Book Title: Arya Shatak
Author(s): Mudgalacharya
Publisher: 
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . / / कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः / / / / अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः / / / / गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः / / / / योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / / / चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / / आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक :1 जैन आराधना महावीर न केन्द्र कोबा. अमतंक बा ते विद्या श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websit: www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - 380007 (079)26582355 For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 175 Pre अथमुद्गलाचार्यरुतार्याशतकप्रारंभः HISCUSE 4 . 6 SASRASha % 3D For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आ श्रीगणेशायनमः॥श्रीसीतारामचद्राश्यानमः।। सीतालजासमासक्तरामऊल्पमहारुह॥सफलं शीतलच्छायंांतविश्रांतिदंभजे॥१॥मह्ममुद्गलभट्टेनरामचंद्रप्रमोहता।भार्यारत्नस्तनिस्त स्याव्यारव्यानं क्रियतेस्फुटं॥२॥तवप्रथमंतं त्वयीति हेरामभद्र खयिसकलांतर्यामिणीश्वरेषि |मुवाननुकूलेसति श्रवणादिक्षज्यानाराधितत्वात् वर्तमानसामीप्येवर्तमाननिभविष्यदर्तमान त्वयिविमुरवमरवमुरव्येसरव्येनान्यस्यकस्यजीवामि॥जीवामिनभवदर्पितवसना शनमात्रजीवनासर्वे॥१॥ // 2 सामीप्यलट किंलक्षणेत्वयि मरवमुरव्य मरखेषुयज्ञे षुमुरव्येषधाने यज्ञोहवै विष्णुरितिश्रुतेः ईज्यत्वेनफलदातृत्वेनवामुरव्यत्वं एवंभूतंवाविहाया न्यस्यकस्यदेवतांतरस्यसरव्येनानुकूल्येनजीवामिनजाषिष्यामात्यर्थः॥ नवसरव्येनैवजीवामान For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir दिनीयजीवामातिपदस्यार्थः नहिअहमेवजीवामितुपुनः अवदर्पितवसनाशनमात्रजीवनासर्वे पाणिनः भवंतीतिशेषः सर्वपाणिनांत्वमवयोगक्षेमनिर्वाहक भक्तानांयोगक्षेमनिर्वाहकइत्यत्र किमुवक्तव्यं यहाजीपामिनेतिमुरव्यपाठे मात्रकायैवधारणेइत्यमरः भवतायअर्पितमितंप रिमितंवसनाशनमा वसनाशनमेववसनाशनमावं यस्ययावदुपयुक्ततेनसर्वेजीचा पाणिनःजीनिस्वस्यजीवनोपायंकुर्वति इतरेश्योयत्किंचिदातुमशक्का आधिकाभावादतस्तेषांसरव्येनममजी |वनंनभवेत्नवसरव्यनभवेदेव तचममसरव्यमेवादोकथंइतिचेनहासपीसयुजासरवायासमानंद |क्षपरिषस्वजाने तयारन्यपिपलंस्थाइत्यनभन्नन्याभिचाकशीतिइतिश्रुतिपसिरमित्यर्थः॥श्री राम नवसरव्येनभजनेनयज्जीवनंतदेवजीवनमन्यदेवतासरच्येनसेवनेनयज्जीवनंनतज्जीवन मितितात्पर्यम्॥१॥ // 2 // // 9 // For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म . मुआ|| || ननुहेमूट त्वामहंनपश्यामि तवयाणीनश्चणोमि त्वांनयेमि एवंसत्तिममेवानुकूल्यंकिमितिचेत्तवाह परित पश्यसि हेरामचंद्रत्वंपरितःसमंतासश्यसि जगत्सर्वपश्यसीत्यर्थः अभितःपरितःसमया|निकषाहामतियोगेपिहितीया परितः शृणोषिसर्वशृणोषीत्यर्थः परितःसमंताजगदिजानासि ||सर्वजगदिजानासीत्यर्थः अपाणिपादोजवनोगृहीतापश्यत्यचक्षसशृणोत्यकर्णः॥सवेतिवेयंनतु परितःपश्यसिपरितःशृणोषिपरितोजगद्विजानासि॥ मांरामकिंतदंत शृणोषिनवीक्षसेनवावेसि // 2 // 1 तस्यवेत्तातमाहुरय्यंपुरुषपुराणं इतिश्रुतेः हेरामएवंभूतस्वंतत्तस्मात्कारणात धोत्राराअंतःकरणेममवाणीकरुणारसयुक्तांपार्थनारूपांनिशृणोषिअपितुणोषीत्यर्थः यद्यातस्यजगत विश्व स्यांतर्मध्येवर्तमानस्यमेवाणींसमानमन्यत किंमानवीक्षसे निवेत्स्यपितवेत्सीत्यर्थः सर्वज्ञलादिनिभान R For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननुलौकिकदृष्टांतेनमांजानासित्वामहंनजानामीतिचेत्तत्राह जानातीति भूपंसाधीममल्प: दरिद्रजानातीति अल्पभूपानजानातीत्येतत्नस्यउचितमुपपन्नयोग्यसकलमविज्ञपसर्वज्ञत्वा भागादित्यर्थः सर्व त्वय्यदसकलमिदंकिंचिज्ञवंकथंलाध्यंसकलानुसंधानयोग्यमेवेतिभाव जानातिभूपमल्पोनाल्पंजानातिभूपइत्येतत्।उचितंसकलमविज्ञेसर्वज्ञे त्वय्यदस्कथंश्लाध्यं॥३॥आर्थिनिविलसतिलिप्सादातरिदित्सा तुदूर तोपास्ता॥आस्तांरुपणकथेयरमायतरामनोचिताभवति॥४॥॥ ॥३॥पुनरपिलोकदृष्टांतमाशंक्याह आर्थिनीति अथिनियाचकेलिप्साबव्हर्थप्रातिरूपेच्छाविलसत्याविर्भवति दातरिदित्सातुदातुमिच्छातुदूरतोपास्नादातरिरानेछानास्तीत्यर्थः लौकिका रांतेतुसंभवतिरुपणत्वादितिभावः खयितुरुपणकथेयमास्तांनसंभवतिकुतः हेरमापतेइति For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु- आसापेक्षेसंबोधनं लक्ष्मीपतिवादेवीदार्यशक्तिगुणयुक्तत्वयिनरुपणकथासंभवतिभावः॥४॥ इदानीलौकिकदृष्टांतेनोपालंभयन्मार्थयति अपिरंकमिति रकंदरिद्रपितरमंकनिष्ठः उत्संगार न्हयारकइत्यमरः अर्भकाकिंचिनियंपार्थयमानास्लेटंपार्थितंतादृशादपिलभते इदंतुचित्रंगह अपिरंकमंकनिष्ठ प्रार्थयमानोभकोलभेतेष्टं। कष्टंबतजगदुद्भवावदं कगतोलभेनतद्भवतः॥५॥आशापाशनिबडंकारागारेकलेवरेनिहि तं॥यदिमोचयसिनमांवंकुरुतर्हिस्वान्मनैवमेत्तिम्॥६॥ // नं कष्टंतुरुगहनेइत्यमरः यज्जगदुईवहेजगदुत्पत्तिकारण भवदंकगतोप्यहंममष्टंभवलातिलक्षणंभवतानलभेतन्महदाश्चर्यमित्यर्थः॥५॥इदानीनियम्यनियामकभावनप्रार्थनांकरो- ति आशापाशनिबदमिति आशैवपाशआशापाशस्तननिबन्डंबडंकारागारकलेचरेनिहितं कारा|| 3 For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गारेकारागारसरशेकलेवरेशरीरेनिहितंक्षिप्तलोकेयोऽत्यंतापराधीतंबध्वाकारागारक्षिपनि तहहः खकारकत्वादित्यर्थः हेरामतस्मात्कलेवरलक्षणाकारागारात्त्वंयदिनमोचयसिननिष्कासयसितर्हिस्वा त्मनेयमेवृत्तिंकुरुस्वयमेवजीवनोपायंकुर्वित्यर्थः तवभजनानुसंधानेनैवममजीयनंजीवनसार्थकता यथाभवतितथात्वमेवसंपादयेनिभावः॥८॥पुनरपिषधंउपालंभयति अनुचितमिति हेरामनायदि अनुचितमिदमेवादोश्रीमहारिस्थित्ताप्यहंदीनः॥व्यथयनिकनहित्वांममह / // तिस्तदनुमानवाधीना।।७॥ 7 // दमेवानुचितमेवादी किंतयत्रीमद्वारिस्थितोप्यहंदीनः सर्वसंपत्तिपरिपूर्णस्यभगवत-संनिधौसेवकत्वेनस्थितोप्यहमनवाप्तकामएवेति हेरामत्वत्सेवकस्या पिममतदनुमानयाधानात्तिस्तदनुईश्वरस्वरूपादनुहीनायेमानवास्तदधानाहीनेत्यनेनसूत्रेणानोकमप्रवचनीयसंज्ञायांतद्योगेहितीया मनुष्याधीनजीवनलंखांनव्यथयतिकथममजीवनचिंतांनकरोषीत्य नुचितमितिभावः॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुआ इदानीभगवतःसामर्थ्यकथनपूर्वकमुपालंकरोति त्रिभुवनपालनदीक्षितेति त्रिभुवनपालन दाक्षितजगपालनसमर्थहेश्रीरामतवपालनविषयिणीयाशक्तिसापीयमक्षताऽव्ययापूर्णेत्यर्थः हिप्रमोत्वंसमर्थः पालनेतवशक्तिरपिपरिपूणेत्येवंसत्यपिसामान्यमिवविशेषयथासामान्यपरि हत्यविशेषागृयतेनहन्मांपरिहत्यकिंसर्वतःस्फुरति तवशक्तिर्यथासामान्यविशेषशास्त्रयोपान विभुवनपालनदीक्षितरक्षणशक्तिस्तवाक्षतापीयम्॥ सामान्यमिवविशेषंकिंमांपरिहत्यसर्वतःस्फुरति॥॥ मौसामान्यविहायविशेषशास्त्रमेवगृह्यते नहिंस्यात्सर्वभूतानीतिसामान्यशास्त्रंबाधित्वामा || योमीयपक्षमालभेततिविशेषशास्त्रमंगाकियते तहन्माविहायसर्वतस्फुरतिमांत्यत्कासर्वपालनं 4 करोति यहासामान्यमिवविशेषं विशेषमित्याकाशमुच्यते विशेषमेकमाकाशंपरिहत्यबहुत्वेगवादि|| For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घुसामान्यंगात्वंप्रसरतिसारव्यकुत्तस्त्वमेवमाक्षिपसिचेद्यस्मान्मांविहायसवैषांपालनंकरोतीत्या र्थः यहाविशेषंगवादिसमूहांतपातिनंमामेकंपरित्यज्यसामान्यंगात जातिः सर्वत्रस्फुरतिदिन तर्हिकुत्तोनपासीत्यर्थः॥ // ननुत्वमपराध्यसिअतस्तवापेक्षेतिचेतदर्थवदति यदीति यदिए, यदिपुनरपराधानांकोटिभिरंतर्विषादमायासि॥