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धीममरसिंहविरचित चामलिङ्गानुशास- पास
अमरकोषः
संक्षिप्तमाहेश्वरीटीकयासमेतः
नारायणराम आचार्य "काव्यतीर्थ
चौखम्भा संस्कृत भवन
वाराणसी
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11 : 11
चौखम्भा संस्कृत भवन ग्रन्थमाला
श्री अमरसिंहविरचितं नामलिङ्गानुशासनं नाम
अमरकोषः
संक्षिप्तमाहेश्वरीटीकयासमेतः
श्रीमत्यमरविवेकेमहेश्वरेण विरचितं
पणशीकरोपाह्वलक्ष्मणशर्मतनुजवासुदेव शर्मणा पूर्वसंस्कृतस्यास्य
नारायणराम आचार्य " काव्यतीर्थ" इत्यनेन संशोधितम्
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संस्कृत
चौखम्मा
चाक
भवन
वाराणसी
चौखम्भा संस्कृत भवन
संस्कृत, आयुर्वेद एवं इण्डोलाजिकल पुस्तकों के प्रकाशक एवं विक्रेता
पोस्ट बाक्स नं० ११६० चौक, ( बैंक आफ बड़ौदा बिल्डिंग) वाराणसी - २२१००१ ( भारत )
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प्रकाशक : चौखम्भा संस्कृत भवन, वाराणसी मुद्रक : चारू प्रिन्टर्स, वाराणसी संस्करण : मूल रूप से निर्णय सागर प्रेस, मुंबई द्वारा प्रकाशित
पुनर्मुद्रण, वि० सं० २०६० मूल्य : रु.८५.००
© चौखम्भा संस्कृत भवन, वाराणसी इस ग्रन्थ का परिष्कृत तथा परिवर्धित मूल-पाठ एवं टीका, परिशिष्ट आदि के सर्वाधिकार
प्रकाशक के अधीन है।
फोन : ०५४२-२४२०४१४ प्रधान कार्यालय :चौखम्भा संस्कृत संस्थान पो० बा० नं.११३९ के. ३७/११६, गोपाल मन्दिर लेन (गोलघर समीप मैदागिन) वाराणसी-२२१००१(भारत) फोन : ०५४२-२३३३४४५
सहयोगी संस्था :चौखम्भा पब्लिकेशन्स ४२६२/३ अंसारी रोड, दरियागंज नई दिल्ली-११०००२ फोन : ०११-२३२६८६३९, २३२५९०५० E-mail : chaukhambha@mantraonline.com
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THE
CHAUKHAMBHA SANSKRIT BHAWAN SERIES
46
AMARKOṢAḤ
Or
NĀMALINGĀNUŚĀSANAM
With the Concise 'Amarviveka' Sanskrit Commentary of Sri Maheswar
Previously Edited By
Pt. Vasudeva Śarmā Pańśikar the Son of Sri Lakṣmaṇa Śarmā Panśikar
Revised by
Pt. Nārāyaṇa Rām Acārya 'Kavyatirth'
CHAUKHAMBHA SANSKRIT BHAWAN
(Sanskrit, Ayurveda & Indological Publishers & Distributors) Post Box No. 1160 CHOWK (Bank of Baroda Building) VARANASI - 221001 (INDIA)
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प्रथमं काण्डम्
१ मङ्गलाचरणम्
२ प्रस्तावना
३ परिभाषा
४ स्वर्गवर्गः
५ व्योमवर्गः
६ दिग्वर्गः
७ कालवर्गः
८ धीवर्ग:
६ शब्दादिवर्गः
१० नाट्यवर्गः
११ पातालभोगिवर्गः
१२ नरकवर्गः
१३ वारिवर्गः
द्वितीयं काण्डम्
१ वर्गभेदाः
२ भूमिवर्गः
३ पुरवर्गः
४ शैलवर्गः
५ वनौषधिबर्गः
६ सिंहादिवगं
७ मनुष्यवर्गः
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विषय सूची
१
२
३
२१
२७
३०
३५
४२
૪૪
४५
५३
५३
५६
६०
६१
८५
६५
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५
ब्रह्मवर्गः
& क्षत्रियवर्गः
१० वैश्यवर्गः
११ शूद्रवर्गः
१२ काण्ड समाप्ति: तृतीय काण्डम्
१ वर्गभेदाः
२ परिभाषा
३ विशेष्यनिघ्नवर्गः
४ संकीर्णवर्गः
५ नानार्थं वर्गः
८ काण्डसमाप्तिः
११६
१२५
१४६
१६४
१७२
६ अव्ययवर्गः
२४०
७ लिङ्गादिसंग्रहवर्ग: ( अन्य स्त्रीलिङ्गसंग्रहः )
शब्दानुक्रम कोणः
१७३
१७३
१७३
२४४
( अथपुल्लिङ्गशेष संग्रह ) २४६
२४८
( अथपुंनपुंसकसंग्रहः ) ( अथपुंनपुंसकसंग्रहः ) २५० ( अथस्त्रीनपुंसकशेषः ) २५१
( अथत्रिलिङ्गशेष संग्रह ) २५२ ( अर्थालङ्गादिसंग्रह वर्ग : ) २५२
२५३
१
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१६१
१६६
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अमरकोषस्य शब्दानुक्रमकोशः
पंक्ति
२७.२
पंक्तिः शब्दः पंक्ति शब्दः पंक्तिः । शन्दा
अ. भधि ... १२५५ अग्निशिख ... १३२१ मा ... १२१॥ अ ... २८७१/ ... २९१९ अमिशिला... ८८५, ... २०६२ मंश ... १८८५ मक्षिकूटक... १५४६ ,, ... १२१ , ... २८८५ अंश ... २१. भक्षिगत ... २११५ , ... १३२ मण ... ६१८ अंशुक ... १३० भक्षीव ... ... भम्युत्पात ... २१४ माद ... १२८८ अंशुमती ... .. ... १७०० ,
माना ... १५३ अंधमत्फला भवोट ... ७.६ अप्र ... १४.
... १००९ मंस ... १२.. अक्षौहिणी... १६.
अङ्गविक्षेप... १९॥ ... १..अखण्ड ... २१५५भग्रज ... ११५
भसंस्कार ५ मंहति ... १३१२ |भसात
| भग्रजम्मन्... १३६
अाहार ... ९९ मंहस् ... २७ भबिल ... १५. अग्रतःसर ....."
अनार ... 100 भकरणि ... २१२.भग २०७२/भग्रतम् ... २८२.
तारक ... १५ भकूपार ... ११८भगद ... " | , ... २८६६
अनारधानिका १५ मकृष्ण भगदंकार... " भग्रमांस ... १२.
भङ्गारवल्लरी १५ ५ अगम
भप्रिय ... ११५
भगारवल्ली ८२८ ... १७९३ अगस्त्य ... १८0 ... २१४०
भारशकटी १८.८ भगाध
६५ ...
... २१४.
१९.भग्रीय २.११ भगार १.२ भदिधिषु १२
भङ्गीकार ... २८. २०.८मगुरु ... १२० अग्रेसर ...."
भीकृत ... २२४१ मक्षत ... १८..मगुरुशिशपा भव्य ... २१४०
अङ्गुलिमान १८७७ भक्षदर्शक... १४.८भप्रायी ...
भङ्गुलिमुद्रा १२८९
११९५ अ ... भक्षदेविन्... २०१५ भग्नि ...
अली ... १२३. भवभूर्त ... २०4, ... R४५!
अवमर्षण ... १४४
अकुलीयक १२८८ मक्षर ... २१. अनिकम ... " अध्या
भकुछ ... १२१७ भक्षरचुप... १४९८ अप्रिचित् ... अध
भङ्गि ... १२. भधरचण... १३९८
८९७
, २३४२ . ... २५२१ भक्षरविन्यास ११९९ अग्नित्रय ... '
... ६५७ भक्षवती ... २०१८ भनिभू ...
१५५० | अशिवल्लिका ॥ अक्षाप्रकीलक १५८० भनिमन्म ...
७०६ | अचण्डी ... १८.. भधान्ति ... .भमिमुखी ...
... ३७२ भचल ... १५ 1 .को.स.
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अमरकोषस्य
.
.
.अराये ..मयय
१२
अट्ट
भद्धा
... २०७२
शब्द पक्ति शब्द
पंक्तिः शब्दः पंकिः शब्दः पंक्तिः भचला ... ५६. अजन ... १५, अतिच्छत्र ... ९८२ अत्यन्तीन ... १६२० अचिक्कण ... २७८६ भञ्जनकेशी १०८ अतिच्छत्रा... ९५२ अत्यय ... १६१९ अच्छ ... ४९५ अञ्जनावती १५४ अतिजव ... १६॥ |, ... २६३५ अच्छभल्ल ... ५ अञ्जलि ... १२४४ अतिथि ... १४२ अच्युत ... , ... १४३० अतिनिर्हारिन् २९७ भत्यल्प ... २१४९ अच्युताग्रज ४५ असा ... २८५२ अतिनु ... ५१४ अत्याहित ... २४८९ अज ... १८५८ ॥ ... २८७२ अतिपथिन्... ५८८ मत्रि ... १९८
... २३९५ अटनी ... १६१६ अतिपात ... १४२६ अथ ... २८२९ अजगन्धिका
... ८५५ , ... २३१६ अथो ... २८२९ अजगर ... ४४७ अटवी ... ६५० अतिप्रसिद्ध २७७१ अदभ्र
अदभ्र ... २१५० अजगव ... (९ अटा ... १४२३ भतिमात्र ... १३३ भदर्शन ... २२९४ अजन्य ... १६८५ ... १५ अतिमुक्त ... .९२ अदितिनन्दन भजमोदा ... १५० अट्या ... १४२३ अतिमुक्तक... ... अहर ... १९६ अमराणी ... ८८७ भणक ... २१३॥
अतिरिक्त ... २१७५ मदृष्ट ... १५२७ भनन्न "अणव्य ...
भतिवक्त ... २०१५ भाष्टि ... १६ अजहा ... ८. मणि ... १५८०
अतिवाद ... भजा ... १८५८
८५८ भणिमन् ... अतिविषा ... ... २६९५ मणीयस् ... २१४९ भतिवेल ... १२ " अजाजी ... १७७९ अणु ... १७४७. अतिशक्तिता ११.२ अगर ।
अगर ... २०६५ अजाजीव ... १९५०
भतिशय ...
... अघ ... २८८९ अजित ... २४५८ भण्ड
१०५२ ... २२७१
... ६५ अजिन ... १४४५ भण्डकोश .... १२२६ अतिशस्त ... २४१७ , ... २६६२ अजिनपत्रा... १९ अण्डज ... भतिशोमन २१ , अजिनयोनि १००६ ... १०५३ अतिसंस्कृत २४९६ अद्यवादिन् २७ अजिर, ...
१८ ... २१२६ अतिसर्जन... २३.५ अधम ... २१३२ , ... २६९८ अतट ... ४१ अतिसारकिन् १९२
... २६२४ भजिम ... ३१६८ अतर्कित ... २८६३ भतिसौरम... १५ मधमर्ण ... १७१६ भजिह्याग ... १६४. मतलस्पर्श... १९. अतीक्ष्ण ... २५३॥ भधर ... १२५५ अज्जुका ... १८४ अतसी ... १७४६ अतीत ... २८८॥
... २०१४ मम्झटा ... ..२ अति ... २८१८ अतीतनौक १९४ | अधरेबुस् ... २८९० अब
" ... २८५३ अतीन्द्रिय... २१८२ अधिकार्दि... २०४७ ... ३१२. अतिक्रम ... 14 भतीव ... २८५३ अधिकार... १५९४ भज्ञान ... २९. " ... २६१५ भत्तिका ... १० मधिकार ... १५२९ भधित ... २९३. भतिघरा ... १४. अत्यन्तकोपन २.८८ मधिकृत ... ..
भ
२९.
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शब्दानुक्रमकोशः
१६२३
५७७
गन्दः पंक्तिः शम्दा पंक्तिः शब्द पंक्ति शब्दा
पंक्तिः अधिक्षिप्त .... २१.८ अनच्छ ... १९५मनीक
अनुयोग ... .. अधित्यका ... ६४७ अनडुह ... १८२६ . ... १६७६ भनुरोध ... १४९२ अधिप ... २०४६ भनन्त ... १४.भनीकस्थ... १४८. अनुलाप ... १४२ भधिभू ... २०४६
मनीकिनी... अनुलेपन ... २९४॥ अधिरोहिणी १२८
अनुवर्तन ... १४९२ अधिवासन १६५२ भनन्ता
(भनु ... २८३॥ भनुवाक ... २९२० अधिविना ... १०८७
८१२ अनुक ... २०.. अनुशय ... २६॥ भधिश्रयणी १७६५ ... ८७२ | अनुकम्पा ... १९८ अनुष्ण ... १९६५ भधिष्ठान ... २५८५ ... १२१ अनुकर्ष ... १५८२ अनुहार ... २२८४ भधीन ... २०५०
अनुकल्प ... १४१२अनूक ... २३६. अधीर ... २...
अनन्यज ... ५० भनुकामीन १६२. अनूचान ... १३७२ भधीश्वर ... १४१ भनन्यवृत्ति २१८५ मनुकार ... २२८४
अनूनक ... २१५५ अधुना अनय ... २६४ अनुक्रम ... १४२५
१५ अनूप भधृष्ट ... २ अनर्थक ... १५१ अनुक्रोश ... १९
२०० भधोंशुक ... ११०७ भनक ... 1.0 मनग ...
... २१ अनृजु २.१. भधोक्षन ...
अनवधानता भनुग्रह ... २२७५ अनृत १.११ भधोभुवन ...
भनवरत ... । भनुचर ... १६.. मधोमुख ... २०९
अनवरार्म भनुन ... 11६० अनेकप भध्यक्ष ....
भनवस्कर... २१३५ मनुजीविन् १४८५ भनेहस् ... २१६ ... २७८६ भनस् ... १५७२ भनुतर्षण ... २०१५ मनोकह ... अध्यवसाय १२० भनागतातवा १.८९ अध्यात्म ... २६२॥ मनातप ... २६५. भनुत्तम ... २१३० भध्यापक १३८६ अनादर ... १०॥ अनुत्तर ... २०१६ भन्तःपुर ... अध्याहार ... २८३ मनामय ... .." अनुनय ... २८८४ अन्तक ... ११७ अध्यूढा ... १.८७ अनामिका ... १२३८
अनुपद ... २१८० भन्तर ... ..९ भध्येषणा ... १४10 अनायासकृत २२॥ भनुपदीना १९९० अन्तरा ... २०६८ मध्वग ... १५.. | अनारत ... भनुपमा ... १५५ मन्तरामवसरव २६.. भध्वम् ... ५५ अनार्वतिक अनुप्लव ... १६१० अन्तराप ... २२८८ भध्वनीन ... १५. मनाहत ... ९. मनुबन्ध ... २५५१ मन्तराम ... १५६ भवम्य ... १५., भनिमिष ... ... अनुबोध ... अन्तरिक्ष ... १४४ भवर ... ११.५ मनिस्स ... ५. मनुभव ... २३.४ मन्तरीप ... .॥ भवर्य ... भनिक ... मनुभाव ... १०० भन्तरीय ... .... मनपर ... १५२ , ... १२१ , ... २०५४ मन्तरे ... १८५८ मनार ... .मनिश ... ..मनुमति ... २१. मन्तरेण ... २८५४
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Y
शब्दः
पंक्तिः | शब्द
अन्तरेण
२८६९ | अन्ववाय
अन्तर्गत २१९७ अन्वाहार्य
अन्तर
अन्तर्धा
अन्तर्षि
13
अन्त्य
अन
भन्दुक
अन्ध
...
अन्तिका अन्तेवासिन्
""
...
अन्तर्मनस्
२०४० अप् ( आप )
अन्तर्वनी
१११७ | अपकारगी
अन्तर्वाणि २०३७ अपक्रम
अन्तर्वेशिक १४८१
अपघन
अन्तावसायिन् १९४८ अपचय २१५९ | अपचायित
भन्तिक
अन्तिकतम... २१६१ | अपचित
१७६४ | अपचिति
१५७४
१९६८ | अपटु २१८६ | अपत्य
१२०५ अपत्रपा
१५५०
११९६ अपथ
२५४० | अपथिन्
अन्धकरिपु
६७ | अपदान्तर
अन्धकार ... ४४३ अपदिश ४४४ अपदेश
***
""
...
अन्य
भन्धतमसू ...
अन्धस्
अन्धु
अन्न
...
***
***
...
... १८०३
...
***
पंक्ति: | शब्द
१३५५ अपर्णा
१४१५ अपळाप
(२० | अन्विष्ट
२२३४ | अपवर्ग
१६९ अन्वेषणा
१४१६ | अपवर्जन
१६९ अन्वेषित २२३४ अपवाद
४७२
10
१८०३
...
19
पत्रपिष्णु
"2
५१९ अपध्वस्त
अपभ्रंश
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...
37
...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
***
***
...
***
...
अमरकोषस्य
400
...
""
33
""
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३३८ | अपवारण
१६९०
१२१३ अपशब्द २२८१| अपहु
२२२७ | अपसद २२२७ | अपसर्प
१४२१ अपसव्य
२४६९
...
११८९ अपस्कर ...
११२९ अपनात
४०८ | अपहार २०८० | अपांपति ५९० अपाङ्ग
13
५९० २१६० अपान
१५५
""
४२७ अपामार्ग
२७६७ | अपावृत्त
२१०३ अपासन
३१४ अपि
१६९० अपिधान
२२५२ अपिनद्ध
***
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
...
...
...
२२४६ | अपयान
२१८९ अपरस्पर
अन्यतर २१८९ | अपराजिता
२८९०
८५६ अपूप अन्यतरेद्युस् ९४७ भपोगण्ड अन्येद्युम् २८९० अपराद्धपृषत्क १६०४ अप्पति १५२० अप्पित्त २२१ अप्रकाण्ड ... २८९० | अप्रगुण
अन्वकू
भन्वक्ष
२१८१ | अपराध २१८१ अपराह्न १३५४ | अपरेद्युस्
अन्वय
***
...
***
...
...
...
...
...
...
...
630
...
...
840
पंक्तिः | शब्दः
७४ | अप्रत्यक्ष
३४५ भमधान २९० अप्रहत
१४१२ अप्राध्य
३६६ | अप्सरस्
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२५१२
***
31
...
***
33
...
""
१६९ अफळ
२५८४ | अबद्ध
३१४ | भवद्धमुख... २०९७
२१९२ भवला
१०७७
२१९१
१९६१ | अबाध १४९३ | भन २१९२
१०३
२३९९
93
२१९३ | अज्ञयोनि . १५७८ | भन्द २०६१ २२८१ | अब्धि
"
४७०
...
...
www
***
२५११
8 {
२९१७
१२६१ | अब्धिकफ... १९६६ २३७७ण्य
१८९
९७७
७६६
१४२४
...
...
***
२०७२
१६६०
२६४७
२५९१
१२६ अमय २२२० अभया ८२५ अभाषण २०५५ | अभिक १६९४ | अभिकम २८३३ अमिख्या ... १७० अभिग्रस्त ... १५९७ | अभिग्रह २२७६ १८०२ अभिग्रहण... १२८३ ११६५ अभिघातिन् १२१ | अभिचर .... १६१० ११२ अभिचार... २२८७ ६६६ अभिजन १३५४ २१६१ ।
१४९०
२५५०
...
...
...
पंक्तिः
***
२४८२
२१४४
५६७
२१४४
२१
142
६६२
३५१
...
...
३३
१५५
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शब्दानुक्रमकोशः
१५॥
... २८..
अम्बष्ठा
४९
पंक्तिः शम्दापति शब्दः पंक्तिः शब्दः
शब्दः
पंक्तिः भमिनात ... ३.५० भभिष्टुत ... २२१४ | अभ्यासादन १६८० ... २१८६ भमि
भभिसंपात १५० भभ्युदित ... १९६२ अमृता ... .१५ अमितर ... २०६३ भनिसारिका ..॥ मभ्युपगम... २८ भमितम् .. ३१५ ममिहार ... २२॥ मम्युपपत्ति २२०५ " ... १३
. ... ३१०२
भाभ्यप ... १८.. अमृतान्धस् 14 भभिधान ... १२५ भभिहित ... २२९
अमोघा ... ८६. ममिध्या ... अभीक ...२
अम्बर ... १४३ भभिनय ... अभीक्ष्णम्... २८५१
भभ्रक ...
" ... २६९८ मभिनव ... २१७९
भद्रपुष्प ...
अम्बरीष ... १७६७ अभिनवोद्भिद ६५० मभीप्सित... २१॥
भत्रमाता
अम्बष्ठ ... १९३२ भमिनिर्मुक्त ११३
" ... २२१० भभिनिर्याण ११५८अभीर ... भनमुवल्लभ भामिनीत ...१५भभीरुपत्री
अनि
२२९ अभीषा ... २२०
भत्रिय ६. अम्मा भभिपत्र ... २५९१ अमीषु ... २७०५
भव ...
अस्विका ... ७४ भभिप्राय ... १२९.भभीष्ट ...
भमत्र ...
अम्बु ... अभिभूत ... ११.४ भभ्यप्र ...२
भमर
अम्बुकण ... भभिमान ... १०५ भभ्यन्तर ... . भमरावती...
अम्बुज ... ... २५५५भभ्यमित... "
भमस्ये
भम्बुभृत् .... अभियोग ... २२७६ अभ्यमित्रीण ,
भम्बुवेतम अभिरूप ... २५९७ भन्ममित्रीय 100 भमर्पण
अम्बुसरण ४८८ अमिलाव ... २२९७ | अभ्यमिभ्य १९९७ |भमा ... | अम्ब्कृ त ... भभिलाष ... .... | अभ्यर्ण ... २१५९ अमांस
सम्भस् ... अभिलाषुक २०६९ अभ्यर्हित ... २५.१ भमास्य ... १५०३ भम्भोरुह ... ५४८ भभिवादक २०. अभ्यवकर्षण २२८३ अमावस्या ... २१. | भन्मय ... ४.६ भभिवादन १४३५ अभ्यवस्कन्दन १९८७
ममावास्या
२. भम्ल ... भमिव्याप्ति २२६२ | अभ्यबहत... २२
भमित्र ... १३८९ अम्ल वेतस
१३. भभिशस्त ... २०१० अभ्याख्यान । अनुत्र ... २०६५ भम्लिका अभिशस्ति १११७ अभ्यागम ... १९७८ अमृणाल ... अम्ललोणिका अभिशाप... १३२ अभ्यागारिक २०१८ भमृत
भम्लान ...
७९५ भभिषा ... २३८२ अभ्यादान २१.२
२८९ अमिषव ... १४४६ अभ्यान्त ... १९.
भयन ... २४० " ... २०१३ अभ्यामर्द... १६७०
१४०९
५८६ भाभिषेणन १६५७ अभ्याश ... २१५८
.... १७१२ भवस् ... १९०२
१५०
A
भमा
.
भय
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अमरकोषस्य
काद:
"
... २७१३
२१४सल
:::::::
२९०
भर्दित
२२१९
अर्कपर्ण ....
SA
८
शम्दः पंक्तिः | गन्दा
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः भय प्रतिमा १९९९ भरुष्कर ... ३३ भर्थिन् ... १४८५ अलम् ... २८॥ अयि ... २८८४
| अलक ... १२६५ भयोग्र ... १७५७ अरुस् ...
१८१भर्य १९१४ भलका ... १४. भयोधन ... २४००
अरोक
... २२२४ ...
२६५५ भलक :.. १२॥ भर अर्क
अलक्ष्मी ... ४६४ भरघट्ट ...
भलगर्द ... ४४८ अरणि ...
अलंकरिष्णु १२१ भरण्य ...
अर्धचन्द्रा...
, ... २.८२
भर्धनाव ... भलंकर्तृ ... १२१ भरण्यानी...
भर्धरात्र ... २२० भलंकर्मीण . ६. भरवि ...
भर्धर्च ... २९५९ भलंकार ... १२७६ भरर ... २७
अर्धहार ... १२८५ भलंकृत ... १२७४ भरतु ... ..
भोरुक ... " भलंक्रिया १२५ भरविन्द ... ५४५
भईद ... २९॥ भलर्क ... . भराति ...
... २९६० " ... १९७२ अराल ... २५०५ अर्भक
भलस ... १९६५ भरि
भलात
भला भरित्र भरिमेद
... .. भरिए
भतिक ... १२५७ भलिन् ... १०४५
... 1010 १५५५
भकिन्द ... ७ २१११
भलीक ... २३५९
... २१४७
૨૮૮૧ भल्पतनु ... १७० भरिष्टदुष्टधी
१८२ भरुपमारिष १२. अरुण ... २ मई
मर्शस ... " भरूपसरस... ५२॥ " ... २०८ ,
| भोज
भल्पिष्ट ... ११४९ " ... ... भार्थना ना ... १४१. अशेरोगयुत ९७ मल्पीयस्... २१४९
... २२६२ महणा ... ११२१ भवकर ... ६२९ भरुणा
मर्थप्रयोग... १७१४ भर्हित ... २२२० भवकीर्णिन् १४६० भरंतुद ... २१९७ भर्थशास्त्र ... १२० मम् ... २८९ मवकृष्ट ... २१॥
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-
७९५
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A
AM
२५०
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शब्दानुक्रमकोशः
... १२५०
शब्दः पंक्तिः । शुन्द: पंक्तिः शन्दः पंक्तिः , शब्दः पंक्तिः भवकेशिन्... ६६२ भवन्तिसोम १७८५ अवस्कर ... २६७० अशनाया... १८१५ भवक्रय ... १८६५ भवन्य ... ६६१ अवस्था ... २७३ अशनायित २०६४ भवगणित ... २२३० भवमृथ ... १४०७/ अवहार ... ५.९ अशनि ... ९. अवगत ... २२४० अवभ्रट ... १६३ अवहित्था... ४२५ | भशित ... २२४६ भवगीत ...
अवम ... २१३२ अवहेलन ... ४०७ | भशिश्वी ... १०९५ " ... २४९२
भवमत ... २२३७ | अवाक् ... २०५१ अशुभ ... २९४० अवग्रह ... अवमर्द ... १६८६ , ... २०९१ | अशेष ... २१५४
" ...१५४३ अवमानना ४०७ अवाकपुष्पी ९५३ भशोक ... .७७ भवग्राह ... १६६ भवमानित २२३७ भवाग्र ... २१६५ भशोकरोहिणी १९ भवर्णित २२१२/ अवयव ... १२१३ अवाची ... १४७ | भरमगर्भ ... १८९० अवज्ञा ... ४०७ अवर ... १५४८ अवाच्य ... ३५२ भश्मन ... १९१४ अवज्ञात ... २२३७ | अवरज ... ११६० अवार ... १८२ भश्मन् ... ६४० अवट ... ४४२ भवरति ... २३२४ अवासस् ... २१०२ भश्मन्त ... १७६१ भवटीट ... १६३ अवरवर्ण ... अवि
भश्मदुरुप ... ८९३ भवटु ... अवरीण ... २२१२
" ... २७४९
भश्मरी ... ११८६ अवतंस ... २७९० अवरोध ... ६१६ अविन
भश्मसार ... १९०॥ भक्तमस अवरोधन ... अवित
भान्न ... १३. भवतोका अवरोह ... १ अविदूर ...
२५४१
भनि ... १६५४ अवदश ...
अवर्ण ... १६ अविद्या ... मा ... १२६. भवदात अवलक्ष ... १०३ अविनीत ... २०७.भक
मनील ... १४८ अवलग्न ... १२३२ अविरत ... १३ भश्व ... १५५५ अवदान अवलम्बित २१९. अविलम्बित १२.
भश्वकर्णक अवदाह ... ९.८
" ... २५४२
, ... २१९.
भश्वत्थ ... अववारण ... १३१ अवल्गुन ... 1 अविस्पष्ट ... १५॥
भश्वयुज् ...
१८. भवदीर्ण ... २२० अववाद ... १५१८ अवीचि
अश्ववडव... २९२६ भवद्य ... २०१५ अवश्यम् ... २८८० अवीरा ... १०९६
भश्वा ... १५६. अवधारण... २६९१ अवश्याय ... १८० | अवेक्षा ... २५०६
अश्वारोह ... १५८८ अवधि ... २५१६ अवष्टन्ध ... २५४३ अव्यक्त ... २४५८
मश्विन् ... १०२ भवध्वस्त ... २२१२ अवसर
भव्यक्तराग
भश्विनी ... १८० भवन ... २२५८ भवसान ... २३२६
अन्यण्डा ... ८२,
भश्विनीमत ... भवनत ... २१६५ अवसित ...
अव्यथा ... ७६०
भश्वीय ... १५६३ भवनाट
२२२१ " ... ९४०
भषडक्षीण... १५११ भवनाय ... २३.
| अव्यय ... २९६३ | मष्टापद ... १८९७ अवनि ... ५६ भवस्कर ... १२०८ | अव्यवहित २१६. , ... २०२१
२४९५
१२२०
"
... २२५०
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V
असार
भसि
शब्द
पंक्तिः शब्द
महीयत् १२१८ अख
असकृत् २८५१ अत्रप असती असतीसुत... ११२५ अखम
असन
७३६ अवर
असमीक्ष्यकारि २०५९ अहंयु २१३७ अहंकार ४०५ आक्रन्द १६४५ अहंकारवान् २१२४ आक्रीड
""
असिक्री
असित
भस्त
33
6.4
...
...
अक्ष
***
39
***
अfeetas
१९४२ अहंमति असिधेनुका १६५२ अहति असिपुत्री १६५२ | अहर्मुख भतु १७०६ | अहस्कर असुधारण... १७०६ भहह असुर २३ अहार्य भसूर्क्षण ४०७ महि ४१० अहित
असूया
असृग्धरा ...
...
असृज् असौम्यस्वर
...
...
***
...
...
...
...
33
भस्ति
अस्तु
अन
भनिन् १६०५ श्रम्
अस्थि अस्थिर
...
...
***
***
१०९४ । अस्य च्छन्द
भरफुटवान् २०१८ | आकर्ष
...
***
***
२९१७ अहन्
११ | अहमहमिका • महंपूर्विका
१२०१ | आकल्प
१२६० | आकार
...
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...
...
...
...
...
...
...
२१९५|कुरितक २१६८ | भाच्छोदन
२५१५ 443 भक ... ३५४ आजानेव
"
१०३७
२१८ आक्रोशन. २२६१ आणि १६०० आक्षारणा... 18. १६६८ भक्षारित ... २११० आजीव २९० आक्षेप १६ भाजू १०५ आखण्डल... .. माहा २१९ | आखु १०११ भाग्य २०१ | आलुभुज् ९९९ भटि २०१९ | आखेट १९०५ आडम्बर (३४ आख्या ་་་ १५० आख्यात २२३९ आि १४८९ | आख्यायिका १२१ भावक ૧૮૮૧ *६० | आगन्तु १४२० आढकिक १७२६ १५२८ ] आगस् १५२० भाढकी ་་་་
१६८३
२६७१
१०३७
९०९
१९०९
२०४५
२३५५
२८६ | भावा १३८० | भत २४॥ आतचन ... २५६५ १९० आततायिन् २११३
भार
१८१४ भातप
२१३
२८१५ | आङ्गिक
१९४
१९३४
१५३१
१८९
६४६
भचाम
...
२८८१| आङ्गिरस १९६ आतपत्र १२१० आकम्पित... २१९८ आचमन ... १४२४ | भतर २११० आकर १८०५ आतायिन् . १३६० आतिथेय ११०२ आतिथ्य ११०३ | आसुर
२७७८ | आचार्य
१२७२ | आचार्या २२७९ | आचार्यानी
***
...
११९८ | अहितुण्डिक १२०१ | अभिय १०९९ अहिभुज् ... २३९४
(१० अहेद. २१९९ अहो १८८३ अहोरात्र
२८८४ | महाय
२८७५
भा
१६३२ भा(भाः) .
...
अमरकोषस्य
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
८५१ | आगू
... २०६६ आनीघ्र
१३८ १८५२
...
...
...
पंक्तिः | शब्द
२६६४ आकार
११८ आकारगुप्ति
२०५७
आकारणा...
१६ | आकाश २०९९ आकीर्ण २१२४ | आकुल
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
...
...
442
...
...
...
...
...
***
...
***
...
...
...
आमहामणिक
आग्रहायणी
...
***
...
***
...
पंक्ति' शब्द
१६६० भाषित ४२९ माच्छादन
१२०
११५
...
**
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"
99
39
पंक्ति:
... १९८१
१७०
„
... १३०४
२५८४
४१०
१९७५
१८६०
१५५६
...
***
...
...
...
...
***
...
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...
***
...
...
...
...
...
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१६७९
१९८
१७०९
४६५
१५१९
૧૯-૨
१०३०
१४१९
१४१९
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आत्मज
आत्मन्
शब्दः
पंक्ति' | शब्द
१७१ भानद्ध
भातोय आतगर्व २१०४ आनन
आत्मगुप्ता...
८२१ आनन्द
आत्मघोष... १०२८ | आनन्दधु ...
आत्मभू
"3
"
***
...
...
39
600
***
...
***
११ आनाय्य ...
93
५२ भानाह आत्मभरि... २०६७ आनुपूर्वी १११४ आन्धसिक आथर्वण २३३५ / आन्वीक्षिकी भादर्श १३५३
आत्रेयी
आपः भादि २१८५ आपक आदिकारण २७१ आपगा आदितेय. १५ आपण आदित्य
१६ | आपणिक
१९ | आपत्प्राप्त ...
२००
आपत्
आपन
...
494
120
...
***
आद्यमाषक
आधून
आधार
आधि
...
...
610
...
***
***
***
२१९८ आप्त
आधूत आधोरण १५८५ आप्य
आध्यान आनक
***
...
आनकदुन्दुभि
आनत
जादीनव
२३०८
२५०५
भारत आपन्नसवा आद्य ... २१८५ आपमित्यक
***
...
११२८ आनन्दन... २७२ आनर्त
२५५३ | आनाय
***
१८७७ आपान
२०६६ | आपीड ५२४ | आपीन ४१८ आपूपिक २५२९
...
33
...
...
***
***
...
...
...
*::
...
...
...
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१६३१
"3
२१०९ | भामिषाशिन्
१११७ आमुक्त १७१५ आमोद
२०१४
१३४६ १८५२ भामोदिन्...
१७६३ | आम्नाय २३२९ १४९४ भम्र ४७६ आम्रातक... ४१९ आप्यायन... २५६५ आम्रेडित ३७४ आप्रच्छन्न... २२६४ भायत २३४१ | आमपद १३१२ आयतन ४४ आमपदीन
१३१२ | आयति १३१६
२१६५ आप्लव
...
...
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्ति' | शब्द
पंक्तिः | शब्द
पंक्ति:
३६९ आप्लाव
१३१६
भायत्त
२०५७
१२५१
आबन्ध
१३०२
२६४ | आभरण
१७३२ भायाम १२७६ | आयुध ३४१ भायुधिक १६०२
१६३२
२६४ | आभाषण
१९
१६०२
२२६३ | आभास्वर ... २४६२ | आभीर
१८२१
४९८ | आभीरपल्ली
१७०७
१६७४
१९००
१३९५ | आभीरी ११८३ | आभील १४२५| आभोग १७६२ | आमगन्धिन्
आयुधीय आयुष्मत्... २०३७ ६३३ | आयुस् ११०० आयोधन ४६७ | आरकूट आरग्वध ... ६९५ ३०० भारनालक १७८४ ४६६ | आरति २३२४ ११७५ | आरम्भ ११८९ १८०० | आमयाविन्
१३४७
१२० आमनस्य ... ४७२ आमय
२३०२
३५७
१९९८
आरव २९६१ भारा ७६३ | भारात् १३९८ आराधन
२८२०
२५८५
११९९
भाराम
२७८२
३५७
६५२ आरालिक... १७६२ २०६ | भराव १५९७ आरेवत २६३ | आरोग्य २९७ | आरोह
६९६
११७३
१३०२ २८११
२५१७
૨૮
७९७
२९९ भरोहण ३१६ | आर्तगल २२६४ | आर्तव ७१५ आई ७०३ आर्द्रक ३३४ आर्य
...
""
""
***
"3
...
***
५२७ आमलक ... ५९७ आमलकी ... १८६३ | आमिक्षा २१०९ | आमिष
...
***
...
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43.
...
...
***
...
२१६२
६० ६ | आर्यावर्त १५२५| आर्षभ्य
२४७८ भाल
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...
...
***
***
...
***
...
...
...
***
...
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...
...
१११५
२२३५.
१७८१
३९०
१३५८
५७२
१८३१
१९१३
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अम कोषस्य
क्षालय ...
.७५
६सुगन्ध
"
... १७७
पंक्तिःशुन्दः पंक्तिः: शब्दा
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः मालम्भ ... १६९८/आवेशिक... १४२० आसन ... ११५. भाहो ... आशंसित
१५०४ माहोपुरुषिका आलवाल...
आशंसु ... २०७८ . ... १५४६ माय ... १२५ भालस्य आशय ... २२९० आसना ... २२९२
भाहा ... भालान
१५४९
आशर ... १८ आसन्दी ... २९११ भाहान ... आलाप
आशा ... १४६/भासन ... २१५. आलि ... ५८४ र ... २७६८ आसव ... २०१२ ... ६५६ | आशितंगवीन १८२४ आसादित... २२३३
८४५ " ... १०९७ माशीविष... ४५१ आसार ... १६७ आलिय... ३०२ आशीम् ... २७९२
८६८ आली ... २७ भाशु ... १२९ आसुरी ..
१७४५ भालीढ ... १६३८
आसेचनक २५० आलु ... १७६८ आशुग
भारकन्दन १९७५ इक्ष्वाकु आलोक ... २३४१
आस्कम्दित १५६४ | इस ...
२१७२ आलोकन ... २३११
२३७३
मास्तरण ... १५५२ , ... २२७९ आवपन ... १७७३ आशुव्रीहि १७३७ आस्था ... २५१० इङ्गित ... २२७९ आवर्त ... ४.८
भास्थान ... ११३ इादी ... ७४० आवलि ... ६५६ आश्चर्य
भास्थानी... १५६ इच्छा ... ११६ आवसित ... १७५, आश्रम ... १६. भास्पद ... २५२२ इच्छावती.....१२ आवाप ... ५२५ आश्रय ... १५०४ भास्फोट ... ८.९ इम्याशील... ३६९ आवापक ...
... २२७१ भास्फोटनी १९९५ आवाल भाश्रयाश... भास्फोटा ...
२४११ भाविग्न ... भाव ... २८६
१९६१ भाविद्ध ...
भास्य ...
... २१८९ २१९९ भाभुत भास्या ...
२७१९ भाविध ... २३२, आश्व ... १५६३ भावव ... २१०८
२८२५ भाविल ... १९५ भाश्वत्थ ... ६८५ भाहत ... १५२ | इतिह ... १३७७ आविस्
आश्वयुज ...
| ... २२.१ इतिहास ... ३१९ आवुक ... १८५ आश्विन ... २४९ माहतलक्षण भावुत्त ... १८५ आश्विनेय ... १०२ माहव ... १६७८! आवृत् ... १४२५ आश्वीन ... १५६, माहवनीय 10 इध्म ... ६७४ आवृत ... २२.५ भाषाढ ... २४.माहार ... १८१८ इन ... २५५७ आवेगी ... ९२२ ... १४४३ भाहाव ... ५१८ इन्दीवर ... ५४॥ आवेशन ... ६.. भासक्त ... २०४२ भाहेय ... ४५५ | इन्दीवरी ... ८४९
आशुशुक्षणि
A
१०८
२३२१
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शब्दानुक्रमकोशः
११
उच्चटा
10
उःश्रवस
:: :: :: :: :: :: :: :: ::
५९
उष्ट्राय
शब्द:
पंक्तिः शब्दः पक्तिः । शब्द
पंक्तिः ई. उग्र ... उत्कलिका... ११९ इक्षण ... १२५९
उत्कार ... २३२२ " ... १४९ , ... २६ , ... १९३२ उत्क्रोश ... १०३३ इन्द्रद्रु ... ७३८ । ईक्षणिका ... १३ उपगन्धा ... ८५३ | उत्तंस ... २७९० इन्द्रयव ... ७८२ ईडित ... २२४४ .. ... १५० | उत्त ... २२३५ इन्द्रवारुणी ... २४१
१२०० इन्द्रसुरस ...
उत्तम २१३८ इन्द्राणिका ७८५ ईरित
उच्चण्ड ... २११. उत्तमर्ण इन्द्राणी ...
१८१ उच्चार
उत्तमा ...१०८२ इन्द्रायुध ... १६५
उच्चावर
| उत्तमान ... १२६३ इन्द्रारि ... २३ ईलित ... २२४३ उच्चैःश्रवस्... ९. उत्तर ... ३३० इन्द्रावरज...
१९१९ उर्दुष्ट इन्द्रिय ... २९२
... २८८२ उत्तरा
... १४८
| उच्छ्रय ... ६६८उत्तरासङ्ग... १३०८ इन्द्रियार्थ
उत्तरीय ... १९०९ इन्धन
उहित ... २०६७ उत्तरेयुः ... २८९० इभ ... १५.७
" ... २५०४
उत्तान ... ४९६ २०४५
उजासन ... १६९० उत्तानशया ११५६ . इरेमद ... १५४ ईश्वरा
उम्म्बल ... 14 | उत्थान ... २५०० इरा ... २००८ ईषत् ।
उन्छशिक्ष... " | उत्थित ... २५०४ " ... २६८० ईपत्पा
उत्पतित् ... २००२ ईषा
उत्पत्ति ... २७४
उत्पतिष्णु ... २०८२ इव ... २८॥
उत्पन्न ... २५०५
उत्पल ... ५४० छ ... १६४७ ईहामृग ... १००२ ... २८२१, , ... ९००
२८५८
उत्पलशारिवा ८७२ इष्ट ... १४.८ उ ... २८८४ | उताहो ... २८५८ उत्पात ... १६८५
" ... १८२० उक्त ... २२३९ उत्क ... २०१० उत्फुल्ल ... ६६३ इष्टकापथ... १७८ उक्ति
उत्कट
उत्स ... इष्टगन्ध ... २९९ उक्थ
२९५४
२०७ | उत्सर्जन ... १४१० इष्टार्थोयुक्त २०४२ / उक्षन् । ... १८२५/ उत्कण्ठा ... ४१९ उत्सव ... ४३८ इष्टि ... ३१२ ... १७६९ उत्कर ... १०७२ , ... २०५५ इच्वास ... १३४ | उख्य ... १७९६ उत्कर्ष ... २२७१ दन ... १३१६
२०
...
