Book Title: Atha Sanskar Bhaskarasya Shuddhi Satram
Author(s): Narayan Jagdishwar Mudranalay
Publisher: Narayan Jagdishwar Mudranalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ... - - POOOOOOOOOOOODonor 2222222222222222 2 SD > >>> >> > .. .. .......! ... SSSSSSSSSSSSSSSS INKONDAYO YO NOVOTOYOTI अथसंस्कारास्करस्यशुद्धिपत्रम् " ZzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzzTIOZZAERZZZZZZZZZERS ररररररररररररररररररररररररररस्टरस्टडरटररररररररररररररररररररर . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं.भा. ॥ १॥ पचम् पृष्ठ पङ्गि १ ३ (सकुलेनाः प्रसीदतु.) संस्कारतास्करस्यास्य शुद्धिपत्रं वित्तन्यते ॥ दोषानपि गुणीकर्तुं लेखकादिप्रमादजानन् ||१|| शुद्धिपत्रम् १ अश्रुजम् ईषत् २ २ क्मतिना २ २ हृदि २ ३ तच्च २ ३ तयथा २ ४ गान्न ५ श्राद्धं जम् सेबत् वनसा हन्दि तब तावत् | तियथा www.kobatirth.org णमन्न श्राद्धानि यम् पृष्ठे | पङ्किः अजम १ २ ६ संस्था २ ७ संस्था २ ७ इत्य १ १ याति For Private and Personal Use Only १ संस्था २ कमिति १ १ २ रासु उम् संस्थाः संस्थाः अत्य योति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्थाः कंच रास्तु शडिप. | ॥१॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पं. अाम् १२ तयथा |पं. अगदम् و ॥ शम् तेरथा मंतो काश्च ग्रहीताः कोप्य षोडशी کم || गरम् हस्सय धीति तेलया ६ पिरिति ३ तिस्तथा ५ वा هم و शुवा २गृण्हीया: || केप्य ५ षोडशः xxxaaaaaad-4 و که و तेग ७ चापि ७ बैजीक १/२ चविशेषाणि तयथा १४ लाह १/३ विधिः |४|कुर्वीत चापि नापि बैजिक विशेषा | तानियथा ॥शो' विधि || कर्तव्या For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं-मा पृ.प.| अहम् ۴ || काइम् का 1.पं. अशुद्धम् ५ बान्त د د د F शुद्धिप ر و पस्त د बास्त पःस्मृ मेनू पःस्मृ पांचा ر و KX که ७ सेंद्र १/पस्मृ २ शांवा तास्म थीद EFFER FREE م که که थिद کو کم येद د ه کی کمر मैनयो |२|५ हेमस्य मणिचो । हेमन For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||पं. अशुद्धम् शम् .04 ६/विश्नूया २ योर्थ मुथ बिया यार्थ मुस्थ ... ४ विलं |पं.। अशुदम् कथिताः २ कशा २/दीर्घा २ जुष्ठा सर्पिष्यां ५ ब्रजंत्य कंडणं ६नत्रि १/७/रिणी | ८ |२|७होमात् ॥ धम् कथितं | कृशाः | दीर्घाः जुष्ठाः सर्पिया बजत्य कंडन बलं . و بر ع پر قوم ی کا . . COMPA ४ विमितिथि ४ बीति कर्मणी बाये वीतमिति वीन कर्मणि ब्राह्मे . नत्रि रिणि बरी | मोहात् For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स.भा. पृ.प.। अगहम् शुद्धिप हीरक: २६ पयादि ७पत्रे पयआदि आग: भाग Fxdify ५ मात्रा पृ.।। अशुमन न गर्म १२ हिरक परपुरे गोमूत्रं गोमूत्रं रोबो रब्रा कस्तुरी कस्तूरी शिरीष सर्षपः सप्त मात्राः दन लीर्या पी लियो द्रीय योगत २४ध्ययनं 쩨의 योगस्त ॥ध्ययने For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पं.। अयुद्धम गैरिका पोतो शुहम माकाश्च का कंग: पउक्तो भागाः नवम् मृन्मय भाग: नरवस्य मृण्मय | भास्य राला: वैपूल्यं, चैपूल्यं ६ मा॥ ६ हज ६ माहदा छात्म भाः स्यु माकाः।। दूज माछ चान्मृ रुक महा लिक्षात सीत वैपुल्यं २ सित न्यानि न्यानी १३ /२/१लीक्षास्तु For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [सं-प्रा ॥ ४ ॥ पः १३ १३ १२ |ट | प ه م | १३ | १३ |२ ११३ ११३ १३ !2 १२. २ अशुद्धम षद २. कृष्णाल: ★ माषा २. वर्णा १३ ष्णा ठो ६ शोडश ६. सः ए ६. कर्ष: इ | १३ ९४ १ ४ प्रस्थः १४ | द्रोणस्तु शम् षट्ते रुष्णला भाष वर्ण ष्णाल षोडश सए कर्ष प्रस्था द्राणास्तु www.kobatirth.org | पृ· | पं. अशुद्धम १५ षोडष १७ आढंके १ ७ द्रोण २ २ रीि १४ २३ मिति १४ २३ भइ १५ ११ पूजनं प. १४ ११४ | १४ १४ १५ १ ५ बोउक्तः १५ १६ व्याहृतिः | १५ | १ | ७ | यः स्त For Private and Personal Use Only शुद्धम पोडश आटक द्रोणः रीविं इति भइ पूजने याउक्ताः व्याहृती: यस्त Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शङ्किप ॥ ४ ॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प. पृ.पे.॥ अशुद्धम् शरम् जानु पारक्येण १ पारस्येन पृ.पं.। अशुद्दम् नामा ४सत्यस्यात त्यद २ मिआ २.योन देवनााह ५. गांधा शुदम् नाम || सत्यः स्यात् त्याद मिग यश्चेति देवनानामान्याह गर्भा १७ चिरिति त्राम १/४ दक्षितः याप्र १४वर्ण चीति बायाम दक्षिणतः याप तुये वर्णः चेतसा प्रचेनमा रास्त नञ्च For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संभा به م यस्तु प.पं. अशम 10 येन | ३ | चिन्यू ७ दिभिस्त इंद्राणी शम् ।प ||. अशम् |४इंद्राणी चिन्न्यू ४ ईश्वरी दिस्त ३ ोण निःस्मृ ३ नंदुलान् م م م 999.. ईश्वरी द्रोणा तंदुला: तिस्मृ धरे ॥ ५ प्रकर्ण कर्मे श्रेष्टः दोषो م م م م Pr #sonasia प्रकरणम् कर्मण्य श्रेष्टः दोष पेति २४ पुनंनुमा विधि २५/१/३ ब्रह्मावि दुष्करम् पुनन्नुमा स्वात्रि ब्रह्मवि In५॥ | सशर्कर | सशर्करम् For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4. [प-पं। अशुहम् ताश्च हत्या तत्र कुत्सं . नाभि यजुषा ससंस्कार्येण 6 | याजुपां | संस्कायेण पुन्य ना पृष्ठि |पृ.प.| अगुदम् । दम् उत्तरच्छदेउत्तराय सोत्तरच्छदेउपर्या स्तरणसहित पर्वणि षोडश रस्थवा रान्यतम ५ कोस्मा कास्मा धियाज धियन्नि २२ पश्भि पृश्नि 11 गरेम गच्छेम 11 |२||आसुष्य . तन्ना पृष्ठ शेय शेनय खेन आयुष्य For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं-सा ॥ धम् به م प.पं. अशरम २ नुज्ञान पृ.पं.। अशरम १५ ह्माधि 1६ यथायथा ततोध्यानं :: م م नोबा मोदि. : : م م यथाययं तबध्यानम् त्र्यम्न विष्णवः बांखि कुर्वीत पणेयो यच्छा २४ यियः १५ वांछि ५ कुर्वीतः ७ पर्णोधो ॥ शरम. नुज्ञातः संपद नोर्चा मौदि यस्तव शशी लइति स्थाय तिःस जैमिनि م م م : : : : शशा लंइति स्थाय्य २६ तिस्त जैमिन २२ पछा २ गस्तु मस्तु For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प. पू. प. ८६ अशुद्धम ७ धीर्षे २ ५ होत १ ६ खानी २ ६ तस्बि १ ६ प्रांच्यौ | खादिरा ९४ ९६ १०१ १ १०३ २ १ १०५ १ ५. ४ प्रवाती पूर्वे - ह्माणं. | १०९ २ दुर्म्मि. | ११३ / २ / ६ | लतु - रुद्धम् मीधे होरुत्त जानी तः खि मान्यौ खदिरा भबोती दूर्म्मि ऋतू www.kobatirth.org ॥ प. पू. पं. ११९ १ १२२ १ १२२ २ १२६ १ अशुद्धम For Private and Personal Use Only ५ नौ ७ चिभर्व ३ न ॥ ता २ सुनानीं १२७ २ १३३ १ | १३५/२ १३६ / २ ५ चरु | १३८ २ १ शीघ ||१३९ / २ / ६ |च्छिंद्यांत् ५ तदकु ७ य० पिंड ५ लां हम | नोर्फे चिर्भव नता मुन्तानां तदं कु यः पिंड लालं | चरुं शीघ्र छिंद्यात् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संभा. पं. अरारम् शम् पं. शम् ॥ शुद्धिफ. ॥७॥ परतः मन अशम । मीम तुमे पुत्रक पुत्र बहन्सू श्रुतये कास ५ मडप मंडप मृषा कम मृशा श्रियं श्रीयं २. स्वमयं स्थापन नोराज्य बजम्ब स्वाम स्थापनं नीराज्य यज्ञम्ब करग्रह माघे पेक्ष्यते |१४९/२/१ यीश्री धीपणा |२/६/नमशी यित्री: धिषणा || नशी माघ १८७/१६ पेमते For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पः [प्र.पं. अशडम् १९१ २२ षृक्तेषु २०३२ ७ देवा: स २०५ ११ नामिति | २०६ २ १ तिस्मृति २१० १ ४ प. सूहनं २११ २ ६ वेत्य २१२ १ ७ र्यानु २१३ २ ६ प्रजापति २१७ २ ३ विदे २२० | २ | २ | कीतनां शद्धम् षूतेषु देवास न्तामिति तिसृभि परिसमूहनम् | वेत्य र्यनु www.kobatirth.org प्रजापति विन्दे | कीर्तनं प. प्र.पं. अशुद्धम २३४ १ २ तश्व २३४ २ ७ प्रिय २४१ १ २ लभनं | २४१ १ ४ शंन्ध २४१२१ दृष्टि २४३ २३ ऊर्वरा २४९ १ १ तन्वज्जो २४९ २ ४ रटांग २५० २ ४ चतुर्थी २५१ १ ७ उ For Private and Personal Use Only कदम तोवर धिय लेप्तनम् कन्ध दृष्टि उर्वरा नज्जो हटांगं चतुर्थी ऊध्ये Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं.भा. |पं.। अशुद्धम् २२ मिमांसा दम् मीमांसा नेरपि रीत्या इत्रिमः न्यस्त 469 २ रित्या | २ दंतिमः २ न्यतु |पं. अशङ्कम |३ युजानोमा २ रहित २७७१ वष्ट्य बल्मिकात् ३ निसपे २८२२ २६माजस्यो ४ प्रकार | खुजानआ रहीत भूतं वेष्ट्य वल्मीकान् निक्षेप माज्यस्यो मकार शुभ व्हयन्त 1४ रजश्वला भिषिंच्य तस्य १४ | होमकू रजसला भिषिच्य तस्या होमःकू ॥ २९८/२१/इयंत For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प. पू. पं. २९८ २ २ स्माशदष्ट अशजम् ३०५ २. पाश्चा ३०७ १ ३०८ २ ३ भक्ष ३१४ १ ४ प्रदश ३१५ १४ विशनि ३१८ १७ समा० ७ पौत्रायाय ३१८ २ ६ यः सवा० ३१९ २ ६ जलाया ३२० | १ | ७ | दृष्टि शद्धम स्माद्दादशेष्ट याव पौत्राय लक्ष्य प्रदेश विशतः तन्मा० यस्तेमा० जलावा www.kobatirth.org | दष्टि प. पृ. पं. अफजम् ३२२ २ | सहायनी ३२६/२ ७ मो अ. णैस्तैः, 0 ० हारेर ३३४ १ ६. पारधीं ३३४ / २६ चतुर्थः ३३६ १ १ विव्य ० ३३८ | २ ३ स्मश्रु ( ३४२ १५, सूर्याव ३४२ २ ४ विपा | ३४५ / २ / ६ | राज्ञो For Private and Personal Use Only कदम् सहायिनी मस्त्व, णै: स्वे:, हरेद जारघ्नीं चतुर्थ | षिच्य श्मश्रु सूर्या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषा यज्ञो Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं.भा. ॥ प.प.पं.। अशम् ५/१२/पासि ६/जप वासि ॥ प. पू./पं। प्रशम् ||३४७/२६ सता ।। क्षनादि समाप्तम् For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - -- -- - - - - - - TOLLICITUTLIYITT ATML HIERRYANIMAIWIAMAAVAMITYARDAMNALAMANIYAMRAYANTARARAMASALARLALARMANENAAMPLE . इतिसस्कारसास्करस्यशद्धिपत्रम्. . . ...... MALLARLA .... ... . . NONENONYMONDARORUNANIRVVRRUAUNா . . . . . . . ... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . - For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie - NAVAN TV MANOOTOS अथसंस्कारभास्करस्यानुक्रमणिकाप्रारंभः MORRORD diwaववाहातात NSS For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक . . संभा॥ श्रीगणेशायनमः॥अथसंस्कारभास्करस्यानुक्रमणिकाधारंमः पत्रं पृष्ठ पनि प्रकरणानि ॥ (पं.। प्रकरणानि गणपतिस्मरणम् •संस्काराणांफलानि • • २ मंगलाचरणम् १२ विशेषावश्यकानिकर्माणि ग्रंथकर्तनामादि परिमापारंशः गौनमोक्तचत्वारिंशसंस्काराः संकल्पाकरणेदोषः अंगिरउक्तपंचविंशत्तिसंस्कारा: संकल्पेमासादि १ स्वगृयोक्तपोडशसंस्कारा: स्वशाखोक्तकर्माकरणेदोषः द्विजादन्यः अन्यथाकर्मकरणेदोष: ||३|कन्यायाअष्टसंस्काराः •३ प्रधानकर्माकरणेतदंगाकरणेचप्रायश्चित्ता . . . . . ० ० . ० For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir F पिं . . SocNGA. प्रकरणानि धौतवस्त्रधारणं वाग्यमलोपे प्रा. आहतवस्वलक्षण | ४ | कंबलेपट्टवस्त्रेचनीलीरागःशस्तः ५ उदकोपस्पर्शकारणानि अनुक्तांगे गं ३ अदिडियमे • आसीनायनियमे ब्रह्मविष्टरनिर्णयः 10१६/पवित्रप्रमाण . .. . 201603 .. . . प्रकरणानि ५२/७/पवित्रेदर्पसंख्या ६ १/३/दर्भकुशलक्षणं . ४ अयानयामानि •.५ निर्माल्यकुशाः 000 पवित्रधारणस्थानंलक्षणंच स्वर्णपवित्रप्रमाण .०५ पवित्राशावेदर्भाः • • ७ उपवीतिनाबद्धशिरवनचपिनाकर्म | करणदोषः ७ /१/३/यज्ञोपवीत निवीतप्राचीनावीतलक्षणमा For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसा ॥२॥ अनुक्र , . . . . ।पृ.पं. प्रकरणानि मंगलेतिलकनिश्रयः ७ आहुतिकाल: चम्हिजायालक्षणं यज्ञीयवृक्षाः • ५ समित्यमाणमायायाझुविचारश्र ४दानीतसमिदादीनांदोषः देवपितृकर्मकंड्नादिनिर्णयः असमिद्वानोहोमेदोषः |२१|अमिधमनविचार: •४/सामान्यग्रहहोमाहुतिप्रमाणं प्रकरणानि स्वग्रद्योतकर्मनिश्चयः अन्यथाकर्मकरणेविचारः उक्तवस्वभावअन्यग्रहणवि-चारः • ६/मूलमंत्रोचारप्रकार: ७/दध्याघलाभेप्रतिनिधिः ४प्राजापत्यादितीर्थनिर्णय: आहुतिद्रव्यग्रहणमानं ०६/स्वेणहवनद्रव्याणि १०/१/१ द्रव्यभेदेनआहुतिमानं ॥ १.२.१ |एकाहुत्यांकरादूर्वासरच्या . . . . For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( . प्रकरणानि ११ सर्वोषधयः अर्घद्रव्याणि सप्तधातवः . -. पंचरंगाः प्रपं. प्रकरणानि मृगीमुद्राला | ऋषिदअज्ञानेदोषः पंचरत्नानि |३/मांगल्याभरणानि ४ पंचगव्यं २ मधुरचय ३ पंचामृतानि • पंचभंगा: ६/यक्षकदमः ७ सर्वगंधाः . For . . . F22241_ad . . . . दशांगधूपः धातुमयकलशाः ७ कलशप्रमाणं कलशेपूर्णपाचं सप्तधान्यानि ||६/सप्तमृदः . . . For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समान | प. पापा अनुक्र - - س - पं. मकरणानि द्रव्यमानं तापमान धान्यमानं स्मार्तकर्मक्रमः दशप्रणवाः २ कर्मविशेषेअग्निनामानि ३ कर्मागस्वस्तिवाचनेदेवताः कर्मादीप्रणवोच्चारण ६ इक्ष्यादिभक्षणेपिकर्माधिकारः 10 स्नानोत्तरंकर्माधिकारः و کی د م م ر م م د وي प्रकरणानि २ मुरव्यस्मान ३ संध्यादनंविनाअशचिः ५सकर्मसुयोग्यताफर्माणि ७/कर्मांगनानेविरोषः | २ | मंगलस्नान आशष्फवासोनिर्णयः सप्तवानाहन रस्त्रंशषं दग्धजीर्णादिवस्त्रपरिधानेनिषेधः वय॑वस्त्राणि ६/धौतवरूपप्रसारणनिर्णयः - م و - و . ॥३ ॥ For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प प्रकरणानि १ अन्यद्दासः २ धौतवस्त्राभावेवस्त्राणि ४ नीलरक्तवस्त्रनिषेधः ५ एकवस्त्रपरिधानेनिषेधः १ एक वस्त्रनिर्णयः • २ कच्छवयनिर्णयः ० ५ धर्मकार्येव यैवस्त्रं • ६ आसरीकक्षानिषेधः २१ यज्ञोपवीतधारणसंख्या ०३ | शिखाबंधनिर्णय: पृ. पं. 9 www.kobatirth.org D • प्रकरणानि ५ विशिखनिर्णयः १ कर्म कालेनिंद्यशब्दाः २ उपांशुलक्षणं ४ स्पष्टतर वर्णोच्चारः ५ षोडशोपचाराः २१ पंचोपचाराः ०२ राजोपचाराः For Private and Personal Use Only ५ धनिकादीनांदक्षिणादानेयता D ५. धनिकादिलक्षणं [२१/१६ | धनिकादीनांमध्येकेन कियद्देयमित्यस्यनि० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सं.भा. पाप. प्रकरणानि प. पं प्रकरणानि २३ १/१ सूख्यकल्पशक्तीअनुकल्पेनकर्मक | २६ २२ मंगलस्नानविधिः रणेदोषः वरूपपरिधानादि ४दक्षिणाप्रतिनिधिः २६ शांतिपाठमंत्राः ५ रजतसद्रादक्षिणादाननिषेधः १.कारगणेशादिस्मरणं ६ सर्वकर्मसब्राह्मणभोजनसंख्या १/प्रधानसंकल्पः २सफलानिकर्माणि २४ कलशदीपपूजनं इतिपरिभाषाप्रकरणं ॥ गणपतिपूजन अनिनक्रविनाकर्माणि २ स्वस्तिपुण्याहवाचनकारिका ३ नारदोक्तरजोदर्शनशांतिक्रमः 12/३/पुण्याहवाचनांगवरुणपूजन १ शांतिप्रयोगानुक्रमः || १४ अथपुण्याहवाचन For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (प.फा पकरणानि मकरणानि २७ अथाभिषेक: ५ नांदीश्राद्धमध्येद्वितीयनांदीश्राद्धनिषेक ७ नीराजनं ६ अयजीवसितकेवृद्धिाइनिर्णयः॥ ५मातृकास्थापनंगानाच २ अथांकल्पविधिनानांदीश्राद्धप्रयोगः|| मानकापूजनं ६४ २५ ब्रह्माचार्यक्रलिम्वरानि ३ ग्रहमध्येअविभकलशमानार्पस्थापनं १२ आचार्यादीनांमार्थना ५ वसोर्धाराकरणं ६८ /दिपक्षण २ आयुष्यमंत्रजपः ६९/२/१/पंचगव्यकरणं ५/मंडपेसंस्काराः ७० भूमिपूजन 10६ मंडपंविनामातृकापूजनाभावः 1.0/६पंचभूसंस्कारकारण नांदीश्राइकाउः ||१२ स्थंडिडेपंचामूसंस्काराः d . . 648844 . . . . For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ۴ अन و 25. • pra. • . 9555 • • • • aaaaa..-.. प्रकरणानि अग्निस्थापन ५ कतुशांनौविशेष: | २ मूर्तीनांअभ्युत्तारणं ॥२/५/प्राणपनि २. सूर्याचाहन ४|इंद्राचाहनं ६/इंद्राण्यावाहनं |२/भुवनेश्वर्यावाहनं सूर्यादिदेवतापूजन सूर्यभार्थनाक्षमापनंच • • . प्रकरणानि इन्द्रमार्थनासमापनंच ४ इंद्राणीप्रार्थनाक्षमापनंच धरनेश्वरीप्रार्थनाक्षमापनंच ३ स्वर्णकदलीस्थापन | सूर्यादीनांसूक्तजपः ४ महमंडलदेवतापकारः |५/यहनामानि यहदर्णाः २ ग्रहमतिमानिर्माणधातवः • • | यहमतिमानिर्माणप्रकारः ७८. ॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [पृ.पि प्रकरणानि ६ ग्रहदेशाः २ ग्रहगोत्राणि यहागिनामाचाश्लोकमूकपुस्तकांतनजरचुकी नेलिहिणेराहिल्यामुअनुक्रमणिकेच्याशेव • ५ ग्रहस्थानानि [लिहिला आहे. |१ ग्रहमंडलव्यासाः • ६ ग्रहदिङ्मवानि ८०११ यजमानाभिमुरवग्रहाणांस्थापन • ३ अधिदेवताप्रत्यधिदेवतास्थानानि • अधिदेवतानामानि • • • .34 . • पृ.पं. प्रकरणानि ६/प्रत्यधिदेवनानामानि २१ गणेशदुर्गादीनांस्थानानि ३/इन्द्रादिदिक्पालानांस्थानानि ५)ग्रहाणांवस्त्राणिपुष्पाणिच ग्रहाणांगंधाः ग्रहांधूपाः ग्रहणांनैवेद्यानि ६ हविव्याणि .७ ग्रहाणांसमिधः २/१/काण्डानुसमयः • 3. • • For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं० भा० ॥ ६ ॥ पः ॥ पृ| पं. प्रकरणानि १२ पदार्थानुसमयः ३ गणेशायवराहुति: • ४ आधारा ज्यभागाहुतिसंख्या ० ६ त्रिविधग्रह मरवाः ०७ विविधग्रहमखेषुग्रह्मणां आहुतिसं www.kobatirth.org ख्या १ २ व्याहृतिहोमः संख्यापूरणार्थं • ५ अधिप्रत्यधिदेवताहुतिसंख्या २ २ पूर्णाहुतिमंत्रक्रमः २ ७ पूर्णाहुत्याज्यसंस्कारः प्रकरणानि २ पूर्णाहुति होमस्सुवधारणादि २५ ग्रहमंडलेगणपतिदुर्गाक्षेत्रपालावाहनं ८३ • ८४ १ ५ ग्रहाणां स्थापन ९० २ ४ ग्रहपूजा ९१ १ १ ग्रहाणांप्रार्थनामंत्राः • १२ ४ रुद्रकलशस्थापनं ९२ १ २ कुशकंडिकान्याख्या २ २ वारुणपावलक्षणं ४ चमसलक्षणं ९३ १ | १ | परिस्तरणलक्षणं ० 0 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only अनुक• ॥६६॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir و در # For. . • ه ه ه • . मकरणानि १/२ आसादनीयपात्रमध्येऽतरम् आज्यस्थालील. १/चरुस्थालीलक्षणं सम्मार्गकुशलक्षणं उपयमनकुशलक्षणं स्वलक्षण पवित्र च्छेदनलक्षणं ३ उसपनोहिंगनलक्षणम् प्रोक्षणेकारणमाह १२/१/असंचरस्थान • . प्रकरणानि २ नंदुलक्षालनप्रकार: ६/श्रपणप्रकार: ७पर्यनिकरणंतत्कारणंच |२|सुषसम्मार्जनप्रकारः ७ उदासनस्थान २ उसुनातिकरणलक्षणं ६/प्रदक्षिणपर्युक्षणकारणं ९६/१२ आधारावाज्याहुतिप्रकार: | २/३ उपांशुप्रकार: ...५/अन्वारंप. ه • . .. • • . • For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संभा अतकर प्रकरणानि १९६२/६ सुवधारणप. २ खयहोमेएव त्यागः अनेक सुवसाध्यहोमप्रकार: ६अमिपूजास्थानं २२ स्विष्टरुदाहनि निर्णयः ..७ अन्वाधाननिर्णयः कुदाकंडिका आहुनिदानसमयः मुख्यहविः हरनाराआहुतिसंख्या 2. • • • • || प. प.पं. प्रकरणानि ३ मृडामेरुत्तरपूजनंलक्षणंच ४/भूरायानवाहुतयः दिक्पालानांबलिदानं १०५/२२ गणेशदुर्गाक्षेत्रपालानांबलिदानं . ३ ग्रहाणांबलिदानं ४ मातृणांबलिदान ६ प्रधानदेवताबलिदान १/३/क्षेत्रपालमहाबलि: |१०९/१/१ दुर्ब्राह्मणलक्षणं ॥ • २/१/पूर्णाहुतिहोमः - - • • . For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पपृ.प. प्रकरणानि | ११६/२५ मूर्तिदानं अभिषेकमंत्राः अभिषेकेपौराणमत्रा: आज्यावलोकनं .२५/ब्राह्मणामोजनसंकल्प: दीनांदक्षिणादानं - प. प. प. प्रकरणानि १६ वसोर्धारामंत्राः १/२ वसोर्धाराब्राह्मण घ्यायुषकरणं श्रेयःसंपादनं ११५ २.५ आचार्यपूजनं ०७ स्वर्णदानं २ गोदानं • भूमिदानं 0६ तिलपात्रदान • २/१ हेमकदलीदानं . १२९ ११ देवनाविसर्जन ... अभिविसर्जन ... कर्मेश्वरार्पणं २७ गर्भाधानसंस्कारनिर्णय: For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं-प्रा 112 11 ॥ प. पू. पं. प्रकरणानि १२२ १ २ प्रथमतशिष्टाचारात्कर्त्तव्यम् ० ० ६ सर्वर्तुसाधारणेविशेषः www.kobatirth.org २ ३ रजस्वलाशद्विप्रकारः ० ५ गर्भाधानकालः १२३ २ ४ स्त्रीणांयोगपये नक तौगमन क्रमः • ६ अगमने दोषः १२४ १२ गर्भाधाना करणे प्रायश्चित्तं 0 ० ३ ऋतावऋतौ चगमनेशुद्धिप्रकार: ६. रजोदर्शनात्प्राग् स्त्रीगमने दोषः २१ गर्भाधाने मलमासादिनिर्णयः . प्रकरणानि • ० प. पू. पं. १२४ २ ३ गर्भाधाननिर्णयः ६ गर्भाधान प्रयोगानुक्रमः १२५ १२ गर्भाधानप्रयोगः १२७११ गर्भधारणार्थमौषधं ० ५ पुंसवननिर्णय: १२८ १ ४ पुंसवनप्रयोगः १२९ १६ गर्भिणीधर्माः १३० २ ६ गर्भिणीपतिधर्माः १३४ १ १ गर्भवृध्युपायः • • ० ४ गर्भरक्षोपायः For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक | ॥८॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प. पू. पं. मकरणानि | १३४ १ ७ गर्भस्त्रावहरोपायः १३५ १ १ सीमंतोन्नयननिर्णय: २२ O २ ५ सीमंतोन्नयनप्रयोगः १३७ १ ४ औदुंबरादिपंचकबंधनं १३८ १ ३ गर्भाधानाद्य करणेप्रायश्चित्तं ० 0 ४ शीघ्रप्रसवोपायमंत्र: ७ शीघ्रमस्वार्थयंत्रं २ ६ शीघ्रम सवार्थमंत्रितं जलं सीमंतोन्नयनप्रयोगानुक्रमः ० 0 www.kobatirth.org प. पू. प. प्रकरणानि १३९ १७ जातकर्मसंस्कारनिर्णयः २१ जातकर्मींग नांदीश्राद्धनिर्णयः ० ४ | नाल च्छेदने कालावधि: ० ५ नाल-च्छेदनप्रकार: ७ जातकर्मक्रमः Q १४० १ २ जातकर्मप्रयोगः • २३ मेधाजननं ७ ० ६. आयुष्यकरणं 0 १४१ २ २ वात्स प्रमंत्राः | १३९ | १५ | कुयोगादिशांतिप्राप्तौस्नाननिर्णयः ॥ १४३ १६ कुमारमा तुरभिमंत्रणमंत्रा : ७ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ||अनुक्र. सं.भा. पं . प्रकरणानि प. पं. प्रकरणानि ॥९॥ ||११३/२/१ कुमारायस्तनप्रदानमंत्राः ११ षष्ठीपूजनप्रकार ••४|उदकपूर्णकलशस्थापनमंत्रः १५०/२/४ षष्ठीमार्थना अग्निस्थापन १/सूतिकारहवलिदानमंत्र: १४४/१/३ हवनमंत्राः ../३/द्वारमातृकाः बालग्रहः कुमारमुपद्रवेत्तदामंत्राः ॥ १५२/१ रात्रिवर्गशांतिपाठ मंत्रक्रमः यहणेजाताशौचमध्येचजातकर्मक • २/५ अयनामकरणसंस्कारनिर्णयः । रणनिर्णयः नामकरणप्रयोग: बालस्यदुष्टदृष्टिदोपरक्षाविधिः उपांशुलक्षणं बालरोदनपरिहारार्थंयंत्रं ... आयुष्यकरणमंत्राः | अथषष्ठीपूजनकारिकाक्रमः ॥१५७/२/२/आंदोलारोहणं For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प. पृ.1 पं. प्रकरणानि | १५७ २५ पयः पानं १५८ १ १ अथनिष्क्रमणसंस्कारः २५ कुमाराय सूर्यदर्शनं १५९ १ १ भूम्युपवेशनं 0 ० २३ अथान्नप्राशनसंस्कार ७ शौनकीत दत्तपुत्रप्रतिग्रहविधाननिर्णय २ ६ दत्तकेविशेषः १६२ १ ३ कन्यादन्तकग्रहणेविशेषः ०/४ स्त्रीशू द्वयोस्त विशेष: [३] पुत्रप्रतिग्रहप्रयोग: १६१ १ www.kobatirth.org 5.8 .. प. १६२ /२ ० प्रकरणानि केन्याविषये संकल्पः १६३ १६ पुत्रदानसंकल्पः २१ कंन्यादानसंकल्पः १६५१, हवनविधिः १६६ १६ अंतरितसंस्कारे प्रायश्चित्तं १६७ १७ संक्षिप्तांतरितसंस्कारप्रयोगः १६८२ ४ अथचूडाकरणसंस्कारनिर्णयः १७० १७ चूडाकरणप्रयोगः १७४२१ स्पृष्टास्पृष्टशद्धिप्रकारः ०३ | कर्णवेधः For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भानप्रकार: ॥१० ॥ و ه ک که و प्रकरणानि १७५/२० कर्णक्षालनपकारः |.1014/रुषीणोजातादिसंस्कारनिर्णय: २ वर्धापननिर्णयः वर्धापनप्रयोगः १४ अथाक्षरलेखनारंभनिर्णयः २ अक्षरारंभप्रयोगानुक्रमः अक्षरारंभप्रयोग: ६ अथोपनयन ७/उपनयनेकाल: उपनयनशब्दार्थ: ॥प प्रकरणानि ब्राह्मणादीनांवसनादिकतुग्रहणनिर्ण-|| ज्येष्ठमासनिर्णयः... ६ जन्मनक्षत्रादिवयनिर्ण ज्येष्ठमासापवादः her/ जन्ममामादीनामपवादः १ उपनयनेतिथ्यादि • 2016 नैमिनिकानध्यायोपिकालानस्यबटो|| ग्रहणविचार |१८५१३ प्रायश्चितनिमित्तमेस्खलाबंधने विशेष निर्णय: هه هه کی ॥१०॥ For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पपृ. पं. प्रकरणानि प्रकरणानि १८५/२/२ नष्टचंद्रेअष्टमशकेनिरंशेमास्करेच १८०/१६ वर्णाधिपतिस्तद्धलंच व्रतंश || . २५ सेकटेचंद्रनारायभावेदानं निरंशस्वरूपं ... गुरुवलाला निर्णयः ••६) युगा धनध्यायानांप्रतिप्रसवः ||nce ||२ दुष्टस्थानस्येसुरीशात्यापिनोपनय १८६ १/२ वयोदश्यादिनिधिय॑त्वंतत्रापयादव नाधिकारः ५ अनध्यायस्यपूर्वापरदिनवर्व्यवं ५.अनिसंकरेवत्सरातिकमेचनिर्णय: • सोपप दानिषेधोयाजुषाविना 10६ राशिविशेषस्थेगुरौअनिष्टस्थानस्ये सोपपदातिथयः पिनदोषः पारनिर्णयः •२२ ख्यादिग्रहाणांउच्चूस्थानानि १८७१/३ शाखाधिपबलाभावेदोषः 1. 1५/अनिष्टगुरुरेकघर्चनाच्छुभः For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुकर सं.भा. ॥११॥ . प. प.पं. प्रकरणानि प्रकरणानि १/५ उपनयनक्षत्राणि १३ लग्नकाला: २ वेदविरोषेनक्षत्रविशेषाः | • • . उपनयनाधिकारिण: २/उपनयनेयोगाः 1.२२ आचार्यादीनांकर्मनिर्णयः ५ उपनयनेकरणानि | १९४/११ अधिकारसिद्धयेप्रायश्चित्तं ७ उपनयनेदिनभागव्यवस्था ४ मंडपनिर्माणप्रकार: १/२ उपनयनेनिमित्तविशेषेणनिषेधः २ वेदीनिर्माणाप्रकारः • ४ निषेधापवादाः |५/पटीयंत्रपकारः ५ चंद्रसूर्यग्रहणेवय॑दिनानि । ६/पटीगमनदिरफलानि ३ अकालवृष्ट्यादीकार्याकार्यविचारः | १९६/१ | अनिष्टदिग्गनपरीदोषपरिहारोपायः |१९२ /२/६ उपनयनोंत्तरंसूतकप्राप्नोविशेषः ॥ ... ||उपनयनसंसारा:अजिनमकारव . . . . For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । قه له قه و در م प्रकरणानि ।। प. ए.पं.. . प्रकरणानि १९७/२. मेखलानिर्माणपकारः २०४२.५ षादिकर्म यज्ञोपवीतनिर्माणप्रकारः | २०८.१ ब्रह्मचारिणेवतोपदेशः दंडप्रकार: 10२/२ गायत्र्युपदेशादिकर्म उपनयनेमात्रासहभोजननिर्णयः २०९१७ समिदाधानं, मातृभोजनापूर्वमानरिरजस्सलायां २०१५ मुखविमार्जनं निर्णयः |२/२/अंगालेभनं उपनयनक्रमकारिका || २११/१/३ अभिवादन |२६|उपनयनप्रयोग: 10२७ संध्यावंदनाधिकारः |.00 उपनयनदिनेरुत्यं | २१२/१/१ भिक्षाचरणं २०३.२ ३ / प्रतिक्षामंत्राः ॥२५ ब्रह्मचारियमनियमा: For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भा ॥१२॥ www.kobatirth.org प. पु प्रकरणानि | २१३ २ ४ अथाशीर्वादब्राह्मणमंत्राः २१८ १ ५ ब्रह्मचारिनित्योपासना २१९१६ यमल जातपुत्रयोरुपनयननिर्णयः २२० १ ७ यमलपुत्रयोरुप नयनप्रयोगे विशेषः २२१ २ ३ अथकर्माधिकारदानं Q | २२२ १ २ अथयमलजातकन्यकोद्वाहप्रकारः विकलांगाद्युपनयनप्रकारः २२३ २ ६ पुनरुपनयनकारणतविधिश्व २२६१ ७ अययजुर्वेदिनांप्रायश्वितैः सहपुन रुपनयनप्रयोगः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प. ૧૨૯ प्रकरणानि अथब्रह्मचारि व्रतलोपे प्रायश्चित्तं २२९ २ ४ अथवेदारंभनिर्णयः २३० २ ६ वेदारंभ प्रयोगानुक्रमः २३१ १ १ | वेदारंभप्रयोगः २१ वेदारंभाहुतयः २३२ १ ४ वेदाध्यमनारंभः २१३ १ ७ अथकेशांत संस्कारः २३५ २ ६ अथसमावर्तनसंस्कारः २३६ २ २ समावर्तन प्रयोगानुक्रमः प्रयोगश्च | २१९/२/२ स्नानार्थं अष्टादकुंभस्थापनस्नानं च For Private and Personal Use Only अनुक्र. | ।।१२।। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृ.प. प्रकरणानि प. प. प्रकरणानि |२/१आदित्योपस्थानमंत्रः २४ अतिरूप्रकार: तलत्याम्नायश्च ॥ २५/दधिप्राशनादिकर्म रुच्छ्रातिरुच्छप्रकारस्तनात्याम्नायी २४१ १ ५ अथचंदनवस्त्रयज्ञोपवीतादिधारण || २४७/११ चांद्रायणप्रकारातत्सत्याम्नायश्च मंत्राः | • ||/५ प्रथमाब्देशाजापत्यरुन्छ्वतेसंकल्पः | २१२ २/४ स्नातस्यनियमाः ||२/३ द्वितीयाब्देअतिव्रतेसंकल्यादि। १/ स्नातस्यअहोरात्रत्रयंबतचर्याच्यते |•• 10 तृतीयाब्देशतिरुच्छूव्रतेसंकल्पादि। ११/अथक्रमप्राप्तीविवाहः |२४८/१/४ टतीयाब्दी चांद्रायणवतेसंकल्लादि ..तबादौअनामिनिर्णयःप्रायश्चित्तंच २/१ विवाहोपयोगीकन्यादिप्रकारनिर्णयः ०७ पाजापत्यकृच्छ्रपकारस्तपत्याम्ना २४९/१/१ कन्यालक्षणापरीक्षा यश्र .२//कन्यादोषाः For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं.प्रा. ||१३|| प्रकरणानि २४९ २३ अथवरगुणाः २५० ११ अथवरदोषाः www.kobatirth.org O १ ५ अथसापिंड्यनिर्णयः २५१ १ ६ अथदत्तक सापिंड्यनिर्णयः २५१ १ ३ अथगोत्रप्रवरनिर्णयः . २५४ १ ७ अथदत्तकस्यगोत्रादिनिर्णयः २५ अथमत्यु द्वाहादिनिषेधः २५५ २ ३ अथसोदरकन्यापुत्रयोर्विवाह निषेधः २५६ १ ६ प्रवेशादेकवर्षेनिर्गमनिषेधः पटपं प्रकरणानि २५६ २ ४ एकवत्सरेसमानोदरक न्ययोः वरयोश्व विवाहनिषेधः - २५७ २ ६ नत्रविशेष: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ १६ एकवासरेयमलजातविवाहनिर्णयः Q २ २ स्त्रीणांउपनयनस्थानेविवाहोक्ति निर्णय: | २५९ २ २ एकवत्सरेकन्यापुत्रयोर्विवाहोपनय 0 ननिर्णयः 0 ४ कन्यापुत्रयोः परिवेट लपरिवेत्तिल | निर्णयः For Private and Personal Use Only | अनुक ॥१३॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प. पु. प्रकरणानि २५९ २ ६ प्रवेशनिर्गमनिर्णयः २६० १ ५ नांदीश्राद्धोतरनिषिद्ध कर्माणि २ ४ मुंडनहूयनिर्णयः 0 O ०७ पुत्रोद्वाहातूक न्याविवाहनिर्णयः २६१ २२ अथशोभनसन्निपातनिर्णयः २६२ २२ मंडनसुंडनविचारः • ७ चत्वारिमुंडनानि २६३ २६ अथगुरुलघुमंगलनिर्णयः २६४ २१ सीमताद्यन्नप्राशनांनसंस्कारेषुगुरु | शक्रास्ताधिमासादिनिर्णयः प. पू. पं. ७ प्रकरणानि २६५ २४ परिवेनादिनिर्णयः प्रायश्चित्तंच २६६ २ २ अयाग्रदिधिषुपत्यादेर्विशेषः ०५. परिवेदनदोषस्यापवादः, २६७/२/५ विवाहे आशौचमाप्तौ निर्णयः २६८ २४ मुहूर्तावरालाभेसामग्र्याकृतायांसू तकिनोप्यधिकारोपायमाह २६९१२ आरंभोन्तरं सूनके प्राप्ते विशेषः १ ३ संकल्पितानभोजननिर्णयः २ ३ अथविवाहेवधूवर जननीरजोदोषे | निर्णयः ० ० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं० भा० ॥१४॥ O • ६ अथप्रतिकूलनिर्णयः २७२ २ १ अथसंकटेप्रवृत्तिप्रकारमाह www.kobatirth.org प. प्रकरणानि प. पू. पेन प्रकरणानि २७० १ ४ नांदीश्राद्धोत्तरंरजोदर्शनोसत्तौनिर्णयः २७३ २ ५ त्रिपुरुषांतर्गतेमृतेप्रतिकूल दोषनि २ ५ अथक न्यारजोदोषनिर्णयः 0 २७१ २ १ अयविवाहहोमकाले कन्याऋतुमती । चेत्तत्रनिर्णय: २७४ २ ५ अथचूडोपनयनोडाहानामारंभोत्तरं जननाशौचमाप्तौ कूष्मांडीहोमप्रकार | २७६ १७ अथविवाह होमकाले कन्याऋतुम तीचेत्तत्र होम प्रयोगः २ अथश्रीशांतिप्रयोगः १ अथविनायक शांतिकाल : ४ ०६ प्रतिकूल दोषेविनायकशांतिः २७९ २ अथविनायकशांति से प्राराः ३ विनायकशांतिप्रयोगः १२/३ वाङ्‌नश्वयोत्तरंसूतकप्राप्तोनिर्णयः ॥ २८७ २६ अथक न्यावर योः गुर्वर्कबलनिर्णयः | २७७ २ • ७ प्रतिकूलेपिविवाहकर्तव्यतानिर्णयः २७८ २ ७ • 9 २७३ १ ४ संकटेविनायकशांतिः • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only अनुक· ॥१४॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir به م م م م م ه प. पृप प्रकरणानि ॥ प. प.पं. प्रकरणानि अथबृहस्पतिशांतिः ६ अयसीमंतिकार्चन अथाश्योविवाहलेदाः वरप्रस्थानरुत्यं कन्याविवाहकाल: मधुपर्कक्रमकारिका |२/४ कन्यादानाधिकारिण: अथमधुपर्कप्रयोगः २९२/१/६ विवाहदिनात्माविवाहांगकर्मनिर्णयः ३०२/२/२ अयगवालं अनंतरयोगश्च २९३ | १ | अथब्राह्मविवाहांगवाग्दानविधिः ३०३/१२ अथवरायगंधायुपचारदानं |२९५/१ २ तेलहरिद्वारोपूर्णगोधूमपूजनंच २. विवाहवेयुपरिअमिस्थापनादि १/३ विवाहदिनकर्तव्यमुच्यते |३०४/१/२ वधूवरांतरालेअंतःपटधारणमंग ५ घटीगमनदिफलानि लसूक्तादिपठनंच • |२२|अथगौरीहर पूजन ॥ ••| ४ वरकंठेपुष्पमालार्पणं ه For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं-भा "ad ॥१५॥ . . . ॥ प. (पृ.पं. . प्रकरणानि प्रकरणानि २०४ १६ वधूवरयोःप्रत्यङ्पाङ्-मुरयोपवेशनं बलयदानमंत्रः ...अथप्रतिष्ठामंत्राः ताम्रपाबजलपात्रदानमंत्रः .२५/अथवरोवधैपरिधानार्यवस्नायर्पण कांस्यपात्रदानमंत्र: ३०५/१६ मांगल्यतंतुबंधनं ६ रौप्यपात्रदानमंत्रः .२२ अथसूबवेशनमंत्राः तांबूलदानमंत्रः अथकन्यादानसंकल्पादि दीपदानमंत्रः अथकन्यादानांगगोदानादि ६ गोदानमंत्रः अथसुवर्णाभिषेक मंत्राः | अंगुलीयफदानमंत्रः | ४ वरमार्थनादि ॥१५॥ २/१/कुंडलदानमंत्रः ||२६|अथगणपतिपूजनकंकणबंधनादिच || || ه م و 0.664r... . . ه م ه . वरायोपदेशः » و . For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४१ س प्रकरणानि ॥ प. पृपं . प्रकरणानि ७ वधूवरोरग्निसमीपेगमनादि ||३२०/२/६ 12/६/अथगाथागानं ४ दक्षिणतोब्रह्मासनादिउपकंसनीयानिच ३२१/१२/अथामिपरिक्रमणादि १ आधारावाज्यभागोभूरायष्टाहुनय २ अथसप्तपदी ६ अथराष्ट्र होमः ६ | सप्ताचलपूजनं २ अथजयाहोमः अथकन्याप्रतिज्ञामंत्राः अथान्यातानहोमः वधूमूर्धन्यभिषेकादिकर्म अथाग्मिरित्यादिपेचकहोम: ॥३२४/२६/अथाशीर्वादमंत्रा: अथलाजाहोमः २ वधूवरयोमंत्रपठनकारिका वरेणवधूहस्तग्रहणमंत्रः 1.६/अथेविवाहेमंत्राधिकारिणः .२४ अथाश्मारोहणं ||२१ अथविगहहोमेआहुतित्यागादिकारिका م س م For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुकर म. मा-1 |.प. ॥पृ.पं. प्रकरणानि ॥प. प.पं. प्रकरणानि १६ ||३२०/२१ अचानक कन्योबाहेनिर्णयः३३०१ ५ कन्यानिवेदन अथग्रामवचनार्थः २१ बसिष्टारुंधतीपूजनअर्घ्यदानंपा| ४ विवाहादास्यघिरावरनियमादि र्थनाच ||३२८/१/३ अथएरिणीप्रदान वायनदानानि अथऐरिणीपूजा वरहस्ते कन्यानिवेदनं ३२९/११/ऐरिणीप्रार्थना ३ अथवधूप्रवेशनिर्णयः • 10४ वरमात्रेऐरिणीदानं वधूप्रयेशांगगणापतिपूजनादि ७ वरगोबाजादीनांवस्त्रादिभिःपूजनं ३३२/११४ अर्थप्रथमाब्देधूनिवासः प्रार्थनाच हरसिधारणं अथचतुर्योकर्मक्रमः || ३३० ॥१२/ऐरिणीवंशपात्रस्यवरगोत्र जादीनांशि| 02/0 चतुर्थीकर्मप्रयोगः For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |पं. . . प्रकरणानि प्रकरणानि | अथदेवकोस्थापनमंडपोद्धासननि|३३९/२/३/अयप्रयोगः र्णय: ||३४११/२ अथैकमार्यावियमानवेदितीयविचाही ३३५१ १/देवकोत्थापनप्रयोगः अधिवेदनीयकारणमाह ३३६ २७ अथद्विरागमनं ३ अधिवेदनेकालप्रतीक्षामाह ३३७, २ २ विवाहेमार्ययासहपोजनमाहू ॥ .. ५ विवाहांतरेविशेषमाह देवकोत्थापनपर्यंत निषिद्धकर्माणि. | • |२|| अथस्त्रीनिधनेरितीयपरिणयकालमा प्रथमावृविसर्जनानंतरं अब्दपर्यंत निषेधः अत्रापवादश्च . ३४१/२/३ अथकन्याविषयोगोपन्नाचे वैधव्य |४ कन्यारहेभोजननिषेधः मक्रम: योगहरभाविवाहनिर्णयः ||३३९॥ १/४ अथवरस्यस्तभार्यसपरिहारोपायक ||३४२ /२/२ अथकुंजविवाहप्रयोग: . For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं.भा. ॥१७॥ www.kobatirth.org प. पू प्रकरणानि प. पू. प. प्रकरणानि ३४३ २ ६ अथबालवैधव्य हरविष्णुमूर्त्तिदानं ३५१ २ ५ अथार्कीविवाहांगहोमः ३४५ १ २ अथार्कीविवाहनिर्णयः [३४७ ३ अत्रशौनकोक्त होमप्रकारः ३४८ २ ३ अथार्कीविवाहप्रयोगः अनादिष्टप्रायश्चित्तनिर्णयः अनादिष्टप्रायश्वित्तप्रयोगः For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिसंस्कार भास्कर ग्रंथानुक्रमणिका समाप्ता. | श्लोकः॥ ॥ आदित्ये कपिलोनामपिंग्लः सोमउच्यते ॥ धूमकेतुस्तथामौमे जदूरो सर्बुधे | स्मृतः ॥ १॥ बृहस्पतैौशिरखी नाम शके भवति हाटकः ॥ शनैश्वरेमहातेजा राहो के तौ हुता सनः ॥ २ ॥ अनुक्र• 1191011 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललललललललल अथसंस्कारभास्कर:पारश्यते. HAAMANA For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ..................... शकर www.kobatirth.org पा. For Private and Personal Use Only W Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RISOR For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ऋषिभट्ट, www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only मिला Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकलेशः प्रसीदतु. (पद्यम् । संस्कारभास्करस्यास्य संबन्धादिचतुष्टयम्॥ जिज्ञासुम्यो ज्ञापयितुं प्रस्तावः क्रियते धुना॥१॥ पुरा किल श्रीमल्यम्बकजटाजूटनिस्सृत गोदावरीदक्षिणतटविराजमाननासिको बनिवासिना निजमतिमयमन्दरमहीधर मथिन शतपथ क्षीरार्णवसमधिगत तत्वज्ञानपी यूषजोषणमेद्वरितसकलच्छात्रामरगणेन शुक्लयजुर्वेदान्तर्गत माध्यन्दिनीयशास्वाध्यायिना-1 शौचोपनामधारिणा श्रीमषिमट्टसूरिणा भूनेत्ररसभूशालिशालिवाहन शके १५२१ यः For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सं-भा. ॥१॥ सुबोधः संस्कार भास्करोनाम प्रयोगबन्योव्यरच्यत, सा:यमधुना स्वसाध्यरुत्यद्वारा स्व प्रस्ता. देशहित निष्ठेन शुक्लयजु. माध्यन्दि ना पाठकोपाव्हयेन सहमयूरात्मजमरामक ष्णशर्मणा मया,मानूपाभिधस्य भास्करात्मजाट्टनीलकण्ठशर्मणः, गुणदीपिकाभि ख्य नगरीनिवासिनः शक्लोपाभिव्यस्य गौरीशङ्कगत्मज नरोत्तमार्मणश्च साहायन हरिहरादिभाष्यदर्पणादिप्रयोगसिन्ध्यादिधर्मग्रन्थान्तर्गतः कियहिषयैर्यथामतिसंपूया। द्यशिपत्राणीनरेण केनचिन्मंशोध्यतयनराणिपत्राणिब्रह्मपुरीनिवासिविनायकशास्त्रिणः साचिव्येन संशोध्य चैनगन्याधिकारिलोकोपकारार्थमङ्कनद्वारा प्रसिद्धिमानीयत; अथ सोऽयं प्रयोगग्रन्यो दोषेष्यपि गुणबुद्धिभिः सकलविद्वज्जन:रुपादृशाउवलोक्य परिशोध्यतामितिम बहुविनयं शतरुत्वस्तान्प्रत्यतपत्राधःस्थितोऽहं विज्ञापयामीति शम्। समयूरात्मजरामकृष्णशर्मा. ॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणेशायनमः॥ श्रीसरस्वत्यै नमः॥ श्रीगुरुभ्योनमः॥श्रीलक्ष्मीनारायणाभ्यांनमः॥ अथसंस्कारभास्करपारंमः। ॥तबादीमंगलाचरण। वात्सल्यापितरोकपोलयुगुलंस्वस्पागनीचुंवितुंदृष्वाकुंचिनमास्यपद्मममलंईपस्मितंसत्वरं। अन्योन्यशिवयोस्वतःसवदने | युक्तेमाभूतानयोरित्ययेनचिनोदितोसभगवान्बालोगजास्योवतु॥१॥ श्रीगणेशशारदांच लक्ष्मीनारायणंगुरूं।नवयहांश्चदिक्पालान्नमस्कृत्यपुनःपुनः॥२॥ योभूछौचोपनामा बुधमुकुटमणिविश्वनाथः प्रसिद्धस्तज्जोगंगाधराव्याक्षितिसरमहितःसर्ववेदार्थवेत्ता॥ तत्पुत्रःसाधुशील: शतपयनिपुणोयाज्ञिकैद्यमानः पुण्यात्मासर्वकालेजयतिऋषिबुधः । For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१॥ शिष्यसंघार्चितांधिः ॥३॥करोतिविदुषांप्रीत्यैसर्वसंस्कार भास्करो।सूबहरिहरंकर्कवासदे | भास्कर वींसमाहितः॥४॥आलोक्यसम्यक्मनिनासरलंसुगमनवं॥ यस्यावलोकनेनैवस्फुरंनिहदि नक्षणात्॥५॥ ॥ तच्चगौतमेनचत्वारिंशसंस्काराः कथिताः॥ तद्यथा॥ ॥गर्भाधा नपुंसवनंसीमंतोन्नयनंजातकर्मनामकर्मनिष्क्रमणान्नप्राशनंचौलोपनयनेचत्वारिवेदन नानिकेशांतस्मानेसहधर्मचारिणीसंयोगः॥पंचमहायज्ञाऽष्टकापार्वणश्राइंश्रावण्याय हायणीचैत्रीआश्वयुजीतिसप्तपाकसंस्था॥अम्याधेयममिहोत्रदर्शपौर्णमासोचातुर्मा-|| स्याययणेष्टिनिरूढपशुः सौबामणीनिसप्तहविर्यज्ञसंस्था॥अमिष्टोमइत्यमिष्टोमउक्थ्य ।। For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घोडशीवाजपेयानिराधामोर्यामइतिसप्तमोमयज्ञसंस्था॥उपाकर्मोसर्जनपैतमेधिक मिनि॥ इत्येतेचत्वारिंशत्संस्काराः॥ ॥अंगिरातुपंचविंशतिसंस्कारानुक्तधान्॥नद्यथा। गर्भाधानपुंसवनंसीमंतबलिरेवच॥ बलिविष्णुवलिः॥जातकर्मनामकर्मनिक्रमोन्नाश ||नंपरं॥चौलकर्मोपनयनंततानाचतुष्टयंतिच्छब्देनप्रसिद्धत्वाद्देदयहणेतदतानांच तुर्वेदव्रतानामित्यर्थः।।स्मानोडाहीचाययणमष्टकाचयथातथं। श्रावण्यामाश्वयुज्या चमार्गशीर्थांचपार्वणं॥उत्सर्गश्चाप्युपाकर्ममहायज्ञाश्चनित्यशः॥संस्कारानियताहोते ब्राह्मणस्यविशेषतः इति॥ एषांप्रयोगाः ग्रंथविस्तरभयान्नावलिखिताः॥परिज्ञा For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नार्थकेवलंनामानिलिखितानि॥ ॥अधुनास्वगृह्योक्तगर्भाधानादिविवाहांताः षोड भास्कर शसंस्काराः मुरख्याः मयाऽस्मिन्थेपरिगण्हीयाः॥तेचगौनमेनप्राक्कथिताः॥ ॥नथाच स्मृत्यंतरे॥ ॥गर्भाधानमतश्चपुंसवनकंसीमंतजाताभिधेनामारव्यंसहनिष्क्रमेणच नथान्नप्राशनकर्मच॥ चूडारव्यंबतबंधकेप्यथचतुर्वेदवतानांपुरः केशांतः सविसर्गकः, परिणयः स्यात्योडशः कर्मणां॥१॥एतद्गर्भाधानादिषोडशसंस्काराः सर्वेषामेव ॥ एतेचा दिजानामेवसमंत्रकाः॥ ॥यथाहयाज्ञवल्क्यः॥ ॥ब्रह्मक्षत्रियबिट्शूद्रावर्णास्वा यास्त्रयोहिजाः॥निकादिस्मशानांतास्तेषावैमरतः क्रियाइति। निषक: ग। For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाधानं॥ स्मशानवियाहश्च॥अतएवषोडशसंस्कारानधिकृत्य॥तेषांप्रयोगाः समंत्रकाः प्रारदर्शिनयथाभिप्रायेणात्रलिखिताः॥ ॥यमः॥ शूद्रोप्येवंविधः कार्याविनाम वेणसंस्कृतइति॥ ॥कन्यकायाश्चगर्भाधानादिचौलांताः अष्टसंस्काराः अमंत्रकाः ॥ विवाहस्तुपुंस्त्रीरुभयसंयोगेवर्णन्यायेनयथाविधिःकार्यः॥ ॥तथाचस्मृत्यंतरे॥ स्त्रीणांचौलांतसंस्काराः प्रकुर्वीतअमंत्रकाः॥ पुंस्वीरुभययोगस्तुविवाहस्तद्यथापि|धिरिति॥ ॥ अथसंस्काराणांफलानिस्मृतिसंयहे॥ निषेकाद्वैजिकंचैनोगार्मिकंचा पमृज्यते॥क्षेत्रसंस्कारसिदिश्वगर्भाधानफलंस्मृतं॥गरिभवेच्चपुंसूतेः पुंस्त्वस्यम For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ||तिपादनं। पुसूतिः पुंसवन।। निषेकफलवत्ज्ञेयंफलंसीमंतकर्मणः॥निषेकोगर्भाधा भास्कर ॥३॥ ॥गर्माबुपानजोदोषोजानासोपिनश्यति॥जानात्जातकर्मानुष्ठानात्। अपिश ब्दस्यदोषशब्देनान्वयः॥आयुर्वर्शोभिवृद्धिश्वसिद्धिर्व्यवहृतिस्तथा।। व्यवहृतिळवहारस्नस्यसिद्धिरित्यर्थः॥ नामकर्मफलंत्येतत्समुद्दिष्टमनीषिभिः॥सूर्यावलोकनादायुर। |भिवृद्धिर्भवेधृवा॥निक्रमादायुः श्रीवृतिरप्यदिशामनीषिभिः॥ अन्नाशनान्मातृगतैमला शीरपिशाध्यति॥वलायुर्यवृद्धिश्चचूडाकर्मफलंस्मृनं। उपनीते: फलंत्वेतद्विजनासि | ॥३॥ |टिपूर्विका॥वेदाधीत्यधिकारस्यसिद्धिषिभिरीरितेति॥यचयत्रचापियूयनेनत्रतत्रबेनी ॥ For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | कगाभिकैनोविनाशोपिफलंज्ञेयं॥ अन्येपिकर्णवेधादयः संस्काराः शास्त्रांतरोक्तास्त । तत्रपक्ष्यते॥इतिसंस्काराः॥ ॥तथाचविशेषाणिअवश्यकानिकर्माणिशिष्टाचारयु तानिचात्रगृहीतानि॥ ॥ तद्यथा॥ षष्ठीपूजनदोल रोहणतथागोदुग्धपानंशिशोभू मीषुस्थितिदनक:प्रनिग्रहः कर्णस्यवेधंतथा॥ श्रीवर्धापनअक्षरपलिरवनंकोमारधीवृद्धयेकन्यारिष्टहरोघटः परिणयश्चार्कस्तथापौरुषे॥१॥एषांप्रयोगाः षोडशसंस्का राणांमध्येसमयानुसारंअलिखिताः॥ ॥तत्रादीपरिभाषा॥ ॥संकल्पेनपिना कर्मकरणेदोषोउक्तोभविष्ये॥ संकल्पेनविनाकर्मयत्किंचित्कुरुतेनरः॥फलंचाप्य For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पकंतस्यधर्मस्यार्धक्षयोभवेत् ॥१॥संकीर्त्यमासपक्षादीनिमित्तानितथैवच॥ इदंकर्म मा. ॥४॥ करिष्येहमितिसंकल्पमाचरेत्।२॥अनुलंध्यवशारयोक्तविधिकर्मसमाचरेत्।।कर्मान्यथा| रुतंज्ञात्वातावदेवपुनश्चरेत्॥३॥प्रधानस्पाक्रियायांतुसांगंतत्पुनराचरेत्॥तदंगाकर णेप्रायश्चित्तमेवनकर्मतन्॥४॥ ॥वामनपुराणे॥ ॥सर्वमंगलमांगल्यंवरेण्यंवरदंशु भं॥नारायणनमस्रुत्यसर्वकर्माणिकारयेत्॥१॥ ॥वशिष्टः॥ ॥जपहोमोपचासेषु धौनयस्यधरोभवेत्॥ अलंकनः शुचिर्मोनीश्रद्धावान्विजितेंद्रियः॥१॥यदियाग्यमलोपा ॥४॥ स्मान्जपादिषुकथंचन॥व्याहरे?णयमंत्रस्मरेद्वाविष्णुमव्ययं ॥२॥अहतवस्त्रलक्षणमु|| For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस्मृतिरत्नावल्यां॥ ॥इषद्दौतनवं श्येतंसदर्शयन्नधारितं।अहतंतद्विजानीयात्म ।। विकर्मरूपायनं॥१॥ इषधोतं अरजकादिनासकोतमितिनागान्हिके व्यारण्यातं॥ क श्यपेनत्यन्यथोक्तं॥ अहतंयंत्रनिर्मुक्तं वास:प्रोक्तं स्वयंभुया॥ शस्तन्मांगलिक्येषुता यत्कालंनसर्वदेति॥१॥ कंबलेपट्टवस्त्रेचनीलीरागोनदुष्यति॥२॥ क्षीमेवस्त्रे हतेपत्नी |चेतिसूत्रे अनंनयाज्ञिकैरप्येवंव्यारव्यातं॥ ॥वसिष्ठः॥ रौद्रपित्रासुरान्मत्रांन्तथा । चैयाभिचारकान्॥व्याहत्यालायचात्मानमपस्पृष्ट्वान्यदाचरेत्॥१॥ ॥कात्यायनः॥ पित्र्यमंत्रानुब्रुवाणेआत्मालंभोधमेक्षणे॥अधोवायुसमुत्सर्गपहासेंनृतभाषणे॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥५॥ संस्कार मार्जार मूषकस्पर्शे आकृष्टे कोधसंभवे ॥ निमितेघेषुसर्वेषुकर्मकुर्वन्नपस्पृशेत्॥२॥ आत्मालंभः हृदयालंभः॥ ॥ स्मृत्यर्थसारे ॥ कर्षंगानामनुक्तेोतुदक्षिणांगं भवेत्सदा ॥ छंदोगपरिशिष्टे ॥ यत्रदिङिनयमोनास्तिजपादिषुकथंचन ॥ तिस्रस्तत्रदिशः प्रोक्ताऐंद्री सौम्यापराजिता ॥१॥ तत्रैव ॥ आसीन: प्रव्हऊर्ध्वेवानियमोयवनेदृशः ॥ तदासीने |नकर्तव्यं नप्रव्हेणन तिष्ठतेति ॥ १ ॥ पंचाशद्भिर्भवेद्ब्रह्मा तदर्थेनतुविष्टरः ॥ दक्षिणावर्त को | ब्रह्मावामावर्तस्तुविष्टरः || १ || वेण्याचावर्तुलंकृत्वावेण्ययेग्रंथिबंधनं ॥ अनंतगर्भकंसायंकौ | शंद्विदलमेवच ॥ २ ॥ प्रादेशमात्रं विज्ञेयं पवित्र्यत्रकुत्रचित् ॥ पवित्रेदर्भसंरव्यामाह ॥ मा For Private and Personal Use Only | भास्कर ॥५॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंडेयः॥ ॥चतुर्दिपिजूलैाह्मणस्यपवित्रकं ॥एकैकंन्यूनमुद्दिष्टुवर्णेचर्णेय थाक्रम॥१॥सर्पशायाभवेद्वाभ्यांपवित्रग्रंथितंनया ॥ चतुर्भिः शानिके कार्यपौष्टिकेपंचमि तथा॥२॥ सप्तपत्राः इमादर्मास्तिलक्षेत्रसमुद्रयाः॥ अप्रसूतास्मृतादर्भाः प्रसूतास्तक शा:स्मृताः॥३॥समूलाः कुतपा:प्रोक्ताश्छिन्नायास्तृणसंज्ञिताः॥दर्भाः कृष्णाजिनंमंत्रा ब्राह्मणाहविरमयः ॥४॥ अयातयामान्येतानिनियोज्यानिपुनःपुनः॥चितौदर्भापथी दर्भाः एदर्भायज्ञभूमिषु॥५॥ स्तरणासनपिडेषुषट्कशान्परिवर्जयेत्॥ ॥रत्नावल्यो । दयो स्तपर्वणोर्मध्येपवित्रंधारयेदुधः॥अनामिकायपतुनिसर्गनुपवित्रकं ॥१॥ो । For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार विष्टलत्यधिकंस्या झुक्नोचिरविवर्जयेत् । मुलं मूलवलयं यथिरकांमुलीभवेत्॥२॥ भास्कर ॥६॥ चतुरंगुलमयस्यासविवस्यप्रमाणतः॥ ॥नागान्हिकं ॥ अन्यान्यपिपवित्राणिकुश दूर्वामयानिच॥ हेमात्मकपवित्रस्यकलांनाहतिषोडशी॥१॥माषाणांषोडशादूकुर्या इमपवित्रक॥ तेभ्यः स्वल्पतरंन्यूननकुर्वीनकदाचन॥२॥हीनकर्मेनथोडिटेकुश |धृतपवित्रकं॥निर्माल्यतेषुसंप्राप्ति हेमस्यपवित्रके ॥३॥पवित्राभायेसुमंतुः॥ ॥ समूलायौविगर्मोनू कुशौद्धोदक्षिणेकरे॥सव्येचैवतथात्रीन्वैविधूयात्सर्वकर्मस॥ १ ६ ॥ बौधायनः ॥ हस्तयोरुभयो?डावासनेपितथैवच॥ तथा॥ सदोपवीतिनामाव्यं । For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदाबद्दशिरयेनच॥ विशिरयोव्युपवीतश्चयत्करोनिनतत्कृतं॥१॥ अनेनहिदधिरय |दिरादिवउपवीतित्वस्यबद्धशिखित्वस्यचक्रतुपुरुषोभयोर्थत्वमयगम्यते॥ ॥हेमा | द्रोभरद्वाजः॥ ॥दक्षिणबाहुमुधृत्य वामस्कंधेनिवेशितं॥ यज्ञोपवीतमित्युक्तंदेयका र्येषुशस्यते॥१॥ कंठाविलंबितंचैवब्रह्मसूत्रयदाभवेत्॥तन्निविमिनिविख्यातंशस्तं कर्मणिमानुषे॥२॥उक्षिप्तेवामबाहोतुदक्षिणस्कंधमाश्रितं। प्राचीनावीनिमित्युक्तं | तस्सित्र्येषेवकर्मसुइति॥३॥ ॥विष्णुधर्मोत्तरे॥ निलककुंकुमेनैवसदामंगलकर्म |णी॥कारयित्वासुमतिमान्नश्वेतचंदनंमृदा॥१॥ ॥मंत्रणोंकारपूतेन स्वाहांतेनपि For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, चक्षणः॥स्वाहावसानेजुहुयारध्यायन्यैमंत्रदेवतां ॥१॥ मंत्रानेयावन्हिजायासातुमंत्र भाम्फर ॥७॥ |स्वरूपिणी॥ नदंतेन्यांप्रयुजीनसाकर्मागतयास्मृता॥२॥आदोद्रव्यपरित्यागःपश्चा || होमोविधीयते इतिदेवयाज्ञिकः॥ ॥बाये॥ ॥शमीपलाशन्ययोधप्लक्षवैकं कतोद्भवाः॥अश्वत्थोदुंबरोबिल्वश्चंदनःसरलस्तथा॥१॥शालश्चदेवदारुश्चरयादि रिश्चेतियाशिकाः॥ ॥कर्मप्रदीपे॥ ॥नाराष्ठादधिकाकार्यासमित्स्थूलतराक्कचि | ॥ नवियुक्तात्वचाचैवनसकीटानस्फाटिता॥पादेशमात्रान्नाधीकानतथास्यादिशा विका॥नसपर्णासमित्कार्याहोमकर्मसुजानता॥२॥मागग्राः समिधीग्राह्याअरपर्चाने || For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फाटिता॥ नेत्रंजटामूलंचकथिताः॥ काम्येषुवश्यकर्मादीविपरीताजिघांसत:॥३॥ विशीर्णाविफलाहस्वाक्क्राबहुशिरया: सशा॥दीर्घास्थूलाघुणेर्जुष्टाकर्मसिद्धिविना शकाः॥४॥ होतव्यामधुसर्पिश्यांदभाक्षीरेणसंयुताः॥प्रादेशमात्राः समिधअशारया | अपलाशिनीः॥५॥ ॥ शरयः॥ समित्पुष्पकुशादीनिब्राह्मणः स्वयमाहरेत्॥द्रा नीतैः क्रय क्रीतैः कर्म कुर्वन्व्रजंत्यधः॥१॥ ॥वायुपुराणे ॥ कंडणंपेषणचैव तथै योल्लेखनंतथा॥सरूदेवपितृणांस्याद्देवानांतत्रिरुच्यते॥ ॥कात्यायनः॥ योनर्चि |पिजुहोत्यमोव्यंगारिणीचमानवः॥ मंदाग्निरामयावीचदरिद्रश्चैवजायते॥ तस्मात्समि ।। For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर संस्कार होनव्यंनासमि कथंचन॥नयरूपवायुनाकुर्यात्पाणिशूर्पस्नुवादिभिः॥२॥ नकुर्याद ॥८॥ मिधमननकुर्याड्यजनादिना॥मुखेनैवधमेदमिमुरवदेशायजायत॥३॥अंधोबुधः सधूमेतुजुहुयायोहुनाशने॥ यजमानोभवेद॑धः सपुत्रइनिच श्रुतिः॥ ॥मात्स्ये॥ होमादिग्रहपूजायांशनमष्टोनरंभवेत्॥ अष्टाविंशतिरष्टौवायथाशक्तिविधीयते॥ ॥ छंदोगपरिशिष्टे॥ यन्नाम्नानंस्वशारवायांपारस्यमविरोधियत्॥विद्वद्भिस्तदनुष्ठेयं अमिहोत्रादिकर्मवत्।। बव्हल्पवास्वगृह्योक्तंयस्थकर्मप्रकीर्तितं॥ तस्यतावनिशाना ॥ थैरुतेसर्वंरुतंभवेत्॥२॥ प्रवृत्तमन्यथाकुर्यायदिहोमात्कयंचन॥ यतस्तदन्यथामू For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तंततएयसमापयेत्॥ अन्यथाभूतविपर्यस्त॥ ॥समाप्तेयदिजानीयान्मयैतदयथा रुतं॥ तावदेवपुनः कुर्यान्नावृत्तिःसर्वकर्मणः॥प्रधानस्याक्रियायत्रसांगतक्रियतेपुनः॥ तदंगस्याक्रियायांतुनावृत्तिनचतल्लिया॥ ॥ ब्राह्मे॥ यथोक्तयस्यसंपत्तीया मंतदनुकारियत्॥यवानामिवगोधूमावीहीणामिवशालयः॥१॥आज्यद्रव्यमनादेशेज़ होतिषुविधीयते॥मंत्रस्यदेवतायाश्चप्रजापतिरितिस्थिनिः॥२॥ अनादेशेअविधाने प्राजापत्योमंत्रः॥ समस्तव्याहतयइतिमदनः॥प्रणवादिनमोतंचचतुर्थ्यतंचसत्तम।। |देवताया: स्वकंनाममूलमंत्रउदाहनः॥ ॥विष्णुधर्मानरे॥ दध्यला पयःकार्यमध्य ।। For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९॥ संस्कार लाभेतथागुडघृतपतिनिधिकुर्यात्पयोवादधियान्प॥१॥ ॥बौधायनः॥आज्य | भास्कर होमेषुसर्वेषुगव्यमेवघृतं भवेत्॥ तदभावमहिष्यास्तआजमाक्किमेचच॥ नदनावेतृतैलें|स्यात्तदनातुजार्तिलें ॥ तदभावेतकोसुंभनदसावेतसार्षपं॥२॥ ॥याज्ञवल्क्यः॥ कनिष्ठादेशिन्यगुष्टंमूलान्ययंकरस्यच। प्रजापतिपिब्रह्मदेवतीर्थान्यनुक्रमात्॥१॥दे शिनीतर्जनी॥पाण्याहुनि दशपर्वपूरिकारमादिनाचेत्कचिपर्वपूरिका॥दैवेनतीर्थेनचहू यतेहविः स्वगारिणिस्वर्चिषितञ्चपावके।आज्यपयादिद्रव्याणिस्नुबेण।। समिधोमूलतोड्यंग ॥९॥ लंबिहायमध्यमानामिकांगुष्टैर्जुहुयात्॥चरुंयाससमपाणिनैवजुहुयात्। आज्यस्ये तारले किंवा खुरासनीचें तेल ॥ For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गेवजुहुयात्॥ तदक्षायेयज्ञीयवृक्षपर्णेन॥ द्रव्यभेदेनाहुतिमानंसिद्धांतशेरवरे ॥कर्ष । प्रमाणमाज्यस्यात्मधुक्षीरंचतत्सम॥तंडुलानाशक्तिमात्रंपायसंप्रसृतेःसमं॥४॥क र्षमात्राणिभक्ष्याणिलाजामुष्टिमितामनाः॥अन्नंयाससमंयामंशाकंयासार्धमात्रकं॥५॥ मूलानांतुविभागस्यात्कंदानामष्टमांशकः॥ इक्षोः पर्वप्रमाणस्पादंगुलद्वितयंलता॥६|| पादेशमात्रा समिधोबीहीणामंजलीसमं॥तिलसक्तुकणादीनांमगीमुद्राप्रमाणन:॥७॥ पत्रपुष्पफलादीनांसमानाहुतिरुच्यते॥ चंदनंभीरवंडकस्तूरीकुंकुमागरुकर्दमाः॥हरिमंथ | समाःप्रोक्तागुग्गुलोबदरीसमः॥आहुतीनामिदंमानंकथिनंवेदवादिभिः॥हरिमंथश्चण For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19011 सस्कारकः ॥ तिभिर्दूर्वाभिरेकाहुतिः॥कुशेषुधिपत्रेणैकेनि॥मृगीमुद्रालक्षणं॥मीलिता भास्कर ||नामिकांगुष्ठमध्यमांगलियोजयेत्॥ शेषांगुलीउछितेतिमृगीमुद्रीयमीरिता॥ ॥या ज्ञवल्क्य:॥आपछंदश्चदैवत्यंविनियोगेनथैवच॥वेदितव्यंप्रयत्नेन ब्राह्मणेनविशेषतः ॥अविदित्यातुयः कुर्यायाजनाध्ययनंजपं॥होममंतर्जलादीनितस्थचाल्पफलंभवेत्॥ अत्रापवादः॥रुष्णभडीये॥नचस्मरेदृषिछंदः श्राईवैतानिकेमरवे॥ ॥अन्यत्र। अनि होत्रेवैश्यदेवेविवाहादिविधौनथा॥होमकालेन दृश्यतेप्रायश्छंदर्षिदेवताः॥शांतिकादि| | पुकार्येषुमंत्रपाठ जपादिषु॥होमेनैवपकर्तव्या: कदाचिदृषिदेवताः॥ ॥स्मृत्यंतरे।|||| 19011 For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनकंकुलिशनीलंपद्मरागंचमौक्तिकं ॥एनानिपंचरत्नानिरत्मशास्त्रविदोपिदुः॥१॥ कु लिशहिरकं॥ ॥ विष्णुधर्मोत्तरे॥ वनमाणिस्यपैड्र्यपुष्परागेंद्रनीलकं॥पंचरत्नमिति ख्यानं नारदेनमहर्षिणा॥१॥ ॥मदनरनेस्कांदे॥ हरिद्राकुंकुमचैवसिंदूर कज्जलंतथा ॥कूसिकंचतांबूलंमांगल्याभरणशकूर्पासकं कंचुकी। पंचगव्यस्मृतिदर्पणे॥गाय त्र्यादायगोमूत्रगंधद्वारेतिगोमयं। आप्यायस्वेतिचक्षीरंदधिक्राव्णेतिवैदधि॥१॥ तेजो सिशक्रमि त्याज्यंदेवस्यत्वाकुशोदकं॥एभिस्तपंचभिर्युक्तंपंचगव्यमितिस्मृत॥ त त्रतापपात्रे पलाशपत्रेयातापायागीमूबंअष्टमाषप्रमाणं॥ श्वेनगोः शरुत्शोडषमाषे॥पी|| For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार | नगो: क्षीरंद्वादशमापे॥ रुष्णगोप॑तंअष्टमार्ष। कुशोदकंचतुर्मापं ॥अत्रमाषः पंचगुंजात्म भास्कर कतिधर्मसिंधी॥ ॥मदनरलेकात्यायनः॥आज्यक्षीरंमधुनथामधुरत्रयमुच्यते॥प योदधिघृतंचैवमधुशर्करयायुतं॥पंचामृतमिदंपोक्तं सर्वदेवप्रसादकं॥ ॥ ब्राह्म।अश्व त्योदंबरप्लक्षचूतन्ययोधपल्लवाः॥पंचगाइतिपोक्तासर्वकर्मसुशोभनाः॥१॥अश्वत्यो दुंबरोब्राह्मइतिपाठभेदः॥तथाच॥ प्लक्षः॥पिंपरी ॥ पारोसापिंपठइतिप्रसिद्धः॥ ॥ यक्षकर्दम उक्तोगारुडे॥कर्पूरमगरुश्चैव कस्तूरीचंदनंतथा॥ कंकोलंचभवेदेमिपंचमि ॥११॥ र्यक्षकदमः॥ तथा ॥ कर्पूरंचंदनंदकुंकुमंचसमांशकं॥सर्वगंधमितिप्रोक्तंसमस्तसर For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वल्लभं ||१|| दर्पकस्तुरी ॥ कुंकुमकेशरं ॥ ॥ कुष्टंमांसीहरिद्वेद्वे मुरारैशैलेय चंदनं ॥ यचा | चंपक मुस्ताच सर्वैषध्योददास्मृताः ॥१॥ मुराउशीर ॥ चंदनमितिप्रसिद्धः कुष्टंप्रसिद्धं ॥ मांसी जटामांसी ॥ हरिद्वेद्वे आंबीहळ दबहळद ॥ मुरामोर वेल ॥ शैलेयशिलाजित ॥ बच्चा वेखंड ॥ मुस्ता भद्रमोथ ॥ पाठभेदे उशीरं वाळा || || भविष्यपुराणे ॥ आपः क्षीरं कुशाग्राणिदध्य | क्षततिलास्तथा ।। यवाः सिद्धार्थ काश्चैव अर्धोष्टांगः प्रकीर्तितः ॥ १ ॥ सिद्धार्थकः श्वेतशि रीष ॥ तत्रैव ॥ ॥ सवर्णरजतं ताम्त्रं आरकूटंतथैवच । लोहंत्रपुतथासीसंधानवः प | रिकीर्तिताः ॥ १ ॥ आरकूटं ॥ सोनपितळ ॥ त्रपूकथील ॥ ॥ पंचरात्रे ॥ रजांसिपंचव 11 ''"" For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१२॥ निमंडलार्थतुकारयेत्॥ शासितंडुलचूर्णेनशक्लंबाययसंस॥ रकंकुरूंमसिंदूरंगेरि भास्कर कादिसमुद्भवं॥ हरितालोद्भवंपीतरजनीसंभयंनुया॥ रुष्यांदग्धययैश्यापिहरितंपीनमिश्रित। गैरिका॥ सोनगेरू॥ ॥दशांगधूपोक्तोमदनरत्ने॥षनागकुष्टंदिगुणोण्डश्चलाक्षात्र यंपंचनरवस्यभागः॥ हरीतकीसर्जरसंसमाशंभागेकमेकेविलवंशिलाजं॥१॥चॅनस्थचा खारिपुरस्यचैकोधूपोदशोगः कथितोसुनीट्रैः॥ लाक्षालारय॥नरयस्यनस्वला॥सर्जरसंराळाशि लाजंशिलाजितवादगडफूल॥विष्णुधर्मोत्तरे॥हेमराजतनाम्माश्चमृण्मयालक्षणान्विताः॥ या |॥१२॥ बोहाहप्रतिष्ठासकुंभास्युरभिषेचने॥१॥पंचाशांगुल वैपुल्यंउत्सेधोपोडशांगुलाः॥ द्वाद नॉगरमाथा, कापूर. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांगुलमूलंस्यान्मुखमष्टांगुलंभवेत्॥२॥ पंचच आशाश्वपंचाशाः आशादना। पंचाधि |कशतमं गुलानिवैपूल्यमितिकेचित् ॥ पंचदशतावान्वैपूल्यव्यासइति तुयुक्तं ॥ धातुजं ||मृन्मयंवापिकलायत्प्रतिष्ठितं । नद्वत्यादेशदीर्घच चतुरंगुलमुच्छ्रितं ॥ सीतनंडुलपूर्णन पात्रेणापिहिताननमिति॥ ॥षट्त्रिंशन्मते ॥ यवगोधूमधान्यानीतिलाः कंगुश्वमुदग काः॥श्यामकंचणकंचैवसप्तधान्यमुदाहृतं ॥१॥ यवः प्रसिद्धः ॥ कंगुश्व ॥ राळे ॥ श्या । मा ॥ सांवे ॥ ॥ अश्वस्थानाद्गजस्यानाइल्मीका संगमाहदात् ॥ राजद्वाराच्चगोगोष्ठा स्मृदमानीयनिक्षिपेत् ॥ वल्मीकं वारुळं ॥ संगमः॥ माहानदीसागरसंगमः॥ द्रव्यमानमाह॥ For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याज्ञवल्क्यः॥ जालसूर्यमरीचिस्थंत्रसरेणुरजःस्मृतं॥ तेष्टौलीक्षास्तुनास्तिस्योराजसर्षप भास्कर च्यते ॥ १ ॥ गौरस्तुतेभयः षड्भयवोमध्यश्वतेवयः ॥ कृष्णालः पंचतेमाषास्तंसवर्णास्तुषोडश ||॥२॥ पलंसवर्णाश्वत्वारः पंचवापिप्रकीर्तिताः ॥ हेकृष्णालोरूप्यमाषोधरणंषोडशैवते ॥ |॥३॥ शतमानं तुदशभिर्धरणैः पलमेव तु ॥ निष्कंसुवर्णाश्वत्वारइति ॥ ॥ ताम्रस्योन्मा नं ॥ पलचतुर्थांशेनकर्षेणोन्मितः कार्षिक स्ताम्मसंबंधीपणोभवति ॥ कर्षसंज्ञानिघंटे तेषोडषाक्षः कर्षोस्ती पलंकर्षचतुष्टयमितितेशोडश माषाअक्षः सः एवकर्षः इत्यर्थः ।। कार्षापणसंज्ञश्च नारदेनोक्तः ॥ कार्षापणोदक्षिणस्यां दिशिरौप्यः प्रवर्तते ॥ पणेर्निबद्धः ||||१३|| For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||पूर्वस्यांषोडशैवषण:सतुः॥ ॥ लीलावत्यां ॥ वराटकानांदवाकइयंयत्साकाकिणीता श्वपणश्वतस्त्रः ॥ तेषोडशद्रम्य इहावगम्योद्रम्यैस्तथाषोडशभिश्वनिष्कः ॥ १ ॥ अशीति गुंजात्मकः कर्षः ॥ चत्वारः कर्षानिष्कमिति धर्मसिंधौ ॥ ॥ धान्यमानंभविष्ये ॥ पलद्वयं तुपसृतंद्विगुणंकुडवंभतं ॥ चतुर्भिः कुडवैः प्रस्यः प्रस्यः श्वत्वार आढकः ॥ आढकै स्तैश्वतुर्भिश्वद्रोणस्तुकथितोबुधैः ॥ कुंभोद्रोणद्वयंम्पूर्णः खारीद्रोणस्रूषोडष॥ ॥गेो पथे ॥ पंचकृष्णालकोमाषस्तैश्चतुःषष्टिभिः पलं ॥ पलैर्द्वादशभिःप्रस्थोमागधेषुप्रकीर्ति तः ॥ १ ॥ आढकैस्तैश्चतुर्भिश्च द्रोणस्याच्चतुराढकः ॥ ॥ विष्णुधर्मोत्तरे ॥ ॥ पलंच For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सं. ॥१४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुडवः प्रस्थ आढको द्रोणएवच ॥ धान्यमानेषुबोद्धव्याः क्रमशोमीच तुर्गुणाः ॥१ ॥ द्रोणैः षोडशभिः खारीर्विंशत्याकुंभउच्यते ।। विंशतिरित्यत्र द्रोणैरितिसंबध्यते ॥ तथाचः॥ कुंभोद्रोणमितिपक्षाद्विंशतिद्रोणमितः कुंभइतिपक्षांतरं ॥ पलसहस्त्रमितः कुंभःइति पक्षांतरं ॥ ॥ वाराहे ॥ पलद्वयं तुप्रसृतंमुष्टिरेकपलंस्मृतं॥ अष्टमुष्टिभवेत्किंचिकिं चिदष्टतुपुष्कलं ॥ १॥ पुष्कलानिच चत्वारि आढकः परिकीर्तितः ॥ चतुराढको भवेन्द्रो णइत्येतन्मानलक्षणं ॥ एतत्पक्षाणांशक्तिकालाद्यपेक्षया व्यवस्था ॥ ॥ स्मार्तकर्म - ॥१४॥ क्रमउक्तीधर्मसिंधौ ॥ ॥संकल्पः स्वस्तिवाक्विप्रवरणंभूतनिः सृतिः ॥ पंचगव्यैर्भू For Private and Personal Use Only प्रा. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मिरुद्धिर्मुरव्यदैवनपूजन॥ अग्निप्रतिष्ठासूर्यादिग्रहस्थापनपूजनं॥देवतान्या- ॥ हिनिःपात्रासादनंहविषांकृतिः॥यथाक्रमंत्यागहोमावितिपूगिकःक्रमः॥पूजाविष्ट नवाहु त्योबलि:पूर्णाहुतिस्तथा॥पूर्णपात्रविमोकायम्यर्चनानेऽभिषेचन।मानस्तो केतिभूतिश्चदेवपूजाविसर्जने॥श्रेयोग्रहोदक्षिणादिदानकर्मेश्वरार्पणं॥क्रमोयमुत्त रांगानांपायःस्मार्नेष्वितिस्थितिः॥ ॥ दशप्रणवोउक्त: शांनिकमलाकरे॥ आदौपण वमुच्चार्य व्याहृतिः प्रणवान्विताः ॥मंत्रादीप्रणवः कार्योमंत्रांतेप्रणवःपुनः॥ततोन्या निसंयुक्तस्त्वंतेचपणकसदा॥ अथवा॥ ॥ आदोमणवमुच्चार्यसप्तव्याहतयास्ततः।।। For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मंत्रादीप्रणव: कार्योमंत्रांतेप्रणवः पुनः ॥ अंतर्विसर्गकं कुर्याछ्रोते स्मार्तेच कर्मणि ॥ मंत्रादौ || || भास्कर 119411 | प्रणवस्तद्व न्देव स्वामीयभाषणात् ॥ कर्मविशेषेअसिनामान्युक्तानिधर्मसिंधौ ॥ ॥ अभिस्तु मारुतो नामागर्भाधानेविधीयते ॥ पवमानः पुंसवनेसीमंतेमंगलाभिधः ॥ प्रबलोजातसंस्कारेपार्थिवो नामकर्मणि ॥ अन्नाशनेशनिः प्रोक्तोसत्यस्याच्चौलकर्मणि ॥ व्रतादेशे समुद्रवोगोदानादोसूर्यः ॥ ॥विवाहेयोजकः ॥ आवसत्थ्येद्विजो नामप्रायश्वित्तेविटः ॥ पाकयज्ञेषुपावकः ॥ पैतृके कव्यवाहनः ॥ दैव्ये हव्यवाहनः ॥ शांतिके वरदः ॥ पौष्टि केबलवर्धनः॥ मृतदाहे क्रव्यादः ॥ पूर्णाहुत्यांमृडः॥ अभिचारे क्रोधोमिः ॥ वश्यार्थेपा For Private and Personal Use Only |||१५|| Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ वकः॥वनदाहेदूषकः॥ कुक्षौजाठरः॥ वैश्वदेवेरुक्मः॥लक्षहोमेवन्हिः॥कोटिहोमे | हुनाशनः॥समुद्रेवाडयः॥ अग्रिहोत्रंगार्हपत्यदक्षिणामि आहयनीयेतित्रयः॥ज्ञात्येयममि नामानिसर्वकर्माणिकारयेत्॥ ॥कर्मदेवताआहबोधायनः॥पुण्याहयाचयिष्यदनाम | गृण्हीयादसौपीयनामितिविवाहस्यामिरोपासनस्याग्निसूर्यप्रजापतयः॥स्थालीपाकस्यामि गर्भाधानस्यचब्रह्मा॥ पुंसवनस्यप्रजापतिः॥ असावित्यस्यस्थाने प्रजापतिर्देवतेत्यर्थः॥ तथाचसंयहे॥ ॥स्वस्तिवाचनमंतेतुकर्मेकर्मेयथातथं ॥पृथक्पृथक्प्रकुतिदेवताना समर्पण।औपासनामिसूर्यश्वविवाहेचप्रजापतिः॥स्थालीपांकमिगर्भश्वआधानेब्रह्म For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर णस्तथा॥ प्रजापतिः पुंसवनेधातासीमंतकेप्यथ ॥ सविता जातकर्मेषु नामकर्मेप्रजापतिः ॥ || निष्क्रमेन्नप्राशनेच सवितापरिकीर्तितः ॥ चैौलेतथैवकेशांतेप्रजापतिरितिस्मृतः ॥ इंद्रस्त थोपनयने बतनूर्यअपापकः । श्रद्धामेधेविसर्गे च सुश्रवाः परिकीर्तितः ॥ उपाकर्मे तुसवि नाविवाहेषुप्रजापतिरिति ॥ सोमयागगर्भाधानसीमंतोन्नयनाधानादिक मंगभूतेवृद्धि श्राद्धेकतुदक्षसंज्ञकाः विश्वेदेवाः अन्यत्र सत्यवतसंज्ञकाः ॥ ॥ आपस्तंबः ॥ त्रिमात्र रक्त प्रयोक्तव्यः कर्मारंभेषुसर्वशः ॥ भिमात्रः प्रणवः ॥ ॥ मार्कंडेयः ॥ इक्षुरापः पयो ॥१६॥ मूलंतांबूलंफलमौषधं ॥ भक्षयित्वापिकर्तव्याः स्नानदानादिकाः क्रियाः ॥ स्नानमप्य For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधिकारितावच्छेदकं ॥ तदुक्तं हेमाद्रौ चेतसा ॥ स्नातोधिकारी भवतिदैवेपित्र्येचकर्मणि।।। पवित्राणां तथा जाप्ये दानेच विधिचोदिते ॥ ॥ आग्नेये ॥ स्नानानामपिसर्वेषांवारुणे नच मानवः ॥ कर्तुमर्हति कर्माणिविधिवत्सर्वदाद्विजः ॥ संध्यावंदनंविनाकर्मनकर्तव्यमित्युक्तं ॥ तत्रैव ॥ संध्याहीनो शुचिर्नित्यम नर्हः सर्वकर्मस ॥ यदन्यत्कुरुते कर्म न तस्यफलमश्रुते ॥ ॥ वाराहे ॥ सुस्नातः सम्यगाचीतः कृतसंध्यादिकक्रियः ॥ काम क्रोधविहीनश्वपाखंडस्पर्शवर्जितः ॥ जितेंद्रियः सत्यवादी सर्वकर्मसशस्यते ॥ क मगस्नाने विशेषोमार्कंडेयपुराणे ॥ शिरः स्नानं मकुर्वीत दैवपिव्यमथापिवा ॥ माड्यु For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार खोदमुग्योवापिश्मश्रुकर्मचकारयेत्॥ नवादोश्मश्रुकर्मननःशिरःस्नानं॥ अन्यथा भास्कर ॥१७॥ | चित्वापत्त्यापुनः स्नानापनेः॥ तच॥ मानेमंगलरुत्पादौतिलामलकादिनो डान्य |गस्नानपूर्वक कार्य॥ तदुक्तंपरशुरामेण॥ ततः स्वगृहमागत्यमंगलस्नानमाचरेत्॥ सपि | धीगंधचूर्णैर्युक्तैः कृष्णतिलामलकैः ॥ उदल्गानितैलेनचंपकादिसगंधिना॥ तैलेन मंग| लस्मानंकुर्वीन ब्राह्मणैःसहेति॥ ॥आपस्तंबः ॥ आर्द्रवासास्तुयःकुर्याज्जपहोमपरिय | हान्॥ सर्वतद्राक्षसंविद्या बहिर्जातंचयत्कृतं॥यज्जलेशष्फवस्त्रेणस्थलेचैवार्दयामसा |॥१७॥ || ॥जपहोमस्तथादानंतत्सर्वनिष्फलंभवेत्॥ सप्तवाताहतमपिभुकं॥ नस्यूतेननदग्धेन ॥ For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारक्येन विशेषतः ।। सूषकोत्कीर्ण जीर्णेन कर्म कुर्याद्विचक्षणइतिभारतात् ॥ ॥ बोधा!! यनः॥ काषायवासाः कुरुतेजपहोमप्रतिग्रहान् ॥ नतद्देवागमंकर्महव्यकव्येष्वथोहवि ||रिति ॥ भवेदितिशेषः ॥ ॥ आचारादर्शे॥ नरक्तमुल्बणंवासेाननीलं चप्रशस्यते॥म लाक्तं चसदाहीनंवर्जयेदंबरंबुधइति ॥ व्याघ्रपादः ॥ ॥ काषायंकृष्णावस्त्रं चमलिनंकेश दूषितं ॥ जीर्णचसंधितंवापिपारक्यमै धुने धृतं ॥ छिन्नायमुपवस्त्रंच कुत्सितं धर्मतीवि ||दुरिति ॥ अयंचनिषेधः ॥ सतिसंप्तवेबोध्यः ॥ ॥ ब्रतहेमाद्रौ ॥ प्रागग्रमुदगयंबाधी । निवासः प्रसारयेत् ॥ पश्चिमादक्षिणायंपुनः प्रक्षाननाच्छुचिरितिमार्कंडेयः ॥ ॥ अ For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार न्यदेवभवेदासः शयनीयनराधिप ॥ अन्यदेवचदेवानाम यामन्यदेवहि॥ ॥ अन्यच्चलो भास्कर ॥१८॥ कयात्रामन्यदीश्वरदर्शने॥ ॥योगीयाज्ञवल्क्यः॥ अभावेधीतवस्त्रस्य शाणक्षीमादि| कानिच॥ कुतपंयोगपहुंचाविवासायेनवैभवेत्॥ कुनपोनेपालकंबलः॥ ॥भविष्ये ॥ नीलीरतेनवस्रेणयकर्मकुरुतेद्विजः॥स्मानंदानंतपोहोमः स्वाध्यायःपितृतर्पणं॥वृथा, नस्यमहायज्ञानीलीरक्तस्यधारणात्॥ व्याघ्रपादः॥नैकवस्मोदिजःकुर्याद्भोजनंच सरार्चन॥ तत्सर्वमसरेंद्राणांब्रह्माभागमकल्पयत्॥ ॥विष्णुपुराणे॥ ॥ होमदे ||१८|| वार्चनाधासुक्रियावाचमनेतथा॥नैकवरून प्रवर्तेतद्विजवाचनिकेतथा॥हिजवाच । For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || नेस्वस्तिवाचने॥ ॥शातातपः॥ सन्यादंसा सरिश्वष्टंकटिदेशेधूनांबरं ॥ एकरस्तुत दिया येपित्र्येषिवर्जयेत्॥ ॥संग्रहे॥ वामपृष्ठेतथानामौकच्छत्रयमुदाहते॥विभिः कछैःपरिज्ञेयोधिपोय सचिर्भवेत्॥ आदीकच्यस्ततोनीचीनाभिमध्येचवाससी। नी चीदक्षिनःस्थाप्याएनधिकच्छलक्षणं॥शयनं चाईपादेनशकपादेनभोजनं॥नोत्तरीयमयः कुर्याद्रावियासस्तथादिने॥ ॥ कटिवेष्ट्यंतुयहरूपुरीपोयेनयारुतः॥ मूत्रमैथुनरुहरु धर्मकार्येषिवर्जयेत्॥ ॥दानहेमाद्रौगोतमः॥ स्नानेदानेजपेहोमेदैवेपित्र्येचकर्मणि॥ बधीयान्नासुरीकक्षांशेषकालेयथारुचि ॥ तत्रैययाज्ञवल्क्यः॥ ॥परिधानाबहिः ।। For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१९॥ कक्षानिवदाचासरीमना॥ धर्मकर्मणिविद्वद्भिर्वर्जनीयाः प्रयत्नतः॥ ॥विश्वामित्रः।यज्ञो भास्कर पवीतेद्वेधार्यश्रीतेस्मार्नेचकर्मणि ॥ नृतीयमुत्तरीयार्थरस्मासावेतदिष्यते॥ उत्तरीयवस्थामा पारस्करगृत्ये॥ एकंचेपूर्वस्योत्तरवर्गणपञ्चादयीतेति॥ ॥शिखाबंधोक्तचनुर्विंश निमते॥ ॥मध्येतुबद्दचाश्चैवनिवनीयुःशिरवातनः ॥मध्यंदिनाश्चयेविनापार्श्वदक्षि णतःकमात्॥ वामपातुबधीयुर्येविप्राः सामगायनाः॥ ॥ संग्रहे॥ पल्याटत्वादिदो पेणविशिरयश्चेन्नरोभवेत्॥कोशीतदाधारयीतब्रह्मग्रंथिसुनांशिरयां ॥१॥ ॥मार्क | ॥१९॥ | डेयः॥ कुशपाणिः सदानिष्टे ब्राह्मणोदंवर्जितः॥ सनित्यहनिपापानितूलराशिमिया For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नलः॥ ॥याज्ञवल्क्यः॥ पेषणादिकयंत्रेषुशब्दोयावत्मवर्तते॥पतितांत्यजचांडाला दीनांयावच्चशब्दकः॥तावकर्मनकर्तव्यंतथासंध्याइयेपिच॥ ॥उपांशलक्षणं॥बृह द्याज्ञवल्क्यः॥ पिनाशब्दजपोयस्त चलजिहाद्विज छदः ॥ उपांशुतंजपंप्राहुर्मनसामा नसंबुधाः॥ स्पष्टतरवर्णोच्चारस्त॥वर्णस्पष्टनरोच्चार्योनासाश्यासायधीनिवा॥मुखश्वासा वधीभृण्यन्नभिषेकार्चनेषुचेनि॥ आचारमयूरवे॥ ॥कर्मप्रदीपे॥ आवाहनासनेपा द्यमर्घमाचमनीयकं ॥ मानवस्त्रोपरीनंचगंधमाल्यान्यनुक्रमात्॥१॥धूपंदीपंचनैवेयं || तांबूलंचपदक्षिणा ॥ पुष्पांजलिरितिप्रोक्ता उपचारास्तषोडश ॥२॥फलेनसफलाया For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२०॥ संस्कार प्तिः सांगतादक्षिणार्पणं ॥ ॥ पंचोपचारक्त ॥ ॥ गंधपुष्ये धूपदीपौनैवेद्यइतिपंचकं ॥ पं चोपचारमाख्यातं पूजने तत्वविद्बुधैः ॥ १ ॥ ॥ राजोपचारास्त ॥ ॥ ततः पंचामृताभ्यंगमं गस्योद्वर्त्तनंतथा ॥ मधुपर्कं परिमलद्रव्याणिविविधानि च ॥ १ ॥ पादुकांदोलनादर्शव्यजनंछबचामरे ॥ वाद्यार्तिक्यंनृत्यगीतशय्याराजोपचारकान् ॥ २ ॥ ॥ अथधनिकादिप्रदेय दक्षिणार्थद्रव्येयत्ताव्यवस्थामाह ॥ तत्रादौधनिकादिलक्षणं ॥ बाराहे॥ वर्धयित्वाधनंय रक्त तस्माद्भासमपीहयः ॥ नखादे संग्रहपरो धनिकः सउदाहृतः ॥ १ ॥ पोषणीय कुटुंबस्य ॥ २० ॥ निर्वाहोयावनाभवेत् ।। तावदेवस्तस्वंयेनलभते प्रतिवार्षिकं ॥ ऋणं स्वतु नास्त्येवसमध्य For Private and Personal Use Only भास्कर Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मउदाहृतः॥२॥धनंपूर्वापरयस्यवर्ततेबहुसंख्यया॥ अधिकस्यार्जकोयस्यात्समहाधनिउ च्यते॥ सदाचाररतोषिपोधनार्जनपराङ्मुखः॥ कुटुंबपलमनिकः सदरिद्रइतिस्मृतः॥ | यस्यस्यादशनाभावःसदाचाररतस्यहि॥महादारिद्रः सभासोधान्यविवर्जितः॥ वर्धयि त्याधनंयस्तयासंवार्षिकमर्जयेत्॥सवैधन्यइतिप्रोक्तश्चैकवर्षेणयःपुमान॥वर्षयमित यासंसहिधन्यतरःस्मृतः॥ अधिकस्पार्जकोयः स्यात्सधन्यतमईरितः॥धनेनैवविनायतयासंवार्षिकमर्जयेत्॥सवैधीरइतिपोक्तस्तारतम्यंचपूर्ववति॥ अथैतेषुमध्येके निकियद्देयंइत्याकांक्षायांबाराहे॥ ॥लक्षनमस्कारहोमप्रकृत्याच्या हत्तीनांसहमस्या For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार होमेशुल्कंदिजेर्पयेत्॥माषमाबंकवर्णनुलक्षहोमेशनंयवाइत्युक्तं ॥ धनिकोहिगुणदया- भास्कर ॥२॥ नत्रिगुणतुमहाधनः॥यवार्धनुदरिद्रेणदातव्यंपुण्यलब्धये॥ दद्यान्महादरिद्रततदर्धक ल्कमेवचेति॥मध्यमादिभिस्तथनिकायपेक्षयाकिंचिन्यूनंदरिद्रायपेक्षयाकिंचिदधिकंदेयमित्यर्थात्तारतम्येनकल्पनीयं॥धीरेणापिदरिद्रतोपिन्यूनसमंबालाभानुसारेणकल्पनीयं एतच्चसवर्णादिद्रव्यविषयमेघनतुगवादिविषयं॥सवर्णप्रकृत्यैवबैगुण्यादेरुक्तखात् एतत्सर्वं नित्यकर्मविषयंअनुक्तपरिमाणविषयकंचज्ञेये॥ काम्येउक्तपरिमाणेचकर्मणि ॥२१॥ नुयथावदेवदेयं॥ धनिकादिभिस्तदारिद्यमितिपरच्यापयन्यथावन्नददातिसकर्मफ || For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | लंनैवाप्नोति ॥ तयाचमनुः ॥ ॥ प्रभुःप्रथमकल्पस्ययो नुकल्पे नवर्तते ॥ सनामोति फलं तस्यपरत्रेतिश्रुतिस्मृतिरितिपुराणांतरेपि ॥ वित्तशाठ्यंनरोयस्क्तधनेसतिकरोतिहि ॥ |सनामोति फलंतत्र चौरएवप्रकीर्तितइति ॥ एवंस्वल्पकालसाध्यबहुकालसाध्यकर्म श्रमा द्यनुरोधेनद्रव्येयत्ताकल्पनीया॥ ॥ भारते ॥ वेदोपनिषदेचैव सर्वकर्म रूदक्षिणा ॥ सर्वत्रैव । तुचोद्दिष्टाभूमिर्गायोथकांचनं॥ ॥ बैजवापः ॥ शिवनेत्रोद्भवंयस्मात्तस्मात्तपितृबलुतं। | अमंगलंतद्यले नदेव कार्येविवर्जयेत्॥ ॥ सर्वकर्मक ब्राह्मणभोजनसंख्यामाहगदाध || रे || गर्भाधानादिसंस्कारे ब्राह्मणान्भोजयेद्दश ॥ शतंविवाहसंस्कारे पंचाशन्मेखलाविधौ ॥ For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार आचसयेत्रयस्त्रिंश-झोताधानेशतात्परं॥ अष्टकंमोजयेद्भक्त्यातत्तसंस्कारसिद्धये॥आय भास्कर ॥२२॥ यणेप्रायश्चित्तेबाह्मणान्दशपंचचेति॥रुतकर्मईश्चरार्पणकार्यमित्युक्तंबृहन्नारदीये॥ विष्यवर्पितानिकर्माणिसफलानिभवेतिहि ॥अनर्पितानिकर्माणिभस्मनीबहुतंहविः॥नित्यं नैमित्तिकंकाम्यंयच्चान्यन्मोक्षसाधनं ॥ विष्णोः समर्पितंसर्वसायिकंफलदंभवेत्॥ ॥इ निपरिभाषाप्रकर्ण॥ ॥अथगर्भाधान। तबप्रथमरजोदर्शनेत्रयोदशदोषाःज्योनिः। शास्उक्तास्नेसंकल्पेपक्ष्यामः तत्रदोषाणांनिबर्हणार्थनारदोक्तविधिनाशांतिकत्यागी ॥२२॥ धानकार्य॥शांतिकर्मअमिचक्रं चावश्यंतथापिअग्निचक्रविनाकर्माणिनिर्णीतानि For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिर्निबंधे॥ ॥दुर्गाहोमविधीविवाहसमयेसीमंतपुत्रोत्सवेगर्माधानविधौचवास्त समयेषिष्णोःपतिष्ठादिषु॥ मौजीबंधनवैश्वदेवकरणेसंस्कारनैमिनिकहोमोनित्यावे नदोषकथितंचक्रंचयन्हेरपीति॥ ॥अथनारदोक्तगर्भाधानशांतिः॥निंद्यसतिथिचा रेषुयदिपुष्पंप्रदृश्यते॥ अशांचेद्रन: स्त्रीणानियस्यानंचवाससी ॥१॥तप्रशांतिपक वतियहयज्ञपुरःसरं॥समुहूर्तेतुसंपामेकर्याच्छानियथाविधि॥२॥विधानंतरकर्नन्यं | अरिष्ट विशेषतः॥ दंपत्योःपातरेवस्थानमंगलस्नानमुत्तमं॥३॥पंचमेदिवसेस्माता श्यामप्यत्रमंगलैः॥तिलतैलेनझडेनशाकल्केनवापुनः॥ उष्णेश्नवारिभिः श्रेष्ठ-पं ॥ For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie चपल्लवसंयुतेः॥आन्हिकंविधिवत्रुत्वाविधानंनूनमाचरेत्॥५॥ इनान्चार समायुक्त व भास्कर दयापरयायुतः॥निथि श्रवणकंकुर्याच्यातिसंकल्पपूर्वकं ॥६॥पुण्याहवाचयेत्पश्चात् ब्राह्मणैर्वेदपारगैः॥ रुत्वाभ्युदयिकंबादमाचार्यचरयेत्ततः॥७॥स्थंडिलंचततः कृत्याभ||मिसंस्थापयेत्ततः॥ईशान्यांचतुर: कुंभान्स्थापयेद्वारिपूरितान्॥॥पंचपल्लवसंयुक्तान्स |ौषधिसमन्धितान्॥पंचरत्नसमायुक्तान्पक्तिरूपेणसाधयेत्॥९॥भोपरिन्यसेसावं शालिनंदुलपूरिनं॥ पायोपरिन्यसेहरूप्रतिभपृथक्पृथक्॥१०॥ सूर्यंचविन्यसेदायेई |॥२३॥ |देंद्राणीततःपरं॥ चतुर्थेविन्यसेविद्वान्प्रतिमांनुवनेश्वरी ॥११॥तनोग्रहांश्चसंपूज्ययथा || For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधिविधानतः॥ सूर्यकुंभंतुसंस्पृष्ट्वा सूर्यसूक्तं जपे हिजः ॥ १२ ॥ रुद्रैकादशनींचापिजपे || तत्रसमाहितः॥प्रधानंपायसं प्रोक्तंसघृतं च सवार्करी ॥१३॥ अष्टोत्तरसहसंतुशतमष्टोत्त ||रंतुवा ॥ प्रत्येक देवतानांच जुहुयात्तिलसर्पिषा ॥ १४॥ आकृष्णेनेतिसूर्यच इंद्रत्रातारमिंद्र) तः ॥ इंद्राणीतुतथादित्यैरास्नेतिचक मंत्रतः ॥१५॥ ईश्वरीतुवनस्याययजुषां श्रीश्वतेति च ॥ ग्रहहोमं ततः कृत्वायथाविध्युक्तद्रव्यया ॥१६॥ वंशपात्रं समानीयरक्तवस्त्रसमन्वित म्॥ तत्रराशिं प्रकुर्वीत नंदुलानां नृपोत्तम॥१७॥ तत्रोपरिन्यसेमी कदलीं सूर्यदेवतां ॥ बन्हे || रुत्तरतो विद्वान्कदलींस्थापयेच्छुभां ॥ १८ ॥ हेम्नः पंचपलाढ्यांवापलस्यापिसुलक्षणा प For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२४॥ संस्कार, लार्धेनतदर्थेनतदर्थेन चवा पुनः ॥ १९॥ सस्तंभाव्यांस पत्राचकदले नविराजितां ॥ ॥ तंदु भास्कर | लानांप्रमाणंतु ॥ अष्टमुष्टिभवेकिंचिकिंचिदष्टौचपुष्कलं ॥ पुष्कलानिच चत्वारिआटकः | परिकीर्तितः ॥ चतुर्भिराटकैद्रेणिया ह्याद्रोणैकतंदुलान् ॥ दद्यात्तांविप्रवर्याय सवस्त्रांच सद क्षिणां ॥ अलंकृतायविदुषेश्रोत्रियायकुटुंबिने। दानमंत्रस्तु ॥ रूपत्रेरूप्तगेदेविरंभेभा|स्कर बल्लभे ॥ रक्षमांरजसो दोषात् दुष्टस्यास्यविगर्हितात् ॥ दानेनानेन देवेशसविताविश्व तोमुखः ॥ प्रीनोभवतु वैसद्योदोषोहरतुदुष्कृतं ।। ततोभिषेचनं कार्येदंपत्योश्वविशेषतः ॥ उच्चार्य वारुणान्मंत्रान्जलेनपंचपल्लवैः॥ उधृत्योत्श्धृत्यतंसिंचेत्पुण्यमंत्रैर्यथाविधि ॥अ For Private and Personal Use Only ॥२४॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोहिष्ठात्रिभिर्मंत्रैःपंचेंद्रैःपंचवारुणैः ॥ भगप्रणेतीद मापः समुद्रायषुनंतुमां॥ आप्यायपंच नद्येतिशिरोमेतिचतसृभिः॥देवस्यत्वेचितीत्यादि अभिषिंचपुनःपुनः॥शक्रादिदेवताः स ब्रह्माविष्णुपुरोगमाः ॥ दंपत्योः परिधानार्थमहतेवाससीपुरा ॥ कर्मणोंतेविसृज्यान्यद्वासश्वपरिधार्यते ॥ आचार्याय ततोदयात्स्वर्णगोभूतिलांस्ततः॥ब्राह्मणेभ्यस्तथान्येभ्योदक्षिणा श्वविशेषतः ॥ सदक्षिणमनड्राहंप्रदद्याद्वजापिने ॥ ब्राह्मणान्भोजयेश्वार्कराघृतपा | यसैः ॥ यस्मिन्वाससिदृष्टंचरजोदुष्टभयावहं ॥ तद्वासोयत्नतस्याज्यंततः शांतिकरंहित | त् ॥ एवंयः कुरुते शांतिंनारदोक्तप्रमाणतः ॥ तदनिष्टंतुसकलं सद्य एव विनश्यति॥ ॥इ For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार निनारदोक्तरजोदर्शनशॉनिक्रमः॥अथशांतिपयोगानुक्रमः॥ शांतिकमप्रवक्ष्यामिनारदे भास्कर ॥२५॥ नयथोदितं॥गणेशपूजयेदादोस्वस्लिपुण्याहवाच ॥१॥ मातॄणांपूजनकार्यनांदीश्राइमनः परं॥ आचार्यबरयित्वायब्रह्माणंगाणपत्यकं ॥२॥सादस्यंक्रलिज चैवजापकान्वयेननः॥ दिगरक्षणंततःकार्यपंचगव्यंयथाविधि ॥३॥भूमिसंपूज्यविधियत्ताश्वसंस्कारपंचकं॥ स्थ डिलेमिंप्रतिष्ठाप्यकलशान्स्थापयेकमात्॥४॥मूर्सम्युत्तारणपाणप्रतिष्ठास्थापनार्चनं। यहादीन्स्थापयित्वायस्थापयेद्रुद्रकुंभकं ॥५॥ ब्रह्मासनंतनोदत्याकारयेत्कुशकंडिकांगलिं ॥२५॥ गोक्तैर्नाममंत्रै यथाविध्युक्तद्रव्यया॥६॥ देवनायहहोमंचयथासंरल्यापुरः सरं॥पूजा For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्पिष्टनवाहुत्याबलिंपूर्णाहुतितथा॥७॥ पवाभादिविमोकांनंहोमशेषसमापयेत्॥श्रेयस पायदानंचअभिषेकोविसर्जन॥॥विवाशिषःप्रगण्हीयानैमिष्टान्नेनभोजयेत्॥ ॥ इति शोनिमयोगानुक्रमः॥नान्वाधानऋषित्रछंदोयाजुषागृह्यकर्मणि॥श्रीतेकर्मणिकेषांचिदन्या धानादिकारयेदितिवचनात्॥षिश्छंदअन्वाधानंगाधानातिरिक्तसंस्कारेऽस्मिन्ये नांगीहतं॥ ॥तबादौसर्वकर्मसाधारणांगानांगणेशपूजादीनांस्वस्तिवाचनांतानांप्रयोगः ॥सचशिष्टमचुराचारानुसारेणोच्यते॥ ॥महत्सुकर्मसपूर्वेयु: स्वल्पेषुतस्मिन्नहनिपूर्वाहेनिर्णजनांनपंचमहायज्ञांत रुतनित्यकियेणसपत्नीकेनसंस्कार्येणचयजमानेनप्रामा For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार खेनोदङ्मुखेनवाशद्धपीठेउपवेशनं ॥ ॥ पादौहस्तीचप्रक्षाल्यद्विराचम्यत्रिः प्राणानाय ॥ २६॥|| म्यदेशकालौसंकीर्त्यकरिष्यमाणासुक कर्मागतया मंगलस्नानमहं करिष्येइतिसंक सः॥ ॥ तनोयथा चारंमंगलवाद्यघोषपुरः सरंपुत्रवतीवृद्धसवासिनीभिर्हस्तैः सगंधितैलेनाभ्यं जनंतिलामलकादीनां सर्वैषध्यादिसुगंध चूर्णेनोद्वर्तनं उष्णोदकेनस्नानमिदमेवमंगलस्ना नमित्यभिधीयते॥ ॥संग्रहे ॥ सौगंध्यतिलतैलेन कुर्यादंगेषुभ्यंजनं ॥ तिलामलकसंयुक्तैः सुगंध्यौषधिचूर्णकैः ॥ अंगोद्वर्त्येष्णोदकेनस्नानं तद्यंगलंस्मृतमिति ॥ ॥ शुष्कवरच ||परिधानपुरःसरंपतिपुत्रवतीवृद्धवासिनीभिर्मंगलतिलकयुतंनीराजनं प्रकुर्वीत ॥ त For Private and Personal Use Only भास्कर ||२६॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || याचयजमानः पल्यासंस्कार्येणचयथायोग्याऽलंकृतः द्विराचमनं॥ ततोयजमानःन | वश्वेनंसद शंस्पवर्णेनसरुद्धोतंप्रागुदग्दर्शवाप्रसारितनान्यधारितंअहतंबसनंतनाभिए । ष्टिकटयेवंबद्धत्रिकच्छंपरिधास्यैइत्यनेनमंत्रणपरिधाय यशसामेत्यनेनमंत्रेणोत्तरीयों ॥अहतेवाक्षीमवरुषेश्वेतपीतरक्तरंजितेवानीलीरंजितंयिनापल्याखमंचंपरिधाय॥प्रति | वस्नेस्मार्तविधिनाद्विराचमनं॥पल्यास्त यथोक्तं॥ ततोयारणादियज्ञीयदारुनिर्मितेसो तरदेशुद्धपीठेशभासनेयज्ञोपवीनिनादक्षिणपार्श्वबद्दशिरवा भिन्नकेशेयजमानेन प्राङमुखेनवाउपवेशन॥तदक्षिणतः पल्याचतद्दक्षिणतः संस्कार्येणच॥ वारणादिपदेन For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥२७॥ सीसवटेंभुरणीकाटपीठ॥ उत्तरछदेउत्तरायइति॥ ॥ सयेदिधिकुशदलोपग्रहः॥दक्षिणे | भास्कर चतुः कुशदलोपग्रहः॥सचअनामिक्यांमध्यपः॥ एवं करइये कुशोपग्रहः ॥ अथवापंचच तुकुझादलयंथियुतकरइयेपवित्रोपग्रहः॥वर्णेवणेएकैकन्यूनमितिकेचित्॥ ॥शोडश माषमारभ्योयचयथाशक्ति हेमात्मकपवित्रंचातिप्रशस्तं॥ ॥धृतककुमकेशरस्ययामंग लनिलकोस्मार्तविधिनादिराचम्य प्राणानायम्यशांतिपाठपठित्वात्रिमाप्रणवमुच्चार्यलक्ष्मीनारायणादिदेवान्प्रणमेत्॥ ॥ अथशनिपाठमंत्राः॥ ॐ आनोभद्राः क्रतयो | यन्तुविश्वतोदब्धासोऽअपरीतास उद्भिदैः ॥ देवानीयासमिधेऽ असन्नायुयो For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || रक्षि॒तारो॑दि॒वेदि॑वे ॥ १ ॥ दे॒वानां॑ भ॒द्रास॑म॒तिर्ऋजूय॒तान्दे॒वानां॑ रा॒तिभि॑नो॒नव॑र्तता म्॥दे॒वानां॑ ५ स॒व्यमुप॑सेदिमाघ्यन्दे॒वाना॒ऽ आयुः प्रति॑रन्तुजवसें ॥२॥ तान्पूर्च्चयानवि दहूमहेघ्यनग॑म्मि॒त्र॒मदि॑ति॒न्दत॑म॒स्त्रिध॑म् ॥ अ॒र्य॒मण॒म्बरु॑ण॒ सोम॑म॒श्विनासरं |स्वतीनः॑ स॒प्तग्रा॒मय॑स्करत् ॥ ३ ॥ तन्नो॒च्वातो॑मयो॒भुवा॑ तु॒प्तेष॒जं तन्मा॒तापृ॑थि॒वी त "सिताद्यौः ॥ नव्यावा॑णः सोम॒सुतो॑ मयो॒ भुव॒स्तद॑श्विनाशृणुतधिष्णपा युवम् ॥ ४ ॥ नमीशा॑न॒न्जग॑तस्त॒स्थुष॒स्पति॑भि॒यजि॒न्त्व॒मव॑से॒ह॒महे॒ इ॒यम् ।। पू॒षानो॒ यथा॒चेद॑सा॒म स॑कृ॒धेर॑क्षि॒तापायुरद॑ब्ध स्व॒स्तये॑ ॥ ५ ॥ स्व॒स्तिन॒ऽइन्द्रो॑षु॒द्धश्र॑वस्व॒स्तिन॑ For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार पूपाचिन्वदा ॥स्वस्तिनस्तायो अरिष्टनेमिः स्वस्मिनोबृहस्पतिर्दधातु ॥६॥पृष| भास्कर ॥२॥ दश्यामरुनः पभिमानरः शुसंख्यावानोविदर्थेषुजम्मयः ॥ अमिजिदामनवा सूर चक्षसोधिश्नोदेवाऽ अवसागमनिह॥७॥ भद्रकर्णेभिः शृणुयामदेवा भद्रम्पश्ये | माक्षभिर्यजत्राः॥ स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभियशेमहिदेवहितंब दायुः॥८॥ शतमिन्नु शरदोऽ अनिदेवायबानका जरसन्तनूनाम् ॥ पुत्रासोचत्रपितरोन वन्तिमानौमुध्यारीरिषतायुर्गन्तो? ॥९॥ अदिति हरदितिरन्तरिक्षमर्दितिर्मा |॥२८॥ |नासपितासपुत्र ॥विश्वेदेवाः अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिजनित्यम् || For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |॥१०॥ तम्पनी भिर गछेमदेवाः पुत्रै निरुतवाहिरण्ये ॥ नाककृष्णानारस कुतस्यलोके तृतीयपृष्ठे अधिरोचनेदिवः ॥११॥आयुष्यचर्चस्य रायस्पोषमौद्धिं दम्॥इदहिरण्यं चर्चज्जैायाविशतादृमाम्॥१२॥ यो शान्तिरन्तरिक्ष शाति: पृथिवीशान्निरापूः शान्ति रोषधयः शान्तिः ॥ वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवार शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः सर्च शानिः शान्तिरे व शान्तिः सामाशान्तिरेधि॥१॥ यतो यता समीहंसेततोनोऽ अभयङ्क ॥ शन्न कुरु जान्योभयन्न पशुपयः ॥२॥ सशांतिर्भवतु॥ ॥ ॐ श्रीमन्महागणाधिपतयेनमः ॥ ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥२९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमः ॥ ॐ उमामहेश्वराफ्त्यांनमः ॥ ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यांनमः ॥ ॐ शचीपुरंदराभ्यान भास्कर मः ॥ मातापितृ चरण कमलेभ्यो नमः ॥ ॐ कुलदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः ॥ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यः सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमोनमः ॥ ॐ पुण्यंपुण्याहंदीर्घमायुररक्त॥ रुमुखश्चैकदं नश्वकपिलो गजकर्णकः ॥ लंबोदरश्वविकटो विघ्ननाशोगणाधिपः ॥ १ ॥ धूमकेतुर्गणाध्य | सोभालचंद्रो गजाननः ॥ द्वादशैतानि नामानियः पठेद्भृणुयादपि ॥ २॥ विद्यारंभे विवाहेच ॥२९॥ प्रवेशे निर्गमेतथा ॥ संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्यनजायते ॥ ३ ॥ शुक्लांबरधरंदेवंशशिव For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||र्णं चतुर्भुजं ॥ प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशांतये॥ ४॥ अभीप्सितार्थसिध्यर्थं पूजितो| यः फरास्तरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतयेनमः॥५॥ सर्वमंगल मांगल्येशिवे सर्वार्थसा ||धिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरिनारायणि नमोरतते ॥ ६ ॥ सर्वदासर्वकार्येषुनास्तितेषाममंगलं ॥ येषाहृदिस्यो भगवान्मंगलायतनं हरिः॥ ७ ॥ लाप्तस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ॥ येषा मिंदीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ॥ ८ ॥ विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्माविष्णुमहेश्वरान् ॥ सर स्वतप्रणम्यादौ सर्व कार्यार्थसिद्धये ॥ ९ ॥ सर्वेष्यारंभकार्येषुभ्यस्त्रिभुवनेश्वराः॥देवा दिशे | तुनः सिद्धिंब्रह्मेशान जनार्दनाः ॥ १० ॥ ॥ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुष || For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ३० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्यविष्णोराज्ञयाप्रवर्तमानस्य अद्यब्रह्मणोद्वितीयेपराधैविष्णुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पवैव स्वतमन्वंतरे अष्टाविंशतितमेकलियुगे प्रथमचरणे भरतवर्षे भरतखंडे जंबुडीपेदंडकारव्येदेशेगोदावर्यापश्विमेती रेपरशरामक्षेत्रे बौध्यावतारे शालिवाहन शके अमुक नामसे वत्सरे अमुकायने अमुकऋतौ अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते चंद्रे अमुकराशिस्थितेश्रीसूर्ये अमुकराशिस्थितेदेवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु व्यथायथाराशिस्थानस्थितेषुसत्सु एवंगुणविशेषणविशिष्टायां तपुण्यतिथौममआत्म ॥३०॥ नः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलावाप्तये अस्मिन्पुण्याहे अस्याः ममभार्यायाः प्रथमरजोदर्श । For Private and Personal Use Only भास्कर Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |नसमयेमासतिथिवारनक्षत्रयोगकरणलग्रहोरावस्त्रदर्शनम्यानदिनभागवर्णानांम ध्येयद्यविरुद्ध फलंननदोषपरिहारार्थपुत्रपौत्रादिसंनतिमाप्त्यर्यंतथाचममकलबेणसह जन्मराशेः सकाशान्नामराशेः सकाशा येकेचिद्विरुद्धस्थानस्थितङ्क्रयहास्तैः सूचिन सूचयिष्यमाणंचयत्सर्वारिष्टंतदिनाशार्थसर्वदातृतीयेकादशशास्थानस्थितशमा फलप्राप्त्यर्थगणपतिदुर्गाक्षेत्राधिपनिमादित्यादिनवग्रहाधिदेवताप्रत्यधिदेवतादिसहित श्रीसूर्यइंद्रइंद्राणीभुवनेश्वरीदेयताप्रीत्यर्थनारदोक्तरजोदर्शनशांतिसांगोपांगेनतथाचभनी स्या-मममार्यायाःक्षेत्रगर्मयोः संस्कारार्थप्रतिगर्मसमुद्भवैनोनिवर्हणद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यय For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार गर्भाधानाख्यंकर्मएक तंत्रेणाहंकरिष्ये ॥ इतिसंकल्पः ॥ ॥ तदंगत्वेन गणपतिपूजनस्व ॥१॥ स्तिपुण्याहवनमा नृकापूजनं आयुष्यमंत्र जपं नांदीश्राद्धं ब्रह्मा वार्यकलिंग्वरणंदिय क्षणपंचगव्य करणं भूमिपूजनं अग्निस्थापनं कलशस्थापनंभस्युत्तारण प्राणप्रतिष्ठापूर्वक देवतास्थापनंकदलीस्थापनं नवग्रहस्थापनं चाहंकरिष्ये ॥ तत्रादौ कर्मार्थ जलपूरितकलशार्चनं ॥ ॐ तत्वा॑यामि॒ब्रह्म॑णा॒ वद॑मान॒स्तदाशस्त्यज॑मानो हविर्भिः ॥ अहंडमान वरुणे॒ हर्बोध्युरु॑वार्टस॒माना॒ऽआयुष्मषी ॥ १ ॥ कलशेवरुणायनमः गंधाक्षतपुष्पैः ॥ ३१ ॥ संपूज्य ॥ नतोदक्षिणहस्तेन कलशमालभ्याभिमंत्रयेत् ॥ कलशस्य मुखेविष्णुः कंठेरुद्रः For Private and Personal Use Only तास्का Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाश्रितः ॥ मूलेनस्यस्थितो ब्रह्मा मध्येमातृगणाः स्मृताः ॥१॥ कुक्षौ तु सागराः सर्वेसप्तडी | पावसुंधरा ॥ ऋग्वेदोचयजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥ २॥ अंगैश्वसहिताः सर्वे कलशंतुस ||माश्रिताः ॥ इत्यभिमंत्र्य ॥ ततोगंगाद्यावाहनं ॥ गंगेचयमुनेचैषगोदावरिसरस्वति ॥ नर्म देसिंधुकावेरि जलेस्मिन्सन्निधिंकुरु ॥१॥ अस्मिन्कलशे सर्वाणितीर्थान्यावाहयामि ॥ पू |जयामि ॥ नमस्करोमि ॥ कल शोदकेनपूजासंभारान्संप्रोक्ष्य ॥ तत्रमंत्रः ॥ ॐ अपवित्रः | पवित्रोवासर्वावस्थांगतोपिया ॥ यः स्मरे पुंडरीकाक्षं सबाह्याभ्यंतरे शुचिः ॥ १॥ इतिमंत्रे गप्रोक्षयेत्॥ ॥ दीपपूजनं ॥ भोदीपत्यं ब्रह्मरूपअंधकारनिवारक ॥ इमांमयाकृतां || For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ३२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजां गृहं स्तेजः प्रवर्धय ॥ १ ॥ दीपाय नमः गंधाक्षतपुष्पैः संपूज्य ॥ ॥ अथगणपतिपूजनं भास्कर तनोध्यानं ॥ ॥श्वेतांगंश्वेतवस्त्रंसितकुरूमगणैः पूजितं श्वेतगंधैः क्षीराब्धौरत्नदीपैः सु रतरुविमलेरत्नसिंहासनस्थं । दोर्भिः पाशांकुशेष्टाभयधृतिविशदंचंद्रमौलिंविनेत्रध्याये च्छात्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतंप्रसन्नं ॥१॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहित महागणपतये नमः ध्यायामि ॥ ॥ हेहेरंबत्वमेोहि अंबिकात्र्यंबकात्मज ॥ सिद्धिबुद्धि |पतेत्र्यक्षलक्षलाभपितुः पितः ॥ १ ॥ नागास्य नाग हार लंगणराजचतुर्भुज ॥ भूषितः स्वा ॥३२॥ युधैर्दिव्यैः पाशांकुशपरश्वधैः ॥ २ ॥ आवाहयामिपूजार्थंरक्षार्थं चममक्रतोः ॥ इहागत्य For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृहाणत्यपूजांकनुचरक्षमे॥३॥ॐ गणानान्वागणपनि हवामहेप्रियाणान्वामियपति हवामहेनिधीनान्त्वानिधिपतिर्द हवामहेबसोमम॥आहमजानिग धमाखमजा सिगर्भधम्॥१॥ ॐ भू. सिद्धिबुद्धिसहितमहागणपतयेनमः गणपतिआवाहयामि॥ ॥ रम्यंसशोभनंदिव्यंसर्वसौरव्यकरंयुमं॥आसनंचमयादत्तंगहाणपरमेश्वर॥२॥ ॐवर्षीस्मिसमानानामुद्यनामिवसूर्यः ॥ इमंतमभितिष्ठामियोमाफश्याभिधासति ॥२॥ ॐ भू०सि० म० आसनसमर्पयामि॥ उष्णोदकं निर्मलंचसर्वसौगंध्यसंयुते॥ । पादप्रक्षालनार्थायदत्तनेप्रतिरातां ॥३॥ एतावानस्यमहिमातोज्यायाचपू ।। For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ! रुषः ॥ पादौस्यच्चिचोमूनानिधिपादस्या मृनन्दिवि॥३॥ ॐ भूसिम गः पाद्यम भास्क नाम्मपात्रेस्थितंतोयंगंधपुष्यफलान्वितं ॥महिरण्यंददाम्यर्धगृहाणपरमेश्वर॥४॥ ॐ धामन्तेविश्यम्भुवनमधिश्रितमुन्त समुद्रेहृयन्तराषि॥ अपामीकेसमिथे या आतस्तमैश्याममधुमन्तन्न कुर्मिम्॥४॥ ॐ भू.सि. म. अर्घस०॥सर्वती| र्थसमायुक्तंसगंधिनिर्मलंजलं॥ आचम्यार्थमयादत्तंगृहाणपरमेश्वर॥५॥ ॐइ मम्मेवरुणश्रुधी हवम्याचमृडय॥त्वामवस्युराचके ॥५॥ ॐ भू-सि-म आचम ॥३३॥ नंसम०॥पंचामृतस्नान॥ कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषांजीवनपरं॥ पावनंयज्ञहेतुश्चपयः । For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्मानार्थमर्पित॥१॥ ॐ पर्य, पृथिव्याम्पय ओषधीषुपयोदिव्युन्नरिक्षेपर्योधाः ॥पयन । ती प्रदिशः सन्तुमद्यम्॥१॥ ॐ भू-सि-म पयःस्नानं स०॥ पयःस्नानांतेशद्रोदकस्मानंस ॥पयसस्तुसमुद्भूतंमधुराम्लंशशिप्रमं ॥दध्यानीतंमयादेवस्मानार्थप्रति, | गृह्यतां॥२॥ ॐ दधिक्राणोऽ अकारिषष्णिोरश्वस्याजिन ॥ सुरभिनो। | मुरवाकरण आयूट पितारिषत्॥२॥ ॐ भू-सि-म- दधिस्नानं ॥ नवनीतसमुत्य नंसर्वसंतोषकारकं॥घृतंतुमयंप्रदास्यामिस्नानार्थप्रतिगृह्यतां ॥३॥ॐ घृतम्मिमिक्षेघुतमस्यथोनिर्घतेथितोऽतम्बस्यधाम॥ अनुष्यधमावह मादयस्व॒स्वाहारुतँच । For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार षप्तत्चक्षिहव्यम्॥३॥ ॐ भूः सि. म. घृतस्नानंस०॥ घृतस्ना नांतेम्पु ० ॥ तरु पुष्पसमु ॥३४॥ दूतसुखादुमधुरं मधु ॥ तेजः पुष्टिकरं दिव्यंस्नानार्थंप्रतिगृह्यतां ॥१॥ ॐ मधुच्चाऋ॒ताय॒तेमध॑क्षरन्ति॒सिन्ध॑वः ॥ माची॑नः॑ स॒न्वोष॑धी ॥ १ ॥ मधुनक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒ ||सार्थि॑व॒ ई॒रज॑ ॥ मधुद्यौर॑स्तु॒ नमः॑ पि॒ता ॥ २ ॥ मधु॑मान्नो॒न्वन॒स्पति॒र्म्मधु॑माँ २७ अस्तु सूर्यै ॥माध्वी॒र्गावो॑ भवन्तुन॥३॥४॥ ॐ भू-सि-म- मधुस्नानंस • ॥ इक्षुसार समुद्ध | ताशर्करापुष्टिकारिका ॥ मलापहारिकादिव्यास्नानार्थं प्रतिगृह्य तां ॥ ५ ॥ ॐ अ॒पाः ॥३४॥ ८ • रस॒मुद॑यसा॒ सूर्य॒सन्त॑ स॒माहि॑तम् । अ॒पाद॑रस॑स्य॒ योरस॒ स्तँ बौगृण्हाम्म्यु For Private and Personal Use Only भास्कर Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त॒मनु॑पया॒ मद॑हीतो॒सीन्द्रा॑यत्वा॒ जुष्ठ॑ गृ॒हम्ये॒षते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य॒ त्वा॒युष्ठ॑ तमम् ॥ ५ ॥ ॐ भू. सि. म. शर्करास्तानंस० ॥ नानासुगंधद्रव्यंच चंदनं रजनीयुतं ॥ उद्वर्त्तनंमयाद तंगृहाणपरमेश्वर ॥ १ ॥ ॐ ग॒न्ध॒द्य॑स्त्वा॑चि॒श्वच॑सु॒ परि॑द॒धातु॒धिश्व॒स्यारि॑ष्टा॒ये॒यज॑ ||मानस्यपरि॒धर॑स्य॒भिरि॒ड ईंड्रतः ॥ १॥ ॐ अहि॑रिव॒भा॒गे पर्येतिबाहु ज्यायाहेति । म्य॑रि॒बाध॑मान ॥ह॒स्त॒नोविश्वा॑व॒युना॑नवि॒द्वान्यु॒मा॒न्यु॒मा॑द॑ स॒म्यरि॑पातुवि॒श्वत॑ | ॥ २ ॥ ॐ भू. सि. म. उद्वर्तनस्नानं स०॥ उद्वर्तनस्नानांतेशुद्धोदक स्नानंस० ॥ ततो नाममंत्रेण गंधपुष्प धूपदीपनैवेद्यनांबूलदक्षिणां नंपंचामृतस्नानांगपूजनंइतिशिष्टाः S For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥३५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | | कावेरी नर्मदावेणी तुंगभद्रासरस्वती ॥ गंगाचयमुनातोयं मयास्ना नार्थमर्पितं ॥ १ ॥ॐ आपोहिष्ठाम॑यो॒ष्ठ॒व॒स्तान॑ॐर्खेद॑धातन ॥ म॒हेरणा॑य॒ चक्ष॑से ॥ १ ॥ योव॑ शि॒वत॑मो॒रस् स्तस्य॑भाजयते॒ हन॑ ॥ उ॒श॒नीरि॑ष॒मा॒तर॑ ॥ २ ॥ तस्मा॒ अर॑ङ्गमाम॒वो यस्य॒क्षया॑य॒जि न्वेथ ॥ आपो॑ ज॒नय॑था चनः ॥ ३॥ ॐ भू-सि-म. शुद्धोदकस्नानमभिषेकं चस० शांतिः | शांतिः शांतिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ ॐ भू. सि. म. स्नानांते आचमनं स० ॥ ॥ सर्वभूषादि | मेसोम्येलोकलज्जानिवारणे ॥ मयोपपादितेतुभ्यंवाससीप्रतिगृह्यतां ॥१॥ॐ सुवास्तवासाः ॥३५॥ परिवीत: आगात्सः उश्रेयान्भवतिजायमानः ॥ तन्धीरासः कवयः उन्नयन्तिस्वाध्योम ॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नसादेवयन्तः॥२॥ ॐ भू० सि. म. वस्त्रंस० ॥ नवभिस्तंतुभिर्युक्तं त्रिगुणंदेवतामयं ॥उपवीतंमयादत्तं गृहाणपरमेश्वर ॥१॥ ॐ यज्ञोपवीतम्परमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सह जम्पुस्तान् ॥ आयुष्यमग्र्यंम्प्रतिमुञ्चशुष्मंयज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ॥१॥ ॐ भू.मि. म. यज्ञोपवीतंस०॥ आचमनं ॥ श्रीखंड चंदनं दिव्यं केशरादिसमन्वितं ॥ विलेपनंसु ||स्श्रेष्ठ चंदनंप्रतिगृत्यां ॥१॥ॐ त्वा व॒र्धा अ॑वन॒स्लामिन्द्र॒स्त्वाम्बृह॒स्पति॑ः ॥ त्वा मो॑षधे॒सोमो॒राज॑वि॒द्वान्यक्ष्मादमुच्यत ॥ १ ॥ ॐ भू-सि. म. चंदनंम० ॥ अक्षताश्व | सरश्रेष्ठ कुंकुमा क्ताः सुशोभिताः ॥ मयानिवेदिता भन्तयागृहाणपरमेश्वर ॥ १ ॥ॐ For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार अक्षनर्माभदन्तयप्रिया अंधूषत॥ अस्तोपतृस्वभानयोधिपानविष्ठयामतीयोजा भास्कर ॥३६॥ चिन्द्रतेहरि॥१॥ ॐ भू-सिम अक्षनान्स ॥सुमाल्यानिसगंधीनिमालत्यादीनिवेगा। भो॥मयाहृतानिपूजार्थंपुष्याणिपनिगृह्यतां॥१॥ॐ ओषधी प्रतिमोदध्वम्पुष्पवनी असूबरी ॥ अश्योउ इवसुजित्लरी/रुधः पारयिणवः ॥ १॥ ॐ भू-सि-म- पुष्पाणि स॥दूस्कुरान्सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान्।।आनीतास्तवपूजार्थगृहाणगणनायका ॥१॥ ॐ काण्डाकाण्डा रोहन्तीपरुषः परुषस्परि॥ एवानौदूर्वपतनुसहस्त्रैणशते । ॥३६॥ नच॥१॥ ॐ भू-सि-म- दूर्वांकुरान्स ॥ हरिद्राकुंकुमचैयसिंदूरादिसमन्वित।सौ । For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाग्यद्रव्यसंयुक्तं गृहाणपरमेश्वर॥१॥सगंधौषधिचूर्णचनानापरिमलानिच॥नानासु ।। गंधतैलानिअनःशांतिप्रयच्छमे॥२॥ ॐ अहिरिवभोगेरपतिबाहुयायीहेतिम्परि बाधमान ॥ हस्तनोविश्वाच्युनानिचिहान्युमान्मार्ट सम्परिपातुविश्वतः ॥१॥ॐ भूर सि-म- नानापरिमलद्रव्याणिसमर्पयामि॥ वनस्पतिरसोदूतोगंधादयोगंधउत्तमः॥आधेयःसर्वी देवानांधूपोयंप्रतिगृह्यनां॥१॥ ॐ धूरसिधूर्चपूर्वन्तुन्धूर्बु तन्योस्मान् तिनन्धूयम्ब | यन्यू/मः ॥ देवानामसिचन्हितमाई मनितमम्पप्रितमनुष्टतमन्देवहूर्तमम्॥१॥ भू.सि-म-धूपंस० ॥साज्यंचयर्तिसंयुक्तंवन्हिनायोजितमया।दीपंगृहाणदेवे For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार शत्रैलोक्यतिमिरापह ॥ १ ॥ ॐ अ॒ग्निर्ज्योति॒ज्र्ज्योति॑र॒भि स्वाहा॒ सूर्यो॒ ज्योति॒ज्र्ज्योतिसू ॥ ३७ ॥ | य॒ स्वाहा॑ ॥ अ॒ग्निर्ध॑चा॒ ज्योति॒र्ध्व च॒ स्वाहा॑हा॒सूर्यो॒ वचो॒ ज्योति॒ स्वाहा॑ ॥ ज्योति॒ सूर्य सूर्यो॒ ज्योति॒ स्वाहा॑ ॥ १ ॥ ॐ भू. सि. म. दीपं समर्पयामि ॥ शर्कराष्घृतसंयुक्तं मधुरंम्वा दुचोत्तमं ॥ उपहारसमायुक्तं नैवेद्यंप्रतिगृह्यतां ॥ १ ॥ ॐ वेदैवासीदिव्येकादशस्थपुंथि॒िव्यामध्येका॑दवास्थ॥ अ॒प्सुक्षिनमहिनै दश॒स्थ॒नेदे॑वासोय॒ज्ञमि॒मंजु॑षध्वम् ॥१॥ ॐ तू. सि. म. नैवेद्यंस० ॥ ॐ भूः पानीयंस० ॥ ॐ भूः उत्तरापीरानंस० ।। ॐ भू.ह ॥ २७ ॥ |स्त प्रक्षाल नंसमर्पयामि ॥ ॐ भू० सि. म. मुख प्रक्षालनंस० ॥ ॐ तू॰ चंदनेन करो For Private and Personal Use Only भास्कर Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इनिंस०॥ इदंफलंमयादेवस्थापितं पुरतस्तव॥ तेनमेसफलावाप्तिर्मवेज्जन्मनिजन्मा नि॥१॥ ॐ या फलिनीर्याः अफला अपुष्पायाश्चपुष्पिणी ॥ बृहस्पतिप्रसूतास्ता नौमुञ्चन्स सह ॥१॥ॐ भू-सि-म-फलंस. ॥पूगीफलंमहद्दिव्यनागवल्लीदले [तं॥एलादिचूर्णसंयुक्तांबूलंपनियतां॥१॥ ॐ यत्पुरुषेणहविषादेवायज्ञमत न्यत॥सन्तो स्यासीदाज्यंग्रीप धम शरडुविः॥१॥ ॐ भू-सि-म-तांबूलंस. ॥हिरण्यगर्मागर्मस्थंहेमबीजंविभावसोः॥अनंनपुण्यफलदमतःशांतिपयच्छम।।१॥ हिरण्यगरसमवर्तनामुनस्य॑जानश्पतिरेक आसीत् ॥साधारपृथिवीन्द्यामुने । For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माङ्कस्मैदेवायहविषाविधेम।। १॥ ॐ भू-सि-म-दक्षिणांस॥ कदलीगर्भसंभूतंक: भास्कर रंचपदीपितं॥आरार्तिकमहंकुः पश्यमेवरदोभव॥१॥ ॐ दर्द हविश्प्रजननम्मे भ स्तुदर्शवीर सर्चगणर्द स्वस्त। आत्मसनि जासनिपसुसनिलोकसन्यायसनि॥ अमिजाम्बहुलाम्मैकरोखन्नम्पयोरेनौ अस्मासुंधत्त॥१॥ॐ भू-सि-म-कर्पूरनीराज नंस०॥नानासगंधपुष्पाणियथाकालोद्भवानिच॥ पुष्पांजलिर्मयादत्तोगृहाणपरमेश्य र॥१॥ ॐ युज्ञे युज्ञमयजन्तदेवास्तानिधर्माणिप्रथमान्यासन। तेहुनाकम्महि ॥३८॥ मान सचन्तयत्रपूर्वसाध्यारसतिदेवाः॥१॥ॐ भू-सि-म- पुष्पांजलिंस.॥यानि || For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कानिचपापानिज्ञानाज्ञातकृतानिच॥ तानिसर्वाणिनश्यतिपदक्षिणपदेपदे ॥१॥ ॐ समास्यासन्परिधयस्त्रिी सप्तसमिधः कृताई॥ देवायद्यज्ञताना अवैभन्सुरुषं पशुम्॥१॥ ॐ भू.सि.म.प्रदक्षिणांस०॥ ॥ अथविशेषाघः॥रक्षरक्षगणाध्यक्षर क्षत्रैलोक्यरक्षक॥ भक्तानामभयंकर्तावातावभवार्णवात्॥१॥द्वैमातुररूपासिंधो पाण्मातुरायजमानो॥वरदत्वंबरंदेहिवांछितंवांछितार्थद॥२॥ अनेनसफलाय॒णफलदोस्सुस दामम॥ ॐ भू-सि.म.विशेषार्घस.॥ ॥ प्रार्थना । विघ्नेश्वरायवरदायसुरप्रियायलंबोदरायसकलायजगद्धिताय॥नागाननायश्रुतियज्ञपि For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९ ॥ संस्कार भूषितायगौरीसुतायगण नाथनमोनमस्ते॥१॥ भक्तार्तिनाशनपरायगणेश्वरायसर्व भास्कर श्वरायशभदायकरेश्वराय॥ विद्याधरायविकटायच वामनायभक्तप्रसन्नवरदायन मोनमस्ते ॥२॥ नमस्ते ब्रह्मरूपायविष्णुरूपायते नमः ॥ नमस्ते रुद्ररूपायकरिरूपा | यते नमः ॥ ३ ॥ विश्वरूपस्वरूपाय नमस्तेब्रह्मचारिणे ॥ भक्तप्रियायदेवाय नमस्क |भ्यंविनायक ॥ ४ ॥ लंबोदर नमस्तुभ्यं सततंमोदकप्रिय ॥ निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वका |र्येषु सर्वदा ॥ ५ ॥ त्वांविघ्नशत्रुदलनेति चसुंदरेतिभक्तप्रियेतिसुखदेतिवरप्रदे ॥३९॥ ति ॥ विद्याप्रदेत्यपहरेतिचयेस्तुवंतितेभ्यो गणेशवरदो भवनित्यमेव ॥ ६ ॥ अन For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यापूजयासिद्धिबुद्धिसहित महागणपतिः सांगः सपरिवारः प्रीयतां ॥ ॥ इतिश्रीक ||षितट्टविरचितेसंस्कारभास्करेगणपतिपूजनं समाप्तं ॥ ॥ अथस्वस्ति पुण्याहवाचनं ॥ "पुण्याहवाचनविधिंवक्ष्यामोथयथाविधि ॥ प्रयोक्तुः कर्मणामादावंते चोदयसिद्धये ॥ ॥ | तच प्रयोगांतर्गतमितिकेचित्॥ ॥ अच ॥ बव्हल्पं वास्वगृह्योक्तं यस्यकर्मप्रकीर्ति तं । तस्यतावतिशास्त्रार्थे कृतेसर्वं कृतं भवेदिति ॥ पुण्याहवाचनं ऋद्धीपूर्तीच ॥ ॥ कात्यायनः ॥ ऋद्धिश्चैव तुसंस्काराविवाहांताः प्रकीर्तिताः ॥ प्रतिष्ठोद्यापनादीनि पूर्तकर्मयथोदितमिति ॥ ॥ तच्चकारिकायां ॥ स्वस्तिवाचनमत्रेष्ठंगृह्यकर्मादिके For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षुच॥ आचार्येणापिशास्त्रेस्मिन्मंगलार्थमुदीर्यते ॥ १॥ क्रमेणक लवांस्थाप्यपूर्णपा त्रांतसर्वशः ॥ वरुणतत्रसंपूज्यगंगाद्यावाहनादिकं ॥ २ ॥ अर्चिता ब्राह्मणाः सम्यक्गं धतांबूलदक्षिणाः ॥ तिष्ठेयुर्ब्राह्मणायुग्मा वक्तारोदर्भपाणयः ॥ ३ ॥ तिष्ठेद्वाचयिताने |षांदक्षिणस्थउदङ्मुखः ॥ अवनीगतजानुभ्यां ततोमुकुलपद्मवत् ॥ ४॥ अंजलिंशि | रस्याधायप्रणमेभिः पुनः पुनः ॥ हस्तेकलशमृत्धृत्य नमेत्रीणिपदानिच ॥५॥ अथवा चयितुंबाहंदक्षिणांगसमाश्रितः ॥ मनइत्यादिरूपेण एकायमितिचादिशेत्॥६॥म नसःस्मइतिब्रूयुस्तेसमाहितपूर्वकाः ॥ प्रसीदंखितिकर्तारः प्रसन्नाः स्मइतिद्दिजाः ॥ ॥ For Private and Personal Use Only भास्कर ॥४॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥७॥ शांतिरस्थितिविघ्नांताः शब्दा:पंचदशेवतु॥ अस्तुवाक्यंद्विजमुरवाच्छ्राय यित्वातथापरैः॥८॥षड्याक्यानिअस्थितिचडनरैरेकविंशतिः॥पीयतावास्यपठिनै रुदकस्यनिषेचनं॥ ९॥ ततःषड्वास्यपरितर्बहिरापोनिषेचनं॥ अंतेदशगुभवाक्य निकामेतिततोजपः॥१०॥क कादयोमहाश्कंभगवान्यभिषेचन॥उदकस्यम कुर्वीता पुण्याहवाचये नरः॥११॥ पुण्याहादिविरण्यासमंत्रमध्योर्धनिःस्वनैः॥ प्रयंकल्याणमृद्धिश्वस्वस्तिः श्रीत्यादिपंचकं ॥१२॥प्रणयायंत्रिराचष्टेभयपूर्वपयनखि ति॥ प्रत्युक्तविषयेप्रेषस्त्रियास्वस्तिरित्यतः॥१२॥ वारुणे: पावमानीयैरभिषिच्यसप For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार निकं॥ नीराजनंनतःकुर्यादनेकर्मेश्वरार्पणमिति॥१४॥ ॥अथपुण्याहवाचने भास्कर आदौअपांपतिकलशपूजनेअवृणःशुद्धकलशोयायः॥ ॥कलशलक्षणंपरिभाषा यामुक्तं ॥ ॥अथपुण्याहवाचनप्रयोगः॥ ॥ महीयौरितिभूमिस्पृष्ट्वा॥ॐम। हीद्यौः पृथिवीन इमभ्यज्ञम्मिमिक्षताम्॥ पिपृतान्नोप्तरीमभिः॥१॥ ओष धयः समितिययान्सिप्वा॥ ॐ ओषधयः समवदन्तसोमेनसहराज्ञी॥यस्मैरु गोतिब्राह्मणस्तराजन्यारयामसि ॥१॥ आजिनमितिकलशंस्थापयेत्॥ॐ आजि प्रकलशम्मयासाविशन्विन्दैव ॥युनरूनिवर्तस्य॒सान सहस्रन्धक्ष्वोरुधारा For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir $ पय॑स्वती॒ पुन॒म्र्म्माश्वि॑शताद्र॒यिः ॥ १॥ वरुणस्योन्तंभनमितिजलंपूरयेत् ॥ ॐ च णस्यो॒त्तम्भ॑न॒मसि॒वरु॑णस्यस्क॑त॒सर्ज्जनी स्यो॒ वरु॑णस्य ऋत॒सद॑न्यसि॒वरु॑ण स्यऋत॒सद॑नमसि॒वरु॑णस्य ऋत॒सद॑न॒मासी॑द ॥१॥ त्वांगंधर्वाइतिगंधंप्रक्षिपे त्॥ ॐ त्वाङ्गा॑ध॒र्ध्वा अ॑खनं॒ ॰ ॥ १ ॥ याओषधीरितिसर्वैषधीः ।। याऽ ओष॑धीः पूर्बी जा॒तादे॒वेभ्यस्त्रियुगम्पु॒रा ।। मनै॒नुव॒ह्म॒णा॑म॒ह• श॒ तन्धामा॑नि सू॒प्तच॑ ॥१॥ कां डात्कांडादितिदूर्वाः ॥ ॐ काण्डी त्काण्डा अरोहन्ती ० ॥ १ ॥ अश्वत्येवेतिपंचपल्लवा न्॥ ॐ अ॒श्वत्येवो॑ नि॒षद॑नम्प॒णैर्बोच्चसनिष्कृ॒ता । गोभाय॒ इक्तिलसच त्सुन s For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, थपूरुषम्॥१॥स्योनापृथिवीतिसप्तमृदः॥ ॐ स्योनापृथिविनोमयान्वृक्षरानिये भास्कर ॥४२॥ शनी॥यछान शर्मसुप्रथाः॥१॥याफलिनीरितिफलं॥ ॐ वा फलिनीर्याऽ फला० ॥१॥परिवाजपतिरितिपंचरलानि॥ ॐ परिवाजपतिः कविरमि«ध्यान्य कमीत्॥ दधुलानिदाशुषे॥१॥हिरण्यगर्मेनिहिरण्यं॥ ॐ हिरण्यगर्भश्सम ॥१॥ बुवासुवासाइतिरक्तसूत्रेणवेष्टयेत्॥ॐ खुधासुवासाःपरि०॥पूर्णाद/तिपूर्णपात्रम् परिन्यसेत्॥ॐ पूर्णादवि परांपतुसुपूर्णपुनरापत॥ बस्नेवचिकीणा वहाऽ इष्मू ॥४२॥ शतकतो॥१॥ तसायामीतिवरुणमावाह्य।। ॐ तत्सीयामिब्रह्मणाचन्दैमा For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नस्तदाशास्नेयज॑मानो हविर्मिः ॥ अहेडमानो घरुणेहबोध्युरुशममान आयुः ।। मोपी ॥१॥ वरुणसांगंसपरिवारंआवाहयामि॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अपांपतिवरुणायन | मइतिमंत्रणषोडशोपचारैः संपूजयेत् ॥ ॥ ततोगंगाद्याचाहनं ॥ सर्वसमुद्राः सरितस्ती निजलदानदाः॥आयांतुममशात्यर्थंदुरितक्षयकारकाः॥१॥ नतः कलशाभिमंत्रणं कलशस्यमुरवेविष्णुः कंठेरुद्रः समाश्रितः॥मूले तस्यस्थिनोब्रह्मामध्येमातृगणाःस्म ताः॥१॥कुक्षौतुसागरा:सप्तसप्तडीपावसंधरा॥ऋग्वेदोथयजुर्वेदः सामवेदोह्यथर्व गः॥अंगैश्वसहिताः सर्वेकलशेतुसमाश्रिताः॥३॥ ॥प्रार्थना । देवदानवसं । For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार वादे मथ्यमानेमहोदधौ ॥ उप्तन्नोसितदाकुंभविटनोविष्णुनास्वयं ॥ १॥ त्वत्तोयं सर्वतीर्था - भास्कर ॥४३॥ निदेवाःसर्वेत्वयिस्थिताः॥ त्वयितिष्ठतिभूतानित्वयिप्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥ २ ॥ शिवः स्वयं त्वमेवासिविष्णुस्त्वं चप्रजापतिः।। आदित्या वसवोरुद्राविश्वेदेवाः सपैतृकाः॥ ३ ॥ त्वयिति ष्ठत्तिसर्वेपियतः कामफलप्रदाः ॥ त्वत्प्रसादादिमंयज्ञंकर्तुमीहेजलोद्भव ॥ ४ ॥ सान्निध्यं |कुरुमेदेवप्रसन्नोभवसर्वदा ॥५॥ नमोनमस्तेस्फटिकप्रभाय सुश्वेत हाराय सुमंगलाय ॥ सुपाशहस्ताय झषासनाच जलाधिनाथायनमोनमस्ते ॥ १ ॥ पादापाणेनमस्तुभ्यंा ॥४३॥ द्मिनीजीवनायक ॥ पुण्याहवाचनं यावत्तावत्वंसन्निधो भव ॥१॥ ॥ इतिप्रार्थना ॥ For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥अथपुण्याहवाच ॥अवनीरुतजानुमंडल: कमलमुकुलसदृशमंजलिंशिरस्याधा । यानंतरंदक्षिणेनपाणिनास्वर्णपूर्णकलशंधारयित्वादीर्घानागानद्योगिरयस्त्रीणिविष्णुपदानिच॥ॐ त्रीणिपुदाविचक्रीविष्णुर्गोपाः अदाभ्यः॥अतीधर्माणिधारयन्॥१॥तेनायुः प्रमाणेनपुण्यपुण्याहंदीर्घमायुरस्थितिमवंतोब्रुवंतुइतियजमानः॥पुण्यंपुण्याहंदीर्घमा सुरस्थिनिहिजाः॥ ॥एवंसर्वत्रयजमानवचनोत्तरंब्राह्मणाःपनियचनंदधुः।ब्राह्मणानां हस्लेसुमोक्षितमस्तु॥शिवाआपःसंतु॥ॐसंतुशिवाआपः॥सौमनस्यमस्तु॥अस्तुसोमन स्य।अक्षतेचारिष्टंचास्तु॥ अस्वक्षतमरिष्टंच।गंधा पातुसौमंगल्यंचास्तितिभयंतोत्रुवं For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार तु॥ॐगंधाःपांनुसौमंगल्यंचास्तु॥एवंसर्वत्र॥अक्षताः पातुआयुष्यमस्त्रि॥ॐ अक्षताः भास्कर ॥४४॥ पातुआयुष्यमस्तु॥पुष्पाणिपोतुसौश्रियमस्वि०॥ ॐपुष्पाणिपातुसोश्रियगस्तु॥तांबूला निपातुऐश्वर्यमस्ति । ॐनाबूलानिपातुऐश्वर्यमस्तु॥ दक्षिणाःपातुबहुधनमस्वि॥ ॐदक्षि राणायातुबहुधनमस्तु॥पुनरत्राःपातुस्वर्चिनमस्ति ॥पुनरवाःपांतुस्वर्चिनमस्नु॥यजमाना चार्यादीन्प्रणम्यन्त्रीर्यशोविद्यापिनयोविनंबहुपुत्रंचायुष्यंचास्तितिभयंतोबुवंतुइनिवदेन्॥ तेचधीर्यशोविद्याविनयोपित्तंबहुपुत्रंचायुष्यंचास्त इत्युक्सादीर्घमायुःशांतिःपुष्टिस्तु ॥१४॥ टिश्चास्वितियजमानमूयतिपिंचेयुः॥ ॥यंकत्तासर्ववेदयज्ञक्रियाकरणकर्मा । For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org s || रंधाः शुभाः शोभनाः प्रवर्तते तमहमोंकारमादिंरुत्वाऋग्यजुः सामाशीर्वचनंबहुक षिमर्तसमनुज्ञातंभवद्भिरनुज्ञात पुण्यं पुण्याहंवाचयिष्ये ॥ ॐ वाच्यतां ॥ ॥ ब्राह्मणा नाहस्तेष्वक्षतान्दद्यात्तेचाशिषोदद्युः॥ ॥ ॐ मङ्कङ्कर्णेभिः शृणुयामदेवान॒रू॒म्पन्ये॑ मा॒शभि॑र्या ॥ स्थि॒रैरङ्गैस्तुष्टुबाट· स॑स्त॒नूष्टि॒ह्य॑सेमहिदे॒वहि॑न्व॒दाय॑ ॥१॥ दे वाना॑म्भ॒द्रासु॑म॒तिर्ऋजूय॒तान्दे॒वा नटः रा॒तिर॒भि॑िना॒नव॑र्तताम् ॥ दे॒वा न ८. स॒व्यमुप॑से दिमाच॒यन्दे॒वाना॒ आयु॒मति॑रन्तु जी॒वमै॑ ॥ २ ॥ ननद्वता॑ सि॒नप॑शा॒चास्त॑रन्ति॑दे॒वा || ना॒मोज॑ प्रथ॒मज ह्येतत् ॥ यवि॒तर्व॑दाक्षाय॒ हिर॑ण्य॒र्ट सदे॒वेषु॑रुणुतेदीर्घमायुसम C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, नुष्येपुरुणुतेदीर्घमायुः ॥३॥ दीर्घायुस्त ओपधेरपनिनाथस्मैचत्यारयनाम्यहम्॥ भास्कर अयोवन्दीर्घायुवाशुलवशाचिरोहतात् ॥१॥द्रविणोदादविणसस्तुरस्पद्रविणोदाःस नरस्यप्रियसत्॥द्रविणोदाचीरयतिमिशन्नोद्रविणोदारासतेदीर्घमायुः॥१॥सचिनापश्चात्ता सवितापुरस्तात्सविनोत्तरात्तात्सविनाधरात्तात् ॥ सवितानः सुवतसर्वतार्तिसविनानोरा सतान्दीर्घमायुः ॥२॥ नवोनवोभवतिजायमानोन्हान्केतकपसामेत्ययं॥ भागन्देवेन्यो विदधात्ययंप्रचंद्रमास्तिरनेदीर्घमायुः॥१३॥उच्चादिविदक्षिणावन्तो अस्थूर्ये अश्व ॥४५॥ दा:सहतेसूर्येण॥ हिरण्यदा अमृतसंभजन्तेवासोदा:सोमपतिरन्नायुः॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इत्याशीर्वादः॥ ॥बनजपनियमतपःस्वाध्यायक्रतुदयादमदानविशिष्टानांसर्वेषां || ब्राह्मणानोमनःसमाधीयतां ॥ इतियजमानः॥ समाहितमनसः स्मः॥ इतिद्विजाः॥ प्रसीदंतुमयंतः॥ इतियजमानोब्रूयात्॥ प्रसन्नाः स्मइतिहिजाबूयुः॥तनोयजमानो ब्रूयात् ॥ ॐ शांतिरस्तु ॥ अस्चितिद्विजाः प्रतिवचनंसर्वत्रदयुः॥ ॐ पुष्टिरस्तु॥ तुष्टिरस्तु॥ॐ वृद्धिरस्तु॥ ॐ भविघ्नमस्तु॥ॐ आयुष्यमस्तु॥ ॐ आरोग्यमस्तु॥ शिवकर्मास्तु॥ॐकर्मसमृद्धिरस्तु॥ॐवेदसमृद्धिरस्तु॥ ॐ शास्त्रसमृद्विरस्तु॥ॐ धनधान्यसमृद्धिरस्त॥ ॐ पुत्रपौत्रसमद्विरस्तु॥ ॐ इष्टसंपदस्तु॥ॐ अरिथनिर। For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ... ॥४६॥ सनमस्क॥१५॥ ॐ यसापेरोगं अशांअकल्याणनहरेपनिहतमस्त॥ ॐ यच्छ्रेयस्लद भास्कर का उत्तरेकर्मणिनिर्विघ्नमस्त ।। ॐ उत्तरोत्तरमहरहरभिवृद्धिरस्तु॥ ॐ उत्तरोनगः। कियाः शुभाः शोधनाः संपर्यतां ॥ अतिथिकरणमुहूर्तनक्षत्रमहलमसंष्टस्तु॥ ६॥उद कसेकः॥ॐ तिथिकरणमुहूर्तनक्षत्रय हलग्नाधिदेवता:पीयंता ।। ॐ तिथिकरणेसमुहते, सनक्षत्रेसमहेसाधिदेवतेप्रीयतां॥ॐ दुर्गापांचाल्यौपीयेनां ॥ ॐ अमिपुरोगाविश्ये देवा: प्रीयंता॥ ॐइंद्रपुरोगामरुद्गणाःप्रीयंतां ।। ॐमाहेश्वरीपुगेगा उमामातरःभीय ॥४६॥ तां॥ ॐ अरूंधनीपुरोगाएकपत्न्यः प्रीयंता॥ ॐ विष्णुपुरोगा: सर्वेदेवाः प्रीयता॥ For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मपुरोगाः सर्ववेदाः प्रीयनां ॥ ॐ ब्रह्मचब्राह्मणावधीयतां ।। ॐ श्रीसरस्वत्थोपीये ।। नां॥ ॐ श्रद्धामेधेपीयता॥ भगवतीकात्यायनीप्रीयता॥ ॐ भगवतीमाहेश्वरीपीय तो॥ॐ भगवतीकद्धिकरीप्रीयतां ॥ॐ भगवतीमिद्धिकरीमीयतां ॥ ॐ भगवतीपुष्टिक। रीमीयतां ॥ॐ भगवनीनुष्टिकरीमीयतां ॥ ॐनगरनौविघधिनायकोपीयेतो। म वाकुलदेवताःप्रीयंता ॥ ॐ सर्षायामदेवताःप्रीयंतो॥ २१॥ ॐ हताश्वब्रह्महिषः॥ॐ हा नाश्नपरिपंथिनः।। ॐ हताश्वविघ्नकर्तारः शत्रवःपराभयंयांतु।। शाम्यं तुघोरापि॥ ॐ शाम्यं तुपापानि॥ॐ शाम्यंत्वीतयः॥॥ ॥ॐ शुभानिवईतां॥ ॐशिया For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार आपः संतु ॥ ॐ शिवाऋतवः संतु ॥ ॐ शिवाओषधयः संतु ॥ ॐ शिवानद्यः संतु ॥ ॐ भास्करं ॥४७॥ शिवागिरयः संतु ॥ ॐ शिवा अतिथयः संतु ॥ ॐ शिवा अग्नयः संतु ॥ ॐ शिवाआहुत यः संतु ॥ ॐ अहोरात्रेशिवेस्यातां ॥ ॥ ॐ निकामेर्निकामेन पूर्ज्जन्यवर्षतुफ लवत्यो नऽ ओष॑धयः पच्यन्ताञ्योगक्षेमोन कल्पताम् ॥ १ ॥ ॐ निकामेनिकामे नः पर्ज्जन्योङ्घर्षविनिनिकामेनिकामेवैतत्रपर्ज्जन्योष॑तिय॒त्रैते॒नयज्ञे नय॒जन्ते फुलवत्पोन: ओषधयः पच्यन्तामिनिफलवत्यो वैतत्रौषधयः पच्यन्तेश्वैते नराज्ञेन ॥४७॥ | जन्ते योगक्षेमोनः कल्पतामि॒िनियोगक्षेमोवै तुबकल्प॒तेय्वैतेनयज्ञेनयजन्ते तु For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्माद्यत्रैते॒नय॒ज्ञेनय॒जन्तेकॢप्तः प्रजा॒नान्योगक्षेमो॒भवति ॥ १ ॥ ॥ ॐ शुक्रांगारक धबृहस्पतिशनैश्वरराहु केतु सोमसहिता आदित्यपुरोगाः सर्वेग्रहाः प्रीयंता ॥ॐॐ | भगवान्नारायणः प्रीयतां ॥ ॐ भगवान्पर्जन्यः प्रीयतां ॥ ॐ भगवान्स्वामीम हासेनः प्रीयतां ॥ ॥ ॐ पुण्याहकाला न्याचयिष्ये ॥ इतियजमानः॥ ॐ वाच्यतां इतिप्रतिवचनं ॥ ब्राह्म्यंपुण्यंमहद्यच्चसृष्ट्यु त्पादन कारकं ॥ वेदवृक्षोद्भवंनित्यंतपुण्याहंबुवंतुनः ॥ १ ॥ भोब्राह्मणाः मह्यंसकुटुंबिने महाजनान्नमस्कुर्वाणायआशीर्वचनमपेक्षमाणाग्रमयाक्रियमाणस्यसंग्रहमरवर जोदर्शनशांतिपूर्वक गर्भा For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार धानारव्यस्यकर्मणः पुण्याहंभवंतोबुवंतु॥ॐ पुण्याहं ॥ एवंयचनंप्रतिवचनं च || सास्कर || विपठित्वा॥ ॥ अथवाममपुत्रस्य याकन्यायाश्चअमुकसंस्कारारव्यस्यकर्मणः॥ अथवापुत्रस्यवाकन्यायाश्चश्व: करिष्यमाणविवाहांगभूतस्यअद्यदैवतप्रतिष्ठाय हशात्यारव्यस्थकर्मणः॥एवंयथोक्तकर्मण्यूहः॥ ॥ ॐ पुनंतुमादेवनार पुनन्तु मनसाधियः ॥ पुनन्तुविश्वाभूतानिजातवेदः पुनीहिमा॥१॥ ॐ सय कामये तमहाप्नुयामित्युदगयन आपूर्वमाणपक्षेपुण्याहे हादशाह मुपसद्वतीभूतो । बरेकर्ड सेचमसेवासौषधम्फलानीतिसम्मुत्यपरिसमयपरिलिप्यामिमुप ॥४८॥ For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाधायावृतान्य संस्कृत्यपुर्ट-सानक्षत्रेणमन्थ सन्नीयजुहोति॥१॥पृथिव्याम, धृत्तायांत्यत्कल्याणपुरारुतं॥ ऋषिभिःसिद्धगंधर्वैस्नकल्याणंबुवंतुनः॥१॥ भोब्राह्मा णाः मया० कर्मणः कल्याणंभवंतोब्रुवंतु॥ॐ कल्याणं॥३॥ ॐ यथेमाँबाचंङ्कल्या णीमावदानिजनैश्यः ॥ब्रह्मराजन्याश्या शूद्रायचार्यायचुस्वायचारणायच॥णि योदेवानांदक्षिणायैदाहियासमयम्मेकाम: समृध्यतासुर्पादोनमतु॥१॥ थाध्वयोः प्रतिगरोरात्तरिमेयजमाना भट्टमेभ्योयजमानेभ्योभूदितिकल्याण येन मानुष्यैवाचोचदति॥१॥सागरस्ययथावृद्धिर्महालक्ष्म्यादिभिःकृता॥संपूर्णासपना For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार या ||वाचतांचऋदिब्रुवेतुनः॥१॥ मोबाह्मणाःमयाकिय कर्मणः कहिंसवन्नोबुवंतु॥ॐ भास्कर ॥४९॥ ऋध्यनां॥३॥ॐसमस्याकादिरस्यगन्मज्योतिरमृतोऽ अभूम।दिवैम्पृथिव्या अध्या रहामाविदामदेवान्त्स्वोति ॥१॥ ॐत उत्तरस्यहविर्धानस्यजघन्यायाङ्कबाट |सामाभिगायन्तिसत्रुस्य ऋद्धिरितिराद्विमेवैतुदश्युत्तिष्टंत्युत्तरवेदेर्वोत्तरायो श्रो णावितरंतुकतुतरम् ॥१॥स्वस्तिस्तुयाविनाशारख्यापुण्यकल्याणवृद्धिदा॥विनायक पियानित्यंतांचस्वस्तिंबुवंतुनः॥१॥ भोबार कर्मणेस्वस्तिंभ०॥ ॐ स्वस्ति॥३॥ ॥४९॥ ॐ स्वस्तिन इन्द्रोवृद्धश्रयाः स्तुस्तिन पूषाधिश्वेवैदा ॥स्वस्लिनुस्तायो अरिष्ट For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie नेमिः स्पस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु॥१॥ गातुन्यज्ञायगातुन्यज्ञपनय इतिगानुः ।। ह्येषयज्ञाये छतिगातुज्यनपतयेयो यजुस्यस स्थान्दैवीरचस्तिरस्नुन स्वनिर्मानु। येभ्यः इतिस्वस्तिनोदेवास्तुस्तिर्मानुष्यत्रेत्येवैतदाहोर्धजिगातुभेषजमित्यू निोयञ्यज्ञोदेवलोकञ्यजस्वित्येवैतदाहशन्नो अस्तुहिपुदेशञ्चतुष्पद इत्ये तामहाः इद- सर्वज्यावद्विपाच्चैव चतुष्पाञ्चतस्मा एवैतयज्ञस्यसः स्यांगत्वा शंकरोतितस्मादाहानो अस्तुहिपदेशञ्चतुष्यदे॥१॥ समुद्रमथनाज्जाताजगदानं ||दकारिका॥ हरिप्रियाचमांगल्यातांश्रियंचब्रुवन्तुनः॥१॥ मोबाह्मणाःमया-कर्म For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार णः श्रीरस्थिनिभयन्तोत्रुवंतु॥३॥ॐ श्रीश्चनेलक्ष्मीपल्यावहोरात्रेपार्श्वनक्षत्राणिरू भास्कर पमश्विनौयात्तम्॥ इणनिघाणामुम्मऽइपाणसचोकम्म इषाण ॥१॥तेनोहतुन ईजैदक्षः पार्वतस्त इमेप्येतर्हिदाक्षायणाराज्यमिवैवाप्ताराज्यमिहवपामोनिय एवं विद्वानेतेनयज्ञेनवजन्तेतस्माद्वाऽएतेनयजेतसवा एकैक एवानूचिनाइपरोडाशोमवत्येते नोहास्यासपत्नानुपवाधाश्रीभवति॥५॥ ॥ अस्मिन्पुण्याहवाचनेन्यूनातिरिक्तो | योविधिः सउपविष्टब्राह्मणानांवचनात्श्रीमहागणपतिप्रसादाचसर्व परिपूरित॥ ॥५०॥ ॐ अस्तुपरिपूर्णः॥ ॥ ॥ अयाभिषेकः॥ ॥अभिषेकेपनीवामतः॥ ॥एक For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |स्मिन्कलशेवरुणोदकंग्रहीत्या विधुराश्यत्वारोब्राह्मणादूर्वाम्मपल्लवैर्यजमानमभिषिचेयुः । ॥ ॥तत्रमंत्राः॥ॐ पयः पृथिव्यां ॥१॥पंचनयः ॥२॥ रुणस्योत्तं ॥३॥ पुनमा || ॥ ४ ॥ देवस्य॑त्वासवितु प्रसवेश्विनौबाहुभ्याम्पूष्णोहस्ताभ्याम्॥सरस्वत्यैवाचोथा तुर्भुत्रियैदधामिबृहस्पतेष्वासाम्राज्येनाभिषिच्चाम्यसौ॥६॥ देवस्यत्वा ॥सर स्वत्यैवाचोयन्तर्घन्त्रेणाने साम्माज्येनानिर्षि नामि॥७॥ देवस्यत्वा० ॥ अ |श्विनोपज्येनुते सेब्रह्मवर्चसायाभिषिञ्चामिसरस्वत्यैषज्येनचीर्वाान्नाचा याभिषिञ्चामीन्द्रस्येन्द्रियेणवलीयश्रियैयर्शसेभिषिञ्चामि॥८॥विश्वानिदेव For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार सवितर्दुरि॒तानि॒परा॑सु । यद्व॒द्व्रन्तन्न॒ आयु॑व ॥ ९॥ धाम॒च्छद॒भिरि॑न्द्रो॑ब्र॒ह्मादे॒वो बृहस्प भास्कर ॥५१॥ ति॑ि ॥ सचे॑तसो॒धिश्वे॑दे॒वाय॒ज्ञम्प्राव॑न्त॒ना॒ शु॒भे ॥ १॥ त्वय॑विष्ठदा॒युषो॒ नृएँ पोहिष्ट शुधीर ॥ रक्ष तो॒कमुतत्मना॑ ॥ ११॥ अन्न॑य॒तेन्न॑स्य॒नो धेखनमवस्ययुभि॥ प्रय॑दा॒तार॑न्तारि॑षि॒ऽऊ य॑न्नोधेहिद्वि॒िप॑दे॒ चतु॑ष्पदे ॥ १२ ॥ ॐ पा॒त्मशेभवति ॥ ने॒नब्राह्मणोभि॒षंचतिब्र॒ह्मवैपलाशोब्र॒ह्मणै॒वैनमेतदभि॒षंचति ॥ १ ॥ औदुंबरं भवति ॥ ते नस्वोभि॒षिंचत्यन्न॑वा॒ऽऊर्गुदुंबर, ऊर्वैस्व॑या॒ व॑द्वैपुरुषस्य स्वं भुवतिनै॒वतावदाना ॥५१॥ यतिते नोर्क् स्वतस्माददुंबरेण॒स्वोभि॒षिंचति ॥ २ ॥ नैय्य यो॒धपाद॑भवति ॥ तेनमित्रो। For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज॒न्योष्भि॒षंचतिपद्भि॑र्व॒न्यथो॒धः॑ प्र॒तिष्ठितोमित्रेण॒वै॒राज॒न्यः म॒तिष्ठितस्त॒स्मान्नैय्य ||ग्रोधपादेन मित्रोराजन्योभिषिंचति ॥ ३ ॥ आश्वत्थंभवति । तेनवैश्योति॒षंचतिसयदेवा दोश्वत्थेति॒ष्ठत इ॒न्द्रोमरु॒त उपा॒मंत्रयते त॒स्मादा॒श्वत्थेनवैश्योनि॒षंचति ॥ ४॥ स्रुद्देव कल्पान्नुहोति । प्राणांवैकल्पाऽअसृनमुवैप्राणा: अमृतेनैवैनमेतदभि॒षिंचति ॥ ५ ॥ स॒र्वेषांवा॒ ऽएषच्चे दाना - र॒सोयत्सम सर्वेषामे॒वैनमे तद्दे॒ दाना ८ र॒सेनाभि॒षिंचति | ॥ ६ ॥ ॐ द्यौः शांति॑र॒न्त• ॥१॥ यतो॑यत स॒मीह॑से॒ ॥२॥ अमृताभिषेकोस्तु ॥ ॥ | शांतिः शांतिः शांतिः ॥ रूशांतिर्भवतु ॥ ॥ ततः पुत्रवतीभिर्वृद्धवासिनी For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ५२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir $ भिर्नीराजनं कार्यं ॥ ॐ अना॑धृष्टापु॒रस्ता॑द॒ग्ने॒राधि॑पत्य॒ आयु॑मे॑दा पु॒त्रव॑ती॒दक्षि॑ण॒न॒ऽइन्द्र स्याधिपत्येप्प्रजाम्मैदा सुखर्दाश्वाद्दे॒वस्य॑सवि॒तुराधि॑षत्ये॒चक्षु॑मे॑दा॒ आयु॑तिरुत्तर तोधातु॒राधि॑पत्येरा॒यस्पोष॑म्मेदा।। चधृ॑तिरू॒परि॑ष्टा॒द्बृहस्पते॒राधि॑पत्य॒ ओजमेदाच श्वा॑भ्यो॑माना॒ष्ट्राभ्य॑स्याहिमनो॒रश्वा॑सि ॥ १॥ इतिमंत्रेण ॥ ॥ अनेनपुण्याहवाचनेन श्रीप्रजापतिः प्रीयतां ॥ ॥ अथमातृकापूजनं॥ ॥ तत्रायंक्रमः ॥ अविघ्नोमंडप वैवमातॄणां पूजनंसकृत् ॥ वैश्वदेवं वसोर्द्धारानांदीश्राद्धमतः परं ।। १ ।। ॥ अविघ्नपू जना पूर्ववैश्वदेवंविधाय ॥ ॥ ततोगो धूमादिधान्यपूरितेहरिद्रादिरंजितेमृन्मयेअ For Private and Personal Use Only भास्कर | ॥५२॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विघ्नारव्यकलशेमोदादिषड्डिनायक मान्नृणाप्रतिमाकुंकुमेनलिखित्वा बाहयेत् ॥ तद्यथा ॥ |मोदश्चैवप्रमोदश्वसुमुखोदुर्मुखस्तथा ॥ अविघ्नोविघ्घकर्ताच षडेतेविघ्ननायकाः ॥१ ॥ ॐ मोदाय नमः मोदं आवा हयामि ॥१॥ ॐ प्रमोदाय • प्रमोदं० ॥ २ ॥ ॐ सुमुखाय० । |सुमुखं ॥ ३॥ॐ दुर्मुखाय• दुर्मुखं• ॥ ४ ॥ ॐ अविघ्नाय० अविघ्नं ॥ ५ ॥ ॐ विघ्नकर्त्रे० विघ्नकर्तारं ॥ ६॥ मनोजूतिरितिप्रतिष्ठाप्य षोडशोपचारे: संपूजयेत् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः | मोदादिषड्डिनायकाः सुप्रतिष्ठाबरदाभवंतु ॥ ॐ मोदादिषड्डिनायकेभ्यो नमइति नामम त्रेण आवाहनादिपुष्पांजलिपर्यतंपूजनंकार्य। अनयापू जयामोदादिषडिनायकाः · For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ५३ ॥ संस्कार प्रीयंतां ॥ ॥ तनः स्तंभरोपणादि कटावरणद्वार फलकांनसंपादित मंडपे मंडपमातृकाः स्थापयेदित्येके ॥ ॥ ततआचार्य हस्तेसुप्रोक्षितादिकं कार्यं ॥ अत्राः पांतु सुप्रोक्षितमस्ति तिभव तोब्रुवं तु ॥ ॐ अत्राः पांतुसुमोक्षितमस्त॥ गंधाः पातुसौमंगल्यंचास्त्वितिप्त ॥ॐ गंधाः पातुसौमंगल्यंचारक्त ॥ अक्षताः पातु आयुष्यमस्त्वितिभ०॥ ॐ अक्षताः पांतु आयुष्यमरक्त ॥ पुष्पाणिपांतुसौश्रियमस्त्वितिप्त• ॥ ॐ पुष्पाणियांतुसौश्रियमस्त ॥ तां वूलानिपातुऐश्वर्यमस्त्विति ॥ ॐ तांबूलानिपातुऐश्वर्यमस्त ॥ दक्षिणाः पोतुबहुधन ॥५१॥ मस्तितित० ॥ ॐ दक्षिणाः पातुबहुधनमस्त॥ अपूपाःपोतुबव्हतं चास्त्वितिप्र० ॥ ॐ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie अपूपाः पातुबव्हन्नंचास्त॥शारयादूर्वा:पांतुवृद्धिरस्तितिभ०॥ ॐ शारयादूर्ग:पातु शारयापल्लवानांवृद्धिास्त॥ ॥तन आचार्येणदूर्वाशम्याम्नादियशस्तवृक्षपत्राणार क्तसूत्रेणपंचधावेष्टनं कार्य॥ आसांमंडपमातृसंज्ञाताश्चमंडपमादर्मंडपेवावंशपात्रेस्थापयित्वा॥धसो:पवित्रमिनिमंत्रणयजमानपल्याशारयासतैलारोपणकार्य। ॐ बसौः पवित्रमभिशनधार बसौ पवित्रमसिसहस्रधारम्॥ देवस्वासवितानातुबसो: पवित्रैणशतर्धारणसुप्याकामधुक्षः॥१॥अहिरिवभोगैरितिशारवासहरिद्राकुंकु मादिसुगंधिद्रव्येणोहर्ननं ॥ ॐ अहिरिवभोगैः ॥१॥निकामेनिकामेतिउष्णोद For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार केनशारचास्नपनं॥ अनिकामेनिकामेनः ॥१॥दधिका णेतिशारयासदध्यसनावंदनं ॥ भास्कर ॥५५॥ ॐ दधिक्राणो अ०॥१॥वाओषधीरिनियजमानहस्ते शारखाग्रहणं॥ॐवाओषी | धी०१mनतोयजमानपल्याहस्तेशस्त्रग पंचमीशारवांग्रहीत्वाकांडात्कोडादिनि कंडनकार्य॥ ॐ कोडौकांडात्मरोहती॥१॥नन आमेयादिचतुर्युमंडपकोणस्तंभेषुक्रमे णचतस्रोमध्येएकाएपंस्थिरोभवेतिस्थिरीकरणे॥अथवावंशपात्रमध्येचतुर्पकोणे |पुचतस्रोमध्येएकाएपंस्थिरीकरणसंपदायः॥ अस्थिरोभवचीझंग आयुर्मराज्या |॥५४॥ ॥ न ॥ पृथुभयसुरबदस्त्वममेरपुरी वाहणः ॥१॥ तत्रायंक्रमः॥ ॥नंदिनीनलिनी) For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मैत्राउमाचपावहिनी॥ आमेयादिक्रमेणेवशारचा स्तं प्रतिष्ठिताः॥१॥ ॐ नंदि न्यैनमः नंदिनींआवा०॥७॥ ॐ नलिन्यैन नलिनीआ०॥८॥ ॐ मैत्रायै- मैत्रांआ, ॥९॥ ॐ उमाये. उमाआ० ॥१०॥पशुवर्धिन्ये पशुवर्धिनीआ०॥११॥मनोजूतिरि तिप्रतिष्ठाप्यसर्वासातंत्रेणषोडशोपचारैः पूजनं ॥ ॐ पूर्सवः स्वः नंदिन्यादिमंडप मानृत्योनम: आवाहनादिषोडशोपचारैः पूजयेत्॥अनयापूजयानंदिन्यादिमंड पमातरः पीयंतां॥ ॥ ततोगीर्यादिमानरोवंशपापीतपटंप्रसार्यतदुपरिकुंकुमा |दिनालिखित्वावाक्षतपुंजेषुपूगीफलेषुनिवेश्याः॥ ॥ तत्रायंक्रमः॥गौरीपद्माश For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, चीमेधासावित्रीविजया जया ॥ देवसेनास्वधास्वा हामातरी लोक मातरः ॥१॥ हृष्टिः पु॥५५॥ ष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुल देवता॥गणेशेनाधिकाह्येतावृद्धौपूज्याश्वतुर्दश ॥१॥ अत्र चतुर्दशपदसमाहारान्मातरो लोकमातरइतिसर्वासांविशेषणं ॥ ॐ गणेशायन मः गणेशंआवाहयामि॥ॐ गौर्यैनमः गौरीं आ० ॥ १२ ॥ ॐ पद्मायैन. पद्मां० |॥१३॥ ॐ शच्यैन० शचीं आ० ॥ १४ ॥ ॐ मेधायै • मेधां आ० ॥ १५ ॥ ॐ सावित्र्यै० सावित्रीं ● ॥ १६ ॥ विजयायै • विजयां • ॥ १७ ॥ जयायै० जयां आ ० ॥ १८ ॥ देवसे | | नायै० देवसेनां० ॥ १९ ॥ ॐ स्वधायैनः स्वधां ० ॥ २० ॥ स्वा हायै • स्वाहां ० ॥ २१ ॥ | ॥५५॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हृष्टये दृष्टिं ॥२२॥ पुष्ट्यै पुष्टिं ॥२३॥ तुष्य तुष्टिं ॥२४॥ कुलदेवतायैः ।। कुलदेवतां ॥२५॥ ॥ इत्यावाह्य॥ ॥ अथजलमातरः ॥ मत्सीकूर्मीचया राहीमांडुकीमकरीतथा॥ याहकीकौंचकीचैवसप्तैनाजलमातरः॥१॥कांस्येवानाम्न पात्रेवाप्रमूतजलपूरणं॥ तबमत्स्यादीराबाह्यपूजयेज्जलमातृकाः॥२॥ॐ मत्स्यैनमः मत्सीआवाहयामि॥२६॥ ॐ कूम्यै कूर्मी ॥२७॥ ॐ नारायै वाराहीं॥२८॥मां डुक्यै मांडुकीं ॥२९॥ ॐमक य. मकरी ॥३०॥ याहक्यै ग्राहकीं ॥३१॥ || ॐ कौंचक्यै क्रौंचकीं ॥३२॥ इत्यापाय॥ ॥अथस्थलमातरः॥ ॥बा For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार ॥५६॥ सीमाहेश्वरीचैवकोमा वैष्णवीनया॥वाराहीचतयेंद्राणीचामुंडासप्तमानरः॥१॥ॐ ब्रा भास्कर फैन ब्राह्मीं ॥३३॥ ॐ माहेश्वर्यैन माहेश्वरीं ॥३४॥ ॐ कोमार्थेन कोमारी ॥३५ ॥वैष्णव्यैन वैष्णवीं ॥३६॥ ॐ बाराद्ये वाराहीं ॥३७॥ ॐ इंद्राण्ये इंद्राणी ॥३८॥ ॐ चामुंडाये चामुंडा० ॥३९॥ इत्यावाह्य ॥ एताः गोर्यादिवच्छूर्प॥ ॥अथ द्वारमातरः॥ जयंतीमंगलाचैवपिंगलादक्षिणेगृहात् ॥ आनंदवर्धिनीवामेमहाका लीचनिर्गमे॥१॥गृहस्यदक्षिणेभागेतिस्रोलेरख्यास्तुमातरः॥वामभागेतथादेचज | ॥५६॥ यंत्यादिक्रमेणतु॥२॥ ॐ जयंत्येन जयंती ॥४०॥ मंगलाय मंगलां०॥४१॥|| For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||पिंगलाये पिंगलां ॥४२॥ इतिद्वारदक्षिणे॥ ॥ ॐ आनंदवर्धिन्यै आनंदवधि नों०॥ ४॥ ॐ महाकाल्यै महाकाली ॥४४॥ इतिवामे ॥ इत्याबायसंपूज्य॥ ॥ तनोगोर्यादिवत्शूर्पगृहमातरःस्थाप्याः॥ ॥कीर्तिर्लक्ष्मीधृतिर्मेधापुष्टिः श्रद्धाकि यामतिः॥बुद्धिर्लज्जावपुःशांतिस्तुष्टिः कात्तिस्तुमातरः॥१॥ ॐ कीन ॥कीर्तिः ॥४५॥ ॐलक्ष्म्यै लक्ष्मीं ॥ ४६॥ ॐधृत्यैन धृतिः॥४७॥ ॐ मेधाये मेधां० ॥४८॥ ॐ पुष्ट्येन पुष्टिं ॥४९॥ ॐ श्रद्धायै श्रद्धां ॥५०॥कियाथै क्रियां. ॥५१॥ ॐ मत्यैन मतिं ॥५२॥ ॐ बुह्येन बुद्धिं ॥५३॥ ॐ लज्जावपुषेन०/ For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार, लज्जावपुष०॥५४॥ ॐ शांत्यैन शांति ॥५५॥ ॐ तुष्टयैन, तुष्टिं० ॥५६॥ भास्कर ॥५॥ कात्यैन कांति ॥५७॥ इत्यावाय॥ ॥अथवृतमातरः॥एता: कुड्येशूर्पवा कुं कुमाक्तेन घृतेन दक्षिणोत्तराः पूर्वाभिमुरवा लेख्याः॥ श्रीलक्ष्मीधृतिर्मधापुष्टिः श्र दासरस्वती॥ मांगल्येषुपपूज्यतेसप्तैताघृतमातरः॥१॥ॐ श्रियेनमः श्रियं०॥५॥ ॐ लक्ष्म्यैन लक्ष्मी०॥५९॥ ॐ धृसैन धृतिआ०॥६०॥ मेधायैन मेधांआबा१॥ ||ॐ पुष्ट्येन पुष्टिंआ०॥६२॥ ॐ श्रद्धायैन श्रद्धा आ०॥६३॥ ॐ सरस्वत्यैनमः । ॥५७॥ सरस्वतींआवाहयामि॥५४॥ इत्यावाय॥ ॥एवंषविनायकादिघृतमातृकांतंचतुःष । For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टिमादृणास्थापन। मनोजूतिरितिमंत्रणपतिष्ठाष्यसमरव्येदेव्याधियारनिमंत्रण सर्वाःषोडशोपचारैःसंपूजयेत् ॥ ॐ समख्येदेव्याधियासन्दक्षिणयोरुचक्षसा॥मा मड आयुः प्रमौषीर्मोऽ अहन्तर्वची विदेयतर्वदेविसन्दशी॥१॥ ॥ ततोय जमानःस्थापितमातृकं शूर्पस्वयंग्रहीसाफ्ल्याचा विघ्नकलशंग्राहयित्वापल्ययतः सन्मंडपतोगृहमध्येदेवस्यायेतत्सर्वंस्थापयेत्॥ तहामपाइँदीपंनिदध्यात् ॥ ततःकु ज्येआवाहितधृतमातॄणामुपरिनागवल्लीदलेनगुडयुक्तेनकेवलेनयाघृतेनाभितो धारांघसो पवित्रमितिमंत्रणपातयेत्॥ साचप्रत्यगादिःप्रासंस्थादक्षिणाविरुदम्स For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥५८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थावा ॐ सौः पृवित्रम् ॥ ॥ तद्यथा ॥ कुड्यलसावसोर्धाराः सप्तधाराघृतेनतु ॥ कारयेत्पंचधारावा नातिन्यूना: कदाचन ॥१॥ अथायुष्यमंत्रजपः ॥ ॐ आसु॒ष्यृवर्च॒ स्य॒र्ट रा॒यस्पोष॒मोदम् ॥ इ॒ हिर॑ण्य॒म्वच॑स्व॒वे॑त्र॒यावि॑शतादु॒माम् ॥१॥ नतद्रक्षी ||२॥ यदाभं० ॥ ३॥ केचित्भकर्णेत्यादिधिरोहतादित्यंतसृक्वतुष्टयंपठति ॥ ॥ इत्यायुष्यमंत्रजपः ॥ ॥ अत्रमंडपपूजनंशिष्टाचारतएव ॥ मंडपस्तुविवाहेचूडाकर उपनयने केशांतेसीमंतोन्नयने चैवकार्यइत्युक्तं ॥ ॥ यत्रमंडपोनास्तितत्राविभ्रमं ॥५८॥ |डपजलस्थलद्वारमातृकादीनांचा भावः ॥ तत्रगौर्यादि चतुर्दशमातॄणांस्थापनमुक्तं ॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ इतिसंस्कार भास्करेमातृकापूजनंसमाप्तं॥ ॥ अथनांदीश्राई॥ तबकालः॥मा । निश्राईतुपूर्वाण्हेमध्यान्हें पैतृकंतथा॥ततोमातामहानांचवृद्धोश्रावयंस्मृतमिति हे मायादिनिबंधेउक्तं॥ तथा ॥ अलाभेभिन्नकालानांनांदीश्राइवयंबुधः॥पूर्वद्यु। प्रकुर्वीतपूर्वाण्हेमापूर्वकमितिवृद्धमनुवचनं॥ तच्चकात्यायनेनपृथड्.मातृपार्य जोहपूर्वकनवदैवतनांदीश्राद्धकरणनिषिद्ध॥यथा॥ आयुष्याणिचात्यर्थं जप्त्वा तबसमाहितः॥षड्यःपितृपयस्तदनु श्राद्धदानमुपक्रमेत्॥१॥ ॥ सूत्रेविशेषोप |देशाभावः॥ तवतुनांदीमुखाःपितरः पितामहाःप्रपितामहाः सपत्नीकाः मातामहम For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मातामहवृद्धममातामहाः सपत्नीका इनिषड्यःपितृश्यः पार्वणयंस्पष्टं ॥ तच्चसांक | भास्कर पिकविधिना॥साकल्पिकेचसमंत्रकाबाहना_ग्नौकरणपिंडदानविकिराक्षय्यस्पधागच। नपनेत्येतत्सप्तकंवयं। सांकल्पे॥शुभायप्रथमातेनवृद्धीसंकल्पमाचरेत्॥ नषष्ट्यायदि वाकुर्यान्महादोषोभिजायते॥ अनस्मदृद्धिशब्दानामरूपाणामगोत्रिणां॥ अनाम्नाम | तिलैश्चैवनांदीश्राद्धचसव्यत इतिसंग्रहे॥ कृते नांदीमुरयेमध्येनकुर्यादितयंपुनः॥ राजाभिषेके कुतिनथैवपुत्रजन्मनीति॥ कृतेश्युदयादेनन्मातृकोस्थापनंविना॥ ॥५॥ नद्वितीयनांदीमुखं कुर्यास्त्रजन्मनि॥तयैवाफ्युदयंकार्यराज्ञपट्टाभिषेचने। अन्य। For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याकुरुतेमोहादपमृत्युकरंपरं।पुत्रजन्मनिराजाभिषेकेचहितीयनांदीश्राईकुर्यात्॥ न्यथान॥मंडपोद्दासनापूर्वनांदीश्रादेकतेपुनः॥येकुर्वतिनरामोहादपमृत्युबजनिते॥ इतिशास्त्रार्थप्रदीपे॥एतनिषेधस्त्रिपुरुषसपिंडपर्यंतमितिपुरुषार्थचिंतामणौ॥ ॥ वजन्मनिमित्तेतुतत्कालेनिशिवादिया॥ नोव्रतोपवासीवावृद्धिश्राईतुकारयेत्॥इति रेणुकारिकायां॥ ॥नांदीश्राइंबिपार्वणमित्याशयेनामान्नादिपार्वणप्रयोगः ॥ शारदांतरत्वान्नात्रलिखितः ॥ ॥अथवृद्धिश्राइकर्तुर्जीवसितृकलेनिर्णयः॥ ||॥ जीवेनुयदिवर्गाद्ययर्गतुपरित्यजेदितिन्यायेनजीवसितकः स्थापत्यसंस्कारेषु । For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मातृमातामहपार्वणयुतंनांदीश्राईकुर्यात्॥मानरिजीवत्यांमातामहपार्पणमेकमेवामा भास्कर नामहेजीयतिमातृपार्वणमेकमेय॥ केवलमातृपार्वणेविश्वेदेवानकार्याः॥वर्गत्रयायेषु । मातृपितृमातामहेषुजीवत्सुनांदीश्राद्धलोपएपसुतसंस्कारेधूचितः॥दिनीयपियाहाधानपु प्रेष्टिसोम यागादिषुस्वसंस्कारकर्मसयेत्यएवपितादद्यात्नेश्योदयास्वयंसुतः॥तथाच मृतमातृमातामहकोपिजीवसितृकः स्वसंस्कारपितुर्मातृपितामहीप्रपितामयः॥पितुः पितृपितामहप्रपितामहाः॥पितुर्मानामहप्रमातामहवृद्धपमातामहाः सपत्नीका नांदीमुखाः ॥६॥ । इत्येवंपार्पणत्रयमुद्दिश्यश्राद्धं कुर्यात् ॥ ननुस्वमातृमातामहपार्वणोद्देशः॥पिनरिपि । For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | नामहेच जीवतिस्वसंस्कारेपितामहस्य मातृपितामही प्रपितामह्य इत्याद्युद्देशः॥ एवंप्रपि तामहे पियोज्यं ॥ पितुर्मात्रादिजीवने तत्सार्वणलोपएव ॥ तथाचयेभ्यएवपितादद्यादितिप क्षस्यवर्गाद्य जीवने तसार्वण लोप इति द्वारलोपपक्षस्यचस्वसंस्कारस्वापत्यसंस्कारभेदेन व्यवस्था सिद्धांतितेतिज्ञेये ॥ ॥ केचित्तु पक्षद्वयस्पछिको विकल्पो नतुव्यवस्थितइत्याहुः ।। एवंमृनपि ||तृकस्य जीवन्मातृमातामहस्यपितुः पार्वणेनैव नांदीश्राद्धसिद्धिर्ज्ञेया ॥ समावर्तनस्यमाण विककर्तृकत्वेपिन दंगभूत नांदीश्राद्वेपितुस्तदभावेज्येष्ठ यात्रादेरधिकारइति केचित्॥ न पितापुत्र समावर्तनेस्वपितृभ्यो नांदीश्राद्धंकुर्यात् ॥ पिताजीवसितृकश्चेत्सनसंस्का For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रत्वातद्वारलोपपक्षोयुक्तइतिभानि॥माणवकपितुः प्रवासादिनाअसन्निधानेश्चात्रादि | भास्कर र्माणवकस्यपितुर्मानृपितामहीप्रपितामह्यइत्यायुच्चार्याईकुर्यात्॥मृतपिटकमाणव कसमावर्ननेपितृव्यावावादिरस्यमाणयकस्यमातृपितामहीमपितामयइत्याधुच्चारयेत्।। वात्रा देरभावस्वयमेवस्वपितृभ्योदयात्॥ एवंजीवपितृकोपिपितुरसन्निधानाचारादर भावेचपितुः पितृश्यः स्वयमेव नांदीमुरखकुर्यात्॥ उपनयनेनकर्माधिकारस्यजातत्यात॥एवंविवाहेपिद्रष्टव्यं।मृतपितृकस्यचौलोपनयनादिकंपितृव्यमातुलादिःकुर्वन्अस्यसंस्का ॥१॥ यस्पपिपितामहमपितामहत्यायुच्चार्यश्राईकुर्यात्॥ जीवनः पितुरसन्निधानेनकुर्वन्या For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलादिरस्यसंस्कार्यस्यपितुर्जनकादीनुद्दिश्यैयकुर्यान्नतुसंस्कार्यस्यमृतानपिमात्रादीनितिसंक्षेपः॥ ॥ ॥अथसाकल्पिकविधिनानांदीश्रादप्रयोगः॥नांदीम खाः सत्यवस संज्ञकाः विश्वेदेवाः ॐ भूर्भुवः स्वः इदंवः पायंपादावनेजनंपादप्रक्षाल नंवृद्धिः॥ ॥ गोत्रापिपितामहप्रपितामहाः सपत्नीकानांदीमुरवाः ॐ भूर्णी वःस्वः इदंवः पाद्यपादावनेजनंपादप्रक्षालनंवृद्धिः॥ ॥द्वितीयगोत्रा:मातामह प्रमातामहवृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नांदीमुखाः ॐ भूर्तवःस्वः इदंकपाद्यं०॥ ||॥ अद्यपूर्वोच्चारित शांतिपूर्वक गर्भाधानांगत्वेनसांकलिकेनविधिनाबाह्मणयुग्मा For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार भोजनपर्याप्ताननिष्प्रयीमूतयथाशक्तिहिरण्येन नांदीश्राइंकरिष्ये॥ ॥आस मास्कर ॥६२॥ निदानं॥ ॥ सत्यवस संज्ञकानांविश्वेषांदेवानांनांदीमुरयानां ॐ भूर्भु इदमास नं॥सरवासनं॥नांदीश्राद्धेक्षणौकियेतां ॥ ॐ तथा॥ प्रामुवतांप्रयंती॥ प्राप्नुवावः ॥ ॥गोत्राणांपिपितामहप्रपितामहानांसपत्नीकानांनांदीमुरवानां ॐ भू. इद, मास०॥ ॥द्वितीयगोत्राणांमातामहप्रमातामहवृद्धप्रमातामहानांसपलीकानांनांदी सुखाना मूर्तयः इदमास.॥ ॥ तनोगंधादिदानं ॥ सत्यवससंज्ञकेश्योविश्वे- ||॥२॥ भ्योदेवेश्योनांदीसुरपेभ्यः इदंगंधायर्चनंस्वाहासंपयनांवृद्धिः॥ ॥गोत्रेभ्यःपिन | For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पितामहप्रपितामहेश्यः सपत्नीकेन्योनांदीमुरवेश्यः इदंगंधा०॥ ॥द्वितीयगोत्रे प्योमातामहप्रमानामहवृद्धप्रमातामहेश्यःसपलीकेश्योनांदीमुरवण्यः इदंगंधा०॥ ॥ भोजननिक्रयद्रव्यदानं॥ ॥सत्यवससंज्ञकेभ्योविश्वेन्योदेवेभ्योनांदीमुखे प्याब्राह्मणयुग्मनोजनपर्याप्तमन्तन्निक्रयीभूतंकिंचिहिरण्यदर्शअमृतरू |पेणस्वाहासंपद्यतांवृद्धिः॥ गोत्रेभ्यः पितृपितामहप्रपितामहेश्यः सपत्नीकेन्यो नांदीमुरवेश्य: ब्राह्मणयु०॥ ॥द्वितीयगोत्रेभ्योमानामहप्रमातामहवृद्धप्रमा तामहेश्यः सपत्नीकेश्योनांदीमुरवेश्यः ब्राह्म०॥ ॥सक्षीरमुदकदानं॥ ॥नांदी For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥६३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुखाः सत्यवससंज्ञकाः विश्वेदेवाः श्रीयंतां ॥ ॥ गोत्राः पितृपितामहप्रपितामहाः सपलीकाः नांदीमुखाः प्रीयंतां ॥ द्वितीयगोत्राः मातामहप्रमानामह वृद्धप्रमातामहाः सपली | काः नांदीमुरवाः प्रीयंतां ॥ ॥ आशिषाग्रहणं ॥ गोत्रं नोवर्द्धतां ॥ बर्द्धतायोगोत्रं ।। दातारोने। अभिवर्धनां ॥ अभिवर्धतांबोदातारः॥ वेदाश्चनोभिवर्धनां वर्धनांवोवेदाः ॥ संततिनभिवर्द्धतां वर्धतांवः संततिः॥श्रद्धाचनोमाव्यगमत् ॥माव्यगमद्वःश्रद्धा ॥ बहुदेयंच नोस्त ॥ अ स्तुवोबहदेयं ॥ अन्नंचनो बहुभवेत्॥ भवतुवोबव्हन्नं ॥ अतिथींश्वलतामहै || लभतां ॥६३॥ वोतिथयः ॥ याचितारश्वनः संतु ॥ संतुबोयाचितारः ॥ एताआशिषः सत्याः संतु ॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संवेनाः सत्याआशिषः॥ ॥ दक्षिणादानं ॥ सत्यवसुसंज्ञकेभ्यो विश्वेभ्योदेवेभ्यो नांदीसुखेभ्यः कृतस्यनांदीश्राद्धस्यफलप्रतिष्ठासिध्यर्थं द्राक्षामलकय वमूलनिष्कयीभूतांदक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥ यवमूलं आईकं ॥ गोत्रेभ्यः पितृपितामहप्रपिताम हेभ्यः सपत्नीकेभ्यो नांदीमुखेभ्यः कृतस्य०॥ द्वितीयगोत्रेभ्योमानामहप्रमाताम हवृद्धप्रमातामहेभ्यः सपत्नीकेभ्योनांदीमुरवेभ्यः कृतस्य० ॥ ॥ ततोनांदीश्राद्धं || संपन्नं ॥ कसंपन्नं ॥ बाजेबाजेतिविसृज्य ॥ ॐ बार्जेबाजेवतच्वा॒जिनो॑नो॒ धने॑ बुध्धिप्राऽ अमृताऽ ऋतज्ञा ॥ अ॒स्यमपिब॑तमा॒दय॑ध्व॒न्तृ॒ताय॑तप॒थभि॑र्दे॒व॒ For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार यानै: ॥१॥आमाधाजस्येत्यनुव्रज्य॥ ॐ आमाचार्जस्यप्रसवोयगम्यादेमेघावापथिवीविश्वरूपे॥ भामागंतापितरांमातराचामासोमौऽ अमृतत्वे गम्यात्॥१॥ ॥ अस्मिन्नांदीश्राद्देन्यूनातिरिक्तोयोविधिः सउपविष्टब्राह्मणानांवचनात्नांदीमुरवण सादात्सर्यः परिपूर्णोत॥ अस्तुपरिपूर्णः ॥ ॥ इतिसंस्कार भास्करेनां दीबाई॥ ॥अथब्रह्माचार्यकत्विग्वरणम्॥ आचार्यत्वंयथास्वर्गेशकादी नांबृहस्पतिः॥ तथाखममयजेस्मिन्नाचार्याभवसुबन॥१॥ ॐ बृहस्पते अति ॥६॥ यद:अझैद्युमद्विभातिकमज्जनेषु॥यहीदयुच्छवस कतप्रजाततदस्मा For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रवि॑ण॒न्धेहिचि॒त्रम् ॥ १॥ अमुकगोची सन्नः असुकप्रवरान्वितः अमुकशर्मायजमानो हं॥ अमुकगोत्रोत्पन्नं अमुकप्रवरान्वितंश्शुक्लयजुर्वेदांतर्गत माध्यंदिनीयशाखाध्यायिनं अमुकशर्माणं ब्राह्मणंअस्मिन्सग्रहमस्वरजोदर्शनशां त्याख्ये कर्मणि आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे ॥ वृतोस्मि ॥ गंधादिप्तिः संपूज्य ॥ यथाचतुर्मुखो ब्रह्मासर्वलोकपिताम हः॥ तथात्वंममयज्ञेस्मिन्ब्रह्माप्तवद्विजोत्तम॥१॥ ॐ ब्रह्म॑ज्ञनंप्र॑थ॒मं पु॒रस्ता॒ द्विशी॑म॒स॒रुचो॑च॒नऽ आवः॑ः ॥ सबुभ्या॒ऽ उप॒माऽ अ॑स्य॑वि॒ष्टा?स॒तश्व॒योनि॒मस॑तश्च॒ | बिर्य ॥१॥ अस्मिन्रजोदर्शन शांत्याख्ये कर्मणि ब्रह्मत्वेन लाम हंवृणे ॥ वृतोस्मि । For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥६५॥ संस्कार वांछितार्थफला वात्येपूजितोसि सरासुरैः । निर्विमंत्र तुसंसिध्येलामहंगणपंवृणे भास्कर 11911 ॥ ॐ गुणानीं त्वा॰ ॥१॥ अस्मिन जोदर्शनशांत्याख्ये कर्मणिगाणपत्ये नत्वा महंवृणे ॥ वृतोस्मि ॥ कर्मणामुपदेष्टारं सर्व कर्मविदुत्तमं ॥ कर्मिणंवेदतत्वज्ञसदस्यत्वा महंवृणे ॥ १॥ ॐ सद॑स॒स्पति॒मद्भूतंप्रि॒यमि॑द्र॑स्य॒काम्य॑म् ॥ स॒निम्मे॒धाम॑यासिष॒ | स्वाहा ॥ १ ॥ अस्मिन्नरजोदर्शनशांत्यारव्ये कर्मणिस दस्यत्वेन त्वामहंवृणे ॥ वृतोस्मि ॥ ततश्वनुरोष्ठौ वाऋत्विजो वृणुयात् ॥ यज्ञादिकर्मकार्येषुकलिग्ाक्रमरवेयथा ॥ नः ॥६५॥ थायज्ञादिकर्मेस्मिनऋत्विग्त्वंमेमस्वेत ॥ १॥ अस्मि• ऋत्विकत्वेन त्वामहंवृणे ॥ वृ For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तोस्मि॥ ॥ ततःसूक्तजपार्थक्रग्वेदादीन्छृणुयात्॥ऋग्वेदःपद्यपत्राक्षोगायत्रःसोम दैवतः॥अविगोत्रस्तुविद्रकविग्रमेमरखेभव॥१॥ ॐ अमिमीळेपुरोहितंयज्ञस्य देवमृखिजे ॥ होनाररत्नधातमम्॥१॥ अस्मिनजोदर्शनशांत्यारव्येकर्मणिकलिक, वेन लामहंवृणे॥ वृतोस्मि॥कातराक्षोयजुर्वेद स्त्रैष्टुभाब्रह्मदैवतः॥भारद्वाजस्त विपेंद्रऋखिम्त्वमेमस्वेभय॥१॥ ॐ षेलोर्जेलाचायवः स्थदेवोच सवितापाय तुश्रेष्ठतमायुकर्मण: आप्यायध्वमन्याः इन्द्रायभागम्जावतीरनमीवाऽ अयक्ष्मामावस्तेनऽ ईशतुमाघशेर्ट सोध्रुवाऽ अस्मिनोक्नोस्यातबव्हीर्यजमानस्यपश For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पहि॥१॥ अस्मिनजो चूणे॥ वृतोस्मिासामवेदस्तपिंगाक्षोजागनःशक्रदैयनः॥काश्य भास्कर ॥६६॥ पयस्तविरेंद्रऋविक्रमेमरवेभव॥१॥ ॐ अमुआयाहिवीतयेगृणांनोहव्यदातये॥निहो तासुत्सिवर्हिषि॥१॥ अस्मिनजो ॥बृहन्नेत्रोथर्ववेदोनुष्टुप्पोरुद्रदैवतः॥वैखानसकुलोत्पन्नोऋविस्वं ॥१॥ ॐ शन्नौदेवीरभिष्टय आपोभवंतुपीतये॥ शञ्योरपिस्वंत न ॥१॥अस्मिनजो वृणे॥वृत्तोस्मि॥भगवन्मूर्तिसर्वज्ञसर्वधर्मभृतांवर॥विनतेम मयजेस्मिन्जपार्थत्वामहंवृणे॥१॥अस्मिन्जो रुद्रजपार्थत्वामहं०॥ वृतोस्मि ॥ऋषि ॥६६॥ जोगंधादिभिःसंपूजयेत्॥ यजमानर्बिजः परस्परंयज्ञकंकणंबधीयुः॥ ॐव्रते दीक्षा For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मामोतिदी क्षयामोतिदक्षिणाम्॥ दक्षि॑णाश्र॒द्धामा॑नोति॑श्रद्धया॑स॒त्यमा॑य्य॒ते ॥ ए॒ताव॑द्रूप ञ्य॒ज्ञस्य॒षद्दे॒वैर्ब्रह्म॑णाकृ॒तम् । तदेतत्स॑र्व॒मामोतिय॒ज्ञेसत्रामणीरुते ॥१॥ ॥ अथप्रा | र्थना ॥ ब्राह्मणाः संतुमेशस्ताः पापात्सांतुसमाहिताः । देवानांचैवदातारः पातारः सर्वदेहि नां ॥ १॥ जपयज्ञैस्तथा होमैर्दानैश्व विविधैः पुनः ॥ देवानांचक पीणांच तृप्त्यर्थंया जका | कृताः ।। २ ।। येषांदेहेस्थितावेदाः पावयंनिजगत्रयम् ॥ रक्षंतुसनतंतेमां जपयज्ञैर्व्य । वस्थिताः ॥ ३ ॥ ब्राह्मणाजंगमंतीर्थं त्रिषु लोकेषुवि श्रुतम् ॥ तेषांवाक्यादकेनैवशुध्यति मलिनाजनाः ॥ ४ ॥ पाचनाः सर्व वर्णानां ब्राह्मणाब्रह्मरूपिणः। सर्वकर्मरनानित्यं वेदशा For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥६७॥ संस्कार स्वार्थकोविदाः ॥ ५ ॥ श्रोत्रियाः सत्यवाचश्च ग्रहध्यानरताः सदा ॥ यद्वाक्यामृतसंसिक्ताक, भास्कर द्वियांति नरद्रुमाः ॥ ६ ॥ अंगीकुर्वंतुकर्मै तत्कल्पद्रुमसमाशिषः ॥ यथोक्तनियमैर्युक्तामंत्रा | स्थिरबुद्धयः ॥ ७ ॥ यत्कृपालोचनात्सर्वऋद्धयोवृद्धिमाप्नुयुः । अस्मिन् होमे मयापूज्याः संतुमेनियमान्विताः ॥ ८ ॥ अक्रोधनाः शैौचपराः सततंब्रह्मचारिणः ॥ ग्रहध्या | नरतानित्यंप्रसन्नमनसः सदा ॥ ९ ॥ अदुष्टभाषणाः संतुमासं तुपरनिंदकाः ।। ममापिनि यमाह्येते परंतु भवतामपि ।। १॥ इतिसंप्रार्ध्यतान्ब्रूयाद्यथावक्रियतां विधिः ॥ ऋलिन श्वयथापूर्वं शक्रादीनांमस्त्रेभवन् ॥११॥ यूयंतथामे भवनकविजोद्विजसत्तमाः ॥ अस्य For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यागस्यनिष्पत्तौभवतोभ्यर्चितामया ॥ १२॥ रूप्रसन्नैः प्रकर्तव्यशांतिकंविधिपूर्वकं ॥ ॥ इतिसंस्कार भास्करे ब्रह्माचार्य ऋत्विग्वरणम् ॥ अथदिग्रक्षणं ॥ ॥ ततआचम्य | प्राणानायम्यदेशकालौस्मृत्वा ॥ अस्मिन्सग्रह मखरजोदर्शनशांत्यारव्येकर्मणियजमा नेनवृतो हं आचार्यकर्मकरिष्ये ॥ तदंगशरीरश ध्यर्थंपुरुषसूक्त जपं करिष्येइतिपुरुष सूक्तंपोडाचं जपेत् ॥ ॥ ततआचार्येवामहस्ते गौरसर्षपान्लाजमिश्रानुगृहीला दिग्रक्षणंकुर्यात्॥ ॥ तत्रमंत्राः ॥ र॒क्षो॒हण॑म्ब लग॒हन॑म्वैष्ण॒वीमि॒दम॒हन्तम्ब॑ल॒गमु किंरामि॒यम्मे॒निष्ठयो॒यम॒मात्यनिच॒स्याने॒दम॒हन्तम्ब॑रु॒गमुक्ति॑रामि॒यम्मे॑समा॒नोयम For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥६८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समानोनिचखाने॒दम॒हन्तब॑ल॒गमुत्क॑रामि॒र्य॑म्म॒सव॑न्धुर्य्यमस॑बन्धुर्नृचखाने॒दम॒हन्तम्बैलुग भास्कर मुत्ति॑िरामि॒यम्मे॑मजा॒तोषमम॑जानानिचूरखानोत्कृ॒त्यार्ङ्गरामि ॥ १ ॥ रक्षो॒हवोच लग हनः प्रोक्षमिचेष्णवान् क्षो हणौवा बलगुहनो व॑नयामंधेष्ण॒वान्क्षोहण वो द्यलगृह नोव॑स्त्रेणामिचैष्ण॒वान्त्र॑क्षो॒हणी॑वाँच लग॒हना॒ उप॑दधामिवैष्ण॒वीर॑क्षी हण वाँचलग॒हना॒पर्यैहामिचॆष्ण॒वीर्घौष्ण॒वम॑सिवैष्ण॒वास्य॑ ॥ २ ॥ रक्ष॑साम्भा॒ग्रोसि॒निरे॑ S · रक्ष॑ इ॒दम॒हर्ट· रक्षि॒तिति॑ष्ठामी॒दम॒हर्ट· रक्षोव॑बाध इ॒दम॒हर्ट- रक्षो॒ध॒मन्त ॥ ६८|| मोनयामि ।। घृतेन द्यावापृथिवी पोर्णु वायो॑च्चायो॒च्चेस्यो॒काना॑म॒ग्निराज्यस्य धे स्वाहास्वाही क For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir N ते ऊ॒र्ध्वन॑भस॑मारु॒नछतम् ॥ ३ ॥ रक्षो॒हाधि॒श्वच॑र्षणिर॒भियोग हते ॥ सू स्थ॒मास॑दत् ॥ ४ ॥ अपसर्पंतुतेभूतायेभूता भूमिसंस्थिताः ॥ येभूताविधकर्त्तार | स्तेनश्यंतु शिवाज्ञया ॥ १ ॥ अपकारांतुभूतानिपिशाचाः सर्वतो दिशं ॥ सर्वेषामविरो धेनशांतिकर्मसमारभे॥२॥ यदत्रसंस्थितंभूतंस्थानमाश्रित्य सर्वतः ॥ स्थानं त्यत्वातुतत्सर्वं यत्रस्थंतभगच्छतु ॥ ३ ॥ भूतमेतपिशाचाद्या अपक्रामंतुराक्षसाः ॥ स्थान। दस्माद्व्रजं त्वन्यस्वीकरोमि भुवंलिमां ॥ ४॥ भूतानिराससावापियवतिष्ठतिकेचन ॥ | तेसर्वेप्यपगच्छंतुशांतिकंतु करोम्यहं ॥ ५ ॥ इतिमंत्रैरीशानादिसर्वदिक्षुविकिरेत्॥उदको For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | पस्पर्शः॥ ॥ततःपंचगव्यकरणं॥तयथा ॥गायत्र्यागोमूत्र॥ ॐतत्सवितु ॥१॥गंधद्वारामि भास्कर ॥६९॥ निगोमय।। ॐगंधदारांदुराधर्षीनित्यपुष्टॉकरीषिणी॥ईश्वरीसर्वभूतानांनामिहोपस्येत्रि यं॥२॥ आप्यायस्वेतिक्षीरं ॥ ॐ आप्यायस्युसमैतुने विश्व सोमवृण्यम् ॥ भाचा जस्यसङ्गथे॥ ३॥ दधिक्राणेतिदधि॥ ॐ दधिकार्गो० ॥४॥ तेजोसीत्याज्यं ।। ॐ तेजोसिक्रमस्थमृतमसिधाम्नामासिपियन्देवानामनौधृष्टन्देवयजैनमसि॥ |॥५॥ देवस्यत्वेतिकुशोदकं॥ॐ देवस्यवासवितुः ०॥६॥ ॐ इतिषणवेनयज्ञकाष्ठेना ॥ ९॥ लोट्य आपोहिष्ठेतिविधिमन्त्रैः कर्मभूमियज्ञसंभारांश्चप्रोक्षयेत्॥ . ॥ तनोय For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जमानहस्त प्रमाणं चतुरस्त्रंच तुरंगुलोन्नतंस्थंडिलंपिरच्यतवभूमिपूजनं॥ ॐ सूरसि | भूमिरस्यदितिरमिविश्वााविश्वस्याप्नुवनस्यधर्ती॥ पृथिवीन्यपृथिवीन्टै हपृथि वीम्माहि ६. सीः ॥ ॐ भू. पृथिवीकु र्मानंतदेवताभ्योनमः इतिमंत्रेणषोडशोपचारैः संपूजयेत्॥ ॥अविचारः॥ ॥समंततश्चसिद्धार्थान् क्षिपेद्रक्षोभमंवतः॥सर्वत पंचगव्येनप्रोक्षयेद्यागमंडपं॥ आपोहिष्टायचेनैवततः स्वस्त्ययनंजपेदितिशांति सारे॥ एतेसंस्काराः शुध्यर्थइतिग्रहयज्ञकल्पवल्यां॥ ॥धृत्यांगुष्ठकनिष्ठात्या मूलैः साये: कुशवयं ॥ तदोस्तस्यरजसांपूर्वस्थामपसर्पणं॥ रुमिकीटपतंगाद्यापि । For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥७०॥ संस्कार चरंतिमहीतले ॥ तेषांसंरक्षणार्थीयपरिसमूहनमुच्यतइतिकुशकंडिकायां ॥ रुग्णावृद्धाश्र सूता चवंध्यासंधिन्यमेध्यभुक् ।। मृतवत्साचनै तासांया संमूनं शरुत्पयइतिकपरल्यो। पुराइंद्रेणचयेण हनोवृत्रोम हाकरः ॥ व्यापितामेदसापृथ्वीतदर्थमुपलेपनंदतिकुशकंडि कायां ॥ ॥ रेखाभयमुदक् संस्थेप्रागर्थस्थंडिलावधि ॥ अथवेन त्यकुर्वीत द्वादशांगु ल माय तंइतिकल्पवल्यां ॥ ॥ उल्लेरबनंनतःकुर्यादस्थिकंटकमेवच ॥ तेषामुद्धरणा र्याय उल्लेखः कथितोबुधैः ॥ अंगुष्ठोपकनिष्ठाभ्यामग्निकार्यं तथोत्करं ॥ रेखाभ्यः समुपा दायारलिमात्रे निधापयेदिनिकल्पवल्यां ॥ || श्वमेतिपिशाचाद्याअंतरिक्षनिवासिनः For Private and Personal Use Only भास्कर |||७० ॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेषांपहरणार्थायसमुधः कथितोबुधैः॥इतिकुशकंडिकायो॥ ॥ अयोक्षणंतु कर्त व्यमुत्तानेनैवमुष्ठिना॥ नवदफ्युक्षणचैवकर्तव्यंन्युजमुष्टिना ॥ इतिकल्पवल्याआ पोदेवगणा:सर्वे आपःपितृगणाः स्मृताः॥ सर्वतदापआदायअश्युक्षेनिपुनःपुनः॥ संपुटेनामिमानीयस्थाप्यामेर्दिशिक्कुंडतः। आमक्रव्यातुजो तस्मात्त्यकाऊंडेविनिक्षि येत्॥ शरावेभिन्नपात्रेवाकपाले चोल्मुके तथा॥नामेः प्रणयनकार्यंच्याधिशोकाया हं॥ कपालं रखपरं॥उल्मुकंज्वलदमेरेकदेशः॥कुलालचक्रघटितं मृन्मयंपात्रमास ||रं ॥ तदेव हस्त घटिनंस्थाल्यादिदैविकंस्मृतंइतिकल्पवल्या। आनीतपात्रयोरेवप्ला For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥७१॥ संस्कार वनंतत्क्षणेभवेत् ॥ नोचेत्कर्तुर्मनस्तापः स्यात्संतापस्तयोरपि॥ इतिकल्पवल्यां॥ ॥ भास्कर ततः कृतांजलिः स्वस्तिनइतिमंत्रंपठेत् ॥ ॥ देवा आयोतु ॥ यातुधाना अपयतु ॥ विष्णोदेवयजनंरक्षस्व ॥ ॥ तत्रस्थंडिले पंचभूसंस्कारान्कृत्वा || मूलधृतैः ईशानी मारभ्यस्यमितैः प्रतीचीमारभ्यप्राक्संस्थैः निःसारितैः त्रिभिर्दर्भैः त्रिः परिसमुझ ॥ गो मयेनोपलिप्य ॥ रवादिरकीले नोल्लिख्य ॥ प्रतीचीमारभ्यप्रागतं त्रिरूर्ध्वरेषाकरणंया | म्यतउदक्संस्थाप्रादेशपरिमिता ॥ अनामिकांगुष्ठेनोल्लिखितपांसूनांमृदमुत्धृत्योर्ध्वं ॥७१॥ क्षिप्य ॥ उदके नाभ्युक्ष्यन्युजपाणिना ॥ कांस्यपात्रे अनिमुपसमाधाय ॥ आनीतममिं For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थंडिलस्यामेथ्यांनिधाय॥ ॐ हुंफट्इतिमंत्रणकन्यादाशनैर्ऋत्यांदिशिपरित्यज्या। ततोमिंदूनमिनिमंत्रेणात्माभिमुरवममिंसंस्थापयेत्॥ ॐ अमिन्दूतम्पुरोदधेहव्यवाह सपब्रुचे॥ देवों २ ७ आसादयादिह ॥१॥ ॥ अम्यानीनपात्रेसाक्षनोदकंनिषिच्य॥ अमिमुरखंक त्वाध्यायेत् ॥ ॐ चत्वारिशृङ्गत्रयोऽ अस्यपादाढेशीर्षसप्तह|स्तासो अस्य॥विधाबुद्धोवृषभोरोरवीतिमहोदेवोमा २ : आविवेश॥१॥ ॥ सप्तहस्तश्चतुःशृंगः सप्तजिव्होद्विशीर्षकः॥विपाप्रसन्नवदनः सरयासीनः शुचि स्मित:॥१॥ स्वाहांतुदक्षिणेपार्येदेवींचामेस्वधांतथा॥विश्वदक्षिणहस्तेस्तुशक्ति For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मन्न॑स्रुचंस्रुवं॥२॥तोमरंव्यजनंवामेघृतपात्रंचधारयन् ॥ आत्माभिमुखमासीन एवंरूपो तस्कर ॥७२॥ हुताशनः ॥ ३ ॥ अग्नेवैश्वानरशांडिल्यगोत्रशांडिल्यासि तदैवलेतित्रिप्रवरान्वितभू मिर्माना वरुण: पितामेषध्वजप्राङ्मुखममसन्मुखो भव ॥ शांतिकेवरदंनीमा प्रितिष्ठा प्य ॐ अमिपुरुषाय नमः इतिमंत्रेणवायव्यकोणेबहिः अमिंषोडशोपचारैः संपूज्य प्रार्थयेत् ॥ अग्निंप्रज्वलितंवंदे जात वेदंहु तावानं ॥ हिरण्यवर्णमनलंसमृद्ध विश्वतो मुखं ॥ इत्यग्निंप्रतिष्ठाप्य ॥ ॥ अथऋतुशांतीविशेषः । ततईशान्यांयाम्यमार १यउदक्संस्थंपंक्तिरूपेणकलश चतुष्टयस्यमहीद्यौरित्यादिक्रमेणस्थापनं ॥ तथा For Private and Personal Use Only ॥७२॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie चनारदसंहितायां॥ ईशान्यांचतुरः कुंभान्स्थापयेद्विधिपूर्वकं ॥ याम्यमारभ्योदक्सस्थान्पूर्णपात्रसमन्वितान् ॥१॥ सूर्यचतबविन्यस्य इंद्राणींचपुरंदरं॥चतुर्थेविन्यसे विद्वान्प्रतिमांमुवनेश्वरीं ॥२॥ इति॥ ॥ततोमहीद्योरितिभूमिंस्पृष्या॥ ओषधयः समितिययान्क्षिप्त्वा ॥ आजिघ्रमितिकलशंस्थापयेत्॥ वरुणस्योत्तमनमितिजलंपूर येत्॥वांगंधर्वाइतिगंधंप्रक्षिपेत् ॥याओषधीरितिसौषधीः॥ कांडाकोडादिनिदूवाः॥ अश्वत्थेवइतिपंचपल्लवान्॥स्योनापृथिवीतिसप्तमृदः॥ आपोहिष्टेतिपंचगव्य। याः फलिनीरितिफलं ॥परिवाजपतिरिनिपंचरत्नानि॥हिरण्यगर्भनिहिरण्यं॥युवास For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यासाइतिरक्तसूत्रेणायेध्य॥ पूर्णादर्सनिपूर्णपानिधाय॥तखायामीनियरुगमावाह्यपं भास्कर ॥३॥ चोपचारैःसंपूज्यसर्वेससुद्राइतिगंगाद्यावाहयेत्॥ ॥ततः सुवर्णमयचतुर्मूर्तीनां कदलीसहितानामभ्युत्तारणपूर्वकंप्राणप्रतिष्ठांकुर्यात्॥ ॥ ततःसाचार्योयजमान दे |शकालौस्मृखाभासांस्वर्णमयसूर्यइंद्रइंद्राणीभुवनेश्वरीकदलीमूर्तीनांघनादिदोपपरि हारार्थअभ्युत्तारणपूर्वकंप्राणप्रतिष्टांकरिष्ये॥ मूर्तीपुतेनास्यज्यउपरिजलधारांकु र्यात्॥ ॥अम्युत्तारणमंत्राः॥ ॐ समुद्रस्यत्वाचकया परिव्ययामसि॥ पायको आ॥७३॥ ||स्मभ्यः शिवोभव॥१॥ हिमस्यत्वाजरायणाग्नेपरिव्ययामसि॥पावको अस्मभ्यः For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवोभय ॥२॥ उपज्मन्नुपवेतृसेचतरनदीपो॥ अनैपिनमुपामसमण्डूकितानिराग हिसेमन्नौयज्ञम्पायुकवर्ग शिवधि॥३॥ अपामिदंन्ययन समुद्रस्यनिवेशनम्॥ अन्याँस्तै अस्मत्नैपन्तुहेतयः पावको अस्मान्य शिवोभव॥४॥ अमेपावकरोषि षामन्द्रयादेवजिल्हयौ ॥ आदेशान्वक्षियसिंच॥५॥ सन: पावकदीदियोमैंदेवाहा वह ॥ उपयज्ञ हुपिश्चन ॥६॥ पावकायश्रुिनयन्त्यापाक्षामन्चुरुच उष सोनप्पानुनौ॥ तूच॑न्नयामन्नेतरीस्यनूरण आयोघृणेन तृषाणोऽ अजर ॥७॥ नमस्नेहरसेशोचिषेनमस्ते अस्खचिषै॥ अन्याँस्तै अस्मत्तैपंतुहेतयः पायकोड, For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार अ॒स्मभ्य॑द॑ शि॒वत॑व ॥ ८ ॥ नृ॒षदे॒ धेना॑प्स॒षदे॒धेऽर्हषदे॒धेनं॑ न॒सदे॒बेड् ुर्बदे॒वेद् ॥ ९॥ ये भास्कर ॥७४॥ दे॒वादे॒वानां॑य॒ज्ञिया॑य॒ज्ञिया॑ना : संवत्स॒रीण॒मुप॑भा॒गमास॑ते ।। अहु॒तादो॑ह॒विषि॑य॒ज्ञेऽ अ स्मिन्स्व॒य॑पि॑वन्तु॒ मधु॑नो घृ॒तस्य॑ ॥ ११ ॥ खेदे॒वादे॒वेष्वधि॑दे॒व॒त्वमायने ब्रह्मणः पुरःएता || रो॑ अ॒स्य ॥ खेभ्यो॒नः ऋ॒तेव॑ते॒धामुकिञ्च ननतेद्द्वोन॑पृथि॒व्या अधि॒स्तुषु॑ ॥ १२॥मा॒ श॒दा अ॑पान॒दाव्यो॑ न॒दाच॑चा॒दाच॑रियो॒दाः ॥ अ॒न्यस्ते॑ अ॒स्मत्त॑पन्तुहे॒तये॑ पा 3 $ s व॒को अ॒स्मभ्य॑· शि॒वो भ॑व ॥ १३ ॥ ॥ ततः प्राणप्रतिष्ठांकुर्यात् ॥ ॐ आन्हींकोयरल ॥७४॥ वंशेषसं हं क्षं हंसः सोहं ॥ आसांसूर्य इंद्र इंद्राणी भुवनेश्वरीकदलीमूर्तीनांप्राणा इहप्रा For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णाः । पुनः ॐ आन्हींकीयर लंवंशषंसंहसंहंसः सोहं ॥ आसांसूर्य इ. मूर्तीनांजीवाइ हस्थिताः॥पुनः ॐ आंन्हींकोयर लंवंशेषसंहसंहंसः सोहं ॥ आसांसूर्यइंद्र• मूर्तीनांसर्वै||द्रियाणिवाङ्मनस्वचक्षुः श्रोत्रजिव्ाप्राणपाणिपादपायूपस्थानिइहैवागत्य सरवंचि रंतिष्ठतु स्वाहा ॥ ॐ मनौजूतिज्र्ज्जुषता ० ॥ ए॒ष॑वे॒प्रति० ॥ २ ॥ इतिप्रतिष्ठाप्य ॥ ॥ वृत्र स्यासीतिनेत्रोन्मीलनं ॐ वृ॒त्रस्य॑सिक॒नीन॑कश्वक्षुर्द्दऽ अ॑सि॒चक्षु॑म्मे॑देहि ॥ गंधा दिपंचोपचारान्दत्वासंस्कारसिद्धयेषोडश प्रणवावृत्तिं कुर्यात् ॥ ॥ अनेन आसांसूर्यादि देवतामूर्तीनां गर्भाधानादिषोडश संस्कारा संपादयामीतिवदेत् ॥ ॥ इतिमाणय For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तिष्टा ॥ ॥ अथसूर्याद्यावाहनं ॥ ॥ एह्येहिपद्मासनपद्मपाणे सुरक्तसिंदूरसमानव भास्कर ॥७५॥ र्ण॥ सप्ताश्वरक्तांबरसूर्यशीघ्रं गृहाणपूजांभगवन्नमस्ते ॥ ॐ आरुष्णेनरज• ॥ १ ॥ | ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्य इहागच्छइहतिष्ठ ॥ ॐ सूर्याय नमः सूर्य आवा हयामि ॥ ॥ अ द्रध्यानं ॥ एह्येहिनानाभरणप्रियेंद्र प्राचीपतेवज्ञधरामरेश ॥ ऐरावतारूढ श चीसखात्र गृहाणपूजांभगवन्नमस्ते ॥ २ ॥ ॐ वा॒नामिंद्र॑म० ॥ २ ॥ ॐ भू० इंद्रइहा ॥ ॥ अथेंद्राणीध्यानं ॥ एह्येहिदेवीश्वरि हेमवर्णैविशालपेकेरुहलोल नेत्रे ॥ अं भोजहस्ते शचिदिव्यरूपेग्गृहाणपूजांममयज्ञसिध्यै ॥ ३ ॥ ॐ इन्द्रन्दैयीतिमंत्रेण ॥ For Private and Personal Use Only ॥७५॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || ॐ इन्द्रन्दैवीर्चिशीमुरुतोनुवांनोमयन्यथेन्द्रन्दैवीर्बिशोमरुतोनुवनिोभयन।। ॥ एवमिमन्यजमानन्दैवींधिशोमानुषीश्चानुवानोभवन्तु ॥३॥ ॐ भू. इंद्राणिइ. ॥ ॥ अथभुवनेश्वरीध्यानं॥ एोहिदुर्गदुरितोधनाशिनिप्रचंडदैत्योपविनाशका रिणि॥ उमेमहेशार्धशरीरधारिणिस्थिरामवत्वममयज्ञकर्मणि॥४॥ ॐ श्रीश्चतेल. ॥४॥ ॐ मू. भुवनेश्वरिइहा भुवनेश्व. भुवनेश्वरीआवाहयामि॥ ॥ तनात णेत्यादिचतुर्मत्रैर्नाममंत्रै सर्वाएक तंत्रेणषोडशोपचारैः संपून्यप्रार्थयेत्॥ सूर्यप्रार्थ ना॥ नमोनमस्तेसरसेवितायसहस्रनेत्रायसमंडलाय॥सिंदूरवर्णायस पंकजाय For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार सवर्णवज्याभरणायतुष्यं ॥१॥ ॥ क्षमापनं ॥ सप्तसप्तिसमारूढपद्महस्तस मंगल ॥ ॥७६॥ क्षमांकुरुदयालोत्वंमहरा जनमोस्कते ॥ २॥ ॥ अद्रप्रार्थना ॥ पुरंदरनमस्तेस्तवज्ञ | हस्त नमोस्तुते ॥ शचीसरव नमस्तेस्तुमेद्य वाहनमोस्तते ॥ १ ॥ क्षमापनं ॥ ॥ देवराजग |जारूढपुरंदरशतक्रतो ॥ शचीसरवमहाबाहो वांच्छितार्थप्रदो भव ॥२॥ अधेंद्राणीमा र्थना ॥ त्वां नमामिगजारूढां शचीकमल लोचनां ॥ सरराजप्रियेदेविधृतसंतानमंजरी ॥ ॥ क्षमापनं ॥ अंभोजहस्ते वरदे कमलायत लोचने ॥ सुरराजप्रियेदेविप्रसीदपर ॥ ७६ ॥ ॥ अथभुवनेश्वरीप्रार्थना ॥ नमोस्त देव्यैक्स रपूजितायैविशालपंकेरुह | ॥ १ ॥ मेश्वरि ॥२॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोचनाये॥ नगाधिराजपियकन्यकायैनमोस्ततस्यैहरवल्लभाये॥ १॥क्षमापनं॥दुर्गे| देविमहामागेमहादेवप्रियेनये॥ नीलोसलमुरवेयेममपीडानिराकुरु ॥२॥ इनिपार्थ्य ॥ अनयापूजयाश्रीसूर्य इंद्रइंद्राणीप्नुवनेश्वरीदेवनाः पीयंतां ॥ ॥ वन्हेरुत्तरतोषि द्वान्कदलींस्थापयेछुना॥ हेम्नःपंचपलाट्यांचपलस्यापिसुलक्षणा॥१॥ वंशपात्रेपनि ठाप्यतंदुलानाटकोपरि॥ कदल्यैइतिमंत्रणपूजयित्वाप्रणम्यच॥ दद्यात्ताहिजवर्या यसर्वदोषापतत्तये॥२॥ ॥ततोग्नेरुत्तरनःप्रसारितरक्तवस्त्रेवंशपात्रेआटकपरिमि ||ननंदुलराशिरुत्वातदुपरिहैमींकदलींसंस्थाप्य॥ श्रीसूर्यदेवतायैकदल्यैनमइतिमंत्रण For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ७७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षोडशोपचारै: संपूजयेत् ॥ दानसमये अस्यादानंकार्यमिति ॥ ॥ ततोजपार्थकृतव भास्कर रणोब्राह्मणः सूर्याद्यावाहितमूर्तिसमीपे उपविश्यकलांस्पृष्ट्वाविष्वाडित्य नुवाकंज स्वाअप्रतिरथंश्रीसूक्तंचइंद्राणी भुवनेश्वरीकलशइये द्विवारं अथवारुद्वैकादशनीं | जपेत् ॥ इत्थंनारदोक्तऋतुशांतिविशेषः ॥ ॥ अथग्रहमंडलदेवतास्थापनं ॥ उक्त | प्रकारेणग्रहपीठंविरचयेत् ॥ ॥ शास्त्रार्थः ॥ ग्रहनामानि ॥ स्कांदे ॥ जन्मभूमिभि |श्ववर्णस्थानमुखानिच ॥ योऽज्ञात्वाकुरुतेशांतिंग्रहास्तेनावमानिताः ॥ १ ॥ रविः सोमो महीपुत्रो बुधोजीवोच भार्गवः ॥ शनैश्वरो राहुकेतू नवखेटाः प्रकीर्तिताः ॥१॥ ॥ वर्णाः ॥ | For Private and Personal Use Only ॥७७॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रविभौमोरक्तवर्णैश्वेतश्चंद्रस्तभार्गवः॥ बुधजीवोपीतवर्णोरुष्णोमंदविधंतुदौ॥धूम वर्णाःके तुवश्चयहवर्णाः प्रकीर्तिताः॥ ॥प्रतिमाः॥ रविभीमो ताम्पमयौराजतोसोम भार्गयो। बुधजीवीस्वर्णमयोलोहोमंदविधुतुदो॥केतुःकांस्पोथवासीसःप्रतिमाधानयः स्मृताः॥ ॥मास्ये॥ पद्मासनः पयकर:पग्रगर्भसमद्युतिः॥सप्ताश्वरथसंस्थश्च द्विभुजः स्यात्सदारविः॥१॥ श्वेतः श्वेतांबरधरोदशाश्वः श्वेतवाहनः॥ गदापाणिईि बाहुश्चकर्तव्योवरदः शशा ॥२॥रक्तमाल्यांबरधरः शक्तिशूलगदाधरः॥ चतुर्मुरयोमे पगमोचरदःस्याद्धरासुतः॥३॥पीतमाल्यांबरधरः कर्णिकारसमद्युतिः। पड़चर्मगदापा For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार णिः सिंहस्थोवरदो बुधः ॥ ४ ॥ देवदैत्यगुरू तद्वत्सीतश्वेतौ चतुर्भुजेो ॥ दंडिनौवरदी काव्यैौ ॥७८॥ साक्षसूत्रकमंडलू ॥ ५ ॥ इंद्रनीलद्युतिः शूलीवरदोग्गृध्रुवाहनः ॥ बाण बाणासनघर: क र्तव्योर्क सतः सदा ॥ ६ ॥ करालवदनः खङ्गचर्मशूलीवरप्रदः ॥ नीलसिंहासनस्थश्वरा हुश्वात्रप्रशस्यते॥७॥ धूम्राद्दिबाहवः सर्वेगदिताविकृताननाः॥ गृभ्रासनगतानित्यं | केतवःस्युर्वरप्रदाः ॥ ८ ॥ सर्वेकिरीटिनः कार्याग्र हालोकहितावहाः ।। स्वांगुलेनोछ्रिताः सर्वेश तमष्टोत्तरावधि ॥' ॥९॥ ॥देशाः ॥ उत्पन्नोर्कः कलिंगेषुयमुनायांच चंद्रमाः ॥ अंगारकस्त्ववेत्यांचमगधायोहिमांम्पुजः ॥ १ ॥ सैंधवेषुगुरुर्जातः शुक्रो भोजक देतथा॥ For Private and Personal Use Only भास्कर ॥७८॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शनैश्चरस्त सौराष्ट्रेराहुर्घेराटिनापुरे॥ अंनद्यांतथाके तुरित्येतायहभूमयः॥ गोत्राणि॥आदित्यः काश्यपेयस्क आत्रेयश्चंद्रमाभवेत्॥ भारद्वाजोभवेदोमस्तथा त्रेयश्चसोमजः॥ गुरुचैवांगिरोगोत्रः शक्रोवैभार्गवस्तथा॥ शनिःकाश्यपएबाथरा हःपैटिनसः स्मृतः॥केतपोजैमिनीयाश्चमहगोत्राणिकीर्तयेत्॥ सकारेणतुवक्तव्यंगो सर्ववधीमता ॥सकार:कुतुपोज्ञेयोनस्मायनेनतंवदेत्॥ ॥ स्थानानि॥ कांदे॥ वृत्तमंडलमादित्येचतुरस्त्रंनिशाकरे॥महीपुत्रेत्रिकोणतुबुधेवैबाणसन्निनं ॥ एरोतुप हिशाकारंपंचकोणंतुभार्गवे॥ धनुर्निभंशनौज्ञेयंभूर्पाकारंतुराहये॥ केनवेतुध्वजाका For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मंडलानिप्रकल्पयेत्॥मंडलव्यासश्चयहरलावल्यां। मंडलव्यासः कथित सूर्यस्यहा, भास्कर ॥७९॥ दशांगुलः॥ चतुरंगुल सोमस्यव्यंगुलोलोहितस्यच॥ चतुरंगुल सौम्यस्यगुरोश्चैवष उंगुलः॥ नयांगुलस्त शुक्रस्यअर्कपुत्रस्ययंगुलः॥ द्वादशांगुलोराहोश्चके तोश्चैवषडंग लइति॥मध्येनुभास्करंपियाछशिनंपूर्वदक्षिणे॥दक्षिणेलोहितंपियाडुधंपूर्वोत्तरे पिच॥उत्तरेतुगुरुंविधादार्गवंपूर्वतोन्यसेत्॥ शनिंपश्चिमतः स्थाप्य नैर्ऋत्येराहुमेव || च॥केतुवायव्यकोणेचग्रहस्थानानिकीर्तयेत् ॥दिङ्मुरयानिप्रतिष्टाकल्पे॥ ॥ ॥९॥ कार्कोपा खोज्ञेयो गुरुसौम्यावुदङमुरचौ॥प्रत्यङमुखौसोमशनीशेषादक्षिणतोम-।। For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रवाः॥ एनेवैदिङ्मुरवाः रखेटाः स्वस्वलोकेनिवासिनः॥यजमानात्माभिमुखा:सर्वसंस्था पयंनिच॥पूज्यपूजकयोमध्येयत्रपाची प्रकल्पयेत् ॥ तत्रसन्मुखसंस्थाप्यइनिन्यायो यथातथमिति॥ ॥मदनरत्नसंग्रहे॥ ॥यहस्यदक्षिणेमागेस्थापयेदधिदेव ताः॥ ग्रहस्ययामपार्चेतस्थाप्याः प्रत्यधिदेवताः॥ ॥अधिदेवतानामानि॥ ॥ईश्व रंचउमांचैवस्कंदविष्णुतथैवच॥ ब्रह्माणेद्रंयमचैवकालं चैवतुअष्टमं॥चित्रगुप्तंतुनय | मंअधिदैवतकीर्तिताः॥ ॥ प्रत्यधिदेवतानामानि ॥ अमिवतथाापपृथिवी विष्णुरेव च ॥ इंद्रश्चैवत्तथैद्राणीप्रजापतिस्तथैवच॥ सर्पश्चैवतुब्रह्माच एताःप्रत्यधि For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | देवताः॥ ॥संग्रहे॥राहुमंददिनेशानामुत्तरस्यायथाक्रमं॥ गणेशदुर्गेयायुश्चराहुके. भास्कर खोश्चदक्षिणे॥ आकाशमश्चिनौदेवोस्थापयित्वाकमेणतु॥वास्तोप्पतिक्षेत्रपालंस्थाय्यगु रूत्तरेषुच॥ एताः सदैवसंस्थाप्याः कर्मसाद्गुण्यदेवताः॥इंद्रामियमनैक्रत्यावरुणोवा | युरेवच ॥कुबेरेशानावित्यष्टोपागादिमदिशाधिपाः॥ब्रह्माणंचततःस्थाप्यपूर्वंशान्योस्तुमध्यमे॥पतीचिनैऋतिमध्येअनंतस्थापयेदिति ॥ यथावर्णपदेयानिवासांसिकुसमा निच॥नचरहेप्योदेयानिसुगंधसहितान्यपि॥ ॥गंधः॥ आदित्यायविलेपार्थदापयेद्र ॥८॥ क्तचंदनं॥ चंदनंसितवर्णचपदयासोमभार्गवे॥कुंकुमेनचसंयुक्तंचंदनंजीचसोम्ययोः For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |॥ अगरीश्चंदनंदद्याद्राहुकेवर्कजेषुच॥ ॥धूपः ॥रये: कुंदरकंधूपंशशिनस्त | ताक्षताः॥ मोमेसर्जरसंचैवअगरुंचबुधेस्मृत॥ सिल्हकं गुरवेदयाच्छुकेबिल्वागरे तथा॥ गुग्गुलंमंदचारेतुलाक्षाराहोश्चकेतनैवेय॥ ॥राडोदनरर्दयात्सोमाय तपायसं॥ लोहितायमसूरान्नबुधायक्षीरषाष्टिकं ॥दध्योदनं गुरोर्दयात्शुक्रायचघृतो |दनं॥मिश्रितंतिलमाषान्नं निवेयंचशनैश्वरं॥ राहोर्मापोदनंदद्याकेतोचित्रोदनंतथा| ॥ ॥ हविर्द्रव्यं॥ ॥तिलांज्यचरूभिर्द्रव्यंसमिधांचयथातथं॥ यहादीनांचसर्वेषांह विर्द्रव्यमुदीरित॥ ॥समिधरत ॥ अर्क:पालाशपदिरावपामार्गोथपिप्पलः॥ औदंब For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१॥ शमीदूर्गा: कुशाश्वसमिधःक्रमादिति॥ ॥ हेमाद्रीपयिष्योत्तरेसंयहेच॥ एफैकस्या वाहनादिपूष्पांजल्यंतपूजनं॥समाप्यचततोन्यस्पइतिकांडोत्सुकीर्तितः॥सर्वेषामेक तंत्रणरच्यादीनांयथाविधि॥ पूजनेतुप्रकर्तव्यपदार्थोनुप्रकीर्तितः॥ गणाधिपतयेदे। यापथमातुवराहुति॥अन्यथाविफलंविषमवतीहनसंशयः॥आधारावाज्यभागौतु आज्येनैवयथाक्रमं ॥ एकैकस्याहुतिहुलाभन्यहोमंततःपरं॥ केवलंयहयज्ञंचसर्वशांत्या | दिकेषुच॥ प्रथमोयुतहोमास्याहितीयोलक्षहोमकः॥ तृतीयःकोटिहोमःस्याधिविधीयहय ॥१॥ ज्ञकः॥ अष्टोत्तरसहस्त्रंतु शतमष्टाधिकंतथा॥ अष्टाविंशतिसंरच्याकैरेकैकस्यतुहोमयेत् For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कोटिलक्षायुतमरवेरच्यादीनांयथाक्रमं॥ प्रणयादिश्चतलिंगः स्वाहाकारांनणचन॥जद ! यात्सर्वदेवानांवेद्यांयेचोपकल्पिताः॥ ॥ नृसिंहपुराणे॥ ततोव्याहनिभिःपश्चाज्जुहुया । यतिलादिकं ॥ यावत्पपूर्यनेसंख्यालख्याकोटिरेवया ॥वाशब्देनअयुतमपिगृण्हीयान, ॥तिला: कृष्णाघ्नास्यक्ता: किंचियवसमन्विनाः॥ होमेन्याहृतिभिश्चैवमर्वम्नधि । । धीयतेइतिशातिरले॥ ॥ संमहे॥ ॥कोटा वधिपत्य धेश्चशतमष्टाधिकार तिः॥विनायकादिदिक्पालान्ताष्टाविंशतिसंख्यया॥१॥ लक्षेअष्टाविंशतिचअधिः ।। प्रत्यधिकेषुच॥विनायकादिदिक्यालान्ताष्टानसंख्ययाहुतिः॥२॥ अयुतेष्टाष्टसंख्या। For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ८२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैरधिप्रत्यधिकेषुच ॥ विनायकादिदिक्पाली नानांहु त्वा चतुश्चतुः ॥ ३ ॥ केवलेअ धिप्रत्यधिहत्वाचैव चतुश्चतुः । विनायकादिदिक्यालाः हेद्वेसंख्याहुनी हुनेदिति ॥ ५४॥ ॥ शौनकः ॥ ॥ अंतेपूर्णाहुतिं हुत्वासमुद्रादूर्मिसूक्ततः ॥ सनतामा ज्यधारांतां पूर्णाहुतिम थाचरेत् ॥ मात्स्येमिपुराणे च॥ ॥ मूर्धानंदिवमंत्रेणावशेषघृतधारया ॥ दद्यादुत्यायपू | गांवै नोपविश्यकदाचन ॥१॥ इतिकातीयानां चावश्यं शांतिमयूखे ॥ ॥ शक्रज्योत्यनु | वाकेन घृतेनाच्छिन्नधारया ॥ होमां ते सर्वकल्याणीदेया पूर्णाहुतिस्तदेतिग्रहयज्ञकल्पव ॥ ८२॥ ल्यां ॥ ॥ पूर्णाहुतिरन्याज्येनस्याल्याज्येनकदाचनेतिग्रहयज्ञकल्पवल्यां ॥ ॥ कारिकायां ॥ For Private and Personal Use Only भारक Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्यदाज्यसमानीयाधिश्रितेस्तुकलुवायुभो।तोपनप्यचसंमार्गकुशै:संमृज्यसिंच येत्॥ पुनःप्रनप्ययाम्यायांनिदध्यात्लुक्नुवोचत्तो॥ आज्यमुहास्यचोत्सूयावेक्ष्या पद्रव्यनिष्कृतिः॥ चतुर्ग्रहीतमाज्यंतगृहीत्वासुचिमध्यनः॥ वस्त्रतांबूलपूगादिफ-1 लपुष्पसमन्विता॥अधोमुरयस्वच्छन्नांगंधाक्षतैरलंकृतां॥पूर्वदक्षिणहरूलेनपश्चा हामेनपाणिना॥ अयमध्यममध्यस्थमूलमध्यममध्यतः॥पाणिद्वयेनहोतव्यंपाणि रेकोनिरर्थकः॥ गृहीत्वाथसुवंकर्तारिखसन्निभमुद्रया॥ वामस्तनांतमानीयनाभि मूलास्चंततः॥सप्तनेत्यनुवाकोतेमवेसूक्तान्विशेषतः॥ श्रावयेत्सूक्तमागेयंवैष्ण For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | बरौद्रमैदयं ॥ महावैश्वानरंचापिचमकानिननःपठेत्॥ समास्वेतिनपर्चमामेयंसूक्तं ॥ | मास्कर ॥३॥ विष्णोर्नुकमिनिषडवैष्णवंसूक्तं ॥ नमस्तेतिषोडशर्चरौद्रंसूक्तं ॥ आप्यायस्पेतिषडची मैंदयं ॥महावैश्वानरं॥ चमकंवाजश्वेत्यारण्यसप्तविंशतिऋचा॥ इनिकाशीदीन क्षितपद्धती॥ऐशान्यामाहरेत्भस्मस्सुचावाथस्वेणवा॥ अंकनंकारयेत्नेनशिरः | कंठांसकेषुचेनिशातिकमलाकरे॥ ॥ततोयहपीठमध्येसूर्यमंडलस्यायेउदक्स स्थ पंक्तिरूपेणगणपतिदुर्गाक्षेत्रपालंचावाय॥ ॥तत्रमंबाः॥ ॥ॐ गणाना ॥२॥ खा०॥१॥ ॐ गणपते इहागच्छइहतिष्ठ गणपतयेनमःगणपतिआवाहयामि ॥ | For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie * अम्बेऽअम्बुिकेम्बालिकेनमानयतिकश्चन॥ ससंस्स्यञ्चकः सुभद्रिकाङ्कपी लासिनीम्॥२॥ ॐ पूर्ख दुर्गेइ. दुर्गायै• दुर्गाआ०॥ ॐ नहिस्सामर्विदन्न न्यमस्माद्वैश्वानरासुरैः एतारममे । एमनमवृधन्नमण्ड अमर्त्यवैश्वानुरे क्षेत्र जिन्यायदेवा ॥ ३॥ ॐ भूत क्षेत्राधिपने क्षेत्राधिपनये क्षेत्राधिपतिआ॥ ॥ तत्रपीठमध्येवर्तुलेद्वादशांगुले मंडलेपाऊमुरवंसूर्यरक्त पुष्याक्षरावाह्य ॥ ॐ आकु नरजैसा वर्तमानोनिवेशयन्नमृतमयंच। हिरण्ययनसवितारथेनादेवोाति ।मुवनानिपश्यन् ॥१॥ ॐ भू. कलिंगदेशोद्भवकाश्यपसगोबरक्तवर्णभोसूर्याग । For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार छइहतिष्ठ ॐ सूर्याय नमः सूर्यआवाहयामि ॥ ततआग्नेय्यादिशिचतुरखे चतुर्विंशत्येगु भास्कर ५८४॥ लेमंडलेप्रत्यङ्युरवंसोम॑म्युक्लपुष्पाक्षतैः सह ॥ ॐ इ॒मन्दे॑वा असपूल · सु॑वध्वम्मह तेष्व॒त्राय॑मह॒ते ज्यैष्ठयमह॒ते॒ जन॑राज्या॒येन्द्र॑म्येन्द्रि॒याय॑ ॥ इ॒मम॒मुष्य॑ष॒त्रम॒मुष्ये॑षु॒त्रम् अस्यैब्विशः एषबौमराजासोमा॒स्माक॑म्ब्राह्मणाना॒र्ट राजा ॥ २ ॥ ॐ तून यमुनातीरोद्भव | आत्रेयसगोत्रशुक्लवर्णभोसोमइहागच्छ इ० ॥ नतोदक्षिणस्यादिशिविकोणे त्र्यंगुले मंडले दक्षिणाभिमुखंभौमं रक्तपुष्पाक्षतैः सह ॥ ॐ अ॒ग्निर्मूर्धावर कुकुत्पति॑ ॥८४॥ पृथि॒व्या ऽ अ॒यम् ॥ अ॒पा रेता॑ सिजिन्वति ॥ ३ ॥ ॐ भू० अवंतिदेशोद्भवभार For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डाजसगोत्ररक्तवर्णनोभीम इहा ॥ नत शान्यादिशिवाणाकारे चतुरंगुलेमंडलेउदम खंबुधंपीनपुष्पाक्षतैः सह॥ॐ उर्दुध्यस्वा प्रनिजागृहित्यमिष्टापूर्तेसर्ट सजेथाम |यंचे। अस्मिन्सुधस्तु अध्युत्तरस्मिन्विदेवायजमानश्वसीदन॥४॥ॐ भू. मगधदे शोद्भपात्रेयसगोत्रपीतवर्णमोबुधइ ॥ ततउत्तरस्यादिशिलंबदीर्घचतुरसेपट्टाफारेपर्ड) सुलेमंडले बृहस्पतिपीतपुष्पाक्षतैः सह॥ ॐ बृहस्पते अतियोऽ अर्हायुमद्विभाति। ऋतुमज्जनेषु॥ यहीदयच्छवसऽकतप्रजात तदस्मासुद्रविणन्धेहिचित्रम्॥५॥ ||* भू-सिंधुदेशोद्भव आंगिरसगोबपीतवर्णभोवृहस्पतेइनाननःपूर्वस्यादिशिपंचकोणे For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार) नांगुलेमंडलेपाऊमुखशुकं शुक्लपुष्पाक्षनैःसह॥ॐ अन्नासरिसोरसम्बसणाच्य भास्कर पिबत्क्षत्रम्पय: सोम॑म्प्रजापनि ॥ कृतेनेसृत्यमिन्द्रियम्बिपाने शुक्रमन्धेस: इन्द्र स्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु॥६॥ ॐ भू. मोजकटदेशोद्भयमार्गवसगोत्रशक्लवर्ण मोककइ ॥ ततःपश्रिमायांदिशिधनराकारेयंगुलेमंडलेप्रत्यङ्मुरवंशनिरुष्णपुष्पा क्षतैःसह॥ ॐ शनीदेवीरभिष्ट्रय आपोमवन्नुपीतये॥ शज्थ्योरभिस्वन्तुनः ॥७॥ ॐ भूः सौराष्ट्रदेशोद्भवकाश्यपसगोवकृष्णवर्णभोशनैश्चरइ०॥ ततोन;त्यादिशि ||॥५॥ शूर्पाकारे हादशांगुलेदक्षिणाभिमुरवराहुंकृष्णपुष्पाक्षतैःसह॥ ॐ कयानचित्र आहे For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बदूनीसदाबंधू सरचा ॥ काशचिष्ट्टयावृता॥८॥ ॐ भू. राठिनापुरोद्भवपैठिनसगोत्र कृष्णवर्णभोराहो इ०॥ ततोवायव्यांदिशिध्वजाकारेषडंगुले मंडलेदक्षिणाभिमुरवंकेतुंधू पुष्पाक्षतैःसह॥ ॐ केतुङ्कण्वन्नकेतवेपेशीमर्जा अपेशसें॥ समुषदिरजायथाः ॥९॥ ॐ भू० अन्तर्वेदिसमुद्भवजैमिनसगोत्रधूम्रवर्णभोकेतो इ॥ ॥त नोधिदेवतास्थापनंग्रहदक्षिणपार्थे ॥ ॐ त्र्यम्बकन्यजामहेसगृधिम्पुष्ट्रियई नम्॥ उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्॥१॥सूर्यदक्षिणपाधै ॥ ॐ भू० ईश्वरइहागचइहतिष्ठईश्वरायनमः ईश्वरायाहयामि॥ एवंसर्वत्र॥ ॐ श्रीश्चनेल For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ८६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S $ क्ष्मी० ॥ २ ॥ सोमदक्षिणपार्श्वे ॥ ॐ भू० उमेइ० उमायै • उमां आ० ॥ ॐ यदकन्दः प्रथ मष्जाय॑मान उ॒द्यन्स॑मु॒द्रादु॒नया॒पुरी॑षात्।। श्ये॒नस्य॑पृ॒क्षाह॑रि॒णस्य॑वा॒हू उ॑प॒स्तुत्यम्म हि॑िणा॒तन्ते॑ अर्बन् ॥ ३ ॥ भीमदक्षिणपार्श्वे ॥ ॐ भूः स्कंदइहा० स्कंदाय ● ॥ स्कंदं आ● ॥ ॐ विष्णोर॒राद॑मसिधिष्णो म॒त्रे॑स्यो॒धिष्ण॒ः स्यूर॑सि॒ष्णैर्भुवोसि।।वैष्ण॒वम॑सि॒धि यावे त्वा ॥ ४ ॥ बुधदक्षिणपार्श्वे ॥ ॐ भू० विष्णोइहा• इहतिष्टविष्णवे ० ॥ ॐ आब्रह्म ब्राह्मणो ब्रह्मवर्च॒सी जीयता॒मारा॒ष्ट्रेरा॑ज॒न्युर॑ इष॒ध्योतिव्या॒धीम॑हार॒र्थोजीयना न्दोग्धी॑धे॒नुर्वै ढान॒ना॒ ? सप्ति॒ पुर॑न्ध॒र्योषा॑जि॒ष्णूर॑ये॒ष्ठाः स॒प्तेयो॒षुव॑स्य॒य For Private and Personal Use Only भास्कर ॥२६॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir जमानस्यचीरोजायनान्निामेनिकामेनः पर्जन्योघर्षतुफलवत्योन ओषधयःपच्यतान्योगक्षेमोन कल्पताम्॥५॥ गुरुदक्षिणपार्चे ॐ भू. ब्रह्मन्द ब्रह्मणेन ब्र ह्माणंआ•॥ ॐ सयोषी इन्द्रसगंणोमरुद्भिः सोमम्पिववृवहाभूरबिहान् ॥जहिशā २ रपमृधौनु दुस्वाथाभयङ्कणहिधिश्चतौनः ॥६॥शुक्रदक्षिणपाघे॥ ॐ भू. इंद्रइहा. इंद्राय इंद्रा०॥ ॐ यमायुखारिखतेपितृमतेस्चाही ॥ स्वाहाघ मायस्वाहाँघर्मपित्रे शनिदक्षिणपार्च ॐ यमइ. इहति यमाय यमंआ॥ कार्षिरसिसमुद्रस्यत्याक्षित्याउन्नयामि॥समापोऽ अद्भिरैग्मतसमोषधीनिरोष For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार धी ॥ ८ ॥ राहुदक्षिणपार्श्वे ॥ ॐ भू० काल इ० इहति० काला० कालं० ॥ ॐ चित्रवसोस् भास्कर ॥८७॥ स्त्रिति॑पा॒रम॑शीयः ॥ ९ ॥ केतुदक्षिणपार्श्वे ॥ ॐ भू० चित्रगुप्त इहति० चित्र• चित्रगुप्तं ॥ ॥ ततः प्रत्यधिदेवतास्थापनंग्रहवामपार्श्वे ॥ ॐ अ॒ग्निन्दूतम्पु॒रोद॑धे हव्य॒वाह॒मुप॑नु॒वे ॥ दे॒वाँ २ आसा॑दयादि॒ह १ सूर्यवामपार्श्वे ॥ ॐ भू० असेइ० इ० अ० अग्निं ॥ ॐ आपोहि अष्टौ ॥ २ ॥ सोमवामपार्श्वे ॥ ॐ भू० आपइ० इहति० अन्योनमः आप आवा• ॥ ॐ स्यो। नापृथिवि ० ॥ ३ ॥ भौमवामपार्श्वे ॥ ॐ भू० पृथिविइ० इ० पृ० पृथिवीं आ• ॥ ॐ इदम्बि ष्णुर्द्वच॑क्रमेत्रे॒धानिद॑धेप॒दम् ॥ सर्मूढमस्यपार्ट· सुरेस्वाहा॑ ॥ ४ ॥ बुध वाम पार्श्वे ॐ For Private and Personal Use Only ॥८७॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भू. विष्णो इहा. इ.वि विष्णु आ०॥ ॐातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवे सुहा वर्ट शूरमिन्द्रम॥ व्यामिशक्रम्पुरुहूतमिन्द्र स्वस्तिनोमघवाधाविन्द्रः॥५॥ रूवामपाधै। भू- इंद्रइहाइ इं॰इंद्रा०॥ॐ अदित्यैरास्मासीन्द्राण्याऽ उष्णीषः॥पू पार्मिघायदीष्य ॥६॥ शुक्रवामपार्चे॥ॐ भू. इंद्राणिइहा. इ.ई. इंद्राणीआ०॥ ॐ प्रजापतेनबदेतान्नन्योविश्वारूपाणिपरिताबमूव॥ यकामास्तेजहुमतन्नौडआ स्तुबयः स्यामुपतयोरयीणाम्॥७॥शनिवामपा॥ ॐ भू. प्रजापतेइहा-म० प्रजापति आ०॥ॐ नमोस्तसर्पयोयेकेचपृथिवीमनु॥ ये: अन्तरिक्षेयेदियितेभ्यः || For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥८८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥ ८ ॥ राहुवामपार्श्वे ॐ भू० सर्पाइ ० इ० सर्पेभ्यो • सर्पान् आ० ॥ ॐ ब्र ह्य॑ज्ञा॒नप॑थ॒मम्पु॒रम्ना॒द्दिशी॑म॒तः सु॒रुचो॑वे॒न आ॑वः ।। सबुभ्या॒ उप॒माऽ अ॑स्यच्च ष्टा?स॒तश्व॒योनि॒मस॑नश्व॒वित्र॑ ॥ ९ ॥ केतुवामपार्श्वे ॥ ॐ भू० ब्रह्मन्द० ब्रह्मणेन ब ह्माणंआ० ॥ ॥ ततोविनायकादिपंचदेवताः वास्तोष्पतिक्षेत्रपालं चा बाहयेत् ॥ ॥ ॐ गुणानान्च्त्वा० ॥१॥ राहोतरतः ॐ भू० गणपते इहा० इ० ग० गणपतिं आ० ॥ ॐ अम्बे अम्बि्रके ० ॥ २ ॥ शनेरुत्तरतः ॐ भू० दुर्गे • इहा० दुर्गायै दुर्गां ० ॥ ॐ | आनो॑नि॒युद्भि॑ श॒तिनी॑भिरध्व॒रर्ट• स॑ह॒स्रिणी॑भि॒रुप॑याहिय॒ज्ञम् ॥ वार्यो अ॒स्मिन्स For Private and Personal Use Only भास्कर ॥८८॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वनेमादयस्नघूयम्पातस्व॒स्तिभिः सदान ३ रवेरुत्तरनः ॐ भू. वायोइहा. वायवेन. वायुंआ०॥ ॐ घृतई तपावान पिबतुत्वसम्बिसापावान पिवतान्तरिक्षस्यहविरसिस्वाहा। ॥ दिश: प्रदिशः आदिशौबिंदिश उद्दिशोदिश्य स्वाही॥४॥ राहोदक्षिणे॥ॐ॥ भू. आकाश इहा. इ. आ. आकाशंआ०॥ ॐ यावाडू शामधुमृत्यश्विनामूनृतीवती तयायज्ञम्मिमिक्षताम्॥५॥केतोदक्षिणे॥ ॐ भू. अश्विनौ इ.इ. अश्विास्या अश्चि नौआ०॥ ॐ वास्तोष्पने प्रतियानीयस्मान्स्चावेशोऽ अनमीयोभवानः ॥यलेमहेन। तितन्नोजुषस्वशन्नोभवद्विपदेशचतुष्पदे॥१॥ उत्तरे ॐ भू. वास्तोष्पतेइ इन्चा For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥८९॥ संस्कार वास्तोष्यतिं आ० ॥ ॐ न॒हिस्पश॒मव॑दं० ॥ २ ॥ उत्तरेॐ भू० क्षेत्राधिपते इ. इ. क्षे. क्षेत्राधिपतिंआ० ॥ ॥ इतिऋतुसाद्गुण्यदेवताः॥ अथमागादितः पीठ समंताद्दिक पालानावाहयेत्॥ ॥ ॐ वातारमिन्द्र० ॥ १ ॥ पूर्वे ॐ भू० इन्द्रइ॰ इ० इं० इंद्वंआ० ॥ ॐ त्वन्नो॑ अग्ने॒ तव॑दे॒वया॒युभि॑र्म॒घोना॑र॑क्षत॒न्व॒श्ववन्द्य ॥ त्रा॒तानो॒कस्य॒तन॑ये॒गया॑म् स्यनिमे॑ष॒र्दे॒ रस॑माण॒स्तव॑च॒ते॥ २॥ आग्नेय्यां ॐ भू० अग्मेइहाग• इ० अ० असिं० ॐ य॒माय॒ त्वांगर • ॥ ३ ॥ दक्षिणे ॐ भू० यम इ० इ० य० यमं आ• ॥ ॐ असु॑न्वन्त॒मय॑ ॥ ८९ ॥ जमानमिच्छस्ते॒नस्ये॒ त्यामन्वि॑हि॒तस्क॑रस्य ॥ अ॒न्यम॒स्मदि॑द्ध॒सात॑ इ॒त्या नमो॑देविनि For Private and Personal Use Only भाकर Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्र॑ते॒तुभ्य॑मस्त ॥ ४ ॥ नैर्ऋत्यां ॐ भू० निर्कते इ० इ० नि०निर्कतिंआ० ॥ ॐ तत्वयामि | ॥ ५ ॥ पश्चिमे ॐ भू० वरुण इ० इ० च० वरुणं आ• ॥ ॐ आननि॒युद्भि॑ रा॒तिनभिरध्व॒र ६. सहस्रि० ६ वायव्यां ॐ भू० वायोइ हा० इ० वा० वायुंआ • ॥ ॐ व॒यर्ट सौमव॑ने॒ तव॒मना॑ ।। स्त॒नूषुविष्व॑तः । प्र॒जाव॑न्त॒ सचेमहि ||७|| उत्तरेसोमइहा० इ० सी० सोम ० ॥ ॐ तमी शा॑नं॒ जग॑तस्त॒स्थुष॒स्पति॑भि॒यज्जि॒न्व॒मव॑सेहूमहे व॒यम् । पू॒षानो॒वया॒श्वेद॑सा॒मस॑द्वृधेर॑सि॒ तापा॒युरद॑ब्धः॑ स्व॒स्तये॑ ॥ ८ ॥ ईशान्यां ॐ भू० ईश्वरइ० ई० ई० आवा० ॥ ॐ अस्मे रु॒द्रामे॒हना॒प॑र्ध॑नासो वृत्र॒हत्त्ये॒भर॑हूतौस॒योष । श्वार्ट· स॑ते स्तुव॒ते धायि॑प॒ज्या॑ऽइन्द्र॑ For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९०॥ संस्कार ज्येष्टा अ॒स्माँ २ अ॑वन्तु॑दे॒वा ? ॥ ९ ॥ पूर्वेशानयोर्मध्येऊर्ध्वायां ॐ भू० ब्रह्मन् इहा भास्कर ग० इ० ब्र• ब्रह्माणं आ० ॥ ॐ स्यो॒ नापृ॑थि॒वी॑नो ॥१०॥ निर्ऋतिपश्विमयोर्मध्येअ अधःस्थायां ॐ भू० अनंतइहा० इं अनंताय• अनंनं आ० ॥ ॥ इतिक्रतुसंरक्षक दिक्पाल देवताः ॥ ॥ ॐ मनौ जूनिर्जु ॥ एषवैप्रतिष्ठेतियां आदित्यादिग्रहमं |डलदेवताभ्यो नमः सुप्रतिष्ठितावरदाभवन ॥ पूजामंत्रस्त ॥ ॐ ग्रह ऊर्वा॑ ह॒तयो॒च्य तो॒च्विप्रा॑यम॒तिम् ॥ तेषां॒श्विशि॑प्रियाणाम्यो॒ हमिष॒मू · सम॑ग्रतमुपया॒मगृहीतो॒सी ॥९०॥ न्द्रा॑यसा॒यु॒ष्ठ॑ङ्गृण्हाम्ये॒षते॒योनि॒रिन्द्रा॑यसा॒ जुष्ट॑त॒मम् ॥ १॥ ॐ भूर्भुवः स्वः आदित्या 3 For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिनवयहमंडलदेवताभ्योनमः इनिमंत्रेणषोडशोपचारैःसंपूज्यप्रार्थयेत्॥ ॥ आदि देवनमस्कत्यसप्तसप्तदिवाकर॥ आयुरारोग्यमेदेहिकुरुशांतिंझपप्रदो।।१॥ रोहिणी शरुधामूर्तरूधारूपसधाशन॥ सोमसौम्योभवास्माकंसर्वारिष्टंनिवारय॥२॥ कुजकु प्रभवोपित्वंमंगल परिगद्यसे॥ अमंगलंनिहत्या सर्वदायच्छमंगलं ॥ ३॥बुधस्त्वंयु। द्विजननोबोध्यवान्सर्वदानृणां॥नत्वावबोधंकुरुतेसोमपुबनमोस्तते॥४॥वेदशास्त्रा र्थतत्वज्ञज्ञानविज्ञानपारग॥विबुधार्तिहरोनित्यंदेवाचार्यनमोस्तते॥५॥भार्गयोमा र्गजनन शुचिः श्रुतिविशारद॥ हत्यायहकृतान्दोषानायुरारोग्यंदेहिमे॥६॥को For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९१॥ संस्कार पानीलांजनप्ररव्यं मंदचेष्टाप्रसारिणं ॥ छायामार्तंडसंभूतं तं नमामिशनैश्वरं ॥७॥ महा शिरामहावको दीर्घदंष्ट्रा महाबलः ॥ मुंडकायोर्ध्वकेशिश्वपीडाहर तुमे तमः ॥ ८ ॥ अधःस्था र्धांगभोके तोपलधूमसमप्रभ ॥ रौद्ररूप नमस्तुभ्यंममपीडां निराकुरु ॥ ९ ॥ ॥ अन्यापूजया | आदित्यादिग्रहमंडलदेवताः प्रीयंतां ॥ ॥ इतिग्रहस्थापनं ॥ ॥ ततईशान्याग्रहसं ||बंधिरुद्रकलशस्थापनं ॥ महीद्यौरितिक्रमेणपूर्णपात्रनिधानांतंकृत्वातत्वायामीत्यावाह्य ॥ ॐ असंख्यातास॒हस्र॑शि॒येरु॒द्राऽ अधि॒भूय॑म् ॥ तेषार्ड सहस्रयो जने व॒धन्दनितन्म ॥९१॥ | सि ॥ १ ॥ इतिमंत्रेणषोडशोपचारैः संपूज्य सर्वेसमुद्राः सरिनइनिगंगाद्यावाहयेत् ॥ For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तबकलोसांगरूद्रजपः॥ अनेनकलशोदकेनअभिषेकसमयेपल्यासहयजमानमशिपिंचेन्॥ ॥ अथकुशकंडिका ॥ एतस्याच्याख्यायहरत्नावलीकुशकंडिकाभाय्यानुसारेणलिखिता॥ ॥ यथा ॥ अमेर्दक्षिणतःस्थापिनेवारणादिपीठेउदगया न्यधिकान् कुशानास्तीर्यामेरुत्तरत:कुशासनेब्रह्माणपूर्वाभिमुरयमासीनंयजमानः स्वयं उदङ्मुरवमासीनोब ह्मणोदक्षिणहस्संगृहीत्वानोब्रह्मन् अत्रासनेउपविशेतियान। उपविशामीनिनेनपठित्तेदक्षिणपादेनामे पूर्वेणगत्वास्यासनादंगुष्ठानामिकाभ्याकि चिनृणमादायदक्षिणापरस्यानिरस्याम्यपिमुखउपविशतीतियहयज्ञ कल्पवल्या॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ वारुणं संस्कार अग्रेरुत्तरतः प्रागयैः कुशैरासनद्वयंकल्पयित्वाएकमयेरुत्तरतः द्वितीयंत त्पश्विमे ॥ ॥९२॥ वायव्याश्रितंवारुणं द्वादशांगुलदीर्घंचतुरंगुल विस्तृतंचतुरंगुल खातं ॥ यथा॥ पाणिभावंचद्वादशांगुलविस्तृतं ॥ पद्मपत्राकृतिर्वापिप्रोक्षणीपात्रसंस्थितिरितिकल्पवल्यां ॥ चमसंदक्षिणहस्तेनग्गृहीत्वासव्येपाणीप्रागयंनिधायतिष्ठन् दक्षिणहस्तोभृतपा चजले नात्माभिमुखं पूरयित्वापश्चिमासनेनिधायदक्षिणया नामिकयाजलमालाभ्यामेरु उत्तरतः प्राक्कल्पितेप्रोक्षण्यासनादुदक्प्रणीतासनेस्यापयेत् ॥ यथा ॥ प्रणीताउत्तरेस्थाप्यावितरूपं तरतोशिनः॥ इतिग्रहयज्ञकल्पचल्यो । चमसंवारुणं प्रणीतापाचंप्रागममु For Private and Personal Use Only भास्कर ॥ ९२ ॥ . Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्तानंवारुणोदकेनसंपूर्य ॥ दर्भमुष्टिमादायप्रदक्षिणंप्रागादिबर्हिर्भिः कुंडपरिमाणैः परिस्तरणंविधेयंइतिकल्पवल्यां ॥ बर्हिर्दमुष्टिः ॥ तच्चप्रागुद्गयैः॥ दक्षिणतः प्रागगैः ॥ प्रत्यगुदगग्रैः॥उत्तरतः प्रागयैः ॥ आसादनं तुपात्राणांप्रादेशांतरके बुधः ॥ अंगु || लहूय मानेन द्वंद्वं इंडांतरेन्यसेत् ॥ प्रागयो दग्बिलंनस्यादुत्तरासादनेमितः ॥ पात्रजा | तंप्राग्बिलं तदुदगग्रंतुपश्विमेइतिकारिकाकारः । उत्तरतश्वेदुदक्संस्थं असंभवेषा क्संस्येपश्चिमसंस्थं उदक संस्थमपीतिदेवयाज्ञिकः ॥ अनंतगर्भिणंसायं कोशं हिलमेव च ॥ प्रादेशमात्रं विज्ञेयं पवित्र्यत्रकुत्रचित् ॥ आज्यस्थालीकांस्यमयी यहा ताम्रमयी । For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रं ॥ १ ॥ संस्कार तथा ॥ प्रादेशमात्रदीर्घासागृहीतव्याऽ वृणाम्युपमा ॥ दृढाप्रादेशमात्र्यूर्ध्वतिर्यङ् नातिबृह भास्कर ॥९३॥ न्मुखी॥ मृन्मय्यैदुंबरीवांपिचरुस्थालीप्रशस्यतइतिरलमालायां ॥ स्रुवसंमार्जनार्थाय पंचवाथत्रयोपिवा ॥ प्रादेशमात्रान् गृण्हीयात्संमार्ग कुशसंज्ञकान्॥१॥ उपयमनकुशाः । सप्तपंचवाथत्रयोपिवेतिग्रहयज्ञकल्पवल्यां ॥ समिल्लक्षणंपरिभाषायामुक्तं ॥ अथसुव लक्षणं ॥ खादिरादेःस्रुवः कार्ये हस्तमात्रप्रमाणतः ॥ अंगुष्ट पर्वखानंतचिभागदीर्घपुष्क ॥ षडत्रिंशांगुलांस्स्रुचंकारयेत्स्यादिरादिभिः ॥ कर्दमेगोपदाकारं पुष्करंतड ॥९३॥ देवहि ॥ १ ॥ पुष्करायं षडंशंतु खातं द्व्यंगुलविस्तृतं ॥ अंगुष्टैकं स्थूलतरेदंडेनस्यच कंकण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मित्यासादन्यां॥२॥ पूर्णपावलसणंपरिभाषायामुक्तं ॥ एवमासादनंरुत्यापवित्रच्छे दनैः कुशैः॥ अंगुष्ठागलिपर्याप्यांच्छिद्यामादेशसम्मिनमितिकल्पवल्यां॥अंगुलिर नामिकायपर्व॥ पादेशमात्रमुत्सार्योत्पवनंतुविधीयते॥ उहिंगनंतुकर्तव्यमूर्ध्वमूर्ध्वप्रमाणन इनिकल्पवल्यां॥ मोक्षणेकारणमाहश्रुतिः॥ अथपात्राणिप्रोक्षतीत्युपगम्यतदेवैषामबा शस्तक्षान्योमेध्यः कश्चिसराहंतीतिनदेयेतेषामद्भिरमेध्यंकरोतीति। तक्षावार्थकिः॥ नयतिरिक्तोयोन्योवृषलादिःससर्वोप्यमेध्यत्वादशहः॥ तस्यस्पर्शरुतं यदेषोपात्राणांना दोषजातंतदनेनप्रोक्षणेननिवर्तयतीतियहयज्ञकल्पवल्यां॥ पाबाणिक्रमशः प्रोक्ष्य For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ९४ ॥ संस्कार निदध्यात्तामसं चरे ॥ असंचरः प्रणीताय्योरं तरेणप्रकीर्तितः ॥ स्वालंतान्निर्वपेदाज्यमा ज्यस्थाल्यांयथार्हतः ॥ इति कारिकायां ॥ प्रणीतमुदकं कृत्वास्थाल्यांत्रिः क्षालितान्क्षि | पेत् ॥ तंडुलाननुमानेन चरुः पूर्णोयथाभवेत् ॥ दैवेधिः क्षालिताज्ञेयास्तंडुलाः पैतृकेसठत्॥ पात्रप्रोक्षणकालेतु चैतेषां प्रोक्षणं भवेदितिकल्पवल्यां॥ तत्राज्यंब्रह्माधिश्रयति॥न दुत्तरतआचार्यश्वरुमधिश्रयतीतियुगपत् ॥ इतिकल्पवल्यां ॥ कात्यायनसूत्रे अवरोत्तर मुत्तर - हवी८- षि ॥ श्रपणलक्षणंकारिकायां ॥ अन्वर्थः श्रपित स्विन्नोह्यदग्धोकठिनः ॥९४ ॥ | शुभः ॥ नचातिशिथिलः पच्योनचरुश्वारसस्तथेति ॥ कारिकायां ॥ द्वयोः पर्यमिकरणं For Private and Personal Use Only भास्कर Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | कर्तव्यं ज्वलदमिना ॥ पर्यग्निकरणेकारणमाहश्रुतिः ॥ तंपर्यमिकरोत्यच्छिद्रमेवैनमेतद | मिनापरिगृण्हाति नाष्ट्रारक्षार्ट स्यप्तिमृषेयुरमिर्हिरक्षसामपहतेतिकल्पवल्यां ॥ ततः॥ खु वसंमार्जयेत्प्रांचमतःसंमार्जनैः कुशैः॥ मूलतः पुष्करंयावत्कुशमूलैस्तथाग्रतः ॥ अमावस्यु क्ष्यचपुनः प्रतप्यनिदधातितं ॥ अधोमुखं तापयित्वासंमृज्योर्ध्वमुखंततः ॥ अभ्युक्षणं | तुप्रणीतोदकेनविशेषवचनाभावात्ह्मणीतानां सर्वार्थत्वाच्च ॥ पुनः प्रतपनंपूर्ववत् ॥ निधा | नंसमीपे ॥ सम्मार्गकुशाना मपासनं उत्तरतः । शाखांतरे मौप्रासनंविहितं ॥ आहवनीयेषा | सनमेकेइतिकात्यायनः ॥ अनुद्वासितानांपूर्वेणोद्वासिताना मपरेषा उत्तरत उपचा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ן Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार || रोहियज्ञनिवचनादमेरुत्तरतउहासनं॥ उदास्यप्रोक्षणीपश्चादागउत्तरतो मेःस्थाप भास्कर नं॥ इतिकल्पवल्यां॥ तदुहासिनमाज्यपवित्राभ्यामुत्यूयतदेवावेक्ष्य॥अवेक्षणंअपद्रव्यनिरसनार्यइतिकल्पपल्या॥ आज्यस्थालीताम्यांप्रोक्षणीरुत्सुनातीतिश्रुतेः॥ उपना तिकरणेपवित्रमुदगांवामहस्तेधृत्वातन्मूलंदक्षिणहस्तेधृत्वापवित्रकुशमध्यतउत्सुना नि॥ उपग्रहार्थदक्षिणहस्तेनसव्येकुर्यात्॥ रक्षसांतर्जनायवज्जोवाआपआपोहिक शा: एवंपरंपरयाकुशेषुववत्यादितिकल्पयल्यां ॥ कारिकायां॥ अधोमुरवऊर्ध्वपादः ॥९॥ पामुखोहव्यवाहनः॥तिष्ठत्येवस्वभावेन आहुतिःकुत्रदीयते॥सपरित्रांव्हस्तेनरहेन । For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुर्यात्प्रदक्षिणां ॥हव्यवाट्सलिलंदृष्याधिमेतिसंसुरयोजयेत्॥तिष्ठनीवहास्यीनीति तेः अस्थिस्थानापन्नत्वात्समिधोत्तिष्टायाधानंइनिदेवयानिकः॥ कारिकायो॥अन्यारंभे रुतेहोमोब्रह्मणादक्षिणेकरे॥बहुकाष्ठेःसमिधीयादर्चिष्भतंक्रियाक्षम॥ स्तुवेणाज्यंग्यहीत्वामे प्रत्यगुत्तरदेशतः॥आरभ्यदिशमानेयीमाज्यधारामृगँहरेत्॥मनसासंस्मरेस्वाहायुक्तंचप्रजापति। नैक्रतिदिशमाश्रित्यऐशानीपूर्ववक्षिपेत्॥ तत्रंद्रायपदस्य हायुक्तंचोपोशाकंभवेत्॥स्वाहेत्याघारयेदेतायाघारावितिभाषित यांच्यौवाजुहुयांद नावृतसंनतमेवच॥ जुहुयादमयेस्वाहासोमायेनितथापरां॥प्रथमंशानकोणायेद्विती For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार|| ||याग्ग्रेयकोणगा॥रूसमिद्वेथवावन्होहोतव्येचो तराहुती ॥ ननुउत्तरत उपचारोयज्ञइति भास्कर ॥९६॥ शास्त्रं ॥ कथमेते आहुतीदक्षिणसंस्थंहूयेतेइतिचेत्सत्यं॥ आत्माभिमुखस्याद्येर्दक्षिणवा |माभिप्रायेणेत्यदोषः । प्राजापत्याहुतौ उपांशुत्वकारणंहविर्यज्ञकांडे द्रष्टव्यं ॥ उपांश लक्षणं हौत्रसूत्रे ॥ यस्मिन्मंत्रादयोनविज्ञायंते नव्यंजनकेवलमेवोष्ठचालनंश्वासोवात | दुपार्ट· शुरिति ॥ भूरादिनवस्विष्टकृते चाद्यचतुष्टये ॥ अन्वारंभोभवेत्नेषु सोन्वारं भः कुशेनवै ।। स्क्रवधारणार्थंकारिका ॥ अये धृत्वार्थनाशायमध्ये चैवमृतप्प्रजा ॥ मूलेच ॥९६॥ म्रियते होता सुवस्थानं कथं भवेत्॥ अयमध्याच्चयन्मध्यंमूलमध्याच्चमध्यतः ॥ स्स्रुवधा। For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | रयतेविद्वानज्ञातव्यंचसदाबुधैः ॥ तर्जनींचबहिः कृत्वाकनिष्ठांचबहिस्तथा ॥ मध्यमा || नामिकांगुष्ठैःस्रुवंधारयतेद्विजः ॥ स्स्रुवहोमेसदात्यागः प्रोक्षणीपात्रमध्यनः ॥ पाणिहोमे त्यागोन ॥ इतिकुशकंडिकाभाष्यकारादयः ॥ अनेकस्नुवसाध्यहोमे अनेकस्सुवासादनं । तेषांप्रोक्षणंचेतिसिंधुः ॥ सर्वत्रत्यागादौ द्रव्यप्रक्षेपइतिगदाधरादयः॥ उपविशतीवमा ज्येतिश्रुतेः उपविश्यैव आहुतिंजुहुयात् ॥ आज्याहुतेराज्यस्थानी यत्वेनोक्तत्वादितिदेव । याज्ञिकः ॥ अभिपूजाबहिः प्रोक्तेतिवचना इहिरे व सर्वपूजनमिति केचिदाहुः । नत्रवि || शेषो विष्णुधर्मोत्तरे ॥ मध्येपिगंधपुष्पादीन्दद्यादयेर्नसंशयः ॥ बहिर्नैवेद्यमात्रतुदात For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार व्यमितिनिश्चयइनिशांतिमयूरये॥ ॥ आज्येनव्याहती त्वामूर्भुवःस्वरितिकमा भास्कर ॥९॥ त्॥पंचयारुणकंतहदेनेचैवप्रजापनिमिनिकारिकायां॥ प्राङ्गहाव्याहृतिभिःस्विष्ट कृदन्यच्चेदाज्याइपिरितिसूत्र॥अस्यार्थः॥यत्रहोमेआज्यादन्यसविस्यात्॥अत्रहविः शब्देनचरुरेव हविः॥यवचरु: स्यात्तत्रमहाव्यातिभिःप्राविष्टकमवति॥अन्य त्रांने पीतिभाष्यकारः॥विष्टकहोम: सर्वहोम द्रव्यैः कार्यः ॥ लक्षहोमादीचरुशेषस्यधा यसोक्तेरिनिशांतिकमलाकरः॥ ॥तनमाचार्योमिसमीपउपविश्यान्वादध्यात्॥ ९७॥ थान्वाधानं॥ यजुषामन्याधानगोशिलहरिहरगदाधरादिभिर्नोक्तनास्मातेकर्मणि-॥ For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | नान्वाधानंतथापिप्रयोग रत्नस्मार्ते ल्हासस्मार्तगंगाधर्यादी अन्वाधानोक्तेः प्रचुरतर || शिष्टाचार प्राप्तत्वाच्चात्राप्युच्यते ॥ | देशकालो • अस्मिन्सग्रहमखरजोदर्शनशां त्याख्ये कर्मणिदेवतापरिग्रहार्थमन्याधानंकरिष्ये ॥ अस्मिन्नन्वाहितेमौपूर्वेण ब्रह्मणो गमनं ॥ उत्तरतः पात्रासादनं ॥ द्वेपवित्रे ॥ कांस्यमयीताम्म्रमयीवा आज्यस्थाली॥ ताम्भ्रम यीचरुस्याली ॥ पालाश्यसमिधः ॥ प्राच्यावाघारो ॥ समिडूतमेआज्यभागौ ॥ पूर्णपानंदक्षिणावा ॥ एतान् वैकल्पिकान्पदार्थान हंकरिष्ये ॥ अथदेवताभिध्यानं ॥ तत्रप्रजापतिं | इंद्रअसिंसोमं एता: आज्येनप्रत्येकं एकैकयाहुत्या ॥ अत्रप्रधानं ॥ आदित्यादिनवय।। For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार हान्अर्कादियथालामसमिच्चरुतिलाज्यद्रव्ये प्रत्येकंपतिद्रव्येणअष्टाष्टसंख्याकाभिरा भास्फर ॥९॥ हुतिभिः॥अधिदेवताप्रत्यधिदेवताश्तैरे वद्रव्यैःप्रत्येकंपनिद्रव्येणचतुश्चतुःसंरख्याका भिराहुतिभिः॥विनायकादिपंचदेवता:क्षेत्रपालेवास्तोष्पतिइंद्रादिदशलोकपालांश्चतैरेषा द्रव्यैःप्रत्येकंपतिद्रव्येण द्वाप्यांद्वाभ्यां आहुतिभ्यांयक्ष्ये॥ ॥पुनरबभधानं॥ सूर्य इंद्राणींमुवनेश्वरीशर्कराघृतसंमिश्रपायसतिलाज्यद्रव्यैः प्रत्येकंप्रतिद्रव्येणअष्टाविंश त्यष्टाविंशतिसंख्याकातिराहुतिभिर्यक्ष्ये।न्यूनातिरिक्तार्यताक्ततिलद्रव्येणसमस्त ॥९॥ । व्याहतीरष्टाविंशतिसंख्याकाभिराहुतिभिर्यक्ष्ये॥ शेषेणस्विष्टकृतं॥ अभिवायुसूर्य । For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमीवरुणो अमीवरुणौअग्निंवरुणंसवितारं विष्णुविश्वान्देवान्मरुतः स्वर्कान्वरुणंआ | दित्यं अदितिंप्रजापतिएताअंगप्रधानार्थादेवताआज्येनअस्मिन्सग्रहमखरजोदर्शनशां त्या ||ख्येकर्मण्यहंयक्ष्ये ॥ ॥ दक्षिणतोब्रह्मासनास्तरणं तत्रब्रह्मोपवेशनं ॥उत्तरतः प्रणीतासनं ॥ वायव्यां द्वितीयमासनं ॥ ततो वामकरेण प्रणीताः संगृह्यदक्षिणकरणजलंप्रपूर्य भूमौवाय व्या |सनेनिधायालफ्योत्तरतोग्मेरासने स्थापनं ॥ बर्हिषाप्रदक्षिणमग्निं परिस्तीर्यवाईशानादिपूर्वा | यैस्त्रिभिस्त्रिभिर्दर्भैः परिस्तरणं ॥ तच्चप्रागुदगेयैः॥दक्षिणतः प्रागयैः॥ प्रत्यगुद्गयैः॥उत्त रतः प्रागयैः ॥ अर्थवत्पात्रासादनं ॥ पवित्रच्छेदनादर्भास्त्रयः ॥ पवित्रेद्वे ॥ प्रोक्षणीपात्रं ॥ For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार आज्यस्थाली॥चरुस्याली॥समार्गकुशा:पंच॥ उपयमनकुशा:सप्त॥ समिवस्तिवः भास्कर | नुवः॥ आज्यं॥ तंडुलाः॥पूर्णपात्र। दक्षिणावरोवा॥ पवित्रच्छेदनैः पवित्रकरण। इयोः पवित्रयोरुपरिपवित्रत्रयनिधाय॥इयोर्मूलेनौकुशीप्रदक्षिणीरूत्यत्रयाणांमूलाग्रएकीकृत्य अनामिकांगुष्ठेनद्वयोरगंछेदयेत्॥ द्वयोर्मूलंबीणिचोत्नरतःक्षिपेत्॥ प्रोक्षणीपात्रेप्रणीतोदकमासिच्यपात्रांतरेणचतुरिं॥वामकरेपवित्रायंदक्षिणे मूलंधृत्वामध्यत: पवित्राभ्यामुत्सयनंप्रोक्षणीपात्रजलस्येति ॥ प्रोक्षणीनांस ॥९॥ | व्यहस्तेकरणम्॥ दक्षिणहस्तमुत्तानंकत्यामध्यमानामिकांगुल्योःमध्यप। For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वभ्यिाभपामुद्दिगनं। प्रणीनोदकेनप्रोक्षणीनांप्रोक्षणं॥ प्रोक्षपयुदकेंनआज्यस्था ल्याः प्रोक्षणसमार्गकुशानांपोक्षणं॥उपयमनकुशानांपोक्षणं।समिधाप्रोक्षणं॥नुवस्या प्रोक्षणं॥आज्यस्यप्रोक्षण॥ तंडुलानांप्रोक्षणं॥पूर्णपात्रस्यप्रोक्षणं॥ प्रणीताम्योर्मध्ये संचरे प्रोक्षणीनिधानं॥ आज्यस्थाल्यामाज्यनिर्वापः॥सपवित्रकेचरुपात्रेषणीतोदकमा सिच्यक्षालिततंदुलपक्षेपः॥ब्रह्मणोदक्षिणनआज्याधिश्रयणं॥ आचार्यस्यचरोरधिया यणमाज्यस्योत्तरतः॥ज्वलितोल्मुकेनपर्यमिकरणं॥स्वस्यप्रतपनं॥ संमार्गकुशैः युवस्यसंमार्जनं॥प्रणीतोदकेनाफ्युक्षणं॥पुनःप्रतपनंदेशेनिधानं ॥ आज्योडासन । For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1190011 संस्कार चरोरुद्वासनं ॥ प्रत्युत्पवनवत् पवित्रेणाज्योत्सवनं ॥ अवेक्षणं ॥ अपद्रव्यनिरसनं ॥ प्रो | क्षण्याः प्रत्युत्सवनं ॥ उपयमन कुशाना दाय ॥ तिष्ठत्समिधोभ्याधाय ॥ प्रोक्षण्युदक शेषे णसपवित्रहस्तेनाग्रेः ईशानकोणा दारभ्यप्रदक्षिणवत्पर्युक्षणं ॥ पवित्रयोः प्रणीता | सुनिधानं ॥ दक्षिणं जान्वाच्य जुहोति ॥ तत्राधारावाज्यभागोच ब्रह्मान्वारब्धस्रुवेणजु हुयात् ॥ मृगीमुद्रयाधृतस्रुवेणाज्यमादायप्रजापतिंमनसाध्यात्वास्वाहाकारमुच्चैः इदं प्रजापतये उपांश नममेत्युच्चैरुच्चारयेत् ॥ अमेरुत्तरभागे ॐ प्रजापतये स्वाहा ॥ इदं ॥१००॥ प्रजापतये नमम ॥ अर्दक्षिणभागे ॥ ॐ इंद्रायस्वाहा ॥ इदमिन्द्राय नमम ॥ इत्या For Private and Personal Use Only भास्कर Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घारो॥ मध्येसमिइनमेवाज्यामागो॥ ॐ अमथेस्वाहा॥ इदममयेनमम॥ॐ सोमा यस्वाहा ॥ इदंसोमायनमम॥ ततोयजमानेनद्रव्यत्यागःकार्य: ॥यथाकालंप्रत्याहुनित्यागस्यकर्तुमशक्यत्वात्सर्वमेवहविर्जानंदेवताश्चमनसाध्यात्वाइदंयथादैवतमसनममेतिएवं रूपंत्यागमुच्चारयेयजमान:॥ तवच ॥ मंत्रणोंकारपूनेनस्वाहांतेनवि चक्षणः॥स्वाहावसानेजुहुयाध्यायन्वैमंत्रदेवतां॥१॥योनचिषिजुहोत्यमोव्यंगारिणिचमानवः॥मंदाभिरामयावीचदरिद्रश्चैवजायते॥२॥परिणामोवदानस्ययाजैश्चर्य मिपुष्टये॥ तस्मात्समि होतव्यंनासमिद्देकथंचन॥३॥ अर्क:पलाशरवादिरावपामार्गो For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार थपिप्पलः॥ श्रौदंबरशमीदू कुशाश्चसमिधाक्रमात् ॥४॥तिलाज्यंचरुपकंचहयि | भास्कर ॥१०॥ मुख्यंप्रकीर्तितमिनि ॥ इदंसंपादितंसमिच्चरुतिलाज्यादिहविर्द्रव्यंयायायक्ष्यमाणदेव। तात्तस्यैतस्यैदेवतायेनमम॥यथादैवतमस्त ॥ इतियजमानेनोच्चार कार्यः॥तबादो, गणानालेतिमंत्रेणगणेशायवराहुतिरेका॥ ॥तत आदित्यादिनवग्रहान्क्रमेण पूर्वोक्तार्कादिसमिचरुतिलाज्यद्रव्यैरष्टाष्टसंख्ययाहुत्या॥पूर्वोक्तयहहोमद्रव्येणअधि, प्रत्यधिदेवताश्चतुश्चतुःसंरन्ययाहुला॥ यस्ययहस्ययासमिसातस्याधिदेवतायाः प्रत्यधिदेवतायाश्चयोज्या॥विनायकादिदिक्पालांतंक्रतुसाद्गुण्यकतुसंरक्षकदेव । For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताः पलाशोदुंबरान्यतमसमिच्चरुतिलाज्य द्रव्येणद्विद्विसंख्यया जुहोति ॥ समिधासर लासत्वचाकनिष्ठिकाग्रवत्स्थूला द्वादशांगुलदीर्घायाया ॥ अत्रनिसृभिर्दूर्वाभिरेका |हुतिस्तथैवत्रिपत्रकुशैरेकाहुतिः ।। द्रवद्द्रव्यंस्रुवेणैव पाणिना कठिनंहविरिति ॥ प्रधा नेपायसंप्रोक्तं सघृतं चसशर्करं ॥ अष्टोत्तरशतं चैव जुह्यातिलसर्पिषा ॥ इतिऋतु शांतौ नारदसंहितायां ।। ततः सूर्यैदें द्राणी भुवनेश्वरीणांप्रीत्यर्थं तिलपायसाज्यद्रव्येण प्रत्येक मष्टोत्तरशतमष्टाविंशतिसंख्ययावाजुहुयात् ॥ ततः समस्तव्याहृतिभिस्ति || लाज्यद्रव्येणाष्टोत्तरशतमष्टाविंशतिसंख्ययावा जुहुयात् ॥ ॥ एवं होमंसमाप्या For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मेः स्थापितदेवतानांचोत्तरपूजनकार्य ॥ तत्रायंक्रमः॥ पूजा स्विष्टंनवाहुत्योबलिपू भास्कर ॥१२॥र्णाहुतिस्तथा ॥संस्त्रवादियिमोकांतं होमशेष समापनं ॥श्रेयःसंपाद्यदानंच अभिषेको विसर्जनमिति॥ ॥ अयपू. कृतस्यकर्मण: सांगतासिध्ययस्थापितदेवतानांम डामेश्चोतरपूजनंकरिष्ये॥ ॥ मृडामिस्त ॥ पूर्वप्रज्वलिनो मिर्हविर्द्रव्यबुभुजितः ॥ तृप्तोनिधूमनि लोमृडामि-परिकीर्तितइनिग्रहरलावल्या॥ॐ अमेनर्यफुपया राये अस्मान्विश्वानिदेवद्ययुनानिविद्वान् ॥खुयोध्यस्मन्जुहुराणमेनोभूयिष्टान्तेन || १०२॥ मउक्तिम्विधेम॥१॥ ॐ मृडामयेनमःगंधादिपंचोपचारैः संपूज्यस्थापितदेवताना ॥ For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुत्तरपूजनं ॐ विश्वानिदेवसयिनरिनिमंत्रण॥ ॐ भू. सूर्यादिस्थापितदेवताभ्योना म: गंधादिपंचोपचारेःसंपूज्य॥ अनयापूजयामृडामि स्थापितदेवनाश्वप्रीयंता॥ ॥ ततोहुतशेषहविर्द्रव्यंगृहित्वाब्रह्मान्दारव्या खिष्टकहोमकुर्यात् ॥ ॐ अमस्तिष्टकते, स्वाहा ॥ इदममेखिष्टकतेनमम॥ ॥ततोभूराद्यानवाहुतयः॥ ॐ भूः स्वाहा॥१॥ इदममयेनमम॥ ॐ भुवः स्वाहा॥२॥ इदंवायवेनमम॥ ॐ स्वः स्वाहा॥ ३॥ इदसू र्यायन० ॥ ॐ बन्नौंः अमेवरुणस्यविद्वान्देवस्यहेडो अबयासिसीष्टायजि टोचन्हेिं तमः शोशुंचानोविश्वाहेषार्ट सिप्रमुग्ध्यस्मत्स्वाहा॥ ४॥ इदममीवरु For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार गाभ्यां ॥ ॐ सत्वन्नौ अमेघमोभवानीनेदिष्टोऽ अस्या उषसोन्युष्टो॥अययनोच भास्कर ॥१०॥ रुण राणोहीहिमृडीक ट स हौन एधिस्वाहा॥५॥ इदममीवरुणायां ॐ अया वामेश्य ननिगस्तिपाश्वभन्यमित्वमयाः असि॥अयानोयज्ञबहास्ययानोधेहि भेषज - स्वाहा ॥ ६॥ इदममयअयसेन०॥ ॐ येतेशतंवरुणयेसहस्रंयज्ञियाः पाशावितता महानः॥भि अयसवितातविष्णुर्विश्वेमुञ्चतुमरुनःसर्कास्वाहा॥७॥ इदंवरुणा यसायचरिष्णयेविया बोदेवयोमरु यः स्वभ्यश्चनमम॥ ॐ उद्दुत्तमंधरुणपाशमस्खुद ॥१३॥ बांधबंधिमध्यम श्रथाय॥अयोधचमादित्यवतेतवानीगसो अदितयेस्यामस्वाहा॥ For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | इदंवरुणायादित्यायादिनयेचन ॥ ॐ प्रजापतयेस्वाहा ॥९॥ इदंप्रजापतये नमम॥ ॥ इति नवाहुतयः॥ तनोबलिदानं॥ ॥ तच्चैवं॥ अस्यायतनस्यसमंतादिक्षुपिदिक्षुचा दशदिक्पालानामाषभक्तबलयोदेयाः॥ ॥अयपू. कृतस्यकर्मण:सांगतासिध्यर्थंदि पालपूर्वकं आदित्यादियहमंडलादिस्थापितदेवताभ्योबलिदानंकरिष्ये॥ ॥ॐवाता रमिंद्र० ॥१॥ प्राच्यादिशिइंद्रसागंसपरिवारंसायुधंसशक्तिकंएभिर्गंधायुपचारैस्वामहंघ जयामि॥ इंद्रायसांगायसपरिवारायसायुधायसशक्तिकायइमंसदीपमाषमक्तबलिंस मर्पयामि॥ भोइंद्रदिशंरक्षवलिंभक्षममसकुटुंबस्यायुदयंकुरु॥आयुःकर्ताक्षेमकर्ताश For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ॥१०४॥ संस्कार तिकर्नापुष्टिकर्तानुष्टिकर्तानिर्विकर्तावरदोतव॥अनेनबलिदानेनइंद्रःप्रीयतां॥ ॥एवं भास्कर || सर्वत्रोहः॥ ॐ त्वन्नौ अमेतवदेव ॥२॥ आमेय्यादिशिअमिंसांग:एमिर्गंधा अग्नयेसा |गायसप० भो अमेदिशं. आयुःकर्ता अनेनबलि अभिःप्रीयतां॥ ॐ घुमायत्वांगि. दक्षिणस्यादिशियमसांगं एभिर्गंधा यमायसां भोयमदिर्श आयुःकर्ता अनेनब |लिदा० यमः पीयतां॥ ॐ असुन्चन्तुमर्यजमानमिच्छ ॥४॥नैर्ऋत्यांदिशिनिनिसा ए भिर्गधा निर्ऋतयेसा ॥ मोनिनेदि० अनेनबलि निक्रनिःप्री० ॥ ॐ नत्वाचामि. |॥५॥पश्चिमायांदिशिवरुणंसा एभिर्गंधा. वरुणाय सां. भोयरुणदिशं. आयुःकीय/ For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेनबलि वरुणःप्री॥ ॐ आनौनियु०॥ ६॥ वायव्यादिशिवायुंसां एभिर्गंधा. यायचे सां॰ भोवायोदिशं ॥ अनेनबलिदा वायःप्री० ॥ ॐ व्यर्ट सौमव ॥७॥उदीच्यादिशिसोमंसा एमिर्गंधा० सोमायसां मोसोमदिशं अनेनबलि सोमः प्री०॥ॐन मीशानं० ॥८॥ ईशान्यांदिशिईश्वरंसां एमिर्गंधा ईश्वरायसा भोईश्वरदिश०॥अनेनबलिदानेनईश्वरःप्री॥पूर्वेशानयोर्मध्येऊायां दिशिब्रह्माणं. ॐ अस्मेरुद्रा०॥॥ १९॥ पूर्वेशानयोर्मध्येऊळयांदिशिब्रह्माणसांगं एभिर्गधा ब्रह्मणेसा मोब्रह्मन्दि शं. आयुःक• अनेनबलि. ब्रह्मापी० ॥ ॐ स्योनायि० ॥१०॥निक्रतिपत्रिमयो For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मध्येअधःस्थायादिशिअनंतसांग• एभिर्गंधा. अनंतायसा भोअनंतदिशं भास्कर ॥१५॥ आयुःक अनेनब अनंतःप्री०॥ ॥ततआवाहनमंत्रेणगणेशदुर्गाक्षेत्रपालबलिदान। ॥ ततोयहवेदीसमीपेग्रहाणांबलिः॥ ॐ आकृष्णेन०॥१॥ सूर्यायसांगायसपरिवारायसा युधायसशक्तिकायईश्चरामिरूपाधिपत्यधिदेवतासहितायइमंसदीपमाषनक्तवलिंस।। भोसूर्यमंबलिंग्रहाणममसकुटुंबस्याफ्युदयंकुरु॥आयुःकर्ताक्षेमकर्ताशांतिकर्ता पुष्टिकर्तातुष्टिकर्तानिर्विनकर्तावरदोभवअनेनबलिदानेनसूर्यःप्री० ॥१॥ ॐ इमन्दे ॥१५॥ ॥ वा०॥२॥सोमायसां उमाबुरूपाधिप्रत्यधिदेवतास. इमं ॥ भोसोमइमंब०॥ॐ For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अग्निर्मूर्द्धा• ॥ ३ ॥ भौमायसां० स्कंदभूमिरूपाधिप्रत्यधिदेवतास• भोभौमइमंबलिंग्ट || ॐ उद्बुध्यस्वा० ॥ ४ ॥ बुधायसांगाय० नारायणविष्णुरुपाधिप्रत्यधिदेवतास• इममा षभ० भोबुधइमं अनेनबलि • बुधः प्री० ॥ ॐ बृहस्पते ॥५ ॥ बृहस्पतये सां. ब्रह्मेद्ररू पाधिप्रत्यधिदेवता सहिताय० ॥ भोबृहस्पते इमं• अनेनवलिदा० बृहस्पतिः प्री० ॥ ॐ | अनात्परिस्रु० ॥६॥ शुक्रायसां• इंद्राणीरूपाधिप्रत्यधिदेव• ॥ भोशक इमंबलिं० | अनेनबलिदा० शुक्रः प्रीय० ॥ ॐ शन्नो॑ दे॒वी० ॥ ७ ॥ शनैश्वरायसां० यमप्रजापतिरू पाधिप्रत्यधिदे• भोशनैश्वर इमंब. अनेनब शनैश्वरः प्री० ॥ ॐ कयानश्वि• ॥ ८ ॥ For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ||१०६ ! www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राहवेसां• कालसर्परूपाधिप्रत्यधिदे• भोरा० इमंबलिं• अने०राहुः प्री० ॥ ॐ केतुंरुण्य भास्कर | ॥९॥ केनवेसां• चित्रगुप्तब्रह्म रूपाधिप्रत्यधिदे० भोक • इमंबलिं• अने. केतुःश्री ॥ ततः क्रतुमा गुण्यदेवताफ्योबलिः ॥ ॐ गुणार्ना वा ||१|| गणपतये सां० सशक्तिकायइ० भोग • इमंय. आयुः अनेन० ॥ ॐ अम्बेअंबके० ॥ २॥ दुर्गायैसां• सशक्ति का० भोदुर्गेइ० आ युःकर्त्री • अनेनव० ॥ ॐ आनन• ॥ ३ ॥ वायवेसां• इमं• भो वायो इमं ब० ॥ ॐ घृतं न० ॥ ४ ॥ आकाशायसां० मोआकाराइ• ॥ ॐ खावांक शा० ॥ ५ ॥ अश्विभ्यांसां० इ मंस. भोअश्विनौ० अनेन ब० ॥ ॐ वास्तोष्पते ॥ १ ॥ वास्तोष्प॰ सां० इमंस० भोवास्तो० इ For Private and Personal Use Only ॥१०६ ॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंब० अनेन ॥ ॐ नहिस्पा० ॥ २ ॥ क्षेत्राधिपतये सां• इमंस • भोक्षेत्राधिपते मंब लिं० ॥ ॥ अथवादिक्पालेभ्यएकतंत्रेणैकमेवबलिंदद्यात् ॥ ॐ प्राच्यैदिशेस्वाहाच चैदिशेस्वाहा॒ दक्षिण दिशेस्वाहा॒ वच्चै दिशेस्वाहा॑म॒नीच्यै॑दि॒शेस्वार्बीच्यैद्विशेस्वाहो दीच्येद्विशेस्वाहार्थाच्यैदिशेस्वाहोर्च्चयेद्विशेस्वाहाद्या॑च्चि॑द्वशेस्वाहार्थींच्यैदिशेस्वाहाच च्यैद्विशेस्वाहा ॥ १ ॥ इंद्रादिदशदिक्पालेभ्य इमंसदीपमाषभक्तबलिंस • भोभोइंद्रादि दशदिक्पालाःदिशंरक्षतबलिं• आयुः कर्त्तारः क्षे० अनेनबलि• इंद्रादिदशदिक्पालाः प्री. एवं सर्वेभ्योय हे फ्य एक तंत्रेणैकमेवबलिंदद्यात् ॥ ॐ यही ऊर्जा • तमम् ॥ १॥ आ For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार दित्यादिनवग्रहदेवताभ्यः अधिप्रत्यधिदेवताविनायकादिवास्तोष्यनिक्षेत्रपालदेवतासहिता ॥१०७॥ भ्यइमंसदीपमाष भक्तबलिं • भोभो आदिव्य० देवताः अधिप्रत्यधिदे० सहिताः इमंब. आयुः कमी क्षेम • अनेनब• आदित्यादिनवग्रहदेव ता अधिप्रत्यधिदेवताविनायकादिवास्तोष्प तिक्षेत्रपाल दे० स ० प्रीयंतां ॥ एवंमा तृणामेकमेवबलिंदद्यात् ॥ ॐ सम॑रव्येदे॒व्या० ॥ १ ॥गैौ |र्यादिमातृभ्यइमंसदीपमाषभक्तब• भोभोगोयीदिमा तर इमंबलिंगृह्णीत आयुः कः० अनेन बलि• गौर्यादिमातरः प्रीयंतां । प्रधानदेवताभ्यएक तंत्रेणैकमेवबलिंदद्यात् ॥ ॐ • आकृष्णे ||१|| बानारमिंद्रं ॥ २ ॥ अदि॑त्यै॒रा० ॥ ३॥ श्रीश्व॑तेल ॥४॥ सूर्यइंद्राणी भुवने ७ For Private and Personal Use Only फारकर 1190011 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||श्वरीदेवताभ्यइमंसदीपमापभक्त बलिंस• ॥ भोभो सूर्य इंद्रइंद्राणी भुवनेश्वरीदेवता मंबलिं || गृ० ममसकुटुं० आयुः कः क्षेम• अनेन बलि • सूर्य इंद्रइंद्राणी भुवनेश्वरीदे• प्रीयंनां ॥ अथक्षेत्रपालमहाबलिः ॥ एकस्मिन्वंशपाचेकुशानास्तीर्य तदुपरिआहारचतुर्गुणं द्विगुणंवामाषभक्तदध्योदनं जलपाञ्चनिधायहरिद्रा कुंकुमादिपताकायुतंकृत्वा ॥ अद्यपू० सक लारिष्टशांतिपूर्वकं प्रारिप्सितस्यकर्मणः सांगतासिध्यर्थं क्षेत्रपाल पूजनंबलिदानंचक |रिष्ये ॥ ॐ हिस्पा ॥ १ ॥ इतिमंत्रेणक्षेत्रपालाय नमः षोडशोपचारैः संपूज्यमार्थ येत्॥ ॥ ॐ नमोक्षेत्रपालस्वंभूतप्रेतगणैः सह ॥ पूजांबलिंगृहाणेमंसौम्यो भवतु For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार सर्वदा॥ आयुरारोग्यमे देहिनिर्विमंकुरुसर्वदा॥१॥ ॐ नमोमगवनक्षेत्रपालचित्र भास्कर ॥१८॥ तुरंगवाहनसर्वभूतप्रेतपिशाचशाकिनीडाकिनीवेनालादिपरिवृतदध्योदनपियसकलश तिसहितइमापूजागृहाणअनयापूजयाक्षेत्रपाल:प्रीयतां॥ ततोबलिदानं॥ ॥क्षे त्रपालायसांगायभूतप्रेतपिशाचशाकिनीडाकिनीवेतालादिपरिवारयुतायसायुधायस शक्तिकायसवाहनायइमंसदीपमाषाक्तवलिंसमर्पयामि॥ भोभोक्षेत्रपालसर्वतोदिशंरक्षब लिंगक्षममसकुटुंबस्याप्युदयंकुरु ॥ आयुःकर्ताक्षेमकर्ताशांतिकर्तापुष्टिकर्तातुष्टिकर्ता ||१०८॥ निर्विनकर्तावरदोभव॥ अनेनबलिदानेनक्षेत्रपाल:प्रीयनां॥ अनवेक्षमाणेनदुर्ब्राह्मणेन For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलिंनीत्वाचतुष्पथेनिक्षेपयेत्॥ यस्यवेदश्ववेदीचविछियेतेत्रिपूरुषं॥सवैद ब्राह्मणोज्ञेयः सर्वकर्मसनिंदितइतिस्मृतो॥ ॥ततोयजमानस्तस्यपृष्टतो हारपर्यंतंग लाजलंक्षिपेटिकारेतिमंत्रेण॥ ॐ हिङ्कारायस्वाहाहितायस्वाहाकदन्तेस्वाहविक्र न्दायुस्वाहापोयतेस्वाहापोथायस्वाहागन्धायस्वाहाघातायस्वाहानिर्विष्टायुस्खाहोप विष्टायखाहासन्दितायुस्वाहावलगतेस्वाहासीनायस्वाहाशयानायस्वाहास्वपतेस्वाहा जायतेस्वाहाकूर्जस्वाहापर्बुदायलाहाविजामाणायस्वाहाविवृत्तायस्वाहासर्द होनायुवाहोपस्थितायस्वाहायनायस्वाहाप्राय॑णायस्वाही ॥१॥ यजमान:पाणिपादं For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार || प्रक्षाल्याचम्यपूर्णाहुतिहोमकुर्यात्॥ ॥अद्यपू० रुतस्यकर्मणःसांगतासिध्ययन ||मास्कर |मो रासमन्वितंपूर्णाहनिहोमंकरिष्ये॥ ततः पाचांतरेलुयेणचतुर्ग्रहीतमाज्यद्वादशयारंग हीबापाचोपरिसमिधंधृतावस्यफलतांबूलचंदनमाल्यादिभिरलंकृत्यगृहीत्वापासुगा परिनिधायधृत्योभयपाणियांयजमाननिष्ठेत्॥तत्रमंत्राः॥ ॥ॐसमुद्रादुर्मिमधु मा ३७ उदारदुपाई शुनासममृतत्वमान॥धृतस्य॒नामगुह्यन्यदस्तिजिहादेवानी मुमृतस्यनाभिः ॥१॥व्यन्नामप्रबेवामाघृतस्यास्मिन्युज्ञेधारयामानमौभिः॥उप |॥१९॥ |ब्रह्माश्रुणवत्स॒स्यमानञ्चतः शृङ्गेचमीगौर एतत्॥२॥ चत्वारिशृङ्गर्यो अस्य || For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S ડ पादा॒द्देशी॒र्षेसप्तहस्ता॑सो अ॒स्य ॥ त्रिधा॒व॒द्धोवृ॑ष॒भोरो॑रवीतिमु॒होदे॒वोमर्त्या २ आवि॑िवेश ॥ २ ॥ त्रिधहितम्प॒णिभि॑िर्गुह्यमानङ विदे॒वासोघृतमन्वविन्दन् ॥ इन्द्रः एकर्ट-सू र्येऽएक॑ञ्चजानने॒नादेक॑र्ट· स्व॒धया॒नव॑तक्षु ॥ ४ ॥ ए॒ना अ॑न्ति॒ द्यत्समुद्राच्छन जरि॒पुणा॒नाव॒चक्षै॥ घृ॒तस्य॒धारो॑ अ॒भिवा॑कशीमिहिर॒ण्ययो॑ वेत॒सोमध्य॑ऽआसाम्॥ ॥५॥ स॒म्यक्प्र॑वन्तिस॒रितो॒नध॑ना॒ऽअ॒न्तर्हृदामन॑सापूयमा॑ना ॥ एतेऽअर्षन्त्यूर्म्मर्योघृता | स्य॑मृ॒गा इ॑वक्षिप॒णोरीष॑माणा ॥ ६ ॥ सिन्धरिव प्राध्व॒नेन॑घ॒नासो॒ वात॑ष्प्रमिय्यतय निजिव्हा घृ॒तस्य॒ धारा॑ अरु॒षो नवा॒जीकाष्ठ॑भि॒न्दन्नूमि॑भिः॒ह॒पिन्व॑मानः ॥७॥ अ॒भि S For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार प्रवन्तुसमैनेजुयोषा कल्याण्यः स्मर्यमानासोऽअमिम्॥घृतस्यधारी सुमि|नसं भास्कर ॥११०॥ ततार्जुाणोहीतिजातवेदाः ॥ ८॥ कन्याइचबहुतुमेतवा उ भन्मजाना अति चाकशीमि ॥ यसोमः सूयतेययज्ञोघृतस्यधारी : अमितसवन्त॥९॥ अभ्यर्षन। सुष्टुतिङ्गध्यमानिमुस्मासुभद्राऽदविणानिधत्त॥ इमञ्यजन्नयतदेवतानोघृतस्यधा रामधुमत्सवन्ते ॥१०॥धामन्तेष्विन्धभुवनमधिश्रितमन्तः समुद्रहालरापि॥अपाम केसमिथेव आतुस्तमस्याममधुमन्नन्त कृर्मिम्॥११॥ पुनस्वादित्यारुद्राय |॥११०॥ संव:सर्मिन्धत्तम्पुर्नर्ब्रह्माणोबसुनीथयज्ञै ॥ तेनुत्वन्तन्वघर्धयस्वसत्या संन्तुय । For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जमानस्यकामा॥१२॥ सुप्तते अग्नेसमिधे सप्तजिव्हा सप्तऽकर्षय सुप्तधामप्रि || याणि॥ सुप्तहोवा: सप्तधावायजन्तिसुप्तयोनीराणस्वप्नेनुस्वाहाँ ॥१३॥पूर्णादंधि |परीपत ॥१४॥ अथपानरहुतेवाहुतेवायदरथा:कामयेतसोस्या अनिरसितायैकुंश्येदर्यो| पहन्तिपूर्णादविपरापतसपूर्णापुनरांपत्त॥बस्नेवविक्रीणावहाऽ इषमूर्य शतको स्वाहा॥१॥ इदममयेवैश्वानरायवसरुद्रादित्येयःशनकनवेसप्तवतेअमयेजय श्शनमम॥ ॥ततोचसो रांजुहुयात् ॥ तत्रमंत्राः॥ ॐ सुप्ततै अमेस॒मिधर ॥१॥ ज्योतिश्रचिवज्योनिश्चमृत्यज्यौनिवज्योतिमात्र॥ शुक्रवक्तुपाश्चात्य- यह ॥ For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ १११ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२॥ दृद्धं न्या॒दृङ्गा॑स॒द्द्इ॒मति॑सङ्घ ॥ मि॒त॑श्व॒सम्मि॑तश्व॒सभि॑रा ॥ ३ ॥ कृ॒तव॑स॒त्य भास्कर वरुणेश्व ॥ धूर्त्ताच॑विधूतच॑धार॒र्यः ॥ ४ ॥ कृ॒तूजिच्च॑सत्य॒जिन॑सेन॒जि | सुषेणैश्च ॥ अति॑मित्रश्र्वदूरेऽअ॑मित्रश्वगृ॒ण? ॥ ५ ॥ दृक्ष॑सऽ एता॒दृक्षस कुषु सुरक्षा प्रतिसदृक्षासा॒ एत॑न ॥ मि॒तास॑श्च॒सम्मि॑तासीनो अ॒द्यसभि॑रसोमरु तोय॒ज्ञेऽ अ॒स्मिन् ॥ ६ ॥ स्वत॑श्वप्रधा॒सीच॑सान्तप॒नव॑गृहमे॒धीच॑ ॥ क्रीडीच॑या॒की चौव्येषि ॥ ७ ॥ इन्द्र॒न्दे॑वी॒र्घशो॑म॒रुतो नु॑वर्त्मानोभवृन्यद्येन्द्रन्द॑वी॒र्धशम॒रुतो ुवर्त्मानोत॥१११॥ वन् ॥ एवमि॒मञ्ज॑मान॒न्दैवी॑वृषिशीमानुषीश्वानु॑वर्त्मानोभवन्तु ॥ ८ ॥ इमस्त For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमूनस्वन्तन्धयापाम्पपीनममेसरिरस्यमध्ये। उसञ्जषस्थमधुमन्तमर्चन्समुद्रियट सद नमाविशस्व॥९॥धृतम्मिमिक्षेघृतमस्य० ॥१०॥ ब्राह्मणं॥ अथानोबुसोर्धारानुहो ति॥ अत्रैषसवोमिः संस्कृतः सुरएपोत्रसस्तुतस्मैदेवा एतान्धाराम्पाटण्हॅलयनमप्री|णस्नयुदे तुस्मैवसवः एतान्धाराम्पारण्हस्नुस्मादेनाम्सोहरेत्याचक्षतेतथैवास्मा म यमेतान्धारागृहातितुथैनंप्रीणानि॥१॥युद्देवैताम्सोर्धारान्नुहोनि॥अभिषेक ए यास्येषुः एतद्दा एनन्देवाः सर्वकस्म संस्कृत्याथैनमेतैः कामेरभिपिचत्येन्यावसोही । रयातर्थनमयमेतसक्रुस्मृटु संस्कृत्याथेनमेनैः कामरतिषिन्चत्येत्यायसो रया । For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार|| || ज्येनपच्चग्गृहीतेना॒दुम्बर्याचुचात स्योक्तो बन्धुः ॥ २ ॥ वैश्वानरर्ट् हुत्वा ॥ ॥११२॥ रोवैवैश्वानर॒भी॒ष्वा अ॒न्नमद्यने॒योशीर्षतो अभिषिष्ट्य॒मानोभि॒षिष्ट्य॒तेमारुताई $ लाभाणावैमारुताः प्राणैरुवा अन्नमद्यते थोप्राणेषुवा अभिषिच्यमानोभषिच्यते॥२॥ ना अरण्ये नृच्योवाग्वा ॥ अरण्येनूच्योवा॒चावा अ॒न्न॒मद्यते॒थो वाचावा॒ऽअभिषिन्व्य मानोभि॒षिच्युते देतत्सर्वम्व॒सुसुर्वे ह्येतेकामा॒ः सैषा॒व॒क्रम॒यीधा॒राय्याक्षीरस्यवासर्पषो | वैव॒मारम्भायैवेय॒मा ज्याहुति॒र्ह्रय॑ततद्युदेषा वसुमुयीधारा तस्मा देनाम्बूसोद्धरेत्याच ॥ ११२ ॥ | ते ॥ ४ ॥ स आहाऽइद्न्यमः इद् ज्चमः इत्यनेनचत्वाप्रीणाम्यने नचाने नचत्वाभिषि S For Private and Personal Use Only तारकर Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा॒भ्य॑ने॒नवे॒त्येतद्द्रोऽइदा॒श्चमेदे॒हीद॒च्चमऽइ॒तिसा॒यु॑र्दे॒वैषाधा॒रा॑भि॒म्प्राप्नुयाद्यैतद्य॒क्षुः प्रतिपर्यंत ॥ ५ ॥ एतद्वाः ए नन्देवाः ॥ एतन्नानेनप्रीत्येतैः कामैरभिषि॒च्चत्ये त॒या व॒मोय।। थैनमेतान्कामानया चन्ततेभ्य: इष्टः प्रीतोभि॒षिक्तः एतान्कामान्प्र॒यच्छन्तुयृचैनमतदेतन्ना॒ न्येनप्रीत्येतैः कामैरभिषिच्येत्यावृसोरयाथैनमेतान्कामान्याचक्षतेतुस्मा इष्टः मी | तोभि॒षिक्त एतान्कामान्प्र॒यतिद्वैौक्का॒मसु॑ंयुनक्त॑य॒ व्यवच्छेदाथय्या॒व्योमाकसौमयजु |न्देव॒न्यज्ञेनकल्पतामि॒ति॥६॥ एतद्दैदेवा॒ऽ अब्रुवन् ॥ क्रेनेमान्कामान्प्रतिगृहीष्याम त्यात्मनेनैवेत्यब्रुवन्यज्ञोवैदेवानामात्मज्ञ उ एवय॒जमानस्य सयाहयज्ञेनक For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तामित्या सुनामे कल्पतामि॒त्ये॑वैत॒दाह ॥ ७॥ द्वादश॒सुकल्पयति ॥ द्वादशमासाः सँवत्सरःसँ भास्कर ||११३॥ | वत्स॒रोग्निर्ऋवानमिवत्यस्यमा॒त्राता॒व॑त्रै॒वैनमेतद्भेनप्रीणात्यृ॒थो ता॒वतैवैनमेतद्न्नेनाभिः॒ विच्चतिचतुर्द्दश॒सुकल्पयत्यष्टासुकल्पयतिदासुकल्पयनित्रयोदश॒सुकल्पयति ॥ ८॥ थार्थेन्द्राणिजुहोति ॥ सर्वमेतद्यदर्थेन्द्राणिसुर्वणैवैनमेतह्मीणात्य्योसूर्ये॑ण॒वैनमेतदतिषि श्चति ॥९॥ अथगृहाजुहोति यज्ञवैद्य हा यज्ञेनैवैनमेतद्न्तेनप्रीणात्पृथोयज्ञेनैवैनमेत द्न्नेनाभि॒षि॑भ्वति ॥ १० ॥ अ॒ना॒न्यज्ञरुतुन्नुहोति ।। अ॒श्वमेधर्मश्वमः इ॒त्येनै॒रे॒वैनमे ॥ ११३ ॥ नुद्यज्ञ रुतुभिः मीणान्यथा एतैरे॒वैनम॑नु॒द्यज्ञरूतुभिर॑भि॒षिञ्चति ।। ११ ।। अथायु॒षस् For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |मान्जुहोति॥ सहेषयज उवाचनमनायायैविभेमीनिकातेनमते त्यतितएयमापरिस्त णीयुरितिनुस्मादेतदमिमभितःपरिस्तृणन्नितृष्णायावैविप्रेमीतिकातेतुप्तिरितिब्राह्म णस्यैवतृप्तिमनुतृप्येयमितितस्मात्सः स्थियज्ञेब्राह्मणतर्पयितवैव्रयायतमेवैतनप्प यति॥१२॥ यत्कर्मणात्य रिचन्यान्यूनमिहाकरम् ॥ अभिर्ट स्विष्टुडिवान्सिष्टर्ट सु हुतुंकरोतुस्वाहा ॥१३॥ ॥ तस्यायुषकरणं॥ अहामेघांयशप्रज्ञापियोपुष्टिंत्रियंबल।। नेजआयुष्यमारोग्यं देहिमेहव्यवाहन॥१॥ॐव्यायुषन्जमदग्ने कश्यपस्पत्र्यायुषम्॥य देवेषुत्र्यायुषन्तन्नौ अस्तुत्र्यायुषम् ॥ भस्मनाललाटेग्रीवायांदक्षिणेर्ट सेहदिच यायुपमि For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार निपनिमंत्रम ॥ततःसंस्मयप्राशनं॥पवित्राप्यांमार्जनं॥ अमोपवित्रप्रतिपनिः॥ ब्रह्म भास्कर ॥११॥णेपूर्णपात्रदानप्रणीतोदकेन॥ तस्यकर्मण: सांगनासिध्यर्थब्रह्मन्इदंपूर्णपात्रंसद |क्षिणाकंतुभ्यमहंसंप्रददे॥प्रतिगृह्यनारतियजमानोब्रूयान्॥देवम्यवेनिपनियोहानि॥ प्रणीताविमोक:॥आप:शिवेतिविमीकोदकं यजमानःस्वमूधनिमभिषिचति॥ ॐ आप: |शिवाः शिवतमाःशान्ताःशान्तनमास्तानेकण्वन्तुमेषज१॥ ॥ततः श्रेयः संपादनात ||आचार्यादयोपरणक्रमेणस्वस्खंश्रेयोदानंकुर्युः॥ ॥ अयेत्यादि रुतस्यसय हमस्य || ११४॥ रजोदर्शनशांत्यारण्यस्यकर्मण: यजमानायश्रेयोदानंकरिष्ये॥ तबादीवचःप्रतिवचन।। For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवाआप संतु॥संतशिया आपः॥सौमनस्यमस्क॥अस्तसोमनस्य ॥ अक्षतंचारिष्टंचा, स्त॥ अस्वक्षतमरिष्टंच॥ यजमानहस्तेगंधादिदान।।गंधा:पांतुसौमंगल्यंचास्त ॥अक्षा ताःपातुआयुष्यमस्त।पुष्पाणियांतुसोश्रियमस्त॥ यत्सापंरोगंभकामंअकल्याणंतरे प्रतिहतमस्त॥ यच्छ्रेयस्लदस्तु॥ भवन्नियोगेनमयाअस्मिन्नारदोक्तसग्रहमखरजोदर्शी निशांत्यारव्येकर्मणियत्कृतंआचार्यसंतदुत्पन्नं श्रेयः तत्समुनासाक्षतेनसजलेनपूगीफ लेनतुभ्यमहसंप्रददे॥ पतिगृह्यनोप्रतिगृहामि ॥तेनश्रेयसालंयोवान्भव॥ भवामी नितेन वाच्यं ॥ एवमेवब्रह्मादयोऋविजोजापकादयश्च॥ यहाब्रह्मादयोऋविजोजापा। For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॥११५॥ संस्कार काश्चआचार्यद्वारा श्रेयोदानंकुर्युः॥ तद्यथा॥ भवन्नियोगेनमयाअस्मिन्सयहमरवरजो भास्कर दर्शनशोत्याख्येकर्मणियत्कृतंआचार्यत्वं तथाचएभिर्ब्राह्मणेः सहयरूतंब्रह्मलंगाणपत्यं सादस्यं तयाचयः रुतोहोमः यः कृतोजप: आचार्यत्वात्ब्रह्मसात् गाणपत्यान्सा दस्यात् होमात्जपात्यदुःसन्नश्रेयःनत् अमुनासाक्षतेनसजलेनपूगीफलेनतु यमहसंप्रददे॥ तेनश्रेयसात्वंयोवाभाव॥ भवामीतितेनवाच्च॥ ॥नतआचार्यादी नांगंधवस्त्रालंकारादिभिर्यथाविभपूजनकार्यदानानिच॥स्वर्गगोभूतिलान्दद्यात्सर्व |॥१५॥ |दोषापनुत्तयेइति॥ ॥तवस्वर्णदानमंत्र॥ हिरण्यगर्भसंभूतंसौवर्णपीततैजसं॥ तस्यदाने | For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदेवेशसर्वदोषान्निवारय॥॥ इदंयथाशक्तिस्वर्णवातन्निध अमुकशर्म नममेति। ॥॥ गोदानमंत्रः॥ यज्ञसाधनभूनायाविश्वस्याघोधनाशिनी।विश्वरूपधरादेवः प्रीयनामनयागया। इमांगावागोनिष्क्रयीभूतरजतमुद्राद्रव्यरजोदर्शनशांतिसांगतासिध्यय प्राचार्यायतुभ्यमहसंप्रददे॥नममेति॥ ॥भूमिदानमंत्रः॥सर्वभूताश्रयामिरहे णसमुत्धृता ॥ अनंतसस्यफलदाअतः शांतिप्रयञ्चमे॥इदंभूमिदानंबातन्नियीभूतयया शक्तिरजतमुद्राद्रव्यरजोद ध्यर्थंअमुकशर्मणेब्रा संप्रददे॥नममेनि॥ तिलपात्र दानमंत्रः॥तिलाःकाश्यपसभूतास्तिला पापहराःस्मृताः॥ तिलपात्रप्रदानेनसर्वदोषोविनश्या । For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तु॥ इदंतिलपात्रंवातन्निक अमुक नममेति ॥ ॥ततोहेमकदलीदानातम भास्कर ॥१६ ॥सपत्रेसागेदेविरंभास्करवल्लो॥रक्षमारजसोदोषादृष्टस्यास्यविगर्हितात्॥१०॥ दानेनानेनमेदेवः सविताविश्वतोमुरवः॥पीतोप्तवतुमेसद्योदोपहरतुदुष्करं॥२॥ अनेनन कदलीदानेनश्रीसूर्य:प्रीयतां॥ ॥अथमूर्तिदानं॥ देवदेवजगन्नाथजगतांकारणा व्यय॥ मनोहरनमस्तस्य भास्करप्रीयतामिति ॥ इमाः सूर्यादिचतस्रोमूर्ती सकलशाः सवस्त्रा आचार्याय तुभ्यमहसंप्रददे॥ इदंग्रहमंडलंआचार्यायतुभ्यमहंसंप्रददे॥ ततोग्रह | | कलशदेवताकलशानामुदकमेकस्मिन्पात्रेएकीकृत्यदूर्वापंचपल्लवैरुदङ्मुख आचार्यनिष्ट For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नचलारोगविजश्वसपत्नीकंयजमानप्राशयमुपविष्टमभिषिंचेयुः ॥ नवमंत्राः॥ ॐ आपोहिष्टा ॥१॥ यो शिव ॥२॥ तस्माऽअरं ॥३॥आर्पोऽअस्मान्मातरः शुन्धयन्तु घृते नोवृतषःपुनन्तु॥विश्व-हिरिप्रम्प्रवर्हन्तुदेवीरुदिदा यह शुचिरापूत एमि॥१॥ इदमापुःप्रबहनाबूद्यन्त्रम धन्॥यञ्चाभिदुद्रोहान्तुन्यर्चशेपे अभीरुणम्।।आ पौमातस्मादेनस पर्वमाननमुच्चतु॥५॥स्तोकानामिन्दुम्प्रति॒भूर इन्द्रौपायमानो मस्तुग़षाट्॥घृतप्रषामनामोदमाना स्वाहादेवा अमृतीमादयन्नाम्॥ ६॥माया, विन्द्रोस उपन हस्तुतरसंघमादस्तुशूरः ॥ वावृधानस्तविषीर्यस्यपूर्वी?नक्षत्र For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मभिभूतिपुष्यात्॥७॥ आन इन्द्रौदूरादान आसादमिष्टिरुदयसेवामदुम ॥ ओ- मास्कर ॥११॥ |जिष्टेभिर्नृपतिर्वज्जबाहुः सङ्गेसमत्सुतुचर्णिः पृतन्यून॥८॥ आनु: इन्द्रोहरिभिर्याल छार्चाचीनोबसेराधसेचा।तिष्ठानिवज्जीमुधवाचिरप्सीमन्यज्ञमनोचार्जसानी॥९॥ वातारमिन्द्र० ॥१०॥ इमम्मैवरुणश्रुधीहवैमुद्यामृडय॥ खामवस्युराके ॥१९॥ न त्यायामि० ॥१२॥खन्नोऽअमे०॥१३॥ सत्वन्नो अग्ने०॥१४॥ उर्दुतमम्हरुण ॥१५॥ वरुणस्यो नम्भ ॥१६॥ मातरमिम्प्रातरिन्द्र हवामहेातर्मित्रावरुणापातभि|११|| न॥प्रातर्भगम्यूषणम्ब्रह्मणस्पतिम्पातःसोममुतद्रर्द ईवेम॥१७॥ भगप्रणेतर्फ For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||गसत्यराधोपमान्धियमुदाददैन्नः ॥ भगप्रोजनयूगोभिरश्वैर्षगप्रतिर्नुवन्तै स्यामा ॥१८॥ ममुद्रायाघातायस्वाहासरितायंबाचातायुस्खाहीं॥ अनाधृष्यायाबातीयस्वाहा। प्रतिधृष्याय॑त्या॒वातायखाही॥ अवस्यवाद्यातीयवाही शिमिदायबाचातायुस्खाही॥१९॥ आप्यायस्व ॥२०॥पञ्चनय सरस्वतीमर्पियन्तिसत्रौतस ॥सरस्वतीतुपन्चधासोदेशे वत्सरित्॥२१॥ पुनर्तुमादेवजना ॥ २२ ॥परिणपुनीहिमाशुक्रेणदेवदीयंत्॥ अमेकाकतुर ॥ २३॥ व पवित्रमर्चिष्यमेचिननमन्तरा॥ ब्रह्मते पुनातुमा॥ ॥२४॥ पर्वमानः सो अयन पवित्रंणविचर्षणिः ॥ य पोतासर्पुनातुमा।।२५॥ For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार उभाश्यान्देवसविनः पवित्रंणसवेनेच॥ मापुंनीहिदिश्वनः ॥२६॥ वैश्वदेवी'नुनीदे भास्कर ११ व्यागायस्यामिमाबक्यस्तन्वोचीतपृष्टाः ॥ तयामदन्त सधमादेषुव्यर्ट स्यामपनयो रयीणाम्॥२७॥ चिसतिर्मापुनातरासनिर्मापुनातुदेवोमीसविनापुनावच्छिंद्रेण पवित्रेणसूर्यस्यरश्मिमि ॥ तस्यनेपवित्रपतेपवित्रपूतस्ययकामा पुनेत छकेयम ॥२८॥शिरोमेश्रीर्यशोमुखन्विषि केशाश्मभूणि॥राजामेाणो अमृतः । सम्राट्चक्षुर्धिराट्श्रोत्रम्॥२९॥जिल्हामार्दैवानहोमनोमन्युः स्तुराशाम मो. ११८॥ दौड प्रमोदा अङ्गुलीरनिमित्रम्मेसह ॥३०॥ बाहूबलमिन्द्रिय हस्तौमेक For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मार्यम् ॥ आत्माक्षत्रसुरोमम॥ ३१॥पृष्टिमॆराष्ट्रमुदरम सौपीवाश्यश्रोणी।। ऊरू अरनीजानीधिशोमेडनिसर्वनः ॥३२॥ नाभिर्मेचित्तम्विज्ञानम्पायुमी पचिनिमित्॥ आनन्दनन्दावाण्डोमेमग सौभाग्यम्पस:जयाम्पझ्यान्ध मौस्मिषिशिराजाप्रतिष्ठितः ॥३३॥पर्यापृथि ॥३४॥ देवस्य मरंम्ब युधिये म्युसो |॥३५॥देवस्य सरस्व यंत्रणाम चामि॥३६॥दे॒वस्य॑ अश्विनी: ॥ ३७॥ विश्वानि देव ॥३८॥धामृच्छमि ॥३९॥ त्वज्ञविष्ट ॥१०॥ भन्नपने ॥४१॥पालाशम्भः॥ ॥४२॥ औदुम्बरू॥ १३॥ नैय्ययोधपादं ॥४४॥ आश्वत्थं ॥४५॥ वद्देवकल्या हो For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥४६॥ योर शोतिरन्तरिः ॥४७॥यतौयतह स०॥१८॥ अथपुराणोक्तमंत्रः॥सुराख्यामभि भास्कर ॥१९॥ चिंतुब्रह्मविष्णुमहेश्वराः॥वासदेवोजगन्नाथस्तथासंकर्षणोयितः॥१॥प्रद्युम्मश्चानिरु/ इश्वभवंतुविजयायते॥आरचंडलोमिभगवान्यमोवैनैर्कनस्तथा॥२॥वरुणःपया नश्चैवधनाध्यक्षस्तथाशिवः॥ ब्रह्मणासहिताःसर्वेदिक्पालाः पातुतेसदा॥३॥की तिर्लक्ष्मी निर्मधापुष्टिः श्रद्धाकियामतिः॥ बुद्धिलज्जावपुःशांतिस्तुष्टिःकोतिस्तुमा तरः॥ ४॥एतास्त्वामपिषिचंतुदेवपल्यःसमागताः॥ आदित्यश्चंद्रमा भीमबुधजीव | ॥१९॥ सितार्कजाः॥५॥ महास्वामभिषिचतुराहुः केतुश्चनर्पिताः॥ देवदानवगंधर्वायक्षरा ॥ For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षसपन्नगाः ॥६॥ऋषयोमानयागावोदेवमातरएवच॥ देवपल्याद्रुमानागादेत्याना। प्सरसांगणा:॥७॥ अस्याणिसर्वशरमाणिराजानोवाहनानिच॥ औषधानिचरत्नानिकालस्यावयवाश्चये॥८॥सरितःसागराःशेलास्तीर्थानिजलदानदाः ॥एनेत्वाम भिषिचतुसर्वकामार्थसिद्धये॥९॥ सर्वेषांवा ॥४९॥ अमृताभिषेकोरत॥एवमभिषे कानंतरंसर्वोषधीरनुलिष्यशुद्धोदकेनस्नाबाउमया: स्नानवस्त्रत्यागः॥वस्त्राण्याचा र्यायदयान्। शुक्लमाल्यांबरघरोधृतमंगलनिलक:सपत्नीकोयजमानःस्वामनेउपा विश्याचम्याज्यावलोकनं कुर्यात्। अरूपेणयोरूपमभ्यागान्तुथोयोनिश्चर्वेदादि । For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मजतु॥ कृतस्यपथाप्रेनचन्द्रदक्षिणाधिस्व पश्यत्यन्तरिक्षन्यतस्वसदस्यैः॥१॥पर्टः भास्कर ॥१२०॥ रूपम्प्रतिरूपोभूवुतदस्यरूपम्प्रतिचक्षणाय ॥ इन्द्रोमायाभि:पुरुरूपएतेयुक्ता य॑स्यहरुयशतादशे त्ययंवैहोयम्वैदशचसहस्राणियहूमिचनन्तातदेतद्ब्रह्मपूर्घमनमा बाह्यजमनुः सर्वानुशासनम्॥१॥ इदंआज्यपात्रंसदक्षिणाकंभाचार्यायतुभ्यमहसंपा ददे॥ ॥नतोब्राह्मणभोजनसंकल्पः॥रुतस्यकर्मणःसांगतासिध्यर्थयथाशक्तिबाह्य णामोजयिष्ये।।तेनश्रीकर्मांगदेवताःप्रीयंतां॥ ॥कर्मसांगतासिध्यर्थंआचार्याय |॥१२०॥ दक्षिणांदयात्॥ ऋषिगादिप्योयथाशक्ति दक्षिणांदत्वा अन्येश्योब्राह्मणेत्योयथाश, For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिभूयसींदक्षिणादातुमहमुत्सृजेइतिदत्वा। तेषामाशियोटहीयात् ॥ तनोदेवतामिपिसा। जनं॥ यांतुयहगणाः सर्वेस्वशक्त्यापूजितामया॥ इष्टकामप्रसिध्यर्थपुनरागमनायचा ॐ उतिष्ठब्रह्मणस्यतेदेवयन्तस्त्वेमहे॥ उपप्रयन्तुमरुतः सुदानवः इन्द्राभवासचाँ॥१॥ आवाहितदेवनाः स्वस्थानेगच्छत॥ गच्छगच्छसुरश्रेष्ठस्वस्थानेपरमेश्वर॥यत्र ब्रह्मादयोदेवास्तवगछहुताशन॥१॥ॐय यज्ञछियुज्ञप॑तिङ्गछुखायोनिङ्ग स्वाहा।एष नैयज्ञोयज्ञपतेसहस्तवाक: सर्ववीरस षस्नुस्वाहा॥१॥यज्ञनारायणस्वस्यानेगच्छामा । याअमुकमासपक्षतिथ्यादिययाकाले ययादेशेयथाशक्निद्रव्यादिकेनयलनंनारदोक्तरजो। For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार दर्शनशांत्याख्यं कर्मतत्कालहीनंशक्तिहीनंश्रद्धाहीनंब्राह्मणानांवचनात्श्रीसूर्याद्यावाहि भास्कर ॥१२१॥ तदेव ताप्रसादात्सर्वपरिपूर्णमस्त्रिनिभवंतोनुवंतु ॥ अस्तुपरिपूर्णइति ब्राह्मणान्ब्रूयुः ॥ प्रमा दात्कुर्वतांकर्मप्रच्यवेदाध्वरेषुयत् ॥ स्मरणादेवतद्विष्णोः संपूर्णस्यादिति श्रुतिः ॥ १ ॥ यस्यस्मृत्याच नामोत्त्यातपोयज्ञक्रियादिषु ॥ न्यूनंसंपूर्ण तांयातिसद्यो वंदे तमच्युतं ॥ २ ॥ ॐ वि ष्णवे नमो विष्णवे नमो विष्णवे नमः ॥ २ ॥ एवंयः कुरुतेशांतिं नारदोक्तप्रमाणतः ॥ तदनिष्ठं तुसकलं सद्यएव विनश्यतीति ॥ इतिसंस्कारप्तास्करे सग्रहमख नारदोक्तरजोदर्शनशांति ॥१२१॥ योगः ॥ ॥ अथगर्भाधानसंस्कारनिर्णयः॥ गर्भाधानसीमंतोन्नयने तुस्त्रीसंस्कारत्वा-| For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सतिगर्मनावर्तते। किंतुप्रथमग:एवकार्ये॥ इतिधर्मसिंधौ॥ तत्रप्रथमरजोदर्शनेत्र योदशदोषाः तेषांफलानिचज्योतिःशास्त्रे उक्तानि॥ अथप्रथमौशिष्टाचाराकर्तव्यमा ह॥संस्कारकोस्तुओकश्यपः॥ प्रथमौतुपुष्पिण्याः पतिपुत्रवती स्त्रियः॥ अक्षतैरासनकुर्मुस्तस्मिंस्तामुपवेशयेत्॥ हरिद्रापुष्पगंधादीन्दद्या तांबूलकंजं॥ आशिपोवाचयेय सा पतिपुत्रवतीभव॥दीपैर्नीराजनंकुर्य:सदीपेवासयेद्गृहे॥ता:सर्वाःपूजयेत्पश्चाद्धपुष्पा क्षतादिभिः॥लवणापूपमुद्गादिदद्यात्ताभ्यः स्वशक्तिनइति॥ ॥ सर्वर्तुसाधारणविशेष माह॥ ॥वसिष्ठः॥ विरारजस्खलाऽशुचिभर्वति॥साज्यान्नं संजीयान्नामुमाया For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१२२ संस्कार दधाशयीतनदिवास्वप्यान्नामिंस्पृशेन्नरज्वादिस्पृशेन्नदंतान्धारयेन्नपुष्पाचलंकरणंनय भास्कर हानिरीक्षेतनश्लीलंकिंचिदाचरेन्ननूतनजीर्णखर्परेणजलंपिबेन्नांजलिनापिबेन्नलोहेनायसे |ना ताम्मेणविज्ञायतआहारेगोरसंवर्जयेदिति॥ ॥ अथरजस्वलाशद्धिप्रकारः॥स्मृत्यर्थसारे॥ रजस्वलाषष्ठिमृत्तिकाभिःशौचंकलामलंप्रक्षाल्यदंतधावनपूर्वकंसंगयेसशिराः लायादिति॥ ॥अथगर्भाधानकालः॥पारस्करः॥तामुदुययथर्नुप्रवेशनं। तांव) तिविधिनाउदुह्यविवाहयित्वायथर्तुकतावृनौप्रवेशनमभिगमनं कुर्यादित्यर्थः॥ याज्ञव १२२॥ ल्यः ॥षोडशर्तुर्निशा: स्त्रीणांतस्मिन्युग्मासुसंविशेत्॥ ब्रह्मचार्ययपर्वाण्यायाश्चतस्त्रश्च । For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्जयेत्॥स्त्रीणांगर्भधारणयोग्यावस्थोपलक्षित: कालऋतुः॥सचरजोदर्शनदिवसादा ॥ रभ्यषोडशाहोरात्र।तस्मिन्नृतीयुग्मासुसमासुराविष॥रात्रियहणादिवसप्रतिषेधः॥ संधि शेगच्छेत्॥ पुत्रार्थं ॥ युग्मास्चितिवहुवचनंसमुच्चयार्थमतश्चैकस्मिन्नपिऋतौअप्रनिषि द्वासुयुग्मास सर्वासरात्रिषुगच्छेत्॥एवंगच्छन्ब्रह्मचार्यवभवति॥ अतोयबब्रह्मचर्य श्राद्धादिषुचोदितंतत्रगतोपिनब्रह्मचर्यस्वलनदोषोस्ति॥