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+se-SDEO
జాతత్పత
IPR-525-SEGe:-SSR-Sese-5ess
महामुनि
श्री आनंदघनजी
तथा
m
REPSESSESSESS-RSES-TSES-ESSERSESEG-25
-
श्री चिदानंदजी विरचित बहोंतेरीओनां पदोनो संग्रह.
--con___ चतुर्थावृत्ति
उपावी प्रसिद्ध करनार श्रावक नीमसिंह माणक. शाकगढी, मांगवी, मुंबइ. संवत् १९७१ सने १९१५.
-sasasasaasvasa
:-Sast.SEX
కలాజతాఅతఅత+అపుణ
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Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya
sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay,
Published by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck,
225-231, Sackgalli, Mandvi, Bombay.
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(३)
वे बोल.
दरेक ज्ञातिना जेवा के जैन, विष्णु, बौद्ध वगेरे धर्म पालनारा लोको पण एकतारा, मंजीरानी धूनमां बे घमी संगीतमय मार्गी पदमां मस्त जगाय बे तथा केटलाक तुमरी ने साधारण पदोमां ईश्वर स्तवनादि पोताना हृदयने प्रिय लागे तेवा रागोमां गाय बे. केटलाक सानो भैरवी मालकोश, धन्याश्री, सारंग, कल्याण वगेरे रागोमां सतार, हारमोनीयम वगेरे वाद्योमां बाया जमावी घडीजर दुःखनी विस्मृति करावे a. नाटकोमi पण गायन गायन ने गायनज अर्थात् आखा देशोना देशोमां संगीतनी
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(४) लगनी लागी रही जे. तो श्रावे समये संगीतधाराए लोकोनां हृदयने उन्नत करवां ए एक मुख्य कर्तव्य बे. तेने माटे प्रसिद्ध श्रयेला श्री आनंदघनजी तथा चिदानंदजी महाराजनां करेखां पदोनो संग्रह करीने यथाशक्ति शुद्ध करीने या ग्रंथ उपाव्यो . बा ग्रंथमा एकंदर पदो १७ आपवामां आवेला . तेनी अंदर ज्ञान,लक्ति, वैराग्य,धर्म,अध्यात्म, स्वानुजूत वगेरे श्रीयुत बन्ने पंमितोए पोतानी शुद्ध जावनाने प्रतिजाना प्रवाहमां एवी वहन करेली ने के जे वांचकने क्षणे क्षणे अपूर्व आनंदनी साथे प्रनुजक्तिनो घणोज उत्साह आपे
. आग्रंथ अगाउ मोटी साफमां जीणा अक्रमां उपावेल हतो. तेनी आश्रावृत्ति
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(५) सुधारीने मोटा अक्षरमा पोकेट सापकमां उपावेल , तेथी तेनी अंदर घणोज वधारो श्रयेल . वसी आ ग्रंथनी अंदर चोवीश जिनेश्वरोना बंद नाखवामां आ. वेल . आ बारीक समयमा कागलनानाव घणाज वधी जवा उतां जैनबंधुउने वाचवा जणवा घणीज सवल पमे ते सारु प्रथमनीज किमत राखवामां आवेल , तेथी दरेक जैनबंधु श्रावा अमूल्य ग्रंथनो लाज खेवा चूकशे नहि.
क्षमापना. आं ग्रथनी अंदर मतिदोषथी के दृष्टिदोषश्री जे कांश भूलचूक रही गइ
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(६)
होय तेनी अमो सकल जैनसंघनी पासे क्षमा चाहीए बीए ने ते मूलो वांचकवर्ग सुधारीने वांचशे एवी मारी विनंति बे. किंबहुना !
घर ना. १२५ श्री २३१ ता. २० मी मे
१९१५
शाकगल्ली, मांगवी, मुंबइ
ली. श्रावक जीमसिंह
माणकना कार्यप्रवर्तक
शा. जाणजी
माया.
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॥ अथ ॥
॥ अस्य ग्रंथस्यानुक्रमणिका ॥
॥ १ ॥ प्रथम भैरव रागमां गवातां पदो ॥ पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक १६ विरथा जनम गमायो, मूरख वि० २१७ १७ जग सपनेकी माया रे, नर जग० २२० ३६ लाल ख्याल देख तेरे, चरि० २६३ ३७ जाग रे बटाउ अब, नई जोर० २६५ ३० चालणां जरूर जाकूं ताकूं, कैसा० २६७ ३७ जाग अवलोक निज, शुद्धता० २६० ४२ जित जिनंद देव, थिर चित्त० २७० ॥ २ ॥ विनास रागमां गवातां पदो || १३ जूठी जगमाया नर केरी काया० २१२
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( 2 )
नामो.
पृष्ठांक.
३
पदांक. पदनां १४ देखो जवि जिनजी के जुग, चरन ० २१४ ॥ ३ ॥ वेलावल रागमां गवातां पदो ॥ १ क्या सोवे उठ जाग बाउरे ० १ २ रे घरियारे बाउरे मत० ३ जीय जाने मेरी सफल घरी री. ४ सुहागा जागी अनुभव प्रीत. १७ डलह नारी तुं बमी बावरी ३७ ता जोगें चित्त घ्याचं रे वहाला. ६१ ४१ पीया बिनु सुद्ध बुद्ध मूली हो० ६८ १० मंद विषय शशि दीपतो. ११ जोग जुगति जाण्या विना. १२ आज सखी मेरे वालमा. २१० ॥ ४ ॥ प्रजाती रागमां गवातां पदो ॥ ए४ मूलको थोको जाइ व्याजको घणो ० ९१
....
·
mw
६
३१
२०५
२००
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पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक.
१७ मान कहा अब मेरा मधुकर० २२३ . ३५ वस्तुगतें वस्तुको लक्षण. २६० ४. ऐसा ग्यान बिचारो प्रीतम. २७० ४१ विषय वासना त्यागो चेतन. २७४ ॥५॥ आशावरी रागमां गवातां पदो ॥ ५ अवधू नट नागरकी बाजी. ७
अवधू क्या सोवे तन मठमें. १२ २० आज सुहागन नारी, अवधू० ३५ २३ अवधू अनुजवकलिका जागी. ३ए २६ अवधू क्या मागुं गुनहीना.. ४५ २७ अवधू राम राम जग गावे. ५४ २० अाशा औरनकी क्या कीजे. ४६ शए अवधू नाम हमारा राखे. ४ए ३० साधो लाइ समता रंग रमीजे. ५०
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( १० )
पदांक.
पदनां नामो. पृष्ठांक ४० मीठो लागे कंतको ने, खाटो लागे
६५
लोक० ४२ अब हम अमर जये न मरेंगे. ७१ ९७ देखो एक पूरव खेला.
ए६ ६६ साधु भाइ अपना रूप जब देखा. ११५ ६७ राम कहो रहेमान कहो कोट. ११६ ६० साधुसंगति बिनु कैसें पैयें. ८ वधू सो जोगी गुरु मेरा. १६८ वधू एसो ज्ञान बिचारी.
११७
१७१
१०० बेहेर बेहेर नहीं आवे, अवसर० १७४ १०१ मनुष्यारा मनुष्यारा, रिखन० १७५ १०४ हठीली आंख्यां टेक न मेटे. १७५ १०५ अवधू वैराग बेटा जाया. २६ वधू निरपक्ष विरला कोइ . २३८
१८१
....
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( ११ ) पदनां नामो.
पदांक.
पृष्ठांक.
२५ ज्ञानकला घट जासी जाकूं० २४८ ३० अनुभव श्रानंद प्यारो अब मो० २४९ ३१ जे घट विसत वार न लागे. २५० ३२ वधू पियो अनुव रस प्याला . २५२ ३३ मारग साचा कोन न बतावे. २५५ ३४ वधू खोली नयन अब जोवो. २५७ ॥ ६ ॥ रामग्री रागमां गवातां पदो || ६ माहारो बालुको संन्यासी. १२ खेले चतुर्गति चौपर, प्रानी मेरो ० २० २४ मुने महारो कब मिलसे मनमेलू. ४१ २५ क्यारे मुने मिलशे माहारो संत० ४१ 99 हमारी लय लागी प्रभु नाम० १३४ १८ जगत गुरु मेरा में जगतका चेरा. १३५
დ
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(१२) पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक. ॥७॥ सामेरी रागमां गवातां पदो॥ ३२ नितुर लये क्युं ऐसे,पिया तुम० ५४ ॥॥ धन्याश्री रागमां गवातां पदो॥ ५० अनुन्नव प्रीतम कैसे मनासी. ५ ५५ चेतन श्रापा कैसे लहो. ए३ ५६ बालुमी अबला जोर किश्यु करे. ए३ नए चेतन सकल वियापक होइ. १५३ ए६ अरी मेरो नाहेरी अतिवारो. १६६ १५ जूट्यो नमत कहा बेअजान. १२४ २० संतो अचरिज रूप तमासा. २५६ २१ कर ले गुरुगम ज्ञान विचारा. २२० २२ अब हम ऐसी मनमें जाणी. २३० ॥ ए॥ टोमी रागमां गवातां पदो ॥ १० परम नरम मति और न श्रावे. १६
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(१३) पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक. ११ आतम अनुजव रीति वरीरी. १७ ४३ मेरी तुं मेरी तुं काहीं डरेरी. ७५ ४४ तेरी हूं तेरी हुँ एती कहुंरी. ४ ४५ उगोरी गोरी गोरी जगोरी. ७५ ४६ चेतन चतुर चोगान लरीरी. ७७ ४७ पिय बिन निसदिन फुरुं खरीरी. ७७
प्रनु तो सम अवर न कोश
खलकमें. .... .... १४१ २३ सोहं सोहं सोहं सोहं. २३५ २४ अब लागी अब लागी, अब
लागी...... ..... .... २३३ २५ प्रीतम प्रीतम प्रीतम प्रीतम. २३५ २० कथणी कथे सहु को. २४५
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( १४ )
पदांक.
पदनां नामो.
पृष्ठांक.
१५
॥ १० ॥ मालसिरि रागमां गवातां पदो ॥ ३६ वारे नाह संग मेरो, युंही जोवन ० ६० ॥ ११ ॥ सारंग रागमां गवातां पदो || अनुव नाथकुं क्युं न जगावे. १४ ए नाथ निहारो आपमतासी. १३ अनुभव हम तो रावरी दासी. २२ १४ अनुभव तु है हेतु हमारो. २३ १५ मेरे घट ग्यान जानु जयो जोर. २५ ६० ब मेरे पति गति देव निरंजन० १०० ८० चेतन शुद्धतमकूं ध्यावो. ८१ चेतन ऐसा ग्यान विचारो.
॥ १२ ॥ गोमी रागमां गवातां १८ रीसानी आप मनावो रे. २१ निशानी कहा बतावुं रे.
१३८
१३ ए
पदो ॥
श्
३४
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(१५)
पदांक.
पदनां नामो.
३६
३३ मिलापी
५५
२२ विचारी कहा विचारे रे. न मिलावो रे. ३४ देखो वाली नटनागरको सांग. ९७ ६५ पीया बिन कौन मिटावे रे. ११३ ॥ १३ ॥ कल्याण रागमां गवातां पदो || ए मोकूं कोऊ केसी हूतको. 9 या पुलका क्या विसवासा. १६७ ॥१४॥ अलश्या वेलावल रागमां गवातां पदो ६५ प्रीतकी रीत नहीं हो प्रीतम. ए ऐसे जिनचरने चित्त व्याजं रे
१२०
पृष्ठांक
U
मना०
१६४
॥ १५ ॥ इमन रागमां गवातां पदो ॥ ८४ लागी लगन हमारी.
१४५
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वात
पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक. ॥ १६॥ केदारा रागमां गवातां पदो। ७२ मेरे माजी मजीठी सुण एक
.... १२६ ७३ नोले लोगा हुँ रडुं तुम जला हांसा
.... १२७ ॥ १७ ॥ कान्हरा रागमां गवातां पदो ॥ ३५ करे जारे जारे जारे जा. १७ ए दरिसन प्रानजीवन मोहे दीजें. १५० ॥ १७ ॥ बिहाग रागमां गवातां पदो ॥ . २७ लघुता मेरे मन मानी,लश् गुरु० २५१
६१ पीया पीया पीया, बोल मत० ३१३ ॥ १५॥ मारु रागमां गवातां पदो ॥ १६ निशदिन जोडं तारी वाटमी. २६ ३० मनसा नट नागरसूं जोरी हो. ६३
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( १७ ) पदनां नामो.
पदांक.
पृष्ठांक
४१ पीया बिनु सुद्ध बुद्ध मूली हो. ६८ ४८ मायमी मुने निरपख किएही न० ०० ६२ पीया बिन सुधबुद्ध खूंदी हो. १०३ ६३ व्रजनाथ से सुनाथ विए. ७१ अनंत रूपी विगत सासतो हो.
१०५
....
८३ निःस्पृह देश सोहामणो. १ वारो रे कोइ परघर रमवानो
ढाल.
१ पिया परघर मत जावो रे. २ पिया निज महेल पधारो रे.
....
३ सुप्पा आप विचारो रे. ४ बंध निज आप उदीरत रे.
१२३
१४२
१५७
१८६
१८५
१९१
१९३
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( २८ )
पदांक.
पदनां नामो. पृष्ठांक
५२
॥ २० ॥ श्रीरागमां गवातां पदो ॥ ३१ कित जांनमतें हो प्राननाथ. ॥ २१ ॥ जंगला काफी रागमां गवातां पदो ॥ ४० जगमें नहीं तेरा कोई. २० ४० जूती जूठी जगतकी माया. २३ ||२२|| जयजयवंती रागमां गवातां पदो ॥ ३० तरसकी जड़ द कौ दइकी ० ६६ २२ मेरे प्रान आनंदघन.
ԵԵ
६१ मेरीसुं तुमतें जु कहा, दूरीके० १०२ ७ ऐसी कैसी घरवसी.
१३६
|| २३ || मालकोश रागमां गवातां पदो ॥ ६ पूरव पुण्य उदय करी चेतन,
नीका०
....
....
३३७
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(१७) पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक. ॥२४॥ काफी रागमां गवातां पदो ॥
५ वारी हुँ बोलमे मीठमे. १५६ १०२ए जिनके पाय लाग रे,तुने क० १७७ ५ मति मत एम विचारो रे. १९६ ६ अकल कला जगजीवन तेरी. १एन ७ जौंलौं तत्त्व न सूज पमे रे. २०० ७ आतम परमातम पद पावे. १०२ ए अरज एक घवडीचा स्वामी. २०५ ४३ जौलों अनुलव ज्ञान, घटमें० २०१ १४ अकथ कथा कुण जाणे हो,तेरी० २०३
४५ अलख लख्या किम जावे हो. २०५ ॥ २५॥ नट रागमां गवातां पदो ॥
५३ सारा दिल लगा है, बंसीवारेसूं. ए. १०६किन गुन नयोरे उदासी जमरा.१०३
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(२०) पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक. ॥२६॥ काफी होरीमां गवातां पदो ॥ ४६ अनुलव मित्त मिलाय दे मोकू. २५६
एरि मुख होरी गावो री. २०७ ॥२७॥ मलार रागमां गवातां पदो ॥ पए ध्यानघटा घन गए, सु देखो० ३१० ६० मत जावो जोर बिजोर. ३११ ॥ २० ॥ सोरठ रागमां गवातां पदो ॥ १७ बोराने क्युं मारे ने रे. २८ ४ए कंचन वरण नाह रे, मुने कोय० ७३ ए. महोटी वहूयें मन गमतुं कीधु. १५५ ए३ मुने महारा नाहलीयाने
मलवानो० ... .... १६० एच निराधार केम मूकी,श्याम मुने० १६१ १० आतम ध्यान समान जगतमें. श्ए।
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(१) पदांक. पदनां नामो. पृष्ठांक. ५१ प्रनु मेरो मनमोहटक्यो नमाने.२pg ५२ तारो जी राज तारोजी राज. एण ५३ श्रावोजीराजावोजीराज. ३०१ ५४ गढ गिरनार रूमो लागे ने जी. ३०३ ७१ क्या तेरा क्या मेरा. ३४३ ॥ ए॥ वसंत रागमां गवातां पदो॥ ५८ प्यारे श्राय मिलो कहायेंतें जात. ए७ ६४ अब जागो परमगुरु ११० ७० बिले लालन नरम कहे. ११ ७४ या कुबुद्धि कुमरी कौन जात. १२ए ७५ लाखन बिन मेरो कुन हवाल. १३१ ७६ प्यारे प्रानजीवन ए साचजान. १३२ १०७ तुम ज्ञान विनो फूली बसंत. १०४
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( 22 )
पदांक.
पदनां नामो.
पृष्ठांक.
॥ ३० ॥ धमाल रागमां गवातां पदो || २१ जाकी राति कातीसी वहे.
८६
१४८
१४ए
१५१
३०५
३०६
८८ पूर्वीयें आली खबर नहीं. ॥ ३१ ॥ सोयणी रागमां गवातां पदो ॥ ९५ अनुज्जव ज्योति जगी बे. ५६ सरण तिहारे गही बे. ॥ ३२ ॥ केरबा रागमां गवातां पदो || १०३ प्रभु जज ले मेरा दिल राजी. १७८ १५ अखीयां सफल न, अलि निरखत०
८६ सलू साहेब यावेंगे मेरे ०
८७ विवेकी वीरा सह्यो न परे.
****
२१५
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( २३ )
९७ समज परी मोहे समज परी,
जग०
२८ हांरे चित्तमें धरो प्यारे, चित्तमें धरो०
....
३००
॥ ३३ ॥ साखीमां बोलाता दोहा ॥
६ श्रातम अनुभव रसिकको.
9 जग श्राशा जंजीरकी. तम अनुभव फूलकी.
१२ कुबुद्धि कुबजा कुटिल गति.
६५ राम ससी तारा कला.
७०
ए०
३०७
****
ए
११
१४
२०
११२
तम अनुभव रस कथा.