६०
७२
उटल
इला
४८८
"
: :: ::
. १९९४ उडीन
उत
.
वधि
६४३
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१२
शब्द
उत्साह
33
उत्सुक
उत्सृष्ट
उत्सेध
""
उत्साहन १५०५ उदूखल उत्साहवर्धन
उदक्
उदक
"
उदक्या
उदम
उदज
उदधि उदन्त
उदन्या
उदन्वत्
उदपान
उदय
उदर
उदर्क
उदश्वित्
उदात्त
उदान
उदार
940
15
...
उदवसित...
उदुम्बर
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
: : : : : :
...
...
***
...
...
अमरकोषस्य
पंक्तिः | शब्द
१९०१
उद्र
९३७ उद्वर्तन
૧૫૭
उान
२२१८
३९७ | उगत २०४२ उद्गमनीय १२९८
२२३८ | उद्गाढ
पंक्तिः । शब्द.
४२० उदुम्बर
१५०५ | उदुम्बरपर्णी
...
६६८ उङ्गातृ २५२६ | उद्गार
२८९५ उद्गीथ ४७४ उडूर्ण
२९३८ उद्घाह
१११५
उद
२१६४ | उदन
२३२७ | उद्घाटन
४६९ उद्धात
'३२५
૧૮૧૭
४६९
"3
उदासीन उदाहार उदित २२३९ उदीची उदीच्य ५७० ...
१४८
...
५१९
६३७ १२२७
१५२६
६०१
१८१३
उद्दान
उद्दाल
उद्दित
उद्भाव
उद्धर्ष
उद्धव
उद्धान
उद्धार
उद्धत
८
३१९ १२६ | उद्भव
२०४१ उद्भिज
२७९१ उद्भिदू
१४८७ उद्भिद
३२९ | उद्भम
उद्य
उद्यम
उद्यान
८९२ उद्यान
६९२ उद्योग
...
पंक्तिः शब्दः
२३१०
... ५०७ उपगूहन १३१६ उपग्रह
... १७०५ २५४८
१५३९
२२१८ उपप्राध
१५२३
२२८८
१३९३
२२०२
२९३१ | उन्दुरु
८२३
१६९७ | उपन्न १४६५ | उपचरित २२२८ ९८७ उपचाय्य ... २२७४ | उपचित १०११ | उपचित्रा २१६४ उपजाप २१६५ | उपझा २५०४ | उपतप्त २२७३ उपताप २२७३ उपत्यका
२२०३
उन्नत
१५१०
१३७८
२२७८
२३२३ उतानत... २६८ उम्र २३१९ उजय १९८३ उन्नाय २३०२ उन्मत्त १५२०
८०३
११९४
७१७ | उन्मदिष्णु... २०७० २२१४ | उन्मनस् ... २०४० उपधान १६८९ | उन्माथ १६९८ । उपधि ४३८ उन्माथ
१९८१
४३८ | उम्माद
૧૭૬૪
उपनाह ४१४ उपनिधि उपनिषद् . ११९४ उपनिष्कर... २१५९ उपन्यास
२०७०
...
१७१४ उन्मादवत्
२२०४
उपकण्ट
२७४ उपकारिका
६१२ उपपति
११४४
... २१२७ | उपकार्या ...
६१२ उपबर्ह १३४८
२१२७ | उपकुचिका
१४०२
२१२७
८९९ | उपभृत् १७८० | उपभोग ८४१ उपमा
२२८९
२२७४ | उपकुल्या
२००१
२२०३ उपक्रम
१३७८
२००४
२२७२
उपक्रम
२३०१
उपमाता
२६८८
२००१
79
६५४ २६१३ | उपमान २५६८ उपकोश ३३७ उपयम
१४६४
२९६१ | उपगत
२२४२ उपयाम
१४६५
***
...
...
...
www
... १३०६ उद्वेग ... २३२३
...
...
...
...
...
⠀⠀⠀⠀
...
***
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उद्वासन १३२ उद्वाह
"
37
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"
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"1
उपदा
उपधा
33
"
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...
...
...
...
...
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...
...
...
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...
...
...
...
...
...
...
...
पंक्ति:
११७५
६४७
१५२३
१५१०
२६१३
१३४८
४२१
३७६
१८६८
२५२०
५९३
३२८
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शब्दानुक्रमकोशः
८/उर्वरा
... १८३९
उर्वारु
1ऊधस्
शब्द। पंक्तिः शब्द:
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शब्दः पंकिः उपरक्त ... २५४ उपाकृत ... ४. उरण ... १८५९ उपापति ... ५३ " ... 1 उपात्यय ... १४३६ उरणाख्य
उषित ... २२२२ उपरक्षण ...
उरभ्र
उष्ट्र ... १८५६ उपराग ... २१३ उपादान ... २९८५ उरी
उष्ण ... २५२ उपराम ... २१२४ उपाधि ... १८ उररीकृत ...
" ... १९६६ उपरि ... २७०२ , ... २०१८ उरश्छद ...
. ... २९३९ उपल ... ६४० । उपाध्याय ... १६६
उरस् ... १२२९ उष्णरश्मि... २०२ उपनग्धार्या
उपाध्यावा...१०२ उरसिल ... १६१९ उष्णिका ... १८.६ उपलन्धि ... उपाध्यायानी १.४
उष्णीष ... २७७६ उपलम्म ... २३०४ उपाध्यायी... ११.२
उष्णोपगम २५२ उपला ... २०१४
उष्मक ... २५१ उपवन ... ६५२ उपानह ... १९९० उरुबूक
उन ... २१० उपवर्तन ... ५७३ उपाय(चतुष्टय) १५०८ उपवास ... १४२८ उपायन ... १५३॥ उर्वशी उपविषा ... ८४७ उपालम्भ ... ३३९
उत ... २२२६ उपवीत ....१४५१ | उपावृत्त ...:५९८
... १८५२ उपशल्य ... ६३२ उपासा ... १६४४
२५९० उपशाय ... २ ॥ उपासन ... ११९ उल्क ....
ऊम ... २८८४ उपचत ... २२४२ उपासना ....१४२२ उलूखल ... १७५०
ऊररी
... २८४३ उपसंव्यान १५०७ उपासित ... २२२८ उलूखलक... ऊरव्य १७०८ उपसंपन्न ... १४०५ उपाहित ... उलपिन् ... ५०
२८४३ २२०८ | उल्का ... २९१० उरीकृत
... २२४१ उपसर ... ... २२९९ उपेन्द्र ... ३. उल्ब
ऊरु उपसर्ग ... १६८५ उपोदिका ... ९६॥ उल्बण
ऊरुज ... १७०८ उपसर्जन ...
२१४४ उपोदात ... १२९ उल्मुक ... १७६६ ऊरुपर्वन् ... १२१८ उपसर्या ... १८४६ | उतकृष्ट ... १७२३ | उल्लाप ... 11८८ | ऊर्ज
ऊर्ज ... २५० उपसूर्यक ... २०
ऊर्जखल ... १६१८ उपस्कर ... १७७६ उभयेधुस् ... २८९१ उल्लोल
अर्जखिन् ... १६१८ उपस्थ ... १२२४ | उमा ... ७२ | उशनस्
अर्णनाभ ... .. उपस्पर्श , ... १७४६ उशीर
ऊर्णा
.. २४१४ उपहार ... १५२॥ उमापति ... (८
उषणा
उर्णायु ... १८५९ उपहर ... २७० उम्य ... १७२१ उपर्दुध उपांशु ... 140 उरसूत्रिका १२८२ / उषस् ... २१९ अर्ध्वक ... १७२ उपाकरण ... १४उरग ... ४५४ | उषा ... २८८५ अर्वजानु ... १५८
उलप
५५
उरी
:
. २१८०
उभयपुस् ...
उलोच
५२.
१९२०
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१४
शब्दः
ऊर्ध्वज्ञ ऊर्मि
ऋक्थ
ऋक्ष
37
13
""
ऋश्य
ऊर्मिका १२८८ | ऋषभ ऊर्मिमत् २१६६
ऊष
५६५
ऊषण
१७७८
ऊपर
अषवत् ऊष्मागम ... २५२
ऊह
१८२
ऋव्
ऋजीष
ऋण
ऋत
"D
ऋतीया ऋतु
***
66
""
ऋतुमती ऋते
ऋत्विज्
ऋ
...
...
...
ऋक्षगन्धा
ऋक्षुगन्धिका
10.
***
ऋतु
ऋजुरोहित
...
ऋ.
***
...
...
} : :
...
...
पंक्तिः शब्द
११६८ | ऋभु
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
४७७ ऋभुक्षिन्
२९७०
::
૧૮૮
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एक
19
"3
५६६ ऋषि
५६६ ऋष्यप्रोक्ता
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...
""
...
१००८
१६
८८१
१८२५
२१४२ ...
...
***
...
ए.
...
...
...
...
...
...
...
...
अमरकोषस्य
...
पंक्तिः | शब्दः
...
१६ एकायन
२५४ | एकहायनी
२४५० | एकाकिन्... ११८८
१११५ एकाम
२८५४
१३८७ | एकाव्य
१७५३ | एकान्त ८०३ | एकाब्दा
***
*
19
७६२ | एकक
९९५ एकगुरु ८६९ एकतान ९२२ एकताल
३१७ एकदन्त
१७७१
एकदा
२८९३ एला
२१६८ | एकधुर १८३० एलापर्णी १६५ एकधुरावह १८३७ एलावालुक १७१३ | एकधुरीण... १८३७ एवम् ३५४ | एकपदी १०११ | एकपिङ्ग २३१४ | एकयष्टिका
५८७
२४०
एकसर्ग
एड
एडक
१४३८ एडगज ८२२ | एडमूक
૫.
एडूक
एण
एकायनगत
एकावली
एकाष्ठील
एकाष्ठीला ...
२१८८
एत
२१८९ तर्हि २३६७ |एध २१८८ |एधस्
१३७६ |एधा
२१८३ | पधित ३६७ एनस्
०६ एरण्ड
""
१३८ 10 १२८५ २१८४
""
१८४२ | एषणिका
93
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...
१३३ | ऐणेय १८४२ | ऐति
...
...
***
...
...
...
...
...
...
...
...
:
...
...
२१८३ | ऐकागारिक
२०१५ | ऐद
२१८४ | ऐण
ऐ.
...
www
...
पंक्तिः |शब्द
२१८३ | ऐन्द्रियक २१८४ | ऐरावण
१२८५ | ऐरावत
८११
39
११६९ ऐरावती
१८५९ | ऐलविल
९४२ | ऐलेय २१०१ | ऐश्वर्य ६०० ऐषमस्
१००८
15
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""
२८३६ | भषधी
૨૦૧
11
२०७३ | भोषधीश
१८७९ ओष्ठ
૨૦૧
१९९३
"
...
::::
...
ओ.
३१० ओक
२८९४ | ओघ
६७४
६७४
37
२२६९ | भकार २१७७ भोजस् २१ भण्डूपुष्प ७५० | ओतु ८९८ भदन १८०३ ९२८ ओम्
९९९
... २८०१
८९० मोष
२२६७
६६
९१९
१७२
... १२५३ १९१८
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
भौक्षक
१९७७ औचिती
(८५ औचित्य १००४ औतानपादि १००१ | औत्सुक्य.. १३००| मौदनिक..
***
पंक्तिः
...
२१८२
९२
९२
་༥་
०२४
१६२
૫૮
८९०
७१
૨૦૦૮
२८०१
३७९
१०६६
२३८८
३१८
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૧૧:
१९७३
१९०२ var
१०९१
१०६२
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शब्दानुक्रमकोशः
१५
... २१४८
८४.
औशीर ...
... १९८४
११७४
कट
औष्ट्रक ... १८६० क ... ... २३४४
कन्द
शम्दा पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शम्दा पंक्तिी औदरिक ... २०६६ कचित्
| कठिल्लक ... ९५७ | कद ... १०९८ औपगवकादिक २३२८
कठोर ... २१७६ | कनक ... १८९४ औपयिक ... १५१६
कडार ... १७ | कनकाध्यक्ष १४८२ भोपवस्त ... १४२८ कष्प ...
कडम्ब
कनकालुका १५३२ ओमीन ... १७२, कच्छपी ... २५९८ कडार
कनकाइय ८०१ औरभ्रक ... १८६० कछुर
कण
कनिष्ठ ... १६० औरस ... १३० ... ८३२
२४२६ भौलदेहिक १४१ . १७९ कणा
कनिष्ठा ... १२१८ ... १२
९कनीनिका... १२५८ " ... १५९३ कणिका ... ७८०
कनीयस् ... २११९ औषध
" ... २८०५ १२२१ कणिश ... १७४८
कन्या ... २९१३ कण्टक ... २९५१ ...१५४१
... २९५१ कण्टकारिका ८३५
... २६२ कण्टकिफल ... २४०२
... २९६४
कण्ठ ... १३४९ क ... २८३५ २८३५/ कटक
कन्दर ... ६४४ कण्ठभूषा ... १२१ १२८७
कन्दराक
कण्डुरा ... ८२१ ... १२२, कटंभरा
कण्डू ... ककुभ् ... १४६ ..
कन्दप कण्ड्या ... १८० कटभी
कन्दली ... १०.५ कण्डाल ...
१७५९ कटाक्ष कण्डोलवीणा
कन्दु ...... कबोलक कटाह २९७ कत्तृण
कन्दुक ... १३५. कक्ष ... १२. कटि ... १२२१
कथा
कन्धरा ... १२१९ २०७४ कटिग्रोथ ... १२२४ कदश्वन् ...
कन्यकाजात ११२१
५८ कक्ष्या ...
कदम्ब ... ३२
कन्या " ... १६५
१९४
कपट ... १२१
1 कपर्द ... काटक कटुतुम्बी ...
२१२१ कपाट ... १२७ कातिका... १३५२ कटुरोहिणी
कपाळ ... १३.. १२॥ कटफळ ... .२९
कपालभूत... कट्वा ... ." कदाचित् ... २८५ कपि कठिार ... ... कष्ण ... २१४ कठिन ... . कनु ... ..कपित्व ...
ककुमती
११८०
.
.
:
कटी
८१९
(९
।
" .१४८ कपर्दिन् ...
४
८९ कदली ...
काल
कपिक
...
८२२
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अमरकोषस
शब्द:
कापला
७७५
:
कपोत
...
रापप्पकार
.
.
क
.
ब्द
पंक्तिः शम्दा पंक्ति शम्दा पंक्तिः कपिल
... २१ करवालिका १० कर्णनलौकस् .." कपिला
कम्पित ... २१९८ करवीर ... ... कर्णधार ... ...
कम्म ... २१ करशाखा ... .. कर्णपूर ... २७९० कपिला
.... १३.६ करशीकर... १५४॥ कर्णवेटन ... १२. कपिवल्ली ... " ... २०२५ करहाट
कर्णिका ... १२. कपिश
कम्बलवामकम् १५.२ करहाटक... .५॥ कपीतन ...
कम्बि ... १७७४ कराल ... २०१५ कर्णिकार ... ... ... १३ करिगर्जित... १६८२ करिव ... 101 करिणी ... १५४.
कर्णेजप ... 10 कम्युग्रीवा...
१२५.
करिन् ... १५i0 कर्तरी कपोतपालिका २०७२ करिपिप्पली
... ४८५ कपोतानि...
करिशावक १५ कपोल ...
करीर ... .. कफ ... १९८ ... .
... १३.. कफिन् ... १७९४ करक
करीष
S૮૦ ૮
कर्परांश ... २६८६ कफोणि ... १२॥
करी .... कबन्ध ... १७४
करका
करज करी
करेणु
करोटि करट
१९५८
.... २०६२ कमठ
... १९१२ कमठी
कर्कन्धू कमण्डलु .... करण्ड ...
... २. . कमन ... २०४५ करतोया ...
कर्मण्या ......५ कमल ... ४.२ करपत्र
कर्मन्दिन ... १४५ " ... ५४६ करम
कर्मशील ... .." " ... २७२७ , ...
कर्मशर ... २०६१ कमला ... ५४ करभूषण ... १२८
कर्मसचिव... १४७६ कमलासन...
कार ... ९७ कमलोत्तर... १९१८ म्भ ... १८
... १५७
कर्मेन्द्रिय ... २९॥ कमितृ ... २०७१ कराह ... 11
किक ... 1 कम्प ... १८करवा ... कर्ण ... १२१२ कर्षक ... 1010
करुणा
::::::::::::::::
.
.
.
२११
:४
.
१५
केटी
...
मक्षम
..
NO
.
RA
मदका
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शब्दानुक्रमकोशः
१७
पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः शम्दा
काच
कर्षफल ...
.६५/कलिल
... १९.५
काला
कल्माष
कलेवर
काचस्याली ५. काचित ... १२॥
काधन ... 1000
कष्ट ... काबनाइप ... कलधौत
काधनी ... १७८८
कस ... १७७७ | काची ... १२९० कलम ...१.५कल्पना ...
कंसाराति... ४२ काक्षिक ... १७८५ ... 140/कल्पवृक्ष...
कस्तूरी ... १३१२ काण्ड ... २४२१ " ... १७७ कल्पान्त ... कहार ... ५३९ काण्डपृष्ठ ... १६०२ कलम्बी ...
कह ...१.३0 काण्डवत् ... १६. कलरव
कांस्यताल... ३७०काण्डीर ... १६०॥
काक ...१.२७काण्डेक्ष ... ८५० कलविष्ट ...
कोकचिची ८४४ कातर ... २०७०
काकतिन्दुक .२६ कात्यायनी... ७२ कलशि कल्वा ... ४६ काकनासिका ८८५
" ... ११०० कल्याण
काकपक्ष ... १२६६ कादम्ब ..... कलोल ... काकपीलुक कादम्बरी... १.. ... .५ कवच ... १५९६
काकमाची... . | कादम्बिनी १. २. कवक ... १८१५ | काकमुद्रा ... ८०५ काद्रवेय ... १५
काकली .. १५ | कानन ... ५०
काकाही ... ८८५ कानीन ... १२१ कलानिषि... कविका ... १५६काक्षिणी ... २९१३कान्त
... ३१२१ कलाप ... . | कविय ... २९६४/ काकु ... १५कान्तलक... ९.
काकुद ... १२५५
कान्ता ... १.८०
काकेन्दु ... . कान्तार ... ५११ ... २०२॥ ... १९९१ | काकोदुम्परिका ..
| काकोदर ... १५२ कान्तारक... १७५ कशिपु ... १५९५ काकोल ... ४५७ कान्तार्थिनी १०९३ कशेरु ...
१९२१ , ... १०२९ कान्ति ... ९ पनिगुम ... ... कशेरुका ... RM काधी ... .. . ... २२६५ कालिमारक करमक ... १६८ कारखा ... 1) कान्दविक... 100
24.को० स०
कहा
..
.
.
.
कलाय ... ... कोण ...
१..
कचा
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१८
अमरकोषस्य
... १९२४
कारवेल
कारा
२६॥
शब्दः पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः कान्दिशीक २१.९ कारवी ... ८. कालखण्ड ... १२०६ काश्यपी ... ५६१ कापथ ... ५८० ... ९५, कालधर्म ... १६१९ काष्ठ ... ६७४ कापोत ... १०७
... १७८० कालपृष्ठ ... १६३४ काष्ठकुहाल ४९३
... १७८७ कालमषिका ८२९ | काष्ठतक्ष ... १९४६ कापोताअन
| काष्ठा ... १४६ काम ... १७०५ कालमेषी ... ८४०
| " ... २३६ " ... १७ कारिका ... २३६५ कालशेय ... १८१२
" ... २४१६ " ... १४६.
कारीष ... २३३५ कालसूत्र ... ४६३ काष्ठाम्बुवाहिनी ४८९ १८२. कार ... १९३८ कालस्कन्ध
७२५
काष्ठीला ... ८७५ कारुणिक ... २०५४
७८४ कास ... ११७७ कामंगामी... १६२० कारुण्य ... ३९७ काला ... ८३७ | कासमर्द ... २९३३ कामन ... २०७२ कारोत्तर ... २०१४
८६६ कासर कामपाल ... कार्तस्वर ... १८१७ , ... १७८. कासार ... ५२२ कामम् ... २८७५ कान्तिक... १४९६ कालागुरु ... १३२७ कास
। कासू ... २४६७ कामयितु ... २ कार्तिक ... २४९ कालानुसार्य किंवदन्ती... ३२४ कामिनी ... कार्तिकिक... २५० , ... १३२५ किंशार ... १७४८
.... २५५५ कार्तिकेय ... ७७ कालायस ... १९०२ कामुक ... २०७१ काय॑ ... २६२१ कालिका ... २३६४ किंशुक ... ७०७ कामुका ... १०९३ कार्यासः ... १२९५ कालिन्दी ... ५३० किकीदिवि... १०१९ कामुकी ... १०१२
... २९६४) कालिन्दीभेदन ४८ किंकर ... १९६३ काम्पित्य ... ९४१ कार्पासी .... ८८० काली ... ७२ किंकिणी ... १२९३ काम्बल ... १५७६ कार्म ... २०६१ कालीयक ... ८५१ किंचित् ... २०६५ काम्बविक ... १९४५ कार्मण ... २२५७ " ... १३२५
|किंचुलक ... ५१० काम्बोज ... १५५७ कार्मुक ... १६३३ काल्पक ... ९१० | किंजल्क ... ५५२ काम्बोजी ... १२५ कार्य ७३७ काल्या ... १८४६
९९१ काम्यदान... २२५६ कार्षापण ... कावचिक ...
| किट्ट १२.४ काय ... १२१५ कार्षिक ... १८८२ कावेरी ... ५३५ किण ... २९३० काय (तीर्थ) १४५३ काल
११. काव्य
किणिही ... ८२६ कायस्था ... ७६६ , ... २१६ | काश ... ९१ किण्व
किण्व ... २०११ कारण ... २७१ , ... ३०४ | काश्मरी ... कितव कारणा ... १६५ ... २७२॥ काश्मर्य ... कारणिक ... २०१८ कालक ... १७२ काश्मीर ... ११. किंनर कारण्डव
कालकण्टक १०२० काश्मीरजन्मन् १३२७ कारम्भा ... ... कालकूट ... ४५७ । काश्यपि ... २०८ | किंनरेश ...
.
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शब्दानुक्रमकोशः
... २८५८कर
कुपूय
कुप्य
२१.
कुइमळ कुड्य
९०३
रणव
.. १७.५
.
६९
मम
... १३२.
८.
२०५९
...२८
SMP..
किलासिन्...
कुचाग्र ... १२२०
शब्द:
पक्तिः। शन्दा पंक्तिः शम्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः किम् ... २८३७ कु ... २८१६ कुट्टनी ... १२ कुन्द ... ८९१
... ११९९ कुटिम ... २९६२ किमु ... २८५८ कुन्दर ... १२२३ | कुठर ... १८५५ कुन्दुरु ... ८५१ किमुत ... २८५४ कूल ... २०४१) कुठार ... १६५१ | कुन्दुरुकी ... ८.६ ... २८५० कुकुट
कुठेरक
कुपूय ... २११३ किंपचान ...
कुराक ... २९२८
૧૮૮૧ किंपुरुष
कुडव ... १८८४ कुबेर ... किरण ...
१५० किरात ...
कुबेरक किराततिक्त कक्षिभरि ....
कुबेराक्षी ... किरि (र) ... ९९१ कुम ... ११२
२९३४ किरीट ...
.. ९.४ | कुमार ... किमीर ... ३
कुचन्दन ... ११८ किल
कुमारक किलास ... ११७९
| कुण्ड ... १४५ कुमारी ... ७९५
।, ... १७६९ , ... १०८९ किलिजक... १७५९
कुण्डल १२८. कुमुद ... किल्विष ... २६०
... ६४९ कुण्डलिन् ... १५२ , ... ५४॥
१४४४ कुमुदभाय... ५७५ किशोर
१५३६ कुतप १४१ कुमुदवान्धव १७१ किष्क ... २३४८
२११२ कुतुक ... ४२ कुमुदिका ... ७२१ किसलय ... (७७
कुजराशन कोकस
कुमुदिनी ... ५४४ कीचक
कुमुद्वत् ... ५७५ कुतूहल
कुमुदती ...
५४३ कीनाश ... २७६१
१७७० कुत्सा कीर ... १.३०
कुम्बा ... १३८८ कुत्सित कुटक कीर्ति पौळ ... कुटल ... .१ कुथ ... ९८० , ... १५४२
... २१. कुटजट ... ०६२ , ... १५५२ , ... २६०१ कोलक ... १८५२ | " ... " कुद्दाल ... ६९५ कुम्भकार ... १९४० कौलाल ... 1 कुटिल ... २१६७ कुनटी ... १९२३ कुम्भसंभव... १८४
२०१५ कुटी ... .. कुनाशक ... 0 कुम्भिका ... ५४२ कीलित ... | " ... २९७१ कुन्त ... १६५४ | कुम्भी ... ७२९ कीश ... ९९४ कुटुम्बम्यापूत २०४७ कुन्तल ... १२६४ कुम्भीर ... ५०९ क... ... १ कुटुम्बिनी... १०८५ | कुन्द ... ७९४ कुरा ......
कुज
"
... २७८२
२३९५
कुण्डी
कुतुप
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शब्दः कुरङ्गक
कुरण्टक
"
कुरवक
कुरर कुरुविन्द
कुरुविस्त
कुल
"
कुलक
"
""
कुलटा
कुलसंभव
कुलखी कुलाय
कुलाल कुलाली कुलिश
कुळी
कुलीन
कुलीर
कुरुमाच
""
कुल्प
कुल्बा
कुवळ
"
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
कुवलय
कुवाद
१०९४
""
कुलत्थिका... १९११ कुसीद कुलपालिका
१०८८ कुसीदिक कुल मेडिन्... १९३९ कुसुम
७९९ ...
७९६
१०३५ कुशल
་པ
...
...
...
::::
***
पंक्ति शब्दः
१९७६ कुविन्द ७९६ कुवेणी
...
100
...
कुल्माषामिषुत १७८४
१९३९
कुश
૧૮૧
#9
१०७० कुशी
#7
१३५४ | कुशीलव
०२६
कुशेशय
९५८ | कुष्ट
कुछ
19
९३ | कुस्तुम्बुरु ८३६ | कुहना
१३५८ | कुहर
५०८
कुहू
१७४३ | कूकुद
१२१०
२९३७ | कूट
13
39
...
...
५४० | कूप १०९९ ] कूपक
***
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
१३५७ | कुसुमाञ्जन... १९१२ १०८८ कुसुमेषु
५१
१०६२ | कुसुम्भ
१९४०
""
१९११ | कुसति
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
www
...
...
...
...
+10
***
...
५३४ | कूटयत्र ७२१ | कूटशाल्मलि
२९७८ | कूटस्थ
...
:::
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...
अमरकोषस्य
पंक्ति: शब्द
१९४१ | कृपक
४९९
९८० कूबर
२७६७ | कूर्च २६६ कूर्चशीर्ष
२०३५ कूर्चिका २०४३ कूर्दन
11
१९०४ कूर्पर १९५३ | कूर्पासक ५४६ | कूर्म
९००
कूल
११८२
२९६२ | कृकण
१७१४
१९१९
२६०७
४२२
१७८२
१४५८
"
""
कृकलास ...
१७१७ | कृकवाकु ६८२ | कृकाटिका ..
कृच्छ्र
कृत
कृतपु
कृतमाल
कृतमुख
कूष्माण्डक...
*
...
"
23
...
***
५१९ कृत्त ४८६ | कृति
...
...
...
...
...
***
२०३३ | कृष्ट २०४४ | कृष्टि
४४० | कृतलक्षण...
२३२ कृतसापत्रिका १०८७ | कृष्ण २०५२ | कृतहस्त ६४१. कृतान्त १०७२ २४०८
१६०३ ११६
१९८१ | कृताभिषेका ७४२ | कृतिन्
२१७१
...
...
***
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...
पंक्तिः | शब्दः
४९१ कृत्तिवासस्
१२२३ | कृत्या १५८१| कृत्रिमधूपक
१२५८ कृत्स्न
९३३ कृपण
१७९४ कृपा
४२७ | कृपाण १२३३ कृपाणी
१९८
*દ્
१९९६
२०५४
१०६
४८१ कृमि
१०१४
९५९ | कृमिकोशोत्थ १२९६
१०२५ | कृमित्र १०१२ | कृमिज १०२२ | कृश १२५०
कृशानु
१३०९ | कृपालु ५०८ | कृपीटयोनि
१६०३ | कृषिक
६९६ | कृषीवल
...
""
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"1
१३२६
२१४७
°°°
४६७/ कृशानुरेतस्... ६५ १४५६ | कृशाश्विन्... १९५२ २६३५ | कृषक २४८८ कृषि
१७३३
१७१०
१७१८
१७१८
...
"1
...
...
..
...
...
...
105
२४६३ २०२६ | कृष्णपाकफल १०८६ | कृष्णफला ... १३६४ | कृष्णभेदी २०३५ कृष्णला
२२३१ कृष्णलोहित १४४५ | कृष्णवर्त्मन्
...
पंक्ति:
६२
२६५२
१३२९
२१५४
२१२१
4.
१७२३
kr
३५
२३९
३०४
१७७८
૭૮૧
८४०
૮૧૦
८१४
३०८
१०७
Page #26
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शब्दः
कृष्णवृन्ता...
कृष्णसार १००७ कैड
८४१ कैतव
कृष्णा
कृष्णिका
केकर
केका
केतकी केतन
19
केतु
१७४५
31
११७१ | कैदारक
१०४९ कैदारिक
केकिन १०४८ कैदार्य
९८८ कैरव
१६६६ कैलास २५६२ | कैवर्त
२४५५ | कैवर्तीमुस्तक
केयूर
केलि
केवल केश
...
***
22
...
***
39
...
500
...
20.
...
"2
केदर
२९३४ कैश्य
केदार १७२८ | कोक
केनिपातक
...
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***
...
***
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केशवेश
haryनाम
केशिक
केशिन्
केशिनी
केसर
...
***
२७४२ | कोकिल १६४ कोकिलाक्ष केशपर्णी ८२६ कोटर केशपाशी १२६८ | कोटवी
केशव
३६ कोटि
...
***
...
पंक्तिः | शब्दः
७५८ | कैटभजित् ...
***
...
२५६२ | कैवल्य १५२२ | कैशिक
...
४९२
""
१२८८ कोकनद
७७६
**
13
७७८ कोदण्ड केसरिन् ९८९ कोद्रव
११६४
१२६७
33
८९२ कोटिवर्षा ११६४ कोटिश ११६४ कोह
९०१ कोट्टार ५५२ कोठ
६९९ कोण
"
***
...
...
***
***
४९७ ...
९१२
२८९
१२६५
१२६५
१००२
१०३२
५५०
२६ कोकनदच्छवि ३०६
१०२६
८५७
104
***
⠀⠀⠀⠀⠀
...
***
***
www
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
444
शब्दानुक्रमकोशः
...
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...
...
पंक्तिः । शब्द
४३ | कोप
७२९ कोपना
४२१ कोपिन्
२०१८ | कोमल
१७२९ | कोयष्टिक
१७२९ कोरक
१७२९ कोरङ्गी ५४१ | कोरदूष १४० कोल
१७३०
... २९३०
११०७
་་་་
१६५४ २४१०
९१५
33
31
कोलक
कोविद
कोविदार
कोस
19
कोशफल
...
कोष
कोह
कोष्ण
...
***
१६५४ कौटिक १६३३ | कौणप १७३९ | कौतुक
: :
...
***
***
...
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***
21
कोलदळ
९०९
कोलम्बक ३७६
कोलवल्ली
ક્
कोला कोलाहल २१
कोकि
७२१
Con
...
...
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⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
पंक्तिः | शब्दः
४१३ कौतूहल
१०८१ कौद्रवीण
१०८८ कौन्तिक
...
७२१
"
९९१ | कौलटेर १३३२ | कौलीन
१७७८
कौलेयक कौशिक
८४२ www
२१८० कौन्सी
१०५८ | कौपीन ६८० कौमुदी
८९९ कौमोदकी...
१७३९ कौलटिनेब ४८८ कौलटेय
१३६२
""
कौशेय
कौस्तुभ
कमाथ
ककर
१३३३
क्रथन
कोशातकी... २२५१ | क्रन्दन
{
#1
२४१५ | कन्दित
२१४ क्रम
२३६८ २९३० कौटिक
"P
११८२ कौक्षेयक
१६४६ क्रमुक
३७४ कौटतक्ष
१९४७
For Private and Personal Use Only
... ४२३
१७२२
१६०८
८८९
२५७८
१७७
ས་
...
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***
...
***
११२७
११२६
११२७
११२६
२५६७
*** १९७१
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***
...
७१६
२३५४
१२९६
५६
*** १९९८
૬.૨
१०२५
19
(९३ ऋतु
१८८८ ऋतुष्वंसिन् २०७२ ऋतुभुज्
...
400
...
***
...
११
पंक्ति:
१६९०
(૨
२५८१
A
१४११
२६१९
Bon ०३०
...
...
... ७३१
१९५७
९८६
39
१८५६
११८ |कमेक ४२३ क्रयविक्रयिक १८६३
...
१३७९
(७
१७
...
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अमरकोषस्य
कयिक करय कव्य कव्यात् कन्याद कयिक
पंक्तिः शम्दा पंक्तिः | शब्दः
क्लिशित ... २२२१ क्षम क्लिष्ट ... १४९ 1, ... २२२६ क्लीतक ...
क्षमित १८क्लीतकिका...
क्षमिन् ... १८६४ क्लीव
.
२०८७
क्रिया
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः
क्षीरविदारी क्षीरशुक्ला ... क्षीरावी ... | क्षीरिका ...
| क्षीरोद ... ... २५९ क्षुत्
क्षुत ... १७७
क्षताभिजनन १७४५ ... २२६४ | क्षुद्र
क्षुद्र ... २१२१ २६२६
" ... २२४८
... २६९० क्षुद्रघण्टिका १२९१
क्षुद्रशद्ध ... ५५ ... २२१८ क्षुद्रा ... ८३५
२१००
१५०
क्रियावान् .... क्रीडा
...
१२६
३५९
१२.
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८२६५
..Me
अ५
मुष्ट
A
...
... १७४६
तर
कोधन ...
१४८ क्षार ... १९० क्षुद्राण्डमत्स्यसं. ५०१ १२१ धारक ... ६८
क्षुध् ... १८१५ क्रेतव्य क्षणदा
धारमृत्तिका ५६५ क्षुधित ... २०६४ क्रय
क्षणन
१९९५क्षारित ... २११० क्षुप क्षणप्रभा ... १६२थिति ... ५ . অনল .... १२.१, "
२४७५
८५७ क्षतव्रत ... १४६. क्षिपा , २२७३
२९१४ क्रोध ... १५८६ क्षिप्त ... २१९९ क्षुरक
क्षरम २९३५ क्रोशयुग ...
क्षुरिन्
१९४८ क्रोष्टु ... क्षत्रिय कोष्टुविना... ८ क्षत्रिया ... ...थिया
२१४. कोष्ट्री ... ८६ क्षत्रियी
४४४
२१५५ कौष ...." क्षत्रियाणी ... ..
२०७
१७२८ कौवदारण... . क्षन्तु ... १०८७
१७२९ छम ... २२.०
...१८०८
... २६९५ लमय ... २२.. क्षपाकर
... २०२ किन्न ... २२१५ क्षम
क्षम ... २६२० , ... २८.. . ... २४.. १९५ , ... २६६ क्षीरविकृति १.९५ क्षेत्राजीव ... ११८
२२६
क्षपा
... १७४,
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शब्दानुक्रमकोशः
२३
क्षेपिष्ठे
२२४७।
क्षोद
REFERE::
.
९
...
१६
४
४५६ खपुर
...
AALA
शब्दा
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शन्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः क्षेपण २२.२ ... १६४५खलेदार ... १७.
गण ...
२१२६ क्षेपणी ... ४९३. ... २१३९ खल्या ... २६॥ गणक १९९५ खगपिधान खात ...
गणदेवता ... २० क्षोणि
खङ्गफल ... २७०८ खादित ... गणनीय ... २१५३ खङ्गिन् ... ९९५ खारी ...
गणरात्र २२६ क्षोदिष्ठ खण्ड ... १७६ खारीक ... 10
गणरूप क्षौद्र क्षौद्र ... १९२१
खण्डपरशु... ६१ खारीवाप ... १०२ गणहासक क्षौरक्षो)म खण्डविकार १७९३ खिल
गणाधिप ... ७५ ... १२९५ खण्डिक ... १७३९ सुर ... ९.९ गणिका ... .९१ ___... १३.. खदिर ... .४७ , ... १५६६ णुत ... २२०६ खदिरा ...
गणिकारिका मा ... ५६ खद्योत ... १०४४ सुरणस ... १६.
सुरणस ... १६. गणित ... २१५५ एमाभृत् खनि
गणेय ... २१५३ ... १४७० | खनित्र ... १७३१
१२५४ वेड ...
१५४१ वेडा
खोड ... 1100
गण्डक २४२० , ... १८६.ख्यात ... २०७१ गण्डकारी वेडित खरणम् ... ११६६ स्यातगर्हण २२१.
गण्डशैल ... खरणस ... ११६६ ख्याति ... २२६८
गण्डाली खरपुष्पा ... ९२७
गण्डीर खरमञ्जरी... ८२६ गगन
गण्ड्प द ... ५.. खरा
गण्ड्पदी ... ५१५ खराश्वा ८..गङ्गाधर ...
गण्या ... २९१५ ... १७८० | गज
गतनासिक १६६ १०८ गजता ... १५४
१:५५ ... २१॥
१८९९ गजबन्धनी... ___ ५० खर्जूरी ... ९८८ गजभक्ष्या ... ८९
... २९५० १.७४ | सर्व १९६५ गजानन
१५७२ खञ्ज ...
२१६५ गा ६०८
गन्ध
... २९१ खान ... ... खल ... २०१८
२११८ गडक
गन्धकुटी ... ८९४ खञ्जरीट ... खलप ... २०५८
गन्धन ... २५६४ खट ... २९२९ स्खलिनी ... २३३३ गडुल
गन्धनाकुली खट्वा ... १३४९ | खलीन ... १५६६ गण ... १०६७
गन्धफली ... ०६० खा ... ९९५ | खलु ... २८४५
१६२९ , ... ७७६
"
वि
.
... १६४० खजूर
...
१५५५ गदा
"
खगेश्वर
...
८७७
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२४
अमरकोषस्य
A
...
२१ गर्जित
...
१५३९ गव्या
माय
१५० गारुकी
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः __पंक्तिः शब्दः
पंक्तिर गन्धमादन ६३९ गरुत्मत् ... १.५५ गवेधुका ... १७५६ गिरिमल्लिका . गन्धमूली ...
. ... २४५० | गवेषणा ... १४१६ गिरिश ... गन्धरस ... १९१५ गरी १८५५ गवेषित ... २२३४ | गिरीश ... " गन्धर्व
.०गिलित ... २२४५ गव्य १६.
गव्या ... १८२७ गीत ... १६२
गव्यूति ... ५९२ | गीर् ... ३१२ " ... १५५५ गर्दभ
गहन ... १५० गीर्ण ... २२४४ , ... २६०० गर्दभाण्ड ...
२१९४ गीणि ... २२७२ गन्धर्वहस्तक ७४९ गर्धन ... २०६८ गह्वर ।
... ६४० गीर्वाण ... " गन्धवह ... १२३ गर्भ ... ११५१, , ... २७०० गीष्पति ... १९२ गन्धवहा ... १२५२
... २६०५
... १८९५ गीष्यतीष्टि... १३७० गन्धवाह ... १२३ | गर्भक
गुग्गुलु गन्धसार ....
की ... गर्भागार ... ६०९
८८२
... १२८४ गन्धाश्मन्... १९१० गर्भाशय ... ११५०
गाढ ...
... १७४० गन्धिक ... . गर्भिणी ... १११७
गाणिक्य ... गन्धिनी ... ८९५ गर्भावधातिनी १८४५ गाण्डिव ... १९३५ ! गुम्छाधे ... १२८४ गन्धोत्तमा ... गर्मुत्
गाण्डीव ... १६३५ गुञ्जा गन्धोली ... | गर्व ...
गात्र ४.५
२४१८
... गभस्ति गर्वित ... २५४१
१५४८ गुडपुष्प ... गभीर गर्हण
गात्रानुलेपनी
१३४०
गुडफल गम गर्भ २१३३
गुडा
८५९ गमन गर्मवादिन् २०१८
गान्धार ... गम्भारी ...
२७३ मायत्री ... १९ गल ... १२४९ गम्भीर ... ४९६ गलकम्बल... १८३२ गारुमत ... १८९०,
१५०५ गम्य २२०९ गलन्तिका ... १७६८ गामिण ... ११८
... १७६२ गरण
२३२३ गलित ... २२३२ गरल ४५६.गलोहेश ... १५६३
... १३९१ गरिष्ठ ... २२४९ गल्या ... २३१४ गालव ... १४, ... २४२८ गरी
| गिरि ... ६३५ गुणवृक्षक गवय गरुड ... ५७ गवल ... १९०६ , ... २२७२ | गुणित ... २२० गरुडध्वज ...
गवाक्ष ६१० गिरिकर्णी ... ८५६ | गुण्ठित ... २२०२ गरुडाग्रज ...
