Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ
नमो नमो निम्मलदसणस्स
पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः
[आगम-संबंधी-साहित्य]
[आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह )
पुनः संकलनकर्ता मुनि दीपरत्नसागर
(M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि)
28/07/2017 शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल ५
jain_e_library's Net Publications
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य)
~1~
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
___ [ अंगसूत्र-."--"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्राक
यहां
देखीए
श्रीआचारांगाद्येकादशांग्याः।।
लघुबृहद्विषयानुक्रमौ । अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
दीप क्रमांक के लिए देखीए
मुद्रयित्रीमालवदेशान्तर्गतश्रीरत्नपुरीय( रतलाम )श्रीऋषभदेवजीकेशरीमलजीत्यभिधाना श्वेताम्बरसंस्था । मुद्रका-इन्दोर जैनबन्धु मुद्रणालयाधिपतिः श्रेष्ठी जुहारमलजी, पालरेचा,
भावनगरीय महोदयमुद्रणालयाधिपतिः श्रेष्ठी गुलाबचन्दजी लल्लुभाइ। वीरसंवत् २४६३ विक्रमसंवत् १९९३
काइस्टसन् १९३७ प्रत ५००
पण्यं ४-०-०
'सवृत्तिक आगम
सुत्ताणि
~2~
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
क्रमांक:
आगम का नाम
क्रमांक:
लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: |
पृष्ठांक:
2
पृष्ठांक:
आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम
आगम का नाम पृष्ठांकः |
अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः ००८ | ०२४ ०७ . उपासकदशा
• अंतकृद्दशा ०१२ ०७७
. अनुत्तरोपपातिकदशा * प्रश्नव्याकरण • विपाकश्रुत ____
|
०५०
०२१ ०२१ ०२१
* आचार . सूत्रकृत् . स्थान * समवाय
. भगवती |. ज्ञाताधर्मकथा
१६४ १६७
०१३
१००
०२१
१६८
०५
०१४
१११
२२
१७२
०२०
१५०
उपांग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:
| १८
१९
१२ . औपपातिक १३ . राजप्रश्नीय १४ . जीवाजीवाभिगम १५ . प्रज्ञापना १६+१७ |. सूर्य+चन्द्र-प्रज्ञप्ति
..............------------
. जंबूदवीपप्रज्ञप्ति . निरयावलिका . कल्पवतंसिका |. पुष्पिता |. पुष्पचूलिका . वृष्णिदशा
।। २३
~3~
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: । पृष्ठांक:
आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:
लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम क्रमांक: | आगम का नाम
क्रमाक आगम का नाम पृष्ठांक: | पृष्ठांक:
प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: |. चतुःशरण
२९ - संस्तारक . आतुरप्रत्याख्यान
३० . गच्छाचार . महाप्रत्याख्यान
३१ . गणिविज्जा | भक्तपरिज्ञा
३२ . देवेन्द्रस्तव २८ . तंदुलवैचारिक
३३ . मरणसमाधि ... [३४-३९] छेदसूत्र-वृत्ति का विषयानुक्रम पूज्य आगमोद्धारकत्रीने नही बनाया ...
मूल-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः
४० ४१/१ ४१/२
. आवश्यक . पिंडनियुक्ति . ओघनियुक्ति
४२ ४३ ----
. दशवैकालिक . उत्तराध्ययन
----------------------
चूलिका-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:
४v • नन्दी
४५ • अनुयोगद्वार
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
आगम का नाम
क्रम
क्रम
प्रत-अनुसार । दीप कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम । १०७
२१४ १०७ १०॥ २१८ १७८ १३१ ३६५
०२१ ००२ ००१ ००५ ००६ ००२ ०११
०२०
११४
आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक एवं दीप-क्रमांक प्रत-अनुसार | दीप आगम
आगम का नाम कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | ४०२ । १४७ । ५५२ | १६ . सर्यप्रज्ञप्ति ०८२ | ७२३ | ८०६ | १७ - चन्द्रप्रज्ञप्ति ७८३ १६९ १०१० १८. जंबुदवीपप्रज्ञप्ति १६० ०९३ ३८३ | १९ . निरयावलिका ८६९
१०८७ / २० - कल्पवतंसिका १६५ ०५७ २४१ | २१ . पुष्पिता ०५८
०७३ | २२ . पुष्पचूलिका | ०२७ । ०१२ । ०६२ | २३ . वष्णिदशा
००६ ००२ ०१३ | २४ . चतु:शरण । ०३० ०१४ ०४७ । २५ . आतुरप्रत्याख्यान ०३४ ००३
२६ . महाप्रत्याख्यान ०४३ ०३०
०७७ | २७ . भक्तपरिज्ञा ०८५
०८५ २८ . तंदलवैचारिक २७३ ०९३ ३९८ | २९ . संस्तारक ३५२ | २३१ ६२२ । ३० . गच्छाचार
०१ . आचार ०२ . सूत्रकृत् ०३ . स्थान ०४ . समवाय ०५ | भगवती ०६ . ज्ञाताधर्मकथा ०७. उपासकदशा ०८ . अंतकद्दशा । ०९ - अनुत्तरोपपातिकदशा १० . प्रश्नव्याकरण ११ . विपाकश्रुत १२ . औपपातिक १३ - राजप्रश्नीय १४ . जीवाजीवाभिगम १५ . प्रज्ञापना
००२
واه
०४७
००५ ०६३ ०६३ ०७० १४२ १४२ १७२ १७२ १३९ १६१
| १३३ १३७ । १३७
०२०
१३३
• आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नहीं किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि हुआ
~5~
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम|
आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक एवं दीप-क्रमांक आगम का नाम प्रत-अनुसार । दीप
आगम का नाम | कुल-सूत्र कुल-गाथा | अनुक्रम
दीप
आगम
प्रत-अनुसार । दीप कुल-सूत्र | कुल-गाथा अनुक्रम
क्रम
८१२
३०७
०२१
. गणिविज्जा ३२ . देवेन्द्रस्तव ३३ |. मरणसमाधि 2४० • आवश्यक ४१/१ . पिंडनियुक्ति
०८२ | ०८२ । ४१/२ . ओघनियुक्ति
३०७ ४२ . दशवैकालिक ६६३ ६६४ ४३ . उत्तराध्ययन ०२१ ०९२ ४४ . नन्दीसूत्र ६७१ । ७१२ । ४५ . अनुयोगद्वार
०८८
| ११६५ ५१५ ५४० १६४० १७३१ ०९० १६३ १४१ । ३५०
०५०
०५९
१५२
.आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र-१ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नहीं किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि हुआ |
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
[अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा * यह प्रत "अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ" के नामसे सन १९३७ (विक्रम-संवत १९९३) में 'श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था' द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब |
* पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'आचारांग' वगैरेह ११ अंगसूत्रो के मूलसूत्र एवं उस पर पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था | उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा, वृत्ति आदि थे उन सभी सूत्र आदि के विषयो का अनुक्रम संक्षेप और विस्तार से लिखकर इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है | अर्थात् ११ अङ्गसूत्रो के लघु और बृहत् विषयानुक्रम के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है ।
पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह उपांगसूत्रो, प्रकीर्णकसूत्रो और नन्दी आदि अन्य आगमसूत्रो के सूत्र आदि के विषयो का अनुक्रम भी संक्षेप और विस्तार से लिखकर संपादन और प्रकाशन करवाया है।
* हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसे वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके |
* पूज्यपाद आगमोद्धारकत्री ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है।
* अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है।
... मुनि दीपरत्नसागर.
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
[आदय संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.]
अंगसूत्र लघु विषयानुक्रम:
- पुन: संकलनकर्ता → आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर(M.Com.,M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
~8~
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचारांगे
लघुक्रमः
यहां देखीए
आचारांगे लघुविषयानुक्रमः ॥ सूत्राणि ४०२ सूत्रगाथाः १४७* नियुक्तिगाथाः ३५६
m
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
म.६२-१७१ निःशस्त्रपरिशाध्ययनम् १५.८१ | १ उद्देशः ।७२।१९५ नि० (११०) । ३ उद्देशः । १२१ ॥१२% (१७०) १उद्देशः। १३ । ६७ नि० (२७) | २ . ७८/१९६नि० (११६) ४ ।१२६ (१७४) २ ।१८।१०५ नि० (३९) | ३ ८२।१० (१२४) | १४१-२३४ नि० सम्यक्त्वाध्ययनम् ४ १९५
" ।३१। ११५ नि० (४८) , । ८६ (१२८) १ उद्देशः।१३०/२२६ नि० (१८१) ४ । ।३९ | १२५ नि० (५६) | है ।९६ (१३९) | २ , १३४।२३३ नि०(१८८) ५, ।४८ | १५१ नि० (६६) ६ है ।१०५।३० (१४८) ३, ।१३७।२३४ नि० (१९२) ६ । ।५५ । १६४ नि० (७३) १२६-२१३ नि० १२२ शीतोष्णीया
४ ।१४१ (१९५) ७ , । ६२ । १७१ नि० (८१)
ध्ययनम् ३१७४
१७२-२४८ नि० १३० लोकसाराध्यय१०५-१९६नि०३% लोकविजयाध्यय- १ उद्देशः।११११२१३ नि०(१५८)
नम् ५ २३१ नम् २ १४८ २, ।११५/९% (१६४)। १ उद्देशः।१४६।२४८ नि० (२०३)
~9~
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
आचारांगे
लघुक्रमः॥
सूत्रांक
cud.
" ।१५६
॥२॥
यहां देखीए
उद्देशः । १५१ (२०८) । २ उद्देशः । २०३ (२७३) | १ उद्देशः।२३२।२९७ नि० (३२६)
(२१३) है ।२०७ (२७६) २ । २३५ (३३०) ४ ।१६० (२१८) ४ , ।२१२ (२७९) ३ , २४४ (३३३) ५ , ।१६६ (२२६) | ५ , २१४ (२८२)
४ । ।२४७ (३३६) ६ , ।१७२ । १३० (२३१) ६ , ।२१९ (२८५)
५ । । २५३ (३४०) १९३-२५१ नि०१६ धुताध्ययनम् ६२५८ ७ । २२३ (२८९) १ उद्देशः।१७७२५१११६६(२३९)
" ।२५९
(३४३) १६ (२२९८ , । ४१० (२९५)
। २६५ २ , ।१८१ (२४३) | २८४ नि०१११० उपधानश्रुताध्यय
(३४६) ३, ।१८४
८ , २७१ (२४७)
(३४९) (२५३) १ उद्देशः । २८४ । ६४७ (३०६)
९ , ।२७८ (३५३) । २ , ८० (३०९) १०, ।२८१ (३५४) . (सप्तमं व्युच्छिन्नम् ॥७॥) ३ ।९४ (३१२)
११, ।२८६ (३५८) २२३-२७४ नि०४१ विमोक्षाध्यय- ४ ।१११० /394) | ३३३-३०७ निशीषणाध्ययनम् २३७४
नम् ८ २९५ (इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥१॥) १ उद्देशः।२९४।३०७नि० (३६४) १ उद्देशः। १९८।२७४नि०(२६९) | २८६-२९७ नि० पिण्डैषणाध्ययनम् १ ३५८ | २, ।३०९ (३७१)
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
6.46mm
~10~
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचारांगे
॥ ३ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
२
३ उद्देशः । ३३३ (३७४) ३५४-३१५ नि० ईर्याऽध्ययनम् ३ કુદર १ उद्देशः । ३४२ । ३१५ नि० (३७८) । ३४९ (३८१) ३ । ३५४ (३८४) ३६३-३१७ नि० भाषाध्ययनम् ४ ३९२ १ उद्देशः। ३५८ । ३१७ नि० (३८८) २ | ३६३ (३९२) ३७४-३१८ नि० वस्त्रेपणाध्ययनम् ५ ३९८ १ उद्देशः । ३७१ । ३१८ नि० (३९६)
"
२
| ३७४
(३९८)
३७७ पात्रैषणाध्ययनम् ६
૨
"
"
"
१ उद्देशः । ३७५
। ३७७
"
३८५-३२२ नि० अवग्रहप्रतिमाध्यय
(३९९) | ३९४-३२७ नि० रूपसतैककाध्यय(४०१) नम् १२४१५ ३९६ परक्रियास सैककाध्ययनम् १३ ४१६ ३९७-३२९ नि० अन्योऽन्यकियासप्तैनम् ७ ४०६ (इति सप्तसप्तिकाख्या द्वितीया चूला ||२|| ककाध्ययनम् १४ ४१७ ४०२-३४४ नि० १३५० भावनाध्ययनम् १५४२५
( इति तृतीया चूला) ४०२-३५६ नि० १४७० विमुक्तयध्ययनम् १६४३२ ॥ इति चतुर्थी चूला ॥ ॥ इत्याचाराङ्गसूत्रस्य लघुविषयानुक्रमः ॥
२
। ३८५
१ उद्देशः। ३८१ । ३२२ नि० (४०४) (४०६) ३८६-३२३ नि० स्थानसत्तैककाध्यय( इति प्रथमा चूला ॥ १ ॥ )
"
नम् ८ ४०७ ३८७ निपीधिका सप्तैककाध्ययनम् ९ ४०८ ३९०-३२५ नि० उच्चारप्रश्रवणसप्तैकका
ध्ययनम् १० ४११ ३९३-३२६ नि० शब्दस तैककाध्ययनम् ११४१३
~ 11~
लघुक्रमः ॥
॥ ३ ॥
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृताङ्गे
॥ ४ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. "सुत्रकृत" ]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
६८८-३५ नि० समयाध्ययनं १
॥ अथ सूत्रकृताङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥ ॥ सूत्राणि ८२ सूत्रगाथाः ७२३ निर्युक्तिगाथाः २०५ ॥ १२६ नि० ५७९३ याथातथ्याध्ययनं १३ २४० १३१ नि० ६०६४ प्रन्थाध्ययनं १४ १३६ नि० ६३१ आदानीयाध्ययनं १५ २६० १४१ नि० १ गाथाध्ययनं १६
१ उद्देशके २७-३५ नि० (२९)
२५१
२६६
२
३
४
(४०)
(४७)
८८
(५२)
६१६४-४४ वैतालीयाध्ययनं २
७७
१ उद्देशके ११०-४१ नि० (६०) *१४२-४४ नि० (७०) (७७)
11
"
"
"
३
""
७१६४ २४६-५३ उपसर्गाध्ययनं ३
१ उद्देशके १८१-५० नि०
२
३
"
५९ ३७५
"
५२ ४ उद्देशके २४६-५३ नि० (१०१) ६१-२९९ स्त्रीपरिज्ञाध्ययनं ४
२
२
17
१२० १ उद्देशके ६१ नि० २७७ (११४) २९९ (१२०) ८२-३५१४ नरकविभक्त्यध्ययनं ५ १४१ १ उद्देशके ८२ नि० ३२६३ (१३४) ३५१ (१४१) ८५नि० ३८० श्रीमहावीरस्तुल्यध्ययनं ६ १५२ ९०नि० ४१०७ कुशीलपरिभाषाध्ययनं ७ १६४ ९८ नि० ४३६४ श्रीवीर्याध्ययनं ८ १७४ १०२ नि० ४७२ धर्माध्ययनं ९ १८५ | १०६ नि० ४९६ श्रीसमाध्यध्ययनं १० १९४ ११५ नि० ५३४३ श्रीमार्गाध्ययनं ११ २०७ (९४) १२१ नि० ५५६ समवसरणाध्ययनं १२ २२४ /
(८८)
२०३
२२४
१०१
(८३)
"
~ 12 ~
॥ इति प्रथमः श्रुत स्कन्धः ॥ १६४ नि० १६ पुण्डरीकाध्ययनं १ २९८ १६८ नि० ४३ क्रियास्थानाध्ययनं २ ३४१ १७८-६३नि६३५ आहारपरिज्ञाध्ययनं३ ३६० १८० नि० ६८ प्रत्याख्यानाध्ययनं ४ ३७० १८३नि० ६६८ आचारश्रुताध्ययनं ५ ३८४ २०० नि० ७२३७ आर्द्रकाध्ययनं ६ ४०४ २०५ नि० ८२ नालन्दीयाध्ययनं ७ ४२५ ॥ इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः ॥
॥ इति सूत्रकृताङ्गस्य लघुविष
यानुक्रमः ॥
लघुक्रमः॥
|| 8 ||
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
स्थानाङ्गे
॥ ५॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. "स्थान" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ अथ स्थानाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥
५७ एकस्थानकाध्ययनं १
११८-७ द्विस्थानकाध्ययनं २
१ उद्देशके ७६
३
"
(८५)
८० ९४-३६ ११८-७ (१०१) २३४-१३ त्रिस्थानकाध्ययनं ३ १७९
४
१ उद्देशके १५२
(१२६)
(१३७)
17
""
"
३८
१०१
१६७-१२०
(५७)
(६२)
३ उद्देशके १९०-१३
(१५६)
४
99
२३४ (१७९) ३८८-३१३ चतुःस्थानकाध्ययनं ४ २८९ १ उद्देशके २७७
(२०५) (२३३)
३१०-२०७ ३३०. (२६३) ३८८-३१ (२८९) ४७४-३९४ पंचस्थानकाध्ययनं ५ ३५२ १ उद्देशके ४११-३४०
19
(३०७)
३
४
39
""
॥ सूत्राणि ७८३ सूत्रगाथाः १६९ ॥ (३३१) ४७४-३९७ (३५१)
२ उद्देशके ४४०
३
५४०-४४ पट्स्थानकाध्ययनं ६ ३८०
५९.३-८६ सप्तस्थानकाध्ययनं ७ ४१५
६६० - १०८३ अस्थानकाध्ययने ८ ४४३ ७०३-१४१ नवस्थानकाध्ययनं ९ ४७० ७८३ १६९॥ दशस्थानकाध्ययनं १० ५२८ ॥ इति स्थानाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥
~ 13 ~
ナチ
लघुक्रमः ॥
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
समवावाङ्गे
॥ ६॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. "समवाय" |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ अथ समवायाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥
१३५-६१ एकाङ्कादारभ्य यावदेकां सागरोपमकोटाको समयायाः १०५ १३६ गणिपिटके आचाराङ्गविवेचनम् १०९
१४३ अन्तरुद्दशाङ्गविवेचनम्
१२१
१४४ अनुतरोपपातिकदशाङ्गवि० १२३
१४५ प्रश्नव्याकरणाङ्गवि०
१२५
१४६ विपाकश्रुतवि०
१२८
१४७-६५७ दृष्टिवादवि०
१३२
१४८ गणिपिटक विराधनाराधना
१३७ सूत्रकृताङ्गविवेचनम् १३८-६२३ स्थानाङ्गविवेचनं १३९ समवायाङ्गविवेचनं
१५० भवनादिवर्णनम्
१५१ नारकादिस्थितिः १५२ शरीरसूत्रम्
१५३-७४ अवधिवेदनालेश्याऽऽ
॥
१६० सूत्राणि १६८ सूत्रगाथाः ॥ १११ | १४० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचनम् ११५ ११२१४१ शातधर्मकथाङ्गविवेचनं
११९
११४
१४२ उपासकदशाङ्गविवेचनं
१२०
फलम् १३३ १५५ संहननसंस्थानानि १४९ ७२६ राशिप्रशापना स्थानानि १३६ | १५६ वेदः
V ~14~
१४० | १५७-११९ समवसरणं १४५
१५४ आयुर्वन्धमेदोत्पादोद्वर्त्तनाविर
हाराः १४७
हाकर्षाः १४९. १५०
१५०
अवसर्पिणीजिनादि च १५२ १५८-१४० अवसर्पिणीचक्रपादि १५३ १५९- १६८७ ऐरावतादौ जिनादि १५४ १३६ - १६० निगमनम् १६०
॥ इति समवायाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥
॥५॥
लघुक्रमः ॥
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
प्रत
सूत्रांक
(१३१)
यहां देखीए
भगवती
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
॥ अथ भगवतीसूत्रस्य लघुविषयानुक्रमः॥ ॥ ८६९ सूत्राणि ११४ सूत्रगाथाः॥ ८३-१०० प्रथम शतकम् १ १०८ । ६ उद्देशः । ५७ । १८० (८४) | १ उद्देशः । ९५ । १९७ (१२९) १ उद्देशः । २० | ५७ (३८) ७ , ।६३
(९०) २ ।९६ (१३०) २ ।२७/६७ (५२) ८ । ७२
(९४) । ३ ।९७/२० (..) ३ ।३८ | ७* (६२) | ९ |८० (१०२) | ४ , ९८ ४ । ४३ | ८७ (६७) | १० । ८३ (१०८) ५ ।११२।२१ (१४२)
।५० । १६७ (७७) । १२४-२२० द्वितीयं शतकम् २ १५२ । " । ११३ ७ उद्देशः । ११४ (१४३)। १० उद्देशः । १७० (२०२) | ८ उद्देशः । २२१
(२४६) लघुक्रमः॥ ८ , ।११५ (१४६) १७४-३४० चतुर्थ शतकम् ४ २०६ । ९ ।२२६।३६० (२४९ ९ , ।११६ (१४७) ४ उद्देशाः। १७१ । ३२ (२०३) | १० । २२७ (२४९) १०, ।१२४ । २२० (१५२) ८ , ।१७२ (") | २५८-५२७ षष्ठं शतकम् ६ २८६ १७०-३०० तृतीयं शतकम् ३ २०२ | ९ , ।१७३ (२०५) १ उद्देशः । २३०३८ (२५२) १ उद्देशः । १४० । २५ (१६९) १०, ।१७४ । ३४% (२०६)
२ " ।२३१ ( ग) २ । १४८ (१८१) २२७-३६ पञ्चमं शतकम् ५ २४९ | ३ " ।२३७।४०० (२५९) ३ , ।१५४ (१८६) १ उद्देशः । १७८ । ३४ (२११)
। २३९ । ४२७ (२६७) ४ , । १५९ (१९०) २ , ।१८१ (२१४)
।२४२ । ३५० (२७४) " ।१६० । २६० (१९१) | ३ , ।१८३ (२१६)
। २४४ (२७४) (१९४) ४ " ।१९९ (२२४) ७ , ।२४७ । ५०१ (२७८) + ।१६७ । २८ (२००) ५ , ।२०२ (२२५)
।२५० | ५१ (२८२) " ।१६८।३० (२०१) | है ।२११ (२३२) ९ ।२५३ (२८४) "।१६९ ("), ७ , ।२१९ । ३५७ (२३९) | १० | २५८ । ५२ (२८६) Cla
॥७॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
POSTS
2059 vo
165
~15
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
मगवती
हालक्रम
सूत्रांक
यहां देखीए
Mrrur
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
३०७-५६० सप्तमं शतकम् ७ ३२७ । ३ उद्देवः। ३२५ (३६६) । ३४ उद्देशः । ३९२ (४९२) १ उद्देशः । २६९ । ५३७ (२९४)
, । ३२६ (३६७) | ४०७-६५७ दशमं शतकम् १० ५०८ २ , । २७३ । ५४ (२९९)
५ ५
" ।३३० (३७३) १ उद्देशः । ३९४ । ६२७ (४९४) ३ , ।२७९ (३०२) । ३३५ (३७८) २ । ३९९ (४९८) ४ , । २८० । ५५७ (३०३) ७ , । ३३७ (३८२) ३ । । ४०२ । ६४० (५००) । २८१ । ५६७(..) ८ ।३४३ । ५९७ (३९४)
४ , ।४०३ (५०२) ।२८७ (३०९)
(४१०) ।२९१
(३१२) १०, । ३५९ (४२५)
६ , ।४०६ । ६५ (५०७) ३९२-६१७ नवमं शतकम् ९ ४९२ ८ " |२९७ (३१५)
३४, । ४०७ (३२३) १ उद्देशः । ३६० । ६०
(५०८) (४२६) २ ।३६२ । ६१० (४२८)
४३५-७१७ एकादशं शतकम् ११ ५५२ १०, ।३०७ (३२७) ३०, ३६३ (४३०)
१ उद्देशः । ४०८ । ६९ (५१३) ३५९-५९७ अष्टमं शतकम् ८ ४२५
३१ । ३६९ (४३८)
८ , १४१५ (५१४) १ उद्देशः । ३१४ । ५७३ (३४०)
(४५६) ९ , । ४१८ । ७० (५२१) २ । ।३२२ (३६४)
। ३८९ (४९०)। १०" । ४२२
armyura vs
३७८
(५३२)
॥८॥
~16~
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
(५७०)
।४९५
भगवती-IN ११ उद्देशः । ४३१ । ७१ (५५०) १ उद्देशः । ४७१ । ७३७ (६०१) | ४ उद्देशः । ५१३ (६४१) पालघुक्रम १२, । ४३५ (५५२) २ , । ४७२
(६०४)
५ , ५१६ (६४४) ४६८-७२७ द्वादशं शतकम् १२ ५९६ ३" । ४७३
(६४६) ॥९॥ १ उद्देशः । ४३९ । ७२, (५५६) है । ४८६ । ७४७ (६१६) ७, । ५२५ (६५१) २ , । ४४२ . (५६०)
। ४८७ (,) ८ , ।५३२ ३ , ।४४३
। ४९१ (६२१) ९, १५३७ ४ , ।४४७
(६२६) १०, । ५३८ (६५८) , ।४५१
८ । । ४९६ (1) ५६१ पञ्चदशं शतकम् १५ ६ ९६ ।४५५
(५७१) ९ , । ४९७ (६२८) ५९०-७६७ षोडशं शतकम् १६ ७१९ ।४५७ (५८१) १०, ४९८
(६२९)
१ उद्देशः । ५६६ । ७६० (६९९) ८ " ।४५९ (५८२) | ५३८-७५७ चतुर्दशं शतकम् १४ ६५८ २ , ।५७० (७०२) ९ , । ४६५ (५८७) १ उद्देशः । ५०१ । ७५६ (६३२)
(७०४) १.” ।४६८ (५९६) २ , ।५०४
(७०५) योदशं शतकम् १३ १२९। ३ ।५०८ (६३८) । ५ ।५७७ (७०८)
| ॥९ ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
(५७५)
0.06.05c0m
~17~
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
भगवती
लघुक्रमः॥
प्रत सूत्रांक यहां देखीए
सत्र
॥१०॥
209
६ उद्देशः । ५८२ (७१३) | १ उद्देशः । ६१७ । ८०० (७३७) | ३ उद्देशः । ६५४ (७६७) ७, ।५८३ (७१४) | २ , ।६१८ (७३९)
(७६८) ८ । ।५८७ (७१७) ३ , । ६२३ (७४३)
५ , । ६५७ (७६९) ९
(७१९) ।५८८
(७७०) ४ , । ६२६
६ (७४६)
" ।६५८
७ ।६५९ १., । ५८९
" । ६३० (७४७) १४ (,)
८ । ५९० ६
, । ६६०1८३ (७७२) । ६३२ (७४९)
९ , । ६६१ । ८५ (७७३) १६-७७ सप्तदशं शतकम् १७ ७३१
। ६३९ (७५४) १ उद्देशः । ५९४ । ७७ (७२२)
१०, । ६६२ (१) (७५६)
| ६८८-८६ विंशतितमं शतकम् २० ८०० २ । । ५९८ (७२५) ९ , ६४३ (७५७)
१ उद्देशः । ६६३ । ८६७ (७७५) ३ , । ६०१ (७२७) १०, । ६४८ (७६१)
(७७७) ४ ।६०३ (७२८) ६६२-८५ एकोनविंशतितमं शत- ३ ।६६७ (७२९) कम् १९७७३
(७७८) (७३१) १ उद्देशः । ६४९ (७६१)
६७० (७८८) ६४८-८० अष्टादशं शतकम्, १८ ७६१ / २ , । ६५० (७६२) ।
६७४ (७९०)
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
v
॥१०॥
~18~
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
भगवती
सूत्रांक
लघुक्रमः॥
यहां देखीए
॥११॥
७ उद्देशः । ६७५ (७९१) ११ उद्देशः । ७०१ (८२३) | ५ उद्देशः । ७५१ | ८, । ६८३ (७९३) १२ । ७०४ (८३२) | ६ , । ७८६ । ९७७ (९०९) ९ , । ६८५
| १६, । ७०८ (८३३) | ७ , ८०५/१०७० (९२७) १०, । ६८८ (८००) | १९ । । ७११ (८३४) । ८ , । ८०६ (९२८) ६९१-८७७ एकविंशतितमं शत
७१२ (८४२) १म, । ८१० (,) कम् २१ ८०२ २१ । ७१३ (८४६) ८१८-१०८७ पइविंशतितमं शतम् २६९३८ ॥ वर्गाः ८ उद्देशाः ८०॥ (.) २२ । ७१४ (८४७)
१ उद्देशः । ८१५। १०८ (९३४) १९२-८८७ द्वाविंशतितमं शतकम् २२८०४, २३ । ७१५
(८४८)- २ " 1८१६ (९२५) | ६९३-८९६ त्रयोविंशतितमं शत
२४ । ७१६
| ३ , । ८१८ (९३८) कम् २३ ८०५ ८१०-१०७३ पञ्चविंशतितमं शतम् २५ ९२८
८१९ सप्तविंशतितमं शतम् २७ ९३८ |७१६-९२७ चतुर्विंशतितमं शत
८२२ अष्टाविंशतितमं शतम् २८ ९४० कम् २४ ८५२ १ उद्देशः । ७२०। ९३० (८५५) |
८२४ एकोनविंशतित्तमं शतम् २९ ९४२ । १ उद्देशः । ६९८ । ९२ (८१७) | २ । ७२४ (८५८) |८२९ त्रिंशत्तमं शतम् ३० (८२१) | ३ , । ७३४ | ९४७ (८७२) | १ उद्देशः । ८२६
(९४७) | ३ , । ७०० (८२२) | ४ , ।७४६ (८८७) | ११, । ८२९ (९४८)
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि'
(८५२)
॥११॥
~19~
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
भगवती
लघुक्रमः।
सूत्रांक
ज्ञाताधर्म
यहां देखीए
| ८४२ एकत्रिंशत्तमं शतम् ३१ ८४४ द्वात्रिंशत्तम शतम् ३२ ८५० अयविंशत्तमं शतम् ३३ ८५५ चतुखिंशत्तमं शतम् ३४ ८६० पञ्चत्रिंशत्तमं शतम् ३५
९५० । १ उद्देशः। ८५७ (९६७) | प्रशस्तिः ।
९८१ १ | ८६६ चत्वारिंशच्छतान्तानि ४० ९७५ | ॥ इति श्रीभगवतीसूत्रस्य लघु९५४८६७ एकचत्वारिंशत्तमं शतम् ४१ ९७८ | विषयानुक्रमः॥ ९६४
८६९-११४ भगवतीपदभावादिमा९७० । नादिकम् ।
कथाङ्गयो
॥१२॥
SUE
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
~ 20~
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
प्रत
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ अथ ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः॥ ॥ सूत्राणि १६५ सूत्रगाथा ४६ ॥ ३६-३७ उत्क्षिप्तशातम् १
|९६ चन्द्रज्ञातम् १० १७१ | १५३ पुण्डरीकज्ञातम् १९ २ ४६ ४९ सवाटकज्ञातम् २ ९० ९७ दावद्रवज्ञातम् ११
प्रथमः श्रुतस्कन्धः ॥१॥ ५६ अण्डकज्ञातम् ३ | ९९ उदकज्ञातम् १२
| १६५-५६० द्वितीयश्रुतस्कन्धे ५७ कूर्मशातम् ४ | १०१-३२ दर्दुरक्षातम् १३ १८१
वर्गदशकम् ॥ २५४ ६७ शेलकज्ञातम् ५ ११३ ११० तेतलिज्ञातम् १४ १९२
॥ द्वितीयः श्रुतस्कन्धः ॥ १११ नन्दिफलज्ञातम् १५ ६८ तुम्बकज्ञातम् ६ ६९ रोहिणीज्ञातम् ७
१२० १३७ अपरककाक्षातम् १६ २२७ ॥ इति ज्ञातधर्मकथाङ्गस्य लघु८४-३५, मल्लीज्ञातम् ८ १५५ १४१-५२७ अश्वज्ञातम् १७
विषयानुक्रमः॥ ९५-३१६ माकन्दीयज्ञातम् ९ १७२ । १४६ सुसुमाक्षातम् १८ २४२
सूत्रांक
यहां देखीए
P
॥१२॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
~21~
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमा [ अंगसूत्र-७,८,९. "उपासकदशा, अन्त्कृद्दशा, अनुत्तरौपपातिकदशा,"] मनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) _
लघुक्रमः॥
प्रत
सूत्रांक यहां देखीए
उपाशकदशाङ्गअन्तक शाङ-अनु- चरोपपा-
॥ अथ उपासकदशाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ५८ सूत्रगाथाः १३ ॥ सू. १७-१॥ आनन्दाध्ययनम् १ प. १९ | ३४ चुल्लशतकाध्ययनम्
५ ३ ६ | ५८-१३० नन्दिनीपितृशालिहीपि२६ कामदेवाध्ययनम् २ । ३१ ३८ कुण्डकोलिकाध्ययनम् ६ ३९
अधिकारी । ५४ २९ चुलनीपित्रध्ययनम् ३ ३४ ४५ सद्दालपुत्राध्ययनम् ७ ८॥ इति उपासकदशाइस्य लघु३१ सुरादेवाध्ययनम् ४
३५ ५४ महाशतकाध्ययनम् ८ ५२ । विषयानुक्रमः॥ - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
-
।
।।
तिकेषु ।
al
तिकेषु
॥१३॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
।।
॥ अथ अन्तकृद्दशाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि २७ सूत्रगाथाः ११ ॥ ७-३७ वर्गत्रयम् ३ १४ | ११-५७ पञ्चमो वर्गः
५ १ ८ । २७-११७ सप्तमो वर्गः ७ ८-४ चतुर्थो वर्गः ४ १४ १५-७ षष्ठो वर्गः ६ २५ ॥इति अन्तकृद्दशाइस्य लघु
विषयानुक्रमः॥ ニニニニニニニニニニニニニニニニ ॥ अथ अनुत्तरोपपातिकस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ६॥
६ वर्गत्रयम् । ॥ इति अनुत्तरोपपातिकस्य लघुविषयानुक्रमः॥
।
॥१३
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
~22~
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
L..
प्रश्नव्या
करण
विपाक
सूत्रयोः
॥ १४ ॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १०, ११. “उपासकदशा, अन्त्कृदशा, अनुत्तरॉपपातिकदशा," ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
४-२ प्राणातिपाताध्ययनम् १
८ सृषावादाध्ययनम् २
१२ अदत्तादानाध्ययनम् ३
२६ अब्रह्माध्ययनम् ४
॥ अथ प्रश्नव्याकरणस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ३० सूत्रगाथाः १४* ॥
२६ २०-८३ परिग्रहाध्ययनम् ५ ९८ ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः १ ॥
४२
६४
२३ - ११ अहिंसाऽध्ययनम् २-१ ११३ २५ सत्याध्ययनम् २-२ १२१
९१
॥ इति प्रश्नव्याकरणाङ्गस्य लघुविषयानुक्रमः ॥
६-२ मृगापुत्रीयाध्ययनम् १ १३ उज्झिताध्ययनम् २
१९ अभनसेनाध्ययनम् ३
२२ शकटाध्ययनम् ४
२४ बृहस्पतिदत्ताध्ययनम् ५
२६ सुदर्शनाध्ययनम् ६
॥ अथ विपाकसूत्रस्य लघुविषयानुक्रमः सूत्राणि ३० सूत्रगाथाः ३ ॥
७८ | ३१-३० सुवाहध्ययनम् २-१
८१
८७
८९
ટ
५५
६४
६७
६९
७३
-
२७ उम्बरदत्ताध्ययनम् ७
२८ सौर्यदत्ताध्ययनम् ८
२९ देवदत्ताध्ययनम् ९
३० अज्यध्ययनम् १०
॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः १ ॥
॥ समाप्तोऽयमङ्गेषु लघुक्रमः ॥
-
—
~23~
१३०
२६ अस्तेयाध्ययनम् २-३ २७-१४ ब्रह्मचर्याध्ययनम् २-४ १४२ ३० अपरिग्रहाध्ययनम् २-५ १६५ ॥ इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः २ ॥
९४
३३ प्रतिलम्भनाध्ययनम् २-२ शेषाणि च ९६ ॥ इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः २ ॥
॥ इति विपाकसूत्रस्य लघुविष
यानुक्रमः ॥
लघुक्रमः ॥
॥ १४ ॥
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
[आदय संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.]
अगसूत्र बृहविषयानुक्रम:
6 पुन: संकलनकर्ता →
आगम दिवाव
त्न
सागर (M.Com.,M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि)
~24~
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने |
॥ १५ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ अथ आचाराङ्गस्य बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ॥ सूत्राणि ४०२ सूत्रगाथाः १४७ नियुक्तिगाथाः ३५६ ॥
१ नि० नियुक्तिकारमङ्गलं नियुक्तिकथन- १२-१४ नि० समवतारद्वारे ब्रह्मचर्याध्ययप्रतिज्ञा च ३ नेषु चूडाऽचतरणम् ७ २ नि० आचारादीनि निक्षेपपदानि (१०) ४ १५ नि० महामतानां सर्वद्रव्येष्ववतारः ३ नि० चरणे षट् दिशि सप्त शेषेषु चत्वारः १६-१७ नि० सारद्वारेऽङ्गादीनां सारप्रदर्शनम् ४ नि० नामादिचतुष्टयस्य सर्वव्यापित्वम् १८ नि० ब्रह्मनिक्षेपाः (४) स्थापनायां ब्राह्म५ नि० आचाराङ्गयोर्निक्षेपचतुष्टयम् ६ नि० भावाचारे द्वाराणि (७)
३० नि० गत्याहारगुणभेदेन भावचरणम् ३१-३२ नि० अध्ययननामानि
णस्योत्पत्तिः, वर्ण (७) वर्णान्तराणां (९)च १९ नि० वर्णवर्णान्तरोत्पत्तिः
८
३३-३४ नि० अध्ययनार्थाधिकाराः १० ३५ नि० शस्त्रपरिज्ञाया उद्देशार्थाधिकारः | ३६ नि० शस्त्रनिक्षेपाः (४) द्रव्ये शस्त्राग्न्यादिः भावे दुष्प्रयोगोऽचिरतिश्च
५ २० नि० वर्णवर्णान्तरसइख्या ६ २१ नि० सप्तवर्णप्रदर्शनम्
७ नि० आचारस्यैकार्थिकानि (१०)
८ नि० प्रवर्त्तनाद्वारेऽस्य प्रथमत्वम्
९ नि० प्रथमत्वे हेतुः
२२ नि० वर्णान्तरनामानि
१० नि० आचारायचं गणित्वम्
| २३ नि० २५ नि० वर्णान्तरे हेतुः
११ नि० अध्ययनादिमिराचारस्य परिमाणम् २६-२७नि० वर्णान्तराणां संयोगोत्पत्तिः ९
~ 25~
२८ नि० द्रव्यभावब्रह्मप्रतिपादनम् २९ नि० चरणनिक्षेपाः (६)
| ३७ नि० द्रव्यभावयोर्ज्ञानप्रत्याख्याने
( प्रासादडष्टान्तः)
१ केषाञ्चित्सज्ञाऽभावः
११
बृहत्क्रमः।
।। १५ ।।.
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचारा
यहां देखीए
॥१६॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
|३८ निद्रव्ये सचित्ताचित्तमिश्रमेदाः, ६०, भावदिगू (१८) निरूपणम |११ जीवितस्य परिवन्दनाद्यर्थ कर्म २६ कारहकमा
भावे शानमनुभवश्व सक्षा १२|११-६२, प्रज्ञापकभावदिग्गुणनेन सर्वासु| १२ क्रियाविशेषपरिमाणनिश्चयः २७ IN |३९ नि० अनुभवनसम्शा पोडशधा | दिक्षु जीवाजीवानां गत्यागती |१३ कर्मारम्भपरिक्षावान् मुनिः २ पूर्वावागमनशानाभावा केषाञ्चित् १३६३, ज्ञानसजाया अस्तिनास्तित्वम् १६ | ॥प्रथमोद्देशकः१॥ ४०नि० दिगनिक्षेपाः (७)
| ३ औपपातिकेतरत्वे पूर्वपरभवज्ञानं च ६८ नि पृथिव्या निक्षेपादीनि द्वाराणि(९)२८ | ४१, त्रयोदशप्रदेशावगाढं व्यं द्रव्यदिक् (आत्मसिद्धिः, ३६३ पाखण्डिनश्च) | ४२ , क्षेत्रदिशो रुचकात्
४ जातिस्मृत्यादिना शानम्
.६९ ,, पृथिव्या निक्षेपचतुष्टयम्
१९ | ४३ ,, दिग्नामानि
६४-६६ नि० विशिष्टसञ्ज्ञाकारणे ७०, द्रव्यभावधिवीवर्णनम् ४४-४५ ,, दिगविविकस्वरूपम् १४
नियुक्तिगाथाः २०७१-७६ नि० सर्वलोके सूक्ष्माः, बादरे ४६ ,, दिक्संस्थानम्
५आत्मवादिनो लोककमक्रियावादित्वम् लक्ष्णाः (५) खराः (३६) ४७-४८ ,, तापदिकचतुष्टयज्ञानम् ६ अनतिशयिनो मतिज्ञानेन सद्भावागमः२३७७-७८ नि० वर्णादिना योनिमेदाः २९ ४९-५० ,, मेरुलवणयोरुत्तरदक्षि७ क्रियापरिमाणनिश्चयः
७९. नि० बादरे पर्याप्तापर्याप्तभेदानां तुल्यणयोः स्थितिः |८ अपरिजातकर्मणोऽपायप्रदर्शनं विपा
त्वं सूक्ष्मे च ३० ५१ ,, प्रज्ञापकदिक (१८)
कप्रदर्शनं वा ८०-८१ नि० वृक्षाघौषध्यायुदाहरणेन ५२-५८ ,, प्रज्ञापकदिग्शानं तन्ना९ तस्य योनिभ्रमणं दुःखवेदनं च २४ |
पृथ्वीमेदप्रदर्शनम् मानि च १५१० परिक्षावर्णनम्
२ ५८२ नि० असङ्ख्यपृथिवीजीवशरीराणां ५९ ,, प्रज्ञापकदिक्संस्थानम् १६७ नि० सदसन्मतिहेतुभ्यां बन्धज्ञानम् ।
टश्यत्वम्
॥१६॥
K
~26~
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहत्क्रमः।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
आचाराङ्ग alla नि० चक्षुःस्पर्शागतपृथिवीशरीरकथ- (९८ नि० पृथ्वीकायस्याङ्गोपाङ्गरहितत्वेऽपि | १६ अन्धादिवत्पृथिवीसमारम्भे प्रवृत्तI नोपसंहारः, शेषाणामाज्ञानाहिता
...वेदनाऽस्तित्वम् । मतेरहितादि भोग्यफलप्राप्तिः ३७ ॥१७॥ ४ नि० लक्षणद्वारे उदयलेश्यामेदाः (११) ९९नि० वधद्वारे कुतीर्थिकस्वरूपम् |१८ पृथिवीदण्डविरतो मुनिः निशरीरास्थिदृष्टान्तेन कठिनपृथि१००नि० दृष्टान्तगर्भ कुतीर्थिकस्वरूपनि
॥ द्वितीय उद्देशकः ॥ बीशरीरे चेतनत्यम् ३१ १०१ नि० कृतकारितानुमतिभिर्वधः
गमनम् | १०६ नि० अकायद्धाराणि भेदपरिमाणो८६-८८ नि० पृथिवीकायपरिमाणम्
पभोगशखलक्षणेषु विशेषः १०२ नि० पृथिवीकायवधे निदानिदाभ्यां | २०७-१०८ नि० अप्कायस्य भेद८९नि क्षेत्रकालयोः सूक्ष्मवादरत्वम् ३२| तदाश्रितान्यदृश्यावश्यजीववधप्रदर्शनम् नानात्यं, पादरे पञ्च शुद्धदिकायाः ४० L९०नि०कालतः पृथ्वीकायपरिमाणम् | १०३ नि०पृथ्व्या वधे तनिश्रितानां सूक्ष्मा १०९ नि० अपकायपरिमाणद्वारम् ९१ नि० पृथिवीकायानां परम्परमवगाहः
दीनां वधः । ११०नि० अप्कायलक्षणद्वारम् ९२-९३ नि० चङ्क्रमणादिभि (१६)- | १०४-१०५ नि० पृथ्वीवधविरता
१२१ नि० अर्कायोपभोग ७)द्वारम् ४१ मनुष्याणां पृथ्व्या उपभोगः
गुप्त्यादिमन्तश्चानगाराः | ९१२,, अप्कायवधप्रवर्तने हेतुः LG९४ नि सुखार्थे परदुःखोदीरकत्वम् १४ पृथ्वीहिंसका आर्तपरियूनादिमन्तः
| ११३ , अप्काये शखद्वारम् M९५ नि० शस्त्रद्वारे हलकुलिकादिसमास- | १५ असाख्येयजीवसध्यातरूपा पृथिवी- (उत्सिश्चनादि ६) द्रव्यशखप्रतिपादनम् ३३
तिप्रदर्शनम् ११४ निविभागतो द्रव्यभावशस्त्रम् ४२ ९६ नि० विभागद्रव्यभावशनप्रतिपादनम् | १६ कृतकारितानुमतिभिः पृथिवीसमा- ११५ ,, पृथिवीबदएकायस्य शेषद्वाराणि F९७ नि०पृथ्वीकाये बेदनाः
रम्मे प्रवृत्तिप्रदर्शनम् | १९ अनगारखरूपम्
॥१७॥
~27~
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
आचाराले
सूत्रांक
॥१८॥
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२० निकमणधद्धारक्षोपदेशः ४३ |
नादिषु मेदः ४९.३६ अग्निसमारम्भाकर्त्तव्यता ५४ २१ महापुरुषैः कृतपूर्वो मार्गः ११७-११८ नि० तेजोजीवानां विध्य, ३७ अग्निशस्त्रसमारम्भेऽन्यतीथिकाना२२ आज्ञयाऽपकायज्ञाने संयमः ४४ बादरपञ्चभेदप्रतिपादनं च |
मयथावादित्वम् २३ अपकायलोकात्माभ्याख्यानव्याप्तिः । ११९ ,, खद्योतकज्वरोष्मदृष्टान्तेन ३८ अग्निसमारम्भे नानाप्राणिविहिंसनम्५५/ २४ शाक्यादिदृष्टान्तेनाप्कायसमारम्भ
तेजसो जीवत्वम् ५० ३९ अग्निसमारम्भपरिज्ञाता मुनिः ५६ दोषप्रदर्शनम् ४५ १२० ,, तेजोजीवपरिमाणद्वारम् ।
॥ चतुर्थ उद्देशकः ॥ २५ प्रवचने उदकजीवोपदेशः ४६ १२१ , तेजस उपभोगद्वारम् (५) | १२६ नि० पृथिवीतो वनस्पतिद्वारे नानात्वं २६ अपकायस्य नानाविधशस्त्रप्रदर्शनम् | १२२, तेजःकायिकहिंसने हेतुः ५१ |
विधानादिभिः २७ अशस्त्रोपहतापकायपरिभोगेऽदत्ता- १२३.. तेजाकायिकानां समासतो १२७ .. दितिभेदेन सध्मबादरा दानदूषणम् ४७ द्रव्यशस्त्रम्
वनस्पतयः २८ पानविभूषार्थमशस्त्रोपहताप्कायपरि- १२४ ,, तेजःकायिकानां विभागतो | १२८ नि० बादरवनस्पतेर्भेदाः भोगेऽन्यमतानि
व्यशत्रम् १२९ नि०प्रत्येकतरोदिश भेदाः २९ अम्यमतेऽपकायजीवच्छेदनत्वम् ४८ १२५ ,, उक्तशेषद्वारातिदेशेनोपसंहारः
१३० नि० प्रत्येकवनस्पतिजीवभेदाः ३० अन्यागमासारत्वम् ३२ अमिलोकात्माभ्याख्यानव्याप्तिः
(अनबीजाद्याः ६) ३१ अप्कायवधविरतो मुनिः ३३ वनस्पतिसंयमखेदज्ञानव्याप्तिः ५२|१३१-१३२ नि० प्रत्येकतकशरीर॥ तृतीय उद्देशकः ॥ ३४ अग्निशखस्य वीरैर्दष्टपूर्वता ५३
सनातरष्टान्ताः ११६ नि० तेजसो द्वारातिदेशः विधा- । ३५ प्रमत्तो रन्धानायर्थी दण्डवान् | १३३ नि० पत्रस्कन्धादी एकजीवत्वम् ५८
॥१८॥
~28~
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचाराङ्गे|
हत्क्रमः।।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
१३४ नि० प्रत्येकतरुजीवराशिपरिमाणम् | १५० ,, वनस्पतेर्विभागतो द्रव्यभावशस्त्रम्
त्वं विधानादिना ६७ १३५ नि० शेषा आशाग्राह्याः
१५१,, वनस्पतेरुक्तशेषद्वाराणां पृधि- | १५३ ,, अस-लब्धिगतिभ्यां द्विधा १३६-२३७ नि० साधारणबनस्पति
व्याः सादृश्यम् १५४ ,, त्रसजीवभेदाः लक्षणम् ५९ | ४० वनस्पत्यारम्भाकरणेऽनगारत्वम् १३८ नि० मूलप्रथमपत्रयोरेकजीवत्वम् ४१ गुणावर्त्तयोरक्यम्
६२
| १५५ ,, त्रसजीवोत्तरभेदाः (योनिकुलानि) १३९-१४० नि० अनन्तकायलक्षणम् ४२ वनस्पत्यभिनिवृत्तशब्दादीनां सर्व
| १५६ १५७ ,, त्रसजीवानां दर्शना१४१ नि साधारणवनस्पतेर्भेदाः ।
दिग्भाक्त्वम् ६३
दीनि (१९) लक्षणानि ६८ १४२ नि० एकाद्यसङ्ग्याताना प्रत्येक ४३शब्दादिगुणागुप्तत्वाऽनाज्ञाकारित्वमूक्ष्४
| १५८ , त्रसजीवानां परिमाणम् ___ दृश्यत्वम् । | ४४ शब्दादिगुणास्वादेऽसंयमानुष्ठायित्वम् १५९, विरहितप्रवेशनिगमपार१४३ नि. साधारणेऽनन्तानां दृश्यत्वम् ६० ४५शब्दादिगुणप्रमत्तत्वे गृहस्थत्यम्
माणम् ६९ १४४ नि० सूक्ष्मानन्तजीवपरिमाणम् ४६ वनस्पतिशस्त्रसमारम्भेऽम्यतीथिकदशा| १६०, उपभोगशस्त्रवेदनाद्वारत्रयम् १४५ नि० यादरनिगोदपरिमाणम् ४७ वनस्पतिजीवास्तित्वे लिङ्गम् | १६१-१६२ ,, मांसाधुपभोगार्थ १४६, १४७ ,, उपभोगविधिः, आहा
(जन्मवृद्धयादि) ६५
जीववधः रादिरातोद्यादिश्च ४८ वनस्पत्यारम्भतत्परिहाराभ्यां |१६३ , उक्तशेषद्वाराणां पृथिव्याः सा१४८ ,, उपभोगोपसंहारः, वधहेतुश्च ६१
बन्धमुनित्वे ६६
दृश्यम् ७० १४९, वनस्पतेः समासद्रव्यशखं कल्प- ..
॥ पञ्चम उद्देशकः ॥ ४९ अण्डजादित्रसभेदकथनपूर्वकं संसान्यादि ।१५२ नि पृथ्वीत्रसद्धारसाश्य, नाना
रस्वरूपम्
~29~
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ २० ॥
मुनि दीपरत्नसागरेण
५० अज्ञानिनो भवभ्रमणम्
५१ संसारो दुःखम्
५२ वध्यमानदुःखम्
५३ प्रसेष्वन्यतीर्थिकानामयथावादि
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
पुनः
७१
त्वं तत्फलं च ७२ ७२
५४ प्रसवधे कारणानि ५५ त्रसकायसमारम्भपरिशातृत्वे मुनित्वम् ७३ ॥ पष्ठ उद्देशकः ॥ १६४ नि० वायुपृथिवीद्वारसाइदयं, नानात्वं विधानादिना १६५ - १६६, सूक्ष्माः सर्वलोके, प
चधा वादा उत्कलिकायाः ७४ १६७, देवान्तर्हितशरीरवद् वायोः सत्त्वम् १६८, वायुजीवानां परिमाणम् १६९, बादरवायुकायोपभोगः (व्यजधमनादिमि: )
१७०, वायुकायानां व्यजनादि द्रव्य
शस्त्रम् ७५ १७१, उक्तशेषद्वाराणां पृथिव्याः सादृश्यम् ५६ वायुसमारम्भनिवृत्तौ मनुष्यस्य श कत्यम् ५७ अन्तर्ज्ञानयोर्व्याप्तिः (द्रव्यातङ्के क्षारगलिताश्वदृष्टान्तः) ५८ वायुजीवसंरक्षणे साधुत्वम् ७७ ५९ वायुशस्त्रसमारम्भेऽम्यतीर्थिकस्वरूपम् ६० वायुकायारम्भपरिज्ञाने मुनित्वम् ७८ ६१ पृथिव्यादिसमारम्भे कर्मबन्धनम् ६२ सर्वारम्भनिवृत्तिर्मुनित्वम् (उपस्थापनाविधिः ) ७९ (सप्तम उद्देशकः ॥
॥ इति शस्त्रपरिभ्राध्ययनम् १ ॥ ८१ १०६-१९६ नि० लोकविजयाध्ययनं २ - १४८
~30~
१७२ नि० उद्देशषट्कार्थाधिकाराः १७३ - १७४, लोक (८) विजय (६)गुणमूलानां निक्षेपाः, आययोनि
प्यन्ने, परयोः सूत्रालापे ८३ १७६, लोकनिक्षेपातिदेशः, भाकपायलोकविजयेनाधिकारः ८३ १७७ ११ भावलोकविजयेन फलम् ८४ १७८, गुणनिक्षेपाः (१५)
१७९
सचित्ताचित्तमिश्रभेदेन द्रव्यगुणस्त्रिधा ८५ जीवगुणः, सङ्कोचविकाशौ
लोकपूरणं च १८१, देवकुर्यादिषु सुषमसुषमादिपबैर्निर्भजना, गणनायां द्विकादि, करणे कलाः, अभ्यासे भोजनं, ऋजुता अगुणगुणे गुणागुणे
१८०
33
८२
बृहत्क्रमः।।
॥ २० ॥
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ २१ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
८७
वक्रता, भवे नारकादि, शीले • क्षामत्यादि भावे जीवाजीवयोः ८६ १८२ नि० मूलनिक्षेपाः (६) १८३ भावमूलस्य त्रैविध्यम्, औद यिक उपदेष्टा आदि ( विनयकषायादि ) ८८
53
कर्मनिक्षेपाः, नामस्थापनाद्रव्यप्रयोगसमुदानयपथिकाऽऽघातपःकृतिभावकर्मभेदेन (वर्गणास्वरूपं मूलोत्तरप्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशवन्धाः ) ९२ १९३, अष्टविधकर्मणाऽधिकारः ९८ ६३ गुणमूलस्थानयोरैक्य प्रमत्तस्वरूपं मात्रादिममत्वं च (परशुरामचाणक्य - जरासिन्धुडष्टान्ताः ) १९४ नि० स्वजन त्यागात्कपायकर्मभबच्छेदाः १०१ १९५, स्नेहासक्कत्वेन जन्ममरणप्राप्तिः ६४ जरायामिन्द्रियाणां शिथिलता (इनिरूपणम् ) १०३ रणत्वं तेषां स्थानविशेषाश्च ९१ ६५ वार्द्धक्ये लोकावगीतत्वम् (धनकषायनिक्षेपाः (८) वृद्धदृष्टान्तः) १०५ ६६ प्रशस्तमूलस्थानम्, अप्रमादः १०७
"
कर्मणि कषायाणां प्रधानका
|
७३ अरतिरहितो मुच्येत
१९६ नि० संयमावधावनहेतवः ७४ अनाशावर्तिनामुभय भ्रष्टत्वम् ७५ संसारविमुक्तस्वरूपम्
33
१८४ स्थाननिक्षेपाः (१५) १८५, शब्दादिविषयेषु मुलस्थानत्वम् ८९ १८६ " पादपदृष्टान्तेन कर्मणः संसाप्रतिष्ठितमूलत्वम् ९० १८७ कर्माणि मोहनीयमूलानि काममूलानि वा ततश्च संसारः
१८८, मोहनीयस्य द्वैविध्यम्
१८९ "
१९० "
१९१, संसारः पञ्चधा
१९२॥
99
~ 31~
६७ संसाराभिष्वगिस्वरूपम्
६८ जराद्यभिभवे ऽर्थस्यात्राणत्वम् १०८ ६९ स्वकृतकर्मफलसुखदुःखयोशनेऽ
लैव्यम् १०९
७० यौवने धर्मोयमः ७१ क्षणे द्रव्ये प्रसादि, क्षेत्रे कर्मभूमयः, काले तृतीयचतुरकौ भावे क मणि न्यूनकोटिसागरता (ध्रुवप्रकृतयः ) नोकर्मणि आलस्या(१३) द्यभावः ७२ यावदिन्द्रियशक्ति आत्मार्थोपदेशः ११० ॥ द्वितीये प्रथमः २-१ ॥
१११
११२
११३
बृहत्क्रमः।।
॥ २१ ॥
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
-
सूत्रांक
आचाराले
-
यहां देखीए
॥२२॥
-
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
७६ अनगारस्वरूपमशानोपहतस्व. |८६ भोगलिप्सोस्तत्प्राप्यप्राप्त्योः ख ९६ अनगारत्वाय बालसङ्गनिषेधः १३९ । वृहतुक्रमः॥ रूपं च ११४ |
रूपम् १२८
द्वितीये पञ्चमः २-५॥ ७७ अज्ञानस्वरूपज्ञातुः कर्त्तव्यम्
॥ द्वितीये चतुर्थः २-४ ॥ ११५ ८७ पुत्राद्यर्थ कर्मसमारम्भाः
९७ अनगारस्य पापकर्माकरणम्
१२९ | ७८ गोत्राभिमानपरिहारः (पुगलाय
१४०
| ९८ हिंसायामन्यान्यपि पापानि, अन८८ समुत्थितानगारस्याऽऽमगन्धपर्तखरूपम् ) ११६ ॥ द्वितीये द्वितीयः २-२॥
.
