Book Title: Bruhad Dharana Yantra
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
Catalog link: https://jainqq.org/explore/008459/1
JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
SHRI CHARITRAVIJAYJI MEMORIAL BOOK SERIES.
Vol. No. 19, to the total de to t komedie troeteldier blinkeinot
::
tet:eistietoturtittet er det
SHREE BRIHAD DHARNA YANTRA.
Laut: 20:00
21
.10.20&
rIkirt:
dedicated to the stateme
fixtures 13:1-ttx
nte
BY
xtet
MUNI SHRI DARSHANVIJAYAJI.
erityiste
KIYIMIYYTYYKIYTYYYY.
MYYTYTYTY
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
Published by MAFATLAL MANEKCHAND.
Hony. Secretary.
S. C. M. B. S. Viramgam.
Printed by A.S. PATEL
at The Bombay Fine Art Printing Works,
56-1, Canning Street,
CALCUTTA.
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री चारित्र स्मारक ग्रंथमाला पु० नं० १६
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
संपादक मुनि ज्ञानविजय।
प्रकाशक श्री चारित्र स्मारक ग्रंथमाला।
मु• वीरमगाम (गुजरात)
मूल्यं ८ भाणकाः
वीरनिर्वाणाब्द २८५७ विक्रमाब्द १९८७
कमलधारित्राब्द १३ यिष्वब्द १६३१
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
किंचिद्वक्तव्यं
नमः श्रीयशोविजयवाचकपादेभ्यः
इह हि जयतिजैनशासनं व्याकरण न्याय साहित्येतिहास ज्योतिष्क यंत्र तत्व प्रमुख विषयाकी ग्रन्थैरर्हद्वदनप्रभवैरागमैश्च । मतत्रास्ति काचिदपि ग्रंथक्षतिः । तथापि जिनशासन गौरवाय ज्ञानाभिवृद्धये “शुभे यथाशक्ति यतनीयमिति” कृत्वा, श्रीसंघचरणेषु समुपदी क्रियते, धारणागतिदेशकोयमपि एकोग्रंथः ॥
ननु क्वचित् काचित् काली सरस्वती - सूरिशेखर श्रीमुनिसुंदर सूरिपाद प्रमुखाचाये विरचिता परस्परविरुध्धा गहना तिक्षणधीगम्या पंच-पट्पत्रमया धारणागतिःप्राप्यते । न तया निश्चयाऽऽत्मकं झटीति ज्ञानं भवति " यदस्मिन्ग्रामेण वाऽनेनाचार्येणायं जिनः प्रतिष्ठाप्य इति" ।
ततोद्यावधि धारणागतिद्वष्टारोपि पश्यन्ति तत् राशिकूटेन विशोपकेन धर्मेण वा । तदपिमहताऽऽयासेनाधिककालक्षेपेन ॥
एवमेतत्सवं प्रयत्नसाध्यं विचिन्त्य तेषामेवसूरिपूगवानां वचनानुसारेण गुरुकृपया मुग्धबोधकरः सरलो स-यंत्रो बृहध्धारणा' थस्समर्थितो ममगुरु भ्रात्रा मुनिदर्शन विजयेन ||
ग्र'थेस्मिन्किं किमस्ति तत्तु थादेवावलोकनीयं विद्वद्भिः ॥
अन सर्वोलोकः सुखं धारणागतिमवाप्य स्वाभीष्टपूरकं जिनं स्थापयिष्यति । वांछितंचप्राप्स्यति । तदेवमुक्तंप्रथेपि पृष्ट ६१ ग्रंथात् ज्ञानं विधिवदः, प्रतिष्ठासुदर्शनम् ॥
भावश्चरणं मेज, क्रमशेो भवतु नृणाम् ॥ ११७ ॥
इति
अयं गुर्जरत्रायां (गुजरात) वीरमग्रामे श्रीचारित्रस्मारकथं थमालया स्वयंधक्रमेण मुद्रित एकोनविशतितमो १६ ग्रंथश्विरं नंदतात् । वितनोतु च शाश्वतं कल्याणं ॥
महावीर निर्वाणतो २४५७
तमेवर्षे श्रावणशुक्ल प्रतिपदि शुक्रवारे
बंग देशस्थ महानगरी
कलकत्तातः
इति निवेदयति,
श्रीयशोविजय जैन गुरुकुल संस्थापकार्य श्रीचारित्रविजय चंचरीको मुनि - ज्ञानविजयः
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
अंजलिः
------------
श्रीसिद्धासलतीर्थराज तिलके, श्रीपादलीप्ते पुरे, विश्वोगकृतिकं यशोविजयजी नामांकितं येन सत् , श्रीमदतानविपर्धनं गुरुकुलं, जैनं वरं स्थापितम् , स श्रीसंयनांगको विजयतां, चारित्रराजेश्वरः ।
तेषाम् श्री सिद्धक्षेत्र यशोविजय जैन गुरुकुल
संस्थापकानां मुनिपुंगवानां ___ शासनोद्धारसेवाहवाकीनां
मम
दर्शन-शान-चारित्र जीवन दातृणां
| আলম গন্ধৰিকা श्रीमद चारित्रविजय गुरुपादानां
चरण सरोजेषु श्रीबृहद्धारणायंत्र-पुष्पाणि
सोम सादरं समर्पयामि स्याहाः इति
= शिष्य लेशो
दर्शन विजयः
श्री
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
बृहध्धारणायंत्र प्र० ५ देखनेकी रीतियाँ |
000
अमुक गांव व आचार्य व गृहस्थको कोन कोन तीर्थकर की प्रतिष्ठा करना चाहिये, सो अध्याय ५ ( पृष्ट २६ से ६० ) के कोठे से देखना ।
( पूजा )
सो इसि
प्रकार ---
जिनके लीए देखना हुवे उसि का नांव के आदि अक्षरवाले पृष्ट को देखना जिसमें साधकाक्षर लीखा है, नीचेमें २४ तीर्थ करके नांव लीख कर ८ कोठेमें तारा विगेरह का शुभाशुभ संकेत दिया है, इन्हिमें अशुभ तारा, योनिवैर-कुवेर वर्गवर देनेकाविशोषक, अशुभगण, गण-वेर, अशुभ राशि, शत्रु राशि, अशुभतर राशि, नाडीवेध और नाडीपादवेध अशुभ है । ओर स्वयोनि, मंत्रोयोनि, योनि, 'वर्ग लेने का विशोषक स्वगण, शुभ राशि, प्रीति, स्वराशि, श्रेष्ठ राशि, श्रेष्ठतर व 'नाडीवेध अत्यंत शुभ है । उन्हि उत्तम व मध्यम योगवाले तीर्थकरोकी प्रतिष्ठा करना चाहिये । इसि से जिन मूर्ति प्रभाववाली रहती है. देवो से अधिष्ठात होती है, चिरकाल तक पूजाती है । प्रतिष्ठापकको भी अनेक प्रकार के लाभ होते हैं ।
यद्यपि तोर्थंकरकी धारणामें ताराबल नहींवत् देखना ठीक है, किंतु गण राशि और नाडी को अवश्य देखना चाहिये, राशि की प्रतिकुलता हो अथवा नाडोवेध हो उन्हि की प्रतिष्ठा हरगोज नहीं करना । कारण ? तारा, योनि वर्ग. विश्वा, गण, राशि और नाडी का बल अधिक अधिक विशेष है । तो जिनका योग ज्यादा बलवान् हो उन्हि प्रतिमा को प्रतिष्ठा ( पूजा ) कराना शुभ है । जैसा कि पृष्ठ ३२ क महावीर, 'तारा, नाडी, वर्ग वैर (अशुभ), २ विशोषक लेना, 'देना, मध्यम गण. श्रेष्ठतर राशि, ओ 'वेध । इसिसे कलकत्ता+महावीर शुभ है।
इस मुताबिक प्रत्येक कोठे का विचार करके जिन मूर्तिकी अनुकुलता का निर्णय करना ।
पृष्ठ के नीचे लीखी हुई बाते दिक्षा -- शादी में उपयोगी है, किंतु जिन प्रतिमा का देखने में उपयोगी नहीं है । इति शांतिः ।
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
बृहद्घारणायंत्र-अ० ५, समजवानी रीति
-
-०००
अमुक गाम ( संघ) स्थापक सूरि अथवा श्रावकने प्रतिष्ठा माटे ( पूजा माटे) क्या तीर्थ कर अनुकुळ छे ते पृ० २६ थी ६० ना कोष्टकथी तपासवू। ते आ प्रमाणे___ जेना माटे जोवू होय तेना नामनो आदिनो अक्षरलइ ते अक्षर वाळ पार्नु जोवू, तेमा उपर साधकाक्षर लखेल छे अने नोचे २४ तीर्थ करना नामो आपी तारा-योनि विगेरे ८ खानामां शुभ अशुभना संकेतो करेल छे, जे पैकीना अशुभतारा योनिवैर-कुवेर वर्गवैर देणानाविश्वा अशुभगण गणवैर अशुभराशि शत्रुराशि अशुभतर राशि नाहीवेध तथा नाडी पादवेध अशुभ छे समानविश्वा मध्यमगण मध्यगराशि तथा राशि भेदथो थयेल भवेध मध्यम छे अने स्वायोनि, मैत्रो योनि, योनि, वर्ग, लेणाविश्वा स्वगण शुभराशि प्रीति स्वराशि श्रेष्ठराशि श्रेष्ठतर तथा वेध विनानो नाडी ए अत्यंत शुभ छ । प्रतिष्ठामा अशुभ तीर्थ करो बज्य छे मध्यम संकेतबाळा मध्यम छे अने अत्यंत शुभ तोथ करो सर्वथा अनुकुळ छे तो उत्तम अने मध्यम योगवाळा तीर्थ करोनो प्रतिष्ठा करवी जेथी जिन प्रतिमा प्रभावशाळी बने छे देवाधिष्ठीत रहे छे चिरकाळ पूजाय छे अने प्रतिष्ठापकने पण अनेकविध लाभ थाय छ।
अहीं याद राखg के मोटे भागे तीर्थंकरो माटे ताराबळ जोवानी जरुर नथी एटले तारा बल कदावज जोवाय छे ज्यारे गण राशि अने नाडी तो अवश्य जोवाज जोइए। राशिनी प्रतिकुलता अथवा नाडी वेध होयतो प्रतिष्ठापके ते तीर्थ करनी प्रतिष्ठा कोइ रोते करवी नहीं केम के तारा–योनि-वर्ग-विश्वा---गणराशि अने नाडी ए पछोपछीना योगो वधारे वधारे बळवान छ । जे प्रतिमाना योगो वधारे बलवान होय ते प्रतिमानी प्रतिष्ठा करावधी शुभ छ। ___आरोते ट्रेक बाबतनो विचार करीने तीर्थ करनी अनुकुळतानो निर्णय करवो । * पानानी नीचे लखेल बावतो दिक्षा-विवाह माटे उपयोगी छे पण तीर्थकर माटे उपयोगी नथी इति शांतिः ।
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमः ।
गण माडयः
अध्याय १, शशायाः
अध्याय ४, अउप्रोक विषयः पत्राणि विषयः
पत्रा। मंगलं--उद्देशादिः
१ | अकडम् -अउओकम् द्वारं
२ विन्यास ईक्षणं नक्षत्राक्षर-योनि-तारा
नाम जन्म भेदः
साध्यादि ४ बलं नक्षत्रादि-यंत्राः
अकडं अउओर साध्यादि यंत्राः २१ द्वादशार घेध यंत्रः युजि---गशि कूट-दूरताः
अध्याय ५. पूर राशियंत्राः ग्रहयंत्राः
७ मंगलं प्रश्नो न्यासः जातिवर्णों ग्रहबलं
१५३६ भंगा: बलं वर्ग विशोपकयंत्राः
१० जिन-वृद् यंत्राः बलं वर्गो विशोषकाः
१२ निमित्तबलम् ग्राम राशिः सरांत्रः
प्रशस्तिः काकीणी सयंत्रा
ग्रंथफलं इत्यादि बलाबलं
परिशिष्टाणि अध्याय २, लीथं कराः ।
१. विपरीक्षाप्रकरणम् ( प्रा० ) १२ जिन-नाम-चिन्ह-मानि
, (संस्कृतम् ) ६४ जिन नामादि यंत्रः
प्रतिमा पाषाण परीक्षा राशिः जिन नाम यंत्रः जिन—राशि-पाद-नाडी
२. सप्तदश मुद्राः गण-तारा–वेध----यंत्राः ३. दंडभोत्ति विचार जिन-राशिफ्ट यंत्राः
४. वचन संग्रह जिन विशोपक यंत्रः
, शल्य-प्रश्न-यंत्रः १०० कूट षटकं
५. स्थापनाकल्पः ( गद्यः) १.१ अध्याय ३, अक्षराः
(पद्यः । १०२ समुदो न्यासोक्षः
२३ ६ मणि परीक्षा सर्वाक्षर चूट यंत्रः
२३७ विशेष सूचन
१०३
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥श्रीसिद्धचक्राय नमः ।।
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
मंगलाचरणं :- श्रेयस्कर महावीर वंदेजगत्पितामह
ोक चक्षुः पूर्ण पूर्ण केवल धु ति भास्कर तवीमि भारती ब्राही जगद्विज्ञानमातरं तमं शानधातारं ईडे श्रोगणनायक मच्चारित्र विजयं गुरुकुल पितामह
णमामि त्रिशुध्याहं ज्ञानादि स्वात्म दायव पनाम :- प्रणम्येत्थं महत्पूज्यान गुरुम प्रसादतः
श्रीबृहद् धारणायंत्रं करोमि जिनभक्तित:
अध्याय १ उद्देशः:- साधकसाध्ययोप- पत्योम्थापक बियो:
शिष्यगुह्येश्च दंपत्योः सुसबंध: समीक्ष्यते जन्मक्षयो नामभयोः न जन्मभनामक्षयोः
नामायाक्षरयो र्जातो योगो योगेन शुध्यति नाम्निविशेषः :- देशे प्रामगृहस्वर व्यवहति चुनेषु दाने मनौ
सेवाकांकोणी वर्ग संगरपुनर्भूमेलके मामभं जन्म परतो बापुरुषयोर्जन्म मेकस्यपद पात शुबमितो विलोक्यवतयोमिक्षमोलकः ॥ ०१
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
द्वार :
भादयोनि तारागण नाडिवेधाः यूजिस्तु राशे युतिमध्यदूरौ
.
नामाणि:
अन्तरा::
वश्यंच वर्णः पतिजेक्यमै यो प्राया यो वर्ग विशोपकाश्व अश्विनी भरणी चैव कृतिका रोहिणी मृगः आर्दा पूनर्वसू पुष्य स्ततोऽश्लेषा ततो मघा ८ पूर्वा फाल्गुनी तस्माच्चै- वोसराफाल्गुनी कर: चित्रा स्वाति विशाखानु-- राधा ज्येष्ठा मूलं तथा पूर्वाषाढोत्तराषाढा ऽभिच्छवणं धनिष्ठिका शतं पूर्वोत्तराभानी रेवती भगण: स्मृतः अश्विनीचुचेवोलास्यात् लोलुलेलो भरण्यथ कृतिकास्याद् आइउप रोहिणी ओववियु च मृगाशिर्ष वेवोकाकि आद्रा कुघंङछ मता पूनर्वसू केकोहाही हु हे हो डा वपुष्यभं १२ अश्लेषाडिडुडेडोस्यात् ममिमुमे मघामवेत् भवेत् पु० फा० मोटटिटू उ• फा० टेटोपपि तथा १३ हस्तभंस्यात् पुषणंठं चित्रा पेपोररि भवेत् स्याति रुरेरोत प्रोक्तं तितुतेतो विशाखभं १४ अनुराधा ननिनुने ज्येष्ठा नोययियु भवेत् येयोभभि मूलमुक्तं पूर्वाषाढा भूधंफढं अन्याऽऽषाढा भेभोजाजि जुजेजोखा तथाभिजीत् श्रयणंखिखुखेखोस्यात् धनिष्ठास्याद् गगिगुगे शततारा गोससीसु भाद्र सेसोददि सकृत् अन्यभाद्र दुषंझथं देदोचचि वरेवती एकस्वरेदशग्राहा औदन्ता नही ऋलुको ज-शयो: क-क्षयोः रि-रोः ऐक्यं स्यात् हस्वदीर्घयोः १८
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
योनिः :
तारा :
गण::---
नाड़ो:--
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
अश्वगजौ मेषाही
आखुवाSSखुर्गा
मृगोमृगः श्वावानर सिंहो गौश्च गजश्व
हस्ति सिंह मश्वमहिषं गोव्याघ्र वाघो
स्वभात् तारा नव प्रोक्ताः तृतिया पंचमी त्याज्या
राशीपतिमैत्र्यामेकतारास्त्याज्या वरादिभ्यो
देवेऽश्विनी मृगंपुष्यं अनुराधाचश्रवणं
भरणी रोहिणी आद्रा
राक्षसेन्यानिभानि स्युः
स्वगणेप्रीतिश्चामर
देवराक्षसयोवर
सतिरा शिकु शस्ते
मनुष्यगणसाध्यम त्
कमोत्क्रमेण अश्विन्याः
सर्वस्मिन्नशुभं प्रोक्तं
रायादिशस्तभेदानां किंतु शिष्येगुरौषेधः
प्रभुःपण्यांगना मित्र
एकनागताभव्याः
सर्पः श्वा ओतुमेषमांजाराः महिषन्याम्रो महिषव्याघ्रौच १६
नकुलौ नकुलः कपिश्च सिंहाश्वौ नक्षत्राणांहियो निस्थानानि २०
श्वाहरिणं कपिमेष महिनकुलं वैरं केचिन्मतं पृथेति तत् २१
त्रिवारं जन्म नामतः
सप्तमी साधकात् खलु
नावश्ये शुभेषिताः नतुस्थापकबीबयोः
स्वातिभं च पुनर्वस्
हस्तरेवती स्याद् गणे
श्रीपूत्र:युत्तरा नरे
कृतिकादीनि वा नघ
नरोर्मध्यमा मता मनुष्यरक्षसोमृतिः
धोनी ग्रहमैत्र
साधक रक्षोनोषकृत्
विनायां गतभं द्वयो:
शुभंतु गुरुशिष्ययोः
नाडीयेघस्तुनाशकृस् निबलनाशक:
देशोप्रापूर गृह अभव्या वेधवर्जिताः
२२
२३
२४
શ્ય
२६
२७
२८
२६
३०
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
नक्षत्रयंत्रः
अंक
नक्षल ।
भक्षरः ।
योनिः योनिवरं तारा
गया:
नाही | पुजि
१
सर्प
पूर्वयोगी
श्वान
ло »
बिडाल
my ver, Ur
देव
NP
व्याघ्र
भधिनी चु चे चोक्षा भव | महिष २ | भरणी लि लु ले लो | हस्ति
सिंह . ३ | कृतिका | भइ उ ए ! भज
भजवानर रोहिणी श्रो वा वि वु
नकुल ५ । मृगशिर्ष वे वो क कि
नकुल | भाद्रा कु घ छ
हरिण पुनर्वसु के को ह हि
उंदिर पुष्य हु हे हो डा प्रज वानर अश्लेषा डि डु डे डो बिडाल उंदिर मधा म मि मु मे उंदिर बिडाल पू. फा.
मो ट टि टु उंदिर | बिडाल | उ. फा. टे टो प पि
व्यान पुष ण ठ महिष प्रश्व चिला पे पो र रि
करे रो ता महिष विशाखा ति तु ते तो व्याघ्र अनुराधा न नि नु ने हरिया স্বান जेष्ठा नो य यि यु । हरिया श्वान ये यो भ मि
हरिण पूर्वाषाढा मुघ कद वानर प्रज उ. प. मे भो ज जि
नकुन्न २२ । अभिजित् । जु जे जो खा
सर्प श्रवण खि खु खे खो । वानर मज धनिष्ठा ग गि गुगे
इस्ति शतभिषा
गो स सि सु अश्व पू. भा. से सो द दि सिंह हस्ति उ. भा, दु श भथ
व्यान २८ रेवती .
दे दो च चि: इस्ति सिंह
देव भाग मनुष्य मध्य
अंत्य मनुष्य अंत्य
मध्य मनुष्य पाय
प्राय
मध्य राक्षस अंत्य राक्षस अंत्य मनुष्य मध्य मनुष्य प्राध देव माद्य राक्षस मध्य देव अंत्य राक्षस अंत्य
मध्य राक्षस भाद्य राक्षस भाब मनुष्य मध्य मनुष्य अंत्य विद्याधर . देव राक्षस । मध्य राक्षस भाद्य मनुष्य प्राध मनुष्य । मध्य देव अंत्य
मध्यमयोगी
स्वाति
* and NMMCK Rana
श्वान
सर्प
पमिमयोगी
»
अंत्य
» » » Á •
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहदू धारणायंत्र।
गणमेलक यंत्रः
सापक
साध्यदेव
| र
देव मम पु पुनस्वा अरे मनुष्य भ रो मा पूर्वा०३ उत्तरा०३ राक्षस क ले म चि वि ज्ये मूध श
भतिप्रीति मध्यमप्रीति
साध्यमनुष्य साध्य राक्षस मध्यमप्रीति पतिप्रीति | मुत्यु (शुभ) मृत्यु अतिप्रीति
द्वादशारपाद वेधयंत्रः
अ ा
। ज्ये ।
AM
क
सो २
"_mar
पाय नाड़ी
| भA A4 PM
नधन
ory aa PM RA
में 444
मध्य नाड़ी
RAI
नजना
mam mi
हो१०
अंत्य नाही
42 " #
।
र
वि११
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र
एक नक्षत्रजातानां दंपत्योस्तुभवेद् हानिः दुष्टोन्येषु नाडीवेधो द्वादशनाडीचके तु
परेषांप्रीतिरुत्तमा राशिभेदे नदोषकत् राशिभेदे तुमध्यमः पादवेधोऽधमाऽधमः ३२ योग:प्रारमध्यपश्चिमश्चंद्रे घरैकनीभिद्विकैश्चप्रेमकर: ३३
युजि :
षड्वादशनवभानां लग्ने वाऽऽरेवतीनां
राशयः:
मेषो वृषभो मिथुनः वृश्चिको धनमकरौ
कर्कः सिंहश्च कन्यका तुला कुंभोः मीनश्च राशयो ज्ञेयाः ३४
राशिस्थापना:- अश्विनी मघा मूलेभ्यः
मेषसिंहधनाद्याः स्युः
प्रारभ्य राशयो क्रमात सपादद्विभयोः स्खलु
३५
अदाराः :
मेरे स्युः चुला वृषेश्यमता: युग्मेकघंङ छहा कर्कहीड हरौमटा कनिषुवै टोपाषणंठं मताः तौलौरात अलौनतोय धनुषःयेभाधर्फ मता भोजाखागमृगे घटेगुसद वै मीन मीन दिशाझथचा ३६
अंतरयुति राशिकूट: :-सर्वस्मात् द्विादशक नेष्टंच नमपंचम
षष्टमेविषमाद्राशे __ मृत्युःसमात्तथाष्टमे ३७ मकरसकेसरी मेष युगत्या तुलहरमीन कुलिर घटाद्याः धनवृषवृश्चिकमन्मथयोगे वैरकरच घडष्टकमेतत् (ना.) विसमाअट्ठमेपीई समाउ अमेरिऊ सतुछछपं नाम रासीहि परिवजणे. (दिनद्धि) शत्रुषडष्टके मृत्युः कलहो नवपंचमे द्विादशमेदारिद्य
शेषेषुप्रीतिरुसमा ३८
राशिदूरता :- दूरस्थाकनिराशिः
परतोनवमीपीष्टा
शुभाषराद्धनिकाच्चातिमायाः मातृपितृमृतेचबैकस्मिन् ३१
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
राशि यंत्रः
4. राशिः
पतिः ।
नक्षत्रपादाः
।
१ मेष भोम म४ भ४ कृ.१ चु चे चो ला लि लु ले लोभ २ वृषभ
कृ०३ मृ०४ मा०२ , इ उ ए भो व वि बु वे वो ३ | मिथुन बुध मृ०२ मा०४ पु०३ । क कि कु के को घ ङ छह
पु.१ पु०४ १०४ . हि हु हे हो ड डि डु डे डो
म४ पू४ उ१ ममि मु मे मो : टि टुटे १ कन्या । बुध उ.३ १.४ चि०२ टोप पि पु पे पो ष ण ठ ७ तुला .. शुक्र चिर स्वा४ वि०३ र रिस रे रो त ति तु ते ८ वृश्चिक : भोम वि०१ १०४ ज्ये०४ तो न नि नु ने नो य यि यु
मू०४ पु०४ उ०१ ये यो भ मि भु ध फ द भे १. ! मकर । शनि उ०३ १०४ ध०२ भो ज जि जु जे जो ख०५ ग गि ___ ११ कुंभ शनिधर श४ पू०३।
गु गे गो स सि सु से सो द : गुरु पू०१ उ०४ रे०४ द दि दु दे दो श म य च चि
। ५-६
६-८
जाति
वश्य राशिः
कं यू
nk... -
1,69. 12
कीट
सिंध | पशु मि मे कम | तु ध पशु
मनुष्य विनाधनुः विनासिंहंसवें .४ सिं मिवृ मी १
ध मेम मी पशु विनाधनुः विनावृश्चिकसर्वे है तु सिंम वृ कुं मे मनुष्य
विनाधनुः विनासिंहसर्वे केक मि . मी मनुष्य पशुकीटजलजाः विनासिंह 5 धतु मी क मे मि कोट सिंहः
वृ क ' मनु (मि.) सर्वे मि सिं पशु (मि.) कर्कः मीन:
क क मनुष्य पशु-कीट-जलजाः विनासिंह मे कुं . क वृ: सिं तु जळ ।
#Fru
m
6.44
4 at
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
१
२
३
'
GAX
मेच
वृषभ
मिथुन
कर्क
सिंह
मह
5
राहु
६ केतु
रवि
सोम
मंगल
बुध
मर
शुक्र
शनि
कुंभ
मीन
सुझा वृश्चिक प्री
B
स्वराशि:
सिंह
कर्क
मे
मि,
ध, मी
बृ, तु
*
Ja
3
2
·
B
R
•
Po
म
मिल
सो भो
रनु
खो गु
ी रणान /
ग्रह चकम्
र शु
र सो भो
बु श
बु शु
राशिकूटचक्रम्
संकेतशब्दाः – दे— श्रेष्ठतर, श्रे—श्रेष्ठ, शु–शुभ, म मध्यम, -अशुभ, नेनेष्ट
प्रोति, सम, १
अशुभतर, श-- शत्रु, प्री १ २ ३ Y ५६ १ १२ ११ १०६ ८
मे
बृ मि क सिं
दे
क
·
स
64
69
49
• द्र
मध्यस्थ
मी
युष
मं गु शु श
शुवा
भोगु श
भो गु
गुरु
क
batter
२५
क
•
$24 $4.