पत्ता डितापिबालेरुण्यतिकिमितीहमानुषीजननी // 9 // नर्ममापराधानामविनयानांकोरिभिसमूहे अंतर्विषादंमनसिको,समायासिनेदमुचितंतवस्या लुवादित्यर्थः हेरामपातलोकेपि बाले जननीपत्ताडित्तापिपाहतापिकिरुष्यतिअपितुबहु शस्तष्यतिरुपाभरेणस्तनपानादिकारयत्येवमानुषीसतीलंतुदेवोसीत्यतउपेक्षाकरणवत्तयिनोचिनमि, तिभाव For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ इरानीस्वस्मिन्नपराधत्वमगीरुत्याहममकोवापराधाइति अयोनि हेराघवतथ्यंवदसत्यंब्रूहि तवा स. यंकोपःनिर्दयत्वव्यंजकलक्षण केनमदपराधैनेतिवद हेदाशरथे तवदशरथपदयोःशपथ यदिस त्यंनवदसिवाअन्यथावदसितवकोष्यराधोनास्तीत्यन्यथापादोनकर्तव्यइनिभायः मातृर्वसियादि। अयिवदराघयतथ्यंकोपायंकेनमदपराभेन॥शप थस्तेदाशरथेदशरथपदयोर्यदन्यथाब्रूषे॥१०॥ गुरुनपरिहत्यदशरथपदयोरेशपथ किमितिचेत्मावृणामाज्ञामथगुरुणांवसिष्ठादीनामाज्ञा मनंगीसत्यात्यादरेणपितुर्दशरथस्यैवाज्ञायास्त्रीरुतलासुत्रधर्मपरिनिष्ठिताजावतोवाक्यकरणमि त्यादिरूपगुर्वथैत्यक्तराज्योदशरथस्यार्थसंत्यक्तराज्यादिवेभवोरामस्तचरणयोःशपथेदत्तेनान्तंबदि For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यत्तात्याशयेनेत्यर्थः लोकेपिपुत्रस्यपितुःशपथव्यवहार प्रसिद्धः॥१०॥ इदानींसत्मिकत्वान्द यालुत्वाच्चममक्केशान्दृष्ट्वादयाऽवश्यंकर्तव्यनिषार्थयति मामिति हेश्रीरामेहास्मिन्संसारेमांसपण मनाथंदरिद्रमनन्यस्थापितंक्लेशैप्ति क्लेशास्तयोगशास्त्रोक्ताअविद्याअस्मितारागद्देषाभिनिवेशाः पंचतेप्तिचितं रमेशरमापते कयंभूतक्लेशैःनिःशेषेसमग्रेकिंभूतंमालोल जपदमस्तकंसाशंगंप मामिहरूपणमनाथक्केशाप्रमेशनिःशेषैः॥लोल गुजपदमस्तकमवलोक्यकथंस्थितोसितूष्णीत्वं // 1 // णमंतमित्यर्थः एतादृशंमामवलोक्यकथस्थित्तोसितूष्णीं दयानिधेरिदंतवमोचितमितिभावःmml ननुमयिदयालुत्वंकुताआगतमित्याशंक्याह करुणाकरइति हेरामकरुणाकरइत्याद्याविरुदमाला लक्षणमाला:लक्षणसमूहाः दीनदयाकरइनिराणप्रसिहास्तासःरथैःरथादिवाहनैपियांति For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shil kailassagarsur Gyanmandir मु-आ स. वाहयितुमशक्यास्तासांचहुत्वादितिभावः अतःशरणागतमनिरुपणं स्वरूपानभिज्ञयोगागाग्र्येन दक्षरमविदिलास्पा लोकाननिसरुपणइनिधुनः अत्यंनदरिद्रमेतारशंमाहेरघूत्तंसरघुकुलभूषणकिंस सुपेक्षसेउपेक्षांकरोषानि॥१२॥ करुणादिलक्षणानांबाहुल्याच्छ्रतिस्मृतिपुराणगीतलाञ्चमयिकरुणा करुणाकरइत्याद्यानरथैरुपयांतिविरुदमालास्ते॥शरणागतमतिरूपणंकिंमांसमुपेक्षसेरघूत्तंस॥१२॥कुरुवाराघवकरुणांमयिदीनवांशर णमापन्ने॥शरणागतवत्सलइतिनिष्टपगीतंजहीहिवाबिरुदम्॥१३॥ वश्यंकर्तव्यनिषार्थयति कति हेराघवयस्मात्त्वमेवंतस्ततोमयिदीनानाथेकरुणांकुरुकिंचिशे षमयित्वांशरणमापन्नेशरणागतकरुणांनकरोषिचेछरणागतवत्सलइतिविष्टपगीतंबिरुदैवेदादिभिः॥ 6 स्तनंजहीहित्यजेत्यर्थः होहाक्त्यागेअस्माातोलोटिचहावितिसूत्रेणजहीहिरूपवयम्॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इरानीत्वयैववाच्यंसेवांविनामयाकस्यापिकिमपिनदीयतइतिचत्तदर्थवदनि सेवामिति सेवाम पेक्ष्यदातासेवांगृहीत्वाददातिसदानानभवतिकिंतुवेतनाराना येतनामयस्ययारशीसेवानामपे श्यतस्यताक्रमादिदानमितिवेतनशब्दार्थः तस्मादातृतकिनामेत्याकांक्षायांवदति सेवाहीनति सेवाहीनेरीनेसेवारहि तेअनाथेयः ददानिसदाता तबदृष्टांतः यथापल्वलेअरवाताल्पसरोवरेसेवा सेवामपेक्षदातानाहिदाताकिंतुवेतनादाता॥सेवाही नेदीनेपल्बलइवदेहिजीवनंघनवत् // 14 // 5 होनेकशेपिघनःजीवनंप्रयच्छति तहत्तवापिममसेवामनपेक्ष्यैवरूपाविधेयेतिभावः॥१४॥ स्वामिभिरेवंवक्तव्यंतवपूर्वजैसेवयैवमत्तः किंचित्प्राप्तमितितवापिसेवापेक्ष्यते तोवदति से वकवंशभवत्वादिति सेवकवंशावत्वादपेक्षसेसेवांमयारुतांसेवकवंशजोहं इतिमत्कनासेवांगन For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ स. ताक्षसत्वयितन्नयोग्यंकुतन्यतालसमपिसेवांक मयोग्यमपिसेवकसतंपृथ्वीशामहाराजानम्ता दशमपिपरिपालयतिरक्षतिभोराघवलंतुत्रिभुवनेशोसित्वयात्ववश्यमेवाहपालनीयइतिभावः॥१५॥ हिरामचंद्र मत्यूर्वजैखोदरपूरणार्थमेवनाराधित्तास्यपितुसंततिरक्षणार्थमपीत्याह नहीति नहिनि सेवकवंशभवत्वादपेक्षसेचेन्मयाहत्तसेवां॥अलसंसेवकसतमपिराधवपरि पालयंतिपृथ्वीशाः॥१५॥नहिनिजजाठरवन्हर्जयायमपूर्वजार्जितोसित्वं किं त्वज्ञालससंततिसंतनपाडापरंपराशांत्यै।।१६॥ जजाउरवन्हेर्जयायमपूर्वजार्जि तासित्वंनिजस्वकीयोजाठरवन्हिवैश्वानरस्त्तस्यजयायान्नपानादिनातृप्त्यर्थमपूर्वजैर्ममपित्रादिभिनों, पार्जितोसिनाराधिनोसिकित्वज्ञालससंततिसंततपाडापरंपराशांत्यै अज्ञाऽलसाचयासंततिपरंपरात स्यान्यासंततंनिरंतरंपीडा शनवसनादिकृताधिस्तस्याःशांत्यैतन्निवारणार्थमित्यर्थः॥१६॥ 7 For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोदयानिधेत्वयियत्काठिन्यमहिषयकंनदेवममाश्चर्यवद्भातीत्याह चित्तेति चित्तचमत्कनिकार, गंममचित्तेचमत्कत्तिकारणमाश्चर्यकारणंकिंतदित्याह इदमेवेहत्तावत्कारणंयन्परिषयकंभवन सश्रीमत्तकाठिन्यनिर्दयलंनतुत्वयैवंवक्तव्यमयिकाठिन्यंनास्तीनितदनुतर्हिसेवकलोकेस चित्तचमत्कृतिकारणमिदमिहतावद्भवसकाठिन्यम्।। तदनुचसेवकलोकेलोकेशकथंकगेरतांयासि॥१७॥ इत्यादौमद्रूपेहेलोकेशत्रिभुनपनेकिमितिकठोरतांयासिनिर्दयतांगच्छसिएतत्त्वयिसर्वेश्वरे नोचितमितिभावः॥१७॥ इदानीत्वंममजनकोस्यहंतवबालोस्मिइतिमत्वाममप्सितंदेहीनिषा र्थयति अंकहनि भोप्रभोतवांकेतवोत्संगेकिंभूतेउसंगेगतपंकेअत्यंतनिर्मलेगोष्यमासान For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मुआ |स्थितंशिशंपाहिरक्षय हेलं शरिपोशत्रुमकथंभू शिमंत्वन्युस्यसौरभचर्चिततांबूलाशंभवन्मुस खसौगंध्यसरभियस्तांबूलन्तस्याशाविद्यतेयस्यनंतांबूलाशं॥इदानीजननासत्वेनस्ताति उजुकामति हेसिंदूराचलवासिनिरामाभिधेमात-पाहिस्या कमां सिंदूराचउवासिनीनामारणार अंकेतवगतपंकेलंकेशरिपोनिपोष्यमासीनीत्वन्युररसोरभचर्चिततांबूला शशिशंपभोपाहि॥१॥चुचुकंसनपुरवतायैकरणकर्षतमकमातः॥सिं दूराचलवासिनिमामिहरामाभिधेपाहि॥१९॥६॥ लगासिनीत्यर्थः यहा। सिंदूराचल पासिनीरामक्षेत्रवासिनीतत्रत्याभूधरः सिंदूराचलनाम्मानिप्रसिद्धः कथंभूनंअर्भ स्तसन्मुरवतायैमातुश्बुकमुखस्याधोभागकरेणकर्षतंबालानांस्वभावएवैषम्यन्मानास्वसन्मु- // 8 खनपश्यनिचेत्स्वकरणस्वाभिमुरवीकरणंस्वाभिमुखीकर्तुंमुखस्यक्रियते॥१९॥ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननुजगदीश्वरे धृष्यमयितयधृष्यतायोग्यत्याशस्याह उचितेति उचितात्यधृष्यताउचितायो| ग्यात्यधृथ्यतानामनिकटेस्थित्वासंभाषणादिकरणाभावः साधृष्यता प्रत्यार्थरूपेषुसामतेपुत्र तिदेषयोग्याउचित्ताना केपोष्यमस्युचिता तथाहि वत्सलत्ताधृष्यनयोसहावस्थानमनुचि उचिनायधृष्यतातेप्रत्यार्थपेषुना केपिमयि॥व सलताधृष्यतयोगेव्यिाघस्येववनवैरम् // 20 // नंगोव्याघ्रयोरिववैरभावात्वात्स्यल्ययोग्यमय्यधृष्यतानसंभवतीति॥२०॥ इदानीमा करधनेनानुवदति पितरापिति हेरामयत्रपितरोजननीजनकोविभिन्नीतत्रान्यतरेणजसन न्याजनकेनयाशिशोजविनंपालनं भवति ममनूभयंमातापितृरूपत्वमेवएवंसतित्वनि For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ करुणाभवसितर्हिमयाकिंकर्तव्यंकस्यायेक्त्तव्यमितिभावः॥२१॥ इदानींसर्वज्ञत्वात्करुणानिय चनानिममनशृणोषीत्यपिवउँनशक्यतइत्याह नशृणोषीति दीनभाषांकरुणावाणीनशृणोपिना कर्णयसीत्यपिवक्तुंनशक्यते सर्वज्ञत्वात् ननुतहिश्रुत्वातूष्णीस्थित्तोसातिवाच्यंतदपिनसं पितरोयत्र विभिन्नोतवान्यतरेणजीवनहिशिशाः।।उभयंत्वमेवमेतत्त्वयि निष्करुणेकरोमिकिराम॥२१॥नशृणोषिदीनभाषामितिसर्वजनशक्यते वकुम्॥श्रुत्वास्थितोसितूष्णीमित्यपिवचनंदयानिधीनिंद्यम्॥२२॥ भवतीत्याह श्रुतेति श्रुत्वासमाकर्ण्यस्थित्तासीत्यपिवचनंदयानिधौकरुणासमुद्रेलयिनिंयमयोग्यंका . |णावंतईश्वरादीनभाषांश्रुत्वातूष्णींनतिष्ठतिकिंतुउपकुर्वतानिभावः॥३३॥ 5 For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननुदयालवापिप्रभवोन्यव्यासंगासक्तायन्यवचनानिनाकर्णयंतीन्याशंक्याह किमिति हैजा नकीजानजानकीजायायस्यसजानकीजानिः जायायानित्रणनि-किंवातद्गुरुकार्ययध्यासंगेनयबासक्तत्वेनमेममदीनानिवचनानिप्रकटस्फुरंतवकर्णपथेनायांतिनमाप्नुवंतिमह किंवातगुरुकार्ययय्यासंगेनजानकीजानादीनानिमेव चांसिप्रकटनायांनिकर्णमार्गते॥