गारस्य कर्मोपशान्तिप्रकारश्च १४१ रिक्षातृत्वम् १३० ८९ क्रयादिनिषेधः, कालादिज्ञानं नि
| ९९ ममतात्यागे मुनित्वम् १४२ ७९ अन्धत्वादि प्रेक्ष्य समितीभावः ११९
ममत्वादिश्च (४२ दोषाः) १३९
| २७ वीरलक्षणम् ८० उच्चैर्गोत्राभिमानमूढस्वरूपम् १२० ९० अस्नेहस्य वस्त्रादेऽहो गृहिभ्यः १३३ |
|३० स्पर्शऽसक्तः नन्दीनिविष्णः क१७ मोक्षचारिस्वरूपम् १२१
९१ आहारविधिः
१३४
___ मच्छेदको मुनिः १४३ ८१ मृत्यागमानियततादि दृष्ट्वा हितार्थी
९२ धर्मोपकरणस्यापरिग्रहत्वम् १३५ | १०० रूक्षसेविसम्यक्त्वदर्शिनो वीराः ८२ विज्ञस्यानुपदेश्यत्वं बालस्यावर्त्तः १२४
९३ कामानां कामाकामिनश्च स्वरूपम् | १०१ दुर्वसु-सुवसुमुनिलक्षणं लोक॥द्वितीये तृतीयः २-३॥ |९४ प्रतिमोचको बहिरन्तानवान्
संयोगात्ययः १४० | ८३ भोगिनां रोगादावसहायता (ब्र
श्रवत्पूतिदेहदर्शनम् १३६ १०१ अनन्यदर्शनानन्यारामयोाप्तिः __झदत्तदृष्टान्तः) १२५ | ९५ वान्ताशनमायानिषेधः, अविरति- । पूर्णतुच्छयो। कथनव्याप्तिश्च १४५ ८४ अर्धस्य दायादिसाधारणत्वम् १२६ फलम् ( दधिघटिकाद्रमकधन- १०३ देशकस्य पुरुषादिज्ञानावश्यकता १४६ ५स्त्रीभिर्व्यथितो मूढोऽसमर्थों धर्म १२७ |
सार्थवाहद्दष्टान्ती) १३८ | १०४ जिनकृताकृतयोः करणाकरणे १४८ ITAL|| २२ ॥
~32~
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचारांगे
॥ २३ ॥
मुनि दीपरत्नसागरेण
33
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
१०५ बालस्य दुःखाव भ्रमणम्
॥ द्वितीये षष्ठः २-६ ॥
॥ इति द्वितीयं लोकविजयाध्ययनम् २ ॥
11
पुनः
१२६-१२ २१३ नि० ॥ अथ शीतो णीयाध्ययनम् ३ १७७ १९७-१९८ नि० उद्देशचतुष्कार्थाधिकाराः १९९ शीतोष्णयोनिक्षेपाः (४) २०० द्रव्यभावशीतोष्णे
१४९
55
२०१
प्रमादादिपरीपहाणां शीतत्वं, तपद्यमादिपरीषाणां चोष्णत्वम्
२०२-२०४, स्त्रीसत्कारयोः, मन्दपरिणामानां धर्मोऽप्रमादिनो वा शीतत्वम् १५०
२०५ नि० उपशमैकार्थिकानि (६) २०६ संयमासंयमयोः शीतोष्णत्वे हेतुः
[ अंगसूत्र- १. "आचार"] संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
२०७, सुखदुःखयोः शीतोष्णत्वे
"
हेतुः १५१ १०८, कषायादीनामुष्णत्वे तपस उष्णतरखे च हेतुः २०९, शीतोष्णादिसहानां मुनित्यम् २१० भिक्षूणां परीषहसद्दनं कामत्यागश्च १०६ मुनीनां जागरणम् २११ नि० मुनीनां स्वापेऽपि जागरणम् १५२ २१२, द्रव्यसुप्तस्येव भावसुप्तस्यापि दुःखप्राप्तिः २१३,” पलायनपथ्यादिषु सचेतनावत्सुश्री भ्रमणः १५३ १५४
१०७ शब्दादिरूपवेदिनः संयमः १०८ विषयविरक्तमुनिवरूपम् १०९ निर्ग्रन्थो रत्यरत्यादिसहः बैरोपरतः, धर्माशानी तु मूढः (देवानां जरा )
~33~
११० भावजागरस्य कर्त्तव्यं, पर्यायशस्त्रसंयमखेदयोर्व्याप्तिः, उपाधिः कर्म (कर्मसत्तास्थानानि ) १५५ १११ रागद्वेषयोरटयो मुनिः १५८
॥ तृतीये प्रथमः ३-१ ॥
४ सम्यक्त्वदर्शिलक्षणम् ५% कामसङ्गो गर्भमूलम्
१५९
६ अमृतात्मस्वरूपम्
७ आतङ्कदर्शी पापविरतोऽग्रमूलंछिन्यात् १६० ११२ निष्कर्मदर्शिनः स्वरूपम् (प्रकृतिबन्धस्थानानि ) १६१ ११३ सत्ये धृतिः, पापक्षपणं च १६२ ११४ अनेकचित्तपुरुषप्रवृत्तिः ११५ द्वितीयानासेवानिःसारतादर्शनादिस्वरूपो मुनिः
१६३
बृहत्क्रमः ।
॥ २३ ॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचारांगे
॥ २४ ॥
मुनि दीपरत्नसागरेण
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
पुनः
॥ तृतीये द्वितीयः ३-२ ॥ ११६ पापकर्माकरणमात्रेण न मुनित्वम् १६५ १०७ ११७ नि० आत्मप्रसादी यात्रामात्रापको विरक्तश्छेद मेदाद्यविषयः १६६ ११ १२ साम्प्रतेक्षिणामतिक्रान्ताऽ
क्रोधादित्यागिनो लघुभूतगामिता १६४ १२३ एकसर्वज्ञानयोर्व्याप्तिः । धीरत्वलक्षणम् १२४ प्रमत्तस्य भयं एकबहुक्षपणव्याप्तिः, निर्लोभस्य महायानं, परात्परत्वं च । १७२ १२५ आशया संयमः, शस्त्रास्त्रयोः
नागतविचाराभावः १६७ ११८ महायोगीश्वरस्वरूपं, आत्म
मित्रता १६८
११९ कर्मापनेतृमोक्षमार्गिणोर्व्याप्तिः आत्मोपदेशय । १६९
१३० प्रमत्तलक्षणम् ।
१२१ अप्रमत्तलक्षणम् ।
१७०
॥ तृतीये तृतीयः ॥ ३-३ ॥
१२२ कषाययमने तीर्थकृदुपदेशः, स्वकृतकर्मभेत्तृत्वं च ।
१७१२१९-२२१ अन्धानन्धरात्रुजयाजयदृष्टान्तेन सम्यग्मिथ्यादृष्टोः सिद्धयसिद्धी । २२२-२२३ नि० सम्यक्त्वोत्पत्या दिजिनान्तश्रेण्या असङ्ख्यगुणनिर्जरकत्वम् । १७७ २२४ नि० त्यक्ताहाराद्युपधेः श्रमणस्वम् । १७८
पारंपर्यम् । १७३
१२६ मानादिभिर्मानमायादीनां व्या
तिः पश्यककृत्यं च । १७४ ॥ तृतीये चतुर्थः ॥ ३-४ ।। ॥ इति शीतोष्णीयाध्ययनम् ॥ ३ ॥ २१४ - २१५ नि० उद्देशचतुष्कार्था
~34~
धिकारा: (७) १७५ २१६ नि० सम्यक्त्वनिक्षेपाः ( ४ ) । २१७-२१८ नि० कृतसंस्कृतसंयुक्तप्र युक्तत्यक्तभिन्नच्छिन्नैर्द्रव्ये, दर्शन(३) ज्ञान (२) चारित्रे (३) र्भावे, ( वीरसेनसूर सेनदृष्टान्तः)
१७६
१२७ उत्थितादिषु सर्वकालीनजिनभाषितं तत्त्वं सर्वप्राणाद्यहिंसादि । २२५-२२६ नि० सर्वजिनानामहिंसावादित्यम् । १७९ १२८ दृष्टनिर्वेदो लोकेषणात्यागः । १८० १२९ गुद्धानां भवभ्रमः । १३० प्रमत्तान् दृष्ट्वा धीरस्याप्रम
तता 1 १८१
बृहत्क्रमः ।
॥ २४ ॥
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचारांगे
हत्क्रमः।
।
यहां देखीए
॥२५॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
॥ चतुर्थे प्रथमः ॥४-१॥ १३६ जीर्णकाष्ठदाहवत् शरीरकर्मधुः | २३५-२३७ नि० उद्देशषट्कार्थाधि- १३१ आथवनिर्जरयोाप्तिः ।
ननदाही । १९०
_ काराः । १९६ १३२ न मृत्योरनागमः, यथेच्छानां
२३४ शुधिरकाष्ठदाहदृष्टान्तेन मुनीनां |२३८ नि० लोकसारयोनिक्षेपाः (४) भवभ्रमः । १८३
कर्मक्षयः । १९१ (लोकखण्डुकानि) १३३ क्रूराफरयोः फले केवलिश्रुत
१३७ अल्पमायुरागमिष्याहुःख निवृत्त- २३९ नि० सर्वस्वस्थूलादिषु धनैरकेवलिनोरेकवाक्यता । १८४ | पापस्यानिदानतेति न च क्रुध्येत् । _ ण्डादीनां सारता द्रव्ये । १९७ १३४ प्राणादीनां हन्तब्याहन्तव्यादिना
। १९२ | २४० नि० भावे सिद्धिः, तस्याः साआर्यानार्यत्वम् । १८५१, चतुर्थे तृतीयः ॥४-३ ॥
धनं च ज्ञानादि। २२७-२३१ नि० रोहगुप्तकारिता स्वा
१३८ त्यागी स्मारको मार्गस्थितो |२४१ नि० ज्ञानादेः सिडयुपायस्य
धुनाति कर्म । . न्यसाधुपरीक्षा १८७
. भावसारताप्रतिपादनम् । १९७ १३९ प्रमत्तखरूपम् ।
१९३ २३२-२३३ नि० शुष्केतरगोलकदृष्टान्तेन
२४२ नि० जीवमोक्षयतनानां ग्राह्यता। | १४० बुद्धस्य पश्यत्ता, वेदविदो निविरक्ताविरक्तयोर्लेपालेपौ । १८८ |
२४३-२४४ नि० लोकादीनां धर्मादिः र्याणम् । १९४
सारः । १९८ ॥ चतुर्थे द्वितीयः ॥ | १४१ वीराणां सत्यरतता पश्यकस्य | १४२ अविरतानां काममारसंसाराः । | १३५ पाखण्डिनां धर्मबाह्यता, आर
नोपाधिः । १९५ | १४३ कुशाग्रबदायुः क्रूरकर्मणो मोह___म्भजे कर्मदुःखे (प्रकृत्युदय- . चतुर्थे चतुर्थः ॥ ४-४ ॥
गर्भमरणपारंपर्यम् । १९९ स्थानानि)। १८८ | इति सम्यक्त्वाध्ययनम् ॥ ४॥ १४४ संशयज्ञानारसंसारपरिज्ञानम् २००
FE
॥२५॥
~35~
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
वहतका
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
आचाराङ्गे || १४५ छेको मैथुनाद्विरतः, वालस्य | १४८ पूर्वपश्चाद्भावमिदुरादिधर्मत्या
१५६ सम्यक्त्वमौनयोाप्तिः, अप्रद्वितीया दालता । च्छरीरस्य विरतपापस्याध्या
मत्तस्यैव सम्यक्त्वमौने । २१३ ॥२६॥ १४६ गृद्धः आरम्भी पापरतः एक
सनम् । २०५ ॥पञ्चमे तृतीयः ॥ ५-३ ॥ चारी बहुक्रोधादिः अज्ञात- | १४९ शरीरासारतादर्शिनो न पर्य. धर्मो भवभ्रमी । २०१
____टनम् । २०६
१५७ अव्यक्तभिक्षो१विहारता । २४५ नि० चारशब्दस्य निक्षेपाः (६) १५० अविरतवादिनः परिग्रहवत्त्वम् २०७
१५८ अज्ञस्य क्रोधमोहसंवाधभावाः, एकाधिकाश्च (३), द्रव्ये दारु- १५१ परमचक्षुः पराक्रमी थुताध
तदृष्टिमुक्त्यादिमुनिः । २१५ समादिः। २०२ ध्यात्मस्थता, प्रमत्तस्य बाह्य
१५९ अप्रमत्तस्याकुट्टिकृतकर्म| २४६ नि० क्षेत्रादिचारा; भावे प्रश
विवेकः। २१६
त्वम् । २०८ स्ताप्रशस्तौ। ॥ पञ्चमे द्वितीयः ॥ ५-२॥
१६० शानधर्मबाधितस्थाबमोदरि२४७ नि० प्रश्नद्वारेण प्रशस्तभाव
कादिः । २१७ १५२ सन्धिक्षपणाय वीर्यम् । २०८ चारः । २०३ १५३ पूर्वोत्थायिपश्चानिपातिभनख
| ॥पञ्चमे चतुर्थः ॥ ५-४ ॥ २४८ नि० द्रव्यादिचारेषु यतेर्विशेषता ।
रूपम् । २०९ | १६१ इदवत्प्रतिपूर्ण उपशान्तरजा आ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ ५-१ ॥ १५४ अकामोऽझञ्झो बाखेन युध्येत २१० चार्यः । (सम्पदष्टकम् ) २२० IN १४७ सन्धिदर्शी उत्थितः पृथकर्म- १५५ अन्तरारिषड्वर्गरिपुजयसाम- १६२ विचिकित्सकोऽसमाधिमान्चोज्ञाता विरतः । २०४ ।
प्रया दुष्णापत्वम् । २११ | धावोधयोनिर्वेदः भव्यत्वशका २२१
।
॥२६॥
~36~
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
कायहवक्रमः
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
बाचाराङ्गा १६३ जिनप्रवेदितस्य सत्यनिःश- | ॥पञ्चमे षष्ठः ॥ ५-६ ॥ १७७ कुटुम्बविलापेऽपि प्रव्रजति । २३९ | कृता । २२२ ॥ इति लोकसाराध्यनम् ॥ ५॥
॥ षष्ठे प्रथमः ॥ ६-१ ॥ ॥२७॥
Haal १६४ प्रापश्चात्सम्यक्त्वे षड्भङ्गी २२३ २४९-२५०नि० धुताण्याध्ययनस्यो- १७८ त्यागी झान्यपि जातु कुशीलः । २४०.
१६५ हन्तव्यघातकयोरेकता । २२५ देशपञ्चकार्थाधिकाराः, द्रव्य- १७९ कुशीलस्वरूपम् । १६६ आत्मज्ञानयोरभिन्नता । २२६
भावधूते च । २३२ १८० प्रवर्द्धमानाध्यवसायसाधुवि| २५१ नि० उपसर्गसहस्य कर्मधुनना
चाराः । २४१ १६७ आज्ञाऽनाशयोनिरुद्यमी, तह-
भावधूतम् ।
१८१ मुमुक्षोराजैव धर्मः, शुद्धेषणादि यादिकः स्यात् । २२७ | १७३ समुत्थितादण्डसमाहितप्राज्ञानां
परीषहसहनं च । २४३ १६८ अबहिर्मना महान् , प्रवादस
मुक्तिमार्गोपदेशः, अवसीदतां
॥ षष्ठे द्वितीयः ॥ ६-२॥
१८२ अचेलकस्य चेलजीर्णतादिविरूपं च ।
दोषाश्च । ।
चाराभावः। १६९ तीर्थकरनिर्देशानतिवर्ती, नि- १४-१६० षोडश रोगाः ।
१८३ साधोः शरीरावयवानां कृशष्ठितार्थ आगमन पराक्रमेत । २२९ | १७४ नारकदुःखानि, प्राणिनां क्ले
त्वम् । २४६ १३ सङ्ग आश्रवः ।
शश्च महद्भयम् (योनिकुलानि)२३६ | १८४ चिररात्रोषितस्याप्यायधर्मेs१७० आवर्त्तप्रेक्षी गत्यागत्यनाकाङ्क्षकः।। १७५ बहुदुःखता कामासक्तिः, भक | रतिः । (पडकाक्षसाधुदृष्टान्तः) २४७ १४१ मुक्तात्मस्वरूपम् । २३०
गुरं शरीरम् । २३८ | १८५ गृद्धानां प्रव्राजकशिक्षकगुरुव-.. १७२ मुक्तात्मनामशब्दादिरूपत्वम् २३१ । १७६ धूतवादे कर्मधूननोपायः ।
बज्ञा । २४८
॥२७॥
~37~
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रमः।।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
आचारांगे१८६ अपरसाधुनिन्दा द्वितीया
॥ षष्ठे पञ्चमः ॥ ६-५॥ | २६२ , अनशनत्रैविध्य भावविमोक्षश्च । _ बालता । २५० ॥ इति धुताध्ययनम् ॥ ६॥ । २६३ ,, सपराक्रमेतरे मरणे समा॥ २८॥ १८७ शिथिला अपि सत्यप्ररूपका, (सप्तमं व्युच्छिन्नम् ) ॥ ७॥
धिमरणकर्त्तव्यता च । २६२ अन्ये ज्ञानसम्यक्त्वभ्रष्टाः । २५१ | २५६ नि० उद्देशाष्टकार्थाधिकाराः ।
२६४ ,, आर्यवज्रपादपोपगमनम् । १८८ बाह्यक्रियोपपेतानामप्यात्मनाशः। १ पार्श्वस्थत्यागः।।
२६५, समुद्राचार्यस्थापराक्रमपादपो१८९ आरम्भी, अधर्मी, धर्मस्य घो
पगमनम् । | २ अकल्पितत्यागः रुष्टे सद्भावकथनम् । रता च । २५२
२६६ ,, तोसलेाघातिमम् । । ३ कामाद्याशङ्कायां कथन, उपकरणशरी१९० समुत्थितानामपि पश्चाद्दीनता,
२६७ , अव्याघातिममरणम् । २६३
रमोक्षः ४-८ वशार्त्तता, समन्वागतादिष्वस
२६८, भावसंलेखनाया आवश्यकत्वम् । ४ वैहानसादि। मन्यागतत्वादि । २५३५ ग्लानिर्भक्तपरिज्ञा च ।
२७२ ,, संलेखनापादपोगमनविधिः २६४ ॥ षष्ठे चतुर्थः ॥ ६-४ ॥
२७४, आहारहासः। |६ एकत्वेङ्गिनीमरणे।
१९४-१९५ पार्श्वस्थान्यतीथिकेभ्यो१९१ वीरस्य परीपहसहनता, उत्थि- ७ प्रतिमापादपोपगमने च ।
ऽशनादिदाननिषेधः। पार्श्वतादिषु शान्त्याघाख्यानम्। | ८ आनुपूर्वीविहारभक्तपरिक्षेङ्गिनीपादपो
स्थादीनामशनाद्यनङ्गी(उपसर्गाः) २५४ पगमनानि । २६०
कारः । २६५ १९२ धर्मकथनप्रकारः। २५७ | २५९ नि० विमोक्षनिक्षेपः ।
१९६ परेषामस्तिनास्तिववाभुवादिवादिICI १९३ मरणं सङ्ग्रामशीर्षम् । २५८ | २६१ ,, वन्धमोक्षस्वरूपम् । २६१ ।
स्वम्
॥२८॥
~ 38~
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराहे
॥ २९ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
१९७ सुप्रशापितधर्मता । १९८ ऊर्द्धाधस्तिर्यगादिषु दण्डनि
पेधः । २६९ ॥ अष्टमे प्रथमः ८-९ ॥ २१९ आधाकर्माधशनायप्रतिज्ञानम् । २७० २०० आधाकर्माद्यशनाद्यग्रहणम् । २७१ २०१ घातादिसहनं धर्माख्यानं च। २७२ २०२ अमनोज्ञायाशनादिदाननिषेधः । २७३ २०३ समनोज्ञायाशनदानाद्युपदेशः । ॥ अष्टमे द्वितीयः ८-२ ॥ २०४ यूनां त्यागधर्मवत्त्वम् । २०५ केषाञ्चित्परीषहभग्नत्वम् । २०६ साधोः परीप कर्त्तव्यम् । २०७ परकृतानेर सेवनम् ।
२७४
२७५
२७६
॥ अष्टमे तृतीयः ८-३ ॥ २०८ त्रिधारिसमाचारः ।
२६८
૨૭૦
[ अंगसूत्र- १. "आचार"] संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
| २०९ शीतापगमे बखत्यागः । २१० एकैकधात्यागे तपस्त्वम् । २७८ २११ भगवदुक्तज्ञानक्रियावत्त्वम् । २१२ शीतायस्य मरणेऽपि मोक्षः । २७९ ॥ अष्टमे चतुर्थः ८-४ ॥ २१३ द्विधारिसमाचारः अभ्या हृतान्नादिनिषेध २८० २१४ वैयावृत्यस्य करणेऽकारणे च मोक्षः । २८१
॥ अष्टमे पञ्चमः ८-५ ॥ २१५ एकवस्त्रधारिसमाचारः । २१६ एकाकित्वभावना । २१७ आहारादेर्दृष्टान्तरेऽप्रचारः । २१८ संलेखनानशनबुद्धिः । २१९ अनशनविधिः ।
॥ अष्टमे षष्ठः ८-६ ॥
~39~
२८२ २८३
२८४ २८५
२०
२२० अचेलकस्य समाचारः । २२१ अचेलकस्य तृणशीततेजआदिस्पर्शसहनम् । २२२ आहारग्रहणादौ चतुर्भङ्गी । २२३ अचेलकस्योद्यतमरणम् । २८९ ॥ अष्टमे सप्तमः ८-७ ॥ मरणे धीरस्य समाधिः । कर्माष्टकप्रोटनम् । कषायाहारयोरल्पत्वमन्तेऽग्लानिश्च । जीवितमरणयोरसङ्गः । २४ समाधिना शुद्धात्मैषणम् । अर्द्धसंलिखितेऽन्यत्र चापि संलेखनाऽनशनं ।
ग्रामादी संस्तारकः । अनाहारेऽप्युपसर्गसहनम् ।
२८७
२९०
बृहत्क्रमः।
॥ २९ ॥
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचाराङ्गे
यहां देखीए
॥३०॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
|२८ पिपीलिकाद्युपसर्ग हिंसानिवा- देवोभनेऽपि मायात्यागः । २९४ | २८४, शिवाप्युपायो वीरतपः। ३०१ । वृहतक्रमः।
रणयोरभावः । २९१ | ४१ अमूर्छस्यान्तेऽपि तितिक्षा । २९५ | ४२७ श्रीवीरचर्याकथने प्रतिज्ञा । देहक्लेशेऽपि विषयादिबाधासहनम् ।। ॥ अष्टमेऽष्टमः ८-८ ॥
४३% वस्त्रे यावजीवमपिधानादिः। गीतार्थस्य सेङ्गितमरणम् । । ॥ इति विमोक्षाध्ययनम् ८॥
४४ साधिकमासचतुष्टयमुपसर्गः । आत्मवर्जक्रियात्यागखिधा त्रिधा । २७५ निउपधाने.स्वतपोवर्णने नियम:२९६
४५७ साधिकसंवत्सरमासाद्वस्त्रत्यागः, ३२३ अहरिते संस्तारके परीपहादिसहनम् । २७६ ,, बीरस्यैव तपः सोपसर्गम् । २९७ |
४६७ अन्तश्चक्षुषो ध्यानेऽपि वधः | ३०२ इन्द्रियैपानी अगर्दा अचेलस्य समाधिः २७८, तीर्थकरस्य तपस्युयममपेक्ष्य
४७% मैथुनं त्यक्त्वा वसतौ ध्यानम् । इङ्गितदेशेऽमिक्रान्तादिः।
तत्कृतिः । ,
४८० गृहिसनं त्यक्त्वा मौनस्य संयमक्रिया। तत्रैव चर्मणोपवेशनादिः । २९२ | २७९ ,, उद्देशकचतुण्यार्थाधिकारः।,, ४९ अनभिवादनं बधसहनं च। ३०२ | ३६% आलोकावासशुचित्वान्वेषणम् । २९३ | २८२,१ श्रीवीरस्य चर्या । ५०० स्पर्शसहन नत्यादावकौतुकं च । ३०३ आत्मोत्कर्षः स्पर्शाध्यासनं च ।
२ , शय्या ।
५१ गृहिकथायां विशोकहर्षस्य संपादपोपगमनस्थितिः । ३ , परीषहाः ।
यमायोद्योगः। ३०३ पादपोपगमनपालनम् ।
४, चिकित्सा। ५२६ प्राक्साधिकवर्षद्वयं शीतोदकस्या४०७ अचित्ते स्थितिः, कायत्यागश्च । तपश्चरणे सर्वत्र ।
भोगः । त्यक्तदेहस्योपसर्ग पीडासहनम् । उपधानस्य निक्षेपाः। २९७ ५३७ एकत्वभावनाभाववादिगुणवत्ता । कामेष्विच्छालोभयोस्त्यागः। २८३ नि० तपसः कर्मणोऽयधूनताद्या अवस्थाः ५४० षट्कायप्रतिलेखना। ३०४
|| ३०॥
~ 40~
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ ३१ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
७३
५५% नसस्थावरयोः सर्वजीवानां च परस्परं गमागमः । ५६ सोपधेर्भ्रमणं, पापानिषेधश्च । ५७ इन्द्रियहिंसायाश्रयत्यागेन संय मस्याख्यानम् । ५८ संसारस्त्रीविरतस्य कर्मदृष्टिः । ३०५ ५९७ आधाकर्मपरित्यागः प्रासुकभोजनं च । ६०७ परवस्त्रपात्रत्यागः शुद्धपणा च । ६१ मात्राasaणोऽप्रमार्ज- ७५ नोऽकण्डूयनश्च । ३०५ ७३ | ६२ अप्रतिभणतो यतनया पक्षिचर्या ३०६ ६३ शीतेऽध्वनि स्कन्धे बाहोरनालम्बः । ७९ ६४ अप्रतिज्ञस्य भगवतो विहारः ।
॥ नवमे प्रथमः ९-१ ॥
६५ भगवच्छय्यायां शिष्यप्रश्नः । ६८ आवेशनसभादौ प्रत्रयोदशव
श्री भगवतो निवासः । ३०७ निद्रात्यागे जागरणम् । अप्रमत्तस्य बहिश्चकमित्वा ध्याने स्थितिः । भीमोपसर्गादिसहनम् पेहलीकिकादिशब्दसहनं । ३०८ ७४७ विरूपस्पर्शसहनं रत्यरस्योरभि
८१ तृणशीततेजआदिस्पर्शसहनम् ३१० ८२ लाडे प्रान्तशय्यासनादिः । ८३७ लाटे दण्डकुकुरादिना बधादिः । ८४ निवारकस्याभावत्कारकरणं च । ८६ लाडे यष्टिनालिकां गृहीत्वा शाक्यादेर्विहारेऽपि दशनादिना दुश्वरत्वम् । ३११
अइन्द्रोऽदण्डो व्युत्सृष्टकायो भवोऽबहुवादिता च ।
८७
यामकस्य सोढा । ३११ ८८ लाडे स्थानस्याप्राप्तापि रणे नाग इव स्थिरो वीरः । ८९ ग्रामप्रवेशेऽपि निवारणम् । ९२६ दण्डादिना घाते आक्रोशे छेदे लोचे पांशौ पाते व्युत्सृष्टकायस्य दुःखसहनम् ।
६९ ७०
जैनः, प्रश्ने मौने कषाये समाधिः । ३०८ गृहिप्रक्षे उत्तरेऽनुत्तरे कषाये मौनेन ध्यानम् । निविडे शीते नियातसंघाटीवहयादिसेविष्यपरेष्यप्रतिज्ञो भग
वान् प्रतिमास्थायी । ३०९ ८०३ प्रस्तुतविधेर्वशः सेवनम् । ३०९ ॥ नवमे द्वितीयः ९-२ ॥
~41~
९३० रणे शूर इव विरूपस्पर्शेऽचलो भगवान् । ३१२
बृहत्क्रमः ।
॥ ३१ ॥
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वाहतक्रमः।
यहां
देखीए
आचाराङ्ग ९४ उपसंहारः ।
३१२ | ११०% यावजीवमायतयोगादिः। | २९६ नि० तब्रक्षणार्थमेकैकस्य भा१९१७ उपसंहारः।
३१५ वनापञ्चकं, तासां शत्रपरिज्ञा॥ ३२॥ ९५२ रोगेऽप्यवमौद्रिकाऽचिकित्सा च । ॥ नवमे चतुर्थः ९-४॥
ध्ययनाभ्यन्तरत्वम् । ९६७ संशोधनवमनादेस्त्यागः । । ॥ इत्युपधानश्रुताध्ययनम् ९॥
२९७ नि० चूडानां यथास्वं परिमाणम्। ९७% विरतो भगवान शिशिरे छायायां ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥
२२४ अशनादिविषयो विधिः । ३२१
२२५ औषधिविषयो विधिः । ३२२ ध्याता । २८५ नि द्रव्याग्रनिक्षेपः। ३१८ ९८ ग्रीष्मे आतपे स्थाता, रूक्षीदनाद्याहारः २८६ , उपकाराग्राधिकारः।
२२६ आहारस्य ग्राह्याग्राह्यविधिः । ३२३ ३१९
२२७ गृहपतिकुलप्रवेशविधिः । १०१७ शिशिरग्रीष्मयोर्मासार्द्धमासादि- २८७ ,, अग्राणामुद्धारकप्रयोजनापा
२२८ अन्यतीर्थिकेभ्योऽशनादिदानना पानभोजनम् । ३१३
दानानि ।।
प्रतिषेधः । १२४ |१०२ पापस्य त्रिविधंत्रिविधेन विरतिः। २९१ नि० अग्रोद्धारस्य विभागे- २२९ अनेषणीयविशेषप्रतिषेधः । १०३ परकृताहारसेवा । ३१४
नाण्यानम् । ३१९ २३० प्रकारान्तरेणाविशुद्धिकोटिः । ३२५ १०६ वायसादेाह्मणादेर्वृत्तिच्छेदमग्री-|२९२ नि० आचाराग्राणां शस्त्रपरि- २३१ विशोधिकोटिः ।
. तिकं परिहर्जुसैषणा। शाध्ययनानिढत्वम् । ३२० | २३२ नित्यानपिण्डवर्जनम् । ३२६ १०७ आशुष्कादौ पिण्डे समता। | २९४ नि० सङ्क्षेपाभिहितसंयमस्य ॥ प्रथमे प्रथमः ॥२-१-१-१॥ १०८७ भगवतो ध्यानम् ।
विस्तारप्रदर्शनम् । २३३ अष्टमीपौषधिकाशिनादिITI १०९.१ कषायादिरहितस्य प्रमादत्यागः। | २९५ नि० पञ्चमहाव्रतप्रज्ञापने हेतुः। ।
वर्जनम् । ३२६
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
G
।। ३२॥
~42~
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराङ्गे
॥ ३३ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमाँ [ अंगसूत्र- १. "आचार" |
२३४ भिक्षार्थ प्रवेष्टव्यकुलानि । | २३५ समवायाद्यशनादिप्रतिषेधः । ३२८ २३६ अन्यग्राम सङ्खड्याहारादिम
तिषेधः, पूर्वप्रवृत्तगमनेन परि पाट्यागतग्रामे सङ्घदिशाने - न्यदिग्गमनं तनिमित्तं ग च्छतः साधूनुद्दिश्य गृहस्थस्य
वसतिकरणप्रकारध । ३२९ ॥ प्रथमे द्वितीयः ॥ २-१-१-२ ॥ २३७ सखव्याहारिदोषाः । ३३० २३८ संहिकामुष्मिकापायश्च, २३९ अन्यतरसखव्याहारप्रतिषेधः ३३१ २४० ग्रामादिसङ्खडीप्रतिषेधः । २४१ सामान्येन पिण्डशङ्का । २४२ गच्छनिर्गताधिकारः । २४३ सर्वभण्डकसहितगृहपतिकु
३३२
लगमनाभावे निमित्तम् । २४४ अजुगुप्सितेष्वपि दोषदर्श नात्प्रवेशप्रतिषेधः ।
३३३
॥ प्रथमे तृतीयः ॥ २-१-१-३ ॥ २४५ मांसादिसङ्खडीप्रतिषेधः । ३३४ २४६ दुद्यमानगोप्रेक्षणे भिक्षार्थ
३३७
प्रवेशप्रतिषेधः । ३३५ २४७ प्राघूर्णकभिक्षोराहारविधिः । ३३६ ॥ प्रथमे चतुर्थः ॥ २-१-१-४ ॥ २४८ अग्रपिण्डादिप्रतिषेधः । " २४९ भिक्षाटनविधिः । २५० विद्यार्थी प्रविष्टस्य पथ्युपयोगः ३३८ २५१ भिक्षोः पिहितद्वारमुद्घाटय प्रवेशाप्रवेशविधिः । २५२ यथावियुद्घाटय प्रविष्टस्य विधिः । २५३ बहिरालोकस्थानप्रवेशप्रतिषेधः ।
३३८
~ 43~
॥ प्रथमे पञ्चमः ॥ २-१-१-५॥ २५४ कुकुटादिप्राण्यन्तरायभयाद् गृहप्रवेशप्रतिषेधः ।
२५९ गृहपतिकुलप्रविष्टस्य साधोविधिः ।
३४३
॥ प्रथमे षष्ठः ॥ २-१-१-६ ॥ २६० मालाहृताहारप्रतिषेधः । રૂક २६१ पृथिवीकायावलिप्ताहारप्रतिषेधः । २६२ सूर्पादिना शीतीकृताहारप्रतिषेधः । ३४५ २६३ वनस्पतित्रसका प्रतिष्ठिताहारप्रतिषेधः । २६४ पानकग्रहणविधिः । ३४६ प्रथमे सप्तमः ॥ २-१-१-७ ॥ २६६ पानकविधिगतविशेषः । ३४७ २६७ भक्तपानविशेषे रागाकरणीयत्वो
पदेशः ।
૩૮
बृहत्क्रमः॥
॥ ३३ ॥
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचाराङ्गे
हत्क्रमः॥
यहां देखीए
॥ ३४ ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२७१ अकल्पनीयाग्राह्यत्वोपदेशः । ३४९। असाधारणपिण्डावाप्तौ कर्तव्य- 1 व्याया निक्षेपचतुष्कम् ३५१ ॥प्रधमेऽष्टमः २-१-१-८॥
विधिश्च । ३०३ नि० सचित्तद्रव्यशय्यायां गौ२७३ अनेषणीयपिण्डपरिहार्यत्वो
२८१ इक्षुपर्वमध्यायकल्पनीयपरिग्रहणे । तमनैमित्तिकरष्टान्तः । पदेशः । ३५०
परिष्ठापनविधिः । ३५४ | ३०४ नि० काये षट् भावे भावशय्या । २७४ अनेषणीयपिण्डयाचनप्रतिषेधः ३५२ |
| २८२ अप्रासुकलवणागमे विधिः । ३०५-३०७ नि० उद्देशनये शय्याधिकारः। ॥ प्रथमे दशमः ॥ २-१-१-१०
१ उनमदोषाः संसक्तापायाश्च । २७५ गृहीताहारस्य सुरभिदुरभि२८३ ग्लानाय गृहीते पिण्डे मायानि
२ शौचवादिदोषाः शय्यात्यागश्च गन्धत्वेऽपरित्यागत्वम् ।
षेधः । ३५५
३ छलनापरिहारः स्वाध्या२७६ गृहीतपानकस्य पुष्पकषायपा- २८४ ग्लानाय दत्ते पिण्डे मिथ्याग्ला
ययोग्यस्थानम् । ३६० नकापरित्यागत्वम् ।
नान्तरायनिषेधः । ३५६ | २८७ सांडायेकबहुसार्मिकश्चमण२७७ अधिकाहारपरिगृहीते विधिः। २८५ पिण्डपानपणासप्तके । | मिक्ष्वाद्युद्दियादिशय्यायां स्था२७८ अनेषणीयाहारपरित्यागे भिक्षोः | २८६ प्रतिपद्यमानपूर्वप्रतिपत्रपिण्ड
नादिवर्जनम् । सामन्यम् । ३५३ | पानेषणस्य कर्तव्यो विधिः । ३५८ | २८८ साधूद्देशेन महद्वारकरणे कन्दपी॥ प्रथमे नवमः ॥ २-१-१-६ ॥ ॥ प्रथमे एकादशः ॥ २-१-१-११ ॥ । ठादिसङ्कमणे स्थानादिनिषेधः ३६१ २८० साधारणादिपिण्डावाली ब- इति पिण्डेपणाध्ययनम् ।।२-१-१॥ | २८९ विनाऽऽगाढानागाढकारणैः स्कन्धसतिगतसाधोः कर्त्तव्यविधि, २९८-३०२ नि० द्रव्यादिभेदेन श
मश्चादावस्थानं, स्थाने यतना च ३६२
॥३४॥
~44~
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचाराले
बृहत्क्रमः॥
यहां देखीए
B
-
२९० स्वीक्षुल्लकादियुक्ते उपाश्रये व्या- | २९९ सतणावावस्थानम् ।
। ३१२ वसतियाचाविधिः। ३७० धावभ्यादिप्रसादस्थानम् । [३०० भयःसाधर्मिकावपातेऽस्थानम ।। ३१३ शय्यातरपिण्डवर्जनम् । २९.१ गाथापत्याद्याकोशादेः शुभाशुभम- । ३०२ कालातिक्रान्तशय्या ।
३१४ साग्निके वसतावस्थानम् । ३७१ नोभावात् तथाविधोपाश्रये स्था- | ३०२ उपस्थानक्रिया ।
३१५ कुलमध्यगमनयुक्तेऽस्थानम् । ३७१ नादिनिषेधः। ३६३ ३०३ अभिक्रान्तशय्या ।
३१६-३१९ गाथापत्यादेः परस्परमाकोशा२९२ साग्निकस्थाननिषेधः । ३६३ | | ३०४ अनभिकान्तशय्या।
अभ्यङ्गाद्याघर्षणादिस्नानादि२९३ सकुण्डलादिके निषेधः। ३०५ वयक्रिया वसतिः। ३६७
युक्तष्वस्थानम् । २९४ गाथापतिख्यादियुक्त स्थाना- ३०६ महावयक्रिया।
३२० ननादिगृहपत्यादियुक्त स्थानम् । दिनिषेधः । ३६४ ३०७ सावधक्रिया।
३२१-३२२ साण्डादिसंस्तारकस्य ॥ द्वितीये प्रथमः २-१-२-३ ॥ ३०८ महासाबद्यक्रिया ।
निषेधः (४) इतरस्य ग्रहः (५) ३७१ २९५ शौचवाद्युपाश्रये स्थानादिनिषेधः। ३०९ अल्पक्रिया वसतिः
| ३२३ उद्दिष्टसंस्तारकप्रतिमा । ३७२ २९६ पुनरशनाथुपस्कृते सागारिकोपा ॥द्वितीय द्वितीयः२-१-२-२॥
| ३२४ प्रेक्ष्यसंस्तारकप्रतिमा शय्यातरश्रयेऽस्थानम् । ३१० प्रचुरणासुकान्ने ग्रामे शुद्धवसति
संस्तारकप्रतिमा च । २९७ दारुभेदाग्निकरुणाऽऽतापप्रसङ्गा
___ कथनम् । (३२५ यथासंस्तृतप्रतिमा। ३७३ तथाविधेऽस्थानम् । ३६५ | ३११ लघूपाश्रयेऽन्यच्छत्राद्यसंघटेन ग- ३२६ प्रतिपत्रसंस्तारकप्रतिमापालनम् । २९८ द्वारोद्घाटने स्तेनप्रसङ्गेऽस्थानम् ।।
मनादिः । ३६९-३७० । ३२७-३२८ संस्तारकप्रत्यर्पणविधिः ।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
-
की
K
॥ ३५॥
~45~
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रमः॥
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
आचाराने ३२९ उच्चारादिभूमिप्रतिलेखनम् । ३१४-३१५ नि० उद्देशकत्रयाधिकारः। गमनं तत्प्रकारः ।
M३३० आचार्यादिभूमीमुक्त्वा संस्तारकः।। १ वर्षाकालादौ स्थानं शरत्कालादौ ३३७ प्रामानुग्रामविहारे मागयतना। ३७७ ॥ ३६ ॥ill ३३१ संस्तारारोहशयनविधिः । ३७४
निर्गमश्च । ३३८ प्रात्यन्तिकादिम्लेच्छस्थानेषु संयमाM३३२ अन्योऽन्यहस्तादिस्पर्शनिषेधः उ
२ नावादावारूढस्य प्रक्षेपण, जला- त्मविराधनाप्रसङ्गाविहारप्रतिषेधः। च्छासादिनिषेधश्च ।
सन्तारे यतना, नानाप्रकारप्रश्ने | ३३९ अराजादिस्थाने विहारप्रतिषेधः ३७७ Lal ३३३ समविषमादी साम्येन स्थानम् ३७४ विधेयविधिश्च । ३७५ | ३४० अनेकाहगमनीयपथि विहार॥द्वितीये तृतीयः २-२-२-३ ॥
३ उदकादिप्रक्षे जानताऽप्यपदर्श
प्रतिषेधः ।
३७८ ॥ इति शय्येषणाध्ययनम् २-१-२॥
नता विधेया, उपधावप्रतिबन्धः,
३४२ नावारोहणप्रतिषेधः, कारणजाते त३०८ नि० ईया नामादिनिक्षेपेण षड्
तदपहरणे स्वजनराजगृहगमना
दारोहणविधिः आरूढस्य विधिरुपविधत्वम् । ३७४ दिनिषेधश्च । ३७५
संहारश्च । ! ३०९ ,, द्रव्यक्षेत्रकालेयर्याप्रतिपादनम् । ३३४ अभिप्रवृष्टे पयोमुचि साधोरनागता- ॥ तृतीये प्रथमः २-१-३-१ ॥ ३१०-३११ नि० भावे, भावेर्या आ
पाढचतुर्मासकेऽपि प्रामानुग्रामवि- ३४३ नावारूढसाधोहस्थकथितच्छलम्बानादिभङ्गः षोडशधा ३७५ हारप्रतिषेधः, तत्प्रयोजनं च।
त्रादिधारणप्रतिषेधः। ३७९ ३१२ नि० साधोर्गमनस्य कारणचतुष्टयेन | ३३५ लघुविहारभूम्यादियुक्ते वर्षावा- ३४४ तदकरणे प्रद्विर्नावः प्रक्षिप्तस्य परिशुद्धत्वम् । सनिषेधः ।
३७६
__कर्त्तव्यम् । | ३१३ ,, ईर्योद्देशार्थाधिकारः। | ३३६ निवृत्तवर्षाकाले यदा यथा च ३४५ उदकं प्लवमानस्य विधिः । ३८०
~ 46~
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. “आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
आचारांगे
हत्क्रमः
॥३७॥
यहां देखीए
-
-
| ३४६ उदकनिःसृतस्य गमनविधिः। |३५४ पथि स्तेनादिना लुण्टिते प्रामे 1 ॥चतुर्थे प्रथमः २-१-४-१॥ ३४७ मार्गान्तराले जवासंतरणविधिः। | गृहस्थादिभ्योऽकथनम् ।। ३५९ गण्डीकुख्यादिभाषानिषेधः। ३८९ ३४८ उदकोत्तीर्णस्य गमनविधिः। ३८१ | ॥ तृतीये तृतीयः २-३-३-३ ॥ ३६० अशनादिगतसावद्यभाषानिषेधः।। ३४९ अन्तराले गच्छतः प्रतिपधिकाम- || इति तृतीयमीर्याध्ययनम् २-१-३-३॥ ३६१ मनुष्यादीन् प्रति पुष्टापुष्टादिखरूपे पृष्टे निरुत्तरत्वम् । ३१६ नि० भाषाजातशब्दयोनिक्षेपाः। ३८५
भाषानिषेधः। ३९० ॥ तृतीये द्वितीयः २-३-३-२॥ ३१७ ,, उद्देशकद्धयार्थाधिकारः ।
३६२ शब्दादिविषयो भाषाभाषण३५० प्राणिसंत्रासदोषभयात्साधोत्र१ एकवचनादिषोडशविधवचन
विधिः । ३९१
विभागः । प्रादीनामप्रदर्शन, आचार्यादि
३६३ क्रोधादित्यागेन निष्ठादिभाषि
२ क्रोधायुत्पत्तिर्यथा न भवति भिः सह विहरणं च । ३८२ |
त्वम् । ३९३ तथा भाषणविधिः ।
चतुर्थे द्वितीयः ॥ २-१-४-२ ३५१ आचार्यादिना सह गच्छतः सा
साहितारिखपोखराधा- ॥ इति भाषाध्ययनम् ॥ २-१-४॥ धोबिधिः । ३८३
वचनं भाषाचतुष्कं च । ३८५ | ३१८ नि वस्खपणोद्देशवयार्था३५२ प्रातिपथिकप्रश्नेषु साधोर्निर३५६ शब्दस्य कृतकत्वाविष्करणम् ३८७
धिकारः । त्तरत्वम् ।
१ वस्त्रग्रहणविधिः ३५७ पुरुषादीन् प्रति साघोाषण३५३ पथि हिंसकपाणिभयाद्दीर्घाव
विधिः । ३८८ २ वखधरणविधिः। नि स्तेनादिभयाच्चोन्मार्गगम- ३५८ साधोः 'नभोदेव इतिवा'
पात्रनिक्षेपः, गुणधारिसानादिनिषेधः । ३८४ इत्यादिभाषानिषेधः ।
धोरेव भावपात्रत्वं च । ३१५
-
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
-
॥३७॥
~ 47~
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१. "आचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
आचारांगे ३६४ वस्त्रग्रहणधारणविधिः। ३९३ |॥ इति वस्रषणाध्ययनम् ॥ २-१-५॥ | ३८० परप्रत्ययिकपीठादिना प्रातिहा- वृहत्क्रमः।।
३६५ वस्त्रार्थ दूरगमननिषेधः। ३७५ पात्रग्रहणधरणविधिः । ३९९ | रिकसूच्यादिना परानिमन्त्रणम् ॥३८॥ ३६६ आधार्मिकप्रकारः । | ॥ षष्ठे प्रथमः ॥ २-१-६-१॥
दानविधिश्च । ४०३ ३६७ साधुनिमित्तक्रीतधौतादिकव- ३७६ पात्रप्रत्युपेक्षणानन्तरं पिण्ड- | ३८१ सपृथिवीकादी स्थूणादी ओलिखनिषेधः ।
ग्रहणम् । ४०० ३६८ बहुमूल्यवस्नग्रहणनिषेधः । ३९४ | ३७७ पात्रेषु पानकग्रहणविधिः ४०१
कादौ स्कन्धादौ सलीकादौ
गृहमध्यमार्गे परस्पराक्रोशादिN३६९ वस्त्रप्रतिमाचतुष्क, वस्त्रग्रहणविधिश्च षष्ठे द्वितीयः ॥२-१-६-२॥ F३७० साण्डादिकनिषेधः, अभिनव
मति गृहेश्वग्रहग्रहणनिषेधः । ४०४ |॥ इति पात्रैषणाध्ययनम् ॥ २-१-६॥ बलनिषेधः, मलापनयनाथै ३१९ नि० अवग्रहप्रतिमाया द्रव्या
॥ सप्तमे प्रथमः ॥२-१-७-६ ॥ निषिद्धं तद्दानं च । ३९६ |
दिनिक्षेपचतुष्टयम् । ४०२ | ३८२ यथालन्दिकावग्रहे श्रवणादे३७१ धौतस्य प्रतापनविधिः।
३२० निद्रव्याधवप्रहप्रतिपादनम् । प्रछत्रादेरपरावर्तनम् । ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ २-१-५-१॥ ३२१ नि० भावावग्रहः
३८३ ईश्वानलशुनबनेषु स्थान३७२ वस्त्रधरणविधिः । ३९७ ३२२ नि० ग्रहणावग्रहः।
विधिः । ४०५ ३७३ प्रातिहारिकोपहतवस्त्रविधिः। ३७८ अदत्तादाननिषेधः, छत्रादीना३८४ अवयहभेदसप्तकम्
। ३७४ वर्णान्तगद्यकरणं स्तेनादिन
मनुज्ञाप्य ग्रहणं च ।
३८५ देवेन्द्रायवग्रहाः । सङ्गेऽगोपनं च । ३९८ | ३७९ अवग्रहयाचनविधिः, तत्रागत- ॥ सप्तमे द्वितीयः ॥ २-१-७-२ ॥ ॥ पश्चमे द्वितीयः ॥ २-१-५-२॥ । माघूर्णफसाधुविधिश्च । | ॥ इत्यवग्रहप्रतिमाऽध्ययनम् ॥२-१-७॥7॥३८॥
~48~
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराहे
॥ ३९ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
॥ इति प्रथमा आचाराङ्गचूला ॥ १ ॥ | ३२३ नि० स्थानसप्ततिकायामूर्खस्थानेन प्रकृतं निशीथनिक्षेपपदकं च ४०७ ३८६ अनण्डादि चतुर्धा ॥ इति स्थानसक्तैककाव्यमष्टमाध्ययनम् ॥ ॥ २-२-८ ॥ ३८७ स्थानप्रतिमा अनण्डादिके स्वा
ध्याये आलिङ्गनादिनिषेधः । ४०८ ॥ इतिनिपीधिका सप्तैककाध्ययनम्
॥ २-२-९ ॥
३२४-३२५ नि० उच्चारप्रश्रवणशुद्धिः तत्करणविधिश्च ४०९ ३८८ याचितपात्रे ऽनण्डादिके उच्चारादिकरणम्, ३८९ सवीजादिके सरन्धनादिके आ
रामाट्टालकत्रिकाङ्गारदाहनद्यायतनमृत्खनि डागा सनवनादिपूधारादिनिषेधः । ४११ ३९० उचारप्रवणविधिः ।
।। २-२-१० ॥
॥ इत्युच्चारप्रधचणसतैककाध्ययनम् ३२६ नि० शब्दस्य द्रव्यभावनिक्षेपी ४१२ ३९१ भिक्षोर्विततादिशब्दश्रवणार्थं
गमननिषेधः । ३९२ वप्रादिस्थानवर्णकचव्यगेयादिशब्दश्रवणप्रतिज्ञया तत्र गमननिषेधः । ४१३
३९३ कथानकतद्वर्णनस्थानादि
श्रवणार्थे गमननिषेधः । ॥ इति शब्दस तैककाध्ययनम्
॥ २-२-११ ॥
३२७ नि० रूपस्य द्रव्यभावनिक्षेपी ४१४
~ 49~
३९४ नि० प्रथितवेष्टिमादिरूपं तद्दर्शनार्थे गमननिषेधः । ३२७ परशब्दस्य निक्षेपपदकम् । ४१५ ॥ इति रूपसत्तैककाध्ययनम्
।। २-२-१२ ।।
३९५ परकृतक्रिया (शुश्रूषा) परस्परक्रियायाश्च त्रिविधेन निषेधः । ४१६ ३९६ साधोर्वाग्वलादिभिः स्वपरकृतचिकित्सा निषेधः ।
॥ इति परक्रियासमैककाध्ययनम् ।। २-२-१३ ॥ ३२८ नि० अन्यशब्दस्य निक्षपपङ्कम् ४१७ ३२९ नि० गच्छनिर्गतानामन्यक्रियाया अप्रयोजनं ।
॥ इति सप्तसप्तिकाख्या द्वितीया चूला ॥२॥ ३९७ अन्योऽन्यक्रियानिषेधः ।
बृहत्क्रमः।
॥ ३९ ॥
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ ४० ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- १. "आचार"]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ इत्यन्योऽन्यक्रियासप्तैककाध्ययनम् । ३९९ च्यवनाद् यौवनं यावत् श्रीवी
।। २-२-१८ ॥ ३३० भावनायां द्रव्यभावभावभावन योनिक्षेपी, द्विविधत्वम् । ४१८ ३३१ नि० अप्रशस्तभावना । ३३२ नि० प्रशस्तभावना । ३३३ नि० दर्शनभावना । ३३४-३३५ नि० जन्मभूम्यादिगतजिनयेत्येष्वभिगमनादि कुर्वतो दर्शनशुद्धिः । ३३६-३३७ नि० प्रावचनिकाचार्यादेः प्रशंसागुणमाहाम्यादि कुर्वतो दर्शनशुद्धिः । ४१९
४२०
३३८-३४० नि० ज्ञानभावना ३४१-२४२ नि० चारित्रभावना । ३४३-३४४ नि० तपोभावना । ३९८ सङ्गितमध्यमचाचनया वीरचरित्रं,
४३० ४३१ ४३१
१३८ पर्वतदृष्टान्तः । वर्णनम् । ४२११४३० रूप्यदृष्टान्तः । ४०० श्रीवीरतत्पितृमातृपितृव्यभ्रातृ- १४४७ भुजगत्वग्दृष्टान्तः । भगिनीभार्यादुहितृनवभिधा- १४७ समुद्रद्दष्टान्तः । ॥ इति चतुर्थचूला समाप्ता ॥ ४ ॥ ॥ इति विमुक्तयध्ययनं समाप्तम् ॥२-३-१६॥ ३४७ नि० चतुर्थचूलोपसंहारः पञ्चमचूलाप्रतिज्ञा । ४३२ ३४८ नि० नवाध्ययनोद्देशसंख्या । ३४९ नि० द्वितीयश्रुतस्कन्धाध्ययनोदेशसदृष्या । ३५०-३५२ नि० महच्छन्दनिक्षेपः । ३५३ - ३५६ नि० परिशाशब्द निक्षेपाः । ॥ इत्याचाराङ्गसूत्रस्य विषयानुक्रमः ॥
नानि । ४२२ ४०१ श्रीवीरमातापित्रोरन्त्याराधना देव गतिश्च । ४०२११२-१३५७ दीक्षोपसर्गकेवलसभावनाकमहाव्रतदेशना । ४२५ ॥ इति भावनाध्ययनम् ॥ २-३-१५ ॥ ॥ इति भावनाच्या तृतीया चूला ॥ ३ ॥ ३४५ नि० अनित्यपर्वतरूप्यभुजगत्वसमुद्राधिकाराः । ३४६ नि० साधुसिद्धयोदेशसर्वविमुक्तत्वम् ।
१३६ अनित्यावासः ।
~ 50~
४२९
बृहत्क्रमः।।
॥ ४० ॥
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ४१ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
सूत्राणि ८२ मङ्गलम् पूर्वसूरिव्याख्यातस्य व्याख्या उपोद्घातः ।
सूत्रगाथाः ७२३
१ नि० मङ्गलादि
२ नि० सूत्रकृतो नामत्रयम् । ३ नि० सूत्रनिक्षेपः (४) २ द्रव्ये पोण्डगादि भावे संज्ञासंग्रहवृत्तिजातिभेदम्, अन्त्ये कथ्यगद्यपद्यगेयानि ।
४-१५ नि० करणकारककृतानां निक्षे पाः (६) द्रव्यकरणे मूलोत्तराभ्यां प्रयोग: व्यञ्जनोपस्काराभ्यां उत्तरम्, शरीराणि करणादीनि
१
सूत्रकृतांगे विषयानुक्रमः ॥
२
निर्युकिगाथाः २०५ ।।
इन्द्रियाणि विषादिपरिणामो वा, संघातनादिभिरजीवे प्रयोगः, विद्युदादिषु विश्वसा क्षेत्रे - क्षेत्रादि काले बयादि भावे प्रयो गे उत्तरे कलासु श्रुतयौवनानि भोजनादिना वर्णादि च, विध सा छायातपदुग्धादिषु । १६ नि० त्रिविधयोगशुभध्यानाध्यवसायस्वसमयैः प्रकृतम् । १७-१९ नि० रचनायां स्थित्यनुभा
वबन्धाद्यवस्था सूत्रकृताङ्गकरणरीतिः जिनस्य वाग्योगः, स्वाभा
~ 51~
५
६
विकप्राकृतभाषया कृतिश्च ग
णीनां । ६ २० नि० सूत्रकृतनिरुक्त्यन्तरम् । ७. २१ नि० बहूनामर्थानां सूचनात्
सूत्रता । ७ २२ नि० श्रुतस्कन्धादिपरिमाणम् । ८ २३ गाथायाः (४) पोडशकस्य (६) श्रुतस्य (४) स्कन्धस्य (४) च निक्षेपाः ८ २४-२८ नि० आयथुतस्कन्धाध्यनार्थाधिकाराः ( उपक्रमादीनि ) आनुपूर्वी च । ८-१०
बृहत्क्रमः।
॥ ४१ ॥
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ४२ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
२९. नि० समयनिक्षेपाः ( १२ ) ३० नि० उद्देशार्थाधिकाराः । ३२ नि० पंचभूते (१) कात्म (२)तज्जीवतच्छरीरा ( ३ ) ऽकारकात्म (४) पष्ठा (५) फलवादिनः (६) आधे, नियत्य ( १ ) शानिक (२) ज्ञान (३) कर्माश्रयाः (४) द्वितीये, आधाकर्मकृतवादिनौ च तृतीये, गृहस्थोपमा चतुर्थे । १४ बन्धनबोधत्रोटनोपदेशः बन्ध
१० ११
प्रश्न १२
२ सच्चित्तादीनां परिग्रहो बन्धः । १२ ३-४ आरभ्यममत्वे बन्धः । १३
५७ वित्तायत्राणम् ।
६ परेषां कामासकत्वं ।
१३
१४
७-८ भूतेभ्यः उत्पादः, तन्नाशे नाशय । १५ ३३ नि० चैतन्यादिगुणात् अन्येन्द्रियज्ञानात्मसिद्धिः । १६ ९-१० पृथ्वीस्तूपवत् एकोऽपि नानाविधः, तन स्वकृतवेदनात् । १९ ११-१४० न सत्या औपपातिकाः, न पुण्यादि च आत्मनोऽकारःकत्वं च तेषां लोकाभावः परमनरकश्च । २२
३४-३५ नि० अकृतावेदनात् कृतनाशात् अस्मन्नामाभवाच तत्र,
अफलदुग्धत्वादि नाद्रुमगोत्वे
हेतुः । २३ १५-१६७ पंचभूतात्मपष्ठानां नित्यता, उत्पादनाशाभावः (सत्कार्यवादः) २४
~ 52~
१७ स्कन्धपञ्चकम्, अभ्यानन्यते
हेत्वहेतुकत्वे ( क्षणिकवादः ) २५ १८ चातुर्धातुकं जगत्, अकृतबेदनादिनोत्तरम् ( क्षणक्षय
समाधानं ) २७
१९-२७ निदर्शनाङ्गीकारात् मोक्षः, तन ओघसंसारगर्भजन्मदुःखमार्गगामिता तेषां संसारभ्रमः
गर्भानन्त्यञ्च २९ इति प्रथमाध्ययने प्रथमोद्देशः १८-३० सत्त्वा औपपातिकाः पृथक् सुखादिवेदिनः संसारभ्रमिणश्च, परं तेषां सैद्धिकं असैद्धिकम् नीतिजम् ३१ ३१-६२ नियतानियतयोरवेद
नात् संसारः । ३१
बृहत्क्रमः॥
॥ ४२ ॥
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ४३ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
३३-४१० मृगवत् अस्थानाशङ्किनः अज्ञातपाशमोचनोपायाः, मृगवनश्यन्ति अज्ञानिकाः स्वस्थाज्ञानवादिनः परेषां म्लेच्छासुभाषिता, तन, विमर्शानुशासनयोर्मुकवत् अन्धवच्चाभावात् । ३७ ५० स्वपरप्रशंसागवतोः संसारः ३७ ५१-५५ ॐ अव्यक्तसावयम् (प्राणीप्राणीज्ञानादिभिर्भङ्गाः ३२ ) आदानत्रयम् भावविशुद्धवा निर्वाणम्, पुत्रपटभोजनवत् न बन्धः । ३९ द्विष्टमनसः सातावादिनः न संवृतता अन्धाधाविणी नौचारितवत् संसारमज्जनं च । ४० इति द्वितीयः
५६-५९
६०-६३ सहस्रान्तरितपूतिभोजिनो वैशालिकमत्स्यवत् अनतघातप्राप्तिः । ४२ ६४-६९ देवब्रह्मगुप्त ईश्वरकृतः प्रधानादिमयः स्वयम्भूकृतः मारकृता माया अण्डोद्भवं जगत्
इत्यादिवादनिरासः ४५ ७०-७५ क्रीडया भवावतारः तद्पणं च अणिमादियुद्धानां आ सुरता च । ४७
इति तृतीयः ७६-७९ अनुत्कर्षोटीनो यापको मुनिः अपरिग्रहो ऽनारम्भध चाणम् कृतप्रासैपी ४९ ८०-८३ नानन्तोऽनित्योऽन्तवानित्यो वा सपरिमाणो