किंचपर्वण्यायाश्चतस्पश्चा वर्जयेत्पर्वाणीतिबहुवचनावगमादष्टमीचतुर्दश्योर्महणं ॥ अबसर्वासुयुग्मासरात्रिषुगा मनमावश्यक॥तञ्चैकस्यांरात्रौसकदेवकार्य।। इदंचौगमनमन्यकालेप्रतिबंधादिनागा ॥ For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार मनासंभवेश्राद्धैकादश्यादावपिकार्य॥यतुहेमा द्रोचरहस्ये॥दिवाजन्मदिनेचैवनकुर्या पास्कर ॥१२३॥ मैथुनंबती॥श्राद्धंदयाचभुत्वाचश्रेयोर्थीनचपर्वसितितद नृतुविषयं॥तथाचगरपरि |शिष्टे॥यदिदिवामैथुनंबजेल्लीबाऽ अल्पवीर्या असायुषश्रप्रसूयते॥ तस्मादेत दर्जयेदिनि॥स्त्रीणांयोगपोतुस्तीगमनक्रममाह। योगपयेतुतीर्थानांविषादिक्रमनोबजेत्॥रक्षणार्थमपुत्राणांग्रहणंक्रमशोपिवेति॥ तीर्थक्रतुः॥ विषादिवर्णक्रमेणपात्र विवाहक्रमश्चेनि॥ ॥अगमनेदोषमाह॥पराशरः॥ऋतुरुनानांतयोमार्यांसन्निधौनो ||१२३॥ पगच्छति॥घोरायांब्रह्महत्यायायुज्यतेनात्रसंशयइति ॥ अस्यापवादमाहमदनरनेव्यासः ॥ For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |॥ व्याधितोबंधनस्थोवाप्रवासेपथपर्वस॥ऋतुकालेपिनारीणांब्रह्महत्यांप्रमुच्यतइति। || गर्भाधानाकरणेप्रायश्चित्तमाह॥पारिजातेआश्वलायनः॥ गर्भाधानस्याकरणान स्यांजातस्तदुष्यति॥ अरुलागांडिजेदला कर्यास्सुंसवनंपतिः॥ ऋतौगमनेपराशरः॥ तोतुगर्भशंकित्वात्मानमेथुनिनःस्मृत। अन्तौतुयदाग छोचमूत्रपुरीषवत्॥ स्त्रियास्तुनस्मानं॥ उमावष्यशुचीस्यातांदंपतीशयनंगतो॥शयनादुस्थितानारीशचिः स्वादशचिः पुमानिनिवृद्धशातातपोक्तेः॥ ॥ प्रथमर्तोःपूर्वस्वीगमननकार्यमित्याहा || श्वलायनः॥ प्रायजोदर्शनासत्नीनेयाद्त्यापनत्यधः॥ व्यर्थीकारेणशकस्यब्रह्मह For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार त्यामवाप्नुयादिति॥ ॥ आद्य गर्भाधानंचमलमासशकास्तादारपिकार्य।उत्सयेषु भास्कर ॥ १२॥ सर्वेषुसीभनेऋतुजन्मसुं॥सरासरगुरोश्चैवमोठ्यदोषोनविद्यतेइतिनिबंधेयूक्तेः॥ |दिनशद्धिस्नुज्योति शास्त्रेउक्ता॥ ॥अथगर्भाधानप्रयोगः॥ तचक्रतुदर्शनमारस्य आद्यरात्रिचतुषंपर्यादिनिषिद्धदिनानिचवर्जयित्वा॥ आद्य नियतेचगुरुशकास्तमल मासादिदोषोनास्ति॥ तच्चज्योति शास्त्रोक्तशादिनेशभकाले कार्य॥नत्रयुग्मासुराधि पुपुत्रः अयुग्मासुकन्याजायतेइति॥तत्रार्यक्रमः ॥गारव्येमावनांदीयजतिविधुवलं ॥१२४॥ पातसमापयेत्तांदोषेशांतिप्रकुर्याइसनथफलधान्यार्पणंसूर्यवीक्ष्य॥ यत्तद्रावोस्वभायी । For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || रमयतिकुशलो वाह्यरत्यासुतायेगत्वा तानागरेणप्रतिकुसुमसुरोलंतनंस्यात्तुयत्ते॥१ ॥ | अथर्तुमतीस्त्रीनूतनवस्त्र कंचुकींचपरिधायमाल्याभरणैरलंकृत्यभासने माड्यखमुप विशेत् ॥ तनः पतिपुत्राद्यवच्छिन्न संतत्यन्विताभिः कुलवृद्धसुमंगलस्त्रीभिर्गोधूमैर्नारि केलादिनानाफलैस्तत्पल्लवैश्वप्रक्षेपणंवृद्धा चारयाः फलिनीरितिमंत्रेणकारयेत् ॥ आच म्यप्राणानायम्यदेश कालौ संकीर्त्य अस्याः ममतार्यायाः प्रथमगर्भातिशयद्वारा अस्यांज निष्यमाणसर्वगर्भाणांबीजगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणार्थंगर्भाधानाख्यसंस्कारकर्माहंकरिष्येइति कर्तानिशिकर्मणोमंत्राभिज्ञानेसतिसूर्यावलोकनोत्तरंविप्राशिषोग्गृहीत्वामातृविसर्जनादि For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कंसंपाद्यरात्रावभिगमनादिकं कुर्यात् ॥ अथमंत्राणामज्ञानेविशेषः ॥ अस्याः ममतार्या भास्कर ॥१२५॥ निबर्हणार्थं गर्भाधान संस्कारनिशिकर्मणादिवापकृष्यमाणसद्यः मंत्रजपपूर्वकं गर्भाधानारव्यं कर्माहं करिष्ये इतिसूर्यावलोकनोत्तरंसर्वान्मंत्रान्पठित्वामा तृगणंविसर्जयेदित्येकःपक्षः ॥ तदंगविहितं गणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंमान्तृका पूजनं नांदीश्राद्धंचकरिष्येइति कृत्वा ॥ आदित्यंगर्भमित्यादित्यमवेक्षते ॥ ॐ आ॒दि॒त्यङ्गर्भ॒म्पय॑सा॒सम॑स॒हस्र॑स्य॒ प्रति॒माम्वि॒श्वरू॑पम्॥ परि॑वृ॒ङ्घ्रहर॑सा॒माप्तम॑र्ट-स्था श॒नायु॑षङ्गा॑णु॒हिची॒यमा॑ना ॥१॥ अ नेनमंत्रेणदंपतिभ्यां सूर्यावलोकनं नमस्कारश्च ॥ ततः सायंकालीनंनित्यकर्मकृत्वोत्तौश For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्लांबरधारणानुलेपनमाल्यापरणालंकृतीसदीपेशयनागारेसरवशय्याप्रसारितकाम | |मंचकमारुह्मसुमुहूर्तस्त्रियमुत्तानीमाशिरःशयितांकृत्यामातस्याः नाभिदेशहरू दत्वाभिमृष्यजपेत्।। ॐ पूषाभगर्ट सवितामेददातुरुद्रःकल्पयतुललामगम्बिष्णु/निड्रलयतुलष्टारूपाणिपिर्ट शतु॥ आसिचतुप्रजापतिर्धातागर्भन्दधातुते॥गर्भधेहिसि नीचालिगर्भधेहिपृथुष्टुकेागते अश्विनौदेवावाधत्तांपुष्करखजी॥तेजोवैश्वानरोदयादथब्रह्मानुमन्त्रयते॥ ब्रह्मागर्मन्दधातुते॥अथाभिगमनं॥ ॐ गायत्रेणत्याउ दिसामन्यामित्रैष्टुमेनबाछन्दसामन्यामिजागतेनाछन्दसामन्यामि॥१॥रेनोमूत्र। For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ||१२६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिज॑हाति॒ योनि॑म्प्रविशदि॑न्द्रि॒यम् ॥ गर्भोज॒राय॒णाव॑त॒ उन्हाति॒ जन्म॑ना ।। प्राम्कर तेन॑स॒त्यमि॑िन्द्रि॒यँधपार्ट· शुक्रमन्ध॑स॒ इन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दम्प॑यो॒ मृत॒म्मधु॑ ॥ १॥ अभि गमनोत्तरं तस्याः दक्षिणस्कंधस्योपरिहस्तंनीत्वा तेनहृदयमालभते ॥ ॐ यत्तेसुशीमे हृदयन्दिविचन्द्रमसिश्रितम्॥ वेदाहन्तन्मान्तद्विद्यासश्येमशरदः शतन्जीवेम शरदः शतर्ट- शृणुयामशरदः शतम् ॥१॥कृतस्य कर्मणः सांगतासिध्यर्थंयथाशक्ति ब्राह्मणा भोजयिष्ये ॥ तेनश्री कर्मांगदेवताः प्रीयंतां ॥ ब्राह्मणेभ्योदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृही त्वा ॥ यातुमा तृगणाः सर्वेइतिमातॄणांविसर्जनं कार्यम् ॥ इतिसंस्कार भास्करेगर्भाधान For Private and Personal Use Only ||१२६ ।। Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || संस्कारः॥ ॥ सायदिगर्भनदधीततदोषधंपतिःकुर्यात् ॥ऋतुस्नातायांचतुर्थेहनिवाषोडश रात्रिमध्येकस्मिंश्चियुग्मेन्हिपुष्य नक्षत्रादिनाचंद्रमायुज्येनतदन्हिकमतीमुपोष्यताबोसि याः श्वेतपुष्ण्याबृहत्यामूलमुत्थाप्योदपेषेपिष्वादक्षिणस्यांनासिकायामासिंचतिभा ॥ ॥तत्रमंत्रः॥ ॐ इयमौषधीबायमाणासहमानासरस्वती॥ अस्याऽ अहंबृहत्या:पुत्र || पितुरिवनामजयशम्॥१॥ इनिसंस्कारभास्करेगर्मधारणार्थमौषधं॥ ॥ अथपुंसवनकर्म णोनिर्णय क्रमश्वोच्यते॥ पुंसवनंतुगर्भसंस्कारवासतिगर्ने कार्यमितिधर्मसिंधौ॥ पुंसव नसंस्कारेगुरुशुक्रास्लमलमासादिदोषोनास्तीतिसंस्काररत्नमालायो॥ ॥प्रयोगपा हिंगणी. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रिजानेजानूकर्य:॥ ॥द्विनीयेचानृतीयेवामासिपुंसवनं भवेत्॥ व्यक्त गर्ने भवेत्कार्यसीमते, भास्कर ॥१२॥नसहाथवेनि॥ ॥तबगर्भाधानप्रभृतिमासेहितीयेतृतीयेवायस्मिन्नहनिनक्षत्रेणचंद्र मायुज्येततस्मिन्नहनिगर्भिणीमुपपास्यरात्रीन्यग्रोधावरोहान्नंगांवोदकेनपिष्ट्वानासिका यांदक्षिणपुटेआसिंचनिमाहिरण्यगर्भायःसमातइत्येताभ्यामृगन्यां॥ न्यग्रोधोपटवृक्षः न स्यअवरोहाः अतिसंबंअवाचीनंजायमानाः अंकुरा तस्यशारखायाः शृंगांचनदकुरान् उदकेन मिष्देत्येकःपक्षः॥ कुशकंटक सोमार्ट शंचैके ॥ एकेषामाचार्याणांमतेन्मयोधावरोहोकरेषु ॥२७॥ पिष्यमाणेषुकुशकंटकं कुशमूलांकुरं सोमायुंसोमलताखंडंचनामध्येपेषणेनवरुनगालिनका || पारंध्या. २ दक्षिणदिशेसजाहलेल्या. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सोमल नाभावे गुडूचीलताब्राह्मीवाग्राह्या । एतसक्षेद्रव्य-चतुष्टयपेषणकार्यमिति ॥ तत्रा यंक्रमः ॥ पुंसाख्येमा तृनांदीन्यजतिपुरुषभेस्यंदनात्प्राग्विमासेत्रिर्मासेवाप्युपोष्यानिशि सुवटवानं कुरान्पेष्यवार्भिः ॥ सोमांशुंकैौशकंटान्क्षिपतिचवसनेगालिनंदक्षिना सारंध्रे क्षिप्त्वासमंत्रं सजलमभिमृषेदंकमध्येशरावं ॥१॥ ॥ अथप्रयोगः॥ आचम्यप्राणाना | यम्य देशकालकीर्तनांते अस्याः ममभार्यायाः उसत्स्यमानगर्भस्यवैजिकगार्भिक दोषपरि हारार्थं पुंरूपनाज्ञानोदय प्रतिरोधपरिहार द्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं पुंसवनंकरिष्ये ॥ तत्रनिविप्रार्थंगणपतिपूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचनं मातृकापूजनंबसोरा आयुष्यमंत्रजपं नां For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१२८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीश्राद्धं करिष्ये इतिकृत्वा अत्रपुण्याहवाचनां तेप्रजापतिः प्रीयतामितिवदेत् ॥ ततस्तांग भास्कर र्भिणींस्नापयित्याहते वाससीपरिधाप्योपवास्य ॥ नतोरात्रौ न्यग्रोधावरोहांकुरांश्चक्कु शकंटक सोमलताखंड चोदकेनपिष्ट्रापेषिनोदकं वस्त्रगालिनं त्यागर्भिणी दक्षिण नासिकायामासिंन विभर्ता ॥ तत्रमंत्रौ ॥ ॐ हिर॒ण्य॒गः • ||१|| अ॒द्भ्यः समृ॑तः॒ पृथि॒व्यैरसा॑च्चचि॒श्वक॑ र्म्मण॒ सम॑वर्त॒नायै ॥ तस्य॒ त्वष्टाचि॒दध॑द्रूपमे॑ति॒ तन्मर्य॑स्यदेव॒त्वमा॒जान॒मये॑ ॥२॥ कूर्मपितं चोपस्थेक्लत्वेतिउदकपूर्ण शरावं अंके निधायेति ॥ सर्यादिकामये तबीर्य वा स्यादयंगर्भस्तदानस्याः स्त्रिया अंके उदकपूर्णशरावंनिधाय भर्तागर्भिण्याउदरं अनामिकायेणस्पृश For Private and Personal Use Only |||१२८|| Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नामभिमन्त्रयते॥ ॐ सुप॒र्णोसिगुरुमस्त्रि॒वृत्ते॒ शिरो॑गाय॒त्रच्चक्षु॑र्बृहद्रय॑ते॒रेष॒क्षैौ ॥ स्तोम॑ आ॒त्माच्छन्दा॒र्ट्· स्यङ्गा॑ नि॒र्जूङ वि॒नाम॑ । साम॑ते त॒नूर्ध॑मदे॒व्यन्य॑ज्ञाय॒ज्ञिय॒म्पृच्छन्धि व्यया॑ श॒फा? ॥ सुप॒र्णोसिगुरुत्या॒न्दिव॑ङ्गच्छ्रस्व॒पत ॥ १ ॥ इत्यनेनमंत्रेण ॥ कृतस्यक |र्म. सांगतासि• स्मृत्युक्तान्दशसंख्याकान्ब्राह्मणान्भोजयिष्ये ॥ ब्राह्मणेभ्योदक्षिणां दत्वा तै राशिषोग्गृहीत्वा ॥ यांतुमातृगणाः सर्वेनिमातॄणां विसर्जनं कुर्यात् ॥ इतिसंस्कारभास्करेषु सवनसंस्कार प्रयोगः ॥ ॥ अथगर्भिणी धर्माः ॥ पाद्ये ॥ गर्भिण्यधिकारे अदितिंप्रतिक | श्यपः। नावस्करेषूपविशेन्मुस लोलूखलादिषु । अवस्करेषुमार्जन्यादिषु ॥ नोपस्करेति पाठां For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तरेउपस्करशब्देनशूर्पादिज्ञेयं॥ जलंचनावगाहेनशून्यागारंविर्जयेन्॥ वल्मीकेनापिति भास्कर ॥२९॥ तनचोदिममनाभवेत् ॥वि लखेन्ननपेमिनांगारेणनास्मना॥ नशयालुः सदातिष्ठेद्या | यामचविवर्जयेत्॥नतुषागारमस्मास्थिकपालेषुसमाविशेत्॥वर्जयेत्कलहंगेहेगावभगंतथै वच॥ नमुक्तकेशातिष्ठेतनाशचिः स्यात्कदाचन॥नशयीतोत्तरशिरानचैवाधःशिराःकचित्।। नवस्त्रहीनानोलिष्टानचाचरणातथा॥नामंगल्यांवदेवाणीनचहास्याधिकापयेत्॥कुर्या छुश्रूषयानित्यंपूजामांगल्यत्तत्सरा॥तिष्ठेयसन्नवदनासदासर्तुर्हितेरतेति॥ भविष्ये॥संध्या ॥२९॥ यांनैवभोक्तव्यंगर्भिण्यावरवणिनि स्थातव्यनचगंतव्यंवृक्षमूलेचसर्वदा॥नदुर्मुखीसदातिलेख For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ट्वाच्छायाधिवर्जयेत्॥ सर्वोषधीभिः कोष्णेनवारिणास्नानमाचरेत्॥ईषदुष्णेकोष्णे।रुतरक्षास भूषाचवास्तपूजनतत्परा॥ दानशीलातृतीयायांपार्वत्यानक्तमाचरेत्॥गर्भिणीकुंजराचादिशै लहादिरोहणं॥व्यायामंशीघ्रगमनंशकटारोहणंत्यजेत्॥शोकरक्तविमोक्षचसाहसंकुक्कुटा सनं॥ व्यवायंचदिवास्वापरात्रौजागरणत्यजेत्॥ अतिरुक्षेतुनाश्नीयादत्यम्लमतिभोजन। अत्युष्णमनिशीतंचर्याहारंपिवर्जयेत् ॥ इतिवृत्ताभयेन्नारीविशेषेणतुगर्पिणी।यश्वतस्यांभवेत्पुत्रःस्थिरायुर्वृद्धिसंयुतः॥ अन्यथागर्भपतनमवाप्नोतिनसंशयइति॥ मार्कंडेयोपि ॥वृक्षंमहींचनाकामेन्नप्राकारंपयोनिधि।परिखांचनचाकामेदबलागर्भधारिणी॥गर्भर For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार सासदाकार्यानित्यशोचनिषेवणान्॥ प्रशस्तमंत्रलिखनाच्छन्नमाल्यानुलेपनादिनि॥स्मृत्वनरे। भास्कर ॥१३॥ भूम्यांचैवोच्चनीचायामारोहश्शायरोहण॥नदीमतरणचैवशकटारोहणेनथा।उयौषधंतथाक्षारंमैयु निमारचा हणं ॥ रुतेपुंसवने चैवगर्भिणीपरिवर्जयेत्॥ गर्भयहणंचश्रमादिलिंगैदिनव्यं ॥गृहीत| गर्मायाः सद्यः श्रमोग्लानिश्चजायते॥पिपासाआयास:सक्थिस्यंदनंशुक्रशोणितयोरनुसंबं धोयोन्या:स्फुरणचेत्यादि॥अन्यच्चप्रयोगार्णवेस्मृत्यंतरे। दानपक्कान्नतिक्षायाःपरिवेषणमे विच॥पचनेनचकर्तव्यंगर्भिण्यासर्वथैव विति॥ इतिसंक्षेपेणगर्भिणीधर्माः॥ ॥ अथगर्मिणी ॥१३०॥ पतिधर्माः॥गर्भिणीवांछिनेद्रव्यंतस्येदद्यायथोचित॥ सूतेचिरायुषंपुत्रमन्यथादोषमर्हतीति॥ For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याज्ञवल्फ्यः॥ दोहदस्याप्रदानेनगोंदोषमयामुयात्॥रूप्यंमरणंचापितरमाकार्यपियं स्त्रिया इति ॥ दोहदंगर्भिणीभियं॥स्मृतिचिंतामणो। सोनागिर्भिणीयस्यचेत्स्यात्सूनोश्चौलंक्षौर कर्मात्मनश्च॥ गेहारंभलभसंस्थापनंचवार्धिस्नानंनैवकुर्याचयात्रामिति ॥दक्षः ॥ ऋतुह येव्यतीतेतुनकुर्यान्मौजिबंधनं॥ अम्याधानंगयाश्राद्धंचपनंचविवर्जयेदिति॥ कालविधा ने॥क्षोरंशयानुगमनंनवलंतनंचयुद्धंचवास्तुकरणसतिदूरयानं ।उहाहमोपनयनंजलधे बिगाहं आयुः क्षयोभवतिगर्भिणिकापतीनो॥ वगाहइत्यत्रअवेयुपसर्गायथयाकारस्थाभागु| "रिमनेनलोपः ॥क्षौरंवपन॥तच्चारकर्तनस्याप्युपलक्षणं ॥ नोदन्यतोमसिस्नायान्नचश्मा For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार चादिकर्तयेत्॥ अंतर्वल्याः पतिःकुर्वन्नप्रजाभवतिध्रुवमितिक्रतुस्मरणात्॥ यत्तु॥ वपन भास्कर maan |स्यनिषेधेपिकर्तनंवैविधीयतेतिस्मृत्यंतरवचनं तद्गर्भिणीपतिमिन्नानांजीव पितृकादी नायोवपननिषेधलवकर्तनविधानपरं॥ संघहे॥ दहनंवपनं चैवपर्वतारोहणंतथा॥ नावआ रोहणंचैववर्जयेद्गर्भिणीपनिरिति॥स्मृत्यनरे॥गर्मिण्यामपिभार्यायांविवाहेप्यथवाव्रते॥ सपितापियपेकेशान्गौनम्यासिंहगेगुराविति॥विवाहेइत्यत्रनिवृत्तेपीतिशेषः॥एवंव्रतेइ स्यत्र॥गौतम्यामितिगौतम्यसन्निहिनदेशनिवृत्यर्थं। सिंहगेगुरापितितीर्थयात्रांतरोपलक्ष ॥१३१॥ ॥विवाहेबतबंधेचगर्मिणीपनिरेवच॥मुंडनसर्वतीर्थेषुकुर्यादेवाविचारन्निति॥स्मृति For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || दर्पणधृतसंग्रह वचनसंवादात् ॥ स्मृत्यंतरे ॥ सिंधुरनानंद्रुम-च्छेदं वपनंप्रेतवाहनं । विदे शगमनंचैव नकुर्या दार्भिणीपतिरिति ॥ प्रेतवाहनमित्यनेनप्रेतविधानमप्युपलक्ष्यते ॥ ज्योतिर्निबंधेगालवः ॥ प्रव्यक्तगर्भापतिरब्धियानंस्मृतस्यवाहंक्षुरकर्मसंगं ॥ तथैवयले न | गयादितीर्थंयागादिकंवास्तविधिंन कुर्यादिति ॥ आदिशब्देन व्रतोद्यापनादि ॥ इाद्धि| दर्पणेदक्षः ॥ मुंडनंपिंडदानं चप्रेतकर्मतथैव च ॥ नजीवसितृकः कुर्यादार्भिणीपतिरेव चेति ॥ पिंडदानशब्देन श्राद्धमुपलक्ष्यते ॥ इतिकेचित्॥ वपनप्रेतविधानापवादस्तत्रैवाक्षौ रंनैमित्तिकं कुर्यान्निषेधेसत्यपिध्रुवं ॥ पित्रोः प्रेतविधानंचगर्भिणीपतिरेव चेति ॥ For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार एतेचनियमाः सप्तममासादूय॑भवेति॥ पवनमैथुनंतीर्थवर्जयेदार्भिणीपतिः॥श्राईचस भास्कर ॥१३२॥ तमान्मासादूर्धनैवसमाचरेदित्यादिआश्वलायनोक्तेः॥अत्रकेचित्सप्तममासोत्तरयो वपनादिनिषेधः सदोषातिशयार्थः॥तेनतसूर्वमपिशक्तोसत्यांचपनादिनिषेधपरिपालनमस्त्ये, वेत्याहुः॥ऊनैवसमाचरेदितिवचनात्सप्तममासासूर्वकदाचिद्धपनादिकरणमस्तीतिगम्यते॥दक्षः॥ मासषवेव्यतीतेतुनकुर्यान्मौजिबंधनं ॥अम्याधानंगयाश्राद्धंयपनंचवि वर्जयेदिति ॥ संस्कारदर्पणेसत्यव्रतः ॥ ऋतुत्रयेव्यतीतेतुनकुर्यान्नौजिबंधनं॥अम्या ॥१३२|| धानंगयात्राईवपनंचयिवर्जयेदिति॥ संकटवशेनशक्ताशक्तपरतयावाव्यवस्थायथायथं For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोध्या। तीर्थतीर्थयावा॥ श्राद्धं श्रादभोजनमितिकेचित्॥पित्राःक्षयाहश्राद्धादिकंतुसप्तम मासादूर्ध्वमपिभवति॥पित्रोः क्षयाहंदर्शचगयाप्राईमहालयं॥ग्रहणा नष्टकाबाडेकुर्याग र्भवतीपनिरितिसत्यव्रतोक्तेः॥एतच्चनित्यानांयुगादिश्राद्यानामुपलक्षणे॥पिंडयज्ञोपिभवत्येव॥नित्यत्वात् ॥मुंडनंपिंडदानंचेसुदाहृतदक्षयास्ये॥पिंडदानशब्देनश्राद्धमुपलक्ष्यतइति श्राइस्यैवनिषेधप्राप्तोपित्रोः क्षयाहमिति सत्यव्रतवाक्येननित्यश्राद्वानांप्रनिप्रसवःक्रियते॥ पिंडदानशब्देनपिंडदानमेवनिषिध्यतइतिमतेपित्रोःक्षया हादिश्राद्धेष्वपिपिंडदाननिषेधः॥ ॥ नवनिर्वपणकार्यतस्यामपिनसत्तमेनिआन्वष्टक्यविषयएवगर्भिणीपतित्वमयुक्तोय पिंडा । For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, दाननिषेधःप्राप्तःसनास्तिइतिनिबंधकारलेरखनादान्यष्टक्यव्यतिरिक्तसांवत्सरिकादिस्थलेक ॥१३॥ थपिंडदानप्राप्तिरितिवाच्यं ॥ अपिशब्देनसांवत्सरिकादीनामपिसंगृहीतत्वेनतलाप्तिसंभ यात्॥नचपितृशब्दस्यपिंडनिषेपणशब्देनान्वयालयमेतदितिवाच्यं ॥ सन्निहितपदान्वयस प्रवेव्यवहितान्वयकल्पनस्यानुचितखात्॥सांवत्सरिकादिषुगर्मिणीपतिकर्तृकपिंडदानाचार स्यबहुशोदृष्टत्वाचेनिकेचित्॥ वस्तुतस्तुएतन्मनेपिक्षयाहादिश्राद्धेष्वपिपिंड निषेधोनैवास्ति। श्राइंचसप्तमान्मासादूनैवसमाचरेदिन्याश्वलायनपचनस्थवादशब्दार्थःश्राइभोजन ॥१३३॥ । परइतिमतेश्राद्धकरणस्यैतस्मादेववचनासाप्ततापित्रोःक्षयाहमितिकचनंसपिंडकसविधाना For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यद्रष्टव्यं।यथाचारंव्यवस्था॥ इतिगर्मिणीपतिधर्माः॥ ॥अथगर्भवृध्यपायः॥यरी विश्याचगंधारमधुकंमंगराट्समं॥अजादुग्धेनपानंतुनार्यागस्यवृद्धिकदिति ॥वरीशताव री॥विश्वाशुंठी॥गंधाअश्वगंधा॥ भाषायांआस्कंदइत्युच्यते॥ मधुकंज्येष्टमधु॥ अंगराट भाषायांमाकाइति॥ ॥अथगर्भरक्षोपायः॥ शोरखायनगृह्ये॥ चतुर्थेमासिगर्भरक्षण ॥ब्रह्मणामिसंविदानइतिस्थालीपाके नहलाक्षीभ्यांतइतिप्रत्यूचं आज्यलेपेनांगान्यचम जेदिति॥ ब्रह्मणामिसंविदानइनिराक्षोघ्नं ॥ अथवास्वशाखोक्तराक्षोनीसूक्तग्रहण॥ शा रुपांतरोक्तसान्लौकिकामाविदंकार्य। इतिगर्भरक्षणोपायः॥ ॥अथगर्मिण्यागर्म, For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर संस्कार सावहरोपायः॥ तवेदंगृह्मायदिगर्भस्त्रयेदाणास्याःपाणिनाविरूपनारुन्मार्टि॥ पराचंत्या ॥१३४॥ नार्वावष्टाबभानुबंधने॥ सकतूनुपवेश्यदशमासोअचीरहेनि।यदिगोगर्भिण्या स्मवेत्तदाता स्थानाभेरूयोदेश:गरिस्थितियोग्यः सखेनपाणिनापराचंखेतिमंत्रेणविरुन्मार्टिकोप वर्गसंमृजीतेत्यर्थः॥सरुदेवमंत्रः॥ यौकस्मिन्द्रव्यइतिसूत्रात्॥ नैमित्तिकमिदंकमी।। षधमपि॥पीत्वातंडुलतोयेनतंडुलीयजटाकतो॥ पतगर्माचयानारीस्थिरगप्रिजायते॥ शर्करायचतिलैः समांशकैर्माक्षिकेणसहमक्षितैःस्त्रियः॥ नास्निगर्भपतनोक्षवंभयंपा ॥१४॥ पभोक्तुरिवतीर्थसेवनमिति ॥ तंडुलीयजातंडुलजामूलं॥मासिकंमधु॥ इतिगर्भावह For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie रोपायः॥ ॥ अथसीमंतोन्नयनं ॥ ॥तत्रनिर्णयः॥ हारितः॥सरुसंस्कृतसंस्काराः सीमंतेनदिजस्त्रियः॥यंयगर्मप्रसूर्यतेससर्वःसंस्कृतोपवेदिति॥ यदिसीमंनस्यमुख्यका लातिकमस्तदाप्रसवादर्यागपिकर्तव्यं ॥ तथाचोक्तं ॥सीमंतोन्नयनंसुरख्यकालेनस्यात्कयं चन॥कार्यमाप्रसादेतदितिशयोब्रवीत्स्फुटमिति॥ अकृतसीमंतायाः प्रसवेविशेषःसत्य व्रतेनोक्तः॥स्त्रीयद्यरुतसीमंताप्रसूयेतकदाचन॥पुत्रंगृहीत्वाविधिवत्सासंस्कारमर्हती ति॥ ॥ अयसीमंतोन्नयनंनामक्षेत्रगर्मसंस्कारकर्मव्याख्यायते॥तच यमगर्नेगर्भसंभ यात्मासेषष्टेष्टमेवापुन्नक्षत्रेशक्लपक्षादिज्योतिःशास्त्रोक्तशभदिनेकार्य॥अत्रापिनि For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ १३५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यतकालेअधिमासगुरुशकास्तादिदोषोनास्ति ॥ असंभवेयावत्प्रसवकालपर्यंनं ॥ अत्राप्यनिय भास्कर नकाले अधिमासादिप्रत्यवायोनास्ति ॥ ॥ अथसीमन्तोन्नयनप्रयोगः ॥ तत्रायंकमः ॥ सीमंतारव्यंस्वीज्येभवति चयुक्तेर्वाष्टमेमासिषष्ठेशालाकर्मादिनांदीश्रपयतिसतिलंसुद्गमिश्रंच ||रुंप्राक् ॥ प्राजापत्यैक हुत्वोदितमनुहदनंसर्वपंचादशस्यासश्यासीोपविश्यंविनयतिपुलिकास्था प्यतांप्रेष्यगानं ॥ १॥ तत्र पल्यासहमंगलस्नापितआहतवासोयुगुलांलंकृतः पल्यासहबहिःशा || लायांशप्तासनेउपविश्याचम्यप्राणा नाथम्यदेशकालकीर्तनांते अस्या:ममभार्यायाःगर्भावयवे||भ्यस्तेजोवृध्यर्थं क्षेत्रगर्भयोः संस्कारार्थंप्रतिगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणेनबीजकोत्पत्त्यतिशयद्वारा For Private and Personal Use Only | ॥१३५॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थसीमनोन्नयनाव्यसंस्कारकर्मकरिष्ये॥ तत्रनिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनस्सा लिपुण्याहवाचनंअविघ्नपूजनंमंडपस्थापनमातृकापूजनंवसोराआयुष्यमंत्रजपना दीश्राद्धंचकरिष्ये इतिकृत्या॥ अत्रपुण्याहवाचनांने धाताप्रीयतामित्यूहःकर्तव्यः॥ ततो! बहि:शालायास्थंडिलेपंचामूसंस्कारपूर्वकं मंगलनामामेः स्थापन। तत: दक्षिणतोब्रह्मास नादिआज्यासादनानंतरतंदुलतिलमुद्गानामासादनं। अनंतरंउपकल्पनीयानि।मृदुपीठं। युग्मान्यौदंबरफलान्यपक्कान्येक स्तबकनिवदानित्रयोदशपरिमाणकास्त्रयोदर्भपिंजुलाः || || यणीशलली॥वीरंतरशंकुः ।।केचिदश्वत्थशंकुः॥ पूर्णचात्रं अलोहितंसूत्रेणपूर्ण वीणातीनटिकाणीश्येन २ वीरतरो र्जुनवृक्षः ३ चात्र म्हणजे सूत का दण्याचीचाकी. ४ लोरखंडाखेरीज For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ मंकार गाथिनोचनि॥गानंगायन।वयवर्णिकोयीणागायिनोराजवर्णनसंबंधिगानंकुरुनः॥ अथा भास्कर वानलादिमबंधिगानंकुरुनः॥ आज्यनिर्वपणानंतरं॥चपात्रेमुद्गप्रक्षेपंरुत्वाधियण आईपनिपुतिलतंदुलप्रक्षेपः॥ पर्यनिकरणांतेआघारावाज्यभागोरसुवणजुहुयात्॥म नसा॥ ॐप्रजापतयेस्वाहा॥ इदंप०॥ॐइंद्राय. इदमि॥ ॐ अनयेस्वा इदम. ॐ सोमायस्वा० इदंमो०॥ ॥ननश्चरुमभिधार्यसुवेणचरुजुहुयात्॥ॐ प्रजापतये। इदंप०॥५॥ततःस्थालीपाकेनोत्तरार्धाविष्टकृत्॥ ॐ अमयेस्विष्टकतेचा इदम० ॥१३७|| ६॥ ननोभूराद्यानबाहुतयः॥ॐ भूः स्वा इदम०॥७॥ ॐ भुवःस्वा इदंया०॥८॥ ॐ योडेसेशिजल्यावर. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org |स्वः स्वा. इदंसूर्याः॥९॥ त्वन्नौ अमे॥ इदम वरु०॥१०॥ ॐ सत्वन्नो अमे। इदम०वरु० ॥११॥ ॐ अयाश्वामे ॥ इदम अयसे ॥१२॥ ॐ येतेशतं इदंवरु०सविके॥१३॥ ॐ उर्दुत्तमं ॥१४॥इदंब-दित्यायादि०॥ मनसा ॐ प्रजाप इदंप्र०॥१५॥ ॥ ततः संखयप्राशनादिप्रणीताविमोकांतंहोमशेषसमाप्य॥ ॥ तत:पादमेट्रैिपी ठेमहासनसंस्थाप्य तदुपरिगर्भिणीमुपवेशयेत्॥ततोयुग्मेनसटालग्रसेनौदुंबरेणत्रिभिः येण्यारुतिदर्भपिंजुलैमध्येण्याशलल्यावीरतरशंकुनासूवपूर्णचानेणचेत्येतैः सर्वैःपूँजी कतैःसीमंतमूर्धिविनयति॥ललाटोतरमारण्यकेशान्धिाकरोतिमी॥ ततोविन || १ तैलदेवदारुपीठे . २ पंचभिरेकीकृते: For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार यनं॥ ॐ भूर्विनयामि॥ ॐ भुयर्विनयामि॥ ॐ स्वर्विनयामि॥ तत औदुंबरादिपंचक भास्कर ॥१३७॥ स्थवेण्याबंधन। ॐ अयमूर्जीवतोवृक्ष ऊर्जीवफलिनी भव॥१॥इत्यनेनमंत्रण॥अथ गाथागानं ॥ॐ सोम एवनोराजेमामानुषी:प्रजाः॥ अविमुक्तचक्र आसीरस्तीरेतुयमसाविति॥१॥ एतयागाथयावीणागायिनौगानंकुर्यातां ॥ असीस्थानेसमीपावस्थिता याः महानद्यानामग्रहणं॥ गंगा॥ यमुना॥ स्वरस्वतीत्येवमादिप्रथमातनामयहणंख्येच करोति ॥ कृतस्यकर्मणःसांगतासिध्यर्थंस्मृत्युक्तान्दासंख्याकान्ब्राह्मणान्मोजयिष्याते |॥१३७]] नश्रीकर्मांगदेवताःप्रीयतां ॥ ब्राह्मणानगंधतांबूलादिभिः संपूज्यतेभ्यश्चदक्षिणांदत्वातैरा || For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिषोगृहीत्वाअमिंदिसृज्यमादृणोविसर्जन॥यांतुमातृगणा:सर्वे पूजामादायपार्थिवी। इष्टकामप्रसिध्यर्थपुनरागमनायच॥ ॥ इतिसंस्कारभास्करेसीमन्तोन्नयनसंस्कारपयोगः॥ ॥अथजातकर्मक्रमारंभः॥ ॥ अथकस्माञ्चिद्योगाद्गर्भाधानादिसंस्काराअकृताश्चेत्तर्हिगोदा |नपूर्वकमनादिष्टप्रायश्रितंकलांतरितसंस्कारान्संपायचजातकर्गकार्यमिति॥शीघ्रप्रसयोपा! या ग्रंथांतरे॥हिमवन्युनरेपार्धेशवरीनामयक्षिणी॥तस्यानूपुरशब्दनविशल्यास्यात्तुगर्भि णीस्वाहा॥ इतिमंत्रणेकविंशतिदूर्वांकुरैरेकपलंतिलतैलंप्रदक्षिणमावर्तयन्नष्टशतमंबंजपि सातत्तैलंकिंचित्पायये छेपमुदरेलेपयेदिति॥अथयंत्रप्रकाशेयंत्रमप्युक्तं॥गजामिवेदाउडुरा । For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार शरांकारसर्षिपक्षाइतिहिक्रमेण॥लिखेत्प्रसूतेः समयेगृहेदंसुखेननार्यःप्रसवंतिशीघमिति भास्कर ॥१३८॥ अस्यार्थः॥गर्भिण्यानार्यादृष्टिगोचरेदेशेसमचतुरस्रंसंसाध्यतस्यसमान्नवकोष्टकान्कृत्वाईशा नोत्तर वायुकोष्टेषुअष्टमतृतीयचतुर्थानंका क्रमेणलिखित्वापूर्वमध्यमपश्चिमकोष्ठेषुप्रथमपं ||चमनयमांकान्क्रमेणविलिख्यआग्नेयदक्षिणनैर्ऋतकोष्टेषुषष्टसप्तमद्वितीयांकान् क्रमेणविलि खेत्॥ इदंयंत्रंप्रसूतिस॒मयेसूतिकागृहे लेखनीयं एत इर्शने नसुखेनशीघ्रं नार्यः प्रसवं ति ॥ यंत्रं यथा ॥ | सोष्यं तीमितिप्रसवकालेश्शूलवतीस्त्रियं भर्नाएयत्तुदशमा ॥१३८॥ स्योगतइतिमंत्रेणदशवारपठिते नोदकमप्तिमंत्र्यते नोदकेनशीघ्रप्रसवार्थं त्रिवारम For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिषिंचेत्॥ ॐ एय॑ तु॒दश॑मास्यो॒ग॒तो॑ ज॒रायु॑णास॒ह ॥ यथा॒यम्या॒युरेव॑ति॒ यथा॑ समु॒द्र ऽएय॑ति॥ए॒वायन्दश॑मास्यो॒ऽअस्रज्जरायु॑णास॒ह ॥१॥ इत्यनेनमंत्रेण ॥ अभ्युक्षणा नंतरं व रावपतननिःसारपर्यंतंप्रसूतिसमीपे अवैतुपृश्निशैवलमितिमंत्रजपतिभर्ता॥ॐ अवैतुपृश्निशैवलर्ट शुनेजराज्यपत्तवेनैवमार्ट सेनपीवरीनकस्मिँश्वनायतनमवज ||रायुपद्यनाम् ॥ १ ॥ शांतिप्राप्ततिथिनक्षत्रयोगादिसंप्तवेषुत्रमुखमदृष्ट्वस्नानं कार्यं ॥ | तथैवानिष्टतिथिनक्षत्रयोगविषघटिसंक्रांतिग्रह्णपर्वपोषजननेवैकृतप्रसवे चशांत योम यूखादिशांतिग्रंथेषु द्रष्टव्याः ॥ ग्रंथविस्तरभयान्नात्रलिखिताः ॥ ॥ अथजातकर्मसंस्का For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१३९॥ संस्कार रनिर्णयः ॥ तद्यथा ॥ नपक्वे ननचामेन श्राद्धं हेम्नैवकारयेत्॥ पुत्रजन्मनियात्रायां शर्वय भास्कर | दत्तमक्षयमिति ॥ १॥ जातकर्मणि नांदीश्राद्धं राचावपिकार्यं ॥ यद्यपिकिंचित्कर्मांगंप्रय मनांदीश्राद्धंकृतंतथापिपुत्रजन्मनिमित्तंनांदीश्राद्वंद्वितीयंतद्दिनेएवमुक्त्वापिजनन कालेकार्यमिति । नाल- च्छेदने कालप्रतीक्षामाहहारितः। कालप्रतीक्षाबालस्य नाल च्छेदनकर्मणि ॥ षण्मुहूर्तात्परंका संकटेष्ट मुहूर्तके ॥ १ ॥ तदूर्ध्वछेद्यमच्छेद्यं पित्रादिः सूतकी भवेत् ॥ २ ॥ ब्रह्मसूत्र |धृतंनालंते नावेष्ट्य निकृंतयेत्॥ मूलतोष्टांगुलंत्यक्त्वानालंच्छिद्यात्सुरादिनेति ॥ १ ॥ तत्रा यंक्रमः ॥ जातेपुत्रेसचैलंभवति जनयतोमातृनांदीयमेधायुष्येत्वेनंजपः स्याज्जननभुवममुं । ||१३९॥ For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रयेन्मातरंच ॥ सव्यंप्रक्षाल्य वामंस्तनमुदकयुतंपात्रप्रच्छिद्यनालंसृत्यस्मिंस्थाप्यहुवा द्वितयमनुदिनंविंशतिद्वेदशाहं ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ अथजातकर्मप्रयोगः ॥ तत्र जातेपुत्रे पिता कुलदेवता वृद्धप्रणामपूर्वकं तस्यमुखनिरीक्ष्यनद्यादावनुष्ावारिणातडागादोवाउदड्डय संस्नायात्॥मूलज्येष्ठाव्यतिपातादौ उत्पन्नेमुखमदृष्ट्वैवस्मायात् ॥ अथासंभवेदिवाहताभिः शीताभिरद्भिः सुवर्णयुताभिर्गृहेएवस्नालाऽहते वाससीपरिधायधृतकुंकुमतिलकः शप्ता| सनेउपविश्याचम्य प्राणा नायम्यदेशकालैौस्मृत्याममास्य बालकस्य गर्भावुपानजनितसकल दोषनिबर्हणायुर्मेधाभिवृद्धिबीजगर्भसमुद्भवै नोनिबर्हण द्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं जात For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कर्मकरिष्ये॥ तत्रनिर्विघ्नार्थंगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंमातृपूजनायुष्यमंत्रज भास्कर ||१४|| पपूर्वकमाभ्युदयिक श्राद्धं हेग्मैवकरिष्येइतिकृत्वा ॥ अत्रपुण्याहवाचनांते सविताप्रीयतामि त्यूहः ॥ अच्छिन्नेनालेमेधाजननायुष्ये करोति ॥ तत्रमेधाजननंयथा ॥ अनामिकया सुवर्णा । तर्हितयामधुघृतेएकीकृत्यघृतंवाकेवलं कुमारंप्राशयतिपिता ॥ ॐ भूस्वयिदधामि ॥ ॐ भुव | स्वयिदधामि ॥ ॐ स्वस्त्वयिदधामि ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सर्वं त्वयिदधामीत्यनेनमंत्रेणसकृत्प्राशय ति ॥ अथास्यायुष्यंकरोति ॥ तत्रकुमारस्यनाभिदेशेवादक्षिणकर्णसमीपे अग्निरायुष्मा ॥१४०॥ अन्नित्यादिवक्ष्यमाणमंत्रान्नपनि ॥ ॐ अभिरायुष्मान्त्सवनस्पतिभिरायुष्यस्तेनवायु For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie घायुष्मंतंकरोमि॥१॥ ॐ सोमऽ आयुष्मान्सऽओषधीभिरायुष्मॉस्तेन त्वायुषायुष्मंतंक रोमि॥२॥ ॐ ब्रह्म आयुष्भत्तद्रा ह्मणेरायुष्मत्तेनत्वायुषायुष्मंतंकरोमि॥३॥ ॐदे| वाऽ आयुष्मंतस्तेमृतैरायुष्मंतस्तेनत्वायुषायुष्मंतंकरोमि॥४॥ ॐ ऋषयआयुष्मंतस्तेन तैरायुमंतस्तेनत्वायुषायुष्मंतंकरोमि॥५॥ अपितरऽ आयुमंतरलेस्वधानिरायुष्मतस्तेन बायुषायुमंतंकरोमि॥६॥ ॐ यज्ञ आयुष्मान्सदक्षिणाभिरायुष्मास्तेन वायुपायु मंतंकरोमि॥७॥ ॐ समुद्र आयुष्मान्सस्वंतीभिरायुष्मास्नेनत्वायुषायुमंतंकरोमि | ॥ ८॥ एतावत्सर्यंतममिरायुष्मानित्यारश्यत्रिर्जपति॥ ॐ व्यायुपज्जमर्दनेक्षकश्या ।। For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार पस्यत्र्यायुषम्॥यडेवेषुत्र्यायुषन्तन्नोऽ अस्तुत्र्यायुषम्॥ व्यायुषमित्येतमपिमंबंविण भास्कर ॥४१॥ पनि॥सयदिकामयेतकुमारःसर्वमायुरियादिनितदाकुमारंवात्सप्रेणाभिमृशति॥दिवस्परी त्यारस्यगोमंतमुशिजोधिवत्रुरित्यंतोवात्सप्रः॥ ॐ दिवस्परिप्रथमन्यज्ञे अमिरस्महिती युम्परिजातवेदार ॥तृतीय॑म्प्सुनुमणाऽ अजस्मृमिन्धान एनजरतेस्ाधीश ॥१॥धियाने अमेधात्र्याणिधियातेधामधितान्युरुवा॥वियानामपरमङ्ग हायडिया नमुत्सन्यतै आयगन्यै॥२॥ समुद्रेवानुमणाऽ अप्स्वन्तर्नुचा ईधेदिवो अ ॥१४१॥ । ऊर्धन्॥तृतीयेत्वारजसितस्थिवाः समपामुपस्थैमहिषाअवर्धन्॥३॥अर्के । For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S | न्दद॒ग्निस्त॒नयन्निव॒द्यौः क्षामारेरिहद्दीरुधः समुञ्जन् ॥ सृद्योष॑ज्ञा॒नोधहीमि॑द्धोऽ अ व्य॒दारोद॑सी भा॒नुना॑भात्य॒न्तः ॥ ४ ॥ श्रीणामु॑दा॒रोध॒रुणा॑रयी॒णाम्म॑नी॒षाणा॒म्प्रार्पण | सोम॑गोपा || सुंसूनुः सह॑सो अ॒प्सु॒राजा॒व्विना॒त्यये॑ऽ उ॒षसा॑मिधा॒नः ॥ ५॥विश्वं॑ |स्यके॒तुर्भुवनस्य॒गर्भ॒ऽ आरोद॑सी अपृणा॒नाय॑माना ॥ घा॒डुचि॒दधि॑मभन परा॒यन्ज ना॒वद॒ग्निमय॑जन्त॒पन्च॑ ॥ ६ ॥ उ॒शिक्याव॒को अ॑र्तित॑मे॒धामत्यै॑श्चा॒ग्निर॒मृतो॒नि धायि । इय॑र्तधूमम॑रु॒षम्भरि॑ष्व॒दुच्छुक्रेण॑शो॒चिषा॒द्यामिन॑क्षन् ॥ ७ ॥ द्दृशा॒नोरुक्मः ऊ॒र्व्याय॑द्यौ दुर्म्मऽ ऋष॒मायु॑ प्रि॒येरु॑वा॒नः ॥ अ॒ग्निर॒मृतो॑ अनव॒दयो॑भि॒ये॑दे॑न॒ For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार न्यरज॑न॒यत्सुरे ॥ ८ ॥ यते॑अ॒द्य कृ॒णव॑द्भद्वशोचेपू॒पन्दे॑वघृ॒तव॑न्तममे ॥ प्रतन्त्र्यप्रत् भास्कर ॥१४२॥ रम्बस्यो॒ऽअच्छि॑भिरू॒म्नन्दे॒वत॑क्तन्यविष्ट॥९॥ आतम्भ॑ज॒सोश्श्रव॒सेच॑नऽ उ॒क्य उ॑क्य॒ आजा श॒स्यमा॑ने । प्रि॒यः सूर्येशयोः अ॒मान॑वा॒त्युज्जा॒तेन॑भि॒न॒द्दुज्जर्नलैः ॥१०॥ लाम॑मे॒यज॑माना 3 अनु॒च्च॒न्विश्वा॒चरू॑दधरे॒धामी॑णि ।। त्वया॑ स॒ह॒द्रवि॑णमि॒च्छमा॑नाय॒जङ्गम॑न्न॒सु॒शिजो॒धिव॑व्रु S | || ११|| ततः कुमारस्य प्रागादिचतुर्दिक्षुचत्वारः उपरिभागस्याभावेमध्येवानैर्च त्यकोणेएकः पंचम एवं पंचब्राह्मणानवस्थाप्य ॥ इममनुप्राणेतियजमानोब्रूयात् ॥ एवंसर्वत्र॥ व्याने त्यादयः ॥ ततः |पूर्वदिकस्थितो ब्राह्मणः कुमारंलक्षीरुत्यप्राणेतिब्रूयान् ॥ एवंच्यानेतिदक्षिणतः ॥ अपानेत्यपरः For Private and Personal Use Only | ॥१४२॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥उदानेत्युत्तरतः॥ समानेतिपंचमउपरिष्टादवेक्षमाणोब्यान्॥अविद्यमानेषुब्राह्मणेषुस्वयमे वप्रनिदिशंपरिकम्यैतत्करोनि॥स्वयंकरणपक्षेप्रेषाभावः॥ यस्मिन्देशेकुमारोजातोभवतितं देशमनिमंत्रयते।देशसूतिकागारं॥ ॥नमंत्रः॥ ॐ वेदतेभूमिहदयन्दिविचन्द्रमसिश्रितं॥वेदाहन्नन्मान्तविद्यापश्येमशरदःशानन्जीवेमशरदःशतः शृणुयामशरदः शतम् |॥१॥ अथैनकुमारमभिमृशति ॥ ॐ अश्मामय परकर्मवहिरण्यमस्रुतम्भव॥ आत्मायै पुत्रनामासिसजीवशरदः शतम्॥१॥ अथास्यमातरमभिमंत्रयते॥ॐ इडासिमैवाया | रुणीवीरे वीरमजीजनथाः ॥ सात्वम्वीरवतीभवनास्मान्वीरवतोकरत्॥१॥इतिमंत्रण॥ For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार थास्यमातुर्दक्षिणस्ननंजलेनप्रक्षाल्यकुमारायप्रयच्छति ॥ ॐ इमर्द स्तनमूर्य०॥ भारकर ॥१४॥ ॥१॥ ततोवामस्तनपक्षाल्यप्रयच्छति ॥ ॐ यस्नेस्तनः शशयोजोमयोभूर्योरत्नधास विद्यः सदन ॥ येनविश्वापुष्यसिबार्याणिसरस्वतीतमिहधातयेकः ॥१॥ इत्यनेना | मंत्रेण॥ ततः मूनिकायाः रयट्वाधस्ताकुमारस्यशिरप्रदेशेउदकपूर्णकलशंनिदधाति॥ | ॐ आपोदेवेषजायथयथादेवेषुजायथ॥ एवमस्थाट सूतिकाया दमपुत्रिकायांजायय | ॥१॥ इत्यनेनमंत्रेण॥तदुदकपात्रस्थापितमेवदशाहतिष्ठतिपागुत्थानात्॥तनोनालच्छे १४३|| दन॥ ॥ ततःसूतिकागृहद्वारदेशेअरनिमात्रेस्थंडिलेपंचभूसंस्कारान्कृत्वासूतिकामेः For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie स्थापन। संपूज्यहविः संस्कृत्यपर्युक्ष्य॥ अतःप्रभृत्युन्यानंयाचनायत्सायंप्रातः संधिवेल योईयो: प्रत्ययावसूनिकास्मानंकरोतिताबद्दशाहपर्यंतफलीकरणमिश्रान्सर्षपान्तस्मि न्मगौडेआहुतीहस्तेनजुहोति॥ फलीकरणमिानसूक्ष्मतंडुलायमित्रान्॥ ॥तत्रमंत्री ॥ ॥ ॐ शंडामर्काउपवीरःशौंडिकेयऽ उलू रयल:॥मलिम्लुचोद्रोणासश्चवनोनश्यनादितःस्या हा॥ इदंशंडामर्काउपवीरायशौंडिकेयायउलूपलायमलिमुमुचोद्रोणासश्चयनोनश्यतादि तेभ्यश्चनमम॥१॥ ॐ आलिखन्ननिमिषःकिम्बदन्त उपयुतिः॥ हर्यक्ष:कुम्भीशत्रुपा त्रपाणिमणिहँत्रीमुखः सर्पपारुणश्चयनोनश्यनादिनःस्वाहा॥ इदमालिखन्ननिमिषायकिं । For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार वयःउपश्रुतहर्यक्षायकुंभीशववेपात्रपाणयेनृमणयेहंत्रीमुरवायसर्षपारुणायचवनायचा भास्कर नमम॥२॥ इत्याहुतिहय॥ ॥यदिकुमारयहोबालमुपद्रवेत्तदातंबालं जालेनपच्छायोन शियेणवा ससावापरछायांक आधायतंबालंहृदिस्पृशन्पिताजपति॥ ॐ कुर्कुरः सुकुर्कुरः | कुरोबालबंधनः॥चेच्चे छुनकः सजनमस्ते अस्तुसीसरोलपेतापहिरनत्सत्यं॥ यत्नेदेवाय | रमददुःसा वकुमारमेवयावृणीथाः॥चेच्चेछुनकः सृजनमस्ते अस्तुसीसरोलपेनापहरन सत्यं॥ यत्तेसरमामानासीसर:पिताश्यामशबलोपत्रातरी॥चेच्चे जुनकसृजनमस्ते अ ॥४४॥ स्तसीसरोलपेतापहर ॥१॥ इत्यतपठितेनरक्षति॥ ॐननामयतिनरुदतिनहष्यति For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नग्लायतियत्रवयं वदामोयत्र चाभिमृषामसि ॥ १॥ इत्यनेनमंत्रेणाभिमृशतिकुमारं पिता ॥ ॥ रुतस्यकर्मणः सांगतासि व्यर्यस्मृत्युक्तान्दशसंख्याकान्ब्राह्मणान्सूतकांतेभोजयि ष्ये ॥ तेन श्रीकर्मी ● ॥ ब्राह्मणेभ्योगंधतांबूलवस्त्रालंकारादिभिर्यथाविभवंसंपूज्य ।। तेभ्यश्वसुव र्णादिदक्षिणांद त्वातैराशिषोगृहीत्वा ॥ ॥ मातृणांविसर्जनं ॥ यांतुमातृगणाः सर्वैस्वशक्त्या पूजितामया ॥ इष्टकामप्रसिध्यर्थंषु नरागमनाय च ॥ १ ॥ इतिविसर्जयेत् ॥ कुमार्याश्चैतज्जान कर्मामंत्रकं कार्यं । रात्रौसंध्यायांग्रहणे जाताशौचांतरमध्येपीदंकार्यं ॥ मृताशौचमध्येजा तश्वेत्तदैवाशौचांतेवाकार्यं ॥ पितरियामांतरगतेपिपितृव्यादिगो जो ज्येष्ठ क्रमेणेदंकुर्या For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार ॥ इदंआयुष्यकरणकालातिकमेपिकियते॥मेधाजननंतुमुव्यकालातिकमाननियर्ततेत भास्कर ॥१४५॥ स्मात्कुमारंजातंघृतंवैवायेपनिलेहयतिस्तनंबानुधापयंतीनिजातमावस्यकुमारस्यश्रुत्या मेधाजननोपदेशान्संस्कारकर्मत्याच॥ ॥इतिसंस्कारसास्करेजातकर्मसंस्कारप्रयोगः॥ ॥ अथवालस्यदुष्टदृष्टिदोषादोरक्षाविधिः॥ ॥ वासदेवोजगन्नाथःपूतनातर्जनोहरितारा क्षतित्वरितंबालमुंचसंचकुमारक।कृष्णरक्षशिशंशेरयमधुकैटभमर्दन॥ प्रातःसंगचभध्यान्हसायान्हेषुचसंध्ययोः॥महानिशिसदारक्षकंसारिष्टनिषूदन॥ यद्ोरजःपिशाची ॥१५॥ श्य हान्मात्यहानपि॥बालयहान्विशेषेणछिधिछिंधिमहाभयान्॥वाहिनाहिहरेनि For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्यंवद्रक्षाभूषितंशिशं॥ इतितस्माभिमंत्र्यैवषयेत्तेनामस्मना॥शिशोर्ललाटायगे। पुरक्षांकुर्याद्यथाविधि ॥ इतिप्रयोगसागरे॥ ॥रक्षरक्षमहादेवनीलग्रीवजटाधरणय हैस्तुसहितोरक्षमुंचमुचकुमारकं ॥ अमुंमंभूर्जपत्रेविलिरव्यनसबंदक्षिणभुजेवधीयात् इनियंत्रोद्वारे॥ ॥बालरोदनपरिहारार्थयंत्रमुक्तं मयूरये॥ षडलमध्येहीकार स्तन्मध्येशिशोर्नामपिलिरव्यषदकोणेपु ॐलुलुबस्वाहेतिमंत्र ( षडक्षराणिविलियनदहिर्नेमिवदृत्तद्वयंविलियतद्वहिरधो XXX) रदयं यथो मुररर्धचंद्ररावेष्ट्यपंचोपचार सपूज्यबालहस्तेबध्रीयादिति॥ कैलिखेत्॥ For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१४६॥ | ॥बालग्रहशांत्यादिकंबालग्रहस्तवश्वशांतिकमलाकर शांतिमयूरवयोर्द्रष्टव्यः॥ ॥ भास्कर थषष्ठीपूजनं॥ ॥तद्यथा ॥ विघ्नेशजन्मदानांचजीयंत्याश्चप्रपूजनं॥जातादिपंचमे षष्ठेनिशीयेबलिमाहरेत्॥१॥ द्वारतृतीयामागेतु पुत्तलैश्वापिकज्जलैः॥दक्षिणोत्तरयोर्दै शेलेरच्यचत्वारिपूजयेत्॥२॥ द्वारस्यो तृतीयभागइति॥ ॥ अर्चये द्दशदिक्पालान् गीनवादिबनिःस्वनैः॥ रुत्वाजागरणंरात्रीगीतैश्वशांतिपाठकैः॥३॥ दशाहंसूतिकागा रमायुधैश्चविशेषनः॥ यहिःसधूमसलिल:पूर्णऊ:प्रदीपकैः॥ ४ ॥ मूसलादिनथारा १६|| स्वैर्वर्णकैश्चित्रिनेनच॥विभूतिरक्षांकुर्वीतसर्षपान्विकिरेत्तथेति॥५॥ तच्चपंचमेषष्ठे For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिनेवापूर्वरात्रोपित्रादिदिराचम्यप्राणानायम्यदेशकालसंकीर्तनातेअनयोः सूतिका बालकयोः आयुरारोग्याभिवृध्यर्थंसकलारिष्टशांतिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थविनेशस्य जन्मदानांजीयंत्यपरनाम्न्याःषष्ठीदेव्याः शस्त्रगर्मागवत्याश्चयथामीलितोपचारैःपूजन करिष्ये॥ एनप्रतिमा:पीठादोयाक्षतपुंजेषुपूगीफलेषुविनिवेश्याः॥संप्रदायस्त स्वर्णमयींएकांजीपनिकप्रतिमारुखातस्याश्च अग्युत्तारणपूर्वकप्राणप्रतिष्ठांकुर्वति॥म; सांपृथग्याएकतंत्रेणषोडशोपचारे पूजन। तद्यथा॥ आयाहिवरदेदेविषष्ठीदेवीसिपि श्रुता॥ शक्तिभिः सहपुत्रंमेरक्षरक्षवरानने॥१॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठा॥ अथध्या For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ १४७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नं॥देवीमंजनसंकाशांचंद्रार्धकृतशेखरां ॥ सिंहारूढां जगद्धात्री कौमारी भक्तवत्सलां ॥ख भास्कर खेटंच विश्वाणामभयं वरदांतथा ॥ तारका हारभूषाट्यांचिंतयामिन वांशकां ।। १ ।। ॐ श्रीश्व॑तेलक्ष्मी ● ॥ १ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः विघ्नेशजन्मदाषष्ठीदेवीजीवंतिकाभ्यो नमः ॥ ध्यायामि ॥ एवं सर्वत्र ॥ आगच्छ वरदे देविस्थाने चात्रस्थिराप्तव ॥ आराधयामिभक्त्या त्यांरक्षबलं चसूतिकां ॥ १ ॥ ॐ हिर॑ण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजां ॥ चंद्रां हिर ष्म॑यलक्ष्मी जात॑वेदोम॒माव॑ह ॥ ॥ ॐ भू० विघ्नेशाय • विघ्नेशंआ० ॥ जन्मदायै ॥१४७॥ षष्ठीदेव्यैनमः ॥ जन्मदांषष्ठीदेवी आवाह० ॥ ॐ शस्त्रगर्भाभगवत्यैनमः ॥ शस्त्रगर्भाभ For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |गवतीं आवाहयामि॥ संध्यारागनिषंरक्त मासनंस्वर्णनिर्मितं ॥ गृहाणस मुखीभू त्वारक्षबालंचसूतिकां ॥ ॐ तम॒ऽआव॑हजातवेदोल॒क्ष्मीमल॑पणा॒मिनी॑॥ यस्या॒हि र॑ण्यम्वि॒न्देय॒ङ्गामश्व॒म्पुरु॑षान॒हं ॥ ॐ भू० विधे• ॥ आसनंस० ॥ गंगाजलंसमानीतंसु वर्णकलशेस्थितं ।। पाद्यगृहाण मे बालंसूतिकां चैवपालय ॥ ॐ अश्वपूर्णांर॑थम॒ध्या॑ह॒स्तिना॑दप्र॒मोदि॑नीं॥ श्रीय॑न्दे॒वीमुप॑व्हये श्रीमदेवी जुषतां ॥ ॐ भू०वि० पायंस० ॥ अक्षतापु ष्पगंधाढ्यमर्घ्यर्थनिर्मलंजलं ।। गृहाणपाहिमेपुत्रं सूतिकां भयहारिणि ॥ ॐ कांसोस्मि तांहिर॑ण्यप्र॒कारामार्द्राच्ज्वल॑न्नीन्तृप्तान्नृर्पय॑न्तीं ॥ प्र॒द्येस्थि॑ता॑प॒द्मवर्णानामिहोप व्हये For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार श्रियं॥ ॐ भू.वि. अय॑सः ॥ यहाणाचमनीयंतुकर्पूरेलादिवासितं॥ सवालोसू भास्कर ॥१४॥ निकांपाहिजगन्मातर्नमोस्तते॥ ॐ चन्द्राम्प्रभासायशाज्वलन्तींश्रियन्लोकेदेवर्जुमा ||मदारां॥ ताम्यनेमीशरणमहम्प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मेनश्यताम्साँवृणोमि ॥ ॐ भू-वि आ चमनंस.॥पंचामृतंगृहाणेदंपयोदधिधृतमधु॥ शर्करासहितंदेविपाहिबालंसमादक ||॥ ॐ घृतेनसीतामधुनासम॑ज्यताम्बिर्देवैरनुमतामरुदिः ॥ ऊर्जस्वतीपया पि विमानास्मान्सतिपयसाश्यावृत्स्य॥ ॐ भू.वि पंचामृतस्नानंस ॥ दुकूलादिम ॥१४॥ ||यंदेवि नानारलैःपरिष्कृत॥ परिधत्स्वमयंवस्त्ररक्षमेसुतसूनिके॥ ॐ उतुमादेवस For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व कीर्तिश्चमणिनासह॥प्रादुर्भूतोस्मिराष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमहिंददातुमे।। ॐ भू०वि० वस्त्र । स०॥नानारत्नमयदिव्यंमुक्ताहारमयंझमागृहाणाकालरात्रित्वंरक्षमेसुतसूतिके॥ ॐ क्षुत्पिपासामलाज्येष्ठा अलक्ष्मी शाम्यह। अतिमसमृद्धिंचसर्वानिदमेगृहात् । ॥ॐ भू.वि. अलंकारान्समर्पयामि॥ कर्पूरागरुकस्तूरीकंकोला दिसमन्वित। चंदनं स्वीकुरुखमेरक्षवालंचमूनिकां ॥ ॐगंधद्धारांदुराधर्षीनित्यपुष्टांकरीषिणी॥ ईश्वरींसर्व भूतानांतामिहोपहियेश्रियं॥ ॐ भू.वि. चंदनंस ॥ सुमाल्यानिरुगंधीनिमालस्या दीनिवैपालो। रहाणवरदेदेचिरक्षबालंचसूतिकां ॥ ॐ मनसःकाममाकूतिम्बाचः सत्यम For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार शीमहि ।। य॒म्पू॒नरूप॑मन्नस्य॒मयो॒श्रीश्र॑यतां॒याः ॥ ॐ भू० वि० पुष्पंस• ॥ हरिद्राकुंकु भास्कर ॥१४९॥ मादीनिनानापरिमलानिच ॥ गृहाण कालरात्रि त्वंरक्षबालं चसूतिकां ॥ ॐ अर्हिरिवो गैः ० ॥ ॐ भू० वि० परिमल द्रव्यं सम• ॥ वनस्पत्युद्भवं धूपं दिव्यंस्वीकुरुदेविमे ॥ प्रसीद समुखीभू बारक्षमे सुतसूतिके ॥ ॐ कर्दमे॒न प्र॒जाभूताम॒यिसंम्भवकर्दम । श्रे म्वा॒सयमेकु ले मा॒तर॑म्पद्य॒माल॑नीं ॥ ॐ भू० वि० धूपंस० ॥ आज्यंवर्तिकृतंदेवि ज्योतिषांज्योतिषं तथा ॥ जीवंतिके गृहाणेदं रक्षमेसुतसूतिके ॥ ॐ आपःस्रज॑न्त॒स्निग्धानि॒चि ॥१४९॥ त॒वसमेगृ॒हे ॥ नीच॑दे॒वीम्मा॒तर॑श्रिय॑म्मा॒सय॑मेकुले ॥ ॐ भू० वि० दीपंस• ॥ नैवेद्यंलेय For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पेयादिषड्सैश्चसमन्वित॥ भुक्ष्वदेविगणैर्युक्तारक्षमेसुतसूतिके॥१॥ॐ आदीयः करिणीयष्टींसवीहेममालिनी॥सूर्याहिरण्मयींलक्ष्मीजातवेदोममार्वह॥ ॐ भू-विनैवेद्यंस ॥ इदंफलंमयादेविस्थापितंपुरतस्तव॥ तेनमेपरितुष्टावंरक्षबालंचसूतिका ॐ याः फलिनी०॥ ॐ भू०वि० फलंस. ॥नागवल्लीदलंरम्यंपूगीफलसमन्वितं॥ मद्रेगृहाणतांदूलंपाहिमेसुतसूतिके॥ ॐ आर्द्राम्पुष्करिणींपुष्टींपिंगलीपमालि नीं॥ चन्द्राहिरण्मयींलक्ष्मीजातवेदोममावह ॥ ॐ भूचि. नांदूलंस०॥हिरण्यगर्ने विदक्षिणां ॐ भू० वि दक्षिणांस. कदलीगर्भसतंकपूरंचपदीपिन॥आरानि । For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कमहंकु'रक्षबालंचसूतिकां ॥ ॐ इदर्ट हविः ॥ ॐ भू-वि• कर्पूरनीराजनंस॥ भास्कर ॥१५०॥ नानारूगंधपुष्पाणियथाकालोद्भवानिच॥ पुष्पांजलिंगृहाणेमंरक्षमेसतसूतिके॥ श्रीश्चैतेलक्ष्मी० ॥ ॐ भू.वि. पुष्पांजलिंस.॥ यानिकानि॥ सप्तास्येतिप्रदक्षि णां०॥ अथप्रार्थना॥ षष्ठीदेविनमस्तस्यसूतिकायहशालिनी॥पूजितापरयासत्या दीर्घमायुःप्रयच्छमे॥१॥ जननीजन्मसोरख्यानांवर्धिनीधनसंपदां ॥ साधिनीसर्वपमूता | नांजन्मदेत्यांनतापयं॥२॥ गौरीपुत्रोयथास्कंदः शिशुलेरक्षितःपुरा॥ तथाममाप्यमुं] |॥१५०॥ बालंषष्टिकेरसतेनमः॥३॥ यथादाशरथीरामश्चतुर्मूतिर्मवप्रदे॥ त्वयासंरक्षितस्त || For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir उद्धालंपाहिशुभप्रदे॥४॥विष्णुनाभिस्थिनोब्रह्मादैत्येश्योरक्षितस्त्वया ॥ तथामेबालकंरक्ष योगनिद्रेनमोस्तते॥५॥रक्षितीपूतनादिश्योनंदगोपसतोयथा। तथामेबालकंपाहिदुर्गे देबिनमोस्तते॥६॥यथावृत्रासादिंद्रोरक्षितोदितिबालकः॥लया तथामेबालोयरक्षणायाम हेश्वरि॥७॥ यथावयाजनीपुत्रो हनुमानक्षितःशिशः॥तथामेबालकंरक्षदुर्गदुर्गातिहारिणि॥८॥रुद्रःस्वर्गायथादेविकश्यपादिसतास्वया॥ मानस्माहितयाबालं विष्णुमायेनमोस्तु ते॥९॥सर्वविघ्नानपारुत्पसर्वसौरव्यप्रदायिनी॥जीचंतिकेजगन्मात:पाहिनःपरमेश्वरि ॥१०॥ अनयापूजयाविनेशजन्मदाजीवंत्यपरनाम्नीषष्ठीदेवीशस्वगाभगवत्यःप्रीयंता॥ततो For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१९१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिक्पालपूजनं ॥ ननोनीराजनं ॥ सूतिकागृहेबलिंसोपस्करंदद्यात् ॥ तत्रमंत्रः ॥ क्षेत्रस्याधिपते भास्कर देवि सर्वारिष्टविनाशिनि ॥ बलिंगृहाणमेरक्षक्षेत्रंसूतीच बालकं ॥ १॥ इमंसोपस्कर बलिंक्षेत्रा |धिपत्यै देव्यैसमर्पयामि ॥ ततआगत्यद्वारस्योभयतकज्जलेनद्वेद्वेमातरौलिखेत्॥ तन्नामानि ॥ धीषणा वृद्धिमा तान्च तथागौरीचपूतना ॥ आयुर्दा त्र्यो भवं लेता अद्यबालस्यमेशिवाः ॥ पंचोपचारैः पूजयेत् ॥ कवासिनीभोजनं ॥ विप्रेभ्यश्वखा द्यतांबूलदक्षिणादिदद्यात् ॥ | तैराशिषोग्गृहीत्वा ॥ दशमेन्हिविसर्जनंकार्यं ॥ जननाशौचमध्येप्रथमषष्ठदशमदिनेषु ॥ १५१ ॥ | दानेप्रतिग्रहेचनदोषः । अन्नंतुनिषिद्धं ।। अत्रपंचमषष्ठदिनयोः पुरुषाः शस्त्र हस्ताः For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रियश्वनृत्यगीतकारिण्यः अस्यांरात्री जागरणं कुर्युः॥ सूनिकागे हंसधूमाग्निदीपा स्त्रमुशलांबुविभूतियुतं कार्यं ॥ सर्पपाश्र्वसर्व तोविकिरेत् ॥ अन्यदपियथा चारं कार्यं ॥ वि प्राश्वशांतिपारंपठेयुः ॥ इतिसंस्कारभास्करेषष्टीपूजनं ॥ ॥ अथरात्रिवर्गः॥ रा त्रिवर्गोनामशांतिपाठः ॥ तंच दशदिनंसूतिकासमीपे प्रदोषसमये जपेत् ॥ ॥ अयपू तिथोसकलारिष्टशांतिपूर्वकं सूतिका बालकयोः आयुष्याप्तिवृध्यर्थंश्रीपरमेश्वरश्री त्यर्थशांतिपाठजपंकरिष्येइतिसंकल्पः ॥ तत्रायंक्रमः ॥ गणानांत्वेति प्रथमं श्रीश्वते तदनंतरं ॥ ब्रह्मयज्ञानम्प्रथमंइदम्विष्णुस्तुव्यम्बकं ॥ भूरसिभूमिप्रथमंआ For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पोहिष्ठानतःपरं॥ तेजोसिश क्रमितिचधायो येने घृतंघृन॥२॥ नवग्रहाणांमंत्राश्च भास्कर ॥१५२॥ दिक्पालानांतथैवच॥ आश:शिशानमारभ्यमर्माण्यांततः पठेत्॥३॥दिवस्परिस मारण्यश्विनुयायुषंजपेत्॥ आनोभद्रासमारण्यजनित्वातंततः परं॥४॥ऋचम्या | समारण्यअंतेतु शरदः शतान्॥राविवर्गमिमंजाय्यवालानांभयनाशन॥५॥ | ॥ इतिसंस्कारमारकरेरात्रिवर्गक्रमः समाप्तः॥ ॥अथनामकरणसंस्कारनिणी यः॥ एकादशाहेद्वादशाहेवाविप्रस्यनाम की। क्षत्रियाणांचयोदशेषांउदो यादिने।वै ॥१५२॥ श्यानांषोडशेविंशतितमेवादिने॥ द्वाविंशेमासांतेवाशूद्राणां ॥ दशम्यामुत्थाध्येतिग्रस|| For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | वदिनमारस्य दशम्यांरात्र्यामतीतायां एकादशेन्हिसूतिकामुत्थाप्यस्नापयित्वामा तृपूजापूर्व कं नांदीसुखश्राद्धंकृलाश्राद्धव्यतिरिक्तं त्रीन्ब्राह्मणाम्भोजयित्वापितानामकरोति ॥ तद्यथोक्तं ॥ अवपिग्रहणादन्यत्रापिपितुर्नियमोवगम्यते ॥ अत्राप्यसन्निधौपितरि अन्यः कश्चित्कुल | वृद्धः करोति ॥ तत्र ॥ कृष्णानं तोऽच्युतश्चक्रीवैकुंठगेथजनार्दनः । उपेंद्रीयज्ञपुरुषो वासुदेव स्तथाहरिः ॥ योगीशः पुंडरीकाक्षोमास नामान्यनुक्रमात् ॥ अत्रयथा चारं चैत्रादिमार्गशी। |र्षादिर्वाक्रमः। तच्चत्रिपुरु षवाचिदेवतावाचिस्विष्टवा युग्माक्षरंप्रतिष्ठाकामः ॥ चतुरक्षरंत्र |ह्मवर्चसकामो नामकुर्यात् ॥ तच्चघोषवदादिघोषवंति अक्षराणि ॥ गद्य ङ । जझन्न | डढण। For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नाम नामादेो । अंतस्थायरलवाः नाम्नोमध्येभवंति ॥ दीर्घावसानं ॥ कृत्प्रत्ययां भास्कर ॥१५३॥ तं ॥ नतद्वितांतं ॥ कन्यकायास्त अयुग्माक्षरं ॥ आकारांतं ॥ तद्धितां तं ॥ अत्रब्राह्म णस्यशर्मा तंनाम कुर्यात् ॥ क्षत्रियस्यवर्मांतं॥ वैश्यस्यगुप्तांतं ॥ शूद्रस्य दासांतं ॥ | नाक्षत्रनामानितुचुचे-बोलाश्विनी प्रोक्ते त्यादिज्योतिर्ग्रयोक्तावक हडा चक्रानुसारे णाश्विन्यादिचतुश्चरणेषु चूणामणिश्वेदीशश्वोलेशोलक्ष्मण इत्यादिकानि कुर्वंति ॥ कातीयानांतुकृत्तिकोसन्नस्यासिशर्मेतिनक्षत्रदेव तासं बद्धंनाक्षत्रं नाम कुर्यात् ॥ ना ॥१५३॥ क्षत्रनामैवाभिवादनीयं गुप्तंचामौंजीबंधनात् ॥ मातापितरावेव जानीयातां ॥ व्यावहा For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie रिकनामचतुर्थ। तच्चकवर्गादिषुतृतीयचतुर्थपंचमवर्णहकारान्यतमवर्णाद्यावयवकं यरलवान्यतममध्यवर्णयुतंकलपर्णरहितविसर्गातपित्रादिपुरुषत्रयान्यतमवाचकंश वाचकभिन्नतहितप्रत्ययरहितंकपत्ययातंयुग्माक्षरंपुंसांअयुग्माक्षरंस्त्रीणांकार्य। तयथा॥ भक्ता॥ इत्याबंनंदेवनानाम॥ मासनामस॥ चक्रिणी॥ वैकुंठी॥यास |देवी॥ एतानि त्रीणिडीवंतानि॥ हरिरित्येतन्नामकन्यापुत्रयोःसमानम्॥ शेषाण्यष्टो॥ जनाईना ॥ उपेंद्रा॥ यज्ञपुरुषा॥ योगीशा॥ पुंडरीकाक्षा॥ कृष्णा॥अनंता॥ अच्यु ता॥ एतान्यावनानि यानीतिधर्मसिंधौ॥ ॥तच्चजन्मनएकाददोन्हि वायथा For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार चारंनियतदिने नामकरणं कार्यं ॥ नियतकालेपिविष्टिवैधृतिव्यतिपात य हणसंकायमा भास्कर ॥१५४॥ स्याश्राद्धदिनंचे तर्हि नकार्यं ॥ नियतकाले क्रियमाणेगुरु शक्रास्त वाल्यवार्धक्यवका तिचारमलमासादिनिषेधोनास्ति ॥ नियतकालातिक्रमेतु ज्योतिःशास्त्रोक्तराम दिने । कार्यं ॥ यदिकेनचित्प्रकारेण प्राप्तकाले जातक मैनवतितदा अनादिष्ट प्रायश्वित्तपूर्वकं नामकर्मकाले जातकर्म नामकर्म च सहैक तंत्रेणकार्यं ॥ सहदेव भवेच्छ्राद्धमित्याशया स्त प्रसिद्धः ॥ ॥ अथप्रयोगः॥तत्रायंक्रमः शिष्टाचारश्व॥ नामाख्ये मातृनांदीन्य ॥१५४॥ जति जनन तोद्वादकादशे वाविप्रांस्त्रीन्भोजयित्वा तमपिच भवेत्तद्वितंनैव पुंसः ॥ त For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्यादौघोषवंतोयरलवपुरतः शर्मवर्मेनिगुप्तेत्येतेविपादिवर्णान्वितयेषुअभिधानंत मीबंतमस्याः॥१॥ ततः कुमारपितामंगलं स्नात्वा हतवाससीपरिधायधृतमंगलति लकः भासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्यशिशो: वीजग समुद्भवैनोनिबर्हणायुरभिवृद्धिव्यवहारसिद्विद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थनामकरणं करिष्ये॥ तत्रनिर्विघार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनमातृकापूजननांदीश्रा वंचकरिष्येइतिरुत्वा॥ अत्रपुण्याहवाचनांतेप्रजापतिःप्रीयतामितिवदेत्॥ नामक रणेअधिकारार्थबीन्ब्राह्मणाभोजयिष्ये॥ अवशिष्टाचार प्राप्तंनामदेवतापूजन॥न For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार द्यया॥ कांस्यपात्रे तंडुलान्प्रसार्यतदुपरिसवर्णशलाकयाश्रीकुलदेवताप्रयुक्तमादी भास्कर अमुकदेवताभक्त इतिनाम॥मासनाम॥ नक्षत्रनामाव्यवहारनाम॥एवं नामचतुष्ट यलिखित्वा॥ ॥अस्यशिशोबव्हायुष्यप्राप्त्यर्थनामदेवतापूजनंकरिष्ये इतिसंकल्पः ॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठा॥श्रीश्चतेनिमंत्रेणनामदेवताभ्योनमइतिषोडशोपचारैःसं पूज्य॥ ननःस्वदक्षिणन:मातुरुत्संगस्थस्यशिशोर्दक्षिणकर्णकथयति ॥हेकुमारलंगण पनिशक्तोसि॥हे कुमारखंकुलदेव्यासक्तीनाम्मामार्तंडोसि॥ हेकुमारखमासनाम्नारु १५५॥ ष्णोसि ॥ हेकुमारसंनक्षत्रनाम्माचूडामणिरसि॥ हेकुमारवंव्यवहारनाम्नारामचं For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रोसीति ॥ इतिकथयित्वा ॥ मनो जूतिरितिमंत्रपठनाते विप्रैर्नामरूप्रतिष्टितमितिचाचयिला ॥ ततोब्राह्मणानभिवादयेत्॥ तद्यथा ॥ हेकुमारत्वंगणपतिभक्तोसिसर्वान्ब्राह्मणान भिवादय ॥ इत्युपांरूपितावदेत् ॥ आयुष्मान्भवसौम्यगणपतिभक्तः ॥ इतिद्विजान युः ॥ हे कुमारत्संमार्तंडवार्मा कुलदेव्याभक्तोसिसर्वान्ब्राह्म०॥ आयु. मार्तंडाम ॥ हे कु मारत्वंमास नाम्ना कृष्ण शर्मासिसर्वान्द्रा ॥ आयु० कृष्ण शर्मा॥ हेकुमार लेनक्षत्रनाम्ना चूडामणि | शर्मासिस०॥ आयु- चूडामणिशर्मा ॥ हेकुमारत्वं व्यवहारनाम्नारामचंद्रशर्मासिस०॥ आयु. रामचंद्र शर्मा । तनोविप्राः वेदोमीतिमंत्रेणाशिषंशिशवेदद्युः ॥ ॐ वेदोसिव॑न॒त्व॑दे॑व॒द्येद॑दे॒वेभ्यो॑धे॒रोभ॑य॒ For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर संस्कार स्तेनमयंवेदोभूयाः॥१॥ ॥ उपांशलक्षणंतु॥अभिवादननामेदमस्येत्यालोच्य चेन सा॥उपोशनिर्दिशेच्चैतनजानीयुःपरेयथेति॥ ॥अथास्यायुष्यंकरोतिदक्षिणकर्णम भिनिधायवाग्यागिनित्रिरथास्यनामधेयंकरोतिवेदोसीतितदास्यैतद्यमेवनामस्या दथदधिमधुन सर्टसृज्यानंतर्हि तेनजातरूपेणप्राशयति॥अथास्यायुष्यंकरोतिदक्षि णकर्णे॥ॐ अमिरायु. सवनस्प०॥ ॐसोम आओषधी ब्रह्म आ० तास |॥ ॐ देवाड आयु. मृत०॥ ॐ ऋषयः आव्रते॥ॐपितर आ०स्वधा०॥ॐ य- ज्ञआन्सदक्षि॥ ॐसमुद्र आन्सरवं०॥ ॐ त्र्यायुषञ्जम० ॥ १॥ इतित्रिः॥ १५६॥ For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथास्यदधिमधुघृतमेकीकृत्यप्राशयति ॥ ॐ भूत्वयिदधामि ॥ ॐ भुवस्व ॥ॐ स्वस्त्वयि०॥ ॐ भूर्भुवःस्वःसर्वंत्य॰॥ अथैनमभिमृशति ॥ ॐ अश्माभवपरशुर्भवहिरण्यमस्स्रुतम्भव ॥ आत्मावैपुत्रनामा सिसजीवशरदः शतम्॥१॥ अथास्यमातरमभिमंत्रयते ॥ ॐ इडासि मै० ॥१॥ अथैनंमातुःस्तनंप्रक्षाल्यप्रयन्च्छति ॥ ॐ इ॒मः स्तन्॰ ॥१॥ यस्ते॒स्तन॑ः इति ऋगन्यां॥ॐ तं वाऽएतमाहुः अतिपिता बता भूरतिपितामहोचताभूः परमावत काष्टांप्रापश्रियायशसाब्रह्मवर्चसेन एवंविदो ब्राह्मणस्य पुत्रो जायते ॥ १ ॥ ततः कर्तादेवताभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्चनत्वा ॥ दशसंख्याका ब्राह्मणान्भोजयिष्ये ॥ ब्राह्मणेभ्योदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृहीता ॥ यांतुमातृगणाः सर्वेनिमा For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार दृणोविसर्जनं॥ कुमा_अपिनामकरणंअमंत्रकंकार्य ॥ इनिसंस्कार मास्करेनामकरणं॥ ॥ भास्कर ॥१५॥ आंदोलशयनेसोडादशोदिवसःशुभः॥त्रयोदशस्तशय्यायांननक्षत्रविचारणा||१||अवदिने शुभकालेकुलदेवतायोगशायिनंचसंपूज्यस्मृतानत्वाचमात्रादिसाग स्त्रीमि: अलंकृत शिशंगीनवाद्ययोषपुरस्सरंआंदोलेदक्षिणशिरसंनिधापयेत्॥ प्राप्तकाले कुयोगससेपिजातकर्म वत्कार्य।इत्यांदोलारोहण॥ ॥एकविंशदिनेचैवपयः शरयेनपाययेत् ॥अन्नप्राशननक्ष वेदियसेवापरेशिशु॥१॥ अबोक्तदिनेशुभकालेगणपतिकुलदेवतांचसंपूज्यगोक्षीरंशयेन ॥१५॥ पात्रीमातादक्षिणशिरसंशिशुभकेनिधापआप्यायस्पेनिमवेणपाययेत्॥इनिदुग्धपान॥ ॥ अथ For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निष्क्रमण संस्कारः॥ तच्चद्वादशेन्हिचतुर्थेमासेवायात्रोक्तशुभदिनेशुभकालेकार्यं ॥ तत्रायंक मः॥ निष्क्रामस्तूर्यमासेभवतिदिवमातृनांदीसुखांतेतचक्षुर्कापाठेर्दर्शयनिसविता जा तपुत्रस्यनार्या ॥ कुर्यात्कन्यांविमंत्रैर्यहमखमथवा केचिदिच्छंतिविप्रान्भोज्यंदानादिकृत्यंभव |तिविधिरयं सर्वसंस्कारमुरख्यः ॥ १॥ शिशनासहमंगलंस्खात्याशभासने उपविश्य ॥ आचम्यत्रा णा नायम्यदेशकालकीर्तनीनेममास्यशिशोः आयुरभिवृद्धिव्यवहारसिद्धिद्वारा श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं गृहान्निष्क्रमणं करिष्ये ॥ स्वस्तिवाचनादिमातृपूजापूर्वक नांदीश्राद्धांतकृत्वा ॥ अत्रषु ण्याहवाचनांते सविताप्रीयतामित्यूहः । ततः पिताऽलंकृतंगिमातृगृहीतं शकुनेगृहा For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org संस्कार, निझम्यसूर्योदीक्षणेकारयेत्॥तवमंत्रः॥ ॐ तचर्दियुहितम्पुरस्ताच्छुकमुच्चरन्॥पश्येम भास्कर ॥१५८॥ शरदशत जीवैमशरद शतर्दशृणुयामशरदः शतम्प्रर्बयामारदः शतमीनाः स्यामश रद शतम्सूर्यश्वशरदः शतात्॥१॥देवतायतनेगच्छेत्॥गृहमागत्यसवासिनीभिर्निराज्य दशब्राह्मणाभोजयिष्येइतिसंकल्पयेत्॥बाह्मणेभ्योदक्षिणांदला॥तेराशियोगृहीला॥यांतु मातृगणाःसर्वतिमातॄणांविसर्जन॥ ॥कुमारस्यास्मिन्नेवदिनेरावौशावेलायांचंद्रदर्शी कार्य। तद्यथा॥ चंद्रार्कयोर्दिगीशानादिशांचवरुणस्यच॥निक्षेपार्थमिदंदयितेलारक्षतु ॥१५८॥ सर्वदा॥प्रमत्वापसप्तंवादिवारात्रमथापिवा॥रक्षतुसततंतेलांदेवाः शक्रपुरोगमाः॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिसंस्कारशास्करनिक्रमणसंस्कारः॥ ॥ अयभूम्युपवेशनं॥पंचमेचतथामासेशिशंभू मौनिवेशयेत्॥ तत्रसर्वेयहा शस्तानीमोप्यत्रविशेषतः॥१॥ तच्चचवमृदुलघुनक्षवादिज्योति । शास्त्रोक्तशादिनेपूर्वाण्हेस्वस्तिवाचनंरुखाबाराहंकूर्ममनं पृींचसंपूज्य॥ ततोगोम योपलिप्तभूमौरंगवल्लीमंडलंरुखातबद्रोणसमानगोधूमगशिरुत्या॥ तत्रराशीमंगलगीत वायघोषपुरःसरमलरुतंशिशुमुपवेशयेत्॥ तत्रमंत्राारक्षेनंवरूधादेविसदासर्वगतेशुको आयुःप्रमाणलिखितंनिक्षिपस्वहरिपियो॥१॥ अचिरादायुषस्तस्ययेकेचित्परिपंथिनः।। जीवितारोग्यवित्तेषुनिर्दहस्वाचिरेणतान् ॥२॥धारिण्यशेषाभूतानांमातात्वमसिकामधुका For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१५९|| अजराचाप्रमेयाचसर्वभूननमस्कना ॥३॥ चराचराणांभूतानांपनिष्ठानामियायसि॥कुमारंपाभास्कर ॥हिमातस्त्वंब्रह्मातदनुमन्यतां॥४॥सवासिनीभिर्निराज्य॥ब्राह्मणेभ्योदक्षिणोदत्वातैराशिषोयही खाधान्यराशिंगुरवेदयात्॥एवंकुमार्याअपि॥ ॥ इतिभूम्युपवेशन॥ ॥ अथान्नप्राशनं। षष्ठेमासेन्नप्राशन।तचज्योतिःशास्त्रोक्तशभदिनेकार्य॥ तत्रायंक्रमः॥अन्नप्राशोथनांदो। अपयतिचचरूंपायसंचाथहुसातत्राघाराज्यमागौद्वितयमयघृताद्देवदेवींतुयाजःप्राणा यासश्चतस्त्रश्चरुहुतिथहुनेसिष्टकर्सवाद्या:सर्वास्ताविंशतिस्तमदिनमथशिशंषा |॥१५९॥ शयेइंतहेम्मा॥१॥ ततःपितासभार्य:शिशुनासहमंगलंमालाऽहतेवाससीपरिधायधृत For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिलकः समासनेचापविश्यमाणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेममास्यशिशोर्मातृग मंगलप्राशनशुध्यर्थअन्नायब्रह्मवर्चसतेजइंद्रियायुर्वललक्षणफलसिद्विबीजगर्भसमुद्भवैनोनिवर्हण द्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थअन्नप्राशनारव्यकर्मकरिष्ये।। तत्रनिर्विप्रार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपु ण्याहवाचनमातृकापूजननांदीश्राइंचकरिष्येतिरुवा॥ तत्रपुण्याहवाचनांतेगविताघीयतामिनिवदेत् ॥ ततः स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंशचिनामानममिंप्रतिष्ठाप्यषोडशो) पचारैःसंपूजयेत्॥ततोब्रह्मोपवेशनादि॥ आसादितेविशेषः॥ सर्वान्पड्रसान्क्षारकटुति नकषायमधुराम्लाल्लेखपेथ्य चोष्यखाययवशाल्यादिनिर्मितंघृतादिप्राषितमन्नं तैना । For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार, सपात्रेधृतं ॥ पुस्तकशास्त्रवस्त्रादिशिल्पंचविन्यसेत् ॥ परियच्छेदनादिप्राज्यभागातंरुलानंता भास्कर ॥१६॥राज्येनाहनियं॥तामंत्रौ॥ॐ देवींवाचमजनयंतदेवास्तांविश्वरूपाः पशवोचदंति।सा नोमंद्रेषमूलेंदुहानाधेनुर्वागस्मानुपसष्टुनेतुस्वाहा ।। १।। इदंबाचेन ॥ॐ देवींवा नुपसुष्टु नैतु | ॥ॐ बाजौनो अधपर्सयातिदानंबाजोंदवाँ २ ६ ऋतुर्भिकल्पयाति॥ बाजोहिमासर्वचीर जजाधिश्वाऽआशाचार्जपतिर्जयेय स्वाहा॥२॥ इदंबाचेवाजाय ॥ततःस्थालीपाकेनाहुतिर तुष्टयं॥ ॐ प्राणेनान्नमशीयस्वा इदंपा ॥ॐ अपानेनगंधानमशीयस्वा इदमपानाय० ॥ १०॥ चक्षुषारूपाण्यशीयस्वा० इदंचक्षुषे०॥ ॐ श्रोत्रेणपोशीय इदंश्रो ॥ततःस्थालीपाकेन For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie | विष्टकृत्॥ ततोमहान्याहृत्यादिनयाहुतयः॥ ततःसंत्रवप्राशनादिप्रणीताविमोकांतहोम | शेषंसमाप्य॥ ॥ततःस्याल्यांआसादितसर्वरसान्शाल्पादीन्यन्नानिचनीयएकस्मिन्या प्रत्येकमुश्रुत्यसरुदेवप्राशयेइंतेतिमंत्रेण॥ अहंत॥ हंतकारंमनुष्याइनिश्रुतेः। नतोबालकंमू मोउपवेश्यतदयेपुस्तकशस्त्रयस्यादिशिल्पविन्यस्यजीविकापरीसांकुर्यात्॥शिशुःस्वेच्छ | याप्रथमंयस्पृशेन्तेनैवतस्यजीविका भविष्यतीतिज्ञायेत्॥ब्राह्मणेभ्योदक्षिणादखातैरा शिषोगृहीत्वादशब्राह्मणान्मोजयिष्येइतिसंकल्प्य॥ मातॄणामग्नेश्वविसर्जनंफर्यात्॥ इतिसं० मा अन्नप्राशनं॥ अथशौनकोक्त दत्तपुत्रप्रनिग्रहविधाननिर्णयः॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१६१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शौनकः ॥ अपुत्रोमृत पुत्रोवापुत्रार्थं समुपोष्यच ॥ वाससीकुंडलेदद्यादुष्णीषंचांगुलीयकं ||१|| भास्कर न्वाधानादियत्तंत्रकृत्याज्योत्सवनादिकं ॥ दातुःसमक्षंगलातुपुत्रं देहीति या चयेत् ॥ २ ॥ दानेसम थौदा तास्मै ये यज्ञेनेतिपंचभिः। देवस्यखेतिमंत्रेणहस्ताभ्यां परिगृह्य च ॥ ३ ॥ अंगादंगेत्यृचंज स्वाचाघ्रायशिशुमूर्धनि ॥ गृहमध्येतमादाय चरं हुत्वाविधानतः ॥ ४॥ यस्त्वाहदेत्यृचाचैवतु ॥स्यमयेऽक्रचैकया॥ सोमोदददित्येताभिः प्रत्यृचंपंचभिस्तथा॥ ५॥ स्विष्टकृदादिहोमं चत्वा शेषंसमापयेत् ॥ बंधुभिः सहभुंजीत ब्राह्मणां विशेषतः ॥ ६ ॥ ॥ दत्तके विशेषः ॥ पितुर्गोचे ॥१६१॥ णयः पुत्रः संस्कृतः पृथिवीपते ।। आचूडांतेनपुत्रः सपुत्रतांयातिचान्यतः ॥ १॥ चूडोपायनसंस्का For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie रानिजगोत्रेणवैरुताः॥ दत्तायातनयास्नेस्युरन्यथादासउच्यते॥२॥नसेकपविणोदास्तथै बज्येष्ठपुत्रकमिति॥ ब्राह्मणानांसपिंडेषुकर्तव्यःपुत्रसंग्रहः॥सोदकोवासगोबोवा अन्यत्रतुन कारयेदिति॥ ॥कात्यायनः॥ आचातृवृद्धवयसोअसंपदत्तपालने॥कुलस्याहरणा ययाह्यांकन्यांविवाहयेदिति कन्यादत्तक यहणेविशेषः॥ ॥स्त्रीशूद्रयोस्तपि शेषः॥पराशरेणशूद्रकर्तृकहोमोविप्रहारैयोक्तः॥तथापिब्राह्मणस्यशूद्रखबाघापत्तेः॥ तएचदातापौराणमंत्रपठेत् ।। कुलस्योद्धरणार्थायदेवामिद्विजसन्निधौ॥वंशविस्तरणा यप्रनिगृहामीमसतं॥१॥कन्याविषयेउत्तरार्धभेदः॥अपजसनिवृत्यर्थंकन्यास For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१६२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्ताप्रगृह्यतामिति ॥ मूर्ध्न्यवधाणे॥ अंगादंगानिसंभूतान्हृदयादीनि सर्वशः ॥ आत्मावैषु भास्कर त्रनामासिसजीवशतवत्सरान् ॥१॥ इति ॥ होममंत्रः ॥ सोमोददगंधर्वायगंधर्वेदिददग्नये ॥ अनेनअग्निनादत्तोयेनदत्तोमया इमंइति ॥ ॥ अथप्रयोगः ॥ पुण्ये हनिसपलीकोयज मानः शुभासने उपविश्याचम्य प्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेममअमजलप्रयुक्तपैतृ |कऋणापाकरणपुन्नामनरकचाणद्वारावंशाभिवृध्यर्थं श्री परमेश्वरप्रीत्यर्थंशौनकोक्तविधि नापुत्रप्रतिग्रहंकरिष्ये ॥ कन्याविषयेविशेषः ॥ अप्रजत्वनिरासार्थं मम समस्त पितृणानि ॥१६२॥ तिशयानंदवंशोद्धारकल्पोक्तफलावाप्तयेश्रीपरमेश्वरश्रीर्त्यएतत्कन्यायाः स्वकन्यारूपसत्ता For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करणंकरिष्येइतिमंकी ऊहः॥ तवनिर्विनाथगणपतिपूजनस्वस्तिपुण्याहवाचनआचार्ययर पंचकरिष्येइतिहखा।कुलदेवतागुरूंअसंपूज्यनत्याचपुत्रप्रतियहांगविहितंअभिमनिष्ठापन हवनंचकरिष्ये॥ ॥एपंकन्यासन्नाकरणांगलेनेति॥ नत्रस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंलो किकामिप्रतिष्ठाप्य॥तनोदक्षिणनोब्रह्मासनादिप्रोक्षण्या प्रत्युत्पवनांतंकवा॥तनआ| चार्येणसहदातु:समक्षंगछेत्॥ आचार्यद्वारायांचांकारयेत्॥आचार्योदानारंप्रत्येतस्मैप बंदेहीतियांचांकुर्यात्॥ ददामीतिदातायदेत् ॥ ततोदानाआचम्यप्राणानायम्यदेशकाल) कीर्तनांनेतववंशाभिवृद्धयेममचपुत्रकफलप्राप्तिकाम:श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थपुत्रदानकरिष्ये। For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार कन्याविषयेतु॥ तववंशोधारायकन्यारूपसत्तासिध्यर्थंच कन्यास्वसत्तानिवृत्तिपूर्वकंतुभ्यं भास्कर ॥१६॥ एतकन्यानिवेदनंकरिष्येइतिऊहः॥दंगविहिनंगणपतिपूजनंकरिष्येइतिरुत्वा॥ तत्तोयथा शक्तिचंदनादिनापतिगृहीतारंसंपूज्यदानमंत्राः॥ ॐयज्ञेनदक्षिणयामसक्ताईद्रस्यसख्या ममृतत्वमानशं॥ तेश्योपद्रमंगिरसोवो अस्तप्रतिगृणीमानसमेधसः॥१॥य उदाय पित्तरोगोमयंवस्वनेनभिदन्परिवत्सरेवलं॥दीर्घायुखमंगिरसोवो अस्तपतिगृपणीतमाना समेधसः॥२॥ यतेनसूर्यमारोहयन्दिव्यप्रथयन्पृथिवीमातरंविः॥सप्रजास्लम १६३॥ गिरसोवोऽअस्तपतिग्रणीतमानवँसमेधसः॥३॥ अयन्ना भावदतिबलवोगृहेदेवपुत्रा || For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir S ऋषयस्त दृणोत्तमं ॥ सुब्रह्मण्यमंगिरसोवो अ० ॥ ४ ॥ ॐ विरूपास इ॒दृष॑य॒स्तद्वे र ैपस॥ तेऽअंगिरसः सू॒नवँ॒स्ते अ॒ग्नेः परिजज्ञ॒रे ॥५॥ इतिमंत्रपठनांते ॥ इमं पुत्रं तवपैतृकऋणा | पाकरणपुन्नामनरको तारणार्थं वंशाभिवृध्यर्थं आत्मनश्वमुक्तयेश्री परमेश्वरप्रीतये तुभ्यमहंस | प्रददेनमम ॥ कन्याविषयेविशेषः । इमांकन्यांतव अप्रजवनिरासार्थं सयासहएकविंशतिपुरु षोत्थरणार्थं आत्मनश्वमुक्तयेवंशोद्धार कल्पोक्तफलावाप्तये श्रीपरमेश्वरप्रीतयेआत्मसत्तानिवृत्चिपूर्वकं तुभ्यंकन्यारूपसत्तां अहंसंप्रददेनममेति ॥ एतद्दानोदकंपुत्रविषयेप्रतिगृही गृहस्ते निषिंच्य ॥ कन्याविषयेप्रतिगृहीतृसमीपे जलमध्ये जलंक्षिपेदिति ॥ प्रतिगृहातुपु For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार भवान् ॥ कन्यारूपसत्तांप्रतिगृण्हातुतवान् ॥ देवस्यत्वेतिमंत्रेणहस्तद्वयेनप्रतिगृण्हामी भास्कर ॥१६४॥ तिप्रतिगृह्यस्वांकेउपवेशयेत् ॥ ततअंगादंगादितिमंत्रेणशिशंमूर्ध्यतिजिघेत्॥ ॐ अंगाद गान्संभव सिहृदयादधिजायसे॥ आत्मावैपुत्रनामासिसजीवशरदः शतम् ॥ १ ॥ ततो युवास वासाइनिमंत्रेण बालकाय वस्त्रपरिधाय उष्णीषंबध्वाकुंडलादिभिरलंकृत्यकुंकुमादिनानिल कंल त्वाप्रावरणे नसंवेष्ट्य धृतच्छबंगीतनृत्यमंगलवाद्यपुरःसरंब्राह्मणैः स्वस्तिनइंद्रेतिसुमंग लसूक्तपठन् परैस्तं बालंगृहे आनीयपुरंधीभिर्नीराजयेत्॥ ततो गृहीताहस्तपादौ चमक्षा ॥१६४॥ ल्यअमेः पश्चिमतः शुभासने उपविश्यस्वदक्षिणतः पतीपत्न्युरसंगे बालं चोपवेश्य । For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेदत्तविधानांगहरनंकरिष्ये। उपयमनकुशानादाये त्यादिआज्यभागांतंकवा॥ तनवरुमभिधार्यहोमः॥ ॐ यस्खाहदाकीरिणामन्यमानोमय मो मोहवीमि॥ जातवेदोयशोऽअस्मासहिपूजाभिरमे अमुत्समस्यास्वाहा॥१॥ इदम मयेनमम॥ ॐ यस्मसंसरुने जातवेदःउलोकमकृणवः स्पोनं ॥ अश्विनंसपुत्रिणवीर तंगोमतरयिनशनेस्वस्तिवाही ॥२॥ इदममयेनमम॥कौस्तुभेतुमंत्रदयेनैकाहनिःपदर्शिता॥ ॐ तुप्त्यम पर्यवहत्सूर्यावहतुनासह ॥ पुनःपनियोजायांदानें पूजयासहस्वाहा ॥३॥ इदंसूर्यसावित्र्यैः ॥ ॐ सोमौददद्वंधर्वायगंधर्वोददग्नये॥यिंचपुनॉश्यादा मि For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मयुमोड मास्वाहा॥ २॥ इदंसूर्यसावित्र्यै ॥ ॐ इहैवस्तुमाथियौष्ट्रविघुमायुर्व्यश्चती कर ॥१५॥ ॥कीलंतोषत्रैर्नप्ट्रनिोदमानौवेगृहेस्वाहा॥३॥इदंसूर्यसा०॥ ॐ आनःप्रजांजनयतुम जापनिराजरसायसमनकर्यमाः॥ अदुर्मगली:पतिलोकमाविशंशन्नोमवरिपदेशंचतुष्पदे स्वाहा॥४॥ इदंसूर्यसावित्र्यैन०॥ ॐ अधोरचक्षुरपनिम्येधिशिवापशभ्यः समना:रूपचर्चाः॥वीरसूचकामास्योनाशन्नोभवदिपदेशचतुष्पदेस्वाहा॥५॥इदंसूर्यसावित्र्यैन०॥ ॐ इमाखामिंद्र मिशः सुपुत्रांसभगांकृणु॥दशास्यांपुत्रानाधेहिपतिमेकादशंकृधिस्वाहा॥६॥ १६५|| इदंसूर्यसावित्र्येनमम॥ ततोव्यस्तसमस्तव्याहृतिभिरष्टाहुती खा॥ उभाभ्यां स्पिष्टरुत् ।। For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तनोभूराद्यानवाहुतयः॥ ततः संत्रयप्राशनादिप्रणीतारिमोकांनंहोमवशेषसमाप्य||आचार्याययस्त्रालंकारादिभिर्यथाविभयंपूजयित्वाधेनुंदद्यात्॥ ब्राह्मणेत्योदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृहीला॥सभोपविष्टान्गंधतांबूलादिभिस्तोषयेत्॥दशब्राह्मणान्मोजयेत्॥दे बतामिविसृज्याकर्मणःसंपूर्णतायांचयित्वाईश्वरार्पणकुर्यात्॥बंधुसहद्भिःसहजीनततः खस्तियाचनादिनांदीश्राद्धांतकृत्याजानफर्मादीन्संस्कारान्कुर्यात्॥अथवाकृतजातकर्मादिषुचा लोपनयनादिकुर्यात् ॥ इतिसं दत्तपुत्रप्रतिग्रहविधान॥ ॥अथांतरितसंस्कारप्रायश्चि ॥ गर्भाधानादीनिचूडाकरणांतानिसंस्कारकर्माणिनियतकालान्यपिहितानि॥यदिदैववशा। For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार भास्कर सुरुषापराधाडादोषाहानियतस्यकालस्यअतिक्रमोपनिनदापायश्चित्तंविधीयते॥कात्या यनः॥आरत्याधानमाचौलाकालेनीतेतुकर्मणांव्याहत्याज्यंतुसंस्कृत्यहवाकर्मयथाक्रम। व्यस्तैःसमस्तैाहत्याचत्वारिपंचवारुणं॥मनिसंस्कारलोपेतुइसाज्येनपृथक्पृथगिति॥ अ न्यच्च॥ एतेप्पेकैकलोपेतुपादकच्छंसमाचरेत्॥ चूडायाअर्धकस्यादापदीत्येवमीरितं॥ नापदिनुसर्वत्रद्विगुणद्विगुणंचरेत् ॥ लुप्तेकर्मणिसर्ववप्रायश्चित्तंविधीयते॥ पायश्चित्तेकतेप वाल्लुप्तकर्मसमाचरेत्॥ इति ॥ अशक्तीगोदानं॥अथवागोनिक्रयीभूतयथाशक्तिरजतद्रव्य दानमिति ॥ ॥अथोपनयनदिनात्पूर्व न्हिआचम्यमाणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेज १६६॥ For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org स्यकुमारस्यगर्भाधानादिवापुंसवनादिचूडाकरणांतानांसंस्काराणां कालातिपत्तिजनित प्रत्यवायपरिहारद्वारा श्रीपरमेश्वरमात्यर्थ अनादिष्टप्रायश्चित्तहोमपूर्वकं गोदानं करिष्ये ॥ स्थंडिलेपंच भूसंस्कारपूर्वकंलौकिकामिप्रतिष्ठाप्य ॥ ब्रह्मोपवेशनादिआज्य भागांतेप्रतिसंस्कारे आज्येनव्य |स्तसमस्तव्याहृतीश्वनस्त्रस्यन्नोऽअग्मेत्यादिपंचवारुणंहुवा।। ततो महाव्याहृत्यादिविष्टकृदंतादशाहु तयः ॥ ततः संस्त्रवप्राशनांतंहोमशेषंसमाप्य ॥ गांचदद्यात् ॥ अध्यवाकालातिपन्नसंस्कार प्रत्यवाय || परिहारद्वारागोनिष्क्रयीभूतयथाशक्तिरजनद्रव्यंदा तुमहमुत्सृजे ॥ तेनश्रीकर्मगदे• ॥ इत्यं तरितसंस्कारेप्रायश्वितं ॥ ॥ अथसंक्षिप्तांतरितसंस्कारप्रयोगः। यथा॥प्राङ्गामकरणा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१६॥ द्वालापागन्नप्राशनाच्छिशुः॥कुमारकस्तविज्ञेयोयायन्मोंजीनिबंधनं ॥ तदूब्रह्मचारी भास्कर स्यादिसर्गातेतुस्नातकः॥रुतेविवाहेविधिवद्गृहस्थाश्रमिणवदेदिनि॥सर्वांतरितसंस्कारेकु भार:परिकीर्तितइति ॥ गणशक्रियमाणानांमातॄणांपूजनंसरुत् ॥सरुदेयतवेत्थाईहोम मंत्रा:पृथक्पृथगिति॥ ॥ ततोयजमानः पत्नीकुमारसहितउपनयनदिनापून्हिमंगलं| स्मात्याउहतेवाससीपरिधायधृतमंगलतिलकः शभासनेउपविश्य॥आचम्यमाणानायम्य देशकालकीर्तनांते अस्यकुमारस्यबीजगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणेनबीजकोत्पत्यतिशयमा- ||१६७॥ गर्भामंगलपाशनशद्विपुरुषताज्ञानोदयनेजइंद्रियबलायुर्वोभिव्यवहारसिद्धिद्वारा For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थगर्भाधानादिवापुंसवनादिअन्नप्राशनांता-संस्कारानेकतंत्रणायतथाच दिजससिघ्यावेदाध्ययनाधिकारसियर्थश्चः करिष्यमाणचौलोपनयनेब्रह्मवर्चस्वसिध्यर्थवे दारसंचएकतंत्रेणकरिष्ये॥तदंगत्वेन निर्यिनार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिवाचनादिनांदीश्राद्यां नंकरिष्येइतिरुत्वा॥ ॥अथांतरितसंस्काराणामयश्यकर्नव्यानि॥ ॐ पूषाप्नगई इतिगर्मा धान॥ॐ हिरण्यग श्यःसंचन इत्येतान्यावाश्यामृगत्यापुंसवनं॥ ॐ पूर्भुवःस्वरितिम हाच्या हृतिभिर्थिनयामीतिसीमनः॥ ॐ भूस्वयिवस्वयिस्वस्वयिमूर्भुवःस्वः सर्वत्वयि दधामीतिमेधाजननं ॥ अमिरायुष्यानित्यादिव्यायुषकरणांतंजानकर्म॥ श्रीकुलदे असुन For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१६८॥ संस्कार कदेवताभक्तमास नामनक्षत्र नामव्यवहारनाम प्रतिष्ठाप्यवेदोसीत्याशिषमिति नामकर्म भास्कर ॐ तच्चक्षुरितिनिष्क्रमणं ॥ ॐ हन्त ॥ इति मंत्रेणासमानं ॥ पुण्याह वाचनांतेमृत्युः सवितासवितासविता चैतेप्रीयंनांइति ॥ ॥ इत्यं नरितसंस्कारप्रयोगः ॥ अथचूडाकरणसंस्कारः॥ ॥ सांवत्सरिकस्य चूडाकरणं ॥ संवत्सरोजातोयस्यसः सां | वत्सरिकः॥ सचाद्यसंवत्सर स्यांतिमेमासे ॥ तृतीयेवाप्रतिहते॥अथवा तृतीयेसंवत्सरे अपूर्णचूडाकरणं कुर्यात् ॥ यथामंगलंवासर्वेषां ।। अथवाययाकुलाचारं पंचमेद्देवाउपनीत्यास ॥१६८॥ हक्रियते तथाव्यवस्था ॥ उदगयने शुक्लपक्षेगुरुशुक्रयोर्वाल्य वार्द्धक्यास्तसमयाप्तावे अक्षये For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनधिकेचमासेज्योतिः शास्त्रोक्तप्रशस्ततिथिवारलग्नेशुनेमुहूर्नेदिनेएयकार्यःनतुराबी। यदिगर्भाधानादिसंस्कारलोपस्तप्रायश्चित्तंकालात्ययनिमित्तंप्रायश्चित्तहोमंचरुवाकार्यइति । प्रायश्चित्तप्रकारस्तअंतरिनसंस्कारलोपकरणेदृष्टव्यः॥सूनोतिरिगर्मिण्यांचूडाकर्मन कारयेत्॥पंचमाद्वापागूथुतुगर्मिण्यामपिकारयेत्॥सहोपनीत्याकुर्याचेत्तदादोषोनवियते॥ चरितस्यचौलादिमंगलंनकार्यामातरिरजस्खलायामपिनकार्य। विवाहबतचूडासु मातायदिरजस्वला ॥ तस्याः शद्धे परंकार्यमंगलंमनुरब्रवीत्॥नांदीश्राद्दोत्तरंरजस्वला यांशोतिरुत्वाकार्य । केचित्तुमुहूर्तानरामाचेप्रारंपास्त्रागपिरजोदोषे श्रीपूजनादिपि। For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार विनाशांतिंकृत्याकार्यमित्याहुः॥मातुलपित्रव्यादेःकर्नुःपल्यारज-चलायामपिमंगलनेति भारत ॥१६९॥ सिंधुः॥त्रिपुरुषात्मककुलेषण्मासमध्येमौंजीविवाहरूपमंगलोतरं मुंडनारव्यंचूडाकर्मा, दिनकार्य॥ संकटेतु अद्वक्षेदेकार्य। चतुः पुरुषपर्यंतंकुलेसपिंडीकरणमासिक श्राद्वान प्रेतकर्मसमाप्तेः प्राक्चूडाकर्मादिकमाभ्युदयिककर्मनकार्य। एकमात्जयोरेकसंवत्सरे अपत्ययोईयोः समानसंस्कारोनका? ॥नसंस्कार:समानःस्यान्मातृभेदेविधीयते॥पारं भोत्तरंसूतक माप्तौकूष्मांडीभिक्रम्भिघृतंहुलागांदत्वाचूडोपनयनोहाहनादिकमाचरेत् ||१६९॥ चौलकर्मणिजातकर्मणिचभोजनेसांतपनरुच्छंप्रायश्चिनं ॥ अन्येषुसंस्कारेषूपवा ॥ For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेनश्शुद्धिः ॥ चूडांताः सर्वेसंस्काराः स्त्रीणाममंत्र काः कार्याः ॥ होमस्त समंत्रकः ॥ इदानीं । शिष्टेषुस्त्रीणांचूडादिसंस्कारकरणं न दृश्यते । विवाहकाले चूडादिलोपप्रायश्विन्नमात्रं कु वैति ॥ चौलोत्तरंमासत्रयपर्यंतंसपिंडैः पिंडदानंतिल तर्पणेच नकार्यं ॥ महालयेगयायांपिबोः प्रत्यवश्राद्धेचपिंडदानादिकार्यं ॥ इतिधर्मसिंधौ ॥ इतिन्नू डाकरणोपयोगी निर्णयः ॥ ॥अथक्रमः ॥ चौ ंस्यात्र्यैकवर्षाद्युदिनमयकुलान्मातरोबाह्यशालांत्रीन्विप्रान्भोज्यहुत्वामनु | मितमुदकैश्वोंदनंदक्षिणेप्राक् ॥ त्र्येण्याशल्याविनीयत्रिकुशतरुणकं धार्यक्षूरैः सकेशान्छि त्वोक्ष्णोगोमयेस्यादितिबदपरयोः केशमेवं नृपाब्दे ॥ १ ॥ ॥ अथप्रयोगः ॥ तत्रबहिःशा For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर संस्कार ॥१७॥ लाभपति॥ज्योतिः शास्त्रोक्ते शुभमुहूर्नेमाताकुमारमादायालाच्याहतेबाससीपरिधाप्यांक | आधायपश्चादनेपविशति॥ तत्रसंकल्पः॥देशकालौस्मृ० अस्यकुमारस्यबीजगर्भसम। वैनोनिबर्हणेनबलायुर्व!भिवृद्धिव्यवहारसिद्धिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थंचौलकर्मकरि ध्ये॥यदाउपनीत्यासहक्रियतेतदासंकल्पस्तचूडोपनयनेकरिष्येएवमूहःकर्तव्यः॥त अनिर्विघार्थगणपतिपूजनंस्वलिपुण्याहवाचनंअविघ्नपूजनमडपस्थापनमा नृकापूजन यसोरानांदीश्राइंचकरिष्येइनिरुखा॥ अत्रपुण्याहवाचनातेप्रजापतिः प्रीयतामिति ॥१७०। बदेत्॥ चूडाकरणाधिकारार्थबीन्ब्राह्मणाभोजयिष्ये॥ ततोबहिःशालायांस्यंडिलेपंच For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूसंस्कारान्कृत्यामन्यनाम्मोमेस्थापन॥ ततःब्रह्मोपदेशनादिपात्रासादनेनाबचरः॥यात्रासाद नानंतरंउपकल्पनीयानि॥शीतोदकं ॥ उष्णोदकं॥नवनीतपिंडः॥घृतपिंडोदधिपिंडोवादाद शांगुलदीर्घात्र्येणीशलली॥सामाणिहादशांगुलदीर्घाणिसप्तविंशतिकुशतरुणानि॥ताम्रपरि सतआयसक्षुसाआनडुहगोमयपिंडः॥नापिनः॥परश्चेति॥पवित्रीकरणादिआज्यमागा नंतरमहाच्याहत्यादिप्रजापत्यं तानबाहुनयः ॥ तयथा॥ ॐ प्रजापतयेस्वा. इदंप०॥ॐ इंद्रायस्वा इदइ०॥ ॐ अमयेस्वा. इदम०॥ ॐसोमायस्वा इदंसो० ॥ ॐ भूः स्वाइ दमम॥ॐ सुवःस्वा इदंबाना स्वः स्वा. इ. सूर्यायॐ त्वन्नोऽ अमेस्याहा॥इद, For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार, ममीवरुणाभ्यांन० ॥ ॐ सत्वन्नौ अमेस्वा० इदममीवरुणापन्यांन० ॥ ॐ अथाश्चामे भास्कर ॥७॥ | स्वा० ॥ इदममयेऽपयसे॥ॐ येतेशतम्ब०॥ इदंबरुणायसवित्रेयिष्णयेविश्वेयोदेचेभ्योमरु यः चर्केश्यश्चन ॥ ॐ उर्दुत्तमं ॥ इदंवरुणायादित्यायादितये॥ ॐ प्रजापतयेस्वाइ दंप्रजाप॥तनःस्विष्टकृत्।। ॐ अमयेविष्टकृतेस्वान् इदम स्पिष्ट ॥ततःसंचप्राशनादिपा णीताविमोकांनंहोमशेषंसमाप्या। ततएकस्मिन्पात्रेशीतास्वप्सूष्णाऽआपआसिंचति॥आसिं चनसमयेकुमारेणअन्चारंभ कार्यइतिपर्दयज्ञः॥ ॐ उष्णेनवायउदकेनेह्यदितेकेशान्यप-॥११॥ ॥१॥ इनिमंत्रेण ॥ अथात्रउदकेनवनीतपिंडेघृतपिंडंदभोवापास्यति॥ तदुदकमादायदक्षि। For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णगोदानमुंदति ॥ तच्चकारिकायां ॥उंदनंकेशमूलेतुकेशमध्येविनीयनं॥छेदनंचैवकेशाये एषएवक्रमोभवेदिति। दक्षिणगोदानंशिरोदक्षिणपार्यस्थकेशप्लावनादीत्यर्थः॥ ॥ॐ सवित्राप्रसूतादेव्या आपउंदतुतेत॥दीर्घायुखायबलायवर्चसे॥ इत्यनेनमंत्रण॥तन रुयेण्याशलल्याकेशान्विनीय॥विस्थानचेतयाशलल्याइति विनयनकेशसमीकरणं॥त्री णिकुशतरुणान्यंतर्दधाति॥ ७ ओषधेत्रायस्व ॥१॥ इत्यनेनमंत्रण शिवोनामेतिलाह सुरमादाय॥ॐ शिवोनामासिवधितिस्नेपितानमस्ते अस्तमामाहिर्ट सी ॥१॥निवर्तयामी निकेशकुशक्षुरसंलग्नीकरण॥ ॐ निर्वनाम्यायुधेन्नायायप्रजननायरायस्पोपायसुप्रजा For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ॥१७२॥ संस्कार, स्वायसुवीर्याय॥१॥ छेदनेमंत्रः॥ ॐबेनावपत्सविता रेणसोमस्यराज्ञोवरुणस्यविद्वानाने भास्कर नब्रह्मणोवपतेदमस्यायुष्यंजरदष्टिर्ययासं ॥१॥इत्यनेनमंत्रेणसकेशानिकुशतरुणानिष छियानडुहेगोमयपिंडेपास्यत्युत्तरतः॥अमेरुत्तरतःगोमयपिंडस्यस्थापनमितिगदाधरः॥ततस्त ||स्मिन्नेवदक्षिणगोदानेएयमेवापरंवारयंतूष्णीकर्तव्यं॥एकद्रव्येकर्मावृत्तौसकृन्मंत्रवत्कर्मेतिकात्यायनः॥तत्मकारः॥उंदनं॥पिनयनाविकुशनरुणांतर्धान।संलमीकरणं॥ छेदनं॥ गोमय पिंडेपासनं॥एयमुक्तेनप्रकारेणपुनरेकचारकर्तव्यं॥पनिमगोदानेअप्येवमेयकर्मकरोति॥ॐ॥१७॥ सवित्रामसू०॥१॥इत्यनेनपश्चिमगोदानेउंदनं॥ येण्याशलल्याविनयन।। ॐ ओषधेवाय For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वेनित्रिकुशतरुणांतर्धानं॥ ॐ शिवोनामेतिलोहक्षुरग्रहणं । निवर्तयामीतिसंलमीक रणे॥ छेदनेमंबविशेषः॥ ॐ न्यायुषंजमदमेरिति॥गोमयपिंडेमासन।पुनःपश्चिमगोदाने एवमेवापरंवारदयंतूष्णीकर्तव्यं। तत्पकारः॥उंदन।।विनयनं ॥ त्रिकुशतरुणांतर्धान ॥ सल्लगीक रण॥छेदन॥ गोमयपिंडेगासनं॥ एवमुक्तेनप्रकारेण ॥अथोत्तरगोदाने॥ ॐ सवित्राप्रसूताइति मंत्रणउंदनं॥येण्याशलल्याविनयनं॥ ॐ ओषधेत्रायस्वेति विकुशतरुणांतर्धानं॥शिवो नामेतिलोहारग्रहणं ॥ ॐ निवर्तयामीतिसंग्लनीकरणं॥ छेदनेमंत्रविशेषः॥ ॐ धेनभरि श्ररादिवंज्योकपश्चाद्विसूर्थ।।तेनतेयपामिब्रह्मणाजीचानवेजीवनायसुश्लोस्यायस्वस्तये॥॥ For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | इनिमंत्रणछेदमंगोमयपिंडेपासन।पुनरुत्तरगोदानेएवमेयापरंउक्त प्रकारेण वारद्वयंतूष्णी भास्कर ॥१७३॥ कर्तव्यं॥ उंदनं॥विनयनं ॥त्रिकुशतरुणांतर्धानं । संल्लमीकरणं॥छेदनं ॥गोमयपिंडे। पासनं॥नतस्त्रिःक्षुरेणशिरःप्रदक्षिणंपरिहरति॥ ॐ यत्क्षुरेणमज्जयितासुपेशसापत्राबाबपतिकेशान्छिन्धिशिरोमास्यायः प्रमोषीः॥१॥सकृन्मंत्रणदिस्तूष्णींशिरसःसमंतात्क्षुर धामणाततस्ताभिरद्भिःशिरःसमुद्यनापितायक्षुरप्रयच्छति॥ॐ अक्षण्यपरिवप इतिमंत्रण॥सचा नापितउदङ्मुरवस्थितस्यकुमारस्यप्रासंस्थंप्रामुखस्थितस्यउदक्तस्थंशिगेवपेत्।।यथा ॥ ॥१७३॥ मंगलंकेशशेषकरणमित्यस्यायमर्थः॥कुलव्यवस्थयाशिरवास्थापन॥केचिसंचशिरवाः ॥के For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिदेकशिरयाः॥यस्ययथाप्रसिदिस्तस्यतथाशिरवास्थापन॥यथा॥ केशशेषततःकुर्या यस्मिनगोत्रेयथोचितं कुर्वन्त्यन्येशिरखामात्रंमंगलार्थमिहक्कचित्॥ कंबुजानांवसिष्ठानां दक्षिणेकारयेच्छिरयो॥दिमागेत्रिःकश्यपानामुंडाश्चगवोमताः॥पंचचूडाआंगिरसएकावा जसनेयिनामिति॥ ततःसर्वान्केशान्गोमयपिंडेलवातंगोमयपिंडबस्त्रादिनावेष्ट्य अनुगुप्तर खागवांगोष्ठेस्थापयेत्॥अथवापल्वलस्योदकानेउदकसमीपेस्थापयेत्॥पल्यलंनडागः ॥ततश्चूडाकरणसंस्कारकर्नास्वाचार्यायवरंददाति॥वरंगोनिष्क्रय।स्मृत्युक्तान्दशसंख्या, कान् ब्राह्मणान्मोजयिष्ये।यांतुदेवेतिमातॄणांविसर्जनं॥इतिसंस्कारभास्करेचूडाकरण॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार स्पृष्टास्पृष्टेशातानपः॥बालस्यात्युक्षणंप्रोक्तंशिशोराचमनंस्मृनं॥रजस्वलादिसंम्पर्शस्ना भास्कर ॥१७४॥ नमेचकुमारके॥१॥याज्ञवल्क्यः॥ चांडालादिषुसंस्पर्शेसचैस्नानमाचरेत्॥तोयेनिमज्जे नविनाशदिर्नास्तीनिनिश्चयः॥२॥ ॥ इतिसंस्कार्यस्थस्पृष्टास्पृष्टविचारः॥ ॥अथकर्णा वेधः॥ सोवर्णीराजपुत्रस्यराजतीविप्रवैश्ययोः॥ शूद्रस्यचायसीसूचीकर्तव्यासूत्ररंधयुक् ॥१कर्णरंधेरवेश्छायाप्रविशेदयजन्मनः॥स्त्रीणायथेच्छरभंचकर्णाभरणधारणेइति॥ त चवर्षवृत्तीयेपंचमेवाज्योतिः शास्त्रोक्तशामासेशुक्लपक्षेशभदिनेशभमुहूर्तेकायी। रुतम ॥१७१।। | गलस्नानआहतवाससीपरिधायधृतमंगलनिलकःशभासनेप्राङ्मुखउपविश्याचम्यमाणा| For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie नायम्यदेशकालकीर्तनांनेअस्यकुमारस्यायुरभिवृद्धिव्यवहारसिद्धि द्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्य थंकर्णवेधंकरिष्ये॥तदंगलेननिर्विघ्रार्थगणपतिपूजनंकरिष्येइतिहखा॥नतोगणेशंसरस्वतीक लदेवतांब्रह्मविष्णुशियान्नवग्रहाल्लोकपाला-ब्राह्मणांअनयाकुमारंपाङमुसंक्रमासनेउपवेश्य तहस्तेमपुरंदत्या।दक्षिणकर्णमभिमंत्रयने॥ॐ भद्रंकर्णेभिरितिमंत्रेण॥ ततोवामकर्णमभि | मंत्रयते॥ॐ वृक्ष्यन्तीचेदागनीगन्तिकर्णम्भूियर्ट- सरायम्परिषखजाना ॥धोवशिड्डूचित नाधिधन्यज्याउइयर्ट सम॑नेपारयन्ति॥१॥ततःशिशोःकर्णवेधस्थलमारक्तरसेनांकयिता यथाविभवंरूवर्णादिसूच्यामंगलसूत्रोपेनया कुशलसुनगस्त्रियाकर्णवेधयेत्॥ कुमारस्यपूर्व || For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार दक्षिणकर्ण॥ कुमार्यास्कपूर्वधामकर्णवेधयेत्॥यथाशक्तिब्राह्मणाभोजयेत्ातेभ्यश्चदक्षिा मारकर ॥१५॥ राणादखातैराशियोगृहीत्वा ॥सुवासिन्यैचकुंकुमतांबूलादिदत्यागणपनि पिन्जेन्॥ ॥ अ) थकर्णवेधनसत्रात्ततीयनक्षत्रेकर्णक्षालनंउष्णोदके नरोहणार्थकार्य॥ रूटोचकोयथा भरणधारणक्षमताभचतिनथावर्धनीयौ। पुंसः सूर्यरश्मिप्रवेशपर्यंतंरंभंवर्धयेत्।।रुषीणां यथेच्छं॥ इतिसंस्कारभास्करेकर्णवेधः॥ ॥जातकर्मादिचूडाकरणांतानिसंस्कारकर्माणि कुमार्यास्तअमंत्रकाणिकार्याणिहोमस्तसमंत्रकः॥पीशूद्रयोस्तगर्भाधानादिविवाहोता: ॥१७५॥ नवसंस्काराः॥ तत्रापिश्रद्रस्यके वलपौराणविधिनाइतिहरिहरमाष्यनिर्देशः॥ यथा।जा, For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir |नकर्मसमारभ्यस्त्रीणांचूडांनसर्वशः॥ होमःसमंत्रक कार्य संस्कारस्नुअमंत्रकः॥१॥इनि स्त्रीविषये॥शूद्रेतुप्रागुक्तं॥ ॥अथवर्धापननिर्णयः॥ तच्चवर्षपर्यंत प्रतिमासेजन्मति थौकार्य॥ तदनंतर प्रत्यध्देजन्मतिथीकार्य। तिथिद्वैधेयत्रजन्मक्षयोगः सातिथिर्याया। दिनदये जन्मसंयोगसत्यासत्वयोरोदयिकीदिमुहूर्ताधिकायाह्या॥ हिमुहूर्तन्यूनाचे पूर्वा ॥जन्ममासेधिमाससलेशुद्धमासेकर्तव्यं॥नवधिके। इदंवर्धापनंबाल्येपित्रादिनाकार्य। पश्वात्तुस्वयमेवेति॥ ॥अयप्रयोगः॥जन्मदिनेकुमारपत्नीसहितोयजमानः मंगलं |स्नात्याहतवाससीअलंकारांश्चपरिधायधृतमंगलतिलकोमातापित्रोचार्यकुलदेवता For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार विषांश्चनमस्कृत्यगृहाध्यंतरतः सभासनेप्राङ्मुख उपविश्यस्वदक्षिणतःपत्नींतदक्षिण भास्कर ॥१७॥ तकुमारमुपवेश्यधृतपवित्रपाणिराचांतःप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्यकुमारस्य दीर्घायुःश्रीतेजोवृद्धिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थअद्यजन्मदिनेवर्धापनारव्यंकर्म करिष्ये।। | स्वयंकरणेममचदीर्घायुस्तेजोवृद्धिद्वारा श्रीप-प्रीत्यर्थंअद्यमदीयजन्मदिनेवर्धापनारम्यक मकरिष्येइतिसंकल्पः॥ तत्रनिर्विनाथगणपतिपूजनंस्वस्लिपुण्याहवाचनंचकरिष्येइतिह साततः श्रीपर्यादिपीठेपंक्तिरूपेणाक्षतपुंजेषुदेवनाआवाहयेत्॥ तद्यथा॥ ॐगणपत |||१७६॥ येन गणपनिआ. एसर्वत्र ॥ ॐ दुर्गायै ॐ कुलदेवतायैा प्रजापतये॥ॐधि For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ष्णये ॥ महेश्वरायॐ सूर्याय सोमाय॥ भोमायः॥ॐ बुधाबृहस्स०॥ ॐ शकाय०॥ॐवानैश्चरा॥राहये॥ॐकेनवे॥ॐ कालायबायुगायॐ संवत्सराबाई अयनाय॥अंशतक॥ॐमासाय॥ॐ पसाय॥ ॐ जन्मतिथयेनमः॥ ॐजन्माय०॥ ॐ जन्मयोगा ॥ॐ जन्मकरणा-॥ॐ जन्मराशये॥ॐ जन्मलग्रा०॥ॐ शिवायेबाऊस |मूत्ये॥प्रीत्यै। संतत्ये॥ॐ अनुसूयाथै॥ॐ क्षमायै॥उपविष्टाये। द्रायै ॥तनःपंक्तिरूपेणाष्ट दलानित्रीणिविरच्यनदुपरिपूगीफलेदेवताआवाहयेत्॥ॐष ठिीदेव्यैः॥ॐमार्कंडेया-॥जमदग्रये ॥ पुनस्तदयेपंक्तिरूपेणाक्षतपुंजेषु॥अश्वत्थाचे For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥१७७|| नमः अश्वत्थामानंआवाहयामि॥एवंसर्वत्र॥ बलये ॐ व्यासाय ॥ॐ हनुमतेनापिनी भास्कर षणाय ॥ ॐ रूपाचार्याय॥ॐ परशुरामायः ॥ॐ कार्तिकेयायः ॥ उनःपंक्तिरूपेणाक्षतपुंजे। ॐ इष्टदेवतायेा स्थानदेवतायेवा वास्तदेवतायेॐ क्षेत्रपालावापृथिव्यै ॥ॐ॥ अझ्यः॥ ॐ तेजसे यायचे॥ॐआकाशाय ॥ सर्वासांसमंतात्मागादिदिक्षुवापंक्तिरूपेण। इंद्रायॐ अमथे ॥ॐ यमायनिक्रनये ॥ॐ वरुणाय वायवे ॐ कुचे || रायॐ ईशानाय॥ ॐ ब्रह्मणे॥अनंना ॥इत्याबाह्य॥मनोजूनिरितिप्रतिष्ठाप्य।आयोदेवे ।।१७७|| |तिमंत्रेणषोडशोपचारैःसंपूज्या आयौदेवाः सईमहै घामम्यत्यूवरे॥ आयौंदेवास आ For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिौयज्ञियासोहयामहे ॥१॥ इतिमत्रेण॥ ॐ भूर्भुवःस्व मार्कंडेयाद्यावाहिनंदवनायो । नमः इत्या वाहनादिषोडशोपचार समर्पणं पश्येदधिभक्तनैवेद्य अन्येभ्यः पायसादि। प्रार्थना॥जयदेविजगन्मातर्जगदानंदकारिणी॥प्रसीदममकल्याणीनमस्तेषष्ठिदेवते॥१॥ ॥ आयुः प्रजमहाभागसोमवंशसमुद्भव॥ महातपोनिधियेष्ठमार्कडेयनमोस्त॥२॥ चिरंजीयोयथासंभोमयिष्यामितथामुने। रूपयान्विनयानायुःश्रियायुक्तंचमांकुरु॥३॥ कर्तापिताचेत्तहिश्रियायुक्तंशिशुकुरुइति ॥ मार्कडेयनमस्तेस्तसप्तकल्पांतजीवन|| युरारोग्यंमेदेहिप्रसीदभगवन्मुने॥१॥ कपि० ॥ आयुरारोग्यंबालायदेहित्भगवन्मुने । For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार 11919011 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति॥चिरंजीवोयथासंभोमुनीनांप्रवरोद्विज ॥ कुरुष्वमुनिशार्दूलतथामांचिरजीविनं ॥१॥ ||क० पि० ॥ बालंमेचिरजीविनमिति ॥ जमदग्मेमहाभागमहातेजामयो ज्ज्वल ॥ आयुरारोग्यसि ध्यर्थमस्माकं वरदो भव ॥ १ ॥ क० पि。 बालायवरदो भव ॥ त्रैलोक्येयानिष्तूतानिस्थावराणि चराणि च ॥ ब्रह्मविष्णुशिवैः सार्धंरक्षां कुर्वं तुतानिमे॥१॥ प्रीयंनांदेवताः सर्वाः पूजां गृहंतु तामम॥श्र यच्छंत्वायुरारोग्यंयशःसौख्यं चसर्वदा ॥ २॥ मंत्र न्यूनंकिमन्यूनं द्रव्यन्धूनं महामुने ॥ यद र्चितंमयादेवपरिपूर्णंतदस्तमे ॥ ३ ॥ अनयापूजयामार्कंडेया द्यावा हि तदेवताप्रीयंता ॥ ततः पा यसे नसर्वेभ्यो भूतेभ्यो नमतिबलिंदद्यात् ॥ कचित्स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वक लौकिकामिं For Private and Personal Use Only भास्कर ||| १७८ ॥ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिष्ठाप्य ॥ ब्रह्मोपवेशनाद्याज्यभागांतंकृत्वा ॥ ततोघृताक्ततिलैर्नाममंत्रेणषष्टीदेवी मार्कंडेय जमदग्नीनां प्रीत्यर्थं अष्टाष्ट संख्यया अन्यावाहितदेवता नामेकैकंया हुत्यामहाव्याहत्याष्टाविंश निसंख्यया च जुहुयात् ॥ शेषेणस्विष्टकृत् ॥ ततोनूराद्या नवाहुतयआज्येना।। ततः रांरवाशा नादिप्रणीताविमोको तंहोमशेषंसमाप्य ॥ दानानिदद्यात् ॥ तत्रादौ वर्णयुक्ततिलपात्रदानं तिलाः काश्यप संभूतास्तिला: पापहराः स्मृताः ॥ तिलकांचनदाने नदीर्घायुष्यं ददातु मे ॥ १ ॥ इदंनिलपात्रं सदक्षिणा कंदीर्घायुष्यप्राप्तिकामनयामार्कंडेयाद्यावाहितदेवनामीत्यर्थ अगु कशर्मणेब्राह्मणाय तुभ्यमहं संप्रददे ॥ घृतपात्रदानं ॥ आज्यंतैजसमुद्दिष्टं आज्यंयज्ञैः प्र For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार || ||निष्ठितं॥आज्यपात्रप्रदानेनदीर्घायुष्यंकुरुष्यमे ॥ १॥ इदं भाज्यपात्रंसदक्षिणाकंदीर्घायुः भास्कर ५१७९॥ श्रीप्राप्तिकामनयाश्रीमार्कंडेयाद्यावाहितदेवताप्रीत्यर्यअमुकशर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहसं प्रददे॥गोदानमपिदयात्॥नतस्तिलशर्करायुतंपयःपिबेत् ॥ तत्रमंत्रः॥सतिलंगर्करामिश्र जल्यमितपयः॥ मार्कंडेयाइरलब्ध्यापिबाम्यायुर्विवृद्धये ॥१॥ इतिमंत्रणपिवेत्॥ब्राह्म णेभ्योगंधादिभिःसंपूज्यतेश्यश्चदक्षिणांदत्वानेराशिषोगृहीत्वा आवाहितदेयताअमिंचविसृज्य॥ यथाशक्तिब्राह्मणान्मोजयित्व।यस्यस्मृत्येतिनला।सद्धेधुभिःसहस्वयंभुजी १७९॥ नेनि॥ ग्रंथांतरेतुमातुरेवरूवासिन्याश्चहरिद्राकुंकुमपुष्यतांबूलादिभिःसंपूज्यताफ्यांचनो For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्य अनंतरं अक्षतपुंजेषु कुमुदाषष्टी देवी जन्मर्क्षदेवतां कुलदेवतां चसंपूज्य ब्राह्मणान्सं पूज्यतेभ्यश्वापूपपूरिकापायसयुक्तानिकुमुदादिदेवताप्रीतयेपुत्रायुर्विवर्धनार्थंयथाशक्ति | वायनानिदद्यात्॥ तेभ्यश्वदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृहीत्वा ॥ सवासिन्यैशिशवे चभोजनंदत्वा | देवताविसृज्ययस्यस्मृत्येति नमेत् ॥ इतिवर्धापनप्रयोगः॥ ॥ अथाक्षरलेखनारंभनिर्ण यः ॥मार्कंडेयः॥पंचमेसप्तमेवाद्वेपूर्वं स्यान्मजिबंधनात् ।। तत्रचैवाक्षरारंभः कर्तव्यस्तशः भेदिनेइति ॥ पंचमेसप्तमेवावर्षेअक्षरलेखनारंभउत्तरायणेकार्यः ॥ अत्रकुंप्तस्यः सूर्योव |र्ण्यः ॥ शुक्लपक्षः शप्तः प्रोक्तः कृष्णश्वांत्यत्रिकंविना ॥ द्वितीया तृतीयापंचमीदशम्येका For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार दशीद्वादशीवयोदश्यः श्रेष्ठाः॥अश्विनीमृगा पुनर्वस पुष्यहस्तचित्रास्त्रात्यनुराधाश्रयण, धनिष्ठाशततारकारेवत्योसोमशनिभिन्नवाराश्चशमाः॥ तत्रायंक्रमः॥संपूजयेद्गणाधीशंनथे। वचसरस्वतीं ॥कुलदेवींततश्चैवपूजयेच्चबृहस्पति। नारायणमहालक्ष्मीगंधधूपादिभिस्तथा।। स्ववियासत्रकारांश्चस्ववियांचविशेषनः॥एतेषामेघदेवानांनाममंत्रणपूजनं॥ रुत्साहोमस्वशाखोतंआधारांनंसमाचरेत्॥पूर्वोक्तदेवतानांचनाम्नातुजुहुयास्पृतं॥प्राङ्मुखोगुरुरासीन पत्रिमा निमुसंशिशुं॥कुर्यादक्षरसंस्कारलेखनवाचनादिक राजत्योपाटिकायोवैपसार्यकुंकुभादिकंगसु ॥१८॥ वर्णलेखनीयेनलिरवेत्तवाक्षराणिवे॥ नमोगणेशायतणसरस्वत्यैनमस्तथा। नमःकुलदेव For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | तायैश्रीगुरुभ्यो नमस्तथा ॥ लक्ष्मीनारायणाभ्यांच लिखित्लापंचनामभिः ॥ ॐ नमः सिद्ध | मित्यादिलेखयित्वा अनुक्रमात् ॥ एवंलिखित्वा आचार्यः शिश हस्तेनपूजयेत् ॥ तथैवतेनसं लेख्यपुनस्त्रिर्वाचयेत्ततः॥आचार्यंपूजयेत्सश्वाह्नस्त्रालंकारभूषणै: । त्रिभिः प्रदक्षिणाकार्यादेवताश्वाथवैगुरुं ॥ ब्राह्मणान्पूजयेद्भक्त्यागंधपुष्पाक्षतादिभिः ॥ तोषयेद्दक्षिणादिभिरा शिषंपरिगृह्यच ॥ नीराजनंततः कुर्यात्कवासिन्याः करेण च ॥ उष्णीषंगुखेदयाद्देवनाग्निंवि सर्जयेदिति ॥ ॥ अथप्रयोगः ॥ तत्रपंचमेवर्षेज्योतिः शास्त्रोक्त उदगयनेगुरुवाकास्त रहिनेशफमासे कृपक्षेभदिनेस मुहूर्तेयजमानः शिशुनासहमंगलस्नात्वाऽह्तेवास For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ון Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सस्कार सीपरिधाघालंहत्यधृतमंगलनिलक: शलभासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्य भास्कर ॥१८१॥ शिशो:लेरपनवाचनादिविपुलविद्याज्ञानप्राप्तयेविद्यारंभकरिष्ये।तत्रनिर्षिनार्थगणपतिपूजनंकरिष्ये) निरुत्वा॥ ततस्तंदुलाष्टदलेगणेशंसरस्वतीकुलदेवतांगुरुंलक्ष्मीनारायणंचावायअक्षतपुंजेषुपतिरूपेणनारदंपाणिनिपतंजलिंसारव्यंकात्यायनंपारस्करंयास्कंकपिंजलंगोलिंजैमिनि विश्वकर्माणंआचार्यव्यासंचाबाह्य॥स्ववियासूत्रव्याकरणंभाष्यादिकंचसंस्थाय्य॥नाममंत्रे गषोडशोपचारैःसंपूज्यमार्थयेत्॥सर्वविद्येवमाधारःस्मृतिज्ञानप्रदायक। प्रसन्नवरदोभूला |॥१८१॥ । देहिविद्यास्मृतियशइति ॥अनयापूजयाआवाहितदेवताःप्रीयंतां॥ ततःस्थंडिलेपंचभूसंस्का For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रपूर्वकंलोकिकामिंप्रतिष्ठाप्यसंपूज्य॥ तनोदक्षिणतोब्रह्मासनायाज्यनागांतंरुत्वा॥आज्येना बाहितदेवत्तानामष्टाष्टसंरख्याहुनी ला॥ततोमहाच्याहत्यादिस्विष्टकदंतादशाहुतयः ॥नतःसं स्वप्राशन।पवित्राप्त्यांमार्जनं॥ अमोपवित्रप्रतिपत्तिः॥ ब्रह्मणेपूर्णपात्रदान॥प्रणीताविमो कः॥आपःशिवेनिमंत्रणविमोकजलेनमूर्धानमभिषिंचेयुः॥एवंहोमशेषसमाप्या। ततोबालक आवाहितदेवताअध्यापनगुरुंचनमस्कृत्य॥अध्यापनगुरोः समीपेप्रत्यङमुखम् || पविश्यरजतादिपाटिकायांकुंकुमादिकंप्रसार्यतदुपरिसवर्णशलाकयाश्रीगणेशायनमः॥ श्रीसरस्वत्यैनमः॥श्रीकुलदेवतायेनमः॥ श्रीगुरुभ्योनमः॥श्रीलक्ष्मीनारायणाश्यानमः॥ For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॐ नम:सिद्धं ॥ इत्यादिलेरख्या पूजनमंत्रः॥ ॐ सरस्वतीयामिजिनीवती॥ यजम्य भास्कर ॥१८२॥ युधियाचेस॥१॥ ॐ लिखितसरस्वत्यैनमः॥इनिमंत्रेणषोडशोपचारैःसंपूजयेत्॥गुरुकु मारहस्ताधिवारंलेरखनवाचनादिकंकारयेत्॥अनंतरंकुमारः देवताक्षरंगुरूंचविःप्रदक्षिणी रुत्यगुरुंसंपूज्यतस्मैचोष्णीषसमर्म्यनमस्कृत्याआचार्यगंधादिभिःसंपूज्यतस्मै अन्यत्रा ह्मणेभ्यश्चदक्षिणांदखातैराशिषोगृहीला॥ सवासिन्याकुमारंनीराज्य॥देवतामिविसृज्य॥अन्येत्यस्तांबूलादिकंपदापयेत्॥इतिसं मा विपारंपाविधिः॥ ॥अथोपनयन |॥१८२.. मुच्यते॥ ॥तबकाल:॥ सूत्र॥ अष्टवर्षब्राह्मणसुपनयेत्॥गर्माष्टमेवावर्षब्राह्मणमुपनये For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताएकादशवर्षराजन्यमुपनयेत् ॥ द्वादशवर्षवैश्यसपनयेत्॥ अवाप्यतिकालावधिआषोड शाइर्षाब्राह्मणस्यानतीतःकालो भवत्याहाविंशाद्राजन्यस्याचतुर्विंशाद्देश्यस्येति॥यथामंगलंवा सर्वेषामुपनयनकार्य॥ यथामंगलशब्देनस्मृत्यंतरोक्तंपंचवर्षादिकालाभिधान। कैश्रित उप नयनशब्देनोपनयनमेवाभिधीयते तदयुक्तं॥उपनयनविषयप्रयोजकन्यापारस्योपनायन शब्दवाच्यखानलक्षणायामानाभावादितिहेमाद्रिः॥अन्येनुआचार्यसमीपनयनांगकंगायत्र्य पदेशपदानंगायत्र्याब्राह्मणमसृजदिनिश्रुती गायत्र्याब्राह्मणमुपनयीनेतिकात्यायनस्मृती |चोपनयनस्यगायत्र्युपदेशांगवदर्शनात्॥एवं चोपनयनपदंयोगस्टंसमिद्दर्शादिपदस्पे For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार वांगयाचिनोप्युपनयनपदस्यनसंबंधेनप्रधानसंज्ञालोपपत्तेरित्याहुः॥परेतु पंकजपदस्येवएक भास्कर १३॥ त्रयौगिकस्यरूटस्यचयोगरूटपदवाच्यसान्॥अत्रतूपनयनेयोगस्यगायत्र्युपदेशेचरूटेश्य सद्भावेनैकत्रविद्यमानलाभावानयोगरूटखसुपनयनपदस्यतेनसमीपनयनस्यैवप्रधानत्वादि साहुर्रयमितिसंस्काररत्नमालायो॥वसंतेब्राह्मणग्रीपोराजन्यंशरदिवैश्यमिति॥माघादिपं | |चमासेषुमेखलाबंधनंशिशोः॥ज्येष्ठमासेविशेषेणसर्वज्येष्ठस्यवर्जयेत् ॥ज्येष्ठमासेनज्येष्ठ | स्यजन्ममासेनसर्वशः॥ इतिस्मृत्यंतरे॥ वृत्तराते॥नजन्मधिष्णयेनचजन्ममासेनजन्मकाली ॥१३॥ यदिनेविदध्यात्॥ ज्येष्ठेनमासिप्रथमस्यसूनोस्लथासतायाअपिमंगलानि॥१॥संग्रहे।मि। For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | थुनेसंस्थिते प्तानौ ज्येष्ठमासोन दोषकृत् ॥ राजमार्तंडे ॥ जातंदिनं दूषयते वसिष्ठोह्यष्टौच गर्गोनियतंदशाभिः ॥ जातस्यपसंकिलभागुरिश्वशेषाः प्रशस्ताः खलु जन्ममासे ॥ जन्ममा | सेतिथौभेचविपरीतदलेसति ।। कार्यंमंगलमित्याहुर्गर्गभार्गवशौनकाः॥ संग्रहे॥ जन्ममासे निषिद्धेपिदिनानिदशवर्जयेत् ॥ आरफ्यजन्मदिवसाच्छुप्ताः स्युस्तिथयोपराः ॥ जन्ममासेच जन्मर्क्षेनजन्मदिवसेपिच ॥ आद्यगर्भरूतस्याथदुहितुर्वाकरगृह इति ॥ करयहो विवाहः ।। इतिरत्नमालायां ॥ तचोदगयने ज्योतिः शास्त्रोक्तसमासेालपक्षेगुरु शुकास्तबाल्यवार्थ | क्यादिदोषरहितेप्रदोषानध्यायादितिथिरहितेदुष्टवासरर्क्षदुर्योगादिदोषरहिते शभेदिनेसु For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार लग्नेसुमुहूर्नेकार्य॥ अथतिथ्यादि ॥ज्योतिर्निबंधे नृसिंहः॥ तृतीयापंचमीषष्ठीदिनीयावापिस ||प्तमी।। पक्षयोरुभयोश्चैवविशेषेणसुपूजिताः ॥धर्मोकामीसितेपक्षेरुष्णेचप्रथमातथा॥रुणत्र | योदशीकेचिदिच्छंति मुनयस्तथा ॥ द्वादश्येकादशीचेवमध्यमेचप्रचक्षतइति॥धर्मीदशमी || कामो त्रयोदशी॥ सितेशलेपक्षेधर्मकामोयायो । कृष्णेचेत्यवचकारः सित्तेपक्षेइत्य |स्यानकर्षणार्थः॥तेनश क्ल प्रतिपदोपियहणं। केचिदाचार्याः कृष्णपक्षांनर्निनीमप्युप |नयनेस्वीकृति ॥मध्यमेचेत्यवपक्षयइतिज्ञेयं ।टोडरानन्देवसिधः।नैमित्तिकमनध्याय |॥१४॥ कृष्णोचप्रतिपदिनं॥ मेखलाबंधनेशसंचौलेवेदननेषुचेति॥अयंचप्रतिपदिनविधि मिनि For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie कानध्यायविधिश्वातीतकालस्यार्तस्यबटोरुपनयनविषयः॥प्रशस्ताप्रतिपलष्णेकदाचि छुभगेविधी॥चंद्रेबलयुनेलनेवीणामतिलंघनमितिच्यासोक्ताएवं॥चंद्रेबलयुत्तेलमाछ भभावेशभेक्षिते॥ चतुर्दशीप्रशंसंतिकुमारच यसाधिक इति च दुर्दशीविधिरपि। स्वाध्याय | वियुजोपस्राः कृष्णप्रतिपदादयः॥प्रायश्चित्तनिमित्ते तुमेरपलाबंधनेमता इनिकाला दर्शादिधृतवृद्धगार्यरचनात्सर्वेषांनैमित्तिकानध्यानांरुष्णपतिपदादिनित्यानध्यायानां चप्रायश्चित्तोपनयनपरतैयमापूर्वोपनयनपरता॥पिसजोषिपमाः॥पनादिनानि॥ ॥ स्वाध्यायवियुजोदियसास्कृतीयापंचमीसप्तमीनयम्येकादशीत्रयोदश्यता: प्रायश्चित्तो । For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पनयनेउपयुज्यंतइत्यर्थः ।। अमावास्यात्वत्रापिनिषिद्धैव ॥ अमावास्यातुसर्वत्रनिंदिता शुभक ॥१८५॥ र्मणीतिवचनात् ॥ अपरार्के ॥ नष्टे चंद्रेष्टमेश के निरंशेभास्करेतथा ॥ कर्त्तव्यं नोपनयनं नानध्या | येगलग्रहइति । निरंशस्वरूपंज्योतिर्निबंधे ॥ राशेः प्रथम भागस्थोनिरंशः सूर्यउच्यतइति ॥ अत्रिः ॥ पराजितेतिनीचस्थेनीचे शक्रेगुरौ तथा । बतिनंयदिकुर्वीतसभवेद्वेदवर्जितइतिरा जमार्तंडः॥ नष्टेशक्रे तथाजीवेनिरंशेचैवतास्करे ॥ उपनीतस्यशिष्यस्यजडत्वंमृत्युरेवचेति। युगादिदि नानध्यायानामपिप्रतिप्रसवमाह ॥ भरद्वाजः ॥ याचैत्रवैशाखसि तानृती ॥१८५॥ |यामाघस्यसप्तम्यथफाल्गुनस्य ॥ कृष्णद्वितीयोपनयेप्रशस्ताप्रोक्ताभरद्वाजमुनींद्रमुख्यै For Private and Personal Use Only भास्कर Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिति॥ अत्रचैत्रसितस्तीयामाघशकूसप्तम्योर्मन्यायोःप्रतिप्रसवः॥मन्वादिषुत यो:स्मृत्यर्थसारेपाठात्॥वैशारयतृतीयायुगादेरपि॥मुहूर्तत ॥ त्रयोदश्यादिचतुष्कंस सम्यादिवयं चतुर्थीचअष्टोगलयहास्याज्यागर्गस्यमतेतथाषष्ठीति॥ अवाप्यपवादः॥ षष्ठीसप्तमीत्रयोदशीनांविनियोगोपन्यासेनदर्शितः॥ अयंगलग्रहापवादोमूकायुपनयनयिष यइतिकेचित्॥ स्मृत्यंतरे॥ अनध्यायस्यपूर्वयुरनध्यायात्सरेहनि। बतारंभविसर्गचवि | द्यारंचवर्जयेदिति ॥ एतदपपादोहितीयासप्तमीत्रयोदशीनांविनियोगोपन्यासेनदर्शितः ॥स्मृतिसारे॥ सोपपदासूपनीनःपुनःसंस्कारमर्हतीति।अयंचनिषेधोयजुबै दिनांनभवनिये For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार दबतोपनयनेस्वाध्यायाध्ययने तथा॥ नदोषोयजुषोसोपपदास्वध्यापनेपिचेतिस्मृतिदर्पणस्म ॥१६॥त्यंतरोक्तेरितिकेचित्॥महानिबंधेषदर्शनादिदंनिर्मूलंतेनतेषामपिनिषेधोस्त्येवेत्यन्ये।। नाश्वोक्तास्तत्रैव ।ज्येष्ठशक्लदिनीयातुआश्विनेदशमीसिता॥ चतुर्थीदादशीमाघएताःसो पपदास्मृताइति॥ चतुर्थीद्वादशीमाघइत्यत्रासितेत्यनुषज्यते॥ वासरानाहनारदः॥गुरुशक बुधानांनुयाराः श्रेष्ठ तमाः स्मृताः॥अधमःसोमवारस्तसूर्यवारस्तमध्यमः॥वारोमंदारयोर्वज्योकृष्णोपोनिशापनेः॥अस्संगतस्यसौम्यस्यवारोवोदिजन्मनामिनि॥मंदः शनिः ॥१८॥ आरोभौमः॥निशापतिश्चंद्रः॥सोम्योबुधः॥ तया॥सर्वेषांजीयशकज्ञवारा: प्रोक्तावतेशमाः || For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रार्कोमध्यमशियोसामबाहुजयोःकुजः॥ शारयाधिपतिवार अशारवाधिपवलन था॥शारयाधिपतिलमंचदुर्लभंत्रितयंबतइति ॥ सर्वेषांब्राह्मणादीनां ।। जीवो वृहस्पतिः ॥ज्ञोबुधः॥ बाहुजः क्षत्रियः ॥ वलंगोचराष्टवर्गादि॥ शारवाधिपबलासंभवेदोषमय्या हमदनरत्नेवृद्धगायः ॥शारयाधिपेबलिनिकेन्द्रगने चौंजीबंधनदीयदिवसेषुक भायकूप्तः॥अस्मिन्चलेनरहितेतुपुनईिजानांस्याइर्णसंकरदतिपयदंतितज्ञाइति ॥ तथा ॥वर्णाधिपबलमप्यपेक्षते॥सदानुकूलेचैकस्मिन्यणेशेबल शालिनि॥ ब्राह्मणा || देः प्रकुर्वीनकुमारंवतचारणमितिपराशरोक्तेः॥ पतीसिनेज्योधिप्राणानृपाणां कुजना For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार स्करौ ॥ वैश्यानांशशभृत्सोम्याविनिवर्णाधिपाः स्मृताइतितेनैवव्यवस्थाप्रदर्शनाच्च भास्कर ॥१८७५ ॥ मदनरत्नेराजमार्तंडः । पितुः सूर्यबलंश्रेष्ठंशाखावर्णेशयोर्बटोः ॥ सर्वेषां गुरु चंद्रबलं श्रेष्ठत्रतादिषु ॥ मौंजीबंधे विवाहेचप्रतिष्ठायांविशेषतइति ॥ सर्वेषामित्यनेन येषां नशाया धिपो गुरु स्तेषामपिबटू नांतसितॄणां च गुरुबलमावश्यकं ॥ उभयोरलाभेबटोरावश्यक समितिध्वन्यते ॥ संकटे चंद्रताराद्यभावेष्यधिकारायदा नमुक्तं ज्योतिर्निबंधे ॥ चंद्रेचशे लवणं जवारे दिने विरुद्धे त्वचनं इलांश्च ॥ धान्यं चदद्यात्करणेनथाभेयोगेविरुद्धेन ॥१८७ || कं चदेयमिति ॥ दिनंतिथिः ॥ नित्यकाले वटोर्गुरुब लालाभेशांत्यात लाप्तः ॥ अनित्यका For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेनैवमित्याहनारदः॥वालम्यबलहीनोपिशोत्याजीवोबलपदः॥यथोक्तवत्सरेकार्यमनुके नोपनायनमिति॥केचिद्दुष्टस्थानेषुस्थिनेगुरौशांत्यापिनोपनयनाधिकारइत्याहयमिष्ठः॥ बंधोतृतीयेरिपुराशिसंस्थइच्छंनिपूजांजनिगेव्ययस्ये॥पुराननाअष्टमगेपिसूरोशात्यापिने चोपनयाधिकार इति॥बंधुश्चतुर्थः॥रिपुराशिषष्ठः॥जनिर्जन्मराशिः॥व्ययोद्वादशराशिः।। अनिसंकटेएतेषपिराशिषपूजाहोमादेर्गुणत्यादिवृद्धिकल्पनयोपनयनकार्यमेवनतत्रूतसं यसरानिक्रमःकार्यः॥तस्माद्बहेभ्यःकाललाडलीसंवत्सरोमतइतिवचनात्॥ राशिविशेषस्या स्यगुरोरष्टमादिस्थानस्थितस्यापिनाधिकारप्रतिबंधकसमित्याहभरद्वाजः॥धनुर्मीनकु For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार लीरन्थोजीयोजन्मात्यमृत्युगः॥अतिसौरव्यंबटो: कुर्याइसिष्ठवचनंययेति ॥ कुलीरः | भास्कर ॥१८॥ कर्क:सचगुरोरुञ्चस्थान॥यथाहुर्दैवज्ञाः॥अजवृषामृगांगनाकुलीराझषवणिजौचदि वाकरादितुंगाइति॥ अजोमेषः॥वृषप्तःप्रसिहोराशिः।मृगोमकरः॥अंगनाकन्या॥ कुलीरःकर्कआझपोमीन:॥वणिक्तुला॥दिवाकरादीनांसप्तानांयहाणांकमेणमेषादी |निसप्तोच्चस्थानानीत्यर्थः॥ राजमार्तंडः॥व्रतेजन्मत्रिकारिस्थोजीयोपीष्टोर्चनात्सरुत् मोतिकालेतुर्याष्टव्ययस्थोद्विगुणार्चनादिति॥ द्विपंचसप्तनवैकादशस्थोगुरु: शु ८८॥ भफलप्रदः॥जन्मतृतीयपध्दामस्थानेषुपूजाहोमात्मक शांत्याक्रमः॥ चतुर्थाष्टमहा । For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | दशस्थानेषुदुष्टफलः ॥ कर्कधनुर्मीनराशिषु चतुर्थादिस्थानेपि न दोषः ॥ अतिसंकटेचतुर्यद्वाद शस्थोद्विगुणपूजाहोमादिनाशभः ॥ अष्टमस्तुभि गुणपू जाहोमादिनाशप्तः ॥ केचिदनिष्ठोवाम वेधेश भइत्याहुस्तन्नेतिराजमार्तंडः ॥ अष्टमवर्षादिमुख्यकाले गुरुबलाफ्तावेपिमीनगतरविद्युत || चैत्रेवाशां त्यात बंधकार्येनतुमुख्यकालातिक्रमः ॥ नित्यकारस्य बलीयस्त्वान्इतिधर्म || सिंधौ।। नक्षत्राण्याहनारदः ॥ श्रेष्ठान्यर्कत्र्यांत्येज्यचंद्रादित्युत्तराणिच ॥ विष्णुत्र्याश्वि मित्राजयोनिभान्युपनायनेइति ॥ अर्क त्र्यंहस्तचित्रास्वातयः ॥ अंत्यंरेवती ॥ ईज्यः तिष्यः ॥ चंद्रो मृगशिरः॥अदितिःपुनर्वसु ।। उत्तराशब्देन उत्तरात्र्यं ॥ विष्णुत्रयंश्रवणधनिष्ठाशतभिष For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥१८९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जः ॥ अश्विनौ अश्विनी ॥ मित्रोनुराधा ॥ अब्जयोनिरोहिणीनक्षत्रं ॥ बृहस्पतिः ॥ त्रिषूत्तरेषु रोहिण्यां हस्तेमैत्रेचवासवे ॥ साट्रेसौम्यपुनर्वस्वोरुत्तमद्युपनायनमिति ॥ वेदविशेषेणनक्षत्रवि | शेषविधि ज्योतिर्निबंधे ॥ मूले हस्तत्रयेसर्पिनशैवेपूर्वात्रयेत था॥ ऋग्वेदाध्यायिनांत्रास्तंमेखला बंधनंबुधैः ॥ पुष्ये पुनर्वसोपोष्णे हस्ते मैत्रे शशांकते॥ ध्रुवेषुचप्रशस्त्रंस्याद्य जुषांमौंजीबं धनं ॥ पुष्य | वासवहस्ताश्विशिवविष्णूत्तरात्र्यं । प्रशस्तंमेखलाबंधेबटूनांसामवेदिनां ।। मृगमैत्राश्विनी हस्त रेवत्यदिनिवासयं ॥ अथर्ववेदिनांशस्तो भगणोयंव्रतार्पणेइति ॥ सा आश्लेषा ॥ शैवं आर्द्रा ॥ | पौष्णंरेवती ॥ मैत्रं अनुराधा ॥ शशांकतंमृगशिरः ॥ ध्रुवाणिउत्तरात्रयंरोहिणीच ॥ वासवंज्ये For Private and Personal Use Only भास्कर ||| १८९|| Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठा। अश्विनी अश्विनी।शिवआर्दा । विष्णु: श्रवणं । अदितिःपुनर्वस ॥एषामसंभवेसारस मुच्चये॥मघामेयविशारद्रयाम्यहित्याचवारुणं॥ व्रतेशस्तानिसर्वेषांचेदेदोक्तंनलायतइनि॥ आमेयंकृतिका॥ ऐंद्रज्येष्टा ॥ याम्यं भरणी॥ वारुणंशननारका॥ तत्रापिपुन्नक्षत्राण्यतिप्रश स्नानि ॥विशेषेणपुन्नामधेयइनि गयोक्तेः॥तानितुप्रागेवोक्तानि॥यस्त॥ ताराचंदा नुकूलेषुग्रहाब्देषु भेष्वपि॥पुनर्वसोचोपनीतःपुनः संस्कारमर्हतीतिराजमार्तउपचनेषु नर्वसनिषेधः सज्योतिर्षिप्रसिदयसिष्ठादिसंहिताखदर्शनात् ॥ हेमाद्यादिमहानिबंधे पुनर्यसविधेरेपप्रतीतेन्दाक्षिणात्यसकलशिष्टानांपुनर्नसायुपनयनानुष्ठानाचरणस्यो For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पलंगाचनिर्मूलः ॥ ममलनेपिनयर्वेयर्यदिविषयः॥ अनंतरोदाहन योनिर्निबंधव माम्कर ॥१९॥ चनेयजुर्वेद्यथर्ववेदिनांनस्यविहिनत्यान्॥ योगेषुव्यवस्थामाहत्रीपतिः॥ मवैधृतिक व्यनिपाननामासर्वोष्यनिष्ट परिघस्यचा। निरस्तुयोगेपथमेसवज्जेव्याघातसंझनपं । चशूले॥गंडेनिगंडेचषंडेव नाड्यामेषुकार्येषुपियर्जनीयाइति॥ प्रथमोयोगोषिकं. भः॥उक्तान्यविषयेत्याहबृहस्पतिः॥ शिष्टाष्टादशयोगेषुप्रशस्तमुपनायनमिति॥करण व्यवस्थापितेनैवोका।बवादीनांतुषज्ञस्यादुपनायेमुपूजितं । शकुन्यादीनिषिष्टींचा १९०॥ वर्जयेच्चविशेषनइनि॥दिनभागव्यवस्थामाहमनुः॥ सर्वदेशेषुपूर्वाण्हे मुख्यस्यादुपना। For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यनं॥मध्यान्हेमध्यमंप्रोक्तमपराण्हेचगर्हितमिति॥ उत्तरापिसर्वदेशेष्वित्यनुषज्य ते॥एवंव्यवस्थितेपिशुपकालेनिमित्तविशेषेणनिषेधमाहगर्ग:॥ ग्रहेवी डोर वनिप्रक म्पकेनौमहोल्कापननादिदोषे॥ बनेदशाहानिवदंतितज्ज्ञास्त्रयोदशाहानियदंतिकेचि दिति॥वानीतिशेषः॥ संकटेतुचंडेश्वरः॥दाहेदिशांचैवधराप्रकंपेवजप्रपातेचविदा रणेच॥ केनौतथोल्काभुकणप्रपातेत्र्यहनकुर्याद्र तमंगलानीनि॥ धर्मप्रकाशेगर्गः। द्रसूर्योपरागेषत्र्यहंामशांभवेत्॥ सप्ताहमा पश्चास्मृतंग्रहणसूतकमितिएना चार्धग्रासविषयं ॥सर्पग्रासेषुसप्ताहमर्धग्रासेदिनत्रय।। प्रियकांगुलनीयासेदिनमेकंथि For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार वर्जयेदित्यंगिरसाविशेषस्योक्तेः॥ विसरतोदुष्टकालास्तविवाहप्रकरणेवक्ष्यामः।एतेषूले भास्कर ॥१९॥ |पुसूत्रोक्तोमुख्यकालः स्मृत्युक्तस्तसंकटे॥ मुरब्योविधिःस्वशास्त्रोक्तइतर: स्यात्तुसंकटइ तिवचनात्॥लल्लः॥बनेन्हिपूर्वसंध्यायांवारिदोयदिगर्जनि॥ तद्दिनेस्यादनध्यायोव्रतं तत्रविर्जयेदिति॥ तेन्हिउपनयनदिवसे॥ वारिदोमेघः॥तहिनेवतदिनेउपनयनदिनइ तियावत्॥वतंउपनयन।तबअनध्याये॥अनेनवचनेनसर्वस्येवोपनयक्रियाकलापस्य निषेधेप्राप्ते नांदीश्राद्वोत्तरंवेदारंभरहितस्यसर्वस्योपनयनस्थकर्तव्यतोक्ताज्योतिर्निवं ॥११॥ धे॥ नांदीश्रादेकनेचे स्यादनध्यायस्वकालिकः ।।मौंजीबंधनदाकुर्यादेदारंभनकारये For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie || दिनि ॥मृगादिविशाखांतव्यतिरेकेषुयदृष्टिगर्जनादिकंतदकालिकंतन्निमित्तोनध्या यो कालिकः ॥सचनांदीश्राद्धोत्तरंचेन्नदामोंजीबंधउपनयनंकुर्यात्॥ तवत्यवेदारंभ मात्रंतुनैवकारयेदित्यर्थः ॥नांदीश्राद्धरुतइतिवचनान्नांदीश्राद्धास्त्राग्यारिदगर्जनेमौं जीबंधोपिनभवति॥ वेदाशनकारयेदिनिनिषेधस्तयेषांसूत्रेवेदारंभस्मदिनएपपिहि तस्तत्परः॥सत्यापाठसूत्रानुसारिभिरकालिकानध्यायेपिमौंजीबंधएतस्मास्चनाकर्तव्य एव॥वेदारंभास्वविहितखादेवनामवति॥ननुगायत्र्यारंभेणैवसर्ववेदारंभोभवतिप्रयोगातरेउक्तत्वात् गायत्र्युपदेशामकारंभएपसर्ववेदारंभस्तस्यचवेदारंभनकारयेदित्यनेननि For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार, षेधइतिचेन्न।तस्याथर्ययेदव्यतिरिक्तसर्ववेदांतराध्यापनार्थकपुनरुपनयननिवृत्तिबोधना, भास्कर ॥१९॥ र्थसात्॥नचावकिमानमितिवाच्या सर्वेभ्योवेदेश्य स्वसावित्र्यनूच्यतइनिहिबाह्मणमिति धर्मसूत्रस्यअगृह्यमाणविशेषलादेकमेवोपनयनंसर्वार्थमिनिन्यायः॥ अस्मिन्नर्थेशाव्यायनब्राह्मणमेवपग्निं ॥ अथर्ववेदस्यतुपृथगुपनयनंवचनाकर्तव्यं। तथाचनवश्वन ॥नान्यत्रसंस्कृतोग्यंगिरसोधीयीतेति। अन्यत्रअन्यवेदार्थ ।। ग्यंगिरसोयर्यवेदइत्युज लारुड्याख्यानस्यचमानखान्॥उपनयनारंभोत्तरंसूतके प्राप्तपिरोषःसंग्रहे॥कूष्माडीभिर्युन १९२॥ हुलागांचदद्यासयस्विनीं। चूडोपनयनो हाहप्रतिष्ठादिकमाचरेदितिसंस्काररत्नमालायां।। For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ तच्चोदगयने ज्योतिः शास्त्रोक्त शुभमास शुक्लपक्षगुरुशकास्तबाल्यवार्धक्यादिदोषर। हिने प्रदोषा न ध्यायादितिथिरहितेदुष्ट वास दुर्योगादिदोषरहितेश भेदिनेसलनेस | मुहूर्तेकार्यं ।। माधवीयेकालनिर्णयेलसकालश्व॥ प्राक्कपालेद्विजातीनांव्रतबंधः प्रशस्य ते॥व्रतोद्वाहेद्विजातीनामपराण्हेविवर्जयेत् ॥ तत्कालः पितृकर्मणो मंगले खाभप्रदः ॥ | रात्रीनिशीथात्परत आरूरःकाल उच्यते ॥ नत्रैवपाणिग्रहणं सुलसेप्यशभप्रदमिति।। पारा शरस्टती। अनन्यगनिकत्येतुगोणपक्षसमाचरेत् ॥ अन्यथास्वीकृतोदोषस्त्वनिष्टफलभाग्भवे दिति ॥ ॥ तत्राधिकारीच ॥ गार्ग्यः ॥ षितै वोपनयेत्युनं तदभावेपितुः पिता ॥ तदभावेपितुर्ध्वा For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार || नानदभावेतुसोदर इति ॥ व्रतबंधंकुमारस्यविनापितुरनुज्ञया ॥ यः करोति द्विजो मोहान्न भास्कर || १९३|||रकंप्रतिपद्यतेइति ।। पितरिप्रोषिते प्रेतेसंन्यस्तेपतितेथवा॥ विनाज्ञयाप्युपनये दन्यत्र अधि कारिणेति ॥ अथाचार्यादिश्व ॥ ॥ याज्ञवल्क्यः ॥ सगुरुर्यःकृपांरुत्वावेदमस्मैप्रयच्छ ति ॥ उपनीयददद्वेदमाचार्य: सउदाहृतः॥ ॥मनुः ॥ एकदेशंतुवेदस्य वेदांगान्यथवापु नः ॥ योध्यापयतिवृत्यर्थमुपाध्यायः सउच्यते ॥ ॥पारस्करः॥ निषेकादीनि कर्माणियः करोतियथाविधि ॥ संभावयति चान्नेनसविप्रोगुरुरुच्यते ॥ अस्याधेयंपाकयज्ञंअभि ॥१९३॥ |ष्टोमादिकान्मरवान्॥ यः करोतिवृतोन्ये न सद्विजो कलिगुच्यतेइति ॥ ॥उपाध्याया For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्दशाचार्य आचार्याणां शतंपिता ॥ सहस्त्रंतु पितुर्मातागौर वेणानिरिच्यतेइति ॥ अधिकारसि द्वयेप्रायश्वित्तमाह वृद्धविष्णुः ॥ कच्छ्रत्रयं चोपने तात्रीन्कृछ्रांश्चबटुश्वरेत्॥ आचार्योदश साहस्त्रांगायचींचजपेत्तथा ॥ बटुप्रायश्चित्तकारणं ॥ प्रागुपनयनात्कांमेराचारःकामवादिभिः ॥ लशुनादीन्यभक्ष्याणिक तौस्त्रीस्पर्शनादिभिः ॥ ॥ मंडपश्च ॥ संग्रहे ॥ दशद्वादश हस्तो ल्पोमध्यमो ऽर्कमनून्मिनः ।। षोडशाष्टादशक उत्तमः परिकीर्तितः ॥ युग्महस्तोविनिर्मायः वि षमकरोनैव च ॥ चतुरस्रसमः कार्यः षोडशस्तंभसंयुतः।। चूडाषोडशभिर्युक्तः द्वात्रिं शद्भिः प्रचूडकः ॥ सप्तर्षिमते ॥ मङ्गलेषु-चसर्वेषुमंडपोगृहवामतः॥कार्य:षोडशहस्तोवा For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार यूनहस्तोदशावधीति॥सार्धचत्वारिपचे_सप्तहस्तसमुच्छितः॥ नारिकेलदलैर्बास्य- मास्कर ॥१९४॥ दकूलादिभिरंतरे॥ छादयेन्मंडपंसर्चचतुरिविवर्जितमिति॥ ॥वेदीच॥ बटोर्वेदीप कर्तव्याचतुरस्त्राचनुःकरा॥ करोन्नताबटोहरलै पृष्टेसोपानसंयुता॥१॥विवाहेश्रीधरीवेदी विंशत्यत्रसमन्विता॥ चतुर्विंशत्यस्त्रयुनावतेवेदीप्रकीर्तिता॥१॥विवाहोपनयेवेदीएतेषुववउ च्यते॥ तदग्रेकलशाकारमिनियज्ञविदांमतं ॥ १॥ गृहान्निर्गमवामांगेयसोचियेदिका॥ कार्याविवाहेविद्भिौजीनांग्रहदक्षिणेइतिगृह्यकारिकायां।वेदीकुर्यास्यगेह ॥१९४॥ स्य वामेमंडपमंडितां॥ हस्तोन्छितांचतुर्हस्तांकन्यायाश्यव्रतेबटोः॥ लावल्यां। पश्चिमा For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिमुखंद्वारंयहाचेदुत्तरामुखं॥ वेदिकातुतदाकार्यागृहान्निर्गमदक्षिणे॥ निर्गमशब्देनगृह || द्वारमुच्यते ॥ दक्षिणाभिमुखं द्वारं पूर्वाभिमुखमे यवा ॥ वामभागेतदाकार्यात्रतेवेदीयथातथं । | एवं चनैर्भ त्यांवेदीनभवतीति तात्पर्यार्थः । विवा होपनये यज्ञे वेदीं कुर्यात्प्रयत्नतः ॥ वेदींवि नायदाहोमः कर्मप्रष्टोभिजायते इति अश्वत्थामकारिकायां ।। ऊ खरेदुर्भगानारीशल्येचे | वमृतप्रजा ॥ कोणवेधेह्यनापत्यंद्वारवेधेधनक्षयइति ॥ अथघटीयंत्रत्रकारमाह। कालंसाधनेयंत्रनिर्णयोयथा॥ कालसाधनयंत्राणि बडूनिपृथिवीतले ॥ तन्मध्येमंगलेमु ख्यं घटी यंत्रंप्रकीर्तितमितिसंस्कारको मुद्यां ॥ ततः कुमारपितास स्नातो धृताहनतिलको For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार हनप्रमाणोयदीर्घताम्रपात्रं जलेनापूर्यधान्यराशीसंस्थाप्यतदयगणपनियरुणीसंपू- भास्कर ज्यस्थापितजलपूर्णपात्रेअधोभागकुंभार्धारुति ताम्ममयींदशपले स्तुलितांषडंगुलोछित्तों द्वादशांगुलविस्तृतांघटीमहोरात्रषष्टितमपूर्णप्रमाणाकालसाधनार्थमा डमंडला|दयं वीक्ष्यक्षिपेत्॥ तामेवास्तसमयेअवशेषाबिंबनिरीक्ष्यक्षिपेत्॥ घटींगंधादिभिःसंपूज्य पार्थयेत्॥मुरव्यात्वमसियंत्राणांब्रह्मणानिर्मिताघटि॥ भवभावायबटवे कालमाधनका रणमिति॥ ॥ प्रक्षिप्तघटीअष्टदिशांमध्येयद्दिम्गतानत्यागादिनः क्रमेणफलानि॥यथा ।।१९५।। ॥ पार्थिनासाघटीतोयेयांदिशंपनिगच्छति॥पूर्वादिदिक्फलेचैवस्थितामध्येमप्रदा॥ For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरयंदुःरयंतथामृत्यूगेगापियसुबुद्धिमान्॥वेदविद्यारन:श्रीमान्फलंपूर्वादिदिक्कमानाया दाअनिष्टदिग्गनाघी पूर्णावातदाउपनयनानंतरंसुदिनेतिथिवारनक्षत्रलमदिग्पनी नांपूजनंतिथ्यादिदेवनानांउक्तमंत्रणायुतजपंतदशांशतिलायझेमंदानादिकंचक र्यादितिघटीसूत्र॥ ॥अथम भाराः॥तत्रपरिधानवस्त्राणांसूत्रच्यारण्या॥ यासासि शाणक्षौमाविकानिब्राह्मणक्षत्रियविशा॥ त्रयाणांब्रह्मचारिणांकमेण॥ शणत्वमयंशाण। क्षोमंशुमानसीनद्विकारमयंपट्टकूलं। आधिकं अवेर्मेषस्यरोमनिर्मितंनेपालकंबलं॥सर्वेषां कार्पासंवा॥ शक्माहतंबासो ब्राह्मणस्य॥ मांजिष्ठंक्षत्रियस्यापीतंवैश्यस्येति॥संस्काररत्न For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मालायां ॥ उत्तरीयंधर्मसूत्रे ॥ हारिणमैणेयं चाकृष्णणंब्राह्मणस्य कृष्णांचेदनुपस्तीर्णासनशायी ॥१९६॥ स्याद्वौर वंराजन्यस्यबस्ताजिनंवैश्यस्याविकंसार्ववर्णिकमिति ॥ हरिणोमृगस्तस्यविकारोहारि णंचर्म ॥ एणीमृगीतस्याधिकारऐणेयं तच्च कृष्णणं ॥ कृष्णांचेद्विभृतंनके वलं हारिणंतदानस्मि|न् आस्तीर्णेनासितेनचशयीत ॥ रुरुर्विदुमान्मृगः नस्यविकारोरौरवं ॥ बस्तच्छागस्तस्या जिनं ॥ अविरुर्णायुर्मेषस्तस्यविकार आविकंतत्सर्वेषां वर्णानां ॥ तस्यहारिणादिभिर्विकल्पः ।। कंबलोप्याविकएव सर्वेषामित्यर्थइतिव्याख्यानसुज्वलाकृता ॥ प्रावरणपर्याप्तोत्तरीयाजि नासंभवेशाकलः॥ अखंडंवात्रिरखंडंवाष्टाचत्वारिंशदंगुलं॥ चतुरंगलविस्तीर्णं धारयेद For Private and Personal Use Only भास्कर ॥१९६ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनंसदेति ।। खंडत्रयमानंस्मृत्यंतरे ॥ त्र्यंगुलंतुबहिर्लोमयद्वास्याच्चतुरंगुलं ॥ अजिनंधा रयेहि प्रश्वतुर्विंशाष्टषोडशैरिति ॥ चतुर्विंशांगुलएकः ॥ अष्टांगुलोद्वितीयः ।। षोडशांगुलस्ट| तीयः ॥ एवंविभिः खंडैरष्टाचत्वारिंशदंगुलपरिमंडलमजिनंधार्यमित्यर्थः ॥ अत्रपरिषेचणा र्थंकिंचिदधिकं ग्राह्यं ॥ अन्यथाअष्टाचत्वारिंशदंगुलमजिनंधार्यमित्यनेनविरोधापत्तिः।। अ बांगुल्लानिसंस्कार्यस्यग्राह्याणि॥ स्मृत्यर्थसारे॥ आहतंवस्त्रयुग्मंचश्वेतरक्तमथापिवा ॥का रौरव बस्तानिविप्रादेरजिनानितुइति ॥ यथा ॥ अजिनंत्र्यंगुलंवापिचतुरंगुलविस्तृतं ॥ बहिःसरोमसंगृत्यधारयेदुपवीतवत् ॥ यथावर्णस्य वसनं तत्तत्सूत्रेण धारयेदिति ॥ गदाधरेण For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कार्पासमयमंबरंईषत्धीतं नवं श्वेतं नान्यधारितं प्रावारार्थंकल्पितं ॥ ॥ मेखला ॥ मौंजीमेख भास्कर ||१९७|| लांभिवृतां ब्राह्मणस्यधनुर्ज्या राजन्यस्यावि सूत्रवैश्यस्येति ॥ मौंजीगुंजनृणनिर्मितां त्रिवृतांत्रिगुणां ॥ धनुषोरज्जुज्र्ज्या ॥ अविसूत्रअविलोममयीरज्जुः ॥ धर्मसूत्रेपि ॥ विट्ट|न्मौंजीमेखलाब्राह्मणस्यशक्तिविषयेदक्षिणावृतानां ज्याराजन्यस्यमोंजीवा, योमिश्राविसूत्रं । वैश्यस्यसेरीतामलीवेत्येकइति । त्रिवृत्रिगुणासंजानांविकारोमों जी ॥ एवं भूना ब्राह्मण | स्यमेखला भवति । सा चशक्तिविषयेाक्तौसत्यांदक्षिणावृतानांकर्तव्या ॥ तद्धितार्थेगुणभू- ॥१९७॥ | नानामपिमुंजानामेतद्विशेषणं । ज्या धनुषोरज्जुः ॥ अथवामौंजीसा चायोमिश्राचचित्काला For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यसेनबद्धा || अविरेवाविः अव्याः सूत्रमावि सूत्रे अविलोममयीरज्जुः सैरीसीर बाहयो कर | ज्जुः ॥ नाम लोवृक्षस्नस्यत्व चायथितातामली एवंभूतासांवैश्यस्य मेखलेत्येके आचार्यामन्यतइति व्याख्यातमुज्वलाकृता ॥ विशेषमाहमतुः । विवृन्मोंजीसमाश्लक्ष्णाकार्याविप्रस्यमेखला ॥ क्ष त्रियस्यतुमी ज्यावैश्यस्य शणतांतवी निसमान कचित्सूक्ष्मानकचित्स्थूलाकिंतर्हिसर्वन एवसमा ॥ लक्ष्णानं तु तनुत्वगुणयुक्तापरिधृष्टाच॥ ज्याकदाचिच्चर्ममयीभवतिकदाचित्तृण|| मयीतत्र चर्ममयी व्यावृत्यर्थमौर्वीज्याविशेषणं ॥ तया धनुषोवतारितयाश्रोणिबंधः कर्तव्यइ | तिमेधातिथिः । ज्यायांविवृसादिगुणेनस्वरूपनाशप्रसंगात् ॥ राणनीतव्यास्वस्त्येवेतिज्ञे For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यं॥ अनुकल्पमाहमनुः॥Kजानावेतुकर्नच्या कुशाश्मनकबल्वजैः॥विनायंथिनैकेनधि भास्कर निःपंचभिरेय येति ॥ अवादिशब्दलोपोद्रष्टव्यः॥ ते नेत्थंयास्यापयति॥मुंजायभावइनि॥ग्रंथ । यश्चप्रवरसंख्यया। एकपयरस्यैकोयंथिः॥विप्रवरस्यत्रयः॥पंचप्रवरस्यपंचेतिवृद्धाः॥ तिसंस्काररत्नमालायां॥ मौंजीरशनाब्राह्मणस्य॥ धनाराजन्यस्या। मौ-वैश्यस्य॥मुंज. शरः तत्वङ्मयी॥धनाधनुर्गुणः॥मुंजायमानेकुशाश्मंतकबल्बजानां॥ क्रमेणब्राह्मणा दीनां ॥ अश्मंतकबैल्बजस्तखड्मयीवाश्मंतकारख्यंबेल्वजाख्यतृणमयीनिभर्तृयज्ञव्याच्या ॥१९८॥ ने॥ तांत्रिवलीरुतांबटोः कटिप्रदेशेप्रदक्षिणपत्रिरावेष्ट्य अनंत ग्रंथयस्त्रयःपंचवायथा For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवरनियमेनकार्याः॥ ॥ यज्ञोपवीतं॥ कार्पासोनिर्मलःप्रोक्तः इचिक्षेत्रसमुद्भवःगन चावेमूत्रनिष्कासंसंहनांगुलिमूलके॥ आवेष्ट्यषण्णवत्यातत्रिगुणीरुत्ययलतः ॥अधिमद |क्षिणावृत्तंसमंस्थान्नयसूबकं॥ नत्रिःप्रदक्षिणीकृत्यब्रह्मपंथिः प्रदीयते॥ पृष्ठवंशेचनाभ्यां चधृतंयहिंदतेकटिं। स्तनादूर्धमधोनाभ्यो तन्नधार्यकदाचन॥ नवार्यमुपपीतस्यान्ना निलंबनचोट्रितं॥विच्छिन्नवाप्यधोतंबामुक्तानिर्मितमुसृजेत्॥ ब्रह्मचारिणएकंस्या स्नातस्यद्वेवहूनिवा। तृतीयमुत्तरीयाथै वस्त्राप्मावेचतुर्थकमिति॥ ॥दंडः॥पालाशोब्रा ह्मणस्यदंडोबैल्योराजन्यस्योदुंबरोवैश्यस्य॥सचअंगुष्टमात्रस्थूलतरः अवकसायसत्व For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार चः पादादिललाटांतिमकेशसंमिनदीर्घाब्राह्मणस्य॥विल्यवृक्षोयोललाटमूलसंमितोराज भास्कर न्यस्य ॥ औदुंबरवृक्षोद्भवोदंडीघ्राणायसंमितोवैश्यस्येति॥ उपनयनेमानासहभोजनंअनु ज्ञानंसंयहकारेण॥मात्रासहोपनयनेविवाहेमार्ययासह। अन्यत्रसहमुक्तिश्चेसातित्यं प्रामुयानरइति ॥ सत्रयात्मकप्रायश्चित्ताचरणोत्तरंकाम चार कामवादकामपक्षणनि पप्रवृत्तेरियनस्त्रीयासहधुंजीनिनिषेधस्यापिप्रवृतखात्तस्यवाधोनेनक्रियते॥नचमा बासहोपनयनइनिवचनादुपनयनमध्येयातिप्पोजनानितेषुसर्वेष्यपिमात्सहिनस । १९९॥ मस्तिनिवाच्यं ॥आचारसंवादेनसूत्रोक्काशनपर्यायफमोजनएवैतस्यवचनस्यप्रवृत्तेरु %3 For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिनत्वेनमधानोत्तरकालिकेसूबरुताकंठरणानुक्तेमोजनेमात्रासहेत्यस्याप्रवृतेः॥ यत्तु॥मावासहैव जीतऊयमातारजस्वला॥ व्रतबंधःप्रशस्तस्यादित्याहभगवान्य मइतिवचनतः भोजनात्प्राक्मातरिरजस्खलायांवत्तबंधोनभवतीतिकेचित्॥ अन्येतुए। तस्यवचनस्यैवमहानिबंधेष्यदर्शनेननिर्मूलसात्कर्तव्यमेवेत्याहुः॥ तदवाचारानुरोधे नयायं ।। मातृभोजनानंतरंकुमारस्यवपनंकारयंतितच्छाखांतरविषय॥इतिसंस्कार रत्नमालायां॥ ॥अथकमकारिका॥ दत्वाप्रेषड्यंप्राग्वसनथरशनाब्रह्मसूत्रोत्तरी यदंडःपूर्णांजल्यर्घःप्रणतरवियरोलमपृच्छापदान। वन्हिंचावृत्तचास्तेमनुमित हयनं For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार स्वीयसाविभिदानंवन्हेः कार्यंस्वभिक्षाकथयतिनियमं ब्रह्मचर्येविकल्पः ॥ १॥ अथसर्वसाधा ॥२० ० ॥ रणसंभाराः॥ घटीयंत्रं ॥ सदशांतः पटः ॥ परिधानार्थकौपीनं ॥ त्रिवलीकृतमेखला ॥ यज्ञोप वीतं ॥ कार्पासमयं आहतवाससउत्तरीयं ॥ अजिनमुत्तरीयार्थं ॥ अवृणःसरलः सत्यकः साग्रः पाला शदंड। अंजलिपूरणार्थमुदकं ॥ पूगीफलानि ॥ चंदनाक्षतपुष्पाणि ॥ गायत्र्युपदेशार्थं आचारप्राप्तंकांस्यपात्रं सवर्णशलाकातंडुलाश्र्व ॥ कुशाः ॥ इंधनानि ॥ समिधः ॥ भिक्षाचर्य | पात्रचेति ॥ अथप्रयोगः ॥ अत्रबहिः शालाप्भवति ॥ तत्रो दगयनेज्योतिः शास्त्रोक्तशुभः ॥१००॥ मासे कूपक्षेभेदिने सुमुहूर्ते उपनयनंकर्तुतत्पूर्वेद्युः यजमानः पत्नीकुमाराभ्यां सहम For Private and Personal Use Only भास्कर Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गलंस्नालाआहतवाससीपरिधायालंकृत्यधृततिलकोबहिः शालायांश्पुभासनेप्राङ्मुखउपचि | श्यस्वदक्षिणनःपलींनद्दक्षिणतः संस्कार्यं चोपवेश्यधृतपवित्रपाणिराचांत: प्राणानायम्यदेश | कालकीर्तनांतेस्वस्थोपनेतृत्वाधिकारसिध्यर्थंकृच्छ्रत्रयात्मकप्रायश्चित्तंबात सत्याम्नायगो निष्क्रयीभूतयथाशक्तिरजतद्रव्यदानपूर्वकं द्वादशसहस्रंद्वादशाधिकसहस्त्रंवा गायत्री जप महंयथावकारांकरिष्ये अथवा ब्राह्मणद्वाराकारयिष्येइतिरुत्वा ॥ अथकुमारेणापिदेशकाल | कीर्तनांतेममकाम चार कामवादकामभक्षणादिदोषपरिहारार्थंकृच्छ्रत्रयात्मकप्रायश्चित्त | प्रत्याम्नायगोनिष्क्रयीभूतयथाशक्तिरजतद्रव्यदानपूर्वकेंद्वादश सहस्त्रं द्वादशाधिक सह For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संवागायत्रीजपंब्राह्मणदारामहमाचरिष्येइतिकारयित्वा।। उपनयनंकार्ययजमान:पुनः भास्कर ॥२०॥ देशकालकीर्तनांतेअस्यकुमारस्यदिजससिध्यैवेदाध्ययनाधिकारसिध्यर्थश्रीपरमेश्वरपी त्यर्थंच उपनयनंश्वः वामद्यकरिष्ये।यदाचोलेनसहोपनयनंक्रियतेतदासंकल्लेचौलोपनय नारव्येकर्मणीअहंकरिष्येइत्यूहः॥ तबनिर्विघार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचन विमपूजनमंडपस्थापनमातृकापूजनंवसोहराभायुष्यमंत्रजपंनांदीश्राइंचायकरिष्ये।ना दीश्राद्धांतंरुखा ॥ अत्रपुण्याहवाचनातेइंद्रःप्रीयतामित्यूहःकर्तव्यः॥ यदातदिनेग्रहया ॥२१॥ शंकरोतितदा॥ अस्यकुमारस्ययहानुकूलतासिध्यर्थंग्रहयज्ञकरिष्ये॥ तत्रादौनिर्विमा For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनं अविघ्नपूजनंमंडपस्थापनं मातृकापूजनंवसोर्द्धा आयुष्यमंत्रजपं नांदीश्राद्धं ब्रह्माचार्यऋविम्वरणंदिग्रक्षणंपंचगव्यकरणंभूमिपूजनं अग्निस्थापनं नवग्रहस्थापनंरुद्रकलशस्थापनं चाद्यकरिष्ये ॥ नांदीश्राद्धानंतरं यजमा नेनवंशपात्रं स्वयं गृहीत्वा अविघ्नगणपतिकलशं भार्ययाग्राहयित्वाघंटा दिवाद्यघोषेण सहितः सब्राह्मणः स्वस्तिन: इंद्रेत्यादिमंत्रान्वक्ष्यमाणाथैना आय्याश्चपठन्सनगृह मध्येगलांप्रतिष्ठापनदेशमुपले पयित्वारंगवल्यादिभिरलंकृत्य तत्र श्रीपर्ण्यादिपीडंस्थाप यित्यातदुपरितंदुलानप्रक्षिष्यतेषु तद्वंशपाच॥ नषु जाम्मैपाहिर्ट स्य॑प॒शून्ये॑पा॒ह्यय॑ For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ २०२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पितुम्मे पाहि इतिमंत्रेणप्रतिष्ठाप्य तत्रैवोत्तरतः कलशं भार्ययानि धाप्यपंचोपचारैः संपूजये भास्कर त् ॥ अथवादेवस्याग्रेस्थापनीयं ॥ तत्रमंत्रः ॥ ॐ अथैना आप्या नवतीभ्यामभिमृशती द॒मे॒वैनद्रेतः सिक्तमाप्यायतेसो भ्या॑ प्रा॒णोवैसो॒मः प्रा॒णन्तद्रे नसिदधाति तस्माद्वेतः सिक्तं |प्राणमभिसम्वतिपू॒येद्ध्य् दृते प्रा॒णात्सम्भवेदेषहैवात्र सूददोहाः प्राणोवैसोमः प्राणः सूद दोहाः॥१॥ ग्रहयज्ञंकरोतिचेत् तदा आचार्यवरणादिहोमशेषंसमाप्य ॥ कृतस्य कर्मणः सां गतासिध्यर्थनानानामगोत्रेभ्यो ब्राह्मणेभ्यः गंधादिना पूजयिष्येतेभ्यश्वभूयसीदक्षिणां ॥ २०२ ॥ दलातैराशिषोगृह्णीयात् ॥ ॥ ततउपनयन दिने कुमारपिताबहिः शालायांदेशका For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लकीर्तनातेउपनयनांगविहितं अस्यकुमारस्यवपनंकरिष्येवपनंकारयिखा॥पुनः अस्यकुमारस्यउपनयनेअधिकारायंत्रीन्ब्राह्मणाभोजयिष्ये।। अनुच्छिष्टपाके नब्राह्मणत्रयमो जनं॥तसंक्तीमुंडितशिरा:सुरूनानः कुमारो जीन॥भोजनानंतरंकुमारंभापयित्वापुनः कुमार पिताबहिशालायांवेयुपरिशुभासनेउपविश्यअस्यकुमारस्योपनयनांगमूतंअग्रिम |तिष्ठापनंकरिष्ये॥येयुपरिस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंसमुद्भवनामानिंप्रतिष्ठाप्या। ततोब दंपर्युप्तशिरसमलंकृतंवेयग्रेआचार्यसमीपमानयंति।।वेद्यासोपानेवस्थाप्या। नतःसवृत्त यःस्ववर्णदृढपुरुषा:मध्येंत:पटंधारयेयुः। दैवज्ञाःसमंगलपयानिपठेयुः॥सुलमेसुमुहूर्त For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मनोजूतिरितिमंत्रएपवैप्रतिष्ठाइतिमंत्रं आचाराद्विजापदेयुः ॐ प्रतिष्ठेतिपठित्वासमु ||२०२|| |हूर्तेरूप्रतिष्ठितमस्वितिब्रूयुः ॥ अंतः पटंउदक्तिः सार्य कुमार आचार्यपादोप्रणमय्य तद्दक्षि णतः पश्वादमेरवस्थाप्य ॥ ततोब्राह्मणाप्रतिष्ठामंत्रान्पठित्वामाणवकवििशरसि अक्षतान्समर्पयेयुः॥ तत्रमंत्रः ॥ ॐ मनजूतज्जु॑षता॒माज्य॑स्य॒बृह॒स्पति॑र्य॒ज्ञमि॒मन्त॑नो॒त्वरि॑ष्टि॑य्ज्ञसमि॒मन्द॑धातु॥विश्वे॑दे॒वास॑ऽइ॒मा॑दयन्ता॒मप्र॑तिष्ठ ॥ १ ॥ ब्राह्मणं ॥ ॐ मनो जूनि॒ज्र्ज्जुषतामा॒ज्यस्ये॒तिम॒नसावा इदर्द- समाप्तन्तन्मनसैवैन त्स॒र्वमाप्नोतिबृहस्पतिर्य ॥२०३॥ ज्ञमिमन्तनोत्सुरिष्टयुज्ञर्ट समिमुन्दधावि॒तद्दुवदं तत्स॒न्दधाति॒र्विश्वेदेवाः सः इमादय For Private and Personal Use Only भारकर Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तामितिसुर्ववैविश्वेदेवाः सर्वणेचैतसुन्दधानिसदिकामयेतयात्रतिष्ठेति॥१॥एपदेष । भूमियज्ञोयतेनयज्ञेनयुजन्तेर्वमेयमातम्भवति॥२॥ एषवैविभूनमयज्ञोपुरैतेनय शेनयजन्तेसर्वमेव विभूतम्भवति॥३॥एषवैव्यष्टिर्नामयज्ञोयुबैतेनयज्ञेनयजन्तेर्वमेवव्य धावति॥१॥ एषपैविधृति मयज्ञोयतेनयज्ञेनयजन्नेसर्वमेवविधृतम्भवति॥५॥ एषवै व्यनिर्नामयज्ञोघौ।नयज्ञेनजन्तेसर्वमेवयकृतम्भवति॥६॥ एष वाउ ऊर्जस्वान्नाम यज्ञोपतेनयज्ञेनयजतेसूर्यमेवोर्जस्वद्भवति॥७॥ एषवैपयस्वान्नामयज्ञोयतेनयज्ञे नयजनेसर्वमेवपृयस्वद्भवति॥८॥एषवैब्रह्मपर्चसीनामयज्ञोयुबैतेनयज़ेनयजन्त आबा For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥२०४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ह्मणो॒ब्रह्मवर्चसी॒जायते ॥ ९ ॥ एषवा॒ऽ अतिव्याधीना॒मषज्ञोष॑त्रैते॒नय॑ज्ञ॒नय॒जन्तः आ॒राजु भास्कर न्योतिव्याधीजायते ॥ १० ॥ एषवैदीर्घेना॒मयज्ञोष॑त्रैते॒नय॒ज्ञेन॑य॒ज॑तः आ॒दीर्घारथ्य॒ज्ञ्जायते ॥ ॥ ११॥ एष॑वे॒ क्लृप्तिर्नामयज्ञोष॑त्रैते॒नय॒ज्ञेनयजन्ते स॒र्वमेकॢप्तम्भवति ॥ १२ ॥ एषवैप्रतिष्ठाना॒म यज्ञोय॒त्रैते॒नय॒ज्ञेनयजन्तेस॒र्वमेवप्रतिष्ठितम्भवति ॥ १३ ॥ ॐ प्रतिष्टाकप्रतिष्ठितनस्त॥ ब्रह्मवर्चसीभव || आग्रह्मभित्याशिषंदद्युः ॥ ततः प्रेषद्वयं । ब्रह्मचर्यमागामिति ब्रूहीत्याचार्यो वदति ॥ ब्रह्मचर्यं आगामिति क्कुमारो ब्रूयात् । ब्रह्मचारीप्राङ्मुखस्तिष्ठन् ब्रह्मचर्यमागामि ॥२०४॥ तिब्रूयादितिगदाधरादयः । उदङ्मुखइतिरेणुदीक्षिताः । ब्रह्मचार्य सानीतिब्रूहीत्याचार्यो। 11 For Private and Personal Use Only Late Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || चदनि॥ ब्रह्मचारी असानीनिबटुब्रूयात् ॥ अथाचार्योमाणयकस्यकरिसूत्रवध्वाकोपीनंपरि। धापयति॥ ॐ येनेन्द्रायबहसनिर्यासःपर्यदधादमृनं॥तेनखापरिदधाम्यायुषेदीर्घायुखायव । लायवर्चसे ॥ १॥ इत्यनेनमंत्रेण ॥ आचमनं॥ तताचार्योमाणवकस्यकटिप्रदेशेमेस्खला प्रदक्षिणंविर्वेष्टयित्वायथोक्तलक्षणांयथाप्रवर ग्रंथिसुतांबनानिॐइयन्दुरुक्तम्परिवाधा मानावर्णम्पचित्रम्पुनतीम आगात् ।। प्राणापानाफ्याम्बलमाददानास्त्रसादेवीसुभगामेखलेयं॥ इत्यनेनमंत्रण|आचमनं॥ अथाचार्मयज्ञोपवीतमभिमंत्रयेत्॥नसकारः॥आपोहिष्ठेनि | निसभिकाग्निरुपीतंप्रक्षाल्याब्रह्मयज्ञानंगाइदंविष्णुश नमस्तेरुद्रः॥ इनितिमृतिकन्भि For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रूपवीनेभंगुष्ठधामयेन्॥ पुनस्लोवनयनंतुषदेवताःविन्यसेत्॥ नयथा॥ ओंकारंप्रथम भास्कर तंतोन्यसामि॥ अनेनप्रकारणाग्रे ष्टम् ॥ ॐकारश्चाऽमिनागाश्रमोमइंद्रःप्रजापतिः॥ | वायुः सूर्याविश्वेदेवारत्येनेनवनवः ॥१॥ ॐ उपयामहीतोसिमाविबोमिचनोधाश्वनी | धाउ असिचनोमर्थिधेहि ॥जिन्वयज्ञजिन्यैथुज्ञपनिम्मायदेवायत्यासवित्रे॥१॥ इतिसूर्याय प्रदर्शयेन्॥ ततउपवीतंकरसंपुरेनिधायदशगायत्र्याभिमंत्रयेन॥ॐ तत्सवितु०॥१॥ ततो माणवकोमंत्रपठन्दक्षिणहस्तेनोयरुतेनदक्षिणकरमध्येयज्ञोपवीतंप्रक्षिप्ययामेनवामस्कंधे ||२०५।। धारयेत्।। ॐयज्ञोपवीनम्परमम्पपिचम्प्रजापतेर्यत्सहजम्पुरस्तात् ॥ आयुष्यमत्र्यम्प्रतिम । For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ञ्चयज्ञोपवीतम्बलमस्तुतेजः ॥१॥ यज्ञोपवीतमसियज्ञस्यत्वायज्ञोपवीतेनोपनह्या ||मि ॥२॥ इत्यनेनमंत्रेण ॥ आचम्य ॥ ततः कार्पासमहत वासः प्रावारंउपवीतवत्प्रयच्छति ।। | ॐ युवा वासाः परि० ||१|| अथाजिनंप्रयच्छति ॥ॐ मित्रस्यचक्षुर्धरुणम्बलीयस्तेजो यशस्विस्थविर समिद्धम् ॥ अनाहनस्यम्वसनञ्चरिष्णुः परीदम्वाज्यजिनन्दधेहम्॥१॥ ॥ इतिमाणवकस्यमं त्रपाठः ॥ अथाचार्यमाणवकाय दंडंप्रयच्छति ॥ तंप्रतिगृण्हाति ॥ ॐ योमेदं | डः परापतद्वैहायसोधिभूम्याम् ॥ तमहम्पुनराददाम्यायुषेब्रह्मणे ब्रह्मवर्चसाय ॥१॥ इतिमाणवकस्यमं त्रपाठः ॥ दीक्षावद के दीर्घसत्रमुपैतीतिवचनात् ॥ अथाचार्यः स्वांजलिजलेना For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पूरितेनमाणवकांजलिंपूरयत्यापोहिष्टेतितिस्मृतिकग्निः॥आचार्यपउिनेनमाणयकःसूर्यायाधं भास्कर दयात्॥ॐआपोहिष्टा०॥१॥योप शिव०॥२॥ तस्माऽ अरङ्गम् ॥३॥ श्रीसूर्यायनमः।इदमद ननमम॥ इत्याचार्यस्यमंत्रपाठः॥तनाचार्योमाणवकं सूर्यमुदीक्षस्पेतिप्रेषयेत्॥माण चकः सूर्यमुदीक्षते॥ ॐ तचक्षुर्देवहितं ॥१॥ इनिमाणवकस्यमंत्रपाटः॥ अथमाणर कस्यदक्षिणकंधोपरिहस्संनीत्वातस्यहृदयमालभते आचार्यः। ॐ ममतेनेहृदयन्दधा । मिममचित्तमनुचित्तन्तेअस्तु॥ममयाचमेकमनाजुपखबृहस्पतिष्यानियुनक्तुमा ||२०६॥ इत्याचार्यस्यमंत्रपाठः ॥ ततोमाणवकस्यदक्षिणहस्नमाचार्योगहीला। कोनामासि॥इत्या For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ह॥ एवंपृष्टः कुमार प्रत्याह॥ अमुकशर्माअहंभो ॥ एवंत्रिः आचार्य प्रतिष्ठतिमाण वकं॥ कस्यब्रह्मचार्यसीनिआचार्य:॥ भवत्तइत्युच्यमानेमाणवकेन॥माणवकंपतिआ चार्योधूयात् ॥ इंद्रस्यब्रह्मचार्यस्यमिराचार्यस्तवाहमाचार्यस्तकासोअमुकशमन्॥अथैना म्भूनेस्यापरिददात्याचार्यः ॥ ॐ प्रजापतयेखापरिददामिदेवायत्वासवित्रेपरिददाम्य यस्तो पधीभ्यः परिददामिद्यावापृथिवीभ्यासापरिददामिविश्वेप्यस्खादेवेश्यः परिददामिसर्च यस्लाभूतेभ्यः परिददाम्यरिष्ट्ये॥१॥इत्याचार्यपठितमंत्रणबदुरक्षण॥प्रदक्षिणमग्निंपर्य। दयोपरिशत्याचार्यस्योत्तरतोमाणयकः॥ ततः ब्रह्मोपवेशनादिपर्युक्षणांतंचरुवर्जप For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार र्युक्षणानंतरंआघारावाज्य भागौमहाव्याहृतयः सर्वप्रायश्वित्तंप्राजापत्यांतंखिष्टकच्चेताश्व || २०७२|| तुर्दशाहुतयः ॥ ॐ प्रजापतयेस्वा० इदंप्रजापतयेनमम ॥ १ ॥ ॐ इंद्रायस्वा० इदमिंद्रा | ॥ २ ॥ ॐ अम्मयेचा • इदमग्न० ॥ ३॥ ॐ सोमायस्वा • इदंसी० ॥ ४ ॥ ॐ भूः स्वाहा इदमम० ॥ ५ ॥ ॐ भुवः स्वा० इदंवायवे न० ॥ ६ ॥ ॐ स्वःस्वा हाइदसूर्याय० ॥७॥ ॐ वन्ने॑अग्ने॒॰स्मस्वा॰ इ॒दमनीवरुणाफ्यां• ॥ ८ ॥ ॐ सत्वन्नौ अग्ने० एधिस्वा० इदम श्रीवरुणाभ्यां ॥ ९ ॥ ॐ अयाश्वाने० जटः स्वाहा ॥ इदमग्नये अयसे ॥१०॥ ॐ घेतेश ॥ २००॥ तं स्वर्का:स्वा इदंवरुणायसवित्रेविष्णवे विश्वेभ्योदेवेभ्योमरुद्भ्यः स्वर्फे स्यश्च ० ॥११॥ ॐ ॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उर्दुत्तमम् स्यामस्वा. इदंबरुणायादित्यायादितये ॥१२॥ ॐ प्रजापतयेस्मा इदंप्रजापः | |॥१३॥ ॐ अमयेखिष्ट रुतेस्वाहाइदममयसिष्टकतेन ॥१४॥ ततःसंस्त्रयप्राशनापयित्राच्या मार्जनं॥ अनौपवित्रपतिपत्तिः॥पूर्णपात्रवरयोरन्यतरस्यब्रह्मणेदानं॥तचनाम्मादिपावाप णीनाविमोकः ॥ ॐ आपःशियाइतिमंत्रणप्रणीताविमोकोदकेनमूर्ध्यतिपिंचेन्॥ थेनंब्रह्मचारिणमाचार्यः सर्ट शास्ति।ब्रह्मचार्यसीत्याचार्योचदति ॥ सवामीतिब्रह्मचा ||शवदति ॥ आपोशान॥ इत्याचार्यः॥अशनानि ॥ इतिब्रह्मचारी॥कर्मकुरु ॥ इत्याचार्यः । करवाणि॥ इतिब्रह्मचारी॥मादिवासुषुप्याः।। इत्याचार्यः॥नस्यपामि॥ इनिब्रह्मचारी।। For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार वाचंयच्छ ॥ अध्ययनंसंपाद्य ॥ इत्याचार्यः ॥ यच्छामि ॥ इतिब्रह्मचारी ॥ समिधमाधेहि ॥ इत्या ॥२०८॥ वार्यः ॥ आदधामि ॥ इतिब्रह्मचारी ॥ आपोशानइत्याचार्यः ॥ अशनानीतिब्रह्मचारी ॥ ॥ ||अथास्मैब्रह्मचारिणे सावित्रीम वाहआचार्यः ॥ तत्रादौ आचारा कांस्यपाचे तंडुलान्प्रसार्यनदुप "रितवर्णशलाकया ॐकारव्याहृतिपूर्वकंगायत्रीलिखित्वा ॥ अद्यपू० तिथौममब्रह्मवर्चसमिध्यर्थंवेदाध्ययनाधिकारसिध्यर्थं गायत्र्युपदेशांगविहितंगायत्री सावित्रीसरस्वतीपूज नपूर्वकं आचार्यपूजनंकरिष्ये ॥ मनोजूतिरितिप्रतिष्ठाप्य ॥ श्रीश्वतेतिषोडशोपचार पूजनं ॥ २०८ ॥ कृत्या ॥ ततआचार्यपूजनं कुर्यान ॥ कथंभूताय ब्रह्मचारिणेइत्यपेक्षायांदक्षिणतस्त्रिष्टतः आ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीनाथउत्तरनोमेः व्यवस्थित्नायप्रत्यङ्मुरवोपविष्टायपादोपसंग्रहणपूर्वकमुपसन्नाचार्यसमीक्षमाणायस्वयमपिसमीक्षिताययादाचार्यः।।कथं।। ओंकारच्यात्तिपूर्वकंप्रथमंपच्छः॥द्वितीया मशः॥तृतीयंसर्वशःपठेत्॥ नत्रमंत्रः॥ हरिः ॐ भूवः स्वः तर्क्सवितुर्वरेण्यम्भर्गोदेवस्य | धीमहि धियोयोनेप्रचोदयात्॥१॥ एवंविरुको भयोरपिप्रणयपूर्वकस्वस्तिकरणं॥॥ संवत्सरेषण्मास्येचतुर्विद शत्यहेद्वादशाहेषडहेत्र्यहे येत्येषांकालानामन्यतमेकालेक्षत्रियवैश्या योः।सघस्वेवगायत्रींब्राह्मणायानुब्रूयात्॥ त्रिष्टुभंसावित्रींक्षत्रियस्य॥ जगतींसावित्री चैिश्यम्यब्रूयात् ॥ इत्युपदेशः॥ अवायसरे ब्रह्मचारिणः समिदाधान।कुशोपग्रहोला । For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार भास्कर ॥२९॥ तिनः समिधआदायदंडसहितएयपश्चादग्रुपविश्य॥ तत्रपथमंताबद्दक्षिणहस्नेनामे संधु |क्षण।संधुक्षण इंधनप्रक्षेपः॥यक्ष्यमाणमेवैःपंचभिः॥ॐ अमेसुधवःसुश्रवसमाकुरु॥१॥ ॐ यथा खममेसुश्रवःसवामसि ॥२॥ ॐ एवंमार सश्रयः सोश्रवसंकुरु ॥३॥ ॐ यथात्वममे देवानांयज्ञस्यनिधिपाऽ असि॥४॥ ॐ एवमहंमनुष्याणांवेदस्यनिधिपोभूयासम्॥ ५॥ इत्येतेः पंचभिर्मवैः प्रतिमंत्रमिंधनप्रक्षेपः ॥उभाभ्यांसंधुक्षणप्रसिद्धिरस्ति॥ ततःप्रदक्षिणममिंजलेन पर्युक्ष्योतिष्टन्समिधआदधाति॥ॐ अमयेसमिधमहापंम्बृहतेजातवेदसे ॥ यथात्ममेसमि ॥२०९॥ धासमिध्यस एवमहमायुषामेधयावर्चसाप्रजयापभुभिब्रह्मवर्चसेनसमिन्धेजीयपुत्रोम । For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie माचार्योमेधाव्यहमसान्यनिराकरिष्णुर्यशस्वीतेजस्वीब्रह्मवर्चस्यन्नादोभूयासर्ट स्वाहा ॥१॥ इत्यनेनमंत्रणप्रथमां ॥ततोनेनैवमंत्रेणद्वितीयांसमिधमादधानि॥पुनरनेनैवमंत्रेणन |तीयांसमिधमादधाति॥ एषातइतिवासमिदाधानमंत्रः॥मंत्रसमुच्चयोवा ॥ ततउपविश्यपू वित्परिसमूहनं॥पमूहनं अमे सप्रवेत्यादिपंचभिमत्रैःप्रतिमंबमिंधनप्रक्षेपः॥ ॥ना नस्तूष्णींपाणीप्रतप्यवक्ष्यमाणैसप्तभिर्मत्रैःप्रतिमंत्रणमुरखचिमार्जनं॥ ॐ तनूपाउ अमे सिनन्यम्मेपाहि॥१॥ ॐ आयुर्दा अमेऽस्यायुमेदेहि॥२॥ ॐ चर्चेदा अनेमिच मे देहि॥३॥ ॐ अमेयन्नैतन्वाऽनन्तन्मऽ आपण॥४॥ ॐ मेधांमेदेवःसविता आदधा, For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तु ॥ ५ ॥ ॐ मेधा देवीसरस्वतीआदधातु॥ ६॥ ॐ मेधामश्विनौदेवावापत्तांपुष्कर ॥२१०॥ स्त्रजो॥ ७॥ इत्येतेमुरवमार्जनमंत्राः ॥ अवशिष्टाचारप्राप्ता: कंचनपदार्थालिच्या | ते॥ ॐ अङ्गानिचम : आप्यायंतां ॥ इतिमंत्रणशिरः प्रकृतिपादांत सर्वांगा| लंपनं ॥ ततो दक्षिण हस्नायेण ॥ ॐ वाकम: आप्या यतां ॥ इतिमुरवालंम नं॥ ॐ प्राणश्चम : आप्या यतां ॥ इतिनासिक योरालंभनं ॥ ॐ चक्षुश्च मआप्यायतोइति चक्षुषीयुगपत्॥ ॐ श्रोत्रंचमआप्यायतां ॥ इतिदक्षिणश्रोत्रं | ॥२१०॥ |नेनैवमंत्रणवा मं॥ ॐ यशोबलंचम आप्यायनां ॥ इतिवाहोरुपस्पर्शनं॥ तनख्यायु। For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie पकरणं॥पस्मनाललाटेग्रीवायांदक्षिणे सेहदिच।। ॐ त्र्यायुषञ्जमर्दोः॥ इतिललाटे। ॐ कश्यप॑स्य त्र्यायुषम्॥ इतिग्रीवायो॥ ॐ यद्देवेषुत्र्यायुषम्॥ इनिदक्षिणेर्ट से॥ ॐ तन्नौ अस्तुत्र्यानुषम् इति हदि। ततःगोत्रनामपूर्वकंवैश्वानरादीनामभिवादनं ॥ ततोब्रह्मचारीद क्षिणश्रोत्रेसमौकरौसलाभिवादयेत्॥ अमुकसगोत्रः अमुकप्रवरान्वितः अमुकशर्माअहंभोग वैश्वानरअभिवादयामिइनित्रिः॥३॥अमुकसगोत्र ॥भोसूर्यअभिवादयामि॥३॥असकस गोत्र ॥'मोआचार्यअभिवादयामि॥३॥अमुकसगोत्र ॥ मोअध्यापकगुरोखामभिवादया ||मि॥ ३॥ ततआचार्यादिः प्रत्यभिवादयेत् ॥ अभिवादयस्व आयुष्मान्भावसौम्यअमुकशर्म|| For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार न॥ इनिप्रत्यभिवादन। ॥ यथाहयाज्ञवल्क्यः॥दक्षिणपदमालत्यपाणिनादक्षिणेनच॥ सभास्कर २११॥ व्येनसव्यंस्पृष्टव्यमभिवादनकर्मणि ॥व्यवस्थपाणिनाकार्यअमिंसूर्यगुरूंतया।उपसंग्रहणय थाइनिपाठभेदः ॥उमाभ्यामपिहस्तायांकारयेछोत्रसदृशौइति॥ अन्यथादोषोस्तियथा॥जा न्मप्राकृतियकिंचिच्चिकित्साधर्ममाचरत्॥सर्वतन्निष्फलंयातिएकहस्ताभिवादनादिति ॥अभि वादनंतु॥ पोशब्दकीर्तयेदंतेस्वस्यनाम्नोभिवादने॥ आयुष्मानावसौम्येतियाच्याप्रत्यभिवादने । इनि। प्रत्यभिवादनाकरणे॥ योनवेत्यतिवादस्यविप्र प्रत्यभिवादन।नाभिवाद्यःसपिदुषायथा |॥२१॥ शूद्रस्तथैवसः॥ इत्यभिवादन॥ ॥संध्यावंदनाधिकारस्त ॥यावब्रह्मोपदेशोनतायसंध्यादि। For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंचन॥ततोमध्यान्हसंध्यादिसर्वकर्मसमाचरेदिति॥ ॥ अवपिक्षाचर्यचरणं॥ ब्रह्मचारीपा बंगृहीत्या ॥प्रतिभिक्षादेहि॥ इत्येवमुकाब्राह्मणोभिक्षायाचने॥शिक्षायहणोत्तरंब्रह्मचा री ॐ स्वस्तीत्याशीर्वचनंदद्यात्॥भिक्षांभवतिदेहीतिक्षत्रियः॥भिक्षादेहि भवतीतिये | श्यः॥यत्रप्रत्याख्याननकुर्यतितत्रशिक्षार्थगच्छेत् ॥ तिलोवाभिक्षायायाः षट्वादशाऽपरिमिताया॥ आत्मनआचार्यस्यचआहारपरिमितावधिवा॥मातुः सकाशात्प्रयमतिक्षायाचेतेये के आचार्यामन्यते॥एवंययोक्तांभिक्षांभिक्षयिखाआचार्यायभैक्षनिवेदयेन्॥ मुंश्चेत्याचा नुिज्ञातोपिसांस्वीकुर्यादितिभिक्षाचर्यचरणं॥ वाग्यतोहःशेषतिष्ठेदित्येके अहि सन्नर For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ण्यासमिधा आहत्यपूर्ववदाधायवाचं विसृजते॥ वाग्यनोमौनी। अहःशेषतिष्ठेत् इति । ॥१२॥ शिक्षानिवेदनो तरंयावदस्लमयंगुरुसेव नाध्ययनेतिछेदित्येकेआचार्यामन्यते॥ अहिंसन् इतिअछिंद-स्वयंप्रमाःसमिधआहृत्यपूर्ववदाधायइति॥पूर्वसंध्योपासनपूर्वकंतस्मिन्ने यामोपरिसमूहनादित्यायुषकरणांतंसमिंदाधानंअभिवादनंचकुर्यादित्यर्थः॥ वाचविसृजन इति। याग्निसर्गः॥याय द्वतंतावदमिरक्षणविरावा॥अतभारस्याब्रह्मचर्यपरिसमा प्लेब्रह्मचारिणोयमनियमाःकथ्यते॥ अधाशायीस्यात्॥ अक्षारलपणाशीस्यात्॥ दंडधा | ॥२१२॥ रणकर्तव्यं । अरण्यास्वयंप्रशीर्णाः समिधाहत्य॥ सायंप्रातःसंध्योपासनपूर्वकप For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिसमूहनादित्र्यायुषकरणां यथोक्तंकर्मकर्तव्यं॥गुरुसुश्रूषाकर्तव्या॥सायंप्रानोजनार्थेमोजनसन्निधानेवारद्वयंभिक्षाचरणंकर्तव्यं॥मधुमासाशननकर्तव्यं॥मज्जननक तव्यं ॥उधृतोदकेनस्मायादित्यर्थः॥कुशासनोपरिमसुरिकाद्युपधानरुत्वानोपविशे त्॥ स्त्रीणांमध्येअवस्था नकर्तव्यं ॥अनृतंनवक्तव्यं ॥ अदत्तनगण्हीयात्॥स्म | त्यंतरोक्ताश्चयमनियमाअनुष्ठेयाः ॥यथा॥परिधृतवस्त्रंक्षालनंविनानदधीत॥ प्रमंस सँल्लमितंविरुनवस्त्रंनदधीत॥अस्तसमयेभास्करावलोकनकुर्यात्॥ | शुल्कवदनंपरियादादिवर्जयेत्॥पर्युषितमन्नंभिस्सदान्नंचनपक्षयेत्॥कांस्या For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार 11 यसवंगनृपात्रभोजनं ते न पानेचन कुर्यात् ॥ तांबूलमक्षर्णन कुर्यात् ॥ अभ्यंगमक्ष्णोरंज भास्कर ॥१३॥ नमुपानच्छत्रादर्शच वर्जयेत् ॥ इति ॥ यस्यैवमध्यवयसोश्वत्वारोवे दामयापठिता च्याः सीष्टाचत्वारिंशद्वर्षाणिवेदब्रह्मचर्यं चरेदिति ॥ ॥ स्मृत्युक्तान्पंचाश संरच्याका ब्राह्मणान्भोजयिष्येइति ॥ ॥ अद्याशीर्वादः॥ हरिः ॐ ब्रह्मचर्यमागामत्या ह | ब्रह्मण: एवैतदा मानन्नवेदयतिब्रह्मचर्यसानीत्याह ब्रह्मण: एवैतदात्मान सम्पुश्विदात्यथैन माहको नामासीतिप्रजा॒पतिर्वैकः प्राजापत्य॒मे॒वैनन्न॒त्कयो॒पनयते ॥ २१३॥ ||| १|| अथास्यहस्तङ्गङ्ग्रहात ॥ इन्द्रस्यब्रह्मन्वा॒र्य॑स्य॒ग्निराचा॒र्य॑स्तु॒वा हमाचार्यस्त॒वा For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सावित्यनेयै श्रेष्ठेवनिष्ठेदेवने एनाभ्यामेवैन श्रेष्ठाभ्याम्बुलिष्ठाभ्यान्देवुताभ्याम्प रिददातित्थाहास्य ब्रह्मचारीनकाञ्चनार्तिमाईतिनसय एवँ वेद॥२॥अथेन तेभ्यः परिददाति॥प्रजापतयेलापूरिददामिदेवायसासरित्रेपरिददामीत्येतेचैश्रेष्ठेवर्षि देने एनाफ्यामवैन श्रेष्ठाभ्याम्बृर्षिष्ठाभ्यान्देवताभ्याम्परिददातित्थाहास्यब्रह्मचा रीनकाञ्चनार्तिमाईनिनसय एवं वेद॥३॥ अयस्वोषधीय पुरिददामीनि॥ तदेन मयोषधीभ्यश्चपरिददातिद्यावापृथिवीफ्यान्त्वापरिददामीतिनदेनमाश्यान्यावा थिवीभ्याम्परिददात्तिययोरिद सर्वमधिविश्वेश्यस्याभूतयः पुरिददाम्युरिष्टयाऽति For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | नंदन सर्वेभ्योन्यःपरिददायरिष्टयेत्तुथाहास्युब्रह्मचारीनकाञ्चनातिमार्छतिनस मास्कर ॥२१४॥ यरुपये वेद॥४॥ ब्रह्मचार्घसीत्याह॥ ब्रह्मण एवैनन्तसरिददात्यूपोशानेत्यमृतचा आपो मृतमशानेत्येवैनन्तदाहकर्मकुर्वितिचार्य वैकर्मवीर्यवर्धित्येवैनन्तुदाहसमिधमाधे। हीतिसमित्स्वात्मानन्तेजसाब्रह्मपनसेनेत्येवैनन्तदाहमासुषुष्थाऽ इनिमामृथाऽडू येवैनन्नदाहापोशानेत्यमुतँवा आपोमुनमशानेत्येवैनन्तदाहनदेनमुमायनी मुते | नपरिगृहानितथाहास्यब्रह्मचारीनकाञ्चनातिमार्छतिनसय एवं वेद ॥५॥ ॥१४॥ थामेमावित्रीमन्चाह॥ ताई हस्मे ताम्पुरासंवत्सरे न्वाहुः संवत्सरसम्मिना_गर्भाः । For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रजायन्तेजात एयास्मिनाचन्दध्मः इति ॥ ६॥ अथषसमासेषु ॥पड़ाऽकतवः संवन्स रस्यसंवत्सरसम्मितावैगाः प्रजायनेजात एवास्मिनहाचन्दध्म इति॥॥ अथच तुर्वि गृत्यहे॥ चतुर्विद शनिसंवत्सरस्यार्धमासाः संवत्सरसम्मितावैगर्माःप्रजायन्तेजा नु एयास्मिंस्तवाचन्दध्म इति ॥८॥ अयदादशाहे ॥ शादशमासाःसंवत्सरस्यसंवत्सरस स्मितावैगर्भाः प्रजायन्तेजान एवास्मिरसाचन्दध्मः इति ॥९॥ अथषडहे॥षड्वाऽकन व संवत्सरस्यसंवत्सरसम्मितावैगृाःप्रजायनेजात एवास्मितहानन्दध्म इनि॥१०॥ अथव्यहे। वयोवा ऋतूयः संवत्सरस्यसंवत्सरसम्मिनावैगाः पुजायन्तेजात एवा । For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, स्किँम्साचन्दध्माइति॥१॥ तदपिलोकयन्ति॥ प्राचार्योगीभवनिहस्तमाधा भास्कर ॥२१५॥ यदक्षिणम्॥ तृतीयस्यार्ट सजायतेसावित्र्यास हब्राह्मण इतिसयोहलायब्राह्मणाया नब्रूयादाग्नेयोवैब्राह्मणः सद्योगाऽ अग्निर्जायते तस्मात्सय एवब्राह्मणायानुब्रूयात् ॥ १२॥ नाई हैतामेके॥सावित्रीमनुष्टुभमन्याहु ग्याऽ अनुष्टुप्तदस्मिन्वाचन्दध्मति नितथाकुर्या द्योहैनन्नुवन्यादान्या अयुमस्याचमदितमूकोप्पविष्यतीतीश्वरोहतथै म्यानम्मादेनाङ्गायत्रीमेयसावित्रीमनुब्रूयान्॥१२॥ अथहैकेदक्षिणनः ॥ ति॒ष्टनेया २१५।। । सीनायान्याहुर्ननथाकुर्यायो हैनन्तृवाङल्ला अयमिममजीजननबुल्योम For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिय्यतीतीश्वरोहत्येवस्यात्तुरमासुरस्तादेयुप्रतीचेसमीक्षमाणायानुयात् ॥१४॥ तवैप छन्वाह॥योचेप्राणाः प्राण उदानीव्यानस्तानेवास्मिंस्तधास्यथार्थर्चुशोडौाऽइमौषा गोप्राणोदानावेयप्राणोदानावेयास्मिंसुद्दधान्यथरुस्मामेको अयम्प्राणः रुस्मए वप्राणमेवास्मिस्तलस्मन्दधानि ॥१५॥ तटाहुः। नब्राह्मणम्ब्रह्मचर्यमुपनीयमिथुनञ्च रेPोग एपमवनियोब्रह्मचर्यसपैतिनेदिमब्राह्मविषिकाहनसाजनयानीति॥१३॥ तदुवा आहुः॥काममेवचरेट्थ्योा इमाःप्रजाव्यश्चैवमनुष्यश्चतावाऽइमामनु | व्यःप्रजाःप्रजननासृजायत्तेच्छन्दार्ट-सिदैव्यः प्रजास्तानिसखोजनयतेतुन For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार एतन्जनयतनम्मादुकाममेचरेत्॥१७॥ तदाहुः॥ नब्रह्मचारीमन्मध्वनीयादोषधीनाँचा: ॥२१६॥ एषपरमोरमोयन्मुधुनटन्नायम्यान्नङ्गशानीत्यृथहस्माहश्वेतकेतुरारुणेयोब्रह्मचारीसन्मध्व अस्त्रव्यैया एताहियायैशिष्ट्यन्मधुमतुरसोयस्येहशिष्टमितिययाहवाऽ कुचंबायजुर्वा मामवाभिव्याहरेतादृकय एवविहान्ब्रह्मचारीसन्मध्यभातितस्मादुकाममेयवाभीयात् १८॥इत्येकादशेकाण्डे तृतीयप्रपाउके पञ्चमंब्राह्मणम्।। ॐ ब्रह्ममृत्यूवेप्रजाः॥पाय उत्तम्मैब्रह्मचारिणमेवनायच्छु त्सोब्रवीदस्तुमयमप्येनुस्मिभागऽइतियामेवरात्रिः ॥२१६।। समिधन्ना हुराना इनिनम्माया रात्रिम्ब्रह्मचारीसमिधन्नाहुरत्यायुषः एवनामबदायरस For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निनुस्माब्रह्मचारीममिधमाहरेन्नदायुपारायचूमानानि ॥१॥ दीर्घसवाएष उपेति॥यो । ब्रह्मचर्यमुपेनिसयामुपयन्समिधमाधातिसाप्रायणीयाघाट स्मास्यन्सोदयनीयाथयाउ अन्न रेणमध्या एवास्थता ब्राह्मणब्रह्मचर्यमुपयन् ॥२॥ चतुर्धाभूतानि प्रविशति ॥ अमिम्पदामृत्युम्प दाचार्यम्पदात्मन्येवास्यचतुर्य पादःपरिशिष्यते ॥३॥ सयदमयेसमिधमाहुरति॥ य एवास्या भोपादस्तमवतेनपरिक्रीणातित सँस्कृत्यात्मन्धत्तेस.एनमाविशति ॥४॥ अथयुदात्मा नान्दरिद्रीकृत्येवाहीभृत्वाभिसनेय एवास्यमृत्यौपादस्तुमेवतेनपरिक्रीणानितई सँस्कृ त्यात्मन्धतेसएनमाविशति॥ ५॥ अथवदाचार्यवचसङ्करोति यदाचार्यायकर्मकरोतियाए For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार ॥२१७॥ वास्याचार्येादस्तुमेवनपरिकीणातित सँस्कृत्यात्मन्धत्तेस,एनमाविशनि॥८॥ नहचे भास्कर स्मात्या॥