Page #1
--------------------------------------------------------------------------
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
सी-नाममाला (हिन्दी शब्दकोष)
सम्पादक जुगलकिशोर मुख्तार
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
वीर सेवा मन्दिर दिल्ली
क्रम संख्या
काल नं
खण्ड
2
默
¤¤¤¤£L
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकीर्णक पुस्तकमालाका प्रथम पुष्प
बनारसी-नाममाला
अर्थात् कविवर पं० बनारसीदासकृतहिन्दी शब्दकोष
सम्पादक जुगलकिशोर मुख्तार अधिष्ठाना 'नार सवामन्दिर
प्रकाशकधीरसंबामन्दिर
मरसावा जि० महारनपुर प्रथमावृत्ति ।
सन १९४१ ५०० प्रति
रे चार श्राने
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशकवीर-मवा-मन्दिर सरसावा जिला सहारनपुर
मुद्रकश्रीवास्तव प्रिंटिंग प्रेस
सहारनपुर
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकाशकके दो शब्द
इस 'बनारसी - नाममाला' और उसके रचयिता कविवर पण्डित बनारसीदासजोका संक्षिप्त परिचय आश्रम के विद्वान शास्त्री पं० परमानन्दजी ने अपनी 'प्रस्तावना' में दे दिया है। यहाँ पर सिर्फ इतना और प्रकट कर देना है कि ग्रंथकी उपयोगिताको बढ़ाने के लिये आधुनिक पद्धतिसे तय्यार किया गया 'शब्दानुक्रमरिका के रूप में एक 'शब्दकोष' भी साथ में लगाया जा रहा है, जिससे सहज ही में मूल कोष के अन्तर्गत शब्दों और उनके अर्थों को मालूम किया जा सकेगा, और इससे प्रस्तुत कोषका और भी अच्छी तरह से उपयोग हो सकेगा तथा उपयोग करनेवालोंके समय की काफी बचत होगी । इस शब्द कोषके तय्यार करने में
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
४
प्रकाशक के दो शब्द
पं० परमानन्दजीने सूचनानुसार उसके लिये वे धन्यवादके पात्र हैं।
यहाँ बाबू पन्नालालजी जैन अमत्राल देहली और पं० रूपचन्दजी जैन, गार्गीय पानीपत को धन्यवाद दिये बिना भी मैं नहीं रह सकता, जिन की कृपा से इस 'नाममाला' की दो प्रतियां प्राप्त हुई है और जिसके फलस्वरूप ही यह ग्रन्थ प्रकाश में आरहा है।
जो परिश्रम किया है
इस ग्रंथ के साथ में जिस प्रकीर्णक पुस्तक मालाका प्रारम्भ हो रहा है, उसमें ऐसी ही उपयागी छोटी छोटी पुस्तकें प्रकाशित हुआ करेंगी। आशा है जनता इस पुस्तकमालाको ज़रूर अपनाएगी ।
|
अधिष्ठाता 'वीर सेवामन्दिर'
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
-ocomm.
गम्बर जैन ममा जमें हिन्दी भाषाके अनेक अच्छे
कवि और गद्यलेखक विदान हो गये हैं। उनकी रचनायोसे ममाज ान गौरवान्वित हो रहा है । जिम तरह हिन्दीके गद्य लेखको-टीका कागम श्राचार्य कल्प पं० टोडरमलजी, पं० जयचन्दजी और पं० मदासुग्वगयनी श्रादि विद्वान् प्रधान माने जाते हैं, उमी तरह कवियोम पं० बनारमीदासजीका स्थान बहुत ही ऊँचा है। ग्राप गोम्वामी तुलमीदामजीके ममकालीन विद्वान् थ, १७ वीं शताब्दीके प्रतिभामम्पन्न कवि थ और कविनापर आपका अमाधारण अधिकार था। अापकी काव्य-कला हिन्दीमाहित्यमें एक निगली छटाको लिये हुए है। उममें कहींपर भी शृंगार जैस रसीका अथवा स्त्रियांकी शारीरिक सुन्दरता
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
६
बनारसी - नाममाला
का यह बढ़ा चढ़ा हुआ वर्णन नही है जिससे ग्रात्मा पतन की ओर अग्रसर होता है | आपके ग्रन्थरत्नीका ग्रालोडन करने मे मालूम होता है कि आपके पास शब्दोका श्रमित भंडार था, और इसमें आपकी कविताके प्रायः प्रत्येक पदमें अपनी निजकी छाप प्रतीत होती है । कविता करनेमें ग्रापने बड़ी उदारता काम लिया है। व्यापकी कविता श्राध्यात्मिक रससे श्रोत-प्रोत होते हुए भी बड़ी ही रसीली, सुन्दर तथा मनमोहक है, पढ़ते ही चित्त प्रसन्न हो उठता है और हृदय शान्तिरम में भर जाता है। सचमुच में ग्रापकी आध्यात्मिक कविता प्राणियां संतम हृदयोको शीतलता प्रदान करती और मानस सम्वन्धी ग्रान्तरिक मलको छाटनी तथा शमन करती हुई अक्षय सुखकी अलौकिक सृष्टि करती है | आपकी कविता हनेका मुझे बड़ा शौक है- - वह मेरे जीवन
का एक अंग बन गई है। जब तक मैं नाटक समयमारके दो चार पद्योंको रोज नहीं पढ़ लेता तब तक हृदयको शांति
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
नही मिलती । अस्तु ।
कविवर बनारसीदामजीका जन्म मंवत् १६४३ में जौनपुर में हुआ था। आपके पिताका नाम खडगमन था । श्रापने स्वयं अपनी प्रात्म-कथाका परिचय 'अर्द्ध कथानक'के रूपमें दिया है, जो ६७३ दोहा-चौपाइयोम लिखा गया है
और जिसमें आपकी ५५ वर्ष की जीवन-घटनाग्रांका तथा अात्मीय गुण-दोषीका अच्छा परिचय कराया गया है । अापकी यह आत्मकथा अथवा जीवन-चरित्र भारतीय विद्वानोके जीवन-परिचयरूप इतिहास में एक अर्व कृति है । अर्धकथानकके अवलोकनस स्पष्ट मालूम होता है कि श्रापका जीवन अधिकतर विपनियोका-संकटोका-सामना करते हुए व्यतीत हुश्रा है, और आपने उनपर मब धैर्य तथा साहसका अवलम्बन कर विजय प्राप्त की है।
यद्यपि भारतीय अनेक कवियोंने अपने अपने जीवनचरित्र स्वयं लिखे हैं, परन्तु उनमें अर्धकथानक-जैसा श्रात्मीय
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला
गुण-दोषीका यथार्थ परिचय कही भी उपलब्ध नहीं होता। श्रर्धकथानकमें डालब्ध होनेवाले १६४३ से १६६८ तक के (५५ वर्षके) जीवनचार के बाद कांचवर अपने अस्तित्व से भारतवर्ष को कितने समय तक और पवित्र करत रहे, यह टीक मालूम नहीं होता। हां, बनारमावलामम मंगृहीन 'कर्मप्रकृतिविधान' नामक प्रकरण के निम्न अंतिम यद्यमे इतना जरूर मालूम होता है कि आपका अस्तित्व मंचत् १७०० नक ज़रूर रहा है: क्योकि इम मंवत्के फाल्गुन माममें उमकी रचना की गई है । यथा---
संवत् मत्रहसौ ममय, फाल्गुण भाम वमन्त । ऋतु शशिवासर सप्तमी, नत्र यह भयो सिद्धंन ।
अापकी बनाई हुई इम ममय चार रचनाएँ उपलब्ध हैनाटक ममयसार, बनारमा-विलाम (फुटकर कविनायो का संग्रह) अई कथानक और नाममाला। इनमसे शुरूके दो ग्रन्थ तो पूर्ण प्रकाशित हो चुके हैं, और अर्द्ध कथानक
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
का बहुत कुछ परिचय एवं उद्धरण पं० नाथूरामजी प्रेमीने बनारसीविलास के साथ दे दिया है । जनता इन तीनो से यथेष्ट लाभ भी उठा रही है । परन्तु चौथा ग्रन्थ 'नाममाला' अबतक अप्रकाशित ही था । श्राज वह भी जनता के सामने उपस्थित किया जारहा है, यह निःसन्देह बड़ी ही
प्रसन्नताका विषय है ।
इस ग्रन्थकी रचना संवत् १६७० में, बादशाह जहाँगीर के राज्यकाल में, आश्विन मास के शुक्लपक्षमं विजयादशमी को सोमवार के दिन, भानुगुरुके प्रसाद से पूर्णताको प्राप्त हुई है । इस ग्रन्थ बनवानेका श्रेय आपके परममित्र नरोत्तमदासजीको है, जिनके अनुरोध एवं प्रेरणा से यह बनाया गया है । जैसा कि ग्रन्थके पद्य नं० १७०, १७१, १७२, १७५ से स्पष्ट है ।
इस ग्रन्थकी रचनाका प्रधान श्राधार महाकवि धनंजय का वह संक्षिप्त कोष है जिसका नाम भी 'नाममाला' है
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसो-नाममाला और जो अनेकार्थ-नाममाला सहित २५२ संस्कृत पद्योमें पूर्ण हुआ है । परन्तु उस नाममालाका यह अविकल अनुवाद नहीं है और न इसमें दोसौ दोहोंकी रचना ही है, जैसा कि पं० नाथूरामजी प्रेमीने बनारसीविलासमें प्रकट किया है । इस ग्रन्थके निर्माणमें दूसरे कोषोंसे कितनी ही सहायता ली गई है। ग्रन्थकी रचना बड़ी ही सुगम, रमीली
और सहज अर्थावबोधक है। यह कोष हिन्दी भाषाके अभ्यासियोंके लिये बड़ी ही कामकी चीज़ है । अभी तक मेरे देखने में हिन्दी भाषाका ऐसा पद्यबद्ध दूसरा कोई भी कोष नहीं आया । संभव है इससे पहले या बादमें हिन्दी पद्योमें और भी किसी कोषकी रचना हुई हो । *"अजितनाथके छंदो और धनंजय-नाममालाके दोसौ दोहो की रचना इसी समय की।"
"यह महाकवि श्री धनंजयकृत नाममलाका भाषा पद्यानुवाद है।" -बनारसी-विलास पृ० ६७, १११
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
११
यहाँ एक बात और प्रकट कर देनेकी है, और वह यह कि यह 'नाममाला' कविकी उपलब्ध सभी रचनात्रों में पूर्व की जान पड़ती है । यद्यपि इससे पूर्व उक्त कविवरने युवावस्था में श्रृङ्गाररसका एक काव्यग्रन्थ बनाया था, जिसमें एक हजार दोहा - चौपाई थीं, परन्तु उसे विचारपरिवर्तन होने के कारण नापसंद करके गोमतीके प्रथाद जल में बिना किसी हिचकिचाहटके डाल दिया था । दोसकता है कि 'नाममाला' की रचना उक्त काव्य-ग्रन्थके बाद की गई दो; परन्तु कुछ भी हो, कविवरकी उपलब्ध सभी रचनाओं में यह ग्रन्थ पदली कृति है । इसीसे २३ वर्ष बाद की गई नाटक समयसार की रचना में गम्भीरता, प्रौढता और विशदता और भी अधिक उपलब्ध होती है ।
नाटक समयसारकी उत्थानिकामें वस्तुनो नामवाले कितने ही पद्म पाए जाते हैं, उनकी नाममालाके पद्योके साथ तुलना करनेसे नाटक समयसारवाले पद्योंकी प्रौढता,
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२
बनारसी - नाममाला
गम्भीरता और कविवर के अनुभवकी अधिकता स्पष्ट दिखाई देती है, २३ वर्षके सुदीर्घकालीन अनुभव के बादकी रचना में अधिक inga, सरसता एवं गाम्भीर्यका होना स्वाभाविक ही है । नाटक समयसार वाले उन पद्यां को जो नाममाला पद्योंके साथ मेल खाते थे यथास्थान फुटनोटोंमें दे दिया गया है । शेष जिन नामोंवाले पद्य नाममालामें दृष्टिगोचर नहीं होते उन्हें पाठकोकी जानकारीके लिये नीचे दिया जाता है:
"दरम विलोकन देखनौ, अवलोकनि हगचाल । लखन दृष्टि निरखनि जुवनि, चितवनि चाहनि माल ||४७ ||
यान बोध अवगम मनन, जगतमान जगजान । संजम चारित श्राचरन, चरन वृत्त थिवान ||४८ ||
४ सम्यक सत्य अमोघ सत, निसंदेह निरधार ।
१दर्शन नाम, २ ज्ञाननाम, ३चारित्रनाम, ४ सत्यनाम |
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
१३
टीक जथारथ उचित नथ पमिथ्या श्रादि अकार ||४६||
इम 'नाममाला' कोष में कोई ३५० विषयोंके नामोंका सुन्दर संकलन पाया जाता है, जिससे हिन्दीभाषाके प्रेमी यथेष्ट लाभ उठा सकते हैं । कितने ही तो इस छोटीमी पस्तकको सहज ही में कण्ठ भी कर सकते हैं । नामोमें हिन्दी ( भाषा ), प्राकृत और संस्कृत ऐमे तीन भाषायोके शब्दोका समावेश है; बाकी जानि, वखानि, सु, जान, तह इत्यादि शब्द पद्योमें पादपूर्ति के लिये प्रयुक्त हुए हैं, यह बात कविने स्वयं तीमरे दोहे में सूचित की है।
इम कोषका संशोधनादि कार्य मुख्यतया एक ही प्रनिपरसे हुआ है, जो सेठका कुँचा देहलीके जैनमंदिरकी पुस्तकाकार १५ पत्रात्मक प्रति है, श्रावण शु० सप्तमी संवत्
-- - -- --
५ सत्यके नामोंकी श्रादि में 'अ'कार जोड देनेसे मिध्याके नाम हो जाते हैं।
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला १६३३ की लिखी हुई है, पं० बांकेरायकी मार्फत रामलाल श्रावक दिल्ली दर्वाजेके रहने वालेसे लिखाई गई है और उसपर मंदिरको, जिसके लिये लिखाई गई है, 'इंद्राजजीका' मंदिर लिखा है । बादको एक दूसरी शास्त्राकार १२ पत्रात्मक प्रति पानीपतके छोटे मंदिरके शास्त्रभंडारसे मार्फत पं० रूपचन्दजी गार्गायके प्राप्त हुई, जो संवत् १८६८ अाश्विन शुक्ल द्वितीया शनिवारकी लिखी हुई है और जिसे चौधरी दीनदयालने जलपथनगर ( पानीपत) में लिखा है । इस प्रतिका पहला और अन्त के ४ पत्र दूसरी कलमसे लिग्वे हुए हैं और वे शेष पत्रों की अपेक्षा अधिक अशुद्ध है । इस प्रनिसे भी संशोधनादिके कार्य में कितनी ही सहायता मिली है । यो प्रतियाँ दोनो ही थोड़ी-बहुत अशुद्ध हैं और उनमें साधारण-मा पाठ-भेद भी पाया जाता है; जैसे देहलीकी प्रतिमें तनय,तनया, पाठ हैं तो पानीपतकीप्रति में तनुज,तनुजा पाठ पाये जाते हैं स, श, य, ज, जैसे अक्षरोंके प्रयोगमें
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
भी कहीं कहीं अन्तर देखा जाता है और 'ख' के स्थानपर 'ब' का प्रयोग तो दोनो प्रतियामें बहुलतासे उपलब्ध होना है, जो प्राय: लेखकोंकी लेखन-शैलीका ही परिणाम जान पड़ता है। अस्तु ।
उक्त दोनों ग्रंथप्रतियोंमें 'दोहा-वर्णित' विषयों का निर्देश दोहेके ऊपर गद्यमें दिया हुआ है, परन्तु एक एक दोहेमें कई कई विषयोंका समावेश होनेसे कभी कभी साधारण पाठकको यह मालूम करना कठिन हो जाता है कि कौन नाम किस विषयकी कोटिमें आता है। अत: यहाँ दोहेके ऊपर विषयोंका निर्देश न करके दोहेके जिस भागसे किसी विषयके नामों का प्रारंभ है वहाँ पर क्रमिक अंक लगा कर फुटनोटमें उस विषयका निर्देश कर दिया गया है। इससे विषय और उसके नामोंका सहज हीमें बोध होजाता है।
इस ग्रन्थके संशोधन और सम्पादनमें श्रद्धेय पं.