~ 53~
वा लोकः सस्थावरपरावृत्तेः ( अपुत्रस्य इत्यादिलोकवादखण्डनं च ) ५० ८४-८८ सर्वे दुःखाक्रान्ताः अतोऽहिंसको ज्ञानी चर्याशनादिषु अगृद्ध आत्मरक्षः ससामाचारीकच उत्कर्षादिरहितः समितः संवृतोऽसितः मोक्षाय यतो
यतिः इति चतुर्थः । ५२
॥ इति प्रथमं समयाध्ययनम् ॥ ३६-३७ नि० विदार्यविदारकविदारणीयनिक्षेपाः (४) द्रव्ये परश्वादि दार्वादि च भावे दर्शनादि कर्म च । ५३ ३८ नि० वैतालीयनिरुक्तिः । १३ ३९ नि० शाश्वतत्वेऽपि अष्टापदे ऋषभेण उक्तम् । ५३
बृहत्क्रमः ।
॥ ४३ ॥
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
आचाराने
॥ ४४ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
४०-४१ नि० उद्देशार्थाधिकारः आये सम्बोधोऽनित्यता च द्वितीये मानवर्जनादि, तृतीये कर्मापचयः सुखप्रमादवर्जनं च । ५४ ८९-९० दुर्लभो बोधिः पुनर्जीवितं च सर्वावस्थासु मरणं । ५४ ४२ द्रव्येऽनिद्रा भावे दर्शनादिस वोधः । ५५ ९१-९६ नि मातापितरौ न त्राणम् दुर्लभा सुगतिः स्वकर्मवेदिता कर्मामोक्षः देवादिस्थानान्यशाश्वतानि दुःखच्यवः कामगृद्धिः कर्म भोगवत् मरणं बहुसुतखेऽपि मूर्च्छा आत्मपर यो रुद्धारशता ॥५६ नग्नमासोपवासिनोऽपि
९७-९८
मायया गर्भाटनमापस्यन्तं जीवितं असंवृतानां मोहः । ५७
९९-१०० यतो योगवान् यथागमं क्रोधादिहिंसादिवर्जकश्च साधुः। ५७' १०१-१०३ दुःखं सर्वेषां शरीरशता अहिंस्रता व उपधानवान् कर्मक्षपकः । ५८ १०४-२१० वा वृद्धं नाऽनगारं प्र
व्रजन्तं पुत्रार्थं रोदनेऽपि बदा गृहनयनेऽपि न वशं कुर्यात् पोष्यान् पोषयेत्युक्तोऽपि न मुझेत्, विषमाणां मोहो विरतः सिद्धिपथयायी वित्तज्ञात्यारंभवर्जकः संवृतः इत्याद्यः । १११-११२ निर्मोकवत् कर्महानिदः निर्निन्दपरिभवश्च ४३-४४ तपः संयमादिमदोऽपि वयः किं पुनर्निन्दा, निर्जरामदोऽपि प्रतिषिद्धः । ६२
६०
६०
~54~
११३-११६७ सिद्धचक्रवर्त्तिप्रेष्ययोः मौने साम्यम् यावत्कथं पण्डि तः मोक्षार्थी भवबेरी आकुष्टो हृतोऽपि समः उत्तरक्षमः नि
विराधनो निष्कोधमानः ११७-१२० हर्दवानाचिलः काश्यपो धर्मकथकः बहुजननमने संवृतो सर्वार्थेष्वनिश्रितः (धर्म्यधर्म्यरूपबाहुल्यकथा) पृथक्रप्राणाः दुःखद्विपः सुखप्रियाः विरतपण्डितः धर्मपारगो मुनिः न स्वजनानां वशः अगारे इहलोकदुःखादि । ६४ १२१-१२४ वन्दनपूजनादिरभि वङ्गः दुरुद्धरं सूक्ष्मशत्यं च स्थानासनसमाधिषु एकः उपधानवीर्यः अध्यात्मसंवृत्तश्च
वृहत्क्रमः॥
॥ ४४ ॥
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
पत्रकृतांगे
वृहत्क्रमः।
यहां देखीए
॥४५॥
-
-
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
द्वारं न स्थगयेत् नोद्घाटयेत् धर्मप्रेरकाच, शब्दाद्यप्रेक्षकःमा- | १४९-१५४६ कुगतिभयादात्मशासन मार्ग न घूयात् तृणानि न छि- यावर्जकः समाधिवित् कथा- असाधोः, रहितः शोकपरिदेवान्द्यात् न च संस्तरेत् अस्त
प्रश्नसम्पसारवर्जको निर्ममश्च दिना, शतवर्षा अपि कामगृद्धानमिते सममिते समविषमयोः मायादिवर्जको सुविवेकः क- रकगामिनः, आरम्भादिनिमित्तानां
भैरवादेश्च सहन । ६५ महा अस्नेहः सहितादि उप- पापलोकः असंस्कृते जीविते १२५-१२८ उपसर्गसहनरोमाहर्षः धानवान् समाहितेन्द्रियः अ
धृष्टो बाल: प्रत्यत्पन्नक्षीच जीवितपूजनानीप्सुः निर्भयता
श्रुतं अननुष्ठितं च सामायिक मोहनीयेन मिथ्यात्वम् पुनसामायिक उष्णोदकभोजिता गुरुछन्दोऽनुवृत्तानां तरणं । ७० तुःख पुनर्मोहः श्लोकपूजानिराजसंसर्गोऽसमाधिः । ६६ । ॥ इति द्वितीयः वैतालीयस्य उद्देशः॥
बेंदः प्राणेष्वात्मसमः । ७४ १२९-१३४% अधिकरणवर्जन शी- १४३-१४८ संयमात् दुःखक्षयः स्त्री- १५५-१५८ गृहस्थोऽपि देवलोक
तोदकगृह्यमत्रत्यागः असंस्कृते विरताः तीर्णरूपाः कामा रोगाः गामी विनीतमत्सरो भिक्षुः जीविते धृष्टो मदवाँश्च बालः वणिगानीताप्रवत् आचार्यक- उछाहारः धर्मायुपधानवीयः, स्वाभिमायी बहुमायो लोकः थितव्रतधरा मुनिराजाः, साता
गुप्त्यादिगुणाः दिगादि शरणं शीतोष्णवचःसहः साधुः कृतनुगाः कामगृद्धा न समाधिशा
इति बालः । ७५ मिव हितो धर्मः । ६७ ना व्यायहता मृगवत् कामीति, १५९-१६४ीपकार्मकी आभ्युप१३५-१४२ ग्रामधर्मविरताः साधवः
लम्धापलब्धारं कुर्यात् । ७२ । गमिकी वेदना, गतिरागतिश्चै
॥४५॥
~55~
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
खत्रकृतांगे|
वृहत्क्रमः।
यहां देखीए
I
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
कस्य स्वकर्मकल्पिता जन्माया- ।१६५-२६८ कृष्णं दृष्ट्वा संग्रामे शि- १८३-१९१७. स्वजनाः परिवृता रुदकुला जीवाः बोधिदुर्लभः त्रै- शुपालवत् शैक्षो रूक्षे विषीदेत् । न्ति पिता स्थविरः स्वसा लध्वी कालिकजिनानां मतो धर्मः हिं- हेमन्तशीते च (शिशुपालक- स्वका भ्रातरः पोषय मातापिसाविरतोऽनिदानः सिद्धः से
. थागाथाः)। ८० तरं मधुरोल्लापाः पुत्रा नवा भार्या त्स्यति च इति वैशालिकोक्तम् । १६९-२८२ तापेन मत्स्यवत् रोदः, कर्मसहाया वयं अकामस्य वा ॥ इति तृतीयं ३ अध्ययनं ॥ पृथगूजनानां याचना तुःख, सं
श्रमणता समीकृतं ऋण दास्यामो ।। इति द्वितीयं वैतालीयाऽध्ययनम् ॥ ग्राम इव शब्दे खेदः स्वदंशे वयं इत्येवं स्वजनैः विबद्धोऽ४५-४८ नि० उपसर्गनिक्षेपाः (६) मन्दानां खेदः, प्रतिकारगता ए
गारं गच्छति । ८५ द्रव्ये चेतनाचेतने आगन्तुकक्री
ते नग्नाः पिण्डावलगका इति ११९२-१९५१-जातिसङ्ग क्लीवानां मोहः, डाकरश्वोपसर्गः काले दुष्षमदु- निन्दका नरकगामिनः, दंशम
जीविताऽनवकांक्षी भिक्षुः आप्षमादिः भावे ओघः औपक्रमिशकादिस्पृष्टः परलोकाश्रद्धानं
वर्ततरश्च । ८५ कश्च, उपक्रमे द्रव्ये देवमनुष्य
केशलोचनहाचर्यपराजिताः खि- १९६-२०३७ हस्त्यश्वादिभिः वस्त्रगतिर्यगात्मसंवेदनाः (१६) ७७ द्यन्ते मिथ्याभावना हर्षद्वेषाप
धालंकारस्यादिभिश्च राजादि४७-५०नि० उद्देशार्थाधिकाराःप्र
पन्नाश हिंसंति चौर इतिकृत्वा कृता निमंत्रणा अगारेऽप्यक्षतातिलोमाः १ अनुलोमाः २ अध्या. बध्नन्ति ताडयन्ति स्पर्शानां
नियमज्ञापनं चिरोपितस्य न त्मशुद्धिः परवादिवचनं ३।।
दुःसहाता । ८३ दोषः तत्र मन्दानां खेदः भिक्षास्खलितशीलप्रज्ञापना (४)। ७८ | ॥ इति प्रथमोद्देशः ॥
चर्यायां रुक्षेण स्त्रीकामगृद्धया च।८८
॥४६॥
~56~
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
हवक्रमः॥
यहां देखीए
॥४७॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
इति द्वितीयः
इति तीर्थकदुक्तो धर्मः, उप- २३८-२४६७ प्रत्युत्पन्नैषिणां वृद्धत्वे |२०४-२१०० संग्रामे भीरोबलयाद्य
सर्गान् जित्वा मोक्षाय बजेत् । ९४ खेदः, न पराक्रमवताम् , दुस्तरा पेक्षावत् व्याकरणादिषु त्राण
इति तृतीयः
नार्यः, खीसंयोगरहितःसमाहितः बुद्धिरशूराणां मरणाध्यवसा
|२२५-२३२७ शीतोदकात् यस्कलाद्या उपसर्गसहः पारगः इति सुव्रतायवत् मुनीनां आत्मपरता। ९० अभुक्त्वालमारामगुप्तो भुक्त्वा दिगुणः स्यात् अग्लान्या ग्लानस्य | २११-२१७, समाधिहीनाः ग्लान
शीतोदकात् बाहुकः परिण
समाधि कुर्यात् मोक्षाय च यावृत्त्ये सम्बद्धकल्पनां मूच्छी तोदकात् नारायणः आसील
ब्रजेत् इति चतुर्थः । १०१ देविलद्वैपायणपरासराः बीजोअपारगमनं करपयन्ति, स्वयं ।
॥ इति तृतीयमुपसर्गाध्ययनम् ॥ च गृह्यमत्रभोजनादिना द्विप
दकादिभोगात् सिद्धा इति
५४ नि० स्त्रीनिक्षेपाः (७) द्रव्ये व्य
मत्वा मन्दानां खेदः, एकेषां झसेविनः समाध्युज्झिताः अ
तिरिक्ते एकमविकादि भावे सातेन सात, नैव अयोहारिवत्
वेदोपयुक्तः । १०२ समीक्ष्यकारकाः । ९२ अल्पेन बहु लुम्पेत् हिंसादौ
५५नि पुरुषनिक्षेषा. (१०)। , २१८-२२४ गृहिणः श्रेयोऽभ्याहतं
वर्त्तनादिना । ९७ ५६ , उद्देशार्थाधिकारः । ग्लानावयावृत्त्यं न भगवद्वाचः |२३३-२३७७ गड्ढादिवत् न स्त्रीषु ६१, खीभिः संगादिना स्खलना, वादनिराकृताः मिथ्यात्वे दृशभदोष इत्यनार्याः कामगृद्धाः।
द्वितीये स्खलितस्यावस्था कमवन्ति समाहितात्मनोऽविरुद्धा ५१-५३ नि: शिरश्छेदविषगण्डूष- बंधश्च । (अभयप्रद्योतकूलवासामाचारी, ग्लान्यां समाधिकरणं । रत्नचौरवत् सदोषता तत्र । ९९ लादिवत्) स्त्रीभिर्गृह्यन्ते त- Idl॥४७॥
~57~
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
PR
बृहत्क्रमः।।
॥४८॥
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
स्मान विश्वासः नारीवशाना- । भ्यो बहवो भ्रष्टाः, शुद्धवादिनामपि गाय स्त्रीणां प्रवजितत्वमपि, मशूरता (नारीस्वरूपै) सूरल- मायित्वं तेषां, उपदेशेऽपि ग्लानिः, अलाबुच्छेदादिविविधसाधनयाक्षण, अप्रमादोपदेशः । १०४ प्राज्ञानामपि वशवर्तिता (वैशि
चना, वशवत्तिनामुष्ट्रवद्भारव२४६७-२७७% गुप्ताभिधानेन उपक- काध्येतृदृष्टान्तः ) स्त्रीसम्पर्कवि- इत्वं, धात्रीबद्दारकस्थापनं, ल
मते साधून, प्रतारणोपायाः आ- पाकाः, वैशिकायुक्ता स्त्रीमाया जालोरपि रजकत्वं दासत्वं प्रेस्मरक्षिततोपायाः, स्त्रीणां पाशत्वं, (दत्तवैशिकदृष्टान्तः) धर्मभ्रव- ध्यत्वं पशुभूतता. च, तस्मात्संकारुण्येन वशीकृत्य आज्ञापनं,
णव्याजेन चालनं, उपज्योतिर्ज- स्तवसंवासादिकामांश्च बजेयेत्, मांसेन सिंहप्रलोभनवत् संवृ- तुकुम्भवत् साधोर्विघादः, स्त्री- करकर्मणः परक्रियायाश्च वर्जन, तस्याप्युपलोभन, चक्रवन्नामनं, संवासेन नाशः, कृत्वाऽपि पापं सर्वस्पर्शसहो मोक्षाय परिव्रजेत्।१२१ मृगवदमोक्षः, पश्चाद्विषमिश्रपा- माया, बालत्वं च तत्कनु,
इति द्वितीयः । यसभोजनवद्दारुणता, संवासस्य पूजाकामे, वनादिनिमंत्रणेनापि ॥ इति चतुर्थ स्त्रीपरिज्ञाध्ययनम् ॥ वळता, विषकण्टकवत् खियः, वशीकारः, नीवारवत् खियः, | ६२ नि० नरकनिक्षेपाः (६)। स्त्रीणामेकाकी धर्माख्यायी न
विषयपाशबद्धानां मोहः, । ११४ | १२ , नरकदुःखश्रवणात् तपसि साधुः, ताभिः सह विहारवर्जन, इति प्रथमः ।
यत्नः । १२१ दुहित्रादिभिरपि संस्तवत्यागः, २७८-२९९७ भोगाभिलाषेऽपि निवृ- ६४,विभक्तनिक्षेपाः (६) नान्नि संस्तवकारिणामचमणत्वं, स्त्री- | त्तिः, भोगिनां विडम्बना, भो- स्वादयः, स्थापनायर्या तासां स्था
॥४८॥
~58~
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
हत्क्रमः
यहां देखीए
॥४९॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
पनं द्रव्येऽसांसारिके तीर्थातीथसिद्धादिः (१५) सांसारिके एकेन्द्रियादिः जातौ पृथिव्यादिः रूप्यजीवे स्कन्धादिः, अरूपिणि धर्मास्तिकायादिः, क्षेत्रे स्थानेऽधोलोके रत्नप्रभादिः सीमन्तकादिश्च, तिरश्चि द्वीपसमुद्राः, ऊर्ध्वलोके सौधर्मादिः विमानेन्द्रकादिश्च, दिशि द्रव्ये स्वाम्ये च, आर्यानार्यक्षेत्रविभक्तिर्वा (२५॥ आर्याः, अनार्याश्चानेकथा) कालेऽतीतादि, एकान्तसुषमा दि समयादि च, भावे जीवे औदयिकादि २१-२-९-२८-बहु२६ भेदाः, अजीवे वर्णादि ग- त्युपष्टम्भादि च ।
| ६५-८२ नि० तिसषु नरकपालकृता
बेदना, शेषासु अनुभावेन, न.
रकपालानांनामानि कार्याणि च १२५ ३००० नरके वेदनायाः वर्णनं । ३०१ प्रश्नः, उत्तरस्योपक्रमः । १२६ ३०२-३०३० रौद्रस्य पापिनो न
रके पतनं, आत्मसुखमाश्रित्य
हिंसकादेश्च (नरकवेदना) १२७ | ३०४-३२६७ हिंसयाऽनिवृत्त्या च
नरकगामिता नरकपालशब्दश्रवणात् कांदिशीकता, दाहे करुणस्वननं वैतरणितरणं, कीलविद्वानां नाबुपसर्पणं, शूला
दिवेधः, शिलाबन्धन, उदकनि। मजनं, मुर्मुरादौ लोलनं पा
चनं च, सर्वतोऽग्निदाहा, सदा
धर्मः, मत्स्यवत्तापसहन, हस्तपादादिच्छेदः, रुधिरोद्वमः, म. त्स्यवत्पाकः, तथाऽपि न भस्मीभावो, न मरण, निरन्तरं तापः, परमाधार्मिककृता पीडा, दण्डधातः, पूर्वकृतस्मारणेनाऽशुच्यादिभक्षकत्व, कम्युपइवः, निगडयन्त्रणा, वेधः, कीलनं, नक्रौष्ठकर्णजिह्वाच्छेदः, शूलाभितापः, अहर्निश स्वननं, शोणितादिगलनं, क्षारक्षेपः, कुम्भ्यां क्षेपः, तप्तत्रवादिपान, अल्पेनात्मवञ्चकानां कलुषार्जन
नरकस्थानं च ॥ आधः उद्देशः। १३५ ३२७-३५१७ नरकदुःखोपक्रमः, हु
स्तपादवन्धः, उदरपाटन, वर्ध
-
-
१२३
॥४९॥
~59~
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ५० ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
कर्त्तनं, बाहुच्छेदः, मुखेऽयोगोलकक्षेपः, रथयोजनं, तोत्रवेधः, तप्तभूमिक्रमणं दण्डैस्तिरस्कारः, सन्तापन्यां शिलाभिर्घातः कन्दुपातादुत्पतनं, का कसिंहादिभिः खादनं, समुच्छ्रिते अयोवत्खण्डनं, संजीविन्यां पक्षिभिः खादनं, शूलावेधः, स दाज्यले स्थानं, चिताक्षेपः, हस्तपादवन्धः, पृविवाहः, शिरोभेदः, तप्ताऽऽरानियोगः, मर्मवेधः, कण्टकाकुले गतिः, कोट्टबलिकरणं, सहस्रं मुहर्त्तानां प र्वतेन घातः, कूटेन घातः, मुनरमुशलघातः, अनाशितटगालक्षणं, सदानलायां बहनं,
अत्राणस्य सदा दुःखानुभवनं, यथाकर्म एकान्तदुःखो नरकः, तस्मात् अहिंसकोऽपरिग्रहः लोकावशः ध्रुवाचारी भवेत् । ર द्वितीय उद्देशः इति पञ्चमं नरकविभक्त्यध्ययनम् । ८३ नि० प्राधान्ये महच्छन्दः प्रधाननिक्षेपाः (४) वीरनिक्षेपाः । (४) ८४-८५ स्तुतिनिक्षेपः ( ४ ) द्रव्ये आगन्तुकभूषणैः भावे गुणस्तवैः, जम्बू पृच्छायां सुधर्मोत्तरं, वीरस्योद्यमः । ३५२ - ३५३एकान्तहितधर्मकथकस्य
१४२
१४३
~ 60~
वीरस्य स्वरूपाय श्रवणादिप्रश्नः, ज्ञानदर्शनशीलजिज्ञासा । १४३ ३५४-३८० खेदताचा गुणाः, सर्वदर्शित्वाद्याः, भूतिप्रज्ञत्वाद्याः सूर्य-वैरोचनेन्द्र स्वयम्भू-शक्रसुदर्शनमेरु- निषेध - रुचक-शा ल्मली - नन्दनैरौपम्यम् । स्तनित-चन्द्र-चन्दन-स्वयम्भू-धरणेन्द्र- क्षोदोदके-रावण-सिंहगङ्गा-गरुडवत् निर्वाणवादिनां सातपुत्रः, विश्वसेना - ऽरविन्दचक्रिवत् श्रेष्ठः ऋषीणां, अभयदानाऽनवद्यवचोब्रह्मचर्यबल्लोकोत्तमता, लवसप्तमसुधर्मसभानिर्वाणश्रेष्ठधर्मचत् परमज्ञानी (अभयदाने चौरकथा)
बृहत्क्रमः ।
॥ ५० ॥
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
बहवक्रमः॥
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
पृथ्व्युपमादि, क्रियावादादिक्षातृत्वं, स्त्रीवर्जनादि, बीरस्तुतिः
श्रोतृणां फलं च । १५२ ॥ इति वीरस्तुत्याख्यं षष्ठमध्ययनम् ।। ८६-९० नि० शीलनिक्षेपाः (४) द्रव्ये
प्रावरणादी, भावे ओघे विरत्यादि, अन्त्ये ज्ञानतपादि, अधर्मकोपादिश्च, अविरताधिकारात् कुशीलाध्ययनं, अप्रासुकसेविना शीलवादिता कुशीलत्वं गोद्यातकादिवत् अग्निहो
त्रवादिजलशौचवादिवञ्च । १५४ ३८१-४१०७ पृथ्व्याद्या जीवमेदाः
(दधिसौवीरकादिषु जीवाः) तेषु विपर्यस्ता, बसस्थावरघाती ।
क्रूरकर्मा, संसारहेतुकर्मवन्धकवेदकः, अझ्यारम्भकः, हरितादिच्छेदकः, जात्यादिविनाशकः, परत्र गर्भाद्यवस्थायां मृतिः, एकान्तदुःखो लोकः, नाहारवजैनेन न शीतोदकेन वा प्रातः मानेन क्षारानास्वादेन न मोक्षः, मद्यमांसाहारेण भवभ्रमः, स्नानादमोक्षः मत्स्यादिवत् , अशुभवत् शुभस्य हरणं स्यात् जलवह्रिसिद्धिवादो मिथ्या, घातेन भवभ्रमः, तस्मात् विद्वान् विरतादिगुणः, सन्निधिमान् स्नाता वस्त्रप्रक्षालकः नाझ्याहरे, बीजकन्दाद्यभोजी, खानख्यादिविरतश्च धीरः, स्वादुकुलपर्येषी,
उदरानुगृद्धया धर्माख्यायकः, अशनाद्यर्थमालापकः, मुखमाङ्गलिकः, अन्नायर्थमनुप्रियभाषी कुशीलः, अज्ञातपिण्डः, पूजनकामी, शब्दाद्यसङ्गोऽगृद्धः, दु:खसहादिगुणः, विवेककाझी फलकायतकृष्टो मुच्येत । १६५ ॥ इति सप्तमं कुशीलाध्ययनम् ॥ ९१-९७ नि वीर्य निक्षेपाः (६) द्रव्ये
सचित्ते द्विपदचतुष्पदापदाना, अचित्ते आहारप्रावरणप्रहरणीपध्यादीनां, भावे औरस्येन्द्रियाध्यात्मिकवलानि, औरस्य संभवे संभाव्ये च, इन्द्रियजमपि, आध्यात्मिके उद्यमधृतिधैर्यशौर्य
॥५१॥
~61~
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
पत्रकृतांगे
यहां देखीए
॥५२॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
क्षमागाम्भीर्यादि, पण्डितादि- ।। दिमानादिसङ्कोचकाः, हिंसादि । १०२ नि० पार्श्वस्थादिसंस्तववर्जनम्। १७७ 1वहतक्रमण
मेदं वा वीर्यम् । १६८ बर्जकाः, सम्यक्त्वायुचुक्ताः, क- ४३७-७२. धर्मस्वरूपप्रमः, आरम्भ४११-१४० बीरत्वपक्षः, कर्माकर्मणो- तक्रियमाणादिपापजुगुप्सकाः। १७४ कामवतां न दुःखमोक्षा, शात
वीरत्वं, प्रमादाप्रमादयोः कर्मा- ४३२-३६७ सम्यक्त्वासम्यक्त्वदर्शि- योधनहर्तारः, स्वयं कर्मभोक्ता, कर्मत्वं, अतिपाताय शस्त्रमन्त्रा- नोरबन्धवन्धी, ज्ञातं तपो न न मात्रादयखाणं, तस्मानिर्ममो ध्ययनम् । शुद्ध, अल्पपिण्डाशित्वादिगुणो
वित्तादि त्यक्त्वा षट्काया-(द९८ नि० अस्यादिविद्या मन्त्रः पञ्च- मुच्येत ।
ध्यादिजीवाः) रम्भवी, मृषाविधदेवकर्मकृतं च शस्त्रम् । १६९
वादबहिर्धाऽयाचितावग्रहशना४१५-३१७ मायादिनाऽसंयमः, बाला
॥ इत्यष्टमं वीर्याध्ययनम् ॥
दानमायादिधावनादिगन्धमानां वैरादिकारित्वं, पण्डिता ब- ९९ नि धर्मनिक्षेपातिदेशः, समा- ख्यादि-औदेशिकादि-श्लाघादिधनोन्मुक्ताः, पापकर्मनोदिना, धिमार्गयोधर्मत्वम् । १७६ सम्पसार्यादि-अष्टापदादि-उपाशल्यकर्त्तकाः, भवस्वरूपेक्षिणः, | १००-१ नि० धर्मनिक्षेपाः (४) द्रव्ये नदादिवर्जन, उच्चारादियतना, च्यवनाऽनियतावासविचारकाः, सचित्ताचित्तामधगृहस्थदाना
आचमनस्य परामत्रादेः आसगृद्धिरहिताः, आर्यधर्मोपसंप- नि, भावे लौकिको द्विभेदः, न्द्यादेः यश-कीादेः असंयनाः, प्रत्याख्यातपापाः, शिक्षा- लोकोत्तरे प्रत्येकपश्चमेदो ज्ञा
तदानस्य च वर्जनं वीरधर्मः, युताः, पापपरिवर्जिनः, हस्तानादिकत्रिधा ।
भाषमाणोऽप्यभाषकः, न मर्मा
d॥५२
~62~
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
हत्क्रमः
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि'
वित्, मातुस्थानवर्जी, अनु- । ३७३-६७ अप्रतिज्ञोऽनिदानः, प्राण- चिन्त्यव्याकर्ता, छन्नावादी, संयतः, अदत्तवर्जी, स्वाख्यातहोलाबादवर्जकः, परगृहानिष- धर्मा, तीर्णविचिकित्सा, लाडः, पणः, क्रीडावर्जी, अहासः, अनु- आत्मतुलः, आयचयवर्जी, नित्सुकः, यतमानोऽप्रमत्तः, उप- व्रतो विप्रमुक्तः, प्राणिदुःखादिसर्गसहः, घाताकोशयोरक्रोधः, दी च समाधिमान् । १८९ कामानीप्सुः, उपाचार्यमध्येता,
४७७-८७8 पापाकाऽनतिपाता दी. सुप्राज्ञोपासकः,आत्मप्रज्ञो,धृति
नवृत्तिमतो यन्धं समीक्ष्य समामान्, गृहे दीपादशी, जीवि
धिमान् , समः प्रियाप्रियवर्जी, तानवकाङ्क्षः, गृयारम्भमानादिवर्जकश्च निर्वाणसन्धाता । १८६
पूजाद्यकामः, आधाकर्मादितो
बालत्वं, वैराद्वन्धं समीक्ष्य वि॥ इति नवमं धर्माध्ययनम् ॥
प्रमुक्तः, आसनगृद्धिहिंस्रक१०३-६ नि० आदानपदेनाऽऽधनाम, थाऽऽधाकर्मसंस्तवशोकवर्जी,
गीणं समाधिः, भावसमाधिना एकत्वेक्षी, क्रोधादिवर्जकः, तृप्रकृतं, समाधिनिक्षेपाः (६) भावे णादिस्पर्शसहः, समाधियुक्, दर्शनशानतपश्चारित्राणि । १८७। अकर्मपरिग्रहः, अमिश्रो मुनिः। १९२
४८८-९६० अक्रियात्मनां धर्माज्ञानं,
पृथक्छन्दोवादा असंयताः, अजरामरचन् मूढो ममायति, मोहवतो वित्तहरा अन्ये, पापपरि वर्जी मेधावी, हिंसाप्रसूतानि दुःखानि, मृषावर्जनं समाधिः, अमूर्छादिगुणः, अनिदानो गृहनिरपेक्षः समाधिमान् । १९४
इति दशमं समाध्यध्ययनम् । १०७-१५ नि मार्गनिक्षेपाः (६) ध्ये
फलकलतान्दोलनादि (१४) मागर्गाः,भावे सुगतिफलमार्ग प्रकृतं, दुर्गतिफले ३६३ पाषण्डिनः, क्षेमक्षेमरूपचतुर्भङ्गी मार्गे, ज्ञानादिः सम्यग्मार्गः, चरकादिचीणों मिथ्यात्वमार्गः, गौरव
॥५३॥
~63~
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ५४ ॥
వనాథ వారి కార్ఫా ఫీ
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
वधयुताः कुमार्गाश्रिताः, तपःसंयमादिमन्तः सन्मार्गकथकाः, मार्गकाfर्थकानि (१३ ) ४१६-५१२४ मार्गप्रशः, उत्तरे व्यव हारेण समुद्रतरणवत् मार्गात्संसारतरणं, पड्जीवनिकायानां आक्रान्त दुःखत्वाद्वधत्यागः, अहिंसा ज्ञानिनः सारः सर्ववधविरतिर्निर्वाणं, विरोधत्यागः, एषणासमितो धीरः, औदेशिकपूति कर्मवर्जी, सावयानुमतिरहितः । ५१३-१८० दानस्य विधिनिषेधयोनिषेधः । ५१९-३४ द्वीपसमो धर्माण्यायी, अज्ञानिनः समाधिहीनाः, बीजो
दकादिभोजिनः ढङ्कादिवदशुभध्यायिनः उन्मार्गगा दुःखिनः, सच्छिद्रनावारूढान्धबन्मिथ्यादृष्टिभ्रमणाः काश्यपधर्मेण श्रोतस्तरणः ग्रामविरतः आत्मोपमो मानादिवर्जीनिर्वाणाभिसन्धी, उपधानवीय भिक्षुः, भूतानां जगतीवन्मार्गाधारः, वातेन गिरिदुपसर्गेण न विह म्येत, दत्तैषणो धीरो निर्वाणकाङ्क्षीति केवलिमतम् । एकादशं मार्गाध्ययनम् । २०३ | ११६-२१ समवसरणनिक्षेपाः (६) भावे प्रभेदं भावपकं क्रियाक्रियाज्ञानविनयवादाः क्रिया
१९८
२०२
~64~
२०७
वाद्यादीनां लक्षणं भेदाध, सम्यग्दृष्टयः क्रियावादिनः । २११ ५३५-५६ प्रवादिचतुष्कं अशानिनां मृपावादित्वं, आत्मप्रमाणसर्वज्ञेयानानां सिद्धिः, सत्यासत्यसाध्यसाधुनिर्विशेषा वैनयिकाः, अक्रियावादिनो लवावशङ्किनः, ( मास्तिका बौद्धाश्च नास्तिकानां बौद्धानां चासत्यप्रतिपादनेऽभावप्रतिपादने वा विपक्षाङ्गीकारान्मिश्रीभावः, साङ्ख्यानां चाक्रियत्वे, तेषां छलवादिता, विरूपशास्त्रता, शून्यवादनिराकरणं, सूर्यचन्द्रस्वरूपे विवादः तत्सिद्धिश्च स्वनादेः सद्भावत्वं अष्टाङ्गनिमित्ते
बृहत्क्रमः॥
॥ ५४ ॥
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सत्रकृतांगे
हत्क्रममा
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
नानागतज्ञान, निमित्तस्य स- । विनयेषु अध्यात्मनि प्रशस्ते वा त्यता, शानक्रियासिद्धिः, जीव
सूत्रार्थचरणसाम्यम् २३० | भेदाः, विषयमनानां भवभ्रमण, | १२५-२६ नि: आचार्यपरम्परोच्छेअकर्मणा कर्मक्षयः, सन्तोषिणो- दवादी जमालिवनश्यति, संयऽपापाः, अन्तकृतो बुद्धाः, स- मतपःसु उद्यच्छन्नपि न दायता धीयः, अप्रमत्तो बुद्धः, मुच्यते आत्मोत्कर्षात् । २३१ ज्योतिर्भूतमुपासीत, आत्मलो
५५७-७९.६ सदसतोधर्माः शीलशाकगत्यागतिशाश्वतेतरजन्ममर
न्त्यशान्तयः, धर्मलम्बकस्यावणोपपातज्ञाने आश्रवसंबरतुःख
वादिनः, अनुकथकार, अन्यनिर्जराज्ञाने च क्रियावादित्वं, (षड्दर्शनपदार्थविचारः) अ.
थाकथकाः, गुणानामभाजनं, परक्तद्विष्टो जीवितमरणानवका
रिकुञ्चकाः असाधवः, अनन्त
संसारिणः, क्रोधनो जगदर्थक्षो मुच्येत ।
२२९
भाषी अनुपशान्तः पीड्यते, इति द्वादशं समवसरणाध्ययनम् ।
विग्रहिको न मध्यस्थोऽझञ्झो १२२-२४ तथानिक्षेपाः (४) षढ्- । वा अत उपपातकार्यादि स्यात् ,
विधे भावे ज्ञानदर्शनचारित्र- बबनुशिष्टोऽपि तथाऽर्थः समः,
तपोमवर्जन, कूटेन भवभ्रमः, मत्तो न मौनीन्द्रे, ब्राह्मणादिलेंच्छक्यन्तो न प्रबजितो माद्यति. विद्याचरणं त्राणं, मदोडगारिकर्म, निष्किञ्चनतायपि गौरवाद्भवहेतुः,भाषादिगुणः परिभवेत् न, स्यात्समाधिमान् , नव लाभप्रशातपोगोत्रादिमदः, अगोत्रा मुक्तिगामिनः, मुद]sगृख एपणादिशाता, अरत्याद्यभिभूय मौनेन व्याकरण, एकस्य गत्यागती, हितं धमै भाषेताऽनिदानः, अश्रद्दधानो बधाद्यपि कुर्यात्, अतो लब्धानुमानः कथयेत् , कर्मच्छन्दसी विवेचयेत्, भयावहानि रूपाणि, पराभिप्राय
~65~
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
हत्क्रमः
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
ज्ञस्य देशना, याधातथ्येक्षी नि- । दण्डो जीवितमरणानपेक्षी मुच्येत ।
२४० इति त्रयोदशं याथातथ्याध्ययनम् । १२७-३१ नि० ग्रन्थनिक्षेपातिदेशः,
प्रधाजनशिक्षणाभ्यां शिष्यः, ग्रहणे सूत्रार्थतदुभयैः, आसेवनायां मूलगुणैः पञ्चविधः, उत्तरगुणादशविधः, आचार्योऽपि ।
२४१ ५८०-६००8निर्ग्रन्थः शिक्षमाणो ब्रह्म
चारी उपपातकारी विनयं शिक्षेत, न ठेकः प्रमादी, अपुष्टधर्माण द्विजशाववत्पापधर्माणो हरन्ति, गुर्वन्तिके समाधीप्सुः,
मयूरनृत्यगलगण्डव्यापादकवदनुपासितगुरुकुल, वृत्तवान् आशुप्रझोन निष्काइयेत, साधुक्रियायुत आगतप्रशो व्याकु
त्,ि अनाश्रयो व्रजेत् , प्रमादवर्जी निःशङ्कः, डहरायनुशा. स्तावपि, अनभिगमादपारगः, क्रोधव्यथापारुष्याणि विहाय प्रतिश्रवणं, बुद्धानुशासनं मार्गानुशासन, मूडेनामूढः पूज्यः, शैक्षोऽपुष्टधर्मा जिनधर्माकोविदः, अप्रकम्पमनाः सदायतः, समाधिशस्य धर्माख्यायी माननीयः, प्रमादसवर्जी मुच्येत, प्रतिभानवान् विशारदश्च शुद्धन मच्येत, धर्माख्यायिनो, बुद्धा
अन्तकराः, द्वयोर्मोक्षाय प्रश्नकथकाः, न छादनादि कुर्युः, भूतामिशकिनः, न मन्त्रपदेन गोत्रापनयनाः, न मिथ्या न साधर्म्यवादिनः, अहासाः, अतिर
स्कारादिगुणाः। २४९ ६०१-६७ अशद्वितेऽपि शङ्कितं व्या
कुर्यात्, विभज्यवादः, भाषाद्विकं च, अवुध्यमानमपि अपीडयन् बोधयेत्, न भाषादौ दोषेण विडम्बयेत्, न दीर्घयेत्, प्रतिपूर्णभाषी, सम्यगर्थदशी, आशाशुद्धाभियोगी, पापविवेकाभिसन्धिः, यथोदितशिक्षः, नातिवेलवादी, अदृष्टिदोपीभाषकः,अलूषकोऽप्रच्छन्नभा
SAR
-
SSES
ॐ-
~66~
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ५७ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
पी, न स्वयं सुत्रार्थकारी, शाभक्तः, अनुवीच्यवाक्, भुतदाता, शुद्धसूत्र उपधानवान् आदेयवाक्यः, कुशलो व्यक्तो भाषितुमर्हति ।
२५१
॥ इति चतुर्दशं ग्रन्थाध्ययनम् ॥ १३२ नि० आदानस्य तत्पर्यायत्याग्रहणस्य च निक्षेपः ( ४ ) । १३३ नि० आदानीयपदव्याख्या, (प्रथमस्यायं पदं द्वितीयस्यादौ, सङ्कलिकादि तन्नाम तनिक्षेपाध) । १३४-३६ नि० आदिनिक्षेपाः (४) द्रव्ये स्वभावः स्वस्थाने भावे नोआगमे महाव्रतप्रतिपत्तिसम
२५२
२५२
यः आगमे द्वादशाने ग्रन्थ२५४ लोकादि । ६०७-२१ आवरणक्षयात्सर्वशः, अaterस्याख्याता ( मीमांसकादिव्यवच्छेदः ) न तत्र तत्र स त्यसम्पन्नता भूतमेत्री, अबिरोधः, जीवितभावनः, तीरप्राप्तः, निर्जरासंवरयुक्तः, अकर्मणो न जन्म, अस्त्रीको वीरः, स्त्रीवजिनो निर्बन्धाः पापकर्मावन्धका., निर्वाणसंमुखाः, मार्गानुशासकाः, अनुशासकगुणाः (वसुमत्त्वायाः) स एव मनुष्याणां चक्षुः, निष्काक्षः, अन्तसेवी, धर्माराधकः । ६२२-२४३ नामनुष्येषु मोक्षः, अप
२५८
~67~
रेषां देवानामपि मोक्षः, आईतानां तु मनुष्यस्यैव, दुर्लभं मानुव्यं सम्बोधिः, तथा लेश्या । २५९ ६२५-२१ नानीदृशस्य शुद्धधर्मा
ख्यायिनो जन्मकथा, न तथागतस्योत्पादः, अप्रतिज्ञास्तथागताः काश्यपप्रवेदितान्निष्ठाप्राप्तिः पण्डितवीर्यात् पूर्वकर्मक्षयाऽनादाने, वीरो न कर्मकर्त्ता, संयमात्कर्मनाशः, शल्यकर्त्तनान् मुक्ता देवा वा दुर्नियोंधमार्गात् कालत्रयेऽपि तीर्णाः । २६१ इति पञ्चदशमादानीयाख्यमध्ययनम् ॥ १३७-४१ नि० गाथानिक्षेपाः (४) द्रव्ये पुस्तकलिखिता, भावे साकारोपयोगान् मधुराभिधान
बृहत्क्रमः ॥
॥ ५७ ॥
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ५८ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
युक्ता, सामुद्रछन्दसाऽर्था गा धीकृताः, पञ्चदशाध्ययनार्थो वा पिण्डितः ।
२६२
१ अगारगुणवर्णनं, ब्राह्मणश्रमणभिनिर्ग्रन्थस्वरूपम् । ॥ इति षोडशं गाथाऽध्ययनम् ॥ ॥ इति प्रथमः श्रुतस्कन्धः ॥ १४२-५७ नि० महच्छदनिक्षेपाः (६)
अध्ययनशब्द निक्षेपाः (६) पुण्डरीकशब्दनिक्षेपा. (८) गणनसंस्थाने द्रव्ये एकभविकादिः, प्रवरास्तिर्यगाथाः, जलचरायाः, अर्हदायाः, भुवनपत्याद्याश्च, अ चित्ते कांस्यदूष्यायाः देवकु र्वादीनि क्षेत्राणि, काले प्रवरभ
वकायस्थितयः, गणनायां रज्जुः ( परिकर्मादिगणितं दशधा ) संस्थाने चतुरस्रं भावे प्रवरभाचवन्तो ज्ञानादिमन्तो मुनयो चा, वनस्पतिपुण्डरीकेण धमणेन चाधिकारः, शुभस्य पुण्डरीकता अशुभस्य कण्डरीकता । २ वापीपुण्डरीकनिरूपणम् । ३ प्रथमपुरुषः कर्दमे निमनः । ४-६ तं तथाविधं दृष्ट्वा आगताः क्रमेण द्वितीयतृतीयचतुर्थाः अपि तथैव ।
७ तथाभूतेषु तीरस्थभिक्षुशब्देनोत्य
२६९ २७०
मभोगाः कर्दमाः, जनजानपदाः पुण्डरीकाणि, राजा पद्मवरपुण्डरीकं, अम्यवृधिका पुरुषचतुष्कं धर्मो भिक्षुः धर्मतीर्थं तीरं, धर्मकथा शब्दः, निर्वाणमुत्पादः । २७५ १० राजस्वरूपं पर्पत्स्वरूपं, तज्जीवतच्छरीरबादिमत, असिकोश्यादिदृष्टान्तैः २७० भेदेनानुपलम्भात् क्रियादेरनभ्युपगमः, निष्कान्ता:, भ्रमणग्राह्मणतयाऽशनादिना स्वमतस्थेभ्यः पूजाऽयाप्तिः, अर्वाक्प्रवज्यायाः सङ्कल्पः, (अनार्यक्षेत्राणि ) । २८१ ११ पञ्चभूतवादी (नास्तिकः ) द्वितीयः । २८४ १२ ईश्वरकारणिकस्तृतीयः पुरुषा
~89~
२७१
२७१
२७४
तनम् । ८ ज्ञातार्थप्र कथनोपक्रमः । ९ लोकः पुष्करिणी, कर्म उदकं, का
बृहत्क्रमः ॥
| ।। ५८ ।।
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ५९ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
यादिको धर्मः, गण्डाsरतिवल्मी
२८७
२९०
ने द्वादशाङ्गी न सत्या ( ईश्वरकर्तृत्वनिरासः) । १३ चतुर्थः पुरुषो नियतिवादी । ( नियतिवाद निरासः) । १४ आर्याचा नराः, मिक्षायामुपस्थिताः अर्वाक् प्रव्रज्यायाः सङ्कल्पः, प्रवज्यायां कामभोगानाश्रयणं, अत्राणत्वात् अन्यत्वात् तापित्रादीनां बहिरङ्गत्वं दुःखामोचकत्वात् अत्राणत्वात् अम्यत्वात् हस्तादेरष्यन्यत्वादिः, जीवाजीवत्र सस्थावरज्ञानम् । २९५ १५ गृहस्थान्यक्षमणब्राह्मणानां सार
मा
म्भकामपरिग्रहवत्त्वेऽपि अहं तनिश्रया ब्रह्मचारी, सोऽतकारकः २९६ १६ दण्डादीनां कुनादी असातवत् सर्वकायानामसातमिति न हन्तव्या इत्यादिः अतीतायतामुपदेश:, अक्रियादिगुणो भिक्षुर्देवः सिद्धो वा स्यात्, शब्दादेविरतः, त्रिविधं त्रिविधेन हिंसायाः परिग्रहात् साम्परायिकात् औदेशिकादेश्च परकृतादिभोजी, उपस्थितादिभ्यो धर्मकथको नान्यत्र कर्मनिर्जरायाः, श्रोतुः धर्मसमुत्थानादि । १६८- ९४ नि० जिनोपदेशेन सिद्धिरित्यधिकारः, चक्रिण्यपि महाजननेतेति भारितकर्मणामपि
३०२
~69~
विषयजिनोपदेशाद्भवेन मोक्षः, दुधा वापी पद्मं च विद्यादिभिरपि जिनविद्यया सिद्धिः पुण्डरीकाणाम् ।
३०३
॥ प्रथमं पुण्डरीकाध्ययनम् ॥ १६५-६८ नि० बन्धमोक्षमार्गाभ्याम
धिकारः, द्रव्ये एजनाक्रिया, भावे प्रयोगोपायकरणीयसमुदानेपथ सम्यक्त्व - सम्यग्मिध्यात्व- मिथ्यात्वाच्या ८, स्था ननिक्षेपाः (१५) सामुदानिक्या संयमस्थानेन चाधिकारः ( ईर्ष्यापथिक्याऽपि ) क्रियाभिः प्रवादिपरीक्षा ।
३०५
१७ धर्माधर्मावुपशान्तानुपशान्ती, अ र्थदण्डादीनि त्रयोदश क्रिया
बृहत्क्रमः ॥
॥ ५९ ॥
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
।। ६० ।।
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
स्थानानि । (वेदनानुभवचतुभङ्गी) ।
३०६ १८ आत्मज्ञात्यादिहेतोरर्थदण्डः । ३०७ १९ अर्थाजनाद्यन्तरेण हिंसाभयपुत्रपोषणाद्यन्तरेण श्रमणत्राह्मणवर्त्तनामन्तरेण प्रसस्थावरघातोऽनर्थदण्डः ।
३०८
५०-२९ हिंसासंभावनया वधो हिंसादण्डः, मृगवधादिसङ्कल्पे ति तिरादिवधोऽकस्माद्दण्डः, ग्रामघातादौ अस्तेनवधे दृष्टिविपर्यासदण्डः, आत्मादिहेतोर्मृपावादे सृपाप्रत्ययः अदत्तादाने च तरप्रत्ययः, स्वयमेव हीनदीनत्वादिना क्रोधादावध्यात्मप्रत्ययः, जात्यादि (८) मदे गर्भादिर्मानम
त्ययश्चासौ मित्रादिषु महादण्डेन दण्डपाशित्वादिः मित्रदोषप्रत्ययश्च दण्डः, गूढाचारादीनां मायाप्रत्ययः, आरण्यिकादीनां मूर्च्छादिमतां लोभप्र
त्ययश्च दण्डः । ३० ईर्यापथिकीस्वरूपं, अतीतायर्हतां त्रयोदशक्रियास्थानभावणं, अन्त्यस्थान सेवनं च । ३१७ ३१ भौमादि (६५) विद्याप्रयोगोऽनपानवस्त्रलयनशयन कामभोगार्थं येषां तेनार्याः भाविम्येडमू
काध ।
३१६
~70~
३१९
३३ आत्मादिहेतोरनुगामित्वादिना (१४) नायकसहोषितौ प्रतिसन्धाय हननायुपाख्याने महा
पापादिः तित्तिरादेः घातादिः, शस्यज्वालनं, गुराकर्त्तनं, उष्ट्रशालादिदाहः, कुण्डलाद्यपहार,
श्रमणब्राह्मणच्छत्राद्यपहारः तत्र
निःशङ्कतया स्वयमेव प्रवृत्तिः, श्रमणब्राह्मणानां कलङ्कदानं, ति रस्करणं, परुषवदनं, अशनाद्यदानं धिग्जीवितादिमाननं, तेषामनादिसंपत्तावपि दुर्लभबोधिता, अधर्मस्थानस्यानार्यत्वादि । ३२६ ३४ भ्रमणानां धर्मस्थानम् । ३२७ ३५ आरण्यकादीनां मिथस्थानं अनार्यादिगुणम् । ३६ महेच्छारम्भादिमन्तो, वधच्छेदादिप्रवृत्ताः कुतोऽप्यप्रतिविरताः, बाह्याभ्यन्तरपर्षदोरपि
३२७
वृहत्क्रम ॥
॥ ६० ॥
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्तमः।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
तीवदण्डकारकाः, मूर्छादिगुणा । जीवाजीवादिगुणाः, प्रत्याख्यात- धारः, सच दोषरहितः, आसूत्रकृतांगे नरकगामिनः ।
३३१ भक्ताः, महर्द्धिकादिषु देवा भ- हारनिक्षेपाः (५) द्रव्ये सचि३७ नरकस्वरूपम् ।
३३२ बन्ति स मिश्रपक्षः, (धर्मानुरागे त्तादिः, क्षेत्रे नगरस्य जनपदः, ३८ पर्वतानवृक्षवत् शीघ्रपातिता, क
परिवाइरक्तस्त्रीदृष्टान्तः)। ३३७ भावे ओजोलोमप्रक्षेपैः, ओजणपक्षिता दुर्लभबोधिता च । ३३२४१ अधर्मपक्षे ३६३ पापण्डिनः | ३३९
आदेः स्वरूप, तत्स्वामिनः, ४२ ३९ अनारम्भादिगुणाः, सर्वतः प्रति
अहिंसाप्रतिपादन, अङ्गारपा
तत्कालः, तत्साधनं, (केवलिन विरताः, ईर्यासमित्यादिच्छिन्नज्यादानदृष्टान्तोपनयौ, हिंसा
आहारसिद्धिः) अनाहारकालश्च शोकान्तगुणाः, कांस्यपात्रादि
फलं, सर्वप्राणादीनामहिंसादिः परिशानिक्षेपातिदेशः। ३४७ वत् निरुपलेतादिमन्तः, अण्ड
मोक्षमार्गः ।
३४१ ४४-५६ बीजकायचतुष्टयं, पृथिव्याजादिप्रतिबन्धरहिताः, औपपा| ४३ द्वादशभिः क्रियास्थानैर्न सेध
दिशरीराण्याहाराः पृथ्वीयोनिनादि, किन्तु त्रयोदशेन स्थातिकोक्तगुणाः, अस्नानादन्तधानेन, इत्यात्मार्थित्वादिगुणो
कवृक्षेषु वृक्षाः वृक्षयोनिकबनाद्याचाराः, मानापमानादिस
वृक्षेषु वृक्षाः वृक्षयोनिकेषु हाश्च मुच्यन्ते महर्डिकादिगु
भिक्षुः ।
३४२
मूलादीनि । वृक्षयोनिकेष्वध्याणेषु देवेषु वा जायन्ते। ३३५ ॥ द्वितीयं क्रियास्थानाध्य० ॥
रहाः । वृक्षयोनिकेष्वध्यारोहेH० अल्पेच्छादिगुणाः, प्राणातिपा- १६९-२७८ नि० अन्तक्रियास्थाने वध्यारोहाः । अध्यारोहयोनि
तादिदेशाद्विरताः, अभिगत- सदाहारगुप्तिः, आहार आ- । केष्वध्यारोहाः। अध्यारोहयो
॥६१॥
~71~
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ६२ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
निकेध्यध्यारोहेषु मूलत्वादीनि पृथ्वीषु तृणत्वं पृथ्वीयोनिकेषु तृणेषु तृणत्वं तृणयोनिकेषु तृणेषु तृणत्वं तेषु मूलत्वादीनि एवमौषधीनां, हरितानामपि । पृथिव्यामागत्यादीनि उदके वृक्षतया उत्पत्तिः शेषं पृथ्वीवृक्षवत्, उदकेषु उदकावकादितयोत्पत्तिः सर्वेषु त्रसप्राणतयोत्पत्तिराहारथ । ३५३ ५७ कर्मभूमिजादिमनुष्योत्पत्यादि । ३५४ ५८ जलचर-चतुष्पदोरः परिसर्प भुजपरिसर्प- खेचराणां भेदा उत्प तिराहारश्च ।
५९. कलेवराश्रितानामुत्पत्यादि, बिछायुत्पन्नानां तिर्यक्शरीरोत्प
३५६
नानामुपस्यादि ।
३५७
६० प्रसस्थावरशरीरेषु चातकायेऽ / कायोत्पत्त्यादि, उदके च, उ दकयोनिके उदके च, उदकतया सप्राणतया बोत्पत्यादि । ३५८ ६१ सस्थावरशरीरेष्वग्नितया इत्याद्यालापकत्रयं, वायुकाये आलापकचतुष्टयम् । सस्थावरशरीरेषु पृथ्व्यादि४० तयोत्पश्यादि । प्राणिनां कर्मवशात्परस्परंगमा
३५९
६२
६३
गमः ।
३५९
३६०
तृतीयमाहारपरिज्ञाऽध्ययनम् । १७९-१८० नि० प्रत्याख्याननिक्षेपाः (६) मूलगुणैरधिकारः, तत्मस्ययिकी अप्रत्याख्यानक्रिया ३६१
~72 ~
39
६४ आत्मनोऽप्रत्याख्यानित्यादि एकान्त सुप्तत्वान्तम् । ६५ बधकदृष्टान्तेनाप्रवृत्तावपि दण्डसिद्धिः । ६६-६७ अष्टजीवादिप्रत्ययानि कथं पापस्थानानि तत्र सयसटिटान्तेन हिंसादिसिद्धिः ( सज्यसशिनोरन्योऽन्यानुगमः ) ।
६८ आत्मौपम्येन सर्वेषां दण्डादिभिरसावं, तन्न हन्तव्या इत्यादि धर्मो ध्रुवः साधुस्वरूपं च । ३७० इति चतुर्थ प्रत्याख्यानाध्य० १८१-८३ नि० आचारनिक्षेपाः ( ४ ) अबहुश्रुतस्य विराधना, अनगारतमित्यपि नाम |
३७१
३६६
३७०
बृहत्क्रमः ।
॥ ६२ ॥
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
बृहत्क्रमः।।
A
यहां देखीए
॥६३॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
६३६६ अनाचारस्यानाचरणम् । , सिद्धयोः सिद्धिस्थानस्य साध्व- । सुताईकात्समुत्थमध्ययनमाई - ६३७-६३ अनाधनन्तयोः, शाश्व- साध्वोः कल्याणपापयोश्वास्ति
कीयम् । ताशाश्वतयोर्टष्टावनाचारः, स
स्वनास्तित्वयोर्न व्यवहारः । ३८३ १८८-८९ नि० द्वादशाङ्गीसर्वाध्यवंशास्त्रव्यवच्छेदे सर्वप्राणेष्व- ६६४-६७ कल्याणित्त्वे पापित्वे च
यनलक्षिरसंनिपातानां शाश्वसादृश्ये ग्रन्थिकत्वे शाश्वतत्वे न व्यवहारः, बाला न जानन्ति
तत्वेऽपि तथा तथा तस्मिन् तचानाचारः, क्षुल्लकमहाकायच बैरं, सर्वस्वाक्षयत्वे दुःखित्वे
स्मिन् कोऽप्यर्थ उत्पद्यते ऋषिवधे सदृशासशकर्मणि, आधाअपराद्धानां वध्यावध्यत्वे न
भाषितवदनुमतश्च भवति । ३८६ | कर्मभोगे उपलेपानुपलेपयोः,
वागनिसर्गः, समिताचारेषु औदारिकाहारककामणेषु वीर्यामिथ्योपजीवीति रनिषेधः,
१९० नि० गोशालकभिक्षुब्रह्मवृत्ति
त्रिदण्डिहस्तितापसैरार्द्रकस्य स्तित्वनास्तित्वयोः,लोकालोकदक्षिणाया लाभालाभयोरव्या
विवादोऽत्र ।
३८६ योर्जीवाजीवयोर्धर्माधर्मयोर्वन्ध
करण, शान्तिमार्गोपबृंहणं च, पतरात्मानं धारयन् मुमुक्षुः । ३८५
१९१-२०० नि० आईकपूर्वभवे वसमोक्षयोः पुण्यपापयोः आश्रव
न्तपुरे सामयिकः, सस्त्रीको निसंवरयोः वेदनानिर्जरयो: क्रिया- || द्वितीयश्रु० पञ्चमानाचाराध्य० ॥
एकान्तः, भिक्षायां दर्शनमवऽक्रिययोः क्रोधमानयोः माया- १८४-८७ नि० आईनिक्षेपाः (४) भाषणं, भक्तप्रत्याख्यानं, संवेगः, लोभयोः प्रेमद्वेषयोः वातुरन्त- द्रव्ये उदकादि (५) एकभ
अनालोचनं, भक्तप्रत्याख्यानं, संसारस्य देवदेव्योः सिद्धय- विकादि (३) आर्द्रपुरीया
देवलोकः, आईपुरे जन्म, द्वयो
I
||६३॥
~73~
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
खत्रकृतांगे
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
राज्ञो प्रीतिः, पृच्छा, अभयाय
आख्यानेन पूर्वापरसन्धान, इति । सत्पुरुषोक्तमार्गकथनं, दोषस्य बहतक्रम प्राभूतप्रेषणं, तेनापि प्रतिमा प्रे- गोशालः, पूर्वमधुनाऽपि विरा- " गर्हा नान्यस्येत्याः । ३९३ | पिता, दृष्ट्वा बुद्धो, रक्षितः, पला- गत्वं, आख्यानेऽप्येकान्तता,जि
६८३-८६६ दक्षभीतो नारामादिवासी, व्य दीक्षा, वारणे राज्यतेजोद
तेन्द्रियादिगुणस्य धर्मकथायां . सूत्रार्थप्रश्नभीतो न तत्रोपंतीति र्शनं, विहरणं, प्रतिमास्थो दा
न दोषः, महावतादिप्ररूपणा गो० । कामकृत्यबालकृत्यराजारिकया वृतः, वसुधारा, दैवी तत्रेत्याईः।
३९१ भियोगभयपरिहारे गत्वाऽऽगवाक्, पित्रा नयनं, पादविम्बेन ६७५-७८ शीतोदकबीजकाऽऽधा
त्वा च व्याकरण, अदर्शनत्वाज्ञानं, पुनरागते भोगाः, सुतो- कर्मस्त्रीषु भिक्षोर्न पापमिति दनार्येष्वगमनमित्याः । ३९४ त्पत्तिः, पणः, पूरणे निर्गमनं, गोशाला, एतानि प्रतिसेवमानो
६८७-९३०लाभेच्छुर्वणिगिव वीर इति चौरदीक्षा, गोशालादिभिर्वादः, न श्रमणः, तथा सत्यगारिणां गोकानवाकरणं, पुराणनिर्जरणं, पराजित्य तैः सह वीरपाखें श्रमणत्वं, तेषामनन्तकरत्वं चे
दुर्मतित्याजन, उदयश्च कथादीक्षा, गजबन्धात्तन्तुबन्धस्य त्याद्रः।
फलं, हिंसका ममीकुर्वन्तः सदुष्करता। ३८९ ७९-८०प्रवादिगा सांस्य..