१२१
१५५
जोवंता लाख, जोवे तो० ॥ ३४ ॥ देशीचोमां गवातां पदो ॥
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(२४) ६२ परमातम पूरण कला. ३१५ ६३ श्री शंखेसर पास जिनंदके. ३१ए ६४ अजित अजित जिन ध्याश्ये. ३२१ ६५ लाग्या नेह जिनचरण हमारा.३२४ ६६ हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत. ३२७ ६७ चंवदनी मृगलोयणी॥(गहूंली)३३० ६७ अनुभव अमृतवाणी हो पास जिन
.... ३३४ ७० मणिरचित सिंहासन,
(स्तुति)
३४०
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ॐ
॥ श्रीयानंदघनाय नमः ॥ ॥ अथ श्री आनंदघनजी मदाराजकृत बहुत्तेरी च्यादिकनां
॥ पद प्रारंभः ॥
॥ पद पदेलुं ॥ राग वेलावल ॥ क्या सोवे उठ जाग बानरे ॥ क्या० ॥ ए प्रकणी ॥ छांजलि जल ज्युं च्यायु घटत दे,
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देत पहोरीयां घरीय घाउ रे॥
. क्या० ॥१॥ इंड चंड नागिं मुनिं चले, कोण राजापति साद राज रे॥ नमत जमत नवजलधि पायकें, नगवंतनजन विननाउनानरे।
क्या० ॥३॥ कदा विलंब करे अब बाउरे, ॥ तरीनवजलनिधि पार पाउरे आनंदघन चेतनमय मूरति, शुक्ष निरंजन देवध्याउरेक्या
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(३)
॥ पद बीजुं॥ ॥राग वेलावल॥ एकताली॥ रे घरियारे बानरे, मत घरीय बजावे॥ नर सिर बांधत पाघरी, तुंक्याघरीय बजावे॥रे॥२॥ केवल काल कला कले, वै तुं अकल न पावे॥ अकल कला घटमें घरी, मुजसो घरी नावे॥रे॥शा प्रातम अनुनव रस नरी,
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यामें और न मावे ॥
आनंदघन अविचल कला, विरला कोई पावे ॥ रे॥३॥ ॥पद त्रीजुं॥राग वेलावत ॥ जीय जाने मेरी सफल घरीरी॥
जीय० ॥ए आंकणी॥ सुतवनिता धन यौवन मातो, गर्न तणी वेदन विसरीरी॥
जीय० ॥१॥ सुपनको राजसाच करीमाचत,
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( 4 )
राचत बांद गगन बदरी री ॥ आइ अचानक काल तोपची, गदेगो ज्युं नादर बकरी री ॥ जीय० ॥ २ ॥
प्रतिदीच्यचेत कबु चेतत नांदि, पकरी टेक दारिल लकरी री ॥ आनंदघन दीरो जन बांमी, नर मोह्यो माया ककरी री ॥ जीय० ॥ ३ ॥
॥ पद चोथुं ॥ राग वेखावल ॥
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सुहागण जागी अनुन्नव प्रीत ॥
सुदा० ॥ए आंकणी॥ निंद अज्ञान अनादिकी, मिट गनिज रीतसु०॥१॥ घट मंदिर दीपक कीयो, सहज सुज्योति सरूप॥ आप पराश् आपही, गनत वस्तु अनूप ॥सु॥२॥ कदा दिखावू औरकुं, कदा समजाउँ नोर॥ तीर अचूक है प्रेमका,
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(७) लागे सो रदे ठगेर ॥ सु॥३॥ नादविलुछो प्राणकुं, गिने न तृण मृग लोय ॥ आनंदघन प्रनु प्रेमकी, अकथ कहानी कोय॥सुन॥४॥
॥पद पांचमुंगराग आशावरी॥ अवधू नट नागरकी बाजी, जाणे न बांगण काजी॥ ॥
ए आंकणी॥ थिरता एक समयमें गने,
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(ज) उपजे विणसे तबही ॥ उलट पलट ध्रुवसत्ता राखे, या हम सुनीन कबही॥॥॥ एक अनेक अनेक एक फुनी, कुंडल कनक सुनावे॥ जलतरंग घटमाटी रविकर, अगनित तादि समावाशा है नांदी है वचन अगोचर, नय प्रमाण सत्तनंगी॥ निरपख होय खखेको विरखा, क्या देखे मत जंगी॥ ॥३॥
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सर्वमयी सरवंगी माने, न्यारी सत्ता नावे॥
आनंदघन प्रजु वचन सुधारस, परमारथ सो पावे॥०॥४॥
पद बहुं ॥ साखी॥ आतम अनुजव रसिकको, अजब सुन्यो विरतंत॥ निर्वेदी वेदन करे, वेदन करे अनंत ॥१॥
राग रामग्री॥ मादारो बाबुडो संन्यासी,
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( १० )
देह देवल मठवासी ॥ मा० ॥ २ ॥ ए प्रकणी ॥
इमा पिंगला मारग तज योगी,
सुखमना घर वासी ॥ ब्रह्मरंध्र मधी प्रासन पूरी बाबु, अनददतान बजासी ॥ मा० ॥२॥ यम नियम आसन जयकारी, प्राणायाम अन्यासी ॥ प्रत्याहार धारणा धारी, ध्यान समाधि समासी ॥ मा०|३| मूल उत्तरगुण मुद्रा धारी,
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( ११ )
पर्यकासन वासी ॥ रेचक पूरक कुंजक सारी, मन इंडिय जयकासी॥मा०॥४॥ थिरता जोग युगति अनुकारी, आपो आप विमासी ॥ प्रातम परमातम अनुसारी, सीके काज समासी ॥मा ॥ ५ ॥
**
॥ पद सातमुं ॥ साखी ॥ जग आशा जंजीरकी, गति उलटी कुल मोर ॥
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(१२) ककयो धावत जगतमें, रदे बूटो इक ठगेर ॥१॥
॥राग आशावरी॥ अवधू क्या सोवे तन मठमें, जागविलोकन घटमें।अवधू॥
ए आंकणी॥ तन मठकी परतीत न कीजें, ढदि परे एक पलमें ॥ हलचल मेटि खबर ले घटकी, चिह्नरमता जलमें।अवधूणा॥ मठमें पंच नूतका वासा,
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(१३) सासा धूत खवीसा ॥ बिन बिनतोदी बलनकुं चादे, समजेन बौरासीसा॥अवधूश शिर पर पंच वसे परमेश्वर, घटमें सूरम बारी॥
आपअच्यासलखेकोशविरला, निरखे धूकी तारी॥अवधू॥३॥
आशा मारी आसन घर घटमें, अजपा जाप जपावे ॥ आनंदघन चेतनमय मूरति, नाथ निरंजन पावे॥अवधूणा
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(१४) ॥पद आठमुं॥ साखी॥ आतम अनुनव फूलकी, नवली कोन रीत॥ नाक न पकरे वासना, कान पदे न प्रतीत ॥१॥ ॥रागधन्याश्री अथवा सारंग। अनुन्नव नाथकुं क्युन जगावे॥ ममता संग सो पाय अजागल, थनतें दूध उदावे॥ ॥१॥ मैरे कदेतें खीज न कीजे, तुं ऐसीही सीखावे॥
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(१५)
बढ़ोत कढ़तें लागत ऐसी, अंगुली सरप दिखावे ॥ ० ॥२॥ औरनके संग राते चेतन,
चेतन आप बतावे ॥ आनंदघनकी सुमति आनंदा, सिद्ध सरूप कदावे ॥ ० ॥ ३ ॥
॥ पद नवसुं ॥ राग सारंग ॥ नाथ निहारो आपमतासी, वंचक शठ संचकसी रीतें, खोटो खातो खतास ॥ नाथ ०|१|
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(१६) आप विगुंचण जगकी दासी, सियानप कौन बतासी॥ निजजन सुरिजन मेला ऐसा, जैसा दूध पतासीनाथाशा ममता दासीअदितकरी दर विधि, विविध नांति संतासी॥ आनंदघन प्रजु विनति मानो, औरन दितुसमतासीनाथ॥३
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॥पद दशमुं॥राग टोडी॥ परम नरममति औरनआवेोप॥
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मोदन गुन रोदन गति सोदन, मेरी वैरन ऐसें नितुर लिखावे
॥परम ॥१॥ चेतन गात मनात न एतें, मूल वसात जगात बढावे ॥ कोन न दूती दलाल विसीठी, पारखी प्रेम खरीद बनावे
॥परम ॥३॥ जांघ उघारी अपनी कदा एते, विरदजार निस मोदी सतावे॥ एती सुनी आनंदघन नावत,
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( १७ )
और कहा कोन डुंड बजावे
॥ परम० ॥ ३ ॥
गीरमुं ॥
॥ पद | राग मालकोश वेलावल, टोड || आतम अनुभव रीति वरीरी ॥ आ० ॥ एकणी ॥
मोर बनाए निजरूप निरुपम, तिचन रुचिकर तेग धरीरी ॥
आतम० ॥ १ ॥
टोप सन्नाद शूरको बानो,
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(१ए) एकतारी चोरी पहिरीरी॥ सत्ता थलमें मोद विदारत, ऐ ऐ सुरिजन मुद निसरीरी॥
.. आतम० ॥३॥ केवल कमला अपबर सुंदर, गान करे रस रंग भरीरी॥ जीत निशान बजाइ विराजे, आनंदघन सर्वग धरीरी॥
आतम० ॥३॥
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( २० )
॥ पद बारमुं ॥ साखी ॥ कुबुद्धि कुबजा कुटिल गति, सुबुद्धि राधिका नारी ॥ चोपर खेले राधिका, जीते कुबजा दारी ॥ १॥ ॥ राग रामग्री ॥
खेले चतुर्गति चौपर ॥ प्रानी मेरो खेले० ॥ ए प्रकरणी ॥
नरद गंजीफा कौन गिनत है, माने न लेखे बुद्धिवर ॥ प्रा० ॥ २ ॥ राग दोष मोदके पासे,
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(१) आप बनाए हितकर ॥ जैसा दाव परे पासेका, सारी चलावेखीलकरप्राशा पांच तलें है दूआ नाइ, बक्का तलें है एका ॥ सब मिल होत बराबर लेखा, यह विवेक गिनवेका॥प्राण॥३॥ चनराशी माचे फिरे नीली, स्याद न तोरी जोरी॥ लाल जरद फिरे आवे घरमें, कबहुक जोरी विगेरी॥प्राणा
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( 22 )
नाव विवेकके पाठ न यावत, तब लग काची बाजी ॥ आनंदघन प्रभु पान देखावत, तो जीते जीय गाजी ॥ प्राणाय॥
॥ पद तेरमुं ॥ राग सारंग ॥ अनुभव हम तो रावरी दासी
॥ अनु० ॥
आइ कदांतें माया ममता, जानुं न कदांकी वास ॥ अनु०।१। रीज परें वाके संग चेतन,
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( २३ )
तुम क्युं रहत उदासी ॥ वरज्यो न जाय एकांत कंतको,
लोकमें दोवत दांसी ॥ अनु०॥२॥ समजत नांदी निठुर पति एती, पल एक जात बमासी ॥
आनंदघन प्रभु घरकी समता, अटकली और तबासी| अनु० ३
॥ पद चौदमुं ॥ राग सारंग ॥ अनुभव तुं दे देतु दमारो ॥ अनु० ॥ एकणी ॥
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(२४) आय उपाय करो चतुराइ, औरको संग निवारो॥ ॥२॥ तृष्णा रांगनांडकी जाइ, कदा घर करे सवारो॥ श ठग कपट कुटुंबदी पोखे, मनमें क्युं न विचारो (पागंतर) उनकी संगति वारो॥ ॥॥ कुलटा कुटिल कुबुधि संग खेलके, अपन पत क्युं दारो॥
आनंदघन समता घर आवे, वाजे जीत नगारो॥ ॥३॥
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(२५) ॥पद पंदरमुं॥राग सारंग॥ मेरे घट ग्यान जानुभयो जोर ॥
मेरे ॥ चेतन चकवा चेतन चकवी, नागो विरदको सोर॥मेरे॥१॥ फैलीचिहुंदिस चतुरानावरुचि, मिट्यो नरम तम जोर ॥ आपकी चोरी आपदी जानत, और कदत न चोर॥ मेरे॥२॥ अमल कमल विकचनये नूतल, मंद विषय शशिकोर ॥
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(२६)
आनंदघन एक वल्लन लागत, और न लाख किरो || मेरे ० ॥३॥
॥ पद सोलमुं ॥ राग मारु ॥ निशदिन जोनं तारी वाटडी, घरे आवो रे ढोला | निश० ॥ मुज सरिखा तुज लाख है, मैरे तूदी ममोला ॥ निश ॥ १ ॥ जवदरी मोल करे खालका, मेरा लाल मोला ॥ ज्याके पटंतर को नहीं,
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(8) उसका क्या मोला।निशाशा पंथ निहारत लोयणे, जग लागी अडोला ॥ जोगी सुरत समाधिमैं, मुनिध्यान ककोलानिश॥३॥ कौन सुनै किनकुं कहूं, किम मांडं में खोला ॥ तेरे मुख दीठे टले, मेरेमनका चोलानिश॥४॥ मित्त विवेक वातें कर्दै, सुमता सुनि बोला ॥
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( 20 )
आनंदघन प्रभु प्रवशे, सेजमी रंग रोला ||निश॥ ५ ॥
॥ पद सत्तरमुं ॥ राग सोरठ ॥ बोराने क्युं मारे बे रे, जाये काट्या डे || बोरो बे महारो बालो नोलो, बोले वे अमृत वेण ॥ बोरा०॥१॥ लेय लकुटियां चालण लागो, अब कांइ फूटां वे नेण ॥ तुं तो मरण सिराणें सूतो,
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( 20 )
रोटी देशे को ॥ बोरा ॥ २ ॥ पाच पचीश पचासां उपर, बोले वे सुधां वेण ॥ आनंदघन प्रभु दास तिंहारो, जनम जनमके से ॥ बोरा ॥३॥
॥ पद अढारमुं ॥
॥राग मालकोश, रागणी गोडी ॥ रीसानी आप मनावो रे, विच्च वसीव न फेर ॥ रीसा०॥ सौदा गम है प्रेमका रे,
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( ३० )
परख न बूके कोय | ले दे वादी गम पडे प्यारे, और दलाल न दोय ॥ सा०|१| दो बातां जीयकी करो रे, मेटो मनकी प्रांट |
तनकी तपत बूकाइयें प्यारे, वचन सुधारस बांट ॥ सा० ॥२॥ नेक नजर निदारीयें रे, नजर न कीजे नाथ ॥ तनक नजर मुजरे मले प्यारे, अजर अमर सुख साथ ॥ ० ॥३॥
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( ३१ )
निसि अंधियारी घनघटा रे, पानं न वाटके फंद || करुणा करो तो वहुं प्यारे, देखूं तुम मुखचंद ॥ सा० ॥४॥ प्रेम जहां डुविधा नदीं रे, मेट कुरादित राज || आनंदघन प्रभु प्राय बिराजे, आपदी समता सेज||रीसा० ॥५॥
। पद जंगणी शभुं । राग वेलावल | डुलद नारी तुं बमी बावरी,
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(३) पिया जागे तुं सोवे ॥ पिया चतुर दम निपट अग्यानी, न जानु क्या होवे ॥उल॥१॥ आनंदघन पिया दरस पियासे, खोल चूंघट मुख जोवे॥॥॥
॥पद वीशमुं॥ ॥राग गोडी, आशावरी॥ आज सुदागन नारी, अवधू _आज ॥ ए आंकणी॥ मेरे नाथ आप सुध लीनी,
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(३३) कीनी निज अंगचारी ॥१॥ प्रेम प्रतीत राग रुचि रंगत, पहिरे जीनी सारी॥ महिंदी नक्ति रंगकी राची, नाव अंजन सुखकारी॥अश सहज सुनाव चूरी मैं पेनी, थिरता कंकन नारी॥ ध्यान उरवसी जरमें राखी, पियगुनमालाधारी॥३॥ सुरत सिंदर मांग रंग राती, निरतें वेनी समारी॥
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(३४) उपजीज्योत उद्योत घट त्रिनुवन, आरसी केवल कारी॥
__ अ०॥४॥ नपजीधुनी अजपाकी अनदद, जीतनगारे वारी॥ फडी सदा आनंदघन बरखत, बिन मोर एकनतारीअाया ॥पद एकवीशमुंगराग गोमी॥ निशानी कहा बताईं रे, तेरो अगम अगोचर रूप ॥
निशानी॥ए आंकणी॥
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( ३५ )
रूपी कहुं तो कबु नहीं रे, बंधे कैसे रूप || रूपारूपी जो कहुं प्यारे, ऐसे न सिधनुप ॥ निशा०|१| शुद्ध सनातन जो कहुं रे, बंध न मोक्ष विचार ॥
न घटे संसारी दशा प्यारे, पुण्य पाप अवतार ॥ निशा ० | २ | सिन्ध सनातन जो कहुं रे, उपजे विनसे कौन || उपजे विनसे जो कहुं प्यारे,
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(३६) नित्य अबाधितगौन ॥नि॥३॥ सर्वांगी सब नयधनी रे, माने सब परमान॥ नयवादी पल्लो ग्रही प्यारे, करेलराश्ठान॥निशा॥४॥ अनुन्नव अगोचर वस्तु दे रे, जाणवो श्द इलाज॥ कहन सुननको कबु नहीं प्यारे, आनंदघन महाराजाना ॥ ॥ पद बावीशमुं॥राग गोडी ॥ विचारी कहा विचारे रे,
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( ३७ )
तेरो आगम गम प्रथाद
॥वि० ॥ ए प्रकणी ॥ बिनु आधे आधा नहीं रे, बिना आधार ॥ मुरगी बिन इंडा नहीं प्यारे, या बिन मुरगकी नार ॥वि०॥२॥ मुरटा बीज विना नहीं रे, बीज न जुरटा टार ॥
निसि बिन दिवस घटे नहीं प्यारे, दिन बिन निसि निरधार | वि०२ | सिद्ध संसारी बिन नहीं रे,
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( ३० )
सिद्ध बिना संसार ॥ करता बिन करनी नहीं प्यारे, बिन करनी करतार ॥वि०॥ ३ ॥ जनम मरण विना नहीं रे, मरण न जनम विनाश ॥ दीपक बिन परकाशता प्यारे, बिन दीपक परकाश ॥वि०॥४ ॥ आनंदघन प्रभु वचनकी रे, परिणति धरो रुचिवंत ॥ शाश्वत जाव विचारके प्यारे, खेलो अनादि अनंत ॥वि०॥८॥
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( ३७ )
॥ पद त्रेवीशमं ॥ ॥ राग आशावरी ॥
प्रवधू अनुभवकलिका जागी, मति मेरी प्रातम समरन लागी ॥ ० ॥ ए कणी ॥ जाये न कबहु र ढिग नेरी, तेरी विनता वेरी ॥ माया चेरी कुटुंब कर दाथे,
एक डेढ दिन घेरी ॥ अ०॥१॥ जरा जनम मरन वस सारी, असर न झुनिया जेती ॥
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(४०)
देढबकाय न बागमें मीयां, किस पर ममता एती॥॥॥ अनुभव रसमें रोग न सोगा, लोकवाद सब मेटा ॥ केवलअचल अनादिअबाधित, शिव शंकरका नेटा ॥ अ॥३॥ वर्षा बुंद समु समानी, खबर न पावे को॥ आनंदघन व्दै ज्योति समावे, अलख कदावे सो॥ ॥॥
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( ४१ )
॥ पद चोवीशसुं ॥ राग रामग्री ॥ मुने महारो कब मिलसे मनमेलू ॥ मु० ॥
मनमेलु विण केलि न कलीए, वाले कवल कोइ वेलू ॥ १ ॥ आप मिल्यायो अंतर राखे, सुमनुष्य नदीं ते लेलू | आनंदघन प्रभु मन मलीया वि को नवि विलगे चेलू ॥
,
॥ पद पचीशमुं ॥ राग रामग्री ॥ क्यारे मुने मिलशे माहारो संत
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(४२) सनेही क्यारे ॥ टेक॥ संत सनेही सूरिजन पाखे, राखेनधीरज देह॥क्यारे॥१॥ जन जन आगल अंतरगतनी, वातडली कहूं केदी॥
आनंदघन प्रनु वैद्य वियोगें, किम जीवे मधुमेह क्या॥॥ ॥पद बवीशमुराग आशावर॥ अवधू क्या मागुंगुनदीना, ' वेगुन गनिन प्रवीना ॥ अ० ॥
ए आंकणी॥
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(४३) गाय न जानुं बजाय न जानु, न जानुं सुर नेवा ॥ रीज न जानुंरीजाय न जानु, न जानुं पदसेवा ॥ ०॥१॥ वेद न जानुं किताब न जानु, जानुं न लबन बंदा ॥ तरकवाद विवाद न जानु, न जानुं कविफंदा ॥ ॥२॥ जाप न जानुं जुवाब न जानु, न जानुं कविवाता॥ नाव न जानु नगति न जानु,
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जानुं न सीरा ताता ॥०॥३॥ ग्यान नजानुं विग्यान न जानु, न जानुं नजनामा (पागंतर॥) न जानु पदनामा ॥
आनंदघन प्रजुके घरबारे, रटन करुंगुणधामा॥॥॥
पद सत्तावीशमुं॥ ॥ राग आशावरी॥ अवधू राम राम जग गावे, विरला अलख लखावे ॥ ॥
ए आंकणी
Pr
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( ४५ )
मतवाला तो मत में माता,
मठवाला मठराता ॥
जटा जटाधर पटा पटाधर,
बता बताधर ताता ॥ ० ॥ १ ॥ आगम पढि च्यागमधर थाके, मायाधारी बाके || दुनियादार इनिसें लागे,
दासा सब प्राशा के ॥ ० ॥ २ ॥ बदितराम मूढा जग जेता, मायाके फंद रदेता ॥
घट अंतर परमातम जावे,
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(४६) उर्खन्न प्राणी तेता ॥अ॥३॥ खगपद गगन मीनपद जलमें, जो खोजे सो बौरा ॥ चित्त पंकज खोजे सो चिह्ने, रमता आनंद नौरा॥ ॥४॥
॥ पद अहावीशमुं॥
॥राग आशावरी।। आशा औरनकी क्या कीजे, ग्यान सुधारस पीजे॥आशा॥
ए आंकण॥
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( BR )
मटके द्वार द्वार लोकनके, कूकर आशाधारी ॥
तम अनुभव रसके रसीया, उतरे न कबहु खुमारी ॥
आशा० ॥ १ ॥
आशा दासीके जे जाये, ते जन जगके दासा ॥ आशा दासी करे जे नायक,
लायक अनुभव प्यासा ॥
आशा० ॥ २ ॥ मनसा प्याला प्रेम मसाला,
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(७) ब्रह्म अग्नि परजाली॥ तन नाठी अवटा पीये कस, जागे अनुभव लाली॥
आशा० ॥३॥ अगम पीयाला पीयो मतवाला, चिह्नी अध्यातम वासा ॥
आनंदघन चेतन व्दै खेले, देखे लोक तमासा ॥
आशा० ॥४॥
॥ पद उंगपत्रीशमुं॥ ॥ राग आशावरी॥
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(४९)
अवधू नाम दमारा राखे, सो परम महा रस चाखे ॥
० ॥ ए की ॥
नदीं दम पुरुषा नहीं दम नारी, वरन न जात हमारी ॥ जाति न पांति न साधन साधक, नहीं दम लघु नहीं जारी ॥
अ० ॥ १ ॥
नहीं दम ताते नहीं दम सीरे, नहीं दीर्घ नहीं बोटा | नहीं दम जाइ नहीं हम जगिनी,
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( २० )
नहीं ढम बाप न बेटा ॥ ० ॥२॥ नहीं हम मनसा नहीं दम शब्दा, नहीं ढम तरणकी धरणी ॥ नदीं दम नेख, नेखधर नांदी, नहीं हम करता करण | प्र० । ३ ॥ नहीं हम दरसन नहीं हम परसन, रस न गंध कबु नांदी ॥ आनंदघन चेतनमय मूरति, सेवकजन बली जाई ॥ प्र०॥४॥
॥ पद त्रीशमुं ॥ राग आशावरी ॥ साधो जाइ समता रंग रमीजें,
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(५१) अवधू ममता संग न कीजें॥
सा॥ ए आंकणी॥ संपत्ति नांहि नांहि ममतामें, ममतामां मिस मेटे॥ खाट पाट तजी लाख खटान, अंत खाखमें लेटेसा ॥१॥ धन धरतीमें गाडे बोरे, धूर आप मुख ल्यावे॥ मूषक साप होवेगो आखर, तातें अलविकदावे॥साशा समता रतनागरकी जा,
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(५२)
अनुभव चंद सुनाइ ॥ कालकूट तजी नाव
श्रेणी,
आप अमृत ले आइ ॥ सा० ॥३॥ लोचन चरन सदस चतुरानन, इनतें बहुत डराइ ॥ आनंदघन पुरुषोत्तम नायक, दित करी कंठ लगाइ ॥ सा ॥४॥
॥ पद एकत्रीशमं ॥ श्रीराग ॥ कित जांनमतें दो प्राननाथ, इत च्याय निदारो घरको साथ ॥
कित० ॥ १ ॥
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-
(५३) उत माया काया कबन जात, यह जड तुम चेतन जग
विख्यात ॥ उत करम नरम विषवेलि संग, इत परम नरम मति मेलि रंग॥
कित० ॥३॥ उत काम कपट मद मोह मान, इतकेवल अनुनव अमृतपान।।
आलि कहे समता उत दुःख अनंत,श्त खेलेआनंदघन वसंत॥
कित ॥३॥
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(५४) ॥पद बत्रीशमुं॥राग सामेरी॥ नितुर नये क्युं ऐसें,पीया तुम॥
नितुर ॥ए आंकणी॥ में तो मन वच क्रम करी रानरी, राउरी रीत अनेसे ॥ नि॥२॥ फूले फूले नमर कैसीनांजरीनरतहुँ, निवदे प्रीत क्युं ऐसें ॥ में तो पीयुतें ऐसी मलि आली, कुसुम वास संग जैसे निकाशा ऐगी जान कदा परे एती, नीर निवदीये सें॥
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(एए)
गुन अवगुन न विचारो आनंदघन, कीजीयें तुम तैसें । नि | ३ |
॥ पद तेत्री शमुं ॥ राग गोडी ॥ मिलापीयान मिलावो रे, मेरे अनुभव मीठडे मित्त॥मि०॥ चातक पीज पीन रटे रे, पीन मिलाव न यान ॥ जीव पीवन पीन पीठ करे प्यारे, जीन नीन यान ए आन। मि०१ दुखीयारी निसदिन रहुं रे,
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(५६)
फिरूं सब सुधबुध खोय॥ तन मनकी कबहु लहुँ प्यारे, किसे दिखा रोय ॥ मि ॥२॥ निसि अंधारी मुदि इसे रे, तारे दांत दिखाय॥ नादो कादो में कीयो प्यारे, असुअन धार वदायामि॥३॥ चित्त चातक पीन पीन करे रे, प्रणमे दो कर पीस ॥ अबलाशुं जोरावरी प्यारे, एतीन कीजे रीस ॥ मि॥४॥
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( 45 )
यातुर चातुरता नहीं रे, सुनि समता टुंक वात, आनंदघन प्रभु प्राय मिले प्यारे, आज घरे दर जात॥मि०॥ ॥
॥ पद चोत्रीशभुं ॥ राग गोडी ॥ देखो खाली नट नागरको सांग ॥ दे० ॥
और दी और रंग खेलत तातें, फीका लागत अंग ॥ दे० ॥२॥ औरद तो कहा दीजे बहुत कर, जीवित है इद ढंग ||
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(UG)
मैरो और विच अंतर एतो, जैतो रूपें रंग ॥ दे० ॥ २ ॥ तनु सुध खोय घूमत मन ऐसें, मानुं कबुक खाइ जंग ॥ एते पर आनंदघन नावत, और कहा कोन दीजें संग ॥ दे० ॥ ३ ॥
॥ पद पांत्रीशभुं ॥
॥ राग दीपक अथवा कान्दरी ॥ करे जारे जारे जारे जा ॥ करे ० ॥
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(एए) सजि सणगार बनाये नूखन, गश्तबसूनीसेजा।करे॥१॥ विरहव्यथा कबु ऐसी व्यापती, मानुं को मारती बेजा। अंतक अंत कदालुं लेगो प्यारे, चाहे जीव तुं ले जाकरे॥॥ कोकिल काम चं चूतादिक, चेतन मत है जेजा ॥ नवल नागर आनंदघन प्यारे, आक्ष अमित सुख दे जा॥
करे ॥३॥
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(६०) ॥ पदबत्रीशमुं॥
॥राग मालसिरि॥ वारे नाद संग मेरो, युंदी जोवन जाय॥ ए दिन हसन खेलनके सजनी, रोते रेन विदाय ॥ वारे ॥१॥ नग नूषणसे जरी जातरी, मोतन कबु न सुदाय॥ श्क बुझ जीयमें ऐसीआवत है, लीजेरी विष खाय ॥ वारे॥२॥ ना सोवत दे खेत उसास न,
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(६१) मनदीमें पिरताय ॥ योगिनी हुयकें निकसूं घरतें, आनंदघन समजाय॥वारे॥३॥
॥ पद साडनीशमुं॥
॥राग वेलावल॥ ता जोगें चित्त ल्या रे
वहाला ॥ ता॥ समकित दोरी शील लंगोटी, घुलघुल गांठ घुला ॥ तत्त्वगुफामें दीपक जोलं,
C
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(६२) चेतन रतन जगाउं रे
वहाला॥ता० ॥१॥ अष्ट करम कंडैकी धूनी, ध्याना अगन जलाजं ॥ उपशम बनने नसम बणा, मली मली अंग लगा रे
वदाला ॥ ता० ॥३॥ आदि गुरुका चेला हो कर, मोहके कान फराजं ॥ धरम शुकल दोय मुज्ञ सोदे,
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R
(६३) करुणानाद बजा रे
वदाला ॥ ता० ॥३॥ इद विध योगसिंहासन बैठा, मुगतिपुरीकुं ध्याचं ॥
आनंदघन देवेंसें जोगी, बहर न कलिमें आलं रे
वदाला ॥ ता॥४॥
॥पद आडनीशमुं॥राग मारु॥ मनसा नट नागरसूं जोरी हो
॥ म०॥
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(६४) नट नागरसूं जोरी सखी हम,
और सबनसों तोरी होगम लोक लाजसू नांदी न काज, कुल मरयादा गेरी दो॥ लोक बटान दसो बिरानो, अपनो कदत नकोरी होमणश मात तात अरु सजन जाति, वात करत है नोरी दो॥ चाखे रसकी क्युं करी बूटे, सुरिजन सुरिजन टोरी हो
॥म ॥३॥
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(६५) औरहनो कहा कहावत और, नांदि न कीनी चोरी हो॥ काल कम्यो सो नाचत निवदे, और चाचर चरं फोरी दो
॥म ॥४॥ ज्ञानसिंधू मथित पाइ, प्रेमपीयूष कटोरी दो॥ मोदत आनंदघनप्रनुशशिधर, देखत दृष्टि चकोरी दो॥माया
WED.