गवाक्षी ९६१ गिरिका ... १०"गुद ... १२२० गरुत् ... १.५९ गवीश्वर ... १८२२ गिरिज ... १९१४ | गुन्द्र ... ९७२ गरुत्मत् ... ५७ | गवेधु ... १७५६ | गिरिजामल १९०६ गुन्द्रा
१२१४
गान
गुहूची
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शब्दानुक्रमकोशः
२५
पंक्तिः
गुरंण
गोविन्द ...
गोविट
गोन
गोष्ठी
पंक्तिः शन्दा पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शन्दा गुन्द्रा ९६८ गृह ... १.५ गोत्रा ... ५६५ गोला ... १९२१ गुप्त ... २२०२ , ... २८५ ... २८२७ गोलीढ ... .२०
गृहगोधिका १.१२ गोदारण ... १७३७ गोलोमी ... ८५ गुप्तवाद गृहपति
गोदुहू ... १८२१ गुप्ति ... २४८३ गृहयालु ... २०७४, २५९४
... १९२९ २२७२ गृहस्थूण ... गोधन ... १८२३ गोवन्दनी ... -५ ... १९२ गृहागत ... १४२०
गोधा ... १६३६ गृहाराम गोधापदी ... ८८५
.... २५१३
गोधि ... १२५७ .. ... २६५९ गृहावग्रहणी
गोधिका ... ५ गोशाल गविणी
.... २९७५. गृहासक्त ...
गोधिकात्मज १... गुल्फ ... १२१0 गृहिन् ...
गोशीर्ष
१७४२ गुल्म ... ६६६ गृह्यक ...
गोष्ठ
गोष्टपति ... २५९४ ... १६२९ गेन्दुक ...
गोष्ठाध्यक्ष... २५/... २६१९ गेह १३५० गोप ... १४८१
... ११८२ ...
१८२१ गुल्मिनी ... ६० गैरिक ...
गोष्पद ... २५२२ ६४०
२५९४ गवाक ... २३५८ । गोपति ... १८.
गोसंख्य ... १८३१
गोस्तन गुह ... .८ गैरेय
.... १२८५ गैरेय ... १९१४ गोपरस ... ... १८३९ गोपानसी ...
गोस्थानक... ५८ , ... ८३४, ... २३८५ गोपायित ... गुद्ध २६४३ गोकण्टक ...
१९२६
| गोपाल ... १८२ गुम्नक ... २२ गोकर्ण ...
१८१९ गुह्मकेश्वर ...
गोपुर ... गद ...
गोकर्णी गूढपाद् ... गोकुल ... गूढपुरुष ... १४९४ गोक्षुरक ... ८४६ गोप्यक न गून गृञ्जन ... ९४५ गोडुम्बा ... ९६, गोमायु गृध्नु
___... २०६८ / गोण्ड ... २९३० गोमिन् गृध्र ... १०० गोत्र ... १३५ गोरस
१.८९ गृध्रसी ... २९१५,
गोद ... १२.४
... ५८६ ... २६९५ गोल ... २९१५ गृह ... ६.. गोत्रभिद् ... ८५ गोलक ... ११५
गोतनी
गो
word
गोपी
८७२
१२४०
E
.
.
R
२५२
.
८२३
२७..
२
.
.
... १२०९ गोचर ... २९गमय ... २२१७ गोजिह्वा ...
... २२.
गाचर ... २९२ गोमत
गन
१८
-
है: है: : . . .
6
गृष्टि
... २६९४
For Private and Personal Use Only
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२६
शब्दः
अन्धिक
प्रथित
ग्रन्थिक
39
प्रस्त
39
ग्रह
""
""
पर्ण
17
ग्रामणी
ग्रामतश्च
ग्रामता
ग्रामाचीन
ग्रामान्त
ग्रामीणा
ग्राम्य
ग्राम्यधर्म
ग्रावन्
13
-प्रावन् ग्रास
ग्राह
91
ग्राहिन् ग्रीवा
⠀⠀⠀⠀⠀⠀
ग्रीष्म
ग्रैवेयक
उलस्त
...
...
...
...
ग्रहणीरुज् ग्रहपति प्रहीतृ २०७८
ग्राम
...
...
...
...
...
...
...
...
...
पंक्तिः । शब्दः
१९२७ | ग्लह
२१९६ | ग्लान
९१३ ग्लास्नु
ग्लो
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
७२३
८०२
६३१ घन
२६१६
२४३३
१९४७
१५० घट
२२४६ | घटना
२३३ घटा
२२६५ | घटीयत्र
२८०७ घट्ट
११८६ | घण्टापथ ...
२०५ घण्टापाटलि
घण्टारवा
२३३४
१९४७
१४६६
६ ३५
::::
६३२ | घनरस
८३७
घनसार
३४८ घनाघन
धर्म
32
१२४९
13
६४० | घस्मर
२५४६ | घस
१८१५
घाटा
५०९
घाण्टिक
२२६५
घात
६९० धातुक
13
२५१ घास
१२८१ | घुटिका
२२४६ | घुण
...
२०१९
११८९ ...
११८९
...
घ.
...
...
...
...
***
⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
⠀⠀
***
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***
...
...
अमरकोषस्य
पंक्तिः | शब्दः
घूर्णित
घृणा
་
53
घृणि
१७७० घृत
૧૬૮૧
33
१६८१ घृष्टि
१९८३ | घोटक
२९३० | घोणा ५९३ घोणिन् ७२७ घोण्टा
૦૨
27
१५९ घोर
३७० घोष
३७९ घोषक १६४९ | घोषणा
२१५६ | घ्राण
२५५५
"
४७६ | प्राणतर्पण
१३३४
घात
२५५४
४२८
२६१८
93
२०६५ | चकोरक
२१८ चक्र
प...
""
""
""
"3
""
: : : : : :
...
... २४३७ | चक्रवर्तिनी
२१० चक्रवाक
૧૮૧૦ चकवाल
२४८६
चक्राक्र
९९१ १५५४ | चक्राङ्गी १२५२ | चक्रिन् ९९२ चक्रीवत् ९८६ | नक्षुःश्रवस् ९८६ | चक्षुष् ४०१ | चक्षुष्या ६३१ नश्चल चञ्चला
શ્
१३४ चक्षु
...
***
...
...
...
:::
१२५०
१६६१
१६९८
२०८१ २११९ ९८३
चक्रकारक... १२१७ चक्रपाणि २९३१ | चक्रमर्दक...
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...
च.
...
...
...
...
...
...
पंक्तिः शब्दः
२०८९ | चक्रयान
३९७ चकला
२३१४ चक्रवर्तिन्... १४७२
९५५
१०३२
१५६
६५६
१२५२
२२०४
२९८
२२०४
21
For Private and Personal Use Only
"
...
*"
...
...
??
***
...
...
...
...
चटक चटका ...
...
...
...
१०२३
१०२४
चटकाशिरस् १९२७
१७४३ २०८८
...
पंक्ति:
२८१९
चणक
चण्ड
९०५
२८५९ चण्डा १०५७ ५५ चण्डात ४८० चण्डानक चण्डाल 113
८०१
१३११
१५७९
१९३७ १९६७ १६२४ | चण्डालवल्लकी १९९२ २६९९ चण्डिका ९०६ | चतुःशाल ३९ | चतुर ९४२ | चतुरकुल.
७४
શ્
***
१५७०
...
१०३४
८२०
४५१
४५२
१२५९
१९११
२१७४
१६३
७५१
१०६०
१०२३
१९६६
६९५
Page #32
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शब्दानुक्रमकोशः
२७
११८८
चित्रक
८५५
चन्द्र
परापर
८६०
.
.
शब्दः पंक्तिः शन्दः पंक्तिः | शब्दः
पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः चतुरानम ... १२ चम्पक ... .७५ चषक ... २०१५ चित्तविभ्रम ४१४ चतुर्भद्र ... १४६८
चषाल
चित्तसमुन्नति चतुर्भुन ...
१०६७ चाक्रिक
चित्तामोग... २८१ चतुर्वर्ग ... १४६७
१४९१ चानेरी ...
चित्या ... चतुर्हायणी १८४३
चाटकर ... १० चित्र ... ३.. चतुष्पथ ... ५९० चरक
२९६१ चाण्डाल ... १९ चत्वर ... ६१८ चरण ... १२१६ चाण्डालिका १९
२६९२ चरणायुध... १०२२ चातक ... १०
७५० चरम ... २१८६ चातुर्वर्ण्य ... १३५६
८.८ चन्दन
चरममाभृत् ६३७ चाप ... १६३३
२१७२ चामर ... १५ । चित्रकर ... १९४२ " ... ९४० चरिष्णु ... २१७:
२ चामीकर ... १८९६ चित्रकृत् ... ७०२ " ... १३१४ चरु ... १३९ चाम्पेय ... ७७५ चित्रतण्डुला ___... २७०० चरी ... २९१४ |
चित्रपर्णी ... ८३३ चन्द्रक ... १०४९ / चर्चा ... २८१ चार ... चित्रभानु ... " चन्द्रमागा ... ... ५३५ , ... १३१७/चार ... २२००
" ... २०४ चन्द्रमस् ... चर्मका चारटी
" ... २५४४ चन्द्रवाला ... ८९८ चमेकार ... १९४
चारण ... १९५३ चित्रशिखण्डिज १९३ বখাৱৰ चर्मन् ... १४४५ | चारु ... २१२८
२८ चित्रशिखण्डिन् १९८ चन्द्रहास ... १६४५ ... १६४८ चाचिक्य ... १३
चित्रा ... ८२३ चन्द्रिका ... १७७ धर्मप्रभेदिका
देका १९९८ चालना ... १७ चर्मप्रसेविका १९९५
चिन्ता ... ११९ चर्मिन् चिकित्सक... "
चिपिटक ... १८०१ २११६ ... १६०९ चिकित्सा ... "
चिबुक ... १२५४ चपला चर्या ...
... १२६७
चिरक्रिय ... २०५८ " ... ८१४ | चर्वित ... २२६५ , ... २०१६
चिरंतन ... २१७८ चपेट ... १२४२ चल
चिरप्रसूता... १८४८ ... १००८ चलदल ... ६८९ चिकस ... २९६५ चिरविल्व चमरिक
... ६९३ चलन ... २१७३ चिचा ... चिररात्राय २८५० चमस ... २९६५ चलाचल
चिरस्य ... २८५० चमसी ... २९१५
चिराय ... २८५० चमू ... १६२३ , ... २१९८ चिता
... १७०२ चिरिण्टी ... १०९१
... १७०२ चिरिण्टी ... ... १६२९ | चविका ... ८४४चिति १७०२ चिलिचिम... ५०३ चमूर ... १००५ /चव्य ... ८४४ | चित्त ... २७७ चिल्ल ... १...
.
.
.
१२०
१९
७४०
... २१७३ चिमण ... ....
चित
चलित
...
१६५९
२८५५
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२०
अमरकोषस्य
पंक्ति | शब्दा
छात्र
चीर
न्दिस
छाया
२९०
छित
२२११
चौर्य
छिद्र
चिन्न
:: :: :: :: :: :: :: :: :: ::
कारिका
पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः चिल्ल ... १७९३ चैन ।
छात
२२३१ असाल ... १६१३ ... १७८ चोच
१३७४ | जटा ... .. चीन
२२२० , ... १२६०
... १३६५ चीरी
नटामांसी ... ७५ चीवर
नटिन् ... " चौरिका
लिटिला
१२२. ... २९३५ च्युत छिद्रित ... २२२
२०१४ चुक्रिका ९२९
... २२१
... १८३ ११२३ गझक ...
नरहा ... ८
... २... चुल्लि १७६४गलात्री... ... १२३८: छत्र
. ११२. १०५.छत्रा
... १७८६ ... १२६८
मतुका ... .... धूडामणि ... १२७८
तुकृत् ... १५५ चूडाला ... ९६८. छत्राकी
... १५५ चन ... १५
जगती घूण ... १३.
... २४७७ जगत्माण ... १२४ जना
१४ नंगम ... .. . चूर्णकुन्तल १२६५ दिस्
जगर ... १५९६
... २११. चूर्णि ... २९१२ छद्मन्
जगल
२०१३ लिका ...
२२९० | जग्ध २२४६
१३५४ चटक ... १९६२. , .. २५११ जग्धि
जननी ... २८७२ छन्दम् ... १३९७ जघन ... १२२२ जनपद चेतकी ... ७६७, , ... २७९९ जघनेफला... चेतन
१५१२ जघन्य ... २१८६
जनपति .... २२२० ... २६५३ ... २७७ : छल
जघन्यज ... ११६० जनाश्रय चैत्य ६०६ छवि ... १७९ , ... जनि
२७. २१२ जाम ... २१७२ जनी ... १८५८ जङ्गमेतर ... २११
... १८५८ जङ्घा ... १२१८ जनुस् २७॥ १३०५ छात ... ११६१ महाकरिक १६३ जन्तु
... २७५
:::::::::::::::::::::::::
१२७८
प्रद
::::::::::::::::::::::::::::::::::
त
छन्द
चेटक
जनयित्री
चेतना चेतस्
: :: :: :: :: :: ::
जनार्दन
१
.
चैत्र
चैत्ररथ चैत्रिक
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शब्दानुक्रमकोशः
२०॥
d
८..
::::::::::::::::::
जातु
जलप्राय जलमुच्
१९८७
४४८
जीवन..
जीर्ण
११.
पंक्तिः शब्दः
पंक्ति शब्दः पंक्ति
पंक्तिः जन्तुफल
६९२ जरायु ... ११५० जात ... २०६ जिन ... जन्मन् ... जरायुज
जातरूप नन्मिन् ... २७५ जल ... ४७२ जातवेदस् ... १.६ "
• १६२१ जन्य जलजन्तु जातापत्या
२१६६ जलधर ... १५८ जाति
.... २६१७
... ... २६५ जलनिधि ...
विद्याग ... १५४ जलनिर्गम... जन्यु
... २१.. | निहा ... १२५६ जप १४४६ जलनीली जातीकोश...
... ११५८ अपापुष्प
जलपुष्प ...
२९४१/जातीफल ... ११३८जीमत ... १५६ जम्पती
... २८५६) , जम्बाल
२४५१ १५९
जातुष जम्बीर
१७७९ जलव्याल ... जातोक्ष
जीणे जानु
... जल शुक्ति...
१५८ जम्मु
... १३०३ ... ६८६
| जाबाल जलाधार ... जम्बुक
... २२६७ সাহায
मामातृ जामि
... १९३
... १७०६ जलोच्छ्वास जाम्बव ... जम्भ ...
जीवक जाम्बूनद ...
... जलौकस् ...
७३६ गम्भमेदिन् ८६ जलौका ... ५१ | जायक ...
११२१
जीवंजीव ... १०५७ जम्भल
जल्पाक ... २०१६ | जाया जम्भीर ... ६९७
जीवन ... ४७३ ९७ जल्पित ... २२३९ जायाजीव... १९५ ... १२८ जायापती
जीवन ... १७.९
जीवनी ... ११२ १६१४ जायु ... 110 २२७३
जीवनीया ... १३२
१५५८ जार जयन २२७३
जीवनौषध १७०७ ... १६१४ | जाल जयन्त ... २३२०
जीवन्तिका ८१२ जयन्ती
जवनिका ... ११४ जालक नया
जातनया... ५२० मालिक ... १९५६
१९५४ जीवन्ती ... ११२ जय्य ... १६१५ जागरा जागरा ... २२ |जाली
जीवा ... ११३ नरठ ... २१४७ जागरित जागरित ... २००९ नाल्म
बीवातु जरण जागरूक ... २०८९
बीवान्तक... १९५६ जागर्या ... २२८. निघत्सु ... २.10जीविका ... १७०९ परद्रव ... १८२८ | माङ्गलिक ... ११. जिही
बीवितकाल १७०० रा ... १७५५ / जाहिक ... १६११ जित्वर ... १६२७ बुगुप्सा ... ११७
९
जम्बू
जय
जवन
१५
७७९
द
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.
जरत्
१५८
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अमरकोषस्य
पंक्तिः शब्दः
पंक्ति
तद्
दि
...
तदा
१९१
लेतृ
: :: :: :: :: :: :::
नेमन
नेय
जैवातृक
: : :
झटामला ...
२३५
दका
A
जोङ्गक ... १३२६
पंक्तिः शब्द
पंक्तिः शब्दः जुगुप्सा ... २४३० ज्येष्ठ ... २४१७ ड. तथा ... २८६६ | ज्योतिरिङ्गण १०४४ डमर ...
२८९९ जुहू ... १४०२ ज्योतिष्मती ९४८ डमरु ३७७ तथागत २५ जूति ... २३२६/ ज्योतिस् ... २७९५ : डयन १५७१ तथ्य १५४ जूर्ति ... २३२६ ज्योत्स्ना ... १७७
૨૮૫૫ जुम्भ ४३२ तिषिक १४९५ डिण्डिम ...
२८९३ जृम्भण ... ४३२/ज्योत्स्त्री ... २२४ डिण्डीर ...
तदात्व ... १५२५ ૮૮ છે डिम्ब
२२७७ तदानीम् ... २८९३ ... १६२१ १८५ डिम्भ ... १०६३
तनय ... ११२८ ... १८१८
२३२६ ... २६०३
१२१५ ज्वलन
२१४७ जैत्र ... १६१६ ज्वाल
... २१५६ ५१५
... २५. २०३७
१५९५
तनुत्र ९०२ झटिति ... २८५२
... १२१५ १३२६ जोषम् ... २८३७
६४३
तनूकृत ... २२२२
तनूनपात् ... १०६ ज्ञ... ... १३६३ झर्झर
तक्षक
तनूरुह ... १०५९ झापित ... २२२. झल्लरी
तक्षन् झष
१२७१ तट ..
१९८४ ज्ञप्ति
तटिनी ज्ञातसिद्धान्त १४९७
तन्तुम ... १७४०
तडाग ज्ञाति ... ११४२ झाटली
तडित् १६तन्तुवाय ... १०॥ ज्ञात झावुक ... ७२८
... २५५९ ज्ञातय झिण्टी
२००५ ७९८ | तडित्वत् ... १५८ ज्ञान ... २८८ , ... ७९९
९९ तण्डक ... २९६०
तबक
... १२९७ झानिन्
हा झाल्लका ....०४३ तण्डल ...
८६१ तत्रिका ...
८६१ झीरुका ... १०४३ तण्डुलीय ...
तन्द्री , ... १६३७ ट. तत
। " ... २६८७ भ्यानि ... २२६७ टक ... १९९७ , ... २१९६ | तप ... २५२ ज्यायस् ... ११५९ , ... २९६० ततस् ... २८५५ तपःक्लेशसह १४७
... २८०५ टिट्टिभक ... १०५८ तत्काल ... १५२५ तपन ... २०६ ज्यायान् ... ११५९ : टीका ... २९०९ तत्त्व ... ३७९ | , ... .२ म्येष्ठ ... २४६ दुण्टुक ... ७६१ तत्पर ... २०४२ | तपनीय ... १८९५
तक
शरrn
... २२२०
س
... ८८२
و
:: :: :: :: :
५२६
झाटल
७२८ ... २९७०
२५५९
"
... १९४,
तत्र
م
م
९२०
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पंक्तिः शब्दः
२४४ तरुण
२७९९ ! तरुणी
तपस्य
२४५ तर्क
तपस्विन् १४३६ | तर्कविद्या
तपखिनी
शद:
तपस्
33
तम
तमस्
39
17
तमाल
""
13
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तमस्विनी....
तरपण्य तरल
37
तरला तरस्
तरस
तरखिन्
...
33
...
तमालपत्र ...
तमिस्र
तमिस्रा
तमी
तमोनुद्
तमोपह
तरक्षु
तरक
तरङ्गिणी तरणि
तरि
तरु
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....
***
...
...
...
...
***
***
...
...
...
...
...
***
...
९१६ तकरी
१९७ तर्जनी
२७३ तक
४ ४ ३
तर्दू
२७९८ तर्पण
२२३
::
"
७८४
२९६१ | तर्मन् १३१९ वर्ष
४४३
२२४ तल
= 3.
२२३ "" २५१३ तलिन
२८१२ तल्प
९९०
४७७
५२६
२०४
४८७
७९५
४८९
तल्लज
तष्ट
तस्कर
ताण्डव
तात
तात्रिक
तापस
***
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः | शब्दः
११५७ | ताम्रकुट्टक ... १०९० ताम्रचूड २८२ तार
...
***
३२०
७७९ तारकजित् १२३६ तारका
१८२९ १७७४ तारा
१३८० तारुण्य
... १८१९ तार्क्ष्य
२२५८
...
...
...
***
23
... १३९० | तार्क्ष्यशैल
४१७
ताल
१८१७
१६३६ २७३९
२५८८
...
२५९६
२६८
२२२२
१९७७ ...
NO.
...
...
...
१२७८
२१७४
तापसतरु
तापिच्छ
१८०६
१२७
! तामरस १६७१ तामलकी
११९९
तामसो १६१४ ताम्बूलवल्ली २५९० | ताम्बूली
४८७ ताम्रक ६५८ ताम्रकर्णी
***
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...
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૧
२९६३
११३०
१४९७
१४३६
७४०
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33
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23
तालाङ्क
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...
तालु
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तिक्तक
...
...
***
૧૯૦
९८५
१२४०
१९१३ ताळपत्र ... १२८० तालपर्णी
८९४
तालमूलिका
૮૮.
तालवृन्तक
१३५३
४७
९०२
૧૮૮
१२५५
૨૦૧૮
***
...
...
...
...
...
...
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...
...
444
***
...
...
७८४
५४७ तिक्तशाक ९०२ तिग्म २२४ | तिङसुबन्तचय ८८८ | तितउ ८८८ ! तितिक्षा १९०० तितिक्षु १५४ | तित्तिरि १०५७
२०८७
...
पंक्तिः | शब्दः
१९४५ | तिथि
१०२२ तिनिश
०३५
३६६ | तिन्तिडी २६६७ तिन्तिडीक... १७७७ ७९ | तिन्दुक १८६ | तिन्दुकी
७२५
२९११
१२५८ तिमि
५०५
५०६
२२३५
१८६ | तिमिङ्गिल
११५३ | तिमित
५७ तिमिर
२६२६
१९१०
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"
93
तिरोधान तिरोहित
| तिर्यच्
तिलक
93
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४४३
तिरस् २८४८
२८६१ तिरस्करिणी १३१४ तिरस्क्रिया...
४०६
तिरीट
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२९५५.
१७०
१६१
... २०९३
७२८
११७२
१२०४
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...
...
***
***
100
...
***
...
***
...
२९५
तिलकालक ९५८ तिलपर्णी
६९८ | तिलपिअ २१५ तिलपेज
३१५ तिलित्स १७५८ | तिल्य
४०९
तिल्व
तिष्य
...
...
...
...
...
३१
पंक्ति:
...
...
२१७
७०१
१३१९
१७९२
२३७७
११७२
१३३७
१७४४
१७४४
४४७
१७२१
७१४
૧૯૮
२६२९
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३२
अमरकोषस्य
पंक्तिः
५५
... १९०२ तुरग
.." ... १५५४ तृण
...
तीर्थ
... १४५
न
तोब
तीब्रवेदना
२
३
तत
तप्ति
१८१
की ... १०
.
शब्दः पंक्तिः | शम्दः पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः शब्दः तिभ्यफला १६. नूष्णींशील...
... ११२९ तीक्ष्ण ... २५ तुरग ... १५५४ तृट् ... १६ तोकक ... १०२१
तोक्म
...100 " ... २४/ ... २६२६ तृणम
नोटक
.... २९५ तीक्ष्णगन्धक | तुरङ्गम ... १५५४ तृणधान्य ... 10
... १५१९ तीर ... ४८१ नुरवदन... "
तृणध्वज
... 100 तुरायण ...२
तृणराज . ... २५० तुरासाइ ...
तृणशून्य ...
तोमर ... १६५६ तीन तुरीव ...
तृण्या ... तुरुष्क
| तृतीयाकृत... १७३ तोयपियकी तुला
तृतीयामकृति ११५ तोरण ... (२५ तुलाकोटि ...
... २२१
तौर्यत्रिक ...
त्यक्त ... २२३८ तुल्यपान ...
त्याग ... २१६० तुवर तुवरिका
२०६ तृष्णा
...२४३७ तुण्ड
तेज ... तुण्डिकेरी
तेजन
२१.२ तेजनक
... २२९८ नुत्थ
तेजनी तुत्था
.... तेजसू
... २०००
... २२३६ तुत्याजन ... ... १६४४ तेजित
... २२६५ तुन्द ... १२२०
२२५६ सुन्दपरिमृन १९६५ तूद ... 1 तेमन
पापुष ... १९८० तुन्दिम ... ५२ तूर्ण ... १२९ तेजस ... १९०१
... बावन्ती ... ११९ . ... १९५ | तूल ... २ तैजसावर्तनी
तेजसावर्तनी १९९५ पायमाला ... सन्दिल ... १९२
तैत्तिर ... १.७१ त्रास ... ४०३ तूलिका १९९५ तेलपणिक ... निक ... १२२६ "५२ | तूबर ... २६६५ तैलंपाता ... २९.० त्रिककुद् ... ६६ तूनीक ... २१०२ तैलपारिका १.९ विकटु
पिक्टु ... १९२९ | तूष्णीकाम् ... १८. | तेलीनवत् ... 100 त्रिका ... ५२. तुमुल ... १६८. नीम् ... २०६018ष ... . त्रिकूट ... (६
तुष
१५०७
८.
९२५
१९.२
८१५
११९७
२८.
2२०
पूणी
तूणीर
१७९५
... १९१८
:
तन्दी
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शद
पंक्तिः शब्दः
त्रिखदव
२९७७ त्र्यम्बक
त्रिखट्वी २९७७ । त्र्यम्बकसख
त्रिगुणाकृत
१७२४त्र्यूषण
त्रितक्ष
त्रितक्षी
त्रिदश
त्रिदशालय
त्रिदिव
त्रिदिवेश
त्रिपथगा
त्रिपुटा
त्रिफला
त्रिभण्डी
त्रियामा
त्रिलोचन त्रिवर्ग
17
त्रिपुरान्तक
35
त्रिविक्रम त्रिविष्टप
त्रिवृता
त्रिसंध्य
त्रिसीत्य
त्रिस्रोतम्
त्रिहल्य त्रिहायणी
त्रुटि
11
39
त्रेता
...
2:
...
: : :
::
***
...
444
....
...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
...
...
...
...
***
...
२९७७ त्व
२९७७ त्वक्क्षीरी
१३ त्वपपत्र
११ त्वक्सार
११ त्वच्
१४
५२९
८६४ | त्वच
८९९ | त्वचिसार
६६ त्वरा १९२९ | त्वरित ८६५
२२२ स्वरितोदित
33
६४ | त्वष्ट
१४६७ | त्वष्ट्र
१५०६
32
४० विष्
१२
33
विषपति
८६४
८६४ त्सरु
२२१
१७२४ | दंश ५२९ दंशन
मोटि 13 ब० को० स०
...
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः | शब्दः
६६ दक्षिणार १३५ | दक्षिणा
...
...
...
***
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
द.
...
...
१०२४ दंशित १८४३ दंशी ८९९ दंष्ट्रिन्
२१४८ | दक्ष २४०९ | दक्षिण १३९२ दक्षिणस्थ
२४०२ दक्षिणा
१०६० दक्षिणामि ..
...
***
...
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...
१९२९ | दक्षिणीय २१८९ दक्षिणेर्मन् १९२५ | दक्षिण्य
९.१७
दग्ध
९६९ दग्धिका ६७३ दण्ड
११९८
१२९४
९१७
९६९ | दण्डधर
२३०२ | दण्डनीति...
59
33
१६४७
""
२०७
| दम्भोलि
१५०८
१५०५
! दम्य
२४१८ | दया दयालु ५२० | दयित
११७
१२८ | दण्डविष्कम्भ १८५५ दर १६१४ | दण्डाहत
२०५ दनुज
दन्त
...
१०४१
१५९५
१५९८
१०४२
दन्तशटा १९२ दन्तावल १९६६ | दन्तिका
२०४१ दन्तिन् १५८७ दन्तुर १४७ दन्दशूक १३९१ | द
...
93
...
⠀⠀⠀⠀⠀
...
***
३५०
ददुन
२२२२ ! दगुण
११९१
१९४६ | ददुरोगिन् ... ११९१ २७४४ | दधित्थ
२१२
दधिफल
२७८५
दधिसन्तु
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...
६९० दर्दुर
६९१
दर्पक
१८०२ ' दर्पण.
२३ दर्भ
१२५५ | दव
दन्तधावन
७४७ दकर दन्तभाग १५४७ दर्श
दन्तशठ
...
***
...
***
***
पंक्तिः शब्दः
१९७६ | दम
२०३५
""
२०३५ दमथ
1
२२५०
१९७६ दमित २२१
११५
११४९
४२१
२३६३
२४
२०३५
दमूनस्
२२२२ | दम्पती
१८०४ दम्भ
...
१८१२ "
९४२
दरत्
दरिद्र
दरी
६९१ "
६९७ दर्शक ९२९ | दर्शन
१५३५ दल
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***
...
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...
...
...
...
...
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***
...
***
***
...
...
...
...
२३
पंक्ति
...
...
१५
AE
१८३०
३९८
२५४०
२१३१
803
२७०४
२९१२
२१२२
६४४
५१४
༥༠
१३५३
९८०
९३७ दव १५३५ | दविष्ठ २७४५ दवीयस् ४५३ | दशन २१४७ | दशनवासस् १२५:
२७४७ २१६२ ... २१६२ १२५५
१७७४
४५३
२३१
१४४८
१४७९
२३११
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३४
अमरकोषस्य
पंक्तिः : शब्द:
.
४०१
०२.०५९
८५२
दिष्ट
...
२१६ दु
... २६००
.
४९७
शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शब्दः
पंक्तिः दशवल ... २७. दामोदर ... २६ दिवस्पति ... ८३ दुःख दशमिन् ... ११५९, दायाद ... दिवा ... २८६० ... २९१० दशमीस्थ ... २५०९ दारद ... ४५९ दिवाकर ...
... २८७. दशा ... १३०१ दाराः ... १०८५ दिवाकीर्ति...
दुःस्पर्श ... ... २७६८ दारित ... ___, ... १९६०
दुःस्पर्शा ...
... ८३६ दशानीकिनी १६३० दारु ... ६७४ दिविषद् ... दुकूल ... १३०० दस्यु ... १४८९ " ... ७५५ दिवौकस् ... ८४ दुग्ध ... ... १९७७ दारुण
, ... २७१८ दुग्धिका ... ८४८ दन ... १०२ दारुहरिद्रा ८५२ दिव्यगायन २६०० दुन्दुमि
... १७३ दहन १० दारुहस्तक... १७७४
दिव्योपपादुक २१२५ | " ... २६.६ दाक्षायणी ... १८७ दार्वाघाट ...
दिश १४६ ... ५८९ दाक्षारय ... १०३० दार्विका ...
दिश्य
१४८ | दुरालभा ८३२ दाडिम ... ७७७ दार्वी
दुरित २६. " ... २९७८! दाव
२७४७
२७० दाडिमपुष्पक ७४६ | दाविक ... ५३८ , ... २४० ४
१५.२ दाण्डपाता... २९०६ | दाश
दिष्टान्त
दुर्गत २१२२ दात ... २२३१ दाशपुर ... ९११ दिष्टया ... २८६८ दात्यूह ... १०२९ दास ... १९६२ दीक्षान्त ... १४०७ | ... २७१९ दासी ... दीक्षित ... १३६८
... २३०० दात्र ... १७३२ दासीसभ ... २९४९ दीदिवि ... १८
... ७४ ... १४१० दासेय दीधिति
२११८ ... १५०० १९६२ दीन
दुर्दिन ... १५४१ दिगम्बर ... २१०२ दीनार
दुर्दुम ... ... २५७४ ४ दिग्ध
दीप ... १३५०
... ११८२ ... २३ २२०४दीपक
दुनोमन् दानवारि ... १७ दित २२३१ दीप्ति ...
... ११६. दानशौण्ड...
२०४० दान्त ... १४३७ दिधिषु ... १११९ दीर्घ ...
२०१७ . ... २२१९ दिधिषू ... १११९ दीर्घकोशिका दान्ति ... २२५५
दीर्घदर्शिन् १३६५
२१२२ दापित ... २१०४ दिनान्त ... २२० दीर्घपृष्ठ ... ४५
१४८८ दांभिक ... २३६८
दीर्घवृन्त ... ७६२ दुश्यवन ... दाम ... १८५३
दीर्घसूत्र ... २०५८
पापसून ... २०५८ दुकृत ... " दामनी ... १८५३ दिवस ... दीपिका ... ५२३
ति
..
::::::::::::::::::::::::::::::::::
.
दातृ
दान
... २११
दुर्जन
दासेर
...
२१२
१६८
.
दुनोमक
दानव
२३५७
दीप्य
::::::::::::
१८९९
दिव
.
.
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शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः
देवता
दूती
१४५३
... ६५९
२
दुघण
... १५७३
५८, दोषज्ञ
दोषा
...
१२८
शब्दः पंक्तिः, शम्दः पंक्तिः । शन्दः पंक्तिः दुष्पत्र ... ९०५ देवच्छन्द ... १२०१ दैन्य ... २६४२] द्रविण ... २९३९ दुष्पर्षिणी ८७६ देवजग्धक... दैर्घ्य ... १३२० दुहित देवतरु ... दैव ... २७०
... १४०१
२८५२ दूत देवताड ...
८६३ ... देवत्व ... १४५६
१४९५ द्रापिष्ट ... २२४९ ... २२२९ | देवदारु ...
दैवझा ... १११३ दून ७५६
९१८
द्राविडक दूर ... २१६१ वद्या ...
दैवत . ... २८२० देवन ... २०१९ , २५६ दुकिलिम
... ७५५ दूरदर्शिन् ... १३६५ , ... २५६९ दोला ...
१६४९ दर्वा ... ९६४ | देवभूय १४५६
१०१५ दूषिका ... १२०७ देवमातृक ...
१३६२ ... २९१२ दृष्य ... १३१३ देवयज्ञ
देवयज्ञ ... १३८०दोषा ... २८६० | दूष्या ... १५५१ | देवर ... ११३० दोषैकशा र... २११७
... २२०३ १३३ देवल ... १९५० दोस् ... १२३३
२२२४ २१७६ देववल्लभ ... ६९९ दोहद ... ४१५
२८५२ देवशिल्पिन् २४०८ दोहदवती... १११६ ... ६५९ दृढसंधि ... २१७५
| देवसभा ... ९६ | धुति ... १७९ दुमामय ... १३२३ हति ... २९३२ देवसायुज्य १४५६
पल ... ७६८ हन्ध २१९६ देवाजीव ... १९५० घुमणि ... २०४
दुवय
... १८७६
૧૮૮૭ ,, ... २०६९ , ... १५ द्यूत ... २०१८ द्रोण ... १८८३ दृषद
धूतकारक... २०१७
" ... २४३२ दृष्ट ... १५२७ | देव ... १३ | चूतकृत् ... २०१६ | द्रोणकाक ... १०२९ दृष्टरजस ... १०९० | देश ।
द्रोणक्षीरा ... १८५० दृष्टान्त ... २४५९/ ,
द्रोणदुग्धा... १८५० दृष्टि ... १२६० देशरूप
१५१५ द्योत
| द्रोणी ... ४८९ " ... २४११ देह ।
१८०९ " ... ८३० देव ... "
द्रोहचिन्तन २८४ .... १८७
द्रौणिक ... १७२६ देवकीनन्दन ।
द्रवन्ती ...
८२.३
| बन्दू ... १०६४ देवकुसुम ... ११२४ दैत्यगुरु ... १९४ दविण ... १६७. , ... २०१० देवखातक... ५२१ दैत्या ... ८९० , ... १८८७ | द्वयातिग ... १४. देवखातविल ६४४ | दैत्यारि ... . .. ... २४३९ । द्वादशाकुल १२४.
२४२४
...
२१२
दृश
देवी
दुहिण
"
४
देव
हो
३
... १५१५
| द्रव
तेय
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अमरकोषस्य
पंक्तिः
:
o
:: :: :: :: ::
पगुस्
...
धातु
शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः द्वादशात्मन् २०० द्वैमातुर ... ७५ धर्मचिन्ता... ४१८ धारासंपात १६७ द्वापर ...
दुयष्ट ... १९०१ धर्मध्वजिन् १४६० धार्तराष्ट्र ... १०३६
धर्मपत्तन ... १७७८ धावनी ... ८३४ __६२४ घट ... २५२९ । धर्मराज ... धिक्
... २८१६ द्वार ६२४ धनूर ... ८०३ , ... ११५ धिकृत ... २१०३ द्वारपाल ... १४७९
१४७९ धन ... १८८६ . ... २३९६ , ... २२१२ द्वास्थ ... १४७९ धनंजय १०५ धर्मसंहिता... ३२३ धिषण
१९२ द्वाःस्थित ... १४७९ धनद ... १३६ धर्षिणी ... १०९४ धिषणा २०८ द्वाःस्थितदर्शक १४७९ | धनहरी ... ९०५ ___... ११४४ । धिष्ण्य . ... २६४५ द्विगुणाकृत... १७२५ धनाधिप ... १३६
२७४८ | धी २७८ द्विज ... १०५२ धनिन् ... २०४५ धवल
" ... २८० , ... २३५४ धनिष्ठा ... १८९ धवला
धीन्द्रिय ... २९३ द्विजराज ... १७४ धनुर्धर ... १६०५ धवित्र
धीमत् ... १३६१ धनुःपट ... ७१०
धातकी ...
| धीमती ... द्विजाति ... १३६० धनुध्मत् ... १६०५ , ... २९०९
धीर ... १३२२ द्विजिह्व ... २६.१ धनुस् ७१०
... १३६३ द्वितीया ...
२४६५ धीवर ... द्वितीयाकृत १७२५। धन्य ... २०३० धातुपुश्पिका ८९७धीशक्ति ... २... द्विप ... १५३५ धन्वन् ... ५६७ धातृ
३३ धीसचिव ... १४७६ द्विपाद्य ... १५२१
१६३३ धात्री ... २६८८ धुत ... २११८ द्विरद ... १५३५ धन्वयास
धाना ... १८.. ... ५२६ द्विरेफ ... १०४६ धन्विन्
धानुष्क ... १६०५ धुर । १५७८ द्विष ... १४८९ धमन ... ९. धान्य ... १७४५ धुरंधर ... १८३६ द्विषत् ... १४८८ धमनि ...
धान्यत्वक्... १७५१ धुरीण ... १८३६ द्विसीय ... धमनी ... धान्याक ... १७८२ धुर्य ... १८३६ द्विहायनी ... १८४२ धम्मिल्ल
धान्याम्ल १७८५ धूत ... २२३८ द्विहीन ... ६८
धान्यांश ... २४२६ धूपायित ... २२२९ द्वीप ... ४८३
धामन् ... २५८२ धृपित ... २२२९ द्वीपवती
धामाग ... ८२५ धूमकेतु ... २४५१ दीपिन् धरित्री
, ... ८८३ धूमयोनि ... १५५ द्वेषण ... १४८८ धर्म ... २६२ धारया ... १३९६ धूमल ... ३०८ द्वेष्य
... १५१९ धूम्या ... २३३४
धारा ... १५६५ धुम्याट ... १०२० १०
... २६१२ धाराधर ... १५८ धूम्र ... ३०८
...
| धुनी
१२०३
| धर
दीप
..
धरणि
७ । धरा
*४४४
धारणा ...१५६५
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शब्दः
भूर्जटि
धृत
ह
धूलि
धूसर
धृति
पृष्ट
धृष्णज्
धेनु
धनुका
धेनुष्या
धेनुक
चैत्रत
धोरण
""
19
21
⠀⠀⠀⠀
धौतकौशेय
धौरितक
धौरेय
ध्याम
भुव
ध्रुवा
...
37
...
***
...
...
...
...
***
***
पंत्तिः शब्दः
६५ ध्वान
८०३ ध्वान्त
२०१६
...
२११९ न ...
१८३६ नकुलेष्टा
१६६४ नक्तक
३०३ नक्तम्
२४८३ नक्तमाल
२०७५
नक
२०७५ | नक्षत्र
૧૮૪૮
१५४० नक्षत्रेश
२३६४ नख
१८५०
૧૮૨૭
२७५७ । नटन 1 ८७२ नटी
१४०९
नड
ध्वज
१६६६ ध्वजिनी १६२३
ध्वनि
ध्वनित
ध्वस्त
ध्वाङ्क्ष
17
नयर
नक्षत्रमाला
नग्न
१८३६ । नग्नहू ९८१ नमिका
१८४
६६५ नट २१६५
"
"
३६३ नग
१५८३ | नगरी १२९५ नगौकस् १५६४
"
न.
१०२८
नवत्
२७७४ | नड्वळ
...
३५५ नडप्राय २२१३ नडसंहति
२२३२ नड्या
शब्दानुक्रमकोशः
⠀⠀⠀⠀
...
634
...
५०९ ...
१८६
१२८६ | नन्दक
...
...
...
***
...
...
***
...
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...
पंक्तिः शब्दः
३५५
४४३
नत
नतनासिक
नद
२८७१ | नदी
""
८७८ | नदीमातृक १३०३ | नदीसर्ज २८६० नधी ७४३ ननान्ह
ननु
१७४ नन्दन
९०९ नन्दिवृक्ष नन्द्यावर्त
13
...
नभसंगम
नभस्य
नभस्वत्
५७४ नयन
...
...
९८४ नर ९८४ नरक ५७४ नरवाहन ५७४ | नर्तक
...
...
१२३९
१२३९ | नपुंसक
२३७२
नत्री
५९४
नमस्
१०५४
२१०२
२०१३
१०८९
११०७
७६१ | नमस्
१९५३
३८१
९०७ नमस्या
नमस्थित
९.७३
९७९ नमुचिसूदन
२९६१ | नय
...