सङ्गा वित्तैषिणो मैथुनासक्ता ६६९-७४ वीरस्य पूर्वमेकाकित्वं वाद इति गो। सर्वेषां परस्परं भोजनार्थाः कामप्रेमगृद्धाः, आ
मौनं च, अधुना पर्षद् धर्मा- गर्हा, सदसतोरस्तित्वनास्ति- त्मदण्डा वणिजः, तेषां लामो ख्यानं च, आजीविकार्थमेतत्, त्ववादान गर्दा, नाभिधारण, भवाय, अनेकान्तिकोऽनात्यन्ति- Indln६४।।
~74~
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
।। ६५ ।।
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
कच, भगवतस्तु साधनन्तो लाभः परप्रदानं अहिंसकादिगुणो भगवान् कर्मविवेकाय धर्मकधी तन सादश्यमित्याईः । ३९६ ६९४-७२० पिण्याकपिण्ड्याः पुरु
बुद्धया अलावुनः कुमारबुद्धया भेदादी अस्माकं म्लेच्छस्य च न बन्धः, बुद्धभक्षणाता च, स्नातकसहस्रद्वय भोजनात्पुण्यस्कन्ध इति शाक्यः । अयोगरूपे प्रसह्य पापं, अयोधिता द्वयोः, प्राणी ज्ञानवान् न तथा वदेत् कुर्याद्वा न च सम्भवस्तथाबुद्धवाः, बागेपाऽसत्या, पापतुवाचोऽनुदाहरणं, अस्थानमेतत्, अहो लब्धोऽर्थ इत्यादि
शाक्यस्योपहासः (प्राण्यङ्गत्वेन न भक्ष्यता), जीवानुभागचिन्तादिना धर्मः, स्नातकभोजको संयतः, उद्दिष्टौरभ्रभोगेऽप्यलेप इत्यनार्यबाकू, (मांसदोषाः ) भोगिनोऽज्ञानं कुशलानां मनोऽपि न, एषा वागपि मिथ्या, उद्दिष्टवर्जिनः श्रमणाः, निर्दण्ड उद्दिष्टवर्जको धर्मः अस्मिथ समाध्यादीत्याई ।
"
४००
७११-१२० स्नातकब्राह्मणसहस्रद्वयभोजने पुण्यस्कन्धः, इति वेदवाकू, अब्रह्मचारिणां भोजने लौल्यं नरकश्च । ७१३-२३७ दयाजुगुप्तकवधप्रशंस कभोजनेऽसुरत्वं धर्मस्थित
~75~
४०१
इहामुत्र शानी, न शुष्कानिनः संसारे विशेषः ( जातिनिराकरणं), अव्यक्तरूपः पुरुषः, सर्वभूतव्यापी संसरणादिरहितः, ब्राह्मणादिजातिशून्य इत्येकदण्डिनः, अज्ञानिन आत्मपरोभयनाशकत्वं, पूर्णज्ञानसमा धिमन्त आत्मपरतारका, अस शस्य यथार्थाकथनमित्यार्द्रः, वर्षेण गजेन वृत्तिरिति हस्तितापसाः, जीववधका गृहिणः, सप्राणवधोऽनार्यः सर्वज्ञाज्ञया धर्मस्थितो धर्ममुदाहरेत् । ४०४ ॥ इति ६ आद्रीयाध्यायनम् ॥
• २०१-४ नि० अलंनिक्षेपाः (४) पर्यासावलङ्कारे प्रतिषेधे चालशब्दः,
बृहत्क्रमः॥
॥ ६५ ॥
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-२. “सूत्रकृत् ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्रकृतांगे
बृहत्क्रममा
॥६६॥
यहां देखीए
तमेतत् ।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
(अमानोनशब्दार्थभिन्नता) गज- । योरपि प्रसङ्गः ), श्रावकाणां । ३ब यथोभयसंमतं तथाऽत्र, गृहनगरे नालन्दावाहिरिका, गृहपतिचीरग्रहणविमोक्षणशा
न भूतशब्देनार्थः । ४१९ मनोरथे गौतमेनोदकाय भाषि- तेन प्रसवधविरतिः(पुत्रषट्क- ८०-८१ स्थूलवतोचारे स्वार्थक्रियादृष्टान्तः) स्थावरगतानां न त्र
निषेधे कालकरणे सम्यकालः१ ६९-७१ राजगृहनालन्दयोवर्णनं, लेप- सता भिन्नभिन्नकर्मोदयत्वात् । ४१५ अनगारत्वस्य चातुर्दश्यादिपौ
गाथापतिभ्रमणोपासकवर्णनं,ह- ७८ श्रादकस्यैकस्मादपि प्राणातिपाता- पधस्य चाशक्तौ भक्तप्रत्यास्तियामवनखण्डवर्णनम्। ४०९ | दविरमणं, सस्थावराणां पर
ख्याने त्रिविधत्रिविधेऽनाथ| २०५ नि० श्रावकधर्मविषये उदक
स्परगमागमात् , इत्युदकः त्रस
बकाले सम्यकालः, अविरताप्रभगौतमोत्तरौ।
"
स्थावरानुच्छेदानास्माकमेतत् , नां दुर्गतिः, अनारम्भाणां सु७२ जिशालाप्रदर्शनं, उपरानुम- भवन्मते परस्परं सर्वेषां यमा
गतिः, अल्पेच्छादिगुणवतां देतिश्च ।
४१० गमाद् दण्डनिक्षेपासम्भवः । ४१७ शविरतानां सुगतिः, आर. ७३-७७ सस्थाबरयोगमागमात्कु- ७९ अगारिभूतस्थानगारस्य वनान- पियकादीनां स्वधातनिवारिणा
मारपुत्रकारितं दुष्प्रत्याख्यान, गारनिवृत्तिभङ्गः१ अगारिभूत- मासुरत्त्वं च्युतस्य चैलमूकत्वं, असभूतप्रत्याख्याल, सानामेव स्थानगारख्य न सर्वदण्डत्यागः दीर्घसमाल्पायुष्कश्रमणोपास - असता, त्रसभूतत्वं तु स्थाव२ अन्यतीर्थीभूतस्यानगारस्य
कानां सुप्रत्याख्यानात्सदतिः, राणामपि ( उपमाताार्थ- पूर्वमन्यतीर्थिकस्यालमावरणं
केवलसामायिकवतां सद्गतिः,
~76~
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
सूत्रकृतांगे
॥ ६७ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
४२४
गृहीतपरिमाणमुत्कलदेशयोलसस्थावर गमागमाच नैवादवयं प्रत्याख्यानम् । ८२ बुद्ध्वा पापकरणाकरणयोः पर लोकस्य विघ्नः शुद्धि, एववोदकस्य गमने आट्रादिगौतमश्रद्धादि प रणा, श्यामप्रतिपत्तिप्रेरणा, उपवीरमागम्य तत्प्रतिपतिः । ४२६ (नैगमादिनयव्याख्या, शानक्रियानयोर्विचार | इति द्वितीयः श्रुतस्कन्धः । ॥ इति सूत्रकृताङ्गविषयानुक्रमः ॥ अथ स्थानांग -
४२७
मङ्गलं, अनुन्मुद्रितस्यास्यानुयोगप्रस्तावना, फलं योगः (अष्टवपणि) मङ्गलं (त्रीणि) समुदा
[ अंगसूत्र- २. "सूत्रकृत् । संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
यार्थः (स्थानाङ्गनिक्षेपाः १५००४) उपक्रमनिक्षेपानुगमनयाः सप्रभेदाः, तद्वतारश्च प्रस्तुते, एककनिक्षेपाः (७)।
૨
१ उपोद्घातः ( संहितादिः क्रमः श्रुतायुषोर्निक्षेपाः ४-१० ) । १० एक आत्मा (द्रव्यार्थ प्रदेशार्थता, अवयविसिद्धि:, आत्मसिद्धिः, नित्यानित्यत्वं, सामान्यविशेषौ ) १३ ३-६ दण्डः, क्रिया, लोकः, (निक्षेपाः ८) अलोकः । ७- १६ धर्मास्तिकायः अधर्मास्तिकायो घन्धो मोक्षः पुण्यं पाप आश्रवः संवरः वेदना निर्जरा (बन्धस्यानादिता, काञ्चनोपलद्वियोग:, पर्यापर्यायिणोर
~77 ~
६
१५
स्थानन्यत्वं कर्म पुण्यपापसिद्धिः ) १९ १७-४३ प्रत्येकं शरीरं, अपर्यादाय वैक्रियं मनोवाक्कायव्यायाम उत्पादो विगतिः विवर्षा गतिरागतिः, च्यवनपपातः तर्कः, सञ्ज्ञा, मतिः, विशो वेदना, छेदनं, भेदनं, अन्त्यमरणं यथाभूतः, अभ्स्यदुःखं, धर्मप्रतिमा, अधर्मप्रतिमा, जीवानां मनः, उत्थानादि, शानादि । ४४-४६ समय:, प्रदेशपरमाणू, सि. द्धिसिद्धनिर्वाणनिर्वृताः । २५ ४७ शब्दादि । ४८-४९ प्राणातिपातादि, तद्विरमणबिबेकी । ५० अवसर्पिणी सुषमसुषमादि ।
२४
२६
२७
37
बृहत्क्रमः।
॥ ६७ ॥
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
स्थान
वृहतक्रममा
यहां देखीए
स्थानांगे
विषयानुक्रम
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
यार्थः (स्थानाननिक्षेपाः१५-४)
बानभ्यत्वं, कर्मपुण्यपापसिद्धिः) १९ उपक्रमनिक्षेपानुगमनयाः सन- १७-४३ प्रत्येकं शरीरं, अपर्यादाय भेदाः, तदवतारश्च प्रस्तुते, एक
वैनियं, मनोवाकूकायव्यायाम कनिक्षेपाः (७)।
६ उत्पादो विगतिः विवळ गति१ उपोधातः (संहितादिः क्रमः रागतिः, च्यवनपपातः, तर्कः,
श्रुतायुषोनिक्षेपाः ४-१०)। १० सझा, मतिः, विज्ञो बदना, २ एक आत्मा (द्रव्यार्थप्रदेशार्थता, छेदनं, भेदनं, अन्त्यमरणं, यथा
अवयविसिद्धिः, आत्मसिद्धिः, भूतः, अन्त्यदुःळ, धर्मप्रतिमा,
नित्यानित्यत्वं, सामान्यविशषौ) १३ अधर्मप्रतिमा, जीवानां मनः, ३-६ दण्डः, क्रिया, लोकः, (निक्षे- उत्थानादि, ज्ञानादि । २४
पाः ८) अलोकः । १५ ४४-४६ समयः, प्रदेशपरमाणू, सि७-१६ धर्मास्तिकायः अधर्मास्ति- द्धिसिद्धनिर्वाणनिर्वृताः ।
कायो बन्धो मोक्षः पुण्यं पाप ४७ शब्दादि । आश्रवः संवरः वेदना निर्जरा ४८-४९ प्राणातिपातादि, तद्विरमण(बन्धस्यानादिता, काञ्चनोपल
विवेकौ । वद्वियोगः, पर्यायपर्यायिणोर- | ५० अवसर्पिणी सुषमसुषमादि ।
अथ स्थानांग
मङ्गलं, अनुन्मुद्रितस्यास्यानुयोगप्रस्तावना, फलं योगः (अष्टवपाणि) मङ्गलं (त्रीणि) समुदा
~78~
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
बहतक्रमः।
सूत्रांक
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री- ५१ नारकादिदण्डका, भव्याभव्यस- तारः,आकाशनोआकाशादिभिः | गिकेवलिक्षीणकषायसंयमान्ताः। ५३ । स्थानांग-16 म्यग्दृश्यादि, कृष्णपक्ष्यादि, क
बन्धमोक्षादिभिः, जीवाजीवक्रि- ७३ पृथ्वीकायादयः सूक्ष्मपर्याप्तकपष्णलेश्यादि, तीर्थसिद्धादि, पर
यादिभिः (क्रियाः पञ्चविंशतिः) रिणतगतिसमापन्नानन्तरावगामाण्यवगाहस्थितिभावप्रदेशव
(३६ आलापकाः)। ४३ . देतरभेदाः । २८ आ०) पर्या॥ ६८॥ र्गणा । (नारकदेवयोः सिद्धिः, ६१-६३ मनोवाग्भ्यां दीर्घहस्बे च
तयः (६) (द्रव्यादिनाऽचित्तीभपृथ्थ्यादीनां सचेतनत्वस्य च, | गहें, प्रत्याख्याने च, ज्ञानक्रि
वनं, आचीणानाचीर्णभेदाः) ५५ सम्यक्त्वोत्पत्तिलेश्यातीर्थस्व
याभ्यां मोक्षः।
४६ |७४ अवसर्पिण्यादिकालः, लोकायायंवुद्ध-प्रत्येकबुद्धानेकसिद्धस्व- | ६४-६६ आरम्भपरिग्रहात्यागत्यागयो।
काशम्।
५५ रूपम्)।
३५ धर्माश्रवणश्रवणादि (१२ आ)
७५ दण्डकेषु विग्रहगतिकेषु शरीर| ५२-५६ जम्बूद्वीपपरिधिः, वीरसि
श्रुत्वा मत्या च ।
प्ररूपणा शरीरोत्पत्तिनिर्वृत्ति
४७ द्धिः, अनुत्तरशरीरोञ्चत्वं, आ
कारणं त्रसस्थावरयोर्भव्याभ६७-७० समाः, उन्मादः, दण्डः, स. चित्रास्वातितारकाः, एकप्र
व्यभेदी। म्यग्दर्शनादि (७ आ०)। ४९ | देशाबगाहादि । (ज्ञानक्रियानये
७६ पूर्वोत्तरयोः प्रव्रज्यादिसंलेख७१ प्रत्यक्षपरोक्षादिज्ञानं कालिकोसामान्यविशेषवादश्च ।। ३८
नान्तम् । कालिकान्तम् । (२३ आ०) इत्येकस्थानाध्ययनम् । ७२ श्रुतधर्मचारित्रधर्मादिभेदेन चा
॥ इति द्वितीये प्रथमः ।। | ५७-०जीवाजीवादिभेदे निप्रत्यव-
खिनरूपणा. अचरमसम्यायो- Tarunाजीनाma mm
५६
॥ ६८
~79~
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहत्क्रमः॥
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री
वेदनं मनुष्याणामिहान्यत्र । ५८ विध्वंसभेदभेदुरधर्मपरमाणुसू- । क्षस्काराः, दीर्घवैताख्याः, तिमिस्थानांग- ७८ नारकादीनां गत्यागती। ५९ क्ष्मबजस्पृष्टपर्यात्तात्तेष्टादीतरैः खगुहाद्याः, क्षुल्लहिमवदाद्या आIN ७९ भव्यानन्तरोत्पन्नगतिसमापन्न- । पुद्गलाः, आत्तादीतरैःशाब्दाद्याः।६४ द्यन्तकूटाः (आयामाधः)। ७२
प्रथमसमयोत्पन्नाहारकोच्छ्वास- ८४ शानदर्शनचारित्रतपोऽम्यैरा - ८८ पद्मादाया इदार, श्याचा देव्यः । ७६
कसेन्द्रियपर्याप्तकसशिभाषक - चाराः, समाध्युपधानविवेकव्यु॥ ६९ ॥
1८९ सुषमादुरुषमामान, सुषमायां सम्यग्दृष्टिपरित्तसंख्यातस्थिति- त्सर्गभद्रासुभद्रामहाभद्रासर्व - वंशस्योच्चत्वमायुरईदादिवंशः, कसुलभयोधिककृष्णपाक्षिकच- तोभद्रामोकयववज्रमध्यचन्द्रप्र.
देवकुर्वादिषु कालनियमः (१) रमेतरैनारकादिप्ररूपणा । ६१ - तिमा अगार्यनगारसामायिकानि।६५
(आ०८)
७७ समबहतवैक्रियेतरैलॊकज्ञानं, दे- ८५ उपपातादि आयुःसंवर्तान्तं दे
९०-३-३७ चन्द्रसूर्य (२८) नक्षत्र शसर्वाभ्यां शब्दादिज्ञानं, अब- बादीनाम् । (गर्भ क्रियं गत्य
।
(८८) ग्रहाः तरंच)
७२ भासनादिनिर्जरान्तं, मरुतादीनां ।
७६
| ९१-९३ वेदिकोच्चत्वं, धातकीपूर्वाएकद्विशरीरत्वम्।
"१२८६ भरतैरवतादिक्षेत्रकूटशाल्मल्या६२ . दिवृक्षगरुडादिदेवनिरूपणम् ।
परार्द्धयोः पदार्थद्वयं, कालोदवे"शत हिताय बिताया उदशक ॥ (आयामविष्कम्भसंस्थानपरि
दिकोच्चत्वं, पुष्करार्द्धद्वये क्षेत्रा८१ भाषाऽक्षरातोद्यततधनभूषणता- णाहोचत्योद्वेधाः) ६९
| दिद्धिकम् । लेतरः शब्दाः, संघातभेदाभ्यां च ६३८७ क्षुद्रहिमवच्छिवर्याद्याः, स्वा- ९४ असुरारीन्द्रद्वयं, विमानवर्णः, 1८२-८३ संघातभेदपरिशाटपरिपात- त्याद्या देवाः, सौमनस्काथा य
नैवेयकतनुमानञ्च । ८५
॥ ६९॥
~80 ~
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बहतक्रमः।।
यहां देखीए
१०४
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
| ९५ समयावलिकादित उत्सर्पिण्य- । (९आ.) (संलेखनादिविधिः) ९६ शिकाया द्विगुणरूक्षान्ताः । (नि-
न्तानां (२५) ग्रामनगरादितो स्थानांग
१०३-१०४ जीवाजीवयोरनन्तशाश्व-
कादिलक्षणम्)
१०१ राजधान्यन्तानां (४७) छाया- तत्वे, बोधिबुद्धमोहमूढाः । ९६ ॥ द्वितीये चतुर्थः ।। इति द्वितीय स्थान ॥ दीनां संपवातान्तानां जीव- १०५ देशसर्वज्ञानदर्शनावरणीये सातात्वम् । ८८
| ११९ नामस्थाएनाद्रव्यज्ञानदेवेन्द्रादि
साते, दर्शनचारित्रमोहौ, अद्धा॥ ७ ॥ | ९६ प्रेमवेषौ बन्धौ,रागद्वेषाभ्यां पापं,
__नवकम् ।
भवायुषी,शुभाशुभनामनी,उच्चआभ्युपगमिक्यौपक्रमिकीभ्या
| १२०-१२१ पर्यादायाऽपर्यादायोभयैर
नीचे, प्रत्युत्पन्नागामिनाशैः ॥ ९८ | मुदीर्णानि, (योगप्रत्ययवन्धख
भ्यन्तरवाह्यदानानादानेतरैर्वे - १०६-१०८ प्रेमद्वेषोद्भवा मूर्छा, धार्मिरूपम् )।
क्रियं, कत्यकत्यवक्तव्यसंचिता ९७ देशसर्वाभ्यां शरीरस्पादि । ९०
नारकायाः। ककेवल्याराधनाः, तीर्थकराणां
१०५
१२२-१२३ देवपरिचारणाया मैथुन९८ क्षयोपशमाभ्यां धर्मश्रवणादि । ९०
१०९-११२ पूर्ववस्तुनक्षत्रतारकमनुष्य- तत्कारकस्य च त्रैविध्यम् । १०६ ९९.४-६७ पल्योपमसागरोपमस्वरूपम्।९१ क्षेत्रसमुद्रनरकगचक्रवर्तिनौ । ९९ | १२४ योगप्रयोगकरण त्रैविध्यं संरम्भ-IN १००-१०१-७ आत्मपरपतिष्ठितः को- ११३-१९८अवनवास्यादिस्थितिः, क- _समारम्भारम्भाश्च । १०८
धादिः। सिद्धेन्द्रियकायादिभि- । पखियः, तेजोलेश्याकल्पो, प- | १२५ अल्पदीर्घाशुभशुभदीर्घायुष्कका
द्वैविध्यम् । (मिथ्यादृष्टेरज्ञानम्) ९३ रिचारणा, उसस्थावरकायनि- __ रणानि(संविझलुब्धकदृष्टान्तौ)। १११ NH १०२ अनुज्ञाताननुज्ञातानि मरणानि । चर्तिताः पुद्गलचयनाद्या द्विप्रदे- १२६ गुप्त्यगुप्तिदण्डाः ।
११२
॥ ७
॥
~81~
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
वा विध्या
All
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री. १२७ मनोवाकायर्दीर्घइस्वकायैश्च | देवाभ्युत्थानादि (४) चैत्यवः |१४४-४६ तेजोवायुस्थितिः, शाल्या
हत्क्रमः। ग्रहस्प्रत्याख्याने । ११३ ।।
क्षचलनलोकान्तिकागमनकार...
भचलनलोकान्तिकागमनकार | दीनां योनिः, शर्करावालुकयोः स्थानांग१२८ पत्रफलपुष्पोपगवृक्षवत्पुरुषत्रै
णानि ।
मिथतिः। (भंतेशब्दार्थ)। १२४ विध्यं, नामज्ञानवेदोत्तमधर्मो | | १३५ मातापितृभर्तृधर्माचार्यदुष्पति- १४७-४९ धूमप्रभास्थितिः, उष्णवे. ग्रदासादिभेदाः पुरुषाः (९ . कारत्वम् ।
१२० दना, अप्रतिष्ठानादीनि सीमन्त. ॥ ७१ ॥NI आ०)। ११४ | १३६-२३८ अनिदानदृष्टिसंपन्नयोग
कादीनि च समानि, उदकरसा १२९-१३१ मत्स्यपक्ष्युरोभुजपरिस- वाहिताभिर्मोक्षा, अवसर्पिण्या
बहुमत्स्याश्चोदधयः। १२५ पाणां वैविध्यम् । (१२ आ०) दिवैविध्य, पुगलचलनोपधि- १५०-५२ निःशीलराजादीनां नरकगतिर्यगादिस्त्रीपुरुषनपुंसकत्रैवि- परिग्रहवैविध्यम् । १२१ मनं, त्यागिनां देवत्वं, विमान
ध्यं, तिर्यक्रैविध्यम् । ११५ | २३९-४० प्रणिधानानि, योनयः। १२२ वर्णाः, आनतादितनूषत्वं,कालि१३२ लेश्यात्रयवन्तो जीवा।(२४ आ०)।, १४१-४२ संख्यातासंख्यातानन्तजी
कपकप्तयः ।
१२६ १३३ ताराचलनं विद्युत्कारः, स्तनि- विका बनस्पतयः, मागधादीनि
॥ तृतीये प्रथमः ॥ तशब्दश्च ।
तीर्थानि (१५)। १२३ | १५३ नामज्ञानोवादिलोकाः । (लोक१३४ लोकान्धकारोद्योती देवान्ध- १४३ सुषमामानं सुषमानरोचत्यायुषी, | स्वरूपम्)।
१२७ कारोद्योतसंनिपातादि, देवेन्द्रा- अईचक्रिदशारवंशाः, यथाss- १५४ असुरेन्द्रादिपर्षदः । १२८ दीनां मनुष्यलोकागमन (१५)- 1 युषो मध्यमायुषश्च (३२ आ०)।१२३ । १५६-१५७ शानादिबोधिबुद्धाः, इह- IN|| ७१ ॥
~82~
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
स्थानांग
यहां देखीए
॥ ७२ ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
लोकप्रतियद्धादि (१२) प्र- । याद्याः, स्वयंप्रश्नेन दुःखभया- १७६ अल्पमहावृष्टिहतवः। १४२ व्रज्याः । १२९ । दिदर्शनम् ।
१३५ १७७ देवागमानागमहेतवः। ( प्रवृ१५८-१५९ नोसञ्ज्ञासजा नोसञो- १६७ अकृतदुःखादिखण्डनम् । १३७
त्यादिलक्षणम् ।। १४४ पयुक्ता निर्ग्रन्थाः, शैक्षस्थविर
| १७८-१८० देवानां स्पृहणीयपरिता। तृतीये द्वितीयः॥
प्ये, च्यवनलक्षणोद्वेगहेतवः, १६०-६१-८-१२७सुमनस्कादिपुरुष- १६८ अपराधानालोचनालोचनाफ
विमानानां संस्थानानि आधारो भेदाः (१२७), एतल्लोकगहि | लम् ।
भेदाश्च, ( भोगाय वैक्रियवितप्रशस्तत्वे । १३२ | १६९-७२ सूत्रार्थोभयधराः पुरुषाः,
मानम्)।
१४६ १६२ ख्यादिसम्यग्दृष्ट्यादिपर्याप्तका -
धार्ये वखपाने, वखधारणकार- १८१ नारकादिरैविध्य, दुर्गतिसुगः । दिसूक्ष्मसज्ञिभव्यादीनां विणानि, आत्मरक्षाहेतवः, बिकट
तिदुर्गतिसुगताः । १४७ ध्यम् ।
दत्तयश्च ।
१३९ १८२ उत्स्वेदिमादिपानीय (९) उप* १६३ आकाशप्रतिष्ठितादि, ऊर्ध्वादि. १७३-७४ बिसंभोगकारणानि, आ- | हृतोद्गृहीतावमोदरिकाऽहित
दिक्षु गत्यादयः (१४) (दिक्- चार्यत्वाद्यनुज्ञासमनुज्ञोपसंपद्धा- हितचेष्टाशल्यतेजोलेश्याहेतुत्रिस्वरूपम्।
१३४ नानि (आचार्यादिलक्षणानि)।१४१ मासिकीदत्त्येकराज्यननुपालनNI १६४ बसस्थावरत्रैविध्यम् । , १७५ वचनावचनमनोऽमनांसि (तद
पालनफलानि, (प्रतिमास्व| १६५-१६६ अच्छेद्याद्याः (८) सम- चनादि)।
१४१ । रूपम् )।
॥७२॥
~83~
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
स्थानांग
सूत्रे
॥ ७३ ॥
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
१८३-८५ कर्मभूमयः, दर्शनरुचिप्र
योगाः, व्यवसायाः (२४) १५२ १८६ प्रयोगमिश्रविश्रसापुद्गलाः, नरकप्रतिष्ठाने, नयविचारध (नयस्वरूपम् ) । १५३
१५४
१८७ मिथ्यात्वाक्रियाप्रयोगसमुदानाज्ञानक्रियाऽविनयाशानां त्रैविध्यम् । १८८ धर्मोपक्रमवैयावृत्त्यानुग्रहानुशास्त्युपालम्भानां त्रैविध्यम् । १८९ कथाविनिश्चययोर्भेदाः (अर्थकामधर्मकथालक्षणम्) । १५६ १९०-१३४ पर्युपासनाश्रवणादिफल
१५५
परम्परा ।
१५७
॥ तृतीये तृतीयः ॥
१९१ प्रतिमाप्रतिपन्नस्योपाश्रयसं
७
[ अंगसूत्र-३. "स्थान" । संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
स्तारकाः । १९२-१९३ कालसमयादि त्रैविध्यं, वचनत्रैविध्यम् । (पुद्गलपरावर्त्तस्वरूपम् ) । १९४-९६ शानादिप्रज्ञापनासम्यक्त्वे, उपघातविशुद्धी च, आराधनासंक्लेशासंक्लेशातिक्रमातीचारानाचाराः, अतिक्रमादि प्रतिक्रमणं च प्रायश्चित्तत्रैविध्यम्, ( आधाकर्मादिस्वरूपम् ) । १९७ अकर्मभूमयः जम्बूमन्दरदक्षि णोत्तरवर्षवर्ष धरइदतदेवीनदीत्रिकं, जम्बूमन्दर पूर्वपश्चिमादिपु नदीत्रिकं च । १९८ देश सर्वपृथ्वीचलनम् । १९९- २०१ किल्विपस्थिति, शक्रप
१६०
१५८
~84~
१५९
१६१ १६२
र्षत्स्थितिः, प्रायश्चित्तगुरुपाराञ्चिकानवस्थाप्यत्रैविध्यम् । १६४ २०२ प्रयाजनादि (६) वकल्प्याः । (पण्डकवातिकक्लीवस्वरूपम् ) । १६५ २०३ अवाचनीयवाचनीय दुस्संज्ञप्यसुसंज्ञप्याः ।
१६६
२०४५ माण्डलिक पर्वताः, महाति
महालयाश्च । (मानुषोत्तरकुण्डलरुचकस्वरूपम् ) । १६७ २०६ सामायिकादिनिर्विकल्पादिस्थितिः । २०७-८ शरीरत्रयं नारकादीनां गुरुगतिसमूहानुकम्पाभावश्रुतप्र त्यनीकाः । २०९ पितृमात्रङ्गानि ।
१६९
२१० भ्रमणश्रमणोपासकयोर्महानि
१७०
""
ॐ बृहत्क्रमः॥॥
॥ ७३ ॥
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहतूकमः।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
र्जराकारणानि ।
१७१।
हितहितयोः स्थानानि । १७७ | २३६ उन्नतवृक्षादिसाम्येन पुरुषचस्थानांग-IN२११-१३ पुगलप्रतिधातहेतवः, एक- २२४-२२५ घनोदध्यादिवलयानि, त्रि- तुर्भङ्ग्यः (२६)। १३ द्वित्रिचक्षुष्काः, ऊर्ध्वादिष्वभि
समयविग्रहवन्तः, ( पञ्चसम- २३७-३९ प्रतिमाप्रतिपन्नभाषाः, ससमागमक्रमः ।
यविग्रहः)।
१७८ | स्यादिभाषाः, वस्त्रौपम्येन पुरुष| २१४ देवराजगणिनामृद्धयः (२१)। १७३ | २२६-२३१ युगपत्क्षेयकौशाः, अ
चतुर्भग्यः ।
१८४ ॥ ७४ ॥ २१५-१७ गौरवाणि धार्मिकादिकर
भिजिदादिनक्षत्र (७) तारकाः,
२४०-२४२ अतिजातादिसूत्रचतुष्कं, णानि, स्वाध्यायध्यानतपोधर्माः।१७४
धर्मशान्त्यन्तरं,वीरयुगान्तकृद्भूमिमल्लिपार्श्वप्रवज्यापरिवारी,
___ सत्यादिपुरुषचतुर्भङ्गयः, कौर२१८-२० व्यावृत्त्यध्युपपत्तिपर्याप्ति
वीरचतुर्दशपूर्विणः, चक्रवर्ति
कोपमपुरुषचतुर्भङ्गयः। १८५ चैविध्य, लोकवेदसमयानाम
जिनाः।
| २४३ स्वखादादिघुणोपमभिक्षुचन्तनिधा, जिनकेवल्यईतां त्रै२३२-२३४ प्रैवेयकप्रस्तटाः, ख्या
तुर्भङ्गी। विध्यम् ।
१७४ | दि चितादिपुद्गलाः, त्रिप्रदेशि
२४४-२४६ अग्रवीजादिवनस्पतिभे२२१-२२२ लेश्यानां दुरभिगन्धसुर
कायास्त्रिगुणरूझान्ताः पुद्गलाः।१७९
दाः, नारकानागमनकारणानि, भ्यादि (१४) स्वरूपं, मरण
निग्रन्थीसङ्घाटयः । १८७
॥ तृतीये तृतीयः ॥ बाल-पण्डित-यालपण्डितमरण
२४७ ध्यानस्य भेदलक्षणभावनाभेदाः (१२)। १७६ ॥ इति त्रिस्थानकम् ॥
लम्यनानि । A२२३ अव्यवसायिनो व्यवसायिनश्चा- २३५ अन्तक्रियाचतुष्कम् । १८२ | २४८-२४९ देवानां स्थितिसंवासाः,
॥ ७४॥
~85
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्रीस्थानांग
सूत्रे
॥ ७५ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. "स्थान" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
( देवदेव्याद्याः), कषायभेदाः, क्रोधादीनां प्रतिष्ठानमुत्पत्तिहेत्वनन्तानुबन्ध्यायाभोगनियेर्त्तितादिभेदाध । ( अनन्तानुबन्धिनः उपशमादिप्रतिबस्वकत्वमेव ) । २५० - २५१ कर्मप्रकृतिचयनादिकारणानि समाधिभद्राक्षुद्रमो कादिप्रतिमा ( १२ ) २५२-२५४ अजीवारूप्यस्तिकायाः, फलोपमपुरुषचतुर्भङ्गी, सत्यसृपाप्रणिधानादिभेदाः । २५५ आपातभद्रकादि, आत्मपापदर्यादि, अभ्युत्थानादि, सूत्रधरायन्ताश्चतुर्भङ्ग्यः ( १४ ) ।,, २५६-२५८ असुरेन्द्रादिलोकपालाः,
१९५
31
१९७
१९९
देवभेदाः प्रमाणभेदाः । १९८ २५९ - २६१ दिककुमार्यः शक्रेशानमध्यपर्षदेवदेवीस्थितिः, संसारभेदाः । २६२-२६३ दृष्टिवादे परिकर्मादिभे दाः, ( पूर्वपदमानं ) प्रायश्विप्रकाराः ( प्रति सेवासंयोजनारोपणापरिकुञ्चनाः) २०० २६४-६६ प्रमाणादिकालाः, वर्णादिपरिणामाः, मध्यमजिनचतुयमाः ।
२०२
२६७-६८ दुर्गतिसुगतिदुर्गतसुगताः, प्रथमसमयजिनक्षयकर्माशाः, केबलिवेद्यकर्माशाः प्रथमसमयसिद्धक्षेयकमशाश्च । २६९-२७२ दृष्टिभाषाश्रवणस्मृतयः,
~86~
२०३
हास्यकारणं, काष्ठपक्ष्मलोहप्रस्वरान्तरददन्तराणि दिवसयाबोचातकाः, प्रकटप्रतिसेविचतुर्भङ्गी । २०४ २७३ - २७७ असुरादीनामग्रमहिषीच
तुष्कं गोरसस्नेहमहाविकृतयः, (कृतिरूपम्) कूटागारशालावत् पुरुषस्त्रीचतुर्भङ्ग्यौ,
द्रव्याद्यवगाहनाः अङ्गबाह्याचन्द्रादिप्रशतयः ।
२०६
॥ चतुर्थे प्रथमः ॥ २७८-२७९ क्रोधादिमन आदि सलीना मदलीनते, दीनदीनपरिणतरुमनःसङ्कल्पादिचतुर्भङ्ग्यः, ( १७ ) ।
२०७
बृहत्क्रमः॥
|| 194 11
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री-
स्थानांग
यहां देखीए
सूत्रे
॥७६॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२८०-२८११४-१८ आचार्यपरिण- शिखावात्यवनखण्डीपम्येन पुरुष- | २९७-२९९ द्रव्यायेककतिनामादि- वृहतक्रमः। तादिचतुर्भङ्ग्यः (१८) वृषभहखीचतुर्भङ्ग्यः (१७) २१६ सर्वाः ।
२२३ स्त्युपमया चतुभेङ्मयः,(भद्रमन्द- २९०-९१ निन्थ्यालापकारणानि, त- |३००-३०२ १९ मानुषोत्तरकूटाः, मितसंकीर्णहस्तिलक्षणानि ) । २०९ / मस्कायनामानि (१२) तदा
सुषमसुषमामानं, अदेवकुरूत्तर२८२ सप्रभेदानां हस्त्यादिविकथानां बार्यकल्पाश्च ।
२१७ कुर्वकर्मभूमिवृत्तवैताव्यतदधिआक्षेपिण्यादिधर्मकथानां च २९२ प्रकटप्रच्छन्नसेवाप्रत्युत्पन्ननि
पमहाविदेहनिषधाधुश्चत्त्ववक्षस्वरूपम् ( ३२)। २१२ स्सरणनन्दीश्येनोपमपुरुषच
स्कार (१६) जघन्यपदचक्रया२८३-२८४ कृशकशशरीरज्ञानायुत्प
तुर्भङ्ग्यः (५)। २१८ दिमेरुवनाभिवेकशिलाचूलिकात्तिचतुर्भङ्ग्यः, अतिशायि- २९३ वंशीमूलाधुपमाभिर्मायामान
विष्कम्भाः, धातक्यादावपि च । २२५ ज्ञानोत्पादानुत्पादकारणानि । २१३ | लोभाः।
२१९ | ३०३-६ जम्बूदीपद्वारतदधिपाः, अ२८५-२८८ महाप्रतिपदा संध्याः स्वा- २९४-२९५ संसारायुर्भवाः,अशनादिक न्तरद्वीपाः (१८), पातालकलध्यायकालाच, आकाशप्रतिष्ठि
उपस्करादिसंपन्नश्चाहारः । २२० शतदधिपावासपर्वततद्देवानुवेतादिलोकस्थितिः, तथानोतथा- २९६ सप्रभेदबन्धोपक्रमवन्धनोदीर- लन्धरावासपर्वततहेबलवणचऽऽत्मपरात्ततमोदमचतुर्भङ्ग्यः , णोपशमविपरिणामोपक्रमाल्पब- न्द्रसूर्यनक्षत्रग्रहद्वारतदधिपाः, उपसम्पदादि गर्हाः । २१५ हुकसंक्रमनिधत्तनिकाचनानां
घातकीविष्कम्भाऽजम्बूद्वीपभर२८६ आत्माऽलमृजुमार्गशङ्खधूमाग्नि- । चातुर्विध्यम् ।
२२२ । तादीनि, (अन्तरद्वीपपातालक- Id७६॥
~87~
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहतुक्रममा
यहां देखीए
)
लशवेलन्धरवक्तव्यता)। श्री
२२९ । प्रीत्यप्रीतिभ्यामात्मपरयोः प्री।
श्रावकाः (८) वीरश्रावक३०७-२०० नन्दीश्वराजनकसिद्धाय- तिकरणप्रवेशचतुर्भङ्ग्यः । २३५ । स्थानांग
स्थितिः, देवानागमागमकारणातनतद्वारतदधिपमुखमुण्डपमे- | ३१३-३१४ पत्रपुष्पफलच्छायोपगत्
नि। क्षागृहाक्षाटकमणिपीठिकासिं
क्षवत्पुरुषाः,भारवाहकाश्वासवत्
| ३२४ लोकान्धकारोद्योतादि, लोकाहासनविजयदूष्याङ्कुशमुक्ता
श्रमणोपासकावासाः । २३७ न्तिकागमनकारणानि । २४५ ॥७७॥
दामचैत्यस्तूपजिनप्रतिमापुष्क- | ३१५-१९ उदितोदितोदितास्तमित- | ३२५-३२६ दुःखसुखशय्याः अवाचरिणीवनपण्डवापीचिसोपानतोभङ्गाः (४) भरतादियु, कृतयुग्मा
नीयवाचनीयाः। २४७ रणदधिमुखरतिकराग्रमहिषीरा- दिक्षान्त्यादिशूराः, उच्चोयच्छन्दा- ३२७ आत्संभरिपरभर्यादि चतुजधान्यः।
दिचतुर्भङ्गी, चतुर्लेश्याकाः) । २३८ भङ्ग्यः । ३०८-१० नामसत्यादि, आजीविक- ३२० यानयुग्यसारथिहयगजयुग्यच- | ३२८-३२९ अप्रतिष्ठादीनि सीमन्ततपः, माआदिसंयमत्यागा
र्यापुष्पफलोपमैःपुरुषचतुर्भग्यः , कादीनि समानि सपक्षाणि च, किञ्चन्यानि, (पुस्तकवधर्मप- प्रजाजनोद्देशनाचाचार्यशिष्याः, द्विशरीराः । ञ्चकानि)।
आराधनाऽनाराधनयो रत्नाधि
३३०-३३४ हीमत्त्वादिपुरुषाः, श॥ चतुर्थे द्वितीयः ॥ कादिनिर्ग्रन्थनिम्रन्थीश्रावक
य्यावखपात्रस्थानप्रतिमा, जीव N३११-१२ पर्वतादिराजीकर्दमाचुदक
श्राविकाच ।
२४२ स्पृष्टकार्मणोन्मिश्रशरीराणि, लोसमौ क्रोधभायौ, सतरूपाभ्यां | ३२१-२३ मातापित्रादिआदर्शादिसमाः । कास्तिकायवादयः समप्रदेशाः,
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२५०
॥ ७७॥
~88~
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बिहवक्रमः।
यहां देखीए
॥७८ ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्रीग्रहाः । २५३ तुर्भश्यः ।
२६७ । ३५६-५७ सप्रमेदाहारादिसज्ज्ञातद्धस्थानांगN३३५-३३७ दुर्दर्शशरीराः, स्पृष्टार्थ- ३४५ क्रियावाद्यादिसमवसरणानि । २६९ तवः, डारकरुणबीभत्सरीद्राः वेदकेन्द्रियाणि, बहिर्जीवपुद्गला
कामाः ।
३४६ मेघाधुपमया पुरुषमातापितसूत्रे
२७७ गमनकारणानि । २५३ राजचतुर्भङ्ग्यः । २७०३५८ उदकोदध्युपमपुरुषचतुझ्यः३३८ ज्ञाताहरणतद्देशतद्दोषोपन्यासो३४७-५२२१-२४० मेघाः, करण्ड
(८)।
२७८ पनयहेतूनां चातुर्विध्यम् । (स
कोपमयाऽऽचार्याः, वृक्षमत्स्य- ३५९-६० २५-२८ तरकचतुर्भगी, दृष्टान्तम्)।
२६३
गोलकपत्रकटोपमा आचार्यभि३३९ परिकर्मादिसंख्या, अधस्तिर्यग
कुम्लोपमपुरुषचतुर्भङ्ग्यः । २८० क्षुपुरुषाः, चतुष्पदपक्षिक्षुद्र- | ३६१ उपस दिव्यमानुषतरश्चात्मलोकेष्वन्धकारोद्योतकराः । २६३ प्राणाः, एक्युपमा भिक्षवः, नि
संवेदनीयोपसर्गभेदाः । २८१ ॥ चतुर्थे तृतीयः ॥
कृष्टबुधादिचतुर्भझ्यौ । २७४ | ३६२-६५ शमादि प्रात्यादि चक३४०-४२ प्रसर्पकाः, अङ्गारादिक- ३५३-३५४ दिव्यादिसंवासचतुर्भङ्
मणः, सङ्घभेदाः, औत्पत्तिक्यकायुपमाऽशनादि वर्णमदाद्याहा- ग्यः (७) अपध्वंसासुर्या- वग्रहायलखरोदकादिसमाना बुरोनारकादीना, जात्याशीविषत- भियोगसंमोहकिल्बिषत्यकार
द्धिः, दारकादिमनोयोग्यादिद्विषयो।
णानि ।
२७५ स्त्रीवेदादिचक्षुर्दर्शन्यादिसंयताM३४३-४४ व्याधिचिकित्साचतुर्भङ्- | ३५५ इहलोकप्रतिबद्धादिप्रव्रज्या भेदाः । दिभेदा जीवाः, (साधुधावकयोः ग्यौ, आत्मपरचिकित्सादिच- । (३२)।
बुद्धीनां च स्वरूपम्)। २८३
२७७ ।
॥ ७८ ॥
~89~
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
स्थानांग
यहां देखीए
॥ ७९ ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
३६६-७१ मित्रादिपुरुषचतुर्भग्यः , अर्द्धपूर्णाईचन्द्रसमाः कल्पाः, । ____ अवधिदर्शनोत्पादक्षमक्षोभाः। २९४
तिर्यङ्मनुष्यगत्यागती, द्वीन्द्रि- प्रत्येकरसोदधयः, खरावर्तायु- | ३९५ शरीरवर्णरसभेदौदारिकवर्णादि, यानारम्भारम्भसंयमासंयमी,
पमया कषायाः॥ २८९ (शरीरस्वरूपम् )। २९६ सम्यग्दृष्टिक्रिया, गुणनाशोत्पाद- ३८६-८८ अनुराधादि (३) ता- ३९६-९७ दुराख्यातस्वाख्यातादिमि
कारणानि शरीरकारणानि । २८५ रकाः, पापचयनादि चतुष्पदे- र्दुर्गमसुगमे शान्त्यादि सत्यादि ३७२-७५ धर्मद्वाराणि, महारम्भत्वा- शिकादि ।
२०९ उत्क्षिप्तचरत्वादि अज्ञातचरदीनि नारकत्वादिकारणानि,
॥ चतुर्थे चतुर्थः ॥
त्वादि उपनिहितादि आचाम्लावाद्यनृत्यगेयमाल्यालङ्काराभिन
दि अरसाहारादि अरसजीवियानां चातुर्विध्यं, सनत्कुमारा॥ इति चतुर्थस्थानकाध्य० ॥
त्वादि स्थानादि दण्डायतिकादी दिविमानवर्णशुक्रादिदेवतनु- ३८९ महायतानुव्रतानि । २९१ (५०)। न्यभ्यनुज्ञातानि च, माने ।
२८७ ३९०-९१ वर्णरसकामगुणभेदः सङ्गादि- अग्लान्या वैयावृत्त्येन (७०) ३७६-७७ २९-३१ उदकगर्भाः, मा- विनिघातहेत्वहितहितदुर्गतिसु- महानिर्जरा ।
३०० नुषीगर्भाः ।
गतिहेतवः (१३), प्राणातिपात- ३९८-४०० बिसंभोगपाराञ्चिककार३७८-८५ उत्पादवस्तूनि काव्यानि, तद्विरमणादिमिर्दुर्गतिसुगती । २९२ णानि, विग्रहाविग्रहस्थानानि,
नारकवातसमुद्घाता, नेमिच- ३९२-९४ भद्रायाः प्रतिमाः, (त- उत्कुटुकादिनिषद्यार्जवस्थानातुर्दशपूर्विणः, वीरवादिनः, स्थापना ) इन्द्राद्याः स्थावराः, नि । ( सूत्राध्ययनपर्यायाः )२०२
~90~
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
हवक्रमा
स्थानांग-1
यहां देखीए
॥ ८
॥
४०१-५ चन्द्रादिभव्यादिदेवाः, का- प्रथमप्रावृष्यन्यत्र भयादिभ्यः,
सुप्तजागराम, रजआदानवमनयादिपरिचारणा, चमरबल्यग्रम
पर्युषितेऽन्यत्र ज्ञानादिभ्यो न । कारणानि, पञ्चमासिकीदत्तयः, हिष्यः, असुरेन्द्रादीनां संग्रामा
विहारः।
३१० उद्गमाद्युपधातविशुद्धिः। ३२१ नीकतदधिपाः, शक्रेशानाभ्य- | ४१४ हस्तकर्मादीनि गुरुणि । ३११ १४२६ दुर्लभसुलभबोधिकारणानि । ३२२
न्तरपर्षदेवदेवीस्थितिः। ३०३ | ४१५ राजान्तःपुरप्रवेशकारणानि । ३१२ | ४२७-३१ संलीनतासंलीनता संव४०६-८ गत्यादिप्रतिघाताः, जात्याद्या- ४१६ असंसर्गे गर्भधारणे (५)सं
रासंबरा सामायिकादिसंयमाः, जीवाः,खड्गादिचिहानि। ३०४ सर्गेऽपि गर्भाधारणे (१५) का- एकेन्द्रियानारम्भारम्भर्सयमः, ४०९ छन्नस्थकेबलिपरीषहसहनका
रणानि च ।
३१४ पश्चेन्द्रियसर्वप्राणाद्यनारम्भाररणानि ।
३०५ | ४१७ निर्ग्रन्थनिन्थ्येकत्रावासकार- म्भसंयमासंयमाः, अग्रवीजाद्या ४१० हेत्वहेतुज्ञानाज्ञानकेवल्यनुत्त
__ णानि (१०)। ३१५ वनस्पतिभेदाः । (चारित्र३०७ | ४१८-४१९ आश्रवसंबरद्वारदण्डाः ,
स्वरूपम्)।
३२५ ४११ पद्मप्रभादीनां (१४) च्यवना
आरम्भिक्याद्याः कायिक्याद्या- ४३२-३३ज्ञानाद्याचाराः, मासिकाद्या___दिनक्षत्राणि । ३०७ बक्रियाः।
३१७ चारप्रकल्पप्रस्थापिताधारोपणा ३२६ ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥ | ४२०-२१ उपध्यादिपरिज्ञा, आगमा- ४३४-४३५. जम्बूधातकीपुष्करपूर्वा| ४१२-१३ गङ्गादयो द्विस्त्रिर्मासान्तर- दिव्यवहाराः।
३१९ परार्द्धपूर्वसीतापश्चिमसीतोदोनुत्तार्या अन्यत्र भयादिभ्यः । । ४२२-२५ सुप्तजागरितसंयतासंयतानां । त्तरदक्षिणवक्षस्कार (२०) देव
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
राणि ।
॥८०
~91~
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहतक्रमः।
स्थानांग
यहां देखीए
॥८१ ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
कुरुत्तरकुरुहदसीतासीतोदाम-
(इन्द्रियस्वरूपम् ) ३३६ | तरिकानन्ताः (५-५-१०)।३४७ न्दरासनोवेधसमयक्षेत्रभरता- | ४४५ पुलाकादिनिम्रन्थस्वरूपम् । ३३८ | ४६३-४६४ शानानि ज्ञानावरणीयानि । दीनि, ऋषभभरतबाहुबली- ४४६ धार्यवस्त्ररजोहरणे । ३३९ । ।(ज्ञानस्वरूपम् )। ३४९
ग्रामीसुन्दरीतनुमानम् । ३२७ ४४७-४९धर्मे निधास्थानानि,पुत्रादि- ४६५-६७ स्वाध्यायाः, प्रत्याख्यान४३६-३७ सुप्तविवोधकारणानि नि- निधयः, पृथिव्यादिशौचानि । ३४१ | शुद्धयः,आश्रवादिप्रतिक्रमणानि ३५०
ग्रन्थीग्रहणकारणानि । ३२९ | ४५०५४ छास्थसर्वभावाशेयाः, महा- ४६८ सूत्रवाचनशिक्षणकारणानि । ३५१ ४३८ आचार्योपाध्यायातिशेषाः । ३३१ निरयविमानानि, हीमत्त्वादिपुरु- ४६९-७४ सौधर्मशानविमानवोच्च४३९-४० आचार्योपाध्यायगणापक्र
पाः,अनुस्रोतश्चारिमत्स्यवाहभि
त्वब्रह्मलान्तकतनूच्चत्वपञ्चवर्णामणकारणानि, अर्हदादिका - क्षाकाः, अतिथ्यादिवनीपकाः । ३४२
दि, पुद्गलबन्धाः, गङ्गासिन्धुद्धिमन्तः।
३३२४५५-५७ अचेलकपाशस्त्यकारणानि, रक्तारक्तवतीसमागतनद्यः (२०) ॥ पञ्चमे द्वितीयः ॥
दण्डाद्युत्कलाः, समितयः । ३४३ कुमारतीर्थङ्कराः, चमरचञ्चा ४४१-४२ पञ्चास्तिकाया द्रव्यादिभिः४५८-६० संसारसमापन्नभेदाः, एके. राजधानी सभाः. इन्द्रस्थानगतिपञ्चकम् । ३३४ न्द्रियादिगत्यागती, सर्वजीवमे
सभाश्च,धनिष्ठादितारकाः, पश्च|७४३-४४ इन्द्रियार्थश्रोत्रेन्द्रियादि-
दाः, कलमसूरतिलादियोनि
स्थाननिर्वर्तितचयनादि पञ्चक्रोधादिमुण्डाः, अधऊर्ध्वतिर्यग्- काला, संवत्सरपञ्चकम् । ३४६ प्रदेशिकादिपुद्गलाः । बादरतेजोबाय्यचित्तवायवः । ।४६१-६२ जीवनिर्वाणमार्गाः, छेदान
॥पञ्चमे तृतीयः ॥
al॥८१॥
~92~
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्रमः।।
स्थानांग
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
॥ पञ्चमस्थानकाध्य०॥
कुरुनरोच्चत्वायुषी, संहननानि, रीमहत्तरिकाः (१२), धरण- ४७५-७७ गणधारणगुणाः, निर्ग्रन्थी। संस्थानानि ।
३५८ | भूतानन्दादीनामग्रमहिष्यः, धग्रहणकारणानि, कालगतसाध
४९६-९८ अनात्मात्मवतोरहितहित- रणभूतानन्दादीनां सामानिकाः।। र्मिकसमाचाराः। ३५४ कारणानि (पर्यायादीनि) जा- (प्रतिलेखनास्वरूपम् )। ३६३ ४७८-८४ छद्मस्थैः सर्वभावाशेयाः,
| तिकुलार्याः, लोकस्थितिः । ३५९ | ५१० अवग्रहहापायधारणाभेदाः । अजीवकरणतादीन्यशक्यानि, ४९९-५०० प्राच्यादिदिशाषटकेन जी
(बवाद्याः)।
३६४ जीवनिकायाः तारकग्रहाः सं
पतिर्यमनुष्याणां गत्यागत्या- ५११-५१२ बाह्याभ्यन्तरतपसी, विसारसमापन्नतगत्यागतयः, सर्व- दीनि (२४) आहारानाहारकार
वादाः।
३६५ जीवषद्विधत्वं, अग्रवीजाद्याः । ३५५ णानि ।
३६० | ५१३-१५ शुद्रप्राणाः, गोचरचर्या, ४८५-८९ मानुष्यत्वादीनि दुर्लभानि, ५०१-२ अहंदवर्णादीन्युन्मादकारणा- दक्षिणस्यां. प्रथमचतुर्थीनरकाइन्द्रियार्थाः, संवरासंबराः, सानि, मद्यनिद्राविषयकपाया
पक्रान्तनिरयाः । ३६७ तासाते, प्रायश्चित्तषट्कम् । ३५६ | तप्रत्युपेक्षणाः प्रमादाः । ३६१ | ५१६-१७ ब्रह्माप्रस्तटाः, पूर्वभागादि४९०-९५ जंबूद्वीपकादिसंमूछिमादि | ५०३-९ प्रमादाप्रमादप्रतिलेखनाः, ति- नक्षत्राणि (पूर्वाभाद्रपदादि(१२) मनुष्याः, ऋचयनृद्धिम- र्यग्नरलेश्या, शक्रसोमेशानय
३० शतभिषगादि १४ रोहन्तोऽईदादिदैमवदाद्या, आरक- मयोरप्रमहिष्यः, ईशानेन्द्रमध्य
ज्यादि ४५)।
३६८ षट्कं, सुषमसुषमादेवकुरुत्तर- पर्षदेवस्थितिः, दिग्विद्युत्कुमा- ५१८-२१ अभिचन्द्रोच्चत्वं, भरतम
~93~
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्रमः॥
यहां देखीए
क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
हाराजत्वं, पार्श्ववादिवासुपूज्य- संशयादिप्रक्षाः, चमरचन्द्र- ५४३-४५ अण्डजादियोनिसङ्ग्रहतगस्थानांगप्रव्रज्यापरिवारचन्द्रप्रभच्छाम
स्थानमाधवतीसिद्धिविरहाः । ३७६ । त्यागतयः, गणसङ्ग्रहासङ्ग्रहस्थ्यमासाः, त्रीन्द्रियानारम्भार- 38-३७ जातीनां निधत्ताडायपि.
