Book Title: Chaturvinshati Jinstavan
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by Vallabhadas Tribhuvandas Gandhi, for Sumermalji Surana,-Calcutta. Secretary, Jaina Atmananda Sabha, Bhavanagar. Printed by R. Y. Shedge, at the Nirnaya-sagar Press, · 23, Kolbhat Lane, Bombay. hould be the bloo Bot Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. 'परम उपकारी महात्माश्री ( विजयानंदसूरि) आत्मारामजी महाराजे जारत वर्षनी जैनप्रजा उपर जैन दर्शनना तत्वज्ञानना अने परमात्मानी नक्तिना अनेक ग्रंथो लखी जे उपकार कर्यो बे, ते श्रवर्णनीय बे. आत्महितैषिउने श्रात्महित करवानुं साधन जेम तत्वज्ञानना ग्रंथोनुं दोहन बे, तेम देवाधिदेव परमात्माना गुणोनुं कीर्तन अने नक्ति ए पण प्रबल साधन बे, अने आ बंने साधनो नवसमुजमा तरवाने माटे उत्तम बे. _नकिनां वीजां साधनोमां नावपूजा मुख्यत्वे बे, तेना साधनन्नूत स्तवनादिक होवाथी तेनो दरेक नव्य मनुष्यने श्रन्यास करवानी श्रावश्यकता ,एम जाणी खर्गवासी श्राचार्य महाराज विजयानंद सूरीए अनेक पूजाउँ बनावी जेम उप Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. . कार कयों ने तेम था चोवीसी, जावना, अने स्तवनो विगेरे रची तेवा उपकारमा वधारो कर्यो . ते महात्मानी उपर लखेली कृति या ग्रंथना पहेला जागमा प्रसिद्ध करवामां आवी , अने ते महात्मानुं अनुकरण करनारा श्रने तेमने पगले चालनारा तेमना शांत शिष्य उपाध्यायजी श्री वीरविजयजी महाराजनी कृतिना-विरचित विविध स्तवनो विगेरे जनसमुदायना उपकारने अर्थे जे जे ते ए बनावेल बे, ते ते आग्रंथना बीजा नागमा दाखल करवामां आवेल बे. एकंदर रीते आ पद्यात्मक ग्रंथ वाचवा, मनन करवा, योग्य होवा उपरांत कर्मनी निर्जराना एक साधननूत होवाथी तेप्रमाणे नव्य जनो तेनो उपयोग करशे तो रचनार तेमज प्रसिद्ध करनारनो हेतु सफल थयो मनाशे. प्रसिक कर्ता. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सस्थापन h. B. N. ॥ॐ अहम् ॥ ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ श्रीमद्विजयानंदसूरि ( आत्मारामजी ___ महाराज ) विरचित ॥श्री आत्मविलास स्तवनावली ॥ अथ चतुर्विशति जिनस्तवन. - - श्री ऋषन जिन स्तवन। आसणरा जोगी। एदेशी ॥ प्रथम जिनेसर मरुदेवी नंदा । नानि गगन कुल चंदा रे । मनमोहन खामी। समवसरण त्रिण कोट सोहंदा । रजत कनक रत नंदा रे ॥ मनमो ॥१॥ तरु असोग तले चिहुंपासे । कनक सिंहासन कासे रे ॥ मन ॥ पूर्व दिसि सुर बंदे नासे । बिंब तिहुँ दिसि जासेरे ॥ मन ॥२॥ मुनि सुर नारी साधवी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, सारी। अग्नि कोण सुखकारी रे ॥मना ज्योति . जवन वनदेवी निरते । इन पति व्यायव थिरतेरे ॥मन ॥३॥सुर नर नारी कूण ईशाने । प्रजु निरखी सुख माने रे । मन । तुल्य निमित्त चिहुं वर थाने । सम्यग दरसी जाने रे। मन॥४॥ आदि निषेपा तिग उपगारी। वंदक नाव विचारी रे। मन । वाग जोग सुन मेघसमानो।जव्य शिखी हरखानो रे । मन ॥५॥ कारण निमित्त उजागर मेरो । सरण गह्यो अब तेरो रे। मन । जगत वबल प्रनु जगत उजेरो । तिमिर मोहं हरो मेरो रे। मन ॥ ६॥ नगति तिहारी मुक मन जागी। कुमति पंथ दियो त्यागी रे। मन । बातमज्ञान नान मति जागी। मुफ तुफ अंतर नागी रे । मन ॥७॥ शति श्री ऋषन्न जिन स्तवनम् ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. श्री अजितनाथ जिनस्तवन । सुणीयो जी करुणा नाथ नवदधि पार कीजो जी ॥ए देशी॥ तुमसुणीयो जी श्रजित जिनेस नवोदधि पार कीजो जी । तु ॥ आंकणी ॥ जन्म मरण जल फिरत अपारा । श्रादि अंत नही घोर अंधारा । हुँ अनाथ उरण्यो मऊधारा । टुक मुफ पीर कीजो जी। तुम ॥१॥ कर्म पहार कठन उखदा। नाव फसी अब कौन सहाई॥पूर्ण दयासिंधु जगवामी।फटती उधार कीजो जी। तुम ॥२॥ चार कषाय करस शतिनारे वरवा अनंग जगत सब जारे। जारे त्रिदेव इंड फुनदेवा । मोह उवार लीजो जी । तुम ॥३॥ करण पांच श्रति तस्कर नारे । धरम जहाज प्रीति कर फारे । राग फांस डारे गर मोरे । अब प्रनु फिरक दीजो जी। तुम ॥४॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, तृष्णा तरंग चरी अति जारी | बहे जात सब जन तन धारी । मान फेन यति उमंग चढ्यो है । अब प्रभु शांत कीजो जी ॥ तुम० ॥ ५ ॥ लाख चटरासी जमरा तिजारी | मांहि फस्यो हुं सुद्ध बुद्ध हारी । काल अनंत अंत नहीं आयो । अब प्रभु काढ लीजो जी ॥ तुम० ॥ ६ ॥ श्रतम रूप दब्यो सब मेरो । अजित जिनेसर सेवक तेरो । अबतो फंद हरो प्रभु मेरो । निरजय थान दीजो जी ॥ तुम० ॥ ७ ॥ इति श्री अजितजिन स्तवनम् ॥ २ ध श्री संभवनाथ स्तवन । ॥ हिरणी यव चरे ए देशी ॥ संभव जिन सुख कारीया ललना । पूरण हो तुम गुण जंकार । पूजो प्रभु जावसे ललना ॥ दुख दुर्गति दूरे हरे ललना । काटेहो जन्ममरण संसार । पदकज जो 1 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. मन लावसे ॥ ललना ॥ १ ॥ प्रथम विरह प्रभु तुम तणो । ल० । दूजो हो पूर्वधरबेद | देखो गति करमनी । ल० । पंचमकाल कुगुरु वहु । ल० । पास्यो हो जिनमत बहु जेद । वात को तरणकी । ल० ॥ २ ॥ राग द्वेष बेहु मन वसै । ल० । लरे हो जिम सौकण रांग । भूले आत नरममें | ० | अमृत बोर जहर पियै | ल० । लीये हो दुःख जिन मत बांड । वांधे ति करममें | ल० ॥ ३ ॥ करुणा रस नरे थोमले । ल० । संत हो पर डुख जानन हार | फूले सुख हरम में | ल० । मनकी पीर न को सुने । कैसे दो करिये निरधार । प्रभु तुम धरममे । ल० ॥ ४ ॥ एक आधार है मोह जणी | ल० । तुमरे हो आगम परतीत । मन । मुक मोहिया । ल० । अवर नरम सब बोरीया । ल० । धारीहो तुम आण पुनीत | एही जग जोहीया । ल० ॥ ५ ॥ जुग प्रधान पुरष तणी । ल० । रीति हो मुंऊ ř સ્ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, मन सुखदाय देखी सुन कारणी। ल । एही जिनमत रीत है। ल । मीत हो और सब ही विहाय । नव सिंधु तारणी ॥ल ॥६॥धन्य जनम तिस पुरुषका। लण् । धारी हो तुम आण अखंड । मन वच काय सुं। लगातम अनुजव रस पीया । ल । धीया हो तुम चरणमे मंड चित हुलसाय सुं। लम् ॥७॥ इति श्री संजव जिन स्तवनं ॥३॥ ।श्रीअनिनंदन जिनस्तवन । __होरी की चाल । परम आनंद सुख दीजोजी । अनिनंदन यारा। अखय अनेद अद सरूपी। झान नान उजवारा । चिदानंदघन अंतरजामी। धामी रामी ५ त्रिनवन सारा जी। ॥१॥ चार प्रकारनाबंध निवारी। अजर अमर पद धारा । करम नरम सब बोरदीये हैं । पामी सामी । परम Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. www करताराजी ॥ ॥२॥ अनंत ज्ञान दर्शन सुख लीना।मेट मिथ्यात अंधारा। अमर अटल फुन अगुरुलघुको । धारा सारा २ अनंत बल नाराजी॥ अ० ॥३॥ वंध उदय विन निर्मल जोति । सत्ताकरी सब गरा।निज खरूप त्रय रत्न बिराजे। बाजे राजे ५ आनंद अपाराजी । अन • ॥४॥ ज्ञान वीर्य सुख जीतव धारी। मदन नूत जिन गारा । त्रिजुवन में जस गावत तेरा । जगखामी प्राणप्याराजी। अ॥ ५ ॥ निज आतम गुण धारी प्रजु जी । सकल जगत् सुखकारा । आनंद चंद जिनेसर मेरा । तेरा चेरा ५ हुँ सुख काराजी ॥ ॥६॥ इति श्री अभिनंदन जिनस्तवनम् ॥४॥ श्रीसुमतिनाथ जिन स्तवन । नाथ कैसे गज के फंद बुमाये ॥ ए देशी ॥ सुमति जिन तुम चरणे चित. दीनो। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, एतो जनम जनम मुख डीनो ॥ सु॥ श्रांकणी॥ कुमति कुटल संग दूर निवारी। सुमति सुगुण रस नीनो । सुमतिनाथ जिन मंत्र सुण्यो है।मोह नींद नश्खीनो सु० ॥१॥करम परजंक बंक अतिसिज्या। मोह मूढता दीनो । निज गुण नूल रच्यो परगुण में। जनममरण दुख लीनो ॥सु ॥॥ अब तुम नाम प्रनंजन प्रगट्यो । मोह अत्र बय कीनो । मूढ अज्ञान अविरती एतो । मूल बीन नये तीनों ॥ सु॥३॥ मन चंचल अतिघ्रामक मेरो। तुमगुण मकरंद पीनो । अवरदेव सब दूर तजत है। सुमति गुपति चित दीनो ॥ सु० ॥४॥ मात तात तिरिया सुत नाई। तन धन तरुण नवीनो।ए सब मोह जाल की माया। इन संग नयो है मलीनो ॥ सु० ॥५॥ दरशण ज्ञान चारित्र तीनो । निज गुण धन हर लीनो।सुमति प्यारी नई रखवारी । विषय इंशी नश् Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. खीनो ॥ सु०॥६॥सुमति सुमति समता रस सागर । आगर शान जरीनो । आतम रुप सुमति संग प्रगटे । शम दम दान वरीनो ॥ सु० ॥७॥ इति श्री सुमति जिन स्तवनम् ॥ श्रीपद्मप्रन्न स्तवन । तषत हजारेनुगयो मैनू म कै ॥ ए देशी ॥ पद्मप्रनु मुफ प्यारा जी। मन मोहन गारा ॥ चंद चकोर मोर घन चाहे । पंकज रविवन सोरा जी ॥ मन ॥१॥ त्यूं जिनमूर्ति मुफ मन प्यारी। हिरदे श्रानंद अपारा जी ॥ मन॥२॥ अब क्यों बेर करी मुफ खामी । नवदधिपार उतारा जी ॥ म॥३॥ पंच विघन जय रति तुम जीती। अरति काम विडारा जी ॥ म॥४॥ दास सोग मिथ्या सब गरी। नींद अत्याग नखारा जी ॥म ॥५॥ राग वेष घीन मोह अझाना । अष्टादश Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० श्रीमद्विजयनंदसूरि कृत, रोग जारा जी।म ॥६॥ तुम ही निरंजन नये अविनाशी । अब सेवक की वारा जी ॥ म ॥७॥ हुं अनाथ तुम त्रिजुवननाथा । वेग करो मुफ सारा जी ॥ म०॥७॥ तुम पूरण गुण प्रजुता बाजे। बातमरामाधारा जी। म॥ए॥ इति श्री पद्मप्रन जिन स्तवनम् ॥ ६॥ श्रीसुपार्श्वनाथ जिन स्तवन मंदिर पधारो मारा पूज जी॥ ए देशी ॥ श्री सुपास मुफ बीनती।अब मानो दी. नदयाल जी। तरण तारण तुम बिरुद बै। नगत बबल किरपाल जी। श्रीसु० ॥१॥ अक्षर नाग अनंत में। चेतनता मुफ बोरजी। करम नरम बाया महा जिन । कीनो तम महा घोर जी। श्रीसु॥२॥घन घटा बादित रवि जिसो।तिसो रह्यो ज्ञान उजासजी। किरपा करोजोमुजजणी थायेपूरण ब्रह्म प्रकासं जी। श्रीसु॥३॥ विन ही . Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. निमित्त न नीपजे।माटी तनो घट जेमजी। तिम ही निमित्त जिनजी विना । उजल थाचं हूं केमजी।श्रीसु॥॥ त्रिकरण शुद्ध थावे यदा।तदा सम्यग दर्शण पाम जी। दूजे त्रिक ब्रह्म ज्ञान है। त्रिक मिटे शिवपुर गम जी । श्रीसु॥५॥ एही त्रिण त्रिक मुफ दीजीए । लीजिये जस अपार जी। कीजीये जक्तसहायता । दीजिए अजरथमारजी ॥श्री०॥ ६॥ अव जिनवर मुफ दीजिए। बातम गुण भरपूर जी । कर्म तिमिर के हरण कों। निर्मल गगन जूं सूरजी श्री सु० ॥७॥ इति श्री सुपार्थ जिनस्तवनम् ॥ ७॥ श्री चंप्रन जिनस्तवन । . चाहत श्री प्रन्नु सेवा वा करूंगी उलटी कर्म वना ईरी ए देशी ॥ चाह लगी जिनचंड प्रनु की। मुज मन सुमति ज्युं आरी। नरम मिथ्या Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, मत उर नस्यो है । जिन चरणांचित लाइ सखीरी ॥ चा ॥१॥ सम संवेग निरवेद लस्यो है। करुणारस सुखदारी। जैन बैन अति नीके सगरे, ए नावना मननाई ॥ स ॥ चा० ॥॥ संका कंखा फल प्रति संसा। कुगुरु संग बिटकारी। परसंसा धर्महीन पुरुष की।श्न नवमांहि न कांरी ॥ स॥चा ॥३॥ ग्ध सिंधु रस अमृत चाखी। स्यादवाद सुखदारी। जहरपान अब कौन करत है। पुरनय पंथ नसा ॥ स ॥ चा० ॥४॥ जब लग पूरण तत्त्व न जाण्यो। तब लग कुगुरु जुलारी। सप्तनंगी गर्जित तुम वाणी नव्यजीव सुखदाई ॥ स० ॥ चा० ॥५॥ नाम रसायण सहु जग नासे।मर्म न जाने कांरी। जिन वाणी रस कनक करण को। मिथ्या लोह गमा॥ स ॥ चा॥६॥चंड किरण जस उजाल तेरो। निर्मल जोत सवारी। जिनसेव्यो निज Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. AMA श्रातम रूपी । श्रवर न कोई सहा ॥ सम् ॥चा ॥७॥ इति श्री चन्धप्रजजिनस्तवनम् ॥ श्री सुविधिनाथ जिनस्तवन । सुविधि जिन बंदना पापनिकंदना जगत आनंदना मुक्ति दाता। करम दल खंमना मदन विहंमना धरम धुर मंमना जगत त्राता ॥ अवर सहु वासना डोर मन आसना तेरी उपासना रंग राता । करो मुऊ पालना मान मद गालना जगत उजालना देह साता ॥ सु० ॥१॥ विविध किरीया करी मूढता मन धरी एक पदेलरी जगत नूल्यो । मान मद मनधरी सुमति सब परहरी जैन मुनि नेष धर मूढ फूल्यो ॥ एही एकंतता अति ही पुरदंतता नास कर संतता कुःख फूल्यो ॥ संग सिकि कही ज्ञान किरीया वही दूध साकर मिली रस Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४. श्रीमदूविजयानंदसूरि कृत, घोल्यो ॥ स ॥२॥ बिना सरधान के ज्ञान नहीं होत है ज्ञान बिन त्याग नहीं होत साचो । त्याग बिन करमका नास नहीं होत है करम नासे बिना धरम काचो ॥ तत्त्व सरधान पंचंगी संमत कह्यो स्यादवादे करी बैन साचो॥ मूल नियुक्ति अति नाष्य चूरण जलो वृत्ति मानो जिन धर्म राचो ॥ स॥३॥ उत्सर्ग अपवाद अपवाद उत्सर्ग उत्सर्ग अपवाद मन धार लीजो। अति उत्सर्ग उत्सर्ग है जैन में अति अपवाद अपवाद कीजो । ए षड जंग है जैन बाणी तने सुगुरु प्रसाद रस घुट पीजो। जब लग बोध नहीं तत्त्व सरधानका तब लग ज्ञान तुमको न बीजो ॥ सु ॥४॥ समय सिकांतना अंग साचा सबी सुगुरु प्रसादश्री पार पावे । दर्शन शानचारित करी संयुता दाह कर कर्मको मोख जावे । जैन पंचंगीकी रीति नांजी सबी Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. १५ कुगुरु तरंग मन रंग लावे । ते नरा ज्ञान को अंस नहीं ऊपनो हार नरदेह संसार धावे ॥ ० ॥ ५ ॥ तत्त्व सरधान बिन सर्व करणी करी वार अनंत तुं रह्यो रीतो । पुण्य फल स्वर्ग में जोग उधो गिरयो तिर्यग् औतार बहुवार कीतो । ऊंटका मेगला खां लागी जिसो अंतमें खाद से जयो फीको । चार गत वास बहु दुख नाना जरे जयो महा मूढ सिर मौर टीको ॥ सु० ॥ ६ ॥ सुविधि जिनंद की न अवधार ले कुमत कुपंथ सब दूर टारो | पक्ष कदाग्रह मूल नहीं तानियो जानीयो जैन मत सुध सारो । महा संसार सागर थकी नीकली करत आनंद निज रूप धारो | सुकल अरु धरम दोज ध्यान को साधले आतमा रूप अकलंक प्यारो ॥ सु० ॥ ७ ॥ इति श्री सुविधि जिनस्तवनम् । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, श्री शीतलनाथ जिनस्तवन । बजारे की देशी । - शीतल जिनराया रे त्रिभुवन पूरण चंद शीतल चंदन सारिसो जिनराया रे । जिन । मुऊ मन कमल दिनंद ज्यों लोदनेपारसो ॥ जि० ॥ १ ॥ जि० ॥ और न दाता कोय अजय श्रषेद भेदनो ॥ जि० ॥ जि० ॥ सगरेदेव निहार कौन हरे मुफ के- दनो ॥ जि० ॥ २ ॥ जि० ॥ गर्भवास दुःख पूर कलमल संयुत यानमें ॥ जि०॥ जिना पित्त सलेषमपूर दुःखजरे बहु जानमें ॥ ज० ॥ ३ ॥ जि०॥ जन मत दुख अपार मोहदशा महा दमें || जि० ॥ जि० ॥ ब मन मांहि विकारकीट फंस्यो जैसे गंढ़ में ॥ जि॥४॥ जि० ॥ परबश दीनानाथ मुऊ करुणाचित खनिये जि० ॥ जि० ॥ तारो जिनवरदेव वीनतमी चितानिये ॥ जि० ॥ ५ ॥ जि० ॥ करुणासिंधु तुम नाम छाब मोहि पार उतारिये जि० ॥ जि० ॥ पणा बिरद " Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. १७ निबाद अवगुण गुण न विचारिये ॥ जि० ॥ ६ ॥ जि०॥ शीतल जिनवर नाम शीतल सेवक की जिये | जिणाजि०॥ शीतल श्रातम रूप शीतलजाव धरी जिये ॥ जि॥ ७ ॥ जि० इति श्री शीतलनाथ जिन स्तवनम् । १० १ श्री श्रेयांसनाथ जिनस्तवन ॥ पीलें रे प्याला होय मतवाला ए देशी ॥ श्री श्रेयांस जिन अंतर जामी । जग विसरामी त्रिभुवन चंदा ॥ श्री० ॥ श्रे० । कल्पतरु मनवंबित दाता | चित्रावेल चिंतामणि चाता । मन वंबित पूरे सब श्रासा ॥ संत उधारण त्रिभुवन त्राता । श्री श्रे० ॥ १ ॥ कोई विरंचि ईस मन ध्यावे | गोविंद विष्णु उमापति गावे । कार्त्तिक साम मदन जस लीना ॥ कमला जवानी जगति रस जीना । श्री श्रे० ॥ २ ॥ एही त्रिदेव देव अरु देवी । श्री श्रेयांस जिन नाम रटंदा || एक ही सूरज जग I · Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत, परगासे । तारप्रन्ना तिहां कौन गणंदा ॥ श्री श्रेण ॥३॥ ऐरावण सरिसोगज बडी। लंबकरण मन चाह करंदा । जिन बोडी मन अवर देवता ॥ मूढमति मन नाव धरंदा। श्री श्रे॥४॥ को त्रिशूली चक्री फुन कोई। जामनी के संग नाच करंदा। शांत रूप तुम मूरति नीकी। देखत मुफ तन मन हुलसंदा।श्री। श्रेण ॥५॥ चार अवस्था तुम तन सोने । बाल तरुण मुनि मोक्ष सोहंदा ।मोद हर्ष तन ध्यान प्रदाता ॥ मूढमति नहीं नेद लहंदा । श्री श्रेण ॥६॥ आतम ज्ञान राज जिन पायो ॥ दूर नयो निरधन पुख धंदा ॥ समता सागर के विसरामी। पायोअनुनवज्ञान अमंदा॥श्रीश्रे॥७॥ इति श्री श्रेयांस जिन स्तवनम् ॥ ११ ॥ अथ श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन । अमल की चाल । . वासुपूज्य जिनराज आज मुफतारीयै। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m चतुर्विंशति जिनस्तवन. करम कठण मुख देतके वेग निवारीये॥ वीतराग जगदीश नाथ त्रिजुवन तिलो। मदा गोप निर्याम धाम सब गुण निलो ॥१॥ कालसुनाव मिलान करम अति तीसरो । होन हार जिय शक्ति पंच मिली धीसरो ॥ एक अंस मिथ्यात वात ए सांजली । कीये मदरा पान आंख न धामली ॥२॥ पंचम काल विहाल नाथ हं आश्यो । मिथ्या मत बह जोर घोर अति बश्यो ॥ कलह कदाग्रह सोर कुंगुरु बहु गश्यो। जिन वाणी रस खाद के विरले पाश्यो ॥तुक किरपा न नाथ एक मुफ नावना । जिन आज्ञा परमाण और नहीं गावना ॥ पक्षपात नही लेस केष किन सूं करूं । एही खनाव जिनंद सदा मन में धरूं ॥४॥ किंचित पुन्य प्रजाव प्रगट मुक देखीये । जिन आणायुत नक्ति सदा मन लेखीये ॥ होन हार सुन पाय मिथ्या मत गंमीये ॥सार Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, सिकांत प्रमाण करण मन मामीये ॥५॥ एक अरज मुफ धार दयाल जिनेसरू । उद्यम प्रबल अपार दीयो जग ईसरू ॥ तुक विन कौन आधार नवोदधी तारणे। विरुद निवाहोराज करमदल वारणे ॥६॥ आतमरूप जुलाय रम्यो पर रूप में । पस्यो हूं काल अनादि नवोदधि कूप में । अब काढोगही हाथ नाथ मुफ वारीया ॥पा परमानंद करम रज जारीया ॥७॥ इति श्री वासपूज्य जिन स्तवनम् ॥ श्री विमल नाथ जिन स्तवन । सुंदर चेत वहार सार पाल सरफूले । ए देशी। विमल सुहंकर नाथ आस अब हमरी पूरो । रोग सोग नयत्रास आस ममता सब चूरो । दीजो निरनय थान खान अजरामर चंगी। जनम जनम जिनराज ताज बहु नगत सुरंगी॥१॥ मात तात सुत जात जान बहु सजन सुहाये। कनक Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. रतन बहु नूर कूर मन फंद लगाये। रंजा रमण थनंग संग बहु केल कराये। संध्या रंग विरंग देख बिनमे विरलाये ॥२॥ पदम राग सम चरण करण श्रति सोहे नीके । तरुण अरुण सित नयण वयण अमृत रस नीके।वदनचंद ज्यूं सोम मदन सुख माने जीके । तुज नक्ति विन नाथ रंग पतंग जूं फीके ॥३॥ गजवर तरल तुरंग रंग बहु नेद विराजे ॥ कंकण हार किरीट करण कुंडल अति साजे ॥ राग रंग सुख चंग लोग मन नीके नायो । तुकनक्ति बिन नाथ जान तिन जनम गमायो ॥ ४ ॥ रतन जरत विमान नान जूं नये सनूरे । रंना रमण आनंद कंद सुख पाये पूरे । खोमस नित्य सिंगार नाच स्थिति सागर पूरे। जिनन्नक्ति फल पाये मोक्ष तिन नाही रे ॥५॥ धन धन तिन अवतार धार जिन जक्ति सुहानी। दया दान तप नेम सील गुण मनसोगनी ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, जिनवर जसमे लीन पीन प्रनु अर्च करानी । तुक किरपा नई नाथ आज हुँ नक्ति पिलानी ॥६॥ जग तारक जगदीस काज अब कीजो मेरो । अवर न सरण श्राधार नाथ हुं चेरो तेरो ॥ दीन हीन अब देख करो प्रनु वेग सदा।। चातक ज्यूं घनघोर सोर निज आतम लाइ॥७॥ इति श्रीविमलनाथ जिन स्तवनम् ॥ १३ ॥ श्री अनन्तनाथ जिन स्तवन । - नीदमली बैरण होरही ॥ ए देशी ॥ अनंत जिनंदसु प्रीतमी।नीकी लागी हो अमृतरस जेम ॥ अवरसरागो देवनी। विषसरखी हो सेवा करूं केम ॥१०॥ ॥१॥ जिम पदमनी मन पिउ वसै। निर्धनीया हो मन धन की प्रीत ॥ मधूकर केतकी मन बसे । जिम साजन हो विरही जन चीत ॥ अ० ॥२॥ करसण Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. मेघ आषाड ज्यूं । निजवाबड हो सुरजी जिम प्रेम ॥ साहिब अनंतजिनंदसू । मुफ लागीहो नक्ति मन तेम ॥ श्र॥ ॥३॥प्रीति अनादिनी मुख नरी। में कीधीहो पर पुदगल संग ॥ जगत जम्यो तिन प्रीत सू । सांग धारी हो नाच्यो नव नव रंग ॥ अ० ॥४॥ जिस कों आपणा जानीयो।तिन दीधा हो बिनमे अतिबेह ॥ परजन केरी प्रीतडी । में देखी हो अंते निसनेद ॥ अण् ॥५॥ मेरो कोई न जगतमे ॥ तुम बोडी हो जगमे जगदीसाप्रीत करूं अब कोनसू। तूं त्राता हो।मोने विसवा विस ॥ अ॥ ॥६॥ आतमराम तूं माहरो। सिर सेहरो हो हियडेनो हार ॥ दीनदयाल किरपा करो । मुफ वेगाहो अब पार उतारो ॥ अ० ॥७॥ इति श्री अनन्तनाथ जिनस्तवनम् ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४. श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत . श्री धरमनाथ जिन स्तवन । है, . , माला किहां जैरे ॥ए देशी ॥ - नविकजन वंदोरे धरम जिनेसर धरम खरूपी। जिनंद मोरा ॥ परमधरम परगासैरे । परमुख नंजन जविमन रंजन। जि० ॥ हादस परषदा पासे रे । जविक जनवंदो रे।धरम जिनेसर वंदो परमसुख कंदो रे ॥१॥ धरम धरम सहुजन मुख नाषै ॥ जि ॥ मरम न जाने को रे। धरम जिनंद सरण जिन लीना॥ जिं॥ धरम पिबाणे सो रे ॥ न ॥२॥ दरव १ नाव ५ खदया ३ मन आणो ॥ जिा पर ४ सरूप ५.अनुबंधोरे ६ व्यवहारी निहचे गिनलीजो ॥ जि ॥ पालोकरम न बंधो रे ॥ज॥३॥ जयना सर्व काममे करणी ॥.जि ॥धरमदेसना दीजे रे। जिन पूजा यात्रा जगतरणी॥ जि० ॥ अंतःकरण शुरू बीजे रे ॥ज॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. corronominen ॥४॥ षट काया रदा दिलगनी॥जि॥ निज श्रातम समकानी रे। पुदगलीक सुख कारज करणी ॥ जि ॥ सरूप दया कही ज्ञानी रे ॥ न ॥ ५॥ करि आमबर जिन मुनिवंदे ॥ जि ॥ करी प्रनावना मंडे रे। विन करुणा करुणा फलनागी। जन्म मरण मुख बंडे रे ॥ नन ॥६॥ विधिमारग जयणाकरीपाले ॥ जि० ॥ अधिक हीन नही कीजे रे । बातमराम आनंद धन पायो ॥ जि ॥ केवल ज्ञानलहीजे रे ॥ न ॥७॥ इति श्री धर्मनाथ जिनस्तवनम् ॥ १५ ॥ श्री शांतिनाथ जिन स्तवन । नविक जन नित्य ये गिरिवंदा।। ए देशी ॥ नविक जन शांतिहे जिन वंदो । नव नवना पाप निकंदो । नविक जनशांति हे जिन वंदो ॥१॥ पूरव नव शांति करीनो । कापोत पाल सुख लीनो । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, करुणा रस सुध मन नीनो । तेतो अजयदान बहु दीनो ॥ ज० ॥२॥ श्रचिरानंदन सुखदा । जिन गर्नेशांति करा।सुरनर मिल मंगल गा।कुरु मंडन २ मारिनसा ॥ ज० ॥३॥ जगत्याग दान बहुदीना । पामर कमला पति कीना । सुझपंच महा व्रत लीना। पाया केवल ज्ञान अश्ना ॥ न०॥४॥ जग शांतिक धरम प्रगासे । नव नवना अघ सहु नासे । सुकशान कला घट नासे । तुमनामे अरे २ परम सुख पासे ॥ नण ॥५॥ तुमनाम शांति सुख दाता । तुं मात तात मुऊ जाता । मुऊ तप्त हो गुण ज्ञाता । तम शांतिक अरे २ जगत विधाता ॥ ज० ॥५॥तुम नामे नव निधलहिये। तुम चरण शरणगहि रहिये। तुम अर्चन तन मन वहिये । एही शांतिक अरे ५ जावना कहिये ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. नविण ॥६॥ हुँतो जनम मरण मुख दहियो । थब शांति सुधारस लहियो । एक आतम कमल उमहियो। जिन शांति श्ररे चरणकज गहियो ॥ नवि ॥ इति श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥ १६ ॥ श्री कुंथुनाथ जिनस्तवन । नावनाकी देशी ॥ कुंथु जिनेसर साहिब तुं धणी रे। जगजीवन जगदेव । जगत उधारण शिवसुखकारणे रे । निस दिन सारो सेव ॥ कुंग ॥१॥ हुं अपराधी काल अनादिनोरे । कुटल कुबोध अनीत । लोन क्रोध मदमोहमाचीयो रे। मबर मगन 'अतीताकुं॥२॥ लंपट कंटक निंदक दंनी यो रे । परवंचक गुण चोर । थपथापक पर निंदक मानीयो रे । कलह कदाग्रह घोर ॥ कुंण् ॥३॥ इत्यादिक अवगुण कहुं केतला रे । तुम सब जानत हार । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ श्रीमद्विजयानदसूरि कृत, जो मुफ वीतक बीत्यो वीतसे रे। तुं जाने करतार ॥ कुं० ॥४॥ जो जगपूस्ण वैद्य कहाश्यो रे । रोग करे सब दूर । तिनही अपणा रोग दिखाश्ये रे। तो होवे चिंता चूर ॥ कुं० ॥५॥ तुं मुफ साहिब वैद्य धनवंतरी रे।कर्म रोग मोह काट । रतनत्रयी पथ मुफ मन मानीयो रे दीजो सुखनो थाट ॥ कुं० ॥६॥ निर्गुणलोह कनक पारस करे रें। मांगे नही कुब तेह ॥ जो मुफ बातम संपद निर्मली रे॥दासनणी अब देह ॥कुं॥७॥ इति श्री कुंथुनाथ जिन स्तवनम् ॥ १७॥ . श्री अरनाथ जिन स्तवन । चंप्रन्नु मुखचंड सखी मोने देखणदे ए देशी ॥ अरेजिनेश्वरचंद सखी मोने देखणदे । गत कलिमल मुख धंद ॥ स० ॥ त्रिजुवन नयनानंद । स । मोह तिमर नयो Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. श् मंद ॥ स० ॥ १ ॥ उदर त्रिलोक असंख में । स० । महरिद नीर निवास । स० । कवन सिवाल अबादीयो । स० । करम पल अवतास ॥ स० ॥ २ ॥ श्रादि अंत नही कुंमनी ॥ स० ॥ श्रतिहीअज्ञान अंधेर । स० । खजनकुटुंबे मोहीयो । स० । वीत्यो सांऊ सवेर ॥ स० ॥ ३ ॥ खय उपसम संयोगथी । स० करम पटल जयो डूर | स० । ऊरध मुखी पुन्ये कस्यो स० । स्वजन संग कस्यो चूर ॥ स० ॥ ४ ॥ पहुतो जिनवर आसना | स० । दीठो आनंदपूर | स० । दीनदयाल कृपाकरी | स० । राखो चरण दजूर ॥ स० ॥ ५ ॥ जिन कष्टे हूं आवीयो ॥ स० ॥ जाणे तूं करतार | स० । विरुद सुल्यो जिन ताहरो । स० ताहरो | स० । त्रिभुवन तारणहार ॥ स० ॥ ६ ॥ सुमति सखी सुप वारता । स० । ए सब तुक उपगार सिवा Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रामदावजयानदसूार कृत, आतमराम दिखालीयो । स। पंडित फलदातार ॥ स ॥७॥ इति श्री अरनाथ जिन स्तवनम् ॥१७॥ श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन ॥ रामचंद के बाग चंपा मोहर रह्यो । ए देशी ॥ - मविजिनेसरदेव नवदधि पार करो जी ॥ तूं प्रजु दीनदयाल । तारकविरुद धरो जी ॥१॥ तुम सम बैद न कोय । जानो मर्म खरोरी। जावे जिस विधरोग । तैसोही ज्ञान धरोरी॥२॥अडकर्म चार कषाय । रोग असाध्य कह्योरी। मदन महा मुख देन । सब जग व्याप रह्योरी ॥३॥तूं प्रर्नु पूरण बैद । त्रिजुवन जाच लह्योरी। किरपा करो जगनाथ । अब अवकास थयो री॥४॥ वचन पियूष अनूप । मुऊमन माहि धरो री। दीजो पथ्यप्रदान । मन तन दाद हरो री॥५॥ सम्यग दर्शन झान । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. खम मृछ सरल जलोरी। तोष अवेद अनंग । तोसह रोग ददयो री ॥६॥ पथ्योदन जिननक्ति । श्रातमराम रम्यो री। तूगे मबिजिनेस । अरिदल क्रूर दम्योरी ॥७॥ इति श्री मलिनाथ जिन स्तवनम् ॥ १५ ॥ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन । प्रेमला परणी ॥ ए देशी ॥ श्री मुनिसुव्रत हरिकुलचंदा । उरनय पंथ नसायो । स्याहाद रस गर्जितवानी। तत्वस्वरूप जनायो । सुन ग्यानी जिनबाणी रस पीजो अति सन्मानी ॥१॥ बंध मोद एकांते मानी मोक्ष जगत . उदे । उन्नय नयात्मन्नेद गहीने तत्वपदार्थ वेदे।सुन ग्या॥ २॥नित्य अनित्य एकान्त गही ने। अस्थ क्रिया सब नासै । उसय खरूपे वस्त विराजे । स्याछाद श्म नासै ॥ सुन ग्या० ॥३॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, करता भुगता वाहिज दृष्टे । एकांते नहीं थावे । निश्चय शुद्ध नयात्म रूपे । कुण करता जुगतावे ॥ सु० ॥ ४ ॥ रूप विना यो रूप सरूपी । एक नयात्मसंगी । तन व्यापी वितु एक अनेका । श्रानंदधन दुख गी ॥ सु०॥ ५ ॥ शुद्ध अशुरू नास विनासी । निरंजन निराकारो । स्यादवाद मत सगरो नीको डुरनय पंथ निवारो ॥ सु० ॥ ६ ॥ सप्तभंगी मत दायक जिनजी । एक अनुग्रह कीजो | श्रात्मरूप जिसो तुम लाधो । सो सेवक को दीजो || सु० ॥ ७ ॥ इति श्री मुनिसुव्रत जिनस्तवनम् ॥ २० श्री नमिनाथ जिनस्तवन । श्र मिलवे बंसी वाला कान्हा ए देशी । तारोजी मेरे जिनवर सांइ बांह पकड कर मोरी । कुगुरु कुपंथ फंदथी निकसी S " Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. ३३ ।सरण गही अब तोरी ॥ ता ॥१॥ नित्य अनादि निगोद मे रुलतां । फूलतां नवोदधि मांही। पृथ्वी अप तेज वात खरूपी । हरितकाय उख पार ॥ ताछ ॥ २॥ बितिचउरिंडी जातनयानक संख्या मुखकी न कां। हीन दीन जयो परवस पर के ऐसे जनम गमाश् ॥ ताण ॥३॥ मनुज अनारज कुलमें उपनो तोरी खबर न का। ज्यूं त्यूं कर प्रक्षु मग अब परख्यो । अब क्यों वेर लगाश् ॥ता ॥४॥ तुम गुण कमल ब्रमर मन मेरो। उडत नहीं है उडा। तृषत मनुज अमृत रस चाखी । रुच से तप्त बुझाई ॥ ताण ॥ ५ ॥ नवसागर की पीर हरो सब । मेहर करो जिनराश । हग करुणा की मोह पर कीजो। लीजो चरण बुहाश् । ॥ ताम् ॥६॥ विप्रानंदन जग उख कंदन । जगत वबल सुखदा । श्रात Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, मराम रमणजग स्वामी । कामत फल वरदाइ ॥ ता० ॥ ॥ इति श्री नमिनाथ जिनस्तवनम् ॥ २१ ॥ श्री नेमिनाथ जिनस्तवन. चैतमे सोदाग सहियां फूलीयो सब रूपमें | ज्ञान फूल चारित फल जर | लागीयो चिद रूप में । पुन्य योवन चस्वो नीको। करण पंचस नूरीयां | अब देख नेम वियोग सेती । जये बिनक में दूरीयां ॥ १ ॥ वैसाख तामस ऊठीयो सब फूल फल मुरजाश्या । चित दाह भस्मीभूत कीनो शांतिरस सुसाइया । मन सैल राज कठन कीनो दंज नागन धाइयां । अब प्यास शांत न होत किम ही त्रिभुवन धन जल पाइयां ॥ २ ॥ जेठ जागी कुगुरु वायु अंधीयां बहुं आश्यां । तन मन सबी मलीन कीने । नयन रज बहु बाइयां ॥ कतु आप पर की सूज 1 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. ३५ नाहीं परोघोर अंधेर में । सब रूप सुन्दर बार कीने । मोह महातम घेर में ॥ ३ ॥ आषाड कुगुरु प्रदान कीनो तप्त वात चउरासीयां । मानसी तन रोग पीरा घरम गरमी फासीयां । अधोभूमी नरक ताती बातीयां बहु दुख नरे । अब नेम समरण कीजीये तन तपत टारे दुख हरे ॥ ४ ॥ सावन घटा घनघोर गरजी नेम वानी रसजरी । अपबंद निंदक संघके तिन जान सिर विजरी परी । सत्ता सुभूमी जव्यजनकी अंससे सववरी । अब आस पुन्य अंकुर की मनमोद सहियां फिरखरी ॥ ए ॥ जादो नए फुन पुन्य पूरे धरम वारी लह लही । सहस अष्टादस दले सीलांग संज्ञा कुमरही । सरधान जलसुध सींचता प्रतिज्ञान तरुवर फुल रहे । लागेंगे अजरामर फल मधु नेम आणा सिर वदे ॥ ६ ॥ श्रसुपु Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ pl ३६ श्रीमं विजयानंदसूरि कृत, - कारे कुगुरु पितरा हमरी गत तुम कीजीये | जव्य ब्राह्मण खीर जिनवच चाखीये रस पीजीये । कुगुरु खाली हाथ बैठें पाये नरजव खोय के । पूजो दसहरा धरम दस विध ज्ञान दरसन जोय के ॥ ७ ॥ कार्तिक दीवाली ज्ञान दीपक जरम तिमर उमाश्या । अब ज्ञानपंचम निकट आई - करण त्रिकसुद्ध पाइया । अष्टदृष्टि जोगसाधी जावनात्रिक नाश्या । अब जश् कुमति तप्त डूरी सीत जिन वचपाश्या ॥ ८ ॥ मगसर जये सब बार ममता जानमहा दुख रासीया । सुत त्रात जाता मित्र जननी जान महा दुख फासिया । कोई न तेरा मीत दुरजन सन संगी हित करो । इक नेम चरण आधार शिवमग आस मन मांही धरो ॥ ए ॥ पोषे तनु परिवार पर जनमित तेरे हैं नही । तमित दमक जू कान करिवर 1 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. राग संध्या बिन रही। चक्रीहलधर संख भृतजन देख सुपना रैनका । कोश्न थिरता जान अब मन आसरा जिन बैन का ॥१॥ साहमह की वासना मन ज्ञान दरसन मे लिया । याम सुमति तप कुगरे करम बिक्षक बेलीया । जार के सब मदन वन घन मोखमार्ग फैलीया । अब देखचंग अखंम राजल नेम होरी खेलीया ॥ ११॥ सील सज तनु केसरी पिचकारीयां सुन नावना । ज्ञान मादल ताल सम रस रागसुध गुण गावना । धूर. ऊडी करमकी सव सांग सगरें त्यागीया। नेम आतमराम का धरिध्यान शिव मग लागिया ॥ १५ ॥ इति श्री नेमनाथ जिनस्तवनम् ॥१५॥ श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवन । · राग वढंस ॥ मूरति पास जिनंदकी सोहनी। मोहनी Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ श्रीमविजयानंद सूरि कृत, जगत उधारण हारी ॥ मू॥ श्रांकणी ॥ नील कमल दल तन प्रजु राजै।साजे त्रिजुवन जन सुखकारी । मोह अज्ञान मान सबदलनी। मिथ्या मदन महा अघजारी ॥ मू ॥१॥ हूं अति हीन दीन जगवासी।माया मगन नयो सुझबुक हारी। तोविन कौन करे मुफ करुणा । वेगालो अब खबर हमारी॥ मू० ॥२॥तुम दरसन विन बहु मुख पायो । खाये कनक जैसे चरी मतवारी। कुगुरु कुसंग रंगवस जरऊयो । जानी नही तुम जगती प्यारी मू॥३॥ आदिअंत बिन जग नरमायो। गायो कुदेव कुपंथ निहारी। जिन रसोर अन्यरस गायो । पायो अनंत महा सुख नारी ॥मू॥४॥ कौन ऊधार करे मुक केरो श्री जिन विन सहु लोक मकारी। करम कलंक पंक सब जारे। जो जन गावत लगतिं तिहारी ॥ मूग ॥ ५ ॥ जैसे चंद Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन: चकोरन नेहा | मधुकर केतकी दलमन प्यारी । जनम जनम प्रभु पास जिनेसर । वसो मन मेरे जगति तिहारी ॥ मूणा६॥ अश्वसेन वामा के नंदन | चंदन सम प्रभु तप्त बुजारी | निज आतम अनुजव रस दीजो | कीजो पलक में तनु संसारी ॥ मू० ॥ ७ ॥ इति श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवनम् ॥ २३ ॥ ३ श्री महावीर जिनस्तवन । गीत की देशी ॥ नवदधि पार उतारणी जिनवर की वाणी । प्यारी हे अमृत रस केल । नीकी है जिनवर की वाणी ॥ जरम मिथ्यात निवारियो । जि० ॥ दीधो हे अनुजंव रस मेल | प्यारी है जि० ॥ १ ॥ इमं सरिखा अति दीन ने । जि० । डूखम हे अतिघोर अंधार । प्या० । जि० । ज्ञान प्रदीप जगावीयो । जि० । पाम्या है अतिमारंग 4 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, सार । प्या। जि ॥२॥ अंग उपांग खरूप सुं। जि । पश्न्ने हे ब बेद गरंथ । प्या। जि । चूर्ण नाष्य नियुक्ति सुं । जि । वृत्ति हे नीकी मोद को पंथ । प्याजजिया सदगुरुकी एतालिका। जिण जासु हे खुले ज्ञान भंडार । प्यागजिन इन विन सूत्र वखाणीयो जि० । तस्कर हे तिण लोपि कार । प्याज जिन ॥४॥ सोहम गणधर गुण निलो। जिण । कीधों हे जिन ज्ञान प्रकाश । प्या । जि । तुक पाटो धरदीपता । जि । टोयो हे जिन दुरनय पास । प्या० । जि ॥५॥ हम सरिखा अनाथने जिण् । फिरता हे, वीत्यो कालअनंत । प्या० । जि० । इन नववीतक जे थया । जि । तू जाणे हे तौसु कौन कहंत । प्या । जि ॥६॥ जिन वाणी विन कौन था। जिनमुऊन हे देता मारग सार । प्या। जिय जयो Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विशति जिनस्तवन. जिन वाणी जारता । जि० । जावा दे मिथ्यामत नार । प्या॥जि०॥ ७॥ हुं अपराधी देवनो। जि । करीये हे मुजने वगसीस प्याजि०॥ निंदक पारउतारणा । जि । तूही हे जग निर्मल इस ॥ प्या। जि ॥७॥ बालक मूर्ख आकरो। जिन धीगेहे वलि अति अविनीत । प्या । जि । तोपिण जन के पालिये। जि ॥ उत्तम हे जननी ए रीत । प्या । जि ॥ ए ॥ ज्ञान हीन अविवेकीया। जि। हठी हे निंदक गुण चोर । प्या । जिण । तोपिण 'मुऊने ता. रीये। जि। मेरी हो तोरोमोहनी दोर॥ प्या ॥ जि० ॥१०॥ त्रिसला नंदन वीरजी। जि । तूतो है श्रासाविसराम। प्याजजिणअजरअमरपद दीजीये। जि। थाउंहे जिमश्रातमरामप्या जि॥१॥ ॥ इति श्री महावीर जिनस्तवनम् ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, ॥ कलश ॥ चौबीस' जिनवरसयल ॥ सुख कर गावतां मन गहगहै | संघ रंग उमंग निजगुण जावतां शिव पद लदै ॥ नामे अंबालानगर जिनवर वैन रस न विजन पिये । संवरो खं० श्रग्नि३ निधि विधु१ रूप आतम जस जस किये १ ४२ 1 ॥ दोहा ॥ जिनवर जस मनमोदथी । हुकम मुनिके देत । जो जवि गावत रंगसु । अजरामर पद देत ॥ इति श्री आत्मारामानंद विजयकृता चतुर्विंशतिका समाप्ता । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रीदश' जावनी. - श्रीमंदू आत्मारामजी महाराजकृत ॥ द्वादश ज्ञावना ॥ प्रथम नित्य नावना. योवन धन थीर नही रेहनारे ॥ श्रांचली ॥ प्रात समय जो नजरे आवे मध्य दीने नहीं दीसे ॥ जो मध्याने सो नहीं रात्रे क्यों विरथा मन हींसे ॥ योवन० ॥ १ ॥ पवन ऊकोरे बादर विनसे त्युं शरीर तुम नासे । लबी जल तरंग वत चपला क्यों बांधे मन आसे ॥ योवन० ॥ २ ॥ वलन संग सुपनसी माया इनमें राग हि कैसा | बिनमें उडे अर्कतूल ज्युं योवन जगमे ऐसा । योवन० । ३ । चक्री हरिपुरंदर राजे मद माते रस मोहे | कौन देश में मरी पहुंते । तिनकी खबर न कोड़े ॥ योवन० ॥ ४ ॥ जग मायामें नहीं लोभावे श्रतमराम सयाने । अजर - : ५३ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, मर तुं सदा नित्य है । जिन धनि यह सुनी काने ॥ योवन० ॥ ५ ॥ इति नित्य भावना ॥ अथ दूसरी अशरण जावना. राग मराठी अपने पदको तजकर चेतन परमे फसनाना चाइये ॥ ए देशी ॥ निज स्वरूप जाने विन चेतन जगमें नहीं कोई है सरना । क्यों जरम मूलाना जान निजरूप आनंद रस घट जरना ॥ निज० ॥१॥ इंद्र उपेंद्र आदि सब राने विना सरन यम मुख परना । अति रोग जराये जीव की कौन करे जगमे करुणा ॥ निज० ॥२॥ मात पिता खसु जात पुत्र के देखत ही यम ले चलना | मुखवाय रहेंगे सरणा नहीं तिननें को करना ॥ निज० ॥ ३ ॥ मृतक देखी शोच करे मन अपना सोच नहीं करना । ढ मुरख तूंरे करम की Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बादश नावना. ४५ गतिसे सहु जगमें फीरना । निज ॥ जगवन फुःखदावानल दहके हिरन पोतको कोसरना ।तिम सरण विना तूं मोहसें पाप पिंकों क्यों जरना ॥ निज॥५॥ हरि विरंचि ईश नहीं जाते आपही तिनको क्यों मरना। जिन वचन हि साचे जीवना जितनाहि आयु धरना ॥ निज ॥६॥ आतमराम तुं समज सयाने ले जिनवर वचका सरनां । ममता मत कीजे नहीं तेरी मेरी में तें परना ॥ निज॥७॥ इति वितीय श्मशरण नावना. अथ तृतीय संसार नावना. राग सोरठ ॥ कुवजाने जाउ मारा ॥ ए देशी ॥ __उरकायो आतमज्ञानी संसार मुखांकी खांनी उरकायो॥ आंचली॥ वेदपाठी मरी पाणज होवे खामी सेवक पामी। ब्रह्मा कीट हिजवर रासन नृप वर नरकही गामी ॥ उर० ॥१॥ सुरवर खर खर जगपति Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, होवे रंक राज विसरामी।जगनाटकमे नटवत नाच्यो कर नाना विधतानी ॥ उरण ॥॥ कोन गति में जीव न जावे बोडे नहीं कुण थानी । संसारी कर्म संगथी पूयो कचवर कुंटी जगनामी ॥उरण॥३॥ एक प्रदेश नहीं जग खाली जनम मरण नहीं गनी।पवन ऊकोरे पत्र गगन ज्यु उडत फिरे जड कामी॥जरासत चिद आनंद रूप संजारो बारो कुमत कुरानी । जिनवर नाषित मग चल . चेतन तो तुम श्रातमझानी ॥ उरण॥ ५॥ ... इति तृतीय संसार भावना ॥ : अथ चतुर्थ एकत्वनावना ॥राग वढंस ॥ तूम क्यों नूलपरे ममता में या जगमें कहो कोन हे तेरा ॥तुमा आंचली। आयो एकही एकही जावे साथी नहीं जग सुपन वसेरो । एक ही सुख दुःख जोगवे Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घादश लावना. ४७ प्राणी संचित जो जन्मांतर केरो। तुम ॥१॥ धन संच्यो करी पाप नयंकर नोगत खजन आनंद नरेरो । आप मरी गयो नरकही थाने सहे कलेश अनंत खरेरो ॥ तुम॥ २॥ जिस वनितासे मद नहि मातो दिये आमरण हि वसन नलेरो । सो तनु सजी पर पुरुष के संगे जोग करे मन हर्ष घनेरो ॥ तुम॥३॥ जीवित रूप विद्युत सम चंचल माल अनी उद विंड लगेरो । इनमें क्यों मुरझायो चेतन सत चिद आनंद रूप एकोरो ॥ तुम ॥ ४॥ एकही आतमराम सुहंकर सर्व नयंकर दूर टरेरो । सम्यग दरसन ज्ञान स्वरूपी नेष संयोगहि बाह्य धरेरो ॥ तुम ॥५॥ इति एकत्व नावना। अथ पंचमी अन्यत्व नावना. ॥ राग नेरवी॥ ब्रह्मज्ञान रस रंगीरे चेतन ॥ ब्रह्म ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, आंचली ॥ तन धन खजन साहायक जे ते इनसे अन्य निरंगीरे। जीवसे एही विलक्षण दीसे अन्यपणा दृग संगीरे ॥ ब्रह्म॥१॥ जो नवी देह बंधु धन जनसे श्रातम निन्नहि मंगीरे । तिन कों सोग शंकुसे पीमा व्यापे नहीं मुख जंगीरे ब्रह्म । ३। जेसे कुधातु से कंचन बिगस्यो दीसे स्वरूप विरंगीरे । गये कुधातु के निजगुण सोहे चमके निजगुन चंगीरे ॥ ब्रह्म ॥३॥ करम कुधातुसे चेतन विगर्यो माने सवहि एकंगीरे । सम्यग दरसन चरण तापसे दाहे करम सरंगीरे । ब्रह्म । श्रातम निन्न सदा जमतासे सत चिद रूप धरंगीरे। आनंद ब्रह्म सुहं कर सोहे अजर अमर अनंगीरे वगया ॥ इति अन्यत्व जावना ॥ अथ ही अशुचि नावना. ॥राग सिंध काफी ॥ तनु शुची नहीं होवे कांहेकुं नरम Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घादश नावना. नूला नारे तनु । आंचली। रस लोही पल मेद हाड से मझा रेत गुहानारे । आंत मूत पित्त सिंजही कसमल अतिही पुगंध जरानारे। तनु।१।नवहिज श्रोत जरे मलगंधि रस कर्दम असुहानारे । तनुमे शुचि संकल्पहि करना एहीज नाम अज्ञानारे । तनु।। नव वरननी मुख चंडज्यूं निरखी मनमें अति हरपानारे । रुधिर पूयमल मूत्र पेट में नसनस मैल नरानारे ॥ तनु॥३। रुधिर मंसकी कुच ग्रंथी है मुखसें लाल बहा. नारे । गूथ मूत्रके छार घनीले तिनसे नोग करानारे । तनु । ४ । अशुचितर · खान देह शुचि नाही जो सत स्नान करानारे बातम थानंद शुचितर सोहे देह ममता तजरानारे । तनु । ५। ॥ इति अशुचि नावना ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अथ सातमी आश्रव नावना ॥ राग ठुमरी नेरवी ॥ __ आश्रव अति उखदानारे चेतन श्राश्रव । अांचली। मनवच कायाके व्यापारे योग यही मुख मानारे । कर्म शुजा. शुन जीवकों आवे आश्रव जिनमत गानारे । आश्रवण ।। मैञ्यादि नावना वासित मन पुन्याश्रव सुख दानारे । विषय कषाये पीडित चेतन पापे पीक नरानारे ॥ आश्रवण ।। जिन भागम अनुसारी वचने । पुन्यानुबंधी पुनानारे ॥ मिथ्या मत वचने करी आवे पापाश्रव फुःख थानारे ॥ श्राश्रव०॥३॥ गुप्तशरीर में पुन्य सुहंकर करे जगवासी सिया नारे । हिंसक षटकायाको जंतु जगमें पाप करानारे ॥ आश्रवण ॥४॥ योग कषाय विषय परमादा विरति रहितहि अग्यानारे । मिथ्या दरसनी आरत Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बादश नावना. रौडी पापकरे सुखहानारे ॥ आश्रव० ॥ ॥५॥ श्रात्म सदा सुहंकर निर्मल जिन वच अमृत पानारे ॥करके जीवे सदा निरंगी पामे पद निरवानारे।श्रावै॥६॥ ॥ इति श्राश्रव नावना ॥ अथ आठमी संवर नावना ॥राग विहाग ।। जिनंद वच संवर सुनरे सुझानी ॥ आंचली ॥ सब आश्रव को आवत रोके संवर जिनवर बानी । सो नी दोय नेद सें वरन्यो अव्यनाव सुख दानी ॥ जिनंद ॥१॥ करम ग्रहण का बेद करे जो संवर दरब विधानी। नव हेतु किरिया जो त्यागे नाव संवर सुख खानी ॥ जिनंद ॥२॥ जिस जिस कारण सेती रुंधे थाश्रव जल पथ पानी । ते ते उपाय निरोध के तांश जोडे पंमित ज्ञानी ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, जिनंद ॥३॥खम मृछ सरल अनीहा सेती क्रोध मान बल थानी । लोन ए चारो क्रम से रुन्धे तो कहीए शुज ध्यानी ॥ जिनंद ॥४॥ करे असंयम अ. ढता जिनकी ते विषयों विषमानी।३छिय संयम पूरन सेवी करे जर मुर सें हानी ॥ जिनंद ॥ ५॥ तीन गुप्तिसे योगको जीते हरे परमाद कुरानी। अपरमादे पाप योगकुं बिरती से सुख जानी ॥ जिनंद ॥६॥ सम्यग् दरससे मिथ्या जीती थारत रौहि धानी। धीर चीत करीने जीत चिदानंद श्रातमपद निर्वानी॥ जिनंद ॥७॥ ॥ इति संवर नावना ॥ अथ नवमी निर्जरा नावना । ॥राग कमाच ॥ मुर्मति मारदे मेरे प्राणी उरमति ॥ ॥ए देशी ॥ ॥ चेतन निर्जरा जावना जावेरे ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादश जावना. ૫૩ चेतन ॥ आंचली ॥ जग तरु वीज नूत करम जे । खेरु करे सुखपाये ॥ सो निर्जरा दोय भेद सुनीजे । सकामा काम बतावेरे ॥ चेतन ॥ १ ॥ संयमी कों सकाम निर्जरा | इतरां को इतर कहावे । कर्म पापका फल जो जोगे । स्वय उपाय सुनावेरे ॥ चेतन ॥ २ ॥ मलयुत कनक तप्त वन्हिसे जेसे दोष जरावे । तप निसें कर्म तपाये तेसें जीव सुजावेरे ॥ चेतन ॥ ३ ॥ खाना नहिं उनो - दरि करनी । विरती संखेप गिनावे | रस त्यागे तनु कष्ट करे जो । इन्द्रिय विषय रुंधावेरे ॥ चेतन ॥ ४ ॥ षटू नेदे यह बाह्य कह्यो तप । षट् विध अंतर ठगवे । प्रायवित्तवियावच्च सुहंकर । विनय व्युत्सर्ग धरावेरे ॥ चेतन ॥ ५ ॥ शुभ ध्याने तपो अनि दीपे बाहिर दर जावे । संयमीजन करे दृष्ट निर्जरा - Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, डुर्जर क्षण खय जावेरे ॥ चेतन ॥ ६ ॥ बंधन गये तुंब ज्यूं जल में । बिनक में उहि श्रवे । तम निर्मल सुध पद पामी । जनम मरण मिटावेरे ॥ चेतन ॥ ७ ॥ ॥ इति निर्जरा जावना ॥ २.४ अथ दशमी धर्मभावना. ॥ राग माढ ॥ चेतनजी थाने धर्मनी जावना दाख जी महाराज हो चेतन जी । आँचली । धर्म जिनंद बताया जी महाराराजरे कां जेहने श्रालंबी हे जीरे कांइ जेहने लंबी । जवोदधि में न रुबायाजी महाराराजरे ॥ चेतन० ॥ १ ॥ संयम सत्व सुहाया जी महाराराजरे कांइ ब्रह्मअकिंचन तप सुचि सरल गिनायाजी महाराराजरे ॥ चेतन० ॥ २ ॥ मांख मार्दव मुक्तिजी महाराराजरे कांइ दस Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rwrrerrrrrrrrrrrm - वादश नावना. meroeiwwwmarwa विध धर्मो वीरजिनंद सुनाया जी महाराराजरे ॥ चेतन ॥३॥ नरक पडता राखेजी महाराराजरे कांश तीर्थकर पद धर्म थकी जगपायाजी महाराराजरे ॥ चेतन ॥४॥ संकटमे सुख आपेजी माहाराराजरे कां आतमानंदी धर्म अतिसुख दायाजी माहाराराजरे॥चेतन॥५॥ ॥ इति धर्मजावना ॥ अथ एकादशमी लोकस्वरूप नावना। ॥ राग जन्द काफी ॥ नवि लोक स्वरूप समररे सम ॥ श्रांचली॥ कटि धरि हाथ चरण विस्तारी। नर आकृति चित धररे । षमअव्य पूरणलोक समरले उपजत बिनसत थिररे ॥ जवी० ॥ १ ॥ त्रिजुवन व्यापक लोक विराजे ॥ पृथवी सात सुधररे । घनोद Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, धि घन तनु वात वनिकलशे । चार उररही श्रीररे ॥ नवी ॥२॥ वेत्रासन सम लोक अधो है । जबरी निज मध्यव ररे । मुरजाकार ही नललोक हैं । नाषे जग जिनवर रे ॥ जवी० ॥३॥ रचना इसकी किन ही न कीनी। नहीं धास्यो किन कर रे॥स्वयं सिक निराधार लोकये। गगन रह्यो ही अचर रे ॥ नवी ॥४॥ ईश्वर कृत्यही लोक जोमाने । सो आग्या नहीं बर रे। श्रात्मानंदी जिनवर जप्पो । मान मिथ्या मत हर रे॥ नवी० ॥५॥ ॥ इति लोकस्वरूप लावना । अथ घादशमी बोधिलन नावना । ॥ राग तुमरी ॥ अनंते काल से बोधि मुर्लन पानारी । सखी बोधि ॥ आंचती ॥ अकाम निरजरा पुन्य से प्रानी । थावर से त्रस Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वादश भावना. vs थानारी ॥ सखी० ॥ १ ॥ बित्रिचतु पंच इन्द्री सुकर | क्रम सें तिरयग माना री ॥ सखी ० ॥ २ ॥ नरजव आरज देश सुजाति । इन्द्रिय पटुतर गानारी ॥ सखी श्र० ॥ ३ ॥ लंबी आयु कथक श्रवण गुन | श्रद्धा सुचितर ठानारी ॥ सखी ० ॥ ४ ॥ तत्त्व निश्चय वोधि रतन सुदंकर | शिव सुख की खानारी ॥ सखी ० ॥५॥ दुर्लन वोधि जावना जावे । तो तूं आतमरानारी ॥ सखी श्र० ॥६॥ इति वोधि दुर्लभ जावना ॥ इति वार जावना. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A ५७. श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, न्यायांनोनिधि महामुनीराज श्रीमद् आत्मारामजी-आनंदविजयजी कृत. ॥ इंश्वना॥ श्रीवीरनाथाय नमःप्रकाममनंतवीर्यातिशयाय तस्मै। अंतस्थमेकांगपरिग्रहो यः कामादिचक्र युगपजिगाय ॥१॥ ॥ आर्याटत्तम्॥ जयति नुवनैकनानुः सर्वत्रानिहतकेवलालोकः ॥ नित्योदितः स्थिरतापवर्जितो वर्षमानजिनः ॥१॥ ॥ अथ स्तवन लिख्यते ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. राग लागी लगन कहो केसे बुदे, प्राणजीवन प्रनु प्यारेसें ए देशी. श्री शंखेश्वर निज गुनरंगी, प्राणजी Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. एए वन प्रनु तारेरे॥श्री शंखेश्वर ॥श्रांचली अश्वसेन वामाजीको, नंदन चंदन रस सम सारेरे॥ अनीयाली तोरी अंबुज अखीयां, करुणा रसजरे तारेरे ॥श्रीशंखेश्वर ॥१॥ नयन कचोले अमृत रोले, नविजन काज सुधारे ॥ नवि चकोर चित्त हो निरखी, चंद किरण सम प्यारेरे ॥ श्री शंखेश्वर ॥२॥ तेरोही नाम रटतहुँ निशदिन, अन्य आलंबन गरेरे ॥ शरण पड्ये को पार उतारो, एसो विरुद तिहारेरे ॥ श्री शंखेश्वर ॥३॥ चमत चमत संखेश्वर स्वामी, पामी चम सब डारेरे॥ जनम मरणकी नीति निवारी, वेग करो जव पारेरे ॥ श्री शंखेश्वर ॥ ४ ॥ श्रातमराम आनंद रस पुरण, तुं मुज काज सुधारेरे ॥ अनहद नाद बजे घट अंदर, तुंही तुंही तान जच्चारेरे ॥ श्री शंखे. श्वर ॥५॥इति ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग नोपाली ताल जलद एक ताल, नाचत सुर पठित बंद मंगल गुनगारी. नाचत. आंचली. सुर सुंदरी कर संकेत पिकधुनी मील जमरी देत॥रमक बमक मधुरी तान, धुंघरु धुनिकारी ॥ नाचत ॥१॥ जय जीनंद शिशिरचंद नविचकोर मोद कंद ॥ कामवाम चमनिकंद, सेवक तम तारी॥ नाचत ॥२॥ धूंधूं धपतारचंग, खुखुमघुटट जलतरंग, ॥ वेणुवीणा तार रंग, जय जय अघटारी ॥ नाचत ॥ सिरि सिझारथ नूपनंद, वर्धमान जिनदिनंद ॥ मध्यमानगरी मुरीद, करे उबव मनहारी ॥ नाचत ॥४॥ गौतम मुख मुनिवरिंद, तारे भ्रम काट फंद ॥ श्रात्म आनंद चंद, जय जय शिव चारी॥ नाचत ॥५॥शत ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. अथ महावीरस्वामीनु स्तवन. - राग माढ. प्रीतलागीरे जिनंदर्श प्रीतलागीरे. श्रांचली. जैसे धेनु वन फिरेरे, जन वढरे केरे मांह ॥ चरण कमल त्यूं वीर केरे, बिन कही विसरत नाह ॥ जिनंद ॥ १ ॥ विंध्याचल रेवानदीरे, गज वर झूलत नाद ॥ मनमोहन तुम मूर्त्तिरे, सिमिरत मिटे दुःख दाद ॥ जिनंद ॥ २ ॥ तें तार्यो प्रभु मोहकोरे हरि जवसागर पीर ॥ ग्यान नयन मुजे तें दीयेरे, करुणा रसमय वीर ॥ जिनंद ॥ ३ ॥ कोटि वदन को डि जीनसेंरे, कोमी सागर पर्यंत ॥ गुन गाउं तेरे नक्तिशुंरे, तो तुम रिप कोन अंत ॥ जिनंद ॥ ४ ॥ क़दियक दिन मुज वशे रे, निरखुं तेरोरे रुप । मो मन आशा तो फलेरे, फिर नपरुं नवक्कूप || जिनंद ॥ ५ ॥ चरण कमलकी ६ ६१ www Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत, रेणुमेरे हुं लोहूं जगदीश । अंहि न बोड्रं तव लगेरे, न करे निज सम ईश ॥ जिनंद ॥ ६ ॥ तमराम तूं माहरोरे, त्रिसलानंदन वीर । ज्ञान दिवाकर जग जयोरे, अंजन पर दुःख जीर ॥ जिनंद ॥ ७ ॥ इति ॥ अथ राधनपुर बिराजमान चडविस जीन साधारण स्तवन. राग तुमरी. जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे, हुं जक्ति करुं मन रंगे, ज्युं कर्म सुनट सब जंगे, हुं बेसुं शिवपुर डुंगे । जिनंदा ॥ चली ॥ आदि जीन स्वामीरे, तुं अंतरजामीरे, प्रभु शांतिनाथ जिनचंदा, तुं अजर अमर सुखकंदा, तुं नाजिराय कुल नंदा ॥ जिनंदा ॥ १ ॥ चिंतामणी नामेरे, वंबीत पामेरे, जीन शांति शांति करतारा, पाम्यो जव जल Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. . ३ धि पारा, तुंधर्मनाथ सुखकाराजिनंदा, ॥शशांति जिन तारोरे, विरुद तीहारोरे, चिंतामणी जगमें जाचो, कल्याण पास जग साचो, तुम पाससामले राचो ॥ जिनंदा ॥३॥ सहस्र फण सोदेरे,मोहन मनमोहेरे, गोमी जिन शरण तुमारी, तुं. धर्मनाथ जयकारी, तुं श्रजित अचर सुखकारी॥ जिनंदा ॥४॥ कुंथु जिनराजारे, वासुपूज्य ताजारे, वागे जग मंका तेरा ॥ तुं महावीर गुरुमेरा, हुं बालक चेरा तेरा ॥ जिनंदा ॥५॥ कुंथु जिनचंदारे, विमल सुख कंदारे, शीतलकी हुँ बलिहारी, नेमीश्वर राजुलतारी, श्रीमंधिर श्रानंदकारी। जिनंदा ॥६॥ वीरजीन दातारे, करो मुज शातारे, प्रनु तुं तारक मुज केरा, करुणानीधी खामी मेरा, हुं शाशन मानु तेरा ॥ जिनंदा ॥७॥ शरणांगत तोरी रे, नहीं अन्य गती मोरीरे, तुम Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, नाम तणा आधारा, तुम सिमर सिमर सिरिकारो, तुम वीरहो मुखमयारा ॥ जिनंदा ॥७॥ संघ मन हरनारे, अक्षय नीधी जरनारे, नायक श्री मूल जिनंदा, राधणपुर नगर सुहंदा, सहु संघने मोद करंदा ॥ जिनंदा ॥ ए॥ राधणपुर वासोरे, मास चार रही खासोरे, सहु संघ मने आनंदी, नवज्रांती सवही नीकंदी, चनविसे जीनवर वंदी। जिनंदा ॥१०॥ अंबु निधी वेदारे, अंक छु निखेदारे, संवत श्रायो सुखकारी, द्वाविंशती मुनी मनोहारी, सहु निज आतमा हीतकारी ॥ जिनंदा ॥ ११ इति ॥ अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग रामकली. तेरो दरस मन नायो चरमजिन-तेरो ॥ आंचली ॥तूं प्रजु करुणा रसमय स्वामी, गर्नमे सोग मिटायो। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PANI . . स्तवनावली. ६५ त्रिसला माताको आनंद दीनो, ग्यात नंदन जग गायो॥चरम ॥१॥ वरसीदान दे रोरतावारी, संयम राज्य उपायो, दीनहीनता कबुयन तेरे, सतचिद श्रानंदरायो । चरम ॥२॥ करुणा मंथर नयने निरखी, चमकोसिकसुख दायो, आनंदरस नर सुरगपहुँतो, एसा कोन करायो ॥ चरम ॥३॥ रतन कमल छिजवरको दीनो, गोशालक जधरायो । जमाली पन्नर नव अंते, महानंद पदायो । चरम ॥४॥ मत्सरी गौतमको गणधारी सासन नायक वायो॥ तेरे अवदात गर्नु जग केते करुणासिंधु सुहायो ॥ चरम ॥ ५ ॥ हुँ बालक शर्णागत तेरो, मुजको क्युं विसरायो । तेरे विरहेसे हुं कुःख पामुं, कर मुज आतमरायो । चरम ॥६॥ इति ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अथ महावीर जीन स्तवन. राग वसंत. सिंध काफी. वीर प्रनु मन जायोरे मेरे नव दुःख टारे ॥ वीर ॥ श्रांचली ॥ देशना अमृत रस नरी नीकी, नवनव ताप मिटायो ॥ शोल पहोर लगदे जीनवरजी, करुणासिंधु सुहायोरे ॥ मे ॥१॥ पचपन सुन फल पचपन इतरे, यही अध्ययन सुनायो । बनीस विन प्रने प्रश्नोका, उत्तर कथन करायोरे ॥ मे ॥२॥ एक अध्ययनही नाम प्रधाने, कथन करत महारायो । महानंद पदजग गुरुपायो, जय जयकार करायोरे ॥ मे ॥३॥ कल्याणक निर्वाण महोडव, कार्त्तिकमां वास गयो । चल• सप सुरपति सोग कर्तहे, जरते तरणि बिपायोरे ॥ मे ॥४॥ गौतम देव शरम प्रतिबोधी, सुन मनमें गजरायो ॥ वर्धमान मुजे बोड जगतमें, एकोही मोद Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. varvwas सिधायोरे ॥ मे ॥ ५॥ कोण आगल हुँ प्रश्न करशु, उत्तर कोन सुनायो । कुमति उब्दुक वोलेगे अधुना, अंधकार जग बायोरे ॥ मे ॥ ६॥ तूं नहीं किसका को नहीं तेरा, तूं निज आतमरायो ॥ श्म चिंततही केवल पायो, जय जय मंगल गायोरे ॥ मे ॥ ७॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर स्तवन. राग, खमाच. श्री शंखेश्वर दरस देख, कुमति मोरी मीट गरे आज ॥ श्रांचली ॥ झान वचन पूजा रस गयो, नाश कष्ट नविजन मन नायो ॥ युं जिन मुरति रंग देख, मुरगति मेरी खुट गरे । श्री शंखेश्वर ॥१॥ निरविकार . वामासंग त्यागी, जप माला नहीं नाथ निरागी । शस्त्र नहीं कर देष मिटे, व्र। मता सब बुट गरे ॥ श्री शंखेश्वर Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, ॥॥ निज विजुति लीनीलार, लोकालोक करी उजवार । नाम जपे सब पाप कटे, दुर्मति सब बुट गरे ॥ श्री शंखेश्वर ॥३॥ आनंद मंगल जगमें चार, मंगल प्रथम जगत करतार । श्रीवामा सूतं पास तुंही, अघ भ्रांति मिट गरे ॥ श्री शंखेश्वर ॥४॥ श्याम मेघ सम पासजी निरखी, आत्म आनंद शिखी जिम हरखी । कर्त शब्द मुख पास तुंही, यही रटना रट लश्रे ॥ श्री शंखेश्वर ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. सोरठ. वीर जिने दीनी माने एक जरी, एक जुजंग पंचविस नागन, सुंघत तुरत मरी ॥ अांचली ॥ कुमति कुटल अनादिकी वैरन, देखत तुरत डरी, चारोही दासी पूत जयंकर, हुए Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ६ जलम जरी ॥ विर ॥ १ ॥ बावीस कुमति पूत हविले, नाठे मदसें गरी, दोज सुजट जर मूरसें नासे, बुढ्यो मदन मरी ॥ विर ॥ २ ॥ महानंद रस चाखत पायो, तनमन दाह वरी, अजरामर पद संग सुहायो, जव जव तापहरी ॥ विर ॥ ३ ॥ सिव वधु वसी करणको नीकी, तीनो रत्न धरी, तम आनंद रसकी दाता, वीर प्रभु दान करी ॥ विर ॥ ४ ॥ इति ॥ अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. श्री. वीरजिन दर्शन नयनानंद. वीरजिन ॥ चली ॥ चंद्रवदन मुख तिमिर हरे जग, करुणा रस हगजरे मकरंद | नीलांबुज देखी मन मधुकर, गूंजे तूंही तूंही नाद करंद ॥ वीर जिन ॥ १ ॥ कनक वरण तनु जवि मन मोहे, सोढ़े जीते सुर गनवृंद | मुखश्री अमृत Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुल श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, रसकस पीके, शिखीवत नविजन नाच करंद । वीरजिन ॥५॥ तपत मिटी तुम वचनामृतसे, नासे जनम मरण पुःख फंद । अक्षपरे तुम दरस करीने, पतैद मानूं हुं जीनचंद ॥ वीर जिन ॥३॥ अरज करतहुं सुन नयनंजन, रंजन निज़ गुन कर सुखकंद ॥ त्रिसला नंदन जगत जयंकर, कृपा करो मुज श्रात्मचंद ॥ वीरजिन ॥४॥इति ॥ . अथ श्रीशंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. . राग. पंजाबी ठेकानी तुमरी. मोरी बैयां तो पकर शंखेश स्याम, करुणा रसजरे तोरे नैन स्याम ॥ मोरी॥ आंचली ॥ तुम तो तार फणींदलग साचे, दमकुं वीसार न करुणा धाम ॥ मोरी ॥१॥ जादवपति अरति तुम कापी, धारित जगत शंखेश नाम ॥ मोरी ॥॥ हम Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ७ १ तो काल पंचम वस श्राये, तुमारो शरण जिनेश नाम ॥ मोरी ॥ ३ ॥ संयम तप करने शुद्ध शक्ति, न धरुं कर्म जकोर ; पाम ॥ मोरी ॥ ४ ॥ आनंद रस पुरण सुख देखी आनंद पुरण आत्मराम ॥ मोरी ॥ ५ ॥ इति ॥ 3 अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. वसंत. सिंध काफी. रे सुन वीर जिनंदा चरण शरण ल्युं तेरा ॥ सुन ॥ आंचली ॥ कामक्रोध मदराग अग्याना, लोन द्वेष मोह चेरा । मायाकुं रांडी मदयुत सांगी, इन दीनो मुजे घेरारे ॥ सुन ॥ १ ॥ मन वचन तनुसें करत याकपेन, वाम रस नेरा । सब धन दादे कर रोगको, रंजीतपर गुण केरारे ॥ सुन ॥ २ ॥ संका कंखा जांति वढावे, ममता श्रश घनेरा । अप्रिती करे बिन · Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, कमें जनको, दीयो गति चार वसेरारे ॥ सुन ॥३॥चारित्र राजको त्रास दीये नितु, निज गुन दावे मेरा ॥ सद थागम संतोष सुरंगा, सम्यग दरसन मेरारे ॥ सुन ॥ ४ ॥ हुकम करो करे सानिध मेरी, नासे नरम अंधेरा । श्रात्म यानंद मंगल दीजे, हुँ जिन बालक तेरारे ॥ सुन ॥५॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. राग. कालींगडो. पास प्रजुरे तुम हम शिरके मोर ॥ पास ॥ टेक ॥ जो कोइ. सिमरे शंखेश्वर प्रचुरे, डारेगा पापनी चोर ॥ पास प्रनु ॥१॥ तुं मनमोहन चिदघन खामीरे, साहेब 'चंद चकोर ॥ पास प्रनु ॥॥ त्युं मन विकसे नविजन केरारे, फारेगा कर्महींमोर ॥ पास प्रजु ॥ ३ ॥ तुं मुज सुनेगा दिलकी बा Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. पु३ तरि, तारोगे. नाथ खरोर ॥ पास प्रजु ॥४॥ तुं मुज आतम श्रानंद दातारे, ध्यातां ढुं तु मेरा किशोर ॥ पास प्रनु ॥५॥ इति ॥ अथ श्री शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. राग. पंजावी वेकानी तुमरी. तोरी बवी मनोहारी; शंखेश स्याम; नीलांबुजवत तोरे नेन स्याम । तोरी। आंचली। चंड ज्यु वदन जगत तुम नासे; चरण कलमल पंक पखारे नाम ॥ तोरी ॥१॥ नीलवरण तनु नवि मन मोहे, सोहे त्रिजुवन करुणा धाम ॥ तोरी ॥२॥ पारस पारस सम करे जनको हाटक करन तुमारो काम ॥ तोरी ॥३॥ अजर अखंडित मंमित निजगुन, श्श निजीत पुरे काम, ॥ तोरी. ॥४॥ अनघ अमल Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अज चिद धनरासी, आनंद घन प्रभु आत्मराम ॥ तोरी ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर जिनस्तवन. राग. नेरवी. मेगजल. मुख बोल जरा यह कह देखरा, तुं ओर नहीं में ओर नहीं ॥ मुख ॥ श्रांचली ॥ तुं नाथ मेरा मेंहुं जान तेरी, मुजे क्युं विसराइ जान मेरी ॥ जब करम कटा ओर नरम फटा ॥ तुं ओर नहीं ॥ १ ॥ तुंदे इश जरा मेंहुं दास तेरा ॥ मुजे क्युं न करो, अब नाथ खरा ॥ जब कुमति टरे ओर सुम-ति वरें ॥ तुं ओर नहीं ॥ २ ॥ तुंदे पास जरा में हुं पास परा ॥ मुजे क्युं न बो- - डावो पास टरा | जब राग कटे ओोर द्वेष मिटे ॥ तुं ओर नहीं ॥ ३ ॥ तुंहे अचरवरा में चलनचरा मुजे । मुजे क्युं न बनावो आपसरा ॥ जब होंश जरे Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. IN ओर सांग टरें ॥ तुं ओर नहीं ॥ ४ ॥ तुड़े भूपवरा शंखेश खरा । में तो आतमराम आनंद जरा ॥ तुम दरस करी सब चांति हरी ॥ तुं श्रोर नहीं ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ शंखेश्वर पार्श्वजीन स्तवन. राग. सोरठ. लगीलो वामानंदनस्युं ॥ नरम जंजन तूं ॥ लगीलो ॥ श्रकणी | जाय सव धन जाय वामा प्राण जाय न क्युं ॥ एक जिनजीकी प्राण मेरे रहोने ज्युंकी त्युं ॥ लगी लो ॥ १ ॥ नहि तप वल नांहि जप वल शुद्ध संयम त्युं । एक प्रभुजी के चरण शरणां त्रांति जांजी कल्पुं ॥ लगी लो ॥ २ ॥ घट अंदरकी जाने तुं जिन कथन करनेशूं | देख दीनदयाल ॥ मुजको तार जगसें त्यूं ॥ लगीलो ॥ ३ ॥ इंद्रचंद्र सुरींद्र पदवी कोन वांहुं हुं । एक तुम डीग करुणा जीने Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, सदा निरखुं ज्यू ॥ लगीलो ॥४॥ तार आतमराम राजा मुक्ति रमणि वरु । श्री शंखेश्वरनाथ जिनवर सुद्धानंद जरुं ॥ लगीलो ॥ ५॥ इति। अथ महावीर स्वामीनुं स्तवन. राग. गोमी. वीर जिनेश्वर स्वामी आनंद कर । वीर । अांचली ॥ मोमन तुमविन कित हीन लागे । ज्युं जामनी वश कामी ॥ था ॥१॥ पतत उधारण विरुद तिहारो। करुणारस मय नामी ॥ श्रा ॥ ॥ अन्य देव बहुँ विधिकर सेवे । कबुय नहीं हुं पामी ॥ श्रा ॥३॥ चिंतामणि सुरतरु तुम सेवी । मिथ्या कुमतकू वामी ॥ आ ॥४॥ जन्म जन्म तुम पदकज सेवा । चाहुं मन विसरामी ॥श्रा ॥५॥ रंना रमण सुरिंद पदचक्रि । वांडं हुं नहीं निकामी ॥ श्रा Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ' ॥ ६ ॥ आत्माराम श्रानंद रस पूरण | दे दरसं सुख धामी ॥ श्र ॥ ७ ॥ इति ॥ अथ वीरजिन स्तवन. राग. पंजाबी ठेकानी ठुमरी मैरी सैयां तुं नजर कर वर्धमान । तुं साचो वीर करुणानिधान । मैरी सैयां ॥ श्रांकणी । तेरे हि चरण कमलको मधुकर | वीरवीर मुख रटित नाम ॥ मैरी सैयां ॥ १ ॥ तुम विरहो दुःखम् पुन यारो । मनबल डुबल तनुं कताम ॥ मैरी सैयां ॥ २ ॥ उत्तराध्ययनमे तुम वचराजे | तेही श्रा लंबन चितमें ठाम ॥ मैरी सैयां ॥ ३॥ तुम विन कोन करे मुज करुणा धाम ॥ मैरी सैयां ॥ ४ ॥ करुणादृग जरी तनुं कज निरखो । पामुं पद जीम आत्मराम मैरी सैयां ॥ ५ ॥ इति ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अथ वीरजिन स्तवन. . राग. जोपाली. ताल- दीपचंदी ॥ श्तनुं मांगुरे देवा इतनुं मांगुरे नवनव चरण शरण तुम केरो ॥ इतनुं आंचती ॥ सिधारथ नृप नंदन केरो . त्रिसला माता आनंद वधेरे, ग्यातनंदन प्रनु त्रिजुवन मोहे । सोदे हरित जव फेरोरो ॥ इतनुं ॥१॥ दीनदयाल करुणानिधि खामी, वर्धमान महावीर जलेरो । श्रमण सुहंकर पुःख हरनामी। आर्यपुत्र नमजुत दलेरो ॥ इतनुं ॥२॥ तेरेहि नामसे हुं मदमातो, स्मरण करत आनंद नरेरो। तेरे जरोसेंही नीतिनीवारी ॥ आनंद मंगल तुमही खरेरो ॥ ॥ इतनुं ॥३॥ पुरण पुण्य उदय करी पामी, शासन तुमरो नाश अंधेरो जयो जगदीश्वर वीर जिनेश्वर । तुं मुज ईश्वर हुँ तुम चेरो ॥ इतनुं ॥४॥ श्रात्मराम Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. आणंद रस पुरण, मूरण करम कलंक ग्रेरो । शासन तेरो जग जयवंतो ए · ॥ सेवक वंदित निशदिन तेरो ॥ इतनुं ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ सिझाचल मंगन रुषवदेवनुं स्तवन. राग. मराठीमे. रिषव जिनंद विमल - गिरि मंडन, मंगन धर्मधुरा कहीये; तुं - कल स्वरूपी । जार के करम जरम निज गुप लहीये ॥ रिषव ॥ १ ॥ अजर अमर प्रभु अलख निरंजन, जंजन समर समर कहीये | तूं अदभूत योद्धा । मारके करम धार जग जस लहीये ॥ रिषव ॥ २ ॥ - व्यय विजु इश जगरंजन, रुप रेख विन तुं कहीये । शिव चर नंगी । तारके जगजन निज सत्ता लहीये ॥ रिषव ॥ ३ ॥ शत सूत माता सुता सुहंकर, जगत जयं Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ..श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, कर तुं कहीये। निज़ जन सब तार्ये । हंमोसें अंतर रखना नाचश्ये ॥ रिषव ॥४॥ मुखमा जींचके बेशी रहेना, दीनदयालको ना चश्ये । हम तन मन गरो । वचनसें सेवक अपना कहे दश्ये ॥ रिषव ॥५॥ त्रिजुवन श सुहंकर वामी, अंतरजामी तुं कहीये । जब हमकुं तारो । प्रजुसें मनकी वात सकल कहीये ॥ रिषव ॥ ६॥ कल्पतरु चिंतामणी जाच्यो, आज निरासें ना रहीये । तुं चिंतित दायक । दासकी अरजी चितमें अढ गहीये ॥ रिषव ।। दीनहीन परगुण रस राची। सरण रहित जगमे रहीये । तुं करुणासिंधु दासकी करुणा क्यु नहि चित गहीये ॥ रिषव ॥७॥ तुम विन तारक को न दिसे, होवे तुमकुं क्युं कहीये । इह दिलमें गनी । तारके सेवक जगमे जस लहीये । रिषव Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥ ए ॥ सात वार तुम चरणे आयो, दायक शरण जगत कहीये । अब धरणे बेशी, नाथसे मनवंबीत सब कुछ लहीये | रिषव । १० । अवगुण मानी परिहरस्योतो, श्रादिगुणी जगको कहीये । जो गुंणीजन तारे । तो तेरी अधिकता क्या कहीये ॥ षिव ॥ ११ ॥ श्रातम घटमें खोज प्यारे, बाह्य जटकते ना रही ये तुम अजय अविनाशी । धार निज रूप श्रानंद घनरस लहीये ॥ रिषव ॥ १२ ॥ श्यामनंदी प्रथम जिनेश्वर, तेरे चरण शरण रहीये. | सिद्धाचल राजा । सरे सब काज यानंदरसं पी रहीये ॥ रिषव ॥ १३ ॥ इति ॥ ८ १ अथ सुमतिनाथ स्तवन. नाथ केसे गजको फंद बोमायो । ए देशी ॥ सुमति जिन तुम चरणे चित दि Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‍ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, नो। एतो जनम जनम दुःख बीनो ॥ सु० ॥ श्रकणी ॥ कुमत कुटल संग डुर निवारी, सुमति सुगुण रस जिनो । सुमति नाम जिन मंत्र सुल्यो है || मोह नींद नइ खीनो ॥ सु ॥ १ ॥ करमपर जंग बक अतिसि जपा, मोह मुढता दीनो । निज गुण जुल रचे परगुण में । जनम मरण दुःख बिनो ॥ सु ॥ २ ॥ छाब तुम नाम प्रभंजन प्रगट्यो, मोह राय कीनो | मुल अज्ञान श्रविरति एतो । मुल जय जयो तिनो ॥ सु ॥ ३ ॥ मन चंचल अति चामक मेरो, तुम गुण मकरंद पीनो । अवर देव सब दूर तजुहुँ । सुमति गुपति चितदीनो ॥ सु ॥ ४ ॥ मात तात तिरीया सुत नाइ, तन धन तरुणा नवीनो । ए सब मोहजालकी माया इन संग जयो मलीनो ॥ सु ॥ ५ ॥ दरसण ज्ञान चारित्र तिनो, निजगुण धन हर ली Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ८३ नो । सुमति प्यारी जड़ रखवारी । विष इन्द्री इ हिनो ॥ सु ॥ ६ ॥ सुमति सुमति समता रससागर, आगर ज्ञान जरिनो । श्रातम रूप सुमति संग प्रगटे । सम दम दान वरीनो ॥ सु ॥ ७ ॥ इति ॥ अथ जोयणी मंडन श्रीमन्मल्लि जिन स्तवन. राग. परज. निशदिन जोउं थारी वात - मी घर आवो मारा ढोला ॥ ए देशी ॥ मल्लि जिनेश्वर साहिब तुं तो अंतरजामी ॥ चली ॥ करम सुजटरण - गणे एक निकमे दामी, षटू मित्त प्रति बोधके कीने जगतनिकामी ॥ महि ॥१॥ परउपकारी तुं प्रभु करुणा करं स्वामी । तेरो मुख दीठे मीठे मेरे मनकी खामी ॥ मलि ॥ २ ॥ करम रोगके हरनकुं प्रभु तुं जगनामी, वैद्य धनंतरी मो.मीले त्रिभु-, Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - प४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, वन विसरामी ॥ महि ॥३॥ वरण प्रियंगु तनु धरे नवीजन सूख कामी श्रष्टादस मल टालके नये निजगुण गामी, ॥ महि॥४॥ गुर्जर देश सुहंकरु नोयणी शुल नामी, जहां बिराजे तुं प्रनु करे जगको निरामी ॥ महि ॥ ५॥ करम रोगयुत हुं फीरु शिव पद सुख धामी, जगजश व्यो मुजे तारके करो आतमरामी ॥ मलि ॥ ६॥ इति ॥ अथ सिहाचल मंमन रिषव जिन - स्तवन. राग माढ. मनरी बातां दाखाजी म्हाराराजहो रीषवजी थाने ॥ मनरी ॥ आंकणी ॥ कुमतिना नरमायाजी म्हाराराजरे कांश व्यवहारि कुलमे । काल अनंत गमायाजी । म्हाराज हो रिषवजी ॥१॥ कर्म विवर कुछ पायाजी, Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. जए म्हाराराजरे कां। मनुष्य जनमे।श्रारज देशे आयाजी । म्हाराराज हो रिषवजी ॥॥ मिथ्या जन नरमायाजी, सहाराराजरे कां। कुगुरु वेशे अधिको नाच नचायाजी । म्हाराराज हो रिषवजी ॥३॥ पुन्य उदय फीर श्रायाजी, म्हाराजरे कां। जिनवर नाषित । तत्व पदारथ पायाजी । म्हारा राज हो ॥ रिषवजी ॥४॥ कुगुरु संग बटकायाजी । म्हाराराजरे कांश । राजनगरमे । सुगुरु वेष धरायाजी । म्हाराज हो रिषवजी॥५॥ सघला काज सरायाजी । म्हाराराजरे कां । मनमो मर्कट । माने नहीं समजा याजी । म्हाराराज हो रिषवजी ॥६॥ कुविषयां संग ध्यावेजी । म्हाराराजरे कां ममतामाया । साथे नाच नचावेजी । म्हाराराज हो रिषवजी ॥७॥ महिमा पूजा देखी मान जरावेजी म्हाराराजरे Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, कां । निरगुणीया ने । गुणीजन जगमे कहावेजी । म्हराराज हो रिषवजी ॥ ८ ॥ वीवारे तुमरे द्वारे श्रायाजी । म्हराराजरे कां । करुणासिंधु । जगमे नाम धरायाजी | म्हाराराज हो रिषवजी ॥ ए ॥ मन मर्कटकु शिखो निज घर आवेजी । म्हाराराजरे कां । सघली वाते । समता रंग रंगावेजी | म्हाराराज हो रिषवजी ॥ १० ॥ अनुभव रंग रंगीला सुमता संगीजी | म्हाराराजरे कां । श्रतमताजा | अनुभव राजा संगीजी | म्हाराराज हो रिषवजी ॥ ११ ॥ इति ॥ अथ जोयणी मंडन मल्लि जिन स्तवन. जिन राजा ताजा मवि बिराजे जोयणी गाममे । ए चली । देश देशके जात्रु. यावे पूजा सरस रचावे । मल्लि जिनेसर नाम सिमर के मनवंबित फल पावेजी ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. जिन राजा॥१॥चातुर वरणके नरनारी मील मंगल गीत करावे । जयजयकार पंचध्वनी वाजे शिरपर बत्र फिरावेजी । जिन राजा ॥ २॥ हिंसक जन हींसा तजी पूजे चरणे शिश नमावे।तुंब्रह्मातुंहरि शिवशंकर अवर देव नहीं नावेजी ॥ जिन राजा ॥३॥ करुणारस नर नयन कचोरे अमृतरस वरसावे । वदनचंद चकोरे ज्यु निरखी तनमन अति उलसावेजी ॥ जिन राजा ॥४॥ श्रातमराजा त्रिजुवन ताजा चिदानंद मन नावे।मतिजिनेश्वर मनहर खामी तेरा दरस सुहावेजी॥ जिनराजा॥५॥शति॥ अथ चंडप्रनु जिन स्तवन. चाहतथी प्रनु सेवा करुंगी । उलटी करम बनारी ॥ ए देशी ॥ चाह लगी जिनचंड प्रजुकी, मुज मन सुमती ज्यु Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, श्रारी । नरम मिथ्या मत डर नस्योहे । जिन चरणे चित लाइ सखीरी ॥ चाह ॥१॥ सम संवेग निरवेद बस्योहें, करुपारस सुखदारी। जैन वैन अती नीके सगरे । ए नावना मननाश् सखीरी ॥ चाह ॥२॥ संका कंखा फल प्रतीसंसा। कुगुरु संग बटकारी । परसंसा धर्महीन पुरुषकी । इन नव मांही नकाई सखीरी ॥ चाह ॥३॥ पुग्ध सिंधुरस अमृत चाखी । स्याहाद सुखदारी । जहरपान अब कोन करतहे। पुरनय पंथ नसां३ सखीरी॥ चाह ॥४॥ जब लग पुरण तत्व न जाण्यो, . तबलग कुगुरु जुलाश्री । सप्तनंगी गीत तुमवानी। नव्य जी- . व मन नाश् सखीरी ॥ चाह ॥५॥ नामरसायण जग सहु नाखे । मरम न जाणे कांरी ॥ जीव वाणी रस कनक करणको ॥ मीथ्या लोक गमा सखीरी Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ចប់ ॥चाद ॥६॥चंद कीरण जस जस उजल तेरो । नीरमल जोती सवारी॥ जीन सेव्यो नीज आतमरूपी ॥ श्रवर न कोई सहाय सखीरी ॥ चाह ॥ ७॥ इति ॥ अथ स्तवन थारी लरे सरण जगनाथ आज सुज तारो तो सही ॥ अांचली ॥ क्रोध मानकी तप्त मिटावो ॥ पारो तो सही। मेरे प्रजुजी गरो तो सही। ए दिव्य ज्ञान जग नाणा ॥ हृदयमें धारो तो सही॥ थारी ॥१॥ मिथ्या रान कपट जमता संग तारो तो सही ॥ ए सम्यग दर्शन सरल ॥ आनंदरस कारो तो सही ॥ थारी॥५॥ त्रिसना रांग नांगकी । जा वारो तो सही ॥ए चरण शरण नय हरण आनंदसे उगारो तो सही॥ थारी ॥३॥ अष्ट करम दल उदजट वै Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, री । तारो तो सही । एद्वादश विध तव घम गजार उधारो तो सही ॥ थारी ||४|| युगलक धर्म निवारण तारण । हारो तो सही । ए जगत उधारण रुषव जिनेश्वर प्यारो तो सही ॥ यारी ॥ ५ ॥ विमलाचल मंडन अघ खंमन सारो तो सही । ए आत्मराम आनंदरस चाख | उगारो तो सही ॥ थारी ॥ ६ ॥ इति ॥ अथ सर्व जिन सामान्य स्तवन. जीनंदजी व मोए डांगरीया, काटराट जया थानक जयानक || अब ॥ यांकणी ॥ मत मत जग जाल फस्यो में, तो दुःख अनंता पाय ॥ जी ॥ दीन अनाथ विहार लाल तुम, अब चरण सरण तुम पाय || जी छाव ॥ १ ॥ जाचक निशदीन मागत तोपण, दानी कबु नहीं थाय ॥ जी ॥ प्रभुजी नहींतो चींतीत दा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. यक, लायक सौ न कहाय ॥ जी ॥ अब ॥ २ ॥ जो दायक समरथ नहीं तो कुण, तोकुं मागण जाय ॥ जी ॥ त्रीभुवन कल्पतरु में जाच्यो, कहो केम निष्फल थाय ॥ जी ॥ अव ॥ ३ ॥ अवगुण मानी परी हरे तो, यादी गुणी कोण थाय ॥ जी ॥ पारस लोह दोष नवी माने, करे शुद्ध कंचन काय ॥ जी ॥ श्रव ॥ ४ ॥ श्रतमराम श्रानंदरस पुरण, मुरण समर कषाय ॥ जी ॥ अजर अमर पुरण प्रभु पामी, अब मोए कमी न कांय । जी । अव ॥ ५ ॥ इति ॥ १ अथ श्री नेम जिन स्तवन. क्यों करूं माता मेरी, पंमितके जाकेरी ॥ ए देशी ॥ नव जव केरी प्रीत सजन तुम तोमी न जावोरे ॥ नव ॥ श्रकणी ॥ मुगती रमणीस्युंलागी लगन, मनमें अति वैराग धरना । बोड चले निज साथ सज Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए५ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, न, मुख फेर देखावोरे ॥ नव ॥१॥ तुम बोडी अब जात कडं, में नही बोडत घर न रहुं । जोगन वनी तुम संग चढुं, नीज ज्योती जगावोरे ॥ नव ॥ २॥ बातम वेर न कुमती बुं, रागष मदमोह दर्बु । सुगती नगर तुम संग चर्बु, नीज जोर जनावोरे ॥ नव ॥ इति ॥ अथ श्री नेम जिन स्तवन. श्रावो नेम सुख चेन करो, जुख काही देखावोरे ॥ आंकणी ॥ वीरह तुमारो अतीही कठन, सही न शकुं पल एक बीन । जगत लाग्यो लव हांसी करन, मत बोजीने जावोरे ॥श्रावो ॥१॥ क-- रूणासिंधु नाम धरन, सुण अनाथके नाथ जीन। रुदन करूं तुम चरन परन, टुंक दया दील लावोरे ॥ श्रावो ॥॥ अडजव सुंदर प्रीत करी, अब क्युं उलटी Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. रीत धरी । श्रातम हीत जग लाज टरी, नीज भुवन सीधावोरे ॥ श्रवो ॥३॥ इति ॥ इति महामुनीराज श्रीमद आत्मारामजी आनंद विजयजी कृत स्तवनावली ३ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एव श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, अथ पद. राग-न्नेरवी. मेरी क्याही बेदरदी रही । मे॥तोरे नाथसे घर नावसाय ॥ मे ॥ १॥ मेंतो मूर हती नतो मैं रही जग जाम कातो अब हो रही ॥ तो ॥२॥ हूंतो ढुंढ रही न तो यार मिला ॥ अब काल अनंतोही रोय रही। तो ॥३॥ नतो मीत विवेक न धर्म गुनी । अब सीस धुनी हूंतो बेउ रही ॥ तो ॥४॥ हूंतो नाथही ना. थ पुकार रही। कुमता जर जारही जार रही ॥ तो ॥५॥ तूतो श्राप मिला मन रंग रला । अब आनंदरूप श्राराम ल.. ही ॥ तो ॥६॥ अथ पद. राग-वसंत. [ हमकु चले बन माधो ] ए देशी. तुं क्युं जोर जये शिवराधो । वाधा मोच करो मनमारे ॥ तुं श्रांकणी ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RUM पदो. फूली वसंत कंत चित्त शांति, जांति कुवास फूल मति दोरे । मनमोहन गुण केतकी फूली, समता रंग चर्यो घर तोरे ॥ तुं॥१॥ इबा रोधन तप्त जर घट, जरत नयो अघघांस नलोरे । समता सीतळता मनमानी, गुण स्थानक शुरू श्रेणि चलोरे ॥ तुं ॥२॥ पावस नूमि चेतनकी शु, उरत न चित अंबुजरेरे । वरसत जैन वैन शुभ नरीया, नरीय चैन वनवाग धरेरे ॥ तुं ॥ कुमता ताप मीटी घट अंदर, मन बंदर सठ शांत नयेरे । अनुजव शांतिकी बुंद परी घट, मुक्ताफळ शुरु रुप थयेरे -॥ तुं ॥४॥ आतमचंद आनंद नये तुम, जिनवर नाद अनंग सुयोरे ॥ सगरे सांग त्याग शिव नायक, दायक नाव सुनाव थुण्योरे ॥ तुं ॥५॥ इति ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६ श्रीमविजयानंद सूरि कृत. अथ पद. राग-वरवा. ऐसे तो विषम बाजी। पियाको उमाद जागी ॥ जैसी आवे अन मेरेकी जाये अघ ध्वसरी ॥ऐ॥१॥ लोहको सिरोद सुन कूदत जश्कारी । नादकेव जय बावे तो हरन लागे हंसरी ॥ऐ ॥३॥ चितढूंकी सार ग मारहूंने तार दस करहो हंस वंस निकल पाई जसरी॥ ऐ॥३॥ शैली श्रावे मन मेरे बदन वन बेद जारुं । प्रगटे श्रानंद कंत जारी, बाजी संसरी ॥ ऐ॥४॥ इति ॥ 'श्रथ पद. राग-वसंत. [ हमकुं गंग चले बन माधो] ए दे.. अब क्युं पास परो मनहंसा, तुम चेरे जिननाथ खरेरे । जारमार ममता दढगंन राग स्निग्ध अभ्यंग करेरे ॥ अब ॥१॥ जव तरु मार ताण विस्तरीया, Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए मोह कर्म जममूळ जोरे॥क्रोध मान माया ममतारे, मतवारे चहुंकुन चर्योरे ॥ श्रव ॥॥ पास परन वामारस राच्यो खांच्यो कर्म गति चार पर्योरे ॥ रागवेष जिहां नये रखवारे, नव वन सघन जंजीर जोरे ॥ अब ॥३॥ पूरणब्रह्म जिनेकी वानी, करण रंधमें शब्द पयोरे ॥ अनुजव रस जरी बीनकमें उड्यो, आतमराम आनंद नोरे ॥ अब ॥४॥इति ॥ पद. राग माढ. प्रीति जांगीरे कुमति शुंप्रीति ए यांचबी. ग्यान दरस वरणी दोरे, इसके पूत कुरुप, ग्यान दरस दोउं निज गुणोरे, गद कीने अनूप ॥ कुमति ॥१॥ महानंद गुण सोसियोरे । वेदनी दास कर। कुमता तात नयंकररे । मोहे मोह गरुर ॥ कुमति ।। नास्यो मव अनादिके Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, रोचे । तन आयोरे ठाम | दडि बंदन श्रायु नस्योरे । नाम चितारोरे ताम ॥ कुमति ॥ ३ ॥ कुंजकार गोतर गयोरे । विघ्नराज जसमंत | दरसन चरण अमर कोरे । रुप रहित विसंत ॥ कुमति ॥ ४ ॥ अगरु लघु गुण उब्दस्योरे । श्रातम शक्ति अनंत । सतचिद आनंद - दिलेरे । प्रगट्यो रूप महंत ॥ कुमति ॥ ५ ॥ ए पद. राग माढ. 1 प्रीति लागीरे सुमति शुं प्रीति श्रचली पीर मिटी श्रनादिकीरे । गयो अग्यानकुरंग । विषधर संरपणी पंचजेरे । निर विषरुप विरंग ॥ सुमति ॥ १ ॥ पंचो नल बंधन कीयेरे । कोढी करमको नीर । तप तापें करी सूकीयोरे । धोये नीज गुन चीर ॥ सुमति ॥ २ ॥ प्रकटी निधि निज रूपकीरे । रिए रंचक सिरनाह । मि. टिनादिकी वक्रतारे । चाल्यो शिवपुर Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदो. राह ॥ सुमति ॥ ३ ॥ क्रोध मान मद मोहकी रे | नासी अग्यानकी रेह ॥ कुमति गइ सिर कुटतीरे । त्रुट्यो हम तुम नेह ॥ सुमति ॥ ४ ॥ सोहं सोहं रटि रटनारे । बांड्यो परगुण रुप | नट ज्युं सांग उतारी - नेरे । प्रगट्यो श्रतम भूप ॥ ५ ॥ अथ नेम राजुल विशे वैराग्य पद. राग सुहा विहाग रे सामरेना जारे सांमरे ॥ चली | नव जवकेरो नेह निवारी | बिनकमें ना बटकाजारे ॥ सामरे ॥ १ ॥ हुं जोगन नइ नेह सब जारीरे । अंग विभूति रमाजारे ॥ सामरे ॥ २ ॥ नवसागरमें न- श्या फिरतड़े | मुजको यार लगाजारे ॥ सामरे ॥ ३ ॥ आप चलतहो मोह नगरे । मुजको राह बता जारे ॥ सामरे ॥ ४ ॥ में दासी प्रभु तुमरे चरनकी । आतमध्यान लगाजारे ॥ सामरे ॥ ५ ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत, अथ आत्माने शिखामणगें पद. राग विहाग. रे मन मूरख जनम गमायो। निज गुन त्याग विषय न रस बुधो । नेम शरण नहीं आयो रे मन ॥१॥ यह संसार सुही सावरजो। संबल देख तु नायो। चाखन लाग्यो रुसी उड गश् । हाथ कबुय न आया ॥र मन ॥५॥ यह संसार सुपनसी माया । मुरख देख लोनायो । जम गई निंद खुली जब अखीयां । आगे कबुयन पायो ॥रे मन ॥ ॥३॥ परगुन तजकर निज गुन राचो । पुन्य उदय तुम आयो । एक अनादि चिन्मय मूरति । सुमति संग सुहा यो॥ रे मन ॥४॥ परगुन बकरीके संग चर तो । हुंकु नाम धरायो। जिनवर सिंघकी नाद सुन्यो जब । श्रातम सिंघ सुहायो॥ रे मन ॥५॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदो. परगुन पद राग षट् समज समज वश मन इंद्री, संगीन होरे सयाना समज यांचली. इनहीके वश सुद्धबुद्ध नासी । महानंद रुप जुलाता ॥ सांगधार जगनट वत नाच्यो । माच्यो पर गुन ताना ॥ वशकर ॥ १ ॥ चार कषायां इन संग चाले । चंचल मन हि जराना । मोह मिथ्या मद मदनहियाबे । साथै हिमूर अज्ञाना ॥ वशकर ॥ २ ॥ तुं चाहे संयमरस राचुं धरूं शिर वीरनी आना । उलट उलट्ये करे तुज मनकुं । नासे मनोरथ माना ॥ वशकर ॥३॥ चामक मन तनकों उक सावे । डारे जरमकी खाना । मृग तृसना वत दोडी फिरत । करी कल्पनाना ॥ वश कर ||४|| आतमराम तुं समज सयाने । कर इंडिय वसदाना पीके । श्रासोनंदरस मगन रहोरे । नीको मील्यो अबटाना ॥ वश कर ॥५॥ १०१ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, आत्मोपदेश पद. ( राग गुजरी). ते तेरा रुप न पायारे अज्ञानी तें तेरा। ॥श्रांचली ॥ देखीरे सुंदरी परकी विनूति । तुं मनमें ललचायोरे । अज्ञानी ॥१॥ एक हि ब्रह्म रटि रटनारे । परवश रुप नूलाया रे ॥ अझानी ॥२॥ माया प्रपंचहि जगतकों मानी। फिरति नमेहि नूलायारे । अज्ञानी ॥३॥ सुकवत पाठ पढी ग्रंथनकों। मिथ्या मत मुरफायारे ॥ अज्ञानी ॥४॥ जेसे कर बी फिरे व्यंजनमें । खाद कबुयन पायारे। अज्ञानी ॥५॥ परगुन संगी रमणी रस राच्यो । आडो अद्वैत सुनायारे॥अज्ञानी ॥६॥ श्रात्मघाती नाव हिंसक तुं। जगमें महंत कहायारे ॥ अज्ञानी ॥७॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदो. अथ आत्मोपदेश पद. राग ( गुजरी ). तैं तेरा रुपकुं पायारे सुज्ञानी तें तेरा | श्रांचली । सुगुरु सुदेव सुधर्म रस जीनो । मिथ्या मत बिटकायारे ॥ सुज्ञानी ॥ १ ॥ धार महावत सम रस लीनो । सुमति गुप्ति सुनायारे ॥ सुज्ञानी ॥ २ ॥ इंद्रिय मन चंचल वश कीने। जायो मदन कुरायारे ॥ सुज्ञानी ॥ ३ ॥ स्याद्वाद अमृतरस पीनो । भूले नहीं जुलायारे ॥ सुज्ञानी ॥ ४ ॥ निश्चय व्यवहारे पंथ चाब्यो । उर्नय पंथ मिटायारे ॥ सुज्ञानी ॥५॥ अंतर निश्चय बहि व्यवहारे । विरजीनंद सुनायारे ॥ सुज्ञानी ॥ ६ ॥ श्रात्मानंदी अजर अमरतुं । सतचिद यानंद रायारे | सुझानी ॥ ७ ॥ इति पदो संपूर्ण. श्री मन्मलि जिन स्तवन. मलीजीन दरसन नयनानंद ॥ ए - चली ॥ नीलवरण तनु विमन मोहे | ~~~~ १०३ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, वदन कमल निरमल सुखकंद । निरविकार दृग दयारस पूरे । चूरे नविजनके अघ वृंद ॥ म॥१॥ सुचि तनु कांति टरी अघ नाति । मदन मया तुम करमनीकंद। जय जय निर्मल अघ हर जोति । द्योति त्रिजुवन निर्मल चंद ॥ मण ॥२॥ केवल दरस ग्यानयुत खामी।नामी श्रमदस दोस जरंद । लोकालोक प्रकाशित जिनजीवानी अमृत ऊरीवरसंद॥ म ॥३॥ पिके नविजन अमर नयेहै। फिर नही नवसागरही फिरंद । नित्यानंद प्रकाश जयोहै। करम नरमको जार्यों फंद ॥म ॥४॥ अवर देव वामारस राचे। नासे निज गुन सहजानंद । तं निरमद विनु श्श शिवशंकर । टारे जन्म - मरण पुःख धंद ॥ म ॥ ५॥ तेरेही चरण शरण हूं आयो। कर करुणा अर्हन जगद । अंतर गत मुफ सह तूं जाने। शरणागतकी लाज रखंद ॥ म ॥६॥गुर्जरदेशमें आत्मानंदी । नोयणी ननवर Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ पदो. उग्यो चंद | वियतं शिखिं निधि झंडे सुन - वर्षे । मास वैशाखे पूनिमचंद ॥ म ॥ ७ ॥ इति जोयणी मंगन मलि जिन स्तवन ॥ अथ श्रीफलवर्धी पार्श्व जीन स्तवन. पूजो तो सही मारा चेतन पूजो तो सही येतो फल वर्धी पार्श्वनाथ प्रजुको पूजो तो सही ॥ ए चली ॥ अष्टादश दोषन करी वर्जत देवो तो सही ॥ मा ॥ ॥ टुक स्याम सलुनो रूप श्रानंदजर जोवो तो सही ॥ थे ॥ १ ॥ परमानंद कंद प्रभु पारस पारस तो सही ॥ मा ॥ तुम निज आत्मको कनक करण टुक फरसो तो सही ॥ थे ॥ २ ॥ अजर अ मर प्रभु ईश निरंजन जंजन करम कही ॥ मा ॥ एतो सेवक मनवंबित संब पूर्ण अदभूत कल्प सही ॥ थे ॥ ३ ॥ 'चंद्र 'अंक' वेदे 'दीव संवत षष्टी मैत्र लही ॥ मा ॥ मन हर्ष हर्ष प्रभुके गुण गावत परमानंद लही ॥ थे ॥४॥ इति सम्पूर्णम् ॥ = Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, विनाग दूसरा.॥ श्री मद्पाध्यायजी महाराज श्री वीरविजयजी महाराज विरचित स्तवनावली. ॥ अथ श्री आदि जिन स्तवन. ॥ राग जेजेवंती. थादि मंगल करुं।श्रादि जिन ध्यान धरूं । फेर नही पास परुं नव वन जालमे । लागी तोरी माया जोर । देखत हुं होरकोर । दरिसण उरलज लीयो बहु कालमें ॥था ॥१॥ माता मरुदेवा नंद नानीराय कुलचंद ॥षन जिनंद प्रनु आदि को करण । बोमी सब राजरीधी। संजमसे प्रिती किधी । जगतकी निती सब रीती बतलाश्दे ॥ श्रा ॥२॥ उरधर तप करी। अष्टापदोपरि चडी। अणशण करी वरी शीवपटरा Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ..१७ णीहै । जैसी गती तिहारी देव । तुंही जाणे नित्य मेव । अकल अलख तेरो अगम स्वरूपहे ॥ आ ॥३॥ अहनिशतेरे विच ।कीये जिने समचित्त । नयि तिने नीरजीक।सुगति सोजागीहै। नक्तकी सुणी राव चित्तमे किजे हराव । आतम श्रानंद वीरविजय मांगुतहै ॥ श्रा ॥४॥॥ इति श्रादिजिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवन. ॥ ॥राग जोपाल ताल संगीत ॥ ॥ध्या जिन अजित देव । जवीजन हीत कारी॥ श्रांकणी ॥ तुम प्रनु जित राग वेष । कर दिये सब कर्म बेद । थीर चित्त करूं तुमरी सेव । जिम थालं नवपारी ॥ध्या ॥१॥ तुम विन नहीं ज्ञान ज्ञेय । तुम विन नहीं ध्यान ध्येय।तुम विना करुं किनकी सेव । अंतर गतधाA ॥ध्या॥॥अब चित्त धरी करी विचार। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, षटपट सब पुर जार । जटपट श्रबमुज कोतार । आनंद सुखकारी॥ ध्याउं ॥ ॥३॥ प्रज्नु जई कीयो मुक्तिवास सेवक कुंपण एही श्राश ॥ श्रातम आनंद कर विलास । वीरविजयकुं नारी ॥ध्या॥४॥ ॥ इति श्री अजित जिन स्तवन । ॥ अथ श्री संनव जिन स्तवन. ॥ ॥ राग महावीरचरणमे जाय ए देशी॥ _ प्रनु संजव जिन सुख दाई । चित्तमे लागीरहो ॥प्र॥ चि ॥श्रांकणी।मुख संनव में जुर कीयोहै । सुखसंजव थयो आज ॥ चि ॥ प्रज्जु ॥१॥ वेद संसार श्रसार सारहै । तुम शरणा महाराज ॥ चि ॥ प्रजु ॥२॥ मोह सेन सब चुरलीयोहै। शीवपुर केरो राज ॥ चि ॥ प्रजु ॥ ॥३॥ दिन हिन दुखियो मुजदेखी । सारो सेवकको काज ॥ चि ॥ प्रतु ॥४॥ मोदमोह सब नाश करीने । राखो सेवक Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. mmmmmmar की लाज ॥ चि ॥प्रजु॥५॥आतम श्रानंद प्रजुजी दीजो । वीरविजयको आज॥ चि॥ प्रन्तु ॥६॥ इति श्री संजव जिन स्तवन॥ ॥अथ श्री अनीनंदन जिन स्तवन.॥ ॥राग छुमरीका नेद ॥ ॥ श्रनिनंदन स्वामी हमारा । प्रजु नव उखनंजन हारा। एकुनियां मुखकी धारा। प्रनु इनसे करो निस्तारा ॥ अ॥१॥ हुँ कुमता कुटिल जरमायो । पुरनिती करी उःखपायो । अब शरण लीयो हे थारो। मुजे जवजल पार उतारो ॥ अ॥॥ प्रजु शीष हैये नहीं धारी। उरगतीमें फुःख लीयो नारी।श्नकर्मोकी गती न्यारी।कीये बेरवेर खुवारी ॥॥३तुमे कुरुणावंत कहावो । जग तारक बिरुद धरावो । मेरी अरजीनो ए दावो ।श्न फुःखसे क्युं न बोमावो ॥ अ॥४॥ मे विरथा जनम ग १० Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० श्री मद्दीर विजयोपाध्याय कृत, मायो । नहीं तन धन नेह निवारयो । अबपारस परसंग पामी । नहीं वीरविजयकुं खामी ॥ अ ॥ ५ ॥ इति श्री अजीनंदन जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्री सुमति जिन स्तवन. ॥ ॥ राग गोमी ॥ "" सुमति जिनेश्वर स्वामी । मेरे प्रभु सुमति जिनेश्वर स्वामी । झांकणी । भ्रमत भ्रमत जग जाल फस्यो मे दरिसप पुन्ये पामी ॥ मे० ॥ प्रभु ॥ १ ॥ अष्ट करमके ऊगडे जीती सुमति सुनाम कहानी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ २ ॥ अंतरगतकी पिंड हमारी तुं जाणे विसरामी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ बा - लख्याल मे तुमही न जाने । रोग निकंदन कामी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ ४ ॥ जग चिंतामणि सुरतरु सरिखो नीरखी गद सब वामी ॥ मे ॥ प्रभु ॥ ५ ॥ तारण तरण बे बिरुद तुमारो । जवजय भंजनहारी ॥ मे ॥ प्रभु Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥६॥ श्रातम श्रानंद रसके दाता। वीरविजय हितकारी ॥ मे ॥1॥७॥ . ॥ इति श्रीसुमतिजिन स्तवन । ॥अथ श्रीपद्मप्रनु जिन स्तवन। ॥रागरेखता ॥ खलक एक रैनका सुपना ए देशी. ॥ पद्मप्र प्राणसे प्यारा । बगेमावो कर्मनी धारा।करमफंद तोडवा धोरी|प्रजुजीसे अर्ज हे मोरी ॥ प० ॥१॥ लघुवय एकथेजीया।मुक्तिमेवास तुम कीया॥नजाणीपीर ते मोरी। प्रज्जु अब खेंचले दोरी ॥ प० ॥ ॥॥ विषय सुखमानी मो मनमे गये सव काल गफलतमें॥नारक मुख वेदना नारी।नीकलवा ना रहीबारी प॥३॥ पर वसदिनताकीनी। पापकी पोट सीर लीनी॥ जक्ती नही जाणी तुम केरीरह्यो निशदिन मःख घेरी॥प० ॥४॥जनविधवीनती तोरी । करुमे दोय करजोडी ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, श्रातम श्रानंद मुज दीजो। वीरनु काज सबकीजो ॥ प० ॥ ५ ॥ ॥ इति श्रीपद्मप्रजुजिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्रीसुपासजिन स्तवन ॥ ॥राग सामेरी । तुमरीका नेद ॥ पुजोरे माई श्रीसुपास जिणंदा। पुजोरे ॥ आंकणी ॥ नवण विलेपन कुसम धुपश्री दीपधरोमनरंगे ॥ पुण्॥१॥ श्रदत फल नैवेद्य धख्याथी कुष्ट करम निकंदे ॥ पुण्॥२॥ विधिसुं अष्टप्रकारी पुजन करतां नवकुखनंगे ॥ पु० ॥३॥ नाटक तान मानसें करतां तीर्थंकर पदबंधे ॥ पु० ॥४॥ जिनपुजा ए सार जगतमे जाणी करवा उमंगे॥ पु॥ ५॥ वीरविजय कहेश्न पुरषकुं अवीचल सुखमां संगे ॥ पु०॥६॥ इति श्रीसुपासजिन स्तवन ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ११३ ॥ अथ श्रीचंप्रनु जिन स्तवन ।। ॥राग माढ । जलानी देशी ॥ ॥ जीयारे चंडप्रचजिनी मुरती मोहन गारीरे जयकारी माहाराज चंप्रनु जिनी मुरती मोहनगारीरे दयाल । - कणी ॥ जीयारे चंदवदन प्रन्नु मुखकी शोना सारीरे॥जय ॥ चं॥॥ जीयारे शमरसजरियां नेत्रयुगलकी जोडी रे ॥ जय ॥ स॥३॥ जीयारेप्रलुपद लीनो कामनीको संग बोडीरे ॥जय ॥ प्र० ॥४॥ जीयारे अब मे प्रजुजीसें अरज करूं कर जोमीरे ॥ जय ॥ अ॥५॥जीयारे चंचलचितडंकीण विध राखं कालीरे ॥ जय॥ चं० ॥६॥ जीयारे फिर फिर बांधे पाप करमकी क्यारीरे ॥ जय ॥ फिर ॥७॥ जीयारे नेक नजर करीनाथ निहारोधारीरे ॥ जय ॥ ने॥ज॥ जीयारे तुम चरणाकीसेवा द्यो मुज प्यारीरे ॥ जय ॥तु ॥ ए॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ११४ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, जियारे जिम मुज मनडुं अंतर घटमें श्रावेरे ॥ जय ॥ जिम ॥ १० ॥ जियारे आनंद मंगल वीरविजयकुंथावेरे ॥जय॥श्रा०॥११ . ॥ इति श्रीचंअप्रजुजिन स्तवन ॥ ॥अथ श्रीसुविधिजिन स्तवन॥ ॥राग ध्रुपद ॥श्राश्नार करकर श्रृंगार ॥ए देशी॥ श्रीसुविधिनाथ प्रजु मोद साथ, में नयो अनाथ मुज पकड हाथ हुँ पतित नाथ धरधर करलीजो ॥ श्री ॥१॥ सीरमोहराट तिन जगमे हाक, सब जग विख्यात जे न धरे धाक करे फुःखनो दाट जग वश करतीनो ॥२॥ एक अजब बात श्नमोहराट, कीये तुमने घात मुखमारी लात गई इनकी लाज. थरथर करदीनो ॥ श्री० ॥३॥ घटअंतरबात कुण जाणे नाथ, मुजे मोहराट दियो कुःख अगाध कीयो बहु उचाट मुरगति दुःख दिनो Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ११५ ॥ श्री॥४॥ अब मेरी लाज प्रजु तेरे हाथ, सब कुख निरास करो सुविधिनाथ आतमके दास वीर विजे अम कह्यो॥श्री॥५॥ इति श्रीसुविधिजिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्रीशीतलजिनस्तवन । ॥ रागश्री ॥ शीतलजिनपति पूर्णानंद ॥ ॥शी ॥ आंकणी ॥ चौमुख समोवसरणमे सोहत निरखत नविजन नयनानंद ॥ शी० ॥१॥बत्तिस विध नाटककी रचना जोडे शचीपति वहुसुखकंद ॥शी ॥॥ देवकुमार कुमारिका वीरची मुखथी थे थेश्कार करंद ॥ शी० ॥३॥ धपमपधुंधुमादल बाजे वेणु विणा श्रति कणकंत ॥शी ॥४॥ ताल मृदंग ढकन्नेरीने फेरी माधुरी धुनी सुनाद करंद ॥ शी० ॥ ५॥ कोमल करयुगताविकालेती चुडीनो खलकारकरंत ॥शी०॥६॥ प्रजुगुणगावती अतिमनरंगे Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .-११६ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, अपने जनमकालावलहंत ॥ शी० ॥ ७ ॥ देख इसविध नाटक रचना वीरविजय मन चाह करंद ॥ शी० ॥ ८ ॥ ॥ इति श्री शीतल जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्रीश्रेयांसजिन स्तवन ॥ ॥ राग नेरवी ॥ श्रीश्रेयांस जिन अंतरजामी दील विसरामी मेरारे ॥ दी ॥ श्रकणी ॥ अधम उधारण दुःख नीवारण तारण तीन जग केरोरे | चंदवदन तुम दरिसण पामी जाग्यो जवको फेरोरे ॥ श्री० ॥ १ ॥ चंदचकोर मोर घनचाहत पदमणी चाहत प्यारोरे ॥ युं चाहत प्रभु मुज मन जमरो चरणकमलडुग तेरोरें ॥ श्री॥ २ ॥ काल अनंते दरिस पायो प्राणनाथ प्रभु तेरोरे ॥ कर्म कलंक सब पुरनिवारो जुं सुधरे जव मेरोरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ दरिस करी परसन मनमेरो में हुं सेवक तेरोरे ॥ श्रातम श्रानंद प्रभुजी दीजो वीर विजयने घने - Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ११५ रोरे॥श्रीमति श्रीश्रेयांस जिनस्तवन ॥ अथ श्रीवासुपूज्यजिन स्तवन. ॥ ॥ लगियां दिल नेमीके लार ॥ ए देशी॥ ___ मे बोकी औरकी श्राश चाहुं तुम सेवा महाराज ॥ आंकणी ॥ वासुपूज्य पंचमी गती गामी और देवनमें हे बहुखामी। तुमे तोडी मोहकी पास॥चामे॥॥धनुष तीर गदा चक्रना धारी कामनीने संग कामवीकारी। देवने नहीं कांश लाज ॥चाामे ॥२॥ जप माला गले मनी माला नोगसेवा अति दे विकराला। तुम बोमोते देवनो ख्याल ॥चा॥ मे ॥३॥जोगविकार तें सघला वामी तुम नये वासुपूज्य जगस्वामी तुं देवनो देव कहेवाय॥चाण्मे।। ॥४॥ वासुपूज्य सम देव न उजो सुरतरु बोमी बाउल मत पूजो। जेथी मनवंडित फल थाय ॥ चा ॥ मे ॥५॥श्रातम श्रानंद दीजो जोरी इनमें शोना हे प्रजु तोरी। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, तुं वीरविजयने तार ॥ चा ॥ मे ॥६॥ इति श्री वासुपूज्य जिनस्तवन ॥ ॥अथ श्री वीमल जिन स्तवन. ॥ ... राग केरबो॥ , वीमल सुहंकर मुजमन वसीया ॥ मु॥ यांकणी ॥ अष्ट करम मल उर करीने। सतचित आनंद रूप फरसीया ॥ वी ॥१॥ अंतरंग करुणाकरीस्वामीदेशना अमृत मेघ वरसीया ॥ वी० ॥२॥ जड चेतनकोसंगधनादी। एक पलकमें उषार धरसीया ॥ वी० ॥३॥वपु संग सब पुर होवाधी। अनुजव आनंद रसमें हरसीया ॥वी॥४॥ प्रजुकी वाणी श्रमीय समाण।।. पानकरी परमानंद वरिया ॥ वी० ॥ ५॥ जब तुम वाणी करणे धारी। वीरविजयकुं श्रानंद दरसीया ॥वी ॥६॥ __ . ॥ इति श्रीविमल जिन स्तवन. ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥ अथ श्रीअनंतजिन स्तवन.॥ रागवरवा पीलु ॥ · अनंत जिणंद अनंत बलधारी । सवजिवनकु नये हितकारी॥मोद श्रझानधन तिमीर अंधेरा।ज्ञान अनंतसे कीयारे उजेरा॥ ॥१॥जवजव नमवा नावह नांगे। अनंत जिनंदसुं प्रीत जो मांडे ॥ जवलग ज्ञान दशा नहीं जागी। तवलग फुःख अनंतको नागी ॥१०॥॥ जनम मरणकीआदिन पाइ।इनमे कोइन नयेरेसहा॥जव प्रलु तुमरोदरिसण पायो। जनम सफल सव लेखे आयो ॥ ॥३॥ तारो मुजको अनंत जिनस्वामी। नहीं तो लागशे तुमने रे खामी॥श्रातमानंद दिजोजोरी । वीरविजय मागे करजोडी ॥श्रण ॥४॥ ॥ इति श्रीअनंतजिन स्तवन ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० श्रीमद्दीर विजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ श्री धर्मनाथ स्तवन ॥ ॥ राग काफी ॥ धर्म जिनंदसुं प्रीत लागी मुनेरे धर्म जिणंदसुं प्रीत ॥ श्रकणी ॥ प्रीत पुराणी न तोमो जिनजी । ए सनकी न रीत ॥ लागी० ॥ १ ॥ दान शील तप जावना चौविध। धर्म की थापना कीध | लागी०॥२॥ दशद्वादश विध साधुश्राऊ के । देशना धमकी दीध ॥ लागी० ॥ ३ ॥ जगतजंतु उद्धारणखातर | मारग कीयो रे प्रसिद्ध ॥ लागी० ॥ ४ ॥ धर्म नाथ जिन धर्म प्रकाशी । जगमे बहु जश लीध ॥ लागी० ॥ ५ ॥ वीरविजय श्रातम पद लेवा | धर्म सुण्यानीरे प्रीत | लागी० ॥ ६ ॥ ॥ इति श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्रीशांति नाथ जिन स्तवन ॥ ॥ राग देश सोरठ ॥ प्रभु शांति जिनंद सुखकारी घट - Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. _ ११ तर करुणाधारी ॥ प्रजु ॥ श्रांकणी ॥ विश्वसेन अचिराजीको नंदन कर्मकलंक निवारी अलख अगोचर अकल अमर तुं मृगलंबन पदधारी ॥प्र० ॥१॥ कंचन वरण शोना ततुं सुंदर मुरती मोहन गारी। पंचमोचकी सोलमो जिनवर रोगशोग नयवारी ॥प्रजुगा॥ पारापत प्रनु शरण ग्रहीने अनयदान लीयोनारी।हम प्रजुशांति जिनेश्वर नामे लेशुं शीवपटणीरा ॥प्रनु ॥३॥ शांति जिनेश्वर साहिब मेरा शरण लीया में तेरा । कृपाकरी मुज टालो साहिवजनम सरणना फेरा॥प्रजुत ॥॥ तन मन धीर करे तुम ध्याने अंतर मेलते वामे। वीरविजय कहे तुम सेवनधी आतम आनंद पामे ॥ प्रजु ॥५॥ ॥ इति श्रीशांतिनाथ जिनस्तवन । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ श्री कुंथु जिन स्तवन. ॥ ॥ राग लावणी ॥ कुंथुजिनेश्वर तुं परमेश्वर तेरीअजब गति कहिये।कुंथुकुंजरथीधारके करुणा जिनपदवीलहिये॥कुं॥ लखचौरासी जीव जोनीमे हमको रखना ना चश्ये एदिलमेधारी तारके सरणाजिनवरकादश्ये कुं॥२॥ शांगधारक बिजोवननाचो नरगनिगोदे फुःख सहिये। एदिलकी बातां मुखसें तुम विन किस आगे कहिये ॥ कुं० ॥३॥ प्रजुमुज तारोपारउतारो गुणअवगुण तो ना लहिये। एधरमकाममे नाथकुं ढीलको करना ना चश्ये॥४॥ वीरविजयकी एही अरज है आतम आनंद रसदश्ये।ए अरजसुणीने नाथको नेकनजरकरनाचश्ये ॥ कुं॥५॥ इति श्रीकुंथुनाथ जिन स्तवन ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १२३ ॥अथ श्रीअर जिन स्तवन.॥ ॥चिंतामणपास प्रनु अर्जहै सुनो तो सही ॥ ए देशी ॥ अरजिनदेव विना औरकुंमागें तो नही। तुम विन नाथ जो देव में चाहूं तो नहीं ॥ श्रर ॥ आंकणी ॥ काम क्रोधमदमोह सोहें करी नरियल हरिहर देवने मानुतो नहीं ॥ अरण ॥॥ मनवंबित चिंतामणि पामीने काच शकल हवे हाथमां कालुं तो नहीं ॥ अरण ॥३॥ गले मोतियनकी माला में पेहेरीने और मालकाठकी हृदयमें धारतो नहीं ॥ श्रर ॥४॥ खीरसमुडकी लहेर ढुंगेमीने बीवर जलनीमे चाहना करंतो नही॥ अर॥५॥ शांत स्वरूप प्रज्नु मुरतिदेखीने तनमन धीर करी आतमा हारतोसही। ॥ अर० ॥ ६ ॥ वीर विजय कहे थरजिन Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, देवविना और देवनकी मे वार्ता मानें तो नहीं ॥ थर ॥७॥ इति श्रीथर जिन स्तवन समाप्तं ॥ ॥ अथ श्रीमल्लि जिन स्तवन । ॥राग हुमरी ददणी ॥ श्राज जिनंदजीका दीहा में तो मुखमां मल्लि जिनंद प्रनु हमपर तुहमा ॥ था ॥१॥ चजगती फिरतमें पायो बहु उखमां तुम प्रजु चरण ग्रहुं तो थाय सुखडा ॥ आण ॥॥तुब जे विषय सुख लागे मुने मीमां नरंग तिर्यगमांही तेना फल दीघ्डां ॥ आ ॥३॥ताहारे जरोसे प्रनु लाग्युं मारुं मनहुँ कृपाकरी तारवाने करो एक तनहुं ॥ श्रा॥४॥ आनंद विजयनों सेवक मागे एटळू वारवार प्रनुजीने कहुँ हवे केटवू ॥ श्रा० ॥५॥ ॥ इति श्रीमति जिन स्तवन ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १२५ AVANAM ॥ अथ श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन। रासधारी की देशी ॥ जिनंदजी एह संसारथी तार। मुनिसुव्रत जिनराज आ. जमोहे एह संसारथी तार ॥ श्रांकणी॥ ॥ पद्मावती जिको नंदन निरखी हरषित तनमन धाय ॥ जि० ॥ कबपलंडन प्रजुपद् थारे शामल वरण सोहाय ॥ शा ॥ मु॥१॥ लोकांतिक सुर अवसर देखी प्रतिबोधन कुंवाय ॥ जि ॥राज काज सब बोड दश्प्रज्जु संजमशुचितलाय ॥सं ॥ मु ॥२॥ तपजप संजम ध्यानानलथी कर्म इंधन जलजाय ॥ जि ॥ लोकालोक प्रकाशिक अद्भुत केवल झान तुं पाय ॥ के ॥ मु॥३॥ ज्ञानमे नाली करुणा धारी जीवदया चितलाय मित्र अश्व उपगार करणकुं नरुथड नगरमे आय ॥ ज ॥ मु॥४॥ अश्व उगारी बहु जनतारी अजर अमर पद Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, पाय ॥ जि ॥ वीरविजय कहे मेहेर करोतो हमने ते सुख थाय ॥ह ॥१॥५॥ ॥ इति श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ॥. ॥अथ श्रीनमिनाथ जिन स्तवन॥ " देशी वधाश्नी ॥ आज वधाइ वाजे नगर मथुरांमांही विजय घर। श्राज वधा॥ आंकणी ॥ विप्राराणीये बेटो जायो शुनमुहर्त शुनवार । सोहमसुरपतिचित्त धरी श्रावे विजयराय दरबार ॥ वधा॥१॥मात नमी करी पंचरूप धरी करकमले प्रन्नु लीध। चौसठ सुरपति सुरगिरिरंगे जन्म महोबवकीध ॥ वधा ॥३॥ विधि पूजन करी, अष्ट मंगल धरी गीतगान बहुकीध ।सोना रुपाके फुले वधा जनमको लाहोलीध ॥ वधार ॥३॥ जन्ममहोबव हा करीने जननीपासे लाय।सुरपति सघला महोबव करवा छी. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -स्तवनावली. १२७ पनंदीसर जाय ॥ वधा॥४॥प्रातसमय नये अति आनंदसे विजयराय दरवार। धवलमंगल सवगीतनादसे पुत्रवधाश्थाय ॥ वधाश् ॥५॥ सुतक कुलमरजाद करीने नोजन वहु विधकीध । वीरविजय कहे नातजमावी नमिकुमारनाम दीध ॥ वधाई ॥६॥ • ॥ इति श्रीन मिनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्रीनेमनाथ जिन स्तवन । ___रागतुमरी पंजावी ॥ मेरे प्रजुसें एही अरज हे नेक नजर करो दया करी॥ मे॥ श्रांकणी ॥ समुहविजय शीवादेवीनाजाया । ठपन दिगकुमरी दुलराया। अनुक्रमे प्रजु जोवन पाया। परणि नहीं एकनार थवा अनगारके तृष्णा पुरकरी॥ मेरे॥१॥तुमे तो सघली माया तोमी । राजेमती स्त्रीने ठोडी।सहसावनपे रथमो जोडी।गये प्रजु Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N १२० श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, गिरनार लिये व्रत नारके ऊगमा पुरकरी॥ मेरे ॥२॥ तपजप संजम कीरिया धारी। प्रजुजी वसीया गढ गिरनारी । नेम प्रजु की हुं बलिहारी। पामी केवलज्ञान थया शीवराणके अघ सब उरकरी ॥ मेरे ॥३॥ तुमेतो हो प्रजु साहिब मेरा । हमतो हे प्रजुसेवक तेरा थमने घाले तुमसें घेरा। मुजे उतारो पार मेरा सरदारके जेम पुख जायटरी ॥ मेरे ॥४॥ श्याम वरण तनुं शोनासारी । मुख मटकाj बबी हे न्यारी नेम प्रजुकी मुरती प्यारी । वीरविजयनी बात सुणो एक नाथके नवोनव तुंही धणी ॥ मेरे ॥५॥ इति श्री नेमनाथ जिनस्तवन॥ ॥ अथ श्री पार्श्व जिन स्तवन ॥ राग पंजाबी टपो॥ मोरी बश्यां तो पकड सुखकारी खाम तो पार्श्वनाथ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १२ए परतनाम || मोरी ॥ कणी ॥ अस्वसेन वामाजीको नंदन वणारसी नगरी मे जनमहाम || मोरी ॥ १ ॥ बालपणमे श्रश्रुतज्ञानी जीवदयाका हो करुणा धाम ॥ मोरी ॥ २ ॥ कष्ट करतो कम समीपे M^^^ ये प्रभुतुमे धारी हाम ॥ मोरी ॥ ३ ॥ काष्टमे ज्वल तो फणी निकाली मंत्रसें दियो प्रभु स्वर्ग धाम ॥ मोरी ॥ ४ ॥ अवसरे दिक्षातपजपसाधी प्रभुजीलीयो तुमे मोक्षधाम || मोरी ॥ ५ ॥ वीरविजयकी एही अरज है हमको हे प्रभु एही काम ॥ मोरी ॥ ६॥ इति श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्री वीर जिन स्तवन ॥ राग धन्यासरी ॥ वीरहसें जयोरे उदासी | वीर जिन वीरहसे जयोरे उदासी ॥ टेक ॥ डुषम कालमे दुखियो बोकी । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, तुम नये शीवपुरवासीरे ॥ वी ॥१॥ प्रजु दरिसण परत न दी। ईणअ॒नयोरे नीराशीरे ॥ वी ॥२॥ करमरायशुनटें मुज घेख्यो।महारी करे सब हांसीरे ॥ वीर ॥३॥ तुम विना · एकांकी मुजदेखी।डारी गले मोहफांसीरे॥वीर ॥ प्रनु विना को नकरे मुज करुणा। देखो दिलमे विमासीरे वीर॥५॥ पीण तुज श्रागमने तुज मुरति । एही शरण मुज थासीरे ॥ वीर ॥६॥ एही नरोंसो मुज मन मोटो।नांगी नवकी उदासीरे॥वीर ॥७॥ वीरविजय कहे वीर प्रचुकी। मुरती शरणज थासीरे ॥ वीर ॥ ॥ इति श्रीमहावीर जिन स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ कलश ॥ राग रेखता ॥ ॥ चैवीस जिन राजमें गाया परम आनंद सुरव पाया।प्रनु गुण पार ना पावे जो सुर Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. . १३१ गुरु वर्णवा श्रावे ॥ चौवी ॥१॥अलपसी बुद्धिहे मोरी करीपिण वर्णना तोरी प्रजु तुमे मानजो साची न थाये जगतमें हांसी ॥ चौवी॥२॥ मेरी अव लाज तुमहाथे वांहे ग्रही लिजियें साथे । कहो प्रनु जोरक्या तुमने जरा उकारतां हमने ॥ चौवी ॥३॥ प्रक्षु चौवीस जगखामी पुरवले पुन्यथी पामी । हरो सवऽखनो घेरो नसे जरामर्णनो फेरो॥चौवी ॥