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(६६) ॥पद उंगणचालीशमुं॥
॥राग जयजयवंती॥ तरसकीजद को दश्की सवारीरी, तीक्षण कटाद बटा लागत कटारीरी॥तरण। सायक लायक नायक प्रानको पदारीरी, काजर काज न लाज बाज न कहूं वारीरी॥तर॥२॥ मोदनीमोदन ठग्यो जगत - गारीरी, दीजीये आनंदघन दाह हमारीरी ॥ तर॥३॥
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( ६७ )
॥ पद चालीशमं ॥ ॥ राग आशावरी ॥
मीठो लागे कंतडो ने, खाटो लागे लोक || कंत विद्वणी गोठडी, ते रण मांदे पोक ॥ मी० ॥ १ ॥
कंतडामें कामण, खोकडामें शोक ॥ एक ठामे केम रहे, दूध कांजी थोक ॥ मी० ॥ २ ॥ कंत विण च गति,
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(६०) आणुं मानुं फोक ॥ उघराणी सिरम फिरड, नाणुं तेजे रोक ॥ मी० ॥३॥ कंत विना मति मारी, अदवाडानी बोक ॥ धोक धुं आनंदघन, अवरने ढोक ॥ मी०॥४॥
॥ पद एकतालीशमुं॥ ॥ वेलावल अथवा मारु॥ पीया बिनु सुझ बुझ नूली हो,
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(६ए) आंख लगाइ उःखमदेलके, जरूखे फूली हो ॥पीया॥१॥ दसती तबह बिरानीया, देखी तन मन बीज्यो दो॥ समजी तब एती कदी, कोइनेद न कीज्यो हो।पी॥२॥ प्रीतम प्राणपति विना, प्रिया कैसें जीवे दो॥ प्रान पवन विरदा दशा, जुयंगम पीवे दो॥पीया ॥३॥ शीतल पंखा कुमकुमा,
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(30) चंदन कदा लावे दो ॥ अनल न विरदानल ये है, तन ताप बढावे दो।पीया॥॥ फागुन चाचर इक निसा, होरी सिरगानी दो॥ मैरे मन सब दिन जरे, तन खाख उडानी हो।पी। समता मदेव बिराज है, वाणी रस रेजा दो ॥ बलि जालं आनंदघन प्रनु, ऐसें नितुरनव्देजादोपी
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(७१) ॥ पद बेंतालीशमुं॥ रागसारंगअथवाशावरी॥ अब हम अमर नये न मरेंगे।
अब० ॥ या कारन मिथ्यात दीयो तज, क्युं कर देद धरेंगे॥०॥२॥ राग दोस जग बंध करत है, इनको नाश करेंगे॥ मयो अनंत कालतें प्रानी, सो हम काल हरेंगे॥ ॥॥ देह विनाशी हूं अविनाशी,
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(१२) अपनी गति पकरेंगे। नासी जासी दम थिर वासी, चोखे व्द निखरेंगे॥०॥३॥ मयो अनंत वार बिन समज्यो, अब सुख उःख विसरेंगे॥ आनंदघन निपट निकट अदर दो,नहींसमरे सोमरेंगे॥ ॥
॥पदतालीशमुंराग टोमी॥ मेरी तुंमेरीतुंकाहीं डरेरी।मे। कहे चेतन समता सुनी आखर,
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(७३) और डैढ दिन जूठ खरेरी॥
मेरी ॥१॥ एती तो हुँ जानुं निदचे, रीरी पर न जरा जरेरी॥ जब अपनो पद आप संजारत, तब तेरे परसंग परेरी मेरीश औसर पाइ अध्यातम शैली, परमातम निज योग धरेरी॥ शक्ति जगावे निरुपम रूपकी, आनंदघन मिलि केलि करेरी॥
॥ मेरी ॥३॥
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( ७४ )
॥ पद चुमालीशमुं ॥ राग टोमी ॥ तेरी हुं तेरी हुं एती कहुंरी, इन बातमें दुगो तुं जाने, तो करवत काशी जाय गहुंरी ॥ तेरी० ॥ १ ॥
वेद पुराण किताब कुरानमें, आगम निगम कबु न बहुंरी ॥ वाचा फोर सिखाइ सेवनकी, में तेरे रस रंग रहुंरी ॥ तेरी० ॥ २ ॥
मैरे तो तुं राजी चदीये,
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(७५) औरके बोल में लाख सहूंरी॥ आनंदघन पिया वेग मिलोप्यारे, नहीं तो गंग तरंग वढंरी ॥
तेरी० ॥३॥
॥पद पीस्तालीशमुंगराग टोड। उगोरी गोरी लगोरी जगोरी॥
ए आंकणी॥ ममता माया आतम ले मति, अनुन्नव मेरी और दगोरी ॥
गो० ॥१॥
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(१६) ज्रात न तात नमात न जात न, गात न वात न लागत गोरी॥ मैरे सब दिन दरसन परसन, तान सुधारस पान पगोरी॥
गो ॥२॥ प्राननाथ विबरेकी वेदन, पार न पावू अथाग थगोरी ॥ आनंदघन प्रजु दर्शन औघट, घाट उतारन नाव मगोरी ॥
गो० ॥३॥
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( 66 )
॥ पद बेंताली शभुं ॥ राग टोडी ॥ चेतन चतुर चोगान लरी | चे ० | जीत लै मोदरायको लसकर, मिसकर बांड नाद धरीरी ॥
चेतन० ॥ १ ॥
नाग काढल ताड ले डुसमन, लागे काचो दोय घरीरी ॥ अचल अबाधित केवल मनसुफ, पावे शिव दरगाद मरीरी ॥ चेतन० ॥ २ ॥
और लराइ लरे सो बावरा,
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(७) सूर पगडे नां अरीरी॥ धरम मरम कदा बूझे न औरें, रहे आनंदघन पद पकरीरी॥
चेतन ॥३॥
॥पद सुडतालीशमुंगरागटोड। पिय बिन निसदिनकै खरीरी॥
पिय० ॥ए आंकणी॥ लहडीवडीकीकदानी मिटा॥ धारतें आंखे कवन टरीरी॥
पिय० ॥१॥
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(ण) पट नूखन तन नौक न उढे, नावे न चोंकी जरा जरीरी॥ शिवकमला आली सुखनन पावत,कौनगिनत नारीअमरीरी॥
पिय॥२॥ सास उसास विसास न राखे, नणदी निगोरी गोरी लरीरी॥ और तबीब न तपत बुकावे, आनंदघन पीयुष करीरी॥
पिय० ॥३॥
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( 09 )
॥ पद अडतालीशमं ॥ ॥ राग मारु - जंगलो ॥ मायमी मुने निरपख किादीन मूकी || निरपख० ॥ माय० ॥ निरपख रदेवा घणुंदी जूरी, धीमे निज मति फूंक ॥ माय०1१॥ योगीए मलीने योगण कीनी, यतिए कीनी यतणी ॥ नगते पकडी जगताणी कीनी, मतवाले कीनी मतण॥॥ माय ०२ केणे मूकी केणे लूंची,
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(१) केणे केसैं लपेटी॥ एकपखो में कोई न देख्यो, वेदन किणहीन मेटी।माया। राम नणी रदीमान नणाइ, अरिहंत पाठ पढाइ॥ घर घरने हुँ धंधे वलगी, अलगीजीव सगाशामाया केणे ते थापी केणे जयापी, केणे चलावी किण राखी॥ केणे जगाडी केणे सूडी, कोश्नुकोइन विसाखीमाय०५
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( २ )
धींग डुर्बलने ठेलीजे, वींगे ठींगो वाजे ॥ अबला ते केम बोली शकीए, यो ने राजे ॥ माय० ॥६॥
जे जे कीधुं जे जे कराव्युं, तेढ़ कदेतां हुं बाजुं ॥ थोडे कदे घणुं प्रीबी लेजो, घरशुं तीरथ नहीं बी जुं ॥ माय ०७ आप बीती कदेतां रीसावे, तेथी जोर न चाले || आनंदघन वादालो बांदडी काले,
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(३) तो बीजुं सघर्बु पाले ॥
माय० ॥७॥
॥ पद गणपचासमुं॥
॥राग सोरठ॥ कंचन वरणो नाद रे, मुने कोय मिलावो॥०॥ अंजन रेखन आंख न नावे, मंजन शिर पडो दाद रे॥
मुने कोय० ॥१॥
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(४) कौन सेन जाने पर मनकी, वेदन विरद अथाद ॥ थरथर धूजे देदडी मारी, जिम वानर नरमाद रे॥
मुने कोय० ॥॥ देद न गेद न नेद न रेद न, नावे न दूदा गादा ॥
आनंदघन वालो बांदडीकाले, निशदिन धरूं उमादा रे॥
मुने कोय० ॥३॥
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(५) ॥पद पचासमुंरागधन्याश्री। अनुभव प्रीतम कैसे मनासी॥
अनु० ॥ बिन निर्धन सधन बिन निर्मल, समल रूप बतासी॥अनु। बिनमें शक तक फुनि बिनमें, देखु कहत अनासी॥ विरज न विच्च आपा हितकारी, निर्धन कूट खतास॥अनुशा तोदि तूं मैरो मैं दि तुं तेरी, अंतर कार्दै जनासी ॥
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(६) आनंदघन प्रनु आन मिलावो, नहितर करोधनास॥अनु॥३॥ ॥पद एकावनमुं॥राग धमाल॥ नाउँकी राति कातीसी वदे, गतीय बिन बिन ना ॥
॥नाउँ० ॥१॥ प्रीतम सब बबी निरखके हो, पीन पीन पीन कीना ॥ वाही बिच चातक करे दो, प्रान हरे परवीना नाउँ॥॥
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(1) एक निसि प्रीतम नांचंकी दो. विसर गइ सुध नान॥ चातक चतुर विना रही हो, पीउ पीन पीन पीन पाउ॥
नाउं ॥३॥ एक समे आलापके दो, कोने अडाने गान॥ सुघर बपीदा सुर धरे दो, देत है पीन पीन तान ।।
नाडु०॥४॥ रात विनाव विलात है दो,
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( 22 )
उदित सुजाव सुजान ॥ सुमता साच मते मिले दो, आए आनंदघन मान ॥ đều || 4 |
॥ पद बावनमुं ॥ ॥ राग जयजयवंती ॥ मेरे प्रान खानंदघन, तान यानंदघन |
ए प्रकणी ॥
मात आनंदघन,
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(ए)
तात आनंदघन॥ गात आनंदघन, जात आनंदघन ॥मे०॥१॥ लाज आनंदघन, काज आनंदघन॥ साज आनंदघन, लाज आनंदघन | मे॥३॥
आन आनंदघन, गान आनंदघन ॥ नान आनंदघन, लान आनंदघन ॥ मे॥३॥
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(ए) ॥ पद त्रेपनमुं॥राग सोरठ मुलतानी॥ नटरागिणी॥
॥सदेली॥ सारा दिल लगा है, बंसीवारेसूं ॥ बंसीवारेसूं प्रान प्यारेलूँ ॥ सा० ॥ मोर मुकुट मकराकृतकुंडल, पीतांबर पटवारेसूं ॥ सा॥१॥ चंद चकोर नये प्रान पपश्या, नागरनंद दुलारेनूं ॥ इन सखीके गुनगंडप गावे,
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(ए) आनंदघन उजीयारेतूंसाश ॥पद चोपनमुं॥रागमनाती॥ - आशावरी॥रातडी रमीने .
हाथी आवीया ॥ ए देशी॥ मूलडो थोमो नाइ व्याजडो.
घणो रे, केम करी दीधो रे जाय॥ तलपद पूंजी में आपीसघलीरे, तोदे व्याज पूरुं नवि थाय॥
मू०॥१॥
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(LUR)
व्यापार जागो जलवट थलवटें रे, धीरे नदीं नीसानी माय ॥ व्याज बोडावी कोइ खंदा परवे रे, तो मूल आपुं सम खाय ॥ मू० ॥ २ ॥
दाटऊं मांऊं रूमा माणक चोकमा रे, साजनीयानुं मनरूं मनाय ॥ आनंदघन प्रभु शेठ शिरोमणि रे, बांदडी कालजो रे आय ॥ मू० ॥ ३ ॥
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( हेतो)
॥पद पंचावनमुं ॥ राग धन्याश्री ॥ चेतन खापा कैसें लदोइ ॥ चे०॥ . सत्ता एक प्रखंड अबाधित, इद सिांत पख जोइ ॥ चे० ॥ २ ॥ अन्वय अरु व्यतिरेक देतुको, समज रूप म खोइ ॥ प्रारोपित सर्व धर्म और है, आनंदघन तत सोइ ॥ ० ॥२॥
॥पद बप्पनमुं ॥ राग धन्याश्री ॥ बालुडी अबला जोर किश्युं करे,
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( ए४ )
पीउडो पर घर जाय ॥ पूरवदिसि पश्चिमदिसि रातडो, रवि अस्तंगत थाय ॥ बा० ॥ १ ॥ पूनम ससी सम चेतन जाणीये, चंद्रातप सम जाण ॥ वादल र जिम दल थिति प्राये, प्रकृति प्रनावृत जाण ॥
बा० ॥ २ ॥
पर घर मतां स्वाद कियो बढ़े, तन धन यौवन दा || दिन दिन दीसे अपयश वाधतो,
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(एए) निज जन न माने कांण ॥
बा० ॥३॥ कुखवट गंडी अवट कवट पडे, मन मेहूवाने घाट॥
आंधो अांधे मिले बे जण, कोण देखाडे वाट॥ बा०॥४॥ बंधु विवेके पीनडो बूझव्यो, वास्यो पर घर संग॥
आनंदघन समताघर आणे, वाधे नव नव रंग ॥ बा ॥५॥
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(ए) पदसत्तावनमुरागाशावरी। देखो एक अपूरव खेला, आपदी बाजीआपदी बाजीगर, आप गुरु आप चेलादेखो॥ खोक अलोक बिच आप विराजित, ग्यान प्रकाश अकेला॥ बाजी गंड तहां चढ बैठे, जिहां सिंधुका मेला ॥
देखो० ॥३॥ वाग्वाद खटनाद सहुमें, किसके किसके बोला॥
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(ए) पाहाणको नार कांही उगवत, एक तारेका चोलादेखो॥३॥ षट्पद पदके जोगसिरिखस, क्यों कर गजपद तोला ॥ आनंदघन प्रनु आय मिलो तुम, मिट जाय मनका कोला॥
देखो ॥४॥
॥पद अगवनमुंगराग वसंत। प्यारेआय मिलोकदायेंतें जात,
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मेरो विरद व्यथा अकुलातगात
॥प्यारे॥१॥ एक पेसाजर न लावे नाज, न नूषण नहीं पट समाज
प्यारे ॥२॥ मोदन रास न दूसत तेरी आसी, मदनो जय है घरकी दासी
॥प्यारे॥३॥ अनुभव जादके करो विचार, कद देखे है वाकी तनमें सार
प्यारे ॥४॥
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(FORD)
जाय अनुभव जइ समजायेकंत, घर खाये आनंदघन जये वसंत ॥ प्यारे० ॥ ५ ॥
॥ पद जंगणसावसुं ॥ ॥ राग कल्याण ॥
मोकूं कोऊ केसी दूतको, मेरे काम एक प्रानजीवनसूं, और नावे सो बको ॥ मो० ॥ २ ॥ में आयो प्रभु सरन तुमारी, लागत नाहीं धको ॥ लुजन उठाय कहुं औरनसूं;
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(१००) करहुंज करदीसको॥मो॥॥ अपराधीचित्तगन जगत जन, कोरिक नांत चको॥ आनंदघन प्रनु निदचे मानो, इद जन रावरो थकोमो॥३॥
॥पद साठमुं ॥राग सारंग ॥ अब मेरे पति गतिदेव निरंजन॥
अब० ॥ नटकू कहा कहा सिर पटकू,
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(१०१) कहा करुं जन रंजन॥
अब०॥ खंजन हगन हगन लगाएँ, चाढू न चिंतवन अंजन॥ संजन घट अंतर परमातम, सकल उरित नय जन ॥
अब०॥ ॥ एह कामगवि एद कामघट, एही सुधारस मंजन॥ आनंदघन प्रज्जु घटवनके हार, काम भतंग गज गंजन ॥ ३
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( 202 )
॥ पद एकसठमुं ॥ ॥ राग जयजयवंती ॥ मेरीसुं तुमतें जु कहा, दूरी के दो सबै री ॥ मे० ॥ २ ॥ रूठेसें देख मेरी,
मनसा दुःख घेरी री ॥ जाके संग खेलो सो तो,
जगतकी चेरी री ॥ मे० ॥ २ ॥
शिर बेदी यांगे धरे, और नहीं तेरी री ॥ आनंदघन कीसो,
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(१०३) जो कहुं हुं अनेरी री॥मे॥३॥
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॥पद बासठमुं॥राग मारु॥ पीया बिन सुधबुध खूदी हो, विरद नुयंग निसा समे, मेरी सेजडीखूदी दो॥पी०॥२॥ नोयण पान कथा मिटी, किसकुं कहुं सूधी दो॥
आजकाल घर आनकी, जीव आस विबुझी हो।पी॥श वेदन विरदेअथाद है,
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(१०४) पाणी नव नेजा दो। कौन हबीब तबीब है, टारे कर करेजा दो॥पी॥३॥ गाल दथेली लगायके, सुरसिंधु समेली दो॥
असुअन नीर वहायकें, सिंचं कर वेली दो॥पी०॥४॥
श्रावण नाउँ घनघटा, विच वीज ऊबूका दो॥ सरिता सरवर सब नरे, मेरा घटसर सब सूका हो।पी०५
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(१०५) अनुन्नव बात बनायकें. कदे जैसी नावे दो॥ समता टुक धीरज धरे, आनंदघन आवे दो॥पी०॥६॥
॥पद त्रेसठमुं॥ राग मारु॥ ॥व्रजनाथसें सुनाथ विण, दाथो हाथ विकायो॥ विचकों को जनकृपाल, सरन नजर नायो॥७॥१॥ जननी कहुँ जनक कहुँ,
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(१०६) सुत सुता कहायो॥ नाइ कहुँ लगिनी कडं, मित्र शत्रु नायो॥७॥३॥ रमणी कहुं रमण कहुँ, राज रज जतायो॥ सेवकपति इंद चंद, कीट नुंग गायो॥5॥३॥ कामी कहुं नामी कहूं, रोग जोग मायो॥ निशपतिधर देद गेद धरी, विविध विध धरायो॥०॥४॥
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(१७) विधिनिषेध नाटक धरी, नेद आठ गयो॥ भाषा षट् वेद चार, सांग शु६ पढायो॥७॥५॥ तुमसें गजराज पाय, गर्दन चढी धायो॥ पायस सुग्रहका विसारी, नीख नाज खायो॥७॥६॥ लीलालु इटुक नचाय, कदोजु दास आयो । रोमरोम पुलकित हुँ,
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( १०८ )
परम लाभ पायो ॥ एरि पतितके उधारन तुम, कढिसो पीवत मामी ॥ मोसुं तुम कब उधारो,
० ॥ ७ ॥
क्रूर कुटिल कामी ॥ ० ॥ ८ ॥ और पतित केइ उधारे,
करणी बिनुं करता ॥ एक काही नानं लेनं, जूठे बिरुद धरता ॥ ० ॥ ९ ॥ करनी करी पार नए, बढ़ोत निगम साखी ॥
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( १००)
शोभा दइ तुमकूं नाथ, अपनी पत राखी ॥ ० ॥ १०॥ निपट ज्ञानी पापकारी, दास है अपराधी ॥ जानु जो सुधार दो, अब नाथ लाज साधी ॥ श्र० ॥११॥ औरको उपासक हुं, कैसें कोइ उधारुं ॥ दुविधा यह राखो मत, या वरी विचारुं ॥ ० ॥ १२ ॥ गइ सो तो गइ नाथ,
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( ११० )
फेर नहीं कीजे ॥ द्वारे रह्यो ढींग दास, अपनो की लीजे ॥ ० ॥ १३ ॥ दासकों सुघारी खेडु, बहुत कदा कढ़ियें || प्रानंदघन परम रीत, नानुंकी निवदियें ॥ ०॥ १४ ॥
॥ पद चोसठमुं ॥ राग वसंत ॥ || अब जागो परमगुरु परमदेव प्यारे,
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( १११) मेटहुँ दम तुम बिच नेदार प्रालीलाजनिगोरीगमारीजात, मुदि आन मनावत विविध
नात॥ ०॥३॥ अति पर निर्मूली कुलटी कान, मुनि तुहि मिलन बिच देत हान
॥ ०॥३॥ पति मतवारे और रंग, रमे ममता गणिकाके प्रसंग।
॥ ०॥४॥ जब जड तो जड वास अंत,
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( ११५) चित्त फूले आनंदघन जय व
संत ॥ ० ॥५॥ ॥पद पांसपमुं॥
॥साखी॥ रास ससीतारा कला, जोसी जोड्ने जोस ॥ रमता सुमता कब मिले (॥ पा
गंतर ) आतम मित्ता किम मिले, नांगे विरदा सोस ॥१॥
गोडी रागमां॥
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( ११३ )
॥ पीया बिन कौन मिटावे रे, विरदव्यथा असराज ॥ पी० ॥ निंद नीमाणी यांख तेरे, नावी मुज दुःख देख ॥ दीपक शिर मोले खरो प्यारे, तन थिर धरे न निमेष ॥ पी०२ ससि सरिए तारा जगी रे, विनगी दामिनी तेग || रयणी दया मते दगो प्यारे, मया सया विनु वेग || पी० ॥ ३ ॥ तनपिंजर कूरे पयो रे,
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( १९४) जडीन सके जीव दंस॥ विरदानल जाला जली प्यारे, पंख मूल निरवंस ॥पी०॥॥ ऊसासासें वढानकों रे, वाद वदे निशि रांड ॥ न मने ऊसासामनी प्यारे, हटके न रयणी मांडपी॥५॥ इद विधि जे घरधणी रे, उससुंरदे उदास॥ हरविध आइ पूरी करे प्यारे, आनंदघन प्रनु आस॥पी६
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( ११५ )
||पद बासवमुं । राग प्राशावर || ॥ साधु भाइ अपना रूप जब देखा ॥ साधु० ॥
करता कौन कौन फुनी करनी, कौन मागेगो लेखा ॥ साधु ० ॥ २ ॥ साधुसंगति अरु गुरुकी कृपातें, मिट गइ कुलकी रेखा ॥ आनंदघन प्रभु परचो पायो, उतर गयो दिल मेखा ॥ साधु० ॥ २ ॥