शत्रुः
शु० श
65
बु·
सो
RE
वु. शु रसो
र सो भो
ग
७ ६५
|| 1
प्री
६ १० Y
•
स्व
प० मेसो
सोमो गु भो गु रसो गु
69
शु श रा
रसो भो
बुशरा
बुंशु रा बु शु श
I dv
• &W' W
-)
ध म कुं मी
भे
११
0
try
55
१२
सत्का
dr
स्व-२-३-१२-११-१० स्थानस्थ महायतित्कालमैत्री
1 ~ 2,4 2,43.
45
रा
stor RB
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
जाविवश्य :--
अमवृषहरिमकरास्तु अलजोमीनः शेषाः धनुर्ह रिकनि मनुज-- मकरंचकर्कमीनी
पशवः कीटोकर्कवृश्चिको मनुजाः राशेर्जातयोशेयाः ४. शेषेषुस्युरुत्तरासः वृषभंमेषो हरिरलिंवश्या: ४१
वर्णाः :--
राशिवर्णाः क्षत्रियश्च श्रेष्टवर्णा यदिकन्या
वैश्यः शूद्रश्चब्राह्मणः पतिपुत्रमृतिर्भवेत्
पविग्रहाः :- क्रमाद्राशेः कुजःशुक्रः
शुक्रःकुजोगुरुमं दो
बुधश्च द्रो रविव॒धः शनिर्जीवश्चस्वामिनः ४३
मिन-शन :
अर्कस्यजीवेन्दु चंद्रस्य रविसौम्यौ भौमस्यजीवेन्दुसौम्यस्य रविशुक्रौ जीवस्येन्दुकुजार्काः शुक्रस्यबुधमंदौ मंदस्यबुधशुक्रौ सर्वेषांमध्यस्थाः
कुजाश्चमित्राःशुक्रशनीरिपू मित्रौशत्रुग्रहोनकोप्यस्ति ४४ सुराश्चमित्रारिपुस्तुचंद्रसुतः मित्रौ शत्रुपदे सदाचंद्रः ४५ मित्राःबुधशुक्रौचशत्रुस्तः मित्रौशत्रुसदार्कचंद्रौच ४६ मित्रोअरिणोसूर्यकुजचंद्राः शेषाप्रोक्ताःप्रवीणशानधनैः ४७
मस्परमेली :-- रवींदुगुरुकुजाश्च
स्वस्मिमित्राणिसर्वाणि
सौम्यशुक्रार्किराहवः परस्मिन् शत्रवःस्मृताः ४८
काममेली :- जन्मनिस्वस्मादग्रग-~~
तत्कालिनमित्रस्यात्
पृष्टगत्रित्रिगृहस्थितःखेटः मित्रग्रहस्तुभवेदधिकमित्रः ४६
जीवनम् :
५०
अशुभेद्विादशके चिन्तयेद्ग्रहमैत्रीसा एकनाथे मित्रनाथे नेष्टतत्मध्यमनाथे
चाशुभे नवपंचके नान्यस्मिन् शुभमेलके एकमध्यमके शुभं घेकशत्रौ रिपुपतो
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
५२
राशिकुट :---
यदा सन्नाडी-सत्तारा- सद्यौनि-सद्गणाः खलु तदाराशिकूटःश्रेष्टः मध्यमग्रहयोरपि इत्थंघटकन्याकर्क मीनानांपंचमःसह मध्यमं शेषराशीनां शुभंतन्नवपंचमं (मध्यमपंचमैरन्य- राशीनांतुशुभावह)
वर्गवरयंत्रः अक्षरा: वर्गः ! वैर वर्ग: अक्षराः
५३
पतिः
पतिः
+
।
सर्प
गरुड बिडाल सिह श्वान
अ इ उ ए ओ
क ख ग घ ङ । च छ ज म भ | ट ठ ड ढ ण
+ +
(त) | त थ द ध न । (प) प फ ब भ म
(य) य र ल व
(श)। श ष स ह लभ्यदेययंत्रः
उदिर हरिया मेष
+
दाता
ग्राहक
दाता
। ६७ 5 : वर्णक
च
।
ट
त
।
• no. 41
०
Sxuri
य ॥ . | ॥ १ ॥ ट श० ।। १ १॥ २ .
लम्बदेय ध्र वांकयंत्रः | वर्ग } अ क च ट ! त प य | श | १ पूर्ण: ; १ २ ३ ० १ २ ३ ० पूर्णांक २ उत्तरः ॥ १ ॥ २ २॥ : ३ ३॥ | विशिष्टांक :
नामद्वयाद्याक्षरवर्गयोः ध्रुवांको एकीकृत्य चतुभिः विभाज्या: विशिष्टा: दिशोपका: प्रथमेनदेयाः। एवं परस्परं गणनीयं ॥ इति ॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
सिंहस्यसमराशीनां सप्तमराशिकुटाद्याः
द्विद्वादशमपि शुभं ‘ग्रहमैन्यांत्वतिशुभाः
५४
साधक अ
| दे. १॥ ले० १॥
साधक साध्य विशोपकयंत्रः क ! च ट त प य । श. २ ॥ ३ ३॥ . ॥ १
२ ॥ ॥ ॥ २॥ ३॥ ॥ ले० ०॥ ले०१ दे० २॥ दे० २ ले. २॥ ले०३ दे० ॥
३ ३॥ • ॥ १ ॥ २
toote on
mr
दे० . दे. ३|| ले. १ ले०१॥ ले०२ दे० १॥ दे० १
• ॥ १ ॥ २ २ ॥ ले. २॥
___ ॥ २॥ ३ ॥ १॥ दे० १ | ले० ३॥ | ले.. ले० ०। ले०१ ले. १॥ दे० २ | दे० १॥ दे० ०॥ १ ॥ २ ॥ ३ ३ ॥ . ले० ३ ० १ २ ३ ० १ २
दे. १ दे० ॥ • ले० ०॥ ; दे० ३ दे. २॥ ले० २ दे० १॥ २ ॥ ले० ३॥ ॥
३॥ | ॥ ११ ॥
ले० ०॥ ले०१ ले
/- •
HE
-
TE
| दे. २॥ | दे० २ दे० १॥ ले. ३ | .
दे० ३|| . ॥ १ ॥ २ ले० ॥ ॥ २॥ ३॥ . ०॥ १॥ दे० ३ ले०१॥ ले० २ | ले. २॥ दे० १ दे० ०॥ दे० ०॥ १ ॥ २ २ ॥ ३ !
३ ३॥
य
॥ २॥ . ३॥
.
स
ले ०॥ ले०१ ले० १॥| दे० २ | दे० १॥ दे० १ ३० ॥
.
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
राशेरेकाधिपत्यं वा स्वामिनो मित्रतातदा
षष्टकोपिदंपत्योः नारचंद्रे शुभावहः ५५ परमार्थवनम् :- एवंश्रेष्ठतरं श्रेष्ठ शुभं मध्यमज रिपु
अशुभंप्रीतिनेष्टंचे- क्यमशुभतरंसम वर्गाः:- गरुड ओतुः सिंहश्व कुक्कुर: सर्प उंदरः
मृगो मेषोऽष्टवर्गेशा: क्रमेण अकचादीनाम् ५७ वर्गाणां पंचमेवरं वयं प्रसिद्ध नामयोः
बलिष्ठे साधके वर्ग वर्ग वैरं न दोषकृत् ५८ विशोपकः - प्रसिद्धनामाक्षर वर्गपांको क्रमोत्क्रमेणाऽष्ट विभक्तशेषौ
कृतार्धको साधकसिद्धयोस्तौ विशोपकः स्यात् प्रथमेन देय: ५६ प्रथम नामतो लभ्यो द्वितीयेन विशोपकः
परस्परेणशोध्यौतो केनार्धककद्यथा ६० ग्राम धारयायांतु :-जन्ममात्ग्रामविताया राशियोगो मतोन्यथा
___ केचित्तुकांकीणी प्रोचुः ग्रामस्यधारणागतो ग्राम राशि: :--- स्वराशेः दुःखदो ग्रामः एक त्रिषष्ठ सप्तमः
तुर्योऽष्टमोद्वादशमो मध्यमोऽन्यतरः शुभः ६२ जन्मराशिस्थितो ग्रामः त्रिषष्ठः सप्तमोपिवा स्वकियोद्रव्यनाशाय आपदाच पदेपदे ।। १ ।।
पंचमो नवमो ग्रामो द्वितीयो यदिवा भवेत् (प्रा० ३१२३, टीका)-दशमैकादशश्चैव शुभ:सफलताप्रदः ॥ ३॥
भारणागती
ग्राम राशियंत्रः
ग्रामराशि
१३६७२५९ १० ११ ४८ १२ । द्रव्यनाश अर्थव्यय शम
फलम्
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
चतुर्थाष्टममकोग्रामो यत्रउत्पद्यते अर्थ:
द्वादशो यदिवा भवेत् तत्रैवार्थो विलीयते ॥२॥
काकीणी :
द्विकृत: प्रथमवर्गीकः अन्यवर्गेण पूरितः अष्टभक्तेन शेषांकां याचते कांकीणी परात् ६३ एवं परस्परं कृत्वा शोधनीया ही कांकीणी स्वनामाक्षर वर्गाच्च ग्रामाद्याक्षर वर्गत:
कांकीणीयंत्रः
साधक |
. - ... ... .. .-..- ......
साधक
अ
क
अ
।
न
I
।
य
।
श
क दे०१
च दे०२
ट ले ५
त प ले०४ | ले०३ ।
o
d
o
t
( *
the civ
e
दे २
दे ३
to i
दे०१
له
°
* *
ले
ले०१ ले २ ले०३
to
of a de no te to
o to to AE to
to
ले०२
*
is a totoo
दे०५
ले
* *
ले०२ ले०३
ले०२
वर्णावश्यंचताराच মগ্ন ছিকুঞ্জে योने: राशिवश्यमधिकं श्रीमद्वारित्रविजय-~राश्यादि धारणायंत्रे
योनिश्चवर्गमेलक नाडीचैते गुणाधिकाः ६५ इति कस्यचिन्मते शिष्य दर्शन गुंफितः अध्यायः प्रथम इति ६६
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
मंगलं :
जिननाम :
अध्याय २ चतुर्वी शती तीर्थेशान् प्रणिपत्य गिरं गुरु जिनानां नामविन्हानि- धारणागति:कथ्यते ऋषभश्चाजितस्वामी संभवश्चाभिनंदनः सुमतिः पद्मसुपाश्चौं चंद्रः सुवीधिशीतलौ श्रेयांलो वासुपूज्यश्च विमलस्वाम्यनन्तराट धर्मः शातिश्च कुंथुश्च अरोमल्लिजिनस्तथा मुनिसुव्रतस्वामी च नमिर्नेमिश्च पार्श्वराट् . महावीरेति संभूताः वर्तमान जिनेश्वरा:
२
४
लांछनानि :- वृषोगजोश्व: प्लवग:
मकरः श्रीवत्स.खडगी . श्येनो वन मृगश्छागो कूर्मों नीलोत्पलं शंख:
क्रौचोब्ज स्वस्तिकः शशिः महिषःशुकरस्तथा ५ नंद्यायो घटोपि व फणीसिंहोऽर्हताध्वजाः ६
प्रमाणाम्:--
+ एतेचदक्षिणांगविनिवेशिनो लांछनभेदाइति, अभिधानचिंतामणौ कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्र सूरि:
अन्यान्याम्नाय :-दिगंबराम्नायनथे तु सुमति-शीतल-अनंत-भर जिनानां
लांछन भेदो दृष्यते, तद्यथा---कोकः द्रुमः ऋक्षो मेष इति सिद्धांत रसायन कल्पे (मुंबइ-संग्रह), कोकः श्रीयुतो वृक्षः शेषो पाटिन इति वसुनन्दीकृतप्रतिष्ठापाठे, कोकः (धेटो) श्रीयुतोवृक्षः शल्यो मत्स्यइति पूजासार समुच्चये,हंसोवाचातकः श्रीवृक्षः सेही मत्स्य इति भोलानाथमुख्तार लिखित हिंदी तीर्थ कर चिन्हरहस्ये (अनेकांत वर्ष १ किरण २) सुविधेस्तु लांछन कटुक इति सिद्धांत रसायनकल्पे ।
मक्षत्राणि :- जिनानामुत्तराषाढा
पूनवसू मधा चित्रा
रोहिणी मृगशिर्षभं विशाखा चानुराधिका ७
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
८
मूलर्भ पूर्वजाषाढा उत्तराभाद्रभंचान्त्यं रेवत्यश्विनी श्रवणं उत्तराफाल्गुनीभानि
श्रवणं शततारक पुष्यमश्विनी कृतिका आद्य चित्राविशाखिका झे यानिजन्मभानिये
जिनराश्यादियंत्रः
नाम
वृषभ
मृगशर
सर्प
xw
चित्रा
is w
मूळ ঘু মা
। भृषमदेव
अजितनाथ संभवनाथ
अभिनंदन ५ सुमतिनाथ ६ पद्मप्रभु | सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभ सुविधिनाथ शीतळनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमरनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ
परनाथ १६ मल्लिनाथ
मुनिसुव्रत नमिनाथ
नेमनाथ २३ पार्श्वनाथ २४ महावीरस्वामी
लांछन नक्षत्र योनिवर्ग गण नाडी
उ.प्रा. नकुल मनुष्य अंत्य हस्ति रोहिणी सर्प | भ मनुष्य अंत्य : अश्व
मध्य । वानर पुनर्वसू बिडाल
| प्राय क्रौंच मघा उदर
राक्षस अंत्य पद्म
व्याघ्र
राक्षस मध्य : स्वस्तिक विशाखा व्याघ्र
राक्षस अंत्य चंद्र अनुराधा हरिण
मध्य मकर
श्वान
राक्षस प्राध वत्स
वानर
मनुष्य मध्य खडगी (गेंडो) | श्रवण वानर महिष
शत
अश्व बराह
उभा श्येन (सिंचागो) रेवती हस्ति
| अंत्य अज
मध्य हरिण अश्विनी
आद्य अज कृतिका प्रज
राक्षस अंत्य नंद्यावर्त रेवती
अंत्य कलश अश्विनी अश्व
प्राद्य कच्छप অন্য : वानर
देव ! अंत्य कमल
अश्विनी अश्व
प्राद्य शख चित्रा व्याघ्र
राक्षस मध्य सर्प বিহাণ্ডা व्यान
राक्षस अंत्य उ.फा ।
मनुष्य माद्य
। देव अंत्य
राक्षस आद्य मनुष्य मध्य
। वज्र
पुष्य
अश्व
१८
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६
राशयः :--
अंक
xXED
१ ! ऋषभदेव
२
३
६
१०
११
१२
१३
mr yo y for a
૪
१५
१६
धनुगमिथुनंयुग्मं धनुः धनुश्चमको
hi मीनं
मेषोकन्यातुलाकन्या
नाम
१७
अजितनाथ
संभवनाथ
अभिनंदन
सुमतिनाथ
पद्मप्रभु
सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु
सुविधिनाथ
शीतळनाथ
श्रेयांसनाथ
वासुपूज्य
विमळनाथ
अनंतनाथ
धर्मनाथ
शांतिनाथ
कुंथुनाथ
१८ अरनाथ
१६
२०
मल्लिनाथ
मुनिसुव्रत स्वामी
२१
नमिनाथ
२२ नेमनाथ
पार्श्वनाथ
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
२३
२४ महावीरस्वामी
राशि
जिनराश्यादियंत्रः
धन
वृषभ
मिथुन
मीन
कर्क
मेष
वृष
मीन
मेष
मकर
मेष
कन्या
तुला
कन्या
वृष, म,
मे, 'ध,
अशुभ राशि | वर्षा | ता
क्षत्रिय ३
वैश्य
४
मिथुन ! कर्क,
सिंह
कन्या
तुला बृ, मी, वृश्चिक ! मि, कर्क, तु,
धन
वृत्र, म,
धन
वृष, म,
मकर
सिं, कन्या, ध,
कुंभ
मि, कर्क, मी,
मीन
सिंहः कन्या तुलाभलि
घटो मीनं मीनं तथा
मेषश्च मकरस्तथा तीर्थकज्जन्मराशयः
कर्क, वृ, कुं,
वृ, कुं,
म,
मे, म,
कर्क, तु, कुं,
कर्क, तु, कुं,
मि, वृ, कुं, मी
वृष, कन्या,
मे, ध,
कर्क तु, कुं,
वृष, कन्या,
सिं, कन्या, ध,
म,
वृष, कन्या,
मे,
बृ, मी,
मे, म,
शुद्र
शुद्र
क्षत्रिय
वैश्य
शुद्र
क्षत्रिय
क्षत्रिय
| क्षत्रिय २
क्षत्रिय ४
शुद्र ६
ब्राह्मया
ब्राह्मण ह
ब्राह्मण
क्षत्रिय वैश्य
ཝཱཝཱསྠཽ
Ir
वैश्य
१०
9 m
११
हंस
अग्नि
भूमि
वायु
वायु
अग्नि
भूमि
३
ब्राह्मण ६
जल
क्षत्रिय
अग्नि
वैश्य ४ भूमि क्षत्रिय १ अग्नि वैश्य | ५ भूमि
७
वायु
भूमि
वायु
अग्नि
अग्नि
अग्नि
अग्नि
वायु
जल
जन
जल
अग्नि
भूमि
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
नक्षल
स्वयोनि साध्याः
१६, १६, २१+१२
०+१४, १८
कृतिका २-४
१७+१५
रोहिणी
२+३
मृगशिर्ष ३-४ ३+२
+6
४+०
१५+१७
०+४
4+0
० + ५
२४+१३
e+a
अश्विनी
भरणी
साधक तीर्थकर नक्षत्रयोनि राशि यंत्रः ।
राशि:
मद्रा
पुनर्वसू
पुष्य
अश्लेषा
मघा
पू फा०
उ० फा०
इस्त
चिला
अनुराधा
ज्येष्ठा
मूल
पूर्वाषाढा
उ० पा०
अभिजित
श्रवण
चनिष्ठा
शतभिषा
पू० भा०
उ० भा०
रेवती
3
पाद
स्वाति
विशाखा १-३७, २३+६, २२
१-३
श्रीबृहद् धारणायंत्र /
२-४
6
१-२६, २२+७, २३
o to
5+0
045
ह+0
१०+११, २०
१+०
०+१
११, २०+१०
。to
१२+१६, १६, २१
。to
१३+२४ १४, १८+०
सायजिना:
योनि वैरं
。to
oto
१०+११, २०
१ + ·
१ +
5+.
५ +
१०+११, २
4+0
0+8
४÷०
६, २२+७, २३ १६,१६,२१+१२
२४+१३
१६,१६,२१+१२
२४+१३
• + ε
०
३+०
0+5
१५+१७
३ +२
३+२
१५+१७
०+१४, १८
。to
०+१४, १८
६, २२+७,२३
मेष
वृषभ
वृषभ
मिथुन
०
मिथुन
सिंह
कन्या
●
कन्या
०
तुला वृश्चिक
०
धन
धन
ध न
०
मकर
•
मीन
मीन
१७
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
१८
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
तीर्थकर नाडी-गण यंत्रः।
4
3
: मध्यम । वैर।
साधक नाडी वेध
साधकगया
साध्य तीर्थंकर साध्या । भाद्य । मध्य | अंत्य | देव ' मनुष्य | राक्षस नाम
मध्यम स्व अशुभ ! ऋषभदेव मध्यम ! "
अजितनाथ मध्यम
संभवनाथ स्व " "
अभिनंदनस्वामी वैर अशुभ स्व स्व । . सुमतिनाथ
पद्मप्रभ सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु अशुभ स्व सुविधिनाथ मध्यम स्वगण अशुभ शीतलनाथ
मध्यम वैर श्रेयांसनाथ
अशुभ । स्व । वासुपूज्यस्वामी मध्यम स्वगण अशुभ विमलनाथ स्व : मध्यम | वर
ध्यनंतनाथ स्व
धर्मनाथ
शांतिनाथ । स्वगण
कुंथुनाथ मध्यम
अरनाथ मल्लिनाथ मुनि सुव्रत स्वामी
नमिनाथ ! अशुभ । स्वगण नेमनथ
पार्श्वनाथ । मध्यम । स्व अशुभ | वर्धमानस्वामी
मयप
स्व
- 4 2 2 1 2
| वेध
"
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रक
59 29 M
आ
दिक्षुभ्यो हिताय संदर्भितोयं यंत्रः
म
पू. फा
उफा
bacte
वि
स्वा
अनु
帖
گو در و
मू
पूषा
उषा
श्र
ध
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
साधक-तीर्थकर तारा यंत्रः
श
पू भा
उ भा
A
साधकपादाक्षर
वस्तुतस्त्वनावश्यक एव.
१, ३, ४, ६, ७, १७, २२, २३, २४
२, ८, ११, १२, १३, १५, २०
३, ४, ६, ७, १४, १८, २२, २३
५, ८, ६, १२, १३, १५, १६, १६, २१
४, ७, १०, १४, १८, २३
१, ५, ८, ६, १३, १४, १६, १७, १६, २१, २४ २, १०, ११, १४, १८, २०
१, ३, ५, ६, ६, १६, १७, १६, २१, २२, २४ २, १०, ११, १२, २०
द्वादशार तीर्थकर वेध यंत्रः
जिन नाडी वेध
६, १२, १६, १६, २१.
४- कु गो टेठ हि नो भिला हि
८ गगिट ड ढ थ न नि फ मो ८, १०, १२, १५ ररि ले लो वे वो हो
खोड तो देभे मेरु बु
-११-१२ इ उ ए ओ खि खु खे चिज जि डु डे हो त ति तु ते दो ममिमु रे रो व वि
२, ५, ११, १४, १८, २०
७
२, ५, ११, १४, १७,
१८, २०२३
भवेध
४, २४
३, ६, २२
७,१७,२३
r
पाद वेध
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
খালা খালা
तीर्थ कर राशि कूट यंत्रः
अंक
राशि : स्वजिन । श्रेष्टतरम्
श्रेष्ठः । प्रीति
शुभः
मेष
२ वृषभ
१६,१६,२१ कर्क १५ म. ११,२० वृ. | मि. ३, ४, कु. १२
१३,१४,१८८ सिं. ५, ध, १,६,१. २,१७ कुं १२ मि. ३, ४ तु. ७,२७क. १५, क. ६,२२,२४
सिंह ५ । ७,२३ म.११,२०,१३,१४,१८ : कं ६, ! वृष २, १७ म११,२० मे. १६, १६, २१२१ । २२, २४ १३,१४,१८ सिं ५, तु. ७, २३ . मे १६, सिं. ५ धन १ वृ. २, १७
१६, २१ तु. ७, २३ कं. ६, २२, २४ | वृश्रिक ८ वृ. २, १७ | मी. १३ । मे १६, १६, २१ कर्क १५ । १४,१८ मि. ३, ४, ६,२२,२४
तु. ७,२३ ध. १,९,१. १६, २२, २४ मिथुन ३,४ तु. ७, २३ / कुं. १२ वृ. २, १७ कर्कर५
ध. १,६,२० सिं ५, वृभिक ८ __ ! म ११,२० कर्क १५ । वृष । मि. ३, ४ सिं. ५
६, २२, २४, २, १७ । ध, १, ९, १०, कुँ १२ - सिंह ५ ध १,६,१० मे. १६ कन्या ६, २२, २४ ' कुं. १२ १६, २१ म. ११, २०,
मी. १३, १४, १८ १.६.१. ! मीन १३, कं. ६ २२, कर्क मे. १६,१६,२१, सिं. ५
१४, १८ २४ वृ.८ १५ : तु. ७, २३, कुं १२ तु ७, २३ मे.१६,१६, मि. वृ. २, १७, ३८
. २१ कु. १२, ३,४ मी. १३, १४, १८ ' १२ वृष २, १७ : वृ.८ । कं.६ मे. १६, १९, २१,
म. ११,२०२२, २४ : तु. ७, २३
धन १, ६, १०, १३,१४,१८ ध १, १६,१९,२१ सिं. ५ : वृ. २, १७, १८
ह. १० . मि. ३, ४ . म. ११, २०,
१२ मीन
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणात्रय
तीर्थ कर राशि कूट यंत्रः
राशि
समः
मध्यमः
भशुभः ! शनः
अशुभतरः
| अंक
वृष २, १७ : कन्या ६
२२. २४ मे १६, धन १
वृवृ८
:
वृ८
कर्क १५
मि . ध १, कुं १२ !