स्थानानि, पिण्डपनिषणा ऽवनसूत्रे
म्भसंयमासंयमाः। ३६८ । औदयिकादिभावाः । ( सं- हप्रतिमासप्तसप्तकमहाध्ययनस।। ८३॥ ५२२-२४ जम्बूद्वीपाकर्मभूमिवर्षवर्ष- क्षेप्यासंक्षेप्यायुर्वन्धः, भावष- ससप्तमिकाभिक्षामानं च । ३८८ धरमन्दरदक्षिणोत्तरकूटमहाह
टूकस्वरूपभेदाः)। ३७९ | ५४६ पृथ्वीधनोदभ्यादितनामगो५३८-४० उच्चारादिप्रतिक्रमणादीनि,
प्राणि । धातक्यादावपि च (५५)ऋतवः,
कृत्तिकाऽश्लेषातारकाः, पुगलच- | ५४७-५० बादरवाता.. दीर्घादिसंअवमरात्रातिरात्राः । ३७० यनादिषट्प्रदेशिकादि च । ३८२ स्थानानि, भयस्थानानि, छन्न५२५-२७ अर्थावग्रहाः, अवधिज्ञाना
स्थकेवलिनोचिह्नानि । ३९० नि, अवचनानि । ३७१ ॥ इति षष्ठं स्थानकम् ॥
| ५५१ सप्रमेदमूलगोत्रभेदाः काश्य५२८-३२ कल्पप्रस्ताराः संयमपरि
-पाथाः। मन्थूनि, कल्पस्थितयः, बीरदी- ५४१ गणापक्रमणकारणानि, सर्वधर्म- | ५५२ नैगमाद्या नया., (नयस्वरूक्षामोक्षतपःसनत्कुमारमाहेन्द्र-
रोचनादीनि ।
३८२ पम् )। विमानशरीरमानम् । ३७५ ५४२ एकदिग्लोकाभिगमादीनि बि- ५५३ स्वरभेदः जीवाजीवनिश्रितत्वIN५३३-३५ भोजनविषयोः परिणामाः, भंगज्ञानानि ।
३८५ । लक्षणग्राममूर्च्छनायोनिगमादि
INI८३॥
~94~
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्रीस्थानांग
यहां देखीए
॥८४॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
स्वरमण्डलम् ।
विकथाः, आचार्यातिशेषाः, सं. ५८४-८५ वचनविकल्पाः , विनयप्र५५४-५९ स्थानातिगादिकायक्लेशाः, यमासंयमारम्भानारम्भाद्याः । ४०५ ।। शस्ताप्रशस्तमनोवाकायलो
जम्बूधातकीपुष्करपूर्वापराद्धव- | ५७२-८३ अतसीकुसुम्भादियोनिका- __ कोपचारविनयभेदाः । पवर्षधरपूर्वपश्चिमाभिमुखनया, लः, अकायतृतीयचतुर्थनरक- ५८६ समुद्घाताः।
४१० अतीतोत्सर्पिण्यादिकुलकराः, स्थितिः, शक्रवरुणेशानसोमहकारादिदण्डनीतयः, चक्रयेके
५८७ निह्नवतद्धर्माचार्योत्पत्तिनगरा
यमानमहिण्यः, ईशानाभ्यन्तरन्द्रियपञ्चेन्द्रियरत्नानि, दुष्प- पर्षद्देवशक्राममहिषीसौधर्मपरि
___णि । (निववादः)। ४१४ मासुषमाचिहानि । ३९९ गृहीतदेवीनां स्थितिः, सा- ५८८-९३ सातासातवेदनीयानुभावाः, । ५६०-६२ संसारजीवाः, अध्यवसा- रस्वतादित्यगर्दतोयतुषितदेवाः, अभिजिदादिकानि पूर्वादिद्वारा
नायुपक्रमाः, सर्वजीवाः । ५०० सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकस्थि- णि नक्षत्राणि, सौमनसगन्ध५६३-६४ ब्रह्मदत्ततनुमानायुर्गतया, तिः ब्रह्मलोकलान्तकविमानोच्च- मादनकूटाः, द्वीन्द्रियकुलकोमल्लिदीक्षापरिवारनृपाः। (मल्लित्वं, भवनपत्यादितनूञ्चत्वं, अ
घ्या, पुनलचयनादिस्थानानि, कथानकम्)। ४०३ न्तरनयोऽन्तरद्वीपसमुद्राः, -
सप्तप्रदेशिकाद्याः पुद्गलाः। ४१५ | ५६५-७९ सम्यग्दर्शनादीनि दर्शनानि, ज्वायताद्याः श्रेणयः, असुरेन्द्राय
॥ इति सप्तमाध्ययनम् ॥ अमोहप्रकृतयः, छद्मस्थसर्वभावा नीकानि, चमरादिपदात्यनीकाशेयकेवलिञयाः, वीरोचत्वं, । धिपकक्षातहेबसख्याः । ४०७ | ५९४-९६ एकाकिविहारप्रतिमागुणाः,
॥८५
~95
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
स्थानांग
सूत्रे
॥ ८५ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. "स्थान" ।
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
योनिसङ्ग्रहाण्डजादिगत्यागती, कर्मप्रकृतयः ।
५९७ अपराधानालोचनालोचनकारणानि, तत्प्रत्याजातिवर्णनानि च ।
५९८ ६०० संवरासंबरी, स्पर्शाः, लोकस्थितिः । ६०१-३ गणिसम्पदः, महानिध्युचत्वं, समितयः । ६०४-६ आलोचनाप्रतीच्छकदायकगुणाः, प्रायश्चित्तानि, मदस्थानानि ।
४२५
६०७ एकात्मवाद्याद्यक्रियावादिनः । ४२७ ६०८-११ मौनादिनिमित्तानि वचनविभक्तयः, छमस्थाशेयकेवलिशेयाः, कुमारभृत्याद्यायुर्वेदाः । ४२९
४१७
४२२
53
४२३
६१२-१७ शक्रेशानशक्रसोमेशानवैधमणाग्रमहिषीमहाग्रहाः, तृणवनस्पतयः चतुरिन्द्रियानारम्भारम्भसंयमासंयमाः प्राणादिसूक्ष्माणि भरतवंशसिद्धाः, पा४३० र्श्वगणधराः । ६१८-२१ सम्यग्दर्शनादीनि, उपमि - ताडा, नेमियुगान्तकृद्भूमिः, बीप्रब्राजितनृपाः । ६२२-२४ आहाराः, कृष्णराजीत त्संस्थाननामतत्स्थविमानतद्देवस्थितिः, धर्मास्तिकायादिमध्यप्रदेशाः । ४३३ ६२५-२७ महापद्मप्रव्राज्यनृपाः, सिकृष्णाग्रमहिष्यः, वीर्यप्रवादवस्तुचूलवस्तुनि ।
४३२
~96 ~
४३४
६२८-३४ नारकाद्याः, प्राग्भारान्ता
गतयः, गङ्गादिद्वीपमानं, उल्कामुखाद्यायामः, कालोदविष्कम्भः, अभ्यन्तरबाह्यपुष्करार्द्धविष्क-म्भः, काकिणिरत्नमानं, मागधयोजनधनूंषि । ६३५ ४४ जम्ब्वायुष्यत्वादि, तिमिस्र - गुहायुच्चत्वं, जम्बूपूर्वपश्चिमसीतासीतोदोत्तरदक्षिणविजयतद्राजधान्यः, उत्कृष्टपदजिनादयः, दीर्घवैताढ्यतिमिन्नादिगुहाप्रभृतिः, मेरुचूलामध्यविष्कम्भः, धातकीवृक्षोत्वादि, दिग्रहस्तिकूटवेदिकोञ्चत्वे महाहिमवरुक्मिरुचकदिकुमार्यः, तिर्थनिश्रोत्पन्नकल्पतदिन्द्रपारिया
४३५
बृहत् क्रमः।
11 64 11
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री. निकविमानानि ।
४४० स्थानांग-IN
६४५-४८ अष्टाष्टमिकामिक्षाः, संसा
रसमापनसर्वजीवभेदाः, प्रथमसमयादिसंयमाः, रत्नप्रभादि
पृथ्वीसिद्धिशिलामध्यविष्कम्भ॥८६॥ मानानि ।
४४१ ६४९-५१ पराक्रमणीयस्थानानि, महा
शुक्रसहस्रारविमानोच्चत्वनेमिवादिनः ।
४४२ | ६५२ केवलिसमुद्घातः। ६५३-६० बीयनुत्तरौपपातिकसम्प
त्, व्यन्तरभेदचैत्यवृक्षाः, सूयविमानचाराबाधा, प्रमर्दयोगनक्षत्राणि, द्वीपसमुद्रद्वारोच्च. त्वं, पुरुषवेदयश-कीर्युश्चोंत्राणां जघन्या स्थितिः, त्री
न्द्रियकुलकोठ्यः, पुद्गलानां चयः । ६७३ नैसदिनिधिस्वरूपम्। ४५० नादि, अष्टप्रदेशिकादि च । ४४३ ६७४-७८ विकृतयः, श्रोतांसि, पुण्य
भेदाः, पापायतनानि, उत्पादादि॥ अष्टम स्थानकम् ॥
पापश्रुतप्रसङ्गाः । ४५१ ६६१-६३ विसंभोगकारणानि, ब्रह्म- । ६७९-८१ नेपुणिकवस्तूनि, गोदासा
चर्याध्ययनानि, ब्रह्मचर्यगुप्तयः।४४५ दिगणाः, कोटिनवकम् । ४५२ ६६४-६७ अभिनन्दनसुमत्यन्तरं, जी- १८२-८५ ईशानवरुणाग्रमहिष्यः,ईशा
वादिसद्भावपदार्थाः, संसारस- नाममहिषीतत्कल्पपरिगृहीतानां मापन्नभेदपृथ्व्यादिगत्यागतिस
स्थितिः, लोकान्तिकाः, अवेयबंजीवभेदावगाहनसंसारवर्तना- कप्रस्तटनामानि ।
नि, रोगोत्पत्तिकारणानि । ४४७ | ६८६-८८ आयुम्परिणामाः, नवनवनि६६८-७२ दर्शनावरणीयभेदाः, अभि- काभिक्षाः, प्रायश्चित्तानि । ४५५
जिशन्द्रयोगोत्तरयोगनक्षत्राणि, ६८९ भरतवैतालयनिषधनन्दनवनमातारकचारावाधा, जम्बूदीपप्रवे- त्यवत्कच्छादिवैताळ्यविद्युत्प्रश्यमत्स्याः , बलदेववासुदेवपि- भपक्ष्मादिवैताम्बनीलवदैवतत्राद्यतिदेशः। ४४८ वैतादयकूटाः ।
४५५
॥८६
~97~
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्रमः
स्थानांग
यहां देखीए
॥८७॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
६९०-९१ पार्योच्चत्वं, बीरतीर्थमा । अतीतप्रत्युत्पन्नानागतेन्द्रियार्थाः ४७२/ मानक्षुद्रपातालो धादि, धातवितीर्थकराः। ७०७-९ पुद्गलचलनकारणानि, क्रो
कीपुष्करमन्दरावगाहः, वृत्तवै६९२ कृष्णादीनां मुक्तिः । ४५८ धोत्पत्तिकारणानि संयमासं- तात्योच्चत्योद्वेधविष्कम्भाः, क्षे६९३ श्रेणिकचरित्रम् । १६८ यमसंघरासंवराः । ४७३ त्रदशकं, मानुषोत्तरमूलवि६९४-७०३ पश्चाद्भागनक्षत्राणि, आ- ७१०-१३ मानकारणानि, समाध्यसमा
कम्भः, अञ्जनदधिमुखरतिकरनतादिविमानोच्चत्वं, विमलधयः, प्रवज्याभेशमणधर्मवैया
विष्कम्भादि, रुचककुण्डलविवाहनोचत्वं, अवसर्पिण्यारम्भवृत्त्यानि, जीवाजीवपरिणामाः।४७५ कम्भादि ।
४८१ ऋषभतीर्थान्तरं, धनदन्ताया
७१४-१५ अन्तरीक्षौदारिकास्वाध्या- ७२७ द्रव्याद्यनुयोगाः । ४८२ यामाः, शुक्रग्रहवीथयः, नोक
याः, पञ्चेन्द्रियावधवधसंयमा- ७२८ देवोत्पादपर्वतप्रमाणम्। ४८३ | पायाः, चतुरिन्द्रियभुजपरिस
सयमाः ।
४७७ | ७२९-३३ वनस्पतिजलचरस्थलचरपाणां कुलकोटयः, नवस्थानपु७१६-२६प्राणादिभङ्गान्तसूक्ष्माणि, ग
शरीरावगाहः संभवाभिनन्दनादलचयनादिः, नवप्रदेशिकादि ।४७०
कादिसमागतनद्या, भरतराज- न्तरं, अनन्तदशकं, उत्पादवइति नवमाध्ययनं ।।
धान्यः, तत्प्रवजिता नृपाश्च, स्त्वस्तिनास्तिचूलवस्तूनि, प्र७०४ जीवप्रत्यागमनादिका लोक- मेरुधरण्यवगाहादि, दिग्दशक- तिसेवाभेदानालोचनादोषालोच स्थितिः । ४७१ गोतीर्थमानोदकमानपातालक
नाईत्वतद्गुणप्रायश्चित्तानि । ४८७ दा ७०५-६ शब्दभेदाः (निर्हारिमाद्याः), लशोद्वेधमूलादिविष्कम्भकुय- ७३४-३८ मिथ्यात्वभेदाः, चन्द्रप्र
॥८७॥
~98~
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-३. “स्थान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
श्री
सूत्रांक
बृहत्क्रमः॥
S
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
भधर्मनमिपुरुषसिंहनेमिकृष्णस- ७४९-५० इच्छादिसामाचार्यः, वीर- । ७६० ग्रामादिधर्माः । .. ५१६ स्थानांग- र्वायुः, भवनपतिभेदचैत्यवृक्षाः स्वमाः ।
५०३ | ७६१-६२ प्रामादिस्थविराः, आत्मजाआरोग्यादिसौख्यानि, उद्मा
| ७५१ निसर्गादिसम्यग्दर्शनभेदाः। ५०४ | दिपुत्राः। झुपघातविशुद्धयः । ४८९ ॥ ८॥
७५२-५३ सयादशक, नरकवेदनाः ५०५ ७६३-६६ केवल्यनुत्तराणि, कुरुमहा७३९-४० उपध्यादिसक्लेशासक्ले
७५४-५६ छद्मस्थाशेयकेवलियाः ,द- द्रुमतदधिपाःअवगाढदुषमासुशाः, श्रोत्रेन्द्रियादिवीर्यान्तबशाभेदकर्मविपाकाविदशकाध्य
पमचिहानि, सुषमासुषमकल्पलानि । यनानि, ( उत्सपिण्यादिकाल
वृक्षभेदाः । ७४१ सत्यमृषासत्यामृषाभाषाभेदाः। ४९१
मानम् । तत्तदध्ययनकथान- ७६७-६९ अतीतभाव्युत्सर्पिणीकुल७४२ रष्टिवादनामानि ।
कानि)
कराः, पूर्वपश्चिमवक्षस्काराः,क- . ७४३ अग्न्यादिशस्त्रतज्जातादिदोषव- ७५७ अनन्तरोत्पन्नादिनारकभेदपङ्क
__ल्पतदिन्द्रतत्परियानिकाः । ५१८ स्त्वादिविशेषाः । ४९४
प्रभानरकावासरत्नपङ्कधूमप्रभा
७७०-७१ दशदशमिकामिक्षाः, संसा| ७४४ शुद्धवागनुयोगाः।
सुरादिचादरवनस्पतिव्यन्तरत्र- रसमापन्नसर्वजीवभेदाः। ५१९ ७४५-४७ दानानि गतयश्च, मुण्ड- झलान्तकस्थितिः। ५१४ ७७२ बालादिदशादशकम् । ५२०
भेदाः संख्याभेदाः। ४९८ ७५८ आगमिष्यद्भद्रताकारणानि । ५१५ | ७७३-७६ मूलादिवनस्पतिभेदाः, विIGI] ७४८ प्रत्याण्यानदशकम् । ४९९ / ७५९ आशंसाप्रयोगाः ।
द्याधराभियोगिकश्रेणिविष्कम्भाः,
||८८॥
~99~
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
स्थानांग
॥ ८९ ॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र - ३. "स्थान" ]
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः ( आगम-संबंधी - साहित्य)
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
मैवेयकोश्चत्वं, तेजोनिसर्गकारणानि ।
७७७ उपसर्गायाश्चर्याणि ।
७७८ रत्नादिकाण्डवाल्यम् । ॐ ७७९-८१ द्वीपसमुद्रमहाहदसलिला
५२३
५२४
५२५
५२६
कुण्डशीताशीतोदामुखोद्वेधाः, कृचिकाऽनुराधाचारमण्डलं, शा नवृद्धिनक्षत्राणि । ७८२ चतुष्पदोरः परिसर्पकुलकोटयः ।,, ७८३ पापचयनदशप्रदेशिकादिपुङ्गलाः ।,,
~ 100~
|| दशमस्थानकाध्ययनम् ॥ अजितसिंहशिष्य यशोदेवसहायात्समर्थना, द्रोणाचार्यमुख्यकृता शुद्धिश्च प्रशस्तौ । ॥ इति स्थानाक्रम ॥
५२८
बृहत्क्रमः।
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-४. “समवाय" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
समवायांगे विषयानुक्रमः॥ सूत्राणि १६०
सूत्रगाथाः १६८ । १ मङ्गलाद्यभिधेये। तच्छुद्धियाञ्चा, छानपालकसर्वार्थसिद्धायामा
च्छवासाहारार्थभव्यभवाः । उपोद्घातः, आत्मानात्मदण्डा- दितारकप्रथमद्वितीयनरकासुर- २ दण्डराशिबन्धनपूर्वाफाल्गुन्यादण्डक्रियाऽक्रियालोकालोकध- भौमेयासङ्ख्येयवर्षायुष्कनरति- दितारकप्रथमद्वितीयपृथ्व्यसुरर्माधर्मपुण्यपापबंधमोक्षानवसं- यंग्व्यन्तरज्योतिष्कसौधर्मशा- भौमेयासङ्ख्यवर्षायुस्तिर्यङ्नवरवेदनानिर्जराजम्बूद्वीपाप्रति- । नस्थितिसागरादिविमानस्थित्यु- रसौधर्मशानसनत्कुमारमाहेन्द्र
॥८९
~101~
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
समवायांग
यहां देखीए
॥९॥
-
-
स्थितिशुभादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः । ३ दण्डगुप्तिगौरवविराधनामृगशिरआदितारकप्रथमद्वितीयतृतीयपृथ्व्यसुरासङ्ख्येयवर्षायुस्तियङ्नरसौधर्मेशानसनत्कुमारमाहेन्द्रस्थितयः, आभङ्करादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः। ९ ४ कषायध्यानविकथासज्ज्ञाबन्धयोजनगव्यूतानुराधादितारकप्रथमतृतीयपृथ्व्यसुरसौधर्मादि४स्थितिकृष्टयादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः । १० ५.क्रियामहावतकामगुणाश्रवसंवरद्वारनिर्जरास्थानसमित्यस्तिकायरोहिण्यादितारकरत्नप्रभादि
स्थितिवातादिस्थित्युच्दासाहा-- रार्थभव्यभवाः ।
११ ६ लेश्याजीवनिकायबाह्याभ्यन्तरतपश्छाद्यस्थिकसमुद्धातार्थावग्रहकृत्तिकाऽश्लेषातारकरत्नप्रभादिस्थितिस्वयंभ्वादिस्थित्युच्छ्वासाहारार्थभव्यभवाः। १२ ७ भयस्थानसमुद्घातवीरोश्चत्वजम्बूवर्षधरवर्षक्षीणमोहकर्मप्रकतिमधातारकपूर्वादिद्वारनक्षत्ररत्नप्रभादिब्रह्मलोकान्तस्थितिसमादिस्थित्युच्छासाहारार्थभव्यभवाः । ८-१मदस्थानप्रवचनमातृव्यन्तरचैत्यवृक्षजम्बूकूटशाल्मलीजगत्युचत्वकेवलिसमुद्घातपायंग-
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
जगणधरप्रमर्दयोगिनक्षत्ररत्नप्रभादिस्थित्यचिरादिस्थित्यादि। १५ ९-२७ ब्रह्मचर्यगुप्तिपार्बोच्चत्वाभिजिद्योगोत्तरयोगिनक्षत्रतारकरूपचायबाधाजम्बूद्वीपप्रवेश्यमत्स्यमानविजयभीमब्यन्तरसभोच्चत्वदर्शनावरणप्रकृतिरत्न
प्रभादिस्थितिपक्ष्मादिस्थित्यादि।१६ | १०-३-४ श्रमणधर्मचित्तसमाधिस्थानमन्दरमूलविष्कम्भनेमिकणरामोश्चत्वज्ञानवृद्धिकरनक्ष-- त्राकर्मभूमिकल्पवृक्षप्रथमाचतु
र्थीपञ्चम्यसुरभौमेयवनस्पतिव्यन्तरसौधर्मशानब्रह्मलान्तक
स्थितिघोषादिस्थित्यादि। १८ ११ उपासकप्रतिमामन्दरलोकान्त--
-
-
-
९०॥
-
~102~
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
समवायांग
यहां देखीए
॥९१ ॥
-
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
ज्योतिष्काबाधाबीरगणधरमूल- १४। ८-१० भूतग्रामपूर्वाग्राणीय- १७ असंयमसंयममानुषोत्तरवेलन्ध
बहतकमा तारकाधस्तनवेयकविमानमवस्तुवीरश्रमणगुणस्थानभरते
रानुवेलन्धरावासलवणोच्चत्वचान्दरपरिहाणिरत्नप्रभादिस्थिति- रवतजीवाचक्रिरत्नलवणसमाग- रणोत्पाततिगिञ्छिरुच केन्द्रोशब्रह्मादिस्थित्यादीनि । २१ | तनदीरत्नप्रभादिस्थितिश्रीका
स्वावीच्यादिसरणभेदसूक्ष्मसम्प१२।५-७७ भिक्षुप्रतिमासम्भोगद्वा
न्तादिस्थित्यादीनि। २८ रायबध्यप्रकृतिरत्नप्रभादिस्थिदशावर्तविजयराजधान्यायाम - १५।११-१३% परमाधार्मिकनम्युच्च- तिसामाजिकादिस्थित्यादीनि । ३५ | रामायुमैरुचूलिकाजम्बूद्वीपवेदि- खाऽऽवार्यमोच्यभागपञ्चदशमु- १८।१६ ब्रह्मनेमिश्रमणव्रतषट्कादिकामूलविष्कम्भजघन्यादिरात्रि- हर्तनक्षत्रचैत्राश्विनदिवसरात्रि- स्थानाचाराङ्गपदग्राहीलेखविधादिनसर्वार्थसिद्धयन्तरसिद्धिना- विद्याप्रवादवस्तुमनुष्यप्रयोगर
नास्तिनास्तिवस्तुधूमप्रभावाह-- मरत्नप्रभादिस्थितिमाहेन्द्रादि- लप्रभादिस्थितिनन्दादिस्थि - व्यपौषाषाढदिवसरात्रिरत्नप्रभास्थित्यादीनि । त्यादीनि ।
दिस्थितिकालादिस्थित्यादीनि । ३६ | १३ क्रियास्थानसौधर्मशानप्रस्तटत- | १६ । १४-१५ गाथाषोडशकाध्यय- १९ | १७-१८ शाताध्ययनापरोदिदवतंसकायामादिजलचरकुलनकषायमेरुनामपार्श्वश्रमणात्म
तशुक्रचार्यनक्षत्रकलागारवासिकोटिप्राणायुर्वस्तुगर्भजतिर्यम | प्रवादबस्तुवमरयल्युपरिकालय
जिनरत्नप्रभादिस्थित्यानतादि-- | योगसूर्यबिम्बमानरत्नप्रभादिनायामलवणोत्सेधरत्नप्रभादि--
स्थित्यादीनि ।
३७ स्थितिवज्रादिस्थित्यादीनि । २६ । स्थित्यान दिस्थित्यादीनि । ३२, २० असमाधिस्थानसुव्रतोच्चत्वधनो- II॥९१ ॥
-
-
~103~
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
वृहत्क्रममा
सूत्रांक
यहां देखीए
समवायांग
सूत्रे
॥ ९२॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
दधिबाहत्यप्राणतसामानिकनपुंसः । सेन्द्रदेवस्थानोत्तरायणपौरुषी- । २८ आचारप्रकल्पभव्यमोहसत्कर्माकवेदस्थितिप्रत्याख्यानवस्तूत्सर्पि- छायागासिन्याविप्रवाहरत्नप्र- शमतिमेदेशानविमानदेवगत्या - ण्यवसर्पिणीकालमानरत्नप्रमादि
भादिस्थित्यादीनि । ४४ दिप्रकृतिरत्नप्रभादिस्थित्यादीनिा४९ | स्थितिसातादिस्थित्यादीनि । ३९ २५। १९-२० महावतभावनामल्लि- २९ पापश्रुतप्रसङ्गाषाढादिदिनचन्द्र२१ शबलभेदनिर्वृत्ति बादरमोहनीय- वैताब्योच्चत्वशर्करामभानरकावा- दिनमुहूर्ततीर्थकदादिप्रकृतिरत्नसत्कमांशपञ्चमषष्ठारकमानरत्न
साचाराध्ययनमिथ्यादृष्टिवध्यप्र- प्रभादिस्थित्यादीनि । ५० प्रभादिस्थितिश्रीवत्सादिस्थित्यादि।४० कृतिगङ्गादिप्रपातलोकबिंदुवस्तु । ३० । २१-५४७ मोहनीयस्थानमण्डि२२ परीषहच्छिन्नछेदनकादिसूत्रपुद्ग- रत्नप्रभादिस्थित्यादीनि । ४५ | तश्रामण्याहोरात्रमुहूर्त्तनामाऽरो
लपरिणामरत्नप्रभादिस्थितिम- २६ दशाकल्पव्यवहारोद्देशामव्यसि- चत्वसहस्रारसामानिकपार्थवीहितादिस्थित्यादीनि ।
४२ द्धिमोहसत्कर्माशरत्नप्रभादि
रागारवासरत्नप्रभानरकायास२३ सूत्रकृदध्ययनत्रयोविंशतिजिन- स्थित्यादीनि । ४६ | स्थित्यादीनि।
शानकालपूवभवकादशाङ्गित्वमा- २७ अनगारगुणव्यवहार्यनक्षत्रमास- ३१ सिद्धादिगुणाः, मन्दरधरणीविण्डलिकराजत्वऋषभचतुर्दशपू- रात्रिंदिवसौधर्मेशानविमानपृ- -
कम्भः,सूर्यबाह्यमण्डलचक्षुःस्पचिरत्नप्रभादिस्थितिप्रैवेयकस्थि- थ्वीवाहल्यवेदकसम्यक्त्ववध्य
भिवद्धितादित्यमासदिनरत्नत्यादीनि ।
४३ प्रकृतिश्रावणाशुक्लसप्तमीपौरुषी- प्रभास्थित्यादीनि । ५७ २४ देवाधिदेवहिमवच्छिखरिजीवा- । छायारत्नप्रभाविस्थित्यादीनि । ४७ ३२ । ५५-५९.७ योगसङ्ग्रहदेवेन्द्र
॥ ९
~104 ~
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
वृहत्क्रमः
यहां देखीए
समवायांग
सूत्रे
॥९३॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि'
कुन्थुकेवलिसौधर्मविमानरेवती- कृष्णपौरुषीछायाः । ५ धिचन्द्रसूर्यसंमूर्छिमभुजपरिसर्पतारकनाम्यरत्नप्रभास्थित्यादीनि । ५८ ३८ पाहिमवतादिधनुःपृष्ठमेल- । स्थितिनामप्रकृत्यभ्यन्तरवेलाधा३३ आशातनाचमरचश्चाभौमविदे- द्वितीयकाण्डोच्चत्वक्षुद्रविमान- । रकमहाविमानप्रविभक्तिद्धितीय
इविष्कम्भबाह्यानन्तरचक्षुःस्पर्श- प्रविभक्तिद्वितीयवर्गो देशाः।, | बोद्देशदुष्षमादिमानम् । ६८
रत्नप्रभास्थित्यादीनि । ६०/ ३९ नम्यवधिज्ञानिसमयक्षेत्रकुलप. | ४३ कर्मविपाकाध्ययनप्रथमादिनर३४ जिनातिशयविजयदीर्घवैताढ्यो- बैतद्वितीयादिनरकावासशानाव- कावासगोस्तूपादिपूर्वान्तबाधा - कृष्एपदजिनचमरभवनप्रथमपृ. । रणादिप्रकृतयः।
६६
महाविमानप्रविभक्तितृतीयवर्गोछ्यादिनरकावासाः । ६३ | ४० नेम्यार्यामन्दरचूलाशान्त्युञ्चत्व - द्देशाः । ३५ वचनगुणकुन्धुदत्तनन्दनोश्चत्व- भूतानन्दभवनक्षुद्रविमानप्रविभ- ४४ ऋषिभाषिताध्ययनविमलयुगा
वज्रमयसमुद्कस्थानद्वितीयच- तितृतीयवों देशकार्तिकफा - न्तकद्भूमिधरणभवनमहाविमा
तुर्थपृथिवीनरकाः। ६४ ल्गुनपौरुषीछायामहाशुक्रविमा- नप्रविभक्तिचतुर्थवर्गोद्देशाः । । ३६ उत्तराध्ययनचमरसभोसत्ववी
नानि ।
४५-६० समयक्षेत्राद्यायामधर्मोच्च - रार्याचैत्राश्विनपौरुषीच्छायाः । ६४ ४१ नम्यार्यारत्नप्रभादिनरकावास - । त्वमेर्वबाधायर्धक्षेत्रमुहूर्तमहा३७ कुन्थुगणधरहैमवतादिजीवावि- महाविमानप्रविभक्तिप्रथमवर्गो- विमानप्रविभक्तिपञ्चमवर्गोद्देशा. ६९ जयादिराजधानीप्राकारोच्चत्वक्षु- देशाः ।
" | ४६ दृष्टिवादमातृकापदब्राह्मीमातृकाद्रविमानप्रविभक्त्युदेशकार्तिक । ४२ वीरधामण्यगोस्तूपान्तरकालोद- । क्षरप्रभञ्जनभवनानि ।
~105~
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
समवायांग
यहां देखीए
७२
॥९४॥
४७ अभ्यन्तरमण्डलचक्षुःस्पर्शाग्नि- । ५३ कुरुमहाहिमयदूफिमजीवास-- पातालमध्याबाधाः ।
वृहत्क्रमः। भूत्यगारवासौ।
वत्सरपर्यायवीरानुत्तरगतान - ५९ चन्द्रर्तुंदिनसंभवागारवासम४८ चक्रिपत्तनधर्मगणगणधरसूर्य - गारसंमूछिमोर परिसर्पस्थि
ल्ल्यवधिज्ञानिनः । ७४ विष्कम्भाः ।
तयः ।
६० सूर्यमण्डलमुहूर्तामोदकधारक४९ सप्तसप्तमिकाभिक्षाकुरुनरवाल- ५४ भरताद्युत्तमपुरुषनेमिच्छाम
विमलोश्चत्वबलिब्रह्मेन्द्रसामा___ कालत्रीन्द्रियस्थितयः । । स्थ्यवीरव्याकरणानन्तगणधराः | ____ निकसौधर्मेशानविमानानि । ७५ ५० सुबतार्याः, अनन्तपुरुषोत्तमो- ५५ मरल्यायुर्मन्दरविजयादिद्वाराबा-- ६१ युगर्तुमासमेरुप्रथमकाण्डोच्चत्वचत्वदीर्घवैताट्यविष्कम्भलान्तघावीरान्त्यरात्र्यध्ययनप्रथमद्धि
चन्द्रसूर्यमण्डलभागाः । कविमानतिमिस्राद्यायामकाञ्चन- तीयपृथिवीनरकावासदर्शनावर- ६२ युगपूर्णिमादिवासुपूज्यगणगणशिखरविष्कम्भाः। " णादिप्रकृतयः ।
७३ | धरचन्द्रदिनवृद्धिहानिप्रथमप्र५१ ब्रह्मचर्योद्देशचमरवलिसभास्त - ५६ जम्बूनक्षत्रविमलगणगणधराः । ,, स्तटाः प्रथमावलिकाविमानम्भसुप्रभायुर्दर्शनादिप्रकृतयः । ७१ | ५७ गणिपिटकायाध्ययनगोस्तूप -
प्रस्तटाः । ५२ मोहनामगोस्तूपपूर्वान्तमहापा
पातालमध्यायाधा: मल्लिमनाप
६३ ऋषभराज्यहरिवर्षरम्बकवालतालपश्चिमान्ताबाधा, ज्ञानावर- । र्यवशानिमहाहिमवद्रुक्मिजीवाः७४ त्वनिषधनीलवत्सूर्योदयाः । ७७ णादिप्रकृतिः, सौधर्मादिविमा- । ५८ प्रथमादिनरकावासशानावरणा- ६४ अष्टाष्टमिकाभिक्षाऽसुरावासचनानि ।
७२ दिप्रकृतिगोस्तूपादिपश्चिमान्त- मरसामानिकदधिमुखविष्कम्भ- IN९४॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
-
-
-
~106~
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
समवायांग
लवाः ।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
सौधर्मादिविमानचक्रिहारयष्टयः।७८ ॥ कमाहेन्द्रसामानिकाः । ८२ पपगर्दतोयतुषितपरीवारमुहूर्त- हत्क्रमः।। ६५ सूर्यमण्डलमौर्यागारत्वविमान- ७१ चतुर्थचन्द्रवर्षसूर्यावृत्तिदिनवी
८६वी भौमाः ।
यंप्रवादप्राभृताजितसगरागारि- ७८ वैश्रमणायत्तसुवर्णकुमाराकम्पि६६ दक्षिणोत्तरार्द्धनरक्षेत्रचन्द्रादि- त्वानि ।
तसर्वायुरुत्तरदक्षिणायनैकोन - श्रेयांसगणगणधराभिनियोधिक- ७२ सुवर्णावासबाह्यवेलाधारकबी- चत्वारिंशन्मण्डलदिनरात्रिवृद्धिस्थितयः । ___राचलभ्रात्रायुरभ्यन्तरपुष्कराई. हानयः ।
८७ ६७ युगनक्षत्रमासहैमवतैरण्यवतबा- चन्द्रसूर्यचक्रिपुरवरनरकलासं- ७९ पातालाधोऽन्तरत्नप्रभाऽधोऽ
हामन्दरगौतमपूर्वान्ताबाधानक्ष- ___मूछिमखचरस्थितयः । ४ न्तषष्ठीमध्यघनोदध्यन्तजम्बूद्वीत्रसीमाविष्कम्भाः । ७३ हरिवर्षरम्यकजीवाविजयायुषी।। पद्धारावाधाः ।
८८ ६८ धातकीखण्डपुस्कराईविजयरा- ७४ अग्निभूल्यायुनिषधशीतोदानील- ८० श्रेयांसत्रिपृष्ठाचलोच्चत्वत्रिपृष्ठम___जधान्यईदादिविमलश्रमणाः ।, वत्सीतोत्तरदक्षिणाभिमुखगम- हाराजत्वाव्बहुलबाहल्येशानसा६९ अमन्दरसमयक्षेत्रवर्षधरमन्दर
नाऽचतुर्थीनरकावासाः ।
मानिकजम्बूद्वीपगतसूर्यावगाहाः।८८ गौतमपश्चिमान्ताबाधाऽमोहन
७५ सुविधिकेवलिशीतलशान्त्यगा- ८१ नवनवमिकाभिक्षाकुन्थुमनःपर्यकृतयः। रित्वानि ।
वज्ञानिव्याख्याप्रज्ञप्तिमहायुग्मा७० वर्षावासगतशेषरात्रिदिनपार्श्व- ७६-६१ विद्युत्कुमाराचावासाः। , नि । श्रामण्यवासुपूज्योञ्चत्वमोहनिषे- । ७७ भरतकुमारत्वप्रबजिताङ्गवंशनृ- । ८२ जम्बूद्वीपछि 'क्राम्यमण्डलगर्भा- ॥९५॥
~107~
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
समवायांग
यहां देखीए
॥ ९६॥
10
पहारपाकालरुक्मिमहाहिमव
दिद्वितीयामध्ययनोदध्यधस्त - ९१ बयावृत्यप्रतिमाकालोदपरिक्षेपत्सौगन्धिकोपरितनाधस्तनान्ता
नान्ताबाधाः ।
९२.. कुन्थ्ववधिशान्यनायुर्गोत्रप्रकबाधाः । ८९८७ मन्दरपूर्वादिगोस्तूपादिपश्चि -
तयः । ... ८३ गर्भापहारप्रादिनशीतलगणग- मान्ताबाधाऽनाद्यन्त्यकर्मप्रकृति
९२ प्रतिमेन्द्रभूत्यायुर्मन्दरमध्यगोणधरमण्डिकायुक्रषभभरतागा- महाहिमवद्रुक्मिकूटसौगन्धि- स्तूपादिपश्चिमान्तावाधाः ९७ रित्वानि ।
१० काधस्तनान्तावाधाः। ९३ |
२३ चन्द्रप्रभगणगणधरशान्तिचतु८४ नरकावासर्षभभरतबाहुबलिब्रा८८ महाग्रहदृष्टिवादसूत्रमन्दरगो -
__दशपूर्विसमाहोरात्रमण्डलानि । नीसुन्दरीधेयांसत्रिपृष्ठायुःशक
स्तूपादिपूर्वान्ताबाधोत्तरदक्षि
९४ निषधनीलबजीवाऽजितावधिसामानिकवायमेर्वजनोच्चत्वह -
णायनचतुश्चत्वारिंशन्मण्डलदि
बसरात्रिहानिबुद्धयः। रिरम्यकजीवापङ्कोपरितनाधस्त
शानिनः । ९४
९५ सुपार्श्वगणगणधरजम्बूद्वीपपानान्ताबाधाभगवतीपदापनाग
८९ ऋषभवीरनिर्वाणतृतीयतुर्यारकाबाधाहरिषेणचक्रित्वशान्त्या
तालाबाधालवणोद्धेधोत्सेधहानिकुमारावासप्रकीर्णकयोनिपूर्वा
९४
कुन्थुमौर्यायूंषि । दिगुणकारर्षभश्रमणविमानानि । ९२
र्याः।
९० शीतलोच्चत्वाजितशान्तिगणग- ९६ चक्रियामवायुकुमारभवनदण्डा८५ आचारोहेशधातकीमेरुरुचकन
णधरस्वयम्भूविजयवृत्तवैताब
द्यगुलाभ्यन्तरादिमुहर्तच्छायाः।९८ न्दनसौगन्धिकाधस्तनान्तावाधा ९२ शिखरसौगन्धिकाधस्तनान्ता -
९७ मन्दरगोस्तूपादिपश्चिमान्तावा८६ सुविधिगणगणधरसुपार्श्ववा -
बाधाः ।
९५ घोत्तरप्रकृतिहरिकेशागारत्त्वानि।९९
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
-
A4%a8
॥ ९६॥
~108~
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
समवायांग
सूत्रे
॥ ९७ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ४. "समवाय" |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
९८ नन्दनोपरितनपाण्डुकाधस्तनान्तमेरुपश्चिमगोस्तूपादि पूर्वान्तावाधाभरतधनुः पृष्ठोत्तरदक्षिणाय - नैकोनपञ्चाशन्मण्डलदिनरात्रिवृद्धिहानिरेवत्यादिप्रथमज्येष्ठा
33
१०२ सुपार्श्व सर्वमहाहिमवद्रुरुम्युचत्वोद्वेधजम्बूद्वीपकाञ्चनकाः । ( २०० ) । १०१ १०३ पद्मप्रभासुरप्रासादोच्चत्वे । (२५०) : १०४ सुमत्युच्यत्वनेमिकुमारत्वविमानप्राकारोच्वत्ववीरचतुर्दशपूर्वि पञ्चधनुः शतसिद्धावगाहनाः ( ३०० ) ।
स्तनक्षत्रतारकाः ।
९९ मन्दरोञ्चत्वनन्दनपूर्वापरोत्तरदक्षिणान्तावाधाप्रथमद्वितीयतृतीयमण्डलायामाञ्जनाधस्तनान्तव्यन्तरोपरितनान्तावाधाः । १०० १०० दशदशमिकाभिक्षाशतभिषक्तारकसुविभ्युच्चत्वपार्श्वसुधर्मायु तामिवच्छिखरिका ञ्चननगोच्चत्वोद्वेधमूलविष्कम्भाः १०१ १०७ अजित सगरोचत्वे (४५०) । १०८ मेर्वासवक्षस्कारशीताशीतोदासर्ववर्षधरकूटर्पभभरतसौमनस
१०५ पार्श्वचतुर्दश पूर्व्यभिनन्दनोच्चत्वे ( ३५० ) । १०६ संभवनिषधनीलवन्तदासन्नसर्ववक्षस्कारोयत्वोद्वेधानतप्राणत विमानवीरवादिनः । (४००) १०२
१०१ चन्द्रप्रभोचत्वारणाच्युतविमानानि ( १५० ) ।
-
९९
१०१
~ 109~
२०१
१०१
33
गन्धमादनविद्युत्प्रभमाल्यवन्तहरिहरिस्सहवक्षस्कारकूटबलकूटनन्दनकूट सौधर्मेशानविमानोचत्वोद्वेधायामविष्कंभाः
१०३
( ५०० ) । १०९ सनत्कुमार माहेन्द्रविमानोचत्वहिमवच्छिखरिकूटधरणितला - बाधा पार्श्ववाद्यभिचन्द्रोच्चत्ववासुपूज्यप्रव्रज्यापरिवाराः । ( ६०० ) । ११० ब्रह्मलान्तक विमानोच्यत्वचीरकेवलिवैक्रियनेमिकेवलित्वमहाहिमडुमिकूटतलाबाधा: (७००)।,, १११ महाशुक्रसहस्रारविमानोच्यत्वप्रथमकाण्डव्यन्तरस्थानवीरानुउत्तरोपपातिकसूर्यचारान्तरनेमि
1
१०२
बृहत्क्रमः ।
॥ ९७ ॥
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-४. “समवाय ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
श्री
सूत्रांक
वृहवक्रमः॥
यहां देखीए
॥९८॥
वादिनः । (८००)। , ११२ आनतादिविमानोच्चत्वनिषध -
नीलवत्कूटतलायाधाविमलवाहनोच्चत्वतारकचारनिषधनीलवशिखरप्रथमकाण्डमध्यभागा -
बाधाः । (९००)। १०४ ११३ अवेयकविमानयमकपर्वतचित्र
विचित्रकटवृत्तवैताळ्यहरिहरिस्सहबलकूटोच्चत्वोवेधायामविकम्भनेम्यायुःपार्श्वकेवलिपद्म -
पुण्डरीकायामाः (२०००)। १०४ ११४ अनुत्तरविमानोच्चत्वपार्श्ववैकियाः (११००)।
" | ११५-३५ महापद्ममहापुण्डरीकहदा
यामः (२०००) वनकाण्डोप
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
रितनलोहिताक्षाधस्तनाम्तावाधा (३०००) तिगिच्छहदायाम: (४०००) रुचकनाभिमेरुचतुर्दिगंताबाधा ( ५०००) सहसारविमान ( ६०००) रक्तकाण्डोपरितनपुलकाधस्तनान्तावाधा (७०००) हरिवर्षरम्यकविस्तारः (८०००) दक्षिणार्द्धभरतायामः (९०००) मन्दरधरणितलविष्कम्भः (१००००) जम्बूद्वीपायामः ( लक्षं ) लवणचक्रबालविष्कम्भः (द्वे लक्षे) पार्श्वश्राविकाः (लक्षत्रय) धातकीचकवालविष्कम्भः (४ लक्षाः) लवणपूर्वापरान्ताचाधा (५ लक्षाः) भरतराज्यं (६ लक्षाः) जम्बूपू.
ववेदिकान्तधातकीपश्चिमान्ताबाधा (७ लक्षाः) माहेन्द्रविमानानि (८ लक्षाः) अजितावधिशानिनः (१०००) पुरुषसिंहायुः ( १००००) पोहिल्लश्रामण्यं ( कोटी) ऋषभवर्धमानान्तरं
(कोटाकोटी)। १३६ आचाराङ्गाधिकारः।
१०९ १३७ सूत्रकृताधिकारः ।।
१११ १३८-६२७ स्थानाङ्गाधिकारः। ११२ १३९ समवायाङ्गाधिकारः। १४० व्याण्याप्रज्ञप्त्यधिकारः । ११६ १४१ ज्ञाताधर्मकथाधिकारः। ११९ १४२ उपासकदशाङ्गाधिकारः। १२० १४३ अन्तकदशाङ्गाधिकारः। १२१ १४४ अनुत्तरोपपातिकाधिकारः । १२३
११४
॥ ९८॥
~110~
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-४. “समवाय" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहत्क्रममा
समवायांग
यहां देखीए
॥९९ ॥
१४५ प्रश्नव्याकरणाधिकारः । १२५ | १५३ । ७३-७४ भवप्रत्ययिकावधि- । १५८ । १२०-१४०० चक्रवत्तिपितृ - १४६ विपाकश्रुताधिकारः । १२८ | वेदनालेश्याहाराः। १४७ . मातृस्त्रीरत्नवलदेववासुदेवपितृ१४७ । ६३-६५8 राष्टिवादाधिकारः । १३२ | १५४ आयुर्वन्धोपपातादिविरहायुरा- मातुनामदशारमण्डलवर्णनपूर्व१५८ द्वादशाङ्गीविराधनाराधनाफल- कर्षाः ।
भवनामधर्माचार्यनिदानभूमिप्रतन्नित्यत्वविषयाः। १३३ | १५५ संहननसंस्थानानि । १५० तिशत्रवः ।
१५३ | | १४९ । ६६-७२७ जीवाजीवादिरा- १५६ वेदाधिकारः ।
१५९ ॥ १४१-१६८ ऐरवततीर्थकरोशिनिरूपणं नरकावगाहनरका - वासवेदनिरूपणं च ।
त्सर्पिणीभरतैरवतकुलकरतीर्थ१५७। ७५-११९६ कल्पसमवसरणं,
१३६ | १५० असुरकुमारवैमानिकावासनिक
कुलकरतद्भार्या, जिनपितृमातृ
कराः । तीर्थकरतत्पूर्वभवशिविकानिष्क- | १६० उपसंहारः। पणम् । मणोपधिपरिवारतपोभिक्षाभि
प्रशस्तिः । १५१ नारकादिस्थितिः। १४१
क्षादायकचैत्यबृक्षप्रथमशिष्य - १५२ शरीरतद्भेदावगाहस्वामिनः । १४५ । शिष्याः।
१५२ ॥इति समवायाङ्गम् ॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
१४०
~111~
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
हवक्रमा
सूत्रांक
भगवत्यंग
सूत्रे
यहां देखीए
॥१०॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि'
भगवतीसूत्रस्य विषयानुक्रमः ॥ सूत्राणि ८६९
सूत्रगाथा: ११४ मङ्गलम्, एतट्टीकाचूर्णिजीवा- । ६ पर्षनिर्गमधर्मकथापर्षत्प्रतिगम- रणवेदननिर्जरणत्रिकालिकोद्वर्त्तभिगमादिवृत्तिसंयोजनेन वि- नानि ।
नसंक्रमनिधत्तनिकाचनप्रश्नाः २५ वरणप्रतिज्ञा, जयकुआरोपमा, ७ गौतमवर्णनम् ।
१४ तैजसकार्मणग्रहणोदीरणवेदनव्याख्याप्राप्तिशब्दार्थः । २ ८ जातश्रद्धादिना चलचलितादि- निर्जराप्रश्नोत्तरे ।
५६ १ पश्चनमस्कारः
(९) प्रश्नोत्तराणि । १६ | १५-५७ चलिताचलितादिकमय२ ब्राह्मीलिपिनमस्कारः ।
९चलचलितादीनामेकानेकार्थादि- | न्धादि । १७ उद्देशक(१०)सङ्ग्रहगाथा । ६ प्रश्नोत्तरे ।
१९ १६ नारकादिदण्डकस्थित्याहारौ। ३१ ३ श्रुतनमस्कारः।
१० नारकाणां स्थित्युच्छासाहा- १७ आत्मपरोभयारम्भानारम्भाः। । ४ राजगृहगुणशीलश्रेणिकचेल्लणा- राः (३९ द्वाराणि)। २३
(अप्रमत्ता अनारम्भाः)। ३३ नम् ( आतपशा ।।
१९-१२-२० पूवाहतपुदलचयादि । २४ | ९८ इहपरोभयभविकशानदर्शनचा. ५ वीरवर्णनं समयसरणान्तम् । १० १३-४७ पुगलमेदचयनोपचयनोदी- रित्रतपःसंयमप्रश्नोत्तरे। ३४
.