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( ११६ )
||पद सडसठ मुं| राग प्राशावर ॥ राम कदो रहेमान कहो कोन, कान कहो महादेव । ॥ पारसनाथ कहो कोन ब्रह्मा,
सकल ब्रह्म स्वयमेव ॥॥रा०॥१ नाजन नेद कढावत नाना, एक मृत्तिका रूप री ॥ तैसें खंड कल्पना रोपित, आप प्रखंड सरूप री॥रा०॥२॥ निज पद रमे राम सो कढ़ियें, रहिम करे रहेमान री ॥
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( १९७) करशे करम कान सो कहियें, महादेव निर्वाणरी॥रा॥३॥ परसे रूप पारस सो कहिये, ब्रह्म चिह्न सो बम री॥ इह विधसाधोआपआनंदघन, चेतनमय निःकर्म रीरा॥
पद अडसठमुराग आशावरी। ॥ साधुसंगति बिनु कैसे पैयें, परम मदारस धामरी॥ए आं
कणी॥
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(१९७) कोटि उपाय करे जो बौरो, अनुनवकथा विश्रामरीसाधु०
॥॥ शीतल सफल संत सुरपादप, सेवै सदा सुगंरी॥ वंबित फले टले अनवंबित, नवसंताप बूजारी ॥साधु०
चतुर विरंची विरंजन चाहे, चरणकमल मकरंदरी॥ को हरि नरम विदार दिखावे,
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( ११५ )
शुद्ध निरंजन चंदरी ॥ साधु०
॥ ३ ॥
देव असुर इंद्रपद चाहु न, राज न काज समाज री ॥ संगति साधु निरंतर पावुं, आनंदघन महाराज ॥ साधु ०
॥ ४ ॥
॥ पद जंगणोतेरमुं ॥ ॥ राग अलदियो, वेलावल ॥
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(१२०) ॥प्रीतकी रीत नहीं दो प्रीतम
॥प्रीत ॥ मैं तो अपनो सरव शंगारो, । प्यारेकी न लई हो॥प्री० ॥१॥ में वस पियके पिय संग औरके, या गति किन सीखई॥ उपगारी जन जाय मनावो, जो कबुनई सोनई हो।प्रीश विरदानलजाला अतिदि क
ठिन है, मोसें सही न गई॥
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( १२१ )
आनंदघन युं सघन धारा, तबदी दे पवइ हो ॥ पी० ॥ ३ ॥
॥ पद सीतेरमुं ॥ ॥ साखी ॥
॥ तम अनुभव रस कथा, प्याला पिया न जाय ॥
मतवाला तो ददि परें, निमता परे पचाय ॥ १॥
॥ राग वसंत, धमाल ॥ || बिले लालन नरम कहे,
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(१२) आली गरम करत कहा बात
॥टेक॥ मांके आगें मामुकी कोई, वरनन करय गिवार ॥ अजह कपटके कोथरी हो, कहा करे सरधा नार ब॥॥ चनगतिमदेल नगरिदी दो, कैसें आत जरतार ॥ खानो न पीनो इन बातमें हो, हसतनानन कदा दाडाश ममता खाट परे रमे हो,
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( ११३ )
और निंदे दिन रात | बैनो न देनो इन कथा हो, जोरही यावत जात ॥ ब ० ॥ ३ ॥ कदे सरधा सुनि सामिनी हो, एतो न कीजे खेद | हेरे हेरे प्रभु यावदी दो, वदे यानंदघन मेद ॥ ० ॥ ४॥
॥ पद एकोतेरमुं ॥ राग मारु ॥ ॥ अनंत रूपी
विगत सासतो दो,
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( १२४ )
वासतो वस्तु विचार ||
सहज विलासी दासी नवी करेहो, अविनाशी अविकार | अनं०1१1 ज्ञानावरणी पंच प्रकारनो दो,
दरशनना नव नेद || वेदनी मोहनी दोय दोय जापीयें दो,
आयुखं चार विवेद ॥ प्रनं० 1 | शुभ अशुभ दोय नाम वखा
पीयें दो,
नीच उंच दोय गोत ॥
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(१२५) विघ्न पंचक निवारी आपथी हो, पंचम गति पति होत॥अनं॥३॥ युगपदनावि गुण नगवंतनादो, एकत्रीश मन आण ॥ अवर अनंता परमागमथकी दो अविरोधीगुणजाण।अनं०॥४॥ सुंदरसरूपीसुनगशिरोमणिदो, सुण मुज आतमराम ॥ तन्मय तक्षय तसुमक्ते करी हो, आनंदघन पद गमाअनंजय॥
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म
(१५६) ॥पद बहोतेरमुं॥ राग केदारो॥ मेरेमाजीमजीठीसुणएकवात, मीठडे लालन विन न रह -
लीयात ॥मे ॥१॥ रंगीत चूनडी लडी चीडा, काथासोपारीअरुपानकाबीडा॥ मांग सिंदूर सदल करे पीडा, तन कग माको रे विरदा कीडा
॥मे ॥३॥ जहां तहां ढुंढे ढोल न मित्ता, पण नोगीनरविणसबयुगरीता।
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( १२७ )
रयणी विदाणी दहाडा यीता, प्रजहून यावे मोदि बेदा दीता ॥ मे० ॥ ३ ॥
तनरंग फूंद जरमली खाट, चुन चुन कलीयां वितुं घाट ॥ रंग रंगीली फूली पढेरुंगी नाट, यावे यानंदघन रहे घर घाट
॥ मे० ॥ ४ ॥
॥ पद दोंतेरमुं ॥ राग केदारो ॥ ॥ जोले लोगा हुं रडुं तुम जला दांसा,
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( १२८ )
सबूणे साजन विए कैसा घर वासा ॥ नोले० ॥ १ ॥ सेज सुंदाली चांदणी रात, फूलडी वाडी जर सीतल वात ॥ सघली सहेली करे सुख साता, मैरा तन ताता मूच्या विरदा माता ॥ जोले ० ॥ २ ॥
फिर फिर जोनं धरणी आगासा, तेरा बिपणा प्यारे लोक तमासा न वले तनतें खोढ़ी मांसा, सांइडानी बे घरणी बोडी निरासा ॥ नोखे० ॥ ३ ॥
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(१२ए) विरठ कलावसों मुज कीया. खबरन पावोतोधिगमेराजीया दही वायदो जो बतावै मेरा को
पीया, आवे आनंदघन करूं घर दीया
॥नो ॥४॥ ॥ पद चमोतेरमुं॥राग वसंत ॥ या कुबुद्धिकुमरी कौन जात, जहां रीजे चेतन ग्यान गात ॥
या ॥१॥
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( १३० )
कुत्सित साख विशेष पाय, परम सुधारस वारि जाय ॥
या० ॥ २ ॥
जीया गुन जानो और नांदी, गले पडेंगी पलक मांदिया ०१३ | रखा बेदे वादी ताम,
पढीयें मीठी सुगुणधामाया ०|४| ते प्रागें अधिकेरी तादी, आनंदघन अधिकेरी चादी ॥
या० ॥ ५ ॥
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( १३१ )
||पद पंचोतेरमुं ॥ राग वसंत ॥ || लालन बिन मेरो कुन दवाल, समजेन घटकी निठुर लाल
॥ सा० ॥ १ ॥
वीर विवेक जुं मांजि मांयि, कदा पेट दई आगें बिपाई
॥ सा० २ ॥
तुम जावे जो सो कीजें वीर, सोइ खान मिलावो लालन धीर ॥ सा० ॥ ३ ॥
अमरे करे न जात यध,
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( १३२ )
मन चंचलता मिटे समाध ॥
बा० ॥ ४ ॥
जाय विवेक विचार कीन, आनंदघन कीने अधीन
11 ETTO || 4 ||
||पद बौतेरमुं ॥ राग वसंत ॥ ॥ प्यारे प्रानजीवन ए साच जान, उत बरकत नांदी न तिल समान ॥ प्यारे० ॥ २ ॥
उनसें न मांशु दिन नांदि एक,
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(१३३) इत पकरि लाल बरी करी विवेक
॥ प्यारे॥२॥ उत शठता माया मान डुंब, इत रुजुता मृता जानो कुटुंब
॥प्यारे ॥३॥ उत आसा तृष्णा लोन कोह, इत शांत दांत संतोष सोद
॥प्यारे०४॥ उत कला कलंकी पाप व्याप, श्त खेले आनंदघन नूप आप
॥प्यारे ॥५॥
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(१३४) ॥पद सत्योतेरसुंगरागरामग्री। ॥ हमारी लय लागी प्रनु नाम
॥द०॥ अंब खास अरु गोसल खाने, दरअदालत नहीं कामाद। पंच पचीश पचास हजारी, लाख किरोरी दाम ॥ खाय खरचे दीये विनु जात है,
आनन कर कर श्यामाद॥॥ इनके उनके शिवके न जीउके, उरज रदे विनुं गम ॥
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( १३५ ) संत सयाने कोय बतावे, आनंदघन गुनधाम ॥द ॥ ३ ॥
啦
॥ पद प्रोतेरमुं ॥ राग रामग्री ॥ । जगत गुरु मेरा में जगतका चेरा, मिट गया वाद विवादका घेरा ॥ ज० ॥ १ ॥
गुरुके घरमें नवनिधि सारा, चेलेके घर में निपट अंधारा
॥ ज० ॥
गुरुके घर सब जरित जराया,
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(१३६) चेलेकी मढीयांमें उपर गया
॥ज ॥३॥ गुरु मोही मारे शब्दकी लाठी, चेलेकी मति अपराधनी काठी
॥ज ॥ गुरुके घरका मरम न पाया, अकथकदांनीआनंदघननाया
॥ज ॥३॥ ॥पद उंगण्याएंशीमुं॥
॥राग जयजयवंती॥ ॥ ऐसी कैसी घरवसी,
-editor
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( १३७ )
जिनस सीरी ॥ यादी घर रदिसें जगवादी, पद है इसी री ॥ ऐ० ॥२॥ परम सरम देसी घरमेंट पेसी री, यादी तें मोदनी मैसी, जगत सगैसी री ॥ ऐ० ॥ २ ॥ कौसी गरज नेसी,
गरज न चखेसी री ॥ आनंदघन सुनो सीबंदी, अरज कदेसी री ॥ ऐ० ॥ ३ ॥
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( १३८ )
॥ पद एंशीमुं ॥ राग सारंग ॥ ॥ चेतन शुभ् छातमकूं ध्यावो, पर परचे धामधूम सदाइ, निजपरचे सुख पावो ॥ चे० ॥ २ ॥ निज घरमें प्रभुता है तेरी, परसंग नीच कढ़ावो ॥
प्रत्यक्ष रीत लखी तुम ऐसी, गढ़ियें आप सुदावो ॥ ० ॥२॥ यावत् तृष्णा मोद है तुमको, तावत् मिथ्या जावो | स्वसंवेद ग्यान लदी करिवो,
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.. (१३ए)
बंडो नमक विनावो॥चे॥३॥ सुमता चेतन पतिकू इणविध, कहे निज घरमें आवो॥ आतम उब सुधारस पीये, सुख आनंद पद पावो॥चे॥४॥
-
-
॥पद एकाशीमुं॥राग सारंग॥ ॥चेतन ऐसा ग्यान विचारो, सोदं सोदं सोदं सोई, सोदंअणुनबीया सारोचे॥१॥
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(१४०)
निश्चय स्वलक्षण अवलंबी, प्रज्ञा बैनी निदारो॥ इद बैनी मध्यपाती उविधा, करे जड चेतन फारो॥चे॥॥ तस बैनी कर ग्रहीयें जो धन, सो तुम सोहं धारो॥ सोदं जानि दटो तुम मोहं, ब्द है समको वारो॥चे॥३॥ कुलटा कुटिल कुबुदि कुमता, बंडो व्दै निज चारो॥ सुख आनंदपदे तुम बेसी,
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(१४१) स्वपरकू निस्तारो॥चे ॥४॥
पद ब्याशीमुंरागसूरति टोड। ॥प्रनु तो सम अवर न को
___ खलकमें, दरि दर ब्रह्मा विगूते सोतो, मदनजीत्योतेंपलकम।प्र ज्यों जल जगमें अगन बूजावत, वडवानल सो पीये पलकमें॥ आनंदघन प्रजु वामा रे नंदन,
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( १४२ )
तेरी दाम न दोत दलकमें ॥ प्र० ॥ २ ॥
॥ पद त्र्याशीमुं ॥ राग मारु ॥ ॥ निःस्पृढ देश सोदामणो, निर्णय नगर उदार दो ॥ वसे अंतरजामी ॥ निर्मल मन मंत्री वडो, राजा वस्तुविचार दो ॥ वसे ॥१॥ केवल कमलागार हो, सुण सुण शिवगामी केवल कमलानाथ दो,
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( १४३ )
सुण सुण निःकामी ॥ केवल कमलावास दो,
सुण सुण शुभगामी ॥ यातमा तुं चूकीश मां, साढ़ेबा तुं चूकीश मां, राजिंदा तुं चूकीश मां, अवसर लदी जी ॥ ए च्यांकण ॥॥ दृढ संतोष कामामोदसा, साधु संगत दृढ पोल दो ॥ वसे ॥ पोलियो विवेक सुजागतो,
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( १४४ )
प्रागम पायक तोल दो ॥ वसे ०२ दृढ विशवास वितागरो, सुविनोदी व्यवहार हो ॥ वसे मित्र वैराग विदमे नहीं, क्रीमा सुरति अपार दो ॥ वसे 0
॥
11 3 11
नावना बार नदी वढे, समता नीर गंजीर दो ॥वसे ॥ ध्यान चदिवचो जो रहे, समपन नाव समीरदो ॥ वसे ०४ नचालो नगरी नहीं,
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( १४५ )
डुष्ट ङःकाल न योग दो ॥ वसे ॥ ईति नीति व्यापे नहीं, आनंदघन पद जोग दो ॥ वसे० ॥ ५ ॥
॥पद चोराशीमुं ॥ इमन राग ॥ ॥ लागी लगन हमारी, जिनराज सुजस सुन्यो में ॥
ला० ॥ टेक ॥
काढूके कदे कबहूं नदि बूटे,
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(१४६) लोक लाज सब मारी॥ जैसें अमलि अमल करत समे, लागरदी ज्युंखुमारी॥जिणा जैसें योगी योगध्यानमें, सुरत टरत नहीं टारी ॥ तैसें आनंदघन अनुदारी, प्रनुके हुँ बलिदारी ॥जिणाशा ॥पद पंचाशीमुं ॥राग काफी॥ ॥वारी हुँ बोलडे मीठडे, तुजविनमुज नहिसरेरेसूरिजन,
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(१४) लागत और अनीउडे।वा।। मेरे मनकू जक न परत है, बिनु तेरे मुख दीपडे ॥ प्रेम पीयाला पीवत पीवत, लालन सब दिननीउडे।वार पूबू कौन कहालूं टुंढुं, किसकूनेजुं चीठमे॥
आनंदघन प्रजुसेजडी पातो, जागे आन वसीउडेवाण॥३॥
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( १४८ )
॥ पद ब्याशी मुं ॥ राग धमाल ॥ ॥ सबूणे सादेव यावेंगे मेरे, आलीरी वीर विवेक कदो साच
॥ स० ॥
मोसुं साच कदो मेरीसुं, सुख पायो के नादिं ॥ कदांनी कदा करूं ऊदांकी, दिंडोरे चतुरगति मांदि|स ०1१ | नली नइ इत यावदी दो, पंचम गतिकी प्रीत ॥ सिद्ध सिंत रस पाककी दो,
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(१४ए) देखे अपूरव रीत॥स॥२॥ वीर कहे एती कहुं दो,
आए आए तुम पास ॥ कदे समता परिवारसँ हो, दम दै अनुजव दासास ॥३॥ सरधा सुमता चेतना हो, चेतन अनुन्नव आदि। सगति फोरवे निज रूपकी दो, लीने आनंदघन मांदि।स । ॥पद सत्याशी मुंगराग धमाल ॥ ॥विवेकी वीरा सह्यो न परे,
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( १५० )
वरजो क्युं न आपके मित्त ॥ वि० ॥ टेक ॥
कदा निगोडी मोहनी दो, मोढत लाल गमार ॥ वाके पर मिथ्या सुता हो, रीज पडे कदा यार || वि० ॥ १ ॥ क्रोध मान बेटा नये दो, देत चपेटा लोक ॥ लोन जमाइ माया सुता दो, एद बढ्यो परमोक ॥ वि० ॥२॥ गइ तिथिकूं कदा बंत्रणा दो,
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(१५१) पूरे सुमता नाव ॥ घरको मुत तेरे मते दो, कदालौं करत बढावाविण॥३॥ तव समत उद्यम कीयो दो, मेट्यो पूरव साज॥ प्रीत परमशुं जोरिकें हो, दीनो आनंदघन राज॥वि०॥
॥पद अठ्याशीमुराग धमाल। ॥ पूरी आली खबर नहीं,
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(१५५) आये विवेक वधाय ॥ पू० ॥
ए आंकणी॥ मदानंद सुखकी वरनीका, तुम आवत दम गात ॥ प्रानजीवन आधारकी दो, खेमकुशल कदो बात ॥॥॥ अचल अबाधित देवकुं दो, खेम शरीर लखंत॥ व्यवदारि घटवध कथा हो, निदचे सरम अनंत ॥पूणाशा बंध मोख निदचें नहीं हो,
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( १५३ )
विवदारे लख दोय || कुशल खेमनादिदी दो, नित्य अबाधित होय ॥ पू०॥ ३ ॥ सुन विवेक मुखतें नइ दो, बानी अमृत समान ॥ सरधा समता दो मिली दो, ल्याई आनंदघन तान || पू० ॥ ४
॥ पद नेव्याशी मुं॥रागधन्याश्री ॥ ॥ चेतन सकल वियापक दोइ ॥ सकल ० ॥ चे० ॥
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(१५३) सत असत गुन परजय परनति, नाव सुनाव गति दो॥चे॥१॥ स्व पर रूप वस्तुकी सत्ता, सीके एक न दो॥ सत्ता एक अखंड अबाधित, यद सिद्धांत पख दोशाचे॥श अनवय व्यतिरेक देतुको, समजी रूप ब्रम खो॥ आरोपित सब धर्म और है, आनंदघन तत सो॥चे॥३॥
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( १५५) ॥ पद ने_मुं ॥ राग सोरठ॥
॥साखी सोरठो ॥ ॥अण जोवतां लाख, जोवे तो एक नहीं ॥ लाधी जोबन साख, वाहाला विण एले ग॥१॥ ॥महोटी वढूयें मन गमतुं कीg
॥म ॥ ए आंकणी॥ पेटमें पेसी मस्तक रेहेंसी, वेरी सादी स्वामीजीने दी,
- म० ॥१॥
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( १५६ )
खोले बेसी मीतुं बोले, कांइ अनुभव अमृत जल पीधुं ॥ बानी बानी बरकडा करती, बरती यांखें मनडुं विंध्युं
॥ म० ॥२॥
लोकालोक प्रकाशक बैयुं,
जता कारज सीधुं ॥ अंगो अंगे रंगजर रमतां, आनंदघन पद लीधुं ॥०॥३॥
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(१५७) ॥ पद एकाए॒मुं॥राग मारु॥ ॥वारोरे कोइ परघर रमवानो
ढाल, न्दानी वहूने परघर रमवानो
ढाल ए आंकणी॥ परघर रमतां थ जूगबोली, देशे धणीजीने आलवारो अलवे चाला करती दींडे, खोकडां कदे ने बीनाल॥ उलंनडा जण जणना लावे,
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(१५७.) हैडे उपासे शाल ॥वारो॥२॥ बाझरे पमोसण जुने लगारेक, फोकट खाशे गाल ॥
आनंदघन प्रनु रंगे रमतां, गोरे गाल ऊबूके मालावारो०३
॥ पद बाणुंमुं॥राग कानमो॥
दरिसन प्रानजीवनमोदे दीजें, बिन दरिसन मोदि कल न प
तलफ तलफ तन बीजोदरि१
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(१५) कहा कहुं कबु कदत न आवत, बिन सेजा क्युं जीजे॥ सोढुं खा सखी काहु मनावो,
आपदी आप पतीजेंदिरिश देनर देरानी सासु जेठगनी, युंदी सब मिल खीजें॥
आनंदघनविनप्राननरदेबिन, कोमी जतन जो कीजोंदरि। ॥ पद त्राणुंमुं॥राग सोरठ ॥ ॥मुने मदारा माधवीयाने मल
वानो कोम॥ ए देशी॥
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(१६०) ॥मुने महारा नादलीयाने मल
वानो कोम॥ हुँ राखुं मामी को मुने बीजो वलेगो कोड ॥मुने॥१॥ मोहनीयानादलीयापांखेमदारे जग सवि उजम जोड॥ मीगबोला मनगमता नादजी,
विण, तन मन थाये चोड ॥मुनेश कांइढोलीयो खाट पडीतलाइ, नावे न रेसम सोड ॥
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( १६१ )
प्रवर सबै मदारे जलारे जलेरा, मदारे आनंदघन शरमोड ॥ मुने० ॥ ३ ॥
॥ पद चोराणुंमुं ॥ राग सोरठ ॥ ॥ निराधार केम मूकी, श्याम मुने निराधार केम मूकी ॥ कोइ नहीं हुं कोणशुं बोलुं, सदु प्रालंबन टूकी ॥ श्या० ॥ १ ॥ प्राणनाथ तुमे दूर पधाया, मूकी नेद निराशी ॥
६
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( १६५) जण जणना नित्य प्रति गुण
गातां, जनमारो किम जास॥श्या०॥श जेदनो पद लहीने बोर्बु, ते मनमां सुख आणे ॥ जेदनो पद मूकीने बोलूं, ते जनम लगें चित्त ताणे॥श्या०
॥३॥ वात तमारी मनमां आवे, कोण आगल जश् बोलुं॥ खलित खलित खल जो ते देखु,
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( १६३ )
आम माल धन खोलूं || श्या ० ॥४॥ घटें घटें बो अंतरजामी, मुजमां कां नवि देखूं || जे देखं ते नजर न आवे, गुणकर वस्तु विशेखुं ॥ श्या० || वधें केदनी वाटडी जोनं, विण अवघें प्रति कुरूं ॥ आनंदघन प्रभु वेगे पधारो, जिम मन आशा पूरुं ॥ श्या ० ६ ॥
॥ पद पंचामुं ॥ ॥ राग अलइयो वेलावल ॥
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( १६४ )
|| ऐसे जिनचरने चित्त त्यानं रे मना ॥