६, १० क । म.११.२० : वृ८ मी.
! १३,१४,१८ सिं : कं १२ ।
१२
मि ३,४
म. ११,२०
मी १३ १४, १८
मे. १६
म ११, २०
१६, २१ वृ. ८ मी १३
१४. १८ कर्क १५ । तु ७, २३ | मि ३, ४
। १६, २१ वृ : वृष
धमि ३, ४
म. ११,२०
वृष २, १५
सिं५
म । कर्क १५ कन्या ६ ध. १.१.१०
२२, २४, कुं सिं .५ मि ३, ४ . मी १३
१४, १८ मी के६,२२,२४ कर्क १५ कुं१२
कर्क १५
, २३
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक
य
!
श
तीर्थ कर विंशोपक यंत्रम्
साध्य वर्ग तीर्य कर नाम च । ट । त प ० १५,२१, २,१६, २२ २३, २३
१०.११, १६
(२४) (२०) ले १ दे २॥ · दे २ ! ले २॥ । ले ३ : दे ॥
ले २ दे ११॥ दे १ दे १ ! ले ३॥
| ले ॥ ले १ ले १॥ दे २ दे १॥ २॥ | दे १ दे०॥ ,
दे ०॥ ले ॥ दे ३ दे २॥ ले २ ले २ दे ॥ दे १ दे ॥ . ले०॥ : ले १
दे २ दे १॥ ले ३ दे ॥ . ले ॥ ले दे ३ ले ॥ ले २ ले २॥ दे १ दे || , . ले ॥ ले १ ले ॥
ture
....
धारणा:
कूटषट्क :
एवं जन्मर्श राशिभ्यां ज्ञात्वाकूट तथाक्षरं कर्तव्या स्थापकाचार्य: तीर्थेषां धारणागतिः १२ योनिर्वर्गश्चलभ्यंच गणेक्यं राशिफूटता नाडीति षड् बलानीति नव्ययींचे विलोक्यते १३. योनिगणराशिभेदाः लभ्यंवर्गश्च नाडीवेधश्च नूतन विविधाने षड्विधमेतद्विलोक्यंहः ॥१॥ श्रीमद् चारित्रविजय शिष्य दर्शन गुंफितः तीर्थकृद्धारणायंत्रे अध्यायो द्वितीय इति ॥ १४ ॥
उक्तंच :
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
मंगलं :
समूह: :---
न्यासः :--
अक्षरा::
अनुसंधानं :--
यंत्रफलम् :--
अक्षर
नक्षल
भ
इ
भो
काकी मृग
प्रणम्य परमेष्ठिनं
साक्षरमेव विन्यास:
स्वराः सस्वरकाद्यानि
राशिम वर्ग पैक्येन
एवं भवेत्चतुःषष्ठी अक्षराणां च सर्वेषां
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
अध्याय ३
प्रत्यक्षरं प्रतिपंक्तिं
यथाई योनि वर्णादि
अइ ओका कुके खाखी
जुकाटाटे टोडडाडी
दुदेधान नोपपुपे
मोययेरा रुलि लेवा
चतुःषष्ठयक्षराः श्चेति हस्वदीर्धक्य भाजस्ते
साधक साध्ययोर्योगे
( यदायोगस्तु साध्यस्य
तदाऽऽशु जायते ज्ञानं
कृतिका | मेष
मेष
कृतिका
रोहिणी
योनि
सर्प
सर्प
M
5 XX
शिघ्रबोधाय तन्यते
साध्य साधक मेलकः
रा अं
भवन्ति नामनि ततः
समूहः क्रियते पृथक्
सर्वाक्षर कूट यंत्रः ( ६४ )
#
भिन्न राशिभवर्गतः तन्न्यासः क्रियते क्रमात् ३
स्थाप्यते स्वक भाविक
यथास्यात सुकरास्वद्भक्
गगुगोघा चचुछजा ढणता तितोथा ददि
फबाबे भाभेभोम
वेशषास सेहा हिदु
अनुक्ताः पूर्वगामिनः सर्व नाम्नि व्यवस्थिताः
दिक्षाभवति यदा साधकेन दिक्ष्यते) सुलभं यंत्रदर्शनात्
तारा | गण नाड़ी | युजि | राशि स्वामी वर्ष वर्ग
35
मंत्र
वृष
वृष
मिथुन
भौम
शु
GAL
८
罗者可可
२३
६
१३
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
सर्वाक्षर कूट यंत्र (६४)
योनि तारा गण नाड़ी युजि राशि स्वामी वर्ण भाद्रावान
मिथुन बु शु । पुन बिद्राक्ष
| मिथुन , अभिजि
मकर अषय
मकर
---"
"
6
RA
कता
-
< +
"-
वानर
--
--
धनिष्ठा
मकर
"."
A
.
कुम
। रात
कंभ
* *
-...-.-.-"
x Mmmmmm x
_t.cail :: :
भाद्रा चाची रेवती सुचे चो भश्विनी छ भाद्रा जा जी उ.षा.
-"
-
AA
-
--
-
श्वान नकुल नकुल
मकर
-
-
A - A
k
84
AA
------
उंदिर
उ, फा.
उ.फा.
क
A
महिष
कन्या
मेष
पुष्य नगडुडेतो मम्लेषा
पु.षा.
: ::
बिडाल
धन
कन्या
वानर महिष महिष व्यान व्याघ्र
1661 6. KNMM
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र । मार | नमन। योनि | तारा गण | नाड़ी मुजि राशि स्वामी वर्ण वर्ग दे दो | रेवती
मीन
| W
14.
ननानूने | मनु नो
ज्येष्ठा
कन्या कन्या
A RAAR 41 42
चन
4 4
बेयो
45 43
4
उषा
44. A 4.4464044..
सफर
पे पो चिना
व्यान फपूषा वानर बाबी रोहिणी सर्प
| मृग सपे भा भी | मूळ श्वान
वानर नकुल
नकुल मामीमूभे| मघा उंदिर मोफा यायो यु ज्येष्ठा | हरिण ये यो : मूळ श्वान रभरि चिला परेरो । स्वाति | महिष मा अश्विनी | अश्व बीलूलेको भरणी वावी वू रोहिणी वो मूग
उ भा
ཟླ ༈ བྷྱཱ ཙྪཱ སྱ ཤྩ, ཎ བྷྱཱ ཙྪཱ ཟླ ༔ བྷྱཱ ཡྻོ ཙྪཱ ཡྻོ ཀྵ ཟླ ༔ ཝ, , ༔ ༔ ཟློ ཀྵ ཀྵ ཟླ ཟླ
4
उंदर
ww x varanar or mror Wrrrrrr » Nry or ,,,
वाय
धन
A
वानर
तुजा
4:
: 4 4 4 MAA
: 4asna4 4
कन्या
ससी शत से सो 4 भा | सिंह
पुनर्वस् विडाल
पुनर्वसू बिहान ७ इहे हो | पुष्य मेष
श्रीमदचारित्रविजय शिष्यदर्शन गुंफितः प्राऽक्षरोधारणायंत्रे अध्यायसाठीय प्रति
alhan - 464 4
1
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
मंगर्भ:
विन्यास:
जन्मनाम : -
प्रसिद्धनाम :
सिध्यादयः :
सत्यक्षं :
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
प्रणिपत्य परेशच
परस्पराक्षरेश्वक'
अध्याय ४
सर्वैर्द्वादशधान्यस्तं तदेव लाघवेनेन्थं
ऋ ऌ ॡ विना आद्या काधानि व्यंजनानिव
ऋभूस्वरौ तथात्रेय अपिलृलुस्वरौ विज्ञैः
द्वादश अक्षराः एवं अभोकादिभिःकार्यो
देशे दुर्गे पुरे ग्रामे स्वामीभृत्येषु भूमिषु
विवाहे शुभकार्येषु
जन्मनाम्नः प्रधानत्वं
गृहे ग्रामे खले क्षेत्रे प्रसिद्धनाम्नः श्रेष्ठत्वं
साधकात् प्रथमे साध्ये
तृतीयेतु सुसिद्धः स्यात्
सिद्धिः सिध्यतिकालेन
सुसिद्धिस्तत्क्षणादेव
साधक साध्य सिद्धये भभकं सदुष्यतें
अहम् वक्रमिष्यते त्रिकभक्तं विधियते
स्वरास्तु द्वादश क्रमात् चतुष्कोष्ठेषु संन्यसेत्
रकारे ग्राह्यते बुधैः लकारे साध्यते सदा
प्रतिकोष्ठं विनिष्ठिता
योगो साधक साध्ययोः ५
औषधे मंत्रदेवयोः
रिपो चैतन्निरिक्षयेत्
लाभादौ ग्रहगोचरे
प्रसिध्धं नाम नेक्षयेत्
वाणिज्ये राजदर्शने जन्मराशिं न चिंतयेत्
सिद्धिः साध्यं द्वितीयके रिपुस्तूर्ये यथाक्रमम्
साध्यः सिध्यतिवानवा
रिपु मूलं नि सति
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र
अकम यंत्र।
१२ . माठ भज्ञ
माखदय
११ भोट
.
बक्ष
भकम
.
...
-
-
| औञ फळ
इघतज्ञ
एछ घश
--- -..-.
.
-
-
ऐजनस
सिध्यादि यंत्र ।
सिद्धिः
साध्यः
अउ ओ क यंत्र। अ उ भो क मा ऊ भी ख ड. म ड य च अढ द पमवह फ य श ळ ई ऐपः धइए अंग जठ तन छ ट प ध भज सज्ञ . वे र पक्ष
.
रिपुः
सुसिध्धिः
श्री चारित्र विजयान्ते- अउ ओ धारणा यंत्र
वासि दर्शनगंफितः अध्यायस्सूर्यम ईति
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
२८
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
अध्याय ५
मंगळ:
प्रणम्य परयाभक्त्या पूर्णज्ञानं हेमचंद्र
सर्वज्ञ परमेश्वर सर्व संस्तुवे कलौ
१
श्रीमद् वारित्रविजयं तीयकृध्धारणान्यासः
नत्वा प्रेरणाऽनघं गरु पूर्णभंगो विधीयते
प्रम:--
स्थापकस्य सूरेःसाधोः जिनःश्रेष्ठ इति प्रश्ने
श्राद्धस्याऽस्य पुरस्य कः उत्तरोऽस्मात्प्रदीयते
अत्रकोजिनःश्रेष्ठः निषिध्यत्वात् होरप्रश्रे,
संघस्य, इति नविलोकनीयं इतिकेचित्
न्यास::
चतुःषष्ठ्यक्षरा: सन्ति तत्तद्योन्यादिकं षटकं
मिन्नराशि भ वर्गगा: साधकस्याऽत्रसंन्यसेत् ४
ततःप्रत्यक्षरं पत्रे चतुविंशतयो जिनाः स्वस्वयोन्यादिकः षटकै- लेख्यासाध्या:समासतः ५
मंगाः १५३६:-एवंलेश्याग्निसमीति
साधक-जिनयो योगः
चंद्रमीतास्तुभंगयः तस्मात्साध्यो विवेकिना ६
षड्वसं :
योनि वर्गश्च लभ्यांको नन्ये बिबे विलोक्यंशः
गणो राशिश्च नाडिका पोढाबलं गुणाधिक
क्वचिदेवादतातारा भ-वेधो मध्यमः प्रोक्तः
कुवरं सबलंरिपो पादवेधोऽधमाधमः
उत्तरोउत्तरेरशुभै-- स्तद्योगो नैव शस्यते तस्मात्शस्तोविलोक्योसौ स्वारोपकृति-परे:
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
साधक अक्षर-अ, आ ।
ਸਂ साध्य जिनः
तारा
योनिः
स्वकीयं
३
मेष
विरुध्धं ५.७,६
वानर
..
साध्य नाम
K
ऋषभनाथ
२ अजितनाथ
३ संभवनाथ
अशुभ
४ अभिनंदन अशुभ
५. सुमतिनाथ
पद्मप्रभु
अशुभ
सुपार्श्वनाथ | अशुभ
८ चंद्रप्रभु ६ सुविधिनाथ
१०
शीतलनाथ
श्रेयांसनाथ
११
१२ वासुपूज्य
१३ विमलनाथ
१४ अनंतनाथ
१५ धर्मनाथ
१६ शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ
- २१
१८ अरनाथ
१६ मल्लिनाथ
२० मुनिसुव्रत नमिनाथ
२२ | नेमिनाथ २३ | पार्श्वनाथ
२४ वर्धमान
महावीर
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
श्रीबृहद् धारणायंत्र /
कुवैर
कुवैर
मैत्री
23
कुवैर
73
राशि पति: एकनाथ वर्ण मेष मंगल वृश्चिक खलिय
वर्ग
FE
अ
त
वैर
散京
विशोषकः गणः
सभ्यं
राक्षस
दे. म.
अशुभ
a
२||
=
२||
શા
२॥
२||
देयं
11.
.11
7777
•
• ॥
λ
० | वैर
स्व
४
ལ་
वश्यं
स्व
永
स्व
वैर
"
21
भ
"
स्वगण
वैर
भ
27
स्वगण
""
""
प्रशुभ
राशि
मेष
कन्या
शुभ
अशुभ
शुभ
शुभ
भ
शत्रु
सम
प्रीति
शुभ
शुभ
श्रेष्ठ
शुभ
એજ
श्रेष्ठ
श्रेष्ठतर
स्वराशि
२३
नाड़ी
अंत्य
अंत्यवेध
"
पादवेध
वेभ
वेध
भवेध
वेभ
वेध
अशुभ
श्रेष्ठ
स्वराशि
श्रेष्ठ बेघ
स्वराशि
एकर्म
वेध
शलु
सभ भवेध
नेपाल युजि कृतिका पूर्व
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहत धारणापत्र।
साधक अक्षर-इ, ई, उ. ऊ, ए, ऐ।
गया:
HD
|
धन
| राशि | नाड़ी राक्षस । वृषभ | अंत्य
अंत्यवेध शल
मवेध स्वराशि| वेध श्रेष्ठ श्रेष्ठ
m
.
श्रेष्ठ
tr
अशुभ
.
कुवर कुवर
नं. साध्यंजिनः | तारा । योनि | वर्ग | विशोपक । स्वकीयं । ३, मेष । असभ्य
विरुध्धं । ५,७६ वानर त देयं भृषभनाथ अजितनाथ संभवनाथ भशुभ अभिनंदन अशुभ सुमतिनाथ पद्मप्रभु सुपार्श्वनाय अशुभ चंद्रप्रभु
सुनिधिनाथ ! शीतलनाथ | श्रेयांसनाथ । वासुपूज्य विमलनाथ
अनंतनाथ अशुभ | धर्मनाथ
शांतिनाथ कुंथुनाथ मरनाथ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाथ
नेमिनाथ भशुभ २३ / पार्श्वनाथ • २४ वर्धमान
, महावीर राशि पति: एकनाथ वर्ण वृषभ शुक्र तुमा वैश्यः
शत्रु शत्रु शुभ श्रेष्ठतर
. . .
शुभ
. . .
अशुभ स्वराशि | एकभं शुभ अशुभ
वेध
स्वगण
वश्यं .
युजि
मेषः
नक्षत कृतिका
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
tlabar
..
-
-
--
कुवर
ar
मध्यम
»
___F = =
शुभ
: 44: HTA
ar w
a
IS w
लाधक अक्षर-ओ, औ। न० साध्यजिनः | तारा योनि वर्ग विशोपक । गणः राशि | नाड़ी स्वकीर्य - सर्पः ।
। मनुष्यः वृषभ । भस्म * विरुध्यं । ६.८,१ नकुल
| देयं : राक्षसः घन । मृषभनाथ
स्व | शतु भवेष | अजितनाथ
| स्वराशि एक संभवनाथ मैसी :
| श्रेष्ठ अभिनंदन सुमतिनाथ | अशुभ
" | वेष पद्मप्रभु
शुभ सुपार्श्वनाथ
प्रीति चंद्रप्रभु | अशुभ
व्यम सम सुविधिनाथ | अशुभ
भशुभ शलु शीतलनाथ
। स्वगया श्रेयांसनाथ
मध्यम
शुभ वासुपूज्य
अशुभ विमलनाथ अशुभ
स्वगण अनंतनाथ
मध्यम धर्मनाथ
| अशुभ शांतिनाथ अशुभ कुंथुनाथ मरनाथ
शुभ मल्लिनाथ । अशुभ
अशुभ मुनिसुव्रत
| शुभ नमिनाथ भशुभ नेमिनाथ
शुभ पार्श्वनाथ
प्रीति वर्धमान
महावीर राशि पतिः एकनाथ वर्णः
नक्षत्र | युजी वृषभ शुक तुला | वैश्यः
मेषः
रोहिणी, पूर्व
अशुभ
श्रेष्ठतर
शुभ
:
---
शुभ
सरवि
मध्यम
२.
अशुभ
- 4
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीपाद धारणायंत्र।
साधक अक्षर-क, का, कि, की, क्ष।
जन्य
।
मध्यम । सम
शुभ
. : 4 जू में 4 a : : *: 4: aria
शुभ
to
मध्यम
सम
स्व
नं. | साध्यजिनः । तारा । योनि | वर्ग: विशोषक: गणः । राशि । नाड़ी स्वकीय
देवः । मिथुन । मध्य विरुध्ध ७,६,२ नकुल । १ । देय | राक्षस: वृ. कर्क मध्यवेष
भृषभनाथ कुवर -- २ मजितनाथ मेसी
श्रेष्ठ संभवनाथ भामिनंदन अशुभ
स्वराशि सुमतिनाथ पभप्रभु
श्रेष्ठतर वेध | सुपार्श्वनाथ अशुभ
चंद्रप्रभु सुविधिनाथ
सम शीतलनाथ | भशुभ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य
मध्यम विमलनाथ अनंतनाथ | अशुभ
श्रेष्ठ १५ | धर्मनाय १६ / शांतिनाथ कुंथुनाथ
श्रेष्ठ ..१८ | भरनाथ
श्रेष्ठ मल्लिनाथ
शुभ मुनिसुव्रत
प्रीति नमिनाय
शुभ नेमिनाथ पार्श्वनाथ अशुभ
शुभ .. २४ वर्षमान
मध्यम श्रेष्ठतर महावीर पतिः एकनाथ वर्णः
वश्य
नसलं । युजी मिथुन बुध कन्या | शद्रः पिना सिंह धनं सर्वे मृगशिर्ष पूर्व
प्राति
शुभ
- १७
: . : .
श्रेष्ठतर वेष
1
राशि
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणार्यत्र।
साधक अक्षर-कु, कू।
aur . साध्यं नाम ।
।
सम
अशुभ
साध्यं । तारा: । योनिः | वर्ग:! विशोपक गयाः राशि नाही स्वकीयं । ६ थान | कलभ्य मनुष्य मिथुन | माय विरुध्धं ८१३ हरिण
राक्षस . क. माद्यवेध ऋषभनाथ अशुभ अजितनाथ
०॥ , श्रेष्ठ ३ संभवनाथ
स्वराशि ४ | अभिनंदन
। भवेध सुमतिनाथ ! अशुभ
भशुभ
शुभ ६ पद्मप्रभु
श्रेष्ठतर सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभु अशुभ | वैर
मध्यम शत्रु सुविधिनाथ
अशुम सम ! वेध शीतलनाथ
स्वगण । श्रेयांसनाथ
मध्यम वासुपूज्य
मध्यम | विमलनाथ
श्रेष्ठ अनंतनाथ धर्मनाथ अशुभ
अशुभतर | शांतिनाथ
| वेध कुंथुनाथ | अशुभ
भरनाथ १६ मल्लिनाथ अशुभ | मुनिसुव्रत
प्रोति २१ नमिनाथ ! मशुभ २२ नेमिनाथ
श्रेष्ठतर २३ पार्श्वनाथ
शभ २४ वर्धमान अशुभ
श्रेष्ठतर भवेध महावीर राशि पतिः एकनाथ वर्ग
पश्यं
नक्षत्रं । युजी मिथुन बुध । । कन्या. | शुद्र । विनासिंह धनं भाद्रा । मध्य
: वेध
अशुभ
- Aags : :
मात्रा
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४
साधक अक्षर - के, कै, को, कौ ।
योनिः वर्ग:
स्वकीयं ७ बिडाल क लभ्यं
विरुध्धं ६ २४
उंदिर
प
नं साध्यं तारा:
साध्य नाम
ऋषभनाथ
अजितनाथ | अशुभ ३ संभवनाथ
४ अभिनंदन ५ सुमतिनाथ
पद्मप्रभु
सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु
६ सुविधिनाथ
१०
११
१२ | वासुपूज्य १३ | विमलनाथ
MY
१४ अनंतनाथ
धर्मनाथ
शीतलनाथ अशुभ
श्रेयांसनाथ
अशुभ
१५
१६ | शांतिनाथ कुंथुनाथ
१७
१८ मरनाथ १६ मल्लिनाथ
२० मुनिसुव्रत
२१ नमिनाथ
-- २२ | नेमिनाथ - २३ पार्श्वनाथ
२४ | वर्धमान
महावीर
27
शि
मिथुन
अशुभ
अशुभ
अशुभ
श्रीवृदु धारणायंत्र ।
पति: एकनाथ
बुध
कन्या
स्वा
वैर
वयं
शुद्र
教
वैर
वैर
वैर
वैर
विशोषक
3
१॥
१॥
o
ده
देयं
• ~ 20
Po
१॥
१॥
ना
(१)
१॥
वश्यं
विनासिंहं धनं
गणः
देव
राक्षस
मध्यम
2.1.
स्व
35
소
वैर
मध्यम
स्व
वैर
मध्यम
स्व
23
चैर
स्व
वेर
29
मध्यम
राशि
मिथुन
नाडी
आद्य
क० आद्यवेध
सम
श्रेष्ठ
स्वराशि:
"
शुभ
श्रेष्ठतर
शुभ
श
सम
"
प्रीति
मध्यम
श्रेष्ठ
"
अशुभतर
शुभ
श्रेष्ठ
=
शुभ प्रीति
शुभ भष्ठतर
""
एकभं
मतनं
पुनर्वसु
वेध
वेध
बेध
शुभ श्रेष्ठतर | वेध
वेध
वेध
युजि
मध्यम
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
ना
| वेष
12 : 2.4
मध्यम
. ..