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला
(विषय-प्रवेश) तीर्थकर सर्वज्ञ जिन, भवनासन भगवान । पुरुषोत्तम प्रागत सुगन, संकर परम सुजान ॥४॥ बुद्ध मारजित केवली, वीनगग अरिहंत । धरमधुरंधर पारगत, जगदीपक जयवंत ॥५॥ 'अलख निरंजन निरगुनी, जातिरूप जगदीस । अविनासी आनंदमय, अमल अमूरति ईम ॥६॥ गौर विसद अरजुन धवल, स्वत सुकल सितवान। माख मुकति वैकंठ सिव, पंचमगति निर्वानx॥७॥ "सरस्वति भगवति भारती, हंसवाहनी वानि ।
१ तीर्थकरनाम २ सिद्धनाम ३श्वेतवर्णनाम ४मोक्षनाम । xनाटक समयसारमें इस नामका निम्न पद्य पाया जाता है:सिद्धक्षेत्र त्रिभुवनमुकुट, शिवथल अविचलथान । मोख मुकति वैकुंठ शिव, पंचमगति निरवान ||४|| ५ सरस्वतीनाम।
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष
१९
वाकवादनी सारदा, मनिविकामनी जानि ॥८॥ "सुरंग सुगलय नाक दिव, देवलोक सुग्घाम । "पुहकर गगन विहाय नभ, अंतरीक्ष प्राकाम ।।९।। विदस विबुध पावकवदन, अमर अजर असुगार।
आदितंय सुर देवता, सुमनस अंबरचारि ॥१०॥ 'प्रजानाथ बंधा हिन, कमलामन लाकस ।
धात विधाता चतुर्मग्व, विधि विरंचि देवेम ।।११। १ नागयन वसुदेवसुत, दामोदर गोपीम।
अचुन त्रिविक्रम चतुर्भज, वनमाली जगदीम ॥१२॥ मधुरिपु बलिम्पुि वानरिपु, दानवदलन मुर्गार । कमविधंसन पीनपट, कैटभारि नरकारि ॥ १३ ॥
६ देवलोकनाम ७ ग्राकाशनाम | * नाटक ममयमाग्में इम नामका निम्न पद्य पाया जाता है:
ग्वं विहाय अंबर गगन, अंतरिच्छ जगधाम । व्योम नियन नभ मेघपथ, ये अकामके नाम ॥३८॥
८ देवनाम : ब्रह्मानाम १. विष्णु ( कृष्ण ) नाम ।
- -- -
-
- --
-
-
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
२०
श्वनारसी-जाममाला कंसव कृष्ण मुकंन मज, अंबुजलेन अनंत । वासुदेव बलबंधु मिव, ग्मन गधिकार्कत ॥१४॥ पदमनाभि पदमाग्मन, गरुडासन गोपाल । पुरुषोत्तम गोविंद हगि, जलमाई नंदलाल ।।१५।। मुरलीधर सारंगधर, मंग्व-चक्रधर स्याम । सौरि गदाधर गिग्धिग्न, देवकिनंदन नाम ।।१६।। ग्मा लच्छि दमालया, लोक जननि हरिनारि ।
कमला पदमा इंदग, नीरममुद्र-कुमारि ॥१७॥ १२ कामपाल रेवतिग्मन, गहिनिनंदन नाम ।
नीलवमन कुमली हली, मंरपानि बलनाम ||१८|| १ मतवादी धरमातमज, मामवंम-गजान ।
भीम वृकोदर पवनसुन, कीचकार पु बलवान ।।१९।। ५"जिष्णु धनंजय फालुगुन, करनहग्न कपिकत ।
"लक्ष्मीनाम १२ बलभद्रनाम १३ युधिष्ठिरनाम १४ भीमनाम १५ अर्जुननाम |
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष असुरहलन गांडीवधर, इंद्रतनुज हसंत ॥२०॥ १६शंभु निलांचन गौरिपति, हर पसुपति त्रिपुरानि ।
मनमथहरन पिनाकर, नीलकंठ विषधारि ॥२१॥ वामदेव भूतेम भव, गंडमालधर ईस । जटाजूट कप्पालधर, महादेव सिस्वरीस ॥२२॥ समिसम्बर मितिकंठ मित्र, अंधरिपु ईमान |
सूली संकर गंगधर, वृषभकंतु वृषजान ॥२॥ १° उमा अंबिका चंडिका, काली मिवा भवानि ।
गौरि पानी मंगला, हिमगिरितनया जान ॥२४॥ १८गनप विनायक गजबदन, लंबोदर वरदान । ५१ षडमुग्न अगिनिकुमार गुह, सिखिवाहन मेनानि॥२५॥ "इंद्र पुरंदर वजधर, पाखंडल अमरेस । घनवाहन पुग्हन हरि, महमनेन नाकंस ॥२६॥
१६ महादेवनाम १७पार्वतीनाम १८गणेशनाम १६ स्वामिकार्तिकेयनाम २० इन्द्रनाम ।
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२
२१ इंद्रपुरी अमरावती,
सभा सुधर्मा नाम ।
13
इंद्रानी सु-पुलोमजा, मची श्रमग्पतिवाम ||२७|| ર્ 'कल्पवृक्ष संतानद्रुम, पाग्जात मंदार | हरिचंदन ए पंचसुर तक नंदनकंनार ॥२८॥ २ प्रथम सुपदम महापदम, कंद मुकुंद खव्व । सं नील कस्व पदम कर ए नवनिषि सुग्दन्न ||२|| २६ देववृता च तिलोरमा, मेनक उपवास रंभ | २० सुधा अमृत पीयूष ग्म, जगहरन सुरअंभ || ३ || २८ सुरगिरि गिरिपति हेमगिरि धरनीधरन सुमेरु । २९ 'गजराज वैश्रवन तह, वैश्रवन तह, धनपति धनद कुबेर ||३१||
बनारसी - नाममाला
1
२२
30
'अभ्र मेघ वनमान घन, धाराधर जलधार | केंद्र देव दामिनि श्रधिप, वारिवाह नमचारि ॥ ॥
२१ इन्द्रपुरीनाम २२ इन्द्रमभानाम २४ देववृक्षनाम २५ नवनिधिनाम २६ अप्सरा (देवांगना ) नाम २७ श्रमृननाम २८ सुमेरुपर्वनाम २६ कुबेरनाम ३० मेघनाम ।
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिन्दी शब्दकोष
धूम जानि जीमूत प्रग, पावकरिपु पयदान । ११संपा बनरुचि चंचला, चपला दामिनि जान ॥३३॥
हाहा हूहू किंपुरुष, विद्याधर गंधर्व । अप्सर यक्ष तुरंगमुम्ब, दवयानि ए सर्व ॥३४|| जातुधान दानव दनुज, गफस देव-विषकाव । दिनिनंदन मानुषभखन, असुर निसाचर जक्ख ॥३५।। हरित ककुभ प्रासा दिसा,3"सुरपति पावक काल । नैरित वरुन पचन धनद, ईम पाठ दिकपाल ॥३६।। दक्षिन नेरित वारुनी, वायु उतर ईसान । पूरव पातक अध उग्ध, ए दम दिसि अभिधान ॥३७॥ दिग्गज ऐरावत कुमुद, पुहुपदेत पुंडरीक । अंजन सारवभौम तह, वामन सूपरतीक ॥३८॥
३. बिजलीनाम ३२ गंधर्वनाम ३३ दैत्य (राक्षस) नाम ३४ दिशानाम ३५ अष्टदिक्यालनाम ३६ दशदिशानाम ३७ अष्ट दिग्गजनाम।
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४
बनारसी-नाममाला
3“सूर विभाकर घामनिधि, महसकिग्न हरिहंम । माग्तंड दिनर्मान तरीन, श्रादिति अालप-श्रम ॥३९।। सविता मित्र पतंग रवि, तपन हेलि भग भान ।
जगतविलोचन कमलहित, तिमरहग्न निगमान ॥४॥ १ इंदु छपाकर चंद्रमा, कुमुदबंधु मृगअंक |
औषधीस राहिनिग्मन, निसमनि माम समांक ।।४।। चन्द्र कलानिधि नखतपनि, हग्गिजा हिमभान ।
सुधासूत द्विजगज विधु, क्षीरसिंधुसुत जान ॥४॥ * ° उडुगन भानि नक्षत्र ग्रह, ग्मिय नारका नार । ४ 'सीतल सिसिर तुषार हिम, तुहिन मीत नीहार ॥४३।। ४२मलिन मलीमसि कालिमा, लंछन अंक कलंक । ४ छाम छुधित दुर्बल दुखित, दीन होन कृश रंक ॥४४॥ ४४विभा मयूख मर्गचिका, जानि कामि महधाम ।
३८ सूर्यनाम ३६ चन्द्रनाम ४० नक्षत्रनाम ४१तुषारनाम ४२ कलंक नाम ४३ दुर्बलनाम ४४ किरणनाम।
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष पाद अंसु दीधिति किरनि, भानुतेज रुचि नाम ॥४५॥ ४५जीव वृहस्पति देवगुरु, ४६ रोहिनेय बुध सोम । ४७मंद सनीचर रवितनय, ४ भूसुत मंगल भौम ।।४६||
अगिनि धनंजय पवनहित, पावक अनल हुतास । ज्वलनविभावसुसिखिदहन वडवा उदधिनिवास:४७ ५पवन प्रभंजन गंधवह, अनिल वात पवमान |
मामत मरुत समीर हरि, पावहित नभस्वान ॥४८॥ ५१ जमुनीबंधव समन हरि, धरमगज जम कालक।
४५ वृहस्पति नाम ४६ बुध(ग्रह)नाम ४७शनिश्चरनाम ४८ मंगलनाम ४९ अमिनान ११ वडवानलनाम ५० वायत ५१ यमराजनाम।
* इस नामका नाटक समयसारमें निम्न जाता है:-- जम कृतांत अंतक त्रिदस, श्रावती मृतथान। प्रानहरन श्रादिततनय, काल नाम परवान ||
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
वनारसी नाममाला
"बल्बन दामन भयकरन, घोर तिगम विकराल ।।४।। ५3दिवा दिवस वासर सुदिन, "'रजनी निसा त्रिजाम ।
जामिनि छपा विभावरी, तमी तामी नाम ||२०|| ""सिंधु समुद सरिताधिपति, अंबुधि पारावार ।
अकूपार सागर उदधि, जलनिधि रतनागार ॥५१।। ५६ सलिल उदक जीवन भुवन, अंबु वारि विष नीर ।
अमृत पाथ वन ताय पय, अंभ आप जल क्षार ॥५२।। ५ अवलि तरंग कलाल विचि, भंग ''पालि जलबांद ।
अघि सोम उपकंठ तट, कूल गंध मरजाद ॥५३।। "कमल तामरस काकनद, पंकज पदम सरांज ।
कंज न लन अरविंद सित, पंडरीक अंभाज ||५४॥ ६°इंदीवर नीलातपल, पुहुकर नाल मृनाल ।
५२ भयानकनाम ५३ दिवसनाम ५४ रात्रिनाभ ५५ समुद्रनाम ५६ जलनाम ५७ तरंगनाम ५८ तटनाम ५६ कमलनाम ६०नोलकमलनाम ६मृणाल(कमलनाल)नाम।
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष २७ २ससिविकास कैरव कुमुद, ६ हद सम्मी सर ताल ||५५।। ६ मकर तिमंगल वारिचर, प्रथुरोमा षडलीन ।
निम जलजंतु विमारि झष, मफरी रोहित मीन ।।२।। ६" पावन पूत पवित्र सुचि, ६६ अवलंबन अाधार । 5. कुंभ कलम ,गार घट. ६६गरभ कास भडार।५७|| ६हीग मानिक नीलमणि, पहपगग गोमंद ।
मरकन मुकन प्रवाल तह, वैडूरज नवभेद ॥५८ ।।
कंबु मंग्य कच्छप कमठ. ७ दादुर मिडक भक । 'प्रचुर प्रभूत सुबहुल बहु, अगनित भूरि अनेक।।५९।। "लच्छि धनंतर कौमतुभ, रंभा इंद्रतुरंग । पारिजात विष चंद्रम', कामधेनु सारंग ॥१०॥