ऐसे परिदंतके गुन गाउं रे मना। ऐसे जिन० ॥ एकण॥॥ उदर जरनके कारणे रे, गौच्यां वनमें जाय |
चार चरे चिहुं दिस फिरे, वाकी सुरति वरुच्या मांदे रे ॥ ऐसे जिन० ॥ १ ॥
सात पांच सादेलीयां रे, दिल मिल पाणी जाय ॥
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( १६५ )
ताली दीये खडखड दसे रे, वाकी सुरति गगरुच्या मांदे रे || ऐसे जिन० ॥ २ ॥
नटुआ नाचे चोक में रे, लोक करे लख सोर ॥ वांस ग्रढ़ी वरते चढे, वाको चित्त न चले कहुं ठगेर रे || ऐसे जिन० ॥ ३ ॥
जुआरी मनमें जूयारे, कामी के मन काम ॥ आनंदघन प्रभु युं कदे,
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( १६६) तुमे त्यो नगवंतको नाम रे ॥
ऐसे जिन ॥४॥ ॥ पद बन्नुमुं ॥राग धन्याश्री॥ ॥अरी मेरो नादेरी अतिवारो॥ मैं ले जोबन कित जालं, कुमति पिता बंनना अपराधी, नन वाद व जमारो।अरी॥२॥ जलो जानीके सगाई कीनी, कौन पाप उपजारो॥ कहा कदीये इन घरके कुटुंबते,
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( १६७) जिन मैरो काम बिगारो॥अरी
॥पद सत्ताjमुंगराग कल्याण ॥ ॥या पुजलका क्या विसवासा, हे सुपनेका वासा रे॥या ॥
ए आंकणी॥ चमतकार विजली दे जैसा, . पानी बिच पतासा॥ या देदीका गर्व न करना, जंगल दोयगा वासाया॥२॥
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(१६७) जूठे तन धन जूठे जोबन, जूठे है घर वासा॥
आनंदघन कदे सबही जूने, साचा शिवपुर वासाया॥॥
॥पद अहाणुमुंराग आशावरी। ॥अवधू सो जोगी गुरु मेरा, इन पदका करे रे निवेमा
॥अवधू०॥ए आंकणी॥ तरुवर एक मूल बिन गया, बिन फूलें फल लागा॥
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( १६५ )
शाखा पत्र नहीं कबु उनकूं, अमृत गगनें लागा ॥ प्र० ॥ १२ ॥ तरुवर एक पंबी दोन बेठे, एक गुरु एक चेला | चेलेने जुग चुण चु खाया, गुरु निरंतर खेला ॥ अ० ॥ २ ॥ गगनमंडल के प्रधबिच कूबा,
उदां दे मीका वासा ॥ सगुरा होवे सो जर जर पीवे, नगुरा जावे प्यासा ॥ ० ॥ ३ ॥ गगनमंडल में गजच्यां बिहानी,
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(१७०) धरती दूध जमाया। माखन था सो विरला पाया, गसे जगतनरमाया| | थड बिनुं पत्र पत्र बिनुं तुंबा, बिन जीच्या गुण गाया ॥ गावनवालेका रूप न रेखा, सुगुरु सोही बताया॥oय॥ आतमअनुभव बिन नहीं जाने, अंतर ज्योति जगावे॥ घट अंतर परखे सोही मूरति, आनंदघन पद पावअ॥६॥
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(१७१) ॥पद नवाणुंमुंगराग आशावरी॥ ॥अवधू एसो झान बिचारी, . वामें कोण पुरुष कोण नारी ॥
अवधूप ॥ए आंकणी ॥ बम्मनके घर न्हाती धोती, जोगीके घर चेली॥ कलमा पढ पढनईरेतुरकडीतो, आपदी आप अकेली॥अवधूण
॥१॥ ससरो दमारो बालो नोलो, सासू बाल कुंवारी॥
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(१७२) पीयुजीदमारोप्दोढे पारणीएतो, में हुंकुलावनहारी॥अवधूश नहीं हुं परणी नहीं हुं कुंवारी, पुत्र जणावनदारी॥ काली दाढीको में कोई नहीं
गेड्यो तो, हजुए हुँ बाल कुंवारी॥अवधू
॥३॥ अढी छीपमें खाट खटली, गगन उशीकुं तलाई॥ धरतीको छेडो आनकी पीगेडी,
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(१७३) तोय न सोड नराई ॥अवधू०
॥४॥ गगनमंमलमें गाय वीआणी, वसुधा दूध जमाई॥ सन रे सुनो नाइ वलोj व
लोवे तो, तत्त्व अमृत कोइ पाई।अवधू
॥५॥ नहीं जाउंसासरीये ने नहीं जालं
पीयरीये, पीयुजीकी सेज बिगई॥
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( ११४ )
आनंदघन कदे सुनो नाइसाधु तो, ज्योतसें ज्योत मिलाई ॥
अवधू ॥ ६ ॥
||पद एकसो मुं॥राग आशावरी ॥ ॥ बेदेर बेदेर नहीं आवे, अवसर बढेर बेदेर नहीं आवे ॥ ज्युं जाणे त्युं कर ले जलाई, जनम जनम सुख पावे ॥ अव० १ तन धन जोबन सवदी जूगे, प्राण पलक में जावे ॥ व ॥२॥
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( १७५) तन बूटे धन कौन कामको, कायकू कृपण कहावे॥अव०॥३॥ जाके दिलमें साच बसत दे, ताकू जूननावे॥अव॥४॥
आनंदघन प्रनु चलत पंथमें, समरी समरी गुण गावे॥ अव०
॥५॥
॥ पद एकसो एकमुं॥
॥राग आशावरी ॥ ॥ मनुप्यारा मनुप्यारा,
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( १७६ )
रिखनदेव मनुष्यारा ॥ ए प्रकरणी ॥
J
प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यतित्रतधारा ॥ रिखन० १ नाभिराया मरुदेवीको नंदन, जुगला धर्म निवारा ॥ रिखन०
॥ २ ॥
केवल लइ प्रभु मुगतें पोहोता, आवागमन निवारा ॥ रिखन०
॥ ३ ॥
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(१७७) आनंदघन प्रन्नु इतनी विनति, आ नव पार उतारा॥ रिखना
॥४॥
॥पद एकसो बेमुं ॥राग काफी॥ ॥ए जिनके पाय लाग रे, तुने कदीयें केतो॥ए जिनके
ए आंकणी॥ आगे जाम फिरे मदमातो, मोदनिंदरीयाशुंजाग रे॥तुने
॥१॥
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( 290 )
प्रभुजी प्रीतम विन नहीं कोइ प्रीतम,
प्रभुजीनी पूजा घणी माग रे ॥ तुने० ॥ २ ॥ नवका फेरा वारी करो जिनचंदा, आनंदघन पाय लाग रे ॥ तुने ०
॥ ३ ॥
|| पद एकसो ऋणमुं ॥राग केरबो । ॥ प्रभु नज ले मेरा दील राजी रे ॥ प्र० ॥ ए की ॥
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(१७) आठ पोदोरकी साज घडीयां, दो घडीयां जिन साजी रे॥
प्र० ॥१॥ दान पुण्य कबु धर्म कर ले, मोद मायाकू त्याजी रे॥प्रश
आनंदघन कदेसमजसमजले, प्राखर खोवेगा बाजीरे॥3॥३॥
॥पद एकसो चारमुं॥
॥ राग आशावरी॥ ॥ दीली आंख्यां टेक न मेटे,
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( 250 )
फिर फिर देखा जानं ॥ दवी० ॥ ए की ॥
बयल बबीली प्रिय बबि, निरखित तृपति न ढोइ ॥ नट करिंडक हटकू कजी, देत नगोरी रोइ ॥ ६० ॥ १ ॥ मांगर ज्यों टमाके रही, पीप सबी के धार ॥ लाज डांग मनमें नहीं, काने पबेरा डार ॥ ६० ॥ २ ॥ चपटक तनक नदी काढूका,
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(११) इटक न एक तिल कोर ॥ दाथी आप मने अरे, पावे न मदावत जोरद०॥३॥ सुन अनुन्नव प्रीतम बिना, प्रान जात इह गंदि॥ है जन आतुर चातुरी, दूर आनंदघननांदि॥॥
॥ पद एकसो पांचमुं॥
॥राग आशावरी॥ ॥अवधू वैराग बेटा जाया,
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( १८२ )
वाने खोज कुटुंब सब खाया ॥
अ० ॥
जेणे ममता माया खाई, सुख दुःख दोनों भाई ॥ काम क्रोध दोनोकुं खाई, खाई तृष्णा बाई ॥ ० ॥ १ ॥ धर्मति दादी मत्सर दादा, मुख देखतदी मूया || मंगलरूपी बधाइ वांची, ए जब बेटा हूवा ॥ ० ॥ २ ॥ पुण्य पाप पाडोशी खाये,
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(१३) मान काम दोन मामा॥ मोद नगरका राजा खाया, पीही प्रेम ते गामा॥॥३॥ नाव नाम धस्यो बेटाको, मदिमा वरण्यो न जाय॥ आनंदघनप्रनुनाव प्रगटकरो, घट घट रह्यो समाशाअ॥४॥ ॥पद एकसो उमुं॥राग नह॥ ॥ किन गुन जयो रे उदासी
जमरा ॥ कि०॥ पंख तेरी कारी मुख तेरा पीरा,
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(१७) सब फूलनको वासानणकार सब कलियनको रस तुम लीनो, सो क्यूं जाय निरासी॥ ॥
कि॥२॥ आनंदघनप्रनुतुमारे मिलनकु, जाय करवत ल्यूं कासी॥ना
कि० ॥३॥ ॥पदएकसो सातमुंगरागवसंत॥ ॥ तुम ज्ञान विनो फूली बसंत, मन मधुकरही सुखसों रसंत ॥
तु०॥१॥
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(१५) दिन बडे नये बैरागनाव, मिथ्यामति रजनीको घटाव ॥
तु०॥॥ बहु फूली फेली सुरुचि वेल, ग्याताजनसमतासंगकेलातु०३ द्यानत बानी पिक मधुर रूप, सुर नर पशुआनंदघन सरूप ॥
तु॥४॥ ॥इति श्रीआनंदघनजी कृत
बहोतेरी संपूर्ण ॥
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(१६) ॥ श्री चिदानंदाय नमः॥ ॥अथ श्री चिदानंदजी
अपर नाम कर्पूरचंदजी कृत बहोतेरीनां
पद प्रारंनः॥
॥पद पदेलु ॥राग मारु॥ ॥पिया परघर मत जावो रे, करी करुणा महाराज॥पिया॥
ए आंकणी॥ कुल मरजादा लोपकें रे,
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(१७)
जे जन परघर जाय॥ तिणकुं उन्नय लोक सुण प्यारे, रंचक शोना नांय॥पिया॥१॥ कुमतासंगें तुम रदे रे, आगुंकाल अनाद॥ तामें मोद दिखा बहु प्यारे, कदा निकल्यो स्वाद ॥ पिया।
॥ ॥ लगत पिया कदो मादारो रे, अशुल तुमारे चित्त ॥ पण मोथी न रहाय रे प्यारे,
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( १०० )
कह्या विना सुण मित्त || पिया ० ॥ ॥ ३ ॥
घर अपने वालम दो रे, को वस्तुकी खोट || फोगट तद केम लीजीयें प्यारे,
शीश नरमी पोट || पिया०॥४॥ सुनी सुमता की विनति रे, चिदानंद महाराज ॥ कुमता नेद निवारकें प्यारे, लीनो शिवपुर राज || पिया माया
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॥ पद बीजुं॥राग मारु ॥ ॥पिया निज मदेल पधारो रे, करी करुणा महाराज ॥ए आं
कणी॥ तुम बिन सुंदर साहेबा रे, मो मन अति उःख थाय ॥ मनकीव्यथामनदींमन जानत, केम मुखथी कदेवायपिया० ॥
बाल नाव अब वीसरी रे, ग्रह्यो उचित मरजाद॥
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(१०) आतम सुखअनुनव करोप्यारे, नांगेसादि अनादपिया॥॥ सेवककी सजा सूधी रे, दाखी सादेब दाथ॥ तोसी करो विमासणा प्यारे, अम घर आवत नाथापिया०३ मम चित्त चातक घन तुमे रे, इस्यो नाव विचार॥ याचकदानी उन्नय मल्योप्यारे, शोनेनढील लगारपिया ॥४॥ चिदानंद प्रनु चित्त गमी रे,
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( १९७१ )
सुमताकी अरदास || निज घर घरणी जाणके प्यारे, 'सफल करी मनास ॥पिया ०५
॥ पद त्रीजुं ॥ राग मारु ॥ ॥ सुप्पा आप विचारो रे, पर पख नेद निवार ॥ सु० ॥
ए की ॥
पर परणीत पुल दिसा रे, तामें निज निमान ॥ धारत जीव एदी कह्यो प्यारे,
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(१
)
बंधहेतु नगवान ॥सु० ॥१॥ कनक उपलमें नित्य रहे रे, दुध मांदे फुनी घीव ॥ तिल संगतेलसुवासकुसुमसंग, देद संग तेम जीव॥सु॥२॥ रदत हुताशन काष्ठमें रे, प्रगट कारण पाय ॥ सदी कारण कारजता प्यारे, सहेजें सिध्थिाय ॥ सु०॥३॥ खीर नीरकी निन्नता रे, जैसे करत मराल॥
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( १७३ )
तैसें भेद ज्ञानी लह्या प्यारे, कटे कर्म की जाल ॥ सु० ॥ ४ ॥ अज कुलवासी केसरी रे, लेख्यो जिम निज रूप ॥ चिदानंद तिम तुमहू प्यारे, अनुभव शुद्ध स्वरूप ॥ सु॥॥
॥ पद चोथुं ॥ राग मारु ॥ ॥ बंध निज प्राप नदीरत रे, प्रजा कृपाणी न्याय ॥ बंध० ॥ ए आंकणी ॥
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( १९०४ )
ऊकड्यां किणें तोड़े सांकला रे, पकड्या किणें तुज दाथ ॥ कोण नूपके पदरुये प्यारे, रहत तिदां रे साथ | बंध०॥१॥ वांदर जिम मदिरा पीये रे, वीब डंकित गात ॥ नूत लगे कौतुक करे प्यारे, तिम श्रमको उतपात ॥बंध ॥२॥ कीर बंध्या जिम देखीयें रे, नलिनी मर संयोग ॥ इणविध नया जीवकूं प्यारे,
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(१५) बंधन रूपीरोग ॥बंध०॥३॥ त्रम आरोपित बंधथी रे, परपरिणति संग एम॥ परवशता दुःख पावते प्यारे, मर्कट मूठी जेम॥बंध०॥४॥ मोद दशा अलगी करो रे, धरो सु संवर नेख ॥ चिदानंद तव देखीये प्यारे, शशि स्वनावकी रेखाबंध
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( १९६) ॥ पद पाचमुं॥ राग काफी॥ ॥मति मत एम विचारो रे, मत मतीयनका नाव ॥म॥
ए आंकणी॥ वस्तुगतें वस्तु लदो रे, वाद विवाद न कोय॥ सूर तिहां परकाश पीयारे, अंधकार नवि दोय। म॥१॥ रूप रेख तिहां नवि घटे रे, मुझ नेख न होय ॥ नेद ज्ञान दृष्टि करी प्यारे,
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(१७) देखो अंतर जोय ॥ म॥२॥ तनता मनता बचनता रे, परपरिणति परिवार ॥ तन मन बचानातीत पीयारे, निज सत्ता सुखकार ॥मण्॥३॥ अंतर शुक्ष स्वनावमें रे, नदी विनाव लवलेश। ज्रम आरोपित खदायी प्यारे, हंसा सहत कलेश॥म॥४॥ अंतर्गत निद, गदी रे, कायाथी व्यवहार॥
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(१७) चिदानंद तव पामीयें प्यारे, जवसायरको पार॥ म०॥५॥
॥पद बहुं॥ राग काफीअथवा वेलावल ॥ ॥ अकल कला जगजीवन तेरी
॥ अकल ॥ए आंकणी ॥ अनंत उदधिथी अनंत गुणो
तुज,
झान मदा लघु बुदिज्युं मेरै
॥अकल०॥१॥
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(१एए) नय अरु नंग निखेप विचारत, पूरवधर थाके गुण देरी॥ विकल्प करत थाग नवि पाये, निर्विकल्पतें होत नये री
॥अकल ॥२॥ __ अंतर अनुनव विनुं तुव पदमें,
युक्ति नहीं कोन घटत अनेरी॥ चिदानंद प्रजुकरी किरपा अब, दीजे ते रस रोक नले री
॥ अकल०॥३॥
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(२०)
॥ पद सातमुं॥ ॥राग काफी तथा वेलावल॥ ॥जौंलौं तत्त्व न सूज पडे रे
॥जी ॥ तौलौं मूढ नरम वश मूल्यो, मत ममता ग्रही जगथी लडे रे
॥जौं ॥१॥ अकर रोग शुन्न कंप अशुन
लख, नवसायर इण नांत रडे रे॥ धान काज जिम मूरख खित्तदड,
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(२०१) उखर नूमिको खेत खडे रे
जौं ॥२॥ नचित रीत उलख विण चेतन, निशिदिन खोटो घाट घडे रे॥ मस्तक मुकुट उचित मणि अ
नुपम, पग जूषण अशान जडे रे
॥जौं ॥३॥ कुमता वशमन वक्र तुरंग जिम, गदि विकल्प मग मांदिअमेरे॥ चिदानंद निज रूप मगनन्नया,
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-SE
( २०५) तब कुतर्क तोदे नांदि नडे रे
॥जी ॥४॥ ॥पद आठमुं॥ ॥राग काफी तथा वेलावल ॥ ॥ आतम परमातम पद पावे, जो परमातमशंलयलावा सुणके शब्द कीट नँगीको, निज तन मनकी शु६ बिसरावे॥ देखह प्रगट ध्यानकी महिमा, साई कीटमुंगी हो जावे॥आ
॥१॥
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(२०३) कुसुम संग तिल तेल देख फुनि, दोय सुगंध फूलेल कदावे ॥ शुक्ति गर्नगत स्वातिनदक होय, मुक्ताफल अति दाम धरावे
॥ आ० ॥२॥ पुन पिचुमंद पलाशादिकमें, चंदनता ज्युं सुगंधथी आवे॥ गंगामें जल आण आणके, . गंगोदककी महिमा नावे
॥आ० ॥३॥ पारसको परसंग पाय फुनि,
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( २०४ )
लोहा कनक स्वरूप लिखावे ॥ ध्याता ध्यान धरत चित्तमें इम, ध्येयरूपमें जाय समावे
॥ ० ॥ ४ ॥
जज समता ममताकुं तज जन, शुद्ध स्वरूपथी प्रेम लगावे ॥ चिदानंद चित्त प्रेम मगन जया, डुविधा नाव सकल मिट जावे
11 TO 114 11
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( २०५ )
॥ पद नवसुं ॥
॥ राग काफी तथा वेलावल ॥ अरज एक घवडीचा स्वामी, सुपहुं कृपानिधि अंतरजामी
॥ अ० ॥
अति आनंद यो मन मेरो, चंद्र वदन तुम दर्शन पामी
॥ अ० ॥ १ ॥
हुं संसार प्रसार नदधि पड्यो, तुम प्रभु नये पंचम गति गामी ॥ अ० ॥ २ ॥
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(२०६ ) हुं रागी तुं निपट निरागो, तुम हो निरीह निर्मम निष्काम॥ पण तोदे कारणरूप निरख मम, आतम नयो आतम गुणरामी
॥ ०॥३॥ गोप बिरुद निरजामक मादण, प्रगट धस्योतुम त्रिजुवन नामी॥ तातें अवश्य तारजो मोकू, इम विलोकी धीरज चित्त गमी
॥ अ ॥४॥
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( 209 )
युग पूरण निधान शशि संवत, ( १९०२ ) जावनगर नेटे गुणधामी ॥ चिदानंद प्रभु तुम किरपाथी, अनुभव सायर सुख विसरामी
॥ अ० ॥ ४ ॥
॥ पढ़ दशमुं ॥ राग वेलावल ॥ ॥ मंदविषय शशि दीपतो, रवि तेज घनेरो || आतम सदज स्वनावथी,
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(२०) विनाव अंधेरो ॥ मंद॥१॥ जाग जीया अब परिहरो, नववास वसेरो॥ नववासी आशा ग्रही, जयो जगको चेरो॥ मंद०॥शा आश तजी निराशता, पद सास तारो॥ चिदानंद निज रूपको, सुख जाण नलेरो॥ मंद॥३॥
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( २० )
॥ पद गीरमुं ॥ ॥ राग वेलावल ॥
॥ जोग जुगति जाएया विना, कदा नाम धरावे ॥ रमापति कहे रंककूं,
धन दाथ न खावे ॥ जो० ॥ १ ॥ ख घरी माया करी, जगकूं नरमावे ॥ पूरण परमानंदकी, सुधि रंचन पावे ॥ जो० ॥ २ ॥ मन मुंड्या विन मुंडकूं,
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(१०) अति घेट मुंडावे॥ जटाजूट शिर धारके, कोज कान फरावे ॥ जो॥३॥ जर्व बाह अधोमुखें, तन ताप तपावे ॥ चिदानंद समज्या विना, गिणती नवि आवे॥ जोगा।
॥पद बारमुं॥राग वेलावल॥ ॥आज सखी मेरे वालमा, निज मंदिर आये।
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( २११ )
अति आनंद दिये धरी, दली कंठ लगाये ॥ ० ॥ १ ॥
सहज स्वभाव जलें करी, रुचि धर नवराये ॥
थाल जरी गुण सुखडी, निज दाथ जिमाये ॥ ० ॥२॥ सुरभि अनुभव रस जरी, बीड खवराये || चिदानंद मिल दंपती, मनोवंबित पाये ॥ ० ॥ ३ ॥
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(१२) ॥ पद तेरसुं ॥ राग विनास ॥ ॥जूठी जगमाया नर केरी काया, जिम वादरकी गया मारी ॥
ए आंकणी॥ ज्ञानांजन कर खोल नयण मम, सद्गुरुश्णे विधप्रगट खखाइरी
॥जू० ॥१॥ मूल विगत विषवेल प्रगटीक, पत्ररहित त्रिभुवनमें गरी॥ तास पत्र चुण खात मिरगवा,
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( २१३ )
मुख बिन चरिज देखुं हुं आइ री ॥ जू० ॥ २ ॥
पुरुष एक नारी निपजाइ, ते तो नपुंसक घर में समाई री ॥ पुत्र जुगल जाये ति बाला, ते जग मांदे अधिक दुःखदाइ री ॥ जू० ॥ ३ ॥
कारण बिन कारजकी सिद्धि, केम नई मुख कही न विजाइ ॥ ॥ चिदानंद एम प्रकल कलाकी.