साधक अक्षर-ख-१० (खो, खौ, १-पाद ७-११-२३ भवेधः ७) नं. साध्यजिनः । तारा ! योनिः । वर्ग | विशोपकः । गणः । राशी । नाड़ी
स्वकीयं ४ वानर क लभ्यं देव | मकर | अंत्य विकध्धं , मेष प
राक्षस ! सिंह अंत्यवेध ऋषभदेव
अशुभ | भवेष अजितनाथ
शुभ संभवनाथ
प्रीति अभिनंदन
प्रीति सुमतिनाथ । अशुभ
शत्तु वेध पद्मप्रभु सुपार्श्वनाथ
श्रेष्ठतर वेध चंद्रप्रभु अशुभ
शुभ सुविधिनाय अशुभ
भशुभ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ ।
स्वराशिः एकम वासुपूज्य अशुभ विमझनाथ । भशुभ
शुभ अनंतनाथ १५ । धर्मनाथ अशुभ
शांतिनाथ अशुभ कुंथुनाथ भरनाथ
वेध मल्लिनाथ | अशुभ मुनिसुव्रत ।
स्वराशिः, । नमिनाथ अशुभ
श्रेष्ठ नेमनाथ
| मध्यम पार्श्वनाथ
। श्रेष्ठतर वेध वर्धमान
। १ मध्यम महावीर राशिः पतिः एकनाथ वर्णः
वश्यं
नक्षत्र | युजी मकर शनि कुंभ । वैश्य कर्क: मीन श्रवण । पश्चिम
*ख खा योनि-नकुल, स्वा-११-२०, मैत्री-१०, वैर सपे-१५-१७ ।
श्रेष्ठ
-----..-...-
. ----
* : : : 42: : A *
१८
एकभं
मध्यम
,
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साध्य नाम
वेध
शत
CMCK
साधक अक्षर-ग, गा, गि, गी।
साध्यजिनः । तारा : योनिः । वर्गः । विशोपकः | गयाः । राशि | नाड़ी स्वकार्य । सिंह कसभ्यं
मकर । मध्य विरुध ७,१,२ इस्ति प ।
सिंह मध्यवेध ऋषभनाथ भजितनाथ संभवनाथ अभिनंदन | अशुभ सुमतिनाथ पद्मप्रभु
मध्यम
| भवेध सुपार्श्वनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर चंद्रप्रभु
शुभ वेध सुविधिनाथ
अशुभ । शोतलनाथ । अशुभ
___ वेध श्रेयांसनाथ
स्वराशि वासुपूज्य
श्रेष्ठ विमलनाथ
शुभ · वेध अनंतनाथ ! अशुभ वेर धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ
शुभ अरनाथ अशुभ वेर मल्लिनाथ
श्रेष्ठ मुनिसुव्रत नमिनाथ
श्रेष्ठ नेमिनाथ
मध्यम : भवेध पार्श्वनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर वर्धमान , महावीर
वेर । २ । । राशिः पतिः एकनाथ वर्णः
वश्यं
नक्षत्र युजि मकर। शनि । कुंभ : वैश्य । ककः मीन धनिष्ठा पभिम
स्व
स्वगण
स्वराशि
स्वगण
मध्यम
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अदर-गु, गू, गे, गें।
Rate
भेष्ठतर
: : : *:
शुभ
*
ने साध्य जिनः | तारा योनिः । वर्ग विशोपक: | गणः ! राशि | नाड़ी | स्वकीयं । सिंह
| राक्षस | कुंभ । विरुध्धं ७६.२ इस्ति
देयं । दे. म. कर्क मध्यवेध • १ | भृषभनाथ
भशुभ ! शुभ ..२ अजितनाथ | संभवनाथ
। मध्यम वेध अभिनंदन | अशुभ सुमतिनाथ पद्मप्रभु सुपाश्वनाथ | अशुभ
चंद्रप्रभु - सुनिधिनाथ
शुभ शीतलनाथ স্বয়ম | श्रेयांसनाथ
श्रेष्ठ वासुपूज्य
स्वराशि विमलनाथ
अशुभ वेध १४ अनंतनाथ अशुभ | वैर
अशुभ , धर्मनाथ
शत्रु वेध शांतिनाथ
| शुभ कुंथुनाथ
गय | भेष्ठतर १८ परनाथ अशुभ | वैर
भशुभ मस्मिनाथ मुनिसुव्रत
श्रेष्ठ नमिनाथ
शुभ और नेमिनाथ
प्रीति | वेध पार्श्वनाथ
शभ वर्धमान | महावीर पतिः एकनाथ वर्ण
वश्यं नक्षत्र शनि । मकर | शुद्र विनासिंह मनुष्यं च । धनिष्ठा पश्चिम
: : *
१॥ पशुभ प्रीति
| युजि
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
સેક
साधक अक्षर - गो, गौ ।
a. arsafa: तारा
स्वकीयं
६
विरुधं
८, १,३
ऋषभनाथ | अशुभ २ अजितनाथ
३ संभवनाथ
४ अभिनंदन
सुमतिनाथ अशुभ
पद्मप्रभु
७ सुपार्श्वनाथ
८ चंद्रप्रभु
अशुभ
६ सुविधिनाथ अशुभ १० शीतलनाथ
श्रेयांसनाथ
११
१२ वासुपूज्य
१३ | विमलनाथ | अशुभ १४ | अनंतनाथ १५ धर्मनाथ
१६ शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ अशुभ
२१ नमिनाथ २२ | नेमिनाथ २३ पार्श्वनाथ
२४ वर्धमान
महावीर
19
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
अशुभ
अशुभ मैली
१८ अरनाथ
१६ मल्लिनाथ अशुभ ! मैत्री
२० मुनिसुव्रत
मैत्री
अशुभ
अशुभ
योनि | वर्ग: । विशोपकः
अश्व क सभ्यं
महिष
राशि
एकनाथ
पति: कुंभ शनि मकर
स्वा
वर्णः
शुद्र
प
वैर
永永
वेर
♡
C
१॥
मि
देयं
77
●॥
३॥ वैर
स्व
० ॥
(1)
गणः
। राक्षसः
दे० न०
=
अशुभ
१॥
oll | बेर
१॥
शुभ
वैर
स्व
अशुभ
99
ܕ
स्वगण
वैर
་་
E
स्वगया
"
अशुभ
वश्यं बिना सिंहं मनुष्यं च
"
राशि
नाड़ी
कुंभ याद्य
कर्क | आद्यवेध
शुभ
श्रेष्ठतर
मध्यम
39
सम
प्रीति
शुभ
श्रेष्ठ
शुभ
=
"
श्रेष्ठ
स्वराशि | एकभ
अशुभ
शत्रु
शुभ
श्रेष्ठतर
अशुभ
शुभ
श्रेष्ठ
शुभ
प्रीति
शुभ
प्रीति
वेध
"
वेध
वेध
वेध
वेध
वेध
"
युजी
नक्षत्रं शतभिषा पश्चिम
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणा यंत्र 1
साधक अक्षर - घ १० सर्वस्वर सहितः ङ- १० स्वर सहितः ।
नं० । साध्यजिनः
योनि
विशोपक गणः राशि नाड़ी
स्वकीयं
६ वान
लभ्यं
मनुष्यः | मिथुन
विरुध्धं
८, १३ | हरिय
राक्षसः
स्व
साध्य नाम श्र
१ | ऋषभनाथ | अशुभ २ | अजितनाथ
३। संभवनाथ
४ अभिनंदन
५ सुमतिनाथ अशुभ
पद्मप्रभु
सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु
अशुभ वैर
सुविधिनाथ अशुभ | मैत्री १० | शीतलनाथ
११ | श्रेयांसनाथ
१२ | वासुपूज्य
१३ विमलनाथ
१४
१५ | धर्मनाथ
१६ शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ
तारा
अनंतनाथ
$3
मैथुन
अशुभ
१८ | अरनाथ
- १६ | मल्लिनाथ अशुभ
२०
मुनिसुव्रत
२१ नमिनाथ
अशुभ
२२ नेमिनाथ २३ पार्श्वनाथ २४वर्धमान
महावीर
श पतिः
बुध
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
"
एकनाथ वर्णः
कन्या शुक्र
वर्ग
क
प
वैर
१॥
कोट
INS
श्र
देयं
० ॥
० ॥
(2)
१॥
31
मध्यम
=
17
शुभ
३॥ मध्यम शत्रु
सम
अशुभ शुभ
A
अशुभ
स्वगण
मध्यम प्रीति
अशुभ
स्वगण
मध्यम
"
वश्यं विनासिंह धनं
"
12
"
वृ. क.
सभ
श्रेष्ठ
स्वराशि
शुभ अशुभ | श्रेष्ठ
मध्यम
"
श्रेष्ठतर
1 = ₫
स्व
12
मध्यम
श्रेष्ठ
11
शुभ
अशुभ श्रेष्ठतर
अशुभतर
मैं
शुभ
प्रीति
..
नक्ष
भाद्र
३६
प्राय
माद्यषेध
वेध
बेध
बेध
वेध
शुभ
श्रेष्ठतर वेष
Z
"
सुजी
मध्य
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद धारणायंत्र।
साधक अक्षर-च, चा, चि. ची।
साध्य
देय
गणः देव । मीन अंत्य राक्षस तुझा अंत्यवेध मध्यम श्रेष्ठतर भवेध
शुभ श्रेष्ठ
वेध
, cax xww
SAT
शुभ
श्रेष्ठतर
व्यम
अशुभ
शुभ
वेध
न. साध्यंजिनः । तारा । योनिः । वर्ग | विशोपक
६, हस्ति च लभ्य विरुध्धं । २,४,६ सिंह । २ । ऋषभनाथ अजितनाथ अशुभ संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ पनप्रभु सुपाश्वनाथ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ शीतलनाथ
भिशुभ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य
अशुभ विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ मरनाथ मल्चिनाथ मुनिसुव्रत प्रशम नमिनाथ नेमिनाथ पार्वनाथ वर्धमान
महावीर राशि पतिः एकनाथ! वो मीन गुरु
मध्यम
स्वराशि
6332323
मध्यम
: :
श्रेष्ठ
शुभ
वेध
स्वराशि एकभं
श्रेष्ठ
2: : :
सम
। मध्यम
2
नक्षलं । युजि रेवती । पूर्व
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अचर-चु, चू, चे, चे, चो. चो।
..
boll
मध्यम
MA
जामनन । भशुभ
.
नं. | साध्यंजिनः । तारा | योनिः । वर्गः। विशोपकः । गणः ! राशि | नाड़ी | स्वकीयं । १. भश्व च लभ्यं
पाथ विरुध्धं ३,५,७ महिष य देयं राक्षस कन्या । भृषभनाथ अशुभ
शुभ अजितनाथ | संभवनाथ
अशुभ अभिनंदन सुमतिनाथ पद्मप्रभु । भशुभ सुपार्श्वनाथ अशुभ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ | शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ
: श्रेष्ठतर! शांतिनाथ
स्वराशि के कंथुनाथ
अशुभ भरनाथ
श्रेष्ठ मल्लिनाथ
स्वराशि | We मुनिसुव्रत
: श्रेष्ठ । नमिनाथ
स्वराशि के २२, नेमनाथ
: शनु २१ पार्श्वनाथ
सम २४ वर्षमान अशुभ , महावीरस्वामी पतिः एकनाथ वर्ण
वश्यं
नक्षत युजि मेष | मंगल | वृधिक चलिय
अम्बिनी पूर्व
बेर
शुभ
-: : : : 42: : 442 A TA: : *. 4 :
-
"
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-छ १०।।
श्रेष्ठ
। १० । मध्यम
मध्यम
नं, साध्यं । तारा: ! योनिः । वर्ग: । विशोपक | गणः ' राशि । नाडी # स्वकीयं ६ श्वान । च लभ्यं मनुष्य मिथुन श्राद्य विरुध्धं ८,१,३ : हरिया
देयं : राक्षस व.क. प्राय १ ऋषभनाथ ! भशुभ
१ : स्व सम | গলিননাঙ্গ ३ संभवनाथ
स्वराशि । अभिनंदन
, . वेध ५. सुमतिनाथ अशुभ
| अशुभ - शुभ । ६ पद्मप्रभु
॥ ५ श्रेष्ठतर . सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु अशुभ वेर ह. सुविधिनाथ अशुभ मेली
अशुभ सम . शीतलनाथ
स्वगण ११ श्रेयांसनाथ
मध्यम प्रीति वासुपूज्य
अशुभ : मध्यम वेध विमलनाथ अशुभ
स्वगया ! श्रेष्ठ अनंतनाथ
| मध्यम ! .. धर्मनाथ अशुभ
अशुभतर शांतिनाथ : अशुभ
शुभ वेध कुंथुनाथ - अशुभ :
अशुभ · श्रेष्ठ . | भरनाथ मल्लिनाथ : अशुभ
१॥ , शुभ वेध । मुनिसुव्रत
२॥ (१॥). प्रीति । नमिनाथ গাল
शुभ वेध नेमनाथ
। श्रेष्ठतर पार्श्वनाथ
शुभ : २४ | वर्धमान अशुभ (वैर) (२). स्व श्रेष्ठतर वेध ,, महावीरस्वामी
१॥ ! , " राशि : पति: एकनाथ वर्ण
वश्यं
नक्षत्र मिथुन बुध कन्या । शुद्र विनासिंह धनं सूर्वे । मादा । मध्य
१
मध्यम
मराभ
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणा यंत्र |
साधक अक्षर ज १०(जुजूजेजैजोजो अभिजित्) (जजि १ भवेधः*)
योनिः वर्गः | विशोषक गणः
च लभ्यं
| साध्य नाम
साध्यं
तारा:
स्वकीयं ३ नकुल
विरुभ्धं ५,७,६ सर्प
:
१ ऋषभनाथ
२ अजितनाथ
३ | संभवनाथ
४ अभिनंदन
५ सुमतिनाथ
६ पद्मप्रभु
अशुभ
७ सुपार्श्वनाथ अशुभ चंद्रप्रभु
६ सुविधिनाथ
१०
शीतलनाथ
११ श्रेयांसनाथ
१२ | वासुपूज्य
१३ विमलनाथ
१४ अनंतनाथ
धर्मनाथ
१५ १६ शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ
१८ अरनाथ
"
मल्लिनाथ
१६
२० मुनिसुव्रत
२१
नमिनाथ
नेमनाथ
२२ २३ पार्श्वनाथ २४ वर्धमान
4
महावीर स्वामी
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
शि पतिः एकनाथ
मकर
शनि कुंभ
स्वा
वैर
वैर
वर्णः
वैश्य
य
वैर
(बैर)
१॥
३॥
२॥
=
देयं राक्षस
स्व
१॥
Fra =
21:
11
१॥
१11 (21)
१
राशि
मनुष्य भकर
१॥ अशुभ | शत्रु
मध्यम
23
१॥ अशुभ
१ ॥
स्वगणा
#
वश्यं कर्क मीन
31
31
मध्यम
अशुभ
स्वगया
मध्यम
""
नाडी
अंत्य
सिंह अंत्य
अशुभ | एक * वेध
अशुभ
(२) स्व
शुभ
प्रीति
""
मध्यम स्वराशिः ! वेध
श्रेष्ठ
शुभ
19
मध्यम
श्रेष्ठतर वेध
शुभ
अशुभ
33
अशुभ शुभ
मध्यम
"
सम
श्रेष्ठ
वेध
बेध
27
वेध
वेध
33
श्रेष्ठ
स्वराशि: । बेध
श्रेष्ठ
मध्यम
श्रेष्ठतर वेध
मध्यम
કર
युजि
नक्षत्रं उ० पा० ! पश्चिम
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
४४
श्रीबृहत् धारणायंत्र।
साधक अक्षर--भ-१०।
मध्य
साध्य नाम
। देयं
मध्य
-
-
-
___
<
:
16
कुवर
मध्यम
|
वेध
नं० । साध्यजिनः । तारा । योनि , वर्ग : विशोपक | गणः | राशि । नाही. स्वकीयं | ८ । मौ च लभ्यं
| मनुष्यः | मीन विरुध्धं १,३,५ | ज्यान
। राक्षसः
तुला ऋषभनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर अजितनाथ
शुभ संभवनाथ अशुभ
मध्यम श्रेष्ठ । भवेष अभिनंदन सुमतिनाथ
| अशुभ पद्मप्रभु
भवेध सुपार्श्वनाथ
शल चंद्रप्रभु सुविधिनाथ | अशुभ
अशुभ श्रेष्ठतर शीतलनाथ
स्वगया . वेध श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ वासुपूज्य
अशुभ अशुभ विमलनाथ स्वा वैर
स्वगण : स्वराशि एक अनंतनाथ
मध्यम धर्मनाथ
। मध्यम ! वेध शांतिनाथ
श्रेष्ठ कुंथुनाथ
शुभ अरनाथ
स्वराशिः मल्लिनाथ अशुभ मुनिसुव्रत नमिनाथ अशुभ नेमनाथ
| अशुभ | पार्श्वनाथ २४ वर्धमान अशुभ "महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ | वयोः
नक्षत्र युजी मीन । गुरु : धन ब्राह्मण
उ०भा० पश्रिम
अशुभ अशुभ
_
Toयम
श्रेष्ठ
कुवर
कुवर
सम
वश्यं
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
साध्य नाम
साधक अक्षर-ट, टा, टि, टी, टु, टू । ( ट ३, ६, २२. भवेधः ७)
नं० | साध्यजिनः तारा
योनि
वर्गः विशोषक:
स्वकीयं
२
उंदिर
ट
लभ्यं
विरुध्धं ४, ६, ८ बिडाल
ऋषभनाथ
२ अजितनाथ | अशुभ
३ संभवनाथ
४ अभिनंदन
५] सुमतिनाथ
६ पद्मप्रभु ७ सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु सुविधिनाथ
१०
शीतक्षनाथ
*
श्रेयांसनाथ | अशुभ १२ वासुपूज्य अशुभ
१३ विमलनाथ अशुभ
ع
૪
१५ धर्मनाथ
१६
१७
अनंतनाथ
शांतिनाथ
कुंथुनाथ
१८ भरनाथ
१६ मल्लिनाथ
99
२३ पार्श्वनाथ
२४ | वर्धमान
२० मुनिसुव्रत अशुभ
२१
नमिनाथ
२२ नेमनाथ
राशि
सिंह
महावीर स्वामी
अशुभ
पति:
सूर्य
अशुभ
एकनाथ
श्रीबृहद धारणायंत्र ।
०
कुवैर
मैत्री
वर्णः
क्षत्रिय
श
वैर
वैर
air trata
वैर
बेर
वैर
२॥
ल
२||
2
२॥
cr
ि
२॥
० ॥
(वैर) (२)
oll
देयं
m
=
० ||
२॥
२॥
MY
गणः 1 राशि
मनुष्य सिंह
राक्षसः मकर
स्व
19
मध्यम
54
"
अशुभ स्वराशि शुभ
37
22
मध्यम
अशुभ
स्वगण
मध्यम
39
अशुभ
स्वगण प्रीति
मध्यम
A
,
""
शुभ
अशुभ श्रष्ठ मध्यम प्रीति
अशुभ
शुभ श्रेष्ठ
शुभ
"
(२||) स्व
77
वश्य बिना धनं वृश्विकं सबै
शुभ
शुभ
शत्रु
सम
23
श्रेष्ठ
33
श्रेष्ठतर | वेध
शुभ
शत्रु
शुभ
11
४५
35
36
नाड़ी
मध्य
मध्य
वेध*
वेध*
वेध
वेध
वेध
वेध
नक्षत्रं । युजी
पू. फा०
मध्य
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
પદ્
साधक अक्षर-टे, टै।
साध्य जिन: तारा
स्वकीयं
विरुध्धं
साध्य नाम
ov
ऋषभनाथ
TY
२ : अजितनाथ
३ संभवनाथ
अशुभ
४ अभिनंदन अशुभ
५ सुमतिनाथ
Gy
७
८ चंद्रप्रभु ६ सुविधिनाथ
१०
११
१२ वासुपूज्य
१३
विमलनाथ
૪
१५ ! धर्मनाथ
१६
į
"
शीतलनाथ ।
श्रेयांसनाथ
राशि
सिंह
पद्मप्रभु
अशुभ कुवैर
सुपार्श्वनाथ अशुभ कुवैर
अनंतनाथ
१७ कुंथुनाथ
१८ | अरनाथ १६ : मल्लिनाथ
शांतिनाथ
२० मुनिसुव्रत
२१ नमिनाथ
५.७,६
पति:
सूर्य
अशुभ
अशुभ
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
२२ नेमनाथ अशुभ कुवैर २३ पार्श्वनाथ अशुभ कुवैर २४ वर्षमान
स्व
महावीर स्वामी
योनिः
गौ
व्याघ्र
एकनाथ
मेली
वा
क्षत्रिय
वर्ग विशोषक:
लभ्यं
ट
श
वैर
वैर
वैर
वैर
वैर
२॥
॥
79
3
Y
४
ि
스
11°
२॥
(वैर) (२)
3. 아
देयं
M
• 11
२॥
२॥
गा:
मनुष्य
राक्षस
स्व
22
मध्यम
"
अशुभ
"
>>
मध्यम
प्रशुभ
स्वगण
मध्यम
अशुभ
स्वगण
मध्यम
21
"
अशुभ मध्यम
17
23
در
(२॥ ) स्व
अशुभ
वश्यं
विना धनं वृश्चिकं सर्व
-
राशि
सिंह
मकर
शुभ
श्रेष्ठ
शुभ
"
स्वराशि
शुभ
23
श्रेष्ठतर
शुभ
"
शत्रु
सम
प्रीति
37
श्रेष्ठ
शुभ
श्रष्ठ
प्रीति
! शुभ
शत्रु
2,
शुभ
11
""
""
i
।
नाड़ी
आद्य
आद्य
भबंध
वेध
वेध
बंध
ધ
विध
एकभं
56
युजि
नक्षत्रं उ०फा० मध्य
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
देयं
KKU - साध्य नाम
मध्यम
16
साधक अक्षर-टो, टौ। नं० । साध्यजिनः : तारा : योनिः वर्ग: विशोपकः । गणः : राशि । नाड़ी | स्वकीयं : ३ गौ . ट लभ्यं मनुष्य , कन्या ! याद्य विरुध्धं : ५,७,ह व्याघ्र
राक्षसमेष आद्य भृषभनाथ
स्व । श्रेष्ठ अजितनाथ
: शुभ संभवनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर अभिनंदन अशुभ !
- " । वेष सुमतिनाथ ।
अशुभ: शुभ | पद्मप्रभु अशुभ
स्वराशि सुपार्श्वनाथ अशुभ
श्रेष्ठ चंद्रप्रभु
मध्यम शुभ सुविधिनाथ
अशुभ श्रेष्ठ वेध शीतलनाथ !
स्वगण श्रेयांसनाथ
मध्यम । मध्यम वासुपूज्य
अशुभ प्रीति वेध १३ | विमलनाथ
स्वगण । सम अनंतनाथ अशुभ
मध्यम धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ
शुभ भरनाथ : अशुभ
सम मल्लिनाथ
शल : वेध मुनिसुव्रतः
मध्यम : नमिनाथ
शत्र, वेध नेमिनाथ अशुभ
॥ अशुभ
स्वराशि पार्श्वनाथ : अशुभ .
श्रेष्ठ २४ वर्धमान
स्वराशि: एकभं , महावीरस्वामी राशिः पतिः ! एकनाथ वणः । वश्य
| नालं. युजि कन्या' बुध मिथुन वैश्य विनासिंहं धनं सर्वे उ.फा० मध्य
92
शुभ
ANI
न
कुवेर
.
(२)
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ठ-१० ।
देय
RNM
श्रष्ठ
मध्यम
नं. : साध्यजिनः । तारा । योनिः । वर्ग , विशोपकः । गणः । राशी । नाड़ी .. : स्वकीयं । ४ महिष | ट लभ्यं देव । कन्या भाद्य विरुध्धं ६,८,१ अश्व ! श .
मनुष्य । मेष भाद्य । अषभदेव | अजितनाथ
। शुभ संभवनाथ
। श्रेष्ठतर अभिनंदन
" | भवेध सुमतिनाथ
शुभ पद्मप्रभु
स्वराशि सुपार्श्वनाथ
श्रेष्ठ चंद्रप्रभु अशुभ
स्व शुभ सुविधिनाथ | अशुभ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य | अशुभ विमलनाथ | अशुभ अनंतनाथ धर्मनाथ । भशुभ शांतिनाथ
। अशुभ कुंथुनाथ भरनाथ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाय
अशुभ नेमनाथ पार्श्वनाथ वर्धमान
(२) मध्यम । स्वराशि भवेध " महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ वर्षः
वश्यं
नक्षत' युजी कन्या बुध मिथुन । वैश्य बिनाहिंधने हस्त | मध्य
: : *. 4. : : 12: : अ में 11
मध्यम । सम
स्व
अशुभ
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
साधक अक्षर-ड, डा।
haias
Nmxx2
श्रेष्ठ
कुर
स्व
नं. | साध्यजिनः। तारा | योनिः । वर्गः |
गणः । राशि | नाड़ी स्वकीयं । ८ मेष ट लभ्यं देव । कके मध्य विरुध्धं । १,३,५, वानर श
| देयं । राक्षस मि० कुं० मध्य ऋषभनाथ । अशुभ
मध्यम । प्रीति अजितनाथ
शुभ संभवनाथ अशुभ
अशुभतर) भवेध अभिनंदन | सुमतिनाथ अशुभ । पद्मप्रभु
शुभ भवेध ७ सुपार्श्वनाथ
श्रेष्ठ ८ चंद्रप्रभु
मध्यम मुविधिनाथ | अशुभ
प्रीति शीतलनाथ
मध्यम श्रेयांसनाथ
सम वासुपूज्य
शत । विमलनाथ
मध्यम | मध्यम | वेध १४ | अनंतनाथ । धर्मनाथ
स्वराशि एक | शांतिनाथ अशुभ
श्रेष्ठतम कुंथुनाथ अशुभ । मैली अरनाथ
मध्यम | मल्लिनाथ । अशुभ
श्रेष्ठतर मुनिसुव्रत २१ । नमिनाथ
श्रेष्ठतर | नेमिनाथ अशुभ
शुभ । भवेध पार्श्वनाथ
श्रेष्ठ २४ वर्धमान अशुभ
शुभ महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ वोः
वश्य
नक्षत्र ___ कर्क चन्द्र । . ब्राझमा
मध्य
स्वा
:
शुभ
११
सम
अशुभ
चन्द्र
पुष्य
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृ धारणाया।
साधकअक्षर-डि डीडुडू डे डैडोडो(डि डी१पाद७-१७-२३भवेध)
नं.