॥१०॥
~112~
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
रहनुक्रमः॥
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥१०॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि'
१९ असंवृतसंवृताः सिद्धिसिद्धी । २७ नारकादीनामसञ्झ्यायु-प्रमाणम् ५२ | कधभावेऽपि च काङ्क्षामोह - फलं च तयोः।
॥प्रथमे द्वितीयः ॥
नीयवेदनम् । २० असंयतस्याध्यकामनिर्जरया देवत्वम् । २८ काजामोहनीयदेशसर्वकृतादि । ५३ ३८ शानदशनाद्यन्तरनिग्रन्थानां का
क्षामोहनीयवेदनम् । २९-७० काङ्क्षामोहनीयत्रिकालि. ॥ प्रथमे प्रथमः ॥ ककरणादिनिर्जरान्तप्रश्नोत्तरे,
॥ प्रथमे तृतीयः ॥ २१ स्वयंकृतदुःखादिवेदनावेदने । ३९ |
३० काङ्क्षामोहनीयवेदनपद्धतिः । ५४ | ३९-८७ कर्मप्रकृत्यतिदेशः । ६३ २२-६७ नारकादीनामाहारशरीरो३१-३२ जिनोक्तसत्यता, मनोधा
४० मोहनीयोदयेन बालवीयेंणोच्छासनिःश्वासकर्मवर्णलेश्यावेद
त्थानं, बालपण्डितत्वेनापक्रमणं, रणादेराराधकत्वम् । नाक्रियाऽऽयुःसमत्वादिनिरूपणम् ४६
उपशान्तेन तु पण्डितत्वेनोत्थान २३ लेझ्याऽतिदेशः। ४७ ३३ अस्तित्वादिपरिणामगमनीये । ५६
बालपण्डितत्वेनापक्रमणम् । ६४ २४ नारकादिशून्याशून्यमिश्रकालाः ४९ ३४ पत्थेहगमनीयप्रश्नोत्तरे। ,
४१ प्रदेशानुभागकर्मणी। २५ अन्तक्रियातिदेशः । , ३५ काङ्क्षामोहनीयबन्धकारणानि।
४२ पुबलजीवत्रिकालिकत्वसिद्धिः । ६६ २६ असंयतभव्यद्रव्यदेवादिसलिङ्ग
(प्रमादयोगवीर्यशरीरजीवाः) । ५७ ४३ छद्मस्थस्य केवलब्रह्मचर्यायदर्शनब्यापन्नानां जघन्योत्कृष्टो
३६ उत्थानादिनाऽनुदीर्णोदीरणादि ।५९ भावः, केवलिना पकालिकी। त्पादः । ५१। ३७ नारकादीनां पृथिव्यादीनां च त- सिद्धिः।
६७
Pue
। ॥१०॥
~113~
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥१०२॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ प्रथमे चतुर्थः ॥ १४ ॥ ४४-१४७ नरकावासासुरावासवि
मानसङ्ख्या ।
७२
७३
४५-१५ नरकावासादिस्थितिस्थानेषु क्रोधोपयुक्तादि । ४६ अवगाहनाशरीरसंहननसंस्थानलेश्यासु क्रोधोपयुक्तादि । ४७- १६ दृष्टिज्ञानयोगोपयोगेषु क्रोधोपयुक्तादि । ४८-५० असुरकुमारावासेषु पृथि व्यादिस्थावरेषु विकलेन्द्रियादिषु च क्रोधोपयुक्तादिभङ्गाः । ७७ ॥ प्रथमे पञ्चमः ॥ ५१ सूर्यचक्षुः स्पर्शावभासनादि । ७८ ५२ लोकालोकोदकपोताद्यन्तस्पर्शना । ७९
६८
७०
५३ प्राणातिपातादिभिख्यादिदिक्षु आनुपूर्वीक्रिया । ५४-१८ लोकादिपूर्वपचाद्भावे रो
८०
~ 114~
८१
इकप्रश्नः ।
५५ आकाशप्रतिष्ठितादिलोकस्थितिः । ( वस्तिपूरणदृष्टान्तः ) | ८२ ५६ जीवपुलानामन्योऽन्यबद्धत्वादि । ( दहनौदष्टान्तः ) ५७ सूक्ष्मस्नेहकायपतनम् । ॥ प्रथमे षष्ठः ॥ ५८ देशसर्वोत्पातादि । ५९ देशसर्वाहारोद्वर्त्तनादि । ६० विग्रहाविग्रहगत्यादि । ६१ इयादिप्रत्ययं देवानां च्यवने आ
हाराभावः ।
८३
८४
११
८५
८६
33
६२. गर्भव्युत्क्रमे सेन्द्रियत्वादि (ग भहारमात्र ङ्गपिङ्गतत्कालाः) | ८८ ६३ गर्भगतस्य नारकदेवगत्युत्पादः, उत्तानकादिगर्भनिर्गमः, दूरुपा दिकारणं च ।
९०
॥ प्रथमे सप्तमः ॥
33
६४ एकान्तवालस्य चतुर्गतिगमनम् । ६५ पण्डित - वालपण्डितयोर्गतिः । ९१ ६६-७० कूटपाशेऽग्निकाये इषौ च सुगाय निसृष्टे क्रियाप्रश्नः, कर्णायतेपुपुरुषवधेषु मृगवधे वैरक्रियाप्रश्नः पुरुषवधे क्रियाप्रनः । ९४ ७१ जयपराजयकारणानि ।
७२ सकरणाकरणवीयें ।
॥ प्रथमेऽष्टमः ॥
==
बृहत्क्रमः।।
॥१०२॥
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बहतक्रमः॥
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
वा ७३ प्राणातिपातादिततिरमणाभ्यां गु. ७९ आधाकर्मप्राशुकयोभोगे बन्धाब- ८४ १९७ उद्देशक (१०) सङ्गहगा- भगवत्यंगरुलघुत्वादि भ्रमणव्यतिव्रजना- धादि ।
१०२ | था, पृथ्यादीनामुच्छ्वासाद्यस्तिन्तम् ।
९५ ८० अस्थिरादेर्लोठनभाने, शाश्वते । त्वम् । ७४ अवकाशवातादिनारकादिपुद्गला- बालपण्डितत्वे च । १०२ ८५ द्रव्याधैरुच्छ्वासगमः, वायोस्तिकायलेश्यानादिकालानां ।
रपि ।
॥ प्रथमे नवमः ॥ ॥१०३
११० गुरुलधुत्वविचारः। ९७
८६-८९, वायोर्भूयस्तत्रोत्पत्तिः, स्पर्श ७५ लाघवायकोषत्वादेः प्रशस्तत्व ८१ चलदचलितादि, विषमपरमाण
मरणं, सशरीरादिनिर्गमः, श___प्रागबहुमोहोऽपि संवृतोऽन्तकरः।, |
स्कन्धसमविभागभाषाक्रियासम
रीरचतुष्कं च, मृतादिनः पुन
याभाषाक्रियाऽक्रियेत्यन्ययूधिक|७६ नैकदा भवद्वयायुर्वेदनम्। ९९ |
नरादित्वं, प्राणभूतजीवसत्त्ववि
मतम्। ७७ पार्थापत्यकालाशयेशिकस्थविर-
शव्युत्पत्तिः,मृतादिनः सिद्धिः। ११२ ८२ युगपदीर्यापथिकसांपरायिकक्रिये ९०-९२ स्कन्दकचरित्रं, पिकलनिम्रविवादः । ( सामायिकसंयमविइत्यन्ये।
न्थः, सान्तलोकादिप्रश्ना, पूर्वबेकादीनामर्थविषये पञ्चमहाब
८३ नरकगत्युत्पादविरहातिदेशः । १०८ सङ्गतिकतया गौतमप्रत्युगमनं, ताङ्गीकारः सिद्धिश्च । १०१
॥ प्रथमे दशमः ॥
व्यावृतभोजिवीरवर्णनं, लोकN७८ श्रेष्ठिदरिद्रादेः समाऽप्रत्याख्यान
सिद्धिसिद्धमरणस्वरूपं, स्कन्दकिया। ॥ इति प्रथमं शतकम् ॥१॥
कदीक्षा, मुनित्वं, प्रतिमा, गुण
॥१०॥
~115~
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥१०४॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
रत्नतपः, कृशतावर्णनम् । ९३-९५ विपुलेऽनशनविधिना कालकरणं, कायोत्सर्गेऽच्युतगतिः । १२९
॥ द्वितीये प्रथमः ॥ ९६ समुद्घातातिदेशः ।
॥ द्वितीये द्वितीयः ॥ ९७-२० पृथिव्यतिदेशः । ॥ द्वितीये तृतीयः ॥ ९८ इन्द्रियातिदेशः ।
१२६
१३०
१३०
१३१
॥ द्वितीये चतुर्थः ॥ ९९ अनेकधापरिचारणायामप्येको वेद एकदा देवस्य । १०० उदकतिर्यङ्मानुषीगर्भकालः । १०१-२ कायभवस्थकाल, मनुष्य
31
१३३
पञ्चेन्द्रियोनिबीजकालः ।
१०३-५ एकजीवपितृसङ्ख्या, एकजीवपुत्रसङ्ख्या, मैथुनासंयमस्योपमा ।
१०६ तुङ्गिकाश्राद्धवर्णनम् । १०७ पार्श्वापत्यागमः । १०८ विधिना श्रावकनिर्गमः । १०९ संयमतपः फलं पूर्वतपःसंयमकर्मित्वसहित्वैर्देवत्वं, का लिकमैथिलानन्दरक्षितकाश्य पानां पृथगुत्तराणि । १३९ ११० श्रीगौतमवीरप्रश्नोत्तरे, सत्य एषोऽर्थो नात्मभाववक्तव्यता । १४० १११-२१७ पर्युपासनाश्रवणादिफल
परम्परा ।
~ 116 ~
35
१३४ १३६
१३७ १३८
११२ वैभारगतमहातपडपतीरप्रश्रवणेSम्ययूधिकमतनिरासः । ॥ द्वितीये पञ्चमः ।
११३ भाषातिदेशः ।
॥ द्वितीये षष्ठः ॥ ११४ भवनाद्यतिदेशः ।
१४२
१४२
१४३
॥ द्वितीये सप्तमः ॥ ११५ चमरस्योत्पातपर्वतः प्रासादावतंसकादि, चमरचञ्चा, तत्माकारादि, अर्चनायतिदेशः । TUE ॥ द्वितीयेऽष्टमः ॥ ११६ समय क्षेत्रयक्तव्यताऽतिदेशः । १४७ ॥ द्वितीये नवमः ॥ ११७-११८ पञ्चास्तिकायप्ररूपणा, सं
बृहत्क्रमः ।।
॥१०४॥
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
बृहत्क्रमः।
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥१०५।।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
पूर्णस्यास्तिकायता, नैकायू- | १२५ मोकायामग्निभूतिकृतश्चमर- | १३३ तामलिनः प्राणामा प्रव्रज्या, । १६४ नस्य।
वैक्रियशक्तिप्रश्नः । १५५ | १३४-१३५ अनशनबलिचञ्चाऽसुर| ११९ अनन्तमत्यादिज्ञानपर्यायोपयो- | १२६ चमरसामानिकत्रायशिलो- प्रार्थनाऽनिदानं, ईशानेन्द्रता,
गादुत्थादियुतो जीवः । १४९ कपालाप्रमहिषीप्रश्नः । १५६ । हीलना च । | १२० लोकाकाशस्य जीवजीवदेश- | १२७ अग्निभूत्युक्तस्याश्रद्धानं वीर - | १३६ ईशानेन्द्रक्रोधः, बलिराजधान्या ।
त्यादि,धर्मास्तिकायादेरपि । १५१ पृच्छा पश्चाद्वायुभूतिक्षामणं च । १५६ | उपद्वः, क्षामणं, शान्तिश्च ।। १६८ | १२१ अलोकाकाशस्यापि । | १२८ अग्निभूतिवायुभूतिकृतबलीन्द्रा- १३७ शक्रादीशानस्य पृथग् विमाना- । १२२ धर्मास्तिकायादिमहत्ता। , दिशकान्ततत्सामानिकादिवकि- न्युश्चत्वं चैषां।
१६८ यशक्तिप्रश्नः। १२३-२४ । २२% धर्मास्तिकायस्य
१५८ | १३८ ईशानान्तिके शकागम आदरे, लोकस्पर्शन, रत्नप्रभादेर्घर्मा -
| १२९ सामानिके तिष्यकानगाराधिका- इतरस्योभयथाऽपि, कार्य च
१५२ स्तिकायावेः स्पर्शनम् ।
वैक्रियशक्तिप्रश्नश्च । १५९ | इतिभो ईशान इत्यादि। ॥ द्वितीये दशमः ॥
१३० वायुभूतिकृत ईशानशक्तिप्रश्नः ।, | १३९ शक्रेशानविवादनिर्णायकः स
१३१-१३२ कुरुदत्तशक्तिप्रश्नः स- नत्कुमारः। ।। इति द्वितीयं शतकम् ॥
नत्कुमारादितत्सामानिकादिव- १४०-२४ । २५ सनत्कुमारस्य भ२३% उद्देश (१०) सङ्ग्रहगाथा १५३ क्रियशक्तिप्रश्नः। १६० । व्यत्वादि श्रमणादीनां हिता
| ॥१०५॥
~117~
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥१०६ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
दिकामत्वात् । तिष्यककुरुदत्तस्तपादि । २४७
विमानोच्चत्वप्रादुर्भावादिसङ् - ग्रहः । २५७
॥ तृतीये प्रथमः ॥ १४९ असुराणां तृतीय पृथिवीं याबद् पूर्ववैरिमित्रबाधाशान्तिकरणाय गमनं, नन्दीश्वरद्वीपगमने या बदजन्ममहादिकारणानि, सौधर्म यावद्भवप्रत्ययवैराद् गमनं, आत्मरक्षान् वित्रास्य रत्नचौर्य
च ।
१७०
१६९
१४२ अर्हतचैत्यानगारनिश्रयाऽसुरोल्पातः । १४३ विन्ध्यगिरिपादमूले बेमेलसनिवेशे पूरणस्य दाणामा प्रव्रज्या,
१७१
भक्तपानप्रत्याख्यानं, एकादशवर्षपर्यायस्य वीरस्य सुसुमारे एकरात्रिकी प्रतिमा, चमरस्य क्रोधः, वीरशरणं, शक्राक्रोशः, वज्रमोचनं, वीरपादान्तरे प्रबेशः ।
"
१७५ १४४ आशातनाभयाद्वज्रग्रहणम् । १७६ १४५ वीराय स्ववृत्तान्तनिवेदनं, क्षा मणं, असुरेन्द्राभयं च । १४६ शक्रवज्रासुरगतिनिर्णयः । १७९ १४७ वीरप्रभावेण मुक्तत्वाद्वीर भक्तिः । १८० १४८ शक्रर्द्धिदर्शनार्थमसुराणामुत्पातः १८१ ॥ तृतीये द्वितीयः ॥ १४९ मण्डितक्रियाप्रनः । १५० पूर्व क्रिया पश्चाद्वेदना ।
~118~
.
39
ર
१५१ प्रमादयोगजा निर्गन्धानां क्रिया । १८२ १५२ एजनादिमतामारम्भादिभावान्नास्तक्रिया, इतरस्य स्यात् तृणतृणपूलको बिन्दुनोट शन्ताश्च । १८५ १५३ प्रमत्ताप्रमत्तकालः । १५४ गौतमकृतलवणवृद्धिहानिप्रश्नातिदेशः ।
॥ तृतीये तृतीयः ॥
१५५ वैक्रिययानादिज्ञानप्रक्षः । १५६ पताकाविकुर्वणं, अनेकयोजनगमनादि बायोः ।
35
१५७ बलाहकस्य ख्यादिरूप परिणामः १८८ १५८ मरणोत्पादयोः समलेश्याकत्वम् ।
"
१८६
१८९
बृहत्क्रमः।
॥१०६॥
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बहतक्रमः।
यहां देखीए
सूत्रे
श्री II १५९ प्रणीतभोजनादेर्मायिनो वै- नतदायत्तदेवकार्यग्रहनिरूपणम |२०० ॥ चतुर्थ चत्वारः ॥ १-४॥ भगवत्यंग- II क्रियं, अमायिन आलोचितस्या
|| तृतीये सप्तमः ॥ १७२ ईशानलोकपालराजधान्यः । , राधना।
१६८-३०७ असुराँदिनिकायसौधर्म॥ तृतीये चतुर्थः ॥
॥ चतुर्थेऽष्टौ ॥ शानाद्यधिपाः (१०)। २०१९७३ नारको नरके उत्पद्यते इत्याद्य१६०-२६० स्त्रीअसिचर्मपल्यवादि
तिदेशः ।
॥ तृतीयेऽष्टमः ॥ विविधवैक्रियकरणं भाविता
२०५
॥ चतुर्थे नवमः ॥ त्मनः । १९१ १६९, इन्द्रियविषयातिदेशः । ,
१७४।३३७ लेझ्यापरिणामवर्णातिदेशः२०६ ॥ तृतीये पश्चमः ॥
|| तृतीये नवमः ॥ १६१-१६२ मिथ्याट वितात्मनः | १७० असुरादिपर्षदतिदेशः।
॥ चतुर्थे दशमः ॥
२०२ | सम्यग्दृष्टश्व समुदाते रूपज्ञान
॥ तृतीये दशमः ॥
॥ इति चतुर्थ शतकम् ।। प्रश्नौ । १९३
३४० उद्देश (१०) सङ्ग्रहणी । २०६ १६३ चमराद्यात्मरक्षकसङ्ख्याति
॥ इति तृतीयं शतकम् ॥
१७५ उदमाच्यामुद्गम्य प्रारदक्षिणादेशः।
१९४ | ३१६ उद्देश (१०) संग्रहणी। २०३ | गमनमित्यादिसूर्यवक्तव्यता । २०७ ॥ तृतीये षष्ठः ॥ १७१ ३२७ ईशानलोकपालविमान- | १७६ मेरुदक्षिणोत्तरा दिदिनरा१६५-१६७।३९० शकलोकपालतद्विमा- | स्थितयः।
२०३ . त्रिमुहूर्तपृच्छा । २०९
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
8
444100
॥१०७॥
~119~
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्रममा
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥१०८||
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
१७७ दक्षिणोत्तरादिौ समयावलि. १८४ स्पृष्टारगतशब्दश्रवणं छास्था- । कर्मादिनानं १९३, प्रणीतमनोवा कादिप्रथमतानिर्णयः । २१० नां, निर्वृत्तज्ञानदर्शने केवलिनः।२१७/ वाग्ज्ञानं वैमानिकानाम् १९४, १७८ लवणधातक्यभ्यन्तरपुष्कराढ़ें
१८५ चारित्रमोहनीयेन हसनं, केवल्यनुत्तरयोरालापादि मनो
बानं च १९५, उपशान्तमोहा प्वपि । दर्शनावरणीयेन निद्रादि । २१८
अनुत्तरोपपातिनः १९६। २२३ ॥ पञ्चमे प्रथमः ॥
२१९ / १८६ योनितो गर्भ संहरणम् ।
१९७-९९ निर्वृत्तज्ञानानां नादानः प्र| १७९ पूर्वपश्चिमादिषु वातसाम्य, द्वी- १८७ अतिमुक्तकाधिकारः, पतहहया- ।
योजनम् १९७, एतद्भविष्यत्सपसमुद्रयोयत्ययान्न लवणवे- हनं, अग्लान्या वैयावृत्त्योपदेशः।,, |
मययोर्न समप्रदेशेषु हस्ताद्यवलातिक्रमः, उत्तरक्रियायां पूर्व १८८ महाशुक्रीयदेवकृतो मनसा वीर- गाहः १९८, चतुर्दशपूर्विकृतो
वातादि, वायुकुमारकृतमपि । २१२ शिष्यसिद्धिप्रश्नः, गौतमजिज्ञासा, करिकाभिन्नघटसहस्रादिदर्श१८० ओदनादेरग्निशरीरता । २१४ वीराज्ञया गौतमदेवप्रश्नोत्तरे । २२१ | नं १९९ ।
२२४ १८१ लवणविष्कम्भातिदेशः । २१४ | १८९ नोसंयता देवाः। २२१ | ॥ पञ्चमे चतुर्थः ॥
॥ पञ्चमे द्वितीयः ॥ १९० देवानामर्धमागधी भाषा । " | २००-२ न छास्थस्य केवलसंयमा१८२ अनेकायुर्वेदनिरासः । २१५ १९१-९६ केवलितच्छ्र-वकादेरन्तक- दीत्याद्यतिदेशः । २००, एवं१८३ कृतायुषो भवान्तरे सङ्क्रमणम्।२१६ त्वनिर्णयः १९१, चतुष्प्रमाणा- भूतवेदनानिरासः २०१, कुल॥ पञ्चमे तृतीयः॥ तिदेशः १९२, केवल्यादेश्वरम
करादिस्वरूपातिदेश: २०२। २२५
॥१०८॥
~ 120~
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
वह हत्क्रमः॥
यहां देखीए
दीप
क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
॥ पञ्चमे पञ्चमः ॥
। पञ्चमे षष्ठः॥ | २१९ हेत्वहेतुज्ञानाज्ञानादि । २३९ भगवत्यंग-IN२०३ अस्पूदीर्घाशुभशुभदीर्घायुःका- २१२-१३ परमाणुजात्वेजनावि, द्विप्र
॥ पञ्चमे सप्तमः ॥ रणानि ।
देशिकादिदेशैजनादि २१२, अ- | २२० पुगलसार्दाना विप्रश्नोत्तरे, AN२०४ भाण्डापहाराऽऽगमक्रयविक्रयो- नन्तप्रदेशिकस्यैव छेदभेदाईत्व
नारदनिम्रन्थीपुत्रयोः । (पुग॥१०९||
पनयादिषुक्रिया, अधुनोज्ज्व- विघातादि २१३। २३३ लपटत्रिंशिका)। २४४ लितानी महाकर्मता। २२९ २१४ परमावासामध्यपालि
| २२१ जीवनरकसप्तकादिवृद्धिहानिका२०५-२०६ ऊर्ध्वगतेषुणा हिंसायां कि
प्रश्नः ।
____लसोपचयादितत्कालनिरूपणम्।२४६ यापञ्चकम् २०५, तस्येषोः पतने | २१५ परमाण्वादेः देशसर्वस्पर्शना । २३४
॥पञ्चमेऽष्टमः ॥ हिंसायां चतुरादिक्रियाविचा- | २१६ परमाण्वादे: स्थितिसैजनिरेजरः २०६। २३०
२२२ पृथिव्यबाधे राजगृहता। २४६ २०७-९ चतुष्पञ्चयोजनशतान्याकु
त्वगुणपरिणामप्रश्नः,शब्दाशब्द- | २२३-२२४ नारकासुरादीनामन्धकालाः नरकाः, न नरलोकाः २०७,
परिणामकालप्रश्नः। २३५ रोद्योतकारकाः । २२३, नारनार कवैक्रियातिदेश: २०८, आ|२१७-३५ द्रव्यक्षेत्रावगाहनभाव
काणां न समयादिव्यवहारः धाकर्माधनवद्यचिन्तकादेर्नारास्थित्यल्पबहुत्वम्, (खण्डषट्
२२४।
२४७ धना २०९ ।
त्रिंशिका)।
| २२५-२६-३६७ पापित्यस्थवि२१०-११ आचार्यस्य प्रयो भवाः २१०, २१८ नारकतिर्यग्नरदेवानामारम्भ राने पार्श्वनाथवचःसंवादेन लोअभ्याख्यानकर्म २११ । २३२ । परिप्रदौ ।
कासरण्यत्वनिर्णयः पञ्चया
२३१ ।
१०९॥
~ 121~
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
श्री
सूत्रांक
FACHR
भगवत्यंग
२६७
यहां देखीए
॥११॥
माङ्गीकारः २२५, चतुर्विधदे
॥पष्ट द्वितीयः ॥
२३९-४२७ प्रत्याख्यानिप्रल्याण्यानबलोकातिदेशः २२६, उद्देश- ३९-४०० उद्देशार्थसङ्ग्रहणीगाथा २५३ | तज्ज्ञानकरणतन्निवर्तितायुर्विकार्थसश्नहणी ३६० । २४९ २३२ महाकर्मादेः पुगलानां चयनादि
चार।। ॥ पञ्चमे नवमः । ५-९॥ अहतववस्येव, अल्पकर्मादेर
॥ षष्टे चतुर्थः॥ २२७ चन्द्रोदयवक्तव्यताऽतिदेशः। २४९
न्यथा।
२५४२४० तमस्कायस्वरूप-तत्समुत्थान॥ पञ्चमे दशमः ॥ | २३३ वस्त्रदृष्टान्तेन योगैः कर्मोपचयः।। ।
निष्ठा-संस्थानविष्कम्भादिमह - ॥ इति पञ्चमं शतकम् ॥ | २३४ कर्मोपचये सादित्वादिचतुर्भङ्गी
त्तातिक्रमणकालाः, गृहाद्य
भावः, असुरादिकृतत्वं, बादर३७७ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । २५०
प्रक्षः,मारकादीनां सादित्वादि । २५५
पृथिव्याघभावः, तन्नामानि, अ२३५-३६ कर्मप्रकृतिस्थित्यवाधे २३५, | २२८ महाऽल्पवेदननिर्जरानिरूपण स-
प्रकृतिबन्धे वेदसंयतदृष्टयादि
बादिपरिणामता। धान्तम् । २२९-३०-३८७ मनोवाकायकर्मकर
विचारः २३६ । २५९ | २४१-४३७ कृष्णराजीसंख्यापरस्प
रस्पर्शसंस्थानविष्कम्भादि ना| २३७ स्त्रीपुंनपुंसकवेदावेदानामल्पणनिरूपणं २२९, जीवादीनां
मानि च।
२७१ महाऽल्पवेदनानिर्जराकत्वं २३०,
बहुत्वम् ।
" २४२-४५ लोकान्तिकानां विमानउद्देशकार्थसङ्ग्रहणी ३८ । २५२
॥ पठे तृतीयः ॥ ६-३
परिवारस्थितिलोकान्ताबाधाः।२७२ | ॥ घष्ठ प्रथमः ॥ | २३८-४१७ गतिकायाहारकमव्या
॥ षष्ठे पञ्चमः ॥ | २३१ आहारातिदेशः।
२५२ | विषु सप्रदेशाप्रदेशविचारः। २६६ । २४३-४४ अनुत्तरान्तावासा, मरण
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२७०
॥११०
~122
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रमः॥
समवत्यंग
यहां देखीए
॥११॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
समुदधाते तत्रगतप्रतिनिवृत्ता- २४९ जातिनामनिधत्ताधायुर्वन्धाः । २८१ | २५७ २५८५२ स्वावगाढादेराहारः। नामाहारपृच्छा । २७४ | २५० लवणे उत्सृतोदकादित्वं, द्विद्धि
२५७. केवलिनो नादाननिं, ॥षष्टे षष्ठः ॥
विष्कमा द्वीपसमुद्राः शुभनामानः।२८२ उद्देशकार्थसाहणी २४५ शाल्यादिकलायाद्यतस्यादियो
॥ षष्ठेऽष्टमः ॥ निकालः ।
२७४ २५१ बन्धाबन्धातिदेशः । २८३
॥ षष्ठे दशमः ॥ २४६-४७१५०० मुह द्यावलिकादि२५२ तत्रगतपुद्गलादाने देववैक्रिय,
॥ षष्ठं शतकम् ॥ पल्योपमसागरोपमसुषमसुष
पुद्गलपरीणामपरावृत्तिश्च । २८३ | ५३० उद्देशक (१०) संग्रहणी । २८७ । मादिप्ररूपणा २४६-५०8, सु
२५३ समुद्घातासमुद्घाते शुद्धाषमसुषमायां भरताकाराद्यति
२५९ अनाहाराल्पाहारकालः । २८८ देशः । २४७ ।
२७८
शुद्धलेश्यस्य शुद्धाशुद्धलेश्य|
२६० लोकसंस्थानम् । ॥ षष्ठे सप्तमः ॥
देवदेवीज्ञानादि ।
२८४
|२६१-६३ सामायिकवतः श्राद्धस्या२४८-५१ॐ रत्नप्रभादेरधो गृहाय
॥ षष्ठे नवमः ॥
धिकरणी क्रिया २६१, पृथ्वी भावः, देवादिकृतं वर्षादि, च- २५४ यावद्भूतं सुखादिदर्शनाशक्तिः। २८५ खनत प्रत्याख्यानिनस्तृणवनतुर्थ्यादेरधो देवकृतं वर्षादि, २५५ जीवजीवयोर्जीवनारकादिकयो- स्पतिवधेऽपि नातिचारः २६२, सौधर्मेशानयोरधो देवासुरकृतं व्यभिचारेतरविचारः ।
श्रमणप्रतिलम्भनान्मोक्ष: २६३१२८९ व०, तमस्कायादिसनहगाथा २५६ एकान्तदुःखाहत्यसातैकान्तसा- २६४ सदृष्टान्तं निःसङ्गत्वादिना:५१ । २७९ ताहत्यासातविमात्रावेदना। २८६ । कर्मणो गतिः ।
२९०
क
॥११॥
~123.
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
भगवत्यंग-
यहां देखीए
॥११२॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२६५ दुःखिनो दुःखस्पर्शादि । २९१ पुद्गलव्युत्क्रमाद् ग्रीष्मे तच्छोभा, २८२-८५ नारकादेरिहायुःकरण, उ. वृहत्क्रमः॥ २६६-६८ अनायुक्तगमनादेः साम्प- २७४, मूलकन्दादीनां पृथिवी. त्पन्नस्यैकान्तदुःखाहत्यसातादि रायिकी २६६, साकारधूमादे
मूलादिप्रतिबन्धादाहारादि २७५ २८२, अनाभोगनिवर्तिता - रर्थः २६७, क्षेत्रकालमार्गप्रमा
आलुकमूलकादीनामनन्तकायता युषो जीवाः, २८३, वधाणातिकान्तानामर्थः २६८ । २६३ २७६ ।
३०० दिना कर्कशवेदनीयानि, तद्वि२६९ शस्त्रातीतादेरर्थः। २९४ २७७ कृष्णनीलादिलेश्यानां क्रमा
रमणेन त्वितराणि २८४, प्राणा॥ सप्तमे प्रथमः ।।
स्थित्यपेक्षया महाकर्मता । ३०१ द्यनुकम्पादिभिः सातं, दुःखना२७० अज्ञातजीवादेवधप्रत्याख्यानं दु. | २७८ वेदनं कर्मणः, निर्जरा नोकर्मणः, दिभिरितरत् २८५। ३०५ अत्याख्यातत्वादि।
भिन्नकर्मता न वेदननिर्जरयोः । ३०२ २८६-८७ दुष्षमदुषमायां भरतस्या| २७१-५४ देशसर्वमूलोत्तरप्रत्याख्या- | २७९ नारकादेः शाश्वताशाश्वतत्वे ।।
कारप्रत्यवतारः २८६, तत्र मनुनानि ।
|| सप्तमे तृतीयः ॥
प्याणामाकारप्रत्यबतारः २८३॥ ३०९ ॥ २७२ मूलोत्तरप्रत्याख्यान्यप्रत्याख्या- .. २८०-५५ षड्विधसंसारसमापन्नजीन्यल्पबहुत्वम् । . २९९
|| सप्तमे पष्ठः ॥ वाद्यतिदेशः । २७३ जीवस्य शाश्वताशाश्वतत्वे । ,
| २८८-८९ सकषायिणः संवृतस्यापि ॥ सप्तमे द्वितीयः ॥
॥ सप्तमे चतुर्थः ॥
साम्परायिकी२८८, कामभोगा२७४-७६ प्रावृषि बहुः, ग्रीष्मे चाल्पा- २८१-५६० योनिसाहायतिदेशः । ३०३
नां रूपित्वसचिसत्यादि २८१३१
LSररसा
॥२१॥ हारो बनस्पतेः, उष्णयोनिजीव
॥ सप्तमे पञ्चमः ॥ । २९० भोगत्यागान्महापर्यवसानं, प
~124
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
वृहतक्रमः।
यहां देखीए
सूत्रे
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
रमावधिकेवलिनी क्षीणमो- २९९ महाशिलाकण्टकाधिकारः, चतु- [३०५ पापकल्याणफलविपाकतानि -
गिनौ। भगवत्यंग-IN ३११ रशीतिलक्षजनक्षयः, ओसन
रूपणम् । |
३२६ २९१ अकामप्रकामवेदनास्वरूपम् । ३१२ नरकतिर्यक्षु ।
३१९ | ३०६-७ अग्निज्वालननिर्वापनयोर्महा॥ सप्तमे सप्तमः ॥
| ३००-३ रथमुशलाधिकारः, मुश - ऽल्पकर्मत्वादि ३०६, तेजोलेका २९२-९३ छद्मस्थादीनां केबलसंय- लस्वरूपं, षण्णवतिलक्षजन- श्याऽचित्तपुद्गलानामवमासादि, ॥११३॥ माद्यभावभावौ २९२, हस्तिकु
क्षयः, ओसन्नं नरकतिर्यक्षु कालोदायिसिद्धिश्च ३०७ । ३२७ न्थ्वोः समो जीवः २९३। ३१३ ३००, कोणिकस्य देवेन्द्रः पूर्वस
॥ सप्तमे दशमः ॥ २९४-९५ कृतस्य तुःखता, निर्जीर्ण ऋतिकः, चमरः पर्यायसङ्गतिकः
॥ इति सप्तमं शतकम् ॥ स्य सुखता २९४, दश सज्ञाः,
३०१, राजाभियुक्तबरुणसुभट
५७६ उदेश (१०) सङ्ग्रहणी । ३२८ नारकादीनांशीतादिवेदना २९५,३१४
देवगतिप्राप्त्या सङ्ग्रामहतानां
३०८ प्रयोगादि (३) परिणताः, २९६-९७ हस्तिकुन्थ्योः
स्वर्ग इतिवादः, तन्मित्राधिसमाऽप्रत्याख्यानक्रिया २९६, आधाकर्मकारो देवप्रातिहार्यं च ३०२,
पुद्गलाः । बरुणतन्मित्रयोदेवमानुष्यगती ३०९ सप्तभेदैकेन्द्रियादिप्रयोगपरिणभोगफलाद्यतिदेशः २९६। ३१५ |
३०३ । ३२३ ताः पुद्गलाः ।
३३२ ॥ सप्तमेऽष्टमः ॥
॥ सप्तमे नवमः ॥
३१०-११ मिश्रपरिणताः ३१०, वि. २९८ असंवतानगारस्येहपुद्गलादानेन | ३०४ कालोदायिनः प्रतिबोधो, दीक्षा-
सापरिणताः ३११ । , वैक्रियम् ।
३२५ । ३१२ एकद्रव्यस्य प्रयोगादिपरिणामा-
॥११३॥
~125~
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
श्री
सूत्रांक
हत्क्रममा
यहां
देखीए
भगवत्यंग
सूत्रे ॥११॥
रम्भादिविचारः । ३३६ | ३२० उपयोगयोगलेश्यावेदाऽऽहार- ३२८-३० स्थूलप्राणातिधातादी एकोGI ३१३ गाविद्रव्याणां प्रयोगादि। ३३९ । मार्गणास मान्यज्ञाम्यधिकारः। ३५१
नपश्चाशद्भङ्गाः ३२८, 'अक्षीण३१४ प्रयोगादिपरिणतानामल्पबहु- ३२१-२२ ज्ञानाशानानां विषयः ३२२, प्रतिभोजिनः सत्त्वाः' इत्याजीत्वम् । स्थितिपर्यायाल्पबहुत्वं ज्ञाना
विकमते तालाद्याः, कर्मादान॥ अष्टमे प्रथमः ॥ शानानाम् ३२२।
वर्जकास्तु श्रावकाः ३२९, देव३१५ जातिकर्माशीविषनिरूपणम् । ३४२
॥ अष्टमे द्वितीयः ॥
लोकातिदेशः ३३०। ३७३ ३१६ छमस्थसर्वभावाशेयकेवलि| ३२३ सङ्ख्याऽसव्याऽनन्तजीवि
|| अष्टमे पञ्चमः ॥ काः । ज्ञेयाः ।
___" | ३२४ छिन्नकूर्मादेरन्तरा प्रदेशानां ना- | ३३१ श्रमणादिप्रतिलाभे एकान्तनि३१७ आभिनियोधिकादिशानाज्ञान
जरादि ।
३७४ स्वरूपं, जीवनारकादीनां ज्ञान्य
३२५ पृथ्व्यादीनांचरमादिरतिदेशेन । ३६६ | ३३२ पिण्डप्रतिग्रहादियष्टिसंस्तार - जानित्वादि ।
३४५ || अष्टमे तुतीयः ।।
कान्तयावद्दशकनिमन्त्रण निम्र३१८ गतीन्द्रियादिमागणासु शान्य | ३२६ कायिक्यादिक्रियाऽतिदेशः। ३६७ न्थस्थविरविधिना । ३७५ ज्ञानित्वादि ।
॥ अष्टमे चतुर्थः ॥
३३६ अकृत्ये प्राप्त्यप्राप्त्योराराधना३१९ शानदर्शनादि (१०) लयल- ३२७ सामायिके 'नो मे हिरण्य
विराधनाऽधिकारः । ३७६ धिषु ज्ञान्यज्ञानिविचारः। (प- मित्याविभावेऽपि ममत्वभावा- | ३३४ अनेर्मानं न वादेः । ३७६ रिहारविशुद्धयधिकारः)। ३५४ तदीयं भाण्डादि । ३६८ | ३३५ औदारिकादिशरीरेभ्यः क्रिया। ३७८
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
बाधादि
॥११४॥
~126~
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥११५॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ अष्टमे षष्ठः ॥ ३३६-३३७ दीयमानस्य दन्तत्वान्नादतादानं, देशदेशेन वजनान हिंसाः इत्यन्ययूथिकान् प्रतिहत्य स्थविरा गतिप्रपाताध्ययनं जगुः ३३६, गतिप्रपातातिदेश: ३३७ ।
॥ अष्टमे सप्तमः ॥ ३३८ गुरुगतिसमूहानुकम्पाक्षुतभाप्रत्यनीकाः ।
३३९ - ३४१ आगमादिः पञ्चविधो व्यवहारः ३३९, ईर्यापथिकसास्परायिकबन्धे वेदनाकालानां साधनादिना देश सर्वाभ्यां च विचार: रु. ४०-३४१ ३४२ ५८-५९७ कर्मप्रकृत्यादिषु प
३८२
૩
૩૮૮
पहावतारः, वेदनीयपरीषद्दाः ५८, मोहपरीषदाः ५९३ । ३९२ ३४३ सूर्यस्योद्गमनादौ दूरमूलदशनादिकारणं, प्रत्युत्पन्नगमनप्रभासनादि, तापक्षेत्रमानं, उपपातविरहः ।
३९४
॥ अष्टमेऽष्टमः ॥
३४४-३४५ प्रयोगविश्वसाबन्धी ३४४, अनादिविश्रसावन्धो धर्मादेः, सादिर्बन्धनभाजनपरिणामैः, तस्थितिश्च ३४५ । ३४६ प्रयोगन्धे सिद्धानां साद्यपर्यवसितः, आलापनाधयणशरीरशरीरप्रयोगेषु सादिसपर्ययसितः, शरीरबन्धे पूर्वप्रयोगे समवतां प्रदेशानां प्रत्युत्पन्ने केवलसमुग्धातनिर्वृतौ वीर्य
~ 127 ~
३९५
કન
सयोगसद्द्रव्यतया प्रमादप्रत्ययात्कर्मयोगभवायूंषि प्रतीत्यशरीरप्रयोगबन्धः, देशसर्वबन्धस्थित्यन्तरात्पबहुत्वानि । ३४७ बैकियादिप्रयोगवन्धनिरूपणम् । ४०९ ३४८ तेजसवन्धनिरूपणम् । ४१० ३४८ कार्मणशरीरप्रयोगवन्धः, अष्टकर्मबन्धहेतवः स्थित्यादि च ४१२ ३५० शरीराणां परस्परं वन्धावन्ध देशसर्वबन्धविचारः । ३५१ देशसर्वान्धकानामल्पबहुत्वम् (वन्धपत्रिंशिका ) ४१७ ॥ अष्टमे नवमः ॥ ३५२ केवलशीलादेरधेयस्कता, श्रुत
४१३
शीलसंपन्नः सर्वाराधकः । ४१८ ३५३ आराधनाया भेदास्तत्फलं च । ४२० ३५४ पुलानां वर्णादिपरीणामाः । ४२०
कभी कर क
बृहत्क्रमः ।
॥११५॥
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
वृहत्क्रममा
सूत्रांक
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
३५५-३५६ एकादिद्रव्याणां द्रव्यद्र- । सङ्ख्याऽतिदेशः ३६१, लव ३७०-७१ पार्थापत्यगाङ्गेयकृतो नाभगवत्यंग-INI
व्यदेश(८)त्वादिविचारः ३५५, णादौ चन्द्रादिसङ्ख्यातिदेशः रकादिषु सान्तरनिरन्तरोत्पादलोकाकाशैकजीवप्रदेशाः ३५६ । ४२१ ३६२ ।
४२८ विचारः ३७०, सान्तरनिरन्तरो३५७ अनन्तैः कर्माविभागैरावेष्टित
॥ नवमे द्वितीयः ॥
द्वर्त्तनविचारः ३७१ । ४३९ ॥११६।।
परिवेष्टितो जीवैककप्रदेशः । ४२२ | ३६३ अन्तरद्वीप (२८) स्वरूपाति- ३७२ एकादिजीवानां रत्नप्रभादिप्रवे३५८-५९ ज्ञानावरणादीनां परस्परं । देशः ३६३ ।
शनकविचारः । ४५१ सद्भावविचारः ३५८, संसारि
॥ नवमे त्रिंशत्तमः॥ ३७३ तिर्यग्योनिकप्रवेशनकविचाणः पुगलिनः पुद्गला अपि, सिद्धः
र।
४५२ ३६४-६५ अश्रुत्वाकेवल्यधिकारः, न अपुलः ३५९ । ४२५
३७४-७६ मनुष्यप्रवेशनकविचारः प्रजाजनादि ३६४, विभङ्गस्थाव|| अष्टमे दशमः ॥
३७४,देवप्रवेशनकविचार:३७१, धिभवनरीतिः ३६५ । ४३४
नारकप्रवेशनकादीनामल्पयहुत्वं ॥ अष्टमं शतकम् ।। ३६६-६८ अश्रुत्वाकेवलिनो लेश्या
३७६ ।
४५३ ६०० उद्देश (३४) सङ्ग्रहणी । ४२५ दिविचारः ३६६, एकज्ञातकथ- ३७७-७८ उत्पादोद्वर्तनयोनारकादी३६० जम्बूद्वीपसंस्थानाधिकाराति- नं ३६७, ऊर्ध्वादिक्षेत्रविचारः नां सदसत्त्वविचार:(पायन शादेशः।
४२६ ३६८ ।
४३७
श्वतो लोक उक्तः), स्वयंजानामि ॥ नवमे प्रथमः ॥ | ३६९ श्रुत्वाकेवल्यधिकारः। ४३८ न श्रुत्वा मितामितज्ञानित्वात्, ३६१-६२ ६१० जम्बूद्वीपे चन्द्रादि । ॥ नवमे एकत्रिंशत्तमः ॥ । कर्मोदयादिना नारकादिषु गम
॥११६॥
~128
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
दहनकमः।
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥११७॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
नम् ३७७, सर्वन्नत्वप्रत्ययः, पश्च- । किल्बिषदेवाधिकारः ३८८, ज- | ३९५ संवृतस्य सकषायस्य साम्प-.. यामाजीकारः, सिद्धिश्च ३७८ ।४५६ मालेः संसारः ३८९ । ४९० ॥ नवमे द्वात्रिंशत्तमः ॥९-३२॥
॥ नवमे त्रयस्त्रिंशत्तमः ॥ | ३९६-९७ योन्यधिकारातिदेशः ३९६,
वेदनाधिकारातिदेशः ३९७ । ४९७ | ३९० पुरुषाश्वत्रसर्षिधाते तत्तदन्यव३७९-८१ कुण्डग्रामे ऋषभदत्तः श्र
रस्पर्शः ।
४९१ | ३९८-९९ भिक्षुप्रतिमाधिकारातिदमणोपासकः, देवानन्दा श्रमणोपासिका, श्रीवीरागमः, सर्व
शः ३९८, अन्ते आलोचनावि| ३९१-२२ पृथ्वीकायादीनां पृथ्वीका
यादिभिरुच्छ्वासादि ३९१, वृवर्या गमनं ३७९,पूर्वपुत्रस्नेहानु
चारेऽपि नाराधना ३९९ । ४९८ क्षमूलकन्दादिपातने वायोनिच
॥ दशमे द्वितीयः ॥ रागेणागतप्रश्रवा ३८०, ऋषभदत्तदेवानन्दयोर्दीक्षादि ३८१ ॥ ४६१ तुःपश्चक्रियत्वम् ३९२ । ४९२) ४०० चतुष्पञ्चदेवावासातिकम था
त्मदर्चा, परतः परतर्या, अल्प३८२ जमालिप्रतिबोधः।
॥ नवमे चतुस्त्रिंशत्तमः ॥ ४६२
सममहर्डिकानां देवदेवीनां म| ३८३ मातापित्रोरनुमतिः। ४७२
॥ नवमं शतकम् ॥
ध्यगमनमोहाधिकारः । ४९९ | ३८४ जमालेदर्दीक्षा ।
४८४ । ६२० उद्देशक (२८) सङ्ग्रहणी। ४२२४०१-२६३-६४० अश्वस्य हृदयय३८५-८६ जमालेनिनवता ३८५, ज- ३९३ दिग्दशकतन्नामानि, जीवजीव- । क्नोरन्तरे कर्बटकवायुः ४०१, मालेनिरुत्तरता किल्विषत्वेनो- देशादि(६)त्वं ।
४९४
भाषाधिकारातिदेशः ६३-६४ त्पादश्च ३८६ । ४८८ ३९४ शरीरस्वरूपाचतिदेशः । ४९५ ४०२। C| ३८७-८९ जमालिगतिप्रश्नोत्तरे ३८७,
॥ दशमे प्रथमः।
॥ दशमे तृतीयः ॥
५००
| ॥११७॥
~ 129~
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
• श्रीभगवत्यंग
यहां
देखीए
॥११८॥
S
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
४०३ वीरशिष्यसामहस्तिप्रश्ने काक- ४०६६५% शकसुधर्मासमाद्यतिदेशः, ४१६-१७ ७० शिवराजस्तापसत्वं,
म्दकाचमरत्रायविंशाः, गौत- सूर्याभवदलङ्कारार्च निकायति- | होत्रिकादयस्तापसाः (४४), मप्रने प्रायस्त्रिंशशाश्वतत्वं, बिभे- । देशः, ।
५०७ दिक्मोक्षितत्वं, शिवभद्रस्य रालका बलिनः, पालाशकाः शक्र
॥ दशमे षष्ठः ॥
ज्याभिषेकः, दिक्प्रोक्षणविधिः, स्य, चम्पाका ईशानस्य । ५०२४०७ उत्तराहान्तरद्वीपा(२८)ऽधिका- ४१६, ७०, विभङ्गज्ञानं, सप्त॥ दशमे चतुर्थः ॥
रातिदेशः।
५०८ द्वीपसमुद्रदर्शनप्ररूपणे, जना४०४-५ स्थविरप्रने चमराममहिष्यः,
॥ दशमे चतुर्विंशत्तमः ॥
लापः, वीरप्ररूपणा, द्वीपसमुद्राजिनसक्थ्नां सत्त्वाश्चमरसिंहा
॥ दशमं शतकम् ॥
-दिषु सवर्णादिद्रव्यसत्ता, शिवसने न मैथुनम् ४०४, चमरस्य
४०८६६-६९, उत्पलस्योत्पातपसोमादिलोकपालानामग्रमहि
स्य शङ्का, पर्युपासना, दीक्षा,
सिद्धिश्च ४१७ । व्यः, सिंहासने सक्थ्नां सत्त्वा
रिमाणापहारादि (३३), बन्धन्मैथुननिषेधः, बलेस्तल्लोकपा
कादिभङ्गाः ८, साकारोपयुक्तादि ४१९ सिण्डिकातिदेशः। लानां, धरणादेस्तल्लोकपालानां
८, उच्छ्रासनिश्वासादि २६। ५१३ ॥ एकादशे नवमः॥ कालादेस्तल्लोकपालानां, चन्द्रा
॥ एकादशे प्रथमः ॥ ४१८ लोकस्वरूपेऽधोलोकः सप्तविधः, भारकशक्रेशानतल्लोकपालानां- ४०९-१५ सालुकपलाशफुम्भिकनालि- तिर्यक अनेकविधः, ऊर्ध्वः पञ्चचाग्रमहिष्यादि ४०५। ५०६ । कपनकर्णिकानलिनानामधिकाराः॥५१४ | दशविधः, लोकसंस्थान, जीव॥ दशमे पञ्चमः ॥ || एकादशेऽष्टमः ॥
जीवदेशादि, एकेन्द्रियद्वीन्द्रि
Iल॥१८॥
~130~
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥११९।।
दीप क्रमांक के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
यादिदेशादि, अजीवाजीवदे- । बलाधिकारः, वासगृहसिंहस्वप्न- । ४३४, पुद्गलपरिव्राजको, विभङ्गः,
शादिविचारः । ५२५ तत्प्रनस्वमपाठकागमः ७९७, ब्रह्मलोकज्ञानप्ररुपणादि ४३५। ५५२ ४२०-२२ लोकालोकमहत्ता ४२०, तत्सत्कारगर्भपोषणजन्मप्रीति -
॥ एकादशे द्वादशम् ॥ दानानि । एकाकाशप्रदेशे एकेन्द्रियादि
५४३ ॥ एकादशं शतकम् ॥ प्रदेशानामवस्थाने रङ्गस्थानद्द- | ४२८ जन्ममहकुलमर्यादानामस्थापन -
७२७ उद्देशक (१०) सङ्कहणी । ५५२ धान्तः ४२१, जघन्योत्कृष्टपद
संस्कारभवनानि । ५४६ ४३६ शकश्रावका उत्पला भार्या,पुष्कली. जीवप्रदेशसर्वजीवाल्पबहुत्वं ४२९ विवाहप्रीतिदाने । ५४८ ४३७-३८ पाक्षिकपौषधार्थमशनायु४२२, (निगोदषत्रिंशिका)। ५३२ ४३०-४३१ धर्मघोषागमनप्रतिबोध
पस्कारः, शङ्खस्य चतुर्विधः पौ. ॥ एकादशे दशमः ॥
स्वराज्याभिषेकदीक्षाब्रह्मलोक - षधः, दर्भसंस्तारकारोहः, पुष्क
गमनसुदर्शनजन्मानि ४२३ सुदर्शनश्रेश्चधिकारः, प्रमाणय
ल्यागमनं, उत्पलाविनयः, पौष४३०,
धशालायामीर्यापथिकी, वीराथायुर्मरणाद्धाकालाः ।
जातिस्मरणदीक्षामोक्षाः ४३१ ॥५५० ५३३
गमनं, बन्दित्वा पारणविचारः, ४२४ जघन्योत्कृष्टपौरुषीदिनरात्रिमानं
॥ एकादशे एकादशः ॥
प्रवरवनपरिधान, पौषधस्वरूपं प्रमाणकाले । ५३४ | ४३२-३५ ऋषिभद्राद्यधिकारदेवस्थि
क्षामणं च ४३७, बुद्धाबुद्धसु४२५-२६ यथायुरादिकालः ४२५,नार- तिनिरूपणेतराश्रद्धानानि ४३२, दर्शनजागरिकाः ४३८ । ५५६
कादिस्थित्यतिदेशः ४२६ । ५३५ वीरसमवसरणस्थितिनिरूपण- ४३९ क्रोधादिफलम् । ४२७ पल्योपमसागरोपमक्षये महा- क्षामणानि ४३३, ऋषिभद्रगतिः । ॥द्वादशे प्रथमः ॥
"
|
क
॥११९॥
~131~
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥१२०॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
४४०-४२ जयन्तीवर्णनं ४४०, वीरसमवसरणमुदायनजयन्त्यादि - गमनं ४४१. जीवगुरुलघुत्वतवः, सिद्धत्वं स्वाभाविक, स वैभव्यसिद्धावपि आकाशश्रेणिवदव्यवच्छेदः सुप्तजागरिततायस्यबलितादक्षतादक्षतानां साध्वसाधुते, इन्द्रियवशताफलं, जयन्त्या दीक्षा मोक्षश्च ४४२ । ५६० ॥ द्वादशे द्वितीयः ॥
४४३ पृथ्वीनामगोत्राद्यतिदेशः । ॥ द्वादशे तृतीयः ॥ ४४४ द्वाद्यनन्ताणुक स्कन्धसंघात - मेदविचारः । ४४५ पुद्गलपरावर्त्तस्वरूपतदतिक्रास्तादिविचारः ।
५६१
५६७
५६९
५७०
४४६ ४४७ औदारिकादिपुङ्गलपरावर्त्तास्तत्कालल्पबहुत्वे । ॥ द्वादशे चतुर्थः ॥ ४४८-४९ आश्रववर्णादि, क्रोधाद्यभिधानानि (१०-१२-१५-१५) ४४८, विरमणीत्पत्तिक्यवग्रहोत्थानावकाशनारकलेश्यायोगसर्वद्रव्यादिवर्णादिविचारः ४४९ । ४५०-५१ गर्भव्युत्क्रान्तौ वर्णादि ४५०, कर्मणो जगद्विभक्तिः ४५१ । ५७५ ॥ द्वादशे पञ्चमः ॥ ४५२ ग्रहणं, राहुनामानि (९) पञ्च
५७४.