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( २१४ )
गति मति कोन विरले जन पाइ री ॥ जू० ॥ ४ ॥
॥ पद चौदमुं ॥ राग विनास ॥ || देखो जवि जिनजी के जुग, चरन कमल नीके || देखो ० ॥
ए प्रकणी ॥
जिम उदयाचल उदय नयोरबि, तिम नख माननके॥ देखो ० ॥ १ ॥ नीलोत्पल समशोन चरण बबि, रिष्ट रतनहू के || देखो० ॥ २ ॥
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(१५) सुरनि सुमनवर यदकर्दम, कर अर्चित देवनकादेखो॥३॥ निरख चरन मन दरखनयो
अति, वामा नंदजूक|देखोग। चिदानंद अब सकल मनोरथ, सफल नये मनके॥देखोगा|
॥पद पन्नरमुं॥राग केरबो॥ ॥अखीयां सफल नई, अलि निरखित नेमि जिनंद ॥
अ०॥ ए आंकणी ॥
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(१६) पद्मासन आसन प्रजु सोहत, मोदत सुर नर टंद ॥ घूघरबाला अलख अनोपम, मुख मार्नु पूनम चंद॥०॥२॥ नयन कमलदल शुकमुख नासा, अधर बिंब सुख कंद ॥ कुंदकली ज्युं दंति पंति, रसना दल शोना अमंद ॥
अ० ॥२॥ कंबुग्रीव जुज कमल नालकर, रक्तोत्पल अनुचंद ॥
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(
१७)
हृदय विशाल थाल कटि केसरी, नानि सरोवर खंद ॥
अ०॥॥ कदली खंन युग चरनसरोज
जस, निशिदिन त्रिभुवन वंद॥ चिदानंद आनंद मूरति, ए शिवादेवीनंद ॥ ॥४॥ ॥पद सोलमुं॥राग भैरव ॥ ॥विरथा जनम गमायो । मूरख विर॥ए आंकणी॥
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(१७) रंचक सुखरस वश होय चेतन, अपनो मूल नसायो॥ पांच मिथ्यातधार तुं अजहूं, साच नेद नवि पायो।मू॥२॥ कनक कामिनी अरु एहथी, नेह निरंतर लायो॥ ताहुथी तुं फिरत सोरांनो, कनकबीजमानुं खायो।मू।०॥ जनम जरा मरणादिक उःखमें, काल अनंत गमायो॥ अरटघटिका जिमकदोयाको,
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(१५) अंत अजहुँ नवि आयो॥
मू० ॥३॥ लख चोराशी पेदेख्या चोलना, नव नव रूप बनायो । बिन समकित सुधारस चाख्या, गिणती कोज न गिणायो॥
मू०॥४॥ एती पर नवि मानत मूरख, ए अचरिज चित्त आयो॥ चिदानंद ते धन्य जगतमें,
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( १२० )
जिणे प्रभुशुं मन लायो ॥
मू० ॥ ५ ॥
॥ पद सत्तरमुं ॥ राग भैरवी ॥ ॥ जग सपनेकी माया रे ॥ नर जग० ॥ एकणी ॥ सुपने राज पाय कोन रंक ज्युं,
करता काज मन माया ॥
उघरत नयन हाथ लख खपर, मनहुं मन पबताया रे ||
॥
नर जग० ॥ १ ॥
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(२१)
चपला चमत्कार जिम चंचल, नरनव सूत्र बताया ॥ अंजलि जल सम जगपति जिनवर,आयु अथिर दरसाया रे॥
नर जग ॥३॥ यावन संध्याराग रूप फुनि, मल मलिन अति काया॥ विणसत जास विलंब न रंचक, जिम तरुवरकी गया रे॥
नर जग ॥३॥ सरिता वेग समानजु संपत्ति,
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( २) स्वारथ सुत मित जाया । आमिष लुब्ध मीन जिम तिन संग, मोदजाल बंधाया रे ॥
नर जग ॥४॥ ए संसार असार सार पण, यामें इतना पाया। चिदानंद प्रन्नु सुमरन सेंती, धरी नेद सवाया रे॥
नर जग ॥५॥
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(२३) ॥पद अढारमुंगराग प्रनाती॥ मान कहा अब मेरा मधुकर॥
मान॥ए आंकणी॥ नाभिनंदके चरण सरोजमें, कीजें अचल बसेरा रे ॥.. परिमल तास लदत तन सहेजें, त्रिविध पाप तेरा रे॥
मान ॥१॥ उदित निरंतर झान जान जिहां, तिहां न मिथ्यात अंधेरा रे॥ संपुट होत नहीं तातें कहा,
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( २२४ )
सांज कहा सवेरा रे ॥ मान० ॥ २ ॥ नहींतर परतावोगे यखर, बीत गया यो वेरा रे ॥ चिदानंद प्रभु पदकज सेवत, बहुरि न होय नव फेरा रे ॥
मान० ॥ ३ ॥
॥ पद जंगणीशसुं ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ मूल्यो जमत कदा वे प्रजान ॥ मूल्यो ज० ॥ ए प्रकरणी ॥
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( QQU )
चाल पंपाल सकल तज मूरख, कर अनुभव रस पान ॥
भू० ॥ १ ॥
यकृतांत गढ़ेगी इक दिन, दरि मृग जेम अचान ॥ दोयगो तन धनयी तूं न्यारो, जेम पाक्यो तरुपान ॥
नू० ॥ २ ॥
मात तात तरुणी सुत सेंती, गरज न सरत निदान ॥ चिदानंद ए वचन दमारो,
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RORNSS
(२६) धर राखो प्यारे कान॥
नू ॥३॥ ॥पद वीशमुं॥राग धन्याश्री॥ ॥संतो अचरिज रूप तमासा॥
संतो० ॥ए आंकणी॥ कीडीके पग कुंजर बांध्यो, जलमें मकर पीयासा॥
संतो० ॥१॥ करत हलाहल पान रुचि धर, तज अमृत रस खासा॥
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( श्श्७ )
चिंतामणि तजी धरत चित्तमें, काचशकलकी यासा ॥ संतो० ॥ २ ॥
बिन वादर बरखा प्रति बरसत, बिन दिग वदत बतासा ॥ वज्र गलत दम देखा जलमें,
कोरो रहत पतासा ॥
संतो० ॥ ३ ॥
बेर अनादि पण उपरथी, देखत लगत बगासा ॥ चिदानंद सोही जन उत्तम,
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(२७) कापत याका पासा॥
संतो० ॥४॥
आपदएकवीशमुरागधन्याश्री॥ ॥कर ले गुरुगम ज्ञान विचारा॥
कर ले०॥ए आंकणी॥ नाम अध्यातम उवण ऽव्यथी, नाव अध्यातम न्यारा॥
कर ॥१॥ एक बुंद जलथी ए प्रगट्या, श्रुत सायर विस्तारा॥
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(श्शए) धन्य जिनोने उलट उदधिक्रू, एक बुंदमे डारा ॥कर ॥३॥ बीज रुचि धर ममता परिहर, लही आगम अनुसारा॥ परपखथी लखइणविध अप्पा, अही कंचुक जिम न्यारा॥
कर०॥३॥ नास परत बम नासहु तासहु, मिथ्या जगत पसारा॥ चिदानंद चित्त होत अचल श्म, जिम नन ध्रुका ताराकर॥४॥
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(२३०) ॥पद बावीशमुराग धन्याश्री॥ ॥अब हम ऐसी मनमें जाणी॥
__ अ०॥ ए आंकणी॥ परमारथ पथ समज विना नर, वेद पुराण कहाणी॥०॥२॥ अंतरलद विगत उपरथी, कष्ट करत बहु प्राणी॥ कोटि यतन कर तूप लहत नहीं, मथतां निशिदिन पाणी॥
अ० ॥३॥ लवण पूतली थाह लेणकू,
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( २३१ )
सायर मांदि समाणी ॥ तामें मिल तद्रूप नई ते, पलट कढे कोण वाणी ॥
अ० ॥ ३ ॥
खटमत मिल मातंग अंग लख,
युक्ति बहुत वखाणी ॥ चिदानंद सरवंग विलोकी, तत्त्वारथ ल्यो ताणी ॥
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अ० ॥ ४ ॥
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( २३२ )
॥ पद त्रेवीशमुं ॥ राग टोडी || || सोहं सोहं सोदं सोदं, सोदं सोदं रटना लगी ॥॥सो ० ॥ ए प्रकणी ॥
इंगला पिंगला सुखमना साधके, अरुण प्रतिथी प्रेम पगी री ॥ वंकनाल खट चक्र जेदके, दशमे द्वार शुभ ज्योति जगी || सोदं० ॥ १ ॥
खुलत कपाट घाट निज पायो, जनम जरा जय नीति जगी ॥
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( २३३ )
काचशकल दे चिंतामणि ले, कुमता कुटिल कूं सहज ग्गी ॥ ॥ सोदं० ॥ २ ॥
व्यापक सकल स्वरूपलख्योइम, जिमनन में मग लढत खगी ॥॥
चिदानंद आनंद मूरति, निरख प्रेम जर बुद्धि यगीरी ॥ सोदं० ॥ ३ ॥
॥ पद चोवीशमं ॥ राग टोडी ॥ || अब लागी अब लागी,
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( २३४ )
अब लागी अब लागी ॥ अब लागी अब लागी, अब प्रीत सही री ॥ अब० ॥ ए कणी ॥ अंतर्गत की बात अली सुन, मुखयी मोपें न जात कही री ॥ चंद चकोरकी उपमा इ समे, साच कहुं तोड़े जात वदी री ॥
अ० ॥ १ ॥
जलधर बुंद समुद्द समाणी, भिन्न करत कोन तास मदीरी ।
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(२३५) तनावकी टेव अनादि, बिनमें ताकुं आज दही री॥
अ०॥ ॥ विरदव्यथाव्यापतनहीं आली, प्रेम धरी पियु अंक ग्रदी री ॥ चिदानंद चूके किम चातुर, ऐसो अवसर सार खदी री॥
अ०॥३॥
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-0-0-00
॥पद पचीशमुं॥राग टोडी॥ ॥प्रीतम प्रीतम प्रीतम प्रीतम,
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(२३६) प्रीतम प्रीतम करती में दारी॥
प्री० ॥ ए आंकणी॥ ऐसे निखर नये तुम कैसे, अजहुँन लीनी खबर हमारी॥ कवण नांत तुम रीछत मोपें, लख न परत गतिरंच तिहारी॥
प्री० ॥१॥ मगन नए नित्य मोह सुता संग, विचरत हो स्वबंद विहारी॥ पण इण वातनमें सुण वालम,
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(२३७) शोला नहीं जग मांदि तिहारी॥
प्री० ॥२॥ जो ए वात तात मम सुणीयें, मोदरायकी करीहे खुवारी॥ मम पीयर परिवारके आगल, कुमता कहा ते रंक बिचारी॥
प्री० ॥३॥ कोटिजतनकरीधोवतनिशदिन, उजरी न दोवत कामर कारी॥ तिम एसाची शिखामण मनमां,
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(३७) धारत नांदी नेक अनारी॥ .
प्री०॥४॥ कदत विवेक सुमति सुण जिम तिम,आतुर दोयने बोलत प्यारी॥चिदानंद निज घर आवेंगे, दोय दिनोमें उमर सारी॥
प्री० ॥५॥ ॥ पद बवीशमुं॥ ॥राग आशावरी तथा गोमी॥ ॥अवधू निरपद विरला कोइ॥
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(३५) देख्या जग सहु जोई।अवधू॥
ए आंकणी॥ समरस नाव जला चित्त जाके, थाप जथाप न दोई॥ अविनाशीके घरकी बातां, जानेंगे नर सोई॥अव०॥१॥ राव रंक नेद न जाने, कनक उपल सम लेखे ॥ नारी नागणीको नहीं परिचय, तो शिवमंदिरदेखे॥अव ॥२॥ निंदा स्तुति श्रवण सुणीने,
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(२४०) हर्ष शोक नवि आणे ॥ ते जगमें जोगीसर पूरा, नित्य चढते गुणगणे॥
अव० ॥३॥ चंड समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंन्नीरा ॥ अप्रमत्तें नारंड परें नित्य, सुरगिरि सम शुचि धीरा ॥
अव० ॥४॥ पंकज नाम धराय पंकजु, रदत कमल जिम न्यारा॥
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(२४१) चिदानंद इस्या जन उत्तम, सोसादेबकाप्यारा॥अवाय॥
॥पद सत्तावीशमुं॥ ॥राग बिहाग वा टोडी॥ ॥ लघुता मेरे मन मानी, लश् गुरुगम झान निशानी॥
लघु० ॥ए आंकणी॥ मद अष्ट जिनोंने धारे, ते मुर्गति गये बिचारे॥ देखो जगतमें प्रानी,
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() छुःख लहत अधिक अनिमानी
लघु० ॥१॥ शशी सूरज बडे कहावे, ते राहुके बस आवे ॥ तारा गण लघुता धारी, स्वरनानु नीति निवारी
॥लघु० ॥॥ गेटी अति जोयणगंधी, लदे खटरस स्वाद सुगंधी॥ करटी मोटा धारे,
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( २५३) ते गर शीश निज डारे
॥ लघु ॥३॥ जब बालचंड दोइ आवे, तब सहु जग देखण धावे ॥ पूनमदिन बडा कहावे, तव दीण कला होय जावे
॥लघु० ॥४॥ गुरुवाइ मनमें वेदे, उप श्रवण नासिका दे॥ अंग मांदे लघु कहावे,
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(२४) ते कारण चरण पूजावे
॥लघु ॥५॥ शिशु राजधाममें जावे, सखी दिलमिल गोद खीलावे ॥ होय बडा जाण नवि पावे, जावे तो सीस कटावे
लघु०॥६॥ अंतर मद नाव वदावे, तब त्रिनुवन नाथ कहावे ॥ इम चिदानंद ए गावे,
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( २४५ )
रहणी बिरला कोन पावे ॥ लघु० ॥ ७ ॥
ॐ
॥ पद हावी शभुं ॥ राग टोडी ॥ ॥ कथ कसको, रहणी प्रति उर्लन होइ ॥ कथ० ॥ एकणी ॥ शुक रामको नाम वखाणे. नवि परमारथ तस जाणे ॥ या विध जणी वेद सुणावे, पण अकल कला नवि पावे ॥
कथ० ॥ १ ॥
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(२४६) षत्रीश प्रकारें रसोइ, मुख गणतां तृप्ति न दो॥ शिशु नाम नादी तस लेवे, रस स्वादत सुख अति लेवे॥
कथ० ॥॥ बंदीजन कमखा गावे, सुणी सूरा सीस कटावें॥ जब रुंढममता जासे, सहु आगल चारण नासे ॥
कथा ॥३॥ कदणी तो जगत मजूरी,
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(२४) रदणी दे बंदी हजूरी ॥ कदणी साकर सम मीठी, रदणी अति लागे अनीठी॥
कथण ॥४॥ जब रदणीका घर पावे, कथणी तब गिणती आवे ॥ अब चिदानंद इम जोई, रहणीकी सेज रहे सोई॥
कथन ॥५॥
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(श्वन) ॥ पद जंगणत्रीशमुं॥
॥राग आशावरी॥ ॥ज्ञानकला घटनासी॥ जाकू झा०॥ ए आंकणी॥ तन धन नेह नहीं रह्यो ताकू, उिनमें नयो उदासी॥जा॥॥ हुँ अविनाशी नाव जगतके, निथे सकल विनाशी॥ एदवी धार धारणा गुरुगम, अनुन्नव मारग पासी॥जा॥२॥ में मेरा ए मोद जनित जस,
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( २४uে )
ऐसी बुद्धि प्रकाशी ॥ ते निःसंग पग मोढ सीस दें. निश्चें शिवपुर जासी ॥ जा० ॥ ३ ॥ सुमता नई सुखी इम सुनके, कुमता नई उदासी ॥ चिदानंद आनंद लह्यो इम, तोर करमकी पासी ॥ जा० ॥४॥
||पदी शभुं ॥ राग आशावरी ॥
॥ अनुभव आनंद प्यारो ॥ अब मोदे, अनुभव० ॥ एकणी ॥
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( २५० )
एद विचार धार तुं जमथी, कनक उपल जिमन्यारो ॥ श्र० १ बंधदेतु रागादिक परिणति, लख परपख सहु न्यारो ॥ चिदानंद प्रभु कर किरपा अब, नव सायरथी तारो ॥ ० ॥२॥
॥ पद एकत्रीशभुं ॥ ॥ राग आशावरी ॥
|| जे घट विसत वार नलागे ॥ ० ॥ एकणी ॥
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( १५१ )
याके संग कहा अब मूरख, बिन निधिको पागे ॥ 30 112 11
काचा घमा काचकी शीशी, लागत ठणका जांगे ॥
सडण पण विध्वंस धरम जस, तसथी निपुण नीरागे ॥ ॐ० ॥ २ ॥
आधि व्याधि व्यथा दुःख इ जव, नरकादिक फुनि प्रागें ॥ डग हुनचलत संगविणा पोप्या,
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(२५५) मारगहुमें त्यागे॥5॥३॥ मदनक गक गदेल तज विरला, गुरु किरपा कोन जागे॥ तन धन नेद निवारी चिदानंद, चलीयें ताके सागे॥॥४॥
॥पदबत्रीशमुंगरागाशावरी॥ ॥ अवधूपियो अनुन्नव रस प्याला, कदत प्रेम मतिवाला ॥
___अ॥ए आंकणी॥
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(२५३) अंतर सप्तधात रस नेदी, परम प्रेम उपजावे ॥ पूरव नाव अवस्था पलटी, अजब रूप दरसावे॥ ॥१॥ नख शिख रदत खुमारी जाकी, सजल सघन घन जैसी॥ जिन ए प्याला पिया तिनकू,
और केफरति कैसी॥०॥शा अमृत होय हलाहल जाकू, रोग शोक नवि व्यापे॥ रहत सदा गरकाव नसामें,
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( २५४ )
बंधन ममता कापे ॥ अ० ॥३॥
सत्य संतोष दीयामें धारे, प्रतम काज सुधारे ॥ दीन जाव हिरदे नहीं खाणे, अपनो बिरुद संजारे ॥ प्र० ॥४॥ नावदया रणथंन रोपके, अनहद तूर बजावे ॥ चिदानंद अतुलीबल राजा, जीत रि घर आवे ॥ प्र० ॥ ॥
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(२५५) ॥पद तेत्रीशमुं॥
॥राग आशावरी॥ ॥मारग साचा को न बतावे॥ जासुं जाय पूीये ते तो, अपनी अपनी गावे॥मारग०॥
ए आंकणी॥ मतवारा मतवाद वाद धर, थापत निज मत नीका ॥ स्याद्वाद अनुनव बिन ताका, कथन लगत मोदे फीका ॥
मा०॥१॥
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( १५६ )
मत वेदांत ब्रह्मपद ध्यावत, निश्चय पख जर धारी ॥ मीमांसक तो कर्म बढ़े ते, उदय जाव अनुसारी ॥
मा० ॥ २ ॥
कदत बौद्ध ते बुद्ध देव माम, क्षणिक रूप दरसावे || नैयायिक नयवाद यही ते, करता कोन ठेरावे ॥ मां० ॥ ३ ॥
चारवाक निज मनः कल्पना, शून्य वाद को ठाणे ॥
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(२५) तिनमें नये अनेक नेद ते, अपणी अपणी ताणे॥
मा० ॥४॥ नय सरवंग साधना जामें, ते सरवंग कहावे॥ चिदानंद ऐसा जिन मारग, खोजी होय सो पावे॥माया
॥ पद चोत्रीशमुं॥
॥राग आशावरी ॥ ॥अवधू खोलीनयन अब जोवो,
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(२५७) गि मुक्ति कहा सोवो ॥ ___अवधू॥ ए आंकणी॥ मोह निंद सोवत तूं खोया, सरवस माल अपाणा ॥ पांच चोर अजहुँ तोय खूटत, तास मरम नहीं जाण्या ॥
अवधू ॥१॥ मली चार चंडाल चोकमी, मंत्री नाम धराया ॥ पाई केफ पीयाला तोदे,
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( २५७)
सकल मुलक ठग खाया ॥
अवधू० ॥ २ ॥
शत्रुराय महाबल जोधा, निज निज सेन सजाये || गुणठाणेमें बांध मोरचे, घेया तुम पुर आये ||
अवधू ॥ ३ ॥
परमादी तूं होय पियारे, परवशता दुःख पावे ॥ गया राज पुर सारथ सैंती,
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(२६०) फिर पाग घर आवे॥ अवधू०४ सांजली वचन विवेक मित्तका, बिनमें निज दल जोड्या ॥ चिदानंद एसीरमत रमतां, ब्रह्म बंका गढ तोड्या॥
__ अवधू 0॥५॥ ॥पदपांत्रीशमुं॥राग प्रजाती। ॥ वस्तुगतें वस्तुको लदाण, गुरुगम विण नहीं पावे रे ॥ गुरुगम विन नवि पावे कोज,
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(२६१) नटक नटक नरमावे रे॥ ॥व०॥१॥ए आंकणी॥ नवन आरीसे श्वान कूकडा, निज प्रतिबिंब निहारे रे॥ इतर रूप मन मांदे बिचारी, मदा जु६ विस्तारे रे॥
व ॥२॥ निर्मल फिटक शिला अंतर्गत, करिवर लख परगदि रे॥ दसन तुराय अधिक सुःख पावे,
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( २६२ )
द्वेष धरत दिल मांदि रे ॥
व० ॥ ३ ॥
ससले जाय सिंहकूं पकड्यो, दूजों दीयो देखाई रे | निरख दरि ते जाण दूसरो, पड्यो कंप तिदां खाई रे ॥
व० ॥ ४ ॥
निज बाया वेताल नरम धर,
मरत बाल चित्त मांदि रे ॥ सर्प करी कोन मानत,
रज्जु
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( २६३ )
जौलों समजत नांदि रे ॥
व० ॥ ८ ॥
नलिनी जम मर्कट मूवी जिम, भ्रमवश प्रति दुःख पावे रे || चिदानंद चेतन गुरुगम विन, मृग तृष्णा धरी धावे रे ||
व० ॥ ६ ॥
॥ पद बत्रीशमं ॥ राग भैरव ॥ ॥ लाल ख्याल देख तेरे, चरिज मन आवे || लाल० ॥ ए कणी ॥
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( २६४ )
धारे बहु रूप विन्न, मांदे होय रंक नूप ॥ आप तो अरूप सहु, जगमें कढावे ॥ सा० ॥ १ ॥
करता करताहु, दरताके नरता ज्युं ॥ एसा दे जो कोण तोड़े, नाम ले बतावे ॥ सा० ॥ २ ॥ एकहुमें एक है, अनेक है अनेक में ॥ एक न अनेक कबु,
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( २६५ )
कह्यो नहीं जावे ॥ ला० ॥ ३ ॥ उपजे न उपजत,
मूर्ज न मरत कबु ॥ खटरस जोग करे, रंच न खावे ॥ लाल० ॥ ४ ॥ परपरणीत संग || करत अनोखे रंग || चिदानंद प्यारे,
नट बाजी सी दिखावे ॥ला ॥२॥
॥ पद सामत्री शभुं ॥ राग जैरव ॥ ॥ जाग रे बटान प्रब,
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( २६६ )
नई जोर वेरा ॥ जा० ॥ ए प्रकणी ॥
नया रबिका प्रकाश,
कुमुदहू थए विकास ॥ गया नाश प्यारे मिथ्या, रेनका अंधेरा ॥ जा० ॥ १ ॥
सूता केम यावे घाट, चालवी जरूर वाट ॥ कोइ नांदी मित्त, परदेश में ज्युं तेरा ॥ जा० ॥ २ ॥ अवसर वीत जाय,
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( २६७ )
पीठें पिबतावो याय ॥ चिदानंद निदचें,
ए मान कहा मेरा ॥ जा० ॥ ३ ॥
॥ पद आडत्री शमुं ॥ राग भैरव ॥ ॥ चालणां जरूर जाकूं, ताकूं कैसा सोवणां ॥ चा० ॥ ए प्रकणी ॥
नया जब प्रातःकाल, माता धवरावे बाल | जग जन करत दे,
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( २६८ )
सकल मुख धोवणां ॥ चा०॥२॥
सुरनिके बंध बूटे, धूवड जये अपूवे ॥ ग्वाल बाल मिलकें, बिलोवत वलोवणां ॥ चा० ॥२॥
तज परमाद जाग,
तूंजी तेरे काज लाग ॥ चिदानंद साथ पाय, वृथा न आयु खोवणां ॥ चा०|३|
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(२६ए) ॥पद जंगणचालीशमुं॥
॥राग भैरव ॥ ॥जाग अवलोक निज, शुभता स्वरूपकी ॥जाग०॥
ए आंकणी॥ जामें रूप रेख नाही, रंच परपंच गंदी॥ धारे नहीं ममता, सुगुण नवकूपकी॥जा ॥१॥ जाको है अनंत ज्योत, कबहु न मंद होत ॥
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( 230 )
चार ज्ञान ताके सोत, उपमा अनूपकी ॥ जा० ॥ २ ॥
उलट पलट धुव जान, सत्ता में बिराजमान | शोभा नांदि कही जात, चिदानंद नूपकी ॥ जा० ॥ ३ ॥
॥ पद चाली शमुं ॥ राग प्रजाती ॥ || ऐसा ग्यान विचारो प्रीतम, गुरुमुख शैली धारी रे ॥ ऐ० ॥ एकणी ॥
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(२१) स्वामीकी शोजा करे सारी, ते तो बाल कुमारी रे॥ जे स्वामी ते तात तेदनो, कह्यो जगत हितकारी रे॥
ऐसा ॥१॥ अष्ट दीकरी जाई बाला, ब्रह्मचारिणी नोवे रे॥ परणावी पूरणचंदाथी, एक सेज नवि सोवे रे॥
___ ऐसा ॥२॥ अष्ट कन्याका सुत वली जाये,
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(२७) छादश ते वली सोई रे॥ ते जग मांदे अजनमे कहीयें, करता नवि तस कोई रे॥
ऐसा ॥३॥ मात तात सुत एक दिन जनमे, गेटे बडे कदावे रे॥ मूल तिनोंका सहु जग जाणे, शाखा नेद न पावे रे॥
- ऐसा ॥४॥ जो इणके कुल केरी शाखा, जाणे खोज गमाव रे॥
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(२३) खोज जाय जगमे तोपण ते, सहुथी बडे कहावे रे॥
ऐसा ॥५॥ अथवा नर नारी नपुंसक, सहकी ए माता रे॥ षटमत बाल कुमारी बोलत, ए अचरिजकी बाता रे॥
ऐसा०॥६॥ लोक लोकोत्तर सहु कारजमें, या बिन काम न चाले रे॥ चिदानंद ए नारीशुं रमण,
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( २७४ )
मुनि मनथी नवि टाले रे ॥ ऐसा० ॥ ७ ॥
|| पद एकतालीशमं ॥ ॥ राग प्रजाती ॥
तमराम,
॥ उठोने मोरा जिनमुख जोवाजइयें रे ॥ ॥ ए देशी ॥
॥ विषय वासना त्यागो चेतन, साचे मारग लागो रे ॥ ए प्रकणी ॥
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MAR
(२७५) तप जप संजम दानादिक सहु, गिणती एक न आवे रे॥ इंडिय सुखमें जौंलौं ए मन, वक्र तुरंग जिम धावे रे॥
विषय ॥१॥ एक एकके कारण चेतन, बहुत बहुत सुःख पावे रे॥ ते तो प्रगटपणे जगदीश्वर, इण विध नाव लखावे रे॥
विषयः॥॥ मन्मथ वश मातंग जगतमें,
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(२७६)
परशवता दुःख पावे रे ॥ रसनालुब्ध दोय ऊख मूरख,
जाल पी पिबतावे रे ॥
विषय० ॥ ३ ॥
घ्राण सुवास काज सुन जमरा, संपुट मांदे बंधावे रे || ते सरोज संपुट संयुत फुन, करटी के मुख जावे रे ||
विषय० ॥ ४ ॥
रूप मनोहर देख पतंगा, पडत दीपमां जाई रे ||
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(१७) देखो याकू उःख कारनमें, नयन नये है सहाई रे॥
विषय० ॥५॥ श्रोडिय आसक्त मिरगला, बिनमें शीश कटावे रे॥ एक एक आसक्त जीव एम, नानाविध उःख पावे रे॥
विषय० ॥६॥ पंच प्रबल व नित्य जाकू, ताङ कदा ज्युं कहीये रे॥ चिदानंद ए वचन सुणीने,
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() निज स्वनावमें रहीयें रे॥
विषय० ॥७॥ ॥ पद बेंतालीशमुं॥
॥राग नैरव ॥ ॥अजित जिनंद देव, थिर चित्त ध्याईयें ॥०॥ थिर चित्त ध्यायें, परम सुख पाईयें ॥ अजि ॥
- ए आंकणी॥ अति नीको नाव जल,
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( ए) विगत ममत मल॥ ऐसो झानसरथी, सुजल जर लाइये।
अजि ॥१॥ केशर सुमति घोरी, नरी नावना कचोरी॥ कर मन नोरी अंग, अंगीया रचाये ॥
अजि ॥२॥ अभय अखंड क्यारी, सिंचकें विवेक वारी॥
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(२०) सहज सुनावमें सुमन निपजा
ईयें ॥ अजि० ॥३॥ ध्यान धूप झान दीप, करी अष्ट कर्म जीप ॥ उविध सरूप तप, नैवेद्य चढाईये।अजि ॥४॥ लीजीयें अमल दल, ढोईये सरस फल । अदत अखंड बोध, स्वस्तिकलखाईय। अजिमाया अनुन्नव जोर भयो,
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( २०१ )
॥
मिथ्यामत दूर गयो || करी जिन सेव इम, गुण फुनि गाई || जि० ॥६॥ इणविध नाव सेव, कीजीयें सुनित्यमेव ॥ चिदानंद प्यारे इम, शिवपुर पाईयें ॥ यजि० ॥ ७ ॥
॥ पद त्रेतालीशभुं ॥ राग काफी ॥ ॥ जौंलौं अनुभव ज्ञान, घट में प्रगट जयो नदीं । जौंखौं 0 ए आंकणी ॥
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( २८२ )
तौलौं मन थिर होत नहीं बिन, जिम पीपरको पान |
वेद यो पण नेद विना शठ, पोथी थोथी जाए रे ॥ घ०॥ १ ॥ रस जाजनमें रहत व्य नित्य, नदीं तस रस पहिचान रे ॥ तिम श्रुतपाठी पंडितकूं पण, प्रवचन कढ़त प्रज्ञान ॥ घण सार लह्या विण जार कह्यो श्रुत, खर दृष्टांत प्रमाण ॥ चिदानंद अध्यातमशैली,
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(२३) समज परत एक तान रे॥
घ ॥३॥ ॥पद चुमालीशमुं॥राग काफी ॥अकथ कथा कुण जाणे हो, तेरी चतुर सनेही ॥ अकथ ॥
ए आंकणी॥ नयवादी नयपद ग्रहीने, जूग ऊगडा गणे ॥ निरपखलख चख स्वादसुधाको, ते तो तनक न ताणे दो ॥
तेरी ॥१॥
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.