***
...
...
...
नमसित नमस्कारी.
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www
...
...
...
***
...
...
...
...
पंक्तिः | शब्दः
नर्तकी
नर्तन
नर्मदा
नर्मन्
नलकूबर
नलद
नलमीन
२१६६
११६३
२४४९
५२५
५८१
७३८
१९९१
११३२ नलिन
२८३२ | नलिनी २८७६ नली ५६ । नल्य
२२६७ १२५९ नाकु
१०७५ | नाकुली
४६१ नाग १३७ ३८३
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...
13
...
17
...
नवाम्बर १४४ २४७ | नवीन २८०० | नवोद्धृत
13
***
...
१० नव ९०४ नवदल नवनीत ६१३ ११५२ नवमालिका ११३२ नवसूतिका. १८४८
१८१०
७९३
...
040
***
...
१०५५ नव्य २४८ नष्ट १२५ ष्टष्टा २८८५ । नष्टामि २२२७ नष्टेन्दुकला ९३१ | नस्तित १४२१ | नस्योत १८३३ २२२७ नहि
१८३३
२८७१
८६ नाक
...
...
...
www
***
३७
पंक्तिः
૧૦.
३८१
५३१
४२६
१३९
***
4319
***
५०३
५४५
५४४
९०७
५९२
२१७९
५५३
१२९७
२१७९
१८१०
२१७९
१६९१
४२८
१४५८
२३२
११
२३३८ ५८५
८७७
४४५
१५३६
१९१७
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अमरकोषस्य
नित
... २०५७
32:४५
निकुरम
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः | शब्दा
पंक्तिः नाग ... २१११ नामि
२९११
निकर्षण ... . " ... २... नाम
निकष ... १९९३ निचुल ... ७.. नागकेसर ... ०८
निकला ... २८६२ निचोल ... १३.६ नागनितिका १९२२ नामन्
. .. २८
निज ... २१९९ मागवला ... नाय ... २२६. निकषात्मण ११ | नितम्ब ... ६४२ नागर ... नायक ... २०१४ानिकाम ... १८२० , ... १२२२ नारक
निकाब ... १०७२ नितम्बिनी १०८० नागरा ... नारद
निकायब ... १०३ नितान्त ... १३३ नागलोक
नाराच . निकार ... २२७९ नित्य ... १३. नागवल्ली ... नाराची ...
... २३६
, ... २१६९ नागसंभव ... नारायण
निदाघ ... २५२ नागान्तक... ५८ नारायणी
निकुधक ... १८८३ ___... ४२८ नाट्य ... नारी
निकुज ... ६५९ निदान ... २१ नाडिका ....
निकुम्भ ... १३० | निदिग्ध ... २२०२ नारिन्धम
... १.६०
| निदिग्धिका ८३५ नाडी नाका
निकृत ... २१.६ निदेश ... १५८ नालिकेर
, ... २११७ " ... २०७४
निकृति ... १२२ निद्रा ... " नाडीव्रण
निकृष्ट ... २१ | निद्राण नान्य नायवत् ... २
... .. निद्रा ... २.९० माद नासत्य
निधन नादेवी ..
विपण १५९ ... २५८० नासा
निधि ... १४२ मासिका ...
... २१५४ | निधुवन ... १४६६ नास्तिकता... २८१
निगड ... १५५० | निभ्यान ... २३११ नाना निशकाक... १५१२
निगद ... २२७४ निनद ... ३५५ २८५ निःशेष ... २०५४ निगम
निनाद १५५ नानारूप ... २२१ नियोज... २०१०
| निन्दा निम्मेवस ... २८९ निगाद
निप ... १७.. मान्दीवादिन् निम्पमम् ... २८.. - निगार
निपठ ...
२३०७ नापित ... १९४८ निसरण ... • निगाह
निपाठ
२३०० नामि ... १५८.
... २११२
निग्रह ... २२०६
निपातन २३.१ " ... २६.८
... २१५.निष ... २३२१/ निपान ... ५१८ . ... २९ । निकर ... ... निघास ... १८१८ | निपुण ... २०१५
... २०१०
...
...
निखिल
बालीकर...
१..
२२
निश्क्ष निकट ...
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शब्दानुक्रमकोशः
निम
... २... निति
निर्झर
निहारिन्
निम्न
... १९६ निर्जर ..,
निर्हाद ...
निदह
4
१५७
निर्देश
शब्द पंक्तिः । शम्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः निबन्ध ... . निराकृति ... २११२ | निवृत्त ... २२२५ निषूदन ... १६९३ नेबन्धन ... ३०६ निरामय ... 11८८ निर्वेश ... २००६ निष्क ... २३६२ निबहेण ... १६९२ निरीश ...
निष्कला ... ११६ २७६५
| निष्कासित ... २१०३ निमृत ... २०७४ निर्गुण्डी
| नियंथन | निष्कुट ... ६५१ निमय ... १८६० , ... निव्यूह ... २८०८ | निष्कुटि ... ८९८ निमित्त निर्ग्रन्थन ... १६९४
२२८३ निष्कुह ... ६७५ निमेष ... २३६ निर्घोष ... १५६
... २९८
निष्क्रम ... २३००
... ३५६ निष्ठा ... ३९१ निगा निर्जितेन्द्रियग्रा. १४३९ निलय ... ६०३
२४१६ निम्ब
निर्झर ... ६४३ ... १०६५ निष्ठान ... १७९५ निम्बतरू ... निर्णय ... २८३ निवात
निष्ठीवन ... २३२५
२५०३ | नियति
निर्णित ... २१५६ निवाप नियन्तु निर्णेजक ... १९४९ निवीत १३००
... २३२५ नियम निर्भर
निष्ठेवन ... २१२५ निवृत ...
नियत ... २१९९ निवेश
... २३२५
निशा नियामक ... १७ निर्मद ...
निशास्या ... निष्णात ... २०१२ नियुद्ध ...
निशान्त ... ६०२ २ निष्पक ... २२१५ निर्याण नियोग्य ...
निशापति ... १७२ | निष्पतिसुता १.१६ निर् ...
२५७४ निशित ... २२०६ मिष्पन्न ... २२२५ निरन्तर ...
२६४१ २१५६
निशीथ ... २२७ निष्पाव ... २२९० निरव ... "
निर्वपण ... १४१२ | निशीधिनी २२२ निष्प्रभ ... २२२४ निरर्गल ... २१९१
निवर्णन ... २३११
निश्चय ... २८३ निष्पवाणि... १२९७ निरर्थक . २०८० निर्वहण
निश्रेणि ... ६२८ | निसर्ग ... १३७ निरवग्रह ... २० निर्वाण
निषङ्ग ... १६४४ | निसृष्ट ... २२१ निरसन ... २३१२
२२१६ निषझिन् ... १६०५
| निस्तल ... २०६३ निरस्त
निषद्या ... ५९७ निस्तहण ... १६९५ ,, ... १६॥ निर्वाद ... ३३६ | निषदूर ... ४८५
| निस्विंश ... १६४५ " ... २१०५ , ... २५१४ निषध
निषध
निनाव ... १८०५
... ६३० निराकरिष्णु २००४ निर्वापण ... निषाद
| निखन ... ३५५ निराकृत ... २१०५ निर्वार्य ... २०५० , ... १९६८ निस्वान ... १५६ निराकृति ... ११५६ निर्वासन ... १६९४ | निषादिन् ... १५८५ निहनन ... १६९५
گام به و سوده
नियुत ... २९४३ निर्मुक्त ...
निमोक
२८९
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अमरकोषस्य
२
२७५२
PA
... २८८
र
न्यङ्क न्यच्
... २१६५
"
"
नीध्र
नील
...
शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः निहाका ... ५१०
२१९९ नैचिंशिक ... १६०८ पक्षमूल ... १०६. निहिंसन ... १६९३ । नुन्न
नो... ... २८७१ पक्षान्त ... २२०, निहीन
नौ... ... ४८७ पक्षिन् ... १०५२ निहव ३४४
नौकादण्ड... ४९२ पक्षिणी ... २२५ नौतार्य
पक्ष्मन् ... २५७६ नीकाश ... २००४ ... २८८० न्यक्ष ... २७८५ पङ्क ... २६० नीच ... १९६० नूपुर ... १२९२ न्यग्रोध ... १३/ .. ... १८५
... २१६५ नृ ... ... १०७५ , ... २५२६ पङ्किल ... ५७६ नीचैस् ... २८८२ नृत्य ... ३८१ न्यग्रोधी ... ८२६ | पढेरुह ... ५४७ नीड ... १०६२ ... ... १४७०
१००० नीडोद्गव ... १० नृपलक्ष्मन्... १५३१
... १८७५ "नृपसभ ... २१४९ न्यस्त
... २२.१ , ... २४
२४७८ ७३२, नृपासन ... १५३०/न्याद ... १८१८ पङ्ग
११७. नीर ... ४७५ नृशंस ... २११९
न्याय
... १५१५ पचपचा ... ८५२ ... ३०४ नसेन २९७५
१५१७ पचा ... २२६६ नीलकण्ठ... १०४७ नेत
२०४६
१८६८पश्चजन ... १०७६ , ... २४१४ नेत्र
पञ्चता ... १६९९
१२५९/ न्युज नीलगु ... १.१४
पञ्चदशी ... २२० नीललोहित ६५ नेत्राम्बु
पञ्चम ... ३६४ नीला ... १०४. नेदिष्ठ
| पधलक्षण... ३२१ ... नीलाम्बर... ४७ नेपथ्य
पधशर ... ५० नीलाम्बुजन्मन् ५४० नेमि
२२०७
पञ्चशाख ... १२३६ नीलिका ... ७८९ ,,
पञ्चाङ्गुल ... ७५१ नीलिनी ... ८३८ नेमी
पश्चास्य ... नीली ... ८३७ नैकभेद ... २१९०
पञ्जिका नोवाक ... २२९६ नैगम ...
१२७०
७१८ नीवार ... १७५६
... १६४२ , ... १३०५ नीवी ... १८६६
२७७६
पटञ्चर ... १३०३ " ... २७५९ नैपाली ... १९२३ पक्षक ... ६२० पटल ... ६२१ नीवृत् ५७३ नमेय ... १८६७ पक्षति ... २१६ , ... २७३८ नीशार १३१० नैयग्रोध ... ६८५
| पटलप्रान्त... ६२१ नीहार ... १८.
२४७९ पटवासक...१३५२ २८३१ , ... १४९ / पक्षद्वार ... ६२० पटह ... ३७४ नुति ... ३३३ | नैष्किक ... १४८२ पक्षभाग ... १५४७ , ... १६८३
० ० ॥urr
M
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र
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... २९०१
प
.
२६१५
६८५
,
नैत
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शब्दः
पड
73
97
93
पटुपर्णी
पटोल
पटोलिका
पट्ट
पट्टिका
पट्टिन्
पट्टिश
पण
13
59
"
पण्य
पंक्तिः शब्दः
९५८ पतत्रिन्
... १९६६ पतद्मह
२०९५
पण्या
...
...
पतग
पतङ्ग
...
पतङ्गिका
पतत्
पतत्र
पतत्रि
...
...
...
पणव
३७८
पणायित २२४३
पणित २२४३ पणितव्य १८७०
...
...
...
पण्ड पण्डित पण्डितंमन्य २५४१
...
***
...
२४१४ पतयालु
९२४ पताका
९५८ पताकिन्
८८४
पति
२९२९
***
७३०
पण्यवीथिका ५९७
***
...
ada
७३०
२९३६
१८८२
पत्तन
२००६ । पत्ति
२०१८
पण्याजीव... १८६३
33
पतिंवरा
पतिवत्नी
पतिव्रता
39
73
पती
पत्र
""
११५२
१३६३ | पत्रपरशु
पत्रपाश्या
""
पत्र
१८७० पत्ररथ
पत्रलेखा
९४८ पत्राङ्ग
२४७९
२०१९
पद्मक
२४२७ पत्तिसंहति... १६०१ पद्मचारिणी
१०८४
13
१०५३ | पत्राङ्गुलि
१०४४ | पत्रिन्
२३७४
१०४१
१०५३
१०५९
१०५४
"
23
37
पत्रोर्ण
33
...
...
::
...
...
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः । शब्दः
१०५३ | पथिक
१३५१
पथिन्
२९३७ पथ्या
२०७९ पद्
१६६६ पद
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
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...
१६०९ पदग
११४४ पदवी
२०४५ पदाजि
१०८८ | पदाति १०९७ | पदिक
૧૦૮૬ पन
५९४ | पद्धति
पद्म
१६००
१६२७
"
पद्मनाभ ६७६ पद्मपत्र
१०५९ पद्मराग
पद्मा
१५८३
२६९३
१९९४
१२७९
31
31
...
१०५३
१३१८
१३३७ | पद्मिन्
१९२८
पद्मिनी
१३१८
पद्य
१०१७
पद्या
१०५३
पनस
१६४१ | पनायित
२५४६
पनित
***
७६१ पन
१२९९ | पत्रग
***
...
...
पद्माकर पद्माट
पद्मालया ....
...
...
...
...
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पंक्तिः शब्दः
१५०१
પ
४७३
૧૯૦૮
२८०१
૧૮૦°
२६६२
४८२
१४९०
२०१७
१६०१ परजात
१९६४
१६०१ | परतंत्र २०५६ ५८७ परपिण्डाद २०६५
१०२८
१०२६
२८७३
१७९
१४०० ३१ १४०४
२०५६
१६५१
१६५१
२८९२
२१५२
१६७२
२६११
६८३
२३७६
२०९१
१९६४
२०९१
५८६ | पयस् ७६६
१२१६ | पयस्
पन्नगाशन ...
१६००
१६००
२५२१ पयस्य १६०० | पयोधर ५८६ पर
"7
७७०
95
१४२ परभृत् ५४५ | परभृत
१५४६ | परमम्
९४० परमा
""
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""
५८७ पराङ्मुख
पराचित
पराचीन
39
२२४३
२२४३ पराजय
२२३२ पराजित
४५४ पराधीन
...
***
...
४० परमान
९३९ | परमेष्ठिन् १८९१ परम्पराक... ५४ | परवत् ८२७ परशु परश्वध
९४०
५२२
परश्वस्
९४३
परःशत पराक्रम
५४ १५३७ ५४४ पराग २९५६ ।
...
www
...
...
...
...
***
...
...
...
...
४१
:::::
पंक्तिः
१६९०
१६९१
२०५६
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४२
शब्दः
परान्न
39
पंक्तिः शब्दः
१५९२ परिस्रुत् १८६६ | परिता १४९० | परीक्षक
१४२५ परीभाव १३४७ | परीवर्त ९११ | परीवाद
२१०४ परीचाप
२८१३ | परीवार
४०६ | परवाह
३३९ | परीष्टि
२२३७ | परीसार २९६
परीहास २२७५ पत् २३१० | परुष १६९५ परुस् ३६८ | परेत २१९५ परेतराज् १४६४ | परेद्यवि २०४६ | परेष्टुका १४६३ परैधित २०९ परोष्णी ७०९ पर्कटी ७६९ पर्जनी १४३५ पर्जन्य १३८२ पर्ण
१२७६ १२७४
""
परिणाह १३०२ | परिष्कृत
परितस् २८७४ परिष्वङ्ग २३१० पर्णशाला परित्राण २२५९ | परिसर ५८४ पर्णास परिदान १८६७ परिसर्प २२८९ | पर्यङ्क परिदेवन ३४२ परिसर्या परिधान ... १३०७ | परिस्कन्द परिधि २०९ परिस्तोम २५२८ | परिस्यन्द
:
13
पराभूत
परारि
२८८० परिपन्थिन्
२१४० | परिपाटी
परार्ध्य परासन १६९३ परिपूर्णता परिपेलव
१७०१
परासु परास्कन्दिन् १९७८ परिप्लव परिकर २६६६ | परिबर्ह
परिकर्मन् ...
परिक्रम
परिक्रिया परिक्षिप्त २२००
परिखा
५२४
परिग्रह
२८१० परिरम्भ १६५० परिवर्जन
परिव
२३८८ परिवादिनी
परिघातिन १६५० | परिवापित... परिचय २२९५ | परिवित्ति परिवर १५९२ | परिवृढ परिचर्या १४२२ | परिवेत्तृ परिचाय्य १३९३ | परिवेष परिचारक... १९६३ परिव्याध परिणत २२१७
13
परिणय
१४६५ |परिव्राज्
परिणाम २२८० | परिषद् परिणाय २०२० | परिष्कार
...
***
...
...
...
...
...
...
***
...
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पंक्तिः शब्दः
२०६५ परिधिस्थ १६९१ परिपण
400
***
...
...
...
१३१५ परिभव २२८२ | परिभाषण ...
२२८९ | परिभूत परिमल
...
...
...
...
***
...
...
...
...
***
...
...
***
...
अमर कोषस्य
...
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39
33
...
...
...
...
...
...
...
...
... २२९२
...
...
...
पलगण्ड
११५ | पलंकषा
२८११ | पळल १८४७ | पलाण्डु १९६४ पलाल १०३९ पलाश ७१३ ८५२
२६२८ | पलाशिन् ६७६ | पलिक्की
७०७ पलित २९३८ | पल्यङ्क ६०५ पल्लव
८०७
पल्वल १३४९ पव
पवन
१४२३ २२९२ | पर्यटन १९६४ पर्यन्तभू १५५२ | पर्यय १३४७
...
***
...
...
***
...
...
...
...
...
...
...
पंक्तिः शब्दः
२००७ | पर्यवस्था
२२९१
१८२०
२००८ पर्याप्त २०३८ पर्याप्ति २२५९ ४०६ | पर्याय
१४२६
१८६७
२६२९
२३१३
१७१३
१४१६
६३४
९७२
२५७७
२२८
१२१२
...
***
""
२५९३ पर्युदधन
२६७३ | पर्येषणा
४८६ पर्वत
१४१६ पन्
३३६ |पर्यायशयन
39
४२६ | पर्वसंधि
२८८८ | पर्शुका
३४८
पल
९७२
For Private and Personal Use Only
१७०१
19
11
...
"
...
15
...
***
९५७
६५९
१०९८
११५५ १३४९
૬૦.
५२३
२२९७
१२५
२२९७
५८४ १४२६ पवनाशन... ४५३ २३१६ | पवमान १२५
...
पंक्तिः
...
१८७८
२७३९
१९४०
८४५
११९९
९४३
१७५०
६७६
७०७
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शब्दानुक्रमकोशः
पवि
पाणि
...
पाद
.
पाप
য । पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः | शब्दः पंकिः शब्दः पंक्ति
... २३०७ पादाङ्गद ... १२९२/ | पारावत ... ..१६ पवित्र ... ५८० पाठा ... ८१७/पादात ... १६.1 पारावताघ्रि ९४८ " ... १४४२ | पाठिन् ... ८०८ | पादातिक ... १६०० | पारावार ... ४६८
पाठीन ... ५०२ पादुका ... १९८९ , ... २९६४ पवित्रक ... १२३६
पाराशरिन् १४३५ पशुपति
पाणिगृहीती १०८४ पादूकृत् ... १९४३ पारिकालिन् १४३६ पशुप्रेरण ... २३२७ | पाणिध ... १९५४ पाद्य ... १४८ पारिजातक ९९ पशुरज्जु ... | पाणिपीडन १४६५ | पानगोष्ठिका २०१४ पश्चात् ... २८२१ पाणिवाद ... १९५४ पानपात्र ... २०१५ पारितथ्या... १२७९ पश्चात्ताप ... ४१२ | पाण्डर ... ३०१ पानभाजन १७७५ पारिपाश्विक... २०७ पश्चिम ... २ पाण्डु' ... ३०३ पानीय ... ४७५ | पारिप्लव ... २१७४ पश्चिमा ... १४७ पाण्डुकम्बलिन् १५७५ पानीयशालिका ६०० पारिभद्र ... ७.. पश्चिमोत्तर ५७० पाण्डुर ... ३०३ पान्थ ... १५०१ पारिभद्रक... ७५४ पस्त्य पातक ... २९६१ पाप
६.पारिभाव्य... ९.. पाक ... १०६३ पाताल ४३९ ___... २११९ पारियात्रक ६३८
२७४० पापचेली ... ८१८ पारिषद ... . पाकल ...
पातुक
०७९ पाप्मन् २६. पारिहार्य ... पाकासन पात्र
पाम ... ११९ पारी ... २९१४ पाकशासनि
१४०१ पामन् ...
पारुष्य ... ३३८ पाकस्थान... १७६०
१७७३ पामन
पार्थिव ... १४७० पाक्य ... १७९१
पामर १९६० पार्वती ... ७४ " ... १९२ पात्री ... २९७८ पामा
पार्वतीनन्दन पाखण्ड ... १४४ पात्रीव ... २९६५ पायस ... १३. पार्श्व ...
... १२३१ पाधजन्य ... ५५
४७४ "
, ... २३३२ पाश्चालिका १९८६
पार्श्वभाग ... १५४७ पाट् ... २८६२
१२१६
पार्धास्थि ... १२१२ पाटश्चर ... १९७८
१८८५ पार ... ४८२ पाणि ... १२१. पाटल
... २५१३
पारद ... १९०५ पाणिग्राह ... १४८७ पादकटक ... १२९३ पारंपर्योपदेश १३० पालन ... ९८२ पाटला
पादग्रहण ... १४३४ पारशव ... २०५६ पालकी ... ८९१
पादप ... ६५८ पारश्वधिक १६०० पालाश ... ३.५ पाटलि
पादबन्धन १८२२ पारसीक ... १५५७ पालि ... १६५४
पादस्फोट ... ११७८ पारस्वैगेय ... "२२ |, ... २७३. पाठ ... १३८. पादाम ... १२१६ / पारायण ... २२५३ । पालिन्दी ... ८६५
८१
,
पाथसू
१२२.
... ६४६पायु
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१४
अमरकोशस्य
ब्दः
पंक्तिः
२
-
-
2
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः शब्दः गलवा ... २९०५ | पिञ्जर ... २९५७ : पिधान ... १७० | पीतसारक... ७३५ रावक ... १०८ पिञ्जल ... १६६५ पिनद्ध ... १५९७ पीता ... १७८८ १२७० पिट १७५९ पिनाक
| पीताम्बर ... ३८ पाशक
०१९ पिटक ... ११८० ,, ... २३६३ पीन ... २१४६ पाशिन्
... १९८८ पिनाकिन् ... ६२ पीनस ... ११७६ पांशु ...
१७६९ : पिपासा ... १८१७ पीनोनी १८४९ पाशुपत ...
२७११ पिपीलिका... २९१० पाशुपाल्य ... १५४२ पिप्पल ... ६८९ ,
१८१४ पांशुला ...१०९५
१९०२ पिप्पली ... ८४२ पीलु ... ७०५ पाश्या ... २३३४ ... १९१५ पिप्पलीमूल १९२७
२७२२ पाश्चात्य ... २१८६ , ... २९३० : पिप्ल ... ११७२
पीलुपर्णी ... ८१६ पाताण ... ६४० पिण्डक ... १३३० पिल ... ११९३
, ... ९२६ पाषाणदारण १९९७ पिण्डिका ... १५८० पिशङ्ग ... ३०९ पीवन् ... २१४६ पिक ... १०२६ पिण्डीतक ... ७५३ पिशाच ... २२ पीवर ... २१४६ पित ... ३०९ | पिण्याक .., २३५३ पिशित ... ११९९
. ... २२४८ पिङ्गल ... २०७ __" ... २९५९ पिशुन ... १३
पीवरस्तनी... १८४९ पितरौ ... १४७
... १०९४ पिङ्गला ... १५३ पितामह ... ३१
२५८९
घुम् पिचण्ड १२२७
... ११३९ पिशुना ... ९१४ पुकस
पितृ ... ११३० पिष्टक ... १८०२ पिचण्डिल...
१५४७ पिष्टपचन ... १७
पुनव पितृदान ... १४१४ पिष्टात ... १३५२ पुच्छ १५६७ पिचुमन्द ... ७७३ पितृपति ... ११५ पीठ ___... १३५० पिचुल ... ७२० ... १४९ पीडन ... १६८६
४८. पिञ्चट ... १९१७ पितृपितृ ... ११३०. पीडा ... ४६६
पुटभेदन ... ५९४ पिच्छ १०५० पितृयज्ञ ... १३८१ पीत
| पुटो ... २९७८ २९५५ पितृमसू ... २२०
| पुण्डरीक ... १५१ पिच्छा ...
७४२ पितृवन ... १७०४ पीतक
५४९ , ... २९१२ पितृव्य ... ११३६ पीतदारु .... ७५५ , ... २३५७ पिच्छिल ... पितृसंनिभ... २०५१
पुण्डरीकाक्ष पिच्छिला ... ७४१ पित्त ... ११९८ ,
पुपद ... ९७५ पिन्य ... १४०१ पीतन
पुण्टक पिञ्ज ... १६९८ , (तीर्थ) १४५४ , ... १३२१ पुण्य ... २६२ पिञ्जर ... १९१३ पित्सत् ... १०५५, , ... १९१३, , ... २६५५
पुंश्वली
२९३०
पुद्ध
०७१
पिनु
पुज
1०७२
| पुटभेद ...
२७११
पीतद्रु
9
GG
.
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शब्दानुक्रमकोशः
४५
पंक्तिः शब्दः
पुरीप
२७२
५१४८
::::::::::::::::
ه
पुत्री
२९३५
पुष्य
पूर्वदेव
१५०
पंक्तिः ! शब्द:
पंक्तिः पुण्यक ... १४२७ पुरावृत्त ... ३१९ पुष्प
... १८०२ पुण्यजन ... १२० पुरी ... ५९४
२९३५ पुण्यजनेश्वर १३० पुरीतत् १२०५ पुष्पक ...
७४१ पुण्यभूमि ... ५७२ ... १२०९ ,
२२२१ पुण्यवत् ... २०३० ... २१५१ पुष्पकेतु ... १९१२
पूरुष १०७६ पुत्तिका ... ०४१ पुरुष
पुष्पदन्त ... १५२
२१५५ पुत्र ... ११२८ पुष्पधन्वन्
२२२१ ... १०७६ पुष्पफल ... ६९०
१५३२ पुत्रिका ... ... २७७३ पुष्परस ...
... २२९ ११४८ पुरुषोत्तम ... ४१ पुष्पलिह ... १०४६ ... १४०८ पुद्गल
__... २१५१ पुष्पवती ... " पूर्व... २१८५ पुनःपुनर .... २८५१ | पुरुहूत ... ८२ पुष्पवत् ... २३५
२६०२ पुनर् ... २८४१ पुरोग ... १६११ पुष्पसमय ...
११५९ ७९ । पुरोगम ... १६१२ पुनर्नवा ४६ पुरोगामिन् ५६१२ पुष्यरथ
पूर्वपर्वत ... पुनर्भव ३५ पुरोडाश ... २९३६ पुस्त
पूर्वा ... १४७ ... १११९ पुरोधस् ... १४७७ / पूग .. ९८ पूर्वेगुस् ... २८९० चुन्नाग पुगेभागिन् २११७
पूषन् ... २०३ पुर पुरोहित ... १४७७
पृक्ति ...२२६८ पुर ७१६ पुलाक ... २३४५
पृच्छा ... ३३० पुलिन ... ४८४
पृतना ... १६२३ पुरःसर १६११ | पुलिन्द ... १९६९
२५.२ ... १६२९ पुरतम् पुलोम ना ...
२०३१ पृथक् ... २८५४ पुरद्वार
पृथक्पर्णी ... ८३३ पुरंदर
११५२ पृथगात्मता २७६ पुरंध्री ... १०८६
" ... १४२८ पुरस् ... २७०२ : .
२१३५ पृथग्जन ... १९६० ... २८६३ ,,
... ९३९ पूतना ... ०६६ , ... २५४५ पुरस्कृत ...
७१. पृथग्विध ... २२११ पुरस्तात्
पुष्कराह पूतिकरज ... ०१. पृथिवी पुरा .... २८४२ पुष्करिणी ... ५२१ पूतिकाष्ठ ...
१७८० पुराण ... ३२१ पुष्कल ... २१४१ ... २१७८ पुष्ट ... २२१८ पूतिगन्धि ...
३.० , ... २१४५ पुरातन ... २१७८ पुष्प ... ६८२ पूतिफली ...
२२४८
पुषित पुष्कर
०५६
३.
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अमरकोषस्य
:
:
८९०
शब्द: पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः । शब्दः
पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः पृथुक ... १०६३ पैतृष्वसेय ... ११२३ प्रकाश ... २०७१ भजविन् ... १६१४
... १८०१ पैतृष्वतीय ११३३ | प्रकीर्णक ... १५२९ प्रजा ... २३९८ ... २३४० वैत्र (अहोरात्र) २५६ प्रकीर्य ... ७४४
७४४ प्रजाता ... ११०६ पृथुरोमन् ... ५.. पोगण्ड ... ११६५ प्रकृति २७२ प्रजापति ... ३४ पृथुल ... २१४५ पोटगल ... ९७३
४३६ | प्रजावती ... ११३४ पृथ्वी
९७४ १५.३ प्रज्ञा
२७८ , ... १७८० पोटा
११०४ २४८०
१०९८ , ... १७८७ पोत ... १०६३ | प्रकोष्ठ ... १२३४ प्रज्ञान २५७९ पृथ्वीका ...
... २४५४ प्रक्रम ... २३०१ प्रजु ११६७ पृदाकु ... ४५० पोतवणिज्... ४९० प्रक्रिया ... १५२९
प्रडीन ... १०६१ पृश्नि पोतवाह ... ४९१ प्रकण ... ३६०
२२९९ .... ११७० पोताधान ... ५०४ प्रकाण ... ३६०
२६३८ पृश्रिपर्णी ... ८३३ | पोत्र __... २६९६ प्रक्ष्वेडन ... १६४२ प्रणव ३१८ पृषत् ... ४७९ पोत्रिन् ... ९९१ प्रगण्ड ... १२३४ | प्रणाद ३३२ पृषत
... २४५३ | प्रगतजानुक ११६७ प्रणाली ण्डर्य
प्रगल्भ ... २०७५ प्रणिधि १४९३ पृषक
प्रगाढ ... २४२३
२५३४ पृषदश्व पौर
प्रगुण ... २१६८ प्रणिहित ... २१९७ पृषदाज्य ... १४ | पौरस्त्य
२८८७ प्रणीत १३९२ पृष्ठ १२२९ पौरुष
१७०५
१७९७ पृष्ठवंशाधर १२२६
२८०९ प्रणुत २२४३ पृष्ठास्थि ... १२ गव ... १७६१ प्रग्राह २८०९
२०७४ पृष्ठथ __... १५५९ पौर्णमास ... १४४८ प्रग्रीव ... २९६५ प्रतन
२१७८ ... २३३२ पौर्णमासी ... २२९ प्रघण ... ६१७ | प्रतल
१२४२ १०१७ पौलस्त्य ... १३७ प्रधाण ... ६१७
१२४३ पौलि ... १८०० प्रचक्र ... १६५९ प्रताप ... पेटक १९८८ पौष ... २४४
प्रचलायित... २०८९ | प्रतापस ... ८१. पौष्कर ... ९३९ प्रचुर ... २१५० प्रति ... २८२५
२९७८ | प्याट् ... २०६२ प्रचेतस् ... १२१ प्रतिकर्मन् ... १२७२ पेलव २१५६ प्रकाण्ड ... २६८ प्रचोदनी ... ८३६ प्रतिकूल ... २१९२ पेशल
प्रच्छदपट ... १३०६ प्रतिकृति ... २००१ ... २७४५ प्रकाम ... १८२० प्रच्छन ... ६२० प्रतिकृष्ट ... २१३२ पेशी ... १०६२ प्रकार ... २६६० मच्छर्दिका... ११८४ प्रतिक्षिप्त ... २१०८
.... १७९६ । प्रकाश ... २१३ । प्रजन ... २२९९ प्रतिख्याति... २१०॥
xoपात्रा
पेचक
२३४६
"
पेटा पेटी
१९८८
: :: :: :: :: :: :
पैटर
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शब्दानुक्रमकोशः
AM AM ०
० MGAM
V2
.
20
२२
२२०
___... २६२४ प्रथम
शब्द: पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः
पंक्तिः प्रतिग्रह ... १६२६ प्रतिश्रुत् ... ३६२ प्रत्यय ... २६३०
२३९१ प्रतिमाह ... १३५१ प्रतिष्टम्भ ... २३०३
प्रत्ययित ... १४९४ प्रपद १२१६ प्रतिघा ... ४१३
प्रतिसर ... २६८३ प्रत्यर्थिन् ... १४९० प्रपा प्रतिधातन ... १६९६ प्रतिसीरा ... १३१४
प्रत्यवसित ... २२४५
प्रपात प्रतिच्छाया २००० प्रतिहत ... २१०७
प्रत्याख्यात २१०५ प्रपितामह ... ११३९ प्रतिजागर ... २३०६ / प्रतिहारक... १९५१
प्रत्याख्यान २३१२ मपुत्राड ... ९४२ प्रतिज्ञात ... २२४१ प्रतिहास ...
प्रत्यादिष्ट ... २१०५ प्रपौण्डरीक ९.३ प्रतिज्ञान ... २८६ प्रताक ... १२१३ | प्रत्यादेश ... २३१२/ प्रफुल्ल ... ६६३ प्रतिदान ... १८६८ "
प्रत्यालीढ ... १६३८ प्रबन्धकल्पना ३२२ प्रतिध्वान ... ३६२ प्रतीकार
प्रत्यासार ... १६२६ प्रबोधन ... १३१. प्रतिनिधि ... २०.१ प्रतीकाश
प्रत्याहार ... २२८२ प्रभञ्जन ... १२५ प्रतिपत् 2१७ प्रतीक्ष्य ...
प्रत्युत्क्रम ...
२३०१ प्रभव ... २७५५ __, ... २७९ प्रतीची प्रत्युषस् २१९ प्रभा
૨૧૨ प्रतिपन्न ... २२४० : प्रतीत ... २०४ प्रत्यूष ... २१९/ प्रभाकर ... २०१ प्रतिपादन ... १४११ , ,,
प्रत्यूह
८८.
प्रभात प्रतिबद्ध ... २१०७ । प्रतीप
१५.५ प्रतिबन्ध ... २३०३ प्रतीपदर्शिनी १०
... २६२३ , ... १५०७ प्रतिबिम्ब ... २८०० प्रतीर ....
१५३९ प्रतिभय ... ४०२ ! प्रतीवाप ... २५६५/
२०४३
२०४६ प्रतिभान्वित २०७५ प्रतीहार ... ६२४
२६६४
प्रभूत २१५० प्रतिभू ...
१३५० प्रभ्रष्टक १३४४ प्रतिमा ...
प्रदीपन ... ४५८ प्रमथ ... ७० प्रतिमान ... १५४५ प्रतीहारी
२६७५ प्रदेशन .... १५२२, प्रमथन ... १६९७ " ... २००० प्रतोली ... ५९८ प्रदेशिनी ... १२३६ प्रमथाधिप... ६२ प्रतिमुक्त ... १५९७ प्रन ... २१७८
प्रमद ... २६३ प्रतियन ... २५४८ प्रत्यक् ... २८९५, प्रदोष २२६ प्रमदवन ... ६५५ प्रतियातना २००० प्रत्यक्पर्णी ...
प्रमदा ... १०८० प्रतिरोधिन् १९७८ प्रत्यक्श्रेणी
१६८९ प्रमनसू २०३९ प्रतिवाक्य ... ३३० , ... ९३७ प्रधन
...
... १६७४ प्रमा ... २२६९ प्रतिविषा ... ८४७ प्रत्यक्ष ... २१८२
२४४२ प्रतिशासन... २३१७ प्रत्यग्र
प्रत्यग्र
...
... २१७९ ,, ... १४७७ प्रमाण ... २४४२ प्रतिश्याय ... ११७६
२१३० प्रमाद ... ४२२ प्रतिश्रय ... २६४१ प्रत्यन्त ... ५.१ ,, ... २५७९ प्रमापण ... १६९२ प्रतिश्रव ... २८७ । प्रत्यन्तपर्वत ६.६ प्रधि ... १५७९ प्रमिति ... २२६९
२१८५मभाव
२२६८ प्रभिन्न
मभु
प्रदर
Y
प्रदीप
"
प्रमात
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०
०
०
०
०
५०७
०
०
०
०
૪૮
अमरकोषे
[१३. वारिवर्गः सहस्रदंष्ट्रः पाठीन उलूपी शिशुकः समो
५०२ नलमीनश्चिलिचिमः प्रोष्ठी तु ाफरी द्वयोः क्षुद्राण्डमत्स्यसंघातः पोताधानमथो झपाः .
५०४ रोहितो मद्गुरः शालो राजीवः शकुलस्तिमिः तिमिगिलादयश्चाथ यादांसि जलजन्तवः तद्भेदाः शिशुमारोद्रशङ्कयो मकरादयः स्यात्कुलीरः कर्कटकः कूर्मे कमठकच्छपी ग्राहोऽवहारो नक्रस्तु कुम्भीरोऽथ महीलता गण्डूपदः किंचुलको निहाका गोधिका समे रक्तपा तु जलौकायां स्त्रियां भूम्नि जलौकसः मुक्तास्फोटः स्त्रियां शुक्तिः शङ्खः स्यात्कम्वुरस्त्रियों ५१२ क्षुद्रशङ्खाः शङ्खनखाः शम्बूका जलशुक्तयः ५१३ मत्स्यस्य ॥-गडकः, शकुलार्भकः, इति २ मत्स्यविशेषस्य ॥-सहस्रदंष्ट्रः, पाठीनः, इति २ बहुदंष्ट्रस्य मत्स्यविशेषस्य ॥---उलूपी, शिशुकः, इति २ शिशुमाराकारमत्स्यस्य ॥-नलमीनः, चिलिचिमः, इति २ जलतृणचारिमत्स्यविशेषस्य ॥-प्रोष्ठी, शफरी, इति २ शुभ्रमत्स्यविशेषस्य ।।-क्षुद्राश्च ते अण्डमत्स्याश्च तेषां संघातः पोताधानमुच्यते ||-अथो झषा मत्स्यविशेषाः वक्ष्यन्ते, नतु पर्यायाः-रोहितः, मद्रः, शालः, राजीवः, शकुलः, तिमिः, तिमिगिलः, 'आदि'शब्दात् नन्द्यावर्तादयोऽन्ये ॥-यादांसि, जल. जन्तवः इति २ जलचरमात्रस्य ॥-तद्भेदा जलजन्तूनां विशेषाः-शिशुमारः, उद्रः, शङ्कः, मकरः। 'आदि'शब्दात् जलहस्त्यादयः॥-कुलीरः, ककेटकः, इति २ कर्कटस्य ॥-कूर्मः, कमठः, कच्छपः, इति ३ कूर्मस्य ॥-ग्राहः, अवहारः, इति २ ग्राहस्य ।।-नक्रः, कुम्भीरः, इति २ नक्रस्य ॥-महीलता, गण्डूपदः, किंचुलकः, इति ३ जलचरभेदस्य ॥--निहाका, गोधिका, इति २ जलगोधिकायाः॥-रक्तपा, जलौका, जलीकसः, इति ३ जलौकायाः॥ मुक्तास्फोटः, शुक्तिः, इति २ शुक्तिकायाः ॥--शङ्खः, कम्युः, इति २ शास्य ॥-क्षुद्रशङ्खाः, शङ्खनखाः, इति २ सूक्ष्मशानाम् ।।-जलशुकयो
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५१६
पतयः ५०२-५२४] प्रथमं काण्डम् भेके मण्डूकवर्षाभूशालूरप्लवदर्दुराः
५१४ शिली गण्डूपदी भेकी वर्षाभ्वी कमठी डुलिः ५१५ मद्गुरस्य प्रिया शृङ्गी दुर्नामा दीर्घकोशिका जलाशयो जलाधारस्तत्रागाधजलो हृदः
५१७ आहावस्तु निपानं स्यादुपकूपजलाशये ।
५१८ पुंस्येवान्धुः प्रहिः कूप उदपानं तु पुंसि वा ५१९ नेमिस्त्रिकाऽस्य वीनाहो मुखबन्धनमस्य यत् ५२० पुष्करिण्यां तु खातं स्यादखातं देवखातकम् ५२१ पद्माकरस्तडागोऽस्त्री कासारः सरसी सरः
५२२ वेशन्तः पल्वलं चाल्पसरो वापी तु दीर्घिका ५२३ खेयं तु परिखाधारस्त्वम्भसां यत्र धारणम् ५२४ जलमात्रजाः शुक्तयः शम्बूका उच्यन्ते ॥ भेकः, मण्डूकः, वर्षाभूः, शालूरः, प्लवः, दर्दुरः, इति ६ मेकस्य ॥-शिली, गण्ड्पदी, इति २ स्वल्पगण्डूपदजातेः॥-मेकी, वर्षाभ्वी, इति २ क्षुद्रमेकजातेः ॥-कमठी, डुलिः, इति २ कूाः ॥-मद्गुराख्यस्य मत्स्यविशेषस्य प्रिया स्त्री शृङ्गीत्युच्यते ॥दुर्नामा, दीर्घकोशिका, इति २ जलूकाकारस्य जलचरविशेषस्य ॥-जलाशयः, जलाधारः इति २ तडागादीनाम् ॥-अगाधमतलस्पर्श जलं यस्य स जलाशयो हद उच्यते ॥-उपकूपजलाशये कृपसमीपे यो जलाशयः कूपोद्धृताम्बुस्थापनीयशिलादिरचितो गर्तः, यत्रत्यं जलं सुखेन गावः पिबन्ति, तत्र आहावः, निपानम् , इति ॥-अन्धुः, प्रहिः, कूपः, उदपानम् , इति ४ कूपस्य । तत्र 'उदपानं' पुंसि वा॥-अस्य कूपस्य नेमिरन्ते रज्वादिधारणार्थ दास्यत्रं सा त्रिका ॥-अस्य कूपस्य पाषणादिमिर्यन्मुखनिबन्धनं स वीनाह उच्यते ॥-पुष्करिणी, खातम् , इति २ पुष्करिण्याः ॥-अखातम् , देवखातकम् , इति २ अकृत्रिम खातस्य ॥-पद्माकरः, तडागः, कासारः, सरसी, सरः, इति ५ तडागस्य ॥वेशन्तः, पम् , अल्पसरः, इति ३ स्वल्पसरसः ॥-वापी, दीपिका, इति २ वाप्याः ॥ -खेयम्, परिखा, इति २ दुर्गाद्वहिर्यत्परितः खातं क्रियते तस्य ॥-यत्र अम्भसां धारण क्षेत्रादिसेकार्थ जलानां संग्रहणं स आधार
अ. को. स. ४
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शद
बन्धक
बन्धकी
23
बन्धन ... १५२० बला
२२७८
बलाका
१७०५ बलात्कार
१५४९
बलाराति
११४२ | बलाहक
७९४ | बलि
बभ्रु
बर्बर
ब
बन्धनालय बन्धनस्तंभ
""
बहिर्मुख
बर्हिस्
बर्हिष्ठ
बल
71
⠀⠀⠀⠀
$3
33
www
"
***
बन्धु
बन्धुजीवक
बन्धुता
११४३
बन्धुर
२१६३
बन्धुल ११२५ | बलिध्वंसिन्
७९४ बलिपुष्ट
बन्धुक बन्धूकपुष्प
७३६ | बलिभुज् २६७६ बलिर
99
बलदेव
UST
बलभद्र
बलमद्रिका
बलवत्
...