वर्णा राहोः, ग्रहणे रीतिरन्तरं च । ५७७ ४५३-५४ शश्यन्वर्थः ४५२, आदित्यान्वर्थः ४५४ । ४५५ चन्द्रसूर्यादिकामभोगवर्णनम् । ५७९
५७८
~132~
जीवानां
॥ द्वादशे षष्ठः ॥ ४५६ अजावाटकरष्टान्तेन लोकस्पर्शनम् । ४५७ नारकाद्यावासेष्वनन्तकृत्व उत्पत्तिः सर्वेषाम् । ५८१
५८०
॥ द्वादशे सप्तमः ॥ ४५८ च्युतदेवस्य द्विशरीरनागमणिवृक्षेषूत्पत्तिरचनादिप्राप्ति । ५८२ ४५९ गोलालवृषभादीनां सागरोपमस्थितिके नरके गतिः । ५८२ ॥ द्वादशेऽष्टमः ॥
४६०-६५ भव्यद्रव्यदेवनरदेवधर्मदेवदेवाधिदेवभावदेवानां स्वरूपं '४६०, तेषामुत्पत्तिः ४६१ स्थितिः ४६२, वैक्रियं ४६३, गतिः स्थितिरन्तरमल्पबहुत्वं च ४६४,
वृहत्क्रमः ।।
॥१२०॥
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
वृहदक्रममा
६०८
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
व्यन्तरादिभावदेवाल्पबहुत्वम् । सङ्क्शविशुद्धिभ्यां लेश्यापरी
ऐन्द्रयादिप्रवहदिकप्रदशादिख... ५८७ । णामः ४७१ ।
रूपम् ४७९ । भगवत्यंग॥ द्वादशे नवमः ॥
॥ त्रयोदशे प्रथमः ॥ ४८०-७७पश्चास्तिकायोपकाराः, कोटिVI ४६६-६७ द्रव्यकषाययोगोपयोगज्ञान- ४७२ सङ्ख्यातादिविस्तृतदेवावासेपू. सहनमपि मायात् ७४७-४८०६०९
दर्शनचारित्रवीर्यात्मनां परस्पर- त्पत्तिसङ्ख्यादिविचारः। ६०४४८१-८३ धर्मास्तिकायादिप्रदेशस्प॥१२१२॥ सत्त्वमल्पबहुत्वं च ४६६, आत्म
॥ त्रयोदशे द्वितीयः ॥
शविचारः ४८१, जीवास्तिकायनानादीनां भेदाभेदी ४६७ । ५९२४७३ प्रविचारणाऽतिदेशः।
पुद्गलास्तिकायपरमाण्वादेः प्रदे
६०४ ४६८ रत्नप्रभादीनामात्मना आत्मादि
शस्पर्शावगाहविचारः ४८२, ॥ त्रयोदशे तृतीयः ॥
षटकायावगाहविचार:४८३ । ६१५ विकल्पाः ।
1४७४ पृथिवीनां महत्तादि, महाकर्म- ॥ द्वादशे दशमः॥
४८४ दीपप्रभावन धर्मास्तिकायादिस्वादिमहधिकत्वादिविचारः। ६०६ वासनादिशक्तिः । . ६१६ ॥ द्वादशं शतकम् ॥ | ४७५-७९ नारकाणां पृथिव्यादिस्पर्श- ४८५ लोको बहुसमः सर्ववैग्रहिक७३७ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । ५९६ | वेदना ४७५. रत्नप्रभादिलघु- । स्थाने । ४६९-७१ सङ्ग्यातादिविस्तृतनरका- महत्त्वविचारातिदेशः ४७६, | ४८६ तिर्यगादिलोकसंस्थानास्पब -
द्यापासेषु उत्पादलेश्याकृष्णपक्षी- रत्नप्रभादिषु पृथ्वीकायादेर्मयादि (३९) द्वारविचारः ४६९, रणादेरतिदेशः ४७७, लोका
॥ त्रयोदशे चतुर्थः ॥ सम्यग्दृष्यादिविचारः ४७०, धऊर्ध्वतिर्यग्लोकमध्ये ४७८, ४८७ नारकादीनामाहारातिदेशः । ६१६ |
॥१२१॥
~133~
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
हत्क्रमः।
सूत्रांक
यहां देखीए
सूत्रे
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री॥ त्रयोदशे पञ्चमः ॥
॥ प्रयोदशे सप्तमः ॥
निर्गतादि, आयुःकरणमनन्तरभगवत्यंग- ४८८ नारकादिसान्तरोत्पादाद्यति - ४९६ कर्मप्रकृत्यतिदेशः ।
खेदोत्पन्नादि । देशः।
६१७ | ॥त्रयोदशेऽष्टमः ॥
॥ चतुर्दशे प्रथमः ॥ ४८९ चमरचश्चाबासतत्प्रमाणवसत्य- | ४९७ केयाघटिकाहिरण्यपेटाबल्गुली- ५०१-३ यक्षावेशमोहनीयोन्मादनिरू॥१२२॥ न्वर्थकथनम् ।
वीजबीजकादिवैक्रियविचारः ६२८ | पणं ५०२, शक्रादीनां वृष्टिक४९०-९१ उदायननुपाधिकारः अमी
॥त्रयोदशे नवमः ॥
रणे रीतिः, अईजन्मादिषु वृष्टिचित्यक्त्वा फेशिने राज्य, उदा. ४९८ छवास्थसमदघातादिदेशः। 8२९ | करण च ५०३
६ ३६ यनमोक्षः ४९०, अभीचेरसुर
॥ त्रयोदशे दशमः ॥
५०४ ईशानादेस्तमस्करणरीतिः ।, त्वम् ४९१ । ६२१ ॥ त्रयोदशं शतकम् ॥
॥ चतुर्दशे द्वितीयः ॥ ॥ त्रयोदशे षष्ठः ॥
| ५०५ सम्यग्दृष्टिदेवाद वितानगारम७५ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । ६३० ध्येऽव्यतिक्रमः।
६३७ ४९२ भाषाणामन्यत्वरूपित्वाचित्तत्वा- ४९१-५०० यथालेश्यं देवावासाः ।। | ५०६-७ असुरादीनां सत्कारादे (१०)जीवत्वानि, भाषासमये भाषात्वं, ४९९, एकद्वित्रिसमयेषु नारका
रस्तिता, न नारकैकेन्द्रियादेः, भाषाचातुर्विध्यम् । ६२३ दीनामुत्पत्तिः. एकेन्द्रियाणां ।
तिरश्च आसनाभिग्रहानुप्रदाने Ka४९३-९४ मनःकाययोरपि पूर्वव - चतुःसामयिकविग्रहेण ५००।६३३ वर्जयित्वा ५०६, अल्पसममह| द्विचारः ।
२४ ५०१ अनन्तरपरम्परोत्पन्नतदनुत्पन्न- चिकदेवदेवीव्यतिक्रमणविधिः ४९५ आवीचिमरणादिविचारः। ६२६ । स्वरूपमायुःकरणप्रश्नः, अनन्तर
५०७।
६३८
॥१२२
~134~
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥ १२३॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
५०८ रत्नप्रभादिषु पुलपरिणामानुभवातिदेशः ।
६३८
॥ चतुर्दशे तृतीयः ॥
६३९
५०९ पुगलानां रूक्षत्वादि शाश्वताशाश्वतं च । ५१० जीवानां दुःख्यदुःखित्वादि, शाश्वताशाश्वते । ५११-१२ परमाणोर्द्वव्यपर्यायार्थाभ्यां शाश्वताशाश्वतत्वे, द्रव्यादिभिश्वरमाचरमत्वे च ।
६४०
५१३ परिणामातिदेशः ।
६४० ६४१
॥ चतुर्दशे चतुर्थः ॥
५१४ नारकादीनामग्निमध्येन विग्रह गतौ व्यतिक्रमः देवादीनामविग्रहेऽपि ऋद्धिप्राप्ततिर्यगू मनुष्ययोरपि ।
६४२
६४३
५१५ नारकादीनामनिष्टादिशन्दाय नुभवः । ५१६ बाह्यपुङ्गलानादाने नोलनादि । ६४४ ॥ चतुर्दशे पञ्चमः ॥ ५१७- ५१८ नारकादीनां पुद्गलाहारादित्वं ६१७, वीच्यबीचिद्रव्याहारित्वम् ५१८ । દુલા ५१६ शक्रादीन्द्राणां भोगाय भिन्नविमानविकुर्वणा । ॥ चतुर्दशे षष्ठः ॥ ५२० गौतमाय चिरसंसृष्टोऽसीत्यायुक्तिः ।
५२१ अनुत्तरोपपातिकानामपि चिरसंसृष्टत्वादिज्ञानम् । ५२२ द्रव्यक्षेत्रकालभवभावसंस्थानस्पतानिरूपणम् ।
~135~
દાદ
६४७
६४८
६५०
#
५२३ प्रत्याख्यातभक्तस्यापि मरणसमुद्घातनिवृत्तस्याप्याहारः । ५२४-२५ लव सप्तमदेवस्य सप्तलवन्यूनायुष्कता ५२४, पटुतपोन्यूनता ५२५ ।
॥ चतुर्दशे सप्तमः ॥ ५२६ रत्नप्रभादिपृथ्वीनां परस्परं ज्यो तिष्कसौधर्मादीपप्राग्भाराणा मन्तरम् । ५२७ शालवृक्षशालयष्टिकोदुम्बराणां गतिः । ५२८-२९ अम्बडशिष्यवक्तव्यतातिदेशः ५२८ अम्बबक्तव्यतातिदेशः ५२९ । ६५३ ५३०-३२ अक्षिपत्रे नाट्यं न च पुरुषस्याबाधा इत्यव्याबाध
६५१
६५२
६५३
बृहत्कसः।।
॥ १२३ ॥
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
EGE
सूत्रांक
भगवत्यंग
यहां देखीए
सूत्रे
॥१२४॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
देवाः ५३०, शिरश्छेदचूर्णप्रति
॥ चतुर्दशे दशमः ॥
५४२ तिलस्तम्बतिलोत्पत्तिः । ६६५ सन्धानेऽपि नाबाधा इति शक
॥ चतुर्दशं शतकम् ॥
५४३-४६ वैश्यायनलेश्या, अनुकम्पया सामर्थ्यम् ५३९, अन्नादि (१०)
रक्षणं, तेजोलेश्योपायकथनं जृम्भकेभ्यो यशोऽयशसी, दीर्घ५३९ श्रावस्त्यां हालाहला, शानक
५४३, तिलसप्तकदर्शनात्पराववैताठ्यादिस्थाश्च ते ५३२ । ६५५ लन्दाद्या दिक्चराः, चतुर्विश
परिहारवादः ५४४, तेजोले॥ चतुर्दशेऽष्टमः ॥ तिवर्षपर्यायो गोशालः, अनति
श्योत्पादनं ५४५, वीरसत्यमरू५३३ सकर्मलेश्यजीवज्ञानेऽपि कर्म- क्रमणीयलाभालाभादिशानं जि- पणया गोशालस्यामर्षः ५४६ । ६६८ लेश्याया शानमवभासनादि च।६५५ |
नपलापितादि। ६६० ५४७-४९ आनन्दश्रमणाय वणिगोप५३४-३५ पुगलानामनात्तत्त्वादि ५३४, ५४० गौतमप्रश्नाद् गोशाळस्योत्था- |
मिककथनं ५४७, गोशालानवैक्रियसहस्रभाषासहस्त्रेऽप्येक- नपर्यानिका, गोशालस्य जन्म
गारस्थविराईत्तेजोलेश्यानां क्रभाषा ५३५ ।
६५६ नाम च ।
६६१ मादनन्तगुणविशिष्टता ५४८, | ५३६ सूर्यतत्प्रभाछायालेश्याऽन्यथैः ।, | ५४१ वीरगार्हस्थ्यातिदेशो भावना
धार्मिकनोदनानिषेधः ५४९ । ६७३ ५३७ मासादिपर्यायेण व्यन्तरभवन- वत्, द्वितीयचतुर्मास्यां गोशा
५५० महाकल्पदिव्यसंयूथसझिगर्भबासिचन्द्रादिलेश्यातिक्रमः । ६५७ लकमिलनं, दानदिव्यानि, को- प्रवृत्तपरिहारकर्मकर्मशिनिरूप॥ चतुर्दशे नवमः ॥ ल्लाके पारणं, गोशालस्यान्ते
णं, पणेज्जकादिपरिवर्ताः २२५३८ केवलिसिद्धयो. परस्परजानं, उ. वासिता, प्रणीतभूमौ षड् वर्षा
२१-२०-१९-१०-१७-२६ वस्थानादिमान् केवली। ६५८/ णि बिहारः॥
पाणि ।
६७७
॥१२॥
~136~
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥१२५॥
రావు స్వరావు, స్వరానికి
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
५५१-५६ वीरोक्तः स्तेनदृष्टान्तः ५५९, गोशालककृत आक्रोशः ५५२, सर्वानुभूतिसुनक्षत्रदद्दनं, बीरकृत उपदेशः, तेजोलेश्यामोचनं, पण्मास्यन्तर्मरणकथनं, पो डशवर्षविहारप्रादुर्भावनं, गोशालस्य निस्तेजस्कता, निष्पृप्रश्नव्याकरणता, क्रोधेऽपि बाधनाशक्तिः, आजीविकस्थविराणां सत्यश्रद्धा, गोशालस्य नृत्यादि ५५३ अङ्गादिदाहिका गोशाललेश्या, एकं, पानचतुष्कप्ररूपणा, अर्थपुलागमनं हल्लासंस्थान पृच्छा अम्बकूणकादित्यागः मत्तवाक्यं मृते सत्कारकरणप्रेरणा, ५५४, सम्यक्त्वलाभः, यथार्थ
चरमपानाद्य
कथनं तिरस्कारप्रादुर्भावनप्रेरणा ५५५ पिहितद्वारे गृहे उद्घोषणादि पश्चाद् ऋदया
सत्कारः ५५६ | ५५७-५९ पित्तज्वरः, सिंहरोदनं, रेवतीगृहात्पाकानयनादेशः, रोगोपशान्ति: ५५७, सर्वानुभूतेमहाशुक्रे सुनक्षत्रस्याच्युते उत्पाद: ५५८, गोशालभवपरम्परा, सुमङ्गलस्योपसर्गः ज्ञातवृत्तान्तेन तेजोनिसर्गात् सरथघातः, सर्वार्थसिद्धे उत्पाद: ५५९/६९१ ५६० गोशालभवाः, सर्वत्र शस्त्रवध्यः । ६९४ ५६१ गोशालभवाः, दृढप्रतिशभवे केवलज्ञानं, स्वयं आचार्यादिप्रत्यनीकताफलकथनम् ।
६८५
~ 137 ~
६९६
॥ पञ्चदशं शतकम् ॥
७६ उद्देशक (१४) सङ्ग्रहणी । ६९६ ५६२-६३ अधिकरण्यां वायुः ५६२, अङ्गारकारिकाग्निस्थितिः ५६३/१९७ ५६४ अयउत्क्षेपादौ क्रिया । ५६५-६६ अधिकरण्यधिकरणसाधि
६९७
करणिनिरधिकरण्यात्मपरोभयाधिकरण्यात्मादिप्रयोगनिर्वतिस्वरूपं ५६५, शरीरेन्द्रि ययोगेष्वधिकरण्यादिविचारः
५६६ ।
६९९
॥ षोडशे प्रथमः ॥ ५६७ शरीरमनोवेदनयोर्जराशोकौ । ७०० ५६८ पालकविमानमुत्तरत्यो निर्याणमार्गः, आग्नेयीरतिकरेऽवतारः, अवग्रहस्य पृच्छाऽनुज्ञा च । ७०१
बृहत्क्रमः।।
॥१२५॥
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रमः।
यहां देखीए
भगवत्यंग
सूत्रे
॥१२६॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
|५६९ शक्रः सम्यग्वादी सत्यादिभाषी | ५७५, गङ्गादतीत्तरे परिण - ५८४-८५ लोकपूर्वाधन्तानां जीवजी
सावद्यादिभाषी, सूक्ष्मकायनियू- मन्त इत्यादि, नाट्योपदर्श- वदेशादिविचारः ५८४, आलोइनेनानवद्या भाषा । ७०१ | नम् ५७६ ।
७०७ कान्तात् परमाणोः समयेन ५७० दुःस्थानाद्येश्यकृतानि कमोणि।७०२५७७ मुनिसुव्रतकाले गङ्गदत्तदीक्षादि, गतिः ५८५।
७१७ ॥ षोडशे द्वितीयः ॥
विदेहे मोक्षः। ७०८ | ५८६ वर्षशानाय हस्ताद्याकुञ्चनादौ ५७१ वेदावेदाद्यतिदेशः। ७०३ ॥ षोडशे पञ्चमः ॥
यावत्पश्चक्रियत्वम् । ७१७ ५७२ अर्शश्छेदकस्य क्रिया । ७०४ | ५७८-८० सुप्तजागराणां स्वप्रदर्शनं । ५८७ देवोऽप्यलोके हस्ताद्याकुचनाषोडशे तृतीयः॥
५७८, संवृतादीनां स्वप्नदर्शनं, दिभ्यो न प्रभुः । ७१७ | ५७३ चतुर्थषष्ठाष्टमादिभ्यः परा वर्ष- स्वप्नानां सङ्ख्या तत्फलं च
॥ षोडशेऽष्टमः ॥ ___ शतादिभ्यो निर्जरा। ७०५ ५७९, वीरदृष्टस्वमदशकं तत्फलं | ५८८ रुचकेन्द्रोत्पातादिवर्णनम् । ७१९ ॥ षोडशे चतुर्थः ॥
च५८० ।
७११
षोडशे नवमः ॥ ५८१ तद्भवमोक्षसूचकाः स्वप्नाः । ७१३ ५७४-७६ बाह्यपुद्गलाननादाय नागम
| ५८९ अवधेरतिदेशः ।
७१९ नादि, शक्रता उत्क्षिप्त -
५८२ घ्राणसहगतपुद्गलानां वानम् । ७१३ | ॥घोडशे दशमः ॥ प्रश्नाः, संभ्रान्तिकवन्दनम्
॥षोडशे षष्ठः॥
| ५९० द्वीपकुमाराणामाहारोच्छ्वास - ५७४, महाशुक्रीयमहासामान
५८३ उपयोगपश्यत्तातिदेशः। ७१४ समत्वादि, लेश्यातद्वदल्पबहु । स्थौ देवी, पुदलपरिणामे विवाद:
॥ पोडशे सप्तमः ॥ । त्वादि, उदधिदिक्स्तनिताना
॥१२६॥
~138
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हवक्रमः।
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥१२७॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
मपि । ७१९ ॥ सप्तदशे द्वितीयः॥
यस्य ६०७-८,वायोः ६०९-१०, ॥ षोडशे चतुर्दशः ॥ ५९९ शैलेश्यां न स्वयमेजना, द्रव्या- एकेन्द्रियाणां ६११, नागसुवर्ण॥ षोडशं शतकम् ॥
घेजनास्वरूपम् । ७२६ विद्युदग्निकुमाराणां समाहार७७% उद्देशक (१७) सङ्ग्रहणी । ७२०
६००-१शरीरेन्द्रिययोगचलना ६००, त्वादि ६१२-६१६ । ७३१ संवेगनिदादीनां (४९) प्रश
॥ सप्तदशे सप्तदशः ॥ ५९१ उदायिभूतानन्दहस्तिराजगतिः, ५९२ तालफलपातादौ किया। ७२१
स्तता ६०१।
७२७ ॥ सप्तदशं शतकम् ॥ ५९३ शरीरेन्द्रिययोगेभ्यः क्रिया । ७२२
॥ सप्तदशे तृतीयः ॥
७८७ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी ७३१ ५९४ भावषट्कातिदेशः। ६०२-३ प्राणातिपातादिभिः क्रिया
| ६१७ ७२७८० जीवसिद्धाहारकभ॥ सप्तदशे प्रथमः ॥ ६०२, आत्मकृतं दुःखवेदना
व्यसशिष्टिसंयतकषायज्ञान५९५ संयतादीनां धर्मादिस्थत्वम् । ७२३
दि ६०३ ।।
योगोपयोगवेदशरीरपर्याप्तिभिः ५९६ एकवधाविरताबपि नैकान्तबा
सप्तदशे चतुर्थः ॥
प्रथमाप्रथमत्वे चरमाचरमत्वेच लता बालादिस्वरूपम् । , ६०४ ईशानसुधर्मसभाधिकारः । ७२९ । ७९७८००।
७३७ ५९७-९८ प्राणातिपातादौ औत्पत्या
॥ सप्तदशे प्रञ्चमः ॥
॥ अष्टादशे प्रथमः ॥ १८-१॥ दौ उत्थानादौ च जीवात्मनो- ६०५-१६ पृथ्व्यादीनां पूर्व पश्चाद्धा उ- | ६१८ कार्तिकश्रेष्ठ्यधिकारः, आदीरैक्यं ५९७, यावत्संसारं नारू- त्पादनकटनादि ६०५, सौधर्मतो प्तप्रदीप्तो लोक इत्यादि, मुनिसुपित्वम् ५९८ ।
७२५ । रत्नप्रभादिषूत्पादः ६०६, अप्का- | व्रतस्थविरान्तिके प्रव्रज्या चतु
॥१२७||
~139~
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥१२८॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
देशपूर्वाध्ययनं शकेन्द्रता । ७३९ ॥ अष्टादशे द्वितीयः ॥ ६१९ माकन्दिकप्रने कापोतलेश्यादिपृथ्वी कायादीनां मानुष्यमुक्तिः, शेषश्रमणाश्रद्धानादि प्राग्वत् । ७४० ६२० चरमनिर्जरापुद्गलानां लोकव्यापकत्वं संश्युपयुक्तमनुष्याणां वैमानिकानां च ज्ञानपूर्वमपि त दाहारता ।
७४२
"
६२१ द्रव्ये प्रयोगविसावन्धी, भावे मूलप्रकृत्युत्तरप्रकृतिबन्धौ । ७४३ ६२२ कृतकरिष्यमाणकर्मनानात्वम् । ६२३ गृहीताहारपुद्गलानामसख्येयभाग आहारोऽनन्तभागो निर्जरा न च तत्रासनादि, माकन्दिकप्राः ।
७४३
॥ अष्टादशे तृतीयः ॥ ६२४-२६ प्राणातिपातादीनां जीवाजीवद्रव्यता, तत्परिभोगध केषाञ्चित् ६२४, कषायातिदेशः, नारक पृव्यादिपञ्चेन्द्रियतिर्यक्सिद्धत्र्यादीनां कृतयुग्मादिविचा६२५, परापरे अन्धकवृष्णयः ६२३ ।
७४६
॥ अष्टादशे चतुर्थः ॥ ६२७ असुरादेर्विभूषिताविभूषितशरीरयोः प्रतिरूपाप्रति रूपत्वे । ७४६ ६२८ मायिमिध्यादृष्टिनारकादीनां महाकर्मत्यादि । ७४७ ६२९-३० स्थितभवायुषोर्वेदनमन्य - स्य पुरस्कारः ६२९, मायिनो वक्रवैक्रियम् ६३० ।
N
~ 140 ~
७४७
॥ अष्टादशे पञ्चमः ॥
६३१ भ्रमरादीनां वर्णादिषु निश्चयव्यवहारी ।
७३८
६२२ परमाण्वाद्यनन्ताणुकान्तसूक्ष्म - बादरपरिणतस्कन्धवर्णादि । ७४९ ॥ अष्टादशे षष्ठः ॥
६३३ केवली यक्षावेशेनापि न सृपामिश्रभाषकः । ७४९ ६३४ नारकादीनां कर्मशरीरोपकरणो पधिपरिग्रहसदसत्प्रणिधानानि । ७५० ५३५-३९ कालोदायिकादयोऽन्यती
fier., मडुकावकः अस्तिकायदर्शनज्ञान पृच्छायां वायु - गन्धपुद्गलारण्यग्निसमुद्रपार देवलोकरूपैः प्रत्यवस्थानं, वीरप्रशंसा ६३५, एकजीवानेक वैकि
बृहत्क्रमः॥
॥१२८॥
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥ १२९ ॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
वयुद्धं ६३६, देवानां तृणाद्यपि प्रहरणमसुराणां तु वैक्रियं ६३७, रुचकवरं यावदनुपर्यटनं पञ्चाङ्गमनं ६३८, पञ्चशत्या पञ्चशतसहस्रथा च देवानां कमशक्षयः - ६३९ । ७५४
॥ अष्टादशे सप्तमः ॥ ६४० समितस्य कुकुटादिव्यापत्ता - वीर्यापथिकी । ६४१-४२ समितस्यैकान्तपण्डितत्वं, ६४१, परमावधि केवलिनोः पर माणुज्ञानदर्शने समयविशिष्टे न
६४२ ।
७५४
७५६
॥ अष्टादशेऽष्टमः ॥ ६४३ भव्यद्रव्यदेवतिर्यङ्मनुष्यना - रकाणां स्थितिः ।
॥ अष्टादशे नवमः ॥
७५७
६४४ भावितात्मनोऽसिधारादिना न छेदादिः । ७५७ ६४५ सूक्ष्मानन्ताणुकान्तो वातेन स्पृष्टः,
न तु तेन सः, वस्तिवायुवत् । ७५७ ६४६ पृथ्व्यादेरधः कालादिगुणवत्पु
गला अन्योऽन्यसमुदायतया । ७५८ ६४७ सोमिलाधिकारः, व्याकरणे वमदनप्रतिज्ञा, यात्रायापनीयाव्याबाधप्राशुकविहारसर्षपमापकु -
७६०
लत्थप्रन्नाः । १४८ एकाक्षयाव्ययादिप्रश्नाः, आवकधर्माङ्गीकारः । ७६१
॥ अष्टादशे दशमः ॥
॥ अष्टादशं शतकम् ॥
८१७ उद्देशक (१०) सङ्ग्रहणी । ७६९ ६४९ लेश्यातिदेशः ६४९
~ 141 ~
35
॥ एकोनविंशतौ प्रथमः ॥ ६५० लेश्यागर्भातिदेशः ६५० । ॥ एकोनविंशे द्वितीयः ॥ ६५१ पृथ्व्यादीनां प्रत्येकता, लेश्या
७६२
याहारसज्यादिप्राणातिपाता - युपाख्यानोत्पत्तिस्थितिसमुद् -
७६४
घाताः ।
६५२ सूक्ष्मवादरपर्याप्तापर्यात जघन्योस्कृष्टावगाहना (४४ ) ऽल्पबहुत्वम् । ६५३ पृथ्व्यादीनां सर्व सूक्ष्मवादरप्ररुपणा । (अनन्तसूक्ष्मवनस्पतिप्रमितः सूक्ष्मवायुः शेषेष्वसस्यतागुणत्वम् ) । ६५४ पृथ्व्यादिकायस्वल्पत्वे वेदनायां च वर्णकपेशिकादि । ७६७
७६५
७६६
बृहत्क्रमः ।
॥ १२९ ॥
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥१३०॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
॥ एकोनविंशे तृतीयः ॥ ६५५ महात्पाअवक्रियावेदनानिर्जराणां
भङ्गाः ।
७६८
॥ एकोनविंशे चतुर्थः ॥ ६५६ परमा नारकाचा महावेदनाः, दे७६९
वाधरमाः ।
६५७ निदानिदावेदनाऽतिदेशः । ॥ एकोनविंशे पञ्चमः ॥ ६५८ द्वीपसमुद्रसंस्थानाद्यतिदेशः । ७७० ॥ एकोनविंशे षष्ठः ॥
६५९ आवासानां शाश्वताशाश्वतत्वे ॥ एकोनविंशे सप्तमः ॥ ६६० ८२४-८३० एकेन्द्रियादिशानावरणाचौदारिकादिसत्यादिको धादिकालादिसंस्थानसशाळे श्यादृष्टिज्ञानयोगोपयोगनिवृ
55
35
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" । संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
तयः । ॥ एकोनविंशे अष्टमः ॥ ६६१ ८४-८५ द्रव्यक्षेत्रकालभवभावकरणानि द्रव्ये शरीरा दीनि ।
॥ एकोनविंशतौ नवमः ॥ ६६२ व्यन्तरसमाहारत्वादि ।
॥ एकोनविंशे दशमः ॥ ॥ एकोनविंशतितमं शतकम् ॥ ८६७ उदेशक (१०) सङ्ग्रहणी । ७७३ ६६३ द्वीन्द्रियादीनां प्रत्येकत्वादि । ७७५ ॥ विंशती प्रथमः ॥ ६६४ अधोलोकादीनामवगाहभागः ७७५ ३७७ धर्माधर्माकाशजीवपुद्गलप
र्यायाः ।
॥ विंशती द्वितीयः ॥
७७२
~ 142 ~
७७३
33
७७७
६६६ प्राणातिपातादीनामात्मनि परी
णामः ।
७७७
६६७ गर्भव्युत्क्रमवर्णाद्यतिदेशः । ७७७ ॥ विंशतौ तृतीयः ॥ ६६८ इन्द्रियोपचयाद्यतिदेशः ।
॥ विंशतौ चतुर्थः ॥ ६६९ परमाण्वादिवर्णगन्धरसर स्पर्शभङ्गाः । ७८५ ६७०-७१ बादरपरिणतेर्भङ्गाः ६७०, द्रव्यादिपरमाणुस्वरूपम् ६७२ । ७८८ ॥ विंशती पञ्चमः ॥ ६७२-७४ रत्नप्रभादिषु पृथ्व्यायु
+
७७८
७९०
स्पातः ।
॥ विंशतौ षष्ठः । वाचनान्तराभिप्रायेणामः ८ ॥ ६७५ जीवानन्तरपरम्परबन्धप्ररूप
बृहत्क्रमः।
॥ १३० ॥
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हवक्रमः
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥१३॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
णा, कर्मवेदशरीरलेश्याशानत- ६८६ सोपकमेतरायकनिरूपणम् । ७९५ | ६९२ तालनिम्बास्थिकवृन्ताकीधीयद्विषयाणामपि। ७६१ ६८७ आत्मपरोपक्रमनिरुपक्रमादिभि- कपुंस्फल्यादीनां वर्गाः (६)। ८०४ ॥ विंशतौ सप्तमः ॥
रुत्पत्त्युदर्तने,
७९८ । ॥ द्वाविंशतितमं शतकम् ॥ ६७६-८३ कर्माकर्मभूमितत्कालाः, भ
| ६८८ कत्यादिषदकादिद्वादशकादि- ८९७ वर्ग (५-५०) संग्रहणी । ८०४ रतादिजिनस्वरूप ६७७, जिना
चतुरशीत्यादिसश्चितविचारः । ८००६९३ आलुकलोहियायप्राथमिकमासन्तरे कालिकसूत्रविच्छेदः ६७८,
॥ विंशती दशमः॥
पादिवर्गाः। भरते पूर्वधरकालः, वीरतीर्थ॥विंशतितमं शतकम् ॥
॥५-५० ॥ कालः ६८०, उत्सर्पिणीचरम- ८७ वर्ग (८) सङ्ग्रहणी ८०० ॥ त्रयोविंशतितमं शतकम् ॥ जिनतीर्थकालः ६८१, तीर्थ- ६८९-९१ शाख्यादीनां मूलायुत्पत्त्यादि, ९०३ ९२० उपपातपरिमाणसंहननोस्वरूपं ६८२, प्रवचन द्वाद
६८९ दशोद्देशाः । प्रथमो वर्गः चत्वसंस्थानलेश्यादृष्टिज्ञानाशाशानी, उग्रादीनां सिद्धिः, देव
६९०, कलाया २ तसी ३ वंशे ४- नयोगोपयोगसञ्झाकषायेन्द्रियलोकातिदेशश्च ६८३ । ७९३ क्षु ५ सेटिका ६ भ्ररुह ७ तुल
समुद्घातवेदनावेदायुरध्यवसा॥ विंशतौ अष्टम ॥
स्यादीनां ८ वर्गाः ६९१। ८०१-२ यानुबन्धकायसंवेधानां नारका६८४-८५ जपाचारणविद्याचारण
॥ ८० उद्देशाः ॥
दिषु (२४) विचारः । ८०५ स्वरूपम् ।
॥ एकविंशतितमं शतकम् ॥ ६९४ गत्यागत्योः जघन्याजघन्योत्कृष्ट॥ विंशतौ नवमः ॥ 18 (६)वर्गसङ्ग्रहणीगाथा । ८०३ । स्थितिभिर्गमकनवकं सर्वत्र, अ
॥१३॥
~143~
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥१३२॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
सक्षितिर्यक्पञ्चेन्द्रियाणामधि
कारः ।
८०९
६९५ सम्झितिर्यक्पञ्चेन्द्रियाधिकारः ८१२ ६९६ शर्करादिषु पञ्चेन्द्रियतिर्यगधि
कारः ।
ક
६९७-९८ रत्नप्रभायां मनुष्योत्पत्त्यधिकारः ६९७, शर्करादिषु मनुष्योत्पत्त्यधिकार ६९८
८१७
।। २४ प्रथमः ॥
६९९ असुरोत्पत्त्यधिकारः । 11:28 fefter: 11 ७०० नागोत्पश्यधिकारः । ।। २४ तृतीयः ॥
७०१ सुवर्णाद्युत्पत्त्यधिकाराः। || २४ एकादशः ॥ ७०२ पृथ्वीकायेषु पृथ्वीकायायुत्पत्त्य
८२१
८२२
८२३
धिकारः ।
७०३ द्वीन्द्रियादितिर्यग्भ्यः । ७०४ मनुष्यदेवेभ्यः ।
८२६
।। २४-२३ ।।
८३०७१६ सौधर्मेशानादिदेवोत्पत्त्यधिकारः। ८५२
૮૨
।। २४-२४ ।।
॥ चतुर्विंशतितमं शतकम् ॥
९३ उद्देशक ( १२ ) सङ्ग्रहणी । ८५२ ७१७ लेश्यातिदेशः ।
७१८ सूक्ष्मैकेन्द्रियापर्याप्तादिजघन्योकृष्टयोगा (२८) पबहुत्वम् । ८५४ ७१९ प्रथमसमयोत्पन्ननारकादीनां समविषमयोगिता । ७२० पञ्चदशयोगजघन्योत्कृष्टशल्प बहुत्वम् ।
॥ २५-१ ॥ ७२१ जीवाजीवद्रव्यसञ्ज्ञा । ८५६ ७२२ औदारिकादिभिरजीवद्रव्याणामेव परिभोगः ।
।। २४ द्वादशः ।। ७०५-८ असेजोवनस्पतीनामुत्पत्त्यधि
काराः ।
॥। २४ षोडशः ॥ ७०९-११ द्वित्रिचतुरिन्द्रियोत्पत्यधि
~ 144 ~
૮૩
कारः
१३४
|| २४ एकोनविंशतितमः ॥ ७१२ पञ्चेन्द्रियतिर्यगुत्पत्त्यधिकारः । ८४२ || २४ विंशतितमः ॥ ७१३ मनुष्योत्पत्त्यधिकारः । ॥ २४ एकविंशतितमः ॥ ७१४ व्यन्तरोत्पत्त्यधिकारः । ॥ २४-२२ ॥
८४६
७१५ ज्योतिष्कोत्पत्त्यधिकारः ।
ક
33
८५४
८५५
23
वृहत्क्रमः।।
॥१३२॥
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्रीभगवत्यंग -
सूत्रे
॥१३३॥
१२
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः
७२३ एकप्रदेशे निघाते पर्दिक्पुद्गलोपचयादि । ७२४ स्थितास्थितपुङ्गलानामौदारिकादितया ग्रहणम् ।
८५९
८६० ८६२
॥। २५ शतके २ उद्देशः ॥ ७२५ परिमण्डलादिसंस्थानपट्कद्र व्यपदेशात्पबहुत्वम् । ७२६ परिमण्डलाधिकारः । ७२७ वृत्तादिसंस्थानाधिकारः । ७२८ संस्थानेषु कृतयुग्मायधिकारः । ८६६ ७२९-३४ लोकाकाशश्रेण्याद्यधिकारः ७२९, सादिसपर्यवसितादिश्रेण्यधिकारः ७३०, ऋज्यायतादिश्रेण्यधिकारः ७३१, न रकावासाद्यधिकारातिदेशः ७३२, गणिपिटकातिदेशः ७३३, नारक -
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
८५७
८५८
-
-
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" । संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
दिगति (५.८) एकेन्द्रियादिजाति (६) पृथ्व्यादिकायादि (७) जीवपुङ्गलादिसर्व पर्यायान्तायुर्वन्धकानामल्पबहुत्वातिदेशः ७३४ - ९४६८७२ ॥। २५ शतके ३ उद्देशः ॥ ७३५ नारकादीनां धर्मास्तिकायतत्प्रदेशावगाहादीनां रत्नप्रभादीनां च कृतयुग्मादिविचारः । ७३६ जीवनारकादिसिद्धानामेकत्वपृथ क्त्वाभ्यां विचारः । ७३७ जीवादीनामवगाहस्थितिभ्यां विचारः । ७३८ जीवे मतिज्ञानादिपर्यायेषु कृतयुग्मादिविचारः । ७३९-४० शरीराधिकारातिदेशः ७३९, जीवसिद्धशैलेशीप्रतिपन्ननारका
८७६
~ 145 ~
८७४
८७५
૮૭
दिसैजनिरेजदेशसर्वेजत्याधिकारः
७४९ परमाण्वादीनामवगाहस्थित्यादिभिरल्पबहुत्वम् । ७४२ परमाणु सहयाता सङ्ख्यातान ताणुकानामेकादिसमयस्थित्य - वगाहगुणानां द्रव्यप्रदेशोभयार्थैरल्पबहुत्वम् ।
७४० ।
८७८
८७९
७४३-४४ परमाण्वादीनां द्रव्यप्रदेशाबगाहनादिषु कृतयुग्मत्वादि ७४३, परमाण्वादेः सार्द्धत्वादि
७४४ ।
ર
८८३
७४५-४६ परमाणुयणुकादेः सेजनिरेजयोः कालान्तरमल्पबहुत्वं द्रव्यप्रदेशोभयार्थैश्याल्पबहुत्वं, देशैजसबैजनिरेजकालाद्यपि ७४५,
बृहत्क्रमः ।!
॥१३३॥
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
भगवत्यंग
यहां देखीए
॥१३४॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
17 धर्मास्तिकायादिमध्यप्रदेशाः, जी- ७५७-५८ सानानि ७५७, श्रुतं ७५८ । ८९५ | ७७५-७७ त्यागोपसंपत्ती, सभ्यालो
वृहत्क्रमः। वमध्याटप्रदेशावगाहब ७४६। ८८७ | ७५९-६२ तीर्थातीर्थादि, खान्यगृहिलि-' | सम्योपयुक्तता आहारकानाहार॥ २५ शतके ५ उद्देशः॥ ङ्गानि औदारिकादिशरीराणि, क
कत्व ।
१०५ ७४७-४९ पर्यवातिदेशः ७४७, आच- | मभूम्यादि ।
८९६ । | ७७८-७९ भवग्रहणानि, एकनानाभलिकादितीताद्धान्तकालसमयाः ७६३ अवसर्पिण्युत्सर्पिणीतद्भिन्नका
विकांकर्षाः ।
९०६ ७४८, अनागतातीतसर्वाद्धानाम- लसुषमसुषमादितत्प्रतिभागाः। ८९७
in७८०-८१ स्थितिकालोऽन्तरं । ९०७ ल्पबहुत्वम् । ७४९ ८ ८९ | ७६४ भवनबास्यादीन्द्रत्वादिगतिः । ८९८
| ७८२-८५ समुद्घाताः, संख्यातभा७५०-५१ निगोदाधिकारातिदेशः ७५०,
गादिक्षेत्रस्पर्शने, भावः । ७६५ संयमस्थानानि तदल्पबहुत्यम् । ८९८७८६ प्रतिपयमानप्रतिपन्नजघन्योत्कपविधनामातिदेशः ७५१ । ८९०
९०८ ॥ ॥ २५ शतके ५ उद्देशः ।। ७६६-६९ चारित्रपर्यायाः,स्वपरस्था
एसख्या ।
९०१ नाभ्यां समुदायेन चाल्पबहुत्वं, ९५-९७ प्रशापनादि (३६) द्वार
॥ २५ शतके ६ उद्देशः॥ सयोगित्वादि, साकारोपयोगाथाः३।
| ७८७ । ९८-१०२ सामायिक (५)७५२ पुलाकादीनां (५) खरूपं वेदः । ८९३
गादि, सकषायत्वादि । ९०१ |
संयतादीनां स्वरूपम् । ९१० ७५३-५६ वीतरागत्वादि ७५३, स्थि. |६७०-७१ लेश्यावर्डमानहीयमानाव
| ७८८-८९ बेदरागकल्पाः ७८८, पुलातास्थितजिनकल्पादि ७५४, -
स्थितपरीणामास्तत्स्थितिः । ९०३ कादिप्रतिसेवाज्ञानतीर्थलिनशसामायिकादि ७५५, प्रतिसेवा
७७२-७४ मूलप्रकृतीनां बन्धो वेदन- रीरकर्मभूमयः ७८९ । ९११।। ७५६ । ८९४ । मुदीरणं च।
९०४ | ७९०-९३ उत्सर्पिण्यादिकालः। ७९.०,
..
ITANT||१३४॥
~146~
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्रीभगवत्यंग
सूत्रे
॥१३५॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
९१४
गत्यायुरादि ७९१, संयमस्थानानि ७९२, चारित्रपर्यायस्वपरस्थानसमुदायापबहुत्वं योगोपयोगकपाय लेश्याः ७९३ । ७९४ वर्द्धमानादिपरीणामतत्कालौ । ७९५-९७ बन्धो वेदनमुदीरणं ७९५, त्यागोपसंपत्तिः ७९६, सज्ञाऽऽहारभवग्रहणानि ७९७ । ९१६ ७९८ आकर्षाः ।
७९९ स्थितिरन्तरं समुद्घाताः क्षेत्रं स्पर्शना भावः प्रतिपद्यमानादिसङ्ख्या, तदल्पवद्दुत्व | ९१९ ८०० । १०३ ५० प्रतिसेवा (१०)ऽऽलोचकगुणा (१०) दायकगुणा: (८) । ९२० ८०१-१०६४, सामाचार्यः ८०१, प्रायचितानि ८०२ ।
९२०
"
"
९२८
८०३ ५। १०७ सप्र मेदं द्वादशविधं तपः ८०३, २०७४ ध्यानाधिकारः ८०४, व्युत्सर्गादितपः ८०५ । ९२७ ॥। २५ शतके ७ उद्देशः ॥ ८०६-१० नारकादीनामुत्पादरीतिः, शीघ्रगतिः परभवायुःकरणं, गत्युत्पादकारणानि ८०६, ॥। २५ शतके ८ उद्देशः ॥ भव्याभव्य सम्यग्मिथ्यादृष्टिनारकादीनाम् ८०७- १० । ।। २५ शतके ९-१०-११-१२ उद्देशाः ॥ ॥ पञ्चविंशतितमं शतम् ॥ १०८० जीवादि (११) द्वारसंग्रहणी । ८११-१२ जीवे पापकर्मणि बन्ध्यादि
९२८
(४) विचारः, शुक्लादिलेश्यालेश्ययोः कृष्णशुक्लपाक्षिकयोः
~ 147 ~
८११, दृष्टिज्ञानसशावेदकषायोपयोगेषु ८१२ । ८१३-१४ नारकादिषु (२४) वन्ध्यादिविचार: ८१३, जीवादिषु ज्ञानावरणीयादि (४) बन्ध्यादिविचारः ८१४,
९३०
९३२
८१५ जीवादिष्वायुर्वन्ध्यादिविचारः, नारकादीनामायुर्वन्ध्यादिवि
चारः ।
९३४
॥ २६ शतके १ उद्देशः ॥ ८१६ अनन्तरोत्पन्ननारकादीनां पापबन्ध्यादिविचारः । ९३५ ॥ २६ शतके २ उद्देशः ॥ ८१७-१८ परम्परोत्पन्ननारकादीनाम्
८१७, अनन्तरपरम्परावगाढाहारपर्याप्तचरमाचरमनारकादीनां पापयन्ध्यादिविचारः ८१८ । ९३८
बृहत्क्रमः॥
॥१३५॥
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-५. "भगवती" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
वृहत्क्रममा
सूत्रांक
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री॥ २६ शतके ३-११ उद्देशाः॥
युर्वन्धविचार:, केवलसलेझ्या- |८४३-४४ क्षुद्रकृतयुग्मादिनारकाणा
दिक्रियावाद्यादिषु भव्याभव्य - ॥पविंशतितमं शतम् ॥
मुवर्तना, कृष्णलेश्यादिविशिभगवत्यंग-10
त्वादिविचारः। ९४७ | ८१६ करिंसुशतम् । सूत्रे
टानामपि । ९३८ ! ॥ २७ शतके ११ उद्देशाः॥
॥३० शतके १ उद्देशः॥ । ॥ ३२ शतके २८ उद्देशाः ॥
८२७-२९ ॥१३६|| ८२०-२२ समजिणिंसुशतम्।
अनन्तरोत्पन्नादिनारका९४०
॥ द्वात्रिंशत्तमं शतम् ॥ ॥२८ शतके ११ उद्देशाः॥
दीनां क्रियावादित्वादिविचारः।९४० ८२३-२४ समकप्रस्थापननिष्ठापनश-..
८४५-५० एकेन्द्रियाणां पृथ्वीकायानां ॥३० शतके ११ ॥
च मेदाः, कर्मप्रकृतयस्तद्वन्धो तम् । ९४२ ॥ त्रिंशत्तमं शतम् ।।
वेदन (चतुर्दशमेदं) ८४५. ॥२९ शतके ११ उद्देशाः ॥ | ८३०-४२ क्षुल्लककृतयुग्मनारकाणा -
अनन्तरोत्पन्नादिविशेषणानाम् ८२५ जीवलेश्यजीवादिषु नारकलेश्य- मुत्पत्त्यादि । ८३०, कृष्णनील
८४६-४८, प्रथममेकेन्द्रियशतं, नारकादिपु क्रियावाद्या दिवि- कापोतभव्याभव्यसम्यग्मिध्या
कृष्णलेश्यादिविशिष्शना ८४९चारः, केवलसलेश्यादिक्रिया
५९ द्वादशाऽवान्तरशतानि ।। ९५४ वाद्यादीनामार्युबन्धविचारः ।
युग्मनारकोत्पत्त्यधिकारः ८३१-... (क्रियावाद्यादिभेदाः) ९४५
४२।
९५० । ॥ त्रयविंशत्तमं शतम् ।। ८२६ क्रियावाद्यादिनारकादिषु (२४)
॥३१ शतके २८ उद्देशाः॥ ८५१ पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्मबादरपृथ्व्याकृष्णालेश्यादिक्रियावाद्यादिषु आ- । ॥ एकत्रिंशत्तमं शतम् ।। । दीनां रत्नप्रभादिपूर्वान्तादिषु स
॥१३६॥
~148~
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥१३७॥
3
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ अंगसूत्र-५. "भगवती" ।
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
महत्योत्पाद:, ( विग्रहाविन हाभ्यां श्रेणिभिध ) ९५७ ८५२ अधः क्षेत्रलोकादिनाख्या बाह्यादिषु समवहत्योर्ध्वक्षेत्रादिनाव्या बाह्यभागादिषु पृथ्व्यादीनां पृव्यादिवे एकादिविग्रहविचारः, पृथ्व्यादीनां स्थानोत्पादसमु - धाततुल्यस्थित्यादि । (पञ्चसामयिक्यपि गतिः ) । ९६२ ८५३-५५ अनन्तरोत्पन्नचादरसूक्ष्मपृव्यादीनां स्थानप्रकृत्यादि ८५३, परम्परोत्पन्नादीनां कृष्णलेश्यादीनां ८५४, ८५५ । ॥ द्वादशैकेन्द्रियशतानि ॥
९६४
॥ चतुस्त्रिंशत्तमं शतम् ॥ ८५६ कृतयुग्मकृतयुग्मादि (१६) स्व
रूपम् ।
९६६ ८५७ तद्विशिष्टै केन्द्रियाद्युत्पादादीनि । ९६७ ॥ ३५ शतके १ उद्देशाः ॥ ८५८-५९ प्रथमाप्रथमचरमाचरम-प्र
थमाप्रथम प्रथमचरम-चरमच
रम-चरभाचरम-समयकृतयुग्म
कृतयुग्मै केन्द्रियायुत्पत्यादि । ९६९ ८६० कृष्णलेश्य प्रथमसमयकृष्णले
श्यादिभव्य कृष्णलेश्यादिभव्याभव्य कृतयुग्मकृतयुग्मै केन्द्रियायुत्पादादि । ॥ पञ्चत्रिंशचमं शतम् ॥ ८६१-६५ कृतयुग्मकृतयुग्मादिद्वित्रिचतुरिन्द्रियसञ्ज्ञ्यसङ्क्षिपञ्चेन्द्रि याणामुत्पत्तिः ।
८६६ कृष्णलेश्यादिकृतयुग्म २ सशि
~ 149~
९.७०
९७३
पञ्चन्द्रियाणामुत्पत्तिः, एकविंशतिः सञ्चिमहायुग्मशतानि, एकाशीतिर्महायुग्मशतानि । ९७५ ॥। ४० शतानि ॥ कृतयुग्मनारकादीनां सान्तरनिर न्तरमुत्पादः, युगपद् द्वियुग्मता, आत्मयशोऽयशउपजीवनं, सलेश्यालेक्ष्यक्रिया क्रियसिद्धयादि, योजादीनां कृष्णलेश्यादिकृतयुग्मादीनां भव्यभव्य सम्यग्मिथ्यादृष्टिकृष्णशुक्लपाक्षिककृतयुमनारकादीनामुत्पत्त्यादि । ९७८ ।। १९६ उद्देशाः ।। ॥ एकचत्वारिंशत्तमं शतम् !! ८६८ प्रदक्षिणावन्दनादियुक्तस्याङ्गी -
९.७८
८६७
कारः ।
बृहत्क्रमः।
॥१३७॥
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
मगवत्यंग
सूत्रे
॥१३८॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ५. “भगवती" ]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी साहित्य)
८६९-१०९४-१४७ भगवतीपदभावादिमानं, समुद्ररूपेण सह - घस्य स्तुतिः श्रुतदेवतास्तुतिः, योगविधिः श्रुताधिष्ठात्र्यादि
स्तुतिः ।
॥ प्रशस्तिः ॥ यशचन्द्र साहाय्यात् जिनचन्द्रनियोगाद् वृत्तिकृतिः, शोधका
~150~
९८०
द्रोणाचार्याः, प्रथमादर्शलेखका विनयगणिप्रभृतयः, दायिकसुतमाणिक्यप्रेरणया ११२८ वर्षे । ९८१ ॥ इति भगवतीविषयानुक्रमः ॥
ॐ बृहत्क्रमः।
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
ज्ञाताधर्मकथायाः विषयानुक्रमः
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
सूत्राणि १५६
सूत्रागाथाः ११४ मङ्गलादि ॥
१५, १-२ पर्षनिर्गमादि, जम्बूपृ- | नम्),वासगृहवर्णनं,गजस्वप्नः, १ चम्पावर्णनातिदेशः (वर्णनम्)। १ च्छा, उपोद्घाता, उत्क्षिप्तशा- निवेदनं, फलपृच्छा च । १७ २ पूर्णभद्रस्यातिदेशः(वर्णनम्)। २ तादि (१९) नामानि १०२०। १० |१०-११ उपदणा १०, स्वमप्रतीच्छा, ३ कोणिकनृपवर्णनातिदेशः (वर्ण- ६-७ नन्दावर्णनातिदेशः (वर्णनम्) | धार्मिककथाभिः स्वमजागरिका११।१८ नम्)।
६, अभयकुमारवर्णनम् ७॥ १२ | १२ । ३ श्रेणिकस्य स्नानं, भद्रासन४ सुधर्मगणभृवर्णनम् । ७1८-९ धारिणीवर्णनातिदेशः (वर्ण- । रचनं, स्वप्नपाठकाहानं, चतुर्द
॥१३८॥
~151~
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्रमः
मगवत्यंग
२८
यहां देखीए
॥१३९॥
-
-
शादिस्वमफलकथनं, ३४राश्य । दोहदसंपूर्णता १७, देवसत्कारः, । २८ राज्याभिषेकः, कुत्रिकापणादनिवेदन, वासगृहागमनम् । २४ मेधोपसंहारः १८, गर्भपोषणम् । | जोहरणाद्यानयन काश्यपाद्धानं, १३ मेघदोहदः।
१९।
३६
अलङ्कारः, शिबिका, धात्र्याया१४-१९ दोहदापूत्तौं खेदः, दासचेटी- २०-२४ मेघस्य जन्म, वर्धापन, कुल
रोहः, शिविकाया वहनं, गुणनामने मौनं, श्रेणिकाय कथनं, मर्यादा, मित्रज्ञात्यादिभोजनादि,
शीले आगमः ।
५९ श्रेणिकोक्तिष्वपि मौनं, शपथ
नामस्थापन, बालपालन, द्वासशापनं, दोहदकथनं दोहदपूरण
२९ मेघस्यार्पणं, मातृदत्ताशीः। ६०
सतिः कलाः २०, कलाचार्यप्रतिज्ञा १४, अभयकुमाराग
सत्कारादि २१, मेघकुमाराय प्रा
३०-३१ आदीप्तो लोक इत्यादिकथमन, अनादरादि, अञ्जलीकरण, सादः २२, सदाया अष्ट कन्याः
नेन प्रवज्यायाच्या, प्रवज्या,साकारणपृच्छा, दोहदपूरणप्रतिज्ञा २३, श्रीवीरागमादि २४। ४६
धुकर्तव्योपदेशः ३०, संस्तार१५,स्वगृहे सिंहासने उपवेशनं, २५ मेघस्य निर्गमः, पञ्चविधोऽभि
करेणुभिरुद्वेगः, वीरपाचे आपूर्वसङ्गतिकदेवाराधनायाऽष्टमगमा, धर्मकथा ।
गमनम् ३१ । पौषधः, देवस्यासनचलनं, स्ने- २६ गृहागमनं, धर्माकर्णननिवेदनं, ३२ मेघाभिप्रायनिवेदनं, यैताळ्यगिहेनागमनं १६, कृल्ययात्रा, दोउपहा, दीक्षानुमतियाच्या ...
रौ सुमेरुप्रभहस्तिनो वर्णनं, कीहदनिरूपणं, वैभारे मेघः, नग
मातुः शोकः ।
४८ डा, बनदयदर्शनं, पङ्कमजनं, विरशृङ्गारः, सेचनके धारिण्या २७ अनुकूलपतिकूलैनिरोधः समा
मध्यगिरी हस्ती, दावानलं दृष्ट्वा आरोहः, आरामादिषु भ्रमणेन धानं च ।
जातिस्मरणं, मेरुपम इति नाम,
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
-
-
॥१३९॥
... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं
~152~
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥१४०॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ६. "ज्ञाताधर्मकथा' |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
मण्डलकरणं, ज्येष्ठामूले वनदवः, शशकानुप्रवेशः, प्राणानुकम्पनया संसारपरीतिकरणम् मनुष्यायुबन्धः शान्तेऽग्नौ पातः, मेघतया जन्म | ३३ जातिस्मृतिः, अक्षीणि मुक्त्वा शरीरव्युत्सर्जनं, एकादशाङ्ग्यध्ययनम् ।
३४ द्वादश प्रतिमाः । ३५-३६ मेघशरीरवर्णनं, अनशनं, कालः, कायोत्सर्गादि ३५, बिजयविमाने उत्पत्तिः ३६ । ७७
७०
७२ ७४
॥ उत्क्षिप्तज्ञाताध्ययनम् ॥ १ ॥
३७ जीर्णोद्यानमालुकाकच्छवर्णनम् । ७९ ३८-४० धन्यभद्रासार्थवाहीवर्णनं
३८, पन्थकदासधन्यवर्णनं ३८, विजयतस्करवर्णनम् ४० ८१ ४१-४२ नागप्रतिमादिपूजनोपया
८६
चने ४१, गर्भो दोहदपूरणं, जन्मदेवदत्तनामस्थापनादि ४२ । ८३ ४३-४४ देवदत्तस्यापहारो मालुकाकच्छप्रवेशः ४३, धन्यभद्राशोकः, नगरगुप्तिककथनं, दारकशरीरप्राप्तिः ४४ | ४५-४६ तस्करशिक्षा, देवदत्तमृतककार्य २४५, सार्थवाहस्य - बिन्धः, भोजनपिटकानयनं, विजयतस्करयाचनं, प्रतिषेधः, उच्चारबाधा, सहानागमनं, संविभागप्रतिज्ञानम् ४६ | ४७ भद्वारोषः, मित्राद्यर्थसारेण मो
ઈંટ
~ 153 ~
क्षः, श्रेयादिवाह्याभ्यन्तरपर्षदभ्युत्थानादि भद्रामौनं, संवि भागकारणकथनं, अभ्युत्थानालिङ्गनादि, विजयस्य नरकगमनं, लुब्धसाधुर्विजयतस्कर
समः ।
८९
४८-४९ धर्मघोषागमनं, धन्यदीक्षादि ४८. ज्ञानाद्यर्थमाहारादि, इहार्चनादि मोक्षधामुत्र ४९ । ९० ॥ द्वितीयं सङ्घटकज्ञातम् ॥ ५० चम्पादिजिनदत्तसागरद तपुत्रवर्णनम् ।
... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं
९१
५१-५२ मित्रप्रतिज्ञा ५१, देवदतागणिकावर्णनं, मित्रागमनं, सुभूमिभागोयाने मज्जनादि ५२ । ९३ ५३-५६ उद्यानानुभव: ५३, मयूर्य
बृहत्क्रमः ।।
॥१४०॥
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥ १४१ ॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ६. "ज्ञाताधर्मकथा' |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
ण्डकग्रहणं ५४, शङ्कादेरुद्धनादि, तद्वत्प्रवचने शङ्कितः, ५५, जिनदत्तपुत्रस्य मयूरपोतकनिपत्त्यादिः प्रवचने निःशङ्कितस्योपनयः ५६ ।
॥ तृतीयमण्डकज्ञातम् ॥ ५७ वाराणसीमृतगङ्गातीरहदे पापशृगालवर्णनं, दान्तादान्तकूर्मयोः सोपनययोर्वर्णनम् । ॥ ४ कूर्मज्ञातम् ॥
५८ द्वारिकारैवतकपर्वतनन्दनवन सुरप्रिययक्षायतनकृष्णवर्णनम् । १०० ५९ स्थापत्यापुत्रनेमिसमवसरण कौ मुदीभेरीताडननेमिचन्दनानि । १०१ ६० स्थापत्यापुत्रवैराग्यनिरुपायानुमतिकृष्णप्राभृत स्वयं निष्क्रमण
९६
९९
सत्कारकरणप्रतिज्ञा स्थापत्यापुदीक्षानिरोधकामभोगदानदुरतिक्रमणीय कर्मक्षयप्रयोजनकथनं, परप्रव्रज्योत्साहनोद्घोषणानिष्कमणच्छत्रातिछत्रविद्याधरचारणदर्शनमातृशिक्षाप्रव्रज्या - सहस्रपरिवारबहिर्विहारा । १०४ ६१-६२ सेलकपुरं, समूमिभागमुद्यानं, सेलको राजा मन्त्रिपच्त्रशती, सर्वेषां श्रावकत्वं, सौगन्धिकीनगरी, नीलाशोकमु द्यानं, सुदर्शनो नगरश्रेष्ठी, शुकः परिवाद, शौचमूलध र्मनिरूपणं, सुदर्शनस्यानीकारः, स्थापत्यापुत्रागमनं विनयमूलधर्मप्ररूपणा, सुदर्शनप्रश्नोत्तरं, रुधिरलिप्तरुधिरक्षालनदृष्टान्ते
न प्रतिबोधः, श्रावकत्वं शुक स्थानादर, शुकेन सह स्थापत्यापुत्रान्तिके गमनं, यात्रायापनीयादिप्रश्नोत्तराणि धर्मकथा, परिवाजकसहस्रेण दीक्षा, पुण्डरीके मोक्षः शुकस्य, ६१, सेलकदीक्षा, पुण्डरीके सिद्धिः ६२।११० ६३-६७ सेलकस्य रोगोद्भवः, म
ककृता चिकित्सायाच्या, यानशालागमनं, विकटेन रोगोपशान्तिः, सेलकस्य पार्श्वस्थता ६३, पथकं स्थापयित्वा शेषाणां विहार: १४, चातुर्मासिकक्षा - मणं प्रतिबोधः, विहार, ५ उपनयः, शेषानगारोपगमनं ६६ सेकप्रमुखाणां पुण्डरीके निवृतिः ६७ ।
११३
... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं
N
~ 154~
बृहत्क्रमः।
॥ १४१ ॥
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बृहत्क्रमः
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री
॥ ५ सेलकज्ञातम् ।। भगवत्यंग-NI ६८ मृत्तिकातल्लपापगमदृष्टान्तेन जी.