( ४) बिनमें रूप रचत नानाविध,
आप अरूप बखाने ॥ बिन मूरख ज्ञानी दोये बिनमें, न्याय सकल बिन जाणे दो ॥
तेरी॥२॥ चोर साध कबु कह्यो न परतु है, लख नाना गुणगणे॥ जैसो देतु तैसो चिदानंद, चित्त श्राइम आणे हो।
तेरी० ॥३॥
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(२५) ॥पदपीस्तालीशमुंगराग काफी॥ ॥अलख लख्या किम जावे हो, ऐसी कोन जुगति बतावे॥०॥
ए आंकणी॥ तन मन वचनातीत ध्यान धर, अजपा जाप जपावे ॥ होय अडोल लोलता त्यागी, ज्ञान सरोवर न्दावे दो॥
ऐसी० ॥१॥ शुभ स्वरूपमें शक्ति संन्नारत, ममता दूर वदावे॥
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(२६) कनक नपल मल निन्नता काजे, जोगानल उपजावे दो ॥
ऐसी ॥२॥ एक समय समश्रेणी रोपी, चिदानंद इम गावे ॥ अलख रूप दोश्अलख समावे, अलख नेद एम पावे दो॥
ऐसी०॥३॥ ॥पद तालीशमुं॥ ॥राग काफीनी होरी॥ ॥अनुनव मित्त मिलाय देमोकू,
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(२७) श्याम सुंदर वर मेरा अनु०॥
.ए आंकणी॥ शीयल फाग पिया संग रमूंगी, गुण मानुंगी में तेरा रे॥ झान गुलाल प्रेम पीचकारी, शुचि श्रधा रंग नेरा रे॥
अनु० ॥१॥ पंच मिथ्यात निवार धरंगी में, संवर वेशनलेरा रे ॥ चिदानंद ऐसी होरी खेलत,
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(२७) बहुरि न दोय नव फेरा रे॥
अनु० ॥२॥
॥ पद सुडतालीशमुं ॥
॥ राग काफीनी दोरी॥ ॥ एरिमुख दोरी गावो री, सहज श्याम घर आए॥ सखीमुख० ॥ ए आंकणी॥ नेद ज्ञानकी कुंजगलनमें, रंगरचावो॥सखी मुख०॥२॥ शु६ श्रान सुरंग फूलके,
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( ए) मंम्प गबो री॥ एरि घर मंडप गवो री॥
सखी०॥॥ वास चंदन शुन्न नाव अरगजा, अंग लगावो री॥ एरि पीया अंग लगावो री॥
सखी० ॥३॥ अनुनव प्रेम पीयाले प्यारी, नर नर पावोरी॥ कंत... नर नर पावोरी॥
सखी०॥४॥
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(२ ) चिदानंद सुमता रस मेवा, दिल मिल खावो री॥ सहज श्याम घर आए, सखी मुख दोरी गावो री॥
सखी० ॥५॥
॥ पद अडतालीशमुं॥
॥राग जंगलो काफी॥ ॥ जगमें नहीं तेरा कोई, नर देखहु निदचेंजोई॥जग॥
ए आंकणी॥
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(शए१) सुत मात तात अरु नारी, सह स्वारथके हितकारी॥ बिन स्वारथ शत्रु सोई॥
जग ॥१॥ तुं फिरत मदा मदमाता, विषयन संग मूरख राता ॥ निज संगकी सुधबुध खोई॥
जग ॥३॥ घट झानकला नव जाकू, पर निज मानत सुन ताकू ।।
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(হ२)
यावर परतावा दो ||
जग० ॥ ३ ॥
नवि अनुपम नरनव दारो, निज शुद्ध स्वरूप निहारो ॥ अंतर ममता मल धोई ॥
जग० ॥ ४ ॥
प्रभु चिदानंदकी वाणी, धार तुं निवें जग प्राणी ॥ जिम सफल होत जव दोई ॥ जग० ॥ ५ ॥
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( २३ )
॥ पद गणपचासमुं ॥ ॥ राग जंगलो काफी ॥ ॥ जूठी जूठी जगतकी माया, जिन जाणी भेट तिन पाया ॥ जू० ॥ एकणी ॥ तन धन जोबन सुख जेता, सहु जाणहुं प्रथिर सुख तेता ॥ नर जिम बादलकी बाया ॥
जू० ॥ १ ॥
जिम अनित्य नाव चित्त आया, लख गलित वृषनकी काया ॥
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(ए) बूजें करकंडु राया॥जू॥२॥ इम चिदानंद मन मांदी, कबु करीयें ममता नांदी॥ सद्गुरुए नेदलखाया॥जू॥३॥ ॥पद पचासमुं॥राग सोरठ॥ ॥आतम ध्यान समान
जगतमें ॥ प्रा० ॥ साधन नवि कोज आन॥
जग ॥ए आंकणी॥ रूपातीत ध्यानके कारण,
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(२५) रूपस्थादिक जान ॥ ताहुमें पिंडस्थ ध्यान पुन, ध्याताकू परधान॥जग०॥२॥ ते पिंडस्थ ध्यान किम करीयें, ताको एम विधान ॥ रेचक पूरक कुंजक शांतिक, कर सुखमनघरआन।।जगाश प्रान समान उदान व्यानकू, सम्यक् प्रदडं अपान ॥ सहज सुनाव सुरंग सन्नामें,
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( ६ )
अनुभव अनहद तान ॥
जग० ॥ ३ ॥
कर आसन धर शुचि सममुद्रा, यदी गुरुगम ए ज्ञान ॥ अजपा जाप सोदं सु समरनां,
कर अनुभव रस पान ॥
जग० ॥ ४ ॥
च्यातम ध्यान भरत चक्री लह्यो,
नवन आारीसा ज्ञान ॥ चिदानंद शुभ ध्यान जोग जन, पावत पद निरवाणा ॥ जग० ॥५॥
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(ए) ॥ पद एकावनमुं॥ ॥राग सोरठ गिरनारी॥ ॥ प्रनु मेरो मनमो दटक्यो न माने ॥प्रजु० ॥ए आंकणी॥ बहुत नांत समजायो याकू, चोडेहू अरु गने॥ पण श्म शीखामण कबुरंचक, धारत नवि निज काने ॥
प्रज्जु ॥१॥ बिनमें रुष्ट तुष्ट होय बिनमें, राव रंक बिन मांहि॥
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(ए) चंचल जेम पताका अंचल, तेह विगत इण मांदि॥
अनु० ॥२॥ वक्र तुरंग जिम सुलटी शिदा, तज उलटी हु ठगने॥ विषम गति अति याकी साहेब, अतिशयधर कोन जाने।
। प्रनु० ॥३॥ अति जगतियें कहुं हुं तुमथी, तुम बिन कोन न सियाने ॥
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(शणा) चिदानंद प्रनुए विनतिकी, अब तो लाजळे यांनप्रजु
॥पद बावनमुं॥ ॥राग सोरठ मलार॥ ॥ तारो जीराज तारो जी राज, दीनानाथ अब मोदे तारो जी
राज ॥ए आंकणी॥ पूरव पुण्य उदय तुम नेटे, तारण तरण फिदाज॥
दीना ॥१॥
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(३००) पतितनधारण तुम पण धायो, हुँ पतितन सिरताज॥
दीना ॥३॥ आगे अनेक उधारे तदपि न, कग्निता मल्यो आज ॥
दीना० ॥३॥ इणे अवसर जिमतिम करी रखीयें, बिरुद ग्रहेकी लाज ॥
दीना० ॥४॥ चिदानंद सेवक जिन साहेब,
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( ३०१ )
नीको बन्यो दे समाज ॥ दीना० ॥ ५ ॥
॥ पद त्रेपनमुं ॥ राग सोरठ ॥ ॥ आवो जी राज आवो जी राज, साढ़ेबा थें मदारे मोलें प्रावोजी राज ॥ एकणी ॥
सीस नमाय कर जोड कहतहुँ, जरतेकों न जरावो ॥
दस दस नाथ जरे पर अब तुम, कादेकूं लौंन लगावो ॥ सादे० ॥ १ ॥
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(३०५) दमकू त्याग पिया शोक्य सदन तुम, बिना बोलाए जावो ॥ जा कारनदी मेर नहीं आवत, ते कोउ चूक दिखावो॥
सादे॥२॥ कुमताकुटिलकेबस श्म सादेव, कादेवू लोक हसावो ॥ तुमकू कवन शीखावे तुम तो,
औरनकू समजावो।सादे॥३॥ वाके वसवरति तुम नायक, जे जे विध फुःख पावो॥
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(३०३) ते सहु गनो नहीं कोन मोथी, काहेकूप्रगट कहावो।साहे चिदानंद सुमताके वचन सुन,
ज्यो दे हरख वधावो॥ तुम मंदिर आवत प्रनु प्यारी, करीये न मन परतावो॥
सादे ॥५॥ ॥पद चोपनमुं॥राग सोरठ॥
गढ गिरनार रूमो लागेजी, थांको गढ गिरनार ॥
ए आकणी॥
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LE
(३०४) नार अढार अपार कीयो तिहा, वनराजी विस्तार ॥ निर्मल नीर समीर वदत नित्य, पथिक जन मनोहार॥
रूमो० ॥१॥ शुभ समाधि विगत उपाधि, जोगीसर चित्त धार ॥ करत गंनीर गुहामें निशदिन, गुरुगम झान बिचार ॥
रूमो० ॥३॥ कल्याणकर्त्रण्य तिहां रे,
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(३०५) शोजत जगदाधार॥ चिदानंद प्रनु अब मोदे तारो, जिम तारो निज नार॥
रूडो० ॥३॥ ॥पद पंचावनमुराग सोयणी॥ ॥अनुन्नव ज्योति जगी बे, हैये हमारे बे॥ अ ॥
ए आंकणी॥ कुमताकुटिल कदा अब करिहा, सुमता हमारी संगी॥
अ०॥१॥
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(३०६) मोह मिथ्यात निकट नवि आवे, नव परिणत ज्युं पगी ॥
अ०॥२॥ चिदानंद चित्त प्रनुके नजनमें, अनुपम अचल लगी ॥
अ०॥३॥
-
-~ucatkar-~
॥पद बप्पनमुं॥राग सोयणी॥ ॥सरण तिहारे गही, चंदा प्रजुजी बे॥ स० ॥
ए आंकणी॥
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( ३०७) जनम जरा मरणादिक केरी, पीडा बहुत सही॥स ॥१॥ परःख नंजन नाथ बिरुद तुव, तातें तुमकों कही ॥स॥२॥ चिदानंद प्रनु तुमारे दरसथी, वेदना अशुन दहीगास॥३॥ ॥पद सत्तावनमुं॥रागकेरबो॥ ॥समज परी मोदे समज परी, जग माया अब जूठी मोदे
समज० ॥ए आंकणी॥
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(३०७) काल काल क्या करे मूरख, नांदीनसंसा पल एक घरी॥
स० ॥१॥ गांफिल बिन नरनांदी रहो तुम, शिर पर घूमे तेरे काल अरी॥
स० ॥३॥ चिदानंद ए वात हमारी प्यारे, जाणो मित्त मन मांदे खरी॥
स० ॥३॥ ॥पद अगवनमुराग केरबो॥ ॥ दारे चित्तमें धरो प्यारे,
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(३०ए) चित्तमें धरो एती शीख हमारी प्यारे, अब चित्तमें धरो॥
ए आंकणी॥ थोडासाजीवनके काज अरे नर, कादेकू बल परपंच करो॥
एती० ॥१॥ हारेकूडकपट परोह करत तुम, अरे नर परनवथीन डरो॥
एती॥२॥ चिदानद जो ए नहीं मानो तो,
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(३१०) जनम मरण नव दु:खमें परो॥
एती० ॥३॥ ॥ पद ओगणसाउमुं॥
॥राग मलार॥ ॥ ध्यानघटा घन गए, सु देखो माई॥ध्यान ॥
ए आंकणी॥ दम दामिनी दमकती दह दिस अति, अनहद गरज सुनाए।
सु० ॥१॥
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(३११) मोटी मोटी बुंद खिरत वसुधा शुची, प्रेम परम जर लाए॥
सु ॥३॥ चिदानंद चातक अति तलपत, शु६ शुद्दा जल पाए ॥
सु० ॥३॥
॥पद साठमुं॥राग मल्दार ॥ ॥ मत जावो जोर बिगेर, वालम अबामताएआंकण॥ पीन पीन पीन रटत बपैया,
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( ३१२ )
गरजत घन प्रति घोर ॥ वालम० ॥ १ ॥
चम चम चम चम चमकत चपला, मोर करत मिल सोर ॥
वालम० ॥ २ ॥
उमंग चली सरिता सायर मुख, मर गए जल चिहुं ओर ॥
वालम० ॥ ३ ॥
नवी अटारी रयण अंधारी, विरदी करत ककजोल ॥
वालम ० ॥ ४ ॥
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(३१३) चदानंद प्रनु एक वार कह्यो, जाणो वार करो॥वालमाय॥ ॥पद एकसपमुं॥राग बिदाग॥ ॥पीया पीया पीया, बोल मतपीयापीया पीयापी॥
ए आंकणी॥ रे चातुकतुम शब्द सुणत मेरा, व्याकुल होत दे जीया ॥ फूटत नांदि कग्नि अति घन सम, नितुर नया ए दीया ॥
बो ॥१॥
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(३१४)
एक शोक्यःखदायी कंतजीने, कर कामण वस कीया ॥ दूजे बोल बोल खग पापी, तुं अधिका जुःख दीया ॥
बो० ॥३॥ कर्ण प्रवेश उठी दो व्याकुल, विरदानल जलतीया ॥ चिदानंदप्रश्न अवसर मिल, अधिक जगत जस लीया ॥
बो० ॥३॥
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( ३१५ )
॥ पद बासठमुं ॥ || अजित जिणंदशुं प्रीतडी ॥ ए देशी ॥
॥ परमातम पूरण कला, पूरण गुण हो पूरण जन आश ॥ पूरण दृष्टि निदालीयें, चित्तधरीयें दो अमची अरदास
॥ परमा० ॥ १ ॥
सर्व देव घाती सहु, अघाती दो करी घात दयाल ॥ वास कीयो शिव मंदिरें,
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(३१६) मोदे वीसरी दो जमतो जग
जाल ॥ परमा० ॥२॥ जग तारक पदवी सदी, तास्यासही दोअपराधीअपार॥ तात कदो मोदे तारतां, किमकीनी होणे अवसर वार
॥परमा० ॥३॥ मोद महा मद गकथी, हुंबकीयो हो ताहि सूधलगार॥ उचित सदी इणे अवसरें,
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(३१७) सेवकनी दो करती संभाल ॥
परमा० ॥४॥ मोद गयां जो तारशो, तिणवेला दो कदा तुम उपकार॥ सुखवेला सजन घणा, छुःखवेला दो विरसा ससार ॥
परमा०॥५॥ पण तुम दरिसन जोगयी, थयोहृदयें होअनुन्नवपरकाश। अनुभव अभ्यासी करे,
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(३१७) मुःखदायी होसद् कर्म विनाश॥
परमा०॥६॥ कर्मकलंक निवारीने, निज रूपें दो रमे रमता राम॥ खदत अपूरव नावथी, इण रीतें हो तुम पद विश्राम ॥
परमा० ॥७॥ त्रिकरण जोगें वीन, सुखदायी दो शिवादेवी नंद ॥ चिदानंद मनमें सदा,
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(३९ए) तुमे आपोहोप्रनुनाण दिणंद॥
परमा० ॥७॥
॥पद त्रेसपमुं॥ ॥ जड जमरा कंकणी पर बैग, नथणीसें ललकारंगी॥
ए देशी॥ ॥श्रीशंखेसर पास जिनंदके, चरणकमल चित्त लाजंगी॥ सुणजोरेसजन नित्य ध्यानंगी।
ए आंकणी॥
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(३२०) एहवा पण दृढधारी हियामें, अन्य घार नाद जाजंगी॥
सु०॥१॥ सुंदर सुरंग सलूनी मूरत, निरख नयन सुख पाउंगी।
सु० ॥३॥ चंपा चंबली आन मोघरा, अंगियां अंग रचालंगी॥
सु० ॥३॥ शीलादिक शणगार सजी नित्य,
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(३१) नाटक प्रजुकू देखाउंगी॥
सु०॥४॥ चिदानंद प्रज्जु प्राणजीवनकं, मोतियन थाल वधानंगी॥
सु० ॥५॥ ॥पद चोसम्मुं॥ ॥अजित जिणंदशुं प्रीतडी ॥
ए देशी॥ ॥अजित अजित जिन ध्याश्य,
धरी हिरदे होनविनिर्मलध्याना __हृदय सरीजामें रह्यो,
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(३५) सुरनीसमहोलहीतास विज्ञान
॥ ०॥१॥ कीट ध्यान मुंगी तणो, निज धरतां होते मुंगी निदान॥
अकल धौत स्वरूपता, लोह फरसत हो पारस पाखान
॥ ०॥३॥ पीचुमंदादिक सही, होय चंदन हो मलयागरु संग॥ सैंधव क्यारिमें पड्या,
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( ३२३ )
जिम पालटे दो वस्तुनो रंग
॥ ० ॥ ३ ॥
ध्येय रूपनी एकता, करे ध्यातां दो धरे ध्यान सुजान ॥ करे कतक मल भिन्नता, जिम नासे दो तम उगते जान
॥ अ० ॥ ४ ॥
पुष्टालंबन योगथी, निरालंबता दो सुख साधन जेद ॥ चिदानंद अविचल कला,
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( ३२४ )
क्षण मांदे दो नवि पावे तेढ
॥ अ० ॥ ५ ॥
||
|| पद पांस ॥ निर्मल होई जज ले प्रभु प्यारा ॥ ए देशी ॥
|| लाग्या नेढ जिनचरण हमारा, जिम चकोर चित्त चंद पीयारा ॥ सुनत कुरंग नाद मन लाई, प्राण तजे पण प्रेम निनाई ॥ घन तज प्रानन जावत जोई,
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( ३२५ )
ए खग चातुक केरी बडाइ ॥
बा० ॥ १ ॥
जलत निःशंक दीपके मांदि, पीर पतंगकूं दोत के नांदि ॥ पीडा तदपण तिदां जदि, शंक प्रीतिवश यानत नांदि ॥
ला० ॥ ५ ॥
मीन मगन नवि जलथी न्यारा, मान सरोवर दंस आधारा ॥ चोर निरख निशि प्रति अंधि
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(३२६) यारा, केकी मगन फुन सुन गर
जारा ॥ला०॥३॥ प्रणवध्यान जिम योगीपाराधे, रस रीति रससाधक साधे॥
अधिक सुगंध केतकीमें लाधे, मधुकर तस संकट नविवाधे ॥
ला ॥४॥ जाका चित्त जिहां थिरता माने, ताका मरम तो तेहिज जाने ॥ जिननक्ति दिरदयमें गने,
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( ३२७ )
चिदानंद मन आनंद याने ॥ ला० ॥ ५ ॥
॥ पद बासठमुं ॥ || हो वांसलड वेर इ, लागीरे व्रजनी नारने | ए देशी ॥ ॥ दो प्रीतमजी प्रीतकी रीत, अनित्य तजी चित्त धारीयें ॥ दो वालमजी वचन तणो, प्रति जंडो मरम विचारीयें ॥ ए कणी ॥
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(३२७) तुमे कुमतिके घर जावोगे, निज कुलमें खोट लगावो गे, धिक एल जगतनी खावो गे॥
हो प्री०॥॥ तमे त्याग अमी विष पीयो गे, कुगतिनो मारग लीयो गे, ए तो काज अजुगतो कीयो गे॥
हो प्री० ॥२॥ ए तो मोद रायकी चेटी, शिव संपत्ति एहथी बेटी ने,
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( ३२७)
ए तो साकरतें गल पेटी बे ॥ ढो प्री० ॥ ३ ॥
एक शंका मेरे मन यावी बे. किण विध ए तुम चित्त नावी बे, ए तो डाकण जगमें चावी बे ॥ ढो प्री० ॥ ४ ॥
सहु रुदि तुमारी खाई बे, करी कामण मति नरमाई बे, तुमे पुण्य जोगे ए पाई बे ॥ दो प्री० ॥ ५ ॥
मत ांब काज बावल बोवो,