६२ कुमुदनाम ६३ संगेवग्नाम ६४ मत्स्यनाम ६५ पवित्रनाम ६६ अाधारनाम ६७ घटनाग ६८ भंडारनाम ६६ नवरत्ननाम ७० शंखनाम ७१ कच्छपनाम ७२ मेंडकनाम ७३ बहुतनाम ७४ चौदह रत्ननाम ।
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला
सुरा संख पीयूषरस, ऐरावत-गज सार । सिंधु-मथन करि प्रगट किय, चौदह रतन उदार।।६।। ७"वनिक सेठ गाडा(था)धिपति, व्यवहागे धनवान ।
"नाव पोत प्रोहन तरन, वोहित वाहन जान ॥६२।। ७६ देवसरित मंदाकिनी, गगनवाहिनी गंग। ७७त्रिपथगमनि भागीरथी, सिवतिय धवलतरंग ॥६३।। ७“सरिता धुनी तरंगिनी, नदी आपगा नाम । ७ कालिंदी रविनंदनी, जमुना हरिविश्राम ॥६४।।
भूमि रसा छिति मेदिनी, छोणी छमा जगत्ति । अवनि अनंता कभिनी, गोधरनी वसुमत्ति ॥६।। अचला इला वसंधग, धरा मही घर संस। 'भुवन लोक संसार जग, जनपद विषय सुदेस ॥६६।। ७५ व्यापारी तथा जहाजके नाम ७६ श्राकाशगंगानाभ ७७ भूमिगंगानाम ७८ सामान्यनदीनाम ७६ यमुनानदीनाम ८० पृथ्वीनाम ८१ लोकनाम ८२ देशनाम ।
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष
८३पंसु रेनु रज धूलि तह, ८४ परिष पंक जंबाल ।
"किंचित तुच्छ मनाक तनु, ८६दीरघ लंब विसाल ॥६५॥ ८ "संनिधि पास समीप अभि, निकट निरंतर लग्ग।
"अंतर दूरि निरापरम, ८ सरनि पंथ पथ मग्ग ।।६८|| ९०पन्नगलोक पतालपुर, अधोभवन बलिधाम । ९'सुषिर कुहिर रंधर विवर, १२वट कूप विलनाम।।६९
वासुकि शेष सहस्रफनि, पन्नगराज वग्वान | ९४गरल हलाहल प्राणहर, कालकूट विष जान ॥७०|| • काकोदर विषधर फनी, अहि भुजंग हरहार !
लेलिहान पन्नग उग्ग, भोगी पवनाधार ॥१॥ ९६निग्य नरक कुंभोगवन, दुग्गति दुःखनिधान ।
८३ धूलिनाम ८४ कीचड़नाम ८५ तुच्छनाम ८६ दीर्घनाम ८७ समीप ( निकट ) नाम ८८ दूरनाम ८६ मार्गनाम ६० पातालनाम ६१ विलनाम ६२ कपनाम ६३ शेषनागनाम ६४ विषनाम ६५ मर्पनाम ६६नरकनाम।
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला ९७बंध फंध शृंग्वल निगड, जंन पास संदान ॥७२।। ५८ कलिल कलुष दहकृत दुरित, एन अंध अघ पापी ९. "पीड़ा बाधा वेदमा, विथा दुःख संताप ॥७३।। १० मानुष मानव मनुज जन, पुरुष नृ गाध पुमान । १०१ विभु नेता पनि अधिप इन, नाथ ईम ईमान ||७४|| ५०प्रमदा ललना नायका, जुरति अङ्गना वाम ।
जांपा जाषित मुंदरी, वधू भामिनी भाम ||५|| महिला ग्मनी कामनी, बागलोचना बाम ।
निना नारि नितंबिनी, बाला अबला नाम ॥७६।। 10 जाया घनि कलत्र त्रिय, भार्या पननी दार । ६७ बंधननाम ६८ पापनाम । *नाटक ममयमारमं इम नामका निम्नपा पाया जाना है:पाप अधोमग्न एन अघ, कंपरोग दुग्यधाम । कलिल कलुम किल्बिम दुरित, अशुभ करम के नाम ।। ४१ ।।
६६ वेदनानाम १०० मनुष्यनाम १०५ म्वामिनाम १०२ श्रीनाम १०३ विवाहिताश्रीनाम |
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिन्दी शब्दकोष १० दयिन कंत वल्लभ ग्मन, धब कामुक भरतार ॥७॥ १०"पतिवति एकरती सती, कुलवंती कुलबाल | १८ दूती कुटनी संफली, ५. सखी सहचरी प्रालि ||७८॥ १. गनिका रूपाजीविका, निग्लज्जा पुग्नारि ।
वारंगना विलामिनी, सर्ववल्लभा दारि ||६|| १० सहचर मावा सहाइ हित, संगत सुहृद सखित्त । ११°रिपु खल वैरि अराति अरि. दुर्जन अहित अमिन ८० ११'जनक तान मविता पिता, ११२प्रसवति जननी मात । ११ पुत्र सूनु अंगज तनय. सुत नंदन तनुजात ॥८१।। ११ भ्रात्रिजानि भगनी म्वसा, ११"बंधु सहादरजात ।
-
-----
-
१०४ भरिनाम १०५ मती स्त्रीनाम १०६ कुटिनी ( कुल्टा )स्त्रीनाम १०७ मखीनाम १०८ वेश्यानाम १०६ मित्रनाम ११.शत्रनाम १११ पितानाम १२मातानाम ११३ पुत्रनाम १४ बहिननाम ११५ सगे भाईकेनाम ।
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२ बनारसी-नाममाला १ १६ अवरज अनुज कनिष्ट लघु, ११"वीर सुबंधव भ्रात ८२ ११"मुनि भिक्षुक तापस तपा, जोगी जती महंत * !
व्रती साधु ऋषि संयमी, ११ पागम ग्रंथ सिद्धत ।८३, १२° उपदेशक उवझाय गुरु, प्राचारज गुनगसि । १२ राजसूय नृपयज्ञ क्रतु, १२२ दीक्षिन अंतेवासि 1८४| १२१ विबुध सूरि पंडित सुधी, कवि कोविद विद्वान ।
कुसल विचक्षन निपुन पटु, क्षम प्रवीन धीमान १८५
११६ छोटे भाईकेनाम ११७ वाँधव नाम ११८ साधुनाम । *नाटक समयसारमें इस नामका निम्न पद्य पाया जाता है:
मुनि महंत नापस तपी, मिच्छुक चारितधाम । जती तपोधन संयमी, व्रती साधु ऋषि नाम ॥ ४६॥
११६ शास्त्रनाम १२० गुरुनाम १२१ राजयज्ञनाम १२२ शिष्यनाम १२३ पंडितनाम + इस नामके नाटक समयसारमें निम्न दो पद्य पाये जाते हैं:निपुन विचच्छन विबुध बुध, विद्याधर विद्वान । पटु प्रवीन पंडित चतुर, सुधी, सुजन मतिमान ॥४४॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष
१२४ादिवरन भूदेव द्विज, बॉमन विप्र सुजान । १२"अभिजन संतति गात कुज्ञ, घरग बंस संतान IIEI १२६मूरख मूक अजान जड़, मंद मूढ सठ बाल । १२७कुत्सित पामर निरधनी, अधम नीच चंडाल ||७|| १२ दाता दानि दरिद्रहर, १२ कृपन लुबध कीनास । १३ अनुजीवी अनुचर अनुग. सेवक किंकर दास।।८८|| १३ सुन्दर सुभग मनोहरन, कल मंजुल कमनीय ।
रुचिर चारु अभिराम वर, दरसनीय रमनीय ।।८९।। १३२तसकर निसचर गूढनर, १33भिल्ल पुलिंद किगत । १३.दूत चारुचर १३"पिसुन खल,१३६ असनिवज निघोत
कलावंत कोविद कुसल, सुमन दच्छ धीमंत । ज्ञाता सजन ब्रह्मविद् , तज्ञ गुनीजन संत ||४४||
१२४ ब्राह्मण नाम १२५ कुलनाम १२६मूर्खनाम १२७ अधम नाम १२८दानारनाम १२६ कृपणनाम १३० सेवकनाम १३१सुन्दरनाम १३२ चोरनाम १३३ भीलनाम १३४दूतनाम १३५दुष्टनाम १३६ वजनाम ।
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४
बनारसी-नाममाला
१३७मन मानस अंतःकरन, हृदय चेत चित जानि । १३“जीव हंस चेतन अलख, जंतु भूत जन प्रानि ॥९११. 13९वृद्ध पलिततनु विग्नर, १४ जुवजन तरुन रसाल | १४१ सावक दारक पाक प्रथु, डिंभ पोत सिसु बाल।।९।। १४२काय कलवर संहनन, मूरति उपधन गात ।
विग्रह देह सरीर वपु, पंचभूतसंजात ।।१३।। १४३धिररकत सोणित छतज,१४४पिसित तरम पल मांस १४५विष्टा गूथ पुरीष मल, १४६बीज रेत बल अंस ॥९४|| १४७मीस मंड उनमंगसिर, १४“अलिक ललाट सुभाल । १४९कंठ सिगेधर प्रीव गल,१" "चिकुर केस का बाल ९५
१३७ मननाम १३८ जीवनाम १३६ वृद्धपुरुषनाम १४० युवानाम १४१ बालकनाम १४२ शरीरनाम १४३ रुधिरनाम १४४ मांसनाम १४५ मलनाम १४६ वीर्यनाम १४७ शिरनाम १४८ मस्तकनाम १४६ कंठनाम १५० बालनाम ।
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
३५
हिन्दी शब्दकोष १५१नैन विलोचन चक्षु दृग,१५२पलक १७ 3भोह भ्रुव जानि । १५४वदन तुंड अानन लपन, १५ वचन सवद रव वानि९६ १५६ दंत दसन गदक ग्दन, १५ नासि नासिका घान । १५८ श्रधर दंतपट रदनछद, १५९ श्रोत श्रवन श्रुति काना९७। १६ गंड कपोल १६१ सुवक्ष उर, १६२कुच उरोज पयदानि १६ उदर जठर १६ कटि श्रीाण कट १६" जा बाह१ ६६ कर पानि १६"तारक गोलक पूतली, १६८ दिष्टि अपांग कटाख । १६ अंजन कजल गगगज, १७ अंगुलिका करसाखा९९ १०१ऊरु जानु जंघा जघन, १७२ अंहि चरन पद पाय ।
१५१ नेत्रनाम १५२ पलकनाम १५१ भौंहनाम १५४ मुखनाम ३५५ वचननाम १५६ दाँतनाम १५७ नासिकानाम १५८ श्रोष्ठनाम १५६ कर्णनाम १६० कपोलनाम १६१ छातीनाम १६२ स्तननाम १६३ पेटनाम १६४ कमरनाम १६५ भुजानाम १६६ हस्तनाम १६७ पुतली नाम १६८ कटाक्षनाम १६६ काजल नाम १७० अंगुरीनाम १७१ जांघनाम १७२ पैर (पाद) नाम ।
--
-
-
--
-
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६
बनारसीन्नाममाता
१७३कबरी चूडा धमिल सिख, बैनी कचसमुदाय ॥१०॥ १७ सदन गेह पालय निलय, मंदिर भवन प्रवास ।
साल सग्न आगार गृह, धाम निकेत निवास ॥१०१ १७५सौध राजगृह धवलगृह, १७ नगर पटन पुर ग्राम ।
नेय खात परिखा गरत, १७ पकानन पाराम ।१०२ १७'सुरमंडप देवायतन, चैत्यालय प्रासाद । १८°तांडव नाटक नृत्य तह, १८ गीत गान सुर नाद १०३ १८२षडज ऋषभ गंधार पुनि, पंचम मध्यम जान ।
धैवत रूप निषाद तह, ए सुर सात वखानि ॥१०४।। १८ करुना कौतुक भयकरन, वीर हास सिंगार |
सांत रुद्र बीभत्स तह, ए नवरस संसार ॥१०५।।
१७३ चोटीनाम १७४ घानाम १७५ राजगृहनाम १७६ नगरनाम १७७ खाईनाम १७८ वागनाम १७६ मंदिरनाम १८० नृत्यनाम १८१ गीतनाम १८२ सप्तस्वरनाम १८३ नवरसनाम ।