वेर्दै युग अंक २ वर्षे आषाढे मास शुक्लपक्ष। तिथौ जली पूर्णिमा पूरी। जयो सोमवार सुखनूरी ॥ चौवी ॥ ५ ॥ विजे श्रानंद गुरुपायो वहु मन वीर हरषायो। भृगुकल पुर चौमासी रही करी विनती साची ॥ चौप ॥६॥ इति कलश॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ श्रीमचीरविजयोपाध्याय कृत, ॥अथ परचुरण स्तवनो लिख्यते ॥ ॥ अथ श्रीनावनगर मंडण श्री चंप्रन जिन स्तवन ॥ राग असना दादरो॥चंडवदन शुन चंड प्रनु ताहरा । देखी दिलशांत मन चकोर रीजे माहरा ॥१॥ नयन युगल जये शांत रस ताहरा । प्रनु गुण कमल नमर मन माहरा ॥२॥प्रज्जु तोही ज्ञान सोही मान सर ताहरा उहांमनहंस खेले रातदीन माहा ॥३॥ प्रचु करुणा दृग हमसे नई ताहरी। तब मदमोह किसी निंदखुली माहरी ॥ ॥ अति उत्कंठ से मे दर्श चाह ताहरा। करमके फंद से जो नाग्य खुले माहरा ॥५॥ नाव पुरे वास जया खास प्रनु ताहरा सिक हुवा काज वीरविजय कहे माहरा॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥ अथ श्री शंखेश्वरपार्श्व जिन स्तवन ॥ ॥ राग दादरो ॥ १३३ चितहरमारा शंखेश्वर प्यारारे । चि । यांकणी ॥ प्रभु मोरी विनती दिलमे धारोरे अरज शीकारोरे जांति निवारोरे ॥ शं ॥ चि ॥ १ ॥ वेरण कुमति हुं जरमा - योरे करम वश आयो रे नवे जटकायोरे ॥ शं ॥ चि ॥ २ ॥ पुरव पुन्य उदे करी पायोरे मनुष्यगति आयोरे चित हरखायोरे ॥ शं ॥ चि ॥ ३ ॥ अब चरणोकी सेवा मे पामीरे दील विसरामीरे शंखेश्वर स्वामिरे ॥ शं ॥ चि ॥ ४ ॥ तुम प्रभु तम आनंद दाईरे वीरने सहाईरे कर करुणाईरे ॥ शं ॥ चि ॥ ५ ॥ इतिशंखे श्वर जिन स्तवन || १२ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ श्रीतारंगाजी मंडन स्तवन ॥ ॥ विषयों के नेडे मत जार्ज । ए देशी ॥ तारंगतीरथे सोहाय तारंगती रथे सोहाय ॥ प्रभु मेरोरे तारंगती रथे सोहाय ॥ श्रकणी ॥ मुलनायक श्री अजित जिनेश्वर नेटां जवदुःख जाय ॥ प्रभु ॥ १ ॥ जवजव जटकत शरणेहुं आयो अबतो र खोजी मोरी लाज ॥ प्रभु ॥ १ ॥ तारंगतीरथे विजनतारण बैठे ध्यान लगाय ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ हुं अनाथ मुजको जो तारो जगमे बहुजश थाय ॥ प्रभु ॥ ४ ॥ वीरविजयनी विनती एही । आवागमण नि वार ॥ प्रभु ॥ ५॥ ॥ इति तारंगामंडन स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री धुलेवा मंडन केसरियाजी स्तवन || ॥ राग सारंग ॥ दांहांरे वाला श्राज ८ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. केसरियाजी जेटीया घुलेवा मंगनरायरे हांहांरे वाला जव्यकरम परजालवा वेग तुमे ध्यान लगायरे ॥ १ ॥ दांहांरे वाला वासर एतले न जाणीयो तुमे तारणतरणजिहांजरे हांहांरे वाला जुलना दिनी मादरी । अव जांगी दिनदयालरे ॥ २ ॥ दांदांरे वाला चौगति चौटे नाचियो शांग धारी नवनवनाथरे । हांहांरे वाला जव नाटक मे नाचतां प्रभु काढो अनंतो का - लरे ॥ ३ ॥ हांहांरे वाला मोटे पुन्ये पामीयो । एह मानवनो ताररे। हांहांरे वाला गाम नगर पुर ढुंढतां तुं मिलियो धुलेवामांहीरे ॥ ४ ॥ हांदारे वाला घ्याज मनोरथ सवीफला माहरो जवनाटक गयोडररे । हांहांरे वाला उबवरंगवधामणा थया वीरजय जरपुररे ॥ ५ ॥ ॥ इति समाप्तं ॥ " Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, ॥अथ श्रीआबुजीशषनजिन स्तवन॥ ॥राग काफी ॥ नेट्यो अर्बुदराजरे थाजसफल घमी नई॥ ने ॥ श्रांकणी॥ नानिनंदजी के दरससरससे पुर गई मिथ्यावास । अनुजव ज्योत नई निजघटमें । त्रुटी नवकी पासरे ॥ था ॥१॥ दिनउद्धार करण तुम सरिखो नही दीठोणसंसार।प्रवहण प्रेरक जिम निरजामक बांग्रही तिमताररे ॥श्रा ॥२॥ चौगति चुरण चौमुख जिनवर अचलगढे मनोहार।दरिसण करकर कुरित नासे पापगये परिहाररे ॥ श्रा ॥३॥ तुम गुण केरा पारनपाउं जिम जलधी हेअगाधाक पवृक्ष चिंतामण बोडके बाउलमा दियो बाथरे ॥श्रा ॥४॥ कोणतीण पलपलनाथ तुमारो ध्यानधरूं सुलतान । तुमगुण मकरंदपानी करकर वीर विजय गु. लतानरे ॥ श्रा॥५॥ इति समाप्तं ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १३७ ॥ अथ श्रीकेसरियाजी स्तवन । ॥श्राज वधाई वाजे ॥ए देशी ॥ नगर धुलेवामांही जाई प्रनु आज केसरीयाजी नेट्या ॥ नगर ॥ श्रांकणी ॥ गेटपणेमेखेलताजी तुमहम नवलेवेस त्रिजुवन पदवी तुमेलहीजी हमे सं सारिकेवेस ॥ के॥१॥ अवसरलही श्र वविनकुंजी तुमहो दीनदयाल जे पदवी तुमने लहीजी ते श्रापो महाराज ॥ के ॥२॥ दायक दानदेतां थकांजी नवीकरे ढीललगार शडित हरिचंदन दीएजी तो तुमरी क्या बात ॥ के ॥३॥ समरथ नहीं ते दानमेजी हरी हरादिक देव जोग्य जाण कर जाचीयोजी अबमिलीयो प्रजुमेल ॥ के ॥४॥ सुणी अरजी सेवक तणीजी चितमे चतुर सुजाण आतम लक्ष्मी दिजीएजी वीर विजयकुं दान । के ॥५॥ ॥इति संपूर्ण ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, ॥अथ श्रीजीरामंडनचंप्रनजिन - स्तवन ॥ श्रा ईनार करकर श्रृंगार ॥ए देशी ॥ । प्रनु अरज धार मनमे विचार तुमहो कृपाल करो मारीसार महसेन तात लक्ष्मणा उर जायो ॥ प्रजु ॥१॥ हुं हाथ जोम कहुँमानमोम माहापाप घोर हे तेहनो जोर हरोःखनी क्रोमकरो निजरुपजेसो ॥ प्रनु ॥॥ तुमहो दयाल धरो बिरुदसार मेरो जव संसार काढो तेहथी बार दीनाके नाथ मेरी अरज सुणिजे ॥ प्रजु ॥३॥ हुं रहो निराश वस्यो गरजावास महाउखनीरास जाणे नरकावास अब मिवियो नाथ मुख हरो प्रजु मेरो ॥ प्रनु । ४॥ श्राज आणंद अंग मनमे उमंग जाणे पुनमचंद शीतल अनंग हे लंबन चंद एसो चंड प्रनु दिगे ॥ प्रजु ॥५॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १३ए जीरानगर खास प्रचु करे निवास मनधरे जे श्राश मीले मोदवास लक्ष्मी के दास वीरविजे एम कहो ॥ प्रन्नु ॥६॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री जयपुर मंमन ॥ सुमति जिनस्तवन ॥ राग वरवापीतु ॥ साहिवसुमति जिनेश्वरखामी सुणहो कृपानिधि अंतर जामीकालअनादिचहुँगति काडी फीरतां श्रायो मे शरणे तिहारी ॥१॥ गरनावासमे अति दुःख जारी जंधे मस्तक हुवोरे खुवारी।मोदकरमकी हे गती न्यारी जनम मरण नहीं होगतलारी॥ सा ॥२॥ तुमविनकोण करे मुजसारी अब तो लो प्रखबर हमारी। जीव अनंते संसारसें तारी पहोंचाडे प्रनु मुक्तिमोकारी ॥ सा ॥३॥ माहा Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, रीवेला मौन वृतधारी शोना नहीं प्रजु इनमे तुमारी। तुम प्रजुतारक जगजयकारी तुमपर वारी हुंजाजरे हजारी॥ सा ॥४॥ तातमेघ मात मंगला तिहारी वंस श्दवागमे हुवो अवतारी।जाव सहित करे नक्ति तिहारी तेहोवेशीवरमणी अधिकारी ॥ सा ॥५॥ नगर जे: पुरमे आनंदकारी सुमति जिनेश्वरहे दातारी लक्ष्मी विजय गुरु आणाकारी वीरविजय मांगे जवपारी ॥ सा ॥६॥ ॥इति ॥ ॥अथ राणकपुर मंडन स्तवन ॥ ॥ नेमी सरबनडेने गिरनारी जाता ॥ए देशी ॥ .. साजन हे राणकपुर महाराज आज जले नेटिया हो राज मिथ्यातिमिर श्रनादरोहो राज ॥ सा ॥ पुर कीयोमें श्रा Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १४१ ज प्रभु मुख जोवतांहो राज ॥ प्र ॥ सा ॥ १ ॥ सेवकरी एक विनतीहो राज || सा ॥ श्रवधारो मोहा राय दया करी माहरी हो राज ॥ द ॥ सा ॥ २ ॥ तस्करच्यार डरामणाहोराज ॥ लाग्या माहारी लारके वेगे निवारजोहो राज ॥ वे ॥ सा ॥ ३ ॥ काल अनादि लुटियो हो राज । सा । इतस्करे भुजनाथ वात कोण सांजले होराज ॥ वा ॥ सा ॥ ४ ॥ ज्ञान खमग मुज दिजिये होराज ॥ सा ॥ कीजीये सेवक सार वार करो माहरी हो राज ॥ व ॥ सा ॥ ५ ॥ श्रव तुमचरणे थाइने हो राज ॥ सा ॥ जव जव संचित पाप करम दल काटसां हो राज ॥ सा ॥ ॥ ६ ॥ धन धन मरुदेवी मातने हो राज ॥ सा ॥ नाजीराय कुलहंस वंस इदवागनो हो राज ॥ वं ॥ सा० ॥ ७ ॥ सेवक दुःखियो देखीने हो राज ॥ सा ॥ मनमे · Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४‍ श्री मषीरविजयोपाध्याय कृत, आणी महेर जवोदधि तारिये हो राज ॥ जा ॥ सा ॥ ८ ॥ श्रातम लक्ष्मी दिजिये हो राज || सा ॥ वीरविजयने श्राज काज सरे माहरो हो राज ॥ का ॥ सा ॥ ए ॥ इति राणकपुरस्तवन समाप्तं ॥ ॥ अथ श्री गीरनारमंडण नेमनाथ जिन स्तवन ॥ AAAA में आजे दरिस पाया श्री नेमनाथ जिनराया ॥ मे ॥ कणी ॥ प्रभु शीवा - देवीना जाया प्रभु समुद्रविजय कुल श्रया करमोके फंद बोमाया ब्रह्मचारिं नाम धराया जिने तोडी जगतकी माया ॥ जि ॥ मे ॥ १ ॥ रेवत गिरी मंरुण राया कल्याणक - तिन सोहाया दिक्षा केवल शीवराया जगतारक बिरुदधराया तुम बेठे ध्यान लगाया ॥ तु ॥ मे ॥ २ ॥ अब सुपो त्रिभुवन राया में करमोके वश श्राया हुं चतुर गति जटकाया मे Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. । कुःख अनंते पाया ते गिणती नाही गणाया । ते ॥ मे ॥३॥ मे गरजवासमे आया जंधे मस्तक लटकाया आहार सरसं विरस तुक्ताया एम अशन करम फल पाया ण दुखसे नाही मुकाया ॥ ॥३॥मे ॥४॥ नरजव चिंतामणि पाया तब च्यार चोर मिल थाया मुजे चौटेमे लुट खाया अब सार करो जिनराया किस कारण देर लगाया ॥ कि॥मे॥५॥ जिने अंतरगतमे लाया प्रज्जु नेम निरंजन ध्याया दुःख संकटविघन हटाया तेपरमानंदपद पाया फेर संसारे नहीं आया ॥ फे ॥ मे ॥६॥ में दुर देससे आया प्रनु चरणे शीशनमाया में श्ररज करी सुखदाया तुमे अवधारो महाराया एम वीरविजय गुणगाया ॥ ए ॥ मे ॥७॥ शति श्री गीरनार मंमन श्री नेमनाथ जिन स्तवन ॥ समाप्तं ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ श्री रांधणपुरमंरुण ऋषन जिन स्तवन ॥ राग सारंग ॥ चितचाहे सेवा चरएकी प्रभुजी रुषन जिणंदकी ॥ चि ॥ कणी ॥ चेतन ममता सबही बोमी ए प्रभु सेवो एकमति लोकातित स्वरूप ते जेहनुं लेई वरों पंचमी गती ॥ चि ॥१॥ एक एक प्रदेशें अनंती गुण संपतनी श्रावली । सुरगुरु कहेतां पार न पावे एक अनेक मुखे करी ॥ चि ॥ २ ॥ जवथकी लगा बो प्रभु तुमही जविजन ताहरा नामथी पार नवोदधीनो ते पामे ए अचरिज मन बे श्रती ॥ चि ॥ ३ ॥ तुम प्रभु तारक जगजयवंतो नहीजानो मे दुरमती मन वचकाया श्रीरकरीने नहीं सेव्यो में एक रती ॥ चि ॥ ४ ॥ अवसर पासी न करुं खामी सीरधरुं प्रभु नीचा करी रांधणपुरमंरुण दुखखंडण 3 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १४ए सेवीवरो शीवसुंदरी॥ चि ॥५॥ वारवार विनवं प्रज्जु तुमथी जो अवधारो माहरी आतम आनंद प्रजुजी दीजो वीर विजयने मया करी॥ चि ॥ ६ ॥इति समातं॥ ॥अथ श्री सिहाचलजीनुं स्तवन । मनरीबातांदाखाजी महाराराज ॥ए देशी॥ प्रीतमजी सुणो दीलरी बात हमारी जी माराराज ॥ श्रांकणी ॥ विमलगिरिंदकुं नेटो जी माराराज जव नंवके संचित पापकरमकुं मेटो जी माराराज ॥ प्रीत ॥१॥ पुरव नवाणुंवारा जी माराराज । प्रनु षन जिणंदा चरणे चल कर आया जी माराराज ॥जी॥२॥ राजादनी तरुबाया जी मारा राज । तुमे दिलजर देखो झषन जिणंदके पाया जी मारा राज ॥ प्रीत ॥३॥ पुंडरिक गणधर आदि जी माराराज मुनिमुक्तिसधारे । टाली सर्व उपाधी जी मारा १३ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, राज ॥प्रीत ॥४॥प्रीतम तीरथ मोटुं माराराज काई ढील करोडो अमने लागे खोटुं जी माराराज ॥ प्रीत ॥५॥ मिथ्या निंद हछावो जी माराराज ए तीरथ जाके कुमतिके गढढावो जी मारा राज ॥प्रीत ॥६॥ कुरजनरा नरमाया जी माराराज चेतनजीथे तो चौगतीमे जटकाया जी माराराज ॥प्रीत ॥७॥ ए पावनतीरथ पामी जी माराराज सबकुःखके चुरण मतकरजो तुमे खामीजी माराराज ॥ प्रीत ॥॥ चितमामे नित्य घ्यावोजी माराराज गिरीवरके फरसी परमानंद पद पावो जी माराराज ॥ प्रीत ॥ ए॥ सुमता शखीरी वाणी माराराज तुमे चितमा धरजो वरजो शीवपटराणी जी माराराज ॥ प्रीत ॥१०॥ गुण गावे मिली देवाजी माराराज वीर Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १४७ विजय मांगे श्रोतम लक्ष्मी मेवा जी माराराज ॥प्रीत ॥११॥ शति श्री सिझाचल स्तवन संपूर्णम् ॥ अथ श्री जिरामंडणचिं तामणी स्तवन ॥ ॥ राग दादरो ॥ हुमरीनेद ॥ दिलविसरामी चिंतामण खामीरे ॥ टेक ॥ मोहन मुरती पाशजी तोरीरे । अवर न जोमीरे । चितलीयो चोरीरे ॥ चिं ॥१॥ अंतरंगतकी अंतरजामीरे । कहुं शीरनामीरे । सुनो मेरे खामीरे ॥ चिं ॥२॥ मोहरायने मेनुं फुःख दीयारे। सबी लुटलीयारे । जुलमही कीयारे ॥ चिं ॥३॥ तुम विनकौन सुने प्रजु मेरीरे शरणगत तोरीरे ॥ खबर लियो मोरीरे ॥ चिं॥४॥ दासकी आश प्रजु पाशजी पुरोरे ॥ करम सब चुरोरे ॥ बजे जयतूरोरे Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ चिं ॥५॥ वीरविजय कदे पाशजी पायोरे ॥ जीरे जब आयारे ॥ उःख विसरायोरे ॥ चिं ॥६॥ इति ॥ समाप्तं ॥ ॥ अथ श्रीपट्टी मंडनपार्श्व जिन स्तवन ॥ करले पारश संग । प्रनु हे अनंग जंग । कंचन कामनी संग । कमले क्युं थावदाजी ॥ क ॥१॥ मनुष्य जनम आंदा ॥ निंदमें क्युं सोई रेंदा। शुपनशी माया तेनुं । फेर नहीं पावदांजी ॥ क ।। २॥ प्रनु हे पुरनचंद । अश्वसेनराय नंद धन दिन आज सामा । प्रजु घरश्रावदांजी ॥क ॥३॥ शीफत करांमे केती। जिनान तो नांहीरेंदी । सुर गुरु गुण तुं सांदा ।पार नहीं पावदां जी॥ क ॥४॥ मनके मोहन पामी पुरतो Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १धए पट्टी के स्वामी। अब तो न रखो खामी। वीरविजे गावदांजी ॥क ॥५॥ इति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥अथ श्री घोघा मंडण नव- . खंडापार्श्व जिन स्तवन ॥ घनघटा नुघन रंग बाया नव खंमा पाशजि पाया ॥ आंकणी ॥ प्रज्नु कमठ हीकुं हगया। विषधर पर जलती काया। दिल दया धरी के गेमाया । सेवक मुख मंत्र सुणाया। दणमें धरणे बनाया ॥ घ॥१॥ में और देवन कुंध्याया। सब फोगट जनम गमाया । सुनो वामाराणीका जाया। कुब परमारथ नहीं पाया ज्युं फुटा ढोल बजाया ॥घ ॥२॥ सुणि चामीकर नरमाया । में पीतल हस्ते पाया। मुजे हुवा बहु सुखदाया। करमोने नाच नचाया। इस विध धके ब- . हु खाया ॥ ५ ॥३॥ घोघा मंडण सुख Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० वीरविजयोपाध्याय कृत, दाया। जग बहु उपकार कराया। नवखंगा नाम धराया। में सुणकर शरणे आया । उकार करो महाराया ॥ ५ ॥ ४॥ हुवा चतुर मास मुजे आयां । किसकारण अब बेहाया । यो मन वंडित सुखदाया। हुं प्रेमे प्रणमुं पाया। सेवकका काज सराया ॥ घ॥५॥ शरयुग निधि इंछ कहाया । जला श्राश्विन मास सोहाया ॥ दीवाली दिन जब थाया। में श्रातम थानंद पाया। एम वीर विजय गुण गाया ॥ १ ॥६॥ इति समाप्तं ॥ ॥ अथ नव खंमा पार्श्व जिन स्तवन ॥ नवखंमा खामी। आप बिराजो घोघा शहेरमे ॥ हांहारे घोघा शहेरमें ॥ नव ॥ श्रांकणी ॥ देश देशके यात्री Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १५१ श्रावे पूजा प्रांगी रचावे । नवखंमाजी नामसमरतां । पूरण परवा पावेजी ॥ नव ॥१॥ अश्वशेन वामा सुत केरी मू रति मोहन गारी। चंद्र सूरज श्राकाशे चमिया तुमरे रूपसे हारीजी ॥नव ॥ २॥ मुखने मटके लोयण लटके मोह्यां सुरनरकोडी। और देवनकुं हम नहीं ध्यावें एम कहे करजोमीजी ॥ नव ॥ ॥३॥ तूं जगवामी अंतर जामी श्रातम रामी मेरा । दिल विसरामी तुमसें मांगु । टालो नवका फेराजी ॥ नव ॥४॥ कल्पवृक्ष चिंतामणि आशा पूरे नहीं जडनाषा ॥ तीन जुवनके नायक जिनजी ॥ पूरो हमारी आशाजी ॥नव ॥५॥ दायक नायक तुम हो साचा और देव सब काचा । हरिहर ब्रह्म पुरंदरकेरा जूठे जुक तमासाजी ॥ नव ॥६॥ नटकनटक घोघा बंदरमे दर्शन कुर्लन पाया । वीरविजय कहे Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ श्रीमधिरविजयोपाध्याय कृत, श्रातम थानंद बापो जिनवर रायाजी ॥ नव ॥७॥ . शति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ सन्नखतरामंडन धर्मनाथ स्तवन ॥ राग कानडा ॥ और न ध्याउं में और न ध्याउं॥धरम जिणंदसें लगन लगाऊं ॥ ध्यान अगनसे करम जलाउं ॥ बिनमें परमातम पदपाउं ॥ और॥१॥लोह पारशको संगमपाई। हेमरूप धारत मेरे नाई॥नजले धरमनाथ एक वारा॥श्रातम हित करले तूंप्यारा॥ औ ॥श्न विन और देव नहीं पूजो॥ विधिसे धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवनहारा ॥ औ ॥३॥ नूत.मंदिर आप पधारो ॥ एही सेवक अरजी अवधारो ॥ घंटारव नोबत जब-गाजे ॥ तब Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. VE सेवकको ध्यानंद जागे ॥ श्रौ ॥ ४ ॥ पुरव पुन्ये दरिशण पायो ॥ जब में देम - नगरमें आयो ॥ वीरविजयकी विनती एही ॥ श्रतम आनंद मुजको देही ॥ श्रौ ॥ ५ ॥ इति श्री धर्मनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ अथ श्री हुशियारपुरमंडनवासुपूज्य जिन स्तवन ॥ राग कमाच ॥ आज दुविधा मेरी मिटगई ॥ ए देशी ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हरलीनोरे ॥ कणी ॥ वासववंदित पदकजद्वंद ॥ वसुपूज्य राजाके नंद ॥ नविक कमल विकासीचंद ॥ तनूरक्तरंगीलोरे ॥ वा ॥ १ ॥ कामित पूर सुरतरुकंद ॥ कठिन करमका काटे फंद ॥ अरज करूं अति जाग्य मंद ॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ श्रीमविरविजयोपाध्याय कृत, कुबदयादिलल्यावोरे ॥ ५ ॥ फसियो मोह दशा महा फंद ॥ अब काढो प्रनु कुरुणावंत ॥ चरण शरण मागु श्रमंद । क्युं देरलगावोरे ॥३॥ तारक प्रजुजी जग जयवंत ॥ तास्ये तुमने संत अनंत ॥ मुज कीरपाकीजो जदंत ॥ निज बिरुद संजालोरे ॥ वा ॥४॥ नव नव नमियो में जगवंत ॥ तुम दरिशण विन काल अनंत ॥ नगरस्यारपुरे में चंग प्रजु दरिशण पायारे॥ वा ॥५॥ संवत् नेत्रबाण निधिचंद असुशुक्ल छीतिया दिनचंग ॥ वीरविजय मांगे अनंग ॥ श्रातम पद दीज्योरे ॥६॥ इति समाप्तं ॥ .॥ अथ श्री अमृतसर मंडन अर जिन स्तवन । श्री अरजिन अंतर जामी। तुमसे क Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ~ स्तवनावली. १५५ हुँ सीर नामी करुणा दृग्मोये करना । ज्यु वेग हुवे तरनाजी ॥१॥ धन दोलतमाल खजाना । नहीं मांगु त्रिभुवन राना मन नमरेकुंए आशा । तुज पद पंकजमे वासा । श्री ॥२॥ए सुषम कालकुःख दाई । तुज मुरती है सुख दा॥ नहीं कुमतिके मन नाई । हुवे मुरगत के सहाई ॥ श्री ॥३॥ कुपंथ जिनोने धारे। उरगतिमे गये विचारे। जिने तुम आज्ञा नहीं कीनी । तिने पाप पोटसीरतीनी ॥ श्री ॥४॥ अमृतसर मंमण स्वामी। घटघट में तूं विसरामी। तोरी श्राझा सिरपर धारी । हुं वेग वर्क शीव नारी ॥ श्री ॥५॥ निधियुग निधि इंड वरसे । मास कार्तिक शुक्ल पदेतिथि प्रतिपदा गुण गाया। ए वीरविजय सुख दाया ॥६॥ शति समाप्तं ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ श्रीमधिरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ अमृतसरशीतल जिन स्तवन । चलो खेलिये होरी । शीतल जिन नाथ जयोरी॥च ॥ श्रांकणी ॥ आये वसंत फूली वनराजी । नमर गुंजारं न. योरी। माकंदमंजर सुंदर चारवी । कोकिल शोर थयोरी । मेरोमन अति उलस्योरी ॥ च ॥१॥ मोघर चंपक केतकी फुली। और फुली चित्रवेदी। चंबेली मुचकुंद ज फुली। दमनक कलियां मोरी प्रजुजीकी पूजा रचोरी॥च ॥१॥ कुशमानरण करी प्रजु पूजो। ज्यु पामो नव पारी । केसर रंग के तिलक लगावो। धुप घटी विरचावो । नवि तुमे नावना नावो ॥ च ॥३॥ ताल मृदंग विण मफ बाजत । तुंगल गाजत नेरी। गीत नृत्य प्रनुजीके आगे । करंत मिटत नव फेरी। वसंतकी बाहार नलेरी ॥ च ॥४॥ नं Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ स्तवनावली. दानंदन जव मुख कंदन । नामसें शीत जयोरी। शोच करत विचारो चंदन । नंदन वन मे गयोरी। जाको मान नंगथयोरी ॥ च ॥ ५॥ ढुंढत ढुंडत शहेर शुधामें । शीतल नाथ मिल्योरी । वीरविजय कहे आतम आनंद । आज ह. मारे थयोरी। दरशसें पाप गयोरी ॥च॥६॥ इति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ हस्तिनापुर स्तवन । ॥ राग होरी ॥ ॥ चालो खेलिये होरी जिहां जिन कल्याणक नयेरी ॥ चा ॥ टेक ॥ सुंदर हस्तिनागपूर है । पूरवदेस मोजारी। जिहां जिनतिनके कल्याणिकका। कथन हे सूत्र मोकारी । सब जिवन हितकारी ॥ चा ॥१॥ शांतिनाथ श्रीकुंथुनाथ जी। अरजिनअंतर जामी । चवन जन १४ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, मदीदाने केवल । पायेप्रज्जुधारी। कल्या णिक जगसुखकारी ॥ चो० ॥२॥ दो विधचक्री पदसुख जोगी । तेप्रनु आनंद कारी । समे शिखर जा ध्यान लगाई। लीनी शीव पटराणी करदयसें नवपारी ॥चा ॥३॥ तीरथयात्रा करो शुजना वें । समकित निरमलकारी । जनमजनम के पापनिवारी। श्रातमके हितकारी । सदासुखके दातारी ॥ च ॥४॥ शहेरदिबीसें यात्राकरनकुं । संघसकल मिल आये । श्रीश्रीहस्तिनागपुरमें । धवल मंगलवरताये पूजासें आनंद पाये ॥ च ॥५॥ संवत् नुवन बाण निधिछ । फागुनशुदिसुखकारी। गुरुवार प्रतिपदजयकारी। वीरविजयहितकारी। प्रजुन्नेव्यांनवपारी॥६॥ इति समाप्तं ॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥ अथ मांडवगढमंडन स्तवन ॥ पानीहारीकी देशी॥ मांडवगढमे विराजता मादारा वालाजी ॥ मा ॥ स्वामी सुपास जिणंदा ॥ वा ॥ तिणकारणतीरथवडं ॥ माहा ॥ नूमंगल प्रचंग ॥ वा॥१॥ विषमपदाम फामीघणी ॥ मा ॥ दर्शण फुलनदेव ॥वा ॥ पुन्यविनापावे नहीं ॥ म ॥ मांडवमंमनसेव ॥ वा ॥२॥ तीरथमहिमा श्रतिघणो ॥ मा ॥ सांजलीलानअपार ॥ वा ॥ जात्रीजनश्रावेघणा ॥ मा ॥ करवाजवनोपार ॥ वा॥३॥ लान लेवा जाशतणो ॥ मा ॥ रतनपुरीकोसंघ ॥ वा ॥ मांमवगढ प्रतिनिकले ॥ म ॥ बहु याडंबरचंग ॥ वा ॥४॥ संघवीडुंगरसीनला ॥ मा ॥ उसवंसनूपाल ॥ वा ॥ लुणियागोते जाणिये ॥ मा ॥ करतापरउपगार ॥ वा ॥५॥ विजयक Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, मा ॥ स मुनिके परिवार ॥ व ॥ साधवीश्रावक श्रावीका ॥ मा ॥ हाइघणो बहुलार ॥ वा ॥ ६ ॥ चनविधसंघशोजाघणी ॥ मा ॥ मुखवरणी नहींजाय ॥ वा ॥ मोतीजीकटारिया ॥ मा ॥ श्रागेवानी थाय ॥ वा ॥ ७ ॥ अनुक्रमे याविबिराजिया || मा ॥ धारा नगरीकेमांय ॥ वा ॥ चैत्यजुहारी तिहबहु ॥ मा ॥ उलट अंगनमाय ॥ वा ॥ ८ ॥ पुरवपुन्ये आविया ॥ मा ॥ मांडवपुरकेमांय ॥ व ॥ श्री सुपासजिन जेंटिया ॥ म ॥ जेहनी शीतल बांद ॥ वा ॥ एए ॥ शशी रसे निधि शशी वत्सरे ॥ मा ॥ फाल्गुनमासप्रमाण ॥ वा ॥ कर्म वाटीयेचतुर्दशी ॥ मा ॥ कृष्णपदकी जाण ॥ वा ॥ १०॥ सूर्यवारेंसुखियाथया || मा | नेटी प्रभुकापाय ॥ वा ॥ वीरविजयकदे दीजिये ॥ मा ॥ श्रातमहित सुखदाय ॥ वा ॥ ११ ॥ इति मांडवगढ स्तवन | संपूर्ण ॥ " Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥अथ श्रीसमेतशीखरजी, स्तवन। वसगीया वसगीया वसगीयारे मेरामनवा । मेरामनवा शीखरपर वसगीयारे ॥ मे ॥ आंकणी ॥ समेतशीखरगिरीवरकोनेटी। थानंद हृदयमें नरगीयारे ॥ मे ॥ १॥ धन्यघडी दिन श्राज हमारो। तीरथन्नेटी तरगियारे ॥ मे ॥२॥ वीसे टुंके वीस जिनेश्वर । अजितादि प्रनुचमगीयारे ॥ मे ॥३॥अणशणकरके कारजअपना । योगसमाधी से करलीया रे.॥ मे ॥४॥ अनंतवली जिनवरको जाणी। मोदराय पिणडरगीयारे ॥ ५ ॥ करम कटण कल्याणिकनूमी । सवजिन वरजी कगयारे॥ मे ॥ ६ ॥पुन्योदयसेंपाश शामला । समेत शीखरपे दरशकीयारे ॥ मे ॥ ॥ वीरविजय कहे तीरथ फरसी। श्रातम आनंद लेलीयारे ॥ मे ॥७॥ इति संपूर्ण ॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, ॥अथ श्री समेतशीखरजीतुं स्तवन॥ तीरथनी आशातनानवीकरीये।एदेशी॥ • समेतशीखरनी जातरा नित्य करिये। नित्यकरियेरे नित्यकरिये । नित्यकरिये तो फुरितनी हरिये ॥ तरिये संसार ॥ समे ॥ १॥ शीववधुवरवा आविया मनरंगे। विश जिनवर अतिउबरंगे । गिरीचमियाचडतेरंगे । करवानिजकाज ॥ स ॥२॥ अजितादिवीश जिनेश्वरा वीशटुंके । की, अपशण कीरियानचुके । ध्यानशुक्त हृदयथी न मुके । पायापदनिरवाण ॥ समे ॥३॥ शिवसुखनोगी ते थया जिनराया। नांगे सादि अनंत कहाया । परपुजल संगडोमाया ॥ धनधन जिनराय ॥ स ॥४॥ तारणतीरथतेथी तेकहीये ।नित्यतेदनी ग्यारहीये।रहियेतो सुखिया थश्ये बीजुं शरण न होय ॥ स ॥५॥ उँगणिसेबासह माघनी वदी Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १६३ जाणो॥ चतुर्दशी श्रेष्ठवखाणो। हमेनेव्यो तीरथनोराणो । रंगेगुरुवार ॥ स ॥ ६ ॥ उत्तमतीरथ जातरा जेकरशे । वली जिन आज्ञा सीरधरशे।कहेवीरविजयतेतरसे । मंगल शीवमाल ॥ सा ॥७॥ शतिसमेतशीखरजीतुं स्तवन ॥ समातं ॥ अथ समेत शीखरजीका स्तवन॥ रहेने रहेने रहेने अलगीरहेने ॥एदेशी॥ नेटोनेटोनेटो नवियणन्नेटो । समेत शीखरगिरीनेटो ॥ न ॥ जनममरण पुःखमेटो ॥ज ॥ आंकणी ॥ मोदरायने विवरदियोजब । नाग्योदयथयो बलियोपुरवपुन्ये श्राजहमारे। तीरथमेलोमलियो ॥ ना ॥१॥ आजहमारे सुरतरुप्रगटो। मनना मनोरथ फलिया। समेत शीखरगिरीवरनेन्नेटी।नवना फेराटलिया॥न॥२॥ नवोदधि तरियेपारउतरिये । तीरथकहिये Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, तेह।पुन्यतणातोपोहीजरिये।तेहमानही संदेह ॥ ॥३॥ खपरिवारेवीस जिने श्वर । समेतशिखरगिरीचमिया । कामक्रोध मदमोह निवारी । समतारसनानरिया ॥ न ॥४॥ अजितसंनव अनिनंदन सुमति । पद्मप्रनुजी जाणो । सुपास चंचप्रजुनेसुविधि । शीतलजिनने वखाणो ॥ न ॥५॥ श्रिश्रेयांस विमलने अनंतजिन । धर्म जिनेश्वर कहिये । शांतिकुंथु अर जिनवरनी । नक्तिकरीशीव लहिये ॥न ॥६॥ महिनाथने मुनिसुवृतजिन । नमिपार्श्वगुण जरिया । वीसेटुंकेविसजिनेश्वर । अणशण करी शीव वरिया ॥ ज ॥७॥ वीस प्रज्जुनिरवाणथयाथी। विसकल्याणिक जाणो । पावनतीरथतेथी कहिये। शंका मन नहीं आणो ॥ न ॥७॥ तीरथसेवा सद्गति आपे । कहे सिकांत नहीं खोटुं॥समकी Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ....१६५ तशुद्ध अवार्नु कारण । ए तीरथडे मोटुं ॥नाए॥जात्राकरवा शीवसुख वरवा। संघसकल हवे मलियो। स्वपरिवारे चमते नावें । लश्करथी निकलियोः ॥ ॥१०॥ शेहजी नथमल वाघमबजी। लश्कर शंहेरना जाणो । गोलेगा जोगोते कहिये श्रावक श्रेष्ठ वखाणो॥ज ॥ ११ ॥ शेठजी नगीनचंदकपूरचंद । सुरत शहेरना कहिये । लसुनाश्ने दलसुखनाई । फुलचंदनाश्ने लहिये ॥ न ॥१२॥ जगवान सिंहजी नक्ती करता । संघसकल हवे चाले । काशी आदि तीरथकरता। समेतशीखरजी श्रावे ॥ज ॥ १३ ॥ उंगणिसे बासह माघवदीनी । चतुरदशी गुरुवारे। तीरथ नेटीजे आनंद लीधो। केवलज्ञानि ते जाणे ॥ ज ॥ १४ ॥ संघनीसहाजे हमे नलीमाते । जात्रानुं फल लीधुं। वीर Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, विजय कहे. आज हमारा | मननुं कारजसिध्यं ॥ ज ॥ १५ ॥ . इति स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री महावीर जिन स्तवन ॥ माहावीर महावीर नजले तुं जाई । महावीरविन है न कोई सहाई ॥ मा ॥ कणी ॥ मानुष्य जन्मकी करले कमाई | सिद्धारथ सुनुंबनाले तूं साई ॥ मा ॥ १ ॥ निष्कारणबंधु परमसुखदाई | महावीरजी की है एही बनाई ॥ मा ॥ २ ॥ स्वारथ की तुंबोमदे मातपिताई । ईनोसे नहोंगी तुजे कुछ जलाई ॥ मा ॥३॥ देखो डुनियां की है कैसी सगाई । सबी लुटलेवे श्रो अपनी कमाई ॥ मा ॥ ४ ॥ बोड सब मोहलोह दुःखदाई | शरण कर वीर विनू मेरेजाई ॥ मां ॥ ५ ॥ इति श्री महावीर जिन स्तवन संपूर्ण ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १६७ ॥अथ श्री पावापुरी महावीर जिन स्तवन ॥ हरलिया हर लिया हरलियारे मेरामनवा । मेरा मनवा महावीरजीने हरलियारे ॥ श्रांकणी ॥ विचरता वीरजिनेश्वर श्राया। पावापुर पावन कीयारे॥ मे. ॥१॥ सुरवर समोवसरणकी रचना । करीनक्कीमें जरगीयारे । मे ॥२॥सिंहासन प्रजुजी बिराजी। देशना अमृत वरसियारे ॥ मे ॥३॥ शोलपहोर प्रजु देशना दीनी । अवसर अणशणकालीयारे ॥ मे ॥४॥ सर्वसमांधी अणशण पाली । मनवचकाया वस कीयारे ॥ मे ॥५॥ शीववधुवरिया नवोदधी तरिया । पारंगतका पद लियारे ॥ मे ॥ ६॥ मोद कल्याणिक महोवजाणी । इंसादिक सब मिलगीयारे ॥ मे ॥७॥ बमेहासे Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ श्रीमधीरविजयोपाध्यायकृत, महोडवकरके। नामपावापुरी कह गियारे॥ मे ॥ ७॥ तीरथ नेटी नवदुःख मेटी। श्रातम आनंद लेलियारे ॥ मे ॥ ए ॥ उंगणिसेबासह माघशुदकी । पंचमीदिन पावन थियारे ॥ मे ॥१॥ वीरविजय कहे वीर जिणंदका दर्शण बिन हम रहगयारे ॥ मे ॥ ११॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ कलकत्ता मंडन महावीर स्तवन ॥ रानी त्रिशलादे नंदारे वीर जिणंदा। सिझारथ कुलननचंदा रे सुखकोरेकंदा ॥ आंकणी ॥जब जन्मे जिनवरराया । बपन.. कुमरि हुलराया । हरीहरषधरी तब थायारे॥ वीर;॥ रानी ॥१॥ हरी पंचरूप बनजावे । प्रनुमेरुशीखरपेल्यावे । करेजनममहोबवनावरे:॥वीर ॥रानी ॥२॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. निषेककलस करधारी । करेप्रनवकी त्यारी | हरीशंकादिलमे धारीरे ॥ वी ॥ रानी ॥ ३ ॥ प्रभु जनमत ही हैं नाणी | मनशंकाशककी जाणी । तबमेरुकंपायो ताणीरे ॥ वी ॥ रा ॥ ४ ॥ चमके सबसुरवरराया । शंकामन दुर कराया । करी महोबव आनंद पायारे ॥ वी ॥ रा ॥ ५ ॥ धन्य वीर जिनेश्वर स्वामी । तुं बालपणे नये नामी । तुमगुणमेको नहीं खामीरे ॥ वीर ॥ रा ॥ ६ ॥ कलकत्ता मंदन राया | बैठे प्रभु ध्यान लगाया । में दर्शन गिचेपायारे ॥ वीर ॥ ७ ॥ उंगपिसेंशह जाया । कार्त्तिक पुनमदिन याया । एमवीरविजय गुणगायारे ॥ वीर ॥ रा ॥८॥ १६ ए ॥ अथ आगरा मंडन चिंतामणस्तवनं राग कनडाशियाना ॥ चिंतामणजी पास मोहे प्यारा ॥ मन १५ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, वंडित के पुरण हारा । नाम मंत्र जपलो एकवारा । कहिनकरमके चुरनहारा ॥ चिं ॥१॥ अरज एक प्रजुजीसें मोरी। सेवाचाहुं मे नवनव तोरी। लक्ष चौरासी रुलतामे आया। पुरवपुन्ये चिंतामणि पाया ॥ चिं ॥२॥ और देवनकी सेवा मे कीनी । पापकी गहडीमें सीरलीनी। कहोरेन मान्यो कुमति वस किसको.। प्यालो न पीयो अमृत रसको ॥ चिं ॥३॥ औरदेवनकुं कबहुनमार्नु । सचापास चिंतामणि जानु।प्रजुके चरण शरण करलीनी। और देवनकुं जलांजलीदिनी ॥ चिं॥ ॥४॥ आगरा मंडन सबदुःख खंडन । पास चिंतामणि शीतल चंदन । वीरविजय कहे तपत बुहकावो । नाम जगतमें हेतु मचावो ॥ चिं ॥५॥ जुगरसनिधि इंवत्सरमें । मासलाउपद शुक्लपक्ष में । दिन संवबरी का जब आया ।चिंतामणी Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. पास गुन गाया ॥ चिं ॥६॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्री अंबाला मंडन श्री सुपास जिन स्तवन ॥ क्युं नहो सुनाई खामी । ऐसा गुनाक्या कीया ॥ श्रांकणी ॥ औरोंकी सुनाई जावे । मेरीवारी नाही आवे ।तुम विनकौन मेरा मुजे क्युं जुलादिया। क्युं ॥१॥ जक्तजनो तारदीया तारवेका कामकीया । विनजक्ती वोला मोपें । पक्षपात क्यु लिया ॥ क्युं ॥॥ रावरंक एक जानो। मेरातेरा नाहीं मानो । तरन तारन ऐसा। विरुदधार क्युं लिया ॥ क्यु॥३॥ गुनामे रावतदिजे। मोपे एति रहेम कीजे । पकाहीचरोंसा तेरा । दिलोमें जमालिया । क्यु॥धा तुंही एक अंतर जामी । सुनो श्री सुपास खामी । अवतो आशा पुरो मेरी। कहेना सो तो केदीया ॥ क्युं ॥५॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, शहेर अंबाले नेटी। प्रजुजीका मुख देखी। मानुष्य जनमका लोहा । लेनासो तो लेलीया ॥ क्युं ॥६॥ उन्निसो साब बबिला।दीपमाल दिनरंगिला॥ कहे वीरविजे प्रजु । नक्तीमें जगादिया ॥७॥ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥श्री चंपामंडन वासुपूज्य जिन स्तवन ॥ . चंपा मंमन सुखदाया। श्री वासुपूज्य जिनराया ॥ आंकणी ॥ प्रनु जयादेवी के जाया। वसु रायके वंसदीपाया। मिल चौसह इंजे गाया। में पुन्ये दरिसण पाया ॥ श्री॥१॥ प्रनु पंचकल्याणिक जाया । च्युति जन्म वैराग्य जराया । वरनाण परमपद पाया। मंगलचंपामें ग वाया ॥ श्री॥२॥ कल्याणिक नूमि जाणी। तिरथमें चंपा गवाणी। नगरीमें Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १७३ बनगई राणी । ए महावीरकी वाणी ॥ श्री ॥ ३ ॥ तीरथकी महिमा जाणी । संघयात्रा करे गुणखाणी । नूमंगल मदिमा गवाणी । तीरथ नेटो जवी प्राणी ॥ श्री ॥ ४ ॥ यात्रा करनेकुं आवे । देसपूरवसें संघ ब्यावे । ताकी सोजा करूं में जावें । सुतां श्रद्धा चित्त आवे ॥ श्री ॥ ५ ॥ शहेर मुर्शिदाबाद कहाया । जिहां वसे धनपतसिंहराया । राणी मेना कुमरी जाया । सुत माहाराज बाहादुर राया ॥ श्री ॥ ६ ॥ मंत्रि बुद्धी के बलिया । गोपीचंद बाबु मलिया | दुल्लास बाबु मति जागी । संघक्ती करे वमनागी ॥ श्री ॥ ७ ॥ यात्राकी मरजी कीनी । तव गुरुसें श्राज्ञा लिनी । संघपति तिलक पदलीया । सूरि विजय कमलने दीया ॥ श्री ॥ ८ ॥ संघवी की सोजाजारी । संघवण कस्तुर कुमारी । हे पुन्यकी खुबी - Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, न्यारी । चमके सकल नरनारी ॥ श्री ॥ ए ॥ री नंजा वजडावे । तब संघसकल मिल श्रावे।गौरी मंगल गवरावे। सबजन चडते जावे ॥ श्री॥ १० ॥उंगणिसें त्रेस जाणो । मगसर शुदि नवमी वखाणो । शनिवारने सिझी जोगे । संघ निकसे सुख संजोगे ॥ श्री ॥ ११ ॥ सपादशत शकटानी । हस्तिघोडे गुलतानी । शेठ साहुकारने पाला । संघलोक घणा मसराला ॥ श्री ॥ १५॥ सूरि विजय कमल गुणदरिया । एकादस मुनिपरिवरिया । उपदेस करे गुणरागी। जाके धरम वासना जागी ॥ श्री ॥ १३॥ है चैत्य प्रकासंगे। संघ दरिसण' करे म.. नरंगे। ऐसी विध संघकी जाणो। फेर नहीं मिले एहवो टाणो ॥ श्री ॥ १४ ॥ अनुक्रमे चंपामे आया। उँगणिसे त्रेस नाया। पोसवदि एकादशी लीधी । बुद्ध Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. वारे यात्रा कीधी ॥श्री ॥ १५॥ यात्रा करी आनंद लीया । नरनव बहुसफला कीया । आतम आनंद रसलीया। कहेवीर विजय नरपीया ॥ श्री॥ १६ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ श्रीदस्तिनापुरस्तवन ॥ राग पीलु ॥ चलोरीचलो तुम चमते रंगे। तीरथ जात्रा करो मन रंगे। तीरथ जात्रा जिनवर नांखी। इन बातनमे शास्त्र हे शाखी ॥ च ॥ १॥ जिनवर कल्याणिक जिहां थावे । तीर्थकर तीरथ फरमावे । जैन तीरथकी महिमा जारी। सबजिवनकुं हे हितकारी॥च ॥॥ हथिणापुरमे हरष घनेरा । बादश क-' व्याणिक हे चलेरा । शांति कुंथु अरजिनवर केरां। दरश करनसें कटे नवफेरा ॥ च ॥३॥ तीरथ जात्रा विधिशं कीजे Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, मनुष्य जनमका लाहालीजे । धरम करनमे देरीन कीजे । अमृत रससोही कटपटपीजे ॥ च ॥ ४ ॥ ए तीरथकी महिमा जारी। सुनके संघने किनी त्यारी। शहेर अंबालासें संघ चलियो। मनमोहन मानु मेलो मलियो ॥ च ॥५॥ श्रावक जन सब संघकी सेवा । करता न. क्ती शीवसुख लेवा । अनुक्रमे हथिणापुरमे आया। धवल मंगल थानंद वरताया ॥ च ॥६॥ षुरस निधि खुवत्सरमे । चैत मास के कृसपक्षमे। करम वाटी-पंचमी दिन आया । जात्रा करी सब थानंद पाया ॥ च ॥७॥ तीरथ सेवा नित्य नित्य कीजे । फेर संसार मे नाही जमीजे । वीरविजय कहे सुकृत कीजे । श्रातम. यानंद मुजको दीजे ॥ च ॥७॥ .' इति हस्तिनापुर स्तवन संपूर्ण ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ॥ अथ श्रीवीकानेर मंडन - पत्र जिन स्तवन ॥ तुम चिदघन चंद आनंद बाल ॥ ए देशी ॥ १७५ I तुम आदि जिनंद मारु देवानंद । श्रब शरण लही प्रभु यारी ॥ श्रकणी ॥ प्रथम नरेश्वर प्रथमं जिनेश्वर ॥ प्रथम जये उपगारी मोरा खामी ॥ तु ॥ १॥ लोक धरम मरजादाकारी ॥ जुगलां धरम निवारी । मोरा ॥ २ ॥ संजमधारी वरसविन श्राहारी । विचस्या उग्र विहारी । मोरा ॥ तु ॥ ३॥ परिसद फोजकुं वेग विमारी । ज्ञान खडग करधारी ॥ तु ॥ ४ ॥ शुद्ध उपयोगी अद्भुत जोगी । विषय वासना वारी ॥ मोरा ॥ तु ॥ ५ ॥ अष्टापदपें सनधारी । वरिया सदाशीव नारी ॥ मो रा ॥ तु ॥ ६ ॥ प्रजुकी महीमा मुखसें कहिवा | जिनकली गई दारी ॥ मोरा - Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, Mwww ॥७॥वीकानेरमे श्रादि जिनंदकी। मू. रतिमोहन गारी ॥ मोरा ॥ तु ॥७॥ वीरविजय कहे प्रजुजी नेटी । उरगती कुःख निवारी ॥ मोरा ॥ तु ॥ ए॥ ... इति संपूर्ण ॥ ॥ वीकानेर समोवसरणका स्तवन ॥ अपने पदको तज कर चेतन ॥ ए देशी॥ देखो प्रनुका अजब महोबव। कैसा गठ जमाया है । बीकानेरमें संघ सकल मिल समोवसरण विरचायाहै ॥१॥ क्या कहुं मंझपकी शोना । कहे बिन कोउ न रहेता है । देवलोकका एक निशाना । देखन वाला कहेता है ॥ दे - ॥॥ चौमुख समोवसरणमें सोहै। जिनवर मुज मन नाया है। दरिशण बादाने देखो प्रचुकुं । कैसा ध्यान लगाया है । दे.॥३॥चामर बत्र सिंहासन Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ए स्तवनावली. सो है । जगमग ज्योतिसवाया है। देख देखके प्रनु दरिशणकुं । नगरलोक सब आया है ॥ दे ॥४॥ अजितनाथ प्रजुकी महिमाका । चमतकार ए पाया है। वी. कानेरमें आज अनोपम । धवल मंगल वरताया है ॥ दे॥५॥ गानतान सबसाज मानसें । मेरी नाद बजमाया है। तन मन धनसे उंबवकरके । संघसकलदखाया है ॥ दे ॥६॥ सपरिवारे विजय कमलसूरि। चतुर मास जब आया है। वीकानेरमें उडव महोदय । अधिक अधिक जलकाया है ॥ दे ॥ ७॥ उँगणिसे सडसह शो शुदकी। पूर्णमासी दिन शाया है। वीर विजय कहे प्रजु दरिशणसें । श्रातम आनंद. पाया है। ॥ इति संपूर्ण ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, .. ॥ अथ उसिया नगरी वीर जिन स्तवन ॥ ए अरजी मोरी सैयां ॥ ए देशी ॥ माहावीरजी मुजरो लीजे। सेवक कुं शरणा दीजे माहा ॥ आंकणी ॥ तुं निकारण उपगारी । चंदनवालाकुं तारी। ऐसी नजर प्रनु कीजे । सेवककुं शरणादीजे ॥१॥ चमकोसियो करमसें नारी। कीयो खर्ग तणो अधिकारी । युं वांह पकमकर लीजें ॥ सेव ॥ ॥ संगम कुरुणाकीनी । उपसर्गमें दृष्टी न दिनी। प्रजुतारिफ केती कीजे ॥ सेव ॥३॥ तुं उसिया मंमन स्वामी। पून्ये प्रजु दरिशणपामी। कहे वीरविजय संग लीजे। से वककुं शरणा दीजे ॥४॥ इति समाप्तं ॥ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ११ ॥अथ जेसलमेर जिन स्तवन । ॥ जिनराज वधावो रे माणक मोतिहीरा लालसुं ॥ ए देशी ॥ ॥ जेसलमेर जावोरे जात्राकरण नवी नावसुं ॥ जीनराज जुदारोरे नाव जगती वहु मानसुं ॥ आंकणी ॥ जेसलमेरमे जिनवर केरा चैत्य अनेक नलेरा॥ चैत्य चैत्यमें सुंदर शोने अरिहंत बिंव घनेराजी ॥ जे ॥१॥ जैन तीरथ जेसलमेर जाणी । सरधा दिलमें आणी । देश देशके जात्रा आवे । पुन्यवंत बहु प्राणीजी ॥ जे ॥२॥ उंगणिसें सडसठ मगसर शुदकी। एकादशी सोमवारे । जीवीकानेरसें संघनिकलियो सरवकुटुंब परिवार॥ जे ॥३॥ चमते रंगे अति उब रंगे । संघ चतुर विध चाले । सपरिवारे विजय कमल सूरिधरम देशना आलेजी ॥जे ॥४॥ संघवी श्रीचंद शेक सुराणा। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८१ श्रीमदिर विजयोपाध्याय कृत, संघवी पद हे पुराणा । जेलसमेरकी जात्रा जातां । श्रानंद हरष जराणाजी ॥ जे ॥ ५ ॥ विकट पंथने विकट जामी । क्या करूं उनकी कहाणी | कांटा जाहाजुरुट कांखरां । पूरण न भले पाणी जी ॥ जे ॥ ६ ॥ हामहाम में गाम न आवे | जो आवे तो बाणी । संघ मुकाम करे जंगलमें | देश तंबूताषी जी ॥ ७ ॥ दिनरात रस्तामें पेहेरा । देता चोंकीवाला | डाढी मुंबाने मसराला | हाथमे बंधूक जाला जी ॥ जे ॥ ८ ॥ अनुक्रमे कठिण पंथ उलंघी विघन रहित सब जावे । पो करणफलोधी जात्रा करके । जेसलमेरमें आवेजी ॥ जे ॥ ए ॥ उगणि से सम सव पोषशुदकी दशमी मंगलवारे । जेसलमेर में जिनवर नेटा | आनंद मंगला च्यारेजी ॥ जे ॥ १० ॥ तनमन धनसें जात्रा कीजे नरजव लाहो लिजे । वा 1 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदो. १८३ रवार अवसर नहीं थावे | सदगुरुसें सुपिजे जी ॥ जे ॥ ११ ॥ करमरायने विवरदीयो जब जाग्योदय जया बलिया । वीरविजय कहे आज हमारे मनका मनो रथ फलियाजी ॥ जे ॥ १२ ॥ इति जेसलमेर स्तवन समाप्तं ॥ ॥ अथ नेमराजुलसंबंधी पद ॥ ॥ रोग पंजाबीठेगो ॥ पीया कारण गढगीरनार चली । रापी राजमति व्रतचित धरी ॥ पी ॥ १ ॥ अधिक प्रीत रसरीत जानके । नेमपिया करसीरधरी ॥ २ ॥ तप जप संजम ध्यानानलसे । करम ईंधन परजाल चली ॥ पी ॥ ३ ॥ नेमराजुलकी प्रीत पुराणी ॥ अंतमे ज्योती ज्योतमीली ॥ पी ॥ ४ ॥ प्रह जगमते दंपती नामे । वीरविजय मन रंगरली ॥ पी ॥ ५ ॥ इति संपूर्णं ॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ श्रीमधीरविजयोपाध्याय कृत, ~ ~ ॥अथ नेम राजुलसंबंधी पद ॥ - मोरे मंदिरवा प्रजुजी न आये। नाये ऐसोजपति रथ फीराये ना हाथ मिलाये ॥ मो ॥श्रांकणी ॥ पशुवन प्रनु करुणा कीनी क्या तकसीर मेनुंडम दीनी ॥ मो॥ १॥नव नव केरी प्रीत जो तोमी । सोकनसीव वधुसें दिलजोरी ॥ मो ॥॥ राजुल राग केषको बोमी । संयम लेश करम बंध तोरी ॥ मो॥३॥ मनमान्यो मोद सुख पाई। वीरविजय कहे धन्य कमाई ॥ मो ॥४॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ नेमराजुल पद ॥ मालकोश ॥ मेनुं बमके गिरनारी गये मेरे सांही। में जुली नहीं जब पकडती दोबांही । मे ॥ १॥ थादिलों में दगा तब क्युं कीनी सगाई। माबिक मेने Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ ~ कीनी क्या ऐसी बुराई ॥ मे ॥३॥ फूही हैं बुरी है उनियांकी सगाई । वैराग्यलियो है गिरनारी जाइ ॥ मे ॥३॥ वमा तप करके मोक्ष पदपा। कहे वीर विजय धन्य उनकी कमाई ॥ मे ॥४॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ अथ वैराग्य पद ॥ राग सारंग । घट जागी ज्ञान वैराग्यरी । तुम बंमो माया जालरी ॥ घट । ॥ आंकणी ॥ एक सहस्त्र अंते जर जाके रूप रूपके आगरी। मिथिला राज्य बोडके निकसे । राज झषी नमि रायरी॥घ । -॥१॥ रूपकी संपद सुरपति बरनी। चक्रि सनतकुमाररी। छिनमे रोगजये निज तनमे । देखो कर्मकथा बरी॥ घ॥ ॥॥ देखत देखत सवही विनसत । तनधन अथिर खनावरी । ऐसी नावना Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ श्रीमदिर विजयोपाध्याय कृत, जावतही मन । बोम लियो वैराग्यरी ॥ घ ॥ ॥३॥ सचा त्याग किये बिन कबहु | पावत नहीं जवपाररी । परपरणितीत्यागो चेतन | वीर वचन चित्त धाररी ॥ घ ॥ ४ ॥ इति समाप्तं ॥ ॥ अथ सुनिगुण सझाय ॥ हां देखो मुनिवर ममता मारी जये पंच महाव्रत धारीरे ॥ हां ॥ देखो ॥ श्रकणी ॥ हिंसा जुठ चोरी ने वारी । ब्रह्मचर्य व्रत धारीरे । बाह्याभ्यंतर ग्रंथी निवारी । जोग तरसना बारीरे ॥ हांदे ॥१॥ तपशोषित तनु कृशधारी । जगजन आ-नंद कारीरे । पूजक नंदक दो शम कारी । जजते जय विहारीरे ॥ हांदे ॥ २ ॥ राग द्वेषकी परणिती वारी । परिसह फोजकुं डारी | गुण गुण स्थानक धारी । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAMAN पदो. १७ ध्यानारूढ नयवारीरे ॥ हांदे ॥३॥ शोक संतापको घर निवारी । एकमगनता धारीरे । बिनमे निज श्रातमको तारी। नजते नवदधी पारीरे ॥ हांदे ॥४॥ऐसे सुनिवर देव्रतधारी। श्रातम आनंद कारीरे । वीर विजय कहे हुं वलहार। नमुं नमुं सोसो वारीरे ॥ हांदे॥५॥ इति समाप्तं ॥ ॥ गुरुदेवकी सद्याय ॥ रेखता ॥ विजे श्रानंद सूरि राया। पुरवले पुन्यसें पाया। चतुरविध संघमें धोरी। गुरुजीसें वंदना मोरी ॥१॥ गुणपत्रिंशके धरता । अहो उपगारके करता। धरसकी टेकहे नारी। गुरु है बाल ब्रह्मचारी ॥ वि ॥२॥ गुरुजी ज्ञानके धरता । कुमतके मानको हरता । देखके वादी सव मरता ॥ न सनमुख पेरको Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, धरता ॥३॥ शीतलता चंद्रमा जैसी मेरु सम धीरता ऐसी ॥ सायर गंजीर नहीं ऐसा ॥ गुरु गंजीर है जैसा ॥४॥ कंचन और काच सम माने ॥ नारीको नागणी जाने॥अंतरगत मोह सबबारी॥ गुरु उदासीनता धारी ॥५॥ ऐसे गुरुराज जी केरा ॥ चरणमें चितहे मेरा ॥ सेवक कहे वीर कर जोडी ॥ लंघावो पार मुज बेमी ॥ विजे ॥६॥ इति समाप्ता॥ ॥ अथ करमविपाक सफाय ॥ अमल बंद ॥ श्री गुरुविजयानंद चंवंदन करी ॥ सुनो करमकी बात कहु गुरुसें लही ॥ सब कुःख देवनहार करम मुष्कृत तजो ॥ शाशनके सिरदार श्री वीर चरण नजो ॥१॥ तीर्थंकरबल चक्री हरी नृप जे थया ॥ कर्मतणे वस Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ए सजाय. तेह सवी संकट लीया ॥ श्रादीसर अरिहंत संत अनंत बली ॥ एक वरसविन आहार मुख तरिषा सही ॥ श् # विप्र घरे अवतार वीर विनूने लीया ॥ करम न बोने लिगार पुरवजो मद कीया चक्री सनतकुमार रोग बहुला लही । करमतणी गत जाय कहो ते किम कही || ३ || लक्ष्मण राजन रामचंद्र सीता सती । वार वरस वनवास पुष्ट करमगती । द्वारावती जयी दाहसें कृम जादवपति । लंकाचष्ट लंकेश करमगत नहीं मिटी ॥ ४ ॥ पांकुराय के पुत्र पंच पांव - ला | हारी डुपदी नार प्रगट खेडी जुवा । बार वरस वनवास दास पणे ते रही । करम न करशो कोई बात प्रभुने कही ॥ ५ ॥ सती सुभद्रा नारदूजी अंजना सती । करम तणे परजाव कलंक चडो अति ॥ चारों चौटाविच Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. श्रीवीरविजयोपाध्याय कृत, बिकी चंदनासती ॥ करम विना कहो कौन करे ऐसी गती ॥६॥ राजा हरिचंद निचघरे नोकरी करे ॥ राणी सुतारानिच घरे पानीनरे ॥ सतवादी सीरदारदोनुने दुःख लडें ॥ करम मरम सब जाण जो सिहांते कडं ॥७॥ ऐसें करम विपाक देखी नवसें मरो। मुखके देवनहार करम कोईना करो । ए उपदेस है लेश नबी जो चितधरे । वीरविजय कहे तेह लवी नवजल तरे ॥ ७॥ संवत् उँगलिसे साल तेवंजामन रली। श्रा सो शुदिकी त्रिज तिथी नयी निरमली । नगर स्यापुर विच चौमासुं रही करी। करम कथा कही एह सुनो सवदिलधरी इति कर्मोपरि सजाय ॥ समाप्तं ॥ ॥ अथ त्याग सकाय॥ तुम बोमो जगतके यारा श्नसें नहीं Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सजाय. १९१ होनिस्तारा ॥ आंकणी ॥ धन कण कंचनकीकोडी । सवरिद्धी जगतकी जोमी । गये बडे बडे सब बोमी । सुत मांत तात अरु जात जगतके ठाठ अंतमें न्यारा ॥श्न ॥१॥ ए दुनियां मुखकी खानी। जिहांराग षदे पानी । ए महावीर की वानी । हेखुरक खादकाखाद नहीं थाबाद वडा मुख नारा ॥श्न ॥२॥ बममोह पास गलेडारा । प्रनु नाम पकमले प्यारा । करले गुरु ज्ञान विचारा । एसो बातनकी बात रहेगी लाज सवी सुख सारा ॥श्न ॥३॥ वैराग्यकी बातां दाखी विषयोंमें म करो फांखी। कदेवीर विजयमें शाखी है सब कुखोंका मूल नहीं अनुकूल बडो मेरे प्यारा ॥श्न ॥४॥ इति । सजाय । समातं ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १एर श्रीमपिरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ नेमराजुख सफाय ॥ तूं बडदे खामी सीव शोकनको संग ॥ श्रांकणी ॥ बहोत बरातसें व्याहन आये। ते अब क्यु पावत नंगरे ॥ तुं॥ १॥ सती व्रत धारीमें बाल कुमारी ते करले मुजसु रंगरे ॥ तुं ॥२॥ शीवरमणीकी कुमी हे करणी । ते परणी सिक अनंतरे ॥ तुं ॥३॥ कामणगारी मुख देन हारी। ते करती रंगमें नंगरे ॥ तुं ॥४॥ मोमन मतियां तोहमरी क्या गतियां बतियां होत हे नंगरे ॥ तुं ॥५॥ विनती न धारी चली गिरनारी राजुल नेमी संगरे ॥ तुं ॥ ६॥ वीरविजय कहे नेम ने राजुल। पाये सुख अनंगरे ॥तुं॥ इति समाप्ता ॥ ॥ अथ गुदली॥ सेवो नवियण जिन त्रेवीसमोरे॥ए देशी गुरु मारा गाम नगर पुर विचरंतारे। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १३ बहु शिष्य ने परिवार । ज्ञान अद्भुत जले करी सींचतारे | हिंसता जत्रिक कमल संघाता । हुं बलहारी ए गुरुराजनीरे ॥ कखी ॥ १ ॥ अवसर क्षेत्र फरसना करीरे । पालीताणा नगर मोजार । सिद्धक्षेत्र सिद्धाचल नेटवारे । आव्या श्रतमराम अणगार ॥ हुं ॥ २ ॥ पंच समति तिन गुप्ति बिराजतारे । धरता धरमतणुं एक ध्यान । हरता मोह दशा महा फंदनेरे । करता ज्ञान ध्यान एक तान ॥ हुं ॥ ३ ॥ पंचम काल मे कुगुरु सोहलारे । दोहला सुगुरु तथा देदार | पामी जव्य जीव तुमे सांजलोरे । जगवती सूत्रतणो अधिकार ॥ हुं ॥ ४ ॥ चातकने मन जलधर चाहनारे । कामनीने मन कंथनी चाह । तेम मारा गुरुजीनी वाणी उपरेरे । श्रोता जननी प्रिती अथाह ॥ हुं ॥ ५ ॥ गुणवती सही यर सब टोले मलीरे । आवती गुरुजी ने १७ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ए४ श्रीमदीरविजयोपाध्याय कृत, ~ दरबार । चउगती चूरण साथियो पुरतारे । गावता गुंहली गीत रसाल ॥ हुँ ॥६॥ गुरुजीना चरणकमलनी उपरेरे। नमरपरे मुनिगणनो वृंद । लेता सद्गुण रुमी वासनारे । देता वीरविजयने आणंद ॥ हुँ ॥ ७॥ इति समाता॥ ॥ अथ गुदली॥ सुनोरे सखी एक वीनतीरे । आज आनंद अपार चालो वंदन चलिये ॥ श्रांकणी॥गाम नगर पुर विचरंतारे। बहु शिष्यने परिवार ॥ चा ॥१॥ अनुक्रम आवी बिराजीयारे । राजनगर केमोकार ॥ च ॥ आतमराम आनंद विजेजी । अनुपम नाम रसाल ॥ च ॥॥ पठन करावता -शिष्यनेरे । ज्ञान ध्यान एकतान ॥ चा॥ ज्ञान क्रिया करी शोजतारे। ए गुरु गुण मणीमाल ॥ चा ॥३॥ मधुरी दिये गुरु देशनारे । नव नय जं Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १एए ww जणदार ॥ चा ॥ सुणतां समकित उपजेरे । मिथ्या तिमिर विनाश ॥ चा ॥४॥ संघ सकल श्राग्रह करी रे। विनती करे मनोहार ॥ चा ॥ नव्य जिव प्रतिबोधवारे । गुरुजी करे चौमास ॥च ॥५॥ संघ सकल हवे आदरेरे । जिन नक्की बहुमान ॥ चा ॥ नवनवी पूजा प्रनावनारे अहाई महोबवहा॥चा ॥६॥ समकीत नीरमलजेथीरे । तेह तणा बहुमान ॥ चा ॥ उबव रंग वधामणारे। वा ने जय जयकार ॥७॥सहीयर सवी टोले मलीरे ॥श्रावे गुरु दरबार ॥ चा ॥ चहुँ गती चुरण साथीयोरे। करती गुरुने पाय ॥ चा ॥७॥ गुणवती गावे घौवलीरे नाव नलेजदार ॥चा॥राजनग हारे। श्रानंद मंगल काठ॥चा ॥ए । उत्तम गुरु गुण गावंतारे । नांगे नवनी पास ॥ च ॥ वीर विजय मुनि दुई रहारे । 5 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ श्रीमद्दीरविजयोपाध्यायकृत, श्रातम लक्ष्मी के दास ॥ चा ॥ १० ॥ इती गुहली समाप्ता ॥ ॥ अथ गुरु गुण गुंदली ॥ जिला ऊरमर वरसे मेह जिंजे मारी सुंदकली ॥ एदेशी ॥ सखी अंतरगतनी वात सुण सोजागीरे । गुरु गुणगावाने आज मुनेरढ लागीरे ॥ कणी ॥ धन गुरु दाता ने धन गुरुदेवा । विजय आनंदसूरि रायरे । धन तेढ़ना परिवारनेरे कांई । लली लली लागुं पाय गुरु उपगारीरे । देश शुद्ध धरम उपदेशडुनियां तारिरे | सखी ॥ १ ॥ पंचमहाव्रतलदी करिरे । पामी गुरु आदेसरे । पंजाबदेशपावन कीयो गुरु । पुरी मननीटेक पुरण प्रीतेंरे । कीयो ढुंढकनो उबेद यागमरीतेरे ॥ सखी ॥ २ ॥ मरुधर मालव देश मांरे । मुनि मंगलनी साथरे । मधुरी वाणीये गाजतारे कांइ । करता बहु उप QUE Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १ए गार आतम हेतेरे। गुरु षट् कायक प्रति पाल संजम लेखेरे ॥ सखी ॥३॥ शानि गुरुजीना ज्ञानथीरे।गुण पर मतमें थायरे । राणीजीना राजथीरे कां पुस्तक नेटणुं श्राय गुरुने संगेरे । थयो महीमा धरमनो जेह चमते रंगेरे॥ स० ॥४॥ गुणवाल। गुजरातमारे। ग्राम नगर पुरजेहरे। गुरुजी हमारे गुण बहु कीधो। दीधो धरम उपदेश सांजली बुकारे के नव्य जीवनाथोक संजम लीधारे ॥ स ॥५॥ सशुरु सिका चलजी नेटी । जनमनोलाहोलीधरे। संघचतुरविध मली करीरे सूरि पदवी दीध गुरुजीने रंगेरे । उँगणिसें बेतालीस अधिक उमंगेरे ॥ स०॥६॥ एम अनेक गुण गुरुजीकेरा कहेतां नावे पाररे । पंचमे शारे परगट करता गुरुजी बह जपगार एदनेसेवोरे। ए गुरुजीनो संयोग मोदनो मेवोरे ॥ सा ॥ ७॥ दरजावतीमें रही चौमासुंउंगणिसे तालीसरे । वीरविजय Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, कहे सेविये रे काई । ए गुरु विसवा वीसमनने नावेंरे । कांई ए संसारर्नु उख फेरनहीं आवेरे ॥त॥ ७॥इति समाता ॥ ॥ अथ गुंहली॥ लघुवय जोग लीयोरे ॥ ए देशी॥ विजयानंदसूरिरायनारे । केतां करे वखाण गुरुजीये ज्ञान दियोरे। नव्य जीवप्रतिबोधवारे । मान उग्योनाण अघतम पूर कीयोरे ॥ गु॥१॥ पंचमहाव्रत पालतारे मालता निजगुण मांहि ॥7॥ परपदारथजालमारे गुरुजी पेसतानाहि ॥ २ ॥२॥ श्रध्यातमरसजीलतारे पीलतपापकरंग ॥ गु ॥ श्रनुजवज्ञानथी जाणा तारे मोह दशामहाफंद ॥7॥३॥अशुन योग निवारतारे करता करम निकंदाय॥ खपर सताजावतारे। चैतन्य जमनो संग ॥ गु॥४॥ वस्तुखजाव निहालतारे । एक अनेकनो रंग । नित्यानित्य विचा Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. १ एए रता रे । भेदाभेदनो जंग ॥ गु ॥ ५ ॥ तत्वातत्वने खोजतारे । खेंचता निज सुखचंग ॥ गु ॥ ज्ञान क्रियारस जिलतारे । मनमे धरिय उमंग ॥ गु ॥ ६ ॥ करी उपगार भूमंगलेरे । लीधो लाज अनंग ॥ गु ॥ त्र्यापतस्या पर तारिनेरे । स्वर्गिय - या सुख कंद ॥ गु ॥ ७ ॥ पुन्यसंयोगे पामीये रे । एहवा गुरुनो संग ॥ गु ॥ वीरविजय कहे गुरु तणोरे । रहे जो अविचल रंग ॥ गु ॥ ८ ॥ इति समाप्ता ॥ अथ गुदली ॥ कंगना खुलदानही महाराय ॥ एचाली ॥ विजयानंदसूरि महाराय | जिनके नामसें मंगल थाय । वि ॥ श्रकणी ॥ समता सागरके विसरामी । कंचनकामनिके नहीं कामी । नामी सब पुनियांमे थाय ॥ वि ॥ १ ॥ संजम मारगमे वहुरागी । बोमपरिग्रह जये वैरागी ॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमछीविजयोपाध्याय कृत, त्यागी जगमें नाम धराय ॥ वि ॥२॥ सब कुपंथ त्याग करदीया । अपना जनम सफल करलीया । पूजो ऐसें गुरुके पाय ॥ वि ॥३॥ सत उपदेशही सवको दीया । सत मारगसो थापन कीया। ऐसे जग उपगारी थाय ॥ वि ॥४॥ चलो सरवी दरिशनको जावें । देख वदन आनंद नर पावें ऐसे नहीं कोई राणे राय ॥ वि ॥५॥ सखियां मिल आनंद नरपूरें । गुरुचरणोमें गुहली पुरे।आनंदवीर विजयको थाय ॥ वि ॥६॥ इति समाता ॥ अथ श्री गौतम स्वामीकी गुदली। प्रथमजिनेश्वर मरुदेवी नंदा॥ एदेशी॥ गौतम स्वामी शीवसुख कामी । गुण गाजंसीर नामीरे ॥ गुरु.गौतमस्वामी ॥ ए श्रांकणी॥जीव सत्ताका संशय पमिया । वीरचरण जई अमियारे ॥ गु ॥१॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. २०१ हुवागणधारी शंका निवारी । प्रजुजीये त्रिपदी श्रालीरे ॥ गुरु ॥२॥ चौद पूरवकी रचना कीनी । जगजश कीरती लीनीरे ॥7॥३॥ लब्धिबलिया श्रष्टापदच मिया । वीरवचन रसन्नरियारे॥॥॥ गुरुजी जात्रा करके वलिया। पन्नरसें तापस मलियारे ॥ गु॥५॥संजम लेवाविनती कानी ।गुरुजीयें दिदादिनार॥गु॥६॥ वीर प्रजुका दरिशण चलिया । केवल लदमी वरियारे॥7॥७॥ एम अनेक शिष्यकुं तारी।ए गुरुकी बलहारी॥3॥॥ सखियां सघली गुहली गावे।गौतम खामीकी नावें रे॥7॥ए॥ वीर प्रजुका राग निवारी श्रातम एकता धारीरे॥ गु॥१॥ केवल पा मोदपद पाया। पृथवीमाताका जायारे ॥7॥१९॥ ओगणीसें समसहसंवत् पाया । दीवाली दिन आयारे ॥ गु॥१॥ वीरविजय गौतम गुण गाया। बीकानेर जब आयारे ॥गु ॥१३॥ इति समाप्ता ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ श्रीमद्दीरविजयोपाध्याय कृत, ॥ अथ अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तवन ॥ मतिविसरोपाश जिनेश्वरकुं मतिविसरो । मतिविसरो अंतरिक्षपारशकुं ॥ मति ॥ श्रकणी ॥ अश्वसेनवामाजीकेनंदा | चरणसेवेचौसठइंदा ॥ मति ॥ १ ॥ श्रासनधारे अधर जिणंदा । पंचमकालमे - सुखकंदा ॥ मति ॥ २ ॥ सोदेअंतरिक्षपाश जिणंदा | ज्युंगगने सुरजचंदा ॥ मति ॥ ३ ॥ चमतकार चौदिशमेंचंका | आशपूरणसुरतरुकंदा ॥ मति ॥ ४ ॥ ज्यु - कमला दिलमेंगोविंदा | ज्युंचकोरमनमेंचंदा ॥ मति ॥ ५ ॥ त्युंमुजमन में पाश जिगंदा । नित्यरहोहरोडुखदंदा ॥ मति ॥ ॥ ६ ॥ जाग्यहीनप्रमें मतिमंदा । नजरकरोजिनवरदा ॥ मति ॥ ७ ॥ रतनपुरीमालवमे सोहंदा | शेवकुंगरसीगुणकंदा ॥ मति ॥ ८ ॥ संघनिकालाष आनंदा । पुन्यवान्परगटबंदा ॥ मति ॥ · Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. २०३ वर्षे आनंदा | ॥ ए॥ उंगणिसें माघकृष्ण द्वितीयानंदा ॥ मति ॥ १० ॥ वीर विजयक हे पाश जिणंदा | जेटीजयापरमाणंदा ॥ मति ॥ ११ ॥ इतिसमाप्तं ॥ ॥ अथ अजित जिनस्तवन ॥ अखियांत फरही मेरी आजके । दरिशणदेवदीजे । खियांशांतकीजे ॥ १ ॥ श्रखिया विनदरिश जिनराजके । सुरकुरपानीवरसे । दरिशणखासतरसे ॥२॥ अखियां कालानंतेबादके । तुमबबी श्राजदेखे । सवजयेकाजलेखे ॥ ३ ॥ अखीयांसफलजयी मेरीयाज । अजीत जिनराज़नेटे । सबही पापमेटे ॥ ४ ॥ श्ररजीवीर विजय की एह | अजीत जिनराज लीजे । शीवपुरराजदीजे ॥ ५ ॥ इतिसंपूर्ण ॥ B Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत. अथ श्रीऊगमीयामंडन आदिजिनस्तवनम्म्॥ श्रीराग ॥ आदिजिनमूरतिनयनानंद ॥ आंकणी ॥ क्यातारीफकरुंप्रजुतुमरी। दरिशणदिवेपरमाणंद ॥ आण ॥ १॥ औरसबीदेवनकीबबी धागे । तुम बबी प्रजुजीसुखकोकंद ॥ आ॥२॥ सचित् आनंदरुप तुमारो । योगीश्वर सबध्यानकरंद ॥ श्राप ॥३॥ पारंगतप्रजुतुमगुगणवृंदको। त्रिजुवनमेंकोणपारलहंद ॥आण ॥४॥ शांतरसमयमूरतिन्नेटी। नविजननवसंसारतुरंत ॥ ॥ ५ ॥ जगमीयामंमनःखखंडन । काटोकठीणकरमफंद ॥ आ ॥६॥ वीरविजयकहेआदिजिनेश्वर । आपो प्रजुजी परमाणंद ॥ आप ॥७॥ इतिसमाप्तम्म् ॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तवनावली. ... २०५ अथ श्रीगंधार मंडन श्रीचिन्ता मणिपार्श्वजिनस्तवनम् ॥ मेरेतो चिन्तामणिप्रनुपाशजीका काम हैजी ॥ ए श्रांकणी ॥ जलधी किनारे नारा, नगर गंधार सारा; चिंतामणि पाश प्रजुका, उहां बमा धाम है जी. ॥ मे ॥१॥ मूरति प्रजुकी मीठी, ऐसी बवी नाही दीठी॥शान्तसुधारस केरा, मानु एक गम हैजी. ॥ मे ॥२॥ युषमकालमे स्वामी, दुःखकी है नाही खामी ॥ आनंद समाधि दीजे, मुजे बनी हाम हैजी ॥ मे ॥३॥ अखूट खजाना तेरा, थोमा बहोत करदो मेरा; दुःखी जनकुं देना वेतो, प्रजु तोरा काम हैजी ॥ मे० ॥४॥ बिरूद संजाल लीजे, मेरा तेरा नाही कीजे ॥ तरण तारण ऐसा, प्रनु तोरा नाम हैजी ॥ मे ॥ ५॥ वीर कहे सीरनामी, सुनो हो गंधार स्वामी ॥ १८ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ श्रीमघीरविजयोपाध्याय कृत, देना हो तो ज्ञान देदो, उजा नही काम है जी ॥ मे ॥६॥निधि रस निधीन्पुवर्षे, पोस मासे सीत पदे, चतुर्दशी दिन नेटे, एही धनीराम है ॥ मे ॥७॥ (श्रीसीनोर मंडन सुमति जिनस्तवनम्) सुखकारी, सुखकारी, सुखकारी, कृ. पानाथ हो जाऊंवारी, सुमति जिन सुमति सेवकनेदीजियेजी ॥ ए आंकणी. ॥ दरिसण देव दिजे, कुमतिकुंपूर कीजे; ॥ ए ही माणु बु हे दातारी. ॥ कृपा० ॥१॥ कुमतिने कामण कीया, मुजको नरमाई दीया ॥ इनसे बोमा दो हे सरदारी ॥ कृपा ॥२॥ पंचम अवतार लीया, मुनियाँकुं तार दीया ॥ आशा पुरा कहुँबु पोकारी ॥ कृपाण ॥३॥ निरादर नाही कीजे, बिरूद संजाल लीजे॥तरण तारण बो हे अधिकारी॥ कृपा ॥ ४ ॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ स्तवनावली. सीनोर मंगन नामी, सुमति जिनेश्वर स्वामी ॥ बेमी उतारो प्रजुजी हमारी. ॥ कृपा ॥ ५॥ निधि रस निधि चंदा, संवत् सुखकंदा ॥ वीरविजयकुं श्रानन्दकारी ।। कृपा० ॥६॥ ॥ (अथ गुदली लिख्यते)॥ सहीयर सुणियेरे, जगवती सूत्रनी वाणी. ए देशी. जवियण सुणजोरे, कल्पसूत्रनी वाणी ॥ मीठी लागेरे, वाणी अमीय समाणी. श्रांकणी ॥ कल्पसूत्रनी मोटी महीमा, वीर जिणंद बखाणे ॥ गौतमगणधर वीरवचनने, हृदय कमलमा धारे॥ नविन ॥ १ ॥ अरिहंत सम नहीं देव जगतमें, पदमे परमपद मोटुं॥ तीरथमें शत्रुजय जाणो, सूत्र में कल्प वखाणोनिविण ॥२॥ देवगणोमें इंज मोटा, तारागणमें चं ॥ न्याय नीतिमें राम वखाणो Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत, काम स्वरूपमें जाणो ॥ नविण ॥३॥ रूपवतीमें रुभिरंजा, वाजिनमें जेम जंजा; गजवरमें ऐरावण कहिये, युद्धमें रावण लहिये. ॥ नवि० ॥४॥ बाणावलीमें अर्जुन बलियो, गुणमे विनय ज्यु नणियो; । मंत्रमांहिनवकारज जाणो, बुझिमें अजय गवाणो. ॥ नविण ॥५॥ सर्व वृक्षमें कल्पवृक्ष जेम, अधिक बमाई धारे ॥ सर्व सूत्रमें कल्पसूत्र तेम, पाप कलंक निवारे ॥ नवि०॥६॥ कल्पसूत्र जे नणशे गणशे, तिसत्तवार सांजलशे॥ वीर कहे सांजलजो गौतम, ते जवसायर तरशे ॥ नविन ॥७॥ निधि रस निधि इंड वत्सरमें,, रही सीनोर चौमासु ॥ वीरविजय कहे वीरप्रजुकी, वाणीमें नहीं काचुं ॥ नवि० ॥७॥ RECORDING समाप्त. Dance Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट पंक्ति १२ शुद्धिपत्र. शुद्धिपत्र. अशुप गह्यो तिमिर मोह कपाय क यात धीया मंग यारा त्रिनवन तजत चरणां वाणी जिनसेव्यो मान धर शुष्प ग्रह्यो मोहतिमिर कपायके अति दीया मन प्यारा त्रिभुवन १५ तजे १ए चरणा वाणी जिनसेव्यां शान धरी चूरणि तणा १५ तने मोख मेगणा अपेद फस्यो मोहि मोद मेंगणा अखेद १० फस्यो मोहे Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र. NNNNN बिरुद गिणंदा नत M Omwwmaa aaam बिरद गणंदा तन ज्ञानराज माडीये उतारो तेतो जानत अरे अस्थ उसय वस्त मुखगी चूर्ण राज ज्ञान मांमीये उतार ततो जानन अर अर्थ Banmom. arremmanumaam (Mmmm उन्जय वस्तु दुःखजंगी चूर्णि धुनि अज्ञानारे . धनि खय अग्यानारे स्वय माख आग्या खमा माझा मन ज्ञान कदिएक रेणुमेरे ज्ञात जग ग्यान कदियक रेणुमेरे ग्यात लग १५ १४ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र. ہ ہ س नेन س س ع م ، مر DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD on tarw.zaina u mesmärtäna on aren Edeoamesmamaena जकोर ऊकोर अग्याना अज्ञाना नैन तुम तम कलमल कमल पुं ट्यु जीग हग ग्यात झात कुमत कुमति परजंगवक परजंकवंक सिजपा सिज्या रचे रचो चिनो लीनो अजरा স্বল্প मुख मूढ मुलजयत्नयो मूल बीन जये तरुणा तरुण विप विषय हिनो खीनो चकोरे चकोर जीव जिन लोक लोह जसजस नापा जस जाण Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ & in शुद्धिपत्र. PAAN ए७ ए ច यार एए. १००० १०० २०१ १०१ तुनायो ". १ तारो मारो १३ ग्यान झान १४ ग्यान ज्ञान १७ मवअनादिकेरो, मोह अनादिकेरो अग्यान अज्ञान अग्यानकी अज्ञानकी १४ पार सुहीसा सुहासा लुनायो तुलाता तुलाना कल्पनाना कटपना नाना आसोनंदरस श्रानंदरस इंजय इंघिय उर्नय पुर्नय ग्यान ज्ञान षटपद खटपद शीष शीख १५ पुरषकुं पुरुषकुं दयो दियो अम एम पटणीरा पटराणी सुलटें चैवीश चौवीश सुख of DruFEDDD سه २० १००० १०ए ११३' ११४ ११५ م س १११, م س १३' शुलटें م १३ १३० ي 'सुरथ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्र. 135 135 135 १३ए 155 144 150 151 152 154 156 157 एयले काढो वीरजय कहो त्रलुवन जानो आयां परवा नूत 157 witten in it = e msti s ki nae camsanMEMGEEMAMuccammec एटले काढ्यो वीरविजय कह्यौं त्रिजुवन जान्यो आया परचा नूतन आसु चाखी दुढत करमक्ष्यसें जात्रातणो मुनिसुव्रत देखी सोमवारे परिवारेजी स्यारपुर संघात प्रिती चुंदमली पीलता जागता . सखी १एए 164 175 101 171 चारवी ढुंमत करक्यसें जाशतणो मुनिसुवृत देवी सोमवारेजी परिवार स्यापुर संघाता प्रती सुंदमली पीलत जाणा सरवी 1 १ए 193 MY १ए३ 156 १ए १एन 300