वानां गुरुलघुत्वम् । ११४
॥ ६ तुम्बकज्ञातम् ॥ ॥१४२॥ ६९ राजगृहे धन्यभद्रयोरुज्झिताद्याः
सुताः, कुटुम्बाधारस्थापनवि - चार, मित्रादिमेलनभोजने, पञ्चशास्यर्पणं, उज्झनभक्षणरक्षणवपनानि, कुलं निमन्त्र्य पुनर्याच्या, शपथेन यथार्थस्वरूपाख्यान, यथाई कार्यार्पण शेषाणां, रोहिण्याः कुलाधिपत्वं, पञ्चमहानत्योपनयः । १२० ।
||७ रोहिणीज्ञातम् ।। |७०, ४-६ विदेहे निषधस्योत्त -
रस्यां शीतोदाया दक्षिणस्यां
सलिलावत्यां वीतशोका नगरी, इन्द्रकुम्मोद्यान, बलधारिण्योमहाबलः पुत्रः, सदायकमलश्री. प्रमुखपश्चशतपत्नीपाणिग्रहणं, अचलाद्या बालवयस्याः, सर्वेषां दीक्षा, समानतपःकरणप्रतिज्ञा, महाबलेन अहंदादिस्थानकैस्तीर्थकृत्पदस्य मायया स्त्रीत्वस्य चार्जन, सर्वेषां प्रतिमा, सिंहनिकीडितद्वयं, चारुपर्वतेऽनशनं, विजये देवत्वम् । ७७ १२४ ७१ प्रतिबुद्धिचन्द्रच्छायशङ्खरुक्मि
दीनशत्रुजितशत्रूणां जन्म, मिथिलायां कुम्भकराश्याः प्रभावत्याः कुक्षौ महाबलस्याव - तारा, माल्यदोहदपूर्तिः, -
७२-७३, ७-८ जन्ममहिमाद्यतिदेशः, मल्लीशरीरवर्णनं ७२
8-49 प्रतिबुद्धयादिबोधाय कनकप्रतिमायां प्रत्यहं कबलक्षेपः ७३।
१३० ७४ संवत्सरप्रतिलेखकश्रीदामगण्डे
न प्रतिबुद्ध्यागमनम् । १३२ ७५-७६, ७-८ अ. अर्हन्नकस्य
लवणे गमन, योजनशतावगाहनं पिशाचागमनं, साकारप्रत्या - ख्यानं, अनेकधोपसर्गाः, शकेन्द्रप्रशंसाकथनं, कुण्डलयुगलापण ७५, शकटेन मिथिलायां गमनं, कुण्डलपरिधान मल्ल्याः , उच्छुल्कीकरणं, गम्भीरपत्तने गमनं, चम्पायां चन्द्रच्छायाय कुण्डलयुगलार्पणं, रूपाश्चर्येण
॥१४२॥
... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं
~155~
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग -
सूत्रे
॥१४३॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ६. "ज्ञाताधर्मकथा' |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
चन्द्रच्छायागमनम् ७६-८. ७६ । १४० ७७-७८ कुणालादेशे श्रावस्ती, सुबहुपुत्री चातुर्मासिक मज्जनकेन रुक्म्यागमनं ७७, वाणारस्यां शङ्खनृपः, कुण्डलसन्ध्यघटनेन सुवर्णकारश्रेणेर्निर्विषयता, शङ्खस्या मल्लीस्वरूपकथनं शङ्खागमनम् । ७८ । ७९ हस्तिनागपुरेऽदीनशत्रुः, महदत्तसभाचित्रणं, मलीरूपचित्रणं, कुमारस्य लज्जा, चित्रकराय रोपः स्वरूपकथनं निविषयाशा, महीचित्रदर्शन, अदीनशत्रोरागभनम् । ८०-८१, ९ काम्पीस्ये जितशत्रुः,
१४२
૨૦૦
चोक्षापरिव्राजिकाया निरुत्तरता दासीकृता हेलनाद्या:, जितशत्रोः पार्श्व गमनं, अवरोधगर्वः, कूपदर्दुरदृष्टशतः, जितशत्रोरागमनं ८०, वृतपट्कावमाननं युगपद्यात्राग्रहणं, कुम्भकपराजयः, मिथिलारोधः, मल्ल्यै चिन्ताकथनं सर्वेषामाहानं, प्रतिमादर्शनं, पराङ्मुखत्वमुपदेशः, जातिस्मरणं सर्वेषां वैराग्यं, प्रतिगमनम् ८९ । ९० । ८२-८३ | १०-१५ द्रागमनं वरबरिकाघोपणं, कुम्भककृता महानसशाला ८२-१०-११७ लोकान्तिकागमनं १२, तीर्थप्रवर्तनप्रार्थना, तीर्थकराभिषेकः, श क्रादीन्द्रागमनं अभिषेको वि
१४८
~ 156 ~
भूषा शिविका शक्रादिभिर्वहनं १३-१४, सिद्धान्नमस्कृत्य यारित्रप्रतिपत्तिः, मनः पर्यवज्ञानं, पाती परिवारः, राजकुमाराष्ट्रकदीक्षा १५, निष्क्रमणमहिमानन्तरं नन्दीश्वरेऽष्टाहिका, केवलज्ञानम् ८३ । १५३ ८४ देवासनचलनादि, जितशत्रवादीनामागमनं, प्रवज्या, मोक्षः, भिपप्रमुखगणधरभ्रमणादिवकम्यता, परिनिर्वाणमहिमाऽतिदेशः ।
॥ इति मल्लिज्ञातम् ॥ ८५-८७ चम्पायां माकन्दी जिनपालितजिनरक्षिती, एकादश लवण - यात्राः, पुनरनुक्षया गमनं ८५,
... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं
१५५
बृहत्क्रमः ॥
॥१४३॥
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
भगवत्यंग
सूत्रे
॥ १४४॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ६. "ज्ञाताधर्मकथा' |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
उपद्रवः, नौमः ८६, रत्नद्वीपः फलाहारः, नालिकेरतैलाभ्यङ्गः, देवतागमनं, भो
गाः ८७ ।
१५९
८८ । १६-२१६ लवणशुद्धयै गमनं, पूर्वादिवनखण्डतऋतुवर्णनम् १६-२१, दक्षिणवनखण्डग मननिषेधः ८८ । ८९-९५ । २२-३१७ प्रासादादिष्वर तिः, दक्षिणवनखण्डे आघातनदर्शनं शूलायितकाकन्दिकाश्यवणिग्वृत्तान्तः, सेलकयक्षस्तारकः ८९, यक्षपार्श्वे गमनं, पूजा, प्रार्थना, दृढत्वप्रतिज्ञा, वैकियं, चम्पाये गमनं ९०, • देवताऽऽगमनं कुमारादर्शनं लवणे आग
१६२
मनं विलापः २२-२९ जिनरक्षितस्य मोहः शनैर्यक्षेणोत्सारितः देव्या वलीकृतः ९१, कामभो गासक्तभ्रमणैरुपनयः ३०-३१ ९२, जिनपालितस्य दृढता, चम्पागमनं ९३, जिनरक्षिततान्तनिवेदनं ९४ प्रव्रज्या, सौधर्मे देवः, अनासक्तस्योप
नयः ।
॥ ९ माकन्दीज्ञातम् ॥ ९६ चन्द्रवृद्धिहानिदष्टान्तेन जीवद्धिहानिकथनम् ।
॥ १० चन्द्रज्ञातम् ॥ ९७ द्वीपगवातेन दावद्रया श्वान्यतीर्थकासहनादेशविराधक: समुद्रबातवत् श्रमणाथसहनाद्देशा
१६९
~ 157 ~
१७१
राधकः, उभयाभावात्सर्वविराधकः, उभयभावात्सर्वाधिकः । १७३ ॥। ११ दाचद्रवज्ञातम् || ९८-९९ जितशत्रू राजा, धारिणी देवी,
अदीनशत्रुर्युवराजः सुबुद्धिरमात्यः परिखोदकवर्णनं ९८, भोजनस्य वर्णनं, सुबुद्धिकृतं पुनल स्वरूपवर्णनं, नृपस्याश्रद्धानं, अववाहनिका, परिखोदकनिन्दा, तत्त्वाभिगमनविचारः परिखोदकानयनसंस्कारी, जितशत्रोरुपनयनं स्थान पृच्छा, यथार्थाख्यानं, प्रतीतिः, जिनभावश्रवणेच्छा, द्वादशव्रतग्रहणं, स्थविरागमनं, प्रवज्येच्छा, द्वादशवर्षरोधः, उभयोर्दीक्षादि ९९ । १७७
... अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'भगवत्यंग' इति मुद्रितं
बृहत्क्रमः ।
॥१४४॥
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
ज्ञातधर्म
कथासूत्रे
॥१४५॥
अंगसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ६. "ज्ञाताधर्मकथा' |
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
॥ इति १२ उदकज्ञातम् ॥ १०० दर्दुरदेवागमः, नन्दस्य श्रावकत्वं, साध्यदर्शनादिना मिथ्यात्वं ज्ये ठेऽष्टमभक्त पौषथः तृषाऽभि भवः, पुष्करिणीखननविचारः, राजाऽनुज्ञा, पुष्करिणीचनखण्डचित्रसभामहानसशालाचिकित्सकशालाअलङ्कारिकसभाकरणं, प्रशंसा । १०१-३२षोडश रोगाः, उइलनादिभिरनुपशमः पुष्करिणीमूर्च्छया दर्दुरता, प्रशंसा, स्मरणाज्जातिस्मृतिः, पूर्वप्रतिपन्नव्रताङ्गीकार, पष्ठषष्ठाभिग्रहः वन्दनाय गमनं श्रेणिकराजाश्वेनाक्रमण, सर्ववधादिप्रत्याख्यानम् ।
१३
વર્
*
॥ इति १३ दर्दुरज्ञातम् || १०२-५ तेतलिपुरं, कनकरथो देवः, प भावती देवी, तेतलिरमात्यः, क लादो मूषिकारः, पोट्टिला पुत्री, अभ्यन्तर स्थानीयेन पुत्रीयाचना, सत्कार्य विसर्जनं गत्वा पोट्टि लादानं १०२, पुत्रव्यङ्गनं, अमात्याय कुमारार्पण, पोट्टिलाकृतं मृतदारिकादर्शनं, कनकध्वजनामकरणं, १०३, अनिष्टया पो लिया दानादिकारणं १०४, सुव्रताऽऽऽऽगमनं, चूर्णयोगादिपृच्छा, धर्मकथा, श्राविकात्वम् १०५ ।
१०६-७ देवीभूतेनागमनस्य प्रतिज्ञानात्मवण्याऽनुज्ञा देवत्वं १०६,
~ 158 ~
नृपमरणं, नृपयाच्या रहस्यकथनं अभिषेकः, अमात्योपकारनिवेदनं, अर्धासनेनोपनिमंत्रणादि १०७ ।
१८९
१०८-१० अबोधान्नुपरुष्टताकरणं, बाह्याभ्यन्तरपर्षदोरनादरः, तालपुटादिनाऽप्यमरणं, प्रपातहस्तिनद्यादिदर्शनं प्रत्रज्याशरणाभिसन्धिः १०८, जातिस्मरणं, स्वयं महाव्रतारोपः, चतुर्दशपूर्वाभिसमागमः केवलं १०९, व्यन्तरकृतौ दुन्दुभिनादपुष्पवर्षों, कनकध्वजागमनं, द्वादश व्रतानि तेतलिसिद्धिः ११० । १९२ ॥ इति १४ तेतलिज्ञातम् ॥ १९१ चम्पा, धन्यः, ईशाने ऽहिच्छत्रा,
बृहत्क्रमः॥
॥१४५॥
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्रीज्ञातधर्म
यहक्रममा
यहां देखीए
कथासूत्रे ॥१४६॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
कनककेतुर्नुपः, धन्यस्य सार्थे । सर्वार्थसिद्धे उत्पादः ११३, धर्म- शाने देवगणिकात्वम् । २०६. १२१ नाहिच्छत्रागमनायोद्घोषणादि, घोषस्थविरजनकृतो नागश्रिया
१२२-२५ काम्पील्ये द्रौपदी, स्वयंनन्दिफलमूलादिवर्जनोद्घोषणा, धिक्कारः, गृहानिष्काशनं, षोड
वरदान, कृष्णादिदशाराणां पावर्जकानां जीवितं, अहिच्छत्रा- शरोगाः, षष्ठ्यात्मुपादः, मत्स्या
ण्डुराजादीनां अङ्गराजादीनां गमनं, चम्पाप्रत्यागमनं, स्थवि- दिषु भवेषु ११४ । २००
शिशुपालादीनां दमदन्तादीनां रपाये दीक्षादि । १९५ | ११५-१९ सुकुमालिकात्वनोत्पत्तिः
धरादीनां सहदेवादीनां रुक्म्या॥ इति १५ नन्दिफलज्ञातम् ॥ ११५, सागरदत्तेन विवाहः दीनां कीचकादीनां शेषाणां ११२-१४ चम्पा, सुभूमिभागमुद्यानं, १२६, गृहजामातृत्वाङ्गीकारेण बाहानाय दूतदशकं १२३, सर्वे
सोमसोमदत्तसोमभूतीनां नाग- विवाहः,अशुभाङ्गस्पर्शात्पलायनं पामागमनं, अशनप्रसन्नादिश्रीभूतश्रीयक्षश्रियः, एकत्र भो- ११७,सागरदत्तायोपालम्भः, द्र. | प्रेषणं, हस्तिस्कन्धेनोद्घोषणा, जनादि, कटुकतुम्बकसंस्कारः मकाय दत्ता, सोऽपि नष्टः ११८, स्वयंवरागमनं १२४, नान१९२, धर्मघोषशिष्यधर्मरुचि
गोपालिकाऽऽऽऽगमन, नि- जिनपूजादि १२५ । २११ प्रतिलाभनं, परिष्ठापनानुज्ञा, पि
पेधेऽपि षष्टषष्ठनातापना ११९।२०५ | १२६-३७ नुपवर्णनं,पाण्डववर्णनं १२६, पीलिकायधदर्शनाद् भक्षण, अ- | १२०-२१ देवदत्तागोष्ठीकपुरुषक्रीडा
शेषविसर्जन,कल्याणकरण१२७, नशनं, श्रमणैरन्वेषणं, पूर्वगतो- दर्शने, भोगनिदानं १२०, शा
नारदवर्णनं, पाण्डवानामादरः, पयोगेन दाव्यवगमः, धर्मरुचेः रीरबकुशत्वं, पृथग्विहारः, ई. । दीपद्या अनादरः १२८, द्वेषात्प
-
-
॥१४६॥
~159~
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रमः॥
यहां देखीए
ज्ञातधर्मकथासूत्रे
॥१४७॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
मनाभाय कथनं, पूर्वसङ्गतिकेनानयनं, शोकेन षष्टषष्ठकरणं १२९, द्रौपद्यन्वेषणं, कुन्त्या द्वारिकागमनं, कृष्णस्यानयनप्रतिज्ञा, नारदात्समाचारः, पूर्ववैताल्या गमनं सर्वेषां, सुस्थितदेवाराधनं, पद्मनाभाद्यनयनोक्तावपि मार्गयाचनं, दारुकसारथिप्रेषणं, अपमान, पाण्डवपराजयः, कृष्णधनुष्कारात्पद्मनाभवलक्षयः, नगरीरोधः, नरसिंहरूपेण नगरीभङ्ग, शरणागमन, भरताय प्रत्यागमनं १३०, कपिलवासुदेवेन सह शशब्देन मीलनं, पद्मनाभस्य निर्विषयता १३१, गङ्गायां नावोऽप्रेषण, कृष्णस्य स्वयमुत्तरण, पाण्डवानां निर्विघयता-
प्रदेशः, रथमर्दनकोडुनिवेशः १३२,कुन्तीविज्ञप्त्या दक्षिणवैताल्यां पाण्डुमथुरानिवेशाज्ञा १३३, पाण्डुसेनजन्म, राज्याभिषेका, सर्वेषां दीक्षा १३४,द्रौपद्या दीक्षा, एकादशाक्यध्ययनं १३५, नेमिवन्दनप्रतिज्ञा, हस्तिकल्पे आगमन, निर्वाणश्रवणं, भक्तपानं परिष्ठाप्य शत्रुजये आगम्यानशन, मोक्षः १३६, द्रौपद्या ब्रह्मलोके उत्पादः १३७ । २२७
॥ इति १६ अपरकङ्काज्ञातम् ।। |१३८-४० हस्तिशीर्षे सांयात्रिकवणि
जः, कालिकावातेन नौभ्रमणं, कालिकाद्वीपे उत्तरर्ण, हिरण्यादिभिः पोताना भरणं १३८, अ
श्वनिवेदनं, वीणादिभिश्च प्रेषणं, अश्वाऽऽश्वासनं, अरक्ताश्ववन्मुच्यन्ते मुनयः२३९,मुखबन्धा
दिभिरश्वादमन, उपनयः १४० । २३२ १४१ । ३३-५२ संवृतासंवृतगुण
दोषाः ३३-५२१४१ । २३५
॥इति १७ अश्वज्ञातम् ।। १४२-४४ राजगृहे धन्यस्य धनादीनां
लघुपुत्री सुषमा,चिलातोदासः, बहुशो निवारणेऽपि दारकाद्याक्रोशादेनिष्काशनं १४२, मद्यादिप्रसङ्गी, सिंहगुहायां विजयतस्करः, प्रारब्धचिलातगमन, चौरविद्या शिक्षण, अभिषेकः १४३, घाटीपातनं, तालोद्घाटिन्यादिप्रयोगः, सुषुमा गृहीत्वा निर्गमः ।
२३९
॥१४७॥
~160~
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-६. "ज्ञाताधर्मकथा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
बहवक्रमः।
यहां देखीए
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
श्री- || १४५-४६ प्राभूतपूर्व विज्ञप्तिः,नगरगुप्तैः जातधर्म
सह निर्गमः, सुषुमाघातः,वर्णा
दिहेत्वाहारे उपनयः, क्षुधाषाकथासूत्रे
ता, स्वखादनाभ्यर्थना, सुषुमा
खादनं १४५, बीरसमवसर॥१४॥
णादि, धन्यादिवत्सिद्धिगमनायाहारे उपनयः १४६ । २४२
॥ इति १८ सुषुमाज्ञातम् ॥ १४७-५३ पूर्वविदेहे पुष्करावत्याः पु
ण्डरीकिण्यां महापद्मनुपः, स्थविरपावें दीक्षा सिद्धिश्च १४७, स्थविरागमन, पुण्डरीकवैराग्य, कण्डरीकदीक्षा १४८, कण्डरीकस्य रोगाः, चिकित्सा, लज्जया विहारः, अशोकवनिकायामागमा, राज्याभिषेका १४९, पुण्डरीकस्य लोचदीक्षे १५०, कण्ड
रीकस्य पित्तज्वरः, अप्रतिष्ठाने नारकः १५१, पुण्डरीकस्य व्रतं, पित्तज्वरः, समाधिना काला, सवार्थसिद्धे गमनं, असक्तश्रमणादीनामुपनयः १५२. एकोनविंशत्यध्ययनस्वरूपोपनयकथनं १५३।
२४६ ॥ इति १९ पुण्डरीकन्ज्ञातम् ।।
॥ प्रथमः श्रुतस्कंधः।। १५४ प्रथमवर्ग चमरस्याग्रमहिषीणां,
द्वितीये बले,तृतीये दाक्षिणात्यानां, चतुर्थे उत्तरत्यानां, पञ्चमे दाक्षिणत्यानां व्यन्तराणां, षष्ठे उत्तरत्यानां, सप्तमे चन्द्रस्य, अष्टमे सूर्यस्य, नवमे शक्रस्य, दशमे ईशानस्याग्रमहिषीणामधिकारः, काल्या नाही
दारिकाया दीक्षादि, शरीरयाकु शिकत्वादि ।
२५० १५५-६५ । ५३-५६ राजीदेव्याध
ध्ययनानि (५) १५५, शुम्भाद्यध्ययनानि (५) १५६, इलाद्यध्ययनानि (५४)१५७, रूपायध्ययनानि (५४) १५८, कमलायध्ययनानि (३२) ५३५६ १५९, उत्तरत्यानां सहशनाम्न्यो देव्यः १६०, सूर्यप्रभाद्यध्ययनानि (४) १६१, चन्द्रप्रभाद्यध्ययनानि (४) १६२, पद्माद्यध्ययनानि (८) १६३, कृष्णायध्ययनानि (८) १६४, उपसंहारः १६५, प्रशस्तौ द्रोणाचार्यकृता शुद्धिः । २५४ ॥२ धर्मकथाश्रुतस्कंधः ॥२॥ ॥ इति ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रम् ॥ Id॥१४८॥
~161~
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-७. "उपासकदशा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
सूत्राणि ५८ ॥ उपासकदशाड़े विषयानुक्रमः॥ सूत्रगाथाः १३६
वृहत्क्रमः
उपासकांग
यहां देखीए
॥१४९॥
मङ्गलादि ।
१०-१२ आनन्दस्य प्रवज्याया अ१ चम्पापूर्णभद्राऽतिदेशः। १ भावः, अरुणे देवत्वं भावि, २-२॥ दशाध्ययनानि।
वीरविहारः १०, आनन्दस्य ६-५ वाणिज्यग्रामे आनन्दधाव
शिवानन्दायाश्च धर्मपालनं ११, कः, शिवानन्दा भार्या, कोल्ला
चतुर्दशवर्षातिक्रमे प्रतिमाविके मित्रादि, बीरागमनं, पर्युपा
चारः १२ सना ३, धर्मकथादि ४, द्वाद
१३ प्रतिमाऽऽराधनम् । १६ | शत्रतयाञा ५।
१४-१६ भक्तपानप्रत्याख्यानं, अब६ द्वादशवतोच्चारः ।
५ घेरुत्पादः १४, गौतमागमनं १५, ७ सम्यक्त्वाद्यतिचाराः (देशविर
अबधिज्ञानप्रश्नोत्तरे, आनन्दतावतिचारसिद्धिः)। १२ क्षामणम् १६।
१८ ८ सम्यक्त्वोच्चारः, शिवानन्दादेशः।१३१७ अनशनेन काल, देवत्वं सि९ शिवानन्दाया प्रताधुच्चारः। १४ द्धिश्च ।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
॥ इति १ आनन्दाध्ययनम् । १८-१९ कामदेवस्य ऋदयादि धर्म
पालनान्तं १८, पिशाचोपस
गेऽचलता १९ । २० खगच्छदवेदना । २१ हस्तिरूपेणोपसर्गः ।। २२ सर्परूपेणोपसर्गः। २३ देवप्रादुर्भावशक्रप्रशंसोदित्यादि। २६ २४ वीरवन्दनानन्तरं पौषधपालन
प्रतिक्षा, शुद्धवस्त्रपरिधानादि, पर्युपासना,धर्मकथा (धर्मकथास्वरूपम्)।
३० २५ वीरेणोपसर्गवृत्तान्तकथनं, श्रम
णानामनुशास्तिः,।
२
TOS
१४९
~162~
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-७. "उपासकदशा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
2
सूत्रांक
वृहतक्रमः॥
उपासकांग
यहां देखीए
N
॥१५०।।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२६ प्रतिभाप्रतिपत्त्यादि । ३१ ।। सप्त मांससोल्लकार, ऋद्धिनयने । मन्त्रण ४१, भाजनमप्रिया
॥ इति २ कामदेवाध्ययनम् ।। चलनम् । अरुणशिष्टे देवत्वम् ३४॥ ३६ भोगशिक्षावचनेन प्रतियोध२७ चुलनीपितृवर्णनादि ।
नम् ४२ । ॥ इति ५ चुल्लशतकाध्य०॥ ३२ |
१३ धर्मप्रतिपत्तिः, अग्निमित्राभा. २८-२९ मांससोल्लज्येष्ठपुत्रादि- ३५-३६ कुण्डकोलिकस्य ऋडया
र्याऽऽदेशः, धर्मप्रतिपत्तिः, म- भद्रामातृघतिरुपसर्गः, कोलाह
दि ३५, आजीविकदेवस्य निला, मातृशिक्षयाऽऽलोचनादि
रुत्तरता ३६।
३८ |
२८५४ गोशालागमः, वीरगुणकीर्तन, २८, प्रतिमादि (श्रावकस्य
३७-३८ कुण्डकोलिकवृत्तान्तेन वीरेण सह वादकरणासामध्ये, प्रायश्चित्तसिद्धिः ) २९ । ३४ श्रमणानां वीरशिक्षा ३७, अरु
वीरस्तुत्या पीठादिना निमन्त्रणं, णध्वजे देवत्वम् ३८ । ३९ | ॥ इति ३ चुल्लनीपित्रध्ययनं ॥
श्रान्तस्य गोशालस्य विहारः। ४७ ॥ ६ इति कुण्डकोलिकाध्ययनम् ।। । ३० सुरादेवस्य ऋद्धयादि। ३४ |
४५ उपसर्गे नव मांससोलकाः, पुत्र३९ सद्दालपुत्रस्याजीविकोपास -
त्रिकघातः, अग्निमित्राघाते च३१ स्वस्य पुत्राणां च पञ्च २ सो
कता।
लनादि, अरुणभूते देवत्वम् । ४८ लकाः, षोडशरोगोडवे चल
४० देवेन महामाहनागमनकथनं, ॥ इति ७ सद्दालपुत्राध्यययनम् ।। नादि।
पर्युपासनाविचारः । ४६ | ४६-४७ महाशतकस्य तद्भार्याणां ॥ ४ इति सुरादेवाध्ययनम् ॥ ४१-५२ वीरागमनं पर्युपासनं, देव
च ऋडयादि ४६, प्रतप्रतिप३२-३४ चुल्लशतकस्य ऋद्धयादि, वाक्योदितिः, पीठादिनोपनि
त्यादि ४७।
४८
॥१५०॥
~163~
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
अन्तकद
शांग सूत्रे
॥१५१॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र- ७. "उपासकदशा" ]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी साहित्य)
४८ रेवत्याः सपत्नीनां मारणम् ४८ । ४९ ४९ अमाघातः गोपोतघातनम् ५० रेवत्युपसर्गः
" ५०
५१-५२ अवध्युत्पत्तिः ५१, मत्तरेवत्युपसर्गः, नरकगमनकथनम्
५२ । ५१
५३ प्रतिक्रमणाय गौतमप्रेषणम् । ५२ ५४ प्रतिमादि ।
॥ इति ८ महाशतकाध्ययनम् ॥ ५५-५८ २४-१३ नन्दिनीपित्रधि कारः ५५, शालिद्दीपित्रधिकारः ५६, दशानामपि पर्यायादि ५७,
39
~ 164~
आनन्दादीनां प्रामादि २०१३४-५८ ।
॥ प्रशस्तिः ॥
॥ इति उपासकदशाङ्गम् ॥
*** अत्र 'उपासकदशा' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'अन्त्कृद्दशांग इति मुद्रितं
५४
बृहत्क्रमः ।
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-८. “अंतकृद्दशा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
सूत्राणि २७ अन्तकृहशायाः विषयानुक्रमः। सूत्रगाथा १२,
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
१-४,१-३ उपोद्घातः,गौतमाद्यध्य
यनो (१०) देशः १०, द्वारिकारैवतकपर्वतसुरप्रिययक्षा - यतनानि, कृष्णवर्णनं, अन्धकवृष्णोर्धारिणीदेवी, महाबलातिदेशः २७, नेम्यागमनं, गौतमदीक्षा, एकादशाश्म्यध्ययन, प्रतिमादि, शत्रुञ्जयसिद्धिः १, एवं
वह्नयादयो नब २, अक्षोभायध्ययनो (७)देशः ३७, सवेषां शत्रुञ्जये सिद्धिः ३, अनीयसाद्यध्ययनो (१३) देशा, भदिले नागसुलसे, द्वात्रिंशत्कन्यापाणिग्रहणादि, शत्रुञ्जये सिद्धिः, शेषाणामपि पश्चानां शत्रुञ्जये सिद्धिः ४।
५-६सारणकुमारः, पञ्चाशत्कन्याः । ५
नेमिशिष्यानगारषदकप्रवज्या, पष्टषष्टाभिग्रहः, सङ्घाटकत्रिकेन देवकीगृहे गमनं, आहारतुलभताप्रश्नः, समाधान, अतिमुक्तश्रमणवाक्यानृतत्वशका,नेमिना प्रकटनं सुलसाकृता हरिणेगमेषिभक्तिः, अनुकम्पया द्वयोः
॥१५॥
~165~
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-८. “अंतकृद्दशा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रमः
यहां देखीए
अन्तकुद्दशांग सूत्रे ॥१५२।।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
समं सर्नुकत्वं अपत्यव्यत्ययः, अनगारषट्कवर्णन, आगतप्रस्रवत्वादि, प्रजातस्य वाल्याननुभवेन शोकः, षण्मास्या वासुदेवागमनं, बालकमातृप्रशंसा, कृष्णायाभिप्रायकथनं, हरिणेगमेषिणे अएमपौषधः, वरदानं, सिंहस्वप्नः, गजसुकुमालनामस्थापनं, बन्दनाय गच्छता सोमादर्शनं, कन्यान्तःपुरे प्रक्षेपः, गजसुकुमालवैराग्य, राज्याभिपेकप्रार्थना, प्रव्रज्या, महाकाले प्रतिमा, सोमिलद्वेषः, अङ्गार - प्रक्षेपः, केवलज्ञानं, सुरमिगन्धोदकादि, कृष्णनिर्गमन, इटिकाभारवाहकसाहाय्य, ग
जसुकुमालस्थानप्रश्नः, सिद्धिनि
नारकत्वं, अममतीर्थकरता, श्रु. वेदन, रोषवारण, दृश्या मरणेना
त्वाऽऽस्फोटनादि, निष्कमणपमिज्ञान, भूमिपवित्रीकरणम् ६।१४ टहा, दीक्षाग्राहकाणां प्रथाप्रबृ. ७ द्वारिकायां बलदेवस्य धारिणी, त्तिवृत्त्यनुज्ञा, पद्मावतीप्रव्रज्या सुमुखाद्याः कुमाराः, वसुदेवधा. यक्षिणीशिष्यात्वं, सिद्धिः। २८] रिण्योद्रों, शत्रुञ्जये सिद्धाः । १४ । १० गौर्याद्या देव्योऽष्टौ । १८ ८-४ चतुर्थे जाल्याद्यध्ययनानि ११ शाम्वभार्या मूलश्रीः,मूलदत्तात(१०) ४ गौतमवजाल्यादि
पि च । कुमाराः, शत्रुञ्जये सिद्धाः। १४
॥५ वर्गः॥ ॥ ४ वर्गः॥
१२६-७मकाय्याद्यध्ययनानि(१६) १-५ॐ पद्मावत्याद्यध्ययनानि (१०) ६-७७, राजगृहे बीरान्तिके ५७,द्वारिकायां नेमिसमवसरणं, दीक्षा, विपुले तस्य किंकर्मणश्च सुराऽग्निद्वैपायनमूलकनाशकथ
सिद्धिः । नं, प्रवज्या शक्तेनिन्दा, कृतनि- १३ अर्जुनमाली, बन्धुमती भार्या, दानत्वात् , कोशाम्बवने जराकु- मुद्गरपाणिप्रतिमाऽर्चा, यत्कृतमारेण भावी द्यातः, तृतीयस्यां सुकृतैललितागोष्ठीपुरुषैः परि
C॥१५२॥
~166~
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-८. “अंतकृद्दशा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
श्री
बहत्क्रम।
यहां देखीए
अन्तकृद्दशांग सूत्रे
॥१५३।।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
भवः, काष्ठत्वचिन्तनं, यक्षावेशेन खीसप्तमघातः प्रत्यह, बीरागमनं, मातापितृवारणेऽपिसुदर्शनस्य गमनं, यक्षागमनं, साकारानशनं, यक्षतेजोधातः समुद्गरप्रतिगमः, अर्जुनमूर्छा, वीरागमथुतेर्वन्दनाद्यभिलाष:, दीक्षा, षष्ठषष्ठाभिग्रहः, आक्रो
शादि,भक्तपानाथलाभः सिद्धिः। २३ १४ काश्यपक्षेमाया एकादश, विपुले ।
सिद्धिः। १५ पोलाशे विजयश्रियोरतिमुक्तः,
इन्द्रस्थाने क्रीडा, गौतमानयन, थिया प्रतिलाभनादि, गौतमेन सह भगवद्वन्दनाय गमनं, धर्म
कथया वैराग्य, यन्न जानामि त- । १९ महाकाली क्षुलसिंह निष्क्रीडितं जानामीत्यादि, अनुमत्या दीक्षा, तपः । गुणरत्नं तपः, विपुले सिद्धिः, २० कृष्णा महासिंहनिष्क्रीडितं तपः।२८ वाणारस्यामलक्षोऽपि विपुले २१ सुकृष्णा, सप्तसप्तमिकाद्याः प्रसिद्धिः ।
तिमाः। ॥६ वर्गः॥
२२ महाकृष्णा, क्षुल्लकसर्वतोभद्रप्र
तिमा । १६ ८७-९ सप्तमे नन्दायध्यनानि (१३) ८-९७, सर्वासां सिद्धिः । २५
२३ वीरकृष्णा, महासर्वतोभद्रा । १७-१०-११ काल्यादीन्यध्यय
२४ रामकृष्णा, भद्रोत्तरप्रतिमा । ३१ नानि (१०) १०॥ , कोणिक
२५ पितसेनकृष्णा, मुक्तावलीतपः । ३२ चुल्लमाता काली, आर्यचन्दना
२६ महासेनकृष्णा, आचाम्लवर्द्धमाशिष्या, रत्नावलीतपः ११,
नं, सिद्धिः, श्रेणिकभार्यापर्यायः संलेखना सिद्धिश्च । २७ |
१२ अन्तकृद्दशाङ्गोपसहारः। ३२ १८ श्रेणिकभार्या सुकाली, कनका- २७ श्रुतस्कन्धवदिशादि । ३२ बलीतपः ।
॥ इति अन्तकृद्दशाः ॥
२८
॥१५३॥
~167~
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-९. “अनुत्तरौपपातिकदशा" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
श्री
सूत्रांक
सूत्राणि १-६ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गे विषयानुक्रमः
वृहत्क्रमः॥
यहां देखीए
अनुत्तरोपपातिकसत्रे
॥१५४॥
१-६ वर्गत्रये प्रथमवर्गे जाल्यायध्य
यनो (१०) द्देशः, एकादशाङ्ग्यध्ययनं, गुणरत्नं, विपुलेऽनशनं, विजये देवत्वं, एवं नव, देवत्वं विजयादिषु १, दीर्घसेनाद्यध्ययनो (१०) देशः, विजयादी देवत्वंर, धन्याद्यध्ययनो (१०)देशः, काकन्दीवर्णनं, सदाया
द्वात्रिंशद् भार्याः, मात्राथुक्तिप्रत्युक्तिः, षष्ठषष्ठाद्यभिग्रहः, भक्तपानाद्यलाभः,पादाङ्गुलीजानूरुकट्युदरपांशुलीपृष्ठकरण्डकोर:कटकबाहुहस्तहस्ताङ्गुलीग्री - वाहन्बोष्टजिडानासाक्षिकरणशीर्षवर्णनं, जीवंजीवेन वदनादि ३, वीराममनं, दुष्करकारक
प्रश्नः, धन्यप्रशंसा, श्रेणिकेन धन्यस्य वन्दनं ४, विपुलेऽनशनं सर्वार्थसिद्धे देवत्वम् ५, ॥३-१॥ सुनक्षत्रदारकः, एकादशानाध्ययन,सर्वार्थसिद्धे देवः, शेषाण्यष्ट ६.. ॥ अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गे
विषयानुक्रमः
ज
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
~168~
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१०. "प्रश्नव्याकरण" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
यहां देखीए
प्रश्नव्याकरणांगे विषयानुक्रमः। मङ्गलादि, पूर्व विद्याप्रतिपादक- १ आथवसंवरकथनप्रतिज्ञा १० । ३१ यारशकादि (५) द्वारोद्देशः। ५ स्वेऽप्यधुनाऽऽवसंवरप्रतिपा- (प्रत्यन्तरस्थ उपोद्घातः) | ३| १ प्राणातिपातस्यरूपं द्वाविंशत्या दकत्वम् । । २७ आश्रवोद्देशः ।
४. विशेषणः ।
१५४॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
~169~
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१०. "प्रश्नव्याकरण" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हवक्रमा
यहां देखीए
श्री प्रश्नव्याकरगांगसूत्रे
॥१५५॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
२ प्राणातिपातनामानि (३०)। ७ एकात्मवादिनः, अकारकवादिनः, । ॥ अदत्तादानाध्ययनम् ॥३॥ ३ प्राणातिपातकारकाः पाठीनाद्याः, अभ्याख्यानदायकाः, कन्याऽली
१३ मैथुनस्वरूपम् । चर्मवसादिकारणैः, पृथ्वीज- कादिवादिनः, भूतोपघातवाद
१४ अब्रह्मनामानि (३०)। लाग्न्यनिलवनस्पतिहिंसाकार - कार, अनर्थदण्डोपदेशकाऽनु
१५ असुराचा भेदाः, चक्रवर्तिवलणानि । मोदकाः । (अण्डवादः, स्व
देववासुदेवमाण्डलिकनुपयुगलिशौकरिकायाः,शकाद्या म्लेच्छायम्भूवादा, विष्णुमयत्वे मार्क
कनरवनितावर्णनम् । ८५ स्तत्कारकाः, नरकादिषु विपाकः, पडर्षिगाथाः)।
१६ अब्रह्मफलं, सीताद्रौपदीरुक्मिनरके तिर्यक्षु कुमानुभ्यत्वे च ८ अलीकस्य फलविपाकः । ४२
णीपद्मावतीताराकाञ्चनाऽहल्यावेदना ।
॥ मृषावादाध्ययनम् ॥२॥ सुवर्णगुलिकाकिन्नरीविद्युन्मती. ॥ प्राणातिपाताध्ययनम् ॥१॥ ९ अदत्तादानस्वरूपम् ।
रोहिणीनिमित्ताः सङ्नामा, ५-६ मृपावादस्वरूपं ५, तन्नामानि १० अदत्तादाननामानि (१०)। ४४
भवभ्रमः । (३०)६। २८ । ११ तस्कराद्यास्तत्कारकाः, युद्धख
॥ अब्राध्ययनम् ॥ ४॥ ७ असत्यवादकाः, कुटिलाद्याः, ना
रूपं, समुद्रतरणं, कालाकालस- १७ परिग्रहस्वरूपम् । स्तिकाः, पञ्चस्कन्धवादिनः, सु
वरणादि ।
५३ | १८ परिग्रहनामानि (३०)। ९३ कृतफलाचपलापकाः, अण्डप्र--१२ चारकप्रवेशादिविविध फलम्। । १९-२०, ४-८० भवनवास्यादयो जापत्युद्भववादिनः, वैष्णवा:, । (संसारस्य समुद्रेणौपम्यम् )। ६४ | भेदाः, शिल्पादीनि लोभाय १९,
॥१५५॥
~170~
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-१०. "प्रश्नव्याकरण" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
हवक्रमः।
सूत्रांक
यहां देखीए
श्री प्रश्नव्याकरणांगसूत्रे| ॥१५६॥
Hal
भवभ्रमः २०। आश्रवपञ्चकनि । गमनम् ४ ८
९८ ॥ परिग्रहाध्ययनम् ।। ५॥
॥ प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥ २१-२३, ९-११० संवरकथनप्रतिज्ञा० २०, संवरद्धारोद्देशः १००, अहिंसोपोद्घातः ११७, महाव्रतस्वरूपं, अहिंसानामानि (६०)। २१, अहिंसास्वरूपं, तत्कारकाः, तीर्थकरावधिऋजुविपुलमतिपूर्वधराद्याः (८५), संयमः (१७ ) कोटिनवकं, चिकित्सादिलक्षणादियन्दनमाननपूजनादिवजन, यतनादियुक्तत्वं २२, भावनापञ्चकं, आलोच्य निमन्ध्य प्रमृज्य प्राण
धारणार्थमाहारः, पीठादि (द- । दाता,बालादिवयाबृत्यसंस्कारी, ण्डकः) संयमवृद्धये, साधु
तपस्विकुलगणसधचैत्याद्यर्थस्वरूपम् २३ ।
११३ मुद्यमी, अनीतिमतः पीठफल। अहिंसाध्ययनम् ॥ १॥
कादि (दण्डकं) न सेवते, २४ सत्यस्वरूपं, समुद्रोत्तरणादि
भावनापञ्चकम् ! १३० महिमा, सावधवाग्वजन, नामा- ॥ अस्तेयाध्ययनम् ॥ ३॥ ख्यातनिपातोपसर्गादियुतभाष- २७-१२-१५७ ब्रह्मचर्यस्वरूपं, व्र
११८ झचर्योत्कृष्टता १२-१४३, ब्रह्म२५ भावनापश्चक, क्षेत्रा (९) द्यर्थ चारिवयंस्थानानि, भावनापमृषाबादः ।
१२१ श्वकम् । ॥ सत्याध्ययनम् ॥ २॥
॥ ब्रह्मचर्याध्ययनम् ॥ ४॥ २६ अदत्तादानस्वरूप, विस्मृताध- २८ एकासंयमाद्या एकोचराः । १४७
ग्रहणं, अप्रीतिमद्गृहाप्रवेशः, २९ अल्पादि, दासादि छत्रकादि अप्रीतिमतः पीठफलकादि (द. पुष्पादिच अकल्प्यं, ओदनादीनां ण्डक) वर्जन, पीठफलकाय
संनिधेरकल्प्यता, उद्दिष्टादिसम्भोगितावर्जन, उपध्यादि- वर्जन, कल्प्याहारादि, (पात्र
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
णम् ।
-
-
१५६॥
~ 171~
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए 'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
उपासकांग
सत्रे
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र - १०. "प्रश्नव्याकरण" ]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी साहित्य)
केशरिकापटलगोच्छकादि ), साधुस्वरूपं विशेषेण, भावना
पञ्चके शब्दादिप्रकाराः, तेष्वरक्तद्विष्टता ।
॥ इति प्रश्नव्याकरणाङ्गम् ॥
॥ अपरिग्रहाध्ययनम् ॥ ५ ॥ ३० श्रुतस्कन्धाद्युपसंहारः ।
*** अत्र 'प्रश्नव्याकरणांग' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'उपासकदशांग' इति मुद्रितं
~ 172~
१६५
वृहत्क्रमः ॥
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
॥१५७॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-११. “विपाकसूत्र" ]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
३६
१ मङ्गलादि, चतुर्ज्ञान: सुधर्मा, चम्पा, जम्बूपृच्छा । २-१४ मृगापुत्राद्यध्ययनानि (१०) १० मृगापुत्रस्वरूपं, भूमिगृहे रक्षणम् २ । ३ कारुण्यवृत्तिको जात्यन्धः, विजयक्षत्रियनिर्गमः, जात्यन्धागमः | ३६ ४ जात्यन्धप्रक्षे मृगापुत्रस्वरूपकथनं, दर्शनाय गौतमस्य गमनं, भूमिगृहस्थपुत्रदर्शनेच्छा, भक्तशकीं गृहीत्वाऽऽगमनं, मुखबन्धनप्रेरणा, मृगापुत्राहारादि
१४
३४
॥ विपाकसूत्रम् ॥
दर्शनं नरकप्रतिरूपता, आगम्य निवेदनम् । ५-२० शतद्वारे धनपतिः, विजयवर्द्धमानखेट, पञ्चशतग्रामाभोगं, इकाइराष्ट्रकूटोऽधार्मिकः, करादिपीडनं श्रुताद्यपलापः, षोडश रोगाः २ उद्घोषण, अभ्यङ्गादिभिरनुपशमः सार्द्धशतद्वयायुर्मृत्वा रत्नप्रभायां नारक, मृगापुत्रतया गर्भः, मातुरनिष्टः, उपायेऽपि न पातादि, मृगापुत्रनाख्यादिस्वरूपं, जन्मनि मृगावस्था भयः प्रथमगर्भ
~ 173 ~
૩૮
त्वात्पतिवचनेन भूमिगृहे पाल४३ नम् । ६ सिंहादिभवाः, सुप्रतिष्ठे गतिः श्रमण्यं, सौधर्मे देवः महाविदेहे सिद्धिः ।
॥ १ मृगापुत्राध्ययनम् ॥ ७ वाणिजे सुधर्मयज्ञायतनं, मित्रस्य श्रीदेवी, कामध्वजगणिकावर्णनम् ।
८ विजयमित्र सार्थवाहपुत्र उज्झितकः, गौतमस्य भिक्षाचर्या, संनस्त्यादि, तिलशछेदः, स्वकर्मापराधोद्घोषणा |
४४
४६
४७
॥१५७॥
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-११. "विपाकसूत्र" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
श्री
सूत्रांक
|
बृहत्क्रमः॥
ज्ञातधर्म
यहां देखीए
९ गौतमप्रने हस्तिनापुरे सुनन्दः, गोमण्डपः, भीमः कूटग्राही, उत्पळा भार्या, नगरगोरूपायूधस्तनादिभिर्दोडदा, गोमण्डपा
कथासूत्रे
॥१५८॥
त्पूर्तिः।
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
१० शम्देन गर्दा त्रासात् गोत्रासा,
कूटप्राहित्वं, गोमांसादिना
वृत्तिः नारकः। ११ बिजयमित्रसुभद्रयोः पुत्रः,उत्कु
रुटे उज्झनादुज्झितकः, विजयमित्रस्य लवणे काला, ईश्वरादिकृतं हस्तनिक्षेपादि गृहीत्वाऽ
पक्रमणं, सुभद्राऽपि शोकान्मृता। ५२ १२ निष्काशितस्योज्झितकस्य वे
श्यासक्तत्वादि, राज्ञा दण्डः । ५४ , १३ भ्रान्त्वा इन्द्रपुरे गणिकाकुले ।
पुत्रः, पितृसेननपुंसक, मन्त्र- . । विद्याप्रयोगैरभियोगः, रत्नप्रभायां नारकः, सुसुमारादि भूत्वा चम्पायां श्रमणः, सौधर्मे देवादि। ५५
॥२ उज्झिताध्ययनम् ।। १४-१९ पुरिमतालेऽमोघदर्शियक्षा
यतनं, शाला चौरपही, विजयोऽधिपतिः, १४, ग्रामघातादि, स्कन्दश्रिया अभमसेनः पुत्रः, पुरिमताले वीरागमः, अष्टादशसु चत्वरेषु चुलपित्रादिकुटुंबनाशनं १५, पूर्वभवे उदितोदितराज्ये निर्चयोऽपडवणिक्, तृतीयस्यां नारका १६, स्कन्दश्रिया दोहदः, पुत्रजन्म नामस्थापनं १७, सेनापतित्वं, क
ल्पाकग्रहण, जानपदमेलका, पुरिमताले महावलाय विज्ञप्तिः, दण्डायादेशः, अभझसेनाय गुप्तपुरुषसंदेशः, अन्तरा दण्डस्य प्रतिषधः, सामभेदोपप्रदान - प्रवृत्तिः १८, कूटागारशालायां विश्वास्य रोधः, ग्रहणं च सकुटुम्बस्य, नारकत्वादि, भ्रांत्वा वाणारस्यां मुक्तिः १९, ६४ (निरुषकमत्वानोपद्रवोपशान्तिः)
। अभग्नसेनाध्ययनम् ॥३॥ २०-२२ शाखाअन्यां देवरमणेऽमो
घयक्षायतनं, महाचन्द्रो नृपः, सुसेनोऽमात्यः,सुदर्शना गणिका, सुभद्रभद्रयोः शकटः पुत्रः, बीरागमादि, छगलपुरे सिंहगि
॥१५८॥
... अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' इति मुद्रितं
~174~
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
संबंधी
साहित्य
प्रत
सूत्रांक
यहां
देखीए
दीप
क्रमांक
के लिए
देखीए
'सवृत्तिक
आगम
सुत्ताणि'
श्री
ज्ञातधर्म
कथासूत्रे
॥१५९॥
अंगसूत्र- लघुबृहद्विषयानुक्रमौ
[ अंगसूत्र-११. “विपाकसूत्र" ]
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः अंग- सूत्रस्य विषयानुक्रम (आगम-संबंधी- साहित्य)
रिर्नृपः, छणिकछागलिकः, चतुर्थ्यां नारक: २०, शकटतया जन्म, निर्धाटितो वेश्यायां लग्नः, सुसेनेन दण्डकारणं २१, रत्नप्रभायां नरकः, राजगृहे मातङ्गः, सुदर्शनाभगिन्या कूटग्राहस्य स हवासः, नारकत्वादि २२ । ॥ शकटाध्ययनम् ॥ ४ ॥ २३ कौशाम्यां चन्द्रावतरणे श्वेतभद्रो यक्षः, शतानीकमृगावत्योरुदायन, पद्मावती देवी, सोमदत्तवसुदत्तयोर्बृहस्पतिदत्तः पुरोधाः, वीरागमनादि, सर्वतोभद्रे जितशत्रुः, महेश्वरदत्तः पुरोधाः प्रत्यहं ब्राह्मणादिमेकैकं, अष्टमीचतुर्दश्योद्वौ द्वौ,
६७
६८
चतुर्मास्यां चतुरश्चतुरः, षण्मास्यामष्टाष्ट, संवत्सरे षोडश षोडश, परवलाभियोगे ऽष्टशतं पुत्रान् हन्ति २३ । २४ पञ्चम्यां नारकः, बृहस्पतिदत्ततया जन्म, उदायनस्य प्रियवालवयस्यः, पद्मावत्यां लग्नः, हतो रत्नप्रभायां गमनमित्यादि २४ । ६९ || बृहस्पतिदत्ताध्ययनम् ॥ ५ ॥ २५-२६ मथुरायां भण्डीरोद्याने सु
दर्शनो यक्षः, श्रीदामवन्धुश्रियोर्नन्दिवर्द्धनः सुबन्धुरमात्यः, बहुमित्रः पुत्रः, चित्र आलङ्का रिकः, अयः कलशाद्यभिषेकादिदर्शनं सिंहपुरे सिंहरथः, दुर्योधनश्चकपालः, शिक्षोपक
७३
रणानि, शिक्षाप्रकाराः षष्ठयां ग मनं २५, नन्दिषेणतया जन्म, श्रीदाममारणेच्छा, चित्रस्य भेदो भयाद् राशे निवेदनं च रत्नप्रभागमनादि । २६ ॥ सुदर्शनाध्ययनम् ॥ ६ ॥ २७ पाडलखण्डे उंबरदत्तो यक्षः, सिद्धार्थो राजा, सागरदत्तगङ्गदतयोरुम्बरदत्तः सार्थवाहः, वी रागमनादि, रोगिदेहबलिकद्रमकदर्शनं, विजयपुरे कनकरथः, कुमारभृत्याद्यायुर्वेदनिपुणो धम्वन्तरिः, मांसोपदेशः, पछ्यांग मनं, उम्बरदत्तोपयाचितपूजादि, उपयाचितकरणं, नामस्थापनं, षोडश रोगाः, रत्नप्रभागमनादि । ७८
••• अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'ज्ञाताधर्मकथा' इति मुद्रितं
~ 175 ~
बृहत्क्रमः।।
॥१५९॥
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-११. "विपाकसूत्र" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
हत्क्रम
यहां देखीए
अन्तकृ-N शांग सूत्रे ॥१६॥
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
। उम्बरदचाध्ययनम् ॥७॥ २८ सौर्यपुरे सौर्यावतंसके सौर्यो
यक्षः, सौर्यदत्तो राजा, मत्स्यान्धपाटके समुद्रदत्तयोः सौर्यदत्तः, वीरागमनादि, नन्दिपुरे मित्रनृपस्य श्रीयकः सूदः, अनेकधा मांससंस्कारः, षठ्यां नरका, उपयाचितेन जन्मनि सौर्यदत्तनाम, यमुनायां हदगालनादीनि, गले मत्स्यकण्टका, महावेदना, रत्नप्रभागमनादि । ८१
॥ सौर्यदत्ताध्ययनम् ॥ ८॥ २९ रोहिडके पृथ्व्यवतंसके धरणो यक्षः, वैश्रमणदत्तश्रियोः पुष्यनन्दिः, दत्तकृष्णश्रियोर्देवदत्ता.
वीरागमनादि, सुप्रतिष्ठे महासेनधारिण्योः सिंहसेनः, कन्यापञ्चशतीविवाहः, श्यामा विनाऽन्यत्राचिः, तन्मातॄणां द्वेषः, श्यामाया राक्षे उक्तिः, कूटागारे आमन्त्रणं अशनाधानयनं च विधाय निशीथे प्रदीपनं, सिंहसेनः षष्ठयां,देवदत्तातया जन्म, राशा पुष्यनन्दार्थ याचनादि, मातृभक्तिः, अपाने लोहदण्डप्रक्षेपण श्रिया मारणं, देवदत्तावधः रत्नप्रभायांगमनमित्यादि । ८७
॥ देवदत्ताध्ययनम् ॥९॥ ३० वर्द्धमाने माणिभद्रो यक्षः,
विजयमित्रो राजा, धनदेवप्रियङ्वोर जुरिका, बी
रागमनादि, इन्द्रपुरे इन्द्रदत्तो राजा, पृथ्वीश्रीगणिका, पच्यां नारकः, अञ्जुश्रीतया जन्म, राक्षा विवाहः, योनिशूलं, रत्नप्रभायां गमनमित्यादि। ८९ अवध्ययनम् ॥१०॥
॥ प्रथमः श्रुतस्कन्धः॥ ३६ सुबाहादीन्यध्ययनानि (१०)
३ । ३१ हस्तिशीर्षे पुष्पकरण्डके कृत
वनमालप्रिययक्षायतनं, अदीनशत्रू राजा, धारिण्याद्या देव्यः, पञ्चशतो दायः, वीरागमादि, सुबाहोः श्रावकधर्माङ्गीकारः, हस्तिनागपुरे सुमुखो गाथापतिः, धर्मघोषस्थविरागमनं, विधिमा सुदत्तमुनिप्रतिलाभनं,
All
| ॥१६॥
... अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'अन्तकृद्दशांग' इति मुद्रितं
~176~
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम संबंधी साहित्य
अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ
[अंगसूत्र-११. "विपाकसूत्र" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: अंग-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य)
प्रत
सूत्रांक
।
हत्क्रमः
यहां देखीए
अन्तकृद्दशांग सूत्रे
मनुष्यायुः दिव्यानि,सुबाहुतया जन्म, श्रावकधर्मपालनं चतुर्दश्यादिषु पौषधः, पौषधोऽएमेन, धर्मजागरिका, सुबाहोर्दीक्षा, सौधमै देवः, प्रवज्या, ब्रह्मादी देत्वमित्यादि ।
|
। सुबाहध्यय० ॥२-१॥ ३२ भदनन्दिना युगवाहुस्तीर्थकरः,
सुजातेन पुष्पदत्तः सुवासवेन बैश्रमणभद्रः, जिनदासेन सुधमर्मा, वैश्रमणेन संभूतिविजयः, महाबलेनेन्द्रपुरः, भद्रनन्दिना
धर्मसिंहः,महाचन्द्रेण धर्मवीर्यः, वरदत्तेन धर्मरुचिरनगारः प्र
तिलम्भितः । ३३ श्रुतस्कन्धाधुपसंहारः। ९६
॥ इति विपाकसूत्रम् ॥
॥१६शा
दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक
आगम सुत्ताणि
इति श्रीआचाराङ्गादीनामेकादशानामङ्गानां
लघुबृहद्विषयानुक्रमौ च समाप्तिमवापुः । इति श्रीएकादशाङ्ग्यकारादि ॥
॥१६॥
... अत्र 'विपाकसूत्र' आगमस्य विषयानुक्रम एव वर्तते, मुद्रण अशुद्धित्वात् अत्र 'अन्तकृद्दशांग' इति मुद्रितं
~177
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
२-०-०
waimuseuNuuNRNNN
श्रीजैनानंदपुस्तकालीयविक्रेयपुस्तकानि दशवैकालिकचूर्णिः
| वारसासूत्र सचित्रं १२-०-० | बुद्धिसागरः
०-३-० उत्तराध्ययनचूर्णिः ऋषिभाषितानि
|विशेषावश्यकटीका (भागद्वयं) ११-०-० पंचाशकादिशात्राष्टकं ४-०-० प्रत्याख्यान, सारस्वतवि०।
भवभावनावृत्तिः पूर्वाध ३-८-० ३५०, १५०, १२५ स्तवनानि ०-८-० विशेषणवती वीरावीशी ।
कल्पकौमुदी पंचाशकादिवशअकारादिः ४-०-० विशेषावश्यकगाथाक्रमादि ०-५-० | पोडशकप्रकरणं सटीक ज्योतिषकरंडका सटीकः ३-०-० ललितविस्तरा
षडावश्यकसूत्राणि पंचवस्तुकः सटीकः ३-०-० तत्त्वतरंगिणी
०-८-० उत्पादादिसिद्धिः क्षेत्रलोकप्रकाशः
बृहसिद्धप्रभाव्याकरणं २-८-० तत्त्वार्थकर्तृसमीक्षा . युक्तिप्रयोधः स्वोपशः १-१२-० मध्यम
सुबोधिका
प्रेसमा विचाररत्नाकरः
आचारांगसूत्रवृत्तिः (भागद्वयं) ७-०-० भगवतीवृत्ति (अभयदेवीया) , वन्दारुवृत्तिः
भगवतीजीदानशेखरसूरिटीका ५-०-० भवभावना (उत्तरार्ध) पयरणसंदोहो
पुष्पमाला सलहेम स्वोपज्ञा ६-०-० | प्रवज्याविधानवृत्तिः अहिंसाटकसर्वशसिद्धिऐन्द्रस्तुति ०-८-० | तत्त्वार्थटीका हारिभद्रीया ६-०-० | प्रवचनपरीक्षा नवपदप्रकरणबृहद्वृत्तिः ४-०-० पर्युषणादशशतकं
०-१०-०/-प्राप्तिस्थान:संवत् १९९३ पोष शुद १.
सुरत-श्री जैनानंदपुस्तकालय, गोपीपुरा सुरत. पालीताणा-मास्तर कुंवरजी दामजी, मोती कडीयानी मेडी.
meenaजातजा
जलानाजानाजानाजायजानाजाजजजजजजजजजजजावाजाजाज
मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: परिसमाप्त:
~ 178~
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च अंगसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: "अंग-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:” नाम्ना परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of 'jain_e_library's' ~179~