भिक्षेत्रापहवैस्नालाभिक्षाञ्जयत्यपज्ञातीनामशनायाभूपपितॄणार्ट सुरु एवँविहा न्यस्याउ एयभूयिष्ठ र श्लाघ्येतनामिक्षेतॄत्याहुम्नलोक्यूमिनिमययन्याम्मिक्षितव्यान्नुविद दपिम्चामेवाचार्यजायाम्भिक्षेतायोस्वाम्मानुरन्नैनः सप्तम्यमिशिनानीयान्नुमम्बिदाई समे बञ्चरन्नई सधैवेदाऽ आपिशन्नियथाहा : अमिः मुमिद्धारो चतः एवर्ट हयैसुरूनावारो | चतेयः एवृम्बिद्धान्ब्रह्मचर्यञ्चरति॥७॥ अष्टावष्टौकलो॥ ब्रह्मवर्चमुकामस्याभिषणुयादि ।।२१७|| त्याहुरष्टाक्षरावेगायत्रीब्रह्मगायत्रीब्रह्मवर्चसीहेवभवति॥८॥सय कामुयेत।ब्रह्मवर्चसीस्थामिति । For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बसन्तेस आदधीनब्रह्मवैवसन्तोब्रह्मवर्चसी हैवमवति॥९॥ शतमानमवति॥शतायु वैपुरुषःशतेन्द्रिय आयुरेन्द्रियवीर्घमारमन्धत्ते॥१०॥ कां०११. प्र०२. ब्रान्६ ब्रह्मयर्चसीभव॥आचार्यादीनगंधादिभिः संपूज्यतेभ्यश्चदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृहीत्वा।स्था पितमात्रादिदेवकोत्थापनमंडपोडासनंचकार्य। तद्विधिश्वापक्ष्यते ॥ इतिसंस्कारभास्कर उपनयनप्रयोगः समाप्तः॥ ॥अथोपनयनादूर्धेब्रह्मचारिणः सायंप्रातरमिनित्योपास नविधिः॥ सायंसध्योपासनंरुलाधृतदंडादिहीनेधनाज्यसमिस्थापित्तामिसमीपेस्वासने उपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनानेममसतेजोब्रह्मवर्चससिध्यर्थअमिनाराया For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार राणप्रीतयेचमायममिपरिसमूह समिदाधानादिकंचकरिष्ये। अमिमुरयंकवाचत्वारिगेनि-भास्कर ॥२१८॥ध्यासागंधादिनायज़ततोग्ने मुश्रवइत्यादिपंचतिर्मत्रैःप्रतिमंत्रघृतप्ने धनप्रक्षेपः॥जले नामिंपर्युक्ष्य।उत्थायआज्यप्तसमिधमेकांगृहीबाडमयेसमिधमहार्पमित्यारण्यभूयास ८ स्वाहेत्यनमंबंपठित्वाताममौजुहुयात॥अनेनैवमंत्रणहिनीयांनथातृतीयांसमिधमादध्या त्॥पुनरमे सुश्रयइत्यादिपंचभिर्मरिंधनंप्रक्षिप्य॥ तूष्णीपाणीप्रतप्यतनूपाअमेत्यादिम वैःप्रतिमंत्रमुखबिमार्जन। पुनः अंगानिचमइत्यादियशोवलमित्यतमः प्रतिमंत्रप्रत्यंगा ||२१८॥ लंभनंकार्य॥ ततस्यायुषमितिप्रनिमंत्रणभस्मललाटेग्रीवायांदक्षिणेट से हृदिचसंधाया। For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नतोगोत्रनामपूर्वकंवैश्वानरादीनामभिवादन।अनेनसायममिपरिचरणेन अभिनाराय। ण:पीयना गानम्मानसंध्योपासनोत्तरआचम्यादिदेशकालकीर्तनोत्तरंपानरमिपरिसमा हनंसमिदाधानादिकंचकरिष्येइत्यूहेनइंधनप्रक्षेपादिअभिवादनातं सर्वं कर्म कुर्यादिति॥ उपनयनामौनष्टेपुनरुत्पादनविधिः ॥ रेणुकारिकायां ॥ अनामिना नोतिनावीन्झन्छाश्चत्र तंचरेत् । प्राग्वदर्गिप्रतिष्ठाष्यकटिसूत्रादिकंपुनः॥पना नांवान्पदमायाज्येनानिये । यत॥नगायत्र्युपदेशंचरुत्वाग्निपरिसुश्रुषांइति॥ अथयमलजातपुत्रयारूपनयने निर्णयः॥ ॥ संस्कारक्रमार्यज्येष्ठकनिष्ठभावउच्यते॥ मनुः॥ जन्मज्येष्ठेन-चाहानंसु For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ब्रह्मण्यास्वपिस्मृतं ॥ यत्तयोश्चैवगर्भेषु जन्मतो ज्येष्ठतास्मृताइति ॥ देवलः ॥ यस्यजातस्यय ॥२१९॥ मयोः पश्यंतिप्रथमंमुरवं ॥ संतानः पितरचैवतस्मिन् ज्यैष्ठ्यंप्रतिष्ठितं । भागवतेतु ॥ हौनदा भवतोगर्भोसू निर्देश विपर्ययादित्युक्तेः ॥ यश्वादुत्सन्नस्य ज्यैष्ठयमुक्तं ॥ वैद्यकेष्याचेयसंहितायां॥ यदाविशेद्विधाभूतंबीजंपुष्यंपरिक्षरत् ॥ तदाभवेद्विधागर्भःसूर्तिर्वेशविपर्ययादिति ॥ तथा पिबहुसं मतमनुवचनंयुक्तं ॥ निर्णयसिंधौ ॥ एकस्मिन्वासरेप्राप्ते कुर्याद्यमल जानयोः ॥ क्षौरंचे वविवाहंचमौंजीबंधनमेवचेति ॥ यमलयोर्युगपदेवसंस्कार करणेएकमेवनांदीश्राद्धंकार्यमिति ॥२१९ ॥ धर्मसिंधौनांदीश्राद्धप्रकरणांतेउक्तं ॥ यमलयोरेककालेएक पेवासमानसंस्कारी नदोषायेति For Private and Personal Use Only भास्कर Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | धर्ममियोविवाह निषेधापवादप्रकरणेउक्तं ॥रेणुकारिकायां॥एकस्मिन्वत्सरेचैववासरे। मंडपेतथा ॥ कर्तव्यंमंगलं स्वस्त्रो बोर्यमलजातयोः॥एकंचायुदयंकार्यपृथग्वेद्योचा नेषुच॥ पृथक्कुर्यनसंभारान्पृथगाचार्यमेवच॥यमलकन्यकोडाहेपृथग्घरौचयेदिके।पृथग्यो निकदानंचऐरिण्यादितथैवचेति॥ संग्रहे॥जातैककाले यमलोसुतोवनेनथैवकन्धेअपि ऊटकाले॥ आचार्ययुग्मंरयलुयेदियुग्मकुर्वीतनांदीमुरयमेकमेवेति। अथयमलपुत्रयोः उपनयनेसर्वसंमारान्प्राग्वन्द्विगुणसंपाय॥वेदिकेचहेविरच्यआचार्टीद्वौइति॥ ॥ अथयमलपुत्रयोःउपनयनप्रयोगविशेषः॥कर्तापल्यासहमंगलंग्नासाहतवामसीपरि, For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, धायधृतमंगलतिलकोमंडपमध्येकामासनेप्राङ्मुरयउपविश्यस्वदक्षिणतःपलींनदक्षिणतम भास्कर ॥२२०॥ मलजातकुमारोउपवेश्यपवित्रपाणिराचांतःप्राणानायम्यदेशकालकीननांनेअनयोःयमलजाना कुमारयोः दिजखसिध्यैवेदाध्ययनाधिकारार्थचउक्तमकारेणज्येष्ठस्यस्वयंकनिष्ठस्यान्यद्वाराउपनया नारव्यसंस्कारोअद्यवाश्यःकरिष्ये॥ममोपनेतृत्वाधिकारसिध्यर्थंकृच्छ्त्रयात्मकप्रायश्चि| नपूर्वकंहादशसहस्रअथवाद्वादशाधिकसहस्रंगायबीजपस्वयंवा ब्राह्मणद्वाराअहमाचरिष्ये।। कुमारेणापिकामचारकामवादकामप्तक्षणादिदोषपरिहारार्थरुच्छ्वयात्मक प्रायश्चित्तपूर्वकं ॥२२० ।। ब्राह्मणद्वाराद्वादशसहसंवाद्वादशाधिकसहस्रंगायत्रीजपंअहमाचरिष्ये।पुनःपिता॥ अ । For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नयोः कुमारयोःग्रहानुकूलनामिध्यर्थंग्रहयज्ञकरिष्ये॥तबनिर्विभार्यगणपतिपूजनंस्व । स्लिपुण्याहवाचनअविघ्नपूजनमंडपस्थापनमातृकापूजनंयसोराआयुष्यमंत्रजपंनोदी श्राइंग्रहयज्ञांगंआचार्यादिवरणंदिग्रक्षणपंचगव्यकरणभूमिपूजनंपंचपूसंस्कारान्अमि प्रतिष्ठापनंग्रहस्थापनरुद्रकलशस्थापनंचायकरिष्ये॥ कालांतरेयहयज्ञकरणेसंकल्पेयथा-| कालंग्रहयज्ञंकरिष्येइत्यूहः कर्तव्यः ॥ सर्वथाग्रहयज्ञाकरणेग्रहयज्ञसंकल्पमेवनकुर्यात्॥ तपक्षेनांदीश्राद्धोतंसंकल्पकुर्यात्॥नांदीश्राडोनरंपूर्वोक्तप्रकारेणगृहमध्येमातृका स्या |पयेत्॥ यहयज्ञकरणेग्रहयज्ञांतंकुर्यात्॥ यदाचौलेनसहोपनयनंक्रियतेतदासंकल्पेची। For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार लोपनयनारव्येकर्मणीअहंकरिष्ये इत्यूहः॥ अथपितास्वानाचादिभ्यःयमलजातकनिष्ठ-भास्कर ॥२२१॥ कुमारस्यचूडोपनयनादियाउपनयनादिसंस्कारस्याधिकारंदयात्॥ तद्यथा॥ आदोगणपतिसपूज्य॥अथाधिकारदानं॥ मात्रेममास्ययमलजातकनिष्टकुमार स्यचूडोपनयनादिवाउपनयनादिसमावर्तनांतसंस्कारकर्माधिकारार्थत्वामहंवृणे॥धा नरंगंधवस्त्रादिनापूजयेत् ॥तथाचसंग्रहे। वानरस्यकुमारस्यचूडादिस्नानकावधि। संस्कारकर्मकरणाधिकारंतेददाम्यहं ॥१॥ इत्युत्वाकुमारं चातुरुत्संगेदयान्।गृहीनाय |॥२२१॥ क्ष्यमाणमंत्रेणगृण्हीयात् ॥चूडादिस्मातकांतानिकर्माणितुतयाज्ञया।घातरस्यकुमा For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir रस्यकरिष्येहंस्चपुत्रवत्॥इतिमंत्रेणकुमारं गृहीत्वाकुंकुमादिभिररुत्यप्रयोगवत्संस्का रान्कुर्यात्॥ अथयमल जानकन्यकोद्वाहप्रकारः॥तबसंभाराः॥वेयौ ॥यौतिकइयांसो पस्करंऐरिपयारण्यवंशपात्रयंअंनःपटवस्त्रेदे॥मधुपर्कादिसर्वसामग्रीयंसंपायेति॥यम लजातकन्ययोदिनांतरेणोडाहकरणेपितुरेवाधिकारः॥ तत्रसंकल्पेममास्याः कन्यकायाः इत्यू हकार्यः॥ यमलजातकन्ययोरु दाहस्येकदिने करणपक्षेनांदीश्राझंतंपितैयकुर्या त् ॥ विवाहदिनरुत्यंतु यात्रादिनाकार्य।। अत्रप्रधानसंकल्पेममानयोःकुमार्यो: इत्यू हकर्तव्यः॥ दानपतिगृही बोरधिकारदानेप्रनिगहेचविशेषः॥ अस्याः कुमार्याः इत्यूहः For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कर्तव्यः॥उभौगणेशंसंपूज्य ।। श्वातर्ममास्याः यमलजात कन्याया:विवाहसंस्कारकर्माधिकारा ॥२२२॥ र्थं वामहंवृणे ॥ भ्रातरंगंधवस्त्रादिनापूजयेत् ॥ संग्रहेअधिकारदानमंत्रः ॥ प्रातर्ममास्याः कन्यायाः विवाहोत्साहकर्म ॥ अधिकारंप्रदास्यामिकुरुकर्मयथोदितं ।। इतिर्मत्रेणकन्यांध्धातुरु संगदद्यात्॥गृहीतावक्ष्यमाणमंत्रेणगृहीयात् ॥ विवाहादीनि कर्माणि सांगानि तुतवाज्ञया ॥ पत्रातरस्याः कन्यकायाः करिष्येहंयथोदितं ॥ इतिमंत्रेणकन्यांग्टहीत्वा कुंकुमादिभिरलंकृत्यवि वाहप्रयोगोक्तवत्संस्कारंकुयत्॥िविवाहोपनयनयेोर्देवकोत्थापनंपितैवकुर्यादितियमलजातवि ॥२२२॥ वाहोपनयनसंस्कारप्रकरणं ॥ ॥ अथविकलांगाद्युपनयनप्रकारः॥ स्मृत्यर्थसारे॥षं For Private and Personal Use Only भास्कर Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दांधबधिरनब्धजडगद्दपंगुषाकुञवामनरोगार्नशफांगविकलोगिषु॥धस्तपुंस्वेषुचैनेषु । संस्कारा:स्युर्यथोचित।मत्तोन्मतोनसंस्कायैपितितश्चत्तथैव च। तदपत्यंतुसंस्कार्यमपरेत्याह रन्यथेति ॥पतितलक्षणंतु॥ आषोडशाही ब्राह्मणस्यान तीतःकालोपयति॥ द्वाविंशाहर्षा द्राजन्यस्य चतुर्विंशाहद्वैश्यस्य ॥एनहर्षेऽनतिक्रांतएयोपनयनकालोभवति॥ अतऊ पतिनसाचित्रीकामनि॥ तेनैतान्नोपनयेयुर्नाध्यापयेयुर्नयाजयेयुर्नचैमिळवहरेयु स्तदपत्यसंस्कारयेयुः॥ ब्राह्मण्यांब्राह्मणादुरसन्नोब्राह्मण एवेतिश्रुतेः॥ अन्येतुनसंस्कार्य मित्याहुः॥होममाचार्यः करोति॥उपनयनंभाचार्यसमीपानयनं॥ अग्निसमीपेया॥सादि। For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२२३॥ संस्कार श्रीवाचनं वा ॥ अन्यदंगयथासंभवं कार्यमिति ॥ चयाणांपक्षाणामन्यतमनप्रधानमिद्धिरित्या भास्कर शयः। मूकबधिरादेः सावित्रीवाचनासंप्तवेस्पृष्ट्वा आचार्येण जपः कार्यः ।। वाचक श्वेतर्हिमंबोलिखित्याचार्येणदर्शयितव्यः ॥ तेनमनसाचिंतितव्यः ॥ यथा ॥ संस्कारमंत्रहोमादीन्करो त्याचार्यएव तु ॥ उपनेयाश्वविधिवदाचार्यस्य समीपतः । आनीयाग्मिसमीपेतुसावित्रींस्पृश्या वाचयेदिति पारस्कर वचनं ॥ अन्यत्समानं ॥ उपनेयस्य वासः परिधानादिषुयेसंस्कारमंत्रास्ता नाचार्यःपठेदित्यर्थः॥ तेषांत्रिरात्रो नदीर्घव्रतं ॥ इतिसंस्कार भास्करेविकलांगाद्युपनयनप्रकारः॥ अथपुन रुपनयनकारणतद्विधिश्व ॥ तत्रपुनरुपनयनकारणमाह ॥ तच्चप्रत्यवायनिमित्तकं प्रायश्वि For Private and Personal Use Only ॥२२३॥ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नभूतंपुनरुपनयनमायं॥ तच्चजानकर्मादिसहितंतद्रहितंप्रायश्रित्तोतरसहितकेयलंचेत्यनेक विधारूतस्योपनयनस्योक्तकालाग्रंगवैगुण्येनवैफल्यापत्ताचपरं॥ तवप्रथमंयथा॥ अमत्या औषधांनगनाश्यरोगनाशार्थंपैष्ट्याः सुरायाः पानेविमासंरुच्छाचरणंपुनमपनयनंच॥मत्योपे ट्यन्यसुरायाओषधार्थपानेरुच्छातिकच्छौपुनरुपनयनंच॥पेष्टीपानेद्वादशाब्दं॥ अज्ञानाडा रुणीगोडीमाधीसुरापीताचेनप्तरु;पुनरुपनयनंच॥ अज्ञानाद्वेनायिणमूत्राणामशनेसरासस शान्नजलादिलक्षणेचनप्तकृच्छंपुनःसंस्कारश्च॥ज्ञात्वाविण्मूत्रायशनेचांद्रायणपुनः संस्कारौ || लशुनपलोडुग्रंजनविड्राहयामकुकुटनरगोमांसभक्षणेडिजानीनांननत्यायश्चित्तानेपुन| For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥२२४॥ रुपनयनं॥माधवमतेरक्तलशुनकृष्णाताक भक्षणोनपुनरुपनयनं ॥ अविखरोष्ट्रहस्मि |सास्कर नीवडयामानुषीक्षीरपाने तप्तकच् पुनःसंस्कारश्वारासमोष्ट्राचारोहणेकच्छंपुनः संस्कार | ॥इदंहेमाद्रिमतमिति।सिंधौकचित्॥मिताक्षरास्मृत्यर्थसारादिमतेरासप्पोष्ट्रारोहे उपवासत्रयादिमावंनतुपुनः संस्कारः॥कोस्तभाशयोप्येवं॥वृषप्पारोहपोअमत्याकछं मत्यारु छ्त्रयादि॥केचिद्वषारोहेपुन:संस्कारकुर्वंतितत्रमूलंमृग्यं ॥ एवमजबस्तमहि पारोहेपि॥ मांसभक्षकमलपक्षकपशोभिक्षणेपुनरुपनयनमात्र। केचिन्मानुषमला ॥२२४॥ ।भक्षणेपिएन:संस्कारमात्रमाहुः॥प्रेतशय्यापतियाहीपुनः संस्कारमर्हति ॥जीवतोमृतवा | For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie श्रुित्वापुत्रादिनांऽत्यकर्म करणेतंघृतकुंभेनिमज्योत्यस्नापयिखाजातकर्माद्युपनय नांनसंस्कारानकखात्रिरावबतातेपूर्वभार्ययातस्यामृतायामन्यभार्ययावाविवाहः कार्यः॥ आहितामिश्चेत्पुनराधानायुष्मदिष्ट्यादि॥ तीर्थयात्रांविनाकलिंगांगपंगांभ्रसिंधुसोची रपत्यंतचासिदेशगमनेपुनः संस्कारः॥ चांडालान्नाक्षणेचांद्रायणबुद्धिपूर्वपक्षणेसच्छादं उभयवपुनःसंस्कारःश्च॥अजिनमेवलादंडोभेक्ष्यचर्याब्रतानिच॥निवर्ततेरिजातीनांपु नःसंस्कारमर्हति॥ वपनंमेखलेतिस्मृत्यनरेपाठः॥एवंगणिकानपक्षणेपिब्रह्मचारिणोम | धुमांसाशनेपुनरुपनयनंप्राजापत्यंत्रिरात्रोपवासावा ॥मत्याप्तक्षणेपराकः॥ अस्यासदिगुण For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पुनसंस्कारश्रापिट्टमातृगुरुभ्योभिन्नस्यप्रेतस्यात्यकर्मकरणेब्रह्मचारिणःपुनरुपनयनं। भास्कर ॥२२५॥ हस्तमथितदधिमक्षणेवहिर्वेदिपुरोडांशाशनेअभ्यासेकछःपुनःसंस्कारश्च॥ यःसंन्यासंग हीलाततोनिवृत्यगार्हस्थ्यं चिकीर्षतिसषण्मासंरुच्छाकखाजातकर्मादिसंस्कारैःसंस्कृतःगु दोगार्हस्थ्यंकुर्यात् ॥ एवमनशनमरणार्थसंकल्प्यनिवृत्नोपिकुर्यात् ।। कर्मनाशाजलस्पर्शाल रतोयाविलंघनात्॥गंडकीबाहुतरणासनःसंस्कारमर्हति॥ ॥अथानध्यायादेश्चदिनीयं॥ प्रदोषेनिश्यनध्यायेमंदेकृष्णेगलग्रहे ॥अपराण्हेचोपनीतःपुनः संस्कारमर्हति। अत्रप्रदोष । ॥२२५|| प्रदोषदिन।रुष्ण कृष्णपक्षएकादश्यादिरंत्यत्रिकरूपोपराण्हअदिनद्वतीयामागरूपइत्युक्तं। For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अनध्याया अपिनित्याएवपौर्णिमाप्रतिपदादयःपुनरुप नयननिमित्तं ॥ नतुनैमित्तिकाः अका लदृष्ट्यादिनिमित्तकविरात्रादयः । नैमित्तिकेषुप्रातर्गर्जितनिमित्तानध्यायएवपुनः संस्कार निमित्तं ॥ अत्रविस्तरः कौ रक्त भे ॥ अंसाभिमर्ष कबटोः समीपमानयनंप्रधानकर्मतस्यवि | स्मरणेपुनरुपनयनं ॥ एवंगायत्र्युपदेशविस्मरणेपि ॥ अभाषितेषां नदीर्घव्रतं ॥ ब्रह्मपुराणे नारदः॥ सावित्रीयहणादूर्ध्वतहिने वाचतुर्थके ॥ पंचमेष्ठेद्वादशे वावत्सरेब्रतमुत्सृजेत् ॥ मनुः ॥ पक्षेमा से चवर्षे चमौंजीमोक्षः प्रशस्यते ॥ तृतीयदिवसेकार्यंपंचमेचविशेषतइति ॥ इतिपुनरुपन यनकारणनिर्णयः ॥ ॥ अथयजुर्वेदिनांप्रायश्वित्तैः सहपुनरुपनयनप्रयोगः ॥ प्राय For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्चित्तार्थेवनबंधेविशेषः॥तबनिमिन्नानंतरमेवकरणेउदगयनपुण्यनक्षत्रायुक्तकालानापेक्ष्या भास्कर ॥२२६॥ ते॥अन्यथातुयथोक्तकालापेक्षा। तबकर्तापितातदनाचेपिटव्यादिसपिंडः। तदमायेन्यःकश्चि त्॥ यत्रपुनरुपनयनंप्रायश्रिनवेनोक्तं तत्रपर्षदुपदिष्टविधिनानदेवकार्य।यत्रतुप्रायश्चित्तो तरसहिनंतत्रोक्तविधिनाप्रायश्चित्तंसंस्कार्पणकारयित्वाचार्येणतस्योपनयनकार्य॥यजा तकर्मादिसंस्कारसहितमुपनयनंपिहितंतत्रजातादिचौलांतसंस्कारान्कबाकार्य। नत्रादौ ब्रह्मचारिणः पिज्येष्ठाझ्यामन्योछिष्टभोजनेस्रियासहभोजनेवाश्रादसूतकान्नगणि|| ॥२२६॥ । कान्नाशनेवाअमुकदोषपरिहारार्थपर्षदुपदिष्टंप्रायश्रितंकरिष्येइतिकृता॥ आचार्य । For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org S रक्त अस्यामुक दोषपरिहारार्थं पुनरुपनयनसंस्कारसिद्धिद्वारा श्रीप० द्वादशसहस्त्रगायत्रीजपंअहंवा ब्राह्मणद्वाराकरिष्ये ॥ ब्रह्मचारीस्थंडिलेमिप्रतिष्ठाप्य अग्निमुखंकृत्वा आज्यंसं स्कृत्यादिआधाराज्यभागतं कृला आज्यप्लुतपलाशसमिधंगृहीलाॐ पुनस्त्वादि० कामाःस्वा हा॥१॥ ॐ पु॒न॒र्म्मन॒ः पु॒न॒रायु॑मे॒ आग॒न्पुनः॑ प्रा॒णः पुन॑रा॒त्मामा॒ऽ आग॒न्पुना॒श्चक्षुः पु॒न॒ःश्रोत्र॑ |म्म॒ आग॑न् ॥ धे॒श्वा॒न॒रो अदे॑ब्धस्तनूपा: अ॒ग्निर्न्त पातुदुरि॒तादे॑व॒ध्या स्वाहा ॥ २ ॥ ततश्वरु होमः ॥ ॐ स॒प्तते॑ अग्ने。 घृ॒तेन॒ स्वाहा॑ ॥ १॥ यत्ते॑प॒वित्र॑म॒र्च्चिष्यमे॒विन॑नमन्त॒रा ॥ ब्रह्म॒तेन॑षुनातु॒मास्वाहा ॥२॥ पव॑माना॒सो अ॒द्यन॑ प॒वित्रे॑ण॒ञ्चिच॑र्षणिर्य॑श्पोता॒मप॑नानु॒मास्वाहा।। ९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार अउभाभ्यान्देवसविन पवित्रणमवेनैच॥माम्पुनीहिधिश्वतस्वाहा॥४॥ ननःस्विष्टरूदादिनवा ॥२२७॥ हुनी?सा होमपंसमाप्य॥गांदवा अथवागोनियंदद्यात्॥ ॥ ततः कृतमंगलस्मानोधा ततिलककर्नाशुष्मासनेउपविश्य॥ दक्षिणतःसंस्कार्यंचोपवेश्य॥ आचम्य प्राणानायम्यदेश| कालकीर्तनांते अस्यसंस्कार्यस्यपुनःसंम्फारसिद्धि द्वारा श्रीप० जानकर्माद्युपनयनांतान्संका रान्करिष्ये॥ अथवाकेवलं उपनयनसंस्कारकरिष्येइतिसंकल्पः॥ तदंगविहिननिर्विधनासिध्यर्थ गणेशपूजनादिमंडपप्रतिष्ठानांदीश्राद्धांतंकृत्या॥अधिकारार्थब्राह्मणाभोजयित्वाकुमारव ॥२२७।। पनादिकंकलाप्रयोगानुसारेणउपनयनंकलावाजातकर्मप्रामृत्युपनयनांतसंस्कारान्कलाइ || For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie त्याद्यपक्षः॥अथापरमापरिधानारूत्वापालाशींसमिधमादायव्रात्यप्रायश्चित्तं हुखान्याहती जुहोति॥ इतिदिनीयपक्षः॥ अथापरोब्राह्मणवचनासावित्र्याशतरुत्तोनिमंत्रितंघृतंपाश्यक तपायश्चित्तोमवतीत्यादिकमवदत्इतितृतीयपक्षः। ॥ तत्रोक्तपक्षाणांशक्ताशक्तभेदेनव्यवस्था॥इदकौस्तुभेद्रष्टव्य॥ ॥एवंशावांतरेवपिवपन मेखलाजिनदंडोक्ष्यचर्यावतादिकं वैकल्पिकच्यवस्थयानुष्ठायस्वस्वशारयोक्तोपनयनकार्य॥ ॥इतिसंस्कार भास्करेसंक्षिप्त | पुनरुपनयनप्रयोगः॥ ॥अथब्रह्मचारिव्रतलोपेप्रायश्चित्त।बोधायनः॥ अवशीचा चमनसंध्यावंदनदर्भभिक्षामिकार्यराहित्यशूद्रादिस्पर्शकोपीनकटिसूत्रयज्ञोपवीतमेश्य For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार लादंडाजिनत्यागदिवास्वापच्छत्रधारणपादुकाघारोहणमालाधारणोदर्तनानुलेपनांजनजलकी ॥२२८॥ डायूतनृत्यगीतवाद्याभिरतिपारयंडादिनापणपर्युषितभोजनादिव्रतलोपसकलदोषपरिहारा थरुच्छ्वयंचरेन्महाव्याहत्यादिअनादिष्टहोमंचकुर्यात् ॥ तद्यथा॥ आचम्यप्राणानायम्य देशकालकीर्तनांतेपूर्वोक्त शौचाचमनादिवतनियमानांमध्येकश्चिद्वनलोपसन्जनिनदोषपरिहारा थरु त्रयप्रायश्चित्तंबातत्पत्याम्नायगोनिष्क्रयीमूतरजनद्रव्यदानमहाच्याहत्यादिअनादि टहोमंचकरिष्ये।तत्रादौगोनिष्क्रयरजतद्रव्यदत्वा॥ बनलोपजनितदोषपरिहारार्यरुच्छ्चया-४२२८|| मकप्रत्याम्नायेइदंयथाशक्तिगोनिक्रयरजतद्रव्यंअमुकर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहसंप्रददेइति। For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततः स्थंडिलेपंचभूसंम्फारपूर्वकंविटनामानममिंप्रतिष्ठाप्य॥ब्रह्मोपवेशनाद्याज्यभागांत व्यस्तसमस्तव्याहतीश्चतस्त्र-पंचवारुणेत्यादिनवाहुतीश्चाज्येनजुहुयात्॥नद्यया।ॐ भूःस्सा, हाइदममयेनमम॥ ॐ भुवःस्वाहाइदंयायवेन.॥ॐ स्वःस्वाहाइदंसूर्याय॥ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहाइदंप्रजापतयेन ॥ॐ बन्नौ : अमे. स्मत्स्याहा. इदमनीवरुणात्यांन॥ॐ |सत्पन्नोअमे एधिस्वा इदमग्रीवरु॥ॐ अयाश्यामे जर्ट स्वा. इदममयेअयसेन मम॥ॐ येतेशतं. स्वर्गःस्वा इदेवरुणायसवित्रविष्णावविश्वयादेवेभ्योमरुमः । खर्कश्यश्चन-॥ॐ उर्दुनमम्य स्यामस्वाहा इदंवरुणायादित्यायादितयेचनमम॥एना For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ॥२२॥ संस्कार अनादिष्टनवाहुनयः॥ अनंतरमहाच्याहत्यादिलिष्टरुदंतादशाहुतीराज्येनहुला। संस्त्र भास्कर वाशनादिप्रणीताविमोको नहोमशेषंसमाप्य॥ ॥ नृटिनानामेखलादीनांपुनर्ग्रहणंका यं ।।तथाचमनुः॥मेखलामजिनदंडमुपवीतंक मंडलम्॥अप्सुप्रास्यविनष्टानिगृहीत्वान्या निमंत्रवदितिव्रतलोपेप्रायश्चित्तं॥ ॥ अथवेदारंपनिर्णयः॥ तत्रवेदब्रह्मचर्यचरे दित्यनेनवेदाध्ययनांगतयाब्रह्मचर्याचरणमुक्तं॥वेदाध्ययनारंपाकालस्येतिकर्तव्य ताचनोक्ता॥केवलंसमावर्तनकर्मसूत्रकारेणारब्धं॥वेद समाप्यस्मायात्॥अत्रवे| ||२२६] दस्यारंभविनासमाप्तिकर्तुनशक्यते॥ अतउपनयनांतरमेववेदारंभस्यसमय: इ For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्येवगम्यते॥ इतिकर्तव्यता॥पुनः एतदधबनादेशनविसर्गेष्विति॥ उपाकर्महोमानि || देशाद्रतादेशनंवेदारंभःप्राप्नोति। अतश्॥उपनीयगुरु:शिष्यंमहाच्याहनिपूर्वन वदण ध्यापदेनंशौचाचारांश्चशिक्षयेदिति॥अत्रापिनांदीश्रादपिनानारम्यते॥अतःकारणाज्योनि-शास्त्रोक्त शोदिनेकार्य॥ सचस्वशारवापूर्वकोवेदारंभः॥ वसिष्ठः॥पारंपर्यागनोयेषी वेदःसपरिहणं॥यच्छास्याफर्मकुर्वीततच्छायाध्ययनंतथा॥१॥अधीत्यशारयामात्मीया मन्यशाखांततः परं । स्वशारयायःपरित्यज्यशारयारंडःसउच्यते॥२॥पराशरः॥वेदस्या ||ध्ययनंसर्वधर्मशास्त्रस्यचैवहि॥ अजानतीर्थतयर्थंतुषाणांकंडनंयथा॥१॥ मनुः॥ For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार योनधीत्यहिजोवेदमन्यत्रकुरुतेश्रमं॥ सजीवन्नेवशूद्रत्वमा गच्छतिसान्ययः॥१॥ भास्कर ति॥अत्रप्रतिवेदस्यारंगाणंपृथक्पृथक्॥तसक्षेप्रतिवेदस्याहुति दयंब्रह्मणेइत्यादिनयाहु त्यनंतरमहाव्याहत्यादिस्पिष्टरुदंतादशाहुतीर्ह लाहोमवशेषसमाप्यवेदारंनरुत्यायसेन। तनः परद्वितीयस्यनांदीश्राद्धाद्यारंभः॥ एवंसर्वत्र॥ तदशक्तीएकतंत्रेणनांदीइमेकमेवेनिपनिवेदम्याहुतिद्वयंब्रह्मणेछंदोभ्यश्चहुबाभंतेप्रजापत्यादिसप्ताहुती लाअनंतरमहाच्या हत्यादिदशाहुतयः॥ तवार्यक्रमः॥वेदारव्येमातनांदीमुखमथजुहुयाहन्हिवक्रेऽतरिक्ष ॥२३०।। । वायुंब्रह्मादिहुयानवयजुषिभवेन्मुरख्यतोपूर्भुवायाः॥ऋग्वेदेप्राक्पृथिव्यामयइतिचदि For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेसूर्यमेवंचसामार्थेर्वेदित्यश्चचंद्रमस इतिनिखिला तत्वसंख्याहुतीनां ॥ १ ॥ अथ प्रयोगः॥ ततआचार्यउपनयनोत्तरमनध्यायरहिते ज्योतिःशास्त्रोक्तशुभदिनेब्रह्मचारि || माझ्यशुभासने स्वस्योत्तरत उपवेश्य ।। बतादेशीवेदारंभस्तत्रप्राणानायम्यदेशकालकी र्तनांतेअस्यब्रह्मचारिणः अद्यकरिष्यमाणानां वेदव्रत चतुष्टयारंभणकर्मणां स्वशारवापूर्व कवेदारंभमहंकरिष्ये ॥ तत्रनिर्विघ्नार्थंगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंमातृकापूजनं बसोरानांदीश्राद्धं करिष्येतिरुत्वा ॥ तत्रपुण्याहवाचनांते अपापकः प्रीयतामित्यूहः॥ ततःस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकं समुद्रवनामानमसिंप्रतिष्ठाप्य ॥ ततो ब्रह्मोपवेशनाद्या ज्य For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥२३॥ भागांतंचरुवर्जंकृत्वा॥ आज्यमागानंतरंयजुर्वेदाहुतीर्जुहोति॥ॐ अंतरिक्षायस्वाहाइदमं भास्कर नरिक्षायनमम॥ ॐ वायये इदंवायवेन ॥ ॐ ब्रह्मणेस्वा इदंब्रह्मणे ॥ ॐ उंदोभ्यःस्या० |इदछंदोभ्यो ॥अथऋम्वेदाहुतीर्जुहोति॥ ॐ पृथिव्येस्खा इदंपृथिव्ये ॥ॐ अमयेस्वा • | इदममये ॥ॐब्रह्मोस्वा० इदंब्र०॥ ॐ उंदोभ्यः स्वा. इदंछंदोम्यो॥अथसामवेदाहुती |ति॥ ॐ दिवेवा इदंदिवे॥ॐ सूर्यायस्वा इदंसूर्या०॥ ॐ ब्रह्मणेवा इदंब्रह्म ॥ॐ छंदोभ्यः स्वा. इदंउंदोपयो॥ ॥अथाथर्ववेदाहुतीर्जुहोति ॥ ॐ दिगम्यःस्वा इदंदि |॥२३१॥ गयोन०॥ ॐ चंद्रमसे स्था. इदंचंद्र०॥ ॐ ब्रह्मणेस्था. इदंब०॥ ॐ छंदोत्यः स्वा. इदंछ। For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दो०॥ ॐ प्रजापतये इदंप ॥ॐ देवेश्यःस्वा इदंदेवे ॥ॐ ऋषिभ्यःस्वा इदंक-॥ ॐ श्रदायेस्वान्ह दंश्रयायैः॥ ॐ मेधाये इदंमेधायः॥ ॐ सदसस्पतये इदंसद०॥ ॐ अनुमत्तये. इदमनुम॥ नतोमहाव्याहत्यादिस्तिष्टकदंनादशाहुतयः॥ तनःसंस्त्रवप्राशनादिप्रणीनाविमोकातंहोमशेष| समाप्य॥तनोवेदाध्ययनमारक्षेत्॥ तच्च कारिकायां।वेदारंभेवसानेचपादौग्रायोगरो:सदा व्यवस्थपाणिनाकार्यमुपसंग्रहणंगुरोः॥१॥सव्येनमव्यः स्पृष्टव्योदक्षिणेनतुदक्षिणः॥ब्राह्मणः पणवंकुर्यादादावंतेचसर्वदा॥२॥ प्रत्ययवायोपविष्टायोपसमीक्षतेगुरुः॥वेदारंभमन्याय थाशास्त्रमनंद्रितः॥३॥ हस्तौनुसंयुतोधार्योजानुनोरुपरिस्थिती॥ गुरोरनुमतिकुर्यासठनान्या For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | मिनिर्भयेत्॥४॥हस्तहीनतुयोधीनेस्वरवर्णविवर्जिनं॥ ऋग्यजुःसामपिर्दग्धोवियोनिमधिगच्छ भास्कर ॥२३२॥ नि॥५॥प्रणयंपाक्प्रयुंजीनव्याहतीस्तदनंतर। सावित्रींचानुपूर्वणनतोवेदान्समारोत्॥१॥ गयमादानेचकुर्यात्॥ ततःशिष्टाचारान्ब्रह्मचारिणविदसरस्वतीपूजनकार्यं॥अद्यपू तिथौबहाया र्चससिध्यर्थवेदसरस्वतीपूजनंकरिष्ये॥ वेदसरस्वतीस्थाय॥येदोसिमेनख। श्रीश्तेतिकम्यांषोडशोपचारेःसंपूज्य॥ तनःप्रत्ययस्यायोपविष्टायपादोपसंयहणपूर्वकंआचार्यमुखमीक्षमा णायअनसूयकायस्वहस्तीजानुभ्यामुपरिकृतवत्तेब्रह्मचारिणेवेदंप्रयच्छति॥ॐ भूर्भुवः स्वर ॥२३२|| ॐ तत्सवितुः॥१॥ॐॐषेलो खाद्याययम्थदेवो मचिनापार्पयतुश्रेष्टतमायकर्मण आ For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्यायध्यमभ्या इन्द्रायमागम् जायतीरनमीवाऽ अंयुक्ष्मामास्तेन ईशनुमाघशेर्ट सोचवाः अस्मिन्गोपतोस्यातबहीर्थ्यजमानस्यपशूमाहि॥१॥ इतियजुर्वेदः॥ॐ अग्रिमीलेपुरो हितं यज्ञस्यदेवमखिजं॥ होताररत्नधानमं॥१॥रतिकग्वेदः॥ॐ अमझायाहिवीतयेगृणानोहव्यदा तये।निहोनासत्सिबर्हिषि ॥१॥ इतिसामवेदः॥ ॐ शन्नौदेचीनिष्टय आपोभवंतुपीतये। शज्यो रभिवन्तुनः ॥१॥ इत्यथर्ववेदः॥ अस्पस्तीन्युकाइतिस्पशाखाविधिवत्स्वशारखावेदंपरशाखाविधिवत्सरशारयाचेदंचपनेत्॥ब्राह्मणभोजन॥यातुमातृगणेतिमातॄणांविसर्जनं॥ इनिसंस्का रभास्करे वेदव्रतचतुष्टयं॥ ॥अथकेशांतकर्मोच्यते॥ जन्मतःसप्तदशेयर्षेनोचेद्रतपि। For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मर्यापूर्वकालापकर्षणंरुन्याउदगयनेशलपक्षेचौलोकतिथ्यादीगोदानंकुर्यात्।तनाचा भास्कर ॥२३३॥ बिहिः शालायांपल्यासहसभासनेउपविश्य । तइक्षिणतः ब्रह्मचारिणमुपयेश्य॥ आ चम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनातेअस्यब्रह्मचारिण: केशोतकर्माहंकरिष्ये।तदंगविहितंग णपनिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनअविमपूजनमंडपस्थापनमातृकापूजनंयसोहराआयुष्य मंत्रजपंनांदीश्रादचकरिष्येइतिहत्या। अत्रपुण्याहवाचनातेप्रजापतिः प्रीयतामित्यूहःक, तव्यः॥बहि:शालायांस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकं सूर्यनामामिंप्रतिष्ठाप्या। ततोब्रह्मोपवेशना ॥२३॥ | दिपाबासादनंचरुवर्ज॥पावासादनानंतरंउपकल्पनीयानि॥शीतोदकं।। उष्णोदकंगनयनीन For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पिंडः॥धृनपिंडोचा।।त्येणीशलली॥सप्तविंशतिकुशतरुणानि॥ ताम्रपरिष्कृतआयसक्षुरः।। आनडुहगोमयपिंडः॥नापिनश्च॥ अत्रगौरेययरः॥ एतान्युपकल्प्य॥ पवित्रच्छेदनादिपर्युक्ष णोतेआधारावाज्यभागोचहुसा॥ ततोमहाव्याहत्यादिविष्टरुदंतदशाहुतयः॥ तद्यथा|अंप जापतयेस्वा. इदंप्रजा ॥ॐ इंद्रायस्वा. इदेइंद्रा०॥ ॐ अमयेचा. इदम०॥ ॐ सोमाय स्वा० इदमोमा०॥ ॐ भूस्वाहा इदमम॥ ॐ भुवःस्वा इदंवा० ॥ अंखःस्वा इदंसूर्याय ॥ ॐ बन्नौअमे• इदमनीवरु०॥ अंससनो अगे इदममीव०॥ ॐ अयाश्चामे इदम गयेअ०॥ ॐ येतेशनं इदंबरुणा-सवि ॥ ॐ उर्दुलूम इदंवरुणायादिः ॥ ॐप्रजाप. For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | इदंप्रजा०॥ ॐ अमयेसिष्टरुते इदं ॥ ननःसंवप्राशनादिप्रणीताविमो को होमशेषममाप्यः भास्कर ॥२३४॥ ततोमातुरंकेब्रह्मचारिणमुपवेश्या एकस्मिन्पाशीनास्वप्मूष्णा आप आसिंचनि।उदकासेकम विशेषः ॥ ॐ उष्णेन केशश्मश्रुचपेति॥अथाबनवनीतपिंडंपास्यति॥ तत उदकमादायदक्षिा णगोदानसुदति ॥ ॐ सवित्राप्रसूताइनिमंत्रण॥ ततः येण्याशलल्यापिनयति॥वीणिकुश | नरुणान्यनर्दधानि॥ॐओषधेवायम्वइतिमंत्रेण॥नाम्म्रपरिष्कृतायसक्षुरयहणं॥ ॐ शियोना मासि इनिमंत्रण॥ततःकेशकुशक्षुरसंलगीकरणं॥ॐ निवर्तयाम्या इनिमंत्रण॥छे ॥२३४॥ दनमंत्रफ॥ॐयेनावपत्सयि इनिमंत्रणपछियानडुहेगोमयपिंडेयास्यत्युत्तरतोप्रियमाणे॥ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | एवमेवापरं वार इयंदक्षिणगोदाने तूष्णींकर्मकर्तव्यं ॥ ततःपश्चिमगोदाने उंदनादिसं लमकरणां तमेकवारंपूर्ववत्समंत्रकंकुर्यात्॥छेदनमंत्रस्त॥ ॐ त्र्या॒यु॒षञ्च॒मद॑ इ॒तिमंत्रेणप्रच्छि द्या॰॥पश्चिमगोदाने एवं पुनर्वारद्वयं तूष्णीं कर्तव्यं ।। तत उत्तरगो दाने उंदनादिसंलम करणां तमेकवारं पूर्ववत्समंत्रकं कुर्यात्॥ छेदनमंत्रस्तः ॥ ॐ खेनभूरिश्व॰॥ इतिमंत्रेणमच्छिद्या | न० || पुनरुत्तरगोदाने एवं पुनर्वार इयं तूष्णी कर्मकर्तव्यं ॥ ततः शिरसमेतान्सुखां तं क्षुरवि वारंभ्रामयिता ॥ मंत्रेविशेषः ॥ ॐ यत्सुरेणमज्ज. शिरोमास्यायुः प्रमोषीर्मुखम् ॥१॥ इ निमंत्रेण ॥ ततःशिरः समुंद्यनापिताय सुरंप्रयच्छति॥ ॐ अक्षण्यंपरिवपेत्यनेनमंत्रेण। For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नापितःशिरवारक्षित्वाकेशश्मश्रुयपनकुर्यात्॥ ब्रह्मचारिणस्मान।केशांताचार्यायगाद ॥२३५॥ दानि॥ सर्वेषुसंस्कारकर्मस्वाधानादिविवाहांतेषुपितेवकर्ता तदभायेअन्यः॥ यथाशक्तिबा | ह्मणान्मोजयिष्ये॥यातुमातृइतिमावृणांविसर्जन॥ ॥संवत्सरंब्रह्मचर्यमवपनंचइतिकेजी तकर्मानंतरं ब्रह्मचारीब्रह्मचर्यव्रतंचरेत्॥अवपनंचकेशांतोत्तरंसंस्कृतः संवत्सरंवपनंवर्जये ताद्वादशराबंषड्रात्रंत्रिरात्रमंतत: इतिविकल्सः॥ इतिसंस्कारभास्करेकेशोतपयोगी ॥ अथसमावर्तनकर्मोच्यते॥वेदमधीत्यगुरुणानुज्ञातःस्नायात्॥ ब्रह्मचर्यवाधाचवा ॥२३५॥ शहर्षाणिसमाप्यस्मायात्॥दादशवार्षिकंयावतंसमाप्यसुर्वनुज्ञानःस्नायात्॥ उपयंचाममा For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्यस्मायात्।।वेदशब्देनविधिविधेयस्तर्क इत्येतत्रयमुच्यते॥ विधिः विधायकंब्राह्मणवा स्य।विधेयोमंत्रः॥ तऊर्थवादः॥ शिक्षाकल्पोव्याकरणं निरुक्तं छंदोज्योतिषमित्येभिषडंगैःसहितंवेदमधित्यावगम्यचस्मानमिच्छत्येकेआचार्याः ।। नकल्पमात्रग्रंथमा अधीने अनवबुद्देस्ना नमिच्छति ॥अनुष्ठानायोग्यसात्॥ ग्रंथमात्राध्ययनेपिकतेयाज्ञिकोयज्ञविद्याकुशल:कामस्नायान॥ तच्चज्योति शास्त्रोक्तशमदिनेब्रह्मचारीरुतनित्यक्रियोऽर्यादिनागुरुसंपूज्यतेनानुज्ञातःसमावर्तनारव्यकर्मकुर्यात्॥वागीशादितिसो | | म्यपोष्णदिनकन्मित्रोत्तरारोहिणीगोविंदेशशांकनानुगुरुबिच्छुकार्कवारादिषु॥रिक्ता । For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पर्वतथाष्टमींप्रतिपदंमेघचकीटहरिहित्याइटियुनेष्टमेन्हियिमलेकुर्यात्समावर्तनंइति भास्कर ॥२३६|| श्रीधरः ॥ नत्रायंक्रमः॥स्मानेच्छोमातृनांदीसप्तत्रिहुतिसमित्वष्टकुंभाभिषेकोमौंजी मुत्कार वीक्षादधितिलवपनंदंतधावायनेजो।लेपोवासांसिसूत्रंत्रजमयशिरसोवेष्टनंकर्णी षा कृत्वानेत्रांजनादिरपिचपदवाणयष्टिप्रवासाः॥१॥ततआचार्यउक्तदिनेझतनित्यक्रियास भार्य ब्रह्मचारिणासह कभासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांनेअस्थब्रह्मचारि णःगृहस्थाश्रमांतरप्राप्तिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थसमावर्तनारण्यकर्मकरिष्ये।तदंगविहितंगण २३६|| | पनिपूजनंस्वस्लिपुण्याहवाचनमानकापूजनंबसोहराआयुष्यमंत्रजपनांदीश्राईनकरिष्येइ For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरुसा॥अत्रपुण्याहवाचनानेसुश्रवःप्रीयतामिनिवदेत्॥ ततःभोआचार्यअहंस्नास्येइत्या नुज्ञाप्रार्थनाब्रह्मचारिणः॥नाहीतिप्रत्यनुज्ञागुरोः॥ततःपादोपसंयहणंगुरोः॥ ततःपरिधि तेपंचभूसंस्कारपूर्वकंसूर्यनामानममिप्रतिष्ठाप्य। ततोब्रह्मोपवेशनादिपात्रासादनंचरुवजी, पात्रासादनानंतरंउपकल्पनीयानि॥संधुक्षणानि।पर्युक्षणार्थसुदकं॥समिधः॥हरिताः कु शाः॥ अष्टोपारिकुंपाः॥धौतवस्त्रं ॥दधितिलावा॥नापितः॥स्मानार्थमुदकं॥औदुंबरंकनि । ठिकायवत्स्थूलंद्वादशांगुलदीर्घसरलंसलचंदंतधावनकाष्ठंबाह्मणस्य॥दशांगुलदीर्घराज न्यस्य॥अष्टांगुलदीर्घ वैश्यस्य ॥उद्वर्तनद्रव्यं ।। स्मानार्थमुष्णोदकं॥ चंदनं । आहतेयास For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ||२३७) www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सी ॥ यज्ञोपवीतं ॥ पुष्पाणि ॥ उष्णीषं ॥ कर्णालंकारो ॥ अंजनं ॥ आदर्शः ॥ छत्रं ॥ उपानहौ ॥ वैणवदंडः ॥ पूर्णपात्रं रोष ॥ एतान्युपकल्प्य ॥ पवित्रच्छेदनादिपर्युक्षणांते आघारावाज्य भागोचजुहुयात्॥ ॐ प्रजाप तये स्वा。 इदंप्र० ॥ ॐ इंद्रायस्वा० इदमिं०॥ ॐ अग्नयेस्वा० इदम०॥ॐ॥ | सोमाय• इदंसो० इत्याज्यभागानं तरंस्व शाखावे दारंभद्ध्या हुतिहोमः ॥ अनंतरं ब्रह्मणेछ | दोपयइत्याहुतिद्वयमपि जुहोति ॥ यदिवेदचतुष्टयमधीत्यस्नानं करोतितदाप्रतिवेदवेदा हु अतिइयंहृत्वा ब्रह्मणे छंदोभ्यइत्याहुतिद्वयंपुनः पुनर्जुहोति ॥ ततःप्रजापतयइत्यारभ्यानुभ त्यं ताः समाहुनी र्जुहोति ॥ एवंवेदद्व्यवयाध्ययनेपियो ज्यं । ततो महाव्याहृत्यादिविष्टक " For Private and Personal Use Only भास्कर |||२३७|| Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दंतादशाहुतयः ॥ तद्यथा ॥ ॐ अंतरिक्षायस्वा • इदमंत० ॥ ॐ वायवेस्वा • इदंवा ॥ ॐ ब्रह्मणे स्वा० इदं ब्र० ॥ ॐ छंदोपयः स्वा• इदंछं• ॥ इतियजुः ॥ ॐ पृथिव्यैस्वा० इ० ० ॥ ॐ अग्नयेस्वा॰ इदं अ० ॥ ॐ ब्रह्मणेस्वा• इदं ॥ॐ छंदोभ्यः स्वा इदं ।। इतिऋक् ॥ ॐ दिवेस्वा• इदंदि• ॥ सूर्याय स्वा. इ०सू०॥ ॐ ब्रह्मणेस्वा •इ ॥ ॐ छंदोपयः इदं० ॥ इतिसाम॥ ॐ दिगयः • इदं० ॥ ॐ चंद्रमसे स्वा० इ० चं०॥ ॐ ब्रह्मणे॰ इदंब० ॐ छंदोभ्यः स्वा• इदं ॥ इत्यथर्व ॥ ॐ प्रजापतये . इ० ॥ ॐ देवेभ्यः स्वा॰ ॥ ॐ ऋषिफ्यः स्वा॰॥ ॐ श्रद्धाये ॥ ॐ मेधायै० ॥ ॐ सदसस्स०॥ ॐ अनुमतये० ॥ ॐ भूः स्वा॰ इ॰म॰ ॥ ॐ भुवः स्वा॰ इ० वा० ॥ ॐ स्वः स्वा० इ०सू०॥ ॐ तन्नो॑ अग्ने॒॰ इ॰म॰क ॥ " For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॐ सत्यभौ असे. इ० मक ॥ ॐ अयाश्वामे • इ०म० अ० ॥ ॐ येतेशनं इ. व. स. वि ॥ ॐ उर्दु ॥२३८ ॥ तुमं० ॥ इ.व दित्या ॥ ॐ प्रजाप इ० प्र० ॥ ॐ अग्नयेस्विष्टकृ० इ०म० स्वि० ततः संस्त्रवमाश नादिप्रणीताविमोकांतंहोमशेषं समाप्य ॥ ततःपरिसमूहनादित्र्यायुषकरणांतंसमिदाधानं ब्रह्म |चारीकरोति ॥ आचार्यस्योत्तरतउपविश्य ॥ दक्षिणहस्तेनाग्नेः संधुक्षणप्रक्षेपः वक्ष्यमाणमंत्रैः। पंचभिः ॥ ॐ अग्मेसु॰॥ॐ यथात्वमग्ने ॥ ॐ एवंगार्ट ॥ ॐ यथात्वम०॥ ॐ एवमहंम॰॥इ त्येतैः पंचभिर्मंत्रैः प्रतिमंत्रमिंधनप्रक्षेपः ॥ प्रदक्षिणमग्निंपर्युक्ष्योत्तिष्ठत्समिधआदधाति॥ॐ॥२३८॥ | मयेस• ॥१॥ इतिमंत्रेणप्रथम समिधमादधाति ॥ अनेनैवमंत्रेणद्वितीयांतथातृतीयां ॥ उपवि For Private and Personal Use Only भास्कर Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्यपुनः।। अमेसुश्रयेसारत्यपंचेंधनप्रक्षेपः॥ ॥तूष्णींपाणीप्रतप्यवक्ष्यमाणेः सप्तभिर्म प्रतिमंत्रमुखविमार्जनं॥ ॐ तनूपा तन्मे ॥ आयुर्दा स्यायु०॥ॐ वक़दा-व!ः॥ ॐ अमेयन्मे ॥ॐ मेधामेदेवः ॥ ॐमेधादेश ॥ ॐ मेधामश्चि॥इत्येतैर्मुरयमार्जनं॥ अवशिष्टाचारः॥ ॐ अंगानिचम इतिमंत्रणप्रतप्तपाणिभ्यांशिरःप्रकृतिपादपर्यंतानिसण्यं गान्यालमते॥नतोदक्षिणहलायेण॥ ॐ वाकमा इनिमुखालंपानं॥ ॐ प्राणश्व इतिनासारंधी युग०॥ॐ चक्षुश्रम० इन्चक्षुषीयुः॥ॐ श्रोत्रंच इ-श्रोत्रेयुः॥ ॐयशोबलंच इतिवादोरुपस निं॥ तनख्यायुषाणिकरोति॥अनामिकयाभस्मगृहीत्साभस्मनाललाटेयीवायांदक्षिणेर्ट सेदि | For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie भास्कर संस्कार च॥व्यायुषमितिप्रतिमंत्र॥ ॐआयुषंजमदमे ॥१॥इतिमंत्रस्यप्रतिपादेन।। ततोगोत्र ॥२३९॥ नामपूर्वकंवैश्वानरादीनामभिवादनं । ततआचार्यःपरिश्रितस्योत्तरतोष्टानासदकंमानांदक्षिणो निराणांस्थापनं॥उदकुंभानांपुरस्सालागयकुशास्तरणं ॥नेषुस्नानक तिष्ठेदुदङ्मुखः॥ ॐयेपनी तरमयःप्रविष्णगीय उपगोटोमयूरोमनोहास्खलुविरुजलनुदुषुप्रिंद्रियहातान्विजहामि योरोचनस्तमिहगृहामि॥ इत्यनेनमंत्रेणेकस्मादुदकुंमादुदकंगृहीलातेनोदकेनाभिषिंचे स्नानकर्तात्मानं॥ ॐ तेनमामभिषिचामिश्रियेषशसेब्रह्मणेब्रह्मवर्चसाय॥॥ इतिमंत्रेणाभिषिंचति॥ पुनःघेवंतरमयतिमंत्रणद्वितीयोदकुंभादुदकमादाय॥ॐ येनश्रियमकृणु For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तायेनावमृशनाई सुरान्॥येनाक्षावायपिंचतांयहांतदश्विनायशः॥१॥ इतिमंत्रेणाभिषिंचनि॥ पुनःपचनश्ययइत्यनेननृतीयोदकुंभादुदकमादाय॥ ॐ आपोहिष्तौ ॥१॥इत्तिम त्रेणाभिषिंचति। पुनःयेपचतरमयइत्यनेन चतुयेदिकुंभादुदकमादाय।योवै शिव ॥१॥ इनिमंत्रेणाभिषिंचति॥पुनःयेप्स्वंतरमय ॥१॥ इतिमंत्रणपंचमोदकुंभादुदकमादाय।। ॐ तस्मा॒ अरंग ॥१॥इतिमंत्रेणाभित्॥पुनःयेप्वंतरमयइत्यनेनमंत्रेणषष्ठसप्तमाष्टमो दकुमेन्यः प्रत्येकमुदकमादायतूष्णीवास्त्रयमभिषिचनिस्नानकर्तात्मानं॥नतउर्दूतममिति मंत्रणमेखलोशिरोमोर्गणनिःसार्यभूमोनिधाय। तथैवाजिनं चोत्तार्य॥दंडत्यागेरुवा उदगयं For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार भूमोनिधाय॥ अन्यद्वासस्तूष्णींपरिधायादित्यमुपतिष्ठतेब्रह्मचारी॥ ॐ उद्यममाज भास्कर ॥२४०॥ णुरिंद्रोमरुद्भिरस्तास्मानर्यावनिरस्तादशसनिरसिदशसनिमाकुर्वाघिदन्मागमयोययाज कृष्णुरिंद्रोमरुद्भिरस्ताहियायापभिरस्ताच्छतसनिरसिशतसनिमाकुळविदन्मागमयोय वाजघृष्णुरिंद्रोमरुद्भिरस्तात्सायाचभिरस्तात्सहस्त्रसनिरसिसहस्त्रसनिमाकु विदन्मा गमय॥१॥ इत्यादित्योपस्थानमंत्रः॥नतोदधिपाशनंतिलप्राशनंचानूष्णीं ॥जटालोमन खानांनिरनन।स्मानं॥औदुंबरकाष्ठेनदंतधावनं ।। ॐ अन्नाद्यायव्यूहध्वः सोमोरा || ॥२४०॥ जायमागमत्॥समेमुरवंप्रमाक्षतेयशसाचभगेनच ॥१॥ इतिमंत्रणदंतान्धारयेत् ॥ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततः सुगंधिद्रव्येणोद्वर्तनं ॥ उष्णोदकेनस्नानं ॥ अंगप्रोच्छनं ॥ ततचंदनाद्यनुलेपनंम ध्यमानामिकाभ्यां गृहीत्वामुख नासिकयो रालभनं ॥ ॐ प्राणापानीमेतर्पयचक्षुतर्ष यश्श्रोत्रम्मेतर्पय॥१॥ इतिमंत्रेणालंभनं ॥ ततः पाण्योर वनेजनं कृत्वा तदुदकमादायाप सव्यंरुत्वादक्षिणाभिमुखो भूत्वा तदुदकंदक्षिणस्यां दिशिनिषिचेत् ॥ ॐ पितरः शुंन्धन्तां ॥ इ | त्यने नमंत्रेण ॥ ततो यज्ञोपवीती भूत्वा ॥ उदकोपस्पर्शनं ॥ ततश्चंदनादिनात्मानमनुलिप्यज पेित्॥ ॐ सुचक्षाअहमक्षीभ्याम्भूयासर्ट सवर्चामुखेन ॥ सश्रुत्कर्णाभ्यांतूयासम् ।।१। इत्यनेनमंत्रेणानुलिप्य ॥ सरौ ताहतवासः परिधानं ॥ ॐ परिधास्यैयशोधास्यैदीर्घायु For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२४१॥ संस्कार वाय जर दृष्टिरस्मि ॥ शतंच जीवामिशरदः पुरुचिरायस्पोषमभिमँव्ययिष्ये ॥ १॥ इत्यनेनमंत्रेण वासः परिधाया। अथयज्ञोपवीत धारणं ॥ ॐ यज्ञोपवीनम्पर || १|| आचम्य ॥ अथोत्तरीयधारणं। ||ॐ यशसामाद्यावापृथिवीयशसेन्द्रायबृहस्पति ॥ खशोभगवमाविदद्यशोमाप्रतिपद्यतां ॥ १॥ इतिमं त्रेणात्मानमाच्छादयीत ॥ एकं चेद्वासो भवतितदानस्यैवपरिधानीयवाससउत्तरार्धमुत्तरीयंकुर्यात्॥ॐ मा आहरज्जमदग्निः श्रद्धायैकामांयन्द्रियाय ॥ ताऽअहम्प्रतिगृण्हामियशसा च भगेन च ॥१॥ इतिमं त्रेणपुष्पमालाग्रहणं॥ ततस्तोपुष्पमालांशिरसिबभीयात् ॥ ॐ ययशोप्सरसमिन्द्रश्चकारविपुलं ॥२४१ ॥ ||थ| तेनसङ्गथिताः समनस: आबधामियशोमयि ॥१॥ इत्यनेनपुष्पमालाबंधनं ।। उष्णीषेणशिरो For Private and Personal Use Only भास्कर Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष्टयते॥ ॐ युवासवाःपरिवीनऽ आगास उश्रेयाभवतिजायमानः॥ तन्धीरास कवयः उ नयन्तिस्वाध्यो मनसादेवयन्तः ॥ इत्यनेनमंत्रणोष्णीषं॥ ॐ अलङ्करणमसिभूयोल करणम्भूयात् ॥इत्यनेनमंत्रेणकर्णयेष्टीप्रतिमुचते।।प्रथमंदक्षिणकर्णेततोऽनेनैवमंत्रेणयामक णे॥ ॐ वृत्रस्यासिकुनीनकश्चक्षुर्दाअसिचक्षुर्मदेहि॥१॥इत्यनेनमंत्रेणाक्षिणीअक्ते॥प थमंदक्षिणततोनेनैवमंत्रेणयामं॥ ॐ रोचिष्णुरसि॥१॥ इत्यनेनमंत्रेणात्मानमादर्शप्रेक्षते॥ उबंप्रतिगृण्हानि॥ ॐ बृहस्पतेश्छदिरसिपाप्मनोमामन्त हितेजसोयशसोमामन्नःहि |१|| इत्यनेनमंत्रेणात्मनःशिरसिउर्वप्रसार्य॥ॐ प्रतिष्ठेस्थोविश्वतोमापातम्॥१॥ इत्यनेन For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥२४२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रेणोपानहौप्रतिमुचनेपादयोर्युगपत् ॥ ॐ विश्वाभ्योमानाष्ट्रा त्यस्परिपाहिसर्वतः॥१॥ इतिमंत्रेणवैणवंदंडमाद ते ॥ मेखलोन्मोचनादिदंडदानांतं स्नान कर्ता कर्मकरोतिनाचार्यः ॥ | दंतप्रक्षालनादीनिनित्यमपिमंत्रवंति भवंति ॥ वासऋत्रोपानहांचनवानासुपादाने मंत्रो भवति॥ नतुनित्यधारणे ॥ ततआचार्यः स्नातस्यनियमान्वदेत्॥ शूद्रादिस्पर्शनंनकर्तव्यं ॥ इच्छया शूद्रोपिअस्मातको नियमेष्यधिक्रियते ॥ नृत्यगीतवादित्राणिनप्रतिगच्छेत्॥ इच्छयापरैः क्रियमाणंसद्द्वीतं श्रोतुं गच्छेत् ॥ रागसहितंसद्गीतं ॥ स्वयं चनकुर्यात्॥ क्षेमेसतिरात्रौयामांत ॥२४२॥ रंनगच्छेत्॥ अक्षेमे तुकामं गच्छेत् ॥ क्षेमेसतिन धावेत् इतिनशीघ्रंगच्छेत् ॥ उदपानाव For Private and Personal Use Only भास्क Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षणइतिकूपमध्ये अवलोकनकर्तव्यं॥ वृक्षारोहणनकर्तव्यं॥ फलप्रपतनंइतिफलबो टनंनकर्तव्यं॥संधिसर्पणइतिसंध्यासमयेगमनंवाअपमार्गगमनकर्तव्यं॥विवृतइति नमस्नानंनकर्तव्यं। विषमलंघनमितिपर्वतगर्तादेर्लंघननकर्तव्यं। सुल्कवदनंइतिलज्जा करंदुःरयकरंअमंगलभाषणंनकर्तव्यं॥संध्यादित्यप्रेक्षणंइतिसंध्यासमयेउपरक्तसूर्यबिंवा वलोकनकर्तव्यं॥भेक्षणानिइतिसवर्णविनासिद्धभिक्षाचर्यानकर्तव्या॥अप्वात्मानंना वेक्षेनइतिजलमध्येस्वमुचनपश्येत्॥ अजातलोम्नींइतिअनुसन्नलोम्नींस्त्रीं॥पिसीइ ||तिपुरुषारुतिस्त्रीं।।पंटचइतिनपुंसकंप्रसिद्ध। एतान्नोपहसेत् इतिअभिगमनकारये| For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार || नागर्भिणीविजन्याइतिब्रूयात्॥सकुलमितिनकुलंब्रूयात्॥भगालमितिकपालंधूयात्॥ | भास्कर ॥२४३॥ मणिधनुरितींद्रधनुर्च्यात् ॥गांधयनींपरस्मैनाचक्षीतइतिपरस्यगांवत्संपाययंतींनांपरस्मै खामिनेवानकथयेत्॥ऊर्वरायामनंतर्हितायांभूमौइतिसस्थक्त्यावाकुशादियज्ञीयत णवत्यांभूमौमुत्रपुरीपोत्सर्गनकुर्यात्॥उत्सर्पस्तिष्ठन् इतितथैवधायमानःसन्उत्तिष्ठ न्सनमूत्रपुरीषोत्सर्गनकुर्यात्॥स्वयंपशीर्णेनकाष्ठेनगुदंप्रमृजीतइतिआत्मनःप्रयलं विनापतितेनयज्ञीयरहिताकंटककाष्ठेनरादंपोच्छेत्।यथा॥ तृणायंतर्हितमौशि ||२४३॥ रम्यावारैरावेष्ट्ययज्ञोपवीतंनिचीतंकृत्साअलंबितंकर्णेकलादिवोदङ्मुखोरात्रोदक्षिणा For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie भिमुरवउपविश्यमीनीमूत्वामूत्रपुरीपोत्सर्गकुर्यात्॥यज्ञोपवीतस्यनिवीनवंविनैवकर्णधार णमनाचारः॥ मूत्रोत्सर्गकटमृदंलिंगेसरुत्रिवारंवामकरेडिवारमुपयो:करयोर्दबातावद्वारे जलेनक्षालयेत्॥पुरीषेतुनझमृदंएकालिंगेगुदेतिसः वामकरेदशउभयोःकरयोः सप्तपंचा विर्वापिपादयोर्दत्वातायतैवजलेनक्षालयेत्।। मूत्रचत्वारिंगंडूषाणिपुरीषेद्वादशगंडूषोद्री रणमिति॥विकृतंबासोना-च्छादयीतइतिनील्यादिरंजितवस्त्रनपरिधीन॥टबतइति|| स्थिरसमारब्धव्रतोतयेत्॥ वधनस्यात्सर्वतः आत्मानंगोपायेत्सर्वेषामित्रमिवेतिवधान घाताबायकःखेषांपरेषांचमित्रमिवसरवेवज्ञायेत्॥स्नातकस्यसतोऽहोरात्रत्रयव्रतचा For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कारर्योच्यते ॥ अमांसाशी भवति ॥ अमृन्मयेनपात्रेणउदकादिकंपिबति ॥ ऋतुमतीस्त्रीशूद्रभाषणं भास्कर ॥ २४४॥ नकरोतिं ॥शवंप्रसिद्धं ॥ कृष्णशकुनिरितिकाकः॥ सुनामितिश्वाक्कुक्कुटः ॥ एतेषांदर्शनंच नकुर्या |न् । शावोमृतकः तस्मिन् जातेसतिक्रीत्वा लब्ध्यावा ज्ञातिभिर्यदद्यतेतछावान्नंनाद्यात् नग्गृही यातून पक्षयेदित्यर्थः ॥ शूद्रस्य अवरवर्णस्य नापितादेरपि अन्नंतच्छूद्रान्नंनाद्यात् न गृही यादित्यर्थः ।। सूतके प्रसवाशौचे सति ज्ञानीनामन्नंतत्सूतकान्नंनाद्यात्नभक्षयेदित्यर्थः॥ मूत्रपुरीषेष्टीवनं चातपे न कुर्यादितिमूत्रपुरीषेप्रसिद्धेष्टीवनं मुखाल्लालादिआतपेचनकुर्यात्॥ ॥ २४४॥ सूर्याच्चात्मानंनांतर्द्वधीतेति छत्रादीनामूत्रोत्सर्गनकुर्यात् ॥ तप्तेनोदकार्थान्कुर्वीतइति ॥ तते For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नोदकेनशौचाचमनादिकाः क्रियाः कार्याः ॥ अवज्योत्यदीपादिनारात्रीभोजनं न कर्तव्यं ॥ स त्यवदनमेववाकर्तव्यं ॥ यथा ॥ रागद्वेषमहंकारं त्यक्का चलारिअभ्यसेत् ॥ क्षमादयाशांतिसत्यं | सवैज्ञानीसमोक्षप्रागिति ॥ नाधस्तनाअमांसादयोयमनियमाः कर्तव्याः ॥ यदिप्रवर्ग्य वान्म | हावीरः सोमयागार्थस्वीरुनदी क्षः दीक्षितो भवनिनदामूत्रपुरीषेष्टीवनादि अवज्योत्यराचौ भोजनां तानिनकुर्यादितियमनियमा अनुष्ठेयाः॥ यथाशक्ति ब्राह्मणान्मोजयिष्ये ॥ आचार्या।। दिपूजनंतेभ्यश्चदक्षिणांदत्वा तैराशिषोगृहीत्वा ॥ मातृणां विसर्जनंकृत्याकर्मेश्वरार्पणक यत् ॥ इतिसंस्कारभास्करे समावर्तनप्रयोगः समाप्तः ॥ # 11 For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इतिसंस्कारभास्करे समावर्तनप्रयोगः समाप्तः॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | अथक्रमप्राप्तोविवाहः ॥ तत्र अनाश्रमिनिर्णयः प्रायश्चित्तं ॥ यथा ॥ अनाश्रमीनतिष्ठेत ||दिनमेकमपिद्विजः ॥ आश्रमेणविनातिष्ठन्प्रायश्चित्ती भवेद्द्विज इतिदक्षस्मृतेः॥ एतत्मा यश्चित्तनिष्कृतिर्मिताक्षरायां ॥ अनाश्रमिप्रायश्वित्तंयथा ॥ अनाश्रमी संवत्सरंप्राजाप त्यंच्चरिखाश्रममुपेयात् ।। द्वितीयेऽ निकृच्छं तृतीयेकृच्छ्रानिरुच्छ्रमतऊर्ध्वचांद्रा यणमितिहारीतोक्तेः॥ धेनोरभावेनिष्कं स्यात्तदर्थंपादमेववा ॥ गुंजा अशीतिः कर्षस्तक र्षाश्वत्वारिनिष्ककः। सवर्णरजतंवापि दद्याच्छत्स्य नुसारत इति ॥ अशीतिगुंजात्मकः कर्षः || चत्वारः कर्षा एको निष्कश्चेति ॥ ॥ प्राजापत्यरुं द्वादशदिनसाध्यं तद्यथा ॥ प्रथम For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर संस्कार ॥२४६॥ त्रिदिनेमध्यान्हे एकमुक्तंषड्विंशतिग्रासपरिमितंहविष्यान्नं भोक्तव्या द्वितीयेत्रिदिनेन क्ति द्वाविंशनियासपरिमितंभोक्तव्यं॥ तृतीयेत्रिदिनेअयाचितंचतुर्विंशतियासपरिमिनं मोक्तव्यो। अत्रसर्वबहविष्यान्नंमोक्तव्यं ॥अयाचितंयांचारहित।।चतुर्थेत्रिदिने नशनमितिप्राजापत्यरुच्छं। एतत्सत्याम्मायेगौरेका॥ ॥अतिरुच्छ्यथा।प्रथमे त्रिदिनेएकमुक्तंपाणिपूरितंहविष्यान्नंमोक्तव्याहितीयेविदिनेअयाचितंपाणिपूरितंभोला व्यं॥वनीयेविदिनेउपवासइतिनवदिनसाध्यंअनिरुच्छं॥एनसत्याम्नायेगोडया) ॥ छातिरुच्छंयथाएकयासपर्याप्तस्यप्राणधारणपर्याप्तस्पवादुग्धस्यएकविंशतिदिनेषु २४६॥ For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3 पक्षणेकच्छाऽतिरछं। एतलत्याम्मायेगोचतुष्टयंत्रयंगा॥ ॥चांद्रायणंयथा॥ह विष्यान्नस्यमयूरांडप्रमाणमेकयासमेवंथुक्ल प्रतिपदमारश्यपोर्णिमांनएकैकवर्धितग्रासंकृष्णप्रतिपदमारस्यअमांतमेकैकग्रासन्यूनंचेनियवमध्यचांद्रायणव्रतं॥पक्षेतिथि वृख्याषोडशयासाः॥क्षयेचतुर्दशयासाश्चेति॥ ग्रासान्नंगायत्र्याभिमंत्रयेदितिमहार्ण ॥ एतस्पत्याम्मायेष्टौपंचचतत्रोपागावइति॥प्रथमादेपाजापत्यकच्छतेसंकसः॥देशका लकीर्तनांतेअमुकर्मणःममवतविसर्गदिनमात्यएकाब्दपर्यंतंवानन्न्यूनदिनपर्यनं नाश्रमस्थितिजन्यदोषपरिहारार्थप्राजापत्यरुच्छव्रतप्रत्याम्नायेकगोनिक्रयीभूतंय ॥ For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार याशक्तिरजनमुद्राद्रव्यदानमहमाचरिष्ये॥ इतिसंकल्पांतेबाह्मणसंपूज्यपूर्वकस्सिनद्र भास्कर ॥२४७ व्यंगृहीत्वा॥ इदंप्राजापत्यरुच्छ्रप्रत्याम्मायकगोनिष्क्रयीमूतरजतद्रव्यमुद्रांअमुकर्म णेबाह्मणायतुभ्यमहसंप्रददे॥ द्वितीयाब्देअतिरुच्छ्रव्रतेसंकल्पः॥देश० ममवत मारण्य अब्दहथपर्यंतअनाश्रमस्थितिजन्यदोषपरिहारार्थ अतिरुच्छ्रव्रतमत्याम्नायगोहयनि यीभूतंयथाशक्तिरजतमुद्राद्रव्यदानमहमाचरिष्ये।इतिसंकल्पांते ब्राह्मणंसंपूज्यपू कल्पितंद्रव्यंगृहीत्वा॥इदंअतिरुच्छ्रप्रत्याम्नायगोडयनिक्रयीभूतंरजतमुद्राद्रव्यंअमु२४७॥ तुप्यमहंसंप्रददे॥ तृतीयाब्देरुच्छातिरुच्छतेसंकल्पः॥देश ममव्रत मारझ्यअब्दय । For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यपर्यंतअनाप्रमस्थितिजन्यदोषपरिहारार्थरुच्छातिरुव्रतप्रत्याम्नायगोचतुष्टय |निफ्रयीमूतंयथाशक्तिरजतमुद्राद्रव्यदानमहमाचरिष्ये।।इनिसंकल्पातेब्राह्मणंसंपूज्या। रुच्छातिरुच्छ्प्रत्याम्नायगोचतुष्टयनिष्क्रयीमूनांरजतद्रव्यमुद्रांअमु. तुभ्यमहसंप्रददे तृतीयादोकस्मिंश्विपेचांद्रायणबनेसंकल्पः॥देश ममबत मारयतृतीयाब्दा अयदिनपर्यंतअनाश्रमस्थितिजन्यदोष. चांद्रायणवतंतलत्याम्नायपंचगोनिष्क यीभूतयथाशक्तिरजतद्रव्यमुद्रादानेनाह.॥इतिसंकल्मांतेबाह्मणसंपूज्यपूर्वकसितं द्रव्यंग॥ इदंचान्द्रायणवत्तपत्याम्नायपंचगोनिष्क्रयीभूनरजतद्रव्यमुद्राअमु-तुझ्यमा ।। For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मास्कर संस्कार हसंपददेइतिअनाअमिलप्रायश्चित्त। विवाहोपयोगीकन्यादिप्रकारोनिर्णयश्चागुरवेतु ॥२४॥ चरंदत्तास्मायीननदनुज्ञया।वेदवतानिवापारंनीत्वायुमायमेवचा ॥ अविप्लनब्रह्मचर्योलक्षण्या स्त्रियमुहहेन्॥ अनन्यपूर्विकांकांतामसपीडायवीयसी॥अरोगिणींचामतीमसमानार्षगोत्र जामितियाज्ञवल्क्योक्तेः॥त्रिविधोपिवेदवतोभयस्मातकोऽविलंबेनलक्षणादिविशिष्टास्त्रियों परीक्षितामुदहेत्॥अनन्यपूर्विकामितिअन्येषांवादानादिनानपूर्वदत्ता॥असपिंडांसापि ड्यसंबंधरहितां॥यवीयसीन्यूनवयस्कां ॥असमानार्षगोत्रजांखसमानगोत्रप्रवररहि तामिनि।।अत्रापिकुलमपरीक्षेनेतिगृह्यादिवचनादादोसदाचारादिगुणवत्तयाहीनकि २४८॥ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यत्वादिदोषरहितकुलंपरीक्ष्यतन्वज्जो द्वाह्या ॥ तदनुलक्षणान्यपिपरीक्षणीयानि ॥ लक्षणा निचकताशभसूचकानि ॥ तनुलोमकेशदशनादीनि प्रत्यक्षावगम्यानिबाह्यानि ॥ नथाच मनुः ॥ अव्यंगांगींसौम्य नाम्नींहंसवारणगामिनीं ॥ तनुलोमकेशदशनांमृहूंगीमुइहेत्रि यमिति ॥ कात्यायनः॥ अव्यंगांदोषरहितांस रूपांचयपूर्विकीं।। सवर्णककुलोत्पन्नांत्रातल क्षणसंयुतां ॥ प्रतिगृहीतां तांकन्यां कुलसंतानवर्धिनीमिति ॥ तथाच ज्योतिर्निबंधे ॥ मृ इंगीगूढगुल्फासमकुचनयनावृत्तनाभोरु वक्राकृष्ण फ्लूनेत्र केशास्थिरतरसुरबादी र्घनेत्राविलोमा॥ मृद्वाणीस्वल्पतालालघुललितगमापाणिपादाष्ठरक्तासाकन्योद्वाहिता For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie भास्कर संस्कार | चेत्सुतधनविपुलान्नायुरारोग्यदास्यादिति॥ अथकन्यादोषाः॥निर्गुणाझल्कसंभाषीक्रोधयु, ॥२४९॥ तासरोगिणी॥विषयोगावंध्ययोगाकुलविधंसयोगका॥दरिद्रजारयोगाचहीनाचरणसंयुता ।। एतदोषदशेर्युक्तानांकन्यांनप्रतिगृहेदिति॥ ॥ अथवरगुणाः॥नवबुद्धिमनेकन्यांप्रयछे ||दितिबचगृह्ये॥नथाचज्योतिर्निबंधे॥विद्यावतंसरूपंउभयकुलशचिंज्ञातशीलंदृढांग निर्याधिशांतियुक्तंडिजकरप्रणतोकिंचिदार्यप्रयुक्तं॥सम्यक्पृष्टोचपृच्छांप्रचुरतरधियं मूत्रधारंसलिंगमेतद्रूपंवरिष्टंबरमिहवरयेत्कन्यकायाः सवेशः॥१॥ यमः॥कुलंचशीलंचयया ॥२४९॥ रूपंविद्यांचविनंचसनाथनांच॥एतान्गुणान्सप्तपरीक्ष्यदेया कन्यायुधैः शेषमचिंतनीया For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । अथवरदोषाः॥ आचारहीनोमूर्यकुरूपोचोरजारकः॥ पारवंडीचनथोन्मत्तोगृहक कुल दृषकः ॥ द्यूतकर्मग्नश्चैवदशदोषाः प्रकीर्तिताः॥ एतद्दोषप्रयुक्तायेतेषुकन्यानदीयते॥अन्यच्च ॥ षंटमूकांधबधिरकाणकुमाश्यवामनः॥अश्रोत्रीपंगयश्चैवतेषुकन्यानदीयते॥अन्य च॥ श्वित्रीकुष्टीअपस्मारीकुनखीश्यामदेतकः ॥वृणयुक्तोव्याधियुक्तस्तेषुकन्यानदीयत्तेइ तिापतित-पायुक्तः॥असपिंडामितिसापिड्यंवर्जनीय॥ अथसापिंड्यनिर्णयः॥ वध्यावरस्यया नातः कूटम्याद्यदिसप्तमः॥ पंचमीचेनयोर्मातानत्सापिंडयेनिवर्तनेइति॥ कूटस्थइतिमू लपुरुषमारण्याचगणना॥ कूटस्थोमूलपुरुषोयतःसंतानभेदतः॥संस्कारकौस्तोदशभिः For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पुरुषैरव्याताखचियाणां महाकुलात् ॥ उद्वहेत्सप्तमादूर्ध्वं तदभावे तु सप्तमीं ॥ पंचमीतदभावेतु ॥२५०॥ पितृपक्षेष्पयंविधिरिति ॥ सप्तमींन्चतथाषष्ठीपंचमीचतथैवच । एवमुद्दाहयेत्कन्यां नदोषः शा कटायनः॥ चतूर्थीवातृतीयांवापक्षयोरुभयोरपि ।। विवाहयेन्मनुः प्राहपाराशर्यौ गिरायमः ॥१॥ चतुर्थीमुइहेत्कन्यां चतुर्थः पंचमोवरः ॥ पराशरमतेषष्टींपंचमोनतु पंचमीं ॥ १ ॥ इतिसा पिंड्यदीपिकायां ॥ पंचमवरपंचमीकन्योइहेि व्यवस्थोक्ताविश्वरूपनिबंधे ॥ पुत्री पूर्वजा त्स्यातातयोरपिचसंततिः॥ पंचमः पंचमीकन्यां नतत्रवरये द्विजः ॥ १ ॥ बेकन्येपूर्वजात्स्यातां ॥२५० ॥ संततिः स्यात्तयोरपि ॥ पंचमः पंचमींकन्यां वरस्तत्रसमुद्वहेत् ॥ २ ॥ कन्यापुत्रैौतुसंभूतौपूर्व For Private and Personal Use Only भास्कर Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जात्संततिस्तयोः॥ यदिस्या इरये तत्रपं चमः पंचमीमपीति ॥ ३॥ असपिंडाचयामातुर सपिंडाच ||यापितुः ॥ साप्रशस्ताद्विजातीनांदारकर्मणिमैथुने ॥ यत्तुदोषातुरूपेणकुलमार्गेणचोद्वहेत् ॥ नित्यंसंव्यवहार्यःस्याद्वेदोक्तैः तत्प्रतीर्यतेति ॥ तच्च यथाशाखोक्त प्रकारेण यथादेशा चारकुला |चारानुसारेणकुलदीर्घसंकोचितविचारतोव्यवस्थाज्ञेया ॥ विस्तरस्तुग्रंथांतरेज्ञेयः ॥मातुलक न्यानिषेधस्त ॥ यथा ॥ मातुलस्यस तांविप्रोदक्षिणेतांसमुहेत् ॥ वर्जनीयाप्रयलेनसर्वैर्वाज |सनेयिप्तिरिति ॥ तत्रगोत्रप्रवर विचारेणोद्वहेत्॥ गोत्रप्रवरैक्येमहद्दोषः॥ अथदत्तकसापिंड्यनि ||र्णयः । तद्विवरणंयथा ॥ गौतमः ॥ उर्ध्वंसप्तमात्पितृबंधुभ्योबीजिनश्व || मातृबंधुष्यः पंचमादि For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ति ॥ उक्तं च ॥ वस देवांग जाना चकते यस्यविरुध्यनइतिवार्तिकव्यारव्यावसरे न्यायसधा॥२५१ ॥ कृतादत्तकविषयमेतदित्यंगीकृत्यकुं त्याजनककुले साप्तपूरुषंसापिंड्यमिनिव्याख्यातंतद्विषयत्वेनैवसापिंड्यमिमांसायाम् । अतः कुलद्वयेपिसाप्तपूरुषंमापिंड्यंप्रतीयते।। पैठीन | सिस्त ॥ त्रीन्मातृतः पंचपितृतः सप्तपुरुषानतीत्योइहेदित्याह ॥ व्याख्यातमेतदपरार्केदन ||कादिपुत्रान्पितृपक्षतोनिवृत्तपिंडगोवार्षेयान् प्रत्येनदुच्यतेपंचपितृतइति ॥ अतश्चप्रति ग्रहीतृकुलेसाप्तपूरुषंसा पिंड्यंप्रतीयते प्रतिगृहीतृमातृपितृक कुलयोस्त्रिपुरुष सापिंट्य ॥ १५१ ॥ मितिप्राञ्चः ॥ अथानव्यवस्थोक्तासापिंड्यदीपिकायां ॥ दत्तकीतादीनां जनकगोत्रेणोप I For Private and Personal Use Only भास्कर Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie नयनेरुतेजनककुलेसाप्नपूरुषसापिंड्यं॥प्रतिग्रहीतृमापिटकुले निर्वाप्यपिंडलक्षणं त्रिपूरुषसापिंड्यं॥ प्रतिगृहीतृगोत्रेउपनयनमात्रेरुतेपेचपूरुषं ॥जातकर्मायुपनयनां तेरुनेसाप्तपूरुषमिनिपैठीनसिवचः साफल्यायव्यारव्येयम्॥नकेचलंदत्तकस्यपरिणय नार्थमेवैषसापिंड्योपन्यासः॥ किंतुनत्संततेस्तत्पित्रादिकुलोत्पन्नैःसहसंबंधसंभवनिर्ण यार्थमपि। अन्ययापार्यसमद्रयोरदत्तकयोःसंबंधासंभवशंकायाअनार्यसभाद्रयोरद तकयोः संबंधासंभवशंकायाआचार्यकर्तृकोपन्यासस्थतदुपपत्येसधायांगौतमीयोपन्यास स्यालनमकतापत्तेः यादृशदत्तकस्ययथासापिंडयमुक्तंतसंततोपितयैवतबोध्यम्।।अतएवय For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥२५२॥ मदनपारिजानोक्तं ॥दनपुत्र्याःसनस्यमातुःपनिग्रहीतृमातुःकुलेत्रिपूरुषंसापिंड्यं। दत्तक । भास्कर पुत्रसतस्यस्वजनककुलेपंचपूरुषमितितदपिपूर्वोक्तरित्यादत्तकविशेषसंततिविषयत्वेनव्या ख्येयम्॥ मुख्यावयवानुवृत्यमावेपिद्वितीयसापिंडयप्रकारमाह॥समंतुः॥ पितृपल्यःसर्वा| मातरस्नद्धानरोमातुलास्तद्भगिन्योमातुः स्वसारस्तदुहितर नागिन्यस्तदपत्यानिभागिने | यानि॥ अन्यथासंकरकारिणःस्युरितिमदनपारिजातेमाधवीयेचनद्भगिन्यइतिपरिनेअन्ययथेषुतुपठ्यते॥ अवयावरचनंबाचनिकमितिन्यायेनपरिणीतेष्वेवातिदेशिकंसापिं- ।।२५२|| ड्यनतुपंचमसप्तमादिपर्यंतमितिमचरणप्रभृतयोबहवइति॥ययीयसीस्वापेक्षयावयसा For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वपुषाचन्यूनां॥ अरोगिणींअचिकित्स्यराजयक्ष्मादिरोगरहिनां ॥ मातृमनीमिनिपुत्रि । काकरणशंकानिवृत्यर्थ॥ यत्रतुपुत्रिकाकरणामापनिश्चयस्मत्रतामधारकामप्युद्हेत्॥इनि दत्तकसापिंड्यनिर्णयः॥ ॥अथगोवप्रवरनिर्णयः॥विश्वामित्रोजमदमिर्भरद्वाजोय, गौतमः॥वसिष्टोषिकश्यपश्चइत्येतेसप्तऋषयः॥सप्तानामृषीणामगस्पाष्टमानांयदपत्यनद्गोत्रमित्याचक्षतइति ॥ असमानार्षगोत्रजामिनि ॥ ऋरिदमार्षगोत्रप्रवनकस्थम नावर्तकः प्रवरइत्यर्थः।गोवंशपरंपरयाप्रसिइं॥स्यसमानेआर्षगोत्रेयस्यनस्माज्जाना, यानभवनितांयास्फमाधूलमोकानांभिन्नगोत्राणामपि मार्गबतहव्यसावेतमेतिप्रवरैपथ । For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्फार मस्निनवविवाहोमाभूदिनि असमानार्षजामित्युक्तं ॥ आंगिरमांबरीषयौवनाश्चनिमाधा ॥२५३॥ बांबरीषयोयनाश्चनि॥ आंगिरसमाधान प्रवरभेदेपियोवनाश्वगोम्य॥ नादृशविवाहयारणा यासमानगोत्रजामित्युक्तं। तथाचगोत्रप्रवरोपृथपर्युदासेनिमित्तमूनो॥प्रवरैस्येविशेषमा हबोधायनः॥पंचानांविषुसामान्यादविवाहस्त्रिषुडयोः॥ग्यंगिरीगणेष्वेवंशेषष्कोपिवारये दितिविवाहमितिशेषः॥ धृगूणांनविवाहोस्लिचतुर्णामादितोमिथः॥श्येतादयस्त्रयस्तेषांवि वाहोमिथइष्यते॥षण्णांवैगौतमादीनांविवाहोनेष्यतेमियः॥दीर्घतमाऔनथ्यनकक्षीयांचैकगोत्रजाः॥ परद्वाजाग्निवेश्याश्चशृंगाःशैशिरयः कताः॥एतेसमानगोत्राः स्युर्गाने For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वदंतिवै॥पृषदश्वामुद्गलाविष्णुवृद्धाएकोगस्त्योहारितः संस्कृतयःकपिः॥ यस्कश्शेषामिया इष्टोविवाहःसरन्यैर्जामदम्यादिभिश्शायावत्समानगोवाः स्युर्विश्वामित्रोनुपर्नते॥तावह सिष्ठश्वात्रिश्कश्यपश्चपृथक्पृथक् ॥ यापैयाणांत्र्यार्षयःसन्निपातोऽपियाहरूयोर्षया णापंचायःसन्निपानो ऽविवाहः॥ एकएपऋषिर्यावसवरेघनुवर्तते॥तायत्समानगोत्रत्वम् नग्यंगिरोगणादित्यसमानप्रवरैर्विवाहः॥ परहाजाश्यकपयोगर्गारोक्षायणाइति॥चा वारोपिभरद्वाजा नोहहेयुःपरस्परं॥१॥ ओनथ्यप्रवरोयेषांगीतमानांभवेदिह॥ तैः सर्वैरपिनै येष्टाभरद्वाजम्यमंगतिः॥१॥इतिसंक्षिप्तगोत्रप्रवरनिर्णयः। अथदत्तकस्यगोत्रादिनिर्णयः॥ For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तत्रयश्वप्रनिराहीत्राजातकर्मादिभिश्रूडादिभिसंस्कृतस्तदेकगोत्रः॥ एतमभिप्रेत्यैवगो भास्कर ॥२५४॥ त्रग्क्येिननयितुर्नमजेदंनिमःसुनइतिशास्त्रमपिप्रवृत्तम्॥एतदन्य तुमतिगृहीवोपनयनमात्रम स्कृतस्तदुत्तरतःप्रनिग्रहीतोवादेवरानवहिगोत्रएवेतिव्यवस्थापागवादि।।तथाप्येषाव्यवस्थाअ भिवादनपादादिगतगोत्रनिर्देशा॥ विचाहे तुदनकमात्रेणबीजिप्रनिगृहीत्रोःपित्रोर्गोत्रप्रवर वर्जनकार्यं ॥प्रवरमंजर्यादिनिबंधेषुतन्निषेधोक्तेः॥इतिदत्तकस्यगोत्रप्रवरनिर्णयः॥प्रथम सुग्रहादिनिषेधोनारदेन॥ प्रत्युग्रहोनैवकार्यानैकस्मे हितद्वयं॥ नचैकजन्यया घुसोरेकज ॥२५४|| न्येनुकन्यके॥ नैवेकदाचिदुद्दाहोनेकदामुंडनयमिनि॥यत्कुटुंबोसन्नाकन्यकास्वकुलआनी । For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वपुषाचन्यूनां।। अरोगिणींअचिकित्स्यराजयक्ष्मादिरोगरहिनां ॥ मातृमनीमिनिपुत्रि काकरणशंकानिवृत्यर्थ॥यत्रतुपुत्रिकाकरणाभावनिश्चयस्तत्रतामघातकामप्युद्हेत्॥इनि दत्तकसापिंड्यनिर्णयः॥ ॥अथगोत्रप्रवरनिर्णयः॥विश्वामित्रोजमदमिर्भरद्वाजोय गौतमः॥पसिष्टोषिःकश्यपश्चइत्येतेसप्तऋषयः॥सप्तानामृषीणामगस्त्याष्टमानायदपसंनद्गोत्रमित्याचक्षतइति । असमानार्षगोत्रजामिनि॥ ऋषेरिदमार्षगोत्रप्रवर्नकस्यम निर्व्यावर्तकःप्रवरइत्यर्थः।गोत्रंवंशपरंपरयाप्रसिई॥स्वसमानेआर्षगोत्रेयस्यतस्माज्जाना । यानभवनिनांयास्कमाधूलमोकानोभिन्नगोत्राणामपि मार्गपंचैतहव्यमायेनमंतिप्रवरेस्य । For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तत्रयश्वप्रतिग्गृहीत्रा जातकर्मादिभिश्चूडादिभिर्वासंस्कृतस्तदेकगोत्रः ॥ एतमभिप्रेत्यैवगो भास्कर ॥२५४॥ त्रग्क्येिजनयितुर्नभजेदंतिमः सुतइतिशास्त्रमपिप्रवृत्तम् । एतदन्य तुप्रतिगृहीत्रोपनयनमात्रसं ।स्कृतस्तदुत्तरतः प्रतिग्टहीतो वादेवरात वाहूगोत्र एवेतिव्यवस्थाप्रागवादि ॥ तथाप्येषाव्यवस्थाअ अभिवादनश्राद्धादिगनगोत्रनिर्देशार्था ॥ विवाहे तुदन्तकमात्रेणबीजिप्रतिगृहीत्रोः पित्रोर्गोत्रप्रवर वर्जनंकार्यं । प्रवरमंजर्यादिनिबंधेषुतन्निषेधोक्तेः ॥ इतिदत्तकस्यगोत्रप्रवरनिर्णयः ॥ अथम व्युहादिनिषेधोनारदेन ॥ प्रत्युद्वाहोनैवकार्येनैकस्मैदुहितृद्वयं ॥ नचैकजन्ययाः पुंसोरेकज ॥२५४॥ न्येतु कन्यके ॥ नैवंकदाचिदुद्वाहोनैकदामुंडनद्वयमिति । यत्कु टुंबोसन्नाकन्यकास्वकुल आनी For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यतेतत्कुटुंबेएवस्व कुटुंबोत्पन्नकन्यकाम दानं प्रत्यु द्वाहइत्युच्यते। प्रायस्तत्रविरुद्धसंबंध सद्भावा! नू ॥ तथाचगृह्यपरिशिष्टे ॥ कन्यांयवीयसीमसपिंडामसगोत्रामविरुद्धसंबंधामुपयच्छेदिति। ॥विरु द्धोलौकिक संबंधोयस्याः सानया । भोर्यास्वसुर्दुहिता, पिढव्यपत्नीवसा, भोटद् हितृकन्या, देवरकन्याचेत्यादयः ॥ महतेतुमातृदुहितृकन्यादेवरकन्याचकन्यैवव्यवहि | यतइतिकृत्वा नस्त्रीपरिणयनं ।। लोकविरुद्ध संबंधएवमादीविरुद्धसंबंधे सत्येवप्रत्युद्वाह निषेधोनान्यत्रेतिवेदितव्यं । आसांप्रत्युद्वाहोनकार्यएव ॥ तथैकस्मैवरायदुहितृइयंन | दद्यात् ॥ ज्येष्ठायांजीवत्यांस त्यो कनिष्ठांनदद्यात् ॥ म्मृतीतस्यैव वरस्यकनिष्ठोदद्यात्॥ For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार अन्यथा विरुद्धसंबंधाभावात्॥ इदमपिप्राग्विरुद्धसंबंधेसतिवेदितव्यं ॥ एवंविधउद्वाहः क ॥२५५॥ दाचिन्नकार्यः॥तथैकस्मिन्नेवकालेमुंडनइयंनकार्यं ॥ तथाच॥ एकजन्येतुकन्येद्वेपुत्रयोर्ने कजन्ययोः ॥ नपुत्रीइयमेकस्मैप्रदद्यात्तुकदाचनेति ॥ इतिप्रत्युद्दाह निर्णयः ॥ अथसोदर |कन्यापुत्रयोर्विवाहयोःसमानसंस्कारत्वेप्ये कवर्षेकर्तव्य त्वमनुज्ञातं ज्योतिःशास्त्रे ॥ सोदर्य योःकन्यकयोःरू तयोरेकबत्सरे। विवाहोनस्मृतइति॥ अत्रैक वर्षनिषेधेनभिन्नवर्षेकर्तव्य ताविधीयते॥ निषेधस्त्वेक वर्षेपिषण्मासा दवगेव ॥ तथाचसारसमुच्चये ॥ एको दरश्यात्तृपिवा ॥ २५५ ॥ | हरूत्यं स्वस्रोर्नपाणिग्रहणंविधेयं ॥ पण्मासमध्येमुनयः समूचुर्नमुंडनमंडन तोपिकुयात।। For Private and Personal Use Only भास्कर Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतएकवर्षनिषेधाविन्नवर्षेनुषण्मासादगिपिनदोषः॥यदितुज्येष्ठमा सेयस्यविवाहादोरुने कार्तिकेमार्गशीर्षतत्सोदरस्यविवाहादीक्रियमाणेषण्मासाभ्यंतरेपिचतुर्मासानिक्रमणान्नदोष यदुक्तंवाक्यसारे॥ एकःकर्ताशकुर्यान्नपुत्र्योःपुत्रयोरपि॥षण्मासेवाचतुर्मासेवर्षदेतुशो मनमिनि॥षण्मासमध्येचतुर्मासमध्येवापुन्योः पुत्रयोरपिशमविवाहादिकमेकःकर्तानकुर्या । वर्षदेतुषण्मासातिकमामावेपिझमस्यादिति ॥ तदुपलक्षणेनात्रप्रवेशनिर्गमादिदोषोना |स्तीतिगम्यते। तथाचज्योनिःसारे॥नैकस्मिन्वत्सरेकुर्यासवेशान्निर्गमंक्वचित्।। अतिका नेवत्सरेस्यात्तथामासचतुष्टयेइतिद्वितीयादिविवाहेपुनरुपनयनादोचसमानसंस्कारवादि । For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥२५६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | चारः । जातकर्मसंस्कार लादृद्धिश्राद्धादो स्वयमेवकर्तव्यत्वाच्च॥ तथाबचनं ॥ जातकर्मादिसंस्कारे भास्कर पिताकुर्वीतनांदिकं ॥ समावृत्तौस्वयं कुर्यादाद्येपाणिग्रहेपितेति ।। पुनरुपनयने आश्वलायनः॥अ थोपेतपूर्वस्यकृताकृतं केशवपनंमेधाजननं चानिरुक्तंपरिदानंकालश्चेति ॥ अत्रपरिदानादी नामभावात्स्वयमेव कर्तृत्वंसिद्धं ॥ देशव्यवस्थायामपिनदोषः पठ्यते ॥ ज्योतिः शास्त्रे ॥ ए कोदर्योः करतलग्रहणं यदिस्यादेकोदरस्यवरयोः कुलनाशनंच॥ एकाब्दिकेहिविधवा भवती हकन्या नद्यंत रेपिशप्तदं पृथुशेलरोधेइति ॥ एकाब्बमध्येएकोदर्योः कन्ययोः करतलग्रहणंय ॥२५६ | दिस्यान् ॥ एकोदरस्थवरयो र्याकरतलग्रहणस्यात्तदाकुलनाशनंकन्याविधवाच भवति।। नदी For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवधानेपृथुशेल व्यवधानेपिशादंभवति ॥नयंतरेणशैलातरंचलक्ष्यते॥ तथाचस्मृतिः॥ व्यवधानमहानद्यागिरिव्यिवधायकः॥वाचोयत्रयिभियंतेनद्देशांतरमुच्यते॥ अतः पृथुप |दनयापिसंबंधनीयतेननदीमहतीगृह्यते॥चतुर्विंशतियोजनायामहानयोगोदावर्यादयोहाद शपुराणादोषसिद्धाः॥पृथुशेल: सह्यविध्यादिः॥अयंचसकलपिन्नाब्दादोविधिःप्रवेशनि गमनिर्णयेवेदितव्यः॥समानन्यायतखात्॥ अथैकमातृप्रसूतयोनिणयःसंहितासारायल्यों ॥ एकमात्प्रसूतानामेकस्मिन्वत्सरेयदि॥विवाहनैवकुर्वीतवदंतिमुनयोयथा॥१॥ स्मृत्यंतरे।। विवाहस्तेकजन्यानामेकस्मिन्नुदयेकुले॥ नाशंकरोसेकवर्षस्यादेकविधवायतः॥२॥उदयो For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२५७|| संस्कार लग्नं ॥ एक जन्यानामेकस्मिन्लमेविवाहकुल विनाशं करोति ॥ एकवर्षेले कविघवास्यादित्यन्ययः ॥ विवाहो व्रतबंधादीनामुपलक्षणं ॥ तथाच ज्योतिःशास्त्रे ॥ एक मातृजयोरेकवत्सरेपुरुषस्त्रियोः॥ नसमानकियां कुर्यान्मादभेदेविधीयते।।पुरुषौ चस्त्रियैौचपुरुषस्त्रियो॥ पृथक्त्वविवक्षायांचहुबासंत वान्नबहुत्वं ॥ एकमातृजयोर्द्वयोः स्त्रियोरेकवर्षेसमानक्रियां न कुर्यादित्यर्थः ॥ समानकियातुल्य || संस्कारः ॥ अत्रवर्षै तुमन्तुजमानेन ॥ मनुजवर्षेणसंवत्सर व्यवहारात् ॥ तद्वर्षचैचादि फाल्गुनामांत ग्रहगणितेप्रसिद्धं ॥ यत्तुगर्गवचनं ॥ वातृयुगेस्वमृयुगेश्वातृस्वसृयुगे तथा ॥ नजातुमंगलंकु ॥२५७॥ र्यादेकस्मिन्मंडपेहनीति॥ एकस्मिन्मंडपे हनीति निषेधादेक वर्षेपिभिन्ने हनिकर्तव्यतार्थसि For Private and Personal Use Only भास्कर Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डा॥अपिच॥ पुत्रीपरिणयादूर्घयावदिनचतुष्टयं ॥ पुत्र्यंतरस्यकुर्वीन नोग्राहमितिसूर यः॥दिनचतुष्टयमध्येपुज्यंतरस्यपियाहनिषेधादिनचतुष्टयोत्तरमेकर्षेपिपुञ्यंत्तरस्पति वाहोविधीयनइत्युक्तवाहिनचतुष्टयग्रहणेमंडपोडासनांनानिविवाहसमाप्तिकर्माणिलक्ष्य ते॥ प्रायश्चतुर्थदिनेतेषांविधानान्॥ अतएववराहः ॥ उदयपुत्रींनपिताविदध्यात्सयनर स्योरहनंनजातु॥दिनानिचसारिहिमंगलस्यसमापनंतावदतोविदध्यात् इति ॥अतश्चैकमंडपेशोभनदयस्यनिषेधोस्तीतिसिई॥ तथाचयमलजानेनिर्णयसिंधो॥ एकस्मि न्यासरेपानेकुर्यायमलजातयोः॥ क्षोरंचैवविवाहंचौंजीबंधनमेवच ॥ अवविशेषः For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार दृकारिकायां। एकस्मिन्यत्सरेचैवयासरेमंडपेतथा॥ कर्तव्यंमंगलंस्वस्रो बोर्यमलजातयोः | भास्कर ॥२५८॥ इति॥ ननुस्त्रीणामुपनयनस्थानेपियाहइत्युक्त खात्॥सोदरकन्यापुत्रयोर्यिवाहोपनयनयोःस मानसंस्कारसमितिचेउच्यते॥ अष्टमेवर्षेबाह्मणमुपनयेदित्याश्वलायनपचनेनकुमारमि त्यनुवर्तते॥कुमारीनिवृत्यर्थमिदमिनिवृत्तिकृताव्याख्यातं॥ हरदनेनापि ब्राह्मणग्रहणंचात्र स्त्रीशूद्रादिनिवृत्तयति ॥ अतोध्ययनानधिकारात्स्त्रीणामुपनयननिषेधएव॥यथाह मारहा जः॥ उपनयनाख्यंयकर्मविद्यार्थममुदीरितमिति॥अतएवाहोपनयेगुरुशिष्यं ॥जाताधि |॥२५८॥ काराज्जननादष्टमेब्देपावेदिदं॥कुमाराधिरुतेश्वापिनस्त्रीणामिदमुच्यतइत्यतःस्त्रीणामु । For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पनयननिषेधएव॥ एवं चेत्तर्हिस्त्रीणां द्विजन्मलंनस्यात्॥ तस्मात्स्त्रीणांदिजन्मससिध्यर्थम वोपनयनस्यानेयिवाहइत्युक्तमेतदेवस्पष्टीकृतमनुना॥वैवाहिकोविधिः स्त्रीणामोपनायनि कःस्मृतः॥पनिसेवागुरीवासीगृहस्थामिपरिश्रियेति॥अतस्त्रीणांविवाहविधिरे वोपनय नमितिकलाकन्यापुत्रयोविवाहोपनयनयोःसमानसंस्कारसमितिउच्यते॥पुरुषाणामुप नयनादूर्ध्वंस्त्रीणांविवाहादूर्भूयथावर्णपूर्णमाशौचंइत्युक्तलास्त्रीणांविवाहएवचेस्त्री णांविवाहएवोपनयनस्यानदापुरुषाणांस्त्रीणांचोपनयनादूचंपूर्णमाशौचमिन्यवक्ष्यत्॥ || अपिच॥स्त्रीणांविवाहकालेचेद्गुरुवादिनविद्यते॥ द्विजानांचोपनयनेगुरुंनत्रैवपूजयेत् ॥ For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार इत्यादौस्त्रीनरयो: पृथगुपादानात् ॥ स्त्रीविवाहस्त विवाहएव । एत-तुमनुवचने विवाहए भास्कर ॥२५९॥ वोपनयनंतत्स्त्रीणांद्विजन्मलोपादानपरं ॥ अन्यथाश्वलायनादिवचनैर्विरुध्यते ॥ अतक न्यापुत्रयोरु द्वाहोपनयनयोर्नसमानसंस्कारत्वमितिसिद्धं ॥ अनः सोदरकन्यापुत्रयोर्विवाही पनय ने एक बर्षेषिकर्तव्येएव ॥ तत्रापिपुत्रोपनयनकर्मसमाप्यपुत्र्यु द्वाहं कुर्यात् ॥ नमुंडनं मंडनतोषिकुर्यादितिनिषेधात् ॥ परिवेतृतंतुपुत्ररूतंपुत्रस्यकन्याकृतंकन्यायाएव ॥ तथाविधग र्गादिक्वनदर्शनात्॥ अतः कन्यापुत्रयोः परस्परकृतोनपरिपेतृत्व परिवेत्तित्वविचारः ॥ अथ | प्रवेशनिर्गः निर्णयः ॥ तत्रज्योतिः शास्त्रे ॥ स्त्रीविवाहः कु लेनिर्गमः कथ्यतेपुंविवाहः प्र For Private and Personal Use Only ॥२५९॥ Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बेशोमुनींद्रैः स्मृतः ॥ निर्गमादादितोनप्रवेशः शभस्त्वेक संवत्सरांतावधिःकीर्तितः॥ कुले सापिंड्ये ॥ उत्तयत्रकुलस्यान्नमित्यादिषुविज्ञानाचार्यविधेंद्रारण्यादिमुनिभिस्तथाव्यारव्यातला त्॥ सापिंड्यंसाप्तपुरुषंप्रसिद्धं॥ वासिष्टे ॥ नपुंविवाहोर्ध्वमृतुनयेपिविवाहकार्य दुहितुःप्रकुषी। तू ॥ नमंडनाच्चापिहिमुंडनंतुगोत्रैक तायायदिनाब्दभेदे इति ॥ गोत्रैकनायामिति सापिंड्येदृष्ट व्यं ॥ सापिंडानामेवविवाहसंबंधनिषेधइति ॥ तथाचस्मृतिः ॥ नित्यश्राद्धमधीतंच स्नानंच शिशिरैर्जलैः ॥ सपिंडो नैवकुर्वीत पिंडा नोडास नावधीति ॥ तथाचगार्ग्यः ॥ नांदीश्राद्धेक ||तेपश्वाद्यावन्मातृविसर्जनं ॥ दर्शश्राद्धंक्षयश्राद्धंस्नानंशीतोदकेन च ॥ अपसव्यंस्वधाकारं For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नित्यश्रादत्तथैवच॥ ब्रह्मयज्ञंचाध्ययनंनदीसीम्मोवलंघनं। उपवासबतचैवश्राइनोज भास्कर ॥२६०॥ |नमेवच॥अपसव्यंस्वधाकारंनित्यश्राद्धतथैवच॥नैवकुर्युःसपिंडाश्चमंडपोडासनावधीति॥वि | वाहबतचूडासुवर्षमईनदर्धकं ॥पिंडान्सपिंडानोदयुःप्रेतपिउंपिनानरेतिस्मृत्यंतरे।पुत्रो हाहान्नैवपुत्रीविवाहोपिकतुवये॥अब्दांतरान्मुंडनंचनेकदामुंडनद्वयं॥पूर्वाईस्पष्टं॥विवाहानंतरेअब्दांतरादब्दमध्येमुंडनंचनकार्य ॥तथा॥ एकदाएकस्मिन्नेवकाले मुंडन दयनका। एतदपिसापिंड्येद्रष्टव्याभिन्नवर्षादिषुतुनदोषइनिपायुक्तमेव।। तथाचज्योतिःसागरे।। ||२०|| ||संवत्सरेविदेशेतुमंडनादपिमुंडनं॥ नरोझहास्त्रीविवाहमार्गर्गमुरखाअपि॥तथाच॥ - For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संवत्सरेकियन्न्यूने नरोद्वाहे कृते सति ॥ राजांतरं यदि भवेच्छस्तः पाणिग्रहः स्त्रियइति राजांतरंवत्सरांतरं ॥ ज्योतिःशास्त्रेपि॥ षण्मासमध्येयदिभूभृदंतरं भवेद्विवाहः पुरुषेविवा हिते ॥ स्त्रीणामपीच्छंतिपराराराद्याः कुलेविवाहव्रतपूर्वकंचेति ॥ भूभृदंतरंराजांतरं ॥ तच्चोत्तरवर्षे एव भवति॥ अतोप्रूफ्टदंतरं वर्षांतरमित्यर्थः । तथा चोक्तं ॥ यश्चैना इप्रतिपद्य दैकोबारःसराजामुनिभिः प्रतिष्ठितइति ॥ वर्षं तुमानुषमानेनेतिप्रायुक्तं ॥ कुलेसापिंड्येशे षंस्पष्टं ॥ यत्तुमेधातिथिवचनं ॥ पुरुषत्रयपर्यंतंप्रतिकूलंचगोत्रिणां ॥ प्रवेशनिर्गमौत तथामंडनखंडनमिति ॥ एतद्भिन्नजातीयेषुसापिंड्येवेदितव्यं ॥ यतस्तेषांसापिंड्यंत्रि For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥२६॥ पुरुषमेव॥नथाहशेखः॥ यद्यकजानाबहवः पृथक् क्षेत्राः पृथक् जनाः॥एकपिंडा भास्कर थक्शौचाः पिंडेघावर्ततेविपिनि॥ ॥अथशोभनसन्निपातनिर्णयः॥तत्रसायणीये॥ एकस्मिन्छोभनेवृत्तेदिशप्तनवकारयेत्॥यदिकुर्यास्त्रमादेनतबनस्याच्छुकंध्रुवमिति वृत्तेप्रवृत्तेसमाप्तइतियावत्॥ ततःसंवत्सरे वृत्तेचूडाकर्मविधीयते॥द्वितीयेयावतीयेपिक तव्यं श्रुतिचोदनादित्यादिप्रयोगदर्शनात् ॥ इदमेकमंडपविषयं ॥एकमंडपेशोभनद्वयस्या प्राङ्गिपिरतात्॥ एकरहेपिसहशोभनस्यनिषेधः॥मंदिरवामधागेवेदीविधानावेद्या-॥२६॥ स्त मंडपमध्येविधानाच एकगृहेएकमंडपः स्यादितिअतएवस्पष्टमुक्तंप्रयोगसारे॥एक For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लमेलिग्मेबाद्वेगृहेयस्यशोभने ॥ तयोरेकं प्रनष्टस्या हुई तेन्यदितिश्रुतिरिति ॥ यस्यगृहेएक | लग्नेइयोर्लग्नयेोर्वा शोभने भवतइत्यन्वयः॥ शोभनंविवाहोपनयनादि । एवमेकमंडपेए कगृहेवाएक कर्तरिवाशोत्प्तनद्वयस्यनिषेधइति ॥ यत्वाचार्यवचनं ॥ एकमातृप्रसूतेद्वेकन्येवापु चकौ तयोः ।। सहोद्वाहं नकुर्वीत तथैवव्रतबंधनमिति ॥ अत्र सोदर्ययोरेककाल उद्वाहादिनि षेधात्भिन्नमातृकयोः सहोद्वाहादिकरणमागतं तद्भिन्न कर्तृत्वेनभिन्नगृहेसतिवेदितव्यं अन्यथापूर्ववचनविरोधः ॥ एवंद्वयोर्निषेधे आदिनिषेधः सिद्ध एव ॥ कर्तृत्वमेवात्रविवक्षितं ॥ वृद्धिश्राद्धाधिकारिपित्रादेरेव नतु विवाहहोमकर्तुर्वरस्य ॥ उद्वाह्यपुत्रींनपिताविदध्या For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार सुत्र्यंनरस्योद्वहननजानु॥ इत्यादिवचनलिंगदर्शनान्॥ अन्ययाकन्या विवाहेकर्तृलासंतवा भास्कर ॥२६२॥ ॥ अयमंडनमुंडनविचारः॥संहितासारायल्यां॥नमंडनान्मुंडनमू_मिष्टनपुत्रयोर्मुडनमे कवर्षे। नपुंबियाहोर्धमृतुत्रयेपिरियाहकार्यदुहितुश्चकुर्यादिति एनत्सपिंडतायाज्ञानव्यं ।। लेकतुयादक्निकुर्यान्मुंडनवयं ॥प्रवेशानिर्गसंपश्चान्मंडनान्नतुमुंडनमितिगदितत्वात्।। मंडनंविधाहः॥मुंडनचौलोपनयनादि। तथाचसारसमुच्चये॥पाणिपीडनविधेरनंतरंचौलको पनयनेविवर्जयेदिनि॥चौलोपनयनाश्यांगोदानसमावर्तनयोरपियहणमतिदेशयात्॥ न ॥२६२|| याचश्रीपतिः॥ अनबंधयदिधेयंनियतव्रतविसर्गश्च॥केशांतकर्मविहितंचौलसमंयोडशेवर्षइत्ति For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एतदेवस्पष्टीकृतं॥ ज्योतिर्निबंधे। बसमावर्तनकंसचौलंकेशांतमेनानिवदंतितज्ञाः॥क्षी रंपुरस्कृत्यप्रतियस्माचत्यारितस्मादिहमुंडनानीति ॥ केचिचौलकर्मचमुंडनमितिवदंति नबहुवास्थविरोधादनादरणीयंशिष्टसमाचाराच्चभिन्नवर्षादिषुनदोषइतिप्रागुक्तमेवातदो वोदास्तसंहितासारावल्यां॥फाल्गुनेचैत्रमासेतुपुत्रोदाहोपनायने॥'दादब्दस्यकुर्वीनना तुवयउलंघनमिति॥ एतद्वहुवाम्यतायांनसंशयनिवृत्तिः॥किंतुषोडशवर्षेकेशांतोडादशद्वाद शवीण्येकैकस्यवेदस्यब्रह्मचर्यमितिवेदप्रामाण्येनकुलेत्रिपुरुषसापिंड्येवियाहःनिमयतिहा त्यादिशंकयामुंडनशब्दार्थनिश्चयेकात्यायनः॥मुंडनंचौलमित्युक्तंबनोदाहीतुमंडन चौ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार मुंडनमित्युक्तंवर्जयेदरणासरम् ॥ मौंजीचोभयतः कार्यायतोमोजीनमुंडनमा भास्कर ॥२६३॥ माजीप्राधान्यमित्युक्तमोज्यंगसुंडनंस्मृतम् ॥ मौंज्यामुंडनंअंगंनप्रधानंइति॥वर णासरंकन्यावरणोत्तरमितिसंस्कार रत्नमालायां॥मंडनेरुतेपुनरूपनयनादेश नायंनिषेधः ॥ तबकेशसंडनस्यरुतारुतखात्पुनरुपनयनादेः प्रायश्चित्तात्मकत्येनविहितस्यकालातिकमेप्रायश्चित्तावृत्तिभयादनुक्तकाल त्याच॥ इत्तिमंडन मुंडननिर्णयः॥ - ॥