***
...
१०५०
२८०७
""
बल्वज
बर्हिन् १०४७ बष्कयणी बर्हिण
१०४७ बसा
...
***
...
...
03.
***
***
...
...
www
पंक्तिः शब्दः
२५२९ | बलवत्
१०९४ बलविन्यास
***
...
...
""
37
37
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...
...
"
***
...
***
८२८ | बलिसझन् ... ९२७| बलीवर्द
९१३
बल्लव
...
...
***
***
...
...
...
...
***
...
...
...
...
450
अमरकोषस्य
***
पंक्तिः | शब्दः
पंक्तिः । शब्दः
२७३३ | बाहुज
२८५३ बहुला १६२५ बहुलीकृत.. १०५३ | बाहुदा
७१० | बाहुमूल
८६२ | बहुवारक १०३७ | बहुविध
२२११ | बाहुयुद्ध
१६८४ | बहुवेतस
५७५ | बाहुल
८४९ बाहुलेय
१८४७ बाह्य
८५ बहुसुता
१५७ बहुमूत १३०० | बाकुची
१५२१ बाढ २७२५
77
४२ दाण
23
97
""
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600
...
...
...
***
१७ बहिर्द्वार
बाला
२०५८
१०७ बंहिष्ठ ८९२ | बहिस् ४८ बहु १५०२ | बहुकर १६२४ | बहुगर्भवाच २०९६ | बालिश १६७१ | बहुपाद् २७२६ | बहुप्रद २९३९ | बहुमूल्य ४५ बहुरूप ४५ | बहुल
७१३
79
२०३६ | बालेय १२९९ | बालेशाक
१३२९ बाल्य २१५० बाध्य १७३३ वाष्पिका ८१८ ! बाहु
९४९ ११६१ | बहुला
***
१०२७ १०२८ बाणा ११७१ बादर ४३९ बाधा १८२५ | बान्धकिनेय १७६१ | बान्धव १८२१ बार्हत ९७४ बाल
१८४८
૧૮૫૮
बालगर्मिणी
६२५ २२४७ | बालतनय ...
२८८३ | बालतृण
२१५० | बालमूषिका
...
⠀⠀⠀
...
...
...
...
...
...
...
...
***
...
...
...
...
...
८४० | बाहिक
१३३
""
२४२३ बाहीक
१६४०.
२४२५
27
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"
बिड
"
११५३ | बीजकोश २५९५ बीजपूर १७८७ | बीजकृत १२३३ बीब
...
...
...
...
...
...
७९७
१२९५ बिडाल
४६६ बिन्दु ११२५ बिन्दुजालक
११४२ बिभीतक
६८६ बिम्बोक ८९२ | बिम्ब ११५७ बिम्बिका २७४६ बिल १८४६ | बिलेशय ७४० बिल्व ९८३ | बिस १०११ विसकण्ठिका १०३७ ३९० बिसप्रसून.. २१२० | बिसिनी २०७१ बिस्त १८६१ बीज ૨૮
... ५५१
५४८
५४४
૧૨
२७१ ११९७
५५३
८०५
...
...
...
...
...
...
...
पंक्ति:
...
१४६९
५३२
१२३१
१६८०
२५०
७९.
२८८३
१५५७
२९५८
१३२१
१७८६
२३५३
१७९१
१९९
४७९
१५४६
७६४
४२४
१७५
९२६
१४०
४५३ ७१२
१७२३
१३५७
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शब्दानुक्रमकोशः
भर्तृदारक...
भर्तृदारिका
बुद्ध
शब्द: पंक्तिः | शब्दा पंक्तिः । शब्दः
पंक्तिः शब्दः
पक्ति ब्रह्मदर्मा ... ९५० भगिनी ... 11 भर्ग ... ६६
| ब्रह्मदारु ... " | भङ्ग ... ४७७ भर्तृ ... ११४४ २८०४ ब्रह्मन् ... . भा ...
२४५३ बुक ... ८११ ... २५६३ | मति ...
३८६ बुका
| ब्रह्मपुत्र ... ४५८ भजमान ... १५ ब्रह्मबन्धु ... २५४२
भर्त्सन ... १८ २२४० ब्रह्मबिन्दु ... १४३० भटित्र
भर्मन् ... १८९५ २७८ ब्रह्मभूय ... १४५५ भट्टारक ...
२००५ बुद्रुद २९३२ | ब्रह्मयज्ञ ... १३८१ भट्टिनी
९९५ बुध १९६ ब्रह्मवर्चस् ... १४२९
२९१६ ... १३६२ ब्रह्मसायुज्य १४५५ मण्डिल
भल्लातकी ... .... २५३५ ब्रह्मसू ... ५३
मण्डी
... ९९४ बुधित ... २२४० ब्रह्मसूत्र ... बुघ्न ... ६७२ | ब्रह्माञ्जलि ... १४३० भद्र
... २ बुभुक्षा ... १८१५ ब्रह्मासन ... १११
२७४७ बुभुक्षित ... २०६४ ब्राह्म ... १४५४ भद्रकभ ... १५
भवन बुस ... १७५१ ,, (अहोरात्र) २५०
भद्दारु ...
भवानी दुस्त ... २९६२ ब्राह्मण ... १३६१ भद्रपर्णी
| भविक ... २१४५
ब्राह्मणयष्टिका ८२७ | भद्रबला ... भवित ... २०८३ वृहतिका ... ३.८ ब्राह्मणी
भद्रमुस्तक... | भविष्णु ... २०८३ बृहती ...
भद्रयव
भव्य ... २६ " ... २५८४ नाभी
भद्रश्री
| भषक ... १९७२ बृहत्कुक्षि... ११६२
भवा ... १९९५ वृहद्भानु ... १०८
भय ... भमगन्धिनी ८८९ बृहस्पति ... १९२
भयंकर ...
भसगर्भा ... ७७४ हित ... १६८२ | भ ... १८५ भयदुत ... २१०९ भा। २१२ बोधकर ... १६६१ मत ... १८०३ भयानक ... ३९५ भाग ૧૮૮૫ बोधिदम ... ६८९ / भक्षक ... २०१५ , ... ४० भागधेय ... २७. बोल ... १५ भक्षित ... २२४५ भर
भर ... १३. ब्रन ... २०१ | भक्ष्यकार ... १७६३ भरण ... २००६ भागिनेय ... ११३८ ब्रह्मचारिन् १९५९ मग ... १२२५ भरण्य ... २००६ | भागीरथी ... ५२९ ___ ... १४३७, ... २३८७ भरण्यभुज २०६२/ भाग्य ... २७. ब्रह्मण्य ... ३१ भगन्दर ... १८५ | भरत ... १९५३ , ... २६१५ प्राव ... ११५५ भगवत् ... ६ भरद्वाज ... १.१८ भाजन ... १७.३
:: :: :: :: :: :: :: :: :: :
भव
.
बृहत्
ब्राह्मण्य ...
: ::
" ...
१२ भद्रासन ... १५०
... १५२१
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अमरकोषस्य
पंक्ति
४२२
मावत्
माद
२
.....
निपुर
१०
पंक्तिः शन्द: पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दा भाण्ड ... ...भास्कर ...
२..
भुगमभुज्... १.४. भूरि ...
भुजाम ... ४५० भूरिफेना ... ... २२१२
भुनकाक्षी... भूरिमाय ... भाद्रपद ...
मुजशिरस... भूरुण्डी भाद्रपदा ...
भुजान्तर भानु
मुनिप्य ... भूषण ... १२७५ मुवन
भूषित ... १२.४ २५११मित्ति
४०१ | भूष्णु ... २०८३ मामिनी १०.मिदा ... २२
५६८भूस्तण ... ९८२ भार
८८० भिदुर ... ९३ भारत ... मिन्दिपाल १६५०
भृम ... ११७ भारती ... ११ भिन्न ...२१८९
२२१५
१०२० भारद्वाजी... ८८. , ... २२२५
... २१९ भारयष्टि ... १९८९ | भिषज् ... ११८७ भूतकेश ... १९२० भृगराज ... ९५१ भारवाह ... १९५९ मिःसटा ... १८ भूतवेशी ... ...
... १५१२ भारिक | मिसा
| भूतात्मन् ... २५४५/भृङ्गारी ... १.४१ मार्गव मी
भूतावास ... ७६५ भृतक .... १९५८ भार्गवी भीति
... १|भूति ... २००५ भार्गी | भीम
भूतिमुज् ... १९५८ भार्या ... ..
२१५०|भृत्य १९६२ मायांपती... ...
भूतेश
भृत्या २००५ भूदार ... ९९२ भृश ... १३२
... १३६० भृटयव भाव ... २०५० मीलुक
मेक
५१४ भावपोषक... | भीषण
१४७०
५१५ भीष्म भूपदी
१४०२ भीष्मसू ...
भूभृत् २४५६ | मुक्त ... २२४६ भूमि
२२२५ मावुक
मुखसमुनिझत १८१९ ...
०२. | मेरी ॥
... भाषा ... " मुन
११०४ भाषित
मिस्पर ... १७०८ | मैक्ष ... १४५
भूबस् ... ... २९५.मुलग
भूविष्ठ २१५
... ११.४ मास् ... २१२ मुबह ... १५० | भरि ... २१५७ | मोग ... २३८.
२४
:
भाव ... १८५
माठक
भावित ... 1. भीष्म
पुत्र है है है
:: :: :: :: :: :: :: :: ::
१५१०
मेदित
| भेशी
भूमिवम्बुका
Cr मेपल
| मुनग
...
५०
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शद
भोगवती भोगिन् भोगिनी
१०८३
भोजन १८१७ मकरन्द
भोस्
भौम
मौरिक
कुंस भ्रकुटि
भ्रम
73
"
भ्रमर
भ्रमरक
भ्रमि
भ्रातृव्य
भ्रात्रीय
भ्रान्ति
भ्राष्ट्र
भुकुंस भ्रुकुटि
慧
भ्रूकुंस धूकुटि
भ्रूण
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
२२६७
१०४६
१२६६
२२६७
鲜艺
२२३२
भ्राजिष्णु
१२७५
भ्रातर
११४६
भ्रातृज
११४६
श्रीतृजाया ११३४
भ्रातृभगिनी
11
श्रेष
...
...
584
पंक्तिः | शब्द
...
...
२४७४
::::::
४५४ मकर
११४६
२६२७
११४६ ...
२८५
१७६७
૧૧
४३५
१४८२
२४२५
मणिक
मणिबन्ध
मणिमन्थ
१२५७
૧૧
४३५ | मण्डन
५०७
५२
मण्डलक ...
६८३ | मण्डलाय ...
२८६२ मकुष्टक १७४० | मण्डलेश्वर
१९५ | मकूलक
मख
३८३ मगध
४३५ मघवत्
२८५ | मक्षु
४८०
मङ्गल
मङ्गल्यक
मङ्गल्या
मचर्चिका
मश्च
मज्जा
मञ्जरी
मञ्जिष्ठा
मञ्जीर
མ་ྒུ
मञ्जुल
मञ्जूषा
मठ
मड्डु
मणि
मकरध्वज...
मण्ड
म
ཟླ ཟླ་
११५१
मण्डप
१५१४ मण्डल
...
...
...
शब्दानुक्रमकोशः
...
...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
***
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
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...
पंक्तिः शब्दः
मण्डल
39
१३२७ मतल्लिका
२६८ मति
१३४९
मत्त
९३६ | मण्डहारक
१३७९ मण्डित
१६६२ | मण्डूक
८१ मण्डूकपर्ण २८५२ | मण्डूकपर्णी
२६५ मण्डूर
१७३० मतङ्गज
11
33
७५१
१८०४
१२७७ | मदकल
२०८२ | मदन
६१०
१५६
...
19
19
...
::
...
***
་བ་
६७५
८२९ मत्तकाशिनी
१२९२ | मत्सर
२१२९
मत्स्य
२१२९ मत्स्यण्डी
मत्स्यपित्ता
१९८८
६०८ | मत्स्यवेधन
३७७ | मत्स्याक्षी १८९३ | मत्स्याधानी
१७६८
मथित
१२३५ | मथिन्
१७९०
मद
...
...
...
...
...
***
...
...
...
...
...
...
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w3.
...
पंक्ति | शब्द
१७५ | मदस्थान ...
२०१०
२०९ मदिरा
२००९
११८२ | मदिरागृह... ६०८
१६४६ मदोत्कट
१४७२ | मनु १९४९ | मनुर १२७३ ""
५१४ मध ७६१ मधु
૧.
१९०३
१५३६
99
२६८ | मधुक
२७८ | मधुकर
१५३९ | मधुक्रम ... २०७१ | मधुतुम २२३० | मधुप १०८२ | मधुपर्णिका ૩૫૮૦ ५०० मधुपर्णी
99
१७९३ | मधुमक्षिका
८२०
मधुव टिका
"
""
४९९
मधुर
९२३ " ४९९ | मधुरफ १८१३ | मधुरसा
१८५४
१५४१ | मधुरा २२७४ | मधुरिका २५१७ मधुरिपु १५३८ मधुलिहू
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"3
...
७५४
मधुवत
८०४ | मधुशिनु
...
...
***
...
...
...
... २४५
१९२१
२०११
२५४०
...
...
...
...
...
...
***
...
७१९
८३७
८१४
१०४०
*
२९४
... २७१८
९३३
८१५
<4%
९५२
us ४० १०१५
२०१०
...
02
***
५३
पंक्ति
66.
४९ मधुवार ...
१५३८
१०५६
::
५०५
१६४९
२००९
८६७
१०४५
२०१०
७०३
१०४५
... १०४५
019
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५४
अमरकोषस्य
मन्तु
... १५२०
नस् ... २१३४
| मरीच
,
..
... २६६१ मसर
"
"
... २५२४
... १२३८
शब्द
पंक्तिः शब्दः पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः मधुश्रेणी ... ८१६ मनोहत ... २१०. मयूख .... २१० मलदूषित ... २१३४ मधुष्ठीला ... ... ... १९२२
मलयज ... १३३५ मधुनवा
मलयू ... ७१ मधूक ...
२६६९ | "
| मलिन ... २१३४ मधूच्छिष्ट ...
मनन ... १५०५ मयूरक ... ८२५ मलिनी ... १११४ मधूलक ... ७.४ मत्रव्याख्याकृत्१३६० ,
मलिम्लुच... १९७८ मधूलिका ... मश्रिन् ... १४७६
| मरकत
मझीमस् ... मध्य ... १२३२ मन्ध ... १८५४ मरण
मल्ल ... २९३६ मन्थदण्डक १८५४
मल्लक ... २९६९ मध्यदेश मन्थनी ... १८५५ मरीचि ...
मल्लिका ... ७८७ मध्यम मन्थर ... १६१२
मल्लिकाक्ष... १०३६ मन्थान ... १८५४
मरीचिका मल्लिगन्धिन् १३२७ " ... १२३२ मन्द ... १९६५ मर
मषी ... २९१५ मध्यमा
मसूर ... १७४. मन्दगामिन् १६१२ मरुत् ... मसूरविदला ८६६ मध्याह ... मन्दाकिनी
| मसण ... १७९९ मध्वामर ...
२४५२ मन्दाक्ष
मस्कर ... ९०० मनःशिला १९२२ मन्दार ... ९९ मरुस्वत् ... ८१
मस्करिन् ... १४३५ मनस् ...
मरुन्माला... ९१४
मस्तक ... १२६३ मनसिज ...
मस्तिष्क ... १२०४ मनस्कार ... २८१ मन्दिर ...
... १८१४ मनाक् ... २०६५
९९४ मह मनित ... १. मन्द रा ... ६.६
महत् २१४५ मनीषा ... २०८ 10 | मन्दोष्ण ...
२४९२ मनीषिन् ... १३६३
८२२
महती २४७३ मनु ... २९७० मन्मथ
१०७५
महस् ... २७९७ मनुज ... १०७५
२२९ | महाकन्द ... ९४५ मनुष्य ... १.०५
महाकुल ... १३५८ मनुष्यधर्मन् मन्यु
..२९५५ महाग ... १८५६ मनोगुप्ता ... १९२२ ... २६४३ मर्मर
महाजाली... ८८ मनोजवस्... २०५१ मन्वन्तर ... २५८ मर्मस्पृक् ... २१९१ | महादेव ... . मनोझ ... २१२९ मय .... १८५६ मर्यादा ... १५१९ महाधन ... १२९५ मनोरम ... १६ मयु ... १४. मन ... १२०० महानस ... १७६० मनोरम ... २१२९ मयुकष्ट ... ... ... २०२९ | महामात्र ... १...
::::::::::::::::::::::::::::::::
मरुखक
! मस्तु
...
४३८
.
+
७४५
ये
.
... ६९० मर्दन ..
मन्या
३५०
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शब्द
पंक्ति | शब्दः
१३८१ | मांस
महायज्ञ महारजत १८९६ मांसल
महारजन... १९१९ मांसिक
६५१
माक्षिक
मागध
महारण्य ...
२०
महाराजिक महारौरव... ४६२
२०३०
"
महाशय महाशुद्धी ११०० महाश्वेता ८६९ माघ
महासहा
७९५ माध्य
९२५
महीक्षित्
महीघ्र
महीरुह
महीलता
महीसुत
महेष्ठ
महेरणा
...
महासेन
महिला
महिलाहुया
***
महोद्यम महौषध
"
19
...
मा
मांस
...
१०७८
७५८
27
महिप
९९६ | माणव्य महिषी १०८३ माणिक्य
मही
५६३ | मातङ्ग
6.0
...
34.
...
...
...
...
...
...
014
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
माथु ११४० | मायूर मार
८०४
५९
महेश्वर ११३६ मारजित् महोक्ष १८२८ मातुलपुत्रक ८०४ महोत्पल महोत्साह.. २०३१
मारण ११३४ | मारिष
५४५ | मातुलानी ..
...
१७४७
93
मारुत
२०३१ मातुलाहि ८४८ मातुली
४४९ | मार्कव ११३४ मार्ग
९४४ | मातुलुङ्गक
८०५
१७८२ | मातृ
૧૮૦૧
११९९
...
...
19
मागधी
...
७७
...
""
17
"
शब्दानुक्रम कोशः
पंक्तिः । शब्दः
२९३९ | मातृ
११६१
मात्र
१९५७ मात्रा
... १९२१ मात्रा
१६६२ | माद
१९३३ माधव
७९०
37
८४१
माधवक
२४४ माधवी
७९४ माध्वीक
२०७ मान
29
...
...
...
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...
...
...
माठर
मादि
२९११
माणवक ... ११५७ मानव
१२८५
मानस
२३३० | मानसौकस्
१४७०
२९५७ मानिनी १९६७ | मानुष २३७७ | मानुष्यक ६३४ | मातरपितृ... ११४७ माया ६५८ | मातरिश्वन्... १२२ मायाकार ५०९ | मातली ९० | मायादेवीसुत
१९५ मातापितृ
११४७
२०३० मातामह ८९६ | मातुल
...
...
10%
...
***
...
33
190
""
मार्गण
३९०
""
११३१ मार्गण
पंक्ति' शब्दः
१८३९ मार्गशीर्ष
२६९१ मागित
२१४८ | मार्जन
२६९० | मार्जना २२७४ मार्जार ६ मार्जिता
२४६
मार्तण्ड
२०११
मार्दङ्गिक
७९२ ...
माहिं
२०११ ।
४०५
१८७७
...
...
...
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...
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...
...
...
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...
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...
१०८० ...
...
...
मालुधान १०७५ मालर
२३३३
माल्य
*** १९५१
...
...
...
... ७९३
१३४३
मालाकार ... १९३९
९८२
१९३९
... ४४९
७१२
१३४३
૨૮
... ९२५
१७५४
२३९
1
११९८ मास १०७३ मासर rev ४९ ! ... मास्म ... २८७१ २६ माहिष्य १६९६ माहेयी ३९० | मितंपच १२४ मित्र
९५१ २४३
...
...
200
...
...
...
१०७५
२०७ !
मालातृणक १०३४ मालिक
मालक
मालती
माला
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१९५१
माल्यवत् मात्रपर्णी ३० : माषादि
"
19
39
१६४१ मि २१२३ मिथुन २३०९ | मिध्या
...
...
...
...
...
...
...
...
***
***
...
...
900
...
68.
...
...
५५
...
पंक्ति
२४३
१२३४
७१४
१३१५
९९९
१७९४
२०३
१९५४
१३१५
७७२
१९३४ १८३९
२१२१
२०४
१४८६
१४९१
२६६९
२८४७
... १०६४ २८७८
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मुत्
मूर्ति
२४६७ मृगशीर्ष ...
मुरा मुषित मुहक
मृडानी
मूलकर्मन्
अमरकोषस्य शब्द:
पंक्तिः | शब्दा पति | शब्दः पंक्तिः मिथ्यादृष्टि... २८४ ... २६३ मूच्छित ... २४९९] मृगयु ... १९७० मिथ्याभियोग ३३१ मुदिर ... १५९ मूर्त ... ११९६ मृगरोमण... १२९६ मिथ्याभिशंसन ३३१ मुद्रपर्णी
... २१७७ मृगम्य ... १९७५ मिथ्यामति २८५ मुद्गर
... १२१५ मृगशिरस... १९. मिश्रेय
मुधा मिसि
मूर्तिमत् ... २१७७
१७३
मृगादन ... मिसी ... ११६ मुनीन्द्र
क्त १४६२ मृगित ... २२३४
... २४५७
... ३७२ मिहिका ... १८१ मुरज
... ९८९ मिहिर मीढ
मूल ... मीन
२७३५ ... ५०० ... १२२६
... मीनकेतन...
मूलक ९६३ मुष्कक
मृणाल ५५.
२२५७ मुकुट ... १२७७ मुष्टिबन्ध ...
धन ... १८६ मुकुन्दः मुसल ...
१७.०३ मुकुर ... १३५३ मुसलिन् ...
१७१२
.... २००६ मुकुल मुसली
मृतनात ... २०६३
. . मुक्तकधुक
मृत्ताक ... ९..
... १९९५ मुक्ता ... १८९२ मुसल्य
मृत्तिका ... ५६४ मुक्तावली ... १२८३ मुस्तक
... २९७१
पणी मुक्तास्फोट
मुस्ता ५१२
८२४
मत्व व ... ६२ मुक्ति ... २८९ मुहुस्
त ... २२०० मुख ... ६३. मुहुर्भाषा
मृत्ता ५६४ ... १२५१ मुहूर्त ... २३० , ... २३०९
... ... २९३९ भूक ... २०५१ , ... २१७५ मुखर ... २०९७ मूढ ... २१२० मृगणा ...
... २३०९
... २१८० मुखवासन... २९९ मत ... २२१४ मृगतृष्णा ... २१५ , ... २५२१ मुख्य ... १४३२म
मृगदंशक ... १९७ মুম্বন্ধ ... १८६
मृगधूर्तक ... ९९७ मृदुल ... २१८० ... ११७. मूत्रित ... २२१७ मृगनाभि ... १३३२
८६१ " ... २९६२ मूर्ख ... २१२० | मृगवधानीव १९७० मुण्डित
मूर्छ ... १६८६ मृगबन्धनी १९८१ मृषा ... २८७८ , ... २१९५ म ल ... ११९६ मृगमद ... १३१२ | मृषार्थक ... ३५ः मुण्डिन् ... १९४८
... ११९६ मृगया ... १९७५ मृष्ट
मल्य
# ཉྙོ – ཀྐཱ ཀྐཱ བྷྱཱ ཡྻོ སྒྱུ བྷཱུ བྷྱཱ ཡྻོ བྷཱུ བྷྱཱ ཨཱ བྷྱཱ ཙྪཱ ཙྪཱ ཙྪཱ བྷྱཱ
मूषा
चकपण
मृत्सा
मृग
१००३
"
"
... १२.८
मुण्ड
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शन्दानुक्रमकोशः
| शब्दा
पंक्ति
E
:
यता
७
.
यति
मोषक
मेचक
७२२
पंक्तिः शब्दः पंक्ति
पंक्ति शब्द: मेकळकन्यका ५३, मोक्ष
१३७९ | यवाग्रज ... १९२३ मेखला ... १२९०
यवादि ... १७५४ . ... १६४७
८. यझिय
| यवानिका ... मेव ... १५७ मोघा ७५७ यज्वन्
यवास मेघज्योतिस् १६४ मोचक
... २८५५ यवीयस् ... ११६० मेघनादानुलासि १०४८ मोचा
... २८५५
यव्य
... १७२० मेघनामन्... ९६७
... १९ यशम्पटह ... ३७३ मेघनिर्घोष .
यतिन् __... १४३९ यशस् मेघपुष्प ... ४०६ मोरट
यथा ... २०५६
... २९७१ मंघमाला ... १६. मोरटा
यथाजात ... २१२०
| यष्टीमधुक... ८६७. मेघवाहन...
यथातथम्... २८७८ यथायथम्... २८७७
१३७१ , ... १०४९ मौक्तिक ... १८९१ यथाम्
यथाम् ... २८७८
... १३७९ १२२५ मौद्रीन यथार्हवर्ण ... १४९३
२९१७ ...१८५९ मौन ... १४२४ ... यथास्वम् ... २८७७
याचक ... २१२३ मेदक मौरजिक ... १९५४ यथेप्सित ... १८
याचनक
... २१२३ मेदस् ... १६३७ यदि ... २०७२
याचना ... १४१. मेदिनी ... मौलि ... २०२१ यहच्छा
... २२५४
याचित ... १७१२ मौष्टा ... २९.५ यन्तु ... १५८५
याचितक ... १७१५ मौहूर्त ... १४९६ ... २४५३
यात्रा ... १४१७ मौहर्तिक ... ११९६ यन .... २५५३
... २२६२ मध्य ... २११५
म्लिष्ट ... ३५३ यम मेरु ... ९८ म्लेच्छदेश... ५७१ "
यातना मेलक ... २३.८ म्लेच्छमुख १९.१/ ... २२८६
यातयाम ... २६२५ मेष .... १८५९
यमराज ... ४
यातु ... १२० मेषकम्बल... १९२०यकत ... १२ यमुना ...
यमुना ५३.
यातुधान ... १२. मह ...
यमुनाभ्रातृ
... "३३ महन ... १२२५ , ... १३८ ययु ...
... १५५८ यात्रा ... १६५८ मैत्रावरुणि... १८५ यक्षकर्दम ... १३९ यव ... १७३७
... ... २६८६ मैत्री ... २९॥ यक्षधूप ... १३२८ यवक्य ... १७२० यादःपति ... .. ... २९७३ यक्षरान ... १३५ | यवक्षार ... १९२३
यादस् ... ५.६ यक्ष्मन् ... १९७६ यत्रफल
यादसांपति ११ ... २५७८ बजमान ... १६०
यवस ...
यान ... १५.४ यजुस् ... 10 बवागू ...
... १५८३
मौर्वी
भेदुर मेधा
१६. याजक
... ११८५ यक्ष
...
५
यात
मैथुन
...
भैरेय
... २०१२ यजुस्
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५८
शब्द
पंक्तिः | शब्दः
-यानमुख १५७८ | यूथ
व्याप्य
२१३२ | यूथनाथ
-याप्ययान १५७३ | यूथप
याम
33
वामिनी
यास
युक्त
युक्तरसा
युग
39
"
युगल
युगाधुग
युग्म
युग्य
...
२२३
१९०७ यूपक
यामुन यायजूक १३६९ यूपकटक १३२३ | यूपखण्ड
याव
यावक
१७४३ | यूपाद्म
यावत्
२८२८ |यूष
यावन
याष्टीक
13
युद्ध
युध्
युवति
...
युवन्
-युवराज
...
...
www
...
...
...
...
...
...
...
...
...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
""
योक्त्र
१३३०
१६०७ | योग
८३१ | योगेष्ट १५१६ | योग्य
७९१ २२७ | यूथिका
रक्तपा
२२८६ यूप
७३१ । रक्तफला
२९६५ रक्तसंध्यक
२९३३ रक्तसरोरुह
""
१७३२ २३७९ रक्षित १९१७ ! रक्षिवर्ग
८७३ रक्षण
२९५५ रङ्ग
८३० रङ्ग
१७३२ रङ्गाजीव १५८९. रचना
युगकीलक... १७३४ योद्ध युगन्धर १५८१ योध
१५८९ रजक
"3
२९६४ | योधसंराव... १६८२ रजत युगपद् २८९३ | योनि ६९३ योषा युगपत्रक युगपार्श्वग... १८३३
१२२५ १०७७ रजनी १०७७
१०६४
१५८२
१५२४ रजनीमुख ••• १८७६ रन १११८
1
११५३
योषित्
| यौतक
| यौतव
१०६४ | यौवत
१५८३
यौवन
१८३४
१६७४ | रहस
१६७९
रक्त
१०९०
११५७
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
93
...
"7
99
...
***
९२८ योजन १०६४ योजनवल्ली २३८३ | योत्र
***
...
...
***
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..
...
...
...
...
...
...
र.
}}}}
...
अमरकोषस्य
...
पंक्ति: शब्द
१०७० रक्तक
१५३७ रक्तचन्दन
१५३७
...
""
१३८९ रक्ताङ्ग २६७० रक्तोत्पल १३९० रक्षःसभ २९६५ | रक्षस्
23
...
13
13
...
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...
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
५११ रत
९२६ रतिपति ५३९ | रत्न ५४९
५५०
९४१ | रत्नसानु रलाकर २९१९ रनि २१ | रथ १२०
... २२३६ | रथकट्या ...
५५७७
१४८० रथकार
१९३६
२२६५
१९४६
12
१५८१
१००७ रथगुप्ति १९१८ | रथदु
७०१
१९४२ | रथाङ्ग
१५७८
१३४७
१५७९
१९४९ | रथाङ्गाह्वयनाम. १०३२
१६१९
१८९९ रधिक २४९३ | रथिन्
...
...
...
...
...
...
...
""
१२७ | रजखला ...
३०६ । रज्जु
१२०१ रञ्जन
१३२२ | (नी
२४९४ रण
www
...
...
...
पंक्ति शब्दः
७५४ रण
१३३७
"
१९२८ | रण्डा
33
For Private and Personal Use Only
$9
""
33
...
"
१३३७ रमस ८३८ : रमणी १६७६ रम्मा
...
...
***
...
...
..
...
***
...
...
...
...
१५८८
१६१९
२२३ ९५५ रथिर २२६ रथ्य
१६१९
१५५९
५९८ १५७७
१२५५
२७३ | रध्या १११५ १६६४ / रद २७९८ | रदन १११३ | रदनच्छ्द्... १२५३ १९८२ रन्ध्र
१२५५
४४१ २९३७
१०८१
८७४
...
...
...
...
पंक्तिः
...
२२६५
२४३२
...
८२४
१४६६
५२
१८९३
२५८७
९८
४७०
१२४६
७०८
१५६९
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शन्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः
पंक्तिः शब्दः
रवण
१३२८
१२९०
१५.२
ieou
::::::::::::::::::::::
रासम
६
.
..६८ ... ७३
.
पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः १२७ राज
... १४७. राम ... २६१५ रुचक ८०५ ०६/राजक ... १४७४ , ... १००९
१७९२ ... २९२८ | राजकर... २७११ रामठ ... १७८६
...
... १९२५ राजन् ... १७. रामा ... १०८१ ...
२१२ राजन्य ... १४
... १४४३
... २३९३ राजन्यक ... १४७५
रुचिर ... २१२८ रशना राजन्वत् ... ५८२
१०७२
रुच्य ... २१२९ रश्मि राजबला ... ९५४ ,
२०६४
... १७५ रस
राजबीजिन् १३५७ | राष्ट्र । राजराज ... १३६
२७०॥ राजलिङ्ग ... २५१८ राष्ट्रिका ... ८३६
४१२ राजवंश्य ... १३५७
२२०५ रसगर्भ १९१० राजवत् ... ५८२
.. २० रसज्ञा __... १२५६ राजवृक्ष ... रसना ... १२५६ राजसदन
रुद्राणी रसवती १७६० राजसभा
.... १२०० रसा राजसूय ... २९५६
... २९३९ ७.राजहंस ... १०३५ বিথ ૧૮૮૬
राजादन ... ७१८ रिक्षण रसाअन ... १९०९ , ... ७३९ रिपु रसातल 'राजाई ... १३२६ ! रिष्ट
२७८६ राजि ... ६५६ रिष्टि रसाल
... १६४५ रूप ... २९१ ७५ राजिका ... १७४५
४.७
रूपाजीवा... १.११ रसाला ९४ राजिल ...
... १८८९ रसित ... १६१. राजीव
... १८९९ रसोनक ९४५ , ... ५४८ , ... २४७१ , ... २६५६ रहस् • राज्याग
... १९१२ सप्याध्यक्ष... १४८२ १५१३ रात्रि
रुकप्रतिक्रिया ११०३ रूषित ... २२०२
| रुक्म ... १८९७ रेचित ... १५६४ २३. रात्रिचर ... ११९ रुक्मकारक १९४४ | रेणु ... १६६४ राक्षस ७८ राद्धान्त ... २८५ रुग्ण ... २२०६ रेणुका ... ८८९ राक्षसी ९०४ राध ... २४६ रुच् ... २१२ रेतस् ... १९. राक्षा ... १३२३ राधा ... १८ , ... 04 रेफ ... २११२ राय ... १२९६ राम ... १६ रुचक
... २५९९
... २९१३ राहु
रिक्तक
...
. G
४३३ रुशती
१४८८
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४४८रीण
72०९
रूप्य
५०५
रीति
५४८
तिपुष्प
रात्रिंचर
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६०
शद:
रेवतीरमण रेवा
""
रोक
रोग
""
रोमन्थ
रोमहर्षण
रोमाच
रोषं
रोहिणी
रोहित
⠀⠀⠀⠀⠀
39
...
""
...
रोगहारिन् रोचन रोचनी
...
११७५
११८७
७४२
८६५
९४१
99
रोचिष्णु
१२७५
२१३
रोचिस् रोदन
१२६०
रोदनी
૩
रोदस्
२७९४
**
रोदसी
२७९४ | लक्ष्मी
२७९४
रोदस्य रोधस् ४८१
रोप रोमन्
...
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
20.
...
पंक्तिः शब्दः
४६ रौद्र
५३१ रौमक
१८८७ रौरव
२६६६ |रौहिणेय
४४१
...
""
रौहिष
...
77
ककुच
लक्ष
कक्षण
लक्ष्मण
लक्ष्मणा
लक्ष्मन्
१२९४
२९३२ | लगुड
४३१ लग्भ
४३१ लग्नक
804 ४१३ घु
१८४०
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33
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१६४१ | लक्ष्मीवत्
१२७१
लक्ष्य
""
33
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रोहितक
रोहिताश्व रोहिन् ७४६ लखित
रौद्र
३९६ | लट्वा
***
...
...
...
ल.
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***
...
...
...
...
...
www.kobatirth.org
***
...
अमरकोषस्य
...
पंक्तिः शब्दः
कता
४०२
१७९१
*૬૨
४७
१९६
९८१
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१००७ | लतार्क
१२८ ...
१६३९
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29
लपन
७६९ रूपित
""
१७८ लब्ध
२०५३ लब्धवर्ण
१०३८ लभ्य
१६५ ३०६ लघुलय
५०५ लड्डा १००८ | लङ्कोपिक ...
९१५ लवन
७४६ ला
४०८ लवित्र
१०९ | लजाशील... २०८० लशुन
२२०७ हस्तक
२९१४ लाक्षा
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"1
९१४ लवङ्ग २३९० लवण ९७८
:
23
२९०९ लवणोद
...
***
...
...
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...
...
...
...
...
...
...
...
...
...
...
...
१७८ लम्बन
२५८३ लम्बोदर
१२०७
५४ लय कळना
लाव
१०५७
se
Fr
७६ ३८० लाला १०८० लालाटिक... २३६९ १६३१ कलन्तिका... १२८१ २०५३ ललाट १२५७ | लासिका ४२७ ललाटिका... १२७९ लास्य १६३९ ललाम २६२२ लिकुच २९३१ कलामक १३४४ | लिक्षा १९९ छलित ४२४ | लिखित २०१७ लव २१४८ | लिङ्ग २२९७ लिङ्गवृत्ति १३२३ | लिपि
०६९
२९१५ १४९९
२३८५
१४६०
१४९९
२९४ | लिपिकार १४९८ २९४१ लिप्त
२२०४
४७१
लिप्तक २२९७ लिप्सा
पंक्ति:
२९१५
७३०
१७३३
དཔ་༥
लाङ्गलपद्धति १७३५
<
पंक्तिः शब्दः
६६६ लाक्षा
६७० लाक्षाप्रसादन
७५९ लाङ्गल ७९२ | लाङ्गलदण्ड
९१४
९४८ | लाङ्गलिकी... १९४४ | लाङ्गली
१२५१
२१३ | लाङ्गूल २२३९ | लाज
२२३३ लाञ्छन
१३६४ | लाभ १५१६ लामज्जक
१२८१
कालसा
For Private and Personal Use Only
23
१७३२
22
९४५ लिबि
१६३७ | लीढ १३२३ / लीला
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...
८७०
९८५
१५६७
... १८००
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१७८
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९७८
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४१७
२७९३
१६४३
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२५४८
१४९९
२२४५
ખ
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... १९०२
लन
...
१५
..८/ वन
...
...
,
.
शब्दानुक्रमकोशः पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः । शब्दः पंक्तिः शब्दः पंक्तिः कीला ... ४२६लोष्ट ___... ..३० वा ... ८५५ वदान्य ... २०३६
... २७३४/लोष्टभेदन ... १७३० " ... २५५ ... २६५६ लुठित
... १३२६
२००४ वदावद २०९४
वनिर्घोष सुन्धक ... १९७० , ... १९०४ वज्रपुष्प ...
... ९१५ ... २९४० | वज्रिन् ...
१०७७ नता लोहकारक १९४३ वश्चक ...
१०९१ ... २२१ लोहपृष्ठ ... १०१९
... २५५८ लम ... १५६७ लोहल ... २०९८
... २११४ लोहामिसार १६५६ ... ..२ वधी ... १९९१ लेखक
लोहित ... ३.६ लेखर्षभ " ... १२.१
२५५९ लेखा लोहितक ... १८९७
... २५८७ लेपक ... १९४० | लोहितचन्दन १३२२
| वनतिक्तिका ८१८ | लोहिताङ्ग... १९७ वटक
वनप्रिय ... १०२६
१९८ वनमक्षिका १०० व ... २८६६ वडवा ... १५६.
वनमालिन्... १२ लोक ... ५६८ ! वंश ... ९
वडवानल ... ११२ वनमुद्र ... १७११ " ... २३३८
... १३५५
... २१४६ वनशङ्गाट... ८४६ लोकजित् ... २६
वणिन्या ... १८६२ वनसमूह ... ६५० लोकायत ... २९५८ वशरोचना १९२५
वनस्पति ... कोकालोक ६३६ वंशिक ... १३२६
वण्टक
वनायुन १५५७ लोकेश ... १२ वक्तव्य ... २६५४
वत्स
वनिता ... १०७० लोचन ... १२५९ वक्तृ ... २९४
... २४८२ लोचमस्तक
१२५१
२४ वनीयक ... २१२३ लोध्र ... ७१
वत्सक
७८ लोपामुद्रा ... १८५ वक्षस् वत्सतर ...
धन्दा ... ८१२ वक्षण वत्सनाभ
२५५९ लोमन् ... १२७१ वह ... १९१८
वत्सर २१॥ वन्दारु ...
... २००० लोमशा
वचन लोल वचनेस्थित २०७३ वत्सल
वन्ध्या ... १८४ ... २०४६ वचस् ... ११३ वत्सादनी ... वन्या लोलुप २०६९ | वचा ... ८५५ वद
वपा
४४१ कोलुम २०६९ | वज्र ... ९५ | वदन ....
... १२.३
घटी
लेह
११
१८६५
१८३०
वनौकस्
.
९९४
२११
... २५५ वन्ध्य
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अमरकोषस्य
पंक्ति
चारवसित ... २२२८
वरिवस्या
१७
२०८
८
३६७
६९८
"
२००७/वर्मन
::::::::::::::::::::::::
: A
वली
वर
वा
शब्दः पंक्तिः | शरदः पंक्तिः शम्दा
पंक्तिः शब्दः वपुस् ... १२१४ वराह ... ९९१ वर्तुल ... २१६३ वलिम ... ११६४ वप्र
वलीक ... ६२१
वलीमुख ... वरिवस्थित २२२८
... ८२८ वल्क बमथु
वरिष्ट ... १९.१
वल्कल ... १५४१ वरिष्ठ ... २२४७) वर्धन ...