.
-...-
.
.
साध्या
शा
गयः | राशि नाही रावसः। कर्क मंत्व दे. म. मि० कु. अंत्य अशुभ । प्रीति भवेषक
| शुभ वेध अशुभतर]
| वेध
*: : :
श्रेष्ठ शुभ श्रेष्ठ मध्यम
वे
प्रांति
सायं ! तारा । योनि । स्वकीयं । हविटाक्ष टस विरब्धं २,४६ उंदिर भृषभनाथ मजितनाथ भशुभ संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ पभप्रभु सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ भशुभ वासुपूज्य अशुभ विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ भरनाथ मल्सिनाथ मुनिसुव्रत अशुभ नमिनाथ नेमनाथ पार्श्वनाथ वर्धमान महावीरस्वामी
*
मध्यम
वैध
: *
स्वराशिः श्रेष्ठतर
वेष वेध
: *
(वेर) (२)
मध्यम । श्रेष्टतर
सम श्रेष्ठतर शुभ
२३
वेध*
*
एकनाथ
दाः
ৰাৰ
नवने । युजी पश्तेषा मन्य -
M
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
साधक अक्षर-ढ १० ।
नं साध्यं तारा:
स्वकीयं
विरुध्वं ४,६,८
साभ्यं नाम
ऋषभनाथ
२ अजितनाथ अशुभ
३ संभवनाथ
४ अभिनंदन
५ | सुमतिनाथ
६ पद्मप्रभु
७ | सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु सुविधिनाथ
१.
शीतलनाथ
११ श्रेयांसनाथ
१२ वासुपूज्य १२ | विमलनाथ
१४ | अनंतनाथ
१५
धर्मनाथ
शांतिनाथ
F १७ | कुंथुनाथ
१८ अरनाथ
२६ मल्लिनाथ
२० मुनिसुव्रत २१ नमिनाथ
२२ नेमनाथ २३ पार्श्वनाथ
२४ वर्धमान
महावीरस्वामी
प्रशुभ
अशुभ
अशुभ
भशुभ
भशुभ
अशुभ
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
योनिः
बानर ट
मेष श
स्वा
मैली
वैर
वैर
मैली
39
राशि पति: एकनाथ वर्ण
धन
गुरु
मीन
क्षत्रिय
वर्ग: । सभ्यं देयं
वैर
वैर
वैर
२॥
वैर
२॥
ه
२॥
R
永和取
BY
२॥
.11
२॥
(वैर) (२)
.||
० ॥
W
=
गणः
मनुष्य
राक्षस
स्व
वश्यं
सर्वे
29
मध्यम
33
अशुभ
""
"
मध्यम
"
23
अशुभ
मध्यम
"
अशुभ | स्वराशि
स्वगण
२॥
मध्यम
२|| | अशुभ
स्वगण
मध्यम
$7
515
33
(२il) स्व
राशि
धनुः
बुधम
स्वराशि
"3
श
सम
:3
शुभ
श्रेष्ठ
शुभ
श्रेष्ठ
""
प्रीति
शुभ
शत्रु
श्रेष्ठतर
शुभ
अशुभ
37
अशुभ
शुभ
श्रेष्ठतर | वेध
वेध
शुभ २३
श्रेष्ठ
39
५१
नाडी
मध्य
मध्य
शुभ
अशुभ श्रेष्ठ २२ मेघभ
नक्षत्रं
पु० षा.
भवेध
भवेध
बेध
एकभं
"
युजी
पश्चिम
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
પર
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ण-१०।
Kns साध्य नाम
शुभ
शुभ
rer,
21 - १
साध्यं । तारा । योनिः । वर्ग | विशोपकः । गयाः । राशी । नाड़ी स्वकीयं महिष ट लभ्यं देव
| माद्य विरुध्धं ।६,८,१ अश्व
! देयं ! मनुष्य मेष भाष ऋषभदेव
मध्यम श्रेष्ठ अजितनाथ संभवनाथ
श्रेष्ठतर अभिनंदन सुमतिनाथ | अशुभ पद्मप्रभु
स्वराशि सुपार्श्वनाथ
श्रेष्ठ चंद्रप्रभु ! अशुभ सुविधिनाथ ! अ
श्रेष्ठ शीतलनाथ
मध्यम श्रेयांसनाथ
मध्यम वासुपूज्य अशुभ
वेर
प्रीति वेश विमलनाथ अशुभ अनंतनाथ धर्मनाथ । अशुभ शांतिनाथ अशुभ कुंथुनाथ अरनाथ मल्लिनाथ : अशुभ
शत्रु २० मुनिसुव्रत
मध्यम २१ नमिनाथ ! अशुभ ।
शत्रु नेमनाथ
वैर स्वराशि पार्श्वनाथ २४ | वर्धमान
मध्यम । स्वराशि वेध ,, महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ ! वर्णः
वश्यं
नक्षल ! युजी कन्या बुध मिथुन / वैश्य विनासिंह धनं
वैर
मध्यम
सम
। श्रेष्ठ
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
साधक अक्षर-त ता
साध्य नाम 4.
१ ऋषभनाथ अशुभ
२ अजितनाथ
३। संभवनाथ
४ अभिनंदन
५ सुमतिनाथ अशुभ
साध्यं तारा:
स्वकीयं
६
विरुध्धं
८,६,३
पद्मप्रभु
७ सुपार्श्वनाथ
चंद्रप्रभु
अशुभ
सुविधिनाथ अशुभ १० शीतलनाथ
११ श्रेयांसनाथ
ir
१२ वासुपूज्य १३ | विमलनाथ
१४ अनंतनाथ १५ धर्मनाथ
१६ शांतिनाथ
१७ | कुंथुनाथ
१८ | अरनाथ
१६ मल्लिनाथ
२० मुनिसुव्रत
२१ | नमिनाथ
२२ नेमनाथ
२३ पार्श्वनाथ
२४ वर्धमान
"
i
| महावीरस्वामी
पति:
राशि
तुला शुक्र
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
36
"
एकनाथ
वृषम
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
योनिः
महिष
अश्व
वैर
वैर
वैर
वैर
वर्णः
शुद्र
वर्ग: विशोषक
ल लभ्यं
अ
कुवैर २
कुवैर २
१॥
कुवैर
कुवेर
कुवैर
१॥
१२॥
१॥
१॥
& = =
727
देयं
१॥
राशि
तुला
राक्षस मीन
मध्यम
गणः
देव
35
स्व
स्व
वैर
मध्यम
स्व
वैर
मध्यम
स्व
वैर
स्व
वैर
"
मध्यम
वश्यं विनासिंहं मनुष्यंच
99
शुभ
प्रीति
शुभ
अशुभ
शुभ
31
श्रेष्ठ
स्वराशिः । वेध
शुभ
शत्रु
श्रेष्ठ
सम
प्रीति
13
श्रेष्ठतर ! वेध
शत्रु
सम
श्रेष्ठतर
५३
नाडी
अंत्य
अंत्यवेध
भषेध
वेध
"1
वेध
नक्षत्रं
स्वाति
बेध
वेध
वेध
सम
श्रेष्ठ
स्वराशिः | वेध
श्रेष्ठ
वेध
युजि
मध्य
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ति ती तु तू ते ते।
साध्य नाम ।
शुभ
बेध
मैली
x x wo is w
१०
अशुभ
साध्य । तारा । योनिः । वर्ग | विशोपकः । गणः राशि । नाड़ी। स्वकीयं । ७ व्यान त सभ्य राक्षस । तुला अंत्य विरुध्धं १,२,४ गौ । प्र! ! देयं
मीन अत्यवेध ऋषभनाथ कुदर २ ।
भवेध अजितनाथ । अशुभ
प्रीति | संभवनाथ
अभिनंदन सुमतिनाथ पद्मप्रभु
श्रेष्ठ | सुपार्श्वनाथ स्वा
स्वराशि एक चंद्रप्रभु
अशुभ सुविधिनाय
शुभ शीतलनाथ | अशुभ श्रेयांसनाथ
श्रेष्ठतर वेध वासुपूज्य
शुभ विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ | कुंथुनाथ
| स्वगया भरनाथ | গয় मल्लिनाथ मुनिसुव्रत
श्रेष्ठतर वेध नमिनाथ
सम नेमनाथ
श्रेष्ठ २३ पार्श्वनाथ
स्वराशि एकभं २४ वर्धमान
| श्रेष्ठ , महावीरस्वामी राशि पति: एकनाथ
नक्षल : युजि तुला| शुक वृषभ | शुद्र विना सिंह मनुष्यंचविशाखा मध्य
वैर
तात
सम
भशुम
स्वगया
Est
वश्य
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रोहह धारणायंत्र।
साधक अक्षर-तो तो।
शक्षिक
_
m+2019
Irti
.
नं.। साध्य तारा , योनिः । वर्गः। विशोपकः : गयः ! राशि । नाड़ी। स्वकीयं
व्याघ्र त लयं राक्षस | विरुध्धं | १,२,४ । गौ । अ
| दे०म० मिथुन अंत्यवेष १ ऋषभनाथ
अशुभ श्रेष्ठ पादवेष २ : अजितनाथ अशुभ ।
सम वेष ३ संभवनाथ ४ अभिनंदन ५ : सुमतिनाथ
श्रेष्ठतर | वेष पप्रप्रभु
शुभ ७ सुपार्श्वनाथ
अशुभ । एकभं चंद्रप्रभु
स्वराशि सुविधिनाय
श्रेष्ठ शीतलनाथ अशुभ
भशुभ श्रेयांसनाथ पशुम
। शुभ वासुपूज्य
श्रेष्ठ विमलनाथ
अशुभ शुभ अनंतनाथ अशुभ धर्मनाथ
मध्यम शांतिनाथ
"
प्रीति कुंथुनाथ
सम भवेष १६ अरनाथ १६ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत
शुभ वेध २१ । नमिनाय
प्रीति नेमनाथ
स्वगय शुभ २३ / पार्श्वनाथ
मशुभ ! एकम २४ ! वर्धमान
शुभ ,महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ
वश्य
नक्षतं । युजि दृषिक मंगल मेष | ब्राझा
सिंह | विशाखा मध्य
. .
१७
स्वगण
वेध
भीति
२२
• •
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणापत्र।
साधक अक्षर-थ-१०।
-
-
-
-
-.
.
-
.
नाम
साध्य
KK
| अशुभ
सम
16
कुवर
। मध्यम
3
बेध .
नं० ।
साध्य । तारा । योनि । वर्ग विशोपक, गणः । राशि नाही स्वकीय
लभ्यं मनुष्यः | मीन मध्य विरुध्धं | १,३,५ | व्याघ्र अ प्र देयं । राक्षसः
राक्षसः । तुला मध्यवेध ऋषभनाथ अशुभ
स्व ! श्रेष्ठतर अजितनाथ
" ! शुभ संभवनाथ | अशुभ
मध्यम । श्रेष्ठ । भवेध अभिनंदन सुमतिनाथ
| प्रीति पनप्रभु
भवेध | सुपाश्वनाथ
| शन चंद्रप्रभु
शुभ वेध सुविधिनाथ अशुभ
अशुभ । श्रेष्ठतर शीतलनाथ
स्वगण श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ वासुपूज्य
अशुभ अशुभ विमलनाथ
स्वगप
स्वराशि एकभं अनंतनाथ
मध्यम धर्मनाथ शांतिनाथ अशुभ
श्रेष्ठ कुंथुनाथ अशुभ
शुभ अरनाथ
मध्यम मल्लिनाय अशुभ मुनिसुव्रत
शुभ नमिनाथ अशुभ नेमनाथ
। भवेध २३ पार्श्वनाथ
शल २४ | वर्धमान । अशुभ | मैत्री , महावीरस्वामी , राशि पतिः एकनाथ | वर्णः
नक्षतं युजी मोन । गुरु धन ब्राह्मण
उ०भा० पश्रिम,
स्वा
मध्यम
।
स्वराशिः!
श्रेष्ठ
श्रेष्ठ ।
सम
वश्यं
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-द, दा।
साध्य
| वेध
शुभ
शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ अशुभ
नं. साध्यजिनः । तारा - योनिः ' वर्गः / विशोपक | गणः । राशि | नाड़ी | स्वकीयं । सिंह त सभ्यं | मनुष्य । कुंभ । भाद्य विरुध्धं ६,२,४ हस्ति : अ । देयं ! राक्षस कके
आद्यवेध मृषभनाथ
स्व । शुभ अजितनाथ अशुभ ।
। श्रेष्ठतर संभवनाथ
मध्यम ! मध्यम अभिनंदन सुमतिनाथ
अशुभ सम पद्मप्रभु
। प्रीति सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभु
मध्यम । श्रेष्ठ सुविधिनाथ
अशुभ स्वगण
मध्यम ! श्रेष्ठ वासुपूज्य
स्वराशि वेध विमलनाथ
स्वगण । अशुभ अनंतनाथ अशुभ ! वैर कुवर धर्मनाथ शांतिनाथ
| शुभ कुंथुनाथ
श्रेष्ठत्तर अरनाथ अशुभ ! वैर कुवेर २
ध्यम
| भशुभ मल्लिनाथ
| शुभ मुनिसुव्रत । अशुभ
। श्रेष्ठ नमिनाथ नेमिनाथ
पार्श्वनाथ २४ वर्धमान , महावीरस्वामी राशि: पति: एकनाथ, वयः
नक्षत्र | युजि कुंभ शनि | मकर । शुद्र ! विनासिंह मनुष्यंच पु० भा० पभिम
अशुभ
मध्यम "
| शलु
शभ
शुभ
वश्य
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-दि दी।
anal
!
।
"
: मध्यम
भवेध
शीतलनाथ | अशुभ
नं. __ साध्य । तारा । योनि । वर्ग ! विशोपक गणः राशि । नाड़ी स्वकीयं सिंह . त लभ्यं
: मनुष्यः। मीन आय विरुध्धं ६,२,४ | हस्ति :
अ
देयं राक्षसः । तुला आद्यवेध भृषभनाथ
श्रेष्ठतर अजितनाथ अशुभ
शुभ संभवनाथ
श्रेष्ठ अभिनंदन
कुवेर २
, सुमतिनाथ
१॥ अशुभ । प्रीति ! ६ पद्मप्रभु
| 01 , सम सुपाश्वनाथ
: :१॥
" ! शनु चंद्रप्रभु
: मध्यम । शुभ सुविधिनाथ
अशुभ । श्रेष्ठतर | वेध १.
: स्वगगा
। श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ । वासुपूज्य
अशुभ : अशुभ : वेध विमलनाथ
स्वगण । स्वराशि अनंतनाथ अशुभ वैर कुवैर : २ धर्मनाथ
मध्यम शांतिनाथ
! श्रेष्ठ वेध कुंथुनाथ
शुभ अरनाथ अशुभ । वेर
स्वराशिः मल्लिनाथ ! मुनिसुव्रत नमिनाथ नेमनाथ पाश्वनाथ वर्धमान
भवेध महावीरस्वामी राशि पतिः । एकनाथ | वर्णः
वश्य
| नक्षत्रं । युजो मोन । गुरु धन | ब्राह्मण
पू०भा० पश्रिम
मध्यम
,
। अशुभ
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-दु दू ।
साध्य नाम
in
अशुभ
प्रशभ
प्रीति
x wo is waa
साध्य ! तारा । योनिः । वर्ग विशोपकः । गण: राशि । नाड़ी स्वकीयं । ८ गौ त लभ्यं मनुष्य | मीन । मध्य विरुध्धं १, ३,५ व्याघ
| अ
देयं राक्षस । तुला मध्य ऋषभनाथ । अशुभ
स्व श्रेष्ठतर লিনাথ
शुभ संभवनाथ
मध्यम श्रेष्ठ वेध अभिनंदन सुमतिनाथ अशुभ पद्मप्रभु अशुभ । कुवर
समवेध सुपार्श्वनाथ ! कुवर
शत्रु चंद्रप्रभु
मध्यम सुविधिनाथ । अशुभ
अशुभ श्रेष्ठतर | शीतलनाथ
स्वगण श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ १२ वासुपूज्य
अशुभ | विमलनाथ
स्वगया स्वराशि एकभं | अनंतनाथ १५ / धर्मनाथ
मध्यम १६ । शांतिनाथ ময়ম | कुंथुनाथ
अशुभ शुभ अरनाथ
मध्यम स्वराशि मल्लिनाथ
श्रेष्ठ मुनिसुव्रत
शुभ नमिनाथ अशुभ
श्रष्ठ नेमनाथ अशुभ पार्श्वनाथ
शस्त्र २४ वर्धमान अशुभ
.महावीरस्वामी , राशि पतिः एकनाथ | वर्ण
वश्यं
नक्षलं | युजि मीन गुरु धन ब्राह्मण
उ. भा० परिश्रम
। स्वा
मध्यम
श्रेष्ठ
१||
अशुभ
वेध
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
साधक अक्षर - दे दे दो दो ( दे दै १ पाद ७-१७- २३भवेध)
नं० साध्यं
तारा योनि वर्गः विशोषक गया: राशि नाड़ी
देव
मीन अंत्य
राक्षसः
मध्यम
साध्य नाम
ऋषभनाथ
२ अजितनाथ अशुभ
संभवनाथ
अभिनंदन
सुमतिनाथ
४
स्वकीयं ह
विरुधं २,४,६
८ चंद्रप्रभु
६ सुविधिनाथ
१०
शीतलनाथ
अशुभ
११
श्रेयांसनाथ अशुभ
१२
अशुभ
१३
* १५ धर्मनाथ
१६ शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ
२१
२२
२३
२४
पद्मप्रभु सुपार्श्वनाथ
99
१८
अरनाथ
१६ मल्लिनाथ
२०
वासुपूज्य
विमलनाथ
अनंतनाथ
भुनिसुव्रत
नमिनाथ
नेमनाथ
पार्श्वनाथ
वर्धमान
महावीरस्वामी
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
अशुभ
हस्ति
सिंह
स्वा
स्वा
शि पतिः एकनाथ | व:
मीन
गुरु
धन
ब्राह्मण
त लभ्यं
अ
कुवेर २
कुवैर २
१॥
| कुवैर | २
१॥
कु
कुवैर
१॥
१॥
१॥
० ॥
० ॥
°
(१)
॥
देयं
१॥
वश्य
37
स्व
"3
वैर
""
">
西敬
स्व
वैर
मध्यम
स्व
वैर
मध्यम
स्व
54
*
स्व
"
31
取
;
2
1
तुला
श्रेष्ठतर : भवेध
वेध
शुभ
श्रेष्ठ
39
प्रीति
सम
शत्रु
शुभ
श्रेष्ठतर
"
शुभ
AR
शुभ
श्रेष्ठ
सम
शत्रु
37
मध्यम सम
21
मध्यम श्रेष्ठ
अशुभ स्वराशि: ।
त्यवेध
| वेध
नक्षल रेवती
वेध*
| वेध
वेध*
शुभ स्वराशि ] एकभ
श्रेष्ठ
एकभं
| वेध
वेध*
युजी
पूर्व
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ध १०।
T
:"
"""
"
--------
स्वराशि
स्वा
न साध्यं । ताराः ! योनिः । वर्ग: ! विशोपक | गयाः । राशि । नाडी
: स्वकीयं २ बानर । त लभ्य । मनुष्य १ धनुः । मध्य : विरुधं ४,६,८ , मेष । अ
राक्षस ! वृषम । मध्यवेध १ : ऋषभनाथ २ अजितनाथ ! अशुभ .
शन | संभवनाथ
मध्यम अभिनंदन ५ । सुमतिनाथ ६ । पद्मप्रभु ७ सुपाश्वनाथ ८. चंद्रप्रभु अशुभ
मध्यम ह सुविधिनाथ !
अशुभ स्वराशि १. शीतलनाथ
। स्वगण , एकभं ११ । श्रेयांसनाथ । अशुभ .
। मध्यम । अशुभ १२ । वासुपूज्य
अशुभ ] शुभ १३ | विमलनाथ
स्वगया श्रेष्ठतर : वेध १४ अनंतनाथ
मध्यम १५ धर्मनाथ अशुभ वैर
प्रीति वेध १६ । शांतिनाथ
शुभ । २७ कुंथुनाथ
॥ अशुभ १६ अरनाथ
| श्रेष्ठतर १६ । मल्लिनाथ
शुभ . २० । मुनिसुव्रत अशुभ मैत्री ।
| अशुभ २१ नमिनाथ
शुभ २२ : नेमनाथ
श्रेष्ठ २२ वेध २३ पार्श्वनाथ
शुभ २३ २४ वर्धमान
श्रेष्ठ "महावीरस्वामी आशि पति: एकनाथ, वर्ण
नक्षलं । युजी धिन : गुरु: मीन क्षत्रिय ।
पु. पा. पश्चिम
................. .----
शत्र
मध्यम
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रोवृहद् धारणापत्र।
साधक अक्षर-न ना नि नी नुन ने नै ( न नि ३-६-२२ भवेधः)
-
---- -
- -
-
साध्य नाम
*
oo u w
मध्यम
नं ) माध्यं । तारा: । योनिः । वर्ग: . विशोपक ! गयाः । राशि नाडी । स्वकीयं । ८ हरिण | त । लभ्य देव । वृश्चिक मध्य
विरुध्धं । १,३,५ . श्वान । म देयं । राक्षस मिथुन मध्यवेध ऋषभनाथ | अशुभ
अशुभ : कुर २ मध्यम ! श्रेष्ठ अजितनाथ कुवैर २ :
सम संभवनाथ अशुभ
शत्र ! वेध* अभिनंदन सुमतिनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर पद्मप्रभु अशुभ सुपार्श्वनाथ
| भशुभ चंद्रप्रभु स्वा
स्वराशिः सुविधिनिाथ अशुभ कुवेर शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य
ਆਨ विमलनाथ १४ अनंतनाथ
कुवर १५ धर्मनाथ १६ शांतिनाथ
प्राति १७ कुंथुनाथ १८ अरनाथ १९ मल्लिनाथ २० मुनिसुव्रत २१ नमिनाथ
नेमनाथ | पार्श्वनाथ २४ वर्धमान , महावीरस्वामी , राशि पतिः एकनाथ वर्णः
नक्षत्र वृधिक | मंगल मेष ! ब्राह्मण
अनुराधा मध्य
मध्यम
शुभ
मध्य
:
:: :
हाभ
मध्यम
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रोवृह वारणायंत्र।
साधक अक्षर-नो नौ।
नं. : साध्यं : तारा - स्वकीयं
विरुध्धं . २,४,६ । ऋषभनाथ
योनिः : वर्गः। विशोपकः : गणः । राशि नाड़ी हरिण तलभ्यः ! राक्षस वृधिक पाद्य श्वान अ
दे० म० मिथुन माद्यवेष अशुभ श्रेष्ठ
hai
। भजितनाथ अशुभ
शत
: 4 : ..
श्रेष्ठतर
। शुभ
| अशुभ
स्वराशि
१२ वासुपूज्य
शुभ
संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ
पद्मप्रभु ७: सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु
सुविधिनाथ : शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ
अशुभ
अशुभ विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ
शांतिनाथ १७ कुंथुनाथ
অনাথ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाथ नेमनाथ पार्श्वनाथ वर्धमान महावीरस्वामी
: *
मध्यम
प्रीति
सम
: : : *
शुभ
भवेष
वश्य
पशि E
पतिः । एकनाथ वर्ण मंगल। मेष ब्राह्मण
सिंह
नवलं युजि ज्येष्ठा ! पश्चिम
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबाहद् धारणायंत्र ।
--
--
----
--
-
-
*."
