द्रव्य, क्षेत्र, काल, अने भाव, आचारनी विवक्षाथी, पदार्थों विवेचन करवा बेसता, त्यारे, सर्व पदार्थोंनं विवेचन आचारज रूपमा करी लेता । अने ज्यारे, चार निक्षेपना विचारमां उतरी एडता त्यारे, जे जे निक्षेपमा जेनो समावेश थतो होय तने पण करीनेज बतावता, जुवो आ विषयमां अनुयोगद्वार नामनुं सूत्र । अने ज्यारे, प्रमाणना विषयमां उतरी पडता त्यारे, सर्व पदार्थोनं, प्रत्यक्ष, अने परोक्ष, ए वे प्रमाणधी स्वरूपने जोड़ लेता हता, जुवो आ विषजमां नंदी सूत्र, अथवा विशेपावश्यक सूत्र । अने ज्यारे, सात नयोना विचारमां उतरी पडता त्यारे, जे जे विषय जे जे नयमां उतारवानो होय, तेने, ते ते नयमां उतारीने बतावता, जुवो आ विषयमा सूचनामात्रथी अनुयोगद्वार, विशेषपणाथी सम्मतितर्क, अथवा नयचक्र, आदि महान् महान ग्रंथो. आ विषयमा विचार वणा लंबान रूपे छतां पण टंक द्रष्टां तथी कही बताये छे. ॥ जेसके, जीवनो एक भेद, चेतना लक्षणधी, आ चेतना लक्षणथी सर्व जीवोने पण जोड़ सकीस्युं तेमज आगल करेली जीवनी बीजी विवक्षाओनो समावेश पण आ एकज विषयमा पण करी सकीस्युं, जेमके, संसारी अने मुक्तिना जीवों शुं ? आ चेतना लक्षणथी जूदा छे ? जूढ़ा कोइ दाहाडो पण नही थइ सके. | तेमज सूक्ष्म. अने वादरपणानी विवक्षाथी पण जूढ़ा पडी सकसे नही. | तेमज त्रस अने थावरमां पण चेतना लक्षण, अनुगत पणज रहेतुं छे. । अथवा गण लिंगनी विवक्षार्थी जीवना भेद करीस्युं, तो पण चेताना लक्षण, व्यास पणेज रहेलं छे । अने चेतना लक्षणमां आ त्रण लिंग पण, व्याप्त पणे रहेलांज छे. अथवा 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चार गतिनी विवक्षाथी जीवना चार भेद करीस्युं तो पण, चेतना लक्षण, चारे गतिमां व्याप्त पणे जोइ सकीस्युं, अथवा चेतना लक्षणमां, आ चार गतिने पण जोइ सकीस्युं, एम, जे जे प्रकारनी विवक्षाओ शास्त्रकारोए करी छे, ते ते विवक्षाओमां, एकेकनु एकेकमां, अनुगतपणु जोवामां आवे छे, अने ते एक जगोपर बतावीने, अजान वर्गने भ्रमितपण करी सकाय छे, परंतु यथायोग्य विचार करतां, ते जैन तत्वोमां जगो जगोपर पुनरुक्तपणु तथा संकीर्णतापगुं थवाथी, जैन मार्गना निर्मल तत्वोने दूषित करी आपणी महा मूर्खता प्रगट करवा जेवू थाय छे, अने जैनमार्गना तत्वोथी भ्रष्टपणुं थवाय छे, पण तत्वपणाने प्राप्त थवातुं नथी । जूवा के एक ज्ञानना विषयमां २५ बोलने भेगा करी उतारतां द्रव्यज्ञान, ए शब्द बेवार आववाथी पुनरुक्तता थइ छ, तेमज भावज्ञानना शब्दनी पण, पुनरुक्तता थयेली छे । एवीज रीते बारिक विचारमा उतरी जोता. जे २५ बोलथी, अथवा पचीश दृष्टिना नामथी खीचडो करीने लखायलो लेख छे ते, जैनमार्गनी शैलीथी तो विपरीत, अने आपणी मूर्खताइथी जैनतत्वोने दूषित करवा रूपज लेख लखायलो छे. । परंतु जैनमार्गने पुष्टि थवारूपे लखायलो नथीज, एम खास विचार करवानो छे ॥ अगर जो ते सातधडाने, एकंदर करीने २५ बोलथी, अगर पचीश दृष्टिथी, केहवाना होत तो, गणधर महाराजाओ, तेमज आचार्य महाराजा, शुं ? कहीने बतावता नही. ? परंतु तेम करवाथी योग्य रीते थइ शकतुंज नथी, वास्तेज तेओए, सात धडाना स्वरूपथी वर्णन करीने बतावेलुं छे. । आविषयने इहांपर समाप्त करीने, प्रथम प्रमाणना विषयने हाथ धरीये छे. । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ प्रमाण विषयनो विचार. ।। पृष्ट ५२ मां. मूल रूपे । अने पृष्ट ७३ मां अर्थरूपे. ( १५-१६ - १७-१८ ) प्रत्यक्ष प्रमाण । अनुमान प्रमाण. । उपमा प्रमाण । अने आगम प्रमाण । - ए मूलरूपथी है. ॥ विचार - वाडीलाल शाहने, प्रथम अमो एटलुंज पुछीए ले के, आ चार प्रमाण जैन मतावलंबीने मुख्यपणाना स्वरूपथी प्रमाण रुपे छे एवं तमो कोनी पाथी भण्या ? अथवा उपोद्घातना पृष्ट. ११ ओ. १२ थी तमो एलख्युं छे के, । सनातन जैन मतावलंबी, मुनिश्री मणिलालजी महाराज, (लिंबडी समुदायना पूज्य श्री मोहनलालजी स्वामीना शिष्य वर्य) एमने आ पुस्तकमां जे किमती मदद करी छे ते माटे तेओश्रीनो अंतःकरणथी आभार मानुंछु । तेमज अहमदनगरमां वसता श्रावक, रायचंद्र जीए मारी घणीएक शंकाओना खुलासा करी जे उपकार कर्यो छे ते भूलाय तेवो नथी. एम लखीने जे उपकार मान्यो छे, तेमनी पासेथी आचार प्रमाण धारण कर्या हसे ! अथवा तमोर तमारी बुद्धिधी लख्यां हसे ! एमां आश्चर्य ए थाय छे के सनातन जैन मतने तो अवलंबन करवावाला श्री मणिलालजी महाराज, अने तेमना भक्त श्रावक रायचंद्रजी, आ वन्नेमांथी एकेने. खबर पडी नही, अने तमने पण एटली खबर न पडीके, जैनमतमां प्रमाण केवीरीते मानेलां छे एज मोडं आश्चर्य जेवुं लागे छे. केमके जैनमतमां तमारां लखेलां चार प्रमाण. कोइ सूत्रमां, अथवा प्रकरण ग्रंथमां पण, मुख्यतारूपे मानेलांज नथी, परंतु गौणता रूपथी प्रकारांतरमां वर्णन करेला कोइ कोइ मसंगे जोवामां आवे छे, जेमके श्री अनुयोगद्वार सूत्रमां, सामायिक अध्ययन विषये, उपक्रम, निक्षेप, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुगम, अने नय. । आ चार अनुयोगी व्याख्या करता, प्रथम उपक्रमनी व्याख्यामां, बीजा प्रकारथीछ भेदना अंतरभूतमां, प्रमाण नामनो त्रिजो भेद बताव्यो छे, ते प्रमाण रूपना त्रिजा भेदमां, द्रव्य प्रमाण, क्षेत्र प्रमाण, काल प्रमाण, अने चोथो भाव प्रमाण, कहेलोछे, तेमां चोथा भाव प्रमाणनात्रण भेद करेला छे, १ गुणप्रमाण, . २ नयप्रमाण, । ३ संख्याप्रमाण, । ए त्रणमां जे गुणप्रमाण छे, तेने जीवना ज्ञान, दर्शन, अने चारित्र गुणमांथी, ज्ञानगुणप्रमाण- वर्णन करतां तमारां लखेलां चार प्रमाण कहेलां छे, पण ते तो प्रसंगज जूदी प्रकारनो छे, तेथी तमारो लेखज अयोगपणे थयेलो छे, पण प्रमाणना विषयमा प्रमाणरूपे थयेलो नथी. तेम दिगंबरोना ग्रंथोमां पण तमारां लखेलां चार प्रमाण मानेलां नथी। आवाथूल विषयमां पण जे आटली मोटी भूल थाय, तेतो वासीदामां सांबलं घसडइ जवा जेवू थाय. । अने जैन मतानुयायी सिवाय,.सर्व दर्शन संग्रहना कर्ता माधवाचार्य पण, जैन दर्शननु वर्णन करतां लखेछे के, ज्ञानं पंच विधं तत्राये परोक्षं प्रत्यक्ष मन्यत् . एम कहीने प्रमाण विषये एक श्लोक पण लखे छे के. - विज्ञानं स्वपराभासि प्रमाणं बाध बर्जितं; . प्रत्यक्षंच परोक्षंच द्विधामेय विनिश्चयात् , १ अर्थ-जैनोए, ज्ञान पांच प्रकारचं मानेगुं छे. तेमां आद्यनां बेज्ञान, परोक्ष प्रमाणमां गणेलां छे, अने पाछलांत्रण ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाणमां गणेलां छ. ॥ हवे श्लोकनो अर्थ.-विज्ञान छे ते आपणुं अने बीजार्नु प्रकाश करे एवं बाध रहित प्रमाण छे. मेयना वे प्रकारमा, निश्चयथी ते, प्रत्यक्ष अने परोक्ष छे. ॥ अने छेवट एम लखे छे के अंतर्गत सूक्ष्म भेद आगमोमांथी जोइ लेवा. जवो सर्व दर्शन संग्रह पृष्ट. ३२ मां। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेमज शंकराचार्य, जैमनी ऋषी, व्यास ऋषी, नैयायिक वगेरे जे वेद मतानुयायीओ छे, अने जेओने आपणे जैन मतना तत्वोथी अजान कहीये छे, तेवा परमतना आचार्यों पण एटलुं तो जरुर लखता गया छे के, जैन मतवाला, प्रत्यक्ष, अने परोक्ष, ए वे प्रमाणविना त्रीजं प्रमाण मानता नथी. । अने तमो सनातन जैन धर्मना अवलंबनपणानो दावो करवा छतां, वेप्रमाण ने छोडी, चार प्रमाण लखी बतावो छो, ते तो गर्दभने श्रृंग बताववा जेवू करी बतावो छो. ॥ ज्यारे तमो जैन नी स्थूल मान्यता रूपनां, वे प्रमाण ने, समज्या वगर, चार प्रमाण, लखीने अंधार वालो छो, तो पछी बीजा जैनमतना सूक्ष्म वि. चारोने, समज्या वगर, अंघारुवालो तेमां ते नवाइ थवा जेवू शुं समजबू.? एटलं तो एक न्हानुं छोकरु पण विचार करी सकसें । अने, एवी रीतना जैन मार्गथी विपरीत लेख लखी, भस्मग्रहना दोपितपणाना पात्ररूप आप छतां, महान महान् आचार्योने दूषित करवानो प्रयत्न करो छो. तं तो एक नवीन प्रकारनी चातुरीज प्रगट करी बतावो छो. । अमो एटलं तो कही सकीय छे के, 'तमारा ढूंढकोए' जैन तत्वोथी, तेमज जैनशैलीथी, विमुख थइ पंथ चलाव्यो, तेज कारणथी, जैन तत्वोनी, अने जैन मान्यतानी पण, तमोने खबर पडती नथी, तो पण जोराजोरी करीने, सनातन शब्द जोडी लइ, जैनमार्गने कलंक भूतकरो छो. । नही तो स्युं ? सनातन जैनमतना मोटा मोटा पूज्योने, जैननां वे प्रमाणरूप स्थूल विषयर्नु भानज न रहे ? आते केवो गजब. ॥ देखो प्रमाण विषये नंदी सूत्रजीनो पाठ. ॥ नाणं पंचविहं पन्नतं तंजहा. आभिणि बोहि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૩૬ यनाणं. १ । सुयनाणं. २ । महिनारणं. ३ | मनपज्जवनाणं. ४ । केवलनाणं. ५ ॥ तं समासउ दुविहंपन्नत्तं तंजा. पच्चख्खंच १ । परोख्खंच २ । सेकिंति पञ्चख्खं । पञ्चख्खं दुविहं पन्नत्तं तं जहा. इंदिय पच्चख्खं नो इंदियपञ्चख्खं । सेकिंतं इंदिय पञ्चख्वं २ पंचविहंपन्नत्तं सोइंदिय इ. । सोकिंतं नो इंदिय पच्चख्खं हि आदि । सेकिंतं परोख्खनाणं दुविहं पन्नतं तंजहा, आभिणि वोहियनाणं परोख्खं च, सुयनाणं परोख्खच । जथ्य आभिणि वोहियनाणं तथ्य सुयनाणं । जथ्य सुयनाणं तथ्य आभिणि वोहियनाणं ॥ इत्यादि ॥ अर्थ - भगवंते ज्ञान पांच प्रकारनुं कहां छे, आभिनि बोधिक ज्ञान, १ | ( मतिज्ञान ) श्रुतज्ञान, २ । अवधिज्ञान, ३। मनपर्यवज्ञान, ४। अने, केवलज्ञान, ५ || ते ज्ञान संक्षेपथी वे प्रकारनुं छे, । एक प्रत्यक्षज्ञान, अने बीजूं परोक्षज्ञान, । ते कयुं प्रत्यक्षज्ञान तो के प्रत्यक्षज्ञान वे प्रकारनुं छे, । एक इंद्रिय प्रत्यक्षज्ञान, अने बीजूनो इंद्रिय प्रत्यक्षज्ञान । ते इंद्रिय प्रत्यक्षज्ञान पांच प्रकारनुं छे, श्रोत्रंद्रिय आदि पांच इंद्रियोथी जाणं ते । अने नोइंद्रिय प्रत्यक्षज्ञान त्रण प्रकार छे, अवार्धज्ञान, मनपर्यवज्ञान, अने केवलज्ञान. ॥ परोक्षज्ञान वे प्रकारनुं छे, आभिनि बोधिकज्ञान ( मतिज्ञान ) अते बीजुं श्रुतज्ञान । ज्यां मतिज्ञान छे त्यां श्रुतज्ञान छे. ने ज्यां श्रुतज्ञान छे त्यां मतिज्ञान होय छे. ।। अही समजवानुं एछे के, जे मतिज्ञान आदि पांच ज्ञान छे; तेथीज प्रत्यक्ष प्रमाण, अने परोक्ष प्रमाणनी, वेहचण थयेली छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माटे जैनमार्गमां मुख्यरूपे प्रमाण बेज मोनलां छे. परंतु त्रीजु प्रमाण, मानेलं नथी. केमके, बीजां वधां प्रमाण, तेना पेटा भागमां समावेश थाय छे. माटे मुख्य पणे भिन्न रूपथी प्रमाण मानेखेंज नथी तो पछी, वाडीलाल शाह, अने तेमनी शंकानुं समाधान करवावाला, मणिलालजी महाराज, तथा रायचंद्रजी श्रावक, प्रत्यक्ष अनुमान, उपमा, अने आगम, । एम चार प्रमाण मुख्यरूपे कया जैन सिद्धांतथी खोलीने लाव्या ? ते काइ समजायुं नही. केमके हुं नथी धारतो के, जैन शैलीथी लखायेला लाखो ग्रंथोथी पण, तमारां लखेलां, चार प्रमाण मुख्यरूपथी मली आव.। आ लेख उपरथी विचार करो के, जैन तत्वो विषे तमारी समज केटली छे, अने तमारी हद पण केटली छे, तेनो विचार कर्याविना एकदम महापुरुषोने निंदी कहाडो छो, ते तो तमो तमारी पात्रतापणानेज प्रगट करो छो, अमारे ते वधारे लखवू स्युं. आ लेखमां विचारो घणा स्फुरायमान थाय छे परंतु ते न लखतां आ विषयने इहांपर समाप्ति करीने, नयोना विषयमां थयेली गफलतता बतावीये छे. ।। ॥ इति चार प्रमाण विपये तत्वाऽतत्व विचारः॥ ॥ हवे नयोना विषयमा तत्वाऽतत्व विचार करी बतावीये छे. ॥ पृष्ट. ७८ ओ. १० मीथी.--वाडीलाल लखे छे के ५-६-७ शब्दनय, समभिरूढनय, अने, एवंभतनय.--ए त्रण नयवाला माणस, नाम, स्थापना, द्रव्य, ए त्रण निक्षेपने अवथ्थु (अवस्तु)मानछे पृट. ८४ थी ते. ८६ तक ज्ञान उपर सातनयो उतारी बतावी. ते.॥ विचार-तमोए लख्यं के, शब्दादि त्रण नयवाला माणस, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ? नाम, २ स्थापना, अने ३ द्रव्य एत्रण निक्षेपने अवस्तु माने छे, ए तमारु लखेलूं अमो कबूल करीये छे, परंतु ? नैगमनय, २संग्रहनय, व्यवहारनय, अने ४ऋजुसुत्रनय,ए चार नयवाला माणस तो, नाम, स्थापना, अने द्रव्य,एत्रण निक्षेपने वस्तूरूपथी माने छे, एम सिद्ध पणे तमारे पण मानवूज पडशे. ए सिवाय बीजी गतिज नथी. । अगर जो. पहेली चार नयो. १ नाम, २ स्थापना, अने ३ द्रव्य,ए त्रण निक्षेपने अंगीकार करनारी न होततो, शब्दादिक त्रण नयथी, त्रण निक्षेपनो निषेध न करता, नैगमादि साते नयथी निषेध, शास्त्रकार करीने वतावताज, परंतु तेवी रीते न करवाथी निश्चय थयो के, पहेली नौगमादि चार नयोए, नाम,स्थापना,अने द्रव्य, एत्रणे निक्षेपने मानी लीधेलाज छे. । ज्यारे प्रथमनी चार नयोने, नाम, स्थापना, अने द्रव्य, ए त्रण निक्षेपो कबूल छे. त्यारे तो जैन मतने अंगीकार करवा वाला पुरुषोंने पण, मान्य करवाज पडशे, केमके जैनोने तो साते नयो प्रमाणरूपे छे, जेमके डावी. अने जमणी आंखमां निरर्थक कयी, अथवा पांच आंगलियोमाथी कइ आंगुली निरर्थक, एमांधी निरर्थ एकपण गणाय नहि. नेम साते नयोमाथी एकपण नय, जैन मतवालाने निरर्थक रूपे नथी. । अगर निरर्थकपणे गणे तेने मिथ्यात्वपणानी प्राप्ति थाय, परंतु सम्यक्तपणानी प्राप्ति छे एम सिद्ध नही थइसके. अने एज अर्थने पुष्टि करनारु श्री अनुयोगद्दार नामना सूचना अंतमां सूत्र कहुं छे के, (तसव्वनय विसुद्ध जंचरण गुणडिओ साह)अर्थ-ते सर्व नय करके विश्रुद्ध जो चारित्र गुणमा रहेलो होय तेज साधु जाणवो आ. सिद्धांतना वचनथी पण, जैनमत अंगीकार करवावालाने। तो, साते नयो मान्यरूप ज छे. । तो पछी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९. तमो पृष्ट. ६४ ओ. १ श्री लखोछो के, श्री अनुयोगद्वार सूत्रमां कछे के, पेहला ऋण निक्षेप, अवथ्यु । एटले उपयोग विनाना छे. छेलो चोथो ज आ लोकमां उपयोगी अने परमार्थमां साधनरूपछे । एवं कथन कया हिसाबधी कहीने आव्या ? केमके, पाछलनी जे शब्दादिक aण नयो छे, तेने त्रण निक्षेप अवस्तुरूपे मा नेला छे एमतो तमो पण लखीने बतावोछो, तेथी सिद्ध थाय छे के, पेहली नैगमादिक चार नयोवाला माणसे तो, प्रथमना त्रण निक्षेपोने वस्तुरूपे जमानी लीवेला छे, तो पछी उपयोगविनाना त्रण निक्षेप ले, एम कहीसकसोज केवीरीते ? स्युं प्रथमनी चार नयो जैनमतवालाने माननिक नथी : जे त्रण निक्षेपने निरर्थक ठरावोछो. अमो तो एज कहीये छे के, निक्षेप तो निरर्थक नथी, परंतु परमार्थ समज्याविनाना तमारा मति कल्पनाना विचारोज, निरर्थकपणाथी करेला छे । आ विषयने इहपर न लंबावतां, चार निक्षेपना विषय उपर ऊतरी स्युं त्यारे जोइलइम्युं ॥ - ॥ हवे तमोर जे ज्ञान उपर सातनयो उतारी छे. तेनो विचार किंचित् स्थूलरूपथी करी बतावीये छे.- प्रथम जे ज्ञान ले, ते जीवनो गुण ले. अने सातनयो छे ते, बेविभागथी वहचाइली छे, प्रथमनी नैगमादिक चारनयो द्रव्यार्थिक छे. (एटले द्रव्यपणाने अंगीकार करवा वाली छे ) अने पीछली शब्दादिक त्रण नयो पर्यायार्थिक छे. (एटले गुणादिकने अंगीकार करवावाली छे) अगर तमोने, मारा कहेवा उपर भरोसो न आवतो होय तो, वो सत्यार्थचंद्रोदय पृष्ट ६ मां ढूंढनी पार्वती पण लखे छे के, पहिली चार नय द्रव्य अर्थको प्रमाण करती है. । अने पीछली त्रण पर्याया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० 'र्थिक नयने; सत्यनय करके कहती है. ।। आधी विचार करवानी एछे के, ज्ञान छे ते तो आत्माना गुण पर्यायरूप छे, अने ते ज्ञानगुण, पीछली शब्दादिक पर्यायार्थिक ऋण नयोनी साथेज संबंध ध रावे छे, ते एकला ज्ञानगुणने, द्रव्यार्थिक चार नयोमां पण उतारी - ने बतावो लोकेट वधुं अयोग्यपणं छे ? तेनो विचार तमोज एकांतमां बेसीने करी जुवो. केमके, प्रथमनी नैगमादिक वार द्रव्यार्थिक नयो छे ते तो, जीवरुप द्रव्यने वलगीनेज अर्थ आपनारी छे. परंतु ज्ञानगुण एकलाने वलगीने अर्थ प्रकाश करनारी नथी. ते तो पीछली शब्दादिक ऋण नयोज प्रकाश करशे । जेमके, निक्षेपना विषयमां शब्दादिक ऋण नयो, भावने वलगीने, द्रव्यरूप अर्थने प्रकाश करवावाला गण निक्षेपोने अंगीकार नही कर्या. । अने नैगमादिक द्रव्यार्थिक चार नयोए, प्रथमना त्रण निक्षेपोने, मानी लीधा, अने भावरूप गुणमां छूटी गइ हती, तेम अहिं एकला ज्ञानगुणने पण, द्रव्यार्थिक चार नय, अंगीकार करवानी नथी. एम खासपणे समजवानुं छे. । अगर कोइ एकला ज्ञानगुणन साथै लागु पाडवानो प्रयत्न करे, ते तो जैनमार्गनी शैलीथी तदन अजाणज छे । परंतु जैनमार्गनी शैलीनो जाण छे एम कोइ दहाडो पण नही गणाय. आ जैनमार्गना सूक्ष्म विषयोने, सद्गुरुनी पासथी भण्याविना.. जैनमार्गनी शैलीथी विपरीत थयेलाओने पुछीने, पंडिताइ प्रगट न करी शकाय । वास्ते जे जे अर्थो, अने विकल्पो, एकला ज्ञान उपर, सात नयो उतारीने कर्या छे ते, जैन मार्गनी शैलीथी विपरीत पणेज थयेला छे । अगर जो तमो जीवनी साये, ज्ञान गुणने, अभेद भावमानी, सात नयो उतारवा मागता हसो तो, तेपण तमारा करेला विचार प्रमाणे, जूठाज निवडे छे, केमके प्रथमनी नयो जे, नैगम, १ संग्रह, २ व्यवहार, ३ अने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ ४ सूत्र, ए चार द्रव्यार्थिक छे, तेथी ए चार नयो द्रव्यने वलगीने बोध आपनारी छे, छतां तमारा लेखमां ते प्रमाणे विचार थयेलो नथी. जो पृष्ट ८४ मां, (२०) संग्रहनय प्रमाणे ज्ञान-पांच प्रका रनुं ज्ञान छे तोषण समुच्चये एकज ज्ञान कहे ते, । आ संग्रहनय द्रव्यार्थिक छतां जीवद्रव्यना आश्रयविना एकला पांच ज्ञानथी लखीवताव्यां छे, । तेमज ऋजुसूत्र नयमां, छद्मस्थना चार ज्ञानने, एक ज्ञान कही निरर्थक ठरावा प्रयत्न करेला छे, केमके पृष्ट ८६मां, सम्यक्त सहित ९ तनुं ज्ञान ते शब्दनय प्रमाणे लख्युं छे, तो एमां पुछवानुं एछेके शुं ! ऋजुसूत्र द्रव्यार्थिक नयना, चार ज्ञानवालाने, सम्यक्त होतुं नथी, जे त्यां सम्यक्त शब्दजोडीने बताव्यो नही, केमके, चोथु ज्ञान, शुद्ध साधुविना बीजाने थतुंज नथी वास्ते द्रव्यार्थिक ऋजुसूत्र नयना चार ज्ञाननी व्याख्यामां सम्यक्त शब्द अवश्य जोडवानो हतो परंतु तमोए, तेमज ढूंढनी पार्वतीए, द्रव्यार्थिक चार नयोने जूठी, अने उपयोगविनानी ठराववा प्रयत्न करेलो छे, केमके तमोए, तेमज ढूंढfie, चार निक्षेपना विषयमां, द्रव्यार्थिक चार नयना विषयरूप प्रथमना त्रण निक्षेपने, अवस्तु अने उपयोगविनाना लखी बताच्या छे. परंतु तमो तमाराज लेखनो, परस्परना विचारथी, विचार करीजो सोतो, तमोने पण जूठे जूठन मालम पडसें, जूवो के पृष्ट. ८२ - मां, स्थापना निक्षेपे ज्ञान - ज्ञाननी स्थापना करवी ते, । अने द्रव्य निक्षेपे ज्ञान - लखेलां पुस्तक पांना, । आस्थापना, अने द्रव्यरूप बन्ने निक्षेप, द्रव्यार्थिक नयना विपय वाला छे, अने आधार आधेयना भावधी वर्णन करीये तोज योग्य थाय, परंतु तमोए पृष्ट ६३ मां, कागल मुकीने सूत्रनी स्थापना करवी बतावी, पण जो अक्षरोना आधाररूप कागल लख्या होत तोज योग्य थात, अने अही पण, ज्ञाननी स्थापना करवी, पण ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ કર शी वस्तुथी करवी ते कांड लख्युं नथी । हवे द्रव्य ज्ञानमां लखेल पुस्तक पांनां कहो छो, तो ते तीर्थ कर भाषित तत्त्वज्ञानथी लखेलां पुस्तक पांनां, अवस्तु छे अने उपयोग विनानां छे एम कही, आ द्रव्य निक्षेप, निरर्थक रूप छे एम जैनोथी केम कही शकाशे ! हा कदाच म्ले छो तो भले निरर्थक कहै, वास्ते नतो द्रव्यार्थिक नयो निरर्थक छे, तेमज नतो त्रण निक्षेप पण निरर्थक छे, केवल जैननी शेलीने समज्या वगर, मूढताथी करेला तमारा विचारोज बधा निरर्थकरूपे थयला छे, अमो एकेक बातनो जो विचार करता बेसी ये तो, लखतां पण छेडो आवे नही, अने वाचकवर्गने समजवानुं पण ठीक पडे नही, एवो विचार करी, आ सामान्य मात्रना लेखथी दिग्दर्शन करावी, आ लेखनी समाप्ति करतां, एक बात याद आवे छे ते, प्रसंगो पान अहीयांज लखी बतावुं हूं. ॥ ते वात ए छे के. ॥ वाडीलाल, पृष्ट. २२१ मां लखे छे के, निन्हव एटले, सात नय पैकी, एकज नयने वळगी रही, पक्ष ग्राही बने. ( जमाली माफक ) ॥ आ लेख पण योग्य रीते थयेलो नथी, केमके सातनय पैकी, एकाद नयने, न मान्य राखी पक्षग्राही बने, तेनेज निन्हव कहेलो छे, । अने जे, सात नय पैकी, एकज नयने वळगी रही, पक्षग्राही बने, तेने तो कोरो मिथ्या दृष्टि कहेलो छे. ।। तथाच काव्यं. ॥ बौद्धाना मृजु सूत्र तो मतमभू द्वेदांतिनां संग्रहात्, सांख्यानां तत एव नैगमनयाद् योगश्च वैशेषिकः ॥ शब्द ब्रह्म विदोपि शब्द नयतः सर्वैर्नयैर्गुफिता, जैनी दृष्टि रितीह सारतरता प्रत्यक्ष मुद्रक्ष्यते ॥ १९ ॥ भावार्थ. - हठपणाथी क्षणिकवादी बौद्धमती छे, ते वर्त्तमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणु छ, । अने ऋज सत्रनय, ते वर्तमानपणाने ग्रहण करनारी छ, तेथी बौद्धनो मत, ऋजु सूत्र नयथी उत्पन्न थयेलो छे. एम समजबु. ।। अने “सर्व खल्विदं ब्रह्म.” एम सर्व संग्रहपणाना हठथी, वेदांती कहे छे, तेथी ते संग्रह नयनो मत छे. ॥ अने आत्माने करवानुं कांइ नथी, एम सांख्यमतवाला कहे छे, ते पण संग्रहनयनो ज मत छे. ॥ अने द्रव्य, गुणादि, सामान्य, विशेष, पदार्थो जुदा जुदा छे, एम हठपणाथी नैयायिक, अने वैशेषिकनामतवाला कहे छे, अने नैगम नयनो पण एज मत छे, तेथी, एबे मत नैगम नयथी उत्पन्न थयेला छे एम समजवं. ॥ अने सर्वज्ञ कोइ नथी, अने शब्द जे अनादि वेद वचन, तनाथीज सर्व प्रवृती चाली रही छे, एम मीमांसक (एटले जैमनि ऋषि) ना मतवाला कहे छे, अने ते शब्द नयनो मत छे, तेथी मीमांसकनो मत शब्द नयथी उत्पन्न थयेलो छे. ॥ अने जैनमत छे ते, सर्व नयोथी गूंथेलो होवाथी सर्व मतोथी श्रेष्टपणे अमो प्रत्यक्षपणाथी जोइये छे. ।। इतिका व्यार्थः ॥ हवे आ लेख उपरथी विचार करवानो ए छे के, जे जे मतवाला एकेक नयने वलगीने रह्या छे ते ते मतवालाने, शास्त्रकारे तो, मिथ्या दृष्टि कहेला छे, पण तेने 'निन्हव' कहेला नथी. । अने निन्हव तो तेने कहेला छे के, जे जैन मतनी सर्व प्रकारथी, बीजी बधी मान्यता राखी, एकाद नयनी मान्यता न राखे तेनेज, शास्त्रकारे, निन्हव कहेला छे. ॥ अर्थात् एकाद नयना विषयमां, भ्रमित थइ हठ पकडीने वेसे, अने समजाव्या पण समजी सके नहीं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जेमके, जमाली, सर्व जैन मतनी मान्यता राखवा छतां, तेमज जैननी सर्व क्रियामा उच्च पदने धारण करवा छता, एकज नयना विषयमां, भ्रमित थइ समजाववा छतां पण समजी सक्या नही, तेथी तेमणे निन्हपणामां गणी काहडया. । कहेवानुंए छे के, जमाली जेवा महा तपस्वी, अने जननी सर्व क्रियामां प्रवीण छतां, एक नयमां भ्रमित थवाथी, तेमणे शास्त्रकारो ए निन्हव ( अर्थात् वीतरागना वचन लोपी)कह्या.।तो पछी, नाम निक्षेप, १ स्थापना निक्षेप, २ अने द्रव्य निक्षेपने, ३ मान्य राखनारी, जे नैगमादिक द्रव्यार्थिक चार नयोनो, लोप करवा बेठेला, अमारा ढूंढक भाइयो छे, तेमणे अमारे शुं ! निन्हव कहेवा ? अथवा अर्द्धदग्ध कहेवा ? केमके, निन्हव तो जे एकाद नयनो लोप करवावाला होय तेने कहेवाय छे, अने अमारा ढूंढक भाइयो तो, आ निक्षेपना विषयमां, चार नयोनो लोप करवा बैठेला छे, अने नयो तो मूलनी सात छ, वास्ते अर्द्धदग्ध कहेतां पण विचार थइ पडे छे, वास्ते निर्णय करवानुं वाचक वर्गने सांपी दइ अमारा लेखने बंध करीये छे. ॥ ॥ इति सप्तनय विषये तत्त्वाऽतत्त्व विचारः॥. - ॥ हवे चार निक्षेप विषये किंचित् तत्त्वा तत्त्वविचार करी बतावीए छे. पृष्ट. ५४ थी. ते. पृष्ट. ७१ मुधीमां वाडीलाल शाह नो लेख नीचे मुजव. [७-८-९-१० ] चार निक्षेप * १ आचार निक्षेप जैन मतमा उपयोगी भाग भजवे छे. एनी गेर समजथी निरारंभी जैन बर्गमां, एक मूर्ति पूजक पंथ उभो थयो छे, के जे मूर्ति पूजाके जेमां हिंसा मुख्यत्वे छे, अने धर्मके जेमां जीवदया मुख्यत्वे छे. ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बेनो पर स्पर विरोध पण जोवानी दरकार करतो नथी. ॥ अत्रे आपणे * २ अरिहंत अने सूत्र ए वे शब्द उपर चार निक्षेप उतारी शुं अर्थात् लागु पाडी शुं. ॥ अरिहंत. ।। पृष्ट. ५६ मां. जीवादिक वस्तुनुं अरिहंत एवं नाम आप्युं होय त्यारे ते वस्तु नाम निक्षेपना आधारे अरिहंत क बाय. | भरवाडना छोकरानुं नाम इंद्र पांडे तो ते, इंद्र न होवा छतां नाम निक्षेपे, इंद्र कहेवाय ।। पृष्ट. ५७ थी. ।। स्थापना निक्षेप-तेना वे भेद, सद्भाव, अने असद्भाव, ॥ [ १ ] सदभाव - फोटोग्राफ, बावलं, भगवान देहधारी हता ते aanनी आ बेहुब छबी बावलुं बनावी राख्युं होय तो. [ २ ] असद्भाव ते १० दश प्रकारे कराय छे, गंटीने, परोवीने, जोडीने, चितरीने, लीपीने बनावे. ते. इत्यादि १० प्रकारे कराय छे, अरिहंत प्रभुनो फोटोग्राफ ( छबी ) अगर बाबलुं न मलवाथी, * ३ पाषाणादि वडे आकार मात्र मल तो बनावी तेमां महावीर पणुं आरोपे एटले के तेने महावीर तरीके माने पूजे ए अरिहंतनो असद्भाव निक्षेप. ॥ ३ द्रव्य निक्षेप - तेना पांच भेद छे ।। १ जाणग शरीर द्रव्य, । २ भविय शरीर द्रव्य, । ३ लौकिक द्रव्य, । ४ कु प्रावचनिक द्रव्य, । ५ लोकोत्तर द्रव्य ॥ १ अरिहंत मोक्ष सिधाव्या, अने तेमनुं शरीर पडयुं होय ते शरीरने, जाणग शरीर द्रव्य निक्षेपना आधारे, अरिहंत कहे. ॥ १ ॥ २ प्रभु घर वासमां होय त्यारे, अरिहंत कहे ते, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविय शरीर द्रव्य निक्षेपना आधारे का. ३ लोकने विषे शत्रुने जीते, एटले चक्री, वासुदेव, राजा विगेरेने, लौकिक द्रव्य निक्षेपनी दृष्टिए, अरिहंत कहे. ४ हरि, हर, ब्रह्मा, आदि देवने, कुमा वचनिक द्रव्य ... निक्षपेनी दृष्टिए, आरिहंत, कहे. ५ जैन धर्ममां होय पण केवल ज्ञान पांम्यो न होय छता पोताने अरिहंत कहे वडावे. ते, लोकोत्तर द्रव्य अरिहंत. ( गो सालाना दृष्टांते ) ४ भाव निक्षेप. केवल ज्ञानादि सहित जे वर्ते छे ते, भाव अरिहंत, खरखरो अरिहंत तो तेज, अने वंदनिक पण तेज, बाकी नामनो माणसके पथ्थर कोइनु कल्याण करीसके नही. ॥ पृष्ट. ६३ तक.॥ इति अरिहंत उपर घटावेला चार निक्षेप, सम्यत्क. अथवा धर्मना दरवाजाथी लखी बताव्या छे.॥ हवे पृष्ट, ६३ थी सूत्र उपरना लखीये छे॥ ॥ सूत्रः ॥ १ नाम निक्षेप-कोइ पण पाणी पदार्थ- सूत्र एवं नाम.॥ २ स्थापना निक्षेप-सुत्र तरीके कागल मुकी तेने सूत्र माने.।। ३ द्रव्य निक्षेप-लखेलां. पांना.॥ ४ भाव निक्षेप-सूत्रोमांनां तत्वो. [ वांचनार जे ग्रहण करे छे. ते.॥ श्री अनुयोगद्धारमांकयुं छे के, पेहेला त्रण निक्षेप "अवश्थु" एटले उपयोग विनाना छे, छेल्लो चोथोज आ लोकमां उपयोगी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने परमार्थमां साधन रूप छे.॥ पृष्ट. ६५ थी सूचना १ ली लोगस्समां जे तीर्थकरोनां नाम छे ते, नाम निक्षेप न कहेवाय पण 'नाम संज्ञा' कहेवाय, तीर्थकराने नाम अन्य कोइने आपीए त्यारे ते, नाम निक्षेप ? कहेवाय. ॥ सूचना -२ जी. खुद तीर्थकर बीराजता त्यारे नाम तो हाल छे तेज धरावता पण ते " नाम निक्षेप " कहेवाय नहि, भाव निक्षेप कहेवाय. सुचना. ३ जी. मोह घरमा श्री मल्लिनाथे पोतार्नु आबेहुब मुवर्ण बावठे मुक्युं हतुं, के जे कारणथी छ राजाने 'जाति स्मरण' झान उपन्युं हतुं तो पण ए छ समकिती जीवोए बावलाने वायुं नहि, जो के एक तो उपकारी पदार्थ-कारण भूत पदार्य हतो वळी तीर्थकरनी सदभाव स्थापना हती. ॥ नमिराजा चुडीना कारणथी बूज्या. । समुद्र पाल राजा चोरने देखीने ज्या. पण चुडीने के चोरने वांया पूज्या न हता. । भगवाननी मूर्ति देखवाथी भगवान याद आवे छे ते कारणथी मूर्ति पूजवी जोइए एदलील तद्दन पाया वगरनी छे. अने जिन प्रतिमा माननारा, जिन प्रतिमा जिन सारिखी कहे छे. पण द्रव्य के भाव एक पण रीते ते, जिन सारिखी थइ शकती नथी. । भगवान देह धारी हता ते वखतनी छबी के बावलं होत तो कदाच द्रव्ये सारिखी कहि सकात. । वळी भगवाननो ज्ञान गुण, मूर्तिनो जड गुण, ते पण एक, सारिखी, कहेनारे विचारवा जेवू छ. ॥ आतो धर्ममा आगल वधवानी तीव्र इछाने लीधे उन्मार्गे चडी जवा जेवू थयु. ॥ पृ. ६७ ओ १४ थी वैराग्य के ज्ञान थवानुं तो क्षयोपशम उपर आधार राखे छे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुद महावीर स्वामीना मुख्य शिष्य गौतम स्वामी जेवा तेमणे भाव तीर्थकरनी भक्ति करी तोपण प्रभुनी हयाति शुधी तो तेमणे केवल ज्ञान' न थयुं, पण प्रभुनो बियोग टुका वखतमां केवलज्ञान आपनारो थइ पडयो. ।। साक्षात् वीतराग देव बीराजता त्यारे तेमणे वांदया कोइए संघ कहाडया न हता.। श्री विपाकसत्र, तथा भाग वती सूत्रमा कयुं छे के, सुबाहु कुमारे, तथा उदाइ राजाए, एम भावना भावी के, भगवंत जो अहीं पधारे तो तेमणे वांदी हुं कृतार्थ थाउं, एटलो तीव्र भक्ति भाव छता, अने खुद भगवाननां दर्शन थवानां हतां छतां, तेमज पोते लक्ष्मीवान् होवा छता, संघ कहाडीने 'वांदवा' न गया हता, तो पछी पथ्थरने भगवान मानी लइ, तेंने वांदवा माटे संघ काढीने जq एमां शुं भगवाननी आज्ञा होय ? ॥ ? अरेरे भस्म ग्रहना भ्रमित आचार्योए मात्र पेटना कारणे, दुधमांथी पौरा वीणवा जेवं काम करी,स्थापना निक्षेप, नो अवलो अर्थ लइ मूर्तिपूजाना अने ते अंगे थतां बीजां अगणित पापोमां, भोली दुनीयाने केवी डूबावी दीधी छे ? अने डुबेला पाछा उठवाज न पामे, तेटला माटे तेमना उपर कपोल कल्पित ग्रंथोनी, केवी त्रासदायक पछेडी ओढाडी दीधी छे ? ॥ पृ. ७० ओ. ७ थी भस्म ग्रहना संख्याबंध भूखथी आकूल व्याकूल थयेला आचार्यो, शास्त्रवें शस्त्र बनावी, तेवडे दुनीयानो शिकार करवामां फतेह पांमे एमां शुं आचर्य? परंतु जेओने अंतर्च क्षु छे, तेमणे विचार करवा दो, अने पाप खाइमां धक्केली देनार सामे मानसिक टक्कर लेवा दो.॥ * आ प्रकारना चक्रथी नीचेना भागमा टीप आपेली छे. ते पृ. ५४-५५-५८ ना क्रमथी लखी बतावीये छे. ॥ चार निक्षेप * Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ नी १ | अत्रे आ प्रमाणे * नी २ । प्रभुनो फोटोग्राफ ( छबी ) अगर बावलुं न मलवाथी * नी ३ जी. । एम ऋण प्रकारनी टीप लखी बतावीये छे. ॥ ॥ चार निक्षेप * १ । पृष्ट. ५४ मांक्षिप्= फेंक. निक्षिप्=आप आरोप निक्षेप = आरोप ते अथवा आरोहण. कोइ चीजमां बीजी चीजनो गुण आरोपवो ते. ।। इति प्रथम चनी. अत्रे आपणे * २ । पृष्ट. ५५ थी - दुनीयामां जेटली चीज छे तेटली बधी कबुल करवा छतां, पूजवा योग्य होइ शके नहि, तेमज निक्षेप चार छे ते चारने पूजे तोज, निक्षेप चार, कबुल राख्या एम साबीत धतु नथी - जैनो कहे छे के, केटलीक चीजो ज्ञेय. उपादेय. अने हेय. माटे निक्षेप एक बे नही पण चार छे, एम कबुल राखनारा माणसे स्थापना निक्षेपने उपादेय तरीकेज कबुल राखवो जोइए एवं कहेनारा मात्र पोताने ज ठगे छे. ॥ ए बीजा चक्रनी टीपमां. ॥ प्रभुनो फोटोग्राफ (बी) अगर बावलुं न मलवाथी * ३ नी टीप, पृष्ट ५८ थी. || लोको ज्यारे मूर्त्तिने आगल करवा मागे छे तो पछी आ एक आश्चर्य वार्ता छे के, तेओ सदभाव छोडी असद्भाव स्थापना केम करे छे ! जेनुं नामज असद्, एटले खोडं, तेने ग्रहण करवं एशं विचारशक्ति पामेला प्राणीने शोभती वात छे ! | श्री मल्लिनाथजीनुं सुवर्णनुं बावलुं के विषयी राजाओ, तेने भेटवा तलपी रह्या हता, जो मूर्तिपूजा ए रुडं काम होत तो केम साचवी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० राखयामां न आवत ! बली कारीगरो, आबेहुब छबी बनाषनार हयाती धराववा छतां, कोइ पण तीर्थकरनी छबी के बावलुं केम न बन्युं, ए समजातुं नथी. भगवान् तो जाणता हताज के, अमारा पाछल वखत आवो आववानो छे । वली ते भविष्य का - लं वर्णन पण करी बतावता, तो शुं कोइ श्रीमंतो ते वखतमा नहोता के, जेओ भविष्यना करोडो जीवोना हितार्थे, हयात भगवानी छबी ने बावलां बनावी राखे ! एम थयुं होततो आजे " सदभाव स्थापनामां " कोइने मुजाइ रहें पडत नाही. ॥ " वली आपण विचारवा जेवूं छे के, सद्भाव अने असद्भाव स्थापना " ते रूपवंत वस्तुनी थइ शके, पण कांइ भाव-गुनी होइ शके नहीं. भगवान, पोताना उपरनो मेल दुर करी निज रूपमां भली गयेला आत्माज छे । तेना गुण जे, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य छे, तेनी ' स्थापना ' शी रीते थइ शके. ! प्रकाशक. ।। इति पृष्ट. ५४ थी. ते पृष्ट ७१ शुधी ढूंढकनो लखेलो लेख आलखीने बतावेलो छे. ॥ हवे ए विषय उपर अमारो विचार - चार निक्षेप उपयोगी भाग भजवे छे। एनी गेर समजथी - एक मूर्तिपुजक पंथ उभो थयो छे. ॥ आलेखथी विचार करवानो ए छे के, प्रथम प्रमाणना वियमां, । अने पछी नयोना विषयमा, तमारी केटली बधी समज थली हती तेनु तो दिग्दर्शन अमोए करी बतान्युं छे; हवे चार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१ निक्षेपमा विषयमां पण, तमारा ढूंढकोनी समज केटली थयेली छे तेनो विचार, ढूंढक हृदयनेत्रांजनमां, करी बताव्यो छे तेथी विचार करी जवो के, तमारी समज केंवा प्रकारथी थयेली छे, तेथी माल पडशे. ॥ तोपण स्थान शून्य न राखतां, अहियां पण सिद्धांतना पाठनी साथे, तेनां लक्षणो लखी तमारा लेखनो पण, परस्पर वि चार करी बतावीये छे, तेथी पण किंचित् तमारी चातुरीनी खबर तमने पडशे. ॥ वो अनुयोगद्वार नामनुं सूत्र, आवश्यक आदि सूचना निक्षेप करीस्युं, एम कहीने, प्रथम नीचे लखेली, गाथा : कही बतावी छे. ॥ तथाच ॥ जथ्थय जं जाणेज्जा निख्खेवं निख्खिवे निरवसेसं जथ्यविय न जाणेज्जा चउकगं निख्खिवे तथ्य ॥ १ ॥ अर्थः- ज्यां जे वस्तुमां, जेटला निक्षेप जाणवामां आवे त्यां, ते वस्तुमां, तेटला निक्षेप करवा । अने जे वस्तुमां, वधारे निक्षेप जाणवामां न आवे, ते वस्तुमां चार निक्षेप तो जरुरज करवा. ॥ १ ॥ ॥ ए गाथाने कीने, आवश्यक सूत्रना, चार निक्षेपनुं उच्चारण करता, हुवा सूत्रकार प्रथम निक्षेपनुं सूत्र कहे छे. 11 यथा. सेकितं आवरस्यं, श्रावस्सयं " चउविहं " पण्णत्तं तंजहा, नामावस्सयं १ । ठवरणावरस्यं २ । दव्वावस्यं ३ | भावावस्तयं ४ | ॥ सेकिंतं, नामावस्स्यं २ जस्सयां जीवरसवा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजीवस्स वा, जीवाणं वा, अजीवाणं वा, तदुभयस्स वा, तदुभयाणं वा, आवस्सए त्ति, नाम कजइ, सेतं, नामावस्सयं ॥१॥ अर्थः-ते आवश्यक केटली प्रकारनो छे, तो के चार प्रकारनो छे. । एक नाम आवश्यक १ । बीजो स्थापना आवश्यक २ । त्रिजो द्रव्यावश्यक ३ । अने चोथो भाव आवश्यक ४ ॥ ॥ एम आवश्यकना चार निक्षेप वर्णन करेला छे. ॥ अहीयां ध्यानमा राखवा- एटलं छे के, षट् आवश्यक क्रिया रूप वस्तुने, मनमां धारण करी, गणधर महाराजाओए, आ आवश्यक रूप क्रिया वस्तुना, “ चार निक्षेप" जणाववाने, सूत्रनी रचना करेली छे. अने ते क्रियाने जणावनार सूत्र, अथवा साधु, ए बेज छे ते आगल सूत्रार्थथी स्पष्टपणे समजासे. ॥ . केमके आवश्यक शब्दनो अर्थ एवो करेलो छे के, अवश्य करवाने योग्य ते, अथवा आत्माने गुणोथी वासित करे ते, अथवा गुणोने वश करे, तेनु नाम आवश्यक छे. ॥ ॥ अने एज अर्थ, ढूंढनी पार्वती पण, सत्यार्थ चंद्रोदय पृष्ट. २ मां करे छे के, “प्रश्न, आवश्यक किसको कहिये, उत्तर अवश्य करने योग्य, यथा आवश्यक नाम सूत्र. ॥ एम ढूंढनी पण समज्या वगर लखे छे, केमके अथवा आवश्यक सूत्र, एम लखवू जोइतुं हतु, कारण के आवश्यक क्रियाने प्रगट करनार साधु अथवा आवश्यक सूत्र छे, तेथी अथवा शब्दथी लखवानु हतुं तेने ठेकाणे, यथा आवश्यक सूत्र लख्युं छे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ हवे प्रथम नाम निक्षेप शब्दनो अर्थ किंचित् लखीये ॥ नाम निक्षेप शब्दनो अर्थ ए छे के, जे शब्दो व्याकरणादिक गुण पूर्वक सिद्ध थयेला छे, अथवा आपणा आपणा शाखोना संकेतथी सिद्ध छे, ते शब्दोनो, यथार्थ भाव प्रगट करवा वाली वस्तुमां, आरोप करवो, अथवा वीजी वस्तुमां आरोप करवो. तेनु नाम, नाम निक्षेप छे. ॥ ते नाम निक्षेप जे जे वस्तुमां करी सकाय छे, ते ते वस्तुने जणाववा, प्रथम अनादि सिद्ध जो ' आवश्यक' शब्द छे तेनो भाव प्रगट करवा, जेमां जेमां ते नामनो निक्षेप करी सकाय छे, ते बताववाने सूत्रकारे सूत्र कयुं छे, तेनो अर्थ करीने बतावीये छे. ते नाम आवश्यक शुं छे, ? तो के जे जीवनुं, अथवा अजीवनुं, वा घणा जीवोनुं, वा घणा अजीवोनुं अथवा जीव अजीव भेगी वस्तुनुं, अथवा घणा जीवो अने घणा अजीवो भेगी वस्तुनुं, आवश्यक' एवं नाम आपीए, तेनुं नाम ' नाम आवश्यक 6 " थाय. ॥ इति आवश्यकना प्रथम नाम निक्षेपनो सूत्रार्थः हवे अही नाम निक्षेपनुं लक्षण कहिये छे. ॥ यद्वस्तुनोऽभिधानं स्थित मन्यार्थे तदर्थ निरपेतं । पर्यायाऽनऽभिधेयंच, नाम यादृछिकंच तथा ॥ १ ॥ अर्थ : ' नाम निक्षेप, त्रण प्रकारथी कराय छे, । ते एवी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रीतेके, जे गुण क्रिया काची अनादि सिद्ध शब्दो छे, ते शब्दोनो यथार्थ भाव प्रगट करवाने, यथार्थ गुणवाली वस्तुमां आरोप करवो, ते पहेला प्रकारथी नामनो निक्षेप जाणवो. जेमके 'आवश्यक सूत्र' लखाइने तइयार थया पछी ' आवश्यक ' एवं नाम आपीये ते 'अजीव वस्तुमां ' नाम निक्षेप, यथार्थपणे थयो । अथवा आवश्यक सूत्र भणवा वाला साधनुं नाम 'आवश्यक' कहीये तो ते ' जीव अजीव रूप भेगी वस्तुमां पण' यथार्थ पणे ' नाम आश्यकनो निक्षेप ' जाणवो ए पेहला प्रकारथी नामनो निक्षेप जाणवो. ॥१॥ अने जे वस्तुमां, शब्दनो अर्थ यथार्थ तो होय नहि, तेम तेनी पर्यायनां बीजां नाम होय ते पण वापरी शकाय नही, तेवी बीजी गुण विनानी वस्तुमां, नाम आप्यु होय ते, बीजा प्रकारथी नामनो निक्षेप गणाय छे, जेमके गूज्जरना पुत्रनुं नाम 'इंद्र' अथवा कृश्न, रामचंद्र, एवं नाम आप्या छतां पण, पुरंदर, सचीपति, आदि जे इंद्रनी पर्याय वाचीनां नाम छे ते बीजा नामानोनी प्रवर्ति, अथवा कुश्न पर्याय वाचीनां. अथवा रामचंद्र पर्याय वाचीनां, बीजां नामोनी प्रकृति, गूजरना पुत्रमा करी शकाय नही, ते पर्याय वाचीना नामनी प्रवर्ती तो जे विमाननो अधिपति थयो होय ने तेमां इंद्र शब्दना नामनो निक्षेप को होय तेमांज प्रवर्ती करी शकाय. तेज प्रमाणे कृश्नमां, अने रामचंद्रमां पण, समजी लेवू, ए बीजा प्रकारथी नाम निक्षेप जाणवो. २ ॥ __ अने व्याकरणथी तो शब्दोनी सिद्धि थइ होय नहि, तेमज शास्त्रना संकेतना पण शब्दो होय नही, तेवा शब्दोथी आपणी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छा पूर्षक, अस्तुनुं नाम आप जेमके गोल मोल आदि ते, बि. जा प्रकारथी नामनो निक्षेप गणाय छे. ३ ॥ एम त्रण प्रकारना लक्षणथी नामनो निक्षेप थाय छे. ॥ इति नाम निक्षेपy लक्षण संपूर्ण ॥ ॥ हवे बीना स्थापना आवश्यकतुं सूत्र. सेकिंतं ठवणावस्सयं २ जण्णं कठकम्मे वा, पोथकम्मे वा, चिंत्तकम्मे वा, लिप्कम्मे वा, गंथिकम्मे वा, वेढिमे 'वा, परिमे वा, संघाँइमे वा, अख्खे वा, वराडएं वा,। एगो वा, अणेगो वा, सम्भाव ठवणा वा, असभ्भाव ठवणा वा, आवस्सएत्ति ठवणा ठविजइ,सेतं, ठवणावस्सयं ॥२॥ नाम ठवणाणंको पइ विसेसो, णामं आवकहियं, ठवणा इतरिआ वा, आवकहिया वा. । ... ॥ अर्थ-प्रथम अहिं समजवा, ए छेके, आवश्यक सूत्रनी, तेमज आवश्यकनी क्रियाना करवा वाला साधुओ क्रिया कारकनो अभेद मानीने पण आवश्यकनी स्थापना करी सकाय छे, अने सूत्रकारनो पण एज अभिप्राय छे. ॥ ____ काष्टमां. १ चित्रमा २ पत्रादिना छेदमा. अथवा लेख मात्रमा ३ लेपकर्ममां ४ गूंथनीमां ५ वेष्टन क्रियामां ६ धातुना रसनी पूणी मां ७ अमेक मणिकाना संघातमा ८ चंद्राकार पाषाणमां ९ कोडीमां१०॥ ए दक्ष प्रकारनी वस्तुमाथी गमे ते एक प्रकारमा स्थापना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनावी सकाय छे ।। अहीं आवश्यकना विषयमां, सूत्रना अक्षरोनी, तेमज आवश्यकनी क्रिया करवावाला एक साधुनी स्थापना बनावो, अथवा अनेक साधुनी स्थापना बनावों, ते मरजी उपर बात छे । नाम निक्षेप, अने स्थापना निक्षेपमां, फरक एटलोज छ के, नाम यावत् काल, (एटले एकवार पाडयुं के बस छे) अने स्थापना, थोडा काल वास्ते पण करी शकाय छ, । अने यावत् काल तक पण करी सकाय (एटले एकवार करी ते करी, फेर बदल करवानी कंइ जरुर नही.) ॥ हवे अहीयां स्थापना निक्षेपनो तात्पर्य कही बतावीये छे. ॥ आ स्थापना निक्षेपना सूत्रनी रचना करतां शास्त्रकारे, प्रथमथी ज आवश्यक सूत्र, अने आवश्यकनी क्रिया करवावाला साधुनी ' स्थापना ' प्रगट करवाना अभिपायथी ज, सूत्र रचनानी प्रवृत्ति करेली छे. । केमके काष्टादिक जो दश प्रकार, स्थापना करवाना बतान्या छे तेमां, आवश्यक सूत्रनो लेख करवानी पण सवडता छे, अने साधुनी मूर्ति करवानी पण सवडता आवेली छ. । अने 'ए गोवा अणे गोवा' ए सूत्रना वाक्यथी साधुनी स्थापना ज प्रगट करवानुं जणावेलुं छे.॥ ___ अमारा लेखथी ढूंढक भाइयो मनमा शंका लावशे, परंतु शंका करवानी जरुर नथी.॥ जूवो सत्यार्थ चंद्रोदय पृष्ट. ४ था मां, ढूंढनी पार्वती पण एज अर्थ लखी बतावे छे, परंतु समजी शकी नथी. ॥ प्रश्न. स्थापना आवश्यक क्या ? उत्तर, काष्टपै लिखा, चित्रोंमें लिखा, पोथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पै लिखा, अंगुलिसे लिखा "छेवटमां लखे छे के, । आवश्यक करनेवालेका रूप, अर्थात् हाथ जोडे हुए ध्यान लगाया हुआ, ऐसा रूप, उक्त भांति लिखा है. ॥ आ ढूंढनी पार्वतीना लेखथी पण विचार करी जूत्रो के, आवश्यक सूत्र, अने आवश्यक क्रिया करवा वाला साधुनी, स्थापना करवाना अभिप्रायथी, सूत्रकारे सूत्रनी रचना करेली छे के नहि ! अगर जो ए बने प्रकारना अभिप्रायथी मुत्रनी रचना थयेली न होत तो, । ढूंढनी पण || काष्टपै लिखा, पोथीपै लिखा, विगरेनो अर्थ, । अने, हाथ जोडे हुये ध्यान लगाया हुआ, साधुनो अर्थ, कोइ दिन पण करी शकती नहि अने आ निक्षेपना विषयमा शुं शुं फरक अमारा ढूंढक भाइयो करे छे, अने आ विषयमा केवी पहोच धरावे छे, तेनो विचार प्रसंगे प्रसंगे बतावता जशुं || इति आवश्यकनाद्वितीय स्थापना निक्षेपनो सूत्रार्थः हवे ही स्थापना निक्षेपनुं लक्षण कहीये छाए. छंद आर्या. यत्तु तदर्थ वियुक्तं, तदभिप्रायेण यच्च तत्करणि । लेप्यादि कर्म्म स्थापनेति क्रियतेऽल्पकालंच ॥ १ ॥ अर्थ:- जे मूल वस्तुमां गुण छे ते गुणथी तो रहित, अने नाज अभिप्रायथी ( एटले के तीर्थंकरादिकना अभिप्रायथी ) तेमना सदृशपणाथी करणि ( एटले तेमना जेवी करणि) अथवा अन्यथा प्रकारथी, एटले के तेमना जेवी आकृति विनाथी पण, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ लेप्पादिकना कर्मथी स्थापित करवी तेनुं नाम ' स्थापना निक्षेप ' मानेलो छे. तात्पर्य एछे के, स्थापना निक्षेप वे प्रकारथी करी शकाय छे, एक सदरूपधी, एटले के तीर्थकरोना पद्मासन विगरेनी आक्रतिथी, अने बीजी असदरूपथी, एटले के गणेशजीनो गोल पथ्थरो मुकीने लोको करे छे ते, अथवा संकेतित अक्षरोथी ज्ञान गुणनी स्थापना करवी ते, तेवी रीते असदरूपथी पण थापना करी शकाय छे || एम वे प्रकारथी स्थापनानिक्षेप करवानुं, मूल सूत्रकारे पण कही बतान्युं छे, अने लक्षण कारे, पण एज अर्थने प्रगट करीने कही बताव्यो छे. इति द्वितीय स्थापना निक्षेपनुं लक्षण संपूर्ण. ॥ " हवे आवश्यकना तृतीय द्रव्य निक्षेपनुं लखीये छीए. सूत्र सेकितं हव्वावस्यं २ दुविहं पण्णांत तंजहा, आगम १ नो आगम ओ अ २ । सेकिंतं आगम ओ दव्वावस्यं २ जस्सरणं श्रवस्स एत्ति पदं, सिख्खि अं, ठितं, जितं, मितं, परिजितं, नाम समं, घोस समं, यावत धम्मकहाए नो अणुपेहाए, कम्हा अणुवयोगो दव्वमिति कट्टु ॥ १ ॥ सेकितं नो आगम दव्वा वस्सयं २ तिविहं पन्नतं तंजहा जाएग सरीर 9 | भवित्र सरीर २ । जाण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गभवित्र वतिरित्तं ३ । वतिरित्तं, तिविहं पन्नत्तं, । लोइअं. १ कप्पावअणिनं, २ लोउत्तरित्रं, ३ । इत्यादि ॥ अर्थः-अहीं समजवा- ए छे के, जो अतीत कालमां अथवा अनागत कालमां, कारणरूप, सचेतन अथवा अचेतन रूप "वस्तु छे" तेनुं नाम द्रव्य मानेलं छे, तेमां निक्षेप ते द्रव्य निक्षेप अहिं आवश्यक सूत्रनो बे प्रकारथी थाय छे. ॥ एक तो आगमथी, अने बीजो नो आगमथी, ।। आगमथी द्रव्य आवश्यकनो निक्षेप उपयोग विना छ आवश्यकनो पाठ करवावाला माधुमां करेलो छे, ते ए छे के, जे साधु ए आवश्यक मुत्र सिखी लिधुं छे, स्थिर कर्यु छे, जिती लीधुं छे, प्रमाण युक्त भण्युं छे, सारी रीते परिपक्क कर्यु छे, आपणा नामना याद प्रमाणे याद करेलुं छे, अने उच्चारण पण बरोबर शुद्धपणे करी लिधेलो छे, यावत् पुछी गाछी नक्की करी धर्मकथा पण करवा मांडी छे, परंतु ते साधुनो तेमां उपयोग नी तेथी तेनो आवश्यक छे ते आगमथी द्रव्य आवश्यक मान्यो छे, केमके, अनुपयोग छे तेथी तेने द्रव्य मानेलो छे. ॥ अने नो आगमथी द्रव्य आवश्यक त्रण प्रकारथी थाय छे. । प्रथम पूर्वकालमा जेणे आवश्यक सूत्र पढेलं छे, तेवा पठित साधुना प्रेतमां, आवश्यक सूत्र मानवं ते, जाणग शरीर द्रव्यरूपमा आवश्यकनो निक्षेप जाणवो. १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने अपरकालमां दीक्षा लइ जो आवश्यक सूत्र भणवावाला छे, तेवा पुरुषमां, आवश्यक सूत्रनो निक्षेप करवो ते, भवित्र शरीर द्रव्यरूपमा आवश्यकनो निक्षेप नो आगमथी जाणवो. २ ॥ ___अने जाणग, तेमज, भविअ, शरीरथी 'व्यतिरिक्तमां मुख धोवू, दातन करवू, आदि लोकिक,? अने जे चरकादिक साधुओ इंद्र. यक्षादिकनी पूजा विगरे करे ते कुप्रावचनिक, २। अने जैन क्रियाथी स्थिल थयेला आवश्यकमां प्रवर्ति करे ते लोकोत्तरिक, ३ । एवी रीते संसारी जीवोनां अनेक प्रकारनां अवश्य कर्तव्योनो अने स्थिलाचारीओना कर्त्तव्योनो समावेश करीने बतावेलो छे. ॥ एम त्रण प्रकार 'नो आगमथी' द्रव्य आवश्यकनु, वर्णन मूल सूत्रथी करी बतावेलुं छे. ॥ इति आवश्यकना तृतीय द्रव्यनिक्षेपनो सूत्रार्थः हवे तृतीय द्रव्यनिक्षेपर्नु लक्षण कहीये छीए. ॥ छंद आर्या. ॥ भूतस्य भाविनो वा, भावस्य हि कारणं तु यल्लोके । तद्रव्यं तत्त्वज्ञैः, सचेतनाऽचतनं कथितं ॥१॥ अर्थः-आ लोकने विषे, जो अतीत, अथवा अनागत, कालनी पर्यायन कारण छे तेनुं नाम द्रव्य छ, । अने ते जीव, अथवा अजीवना, वस्तु रूपथी छे, । अथवा जीव अजीवना ? व्यतिरिक्त, एटले जे शुद्ध स्वरूपवाला साधुमां, द्रव्यनिक्षेपना विषयरूप, छ आवश्यकनी क्रिया, . जणाववा, सूत्रकारे, सूत्रनी प्रवृति करेलो हती, ते नहीं, पण नाम प्रमाणे, बीजाज गुणवालो, आवश्यकनी क्रियानो, द्रव्यनिक्षेप. ममजबो ए सूत्रकारना अभिप्रायथी लखी जणाव्युं छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ भेगापणानी वस्तुरूपथी छे, । एवं तत्वना जाण पुरुषोए कहेतुं छे. ।। जेमके, इंद्रपदथी चवीने मनुष्य थयेलो होय अने तेने इंद्र कहीये छीए, अथवा मंत्रिपणाना पदथी भ्रष्ट थयेलाने मंत्री कहीये छीए. तेम, । अथवा मनुष्यपणाथी चवीने, इंद्रपणानी पदवीने प्राप्त थवावाला पुरुषने इंद्र कहीये ते, जेमके राजाना कुंवरने राजा कहीये तेम. ॥ || एमां समजवानुं ए छे के, अतीतकालमां, इंद्रपणे हतो, ते मनुष्य थयो, तो पण तेने इंद्र को, । अने जे मनुष्यपणाने छोडीने, इंद्रपदने प्राप्त थवानो छे, तेने जे इंद्र कह्यो ते अनागतकालनी अपेक्षा लड़ने को, । ते इंद्रपणाना 'जीव' रूप द्रव्यमां, पूर्वकाल, किंवा, अपरकाल, नी पर्यायनो आरोप करने, इंद्र को ते. " द्रव्यनिक्षेप " थी कह्यो ।। 44 एवीज ते काष्टादिकथी उत्पन्न थयेली डब्बी आदि वस्तुमां, काष्टपणानो आरोप करवो, । अथवा काष्टादिकथी उत्पन्न थवा वाली वस्तुनो, काष्टमां आरोप करी डब्बी आदिने मानी लेवी, ते अजीव रुप द्रव्यमां " द्रव्य निक्षेप " कहेवाय. ॥ १ ॥ इति तृतीय द्रव्य निक्षेप लक्षण स्वरुप संपुर्ण ॥ ३ ॥ हवे आवश्यकना चतुर्थ भाव निक्षेप विषये सूत्र . ॥ सेकितं भावा वस्सयं २ दुविहंपणत्तं तं जहा, आगमओ १ | नो आगम २ ॥ सेकितं आगमओ भावा वस्सयं जाणए उवउत्ते, सेतं भावा वस्सयं १ ॥ सेकितं नो आगम भावा वस्सयं २ तिविहं पन्नन्तं तं जहा, १ डाबडी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ लोइअं,' कुप्पावयणिअं,' लोगुतरि, इत्यादि. अर्थ:-भाव आवश्यक पण, आगमथी १, अने नो आमी २, एम वे प्रकारथी छे । आगमथी भाव आवश्यक तेने जाणवोके, जे साधु आवश्यकने शुद्धपणाथी परिपूर्ण पणे भ लो होय, अने तेमां परिपूर्ण पणे उपयोग वालो पण होय, तेनुं नाम आगमथी 'भाव आवश्यक पणुं ' जाणं ? । अने जे 'नो आगमथी भाव आवश्यक : पणुं छे ते त्रण प्रकारथी छे. ॥ मां प्रथम, लोकिक भाव आवश्यक ए छे के, सवारनी वखते, अने संध्याकालना समये, अन्यमतना लोको भारत अने रामायणनुं श्रवण करे छे, ते १ ॥ अनेकु प्रावचनिक भाव आवश्यक ए छे के, जे चरक आदि साधुओ, होम, जाप, नमस्कारादिक, वखतो वखत दिन दिन प्रतें करे छे ते. २ ।। लोकोत्तरिक भाव आवश्यक एछे के, जे शुद्ध जैनना साधुनुं, अथवा शुद्ध श्रद्धावाला श्रावकोनुं, अवश्य कर्त्तव्य एटले वे वखतनुं प्रतिक्रमण करवानुं ते, लोकोतरिक भाव आवश्यक छे ३ € 44 " आजे अमोए, चार " निक्षेप " नो अर्थ, करीने बताव्यो छे ते वधोए मूल सूत्रमां गणधर महाराजाओएज करेलो छे, तेमांथीज आकिंचित मात्र अर्थ करीने बताव्यो छे, पण अमारी मंतिकल्पनाथी करेलो नथी, अगर कोइने संदेह थाय तो बीजाना केहवा उपर भरुसो न राखतां, कोइ पंडितनी पास, सत्रपाठ वंचावी, तेनो अर्थ पण सांभलीने, आपणा मनमां निश्चय करवो, अने जैन मार्गथी भ्रष्ट होय तेमनो संग छोडी, शुद्ध जैन मार्गने आदरखो, ए अमारी सर्व भव्य जीवोप्रति प्रार्थना छे. 66 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 3 www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इति आवश्यकना चतुर्थ भाव निक्षेपनो सूत्रार्थः हवे भाव निक्षेपर्ने लक्षण कहिये छीए आर्याः भावो विवक्षित क्रियाऽनुभुति युक्तो वै समाख्यातः । सर्वज्ञेरिंद्रादिवदि हे दनादि क्रियाऽनु भावात् ॥ १ ॥ ___ अर्थः-व्याकरणथी, अथवा शास्त्रना संकेतपणाथी, अथवा लोकोना अभिप्रायथी, जे जे शब्दोमां, जे जे क्रियाओ, मानेली होय, ते ते क्रियाना परिणाम युक्त वस्तुनु वर्त्तन थतुं होय तेने, सर्वज्ञ पुरुषोए ‘भाव ' कह्यो छे. । जेमके, परम ऐश्वर्यना परिणाम युक्त वर्त्तन करे, त्यारेज ते 'इंद्र' कहेवाय, केमके इंद्रमां जे इंद्रपणानी परम ऐश्वर्य रूप ( अर्थात् परम ठकुराइपणा रूप ) नी क्रिया तेनो तेनामांज अनुभव होवाथी तेने 'भाव इंद्र पणु' गणाय ॥ १॥ __अहीं शुधी अमोए, अनुयोगद्वार सत्रनो मूल पाठ, अने तेनो अर्थ,। अने चारनिक्षेपनां लक्षण, जूदां जूदां कहीने बताव्यां छे ॥ इति आवश्यकना चार निक्षेप विषये सूत्र, तथा तेनो अर्थ, अने तेने लगतां लक्षण कहीने बताव्यां. ____ हवे धर्मना दरवाजा नामना ग्रंथभां, शाह, वाडीलाले जे, अरिहंत उपर, अने सूत्र उपर, चार निक्षेप, उतारीने बताव्या छे, तेमां मूत्रपणाथी जे विरुद्ध लेख थयो छे तेना, परस्परना मेलथी विचार करी बतावीये छीए ।। वाडीलाल, सूचना-१ लीमां, लग्दे छे के । लोगस्समां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे तीर्थकरोनां, नाम छे, ते नाम-निक्षेप, न कहेवाय पण ' नाम संज्ञा' कहेवाय, अन्य कोइमां नाम आपीए त्यारे ते 'नाम निक्षेप ' कहेवाय.॥ ____ अने सूचना बीजीमां लखे छे के, खुद तीर्थकरो बीराजता त्यारे नाम तो हाल छे तेज धरावता पण ते ' नाम निक्षेप' कहेवाय नहि. 'भाव निक्षेप ' कहेवाय. ___अने चार निक्षेपनी* प्रथमनी टीपमां लखे छे के, निक्षेप आरोप, ते, अथवा आरोहण, कोइ चीजमां बीजी चीजनो गुण आरोपवो ते. ॥ हले एमां विचार करवानो ए छे के, सूत्रकारे एक आवश्यक क्रियारूप वस्तुमां, जेवी रीते 'चार निक्षेप' उतारीने बताव्या, तेवीज रीते ‘सर्व वस्तुमां' चार निक्षेप उतारवाना छे, ॥ अने सूत्रकारे प्रथम गाथामां पण तेज बताव्युं छे के, जो वधारे जाणवामां न आवे तोपण 'चार निक्षेप' तो वस्तुमां जरुर उतारवा, एम कहीने एक 'आवश्यक क्रियारूप वस्तुमां, उतारीने पण बताव्या, ॥ अने दुनीयामां जे जे, जीव, अजीवादिक, वस्तु छ, अथवा उत्पन्न थाय छे, तेनी समज तेमां नामनो निक्षेप थया पछीज थाय छ, । कोइक वस्तुमां तो नामनो निक्षेप ते शब्दना गुण पूर्वक थाय छ, । अने कोइक वस्तुमां शब्दना गुण विना पण नामनो निक्षेप करी शकाय छे, जेमके विमानना अधिपति थवावाला देवतामा 'इंद्र' नामनो निक्षेप करवो ते, शब्दना गुण पूर्वक नामनो निक्षेप छे, अने गृज्जरना पुत्रमा 'इंद्र' नामनो निक्षेप छे ते, शब्दना गुण विना नामनो निक्षेप करेलो छ, । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ परंतु केहवाशे बन्ने वस्तुमां नामनो निक्षेपज, । केमके 'इंद्रनुं स्वरूप साक्षात छे ते पण जीव अजीवरूप वस्तुज छे, । अमे गुज्जरनो पुत्र छे ते पण, जीव अजीवरूप वस्तुज छे—अने वस्तुमां ज, नामनो निक्षेप करवानो शास्त्रकारे बतावेलो छे, ॥ प्रथम जूवो के, तीर्थकरोनो जीव, अने अजीवरूप तेमनुं शरीर, ए वे मलीने जीव अजीवरूप एक वस्तु छे, तेमां तेमनां माता पीताए ' नामनो निक्षेप ' गुण पूर्वक करेलो छे, । अने को कोइ तीर्थकरोमां, देवताओए पण 'नामनो निक्षेप करेलो छे, ॥ जूबो कल्पसूत्रनो पाठ ॥ यथा जप्पभिनं चणं म्ह एस दारए कुछिसि महत्ताए वक्ते, तप्पभिचणं अम्हे, हिरणेणं वामट्टो, जाव पीइ सक्कारेणं अइव २ वढ्ढामो, जाए भविस्सइ तयाणं गुणं गुण निष्फणं नामधिज्जं करिसामो " वद्धमाणुत्ति " :: ' अने आगे भगवानी बालक अवस्थामां, ॥ देवोहं से गाम कयं “ समणे भगवं महावीरे ,, ॥ अर्थः भगवान महावीर स्वामीना जन्म थया पहेलांज, मातापीताने, एवो विचार थयो के, ज्यारथी भगवान गर्भमां आव्या छे, त्यारथी, अमो सुवर्ण, धन, धान्य, राज्य, विगरेनी वृद्धिने प्राप्त थयां छीये, वास्ते ज्यारे ए बालकनो जन्म थशे त्यारे अमो ए वालकनुं नाम 'वर्द्धमान, एवं पाडीशुं । अने बालकपणामां ज्यारे भगवाने देवतानो पराजय कर्यो त्यारे ते देवताए 'श्रमण भगवंत महावीर, एवं नाम आपेलुं छे. तेथी २४ मा तीर्थकर मां वर्द्धमान, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अते महावीर, ए बे नामनो निक्षेप गुणपूर्वक अयेलो छ. एम शासना संकेतथी जाणवामां आवे छे, ॥ हवे जूवो प्रथम तीर्थकरनुं नाम 'रूषभ छे, ते रूपम शब्द व्याकरणना संकेतथी बलदनुं नाम छे ते पण अनादिथी सिद्धज छे, अने तेज रूपम शब्दनो आरोप भगवाननी साथलोमां बळदनुं चिन्ह जोइ माता पीताए करेलो छ, अने शास्त्रना संकेतथी ते आपणे जाणी पण शकीये छीये, अने जीव अर्जावरूप वस्तुमांज थयेलो छे, तो पछी तीर्थकरोनां नाम ते 'नामनिक्षेप' न कहेवाय एवं कया सिद्धांतना आधारे कहो छो ? ते सिद्धांतनुं नाम प्रगट करो, अने जो अनुयोगद्वार सूत्रना, आधारथी नामनिक्षेपनी ना पाडता हशो तो ते, तमारु लखवू तदन अयोग्यज छे, केमके ते सू मां तो जीव अजीवरूप एक वस्तुमां पण नामनो निक्षेप करवानो कहेलो छ, । अने तीर्थकरो छे ते पण जीव अजीवरूप एक वस्तुज छे, वास्ते नाम छे ते नामनो निक्षेप नही एवं त्रण काळगां पण तमाराथी कही शकाशे नही, ॥ ___वळी पण दाखला जूवो के साधु, अने राजा, आ पण बे नाम छे, ते अनेक पुरुषोमां वखतो वखत अपायाज करे छे, अने कोइमां गुण पूर्वक होय छे, अने कोइ पुरुषमा गुण विनानुं पण जोवामां आवे छे, तो तेने नामनिक्षेप नही कहो तो बीजुं शु. कही शकवाना छो ? तेनो पण जरा युक्तपणाथी विचार करो, अने जैनोना सिद्धांत सामी दृष्टि करो. तमो आपणी मूर्खताइ तरफ लक्ष न देतां, लाखो आचार्यमां भूल बतावो छो, ए कया प्रकारनी तमारी मूर्खताइ गणवी. : आ वातमां घणो पुक्तपणाथी विचार करवानो छे, केमके एतो तीर्थकरोतुं सिद्धांत छ, वास्ते विपरीतपणे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जवाने जरा पण मार्ग रहेलो नथी ? अने परंपराना गुरुनी पासथी भण्या वगर ए गहन विषयोनुं ज्ञान पण यतुं नथी ? एम खासपणे मनमां लक्ष राखवानो छे. छेवटमां तात्पर्य ए छे के. ..... जे जे नाम पाडवाना शब्दो छे, तेतो आपणा आपणा गुणने जणावया वाला अनादिकालथी, वस्तुथी भिन्नपणे सिद्धरूपेज थयेला छ, । अने वस्तुओनी उत्पत्तिनी साथे, कोइ कोइ वस्तुमां, व्याकरणना संकेतथी गुण पूर्वक, अने कोइ कोइ वस्तुमां शास्त्रना संकेतथी गुण पूर्वक, आरोपित करवामां आवे छे, तेज 'नामनिक्षेप छ, । अने तेनी पर्याय वाचीनां बीजां नाम होय ते पण, तेनी साथे लागु पाडी शकाय छे, जेमके आश्विर, नाभि मूत आदि अने ते शब्दोनो गुण विनानी वस्तुमां ज्यारे लोको निक्षेप करे छ त्यारे, तेनी पर्यायवाचीनां बीजां नामनी प्रवृत्ति, ते वस्तुमां करी शकाय नहि, एज विशेषपणुं छे, पण नामनिक्षेपपणामां विशेषपणुं किंचित् मात्र पण नथी, ?॥ ___ आ विषयनो विचार करवावालाने, एक तो मूल सत्र उपर लक्ष राखवाथी, अने लक्षकारना लक्षण उपर लक्ष देवाथी, यथा योग्य पण मालम पडशे. ॥ १ ॥ हवे अही वाडीलालना लेखथी पण विशेष विचार जूवो के, व्याकरण शास्त्रना नियमथी 'अरिहंत नामनो अर्थ, शत्रुने जीतवानो अनादि कालथी सिद्ध छे, ते नामनो अर्थ, रागादि शत्रुओने जितवानो जैन शास्त्रना संकेतथी करी, तीर्थकरोमां 'अरिहंत नामनो निक्षेप, यथार्थपणाथी करेलो छ, अने अरिहंत शब्दयी, तीर्थकरोना जीव रूप वस्तु, जूदी नधी एम कोण कही सके एवं छे ? वास्ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरिहंत शब्दना गुणनोज, तीर्थकरना जीव रूप वीजी वस्तुमा आ:रोप करवाथी निक्षेप शब्दनो अर्थ पण तमारा लख्या प्रमाणे यथार्थपणे ज लागु थाय छे, अने सूत्रमां पण जीव अजीवादिक वस्तुमा आवश्यक सूत्रनुं नाम आपवानुं वतावेलुं होवाथी, ते सत्य रूपथीज निक्षेप थयेलो छे, परंतु सद्गुरुना चरणनी प्रासादी मल्यावगर तमोने भ्रांति थयेली छे. . .. जूवाके, आवश्यक सूत्र, लखाइने तैयार थया पछी, आ. वश्यक एबुं नाम आपीये ते अजीव रूप वस्तुमा नाम निक्षेप थयेलो गणाय, । अने जीव अजीवना पुतला रूप साधुमां, नाम आपीए ते पण यथार्थपणार्थी नामनो निक्षेप गणाय. ॥ ए सिवाय बीजी वस्तुमा आवश्यकनां बीजां पर्यायवाची नाम सूत्रकारे आप्यां छे, तेनी प्रवृति करी सकाय नही, मात्र आवश्यक सूत्रमां, अने अभेदभाव मानीने शुद्ध साधुमांज, ते नामनी प्रवृत्ति करी सकाय. - गाथा ॥ १ आवस्सयं, २ अवस्स करणियं, ३ घुवनिग्गहो, ४ विसोही अ, ५ अजयण छक्क वग्गो, ६ नाओ, ७ आराहणामग्गो ॥१॥ समणेणं सावएणय, अवस्स कायठ्वं हवति जम्हा, ॥ अतो अहोनिसस्सय, तम्हा आवस्सयं नाम ॥ २॥ अर्थः-साधु आदिने अवश्य करणे योग्य, । अथवा वश होवे कषायादि भाव शत्रुओ, । अथवा वश होवे ज्ञानादि गुण, । तेथी एनुं नाम आवश्यक छे १ ॥ साधुओने तेमज श्रावकोने नियम पूर्वक करवाने योग्य होवाथी एनुं नाम अवश्य करणीय पण छे, २। ध्रव जे कर्म, अथवा संसार, तेनो निग्रह (अर्थान् नाश) कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वावालो होवाथी एनाम ध्रुव निग्रह पण कहीये, ३ । आत्माना कर्ममेलनी शुधी करवावालो होवाथी एनुं नाम विशुद्धी पण कहीये, ४ । छ अध्ययन भेगां होवाथी एनुं नाम अध्ययन षट्वर्ग पण कहीये, ५ । जीव अने कर्मनो संबंध दुर करवावालो होवाथी एनुं नाम न्याय पण कहीये, ६। मोक्षनी आराधनानो मार्ग होवाथी एनुं नाम आराधन मार्ग पण कहोये, ७॥ १ ॥ साधु अने श्रावकने प्रातःकाल अने संध्या कालना समये अवश्य करवाने योग्य छे, ते कारणथी एनुं नाम आवश्यक राखेखें छे ॥२॥ - आ वे गाथाओ आवश्यक सूत्रना चार निक्षेपना अंतमां आपेली छे, तेमां पहेली गाथामां आवश्यकनां एकंदर सात नाम कयां, । अने बीजी गाथामां साधु अने श्रावकने अवश्य करवानु कर्त्तव्य होवाथी एनुं नाम 'आवश्यक' छे एवं प्रगटपणे जणाव्युं छे, । वास्ते ए भाव आवश्यकनाज चार निक्षेप सूत्रकारे करीने बताव्या छे, ॥ मात्र विशेष एज छे के, बीजी वस्तुमां आवश्यक नामनो निक्षेप करेलो होय तो, तेनां बीजां रहेलां छ नाम छे तेनी प्रवृत्ति करी यकाय नही, पण आवश्यक सूत्रमा बीजां आवश्यकनां छ नामांनी प्रवृत्ति करवामां हरकत आवे नहीं, तेमज आधार अने आधेय एक मानीने साधुमां पण आवश्यक सूत्रनी प्रवृत्ति करी शकाय छे, अने तेज प्रमाणे सिद्धांतकार गणधर महाराजाओए करीने पण बतावेली छे, जूओ स्थापनानिक्षेप सूत्र, अने तेनुं लक्षण पृष्ट ५५ थी ते ५७ सुधी ।। अने तमो जे हयात तीर्थकरोनां नामने ‘भाव निक्षेप' कहोछो तेपण सिद्धांतथी, केटला बधा विरुद्धपणे गयाछो, तेनो पण जरा विचार तो करो. ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुं ! वस्तुना ' चार निक्षेप' करवाना शांखकारे बताच्या छे 'ते चारेने ' एकजरूप करी देवा धारो छे के ! परंतु चार निक्षेपने एक स्वरूपम गणधर महाराजाओथी विपरीतपणे जइ न करी सकाय. ! अने तेवा प्रकारनो प्रयत्न करीये तो, आपणा जेवा भ्रष्ट बीजा कोइ पण न गणाय. ॥ ॥ इति प्रथम नाम निक्षेपनो किंचित् तत्त्वाऽतत्त्व विचार संपूर्ण. हवे द्वितीय स्थापना निक्षेपनो तत्त्वात्तत्त्व विचार लखीये छे. ॥ ॥ वाडीलाल - सद्भाव स्थापना, फोटोग्राफ, अथवा, बावलुं || असद्भाव स्थापना १० प्रकारथी कराय, ॥ अने पृ. ६३ मां सूत्रना बीजा निक्षेपमां, कागल मुकीने स्थापना निक्षेप' करवानुं बतान्युं छे. ॥ 4 || हवे एना उपर विचार | प्रथम अमो एटलुंज पुछीये छे के, । १० दश प्रकारथी असदभाव स्थापना कराय छे, एवं या गुरु पाथी अथवा कया सिद्धांतथी भणीने आव्या ! अने सूत्रनी ' स्थापना कोरा कागलथी करवानुं बतावोछो तेपण, कया अकलवाला सिद्धांतना जाण पासेथी भण्या ! केमके, सूत्रकार गणधर महाराजे तो, सद्भाव, अने असद्भाव, ए बने प्रकारनी स्थापना दश प्रकारमाज, करवानो समावेश करी बतावेलो छ । तो पछी दशे प्रकारने असद्भाव स्थापना कया हिशाबथी कहो - छो ? अने लखेला अक्षरोने आवश्यक सूत्रनी 'सद्भाव स्थापना' गणधर महाराजाओए मूल सूत्रमांज कहेली छे, तेने द्रव्य निक्षेपमां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहोछो, तो ते कया गुरु पासेथी भणीने लखी बतावोछो ? केमके, ढूंढनी पार्वती छे तेपण, सत्यार्थचंद्रोदय पृष्ट. ४ मां, आवश्यक सूत्रनी स्थापनामां, समज्या वगर एटट तो जरुर लखे छे के, काष्ट पै लिखा. पोथी पै लिखा. अंगुलीसें लिखा. । यावत् आवश्यक करनेवालेका रूप, अर्थात् हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुवा, ऐसा रूप इत्यादि, तो पछी तमो मूत्रनी स्थापना निक्षेपमां, कोरा कागल मुकवानु, लखोछो, ते तो सूत्रथी पण विरुद्ध, अने दंदनी पार्वतीना लेखथी पण विरुद्ध, अने अनुयोगहार सूत्रमां, सूत्ररूप वस्तुनो द्रव्यनिक्षेप करतां शास्त्रकारे जे, नो आगमना भेदमां “पत्तय पोत्थय लिहिअं अहवा सुत्तं पंचविहं पन्नत्तं अंडयं बोडयी कडयं" इत्यादि लखेलुं छे ते पाठ देखीने जे भ्रांतिमां पड्याछो तेपण, अर्द्धदग्ध गुरुनी पासें भणवाथीज पड्याछो, केमके, ते " पत्तय पोथ्थय लिहिय" नो पाठ छे ते. नो आगमपणाथी, जाणग शरीर, अने भविय शरीरथी. व्यतिरिक्तपणे, भावन कारण मानीने, पाउने ग्रहण करेलो छे, परंतु मुख्यतारूपे सूत्रना निक्षेपनी भलामण तो आवश्यक सूत्रना निक्षेपनी साथेज करेली छे।। वास्ते एम अक्षर मात्र वांची जवाथी अनुयोगद्वारसूत्रनुं ज्ञान थतु नथी? तेम अर्द्धदग्ध थयेला ढूंढक गुरु पासे भणवाथी पण ज्ञान थवान नथी? वास्ते परंपरागत गुरुना चरणनी सेवाधीज ते ज्ञान प्राप्त थशे? अमो पण लखी लखीने क्यां सुधी समजावी शकवाना छीये? वास्ते निक्षेपना विषयमां तमारो लेख किचित्मात्र सत्य रूपे थयेलो नथी?||आवीरीते पाया वगरना,गणधर महाराजाओथी पण विपरीतपणे लेखो लखी, अने सर्व आचायोंने तुच्छ गणी, आपणे आप विचारशक्ति पामेलानी पंक्तिमा दाखल थवा मागो छो तो केवा प्रकारथी थशो ? तेनो विचार तमोज तमारी मेळे करी जुवो. ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ वाडीलाल अत्रे आपणे *नी बीजी टीपमा लखे छे के । दुनियामां जेटली चीज छे तेटली बंधी कबुल करवा छतां, पुजवा योग्य होइ शके नहि, तेमज निक्षेप चार छे ते चारने पूजे तोज निक्षेप चार कबुल राख्या एम साबीत यतुं नथी । जैनो कहे छे के, केटलीक चीजो ज्ञेय, उपादेय, अने हेय, माटे निक्षेप एक बे नहि पण चार छे एम कबुल राखनारा माणसे, स्थापना निक्षेपने, उपादेय तरीकेज कबुल राखवो जोइए एवं कहेनारा. मात्र पोतानेज उगे छे. ॥ पूज हवे एना उपर विचार || दुनियानी बधी चीजो पूजवाने योग्य छे एम कोइए कहां पण नथी, तेम को पूजतं पण नथी, ए तमारो लेखज अयोग्य छे । तेम बधी चीजोना चार निक्षेपने ' पूजवा एम पण कोइ शास्त्रकारे वतान्युं नथी, आ. लेखमां केवल समज्या वगरज आपणी अकलनो घोडो दोडाव्यो छे. । केमके, न तो शास्त्रकार सर्व चीजोना ' नाम निक्षेपने ' वानुं कहे छे, अनेन तो सर्व चीजना ' स्थापना निक्षेपने ' पूजवानुं कहे छे, तेमज न तो सर्व चीजना 'द्रव्य निक्षेपने ' पूजवानुं कहे छे, । अने तेमज सर्व चीजोना 'भाव निक्षेपने' पण पूजवानुं कहेता नथी । तो पछी शा वास्ते समज्या वगर आवा विपरीत लेखो लखी लोकोने भ्रमित करो छो ? ते कांइ समजातुं नथी, शुं तमोने वीतराग देव उपरज द्वेष थवाथी आवा विपरीत लेख लखो छो ? || वो शास्त्रकारनी मान्यता शुं छे तेनो विचार करो, ॥ शास्त्रकारनी मान्यता एछे के, जे चीजनो नाव निक्षेप ' अमारे स्मरणीय, वंदनीय, अने पूजनीय छे, तेनो नाम निक्षेप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ " " तो स्मरण करवाने योग्य छे, अने तीर्थंकर महाराजाओना नामने याद करी दिन दिन प्रति स्मरण पण करीये छीये, । अने तेज सीर्थकर महाराजा ओन स्थापना निक्षेप रूप मूर्त्तिने वंदन करवाना अधिकारीयो साधु वदन पण करे छे, अने वंदन, पूजन, करवाना अधिकारीयो श्रावको, वंदन, अने पूजन, ए बन्ने पण करे छे, । अने तेज तीर्थकर पढ़ने प्राप्त थयेला, प्रथम चोवीशांना तीर्थकरोने ' द्रव्यनिक्षेपथी पण ' मान्य करी स्मरण आदि करीये छीये, । अने तेज तीर्थंकर पदने प्राप्त थवावाला तीर्थकरोनी चोवीशीने, द्रव्य निक्षेपना आधारे स्मरण आदि सहा करीये छीये ॥ अने ज्यारे' भावनिक्षेपरूप तीर्थकरोनो' समागम थासे त्यारे तेमनी पण भक्ति करवा चुकीस्युं नही. ॥ तेमां पण विशेष एज छे के, जेवी रीते आज तेमना नाम निक्षेप उपर प्रेम छे, अने तेमना स्थापना निक्षेप उपर प्रेम छे, अने तेमज तेमना ' द्रव्य निक्षेप ' उपर प्रेम छे, तेवी रीतनो प्रेम तेमनी हयातमां रेहसे तोज भक्तिनो लाभ लइ सकी शुं. । अगर जेवी रीते आज तमो ' 'त्रण निक्षेप' उपर अभाव पशु कहींने बतावो छो, तेवी रीते अमो पण तेमणा त्रण निक्षेप तिरर्थक कहीने अभाव प्रगट करी बतावी शंतो ते, भाव तीर्थकरनी भक्तिनो लाभ पण मेलवी सकी शुं नहिज, । परंतु निश्चय थाय छे के, ज्यारे अमोने तेमना 'त्रण निक्षेप' उपर प्रेम छे, अने मनी भक्ति करवाने तत्पर छीये, तो तेमना भाव निक्षेप नी भक्ति करवाने पण भाग्यशाली थइ सकीस्युं ? || परंतु तमारी तरां ' ऋण निक्षेपने' अवथ्थु ' कही चोथा भाव निक्षेपने पण अवथ्य केहवानो प्रसंग आववा दइ शुं नही ? | वास्ते जे चीजनो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G ' भाव निक्षेप' उपादेय तरीके मानीये छीये, तेमना बीजा 'त्रण निक्षेप पण ' उपादेय तरीके अंगीकार करीये छीये, । अने जे चीजनो ' भावनिक्षेप ' ज्ञेय रूपे मानीये छीये, ते चीजना बीजा 'त्रण निक्षेप पण ' ज्ञेय रूपे अंगीकार करीये छीये, । अने जे चीजनो ' भाव निक्षेप' हेयतर के मानीये छीये, ते चीजना बीजा 6 त्रण निक्षेप पण ' हेयतरीकेज मानीये छीये, । तेथी: कुतर्को करीने पेटने आफरो चढाववाने जग्या छेज नहि. । विचार उपर आवसो तो तमने पण समज पडसे, अने हठ उपर जसो तो एक बात पण यथा योग्य समजी शकासे नही || वास्ते अमो ठगाता नथी, परंतु जे ' अव ' कहने अनादर करे छे, तेज भगवाननी भक्तिना लाभथी ठगाय छे. ॥ प्रभुनो फोटोग्राफ, अगर बावलुं नमलवाथी * नी तीसरी टीपमां. वाडीलाल - लोको ज्यारे मूर्त्तिने आगल करवा मागे छे तो पछी आ एक आश्चर्य वार्ता छे के तेओ ' सदभाव ' छोडी असद् भाव ' स्थापना, केम करे छे । जेनुं नामज, 'असद् एटले खोडं, तेने ग्रहण कर ए शुं विचार शक्ति पामेला प्राणीने शोभती वात छे ! श्रीमल्लिनाथजीनुं सुवर्णनुं बावलुं के विषयी राजाओ ने भेटवा तलपी रह्या हता. जो मूर्ति पूजा ए रुडुकाम होत तो केम साचवी राखवामां न आवत । वलीकारीगरो, आबेहुब छबी वनावनारा हयाती धरावतां छतां, कोइ पण तीर्थंकरनी 6 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छबी, के, बावलं, केम न बन्यु ? ए समजातु नथी. । भगवान तो, जाणता, हताज के, अमारा पाछल वखत आवो आववानो छ, वली ते भविष्यकालनु वर्णन पण करी बतावता, तो शुं कोइ श्रीमंतो, ते वखतमां नहोता के, जेओ भविष्यना करोडो जीवोना हितार्थे, हयात भगवाननी छबी, अने बावलां, बनावी राखे । एम थयु होत तो आजे ' असद्भाव स्थापनामां' कोइने मुजाइ रहे, पडत नहि.। वळी आ पण विचारवा जेवू छे के ' सदभाव, अने असद्भाव ' स्थापना ते रूपवंत वस्तुनीज होइ शके, पण काइ भावगुणनी होइ शके नहि. भगवान पोताना उपरनो मेल दूर करी निज रूपमा भळी गयेला आत्माज छे, तेना गुण जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य छे, तेनी स्थापना शी रीते थइ शके । प्रकाशक. ॥ हवे एना उपर विचार. ॥ वर्तमान कालमां पण जे पाषाणादिक वस्तुथी, वीतरागदेवनी " मूर्ति ” बनाववामां आवे छे, ते मूर्ति असद्भाव नथी, परंतु सद्भावज छे. । केमके भगवान उपदेश देवाने बेसता हता त्यारे, य यासन लगावीने, अने नासिका उपर दृष्टि दइने बेसता हता, । अने अंत अवस्था वखते पण तेवीज रीते ध्यानमां आरूढ थता हता, । अने हालमां पण तेज प्रकारथी मूत्तियोनी आकृति बनावववामां आवे छे, माटे असद्भाव नथी, परंतु — सदभाव स्थापनाज ' करीने पूजीये छीये. । आ वातमा श्वेतांबर मूर्तिने कछो भीडावे छे, । अने दिगंबर ते सद्भावमां किंचित् वांधो उठावीने नग्नपणे मूर्ति स्थापित करे छ, । अने तमो ढूंढको तो शास्वना प. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ वित्र लेखोनेज उठावी देवानो प्रयत्न करो छो, परंतु एटलो बधी मोटो अन्याय करवाने जैन सिद्धांतोमां मार्ग नथी, एतो केवल तमो धिठाइज करो छो. । वास्ते आश्चर्य तो एज वधारे लागे छे के, आटली वधी धिठाइ चलावीने पण पाछा विचारशक्ति पामेलानी पंत्तिमां प्रवेश करवाने तइयार बनी जावो छो. वळी भाइ साहेब लखे छे के, मूर्तिपूजा ए रुडु काम होत तो, श्री मल्लिनाथजीनुं सुवर्णनुं बावलं केम साचवी राखवामां न आयत! | ; उत्तरमां जणाववानुं एज छे के । भाग्यशाळी भक्त श्रावको तो एमज समजे छे के भगवाननी भक्ति करदी ए तो सदा रुडुज छे, । अने जे सुवर्णनुं बावलं राखी मुकवानुं बतावो छो, ते तो शास्त्री निरपेक्ष थइ कुतर्क करो छो, केमके ते तो स्त्रीरूपे, मोह, अने ' दुगंछा ' उत्पन्न करवा वास्तेज उभू करवामां आव्यं हतुं, परंतु पूजन करवा वास्ते उभू करवामां आव्युं न हतुं । वास्ते बावलाने राखी मुकवानी जरुरज न हती, । तमोज लखो छो के, विषय राजाओ तेने भेटवा तल्पी रह्या हता, तो पछी ते बाबलाने राखी मुकत्रानुं केम बतावो छो. ॥ वळी ढूंढक भाइ लखे छे के, कारीगरो हयात छतां मूर्ति के बावलं केम न बन्धुं ? || एनो उत्तर एटलोज छे के, । ते वखतमां जैन सिद्धांतने जावामां ' आचायों ' पण महा कारीगरो हता, अने सलावटो पण महा कारीगरो हता, तेमां सिद्धांतना कारीगरो गणधरादि आचार्यो हता, ते तो जगो जगो पर सिद्धांतमांज लखता गया, अने. सलावट हता ते तो, पद्मासन सहित, नाशाग्रदृष्टियुक्त, अने समचोरस संस्थान पूर्वक, आबेहुब भगवाननी मूर्तियो, घडी घडीने पण मुकता गया हता, अने तेज नमुना पूर्वक छोटा मोटा प्रमाणपणा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ فی ना आकारथी तीर्थकर महाराजनी प्रसन्न मूर्तियो तैयार थती चाली आवे छे । परंतु जे महापुरुषोना, मिथ्यात्वरूप, तिमिर पडदा, दूर थइ गया छे, तेओ यथावदपणे तो सिद्धांतोनो पाठ जोइ, अने तेज प्रमाणे भगवाननी भर्तियोनां दर्शन करी, परमानंदमां गरकाव थइ, अनंत जन्मनां संचित अघोर कर्मोंने दूर करी रह्या छे। अने जेओना महामिध्यात्वरूप तिमिर पडदा दूर नथी थया ओ विपरीतपणे आचरण करी अवज्ञा करे छे. । तेओ अघोर पापना उदयथी नतो सिद्धान्तना पाठ थकी समजी शके तेम छे, अने नतो हजारो वर्षनी मृत्तियोनां दर्शन करीने पण समजी शके तेम छे, । अमो तो छेवट एम कहीये छीये के, जेओ वीतारागना वचनथी तदन विपरीत बनेला छे, तेओने तो साक्षात तीर्थकरो पण आवीने समजावी शकशे नहि, तो पछी छबीयो, अने बावलां मात्रा स्वरूपथी समजण क्यांथी थइ शकवानी छे. || अने ते ज्ञानी पुरुषो भविष्यकालनुं वर्णन पण करताज गया छे के, मतिया घणा जागशे, अने शुद्ध चालता पंथमां भेदो पाडशे अने तेज प्रमाणे आपणे जोइ पण रह्या छीये. वास्ते स्थापनानिक्षेपरूप जिन मूर्ति असदभाव नथी, परंतु निकृष्टकालना प्रभावथी तेते जीवोना अभाग्यने लीघे तेओना मनमां असद्भाव परिणामपणानी स्थापनाओ थयेली छे । तेथी तेओ मुझाय 3.11 • वळी आ विषयमां ढूंढक भाइ लखे छे के, आपण विचारवा जे छेके, सद्भाव, अने असदभाव, ते रूपवंतनी होइ शके, पण भावगुणानी होइ शके नहि. भगवान निजरूपमां भळी गयेला आत्माज छे, तेना गुण जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य छे, तेनी स्थापना शी रीते थइ शके. ॥ विचार - तमो लखोछो के, स्थापना रूपवंतनी होइ शके, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण भगवान तो निजरूपमां भळी गयेला आत्मा छे, तेना गुण जे ज्ञान. दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य छे, तेनी स्थापना शी रीते थइ शके. ?। आ लेख शुं तमारो विचारपूर्वक लखेलो छ के ? जरा आंख उघाडीने जुवो तो ? केमके जैन सिद्धांतोने तो आपणे भगवाननुज ज्ञान कहीये छीये, अने ते भगवाननुं ज्ञानपण रूप विनानुंज हतुं. तो ते अदृश्यरूप छतां क्यांथी तमारा जोवामां आव्युं, ? अने पुस्तक पानां उपर केवी रीते चढी गयुं ? तेनो काइ विचार कर्यो छ के ? जो थोडो पण विचार को होत तो, आवो बेढंगो लेख लखता नही, खेर हजी पण विचारश्रेणि उपर आवशो तो कल्याणनो मार्ग हाथ आवशे, । जूवो सत्यार्थचंद्रो. दय पृष्ट. ४ मां, ढूंढनी पार्वती पण लखे छे के, प्रश्न-स्थापना आवश्यक क्या । उत्तर. काष्ट पै लिखा, चित्रोंमें लिखा, पोथी पै लिखा, अंगुलीसें लिखा, । छेवट एम पण लखे छे के, आवश्यक करनेवालेका रूप, अर्थात् हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुआ, ऐसा रूप. || एज प्रमाणे मूल सूत्रकारे पण, अक्षरो रूपनी स्थापनाथीज भगवानना ज्ञान गुणने स्थापित करवायूँ कहेलं छे, । तेमज आवश्यक क्रिया कारक साधुनी मूर्तिरूपथी पण आवश्यकनी स्थापना करवानी कहेली छे, केमके षट् आवश्यकनी क्रिया छे ते कर्ता विना जाणी शकाती नथी, माटे आवश्यक क्रियानी स्थापनाना विषयमा साधुनी मूर्ति पण करवानुं कही बताव्यु छे. परंतु भगवानना, अदृश्यरूप ज्ञान गुणने तो, अकारादिक अक्षरोना स्वरूपथीज स्थापित करवायूँ कहेलुं छे, अने ते ज्ञान, भगवाननो अदृश्य गुणरूप छतां पण, कल्पनाथी करेलो छे संकेत जेमां, एवा जड भूत, अक्षरोनी, स्थापना रूपे थइ, अमोने बोध आपीने, परमपदने, पोहचाडवाने, समर्थ थाय छ, । तेवीज रीते भगवानना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीरनी पण, जड पाषाणथी बनावेली मूर्ति, स्थापना रूपे थइने, तेमना सर्व गुणोने याद करावी, भक्तजनोने परमपद प्राप्त करवाने समर्थज थाय छे. अने भगवाननी मूर्ति देखवाथी भगवान याद आवे छे एम तो तमोए तेमज ढूंढनी पार्वतीए पण कबूल राखेखेंज छे. । तेथी जो तमारा आत्माना परिणाम बगडी जता होय तो ते तो तमारा दुर्भाग्यनुज चिन्ह छे, एमां न तो अमारो दोष छे, तेम न तो भगवाननी मूर्तिनो दोष छ, वास्ते तमारी करेली कुतर्को, अने तमारा जूठा लेखोज, तदन अयोग्यपणाथी लखायेला छे, परंतु वीतरागदेवनी मूर्तिरूपथी थयेली स्थापना अयोग्य नथी, ते तो आ दुनीयामां भगवानना ज्ञान गुणरूप अक्षरोनी स्थापनानी साथे सदा जयवंतीज रहेबानी छे. ॥ ॥ वाडीलाल-सूचना. ३ जीमां लखे छे के । मोहन घरमा श्री मल्लिनाथे, पोतार्नु आबेहुब मुवर्ण वावलं मुक्युं हतुं के जे कारणथी ‘छ राजाने' 'जातिस्मरण' ज्ञान उपन्युं हतुं, तोपण ए छ समकिती जीवोए बावलाने वांद्यं नहि, जो के एक तो उपकारी पदार्थ, कारण भूत पदार्थ हतो, बली तीर्थकरनी सदभाव स्थापना हती. ॥ 'नमिराजा' चुडीना कारणथी बूज्या. ॥ 'समुद्रपाल राजा' चोरने देखीने बूज्या-पण चुडीने, के चोरने, वांद्या पूज्या न हता.॥ ___ अहिं, 'मल्लिनाथना' बावला विषये, विचार करवानो ए छे के, ते मोहन घरमा ( एटले मोह प्राप्त करवाना घरमां) राखेलु हतुं, अने ते छ विषयी राजाओने वोध करवा, ते बावलामां दुर्गधी पण भरी राखवामां आवी हती, अने ते दुर्गधीना कारणथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेओ छ राजा, बोधने पण प्राप्त थया हता, वली ते बावटुं गृहस्था वस्थाना चिन्हरूपथी बनावेलुं हतं, परंतु वीतराग दशानी प्राप्ति थया पछी- वनावेलुं न होवाथी तेथी ते पूजन करवाने योग्य पण न हतं, माटे ते विषयमा तमारी केवल कुतर्को छे. । माटे वीतराग दशाने प्राप्त थयेला भगवाननी मुर्तिने अयोध्यपणानो किंचित् मात्र पण बाध आवे तेम नथी. ॥ ___ अने, जे चुडी, चोरने, वांदवा पूजवानु वतावो छो ते पण, आँस्यो मीचीने फांफी मारवा जेवं करो छे, केमके यद्यपि जेटली दुनीयामां वस्तु छे ते बधीए, वैराग्यने प्राप्त थयेला ज्ञानी पुरुषोने तो, बोध आपनारीज थइ पडे छे, तेथी कांइ वधी वस्तुओ, वंदनिक, अने पूजनिक, गणाती नथी. । अने मूर्ख अज्ञानी जीवोने, जे मुख्य पणे आत्माना साधन रूप वस्तुओ छे, ते पण, तेओना विपरीत विचारथी, तेमने, महाकर्मना बंधन रूप थइ पडे छे, छतां पण, ते निंदानिक गणाती नथी. । एमां तो विशेष एज छे के, ते ते जीवोनी ज्ञानदशा, अने अज्ञान दशाज, तेमने साधक, बाधक, रूप थाय छे. । वास्ते वंदनिक होय ते निंदानिक न गणाय, । अने ज्ञेय, अथवा हेय, रूप वस्तुओ वोधनुं कारण थवा छतां, पूजनिक पण न थाय, मात्र अहिंयां तो ज्ञानी अज्ञानी पुरुषोना क्षयोपशमनीज विचित्रता छे. । अगर जो अमारा ढूंढक श्रावको. विचार उपर आवे तो, तेमणेज चुडी चोरना दृष्टांतथी विचार करवानो छे के, जे चुडी, अने चोर न जेवी वस्तुथी, नमिराजा अने समुद्रपाल राजा, बोधपणाने प्राप्त थया, तो पछी जे वीतरागदेव, अमारा परम उपकारी, तेमनी मृत्ति देखतां अमोने परमानंद, अथवा परम वैराग्य, नी प्राप्ति थवी जोइए, ते न थतां जे अमोने, अप्रीति उत्पन थाय छे, तेथी न जाणे, अमारे केटलो लांबो संसार थवानो हशे ? एम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खासपणे विचार करवानो छ । परंतु अज्ञानदशानो अंधार पिछोडो ओढी, जिन मूर्त्तिने जडरूप कही, अघोर कर्मना बंधननो हेतुरूप अ. नादर करवानो नथी । केमके संकेतित जडरूप, अक्षरोथी, लखायलु, भगवाननुं ज्ञान ' स्थापनारूपे थइ ' अमोने बोध आपीने परम पद पहोचाडवाने समर्थ थाय छे, तो पछी तेमनीज अर्थात् भगवतनी यादगिरीने आपनारी, तेमनीज साक्षात्रूप 'मूर्ति ' अमारा कल्याणने माटे केम नहि थाय ! अर्थात् थशेज, एज विचार करी आपणा कल्याणनो मार्ग हाथ धरवानो छे, आगे तो जेनी जेवी भवितव्यता.॥ वळी ए त्रीजी सूचनामांज लखे छे के, भगवाननी मूर्ति देखवाथी भगवान याद आवे छे, ते कारणथी मूर्ति पूजवी जोइए, ए दलील तद्दन पाया वगरनी छे. ॥ ___ आ लेखमां कहेवार्नु ए छे, के भगवाननी मूर्ति देखवाथी, अने तेमनी यादगिरी आववाथी, शुं ! तेमनी अवज्ञा करवी ! ए तमारी दलील पाया वाळी पंक्तिमां मुकवाने मागो छो के ? ते काइ समजायु नहि. । अमोने तो मूर्ति देखीने भगवान याद आववाथी, एवा भाव थाय छे के, एमनी भक्ति खेराद करवाथी करीये ? के स्तुति ( गुणग्राम ) करवाथी करीये ? के अमारा सर्वस्व अर्पण करीन करीये ? एवा अलोकिक भावनी वृद्धि थाय छे, वास्ते 'मूर्तिने ' पूजवी ए दलील पाया वगरनी नथी, परंतु तमारी करेली कुतर्कोज पाया वगरनी छे.॥ वळी एज सूचनामां लखे छे, जिन प्रतिमा माननारा, जिन प्रतिमा, जिन सारिखी कहे छे, पण द्रव्य, के भाव, एक पणरीते ते जिन सारिखी थइ शकती नथी, भगवान देहधारी हता ते वख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮૨ तनी, छबी के, बावयुं होत तो कदाच " द्रव्ये सारिखी, कही " शकात. ।। - आ विषयमा पण कवानुं एज छे के भगवान उपदेश देता हता, तेज, ज्ञाननो सार, संकेतित जडभूत अक्षरोनी स्थापना रूपे थइ, सिद्धांतो उपर लखाइने, आज पण अमोने, तेज प्रमाणे बोध आपनार निवडयो छे, वास्ते भगवाननुंज ज्ञान छे, एम अमो खास रीते मानीये छीये, अने तेमनी 'मूर्ति' तो तेमनाज जेवी आकृति वाळी होवाथी, तेमना सदृशरूप वाळी होवे तेमां कांड पण नवाइ सरखं जगातुं नथी, अने सिद्धांतमां पण 'अरिहंत पडिमा ' विगेरेना लेखथी पण सरखी कहेली छे, तो पछी सिद्धांतथी विपतपणानी तमारी करेली कुतर्को, तमारा कल्याणना माटे उपयोग रूप थवानी नथी । अने स्थापना निक्षेप रूपनी मूर्त्तिने, द्रव्यपं करवानुं कही बतावो छो ते तो, तमो प्रथमथीज गोथां खाता खाता आवेला छो, ते तो अमारा लेखंथी विचार करवानी टेव राखशो एटले, स्पष्टपणे मालम पडशे. ।। 1 वळी पण एज सूचनामां लखे छे के भगवाननो ज्ञान गुण, मूर्त्तिनो जड गुण, ते पण एक सारिखी कहेनारे विचारवा जेतुं छे. | आतो धर्ममां आगळ वधवानी तीव्र इच्छाने लीधे उन्मार्गे चडी जवा जेवं थयुं, वैराग्य के, ज्ञान थवानुं तो क्षयोपशम उपर आधार राखे छे. ॥ ॥ आ लेखमां पण विचार करवानो एछे के, सिद्धांतोमां लखायेला संकेतित अक्षरो छे ते पण, जड स्वरूपनाज छे, अने ते अक्षरो, भगवानना ज्ञान गुणने याद आपनारा छे, एम आपणे मानीये पण छीए, अगर जो तमारा जूठा विचार प्रमाणे विचार करवा बेसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३ तो, ते जडरूप अक्षरोधी, भगवानना ज्ञान गुणनी पण याद न थवी जोइये, अने भगवाननुं ज्ञान छे एम पण कहेतुं न जोइये, परंतु जेनी विपरीत मति थयेली होय तेज, जडरूप अक्षरोमां पण, भगवानना ज्ञान गुणनी याद नथी थती एम माने, परंतु अमो तो ते जरूप अक्षरोमां पण, एमज मानीये छीये के, खरेखरु ए तो भगवाननुंज ज्ञान छे, परंतु जडरूप अक्षरो छे, एम कहेवाने मागता नथी । अने जेवी रीते जडरूप अक्षरोने, भगवाननुं ज्ञान करीने मानीये छीये, तेवीज रीते वीतरागना स्वरूपने याद आपनारी, तेमनी मृर्त्तिने वीतराग स्वरूपथीज मानीये छीये. । वास्ते धर्मनी तीव्र इच्छाने लीधे, उन्मार्ग चढी गया नथी, परंतु खासपणे जो वीतराग देवनो मार्ग छे, तेज मार्ग पर आरूढ थयेला छीये. । वास्ते तमारेज विचार करवानो छे । केमके तमोज केवल, दया, दया, नो जूठो पोकार करी, अने वीतराग देवनी मूत्र्त्तिनी, अवज्ञा करी, वळी. जैन मार्गना तत्वोना, विपरीत भासथी, महा उन्मागंज चढी गयेला छो. । तेनुं तमोने किंचित् भान थाय, एवाज उद्देशथी अमोए, आ लेख लखवानो प्रयत्न कर्यो छे, परंतु द्वेष करी लेख लखवानी प्रयत्न कर्यो नथी. मांटे हजी पण विचार करो । वळी तमोए लख्यं जे, वैराग्य के ज्ञान थवानं ते तो, क्षयोपशम उपर आधार राखे छे, । ते तो बधाए लोक कबूलज करशे, परंतु जे शुभ निमित्तो छे तेज, जीवोने क्षयोपशमनी प्राप्ति वामां सहायभूत छे, अने अशुभ निमित्तो छे तेज, उन्मार्गे चढाव - नार होय छे, एवो सिद्धांतोनो ए राजमार्ग छे। अने जैन सिद्धांत, तेमज जिन मूर्ति, साधुनु स्वरूप, सामायिक, पोपथ विगेरे आत्मानो क्षयोपशम थवाने शुभ निमित्तो छे । छतां पण जेनी विपरीत बुद्धि थाय ते तो तेना दुर्भाग्यनुंज, एक चिन्ह छे, परंतु निमित्तनो दोष न गणाय । अने जे हलवाकर्मी ? जीवो छे, तेने तो शुभ निमित्तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीघ्रपणेज बोध आफ्नार थाय, तेमां तो कांइ नवाइ जेवू छे एम न गणाय, । परंतु सामान्य मात्रनां निमित्तो पण बोधदायक थइ पडे छे. । जेमके नमिराजाने, एक काष्ट मात्रनी चुडी, अने समुद्र पाल राजाने, चोर मात्र बोधदायक थइ पडयां, परंतु ते कथंचित्पणानो रस्तो छ, धोरी मार्ग गणातो नथी, । वास्ते शुभ निमित्तोनो जे अनादर करवो, तेज महा अघोर कर्मनो, बंध करी लेवानो छे, परंतु जिनमूर्ति, दोषने प्राप्त करवावाली नथी, ते तो भव्य जीवोने, बोध प्राप्त करवाने शुभ निमित्त रूपज छे ।। ॥ वली एज त्रिजी सूचनामां लखे छे के,-महावीरस्वामीना मुख्य शिष्य, गौतमस्वामी जेवा, तेमणे भाव तीर्थकरनी भक्ति करी तोपण, प्रभुनी हयाती मुधी तो, तेमने केवलज्ञान न थयुं, पण प्रभुनो वियोग, डंका वखतमां केवलज्ञान आफ्नारो थइ पडयो. ॥ ॥ आ लेखथी पण विचार ए थाय छे के, अमारा ढूंढक लोको, शुं ? शीघ्रपणाथी केवलज्ञान प्राप्त करवाने वास्ते, वीतरागदेवथी द्वेष बांधी, दूर थया हशे, ? अथवा दूर थवाने वास्ते द्वेष करी रह्या हशे ? ते काइ समजायुं नही. । अथवा शुं ? गौतमस्वामीनी हदने प्राप्त थइ, आ लेख लख्यो हशे ? अरे धूर्त आवा हद उपरांतना जूठा लेखो लखवाथी कल्याणनी प्राप्ति न थाय ? ते तो न्याय मार्गना लेखोथीज थाय. ॥ ॥वळी एज त्रिजी सूचनामां लखे छे के,-साक्षात् वीतरागदेव बीराजता त्यारे, तेमने वांदवा, कोइए संघ कहाडया न हता, श्री विपाकसूत्र तथा भगवतीसूत्रमा का छे के, सुबाहु कुमारे तथा उदाइ राजाए, एम भावना भावी के भगवंत जो अहिं पधारे तो तेमने वांदी हुं कृतार्थ थाउं, एटलो तीत्र भक्तिभाव छतां, अने खुद भगवाननां दर्शन थवानां हतां छतां, तेमज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोते लक्ष्मीवान होवा छतां, संघ कहाडीने वांदवा न गया हता, तो पछी " पथ्थरने" भगवान मानी लइ, तने वांदवा माटे संघ कहाडीने जq, एमां शुं भगवाननी आज्ञा होय ? ॥ __ आ लेख पण विचार करवा योग्य छे, केमके वीतराग देवने वांदवा, संघ काढीने, कोइ पण गयुं नहतुं, तेमज सुबाह अने उदाइराजा, भक्तिमान् , लक्ष्मीवान् , होवा छतां भावनाज भावी, पण संघ काहीने गया नहता, । तेथी ए सिद्ध थयुं के, मुनिने के, भगवानने, संघ काढीने वांदवा जळू ते, तमारा लेख प्रमाणे केवल सिद्धांतथी विरुद्धज छे, एम तमारु मानवू छ. | तो पछी तमो, सूत्रना लेखथी विरुद्ध थइ, तमारा मुख बंधाने, वांदवा, संघ काढीने जे मार्गे पडो छो, ते तो दुर्गतिनाज मार्गे पडता हशो ? एम तमाराज लेखथी तमारे कबूल कर पडशे, अगर तमो, जगजाहेरपणे संघ काढीने जवा छतां, ना कबूल जशो तो ते जवाने मार्ग नथी, केमके, मोरवी कोन्फरन्सनी, प्रथम बेठकमां, रीसेपशन कमिटीना प्रेसीडंट, गोकळदास राजपाले, भरसभामां कहेलुं छे के-सदगृहस्थो आपणा सउना जाणवामां छे के, आपणा धर्ममां, घणाज प्राचीनकाळथी, मुख्यत्वे करीने, साधु मुनिराजने, वंदना, करवा सारु, संघ काढवानो रीवाज चाल्यो आवे छे. । एम मुंबाइ समाचारथी वाचवामां आव्युं हतुं. । तमारा अरस परसना लेखथी ए विचार थाय छे के, तमो सूत्रथी विरुद्धपणेज, संघ काढीने, वांदवा, जता हशो ? के तमारो लेख लंबो चवडो जूठो थयो होय ? बेमांथी एकज वातनी सिद्धि थशे. । अने अमो जे मूर्तियोनां दर्शन करवा, संघ काढीने जइए छीये ते तो, जैन सिद्धांतनी आज्ञा प्रमाणेज करीये छीए, । केमके, जेवी रीते संकेतित जडरूप अक्षरोने, भगवाननुं ज्ञान मानी, तेनी भक्ति करीये छीये, तेवीज रीते तेमनी मूर्त्तिने, ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुज स्वरूप मानीने, अमो तेमनी पण भक्ति करी, अमारां दुःकमोने दूर करीये छीये. । अने जे “ पथ्थर" कहीने अवज्ञा करे छे ते तो, जिन मार्गनी श्रद्धाथी विपरीत थवाथी, ते धर्म रहितोनां, हृदयज पथ्थररूप थयेलां छे, एम अमो मानीये छीए, केमके जो किंचिन् मात्र पण जैन सिद्धांतोनी श्रद्धा होती तो, स्वछंदपणाथी आवा अनुचित लेखोज केम लखता ?॥ वळी पण आज विषय उपर लखे छे के, अरेरे ? भस्म ग्रहना भ्रमित आचार्योए, मात्र पेटना कारणे, दुधमांथी पौरा वीणवा जे काम करी, स्थापनानिक्षेपनो अवलो अर्थ लइ, मूर्तिपूजानां अने ते अंगे थतां बीजां अगणि पापोमां, भोली दुनीयाने केवी डुबावी दीधी छे. ____ आ लेखमां तो तमो, महा मूढपणानुं आचरण करी, गणधर महाराजाओनेज, दुषित करो छो, अने आपनी मति राइना दाणा जेटली पण न होवा छतां, मेरु पर्वत तुल मानीने बेठेला होय एम जणावो छो, अने लाखो जैनना धुरंधर आचार्योने, तुछ समजी, आपणे आप सर्वज्ञपणाना पदने, आरूढ थया छो! पण ते तमारा अनुयायीओमां जे महा मूढ हशे, तेज तमारी श्लाघा करशे ? बाकी विचक्षण हशे ते तो, गंदू पात्र जाणी, तमाराथी दूरज रहेशे ? | केमके, अगर तमो, सर्व आचार्योनो करेलो अर्थ, कबूल न राखतां, गणधर महाराजाओनो, तेमज दूंढनी पार्वतीनो करेलो अर्थ के, हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुवा, साधुका रूप, मूर्तिनो अर्थ, ते तो कबुल राखवो हतो, तेथी आपोआप आचार्योनो करेलो मूर्ति रूपनो अर्थ, सत्य रूप थइ पडतो, पण तमो तो केवल उद्धत बनी, आपणे आप अथाग फाजलपणे जइ, सर्वज्ञपणानुज डोल घालीने बैठा छो, तेथी अमारे कहेवानो इलाजज खुटेलो छे. । आ प्रसंगे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ एक भतृहरिनो काव्य पण याद आवे छे, यथा, यदा किंचित् ज्ञोऽहं गजइव मदांधः समभवं तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यऽभवदवलिप्तं मम मनः । यदा किंचित् किंचि बुधजनसकाशादव गतं, तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः ॥ १ ॥ - अर्थः- आ काव्यमा भतृहरि, आपणो अनुभव जणावे छे केहुं ज्यारे थोडु भणेलो हतो त्यारे, मारा मनमां सर्वज्ञपणु धारण करी, मदोन्मत्त हाथीना जेवो बनी फरतो हतो, अने ज्यारे पंडित पुरुषोना समागमथी किंचित् किंचित् (अर्थात् थोडं थोडं ) समज तो गयो, त्यारे हुं समज्यो के खरेखरो मूर्खज छं, अने मारा मनमां जे मद व्याप्यो हतो ते ज्वर निकली गया पछी जेम शरीरनी धुंध निकली जाय, तेम ते मद पण निकली गयो, अने पछी कांडक विचारने प्राप्त थयो . || तेम अमारा प्रकाशक भाइ पण हालमां भतृहरिनी प्रथम अवस्थाने धारण करी, सर्व महा पुरुषाने निंदी, आपण आप सर्वज्ञपणानं डोल धारण करीने, सर्व आचार्योथी निरपेक्ष थया छे ! परंतु सर्व आचार्यो भ्रमित थयेला छे, एम न गणाय ? अने स्थापना निक्षेपनो, अवलो अर्थ करेलो छे एम पण न गणाय ? अने दुनीयाने डुबावी दीधी छे, एम पण गणाय नही ! ॥ मात्र तमारीज मति भ्रमित थइ जवाथी, सर्व महा पुरुषोथी निरपेक्ष थइ, " स्थापना निक्षेप " नो पण अर्थ उलटो करोछो ? ।। अने जैनोना “प्रमाण” विषये पण उलडंज बक्याछो ।। तेम "नयो" ना विषयमां पण उलडं समज्याछो ? || अने. पचीश बोलना विषयमां पण जूठे जूठी गोठवण करी आ दुनिया ने डुबाववा तैयार थया छो ! ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ अने तेज प्रमाणे 'सम्यक्कना' विषयमां, पण मिथ्यात्व चाल ज पकडी छे, ॥ ते अमारा प्रथमना लेखथी तमोने समज पडीज हशे ? || वळी पण एज सूचनामां आगळ वंधीने लखे छे के, - भस्मग्रहना संख्याबंध, भूखथी आकूलव्याकूल थयेला आचार्यो, शास्त्रनुं शस्त्र बनावी, तेवडे दुनीयानो शिकार करवामां फतेह पामे एमां शुं ? आश्चर्य परंतु जेओने अंतर्चक्षु छे तेमने, विचार करवा दो, अने पापखाइमां धकेल देनार सामे, मानसिक टक्कर लेवा दो. ॥ आ लेखमां पण अत्यंत फाजलपणे जड़ बकवादज कर्यो छे, पण अमो एज कहीये छीये के, जो तमारा ढूंढकोने, अंतंर्चक्षु होय तो अमो पण समजाववा, गुरु कृपाथी समर्थ थइ शकीये, एम अमारा अंतःकरणमा प्रेरणा थया करे छे, परंतु वांधोज मोटो तेनो थइ पडेलो छे, एटले अमारो इलाज ज खटेलो छे। अने भूखधी आकूल व्याकूल थयेला आचार्यों तो, गुरु परंपराथी आवेल जे चउदां पूर्वनुं ज्ञान के, जे करोडो अने अबजो पुस्तक उपर पण लखी न शकाय, तेमांथी मात्र लाखो ग्रंथो उपरज लखाय, तेटलुज राखी शक्या छे, अने अमारी वारसमां मुकी गया छे, पण वधारे राखवा समर्थ थइ शक्याज नथी, ते अमो अमाराज दुर्भाग्यनुं चिन्ह समजीये छीये, के जे एवा महापुरुषो, अचानक अघोर दुष्टकालना पंजामां आवी, अमारी वारसमां, वीतराग देवनं निर्मलज्ञान, वधारे राखवाने समर्थज न था ? वास्ते धिकार पडो, तेवा दुष्टकालना मुख उपर, के जे अमारुं सर्वस्व हरण करी गयो, अने अबजो पुस्तकोना वारसानो अमारो दावो छोडावी, केवल लाखो पुस्तकोनोज दावो सोंपतो गयो । वास्ते तेवा दुष्ट काळने तो, अमो वारंवार धिकारज आपी, जे कांइ भगवाननुं ज्ञान परंपराधी आवेलं, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ራ अमारा पूर्वजो अमारा वारसामां मुकी गया छे, तेनीज सारसंभाळ करी, अमारा आत्मानुं कल्याणज करवाने इच्छीये छीये. ॥ त्यारबाद घणो वखत वीत्या पछी हाल थोडा वखत उपर थयेला, एक लुंका नामना अर्द्ध दग्ध गृहस्थे, आपणी पेट भराइ करवा माटे, केवल बत्री (३२) सूत्रनो पोकार पाडी, आ मूढ पंथ उभो करी, अजान वर्गनी आंख्योए सजडपणे पाटा बांधी, जे अंध कुवामां उतार्या छे, तेमांथी जे पुण्यात्माना, पाटा दूर थाय छे तेओ, आ जैन मार्गने शुद्धपणे जोड़, पाछा रस्ता उपर आरूढ थाय छे, अने जेओना पाटा खुल्ला थया विना अंतर्चक्षु खुल्लां थतां नथी, तेओ बिचारा गुरु ज्ञान प्राप्त थया वगर, इधर तीघर हाथ मारी, मनमां आवे वो अर्थनो अनर्थ करी, फांफां मार्या करे छे, अने छेवट. मां अनेक ठेकाणेथी पाछा पडी, आपणा मनमां अनेक प्रकारना वेदने प्राप्त थाय छे, परंतु हठ धर्मने छोडी सकता नथी, तेमनी दयामय अज्ञान दशा जोड़, अमारु अंतःकरण पण अत्यंत दयामय थइ जाय छे, परंतु ते अंध क्वामांथी. तेमने बाहार काहाडवा समर्थ थइ सकता नथी, तेथी ते पंथ चलावनार पापीनोज दोष गणीये छीये, परंतु ते पंथमां पडेला अज्ञानी जीवोनो, के आचार्यांनो, दोष थयेलो होय, एम अमो मानता नथी, तेम शुद्ध मार्ग दर्शाववा रूप, अमारा लेखथी, जो तेमना हठने लीधे, तेमनुं मन दुभानुं हशे तोपण अमो दूषित थइ सकवाना नथी, एम अमारु मानवं छे, पछी तो ज्ञानी महाराज जे शीकारे ते खरुं. इति द्वितीय स्थापना निक्षेप विषये तत्त्वातत्त्व विचार संपूर्ण ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ, तृतीय द्रव्य निक्षेप विषये तत्त्वाऽतत्त्व विचारः॥ ॥ वाडीलाल, लखे छे के द्रव्यनिक्षेपना ५ भेद. १ जाणग शरीर ' द्रव्य अरिहंत-मोक्ष सिधाव्या तेमणुं शरीर पडयुं होय ते. । २ भविय शरीर 'द्रव्य अरिहंत, प्रभुए दीक्षा लीधी नहोय एटले के घरवासमां होय त्यारे । ३ लोकिक ' द्रव्य अरिहंत, शत्रुओने जीते एटले चक्री, वासुदेव, राजा विगरे. ४ कुमावनिक द्रव्य अरिहंत, हरि, हर, ब्रह्मा, आदि देबने कहे ते. । ५ लोकोत्तर ' द्रव्य अरिहंत, जैनधर्ममां होय पण केवल ज्ञान पाम्यो न होय छतां पोताने अरिहंत कहेवडावे ते गोसालाना दृष्टांते.॥ || हवे एना उपर, विचार करवानो ए छे के, अमारा ढूंढक भाइयो, आ विषयीज गभराइने, बधा चारे निक्षेपनो अर्थ, आगल पाछलनो विचार कर्या विना, सिद्धांतने पण, एक सहज रूपनो लेख समजी, आपणा मन गोठतो करीले छे, । परंतु तेम मन गोठतो अर्थ करी सकाय तेम नथी ? केमके आ अनुयोर्ग द्वार सूत्र छे ते, एक जैन सिद्धांतना व्याकरण रूप, महा गंभीर विषय वालं छे, । वास्ते सद्गुरु पासेथी भण्या वगर, अने तेनो तात्पर्य समज्या वगर, मनकल्पित अर्थ करवाथी, अनंत भव भ्रमणना आंटामा सपडइ जवा जेवू थाय छे. । तेम हुं पण थोडा सा लेख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१ मात्रथी, यथा योग्य पणे समजावी सकीस, एम लागतं नथी. वास्ते केवल परस्परनो विरोध बतावी, विचार करवानुं, वाचक वर्गनेज सोंपी दश ॥ ॥ आ त्रिजा द्रव्यनिक्षेपना विषयमां, आवश्यक सूत्रने, -१ आगम, २ नो आगम, एम बे, भेदथी वर्णन करे - लु छे. तेमां 'आगमथी, उपयोग विनानो जे आवश्यक सूत्रनो भणवावालो साधु, तेने ' द्रव्य आवश्यकना स्वरूपथी मानेलो छे, जुवो पृष्ट. ५८ मां सूत्र पाठ ॥ , अने २ नो आगमथी. - १ जाणग शरीर, २ भविय शरीर, अने आ बेथी त्रिजो ३ व्यतिरिक्त, ( अर्थात् आ बे भेदथी पण भिन्न प्रकारे ) तेना पाछा ऋण भेट १ लोकिक, २ कुमावचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, ना स्वरूपथी आवश्यक सूत्रनो " द्रव्यनिक्षेप” करेलो छे. ॥ तेनो परमार्थ समज्या वगर, अमारा ढूंढक भाइए, । १ जाणग शरीर - द्रव्य, । २ भविय शरीर द्रव्य, । आ बे भेद मुख्यपणाना. || अने ३ लोकिक, ? ४ कुमावचनिक, अने ५ लोकोत्तरिक. आ ण जे व्यतिरिक्तपणे आवश्यक सूत्रना विषयमां वर्णन करेला छे ते, बधानो खीचडो भेगो करी ' द्रव्य अरिहंतना' पांच भेट, करी बताव्या छे, परंतु जेवी रीते, द्रव्य आवश्यक रूप क्रिया वस्तुमां, व्यतिरिक्तथी त्रण भेद करेला छे, तेवी रीते ' द्रव्य अरिहंतनी साथे ' लागु पाडी शकाय तेम नथी, अने लागु पडता पण नथी । मात्र अहीं ' द्रव्य अरिहंतनी साथे तो ' ( " जागग सरीर अने ' भविय सरीर ए बे भेटज, लक्ष णकारना कहेवा प्रमाणे लागु पाडी सकाशे. । आ विषयमां 'पुरावो' एछे के भाव आवश्यकमां पण, १ आगम, २ नो आगम, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ ? थी वे भेद करेला छे, ॥ तमां १ आगमथी, आवश्य सूत्रनो जाण, उपयोगवाला, साधु कहेलो छे. || अने २ नो आगमथी, भाव आवश्यक, १ लोकिक, २ कुप्रावचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, एम aण प्रकारथी वर्णन करी बतावेलो छे. ॥ तो आ जे, नो आगमथी भाव आवश्यक क्रियाना त्रण भेद वर्णन करेला छे, तने भाव अरिहंत साथे शुं लागु पाडी शकी शुं ! कोइ दाहाडो पण लागुपाडी की नही, तेम पडी सकशे पण नही, अने वाडीलाल पण, भाव अरिहंतमां, तेमज भावसूत्रमां, लागु पाडी बतावी शक्या नथी वास्ते जे सूत्रकारे, विशेष विषयोने पकडी, विशेष विशेष वर्णन करी बताव्युं छे, ते ते छोडीने, केवल लक्षणकारना, सामान्य विषयने पकडीनेज, बीजी वस्तुओना निक्षेपो करवाना छे. मात्र जे ज्ञान, दर्शन, अने चारित्र स्वरूपना आध्यात्मिक गुण क्रिया वाचकना पदार्थों छे, ते पदार्थोंना 'चार निक्षेपोनुं वर्णन करतां " द्रव्य निक्षेपमां " तेमज " भाव निक्षेपमां " ' आगम' नो आगमना ' भेदो करीने घटतो विचार करवानो छे परंतु ते 'द्रव्य ' अने 'भावमां' आगम छे ते तो सर्वज्ञ भाषित सिद्धांत रूप ज समजवानुं छे। अने ते 'द्रव्य' अने 'भाव' निक्षेपमां "नो आगमना " जाणग, भविअ, थी व्यतिरिक्त (ओटले कथन करवा मांडेली वस्तुथी भिन्न) छे तेना 'लोकिक, कुमावचनिक, अने लोकोत्तरिक, नाम प्रमाणे गुण वाला, त्रण भेदो करीने बधे ठेकाणे अपणा मननी जूठी कल्पनाओ करीने दोड करवानुं नथी, अने तेम दोड करीने जवाथी एक तो सिद्धांतनी महा आशातना, अने पंडितानी पंक्तिमा, उपहास्यनेज प्राप्त थइशं ॥ प्रथम तमारोज लेख जूबो के, द्रव्य अरिहंतमां खीचडो करीने, पांच भेद कर्या, अने भाव अरिहंत ना निक्षेपमां, जूठी कल्पना करतां अचकाइने, एकज भेद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 9 www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ करी बेठा छो, केमके ते भाव अरिहंतना निक्षेपमां जूठी कल्पना चाली की नही, नहि तो द्रव्य अरिहंतनी परे 'भाव अरिहं तमा पण १ लोकिक, २ कुमा वचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, " < भाव अरिहंत' पण कही बताववा जोइता हता. || वास्ते तमारो लेख सिद्धांतथी विरुद्ध थयेलो छे. ॥ वली विशेष समजवा नुं एछे के, - आवश्यक सूत्रना द्रव्य निक्षेपमां १ आगम, २ नो आगम, थी वे भेद करेला छे । तेमज भाव आवश्यकना निक्षेपमां पण, ए वे भेदज करेला छे । तेमां जे, १ आगम रूप, प्रथमनो भेद छे, ते तो केवल आवश्यक सूत्र रूपज छे, तेनुं पठन करवावालो, साधुज होय छे, अने ते साधु, भणी पण रहेलो छे, छेवट उपदेश शुद्धांपण करी रहेलो छे, अने प्रश्न उत्तर विगरे सर्व करी रह्यो छे, परंतु ते साधुनो उपयोग, ते आवश्यक सूत्रमां बरोबर न होवाथी, तेने आगमधी द्रव्य आवश्यक कह्यो छे, एटले के केवल आगम रूप छे एम जणायुं । अने तेज आवश्यक सूत्रन भणतां भणतां ज्यारे ते साधु उपयोगना घरमां आवी गयो, एटले तेने आगमी भाव आवश्यक रूप मानी, भाव आवश्यकना भेदमां शास्त्रकारे कह्यो. कारणंक आवश्यक सूचना अर्थमां उपयोग विनाना सांधुने, द्रव्य आवश्यकपणे कारण रूपथी कह्यो, | अने तेज साधु, ज्यारे अर्थमां उपयोगवालो थयो, एटले ते 6 द्रव्य आवश्यकनेज, भाव आवश्यकमां गण्या. तेथी द्रव्य आवश्यक छे ते, भाव आवश्यकनुं कारण होवाथी उपयोगवालोज छे । परंतु तमोए जेवी रीते ' त्रण निक्षेपने' उपयोग वि नाना ठराव्या ते प्रमाणे उपयोग विनाना नथी । अगर जो द्रव्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ आवश्यकने निरर्थक कहेशो तो, ढूंढक साधु श्रावकोनुं, पडिकमण विगरे, सर्व प्रकारनी जाहेरमा देखाती क्रियाओ निरर्थक ठरशे । केमके जुवो प्रथमतो पडिकमणामांज घणा एक ढूंढक साधु श्रावको अर्थ विनानो कोरो पाउज पढे छे । तेमां पण जो शुद्ध उच्चारण पूर्वक होय तोज ते द्रव्य आवश्यक रूप गणाय, नही तो एके धडामां न गणाय । माटे अमो सूचवीये छे के तमारा केला साधु श्रावको अर्थना जाण छे, अने शुद्ध उच्चारण पूर्वक भणे छे, तेनो विचार करी जुवो, अने पछी द्रव्यनिक्षेपने निरर्थकपणे ठरावो ! || अमो तो एज कहीये छे के, तमारा ढूंढकोने, एके वातना परमार्थनी खबर पडती नथी, तेथी आडा अवला हाथ नाखीने फांफां मारोछो. ॥ || वली विशेषपणं एछे के, आगमना स्वरूपथी आवश्यकना भेदनी व्याख्या करतां गणधर महाराजाओए द्रव्यमां, तेमज भावमां पण, केवल आगमना अक्षरोच्चारण स्वरूपनीज विवक्षा लीली छे । परंतु क्रियानी विवक्षा अंगीकार करी नथी एम लक्षमां राखवानुं छे. । आवी रीते अमोए आगमरूप प्रथमना भेदी, द्रव्य आवश्यकना निक्षेपनो, तेमज भाव आवश्यकना निक्षेपनो, किंचिन् मात्र तात्पर्य कहि बताव्यो छे, ते लक्षपूर्वक मूल सूत्र उपर ध्यान देवाथी मालम पडशे. ॥ || हवे नो आगमथी, आवश्यक सूत्रनो ' द्रव्यनिक्षेप शुं ! चीज छे, || अने नो आगमथी आवश्यक सूत्रनो, 'भावनिक्षेप' शुं ! चीज छे, तेनो किंचित् तात्पर्य लखी बतावीये छीए. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat , www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेमां प्रथम " नो" शब्दनो अर्थ लखीये छीये. आगम सव्व निसेहे, नो सदो अहव देसपडिसेहे । सव्वे जहण सरीरं, भवस्सय आगमा भावा ॥१॥ . अर्थः-" नो" शब्द छे ते, आगमना ( अर्थात् सिद्धांत पणाना ) सर्व प्रकारथी निषेधमां वपराय छे. । अथवा आगमना देश निषेधमां, ( अर्थात् एकाद भागना निषेधमां ) 'नो' शब्द नो अर्थ, करवानो शास्त्रकारे कहेलो छ । तेमां उदाहरण ए छे के, * जाणग सररि, अने + भवि सरीर, आ बे भेदो सावादि भव्य पुरुषो संबंधी छे, तेना वर्णनमा ‘नो' शब्दनो अर्थ, आगम पणानो सर्वथा प्रकारथी अभाव जणावे छे ।। हवे द्रव्य निक्षेपमां ? सरीर, अने । २ भविभ सरीर आ वेथी, व्यतिरिक्तना जे त्रण भेद करेला छे, ते 'त्रण भेदो, साध्वादि भव्य पुरुषोना संबंधथी, भिन्न, स्वरूपनाज करेला छे जेमके ? लोकिक, २ कुप्रावचनिक, अनं ३ लोकोत्तरिक, । आ त्रण भेदो, आवश्यक क्रियाना जाण शुद्ध साधुना, शरीरनी साथनो संबंध छोडीनेज वर्णन करेला छे, तेनी साथे किंचित् मात्र पणे संबंध राखेलो नथी, तेथी तेने व्यतिरिक्त पणे कहेला छे । हवे व्यतिरिक्तना त्रण भेदमां, लोकोत्तरिक नामनो जे त्रिजो भेद छे तेमां षट् आवश्यक क्रियानो संबंध जोडेलो होवाथी भ्रांति थाय छे के, इहां पण ते शुद्ध साध्वादिकनो संबंध होवो जोइये, परंतु जे ने गुरु गमता मळेली नथी तेज भ्रांतिमां पडे छे, अने शुद्ध साध्या * अंत अवस्था. । + पूर्व अवस्था.। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिकनो संबंध जोडी, विपरीत पणे अर्थ करवा मंडी पडे छे, तेथी बधु अवले अवलु जुवे छ, । जेमके प्रथम ढूंढनी पार्वतीए जोयु, अने पछीथी वाडीलाले पण लख्यु, ॥ परंतु इहां लोकोत्तरिक नामनो विजो भेद छे ते शुद्ध साधुओथी व्यातरिक्त पणे, पतित थयेला साधुओ संबंधी छे, तेथी तेमना आवश्यक रूप आगमना उच्चारने मुत्र मात्रथी ग्रहण करी, तेमनी षट् आवश्यकनी क्रियाने तुछ मात्र गणी नो शब्दथी सर्वथा प्रकारे निषेधी कहाडी छे. तेथी शुद्ध साध्वादि महापुरुषोनो संबंध किंचित् मात्र पण रही सकतो नथी.॥ । तेमज भाव आवश्यकमां, नो आगमरूप बीजा भेदना, १ लोकिक, २ कुमावनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, एम त्रण भेद करेला छे, तेमां, लोकोत्तरिक नामना त्रिना भेदमां, उपयोगपूर्वक, शुद्ध साधु, श्रावकना पडावश्यकमां उठ बेस करवा रूप क्रियाने, जडरूप मानी, एक देशपणाथी निषेधी, बाकीनी सर्व क्रियाने उत्तमपणे ग्रहण करी लीधेली छे. । तेथी इहां 'भावना' त्रिजा भेदमां, शुद्ध साधु आदिने ग्रहण करेला छ.। परंतु 'द्रव्यमा तो' व्यतिरिक्तपणाथी त्रिजा भेदमां पण, पतित साधुओनेज ग्रहण करेला छे. ॥ ॥ हवे उपरना लेखनो तात्पर्य ए छे के,-आगमथी, अने नो आगमथी, जे सूत्रकारे, भेदो करेला छे ते तो, छ आवश्यकना सिद्धांतरूप वस्तु, नी साथेज लागु पाडवाना छे, पण बीजी सर्व चीजोनी साथे, बधा भेदो लागु पाडवाना नथी, मात्र जे जे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७ "" योग्य होय, ते ते भेद, लक्षणकारना करेला ' लक्षण ' उपर ध्यान आपीने, लागु पाडवाना छे. ॥ जेमके, मोक्ष सिधावेला तीर्थंकरोना, शरीरने, अने तीर्थंकर थवावाला, शरीरने, पूर्वकाल, किंवा अपरकालनी अवस्थामां, तीर्थंकर पदनो, आरोप करवो, तेज द्रव्य तीर्थकर " मानवाना छे, परंतु, १ लोकिक, २ कु प्रावचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, ना स्वरूपथी, जे द्रव्य आवश्यकने पकडी, नो आगमना स्वरूपवाला त्रण भेद वर्णवेला छे ते सर्व प्रकारना शुद्धिवाला छ आवश्यक रूप मुख्य वस्तुथी, व्यतिरिक्त पणे द्रव्य आवश्यकना करेला छे, ते लागू पाडी शकाय नही. । केमके, जे एक वस्तुने, मुख्यता रूपे करीने, मिक्षेपो करेला छे, तेथी व्यतिरिक्त पणे कही बतावेला छे. ॥ आ लेखथी विशेष समजवानुं ए पण छे के शास्त्रकारे जे वस्तुने प्रथम उच्चारण करी निक्षेप करवा मांडया होय ते निक्षेप तेज वस्तुना छे एम खातरी पण करी आपे छे, परंतु, तमोए जेवी रीते अरि हंत वस्तुनो उच्चारण करी, बीजी वस्तुमां, नाम निचेपादि करवा मंडी पडया, तेवी रीते करवाना नथी, एम, आ द्रव्य आवश्यकना व्यतिरिक्त भेदो स्पष्ट पणे जणावे छे. । वास्ते 'श्रा चार निक्षेपोना विषयमां, तमारो, तेमज ढूंढनी पार्वतीनो, जे लेख थयेलो छे, ते केवल समज्या वगरनोज छे । ते बारिक दृष्टिथी जो शो तो, स्पष्ट पणे जोइ शकशो. ॥ ॥ इति तृतीय द्रव्य निक्षेप विषये तत्त्वातत्त्व वि चारः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हवे चोथा भावनिक्षेप विषये तत्त्वाऽतत्त्वनो विचार करीये छीये. ॥ वाडीलाल, लखे छे के, ४ भावनिक्षेप-केवल ज्ञानादिक सहित जे वर्ते छे ते ‘भाव अरिहंत ' खरेखरा अरिहंत तो तेज, अने वंदनीक पण तेज, वाकी तो नामनो, माणस के, पथ्थर, कोइनुं कल्याण करी शके नहि. ____ आ चोथा 'भावनिक्षेपथी ' विचार करवानो ए छे केकेवल ज्ञानादिक सहित वर्ते ते खरे खरा अरिहंत छ. एम तो अमो पण मानीये छीये. । अने अरिहंतना चार निक्षेपमांथी एक चोथो भावनिक्षेप, अरिहंतमांज, दाखल थयेलो छे, एम पण मानीये छीये, । अने अरिहंतना बीजा त्रण निक्षेप छे तेने पण चोथा भाव अरिहंतना निक्षेपनी पेरें अरिहंतनी साथेज संबंध करीये, तोज अरिहंतना चार निक्षेप, यथा योग्यपणे थया गणीये छीये. । परंतु निक्षेप तो करवा मांडया अरिहंतना, अने आ चोथा भावनि. क्षेपनी परे, वीजा त्रण निक्षेपो अरिहंतनो संबंध, न धरावता होय तो ते, विपरीत लेख थयेलो छे, एम पण समजीये छीये. आ अमारा ढूंढक भाइए प्रथम चार निक्षेप अरिहंत शब्द उपर लागु पाडवाना कही, प्रथमनो नाम निक्षेप, तीर्थकरथी बीजी वस्तु साथे, जोडवानो बताव्यो, ॥ तेमज द्रव्यनिक्षेप , चक्रवर्ती आदि बीजी वस्तुमा जोडीने बताव्यो. ॥ अने सत्यार्थ चं. द्रोदयमां, प्रथमज ढूंढनी " पार्वती” लखे छे के,-श्री अनुयोगद्वार सूत्रमें, आदिहीमें, वस्तुके स्वरूपके समजनेके लिए, वस्तुके, सामान्य प्रकारसे, चार निक्षेपे निक्षेपने ( करने ) क Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९ हे है. । यथा नाम निक्षेप १ । स्थापना निक्षेप २ | द्रव्यनिक्षेप ३ । भावनिक्षेप ४ || ढूंढनीना आ लेखथी, अने वाडीलालना लेखथी, विचार करवानो एछे के, - वाडीलाल छे ते चारनिक्षेपने 'अरिहंत शब्द उपर ' लागु पाडवाना कहे छे, । अने ढूंढनी पार्वती छे ते, वस्तुना ' चारनिक्षेप' करवाना कहे छे ते, आ एक मतवाला ढूंढक, वाडिलाल, अने ढूंढनी 'पार्वती' होवा छतां. अने अनुयोगद्वार सूत्र छे ते पण एक छे, तोपण एक तो बतावे छे आकाश, अने एक बतावे छे तेने पाताळ, हवे ए ढूंढकोने, आ चार निक्षेपोना विषयमां केवा प्रकारनुं ज्ञान थयेलुं समजवं ? आबन्ने एक मतनां होवा छतां विरोध ए थयो के, C वस्तु तो जुदी जुदी ' बतावी वाडीलाले, अने अरिहंत रूपशष्टमां चार निक्षेप, उतारवानुं कही बताव्यं । अने ढूंढनी, एकज वस्तुमां उतारवाना ' चारनिक्षेप ' कहे छे, त्यांरे मेळ केवी रीते मेळववो ? तेनो मेळ, वाचक वर्गज, मेळवीने आपशे, तो पण अमारे संतोषज छे. केमके अमाराथी एवा जुठा मेळो, मळी शकता नथी, अने उत्तर पण क्यां सुधी लख्या करीये. ॥ अहिं सूत्रकारनो मत ए छे के, एक वस्तुमांज 'चार निक्षेप' लागु पाडवा, जेमके आवश्यक क्रियारूप, 'एक वस्तुमां लागु पाडीने बताया । तेमां सूत्रकारे, आवश्यक सूचनो, १ नामनिक्षेप - जीव, अजीवादिक, वस्तुमां, करवो कह्यां, तेथी आवश्यकथी बीजी वस्तुमां नामनिक्षेप थवानी भ्रांति थाय छे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने २ स्थापना निक्षेप, दश प्रकारनी वस्तुमां अक्षरना लेखरूपथी, तेमज, साधुनी मृतिरूपथी, करवानी बतावी. । अने आवश्यक सूत्रनो, ३ द्रव्यनिक्षेप १ आगम, २ नो आगम, ना भेदी करी बताव्यो, । तेमां १ आगमथी उपयोग विनानो साधु कह्यो, अने २ नो आगमथी, जाणग सरीर, । भविय सरीर, । अने तेथी व्यतिरिक्तमां, लोकिक, कुप्रावचनिक, अने लोकोत्तरिक,। एम त्रण भेद कह्या, तेथी पण आवश्यकरूप वस्तुथी बीजी वस्तुनी भ्रांति थाय छे. ।। हवे आवश्यक सूत्रनो ४ चोथो 'भावनिक्षेप' तेना पण वे भेद कर्या छे, १ आगम, २ नो आगमरूप. । १ आगमथी' उपयोगवालो साधु कहेलो छ. । २ नो आगमथी, १ लोकिक, २ कुप्रावचनिक, अने ३ लोकोत्तरिक, एम त्रण भेद 'भाव आवश्यकना' होवाथी, ढूंढनी पार्वती, अने ढूंढक वाडीलाल शाह, अनहद भ्रांतिमां पडी, समज्या वगर, आचार्योना, तेमज गणधर महाराजाओना लेखने, सामान्य मात्र समजी, पूर्वाऽपरनो विचार कर्या विना, मनमां गोटतो, अर्थ करी लइ, दोड्या दोड करी मुकी छे । परंतु अमारा ढूंढक भाइयोना उपकार माटे, आवश्यक सूत्रना चार निक्षेपनो परस्परना विचारथी किंचित् मात्र तात्पर्य कही बतावीये छीये के, जेथी तेओनी भ्रांति किंचिन् दूर थाय. ॥ ॥ आचार निक्षेपना, विषयमां तात्पर्य ए छे के,-आ दुनियामां, वस्तु त्रण प्रकारनी छे, हेय, ज्ञेय, अने उपादेय, । आ त्रण प्रकारनी वस्तुमांथी, आपणे उपादेय वस्तुना 'चार निक्षेप' करवानो विचार कर्यो, । जेमके, आवश्यक सूत्र, अमारा जैनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योने सर्वथा प्रकारथी ' उपादेय' छे, त्यारे ते वस्तु शी छे ! के एकतो आवश्यक सूत्ररूप, अने बीजी ते संबंधी वे वखतनी प्रतिक्रमणरूप अवश्य क्रिया, ते अवश्य क्रियानो आधार, मुख्यत्वे साधु छ । तेथी उपादेयरूप आवश्यक सूत्र, अथवा साधु छे, । केमके सूत्र छ ते, क्रियानु ज्ञान प्राप्त कराववावाळु होवाथी उपादेयरूप छे. अने साधुमां, क्रिया कारकना संबंधे आवश्यक अमारे उपादेय छे. । एज उपादेय आवश्यक सूत्ररूप वस्तुना चार निक्षेप करवा, सूत्रकारे सूत्र गूंथन करेलु छे ॥ ॥हबे जूवाके प्रथम 'नाम निक्षेप' ज्यारे ते आवश्यक सूत्र लखावी तैयार कराव्युं, अने तेनुं नाम आवश्यक सूत्रं एम स्थापित कर्यु, ते अजीव रूप वस्तुमा आवश्यक सूचना नामनो निक्षेप थयो, अथवा एक आवश्यक सूत्र मात्र पठित साधुने, आवश्यकी, कहेवो ते, जीव अजीव रूप वस्तुमा आवश्यक सूत्रना नामनो निक्षेप गणाय छे ॥ १ ॥ हवं जुवो बर्बाजो ' स्थापना निक्षेप ' के काटादि उपर पण अक्षरोनी स्थापना करी आवश्यक सूत्र लखी सकाय छे, अने पोथीयो उपर तो लेख चालु पणज छे. । तेमज काउस्सगमां ध्यानारूढ थयेला साधुनी मूर्ति पण करी सकाय छे, तेथी ते आवश्यकनो भाव जणाववावाळी होवाथी, तेने स्थापना निक्षेप सूत्रकारे कहेलो छे. २ ॥ हवे जुवो आवश्य: सूत्रनो ' द्रव्य निक्षेप' के, ? आगम, २ नो आगम, ना भेदथी बतावेलो छे, तेमां. ? आगमथी, द्रव्य आवश्यक ए छे के, जे साधु, आवश्यक सूत्रने, परिपूर्ण पणे भणी रह्यो छे, वाचन करे छे, अधवा धर्मोपदेश विगरे करी रह्यो छे, पण तेनो उपयोग तेमां नथी तेथी तेने, आगमथी द्रव्य आवश्यक कह्यो, केमके भणेलो छ अथवा भणे छे, तेनो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ उपयोग तेमां नथी, तोपण “ उपयोग" प्राप्त करी आपवामां, कारण भूत, ते आवश्यक सूत्रनो पाठन छे, अने कारण छे ते " द्रव्य रूप" मानेखें छ ती ते उपयोग विनाना आवश्यक सूत्रना पाठी शुद्ध साधुने पण ? आगमना भेदरू पथी द्रव्य आवश्यक रूपे कह्यो. आहे विशेष ध्यानमा राख्व - ए छे के, सूत्रकार " क्रिया विषयने " छोडी दइ, आगम रूपनो, विषय होवाथी, कवल आगमना, वीषयने ग्रहण करेलो छे. हवं जुवा, २ नो आगमथी ' द्रव्य आवश्यक, १ ज्ञ सरीर, २ भविय सरीर, । तेथी त्रिजो 'व्यतिरिक्त, तेना पण त्रणभेद, जमकं १ लोकिक, २ कु-प्रावचनिक, अने ३ लोकोत्तीरक, एम त्रणभेद व्यतिरिक्तना करेला छे. । आ विषयमां समजवान ए छे के, 'नो' शब्दनो अर्थ, एछे के, एक जगोपर तो, आगमपणानो, सर्वथा प्रकारथी निषेध बताव छ । अने वीजी जगापर, आवश्यक मुत्रना आगमपणाना एकाद भागने ग्रहण पण करीले छे. । 'नो' शब्दनो अर्थ प्रथम लखीने पण आवेला छीये. । एमां विशेष समजवानुं ए छे के, जे जाणग सरीर, अने भविय सरीर छे, तमां नो शब्दथी आवश्यक सूत्ररूप आगमपणानो सर्वथा प्रकारथी निषेध मानी, मात्र भूतकाळ, अने भविष्यकाळना कारणरूप पुरुपना शरीरमां, वर्तमानकाळमां आवश्यक सूत्ररुप कार्यनो आगमपणाथी खामरूपे आरोप करेलो छे, जेमके मंत्रीपदथी भ्रष्ट थयेलाने पण मंत्री कहे, अथवा राजकुमरने राजा कहे, तेवी रीते जाणगसरीर, अने भविय सरीरमां पण, आवश्यक सूत्ररूप कायेनो आरोप करी, आवश्यक कहेलो छे. । ते आवश्यक सूत्ररूप उपादेय वस्तुनोज आरोप करेलो छ, पण बीजी वस्तुनो आरोप करेलो नथी. । १ जे शुद्ध स्वरूपवाली मुख्य वस्तु हती ते नहीं पण नामना गुण प्रमाणे बीजाज स्वरूपवाली. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वास्ते ए बे वस्तुमा खासपणे भाव आवश्यकनोज संबंध जोडीने बतावेलो छे. ॥ हवे, लोकिक, कुमावनिक, अने लोकोत्तरिक, आ त्रण भेद छ, ते, खास उपादेय, आवश्यकना संबंधथी व्यतिरिक्तपणे (अर्थात् भिन्नपणे) करी बतावे छे, तेमां जे प्रथम लोकिक भेद छे,तेतो लोकोनी दंतधावनादिक जे जे अवश्य क्रियाओ छे तेनेज जणावे छे. । तेथी तेमां, आगमरूप आवश्यकनो संबंध सर्वथा प्रकारथी नथी. अने जे कुप्रावचनिक छे तेमां, चरकादिक साधुओ ने, अवश्यपणे यक्षादिकना पूजन करवा वाळा बताव्या छे, तेथी षट् अध्ययनरूप आवश्यकथी भिन्नज छे, हवे त्रिजो लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यक छ, तेथी भ्रांति थाय छे के, ते भाव आवश्यकनो संबंध होवो जोइये पण, आ लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यकना करवा वाळा स्वछंदचारी, गुरुथी, अने सिद्धांतथी परां मुख थयेला, साधु नाम धारी, तमारा ढुढकादिक जेवा लोक रंजन वास्ते, बे वखत आवश्यकना करवावाळा कहेला छे, तेथी नो शब्दे मात्र सूत्ररूपनेज ग्रहण करेलुं छे, तेथी ते सूत्र लोकोत्तररूप होवाथी, भाव आवश्यकथा व्यतिरिक्तपणे, लोकोत्तरना शब्द रूपथी ग्रहण करेलुं छे पण, भाव आवश्यक सूत्रपणाथी व्यतिरिक्तपणे ग्रहण करेलु छे. । अने जाणग सरीर, भविय सरीररूप, प्रथमना ये भेदमा ‘भाव आवश्यकरूप' उपादेय वस्तुना आरोपपणाथी ग्रहण करेलुं छे, तेथी ते व्यतिरिक्तना विजा भेदथी भ्रांति करवाने जग्या नथी. । जेम कोइ अन्यमतावलंबी श्रद्धाविनानो पोपटनी परे पाठ भणीने बतावे, नेवी रीते ते स्वछंद चारी साधुओना, आवश्यकने द्रव्यथी व्यतिरिक्तपणे गणीने ले.कोत्तरना भेदमां दाखल करेलुं छे, परंतु उपादेयरूप जाणग सरीर, अने भविय सरीरना आवश्यकने तुछरूपे मानेलो नथी. ३ । हव जवो ४ था भाव आवश्यकना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ भेदोनो तात्पर्य आगम, नो आगमना भेदथी विचार ए छे के, जे आगमथी भाव आवश्यक छे ते ए छे के, जे उपयोग विना भणवावालो साधु हतो तेने द्रव्य आवश्यक कह्यो हतो, अने तेज साधु जे वखते उपयोगना घरमा आव्यो ते वखते तेने, आगमथी ( अर्थात् सिद्धांत रूपथी) भावपणे मानी लीधो. || अने ना आगमधी लोकिक, कुमावचनिक, अने लोकोत्तरिक, एम त्रण भेदधी भाव आवश्यक कहेलो छे. । तमां लोकिक भाव आवश्यक ए छे के, सवारना वखते, अने संध्या वखते, भारत, अने रामायणादिकना श्रवण करवावाला कहेला छे। अने कुप्रावचनिक, भाव आवश्यकमां चकादिक साधुओना होम, हवन, मंत्र जापादिक, वर्णवेला छे। अने लोकोतरिक, नो आगमी भाव आवश्यक शुद्ध उच्चारणपूर्वक उपयोग सहित शुद्ध श्रद्धावाला श्रावकनी अने शुद्ध साधुओनी वे वखतती प्रतिक्रमणरूप षट् आवश्यकनी क्रिया बतावी छे. अही पट् आवश्यकरूप सूत्र छे तेने, आगमरूपथी ग्रहण करेलुं छे, अने तेमां उठ बेस विगरे क्रियाओ छे तेने जडरूप मानी नो शब्दयी देशपणे निषेध रूपे बतावी छे। अने जे आगमरूपथी भाव आवश्यक को तो मां क्रियानी विवक्षा छोडी दइ मात्र आवश्यक सुत्रना अर्थरूप भावनेज ग्रहण करेलो हतो, वास्ते आगमथी भाव आवश्यक छे ते उत्तम अने यथा वत् रूपथी छे, अने लोकोतरिक, नो आगमी भाव आवश्यक छे ते पण परम उपादेय तरी - केज छे, जेवी रीते ए भाव आवश्यक उपादेय तरीके छे, तेवीज रीते भाव आवश्यकना खाम पणाना संबंधवालो, नाम निक्षेप, स्थापना निक्षेप, अने द्रव्य निक्षेप, पण परम उपादेय छे, परंतु निरर्थक रूपे नथी । अनं जे व्यतिरिक्त पणे लोकिक, कु प्रावचनिक, अने लोत्तरिक, नो आगमथी द्रव्य आवश्यक वर्णन करेलो छे, ते उपादेय रूपे नथी, केमके भाव आवश्यकता स्वरूपथी तेने भिन्नपणे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ न वर्णवेलो छे, तेथी भ्रांतिमां पडी समज्या वगर आचार्योने दूषित करवा मंडी पडवू ए विचारशक्ति पामेलानुं कार्य न गणाय. । अने भाव आवश्यकमां, लोकिक, अने कुमावनिक छे, ते तो शब्दना अर्थथीज भिन्नरूपे छ तो पछी तेमां समजावत्रानी पण कांइ जरूर रहेती नथी. वास्ते वीतरागदेवनी स्थापनारूप मूर्ति तेमनाज संबंधी होवाथी, अने तेमनीज यादगिरी आपवावाली होबाथी, भक्तजनोने तो सदा पूज्यरूपज छे. । अने जे अज्ञान दशाना वशथी, चित्तमां मूढता धारण करी, वीतराग संबंधी मूर्तिने, पथ्थर कही अवज्ञा करे छे, तेओनां तो चित्तन पथ्थररूप बनी गयेला छे, एम अमो मानीये छीये. ।। इति चोथा भावनिक्षेपनो तत्त्वाऽतत्त्व विचार संपूर्ण ॥ ॥ हवे जूवो सूत्रना चार निक्षेपनो तत्त्वाऽतत्त्व विचार.॥ आ सम्यक ग्रंथनी रचना करनार वाडीलाल शाहे, जे सूत्रना चार निक्षेप लख्या छे, ते चार निक्षेपमांथी एक पण निक्षेपनो लेख सामान्य प्रकारथी पण योग्य रीते करेलो नथी, केमके सूत्रना निक्षेप पण आवश्यक सूचना जेटला, अने तेज प्रमाणे सूत्र. कारे करीने बतावेला छे, परंतु किंचित् मात्रनो फरक बतावेलो नथी, मात्र फरक जे छे ते द्रव्यसूत्रना व्यतिरिक्तमा “पत्तय पोत्थय लिहिअं"एम जे लखेलुं छे ते पण, सूत्रना निक्षेपनी मुख्यतारूपने छोडीने भावना कारणनी विवक्षाथी ग्रहण करेलुं छे. ते सिवाय अनेक प्रकारनां रूं ( अर्थात् कपास ) आदि बताव्यां छे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ परंतु ते खास सूत्रना भेदोथी व्यतिरिक्तना भेदो करेला छे, तेथी भाव सूत्रनी साथे संबंध विनानाज छे. । तेथी भावसूत्रने कोइ प्रकारनो वाध आवे तेम नथी, वास्ते ते सूत्रना चार निक्षेप पण आवश्यक सूत्रनी परे उपादेय वस्तुना होवाथी उपादेयरूपज छे, परंतु उपयोग विनाना निरर्थरूप नथी. । अमो ते मूत्रना चार निक्षेपोना बदले वाडीलाल शाहनी चोपडीनी साथे घटावीने बतावीए छीए, जेथी निरर्थक, अने सार्थकपणानी, किंचित् खवर पडे. ।। सम्यक ए पण एक नाम छे, ते नामनो निक्षेप वाडीलाले, आपणी रचेली चोपडीमां करेलो छे, अने उपयोग विनानो मानेलो छे, तेथीज अमारा करेला तत्त्वाऽतत्त्वना विचारथी निरर्थकपणे निवडेलो छे, केमके एमणे ( वाडीलाले ) अजीवरूप वस्तुमा करेलो छे. १ । हवे बीजो स्थापनानिक्षेप, सूत्रकारे लखेला अक्षरोपणे सार्थक गणेलो छे, छतां वाडीलाल कोरां कागळीयांथी करवानो बतावे छे, तेपण एमनी चोपडीनो करतां एमना कहेवा प्रमाणे निरर्थक होय तेमां तो नवाइज नथी. ॥२॥ हवे त्रिजो द्रव्यनिक्षेप लखेलां पानां पुस्तकमां वाडीलाले बतावी निरर्थ उपयोग विनानो कहेलो छे, अने आ अमारा विचारथी एमनो लेख पण, निरर्थक उपयोग विनानोज ठरे छे, अने एमणे पण त्रण निक्षेप निरर्थकरूपे मानेला छे, ज्यारे एमनी चोपडीना त्रण निक्षेप, निरर्थक ठरी चुक्या, तो पछी एमनी चोपडीनो चौथो भावनिक्षेप सार्थक क्याथी थवानो छे ? केमके एमणे प्रथम सम्य... क एवो नामनो निक्षेपज, खोटो करेलो छे तो पछी, सम्यकना ज्ञाननी प्राप्तिज क्याथी थशे ? अने स्थापना केवल कोरा कागळीयांनी करवानी कही बतावी छे ते तो सार्थक होयज क्याथी ?। अने द्रव्यनिक्षेपमा लावेलां पांनां पत्रां मानी एमणे आ लेख लख्यो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०७ छे अने उपयोग विनानो मान्यो छे. तेथी सम्यत्कना कारणरूप आ लेखमांथी कोइ दिन पण भावरूप सम्यकपणानुं ज्ञान मळी शकवानुज नथी ? तेथी आ बधुं पुस्तकज उपयोग विनानुं रचायखें छ. । ज्यारे प्रथम नामनो निक्षेपज खोटो ( अर्थात् सम्यक्त्वना अर्थ विनानो) करेलो छे, तो पछी बीजी सार्थकता एमांथी शें निकळवानी छे. ॥ अगर वाडीलाल कहेशे के, अमोए नाम निक्षेप नही पण नाम आप्युं छे, तो ते कहेवाने मार्ग नथी, केमके, तमो एज लख्यु छे के, बीजी वस्तुमां नाम आपीए त्यारे नामनिक्षेप कहेवाय, तेथी मुख्य वस्तुथी आ सम्यक एवं नाम तमारा चोपडी रूप बीजी वस्तुमां आपेलुं छे, तेथी ए नाम निक्षेपज छे, अने नाम निक्षेप तमोए निरर्थक मानेलो छे, तेथी बधी चोपडी निरर्थकज ठरे छे. ॥ पण अमो तो नाम निक्षेप सार्थक मानीये छीये जेमके, हेय वस्तुमां हेय तरीके, ज्ञेय वस्तुमा ज्ञेय तरीके, अने उपादेय वस्तुमां उपादेय तरीके । तेथी अमो अमारी चोपडीजे काइ नाम आपशुं ते नामनिक्षेप मानी सार्थकरूपे गणीशु. ।। अने तेथी सर्व जीवोना कल्याण माटे थशे एम पण मानीशं. ॥ इति चार निक्षेप विषये किंचित्तत्त्वाऽतत्त्व विचारः ।। इतिश्री मद्विजयानंद सूरीश्वर लघुशिष्येनाऽमर मुनिना धर्मना दरवाजा संबंधि पंचविंशति दृष्टि नाम्नश्चतुर्थ प्रकरणे तत्त्वाऽतत्त्व विचारःसंकलितः॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ निक्षेपोना विषयमां किंचित् बोधना माटे विचार॥ __ भलेने अमारा ढूंढक साधुओ, अने तेमना अनुयायी श्रावको, जैनमार्गना गूढतत्वोथी गूथायेला, मुचना रूप मुत्रोनां मुत्रो भणी, आपणे आप सुत्रोना पारगामीपणा मानीने बेसे, परंतु जे मूल परंपराछोडी छे. ते मूल परंपराना विद्वानोनी पासेथी, जैनतत्वोने ग्रहण कर्या सिवाय, तेओना जन्मना जन्म वीति जशे तोपण तेओ, जैनतत्वना मार्गनी दिशा कई बाजु ए छे तेटला पुरतुं पण जोई शकवाना नथी । तो पछी अमारा ढूंढक भाईयो ढूंढी ढूंढीने वधारे सुं मेलवी सकवाना छे । ते आ अमारा बतावेला दिशा अवलोकनना स्वरूपथी, सज्जन पुरुषो, सहज पणे समजी शक्या हशे । तो पण फरीथी धर्मना दरवाजाना, बेचार फकराओनी साथे, मारा टुंक विचारो करी बताव छं के, जेथी अमारा ढूंढकभाईयें करेलो, चार निक्षेपनो विचार, थोडी सेहलाईथी वाचक वर्ग जोई शके.॥ ।। जुवो. पृष्ट. ५५ मां. । वाडीलालनो प्रथमनो लेख ।। ॥१ जैनो कहे छे के केटलीक चिजो 'ज्ञेय' एटले जाणवा योग्य छ,। केटलीक ' उपादेय ' एटले आदरवा योग्य छे,। अने केटलीक ' हेय ' एटले तजवा योग्य छ,। माटे ' निक्षेप, एक बे नही पण चार छे, एम कबुल राखनार माणसे स्थापना निक्षेप, ने ' उपादेय, तरीकेज कबुल राखवो जोइए एवं कहेनारा मात्र पोतानेज ठगे छ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ इति प्रथमनो लेख. ॥ वाचक वर्ग । वाडीलाल शाहना आ लेखथी, आ एमज समज्या हशो के, तीर्थकर महाराज ' उपादेय ' तरीके तो छेज, अने तेमना 'त्रण निक्षेप ' पण ' उपादेय ' तरीके मानवामा हरकत नही, मात्र ' स्थापना निक्षेप ' ज उपादेय तरीके कबुल राखतां, अमारा ढूंढकभाईना पेटमां, गरबडाट थइ पडेलो छे, तेथीज एम लख्युं छे के स्थापना निक्षेप ' उपादेय ' तरीके कबुल राखनारा ठगाय छे. ॥ ॥ आगे पृष्ट. ६४ मां नो तेमनो बीजो लेख || ॥ २ श्री ‘अनुयोगद्वार, सूत्रमा कयुं छे के, पेहेला त्रण 'निक्षेप'' अवथ्थु' एटले उपयोग विनाना छे, छेल्लो चोथोज, आलोकमां उपयोगी, अने परमार्थमां साधनरूप छे.॥ इति द्वितीय लेख ॥ ॥ वाडीलाल शाहना आ लेखथी एम पण सिद्ध थाय छे के, वस्तुना चार निक्षेप थाय छे पण तेना 'त्रण निक्षेप ' स्वरूप विनाना होवाथी कांइ पण उपयोगना नथी.॥ ॥ आगे जूवो पृष्ट. ७८ नो त्रिजो लेख ।। ॥ ३ शब्दनय, समभिरूढ नय, अने एवंभूत नय, ए त्रण नयवाला माणस 'नाम' स्थापना, अने 'द्रव्य' ए त्रण निक्षेपने ' अवथ्थु ' (अवस्तु) माने छे, ३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० इति तृतीय लेख ।। - ॥ वाडीलाल शाहना आ लेखथी एम पण सिद्ध थाय छे के, जैनोए ' सात नयो ' मानेली छे, तेमांथी जे शब्दादिक त्रण नयोने, वलगी रेहेवावाला मानस छे तेज प्रथमना त्रण — निक्षेप' ने अवस्तु रूपे ठरावे छे, बाकी साते नयोने, मान आपनार जैनो छे ते तो, अवस्तु रूपे केहता नथी, पण वस्तु रूपेज कहे छे एम प्रगटपणे सिद्ध थाय छे. ॥ ॥ हवे ए चार निक्षेपना विषयमां, अमारा दूंढक भाइने, अमो पुछीये छीये के, ? हेय, २ ज्ञेय, अने ३ उपादेय, एम त्रण प्रकारना पदार्थो दुनीयामां छे, तेमां वीतराग देवनी मूर्ति रूप ' स्थापना निक्षेपने किया पदार्थमां गणोछो ? जो ' हेय' तरीके कहो तो ते कहेवू, तमारं तदन भूल भरेलुंज छे, केमके, जंबूद्वीप, ग्रह, नक्षत्र, तारा, विगरे जे सामान्य प्रकारना 'ज्ञेय' पदार्थो छे तेनी पण, आकृति बनावी, जैन सिद्धांतकारो, समजावता गया छे, अने ते रूढि ढूंढकोमां पण आज शुधी चालुपणे छे, ते पण 'स्थापना निक्षेपज' छे. । अने वस्तुरूपथी उपयोगवालो पण छे. । तो तमोए त्रण निक्षेपने, अवस्तुरूपे उपयोग विनाना केम कहीने बताव्या ? ।। __ फरीथी पण जूबो के, राजा, प्रजा, विगरेना मेहेलोमां, चित्रशालाओ, थती हती, एवा लेखो जैन सिद्धांतमां, जगो जगोपर थयेला छे, अने ते ज्ञेय पदार्थोना, स्थापना निक्षेपने, आनंदने माटे, उपयोगी जाणीनेज, करावता हता. । अने आनंदने माटे, तेमज समजवाने माटे, चित्रशालाओ, अने हिंदुस्थानना नकशा विगरे, ज्ञेय पदार्थोनी, स्थापना निक्षेपनो प्रचार, राजाओमां, तेमन प्रजाओमां, थतो आवेलो अने थइ रहेलो, वर्तमानकालमां पण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जोइये छीए, तो पछी ' स्थापना निक्षेप,' अवस्तु, अने उपयागे विनानो, आ लोकमां छे एम केम कहीने बताव्यो ! ज्यारे ज्ञेयरूप पदार्थनो स्थापना निक्षेप, अवस्तुरूप, अने उपयोग विनानो छे, एम नथी कही शकातुं तो पछी, अमारा परमपूज्य, तीर्थकर भगवान् के, जेना नाम निक्षेपना उच्चारण मात्रथी, अमारा पापनो प्रलय मानीये छीए, तेमना स्थापना निक्षेपने, अवस्तु, अने उपयोग विनानो छे, एम केहवावाला, वीतरागदेवना मार्गावलंबी छे, एम केवी रीते कही शकाशे ! वास्ते उपादेयरूप तीर्थंकर भगवाननो, स्थापना निक्षेप उपादेयरूपज छे, परंतु अवस्तुरूपनो के, उपयोग विनानो नथी, ए तो तमारा ढूंढकोने, मूढता थयला छे तेथी, बधु विपरीतपणाथी उलटपणे जूओछो. ।। ___ आ निक्षेपोना विषयमा विशेष समजवानुं पण ए छे के, १ ' हेय ' पदार्थना चारो निक्षेप, हेयपणे होय छे, एटले त्यागवा लायक होय छे. । अने २ ' ज्ञेय ' पदार्थना चारो निक्षेप, ज्ञेयपणे होय छे, एटले जाणवा लायक होय छे.। अने ' ३ उपादेय' पदार्थना चारो निक्षेप, उपादेयरूपज होय छे एटले योग्यता प्रमाणे आदर करवाने योग्यज होय छे. एमां पण बीजुं विशेषपणुं ए छे के, जेवी रीते १ हेय, २ ज्ञेय, अने ३ उपादेय, रूपे पदार्थो, दुनियामां त्रण प्रकारना छे, तेवीज रीते, एकज पदार्थने, १ हेय, २ ज्ञेय, अने ३ उपादेयपणे, मान आपनारा लोको पण, त्रण प्रकारमांज वहेंचाइ जाय छे. उदाहरण-जेमके वीतराग दशाने प्राप्त थयेला तीर्थकर महाराजाओ, सर्वथा प्रकारथी उपादेय रूपेज छे, अने तेमनी सेवा भक्ति करवाथी, अने तेमनाज वचन, पालन करवाथी, अमारा संसारनो निस्तार थशे, अने आ भव तेमज परभवनां सर्व संकट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूर थशे ने थशेज, एवी आशा धारण करनार, ते तीर्थकरोना परम भक्त, जैनोज उपादेयरूप समजी तेमना चारो निक्षेपोने उत्तम प्रकारनुं मान आपे छे, तेथी जैनोने तो ते तीर्थकरोना चारो निक्षेप परम उपादेयरूपेज छे ।। ॥ हवे जूवो के, जे बीजा अनेक मतमा रहेला, .मध्यम परिणामी लोको छे ते, तीर्थकर भगवानना चारो निक्षेपने, ज्ञेयरूपे समजी, न तो निंद्या करे छे, तेमज न तो तेमणी भक्ति विगरेथी, आपणा कल्याणनी पण आशा गखे छे, तेथी ते मध्य परिणामीना जीवोने, परम उपादेयरूप, तीर्थकरो, होवा छतां पण, तेमणे तीर्थकरोना चारो निक्षेप, ज्ञेयरूपेज थई पडेला छे. ॥ ॥ हवे जूचो के, तेज तीर्थकरोना द्वेषी, महा मिथ्यात्वी लोको, तेमना चारो निक्षेपने, हेयरूपे समजी, अनेक प्रकारथी अवज्ञाओं करवा तत्पर थइ जाय छे, तेथी परम उपादेयरूप तीर्थकरो होवा छतां पण, तेमना महा पापना उदयथी, ते द्वेषी लोकोने, हेयरूपे थइ पडेला छे. ॥ ॥ परंतु अमो तीर्थकरोना भक्त जैनो छे ते तो, अमारा कल्याणनी आशा राखी, दिन प्रतिदिन ते तीर्थकरोनां, रूपभादिक नामोने, नाम निक्षेपना विषयरूप गणी, अने परम उपादेयरूप समजी, ते नामानो उच्चारण करवा मात्रथी पण, अमारु कल्याण थशे ने थशेज एमज मानीये छीए. १ ॥ ॥ अने तेमनी आकृतिरूप, प्रतिमाने पण, परम उपादेयरूप समजी, स्थापना निक्षेपना विषयरूप गणी तेनी भक्ति करीने पण, अमो अमारा कल्याणनीज इच्छा करीये छीए. २ ॥ ॥ अने ते शुद्ध स्वभावी जीवोने, तीर्थकर पदवी प्राप्सिना पूर्वकालमां, तीर्थकर गोत्र बांध्या पछी, द्रव्य निक्षेपना विषयथी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थकर स्वरूपनाज ते जीवो छ एम मानी, तेमना मुखथी मुखी, अने तेमना दुःखथी दुःखी, भक्त देवताओ, तेमज अमो पण थइये छीए.* अने तीर्थकर पदवी भोगव्या पछी, मुक्त गामी थया छे तो पण, द्रव्य निक्षेपना विषयथी, तीर्थकर मानी, तेमना शरीर मात्रनी, भक्तिने पण भक्त देवताओ, तेमज अमो पण, करवानेज चाहीये छीए. ३॥ ॥ अने तेवा वीतरागी तीर्थकरो, साक्षातपणे, भाव निक्षेपना विषयवाळा, मळे तो, भक्ति करी, अमारा संसारनो निस्तार थयो मानीये तेमां तो कांइ नवाइ जेबुज नथी. ४ ।। वास्ते तीर्थकरोना, चारे निक्षेपोने, अमो भक्तजनो तो, परम उपादेयपणेज मानीये छीए.।। ___भलेने बीजा तीर्थकरोनी भक्ति विनाना, मध्यम परिणामी, तेमना चार निक्षेपोने, ज्ञेयरूपे, समजे. परंतु छेवटमां ते मध्यम परिणामी जीवो, तीर्थकरोना चारे निक्षेपोने, उपादेयपणे अंगीकार करी, आत्मध्यानमें लीन थशे तोज आ अघोर संसारनो अंत करशे. ___ अने ते तीर्थंकरोना नामादिक चार निक्षेपोना द्वेषी, गाढमिथ्यात्वना उदयथी, केटला काळ मुधी संसारमा परिभ्रमण करशे ते विषये अमो काइ कही शकता नथी, बाकी जैन सिद्धांत तो अनंत संसारीज कहे छे ।। वळी विशेष वात ए छे के, ते परम पूजनिक तीर्थकरोना, चार निक्षेपोने, अमो भक्तजनो मान आपीये ते तो अमारी फरजज छे, तेथी काइ पण विशेषरूपे करता नथी । परंतु ते वीतराग देवनो ___ * अमारा ढुंढको पण भूतकालना तेमज भविष्यकालना चोवीश तीर्थकरोना नाम स्मरण करे छे ते द्रव्य निक्षपनाज स्वरुपवालानां छे तो पछी त्रण निक्षेप निरर्थक केम ! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे अरूपी ज्ञान गुण छे, ते तेमना मुखद्वारथी, संकेतीत शब्दोंथी प्रकाशमान थइ, तेना आधारभूत जड सिद्धांतोमां, स्थापित करी. अथवा चेतनरूप आचार्यादिकोमां, केटलेक अंशथी प्रगट थवाथी, ते जड, अने चेतन रूप, बन्ने पदार्थोना पण, नामादिक चार निक्षेपो निक्षेपी, पूज्यपणे गणी, योग्य मान आपवानुं बताववा, श्री अनुयोगसूत्रना आरंभमां अमारी नित्य धर्मक्रियाना विषयने जणाबवावाळु, अने तीर्थकर भगवानना मुख कमळथी, साक्षातपणे सरस्वतीना स्वरूपे संकेतित अक्षरोथी प्रगट थयेलं, जे मूल सूत्र छे. । तेमा आवश्यक, शब्दथी नामनो निक्षेप करी, चारो निक्षेपथीज वर्णन करीने, उपादेयरूपे छे एम गणधर महाराजाओ बतावता गया छे. ॥ __ अने ते गणधर महाराजाओना कथनने अनुसरी, आज मुधीनो चतुर्विध संघ पण, जैन सिद्धांतोने, तेमज ते सिद्धांतोना आधारभूत, साधु पदमां आवी गयेला, आचार्य, उपाध्यायना पण, चारो निक्षेपने, मान आपताज आवेला छे । तेनुं स्वरूप, श्री अनुयोगद्वार सूत्रनो पाठ लखीने करी बतावेला, अमारा विचारने, बारिक दृष्टिथी, फरीने तपासीने जोशो तो तमोने पण स्पष्टपणे जणाइ आवशे. जे पदार्थ जेने हेय होय, तेनेज तेना चारो निक्षेप हेय होय छे.। परंतु तीर्थकरो, अने साधुओ, जैनोने हेयरूपे नथी. । ते तो अमारा परम पूज्यो, उपादेयज छे. । तेथी तेमना चारो निक्षेप, योग्यता प्रमाणे, पूजनिकज छे. ॥ __ जेमके स्त्रीयोना त्यागी, स्थापना निक्षेपरूप स्त्रीयोनी चित्रशालाथी दूर रहे छे, परंतु बीजा माताना प्रेमी तो, माताना चारो निक्षेपने, योग्यता प्रमाणे मानज आपता जोइये छीए. । तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पछी अरिहंतोने परमपूज्य मानवा वाळा जैनोथी, आपणी काळमु. खी जीव्हाने चलावी, वीतरागना त्रण निक्षेप, उपयोग विनाना छे, एम केम कही शकाय ! म्लेच्छो कहे ते वात जूदी छे. । जे तीर्थकरोना, एक नाम निक्षेप मात्रनी पण, रात अने दिवस जपमाळा गणी, अमारा कल्याणनी इच्छा करी रह्या छे, अने मुखथी उपयोग विनानो कहीये छीये, आते अमारी कया प्रकारनी मुर्खता, ते काइ समजातुं नथी. ॥ हवे अमो वाडीलालनाज, लेखना विचारथी, उपादेयना निक्षेपोर्नु, उपादेयपणु लखी बतावीये छोए.॥ ॥ वाडीलाल-पृष्ट ६३ मां, सूत्रना, चार निक्षेप लखता, बीजा, अने त्रिजा, निक्षेपमां, लखे छे के, ॥ ॥२ स्थापना निक्षेप-सूत्र तरीके कागल मुकी तेने सूत्रमाने. ॥ ॥३ द्रव्य निक्षेप-लखेलां पानां. ॥ ॥ तेमज पृष्ट, ८२ मां-ज्ञाननो, स्थापना निक्षेप, अने द्रव्य निक्षेप, जूवोके, ॥ ॥२ स्थापना निक्षेपे ज्ञान-ज्ञाननी स्थापना करवी॥ ॥३ द्रव्य निक्षेपे ज्ञान-लखेलां पुस्तक पानां. ॥ ॥ आ अमारा ढूंढक भाइना लेखी, विचार करवाना ए छे के, “ कागलनी, स्थापना " करवी ते पानां लखेलां के कोरां! Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || अने " ज्ञाननी स्थापना” करवी ते, जडना आधारे, के, चेतनना आधारे ॥ केमके जीवनोजे ज्ञान गुण छे, ते तो अमारा ढूंढक भाइए । पृष्ट. ६० मां, नीचे टीप आपतां, आत्माना गुण जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, ते तो अदृश्य रूपी बताव्या छे, तो पछी आ सूत्रना, अने ज्ञानना, स्थापना निक्षेपमां, शुं । लखीने बताव्यु. । वास्ते तमारे पण, सूत्र, अने ज्ञानना, निक्षेपो करतां तेना आधारभूत कोइ जड, अथवा चेतन, पदार्थनोज स्थापना निक्षेप, करवानें कबुल करवु पडशे.॥ तेथी हवे विचार करो के, वीतरागर्नु निर्मल ज्ञान, अदृश्य रूप छे, तो पण ते संकेतित अक्षरोथी, स्थापना रूपे थयेला पुस्तकने, अवस्तु रूप, अने उपयोग विनानु, निरर्थक छे, एम मूढनो मूढ जैन धर्मी हशे ते पण, केहवानुं साहस नही करी सके। तो पछी तमो ढूंढको, कया हिसाबथी, त्रण निक्षेपने, अवस्तु, अने उपयोग विनाना कहो छो ! शुं ! कोरा कागलो बगाडी, लोकोने भ्रष्ट करवानोज धंधो लइ बेठा छोके, ! ॥ अमो तो इतिहासाथी पण जोइये छीये के, वीतरागना भक्तो तो, तमना अदृश्य रूप ज्ञानने पण, संकेतित अक्षरोथी, तृक्षना पत्रां उपर, अथवा कागलो उपर, अथवा ताम्रादिक धातु उपर, अथवा शिलाओ उपर, स्थापना निक्षेप रूपे स्थापना करी, अनेक प्रकारना संकटोमांथी बचावी, आपणा प्राणथी पण वधारेज रक्षा करता आल्या छे. अने आने पण ते स्थापनारूपे थयेला अक्षरोना रक्षण माटे, कोन्फरन्सोमां, धर्मात्मा पुरुषो चूमाबूम करी रह्या छे । ते सूत्रना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ स्थापना निक्षेपने अवस्तु, अने उपयोग विनानो छे, एम कहेवावालो कइ पंक्तिमां गणवो ! तेनो विचार वाचकवर्गज करी लेशे ! एटले अमारे बस छे. ॥ इति सूत्र, अने ज्ञानना, स्थापना निक्षेपनो विचार. ॥ अने “ सूत्रना" तेमज " ज्ञानना" द्रव्यनिक्षेपमां, ढूंढकभाइये लखेलां पुस्तक पानां जणाव्यां छे, तेपण एक अंशथी उपादेयज छे. । केमके अनुयोगद्वारमा, साधुना आश्रयपणाथी मुख्यतारूपे, जेवी रीते आवश्यक सूत्रना, द्रव्यनिक्षेपमां, आगम, नो आगमथी, भेदो वर्णन करेला छे. । तेज प्रमाणे सूत्रनो, तेमज ज्ञाननो, द्रव्यनिक्षेप वर्णन करवानो छे. । परंतु नो आगमथी १ जाणग शरीर, २ भविय शरीर, अने त्रिजो तेथी व्यतिरिक्त, एम त्रण भेद करी बताव्या छे, तेथी इहां सूचना, द्रव्यनिक्षेपमां, अक्षरोना समुदायरूप, एकलुं सूत्र पण, ज्ञान- कारण थइ पडे छे. । तेथी एक अंशे, साधुथी व्यतिरिक्तपणे, कारण मानी, द्रव्यनिक्षेपमा, पुस्तक पानां बतावेलां छे. । परंतु मुख्यतारूपे विशेषपणे, ज्ञानकारण तो, साधुए मुखे करेला उपयोग विनाना सूत्रना पाठनेज, द्रव्यनिक्षेपमा वर्णन करेलो छे. । ते अनुयोगद्वारना सूत्रपाठथी स्पष्टपणे समजी सकाशे. ॥ ॥ इति सत्र अने ज्ञानना द्रव्यनिक्षेपनो विचारः ॥ ॥ अरे देवानां प्रिय ! सिद्धांतनी आशातना करतां, महा पाप लागे एटटुं तो जैनोनां बालको पण जाणे छे. । तो पछी ते प्रथमना त्रण निक्षेपोने, अवस्तु, अने उपयोग विनाना छे, एम लखी, आ स्थापनानिक्षेप, अने द्रव्यनिक्षेपना, विषयभूत जैन सिद्धांतोने, अ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तु, अने उपयोग विनानां छे, एम आपणी कालमुखी जीव्हाथी केम कही शकाय!॥ ॥ आ चार निक्षेपोना विषयमां, तात्पर्य ए छे के, जे जे पदार्थो उपादेयना स्वरूपवाला छे, ते ते पदार्थोना, चारोनिक्षेपो, आपणी आपणी योग्यता प्रमाणे, मुख्यतारूपे कारण थइ, आ अघोर संसारना महा भयानक मार्गमां, भव्य पुरुषोने, मोक्ष जता शुधी, सहायकरूप, वळावा तरीकेज समजवाना छे. ।। ॥जेमके वीतरागना नामादिक निक्षेपो, तेमज सिद्धांतना, आचार्यादिक साधुपद शुधीना, पोषधना, सामायिकना, इत्यादिक जे जे सिद्धांतकारोए भव्यपुरुषोना हितना माटे, आदर करवाने बतावेली वस्तुओ छे, ते सर्वेना चार चार निक्षेपो, योग्यता प्रमाणे, वीतरागना भक्तोने तो, अवश्य आदरणीय स्वरूपनाज छे. । परंतु अवस्त, अने उपयोग विनाना कही, अवज्ञा करीने फेंकी देवाना नथी. ॥ ॥ “ उदाहरण" ए छे के, “ सामायिक " आ एक नाम, अनेक गुणरूप वस्तुनुं छे. । जेमके १ सम्यक सामायिक, २ श्रुत सामायिक, ३ सर्व विरति सामायिक, ४ देश विरति सामायिक, आ चार प्रकारना सामायिकनो विचार, नयोना प्रपंचथी, तेनां पात्र प्रमाणे, अनेक प्रकारे, सिद्धांतकारोए करेलो छे. । तेना निक्षेपो, सूत्र, अने साधुनाज, आधारथी मुख्यतारूपे करीने बतावेला छे. ते प्रमाणे देशविरति सामायिकरूप क्रियाना आधारभूत, श्रावको पण छे. । तेथी देशविरति सामायिकना चार निक्षेपो, श्रावकना आधारथी पण करीने बतावीये छीए. ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९ | ॥ हवे जुवो के - न्याय नीतिना चलनथी, अंतःकरणनी शुद्धीने प्राप्त थयेला शुद्ध श्रावकने, जे वे घडीना काल सुधी, समता भावमां लीन थवं, तेवा भाव गुणरूप वस्तुनुं नाम, सिद्धांतकारोए, “सामायिक " ( अर्थान देशविरतिरूप ) आपलं छे. तेथी ते समतारूप भाव गुण वस्तुमां, अथवा छ आवश्यकना एक विभागरूप " अध्ययनमां" आ " सामायिक " नामनो निक्षेप करी, ते वस्तु जणावेली छे। अने सामायिक नामना उच्चारण मात्रथी पण, जैन सिद्धांतना संकेतने जाणवावाळा पुरुषो तो, ते समताभाव गुणरूप वस्तुनुंज नाम समजे छे, अथवा सामायिक नामना अध्ययननुं नाम समजे छे, तेथी ते “ समता भाव गुण वस्तुनो " अथवा " सामायिक अध्ययननो, " सामायिक ए नामनिक्षेप थयो समजवो. || जो इहां श्रावको आश्रय लीधा वगर, अध्ययनरूप वस्तुने सामायिक कहे तो, अचेतनरूप वस्तुनो नाम निक्षेप थयो समजवो. । अने जो पथरणा, घडी, चरवलो, मुहपत्ति ना साधन विना, केवल समता भावमां लीन थयेला, श्रावकनी विवक्षाने ग्रहण करी, सामायिकरूपथी कहे तो ते, चेतनरूप वस्तुमां “ सामायिक " नामनो निक्षेप थयो समजवो. । अने पथरणादिक सर्व सामायिकना कारणानी विवक्षाने साथमां ग्रहण करी, श्रावकने सामायिक वाळो कहेतो, चेतन अचेतनरूप वस्तुमां, " सामायिक "" नामनो निक्षेप कहेवाय. ॥ आ वधुं विशेष अवशेषपणे कहेवामां मात्र नयोनीज वि. चित्रता समजवानी छे. ॥ जेवी रीते छ अध्ययनना समुदायरूप, आवश्यक क्रियारूप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० बस्तुना, तेमज सूत्ररूप समुच्चय वस्तुना, नामादिक चार निक्षेप करवाना कह्या छे, तेवीज रीते तेना एकेक विभागरूप, अध्ययन, उद्देशादिकना पण, चार चार निक्षेप, भिन्नभिन्नपणे पण, करीने बतावेला छे. । ते प्रमाणे, अमोए पण, आ अध्ययन रूप एक अंशना, तेमज श्रावकना आश्रयपणाथी, नामनिक्षेप करीने बतावेलो छे. १॥ इति देशविरतिरूप सामायिकना नामनिक्षेपन स्वरूप ॥ - - हवे जुवो एज सामायिकरूप वस्तुनो, बीजो स्था. पना निक्षेप ॥ काष्टादिक दश प्रकारथी, स्थापना करवानी कहीने, “एगोवा अणेगोवा " एम सूत्रमा कहेलुं छे. । तेथी त आवश्यकना स्थापना निक्षेपमां, सूत्ररूपनी ,तेमज तेना आश्रयभूत, एक, अनेक, साधुनी पण, स्थापना करवानु कही वतावेलुं छे. । अने ढूंढनी पार्वतीए पण सत्यार्थमा पृष्ट. ४ मां-समज्या वगर, हाथ जोडे हुये, ध्यान लगाया हुवा, ना स्वरूपथी लखीनेज बतावे छे. । तेथी अहीं सामायिकना, स्थापना निक्षेपमा पण, सामायिकना अध्ययनरूपनो, अने तेना आश्रयभूत, एक अनेक श्रावकनो पण, स्थापना निक्षेप, करी शकाय छे. । तेथी सामायिक रूप अध्ययनना, अक्षरो, स्थापना निक्षेपना विषयभुत समजवा. । अथवा सामायिकना स्वरूपमा बेठेला एक अनेक श्रावकनी आकृति, ( मूर्ति ) स्वरूपने, सामायिकनो, स्थापना निक्षेप समजवो. २ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १२१ इति देशविरतिरूप सामायिकना २ स्थापनानिक्षे. पर्नु स्वरूप ॥ ॥ हवे देशविरति सामायिकना, त्रिजा द्रव्यनिक्षेपर्ने, स्वरूप लखीने बतावीये छीये ॥ ॥जेवी रीते ३ द्रव्य आवश्यकने, १ आगम, २ नो आगमना भेदथी, सूत्रना आधारभूत साधुना आश्रयने लइ, वर्णन करीने बतावेलो छे, तेज प्रमाणे अहिं, सामायिक मूत्रना पाठनो उच्चारण करवावाला, श्रावकने पण, द्रव्य सामायिकना लेखामां गणबानो छे.॥ ॥'जेमके 'कोइ न्याय नीतिना चलनथी, अंतःकरणनी शुद्धीबालो श्रावक, सामायिक सूत्रनो पाठ, शुद्धपणे अस्खलित, उच्चारण करी रह्यो छे, परंतु तेनो उपयोग, ते मूत्र पाठना अर्थमां नहीं होवाथी, तेना पाठना उच्चारण मात्रने, १ आगमथी द्रव्य सामायिक रूपे समजवो. । कारणके जद्यपि ते सामायिकसूचना पाठने भणवावालो श्रावक, तेना अर्थने परिपूर्ण पणे जाणे छे, परंतु ते अवसर उपर, ते सूत्रना अर्थमां, तेनो उपयोग नहीं होवाथी, अबस्तु रूपे गणी काढेलो छे. । त्यां एवो पाठ छे के " अणुवयोगो दव मितिकट्ट " एनो अर्थ ए छे के-सूत्र पाठना अर्थमां, जे वखते भणवावालानो उपयोग ना होय, ते वखते ते सूत्र द्रव्य स्वरूपर्ने छ। ॥आ जे मत छे ते, 'शब्दादिक' त्रण नयोनो मत छे. १ तेथी त्यां सात नयोनी मान्यता, अवतरण करीने बतायुं छे, ते प्रमाणे आ द्रव्य सामायिकन। करवावाला साथे पण, घटावी लेबु.। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ । जेमके १ नैगम नयनी मान्यता ए छे के-एक श्रावक, सामायिकना उपयोग विनानो होय तो, एकज द्रव्य सामायिक वाळो कहे. । वे श्रावक उपयोग विनाना होय तो, वे द्रव्य सामायिकवाला कहे. । अने त्रण उपयाग विनाना होय तो, त्रण कहे. । एम जेटला श्रावको, उपयोग विनाना होय, ते बधाओने, जुदा जुदा, द्रव्य सामायिकनाज लेखामां गणी कहाडे. । ए 'नैगम नयनी' मान्यतानो विचार कौंने बताव्योः ॥ ॥ हवे बीजा २ व्यवहार नयनी मान्यता पण, श्री अनुयोग द्वारमां, एज प्रमाणे बतावी छ. । ताथाच पाठः “ एव मेव ववहार स्सवि” अर्थः 'व्यवहार नयनी' मान्यता पण, नैगम नयना जेवीज समजवी २ ॥ ॥ संग्रह नयना मते,-एक श्रावक, उपयोग विनानो होय तो, एकज द्रव्य सामायिक वालो कहे. । अने घणा श्रावको, उपयोग विनाना होय तो, घणा द्रव्य सामायिकवाला कहे. ! ए 'संग्रह नयनो' मत बताव्योः । ३ । ॥ अने ४ ऋजु सूत्रना मते-एकज उपयोग विनाना श्रावकने, एकज सामायिक छे, एम कहे पण घणा सामायिक छ एम न कहे. । ए प्रमाणे 'ऋज सूत्र नयनी' मान्यता छ ।॥ ४ ॥ ॥ आ सामायिकना द्रव्य निक्षेपाना विषयमां, १ आगमना भेदथी, प्रथमनी जे द्रव्यार्थिक चार नयो छे, तेनी जेवी २ मान्यता हती, ते प्रमाणे लखीने बतावी छे ।। ॥ हवे जे उपरनी " शब्दादिक " त्रण पर्यायार्थिक नयो छे, तेनो एवो मत छे के-पेला क्या अर्थगुन्य, उपयोग विनाना श्रावको, मामायिक मुत्रनो पाठ, शुद्ध उच्चारण पूर्वक भणी रह्या छे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ तो पण, उपयोग विनाना सामायिक सूत्रनो पाठ भणवावालाना, 66 सामायिकने " अवस्तु वरीनेज माने छे । त्यां एवो पाठ छे के. ॥ ति एहं शद नयागं, जाण ए, अणुव उत्ते " अवथ्थु " ॥ || आ सूत्रनो अर्थ ए छे के मुत्रना अर्थना जाण छे, पण, भणती वखते, उपयोग ना होय तो ते शब्दादिक ऋण नयो, अवस्तु करीने माने छे । कारणकं " शब्दादिक गन्यो " द्रव्य स्वरूपन, मान, आपतीज नथी. ॥ 66 || आ विषयने समज्या वगर, सत्यार्थना पृष्ट. ६ मां-ढूंढनीए, एम लख्युं जे इस द्रव्य आवश्यक उपर, सात नय उतारी है, जिसमें तीन सत्य नय कही है. । एम लखीने छेवट पृष्टना अंतमां लख्युं जे गुणविना वस्तुको अवस्तु प्रगट करती है ॥ || वाडीलाल पण- आज विषयना पाठने समज्या वगर, ऋण निक्षेप उपयोग विनाना छे, एम पृष्ट ६४ मां सर्वथा प्रकारथी लखीने बताव्या. || अने पृष्ट ७८ मां, शब्दादिक ऋण नयोनी मान्यताथी, अवस्तुरूपे लखीने बताव्या. ।। आ विषयनो विशेष खुलास कोई बीजा प्रसंगे जोइशुं ॥ अहीं सुधी १ आगम थी " द्रव्य सामायिकनुं " स्वरूप जाणवुं. ।। ॥ हवे २ नो आगमथी, द्रव्य सामायिकनुं स्वरूप लखीने बतावये छीये. ॥ ॥ नो आगमथी द्रव्य सामायिक ऋण प्रकारनुं छे. । १ जाणग सरीर, २ भविय सरीर, ३ जाणग भविय वतिरिक्तं । एम ऋण भेद छे. ॥ " हवे एनो तात्पर्य " ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ - ॥१ जाणग सरीर-एटले न्यायनीतिना चलनथी, अंतःकरण शुद्ध थया पछी, जे शुद्ध सामायिकना अभ्यासवालो श्रावक हतो, तेनुं मृतक शरीर १ ॥ ॥२ भविय सरीर-एटले न्यायनातिना चलनथी, अंतःकरणनी शुद्धि करीने, भविष्यकालमा “ सामायिकना" अभ्यास करवावाला, श्रावकना उत्तम बालकनुं शरीर २॥ । __३ व्यतिरिक्त- एटले “ पत्तय पाध्यय लिहि" अर्थवृक्षनां पत्रां उपर, अथवा कागळ उपर, लखेटु जे सामायिक नामर्नु अध्ययन ते, आ त्रणे प्रकारनु जे सामायिक ते “नो आगमथी" द्रव्य सामायिकना, स्वरूपथी जाणवू ।। ॥ इति सामायिकना त्रिजा द्रव्य निक्षेपर्नु स्वरूप । ॥ हवे नवा सामायिकना चौथा " भावनिक्षेप ” नुं स्वरूप. ॥ .? आगम अने २ नो आगमना भेदथी- द्रव्यानिक्षेपमां, आगमना स्वरूपथी वर्णन करेला, उपयोग विनानो श्रावक, जेवखते उपयोगनाघरमां आव्यो, ते वखते तेने ? आगमथी 'भावसामायिकना' स्वरूपवाळो जाणवो. १॥ ॥ अने जे श्रावक, सामान्यपणाथी, व्रतादिक नियमोमां, आपणा आत्माने तत्पर राखी, त्रसादिक जीवो, हित करवामां तत्पर रहेलो छे, तेवा श्रावकनुं वर्तन ते, २ नो आगमथी भावसामायिकनुं स्वरूप जाणवू. ॥ आ सामायिकना विषयमां, अमारा लेखनुं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ स्वरूप, श्री अनुयोगद्वार सूत्रछापानुं छे तेमां, प्रथम पृष्ट. ६१० नी, टीकामां, चार प्रकारना सामायिकतुं स्वरूप जोया पछी. । पृष्ट. . ६०३ मां, सामायिकना चार निक्षेपो जोवा, पछी यावत् शब्दथी, आवश्यकनी करेली भलामणना पाठनी साथे, मेलान करवावाला विवेकी पुरुषने, सहजपणे समजाइ आवश. ! अगर गुरु परंपरा र. हितने, पत्तो नही लागतो, तेमां अमारो दोष न कहाडतां, पुछवावालाने, खुलाशो पण बनतो करीआपीशु. ॥ अहीं एकला श्रावकने, विवक्षाथी ग्रहण करेलो छे. ॥ ॥इति देशविरतिरूप सामायिकना, चोथा भाव निक्षेपर्नु स्वरूप. ॥ अही सुधी सामान्य प्रकारथी, सामायिकना, चारनिक्षेपर्नु वर्णन, अमारा जाणवा प्रमाणे करी बताव्यु छ. ।। ॥ हवे अहियां 'आ चार निक्षेपोना विषयमां, गाढपणे संकित थयेलो, एक श्रावक, तर्क करवा उटे छे । तेना तर्कनुं समाधान करी बतावीये छीए.॥ ॥ तर्क-आवश्यकना, तेमन सामायिकना, नामादिक चार निक्षेपो, तमोए अनुयोगद्वार मूत्रना पाठथी करी बताव्या, ते प्रमाणे अमो मान्य करीये छीए.। अने तेज सूत्रना पाठ मुजब, “लोकोनी" अवश्य क्रियाना, नेमज “परि व्राजकादिक" साधुओनी अवश्य कियाना, नामादिक निक्षेपो पण, तेज सूचना पाठथी करी शकाय छ, जुवो के लोकोनी अवश्य क्रियाना पुस्तकहूँ, तेमज परिप्राजक साधुओनी अवश्य क्रियाना पुस्तकनु, नाम राखी लीधुं. आवश्यक, तो ते सूत्रनो पण अजीवादिक वस्तुमां, एज अनुयोगद्वार मुत्रना पाठथी, १ नामनिक्षेप करी सकाशे, १॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अने ते लोकिकादिक सूत्रोमां, गोठवेला अक्षगेनी, अथवा 'लोकिक क्रियामा रहेला लोकोनी, अने परिव्राजकनी क्रियामा रहेला परित्राजकोनी, 'मूर्तियो' करावेली होय तो, तेमनी अवश्य क्रियानो,२ स्थापनानिक्षेप,पण एज सिद्धांतना पाठयी करी शकाय छे.२।। ॥ अने ते लोकिक आवश्यकनो, तेमज ते परिव्राजक आवश्यकनो, ३ ' द्रव्यनिक्षेप' पण एज सूत्रना पाठथी तेमना पुस्तकोमा करी शकाय छे, ते वास्ते ढूंढनी पावतीए, अने ढूंढक वाडीलाले, प्रथमना त्रण निक्षेप, अवस्तु अने उपयोग विना छ एम जे कयुं ते खोट कां ! मने तो ते ढूंढनीनु, अने ढूंढकर्नु,कहेवू योग्य लागे छे।। ॥ " इति पूर्वपक्ष" ॥ ॥ हवे ते श्रावकने उत्तर आपीये छीए. ॥ || अरे भाइ श्रावक-गणधर महाराजाओना, महागंभीर आशयथी, सूचनारूपे गूंथायेला, समुद्ररूप सूत्रना पाठने, तमो गुरुविनाना भणीने, तेमना आशयने समज्यावगर ! जेम कोइ पुरुष, समुद्रना भ्रमचक्रतुं स्थान जाण्यावगर, तेना भ्रमचक्रमां पडी, समुदना तळीये जइ बेसे, तेम तमो आ चार निक्षेपोना विषयमां, अधोगतिना विचारने प्राप्त थयेलाछो, अमो आटलोबधो खुलासो करता आव्या तोपण तमारी शंका दुर ना थइ, ते अमोने पण घj आश्चर्य जेवू लागे छे, खेर फरीथी पण तमारी शंकाना उद्धारमाटे, बे लीटीओ वधारे लखी बतावीये छे, ते सिद्धांतना पाठनी साथे मेळवीने विचारीजोशो.॥ ॥ आ अनुयोगद्वार सूत्र, गूंथन करतां, गणधर महाराजाओए! सर्व वस्तुना चार निक्षेपोना विषयने, मनमां धारणकरी, प्रथम जे अमारे नित्य उपादेयरूप, छ आवश्यकनी क्रिया छे, तेना उद्देशथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ ज, बींजी क्रियाओ विगेरे पदार्थोंना, चार चार निक्षेपो करवानी, सूचना करली छे, परंतु अमारी नित्य क्रियारूप उपादेय आ वश्यकनी क्रियाथी, जूदा स्वरूपथीज फेंकी दाघेली छे, जेमके समुद्र, अपणी तरंगोनी छालमारी, कचराने अलग निकालतो जाय ? तेम ते रूपनी, अथवा ज्ञेयरूपनी, क्रियाओने काढीनांखेली ले, तेथी अमारी उपादेयरूप, छ आवश्यकनी नित्य क्रियाना, चार निक्षेपमां, भेलसेल करीसकायज नही. ।। अने ते वीजी क्रियाओना भेलसेलथी, आ आवश्यकना निक्षेपो कर्या छे एम पण कोइ दिन कही सकायज नहीं. हां विशेषमां एटल ले के. जेने ते बीजी क्रियाओना, चार निक्षेपो करवा होय, तेने एज सूत्रना पाठने लड़. जुदा रूपथी खुशीथी करे, तेनी मनाइ पण नथी. || 7 ॥ हवे जूबो के तेछ आवश्यकनो, १ नामनिक्षेप, अजीवादिक वस्तुमा करवानो को छे, तेवीरीते अमोए, सामायिक सूत्रनो नामनिक्षेप, पुस्तक, अने श्रावकना, आश्रयथी करीने बताव्यो छे, तेजप्रमाणे ते आवश्यक सूत्रनो पण, पुस्तक, अने साधुना, आश्रयधीज सिद्धांतकारे करीने बतावेलो ले, ॥ " || अने २ स्थापना निक्षेप पण, ते आवश्यक सूत्रनो, अक्षरोना आश्रयथी, अने साधुनी मूर्तिरूपथीज, करीने बतावेलो छे, ॥ || अने ३ द्रव्य निक्षेप पण, साधुना आश्रय पणार्थीज वर्णन करवा सिद्धांतकारे प्रवृत्ति करेली छे, परंतु तेमां आगम, नो आगमना, भेदो करतां, बीजी 'लोकिक,' अने 'कुप्रावचनीक, ' क्रियानो 'नो' आगमना, भेदयां प्रवेश थवानो संभवथवानो हतो, तेथी तेने उपादेय आवश्यक क्रियाथी, व्यतिरिक्तपणे 'नो' शब्दथी, सर्वथा मकारी निषेधी, जुदी फेकी दड़, त्रिजो 'लोकोत्तरना ' लोकोत्तरना नामधी अंश पणे उपादेय पणे राखी लीधो छे. ३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...|| तेज प्रमाणे, भाव निक्षेपना विषयमा पण, ते 'लोकिक,' अने 'कुपा वचनिक,' क्रियानो प्रवेश थवानो संभव आवतो हतो, तेने पण 'नो' शब्दथी. सर्वथा प्रकारथी निषेधी त्रिजा 'लोकोत्तरिक' नामना भेदमां जेटले अंशे तेमां उपादेयता अमारी हती तेटलीनेज अंगीकार करी लीधी छे. ४ ॥ ॥ वास्ते लकडेका बजारमां, कपडेका बजार, कोइ दिन पण घुसी सके तेम नी । अने उपादेय वस्तुना, चारो निक्षेप उपादेय रूपेज छे, पण त्यागवा लायक नथी, गुरुविनाना तमो, ते गणधर महाराजाओना, आशयने समज्या वगर, अडदने मग भेगा भइडी काहडो छो, जरा लक्ष दईने सिद्धांतना पाठने जोशो तो, स्पष्ट पणे समजाइ आवसे. अमो क्यां मुधी कागल चित्री शं. ॥ ॥ हजु पण जो तमो, आ विषयने, यथार्थ नही समज्या हसो तो, एक शंका उप्तन्न थवानो संभव रहे छे. । ते पण तमारा हितना माटे लखी बता छ.। ॥ते शंका ए छे के, निक्षेप तो करवा मांडया हता अमारी 'उपादेय रूप छ आवश्यकनी नित्य क्रियाना, तो पछी " नाम निक्षेप " जीव अजीवादिकमां, एकज वस्तुना जुदा जुदा स्थानमां, केवी रीते करीने बताव्या. ।। ॥ अने तेज आवश्यक क्रियानो, “स्थापनानिक्षेप " दश जगो उपर करवानू का, आमां केवी रीते समजबुं जे, ते आवश्यकरूप, एकन क्रियाना निक्षेपो थया. ॥ ॥ जैन सिद्धांतथी अजाण पुरुषोने आ शंका उत्पन्न थवानो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२९ संभव रहे छे. । परंतु ते निक्षेपना स्वरूपने पुक्तपणे नही समजवाथीज थाय छे, जुवो के सामायिकना द्रव्यनिक्षेपमां, नयोनी मान्यता प्रमाणे, सिद्धांतना पाठ मुजब आ विषयने अमो बतावी गया छीये तोपण तमारी आ शंका दूर थवाना माटे, हुं तमोने एकज वाक्यनुं दोरडु, तमारा मनरूपी हाथने लंबावो तो, परडावी दउर्छ, तेनो आश्रय लइ चाल्या जशो तो, घणा भागे मोटी शंका तो नहीज रहे. ॥ ते वाक्य ए छे के-जे वस्तुने उद्देशीने, अर्थात् मनमां धारण करीने, निक्षेपो करवाना छे, ते वस्तुनो, जेमांथी बोध मळे, ते ते निक्षेपो तेज वस्तुना छे, एम समजवं. ॥ जेमके ॥ नाम मात्रनो उच्चारण करवाथी, जे वस्तुनो बोध जे नाम आपे, ते नाम ते वस्तुनो नामनिक्षेप, १ ॥ ॥ आकृति अनाकृतिरूपें, अर्थात् सद्भाव, असदभाव, स्थापनारूपे थइ, कल्पेली वस्तुना बोधने करावे, चाहे तो ते अनेक वस्तुमां दाखल थई होय तोपण, तेज वस्तुनो ते स्थापनानिक्षेप थयो, समजवो. २ ॥ जो ते कल्पेली वस्तुनु, पूर्वकाळमां अथवा भविष्यकाळमां, कारणरूप छतां, तेज वस्तुनो बोध करावी आपे तो ते, द्रव्यनिक्षेपना विषय रूप पदार्थ समनवो ॥ ३ ॥ ॥ अने ते वस्तु ज्यारे साक्षातपणे, प्रगट रूपे बोध आपे, त्यारे तेने, भावनिक्षेप रूपे समजवो. ४ ॥ ॥ विशेष एज के, जे वस्तुना बोधनी अमो चाहना करी रह्या छीये, ते वस्तुनो बोध अमोने थवो जोइये. ॥ ॥ “ उदाहरण " जेमके-ऋषभादिक चोवीश तीर्थक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोनी, मनमा कल्पना लावी, नाम निक्षेपना विषयभूत, ऋषभ, अजितादि, नामोनो उच्चारण करवा मात्रथी पण, जैन मतनी श्रद्धावाला भक्तोने तो, ते परम पूज्योनो बोध थइ, तेमनी रोमराजीने विकश्वर करसेने करसेज, वास्ते ते तीर्थकरोना नामनो, उच्चारण करवा मात्रथी पण तेमनोज बोध थयो समजवो, ॥ एनाम निक्षेपर्नु उदाहरण १ ॥ ॥ हवे काष्टादिक गमे ते प्रकारमां, तीर्थकरोनी ध्यानारूढ मूर्ति देखवाथी पण, तीर्थकरोना भक्त जनोने तो तेमनोज बोध आपनारी छे तेथी, तेज वस्तुनो स्थापना निक्षेप थयो समजवो ए बीजा स्थापना निक्षेपर्नु उदाहरण समजवू २॥ ॥ हवे तीर्थकरोना, द्रव्य निक्षेपमुं, उदाहरण जूवोके,-तीर्थकरो मोक्ष सिधाव्या छे, अने तेमनुं शरीर मात्र पडेलुं छे, तोपण भव्य पुरुषोने, ते तीर्थकरोना विरहथी, तेमना देह मात्रनुं दर्शन थतां पण भयानक शोकने प्राप्त करवावालं थइ पडे छे. ।। अने भविष्यमां, तीर्थकर पढ़ने प्राप्त थवावाला तीर्थकरोनो, जन्म थतांज, त्रण लोकमां प्रकाश, अने देवंद्रादिक राजा प्रनामां, अद्वैत आनंद प्राप्त करवावाटुं, अने ते तीर्थकर पदनाज वोधने आपवावालुं अनेक गुण स्वरूप शरीरज छे. । ए द्रव्य निक्षेपना विषयथी बोध प्राप्त थवानुं उदाहरण ३ ॥ अने ज्यारे समव सरण उपर बीराजी, भव्य पुरुषोने देशना देता होय त्यारे ते, तीर्थंकरोतुं शरीर भाव निक्षेपना विषयभूतनुंज छे, आ भाव निक्षेपना विषयमां तो कांइ वधारे केहवानी पण जरुरज नथी. ४ ॥ । आमां पण विशेष समजवान ए छे के, जे भव्य पुरुषोना हृदयमां, सम्यकपणानुं बीज पडी गयुं हसे. अथवा तीर्थकर भग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ वाननी भक्तिनो, अंकुरो उत्पन्न थयो हसे, ते पुरुषोज तेमना चारो निक्षेप उपर, प्रीति धारण करी, जेवी रीते आदरपणाथी योग्य रीते मान आपशे, ते प्रमाणे वीजाथी नहि आपी सकाय, तेमां तो तेमनी, संसारनी बहुलतानुंज, कारण समवानुं छे. ॥ ॥ आ चार निक्षेपोर्नु स्वरूप, अमारा गणधर महा पुरुषोए, चार लीटीना लेख मात्रमां, कोइ एवा गूढ विषयथी गूंथन करीने बताव्यु छे के, तेना स्वरूपथी सर्वथा प्रकारथी अजाण, आखी दुनीया होवा छतां पण, तेमनाज वचननु, सामान्य प्रकारथी अनुकरण करीनेज वर्ती रही छे. एम अमो प्रत्यक्षपणे जोइ रह्या छीये. जूवो के,-१ शिवजीना भक्तो, शिवजीने, अपणा उपादेयरूपे मानी, तेमना चारो निक्षेपने, मान आपी रह्या छे १ ।। तेज प्रमाणे कृष्नना भक्तो, कृष्नना, चारो निक्षेपने, मान आपी रह्या छे. २॥ एवो पुरुष, आ दुनीयामां, कयो बाकी रहेलो छ के, जेने आपनी उपादेय वस्तुना, चारो निक्षेपने, घटतुं मान आपेलं नथी ! तमो कहेशो के, मूर्तिना उथ्यापक, १ मुसलमान, २ क्रिश्चन, ३ दयानंदवालाओए, मूर्त्तिने, मान आपेलं नथी. । ते पण तमारु कहेवू जुठज छे. । केमके परमार्थने समज्या वगर, तेओए पण, मुखेथी मात्र जुठो पोकारज करेलो छे,कारण के, तेओए पण,जे वस्तुने आपना उपादेयरूपे मानी छे, तेना चारो निक्षेपाने आपणी आपणी योग्यता प्रमाणे, मानज आपेटु छ. ।।। जुवो के, मुसलमानो पण, अल्लाना नामने जपे छे, ते अल्लाना, नाम निक्षेपनोज विषय छे. १ ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने मसीतो बनावी, एक गोखना आकारमां, असदभावनी स्थापना रूपथी पण, तेनी सामा बेसीनेज, आपणी बंदगी करे छे.। ए जैन सिद्धांतना अक्षरोथी, स्थापना निक्षेपनो विषय, स्पष्टपणे समजाइ आवे छे. २॥ ___अने ते अल्ला विगरे आपना उपादेय पुरुषोनी, पूर्व कालनी अने, अपर कालनी, अवस्थाना स्वरूपनो, मनमा ख्याल करी, तेमना दुःखथी दुःखी, अने तेमना मुखथी आल्हादित थता पण, अमो प्रत्यक्षपणे जोइ रह्या छीए, ते द्रव्य निक्षेपना स्वरूपनोज विषय छे. ॥ ___ साक्षात्पणे ते मुसलमानोना उपादेयने, उपादेय समजे तेमां तो कांइ विशेष कहेवानी जरुरज नथी. ४ ॥ तमो हवे क्रिश्चन जणावशो, तो ते पण तेना उपादेयतुं, नाम स्मरण करे छे. १ ॥ ___ अने तेओ ते क्रिश्चननी, मूर्ति पण, उभी करीने, आदर सत्कारज करे छे. २ ॥ अने तेमना भक्तो क्रिश्चननी, सुख दुःख रूप, पूर्वाऽपर अवस्थाना, स्मरण मात्रथी, दुःखी मुखी पण थाय छे. ३ ।। तो ते क्रिश्चनने, साक्षातपणे आदर करे तेमां तो कांइ नवाइ जेवज नथी. ४॥ हवे तमो बतावशो. आजकालनो मुंडित दयानंद, तेना भक्तो पण, तेना चारो निक्षेपोने मानज आपता जोइये छीए. । जुवो के दयानंदना, नाम मात्रने, उच्चारण करी, अवज्ञा करो, केवा चीडाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ जाय ले । तथी तेना नाम निक्षेपनाज आदर प्रदर्शित करी बतावे छे. १ ॥ अने एज दयानंदनी, हजारो छबीयो, छपावी, तेना भक्तोए, आपणा घरोमां योग्य स्थानेज राखी छे. ते पण स्थापना निक्षेपनोज विषय छे. ॥ २ ॥ अने ज्यारे कोइ दयानंदनी पूर्वाऽपर अवस्थाने वखोडी कहाडे छे त्यारे पण तेना भक्तो जोसमां आवी जताज जोइये छीओ. ते तेना द्रव्य निक्षेपनोज विषय छे. ३ ॥ अने साक्षात् जे भावनिक्षेपना विषयभूत दयानंद छे तेनी हिमायत तेना भक्तो करे तेमां तो कांइ नवाइ जेवुंज नथी. ४ ॥ || अमोए बतावेला उदाहरणोथी, बोध लेवानो ए छे के, निक्षेपोना स्वरूपने समज्या वगरनी दुनिया पण, आपणी आपणी उपादेय वस्तुना, चारो निक्षेपोने, योग्यता प्रमाणे मानज आपी रही छे । अने अवज्ञा करवावाला पुरुषोनी तरफ भारी तिरस्कारनी नजरथी जूवे छे; | तो पछी गणधरादि महापुरुषोना कहेवाथी, चारोनिक्षेपना स्वरूपने, यथायोग्य जाणवावाला, अमारा जैनोथी, अमारा परमपूज्य, परम उपादेय, तीर्थंकरोना, चारे निक्षेपोमांथी एक पण निक्षेपनी अवज्ञा अमाराथी केम करी सकाशे ? || ॥ आतो पेली ढूंढनी पार्वतीए, तदन मूढताने प्राप्त थयेला आपणा सेवकोने, पुर्णभद्रादिक यक्षोनी मूर्त्तिना पूजनथी, धन, दोलत, पुत्रादिकनो, लाभ थवानुं बतावी, महामिध्यात्वने धारण करी, सर्व आचार्योंने निंदीकाहडी, पंडितानीपणाना गर्वमां गरकाव थइ, तीर्थकरोना पण त्रण निक्षेप निरर्थक, अने उपयोग विना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ना, लखीने बताया । एटले बुट, इस्टाकिन अने चस्मांना चढाववावाला ढूंढक वाडीलालना गर्वनुं तो पुछवंज शु! तेने तो थइ गयेला सर्व आचार्योंने, भस्म ग्रहना भ्रमित लखी बताव्या. । आ बन्ने तत्व विमुखोए, जैनमार्गनी शैलीथी विपरीतपणे, तदन जुठनो पुंज भेगो करी, एकेको थोथो पोथो बहार पाडी, अमारा ढूंढक श्रावकोनी भोळी प्रजाने, तीर्थंकर भगवाननां नाम स्मरणादिक पण निरर्थक, अने उपयोग विनानां बतावी, तेमनी किंचित् मात्रनी भक्तिथी पण, दूर करवाना इरादाथी, अने तेमना धर्म धननो, सर्वथा प्रकारथी नाश करावी, आ महा भयानक अघोर संसारमा, रखडावी मारवानेज तैयार थयेलां छे. । एम अमारा दिशावलोकन लेख मात्रना स्वरूपथी सुज्ञ पुरुषोने स्पष्टपणे समजाइ आवशे. ॥ " इति श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वर लघु शिष्येनाऽमर मुनिना निक्षेप विषयानां किंचित् मात्र विचारः संकलितः || ॥ ढूंढक, अने मूर्तिपूजकनो, निक्षेप विषये, संवाद ॥ ॥ ढूंढक - वस्तुना चार निक्षेप तो अमो मानीये छीओ पण 'त्रणनिक्षेप' अवस्तु अने उपयोग विनाना छे एम मानीये, एटले निरर्थक मानीये छी || ॥ मूर्त्तिपूजक- आचार्य, उपाध्याय, अने साधुनां, जे 'नवकारमा ' नाम जपीये छीये तेना मूलनां, नाम, कयां ! केमके बीजी वस्तुमां, आचार्यादिकनां, नाम आपीये ते तो, नामनिक्षेप, कहेवाय, एवं इंढक वाडीलाले, अने ढूंढनी पार्वतीए, लखीने बताव्यं हृतं । वास्ते जेवी रीते तीर्थकरोनां मल नाम खोळीने काव्यां, तेवीज रीते आचार्य, उपाध्याय, अने साधूनां पण, मूल नाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ तमारा ढूंढ कोए, ढूंडीडीने बताववां जोइये ! तो तमारो नवकार मंत्रनो जाप, खरो गणाय, नही तो ते पण तमारो जाप निरर्थकरूपज निवडशे. । कारण के आजकालना गृहस्थोने, मुंडन करी, आचार्यना स्थानमां (पूज्यपद ), अने सामान्य पुरुषने साधु नाम, आपोछो ते तो नामनिक्षेपज कहेवाशे . ।। - ढूंढक— नहि नहि, ते आजकालना गृहस्थोने, मुंडन करीने जे साधु नाम आपीये छीए, ते पण, असलरूपे, मूल नामज गणीये छीये, पण ' नाम निक्षेप, रूपे गणता नथी, जो अमो नाम निक्षेपरूपे गणता होय तो, अमारो बधो संघ, ते नव दीक्षितने, वंदनाज करे नही, पण अमो तो ते साधुना नामने, भावमांज गणीने, वंदना करीये छीये. ॥ मूर्तिपूजक - अरे भाइ ढूंढक, ते नव दीक्षित पुरुष प्रथम तो गृहस्थज हतो, अने पछी तेणे साधुना नामने धारण कर्य छे, एटलमां भावसाधु ते केवी रीते थइ गयो ! मात्र हाल तो ते पुरुषमां तमो साधुना नामनोज निक्षेप करी वंदना करी रह्या छो, अने साधुपणानो खरो भाव ज्यारे आवशे त्यारेज ते खरो खाधु थशे. ॥ ढूंढक- नही नही अमो तो ते साधु पदना नामने, भावमांज गणीये छीए, तेथी ' नामनिक्षेप ' नथी गणता, जो अमो नव दीक्षित साधुना नामने, ' नामनिक्षेप' गणीये तो, अमाराथी वंदना केम थइ शके, वास्ते ते गृहस्थने, भाव साधुज मानीये छीये, अने पछी तेने वंदनादिक करीये छीये. । एवी रीत आचार्यपदने पण गणीये छीये. ॥ ॥ मूर्त्तिपूजक - देखभाइ ढूंढक, खरेखरु भाव साधुपगु, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ जेने आवी जाय, ते तो कोइदिन जायज नही, पण जे नव दीक्षितने तमो, भाव साधु मानीने वंदना करो छो, तमांथी, घणा एक दीक्षितो तो, छटकी गयेला पण जोवामां आवे छे, तेथी दीक्षाना अवसरमां तेंने खरेखरु भाव साधुपण आवी गयुं हतुं, एम सिद्ध धतुं नथी । वास्ते विचारज करवो पडशे ! अने ते नव दीक्षित साधु ना नामने, साधु पढ़नो नाम निक्षेपज केहवो पडशे ।। ॥ अने नवकारना पदमां जे, आचार्यादिकनी माला फेरवो छोते पण, उत्तम गुणने प्राप्त थइ, जे माहा पुरुषोए, आचार्य पदना नाम निक्षेपने, तेमज आपणामां धारण करेला साधु पदना नाम निक्षेपने, दीपाव्यो छे, तेनाज नामनी माला, ते नवकारना पदमां गण छो, ते सिवाय बीजा कोइ प्रकारनी तमारी सिद्धि थवानी नथी. केमके ते नवकारना पदमा रहेलां, आचार्यादिक साधुपद शुद्धीनां नाम छे, ते कोइ एकज नियमित पुरुषनां नथी, पण अनेक पुरुषो धारण करता आवेला छे, तेथी ते नव दीक्षितमां साधुपदना नामनिक्षेप विनानी, जे कांड तमारी धारणा छे, ते, गुरु ज्ञान विनानीज छे । केमके नवकारमां “ नमो लोए सव्वसा हुणं " अर्थ एछे के - लोकमां जेटला साधु होय तेटला बधाने, अमारो नमस्कार हो !। आथी ए सिद्ध थाय छे के, जेने भाव साधुपण आवी गयुं छे, तेनो नाम निक्षेप पण, अमारे उपादेय रूपेज छे, ॥ ॥ जूबो के जे गृहस्थ. दीक्षा लेवाने आवेलो छे, तेनामां यथार्थ साधुपणा प्राप्त थवानी बुद्धिथी संघनी समक्ष, ते पुरुषमां साधुपदना नामनो, निक्षेपज करीने, वंदना करीये छीए, तेमांथी केटला एक पुरुषो तो साधुना गुणने यथार्थपणे प्राप्त करी ले छे, तो पछी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ उत्तरोत्तर अधिक अधिक पूजाय छे, अने जे भ्रष्ट थाय छे तेने, फरीथी कोइ वंदना पण करतुं नथी, वास्ते आ निक्षेपना विषयमां, सिद्धांतकार- कहे ए छे के, जेना भाव निक्षप उपादेय, तेना चारो निक्षेप उपादेय, अने जेनो भाव निक्षेप उपादेय नथी, तेना त्रण निक्षेप पण उपादेय नथी. ॥ ॥ जूवो के तमोए प्रथम दीक्षा लेवावाला गृहस्थमा, साधुपदनो नामनिक्षेप करी, व्यवहार नयना मते, साधुपणाना भावने अंगीकार करी, वंदना करवा तैयार थया हता. । ज्यारे ते साधुमां व्यवहार मात्रथी पण तमा, साधुनी क्रिया नथी देखता तो, तेने वंदनादिक पण करता नथी, । अने दीक्षा देती वखते, जे साधुपद.. ना नामनो निक्षेप करी, वंदना करी हती ते पण, व्यवहारनयना मतीज करी हती. तो अब विचार करो के, ढूंढनी पार्वतीए, अने ढूंढके, नामादिक त्रण निक्षेप, अवस्तु, अने उपयोग विनाना, लख्या हता ते, योग्य लख्या हता के अयोग्य ! अमो तो भार दइने कही शकीये छीये के, निक्षेप शुं चिज छे, ते, अमारा ढूंढकोने, आज मुधी पण खबर पडेली नथी, तेथी चोफेर गोतांज खाधा करे छ. । हजु पण अमो कहीये छीये के अमारा वे पुस्तकना लेखथी पण तेओ, परंपराना गुरुनो आश्रय लीधा वगर यथार्थपणे निक्षेपोना विषयमां दिशा मात्र, पण अवलोकन करी शकवाना नथी. अने वर्तमान कालमां आपणे, साधुना चारे निक्षेपोने, जे मान आपीये छीये तेमां, व्यवहारनयना मतथी, प्रथपना त्रण निक्षेपोना वर्तनने जोइनेज, मान आपाये छीये. । केमके चोथो भावनिक्षेप जे छे, तेतो कोइ अतिशय ज्ञानी रिना, बीजो कोइ पुरुष जोइ शकतो ज नथी, तो पछी अमारा ढूंढको, शा उपरथी कहे छे के, त्रण निक्षेपो, निरर्थक, अने अवस्तु, अने उपयोग विनाना छे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वळी पण जुवो के, अमारा ढूंढको पण, एम कहे छे के, आपणो आ जीव, ओषा अने मुहपत्तीओ, मेरु पर्वतना ढगला जेटली, ग्रहण करीने छोडी आव्यो, तोपण खरं साधुपणुं आव्या वगर, जीवनो काइ दहाडो वळ्यो नथी. । ____ आ उपरथी विचार करो के, ते जीव साधुपणानी क्रिया, अने साधुपदना नामनिक्षेपने, व्यवहारमात्रथी द्रव्यार्थिक नयनामत प्रमाणे धारण करीने ते वखतना श्रावकोनी पासेथी, वंदनादिक करावी हशे के नही ! अने ते वखतना श्रावकोए पण, व्यवहारनयथी साधुनी क्रिया विगरेनां, आचरण जोइ, ते दीक्षित पुरुषोमां भावसाधुपणानो आरोप करी, ते वखतना श्रावको वंदना करता हशे के नहीं ! तेनो विचार करो! आ लेख लखवानुं अमारु प्रयोजन ए छे के, आज कालना नवदीक्षित पुरुषोमां, साधु पदना नामादिक निक्षेपने, जे मान आपीये छीये ते पण, ते पुरुषोमा साधुनी व्यवहारमात्रनी क्रियाने जोइने, तेमां भावसाधुपणानो, आरोप करीनेज आपीये छीये. ___ तो पछी त्रण निक्षेपने, अवस्तु, अने उपयोग विनाना छे, एम शा हिसाबथी पोकार करो छो ! शुं ! तमो एवो निश्चय करी आपवाने समर्थ छो के, जेने मुख उपर पाटो चहावी, हाथमां बेलना पुछडा जेटलो ओघो पकडी लीयो एटले ते, भाव सावुज थइ गयो! जुवा अनुयोगद्वारना सूत्रने के, १ नाम निक्षेप, २ स्थापनानिक्षेप, अने ३ द्रव्यनिक्षेपना विषयमां, साधुनी हदनुं वर्णन क्यां सुधीनुं छे एटले तमारी नजर उघडशे. ।। ___अने जे आवश्यकना चार निक्षेप कर्या छे, ते सूत्र, अने साधुना, 'उद्देशने, वळगीनेन कर्या छे, अने ते आवश्यक सूत्रना, अ. . मूत्रना आश्रयने अने साधुना आश्रयने, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ ने ते पुरुषोना, प्रथमना त्रण निक्षेपने, उपादेयपणे मानी, योग्यता प्रमाणे आदर पण करी रह्या छे. । वास्ते ते उपादेय वस्तुना त्रण निक्षेप निरर्थक नथी । ए तो पेली ढुंढनीनी, अने ढूंढक वाडीलालनी, मतिज, आ निक्षेपादिकना विचारमां निरर्थकरूपं निवडेली छे. आ अनुयोगद्वार सूत्रनो, विषयज महा गंभीर छे, ते परंपराना गुरु पाथी भण्या वगर, अने टीका भाष्यादिकनो आश्रय लीधा वगर, ढूंढनी, अने ढूंढक, ढूंढी ढूंढीने मरशे तो पण, पत्तो लागवानो नथी । केमके ते अनुयोगद्वार सूत्रमां अमारी उपादेयरूप नित्य क्रियाना, जे चार निक्षेप करवा मांडया छे, ते क्रियाना बोधने आपनारू सूत्र छे, अने प्रगटपणे बोध आपनार साधु छे, तना आश्र यने लइनेज, चार निक्षेपो कयी छे । अने ते वस्तुना चारे निक्षेपो, अमारा जैनोने उपादेय रूपेज छे. ॥ || मात्र विशेष एज छे के, ज्यां सुधी अमो ते आवश्यक क्रियाना, खरा अर्थने प्राप्त करी, तेमां लीन नही थइये, त्यां शुधी, जेवी रीते पूर्वकालमा ओघा अने मुहपत्तिओना, ढगला करता आव्या, तेवी रीते आ वखतना पण ओघा अने मुहपत्तिओ फोगटना भारभूत रूपेज छे, एम सर्व जीवोने ते भाव आवश्यकना पाठथी, बोध लेवानो छे । नहीं के प्रथमना त्रण निक्षेपने, अवस्तु कहीने फेंकी देवाना छे, ॥ ॥ जो तमो ते आवश्यक क्रियाना, त्रण निक्षेपने, सर्वथा प्रकारथी अवस्तु, अने उपयोग विनाना, निरर्थकरूपे, कडेवाने मागता होय तो, प्रथम तमारा ढूंढ़कोने, ओघा अने महपत्ति ओज, फेंकी देवी जोइये. । केमके आवश्यक क्रियाना भाव निक्षेपमां पण, नो आगमना, “ लोकोत्तरिक" नामना भेदमां, उठवा बेसवारूप क्रिया, ओघाना फिराना, विगरे सर्व क्रियान निषेधीने केवळ शुद्ध 46 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम मात्रनेज ग्रहण करी लीधेलो छे, तो पछी सा वास्ते प्रतिक्रमणमां, उठ बेस करी ओघा फेरवांछो ! सिद्धांतकारे तो आगम मात्रना पक्षने ग्रहण करीने तमारी ते क्रियाने पण निषेधी कहाडी छे. । तमो गुरु विनाओने, सिद्धांतोनो अभिप्राय समजवो, घणो कठीन समजुई. । तोपण पेली ढूंढनी, अने ढूंढकने, जूठो गर्व केटलो वधो थयेलो छे के, जाणे, वांए सूत्रोना पारगामी तो आजकालना जन्मला अमोज छीये. बाकी बधा थइ गयेला आचार्यों तो, भ्रस्म ग्रहना भ्रमित, || आ ते अमारा हूँढकोनो, केवी रीतनो मूढ पंथ हशे के, वधाए हाजी हाज करीन आपणा आत्मा उपर पडता हुवा, उत्सूत्र प्ररूपणारूप, तिक्ष्णधाराना कुहाडाना, घावनो, बचाव करवानो, कांइ पण विचारज करता जोवामां आवता नथी.। माढेथी तो तेओ पण एम कहे छे के, सूत्रना एक अक्षर मात्रनो लोप करे ते पुरुषो अनंत संसारी थाय, त्यारे शुं : मूल सूत्रना बधा पाठाना पाठ उलटावी, जूठे जूठ लखवावालाने, कांइ पाप लागतुं नहीं होय ! जे तेना लंगटीया यार बनी, देवनी, गुरुनी, अने सिद्धांतना पाठनी पण, अवज्ञा करवा मंडी पडे छे : शुं कोई पण विचक्षण पुरुष तेओमां, विचार करवावालो नही होय ! जे अनुयोगद्वारसत्रना पाटने नदन उलटावी, मुह मतिनी ए, त्रण निक्षेपने जूठा, निरर्थक, ठराव्या, तापण तेने कोइ पुछवावाळुज । नथी मलतुं : अनं उलटा ते उत्सवना लेखाने पण उत्तेजन आपवा तैयार थइ गया! आते संरारनी भ्रमणमां, कइ हद मुधीना जीवो समजवा ते काइ कळी शकातुं नथी । आनंदघन महाराजे पण कर्जा छे जे, ॥ पाप नही कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जगसत्र सरिखो. ।। आ महापुरुषना वचनथी पण, एमज मालम पडे छ के, जे दुनीयामां मोटामां मोडं पाप छे ते तो सर्व आचा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योनी निंद्या करी, मति कल्पनाथी गणधर महाराजाओने तुछ समजी, आपणा मन गमतो बकवाद करवावालानेज, लागतुं होय, एम हुं कल्पना करूंछु.॥ ॥ ढुंढक-मने घणी शंका थइ पडीके, जे प्रथमना त्रण निक्षेप, उपयोगविनाना निरर्थक, ते, आजकालना नवदीक्षित पुरुषोमां, भावसाधुपणानो आरोप करीने, प्रथमना त्रण निक्षेपर्नु वर्तन जोइ, ते पुरुषोने वंदना करीये छीए, तेधी ते प्रथमना त्रण निक्षेषज, उपादेय छे, ए शी रीते समजबु. । अने ए चार निक्षेपोना विषयमां तात्पर्य शो छे, अने अमारी ढूंढनीए, अने दूंढके, अमोने शुं समजावी दीथु, ते विषये हजी शुधी हुँ काइ पण समजी शक्यो नथी.। ॥मर्तिपूजक-अरे भाइ ढूंढक, ढूंढनीए, अने ढूंढके, चार निक्षेपोना विषयमां, जे काइ समजाव्युं छे, ते वधू विपरीते विपरोतज समजाव्युं छे. कारण जे गुरुज्ञान विनानां ते, पोतेज गोतामां पडेलां, बीजाने शुं समजावी देवानां हता. । विचार करो के, ढूंढनी, सूत्रनी बेचार लीटीना लेख मात्रने तो समजी शकी नथी, तोपण नियुक्ति पण ढूंढनी, भाष्य छे ते पणं ढूंडनीज, अने टीका ते पण ढूंढनी, आपो आप बनी बेठी अने बधा आचार्योने निंदी काहडी, पेला मूढ सेवकोमा केटलं वधू पंडितानीपणुं प्रगट करी बेठी छे ! ढूंढनी कुदी एटले, आ बुट इस्टाकिनने चस्मावाला तो एटला बधा कुद्याजे, बधा आचार्यों तो भस्मग्रहना भ्रमित. । वाहरे पंडितना दीचरावाह, अने तारा कुदकाने पण वाह. ॥ ॥ भगवानना ज्ञानादिक गुण वस्तुना जे त्रण निक्षेपो, अमारे खासपणे उपादेय, ते त्रण निक्षेपो निरर्थक, अने उपयोग विनाना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ अने भगवानना ज्ञानादिक गुणनो जे भावनिक्षेप, अमारा उपयो गमा आवतो नथी, ते आ लोकमां उपयोगी वतावे छे, आते अमारा ढूंढकोनी केटली बधी विपरीत मति समजवी ?। ॥ देख भाइ ढूंढक, आ चार निक्षपोना विषयमां, तने कुंची बतावू ते ध्यानमा राखी, बधी दुनियाना, पदार्थोना, चार चार निक्षेपो करतो जा.। अने हेय पदार्थोना चारे निक्षेपो त्यागतो जा. । अने ज्ञेय पदार्थोना चारे निक्षेपोथी ज्ञान प्राप्त करतो जा. ॥ अने उपादेय पदार्थोना चारे निक्षेपोने, अंगीकार कर तो जा, अने साथमां विचार पण करतो जा के, भगवानना वचनने अनुसरी, परमार्थने समज्या वगरनी, दुनीयाए पण एज प्रमाणे वर्तन करेलु छ. । अने तमारा ढूंढकोए पण, मृतक साधुनी, तेमज जीवता साधुओनी, छबीयोने पडावी, एज प्रमाणे वर्तन तो करेलुंज छे. । मात्र कोइ विशेष पापना उदयथी, वीतरागनी मूर्तिनाज वैरी बनेला छे. माटे हे भव्यो उपादेय वस्तुना चारो निक्षेपोने उपादेयपणे समजी तमो तमाएं कल्याण करो ?। ॥ देख भाइ ढुंढक, आ दुनीयामां पदार्थों, मुख्यताथी वे प्रकारनाज होय छे, । एक तो “ अभ्यंतर गुण क्रिया वाचक, अने बीजा " बाह्य स्वरूपथी गुण क्रिया वाचक "। " उदाहरण " घट पटादिक पदार्थो, केवल बाह्य गुण क्रियाना वाचको छे, जेमके-रक्तपीतादिगुण, अने घृतादि भरणरूप क्रिया. ॥ आ बेमाथी जे विवक्षाना आधीन थइ, निक्षेपो करवामांडया, ते ते निक्षेपो ते ते स्वरूपथी घटाववा. । नेनो विषय अमो अहियां लखता नथी, पण अभ्यंतर गुण क्रियाना धारक, तीर्थकरो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना, बाह्य गुण स्वरूपथी अने अभ्यंतरना गुण स्वरूपथी, चार चार निक्षेपोने, सामान्यपणे जणावीये छीये. ॥ ॥ जुवोके-तीर्थकरोनी शरीर रूप बाह्य गुण वस्तु छे, तेनो १ “नाम निक्षेप"ऋषभादिक, २स्थापना निक्षेपे मूर्ति, |आ वे निक्षेपोज, वर्तमानकाळमां छे. अने आचार्यादिक बाह्य गुण वस्तु रूप शरीरना, चारो निक्षेप विद्यमान छे. ॥ अने तीर्थकरोना ज्ञान, दर्शन, अने चारित्र, रूप जे अभ्यंतरना गुणरूप पदार्थो छे, ते वस्तुओना तो, प्रथमना “त्रण निक्षेपोज" अमारा लाभने माटे विद्यमान रहेला छे. । ___अने ते तीर्थकरोना, भावनिक्षेपना विषय भृत, अम्यंतर गुणो हता ते तो, ते मोक्ष गामी जीवो मोक्षे जतां साथमांज लइने चाल्या गया छे । परंतु अमारा वास्ते ते गुणोमांथी एक गुण पण भाव निक्षेपना विषय भुतन मुकीने गयेला नथी. । वास्ते तीर्थकरोना ज्ञानादिक गुणोना, प्रथमना "त्रण निक्षेपोज" अमारा वास्ते परम उपादेय पणे रहेला छे. । अने तेमणा गुणोना, “त्रण नि. क्षेपनी " आराधना पण करीये छीए, । अने ते तीर्थकरोना गुणना प्रथमना त्रण निक्षेपोन अमारा गुणनी प्राप्ति थवामां, आधार भूत मानीये छीए. । अने अंश मात्रथी ग्रहण करवावाळा आचार्योंदिकोमां, तेमणाज गुणो छे, एम आरोप करी. व्यवहार नयनामतथी, ते आचार्यादिकोना चारो निक्षेपोनुंज, अमो योग्यता प्रमाणे सेवन करवा तत्पर थयेला छे, । पण मुख्यतारूपे तो ते 'आचार्यादिकोना, प्रथमना त्रग निक्षेपोज, अमारे वधारे कल्याणना दाता ! " मावानक्षेपने " नहि धारण करवा वाला, अमन्य आचार्योना बोधथी, अनेक भव्य पुरुषो मोक्षे जाय, एवो सिद्धांतोमां खुलामो छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પૃ छे । कारण के ज्ञानादिक गुणनो जे चोथो “ भावनिक्षेप " आचार्यादिकमां रहेलो छे, तेतो तेओनाज माटे छे, परंतु प्रगटपणे अमारा लाभना माटे थतो नथी । जेना गुण ते तेनाज लाभने माटे होय छे । ज्यारे तेमणा, गुण, प्रथमना त्रण निक्षेपना विषयभूते थइ, अमारा जोवामां आवशे, त्यारबाद ते प्रथमना त्रण निक्षेपनी आराधना करीशुं, अने अमारा आत्माने पण तेमना प्रमाणे, चोथा भावनिक्षेपना विषयभूत भावगुणमां, लीन करवा तत्पर थइशुं, त्यारेज अमारुं पण कल्याण थयुं एम समजीशुं । वास्ते अमारा पामर जीवाने तो, ते महापुरुषोना शरीररूपवस्तुना, तेमज गुणरूप वस्तुना चारो निक्षेप उपादेयरूपज छे । तेमां पण मुख्यताए, तीर्थंकरादिक महापुरुषोमां रहेला गुणरूप वस्तुना तो, प्रथमना त्रण निक्षेपोज, अमारा वास्ते, आराधना करवाने, आ लोकमां प्रगटपणे रहेला छे । अनेते मनाज ज्ञानादिक गुणोने, अंश मात्रथी त्रण निक्षेपोना विषयरूपे स्थापन करी, गणधरादि महापुरुषो, पुस्तक पानां उपर चढावीने मुकी गयेलाछे । ते पुस्तकांनांना विषयभूतने प्राप्त थयेला, भगवानना ज्ञानादिक गुणोना, त्रण निक्षेपने, अवस्तु ! अने उपयोग विनाना, निरर्थकरूपे छे, अने केवल तेमणो चोथो भावनिक्षेपज आ लोकमां उपयोगी छे एम जुठो पोकार करवावाळाने, वीतरागना भक्त सम्यकधारी केहवा. के, महा मिथ्या दृष्टि विपरीत मतिवाला केहवा ! तेनो विचार करवानुं, वाचक वर्गनेज सौंपी दइये छीये. ॥ ॥ जूवो के तीर्थकरोना शरीररूप वस्तुनो, जे, चोथो भावनिक्षेप हतो ते मृतक शरीररूपे, विजा द्रव्यनिक्षेपना विषयभूत थइ, आ दुनीयाना पुल द्रव्योमां लीन थइ, रूपांतरने प्राप्त थइ गयो छे । अने तेमणा बे निक्षेपज, अमारा आराधनने माटे रहेला छे। अने ते तीर्थकरोना ज्ञानादिक गुणोना, चार निक्षेपो हता तेमांथी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५ चोथा भावनिक्षेपना विषयभूत गुणोने, ते मोक्षगामी जोवो मोक्षमां जतां साधे लड़ जइ, अव्याबाधपणे लीन थइ रहेला छे. तेथी ते तीर्थंकरोना, ज्ञानादिक गुणनो, जे चोथो भाव निक्षेप, छे ते वर्त्तमान कालम, अमारा पामर जीवोना उपयोगम, कोइरी आवी शके तेम नथी । परंतु अमारा आराधनने माटे ते तीर्थकरोना गुणोने, गणधरादि महापुरुषो, प्रथमना त्रण निक्षेपरूपे, पुस्तकपानांना स्वरूपथी, आ दुनीयामां स्थापित करी गयेला छे। अने तेमना स्थापित करेला, प्रथमना त्रण निक्षेपरूप पुस्तक पानांथी, ते गुणोनी प्राप्ति करवा, अमो मथन पण करी रहेला छे, तो पछी प्रथमना त्रण निक्षेप, निरर्थक, केम कही शकाय ! ढूंढक - भगवाननां ऋषभादिक नामनी, आराधना करवी ते तो नाम निक्षेप | अने तेमनी मूर्तिनी, आराधना करवी ते स्थापना निक्षेप. ए तो समजायुं । परंतु भगवानना, ज्ञानादिक गुणना, प्रथमना त्रण निक्षेप, केवी रीते थता हशे ते विषये हजी सुधी हुं कांइ समज्यो नथी. ते बतावो त्यारेज तमारू कहेवं योग्य थयेलं छे एम हुं समजुं । नही तो तमारु कहेवं पण अयोग्यज समजु छं. ॥ मूर्तिपूजक - अरे भाइ ढूंढक, हजी सुधी तारी समज थइ नही, ते घणुं आश्चर्य जेवं लागे छे, । प्रथम तो देख अमारो लखेलो, श्री अनुयोगद्वार सूत्रनो पाठ । अने पछीथी देख, वाडीलालनो लेख, विपरीत बुद्धिथी लख्यो छे, तो पण आपणे शुद्धी मतिथी समजी लेवानो छे, ॥ पृष्ट. ६३ मां-सूचना, त्रण निक्षेप करीने बताव्या छे । अने पृष्ट. ८२ मां - ज्ञानना, त्रण निक्षेप करीने बताव्या छे, ते भगवानना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ज्ञानादिक गुणनाज, आधार आधेयना स्वरूपथी समजवाना छे । हि के बीजा कोइ ज्ञानरूप ढगलाना, करीने बतावेला समजवाना छे, । जेमके ढूंढनी पार्वतीए सत्यार्थना पृष्ट. १०२ मां, लख्युं हतं के, नंदीश्वर द्वीपमां, जंघाचारणे जइने, ज्ञानना ढगलानी स्तुति करी, एम जे बताव्यं हतुं, तेवो ज्ञाननो कोइ बीजो ढगलो हतो, एम समजवानुं नथी ! तेतो अदृश्यरूप आत्माना, ज्ञानादिरूप गुणनाज आधारभूत पुस्तकादिक विषयना, त्रण निक्षेप करेला समजवाना छे, पुस्तकादिक अचेतनरूपे छे, अने आचार्यादिक सचेतन रूपे छे. । अने ज्ञानादिक गुणनो जे चोथो भावनिक्षेप छे तेतो प्रथमना त्रण निक्षेपरूप कारणना योगथी भव्यात्मा पुरुषो जे कांई आपणा आत्माना उपयोगमां रमणता करी रह्या छे तेज चोथा भावनिक्षेपनो विषय छे । सूचना पाउने तपासी विचार करो ! अमो क्यां सुधी वारंवार लखीशुं इत्यलं विस्तरेण. इतिश्री मद्विजयानंद सूरीश्वर लघु शिष्येनाऽमरमुनिना ढूंढक मूर्तिपूजकयोः निक्षेप विषय. विचारस्य संवादः संकलितः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ जैन सिद्धांतोमां, वर्णन करेली क्रियाओना, निक्षेपोनुं स्वरूप. जैन सिद्धांतोमां, वर्णन करेली क्रियाओना, निक्षेपोनुं स्वरूप. पाठकवर्ग ? जैन सिद्धांतोमां, वर्णन करेली, साधुओना पंच महात्रतादिकनी क्रियाओ, तेमज श्रावकोना सम्यक्त्व व्रतनी क्रियाओ पंच अनुव्रतनी क्रियाओ, त्रण गुणत्रतनी क्रियाओ, समायिकत्रत, देशावका शिकव्रत, पोषघत्रत, अतिथिसंविभागवत, ए चार शिक्षात्रतनी क्रियाओ । एकंदर ए सम्यक्त्व धर्मनी क्रिया पूर्वक सर्वे बारां व्रती क्रियाओ छे, ते, अने दान, शील, बाह्य तपादिकनी, क्रियाओछे, ते सर्वे प्राये, १ नैगम नय, २ संग्रहनय, ३ व्यवहारनय, अने ऋजुसूत्रनय, आ ४ जे द्रव्यार्थिक चार नयो छे, तेना संबंधथी जोडाइने, प्रथमना त्रण निक्षेपो सुधीनीज क्रियाओनुं वर्णन थयेलुं छे. ॥ जेमके सम्यक्त्व अहिंसादिकवतोनां नामो, तेमज सामायिक, पोषध व्रतादिकनां, जे जे क्रियाओनां, जे जे व्रतोनां, जे जे सिद्धांतकारोए नाम आपेलां छे, तेते सर्व नामनिक्षेपनाज विषयभूतनां छे । अने जे जे ते क्रियाओनां साधनभूत उपकरणो, अने तेमां रहेली क्रियाओ छे, ते सर्व द्रव्य निक्षेपनाज विषयभूतनां छे। अने ते सर्व व्रतानां नाम, अने तेनां साधनो, अने ते विषयमा रहेली क्रियाओ छे ते सर्व, अल्पसंसारी पुण्यात्मा भव्य पुरुषांना, भावनेज उत्पन्न कराववा वाली होवाथी, सदासर्वकाल वस्तुरूपनी उपयोगवालीज छे । परंतु, ढूंढनी पार्वतीए, अने इंढक वाडीलाल, सिद्धांतकारोना आशयने समज्या वगर, जे प्रथमना त्रण निक्षेपोने, निरर्थक, अने उपयोग विनाना ठराव्या, ते प्रमाणे उपयोग विनाना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ नथी, । आतो ढूंढक, अने ढूंढकडीनु, लखाणज सर्वथा प्रकारथी उपयोग विनानु थयेखें छे. कारणके-साधुना ओघो मुहपत्ति विगरे उपकरणो, तेमन आहार, विहार, आदिक व्यवहारनी शुद्धि वाली, द्रव्य निक्षेप मुधीना विषयनी जैन मार्गमां वर्णन करेली क्रियाओ पण, नव ग्रैवयक मुधी पोहचाडवाना सामार्थ्य वाली छे. ___ अने श्रावकोना सम्यक व्रतादिकनी जे जे क्रियाओछे ते पण पूर्णपणे अध्यात्मिक विषयवाला, भावनिक्षेप विनानी, अने द्रव्यनिक्षेपमुधीना विषयवाली होवा छतां पण बारमा देवलोक मुधी. पहोंचाडवानी सामार्थ्यवाली छे । - आ जे साधुनी, अने श्रावकनी, क्रियाओना सामर्थ्य पणार्नु, वर्णन करीने बताव्युं ते वधुए पाये, नैगमादिक चार द्रव्यार्थिक नयोना स्वरूपथी, विजा द्रव्य निक्षेपना विषय सुधीनी क्रियाओना सामर्थ्य पणाथीन सिद्धांतोमा वर्णन थयेटु छे. । अने ते क्रियाओना करवा वाला पुरुषोनेज, सर्व जैननो समुदाय, तेमज वीजा भद्रिक परिणामी लोको पण, मानज आपी रह्या छे. । अने ते अध्यात्मिक भाव निक्षेपना विषय विनानी, अने द्रव्य निक्षेपना विषय सुधीनी, क्रियाओना करवावाला साधुओ पासेथी पण, प्रति बोधने प्राप्त थया पछी, अनंत भव्य जीवो, अध्यात्मिक तीव्र आत्माना परिणाम, के जे शब्दादिक त्रण पर्यायार्थि नयोना विषयवाला, चोथा भावनिक्षेपना स्वरूपना छे, तेने प्राप्त थइने, मोक्ष पोता छे. । एवा सिद्धांतोमां लेखो छे. । अने ते मोक्षगामी जीवो जे मोक्षे पोत्या छे ते पण, द्रव्यनिक्षेपना विषयवाला पुरुषोना कर्त्तव्योने उत्तमपणे मान आपीनेज पोत्या छे. । अगर जो ते मोक्षगामी जीवो, द्रव्यनिक्षेपना अधिकार मानने प्राप्त थयेला साधु पुरुषोने, मान न आपता तो, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीन भावने प्राप्त थइ, मोक्षे पण न जइ शकता. ।। __अने दूर भवी, अभवी, जीवोने तो, साक्षात् भावनिक्षेपोना विषयभूत, तीर्थकरोना समागमथी पण, लाभ थयेलो नथी, तेम थवानो पण नथी, एवां वचन पण आपणे सिद्धांतथी सांभलीये छीये. । तेनुं कारण एज के, परमोपादेयना त्रणे निक्षेपोनी अवज्ञा करीने, महामलीन परिणामने प्राप्त थयेला ते पुरुषो, साक्षात् भाव. निक्षेपना पदार्थथी पण, रुचिने प्राप्त करी शकता नथी, तेथी ते उपादेय वस्तुनी भक्ति विनाना, अघोर संसारमा रखडे छे. । ए शिवाय बीजु कोइ पण मुख्यताए कारण जणातुं नथी. वास्ते प्रथमन' त्रण निक्षेप निरर्थक नथी, तेम उपयोग विनाना पण नथी, मात्र सिद्धांतोथी विपरीतपणे, लेख लखवा वाला ढूंढकोना, विचारज, निगर्थक, अने उपयोग विनाना थयेला छे. ____ जूवो. पृष्ट. ४७ थी ते. ४८ मां-ढुंढक वाडीलाल पण लखे छे के-दुर्भवी, अने अभवी, जीवो, अन्यजनोंने प्रतिबोधी, मोक्षनां साधनो वतावे, पण पोताने गंठी भेद थाय नहि, संजम लड़ द्रव्य क्रिया करे, पण अंतर कोरु रहे. ॥ ____ हवे आ ढूंढकनाज लेखथी विचार करो के, ते गंठी भेद विनाना, द्रव्य क्रियाना करवावाला दुर्भवी अने अभवी पासेथी मोक्षनां साधनने, जे भव्यपुरुषो ग्रहण करता हशे ते तो, ते द्रव्य क्रियाना करवा वालाने, पात्र जाणी, अने तेमनी भक्ति करीने, अने सत्यपणाना उपदेशने प्राप्त थइ, ते साधनोने मेळवता हशे के नहीं ! अने ते सत्यपणाना मार्गने प्राप्त थया पछीज मोक्षे जता हशे के नही ! अगर जो त्रण निक्षेप, सर्वथा प्रकारथी निरर्थक, अने उपयोग वि. नानान होता तो, ते भव्यपुरुषो, कोई दिन पण, मोक्षनां साधन मेळवी शकता नही । अने ते द्रव्यनिक्षेपनी क्रियाओना आधार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूत साधु पुरुषोनी अंत:करणना तीव्र परिणामथी भक्ति करी आपणा आत्मानुं कल्याण पण मेळवी शकता नही. ॥ वास्ते आमां विशेष विचार करवानो ए छे जे, जैनमार्गनी जेटली धर्म संबंधि क्रियाओ छे, ते बधी ए प्राये द्रव्याथिक चार नयोना मुख्यपणाथी, त्रिजा द्रव्य निक्षेपना विषय सुधीनीज छे. । अने ते वधीए क्रियाओ, मोक्षनांज फलने प्राप्त करवामां कारणभूत छ. । अने ते खास उपयोगवाली अने सार्थकरूपनीज छे. । परंतु जो ते क्रियाना करवावाला जीवोज, केवल मलीन हृदयवाला, अने तत्त्वथी रहितपणे केवल कष्टना करवावाला, अने जूठे जूठनो उपदेश देवावाला, अने उपरथी मोटो भभको बतावी बीजा जीवोने आंजी नाखी तेमना पण सत्य बोब बीजने वाली मुकवावाला, तेवा जीवोने बोध बीजनो अंकुरो उत्पन्न न थाय, तेमां ते त्रण निक्षेपना विषय स्वरूपे वपरातां उत्तम क्रियारूप कारणोनो शो वांक ! जेमके-वर्षा, पवन, गरमाइ, विगरे सर्वे, बीजनी उत्पत्तिमां मुख्य कारण छेपरंतु जो बीजज शेकाइने अर्द्ध दग्ध थया पछी पेरवामां आवे, अने ते कारणो अनुकुल छतां पण, अंकुरो उत्पन्न न थाय, तमां ते वर्षादिक कारणो, निरर्थकरूप छे, एम ते आपणाथी केम कही शकाय.! मात्र तेमां तो ते वीजनीज निरर्थकता गणाय. । तेमज वीतरागनी भव्य मूर्ति, भक्तिनो अंकुरो उत्पन्न करवामां मुख्य कारण होवा छतां पण, अद्धदग्ध पुरुषोना हृदयमां, भक्तिनो अंकुरो उत्पन्न न थाय, तेमां कांइ भगवाननो स्थापना निक्षेप, निरर्थक, अने उपयोग विनानो छे, एम सिद्ध न करी शकाय, तेमां तो एज सिद्धि करी शकाय के, ते जीवोने कोइ विशेष कर्मना उदयथी, अने विपरीत बोध प्राप्त थवाथी अने तेमनुं अंतःकरण अर्द्धदग्ध थइ जवाथी. ते कारण लागु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ पडी शकतां नथी. । बाकी तीर्थकरनी भव्य मूर्ति तो, भव्य पुरुषोना अंतःकरणमां, भक्तिनेज उत्पन्न करावधामां मुख्य कारण छे. । ते सिवाय बीजा कोइ पण कार्यने माटे बनाववामां आवेली नथी, छतां जेओने विपरीत भास थवाथी, जगो जगोपर विपरीतपणुं दर्शावी, जे जैनतत्वोमां उलट पाटलपणुं करी रह्या छे, तेमां तो अमो तेओना कर्मनीज बहुलता समजीये छे. बाकी वीतरागदेवनी मूर्त्तितो अंतःकरणने मलीन करवाना स्वरूपनी नथी. ॥ __आतो अमारा ढूंढके, अने पेली ढूंढनीए, वीतरागदेवनी भव्यमूर्तिथी द्वेष धारण करीने, बधा त्रण निक्षेपो निरर्थक ठराववानेज थोथा पोथाने घसेडी नांख्या. । परंतु एटलो विचार न कर्यों के, अमारा ढुंढको जेटली क्रियाओ करी, लोकोमा प्रगट करीने बतावे छे, ते बधी ए क्रियाओ द्रव्यार्थिक चार नयोना स्वरूपथी प्रदर्शित त्रिजा द्रव्य निक्षेपनाज विषय मुधीनी छे, अने तेनो निषेध करवाथी, अमारी वधी क्रियाओज, सर्वथा प्रकारथी निरर्थक, अने उपयोग विनानी थइ जशे तो पछी, जे अमो क्रिया पात्रपणानुं मोडं डींग मारी लोकोमा सिद्धाइ बतावीये छीए, ते पण, अमारु पोकल बाहार पडी जवाथी, बीजा कया प्रकारनी सिद्धाइपणानुं डीग बतावशिं, एटलो पण विचार, तेओ हृदयना मलीनपणाथी, न करी शक्या, तो पछी बीजा कया जैनना गूढ तत्वोनो विचार करी शकवाना छे ! ॥ कदाच अमारा ढूंढको एवँ कहेशे के, साधुओनी, अने श्रावको, नी, जे जे करवानी क्रियाओ छे ते ते बधी ए, अमो भावनिक्षेपना विषयमांज गणीये छीये. । ते तेमनुं कहे, तदन सिद्धांतकारना कहेवाथी विपरीतज छे. । जूवो आ विषयमा निक्षेपोना विषयनो पाठ, एटले स्पष्टपणे समजाइ आवशे. । कारण के त्रण निक्षेपोना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ विषय मुधी तो, भावनिक्षेपना विषयमां, कारणरूपे थवाना स्वरूपने ते पाठमां बतावेलं छे. जेमके-नाम सांभलतां, ते विषयनी हयमां जागृती थवाथी, आत्माना विचारो घोलायमान थाय छे, । पछी तेमां तर्कोनी स्फूरणा उठे छे, । पछी ते पदार्थोना विचारो पण बांधे छ । छेवटमां ते वस्तुनो निश्चय पण करी शके छे. १ । एज प्रमाणे ते वस्तुनी स्थापना देखबाथी, पण विचारोनी स्फुरणा थइ, अध्यात्मिक परिणामोनी जागृती थाय छे. । अने एज प्रमाणे ते वस्तुना द्रव्यनी सामग्री पण, अध्यात्मिक परिणामोनी, घोलना उत्पन्न करी ते, मूल वस्तुना भावमां चित्त लीनपणे थइ जाय छे. ।। ॥ तेथी विवक्षित वस्तुनुं जे कारण छे तेज द्रव्यनिक्षेपनो विषय छे । वास्ते आ त्रण निक्षेपो शुधीना पदार्थों छे तेज, अध्यात्मिक परिणाम उत्पन्न करवामां मुख्यताए कारण रूपना छे. । परंतु ते पदार्थो अध्यात्मिक परिणामनी प्राप्ति करवामां, जे जीवोनो जेवो स्वभाव, जेवी रुचि, जेवी जेनी मान्यता, जेवी जेनी भवि तव्यता, तेवा तेवा भावपणे ते जीवोना परिणामने प्राप्त करी, तेवा तेवा फलना, भाजन बनावे छे. । जेमके-चुडी, अने चोर, न जेवी वस्तु छतां पण, ते, नमिराजाने, अने समुद्रपाल राजाने, बोधनुं कारण थइ, अपूर्व अध्यात्मिक भावोनी घोलना उत्पन्न करी, संसारना निस्तारमां, कारणरूपे थइ पडयां ॥ अने तीर्थकरो जेवा साक्षात् विचरता हता तोपण, दूरभवी, अभवी, आदि जीवोने, संसारनी बहुलतानाज कारणरूपे थइ पडता. । वास्ते चार निक्षेपो, जे शास्त्रकारोए वर्णन करेला छे, तेमांथी एक पण, निरर्थकरूपनो नथी, ते तो, जे आत्माना अध्यात्मिक परिणामरूप, भावनिक्षेपनो विषय छे, ते भावने तरत मताना स्वरूपथी उत्पन्न करवामांज मुख्य कारण छ.।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मां विशेष एज छे के, अनिष्ठ वस्तु छ तेना प्रणे निक्षेपा, मुख्यताए अनिष्ठ भावनी उत्पत्तिरूपे गणेला छे. । अने सामान्य वस्तुना त्रणे निक्षेपो, सामान्य भावने उत्पन्न करवामां मुख्यताए गणेला छे. । अने जे उपादेय, अथवा परमोपादेय, वस्तुओ छे, तेना त्रणे निक्षेपो आपणी आपणी योग्यता प्रमाण, तेज प्रमाणे, अध्यात्मिक परिणामोनी उप्तत्ति करवामां, मुख्यताप कारण रूपे गणेला छे. । परंतु कर्मनी विचित्रताथी विचित्र परिणाम थाय, तेनुं कांइ कोइथी कहीसकातु नथी । वास्ते अमो तर्थिकरोना भक्तो तो, तेमणी स्मृतिने कराववावाला, तेमणा त्रण निक्षोपोने, परमो पादेयमानी, शक्ति प्रमाणे भक्ति करीने अमारा जन्म, अने जीवितव्यनु, साफल्प पगुंज मानीये छीए. वास्ते आ विषयमां, कोइ प्रकारथी पण, विचक्षण जैन धर्मना रागी पुरुषोने, विशेष विचार करवानी जरुरज पडे तेम नथी. अने जे धर्मथी भ्रष्ट थइ, बिजा विचारपां उत्तरी पडी, उलट पालट करे छे, ते तो आप नष्टताने पाप्त थयेला, जैन धर्मनो नाश करवावालान जन्मेला छे. । एम विचार करता स्पष्टपणे समजाइ आवशे. ॥ आ अमारा ढुंढको, जैनी नाम धरावी, केवल वीतरागनाज वैरी थइने, १ मुखथी बोले छे ते काइ जुदुजः । अने २ करे छे ते पण काइ जुदुंज. । अने लोकोने ३ बतावे ले ते पण कांइ जुहूंज.॥ जूवो प्रथम बोले छे तेनो ढंग, १ अमो बत्रीश मानीये छीये, एम कहीने जैनना बीजा सेंकडो ग्रंथोनी बातां लइने, बत्रीश मूत्रनी छे एवो लोकोने भास करावयो, ज्यारे पछवा चालो मले त्यारे, कही देवू जे मलती मलती मान लेये. । पातो नेमणो बोलबानो ढंग । २ क्रिया करवा वाला पुरुषादिकना पूर्ण अध्यात्मिक परिणाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ रूप भावनिक्षेपने तो ज्ञानी जाणे, पण, त्रण निक्षेपोना विषय सुधीने पण नही प्राप्त थयेली, एवी क्रियाओ करवा वालाना, मोटा मोटा खरडाओ नांधीने, कंकोत्तरिओधी सिद्धाइ प्रगट करवी, अने तेज त्रण निक्षेपोना विषयने निरर्थक कहेवा, आतो तेमना कर्त्तव्यपणानो ढंग उदाहरण संवत् १९६३ अमारावतीमां सम्यक्त्वशल्योद्वारनी बावतमां, जूठी तकरारथी पाछळ पडेला, ढूंढक कुंदनमल साधुए, चतुर्मासना कर्त्तव्योनी, बाहार पाडेली इयादि, नीचे मृजब दया. ४२५ पांच. २५ पोसा. ७२% दयाकी पं चरंगी. १ खंध. १५ भायामें. तथा बायामें. तपश्या. छुटक उपवास. २२५ अठाड़. अठपुलीया तप. १ नउ. १ छोटी टीकी बढी टीको तप. १ तप. १ तेलीया तप. १ सागारी चोला. १ पक्षी प्रतिक्रमणराठे कारीसमाया. २२२८०३ बेला. तेला. ६५ ३१ तेरा. १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कंकण तप. १ अंबिल. १२५ चोला. ११ तपश्याकी पंचरंगी. १ सुख तप. १ संभर. १२५ छमछरी प्रतिक्रणराठे काकीसमाया. २५००००० घ आवी रीते कई, हाथ हाथनी लांबी ने लच, कंकोत्तरीयो, क ठेकाणेथी ढूंढक साधुओ कढावीने, आपणो सिद्धाइ जणावे छे, पण ते करणी त्रण निक्षेपना विषय शधीनी क्रियामां पण भेली सकवामां मुसली पडे तेम छे, आनो विचार आवश्यकना चार www.umaragyanbhandar.com Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निक्षेपोना पाठनी साथे, मेळवीने विचार करवावाला विचक्षण पुरुषने, सहजपणे समजाइ आवशे. ___आ कंकोत्तरी, लखीने बताववान प्रयोजन एटलुंज हतुं के, जेटली बाह्य क्रियाओ छे, ते बधी त्रण निक्षेपना विषयथी, उपरांतनी छेज नही. । अने ए सर्व बाह्य क्रियाओने भाव निक्षेपना कारण रूपे मानेली छे, तेथी त्रण निक्षेपना विषय रूपनी क्रियाओ, निरर्थक, अने उपयोग विनानी नथी, आतो गुरुज्ञान विनानी दूंढनी पार्वतीने, अने इंढक वाडीलालने, केवल मूढता प्राप्त थयेली छ. । तेथी बधु विपरीते विपरीत जोयु छ । आ अनुयोगनो विषय, महा गहन छे, अने गणधर महाराजाओनी महा गंभीर दृष्टिथी लखायेलो महा गंभीर छ, अने ए सूत्र जैनना. सर्व तत्त्वना विषयर्नु सूचनारूपे मुळ कारण होवाथी मुळ सूत्र रूपे मानेगुं छे, वास्ते मोहने प्राप्त न थतां, परंपराना विचक्षण पुरुषोनी पासेथी, ज्ञान मेळवीने अद्वैत आनंद सागरमा गरकाव थवा जेवू छे. । हु क्यां सुधी लखीश. इत्यलं विस्तरेण. ॥ इति श्री मद्विजयानंद सूरीश्वर लघु शिष्येनाऽमर मुनिना जेनी क्रिया संबंधि निक्षेप विचारः संकलितः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ॥ ढूंढके, अगडं बगडं रूपे लखेलुं, सात नयोनुं स्वरूप ॥ ।। पृष्ठ. ७६ मां - १ समद्रष्टि जीवने सिद्ध मानवो । अथवा चांद्रमा गुणस्थाने वर्तता साधुने संसारी कहेबो । २ श्रावक दयालु होय ए सिद्धांत उपरथी, कोइ स्त्रीस्तीमां जरा दया जोइने, तेने श्रावक कहे । ३ लुगड़े वणवा मांडयुं हजी एक तार नांख्यो तेने गई कहे । एवीज ते ४ लुगडं वणाइ रहेवा आन्यं होय, मात्र एक तार को होय तने लुगडं बण्युं नथी । एम आ चारे कारमां नैगम नयवाला माणसनी मान्यता होय छे. ॥ आमां अमारो विचार - आ चारे प्रकारमां नैगमनय वाला माणसनी मान्यता छे, एम अमारा ढूंढक भाइये लखीने बताव्यं. पण, कमां पुछवानुं एज छे के, एक नैगमनय, अने माणस पण एक, विषय वे चार, तेमां पण वचे प्रकार छे, त्यारे ए विषय - मां तमारी मान्यतानां समावेश, पहेला प्रकारमां करवो के, बीजा प्रकारां. 1 जो बीजा प्रकारमां तमारी मान्यतानो समावेश करवा जड़ये तो, ख्रीस्तीने श्रावक जाणीने तेनी साथे बधो व्यवहार क वानो प्रसंग नडे तेम छे । वास्ते आ नैगमनयनी मान्यताना लेखमां पण विचार करवा जेवुं छे ।। इति प्रथम नैगमनयः || २ संग्रहनय - १ दश जण सामायिक करता होय तेने, एकज सामायिक कहे. । अने २ घणा जणाना रूपैयानी, दानशाला होय पण, एकज दातार छे एम कहै. ॥ विचार - आ विषयमा अमारा ढूंढक भाइ शुं ! सामायिकपण माने छे के सामायिक रहितपणं, अने ते एकपणे के, अनेकपणे, तेनुं वाचक वर्गे विचारी जोवं एज प्रमाणे दातारोमां पण विचारी जोवं. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ ॥ ३ व्यवहारनय - पृष्ठ. ७७ थी. 'नैगम' अने ' व्यक् हार ' नयमां भिन्नता एटलीज छे के, नैगमनी दृष्टिवालो, पथरणं जोड़ने कहे के सामायिकवालो पुरुष छे । अने व्यवहारनी दृष्टिवालो, सामायिकना पाठनो उच्चार सांभले त्यारेज कहे. । बने बाह्यचेष्टा उपरथीज विचार बांधे छे। पण नैगमवाला करतां, व्यवहार नयवालो, वधारे खात्री करे छे. ॥ विचार-व्यवहार नयवालो माणस, पाठना उच्चारणथी सामायिकपणानी वधारे खात्री करे छे पण, अमारा ढूंढकभाइनी खात्री, कया प्रकारमा थइ, ते कांइ समजायुं नहि ! ॥ ।। ४ रूजु सूत्रनय - पृष्ट. ७८ थी. कोड माणस सामायिकमां होय पण, तेनुं मन वेपारमां दोडतुं होय तो, रूजु सूत्रनयवालो कहे के, अमुक माणस वेपारमां छे. ॥ विचार - आ अमारा ढूंढकभाइये, वेपारी मान्यो के, सामाfreवालो मान्यो ! तेनो विचार पण साथे करवोज जोइये ॥ ॥ ५-६-७ शब्दनय "" समभिरूढनय " अने "" (6 "" एवंभूतनय 11 ॥ ए त्रण नयवाला माणस, नाम, द्रव्य, अने स्थापना, निक्षेपने, अवथ्थु (अवस्तु ) माने छे । विचार - शब्दादिक ऋण नयोवाला, त्रण निक्षेपने, अवस्तु माने छे, ते तो प्रगटपणे तमारुं लखेलुं प्रसंग विनानुं समजायुं । परंतु १ समद्रष्टिनो सिद्ध । २ चौदमा गुणस्थानवालानं संसारी, ३ स्त्रीस्तीने श्रावक, । ४ एक तारना वणाटने लुगडं.। अने मात्र एकन तार आंछो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ होय तो लुगडं नहीं,। एवं जे तमोए नैगम नयनी मान्यतामां, जणाव्यु हतुं, ते विषयोने, आ शब्दादिक त्रण नयो शुं कहेवाने मागे छे ! । वस्तुपणे के, अवस्तुपणे, ते तो कांइ लखी बताव्युं नही. ॥ तेमज नैगम नय, अने व्यवहार नय वालानी, मान्यता वाला सामायिकर्नु, अही वस्तुपणुं थयु के, अवस्तुपणुं, तेनुं पण काइ समजायुं नही. तेमज संग्रह नयवालानी, मान्यतामां, जे दश सामायिकनुं एक सामायिक, । अने घणा दातारनो एक दातार हतो. । ते आ त्रण नयोना विषयमां, सामायिक वालो, अने ते दातारो, वस्तुरूपे रह्या के, सर्वथा प्रकारथी उडी गया, ते पण काइ समजायुं नही. । अने ऋजुसूत्र नयनी मान्यतामां,सामायिक वालो वेपारी हतो, त शंआ त्रण नयोनी मान्यतामां, वेपारी रह्यो के,सामायिक वालो थयो,अथवा वस्तुरूपे रह्यो के,अवस्तु रूपनो थइ गयो. ते विषये तमोए काइ पण लखीने न बताव्युं । अने लागलाज विना प्रसंगे त्रण निक्षेपोने खोसी घाली, वचमां उंट उभं करी मुक्युं, ए कया प्रकाग्नो तमारो लेख : । अने नयोना विषयनी, कया प्रकारनी तमारी समज । अने नयोनी मान्यतामां कया विषयने पकडीने व्याख्या करीने बतावी : अने नमारा ढूंढकोनी सिद्धि एमां कया प्रकारनी थइ : । एमांनु कांइ पण न जणावतां, आगे १ सभामां होय तो १ इंद्र, २ शत्रु जीतवामां होय तो २ पुरंदर, ३ इंद्राणी सार्थ होय तो ३ शचीपतिना ठेकाणे, शुचीपति लखी, शब्द तरफना लक्ष वाली ५ शब्दनय छे एम पृष्ट. ७९ मां लखीने वताव्यु. आ विचित्र प्रकारनी मान्यता वालो लेख पण, पाठक वर्गने विचारवा जेवो छे. ।। ॥ ६ समभि रूढ-गुण, अने लिंग, जाइने वात करे.! जेमके-साडी, अंग वस्त्र, कपड़े, साडलो, ए नाम एकज चीजनां छ, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९ खीना काममां आवे छे, स्त्री लिंग छे, ए कारणथी साडी कहे, प रंतु वस्त्रके साइलो न कहे || ॥ विचार - आमां विचारवानुं, आ छट्टी नये, गुण लिंगने शुं जोयुं ? | अने प्रथमनी पांच नयोनी साथै, कयो संबंध धराबी, कया विषयी व्याख्या करीने बतावी । अने अमारा ढूंढ़कनी मान्यता, एमां कया प्रकारनी थयेली समजवी || ॥ ७ एवंभूत नय - कार्यना उपयोग तरफज दृष्टि राखे छे, जेमके - दाणा जोखनारो माणस, लाभोजी, बेयोजी, त्रणोजी, ए शब्दाने पकडी राखे छे, पण दाणाके, त्राजवाने, पकडी राखतो नथी । एने तो धारणतुंज काम छे. ॥ ॥ विचार - आसामी नय, शब्होंने पकड़ी राखे छे, तेज प्रमाणे शब्दनय पण, शब्दोना तरफज लक्ष राखवावाळी छे, तेमां, अने आसामी नयमां, विशेष शुं ! अने अमारा दृढकोनी आमां मान्यता शुं । तेनो विचार पण कांइ जणाव्यो नथी. ॥ ए प्रथम प्रकारथी अमारा ढूंढकनी नयो विषयनी मान्यता ॥ ॥ हवे अमो, ढूँढके ज्ञान उपर उतारीने बतावेली जे नयो छे तेनो विचार करीने बतावीये छीये. ।। ॥ जूवो. पृष्ट. ८४ थी ते ८६ तक- पृ. ८४ । ओ, ५ थी-नैगम नय प्रमाणे ज्ञान - बिचारा गामडीआओ, नवतत्त्व - छकायना बोल, के, एकाद थोकडो पाठे करनार साधुने, के, एकाद अंग्रेजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोपडी मणनार समारीने, ज्ञानी कहे छे. । तेओ अल्प बुद्धिना होवाथी, अल्प ज्ञानने ज्ञान माने छे ।। ॥विचार-नवतत्वादिक पाठना पठन करवावाला साधुने,अ"मारा हूंढको शुं । अज्ञानी कहे छे के, ज्ञानी, ते एक खास विचारवा जे छे. । अने अंग्रेजी चोपडीनुं ज्ञान छे, तेनुं नाम तो विज्ञान छे,। कारण ए छे के, जे जे कलाओ विषयिक झान छे, तेनुं नाम शास्वकारोए विज्ञान राखेखें छे. । अने मोक्षना माट जे कांइ ज्ञान मेंळवq, तेनुं नाम ज्ञान कहेलुं छे. । जूवो-हैमी कोश-" मोक्षोपायोयोगो ज्ञानं " मोक्षना उपाय माटे योग छे ते ज्ञान छे. । फरी जुवो अमरकोश-" मोक्षे धी नि मन्यत्र विज्ञानं शिल्प शास्त्रयोः” अर्थः-मोक्षनी बुद्धिथी मणवू ते ज्ञान छे, अने शिल्प शास्त्रादिकना ज्ञाननी बुद्धिथी भणवू, तेनुं नाम विज्ञान छ, वास्ते विचार करवानो ए छे के-मोक्षनी इछावाला साधुन, जे कांइ ज्ञान छे ते ज्ञानज छे ॥ ॥ २ संग्रहनय प्रमाणे ज्ञान-पांच प्रकारने ज्ञान छे तोपण, समुच्चये एकज ज्ञान कहे ते ।।। विचार-आमां अमारा ढूंढकनी मान्यता कया मकारनी थइ । ॥३ व्यवहारनय प्रमाणे ज्ञान बाह्यज्ञान जोइने ज्ञानी कहे ते, कोइ डोळ घालुसाधु, व्याख्यान वांचे तेमां, पुराण, कुरानना, अशुद्ध अने असंबंध फकरा, तथा नाटकना रागोटा सांभळे त्यारे, व्यवहारनी दृष्टिवाली प्रपदा तेने ज्ञानी माने. ॥ विचार-पाठक वर्ग ! नयोनो विचार छे ते, सम्यक् ज्ञान जो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतराग भाषित छ, तेमांज करी सकाय छे. । बाकी विपरीत ज्ञान होय ते तो, नयाभास रूपे होय छे, ते नयोना लेखामांज नयी गणेखें, छतां आ ढुंढके केटलं बधुं. उधुं वेतयु छे. ते आगळ प्रसंगे बतावीशं. ॥ ॥४ ऋजु सूत्रनय प्रमाणे ज्ञान-ज्ञान पांच प्रकारनुं छे, जे पैकी छदमस्थने चार ज्ञान होय, परंतु ऋजु सूत्रनयवालो माणस, वात करती वखते जे ज्ञान तेनी पासेथी सांभळे ते, एकज ज्ञान तेनामा छ एम कहे. ॥ ॥विचार-ऋजु सूत्रनयवालो, चार ज्ञानमार्नु एकज कह. ते शुसम्यक् ज्ञान कहे के मिथ्याज्ञान कहे. अने आ ऋज़ मूत्रना मतमां, तमारा ढूंढकोनी मान्यता कया प्रकारनी थई. ॥ . ॥ ५ शब्दनय प्रमाणे ज्ञान-सम्यक्त्व सहित (९) नवतत्व- ज्ञान ते. ॥ . ॥ ६ समभिरूढनय प्रमाणे ज्ञान-सम्यक्त्व सहित ज्ञान होय, अने परगुणथी विरक्तपणुं होय, तेवाज ज्ञानने आ नयवालो ज्ञान माने.॥ ७ एवं भूतनय प्रमाणे ज्ञान-केवल जाननेज ज्ञान कहेवायः॥ पाठक वर्ग : मारा तरफथी करेली, वखत वखतनी मूचनाओथी, आप लोको समजी गया तो हशोज, अने तेथी योग्याऽयोग्यनो विचार पण करीज लेशो. । तोपण बे शब्दो फरीयी लखीने सूचना तरीके जणाबु छु.॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ते ए छे के आ ढंढके, पाछळथी ज्ञान उपर सात नयो उतारीने एम लख्युं जे-सम्यक्त्व सहिन नव तत्वनुं ज्ञान ते, " शब्दनय प्रमाणे" ज्ञान. । अने सम्यक्त्व सहित विरक्तनुं ज्ञान ते, " समभिरूढ नय प्रमाणे " ज्ञान. । अने केवलज्ञान ते, " एवं भूतनय प्रमाणे" ज्ञान. ॥ ___ आ लेखथी ढूंढके एम सिद्ध करीने बताव्युं के, जैनोने व्रण नयोज प्रमाण रूपे होय. । केमके सम्यक्त्व सहित नव तत्वना ज्ञाननी सरुवात, शब्दनयथी करीने बतावी छे. । तेथी प्रथमनी चार नयो, निरर्थक, अने उपयोग विनानी, ठराववा प्रयत्न कर्यो छे. । परंतु पोतानाज लेखमां परस्परनो विचार, बीलकुल कर्यो नथी. । अने केवल मूढपणा धारण करी स्वछंदपणे कलम चलावी छ । वो-प्रथम नैगम नयनी मान्यतामां लख्युं हतुं जे-समदृष्टिने, सिद्ध मानवो. । अने चौदमा गुणस्थाने वर्तता साधुने, संसारी कहेवो. । अने नगम नय प्रमाणे ज्ञानमा नव तत्व-छकायना बोल के, एकाद थोकडो, पाठे करनार साधुने, गामडीआओ ज्ञानी कहे छ. । एम नैगम नयनी मान्यतामां लखीने बताव्युं हतुं. ॥ तो अब विचार करो के-समदृष्टि, अने चैदमा गुणस्थाने वर्त्ततो साधु के जे साक्षात् सिद्ध स्वरूपी जीव, ते काइ उपयोग वाला नथी के ! अने, नव तत्वादिकनो पाठी साधु, शुं ! अज्ञानी थइ गया के ! आते अमारा ढूंढकनो, नयोना विषयनो लेख, कया प्रकारनो थयो समजवो ! अने अमारे पण विवेचन कया प्रकारथी करीने बताव! ॥ ___ आ ढूंढकनी नैगम नयनी मान्यतो विचार, पाठक वर्गनेज, करवानुं सोपुं छं. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ २ संग्रहनय - प्रथमनी व्याख्यामां लख्युं हतुं जे-दंश सामाकिने, एक सामायिक कहे. । अने घणा दावारने, एकज दातार कहे. । अने ज्ञाननी व्याख्यामां पांच प्रकारना ज्ञानने, एकज ज्ञान मान्युं हतुं ॥ विचार - ए छे के - आ बीजी नयने, उपयोग विनानी माने तो, नतो एके सामायिक उपयोग वाळु रहे, तेमन दातार पण अदातार, तेमज पांचे ज्ञानने, एक ज्ञान करीने मान्युं हतं, तेटला पुरतु पण रहि शकतुं नथी । तो पछी आ ढूंढकना लेखथी, कया प्रकारना तत्वने, अमारे ग्रहण करवो ! | आ संग्रहनयनी, मान्यतानो विचार पण, वाचकवर्गेज करी लेवो. ॥ . ३ व्यवहारनय – नैगमनय वालो- पथरणु जोइने, सामायिक वालो पुरुष कहे । अने व्यवहारनय वालो, सामायिकना पाठनो उच्चार सांभळीने, सामायिक वालो कहे. । नैगमनय करतां व्यवहारनय वाळो वधारे खात्री करीने आपे छे. | अने ज्ञाननी मान्यतामां बाह्य ज्ञान जोड़ने ज्ञानी कहे ते - कोइ डोल घालु साधु व्याख्यान वांचे तेमां, पुराण, कुरानना, अशुद्ध अने असंबंद्ध फकरा, तथा नाटकना रागोटा सांभळे त्यारे व्यवहारनयनी दृष्टि वाली मषदा तेने ज्ञानी माने छे. ॥ विचार — पथमनी व्याख्यामां सामायिकना पाठनो उच्चारण करवा वालानी मान्यता बतावी हती. । आ बीज़ी व्याख्यामां पुराण, कुरानना पाठ वालो साधु बतायो, आ व्याख्यामां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ अमारे कया प्रकारनो विचार करवो ? || सामायिक वालाने, अने से साधुने, निरर्थक प्रयास वाला समजवा के एकादने उपयोग वालो समजवो. ॥ आ विषयनो विचार पण पाठकवर्गज करी लेशे. ॥ ४ ऋजुसूत्रनय — कोइ माणस, सामायिकमां होय पण, तेनुं मन वेपारमां दोडं होय तो तेने वेपारी कहे. || अने ज्ञाननी मान्यतामा -ज्ञान पांच प्रकारनुं छे, जे पैकी छदमस्थने चार ज्ञान होय, परंतु ऋजुसूत्रनय वालो माणस, वात करती बखते, जे ज्ञान तेनी पासेधी सांभळे, ते एकज ज्ञान तेनामां छे एम कहे. || ॥ विचार—पथमना लेखमां, सामायिकवालाने, वेपारी - रावी, निरर्थक रूपे उराव्यो । परंतु आ बीजा लेखथी विचार क रवानो एछे के - ते चार ज्ञानी साधुनी पासेथी, कयुं ज्ञान सांभलीने, एक ज्ञान छे, एम कहुँ. अने ते चार ज्ञान सार्थकके निरर्थक । || आ विषयनो विचार करवानुं पण, वाचकवर्गनेज सोंपी दउछं. ॥ ५ शब्द नय - इंद्र, पुरंदर, अने शचीपति, प्रथमनी मान्यतामा अने बीजी ज्ञाननी मान्यतामां सम्यक्त्व सहित (९) नवतनुं ज्ञान ते. ॥ || विचार - बीजी ज्ञाननी मान्यतामां तो सम्यक्त्व सहित नव तत्त्वनुं ज्ञान ते तो समजायुं । परंतु पेहली व्याख्याना इंद्रादिक, शब्द मात्रनुं ज्ञान कराववावाला छे, तेनो विचार दृढके शुं ? कर्यो, अने ढकनी मान्यता कया प्रकारनी थई ? || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ ||६ समभिरूढनय - साडी, कपटु, अंगवस्त्रादिक, स्त्रीना कामादिकनां, स्त्री लिंग छे । तेथी साडी कहे, परंतु वस्त्रके, साडलो, न कहे । अने बीजी ज्ञाननी व्याख्यामां - सम्यक्त्वसहित ज्ञान होय, अने परगुणथी विरक्तपणं होय, तेवा ज्ञानने, ज्ञान माने ॥ ॥ विचार - बीजी मान्यतामां परगुणथी विरक्तपगुं एटले शं गौतम स्वामी जेवाके, कोइ बीजा जेवा। केमके गौतम स्वामी पण, प्रथमनी अवस्थामां पररूप भगवानना गुणथी, विरक्त न थया हता. | वास्ते आपण एक विचारखा जेवुं छे. । अने पेहली व्याख्यामां - साडी कहे, अने वस्त्रादिक न कहे, तेमां ढूंढकनी मान्यता या प्रकारनी थइ | अने बन्ने व्याख्यानोनो मेल सो थयो ? ॥ ॥ ७ एवं भूतनय - दाणा जोखनारो माणऩ, लाभोजी, बेयोजी, ऋणोजी, शब्दोने पकडी राखे छे, पण दाणाने के बाजवाने पकडतो नथी । अने बीजी ज्ञाननी व्याख्यागां - केवल ज्ञाननेज ज्ञान केहवाय. ॥ ॥ विचार - शब्दाने पकडवानुं काम, शब्दनयनुं हतुं, ते एवं भूतनयमां, क्यांथी आवी गयुं । अने आ नयवालो, केवल ज्ञानने, 'ज्ञान' कहे. । एवो लेख, ढूंढकोना बापदादा कये ठेकाणे लखी गया छे । तेनो पण विचार करवो जोइये. || ॥ पाठकवर्ग । हुं हवे वधारे लखवानुं बंध करी, एटलुंज क हुंके, अमारा ढूंढ़कोए, ज्यारथी परंपराना गुरुने छोड्या छे, त्यारथी तेओने न तो " सम्यक्क " ना विषयनी खबर छे । न तो जैनोना " 39 प्रमाण ना विषयनुं भान छे । न तो " निक्षेपो" ना विषयनुं ज्ञान छे. न तो " द्रव्य, क्षेत्र, काल, अने भाव" ना स्वरूपने जाणे छे। अने आ " नयोना " विषयनुं जे कांह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ज्ञान थयेलं छे तेनो पण विचार तमो करीने जुवो. तेथी अमोने पण संतोषज छे || || आ अमारा ढूंढको-केटलाएक बोल विचारना, थोकडाओनो, पोपटीओ पाठ, कंठे करी ले छे। अने पछी दुहा, छंदो, सवैया, कांइ पुरान, कुराण, आदिना फकराओ, तेमज भोजा भगतनां भजनां, कोइ ' ज्ञानोबा ' कोइ जगोपर ' तुकोबा ' । आदिना उपर चोटीया फकराओथी, अजान वर्गने आंजी नाखी, एवा तो गर्व गरका थइ जाय छे के जाणे, सर्व पंडितोना शिरोमणि तो अमोज छीये. । एटले पछी न तो कोइ गुरुने समजे छे, अने न तो कोइ आगे जैन मार्गना तवने जूबे छे, मात्र तेवा वे चार मूढे मूढ भेगा थइ, जो मनमां आवे सोइ बके छे. । अने आपणे आप, सर्वज्ञना दीकरा बनीने, बधाए आचार्योंने, दूषित करीने, जो मां आवे सोइ लखी मारे छे. । तो पछी आवा महा मूढोने, जैन मार्गना महा गंभीर तत्वोना विषयनुं ज्ञान, ते कये रस्तेथी प्राप्त थशे ! ते विषये अमो कांइ पण विशेष कळी शकता नथी. । परंतु विचक्षण पुरुषो प्रति, अमारी छेवटनी एटलीज प्रार्थना छे के, निकृष्टकालना प्रभावथी, जैन मार्गना, महा गंभीर तत्त्व विषयोनुं, संपूर्ण ज्ञान थं ते तो महा दुस्कर छे, तोपण ते गंभीर तत्रोना, दिशा मात्रना अवलोकनने वास्ते, कोइ परंपराना सद्गुरुनो आश्रय इ, अने विनय सहित तत्वोंने ग्रहण करी, अने ते तत्वोना विचारनी श्रेणीमां उतरी, आपणा जन्म जीवितव्यपणानानु, साफल्यपणं करवा चुकवुं नहि. । एटलं कहीने हुं मारा लेखनी समाप्ति करु. ॥ ॥ इति श्री मद्धि जयानंद सूरीश्वर लघु शिष्येनाऽमरमुनिना ढूंढक मान्यता विषयिक सप्त नय विचारः संकलितः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ || जिन प्रतिमा उपर स्तवन चोपाइनी देशीमां ॥ नमेले पाप ; जेहने जेहने जिनवरनो नही जाप, तेहनुं पासुं जिनवरशुं नही रंग, तेहनो कदी न कीजे संग. १ । जेहने नही बहाला वीतराग, ते मुक्तिनो न लहे ताग; । जेहने भगवंत शुं नही भाव, तेहनी कुण सांभलशे राव. २ || जेहने प्रतिमाशु नहीं प्रेम मेनुं मुखड़े जोइये केम, जेहने प्रतिमाशुं नही प्रीत; तेतो पामे नहि समकित ३ || जेहने प्रतिमा शुं छे वेर तेहनी कहो शी थाशे पेर, । जेहने जिन प्रतिमा नही पूज्य, आगम बोले तेह अबूज्य । ४ । नाम स्थापना द्रव्य ने भाव, प्रभुने पूजो सही प्रस्ताव; । जे नर पूजे जिननां बिंब, ते लहे अविचल पद अविलंब । ५ । पूजा छे मुक्तिनो पंथ, नित नित भाषे इम भगवंत, सहि एक नर 'क विना निरधार प्रतिमा छे त्रिभुवनमां सार. ६ ॥ सतर अट्टाणुं आषाढी बीज, उज्ज्वल कीधुं छे बोधवीज; इम कहे उदयरतन उवज्जाय, प्रेमे पूजो प्रभुना पाय. ॥ ७ ॥ इति जिन प्रतिमा स्तवनं. श्री संप्रतिराजानुं स्तवन ॥ राग आशावरी ॥ धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे कीधां उत्तम कामरेः । सवालाख प्रासाद करावी, कलियुग राख्यं नामरे. धन. १ । वीर संवत्सर संवत् बीजे, तेरोत्तरे रविवार रे; । माहा शुद्धि आठमी बिंब भरावी, सफल कियो अवताररे धन. २ || श्री पद्म प्रभ मूरति थापी, सकल तीरथ शणगाररे; । कलियुग कल्पतरु ए १ एक नरकनुं स्थान छोडीने बाकी बीजी बधी जगो पर शास्वताऽ शास्वता जिन बि बिराजमान छे अने तेनो पाठ पण सिद्धांतोमां जगो जगो पर छे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रगठ्यों, वंछित फल दाताररे. धन. ३॥ उपासरा बे हजार कराव्या, दानशाला शय सातरे। धर्म नणा आधार आरोपी, त्रिजग हुओ विख्यातरे. धन. ४ ॥ सवालाख प्रासाद कराव्या, छत्रीश सहस्स उद्धाररे; । सवा कोडी संख्याये प्रतिमा, धातु पंचाणुं हजाररे. धन. ५ ॥ एक प्रासाद नवो नीत नीपजे, नो मुख शुद्धिज होयरे। एह अभिग्रह संपति कीघो, उत्तम करणी जोपरे. धन. ६ ॥ आर्य सुहस्ति गुरु उपदेशे, श्रावकनो आचाररे; । समकिन मूल बार व्रत पाली, कीधो जग उपगाररे. धन. ७॥जिनशासन उद्योत करीने, पाली त्रण खंड राजरेः । ए संसार असार जाणीने, साध्या आतम काजरे. धन. ॥ ८॥ गंगाणीनयरीमां प्रगट्या, श्री पद्मप्रभ देव रे । विबुध काननी शिष्य कनकने. देज्यो तुम पय सेवरे. धन. ॥१॥ इति संप्रति राजानुं स्तवन संपूर्ण. ॥ . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६९ ॥ धर्मनो दरवाजो प्रकरण ५ ॥ सम्यक्कना ६७ बोल. || आ ६७ बोलना विचारमां पण, स्थूल विषयोनीज विपरीतता जणावीशुं, परंतु सूक्ष्मविषयोनी विपरीततानो विचार करीशुं नही ॥ ॥ वाडीलाल. पृष्ट. ९२ थी. ॥ दश विनय ॥ समर्किती जीव- १ अरिहंत, । २ सिद्ध । ३ आचार्य, । ४ उपाध्याय, । ५ , स्थविर, । ६ कुल अथवा एक गुरुना शिष्यो, । ७ गण अथवा घणा आचार्याना शिष्यो, । ८ संघ, । ९ साधर्मी, । १० क्रियावंत, । ए दशनो विनय करे. ॥ , विनय चार रीते थाय । बहु भक्तिभाव बताववाथी । कीर्त्ति करवाथी, | मानदेवाथी । अने त्री प्रकारनी आशातना टाळवाथी. ॥ -- विचार — आ विषयमा वाडीलाल शाहने अमो एटलुंज पुछीये छे के, दशनो विनय करवो, ते कया सिद्धांतथी, अथवा कया तमारा मान्य करेला प्रकरण ग्रंथथी लखो छो ? ते ग्रंथनुं नाम, अने तेन कर्ता आचार्य, नाम पण प्रगट करी बतावो ? कारण विचार करतां अमोने एम मालम पड़े छे के, आ ६७ बोलरूपनुं आर्खु प्रकरण, तमोए मूर्तिपूजकोना ग्रंथथी चोरी लइने, उलट पालटपणे, मन कल्पित जूदी कल्पनाओ करीने गोठवी दीधी छे, तेथी गुरु परंपरा गतना ज्ञानयी, विपरीतपणेज तमारो लेख थयेलो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० छे, अने तेथीज अमो कही शकीये छीये के, तमोए मूर्तिपूजकोना ग्रंथोनी चोरी करीनेज लेख लखेलो छे. प्रथम तीसरा सम्यक्त्व नामना प्रकरणमां पण, जे तमोए लेख लख्यो हतो ते पण, मूर्तिपूजकोना ग्रंथनी चोरी करीनेज लख्यो हतो, अने आपणे आप शाहुकारनं डोल धारण करी, मूर्तिपूजकोने चोर ठराववा प्रयत्न कर्यो हतो, परंतु चोरोनुं जुठ क्यां तक चालशे के, ज्यां सुधी न्याय सामो आव्यो नथी त्यां तक, परंतु आगल धारे चाली शकशे नहीज : ज्यारथी तमोर उपोदघातमां, वीतरागनी air, कहीने सिद्धांतनुं नाम आपतां भींतनी आड पकडी छे, त्यारथी अमो तो समजी गया छे के, आ ढूंढकपण एक जैन धर्मना तत्वोनो पाको गंठी छोडो छे, परंतु जैन धमना तत्वोने ग्रहण करी तेनो सार लेवा वालो नथी, केमके जे पुरुष सार लेवा वालो होय ते तो, ग्रंथना सार मात्रनेज ग्रहण करे, परंतु गुरु परंपरा गतना तत्वोने उलट पालटपणे कोइ दहाडो पण करे नही ? एम अमारु मान छे, तेथीज तत्वोना उलट पालटपणे करवा वालाओने गंठी छोडा 1 नीज उपमा दइये छीये. ॥ • वे अही, ' दशनो' विनय करवानो जे गुरु परंपराथी, हजारो आचार्योना मतथी पुस्तको उपर चढी चुक्यो छे तेनां नाम । नीचे लखीने बताओ छीये. ॥ १ अरिहंतनो । २ सिद्धनो, । ३ चैत्यनो, अर्थात् जिन प्रतिमानो । ४ श्रुनो, अर्थात् सिद्धांतोनो । ५ धर्मनो क्षमा आदिदश प्रकारने धारण करवा वालानो. ६ साधु वर्गनो,। ७ आचार्यनो । ८ उपाध्यायनो । ९ प्रवचननो अर्थात् संघन. । १० सम्यक्त्वनो अथवा सम्यक्त्व वालानो पण. अही जूवो प्रथम प्रवच सारो द्वारनी गाथा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ अरिहंत, सिद्ध, चेइय सुएय धम्मय साहुवग्गे य॥ आयरिउववज्जाए सुयपवयण दंसणेवावि. ॥ ___ अर्थ. ? अरिहंत,। २ सिद्ध,। ३ प्रतिमा, । ४ श्रुत, 1५ धर्म, । ६ साधुवर्ग, । ७ आचार्य, ८ उपाध्याय, । ९ प्रवचन अ र्थात् संघ, । १० सम्यक्त्व.॥ ___आवी रीते दशनो विनय करवानो, सम्यक्त्व सप्तति नामना ग्रंथमा, । तेमज आत्मप्रबोध नामना ग्रंथमां, । तेमज उपदेश प्रासाद विगरे ग्रंथोमां, प्रगटपणे लखेलो छ, । छतां तमो ‘प्रतिमाना' विनयने ठेकाणे 'स्थिविर, लखोछो. । अने 'धर्मना' विनयने ठेकाणे 'कुल, अथवा एकगुरुना शिष्यो लखी बतावोछो, । तेनुं कारण शुं ! ते काइ समजायुं नहीं, अगर, तमारा लख्यामुजब कोइ सिद्धांतादिकमां पाठ होयतो तेनो लेख सिद्धांतना नाम साथे प्रगट करो? परंतु स्वछंदपणाथी छता अर्थनो लोप करी, उलटपालट लखोछो तेतो, गंठीछोडापणाज करोछो, एम उघाडेछोगे केहवाथी अचकवाना नथी । अने तमोए जे, त्रीश प्रकारनी आशातनाओ टालवाथी विनय करवानुं लखविताव्युं ते पण, कया हिसाबथी लखीवताव्यु ? केमके जो गुरुनी आशातनाओ विशेषप्रकारथी टालवायूँ कहेताहशो तो ते, तेत्रीश आशातनाओ छ,। अने प्रतिमानी विशेषप्रकारथी कहेताहशो तो ते ८४ प्रकारनी आशातना, शास्त्रकारोए वतावेली छ । तो पछी त्रीश आशातनाओनो संबंध कया प्रकारथी लखीबताव्यो ? तेपण बरोबर समजायुं नही? ।। ॥ पुनः वाडीलाल, पृष्ट. ९३ मां, लखे छे के, ।। त्रणश्रुद्धि-समकिती जीव होय ते, मन, वचन, काया, ए त्रण योगने श्रुद्ध प्रवर्तीवे. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ॥ विचार-आलेख पण महापुरुषोथी निरपेक्ष थइ उलटावीनाख्यो छे,केमके,प्रवचन सारो द्धारादिकमां,१ जिन,२ जिनमत, अने जिनमतना ३ साधु, ए त्रणज सार छे, एम चिंतव, तेने त्रण शुद्धि कहेली छे. । तथाच गाथा. मुत्तूणजिणं मुत्तूण जिणमयं जिणमयठिएमोत्तुं संसार कंत्तवारे चिंतज्जंतंजगं सेसं ॥२॥ ॥अर्थ-१ वीतराग देव, जीवादि तत्वरूप २ जिनमत, अने ३ मुद्ध साधु, ए त्रणने मुकीने बीजुं बधु असार छे, एम चिंतवे तेने त्रण शुद्धि कहेली छे. ।। १ ।। एज प्रमाणे आत्म प्रबोध, तेमन सम्यक्त्व सप्ततिनामा ग्रंथमां पण, विस्तार सहित वर्णन करेलुं छे, । तो पछी अमारा ढूंढकभाइ मन, वचन, काया, ने शुद्ध प्रवर्ताववा रूप, नवीन प्रकारनी त्रण शुद्धिनुं वर्णन, कया ग्रंथथी खोलीने लाव्या ? ते बताव जोइये. ॥ ॥ वाडीलाल-पृष्ट. ९८ मां. ॥ पंच भषण. ॥ १ जैनमार्ग अने धर्मनी भक्ति करे, ज्ञानादिनी भक्ति करे. ॥ २ अरिहंत देव ( वर्तमानकाले श्री महाविदेह क्षेत्रे ) विचरे छे तेमनी भक्ति करे, अर्थात् मन-वचनथी तेमना गुणग्राम करे, अने कायाथी नमस्कार करे. ॥ ३ साधु, साध्वी. तथा साधीनी योग्य भाक्तकरे.॥ ४ धर्मथी अजाण प्राणीने, अने पदर्शनना अनुयायीओने, धर्म समजावे, चार जण बेठा होय त्यां युक्तियी धर्म संबंधी बात छेडे, अने सौने धर्मरागी बनावे. ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३ ५ धर्म पामेलो माणस धर्मथी डगतो होय तेने ज्ञानवडे अने जरुर पडे तो द्रव्यादिकनी सहाय दइने धर्ममां स्थिर करे. || विचार - अमारा ढूंढकभाइये, पांच प्रकारना भूषणने, तदन उलटावीने, आपणीज चातुरीनी चादर पाथरी, अजाण वर्गने भ्रममां नाखबा उपाय कर्यो छे । परंतु शास्त्रकारोनो ए मत नथी, जूवो प्रवचन सारो द्धारमां तथाच गाथा. जिण सासणे कुसलया, पभावणा ययणसेवणा थिरया भत्तीय. गुणा सम्मत दीवया उत्तमा पंच. ॥ १ ॥ ॥ अर्थ - जिन शासनने विषे कुशलता, अनेक प्रकारथी जाने प्रतिबोधी जिनशासनने विषे दृढ करे. ।। १ ।। एज प्रमाणे आपणी कुशलताथी जिनशासननी प्रभावना करे, अर्थात् सर्व मतोथी उच्चत्वपणे मुकवा प्रयत्न करे. ॥ २ ॥ हवे त्रिजुं भूषण तीर्थ सेवा, गाथाकारे आयतन शब्दथी प्रहण करेली छे । तेना बे भेद - द्रव्यथी शत्रुं जयादिक तीर्थोंना मंदिरोनी सेवा, । अने भावथी ज्ञान, दर्शन, चारित्रना धारक साधुनी सेवा, । अर्थात् स्थावर जंगम तीर्थनी सेवा, । ए बन्ने प्रकारनातीर्थनी, सेवा, भक्ति, रक्षण, आदि करवाथी सम्यक्त्वनी उज्जवलता बधे छे. 11 3 11 हवे ४ थुं भूषण' स्थैर्य ' प्रथम आप, पोते, कोइनो डगाव्यो जैनधर्मी डगे नही, तेमज बीजो कोइ जैनधर्मथी डगतो होय तेने पण टेको आपी धर्ममां स्थिर पणे करी लेवे ॥ ४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TA हवे पंचमुं भूषण, भक्ति, प्रवचननो विनय वैयावच्च रूपथी करवी ते. ।। ५ ।। ए पांचे सम्यक्त्वने दीपाववावालां भूषणरूपे छे ।। तेनां नाम, १ जिनशासने कुशलता । २ प्रभावना । ३ तीर्थ सेवा, । ४ स्थैर्य, । ५ भक्ति, I आ पांच प्रकारना नामथी, पांच प्रकारनां भूषण, सम्यक्त्व सप्रति नामना ग्रंथमां, तेमज आत्म प्रबोध विगरे ग्रंथोमां, सविस्तरपणे वर्णन करीने बतावेलां होवा छतां, तेनां नाम विगरे उलटावी, अमार। ढंढकोए, मुख्यत्वे जे त्रिजुं तीर्थ सेवारूप भूषण हतु, तेने, कहाडीनाखीने, बधाए भूपणांनो अर्थ आपणी मतिं कल्पनाथी जोडी कहाडयो छे, तेथीज अमो एमने पाका गंठी छोडानी उपमा दइये छीए, अगर जो एमना मान्य करेला सिद्धांतादिकमां, एमना लख्या मुजब पांच भूषणनो अर्थ लखेलो होय तो ते सिद्धांतना पाठनी साथै, सिद्धांतनुं नाम पण प्रगट करीने बतावे ? अमो तेन शिरसा वंद्य करी मस्तक उपर चढावी लइशुं । परंतु कोइ अर्द्ध दग्धना हाथनो लेख हशे तो तेने तो धिक्कारज आपको पडशे केमके आजकालना जन्मेला अमारा ढूंढको, ज्यारे पूर्वना महान् महान् आचार्योंना गंभीर लेखाने, मान्यपणे राखता नथी तो पछी, तेमनी मूढतापणे आजकालना अल्पमतिथी लखायेला तेमना लेखनो, आदर केवी रीते धर्मज्ञ पुरुषो करशे ? कोइ दिनपण तेमना मृढपणाना लेखनो आदर थइ शके नही ? एम सर्व कोइने कबुल कर पडशे ? ॥ इंढक पृष्ट. १०६ थी - आठ प्रभावकनो अर्थ, सर्व आचाffer निरपेक्ष थइ, बधो उलटावीनाख्यो छे, अनं. ६ ठा. विद्यावान प्रभावकनी दीपमां नीचे लखे छे के कोई कहे छे के, विद्या एटले , 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ चमत्कारी विद्या, देव देवीने साधवानी विद्या, पण में तेनो समावेश चोथाप्रकारमां करी दीघेलो होवाथी, विद्या एटले विविधज्ञान, ए अर्थ मने वधारे पसंद छे. ॥ || आ लेखथी विचार करबानो ए छे के, आ अमारा ढूंढक भाइए, ज्यारथी आ चोपडीमा लेख लखवानी शरु कर्यो छे, त्यारथी आपणे आप जैनतीर्थना अधिपतिनुं ( अर्थात् साक्षात्पणे तीर्थ प्रवर्त्ताविवाने जाणे तीर्थकरपणाना अवतारनं ) डोल धारण करी, गणधर महाजाओथी निरपेक्ष थइ, चार निक्षेपना विषयमां आपणा मनमां जे आव्युं ते लखीवाल्युं, अने २५ बोलना विषयमां पण गणधर महाराजाओथी विपरति थइ, महा दूषणानां विचार कर्याविना, आपणीज मतिनो खीचडो भेगो करी जाहेरपणामां, बेचबाने तैयार थया । अने सर्व पूर्वधरादि महापुरुषोथी निरपेक्ष थइ, त्रिजा प्रकरणमां सम्यक्त्वना विषयने समज्याविना, अडद मगनो खीचडो भेगो करी, आपणे आप शाहुकारीपणानी पेढीने खोली, सफेद, पीला, अने दिशा, वस्त्रवालाओने, दीपक समर्कितमां बतावी, शाहुकारीपण बतावी दीवं । आते कया प्रकारवाली अमारा ढूँढकोनी धिठाइ ? ते कांइ समजातु नथी ? अने वली आ आठप्रभावकना विषयमांतो, सर्व महापुरुषोथी निरपेक्ष थड, प्रगटपणे लखीने बतावे छे के ।। कोई कहे छे विद्या एटले चमत्कारी विद्या, पण में तेनो समावेश चोथा प्रकारमा करी दीधेलो होवाथी, विद्या एटले विविध ज्ञान, ए अर्थज मने वधारे पसंद छे । आलेखथी वाचक वर्गने विचार करवानो ए छे के, कोइ कहे छे, एम लखीने सर्व महापुरुषोंने छोडी। दीघेला होवाथी, अर्थात् सर्व ग्रंथांना लेखी विपरीत थइ, आपणे आप मति कल्पनानो अ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ र्थ करेलो पसंद पडवानुं कहे छे, तो जो कोइ धर्मज्ञ पुरुष हशे ते तो आवा स्वछंदपणाना अनुचित लेखोथी दूरज रहेशे, एम अमारी भलामण छे, केमके समुद्र जेवी गंभीर बुद्धि वाला महापुरुषोथी लखायला लेखोनो अनादर करी, आज कालना जन्मेला अल्पमतिओ वालाए, स्वछंदपणे लेख लख्या होय, तेना उपर आदर करी, आपणा कल्याणनी इच्छा राखवी, ते कोइ दहाडो पण प्राप्त थइ शकवानी नथी, एवं खासपणे विचार करवानो छे. ।। वली ढूंढक - पृष्ट. ११० मां लखे छे के, ॥ समकित विना, धर्म ए नामनोज संभव नथी, ॥ चेतन ते प्रीछ्यो नहि, शुं थयो व्रत धार । साल विहुणा क्षेत्रमां, वृथा बनावी वाड । १ ॥ विचार - कोइ पण पुरुष आ लेखनो विचार करतां मने जरुर पुछशे के, आ लेखमां ते तमो शुं खोट काडीने बताववाना छो ? परंतु अमोए उपरनो लेख जे लखीने बताव्यो छे, ते पुष्टि करवा माटे लखीने बताव्यो छे, परंतु खोटो ठराववा, लखीने बताव्यो नथी । केमके आलेख उपरथी विचार करवानो एछे के, । समकित विना, धर्म एनामनोज संभव नथी। एटलं तो अमारा ढूंढक भाइयो पण जरुर मान्य राखी, लखीने पण बतावे छे, त्यारे ज्यारथी विचारवानुं ए छे के आ जैनधर्मनी प्रवृत्ति चाली आवे छे, त्यारथीज ते सम्यक्त्व, सर्व प्रकारना धर्मनी प्राप्ति करवामां मुख्यपणे पाया रूप छे, एम आपण सर्वने, अवश्य मानवंज पडशे ? केमके ते सम्यक्त्व विना, बीजा एक पण आत्मिक धर्मनी प्राप्ति, यथा योग्यपणे थइ शकती नथी, तेथी art अनेक प्रकारनी क्रियाओ करवा छतां पण, जो सम्यक्त्व प्राप्त नथ होय तो, ते सर्व क्रियाओ, स्वार्थ सिद्धि विनानी गणाय ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ वास्ते सम्यक्त्व छे तेज एक धर्मनो दरवाजो छे, अने तेनुज वर्णन, अमारा ढूंढकभाइये, आपणी चोपडीमां सविस्तर पणे, सर्व आचार्योथी निरपेक्ष थइ, उलट पालट करी. आपणी मात कल्पनाने आगळ करीने लखी बताव्यु. । आवा मुख्य विषयनो लेख लखतां एमने, कोइपण सिद्धांतादिकनो आधार न बतावतां, मात्र आपणीज मातने आगल करी मुकी, तो शुं ? एमणेज आ धर्मनो दरवाजो खोलीने बताव्यो छे के ? कोइ पूर्वना महान् महान् आचार्यो आ धर्मना दरवाजो खोलीने बतावता गया छ ? आ वात शुं भव्यामाने जाणवा योग्य नथी ? वास्तेज कहीये छीये के, जो एकाद महापुरुषतुं पण नाम आगल करी, आ सम्यक्त्वना विषयने लखीने बतावता तो, अमोने पण फरी पुछवानी जरुर न पडती, अने तमारो लेख पण मान्यतारूपे थइ पडतो, परंतु तमोए तो लेख लखनां एके आचार्यतुं नाम ना आप्यु, तेथी अपो एम कहीये छीये के, तमो ढूंढको सम्यक्त्वना स्पर्श मात्रथी तो दूर थया छो तेमां तो, काइ नवाइ जेवूज नथी, परंतु सम्यक्त्वना भेदोना यथावत् ज्ञानपणाथी पण दूर थयेला छो ? तेथीज उलट पालट पणे आपणी मति कल्पनाथी, विपरीत लेख लखीने बतावो छो, अने नतो कोई सिद्धांतनी पण साक्षी लखी बतावो छो, तेमज नतो कोइ आचार्यपण नाम लखीने बतावो छो, तेमज नतो कोइ ग्रंथ मात्रनी पण साभी बतावो छो, वास्ते आवा पाया वगरना लेखने तो, कोइ तमारा जेवा जैन मतनीश्रद्धाथी दूर थयेला हशे तेज मानी लेशे ? परंतु खरा जैन धर्मनी प्राप्तिनी इच्छा वाला तो, कोइ दिन पण तमारा लेखनो आदर करसे नही ? ॥ केमके जे सर्व जैन धर्मनी प्राप्तिनुं मुख्य साधन, अथवा सर्व प्रकारथी आत्मिक धर्मनी प्राप्तिनुं मुख्य साधन रूप, सम्यक, छे तेनो विचार सर्व महापुरुषोथी निरपेक्ष थइ, तमारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेवा आज कालना जन्मेला, स्वछंद पणाथी करीने बतावे ते तो, कोइ दिन पण योग्य रूपे गणायज नहीं ? एटलो सामान्य पणाथी विचार तो, जे मूर्खमां मूर्ख गणातो हशे, ते पण जरुर करशेज ? - ढूंढके-पृष्ट, ११२ थी, छ यत्ना ( जयणा )नो अर्थ, सर्व महापुरुषोथी निरपेक्ष थइ, एकाद पण ग्रंथनो आधार लीधा वगर, आपणीज मतिना गोला गर गडाव्या छ. | अने तदन विपरीतपणेज लोने बतावे छे. । अने तेनी टीपमा लखीने बताये छे के, “ केटलाक ' आ छ यत्नानो' तद्दन जूदोज अर्थ करे छे, समकिती जीवना संबंधमां ते बोल न उतारतां मिथ्यात्वीना संबंधमां उतारे छे, एटले मिथ्यात्वीने आवकार विशेषे-आवकार, दान, पदान, वंदन, अने गुणब्राम, न करवां । मारा समनया प्रमाणे, धर्मबुद्धिथी मिथ्यात्वीने, आयो, पधारो, एम न कहेवू, अगर दान न देवू, ते बराबर छे, पण घेर आवेला हरकोइ माणसने बोलावबोज नहि, अगर हरकोइ धर्मना दुःखीने दान कर नहि, एको कोइ दिवस जैन शास्त्रोनो उपदेश होयज नहि." विचार-टीपमा तमोए काइ वधारे बताव्युं होय तम नथी, शास्त्रकारोनो पण एज अभिमाय छे केमके तेओए पण धर्म बुद्धिथीज करवानी मनाइ करेली छे. ॥ ॥ गाथा ॥ सव्वेहिपिजिणोहिं दुजयजिय रागदोस मोहेहिं सत्ताणुकंपणठा दानं न कहंपि पडि सिद्ध, १ । अर्थ-दुःखेथी जीती शकाय एवा राग, द्वेष, मोह, ने जीती लीधा छे जेमणे, एवा सर्व तीर्थकरोए, प्राणीओनी अनुकंपाने वास्ते, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ दान देवानुं कोइ जगो उपर पण निषेध करेलुं नथी. ॥ " हवे विचार करो के अमारा ढूंढक भाइये, पोतानी टीपम, धारे शुं ? कहीने बताव्युं, मात्र वधारे तो तेमणे तेज करीने बतावयुं छे के जे, छ यत्नोनो अर्थ उलटावी, आपणी मति कल्पनानो अर्थ लखीने बताव्यो, अने कोइ पण प्रकारमो आधार लखीने बताव्यो नही. ॥ अही शाखकारोनो' छ यत्नोनो' अर्थ जे छे ते लखीने बतावीये छीए. || ॥ गाथा ॥ नो अन्नतिथिथए अन्नतिथि देवेय तह सदेवेवि । गहिए कुतिथ्यिएर्हि, वंदामि नवा नम॑सामि १ ॥ नेव अणालिता आलवेमि, नोसंलवेमि तह तेसिं । देमि न असणाईयं, पेसेमि न गंध पुप्फाइ २ ॥ अर्थ- अन्यतीर्थिक, परिव्राजक । अन्यतीर्थिक देव रुद्रादि, तेमज ' जिनप्रतिमाने ' तेओ ग्रहण करीने बेठा होय तेने पण, बंदना, १ तेमज नमस्कार २ करुनहि. || १ || हवे त्रीजी, तेमणा बोलाव्याविना बोलं नहि. ३ | वारंवार पण तेमणे बोलावुं नहि. ४ । अने धर्मबुद्धिथी तेमणे अशनादिक आपुं नहि, परंतु अनुकंपाथी आपवानी मनाई नही. ५ । पुष्प गंधादिक पण तेमणा देवनी सेवामाटे भेज नही. ६ ॥ २ ॥ "" 11 छ यत्नानां नाम " || १ परतीर्थिकादि वंदन, । २ नमस्करण, । ३ आलापनं । ४ संलपनं । १ अशनादिदानं, । ६ पुष्पादिप्रेषणं ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० " ॥ आ छ प्रकारनी यत्ना, प्रवचन सारोद्धारमां तेमज सम्पक्क सप्तति नामाग्रंथमां तेमज आत्ममबोधादि, अनेक ग्रंथोमां लखेली छे. ।। ते बधाए ग्रंथकारोथी निरपेक्ष थइ, अमारा ढूंढक भाइ, नवीन प्रकारथी, स्वछंदपणे लखीने बतावे छे. ।। जवां पृष्ट ११२ थी . १ आलाप - समकितीजीव बीजा समकिती जीवने बोलावानो विनय करे जेमके आवो पधारो. ॥ | २ संलाप - समकिती जीवने विशेषे आदर सहित बोलावे, कुशलक्षेम पूछे, इत्यादि ॥ ॥ ३ दान - समकिती जीवने अन्न-जल मुखवास-धन आदिनुं दान आपे. (आ श्रावके श्रावकनी बात छे, साधु-साधुने अगर साधु श्रावकने अगर श्रावक साधुने जुदा प्रकारनुं दान आपे, ज्ञान दान पण दानज छे.) ॥ ॥ ४ प्रदान - विशेषे दान आपे ॥ ।। ५ वंदन - समकिती जीवने वंदन नमस्कार करे. ॥ ॥ ६ गुणग्राम - समकिती जीवनी पुठपाछल तेनां वखाण करे, ॥ || आ छ प्रकारनी यत्नानुं स्वरूप, अमारा ढूंढक भाइ, कया ग्रंथी, अथवा कया सिद्धांतथी, लखीने बतावे छे, तेनुं तो नाम निशान पण जणातुं नथी, तो पछी जे सम्यक्कने, धर्मनातो एक मूल रूपे गणेयुं छे, । अने जे सम्यक्त्वने, धर्मनात एक द्वाररूपे गणेयुं छे, । अने जे सम्यक्त्वने धर्मना एक पायारूपे गणेयुं छे, । अने जे सम्यक्त्वने, धर्मना एक आधार भूत गणेलुं छे. । अने जे सम्यक्त्वने, धर्मना एक खजाना रूप मानेतुं छे । एवा अमूल्य सम्यक्त्व रतन रूपना अनेक भेदो, महापुरुषोए, सिद्धांतामां करीने बतावेला छे, ते भेदाने छोडीदर, आजकालना जन्मेला अर्धदग्ध पुरुषोए जे नवीन प्रकारथी करीने बतावेला होय, तं भेदोने कबूल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९ करवा ए शुं ? ब्याजबी थयेलुं छे एम गणाशे के ? तेनो विचार पा ठक वर्ग करीने बतावे, एटले अमारे पण बस छे । अने जे आ छयत्नानो अर्थ ढूंढक भाइये लख्यो छे, ते एकपण ग्रंथमां लखेलो होय एम जणात नथी, तेथीज अमो ए अर्थने नवीन प्रकारनो कहीये छीये. ॥ ॥ हवे अमो भव्य जीवोना उपकार माटे, फरीथी ६७ बोलनुं नाम, अने तेनो सामान्य मात्र अर्थ, जे सिद्धांत कारोए करेलो छे तेनो, प्रथम कमां लेख आपीने, तेनीज निचे प्रति पक्षरूपे, अमारा ढूंढक भाइनां लखेलां नाम, अने तेनो अर्थ पण लखीने बताबी छीए, के जेथी पाठक वर्गने सुगमताथी तेनी समज पडे. ॥ ॥ चार सर्दहणा. ॥ ॥ सिद्धांतकार १ परमार्थ संस्तवः | २ परमार्थ ज्ञात सेवन, ३ व्यापन्न द. र्शन वर्जन, । ४ कुदर्शन वर्जन, एचार सदहगा जाणवी || ॥ ढूंढक - ॥ चार सर्दहणा. १ परमार्थ संस्तव, । २ परमार्थ ज्ञात सेवन, । ३ व्यापन्न दर्शन वर्जन, । ४ कुदर्शन वर्जन, । 1 ॥ सिद्धांतकार - ॥ त्रण लिंग ॥ १ शुश्रूषा । २ धर्मराग, | 3 वैया नृत्य, ॥ ॥ ढूंढक-त्रण लिंग, १ शुश्रूषा, ! २ धर्मराग, । ३ वैया नृत्य, ॥ || अहीं सुधी अर्थमां विशेष फरक नही होवाथी, नाम मात्रज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ लखीने बताव्यां छे, अर्थ छे ते सिद्धांतोथी जोइ लेवो. ॥ अहीं सुधी ६७ मांना ७ बोल थया.॥ ॥ सिद्धांतकार-॥ दशप्रकारनो विनय.॥ १ अरिहंत-तीर्थकरोनो विनय, ॥ २ सिद्ध-अष्टकर्मथी रहितनो विनय, ।। ३ चैत्य-जिन प्रतिमानो विनय, ॥ ४ श्रुत-आचारांगादि सिद्धांतादिकनो विनय, । ५ धर्म-क्षमादि यतिना दश धर्मनो विनय, 1 ६ साधुवर्ग-साधुना समुहनो विनय, ॥ ७ आचार्यनो विनय, ॥ ८ उपाध्यायनो विनय, ॥ ९ प्रवचन-संघनो विनय, ॥ १० सम्यकनो, अने सम्यकवालानो विनय, ॥ ॥ ढूंढक-पृष्ट. ९२ मां ॥ दश विनय. ॥ १ अरिहंतनो, ६ कुल, अथवा एक गुरुना शिष्यो,।। २ सिद्धनो, ७ गण, अथवा घणा आचार्योना शिष्यो, । ३ आचार्य, ८ संघ, ४ उपाध्याय, ९ साधी तथा ५ स्छिवर, १० क्रियावंत. ए दशनो विनय करे, एम लखी जैनमतना मुख्य रूप, अथवा सम्यक्त्वना मुख्य कारण रूप, तीसरा बोलथी जुदा पडया छ, तेनो पाठके विचार करवो. ॥ - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ || सिद्धातकार १ जनमत - तीर्थकरोए कहेला जीवादितत्व, 1 २ जिममत स्थित - शुद्ध साधुओ, ॥ ३ जिन - वीतराग देव, । ॥ त्रण शुद्धी ॥ आ त्रण वस्तु विना, वधु जगत प्राये असार रूपज छे, एवो विचार करवाथी सम्यक्त्वनी शुद्धी थाय छे, तेथी ए ऋण शुद्धी कही छे. ॥ ॥ ढूंढक - ॥ त्रण शुद्धि. तदन विपरीत लखे छे, समकिती जीव होय ते १ मन २ वचन ३ काया ए त्रण योगने शुद्ध प्रवर्त्तावे. ॥ ॥ सिद्धातकार - पांच दूषण. ॥ १ शंका, । २ कांक्षा, । ३ विचिकित्सा, 1४ कु दृष्टि प्रशंसा, । ५ कुं दृष्टि परिचय, ॥ ॥ ढूंढक-पांच दुषण रहित पशुं ॥ १ शंका, । २ कांक्षा, । ३ विचिकित्सा | ४ अन्य तीर्थिक प्रशंसा । ५ अन्य तीर्थिक परिचय. ॥ आ पांच दूषणनी व्याख्यामां तात्पर्यथी फरक विशेष नही sharir, नाम मात्र लखीने बताव्यां छे. 11 अशी शषी ३७ बोलमांथी २५ बोलनो विचार करीने बताव्यो छे. ॥ सिद्धातकार पांच भूषण. १ जिनशासनने विषे, कुशलवा. अर्थात् चतुर. ।। २ प्रभावना - जिन शासनने, आपणी ज्ञानादिक शक्तिवडे करीमे दीपावे, ते प्रभावना. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ v ३ तीर्थसेवा - स्थावर तीर्थ, शत्रुं जयादि तीर्थोना मंदिरां नी सेवा, । जंगम तीर्थ, शुद्ध साधुओनी सेवा, एबे प्रकारनी तीर्थसेवा. । ४ स्थैर्य - आप जैन मार्गथी डगाव्यो डग नही, अने बीजान पण डगवा दे नही, ते स्थैर्य. । ५. भक्ति - प्रवचननी वैयावच करवा रूप. li ॥ ढूंढक पांचभूषण. १ जैनमार्ग - अने धर्मनी भक्ति करे, ज्ञानादिकनी भक्ति करे. || २ अरिहंत देव - ( वर्तमानकाले श्रीमहावि देहक्षेत्र) विचरे छे तेमनी भक्ति करे, अर्थात् मन वचनथी तेमना गुण ग्राम करे, अने कायाथी नमस्कार करे. ॥ ३ साधु-साध्वी तथा साधमींनी योग्य भक्ति करे. ॥ ४ धर्मथी अजाण प्राणीने, अने पददर्शनना अनुयायीओने, धर्म समजावे, चारजण बेठा होय त्यां युक्तिथी धर्मसंबंधी बात छेडे अने सौने धर्मरागी बनावे || ५ धर्मपामेलो माणस धर्मयी डगतो होय तेने, ज्ञानवडे अन जरुर पडेतो द्रव्यादिकनी रहाय दइने धर्ममां स्थिर करे. ॥ आ पांच भूषणमां, नाम, अने अर्थ, वन्नेने फेरवीनाखी, केवल आपणी मति कल्पनाज खोटे खोटी सिद्धांताकारोथी निरपेक्ष थइने करेली छे, तेनो विचार अमो लखीआव्या छे. ॥ || सिद्धांतकार - पांचलक्षण. ॥ १ शम, । २ संवेग, । ३ निर्वेद, । ४ अनुकंपा, ५ आस्तिक्य. ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढंढक-पांच लक्षण.॥ १ शम, । २ संवेग, । ३ निर्वेद । ४ अनुकंपा, ५ आस्था.॥ आ पांच लक्षणमां पण, वधारे फरकजेवं नही जणाववाथी अमोए विवेचन कर्यु नथी. ॥ सिद्धांतकार- आठ प्रभावक.॥ १ प्रवचनी, । २ धर्मकथी; । ३ वादी,। ४ नैमित्तक, । ५ तपस्वी, । ६ विद्यावान् , । ७ अंजनादि सिद्ध, । ८ कविः ॥ ढूंढक-आठ प्रकारे प्रभावक. ॥ १. प्रवचनी, । २ धर्मकथी, । ३ वादी, ४ नैमित्तिक, । ५ तपस्वी, । ६ विद्यावान, । ७ प्रसिद्धनत, ८ काव्य शक्ति, ॥ __आ आठ प्रकारना प्रभावकमां केटलेक ठकाणे तो अर्थनो फरंक कर्यो छे, अने सातमा प्रभावकमां तो नाम शुद्धा फेरवी नास्युं छे. ॥ सिद्धांतकार षट भावना. ॥ १ आ सम्यक्त्क- चरित्र धर्मर्नु मूल छे. . २ आ सम्यक- धर्मनुं द्वार छे. ॥ ३ आ सम्यक धर्मना पायारूप छे. ॥ ४ आ सम्यक्त्क- धर्मने आधारभूत छे. ५ आ सम्यक्त्क- धर्मना भाजनरूप छे. ६ आ सम्यक- धर्मना खजानारूप छे.॥ ढूंढक-पृष्ट १०९ थी-पट भावनानो अर्थ एज प्रमाणे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लखे छे, तेथी फरी लखी बतावता नथी. । सिद्धांतकार- छ प्रकारनी यत्ना. ॥ १ पर तीर्थिक साधु, अने तेमना देवने वंदनादि वर्जन. ॥ २ तेमणे नमस्कारादि वर्जन.। ३ तेमनी साथे विना बोलावे आलाप वर्जन. । ४ तेमनी साथे विना बोलावे वारंवार संलाप करवान वर्जन. ५ धर्मबुद्धिथी अशनादि प्रेषण वर्जन. । ६ धर्म बुद्धिथी पुष्पादि प्रेषण वर्जन. ।। ढूंढक-छ यत्ना ( जयणा) १ आ लाप–समकिती जीव बीजा समकिती जीवने बोलाववानो विनय करे, जेम के आवो, पधारो. ॥ २ संलाप-समकिती जीवने विशेषे आदर सहित बोलावे, कुशल क्षेम पुछे इत्यादि । ३ दान-समकिती जीवने, अन्न-जल, मुखवास, धन-आदिनुं दान आपे, । आ श्रावकने श्रावकनी बात छे, साधु-साधुने, अगर साधु श्रावकने, अगर श्रावक साधुने, जुदा प्रकारनुं दान आपे, ज्ञान दानपण दानज छे. ।। ४ प्रदान-विशेष दान आपे,। ५ वंदन-समकिती जीवने वंदन-नमस्कार करे । ६ गुण ग्राम-समकिती जीवनी पुंठ पाछल तेनां वखाण करे. आ छ प्रकारनी यत्नामां तो, सर्व आचार्योथी अने सर्व जैनना ग्रंथोथी निरपेक्ष थइ, नाम, अने तेनो अर्थ, तदन नवीन प्रकारथी ज करीने बताव्यो छे. ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ सिद्धातकार छ आगार. ॥ १ राजा भियोग, । २ गणा भियोग, । ३ बला भियोग, । ४ सुराभियोग, । ५ कांतार वृत्ति, । ६ गुरु निग्रहः ॥ ढूंढक भाइ पण, एज नामथी लखीने वतावे छे, तेथी फरी लखता नथी, अर्थमां पण पाये फरक जेवू नथी. सिद्धांतकार षट् स्थान. ॥ १ अस्तिजीव-एटले जीव छ.।। २ ते जीव नित्यरूपं छे, तेनो नाश थवानो नथी । ३ ते जीव, नवीन कर्मनो कर्त्तापणं छे. ॥ ४ ते जीव, करेलां कर्मनो भोक्ता पण छे. ।। ५ ते जीवनो, कर्मथी छूटको थवाथी मोक्ष छे. । ६ अने मोक्षनो उपाय पण छे. ॥ आ छ प्रकारना स्थानमां, अमारा ढूंढक भाइये, नाम, तथा अर्थमां पण, विशेष फरक करेलो नथी, तेथी अमो फरी लखी बतावता नथी. ॥ अहीं सुधी सर्व मलीने सम्यक्त्वना ६७ बोल पुरा थया छे. |आ सम्यक्त्वना विषयमां, कोइ वधारे जाणवानो ऊद्यम करशे तेने, अमारा ढूंढक भाइयो एम केहशेके, एतो ग्रंथकारो लखे छे, अने ते ग्रंथोने आपणे मानता नथी, एम कहीने धोखामां नाखशे, तेमणे अमो एज कहीये छीए के, जो तमो ग्रंथकारोनो लेख मानता नथी तो भले रहेवायो अने तमाराज मानेला सिद्धांतोमांथी, आ धर्मना दरवाजाने खोलवानी कुंचीयो, अमोने बतायो ? एटले अमारे पण बस छे, नहितो अमो एज कहीशु के, ज्यारथी तमारो ढूंढक पंथ ऊभो थयो छे, त्यारथीज तमारा वास्ते धर्मना दरवाजो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ बंध थयेलो छ । केमके ते धर्मना दरवाजानी कुंचीयो, तमारा मा. नेला सिद्धांतोमां तो छेज नहि. । अने ते मूर्तिपूजकोना घरनी कुंचीयो चोरी लइने, मरोडा मरोडी करी, उलट पालटपणे बंधबेसती कर्याविना, धर्मनो दरवाजो खोलवानो प्रयत्न करोछो, तेथी तमो गंठीछोडाफ्णु करीने धर्मना दरवाजामां जबरजस्तिपणे पेसवानो प्रयत्न करोछो. । परंतु तमारा वास्ते तो ते खरो धर्मनो दरवाजो बंधज थयेलो छ, अने ते खरा धर्मना दरवाजानी कुंचीयो पण तमारा हाथमां आवेली नथी, एम अमो खातरीबंध कहीये छे. । अगर जो तमारा मानेला सिद्धांतमां, तमारी लखेली धर्मना दरवाजानी कुंचीयो, तमारी पासे होय तो ते सिद्धांतना पाठनसाथे तेनुं नाम पण प्रगट करीने बतावो? अमो तमारा अनुयायीपणे वर्तन करवाने जरापण वार लगाडीशुं नहि, तेम अर्द्ध दग्धना लेखने मानीशं पण नहि.॥ इति ६७ बोलना तत्त्वाऽतत्त्वनो विचार संपूर्ण. ॥ इति श्रीमद्धि जयानंद सूरीश्वर लघुशिष्येनाऽमरमुनिना धमना दरवाजा संवधि सम्यक्त्वरुप सप्तषष्टी वोल नाम्नःपंचम प्रकरणे तत्त्वाऽतत्त्व विचारःसंकलितः ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९ प्रकरण ७ मुं. मिध्यात्व. ॥ ढूंढक- पृष्ट, १६५ मां मिथ्यात्वना नीचे समजाबेला २५ भेद समजीने, तनो संघट्टो न थवा देवा साबचेती राखवी, एम कही. पृष्ट. १७१ मां ( ३ ) अभिनिवेशिक. || नी व्याख्या करतां लखे छे के - श्री वीतराग देवनां वचनो उत्थापे - उत्सूत्र परु पणा* करे ते मनुष्य अभिनिवेशिक मिथ्या त्वी समजवा. इत्यादि । ॥ विचार — ढूंढ़कभाइ, पृष्ट. १९९ मां, मिथ्यात्वना दशमा भेदमां लखे छे के, (१०) वीतरागे कां ते करतां अधिक परुषे ते दशमं अधिक परुपणा मिथ्यात्व. । 1 एम मिध्यात्वनो दशमो भेद लखी बताववा छतां ॥ जैनना एक सिद्धांतमां, एकंदरना सर्वाला रूपथी, एमना कहेबा प्रमाणे नहि कला एवा, आ मिथ्यात्वना तो २५ भेद. | * आ चक्रनी टीपमां लखे छे के - ( १ ) तिखुत्तोना पाठमा अने बीजी घणी जगाए ' इयं ' शब्द खुल्ला ज्ञानना अर्थंमां वपरायेलो छतां तेने — मूर्ति, ना अर्थमां लइने, तथा, निक्षेप, नो तद्दन अवलो अर्थ लइने, केटलाक साधुए, पथरानी पूजा परुपी, अने पृष्टिमां ग्रंथो रच्या. ॥ ॥ ( २ ) युरोपियन पंडित ' हर्मनजेकोबांए ' आचारांग सूत्रो अंग्रेजी तरजुमो कर्यो तेमां, जैन साधुने मांस खावुं कल्पे, एत्रो अर्थ कर्यो. आ बन्ने दृष्टांतमां फरक एटलोज के. पेहला दृष्टांतमां जाणी बुझीने 'अपराध, थयो छे, अने बीजा दृष्टांतमां, गुरुगमना अभावे अज्ञान छे । अंधकारमा कोइक दिवस दीपक आवशे, पण घोल । फक्क अजवालामां बेठेला की की वगरनी आंखवालाने, प्रचंड सूर्यपण शुं करी शकशे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अने त्रिजा प्रकरणमां कहेला सम्यक्त्वना ९ भेद. ।। अने चोथा प्रकरणमां भिन्न भिन्न विवक्षाथी विचार करवाना विषयोने, २५ है. ष्टिना स्वरूपथी, अथवा २५ बोलना रूपथी, एक चीज उपर एकज वखते अने एकज प्रसंगथी लागु पाडीने बताव्या ते. ॥ तेमां पण जैननां मुख्यता रूप बे प्रमाणने छोडी, चार प्रमाण रूपथी व्याख्या करीने बतावी ते, तेमज नयोना विषयमा । निक्षेपोना विषयमां तमोए मनः कल्पनाथी लखीने बताव्युं ते ।। ___ आ उपर लखेला विषयोमा, जैन सिद्धांतोथी तद्दन विपरीत पणा, आचरण करी, अने सर्व गणधरादि महापुरुषोथी निरपेक्ष थइ, जे मति कल्पनाथी स्वछंदपणे लेख लख्यो छे, तेथी अधिक अथवा न्यून प्ररूपणा रूप मिथ्यात्वना पात्र वाडीलाल, अने वाडीलालने मार्ग बतावनार, बने छे के नही ? तेनो विचार पाठक वर्ग करे ? अगर तमोज तमारी मेले विचार करीने जुवो ? एटले अमारे बस छ.।। ॥तेमज सम्यक्त्वना १७ वोलमां पण, सर्व जैन, रिद्धांतका. रोथी, विपरीतपणे आचरण करी, स्वछंदपणाथी, कोइ जगोपर तो तद्दन विपरीतार्थ, अने कोइ जगोपर उलट पालटपणानो अर्थ, मिध्यात्वना पात्ररूप बनीनेज करा छो ? ॥ तेमज-पृष्ठ. २०२ मां, (२२) मा, अविनयने मिथ्यात्व ठराव्यो ते, अने. ( २३ ) मा मांहे त्रीश आशातनाने मिथ्यात्व ठरावी ते,। आ अविनय, अने आशातनाने, कोइ सिद्धांतकारोए पण, मिथ्यात्व एवं नाम नही आपेलुं छतां, तमो मिथ्यात्व एवं नाम आ. पीने, अधिकपणुंज करीने बतावो छो. । ॥अने. पृष्ठ. २०० मा. ( २४ ) मा, दया धर्म ने अधर्म सदहे ते मिथ्यात्व. । (१५) मा, हिंसा धर्मन धर्म सर्दहे ते मि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थ्यात्व. । ( १६) मो २७ गुण सहित वर्तता साधुने, अज्ञानी अथवा मता ग्रहीपणाथी असाधु कहे, ते मिथ्यात्वं । इत्यादि मिध्यात्वना जे बोलोने लख्या छे, तेमां २४ मा बोलमां, धर्म ने अधर्म सद्दहे, एम. । अने-(१५) मा बोलमां, अधर्मने धर्म सद्दहे, एम. । (१६) मा बोलमां, साधुने असाधुने कहे, एम. । शास्त्र करो ए लखेटु छे छतां, तमोए-(१४) मामां, दया शद्धः । अने (१५) मामां, हिंसाशद्ध. । अने (१६) मामां, २७ गुण बिगेरेना शहो, आधिकपणे लखीने बताव्या, तेपण अधिक प्ररूपणा रूप मिथ्यात्वपणानेज अंगीकार करो छो. । केमके तमारा लख्या मुजब कोइपण जैनशास्त्रमा लखेटु नथी. ॥ ॥ अने-पृष्ट. १७५ थी, संशयिक मिथ्यात्वनुं वर्णन करतां, । पृष्ट. १७६ मां, लख्युं छे के, संशयनो खुलासो न थाय तो पछी. "तुमेव सञ्चं जाणेहंपवेइयं. ” अर्थात् तमेज साचाछो तमे का ते सत्य छ, । ए श्री अचारांगजीन वाक्य छे, एम लखी मननी समाधानी राखवानुं लख्यु छे, तेनो अर्थ पण नवीन प्रकारनो ज करीने वताव्यो छे. तेम पाठ पण नवीन प्रकार जेवोज लागे छ, जूवो ते बाक्य, अने तेनो खरो अर्थ, “तमेव सच्चं जं जिणेहिं पवेइयं.।" छाया.। तदेव सत्यं यतार्जिनैः प्रवेदितं. अर्थ. ज्यां संशय पडे त्यां एम विचार करवानो छे के, तेज वात सत्य छे, जे जिनेश्वर देवोए प्रवेदन करी छे, अर्थान् कहेली छे, एम विचार करवानो अर्थ छे, परंतु, तमेज साचाछो, एवो अर्थ ते वाक्यनो नथी.॥ आ लेखो बताववानुं प्रयोजन ए छे के, तमारा ढूंढकोने, एक पण सिद्धांतना वाक्यनो अर्थ, यथा योग्य नहीं समजवा छतां पण, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केटला लांबां पगला भरो छो ? ते तमारी पाकी धिटाइनुज परिणाम जणावो छो.॥ हवे तमोए जे, नीचेनी टीपमा, आक्षेप कर्यो छे, तेनो किंचित विचार करीने बतावीए छीए. 'तिखुत्तो' ना पाठमां, तेमज वीजी घणी जगोए जे 'चेइय' शब्द छे, तेनो अर्थ प्रतिमाज छे, अने एज अर्थ, ढूंढनी पार्वतीना लेखी पण सिद्धज थाय छ. ।। जूवो प्रथम सत्याथै पृष्ट १०० ओ. ११ मां, ढूंढनीज लखे छे के, टीका टब्बाकारोने चेइय शब्दका अर्थ, प्रतिमा लिखाभी है तो मृतिपूजक आचार्योंने पक्षपातसें लिखा है.॥ __ आ लेखमां अमो एटलुंज पुछीये छीये के, टीकाकारो, अने टब्बाकारोए ' चेत्य ' शब्दनो अर्थ “ मूर्ति " करेलो छे छतां तमारा ढूंढको, कोइ पण प्रमाणिक ग्रंथना अक्षरोनी साक्षी आप्या विना, केवल आपणी मूढतापणे, ज्ञाननो अर्थ करीने बतावे छे, तेतो तमारा जेवा मूढ हशे तेज मानशे, परंतु चतुर हशे तेतो जरुर विचारज करशे, ॥ ते शिवाय सत्यार्थ पृष्ट. १४७ मां, ढूंढनीए, जे नंदिसूत्रना मूल पाठमां गणावेला, विवाह चूलिया मुत्रना, नवमापाहु डाना, आठमा उद्देशानो, मूल पाठ लख्यो छे, तेथी पण मूर्तिपूजा, अनादिपणाथी छे, एम साक्षात्पणे सिद्धज थाय छे. ।। परंतु 'चेइय' शब्दने मूर्तिना अर्थमां लइने । तथा निक्षेपनो, तदन अवलो अर्थ लइने । केटलाक साधुए, पथरानी पूजा परूपी नथी. । परंतु तमारा ढूंढकोना हृदयमां, महा मूढतारूप, पलितनो प्रवेश थइ जवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३ थी, तमासं हृदयज, पथ्थर जेवां बनी गयेलां छ. । तेथी ते सूत्रोना पागेनो, अर्थज अवलो जूवो छो.. ॥जूवो ते विवाह चूलियानो पाठ, अने तेनो अर्थ, सत्यार्थ, पृष्ठ १४७ थी, यथा ॥ कइ विहाणं भंते मनुस्स लोए पडिमा पण्णता गोयमा अने गविहा पाणता उसभादिय वद्वमाण परियंते, अतीत अणागए चौवीसंगाणं तित्ययर पडिमा, राय पडिमा, जक्ख पडिमा, भूत पडिमा, जाव धूमक उपडिमा, ॥ जिन पडिमाणं भंते वंदमाणे अच्चमाणे, हंता गोयमा वंदमाणे अच्चमाणे इत्यादि. ॥ हवे ढूंढनीनो लखेलो अर्थ पण लवीनेबतावीये छीए ते नीचे प्रमाणे. अर्थ-हे भगवान् , मनुष्य लोकमें, कितने प्रकारकी पडिमा ( मूर्ति ) कही है, । गौतम अनेक प्रकारकी कही हैं. । ऋषभादि महावीर (वर्द्धमान ) पर्यंत २४ तीर्थकरोंकी, । अतीत अनागत चौवीस तीर्थकरोंकी पडिमा, । राजाओंकी पडिमा, । यक्षोंकी पडिमा, । भूतोकी पडिमा, । जाव धूम केतुकी पडिमा, ॥ हे भगवान् जिन पडिमाकी, वंदना करे, पूजा करे, हां गौतम, वंदे, पूजे, इत्यादि. उपर लखेला, विवाह चूलिया सूत्रना पाठनो अर्थ, ढूंढनी एज उपर लख्या मुजबज करेलो छे, अने पछी वीजा मतलबना धारानो पाठ लखी, समज्या वगर, उंधा अर्थमां उतरी पडी छे. । तेनो खुलासो जुवो अमारा योजेला 'ढूंढक हृदय नेत्रांजन पुस्तकथी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ "" विचार करो के, अतीत कालना तीर्थकरोनी प्रतिमाने पण, वंदना करे, पूजा करे एवं खुद भगवान् पोते, गौत स्वामीने कहे छे, तेथी अनादि कालनी जिनमतिमा छे एम सिद्ध थाय छे के नही ? | वळी जोवानुं ए छे के, उवाईसूत्र तथा विपाकसूत्र, । अने अंतगढ सूत्र, । आदि सूत्रोंमां ज्यां यक्षोना मूर्त्ति मंदिरोनुं वर्णन चालेलुं छे, त्यां पुण्णभद्द चेइये " आदिना पाठथीज वर्णन करेलुं छे, तेवी ज रीते ' अरिहंत चेइय ' पाठथी वर्णन छे अने तेनो अर्थ, मंदिर मूर्त्तिनो, टीकाकाराए, तेमज टब्बाकारोए, करेलो छे, । अने ढूंढनी पण सत्यार्थमां लखे छे के 'चेइय' शब्दनो अर्थ ' प्रतिमा ' टीका, टब्बाकारोए, पक्षपातथी करेलो छे. । एम लखी, उन्मत्त पणाने धारण करी, एक पण प्रमाणिक ग्रंथनी साक्षी आप्या विना, आधुनिक महा मुढोनां गंदां वचनथी आपना हर हडता जूहनी सिद्धाइ करवा मंडी पडी छे, परंतु गुरु परंपराथी आवेलो, अने हजारो आचार्यांना एक मतथी. जैन मतनां हजारो सिद्धांतो पर चढी गयेलो होवाथी, ज्ञाननो अर्थ कोइ दिन पण करी शकायज नही, अने साक्षात् तीर्थकरने वंदना करतां छतां पण जे 'चेइय शब्द वापरेलो छे, ते पण तीर्थकरांनी प्रतिमाने वंदन करवा रूपथी बीजा सर्व तीर्थकरोनो आदरज प्रदर्शित करेलो छे, अने एज वाक्य, जिन प्रतिमा जिन सारखी, एवा जैन सिद्धांतनी पण सिद्धि करावे छे, परंतु ते तमारी मूढताथी तमो जोइ शकता नयी, तेथीज सिद्धांतकारोने वृथा निंदो छो. । आ विषयमा वधारे खुलासो जोवो होय तो जुवो, सम्यक्त्व सल्योद्धार, तथा अमारु योजेलुं ढूंढक हृदय नेत्रांजन, अथवा आ तत्त्वाऽतत्त्वना निक्षेपना विषयमा विचारीने जुवोके तमारी केटली मुढता थयेली छे ते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थी तमारा पाटा खुली जशे ? अगर जो कीकी वगरनी आंख्यो वाला थइ बेठशो तो, पछी कांइ पण जोइ शकवाना नथी । तेथी तमने हर कोइ एमज कहेशे के, पाकु अभिनिवेशिकपणुं लइ बेठेला होवा छता, पण आपणो दोष स्थापणे बीजा उपर आरोपीने, धोलाफक बनवाने चाहो छो, परंतु एम, घोला फक बनी शकाय नही ? । बाकी अमो तो परंपराधी शुद्धपणे आवेलो, अने गुरु महाराजनो बतावेलो, तत्वाऽतत्वनो मार्ग, तेने पूर्ण रीते नही पहोंचवा छतां पण, सारी रीते ते जैनना मार्गने, दिशावलोकनना स्वरूपथी जोइ, आनंद निमम थइ रहीये छीये, तेथी खीर समुद्रना दुध जेवा तत्वतुं पान करवा वाला भव्य पुरुषोने, खारा समुद्रना पाणी रूप तमारा तुछ लेखथी, कोइ दिन पण तृप्ति थइ शकशे नही एम. खासपणाथी विचार करीने अने आवा अनुचितपणाना लेखो लखवाथी दूर रही, तमो जे कांइ समारु पोकल चलावता होय; तेने चाल वाद्यो, कोइ तमोने आडु आवे तेम नथी ? परंतु अनहद फाजलपणे जइ, जे जुहा आक्षेपो करो छो तेथी कोइ रीते पण तमारा जुहा मतनी जींदगी, वधवां पामशे नही ? एटली हित शिक्षा लखीने आ ग्रंथना लेखनी समाप्ति करुं छ.॥ इतिश्री मद्विजयादानंद सूरीश्वरलघुशिष्येनाऽमरमुनिना धर्मना दरवाजा संबंधि मिथ्यात्वनाम्न सप्तम प्रकरणस्यतत्वाऽतत्व विचारः समाप्तो जातः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ 11 eft: || ॥ ढूंढकना दया नामना ध्रुवतारानुं स्वरूप || || हवे छेवटमां लखवानुं ए छे के, सभ्यवत्व, अथवा धर्मनो दरवाजो, लखवाबाला लेखके, आपणा ग्रंथनी समाप्ति करतां । पृष्ट. २२३ मां पण, एक एवं वाक्य लख्युं छे के, जाणे, आपणी मुढता रूपना पहाडथी, एक अनघड पथ्थरज फेके लोन होय, एम लागे छे। अने बारिक दृष्टिथी विचारतां वधा ग्रंथना वाक्यों पण प्रायें, अनघड पथ्थर रूपनांज छे । परंतु बधा ग्रंथनां वाक्योंनो विचार, लखी शकाय नही, तेथी आ समाप्तिना एकज वाक्या बिचार रूप दिशानुं अवलोकन करावी, अमो पण अमारा लेखनी समातिनी साथ, आ ग्रंथनी पण समाप्तिज करीये छीए. ॥ ते वाक्य नीचे प्रमाणे. पृष्ट. २२३ थी, । || मोक्ष नगरीए लइ जती, सम्यक्त्वनी सडके जतां नय - निक्षेपनी, भूल भूलामणिमां, जो कोइ माणस घुंचाइ जाय तो, तेणे मात्र 'दया' नामना ध्रुवतारा तरफ दृष्टि टेकवावी, अने ए दीशा तरफज चाल्यां करवुं । एथी वेहलो मोडो पण, ते, इछित स्थले पहोंचशे. पण जो तेटली दृष्टि पण न राखे तो धृताराओ तेने आडा रस्ते दोरी, तेनुं सर्वस्व लूटी लइ, गत प्राण करी, तेने जंगलना गीध अने कागडानो, भक्ष बनावशे । , ॥ संपुर्णः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ ॥ एमां विचार ए छे के-उपर लखेलो लेखकनो लेख, अभिनिवेश रूप, महा मिथ्यात्व भूतना आवेशथी, केवल मुढताथीज लखायेलो छे. । केमके, जैनधर्मना पायानुं जेटलं मंडान छे, ते बधु ए दयामयज छे, वास्ते तेने माटे विशेषपणे काइ पण लखवानी जरुरज नथी. । हा विशेषमां ए लखवानी जरुर छे के, नय-निक्षेपनी, भूल भूलामणीमा घुचाइ जवावालाए, जे आचारांग सूत्रनो पाठ छे, तेनाज आधीन थइ, वीतराग देवना शुद्धमार्गनी सडकनो रस्तो छोडवो नहीं, पण तेनाजान पुरुषोंने पुछीने, निर्णय करवो, तम प्रयत्न करतां निर्णय न थाय तो पछी “ तमे व सञ्चं जंजिणहिं पवेइयं ” अर्थात् तेज साचु छे, जे जिनेश्वर देवोए कहेतुं छे. ! परंतु मारी समजमा हजी शुधी काइ आवतुं नथी. । एवो विचार करी, जैनधर्मनां अनेक फांटामांना एकाद फांटामां रहीने पण, मध्यस्थ भाव अंगीकार करी लेबानो छे. । परंतु मूढ पुरुषोनां मूढता भरलां वचनांने हाथम धरी, बांदरफाल भरी लेवी नहीं, के जेथी आपणो आत्मा अनंत मरणना भयमां आवी पडे. । बास्ते खरेखरो धूवनो तारो तो एज छे के, । " तेज साचु छे जे जिनेश्वर देवोए कहेलं छे" । बाकी दया नामना तमारा कल्पित ध्रुव तारा तरफज केवल दृष्टि टेकाने चालवावालाने तो, अवश्य कर्तव्य रूप धर्मना कार्यमां पण, विपरीत विचारथी, मुजाइने, आ भवना सार्थकथी, तेमज परभवना सार्थकथी पण, भ्रष्टज थवानो प्रसंग आवे तेम छे, परंतु लाभनो प्रसंग कदापि नही मेलबी शके. । केमके, केटलांक धर्म कार्योमां पण, अदृष्टि गत सूक्ष्म जीबोनी विराधना, द्रव्यरूप हिंसाना स्वरूपथी थवा छतां पण, वीतरागनी आज्ञाथी वर्तन करतां, आ भव नो, तेमज परभवनो पण, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनेक प्रकारनो लाभज, तेमां जोवामां आवे छे, परंतु तेमा हानि किंचित् मात्र वास्तविक पणे जोवामां आवती नथी । वास्ते आ विचारमा “ साधु आश्रित, ” अने " श्रावक आश्रित" केटलांक दृष्टांतो आपीने, समजुति करी बतावीये छीये, ॥ ॥१ जूवोके, दस्तने रोकवो नही, एवी भगवाननी आज्ञा छे, अने हाजतवाला साधुने, वर्षता मेघमां पण बहार भूमि जावु पडे छे अने तेमां अदृष्टिगत असंख्याता अप्कायना जीवोनी विराधना त्रिविधे त्रिविधेना पञ्चखानवाला साधुथी पण थाय छे तोपण विराध कथतो नथी पण आराधकज गणेलो छे. ॥ ॥ इति प्रथमदृष्टांत ॥ ॥२ साधुने, भगवाननी आज्ञाथी, आठ मासतक मर्यादा प्रमाणे विहार करवो, अने वचमां नदी आवे तो, विधिसहित ऊतरवी, पण एक जगोपर बेसबुं नही. । हवे इहां दया नामना धूव तारा तरफ, दृष्टि टेकीने चालवावालो एक साधु, भडकीने, गुरुने पण केहवा लाग्यो के, । अरे गुरुजी, त्रिविधे त्रिविधेयी पञ्चखान करीने पण, तमो, आ नदीने ऊतरी, छ कायनी विराधना केम करोछो ? अने संयमथी भ्रष्ट केम थावोछो ?॥ ॥ गुरुजी-अरे भाइ शिष्य, भगवाननी आज्ञा छे के, एक जगोपर रेह नही, वास्ते नदी उतरतां, संयमथी भ्रष्ट थवातुं नथी, पण, एक जगोपर वास करवाथीज, संयमथी भ्रष्ट थवाय छे, वास्ते ए गामने छोडीने बीजे गाम चाल. ॥ ॥ चेलो-एवी भगवाननी आज्ञा होयज केम ? अने होत तो दया नामना धूवतारा तरफज दृष्टि टेकीने चालवानु बताव्यु केम ? ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ ॥ गुरुजी - अरे भाइ शिष्य, द्रव्य मात्रना स्वरूपथी हिंसा थती जणाय छे, पण, भगवाननी आज्ञाथी वर्त्तन करतां भावहिंसाना पापना अधिकारी थता नथी । केमके विहार करवामां लाभनो समावेश वधारे रहेलो छे, अने भगवाने पण ते आज्ञा फरमावेली छे । इत्यादिक अनेक युक्तिथी समजूति करवा छतां पण, दया नामना ध्रुवताराना मूसलने पकडीने चालवावाला चेलाए, एकपण वात अंगीकार करी नही, अने छेवटे आ भवना हितथी, तेमज परभवना हितथी पण, भ्रष्टज थयो. || ॥ इति द्वितीयदृष्टांत ॥ || ३ एक जगोपर वे शिष्यनी साधे, चतुर्मास रहेला वृद्ध साधुए, वर्षाता मेघमां, प्यालामां, लघुनीति करी एक शिष्यने, परठवानुं युं, तो ते दया नामना ध्रुवताराने वलगेला शिष्ये, जवाब दीधो के, हिंसा थाय तेनुं काम अमो करता नथी, छेवटमां बीजा शिव्ये परठव्युं । आ बे शिष्योमां, धर्मी ? कयो ! अने अधर्मी ? कयो ! तेनो विचार करवानुं, वाचकवर्गनेज सोंपीदइये छी. ॥ ॥ इति तृतीयदृष्टांत ॥ ॥ ४ एक साधु गोचरी गया छे, श्रावके गरम भात, दाल, दूध, farai aisai ऊघाडी आपना मांडयं, तो ते वाउकायनी हिंसाना भयथी मुखपर पाटा चढाववावालाए, लें के नहि लें. । केमके, मुखनी वराळ करतां, ते गरम भात आदिनी वराळ, घणीज आकरी होय छे, अने घणी दूर तक फेलाइजवाथी, वाक्कायनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० हिंसा वधारे थवानो संभव छ, । तेमज ते श्रावकने आपता; दुर्गतिनो रस्तो मले के मुगतिनो, आ बधी वातनो पण विचार करवानु, पाठकवर्गनेज सोपीदउँछं. ॥ ॥ इति चतुर्थदृष्टांत ॥ ॥पण विशेषमा एटलंतो जरूर कहुंछ के गुरुपरंपराना सिद्धांतने छोडी, विचार विनानो, हठपणाथी पकडेलो, दया नामना धूवतारानो रस्तो, जैनधर्मथी भ्रष्टज करवावालो निवेडशे, परंतु जैनधर्मनी प्राप्ति कराववावालो तो नहीज थाय, । केमके उपर बतावेला चारे दृष्टांतमां, व्यवहारनयनी अपेक्षाथी, अष्टिगत सूक्ष्मजीवोनी विराधना, द्रव्यहिंसाना स्वरूप मात्रथी जोवामां आवे छे, परंतु निश्चय नयनी अपेक्षाथी, ते वर्तनमा, आलोकमां, तेमज परलोकमां पण, हितनोज समावेश रहेलो छ. । तेथी भगवंते साधुनी दया तमेज बीजा जीवोनी पण दया जाणीनेज, आज्ञा आपेली छे । तेथी मुख्यत्वे करीने दयानोज मारग छ ? पण ते हिंसानो मारग न गणाय, । परंतु जेओने नयोना स्वरूपनी बरोबर खबर न पडतां मुजामण थाय तो, तेमणे ते आचारांगना पाठनेज वलगी रहे, एम रस्तो पकडाववाथी, तेओ शुद्ध जैनमार्गना रस्ताथी भ्रष्ट न बने । बाकी केवल दया नामना ध्रुवतारानुं, मुसल पकडावतां, उधेरस्ते पडेलाने पाछो, उंधेज रस्ते चढाववा जेवू थाय छे. ।। कोइ अजाण पुछशे के, ते चारे दृष्टांतमां, दयानो मार्ग ते क्याथी आव्यो ! उत्तरमा जणाववाद्. एज छ के, लाभालाभनो विचार करतां, भगवाननी आज्ञा दया वगरनी छेन नही. ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ म १ प्रथम दृष्टांतमां, दस्त रोकवा वाला साधुने, महा व्याघिना संकटमांधी, आज्ञा आपीने भगवंते बचावेलो छे. ॥ २ अने बीजा दृष्टांतमां भगवंते नदी उतरवानी रजा आपी, नित्यवासना महा दूषणोथी तां साधुने, अने वीजा स्थलना लोकोने साधना दर्शनथी, तेमज तेना उपदेशे धर्मनी प्राप्तिथी, अनंत जन्ममरणना भयथी पण बचावी, स्वपरनी दयाज विचारी छे. ॥ आ दृष्टांतमां विशेष विचारवानुं ए छे के, जे साधुए, सूक्ष्म अने बादर, बंने प्रकारना जीवोनी हिंसानां पच्चखान, त्रिविधेत्रिविधे, ( अर्थात् मन, वचन, अने कायाथी करु नही, करावं नही, करताने भलो पण जानु नही एम ) करेलां छे, । एवा महा त्यागी साधुने पण, नदी उतरतां, दव्यपणाथी सूक्ष्म 'छए, कायना जीवोनी विराधना थवा छतां पण, भविष्यकाळमां अनेक प्रकारनो लाभ जाणीने, भगवंते रजाज आपेली छे. (तेनो पाठ, आचारांग सूत्रना मूलमांज छे, अने तेनो उतारो, सम्यक्क शल्लयोद्धारना पाछला भागमां, आपेलो छे । तेथी अमोए लखीने बताव्यो नथी. ) ज्यारे एवा महा त्यागीने पण, नदी उतरवाथी, लाभज गणेलो छे, तो पछी जे गृहस्थो केवल बादर जीवोनी हिंसानां पञ्चखान करी, संसारना अनेक प्रकारना सुखमां मन थइ, रात, अने दिन, सर्व प्रकारना महा शस्त्ररूप तो, 'अग्निनो' आरंभ करी रह्या छे, तेमज मणोभर पाणीने ढोली 'अप्कायना जीवोनो' पण घाण कहाडी रह्या छे तेमज ' हरिकायनो' पण नाना प्रकारथी भोग करी रह्या छे, । ते सिवाय घर, हाट विगरेने बंधावतां समारतां 'सकायना जीवोनो' पण आरंभ करी रह्या छे, । तेमज अनेक प्रकारना बेपार करतां पण त्रस कायना जीवोनी विराधनानो अंतज जणातो नथी । एवी रीते 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 202 सदाकालपणे 'छकायना' महा कुटामां बेठेला छे, तेवा गृहस्थोने, किंचित् मात्रना आरंभवाला ' जिनपूजनमां, महा मृढताने धारण करी, हिंसा थाय छे, हिंसा थाय छे, एवो जुठो पोकार करी, / आ भवनो, तेमज परभवनो, सर्व प्रकारथी निस्तार करवा वाली, अने श्वेतांबर, दिगंबरना, लाखो आचार्यना एक मतथी, जैननां लाखो पुस्तको उपर सास्वता, तेमज असास्वता, जिनबिंबना स्वरूपथी चडी चुकेली, अने अन्यमतना पुराणग्रंथादिकथी, असास्वती प्रतिमाओ साक्षीरूपे थयेली, अने जूनी जमीनथी साक्षात्पणे जिन मूर्तियो बहार आवी भव्य पुरुषोने दर्शन आपी रहेली, एवा अलोकिक चमत्कार वाला, वीतरागदेवनी भक्तिथी, भ्रष्ट करी, केवल वीतराग देवनीज निंद्या करवा वाला बनाववा, ए केवा धर्मियो समजवा, / तेनो विचार करवानुं वाचकवर्गने सोंपी, दईने हुं मारा चालता बीजा विषयना विचारने वलगी पहुं छं. // 3 गुरुना आधीनमा रहेवाथी शिष्यने, तत्त्वज्ञान मले, अने तत्त्वज्ञानथी मोक्षनी प्राप्ति थाय, / वास्ते गुरुनी आज्ञामां शिष्यने रहेवू, एवी भगवाननी आज्ञा छे, ते पण ते शिष्यनी दयाने माटेज छ, अने जे सामान्य मात्रना कार्यमां, मूढपणानुं मूसलु पकडी, गुरु भक्तिथी भ्रष्ट थयेलो छे, ते वीजा कया गूढ तत्वोनो, अधिकारी बनवानो छे. ? / अने ते तत्त्व विनानो, एके भवनुं सार्थकपणुं करी शकवानोज नथी, // विचारी जोतां एज गति, अमारा ढूंढक भाइईयोनी प्रथमथी थयेली चाली आवे छे, अने ते आज सुधी पण, मूढपणानुं मुसल हाथमां धरी, आपणे आप सर्वज्ञ बनी, पूर्वना महान् महान् आचार्योने पण, सर्वथा प्रकारथी तुछ गणी, तेमनी निंदा करवानेज मंडी पडे छे. / अने ते आजकालना जन्मेला, अने सर्व प्रकारनी लालचदाला, / सर्व प्रकारथी तुछ, अने महा विकलरूप, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ मुढपणाथी पकडी राखेला आपणा मुसल ज्ञाननो, पथारो पारी, लोकोने, मोक्षमां पहोंचाडवाने, तत्पर थइ जाय छे. ? । आते कया प्रकारनी महा मूढता समजवी ? । अने ते महा पुरुषोथी विपरीतोना वचनमां, केटली शुद्धता, अने सरलता, तेमज गंभीरता, आवेली छे ते, अमारा योजेला नेत्रांजनथी, तेमज आ तत्त्वाऽतत्त्वना विचारथी, वाचकवर्ग पण समजी लेशे, तेथी अमो इहांपर वधारे लखवं बंध करीये छीये. ॥ ॥ ४ गोचरीमा लघुता, अने संयम घातादिकना ४२ दोष टालीने, काल वखते, वासी, विदल, त्याजीने भिक्षा करवी, विकाले भिक्षा न मळवाथी, आर्तध्यान, । अने वासी, विदलथी, आत्म परात्म घातथी, बचावी, भगवंते, साधुनी दयाज विचारी छ । एवी रीते साधुना विषयमां, जे जे भगवंतनी आज्ञा छे, ते ते विहारादिक केटलिक आज्ञामां, नय निक्षेपादिकना विषयथी अजान, स्थूल दृष्टिवालाने, अदृष्टिगत सूक्ष्म जीवोनी विराधना, व्यवहारष्टिथी मालम पडे छ, । परंतु ज्ञानी गुरुनी सूक्ष्मदृष्टिने वलगीने चालवावालाने, नडतर आवती नथी, अगर जो गुंचवण आवी पडे तोपण, " तमेव सच्चं" ए आचारांगना वाक्यने वलगी रही, अने महापुरुषोना करेला विचारने अनुसरी, चालवावाला पुरुषोने शुद्ध सकडना रस्ता उपर फरीथी चढी आवी जवानो संभव छे, परंतु जेओ सर्व महान् आचार्योंने तुछ गणी, महा मूढताना मुसलने हाथमां धरी, केवल कुर्तकोनाज मुसलने कुटवावाला छे, तेओने कोण समजावसे ? । अने क्यारे समजसे ? तेनो विचार तो कोइ अतिशय ज्ञानीज कही बतावे. ॥ ॥ एटलुं कही, साधुना विषयनां दृष्टांतोना विचारनी समाप्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ર૭૪ करी, सामान्यपणाथी केटलांक, श्रावकना विषयनां दृष्टांत बतावी, मारा लेखनी पण समाप्तिज करीश.॥ इति हिंसा अहिंसा विषये साधु संबधिक दृष्टांतिक विचारः ॥ हवे श्रावक संबंधिक हिंसा हिंसा विषये दृ. ष्टांतिक विचार लखीने बतावीये छीए. ॥ ॥ जुवोके-मूर्तिपूजक, अने ढूंढक, श्रावकना विषयमां, संसार मुखार्थे थता, अनेक प्रकारथी छकायना कुटाना विषयने छोडीने, केवल धर्मनेज लगतां, । १ दया धर्माश्रित, अने २ भक्ति धर्माश्रित, । करवा पडता आरंभथी पण, धर्मनीज रक्षा थवाना संभवनां, सा. धारणपणानां, केटलांक दृष्टांतो आपीने, पेला दया नामना ध्रुवताराने पकडाववावालाए, केवल वीतराग देवनी भव्य मूर्तिनी भक्तिथी, भव्य पुरुषोने भ्रष्ट करवाने, धुतारापणुं करेलुं छे, एम खातरी करावीने आपीश. अने तेनो लेख पण सर्वथा प्रकारथी जुठोज थयेलो छे, एवी पण खातरी भव्य पुरुषोने थइ जसे. । ॥ दृष्टांतोनी नोंध नीचे प्रमाणे ॥ ॥ १ जूवोके अनाथ, लुलां, लंगडां, रोगी, पशु तेमज पंखीओ विगरे मुख्याने, हरिकायनो आरंभ न गणतां, लीलो चारो पण नाखीने, अने तृषा पीडितने अप्कायनो आरंभ न गणतां, काच पाणी पाइने, दयाथी धर्मनी प्रालिने माटे श्रावको, तेमनी रक्षाज करे छे, अने श्रावकोनो ते धर्मज छे, अने ते लाभाऽलाभना कारणवालो भगवंतनी आज्ञाथीज कराय छे, एम कोण कबूल नही करे ?। केमके अन्न पुग्ने, पाण पुने, इत्यादि नव प्रकारना दानथी, श्रावकोने पुण्यनी प्राप्ति थवानुं सिद्धांतमां कहलंज छे. तेथी श्रावकोना ते कर्तव्यतुं सार्थक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ पणुंज छे. परंतु निरर्यकपणुं नथी. । अने वर्तमानमां पण दया नामना ध्रुवताराने वलगीने चालवावाला ढूंढकमांथी पण ढूंढकरीने बहार पडेला, एक तेरा पंथना घिठाओ बिना, सर्व श्रावकोने चालुंपणे वर्तन करता पण जोइये छीये. ॥ ॥ इति प्रथम दृष्टांत ॥ ॥ २ एज प्रमाणे भूष, अने तृषाथी, पीडाता माणसने, अनुकंपा [दया] धर्मथी, अपकायादिकनी विराधनानो विचार न करता, भविष्यमा लाभाऽलाभना मुद्दावाली, भगवंतनी आज्ञाने अनुसरी, श्रावको तेनो सर्व प्रकारथी संतोषज करे छे. ॥ इति १ दयाधर्माश्रित द्वितीय दृष्टांत ॥ ॥ आ सूचना मात्र, बन्ने दृष्टांतोना दिग्दर्शनथी,"१ दया श्रित " धर्मनुं स्वरूप बतावी, हवे "२ भक्ति धर्माश्रित" दृष्टांतोना दिग्दर्शनथी, धर्मनुंज स्वरूप प्रगट करीने बतावीए छीए. ॥१ एक साधर्मीभाइ, कारणवशथी, भूख्यो, अने तरस्यो, रसोइनो वखत वीत्या पछी, श्रावफ, घरजाणीने आव्यो छे. । अथवा अनेक साधर्मी भाइयो आव्या छ, । तो ते वखते साधर्मीयोनी भक्ति करवी, एवी भगवंतनी आज्ञाने अनुसरी, अपकाय, अग्निकाय, ह. रिकाय, आदिकना आरंभने गोणपणे करी, अने स्वामिभक्तिने मुख्यपणे करी, ते आवेला श्रावकोने प्रथम जलपानादिकथी संतोष करावी, पछी स्नानादिकनुं निमंत्रण करी, अने छकायना कुटाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २०६ पण गौणपणे राखी, सर्व प्रकारथी नवीन रसोइ करावी, धौ श्राक्क तो तेमनी भक्तिज करशे, तेपण धर्मनीज खातर करसे, । केमके गमेतेवो श्रावक होय, अने गमेतेवी अवस्थामां पडेलो होय, तोपण ते अनुकंपार्नु पात्र थतो ज नथी परंतु भक्तिनुंज पात्र गणेलो छ, ॥ इति भक्तिधर्म आश्रित प्रथम दृष्टांत ॥ ॥ २ साधुजीने, वीजेगाम वंदना करवा, टोटु मेळवीने जतां, अथवा पोहचाडवाने जतां, अथवा गामनी नजीक आवेलाने लेवा जतां, अथवा मोटी तपस्या करेला साधुने वंदना करवा जतां, अथवा संथारो करेलो होय ते साधुने वंदना करवा जता, गाडी, घोडा, बैल, विगरेनो अनेक प्रकारनो आरंभ लक्षमां लीधा वगर आपणो तरवानो मार्ग छे, एम समजीने, श्रावको, साधुनी भक्तिज कर छ, । साधुनी भक्ति करवी एवी भगवंतनी आज्ञा छे, तेपण लाभाऽलाभना कारणवालीज छे, तेथी ते श्रावकोने, भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे वर्तन करतां, अने तेमां आरंभ थवा छतां पण, ते कल्याण मार्गनाज पात्र बने छे. । परंतु दुर्गतिना पात्र बनता नथी. । एजप्रमाणे जिनमूर्तिना पूजनमां, किंचित्मात्रनो आरंभ थवा छतां पण, भगवंतनी भक्ति श्रावकोए, द्रव्य, अने भाव, बन्ने प्रकारथी करवी, एवी भगबंसनी लाभाऽलाभवाली आज्ञाप्रमाणे, भक्ति करवावाला श्रावको, कल्याण मार्गनाज पात्र बने छ, । बाकी जे बीजा अनेक प्रकारना, रागी, द्वेषी, देवोनी, मान्यता राखे, शीतला पूजे, गनगोर करे, इत्यादिक अनेक प्रकारथी केवल संसारना मुखार्थे, सर्वकुछ करे. । अने आपणा तरणतारण वीतरागदेवनी मूर्ति देखीने, जेम देवाघिष्टित परशुरामनो कुहाडो, क्षत्रियोने देखीने, बलवा लागी जतो इतो तेम, वीतराग देव उपर द्वेषाधिष्टित हृदयवाला थइ, हृदयमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ बलवाने लागीजाय. तेज दुर्गतिना पात्र घने । बाकी संसारी लालचविनाना भगवाननी भक्ति करवावाला तो, दुर्गतिमां जायज नही. ॥ इति भक्तिधर्म आश्रित द्वितीयदृष्टांत ॥ ॥ ३ चतुर्मासमां, अथवा कोइ वखते शेषकालमां, एक गाममां स्थिति करीने रहेला पंडित साधुने, अथवा तपस्वी साधुने, सेमम संथारो करेला साधुनें, अनेक गामना श्रावकोनां टोळां ने टोली, बंदना करवाने रस्ताना अनेक प्रकारना आरंभने 'विसारीदइ, केवल भक्तिनी खातरज, आवता आपणे जोइये छीये । अने साधुजी रहेला छे ते गामना श्रावको, अनेक गामथी, भक्तिने माटे आवेला श्रावकोना, बैल, घोडा, आदिना खानपाननी तजवीज करता पण जोइये छीये. । तेमज ते आवेला श्रावकोना, खानपाननी तजवीजमां, अपकायनी विराधना न गणतां, पांणीनांतो कडाओ ने कडाओ मांडी देछे, । अने अग्निकायनी विराधना न गणतां, मोटा मोटा चूलाने चेतावी मुके छ, । अने हरिकाय विगरेनां मोटा मोटां पोटलांने तो गणेछेज कोण! एवी रीते, छए कायनी विराधनाने, किंचित्मात्र पण ध्यानमां न लावतां, सर्व प्रकारना सगवडनी साथे, केवल धर्मना आधीन थइ, भक्तिने माटेज करता जोइये छीये. । अगर जो तमो एम कहेवाने मागता होय के, साधुर्जानी भक्तिना वश थइ, ते गामना श्रावको, आवेला श्रावकोनी भक्ति करे छे, तो ते तमारी मरजीनी वात छे. । अगर जो एम कहेवा मागता होय के, साधर्मी भाइ घरे आवे तो, साधर्माए साधर्मी भाइनी भक्ति अवश्य करवी, तेथीज ते आवेला साधर्मी भाइयोनी अमोए पणं भक्ति करेली छ, । ए वातनो विचार, तमारी खुशी उपर छोडीदइ, अमोतो एटलंज कहीये छीये के, केवल धर्मनेवास्ते, भक्तिना आधीन थइ, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ आबेला श्रावकोनी सगवड करेली छे । ते सिवाय बीजो एके प्रकार केहवानी सगवड नथी. ॥ ॥ इति भक्तिधर्म आश्रित तृतीयदृष्टांत || ॥ ४ अने एवीज रीते, उपर बतावेला विषय प्रमाणे, जे गाममां, द्रव्य निक्षेपना विषयवालो, "दीक्षा महोत्सव" थाय छे, ते गामना श्रावको, अनेक प्रकारना आरंभने नही गणता हुवा, आवेला श्रावकोनी सगवड पण, केवल धर्मनेज आधीन थइ करता जोइए छीए, । अने एज प्रमाणे " साधुना मरण" बाद, द्रव्यनिक्षेपना विषयरूप शरीरनो, दाह करवाने, भक्तिने वश थइ भगवानना शरीरनो दाह करवाने भेगा थयेला, देवताओनी परे आवेला श्रावको, साधुन भक्तिने माटे, अनेक प्रकारना दुसाला, ते मृतक शरीर उपर, वर्षावी, सेंकडो रूपैयानो खरच करता पण, आपणे जोइए छोए । अने अनेक प्रकारना आरंभने नही गणतां आवेला श्रावकोनी भक्तिपण स्थायिक गामना श्रावकोने करता जोइए छीए । अने ते मृतक शररिने, बहार लइ जवाने, मोटो खरच करी विमान बनावता पण जोइये छीये । परंतु तमारा, अने ढूंढनी पार्वतीना, लख्यामुजब, “ द्रव्यनिक्षेप ” सर्वथा प्रकारथी " अवथ्थु रूपे निरर्थक होत तो, मुर्तिपूजकोनी परे, दीक्षा वखते अने ते मृतक शरीरनी पाछळ, आटलो बधो आरंभ करता नही ! परंतु तमोने पण अमो करता जोइये छीये, तेज द्रव्यनिक्षेपना सार्थकपणानो मजबूत पुरावो छे ॥ " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat " www.umaragyanbhandar.com Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ इति भक्ति धर्म आश्रित चतुर्थ दृष्टांत ॥ वे अम वधारे दृष्टांत न आपतां, आपेला दिग्दर्शनरूप - प्रांतोनो, तात्पर्य जणावीये छीये, एमां तात्पर्य एछे के, प्रथम साधुना कर्तव्य संबंधित चार वताव्यां हतां, तेमां द्रव्यनयनी अपे , क्षाथी, किंचित्यात्र सूक्ष्म जीवोनी विराधना, द्रव्य मात्रना स्वरू पथी, थवा छतां पण, भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे साधु वर्तन करे छे तेथी, ते विराधक थता नथी । पण जैन मार्गना आराधकज गणेला छे. । आ बातथी विचार करो के, सर्व प्रकारे निरारंभी साधुधी पण आपना कर्त्तव्यामां थती सूक्ष्म जीवोनी विराधना, टाली सकाती नधी, तोपण, भगवंतनी आझा प्रमाणे वर्त्तन करवाथीज, संसारना अघोर दुःखी मुक्त वानो संभव छे, परंतु मृढपणाथी कल्पेला, दया नामना ध्रुव ताराने, वलगीने चालवा वालानो तो, निस्तार, तीन कालमां पण थवानो संभव जणातो नथी. ॥ हवे व के सदाकाळ आरंभमांज बेटेला, श्रावकाश्रित आपला दृष्टांतोना विचारथी, प्रथम " दया धर्माश्रित" वे दृष्टांत आप्यां हतां, तेमां पशु, पंखीनी, रक्षामां, लाभालाभना विचारथी, आपेली भगवंतनी आज्ञाने बाजु उपर मुकीने, अने ढूंढकपांधी पण ढूंढीने बहार पडेला, तेरापंथीनीतरां, तुच्छपणाना विचारथी ते जीवोना संबंधे, आरंभ भरेला आगल पाछळना विचारने मनमां लाववावाला, अने केवळ दया नामना ध्रुवताराने दृष्टि टेकीने चालवावाला, ते श्रावको कयाधर्मना अधिकारी बने तेम छे ? तेनो विचार करी जो जो, । अमो तो एज कहीये छीये के, सिद्धांतकारोना विचारथी बहार, दया नामना ध्रुवतारानुं मुसल पकडीने, जुठा विचारमां उतरी, उंथे रस्ते पडेला छे, तेज विचारा, जैनधर्मना धोरीमार्गथी चुकेला, संत पुरुषोना दयाना पात्र बनेला छे । एज प्रमाणे पुरुषाश्रित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० आपेला " दयाधर्म " ना दृष्टांतमां विचारी जो जो. || हवे " भक्ति आश्रित " धर्मना संबंधे आपला दृष्टांतमां, विचार करीने किंचित् बता हूं. ॥ " ॥ भूख्या, अने पासा आवेला, श्रावकोना प्रथम दृष्टांतमां जुवो के सिद्धांतनी दृष्टिने छोडी दइ, मूढ पणाथी कल्पेला, दया नामना ध्रुवतारा तरफ हा टेकीने, अने तेओना संबंधे थतो आरंभ, आपण कल्पेला जुदा विचारथी मनमां लावीने चालवावाला छेतेनाथी ते आवेला साधर्मि भाइयोनी, भक्ति पण वनी सकसे नही । अगर कोई लाज काजना हिसाबथी करसे तो ते साधर्मी भाइनी भक्तिनो लाभ मेळवी पण सकसे नही । केमके कोइ पुछे के तमो, आटलो वो आरंभ करे, आ बधी खटपट, सेना वास्ते करोलो ? | तो तेओ केवळ धर्मनाज संबंधवाली खटपट करता छता पण, मुढ पणाथी कल्पेला, दया नामना ध्रुवतारानी दृष्टिने कानी थाना भयथी, विचार मुह थइ, एवो उत्तर आपी देछे के, ए तो अमारो संसार खातो छे । एम कही थवावाला धमना लाभने पण गमावी दे छे । परंतु एवं नथी कही सकता के, भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे आ धर्मनां कर्तव्यो करी, अमो अनेक प्र. कारना आरंभमां बेठा छता, अमारा श्रावक पणानी फरज बजावी अमारा जन्म जीवतव्यनुं साफाल्य पणुं करी लइए छोए । एज अमो तेओनी मूढतानुं, प्रथम चिन्ह समजीये छीए. केमके अनेक प्रकारना आरंभमां सदा काळ बेठेलाने, परोपकारना अने भक्तिना काममां किंचित् मात्रना आरंभथी, संसार खातो केहवा तप्तर थवं, ते कें सानपत गणं ? अने ते काममां, संसार खातानो शुं संबंध छे ? ।। तेमज अनेक प्रकारना आरंभवाला संघ कहाडीने, साधुनां दर्शन करवा जतां, संसार खातानो शुं संबंध छे. ? । अने एज प्रमाणे साधुने लेवा जतां, दीक्षा महोत्सवमां भेळा थतां, तेमज संथारा करेला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११ साधुना दर्शन करवा जता, तेमज मृतक साधुना शरीरनो दाह करवाने भेळा थतां, संसार खातानो सो संबंध छे ! केमके साधुनी अने साधर्मि भाइयोनी, भक्ति श्रावकोए करवी, एवी भगवंतनी आज्ञानुं ओलंघन करी, मूढताथी दया नामना ध्रुव ताराना मुसलने पकडी, ज्यां त्यां धर्मना कर्त्तव्यो करतां पण, संसार खातो, संसार खातो, संसार खातो, कही धिटाइज प्रगट करो छो? ए तमारी वात विचारशक्ति पामेलानी पंक्तिवाली तो नहीज गणाय, एवो विचार तमारेज करवो पडशे. परंतु अमारे करवानी जरुर नहीं पडे. केम के अमो तो जे जे उपर बतावेलां कार्यों परोपकारनी दृष्टिथी, अथवा धर्मनी दृथिष्टी, करीये छीये ते भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे करतां, अमारा जन्म जीवतव्यनी साफल्यताने माटेन करीये छीये. । एज प्रमाणे वीतरागनी भव्य मुर्तिनी, द्रव्य, अने भावथी, श्रावको पूजा करे छ ते पण, लोभ अने लालचविना, जन्म जीवतव्यनी साफल्यताने माटेज करे छे । वास्ते अमो कोइ रीतथी पण ठगाता नथी । परंतु तेमनी भक्तिथी विपरीत थयेला छे तेज उगाय छे. । हवे अमो आ बिषयने न लंबावतां इहांपर समाप्ति करी आ ग्रंथनी पण समाप्तिज करीये छीये. । इत्यलंपलवितेन. ॥ इतिश्री मद्विजयानंद सूरीश्वर लघुशिष्येनाऽमरमुनिना दया नाम्नः ध्रुव तारा विषये दर्शितो विचारः समाप्तो जातः ॥ दुहा.॥ ॥ कयों छे आ ग्रंथमां, समकित तनो विचार। वली प्रमाण ने नयतनो, दरसाव्यो छे सार ॥ १ ॥ निक्षेपाना विषयमां, विविध बोध विस्तार । कियो युक्ति प्रयुक्तिथी, भविजन आनंदकार || २ ॥ ढूंढक सिद्धांत कारना, समाकित सडसठ बोल । लखी बताव्या छे सही, तेनो करज्यो तोल ॥ ३ ॥ जिन मूर्त्तिना भक्तने, मूढ कहे मिथ्यात्व ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ निक्षेपाना अर्थमां करीने खोटो ममत्व ॥ ४ ॥ तारी ध्रुव आज्ञातनो, तेमां दया समाय ॥ मन कल्पित तारा थकी, धर्मधी भ्रष्ट थवाय ॥ ५ ॥ जैन तत्वरूप नगर छे, द्वार छे तेनां चार । मुक्यां गृढ गंथन करी, तेने ए अनुयोग द्वार ।। ६ ।। तेना अनुभव सारथी, ग्रंथ ते जानो उदार । परंपराना गुरु विना, न लहे तेनो सार ॥ ७ ॥ तेथी जगमां विस्तर्यो, गुरु महिमा विस्तार | गुरु दीवो गुरु देवता, गुरु विन घोर अंधार ॥ ८ ॥ अनुभवनाहि प्रमाणथी, कहे तेजानो सार ॥ अनुभव त्रिन जे उचरे, तेतो जानो गमार ९ ॥ गूढ घणा जैन तत्व छे, दीठा प्रत्यक्ष जोय ॥ परंपराना गुरु विना, मारग न रहे कोय ॥ १० ॥ नमु गुरु ज्ञानी सदा, सूरी श्री विजयानंद || तवामृतना पानी, पाम्या परमानंद ॥। ११ ॥ तत्त्व नथी हुं जानतो, जानु न कोइ विचार । गुरु वचन अवलंबीने, लख्या बोल बे चार ॥ १२ ॥ अमर जैनना तत्र छे, दोष रहित साक्षात | तत्त्वग्रही अमर ज्यो, छोडी पक्षनी वात ॥ १३ ॥ औगणीशोने चोसठी, विक्रम शाल रसाल । पुरण करी हर्षित थयो, विजयानंदनो बाल ॥ १४ ॥ आमलनेरा गामथी, उद्यम किधी एह । धूलीयामां पुरो कियो, ग्रंथ ए आनी नेह ॥ १५ ॥ ॥ इति संपूर्ण ॥ ● समाप्त. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगाउथी चोपडीयोनी खरीदी करीने आश्रय आपनार उदार गृहस्थोना नाम. छे तेमणे साधु साध्वीने भेट १०० ) सा. दलपतदास नारायण के जेमणे आजे बारां वर्ष धयां सर्वथा प्रकारथी चतुर्थ ब्रह्म व्रत धारण करेलु आपवा माटे खरीदली लखवाथी मोकलामां शहेर डभोई निवासी. इंढेरा तलेगाम हस्ते जोगीलालजी. खानदेश धूलीया. छे. ठाम ठेकाणुं चोकस आवशे. ५०) सा. बालुसा श्यामचंद. ५०) सा. करणीराम गुलाबचंद १५) सा. दानमल नथमलजी. ३५) सा. मेघजी लालजी. १० ) कंपनी खाते. २९) साधु साध्वी माटे. २५) सा. सोभाग्यचंद फतेचंद. १५ ) सा. दलीचंद कनकमल. २ ) सा. व्रजलाल रायजी. ६ ) सा. चुनीलाल कस्तुर जीनवाला. २ ) सा. गुलाबचंद हरिलाल ढोलारीया. सा. हरगोविंद वेणीदास. १ ) सा. अमीचंद वेणीदास. २) २ ) सा. नाथाभाइ बीरचंद. २ ) सा. धनराज प्रतापमल जेतानावाला. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat " मुंबई मांडवी. अमरावती. दक्षिण अहमदनगर. भोड. 99 19 15 25 19 फतेपुर तालुका जामनेरा. www.umaragyanbhandar.com Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलगाम. 2) सा नाथाभाइ बेचर अमदावादी. 2) सा, नेमचंद तलकचंद. डभोइ. 2) सा. गुलाबचंद रुपचंद. 2) सा. करमचंद मोतीचंद. 2) सा. मगनलाल मोहनलाल. 1) सा. बापभाइ लखमीचंद ढोलारीया. 1) सा. पीतांबर धरमचंद. 1) सा. छोटालाल वीरचंद. 1) सा. पीतांबर बापूभाइ. 1) सा. मगनलाल जीवचंद. . सूचना-नबीन लेखोनां दश बार फारमो वधी जवाथी किंमत आठ आना राखी पडी छे, पण खचना प्रमाणथी ओछी ज राखेली छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com