२३॥ कार्यव्यासंगेनममभाषांनशृणापीत्यर्थः // 23 // इदानींयुद्धादिनाथांतलेननशृणोषीत्याशयेनाह प्रायइति हेरामप्रायोबहुधैवलक्ष्यते राक्षसयुद्धेअंत्यंतंत्रांतत्वाछेषेअनंतपयंकेसयथास्यात्तथाशेषनिद्रितोसि ननुनिद्रितोसीतिकिमित्यारोप्यते अनआह यत्तीयस्मात्का For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु.आ. ||रणानभृशंजल्पत्तोमेऽत्यर्थवदतोमेममकरुणानिवचांसिनावधारयसिनाकर्णयसिततोलक्ष्या| स. |नेलोकेयोयत्यंतश्रमवशात्सप्तोभवतिसकिमपिनजानातिनशृणोतीनिभावः॥२४॥इदानी वचनानामत्यंतकरुणामयत्त्वात्तानिश्रुत्वाअचेतनाअपिद्रवंतात्याशयेनाह अपीति अपिटलति प्रायोराक्षसयुद्देश्रांतःशेषनिशंसरवंशेषे॥यज्जल्पताशंमेकरुणानिवचां सिनावधारयसि॥२४॥ अपिदलतिवजहृदयंमचनैरोंदतीवपाषाणः॥ किंवामयापराईयत्करुणाधिर्भवानुदासीनः॥२५॥ 2 // चचटदयंममकरुणावचनैर्वजांतरमपिदलनिविदाणंभवतिपाषाणोपिरोदतीवरोदनंकरोताच |ययपिवज्वपाषाणादीनांदलनरोदनेनसंभवतस्तथाप्यत्यंतकरुणावशादपिभवतएवेत्यर्थः है। रामएवंभूनेमयिकरुणाधिरपिभवानुदासीनइनिमहराश्चर्यमितिभावः॥२५॥ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir इदानीमनन्यसरकंकरुणावचनानिजल्पतंत्वयाऽविगणितंमालोका उपहंसतीत्याशयेनाह जल्पंनमिति जल्पंतंवारंवारंकरुणावचास्युदीरयंतमल्पबुद्धिमज्ञमांत्वत्लपामपश्यंतामयित्वल पापांगमपश्यनालोकास्थूलबुद्दयउपहसनिउपहासंकुचीतमांपश्यंतम्सनःहेशोकारेरामशोका-|| जल्पंतमल्पबुद्धिपश्यंतस्त्वरूपामपश्यंतः॥मामुप हसंतिलोकाःशोकारेरामतत्तवाश्लाथ्यम् // 26 // पहरणसमर्थरामचंद्रनत्तवसाध्यंयोग्यंनभवतिशीघ्रमेवस्वकीयेरुपाकर्तव्येतिभावः॥२६॥ || इदानीमयंदाभिकोभवतीतिश्रीरामोनुयहमेतदुपरिनकरोनातिलोकःशंकतेइत्याशयेनाह क्षी रेणेति क्षीरेणदग्घजिहाउष्णक्षीरेणज्वलिनजिव्हापामरजनःशीनलंनकमपिफूलत्यपिपति For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धवलिमासाम्यात्तन्न्यायेनदंभिनंजनमवलोक्यमामपिभिनलोकःशंकततर्कयति किंभूतमात्व यात्यक्तमननुगृहीतंतवानुग्रहाशावादयमापदांभिकभक्तइत्याशंकास्पदमितिभावः॥२७॥ इदानींकरुणामृहुभावान्नायपरकीयइतिषार्थितनप्रयच्छसिचन्माप्रयच्छ सामिसेवकभावनत्वव क्षारणदग्धजिव्हस्तकंफूलत्यपामर पिबतिरंभिनमवलोक्यजनस्ताइन्मांशं कोत्वयात्यकं॥२७॥मयिकरुणामृदुभावायदिनाभाटंकरोषिमाकुरुतत्॥ स्वस्वामिभावमीशसीयंप्रकटीकुरुधमाकुरुतत॥२०॥ 5 श्यमभीएंदेहातिमार्थया ति मयीति करुणामृदुभावादपियदिमपिनाशीरंकरोषिस्वाभिलषितंनप्रयच्छसिमाप्रयच्छमस्या भारहेईशप्रभातर्हिस्वस्वामिभावस्वामित्वंप्रकटीकुरुषईशेनिसंगेधनराज्ञांसामिलपोतनार्थअस्मिन्पयेस |स्वामिभावमित्यत्रस्वस्मिन्स्वामिभावावस्वामिभावइनिनोचे स्वीयमितिपदेनपुनरूतताशेष समायानिमा // 2 // For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदानीस्वस्मिन्दोषारोपस्तोति ननुमन्मंत्रजपएदतवाभीष्टंदास्यनिस्मिसार्थनयतिवेत् पायसइनि हेरामचंद्र यथापायसेपायसान्नक्षिप्तंसर्पिःपुष्टयादिकार्यकरोतितथाभस्माननिहितक्षिप्तंकिंना ||मकरोतिनकिमपिकरोतीनियरष्टांतइत्यर्थः नहनवमंत्रजपस्तवनामस्मरणंपापिनिमयि | पायसइवरामसपिस्मिनिनिहितंकरोतिविनामात तवमंत्रजपःपापिनिमायकिंकरोतिवाभीष्टम्॥२९॥ |किंवाभीष्टंप्रार्थितंकारोतिनकरोतीत्यर्थः॥२९॥ हेमूदममनामनारंतवदोषारयंवन्हिंप्रशमयि व्यनि एवंचेत्तत्रपुनरपिस्वकीयदोषाधिकरणमेवकरोति संतति संतप्तारामपिंडेप्रतप्तलोह | पडेवार्थीपजलमपिक्षिसंसभस्मीभवतितरन्नित्याशीनित्यंमलिनक्तियमंत्रजपोपिभस्म, For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स. साद्भवतिभस्मपायंभवतिमंत्रस्यतुभस्मनसंभवतिनित्यत्वात्तथापिशडतालक्षणकार्यप्रतिबंधएका वलक्षणीयः॥३०॥इरानीहेरामत्त्वयाइदंयरक्तव्यममनामजपोलौकिक क्षारस्तद्भावनातानष्टेप तिबंधकपापमलतवाभीष्टसिद्धिरतामन्मंत्रजपएवकर्तव्यइतिचेसापरूपएवाहंतस्मिन्मयिमं संतप्तायसपिडेवायपिभस्मीभवत्यपाक्षिप्त नित्याशीचेतन्मयिमत्रज पोपिभस्मसाद्भवति॥३॥ मालिन्यदोषभात्यापृथग्विधेयंनुमापराशेः किंमत्तशरीरपापासापंकिंवाजपत्करोतिपृथक // 31 // बजपोमालिन्यकिमपाकरिष्यत्तीत्या लिन्यत्वायेन माषराशेमालिन्यंश्यामवंकिंदूरीकर्तव्यंखभावसितुदूरीकर्तृनशक्यतेतहन्मंचमत्सकाशाशा शरसकाशान्शरीरपापात्पापंतवजपाकिंपृथक्करोतिनकिमपिपृथकत्तुंशनातीतिभावः॥३१॥ For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननुवंदोषान्वदसिकिमित्याचरसित।रानीपापिपापनकर्तव्यमितिलोकसमक्षंवदन्नपिकरो |तिएवंसदृष्टांतमह कुरिति कुरुमासाहसमित्थंजल्पन्साहसंनकर्त्तव्यमिनिजल्पनवदनपक्षीप क्षिविशेष सयंपाषाणभिनत्येवविदारयत्येवजानिस्तभावान्तहलापनिंदाभिपापंकुत्सितमि कुरुमासाहसमित्यंजल्यन्पक्षाभिनत्तिपाषाणं॥तद्वत्स हजैदेषैिःपापंनिंदामिरामकुर्वेच // 32 // 5 निवदामिकरोमिचेचदुष्टस्वभावानरामलयामरिषयकिरणीयमित्यर्थः॥३२॥ ननुचंदनतरु संसर्गेमचंदनोपितरुनंदनोभवतितथामन्यनजपा दिनामसंसर्गेअरोषस्यादेवेतिचस्वभाव सिरदोषाअपरिहरणीयाःप्रयलशेतैरपीत्याशयेनाहः मृगमदभूमाविति मृगमरभूमौजनिताक For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ- स्तूरिकालवालसमुत्पन्नम्पलांडुन्दुगंधकंदविशेषनकायंरोपंदौगंध्यलक्षणंनजहानीत्यर्थः हेदै स |वेशरामभद्रतवदासोप्यहंजातुकदाचिदपिस्वकीयंदोषंनत्यजामिजातिस्वभावाहित्यर्थः॥३३॥इण नाअत्यंतंपापिष्ठश्चेत्तहिप्रायश्रित्तादिनातरशहि भविष्यतीतितदपिनसंभवतीत्याह सरुतिन मृगमदतमीजनिनोजहातिदोषंनिजंपलांडुकिंतहतवदासोहंत्यजा मिदोषनजातुदेवेश॥३३||सहतिनईषसापपायश्चित्तरघूत्तमोतं॥ अपयातिमामुदीक्ष्यप्रायस्तदपाहगोरिवव्याघ्रम्॥३४॥ 5 // इति सरुनिनाबहुपुण्यवतःपुरुषस्पषत्पापसमुसन्नेनसरिहाराथेराघवपायश्रितंपोक्तचिहिवंशान णेत्यर्थः हेरघूत्तमतदपिपायश्रित्तमपिमामु राक्ष्यावलोक्यापयातिदूनःप्रयानिशरिकार्यनक- 3 रोत्तिमदीयपापस्यमहत्त्वादित्यर्थः व्याघ्रदृष्ट्वागौरिवगीर्यथादूरंपलायनतइदित्यर्थः॥३४॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ननुपापसंरव्याकंप्रायश्चित्तंविधेयंततःसर्वपापापगमेसतिरुत्तार्थस्यात् इतिचेसापसरव्यवनावग म्यतइत्याह परिगणनेति भगणानांनक्षत्राणां नक्षत्रमशंभतारेत्यमरः परिगणनासंरव्याऽथच परमाणूनांसमंततःसर्वेषांगणनाभ विताभविष्यतिपरंतुहेराममकतानांपापचयानांपापसमूहा परिगणनाभगणानां भवितायदिवासमंततोगूना॥राघवपापचयानांनमकता नांभवेदियंकचन॥३५॥ सर्वज्ञताश्रुतातेसत्यवदरामकिंकरोहंते॥मत्कतदु पतसंख्यांयथार्थतोवेसिनिवासि॥३६॥ २॥नाभियत्ताकचनकदापिनवे ततेषांअपरिमितत्वादितिभावः॥३५॥ इदानीरामचंद्रप्रतिपृच्छति सर्वज्ञेनेति हेरामतेतवसर्वज्ञत्ताश्रुतास वज्ञवयासर्वज्ञःसर्वविदित्यादिश्रुतिष्पपिश्रुतमत्तोसत्यंवदाहंतवकिंकरोस्मीतिकारणात्सत्यवक्तव्यं सर्वज्ञत्वात्मकृतदुष्कृत्तानांसंरव्यांयथार्थतीवेत्सातिसत्यंवक्तव्यमित्यर्थः॥३६॥ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आ. 14 इदानींकिंबहुप्रार्थनयास्वामिभिसर्वथापालनीयवाहमिनिप्रार्थयति अपराधिनमिति हेरघूत्तंससी. रघुकुलभूषण अपराधिनमितिसंचर्मणप्रवृत्तीयथेरंप्रयोगन्यायसिइइतिवचनासंधमे पस धमितिअनेकधाप्रयोगइतिबोध्ययथासर्प सस्तिदसर्वथाअपराधिनमभकंबालंपालयेत्यत्रापि अपराधिनमपराधिनमपराधिनमकरयूत्तंसाापा लयपालयपालयजननिश्रीरामनार्थयुकिंचित्॥३७॥ पूर्ववत्संभ्रमेणैवजननिश्रीरामान्यत्किंचिन्नार्थयेनप्रार्थयामिअवजनकस्थानजननीतिपदमत्य तवात्सल्ययोननार्थम्॥३७॥इदानीमहमनाथइनिसनाथ तिवायतुंनशकोमात्याशयेनाह उचितमिति हेरामाहत्वयिनाथेसतिस्वामिनिविद्यमानअनाथइतिवचनंवतुंवदितमुचितमितियों 11 For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्यनहियोग्यंनभवत्यभद्रममंगलत्वात्हेसीनानाथत्वयोपेक्षितोहमितिकत्वासनाथइत्यपिउँ जिहेमिलज्जायुक्तोभवाम्युभयथापिक्तुमसमर्थइत्यर्थः॥