वल्गित ... १५६४ वमि ... ११८७ वरी
२२६ | वल्गु ... २६२४ वयस् .... २७९६ वरीयस् ... २८०६ वर्धमान ... ७५ | वल्मीक ... ५८५ वयस्था ... ७६४ वरुण १२१ वर्धमानक
मानक ... १७७० वल्लुकी ९२३
१४९ वर्धिष्णु ... २०८१ वल्लभ २१३१
१५९५
... २६०९ वयस्य १५९१ वरुणात्मजा २
... १५९८ ...११५७ वरूथ ... १५
२१३ वयस्या वरूथिनी ... १६२४
१२.. वरेण्य
२२६५
...१०४ २२६६ वर्कर
वशक्रिया ... २२५७ ... २६८० वर्ग
वशा १५४० वरटा १.१८ वर्चस् ... २०१७
१८४४ १.१२ वर्चस्क ... १२०९
२७६९ ५९. वर्ण ... १३५५
वशिक २१३७ ६९८
वशिर
८४३ २४३०
१७८९ १५५१
... २०७४ १९९९
वर्षीयस् ...
वषट् ... २०६४ वरद
वर्षोपल
वषट्कृत ... १४.६ वरवर्णिनी...
१४३७ वर्मन्
वसति ... २४६८ ... १०५८ वराज ... २३८५ ... २१५६ | वलक्ष ...
२५१ बराङ्गक ... ९१७ वर्तन ... ९१७ ... १७०९ वलज ...
... १२.२ वराटक ... ५५३ || ... २०८३ वटजा ... वसु ... १९
... ५८७ वलभी ... " ... २९७० वर्ति ... १३४. ... १३४. वलय ... १२८७
... १८८८ वरारोहा ... ...२ वर्तिका ... १०५८ | वलयित ... २२०५/ वराशि ... १.५/वर्तिष्णु ... २०८३ वलिन ... १५४ वसुक ... ८..
:
::::::::::::::::::::::::::::
A
२७८३
-
.
वरण
24
::::::::::::::::::::::::::::
य
२९७०
G
१२१४
"
... १७ee
२५८१ वसन १०२ वसन्त
३१७ वसा
व
"
... १९८२ /
२२०५ ,
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शब्दानुक्रमकोशः
६३
पंक्तिः
वाम
"
... १५६०
"
... १९५९.
पंक्तिः | शब्दः पंक्तिः शन्दः
पंक्तिः शब्दः वमुत ... १७९.९ वाचोयुक्तिपटु २०९५ वाद्य ... १६९ वाराही ... ९५० वसुदेव वाज ... १६४२ वान
| वारि ... ४७२ वसुधा ... ५६२ | वाजपेय ... २९५६ वानप्रस्थ
वारिद ... १५८ वसुंधरा ... ५६२ वाजिदन्तक
१३५९| वारिपर्णी ... ५४२ वसुमती ... ५६२ वाजिन् ...,
९९३ वारिप्रवाह ६४३ वस्तु ... २९२१ , ... १५५५ वानस्पत्य ... ५. वारिवाह ... १५७ वस्त्य ... ६.२ , ... २५
वानीर
वारी वख ... १३०४ । वाजिशाला ६.६ वानेय ... ९११ वारुणी ... २४३० वस्खयोनि ... १२९४ : वान्छा ... ११६ वापी ... ५२३ वाते ... ११८८ वस्रवेश्मन् १३१३ । वाटी ... २९७८ वाष्प
२४८६ वस्त्र ... १८६५ वाट्यालका ८६२
... २६२४ वार्ता ३२५ वनसा ... १२०५ वाडव ... १२ वामदेव वह ... " ... १३६. । वामन ... १५१
२४८५ वहि ...
" ... ११६५/ वार्ताकी
... ८७६ १४९ वाडव्य
... २१६४ वार्तावह वहिशिख ... १९१९ वाणि
| वामलूर ... ५८५/वार्धक
... ११५४ वहिसंझक... वाणिज वामलोचना
... १७१७ वा ... २८ ८३४, दाणिज्य
... १७१.वामा
...१०७८/वाषिक ... १७१७ ... १८६५वामी
वामी ... १५६० वार्मण ... २३३५ २८७९ : वाणिनी
वायदण्ड ... १९८४ वार्षिक ... ९४९ वाक्पति ... २०१४ वाणी ... .१२
वायस
वाल ... १२६४ वाक्य
| वात ... १२५ वायसाराति १०१७ वालधि ... १५६७ वागीश ... २०९४ वातक ... ९४७ वायसी ... ९५१ १ वालपाश्या १२७९ वागुरा ... १९८१ वातकिन् ... वायसोली ... ३६ वालहस्त ... १५६. वागरिक ... १९५६ वातपोथ ... ... वायु ... १२२ वालुक ... वाग्मिन् ... २०९५. वातप्रमी ... १०.२ वायुसख ...
वाल्क
१२९५ वारमुख ... १२८ वातमृग ... १०.२/वार ... ४७२ वावदक ... २०१५ वाच ... १२ वातरोगिन्
"९२ वार ... १.६६ वाशिका ... ८५४ वाचक ... ३१४ वातावन
३१४ . वातायन ... ... ... २६५८ वाशित ... " वाचंयम ... ११५६ वातायु वाचस्पति ... १९वातल
वारणबुसा ८७४ वासक
८५५ वाचाट ... २०६ वात्या ... २०२० वारवाण ... १५५६ वासगृह ... ६.९ वाचाल ... २०१५वात्सक
वारमुला ... २) वासन्ती ... ७९२ वाधिक ... १४५ वादिन ... 1 वारखी ... "वासबोग ... "
... २५५०
N
वास
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शद
वासर
वासव
चासस् १३०४ | विकुर्वाण
वासित
१३४१ विकृत
32
चासिता
वाच
वाह
"
""
...
बासु
चासुकि
चासुदेव
वास्तु
वास्तुक वास्तोष्पति
""
...
...
विकङ्कत
विकच
विकर्तन
⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
...
...
...
...
***
:
...
...
...
...
...
...
चाहिनीपति विंशति
वि....
१८६४
१६२१ | विटपिन् २२८० त्रिखदिर...
१८६४ विटूचर
१८७० | विडङ्ग
२११२ वितण्डा
चाहद्विषत्...
२३२३ | वितथ २२२४ | वितरण
वाहन
१५८३ | विगत
४४७ | विगतार्तवा... १११६ वितर्दि
वाहस वाहित्थ वाहिनी १६२३ | विग्रह
१५४५ | विग्र
११६६ वितस्ति १२१४ वितान १५०४
१६२९ 33
१६७६ वितुन्न
२५५८
२२९३ | वितुन्नक
...
840
...
...
...
पंक्तिः शब्दः
२१८ | विकिर
...
...
८४ विकिरण
...
१७९९
33
२४८५ / विकृति
विक्रम
३९०
४ ४ ६
99
विक्रय
४०
६३१ | विक्रयिक
९६४
विक्रान्त
विक्रिया
८५
१५७६ विक्रेतृ १५५५ विक्रेय
૧૦૦
विकुव
९९६ विद्याव
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
33
...
...
***
...
विकलाङ्ग ११६५ | विचर्चिका...
विकसा
८२९ | विचारणा
६ ६४ विचारित
विकसित विकखर २०८५ | विचिकित्सा विकार २२८० | विच्छन्दक
विकासिन्... २०८५ | विच्छाय
...
१५९२ 33
विघस १८७३ १०५४ विघ्न
७२३ विनराज
विचक्षण १३६४ ६६३ २०५ विचयन
२३०९
...
१४०९ ...
२२८८
⠀⠀
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...
अमरकोषस्य
...
पंक्तिः शब्दः
१०५४ विजन
८०९ विजय
२०३९ | विजिल
३९९ विज्ञ ११८९ | विज्ञात
...
२२८० | विज्ञान १६७२ | विट २६१६ | विटङ्क
१८७२ विटप
""
""
==
33
33
७५ | वित्त
...
""
...
...
...
...
...
...
...
...
...
39
११७९ विदर २८१ विदल
२२२३ | विदारक २८२ | विदारी ६१४ | विदारिगन्धा २९४७ विदित
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
.00
...
पंक्ति' | शब्दः
१५१२ विदित
१६८७ | विदिश १७९८ विदु २०१२ | विदुर
२२४२
१५५
१५४२
७०८
२०४३
२०८५
73
७०९
२८८ ! विदुल २९२९ विद्ध ६२३ विद्धकर्णी ...
२२२३
८१७
२१
१६३
६७७: विद्याधर २५९६ विद्युत् ६५८ विद्रधि ૧૧૮૫ ७४८ विद्रव १९७४ विद्रुत
૧૮૨
२२२४
१८९२
८६१ विद्रुम २९१२ विद्रुमलता ३५३ विद्वस्
९०७
१४११ "
६२४ विद्वेष १२४१ विधवा १३१३ विधा २५६१
९४६ विधातृ
९०१ विधि
".
For Private and Personal Use Only
"
33
...
27
www
...
...
...
...
***
...
...
***
...
१७८१
१९०८
१८८६ " २०४६ विधिदर्शिन् २२२३ विधु २२६०
...
...
...
...
...
...
...
पंक्तिः
...
२९५८
39
४८६ विधुत ८६८ विधुंतुद ८७९ | विधुर २२९० २२४० विधुवन १२५८
...
२८०४
४११
१०९६
२००५
२५३७
३४
३४
२७०
१४३१
२५३४
१३८४
8及
१७२
२५३३
२२३८
१९७
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विना
विनायक
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः शब्दः
पंक्तिः | शब्दः
पंक्ति
शब्दर
विधूनन २२५८ | विप्रकृत २१०६ विरजस्तमस् १४४१ विवेक विधेय २०७३ | विप्रकृष्टक... २१६१ विरति ... २३२४ विश् विनयग्राहिन् २०७३ विप्रतीसार ४१२ विरल २३०५ विराज् २१०६ |विराव
२१५६
२८५४ विप्रयोग
37
१४६९ ३५७ विशङ्कट
२७ विप्रलब्ध
७५ विमलम्भ
४३३ विरिधि
३३ विशद २४४८ विशर
२३०५ विरिण
१४३ विरूपाक्ष
१११३ विरोचन
४७९
20
२२७७ | विरोध १३ विरोधन १८८७ विरोधोक्ति २०१ विलक्ष २२३ विलक्षण
१११ | विलम्बित
२०५ | विलम्भ
39
39
विनाश
२३४७
२२९४
विप्रलाप
विनाशोन्मुख २२०७ विप्रश्निका
विनीत
39
विन्दु
विन्ध्य
विन
23
विन्यस्त
विपक्ष
विपश्वी
विपण
विपणि
""
विपत्ति
विपथ
विपद् विपर्यय
वि
विपश्चित्
विपाद
विपाशा
विपिन
विपुल विप्र
...
79
...
विप्रकार
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
www
***
...
१५५६ | विमुष्
२०७४ विप्लव
२०८५ | विबुध
६३८ विभव
25
२२२३ | विभाकर
२२३३
विभावरी
२४२४
विभावसु
१४८९
૮
१८७२
""
5 अ० को ० स०
२७८७
७६४
५९७
विभीतक विभूति विभूषण १२७६
७१
२४३८
१६३१ | विक्रम
४२४
५८९
२६१८
""
१६३१ विभ्राज् १२७५ २३१५ | विमनस् २०४० २३१५ | विमर्दन
१३६२ | विमला
५३३ | विमलार्थक
विपादिका... ११७८ | विमातृज
५३३ विमान
६५०
वियत् २१४६ | वियद्गङ्गा १३५६ वियम
१३६१ वियात
... २२०९ | वियाम
"
...
...
:
...
...
...
***
...
...
***
404
***
...
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...
***
...
***
विलाप
विलास
विलीन
विलेपन
"
विलेपी
विवध
विवर
२२७५ विवर्ण
९३५
२१३५
११२४
"1
९५ विवाद
१४५
९७
२२८६
""
२०७५ विविध
२२८६ | विविष्कर
विवाह
विविक्त
...
...
....
...
...
...
...
...
...
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९२१
२६४६
१६९६
विशाख
७९
विशाखा
१८८
विशाय
२३१३
विशारण
१६९२ विशारद २५२५
विशाल
... २१४५
विशालता
१३०२
विशालत्वच्
६९४
विशाला
९६१
विशिख
१६४०
विशिखा
५९८
२३०४ १८०६ | विशेषक
१३१९
२५२७ | विश्राणन
१४११
४४० | विश्राव १९६० विश्रुत विवश २११२ विश्व विवस्वत् २०२ 21
२३०६ २०४३ १९ *
२४४९
33
२१५४ १९७३
३२८ | विश्वक १४६४ / विश्वकर्मन्
२५५२ ५३
१५१२ | विश्व
२४९९ | विश्वमेषज... १७८३ २२११ | विश्वमर १०५४ | विश्वंभरा
४५
५६०
...
***
...
....
३४२
४२४
२२२४
... १३४०
***
...
...
...
...
२०४
२५५१
४११
२२९१
३४३
२०७६
२२५४
६४ विशल्या
३७९
२३०५
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For Private and Personal Use Only
21
...
"3
विशसन
...
...
***
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...
***
***
...
***
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***
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...
१४२८
१२०९
800
१७०
२०६३
२१४५
३०१
१ ९८
૧૨
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६६
शब्दः
पंक्ति | शब्द
पंक्ति: शब्द
विश्वसृज्
३४ विष्वक्सेन... ३८ विहायस् विश्ववा १०९६ विष्वक्सेनमिया ९०० विहार
विश्वा
८४७ विष्वक्सेना
७६० विह्वल
विश्वास १५१४ | विष्वद्रधच्
२०९२ | वीकाश १०६५ | वीचि
विष्
१२०९ विसर
विष
४५६ | विसर्जन २७८१ | विसर्पण
3.
...
विष्टि
विद्या
विष्णु
...
विषधर
विमिच्छत् विषय
...
"
...
...
...
...
...
...
...
...
४५१ विसंवाद ....
६९४ विसार
५७३ | विसारिन्
२२७१
२६४०
२९२
विषयित् विषैवेद्य
४६०
विषा
८४७
"3
विषाक्त
विषाण
२२९३
"1
बिषाणी
९७६
१६४३ | विस्तार २४४६ ८८७ विस्तृत २१९६ विषुत्र २४२ विस्फार १६८३ वीरण विषुत्रत् २४२ विस्फोट ११८० | वीरतर विष्कम्म ६२७ विस्मय ४०० वीरतरु ७३८ वृत्ति विष्किर १०५४ | विस्मयान्वित २०७६ वीरपक्षी ११०५ निष्टप ५६८ | विस्मृत २१९७ | वीरपान १६७३ २६७४ | विस्र ३०० वीरभार्या ११०५ वृत्र १५१४ वीरमातृ ११०५ वृत्रहन् २६०५ | वीरवृक्ष ०३३ | वृक्षा
विष्टर
विष्टरश्रवस् ३५ विस्रम्भ
४६५
११५५
१२०९
११०५
१०५१
१०५१
वीरसू वीरहन् १४५० | वृद्ध वीराशंसन १०५१ वीरुधू १९८८ वीर्य
१६६० | वृद्ध
440
१२०
४३१
...
21.
***
...
...
विस्त
विसृत्वर
विद्यमर
विस्तर
...
""
वितसा
www.kobatirth.org
:::::
...
...
...
...
...
...
**
...
**
...
***
...
विहग
३५
२३९५ | विहङ्ग
विष्णुकान्ता ८५६ | विहंगम विष्णुपद १४५ | विहंगिका विष्णुपदी ५२८ विहसित विष्णुरथ ५८ विहस्त विष्य ... .२११५ विज्ञापित १४१० वीवध विष्वच् २८०४ विहायस
२१११
"D
१४५ वृक
...
...
...
अमरकोषस्य
***
...
१४१० वीणा २२९६ वीणादण्ड
४३३ वीणावाद २५०१ वीत
२०८६ वीतंस २१९६ | वीतिहोत्र
२०८६ | वीथी
૨૦૮{
२२९३
२३९१ वीनाह
६७७ | वीर
...
..
वीध
"1
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
...
...
...
...
...
***
***
...
...
...
...
*
...
...
...
...
...
...
...
...
...
...
पंक्तिः शब्द
१०५१ | वृकधूप
२२८२
२११२ | वृक्ण
२०६५ वृक्ष
४७७ वृक्षगेदि
३६० वृक्षकहा
३७४ | वृक्षवाटिका १९५५ वृक्षादनी
१५५३
१९८०
१०५।
६५६
२५०५
२१३५
५२०
३९५
३९७
१६२१
For Private and Personal Use Only
71
वृत्राम्ल
सूत्रिन
"
97
वृति
वृत्त
"3
वृत्तान्त
23
**
32
32
31
...
"
...
***
64
...
...
300
...
...
...
...
११९७
वृद्धत्व २६४४ वृद्धदारक २५२०! वृद्धनामि
१००२: वृद्ध अवस् ...
पंक्ति:
१३२५
१३३१
२२३१
१५८
१९९७
८१२
v
८१२
१९९७
१७७७
२६१
૨૧
२५५२
२२६६
૨૨૬૬
२१६३
२२०८
२४९१
३१५
२४६१
१७०२
1010
२४८०
२६६३
८४
२८३० २८५७
८९३
११५८
२२६८
२५३५
११५४
९२२
११९५
૧
Page #72
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शब्दानुक्रमकोशः
११५४
वंग
१८५५
स्वत
.... ३८५.
वेतन
वेतवत्
वैसारिण
वेद
पंक्तिः शब्दः पंक्किा शम्दा पंक्ति शब्द वृद्धसंघ ...
२१७५ देष ... १२७२ वैरशुद्धि ... वृद्धा ... १०९८ वेगिन् ... १६.४/वेष्टित । ... २२०५ वैरि वृद्धि ...
१५०६ वेणि वेसवार
वैवधिक ... र ... २२६८ वेणी
बेहत् ... वृद्धिजीविका १७१४ वंण
वैशाख वृद्धिमत् ... २५०५ वेणुक
... १८५४ वृद्धोक्ष .... वेणुध्म ...
वैकुण्ठ वृस्थाजीव
वैशवम १७१७ . वेतस
वैजनन ... ११५१ वैश्वानर
वैजयम्स २३२० वेताल
वैजयन्तिक १६०९ वौषट् ... २८६४ १७ वेत्रवती
वैजयन्तिका ७७९ व्यक्त ... २४५९ वृन्दारक
वैजयन्ती ... १६६६ व्यक्ति ... २७६ | वेदना
वैज्ञानिक ... २०१३ व्यय ... २२६१
... २०१५ वृन्दिष्ठ ..... २२ देदि
वैणव ... १३८८
व्यका ... २६८९ वृधिक वेदिका ... ६२४
व्यसन ... १३५३ वेध ... २२६६/ वैणविक वेधनिका ... १९९६ वैणिक
व्यञ्जन ... २५६६ वेधमुख्यक ९१८
... २९४१ वेधस्
व्यडम्बक ... ७५१ १८२५ .... २७९२ | वैतरणी
व्यत्यय ... २३१५ वैतालिक
श्यत्यास ... २३१५ वृषण
पथा ... ४६६ वृषदंशक ...
... १९३५ व्यध
व्यध ... २२६६ वृषध्वज वेला
म्यध्व ... ५८९ वृषन्
वैद्य
११
म्यय २२८४ वेल्लुज वैद्यमान
म्पलीक ... २३५९ ... १९३० वेल्लित
वैधात्र ... १.व्यवधा वृषस्यन्ती ... १०९२
२११८ वैधेय
ज्यवहार वृषा ... ८२१
वैनतेय
व्यवाय ... १९५६ वृषाकपाली २६४७ | वशन्त ... ५२॥
म्यसन ... २५२९ वृषाकपि ... २५९४ वेश्मन् ... 4. वैमात्रेय
व्यसनात ... २... वृषी ... १४.. वेश्मभू ... 10वैयार ... १५७४ बस ... २१६८ पंधि ... वेश्या ... "वैर ... 1 म्याकुल ... " वृष्णि ... १८५९ वेवालनसमामय ५९६ वैरनिर्यातन ६८ म्याकोश ... .
१५
वैतसिक
८
.
....
३४ | वैतनिक
ह
. 26
वेपथु
टेखक
... १८
वेमन्
१८१
२
वृषल
::: :: :: :: :: :
वैनीतक
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अमरकोषस्य
पंक्तिः
E
ज्याघ्रपाद्
प्रज
5
2
... १६५८शक
११८१
"
:
m
शक्रपुष्पिका
शब्द
पंक्ति शब्द
पंक्तिः शन्द म्यान ... ९९० व्योकार ... १९४३ शकुलार्भक ५०१ शतपत्रक ... १०५०
, ... २१४२ व्योमकेश ... ६८ शकृत् ... १२०८ शतपदी ... १०१४ व्याघ्रनख ... व्योमन् ... १४३ शकृत्करि ... १८३० शतपर्वन् ... ९७०
व्योमयान ९५ शक्ति ... १५०५ शतपर्विका ८५३ व्याघ्रपुच्छ... ध्योष ... १९२९ | , ... १६७२
९६४ व्याघ्राट ...
शतपुष्पा ... ९५२ व्याघ्री ... ३५ २३९५ शक्तिधर ... शतमास
८०१ ध्यान
शक्तिहेतिक १६०६, शतमन्यु
शतमान ... २९६३
। , ख्याड ... २४१९
... ७८१ शतमूली ... ८४९
शक्रधनुस् ... १६५ ब्याडायुध... व्रत
शतवीर्या ... ९६६
शक्रपादप ... व्याध
व्रतति ... १९७०
शतवेधिन् ... ९३० व्याधि ... ९०० ... २४६८
शतहदा ... १६२
... २०१७ व्रतिन्
शताभ ... १५६९ व्रणकारी ... २५१३ वश्वन
शतावरी ... ८५० व्याधिघात ६९६
शत्रु ... १४८६ व्याधित ... ११८९ वात्य
... १४८९ व्यान ... १२६
... १९६ व्यापाद ... २८४
२८८२ व्याम १२४७
शपथ ... ३२९ ध्याल ... ४५१
शपन ... ३२९ ... २७२८
1५६० ध्यालग्राहिन् ४६०
शंखनख ...
शफरी ... ५०३ व्यावृत्त ... २२०८ शकट
शबर ... १९६९ व्यास ... २२९३
शबरालय ... ६३३ स्याहार ... शकुलिन् ...
शचीपति ...
शबल व्युत्थान ... २५७१ शकन ... १०५२ शटी ... शवली १८४१ म्युष्टि ... २४" शकुनि ... १०५२ शठ ... २११७ शन्द ... २९, ध्यूढ ... २४२४
शणपर्णी
३१४ म्यूटकट... १५९८ " ... २४५०
३५५
शणपम्पिका ८६२ म्यूति ...'१९८५ शकुन्ति ... १०५२ शणसूत्र ... ४९८ शब्दग्रह ... १२६२ व्यूह ... १०६५ शकुल ... ५.५ शत ... शब्दन ... २१०० " ... १६२५ शकुलाधक ९६६ शतकोटि ...
शम ... २२५५ ... २८१२ शकुलादनी ८२० शतदु
शमथ ... २२५५ ब्यूहपाणि १६२६/ ... ८७० शतपत्र ... ५४६ शमन
शनैश्चर
जाति
१७४९
य
शफ
शखनख
१५७२ शंखिनी ... १७६ शची ...
शकल
...
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शब्दानुक्रमकोशः
शब्दा
पंक्तिः
शन्द:
पंक्तिः | शब्दा
पंक्तिः
शरद
००९
२५१४
शमी
१७५२ शरारि
२२
س
६२
س
ه
.
س
س
५
अचमार्ज
س
००
و
शारिवा मार्कर
... ८.२
... ५०
शमन ... १४०४
२५५ शशादन ... १०१६ शात्रव ... शमनवस... ५०
२५२
... १९२० शाद ... ५८५ शमल ... १२०८/शरभ
धत् ... २८२२ " शमित २२१९ । शरव्य ... १६३९
२८
शादहरित... ७५२ शराभ्यास... १६३९
शादल ... ५॥ ... १०३७ शष्प
शान्त ... २२१९ शमीधान्य... १७५४ शरारु ... शस्त
शान्ति ... २२५५ शमीर
७५२ शराव ... १७७
शाबर ... . . शम्पा
शरावती ... ५३५ दाम्पाक
शरासन ... १६३४ शम्ब शरीर ....
शारद ... शम्बर ...
शरीरास्थि... १२"
शरीरिन् ... २०५ शम्बरारि ... शर्करा ... ५७८
शारिफल ... २०११ शम्बरी ...
शाक ... ९२० शम्बल ... २९६३
" ... १७७५ शम्बाकृत ... १७२५ शर्करावत् ५७८ शाकट ... १८ शम्बूक ... ५१३ शर्करिल ... ५७८
५७८ शाकुनिक ... १९ शम्भली ... शर्मन् ... २६४
२६४ शाक्तीक ... १६ शम्भु
शर्व ... . शाक्यमुनि... शर्वरी
शाक्यसिंह ... २९ शम्या
१७.४ शर्वाणी ... शाखा ... शय
शाखामगर
५९६ शयन शलभ
शाखामृग ... शालशिफा...
... शलल
. शयनीय शलली शाखिन् ...
... २१५८ शयालु ...
शांशिक ... १९४५
शालि शलादु
... १७५५ शयित
शाटी
... २९५ शरया
शान्य ... ४२२ शर
शाण ... १९९३ , ... १६४१ शव ... १७०४ शाणी ... २९१२ , शरजन्मन्...
शाण्डिल्य ... १२ शाल्मलि ... .. शरण ... २४४० | शशधर ... १७४ | शात ... २२०६ शाल्मलीवेष्ट... ०४२ शरद् ... २५३ । शशलोमन्... १९२० । शातकुम्भ ... १८९५ शावक ....."
...
.. MMU 20NM ०० A me
६५८
पालादक
न
... २३९० शाटक ... २९१.
शयु
-
५
शालेय
W
शश
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अमरकोषस्य
पंक्तिः
२५..
पंकिः शब पंक्तिः शब्दः पंक्ति शब्द शाश्वत ... २०१९ | शितिसारक -२५ शिवा
शुकनास ... शाफुषिक... २१२९ शिपिविष्ट ... २४.
शुक्त शासन
शिफा ... १५१०
शिशिर ... ... ६..
५१२ शिफाकन्द ५५२
१०९ शाब ... २६९० शिविका ... १५
शिशुक ... ५ शाखाविद् ... २०१७ शिविर
१९४ शिक्य ... शिम्बा शिशुमार ... ५
११९७ शिरस्
शिक्षा ... १२ शिक्यित ... २२ ..शिरख
२५शुक्रल ... २७७० ...
शिश्चिदान... २१ शिक्षा
१६ शुक्रशिष्य... २४ ... " शिरस्य
शिष्टी ... १५ शिक्षित ... २ शिखण्ड .... शिरीष शिखण्डक ... १२
११२ शिखर ... शिरोधि
२५
२३५
शिरा
३०१
गीत
१११
...
१६८1शप
शिरो
शिरिन्
शिरोस्थि... १२१२
२९
२१९१ शुण्ठी ... १७८२ गुण्डापान ... २.१.
शिला
.
शीतमीर ... शीतल
शुतुद्रि
शीतशिव ...
शिलीमुख... २१
शुनक
शनि
२४६६ १९७२ १९०३
२१५ १८५८
२
...
शिलाजतु ... शिवावत्
शिली हिसावल ... शिलिमीव... १९.
शिलोचर ... ६५ शिसिन् ... .
शिल्प ... १९९९ " ... २५१७
शिल्पिन् ... १९ शिलिवाहन
शिस्पिशाला शिभु ...
" ... 10 शिवज ... १९२१
शिवक ...१
शिवमनी... शिशिनी
शिवा शितक ... शिति ... पितिकण्ठ...
शीर्षच्च
शिषित ...
...
५
... २१२४
... २१२७ शुन ... ... ।" ... २७२० शुभदन्ती .... १५४ शुनाश ... १.२ शुल्क ... १५२२
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शन्दानुक्रमकोशः
शब्दा
पंकिर शुब्दा
पंक्तिः शब्दः पंक्ति | शब्दः पंक्तिः शरिणी ... १९ शोभत्री ... ११६ श्यैनंपाता ... २९.. शही ... ५१६ शोधनी ...
... २५३९ शोधित ... १९९८ श्रद्धालु ... ११६
६२५
शुभूषा ... शुषि ... शुधिर
... १२६२
.
शुष्कमांस ... शुप्म ...
... २९
माद्ध
शहीकनक १.५८ शोफ - ०८.श्रयण २२७३ शत ... २२१५ शोभन ... २१२८ श्रवण
शोभा
९ श्रवस् ... १२६२ शेफर ...
| যৗন ... ...श्रविष्ठा ... १८८ शेफालिका
... १७६ माणा ... १८०६
... १४१४ पी .... शौक्तिकेस
प्राद्धदेव ... ११७
श्राय शेठ
... २२७३ ... ०१७ | शौय ... १५५
भावण ... २४. शौण्ड ... २०७४ शेवाल शौण्डिक ... १९४९
श्रावणिक ... २४. शौण्डी ...
... ५४ ८४२ शौद्धोदनि
शुक्रकीट ... शुकधान्य .... शकशिम्बि शुद्ध रागा ... ... शद्धी
श्रीकण्ठ
..
श्रीद
.
गोलिक
शर्ष
रत
शलाकृत शालिन्
श्मशान श्मर
श्याम
...
३०४
शयात
जैवलिनी ...
शव शोक ...
श्यामल
-
श्यामा
श्रीपति ... २०
भीपर्ण ... २२७०
... २४४० भीपर्णिका... २९ श्रीपर्णी ... २.
श्रीफळ ... १२ २६२१
श्रीफली ... १८ भीमत् ... ०२८ श्रीमान् ... २०५३
ब ... २०५३ श्रीवत्सलान ३ मीवास ... " भीवेष्ट ... "
मीसंह ... १३२४ ... श्रीहस्तिनी... .. .....10/भुत ... २४८८
शोर
.
-
श्याल
शुझवेर शबाटक
...
..
वेत स्पेन
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अमरकोषस्य
२४४
२.
०४
__... २८९२
श्रेयस्
... २२२९
२१
संतमस
श्रेयसू
४,
.... १३५५
१
२१११
भोण श्रोणि
भोत्र
भोत्रिय ...
शब्द पंक्तिः शब्दः पंक्तिः शब्दः
पंक्किा शब्द पंक्ति शुरौ ... ११४८/ संकमुक ... २११.संज्ञा ... ... १२६२ भर्य ... २६२७ संकाश
... Are ... २४८१ अ ... १५ संकीर्ण
संडीन ... १०६० श्रेणी श्वभूश्चक्षुरौ १७८
२१९५
१३ १९३० श्वस्
... २४४८ संतति १३५४ २१२ श्वसन ...
|संतप्त २८९
... ४४५ श्वाविद
संकोच ... १३ |संतान श्रेयसी
... १८२
संक्रन्दन ... संक्रम ... २३ संताप ... १४ संक्षेपण ... २२
संतापित ... २२२९ ... २४९३ | संस्य ... १६७५ संदान ... १८५३ ... १७०
घेतगरुत् ... १०३५ | संस्या ... २१ संदानित ... २२१४ ... १२२१
श्वेतच्छद् ... २७८७ संख्वात ... . संदाव ... १६८९ श्रोणिफलक १२२१ घेतमरिच... १९२६ संस्थावत् ... " संदित ... २१९६ ... १२६२ श्वेतरक्त ... ३०७ संख्येय
२२१४ तसुरसा... संग .... २३
संदेशवाच् ... ३४५ औषट
संगत
संदेशहर ... १५०० षट्कर्मन् ... संगम २३
... २८३ श्लेष
२९॥
... १०६५ श्रेष्मण षडभिइ ...
... १६८९ षडानन
... २५३९ लेष्मल षड्मन्य ... सगूढ
२०॥ लेष्मातक षड्ग्रन्था ...
१५०४ श्लोक ... प्रन्धिका
२२.. वःश्रेयस ...
__... १८४४ स्वदंष्ट्रा
संध्या ... २२०
संनय ... २६७ १९७३
षण्ढ ... १४८५ श्वनिश
पष्टिक्य ... १७२० श्वपच पाण्मातुर ... संचय
संनिधि ... ४४१
... २२९६ श्वभ्र २९३८ संकर
संचारिका... ".. श्वयथु ....100/ संकर्षण ... संजवन ... ..|संपत्ति ... १६३१ भवृत्ति ... 10 संकलित ... २२१०, संग्वर ... "संपद् ... १६३० भर ... १३५, संकल्प ... २८० ! संझपन ... १९९४ संपराव ... २६
षट्पद
...
भेष्मन्
२२॥
N
८
२३
संग्रह
संग्राम
15
२२७७
।... २२९६
सघात
९९७५
.४४५ संनिकर्षण
१०॥ संनिकृष्ट
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शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः शब्द
.... २८२० सत्रा
सक्थि
सग्धि
1
पंक्ति शब्द पंक्तिः शब्दा
पंक्तिर धान ... २५८४ संवीक्षण ... २३०९ | सकल ...
... २१५५ सत्र
___... २६९७ गुटक ... १३५१ संवीत ... २२.५
२८५६ प्रति २८९४ संवेग
सकृत्मज ... १०२७ सत्रिन् ... १४९७ संप्रदाय ... २२६४ संवेद २२६.साफला ... ७५२ सत्वर संप्रधारण ... २६ संवेश
१९ सदध्याज्य ... १४०० संप्रधारणा... १५१७ | संव्यान ... १३०९ सखि ... १४९. सदन ... ६०२ संप्रहार ... १६५७ | संशप्तक ... १६६३
सखी
१०९७ सदसू ... १३८३ संफुल्ल ... ६६३ संशय
सख्य १४९२ सदस्य ... १३८४ संबाध ... २१९४ । संशयापनमानस २०३४
सगऱ्या
सदा ... २८९३ संबोधन
सगोत्र ... २८६१ संश्रव ... २८६
११४२ सदागति ... १२२ संभेद
१८१६ सदातन ... २१६९ __...
... २२४२ ५३६
संकट २१९४ सदानीरा ... ५३२ संभ्रम ... १२९ संश्लेष ... २३१
सचिव
२७४८ सहक
... २००२ संभ्रम ... २३०२ संसक्त
| सबाल ... ५७६ संमद ... २६३
सदृक्ष संसद्
... २००२ सज्ज
१५९८ संमार्जनी ... ६२९ | संसरण ...
सदृश ५९३
सज्जन १३५८ संमूलन ... २२६२ . ... २४४४
सदृश २००२ संमृष्ट ... १७९८ संसिद्धि ... ४३६
सदेश २१५८
सजना संयत् | संस्कारहीन १४५९
सद्मन् सटा १२६८
... संबत संस्कृत ... २४९६
सद्यस् ... २०६७
१३६ संयम 4 संस्तर ... १६५८ : "
सर्मिणी ... १८५ संयाम ... २२८६ संस्तव ... २२९० सतत
सध्यच् ... २०९३ संयुग ... १६७७
सनत्कुमार... १०१ संस्ताव ... २३१८ सती संयोजित ...
|सना ... २८८३ संस्त्याय
सतीनक संराव ... ३५७ संस्था
सनातन ... २१६९
सतीर्थ्य संहाप संस्थान
... ११४० सत्तम
२१४१
सनि संस्थित ... १७०१
१४१७
सत्व ... २७३ संवत्सर संस्पर्श
२७६१
सनिष्ठीव ___३५१ संबनन संस्फोट
सत्पथ
५८८सनीड ... २१५७ संवर्त | संहत ... २१७५ सत्य
३५४ सन्नकदु संवर्तिका संहतजानुक १६८
२६४३ सन्नद्ध ... १५९८ संवसथ
हतल ... १२४३ / सत्यकार ... १८७१ सपत्न ... १४८८ संवाहन
सत्यवचस् ... १४३८ सपदि २८५२ संविद्
संहनन ... १२१४ ... सत्याकृति ...
२८६७ " ... २०4 संहूति ... १२७ सत्यानृत ...
... १३८० २५१९ । सकटाह ... २९१७'सत्यापन ... १८७
११२१
१५ १५५
Mms.
२१०८
सत्
ہ
له
... १५९
२५८३
संवत्
... २२
| संहति
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अम कोषस्य
१३९३
२२१०
सम्राज्
...
७९
२५.८
..
समर्षक ...
२०३
सभा
८१
१९८२ समसन
पंक्तिः शब्दः पंक्ति शब्द
पंक्तिः सपिण्ड ... ११४.समन्वितलय
सरपा ... १०४० | समूह ... १०६५ सपीति १८१६ समम् ... २८५६ समाहृति ... । सम्म सप्तकी ... १२९. समय
समाइय
२०४० सप्ततन्तु
समित् सप्तपर्ण
समिति ... 1३८२
सम्यक ... ५४ सप्तर्षि
२८६२ सप्तला समर
सरक ५२०१ समर्थ समिधु
सरठ सप्ताचिस् ... " समर्थन ... १५१७
समीक सप्ताश्व ... २०२
समीप सप्ति ... १५५५ समर्याद
समीर सब्रह्मचारिन् १३०५ समवर्तिन् .... १५
समीरण समर्तृका ... १०९७
समवाय ... १०६७ समा ... ६०४
२०." समष्ठिला ... १६२ समुचय ... २२
सरलद्रव ... समसन ... २२९१
समुच्छ्रय ... २६३९ २१०९
सरला
समुग्शित ... २२ ... २९४. समस्त ... २१५४
५२२
सरस्
समुत्पिड ... १६ -समाजन २२६३ समस्या ... ३२४
सरसी ५२२ समा सभासद्
...
समुदत ... २२ २५५
सरसीव्ह
समुदय ... १० समाचार समांसमीना १८५१
सरखद ... . .
समुदाय ... १० सनिक समाकर्षिन्... २९८
... २४९ सभ्य ... १९५८ समाघात ... १६७८
समुद्र ... १९२० १८५ समाज
समुद्रक ... ३ सम ... २..२ समाधि
समुहिरण ... २४४५ सरित् ... ५२५ २१५३
१५८
समुदत ... २०७० सरित्पति ... समग्र समान
समुद्धरण समका
समुद्र ... १
२५८९ समण
समुद्रान्ता ... ८ समानोद १११
समालम्भ ... २१०४ समास ... १५१५ समावृत्त ... १३.३ | समुन्दन ... २... सनिकाधार १९९४ समषिक ... ३१७५ समासाच ... २२०९ समुत्र ... १२१५ सर्प ... १५. समन्ततस् ... २८॥ समासार्या... १२४ समुन्न ... २५. सर्पराज ... ११६ समन्तदुग्धा ८६० | समाहार ... २२०१ | समुपनोषम् २०५० सर्पिस् ... १०.. समन्तभद्र ... २६/ समाहित ... २२१२ समूह ... ... ... २१५१
५४.
... १३८५ ... ५८५ ... २०१७
.५३0
44
२००३
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श
स
सर्वज्ञ
19
सर्वतस् सर्वतोभद्र
सर्वरस
सर्वला
सर्वो
सर्वप
चलित
सलकी
सय
सवन
...
सर्वतोभद्रा... सर्वतोमुख
२८९३
सर्वदा सर्वधुरावह Fv*
૧૮
सर्वधुरीण सर्वमङ्गला ...
७३
श्ववगस्
सवितु
श्रविध
सवेश
सम्य
...
ान
::
सम्ब
...
सर्वलिङ्गिन्
सर्ववेदस्
www
...
...
...
***
...
6.0
...
पंक्तिः शब्दः
५६२ सस्य
***
२५ सस्यसंवर
(५ | सह २८७४
630
६१३
७७२
७१९
४७४
सहकार
सहचरी
23
सहज
सहधर्मिणी
सहन
सहभोजन
सहस्
18
"
१३०९ साकम्
... १५८७ । साकल्य
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः | शब्द
(७८ साधात्
७३७
सागर
२८०० | साचि
२८५६ | सात
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
...
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...
...
...
१६७१
१३२८
२८००
23
२८६३ | साधारण
१४४२
२४४
૧૮૭૫
५०२
१६५३ | सहसा सहस्य १३०१ | सहस्र सर्व न १६५५ सहस्रदंष्ट्र साधिष्ठ सर्वानुभूति... ८६४ सहस्रपत्र ५४६ | साधीयस् सर्वानयोजित् २०६८ सहस्रवीर्या... ९६५ साधु सर्वाश्रीम २०६८ सहस्रवेधि ૧૦૮: सर्वामिसार १६५५ सहस्रवेधिन् सर्वार्थसिद्ध... २९ सहस्रांशु १६५५ सहस्राक्ष १७४१ सहस्रिन् ४७२ सहा ८९६ १३०९ | सहाय
१५९१
७९५
८७५ सानु १६१० | सांतपन
१९४६ सहायता
सान्त्व २३३० २०८७ सान्त्व सांदृष्टिक १६२२ सान्द्र २०८१ १४९५ | सांद्रनिग्ध
१४९१ | सहिष्णु २०६ सांयात्रिक ... ... २१५८ | सांयुगीन २१५८ सांवत्सर २१९३ सांशयिक २०३४ साम्राय्य ...
४९०
१४०६ | साख
२८५६ सांपरायिक
१६०५
"
२२.३ | साप्तपदीन... १४९२ सालपर्णी
...
...
...
...
...
ses
...
...
...
...
...
.....
***
...
...
७१५ सातळा
७९९
साति
११४१
१०८४
""
૨૦૦૭
सातिसार
सात्विक
१८१६
२४३ | सादिन्
...
""
22
साधन
32
साधित
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***
...
...
...
...
***
...
...
...
...
...
...
...
...
९३०
"
साधुवाहिन् २०६
साध्य
साध्वस
साध्वी
...
...
...
...