अथगुरुलघुमंगलनिर्णयः॥सारसमुच्चये।।चूडाकेशांतसीमंतपिपाहो ||१२६३॥ पनयं बुधाः॥ गुरुमंगलमित्याहस्तद्वयंलघुमंगलं॥ तच्च गुरुमंगलाल्लघुमंगलंनिषिध्या। For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते। ज्योतिः शास्त्र॥ज्येष्टरुत्वादुषण्मासनकुर्याल्लघुमंगलं॥ कुर्वनिमुनय केचिदन्यस्मिन्न । पिवत्सरइति॥ तथाच॥ मात्याकियापूर्वज्येष्ठंरुत्यातुमंगलं॥ ऋतुवयंपुनर्यावन्नकुर्या लघुमंगलं ॥मान्यज्ञोमातृपूजातस्याःक्रियावृद्धिश्राद्धादिः॥तथाचचतुर्विंशतिमते॥तियः ।। पूज्या:पितुःपक्षेतिस्रोमातामहेतथा॥इत्येतामातरःप्रोक्ता:पितुर्मातुःस्वसाष्टमी। ब्राह्मा यास्तुततः सप्तदुर्गाक्षेत्रगणाधिपान्॥ वृध्यादौपूजयित्वातुपश्चान्नांदीमुखान्पित्तृन्। मातृपूर्वान्पिवृन्यूज्यततोमानामहानपि॥मातामहीनतःपूज्यायुग्मालोज्यादिजातयः । एतद्विधिपूर्वकंगुरुमंगलं कलाषघमासाभ्यंतरेलघुमंगलंनकार्यमित्युक्तंभवति ॥मानुपू । For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ २६४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जादीनां चूडाकर्मादिषुप्राधान्येनविहितत्वाच्चूडाकर्मादिकंगुरु मंगलमित्युच्यते ॥ तथाचगृह्य भास्कर कारियां ॥ पुंसवने वसीमंतचौलोपनयनेष्विह । विवाहे चानलाध्येयप्रष्टतिश्रोत कर्मसु । इदं श्राद्धंप्रकुर्वीतबीजवृद्धिनिमित्तकं ॥ अन्येषोडशसंस्कारेश्रावण्यादिष्वपीष्यतइति ॥ अत्रपुंसवनग्रहणात्सीमंतसाहचर्याच्चपुंसवनमपिगुरुमंगलं भवति ॥ चौलातिदेशात्के शां तमपि ॥ अयं गुरुमंगलानंतरं लघुमंगलस्यनिषेधः कालातिपन्नस्यैव ॥ नयथाकाल प्राप्तस्य सिंहस्थगुरौगुरुश कास्ताधिमासादिपुचास्यविधानात् जातकर्मादेिशशौचांतर ॥ २६४॥ |प्राप्तावपिविधानाच्च॥ तथाचज्योतिशास्त्रेउक्तं ॥ सीमंतजातकादीनिप्राशनांनानिचक्रमा | For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त॥कर्तव्यानिनदोषोस्तिपंचाननगतेगुरौ॥ वृधमनुः॥ अम्याधेयंप्रतिष्ठांचयज्ञदानव्रतानि च॥ वेदव्रतवृषोत्सर्गचूडाकरणमेरयलाः॥मांगल्यमभिषेकंचमलमासेपिवर्जयेत्॥बालेवायदिवा वृद्धेशुक्रेचास्तमुपागते॥मलमासइवैतानिवर्जयेद्देवदर्शनमिति॥ अवचूडाकरणादीनांच र्जनाच्छेषाणांनदोषइतिज्ञापितं ॥तथाचबृहस्पतिः॥यस्याःकियायाः संप्रोक्तः कालो |मासैदिनैरपि ॥ननबमोट्यदोषोस्लिअस्तो वागुरुशकयोरिति॥आवश्यकत्वमाहाश्वलायनः॥तानेमनेयापनिनेसंन्यस्लेवाविदेशगे॥तगोत्र जेन श्रेष्ठेनकार्या:पुंसवनादयइति॥ अनःकाल प्राप्मस्यजानकर्मादेरावश्यककर्तव्यखादयं दोषोन। अयंचनिषेधःप्रायएक कर्तृ For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कस्मेतिगम्यते ॥ गुरुलघुमंगलयोर्भिन्नकर्तृकत्वेतुनदोषः ॥ वाक्यइयेपिज्येष्ठ लेतिउक्का भास्कर || २६५॥ प्राप्त्यपदर्शनादेककर्तुः प्रतीयमानत्वाद्विशेषा दर्शनाच्चाभिन्नवर्षादिष्वपिनदोषइतिप्रागुक्तमे व समावर्तनसंज्ञकमिति एतद्दिगवलंबेनान्यदपितधीतिर्निर्णेतव्यं ॥ इतिगुरुलघु मंगलनि र्णयः ॥ ॥ अथपरिवेत्रादिनिर्णयः॥ तल्लक्षणमाहमनुः ॥ दाराग्निहोत्रसंयोगं कुरुतेयोय जेस्थिते॥परिवेत्तासविज्ञेयःपरिवित्तिस्तपूर्वजइति ॥ स्मृत्यंतरे ॥ ज्येष्ठायांयद्यनूढायांकन्यानोद्वाह्यतेनुजा॥स्यादयेदिधिषुर्ज्ञेयापूर्वान्यादिधिषुः स्मृता ॥ परिवेत्रादिस्वरूपकथनप्पू ॥२६५॥ |र्वकं तत्प्रायश्वित्तमाहहारितः॥ ज्येष्ठेऽनिविष्ठे कनीयान्निविशमानः परिवेत्ता भवतिपूर्वःप For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिवित्तिःपरिचेदिनीकन्यापरिदायीदातापरियष्टायाजक तेसर्वपतिताः संवत्सरंप्राजापत्येनरुछेणपावयेयुरिति॥एनकामतःपिवायनुज्ञातोडाहविषयं ॥ अकामतः पिबादिदत्तोबाहे तुमानयतंत्रेमासिकं ॥ अज्ञानतःपिवायदत्तोडाहे याज्ञवल्कीयंतचतुष्टयं।उपपातका द्विः स्यादेवंचांद्रायणेनवा॥पयसावापिमासेनपराकेणाथवापुनरिति॥ एवमितिगोवधप्रायश्चित्तातिदेशः॥अज्ञानतःपित्रादिदत्तोबाहेतुयमः॥ छ्वयंपरिवेत्ताकन्याया:रु च्छ्रएयतु॥ अतिकछंचरेद्दातायष्टाचांद्रायणंचरेत् इति॥ प्रायश्चित्तांतेविशेषमाह वसिष्ठा परिवेदनः रुशातिरुच्छौचरित्वातस्मेदत्यापुनर्निविशेत्नांचैवोपयच्छेदिति॥पा For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२६६॥ संस्कार, रिवेदनइतिपरिवेत्तुरेयसंज्ञा॥ तस्मेज्येष्ठायब्रह्मचर्यंत प्रेक्ष्यमिवनियेद्यपुनरुद्र हे कामित्यु भास्कर ||क्त तामेवेतिच्याचष्टेविज्ञानेश्वरः। तथाप्रदिधिषुपत्यादेरपिविशेषंचसिष्टः॥अयेदिधिषुपनिः रुच्छ्रातिरुछोडादशरात्रंचरिखानियिशेततांचैवोपयच्छतेति॥दिधिषुपतिः कलानिक | छौचरित्वातस्मैपुनर्निविशेदितिचरित्या ज्येष्ठायामन्येनोटायर्यापश्चात्तामेवोहहेत् ॥ तस्मै कनीयस्याः पूर्ववज्ज्येष्ठोदखाअन्यासदहेतेति व्याख्यानं पारिजातादोएपंनिर्णयति॥परिये दनदोषस्यापदादमाहयमः॥पितृव्यपुत्रान्सापत्लान्परपुत्रांस्तथेवच॥दारामिहोत्रधर्म ॥२६॥ ॥ पुनदोषःपरिवेदनइनि॥ परपुत्रादत्तकादयइतिपारिजातः॥ सोदर्यविषयेपित्साहकात्यायनः For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशांतरस्थान्कीबाश्चत्तथाकुष्टवृणानपि॥वेश्यातिसक्तपतितशूद्रतुल्यांचिरोमिष्णः। जडमूकांधवधिरकुजवामनखेलकान्॥ अनिवृद्धानमाविरुषिसक्तान्नृपस्यचाधनगृहिम |सक्तांश्चकामतःकारिणस्तथा॥ कुहकोन्मत्तचोरांश्चपरिवेत्तानदूपति॥खेलको समपादइयः॥ अभार्यानैष्ठिकब्रह्मचारिणः॥कामतःकारिणोविवाहादीच्छायानिवृत्ताइनियारख्यातंपारिजाते। देशांतरगतज्येष्ठस्यप्रतीक्षावधिमाहवसिष्ठः॥ अष्टोद्वादशवर्षाणिज्येष्ठलातरमनिविष्ट मप्रतीक्षमाणः प्रायश्चित्तीभवतीति॥ द्वादशेतुमुख्यपक्षः॥ द्वादशेषतुवर्षाणिश्रेयान्ध |मार्थयोगतः॥न्याय्यः प्रतीक्ष्यतं याताश्रूयमाणपुनःपुनरिनि॥ अत्राप्यपधादेकार्णाजि) For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार निः॥ उन्मन्तःकिल्बिषीकुष्ठीपतितः क्लीव एक्वा ॥ राजयक्ष्मामयावीचनन्याय्यंस्यात्प्रतीक्षितु तारकर ॥२६७|| मिति ॥ कन्याविषयेप्युक्त दोषापवादंगर्गः ॥ एकमा तृप्रसूतानांकन्यानां परिवेदने॥ दोषः स्या |त्सर्ववर्णेषु न दोषो भिन्नमा तृष्विति ॥ वृद्धमनुः ॥ विवाहनाधिकारेणज्येष्ठकन्यास्थितायदि ॥ तदा नुज्ञांविनाचापिकनिष्ठामुइहेत्तदेति ॥ अन्यत्सर्वपरिवेदनोक्तमनुसंध्येयमिति पारिजातः ॥ इतिपरिवेत्रादिनिर्णयः ॥ ॥ अथविवाहे अशौचप्राप्तौ तदपोह्यसद्यः शौ चंचंद्रिकाकारआह॥तत्रयाज्ञवल्क्यः ॥ दाने विवाहयज्ञे च संग्रामे देशविप्लवे ॥ आपद्यपिचकष्टायांसद्यः शौचविधीयते ।। दातुर्वरस्यकन्याया सद्यः शैौचंविधीयते इतिषट्त्रिंशन्म For Private and Personal Use Only ॥२६७॥ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते॥ विवाहोत्सवयज्ञेषुवं तरामृतसूत के ॥ परैरन्नंप्रदातव्यंप्तोक्तव्यंचद्विजोत्तमैः॥ घ तयज्ञविवाहेषु श्राद्धे होमार्चने जपे ॥ प्रारंभेस् तकं नस्यादनारंभेतुसूतकं ॥ प्रारंभश्वत ने वोक्तः ।। प्रारंभोवरणंयज्ञेसंकल्पो व्रतसत्रयोः ॥ नांदीमुखंविवाहा दोश्राद्धेपाकपरिकि येति ॥ वरणंतुमधुप ते ज्ञेयं ॥ तथाचचाये ॥ गृहीतमधुपर्क स्ययजमानाच्चकलि जइत्युक्तेः ॥ एतच्चवरणमस्त्वेव ॥ अवरणवत्स्वाथानेष्टिपशुबंधादिषु तुस्वीयाद्यपदार्थ प्रवर्तनमेवारंभः ॥ तथाचदर्शपूर्णमासयोरवृ तस्यहीतुः सामिधेनीषुप्रवृत्तस्याशी चाप्तावः ।। कन्यायाः वरपितरंप्रतिदानमेवविवाहः ॥ वरंप्रतितुहोमपाणिग्रहणादि ॥ प्रारब्ध For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पाकेश्वाद्धकर्तुः॥ कृतनिमंत्रणे श्राद्धेतुश्राद्धपोक्तुरितिव्यवस्थेतिकालविवेचनकारादयः।। ॥२६८॥ For Private and Personal Use Only भास्कर शंकरभट्टकृतधर्मप्रकाशेतुतत्तत्स्मृतिषुपाकनिष्पत्तिकृतसंकल्पितनिमंत्राणां त्रयाणामपि अशी चाभावनिमित्तत्वोक्तेर्निमित्तत्रयसमुच्चयएवश्राद्धे नाशोचंतथैवशिष्टसमाचारादि। त्युक्तं ॥ मुहूर्तांतरालाभेसामय्यांकृतायां सूतकिनोप्यधिकारोपायमाह पारिजातेविष्णु ॥ अनारब्धविशुध्यर्थंकूभांडैर्जुहुयाद्धृतं॥ गांदद्यासंचगव्यशीततः शुद्ध्यतिसूतकीति॥ ततः शुध्यतीतिपुनरुक्तिर्विवाहाद्युपयोगिपाकपरिवेषणादावपित्राद्विज्ञापनार्था ॥गांप ॥ २६८ ॥ यस्विनींदद्यात्॥ संकटेसमनुप्राप्ते सूतके समुपस्थिते ॥ कूष्मांडीभिर्धृतं हुत्वागांचदद्यात्पय | Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्विनीं ॥ चूडोपनयनो द्वाहप्रतिष्ठादिकमाचरेत् ॥ यदैवसूतकप्राप्तिस्तदैवाभ्युदयकिये अतिसंग्रहोक्तेः॥ स्मृतिकास्तुप्तेचौलप्रसंगेतु आरंभोत्तरंसूतके प्राप्ते विशेषः । संग्रहेइत्युत्काकू मांडीभिर्वृतं वेतिसंग्रहवाक्यमुपन्यस्तं ॥ एवंशद्धिपूर्वकंविवाहाद्यनुष्ठानेतदंगत्वेनसंक ल्पितान्न भोजनं नदोषइतिबृहस्पतिनोक्तं ॥ विवाहोत्सव यज्ञेषुत्वंतरामृतसूतके॥ पूर्वसंक|ल्पितान्नेननदोषः परिकीर्तितइति। मृतसूतकमध्येविवाहाद्यनुष्ठाने उक्त शुद्धिपूर्वकमार ||ब्धेइत्यर्थः ॥ नांदीश्राद्धोतरंसूतकादीविवाहारंभोत्तरमपिसंकल्पितान्नेनैवविशेषइति षट्त्रिंशन्मते।। पूर्वार्धंतुपूर्ववत्॥ परैरलंप्रदातव्यं भोक्तव्यंचद्विजोत्तमैरिति । विवाहादि For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ॥२६९॥ |मध्येसूतकादिप्राप्तावित्यर्थः।। पूर्वसंकस्सितानमोजनसमयेसूतकादौतुविशेषस्तत्रैव॥ हैं. भास्कर जानेषुतुविषेषुत्वंतरामृतसूतके॥अन्यगेहोदकाचांताःसर्वेतेशुचयःस्मृताइति॥ भोक्तभिर्युक्त शेषस्याज्यः॥ पकशेषः सूतकिभिोकव्यइत्याशयः॥ ॥ अथपिवाहेच धूवरजननीरजोदोषेनिर्णयः॥यधूवरान्यतरयोजननीचेद्रजश्वला॥तस्याः:प गरिकार्यमांगल्यंमनुर बीत्॥१॥माधवीये॥ प्रारंभाप्राग्विवाहस्यमातायदिरजस्वला॥ निवृत्तिस्तस्यकर्तव्यासहत्यअतिचोदनात्॥१॥ प्रारंभालागितिनांदीश्रादासागिति ॥२६९।। ज्ञेयं॥नांदीमुखंविवाहादावित्यादिनातस्यैव प्रारंभः॥ वृद्धमनुः॥ विवाहबतचूडाममाता ॥ For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदिरजस्वला ॥ तदानमंगलंकार्यशदीकार्यक्रोप्समिः।मेधातिथिः॥चौले चव्रतबं धेचविवाहेयज्ञकर्मणि॥भार्यारजस्वलायस्यप्रायस्तस्यनशोभनं। गर्गः॥ यस्योद्वाहा दिमांगल्येमातायदिरजस्वला॥तदानतत्सकर्तव्यमायुः क्षयकरंयतः॥ बृहस्पतिः॥वैधव्यं चविवाहेस्याज्जडत्वंबनबंधने॥ चूडायांचशिशोर्मृत्युविनोयात्रा प्रवेशयोः॥रजोदर्शनस्य नांदीश्राद्धोत्तरमुत्सत्तीततः पूर्वमुत्सत्तावपि मूहूर्तांतरालाभेश्रीपूजनादिकांशांतिक त्वातदैवचौलादिकार्य।यथाकारिकानिबंधे। सूतको दक्ययोः शुध्येगांदद्यादोमपूर्वकं॥षा कर्मणिशहास्यादितरस्मिन्नध्यति ॥ अलामेसमुहूर्तस्यरजोदोपेयुपस्थिते॥धि। For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार, 'यसंपूज्यतकर्याहबहत्याप्नयंकरी॥ हैमीमाषमितांपांत्रीसूक्तविधिनाचरेत् । प्रत्यूची भास्कर ॥२७० पायसंहुलाऽभिषिंच्यामाचरेत्॥ श्लोक भेदेनप्राप्तापदोक्तारंपास्यमुहूर्ती नरालाम स्यश्रयणान्नपरस्परसापेक्षवं ॥ रजोदर्शनादिसंभावनायांनांदीश्राद्धस्यापरुष्यानुष्ठान प्यवधिरुक्त: प्रयोगरत्ने॥एकविंशत्यहर्यज्ञेविबाहेदशवासराः॥विषट्-चौलोपनयने नांदीश्राद्धविधीयते॥ ॥अथकन्यारजोदर्शनेनिर्णयः॥ विवाहासूचकन्यारजोदर्श नेजातेविवाहयोग्यतासिध्यर्थउपायमा हाश्वलायनः॥पिताऋतून्स्यपुत्र्यास्तगणयेदा ||२७०|| || दितःसधीः॥दानावधिगृहेयत्नात्सालयेच्चरजोवतीं ॥ दद्यात्त तुसंग्व्यागाःशक्तःकन्या For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |पितायदि॥दातव्येकापियलेनदानेतस्ययथाविधि॥दयाहाब्राह्मणेष्यन्नमतिनिःस्व सदक्षिण तदतीतर्तुसंरव्येषुवरायप्रतिपादयेत्॥उपोष्यत्रिदिनकन्यारावीपीलागवांपयः॥अदृष्टरजसेदद्यात ल्यायैरलाभूषण॥नामुरहन्वरश्चापिकूष्मांडैर्जुहुयाइतमिति॥विष्णुः॥यद्देवेतिकरसूक्तंकूष्मांडो परिकीर्तित।नवावृत्साहुनेदाज्यहोमकूष्मांडिकीर्तितः॥ तस्याःकन्यायादानेकर्तव्येयथाविधिसु| वर्णशृंगादिगोदानविधिनेत्यर्थः॥वरायेनिउक्तप्रकाराणामन्यनमेनदातुःकन्यादानेयोग्यताप्तव तीत्यर्थः।उपोष्येतिश्लोकेनदृष्टरजस्ककन्यायाउपवासत्रयांतेगव्यपयःपानपूर्वकंअदृष्टस्जसेकुार्य। रलभूषणदानेनविवाहयोग्यताउच्यते॥तामुहभितिवरस्यकूष्माडहोमेनतदुद्दाहयोग्यने For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मस्कार तिबोधव्यं॥अथक्विाहहोमकालेकन्याकनुमतीचेत्तवयज्ञपाधै।विवाहविहिनेतबेहोमका भाकर ॥२१॥ लउपस्थिते॥कन्यामृतुमतीदृष्ट्याकथंकुतियाज्ञिकाः॥स्मापयित्वानुनाकन्यामर्चयित्वायथापि धि॥ युजानामाहुतिहुसाततः कर्मणियोजयेत्॥अन्यच्च ॥ मुंजानःप्रथममंत्ररथाविंशतिसं ख्यया॥आज्याहुनिचजुहुयाद्गांचदद्यात्पयस्विनीं।यहा॥स्मृत्यर्थसारे॥वियाह होमेपकातेयदिकन्यारजस्वला॥विरात्रंदंपतीस्थानांपृथक्शय्यासनाशिनी ॥ चतुर्थहनिसंस्नानौना स्मिन्नमौयथाविधि॥विवाह होमकुर्वीनमित्यादिस्मृतिसंग्रहइति॥ ॥अयपनि ॥२७१।। । कूलनिर्णयः॥ कृष्णामट्टीये॥वधूवरार्थपटिनेसनिश्चिनेवरस्थगेहेप्यथकन्यकायाः॥म्रिये For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नकश्रिन्मनुजोथनारीनदानकुर्युः रखलुमंडनंते॥मनुः॥ वाग्दानानंतरंचऋउपयस्यकुलेषुच ॥ त्र्यब्दोनबालमरणेप्रतिकूलंनवियते॥ स्मृतिरत्नावल्यो। ऊनद्विवार्षिकेमेतेननस्यपनिकूला ता॥ शोतिःस्याच्छुपदानृणांकूष्मांडगणहोमतः॥ वाङनिश्चयेरुतेपश्वास्सिनरौनिधनंगतो॥तयोस्तत्प्रतिकूलस्यान्नान्येषांतुकदाचनेनिवृद्धवसिष्ठः॥ वर वध्योःपितामानापिटा व्यश्वसहोदरः। एतेषांप्रतिकूलस्यान्महाविघ्नपदंभवेत्॥पितापितामहश्चैवमानाचैवपिता मही॥पितृव्यस्त्रीसतो याताप्लगिनीवाविवाहिता। एभिरेव विपन्नैश्चप्रतिकूलंबुधै स्मा त। अन्यैरपिविपन्नस्तकेचिदूचुननद्भवेदिनि ॥ मांडव्यः।।वाग्दानानंतरंमातापित्ताचा For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie भास्कर संस्कार तापिपद्यते॥विवाहोनैवकर्तव्य स्ववंशहितमिछनेति॥ ॥अथसंकटेप्रवृत्तिभकारमाह ॥२२॥ मेधातिथिः॥वाग्दानानंतरंयवकुलयोः कस्यचिन्मृतिः। ततःसंवत्सरादूर्धविवाहःशादो भवेत्॥पुरुषत्रयपर्यंतप्रतिकूलंस्वगोत्रिणां ॥प्रवेशानिर्गमस्तनथामंडनमुंडने॥प्रेतक ण्यनिर्त्यचरेन्नाभ्युदयकिया। आचतुर्थततः पुंमिपंचमेश सदंभवेदिति॥स्मृतिरत्नाव ल्यां॥पितुरदमिहाशीचंतदर्धमातुरेवच॥मासत्रयंतुभार्यायास्तदर्थंनातृपुत्रयोः॥अन्येषांतु सपिंडानामाशीचमाससंमितं॥ तदंतेशांतिकंकृत्वाततोलगंविधीयतइति॥ ज्योति प्रका ॥प्रतिकूलपिकर्तव्योविवाहोमासमेतरा। शांतिविधायगादत्सावाग्दानादिचरेत्पुनरि For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ति॥स्मृत्यंतरे॥पतिकूलपिकर्तव्यकेप्याहुवहुसंप्लवे ॥ प्रतिकूलेसपिंडस्यमासमेकंथिया ।। र्जयेत्॥विवाहस्तततः पश्चात्तयोरेवविधीयतइति॥ ज्योतिःसागरे॥दुर्मिक्षेराष्ट्रमंगे। चपित्रोर्वाषाणसंशय॥पोटायामपिकन्यायांनानुकूलंप्रतीक्षनइति॥अन्यत्रापि॥दीर्घरो गाभिभूतस्यदूरदेशस्थितस्यच॥ उदासीनस्थितस्यापिप्रतिकूलंनवियते॥संकटेसमन प्राप्तेयाज्ञवल्क्येनयोगिना॥ शांतिरुक्तागणेशस्यकलातोशामाचरेत्॥अरुखाशांतिकंय स्तनिषिद्धेसतिदारुणे॥करोतिशभकर्मविघ्नस्तस्यपदेपदे॥ वृद्धवसिष्ठः॥प्रतिकूले तुसंप्राप्तेविवाहंनैवकारयेत्॥अंतेदोषविनाशायकुर्या छांतिमिमांशमा॥श्रियैजातइ ॥ For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ! भास्कर संस्कार निश्रियं ॥ इदंविष्णुरितिविष्णुं ॥ गौरिर्मिमायेतिगौरीं ॥ त्र्यंबक मितित्र्यंबकं ॥ परंमृत्यो ॥ २७३॥ रितियमं ॥ पूजयित्वानिलाज्यं चहुनेदष्टोत्तरंशतं ॥ ॐ भूः स्वाहामृत्युर्नश्यतांस्नुषायै ||सखंवर्धनांस्वाहा ॥ ततो होमंसमाप्य गोदक्षिणाभवेदिति ॥स्मृतिचंद्रिकायां ॥ कृते वाविश्वयेपश्चान्मृत्युर्भवतिगोचिणः ॥ तदानमंगलंकार्यं नानावैधव्यदंभुवं ॥ वाग्दा नानंत ||रंयत्रकुलयोः कस्यचिन्मृतिः ॥ नत्रोद्वाहो नैवकार्यः स्ववंशक्षयदोषकृतइति ॥ अत्रयद्यपि । विवेकस्यचिदितिसृत्युर्भवनिकस्यचिदितिचाविशेषेणोक्तं तथापिपितामहादीनामपि ॥ २७३॥ || मरणस्यप्रतिकूल दोषनिमित्तत्वेनकचिदकीर्तनादविवाहिताया भगिन्याइतिविवाहिताया|| For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | मरणस्य तथात्वानुक्तेर्मेधातिथिवाक्ये स्वगोभिणामितिचंद्रिकावाक्ये मर्त्यस्यगोभिणइतिच कीर्तनाइध्यावरस्यवासगोभसपिंडेषु त्रिषुरुषांतर्गतेमर्त्यमृतेप्रतिकूलदोषइतिमंतव्यं ॥ स्त्री चरस्य द्वितीयादिविवाहसमयेपूर्वेदासतस्तस्यांपूर्वोत्पन्नः एतत्पौत्रोपलक्षणं ॥ एवं पितृव्यग्रह णंतत्पुत्रस्यएवं वरमारभ्य जनकवि पुरुषीकूटस्थमारस्यसंतानभेदेचचिपुरुषी अत्रबोद्धव्या ॥ व धृवरयोःसमानगृहेतन्मरणेकंचिलालंप्रतीक्ष्येवविवाहइति तदाकुर्युरित्यादिशब्देर्बोध्यते। त योस्तत्प्रतिकूलंस्यादितिकालप्रतीक्षाशांतिभ्यामसमाधेर्यो दोषो द्वयोर्युगपन्मरणजइत्यर्थः॥अ तएवोक्तं नान्येषां तुकदाचनेति अन्येषांसपिंडानानयोरप्येकै कमरणजस्तसमाधेयइतिआश For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | यः । वृद्धवसिष्ठवाक्ये चतुर्णां मरणस्यमहाविघ्नकरत्वकथने नवप्रतीक्षासहिताके वलंवाचिनाय भास्कर ||२७४॥ कशांतिरितिकथनार्थं ॥ अतएवतद्विधिवाक्यशेषेण शांत्यकरणे पदे पदइतिविघ्नस्यमहत्वंप्रद |र्शितं । एभिरेवविपन्नैरितिकालप्रतीक्षासहितायाः श्रीपूजनादिशांत्तेर्निमित्तमेतन्मरणमेवेत्या शयः ॥ अतएव मांडव्यवाक्येनैवकर्तव्योनिमित्तानिमित्तानंतरमितिव्याख्येयं ॥ इतिप्रतिकू लनिर्णयः ॥ ॥ अथचूडोपनयनोद्वाहानांप्रारंोत्तरंमुहूर्ती तरालाभेजननाशौ चपातेसंक टवशात्पाप्त कर्मकरणे तच्छुध्यर्थं प्रायश्विनी भूतमार्तंडानुसारीकृष्मांडीहोमप्रयोगः ॥ कृतस्ना ॥ २७४ ॥ नादिर्यजमानः पत्त्यासंस्कार्येण चसहपीठादावुपविश्याचम्य अस्यामुकसंस्कार्यस्य जननाशो For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चमध्येसंकटवशेनअमुकसंस्कारकर्तुंकूष्मांडमंत्रैराज्यहोमपयस्विनीगोदानंतन्नियंबाप चगव्यप्राशनंचकरिष्येइति॥तबादौनिर्विघ्नार्थंगणपतिपूजनंस्वस्तिवाचनमपिकुर्वति॥कू भांडहोमक अस्मिन्स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंपिटनामानममिप्रतिष्ठाप्यसंपूज्यातच देवताभिध्यान।। तवप्रजापतिइंद्र अमिंसोम।प्रधानंअग्निवायुसूर्य कूष्मांडमवैः॥अनिवार्य सूर्यं अमीवरुणोअमीवरुणोअमिवरणसरितारंविष्णुविश्वान्देवा-मरुतः सन्विरुणआदि त्यंअदितिं प्रजापति समिस्पिष्टरुतंएता अंगप्रधानार्थादेवताः आज्येनास्मिन्कर्मण्यहंयक्ष्ये तनोदक्षिणतोब्रह्मासनादि आज्यभागांतंकवा॥ नावचरुः ॥कूष्मांडहोममंत्राः ॥ ॐयहै। For Private and Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार वादेव॒हेड॑ने॒देव॑सश्चकृ॒माघ्यम् ॥ अ॒मिमा॒तस्मा॒देन॑सो॒धिश्वा॑न्मुञ्च॒त्व हंस स्वाहा॥ १ ॥ इद ॥२७५ ॥ मग्नयेनमम ॥ ॐ यद्दिवा॒षदि॒नक्त॒मेना॑द॑ः सिचकृ॒माध्यम् ॥ चा॒युर्मा॒तस्मा॒देन॑सो॒धिश्वा॑न्मु च॒त्वदः ह॑सः स्वाहा ॥ २ ॥ इदंवाय • ॐ षदि॒जाग्र॒द्यद॒स्वम्ऽएनट· सि चकृ॒माघ्यम् ॥ सू ब॒मा॒ तस्मा॒देन॑सो॒धिश्च॑न्मुञ्च॒षद॑ ह॑स स्वाहा ॥ ३॥ इदंसूर्याय नमम ॥ ततोभूराद्याः स्विष्टकृ दंतादशाहुतयः ।। ततः संस्रवप्राशनादिप्रणीताविमोकांतं होमशेषंसमाप्य ॥ ततः पयस्विनीगो | दानं ॥ प्रतिगृहीतृ ब्राह्मणपूजनं ॥ गांवस्त्रालंकारादिभिः संपूज्य ॥ दानमंत्रः ॥ गवामंगेषुति ॥ २७५॥ ठेविति ॥ इमांगांपयस्विनीय चाशक्त्यलंकृतांजननाशौ चदोषनिरसनार्थं कूष्मांडीप्रायश्चित्त For Private and Personal Use Only भास्कर Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होमसांगतासिध्यर्थप्राप्तकर्मकरणेअधिकारार्थचम शर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहसंप्रददे ।। दानसांग इमांदक्षिणा अथवाइदंगोनिष्क्रयीभूतंनिफनिष्का५पादंवासुवर्णमूल्यरजतद्रव्यसदक्षिणाकंतुझ्यमहं ततोविधियसंचगव्यंरुत्या॥ यत्त्वगस्थिगतंपापंदेहेतिष्ठतिमामके ॥ प्राशनासंचगव्यस्यदहत्यगिरिवेंधनंइतिपठितमंत्रपूर्वकं ॐ इत्यनेनप्राशयेत्॥य थाशक्तिब्राह्मणभोजनसंकल्सः॥ ब्राह्मणान्संपूज्यतैराशिषोगृहीखाअभिविसज्य॥ निनकतेनकमर्णाश्रीपरमेश्वरःपीयनां।। इतिसंस्कारभास्करे कूष्मांडीहोमप्रयोगः॥ ॥ अथविवाहहोमकालेकन्याऋतुमतीचे नत्रहोमप्रयोगः॥कन्यासस्माताश भासनेउ For Private and Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पविश्य॥कतुदोषविनाशार्थप्राप्तकर्मणियोग्यत्तासिध्यर्थमुजानहवनंपयस्विनीगोदानंपयः भास्कर ॥२७६॥ प्राशनंचकरिष्यो। निर्विघ्नतासिध्यर्थंगणेशंसंपूज्य ॥युंजानहोमकर्तुअस्मिन्स्थंडिलेपंच भूसंस्कारपूर्वकंविटनामानममिंप्रतिष्ठाप्यसंपूज्य॥दक्षिणतोब्रह्मासनायाज्यभागांतेना) वचरः ॥ खुजानपथमं॥ पुंजतेमनऽ इतिकरयांचतुर्दशावृत्याष्टाविंशत्याहुतीराज्येनहु ला।नौचमंत्री ॥ ॐानश्ययममनस्तत्वायसयताधियः ॥ अमि]निर्निषाव्यश थिच्या अध्याभैरत्स्वाहा॥ इदंसवित्रेनमम॥१॥ युजतेमन उतथुज्जरोधियोनिमाधि- ॥२६॥ स्थ हुनोचिपश्चिनैः॥विहोनादधेवयुायिदेक इन्महीदेवस्यसवितुरे परिशुति स्पाहा॥२ For Private and Personal Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | इदंसवित्रेनमम॥ ततोभूराद्याः विष्टकृदंता दशाहुतयः ॥ संस्रवप्राशनादिप्रणीताविमोकांत || होमशेषंसमाप्य ॥ ततः पयस्विनींगांदद्यात् ॥ गांवस्त्रालंकारादिभिः संपूज्य ॥ प्रतिगृहिनृब्राह्म संपूज्य ॥ दानमंत्रः ॥ गवामंगेषुतिष्ठति भुवनानि चतुर्द्दश ॥ यस्मात्तस्माच्छिवंमेस्यादिहलोके.. परत्रच॥ इमांगांपयस्विनींयथाशक्त्यलंकृतांऋतु दोषनिरासार्थं युञ्जानप्रायश्चित्तहोमसिध्य | र्थंप्राप्तकर्मकरणे अधिकारार्थं चब्राह्मणाय तुभ्यमहंसंप्रददे ॥ दानसांगतासिध्यर्थइमादक्षि गांतुभ्यमहं संप्रददे॥ अथवागोनिक्रयीभूतंनिषं निष्काधंवा सवर्णमूल्यरजतद्रव्यंसदक्षिणा कंतु यमहं संप्रददे ॥ ततः पयः प्राशनं ।। कामधेनुसमुद्भूतघृतबीजंशशिप्रभं ॥ तस्यप्राशनमा || For Private and Personal Use Only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | || वेणरजोदोषोविनश्यतु॥इदंरजोदोषनिवृत्यं विदिनंपयःप्राश्य ॥अमिंविसजेताह || भास्कर ॥२७७॥ तियुञ्जानहोमविधिः॥ ॥अथयधूयरमातरजःप्राप्तीनांदीश्राडोत्तरंमुहूर्तीनरालामे संकटेप्राप्तकर्माधिकारार्थश्रीशांतिकरणेप्रयोगः॥ आचम्यदेशकालीसंकीर्त्यअस्यसंस्का यस्यविवाहादिमंगलमध्ये अस्मसल्यारजउत्पन्नदोषनिरासार्थसकलारिष्टशांत्यर्थसंस्का यस्यबहायुष्यप्राप्त्यर्थश्रीशांतिकरिष्ये॥ तदंगवेनगणेशपूजनंस्वस्तिवाचनरुवाआ चार्यवृखास्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंबरदनामानममिंप्रतिष्ठाप्यसंपूज्य॥ तत्पुरतःभद्र | ॥२७७॥ पीठेनंदुलाष्टदलंपिरच्य तदुपरिकलशंसंस्थाप्योपरिपूर्णपात्रंनिधाययस्ययुग्मेनसंवष्टय । For Private and Personal Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तदुपरि अभ्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठापूर्वकं स्वर्णमयी श्री मूर्तिप्रतिष्ठाप्य ॥ श्रीसूक्तेनपोडशे पचारैः संपूज्यप्रार्थयेत्॥ महालक्ष्मिनमस्तभ्यंसहस्रकरमंडिते ॥ आयुः श्रीमंगलंदेहि रजोदोषंनिवारयेति॥दक्षिणतोब्रह्मासनाद्याज्यभागांतंकृत्वापंचदशर्चा श्रीसूक्तेन |त्यृचंतिलाज्यपायसहोमंकृत्वा ॥ भूरादिस्विष्टकदंतादशाहुतीर्हु बाज्येन ॥ ततः संस्त्रवमा शनादिप्रणीताविमोकांतं होमशेषं समाप्य ॥ गवामंगेष्वितिगांवातभिष्क्रयद्रव्यंद्रत्वा ॥ ऐंद्र वारुणपावमानीयमंत्रैरंगसूक्तैरभिषेकमंत्रैश्वसंस्कार्येण सहाभिषिंच्या प्रतिमामाचार्यायदवा दक्षिणांदलाविप्राशिषोग्गृहीत्वा ब्राह्मणभोजनसंकल्पं कृत्वा प्रतिमाग्मिंविसृज्य ॥ यस्यस्मृ For Private and Personal Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार त्येतिनत्याकर्मसंपूर्णतांचाचयेदितिसंस्कारमास्करेश्रीशांतिप्रयोगः॥ ॥ अथविना शास्कर ॥२७॥ परिहारायविनायकशांतिरुच्यते॥तत्रकालः ॥विष्णुधर्मे। हस्तपुष्याश्चयुक्सोम्यवैष्ण वेदोत्तरात्रये॥नक्षत्रेचमुहूर्तेचमैत्रेवाब्रह्मदैवते॥शक्लपक्षेचतुर्थ्यांचवासरेधिषणस्यच॥ ॥ विघ्नस्यपरिहारार्थशोर्तिकर्याविनायकीमिति॥अथविनायकशांतिसंभाराः॥सिद्धार्थाः।।गो घृतं॥ सर्वोषध्यः॥प्रियंगुः॥ नागकेशरं॥ चंदनं। अगरु॥कर्पूरः॥ कस्तूरी॥ सप्तमृदः॥ अश्वस्थानात्॥गजस्थानान्॥बलिमकात्॥सरिसंगमात्॥ अशोव्यहदात्॥राजद्वारा-॥२७८|| न्॥गोगोष्ठान्॥७॥ गोरोचनं। चंदन। कुंकुम। अगरूपमृतयोगंधाः॥गुग्गुलः॥अत्रणा For Private and Personal Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चत्वारः कुंभाः॥ आनडुहंरोहितचर्म॥ भद्रासनं॥ श्रीपर्णिपीठं ॥ चूतादिपंचपल्लया। चतस्रःस्त्रजः॥आहतवस्त्राणि॥ श्वेतवस्त्रं ॥सार्षपतैलं। औदुंबरवृक्षोद्भवःसुवः।।शू॥सकत्फलीलतासंडुलाः॥तिलपिष्टं। तिलपिष्टमिश्रितोदनः॥शूद्रवर्णे॥ पक्कापकमासे पक्कापक्काश्चमत्स्याः॥द्विजवर्णेमाषपिष्टमयंमस्यमोसंच॥ चित्रविचित्राणिपुष्पाणि सुगंधिद्रव्याणिच॥शूद्रवर्ण। विविधासुरा॥गोडी॥पेष्टी॥ मावीच॥ द्विजवणे पया गुडलवणमिश्रगोडी॥पयोलवणमाषपिष्टमिश्रपेष्टी। पयोमधुलवणमिश्रमाची॥मूलकः॥कंदाकारोभक्ष्यइत्यर्थः॥पूरिकाः॥ अपूपाः ॥ ३ ॥स्नेहपकगोधूमविकारइत्यर्थः॥ For Private and Personal Use Only Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार उंडेरकत्रजः॥३॥मापपिटदामयापोतास्त्रजइत्यर्थः।दध्योदन।पायसं॥गुडमिश्रशाल्या पास्कर ॥२९॥ दिपिष्टं।मोदकाः॥दूर्गाः॥यजमानपत्योराहतवस्त्राणि॥विनायकोपिकयो सोपदिमनिमः। इतिविनायकशांतीसंप्माराः।। अथप्रयोगः॥उक्तकालेपवित्रपाणिरधिकारीप्राणानाय म्यदेशकालोसंकीर्त्य ॥ अयपू. ममअमुकस्यकर्तव्यउपनयनेवाविवाहेनिश्चयोत्तरं कस्यचित्तगोत्रजपुरुषस्थसंजानमृतिजनितप्रतिकूल सकलदोषपरिहारद्वारावधूवर यो:आयुरभिवृद्धिपूर्वक संतत्यपिछेदसकलाभूतिसिध्यर्थश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थसनवग्रह ।२७५।। | मरवांविनायकशोतिकरिष्येवा ॥ अस्यकुमारस्थउपनयनफर्मणोनिर्विप्रफलसिध्ययविनायक । For Private and Personal Use Only Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिकरिष्ये॥ इतिसंकल्पः॥ तदंगत्वेनगणेशपूजनादिनांदीश्राद्धांनंरुखाऽचार्यवरणकुर्या त्॥आचार्यलं यथास्वर्ग एवं चतुरः पराशरमतेष्टोवाऋविजोवृणुयात् ॥ तथाचत्वारःस्वस्ति वाचकाइनिमदनरले॥ अस्ययागस्य ॥१॥तेषांवस्त्रादिभिःपूजनं॥ ततःसाचार्योयजमा नोवामहस्नेगौरसर्षपानगृहीबारक्षोहणंइत्यादिमंत्रैः सर्षपान्यिकीर्य॥ गायत्र्यादिमिर्म पंचगव्यंकखा॥ आपोहिष्ठेतिविधिमत्रैः कर्मभूमिप्रोक्ष्य॥ भूरसीनिमंत्रणभूमिसंपूजा येत॥ ततआचार्य पंचवर्णैः शुक्लै पिष्टैर्मध्येस्वस्तिकंकृत्वातदुपरिआनडुहंचर्मप्राग्रीव || मुत्तरलोमनदभावप्रागयकुशानास्तीर्यनवश्रीपर्णिकाष्ट जंपीठंउत्तरच्छदंसंस्थाप्यन्छ। For Private and Personal Use Only Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२८० ॥ संस्कार तवस्त्रेणाच्छाद्यतच्चतुर्द्दिक्षुचत्वारिस्वस्तिका निवांतेषुप्रागादित एकवर्णाश्वतुरः कुंप्तान्म भास्कर हीयोरित्यादिमंत्रैः पूर्णपात्रांतंचतुर्ब्राह्मणेः पृथक्पृथक्मंत्रावृत्यासंस्थापयेत् ॥ तत्रविशे षः ॥ गंधनिक्षपेचंद नागरुकेशरकस्तूरीकर्पूरगोरोचनगुग्गुलंनिक्षिपेदिति ॥ कलशस्य खे विष्णुरित्यादिदेवदानवइत्यं तंपठेत्। ततश्चतुर्दिक्षुचत्वारऋलिजः त्वन्नो अग्रेतिमंत्रेण वरुणमा वाह्यषोडशोपचारैः संपूज्य ॥ आनोभद्राः ॥१ ॥ शन्नोद्यातः ० ॥२॥ इत्यादि | स्वशास्त्रोक्त शांतिक मंत्रान्पठेयुः ।। नतआचार्यो भद्रासन स्यपूर्व तोहोमार्थस्थंडिलंकृता ॥ ॥ २८० ॥ || नदीशान्यांह स्तमात्रवेदिकायांपीठे वस्त्रादीनामहीद्यौरित्यादिपूर्णपात्रांतंकलांसंस्थाप्य ॥ ऽ 0 For Private and Personal Use Only Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ननःस्वर्णमयविनायकोबिकामृारम्युन्नारणपूर्वक प्राणप्रतिष्ठांकला॥कलशोपरिसंस्थाप्य॥ आवाहयेत्॥ तवमंत्रः॥ ॐ तत्पुरुषायरिग्रहे वक्रतुंडायधीमहि॥तनोदंतीप्रचोदया। त॥ इतिविनायकं । सागायधिग्रहेकाममालिन्यै धीमहि।तन्नोगौरीप्रचोदयात्॥ इत्यपि कां।हेमप्रतिमयोरावाहयेन्॥ अपरार्के भविष्येत्यन्याअपिउक्ता:॥तसरितोयथावकाशंपनि मास्वक्षतपुंजेषुवाव्योमकेशं पार्वतीं। सीमावरूदेवं। अर्कमंडलं।सोममंडलं। भौम। बुधाबृहस्पनि ॥शकं॥ शनैश्चरं। राहुं।।केतुं॥बाहुलेय।विष्णुं।एतान्॥इंद्रादिलोकपालंग श्वायाह्यादिनैवेद्यांतैरुप चारैः संपूज्य॥ भद्रासनस्यपूर्वतः कृतेस्थंडिलेमिस्थापनंकुर्यात्॥ For Private and Personal Use Only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तद्यथा। अयपू• अस्मिन्सग्रहमखविनायकशास्यारव्येकर्मणिअस्मिन्स्थंडिलेपंचासमा | भास्कर ॥२८॥रपूर्वकंअमिस्थापनकरिष्ये॥पंचा संस्कारान्सलावरदनामानममिंस्थापयेत्॥विनाय कादुत्तरतःग्रहवेद्यांग्रहावाहनंकुर्यात्॥अयपू. प्रारिप्सितकर्मणःसांगतासिध्यर्थआदि त्यादियहाणांस्थापन पूजनंचकरिष्ये।तबग्रहपीठमध्ये आदित्यादि अनंतपर्यंतरजोद निशांतिवन्ग्रहाणास्थापनंपूजनंचकार्य॥ तर्देशान्यांदध्यक्षतादिभूपिनं कलशंविधि नास्थाप्यतत्रवरुणपूजयेत्॥देवदानव० भवसर्वदा।।तनोमिसमीपमागत्यान्याधानंकु- २८१|| र्यात्॥अय. अस्मिन्सयहमरखविनायकशात्यारण्येकर्मणिदेवतापरिग्रहार्थमन्वाधानक । For Private and Personal Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie | रिष्ये। पूर्वणब्रह्मणोगमनमित्यादिपदार्थानहंकरिष्ये॥अथदेवताप्तिध्यानं॥तत्रप्रजा पतिइंद्रंअमिंसोमंआज्येनएकैफयाहुत्यायक्ष्ये। अत्रप्रधान।आदित्यादिनवग्रहान अर्कादिसमिच्चरुतिलाज्यद्रव्यैःप्रत्येकं प्रतिद्रव्येण अष्टाष्टसंख्याकाभिराहुतिभिर्यक्ष्य ॥अधिदेवताःप्रत्यधिदेवताश्वतैरेवद्रव्यैः प्रत्येकंप्रतिद्रव्येणचतुश्चतुःसंरच्याकाभिरा हुतिभिर्यक्ष्ये॥विनायकादिपंचदेवता क्षेत्रपालेवास्तोष्यतिइंद्रादिलोकपालांश्चरेबद्र व्यैः प्रत्येकंपनिद्रव्येणद्वाभ्यांद्वाश्यांआहुनिन्यायध्ये॥पुनरवप्रधानामिन समितं। | शालं॥कटंकटंकूष्माउं॥राजपुत्र प्रत्येकंएकैकयाच, हुत्या॥व्योमकेशादीन्प्रत्येकं || For Private and Personal Use Only Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार एकैकयाच हुत्यायक्ष्ये॥शेषेणस्विष्टकृतमित्यादि॥ दक्षिणतोमेब्रह्मासनादिपरिस्तर भास्कर ॥२२॥ णांतंपात्रासादनं॥पवित्रच्छेदनादर्मास्त्रयः॥पवित्रेदे॥प्रोक्षणीपात्रां|आज्यस्थाली।चरु स्थाली।। यहहोमार्थगृहसिद्धचरुस्थाली॥संमार्गकुशा पंच॥उपयमनकुशाःसप्तासमिध स्तिस्रः॥सुवः॥आज्यं॥ तंडुलाः॥पूर्णपात्र।पवित्रच्छेदनादिपावप्रोक्षणांतंरुत्वा॥ आज्यस्थाल्यामाज्यनिर्वापः॥सपवित्रकेचरुपात्रेतंडुलावापःप्रणीतोदकमासिच्य॥द क्षिणतआज्याधिश्रयणं॥चरोरधिश्रयणमाजस्योत्तरतइत्यादिचरूद्वासनानं कुर्यात्।। तत:गव्याज्यलोलीरुतेनगोरसर्षपकल्केनोइर्तितसर्वांगसर्वोषधीभिः सर्वगंधैश्चलिप्त For Private and Personal Use Only Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिरसंचजमानं आचार्योमंगलवेदघोषैर्त्तद्रासने उपवेशयेत्। ततोयजमानः पूर्ववृतैश्चतु |र्भिकलिग्भिः स्वस्तिवाचनं कुर्यात् ॥ तो ब्राह्मणाः ममयहे अद्यकरिष्यमाणसग्रहमखविना यकशांत्यारव्यस्यकर्मणःबहुपुण्याहं भवं तोब्रुवं तु ॥ अस्तुपुण्याहंइतिद्विजावदेयुः ॥ एवंकल्या | णादि० ।। ततो जीवसतिपुत्राभिः सवासिनीभिर्निराजनंकार्यं ॥ ताभ्यश्वयजमा नोवस्त्रकं |चुकादिदद्यादित्याचारः ॥ ततआचार्यो यजमानदक्षिण तउदयखस्तिष्ठन्पूर्वदेशस्थक |लशमादाय॥ सहस्राक्षंशतधारमृषिभिः पावनं कृतं । तेनत्वामभिषिंचामिपावमान्यः पु | नंतुते ॥ इतिमंत्रेणयजमानमभिषिंचेत्॥ कुंप्तमध्येकिंचिज्जलमचशेषणीयं ॥ दक्षिणकुं For Private and Personal Use Only Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार भमादाय॥मगंतेवरुणोराजानगंसूर्योबृहस्पतिः॥ भगमिंद्रश्चवायुश्वभगंसप्तर्षयोददुः॥ भास्कर ॥२८३|| इतिदक्षिणकुंभेनयजमानमभिषिंचेत्॥ततःपश्चिमकुंभमादाय॥यत्तेकेशेषुदोर्भाग्यसीमा तेयञ्चमूईनि॥ललाटेकर्णयोरक्ष्णोरापस्टननंतुसर्वदा॥ इतिपश्चिमकुंभेनयजमानमभि पिंचेत्॥ ततउत्तरकलशमादाय॥सहस्राक्षशतधारमृषिभिःपावनं कृतं॥ तेनत्वामभिषिंचा, ||मिपायमान्यःपुनंतुते॥पगंतेवरुणोराजाभगंसूर्योबृहस्पतिः॥पगमिंद्रश्चवायुश्चागंसप्त र्षयो ददुः॥यत्तेकेशेषुदौमाग्यसीमंतेयच्चमूईनि॥ ललाटेकर्णयोरक्ष्णोरापस्तत्जंतुसर्वदा ||॥२८३॥ इतिमत्रैरभिपिंचेत्॥ ततश्चतुर्भिर्मीलितैःकुंभैरभिषेकः॥तत्रमंत्राः।एतदैपावनंस्नानंस For Private and Personal Use Only Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्राक्षमृषिस्मृतं ॥ तेनसांगतधारेणपावृमान्यः पुनलिमाः ॥ शक्रादिदशदिक्पाला ब्रह्मेशकेशत्रादयः ॥ आपस्तेनंतुदौर्भाग्यंशांनिंददतु सर्वदा ॥ ॐ समित्रियान: आप ओषधयः संतुदु मिवियास्तस्मै संतुयोस्मान द्वेष्टियं चवयंद्विप्मः॥ समुद्रागिरयो नद्योमुनयश्वपतिव्रताः। दौर्भा म्यंमंतु ते सर्वंशांति यच्छंतु सर्वदा ॥ पादगुल्फीरुजंघास्यनितंबोदरनाभिषु॥ स्तनीरु बाहुहस्ता श्रीवास्त्रं सांगसंधिषु ॥ नासाललाट कर्णेषु के शांतेषु चयस्थितं ॥ तदापोमंतुदौर्भाग्येशांत यच्छंतुसर्वदा॥ तनआचार्यःप्राङ्मुखोयजमानस्यपश्चात्तिष्ठन्सव्यपाणिनाकुशान्यज ||मानस्यशिरसिप्रागभान्निधाय ॥ तत्रसार्षपेतैलं औदुंबरखुत्रेणादाय॥ ॐ मिताय स्वाहाइदेमि For Private and Personal Use Only Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार | तायनमम॥यजमानस्यत्यागः॥ॐ संमिनायस्वाहाइदंसमिता ॥ ॐ शालायस्वाहा सास्कर ॥२८४॥ इदंशालाय०॥ ॐ कटंकटाय स्वाहाइदंकटकटाय०॥ ॐ कूष्मांडायस्वा. इदं कूष्मांडायर ॥ॐ राजपुत्रायस्वा. इदंराजपुत्रा०॥ इतिषडाहुतीर्मस्तकेजुहुयात्॥ ततोमिसमीपमागत्य॥पवित्रणाज्योत्पवनादिसोमायस्वाहे त्यंतंकुर्यात्॥षभिरमौअपितचरुणाजुहुयात्।। ॐ मितायस्वा इदंमिता०॥ ॐसंमित्तायस्खा. इदंसंमिताय ॥ ॐ शालायचा इदंशा०॥ ॐ कटंकटायस्वा इदं कटंकटाय०॥ॐ कूष्मांडायस्वा इदंकृष्णां ॥ ॐ राजपु ॥२८४|| | वाय. इदंराजपुत्रा०॥तेनैवचरुणाव्योमकेशादीनोहोमः ॥ ॐ व्योमकेशायम्घा. इदंव्योम । For Private and Personal Use Only Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के यथामंत्रलिंगत्यागः॥ॐ पात्मे ॥ॐ भीमजाय॥ॐ वासुदेवाय ॥ॐ अर्काय॥ ॐ सोमाय ॥ ॐ भीमायः॥ ॐ बुधायः॥ ॐ बृहस्पतये ॥ अंशकाय०॥ॐ शनये.॥॥ ॐ राहवे ॥ॐकेतवे॥ॐबाहुलेयायः॥ॐ विष्णवे ॥ॐ इंद्रायः॥ॐ अमये॥ॐयमा य।। ॐ निक्रतये॥ ॐ वरुणाय ॥ ॐ यायवे ॥ ॐ कुवेरायः॥ ॐ ईशानाय ॥ तनो) यजमानेनद्रव्यत्यागःकार्यः॥ इमानिसंपादितानिहयनीयद्रव्याणियायायक्ष्यमाणदेव तास्ताभ्यस्ताभ्यःमयापरित्यक्तानिनमम॥ततोगणेशायवराहुतिः॥नतोयहहोमःपू । वियत॥ततः स्थापिनदेवतानांपंचोपचारपूजा स्विष्टकदादिप्राजापत्यांनोहोमः॥ततोब For Private and Personal Use Only Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | लिदानंपूर्ववत्॥क्षेत्रपालबलिः॥ हस्तपादप्रक्षालनं ॥नतोहुतशेषचरुणाइंद्रादिलोकपाले भास्कर ॥२८॥ श्योनाममवैर्बलिदत्या।। कद्धोदकनसुलातोयजमानःविनायकसमीपेउपविश्या॥ ॐ तत्पु रुषायवि० तन्नोदंती० ॥१॥ ॐ सागायवि तन्नोगोरी ॥२॥ दात्यामंत्राझ्याविना यकांबिकाश्यानमःध्यायामीत्येवंषोडशोपचारैःसंपूज्य। कतारुततंडुलान्॥तिलयां कोदन।पक्काप कमत्स्यान्॥पक्कापक्रमासे । विविधांसुरां॥पर्कमासं॥मूलकापूपपूरिकोंडर जनक्दध्यन्नपायसगुडमिश्रपिष्टमोदकलड्डुकानिचित्रसगंधपुष्पकूष्मांडफलानिचैकपा |॥२८५|| बेर्पयारुत्वा॥ ॐ तत्पुरुषा तन्नोदंती ॥१॥ॐसभगाये तन्नोगौरी ॥२॥विना ।। For Private and Personal Use Only Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यकायिकाभ्यांनमः इमंउपहारंनिवेदयामि॥ इनि निवेद्य ॥ कुंकुमगंधर्वासर्पप सहितोदकेनांजलिमापूर्य ॥ ॐ तत्पुरुषाय० ॥ ॐ सागाये ॥२॥इतिमंत्राप्यांविनायकांबिकाश्याइदमघसमर्पयामि॥ अर्घदत्ता॥ भूमोशिरःरुला॥रूपंदेहियशोदेहि भगवन्दहिमेपागं॥पुत्रान्देहिधनं देहिसर्वान्कामांश्चदेहिमे।। इतिविनायकं ॥ रूपंदेहियशोदेहिमगंभगवतिदेहिमे॥ पुत्रान्देहिधनं देहिसर्वकामांश्चदेहिमे॥ इत्यंविकांचे । पतिष्ठेत्॥ सौभाग्यमंबिकेदेहिरूपमाग्यंथशोपिच॥ स्त्रियपुत्रांश्वकामांश्चतथाशौर्यच || देहिमे॥गणेशमातरंबालयत्किंचिन्मदभीप्सितं॥ एकनाम्नैवनदेहिदेहिगोरिवराना । For Private and Personal Use Only Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार ने॥ततआचार्यः शूर्पकुशानास्तीर्यरुतारुताद्युपहारंपूर्वाक्सर्वंतनिधाय चतुष्यथेगा भाकर ॥२८॥ त्वातमिजलेनाप्प्युक्ष्यनव कुशानास्तीय।। तबमंत्रोक्त देवताः संपूजयेत्॥ आदित्या । दिमंत्रोक्तदेवताभ्योनमः ध्यायामीत्येवंषोडशोपचारैः पूजयेत्॥ नवनिधायबलिंदद्या, न॥मंत्रास्त॥बलिंगृहविमेदेवाआदित्यावसवस्नथा॥मरुनावश्विनोदेवाः सपर्णाःपन्न गाग्रहाः॥ असरायातुधानाअपिशाचामातरोगणाः॥शाकिन्योयक्षवेतालायोगिन्यापू तनाग्रहाः॥ मुंभकाःसिद्धगंधर्वानागाविद्याधरानगाः॥दिक्पालालोकपालाश्चयेचवि | ॥२८८।। |नस्य नायकाः॥जगतांशांतिकर्ता ब्रह्मायाश्चमहर्षयः॥माविनामाचमेपापंमासंतुपरि For Private and Personal Use Only Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंथिनः॥सोम्यामवंतृप्ताश्चमूतपेना:सरवावहाः॥नलोयजमानोगृहमागत्यहस्तापादोचा। क्षाल्याचमेत्॥ नतआचार्यकृतस्यसग्रहमस्खविनायकंवोत्याव्यस्यकर्मणःसांगतासिध्ययं| यसो रासमन्वितंपूर्णाहुतिहोमकरिष्ये॥उक्तविधिनापूर्णाहुतिवसो रांचहुत्वामस्मधार |गकुर्यात् ॥ संयपालारुतस्यसग्रहमरयविनायकशांत्याव्यस्थकर्मणःसांगता.॥षणीतावि मोकः ॥ श्रेयोदानं॥यजमानःरुतस्यसग्रहमखविनायकशांत्यारण्यस्यकर्मणःसां श्रेयास्त्री करणकरिष्ये॥ आचार्यः कृतस्यम० श्रेयोदानंकरिष्ये॥शिवाआपः सखित्यादि॥ भवन्नि | योगेनमयाअस्मिन्सयहमरवविनायकशांन्यारव्येकर्मणियत्कृतंआचार्यत्वंतताचा । For Private and Personal Use Only Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार र्यगंधादिनापूजयेत॥तनोयहकलशोदकेनयजमानस्यसकुटुंबम्याभिषेकः॥विनायकोविक भास्कर ॥२८७॥ यो पंचोपचारे पूजांकृत्वायांतुदेवेतिविसृज्य ॥ इमेविनायकांबिकयोनीआचार्यायतुल्या महंसंप्रददे॥ इदंग्रहपीठंतुमय ॥ अमिंगंधादिनासंपूज्यागच्छगतिविसृज्या रुतस्य |सयहमग्यविनायक शांत्याव्यस्यकर्मणः सांगतासिध्यर्थयथाशक्तिब्राह्मणानभोजयिष्ये। अनेनरुतेनकर्मणाश्रीपरमेश्वरःपीयनां ॥ ब्राह्मणेभ्योधूयसीदत्यानेभ्यश्वाशिषोण्हीया दितिसंस्कारभास्करेविनायकशांतिप्रयोगः॥ ॥ अथगुर्वर्कबलंज्योतिर्निबंधेगर्गः॥॥२८७|| ॥ स्त्रीणांगुरुबलश्रेष्ठंपुरुषाणार वेर्बलं।नयोश्चंद्रबलंश्रेष्ठमिनिगणभाषितं॥जन्मत्रिदश। For Private and Personal Use Only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारिस्थः पूजयाशप्तदीगुरुः ॥ विवाहे चतुर्थाष्टद्वादशस्योमृतिप्रदः।। देवलः ॥ नष्टात्म |जाधनवती विधवाकुशीलापुत्रान्विताहतथवा सप्तगाविना ॥ स्वामिप्रियाविगतपुत्रधवा धनाढ्यावंध्यातवे सरगुरौ क्रमशोभिजन्म ॥ बृहस्पतिः । झपचापकुलीरस्योजीवोप्यशु भगोचरः ॥ अतिशोभनतांदद्याद्विवाहोपनयादिषु ॥ राजमार्तंडः ॥ तृतीय षष्ठराश्चैवदशमै कादशस्थितः॥रविःशद्धोनिगदितोवरस्यैव करग्रहे ॥ जन्मस्थेचद्वितीयम्येपंचमेसप्तमे पिवा ॥ नवमे भास्करपूजां कुर्यासाणिग्रहो त्संवे ॥ चतुर्थैवाष्टमे चैव द्वादशे भास्करेस्थित वरःपंचत्यमाप्नोतिकृतेपाणिग्रहोत्सवे ॥ ललः॥ द्वादशदशमचतुर्थेजन्मनिषष्ठाष्टमे For Private and Personal Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||२८८||| संस्कार तीयेच॥प्राप्तेपाणिग्रहणे जीवेवैधव्यमानोति ॥ मूहूर्तदीपिकायां ॥ व्ययभिदिग्बंधुमृति | १२ । ३।१०। ४।८ स्थितोपिस्त्रियोधनास्तांकरूतायगेश्व ॥ वित्थामहैर्देवपुरोहितश्चशतप्र दश्वेतिवसिष्ठ आह॥ गर्गः ॥ सर्वत्रापिश्रूभंदद्याद्वादशाब्दात्सरंगुरुः ॥ पंचषष्ठाब्दयोरे व भ गोचरतामता ॥ सप्तमात्पंचवर्षेषुस्वोच्च स्वर्क्षगतोयदि ॥ अवन भोपिकमंदद्याच्छुभऋक्षेषुकिंपु |नः॥रजस्वलायाः कन्यायागुरुशद्धिंनचिंतयेत् ॥ अष्टमेपिप्रकर्तव्योविवाहस्त्रिगुणार्चनात्।।। अर्क गुर्वीर्ब लगौ रोहिण्यर्क बलास्मृता ॥ कन्याचंद्रबला प्रोक्तावृषलीलमतोबला ॥ अष्टवर्षा ॥ २८८ ॥ | वे दोरीनववर्षाचरोहिणी । दशवर्षा भवेत्कन्या अतऊर्ध्वरजस्वला 11 ॥ अथबृहस्प For Private and Personal Use Only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिशांतिः॥ शौनकः॥ कन्यकोद्वाहकालेतुआनकूल्यनविद्यते॥ ब्राह्मणस्योपनयनेगुरोध धिरुदाहृतः॥सवर्णेनगुरुकृपापीतवस्त्रेणवेष्टयेत्॥ऐशान्यांधवलं कुंमंधान्यापरिनिधाय च॥मदनंमधुपुष्यं चपलाशचैवसर्षपानामांमीगुडूच्यपामार्गविडंगीशंखिनीयचा॥सह देवीहरिकांनासर्वौषधिशतावरी । बलाचमहदेवीचनिशाद्वितयमेवचा रूखाज्यसागप यतस्वशाखोक्तविधानतः॥ग्रहोक्तमंडलेयर्च्यपीन पुष्पासनादिभिः॥ देवपूजोत्तरेकाले तत:कुंभानुमंत्रणं॥ अश्वत्थसमिधश्चाज्यपायसंसर्पिषायुतं ॥ यवत्रीहिनिला साज्या || मंगोवबृहस्पतेः॥ अष्टोत्तरशतंसर्व होमशेषंसमापयेत् ॥पुत्रदारसमेतस्यअभिषेकंस । For Private and Personal Use Only Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार माचरेत्। कुंभाप्तिमंत्रणोक्तैश्वसमुद्रज्येष्ठमंत्रतः।प्रतिमांकुमवस्त्रंचाचार्यायनिवेदा भास्कर ॥२८९॥ येत्॥ब्राह्मणामोजयेत्पश्वाच्छुादास्यान्नसंशयः॥ इतिबृहस्पतिशांतिः॥ ॥अथा टोवियाहभेदाः॥तवमनुरु देशपूर्वकंक्रमणतलक्षणमाह॥ ब्राह्मोदेवस्तथैवार्ष:प्राजापत्य स्तथासुरः॥ गांधाराक्षसश्चैवपेशाचश्चतथाष्टमः॥ आच्छायचाहयित्वाचश्रुतशीलवते स्वयम्॥आहूयदानंकन्यायाब्राह्मोधर्म:प्रकीर्तितः॥यज्ञेतुविनतसम्यगखिजे कर्मकुर्व ते॥ अलंरुतमतादानंदैवधर्मप्रचक्षते॥ एकंगोमिथुनडेगावरादादायधर्मतः॥कन्याप्रदा ॥२८९॥ | नंविधिवदार्योधर्म:सउच्यते॥सहोमोचरतांधर्ममितियश्चानुमाष्यतु॥कन्याप्रदानमायर्य For Private and Personal Use Only Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राजापत्योविधिः स्मृतः॥अवविशेषंपारिजानेभगवान्॥अन्येष्वपिविचाहेषुधर्मस्यचरणंस || ह॥यद्यप्युक्तंतथाप्यत्रविशेषोक्तिहाश्रमान्॥ आश्रमांतरसंप्राप्तिर्निषेधार्थेतिगम्यते॥ नचावतम्यांजीवत्याविवाहस्यपरिग्रहः॥ आश्रमांनरयोगोवामृतायांभवतस्तताविति।मा न्येतुपुत्रादावनमिसाध्येषुसाहित्यनियमार्थासेति॥ जानिफ्योद्रविणंदलाकन्यायाश्चम्चश तितः॥ कन्याप्रदानंस्वच्छंदादासुरोधर्मउच्यते॥ इच्छयान्योन्यसंयोगःकन्यायाश्चचरस्य च॥गांधर्वःसइतिज्ञेयोमैथुनेकामसंभवः॥ हत्याछित्वाचभित्वाचक्रोशंतीरुदतीगृहात्॥ प्रगृह्यकन्याहरणंराक्षसोविधिरुच्यते॥सप्तांमत्तांप्रमत्नांयाहोरात्रीयःप्रयच्छति॥सपापि For Private and Personal Use Only Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार विवाहानांपैशाच:प्रथितोष्टमः॥ अर्षगोमिथुनादानंचकन्यार्हण॥ नतु नायकन्यायि भास्कर ॥२९०॥ कयेणनियत्वमित्सपिमनुनैवोक्तम्॥आर्षगोमिथुनंशुल्कं केचिदाहुषेयतदित्युपक म्य॥ शुल्कंमूल्यो। अर्हणतत्कुमारीणामानृशंस्यहि केवलमिति॥ तद्गोमियुनं आनृशंस्यंग निंदितम् ॥ किंतुतन्कुमारीणामहर्णपूजनमित्येवमाचारमदनरत्नेच्यारण्यातम्॥ एषांव्यय | स्थामाहमनुः॥षानुपूर्व्याधिप्रस्यक्षत्रस्यचतुरांवरान्॥विशूद्रयोस्तनानेवविद्याा नराक्षसान्॥ तबब्राह्मादीनगोधर्वान्तान्ब्राह्मणस्थधान्धर्मादनपेताविद्यात्॥क्षत्रस्यआ- ॥२९॥ सरगांधर्धराक्षसपैशाचान्॥ वैश्यम्भूद्रयोराक्षसवर्जितान्आमरगांधपेशाचानितिन्यारव्या । For Private and Personal Use Only Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||तं मदनपारिजाते॥ एषामपिप्राशस्त्यव्यवस्थामाहमनुः ॥ चत्वारो ब्राह्मणस्याद्याः शस्त्रागां धर्वराक्षसौ ॥ राज्ञस्तथाकरोंवैश्येपूदेवांत्यक्त गर्हितइत्यष्टौविवाहभेदाः॥ ॥ कन्या ||विवाहकालः ॥ सोमोददद्गंधर्वायगंधर्वेदददमयेइतिश्रुतिः ॥ तथाच ज्योतिर्निबंधे ॥ षडब्द ||मध्ये नोडा ह्याकन्या वर्ष द्वयंयतः ।। सोमो भुंक्ते ततस्तङ्कंधर्वश्वत्थानलः । यमः । सप्तसंव | सरादूर्ध्वं सर्ववर्णस्यकन्यका || विवाहे शस्यतेराजन्नन्यथाधर्मगर्हितइति ॥ यथा ॥ अष्ट | वर्षाप्तवेगौरीनववर्षाचरोहिणी ॥ दशवर्षाप्तवेत्कन्या अतऊर्ध्वरजस्वला ॥१॥ गौरींदद न्ना कलोके बैकुंठेरोहिणीददन् ॥ कन्याददन्ब्रह्म लोकेगैर वेतुरजस्वलां ॥ २॥ द्वादशे व्देरजस्त For Private and Personal Use Only Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥२९३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |लोइत्यन्यपाठः॥रत्नमालायांदेवलः। ऊर्ध्वदशाब्दाद्याकन्या वर्षे एकादशे तुसा ॥ गांधारीस्या भास्कर समुद्वाह्याविरंजीवितुमिच्छतेति ॥ तत्रसप्तमाष्टमाब्द उत्तमः ॥ नवमदशमोमध्यमः॥ ए॥ का दशाब्द अधम इति ॥ अत्रकन्या क्योब्दोर्ध्वंद्विगुणा ब्दवयस्क वराय कन्यां दद्यात्॥ अ अन्यथादानं दोषभागी स्यादिति ॥ ॥ कन्यादानाधिकारी ॥ माधवीये नारदः ॥ पितादद्या | स्वयं कन्यांच्या तावानुमतेपितुः ॥ मातामहोमातुलश्चसकुल्यो जननीतथा ॥ मातात्वमा बेसर्वेषाप्रकृतौयदिवर्तते॥ तस्यामप्रकृतिस्थायां कन्यांदद्युः स्वजातयः ॥ यदा तु नैवकश्चि ॥२९१॥ तस्थात्कन्यारा जानमाव्रजेदिति ॥ अप्रकृतिस्या उन्मत्तादिदोषयुता ॥ गम्यत्वभावेदा For Private and Personal Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृणांकन्याकुर्यात्स्वयंवरमिति॥ दानप्रशंसा॥ संर्वतः॥अलंकृत्यतुयः कन्यांभूषणाच्या दिनादिभिः॥दत्यास्वर्गमवाभोतिपूज्यतेवासवादितिरिति॥ ऋष्यश्रृंगः॥वरगोवंसमुच्या र्यप्रपितामहपूर्वकं॥नामसंकीर्तयेहिडान्कन्यायाश्चैवमेवहीति॥दानेविशेषस्त॥सर्वत्र प्राङ्मुरचोदातापतियाहीउदङ्मुखः॥एषएवविधिर्यत्रकन्यादानेवपर्यय इति ॥ विवाहेमं डपस्तपायुक्तः॥ वेदिकाप्रकारः॥नारदः॥हस्तोच्छितांचतुर्हस्तांचतुरस्त्रांसमंततः॥परस्येतिशेषः॥ ॥अथविवाहदिनानाविवाहांगमंगलकार्यकर्नव्यनोच्यते॥वरा, हः॥कार्यविवाहका गंविवाहोदितमेर्जनैः॥विबलंचयिधुंहित्यात्रिषष्टनवमंदिन॥1॥ For Private and Personal Use Only Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार हेरंबपूजनंतैल हरिद्राचांकुरार्पणं॥पेषणकंडनायंचवेदिकामंडपादिकं॥ यवारकुंकुमा मास्कर ॥२९२॥ दिश्चलड़कादिव्यंजनानीति ॥ यथारंचिकसा॥ विवाहेदिनशद्विस्त ॥ उदगयनआ पूर्यमाणपक्षेपुण्याहे कुमार्याः पाणिंगण्हीयात्॥तथाच ॥विवाहशद्धिप्रवदंतिसंतो वात्स्यादयःस्त्रीजनिजन्ममासादिति॥ अत्रवधूवरयोर्घटितादिविचारोगुरुबलादिकंपु ण्याहादिविनिर्णयोलमशादिश्चेत्यादिज्योतिःशास्त्रेतेये॥ विस्तरपयान्नावलिखित॥ ॥ इतिसंस्कारसास्करे वियाहोपयोगीसापिंड्यादिसंक्षिप्तनिर्णयः॥ ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथमुरव्यब्राह्मविवाहांगभूतोवाग्दानविधिरुच्यते॥ज्योतिर्विदादिष्टेवियाहनक्षत्रादि युत्तेशभकाले प्रशस्तवेधैर्युग्मब्राह्मणे: पुरंध्रीमिर्जातिबांधवैश्वसहवरपितागंधाक्षत पुष्पयुग्मवस्त्रभूषणफलतांबूलादिगृहीखातूर्यमंगलवाद्यादिभिर्युतः कन्यागृहे आगत्य ||शक्षवस्त्रपीठासने प्रत्य ड्युरवउपविशेत्।।तहदासनेकन्यापितापाड्मुखउपविश्यस्य वामतः प्राङ्मुरवींकन्यामुपवेश्य॥स्वपुरतः गणपतिंकलशंचसंस्थाष्य॥ श्रीगणपत्यादि स्मरणपूर्वकं देशकालकीर्तनानेकरिष्यमाणकन्याविवाहांगभूतं वाग्दानमहंकरिष्येइति || कन्यापितु:संकल्येऊहः॥ करिष्यमाणपुत्रविवाहांगभूतंकन्यानिरीक्षणपूजनंचकरि For Private and Personal Use Only Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार येइनियरपितुःसंकल्पः॥तदंगविहितंगणपतिपूजनंवरुणपूजनंचकरिष्ये इतिउनीरु भास्कर खा॥ ततोवरपिनाअमुकगोत्रोत्पन्नायअमुकप्रवरान्वितायअमुकशर्मणेवरायअमुको वोत्पन्नांअमुकप्रवरान्वितांप्रमुकीनाम्नीकन्यांमार्यात्वेनवृणीमहे॥इतिकन्यापितरंग तिब्रूयात्॥तनोदाताप्पार्यासुदृईध्वनुमतिगृहीत्वायथोक्तमनुवाद्यवावृणीध्वमि, तिवदेत्।।ततोवरपिताकन्यानिरीक्षणपूर्वक कुंकुमाक्षतपुष्पयुग्मवस्त्रपूषणतांबूलादि भिःकन्यांस्थानेपूजयेत्॥संप्रदायागतमंत्रैः॥ततोदाताप्रत्यङ्मयोपविष्वरपितरंग ॥२९३॥ धतांबूलादिभिः पूजयेत्॥सचवरपितादातारंपूजयेत्॥ ततोदाताहरिद्राखंडयुतपंचपूगी। For Private and Personal Use Only Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फलानिगृहीत्यापठेत्॥अव्यंगे पनिने क्लीवेदशदोपविवर्जिते॥ इमांकन्यांप्रदास्यामिदेवा मिद्विजसन्निधौ।।१॥ अमुकसगोत्रोत्सन्नायअमुकअपरान्वितायअमुकदार्मण:प्रपोत्राया मुक शर्मणापोत्रायअमुकशर्मणःपुत्राय॥अमुकसगोबोपन्नाअमुक प्रवरान्वितांअमुकश) मण:प्रपोत्रीअमुकशर्मण:पौत्रीअसकर्मणःपुत्रीअमुकीनामीइमांकन्याज्योतिर्विदा दिष्टेमुहूर्तेदास्येइतिवाचासंपददे॥ यदावभन्निनिमंत्रणहरिदारखंडपूगीफलानिवरपि तवस्त्रप्रांतेबध्याग्रंथिचंदनेनायिखापठेत्॥ वाचादत्तामयाकन्यापुत्रार्थस्वीलतालया। |कन्यावलोकनविधौनिश्चिनस्वंसरवीभव॥१॥ततोवरपितापूर्ववनहरिद्राखंडयुतपूगीफला For Private and Personal Use Only Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार निगृहीत्वाअमुकगोबोसन्ना अमुकमबरान्वितांअमुकर्मण:प्रपोत्रीं॥अमुकशर्म-भास्कर ॥२९॥णपोत्री अमुकशर्मण:पुत्रीं॥ अमुकीनाम्मीइमांकन्यांअमुकसगोत्रोत्पन्नायअमुकप्रया रान्वितायअमुकर्मणः प्रपोवायअमुकर्मणःपोत्रायअमुकर्मण:पुत्रायअमुक | दशर्मणेवरायभवंतोनिश्चितामखितिदातृवस्त्रप्रांतेपूर्ववन्मंत्रेणबधाग्रंथिंचंदनेनार्च यित्वापठेत्। वाचादत्तात्याकन्यापुत्रार्थवीरुत्तामया॥वरावलोकनविधौनिश्चितस्वंसा स्वीभव॥१॥ ततोदातापात्रस्थसिततंदुलपुजोपरिशचीमावाह्य कन्याहस्तेनसंपूज्यप्रार्थः ॥२९४।। येत्॥ देवेंद्राणिनमस्कायंदेवेंद्रप्रियभामिनि।विवाहभाग्यमारोग्यंपुबलामंचदेहिमे॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पुरंध्रीशिर्निराजनादिमांगलिक कार्य ॥ विप्रेभ्योगंधतांबूलदक्षिणादिभिःसंपूज्यानैरा |शिषोसहीत्या॥ गणपत्यादिविसर्जयेत्॥ इनिसंस्कारसास्करे योग्दानविधिः॥ ॥तनो विवाहदिनात्पूर्वनृतीयषष्ठनवमरहितान्यतमशुभदिनेयिवाहनक्षवादियुतेवधूवरयोस्नै लहरिद्रारोपणंगोधूमपूजनंचकार्य। सिंहासनेस्थारोहेदंपत्योः पादक्षालने॥अभिषे केसोरव्यरुत्येतिष्ठेसनीतुवामतः॥१॥ श्रादेसदैवयामांगेपलीचादकमाहरेत्॥ वृद्धिाद्वारा दिमांगल्येदक्षिणांगेसदाभवेत्॥२॥ लाज होमंसमिद्दोममूर्धिहीमंतथैवच॥ पूर्णाहुतिंच सोरांतिष्ठनैवहिकारयेत् ॥३॥ततोषिवाहदिनापूर्वदिनेकन्यापितावरपिताचसपली । For Private and Personal Use Only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंस्कार क: कन्यापुवायांसहमंगलस्नात्वाहतवाससीपरिधायधृततिलकोलंकारादिभिरलेक भास्कर ॥२९५॥ तोपहिः शालायांशुमामनेउपविश्य॥ स्वदक्षिणनःपत्नींतद्दक्षिणतः संस्कार्यचोपवेश्या ॥आचम्यमाणानाथम्यदेशकालोसंकाय॑ अस्यअमुकशर्मणः ममपुत्रस्य देवपितृक णापाकरणधर्मप्रजोत्पादनामिद्विधारावीपरमेश्वर पीत्यर्थश्वः करिष्यमाणधियाहारच्या कर्मकरिष्येइतिवरपक्ष।। अस्याः अमुकीनाम्याः ममकन्यकायाःभासहधर्मप्रजोत्पा दनगृह्मपरियहधर्माचरणेष्वधिकारसिद्धिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थश्वः करिष्यमाण ॥२९५।। विवाहारण्यकर्मकरिष्यइतिकन्यापक्षे॥ तदेगविहिनंनिर्विघार्थगणपनिपूजनंम्बसिप For Private and Personal Use Only Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ण्याहवाचनं अविघ्नपूजनंमंडपस्थापनं वसोर्द्धगनांदीश्राद्धंचायकरिष्ये अत्रपुण्याहवाच |नांतेप्रजापतिः प्रीयतामितिवदेत्॥ ग्रहानुकूलतासिध्यर्थंग्रहमरखंकरिष्येइतिकरणंउभ यपक्षेसमानं ॥ इत्येवंविवाहदिनात्पूर्वेन्हिसर्वं कुर्यादिति॥ ॥ अथविवाहदिनकर्तव्य मुच्यते ॥ ॥ घटीयंत्रनिमार्णस्यापनपूजनप्रार्थनाप्रकारस्त उपनयनप्रकरणज्ञेयः || प्रक्षिप्तघटी अष्टदिशांमध्येयद्दिग्गतात प्रागादितः क्रमेणफलानि ॥ यथा ॥ प्रार्थि | | तासा घटीतोयेयांदिशंप्रतिगच्छति ॥ पूर्वाशादिफलंवक्ष्येस्थितामध्येप्रमदा || स भाग्यंनिधर्नचैवअपमृत्यूरुजान्विता ॥ भर्तुः प्रिया चवश्याचमा न्यारूस्वधनान्चिते For Private and Personal Use Only Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२९६॥ संस्कार ति॥यद्यनिष्टदिग्गतापूर्णावा तदातिथिवारनक्षवलग्मदिक्पतीनांविवाह मंगली तरंपू भास्कर जनंउक्तमंत्रेणायुतजपंतद्दशांशतिलाज्येहेमिंगोदानादिकं चकुर्यादिति ॥ अथगौरी हरपूजनं ॥ ततः कन्यामातासुधालिप्तकुंड्ये आग्मवृक्षंकुंकुमेनचंदनेनवाविलिख्यत दयेभूमौ रंगवलिंविरच्यतत्रकोणचतुष्टयेस्थापितकलशश्रेणीनांमध्येसूत्रवेष्टितदृ शदंनिधायतदुपरि अग्रभागे उपलंनिधायतत्रवस्त्रे वातं दुलपुंजे अन्योन्यालिंगित गौरी हरयोः प्रतिमां सुवर्णरौप्यादिनिर्मितांकात्यायनीमहालक्ष्मीशचीभिः सहपूजये ॥२९६॥ त् ॥ तत्रमंत्रः ॥ सिंव्हासनस्थादेवेश सर्वालंकारसंयुतां ॥ पीतांबरधरंदेचंचंद्रार्धकृतशे || For Private and Personal Use Only Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | खरं ॥ करेणाथतभा पूर्णकलांदक्षिणेनतु ॥ वरदंचा भयं वामेनाश्विष्यचतनुप्रिया|मितिध्यानमंत्रः । गौरी हरमहेशान सर्वमंगलदायक ॥ पूजां गृहाण देवेशसर्वदामंगलं कुरु ॥ इ | तिपूजामंत्रः ॥ कन्यादेह प्रमाणे नसप्तविंशतितंतुभिः ॥ कृतवर्तिकयादीपंमज्याल्यतैल पूरितं । इति ।। सुवासिनी ब्राह्मणान्भोजयेत् ॥ नतोवधूर्मंगलसुनानादृपदग्रेपरिहितासंन पीतवस्त्रपरिधाय कुंकुममाल्यादिभिर्भूषिताउपविश्य ॥ कुंकुममाल्याक्षताः पुनःपुन: गौरीहरोपरि उभाभ्यां हस्ताभ्यांप्रक्षिपेत् ॥ इति ॥ ॥ अथशिष्टाचारप्राप्तंसीमंतिका र्वनमपिलिस्त्यते ॥ ॥ तत्रार्यक्रमः ॥ पादप्रक्षालनांतेकुरु कभतिलकं अक्षताभालदे For Private and Personal Use Only Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार शेउष्णीषंपुष्यमालांशिरसि च कुरु तैलारोपणं नारिहस्तात् ॥ दद्याद्धस्तमपूर्ण सफलमथ ॥२९७|| तत्संमुखंनारिकेलंएवंसीमेतपूजांप्रकुरुतविधिवत् आगमार्थंवरस्य ॥ ततादातागंधाक्षतपुष्पवस्त्रोष्णीषनीराजनफलतांबूलादिग्गृहीत्वापुरंधीभिर्ब्राह्मणैश्वसहमंगल सूर्यघोषपुरः स स्वरगृहेबास्थलेगच्छेत्॥वरःप्रशस्तवेशालंकृतोपस्त्राच्छादितपीठेमाड्युखउपविशेत्॥ तत्सुरतः। दाताप्रत्यङ्मुख उपविश्या चम्यदेशकालौस्मृत्लाकन्याविवाहार्थं आग ताय स्नान कायवराय सीमंतिके नार्चयिष्ये॥ तदंगत्वेननिर्विद्मार्थंगणपतिवरुणपूजनं करिव्थइतिरुत्वा ॥ ततो ॥२९७॥ | वरपूजनं ॥ ॐ विराजो दाहोसिथिरा जोदोहम सीयमपिपायायेविराजोदोहः ॥ ११॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | इतिमंत्रेण पादप्रक्षालनं ॥ ॐ सचक्षा • इतिमंत्रेणगंधं ॥ अनाधृष्टशइत्यक्षतानंदनी || ॐ युवारू वासेतिवस्त्रोष्णीषं ॥ ॐ यद्यशोप्सरसामि० इतिमंत्रेणपुष्पं ॥ ॐ वसोः पवित्रमसीतितैलारोपणकार्यं ॥ तैलंमस्तके क्षिपेत् ॥ॐ ऋ॒तव॑स्त्य ऋता॒वृध वृ॒ष्टास्यऽऋता॒वृध्ः॥घृ॒त॒श्व॒तो॑मधुश्चुतोषि॒राजो॒नाम॑काम॒धुक्षा अक्षीयमाणाः ||१|| ॐ ऋतवस्ये॒त्यृत॒वो ह्येता ऋतावृधः इतिसत्यवृधः इत्येतदृतुष्टास्त्य ऋतावृधs इत्य होरात्राणिचा इष्टका कृष: अहोरात्रा॒णितिष्ठ॑तिघृतमधुन इति त॒देनाघृतश्चुतश्वमधुश्चुतश्वकुरुते ॥ १॥ वि॒राजोनामेत्येत॑द्वैदेवा एता इष्टकाना 3 For Private and Personal Use Only Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मभिरुपाव्हयंतयुथायथैना: एतदाचक्षतेनाः एनानाभ्युपापर्तनाथ लोकंपृणाः एचपराच्या भास्कर ॥२९॥ स्तस्थरहितनाम्भ्योनिमेमिहत्यस्तापिराजीनामाकुर्वतता एनानभ्युपावर्ततुतस्माशदष्टका | उपायलोक मेणुयाधिमंत्रयतेतृदेनाविराजः कुरुतेदशाक्षराहिपिराकामदुधाऽ अक्षीय |माणाऽ इतितदेना: कामदुघाः अक्षीयमाणा: कुरुते॥ २॥ इतिमंत्रेणयरहस्ते सन्मुरयंत्री फलंदेयं सुमुहूर्तमस्त्विनिविप्राः पठेयुः॥अनेनररपूजनेनलक्ष्मीनारायणःप्रीयता॥नानानामगो त्योब्राह्मणेत्योभूयसींदक्षिणांदया। तैराशिषोगृहीत्वा ॥ अन्ये न्योतांबूलादिकंदला ॥२९॥ गणपत्यादिविसर्जयेत्॥ इतिसंस्कारसास्करेसीमांतपूजन॥ ॥तत:शिष्टाचारा। For Private and Personal Use Only Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरपिनाएवं विधिनाय स्त्रकुंकुमपुष्पफलैर्व●पूजयेदिति॥वरः रुतनित्यकियोविधिव कृतस्वस्तिवाचनोबाह्मणे: सहसालिकाहारं मुक्काअनुत्काबाईषद्धोतंनयंश्येतंसदशंपरे णाधृतवस्ययुगलंपरिधायमग्वीष्टदेवनापित्रादीन्नमस्कृत्यतैरनुमोदितोयथाविप ||श्वादियानमारु यधृनसिन छ वस्वविनैीतिबांधवैः स्वस्सिन इंद्रेतिसमंगलसूतप उनपरैबाह्मणैः पुरंधीनिःपूर्णकल शोदक पावकन्यापुष्याक्षतदीपमालाधजलाजैर्मंग लतूर्यघोषैश्चसहवधूग्टहेगत्यात द्वारदेशेषामुपस्थितनीराजनपूर्णकुंभयुतैः स्त्रीप रुपैः प्रत्युद्यानोनीराजिनालन्मंडपंप्रविशेत्॥ तवार्यक्रमः॥साधूक्तिर्विष्टरंपाद्यमपर) For Private and Personal Use Only Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मुदकार्घ्यं मधुप्राशनंत्री नाचामेद्दाड्य लेपः सुमन समुपवीतानिवस्त्राणिभूषाः ॥ का भास्कर ॥२९९॥ लंस्मृत्वाग्निसंस्थापयति अथवरोवस्त्रमे नांम दद्यात्सन्मुख्यंपाणिपीडाजिगमिषतियदै ||पीतिवन्हिस्मरित्या ॥ आघारौभूर्भुवाद्याष्टयजतिचक्र तापाडितिद्वादशैताचिन्ताद्याविश्व संख्या कृतिपरिमितयो भ्यायसंज्ञाग्निपं च ।। वध्वा चोत्यायला जाय जतिदशमितस्यात्प्रजा ||नांपते सौदीची क्रामेत्पदानि स्थितवतउदके नोत्तरेणाभिषिंचेत् ॥ सूर्येक्षालन्हिन्चास्ते ध्रुवम सिहृदया लंभसौभाग्य दानं चर्मण्याथोनि वेश्यं त्विह जपतिवरः स्विष्टमेताहि सप्तरिति ॥ अथम धुपर्कः॥ तत्र वरस्यार्घदानं स्मर्यते ॥ तत्प्रसंगे नया वंतोर्थ्यास्तेकयंते ॥ षडर्घ्यप्तवं For Private and Personal Use Only ॥" ||२९९|| Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ति॥ आचार्यऋत्विग्वैवायोराजापियः स्नातक इति॥ अथसर्वसाधारणोर्घविधिरुच्यते याहुमात्रंहस्तमात्रंबादीर्घपंचविंशतिकुशेर्घटितंविष्टरद्वयं॥पायंपादप्रक्षालनार्थजलं अर्धार्थशवपात्रस्थंजलं॥चंदनाक्षतपुष्पाणि॥मधुपर्कार्यंदधिमधुघृतंकांस्यपात्रेएकी कृतंकांस्यपात्रेणापिहिता यज्ञोपवीनवरूपालंकरणानि॥एवमासाय॥ ततोपरंशावस्वाच्छा दिनपी पाड्युरचमुपयेश्य॥ दाताउदङ्मुखःपत्यमुखीवाउपविश्याचम्यपाणानायम्यदेश कालोस्मृता॥ कन्याविवाहांगत्वेनआगतंवरंमधुपर्केणार्चयिष्य। तत्रनिर्विघ्नार्यगणपति स्मृत्वा॥ ॥ ततोदानावरस्यायेरुतांजलिपुटस्तिष्ठन्पठेत् ॥ ॐ साधुलवानास्तामर्चयि For Private and Personal Use Only Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार व्यामोभयं तं ॥ ॐ अर्चया॥ इतिवरोश्रूयात् ॥ विष्टगदीनि अन्यः संबोधयति ॥ तद्यथा ॥ ॥३००|||||अर्चकादपरोविमोविष्ठरादीनिमधुपर्कातानित्रिःसं बोधयति ॥ विष्टरोविष्टरोविष्टरः प्रतिगृः ह्यतां ॥ ततोर्व्योर्धयितुः सकाशाद्विष्टरंप्रतिगृहाति ॥ ॐ वर्शोस्मिसमानानामुद्यतामि वसूर्यः ॥ इमं तमप्तितिष्ठामियोमाकश्वाभिदासति ॥ १ ॥ इतिमंत्रेणविष्टरमुदगग्रमास ||नेनिधाय उपविशति ॥ पादार्थमुदकं पादार्थमुदकं पादार्थमुदकंप्रतिगृह्यतां ॥ प्रतिगृहा मि ॥ सव्यंपादं प्रक्षाल्यदक्षिणप्रक्षालयतिब्राह्मणश्चेद्दक्षिणप्रथमं ॥ ॐ विराजोदोहोसि ॥ ३०० ॥ विराजो दो हमसीयमभिपाद्यायैविराजोदो हः ॥ १ ॥ इत्यनेनमंत्रेणदक्षिणपादप्रक्षाल्य ॥ For Private and Personal Use Only भास्कर Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ततोयाममनेनेव भेदेमंत्रावृनिः॥ पूर्वयहितीयोपिष्टरः॥ इयांस्तविशेषोधिष्टरमुदगपंचमोर, त्यातस्योपरिपादीकरोति॥ ॐ व स्मीत्यनेनमंत्रेण॥ ततोर्पयितुरर्पदान॥ अर्पोऽर्पोऽर्थः प्रनिगृह्यतां॥ॐ आपःस्थयुष्माभिःसर्वान्कामानवामयानीतिमंत्रेणोभात्यांप्रतिराहानि ॥ ततोर्घशिरसाभिवंद्यप्रायदग्यानिनयन्नभिमंत्रयते॥ ॐ समुद्रयःपहिणोमिम्बांयोनिमा भिगच्छन॥ अरिष्टास्माकंचीगमापरासेचिमत्पयः॥१॥ इत्यनेनमंत्रेणार्घनिनयेत ॥ आचमनीयमुदकमाचमनीयमुदकमाचमनीयंभनिगृह्यतां॥ अर्घ्यआचामति॥ॐ आमागन्यशसास सृजवर्चसा॥तम्माफुरुभियम्प्रजानामधिपतिम्पशूनामरिष्टिंत For Private and Personal Use Only Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नूनाम् ॥१॥ इत्यनेनमंत्रेण ॥ ततोद्विराचमनं ॥ मधुपर्कोमधुपर्कोमधुपर्कः प्रतिगृह्य भास्कर ॥३०१|| तां॥ततोर्घयितुर्हस्तेस्थितं मधुपर्क मर्घ्यईक्षते ॥ ॐ मित्रस्यत्वाचक्षुषाप्रतीक्षेइत्यने नमंत्रेण ॥ देवस्य त्वेतिप्रतिग्टण्हाति ॥ ततोमधुपर्कं प्रतिगृह्यसव्येपाणीकृत्वापिधानंनि ष्कास्य दक्षिणस्यानामिकयात्रिः प्रयोतिमधुपर्कं त्रिः प्रदक्षिणमालोडयति॥ ॐ नमः | श्यावास्यायानशनेयतः आविद्धंतन्ते निष्कृन्तामि ॥१॥ इत्यनेनमंत्रेण अनामिकांगु ष्ठेन चत्रिर्निरूक्षयति ॥ तस्यत्रिः प्राश्नाति ॥ ॐ अन्मधुनोमधव्यम्परमर्ट रूपमन्नाद्य ॥३०१॥ म् ॥ नेना हम्म धुनोमधव्ये नपरमेण रूपेणान्नाद्येनपरमोमधव्यो न्नादोसानि ॥ १॥ इत्य For Private and Personal Use Only Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||नेनमंत्रेणाश्नाति ॥ पुनरप्यनेनैवमंत्रेणवारद्वयं उच्छिष्टमेवप्राश्नाति मधुपर्केचसोमे चनोच्छिष्टंइतिवचनात्॥मधुमतीभिर्वा प्रत्यृचंपुत्रायांते वासिनेवोत्तरत: आसीनायोच्छिष्टंदद्यात्सर्वं वाप्रानीयात्प्राग् वासं चरेनिनयेत् ॥ आचम्य ॥ प्राणान्संमृशति ॥ ॐ वा |मआस्येस्तु ॥ इतिमुरखं करायेणस्पृशेत्॥ ॐ नसोर्मेप्राणोस्त ॥ इतितर्जन्यंगुष्ठाभ्यां नासारंध्रइयंस्पृशेत्॥ ॐ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्त ॥ इतिअनामिकांगुष्ठाभ्यां चसु ईयंयुगप त् ॥ ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्त॥ इतिमध्यमांगुष्ठाभ्यांदक्षिण कर्णं ॥ अनेनैववामकर्ण ॥ | ॐ वा व्होर्मेवलमस्त ॥ इतिकरायेणदक्षिणबाहुं । एवं वाम बाहुं ॥ ॐ ऊर्वे में ओजोख For Private and Personal Use Only Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥३०२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ इतियुगपद्धस्तेनोरू ॥ ॐ अरिष्टानिमेानितनू स्तन्वामे सहसंतु ।। इतिशिरःप्रभृति भास्कर पादांतानिसर्वांगानिउभाभ्यां हस्ताभ्यामालप्तते ॥ अथगवालंसनं ॥ यद्यपिसूचकारेण गवा | लंभोनियमेन उक्तस्तथापिमधुपर्केयशोवर्धनइतिस्मृत्यंतर बलात्च्त्याज्यएव ॥ अतः क लियुगे उत्सर्गएव ॥ अथवा तन्निष्क्रयद्रव्योत्सर्गः ॥ तत्प्रयोगस्त ॥ वरस्यसमीपेभूमौउद ||गयदर्भानास्तीर्य ॥ दातावरहस्तेनिष्क्रयद्रव्यंदत्वा गौगगौरितिपठेत्॥ वरोद्रव्यंगृहीत्वामंचंपठेत् ॥ | ॥ ॐ मातारु द्वाणान्दुहितावसूनार्ट स्वसादित्यानाममृतस्यनाभिः ॥ प्रनुवोचंचिकितु ॥ ३०२ ॥ षेजनाय मागामनागामदितिंवधिष्ठ।। ममचासुकशर्मणोयजमानस्य पाप्माहतः।। ॐ For Private and Personal Use Only Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie उत्सृजतणान्यत्तितिब्रूयात्॥१॥ इत्यनेन वरःकुशोपरिद्रव्यमुत्सृजेत्।। ॐकार, पांशुउत्सजने त्यायुच्चैः॥ अबशिष्टाचारमाप्ताः के चनपदार्थाःलिरव्यते॥ ॐ सुचक्षा० इतिगंध। अनाधृष्टे त्यक्षताः॥ ॐ परिधास्येइत्यनेनपरिधानवस्त्रं ॥ ॐ यज्ञोपवी नं• इतियज्ञोपवीतं॥आचम्य॥ ॐ यशसामेत्युत्तरीयं॥ ॐया आहारज्ज- इति। पुष्पमालामहणं॥ अथावबधीते। यद्यशोप्सर इतिमंत्रण॥ अथालंकारं॥ॐ॥ लंकरण इतिपथमंदक्षिणकर्णे। ततोनेनैववामे॥ब्राह्मणेभ्योभूयसींदत्वा॥राशिषो रहीत्वादाताअनेनमधुपर्कार्चनेनश्रीलक्ष्मीनारायणःप्रीयतांइतिजलमुत्सृजेत्॥ For Private and Personal Use Only Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार इतिसंस्कार भास्करे मधुपर्क प्रयोगः ॥ ॥ ततो बरोविवाहवेद्यांगत्वा तासने उपविश्य भास्कर ||३०३||| आचम्यप्राणानायम्यदेशकालौस्मृत्वा ॥ एवंगुण• तिथौधर्मार्थ काममजासिध्यर्थं दारपरिग्रहणनिमित्तंअभिस्थापनं करिष्ये ।। हरिद्रा चूर्णनिर्मिते अरत्निमात्रस्थंडिले पंचभूसं ||स्कारान्कृत्यायोजक नामामेः स्थापनं ॥ पश्वादशेस्ते जन्याः वधूपादनिवेशनार्थंस्थापनं ॥ तेजनीतृणपूलिका ॥ अवदेशा चारतो व्यवस्था ॥ दाक्षिणात्यानामाचारादिदमपिकर्तव्यं । ॥ पतिपुचान्वितसुमंगली स्त्रियावामहस्तेपयःपूरिनपाबंधूत्वादक्षिणेन शर्करां संगृह्य सुखहर्ते ॥ ३०३/ अप्रतिष्ठेतिशब्दसमयेपयः पात्रेग्गृहीतशर्कराप्रक्षिप्या॥ तथैवान्यक्रूभगस्त्रियामंगलप For Private and Personal Use Only Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यसावधानसमयेवधूवरमस्तके मंगलाक्षताः समाइतिशिष्टाचारः॥अमिस्थापनोत्तरं । रहमध्येगत्वापाड्मुरवींकन्यामवस्थाप्यप्रत्यबुरचोवरस्तिष्ठेत्॥वधूवरांतराले अविधुर सघटसदृतयः पुरुषाउदग्दशमंतःपटंधारयेयुः॥तबदैवज्ञामंगलस्मृतीनांपठनक युः॥विंशोपकाउचारणीयाः॥सुमुहूर्ने प्रतिष्ठइत्युच्चैः शब्दकुर्यः ॥ अबावसरेच धूवरकरालोयधूःकरधृतपुष्य यथितवरणमालांवरकंठेसमर्पयेत्॥ उदक्संस्थं धृतांतःपटनिःसरणंकार्य। ततोवरः प्राङ्मुख उपविश्यकन्यांपत्यङ्मुरवीसपवेश येत्॥नतआचार्यादिरिजगणः प्रतिष्ठामंत्रब्राह्मणंपठेत्॥ ॐ मौजूतिर्जुष For Private and Personal Use Only Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तामा०॥१॥ब्राह्मणं॥ ॐ मनोजूतिर्जुष०॥१॥ एषवैप्रमूर्नाम०॥१॥एपधिभूर्नाम॥ भास्कर ॥३४॥ २॥ एषवेव्यष्टुिर्नाम ॥३॥एषवैचिधृनिर्ना ॥४॥एपवैयातिर्नाम ॥५॥एषवाडऊ, जस्वान्ना० ॥६॥ एषवैपयुस्चान्ना०॥७॥ एषवैब्रह्मवर्चसी० ॥८॥एषा अतिव्याधीन ॥९॥एपदीर्घानाम ॥१०॥ एषवेक्लमिर्नाम ॥११॥ एषवैप्रतिष्ठाना ॥१२॥ ॐ प्रति ठासप्रतिष्टितमस्त॥दंपत्योरविच्छिन्नापीतिरस्त॥ ततोवरोवध्वैपरिधानार्थवासोदद्यात्॥ कुमार्यावासः परिधान॥ ॐ जराङ्गच्छपरिधत्ववासोमवारुष्टीनामभिः ॥३०४॥ शस्तिपावा॥ शनचजीवशरदः सवारयिंचपुबानत्तुसंव्ययस्वायुष्मतीदम्परिधत्स्व । For Private and Personal Use Only Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासः ॥ १॥ इतिमंत्रपाठोवरस्य ॥ अथोत्तरीयं वासोवरः कन्यायै समर्पयतिमंत्रमु ह्वातांपरिधापयति || ॐ याः अहन्नन्नवयं वा अनन्वत ॥ यश्वादेवी स्तन्नू नमितोततन्य ॥ | तास्त्वादेवी र्जरसे संव्यय स्वायुष्मतीदम्परिधत्स्व वासः ॥ १॥ ततः कन्यापिता वधूवर योः परस्परं समं जेथामितिप्रेषंदद्यात् ॥ समंजनंसन्मुखीकरणं ॥ ॐ समन्जन्तुविश्वेदे वाः समापो हृदयानिनौ । सम्मातरिश्वा सन्धातासमुदेष्ट्रीदधातुनैौ ॥१॥ सन्मुखी भूतोय रोमंत्रः पठति ॥ ततः आचारमाप्तं मांगल्यतं तुबंधनंकण्ठे ॥ नत्रमंत्रः॥ मांगल्य तंतुना | नेनममजीवन हेतुना ॥ कंठे भामिसप्तगेलंजीवशरदां शतं ॥ १ ॥ ॐ यदाब भन्दा For Private and Personal Use Only Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार क्षायणाहिरण्य शतानीकायसमनुस्यमानाः ॥ तन्म आधामिगत शारदायायु भास्कर ॥३५॥ माजरदष्ट्रियथासम्॥ इतिमंचंवरःपठनि॥ ॥ततोद्विजाःपरित्वागिर्वणोगिर इत्य नुवाकेनजुषाणोड अप्तुराज्यस्यचेतुस्वाहेत्यंतेनवधूवरावविच्छिन्नचतुर्विंशतिनंत भिर्दिगुणीलनसूत्रेणयथाचारंवेष्टयेयुः॥अयंदेशाचारः॥ तच्चयधूद क्षणस्कंधमारण्य उभयो: स्कंधेपंचवारंकटिपदेशेसप्तवारंवेष्टयेदिति॥तत्रमंत्राः॥ ॐपरित्वागिणोगि रेडमाभवन्नु विश्वतः ॥ वृद्धासुमनुवृद्धयोजुष्टाभवन्तुष्टय: ॥१॥ इन्द्रस्य॒स्यूसीन्द्र ॥३.५|| स्यध्रुवोसि॥ऐन्द्रमसिधैश्वदेवमसि ॥२॥धिपूरसिप्रवाहणो घन्हिरसि हव्यवाहनः।। For Private and Personal Use Only Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याबोसिअचैतास्तुथोसिचिश्वर्वेदाऽ उशिगति॥३॥शिगसिकृविरद्ध रिरसिबमा रितस्यूरसिदुवस्वान्झुन्थ्यूरसिमार्जालीयह सम्याउंसिलशान परिषघोसिपर्वमा नोनभौसियतकासृष्टोसिंहव्यसूदन तामासिवज्योति समुद्रोसि॥४॥समुद्रोसिधि श्वव्यंचा अजोस्पेकंपादर्हिरसिबुध्योचागस्येन्द्रमसिसदोस्तस्पद्वारोमामासन्तासमध्य नामध्यपनेप्रमनिरस्वस्तिमुस्मिन्पथिदेवयाने भूयान्मित्रस्यमा ॥ ५ ॥ मित्रस्यमा चक्षुषेक्षाध्यममयः सगराः सर्गरास्थसगरेणनाम्नारोद्रेणानीकेनपानामयापिट तामयोगोपायर्तमानमोवोस्त माहिट सिष्ट॥ ६॥ज्योतिरसिधिश्वरूपम्बिधेषा For Private and Personal Use Only Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ३०६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्दे॒वानोट- सुमित् ॥ त्वर्ट सो॑मतनूरुद्भ्योद्वेषो॑भ्यो॒न्य॑कृ॑तेभ्यउ॒रुय॒न्तासि॒चरू॑थ॒स्सा भास्कर हा॑ जुषा॒णो अ॒प्सु॒राज्य॑स्य बे तुस्वाहा॑ ॥ ७ ॥ ॥ अथकन्यादानसंकल्पः ॥ ॥ ततो दातास्वदक्षिणेपल्यासह वधूवरपा र्श्वभागे भासनेउदङ्मुखउपविश्याचम्यमाणानायम्य |देशकालौस्मृत्या॥ एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शतपुण्यतिथौ अस्मिन्पुण्याहे अस्याःकन्यायाः अनेनवरेणधर्मप्रजयाउभयोः वंशयोः वंशवृध्यर्थं तथाचममसमस्त पितृणां निर |तिशयानंद ब्रह्मलोकावाप्यादिकन्या दानकल्पोक्त फलावाप्तये अनेन वरेण अस्यांकन्यायां ॥ ३०६॥ उत्पादयिष्य माणसं तत्यादापूर्वान्दशापरान्मीचएकविंशतिपुरुषानुत्पर्त्तुं ब्राह्मविवाह For Private and Personal Use Only Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie विधिनाश्रीलक्ष्मीनारायणप्रीतयेकन्यादानमहंकरिष्ये॥ ततोवर हस्तेस पोक्षिनादिक रणं॥शिवाआप:संवित्यादिवचनप्रतिवचने॥शिवाआप:संतु॥संतुशियाआपः॥सी मनस्यमस्त ॥अस्तसौमनस्य॥अक्षतंचारिष्टं चारत॥अस्त्वक्षतमरिष्टंच॥ अवाःपातु सपोक्षितमस्त ॥गंधाःपांतु॥सोमंगल्यंचारत॥ अक्षताःपांतु॥ आयुष्यमस्त।पुष्पंपा तुसौश्रियमक॥ यत्पापंरोगंअशांअकल्याणतहरेप्रतिहतमस्त॥ततोवरस्यगोबोचारः॥ अमुकसगोत्रस्य असुक प्रवरस्यअमुकरार्मणः प्रपौत्राय॥अमुकसगोवस्या मुकप्रवरस्यअमुक शर्मण पोवायाय।। असकसगोत्रस्यअमुकप्रवरस्यअमुक शर्मणः For Private and Personal Use Only Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पुत्राय अमुकशर्मणेश्रीधररूपिणे वराय॥ ततः कन्यायाश्च गोत्रोच्चारः ॥ अमुकसगीव ॥३०७॥ स्यअमुकप्रवरस्य अमुक शर्मणः प्रपौत्रीं ॥ अमुक सगोत्रस्य अमुक प्रवरस्य अमुक शमणः। पौत्रीं ॥ अमुकसगोत्रस्य अमुक प्रवरस्य अमुक शर्मणः पुत्रीं ॥ असुकी नाम्नीश्रीरूपिणीं || कन्यां ॥ इत्येकः पर्यायः ॥ एवमे वपुनः पर्याय इयमुक्का ॥ पुनः अमुक सगोत्रोत्पन्नायअ मुकप्रवरान्वितायश क्लयजुर्वेदांतर्गतमाध्यंदिनीयशाखाध्यायिने अनुक शर्मणेश्रीध ररूपिणेवराय॥ अमुक सगोत्रोत्पन्ना अमुक प्रवरान्वितांअमुकी नाम्नीश्रीरूपिणीं मां कन्यां यथाशास्यलंकृत उपकल्पितोपस्कारसहिताप्रजापतिदैवत्यां पुराणोक्त शतगुणीकृ For Private and Personal Use Only भास्कर ॥॥३०७॥ Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तज्योतिष्टोमाचिरात्र फलप्राप्तिकामः प्रजोत्पादनार्थं भार्यत्वेनतुभ्यमहं संप्रददे ॥ इत्यु क्वासकुशजलं कन्यादक्षिण हस्तं वरदक्षिणहस्तेदद्यात् ॥ वः प्रतिगृण्हातितांकन्यां ॥ॐ |द्योस्त्वाददा तुपृथिवीत्वाप्रतिगृण्हातु ॥ इत्यनेनमंत्रेण ॥ रुतैतत्कन्यादानप्रतिष्ठासिध्यर्थंइ मांयथाशक्तिस्वर्णमयींदक्षिणांतुभ्यमहं संप्रददे। नमम ॥ स्वस्तीतिवरीयान् ॥ ततो दाता ताजनगो भूदासीमहिषी गजाश्ववाहनग्ट हवाय्या वस्त्रालंकारादिय या विभवसंकल्पपूर्व कंदद्यात् ॥ तत्रगोदानमंत्रः ॥ यज्ञसाधनभूतायाविश्वस्याघोघनाशिनी ॥ विश्वरूप धरादेवः प्रीयतामनयागवा॥१॥ हिरण्यगर्भसंभूतंसीवर्णं चांगुलीयकं ।। सर्वप्रदंप्रय 11 For Private and Personal Use Only Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार च्छामित्रीणातुकमलापतिः ।। इत्यंगुलीयकस्य ॥ क्षीरोदमथनेपूर्वमुत्सृतं कुंडलद्वयं ॥ श्रि भास्कर ॥३०८॥ यासहसमुद्भूतं ददेश्री: मीयतामिति ॥ कुंडलयोः ॥ कांचनं हस्तवलयंरूपकांतिसखप्रदं ॥ वि भूषणंप्रदास्यामिविभूषयतु तेसदेतिवलययो । परापवादपैशून्यादभक्षस्य चमक्षणात् ॥ उ सन्नपापंदाने नताम्म्रपात्र स्य नश्यतु ॥ इतिनाम्य जलपात्रस्य ॥ यानिपापानिकाम्यानिका ||मोत्थानिकतानिच ॥ कांस्यपात्र प्रदाने नतानिनश्यं तुमेसदा ॥ इतिभोजनार्थंकांस्यपात्रस्य ॥ अगम्यागमनं चैव परदाराभिमर्शनं ।। रौप्यपात्रप्रदाने नतानिनश्यंतुमेसदेतिजलार्थस्यतो ॥३०८॥ ||जनार्थस्य चरौप्यपात्रस्य ॥ पूरितंपूगपूगेननागवल्लीदलान्वितं । पूर्णेन चूर्णपात्रेण कर्पूर For Private and Personal Use Only Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पिष्टकेनच॥ सपूगरपंडनंदिव्यंगंधर्वाप्सरसांप्रियं॥ ददेदेवनिराक खत्रसादात्कुरुष्य मामिति॥तांबूलस्य॥दीपस्तमोनाशयतिदीप:कातिप्रयच्छति॥ तस्माद्दीपप्रदानेनममयं शप्रवर्धनं॥ इतिदीपस्य॥एवं दासीमहिषीगजाश्याभूमिस्वर्णपात्रपुस्तकशय्यायहरजतवृष भानादानमंत्राः कौस्तुभेदृष्टव्याः॥ ॥नतःकन्यापितापयति॥ यस्त्वयाधर्मश्चरितव्यःसो नयासह॥धर्मेचार्थेचकामेचत्ययेयनानिचरितव्या॥नातिचरामीनिवरीयदेताकोदादितिकामस्तनिपठेत्॥ ॐ कौन्किस्माड अदाकामौ दात्काायादात्॥कामौदाताका महपनिहीताकामैतत् ॥१॥ अथवृदन्यद्ददानिकामनैवतुद्ददानीदंम्मेव्यपुत्रासदि । For Private and Personal Use Only Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, नित्य त्येनिकोदाकुस्माऽ अदाकामोदारकामायादात्॥कामोदानाकामापतिग्रहीता | भास्कर ॥३०॥ कामेनते॥१॥एवंयस्वयेत्यादिकामस्ततिःपुनहिरुक्तव्या॥अत्रवैदिकाः समःकामयेत्तत्रा ह्मणंपठित्यादेपत्तीभ्यासवर्णाभिषेकंकुर्युः॥ अत्रब्राह्मणेअमयेस्वाहेत्यादिहवनपरपदंनि र्दिष्टंपरंसंस्त्रयमवनयतीतिरूवर्णरेताअमिः स्वर्णष्टीवीतितन्मथेनसवर्णसंस्त्रवतीति सिई॥ ॥ ॐ सय कामयेतमहामुयामित्युदगयनऽ आपूर्वमाणपक्षेपुण्यवाद शाहमुपसहनीमूत्वौदुम्बरेकर्ट से चमसेवासौषधम्फुलानीतिसममृत्यपरिसमुह्यपरि ||३०९।। लिप्यामिमुपसमाधायावृताज्य संस्कृत्यपुर्ट सानपत्रेणमन्थर्ट सुन्नीयजुहोति॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir s यवन्तोदेवास्व॒यि जातवेदः ॥ तिर्युञ्चोम॒न्तिपु॒रुषस्यका॒मान् ।। तेभ्यो ह॒म्भागधेयज्ञ्जुहो मिते॒मातृप्ताः का॒मैस्तूर्पयन्तुस्वाहा ॥ २॥ यतिरश्चीनि पुद्यसे ॥ अहँ विधरणीऽ इति । नान्त्या धृत॒स्यधयायजेस रा॒धनीमह८- स्वा॒ हा ॥ प्रजा॒प॑ते॒नय॑दे॒ताय॒न्यः इति तृतीयाज्जुहोति ॥३॥ ज्ये॒ष्ठायस्वाहाश्वे॒ष्ठायस्वाहेति ।। अग्ने॑हु॒त्याम॒न्ये॑सः स्रवम॒वनयतिप्रा॒णायस्वाहाच्च॒सिष्टा यैस्वाहेत्यग्ग्रौहुलामुन्थेस स्स्रवम॒वनयतिवा॒चेस्वा॒हाप्रतिष्ठायै स्वाहे त्यसौ॒ह॒ त्वाम॒न्य॑सस्त्र वम॒वनयति च॒क्षुषेस्वाहा॒सम्प॒दे स्वाहे त्यो हुत्वाम्न्येसः स्त्रवमुवनयतिवो॒त्रायस्वाहाय्त नाय स्वाहेत्यभौ हुलामृन्थेसदः स्रवमवनयतिमूनसेस्वा॒हाम जा॒त्यैस्वाहे त्यग्ना॒ह॒ त्वामुन्धेभर्द For Private and Personal Use Only Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार स्वयमृवनयतिरेतसे स्वाहे॒त्यमो॒हुवाम॒न्य॑सः स्रव॒मा॒व॒नयति ॥ ४ ॥ त्रूयस्वाहेति ॥ अमौह भास्कर ॥३१० ॥ लामन्येसर्ट- स्रवमवनयतिष्ठ॒विष्य॒तेस्वाहेत्यग्ना॒हुलाम॒न्येस स्यवमू॒व॒नय॑तिचि॒श्वायस्वाहे त्यहुत्वामून्येस सवमुपनयनिसूयस्वाहे त्यो ह॒त्वामुन्येस · स्यवमुवनयति ॥ ५॥ || स्वाहेति ॥ अमौसामुन्येस स्ववमुवनयत्यरिक्षायस्वाहेत्यमौ हुत्वामुन्थेस स्वयम वनयतिदिवेस्वाहेत्ययौ हुत्वामुन्येसर्ट-स्ववमुवनयतिद्विग्यः स्वाहेत्यमा हुवा मन्येसर्ट-स्वयम् वनयतिर्ब्राह्मणेस्वासमौ हुला म॒न्येस - स्ववमवनयतिक्षुत्रायस्वाहेत्य हुलाम॒न्येसर्ट ३१० ॥ स्त्रवम॒वनयति ॥ ६॥ तूः स्वाहे॒त्यमा॒ह॒लाम॒न्येसर्ट· स्रवम॒वनयतिष्ठ॒षस्वाहेत्यग्र॒ह॒लाम॒न्ये For Private and Personal Use Only Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्टः स्त्रवमूचनयतिस्वः स्वाहेत्यमहुत्वामन्येसर्टः स्ववमुवनयतिभूर्भुवस्वः स्वाहेत्यमोहला मुन्पेसर्ट · स्त्रवमवनयति ॥ ७॥ अम्येस्वा हेति ॥ अमोहु त्वामन्येस · स्रवमृवनय तिसो॒माय स्वाहेत्यमोहयामन्येसर्ट स्त्रवमुवनयतितेजसे स्वाहेत्यमी हुलाम्न्थेसर्ट-सवमवनयतिश्रि यैस्वाहेत्ययौ हुत्वामन्येसर्ट-स्ववमुवनयतिलक्ष्म्यै स्वाहेत्यमहुत्वामन्येसर्ट- स्ववम॒वनयतिस वित्रेस्वाहे त्यो हसामन्येसर्ट सवमुवनयतिसुरस्वत्यै स्वाहेत्यमौ हुत्वामन्थेसर्ट- स्ववम्ब नयति श्वेदेवेभ्यः स्वाहेत्यमौ हुत्वामून्येसर्ट- स्त्रवमुवनयति जपतये स्वाहे॒त्यमे॑ ह॒त्वामृन्येन ॥ सवमुवनयति ॥ ८ ॥ अथैनमभिमृशति ।। चमसिज्वलदसि पूर्णमसिप्रस्तब्धुमस्ये कस भूम For Private and Personal Use Only Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | सिहिङ्क तमसिहिड्रियमाणमस्युद्गीथुमस्युद्गीयमानमसिश्रावितमसि त्याप्रायितुमस्यादें भास्कर ॥११॥ सन्दीसमसिधिनरसिप्रारसिज्योनिरस्यन्नमसिनिधनमसिसँवर्गोसीति॥९॥ अथेनम द्यच्छनि॥आमोस्यामई-हितेमयि॥सहिराजेशानोधिपति समाराजेशानोधिपतिकरोत्वि ति॥१०॥ अथैनमाचामति॥ तत्सवितुर्वरेण्यं मधुयाताऽकायतेमधुक्षरन्तिसिन्धवः ॥माधीनः सन्तोषधी भूः स्वाहा॥११॥ मुर्गोदेवस्यधीमहि।मधुनक्तमुतोषसोमधुमाथि बरह॥ मधुयोरस्तुन पिता मुबह स्याहा॥१२॥धियोयोन पचोदयात्।। मधुमान्नोचन |॥३१॥ पुतिमधुमा २॥ अस्तुसूर्यः॥ माीर्गाचोभयन्तुना ॥ स्वःस्वाहेनिसर्वाञ्चसावित्रीमन्याहस । For Private and Personal Use Only Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||र्वाश्वमधुमती सर्वाश्वव्याहती रहमेवेदर्द सर्वभूर्भुवृत्स्वः स्वाहेत्यन्ततः आचम्य प्रसा॒न्यपा॒णीजघ॒नेनामिम्या॒शिरा सैंविशति ॥ १३ ॥ प्रातरादित्य॒मुप॑ति॒ष्ठते । दिशामे+पुण्ड ||रीकमस्य हम्मनुष्याणामेकपुण्डरीकम्न्यासमतियये॒तमे॒ त्यज॑घ॒ने नामिमा॒सीनो॒ङ्घर्ट रा॒ज्ञप॑ति १४॥ तु हैन मुद्दालकः आरुणिर्व्वाजसनेया॒ययाज्ञवल्क्ययान्तेवासिन उत्कोवा चापि नर्द· शुष्केस्थानिषिञ्चेज्जयेरज्वाखाः प्र॒रोहेयुः पलाशानीति ॥ १५ ॥ एत॒मुहैव॒धाजस नेययाज्ञवल्क्यो ॥ मधुकार्यपै यान्तेवासिन् उत्को वा पिएन र्ट- शुके स्थाणनिषिच्चे ज्जायेरच्छारखा मरोहेयुः पलाशानीति ॥ १६ ॥ एतुमुहैयम् धुक पेज चूडायभागविनचे For Private and Personal Use Only Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३२॥ संस्कार नेवासिन: उपलोबाचापियएनः सुफेस्यानिषिञ्चेज्जायेरञ्सुरवा परोहे सुपलाशा जारकर नीति।।१७॥ एतमुहैयचूडोमागवित्तिः ॥ निकय आयस्थूणायन्तेवासिनु उत्कोवाचापि युएनर्ट शुष्फेस्थाणोनिषि झज्जायेरझारखा प्ररोहेयु पलाशानीति॥१८॥एतसुहेवजाना किरायस्थूण ॥सत्यकामाय जाबालायान्तेवासिनः उत्कोचाचापियएनट केस्थाणोनिषिञ्चेज्जायेरञ्चरवा परोहेयुपलाशानीति॥१९॥ एनमुहैवहत्यकामोजा, बालोन्तेवासभ्यउत्कोवाचापिथएन शुफेस्थाणोनिषिम्चेज्जायेरच्छारयाइ मुरोहे ||२१२|| युह पलाशानीतिनमेनन्नापुत्रायानन्नेवासिने यात्॥२०॥ चतुरोदुम्बरोभवत्यौ । For Private and Personal Use Only Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दुम्बरश्वमस: औदुम्बर स्रुबड औदुम्बर इध्मऔदुम्बर्या उपमृन्थिन्यैौ ॥ २१ ॥ दृशया म्याणिधान्यानि भवन्ति ॥ श्रीहियवास्तिलमाषा अणुप्रिय बोगोधूमाश्वमसुराश्वखु S S Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्ववूलकुलाश्वन्सार्धम्पवादभामधुनाघृतेनोपसिञ्चत्या ज्यस्य जहोति ॥ २२ ॥ स॒र्वेषा॒वाऽएषवे॒॰॥ १ ॥ कांड १४ प्र० ७ बा. ५. सवर्णाभिषेकोस्त ॥ ततोदातावरंभा र्थयेत् ॥ कन्येममाग्रतो भूयाः कन्ये मेदेविपार्श्वयोः ॥ कन्येमेपृष्ठतो भूयास्त्वद्दानान्मो क्षमामुयाम् ॥ १|| कन्यलक्षणसंपन्नांकनका भरणैर्युतां ॥ दास्यामिब्रह्मणेनुभ्यंब्रह्मलोक जिगीषया ॥ २॥ पृथिव्यादिमहद्भूताः साक्षिणः सर्वदेवताः ॥ इमांकन्यांप्रदास्यामिपितॄणां For Private and Personal Use Only Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नारणायच॥३॥ममवंशकुले जानापोषितावत्सराष्टकं ॥ तवधिप्रमयादत्ता पुत्रगोत्रप्रवाहिनी भास्कर ॥३१३॥ ॥४॥इमांकन्यांशमाथिप्रयथाशक्तिविभूषितां॥गोबायशर्मणेतुप्रयंदत्तांविप्रसमात्रय॥५ ॥ इतिप्राय। अबचतुर्थश्लोकस्यद्वितीययादेयथाकन्याययोब्दास्तथैवोच्चारणीयोपोषि तानववर्षकंदावर्षकमिति ॥ ब्राह्मणेभ्योगंधतांबूलंभूयसींदक्षिणांचदत्वा॥ तैराशिषोय होत्या॥ यथाशक्तिब्राह्मणतोजनसंकल्पः॥ अनेनकन्यादानारव्येनकर्मणाश्रीलक्ष्मीनाराया णमीयता॥ इतिकन्यादानविधिः॥ अथाचारप्राप्तगणपनिपूजनंककणबंधनंअक्षतारोपणं, ||३१३॥ आयसिंचनमपिचकार्य॥ ततोवरःदेशकालकीर्तनांतेममचवध्या: बव्हायुष्यप्राप्त्यर्थगणपतिः । For Private and Personal Use Only Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजनंकंकणबंधनं अक्षतारोपणं आम्मसिंचनं चकरिष्ये ॥ गणानांत्वेतिमंत्रेणगणपतिंसंपू ज्य ॥ कंकण प्रकारः । वधूवरयोः परित्येत्य नुवाके नवेष्टिता नकं देशस्थान्सूत्रतंतूनधी निष्कास्यभिवलीनृत्यकुंकुमाक्तान् कृत्वानेषु ऊर्णायुतवृद्धिहरिद्राखंडंबध्यातत्कंकणंवधू || वाम हस्तेयदा बनभितिमंत्रेणवरोबभीयात् ॥ कटिप्रदास्यांस्तं तू तू निष्कास्य तादृशकं कणकृत्वा तेनैवमंत्रेण वरदक्षिणहस्तेव धूर्वभीयात्॥ असन्नमीतिमंत्रेण वधूवरयोः परस्परं अक्षतारोपणं॥ बध्वावसोः पवित्रे त्याम्नसिंन्वनं ॥ पित्राप्रत्तामादायग्गृहीत्वानिष्क्रामति ॥ त तोवरः पित्राजनकेन मत्तांसंकल्य्यद तांव धूंआदायप्रतिग्रहविधिनामतिग्टहीत्वापश्चात्तां For Private and Personal Use Only Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३१॥ राहीसाहस्तेधृत्वानिष्फ्रामतिगृहमध्यान्मंडपेअमिसमीपंगच्छेदित्यर्थः॥ ॐ यदैपिमा मास्कर नसादूरंदिशोनुपवमानोवा।। हिरण्यपर्णो कर्णःसखामन्मनसांकरोतुअमुकीतिबधूनाम महणमंत्रपागेवरस्य।निक्रमणप्रारतिएक:पुरुषउदकुंभ स्कंधेकत्वादक्षिणतोमेर्याग्यतःस्थिनोभवतिउत्तरतोयाअभिषेकपर्यंत॥अथैनौसमीक्षयनिकन्यापिनापरस्परंसमी क्षेथामिनिमेषेण॥ ॐ अघोरचक्षुरपतिध्येधिशिवापशुझ्यासमना: सवाः॥ वीरसदी |वकामास्योनाशन्नोभवद्विपदेशचतुष्पदे।सोमःप्रथमोचिविदेगंधर्वोषिविद उत्तरः॥ |॥३१४॥ तीयोमिष्टेपतिस्तुरीयस्तेमनुष्यजः॥सोमोददद्धर्यायगन्धर्वोदददमय। रयिञ्चपुत्रांश्वा ।। For Private and Personal Use Only Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | दादमिर्मयमथोऽइमां॥सानःपूषाशिवतमामेरयसान ऊरू उशतीविहर॥यस्या | मुशंतःप्रहरामशेर्फयस्यामुकामावहयोनिविष्टये॥१॥ इत्यंतंवरस्यमंत्रपाठः॥इत्ये तस्यमंत्रस्यांतेवेदीसन्निधौपरस्परमुनयोर्निरीक्षणं॥नतोवधूवरोपदक्षिणमनिंपर्या गीयैकेपश्चादमेस्तेजनी कटवादक्षिणपादेनप्रवृत्योपविशति॥ ततोदक्षिणनोब्रह्मा सनादिपावासाद रु खानावचरुः॥पात्रासादनानंतरंउपकल्पनीयानि॥शमीपलाशमि श्रालाजाः॥अश्मा॥ लोहितमानडुहंचमतदमावेबर्हिषः।कुमार्याघाता। शूर्प दृटपुरुषः । ॥ उदकुंभः॥आचार्यायवरद्रव्यमिति।पवित्रच्छेदनादिपर्युक्षणांतेआधारावाज्यभा For Private and Personal Use Only Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३१५॥ संस्कार गौचजुहुयात्॥ तद्यथा॥मनसा॥ॐ प्रजापतयेस्वाहा॥ इदंप्रजा ॐ इन्द्रायस्वाहाइ भास्कर ||दमिंद्रा॥ॐ अमयेस्वा इदम ॥ ॐ सोमायस्वा इदंसो० ॥ अथावरायाःपायश्विनाथा। हुनयः॥ ॐ भूःस्वा हाइदम ॥ ॐ भुवःस्वा. इदंवायः॥ ॐ स्वः स्वाहा इदंसूर्या ॥ ॐ लन्नौ अमे०॥ इदमग्रीवः॥ ॐ सत्वन्नौ अमे॥ इदममीव०॥ ॐ अयाश्चाने इदममयेअय से॥ ॐ येतेशतं इदेव सवि मरु स्वायः॥ ॐ उदुत्तमं०॥ इदंवरुणायादित्या यादिः॥इदंसर्वप्रायश्चित्तारव्यं॥ ॥ अथराष्ट्रासदोमः॥ ॐ ऋतापाडूतधामामिर्गन्ध १३१५॥ |ःसन इदम्ब्रीसत्रातृतस्मैपाहावाद् ॥ इदमनासाहेकतधाम्ने अग्नयेगन्धर्वाया। For Private and Personal Use Only Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमम॥ ॐ कतापातामामिर्गन्धर्वस्तस्यौषधयोप्सरसो मुदीनामताभ्यः स्वाहा।।इदा मोषधीयोप्सरोयोमुझ्योनमम॥ ॐ सर्ट-हितोधिश्वसामासूर्योगन्धर्व: स इदम्ब्रह्मता बम्पीतुतस्मस्वाहावाट्॥इदंसद-हितायविश्वसाम्मे सूर्यायगन्धर्वायन०॥ ॐ सर्ट हिना विश्वसामासूर्योगन्धर्वस्तस्य॒मरीचयोप्सरस आयुवोनामताभ्यः स्वाहा।।इदंमरीचियों प्सरोभ्यआयुयोन०॥ ॐ षुम्णः सूर्यरश्मिऋन्द्रमौगन्धर्वःसनइदम्ब्रह्मक्षत्रम्पानु नस्मेस्वाहावाद्। इदंसुषुम्णायसूर्यरश्मयेचन्द्रमसेगन्धर्वायन ॥ ॐ सुषुम्णः सूर्यर मिश्चन्द्रमागन्धर्यस्तस्य॒नर्सवाण्यप्सरसोंभेकुरैयोनामताभ्यःस्वाहा॥ इदंनक्षवेयोप्स For Private and Personal Use Only Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मस्कार भ्योभेरियोन ॥ ॐ इपिरोचिश्वयंचाचातौगन्धर्वः सन डुदम्ब्रह्मक्षत्रातुत्तस्मैया, भास्कर ॥३१६॥ ॥ हाबाद॥इदमिषिरायविश्वव्यचसेवातायगन्धर्वायन०॥ ॐ इपिरोधिश्वव्यचाचातौग न्धर्वस्तस्यापोप्सरसऽ ऊोनामताभ्यः स्वाहा॥ इदमयोप्सरोयड उगर्योनमः ॥ ॐ || || ज्युः सुपर्णो यज्ञोगन्धर्वः सन इदम्ब्रह्मक्षत्रम्पातुनस्मस्थाहाबाद।। इदंपयुज्यवेकपा ययज्ञायगन्धर्वाचन०॥ॐ भुज्युसुपर्णायज्ञोर्गन्धर्वस्तस्युदक्षिणाअसरसस्तावानाम। ताभ्यः स्वाहा। इदंदक्षिणायोप्सरोत्यस्तावाभ्योनः ॥ ॐ प्र॒जाप॑तिर्चिश्वकर्मामनौगन्ध ॥१६॥ विःसनइदम्ब्रह्मक्षत्रम्पानुनस् पाहाब्वाइ ॥ इदंप्रजापतयेविश्वकर्मणेमनसेगन्धर्वायन । For Private and Personal Use Only Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | प्रजापतिर्चिवकर्मामोंगन्धर्वस्नस्यनक्सामान्यप्रसृतएष्टयोनामताभ्यः स्या।इटा ॥ मृक्सामेभ्योप्सरोभ्याएटिन्योनमम॥ ॥ अथजयाहोमः॥ ॐचित्तंचस्वाहाइदंचित्ता यनः। ॐ चित्तिश्चस्वा इदंचित्यैन०॥ ॐ आकूनंचस्वा. इदंआकृताय ॥ॐआ कूनिश्चस्वाहा।इदंआकूत्यैन ॥ ॐविज्ञातंचस्वा इदंविज्ञातायन०॥विज्ञानिश्चस्वाल इटं विज्ञात्यैन ॥ॐ मनश्चस्वा. इदंमनसे॥ ॐ शकर्यअस्पा- इदंशकरीयोन॥ ॐदर्श श्वस्वा इदंदर्शायः॥ ॐ पौर्णमासंचवा इदपौर्णमासायनः ॥ ॐ बृहच्चस्खा इदंबृह ॥ तेन ॥ ॐ रथंतरंचस्वा. इदंरयंतरा॥ अंप्रजापतिर्जयानिन्द्रायवृष्णप्रायच्छदुग्रस्त For Private and Personal Use Only Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नाजयेषु॥ तस्मेषिश:समनमन्तः सर्वाःसाउयःस इहयोबभूवस्वाहा। इदंप्रजापनयेजया भास्कर ॥३१७॥ निन्द्रायनमः॥ ॥अथाभ्यातानहोमः॥ॐ अभिभूतानामधिपतिः समायत्तस्मिन्ब्रह्मण्यस्मि सत्रेस्यामाशिष्यस्याम्पुरोधायामस्मिन्कर्मण्यस्यान्देवहूत्या स्वाहा॥ इदममयेमूना नामधिपतयेनमम॥ एवमयानानहीमे प्रत्याहुतीसमावसस्मिन्नित्यारण्यसर्वत्रसमान | इन्द्रोज्येष्ठानामधिपतिः समावत्वस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्क्षत्रेस्यामाशिष्यस्याम्पुरोधायामस्मि कर्मण्यस्यान्देवइत्याद स्वाहा॥ इदमिन्द्रायज्येष्ठानामधिपतयेन-॥ ॐ यमःपृथिव्या ॥३२५॥ अधिपतिः समाव० स्याहा॥ इदंयमायपृथिव्याअधिप नयेन॥दक्षिणस्याअन्यपात्र For Private and Personal Use Only Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निधायनन्मध्येत्यागः ॥ ॥ प्रणीतोदकोपस्पर्शः॥ ॐ वायुरन्तरिक्षस्याधिपतिः स० स्वाहा॥ इदंबा यवेन्तरिक्षस्याधिपतयेन०॥ॐ सूर्योदियोधिपतिःसमा॰स्वाहा॥इदंसूर्यायदिवोधिपतयेन• ॥ ॐ चन्द्रमानक्षत्राणामधिपतिः समा० स्वाहा॥ इदं चन्द्रमसेनक्षत्राणामधिपतयेन० ॥ ॐ बृहस्प निर्ब्रह्मणोधिपतिः समा• स्वाहा।। इदंबृहस्पतये ब्रह्मणोधिपतयेन०॥ ॐ मित्रः सत्यानामधिपतिः समा० स्वाहा॥ इदंमित्रायस त्यानामधिपतये न० ॥ ॐ वरुणोपामधिपतिः समा० स्वाहा।। इदंवरु णायापामधिपतयेन० ॥ ॐ समुद्रः स्रोत्यानामधिपतिः समा० स्वा हा ॥ इदंसमुद्राय स्त्रोत्याना मधिपतयेन० ॥ ॐ अन्न साम्राज्यानामधिपतिसमा० स्वाहा ॥ इदमन्नाय साम्राज्या For Private and Personal Use Only Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नामधिपतिनेन ॥ ॐ सोमओषधीनामधिपनि:ममा स्वाहा॥ इदं सोमायौषधीनामधि भास्कर ॥३१॥ पतयेन०॥ ॐ सविताप्रसवानामधिपतिः स. स्वाहा॥इदंसवित्रेप्रसवानामधिपनयेना, ॐ रुद्रःपनामधिपतिः समा०स्वाहा॥इदंरुद्रायपशूनामधिपनयेन॥ ऐशान्यांअन्य पात्रंनिधायनन्मध्येत्यागः॥ उदकोपस्पर्शः॥ ॐ त्वष्टारूपाणामधिपतिःसमा म्वाहा।इदेख ट्ररूपाणामधिपतयेन ॥ ॐ विष्णुरुपर्वतानामधिपनिःसमा स्वाहा इदंविष्णवेपर्वतानामधिप नयेन०॥ ॐमरुतोगणानामधिपतयःसमा०स्वाहा ॥ इदंमरुयोगणानामधिपतिभ्योन॥ॐ ॥१८॥ पितरः पितामहाःपरेवरेततास्ततामहाः॥ इहमावत्यस्मिन्ब्रह्म स्वाहा।। इदंपितृभ्यः पिता For Private and Personal Use Only Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | महेभ्यः परेभ्यो वरेभ्यस्तनेष्यस्ततामहेभ्यश्चनमम ॥ दक्षिणास्योर्मध्येअन्यपात्रं निधाय तन्मध्येत्यागः ॥ उदकोपस्पर्शः । एतेष्टादशमंत्रा अभ्यातानसंज्ञकाः॥ ।। अथामिरित्यादि पंचकं॥ ॐ अमिरैतुप्रथमोदेवताना ?- सोस्ये प्रजांमुं चतुमृत्युपाशात् ॥ नदयर्ट-राजावरुणो नुमन्य तांयथेय. स्त्रीपौत्रमघन्नरोदा स्वाहा ॥ इदमग्नये ॥ ॐ इमामग्निस्त्रायतांगार्हपत्यः प्र जामस्यै नयतुदीर्घमायुः ॥ अशून्योपस्थाजीवतामस्त मानापौत्रमानंदमभिविबुध्यतामियर्टस्वाहा ॥ इदममयेन० ॥ ॐ स्वस्तिनोः अमेदिवापृथिव्याविश्वानिधेह्यवथायजत्र॥ यदस्यो ||मयिदिवि जातं प्रशस्तंतदस्माद्रविणंधेहि चित्र स्वाहा ॥ इदमग्नये ॥ ॐ सुगन्नुर्पयो " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पदिशन एहिज्योनिष्पध्येयजरन्न आयुः॥अपेतुमृत्युरमनं मागाईवस्वनोनोड अभयं भास्कर णोतुस्वाहा॥ इदंवैवस्वतायन०॥दक्षिणस्थाअन्यपाचेत्यागः॥यधक्ष्णोर्वस्त्रपटप्रक्षिप्यनूष्णी ॥ॐ परंमृत्योऽ अनुपरेहिपंथायने अन्यइतरोदेवयानात्। चक्षुष्मतेशृण्वते तेब्रवीमिमा, नप्रजार्ट रीरिषोमोनवीरान्स्वाहा ॥ इदंमृत्यवेनममेतिअमोत्यागः॥परंमृत्यवितिचैकेप्राश नांते॥परंमृत्यवित्येतामेवाहुतिमेकेआचार्याः संस्त्रवप्राशनातेइच्छंतीत्यर्थः।उदकोपस्पर्शः।। ॥अथलाज होमः॥कुमार्याघाताआसादिनशूर्पस्थशमीपलाशमिश्रान्लाजानंजलिनांजलामा, ॥१९॥ वपति॥ तान्संहतेनतिष्ठत्यनौजुहोतिवधूः॥ ॐ अर्यमणंदेवकन्या: अग्निमयक्षत For Private and Personal Use Only Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ स नो: अर्यमादेवः प्रेतोसुं चतुमापतेः स्वाहा॥ इदमर्यम्णेनमम॥ अनेनमंत्रेणांजलिस्था-ला जान्तृतीयांशंजुहोति ॥ॐ इयन्नार्जुपब्रूते लाजा नावपंतिका ॥ आयुष्मानस्तुमेप तिरेधन्तां ज्ञातयोममस्वाहा ॥ इदममयेनमम ॥ अनेनमंत्रेणांजलिस्था न्ला जान र्धं जुहो ति॥ ॐ इमान्लाजा नाचपाम्यमौसमृद्धिकरणं तव । मम तुष्यचसंवननंतदग्निस्नु मन्यताभियर्ट· स्वाहा ॥ इदममये नम• ॥ इत्यनेनमंत्रेणॉजलिस्थान्सर्वोल्ला जान्नुहो अति॥ मंत्रत्रयं कन्ययावाचयतिवरः ॥ अथास्यैदक्षिण · हस्तंवरीग्टहातिसांगुष्ठ॥ ॐ गृ भ्णामिते सौभगत्वाय हस्तंमयापत्याजरदृष्टिर्यथासः॥ भगो अर्यमासविता पुरंधिर्म ह्येत्यादुर्गा, For Private and Personal Use Only Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३२०॥ संस्कार ईपत्यायदेवाः॥ अमोहमस्मिसात्वर्ट सालमस्यमोऽ अहं॥ सामाहमस्मि ऋत्कं द्यौरहंपृथिवी भास्कर ||त्वं॥ तावेव विवहा वहैस हरेतोदधावहै ॥ प्रजांप्रजनयावहैपुत्रान्विन्द्या व है बहून् ॥ नेसं तुजर दष्टयः संप्रियौरोचिष्णू सुमनस्य मानौ ॥ पश्येमशरदः शतञ्जीवेम शरदः शतशृणुयाम | शरदः शतम् ॥ १॥ इतिहस्तग्रहणेवरस्यमंत्रपाठः ॥ अथैनामश्मा नंबरो वामहस्तेनवधूदक्षि ||णपादमारो हय त्यु त्तर तीमेः ॥ ॐ आरोहे ममश्मानमश्मेवत्वर्ट - स्थिराभव ॥ अभिनिष्ठपृ अन्यतोवबाधस्वपृतनायतः ॥ १ ॥ इत्यश्मारी हणे वरस्यमं त्रपाठः ॥ अथगाथांगायति ॥ ॐस ॥ ३२० ॥ ||रस्वतिप्रेदमवसुभगेव्वाजिनीवति ॥ यात्वा विश्वस्यभूतस्यप्रजायामस्याग्रतः ॥ यस्यांतून For Private and Personal Use Only Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ६ समभवद्यस्याम्विश्वमिदंजगन्॥तामद्यगाथांगास्यामियास्त्रीणामुत्तमंपशः॥१॥ इत्यतंवरोगाथांगायति॥ अथवधूपुरःसरोपदक्षिणमनिपरिक्रामतोवधूवरो॥ ॐ तुझ्या ||मग्रेपर्यवहन्सू(वहतुनासह। पुनःपनियोजायांदामेप्रजयासह॥१॥ इतिपरिक्रमणे वरस्यमंत्रपाठः॥एवंकुमार्या वाताशमीपलाशमिॉल्लाजानंजलिनांजलावावपतीत्यारक्यपरिक्रमणांनंपुनरद्वयंकर्मकुर्यात्॥ ततस्तृतीयपरिक्रमणानंतरंकुमार्यावाताशूर्पकोणप्रदेशेनसॉल्लाजान्कुमार्याअंजलावावपति ॥ तिष्ठतीकुमारीसर्वोल्लाजानुहोति॥ ॐ भगायस्वाहाइदंभगायनमम॥इनिमंत्रकन्ययायाचयनिवरः॥तनःसमाचा For Private and Personal Use Only Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रातूष्णींचतुर्थपरिक्रमणी। नेनरथावृत्तिः॥पुनःपश्चादमे:प्राग्यदुपविश्यवरोब्रह्मान्चा भास्कर ॥३२१॥ रब्धःप्राजापत्यहोमकुर्यात्॥ ॐ प्रजापतयेस्वाहाइदंप्रजापनयनममेतिपोसण्यांत्यागः ॥ अमेरुत्तरतअथैनांवधूसुदीची सप्तपदानिप्रकामयतिवरोवक्ष्यमाणमंवैः॥शि ष्टाचारादेद्युत्तरतः वेदीमारण्यउत्तरोत्तरंहस्तांतरालेधान्यसप्ताचलान्कत्यावर प्रतिपदा सीत्यनेनमंत्रणसंपूज्य॥ तेषुवधूप्रतिज्ञापठनपुरःसरंमंत्रपठित्लायध्यादक्षिणपादस्पर्शय ॥तियाम्यमारभ्यउदयसंस्थंउत्तरोत्तरं।वरः देशकालकीर्तनांतेपनिगृहीतवदारसिध्यर्थसप्ताचला |॥३१॥ पूजनंकरिष्ये॥ॐ प्रतिपदेसिप्रतिपदैत्यानुपर्दस्यनुपदैत्यासंपदसिसंपदैत्यानेजोंसिने सेवा For Private and Personal Use Only Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || इतिमंत्रणसंपूज्यवधूपदंकामयति॥ ॐ एकमिषेविष्णुस्वानयत्तु॥ इतिवरेणोक्तेन |मंत्रणवधूदक्षिणेकपदंदद्यादुदक्॥ तदनंतरंवामपादंब्यथ। पुनर्दक्षिणपददानमंत्रमुत्का। एवंसर्वत्र ॥ ॐ हे ऊर्जेविष्णुस्वानयतुइतिद्वितीयं ॥ ॐ त्रीणिरायसोपायविष्णुस्वानय तु॥इतितनीयं॥ ॐ चत्वारिमायोभवायविष्णुस्वानयतुइतिचतुर्थ।। ॐ पंचपशुभ्योषिष्णुस्वानयतु॥ इतिपंचम।। ॐषतुझ्योविष्णुस्वानयतु इतिषष्टं॥ ॐसरयेसप्तपदाम वसामामनुव्रता भवविष्णुस्त्यानयतु॥इनिसप्तम।। परिक्रमणनस्वस्थानोपवेशनं । केचिया तिपदेकन्ययैकैकप्रतिज्ञामंत्रःपरनीयस्तेचयथा॥सखदुःरयानिसर्वाणित्त्यासहविभज्यते॥ For Private and Personal Use Only Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार यबसंतदहंतवप्रथमेसाब्रवीदिदं॥१॥ कुटुंबंरक्षयिष्यामिवृद्धबालकादिकं ॥ अस्मिना | भास्कर ॥३२२ स्लिचसंतोषीद्विती ॥२॥ भर्तुर्मनिरतानित्यंसदैवप्रियामाषिणी॥ भविष्यामिपदेचैवहतीये ॥३॥ आर्तेार्तापयिष्यामिसुरवदुःखविभागिनी॥तवाज्ञापालयिष्यामिकन्यातूर्यपदेब्रवीत्॥४॥ ऋतुकालेशुचिस्माताक्रीडिष्यामित्यासह॥ नाहंपरतरंगछेकन्यापंचपदेप्रवीत्॥५॥ इहाया साक्षिणोविष्णुस्खयाहेनैववंचिता॥उपयोःप्रीतिसंभूनाकन्याषष्ठपदेब्रवीत्॥६॥होमय ज्ञादिकार्येषुपवामिचसहायनी॥धर्मार्थकामकार्येषुकन्यासप्तपदेब्रवीत्॥७॥ इतिकन्या ||३२२॥ मंत्राः॥ इतिससपदीक्रम॥ अथवरः गृहानिकमणसमयेएकपुरुषस्कंधेरुतादुदकुं । For Private and Personal Use Only Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सादुदकंदक्षिणहस्तेनादायमंत्रपठनवधूमूर्धन्यतिषिंचति॥ ॐ आपःशिवाःशिव ॥१॥ इत्यनेनमंत्रण॥ पुनस्लस्मादेवकुंभादुदकमादायापोहिष्ठेतिकवयसुत्कामूर्धन्यभिषिं चिनि॥ अथदिवाविवाह श्वेन्तदावधूर्वरेणसूर्यमुदीक्षस्वेतिपेषितासनीसूर्यमदीक्षते॥ तच्च सरित्यनेनमंत्रेणशृणुयामशरदः शतादित्यं तेनाववाएवमंत्रपाठः॥ अथवरोवध्वाद क्षिणार्ट सम्योपरि हस्तंनीत्वातस्याहृदयमालमते॥ ॐ मम व्रते ते हृदयंदधामिम|मचित्तमनुचित्तंतेअस्तु॥ ममवाचमेकमनाजुषस्वप्रजापतिष्यानियुनक्तु मह्यं ।इत्यनेन| मंत्रणस्वपटिनेन॥नतोवरो नामिकाग्रंवधूशिरसिधृत्वातामभिमंत्रयते॥ ॐ सुमंगली| For Private and Personal Use Only Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥ ३२३ ॥ www.kobatirth.org 5 रियंवधूरिमार्ट-समेतपश्यत ॥ सौभाग्यमस्यैदवाया थास्त्वंविपरेतन ॥ इत्यनेन मंत्रेणस्वपठि भास्कर तेन ॥ अत्रसमाचाराइधूंवरस्यवामभागे उपवेशयंति।। अत्रावसरेवध्याः सीमंतेवर: सिंदूरंद दाति ॥ ॐ धाममुद्यसंवितर्वा ममुपदिवेदिवे धाममुस्मभ्य॑र्ट · सावी ॥ चा॒मस्य॒क्षय स्यदेव॒तूरैरयाधि॒यावा॑म॒भाज॑स्याम ॥ १॥ दक्षिणत॒ऽ उद्दॆक उपदधातितदेताः पुण्या लक्ष्मीर्दक्षिणदध्म इ॒तित॒स्माद्य॒स्य दक्षिणतोल॒क्ष्म भवतितंपुण्य लक्ष्मीकऽ इत्या॒च क्षतऽउत्तरत: स्त्रियाऽ उत्तरतु आय॒तनाहिस्त्रीतत्तत्कृतमेवपुरस्तात्वे॒वैना उ॒पद्ध्या ॥ ३२३॥ यत्रा॒ह्मैवशि॒रस्ता॒देवह॒नूत॒ज्जव्थैताः पुण्यालक्ष्मीर्मुखतो॒धत्तेत॒स्माद्य॒स्यमुखे लक्ष्म 5 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूवतितंपुण्य लक्ष्मीकऽ इत्या॒चक्षते ॥ इतिमंत्रपाठगे वरस्य ॥ अथामेः प्रागुदग्वानुगुप्त आगारं पूर्वपरिकल्पितं भवति ॥ तस्मिन्नानडुहंरोहितचर्मप्राग्रीवमुपरिलोमास्तीर्णभवति।। कलौ तदभावेप्रागग्रा चुदगया न्वाकुशानास्तरेत् ॥ तदुपरितांवधूंपत्य रखीं दृटपुरुषउन्म | थ्योत्क्षिप्योपवेशयति ॥ ॐ इ हगावोनिषीदंखिहाश्वाऽइहपूरुषाः।। इहोसहस्रदक्षि णोयज्ञ इहपूषानिषीदतु ॥ १॥ इत्यनेनदृट पुरुषपठितेनमंत्रेण ॥ केचित्तुजामातरं दृटमा चक्षते ॥ अस्मिन्पक्षे जामातैवोत्क्षिप्यमंत्रमुत्काआस्तृतकु शेषूपवेशयतिवधूं ॥ तत आगत्यपूर्ववद्यथास्थानवरो दक्षिणत उपविश्यपश्वात्स्विष्ट होमं कुर्यात् ॥ ॐ अम በ For Private and Personal Use Only Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार यखिष्टकतेस्वाहा॥इदममयसिष्टकतेनममा ततःसंचप्राशनादिप्रणीताविमोफोन भास्कर ॥३२४॥ होमशेषसमाप्य॥अथस्वकीयाचार्यायगोदानंकरोतिब्राह्मणश्चेज्जामाता॥क्षत्रिय चार्याययामंददाति॥वैश्यआचार्यायाश्चंददाति॥अथरात्रीविवाहस्सदाएतहरदानानन रंवरोवधूंध्रुवमीक्षस्वेतिप्रेषदखाध्रुवमीक्षयते॥ ॐ ध्रुवमसिनवंत्यापश्यामिध्रुवैधिपोष्ये मयिमयंत्वादात्॥बृहस्पतिर्मयापत्याप्रजावतीसंजीवशरदः शतम्॥इतिघरेणमंत्रेपटिनेव धूर्धवमीक्षते॥सायद्यपिनपश्येत्तदापश्यामीत्येवब्रूयात्॥ ॥अथाशीर्वादः ॥ ॐ युद्देवैत ३२४॥ || राजप्रसवीयंजुहोति॥ एताहदेवताःसुता एनसननैतृत्सोप्यमाणोमुवतिताऽवैन । For Private and Personal Use Only Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीणानिताऽ अस्माऽ इष्टाः प्रीताड एनर्ट सवमनुमन्यतेनाभिरनुमतःसूयतेयस्मैपैराजानीराज्यमनुमन्यतेसराजाभवति॥१॥ कांड ९ प्रपाठक ३ ब्राह्मण २ मंत्र ५ ॥अथा, तोराष्ट्रकृतोजुहोति॥राजानोवैराष्ट्रामृतस्तेहिराष्ट्राणिमित्येताहदेवताःसुता एतेनस नयेनैतत्सोप्यमाणो मुवनिता एवैतृत्रीणातितार अस्मा इष्टाः पीना एतई सवमृनुमन्यतेनाभिरनुमनःसूयुतेयस्मैपैग़जानोराज्यमनुमन्यतेसगजामयति ॥२॥ कोड ९५० | ३ वा. ३ मं.१ ॥ अथरथी होति। एपवैमसन एतईतत्स्यतेय स्मेनमेनादेवना समनुमन्यनेयाभिरनुमतःसूयतेयस्मैवैराजानोराज्यमनुमन्यतेसराजा भवनि ॥३॥ - For Private and Personal Use Only Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कां०९ प्र० ३ ब्रा० ३ मं० १३ ॥ तत्यै॒देव॒स्वामे॒व ॥ ऽएता॒निहवी - षिनिर्वपेदेतहदेव॒ताःसु भास्कर ॥ ३२५॥ ता॒ऽएते॒नस॑र्व॒नये॒नै त॒त्सोष्य॒माणोभूवनताऽए॒वैतत्प्रीणातिता॒ऽअस्माऽइष्टाः प्रीताऽएर्ट् सर्व॑मा॒नुम॒न्य॑तेता॒भिर॒नुमतः सूय॒तेय॒स्मै वैरा॒जानोराज्य॒मनु॑म॒न्य॑तेसरा॒जाभवति॥४॥ को० ९ प्र० ३ ब्रा०५ मं० १२ ॥ अथरा॒जानमभिषुत्यायै॒जुहोति ॥ एषवैसुसद्ऽएतद्वैन। त्सूयतेयमस्मै तुमे देवृताः सव॒मनु॑म॒न्य॑तेना॒भिर॒नुमतः सूर्य॒तेय॒स्मैवैराजानोराज्य॒मनु॒ मुन्य॑तेसरा॒जाभवति ॥ ५॥ कां० ९ प्र० ४ ब्रा० १०८ ॥ शतमानं भवति ॥ शतायुर्वै ॥ ३२५॥ युरुषः शतेंद्रिय आयुरेवेन्द्रियन्वीर्यमात्मन्यते ॥ ६॥ दंपत्योरविच्छिन्नाप्रीतिरस्त॥ चं For Private and Personal Use Only Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाभिवृद्धिरस्त॥ इत्याशीर्वादः॥यथाशक्तिब्राह्मणभोजनसंकल्पः॥विवाहानिमहा नसेनक्षिप्य॥ कर्मेश्वरार्पणंकुर्यात्॥ कारिकायां ॥ लाजहोमत्रयेमंत्रानश्मनोरोह तथा॥गायचैकर्मवंचकन्यापठतिपंचकं॥ ध्रुवदर्शनकालेचषष्टश्चैवउदाहतइति कन्यावस्त्रपरीधानेतथैवचोत्तरीयके॥तथासमीक्षाकालेतुपितुर्निक्रमणेरहात्॥अस्म मोरोहणेचैव हसायाहेतथैवच॥ तथासप्तपदेचैववधूमूर्यभिषेचने॥हृदयालंभनेचैवत थैवअभिमंत्रणे॥ दृटपुरुषेकमेणेवएतान्मंत्रान्वरःपठेत्॥इति॥ ॥ अथविवाहेमंत्राधि कारिणः ॥ वधूवरस्थपितरोवधूवरौतथैवच। विवाहेमंत्रपाठीच अपरोन्येक बोधकइति॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार | रोद्रीपैत्रीतथामृत्युर्यमाहुत्याकृतेतथा॥ अंतर्धानंविनायस्तु अल्पायुपतीभवेत्॥१॥रौ] |भास्कर ॥३२६॥ दीपेत्रीमृत्युयमाहुतीर्हखात्यपःस्पृशेत्॥अपोस्पर्शनकालेतुस्पृशेत्प्रणीतकंजलं॥२॥य मायदक्षिणेत्यागईशान्यारुद्रमेवच॥ दक्षिणानेययोर्मध्येपितृत्यागोविधीयते॥३॥एतत्त्या गंस्पयंपावेअन्यंदेयातुप्रोक्षणी॥४॥धष्टबीहिर्मयेल्लाजाशमीदलविमिश्रिता॥कन्याहोमप्रकुर्वीतभर्तुर्षातुश्चसंगमे॥५॥ वरेणवामहस्तेनवधूपादंचदक्षिणं।शिलामारोह येत्याज्ञःमंगलानियथाक्रम॥ ६॥शक्तिरूपेणयाशेल्याशिवरूपशिलापतिः॥उभो ॥३२६]] अंगुष्ठसंस्पर्शात्साकन्याविधवाप्तवेत्॥७॥कामोअघोपबाणेस्तै पहारेरतिदारुणैः॥ तस्माद । For Private and Personal Use Only Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir येभवेत्कन्यातस्यबाणस्यशातये॥८॥ कन्यकाग्रेवरंकृत्वाब्राह्मणो ज्ञानदुर्बलः॥ विधवा जायते | नारीनिषिद्धस्तत्रकारणात्॥९॥ अग्रेतुशभदापत्तीमांगल्येसर्वकर्मणि ॥ पदेपदेश्वमेधंचधनायुः | पुत्रवर्धनं ॥ १०॥ लाजानाज्यंस्स्रुवं कुंसंब्रह्माण मृत्विजं गुरुं ॥ एतेषां बाह्यतः कृत्वाशेषाणां तुप्रद क्षिणा || ११ || वध्वादक्षिणपादानिसमानियक्रमे तुसा ।। याम्यादुदगदिक्संस्थापकमे दुत्तरोत्तरं ॥ १२ ॥ गणयेद्दक्षिणपदान्पदवामान्निरर्थकान् ॥ १२॥ पतिपुत्रान्वितातव्याश्चतस्रःस भगाः स्त्रियः ॥ सौभाग्यमस्यैदद्युस्तामंग ला चारपूर्वकमिति ॥ १३ ॥ पतिपुचवतीनारीसु रूपगुणशालिनी॥ अविच्छिन्नप्रजासाध्वीसदयासारू मंगली ॥ १४ ॥ ॥ इतिकारि ॥१३॥ For Private and Personal Use Only Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कावचनानि॥ अथकश्चिद्यदिअचातृकांकन्यामुइहेनदानस्याःपित्रोः रथाधिकंगयां भास्कर ॥३२७॥ शतंदखोरहेत्॥ एतेनपुत्रिका दोषान्मुच्यते॥याम वचनं चाबविवाहेकुर्यात्॥ स्मशानेच॥ विवाहस्मशानयोर्यामःप्रमाणमितिश्रुतेः ॥ यामशब्दनसकुलवृद्धाः स्त्रियोभिधीयते।। ताश्चपूर्वपुरुषैरनुष्ठीयमानंसदाचारस्मरंति॥ विवाहादारभ्यघिराबमक्षारालवणाशिनी | स्यातां॥ जायापतीअधःशयीयातांत्रिरावमेव॥ अधः शब्दःखट्दाव्युदासार्थोनतुआरत रणव्युदासार्थः॥ संवत्सरंनमिथुनमुपेयातांद्वादशरात्रंवाषड्रात्रंबाविरावंवेति॥मिथुनकं ॥३२७॥ रणेशस्यपेक्षयाएतेविकल्पाः॥संवत्सरादिपक्षाशक्तीविरात्रपक्षेप्याश्रियमाणेचतुर्थ्य For Private and Personal Use Only Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |तरकालंपंचम्यांरात्रावभिगमनं कर्तव्य।। कुत एतत्।।चतुर्थीकर्मण्यकतेमाविमेव नाद्यापिसंवृत्तंतस्यांवियाहैकदेशलाचतुर्थीकर्मणः ॥इतिसंस्कार भास्करेविवाहदिनक त्यप्रयोगः॥ ॥अथऐरिणीपदान। तच्चआचारप्राप्त विवाहाच्चतुर्थदिने पररावेका य॥ तत्स्वरूपं।वंशपात्रमिहैकंचशूपैःषोडशभिर्युत।करकैरुद्रसंरव्याकैः सवर्णपरिपूरि तैः॥ शतछिींकमामेकांगोधूमेनप्रपूरितो॥ व्यजनैकंतथैवचेतिवापाठभेदः॥सवस्त्र चसदीपंचसौभाग्यद्रव्यसंयुतं नानापक्वान्नसंयुक्तंफलतांबूलसंयुतं ॥ एतावदैरिणी रूपंकर्तव्यंप्रीतिवर्धन। उमाशंकरयोःप्रीत्यैऐरिणीदानमुत्तमं॥वरमावेपदास्यामिक For Private and Personal Use Only Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार न्यादानस्थसिद्धये॥ ॥ अथऐरिणीपूजा॥ ततःकन्यापितासपीक: मंडपमध्यप्राङ्मु भास्कर ॥३२८॥ वः शु मासनेउपविश्य॥ स्वायवंशपात्रंनिधायनत्पुरतःवस्वाच्छादितपीठेवधूवरौप्रत्यय खायुपयेशयेत्॥वरमातरं मर्तसहितांपीठेउदङ्मुरवीसुपवेशयेत्॥आचम्यप्राणानायम्यदेश कालोसंकीर्त्य॥एवंगुणविशेष तिथौमयाच तुभिरहोभिःनिष्पादितविवाहारव्यस्यकर्म ण: सांगतामिध्यर्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थंकन्यादानसंपूर्णफलावाप्तयेयधूवरयो: बव्हायुष्यप्राप्तयेवंशाभिवृध्ययं श्रीउमामहेश्वरप्रीतयेचवरमाचेऐरिणीप्रदानमहीं ॥३२८॥ करिष्ये।नवनिर्विमतासिध्यर्थमहागणपनिपूजनं॥मनोजूनिरितिप्रतिष्ठा॥ ततःश्रीचा For Private and Personal Use Only Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेतिमंत्रेणषोडशोपचारैः ऐरिणीपूजयेत्॥मार्थना॥ ऐरिणित्वमुमादेवीमहेशोगिरिजापतिः । अनस्वापूजयिष्यामिऐरिणीसर्वकामदा॥ ऐरिणित्वमुमादेवीवंशपावस्वरूपिणी। क न्यादानस्यसंपूर्णफलंदेहिशिवपिये॥यावचंद्रश्नसूर्यश्चयावत्तिष्टतिमेदिनी॥तावद्धिवंशा वृद्धिबंदेहिमेशंकरपिये।अनयापूजयाऐरिणीस्वरूपिणीउमामहेश्वरीप्रीयेतां॥वरमात्र हस्लेशिवा आपःसंतु॥संतुशिवाआपः॥सौमनस्थमस्त॥अस्तसौमनस्यं ।। अक्षतंचारिष्ट चारत॥अस्वक्षतम०॥ गंधाःपातु॥सौमंगल्यंचास्नु॥अक्षता:पातु॥आयुष्यमस्तु॥पुष्पाणिपातु ||सौश्रियमस्त॥यसापंरोगंअरुअकल्याणंतरेप्रतिहतमस्त।। दानमंत्रः॥वंशोवंशकरः ॥ For Private and Personal Use Only Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार श्रेष्ठोवंशीवंशसमुद्भवः ।। वंशपात्रमिदंदानं वंशवृद्धिकरं परं । वंशपात्रमिदं पुण्यं वंशजात भास्कर ॥ ३२९॥ समुद्भवं॥वंशानामुत्तर्मदानंकन्यादानफलप्रदम्॥ वंशपात्राणि सर्वाणिमयासंपादितानिवै। ॥उमाकांतायदास्यामिममवंशाभिवृद्धये ॥ वंशवृद्धिकरंदानंसौभाग्यादिसमन्वितं॥नानापक्वान्नसंयुक्तं दंपत्योर्वंशवर्धनं ॥ वस्त्रेणाच्छादितंपूगफलहेमसमन्वितं ॥ ददामिवर मातस्तेपार्वतीशंकरौतथा ॥ दातामहेन्चरोदेवोग्गृहीतापिमहेश्वरः ॥ दानेनाने नमेदेवप्र सीदपरमेश्वर ॥ इदंऐरिणीवंशपात्रं सदक्षिणाकं वरमाचेतुभ्यम हंसंप्रददे नमम ॥ ततो वरगोचजादीनूगंधवस्त्रादिभिः संपूज्य ॥ पार्थयेत्॥ यच्छत्तयाविहितं स्वग्गृह्यकथि|| For Private and Personal Use Only ||३२९|| Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie | नैर्मत्रैश्चपोराणिकैर्निवस्त्र जलानचंदनदलायवाचतुर्मिर्दिनैः।।दपत्योर्ममवंशय ॥ द्विमनघांदद्यादुमा शंकरोन्यूनतरूपयाखिलसफलतांयातुद्विजाननितिः॥१॥तनो वधूगोत्र जा. तत्ऐरिणीवंशपात्रंगृहीत्वावरगोबजादीनांशिरसिधारयेयुः॥ ॐ घृ तवतीभुवनानामभित्रियो:पृथ्वीमधुदुर्धरूपेशंसा ॥ द्यावापृथिवीवरुणस्य॒धर्मणा विकसिते अजरेरिरेतसा॥१॥ इतिमंत्रण॥ ततःकन्यांनिवेदयेत् ॥अष्टवर्षाखियो कन्यापुत्रवत्सालितामया॥ इदानींतवपुत्रायदत्तास्नेहेनपाल्यतां॥१॥ अनेनयरपि|तुरुत्संगेदद्यात्॥ पुनरुत्याप्य। अस्मदादिसहृद्वधूत्यत्कायातिभव हं॥अतिस्ने || For Private and Personal Use Only Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार|| ||हेनवैमानःकन्यांमेपरिपालय ॥ २॥ अनेनवरमातुरुत्संगेदद्यात् ॥ अत्रावसरेवध्यावसि भास्कर ||३३||| ष्ठारुंधतीपूजनं ॥ श्रीश्वतेतिमंत्रेणवसिष्ठा रुंधतीभ्यां नमः पंचोपचारसंपूज्य ॥ पूजांतेगं धपुष्पफल हिरण्योपेतं अर्घदद्यात् ॥ तत्रमंत्रः ॥ अरुंधति महाभागे वसिष्ठ प्रियवादि नी ॥ सौभाग्यं संततिदेहिगृहाणार्धं नमोस्तुते ॥ १॥ इत्यर्घदत्वाप्रार्थयेत् ॥ अरुंधतिमहाभा गिवसिष्ठप्रियवल्लभे ॥ सौभाग्यंदे हिसततं पुत्रपौत्रांश्च देहि मे ॥ ततो ऽ खंडसौभाग्यादिकामा नयावसिष्ठारुंधतीप्रीनयेषोडशाष्टौ वावायनानिब्राह्मणेभ्योदयात् ॥ अथवावायननिक्र ॥३३०॥ यीभूतं यथाशक्तिरजतद्रव्यं अखंड सौभाग्यप्राप्तिकामनयावसिष्ठारुंधती प्रीतये असुकशा For Private and Personal Use Only Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मणे ब्राह्मणायतुभ्यमहंसंप्रददेइति ॥ ततोवरहस्तकन्यांनिवेदयेत्॥इयंकन्यामयादत्ता | तवविप्रसहायिनी॥ स्वदेशेपरदेशेवापरिपाहिकुलोचितं॥१॥ इत्तिमंत्रेणनिवेदयेत्॥ ब्राह्म गेभ्योदक्षिणांदत्वातैराशिषोरीयादित्यैरिणीपदानं॥ ॥ अथवधूप्रवेशः॥ वधूप्रवेश प्र थमेतथैव शुभप्रद पंचमकेथवान्हि॥हितीयकेवायचतुर्थकेवाषष्टेवियोगामयदुरख दास्यात् | |॥१॥ तथाचसंग्रहे॥विवाहमारझ्यवधूपवेशोयुग्मेतिथीयोडशवासरांतात्॥ऊर्ध्वंततोदेज्यु जिपंचमांतादतः परस्तान्नियमोनचास्ति॥२॥ अयुग्मेतृतीयंत्यत्कायुग्मेषष्टविवर्जयेत्॥पा प्रकालेव्यतीपातवैधृतीसंक्रमंतथा॥ उपरागंश्राइदिनंवयित्साशुपकभिः॥३॥ज्योतिः For Private and Personal Use Only Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संन्कार गारमा कदियमशुभकालेनथैवच॥राबोवधूप्रवेशःस्थाद्दिवानेवकदाचनेति॥ ४ ॥ तत्र |भास्कर ॥२३१॥ ज्योति शास्त्रोक्तशाकालेवर पित्रादत्तांव,गृहीत्वायानेउपविश्यमंगलवायघोषपुरःसरंमें गलगीतपठनपरैः पुरंधीजनैराचार्यादिविधःआनोमद्रा:स्वस्तिन इंद्रेतिसुमंगलसूक्तपठनपरै सहस्वगृहमागत्यगृहमध्येशुसासनेप्राङ्मुखउपविश्यस्वदक्षिणनः वधूमुपवेश्य।देशकालौ स्मृत्वा अस्याःममनवोटापार्यायाःप्रथमगृहप्रवेशंकरिष्ये॥ तदंगविहितंगणपतिपूजनस्वस्ति। पुण्याहवाचनंचकरिष्येइतिकृत्या॥ ततआचारपातकांस्यपावेतंदुलान्प्रसार्यनदुपरिसुवर्णशला ॥३१॥ कियाश्रीकुलदेवताप्रयुक्तमादौअमुकीइतिनामविलिरव्यमनोजूतिरितिप्रतिष्ठाप्यश्रीवत्तेति || For Private and Personal Use Only Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रेणषोडशोपचारैःसंपूज्य ॥अन्यद्यथाकुलाचारंकुर्यात् ॥ ततोवरेणनामवाचनपुरःसरंव ध्यानामप्रतिष्ठितंकुर्यात्॥ श्रीकुलदेवताप्रयुक्तमादौअमुकनामप्रतिष्ठितंइतिनिर्वाचयित्सा॥ ब्राह्मणाःमनोजूतिरिनिमंत्रपठित्वावधूशिरसिमंत्राक्षतान्दद्युः॥ब्राह्मणेायोगंधतांबूलदक्षिणा दिदत्वा तैराशियोगहीयात् ॥ इनिवधूप्रवेशः॥ ॥अथपथमादेवधूनिवासः॥ज्योति निबंधे॥उद्वाहाप्रथमेशुचौयदिवसेर्तुम्हेकन्यकाहन्यात्तज्जननींसयेनिजत-ज्येष्टे पतिज्येष्ठकं ।।पौषेचश्वकरंपनिंचमलिनेचैत्रेस्वपित्रालयेतिष्ठंतीपितरंनिहंतिनभयंतेषा मामावेभवेत्॥ इनिप्रथमाब्देवधूनिवासः॥ ॥ अथचतुर्थीकर्मोच्यते॥ तच्चविवाहा, For Private and Personal Use Only Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार चतुर्थदिने पररात्रेऐरिणीप्रदानीनरंकार्य। गृहमध्ये मिस्यापनंतवैव चतुर्थीकर्मोक्तं ॥३३२॥ हरिहरादिभिस्तथापित शिष्टाः बहिः शालायांवेद्यांकुर्वतीति॥तवार्यक्रमः॥कृत्येचा तुर्थिकेतुयधुवरउभयोमंगलस्नानकायंस्थाप्योवैवाहिकानिस्तदुत्तरउदङमंचरुनौपचे। युः॥हुलाघाराज्य मागानथघृतहवनमनिवायूचमूर्यश्चंद्रोगंधर्वपंचप्रजापतिचरुणाषद् सवंचोदपावे॥१॥ शेषैःस्विष्टनवाज्याहुतिमनुहयनंप्रोक्षणीसंसयंतस्याश्यशेषसमाप्येअथ वरवधूमूर्धन्यषिं चोदपावात्॥पाणैस्तेस्थालिपाकंहुनितमपिवधूंषाशयित्वावरेणकर्मादौमंगला ३३२|| सारचितक्रमणिकासर्वसंस्कारमाला॥२॥ इति॥ ॥तनोयरोवध्वासहवधूपितगृहेमंगलंमा । For Private and Personal Use Only Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाहतपट्ट कूलादिवाससीपरिधाय धृतकुंकुमतिलको वेद्यांशुभासने उपविश्यदक्षिणतः पत्नींचोपवेश्य॥ आचम्यप्राणानायम्य देशकालकीर्तनांतेविवाहैक देशत्वाच्चतुर्थीकर्माहंक |रिष्ये ॥ तत्रनिर्विघ्नार्थंगणपतिपूजनंवास्मरणं कुर्यात् ॥ तत्रगृहाभ्यंतरतोग्निमुपसमाधाय स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकं विवाहानिंप्रतिष्ठाप्य ॥ ततोदक्षिणतो ब्रह्मासनादिप्रणीतास्या पनानंतरंप्रणीतोत्तर तउदपात्रंप्रतिष्ठाप्य ॥ आज्यं ॥ स्यालीपाक चरुः ॥ पवित्रीकरणादि आ घाराज्यभागांतमाधानवत्॥ आज्यभागानंतरमाज्येन यं चाहुतयो वक्ष्यमाणमंत्रैः ॥ॐ | अग्रेप्रायश्चित्ते संदेवानांप्रायश्वित्तिरसि ब्राह्मणस्त्वानाथकाम : उपधावामिवास्यैपतिघ्नीत For Private and Personal Use Only Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार नूम्लामस्यैनाशयस्वाहा॥इदममयेनमम॥ॐ वायोप्रायश्चित्तेसंदेवानांपायचिनिरसिबाह्य भास्कर ॥२३२॥णस्वानाथकाम उपधायामियास्यैजानीतनूस्तामस्येनाशयस्याहा॥ इदं वायवेन०॥ ॐसू र्यप्रायश्चित्तेवन्देवानाम्पायश्चित्तिरसिब्राह्मण स्वानाथकाम उपधाचामियास्येपशुधीननूस्ता, मस्येनाशयस्वाहा ॥इदंसूर्यायनम०॥चंद्रप्रायश्चित्तेवंदेवानांप्रायश्चितिरसिब्राह्मण स्वानाथकाम उपधावामियास्यै ग्रहधीतनूस्तामस्यैनाशयस्वाहा॥ इदचंद्रमसेन ॥ॐगं धर्वप्रायश्चित्तेसंदेवानाम्प्रायश्चित्तरसिब्राह्मणस्त्वानाथकामऽ उपधावामियास्येयशोघ्नीना ॥३३॥ नूस्तामस्येनाशयस्वाहा।।इदंगंधर्वायनमम॥ननःस्थालीपाकेनप्रजापतयइतिएकाहुतिः॥ For Private and Personal Use Only Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रजापतयेस्वाहा।।इदंप्र॥ आसांपडाहुनीनांप्रणीनापात्रम्पोत्तरनउदपावेमेस्रवपासना सिष्टकनोपिकेचिदिच्छंति॥अन्यासामाहुतीनांपाक्षणीपात्रसंस्रवपासनं॥तनःस्यालीपाकेन स्विष्टकतं॥ ॐ अमयस्पिष्टरूनेसाहाइदममयेसिष्टझतेनममा। तनाज्येनमहाव्याहत्यादिम जापत्यांनानवाहुनयः॥ तनःप्रोक्षणीपात्रेयेसंखवारलेषांपाशनी परिवान्यांमार्जनादिप्रणीतानि) मोकांतं होमशेसमाप्यातनाप्रणीनोत्तरस्थादुदपात्रादुदकंपल्लवेनादायवधूमूर्धन्यभिषिंचतिवरः ॥ ॐ यानेपनिप्रीप्रजाघीपकभीग्राहनीयशोघीनिदिनाननूर्यारघ्नीनन एनांकरोमिसाजीर्यवंम यासहासाअसोस्थानेनामादेशः॥ अमुकीइत्यनेन॥अथैनांवधूंस्थालीपाकं पाशयनिवरः॥ॐ For Private and Personal Use Only Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार प्राणैस्तेप्राणान्त्सन्दधाम्यस्थिभिरस्थीनिमा र्ट-सैर्मार्ट· सानित्वचा त्वचम् ॥ १॥ इतिमंत्रे भास्कर ||३३४|| णवरपठिते नतां चाचमय्य ॥ यथाशक्ति ब्राह्मण भोजन संकल्पः॥ ब्राह्मणेभ्यो भूयसींदत्वाने ||राशिषोग्गृहीयाद्दरः ॥ इतिसंस्कारतास्करे चतुर्थीकर्मप्रयोगः । ॥ अथदेवकोत्थापनं ॥ तत्रकालः ॥ समेन्चदिवसेकुर्याद्देवकोत्थापनंबुधः॥ षष्ठं चविषमंनेष्टंमुक्त्वापंचमसप्तमौ ॥१॥ मंडपो हासनं कार्यं समेवाविषमेदिने ॥ समेषष्ठंदिनंवविषमेत्रिनवंत्यजेदिति ॥ २ ॥ अत्र स्थापनदिनान्परिगणना ॥ तत्रविषमेत्रिनवंसमेषष्ठं दिनंवर्ज्यं ।। चतुर्थःपंचमसप्तमातिरिक्तं ॥३३४॥ नावेष्टमित्यर्थः ॥ सुहूर्तमार्तंडटीकायां ॥ विचाहदिनमारभ्यनवभिषष्ठदिवसेषूद्वासनमपि For Private and Personal Use Only Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||नकार्यमित्युक्तं तन्मंडपम्यनतुदेवकादेरितिदृष्टव्यं ॥ उक्त दिनेवरवधूसहितःस्वस्वगृहेवर पितावधूपिताचस्वदक्षिणतःपन्यासहरुमासनेप्राङ्मुखउपविश्य॥ आचम्यप्राणानाया म्यदेशकालोसंकीर्त्यममगृहेषट्मुषगुमासेषुशोमनप्राप्त्यर्थंबियाहांगभू देवकोत्थापनमं| डपोडासनारव्यंकर्मकरिष्ये॥ तदंगविहितगणपति पूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंचकरि येइतिहत्वा॥ स्वस्तिवाचनेभोब्राह्मणाः मयाक्रियमाणयो:देवकोत्थापनमंडपोहासना व्यकर्मणोः पुण्याहंशवनोब्रुवंतु॥ॐ पुण्याहं॥ एवंकल्याणंकदिवस्सिंश्रीयंइति॥ततः स्थापितदेवनानोपंचोपचारैरुत्तरपूजनंकार्य।उनिष्ठब्रह्मणस्पतेयांतुमागणेनिमंत्रण For Private and Personal Use Only Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार स्यापितदेवताः विसृज्य॥ ॐ उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पतेदेवयतैस्वेमहे॥ उपप्रयन्तुमरुतःसु भास्कर ॥३३५॥ दानव इन्द्रावासचर्चा ॥१॥यातुमातृगणाःसर्वस्वशक्यापूजिनामया। इष्टकाम प्रसिध्यर्थपुनरागमनायच॥१॥आवाहितदेवनाः स्वस्थानेगच्छतेत्युस्थापयेत्॥ततआ। चार्योनंदिन्यादिमंडपमातृणांसूवमुन्मुच्यतेनहे पूगीफलेवेटयित्वा॥ नंदिन्यादिमातॄणां पानिपैनिदध्यात्॥ततोयजमानःपल्यासहवरोवधूश्चनच्छूपहस्तैर्गहीवार्पआचा। पेजलंसिंचतिसतिशूर्पणगृहाप्यंतरमारभ्यमंडपांतंत्रिवारंगवाजलधारांपान येत्॥बसोः । ॥ पवित्रमसि॥ यौःशांतिरितिमंत्रेण॥धारापातनोत्तरनेनैवमंत्रणतन्मारपल्लवैः सपत्नीकं। For Private and Personal Use Only Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यजमानमभिषिच्यशूर्पस्थमा नृपल्लवानिमंडपोपरिनिक्षिप्य ॥ ईशानकोणप्रदेशेमंडप || वितानंविमुच्य॥ ततःसूत्रवेष्टितेद्वेपूगीफले आचार्यग्गृहीत्वायजमानाय श्रेयोदानं कुर्यात्॥ तद्यथा॥सपत्नीकयजमानस्यांजली ॥ शिवा आपः संतु ॥ संतुशिवाआपः॥सौमनस्यम रक्त ॥ अस्तसौमनस्यं ॥ अक्षतं चारिष्टं चास्तु ॥ अस्वक्षतमरिष्टं च।। इतिवचनप्रतिवचने॥ अत्राः पातु।।सुप्रोक्षितमस्त॥ गंधाः पातु ॥ सौमंगल्यं चास्त ॥ अक्षताःपांतु ॥ आयुष्यम रक्त ॥ पुष्यंपातु सौश्रियमस्त ॥ यसाप॑रोगं अशभं अकल्याणंतरेप्रतिहतमस्त।। इत्यं जल्युपरिउदकंष्त्रामयित्योदीच्यानिषिंचेत् ॥ ततोयजमानः ॥ भोब्राह्मणाः ममगृहेषट्सु For Private and Personal Use Only Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार षडुमासेषुशोभनानि भवंनो बुवंतु ॥ संतुशांत नानीत्याचार्यः ॥ इतिविरुत्का ॥ कृतमेत भास्कर || ३३६ ॥ द्विवाह कर्मण आचार्य वंतदुत्समं श्रेयस्ततुभ्यमहं संप्रददेइतियजमानहस्ते साक्षतजलपू गीफलइयंप्रक्षिप्यप्रतिगृह्यतामितिवदेत् ॥ यजमा नो देवस्यत्वेतिप्रतिगृण्हाति ॥ ततोचस्त्रालंकारादिभिर्यथाविभवमाचार्यपूजनं कृत्वा तस्मैमहादक्षिणांदत्वाऽन्येभ्यो ब्राह्मणेभ्यो भूयसीदक्षिणांदत्वा नैराशिषोग्गृहीत्वा ॥ यस्यस्मृत्येतिकर्मसंपूर्ण तांवाचयित्वा । । ब्राह्मणान्मोज ||यित्वा॥सहृद्भिः सहयजमानो भुंजी तेतिदेव कोत्थापनं ॥ इतिसंस्कार भास्करेविवाहसंस्कारम - ॥ ३३६ ॥ योगः ॥ ॥ अथद्विरागमः ॥ तत्रमाघफाल्गुनवैशाखाः शुक्लपक्षश्वराप्ताः ॥ अश्विनी For Private and Personal Use Only Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोहिणीपुनर्वक पुष्योत्तरात्रया नुराधा ज्येष्ठा हस्तस्वातीचित्रा श्रवण दाततारका नक्षत्रेषुचंद्र ||बुधशक वारेषुगुरुशक्रास्तादिरहितेस्थिरलमादिश भकालेद्वितीयवधूप्रवेशः शुतः ॥ द्विरागमनेऽधिमासविष्णु शयनमासीसमवत्सराः प्रतिशकादिदोषाश्र्ववर्ज्याः । द्विरा गमोपियदिविवाह मारभ्यषोडशदिनमध्ये क्रियतेतदाप्रतिकादिदोषोस्तादिदोषश्व नास्ति ॥ यथा ॥ द्विरागमः षोडशवासरांते एकादशाहे समवासरेषु ॥ नचात्रकक्षंनतिथि र्नयोगोनवारथ्यादिविचारणीयं ॥ केवलांगिरसकेवलष्टगुभरद्वाजवसिष्ठ कश्यपा त्रिवत्सगोत्राणां प्रतिकक दोषोन ॥ रेवत्यश्विनीपतरणीकृत्तिकाद्यचरणेषुचंद्रेसतिशु For Private and Personal Use Only Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भास्कर कस्यांधत्वासतिशकदोषोन॥ दुर्भिक्षेदेशविप्लवेविवाहेतीर्थगमनेएकनगरयामयी ॥३३७॥ प्रतिक्रदोषोन॥इतिद्विरागमः॥ ॥विवाहेतार्ययासहभोजनमाहांगिराः॥ ब्राह्मण्या सहयोश्रीयादृच्छिष्टंबाकदाचन॥ तवदोषनमन्यतेसर्वएवमनीषिणः॥१॥ एकपात्रसमः भीयाद्विवाहेषुवधूवरो॥ तत्रदोषंनमन्यतेआचारवेषनैवचेति॥ संयहे॥ एकासनंचे कशय्याएकपावेचनोजनं॥ एकत्रमंगलस्नानएकवाहनरोहणं॥ कुर्वन्विवाहएतानिम विद्विपोनदोषभागिति॥ अथापत्युदयिक श्राद्धोत्तरदेवकोत्थापनपर्यंत निषिद्धकर्मा||णि॥गार्ग्यः॥ नांदीश्रादेकृतेपश्चाद्यावन्मावृविसर्जन। दर्शश्राईक्षयश्राद्धस्मानंशी For Private and Personal Use Only Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तोदकेनच॥अपसव्यंस्वधाकारंनित्यश्रादतथैवच ॥ ब्रह्मयज्ञंचाध्ययनंनदीमीमांतलंघन || उपवासव्रतं चैवश्राद्ध भोजनमेवच ॥ नैवकुयुःसपिंडाश्चमंडपोद्धासनावधि॥१॥विषु रुषसापिंड्यपर्यंत।। अवनित्यवादनिषेधेनन कार्यविहिनपिटयज्ञनिषेधमिद्धिः॥स्वधाका रग्रहणंतत्सहितवैश्वदेवनिषेधार्थ॥ ॥ तथान्यच ॥ अयंगेस्तकेराबीविवाहेपुत्रजन्म निगमागल्येषुचसर्वेषुनधार्यगोपिचंदनं॥१॥ इति॥ ॥अथमा विसर्जनानंतरंग ब्दपर्यंत निषेधमाह॥वसिष्ठः॥स्मानंसचैलंतिलमिश्रकर्मप्रेतानुयानंकलशप्रदान। पूर्वतीर्थामरदर्शनंचविवर्जयेन्मंगलतोब्दमेकं ॥१॥ पितृणामुद्देशेनकलशदानमित्या For Private and Personal Use Only Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार र्थः ॥ ॥३३८॥ www.kobatirth.org ॥अत्रापवादः। तीर्थैसंवत्सरेप्रेतेपितृयज्ञेमहालये ॥ कृतोद्वाहोपिकुर्वीत पिं डनिर्वषणंसदेति ॥ ॥मासषङ्कंविवाहादौ व्रतप्रारंभणेपिच ॥ जीर्ण भांडा दिन त्याज्यंगृ हसंमार्जनीतथेति ॥ ॥ स्मश्रुकरणे ॥ ऊर्ध्वं विवाहात्पुत्रस्यतथाचव्रतबंधनात्॥ आत्म नोसुंडनं चैव वर्ष वर्षार्धमेवच ॥ त्रिमासंवाचिपसंवानकुर्वीतकदाचनेति ॥ ॥ कन्यागृहे भोजननिषेधः ॥ भविष्ये ॥ अप्रजायां तुकन्यायांनपुंजीतकदाचन ॥ दौहित्रस्य मुखंहस्वा किमर्थमनुशोचति ॥ ननुंजीते त्यत्रकन्यागृहेइतिशेषः ॥ अपरार्के आदित्यपुराणे च॥ ॥३३८॥ अप्रजायांतुकन्यायांनाञ्जीयात्कन्यकागृहे॥ ब्राह्मादिविधिनाकन्यां दत्वा श्रीयात्कदाचन ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ן! भास्कर Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथरोंजीतमोहाचेत्सयातिनरकंध्रुवमिति ॥ ब्राह्मविवाहविधिनादातुंयोग्यांकन्याद त्वाकदापितस्याःगृहेनैवान्भीयादित्यर्थः ॥ शाकलकारिकास्वपि॥ दुहित्रन्ननभुजीयाया वित्तस्यासवेरूतः॥अन्यथायत मुंजीनदानंतस्यवृथाभवेत्॥कन्यायास्यप्रसूनायायस्व) नभुंजतेयदि॥ अघसकेवलंसुंक्तेप्राजापत्येनशध्यनीति॥ ॥ अथवरस्यमृतमा यत्वपरिहारोपायः॥ तदुक्तंबृहयाज्ञवल्क्येन॥परिवेतृत्वपापेनमृतभार्यत्वंजायते॥न दोषपरिहारार्थप्राजापत्यत्रयंतथा।। चांद्रायणवयंचैके अनेके द्विगुणंचरेत् ॥ एकेएक |मार्यामरणेइदंप्रायश्चित्तं। अनेकेअनेकमार्यामरणेतुएतप्रायश्चित्तंडिगुणंचरेदित्यर्थः For Private and Personal Use Only Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार गणेशपूजयेदादोपुण्याहवाचयेद्विजैः॥ दुर्गामिविष्णुपतिमाःस्थापयेत्पूजयेत्ततः॥ ॥३३९॥ विभिस्तदेवताप्रीत्यै हुनेदष्टाधिकायुनं॥ आहुतिंचरुणाज्येनप्रतिद्रव्येधसंख्यया। दुर्गा मिविष्णुमबैश्चपुन:पुनरितीरितइति॥ ॥अथप्रयोगः॥सदिनेसस्मानोयजमाना सनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेमममृतभार्यत्वदोषनिरासद्वाराधीप रमेश्वरप्रीत्यर्थं वक्ष्यमाणप्रकारेणअष्टाधिकायुतसंख्ययाच; ज्यहवनंकरिष्ये।नत्रा दोनिर्विघ्नतार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनआचार्यादिवरणंदिग्रक्षणपंचगव्य ।३३९।। ॥ करणंभूमिपूजनंअमिस्थापनंकलशानांस्थापनंदुर्गामिविष्णुदेवतानांस्थापनंपूजनंचा ॥ For Private and Personal Use Only Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करिष्येइतिक्रमेणकृत्वा॥देवतामंत्रास्त॥ अम्बे अम्बिकेतिदुर्गा ॥ त्वन्नो अग्ने तवदेवेति अभिं ॥ इदंविष्णुरितिविष्णुं ॥ ततोदक्षिण तो ब्रह्मासनादिपवित्रयोः प्रणीतानिधानांतेल||त्वान्वादध्यात् ॥ तद्यथा ॥ तंत्रप्रजापतिंइंद्रं अग्निंसोमंएताः आधाराज्यभागदेवताः एकैकया हुत्याआज्येन अत्रप्रधानंदुर्गे अग्निंविष्णुं वस्वस्वमंत्रेण अष्टषष्ठितमाधिकषोडश शतसंख्य ||याचरुहोमंतथाचपुनरत्रप्रधानदेवतानांस्व स्वमंत्रेणपूर्वोक्तसंख्यया आज्यहोमंशेषेणस्विष्टक नं अधिवासुंसूर्य अग्रीवरुण अग्रीवरुणौ पुनरधिंवरुणंसवितारं विष्णुविश्वान्देवान्मरुतः स्वर्कान्वरुणं | आदित्य अदितिंप्रजापतिए ता देवता आज्येनैकैकयाहु त्या अस्मिन्कर्मण्यहंयक्ष्ये ॥ इत्यन्ना For Private and Personal Use Only Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सस्कार धानं॥ पतिर्देवतंतूणीनिरूप्यपोक्ष्यच॥ त्यागकाले प्रष्टानगयुतसंख्या हुनिपर्याप्नचर्या भास्कर ॥३४०॥ यद्रव्ययथामंत्रलिंगदुर्गायेअमयेविष्णवेचनममेनित्यागंकुर्यात्॥पयमंगणेशायवरा हुनिंदत्वाअन्वाधानोक्तरीत्याहवनकार्य। पूजाविष्टेतिकमेण होमशेषंसमाप्यदशविप्रानो जयदिनि। हवनाहुतिक्रमोयथा॥आज्यभागांतेपूर्वअम्बअम्बिकतिमंत्रणदुर्गाये चर्चा हुनयः Hin६८॥ वन्नो अमेनिअमयेच;हुनयः १६६८ ॥ इदंविष्णुरितिविष्णवेच;हुतयः१६६८) अनंतरं अम्बेदुर्गा. आज्याहुतयः १६६८ ॥ बन्नो अग्नयेाज्याहुतयः १६६८॥इदं ॥३४॥ विष्णवे आज्याहुतयः १६६८ ॥एवमेवप्रकारेण सर्वाहुतयः १०००८ अष्टोत्तरायुना मतिः For Private and Personal Use Only Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथवाकस्यचिद्ब्राह्मणस्यविवाहं कुर्यात् ॥ ॥ इतिमृतप्तार्यत्वपरिहारोपायः ॥ ॥५ ॥ | अथ भार्या विद्यमानत्वेसतिद्वितीयविवाहेऽधिवेदनीय कारण माहयाज्ञवल्क्यः । सुरापीव्याधि ताधूर्तावध्यार्थघ्यप्रियंवदा॥ स्त्री प्रसूश्चाधिवेत्तव्या स्त्र्यंतरंकारयेदिति ॥ ॥ अधिवेदनेकालप तीक्षामाह मनुः ॥ वंध्याष्टमेऽधिवेत्तव्यादशमे तुमृनप्रजा ॥ एकादशेस्त्रीजननीसद्य स्वप्रियवा||दिनीति॥ ॥विवाहांतरेविशेषः ॥ एकामुत्क्रम्यकामार्थमन्यांलब्धुंयइच्छति ॥ समर्थस्तो षयित्वार्थैः पूर्वोटा मपरांवहेत् ॥ याज्ञवल्क्यः॥ आज्ञासंपादिनींदक्षांवीरसूंप्रिय वादिनीं ॥ त्य जन्दाय तृतीयांशमद्रव्यो भरणंस्त्रियः ॥ सधनोधनतृतीयांशमधनोशनाच्छादनात्मक प् For Private and Personal Use Only Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रणं चदद्यादित्यर्थः ॥ ॥ अथस्त्रीनिधने द्वितीयपरिणयनकालमाह ॥ सिंधौ ॥ प्रमदाट ॥३४१||| निवासरादितःपुनरुद्वाहविधिर्वरस्य च ॥ विषमेपरिवत्सरेश्शुनोयुगुले चापिमृतिप्रदो भवे दिति ॥ ॥ अथकन्याविषयोगेसमुत्पनाचेद्वैधव्ययोग हरकुंभविवाहः ॥ सचविषयोगस्त्रि विधः । सूर्यभौमार्किवारेषुतिथिभद्राशनाभिधम् ॥ आश्लेषारूनिकानांगेनवजानावि ||षांगना ॥ १ ॥ जनुर्लमेरिपुक्षेत्रसंस्थितः पापरखेचरः ॥ द्विसाम्यमपियोगेस्मिन्संजानाविष कन्यका ॥ २ ॥ लग्नेशनैश्वरोयस्याः सतेर्किर्नवमेकुजः ॥ विषारव्यासापिनो द्वाह्याभिविधावि ॥३४१॥ पकन्यका ॥ ३ ॥ तद्दोषपरिहारोपायः ।। सावित्र्यादिवतंकृत्वावैधव्यविनिवृत्तये ॥ अश्वत्था For Private and Personal Use Only भास्कर Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |दिभिरुडाह्यादद्यात्तांचि रजीविनेइति॥ ॥ अन्यच॥ ॥बालवैधव्ययोगेतुकुंभद्रुप्रति मादिभिः॥रुत्वालमंतनःपश्चात्कन्यो डात्येनिचापरे॥ ॥ऊसःप्रसिद्धः द्रुप्रतिमेतिस्पर्ण मथा चत्यद्रुमप्रतिमा॥ तैःसह अनूदाकन्योहाया॥पुन दोषाभावस्तुविधानरयंडे ॥ स्वर्णद्रुपिप्पलानांचपतिमाविष्णुरूपिणी। तयासहविवाहेतुपुनीत्वंनजायते॥ ॥ सूर्यावरुणसंवादे।विवाहापूर्वकाले तुचंद्रताराबलान्विते॥कुसंस्थाप्यविधिवतबदु पनिमायजेत्॥ मधुपर्कादिकंदत्वा तदनेकन्यकांनयेत्॥विवाहोक्तेनमंत्रेणकुंभेनसह चोद हेत्॥सूत्रेणवेष्टयेत्पश्चा द्दशतंतुविधानतः॥ऊकुमालंरुतंदेहंतयोरेकोतमंदिरे॥तम For Private and Personal Use Only Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥३४२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंभंचनिःसार्यप्रभज्यसलिलाशये ॥ ततोभिषेचनं कुर्यात्संचपल्लववारिभिः ॥ ततो लंकार व भास्कर स्वाढ्यांबरायप्रतिपादयेदिति ॥ ॥ अथप्रयोगः ॥ नत्रपूर्वोक्त दिनेकन्यापिताक न्ययासह एकांते विष्णुमंदिरेगला आसनेप्राङ्मुख उपविश्यस्वदक्षितः कन्यामुपवेश्य ॥ देशकाल कीर्तनानंतरं कन्यायाः नक्षत्रादियोगेनयहयोगेनपुनर्भूदोषाभावेनचविपाख्ययोगसंप्त | ववैधव्यारिष्टपरिहारार्थश्रीपरमेश्वरप्रीतये कुंभविवाहंकरिष्ये ॥ तत्रादीनिर्विघ्नतार्थंगणप तिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनादिनांदी श्राद्धांतं कृत्वा चार्यवृत्ता ॥ ततस्तंदुलाष्टद्लेमही ॥३४२॥ यौरित्यादिक्रमेणकलशंप्रतिष्ठाप्यपूर्णपाचेनिधाय वस्त्रयुग्मेन संवेष्ट्य तत्र वरुणं संपूज्य ॥ For Private and Personal Use Only Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्राम्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठापूर्वकंवर्णमयविष्णुरूपाश्वत्थदुममनिमांप्रतिष्ठाप्यषोडवणे पचारैःसंपूज्यप्रार्थयेत्॥ नत्रमंत्रः॥ वरुणांगत्वरूपायजीवनानांसमाप्रय॥पनिंजीव || यकन्यायाचिरंपुत्रसुखकुरु।। देहिविष्णीवरदेवकन्यांपालयदुःखतइति॥तनोमधुप कवस्त्रालंकारार्पणं॥अंतःपटकन्याकुंभांतरालेधूलामंगलपयाष्टकंपठिला॥ऑप तिष्ठेत्यनंतरंपटनिसा। कन्यायैवस्त्रोपवस्त्रमंगलनंनुबंधनसमीक्षणांतमंत्रपठनेनदत्या ॥दशवारंअधस्तादुपरिचकन्यांचपरित्वेत्यनुवाकेनसूवंसंवेष्ट्याउँमस्या विष्णवेकन्यांसमर्पयेत्॥ मंत्रस्नु॥गौरीकन्यामिमांश्लक्ष्णांयथाशक्तिविभूषितां॥ददा For Private and Personal Use Only Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार | "मिवेष्णवे तुभ्यंसौभाग्यदेहिसर्वदा ॥ १ ॥ विष्णुरू पिणेश्वत्यकुंभायेमांकन्यांश्रीरूपि भास्कर ॥२४२॥ णीसंप्रददेइतिसमर्पयेत् ॥ ततोवेष्टितसूत्रात्कुंभंनिःसार्य जलेप्रभज्य ॥ ततः आचार्यः श इजले न ऐंद्रवारुणपावमानीयमंत्रैः पल्लवेनकन्यामभिषिच्याद्भवाससीपरिधाप्यवै बाह्य वस्त्रादिकं सर्वं आचार्याय दद्यात् ॥ अनघाद्यास्मीतिविवारं कन्या वदेत्॥ एवमस्वितिद्विजो ब्रूयात् ॥ आचार्यायवरंदत्वा तस्मादाशिषो गृहीत्वा कर्मश्वरायार्पयेत्। ॥ इतिकुंभविवाहः ॥ ॥ अथबालवैधव्य हरविष्णुमूर्तिदानं ॥ तत्पकारो नारदेनो ॥३४३|| क्तः । ब्राह्मणंसाधुमामंत्र्यसंपूज्य विविधार्हणैः॥ तस्मैदद्याद्विधानेनविष्णोर्मूर्तिचतुर्मु For Private and Personal Use Only Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जा॥ शद्ववर्णसवर्णनपलस्यैकसलक्षणां। तदर्धनतदर्धनविनशक्यनुसारनःनि मितांरुचिरांशरवगदा-चकाजसंयुतां दधानांवामापीनकुमुदोत्पलमालिकांस) दक्षिणांचतांदद्यान्मंत्रमेतमुदीरयेदिति ॥पयोगस्त ॥देशकालकीर्तनांतेममवैधच्यारिटनिरसनाथअरवंडसोप्पाग्य प्राप्तयेचविष्णुमतिमादानंकरिष्ये॥ ताम्मपात्रंत दुलेनापूर्वतदुपरिस्वर्णमयींकताम्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठाविष्णुप्रतिमांचतुर्भुजायुधान्वि |ताप्रतिष्ठाप्यषोडशोपचारैः पूजयेत्॥पूजाकालेपीनांवरादिवरूपाणिकुंडलायलंकारान् | कुमुदादिपुष्पमालाश्चार्पयित्वाप्रणमेन्॥ भगवन्कमलाकांतसर्वमंगलदायक। हतास। For Private and Personal Use Only Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पियरिष्टानिसौभाग्यंचाभिवर्धय॥१॥ इनिसंपायें। प्रनिगृहीतारंब्राह्मणेसंपूज्यार्चित भास्कर ॥३४४० प्रतिमांसोपस्करांदद्यात्॥ दानमंत्रस्तु॥यन्मयाप्राच्यजनुषिनंत्यापतिसमागमं॥विषोप विषशस्त्राथै हतोवातिसरक्तया॥प्राप्यमानमहाघोरंयशःसौख्यधनापहं॥वैधव्याय निदुःरवौघान्नाशयसरवलब्धये॥बहुसौभाग्यदात्रींचमहाविष्णोरिमांतनु॥सौच प्रतिमांशत्यातुभ्यसंपददेदिज॥१॥इमामयार्चितांविष्णुप्रतिमांसोपस्करांवैधच्यारिष्टनिरासार्थअरचंडसौभाग्यप्राप्तयेचअमुकशर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहंसंप्रददेइति |॥३४४॥ दत्वा ॥यथाशक्तिसवर्णदक्षिणादखातस्मादाशियोगृहीलाकन्याअनघायाहमस्मीतित्रि । For Private and Personal Use Only Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वदेत्॥ एवमस्वितिविप्रोक्तिंग्टहीला ॥ ब्राह्मणान्भोजयेत्॥ ननोवैवाहिकं कुर्यात्॥ इतिवैधव्ययोगहरविष्णुप्रतिमादानं ॥ 11 & 11 ॥ अथतृतीय मानुषीविवा हस्यनिषिद्धत्वात्तस्मिन्कर्तव्यंसत्यर्कीविवाहविधिरुच्यते॥ ॥ तत्र तृतीयमानुषी विवाहनिषेधमाह कश्यपः ॥ तृतीयांमानुषींनैव चतुर्थीयः समुदहेत् ॥ पुत्रपौत्रादिसंप न्नःकुटुंबीसामिकोवरः॥ उद्वहेदितिसिध्यर्थं तृतीयानकदाचन ॥ मोहादज्ञानतीवापि गच्छेत्रीं यदिमानुषीं ॥ म्रियतेनचसंदेहोगर्गस्यवचनंयथा॥ ॥ वसिष्टः ॥ चतुर्थ्या श्वविवाहार्थतृतीयार्थीसमुद्रहेत् ॥ आदित्यदिवसेवापिहस्तर्क्षे वाशनैश्वरे॥ शुभेदिने For Private and Personal Use Only Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार वापूर्वाण्हकुर्यादीविवाहकं॥ ब्राह्म। यामात्याच्यामुदीच्यांवासुपुष्पफलसंयुतां॥निरीक्ष्यय | भास्कर ॥३४५॥ नतोधस्तात्स्थंडिलंरचयेदुधः॥ व्यासः॥स्माखालंरुतवासांसिरत्नगंधविभूषितः॥सुपुष्पा फलशारखंचअर्कीगुल्मंसमाश्रयेत्॥सलक्षणेनकुंभस्थामीसंस्थाप्ययत्नतः॥अर्कक न्यापदानार्थाचार्यकल्सयेत्पुरा॥उभौगोत्रविभिन्नतंशोनंदानंदयान्वितं॥आचार्यणस्वयंभाव्यं दत्तांसूर्येणकन्यको॥ अर्कीसन्निधिमागत्यतत्रस्वस्स्यादिवाचयेत्॥नांदी श्राईहिरण्येनअष्टवर्गान्प्रपूजयेत्॥पूजयेन्मधुपर्केणआचार्योयत्ननोवरम्॥राज्ञोपवीतं ॥३४५१ चहलकर्णादिभूषण।। उष्णीषंगंधमाल्यादिवरायचपदापयेत् ॥ब्रह्मपुराणे॥य For Private and Personal Use Only Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थाविधीनिरुच्येतइत्यस्यानंतरंक्रमः॥रुत्वार्फ पुरननिष्ठन्वार्थयेद्विजोत्तमः॥ ॥ || विलोकपासिन्समाश्चछाययामहिनोरये ॥तृतीयोडाहजंदोष निवारयत खंकुरु॥१॥ निवाध्यारोप्यदेवेशंछाययासहितंरविं॥ वस्वैर्माल्येनथागंधैस्तन्मंत्रणप्रपूजयेत्॥तन्मंत्र आकृष्णनेति॥ अन्यच्च॥ श्वेतवस्त्रेणमवेश्यनथाकार्पासतंतुभिः॥गंधपुष्पैःसमस्यVतलिंगैरभिषिच्यते॥ गुडौदनंतुनैवेद्यतांबूलंचममर्पयेत्॥व्यासः॥अर्कीप्रदक्षिा कुर्वन्जपनमंत्रमिमंबुधः॥ ॥ ममप्रीनिकराययंमयासृष्पापुरातनी॥ अर्कजा ब्रह्मणासृष्टाअस्माकंपरिरक्षतु॥१॥ पुनःप्रदक्षिणरुत्वामंत्रणानेनमंत्रवित्॥ ॥ For Private and Personal Use Only Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥३४६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्तेमंगलेदेविनमः सवितुरात्मजे ॥ नाहिमांकृपयादेविपलीत्वंमेइहागताः। अर्फिलं भास्कर ब्रह्मणासृष्टासर्वप्राणिहिताय च ॥ वृक्षाणामादिभूतावंदेवानामीतिवर्धिनी ॥ तृतीयोज्ञा ॥ | हजंपापं मृत्युं चाशुनिवारय ॥ नतश्वकन्यावरणाभिपुरुषकुल सच्चरेत्॥ आदित्यसा सविताचार्कः पुत्री पौत्री प्रपौत्रिका | गोवं काश्यपइत्युक्तंलोके लौकिकमाचरेन। | अन्यच्च ॥ वः काश्यपगोत्रश्चेत्तदाचार्यः स्वपूर्वजान् ॥ उच्चरेन्ममपुत्रीतिस्वगोत्रैः स हनद्विधिः ॥ ॥ व्यासः ॥ सुमुहूर्तेर्की निरीक्ष्यस्वस्तिसूक्तमुदीरयेत् ॥ आशिषश्च ॥ ३४६॥ नः कुर्यादाचार्य प्रमुखैर्द्विजैः ॥ यथाचार्यः समाहूयविधिनातन्मुखोच्चतां ॥ परिगृह्यन For Private and Personal Use Only Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोहोमंरयोक्तविधिनाचरेत्॥ ॥अर्कीदानमंत्रस्तु॥ अर्ककन्यामिमाविमययारा, तिविभूषितां॥ गोत्रायशर्मणेतुभ्यदत्ताविप्रसमाश्रय॥१॥ ॥अंजल्यक्षतकर्माणि रुखाकं कणपूर्वकं ॥यावसंचावृतंसूबंअर्किवृक्षेप्रवेष्टयेत्॥पंचीकृतंपुनः सूबंस्कंधे बभातिवनः॥ स्वशास्त्रोक्ते नमंत्रणगायत्र्याचाथवाजपेत्॥ बृहत्सामेतिमंणसूत्रा रक्षांप्रकल्पयेत्॥अाश्चपुरतः पश्चाइक्षिणोनरयोस्तथा।आमेयादिक्रमेणैवधि ||दिक्षुअपिचैवहि॥ अष्टौकुंभान्प्रतिष्ठाप्यक्रमेणेवयथाविधि॥प्रसवप्रतिकुंचत्रिभिः सूत्रेणवेष्टयेत्॥ हरिद्रागंधसंयुक्तान्यूरयेच्छीतलैजलैः॥पंचपल्लवसंयुक्तान्फल For Private and Personal Use Only Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रत्नसमन्वितान् ॥ सर्वैषधिसमायुक्तान्पूर्णपात्रसमन्वितान्॥ प्रतिकुंभे महाविष्णुंसंपू- भास्कर ॥३४७॥ज्यपरमेश्वरं ॥पाद्यार्घादीनिनैवेद्यं कुर्यान्नाग्भवमंत्रवित् ॥ कुंप्तोदकैर्वरं अर्कीवारुणैरभि पिंचयेत् ॥ ॥ अत्र होम प्रकारः शौनकेन दर्शितः ॥ तृतीयेतुविवाहेच संप्राप्तेपुरुषस्या तु।। अर्कीविवाहंवक्ष्यामिशौनकोक्तविधानतः॥| अर्कीसन्निधिमागत्य तत्र स्वस्त्यादिवा चयेत् ॥ नांदीश्राद्धं कुर्वीत आचार्यवरयेत्ततः ॥ अर्कीमाय सौर्या गंधपुष्पाक्षता अभिः ॥ सौर्याएव चसूर्यश्व आकृष्णे नक चेनच॥ स्वयं चालंकृतस्त हूइस्त्रमाल्यादिभिः ॥३४७०॥ || शुभैः ॥ अर्कस्योत्तर देशेतुस्थंडिलं कारयेत्तनः ॥ उल्लेखनादिकं रुत्या अग्निंसंस्थाप For Private and Personal Use Only Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir येत्ततः॥ब्रह्मासनादिकंरुखासमन्वारब्धएतया॥ एतयाअर्फकन्यया॥संस्कृताज्य वेणैव आघारांतमतः परं॥ आज्याहुतिंचजुहुयात्संगोपिरनएकया॥यस्मै खाकामका मश्चएतयाचततःपरं॥व्यस्ताविश्वसमस्ताभिस्ततअस्विष्टद्भवेत्॥परिवेशनपर्यंत मयाश्चेत्यादिकंक्रमात्॥ मार्थनामंत्रादिविशेषमा हव्यासः॥ पुनः प्रदक्षिणरुत्वाम उमेतसदीरयेत्॥ मयारुतमिदंकर्मस्थावरेषुजरायुणा॥ अर्कापत्यानिनोद हितसर्वक्षेतुमर्हसि॥१॥ ॥ इत्यु खाशांतिसूक्तंचजवाचविसृजेसुनः॥गोयुग्मंदक्षि णांदद्यादाचार्यायच भक्तितः॥ इतरेयोपिविषेश्योदक्षिणांचापिशक्तिनः॥तत्सर्वं । For Private and Personal Use Only Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार गुरवे दद्या दंते ब्राह्मण भोजनं ॥ एवमसममभ्यर्च्यविधिनामानुषीं पुरा ॥ उ३ हेदन्यथा भास्कर ॥३४८||| नैवपुत्रपौत्राभिवृद्धिमान् ॥ एवमेतद्विजश्रेष्ठविधिनासम्यगुइहेत्॥धनधान्यसमृद्धिं वइच्छाभीष्टवरंब्रजेदित्यर्कीविवाहक्रमः ॥ ॥ अथप्रयोगः ॥ अत्रक्रियमाणविवाहात्प्राक्चतुर्दिनादिव्यवहितेरविशनिवासरे हस्तनक्षत्रेाततिथ्यादिदिनेयामा त्याच्यासुदीच्यांचा पुष्पफलयुतार्कीगुल्मंप्रयोज्य नदधोभागेपुरतः स्थंडिलंॉवरच्य ॥ | अर्कीपश्चिमतोयजमान उपविश्य ॥ गुल्मस्यसमंतात्प्रागाद्यष्टदिक्षुतंदुलेनाष्टदलानि ॥३४८॥ पिरच्य॥ आचम्यमाणा नायम्यदेशकालकीर्तनांते मम तृतीयमानुषीविवाहदोषपरिहा For Private and Personal Use Only Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | रार्थतफलप्राप्तयेचअर्कीविवाहंकरिष्ये॥ तदंगविहिननिर्विमार्यगणपतिपूजनंख स्निपुण्याहवाचनमातृकापूजननांदीश्राइंचकरिष्येइनिरुत्वा॥ तच्चनांदीश्राद्धंहेम्नाकर्न य॥कर्मार्थस्वकुलाचार्यवृत्वा॥ अपरमर्कीदानाचार्यवृणुयात्॥ ततोवर: अर्कीगुल्मस्या येतंदुलाष्टदले महीपोरितिक्रमेणपूर्णपावनिधानांतंकलशंपनिष्ठाप्यगंगाद्यावाह्याभिम अवरुणसंपूज्य॥नदुपरिअम्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठामंपायस्पर्णमयींचाययासहितामर्क प्रतिमापतिष्ठाप्य॥वख्योपवस्त्राणिसमर्ण्य ॥आरुष्णनेनिषोडशोपचारेःसंपूज्यगुटोट |ननैवेयंदखा ॥ पूजनांतेप्रार्ययेन्॥विलोकवामिन्सप्ताश्वलाययासहितोरवे॥मृता । For Private and Personal Use Only Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार योहाहजंदोष निवारयसुरवंकुरु ॥१॥ ननोर्कीआपीहिष्ठेनित्यूचनशुहजलेनाभिषिच्यषो मास्कर ॥३४९॥ डशोपचोरे: मंपूज्यप्रदक्षिणांकुर्यात्॥तवमंत्रः॥ममप्रीतिकगयाचे त्वयादृष्टापुरातनी॥ "अर्कजाब्रह्मणासृष्टा यस्माकंपरिरक्षतु॥१॥ इत्येका॥ नमस्तेमंगलेदेविनमः सवितुगन्म जारक्षमांकृपयागश्वसत्तावमेइहागना॥१॥ इनिद्वितीयप्रदक्षिणा॥ततोर्कीपार्थ यित्॥ अर्किलंब्रह्मणासृष्टासर्वप्राणिहितायच॥वृक्षाणामादिभूनावंदेवानांप्रीतिव र्धिनी॥१॥ सर्वारिष्टहरानित्यं सर्वमंगलदायिनी॥ तृतीयोडाहजंपापंमृत्युंचाशुधिनाशय ॥३४॥ ॥२॥ ॥ ततोदानाचार्यः देशकालीस्मृताअर्कीविवाहार्थमागनंबरंमधुपर्कणार्चयिष्येइ । For Private and Personal Use Only Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie तिसंकल्पपूर्वकं स्वशारवोक्तविधिनावरायमधुपर्कपूजासमर्पयेत्॥ ततोचरः स्थंडिलेपंचभू संस्कारपूर्वकममिप्रतिष्ठाप्य॥ अर्कीवरांतरालेअंतःपटंधृत्वाकर्माचार्यादिब्राह्मणेमग लपद्याष्टकंपटिखाओंपतिष्ठेत्युक्ताउत्तरतः अंतःपटंनिःसार्य॥आचार्यादिब्राह्मणा: स्वस्मिनइन्द्रेतिमंगलसूक्तंपठेयुः॥ततोजरांगच्छेनि अर्यवासोपरिधाप्य।। या अकंन नेत्युनरीयं। समंजंखिति अर्कीनिरीक्ष्य।यदाबध्ननिनिमंत्रणमांगल्यनंतुंबीया ताननोगायत्र्याबृहत्सामेनपरिवेत्यनुवाकेनवाअर्कीवरयोः सूत्रमावेष्ट्य॥ननादानाचार्यउग |दङ्मुरखउपविश्यदेशकालौस्मृवाश्रीपरमेश्वरप्रीतयेअर्कीकन्यादानंकरिष्ये।वरहस्नेशिवाः ।। For Private and Personal Use Only Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३५०|| संस्कार आप:संत्वेत्यादिकत्वा॥वरस्यगोत्रोच्चरः॥ अमुकसगोत्रस्य अमुकप्रवरस्य अमुक शर्म णः प्रपौत्राय ॥ अ० गो० अ०म० अ०वा० पौत्राय ॥ अ०गो० अ०म० अ० श० पुत्राय ॥ अ० | गो० अ० प्र० अ० वा०णेवराय॥ अथाकपक्षे ॥ काश्यपगोत्रस्य काश्यपावत्सारनैध्रुवेति |त्रिप्रवरस्यआदित्यस्यप्रपौत्रीं ॥ का० गो० का ० त्रिप्र० सवितुः पौत्रीं ॥ का० गो० त्रिप्र० अर्क स्यपुत्रीं ॥ का॰गोत्रोत्पन्नांकाचिप्र० अर्को नाम्लीमांकन्यांसूर्यदैवत्यांत वतृतीयमानुषीविवाहदो षनिरासार्थं भार्यात्वे नतुभ्यमहं संप्रददे ॥ अनेनार्कीशाखांवरहस्ते दत्वातदुपरिसकुशी- ।। ३५०॥ दकं निषिंचेत् ॥ एवं त्रिवारं कुर्यात् ॥ वरस्यकाश्यपगोत्रं चेन्नर्हिदानाचार्यः अर्कोनाम्नी For Private and Personal Use Only भास्कर Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इमांकन्यां सूर्यदत्तांविभाव्यस्वगोत्रोच्चारपूर्वकं आत्मनश्वत्रिपूर्वजान्ममपुत्रइत्यू हंकुर्यात् ॥ ॥ अर्कीकन्यामिमांविप्रयथाशक्तिविभूषितां ॥ गोत्रायशर्मणेतुष्यं दत्तांविप्रसमाश्रय ॥१॥ ॥ ततोवः अर्क्युपरि अक्षतांजलीन्ध्रीन्समर्पयेत् ॥ तत्र | मंत्राः॥ ॐ यज्ञीमेकामः समृध्यताम् ॥ इतिप्रथमांजलिः ॥ ॐ धर्मेमेकामः समृध्य नाम् ॥ इतिद्वितीयां० ॥ ॐ यशोमेकामः समृध्यताम्।। इतितृतीयां० ॥ ॥ ततोर्कीगुल्मे परित्वेत्यनुवाकेनवेष्टितं सूत्रनिष्कास्यपंचगुणं कृत्वातत्र हरिद्राखंडंबध्वातत्कंकणंबृ हत्सामेतिमंत्रेण अर्कीदक्षिणशाखायां बभीयात् ॥ तत्रमंत्रः ॥ ॐ बृहत्सामनक्षत्रम् || For Private and Personal Use Only Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार द्वृष्टयंत्रिष्टुमौजशुभितमुग्रवीरं॥ इंद्रस्तोमेनपंचदशेनमध्यमिदंयातनुसगरेणर- सास्कर ॥३५॥क्ष॥१॥ इनिमंत्रणकंकणंवधीयात्॥ततोर्कीदिग्विदिक्षुरुताष्टदलेमहीद्योरित्यादिक्रमे ।। णाष्टोकुंभान्संस्थाप्याकेचित्लागादिचतुर्दिक्षुचतुरःकुंभान्॥ सूत्रेणावेष्ट्यचंदन प्रक्षेपणेऽष्टगंधंक्षिप्वापूर्णपात्रंनिधायतेषुनाम्माविष्णुमायाह्यषोडशोपचारे:संपूजा येत्॥ ॥ वर देशकालकीर्तनांतेअर्कीविवाहांगभूतंहोमकरिष्ये॥ ॥ततोदक्षि णतोब्रह्मासनादिआज्यभागांतंचरुवर्जंकुशकंडिकांसंपाद्य॥ तत्रापारावाज्यभागी मनसा॥ ॐ प्रजापतयेस्वा. इदंप्रजा. नमम॥ॐइंद्रायस्वा इदमिन्द्रा॥ॐ अमये ॥३५१॥ For Private and Personal Use Only Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वा. इदममये ॥ ॐ सोमायस्या इदंमोमाय०॥ ॥ ननोबृहस्पनिंअमिंचैकैकयाहु त्याज्येनहुवा।तद्यथा॥ ॐ संगोभिरांगिरसोनक्षमाणोनगड इवदर्यमाणंनिनाय॥ज नैमित्रोनदंपतीअनक्तिबृहस्पनेचाजयांगुरिचाजोस्वाहा॥ इदंबृहस्पतयेनमम॥ॐ य स्मैलाकामकामायवहंसम्माड्यजामहे॥ तामस्मायकार्यदखायथेदंतंपिबस्वाहा॥इद ममयेनमम॥ ॥तनोज्यस्तसमनव्याहती त्याज्येन॥ॐ भूः स्वा. इदमम॥ॐवसाम इदंबायचे॥ॐ स्वः स्वा इदंसूर्याय ॥ ॐ वः स्वःस्वा इदमजापतये ॥ ततःखिष्टक त्॥ ततोऽभूराद्याःप्रजापत्यांतानवाहुतीराज्येन॥ ॥ततःसंसवमाशनादिपणीनाविमोको For Private and Personal Use Only Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तहोमशेषंसमापयेत् ॥नतोर्की प्रार्थयेत्॥मयाकृतमिदंकर्मस्थावरेषुजरायणा। अर्कोप- भास्कर त्यानिनोदेहितसर्वक्षतुमर्हसि॥१॥तताचार्योगंधादिक्षिसंपूज्यताभ्यांचगोयुग्मंदयात्॥ ष्टोब्राह्मणाभोजयेत्॥ नानानामगोत्रेभ्योब्राह्मणेभ्योभूयसींदक्षिणांदत्वा नैराशियोराहीला ॥पूजोपकरणादिकंआचार्यायदखा॥स्थापितदेवनानांउत्तरपूजांकृत्वागदेवतामिक्सृिज्यायस्या स्मृत्येतिनत्वाकर्मे परार्पणरुत्वा॥ शांतिसूक्तंजपेत्॥ ॥ एवंकृत्याविशनतुभार्याक्षेमंचविंद तीति॥ ॥ इतिश्रीमदृषिभट्टविरचिनेसंस्कार भास्करेअर्कीविवाहपयोगः॥ ॥ ॥ ॥३२॥ ॥ ॥ अथानादिष्टप्रायश्चित्तं ॥ कालातिकमेनियतवन्। गर्भाधानादीनिउपनयनांनानिक For Private and Personal Use Only Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माणिनियतकालान्यतिहितानि॥यदिदैववशात्पुरुषापराधाहादोषाहातेषांनियनस्य || कालस्यअतिक्रमोमयतितदाकिंकर्तव्यमिनिसंदेहेनिर्णयमाह ॥कालातिक्रमेयस्यसंस्कार कर्मणःशास्त्रनियमितोयः कालस्तस्यअतिकमेलंघनेनियतवत् नित्सवन्नित्येश्रोनक सेयहि हिनंतद्वत्अनादिष्टप्रायश्चित्तं भवति ।एवकृतप्रायश्चित्तस्यअतिकांनकालेसंस्कारकर्मण्य| धिकारःसंपद्यते॥अनादिष्टप्रायश्चिनेतिकर्तव्यताप्रयोगेवक्ष्यते॥ अबकालातिकमइत्युपल क्षणं॥ ॥अतः अन्येषामपिकर्मणानाशेइदमनादिष्टमेवपायश्चित्तं गृह्यकारेणपायश्चित्तांतर । स्यअनुपदिष्ट खान॥किंतुीतानामनिदेशेप्राप्तेअविज्ञातेपनिमहाव्याहृत्तिभिःसर्वामिश्चतुर्थ For Private and Personal Use Only Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कार ॥३५३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. सर्वप्रायश्वित्तेचेत्यस्यै वकालातिक्रमेनियतवदित्यने नातिदेशः कृतो न तूप देशकृतः ॥ गृह्यकारेणतत्रविज्ञातमप्रत्यक्षश्रुतिमूलं । किमिदमावैदिकं यार्जुर्वेदिकं सामवेटिकं चयनि श्रितं स्मार्तकर्मतस्य शेयोतक सेव्याहृतिचतुष्टयपंचवारुणहोमंप्रायश्वितंउद्दिष्टमत्रार ह्यसूत्रेग्गृह्येोक्तकर्मणामपिस्मार्त त्वात्तद्भेशेतस्यैवातिदेशोयुक्तः । नपुनः प्रत्यक्षवेदमूलकर्म कोशोपदिष्टत्ता ॥ कालातिक्रमेनियतवदित्यस्यार्थउक्तः ॥ इतिकर्तव्यतावलिख्यते । । पूर्णा । हुतिवदाज्यंसंस्कृत्यअनादिष्टप्रायश्वित्तहोमं कुर्यात् ॥ पूर्णाहुतिर्यथाकात्यायनसूत्रेपूर्णा ॥३५३२॥ हुतिं जुहोनिनिरूप्याज्यंगार्हपत्येधिश्रित्यनुक्खुवं संगृज्याज्यमुद्दास्योत्पूयावेक्ष्यगृही For Private and Personal Use Only भास्कर Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वान्वारब्धएव सर्वत्र ॥ ॥ अत्रैवंप्रयोगः ॥ ॥ यदावसयिकस्य अनादिष्टंप्राप्नोति तदा भिः संभृतएव ॥ यदिनिरग्नेस्तदाशद्वायांभूमौ उक्तमानेन स्थंडिलंविरच्यतत्रपंचभूसंस्कारान्क त्यालौकिकाग्निंस्थापयित्वास्थाल्यामाज्यंनिर्वाप्याग्ग्रावधिश्रित्यस्स्रुवंदर्भैः संमृज्याज्यमुद्दास्य कुशतरुणाभ्यामुत्पूयावेक्ष्यस्स्रुवेणादायोपरिसमिधंनिधायोत्यायस्स्रुवंसव्येनत्वादक्षिणेनाग्नौतिष्ठन्समिधमाधायोपविश्यदक्षिणं जान्वाच्य ओंभूः स्वाहेतिस्स्रुवस्थेनाज्येनैकामाहुतिंहु त्वा ॥ इदमग्नये नममेतित्यागः एवंसर्वत्र ॥ ॐ भुवः स्वाहा ॥ इदंवायवे ० ॥ ॐ स्वः स्वाहा। इदंसूर्याय० ॥ ॐ भूर्भुवः स्वःस्वाहा ॥ इदंप्रजापतये ॥ ॐ त्वन्नो अग्ने० मुग्ध्यस्मत्स्वाहा ॥ For Private and Personal Use Only Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार इदममीवरुणापत्या ॥ सवन्नो अग्ने नएधिस्वाहा॥इदमग्रीवरुणायो॥ ॐ अयाना भास्कर ॥३५४ मे भेषजः स्वाहा॥ इदममये अयसे०॥ ॐ येतेशतं स्वर्गःस्वाहा॥ इदंवरुणायसवित्रे विष्णवे विश्वेभ्योदेवेन्योमरुद्भयः सर्केभ्यश्च०॥ॐ उदुत्तमं स्यामस्वाहा॥ इदंवरुणाया दित्यायादितयेच०॥एवंनुवेणादायाज्याहुतिर्जुहोति॥ ॥ इदंनवाहुनिहोमात्मकंयत्रय प्रायश्चित्तानादेशः कर्मणानियतकालातिकमोवातत्रतत्रानादिष्टसंज्ञकंप्रायश्चित् वेदितव्य म्॥ ॥ इत्यनादिष्टप्रायश्चित्तम्॥ ॥ग्रंथाननेकानालोक्ययथामनिमयारुतः॥याशि | । कानांहितार्थाय श्रीरामचरणार्पितः॥१॥ मूनवरसाशाके १६२१ प्रमाथिनिकले | For Private and Personal Use Only Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मधौ॥ ऋषिसंज्ञेनरचितः सर्वसंस्कारभास्करः ॥२॥ ॥७॥ ॥५॥ ॥ अयं षोडशसंस्कारमयोगग्रन्थो मोहमय्यां राजधान्यां सोहनीत्युपनामधेयस्प नाराय| णस्य जगदीश्वराज्ये मुद्रणालये शिलायन्चेशके वांडूर्षिभूमिते१७९९ अधिक शुक शुक्ला ष्टम्यां भास्करवासरे चामुद्यत. नसकलेशःप्रसीदतु. हा ग्रंथ सन् १८६७ च्या२५व्या आक्या प्रमाणे रजिस्टर केला आहे. किम्मत ३रुपये For Private and Personal Use Only Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir i W .wananananananatan ODAROYIDA namanrayaran HAMIYYAYIWW ( Solo SK RS YAYAYAMAYAN KHU इनिसंस्कारभास्कर समाप्तः HOWA TOYYYYYYNTITY non BUDDUUUUUUUUUUUUUUUUU DUDU one For Private and Personal Use Only Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only