"..-----
-
---
साध्य
*
मध्यम
स्वगधा
साधक अक्षर-पपा पि पी। नं. साध्यं : तारा : योनिः वर्ग विशोपकः । गणः । राशी । नाड़ी #. स्वकीयं . ३ . गोपलभ्यं मनुष्य । कन्या ! आद्य विरुध्धं ५,७,९ व्याघ्र
देयं : राक्षस , मेष भाद्यवेध ऋषभदेव
| श्रेष्ठ अजितनाथ
. २॥ , शुभ ३ संभवनाथ
१ मध्यम । श्रेष्ठतर अभिनंदन अशुभ
: वेध सुमतिनाथ
अशुभ शुभ | पद्मप्रभु अशुभ . कुवर
स्वराशि सुपार्श्वनाथ अशुभ : कुवर
श्रेष्ठ ८ चंद्रप्रभु
॥ मध्यम शुभ सुविधिनाथ
मशुभ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ
मध्यम मध्यम वासुपूज्य
अशुभ प्रीति | वेध विमलनाथ अनंतनाथ अशुभ
मध्यम धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ
कुवर मरनाथ
सम मल्लिनाथ
शत मुनिसुव्रत
मध्यम ! नामिनाथ
शत्रु वेध २२ नेमनाथ अशुभ कुवर
स्वराशि :
श्रेष्ठ । वर्धमान
स्वराशि एकम , महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ वणः
वश्यं
नक्षत्र युजी कन्या बुध मिथुन । वैश्य विनासिंह धन उ. फा. मध्य
मंत्री
स्वगण
उम
* * * * * * * * * * * * * * *
| पार्श्वनाथ | अशुभ
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर--पु पू।
कन्या प्राध
| शुभ
नं. साध्यं । तारा । योनिः । वर्ग : विशोपकः । गणः । राशी नाड़ी . स्वकीयं । ४ । महिष , प ! लभ्यं देव विरुध्धं ६,८,१ अश्व
| राक्षस , मेष भाद्यवेध १ भृषभदेव
मध्यम श्रेष्ठ अजितनाथ
शुभ | संभवनाथ
श्रेष्ठतर अभिनंदन
, वेध सुमतिनाथ पद्मप्रभु
অষি। सुपार्श्वनाथ
श्रेष्ठ चंद्रप्रभु अशुभ
स्वशुभ | सुविधिनाथ | अशुभ
। श्रेष्ठ । शीतलनाथ
मध्यम । श्रेयांसनाथ
मध्यम वासुपूज्य | अशुभ | विमलनाथ | अशुभ
अनंतनाथ धर्मनाथ
अशुभ शांतिनाथ कुंथुनाथ अरनाथ
सम मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाथ
शत्रु नेमनाथ | पार्श्वनाथ
श्रेष्ठ २४ वर्धमान
स्वराशि | वेध , महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ वर्णः
वश्य
युजी कन्या बुध मिथुन / वैश्य विनासिंहं धन सर्वे
प्रीति
मध्यम ।
सम
१
| अशुभ | वैर
-
......... ...
': : : 1
मध्यम
वेध
.----.
स्वराशि
मध्यम
नक्षन्न
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
K
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
साधक अक्षर-पे, पै, पो, पौ।
TIAN
शुभ
» Kaur,
*: : * : * :
स्वा
मैत्री
शुभ ।
| साध्यजिनः ! तारा । योनिः । वर्ग: | विशोपक | गणः | राशि । नाड़ी ।
स्वकीयं ५ व्याघ्र । ५ लभ्यं राक्षस कन्या | मध्य विरुध्धं ७,६,२ गौ ! क
दे. म. मेष ! मध्यवेध ऋषभनाथ
अशुभ श्रेष्ठ স্মরিনাথ संभवनाथ
श्रेष्ठतर वेध अभिनंदन अशुभ सुमतिनाथ पद्मप्रभु
स्वराशि एकभं सुपार्श्वनाथ | अशुभ
श्रेष्ठ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ
श्रेष्ठ शीतलनाथ अशुभ
अशुभ श्रेयांसनाथ
मध्यम वासुपूज्य
प्रीति विमलनाथ
अशुभ सम अनंतनाथ अशुभ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ
स्वगण शुभ प्ररनाथ मल्लिनाथ
शत्रु मुनिसुव्रत
मध्यम नमिनाथ
शत्रु नेमिनाथ
स्वराशि एक पार्श्वनाथ अशुभ
श्रेष्ठ २४ वर्धमान
स्वराशि , महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ, वयः
वश्य
नक्षत्रं । युजि कन्या बुध
| वैश्य । विनासिंह धनं सर्वे चिना | मध्य
: *
१ शुभ
सम
:: : *
"
अशुभ
मिथुन
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
साधक अक्षर-फ १० ।
મ
साध्यं नाम
i
ऋषभनाथ
२ अजितनाथ अशुभ
३ | संभवनाथ
४ अभिनंदन
५ सुमतिनाथ
६ पद्मप्रभु
७ सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभु
६ सुविधिनाथ १० शीतलनाथ
११ श्रेयांसनाथ
साध्यं
तारा: योनिः
स्वकीर्यं
२
वानर
विरुध्धं ४,६,८
मेष
१२ | वासुपूज्य १३ विमलनाथ
राशि
धन
२२ नेमनाथ २३ पार्श्वनाथ
२४ वर्षमान
" महावीरस्वामी
अशुभ
१४ अनंतनाथ १५ | धर्मनाथ १६ | शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ
१८ मरनाथ
१६ मल्लिनाथ
२० मुनिसुव्रत अशुभ २१ नमिनाथ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
पति: एकनाथ
गुरु
स्वा
मेली
वैर
बेर
मैत्री
वर्ण
मीन क्षत्रिय
वर्ग: ! विशोषक
प
लभ्यं !
क
कुवैर
o ||
(१)
(-11)
देयं
२॥
२॥
२॥
१॥
• |}
२॥
ཡཱ ཐཱ
वश्यं
सर्वे राशयः
राशि
नाडी
धनुः मध्य
वृषभ मष्यवेध
स्वराशि
13
शत्रु
मध्यम सम
गणः
मनुष्य
राक्षस
स्व
33
अशुभ
F
41
"
मध्यम
शुभ
श्रेष्ठ
अशुभ स्वराशि
स्वगया
मध्यम
अशुभ
स्वगया
मध्यम
"
15
अशुभ
मध्यम
"7
""
44
अशुभ
33
"
शुभ
श्रेष्ठ
स्व
13
33
प्रीति
शुभ
शत्रु
श्रेष्ठतर
शुभ
अशुभ
अशुभ
शुभ श्रेष्ठतर वेध
शुभ श्रेष्ठ
शुभ श्रेष्ठ
23
भवेध
नक्षत्रं
पु० षा
भवेध
वेध
एकभं
वेध
भवेध
युजी
पश्चिम
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
६८
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ब, बा, बि, बी, बु, बू।
साध्य नाम
मध्यम
| अशुभ
ने० साध्य । तारा | योनि : वर्ग ! विशोपक । गयाः राशि । नाड़ी
स्वकीयं । ४ । सर्पप सभ्य मनुष्यः वृषभ अंत्य विरुध्धं |६,८,१ नकुल । क ! | राक्षसः । धन अंत्यवेध ऋषभनाथ
शत्नु वेध अजितनाथ
। स्वराशि एकभं संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ । पद्मप्रभु
सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभु अशुभ
मध्यम सुविधिनाथ अशुभ
अशुभ शत्रु शीतलनाथ
स्वगया श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ । वासुपूज्य अशुभ
अशुभ श्रेष्ठतर विमलनाथ अशुभ
स्वगया
शुभ अनंतनाथ
मध्यम धमेनाथ अशुभ
अशुभ कुंथुनाथ
अशुभ भरनाथ
मध्यम मल्लिनाथ
| अशुभ | मुनिसुव्रत २१ | नमिनाथ
अशुभ २२ नेमनाथ २३ / पाश्वनाथ वर्धमान
शुभ "महावीरस्वामी राशि पति: एकनाथ | वर्णः
नक्षतं । युजी वृष । शुक्र ! तुक्षा | वैश्य
मेष
रोहिणी पश्रिम
| शांतिनाथ
शुभ
वेध
भशभ
शुभ
शुभ
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
hei2
स्वा
mr
x
x aur,
शुभ
------------ ---- -----
शल
मध्यम
साधक अक्षर-बे बै बो बौ।
साध्य तारा । योनि । वर्ग: विशोपक | गणः । राशि | नाड़ी। स्वकीयं
सपे । पलभ्यं देव । वृषभ मध्य विरुध्धं । ७,६,२ नकुल । क
राक्षसः। धन | मध्यवेध ऋषभनाथ कुवैर
मध्यम शत्रु अजितनाथ | भैत्री
स्वराशि ३ | संभवनाथ
अभिनंदन : अशुभ सुमतिनाथ पघ्नप्रभु सुपार्श्वनाथ | अशुभ
प्रीति चंद्रप्रभु सुविधिनाथ शीतलनाथ । अशुभ श्रेयांसनाथ
शुभ वासुपूज्य
विमलनाथ १४
अनंतनाथ | अशुभ धर्मनाथ शांतिनाथ
अशुभ कुंथुनाथ कुवैर
स्वराशि १८ अरनाथ
शुभ | मल्लिनाथ
अशुभ मुनिसुव्रत नमिनाथ
अशुभ नेमनाथ
| वेध | पार्श्वनाथ । अशुभ
प्रीति वर्धमान
मध्यम शुभ महावीरस्वामी राशि पतिः | एकनाथ | वर्णः
नक्षत्र युजी वृषभ शुक्र । तुला ! वैश्य
मृगशिर्ष | पूर्व
श्रध्ठतर
मध्यम
शभ
: :
:
शुभ
भा:
। शुभ
।
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-भ भाभि भी (भि भी ४-२४-भवेधः )
साध्य नाम
अशुभ
शत्नु
अशुभ
m " x
1
*: : 4 : *
शुभ
देव
-
--
-
साध्यं । तारा । योनिः । वर्गः। विशोपकः | गणः | राशि । नाड़ी स्वकीयं १, श्वान | प लभ्यं राक्षस | धनुः । प्राय विरुधं ३,५,७ हरिण क । देयं । दे० म०, वृषभ । प्राद्यवे मृषभनाथ
अशुभ । स्वराशिः अजितनाथ संभवनाथ | अभिनंदन । अशुभ
वेध सुमतिनाथ ६ पद्मप्रभु । अशुभ
सुपार्श्वनाथ भशुभ चंद्रप्रभु
श्रेष्ठ सुविधिनाथ
स्वराशि एकम शीतलनाथ
अशुभ श्रेयांसनाथ
वेर
| अशुभ वासुपूज्य
शुभ वेध विमलनाथ
अशुभ श्रेष्ठतर अनंतनाथ
वैर धर्मनाथ
। प्रीति शांतिनाथ कुंथुनाथ अशुभ
स्वगया शत्र भरनाथ
श्रेष्ठतर मल्सिनाथ
शभ मुनिसुव्रत
अशुभ नमिनाय नेमनाथ अशुभ
श्रेष्ठ २३ पार्श्वनाथ
शुभ २४ वर्धमान अशुभ
श्रेष्ठ ! वेध* महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ वणे
वश्य
नक्षत्र धन गुरु मीन लिय। सर्वे राशयः मूल पश्रिम
: : *
शुभ
वेष
242
:: :
૨૨
युजि
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-भुभू।
साध्य नाम,
* * = aalas
यम
श्रेष्ठ
शुभ
नं साध्य तारा । योनिः | वर्ग विशोपकः । गणः : राशि / नाड़ी
स्वकीयं २ . वानर ! प ! लभ्यं मनुष्य धनुः । मध्य विरुधं ४.६.८ मेष । क । देयं : राक्षस : वृषभ मध्यवेध मृषभनाथ
स्वराशि अजितनाथ
। अशुभ |संभवनाथ
सम । वेष ४ अभिनंदन
सुमतिनाथ ६ ! पद्मप्रभु
सुपाश्वनाथ | चंद्रप्रभु अशुभ
मध्यम । श्रेष्ठ सुविधिनाय
अशुभ स्वराशि शीतलनाथ
स्वगण श्रेयांसनाथ । अशुभ ।
मध्यम अशुभ मासुपूज्य अशुभ
भशुभ विमलनाथ अशुभ
स्वगण श्रेष्ठतर अनंतनाथ
मध्यम धर्मनाथ अशुभ
प्रीति शांतिनाथ कुंथुनाथ
शत्नु १८ अरनाथ
श्रेष्ठतर मल्सिनाथ
शुभ मुनिसुव्रत अशुभ | मैली २१ निमिनाथ
शुभ २२ नेमनाथ
श्रेष्ठ वेष २३ । पार्श्वनाथ
शुभ वर्धमान
श्रेष्ठ , महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ | वा
वश्यं
नवते युजि धन गुरु । मीन । खलिय । सवें राशयःपू पा. पश्चिम
32:m GK Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
७२
साधक अक्षर भै ।
५ नं साध्यं
स्वकीयं
विरुध्धं
साध्य
१ ऋषभनाथ
२ अजितनाथ
३ संभवनाथ
४ अभिनंदन
५ सुमतिनाथ
5 चंद्रप्रभु ६ सुविधिनाथ
१० शीतलनाथ
११ श्रेयांसनाथ
१२ वासुपूज्य
१३ विमलनाथ
पद्मप्रभु
अशुभ
७ सुपार्श्वनाथ अशुभ
१४ | अनंतनाथ १५ धर्मनाथ
१६ शांतिनाथ
१७ कुंथुनाथ
१८ मरनाथ
१६ | मल्लिनाथ
२० मुनिसुव्रत
२१ नमिनाथ
२२ नेमनाथ
२३ | पार्श्वनाथ
२४ वर्धमान
39
राशि
धन
महावीर स्वामी
पति:
तारा:
३
५, ७,६
गुरु
अशुभ
अशुभ वैर
अशुभ
अशुभ
अशुभ
अशुभ
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
एकनाथ
मीन
योनिः
नकुल
सर्प
स्वा
वैर
वर्णः क्षत्रिय |
वर्गः विशोषक गयाः
प लभ्यं
मनुष्य
राक्षस
क
कुवैर
198
(2)
€
(II)
देयं
२॥
२॥
२||
१॥
67
४ रं
S
०
वश्यं सर्वे राशयः
स्व
"
मध्यम
"7
अशुभ
56
""
मध्यम
21
राशि
नाडी
धनुः
अंत्य
वृषभ ! अंत्यवेध
स्वराशि एकपाद
वेध
"
स्व
शत्रु
सम
अशुभ स्वराशि:
स्वगप
मध्यम
अशुभ स्वगण
मध्यभ
ܕܕ
"
शुभ
श्रेष्ठ
शुभ
श्रेष्ठ
34
अशुभ
शुभ
"
अशुभ शत्रु
मध्यम
शुभ
श्रेष्ठतर
21
प्रीति
शुभ
अशुभ
""
शुभ
अशुभ | श्रेष्ठ
शुभ
श्रेष्ठ
39
वेध
नक्षत्रं
उ० बा०
भवेध
श्रेष्ठतर | वेध
बेध
वेध
भवेध
वेध
भवेष
युजि पश्चिम
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रोवृहद् थारणायंत्र।
साधक अक्षर-भो भौ।
साध्य नाम
वेष
मध्यम
"
शत्तु
वेध
नं । साध्यजिनः | ताराः | योनिः । वर्ग: विशोपक | गयः । राशि / नाडी # स्वकीयं । ३ । नकुल । पलभ्यं । मनुष्य | मकर अंत्य विरुधं ५,७,६ | सर्प ।
| सिंह अंत्यवेध ऋषभनाथ
एकर्भ अजितनाथ
शुभ संभवनाथ | अशुभ
अभिनंदन | अशुभ ५ सुमतिनाथ ६ पद्मप्रभु अशुभ
मध्यम ७ सुपार्श्वनाथ ! अशुभ
श्रेष्ठतर | भवेध चंद्रप्रभु
मध्यम | शुभ सुविधिनिाथ
अशुभ | अशुभ १. शीतलनाथ
स्वगप ११ । श्रेयांसनाथ
मध्यम स्वराशिः | वेध १२ वासुपूज्य
अशुभ | श्रेष्ठ विमक्षनाथ
সার शुभ अनंतनाथ
मध्यम धर्मनाथ ] शांतिनाथ कुंथुनाथ
शुभ | मरनाथ
| अशुभ मल्लिनाथ
श्रेष्ठ २० । मुनिसुव्रत २१ नमिनाथ
श्रेष्ठ २२ नेमनाथ | अशुभ
| मध्यम २३ । पार्श्वनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर वेध २४ वर्धमान
मध्यम ", महावीरस्वामी पतिः एकनाथ वर्णः ।
नननं । युजि मकर शनि कुंभ । वैश्य कर्क: मीनः | उ.षा. पश्चिम
___
अशुभ
मध्यम
स्वराशिः
राशि
10
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ममा मि मी मु मू मे मै (मे मै १ पाद ७-१७-२३-भवेधः *)
। शुम
rr n ur -
शुभ
नं. साध्यजिनः । तारा । योनिः ! वर्गः | विशोपकः गणः : राशि | नाड़ी | स्वकीयं १, उंदर पलभ्यं राक्षस : सिंह , अंत्य विरुधं ३,५,७ : बिडाल क
अंत्यवेध ऋषभनाथ । अशुभ
| शुभ भवेध* | अजितनाथ
। श्रेष्ठ | संभवनाथ । अशुभ अभिनंदन
| अशुभ । कुवैर सुमतिनाथ स्वा
स्वराशि: एक पद्मप्रभु अशुभ ७ सुपार्श्वनाथ अशुभ
वेध ८ चंद्रप्रभु | सुविधिनाथ | शीतलनाथ
श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ । স্বয়ম अरनाथ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत । नमिनाथ नेमिनाथ
| अशुभ २३ पार्श्वनाथ २४ वधमान , महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ | वर्ण
वश्य सिंह सूर्य क्षत्रिय विनाधनं वृश्चिक
मध्य
: *444 * - : : *
2
2
52"-:
:: : *
| अशुभ ।
--
नक्षल. युजि
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-मो मौ।
-
-
-
----
---
शुभ
--
।
----
भवेध
--
-
स्वराशि
so
is
*
w
नं साध्यजिनः । ताराः | योनिः । वर्ग: । विशोपक | गणः राशि | नाडी । स्वकीयं । २. उदर ५ लभ्यं । । मनुष्य ! सिंह मध्य
विरुध्धं ४,६,८ बिडाल : क देयं राक्षस । मकर मध्यवेधः १. ऋषभनाथ अजितनाथ | अशुभ
श्रेष्ठ संभवनाथ
मध्यम अभिनंदन सुमतिनाथ ! पद्मप्रभु
| शुभ भवेध सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु अशुभ
मध्यम श्रेष्ठतर सुविधिनाथ
अशुभ शुभ शीतलनाथ
स्वगया श्रेयांसनाथ
मध्यम १२ वासुपूज्य अशुभ
अशुभ विमलनाथ अशुभ
स्वगया अनंतनाथ
मध्यम धर्मनाथ १६ । शांतिनाथ १७. कुंथुनाथ
अशुभ अरनाथ १६ । मल्लिनाथ
मुनिसुव्रत २१ । नमिनाथ २२ नेमनाथ
भवेध २३ : पाश्वनाथ २४ वर्धमान ., महावीरस्वामी राशि पतिः । एकनाथ वर्ण
नक्षत्रं । युजी सिंह सूर्यः । . : क्षत्रिय विना धनं वृश्चिक पू. फा. मध्यम
* * * *
मध्यम
अशुभ
* *
वश्य
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-य या यि यी यु यू।
नं.
नाम
। स्वकीयं
PRIN
m» rur,
4 = * *44 *: : * : *: -
चंद्रप्रभु
कुवर
साध्यजिनः | तारा । योनिः । वर्ग: विशोपक | गणः | राशि : नाड़ी
हरिण | य सभ्यं | राक्षस | वृश्चिक | आद्य विरुध्धं
श्वान । च देयं । दे.म. मिथुन माद्यवेध ऋषभनाथ अजितनाथ | अशुभ संभवनाथ
| शस्त्र अभिनंदन
वेध सुमतिनाथ
श्रेष्ठतर पध्नप्रभु
शुभ सुपार्श्वनाथ
अशुभ ।
स्वराशि सुविधिनाथ
श्रेष्ठ वेध शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ अशुभ वासुपूज्य
श्रेष्ठ विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ
मध्यम शांतिनाथ कुंथुनाथ मरनाथ
मल्लिनाथ २. | मुनिसुव्रत अशुभ
नमिनाथ नेमिनाथ
पार्श्वनाथ २४ वर्धमान
| वेध "महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ, वर्णः
वश्य
नक्षत्र । युजि वृश्चिक मंगलः मेष । ब्राह्मण सिंह:
ज्येष्ठा । पश्चिम
अशुभ
___ • •
- 1 : : *
5 5 ~ ~ FO
: : : 4
. है -
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
साधक अक्षर-ये यै यो यो।
dan . - साध्य नाम
नं । साध्यजिनः । तारा । योनिः । वर्ग विशोपकः । गणः . राशि | नाडी | स्वकीयं १ । श्वान यलम्य राक्षसः | धनुः | माद्य विरुध्धं । ३,५,७ | हरिण
दे. म० वृषभ पाद्यवेध ऋषभनाथ मशुम
स्वराशि अजितनाथ | संभवनाथ अशुभ | अभिनंदन | अशुभ | सुमतिनाथ | पद्मप्रभु अशुभ सुपार्श्वनाथ | अशुभ
शत्रु
. : ३ : * * * * : A
चंद्रप्रभु
अशुभ
शुभ.
श्रेष्ठतर
-
प्रीति शुभ
---
-
-
सुविधिनाथ शीतलनाथ | श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ | अशुभ भरनाथ मल्लिनाथ
मुनिसुव्रत २१ । नमिनाथ २२ । नेमिनाथ भशुभ २३ / पार्श्वनाथ २४ वर्धमान अशुभ ,, महावीरस्वामी , राशि पतिः एकनाथ वर्ण धन | गुरु मीन । क्षत्रिय ।
श्रेष्ठतर
:: : * *
अशुभ
अशुभ
: *
वश्य
नत्तत्र
सर्वे राशयः
मूळ
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ऋर रारिरी (ऋ. वेधे चिंत्यं)।
साध्य
| अशुभ
नं० : साध्यजिनः | तारा ! योनि । वर्ग : विशोपक - गणः : राशि | नाड़ी
स्वकीयं ५ । वानर ! य लभ्यं . राक्षस । तुला मध्य विरुध्धं ७,९२ ! मेष । च देयं दे. म० मीन मध्यवेध भृषभनाथ
अशुभ शुभ अजितनाथ
प्रीति संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ पद्मप्रभु
स्वा सुपार्श्वनाथ अशुभ | मैत्री
स्वराशि चंद्रप्रभु
अशुभ सुविधिनाथ शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ
श्रेष्ठतर वासुपूज्य विमलनाथ
म । शनु अनंतनाथ | अशुभ धर्मनाथ शांतिनाथ
एकभ
ཙྩོ - ཟླ ཝཱ ཙྪཱ ཙྪཱ ཙྪཱ ཙྪཱ ཙྩོ པ་ ཡྻོ ཙྪཱ ཡྻ སྒྲ ཟླ༔
": ५
१७ ! कंथुनाथ
स्वगण । प्रीति
शत्रु
सम
श्रेष्ठतर
सम
E
स्वगगा
एकभं
अरनाथ
! अशुभ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत
नमिनाथ २२ नेमनाथ २३ । पार्श्वनाथ ! अशुभ २४ । वर्धमान "महावीरस्वामी राशि पतिः । एकनाथ | वर्णः तुला शुक्र वृष । शुद्र
श्रेष्ठ
स्वराशि (०) अशुभ । श्रेष्ठ
.00
वश्यं विनासिंहं मनुष्यंच
नक्षत्र युजी चित्रा । मध्य
--....--
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
--.--.---..-..... ---
साधक अक्षर-रुरू रे रै रो रौ (रु रू १ पाद ७-१७-२३ भवेधः ४)
अंत्यवेध
नं. साध्यजिनः । तारा : योनिः : वर्ग विशोपकः । गणः ! राशी । नाड़ी
. स्वकीयं ६ महिष य लभ्य देव तुला अंत्य : विरुधं ८,१.३ : अश्व च : देयं राक्षस
राक्षस : मीन ऋषभदेव अशुभ
शुभ
भवेध अजितनाथ संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ | अशुभ
Amr
मध्यम
६। पद्मप्रभु
वेध*
स्वराशि अशुभः शुभ
मध्या
rry ur 2 / 25.2322-
2
श्रेष्ठतर | वेध
मध्यम
शत्तु
on •
७ सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु
सुविधिनाय | अशुभ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ
अशुभ अनंतनाथ धर्मनाथ
অগ্রস शांतिनाथ
अशुभ कुंथुनाथ
अशुभ अरनाथ मल्लिनाथ ! अशुभ मुनिसुव्रत नमिनाथ / अशुभ
नेमनाथ २३ पार्श्वनाथ
वर्धमान अशुभ , महावीरस्वामी , राशिः पतिः । एकनाथ वर्णः तुला शुक्रः । वृषभ । शुद्र ।
स्व
प्रीति
वेध वेध
शतु
| सम
20 = =
श्रेष्ठतर | वेध | सम
श्रेष्ठ स्वराशि वेध* श्रेष्ठ
.