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(३३०) अनुपम नव विरथा नवि खोवो, अब खोल नयण प्रगट जोवो ॥
दो प्री० ॥६॥ श्ण विध सुमता बहु समजावे, गुण अवगुण कहीसहु सरसावे, सुणी चिदानंद निज घर आवे॥
हो प्री० ॥ ७॥
--05॥ पद सडसमुं॥गहुंली॥ ॥ चंवदनी मृगलोयण, एतो सजी सोल शणगार रे॥
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( ३३१ )
ए तो घ्यावी जगगुरु वादवा, धरी दियडे दरख पार रे ॥
अ० ॥ १ ॥
दारे ए तो मुक्ताफल मूवी नरी, रचे गहुंली परम उदार रे ॥ जिहां वाणी योजनगामिनी, घन वरसे अखंडित धार रे ॥
अ० ॥ २ ॥
हांरे जिहां रजत कनक रतनना, सुर रचित ऋण प्राकार रे ॥ तस मध्य मणिसिंहासने,
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(३३५) शोनित श्री जगदाधार रे॥
अ०॥३॥ हारे जिहां नरपति खगपति
लदपति, सुरपति युत परखदा बार रे॥ लब्धि निधान गुण आगरु, जिहां गौतमसें गणधार रे॥
अ०॥४॥ हारे जिहां जीवादिकनवतत्त्वनो षट्मव्य नेद विस्तार रे॥ ए तो श्रवण सुणी निर्मल करे,
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(३३३) निज बोधबीज सुखकार रे॥
। अ० ॥५॥ हारे जिहां तीन बत्र त्रिभुवन
उदित, सुर ढालत चामर चार रे ॥ सखी चिदानंदकी बंदना, तस दोजो वारंवार रे॥
अ०॥६॥ ॥ पद अडसम्मुं॥ ॥दो कुंथु जिन मनडुं किणहीन
बाजे ॥ ए देशी॥
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(३३४) ॥ अनुन्नव अमृतवाणी हो ॥
पास जिन ।। अ०॥ सुरपतिनयो जेनागश्रीमुखथी, ते वाणी चित्त आणी दो॥
पा०॥१॥ स्यावाद मुजा मुन्ति शुचि, जिम सुर सरिता पाणी॥ अंतर मिथ्या नावलता जे, बेदण तास कृपाणी दो॥
पा ॥२॥ अहोनिश नाथ असंख्य मल्या
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( ३३५) तिम, तिरगळे अचरिज एही॥ लोकालोक प्रकाश अंश जस, तस उपमा कहो केही हो।
पा० ॥३॥ विरद वियोगदरणी ए दंती, संधी वेग मिलावे ॥ याकी अनेक अवंचकताथी, आणा विमुख कहावे दो॥
पा०॥४॥ अदर एक अनंत अंश जिहां, लेप रहित मुख नाखो॥
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(३३६) तास क्योपशम नाव बंध्याथी, शु६ वचन रस चाखो दो॥
पा०॥५॥ चाख्याथी मन तृप्त थयुं नवि, शे माटे लोनावो॥ कर करुणा करुणारस सागर, पेट जरी ते पावो हो।
पा० ॥६॥ ए लवलेश लह्या विण सादिब, अशुन्न युगलगति वारी॥ चिदानंद वामासुत केरी,
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(३३७) वाणीनी बलिदारी हो॥
पा० ॥७॥
॥ पद उंगणोतेरमुं॥
॥राग मालकोश ॥ ॥पूरव पुण्य उदय करी चेतन, नीका नरनव पाया रे ॥ पू० ॥
ए आंकणी॥ दीनानाथ दयाल दयानिधि, मुर्खन अधिक बताया रे॥ दश दृष्टांते दोदिला नरनव,
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( ३३०) उत्तराध्ययने गाया रे॥पू॥॥ अवसर पाय विषय रस राचत, ते तो मूढ कदाया रे॥ काग उडावण काज विप्र जिम, डार मणि पबताया रे॥पू॥२॥ नदी घोल पाखान न्याय कर, अईवाट तो आया रे॥ अईसुगम आगलरहीतिनकू, जिनकबुमोदघटाया रेपू॥३॥ चेतन चार गतिमें निश्चे, मोदछार ए काया रे॥
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(३३७) करत कामना सुर पण याकी, जिनकू अनर्गलमाया रोपूणा रोदणगिरिजिमरतनखाणतिम, गुण सतु यामें समाया रे ॥ महिमा मुखथी वरणत जाकी, सुरपति मनशंकाया रे॥पूजा कल्पद सम संयम केरी, अति शीतल जिहां गया रे॥ चरणकरणगुणधरण महामुनि, मधुकर मन लोनाया रे॥पूजा या तन विण तिढुं काल कहो
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(३४०) किन, साचा सुख निपजाया रे॥ अवसर पाय न चूक चिदानंद, सद्गुरु यूं दरसाया रे॥पू॥॥ ॥पद सीत्तेरमुं॥पयूषण स्तुति॥ ॥ मणि रचित सिंहासन, बेठा जगदाधार ॥ पर्युषण केरो, महिमा अगम अपार ॥ निज मुखथी दाखी, साखी सुर नर उंद॥ ए पर्व पर्वमां,
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(३४१) जिम तारामां चंद ॥१॥ नागकेतुनी परे, कल्प साधना कीजे ॥ व्रत नियम आखडी, गुरुमुख अधिकी लीजे॥ दोय जेदे पूजा, दान पंच परकार ॥ कर पडिक्कमणां धर, शीयल अखंडित धार ॥३॥ जे त्रिकरण शुरू, आराधे नवकार ॥
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(३४२) जव सात आठ अव, शेषे तास संसार ॥ सह सूत्र शिरोमणि, कल्पसूत्र सुखकार ॥ ते श्रवण सुणीने, सफल करो अवतार ॥३॥ सहु चैत्य जुहारी, खमतखामणां कीजे॥ करी सादामीवत्सल, कुगति द्वार पट दीजे॥ अहा महोत्सव,
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(३४३) चिदानंद चित्त लाई॥ इम करतां संघने, शासनदेव सदाई ॥४॥ ॥पद एकोतेरमुं॥राग सोरठ॥ ॥ क्या तेरा क्या मेरा, प्यारे सहु पडायरेदगा ॥ पंबी आय फिरत दडं दिशथी, तरुवर रेन वसेरा॥ सहु आपणे आपणे मारगते, होत नोरकी वेरा॥प्या० ॥१॥
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(३४४) इंजाल गंधर्व नगर सम, डेढ दिनाका घेरा॥ सुपन पदारथ नयन खुल्या जिम, जरत न बहुविध देखा।प्या रविसुत करत शीश पर तेरे, निशिदिन गना फेरा॥ चेत शके तो चेत चिदानंद, समज शब्द ए मेरा॥प्या॥३॥
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(३४५) चोवीश जिनेश्वरना बंद.
Parioro--
॥ हा॥ आर्या ब्रह्मसुता गीरवाणी । सुमति वि. मल आपो ब्रह्माण।। कमल कमंडल पुस्तक पाणी । हुं प्रणमुं जोमी जुग पाणी॥१॥ चोवीशे जिनवर तणा, बंद रचुं चोसाल । जणतां शिवसुख संपजे । सुणतां मंगलमाल ॥५॥
॥बंद जाति सवैया॥ ॥आदि जिणंद नमे नरइंद स पुनमचंद समान मुखं ॥ समा मृत कंद टाले नवफंद मरुदेवीनंद करत सुखं ॥ लगे जस पाय सुरिंद निकाय जला गुण गाय जविक जनं ॥ कंचन काय नहि जस माय नमे सुख
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( ३४६ )
थाय श्री आदि जिनं ॥ १॥ अजित जिणंद दयाल मयाल विसाल नयन कृपाल जुगं । अनोपम गाल महामृग चाल सुनाल सुजानग बाहु जुगं ॥ मनुष्य मेली ह मुनिसरसिंह
बीह नरीह गये मुगति । कहे नय चित्त धरी बहु जति नमे जिननाथ जली जुगति ॥ ॥ २ ॥ कहे संजवनाथ अनाथको नाथ मुगतिको साथ मिल्यो प्रभु मेरो । जवोदधिपाज गरीब नवाज सबे शिरताज निवारत फेरो ॥ जितारीको जात सुसेना मात नमे नर जात मिली बहु घेरो | कहे नय शुद्ध धरी बहु बुद्ध जिनावन नाथकुं सेवक तेरो ॥ २ ॥ अजिनंदन स्वाम लीधे जस नाम सरे सवि कामजविक तणो ॥ वनिता जस गाम निवासको वाम करे गुणग्राम नरिंद
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(३४) घणो॥ मुनीश्वर रूप अनोपमजूप अकल स्वरूप जिनंद तणो । कहे नय खेम धरी बहु प्रेम नमे नर पावत सुख घणो॥४॥ मेघ नरिंदं मलार विराजित सोवनवान समान तनु । चंद सुचंद वदन सुहावत रूपविगर्जित कीम तनु । कर्मकी कोम सवे दुःख बगेम नमे कर जोम करीनगति।वंशश्याग विजूषण साहिब सुमति जिनंद गए मुगति ॥ ५॥ हंसपाद तुट्य रंग रति अर्ध रागरंग अढीसें धनुष चंग देहको प्रमाण हे । उगतो दिणंद रंग लाल केसु फुल रंग रूप हे अनंग नंग अंग केरो वान हे ॥ गंगको तरंग रंग देवनाथहि अजंग ज्ञानको विसाल रंग शुद्ध जाको ध्यान हे । निवारीए क्लेश संग पद्मप्रनु स्वामी धींग दीजीए
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( ३४८ )
सुमति संग पद्म केरो जाए हे ॥ ६ ॥ जिद सुपास तथा गुण रास गावे जवि जास आणंद घणे । गमे नवि पास महिमा निवास पूरे सवि स कुमति हो || चिहुं दिसे वास सुगंध सुखास उसास निःसास जिनेंद्र तणो | कहे नय खास मुनींद्र सुपास तो जस वास सदैव जो ॥ ७ ॥ चंद्र चंद्रिका समान रूप सेलसे समान दोढसो धनुषमान देहको प्रमाण हे | चंद्रप्रभु स्वामी नाम लीजीये प्रजात जाम पामीये सुख गम गम गामज समान हे ॥ महासेन चंग जात लक्ष्मणानिधान मात जगमां सुवास वात चिहुं दिसे यात हे | कहे नय बोमी तात ध्याइये जो दिनरात पामीये तो सुख सात दुःखको मी जात हे ॥ ८ ॥
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( ३४ए ) ढोलो बुधफेन पिंक उजलो कपूरखंग अमृत सरस कुंम शुद्ध जाको तुंग हे । सुधावीजी नंद संत कीजीये कर्म अंत शुन नक्ति जास दंत श्वेत जाको वाण हे ॥ कहे नय सुणो संत पूजीये जो पुष्पदंत पामीये तो सुख संत शुद्ध जाको ध्यान हे ॥ ए॥ सीतल सीतल वाणी घनाघन चाहेत हे नविकोककिसोरा । काक जिणंद प्रजासु नरिंद वली जिम चाहत चंद चकोरा ॥ विध गयंद सुचि सुरिंद सति निज कंत सुमेघ मयुरा । कहे नय नेह धरी गुण गेह तथा धावत साहेब मेरा ॥१०॥ विष्णु नूपको मटहार जगजंतु सुखकार वंशको शृंगारहार रूपको अंगार हे । गेमी सवि चित्तकार मान मोहको विकार काम को
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(३५०) धको संचार सर्व वेरी वार हे । आदर्यो संजमन्नार पंच महाव्रत सार उतारे संसारपार ज्ञानको नमार हे। ग्यारमो जिणंद सार खमगीजीव चित्त धार कहे नय वारोवार मोदको दातार हे ॥११॥ लाल केसु फूल लाल रति अर्ध रंग लाल जगतो दिणंद लाल लालचोल रंग हे । केसरीकी जीह लाल केसरको घोल लाल चूनमीको रंग लाल लाल पान रंग हे ॥ लाल कीर चंचू लाल हींगलो प्रवाल लाल कोकिलाकी दृष्टि लाल लाल धर्म रंग हे । कहे नय तेम लाल बारमो जिणंद लाल जयादेवी मात लाल लाल जाको अंग हे ॥ १॥ ऋतवमै नरिंद तणो एह नंद नृमंत सुरेंद प्रमोद धरी । गमे फुःख दंद दीये सुखवृंद
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( ३५१)
जाको पद सोहत्त चित्त धरी ॥ विमल जिनंद प्रसन्न वदन जाके सुन्न मन्न सुगंग परि । एमे एक मन्न कहे नव धन्य नमो जिनराज दिांद सुप्रीत धरी ॥ १३ ॥ - नंत जिणंद देव देवमां देवाधिदेव पूजो नवि नितमेव धरी बहु जावना । सुर नर सारे सेव सुख की स्वामी देव तुज पीखे dर देव न करुं हुं सेवना || सीहसेन ग जात सुजसनिधान मात जगमां सुजस ख्यात चिहुं दिशे व्यापतो | कहे नय तास वात कीजीए जो सुप्रजात निज होइ सुख सात कीर्ति को पतो ॥१४॥ जाके प्रताप पराजित निरबल जूतल थर जमे जानु आकासे । सोम्य वदन विनिर्जित अंतर स्याम वासीवेन होत प्रकासे । जानु मही
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( ३५२ )
पति वंसे कुसय बोध न दीपत जानु प्रकासे । नमे नय नेह नितु साहिब एह धर्म जिद त्रिजग प्रकासे ॥ १५ ॥ सोलमा जिद नामे शांति होय गमोगमे सिद्धि होइ सर्व कामे नाम प्रभावथे । कंचन समान वान चालीस धनुष मान चक्र प्रतिको जिधान दीपतो ते सूरथे । चौद रयण समान दीपता नवय निधान करत सुरेंद्र गान पुण्यके प्रजावथे | कहे नय जोमी हाथ
बहु थयो सनाथ पाइने सुमति साथ शांतिनाथ के दिदार ||१६|| कहे कुंशु जिणंद दयाल मयाल निधि सेवकनी अरदास सुणो । जव जीम महार्णव पूर अगाह - थाह उपाधि सुनीर घणो । बहु जन्म जरा मरणादि विज्ञाव निमिस घणादि कलेस
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(३५३) घणो । अवतार क्रतार क्रिपा पर साहिब सेवक जाणीए ने अपणो ॥१७॥अरदेव सुदेव करे नर सवे सेव फुःख दोहग दूर करे। उपदेश धनाधन नीरजरे नवि मान समानस नूरितरे । सुदर्शन नाम नरेसर अंगज जव्यमने प्रनु जास वसे । तस संकत सोग वियोग योगदरिज कुसंगति न आवत पासे ॥१॥नील कीर वरवी नील मांगवलि पत्र नील तरुवर राजि नील नील नीलाख हे। काचको सुगोल नील इंधनील रत्ननील पत्रनील चास हे॥जमुना प्रवाह नील बंगराज पंखी नील जेहवो असोक रुख नील रंग हे । कहे नय तेम नील रागथे अतिव नील महिनाथ देवनील जाको अंग नील हे॥१॥ सुमित्र नरिंद तणो वरनंद सुचंज वदन
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(३५४) सोहावत हे। मंदर धीर सवेन रहीर सुसाम शरीर बिराजित हे। कजालवान सुकउपयान करे गुणगान नरिंद घणो । मुनिसुव्रत स्वामी तणो अनिधान लहे नय मान आनंद घणो॥२०॥ अरिहंत सरूप अनोपम रूप के सेवक फुःखने दूर करे । निज वाणी सुधारस मेघ जले नवि मान समानस नूरि रे । नमिनाथको दर्शन सार लही कुण विष्णु महेस घरे जो परे॥ अब मानव मूढ लही कुण सकर गेमके कंकर हाथ धरे॥२१॥ जादव वंश विनूषण साहिब नेमि जिणंद महानंदकारी । समुजविजय नरिंदं तणो सुत उजाल शंख सुलक्षण धारी॥ राजुल नार मूकी निरधार गये गिरनार कलेस निवारी। कजाल काय शिवादेवी माय
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(३५५) नमे नय पाय महाव्रतधारी ॥ २२॥ पार्श्वनाथ अनाथको नाथ सनाथ यो प्रनु देखतथे । सवि रोग विजोग कुजोग महा मुःख दूर गए प्रनु धावतथे । अश्वसेन नरेस सपुत विराजित घनाघनवान समान तनु। नय सेवक वंछित पूरण साहिब अनिनव काम करी रमनु॥ १३ ॥ कुकमठ कुलं उलंठ हठी हठ नंजन जास प्रताप विराजे । चंदन वाणीसू वामानंदन पुरुसादाणी बिरुद जस गजे । जस नामके ध्यान थको सवि दोहग दारिज दुःख महा सविनांजे।नय सेवकवंगित पूरण साहिब अष्ट महा सिधि नित्य नीवाजे ॥२॥ सिझारथ नूप तणा प्रतिरूप नमे नर नूप आनंद धरी। अचिंत्य सरूप अनोपम रूप
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(३५६) के लंउन सोहत जास हरि ॥ तिसरा नंदन समजम कंदन लघुपणे कंपित मेरु गिरि । नमे नय चंद वदन विराजित वीर जिणंद सुप्रीत धरी ॥२५॥चोवीश जिनंद तना इह बंद लणे नविवृंद जे नाव धरी । तस रोग वियोग कुजोग लोग सवि पुरक दोहग दूर टरे ॥ तस अंगण बार न लाने पार सुमति तोखार हेखार करे । कहे नय सार सुमंगल चार घते तस संपद नूरिनरे॥२६॥ संवेगी साधु विजूषन वंश विराजित श्री नयविमल जनानंदकारी । तस सेवक संजमधार सुधारके धीरविमल गणि जयकारी ॥ तासदांबुज ढंग समान श्री नयविमल महाव्रत धारी, कहे ए बंद सुणो नविवृंदके नाव धरीने जणो नर नारी ॥२७॥ संपूर्ण।
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( ३५७ )
जाढेर खबर.
पांव चरित्र शुद्ध गुजराती भाषांतर रंगीन चित्रो साथे.
किमत. रु.५-०-०
उत्तम ग्रंथ दरेकना तेमज लायब्रेरी मां होवोज जोइए.
सुक्त मुक्तावली -था अति घरमां
किमत रु.२-०-0
जैनकथा रत्नकोष जाग ४ थो
अर्थदीपिका ग्रंथ.
रु. ३-०-०
जैनकथा रत्नकोष जाग ६ हो
रु.२-०-०
गौतमकुलक.
जैनकथा रत्नकोष नाग मो
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(३५७) पृथ्वीचंद अने गुणसागरनुं महा वैराग्यवान् अनेक कथा युक्त चरित्र.
रु. ३-४-० ___ सकायमाला-अनेक सकायोनो जथो. रु. २-6-0
देववंदनमाला-अनेक सुधारा वधारा साथे. रु. १-0-0
पांच पमिकमण-रंगीन चित्रोतथा घणाज वधारा साथे.रु. १-४-०
विविध पूजासंग्रह-रंगीन चित्रो तथा घणाज वधारा साथेरु.१-७-0
लावणी संग्रह-अनेक लावपीउनो संग्रह. रु. 0-6-0
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( ३५ए) गहुँली संग्रह-अनेक गहुँलीनो संग्रह. रु. 0-6-0 स्तवनावली नागर लो. रु. 0-6-0 स्तवनावली जाग जो. रु. ०-४-0 स्तवनावली नाग३ जो. रु. ७-६-०
सामुजिकशास्त्र तथा स्वप्नविचार
जज्बाहु संहिता-जैनज्योतिष ग्रंथ.
शकुनशास्त्र-दादासाहिब विरचित.
प्रतिमा शतक. रु. ०-१५-७
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________________ (360) अमारे त्यां तमाम जातनां जैनपुस्तको तथा जैनतीर्थोना रंग बेरंगी सुशोनित नकशा मले बे. त्रण श्रानानी टीकीटो मोकली मोटुं बोधमय चार कथावावं सूचीपत्र मंगावो. मलवावें ठेकाएं श्रावक नीमसिंह माणक. जैनपुस्तक वेचनार तथा प्रसिझ करनार. शाकगढी, मांडवी, मुंबइ. Jain Educationa Interati@pesonal and Private Usevenly.jainelibrary.org