३८॥इदानींगवादिपशरपिकोशंतस्व वत्संपत्तिवात्सल्येनशीग्रंसमुपयातिइत्याशयेनाह कोशंत्तमिति कोशंतंदीर्घस्वरंकुंवतंदानास्पं उचितंवक्तुमभदनहिनाथेत्वय्यनाथइतिवाक्य। जिन्हेम्युपेक्षिताहंसीता नाथत्वयांसनाथइति॥३॥कोशंतंदीनास्यपशरप्युपयातिगोर्निजंवत्सं॥ ईदृमदीयभाग्यंसर्वविदपिवेत्तिमत्कृपांनभवान् // 39 // // म्लानवदनंनिजतायंवत्संप्रतिपशरपिपशयोनिरपिगोर्गवादिसमुपयातिसमीपमुपसर्पति है राममदीयंत्वीरग्भाग्यंयत्सवचिदपिभयानमत्लपामयिकरुणांकञ्जुनवेत्तिनजानाति // 39 // 5 // 2 // // 2 // // 7 // For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आइदानीसर्वज्ञत्वादिगुणसंपन्नोपिभवान्मयिकिमितिकाठिन्यंकरोषीतिप्रक्मुित्तरंतवेत्याशयेनाह || सदी. ||सर्वज्ञइति सर्वज्ञःसर्ववेत्तास्वाधीन अपरतंत्रदयालुलपासिंधुरेयंभूतापिभवान्मयिकथंकठिनो रुपावान् इत्यभिधेहिवदइनिमयात्वंपृष्टश्वेदामेश्वरत्वविनाममात्न प्रत्यत्तरंकिंदास्यसीश्वरोहं सर्वज्ञास्वाधीनोदयालरभिधेहिमयिकथंकठिनः॥इति पृष्टोदास्यसिकिविनेश्वरत्वंममोत्तरंराम॥४०॥ // स्वेच्छाचारीकस्योपरिरूपांकरोमाकस्यचिदुपरिनकरोमाताश्वराणास्वभावएवेषायस्वच्छाचारि // त्वमितितवोत्तरंनान्यदितिभावः॥४०॥ नन्नपरा विनिमयिलपांनक्रियतेइतिचेत्तवयावंताभक्ता // 15 स्तसपिसंसारिणएवसंसारिणांत्वपश्यमपराधोभवत्येवंसनिकस्योपरिलपानोचितेत्याशयेनाह For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपराधइति अपराधमार्गणेपिअपराधमरामर्षणेसनिकचिदपिकस्मिन्नपिसंसारिणिभक्तपितवा करुणानैवउचितासंसारित्वादित्यर्थः यतोनहिकश्चिसंसारीगत्तापराधोनामाकत्तापराधस्तववलभेष्वपिरुपापावेवपिअस्तिकोपिनास्तिसंसारित्वादितिभावः॥४१॥ननुय दुपरिरूपाक्रियते अपराधमार्गणेपिकचिदपिकरुणातवोचितानेवानहिकश्चित्संसारी गतापराधोस्तिवल्लभेषुतव ॥४१॥तस्यस्वल्पोपराधीममपुनरधिकः प्रमाताकः॥अहमितिदश्यस्तास्त्वयेशसर्वज्ञतैतदर्थकिम्॥४२॥ नस्यतुस्वल्पोपराधः बव्हपराधइतिहेतोस्त्वयिरुपानविधीयतइत्याशंक्याह तस्येति नस्यत्वयायुक्त स्पस्वल्पोपराधोममपुनरधिकाउलष्टम्प्रमाताकाकोवासाक्षीनकोपीत्यर्थः ननुत्तयेवंवक्तव्यमहमेवसा क्षीतिसर्वज्ञत्तादितिचेदीशभोरामनहित्वयैवस्वेनैवेत्तदकिंस्वस्यसर्वज्ञताभ्यस्तापनःपुनरुक्तेत्यर्थः। // 42 // For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु- आननुसापराधेषुममदयाकुत्रत्वयारनिस्वामिभिर्वतव्यंचेसापराधेष्यपिअनुग्रहोदृष्टइत्यवाह अ सती. 16 ग्रजइति अग्रजजायांज्येष्ठवाचस्त्रियमिच्छतिवांछतिसग्रीवेडिलक्षणेपुनरयजक्यलालसांतरा, त्मनिअग्रजवर्धवालिवधेलालसोलुब्धोतरात्मावादयस्येत्वयंभूतनिफिटकर्मकारिण्यपिसग्रीवेराध, / / अग्रजजायामिच्छत्यग्रजवधलालसांतरात्मनिचाया करुणारुग्रीवराघवसातेकथंतरामचिना॥४३॥ // वसातेप्रसिद्धाकरुणाअतिशयेनकथंतरांअतिशये तरउचितातस्मात्त्वयासापराधेष्यवग्रह क्रियतइतिभावः॥४३॥ पुनरपिसापराधानुग्रहंदर्शयति चातुरिति चातुरवज्ञामावादातुहरावण || 15 स्यावज्ञामाबादपमानमात्रासिवेरवान्टिनेवपितवैरवन्तिस्तेनेवजवाडेगासितवैरंवनिरूपंटन्स % 3D / For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हत्वादित्यर्थः अपमानाइतो सतिपदमव्ययंसहार्थवाचकंपिटवेरवन्हिनासहेनियोज्यं ज्येो थानापितुःसमःपित्रारावणेनसाकंयढेरंतदेववन्हिस्तनपितृवैरवन्हिनासाकमेवंस्वसमीपमागते शरणागतत्वेनप्राप्तअस्मिविशीषणेरुपासनातस्मिन्कास्तिनिरपराधत्वनिर्दोषत्वंकुत्रातिनास्ति भातुरवज्ञामावात्सबापितवैरवन्हिनेवजवाना स्वस मीपमागतेस्मिविभीषणेकास्तिनिरपराधत्वें॥४४॥ // 44 // इदानींक्लेशवशात्परदोषाविकरणंमयारुतमितिमयिनिंदकत्वनारोपणीयमित्याह जल्पनीति किनिदुबैजल्पनातिप्रलापंकुर्वतीतिमयिपोरोभाग्यं दोषेकहासुरोभागीत्यमरः दोषैकग्राहिहदय पुरोभागीतिकथ्यतेइतिहत्यस्यपुरःअग्रेप्रथमदोषमेवभजतसपुरोभागीतस्य For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आ पुरोधागिनोभावापौरोभाग्यपरदोषेकदर्शित्वमितियावत् उत्तमैःश्लोक्यतेस्तूयते सतथायहाउद्गगी सरी. नमोअज्ञानंयस्मात्सउन्तमाअज्ञाननिवर्तकःश्लोक-कीर्तिर्यस्यतथा पयेयशसिचश्लोकइत्यमरः॥ संतप्तइतिहेतुपंचम्यंत्तंसंतप्त चित्तहेतुकं पोरोभाग्यमिनिमाकल्पयेत्यन्वयःपुरजोभावपोरोभाग्यं जप्लनिकल्पयमोचेपोरोभाग्यमयिक्षमासिंधो॥संतप्त चित्तभावाहुरुक्तमुख्यदुत्तमश्लोक॥४५॥ // श्रेष्ठत्वव्यंजकंनिंदकत्वंमाकल्पयहेक्षमासिंधीतहित्वंकुन एवंजल्पसातित्वयानवाच्यामित्याशयेनाह संतप्तचित्तइति हेरामसंतप्तचित्तभावा(स्वित्तचित्तावादुवितचित्तत्वाद्यदुक्तंतन्दुरुक्तमसाधूक्तं यसंतप्तचित्तोभयतिसतुसाध्वसाधुवदन्येवेतिभावः॥४५॥ // 5 // For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदानींपरेषारोपाहारनेनस्सस्मिन्निंदकत्वंसमायातानिनन्मास्त्वित्त्याह अस्तामिति आस्तांनिश्चतुपा रोक्षे समर्शपरदोषगवेषणंपरदोषाहाटनमसभ्यनिंयमतानकर्त्तव्यमित्यर्थः ईशिमवत्तचरितः योग्यपिरुपाकरणरूपेसतिविभीषणाद्यैर्ममकिमपराइंकोवापराधाकतोयन्मयातेषांदोषोराटनंक अस्तामेतदसभ्यं परदोषगवेषणंपरोक्षेथा।इशिभवतश्चरितेविभीषणा यैस्तकिमपराइंम।।४६॥स्वीयमणोगुणहीनकोवाकलहापरीसकेणस ह॥त्वयियाछिकरुयेभृत्येनसहर्षयाभवेतिमे।॥४७॥ 7 // तिव्यमितिभावः॥४६॥ इदानीभवानेवसेच्छाचारीत्यतोऽन्यदोषारोपणेनकिमित्याह सायमणोइ ||ति स्वीयमणोगुणहीनेस्वकीयोयोमणिस्तस्मिन्गुणहीनेसतिमणिपरीक्षिकणसहकलहम्कोवानको पीत्यर्थः तहतयिस्वामिनिषभौयादृच्छिककत्त्येस्वेच्छाचारिणिसनित्त्येनतवसेवकेनसहसाक For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आ || मार्षयाउत्कर्षासहनेनविषादेनममकिंकिमपिप्रयोजननास्ति॥४७॥इदानीमनसिस्थितयावता || सरी वदुक्तंसाध्वसाधुवातत्सर्वक्षतव्यमित्याशयेनाह वक्तव्यमिति हेश्रीरामयन्मममनसिस्थितंतवाग्र तोत्वत्समीपेउक्तमेवंसत्यपिययद्याप्य धुनापिरुष्टःसक्रोधस्तहिनन्निनिवितर्केतवपादयोश्चरणका वक्तव्यमेतदुक्तंतवाग्रतारामयच्चयावच्च॥ यद्य द्याप्यसिरुष्टस्तन्ननुपतितोस्मिपादयोरुपरि॥४॥ मलयोउपरिपतिनोस्मिसाशंगनतोस्मि पादयोःशरणागतत्वेननमस्कारकिययासर्वेपराधाःक्षनव्याइतिभावः॥६॥ इदानींसतांस्वभावएवैषयिषणामेकअपराधिन्यपिप्रसन्नतेसाशयेनाह 10 प्रणिपातमात्रनारादिति हेरामचंद्रप्रणिपातमात्रनारायणिपातएवप्रणिपाचमानंतदेवनारतेन For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महतासाधूनांकोपाशशक्षणिकोधाग्निशाम्पत्यपशमंयाति भोराघवममतुरितविपाकै पापप रिपाकैत्वनायापिइदानीमपिमुक्तकोपोनभवसीत्यर्थः॥४९॥ इदानींसर्वथात्वयाऽहमनुयायएचे स्याह त्वचल्यइति त्वचल्योनास्तिविभुत्वत्सदृशःविभुःस्वामीनास्तित्रिभुवनत्रयेपि मत्तुल्यः प्रणिपातमात्रनीराच्छाम्यतिकोपाशशक्षणिमहत्तां॥ममरितस्यपि पाकैराघवनायापिमुक्तकोपोऽसि॥४९॥ त्वत्तुल्योनास्तिविक्षुमन्तुल्योना स्तिचापरोदीनः॥दीनानाथस्वामिनकरुणासिंयोजुवेहमन्यक्किम्॥५०॥ मत्सरशनोपिनास्ति हेरीनानाथानांस्वामिन्नेकबंधोव्यसनासालककरुणासिंधोदयासागर अहमन्यतिंब्रुवेमयाअन्यत्किंवक्तव्यमित्यर्थः॥५०॥ // 2 // For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सु-भा सरी. इद्मनीत्वंसर्वप्रकाशकास्वप्रकाशचन्मयिकरुणारूपप्रकाशोनदृश्यतइत्याशयेनाह त्वयाति व यिस्वयंप्रकाशेस्वप्रत्रिभुवनभवनंत्रिभुवनमेवभवनंगृहंतत्प्रकाशयतिसतिकरुणांकरुणालक्षणं प्रकाशमेवनपश्यामितकि महमंधोवातिमिरोपहतनेत्रीवास्मि अथवासाकरुणाभवतित्वायना त्वयिचस्वयंप्रकाशेत्रिभुवनभवनंप्रकाशयतिकरुणां पश्यामिनचे दंधोवाहनसास्तिवान्भवति॥५१॥ 5 स्तीतिमयिसंदेह इत्यर्थः॥५१॥ इदानांमज्जल्पितेनसाध्वसाधुनातवमनसिविषादेसनिममाभीष्टमीप्सितंकरुणापांगवीक्षणलक्षणंनकरोषीत्याशयेनाह नाभीष्टमिति हेरामयदिकना रुणातःकरुणयासावविभक्तिकस्तासम्ममाभीष्टमभिलषितंनकरोषि किंभूतस्यमेसापरावस्या For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org पराधवतम् तस्मात्मजल्पितेनदुर्वचनेनहेतुनास्वांतोडेगेनमनसःक्षोभेनवानकुरुषनकरोषीत्या र्थः॥