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
३७
विन्दो शब्दकोष १८४ामल तिक्त कषाय कटु, छार मधुर बस जान । पट"प्रीषस पावस सरद हिम, सिसिर वसंत बखान १०६ ५८६ उद्वर्तन मंजन कुसुम, चंदवलेपशगर ।
अलकावलि ममिविदु तह, कजल कंचुकी चीर १०७ कंकुम खोरि तँबोलमुम्ब, चंदनजावक लज्ज ।
दसनसुरंगित चातुरी, ए षोडम तियसज्ज ॥१०८।। १८७कंकन किंकिनि कंठमनि, कंडल वेसरि आढ ।
नूपुर हार स-मुद्रिका, विच्छिक जेहरि टाड ।।१०९।। १८८मीनकेतु मनसिज मदन, मार काम मनमत्थ ।
संवरहरन अनंग गति, रमन पंचसम्हत्थ ॥११०॥ १८९वसीकरन मोहन तपन, उच्चाटन उन्माद । १२°तंती दुंदुभि संखधुनि, कंस ताल करवाद ॥१११।।
१८४ षटस नाम १८५छहऋतुनाम १८६सोलह शृंगार नाम १८७ द्वादश श्राभरणनाम १८८ कामनाम १८९कामपंचवाणनाम १६० पंचशब्दनाम ।
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
३८
बनारसी नाममाला
११ कौतूहल कौतुक अहो, अदभुत चित्र अचंभ | १२ माया कैतव छदम छल, व्याज कपट मिष दंभ ११२ १२- हरष तोष आनंद मुद, ९४ मग्य कोप सरोस ।
१९७
'कृपा सुहित करुना दया, अनुकंपा अनुकांस ॥। ११३ ।। १६ प्रेम प्रीति अभिलाष सुख, राग नेह संजोग । १२.७ विछुग्न फुलक विरह दुख, मनमथविधा वियोग ।। १५४ १९८याग विहाइत दान दत, १९९ समता हित सुख सात । •गुन थुति कीर्ति उदाहरन, जस सलांक अवदात ॥ ११५ २०१ प्रकट साधु सुविदित विसद, २२ निरुपम अकथ अनूप २० मंद बिलंबित सिथिल तह, २० छाँह बिंब प्रतिरूप ११६
२००
१६१ कौतुकनाम १६२ कपटनाम १६३ श्रानंदनाम १६४ कोपनाम १६५ दयानाम १६६ प्रीतिनाम १६ ७ विरहनाम १६८ दाननाम १६६ सुखनाम २०० कीर्तिनाम २०१ प्रकनाम २०२ अनुपमनाम २०३ विलम्बनाम २०४ छायानाम
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष ३९ २०"तुल्य सवर्ण सघमे मम, सहस सरूप समान । २०६जुगत संसकत सहित जुत,२०"नाम गोत अभिधान ।। ५० प्रतिदिन नित संतत सदा, २० नूतन नव सुनवीन । २१ प्राकृत जीग्न सुचिर तनु, जरठ पुरातन छीन ॥११॥ २१ 'कर कस कठिन कठोर दिढ़, निठुर परुष अस्लील । ३१२ कोमल पेसल नरम मृदु, २१३प्रकृति स्वभाव मुलील ।। २१ बुद्धि मनीषा समुषी, धी मेधा मति ग्यान । २१"भावक मंगल कुमल सिव, भविक छेम कल्यान ॥१२८ २१६क्षिप्र वंग सहसा तुरत, झाटत आसु लघु जान । २०५ समाननाम २०६ युक्तनाम २०७नाम- नाम २०८ सदानाम २०६ नूतन नाम २१० पुरातननाम २११ कठिननाम २१२ कोमलनाम २१३ स्वभावनाम २१४ बुद्धिनाम । *नाटक समयसारमं इस नामका निम्न पद्य है:प्रज्ञा धिसना सेमुसी, धी मेधा मति बुद्धि ।
सुरति मनीषा चेतना, आशय अंश विसुद्धि ।। ४३ ॥ २१५ कल्याणनाम २१६ शीघ्रनाम ।
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
४०
बनारसो-नाममाला
२१ तरल अथिर चंचल सुचल, चपल विलोल बखाना१२१ २१“अहंकार भविनय गरव, उन्नतगल अभिमान । २१९बंधकार संतमस तम, धूमर तिमिर भयान ॥१२२।। २२°गउर पीत कंचनवग्न, २२१रक्त सुलोहित लाल । ३२२हरित नील पालास तह, २२३स्याम ,गरुचि काला१२३ २"असन भोग श्राहार भख, २२"लीला कलि विलास । २२६विधुर कृछ संकट गहन, २२७व्रत संजम उपवासा१२४ २२८मृषा अलीक मुधा विफल, वृथा वितथ मिथ्यातx। ३३९अंत विनाम निधन मग्न, पंचत प्रलय निपात ॥१२५।।
२१७ चंचलनाम २१८ अभिमाननाम २१६ अंधकारनाम २२० पीतवर्णनाम २२ रक्तवर्णनाम २२२ हरितवर्णनाम २२ श्यामवर्णनाम २२४ श्राहारनाम २२५क्रीडानाम २२६कष्टनाम २२७व्रतनाम २२८असत्यनाम । x अजथारथ मिथ्या मृषा, वृथा अमत्त अलीक । मुधा मोघ निष्फल वितथ, अनुचित असत अठीक (ना.स.)
२२६ मरणनामा
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष २3 °प्रसतर उपल पषान दृष, २७ भूदारन हल सीर । २३३हयगवीन सी घिरत,२33दुग्ध अमृत पय छीर ।१२६ २३ प्ररथ वित्त वसु द्रविन धन- २३"सुरा वारुनी हाल ।
मधु मदिरा कादंबरी, साधु मद्य कीलाल ॥१२७।। २३६हाटक हेम हिरण्य हरि, कंचन कनक सुवर्ण । २३ जातरूप कलधौत तह, रजत रूप शुचिवर्ण ।।१२।। २३ भूषन मंडन आभरन, अलंकार तनभाल । २३१अंसुक निवसन चीर पट, चीवर अंबर छाल॥१२९॥ २४ गंधसार चंदन मलय, २४१हिम कपूर धनसार ।
२३०पाषाणनाम २३१ हलनाम २३२ पृतनाम २३३ दुग्धनाम २३४ धननाम । Xभाव पदारथ समय धन, तत्त्व वित्त वसु दर्व । द्रविन अरथ इत्यादि बहु, वस्तुनाम ये सर्व (ना. स.)
२३५मदिरानाम २३६सुवर्ण नाम २३७ रजननाम २३८ पाभरणनाम २३६वस्त्रनाम २४०चन्दननाम २४१कपूरनाम।
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
૪૨
बनारसी नाममाला २४२नाभिज मृगमद कम्तुरी, कुंकुम रकतागार ॥१३०॥ २४३सयन मंच परयंक तह, २४ सेज तलप उपधान | २४"दरपन मुकुर सुश्रादरस,२४६ छायाकरन वितान ॥१३१ २४"मुकट किरीट सिरोरतन, २४८ प्रातपत्र मिरछत्र । २४९पद सिंहासन पीठ तह, २५ हेति सुश्रायुध अस्त्र ।।१३२ २५ भूप महीपति छत्रधा, मंडलस राजान । ३५३चक्री साग्वभौमनृप, ३५३मंत्री सचिव प्रधान ।।१३३।। २५४सव निषेव उपासना, २५"शासन पुहुप ?) निदेस । २५६भागपुन्य सुविहित सुकृतक,२५°सकल खंड लव लेस
२४२ कस्तूरीनाम २४३ पलंगनाम २४४ शय्यानाम २४५ दर्पणनाम २४६ चंदोवानाम २४७ मुकुट. नाम २४८ छत्रनाम २४६ सिंहासननाम २५० अस्त्रनाम । २५१ राजानाम २५२ चक्रवर्तिनाम २५३ मंत्रीनाम २५४सेवानाम २५५अाज्ञानाम २५६पुण्यनाम २५७खंडनाम *इस नामका नाटक समयसारमें निम्न पद्य पाया जाता है:
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिन्दी शब्दकोष
४३ २५ महिषी पट्टनिवासिनी,२५ पुररखवाल तलार । २६०पंढ नपुंसक कंचुकी, २६१द्वारपाल प्रतिहार ॥१३५।। २६२ पौर लोक नागर प्रजा, २६ साल दुर्ग प्राकार । २४ प्रथनिरोध कपाट पट, २६"गोमुख नगग्दुवार ॥१३६. २६६जाल गवाख'समीरपथ, २६७ऊर्द्धपंथ सोपान । २६८वक विषम अंकुल कुटिल, २६२कुंडल मंडल जान १३७ २७°तालपत्र कुंडल श्रवण, सिरबंधन मिदूर ।
पान वलय कंकन कटक, बाँहरक्ख कंयूर ॥१३८।।
पुष्य सुकृत ऊरधवदन, अकररोग शुभकर्म । सुखदायक संसारफल, भाग बहिमुख धर्म ॥४०॥
२५८ रानीनाम २५६ कोटपालनाम २६० खोजानाम २६१ द्वारपालनाम २६२ प्रजानाम २६३ कोटनाम २६४ किवाड़नाम २६५ द्वारनाम २६६ झरोखा (खिड़की) नाम २६७ सीढ़ीनाम २६८ वक्र (टेढ़ा ) नाम २६६ घेरे के नाम २७० अङ्गभूषण नाम ।
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
४४
बनारसी नाममाला
तुला कोटि नूपुर चरन, माल सुतिलक ललाम ।
कटि किकिनि मेखल रसन, छुद्र घटिका नाम ॥१३९।। २७°बल अनीक सना चमू, कटक वाहिनी दंड । ३७२चिन्ह पताका केतु ध्वज, वैजयंति तह झंड ॥१४॥ २७3मर सायक नागच खग, वान मिलीमुख कंड । २७४धनुष कारमुक चाप धनु, गुनधारन कोदंड ॥१४१|| २७"सरवारन कंचुकि कवच,२७६डर भय त्रास असात । २७७असि कृपान करवाल तह, छत प्रहार संघात १४२ २७१रन विग्रह संजुग समर, संपराय संग्राम ।
कदन प्राजि संगर कलह, जुद्ध महाहव नाम ॥१४३।। २८ जाचक मंगत बंदिजन, २८ रंगभूमि रनखेत ।
२७१ सेनानाम २७२ खजानाम २७३ वाणनाम २७४ धनुषनाम २७५ जिरह (बख्तर) नाम २७६ भयनाम २७७ तलवारनाम २७८ घावनाम २७६ संग्राम (युद्ध) नाम २८० याचकनाम २८१ रणभूमिनाम ।
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष २८ सूरवीर जोधा सुभट, २८ भूत पिशाच परेन ॥१४४|| २८४सैल अचल गिरिसिम्बरि नग, पर्वत भूधर नाम। २८"देवग्यान विल कंदग, दरी गुफा मुनिधाम ॥१४५।। २८६पीवर पीन सुथूलगुन, २८° उन्नत उच्च उतंग। ३८८विम्तीरनविस्तर विपुल,२८९अधनचनीच विभंग१४६ २९°कानन विपन अरण्य वन, गहन कक्ष कतार । २९१विटपिमहीरुह साखि नम, अगपादप फलधार॥१४७ २९२छदन सुपत्त पलाम दल,२९३पेडमूल जड कंद । २९४पुहुप प्रसून सुमन कुसुम,२१५मधु पराग मकरंद ।।१४८ २५६चूत प्राम सहकार तरु, मौरभ अंब रमाल ।
२८२ सुभटनाम २८३ प्रेतनाम २८४ पर्वतनाम २८५ गुफानाम २८६ स्थूलनाम २८७ उतंगनाम २८८ विस्तारनाम २८६ नीचे के नाम २६० वननाम २९१ वृक्षनाम २६२ पातनाम २६३ मूल (जड़) नाम २६४ पुष्पनाम २६५ परागनाम २६६ अाम्रनाम ।
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला
१९७रंभ मोच केला कदलि, २९८मालकार वनपाल ॥१४९ २९९घल्लो वेलि व्रतति लता,३०°वाटिक कुसुम अगम | ६ ० 'सुरभि सुगंध सुवासना, ०२माल हार मज दाम ॥१५० 3 ० १कंठोरव कंजरदमन, हरि हरिधिप मृगसूल ।
बली पंचमुम्ब कसरी, सग्भ सिंह सादुल ॥१५१।। 3 ०४गज करेनु मातंगधिप, करि वारन मुंडाल ।
सिंधुर दंती नाग इभ, कलभ मतंगजबाला॥१५॥ 3 ०"अश्व वाजि घोटक तुग्ग, हरि तुरंग हय वाह । 3०६ ऊँट वंगगामुक करभ, ३० "सूकर क्रोड वराह ।।१५३।। 3 ०८ बानर वलिमुख विपनचर, साखामृग कपि कीस । ३ ० 'माग्न हग्नि कुरंग मृग, अजिनजोनि एनीस ॥१५४॥
२६७केलानाम २६८मालीनाम २६६लनानाम ३००फुलवारीनाम ३०१ सुगंधनाम ३०२ मालानाम ३०३ सिंहनाम ३०४ हाथी और हाथीके बच्चे के नाम ३०५ अश्वनाम ३०६ऊँटनाम३०७शूकरनाम ३०८बन्दरनाभ ३०६मृगनाम ।
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष ४७ 3 १"धेनु गाय पसु ३ ११वृषभसिब,३१२महिषा वालुलाय 3 १3जंबुक भीक शृगाल सिव, मृगधूरत गोमाय ॥१५५।। 31 ऊंदर मूषक नागरिपु, ३१५बिला प्रोतु मैंजार | 3 १६गमभ गर्दभ रेंक ग्बा, २१७चर गति गमन विहार १५६ 3 १ श्वान पुगगत प्रामहरि, श्वा कूकर दिढ कक्ख ।
मारमय निशिजागरण, मंडल तुविपकाव ।।१५।। 3 १९ श्रात्र अक्ष इंद्रिय करन, ३३°कंज विषान सु-सुंग । ३२ सारंग षट्पद मधुप अलि, भ्रमर सिलीमुख भृग १५८ ३२२सकुनि संकुत पतंग खग, मलभ विहंगम पाकाव । 3३3खगपति विनतासुत गरुड, हरिवाहन अहिभक्ख १५९
३१० गायनाम ३११ बैल नाम ३१२ भैंसानाम ३१३ शृगालनाम ६१४ मूषकनाम ३१५ बिलाव (बिल्ली) नाम ३१६गर्दभनाम ३१७गमन(चाल)नाम ३१८ करनाम ३१६इन्द्रियनान ३२०सींगनाम ३२१भ्रमरनाम ३२२पक्षिनाम ३२३ गरुड़नाम ।
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला
3 ५४ जीवंजीव चकोर तह, ३२"कुरकट तामरचूर । 3२६ केकी अहिरिपु नीलगल, सिखी सिखंडि मयूर १६० ३१७चाखसुखंजन खंजग्टि, ३२ वायस करट कराल | ३२९पिक कोकिल तह33 कीर सुक,33 पवग्ट सुहंस मराल 33 कौसिक पेचक काकरिपु, 333पिक चातक सारंग । 33४पागवत सुकपीन गन,33"चकवा कोक रथंग।।१६।। 33पूग समाज समूह ब्रज, प्रांघ संघ संघात ।
जूथ पंज समवाय कुल, निकर कदंबक बात ॥१६शा अलि वृंद संदोह चय, संचय निचय निकाय। पाली पंकति निवह गन, राजि रासि ममुदाय॥१६४।।
३२४ चकोरनाम ३२५ कुक्कुटनाम ३२६ मयूरनाम ३२७ ममोला ( पक्षिविशेष ) नाम ३२८ काकनाम ३२६ कोकिलनाम ३३० तोतानाम ३३१ हंसनाम ३३२उलूकनाम ३३३ पपीहानाम ३३४ कबूतग्नाम ३३५ चकवानाम ३३६ समूहनाम ।
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
हिन्दी शब्दकोष 33°नारिपुरुष दंपति मिथुन, 33 द्वंद जुगम जुग जान ।
उभय जुगल जम जमल दुबि,लोचनसंग्य बखान१६५ 33'तीन लोक गुन सिवनयन,36°च उ जुग वेद उपाय । ३४१पंचवान इंद्रिय सबद, 3 षट रितु रस अलिपाय १६६ 38 सात द्वीप मुनि हय विसन, ३४४ आठ धात गिरि सार। 3४"नव ग्रह रस तह 3 ४६सून्य नभ, अनुक्रम अंक विचार । 3४°ध्रव अडोल थावर सुथिर, निश्चल अविचल जान । 3४८दीरघायु चिरायु तह, चिरंजीव सुबखान ॥१६॥
( उपसंहार और प्रशस्ति ) होय जहाँ कछ हीन, छंद सबद अक्षर प्ररथ । ' गुनगाहक परवीन, लेहु विचारि सँवारि तह ।।१६९।।
३३७ स्त्री-पुरुषसंयोगनाम ३३८ युग ( जोड़े के ) नाम ३३६ तीनके नाम ३४० चारके नाम ३४१ पाँचके नाम ३४२ छहके नाम ३४३ सातके नाम ३४४ आठके नाम ३४५ नौके नाम ३४६ शून्यके नाम ३४७ स्थिरनाम ३४८ चिरंजीवनाम ।
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
बनारसी-नाममाला मित्र नरोत्तम थान, परम विचक्षण धर्मनिधि । वासु वचन परवान,कियो निबंध विचार मनि ॥१७०।। सोरहसै सत्तरि समै, असू मास सित पक्ष । विजैदसम ससिवार तह, श्रवण नखत परतक्ष ॥१७१।। दिन दिन तेज प्रताप जय, सदा अखंडित श्रान । पातसाह थिर नूरदी, जहाँगीर सुलतान ॥१७२ ।। जैन धर्म श्रीमाल कुल, नगर जौनपुर वास । खडगसेन-नंदन निपुन, कवि बनारसीदास ॥१७३।। कुसुमराजि नाना वरन, सुन्दर परम रसाल । कोमल-गुनगर्भित रची, नाममाल जैमाल ॥१७४॥ जे नर राखें कंठ निज, होय सुमति परकास । भानु सुगुरु परसाद तह, परमानंद-विलास ||१७५।।
* इति बनारसी-नाममाला *
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
'नाममाला का शुद्धिपत्र
दोहा नं०
अशुद्ध वानरिपु
इंदरा
कुसली सोमवंसराजान करखपदमकर घामनिधि भानि
शुद्ध बाणरिपु इंदिरा मुसली सोमवंसि राजान कच्छप मकर धामनिधि
महधाम
मह धाम बाडव
वडवा
सेठ
सेठि
गाडा (था) धिपति गाहाधिपति अधोभवन अधोभुवन कुहिर
कुहर फनि
अंघ दहकृत
दुष्कृत
फन
बंध
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
सबद
१०८ ११९
१३६ १३७
सखित्त सुमित्त भ्राबिजानि भातृजानि बंधु सहोदर जात वीर सहोदर भ्रात वीरसु-बंधव भ्रात बंधु सु-बंधव जात चारुचर
चार चर उपधन
अपघन सवद चंदनजावक वंदन जावक सुलील
सु-शील गोमुख गोपुर अंकुल
अंकुश सिरबंधन सिर वंदन पान
पानि कंचुकि
कंचुक हरिधिप द्वीपी मातंगधिप मातंग द्विप सारन
सारंग सिव
चाष सु
१३८
१४२
१५१ १५२ १५४ १५५
चारवसु
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
सल्यानकायकोप
शब्दानुक्रमकोष
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्दानुक्रमकोष
बनारसी-नाममालामें जो शब्द प्राकृत या अपभ्रंश भाषाके हैं अथवा इन भाषणोके शब्दाक्षरोसे मिश्रित हैं उनके साथ इस कोषमें उनका पूरा संस्कृत-रूप अथवा जिन अक्षरोंके परिवर्तनसे वह रूप बनता है: उन अक्षरोंको ही ब्रकट ( ) के भीतर दे दिया है, जैसे 'श्रगिनि' के साथ (अग्नि), 'अचुन' के साथ (अच्युत), 'अनुकोस' के साथ (कोश), 'ईस' के साथ (श) लगा दिया है। इससे पाठकों को दो सुविधाएँ होंगी-एक तो वे उन शब्दोंके संस्कृत रूपको जान सकेंगे, दूसरे आज कलकी हिन्दी भाषामें जो प्राय: संस्कृत शब्दोका व्यवहार होता है उनके अर्थको भी वे इस कोपपरसे समझ सकेंगे। बाकी अधिकाँश शब्द संस्कृत भाषाके ही हैं, कुछ ठेट हिन्दी तथा प्रान्तिक भी है, उन सबको ज्योंका त्यों रहने दिया है। हाँ, ठेठ हिन्दी तथा प्रान्तिक शब्दोके आगे ब्रैकट [ ] में देशीका सूचक 'दे.' बना दिया है । और सब शब्दोंके स्थानको सूचना दोहोंके अंकों द्वारा की गई है।
~सम्पादक
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
११६
अधम
७
अधिप
शब्दानुक्रमकोष
| अडोल [३०] १६८ अकथ (ध्य)
अधिर (अस्थिर) १२१ अकूपार
५१ अदभुत (हु) त ११२ १५८ अध
३७, १४६ १४७ अगनित (णित) ५६ श्रधर अगिनि (अग्नि) अगिनि (ग्नि) कुमार २५ / अशोभुवन अध
अनल प्रचल
१४५ अनंग अचला
अनंत अचंभ दि.]
अनंता अचुत (अच्युत)
अनिल प्रज
अनीक
अनुकंपा अजान (अज्ञान) ८७ अनुकोस (क्रोश) प्रजिनजो(यो)नि १५४ / प्रबुग
६६ ११२
अजर
११३
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुचर
अलकावली
अनुचर अनुज अनुजीवी अनूप (अनुपम) अनेक
U r UUU
US
अपघन अपांग
अमरपतिवाम (मा) २७ अमरष (र्ष) अमरावती
अमरेस (श) | अमल
अमित्त (त्र) अमूरति (ति)
अमृत ३०,५२,१२६ ७६ अरजुन (अर्जुन)
अरण्य ८६ अरथ (र्थ)
अप्सर
१४७
अबला अभि अभिजन अभिधान अभिमान अभिराम अभिलाष
अरविंद
५४
८०
८
अराति
अराम (प्राराम) ११४ ।
अरिहंत (अहन्) १० | अलकावली
अरि
अमर
१०७
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
अलख
...
५७
अंकुस
३२४
अलख
६, ६१ । अम्मन (प्रशन) अलंकार
१२६ असनि (प्रशनि) अलि १५६, १६६ अमान अलिक
६५ : अमि अलिपाय(द) १६६ अमर अलीक
असुरदलन
६६ प्रमुगरि अत्रदात
१५५ । अब अवधि
२३ ' अम्ली(श्ली)ल अवनि
६५ अहंकार प्रवरज
८२ । अहि अवलंबन
५७ । अहित श्र(श्रावलि १६४ अहि भग्य भन्न) श्र(श्रावाम १०१ अहिरिपु अविचल १६८ अहो अविनामी(शी) ६ . अंक
१५३ अंकुम (श)
१२२
१५६
१६०
११२
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
अंगज
अंगज
चंगना
अंगुलिका
अंध
अंजन
अंत
अंतर
अंतरीक्ष
अंतःकरन (ण)
तेवासि (सी)
भोज
श्रंस (श)
१२५
श्रंसु (शु)
६८ | श्रंसु (शु) क
ह
१
६४
२३
१२२
अंब [दे० = श्रां, श्रंवा ] १४६
अंबर
१२३
१०
२४
५२
अंधकरिपु
अंधकार
५८
अंबरचारि (री)
अंबिका
་་
अंबुज नैन (नयन)
८१
७५ श्रं बुधि
६ ६
श्रंभ
७३
३८, ६६
श्रं हि (= अंधि)
आ
श्रीकाम (श)
थाखंडल
श्रागत (?)