૨૧૧:
२५३७
१५५६
२० ४०३ *** १०८६
600
पंक्तिः शब्दः
२८२२ | सामन्
...
... १३५८ सारथि
सारमेय
सारव
सारस
89.
३१७
१५०९
२८६१ | सामाजिक... १३८५
२६४ | सामान्य
२०६
९३५
૨૧૮૮
"
२३२६ | सामि
२४६९ सामिधेनी
१९१३
११९२
३९४
૫૮૮
२५४८
२५०३
२००३
२१८८
२१०४
२२४९
२८०६
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सामुद्र
साम्प्रतम्
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सायक
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१५२
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समनस् ... १८२
२९५७
२५३६
सुमेरु
...
सुत
५५
सिल्ह
... १६०
त्य
१४
५२८
पंक्तिः | शन्दः पंक्तिः शब्दः पंक्ति शब्दः पंक्तिः साना ... १८३२ सिध्रका ... २९१० सुख ... २९४० सुमगासुत ... ११२१ साहस १५०९ | सिनीवाली २३२ सुखवर्चक ... १९२४
... १९२४ मुभिक्षा ... ८९७ साहन १५९१ सिन्दुक ... ७८४ । सुखसंदोमा १८४९
६८२ ... २३३५ सिन्दुवार ... ७८५ सुगत ... २५ सुमन ... १४ सिंह
सुगन्धा ... ८७७ सिंहनाद ... १६८१]
सुगन्धि २९९।
७९३ सिंहपुच्छी ... ८३४ सिन्धु
१७४२ सिंहसंहनन २०४९
सुचरित्रा
सुमनोरजस्
सुचेलक ... १३०५ सिंहाण ... १९.०३
सिन्धुज ....
१७९० सिंहासन ...
... ११२८ सर
सुर ... १३ सिन्धसंगम...
२४ सिंहास्य
सुरगा ... २९"
१३३० सुतश्रेणी ... ८ सिंही
सुरग्येष्ठ ... सीकर सुतात्मजा ... १३२
सरदीर्घिका सीता
... १७३५ सुत्रामन् ... ८४ सिकता
सुरद्विष् ... २४ ... १७२३
सुत्या सिकतामय
सुरनिम्नगा सिकतावत्... सीधु ... २०१२ सुत्वन् ...
मुरपति ... ८५ सीमन् ... ६३२ सुदर्शन ... सिक्थक ... १९
२५१ सीमन्त ... २९३२ सुदाय ... १५२४ सित
२९८ सीमन्तिनी १०७७
२६.८ ... २२१४ २२२१
सुधर्मन् ..
सुरभी २४९५ सीर
सुधा सितच्छत्रा
सीरपाणि ... ४८
| " ... २५ सिता ... सीराङ्ग २४०८ सुधांशु
सुरवर्मन् " ... १७९३
२२६०! सुधी ... १३
सरसा सिताभ्र .... ३३४ सीसक
सुनासीर
२००७ सिताम्भोज
| सीहुण्ड ८५९ सुनिषण्णक ९४६ सिद्ध ... २८५३ सुन्दर ... २१२८
१९२ " ... २२२५
२८५९ सुन्दरी ... १०१ २०१४ सिद्धान्त ... २८५ सुकन्दक ... ९४३ सुपथिन् ... ५८८ सुरालय ... सिद्धार्थ ... १७४२
सुकरा ... १८४७ सुपर्ण ... ५८ मुराष्ट्रन .... सिद्धि ... ८७३ ___... २०४१ सुपर्वन् ... १४ सुवचन सिध्म ... ११७९ सुकुमार ... २१८० सुपार्श्वक ... ७३४
... १८७९ सिध्मल ... ११९६ सुकृत ... २६२ सुप्रतीक ... १५२ , ... १८९४ सिध्मला ... २९१४ | सुकृतिन् ... २०३० सुप्रयोगविशिख १६०३ सुवर्णक ... ६९६ सिध्य ... १८५
... २६४ 'सुप्रलाप ... १४४ सुवल्लि ... ८३९
अरमि
२०६२
सामा
८९५
... ... १७३४
१५२
सीवन
१९१७
मुरा
...
५४९
२९७४
२२
मुराचार्य मरामण्ड
For Private and Personal Use Only
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शब्दः
सुवहा
सुव्रता
सुषम
सुषमा
सुषवी
सुषिर
सुषिरा
32
सुवासिनी bo९१
१८४९
२१२८
99
सुसंस्कृत
सुहृद
सुहृदय
सूकर
सूक्ष्म
13
सूचक
सूचन सूचि
सूत
...
:::
www
...
सूतिकागृह सूतिमास
सूत्थान सूत्र सूत्रवेष्टन
ww.
...
सुषीम
१८२
सुषेण
૭૮૩
सुषेणिका ८६५
सुष्ठु
***
...
...
...
...
...
...
...
....
...
...
:
...
⠀⠀⠀
पंक्तिः | शब्दः
७८९ सूद
૮૭ ૮
८८६ सूना
८९५
सूनु
सूनृत
सूपकार
::::
सूर
१७९ | सूरण
९५८ सूरत
१७८०
३७०
९०७
31
१९०५ १९३५
२४५८
२८५३
२८८६ १७९७ सृग
१४९१ | सृणि
१५०२ सृणिका
२०३१ सृति ९९१ सपाटी
२१४७
सूरसूत
सूरि
सूमी
सूर्य
सृमर
२६२३ सृष्ट २११८ सेकपात्र २५६४ सेचन २९११ सेतु
१५८६
११५१
1
"
६०९ सेनान
सेनानी
""
सेना
१९६६ १९८४ सेना मुख २२९८ सेनारक्ष
शब्दानुक्रमकोशः
पंक्तिः | शब्द
१७६२ सेवक
२५१६ | सेवन
२५६० सेवा
११२८ | सेव्य ३४८ सैंहिकेय १७६१ | सैकत
२०० सैतवाहिनी ९६२ सैनिक
२०५४
२०८
१३६४
१९९९
...
...
सूर्यतनया ... सूर्येन्दुसंगम
सकिणी
...
...
...
www.kobatirth.org
...
...
...
...
...
....
...
...
...
*..
... १६२३
...
...
...
04.
23
सैन्धव
19
सैन्य
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
...
...
...
...
...
www
"1
२००
सैन्यपृष्ठ ५३० सैरन्ध्री २३१ | सैरिक
१२५६ सैरिभ १६५० सैरेयक १५५० सोड १२०७ | सोदर्य ५८६ | सोन्माद २९७१ सोपप्लव १००९ | सोपान २४१२ सोम ४९३ सोमप ४९३ | सोमपीथिन् ५८४ | सोमराजी ६९८ || सोमवल्क
...
...
...
...
१८३५ ...
९९६
७९८
...
...
...
...
...
...
...
"
२९७४ | सोमवल्लरी
१५३४ | सोमवल्लिका
७८ सोमदली
१५९२ सोमोद्भवा
१६२९ सौगन्धिक
१५८९
...
पंक्तिः शब्दः
१४८५ सौगन्धिक
२२६० सौचिक
१७११ सौदामनी
९०० सौध
१९० | सौभागिनेय ४८४ | सैौम्ब
...
...
५३२
""
१५८९ सौरभेय १५९० सौरभेयी १५५५ सौराष्ट्रक १७९० सौरि १५९० सौवर्चल
१६२४
१६२६
११०९
For Private and Personal Use Only
39
१६३
६१२
११२२
१९६
२६५७
१८२६
१८३६
४५८
१९६
१७९२
१९२५
"
१४८४
सौविद सौविदल्ल १४८४ सैौवीर
७२२
"
सौहित्य
...
स्कन्द
स्कन्ध
"3
...
:
844
⠀⠀⠀⠀
२२१८
1181 ...
२०७०
२३४
"
६२८ १७३ स्कन्धशाखा १३७० स्कन १३७० स्खलन ८३९ स्खलित ७४९ स्तन २३५२ | स्तनंधयी ९२३ स्तनपा
८३९ | स्तनयिलु ८१४ स्तनित ५३१ / स्तबक
{ ५३९ | स्तब्धरोमन् ..
९८१ खम्ब
640
***
...
...
...
...
...
***
...
...
***
...
...
...
...
...
...
....
...
...
७७
...
पंक्ति:
...
१९११
१९४१
१७८४
१९०७
१८१९
७८
६६९
१२३०
२५३५
६७०
२२३२
४३३
१६८४
१२२७
११५६
११५६
१५७
१६१
९९२
444
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७८
शब्द
सम्ब
""
स्तम्बकरि
स्तम्बपन
सम्बन स्तम्बेरम साम्म
स्तम
चिमित
स्तुत स्तुति
स्तुतिपाठक
स्तूप
सेन
स्तेम
स्तेय
स्तैन्य
स्तोक
स्तोकक
स्तोत्र स्तोम
18
श्री
श्रीधर्मिणी
श्रीपुंस
व्यगार स्थण्डिल
"
⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀
"
स्थळ
स्थळी
स्थविर
श्वविह
...
...
...
...
...
...
...
...
पंक्ति | शब्दः
१७४९ स्वाशु
२३२०
...
29
१७४९
२३१० स्थाण्डिल
29
२३२०
स्थान
१५३७ | स्थानीय
२६०४ / स्थाने
३३३ स्थापत्य
२२३५ स्थापनी
२२४४
स्यामन्
३३३ स्यायुक
१६६२ | स्था
२९१३ स्थाळी
१९७७
स्थावर
२३०० स्थाविर
१९७९ | व्याक
१९७९
स्मासु
२१४७| स्थिति
१०२१
"3
३३३ | स्थिरतर
"
स्थूल
"
099
ROP
...
www
***
...
...
100
...
23
१०६६ | स्थिरा २६१७ १००० | स्थिरायु १११४ | पूजा
१९९९
२४३६
१०६४
२१४६
६१५
२७४४
ce
१४४० स्थूललक्ष्य २०३६ स्थण्डिलशायि १४४० स्थूलशाटक स्थपति १३०० लोचन २४५६ | स्वस् ६६ स्थानेव ५६६ खौरिन् ११५८ खोल
२२४० । व्य
...
***
⠀⠀
***
...
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...
***
...
***
...
***
www.kobatirth.org
...
3w.
अमरकोषस्य
...
पंक्तिः शब्दः
३८. स्नातक
६६५ खान
२४३२
स्नायु १२४१ | स्निग्ध
१५०६
५९५
२८७० स्तु
१४८४ खुल
८१७ सुपा
१६७१ खुइ १४८१ सुट्टी
१३०५
२६३२
२१७० ...
""
२९५८ नेह १७६९ | स्पर्श
२१७१
"
११५४ | स्पर्शन
१३१७
२१७० स्पेश
१५१९
स्पेश
२२९२ स्पष्ट
२१७०
स्पृका
५६० स्पृशी
८०९ | स्पृष्टि
७४१
स्पृहा
स्पष्ट
"
"
स्फटा
स्फाति
स्फार
स्फिच्
स्फुट
"
स्फुटन ९१३ स्फुरण १५५९ स्फुरणा २०२६ स्फुलिङ्ग २२६८ | स्फूर्जक
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
...
***
...
***
***
***
...
www
***
...
www
...
...
...
...
...
...
...
...
***
पंक्ति' | शब्द
१४३८ | स्फूर्जथु
१३१७ / स्फेष्ठ
१२०६ | स्म
१४९१
१७९९ | स्मर २०५५ सरहर
६४२ स्मित २२०५ स्मृति
१००१
?"
८५९ स्यद
८५९ स्यन्दन
४१५
37
२२६८ | खल
४१६ सन २२७८ | सवन्ती
४५५ | राष्ट्ट २२६८ वस्त
शाक्
सुख
१६५ सुत
२१८७ | दुव २२६०|ब्रुवा
१२६९ | सुवावृक्ष २२६९ श्रोतस्
२१५१
१२२४
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...
स्यन्दनारोह २२७८ स्यन्दिनी
२९१
१२२ स्यन
१४११ स्यूत
१४९३ स्यूत २०६६ स्यूति
२१८७ | स्योनाक
९१४ सिन् ८३५ वज्
633
...
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***
...
***
...
१७५२
... २२२६
२२६०
७६२
904
...
...
...
...
...
३४
२२३२
૩૮૬
१३०२
२२०९
१४०२
८१५
०२१
ra १८०२
११४
23
०२५ सोती ૧૧.
***
पंक्ति
१६४
२२४९
...
१८५९
२८८३
५०
44
४३०
५२.३
४१२
१२७
...
७०१
સ્
१५८८
१२०७
२२०९
१३४३
२२६८
१८४४
५२७
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शब्दानुकमकोशः
हरीतकी ...
,
.
२१.०
८८९
:
९२५ हर्षमा
१५२५ हलायुध ... ९८९ हलाहल ...
पंक्ति शब्द
पंक्तिः शब्दः पतिः शब्दः पंक्तिः मोतोलन
... .१३ हजे ... १९२ हरिप्रिया ... ५४ ख ... ११४२ सस्ति ... २८१८ हह ... २९४० हरिमन्धक १७४६ , ... २०५८ स्वस्तिक ... ६१३ हद्दविलासिनी ९०० हरिवालुक ८९१ खश्चन्द ... २०५५ स्वसीय ... १८ हट ... १६८४ हरिहय ... . खजन
१४२ स्वाति खतत्र ... २०५५ स्वादु ... २५२३ हत खधा
वादुकण्टक खधिति ... १६५ " ... ८४५ , वन ... ३५५ स्वादुरसा ...
... ९८९ खनित ... २२१३ खादी ... ३१/स्वाध्याय स्वान हयपुच्छी ...
... १७३३
हयमारक ....८०१ स्वमाव
... ३९२
... खमू
खाप
४३४ हर खयं ... २८८१ खापतेय ... १८८५
४५७ खयंवरा ... १०८ स्वामित्र ... १५०२
६८५ हलिन्
४७ खयंभू
हलिप्रिय ... ७३२ स्वर्
हलिप्रिया ... २००७ २८ हरिण
... १७२३ २८१९
... २३३१ स्वेद खेदज
... २२६६ ... २६७०
स्वेदनी ... १७६० हरित
... २०४९ ... २०२० " ... ३०५ हवित
... २९३२ २५९० खैरिणी
"वैरिता ... २२५४ २९१७ वैरिन् ... २०५५
... १७७५ हव्यपाक खर्ण
हरिताल ... २९५८ हव्यवाहन... वर्णकार ...
१४१ ह ... ... २८५९ हरितालक... १९१३ हस। खणक्षीरी ... १२५/स ..
हरिदश्व ... २.२ हसनी ... १७६६ खर्णदी ...
... १०१४हरिद्रा ... १.८८ हसन्ती ... १७६५ खानु ... १९७ ... २७८७ हरिदाभ ... १०५
, १२१५ खर्वेश्या ... १०३ हंसक ... १२९३ हरिदु ... ८५१
... १२०० खवैध ... ... हजिका ... ८२७ 'हरिन्मगि ... १८९० रस्त ... २०५२
W
९५
हल्य
र
३
स्वित
हल्या
..
.२
... २१२६ हरिणी ... २०१५
M0
20
.
214
९५
रत
खग
८२.
हस्त
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८०
शब्दः
पंक्तिः | शब्द
हस्तवारण
२२५९ हिङ्गुल
हस्तिन् १५३५ हिङ्गुली
हस्तिन
६२६ हिज्जळ
१५८५ | हिन्ताल १५८५ हिम
૧૮૪૮
हस्तिपक
हत्यारोह
हा
हाटक
हायन
हार
हारीत
हार्द
हाळा
हालिक
हाव
हास
हास्तिक
हास्य
33
हाहा
हि.
...
...
04.
***
...
...
...
***
***
...
...
...
...
...
...
...
...
...
13
१८९४ 17
हिमवत्
२८४०
२८५९
१०५६ | हिमांशु
४१५ हिमानी
२००७ | हिमावती १८३५ हिरण्य
४२५
३९९
१५४०
३९५
३९९
१०४ / हिरुकू
19
२५५
२५५० | हिमवालुका १२८३ | हिमसंहति
""
100
www
33
...
...
अमरकोषशब्दानुक्रमकोशः
...
हिलमोचिका
79
ही .
२७९३
हिंसा हिंसाकर्मन्... २२८७ हीन
"3
हिंस
૨૦૮૬
हिका
२९१०
हुतभुक्मिया हुतभुज् १७८६ हुम
हिङ्गु हनिर्या
७७२
***
...
31
...
हिरण्यगर्भ ...
हिरण्यरेतस्
हिरण्यवाह
...
१७१
१८१
९२४ ***
...
...
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...
...
पंक्ति' शब्द '
२९३५ हूति
८७६
"
७७० हूहू हृणीया
९८७
१८. हृद् ૧
२९३८ | हृदय
**
१३३४
13 ***
"
हृदयंगम
हृदयालु
हृद्य
हृषीक
हृषीकेश
हृष्ट
हृष्टमानस
૧૮૮૭
१८८८ :
१८९४ ।
३२
११०
५३४
२८५४
२८६२
...
हेति
39
हेतु
हेमकूट
हेमदुग्धक
हेमन्
९६३/
""
२८६६ हेमन्त
२२३८
२५९०
१३९५
११० | हेमाद्रि २८४० | हेरम्ब २८८५ | हेला
...
...
...
...
| हेमपुष्पक
हेमपुष्पिका
...
...
...
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...
पंक्ति | शब्द
१२७ | हेवा २२६६ | है
१०४
२३१४
२७७
१२०२
...
हैमवती
19
19
२७७
""
१२०२ | हैयङ्गवीन ३४७ होतृ २०३१ | होम २१३१ होरा
२९२ | ह्यमू
२६. हद २२३० हसिष्ठ २०३९ हस्य
For Private and Personal Use Only
""
हस्वाङ्ग
हादिनी
19
**
१८९४
२९४०
२५० ही ७७५ हीन ७९१ हीत ९८ हीर
19
०६ हेवा ४२५ ह्लादिनी
समाप्तोऽयममरकोषस्थशब्दानुक्रमकोशः ।
...
...
२८६२ ११३ स्वगवेधुका
२४७६
२७१
६३९
६९२
...
...
...
...
***
...
...
...
...
...
....
...
...
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पंक्ति
१५६२
૨૮:૨
७२
७६७
८५४
२२४
१८११
१३८६
१३८०
२९१४
२८९२
५१०
२२४९
११६५
२१६५
૮૩
९३३
३
१६२
५२६
२५५९
४०८
२२०७
२२०७
८९२
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श्रीः
नामलिङ्गानुशासनं नाम
अमरकोषः
संक्षिप्तमाहेश्वरीटीकया समेतः
प्रथमं काण्डम्
१. मङ्गलाचरणम्
यस्य ज्ञानदयासिन्धोरगाधस्यानघा गुणाः सेव्यतामक्षयो धीराः स श्रिये चामृताय च
२. प्रस्तावना
समाहृत्यान्यतन्त्राणि संक्षिप्तैः प्रतिसंस्कृतैः संपूर्णमुच्यते वर्गैर्नामलिङ्गानुशासनम्
वन्दे तं परमानन्दं वामार्धेनोमया युतम् । रजौ भुजङ्गवद्यत्र विवरीवृत्यते जगत् ॥
२
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mo
१ - २. इह खलु श्रीमदमर सिंह चिकीर्षितस्य नामलिङ्गानुशासनस्य निर्विघ्नपरि समाप्त्यर्थं कृतं मङ्गलं ग्रन्थादौ शिष्यशिक्षार्थं निवध्नाति यस्येति । भो धीराः, अगाधस्यातिगम्भीरस्य ज्ञानदयासिन्धोर्ज्ञानकरुणयोः समुद्रस्य यस्यानघा निर्मला गुणाः क्षान्त्यादयः सन्ति, सोऽक्षयः श्रिये संपत्तयेऽमृताय मोक्षार्थं च भवद्भिः सेव्यतामाराध्यताम् ॥
३-४. अन्येषां तन्त्राणि शास्त्रान्तराणि समाहृत्यैकत्र कृत्वा संक्षिप्तैरल्पविस्तरबह्वर्थैः प्रतिसंस्कृतैः प्रतिपदं प्रकृतिप्रत्ययविचारेण कृतसंस्कारैर्वर्गैः सजातीयसमूहः संपूर्ण साङ्गोपाङ्ग नाम्नां स्वरित्यादीनां लिङ्गानां च स्त्री-पुं- नपुंसकाख्यानामनुशासनं व्युत्पादकं शास्त्रमुच्यते, मयेति शेषः ।
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भमरकोपे
[३. परिभाषा
३. परिभाषा प्रायशो रूपभेदेन साहचर्याच्च कुत्रचित् स्त्रीपुंनपुंसकं ज्ञेयं तद्विशेषविधेः कचित् भेदाख्यानाय न द्वन्द्वो नैकशेषो न संकरः कृतोऽत्र भिन्नलिङ्गानामनुक्तानां क्रमादृते त्रिलिजयां त्रिष्विति पदं मिथुने तु द्वयोरिति निषिद्धलिङ्गं शेषार्थ त्वन्ताथादि न पूर्वभाक्
१०
५-१०. अत्र प्रायशो बाहुल्येन रूपभेदेनाकारविशेषेण स्त्रीपुंनपुंसकं ज्ञेयम् । यथा-'लक्ष्मीः पद्मालया पद्मा' (५४) 'पिनाकोऽजगवं धनुः' (६९)। तथा कुत्रचित्साहचर्याच्छन्दान्तरसांनिध्याल्लिङ्गं नेयम् । यथा-'अश्वयुगश्विनी' (१८७) 'ब्रह्मात्मभूः सुरज्येष्ठः' (३१), "वियद्विष्णुपदम्' (१४५)। अत्र संदिग्धानि अश्वयुग्ब्रह्मवियन्ति' 'अश्विन्यात्मभूविष्णुपद'साहचर्यात्स्त्रीपुंनपुंसकलिङ्गानि । तथा क्वचित्तद्विशेषविधेर्लिङ्गविशेषोक्तेः । यथा-'मेरी श्री दुन्दुभिः पुमान् ( ३७३ ), 'क्लीबे त्रिविष्टपम्' (१२) । अत्रास्मिन्प्रन्थेऽनुक्तानामव्युत्पादितानां भिन्नलिङ्गानामसमानलिङ्गानां नाम्नां मेदाख्यानाय लिङ्गमेदं समाख्यातुं द्वन्द्वो न कृतः । यथा-'कुलिशं भिदुरं पविः' (९३)। न तु 'कुलिशभिदुरपवयः' इति । तथा एकशेषोऽपि न कृतः । यथा-'नभः खं श्रावणो नभाः' (२८८१) । न तु 'खश्रा. वणौ तु नभसी' इति। तथा क्रमाहते क्रम विना संकरोऽपि भिन्नलिङ्गानां मिश्रीभावोऽपि न कृतः। किंतु स्त्रीपुंनपुंसकानि क्रमेण पठितानि । यथा-'स्तवः स्तोत्रं नुतिः स्तुतिः' (३३३) इति, नतु 'स्तुतिः स्तोत्रं स्ववो नुतिः' इति । त्रिलिङ्गयां लिङ्गत्रयसमाहारे 'त्रिषु' इति पदमुक्तम् । यथा-'त्रिषु स्फुलिङ्गोऽमिकणः' (११४) । 'स्फुलिङ्ग'शब्दो लिङ्गत्रयेऽपि वर्तत इत्यर्थः । तथा मिथुने स्त्रीपुंसयोस्तु 'द्वयोः' इति पदम् । यथा-'वहेर्द्वयोर्खालकीलौ' (११३) । तथा निषिद्धलिङ्गं शेषार्थम् । यत्र लिङ्गं निषिद्धं तत्र तदवशिष्टं लिग झेयम् । यथा'व्योमयानं विमानोऽत्री' (९५)इत्यत्र श्रीलिङ्गे निषिद्धे विमानस्य पुनपुंसकविधिः । तथा 'तु'शब्दोऽते यस्य तत् 'त्वन्तम्' । 'अयशन्द आदिर्यस्य तत् 'भयादि ।
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प्रथमं काण्डम्
४. स्वर्गवर्ग:
स्वरव्ययं स्वर्गनाक त्रिदिवत्रिदशालयाः सुरलोको घोदिवौ द्वे स्त्रियां क्लीबे त्रिविष्टपम् अमरा निर्जरा देवास्त्रिदशा विबुधाः सुराः सुपर्वाणः सुमन सस्त्रिदिवेशा दिवौकसः आदितेया दिविषदो लेखा अदितिनन्दनाः आदित्या ऋभवोऽस्वमा अमर्त्या अमृतान्धसः बहिर्मुखाः ऋतुभुजो गीर्वाणा दानवारयः वृन्दारका दैवतानि पुंसि वा देवताः स्त्रियाम् आदित्यविश्ववसवस्तुषिताभास्वरानिलाः महाराजिकसाध्याश्च रुद्राश्च गणदेवताः
११
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२०
इदं द्वयं पूर्वभाक् न भवति पूर्वेण न संबध्यते । यथा - 'पुलोमजा शचीन्द्राणी नगरी त्वमरावती' ( ८९ ) इत्यत्र 'नगरी' इति त्वन्तं पदमिन्द्राण्या न संबध्यते, किं त्वमरावत्या संबर्द्धम् । तथा 'नित्यानवरता जस्रमप्यथातिशयो भर:' ( १३१ ) इति 'अथादि'पदं न पूर्वभाक् । किं तु भरस्य पर्यायः कृतः ॥
११-१४२. स्वः, स्वर्गः, नाकः, त्रिदिवः, त्रिदशालयः, सुरलोकः, द्यौः, द्यौः, त्रिविष्टपम्, इति ९ नामानि स्वर्गस्य । तत्र 'स्वर' इत्यव्ययम् । लिङ्गसंख्याकारकाभाववदित्यर्थः । 'द्योदिवो' द्वे स्त्रीलिङ्गे । 'त्रिविष्टपम्' क्लोबे नपुंसक एव ॥ - अमराः, निर्जराः, देवाः, त्रिदशाः, विबुधाः, सुराः, सुपर्वाणः, सुमनसः, त्रिदिवेशाः, दिवौकसः, आदितेयाः, दिविषदः, लेखाः, अदितिनन्दनाः, आदित्याः, ऋभवः, अस्वप्नाः, अमर्त्याः, अमृतान्धसः, बर्हिर्मुखाः, ऋतुभुजः, दानवारयः, वृन्दारकाः, दैवतानि देवताः इति २६ देवानाम् । व्यक्तिबाहुल्याद्बहुवचनप्रयोगः । विकल्पेन 'दैवत' शब्दः पुंसि । यथा - 'दैवतमिदम्, दैवतोऽयम्' इति । 'देवताः' त्रियाम् ॥ - आदित्याः, विश्वे, वसवः, तुषिताः,
गीर्वाणाः,
39
१०
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६४
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४९ २२०
१२
आभाखराः, अनिलाः, महाराजिकाः, साध्याः, रुद्राः, एता ९ गणदेवताः ॥ -
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अमरकोपे
[ ४. वर्गवर्गः विद्याधराप्सरोयक्षरक्षोगन्धर्वकिंनराः पिशाचो गुह्यकः सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः असुरा दैत्यदैतेयदनुजेन्द्रारिदानवाः शुक्रशिष्या दितिसुताः पूर्वदेवाः सुरद्विषः सर्वज्ञः सुगतो बुद्धो धर्मराजस्तथागतः समन्तभद्रो भगवान् मारजिल्लोकजिजिनः षडभिज्ञो दशबलोऽद्वयवादी विनायकः मुनीन्द्रः श्रीधनः शास्ता मुनिः शाक्यमुनिस्तु यः स शाक्यसिंहः सर्वार्थसिद्धः शौद्धोदनिश्च सः गौतमश्चार्कबन्धुश्च मायादेवीसुतश्च सः ब्रह्मात्मभूः सुरज्येष्ठः परमेष्ठी पितामहः हिरण्यगर्भो लोकेशः स्वयंभूश्चतुराननः धाताजयोनि हिणो विरिञ्चिः कमलासन: स्रष्टा प्रजापतिर्वेधा विधाता विश्वसृद्धिधिः
विद्याधराः, अप्सरसः, यक्षाः, रक्षांसि, गन्धर्वाः, किंनराः, पिशाचाः, गुह्यकाः, सिद्धाः, भताः, एता १० देवयोनिसंशकाः । जातावेकवचनानि ॥-असुराः, दैत्याः, दैतेयाः, दनुजाः, इन्द्रारयः, दानवाः, अशिष्याः, दितिसुताः, पूर्वदेवाः, सुरद्विषः, इत १० असुराणाम् ।।-सर्वज्ञः, सुगतः, बुद्धः, धर्मराजः, तथा. गतः, समन्तभद्रः, भगवान् , मारजित् , लोकजित् , जिनः, पडभिज्ञः, दशबलः, अद्वयवादी, विनायकः, मुनीन्द्रः, श्रीघनः, शास्ता, मुनिः, इति १८ बुद्धस्य ॥-शाक्यमुनिः, शाक्यसिंहः, सर्वार्थसिद्धः, शौद्धोदनिः, गौतमः, अर्कबन्धुः, मायादेवीसुतः, इति ७ बुद्धावान्तरभेदस्य शाक्यमुनेः ॥-ब्रह्मा, आत्मभूः, पुरज्येष्ठः, परमेष्टी, पितामहः, हिरण्यगर्भः, लोकेशः, स्वयंभूः, चतुराननः, धाता, अब्जयोनिः, द्रुहिणः, विरिञ्चिः, कमलासनः, स्रष्टा, प्रजापतिः, बंधाः,
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पतयः २१-४६] प्रथम काण्डम् 'नामिजन्माण्डजः पूर्वो निधनः कमलोद्भवः सदानन्दो रजोमूर्तिः सत्यको हंसवाहनः' विष्णुर्नारायणः कृष्णो वैकुण्ठो विष्टरश्रवाः दामोदरो हपीकेशः केशवो माधवः स्वभूः दैत्यारिः पुण्डरीकाक्षो गोविन्दो गरुडध्वजः पीताम्बरोऽच्युतः शाङ्गी विष्वक्सेनो जनार्दनः उपेन्द्र इन्द्रावरजश्चक्रपाणिश्चतुर्भुजः पद्मनाभो मधुरिपुर्वासुदेवस्त्रिविक्रमः देवकीनन्दनः शौरिः श्रीपतिः पुरुषोत्तमः वनमाली बलिध्वंसी कंसारातिरधोक्षजः विश्वंभरः कैटभजिद्विधुः श्रीवत्सलाञ्छनः 'पुराणपुरुषो यज्ञपुरुषो नरकान्तकः जलशायी विश्वरूपो मुकुन्दो मुरमर्दनः' वसुदेवोऽस्य जनकः स एवानकदुन्दुभिः बलभद्रः प्रलम्बनो वलदेवोऽच्युताग्रजः रेवतीरमणो रामः कामपालो हलायुधः विधाता, विश्वमृद, विधिः, इति २० ब्रह्मणः ॥-विष्णुः, नारायणः, कृष्णः, वैकुण्ठः, विष्टरश्रवाः, दामोदरः, हृषीकेशः, केशवः, माधवः, स्वभूः, दैत्यारिः, पुण्डरीकाक्षः, गोविन्दः, गरुडध्वजः, पीताम्बरः, अच्युतः, शागी, विष्वक्सेनः, जनार्दमः, उपेन्द्रः, इन्द्रावरजः, चक्रपाणिः, चतुर्भुजः, पद्मनाभः, मधुरिपुः, वासुदेवः, त्रिविक्रमः, देवकीनन्दनः, शौरिः, श्रीपतिः, पुरुषोत्तमः, वनमाली, बलिध्वंसी, कंसारातिः, अधोक्षजः, विश्वंभरः, कैटभजित् , विधुः, श्रीवत्सलाञ्छनः, इति ३९ विष्णोः ॥--अस्य कृष्णस्य जनकः पिता वसुदेवः । वसुदेव एवानकदुन्दुमिः । २ कृष्णपितुः ॥-बलभद्रः, प्रलम्बन्नः, बलदेवः, अच्यु. ताप्रजः, रेवतीरमणः, रामः, कामपालः, हलायुधः, नीलाम्बरः, रोहिणेयः,
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अमरकोषे
नीलाम्बरो रौहिणेयस्तालाङ्को मुसली हली संकर्षणः सीरपाणिः कालिन्दीभेदनो बलः मदनो मन्मथो मारः प्रद्युम्नो मीनकेतनः कंदर्पो दर्पकोऽनङ्गः कामः पञ्चशरः स्मरः शम्बरारिर्मनसिजः कुसुमेषुरनन्यजः पुष्पधन्वा रतिपतिर्मकरध्वज आत्मभूः 'अरविन्दमशोकं च चूतं च नवमल्लिका नीलोत्पलं च पञ्चैते पञ्चबाणस्य सायकाः उन्मादनस्तापनश्च शोषणः स्तम्भनस्तथा संमोहनश्च कामस्य पञ्च बाणाः प्रकीर्तिताः ब्रह्मसूर्विश्वकेतुः स्यादनिरुद्ध उषापतिः लक्ष्मीः पद्मालया पद्मा कमला श्रीहरिप्रिया 'इन्दिरा लोकमाता मा क्षीरोदतनया रमा भार्गवी लोकजननी क्षीरसागरकन्यका' शङ्खो लक्ष्मीपतेः पाञ्चजन्यश्चक्रं सुदर्शनम् कौमोदकी गदा खड्गो नन्दकः कौस्तुभो मणिः
[ ४. स्वर्गवर्गः
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,
तलाङ्कः, मुसली, हली, संकर्षणः, सीरपाणिः, कालिन्दीभेदन:, बल:, इति १७ बलरामस्य ॥ —— मदनः, मन्मथः, मारः, प्रद्युम्नः, मीनकेतनः, कंदर्पः, दर्पकः, अनङ्गः, कामः, पञ्चशरः, स्मरः, शम्बरारिः, मनसिजः, कुसुमेषुः, अनन्यजः, पुष्पधन्वा, रतिपतिः, मकरध्वजः, आत्मभूः इति १९ मदनस्य ॥ब्रह्मसूः, विश्वकेतुः, अनिरुद्धः, उषापतिः, इति ४ प्रद्युम्नसूनोः ॥ - लक्ष्मीः, पद्मालया, पद्मा, कमला, श्रीः, हरिप्रिया, इति ६ लक्ष्म्याः ॥-- - लक्ष्मीपतेर्विष्णोः शङ्खः पाञ्चजन्यः । तस्य चक्रं सुदर्शनम् । तस्य गदा कौमोदकी । तस्य खप्नो नन्दकः । तस्य मणिः कौस्तुभः ॥ - गरुत्मान्, गरुडः, तार्क्ष्यः, वैनतेयः,
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प्रथमं काण्डम्
पङ्कयः ४७-६९ ]
'चापः शार्ङ्ग मुरारेस्तु श्रीवत्सो लाञ्छनं स्मृतम् अश्वाश्च शैब्यसुग्रीवमेघपुष्पवलाहकाः सारथिर्दारुको मन्त्री ह्युद्धवश्चानुजो गदः ' गरुत्मान् गरुडस्तार्क्ष्यो वैनतेयः खगेश्वरः नागान्तको विष्णुरथः सुपर्णः पन्नगाशनः शंभुरीशः पशुपतिः शिवः शूली महेश्वरः ईश्वरः शर्व ईशानः शंकरश्चन्द्रशेखरः भूतेशः खण्डपरशुर्गिरीशो गिरिशो मृडः मृत्युंजयः कृत्तिवासाः पिनाकी प्रमथाधिपः उग्रः कपर्दी श्रीकण्ठः शितिकण्ठः कपालभृत् वामदेवो महादेवो विरूपाक्षस्त्रिलोचनः कृशानुरेताः सर्वज्ञो धूर्जटिर्नीललोहितः हरः स्मरहरो भर्गख्यम्बकस्त्रिपुरान्तकः गङ्गाधरोऽन्धकरिपुः क्रतुध्वंसी वृषध्वजः व्योमकेशो भवो भीमः स्थाणू रुद्र उमापतिः 'अहिर्बुध्योऽष्टमूर्तिश्च गजारिश्च महानटः' कपर्दोऽस्य जटाजूटः पिनाकोऽजगत्रं धनुः
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खगेश्वरः, नागान्तकः, विष्णुरथः, सुपर्णः, पन्नगाशनः, इति ९ गरुडस्य ॥शंभुः, ईशः, पशुपतिः, शिवः, शूली, महेश्वरः, ईश्वरः, शर्वः, ईशानः, शंकरः, चन्द्रशेखरः, भूतेशः, खण्डपरशुः, गिरीशः, गिरिशः, मृडः, मृत्युंजयः, कृतिवासाः, पिनाकी, प्रमथाधिपः, उग्रः, कपर्दी, श्रीकण्ठः, शितिकण्ठः, कपालभृत्, जामदेवः, महादेवः, विरूपाक्षः, त्रिलोचनः कृशानुरेताः, सर्वज्ञः, धूर्जटि:, नीललोहितः, हरः, स्मरहरः, भर्गः, त्र्यम्बकः, त्रिपुरान्तकः, गङ्गाधरः, अन्धक रिपुः, ऋतुध्वंसी, वृषध्वजः, व्योमकेशः, भवः, भीमः, स्थाणुः, रुद्रः, उमापतिः, इति ४८ शिवस्य ॥ - अस्य भोजटाजूटः कपर्दः । अस्य धनुः अजगवम् ।
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अमरकोषे
प्रमथाः स्युः पारिषदा ब्राह्मीत्याद्यास्तु मातरः 'ब्राह्मी माहेश्वरी चैव कौमारी वैष्णवी तथा वाराही च तथेन्द्राणी चामुण्डा सप्त मातरः' विभूतिभूतिरैश्वर्यमणिमादिकमष्टधा 'अणिमा महिमा चैव गरिमा लघिमा तथा प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः' उमा कात्यायनी गौरी काली हैमवतीश्वरी शिवा भवानी रुद्राणी शर्वाणी सर्वमङ्गला अपर्णा पार्वती दुर्गा मृडानी चण्डिकाम्बिका 'आर्या दाक्षायणी चैव गिरिजा मेनकात्मजा कर्ममोटी तु चामुण्डा चर्ममुण्डा तु चर्चिका' विनायको विघ्नराजद्वैमातुरगणाधिपाः अप्येकदन्तहेरम्बलम्वोदरगजाननाः
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कार्तिकेयो महासेनः शरजन्मा षडाननः पार्वतीनन्दनः स्कन्दः सेनानीरग्निभूगुहः बाहुलेयस्तारक जिद्विशाखः शिखिवाहनः
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[ ४. स्वर्गवर्गः
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तव पिनाक इत्यपि । अस्य पारिषदाः परिषदि साधवः प्रमथाः ब्राह्मीव्यायामातरः ॥ - विभूतिः, भूतिः, ऐश्वर्यम् इति ३ ऐश्वर्यस्य । तत्तु 'अणिमा' इत्यादिभेदैरष्टविधम् ॥ उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हम बती, ईश्वरा, शिवा भवानी, रुद्राणी, शर्वाणी, सर्वमङ्गला, अपर्णा, पार्वती. दुर्गा, गृदानी, चण्डिका, अम्बिका, इति १७ पार्वत्याः ॥ रामः वैगातुरः, गणाधिपः, एकदन्तः, हेरम्बः, लम्वोदरः, गणेशस्य ॥ - कार्तिकेयः, महासेनः शरजन्मा, षडाननः, पार्वतीनन्दनः,
विनायकः, विन
गजाननः, इति ८
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पतयः ७०-९२]
प्रथमं काण्डम्
0000१७१४
पाण्मातुरः शक्तिधरः कुमारः क्रौञ्चदारणः 'शृङ्गी भृङ्गी रिटिस्तुण्डी नन्दिको नन्दिकेश्वरः' इन्द्रो मरुत्वान् मघवा बिडोजाः पाकशासनः वृद्धश्रवाः सुनासीरः पुरुहूतः पुरंदरः ।। जिष्णुर्लेखर्षभः शक्रः शतमन्युर्दिवस्पतिः सुत्रामा गोत्रभिद्वज्री वासवो वृत्रहा वृषा वास्तोप्पतिः सुरपतिर्वलारातिः शचीपतिः जम्भभेदी हरिहयः स्वारानमुचिसूदनः संक्रन्दनो दुश्चयवनस्तुराषाणमेघवाहनः आखण्डलः सहस्राक्ष ऋभुक्षास्तस्य तु प्रिया पुलोमजा शचीन्द्राणी नगरी त्वमरावती हय उच्चैःश्रवा सूतो मातलिनन्दनं वनम् स्यात्प्रासादो वैजयन्तो जयन्तः पाकशासनिः ऐरावतोऽभ्रमातङ्गैरावणाभ्रमुवल्लभाः स्कन्दः, सेनानीः, अग्निभूः, गुहः, बाहुलेयः, तारकजित् , विशाखः, शिखिवाहनः, पाण्मातुरः, शक्तिधरः, कुमारः, क्रौञ्चदारणः, इति १७ स्कन्दस्य शंगी, भंगी, रिटिः, तुंडी, नन्दिकः, नन्दिकेश्वरः, इति ६ नन्दिनः ॥~-इन्द्रः, मरुत्वान , मघवा, बिडोजाः, पाकशासनः, वृद्धश्रवाः, सुनासीरः, पुरुहूतः, पुरंदरः, जिष्णुः, लेखर्षभः, शक्रः, शतमन्युः, दिवस्पतिः, सुत्रामा, गोत्रभित् , व न्री, वासवः, वृत्रहा, वृषा, वास्तोष्पतिः, सुरपतिः, बलारातिः, शचीपतिः, जम्मभेदी, हरिह्यः, म्वाराद, नमुचिसूदनः, संक्रन्दनः, दुश्यवनः, तुरापाद , मेघवाहनः, आखण्डलः, सहस्राक्षः, ऋभुक्षाः, इति ३५ इन्द्रस्य ॥-तम्येन्द्रस्य प्रिया तु पुलोमजेत्युत्तरेण संवन्धः । पुलोमजा, शची, इन्द्राणी, इति ३ इन्द्रप्रियायाः । इन्द्रस्य नगरी तु अमरावती। तस्य हयोऽश्व उच्चैःश्रवाः । तम्य सूतः सारथिः मातलिः । तस्य वनमुपवनं नन्दनम् । तस्य प्रासादो गृहविशेषो वैजयन्तः।।-जयन्तः, पाकशासनिः, इति २ इन्द्रपुत्रस्य ॥-ऐरावतः, अभ्रमातङ्गः, ऐरावणः, अभ्रमुवल्लभः, इति ४ ऐराव
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ममरकोषे
[४. स्वर्गवर्गः
हादिनी वज्रमस्त्री स्यात्कुलिशं भिदुरं पविः शतकोटिः स्वरुः शम्बो दम्भोलिरशनियोः व्योमयानं विमानोऽस्त्री नारदाद्याः सुरर्षयः स्यात्सुधर्मा देवसभा पीयूषममृतं सुधा मन्दाकिनी वियद्गङ्गा स्वर्णदी सुरदीर्घिका मेरुः सुमेरुहेमाद्री रत्नसानुः सुरालयः पञ्चैते देवतरवोः मन्दारः पारिजातकः संतानः कल्पवृक्षश्च पुंसि वा हरिचन्दनम् सनत्कुमारो वैधात्रः स्वर्वैद्यावश्विनीसुतौ नासत्यावश्विनौ दस्रावाश्विनेयौ च तावुभौ स्त्रियां बहुष्वप्सरसः स्वर्वेश्या उर्वशीमुखाः
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१०१ १०२ १०३
तस्य ॥-हादिनी, वज्रम् , कुलिशम् , भिदुरम् , पविः, शतकोटिः, खरुः, शम्बः, दम्भोलिः, अशनिः, इति १० वजस्य । तत्र 'हादिनी' स्त्री । वज्रम् , अस्त्री पुंनपुंसकलिङ्गम् । 'पथ्यादयः' पुंसि । 'अशनिः' द्वयोः स्त्रीपुंसयोः ॥व्योमयानम् , विमानः, इति २ विमानस्य । तत्र 'विमानः' पुंसि क्लीबे च ॥नारदाद्याः सुरर्षयः। 'आदि' शब्देन तुम्बुरु-भरत-पर्वत-देवलादयः ॥-सुधर्मा, देवसभा, इति २ देवसभायाः ॥-पीयूषम् , अमृतम् , सुधा, इति ३ अमृ. तस्य ॥ मन्दाकिनी, वियद्गङ्गा, वर्णदी, सुरदीर्घिका, इति ४ मन्दाकिन्याः ॥-मेरुः, सुमेरुः, हेमादिः, रनसानुः, सुरालयः, इति ५ कनकाचलस्य li-मन्दारः, पारिजातकः, संतानः, कल्पवृक्षः, हरिचन्दनम्, एते ५ देवतरवः । तत्र 'हरिचन्दनम्'. क्लीबपुंसोः ॥-सनत्कुमारः, वैधात्रः, इति २ सनकादेः ॥-वैद्यो; अश्विनीसुतौ, नासत्यौ, अश्विनी, दलौ, आश्विनेयो, इति ६ अश्विनीकुमारयोः । तावुभौ यमलो, अत एव द्विवचनम् ॥-उर्वशीमुखाः 'उर्वशी' इत्याद्या अप्सरसः, खर्वेश्याः, इति चोच्यन्ते । अत्र 'अप्सरसः'.