(०) मध्यम
वश्य
विनासिंह मनुष्यंच
नवन युजी स्वाति | मध्य
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहत धारणायंत्र।
40
साधक अक्षर-ल ला।
नाम
साध्य
--
-
-
-
-
--
----
अशुभ
भवेध
नं. साध्यजिनः | तारा । योनि | वर्गः; विशोपक । गणः ! राशि । नाड़ी स्वकीयं
लम्यं देव । मेष
माद्य विषधं | ३,५,७ . महिष
देयं राक्षस: कन्या आद्यवेध ऋषभनाथ | अशुभ
मध्यम शुभ २ अजितनाथ ३ संभवनाथ | अशुभ
अभिनंदन अशुभ सुमतिनाथ
पध्रप्रभु अशुभ ७ सुपार्श्वनाथ अशुभ - चंद्रप्रभु
सुविधिनाथ शीतलनाथ
मध्यम श्रेयांसनाथ वासुपूज्य मैत्री
शुभ । वेष विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ
প্রস্তর शांतिनाथ
स्वराशि एकभं कुंथुनाथ
| अशुभ अरनाथ मल्लिनाथ
'स्वराशि एकभं मुनिसुव्रत नमिनाथ
. स्वराशि एकभं नेमनाथ अशुभ पार्श्वनाथ | अशुभ अशुभ
शत महावीरस्वामी राशि । पतिः एकनाथ | वर्णः
वश्य
। नक्षले । युजी मेष मंगल वृधिक क्षलिय
अश्विनी ! पूर्व
मध्यम
| अशुभ
श्रेष्ठ
वर्धमान
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
...-
--.-.---.
साधक अक्षर-लि ली लु लू ले ले लो लो (ले लै लो लौ ३-६-२९-भषेधः )
गयाः / राशि | नाडी मनुष्य | मेष । मध्य
साध्य
| देयं
राक्षस
कन्या
-
:
शुभ अशुभ शुभ
मध्यम
.
चंद्रप्रभु
2016
मध्यम গম स्वगया मध्यम
नं | साध्यजिनः । ताराः । योनिः वर्ग: विशोपक
स्वकीयं २ ' हस्ति । य लभ्यं । विरुध्धं । ४,६,८ सिंह । च । 'तृषभनाथ
अजितनाथ अशुभ ३ | संभवनाथ ४ | अभिनंदन ५ माटि साथ
पद्मप्रभु | सुपार्श्वनाथ
| अशुभ सुविधिनिाथ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ
। अशुभ वासुपूज्य
अशुभ | विमलनाथ अशुभ अनंतनाथ
धर्मनाथ अशुभ १६ शांतिनाथ १७ कुंथुनाथ
अरनाथ
मल्लिनाथ २० मुनिसुव्रत
नमिनाथ नेमनाथ पार्श्वनाथ वर्धमान
महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ वर्णः मेष । मंगल | वृधिक । क्षत्रिय
अशुभ
स्वगया
मध्यम
:
श्रेष्ठतर स्वराशिः
| अशुभ
मध्यम
:: ::
श्रेष्ठ स्वराशिः श्रेष्ठ स्वराशिः शन ।
भवेषक
:
वश्यं
नक्षत्र भरपी
युजि पूर्व
11
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-व वा वि वी वु व (बुवू १ पाद ७-१७-२३-भवेधः *)
साध्यं नाम
.
कुवर
मध्यम
कुवेर
नं । साध्यजिन: ताराः योनिः | वर्ग: विशोपक । गणाः । राशि नाही | स्वकीयं ४. सर्प । य अभ्यं मनुष्य । वृषभ
अंत्य विरुध नकुल
देयं राक्षस । धन अंत्यवेध ऋषभनाथ
स्व शनुभवेध* अजितनाथ
| स्वराशि एक | संभवनाथ
श्रेष्ठ अभिनंदन सुमतिनाथ अशुभ
अशुभ पद्मप्रभु
। शुभ सुपार्श्वनाथ चंद्रप्रभु अशुभ
मध्यम सुविधिनाथ | अशुभ
अशुभ । शतु शीतलनाथ
स्वगया श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ वासुपूज्य अशुभ
अशुभ श्रेष्ठतर विमलनाथ । अशुभ । अनंतनाथ
धर्मनाथ अशुभ | शांतिनाथ । अशुभ
। अशुभ १७ : कुंथुनाथ
स्वराशि अरनाथ
शुभ १६ मल्लिनाथ : अशुभ
अशुभ २० मुनिसुव्रत
शुभ २१ नमिनाथ
স্ময়ম नेमनाथ | पार्श्वनाथ
वेध* २४ वर्धमान , महावीरस्वामी || पतिः एकनाय वयाँ
नक्षत्रं . युजी वृष शुक्र तुला । वैश्य
रोहिणी पूर्व
स्वगण
मध्यम
वेध*
TET
वेध
राशि
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-वे वै वो वौ।
साध्य
नं. | साध्यजिनः | तारा । योनि | वर्गः | विशोपक | गयः | राशि | नाड़ी । स्वकीयं । ५ । सपे | य लभ्यं देव । वृषभ । मध्य विरुध्धं | ७,६२ नकुल
राक्षसः घन मध्यवेध भृषभनाथ
मध्यम अजितनाथ मैत्री
स्वराशि संभवनाथ
स्वा अभिनंदन सुमतिनाथ !
कुवर
मन
एकभं
rar xxx ur 25 -
पनप्रभु
शभ
श्रेष्ठतर
सुपार्श्वनाथ अशुभ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ
अनंतनाथ | अशुभ १५ धर्मनाथ
शांतिनाथ कुंथुनाथ अरनाथ
| अशुभ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाथ
नेमिनाथ २३ | पार्श्वनाथ २४ वर्षमान , महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ! वर्णः वृष शुक्र तुला वैश्य |
: *:: : 1 * : 4 . . * a : : *: 45
1 - 4 - -
अशुभ स्वराशि
शुभ अशुभ
शुभ
अशुभ
भवेध
अशुभ
प्राति
वश्य
नसलं मृगशि
युजो पूर्व
ra
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
८४
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
साधक अक्षर-श १० ।
-
-
HUL bala
अशुभ
mo yo xwg
सम
कुवर
अशुभ
साध्यजिनः । तारा । योनिः । वर्ग विशोपकः गणः । राशि नाड़ी स्वकीयं । ८ गौ । शलभ्यं मनुष्य मीन । मध्य विरुध्धं ! १,३,५ व्याघ्र | ट
देयं | राक्षस तुला मध्यवेध ऋषभनाथ अशुभ
श्रेष्ठतर अजितनाथ
शुभ | संभवनाथ
मध्यम
श्रेष्ठ | अभिनंदन ५ सुमतिनाथ | अशुभ
प्रीति पद्मप्रभु अशुभ कुवैर ७ | सुपाश्वनाथ
शत्रु ८ चंद्रप्रभु
मध्यम | सुविधिनाथ | अशुभ शीतलनाथ
स्वगण श्रेयांसनाथ
मध्यम शुभ वासुपूज्य
अशुभ विमलनाथ
स्वगण स्वराशि अनंतनाथ
मध्यम | धर्मनाथ
मध्यम वध १६ शांतिनाथ अशुभ
| कुंथुनाथ १८ अरनाथ
मध्यम स्वराशि १६ मल्लिनाथ अशुभ
श्रेष्ठ २० मुनिसुव्रत
शुभ २१ । नमिनाथ अशुभ
श्रेष्ठ २२ नेमिनाथ
पार्श्वनाथ २४ वर्धमान अशुभ |
(I) स्वगया । सम ,, महावीरस्वामी राशि । पतिः | एकनाथ । वर्ण
वश्यं
। नतनं । युजि मीन गुरु धन | ब्राह्मण
उ. भा० पश्चिम
अशभ
१४
शुभ
अशुभ
सम
वेध
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-ष १० ।
tta 13
U
:
मध्यम
नं. : साध्यजिनः । तारा योनिः । वर्ग | विशोपकः । गणः | राशी । नाड़ी स्वकीयं ४ महिष | श लभ्यं
कन्या माद्य । विरुध्धं ६.८,१ अश्व | ट
देयं । राक्षस
मेष प्रायवेध १। मृषभदेव
मध्यम
। श्रेष्ठ | अजितनाथ
शुभ संभवनाथ
श्रेष्ठतर अभिनंदन सुमतिनाथ | अशुभ
शुभ पद्मप्रभु
स्वराशि सुपाभ्वनाथ
श्रेष्ठ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ ! अशुभ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ
मध्यम | वासुपूज्य विमलनाथ | अशुभ
मध्यम १४ अनंतनाथ
धर्मनाथ .! अशुभ १६ / शांतिनाथ अशुभ | वैर
कुंथुनाथ अरनाथ
सम मल्लिनाथ मुनिसुव्रत
मध्यम २१ ! नमिनाथ नेमनाथ
स्वराशि २३ | पाश्वनाथ
श्रेष्ठ २४ वर्धमान
० मध्यम स्वराशि वेध , महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ । वर्याः
वश्यं
नक्षत कन्या बुध । मिथुन | वैश्य विनासिंह धनं
मध्य
प्रीति
स्व
RA : : *'s a हैं. ५ : 42: A 33 - #TT & Fit as : A : NIA
शतु
शत
युजी
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-स सा सि सी सु सू।
म । प्राद्य
वध
-rrrr Uw
अशुभ
. : 4 : *
शम
नं० साध्यजिनः । तारा | योनि । वर्ग विशोपक गणः | राशि नाड़ी
| स्वकीयं ६ अश्व श सभ्यं राक्षस ! कुंभ P विरुध्धं ८,१,३ महिष ट । देयं ! दे० म० कके आद्य
ऋषभनाथ | अशुभ अजितनाथ
श्रेष्ठतर संभवनाथ
मध्यम अभिनंदन सुमतिनाथ
सम पद्मप्रभु
प्रीति ७ सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु अशुभ सुविधिनाथ अशुभ
शुभ वेध शीतलनाथ श्रेयांसनाथ
श्रेष्ठ वासुपूज्य
स्वराशि एकभं विमलनाथ | अशुभ
अशुभ अनंतनाथ धर्मनाथ | अशुभ शांतिनाथ । अशुभ
शुभ . वेध कुंथुनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर
अशुभ मल्लिनाथ | अशुभ
मुनिसुव्रत २१ नमिनाथ
नेमनाथ | पार्श्वनाथ २४ वर्धमान अशुभ
वेध ,महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ वर्णः
वश्य
नवलं कुंभ शनि
। मकर । शुद्र ! विनासिंह मनुष्यंच शतभिषा पश्चिम
: *
१८
अरनाथ
: : *
:
युजी
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीवृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षर-से सै सो सौ।
* *
akad. साध्य नाम
स्व
* * *
"
स्वगया
श्रेयांसनाथ अशुभ
नं. साध्यजिनः । तारा । योनिः । वर्ग:। विशोपकः । गणः राशि । नाड़ी । स्वकीयं । ७. सिंह श लभ्यं । मनुष्य । कुंभ । भाद्य विरुध्धं २,४ : हस्ति । र
राक्षस कर्क माद्यवेध मृषभनाथ
शुभ अजितनाथ | अशुभ
श्रेष्ठतर ३ संभवनाथ
मध्यम मध्यम ४ अभिनंदन ५ सुमतिनाथ
अश् पद्मप्रभु ७ सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु
मध्यम है | सुविधिनाथ
अशुभ १० । शीतलनाथ ११
मध्यम श्रेष्ठ १२ | वासुपूज्य
अशुभ विमलनाथ
स्वगण | अशुभ अनंतनाथ अशुभ ! वैर ।
मध्यम
| शत्तु शांतिनाथ
शुभ कुंथुनाथ
श्रेष्ठतर अरनाथ | अशुभ । वैर ।
मध्यम अशुभ मल्लिनाथ
शुभ मुनिसुव्रत
| अशुभ नमिनाथ नेमिनाथ
पार्श्वनाथ २४ वर्धमान .,, महावीरस्वामी राशि पतिः एकनाथ वर्ण
वश्य कुंभ शनि । मकर
विनासिंह मनुध्यंच पू० मा | पश्चिम
१५ । धर्मनाथ
प्रीति
-
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
૮૮
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
साधक अक्षरह हा ।
साध्य नाम
-
.. -
CAMKKAN
स्व
3 4 : : *:
शुभ
नं. । साध्यजिनः | तारा ! योनिः ! वर्ग: विशोपक गयाः | राशि | नाड़ी स्वकोयं । ७ । बिडाल श लभ्यं
मिथुन । आद्य विरुध्धं 8,२,४ | उंदिर ; ट देयं राक्षस | वृ० कर्क | आद्यवेध ऋषभनाथ
मध्यम सम अजितनाथ | अशुभ
श्रेष्ठ संभवनाथ
स्वगणा: स्वराशि भभिनंदन
, एकभं सुमतिनाथ
| शुभ पद्मप्रभु
श्रेष्ठतर ७ | सुपाश्वनाथ ८ चंद्रप्रभु सुविधिनाथ
सम शीतलनाथ अशुभ श्रेयांसनाथ । अशुभ
प्रीति वासुपूज्य
। मध्यम वेध विमलनाथ
श्रेष्ठ अनंतनाथ अशुभ धर्मनाथ
अशुभतर शांतिनाथ
शुभ । वेध १७ कुंथुनाथ
श्रेष्ठ अरनाथ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत
प्रीति २१ । नमिनाथ
| नेमिनाथ २३ पार्श्वनाथ
शुभ २४ वर्धमान
(1) मध्यम " महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ
वश्यं
नक्षतं । युजि मिथुनं बुधः । कन्या | शुद्रः विनासिंह धनं पुनर्वसु मध्य
1 2
* *: : : 42: :
शुभ
२२
श्रेष्ठतर
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रोवृहद धारणायंत्र।
साधक अचर-हि ही।
Iran
एकभं
स
नं. साध्यजिनः । तारा | योनिः । वर्गः | विशोपकः | गयाः । राशि | नाड़ी } स्वकीयं
विडाल शलभ्यं देव । कर्क । माय है विरुष्धं ,,४ उंदिर 2 ] देयं राक्षस मि. कुंभाचवेष ऋषभनाथ
मध्यम | प्रीति अजितनाथ अशुभ
शुभ संभवनाथ
अशुभतर अभिनंदन सुमतिनाथ
श्रेष्ठ पत्नप्रभु सुपार्श्वनाम चंद्रप्रभु
मध्यम सुविधिनाथ
प्रीति शीतलनाथ | अशुभ
मध्यम श्रेयांसनाय ।
स्व वासुपूज्य
वैर विमलनाथ
मध्यम अनंतनाथ
मशुभ धमेनाप
स्वराशि शांतिनाथ
श्रेष्ठतर वेष कंथुनाथ
शुभ भरनाथ भशुभ
मध्यम मल्लिनाथ
श्रेष्ठतर वेध मुनिसुव्रत भशुभ
सम नमिनाथ
श्रेष्ठतर वेष नेमनाथ पार्श्वनाय वर्धमान
(II)| मध्यम शुभ महावीरस्वामी राशि एकनाथ
वश्थं
नक्षले । युजि कक चंद्रः | ० ब्राह्मणः
पुनर्वसू । मन्य 12
1424 : : :: : lalaral
सम
मध्यम
शुभ
भ्रष्ट
स
"
पतिः
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
-
शुभ
rrry our ,
: ५ भ3
वेध
मध्यम
साधक अक्षर-हु हु हे है हो हो (हो हौ ३-६-२२-भवेधः ७) नं. साध्यजिनः तारा | योनिः । वर्गः / विशोपक | गणः । राशि | नाड़ी | स्वकोय | ८ मेष । शलभ्यं देव । कर्क | मध्य विरुध्धं १,३,५ | वानर ! ट। १ देयं
राक्षस मि. कुं | मध्यवेध ऋषभनाथ अशुभ
मध्यम
। प्रीति अजितनाथ संभवनाथ अशुभ
अशुभतर वेध अभिनंदन | सुमतिनाथ | अशुभ पद्मप्रभु अशुभ
शुभ
वेध सुपार्श्वनाथ ८ चंद्रप्रभु
मध्यम | सुविधिनाथ | अशुभ
प्रीति शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ
मध्यम | वेध अनंतनाथ धर्मनाथ
स्वराशि एकभं १६ ! शांतिनाथ
श्रेष्ठतर कुंथुनाथ
शुभ अरनाथ
मध्यम मल्लिनाथ
श्रेष्ठतर मुनिसुव्रत नमिनाथ अशुभ
श्रेष्ठतर नेमनाथ | अशुभ
वेष २३ / पार्श्वनाथ
श्रेष्ठ २४ वर्धमान
| शुभ , महावीरस्वामी राशिः पतिः एकनाथ | वर्णः
वश्य
नक्षत्र । युजि कके चंद्र . ब्राह्मण
पुष्य , मध्य
सम
वि
मध्यम
:
सम
:: :
शुभ
(०॥)' मध्यम
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
मंगलं :
सूरि :--
वृद्धगुरुः :
गुरुः :
कतृनाम :
विधानं :
ग्रंथफलं :--
संवत्काल :-- २४५६
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
सर्वतीर्थंकरा श्रेष्ठाः
तथापि सन्निमित्तेन
श्रीमच्चारित्र विजय महति धारणायंत्रे
वीर वोरेति वीरेति
महावीरेति वीरेति
गुणमणिगणपूर्णे
विजय कमलसूरिः
भविक मधुप पद्मो
समजनि जनमान्यः
विजय केशरः सूरि तल्लघु बंधुर्विनयो
विनय विजय शिष्यो
प्रवर गुरुकुलस्य
विजयद विजयान्तः
प्रशस्तिः
ग्रंथात्हानंविधिवादः
भावश्चरणनैजर्य
कारणं भाववर्धने भवेत्कार्यं गुणाधिकं
शिष्य दर्शन सत्कृतः
अध्यायः पंचम इति
वीराद्रसेषुतीर्थेश प्रथोऽगात्पूर्णतां तीर्थे
विराजतु ममाशये
वीरता भवतु वरा
स्वच्छगच्छे तपाख्ये
पूण्य संघप्रतेजाः
दत्त चारित्र पौष्पः
शांत मुद्राभिरामः
स्पत्पट्ट भूत् मुनिपतिः विजयः शान्तभूषणः
ब्रह्मवारिमुनीद्रः
ज्ञानराशेविधाता
समरपभास्तात्
तत्पादपद्मशमनामृत पान भृंग: ज्ञानेश्तो विजयदर्शननामभिक्षुः
सश्लोक कोष्ठ सरलं गुरुयत्नसाध्यं यंत्र चकार स बृहद्गति धारणार्या
ख्यात चारित्रनामा
पूज्य पूज्यः प्रसन्न:
प्रतिष्ठाऽर्खासुदर्शनम् क्रमशोभवतुनृणाम्
वर्षे राकासु चैत्रके सम्मेतशिखरे बने
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
१७
६१
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
६२
शास्त्रमुनि शान-न्याय
यावदुमेरुमही चंद्रा
लोकमानं :-- विश्वप्रभा - विश्वरचने
सातवींशति श्लोक
( १३१ )
( १३२ )
( श्र० वि०)
( १२३ )
(१२५)
( १३६ )
( १३७ )
( १३८ )
श्रीवृहद् धारणायंत्र |
कल्याणमस्तुसंघस्य भद्रं ज्ञानस्य ग्रंथस्य
इति बृहधारणा यंत्र
परिशिष्ट - १ श्रीबिंबपरीक्षा प्रकरणम्
छत्ततयं उत्तारं सुहयं जिणचरणगे
विपरिवारम
समभंगुलपमाणं
अन्नुन्नं जानुखंधे
सुतेगं चउरंस
00
सहाय्यात्सफलीकृतं
मंदतात्हानीनां मुद्दे
काक्षरी - सामुद्र- पूजादेः
पश्वाद्रचितो धारणा यंत्र: २०
इय गिलक्खणंव भणाविय बिंबपरिमाणं
गुण दोस लक्खणाई सुहासुह जेण नज्जेइ ॥ १ ॥
नवता हवइरूवं
अंगुल भट्ठहिअसयं
जैनधर्मस्य मंगलम्
सर्वेषां भवतु शिवं
शास्त्रं समाप्तम्
भालं नासा वयणं जाणुअ पीडिन वरणा
L
सेलस्स वन्नसंकरं नसुह
नसुंदर होइ कइयावी
२१
भालकवोला सवणनासाओ
नवग्गहा जक्ख जक्खिणीया १
तिरिये केसंत- अंचलते अ
पनंकाऽऽसण सुहं विषं
रुवस् य बारसंगुलोतालो
उड्डु बाऽऽसीणछप्पन्नं
गीव हीअय नाहि गुज्झ जंघाद
इकारसठ्ठाण नायव्वा
खड पंच वेय रामा ३ रवि १२ दिणयर सूर जिण वेभाय जिण वेभमा अ संवा
कमेणभ उडूरुषेण ( उर्ध्वयों ) ६
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र ।
(१३६) भालं नासाषयणं गीव हिअय नाहि गुज्झ जाणुअ
मासीण बिंब माणं पूज्वविहि अंकसंखाइ (८ स्थान). मुहकमलं वउदसंगुलं कन्नतरि विच्छरे दहग्गिवा छत्तिसमुरपएसे सोलहकडि सोलतणुपीड ८ कन्नुदयसोल(१)वित्थरि--- चउ उवरे तिनिठिओलिख्खणं नध्धु तिवित्थरि दुदएसि सिरिववच्छो दुदुइत्तिय पिहुओ . सिरिवच्छ सिरिण कक्खं- तरंमि तहस पणसयपण कम्मा मुणि चउ रविट्ठा वेआ कुहणी मणिबंध जंध जाणु पयं १० अंगुह सहिय करयल ऽसतंगुलस्स वित्थारे चरणं सोलस दिहे तयध्ध विच्छि भवउ रूदो ११ छम्भाय अहरदीह चक्खुपण दोहधपिहुउत्ते तिनिलिहिणं चउनाडी नासा-उर-नाहि मुत्तेगं १२ केसंतसिहा ५ गदिक्ष ८ पंचर कम्मेणं अंगुला जाए पउमट्टरेहचक्कं
करचरणाविहुसियं निव्वं १३ (१४.) घरिस सयाओ उड्ड जं बिवं उत्तमेहि संठविधे
विअलंगुवि पुजा तं विवं निष्फलं न जओ १४ (भा० वि.) मुह नक नयण नाही
करिभंगे मूलनायगं वयह आहरण बच्छ परिगर विधाऽऽउह भंगी पूइज्जा १५ (१४) धातुरो(ले)हाइविवं विश्लंग पुणवि कीरिएसज्झ
कहरयण सीलमयं नपुणो सउझ करावि (संस्कारः)१६ (१४५) पाहाणलेवक दंतमया वित्तलिहिअ जा पडिमा
अपरिगर माणाऽहिआ ११ न सुंदरा पुअमाण गिहे १० (१४) इक्कंगुलाई परिमा इकारसजाव गेहि पुइझा (आ. वि.) उड्डु पासाइ पुणो इअभणिभं पूव्वसूरिहिं (१४२) नह अंगुलिय बाहा नासा पयभंगिऽणुक्कमेण
फलंसत्तुभय देसभंग बंधणं कुलनास पव्व खयं १६ पय पीढ चिन्ह परिगर भंगेजाण मिस्बाहाणिकम्मे
१८
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
उत्त सिरवच्छ सवणे लच्छीसुह बंधवाण खयं २० (१४६) पडिमा रउद्दजासा कारावयं हंति सिप्पिमहिअंगा
दुब्बल दव्वषिणासा किसोयरा कुणइ दुभिक्खं २१ ।। ( १४७) बहुदुक्खं धक्कनासा हस्सांग खयकरियनायव्वा
नयणनासं कुनयणा अप्पमुहाभोग हाणिकरा २२ (१४८) कडि हिणाऽऽयरियहया सूअवंधव हणई हिणजंघाय
हिणाऽऽसणरिध्धि हया धणख्खया हिणकरणा य २३ ( १५०) उत्ताणा अत्थहरा वक्कंगी वासदेस भंगकरा
अहोमुहि य सचिंता विदेसदा हवइ निचुच्चा २४ ( १५१) विसमासण वाहिकरा रोरकरऽन्नायव्वनिपन्ना
हिणअंग पडिमा- सपक्क परपषन ककरा २५ (१५०) उड्डमुही धणनासा