५२॥इदानीत्वत्तोवैरिणापिपरमांगतिप्रामामहिषयेकिमुरासीनइत्याशयेनाह अरयोपनि अरयस्तरवैरिणापिवैरभावान्देषभावादपिस्तेष्टमुत्तमपदप्राप्तिलक्षणंभवत श्रीरामचंद्रालअंतर नानीटंकरुणातस्करोषियदिरामसापराधस्य॥मज्जल्पकल्पितेनस्वांतो देगेननिवाकुरुष॥५२॥ अरयोपिवैरभावादिष्टंभवतोलभंतएवा श॥दासस्यमेदयालोपार्थितदानसिकथमुदासीनः॥५२॥ // वप्रामुवंत्येवाशशीघ्रमेव हेदयालोरुपासमुद्रदासस्यमऽभिलषितदानेकथमुदासानासीत्कदासीनत्तेफिकारणमितिनजानामीतिभावः॥५३॥ // 7 // // 5 // For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु.आ. 20 ननुनादत्तमुपतिष्ठत्यनेनन्यायेनकिनिहतेनविनाकस्यापिकिंचिन्नदायतमये त्याशंक्याह नारत सी. |मिति नादत्तंदसेचेददत्तनददामीतिवद सिचेतर्हि विभीषणेनरावणधारापुरीनगरीपुराकस्मे पावभूनायदत्तापिचकिकिंधाराज्यविधिधारव्यनगराधिपत्यंकपिनासग्रावणजन्मांतरकस्मे नादत्तंदसेचेकरीमदत्ताविभीषणेनपुरी॥कि किंधाराज्यवाकांपनादत्तंभवांतरेकरमे॥५४॥ दत्तंकुत्रापिपुराणादौनश्रुतम् तस्माददत्तमपिददासीनिभावः॥५४॥इदानीमपितुभ्यंदायतेत | देवददासीनित्वयिकोपिनियमानास्तीत्याशयेनाह श्रीदामतइति श्रीदामतःसदामशर्मणादि || जात्पृथुकाभर्जिततंदुलविकतयोरहीतास्वीरुतापरिमिताहित्रिमुष्टिमावास्तएवकिन्नोदत्तास्ता For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्माहत्ताधिकमपिददासीत्यर्थः अधिकंकिंदत्तमित्याशयेनाह ऐद्रंपदमिंद्रपदसमानवैभवमिहास्मिन्लोकेतस्सदाम्मेदत्तमर्पितंत्तत्तस्यकेनरुत्येनकेनसरुतपरिपाकेनतस्माइनसदृशमेवदी| यते यनियमात्वयिनास्तीतिभावः अवतारांतरत्रमिदमित्यल्पबुद्धिमत्तानेदरशांभातिभक्तानामेक श्रीदामतोगृहीनापृथुका श्चेतितएवनोदत्ताऐंद्र पदमिहतस्पदत्तत्केनतस्यहत्येन॥५५॥ 9 त्वदशामभेददृष्टीनांएकमेवरामचरित्रंविनानभातीति रुष्णावतोरपिजांबवदादीनांधीरामरूपेणैर दर्शनमादिकाव्यादिषुप्रसिहमहामुद्गलभहादीनामपिप्रसिद्धिः॥५५॥ इदानीत्वयापरीत्येनापि // फलंप्रदीयतइत्याशयेनाह उन्मोचितइति उन्मोचितोगजेंदोगाहादक्षितादिपकिंभूतोगजेंद्रामदां For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ. दृष्टिःमदोन्मतस्तिर्यगुभूति-पशयोनिएवंभूनोपिस अधमयोनिरपिरक्षितइतिवपरीत्यमेकंअन्यच्चा सरी 21 दातादानशूरम्सेवककुलजश्रमहादवंशोयोपिबलिवयापातालेबरम्नागपाशैर्बधास्थापितइद / मपिवैपरीत्यमत्तोधिपरीतकर्तृत्वमपित्वय्यस्तीतिभावः॥५६॥अन्यदपिविपरीतकर्तृत्वरावणादि उन्मोचितोगजेंदोमदांधदृष्टिश्चतिर्यगुभूतिः।।दाता सेवककुलजःपातालेचत्वयाबलिदः॥५६॥ 5 दर्शयति उहत्तचित्तवृत्तिरिति उद्दत्तचित्तवृत्तेर्दुचरितस्यपरदारहरणवृत्तर्दशास्यस्यरावण स्योत्तमलोकस्थितिवैकुंठपातिरन्यच्चदशरथसंज्ञस्पविभोधराधीशस्याच्चैस्तरांमहानथापानक | 21 |ल्पितनिर्मित इदमेकंदशरथराज्ञोधःपात ममेवंभाति॥अधःपातस्यकुत्राप्यश्रुतत्वादत्रसूक्तत्वा।। For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशरथसंज्ञस्यविभोरथपानोनामस्वर्गनिरययो सरवदुःस्वाभिधानत्वात्श्रीमद्रामब्रम्हपुत्रावास्या तिपरससरवस्वपिरिस्थितस्यविभोर्दशरथस्यराज्ञन्देहावसानसमयेऽवशेषप्रारब्धोपभोगवाद अवश्यमेवभोक्तव्यंरुतंकर्मशभाशभं कृतकर्मक्षयोनास्तिजन्मकोटिशतैरपिइतिवचनात् पार यकर्मणाभोगादेवक्षय इत्यपिवचनात् श्रीरामाभिषकाभिघाताद्यतिशयदुग्रवादवनौपतनमेवाधामा उद्धृतचित्तरतरुत्तमलोकस्थितिर्दशास्यादशरथसंज्ञस्यविभोकल्पितमुच्चैस्तरा मधपातः॥५७॥ 2 // तोपगंतव्यदुरखपारधोपोगक्षयेजातेलेकायामीशायमरगणैसाक मागतस्यदशरथस्यश्रीरामेणाभिवंदनालिंगरतसनिनिरतिशयसरवावाप्तिर्जाततिचाक्तमादिका व्यादिपनावकाप्याशंकेत्यर्थः यहामोक्षधर्मेषुधगुभराजसंबादेस्वर्गादयोपिनरकेषुपरिगणितानार शलोकप्राप्तिरधपानः अयमर्थः दशरथस्थसाक्षासरमेश्वरप्राप्तमेक्षिएचयोग्यस्तमाप्तिरेवावापानप तनमिति॥५७ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22 |इदानींप्रयलम कुवैतोरपिसमाहिवंददासी त्याह समावदति सग्रीवविभीषणयोप्रसिहयोरुभयो / सरी. स्तूष्णीस्थितयोर्नियापारयो परमुलटंराज्यंतत्तद्देशाधिपत्यमभूज्जातंत्वयैवदत्तमित्यर्थः अन्य। सर्वक्लेशाभिषिक्तेसर्वक्लेशसहेत्वत्सार्धमेवंभूतवायुनंदनेकपिपतीप्रसन्नतामानमेवतूष्णीभावस्त / रुग्रीवविभीषणयोस्तूष्णींस्थित्योरचूसरंराज्यास वक्लेशाभिषिक्तेपसन्नतोवायुनंदनमोनम् // 58 // स्पकिमपिलौकिकपदार्थेषुनदत्तमित्यर्थः वास्तवार्थस्तत्तस्ययदत्तं तन्नकस्यापीत्यर्थः गुरोस्त / || मौनंन्यारव्या शिष्यास्तच्छिन्नसंशयाः॥५०॥ इदानींकिंबहूनयपत्करोषिततसर्वत्वय्युप।। पद्यतइतिआशयेनाह यद्यत्करोषाति यत्त्वयाक्रियतेतञ्चमहेश्वरत्वेनमहायचत्वेनतत्सर्वत्व For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यिशोभतेयोततेईश्वरत्वादित्यर्थः इदानींकिंबहूक्तेनप्रार्थनायंतदेवप्रार्थयितव्यमित्याह आस्तामि ति ननुनिश्चयेसकलमास्तांभवद्गुणदोषकथनंतिष्ठतुसकलंकमपिसदोषमपिमांत्वत्सेवकरामपाहि रक्षरुपापांगेनावलोकयेत्यर्थः।। 59 // त्वयाकिंचिदपिनवक्तव्यमहंतुनवाभीष्टंनददामानिदिदा यद्यत्करोषिचैतनमहेश्वरत्वेनशोभतेभवतः॥आस्तांतन्ननुसकलंसवलंकम पिपाहिमांराम।५९॥चैलांचलेधृतोसिपसशंकुवापयास्यसिस्वरम्॥कुरुवा , जीवनवृत्तिवदवाव्यवहारमीज्यलोकेषु॥६०॥ ७॥नीमयात्व मत्यंतसमीपनयाला चलेधृतइयभासीत्याशयेनाह चैलांचलइति हेराममयात्तलांचलधृत्तासिवस्त्रपल्लवगृहीमोसिमत्सकाशा प्रसभंवलात्कारणअन्यत्रकुवस्वैरंवेच्छया:पयासिगच्छसि ममतावज्जीवनंकुरुयोगक्षेमंवहवा ||वारामेडयपूज्यलोकेषुजनेषुव्यवहारंममाशीष्टदानविषयवादंकुरुयथालोकेपिवासहपुत्रादिभिनिविष|| For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु.आ. 23 येवादःक्रियतेतदित्यर्थः॥६०॥इदानीत्वमेवसर्वमित्याशयेनाह हेरामत्वंभवानेवममजननीमाता सटी. जनकःपितापित्वमेवबंधुत्कुलंशीलंचत्वमेव एवंचसतित्वयिस्वामिनिनिष्ठुरतांनिर्दयत्वंयातेप्राप्त सतितृणमपिमयीशानस्वामिन्वज्जायतेवजवदाचरतिकुलिशपायंभवतीत्यर्थः॥६॥इदानीत्व त्वममजननीजनक स्त्वमेवबंधुःकुलंचशीलंच॥त्वयिनिष्ठुरतांयाणम पिवज्वायतेमयीशान।।६१॥ रुपयाद्रक्ष्यसिमांचेत्तृणायमन्येचकालमप्यु चैः॥अरुपाचेत्तवरामप्रायस्तृणमपिकालरूपमे॥२॥ त्रूपाचेत्कालादिश्यो | पिममभयंनास्तीत्याशयेनाह रुपयेति हेरामत्वंमांरुपयाद्रक्ष्यसिचेत्करुणयापश्यसिचेयदितदोच्चैः कालंमहांतमपिकतांतंत्रणायमन्यतृणसमानमपिनगणयामि भोरामालपाचेत्तवकरुणयानावलो || कितोयदिहणमेवकालरूपंपायोबहुशःमेममाविष्यति॥६२॥ // 2 // For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदानीस्वामिनामग्रेबहुधा_मनुचितमित्याशयेनाह अथवेति अथवापक्षांतरेअहोइतिवेदेकिंबहू जल्पेनप्रमोःपुरतःस्वाम्यग्रेधार्थ्यधृष्टत्वमिहास्मिन्विषयेकिमुचितंनोचितमित्यर्थःकुतोनोचितमि त्याह जन्मप्रबंधइति जन्मप्रबंधसिद्धाउसत्तिपरंपराश्रितान्दोषा:पुराणपापलक्षणाआधीनांचि अथवाहोकिंबहुनाधाटयकिमिहोचितंपभोम्पुरतः॥ जन्मप्रबंधसिद्दाअधीनांयांतिमूलत्तांदोषाः॥६३॥ तविक्षेपलक्षणानांमूलनांहेतुत्तांयातिप्रामुवति जन्मांतरलतादोषा एवसरवदुःखहेतवइतिक्षा वः॥६३॥ इदानींजन्मांतरेवावर्तमानजन्मनिवातवाराधनहीनस्यकथपेष्टप्राप्तिरित्याशयेनाहना राधितइति नाराधितोनसेवितःपूर्वपूर्वजन्मनिकचिदपिकदापीदानीसांप्रतमपिनाराधयाम्येकांत For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आभक्त्यानभजामि अथचस्वकीम्मभिलषितमिच्छामिवांछामिबाढमत्यर्थहारवेदेकष्टंसंकेशमूटनेव / | सटी. 24 मेअज्ञतैवैषाममेति॥६४॥इदानीसकलदोषनिचयसंपन्नमपिस्वायमितिमत्तारुपांकरोषिकेत्तवा त्यंतक्षमेत्याशयेनाह दुर्वृत्तमिति दुर्वृत्तंदुर्बुद्धिकुमतिकामादिवशंकामकोधलोभमोहमयंभवति नाराधितोसिपूर्वकचिदपिनाराधयामिचेदानीं॥इच्छामिचसमिष्टंक टंहासूढतैवमेबाढम्॥ ६४॥दुर्वृत्तंदुर्बुडिंकामादिवशंपराङ्सरवंभ वति॥ पालयसिमाययेषाराघवभवतःक्षमोच्चकैर्जयति॥६५॥ परांमुसंस्वामिनिविमुरवमित्त्यादिदोषगणमुक्तमेतादृशंमाराघवयदिपालयसित्तर्हि भवनःस्वामिनः // 24 उच्चकैःसवेत्तिष्टाक्षमाजयतिसर्वोत्तमासहप्तेतिभावः॥६५॥ // 7 // For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदानीमयितवदयेववर्त्ततेइतिजानामीत्याशयेनाह रचितेति रचितापराधजालेलतापराधसमूहेम यिसेवकत्वंसदयोसिलपालुरसीत्यनेनैवहेतुनामिजानामिकेनहतुनेत्याशयेनाह मुखतइति मैमु रखतम्मममुरयान्निरंकुशापतिबंधरहितारामेतिमुहुर्मुहुम्बाप्रवर्ततेनिःसरतियतोयस्मात्कारणाद रचित्तापराधजालेमयिसदयोसीनिवेम्यनेनैव // मुरवत्तोनिरकुशामेरामेतियतःप्रवर्ततेवाणी॥६६।। तोजानामिस्वामिनांरुपावर्तनइतिभावः॥६६॥इदानींव्यतिरेकमुरेवनस्सास्मिन्छपांसंभावयत्तिल पास्तीस्त्यनुमीयतइत्याशयेनाह नैवेति यस्मिंस्तेनानुकंपायस्मिन्पुरुषतवरुपानास्तितस्यास्यत स्तस्यपुरुषस्यमुवाहकात्कथंकारंकथंवापसरेद्रामेतिवाक्यंनिरामयंनिर्दोषं किंभूतस्यपुरुषस्य For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मुआ | किल्बिषमुद्राभाजकिल्बिषाणांपातकानांमुद्रांलक्षणंभजनीतिक्षाक्तस्यभाजपापलसणालहता / सटी. स्येत्यर्थः॥६७॥ ननुतवरुपामय्यस्तिममदोषानभवाननिर्मलान्किमितिनकरोषित्वयानोक्तत्त्वादिनि || चेदवपुनरपिस्वदोषाविकरणमेवकरोति तृष्णति तृष्णाव्यालविवाहणेवव्यालसर्पस्तस्यविषं नैवास्तितेनुकंपायस्मिंस्तस्यास्यतःकथंकारम्॥कि ल्बिषमुद्राभाजारामेतिनिरामयंवचप्रसरतू॥७॥ नेनार्तपीडिनमथचधनधनशब्दैव्यव्येतिप्रलापेरुप्रिथिव्यांपतंतंलुउत्तमथचगुरुतापमत्यंतसं तप्तंमांहेगरुडध्वजरामचंद्रजीवनदानेनाशरक्षपालयमांपाहीत्यवहेरामत्वयैवंवक्तव्यमरेयस्येह शमस्तिसामर्थ्यसमार्थनीयइनिचेत्तवध्वजापरिस्थितस्यांजवर्यस्याऽप्यस्तिसर्वसामर्थ्यतस्येश || 25 For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्यतवास्तीतिकिंवक्तव्यमतोगरुडध्वजतृष्णाव्यालविषापाकरणेनपाहिधनाशोपमर्दनेनरक्षस्वच रणस्थजीवनदानेनतापोपहत्या वगरुडध्वजेतिसंवोधनेनेवसामर्थ्यद्योतितमचेतननगरुडमणि नालोकेविषापहरणंधनलाभश्चतापहरणंचेति यस्यनाममणिनाचैवंसकिंकरत्वनध्वजेक्ति तृष्णाव्यालविषाधिनधनशब्दैःपतंतमुर्त्यांमाम्।। गरुडध्वजगुरुतापंजीवनदानेनपाहिरक्षाव॥६॥ अतस्त्वयेवममसर्वदुःखापहरणंकर्तव्यमित्यर्थः यथाअत्यंतसंतापितःपृथिव्यांमूर्छितापतितःपुरुष दयालुनानापिसत्ताससुरुषणजीवनदानादिभिःजीव्यतेतहदित्यर्थः॥६॥ पुनरपिपार्थयनि नृष्णति तृष्णानिदाघनतंतृष्णवनिदाघरष्णापगमस्तेनतप्तंबहुसंचापित For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु-आ मतएवशष्यत्कउंसशोषगलंनिराश्रयंरक्षितरहितमत्तएवदानमेवंभूतंमांकरुणाकटाक्षरक्षन्छायां / सटी. छायेवछायातामच्छामतिस्पच्छांशीतलामित्यर्थःविधायकत्वामांगाहिरक्ष॥६९॥ पुनरपिप्रकार तरेणार्थयति तृष्णाकल्लोले ति तृष्णैवकल्लोलवत्तीमहानदीतस्याविशालामहांतायेकल्लालाः तृष्णानिदाघतशय्यत्कंठनिराश्रयंदानकरुणाकटाक्षच्छायाम च्छांविधायमांपाहि॥६९॥ तृष्णाकल्लोलवत्तीविशालकल्लोलसंकुली. भूतम्॥ करुणापांगनिरीक्षितगुणजालैम्कर्षमाप्रकर्षण॥७॥ 5 महातरंगा संकुलीभूतमेवंभूतंमांरामभद्रस्वकीयकरुणापांगनिरीक्षितगुणजाले:करुणानिरी|| || 26 क्षितमेवगुणजालानिरज्जुसमूहास्तैःप्रकर्षणबलेनमांकर्षाकर्षयेत्यर्थः॥७॥ 7 // For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृष्णेति तणेवनकमहान्मत्स्यविशेष तेनविरुष्टंकर्षितमतएवकष्टंप्राप्तचिरायबहुकालंदेवेशसी, तापतेकरुणाचित्तरत्तेप्रीत्यात्यंतवात्सल्येनगजेंद्रमिवमांसमुडराशापाशतानिकासयेत्यर्थः।। |m७१पुनरपिप्रकारांतरेणस्तौति तृष्णासकेविति तृष्णवसकेतुकन्यानाटकानामराक्षसीत तृष्णानकविरुष्टंकरप्राप्तंचिरायदेवेश।करुणाईचित्तवृत्तेगजेंद्रमि वमांसमुहरपीत्या॥१॥ तृष्णासकेतुकन्याभीतत्वांशरणमापन्न। विश्वामित्रमिवोच्चैविश्वातिविनाशनाशमांपाहि॥७२॥ 7 स्यासकाशाद्रीतंत्रस्तमतएव त्वांशरणमापन्नंशरणागतत्वनमाप्तमांसेवकं विश्वामित्रमिवावा श्वामित्रर्षिवत् उच्चैर्विश्वातिविनाशनजगनःसार्तिनाशनरामआशमांपाहिशीघंरक्ष॥७२॥ For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 27 मुआ || पुनरपिदयोत्पादकवचनैःप्रार्थयते तृष्णासबाहिति तृष्णेवसबाहुल्समुख्य प्रधानन्येषांतार|| || सदी शायेक्षपाचराराक्षसान्तेषांवानासमूहस्तेन विमित्तमुपद्रुतमेतादृशमाहेवीरविमनिवारणक्षमराम गाधिजमुनिमरवमिवगाधिजमुनिर्विश्वामित्रकषित्तस्यमरवोयज्ञस्तमेवरसोरेराक्षसशत्रोहेजाना तृष्णासबाहुमुरव्यक्षपाचरवातविनितंवीर॥गाधिजमुनिमरपाम वमारक्षोररक्षजानकीजाने॥७३॥पाषाणतांश्यातमुनिशापेनेवपू र्वपापेन॥मत्तनुशल्यमहल्यातुल्यतयारचयकल्पकल्याणं॥७४ी कीजानेसीतापते रसेनिपाठेव्यमेवार्थः॥७३॥पुनरपिप्रार्थनांकरोति हेरामाहल्योहारतवमहाना|| ल्हादोजातस्तहिमत्तनुशल्याहल्योहरणेनानदंसंपादयेत्याह पाषाणतामिति पाषाणनांशिलात् // प्रयातंभाप्तंमुनिशापेनेवगौतमशापेनैवपूर्वपापेनजन्मांतरपानकेनमत्तनुशल्यंमत्तनुरेवशल्यमह-|| For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ल्यातुल्यतयासमत्तयातुल्यत्वंपापाचरणेनजडत्वेनचरचयकल्पयादोपश्चात्कल्पोहरणसमर्थराम चंद्रकल्याणंकुशलंयथाचरणोपस्पशेनाहल्योहरणंरुतं मत्तनुशल्यस्यापिचरणोपस्पशेनाहरण कुर्वित्यर्थः।।७४॥पुनरपिप्रकारांतेरणवदति ननुधनुभंगेमहांस्तवोत्साहःश्रूयते नाकारिपंगुरुजन|| अधिगतकोटियुगातंनडगुणंरामपापमस्माकम् // अडजमंडनवाहनखडयचडीशचापदडमिव॥७॥ रुपदिष्टधर्मयेनप्रसीदतिभवान्प्रणतार्तिहारी हाधिग्ममाज्ञतरतांशिवधर्मभंगासाणिग्रहोत्सवजुषः कनुधर्मचिंतेति तर्हिमन्निकटस्थपापधनुभंगेनोत्साहसंपादयेत्याह अधिगतेति अधिगताकोट योःसंरव्यायेषामेतादृशानियुगानितेषामंतपर्यंतनगुणमारोपितगुणमस्माकंपापंचिरकाला For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सी . मुआ र्जितमित्यर्थः। हेअंडजमंडनवाहनचंडीशचापदंडमिवधनुरिवरवंडयभंजय॥५॥पुनरपिप्रकारां २-तरेणस्तोति ननुकुंठित्तगतीतवमहान्हर्षस्ताहिकुंठितगतिमेवकुर्वित्याह निपानि निभूपीकतनी राजकंसंपादितंभूतलंक्ष्मातलंयेनतादृशमथचार्जुनयशससहस्रार्जुनकीर्तरंतनाशकएतादृशं निर्भूपीकत्तभूतलमर्जुनयशसांतकंसकंपस्य॥ कुरुदैन्यमेलकमेक्कंठितगतिमीशजामदग्न्यमिव॥७६|| जामदम्यमिवमेदैन्यमेलकंदारिद्युकुंठितगतिमकार्यक्षमंकुरुसंपादय इशदैन्यनिराकरणमित्य र्थः॥५६॥ पुनरपिरूपकांतरणप्रार्थनांकरोति हेरामयदिवनप्रवेशेऽतिहर्षस्तवत्तर्हिवनप्रवेशमेव कुर्पित्याशयेनाह मृगजलेति मृगजलबुदिध्याबुद्धिरन्यथाभासपातयासमडव्याप्तनिदा 28 For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घेनोष्णापगमेनतसंसंतप्तंसंत्तापितमेरुणासवर्णादिणापिनपूर्णयदावनविशेषणंतदानमरुस्तृणाव शेषरतनपूर्णव्याप्तंएतादृशंवनमिवमानसंहेरघूत्तसरघुकुलभूषणहेसप्रियावरजप्रियाचाविरजपियावरजोसीतालक्ष्मणोताभ्यांसहितयुक्तपविशात्सृष्ट्वातदेवानुप्राविशदितिश्नुतेः प्रविष्टस्ये मृगजलबुद्धिसमृइंनिदाघतप्तंनमेरुणापूर्णम्॥ वनमिवमानसमुच्चैःप्रविशरघूससषियावरेज।।७७॥ वप्रवेशप्रार्थनानघटतेतथाप्यावरणभंगहाराऽविर्भवेत्यर्थः॥७७॥इदानींतवरूपातुवर्तते तथा | दारिद्यमपिवर्ततेदरिद्राहिमताप्रमादिनीनभवंतीत्यतएवत्वयोक्तंयस्यानुग्रहमिच्छामितस्यचित्तं हराम्यहं इत्यभिप्रायेणसंपदंनददासीत्याशयेनाह अपदीति आपदिविपत्तिकालेमांसर्वेश्वरंस्मर For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ 29 निदरिद्रप्रायबहुधातेनैवाभिप्रायेणममसंपदंनकरोषिमांसंपत्तियुक्तंनकरोषीत्यर्थः तवमनस्या सटी. भिप्रायश्चेत्मदीययामलतयास्मृत्याहेरघूनंसतेतपकिमधिकंभवितानकिमपीत्यर्थः॥७॥इदान नांदयास्वभावस्यतेभजनादिनिरपेक्ष्यमेवसर्वत्रदयाकरणमुचितमित्यभिप्रायेणाह अपनयेनि अ आपदिमांस्मरतीतिपायोनकरोषिसंपदंममचेत्॥स्मृत्यामदीययातभवि ताकिमिवाधिकरघूत्तंस॥५०॥