श्रागम
आगार
आचारज (र्य)
श्राजि
भाठ [३०]
आठ
१४
५१
५२
५४
६४
४५
१२६
१००
W
२७
४
८३
१०१
८४
१४३
१६७
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
घाट
[०]
प्रातपभ्रंसु (शु)
श्रातपत्र
बादरस (र्श)
अदिति ( श्रादित्य)
श्रादितेय
श्रविवरण (र्ण)
श्राधार
श्रानन
श्रानंद
आनंदमय
श्राप
आपगा
आभरण
श्राम ()
चामल (म्ल)
श्रायुध
१०६
३६
३२१
१३१
३६
०
८६
५७
६७
११३
५९
श्रीराम
झालय
आति
श्राली
प्रासा (शा)
घास (श)
श्राहार
इन
इभ
इता
५२ इंदिरा
६४ इंदीवर
१२६ | इंदु
१४६
इंद्र
१०६
इंद्रतनुज
१३२ | इंद्रतुरंग
इंद्रतुरा
१०२
१०१
७८
१६४
३६
१२१
१२४
७४
१५२
६६
१७
५५
४१
२६
२०
६०
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
इंद्रपुरी
उग्ग
४६
१२२
१०२
इंद्रपुरी
२७ । उदाहरन(ण) इंद्रानी(णी) २७ । उद्वर्तन इंद्रिय १५८, १६६ । उन्नत ई
. उसतगल ईम(श) ६,२२,३६,७४ उन्माद ईमान (ईशान) २३,३७,७४ उपकंठ
। उपकानन उच्च
१४६ उपदेशक । उच्चाटन
११५ । उपधान उडुगन(ण) ४३ : उपल उत(त्तर
३७ । उपवास उतमंग (उत्तमांग) उतंग (उत्तुंग)
उपासना उदक
उभय उदधि
उमा उदधिनिवास __४७ : उदर
१२६
.१२४
उपाय
१६५
CC
उन
उरग
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
उरध
उरध (ऊर्ध्व)
उरसि (उर्वशी)
उरोज
उल्बन (ग)
उवाय ( उपाध्याय)
ऊ
जरु
ऊद्ध (धर्ध्व) पंथ
ऊँट [दे०]
ऊँदर (उन्दरु)
ऋषभ
ऋषि
花
ए
एकपती (स्नी)
एन
एनीस (एणीश)
m m wi
३७
३०
४६
८४
१०४
८३
७८
Ism
६१
७३
१५४
ऐरावत
ऐरावतगज
१००
१३७ औषधीम (श)
१५३
१५६
श्रोघ
श्रोतु
ककुभ
कक्ष
कच
श्र
श्रौ
कजल
कट (कटि)
क
कचसमुदाय
कच्छप
कजल ( कज्जल)
कट
३८
६१
१५३
१५६
रह,
४१
३६
१४७
६५
१००
५६
१०७
६६
६८
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
कटक
६२
करसाख
कपोल
कटक कटाख(२) कटि
कमनीय
कठिन कठोर
~
कदन
१३८, १४०
कपा(पालघर १८, १३६ कबरी
१०६ कमठ ११६
कमल
कमलहित १४६ कमला
कमलापन १२८ । कर
८२ करकस(कर्कश) ११२ करन(ण)
३६ करनहरन (करणहरण) २० १५४ करभ
१५३ २० करबाद(य) १११ १३० । करवाल
१४२ १६२ । करसाव (शाख)
कदलि(ली) कदंबक कनक कनिष्ट
॥
कपट
१५८
कपाट
कपि कपिकेत(तु) कपूर(कपूर) कपोत
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
कगल
कतार
१२०
*
ह
m
३
कलभ
6
कराल
१६१ । कल्यान(ण) करि १५२ कत्रच
१४२ कहना(णा) १०५, ११३ कवि करेनु णु)
| कषाय कल
| कस्तु( स्तूरी कलत्र
७७ कंकन(ण) १०६, १३८ কখান १२८ कका)चन ५२८
१५२ । कं(का)चनवरन (वर्ण) ५२३ कलस(श)
कंचुक कलह
कंचुकी १०७, १३५ कलंक
| कंज ५४, १५० कलानिधि
कंठ कलिल
कंठमनि(णि) कलुष
कंठीत
१५१ कलवर
कंड (कांड) कलोल (करलोल) | कंन (कांन) कल्पवृक्ष
२८ । कं(कां)तार
w
W
av MG ७ ८ aw
१४१
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
६४
कीनास
कंद
५११
३२, १४८ कंदरा
१४५ कंबु कंस कंसविधुस (ध्वं)न कांति
४५ काकरिपु काकोदर कादंबरी कान दि.]
कारमु(म)क काल ३६, ४६, १२३ कालकूट कालिमा कालिंदी काली किरन(ण)
६४
-
किरात
-
w
G
my
G
कानन
6
किरीट किंकर किंकिनि(णि) ५०६. १३६ किंचिन(त् ) फिपुरुष कीचकरिपु
०
W'
०
m'
काम कामधेनु कामपाल कामिनी
-
MI
कीर
कामुक
G
कीर्ति १३ । कीनाम(श)
काय
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
कीलाल
१५
७
।
CG mH
कुत्सित
३६,
कोलाल
कुंकुम, १०८, १३० कीस(श)
| कुंजरदमन १५१
| कुंडल, १०६, १३७, १३८ कुटनी (कुट्टनी) कुटिल
| कुंभ
कुंभिनी कुबेर
कुभीगव(म)न कुमुद
५५ कूकर (कुक्कुर) कुमुदबन्धु
कूप कुरकट (कुक्कुट) १६० कूल कुरंग
१५४ कृच्छ
कृपन(ण) कुलबाल(ला) ७८ कृपा कुलवंती(वती) ७८ कृपान(ण) कुसल (कुशल) ८५, १२० कृश कुसुम, १०७, १४८, १५० ६६ । केकी
१६०
< 0 W ME Om G
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
केतु
केतु केयूर
केला [दे० ]
केलि
केवली
केस (श) व
केस (श)
केसरी
कैटभारि
कैतव
कैरव
कोक
कोकनद
कोकिल
कोदंड
कोप
कोमल
१४०
१३८
१४६
१२४
५
१४
१५१
૬૬
कोविद
कोस (ब)
कौतुक
कौतूहल
कौसतु (स्तु) भ
कौसि (शि) क
ऋतु
क्रोड
१३ सम
क्षिप्र
क्षीर
खग,
खगपति
खतमाल
११२
५५
१६२ | क्षीरसमुद्रकुमारि (री)
५४
क्षीरसिंधुसुत
१६१
१४१
११३
११६ खतमाल
ख
८५
५७
१०५, ११२
११२
६०
१६२
८४
१५३
१४१,
८५
१२१
५२
(७
४२
१५६
१५६
३२
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
खर
गड
खर
१६४
खरम्व (व)
खल,
७६ १५६
खंजन खंजरि(री)ट खंड
کره عر
खात
م
खेय खौरि [दे०]
१५६ | गन(ण)
२६ | गन(ग)प ८०, ६. गनि(णि)का
१६१ गमन १६१ गरत (गर्त)
गरभ (गर्भ गरल
गरव (गर्व) | गरुड
गरुडासन १२३ । गर्दभ
६ गल ६३ । गवाग्व(क्ष) १५२ ; गहन
२५ गंग (गंगा) १५६ गंग(गा)धर
१२२ १५६
गउर (गौर)
गगन
१५६
६५
१३६ १२४.१४७
गगनवाहिनी
गज
गजवदन गति
गदावर
१६ । गंड
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
गंधर्व
गोर
m
"
८६, ११७
गंधर्व गंधवह
___४८ गुह गंधसार
गूढनर गं(गां)धार १०४ गूथ गांडीवधर गाहा(गृहा)धिपति गात (गात्र) ६३ गो गान
१०३ / गोत(त्र) गाय
१५५ गोध गिरि १४५, १६७ गोपाल गिरिधरन(धर) १६ गोपीम(श) गिरिपति
३१ । गोपुर गीन
१०३ गोमाय(यु) गुन(ण) ११५, १६६ । गोमेद गुनधारन (गुणधर) १४१ गोलक गुनरासि (गुणराशि) गोविंद गुफा (गृहा) १४५ । गौर
نه
غو
نه
م
ع
م
م
ه
ه
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
गौरि
चरन
४६
। घोर २१ घान(ण)
६७
गौरि(री) गौरि(री)पति ग्यान (ज्ञान) ग्रह ग्रंथ
१२०
४३, १६७
ه
ه
प्राम
च3 (चतु:) चकवा [दे०] चकोर चक्रधर चक्री
१०२ १५७
१६०
م
ग्रामहरि ग्रीव (ग्रीवा) ग्रीषम(म)
ه
चा
ه
ه
घट
ه
चतुर्भुज चन्द्र चपल चपला
घन
ه
ه
चमू
ه
घनवाहन घनसार घरनि (गृहिणी) घिरत (घृत) घोटक
। चल
१२६ चर १५३ । चरन(ण)
१६४ ८६, १५६
१००
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
चल
छनरुधि
चल
चंचल
चिन्ह
१४० चिरमायु (चिरायुः) १६८
चिरतनु (चिरंतन) ११८ ८७ चिरंजीव
१६८ २१ । चीर ५०७, १२६ १३० । चीवर
१०७ चूडा ४१, ६० : चूत
१४६ १६२ । चेत (चेतस)
__ चेतन १४१ : चैत्यालय
चंचला चंडाल चंडिका चंदन चंदनलेप शरीर चंद्रमा चातक चातुरी
"
१००
..
.
१०८
४
चाप
१०३
चार
चारु
छत (क्षत) छतज (क्षनज)
a
चाप
१६१
छत्रधर
nWW
mr
चिकुर
६५ ' छदन ६१ । छदम प्र) ११२ । छन(क्षण)रुचि
१४८ ११२
चित(त्त) বিন্ধ
७
'
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
छुपा
छपा (सपा)
छ (त) पाकर
छमा (क्षमा)
छल
ग्राम (शाम)
छायाकरन (ण)
छार (क्षार)
छाल
छांह (छाया)
छिनि (क्षिति)
छीन (क्षीण)
छीर (तीर)
छु (तु) धित
छु (इ) द्रघंटिका
छेम (क्षेम)
छोणी (लोणी)
७१
५०
४१
६५.
११२
४४
१३१
जगदीपक
१०६ | जगदीस (श)
१२६ जघन
११६ | जटाजूट
६५
जठर
११८
१२६
४४
६५
जक्रख (यक्ष )
जग (जगत् )
जगत (न) विलोचन
जगत्ति (जगनी)
जड
जती ( यति)
जन
जनक
१३६ | जननी
१२०
जनपद
जम (यम)
15
ज
जम
३५
६६
४०
६५
Y
६,१२
१००
२२
६८
८७, १४८
८३
७४,६१
८ १
८ १
६६
४६, १६५
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
जमल
ज (य) मल
१६५ | जंबुक
जमुना (यमुना )
૬×
जमुनीबंध (यमुनाबांधव ) ४६
जयवंत [दे० ]
५
जरठ
जराहरन (ण)
जल
जलजंतु
जलधर
जलनिधि
जलबांद
जलसाई (शायी)
७२
जस (यश)
जंघा
जंत (यंत्र)
जंतु
'जंबाल
११८
३०
५२
५६
३२
५१
५३
१५
११५
१००
७२
१
६७
ना (या) चक
जाल
जातरूप
जा (या) तुधान
जान ( यान )
जानु
जामिनि (यामिनी)
जाया
जा (या) वक
जिन
जिष्णु
जीमूत
जीरन (जी)
जीव
जीवन
जीवंजीव
जीवजीव
१५५
१४४
१३७
१२८
६५
६२
१००
५०
७७
१०८
४
२०
३३
११८
४६, ६१
५२
१६०
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
तपा
जुग (युग) १६५, १६६ जुगत (युक्त) ११७ मटित(ति) जुगम (युग्म) १६५ मष जुगल (युगल) १६५ जुन (युत) ११७ जुद्ध (युद्ध) १४३ टाड [दे०]
१४३ जुव(युवा)जन जुवति (युवति) ७५ डर [दे०] जूथ (यूथ) १६३ । डिंभ जेहर [दे०-पाजेब] १०६ जोगी (योगी) ८३ तट जोति (ज्योति)
तनभाल [दे०] जोति(ज्योति)रूप
तनय
८१ जोधा (योद्धा) १४४
६७, ११८ जोषा (योषा)
तनुजात
८१ जोषित (योषित्)
तपन
४०,१११ ज्वलन ४७ । तपा दे०
८३
१५
तनु
७५
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
तमी
तमि (मी)
तम
तरन (णि)
तर नि (णि)
तरल
तरस
तरंग
तरंगिनी (णी)
तरु
तरुन (ण)
तलप ( तल्प )
तलार [दे०]
तसकर ( तस्कर )
१४७,
७४
५०
तार (तारा)
४३
१२२
तारक
६६
६२
तारका
४३
३०.
तापस
८३
१२१ तामरचूर (ताम्रचूड) १६०
६४ तामरस
५३ तामसी
६४ ताल
१४६
तालपत्र
६२
तांडव
१३१ तिक्त
१३५ | तिगम ( तिग्म)
तिमिर
६०
तह (तथा)
सर्वत्र
तंती (श्री)
१११
तंबोल (ताम्बूल ) मुख १०८
तात
तिगमान ( तिग्मवान् )
तिमरहरन (ण)
तिमंगल (तिमिंगिल)
तिमि
८१ तिमिर
૨૪
५०
२५,१११
१३८
१०३
१०६
४६
४०
४०
५६
५६
१२२
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
तिलक
दया
तिलक तिलोत्तमा तीन [३०] तीर्थकर तुच्छ तुरग तुरंग तुरंगमुख
निजाम (त्रियामा) १५०
त्रिदस(श) १६६ | त्रिपथगमनि (गामिनी) ६३
त्रिपुरारि ६७ | त्रिय (स्त्री) १२१,१५३ त्रिलोचन
१५३ / त्रिविक्रम
३४ १३६ थ(स्थ)विश्नर ११७ था(स्था)वर
थुति (स्तुति) ४३ । थूल (स्थूल)
तुलाकोटि
तुल्य
तुषार
तुहिन
१४६
तोय
तोष
दक्षिन(ण) ११३ । दत(त्त)
दनुज १४२ । दया
स्याग
त्रास
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
दयित
दिन
9
दयित
__ ७७ दान दरपन (दर्पण)
दानव दरस(श)नीय
दानवदलन दरिद्र(दारिद्रय)हर ८८ दानि(नी) दरी
१४५ दामिनि(नी) दल
१४८ दामिनि(नी)अधिप दस(श)न
१७ दामोदर दसनसुरंगित [दे०] १०८ | दार
दारक १४० दारि (दारिका)
दारुन(ण) दंतपट
दाम दंती
दिग्गज दंपति(ती) १६५ दिढ़ (दृढ) दंभ
११२ । दिढकक्ख (दृढकक्ष) ।
दितिनंदन दादुर(ददुर) ५१ दिन
दहन
दंड
9
ज
१
Smr orm
दाता
८
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
दिनमान
देवलोक
m
IA
दुर्बल
दुष्कृत
दु'दुभि
दूती
दिनमनि (णि) दिव दिवस दिवा दिष्टि (दृष्टि) दिसा(शा) दीक्षित दीधिति दीन दीरघ(घ) दीरघा(C)यु दु (द्वि) दुख (दुःख) दुःखनिधान दु(दुः)खित
MMM ०७ MMMM ० ० W
दृरि (दूर) दृग (दृश्) दृष (दृषत्)
६५ | देव
.