+ आ तिरिअदिष्टि विन्नेया अइअड्ड दिहि असुहा हवइअहोदिहि विग्धकरा २६ चउभुअ सुराण आउह हवंति केसंत उप्परि जइता करण करावण थप्पण- हाराण प्पाण देस हया चउब्बीसजिनवर नवग्गह जोइणी व उसकी वीरबावन्ना चउव्वीस जक्ख जक्खिणी दिसवइ सोल विजसूरी २८ नवनाह सिध्धचुलसी हरिहर बंभोंद दाण वाइणं वन्नंकनाम आउह वित्थर गंध्याओ जाणिजा २६ प्रतिमायाः छत्र त्रयोपरिमुक्तंजलंनासाने पतति तदाशुभामूतिः भूयुगलमध्येपतति तदा अशुभामूतिः १०१, श्लो० अ०इति ठक्कुर फेरु विरचिते वास्तुसार शास्त्रे बिंबपरीक्षा
प्रकरणं समाप्तम् ( १५७) एतद्विब परीक्षण प्रकारान्तरेण विवेक विलासेपिदृष्यते
तत्श्लोकोकसंख्यातु गाथायाः आदौलिखितास्ति
पित्तलसुवन्नरुप्पय रयणाणं वंदकंत(१)माइणं (भा० वि०) कुझाओ लक्खणजुआ सत्तंगुलजाब नो अहिया
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
लेखोवल दंतयलोह नो कुझा गिहचोए वैउचिभ सासयमंगलाओ वंदन्ति नसेसाओ एकांगुलं भवेच्छ्ष्ठं व्यंगुलेनभवेत्सिद्धिः पंचागुलेभवेद्वित्तं सप्तांगुळे भोगवृद्धिः नवांगुलं तु पुत्राय एकादशांगुलंबिवं नृपभयमऽत्यंगायां कृशोदरायां क्षुद्भय आयुःश्रीफलजयदा लोकहिताय मणिमयी रजत्मयी कीर्तिकरी लाभंतुमहन्तं प्रासाद गर्भ गेहाथै भागे तृतियेऽईद्वियं आसने वाहने चैव नखाभरणवस्त्रेषु नासामुखे तथानेत्रे स्थानेषुव्यंगितमेषु(?) मंडलं जालकं स्फोट + + वजानुसंधिश्च विभज्य नवधाद्वार उध्वौं द्वौसप्तमं तद्वत् विश्वकर्ममते प्रोक्तं
कषत्थुण पंचपडिमाओ कुलधणनासइ जम्हा आगा (१) सचित्त लिहिआओ जिण पडिमाओ जणकयाभो ३ द्वयंगुलं धननाशनं वर्जयेच्चतुरंगुल उद्वेगंतु षडंगुले त्यजेदष्टांगुलंसदा अर्थहानिर्दशांगुले सर्वकामार्थ सिद्धिहं हीनांगायामकल्पताभर्तुः मर्थविनाशः कृशांगयां दासमयी मृन्मयी तथा प्रतिमा सौवर्णा पुष्टिदा भवति प्रशावृद्धि करोति तानमयी शैलप्रतिमा + भित्तितः पंचधाकृते स्याद्वितीय विकादयः परिवारे तथाऽऽयुधे व्यंगदोषो नजायते हृदये नाभिमंडले प्रतिमा नैव पूजयेत् तिलकं शूलकं तथा महादोषा:प्रकीर्तिताः तत्षड्भागानधस्त्यजेत् विभज्यस्थापयेद्शम् प्रतिमा दष्टि लक्षणं
हा
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३
श्रीबृहद् धारणायंत्र। चार मुक्त्वा० तस्यापि० प्रासादे. ६४==५५ दृष्टिः अस्थानेनिहिता सातु सद्योरिष्टाय जायते दृष्टयाऽऽयत्तं सर्वे प्राप्तश्रीविश्वकर्मणा
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन अत्रयतो विधियां प्रतिमापाषाण परीक्षा (वि० वि १८३-१९८)
हृदये मस्तके भाले अंगयो:कर्णयोर्मुखे उदरे पृष्टसंलग्ने हस्तयो पादयोरपि एतेष्वगेषु सर्वेषु रेखालांछन निलिकाः रिबानां यत्रदृष्यते त्यजेत्तानि विचक्षणः अन्यस्थानेषु मध्यस्था स्त्रासफाट विवर्जिताः निर्मला स्निग्ध शांताच वर्णसारुप्य शालिनः
परिशिष्ट २ सप्तदश मुद्रा
मुद्राश्च शास्त्रांतरे भूयस्या, परं सप्तदश सूरि मंत्रोपयोगिन्यः शिक्षणियाः तद्यथा१-उत्तानहस्तद्वयेन वेणीबंधंविधायांगुष्ठाभ्यांकनिष्ठके तर्जनीभ्यांमध्यमे
संगृह्यानामि समीकूर्यात परमेष्ठि मुद्रा। २-आत्मभोऽभिमुख दक्षिण हस्त फनिष्ठिकया वामकनिष्ठिकां संगृह्यपरावर्तित
फराभ्यां गरुड मुद्रा। ३-वामहस्ततले दक्षिणहस्तमूलं संनिवेश्य शाखाविरलीकृत्यप्रसारयेत् चामुद्रा। ४-परस्पराभिमुखौ अथितांगुलिको करौ कृत्वा तर्जनीभ्यामनामिक गृहित्वा
मध्यमे प्रसार्य तन्मध्येगुष्ठचयं निक्षिपेत् मध्यमसोभाग्य मुद्रा । ५–अत्रेवांगुष्ठद्रयस्याधः कनिष्ठिकांऽतक्रांततृतीयपर्निको न्यसेत् इति सबीज
महा सौभाग्य मुद्रा।
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
६- दक्षिणांगुष्ठेन तर्जनी संयोज्य शेषांगुली प्रसारण वामहस्तं हृदि न्यसेत्
इति प्रवचन मुद्रा |
७ – द्वयोः करयोरनामिकामध्यमे परस्पराभिमुखे उर्ध्वोकृत्य मीलयेत् शेषांगुलीः पातयेत् पर्वत मुद्रा |
८ - अन्योन्य ग्रथितांगुलीषु कनिष्ठानामिकयो: मध्यमातर्जन्योश्च संयोजनेन गोस्तनाकारी सुरभि मुद्रा ।
६ – दक्षिणहस्तस्यतर्जनीं वाममध्यमया संदधीत मध्यमांचतर्जन्या अनामिकां कनिष्ठया कनिष्ठांचाऽनामिकया एतच्वाधोमुखं कुर्यात् एषान्या धेनु मुद्रा ! १० - उत्तानो किंविदाकुंचितकरशाखी पाणी विधारयेत् अंजली मुद्रा |
११ – अंजल्यां अनामिकामूलवर्वांगुष्ठ संयोजने आह्नानी मुद्रा |
१२ - इयमेव अधोमुखी स्थापनी मुद्रा
१३- तावेवगर्भांगुष्ठौ संनिरोधिनी मुद्रा
१४- मुष्टिर्वध्धाप्रसारित तर्जनीकानांमध्यमोपरिनिवेश्य इति अथगुउम मुद्रा १५ – संलग्नमुष्ठयुच्छ्रितांगुष्ठौकरौ
१६ - दक्षिण करेण मुष्ठिर्वध्वा तर्जनीमध्येप्रसारयेत् अत्र मुद्रा ।
१७ – प्राह्यस्य पुष्पादेरुपरि संहारेण हस्तौप्रसार्य कनिष्ठिकादि तर्जन्यं तानामंगुलीनां । क्रमसंकोचनेन अंगुष्ठमूले नयनात् इति विसर्जन मुद्रा
पता सप्तदशमुद्राः पुरस्तादुपयोक्ष्यंते आसामाराधकः सूरिः सूतकभक्तं रजस्वलाभक्तं स्पृष्टकभक्तं मांसाशीभक्तं च न भुंक्ते
अन्येषां साधूनामंभःकणेनाभिलग्नेनसुरेर्भोजनं कल्पते संपूर्णम्
-----OC
परिशिष्ट-३, दंड भींत्तिविचार - प्रसादमंडन अध्याय ४
दंडो ज्येष्ठः प्रकीर्तितः पंचमांशेन कन्यशः
13
63
प्रासादण्यास मानेन मध्यहीनो दशांशेन
४१
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
૬૮
श्रीबृहद् धारणायंत्र |
एक हस्ते प्रासादे कुर्यादधगुलावृद्धि
सुव्रतं सारदारुच पर्वभिर्विषः कार्यः
खंड पादोन मंगुलः र्यावद्पंचाशद्धस्तकं
ग्रंथि कोटर वर्जितं
समग्र धिः सुखावहः
४३
विषमाःथयो- कंकणानि प्रथमाद्वपदो (कोलाबा )परि अंत्यामर्कट्यश्नः
मटन विस्तृता ई
घंटोर्चे कलशस्तथा
दीर्घाष्ट्रांशेन विस्तरा
शिव्यतः कलशावधेः
ज्येष्ठात्पादोन कन्यशः
प्रमाणमामो ध्वजस्य चैदंड:
भवति तथा
दंड पडंबना अर्धचंद्राकृतिः पार्श्वे
ध्वजादंडप्रमाणेन-
शिखर युक्तेतु- दंड: कार्यस्तृतीयांशः मध्योऽष्टांशेन हीनोसौ
आचादिनकरे - विवयक शिखरः ( विनाकंठ ) - दंडस्तृतीयांशोनो
४२
• Intende
४४
--
४५
४१
भागे राखत्री
वेदिका भाराना भागे उंची करवी दृष्टिद्वार। ३. वारथीतीची वैरिका, उपरलघुबेठक, उपरमूर्ति, जिनदृष्टि बारना है। भागे
+
पृथुः +
परिशिष्ट- ४, सुधारसवचनसंग्रहमांथी
भगवाननी बेठी अथवा उभी बन्ने प्रकारनी प्रतिमा यौवन अवस्थामांज होवी जोइए तेमां पहेली ( बैठी ) प्रतिमा पर्य कासन वाळी होवी जोइए ।
प्रथम जमणी जांघ अने जमणा साथळ उपर डाबो पम तथा डाबो हाथ स्थापन करवो पछी डाबी जांघ अने डाबा साथळ उधर जमणो पग अने जमणो हाथ मूकवो एने पंडित पुरुषों पर्य कासन माने छे ।
भगवान प्रतिमा उभी होयतो तेना बेभुज ढींचण सुधी लांबा जोइप बन्ने प्रतिमाभी श्री वत्स, उष्णीष, त्रण छत्र इत्यादि परिवार युक्त जोइए ।
नासिकाना अग्रभाग उपर त्रण उत्रना अग्रभागनी समरेषा आवे तो ते भ्रण छत्र सर्वोत्तम जाणवा तेमज नासिका अने कपाळ एना मध्य भागमां आही रेषाथी कपोळनो वेध थवो ओइए ।
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
बे ढींचणनी वच्छ आई सूत्र घेवू अने सूत्रथी नाभि सुधी एक कषिका रामवी ए रीते करतां नाभिथी सुत्र सुधी अढार आंगळनु प्रमाण जोदए ।
प्रतिमानु ऊंचाइनु प्रमाण नव ताल जाणवु बार आंगुळनो एक ताळ थाय के अहीं आंगळां कंवानां न लेतां प्रतिमानां लेवां।
पूजा वगर घणो काळ एमने एम पडेली प्रतिमा ज्यां त्यांथी ग्रहण करवी नहीं।
प्रासादना चोथा भाग जेटलो प्रतिमा करवी पण उत्तम लाभ प्राप्तिने अर्थे ते चोथा भागमा एक आंगुल ओछी अथवा वधारे करवी । ___ प्रसादना चोथा भागना दश भाग करवा भने ते दशिमो एक भाग प्रासादना चोथा भागमा ओछो करी, अथवा तेमां एक दशिमो भाग उमेरी, तेटला प्रमाणनी प्रतिमा कारिगरोए करवी। ___ सर्वे धातुओनो, रत्ननी, स्फटिकनी अथवा प्रवाळनी प्रतिमा होय तो त्यां प्रतिमामा प्रमाण उपर प्रसादनु प्रमाण न लेतां इच्छा माफक लेवू ।
गभाराना अर्धभागना पांच भाग भित्तिथी करवा तेमा प्रथम भागमा यक्षादिकनो स्थापना करतो, वोजा भागमा सर्वे देवीओनी स्थापना करवी श्रीजा भागमां जिन, सूर्य, कार्तिकेय तथा कृष्ण एमनी प्रतिमा स्थापन करवी, चोथा भागमा ब्रह्मानी प्रतिमा अने पांचमां भागमां शिवलिंगनी प्रतिमा राखवी।
सामाद्वारनी शाखाना निचेयी आठ भाग करवा. तेलां जे माठमो भाग पधा करतां उपर आवेलो ते मूकी देवो भने तेनी निचेनो जे सातमो भाग तेना पाछा निचेथी सात भाग करया तथा ते सातमांना छ भाग मूकी देवा उपरनो जे सातमो भाग रह्यो तेमां गजांश ( अष्टमांश ) संभवे छे. ते गजांशने विषे कारीगरोए प्रासादनी अंदर रहेली प्रतिमा नीष्टि राखषी।
स्पष्ट दिशा ज्ञान करवानारो, अ-गोळ, चोखंडी, त्रण दिवसमां धान्य उगावनारी तथा पूर्व-उत्तर-इशान दिशामां उतरतो भूमि मंदिर माटे श्रेष्ठ छे ।
राफडा-पोल-फाट के शल्यवाळी भूमि अशुभ । खानी काची माटीना कोडीयानां बार दिवा करवा जे दिशानो दियो घणी पार प्रकाशे ते दिशानी ते भूमि सारी।
भुमि मापता दोरीत्रुटे तो धणीनु मृत्यु, ठोकतां खोलो बळी जाय तो रोग मडो पढे त्रुटे तो स्मृतिमाश।
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र। भूमि परीक्षा शल्य-प्रश्न यंत्र--(चतुष्कोण)
दिशा-ऊंडाण-शल्य-परिणाम ।
प० ईशान
१॥ हाथ गाय हड्डी विगेरे
पशु मृत्यु
ब० पूर्व १|| हाथ नर हड्डी विगेरे धणी मृत्यु
क. अमि
२ हाथ गर्दभ अस्थ्यादि भय-राजदंड
स० उत्तर केड प्रमाण विप्र हड्डी विगेरे
निर्धनता
य० मध्य छाति प्रमाया नर-अवयवो-मोह
मृत्यु
व० दक्षिण केड प्रमाण नर-हड्डी विगेरे धणी मृत्यु
।
ह. वायव्य
४ हाथ नरशब भस्म दु:स्वम-मित्रनाश
ए. पश्चिम
॥ हाथ बालक-हड्डी विगेरे घर धणी मृत्यु
त. नैऋत
२॥ हाथ श्वान हड्डी विगेरे बालक मृत्यु
प्रासाद उपर ध्वजा चढावेली न होय तो त्यां करेली पूजा होम अप विगेरे सर्व निष्फळ थाय छे माटे ध्वजा अवश्य चढाववी प्रासाद एक दिवस पण ध्वजा रहित राखवो नहीं।
प्रकाशित प्रासाद उपर ध्वजानो दंड प्रासादनी हस्त संख्याने अनुसार करवो अने अंधकार सहित प्रासाद उपर मध्य प्रासादना प्रमाणथी वजानो दंड करबो।
गभारामां रंगमंडपमा तथा वलानकमां घंटानु प्रमाण शुरु नासा समान जाणवू ।
जीर्ण थएला घरनो अथवा देवमंदिरनो उद्धार करतां तेनु बारणुं तथा प्रमाण जो पहेला माफकज राख्यु होय तो नवो वास्तु करवानी जरुर नथी अने जो फेरफार कर्यों होयतो नवी वास्तु करवी ।
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
-
-
-
-
स्तंभ तथा पाटीयां विगेरेनु प्रमाण वास्तु शास्त्रमा जे कांछे तेज मंदिरना काममां पण कारीगरोना संप्रदायथी जाणवू ।
निर्मळ आँछणमां पोसेली बेलनी छालनो लाकडा उपर अथवा पथ्थर उपर लेप करवाथी प्रगट मंडल ( माडलं) थाय छ।
जेनी प्रतिमा करवी होय ते काष्ट उपर अथवा पाषाण उपर पूर्व कह्या प्रमाणे लेप फरवो ते लेपथी जो मथ जेवू मंडल पडे तो अंदर खद्योत (गजुओ), रात्र सरखं पडेतो रेतो, गोळ सरखं पडेतो रातो देडको, आकाश सरखा रंगर्नु पडेतो पाणी, कोत साखा रंगर्नु पडेतो गिरोली, मजीठ सरका रंगर्नु पडेतो देडको, रातुं परतो काकीडो, पीलं अथवा कपिल वर्ण पडे तो उंदर, कृष्णवर्ण पडेतो वीछी, अंदर छे एम जाणवू तेथी संतति, संपदा, प्राण अने राज्य एनो नाश थाय छ।
प्रतिमाना फाष्ठमां अथवा पाषाणमां खीलो. छिद्र, पोलाण जीवडां जाळां सांधा, मंडळाकार रेषा तथा गार होय तो मोटोदोष समजवो।
प्रतिमाना काष्टमां अथवा पाषाणमां जो कोइ पण रीते लीसोटा ( रेषा) पडेला नजरे भावे तो ते जो मूळ वस्तुना जेवा रंगना होय तो कोई दोष नयी अने जो मूळ वस्तुथी जुदा रंगना होय तो दोष जाणवो। ज्ञानप्रकाश, वर्ष १३, अंक २, ३, ४, ५, वि० सं० १९५७
परिशिष्ट-५, स्थापना कल्प
स्थापनावीधि प्रवक्ष्यामि यदुक्तंभद्रबाहुभिः
उध्धृतनवमात्पूर्वात् नानाफलप्रदायकं १-यदि रक्तस्थापनामध्ये श्यामरेखा तदा सा नीलकंठसमाना तस्या:फलं-किंचित् ___ क्वचित् शानंच सुखंच सुलभं दीर्घजिवितंच २-पीतास्थापना श्वेतयिंदुसमन्धिता प्रक्षाल्यतजलेपितेसर्वरोग नाशः ३--पीतबिंदुयुक्ता नीलस्थापनाया:जलपाने सर्पविषनाशः ४-घृतवर्णास्थापना विशुचिकाविनाशिनी भतिघृतलाभदाच ५-पोतविदुसहितया श्वेतस्थापनयाऽक्षिरोगनाशः तादृग्वर्णरोगस्यापिनाशः
सत्स्मपनजलस्थपानेछंटने शूलनाशः
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०२
श्रीबृहद् धारणायंत्र।
६.---शुद्धश्वेतस्थापना रक्तरेखायुक्ता तत्प्रक्षालनछंटने विषोत्तारः सर्वकार्य सिविश्व ७--रक्तस्थापनाचार्ये पार्श्वस्थिते यंपश्यति, समोहप्राप्नोति ८-भधंरक्ता अर्धपीत स्थापना तत्प्रक्षालनजलछंटनेन कुष्टनाशः नेत्ररोगनाशश्च ६ - जंबुवर्णाचार्यः सर्ववर्णबिंदुसहितः सर्वकार्य सिद्धकरः १०-पुष्पसद्दशस्थापनाचार्यः पुत्रवंशवर्धक: ११-मयूरसद्गुशस्थापनाचार्यः अभीष्टपूरकः ईति प्रथमघु:-- जलपारदसंघाशः कृष्णबिंदुसमन्वितः
स्थापना यस्यमर्त्यस्य तस्यचिंतित सिद्धयः निष्पत्तिस्तु भवत्येवं नाग्निभीतिर्भवत्यहो चौरादि भयनाशा:स्यात् एवं सप्तमयापहः स्थापनापुष्पक(बिंदु)स्येव तुल्योहि विषनाम: एकावर्तोवलस्येष दाता भवतिसंततं व्याधर्तः क्लेशकाच ग्यायों बहुमानदः तुर्यावर्तोऽरिनाशाय पंचावर्तोभयापहः षडावों महारोग- दायकः किलसर्वदा सप्ताव” महारोग- नाशको नात्र संशयः विषमेवेष्ट संप्राप्तिः समेस्यान्मध्यम फलं छिद्रेतु धर्मनाशश्च भवत्येवं मतं सता यदिस्यादक्षिणावर्ती यन्मध्येक्षिप्यते सदा अक्षयं सद् भवेद्वस्तु प्राहुरेवं हितंविदः वृद्धकल्पो मयादृष्टः तन्मध्यादुधृतोधुवं बालप्रबोध रूपाय ज्ञातव्यं हि शुभाशुभं एतदेवमयाऽऽख्यात- मक्ष महात्म्यमीशं
ज्ञतव्यंतु प्रयत्नेन ___ सर्वेष्वर्थेषुसिद्धिदः अथविशेष:-संध्यायां दुग्धमध्ये स्थापना प्रक्षिप्यते प्रभातेविलोक्यते शनुषंदुग्धं भवति ताद्ग रोगोपरि समायाति रक्ते रक्तरोगापहः कृष्णेविषनाशः पित्ते आमवातनाशः स्फटिकाभे शुलनाशः क्यथितेज्वरनाशः दधिभूते अतिसारनाशः नीलेपित्तनाशः अलक्ततुल्येनृपवश्यंकरः इति
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीबृहद् धारणायंत्र! परिशिष्ट-६, मणि परिक्षा
१-धोळीरेखा पाळो नीलकंठमणी कहेवाय छे ते सुख-संपदा-झान आपे छ तेने कदीपण पीठे राखवो नहीं. २–जेमणीमां पीठे छाया होय उपर-श्वेत वींदु होय माहे काळी रेखा होय ते बिडाल लोचन जेने पूजतां नघनीधि थाय. ३--फटकडोजेकोमणी होय माहे नीली रेखा काळा बींदु होय ते कामितपुरे. ४-मधु समान पीत होय सफेद रेखा होय ते सर्व रोग हरे. ५-कपोत कंठ समीछायाघाळो ने सफेद बीदुवाळो विषहरे. ६-नोलवणी उपर पंचवींदु पुत्रादि घे. -सौंदुर वर्णी सफेद कृष्ण रेखावाळो विष हरे. ८-हंसवीं बहु रेखाघाळो वृद्ध पणेसुख घ. १-हलिवावों उपर मीडासरखो अजीर्ण हरे. १०-पीत रक्तरेखावाळो कालीछायावाळो धोइ पावाथी नयनवेल मटाडे, ११.हरिद्रावर्णो सर्वरेवावाळो सर्व विषहरे १२.--घउंवर्णी पोळो हाथीनेत्र समान श्वेत मीडा(वींदु)सदा भूतप्रेतादि हरे....१३–फटीफवर्णो रातीपीळी रेखायाळो वॉछोविष हरे. १४-मजीठवर्णों घणामींडावाळो सर्वरोगहरे. १५-रक्तवणों सफेदरेखावाळो विश्व वशीकरणकरे. १६-पीतवर्णी पीतमोडावाळो लाल रेखावाळो सर्वरोग हरे. १७-रक्तवर्णी उपरवादळी काळामींडावाळो वैरी उपर चाले. १८ तेजवाळो नीलवणी काळामींडावाळो मणी, मींडा प्रमाणे पुत्र घे. १६-दाडीमीफुलवणी उपर लालमोंडावाळो सौभाग्य थे इति. परिशिष्ट-७, विशेष सूचनं---
विवेकविलास श्राद्धपीधि - मंदिर प्रवेश-~-स्थान पूजक दिशा १/८३-१८ १/५ (५.) प्रतिमाविवार
१/१२८–१५१ ६/१५ (१७८) गर्भगृह-भीत्तिमान–दष्टि
१/१५२-१५८ भूमि परिक्षा-शल्य ध्वजदंडादि १/१६२–१८२६/१४ बींव पाषाण परीक्षा
१/२८३-१८८ गृह रचना ध्वमछायावृक्षादि
८/५६-१.
८ ६/१४–१५(१७५) __तथा मंदिर प्रतिमा मूहूर्तादि कार्येषु आरंभसिद्धि जैनतत्वादर्श दिन शुद्धिविश्वेप्रभाटीका प्रमुखमुद्रितप्रथा दृष्टव्याः
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________ शुद्धि पत्र। स्याति त्रीपूर्वा स्वाति श्चत् त्रिपूर्वा श्वेत् मीन : : * ..... मीन मीन नमपंचम स्वामिनः होडडाडी रुलिलेवा भकहम् नेन्थं काधानि उत्तरोउत्तर नवपंचम स्वामिनः टोठडाडी रुलालीवा अकडम् नेत्थं काद्यानि उत्तरोत्तरे-- Ex. :::40 45 4: पृष्ट तीर्यक्रउर्ध्वकोष्टक अशुद्ध 16 (2) ४xसाधक पाठहिनो ठदिनो १.(a)xजिननाडीवेध 2, 5, ३४शुभ 16, 16, 22, 16, 16, 21 ६xश्रेष्ठ घ. 1,6,8 ध० 1, 6, 10, वर्गxप 6,16,20, 5, 16, 20, वर्गxय 12, 16, 12, 13, प्रारंभे अकहम अकडम १६xराशि अशभ अशुभ २१.०xनाडी वेध २२३०xनाडी .-13-23, 7-17-23 13 बि.xमारी वेध 14 अ०xनाडी वेध 17 कुंxनारी वेध* 16, 16, २१.xनाडी वेध एकम 68-61 नाही (वेधे) (पृष्ट ) पश्य तथा अराभ---अशुभ, ह–द, ह-ड, इत्यादि वोपि यथार्थ विशुद्धिर्विधेया एवं अन्ये ध्वपि स्थानेषु स्वयं विशोधनीयं ज्ञः॥ वेध प्रारंभे वेध