अपनयदैन्यमुदग्रंपरिहरचिंताचयंसम ग्रंमेात्वनमरवीक्षाभिन्नयलनकरोमिकचिद्राम॥७९॥ 5 पनयदैन्यमुदग्रंदैन्यंदारियलक्षणंउदग्रंमहांतम परंचिंताचयचिंतासमूहंसमयंसमस्तंमेममापनय दूरीकरु अन्यकचित्तवरामस्यसुरवंतस्यवीक्षासादरमवलोकनंतदिन्नंतरिहायान्यंयननकरोमिक | 29 हिचित्कदाचिदपिहेरामनवश्रीमुरवारविंदावलोकानान्ममान्याप्रयत्नानास्तीतिभावः॥७९॥ // For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदानीमममनसःचिंतानिराकुरुष्वेत्याशयेनाह ममेति मममदीयाधिरवयाधिर्मानसीव्यथासएवं समुद्रस्तंनाशयदूरीकुरु विविधापराधसंबंधनानाप्रकारायेपराधाःअपनयास्तषांसंबंधंतत्हनविन पंक्षमस हेशरणागतजनवत्सलशरणंप्राप्तानांवत्सलरुपाकरराघवाहतेतवशरणागतोस्मिदा ममनाशयाधिवार्धिक्षमस्वविविधापराधसंबंध शरणागतजनवत्सलरा घवशरणागतास्मित्तदासः॥॥दशशतकरवंशभवेदशरथपृथ्वीशपूर्व पुण्याघे दशवदनातकरूपेचेतश्चिरमास्वराघवेभूपे॥१॥ ७॥सोस्मिच॥०॥ ननुत्वयान्तंसमयासंपाद्यतत्तचित्तमतिचंपलंमय्यपिनतिष्ठेतीतिकिंकर्त्तव्यंमयेत्यतइदानीं | स्वकीयमनसःप्रार्थनांकरोति दशशते ति दशशनकरवंशावेसहस्रकिरणकुलोसन्नदशरथ थ्वीशपूर्वपुण्याघेदशरथराज्ञःजन्मांतरपुण्यराशिरूपेऽथचदशवदनांतकरूपेरावणमृत्यरूपेरा For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ घवभूपेरामचंद्रनृपवर्यहेचेत-मनविरमास्वचिरकालंतिष्ठ तंविहायअन्यत्रमागछेत्यर्थःnuj|| सटी३० इदानामिथ्याभूतविषयचिंतनेनतवपुरुषार्थसिद्धिास्तीत्याशयेनाह किंतवेति हेचेन तवसनधनजा यामायारूपचिंतयासतपुत्रःजायास्त्र्यादियन्मायामयंमिथ्यारूपंतस्यचिंतयाध्यानेनकिंकिमपिप्रयो किंतवधनसतजायामायामयरूपचिंतयाप्यनया||अ नपायाऽनंदमयेकिमयेरमसेनराघवेचेतः॥१२॥ जननास्ति अनयेति मायाविशेषणप्रत्यक्षमनुभूयेत्यर्थः हेचेतः अनपायानंदमयेक्षयानंदस्पेरा घवे अयेतिचेताविशेषणं किंनरमसेकुत्तानकीडसि॥२॥पुनरपिचेतःप्रार्थनांकरोति त्यजेति निजग|| 30 जवाजिकथांस्वसंबंधिनींगजवाजिकथांहस्तिहयकथांवातंजिठरेस्वोदरेजगदहंतंतमजंविख्यातंजन्मा | For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिरहितंरामभजभजेनिहिरुक्तिरादरार्थे ननुनिश्चयचेतमानसतप्राप्त्यारामप्रास्यासकलंसर्वकामजातं प्राप्स्यसिवैपरीत्येनपृथग्विषयचिंतनेनसकलमनोरथसिदिनभवतीतिभावः॥३॥पुनरपिचेताप्रार्थ नमेवकियत हिनमात्रमिति हेचेनलंहितमात्रहिनमेवांछसिचेत्स्वहितंप्रियमिच्छसिचेयदितर्हिरा त्यजनिजगजवाजिकथाभजभजजठरेजगहहंतमजंतनास्याननु चेताप्राप्स्यसिचेतनवपरीत्येन॥३॥हितमात्रेवांछसिचन्मंजूषांतर हाणरामारव्यांगनाचेचंचलशीलवचितमसिक्तिचंचलैर्विषयैः॥४॥ माख्यांरामाभिधांमंजूषांपेटिकांजुषस्वसेवयगृहाणेनिपाठेस्वाकुरुनोचेद्रामनाममंजूषासेवननविना चंचलशालेश्चपलस्वभावैःविषये धनादिशिवचितप्रतारितमसिविषयेयासक्तंभविष्यसीत्यर्थः // 4 // इरानीजगदसतिस्थितिलयकारणसमर्थमाश्वरविहायान्यंमाभजेत्याशयेनाह कर्तुमिति कर्च For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुआ || मुसादयितुंअन्यथाक मनुत्पादयितुमन्यथाकर्तुंवैपरीत्येनकर्तुंसकलंसर्वजगद्यशक्तसमर्थतं || सती. विहायराममानसान्यस्मिन्नीश्वरभिन्नपदार्थकाममभिलाषमाधेहिमाकुरुष्वेत्यर्थः अन्यत्रासक्तन याभिलषितसिडिस्तवनास्तीतिभावः॥५॥ एवंमनसम्प्रार्थनाकतातथापिप्रमाथिभवत्यत्तोदा कर्तुमकशक्त सकलंजगदेतदन्यथाकतु।यस्तविहायरामंकासमाधेहिमा नसान्यास्मिन् // 5 // दारिद्यदावशांत्यैवतुकरुणाकटाक्षनीराणिनित्यांक स्थितविकत्केश्चनवैकुंठमंडनमेधः॥६॥ ७॥रियदावापहरणसामर्थ्य रामस्यैवास्ती निज्ञात्वेदानींसर्वशक्तिमानराममेघमायिठपापांगदृष्टिंकरोत्वितिप्रार्थयते दारिद्येति दारिद्यावशांत्यैदारिद्यमेवदावानलस्तस्यशांत्येशमार्थकरुणाकटाक्षाएवनीराणिजलानिवर्षतु कथंभूतोराम।। 31 मेघःनित्यांकस्थितविद्युन्नित्यंनिरंतरंअंकेस्थिताविधुदस्यसःविद्युद्रूपायालक्ष्मीसीतेत्यर्थःएतादृशंवै| For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुंठमंडनंवैकुंठभूषणमेपोजीवनदः॥८६॥पुनरपिप्रार्थनांकरोति स्मरमुरयांबुजमिति स्मरमुखां बुजंसंदरमुरवारविंदमुद्यन्नवनीरदनीलमुदितमेघश्याममिदिरागेहलक्ष्मीनिवास परिहरतुदूरीक रोतुदुरवजालंकेशसमूहंजातमितिपाठेसमगकिमपितेज-धामविलक्षणंतेजइनवंशसंभूतसूर्यक स्मरमुरवांबुजमुद्यन्नवनीरदनीलमिंदिरागेहं।।परिहरतुदुरपजालं तेजकिमपीनवंशसंभूत।।७॥सरयूतीरपुरेशेसरेशवपूज्यपाद पीयूष। वैदेहीहदयेशेममभक्तिरिहारतमानुषेवेषे॥८॥ 7. लसंभवंरामचं द्राव्यमित्यर्थः॥७॥ननुतवसगुणेनकिनिर्गुणेतूष्णीमास्वनिछेतिचे जयतथैवास्तममत्वयमेवा स्त्वित्यभिप्रायेणरामविषयिण्येवभक्तिरस्त्विनिवदति सरयूतीरेति सरयूतीरपुरेशेअयोध्यानगर) स्वामिनिसरेशावपूज्यपादपीयूषेशतमवेशानादिस पूज्यपादपीयूषंचरणामृतंयस्यतस्मिन्चे। For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सु.आ. सटी. दहाहदयेशेसीतापत्तोमानुषेवेषेमायामनुष्यरूपधारिणिममभक्तिरस्तिहास्मिनायवेइत्यर्थः। इदानीपूर्वक्तिभक्तिप्रकविकुलस्वांताविर्भूतश्रीरामध्यानमानंदरूसत्वेनवर्णयति दशरथेति दशरथनदेननामाथीरामनामाचंदनथामाशीतलेयुतिकिलक्षण रमतांतदुदयेकाउत्तामभिनंदनआनंदक दशरथनदननामाचदनधामाशिनदनोरमताम्॥मद यतिमदीयमुदितम्कश्चनमोदोहदंतरंदातम्॥९॥ रएतादृशादितम्सन्हदय आविर्भूतासन्कश्चनमाद:सरूपाविविलक्षणानंदम्दानस्वच्छंअवदान सितागोरोइत्यभिधानात् मदीयंहदंतरंस्तांनांतरंमदयत्यत्यंतमाल्हादयति॥९॥ इदानीतदेवस्वरूपं / / प्रकारांतरेणवर्णयति रामाभिधेति रामाभिधारामनामकाअभिरामामनोहराश्यामंदीवरश्यामलाधार For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वापुत्राप्राचीनधर्मलधापूर्जितपुण्यपरिपाकप्राप्ताकाष्यपूर्वामैत्रीप्रीतिमेमानसंममहृदयंसमासा यप्राप्यास्ते तिष्ठति॥९॥पुनरपिध्यायेदाजानुबाहुँइनिध्यानंप्रकारांतरणतोतिवामांगसंगाति वामांगसंगिविद्युन्मालंसंगोविद्यतेयासांतासंगिन्यासंगिन्यश्चता विद्युत श्वसंगिविद्युतसंगिवि रामाभिधाभिरामाशामामेमानसंसमासाद्यामैित्रीकापिधरित्रीपुत्री प्राचीनधर्मलण्यात॥९॥वामांगसंगिविद्युन्मालंनालंबिलंधितानं गं॥दशरथपूर्वजपुण्यपश्यतपीयूषधारतापांगम्॥९१॥ 2 द्युतमालासंगिविद्युन्माले यावामांगस्यसंगविद्यतयस्यासावामांगसंगालंकारादियुत्तासीतैवसं गिविद्युन्मालावियतेयस्यतवियुन्मालंयामांगसंस्थितसीतालक्षणैवसंगिविद्युन्मालातयाशोभितमि त्यर्थः नालंस्वशरीरकांत्याश्यामंचिलंधितानंगतिरस्सनकंदर्पमेतादृशंदशस्थपूर्वजपुण्यंदशरथपू For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु.आ. भिवपुण्यंसह पश्यतावलोकयत किंलक्षणंपीयूषपूरितापांगममृतपूर्णावलोकं / / 11 / / इदानीं / सरी. पंचायतनविशिष्टंवामभागसमासीनमितिध्या नंवर्णयति अनिलेति अनिलतपम्फलंबायोस्तपसः / फलंपुत्ररूपहनूमानित्यर्थः अग्रेपुरतःप्रष्टस्नेहनहविशिष्टंलक्ष्मणंकिंलक्षणस्नेहंसचामरच्छन्नंचा अनिलत्तपःफलमयेपृष्ठस्नेहंसचामरच्छवम्॥ पार्श्वभक्तिविशेषोमध्येतडिदंबुदावहवंदै।।९।। मरछत्रयुक्तं पार्चेसमायेदक्षिणोत्तरभागेभक्तिविशेषाभत्त्युत्कर्षविशिष्टोभरतशत्रुनोमध्येमध्या। भागेतडिदंबुदौतउित्सदृशीसीनाअंबुदसदृशोरामसीतारामोतडिदाभमंबुदमितिपाठेतडिदाभंवि || || 33 युसशसीताद्योनिनमेतादृशंविलक्षणमंबुदंमेघरामरूपंअहंवदेनमस्करोमि // 92 / / For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनरपिपकारांतरेणस्तौति इंदीवरेति इंदीवरदलनयनंनालोसलदलनेवंजलदावलिमं जुंमेघमनोहरंमंजूलापांगरूंदरावलोकंमंदीरुत्तदशवदनंपराजितरावणंदानमहोदयंभक्तरक्षणायाचिर्भू तं जयंजयस्वरूपंवंदेप्रणामि॥९३॥ इदानींचामेलधामन्यानंप्रकारांतरेणस्ताति वामेकांचन इंदीवरदलनयनंजलदावलिमंजुमंजुलापांग।मंदीरुतदशवदनंसंदी नमहोदयंजयवंदे॥९३॥वामेकांचनवल्लीसल्लीलोऽन्यत्रकांचनोविटपी। विलसत्तिमानसकमलमध्येहरिनीलकंदलोद्रेकः॥९॥ // वल्लीति।