७३.११४ । देशकि(की)नंदन
। देवखान देवगुरु देवता
देवयोनि ७३ देवलोक
दुग्ध
१२६
W.C mद . MS
दुरगति (दुर्गति)
दुरित
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
देवविपक्ख
धवलगृह
देवविपक्ख(स) देववृता देवसरित देवायतन देवेम(श) देस(श)
धनपति धनवान(न्) धनंजय धनं(ब)नरि
२०,४७
१०३
m mrw. row
द्रविन द्रुहिन द्वंद (द्वंद्व) द्वारपाल द्विज द्विजराज
धनुष १२७
धामिल(धम्मिल) घर(रा) धरनी (णी)
धरनी(णी)धर ___८६
धरम(म)धुरंधर | धरमाम)राज
धरमा(मात्मज धरा
१३५
द्वीपी द्वीप
442
धव
धन
धवल ३१३६ । धवलगृह
धनद
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
धवलतरंग
नंदलाल
४२ १४५
धवलतरंग धान(तु) धात धाम धामनिधि धाराधर
m
n
१३५
is
६,१६७
w
६३ नखत(सत्रापति १६७
नग
नगर ४५,१०१
नगरद्वार नच (न्यच) नदी नपुंसक नभ, नभचारि(री) नभस्वान नरक नरकारि नरम [३०]
नलिन १६८ १४०
नवीन ४३ नंदलाल [दे०]
धीमान(न) धुनि (ध्वनि) धूमजो(यो)नि धूमर(ल) धूलि
० m Pr mur m 09 Mor
m
in
धन
धैवत
ध्रुव
नव
११८,१६७
११८
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
नंदन
निरगुनी
-
-
----- -
-
--
६७
नंदन नाक नाकेस(श) नाग नागर नागरिपु नाटक
~
१६३
१६५
१०१
~
नाथ
لای
८१ | नाव[३०]
नासि(नासा) नासिका
निकट १३६ निकर
निकाय निकेत निगड निचय निठुर (निष्ठुर) नित स्य)
नितंबिनी १४१ | निदेस श)
निधन ७६ निपात १६५ निपुन(ण) ५५ / निरगुनी (निर्गुणी)
नाद नाभिज
५६४
११८
७६ १३४
नाम नाय(यि)का नाराच नारायन(ण) नारि(री नारि(री)पुरुष नाल
१२५ १२१
६
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
निरधनी
निरधनी (निर्धनी)
निरय
निर (ले) जा
८१
निवसन
निवह
मित्रास
निशिजागरण
निश्चल
विषाद
निषेव (वा)
८७
७२
७६
निसच (शाच ) र
६०
निसमनि (निशामणि ) ४१
५०
निसा (शा)
निसा (शा) चर
निरंजन
निरंतर
६८ | नीच
निरापरस (निःस्पर्श ? ) ६८ नीर
निरुपम
१६१
नील
निर्घात
६०
नीलकंठ
निर्वान (ण)
७ नीलगल
निलय
नीलमणि
नीलवसन
नीलोतप (प ल
नीहार
१०५
१२६
१६४
१०१
१५७
नूतन
१६८ नूपुर
१०४ नृ
१३४
नृत्य
नृत्य
३५
८७, १४६
५२
२६, १२३
२१
१६०
३८
१८
५५
४ ३
११८
१०६, १३६
७४
१०३
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
नृपयज्ञ
नृपयज्ञ
नेता
नेह (स्नेह )
नैन (नयन)
नैरित (ऋत)
नैरित (नैऋत्य)
प
पक्खि (पक्षी)
पट
पट (द्रु-त्त) न
पट्टनिवासिनी
पटु
पतनी (पत्नी)
पतंग
पताका
प (पा) तालपुर
पति
८२
८४
૭૪
११४
६६
पद
३६ | पदपीठ
३७
१३५६
१२६, १३६
१०२
१३५
प्रतिवति(मी)
पत्त (पत्र)
पथ
1
पदम (पद्म)
पदम ( झ ) नाभि
पदमा भा)
१००
१३२
२६,५४
१५
१७
पदमारमन (पद्मारमण ) १५
पदमा द्मा) लया
१७
पन्नग
७१
पन्नगराज
पन्नगलोक
परम
८५
७७
४०, १५६
पय
१४०
पयदान (पयोद) ६६ : पयदानि ( पयोद)
७४ परम
७८
૧૪:
६८
७०
६६
५२,१२६
३३
६८
α
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
परर्यक
V
.
११६
परयं(य)क पराग परिखा परिष(षन) परुष परेत(-प्रेत) पर्वत पल पलक (दे०] पलाम(श) पलिनतनु
१४५
१३१ पषान(ण)
पसु(शु) १०२ पसु(शुपति
पहुप(पुष्पदंत
पहुप(पुष्प राग १४४ पंक
पंकज ६४ पंकति (पंकित) ६६ पंच १४८ पंचत(ता-स्त्र) ५२५
पंचभूतसंजात ३६,४८ | पंचम
| पंचमगति पंचमुख
पंचसरहत्थ(शरहस्स) ११० ४८ पंडित
m G WEm C GHM AM
१६४
१६६
w
पवन
१०४
पवनसुत पवनहित
४७
१५१
पवनाधार
पवमान पवित्र
२७ । पंथ
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
पंथनिरोध
पीत
१३६
पावक
३६,३७,४७
पंथनिरोध पसु (पशु) पाक
पाथ
पाद
पावकरिषु पावकवदन पावकहित पावन पार्वती पावस [दे०] पास (पार्श्व)
१४७
HER
१०६ ६८,७२
M
पिक
पादप पानि(णि) पाप पामर पाय(द) पारगत पार(रि)जात पारावत पारावार पारिजात पालास(श) पालि
पिक (पपि?) पिता
पिनाककर १६२ पिशाच
पिसि(शि)त पिसु(शु)न
पीड़ा ५३पीत
wr wrU09 Ww ,
WW.
m
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
पीतपट
प्रकट
पीतपट
१३ पुरोगत(ति)
१५७
पीन
१४६
पुलिंद
م
पीयूष पीयूषरस
EG . 6
م
पीवर
१४६
३० पुलोमजा ६१ पुहकर (पुष्कर)
पुहुप(पुष्ष)
पुंज १३४ | पु (पु)डरीक ७४ । पूग
६,५५ १३४,१४८
१६३ ३८,५४
१६३
पुन्य (पुण्य) पुमान(न्)
१०२
७8
१३५
is
१६२
in
पुरनारि(री) पुररखवाल [दे०] पुर(रु)हूत पुरंदर पुरातन पुरीष पुरुष पुरुषोत्तम
पूतली दे०] पूरव (पूर्व) पेचक पेड [दे०] पेस(श)ल
पोत ७४ पौर ४,१५ । प्रकट
a
w
१४८
११६ ६२,६२ १३६ ११६
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकृति
८६
फुल्लक
प्रकृति
८१
१४८
प्रग प्रचुर
१४२
प्रजा
१३६
११८
११६ । प्रसवति (प्रसवित्री) ३३ । प्रसून २६ । प्रहार
प्राकार
प्राकृत ११८ प्राणहर ११६ प्रानि(णी) १३५ प्रासाद १६ प्रीति
प्रेम ४८ प्रोहन (प्रवहण)
७०
प्रजानाथ प्रतिदिन प्रतिरूप प्रतिहार प्रथुरोमा মখান प्रभंजन प्रभूत
0
१०३ । ११४
१३
११४
ع
प्रमदा
م عرعر
१४७
प्रलय प्रवाल प्रवीन(ण) प्रसत स्तर
फनी(णी)
फलधार(घर) ५८ फंध दे०] ८५ फालुगु(गु)न । १२६ । फुल्लक
११४
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
बल
बल
बलबंधु
बलवान (नू)
बलधाम
बलिरिपु
बली
बहु
बहुल
बंदिजन
बंध
बं (बांधव
बंधु
बाडव
बारिपु
बाधा
बा(वा) नर
ब
१८,१४,१४०
८७
बाल
बाला
बांभन (ब्राह्मण)
बांह (बाहु
बांहरक्ख (बाहुरच)
८७,६२,६५
७६
८६
६८
१३८
१६५
बोहित
१४
१६
६६
१३ वि (द्वि)
१५१ | बिच्छुक [दे० = बिदुवा]१०६
५६
बिल
५६
१४४
७२
८२
८२
४७
१३
७३
१५४
बुद्ध
बुद्धि
६६
बिल्ला [दे० = 1 -विलाव] १५६
बिंब
११६
बीज
बीभत्स
बुध
बृहस्पति
बोहित] [स्थ, दे० ]
१०५
५
१२०
४६
४६
६२
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
भख
८८
भुजा
भख(क्ष) भग भग(गि)नी भगवति(ती) भगवान(न्) भय भयकरन(ण) भयान(नक) भरतार(भर्ता)
भं(भांडार १२४ | भाग
भागीरथी भान(नु) भानुतेज भाम(मा)
भामिनी ४६,१०५ । भारती
१२२ भार्या __ ७७ भाल
भावक (भावुक)
४१२
भव
भवन
भवनास (श)न भवानिनी) भविक
भितुक | भिल्ल भीम
9N US,
भीरु
भुजंग ५३ । भुजा
भंग
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
भुवन
भुवम
भूत
भूतेस (श)
भूदारन (ख)
भूदेव
भूधर
भूप
भूमि
भूरि
भूषन (ण)
भूसुत
भृंग
भ्र गरुचि
भृंगार
भेक
भोग
भोगी
८९
५२,६६ भह [३०] भौम
६१, १४४
२२
भ्रमर
१२६
भ्रात (तु)
८६ भ्रातृजानि (नी)
१४५ | भ्रुब (भ्र )
१३३
६५
५६
१२६
४६
मकर
मकरंद
मग (मार्ग)
मतंगजबाल
१५८
१२३
५७
५६
१२४ मद्य
७१ मधु
मति
मतिविकास (सि) नी
म
मदन
मदिरा
मधु
६६
४६
१३८
८२
८२
६६
२६, ५६
१४८
६८
१५२
१२०
म
११०
१२७
१२७
१२७, १४८
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
मधुप
मनाक (क)
मनीषा
मधुप
मधुर
मधुरिपु
मध्यम
मन
मनमरथ ( मन्मथ ) ११०
मनम (म) थविथा (व्यथा ) ११४
मनमथहरन (मन्मथहर) २१
मनसिज
११०
मनुज
मनोहरन (हर)
मयूख
मयूर
९०
मरकत
मरजाद (मर्यादा)
१२८ मरन (ण)
१०६ मराळ
१३ मरीचिका
१०४ मरुत
६१ मल
६७
१२०
७४
st
४५
मलय
मलिन
मलीमसि (स)
मसिविंदु
मह
महंत [ दे० ]
महादेव
महापदम (प्र)
महाहव
महिला
१६०
१८ महिषा (ब)
५३ | महिषी
महिषी
१२५
१६१
४६
४८
६४
१३०
४४
४४
१०७
४५
८३
२२
२६
१४३
७६
१५५
१३५
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
मही
मित्त
१.१
१४७
همه
M G
२४
م ا
मंच
به
G
१०७
عر س
0
मही
मंदिर महीपति
मात(ता) महीहह
मातंग मंगत [दे०] १५४ | मानव मंगल
४६,१२०
मानस मंगला
मानिक (णिक्य)
१३१ मानुष मंजन (मज्जन)
मानुषभखन(क्षक) मंजार (मार्जार)
माया मंजुल
मार
१२६ मारजित मंडल १३७.१५७ मारतंड (मार्तण्ड) मंडलेस (श) १३३ | मारुत मंत्री
१३३ | माल(ला) मंद, ४६,८७,११६ | माल(ला)कार मंदाकिनी
मांस मंदार
२८ । मित्त (मित्र)
०
و
मंडन
عر
MM
K
-
M ०
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
मित्र
मित्र
मिथुन
मिथ्यात (त्व)
मिष
मिंडक (मंडूक)
मीन
मीनकेतु
मुकत ( कता)
मुकति (मुक्ति)
मुक (कु) ट
मुकुर
मुकुंद
मुद
मुद्रिका
मुधा
मुनि
मुनिधाम
९२
४०
१६५ मुरारि
- १२५ | मुसली
११२ मुंड
५६
५६
मुरलीधर
११.
१८
मूक
मूढ
मूरख (मूर्ख)
मूरति (मूर्ति)
मूल
मूषक
१३२
१३१ मृग
१४,२६ मृगक ११३ | मृगधूरत (र्त)
१०६
मृगमद
१२५ मृगसूल (शूल)
८३, १६७ मृदु
१४५ | मृना (या) ल
मूनाल
१६
१३
१८
३५
८
८७
८७
६३
१४८
१५.६
१५४
४ १
१५५
१३०
१५१
११६
५५
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
९३
रस
१२५ । रजना
१६२
मृवा मेखल(ला) मेष मेदिनी मेधा मेनक(का) मोख (मोक्ष) मोच(चा) मोहन
-
रतना(ना)गार पतिस्मन(ण) स्थं(थां)ग रदन स्दनछ (च्छ)द रन (रण)
रनखेत (रणक्षेत्र) १११ रख
१५३
१५४
१५॥
रवि
यक्ष
रकत (रक्त) रकता(क्ता)गार रक्त
३४ | रवितनय
रविनंद(दि)नी रमन(ण) १४,७७,१
रमनी(णी) १२३ रममी(णी)य
रज
रमा
रजत
१२८ ) रस
३०,१६६,१६७
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
रसन
रसन (ना)
रसा
रसाल
க
रंगभूमि
रंधर (घ)
रंभ (भा)
राकस (राक्षस)
राग
रागगज (रज ?)
राजगृह
राजराज
राजसूय
राजा
राजान ( जन्)
राजि
रादक (?)
९४
१३६ राधिकाकंत (कान्त)
६५
४.२, १४६
रासभ
रासि (शि)
रिक्ख (च)
४४
१४४ रितु (ऋतु) ६६ रिपु
३०, १४६,६० रुचि
३५ | रुचिर
११४ | रुद्र
६ ६
१०२
३१
८४
४२
११, १३३
१६४
६७
रुधिर
रुंडमाल
रूप
रूपाजीविका
रेत
रेनु (ण)
रेवति (ती) रमन (ण)
रैंक [०]
रॅक
१४
१५६
१६४
४३
१६६
८०
४५
τε
१०५
६४
२२
१२८
७६
૨૪
६.७
१८
१५६
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
रोध
रोध
रोस (रोष)
रोहन (हिणी) नंदन
रोहित
लगा (ग्न)
लघु
लच्छि (दमी)
लज्ज (1)
लता
लपन
ललना
जय
: ९५
ललाट
ललाम
५३
११३
१८
रोहिनि (पी) रमन ( गण ) ४१
रोहिनेय
५६
४१ | नीला
४६ | लुब्ध (ब्ध)
६८
८२,१९१
१७,६०
लं ( लां) छन
लंब
लंबोदर
लाल (दे०)
७५
१३४
३५
१३६
लुलाय
लेलिहान
लेंस (श)
लोक
१०८ |लोकजननि (नी)
१५०
लोकेस (श)
६. ६
लोचनसंग्य (ज्ञ)
लोहित
वचन
वचन
૪૪
६७
२५
१२३
१२४
२८
१५५
७१
१३४
६६, १३६, १६६
१७
११
१६५
१२३
६८
६६
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
वज
९६
घज
वसु
बमधर बदन वधू वन वनपाल वनमाली पनि(णि)क वनिता
| वलिमुख
वल्लभ
वाली ७५ वसंत ५२,१४७
१२७ | वसुदेवसुत १२ वसुमत्ति(ती) ६२ वसुधरा
| वसीकरन (वशीकरण) १११ ६६ वंक
१३७ बंदन (=सिंदूर) १०८,१३८ ८६ वंस(श)
८६ वाकवादनी (वाग्वादिनी)
वाजि(जी) १५३ १५३ वाटिक(का) १५०
वात १३८ । वाम(ण) १४१,१६६
वयु
वर वरग(वर्ग) वस्ट वरदानि(नी) वराह वरुन(ण) बलय
३६
४८
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
वानि
९७
विधाता
१५५
वानि(णी) वाम(मा) वामदेव
२
८.६६ / वाह(वाहद्विषत्) ७५,७६ । वाहन
वाहिनी ३८ विकराल
१४०
my
विग्रह
६३,१४३
१६१
१४७
१२५
वामलोचना वायस वायु वारन(ण) वारं(रा)गना वारि वारिचर वारिवाह वारुनी(णी) वासर वासुकि वासुदेव वाह
विचक्षन(ण)
विचि (वीचि) १५२ विछुरन [दे०] ७६ विटपि(पी)
वितथ वितान
वित्त ३७,१
विथा (व्यथा) विदित विद्याधर
विद्वान(न्) १५३ विधाता
११६
७०
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
विधि
विधान
बिधि
विधु विधुर
११४ ११४
१५६
११ । विभावसु ४२ विभु १२४ । वियोग
विरह २५ विल १२५ विलंबित १५७
विलास
विलासिनी १५४ विलोचन
विलोल विवर
११६
१४७ ।
विनतासुत विनायक विनास(श) विपक्ख(स) विप(पि)न विप(पि)नचर विपुल विप विफल विबुध
9
६६ १२१
१२५ । विष
५२,६०,७०
७१
विभंग विभा विभाकर
१०,८५ विषधर १४६ | विषधारि(री) ४५ विषम ३१ विषय ५० विषान(ण)
१३७
विभावरी
१५८
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
विष्ठा
विष्ठा
बिस (श) द
वि (व्य) सन
विसारि (री)
चिसा (शा) ल
विस्तर
विस्तीरन (र्ण)
विहंगम
विहाइत (पित)
विहाय
बिहार
वीतराग
वीर
वृकोदर
वृथा
वृद्ध
वृष
९९
६४ |वृषजा ( या ) म
७,११६ | वृषभ
१६७ | वृषभकेतु ५६ | वृंद
६७ वेग
१४६ | वेगगामुक
१४६ | वेद
१५६
वेदना
वेधा
६ वेनि (वेणी)
१५६ वेलि (दिल)
५ | वेसरि [३०]
वैकुंठ
११५
८२, १०२, १४४
वैजयंति (ती)
१६ १२५ | वैडूरज (र्य)
६२ | वैरि (बी)
१५५ | वैश्रवन (ण)
वैश्रवन
२३
१५५
२३
१६४
१२१
१५३
१६६
७३
११
१००
१५०
१०६
७
१४०
५८
८०
३१
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
व्यवहारी
व्यवहारी
व्याज
व्रज
व्रत
व्रतति
व्रती
व्रात
शंभु
शासन
शिशु
शील
शुचिवर्ण
शृगाल
श्रृंखल (ना)
शेष
श्रवन (ण)
श
१००
६२ श्रुति
११२
१६३
१२४
१५०
८३
१६३
२१
१३४
६२
११६
१३८
१५५
७२
७०
६७
६७
६८
श्रोत (श्र
६७
श्रोत्र ( इन्द्रियविशेष) १५८
व
१५७
वान
१५७
श्रोणि
बट
षटपद
षड ड) ज
षडद्दीन (क्षीण)
घड (ण्) मुख
पंढ
सखा
स (श) कल
स (श) कुनि
सखा
१६६
१२८
१०४
५६
२५
१३५
१३५
१५६
८०
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
सखी
सरवारन
-
-
सती
सदा
११८
सखी ७८ समर
१४३ सचिव
समवाय सची(शची)
समाज सठ (शठ)
समान सत स्य)वादी
समुद(द)
समीप सदन
समीर
समीरपथ सहस(श) ११७ समुदाय
१६४ सधर्म ११७ समूह
१६३ सनीचर (शनैश्चर) ४६ स(श)यन स(श)फरी
सर ५५,(शर) १४१ सबद (शब्द) ६६,१६६ | सरद (शरद) १०६ सभा (देवसभा) २७ सरन (शरण) सम
११७ सरनि(णि) समता
११५ स(श)रभ स(श)मन
४६ | सरवारन (शरवारण) १४२
१५१
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
सरसो
संखधनि
सरसी सरस्वति(ती) सरिता(त्) सरिता (द)धिपति सरीर (शरीर) सरूप सरोज सौ(पि) सर्वज्ञ सर्ववल्लभा स(श लभ सलोक (श्लोक) सलिल सविता सवर्ण ससांक (शशांक) ससि(शशि)विकास
ससिसेखर (शशिशेखर) २३
सहकार ६४ सहचर
सहचरी सहस(स्रोकिरन (ण) ३६ सहसनैन(सहस्रनयन) २६ सहसा
१२१ १२६ सहस्रकन(ण)
सहाइ(य)
सहित १५६ सहोदर ११५ । संकट
१२४ ५२ संकर (शंकर) ४.२३ ५०,८१ स(शकुंत ११७ सं(शंख २६,५६,६१ ४१ (शीखधर ५५ । संखधुनि (शंखध्वनि) १११
८०
११७
२
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
संगत.
सारमेय
m
V
संगत संगर संग्राम संघ संघात संचय संज(य)म संजु युग संजो(यो)ग संतत संतति संतमस संतान संतानद्रुम संताप संदान संदोह
२० । संनिधि १४३ संपराय
१४३ १४३ / संपा (शम्पा)
संफली(शंभली) १४२,१६३ ।
संयमी १६४ | सं(= शं)वरहरन(हर) ११० १२४ । संसार १४३ संहनन ११४ सा(शा)खामृग १५४ ११८ साखि (शाखी)
८६ सागर १२२ सात ११५,(सप्त)१६७
सांत (शांत) १०५ साधु ८३,११६ सायक
सा(शारदा १६४ । सारमेय
१५७
GHA
१४१
८
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
सारंग
१०४
सिंधुर
११६
सारंग६०,१५४,१५८,१६२ । सि(=शि)तिकंठ सारंगधर (शार्ङ्गधर) १६ सि(शिथिल सारव(व)भौम ३८ सिद्धत(सिद्धान्त) सारव(6) भौमनृप १३३ सिर (शिर) सा(शार्दूल ११ सिरछत्र (शिरश्छत्र) १३२ साल (शाला) १०१ सि(शिरोधर ६५ साल (शाल) १६३ सि(शि)रोरतन(रत्न) १३२ सा(शा)वक ८२ सि(शि)लीमुख १४१ १५८
१०० सिव (शिव)७,१४,२३,१२० सिखरि (शिखरी) १५५ सिव-तिय (स्त्री) ६३ सिखरीस (शिखरीश) २२ सि(शि)वनयन १६६ सिखंडि (शिखंडी) १६० | सिवा(शिवा) सिखि (शिखी) ४७ सिसिर (शिशिर) सि(शि)खिवाहन २५ सिंगार (शृङ्गार) सिखी (शिखी) १६० सिन्दूर सितनंभोज ५४
५१ सितवान (सितवर्ण) ७ } सिंधुर १५२
द
१३८
सिंधु
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०५
मुराम
सिंह
सुधर्मा
१५६ सुधि(स्थि)र सिंहासन सीत(शीत) ४३ | सुधा सीतल (शीतल)
सुधासूताति) सीधु
१२७ सुधी सीमा
५३ सुन्दर सीर
१२६ / सुभग सीरपानि(णि)
१८ सुभट सीस (शीर्ष)
सुमन सुक (शुक) १६१
सुमनस सुकल )शुक्र)
७ सुमेरु सुकृत
१३४ । सुर सुख ११४,११५ सुर-धम सुगत
| सुरंग (स्वर्ग) सुगंध
१५० सुरगिरी(रि) सुचि (शुचि)
सुरपति ८१ सुरभि
१४४ १४८
सुत
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुरमंडप
सुरमंडप
सुरवास
सुरा
सुरालय
सुवर्ण
सुवासना
सुविहित
सुषिर
सुहृद (द)
सु (= ) डाल सुंदरी
सू (शू) कर
सूतु
सून्य (शून्य)
सूपरतीक (सुप्रतीक)
सूर.
शूर
१०६
१०३ |सूरि
सूली (शूली)
६१,१२७ | सृ ंग (शृ ंग)
8 | सेज [दे०]
सेठि (श्रेष्टी)
सेना
१२८
१५०
१३४ सेनानि (नी)
६६
से (र्श) मुषी
८०
सेव (वा)
सेवक
१५२
७५ सैल (शैल)
१५३ सो (शो) ति
८१
सोपान
१६७
सोम
३८
सोमवंसि (श्य - शीय)
३६
ਚੋਬ
१४४ | सोम (सौम्य )
सौम
६५
२३
१५८
१३१
६२
१४०
२५
१२०
१३४
ΞΕ
१४५
६४
१३७
४१
१६
१०२
४६
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
सौरभ
१०७
सौरभ
१२३
सौरि
१५४
११६
र
१५६
१४६ हरित
हरित(त) स्याम (श्याम) १६,१२३ | हरिन(ण) स्वभाव
हरिनारि(री) स्वसा
८२ हरिवाहन स्रज(ज)
हरिविश्राम स्वेत (श्वेत)
हलाहल हय
१५३.१६७ । हली हयसेत (श्वेतहय) २०
३६,६१,१६१ हयग( है यं)गवीन हंसवाह(हिनी
। हाटक
१२८ हरष (हर्ष)
हार १०४,१५० हरहार
हाल(ला) हरि, १५,२६,३६,४२,४८, हास
१०५ ४६,१२८,१५१,१५३ हाहा हरिचन्दन
२८ | हित ८०,११३,११५
१८
२१ ११३
१२७
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०८
हिम हिमगिरितनया हिमभान(नु) हिरण्य हीन हीरा (हीरक) हुतास(श)
४३,१३०
२४ हृद (हृद) १४२ हृदय १२८ हेति
हेम
५८ हेमगिरि
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
___ “अनेकान्त"
मत्य, शान्ति और लोकहितका मन्देश-, मासिकपत्र वीरसेवामन्दिर सरसावा जि० सहारनपुर में पं०जुगलकिशोर मुख्तारके मम्पादकत्वमें प्रकाशित होना है। इसमें नीति-विज्ञान-दर्शन-इतिहास-कला और समाज-शास्त्रके प्रौढ विचारोंसे परिपूर्ण तथा सर्वसाधारण के लिए उपयोगी
और मनन करने योग्य महत्वके सुन्दर लेख रहते हैं। ___ पत्रकी नति उदार है और यह सामाजिक झगड़े टंटीसे सदा अलग रह कर लोक-सेवाका ठोस कार्य किया करता है । जिन्होने अब तक यह पत्र न देखा हो उन्हें अवश्य ही इसे मँगा कर पढ़ना चाहिये । वार्षिक मूल्य ३) है।
व्यवस्थापक 'अनेकान्त'
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
_