वामेकांचनवल्लीवामभागेसवर्णलतासीतालक्षणासल्लालसहिलास:अनबदक्षिणेकांचनःसवर्णाभःसव वहलिक्ष्मणविटपीकल्पतरुनिसकमलेमध्येकमलकर्णिकायांपिलसतिसर्वोत्कर्षणशोभते हरिःसर्वदुःखोपशामकचरामरूपानीलकंदलोदेकानालांकुरोद्गम नीलवर्णइतियावत्॥९४॥ 5 For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ| || पुनरपिजननीरूपत्वेनस्तातिकमलायमाननेत्रामिति कमलायमाननेत्रापकजसदृशनेबाममलायत्तदा | हुसंगिकोदंडानिर्मलदीर्घबाहुसक्तकार्मुकांशमलावण्यधरित्रींशांतिसलावण्यधरामेतारशीपुवेष धारिणीपुरुषवेषधरांजननांमातरंवदेनमस्करोमि।।९५॥पुनरपिषकारांतरणस्तौति पत्तिारति पण कमलायमाननेवाममलायतबासंगिकोदंडशिमलावण्यधारवीजन नीवेषधारिणींवंदे॥९५॥ पत्तिशरधनुराव्यासंपत्तिोगयोगिना माड्या।।स्फुरतिक्षपितविपत्तिाकाचनवित्तिर्ममानिशचित्ते॥९॥ निःपादचारिणीशरधनुराव्याबाणकार्मुकयुक्तासंपत्तिपूर्णतायोगयोगिनांचित्तत्तिनिरोधंयोगं मुजतितयोगयोगिनातेषांसमाधिभाजामित्यर्थः योगिनस्तंपपश्यतिभगवंतंसनातनमितिस्मृतः ईड्या | स्तवनाक्षिपितविपत्तिाशितदैन्यावित्तिर्नामावस्थाकाचनापूर्वाममचित्तेऽनिशॉनिरंतरंस्फरनिप्रकाशन // 16 // For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनरपिप्रकारांतरेणस्तानि हारमनोहरेनि हीरकमणितुल्यदंतादशशतकरवंशभूषणंसूर्यवंशालंकर णंकाचनकापिकाचमणीनांनीलानीलकांतिरूपालीलालसंस्वभावालसंचापल्यरहितमममनकुरुते लीलालयमिनिपाठे लीलाया कीडाया आलयंस्थानमममनकुरुतेसंदरावयवसंस्थानमूर्तिरितियाव हारमनोहरदशनादशशतकरवंशभूषणंरचनाकाचनकाचमणीनां नीलालीलालसंमनाकुरुते॥९॥तूणीकवचरुपाणाविशिरवासनबा णमंजुलायांतीवेणीकापिगुणानामेणीहशुपांतचारिणीजयति॥९॥ द॥९॥पुनरपिसन्नहरूकवचानिध्या प्रकारांतरेणस्तौति तूणीकवचक्रपाणीति तूणीरकवचंतनु वाणंरुपाणोऽसिरेतैर्युक्ताविशिरवासनबाणमंजुलामनोहरायांतीति मंजुलापांगीतिपाठविशिरवासन धनुर्बाणःशरस्तास्यायुक्तासोमंजुलापांगीमनोहरावलोकागुणानांवेणीगुणगुंफित्ताकाष्यपूर्ववत्ताह For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||श्येणाकुरंगीममगुपांतचारिणीष्टिपथंगनाजयतिसत्किर्षणवर्तते यहा एणीकुरंगीतस्यादृराणां सटी. 35 निदृष्ट्यतेगच्छंती एणीतिगितिछेदोऽनवयगुणानांवेणीजयति॥९॥पुनरपिप्रकारांतरेणस्तीति / आनननिर्जिवचंद्रेति आनननिर्जितचंद्रामुखकात्यातिरस्कृतशशिबिंबासांदोनिबिडोयानंदस्तस्य आनननिजितचंदासांद्रानंदैकभूमिरुन्निदारमय तिविगलिततंदारावणविदा विणीमुदा॥९९॥ 5 भूमिरधिष्ठानमुनिहानिद्रारहिताप्रकाशरूपेत्यर्थः विगलिननंदोत्साहरूपेत्यर्थः निदानंदाशब्दयोः समानार्थलेपिकिंचिद्भोपिअवगंतव्यः एतादृशीरावणविदाविणीरावणनाशकारिणीकापिमुद्रामारुति // 35 मममानसंरमयतिआल्हादयतीत्यर्थः॥९९॥ // 2 // // 2 // For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुनरपिप्रकारांतरेणस्तौति पायोधिबहसेतमिति पाथोधिबहसेतुंसमुनिवइसेतुंनतंचरनाशपि |शनसत्केतुंराक्षसनाशसूचकध्वजमेतादृशंकंचिञ्चिन्मोदकंदलमपूर्वकंचिञ्चैतन्यहर्षकिरकंदंआपदंचि पत्तिमंतनाशनेतुंपापयितुंवंदेप्रणीमि॥१०॥पुनरापप्रकारांतरणस्तौति अभिनवे ति अभिनवपल्ला पाथोधिबइसेतुंनक्तंचरनाशपिशनसत्केत्तम्॥आपदमंतंनेतुंकंचिच्चि न्मोदकंदलंवंदे।।१०।। अभिनवपल्लवशयनांशयनांतनिविष्टविद्यु. दुल्लासाम्॥कांचननिकुरंबांक स्थितशिरसीकाचिदर्थयेलीलां॥१०१॥ वशयनांनूतनपल्लवसतशय्यांशयनीतनिविष्टविद्युदुल्लासां शयनोपरिस्थितायाविधुदुपमाजानकीत ||स्यामुल्लासोप्रेमायस्या एतादृशीतांकांचननिकरंबांकास्थितशिरसींसातायासवर्णा दर्शवंधोंडकस्त ||स्मिनास्थित्तमस्तकामेतादृशींकांचित्कामपिलीलांश्रंगारावस्थामर्थयेप्रार्थये॥११॥ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सु-आ पुनरपिविषवल्लीरूपत्वनस्ताप्ति कुटिलाशयविषवल्लीनि कुटिलाशयविषवल्लीमनृजुमानसनाशकल|| सटीतांजटिलांजटाभारयुक्तांजटामुकुटमित्यर्थः निविडोल्लसमांबुकणांसादशोभायुक्तश्रमस्वेदांबु साकरांनिटिलोल्लसदिनिपाठेभालेउल्लसंनःशोभमानाःश्रमोद्भवांबुकणाःविंदवरतेयुक्तामित्यर्थः व कुटिलाशयविषवल्लींजटिलांनिविडोसच्छ्रमांबुकणां॥ वल्कलकल्पितवसनांरावणवधवासनामदावंदे॥१२॥ कलकल्पितरसनांभूर्जत्वगादिपरिधानामताशीरावण वधवासनांदशाननक्षयवासनामहंमुदाह।।। षेत्किर्षणवंदेनमस्करोमि // 1.2 // पुनरपिमायारूपत्वेनस्तानि अकपटपटुकपिकटकामिनि नि- 36 कपटकशलवानरसेनांनटकामितयानटाभिनयेच्छयाअभिनीनंदर्शितवैकुव्यंविकलताययातांत aadiman For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुचितवैक्लव्ययोग्यमुपचारचयंप्रकारसमूहंरचयंतीकुर्वतामेतादृशीकांचित्कामपिमायांमायाशक्तिम थियेषार्थये॥१०३॥ पुनरपिप्रकारांतरेणउतारूपत्वेनस्तानि अंबरमणाति अंबरमणिकुलभूषांसूर्य कुलालंकाररूपांशंबररिपुवैरिभक्तिमंजूषांशंबररिपुकामस्तस्यवैरीशिवस्तत्वतायाभक्तिस्तस्या मंजू अकपटपटुकपिकटकांनटकामितयाभिनीतवैकुव्यांगतदुचितमुपचार चयंरचयंतीकांचिदर्थयेमायां॥१३॥अंबरमणिकुलभूषाशंबररिपुवैरि भक्तिमंजूषा॥कामपिकामपिकानारसाललनिकानिकाममवलंबे॥१०४॥ षांपेटिकांकामष्यपूर्वकिामपिकानांकामाएवपिकाकोकिला:धर्मार्थकाममोक्षेछारूपास्तेषांरसालला तिकांधाम्पलतांनिकाममतिशयेनावलंबेसमाश्रये॥१४ापनरपिप्रकारांतरेणवधरत्वेनस्तोति सरसरिदिति सरसरिद्रंगातस्या सोदरंदृश्यत्वेनसमानंयच्चामरंतत्करेयस्यतादृशीय सौदरोबंधुः For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु- आतेनानगतंसहितंकिनिचितपंचकलंकिंचिदंचितंप्रकाशितंयचंपकपुष्पबच्चेलं कंचिाददचिनो सदी निपाठेकंचिदपूर्वभूधरंसनालंश्यामंशैलंधरंअवलंबेसंश्रये॥१०५॥ पुनरपिप्रकारांतरणकोधरूपा वनस्तौति आकर्णलष्टति आकर्णनिंकणेपिानपर्यंतंरुष्टमाकर्षितंचापंधनुर्येनस आकर्णरुष्टचा सरसरिदवरजचंच्चामरकरसोदरानुगतं किंचिदुदंचितचंपकचेलं शैलंसनीलमवलंबे॥१०५॥ आकर्णहष्टचापंवतंबाणदृष्टिसुत्तमांगे षु॥वंदेयोगिदुरापंकंचनहुंकारसंदरंकोपम्॥१०६॥ पस्तमा कर्णलष्टचापं पुनकथंभूतंबाणदृष्टियुत्तमांगेषुवर्षतंशत्रुमूर्धसबाणसंपातंकुनिमित्यर्थः कथंभूतंयोगिदुरापंयोगीश्वराणामपिकष्टलायंएतादृशंकंचनकमपिहुंकारसंदरहुंहतिशब्दचिरंसं For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | दरंकोपंवंदे।।१०६॥पुनरपिप्रकारांतरणस्तोनि खंडिनेनि पंडितंशकलीलनंहरकोदंडशिवधनुर्यया सारसंडिनहरकोदंडाब्रम्हांडकरंडमंडनीभूनाब्रम्हांडमेवकरंडस्तस्थमंडनीभूताऽलंकरणीभूताएतादृशीने // देहीगलमालासीनाकंठसक्तास्रग्विलसतिशोभते किंभूनाविभक्तांगीभिन्नशरीरासीतागौरांगीरंचना संडितहरकोदंडाब्रम्हांडकरंडमंडनीभूता॥वैदेही गलमालाविलसतिनीलाविभक्तांगी॥१०७॥ 5 लांगीत्यर्थः यहाअविक्षतांगीशक्तिशक्तिमतौरभेदादित्यर्थः।।१०७॥ पुनरपिप्रकारांतरणकरुणा रूपत्वेनस्तानि धनुषति धनुषाशरासनेन किंलक्षणेनधनुषारिपुजयजनुपाशत्रुजयजनुषाशत्रुज यजन्मनारुचिरतरःअंनिसंदराआकारआकतिस्तयानिर्जितो धरतांबुधरोमेयोययामा सुनक For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुआ ||भूतातरुणारुणनिभचरणारक्तपदपंकजा यहातरुणायोऽरुण सूर्यसारथिस्तदुपमपदाकाचनका |सटी. प्यपूर्वाकरुणामेममहृदयंरुणदिव्यानोनीत्यर्थः॥१०॥ ॥इतिश्रीविहन्मुकुरमुहलभदृषि | रचिनंरामाशितमशाधिकंसंपूर्णम्॥ ॥राधवमेघामपाविद्युद्दाप्तांवराहनप्रवरसाजीवन धनुषारिपुजयजनुषारुचिरतराकारनिर्जितांबुधरा॥ तरुणारुणनिभचरणाकाचनकरुणारुणहिमेलॅदय॥१८॥ दानासविताहृदयाकाशेसदासमुल्लसतु॥१॥धनुर्वाणघरंधीरंदशाननधिमर्दनम्॥प्रफुल्लनयनांभोजभजेदशरथात्मजम्॥२॥पदार्थयोननीयंदीपिकार्यानुकूलिनी।काभट्टेसरचित्तास्वरू।। 3 स्वास्यमुदास्फुटम्॥३॥मार्गशीसितेऽष्टम्यांसौम्येथविरुतीशभासिडेयंदापिकार्याणामुदंबहवस For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र्वदा॥४॥ इतिकाकंभट्टविरचित्तापदार्थद्योतनीदीपिकासमाना॥ शकलापरवान्यांत छापिलें।शके७रौदनामसवत्सरे॥ ॥हेपुस्तकमुंबईत ग्रंथप्रका For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MARAN REER इतिमद्गलाचार्यरुतायशितकंसमाप्तम् AAA For Private And Personal Use Only