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प्रथमं काण्डम्
पक्कयः ९३ - ११४]
'घृताची मेनका रम्भा उर्वशी च तिलोत्तमा सुकेशी मघोषाद्याः कथ्यन्तेऽप्सरसो बुधैः' हाहा हूहूश्चैवमाद्या गन्धर्वास्त्रिदिवौकसाम् अग्निर्वैश्वानरो वह्निवतिहोत्रो धनंजयः कृपीटयोनिर्ज्वलनो जातवेदास्तनूनपात् बर्हिः शुष्मा कृष्णवर्त्मा शोचिष्केश उषर्बुधः आश्रयाशो बृहद्भानुः कृशानुः पावकोऽनलः रोहिताश्व वायुखः शिखावानाशुशुक्षणिः हिरण्यरेता हुतभुग्दहनो हव्यवाहनः सप्तार्चिर्दमुनाः शुक्रश्चित्रभानुर्विभावसुः शुचिरप्पित्तमौर्वस्तु वाडवो वडवानलः वह्नेर्द्वयोज्वलकीलावर्चिर्हेतिः शिखा स्त्रियाम् त्रिषु स्फुलिङ्गोऽग्निकणः संतापः संज्वरः समौ 'उल्का स्यान्निर्गतज्वाला भूतिर्भसितभस्मनी क्षारो रक्षा च दावस्तु दवो वनहुताशनः'
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URANING
"
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शब्द एकस्यामपि व्यक्ती बहुवचनान्तः स्त्रीलिङ्गः ॥ हाहाः, हूहूः, एवमाद्यौ येषां ते तथा त्रिदिवौकसां देवानां गन्धर्वा गायनाः । 'आद्य' शब्दात्तुम्बुरु-विश्वावसु-चित्ररथः कृतयः ॥ अग्निः वैश्वानरः, वह्निः, वीतिहोत्रः, धनंजयः, कृपीटयोनिः, ज्वलनः, जातवेदाः, तनूनपात्, बर्हिः, शुष्मा, कृष्णवर्त्मा, शोचि - केशः, उषर्बुधः, आश्रयाशः, बृहद्भानुः, कृशानुः पावकः, अनलः, रोहिताश्वः, वायुसखः, शिखावान्, आशुशुक्षणिः, हिरण्यरेताः, हुतभुक्, दहनः, हव्यवाहनः, सप्तार्चिः, दमुनाः, शुक्रः, चित्रभानुः, विभावसुः, शुचिः, अप्पित्तम्, इति ३४ अग्नेः ॥ और्वः, वाडवः, वडवानलः, इति ३ वाडवाग्नेः ॥ ज्वालः, कील:, अर्चिः, हेतिः, शिखा, इति ५ वह्नेरर्चिषः । तत्र 'ज्वालकीलौ' स्त्रीपुंसयोः, 'अर्चिः' स्त्रीनपुंसकयोः, 'हेतिशिखे' स्त्रियाम् ॥ स्फुलिङ्गः, अग्निकणः,
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१२४
माजरकोषे
[४. खर्गवर्गः धर्मराजः पितृपतिः समवर्ती परेतराट्
११५ कृतान्तो यमुनाभ्राता शमनो यमराड् यमः ११६ कालो दण्डधरः श्राद्धदेवो वैवस्वतोऽन्तकः ११७ राक्षसः कौणपः क्रव्यात् क्रव्यादोऽस्रप आशरः रात्रिंचरो रात्रिचरः कर्बुरो निकषात्मजः
११९ यातुधानः पुण्यजनो नैर्ऋतो यातुरक्षसी
१२० प्रचेता वरुणः पाशी यादसांपतिरप्पतिः
१२१ श्वसनः स्पर्शनो वायुर्मातरिश्वा सदागतिः पृषदश्वो गन्धवहो गन्धवाहानिलाशुगाः समीरमारुतमरुज्जगत्प्राणसमीरणाः नभस्वद्वातपवनपवमानप्रभञ्जनाः 'प्रकम्पनो महावातो झंझावातः सवृष्टिक'
** प्राणोऽपानः समानश्चोदानव्यानौ च वायवः १२६ 'हृदि प्राणो गुदेऽपानः समानो नाभिमण्डले ** उदानः कण्ठदेशे स्याध्यानः सर्वशरीरगः'
** इति २ अग्नेः कणिकायाम् । त्रिपु लिङ्गत्रये ॥-संतापः, संज्वरः, इति २ अग्नेः संतापे ॥-धर्मराजः, पितृपतिः, समवर्ती, परेतराद, कृतान्तः, यमुनाभ्राता, शमनः, यमराट्, यमः, कालः, दण्डधरः, श्राद्धदेवः, वैवखतः, अन्तकः, इति १४ यमस्य ॥-राक्षसः, कोणपः, क्रव्यात् , क्रव्यादः, अखपः, आशरः, रात्रिंचरः, रात्रिचरः, कर्बुरः, निकषात्मजः, यातुधानः, पुण्यजनः, नेऋतः, यातु, रक्षः, इति १५ राक्षसस्य । तत्र 'यातुरक्षसी' नपुंसके ॥-प्रचेताः, वरुणः, पाशी, यादसांपतिः, अप्पतिः, इति ५ वरुणस्य ॥ श्वसनः, स्पर्शनः, वायुः, मातरिश्वा, सदागतिः, पृषदश्वः, गन्धवहः, गन्धवाहः. अनिलः, आशुगः, समीरः, मारुतः, मरुत् , जगत्प्राणः, समीरणः, नभम्वान् , वातः, पवनः, पवमानः, प्रभजनः, इति २० वायोः ॥प्रागः, अपानः, समानः, उदानः, व्यानः, इमे ५ शरीरस्था वायुमेदाः॥
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पतयः ११५-१३८]
प्रथमं काण्डम्
शरीरस्था इमे रंहस्तरसी तु रयः स्यदः जवोऽथ शीघ्रं त्वरितं लघु क्षिप्रमरं द्रुतम् सत्वरं चपलं तूर्णमविलम्बितमाशु च सततानारताश्रान्तसंतताविरतानिशम् नित्यानवरताजस्रमप्यथातिशयो भरः अतिवेलभृशात्यतिमात्रोद्गाढनिर्भरम् तीव्रकान्तनितान्तानि गाढबाढढानि च कीबे शीघ्राद्यसत्त्वे स्यात्रिष्वेषां सत्त्वगामि यत् कुबेरख्यम्बकसखो यक्षराङ्गाकेश्वरः मनुष्यधर्मा धनदो राजराजो धनाधिपः किंनरेशो वैश्रवणः पौलस्त्यो नरवाहनः यक्षकपिङ्गैलविलश्रीदपुण्यजनेश्वराः
१२७ १२८ १२९ १३० १३१ १३२ १३३
१३४
१३५ १३६ १३७ १३८
रंहः, तरः, रयः, स्यदः, जवः, इति ५ वेगस्य ॥-शीघ्रम् , त्वरितम् , लघु, क्षिप्रम् , अरम् , द्रुतम् , सत्वरम् , चपलम् , तूर्णम् , अविलम्बितम् , आशु, इति ११ त्वरितस्य ॥-सततम् , अनारतम् , अश्रान्तम् , संततम् , अविरतम् , अनिशम् , नित्यम् , अनवरतम् , अजस्रम् , इति ९ नित्यत्य ॥-अतिशयः, भरः, अतिवेलम् , भृशम् , अत्यर्थम् , अतिमात्रम् , उद्गाढम् , निर्भरम् , तीव्रम् , एकान्तम् , नितान्तम् , गाढम् , बाढम् , दृढम् , इति १४ अतिशयस्य ॥-शीघ्रादि 'शीघ्रं त्वरितम्', (१२८) इत्यारभ्य 'दृढ' शब्द (१३३) पर्यन्तं क्लीबे नपुंसकलिङ्गे यदुक्तम् , तत्त्वसत्त्वे द्रव्यवृत्तित्वाभाव एव ज्ञेयम् । यथा---'शीघ्रं कृतवान्', "भृशं मूर्खः', 'भृशं याति'। एषां शीघ्रादीनां मध्ये यत्सत्त्वगामि द्रव्यवृत्ति, तत्रिषु । तस्य द्रव्यस्य यल्लिङ्गं तदेवास्थेत्यर्थः । यथा-'शीघ्रा धेनुः', 'शीघ्रो वृषः', 'शीघ्रं गमनम्' । भरातिशययोः सत्त्वगामित्वं नास्ति । नित्यं पुंस्त्वम् ।।-कुबेरः, त्र्यम्बकसखः, यक्षराद, गुह्यकेश्वरः, मनुष्यधर्मा, धनदः, राजराजः, धनाधिपः, किंनरेशः, वैश्रवणः, पौलस्त्यः, नरवाहनः, यक्षः, एकपिङ्गः, ऐलविलः,श्रीदः, पुण्यजनेश्वरः, इति १७ कुबेरस्य ।
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अमरकोषे
अस्योद्यानं चैत्ररथं पुत्रस्तु नलकूबरः कैलासः स्थानमलका पूर्विमानं तु पुष्पकम् स्यात्किंनरः किंपुरुषस्तुरंगवदनो मयुः निधिनी शेवधिर्भेदाः पद्मशङ्कादयो निधेः 'महापद्मश्च पद्मश्च शङ्खो मकरकच्छपौ मुकुन्दकुन्दनीलाश्च खर्वश्च निधयो नव' ५. व्योमवर्ग:
द्योदिवौ द्वे स्त्रियामत्रं व्योम पुष्करमम्बरम् नभोऽन्तरिक्षं गगनमनन्तं सुरवर्त्म खम् वियद्विष्णुपदं वा तु पुंस्याकाशविहायसी 'विहायसोऽपि नाकोऽपि धुरपि स्यात्तदव्ययम् तारापथोऽन्तरिक्षं च मेघाध्वा च महाबिलम् विहायाः शकुने पुंसि गगने पुंनपुंसकम् ६. दिग्वर्गः
दिशस्तु ककुभः काष्ठा आशाश्च हरितश्च ताः प्राच्यवाचीप्रतीच्यस्ताः पूर्वदक्षिणपश्चिमाः
[ ६. दिग्वर्गः
१३९
१४०
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**
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१४५
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अस्य कुबेरस्योद्यानं चैत्ररथम् । अस्य पुत्रो नलकूबरः । अस्य स्थान कैलासः । अस्य पूर्नगरम् अलका । अस्य विमानं पुष्पकम् ॥ - किंनरः, किंपुरुषः, तुरंगवदनः मयुः, इति ४ किंनरमात्रस्य ॥ - निधिः, शेवधिः, इति २ सामान्यनिधेः । ना पुंलिङ्गः । काकाक्षिवदुभयत्रास्य संबन्धः ॥ - पद्मः, शङ्खः, इत्यादयो निधेर्भेदाः ॥
१४३-१४५.द्यौः, द्यौः, अभ्रम्, व्योम, पुष्करम्, अम्बरम्, नभः, अन्तरिक्षम्, गगनम्, अनन्तम्, सुरवर्त्म, खम्, वियत्, विष्णुपदम्, आकाशम्, विहायः, इति १६ आकाशस्य । तत्र 'योदिवौ' स्त्रीलिङ्गे । 'आकाशविहायसी' क्लीबपुंसोः । शेषं लोबे ॥
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"
१४६-२१५. दिशः, ककुभः काष्ठाः, आशा, हरितः, इति ५ दिशाम् । ताः पूर्वदक्षिणपश्चिमाः क्रमेण प्राची - अवाची प्रतीच्यः स्युः । यथा - पूर्वा
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पङ्क्लयः १३९-१६५]
प्रथमं काण्डम् |
उत्तरा दिगुदीची स्याद्दिशं तु त्रिषु दिग्भवे 'अवाग्भवमवाचीनमुदीचीनमुदग्भवम् प्रत्यग्भवं प्रतीचीनं प्राचीनं प्राग्भवं त्रिषु' इन्द्रो वह्निः पितृपतिर्नैर्ऋतो वरुणो मरुत् कुबेर ईशः पतयः पूर्वादीनां दिशां क्रमात् 'रविः शुक्रो महीसूनुः स्वर्भानुर्भानुजो विधुः बुधो बृहस्पतिश्चेति दिशां चैव तथा ग्रहाः " ऐरावतः पुण्डरीको वामनः कुमुदोऽञ्जनः पुष्पदन्तः सार्वभौमः सुप्रतीकश्च दिग्गजाः करिण्योऽभ्रमुकपिलापिङ्गलानुपमाः क्रमात् ताम्रकर्णी शुभ्रदन्ती चाङ्गना चाञ्जनावती क्लीबाव्ययं त्वपदिशं दिशोर्मध्ये विदिक् स्त्रियाम् अभ्यन्तरं त्वन्तरालं चक्रवालं तु मण्डलम् अभ्रं मेघो वारिवाहः स्तनयित्नुर्बलाहकः धाराधरो जलधरस्तडित्वान् वारिदोऽम्बुभृत्
१५
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१४८
**
***
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-
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दिक् प्राची । दक्षिणा दिक् अवाची। पश्चिमा दिक् प्रतीची। उत्तरा दिक् उदीची ॥ - दिश्यमिति दिग्भवे । तत्रिषु वाच्यलिङ्गम् । यथा - 'दिश्यो हस्ती', 'दिश्या हस्तिनी' इत्यादि ॥ – इन्द्रः, वह्निः, पितृपतिः, नैर्ऋतः, वरुणः, मरुतू, कुबेरः, ईशः, इति ८ क्रमात्पूर्वादीनां दिशां पतयः ॥ ऐरावतः, पुण्डरीकः, वामनः कुमुदः, अञ्जनः, पुष्पदन्तः, सार्वभौमः, सुप्रतीकः, इति ८ क्रमात् दिग्गजाः । पूर्वादिदिशां धारका गजा इत्यर्थः ॥ - अभ्रमुः, कपिला, पिङ्गला, अनुपमा, ताम्रकर्णी, शुभ्रदन्ती, अङ्गना, अञ्जनावती, एताः ८ करिण्यः । क्रमात् दिग्गजानां स्त्रिय इत्यर्थः ॥ अपदिशम्, विदिक्, इति २ दिशोर्मध्ये दिग्द्वयमध्यभागे । तत्र 'अपदिशम्' क्लीबाव्ययम् । नपुंसकमव्ययं चेत्यर्थः । 'विदिक्' स्त्रियाम् ॥ अभ्यन्तरम्, अन्तरालम्, इति २ अन्तरवकाशस्य ॥ चक्रवालम्, मण्डलम् इति २ मण्डलस्य ॥-अभ्रम्, मेघः, वारिवाहः, स्तनयित्नुः, बलाहकः, धाराधरः, जलधरः,
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घनजीमूतमुदिरजलमुग्धूमयोनयः कादम्बिनी मेघमाला त्रिषु मेघभवेऽस्त्रियम् स्तनितं गर्जितं मेघनिर्घोषे रसितादि च शंपाशतह्रदाहादिन्यैरावत्यः क्षणप्रभा तडित्सौदामनी विद्युच्चञ्चला चपला अपि स्फूर्जथुर्वज्रनिर्घोषो मेघज्योतिरिरंमदः इन्द्रायुधं शक्रधनुस्तदेव ऋजुरोहितम् वृष्टिर्वर्ष तद्विघातेऽवग्राह
धारासंपात आसारः शीकरोऽम्बुकणाः स्मृताः वर्षोपलस्तु करका मेघच्छन्नेऽह्नि दुर्दिनम् अन्तर्धा व्यवधा पुंसि त्वन्तर्धिर पवारणम्
·
[ ६. दिग्वर्गः
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तडित्वान्, वारिदः, अम्बुभृत्, घन:, जीमूतः, मुदिरः, जलमुक्, धूमयोनिः, इति १५ मेघस्य ॥ —- कादम्बिनी, मेघमाला, इति २ मेघवृन्दस्य ॥ - अभ्रियमिति hara | त्रिषु । यथा - 'अम्रिया आप : ' 'अभ्रिय आसारः', 'अश्रियं जलम्' ॥ -- स्तनितम्, गर्जितम्, रसितम् इति ३ मेघनिर्घोषे । आदिशब्दाद्धनितादि ॥ शंपा, शतह्रदा, हादिनी, ऐरावती, क्षणप्रभा, तडित, सौदामनी, विद्युत्, चञ्चला, चपला, इति १० विद्युल्लतायाः । स्फूर्जथुः वज्रनिर्घोषः, इति २ अशनिनिर्घोषस्य ॥ मेघज्योतिः, इरंमदः, इति २ मेघज्योतिषः ॥ इन्द्रायुधम् शक्रधनुः, ऋजुरोहितम् इति ३ मेघप्रतिफलिता रविरश्मयो धनुराकारेण भान्ति तस्य धनुषः ॥ वृष्टिः, वर्षम्, इति २ मेघवर्षणस्य ॥ - अवग्राहः अवग्रहः, इति २ तद्विघाते वर्ष निरोधे ॥ धा संपातः, आसारः, इति २ मेघधाराणां निरन्तरपतनस्य ॥ - शीकर इति
,
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सृतानां वायुनेतस्ततः प्रेरितानामम्बुकणानाम् ॥ वर्षोपलः, करका, इति २ यत्प्रथमवृष्टौ मेघोदकं कठिनं सदुपलवत् पतति तस्य ॥ - दुर्दिनमिति १ मेघच्छने दिने ॥ - अन्तर्धा, व्यवधा, अन्तर्थिः, अपवारणम्,
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पतयः १५९-१८१]
प्रथमं काण्डम्
अपिधानतिरोधानपिधानाच्छादनानि च
१७०हिमांशुश्चन्द्रमाश्चन्द्र इन्दुः कुमुदबान्धवः
१७१ विधुः सुधांशुः शुभ्रांशुरोषधीशो निशापतिः १७२ अजो जैवातृकः सोमो ग्लौमूंगाङ्कः कलानिधिः १७३ द्विजराजः शशधरो नक्षत्रेशः क्षपाकरः
१७४ कला तु पोडशो भागो विम्बोऽस्त्री मण्डलं त्रिषु । १७५ भित्तं शकलखण्डे वा पुंस्योऽधं समंऽशके चन्द्रिका कौमुदी ज्योत्स्ना प्रसादस्तु प्रसन्नता कलङ्काको लाञ्छनं च चिह्न लक्ष्म च लक्षणम् १७८ सुषमा परमा शोभा शोभा कान्तिद्युतिश्छविः अवश्यायस्तु नीहारस्तुषारस्तुहिनं हिमम्
१८० प्रालेयं मिहिका चाथ हिमानी हिमसंहतिः
१८२ अपिधानम् , तिरोधानम् , पिधानम , आच्छादनम् , इति ८ आच्छादनस्य । तत्र 'अन्तर्धाव्यवधे' स्त्रियाम् । 'अन्तधिः' पुंसि ॥---हिमांशुः, चन्द्रमाः, चन्द्रः, इन्दुः, कुमुदबान्धवः, विधुः, सुधांशुः, शुभ्रांशुः, ओषधीशः, निशापतिः, अब्जः, जैवातृकः, सोमः, ग्लौः, मृगाङ्कः, कलानिधिः, द्विजराजः, शशधरः, नक्षत्रेशः, क्षपाकरः, इति २० चन्द्रस्य ॥--चन्द्रमण्डलस्य षोडशो भागः कलासंज्ञः ।।--बिम्बः, मण्डलम्, इति २ विम्बस्य ॥-भित्तम् , शकलम् , खण्डम् , अर्धम् , इति ४ शकलस्य ॥ तत्र 'भित्तम्' नपुंसकम् । तत्र 'शकल. खण्डे' क्लीब-पुंसोः । 'अधः' पुंस्येव । यथा--कम्बलस्याधेः; खण्ड इत्यर्थः । वाच्यलिङ्गोऽपि यथा---'अर्धा शाटी', 'अर्धः पटः', 'अर्ध वस्त्रम्' ॥-अर्धमिति १ समेंऽशके विभागे। तन्नपुंसकमेव ॥-चन्द्रिका, कौमुदी, ज्योत्स्ना, इति ३ चन्द्रप्रभायाः ॥-प्रसादः, प्रसन्नता, इति २ नैर्मल्यस्य ॥कलङ्कः, अङ्कः, लाञ्छनम् , चिह्नम् , लक्ष्म , लक्षणम् , इति ६ चिह्नस्य ।।सुषमेति १ परमायाः शोभायाः ॥--शोभा, कान्तिः, द्युतिः, छविः, इति ४ शोभामात्रस्य ।।-अवश्यायः, नीहारः, तुषारः, तुहिनम् , हिमम् , प्रालेयम् , मिहिका, इति ७ हिमस्य ॥-हिमानी, हिमनंहात, ते २ महतो
अ. को. स. २
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[६. दिग्वर्गः शीतं गुणे तद्वदर्थाः सुपीमः शिशिरो जडः १८२ तुषारः शीतलः शीतो हिमः सप्तान्यलिङ्गकाः १८३ ध्रुव औत्तानपादिः स्यादगस्त्यः कुम्भसंभवः १८४ मैत्रावरुणिरस्यैव लोपामुद्रा सधर्मिणी नक्षत्रमृक्षं भं तारा तारकाप्युडु वा स्त्रियाम् १८६ दाक्षायण्योऽश्विनीत्यादितारा अश्वयुगश्विनी १८७ राधा विशाखा पुष्ये तु सिध्यतिष्यौ श्रविष्ठया १८८ समा धनिष्ठाः स्युः प्रोष्ठपदा भाद्रपदाः स्त्रियः मृगशीर्ष मृगशिरस्तस्मिन्नेवाग्रहायणी हिमस्य ।-नपुंसकलिङ्गः 'शीत' शब्दश्च गुणे स्पर्शविशेष एव, न तु गुणिनि ॥-सुषीनः, शिशिरः, जडः, तुषारः, शीतलः, शीतः, हिमः, एते ७ तद्वदर्थास्तद्वान् शीतगुणवानर्थो येषां ते तथा । तं चायलिङ्गका विशेष्यनिन्नाः । 'तुषारहिम शीत'शब्दा निरूढलक्षणया गुणिन्यपि वर्तन्त इत्युभयत्र पाठताः ॥-बुवः,
ओत्तानपादिः, इति २ उत्तानपादपुत्रस्य ॥-अगस्त्यः, कुम्भसंभवः, मेत्रावरुणिः, इति ३ अगस्त्यस्य ॥-अस्यागस्त्यस्य सधर्मिणी पत्नी लोपामुद्रा ॥-नक्षत्रम् , ऋक्षम् , भम् , तारा, तारका, उडु, इति ६ नक्षत्रमात्रस्य । 'उडु' स्त्री-नपुंसकयोः। 'अपि'शब्दात्तारकाऽपि तथा ॥-अश्विनीत्यादितारा अश्विन्यादि (अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्षम् , आर्द्रा, पुनर्वसुः, पुष्यः, आश्लेषा, मघा, पूर्वा, उत्तरा, हस्तः, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूलम् , पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवणः, धनिष्ठा, शततारका, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, इति) २७ नक्षत्राणि दाक्षायणीसंज्ञकानि ॥-अश्वयुक, अश्विनी, इति २ अश्विन्याः ॥-राधा, विशाखा, इति २ विशाखायाः ॥-पुष्यः, सिध्यः, तिष्यः, इति ३ पुष्यस्य ॥–श्रविष्ठा, धनिष्ठा, इति २ धनिष्ठायाः ॥ श्रविष्ठया समा श्रवेष्ठातुल्येत्यर्थः।--प्रोष्ठपदाः, भाद्रपदाः, इति २ पूर्वाभाद्रपदोत्तराभाद्रपदासु ॥ पूर्वे प्रोष्ठपदे द्वे, उत्तरे च द्वे । एवं चतुःसंख्याकत्वाद्बहुवचनम् । स्त्रियः स्त्रीलिङ्गाः स्युः ॥-भृगशीर्षम् , मृगशिरः, आग्रहायणी, इति ३ मृगशीर्षस्य ॥ तस्य मृगशीर्षस्य शिरोदेशे याः पञ्च तारका
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पइयः १८२
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प्रथमं काण्डम्
इल्लास्तच्छिरोदेशे तारका निवसन्ति याः बृहस्पतिः सुराचार्या गीर्पतिर्धिपणो गुरुः जीव आङ्गिरसो वाचस्पतिचित्रशिखण्डिजः शुक्रो दैत्यगुरुः काव्य उशना भार्गवः कविः अङ्गारकः कुजो भौमो लोहिताङ्गो महीसुतः रौहिणेयो बुधः सौम्यः समौ सौरिशनैश्वरौ तमस्तुराः स्वर्भानुः सैंहिकेयो विधुंतुदः समर्पया मरीच्यत्रिमुखाश्चित्रशिखण्डिनः राशीनामुदयो लग्नं ते तु मेपवृषादयः सूरसूर्यार्यमादित्यद्वादशात्मदिवाकराः भास्कराहस्करवनप्रभाकरविभाकराः
भास्वद्विवस्वत्सप्ताश्वहरिदश्वोष्णरश्मयः
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स्तारा निवसन्ति ता इल्वलाः ॥ वृहस्पतिः, मराचार्यः, गीपतिः, विषणः, गुरुः, जीवः, आङ्गिरसः, वाचस्पतिः, चित्रशिखण्डिनः, इनि ९ बृहस्पतेः ॥शुक्रः, दत्यगुरुः, काव्यः, उानाः, भार्गवः, कविः इति ६ शुक्रस्य ॥ उशनाः इति सान्तम् ॥ - अङ्गारकः, कुजः, भौमः, लोहिताङ्गः, महीमुत:, इति ५ मङ्गलस्य ॥ - रौहिणेयः, बुधः सौभ्यः, इति ३ बुधस्य ॥ सौरिः, शनश्वरः, इति २ शनैः ॥ - तमः, राहुः, स्वर्भानुः, सैंहिकेयः, विधुंतुदः, इति " राहोः । तमः सान्तं लबे पुंसि च क्वचित् ॥ मरीचिमुखाः सप्तर्षयः चित्रशिखण्डि संज्ञा: । ' मुख' शब्दात् पुलस्त्यादयः । 'मरीचिरङ्गिरा अत्रिः पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः । वसिष्ठति सप्तते ज्ञेयाचित्रशिखण्डिनः ॥ - राशीनामुदयो लग्नम् उत्युच्यतं ॥ - पत्रादयो राशयः स्युः । आदिना मिथुन कर्कटकादयः । 'मेवो वृषोऽथ मिथुनं कर्कटः सिंहकन्यके । तुला च त्रविको धन्वी मकरः कुम्भमीनकी' ॥ - सूरः, सूर्यः, अर्यमा, आदित्यः, द्वादशात्मा, दिवाकरः, भास्करः, अहस्करः, ब्रघ्नः, प्रभाकरः, विभाकरः, भाखान् विवस्वान, सप्ताश्वः, हरिदश्वः,
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विकर्तनार्कमार्तण्डमिहिरारुणपूषणः घुमणिस्तरणिर्मित्रश्चित्रभानुर्विरोचनः विभावसुग्रहपतिस्त्विषांपतिरहपतिः भानुर्हसः सहस्रांशुस्तपनः सविता रविः 'पद्माक्षस्तेजसां राशिश्छायानाथस्तमिस्रहा कर्मसाक्षी जगच्च बन्धुत्रयीतनुः
प्रद्योतनो दिनमणिः खद्योतो लोकबान्धवः इनो भगो धामनिधिश्वांशुमाल्यब्जिनीपतिः' माठरः पिङ्गलो दण्डश्चण्डांशोः पारिपार्श्वकाः सूरसूतोऽरुणोऽनूरुः काश्यपिर्गरुडाग्रजः परिवेषस्तु परिधिरुपसूर्यकमण्डले किरणोत्रमयूखांशुगभस्तिघृणिरश्मयः भानुः करो मरीचिः स्त्रीपुंसयोर्दीधितिः स्त्रियाम्
[ ६ दिग्वर्गः
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**
उष्णरश्मिः, विकर्तनः, अर्कः, मार्तण्डः, मिहिरः, अरुणः, पूषा, धुमणिः, तरणिः, मित्रः, चित्रभानुः, विरोचनः, विभावसुः, ग्रहपतिः, त्विषांपतिः, अहर्पतिः, भानुः, हंसः, सहस्रांशुः, तपनः, सविता, रविः, इति ३७ सूर्यस्य ॥ माठरः, पिङ्गल., दण्डः, इति ३ चण्डांशोः पारिपार्श्विकाः = परितः पार्श्वे विद्यमानाः । ('शक्रोऽस्य वामपार्श्वे तु दण्डाख्यो दण्डनायकः । वह्निस्तु दक्षिणे पार्श्वे पिङ्गलो - वामभागतः । यमोऽपि दक्षिणे पार्श्वे भवेन्माठरसंज्ञया' ) ॥ सूरसूतः, अरुणः, अनूरुः, काश्यपिः, गरुडाग्रजः, इति ५ अरुणस्य ॥ परिवेषः, परिधिः, उपसूर्यकम् मण्डलम् इति ४ परिवेषस्य ॥सूर्यमभित कदाचिदृश्यमानस्य कुण्डलाकार तेजोविशेषस्य । ' परिवेष' साहचर्यात् 'परिधि:' पुंसि ज्ञेयः ॥किरण:, उस्रः, मयूखः, अंशुः, गभस्तिः, घृणिः, रश्मिः, भानुः, करः, मरीचिः, दीधितिः, इति ११ किरणस्य ॥ मरीचिः स्त्री-पुंसयोः । 'दीधितिः' स्त्रियाम् । 'खियाम्' इत्यस्य काकाक्षिगोलकन्यायेनोत्तर श्लोकेऽप्यन्वयः ॥ -- प्रभा, रुकु
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२१२ २१३ २१४ २१५
पतयः २०३-२२० ] प्रथमं काण्डम् स्युः प्रभारुग्रुचिस्त्विड्भाभाश्छविधुतिदीप्तयः रोचिः शोचिरुभे क्लीवे प्रकाशो द्योत आतपः कोणं कवोष्णं मन्दोष्णं कदुष्णं त्रिषु तद्वति तिग्मं तीक्ष्णं खरं तद्वन्मृगतृष्णा मरीचिका
७. कालवर्गः कालो दिष्टोऽप्यनेहापि समयोऽप्यथ पक्षतिः प्रतिपवे इमे स्त्रीत्वे तदाद्यास्तिथयो द्वयोः घस्रो दिनाहनी वा तु क्लीबे दिवसवासरौ प्रत्यूपोऽहर्मुखं कल्यमुषःप्रत्युषसी अपि 'व्युष्टं विभातं द्वे क्लीवे पुंसि गोसर्ग इष्यते' प्रभातं च दिनान्ते तु सायं संध्या पितृप्रसूः
२१६ २१७ २१८ २१९ **
२२०
सचिः, विद , भा, भाः, छविः, द्युतिः, दीप्तिः, रोचिः, शोचिः, इति ११ प्रभामात्रस्य । तत्र दीप्यन्तानि स्त्रियां स्युः । 'रोचिः' 'शोचिः' सान्ते क्लीबे । 'भाः' सान्तः।।---प्रकाशः, द्योतः, आतपः, इति ३ सूर्यप्रभायाः।।-कोष्णम् ,कवोणम् , मन्दोणम् , कदुष्णम् , इति ४ ईषदुष्णे । इदं धर्ममात्रे रूपभेदात् क्लीबे। तद्वति धर्मिणि त्रियु वाच्यलिङ्गमित्यर्थः ॥-तिग्मम् , तीक्ष्णम् , खरम्, इति ३ अत्युष्णस्य । तद्वत्-कोष्णवत् । धर्मे क्लीबम् । धर्मिणि त्रिपु॥-मृगतृष्णा, मरीचिका, इति २ मृगजलस्य-मरुदेशादौ सिकतासु प्रतिच्छुरिताः सूर्यकिरणा जलाकारेण भान्ति तस्य; जलाभासस्यत्यर्थः ॥
२१६-२७७. कालः, दिष्टः, अनेहा, समयः, इति ४ कालस्य । अनेहाः सान्तः ॥-पक्षतिः, प्रतिपत् , इमे २ प्रथमतिथेः ॥-तदाद्याः प्रतिपदाद्याः तिथय इत्युच्यन्ते । 'तिथि'शब्दो द्वयोः स्त्री-पुंसयोः ॥-घस्रः, दिनम् , अहः, दिवसः, वासरः, इति ५ दिवसस्य । तत्र 'दिवसवासरौ' क्लीब-पुंसोः॥-प्रत्यूषः, अहर्मुखम् , कल्यम् , उषः, प्रत्युषः, प्रभातम्, इति ६ प्रभातस्य। तंत्र प्रत्युषः अदन्तः पुंसि क्लीबे च ॥-दिनान्तः, सायं, संध्या, पितृप्रसूः, इति ४
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२२
अमरकोषे
[७. कालवर्गः
२२१
२२३
२२६
रात्रं निशानाहयुक्तायां न चन्द्रिका
in
प्राहापराह्नमध्याह्नास्त्रिसंध्यमथ शर्वरी निशा निशीथिनी रात्रिस्त्रियामा क्षणदा क्षपा २२२ विभावरीतमस्विन्यौ रजनी यामिनी तमी तमिस्रा तामसी रात्रिज्योत्स्त्री चन्द्रिकयान्विता २२४ आगामिवर्तमानाहर्युक्तायां निशि पक्षिणी
२२५ गणरात्रं निशा बह्वयः प्रदोषो रजनीमुखम् अर्धरात्रनिशीथौ द्वौ द्वौ यामप्रहरौ समौ
२२७ स पर्वसंधिः प्रतिपत्पश्चदश्योर्यदन्तरम्
२२८ पक्षान्तौ पञ्चदश्यौ द्वे पोर्णमासी तु पूर्णिमा २२९ कलाहीने सानुमतिः पूर्णे राका निशाकरे २३० अमावास्या त्वमावस्या दर्शः सूर्येन्दुसंगमः २३१ सा दृष्टेन्दुः सिनीवाली सा नष्टेन्दुकला कुहूः दिनान्ते। तत्र 'सायम्' इत्यव्ययं नपुंभकलिङ्गं वा। प्राह्नः, अपराह्नः, मध्याह्नः, इति समाहृताः त्रिसंध्यं ज्ञेयम् ॥ शर्वरी, निशा, निशीथिनी, रात्रिः, त्रियामा, क्षणदा, क्षपा, विभावरी, तमस्विनी, रजनी, यामिनी, तमी, इति १२ निशायाः ॥-या तामसी तमोयुक्ता रात्रिः सा तमिस्रा ॥-या चन्द्रिकया चन्द्रप्रकाशेनान्विता युक्ता रात्रिः सा ज्योत्स्नी ॥-आगामिवर्तमानाहर्युक्तायां पूर्वापरदिनाभ्यां युक्तायां निशि रात्री पक्षिणी ॥ बढयो निशाः गणरात्रं स्यात् , इति १ रात्रिसमुदायस्य ।।-प्रदोषः, रजनीमुखम् . इति २ रात्रेः पूर्वभागस्य ।।-अर्धरात्रः, निशीथ , इति २ रात्रिमध्यसमयस्य ॥-यामः, प्रहरः, इति २ अहो. रात्राष्टमांशस्य॥-प्रतिपत्पञ्चदश्योर्यदन्तरं स संधिः पर्वेत्यन्वयः।-द्वे अमापूर्णिमे । पक्षान्ती, पञ्चदश्यौ, इति २ पक्षान्ततिथ्योः । द्वित्वात् द्विवचनम्। न तु नित्यम् ॥-पौर्णमासी, पूर्णिमा, इति २ शुक्लपक्षान्त्यतिथौ ॥-सा पू. र्णिमा कलाहीने चन्द्रे सति अनुमतिरित्युच्यते इति १॥-सव पूर्णिमाणे निशाकरे सति राका इति १ ॥-अमावास्या, अमावस्या, दर्शः, सूर्येन्दुसंगमः, इति ४ कृष्णपक्षान्त्यतिथेः॥-सा अमावास्या दृष्टेन्दुश्चेत् दृष्ट इन्दुर्यस्यां सा सिनीवाली
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لم
२३९
पतयः २२१-२४२] प्रथमं काण्डम्
२३ उपरागो ग्रहो राहुग्रस्ते विन्दौ च पूष्णि च सोपप्लवोपरक्तौ द्वावग्युत्पात उपाहितः
२३४ एकयोक्त्या पुष्पवन्तौ दिवाकरनिशाकरौ
२३५ अष्टादश निमेषास्तु काष्ठा त्रिंशत्तु ताः कला २३६ तास्तु त्रिंशत्क्षणस्ते तु मुहूर्तो द्वादशास्त्रियाम् २३७ ते तु त्रिंशदहोरात्रः पक्षस्ते दश पञ्च च
२३८ पक्षौ पूर्वापरौ शुक्लकृष्णौ मासस्तु तावुभौ द्वौ द्वौ मार्गादिमासौ स्याहतुस्तैरयनं त्रिभिः २४० अयने द्वे गतिरुदग्दक्षिणार्कस्य वत्सरः
२४१ समरात्रिंदिवे काले विषुवद्विषुवं च तत् 'पुष्ययुक्ता पौर्णमासी पौषी मासे तु यत्र सा नाना स पौषो माघाद्याश्चैवमेकादशापरे' ॥- सैव नष्टेन्दुकला नष्टा इन्दुकला यस्यां सा कुहूः ॥-उपरागः, ग्रहः, इति २ राहणेन्दो चन्द्रे पूष्णि सूर्ये च प्रस्ते सति तस्य ग्रासस्य नामनी ॥-सोपप्लवः, उपरक्तः, इति २ राहुग्रस्तस्येन्दोःसूर्यस्य वा ॥ -- अग्युत्पातः, उपाहितः, इति ० वह्निकृतोपसर्गस्य ॥-एकयोक्त्याऽपृथग्वचनेन पुष्पवन्तौ इत्युक्ती दिवाकरनिशाकरौ सूर्याचन्द्रमसौ ज्ञेयौ ॥-निमेषोऽक्षिस्पन्दकालः । अष्टादश निमेषा मिलित्वैका काष्ठा भवति । त्रिंशत्काष्टा मिलित्यैका कला । ताः कलाविंशन्मिलित्वैकः क्षणः। तेक्षणा द्वादश मिलत्वैको मुहूर्तः। अस्त्रियां क्लीब-पुंसोः। ते त्रिंशन्मुहूर्ता एकः अहोरात्रः अह्ना सहिता रात्रिः। तेऽहोरात्राः पञ्चदशसंख्याका एक पक्षः। पक्षो द्विविधः---शुक्लः, कृष्णचेति। तत्र मासस्य पूर्वः शक्तः, कृष्णस्त्वपरः । तावुभौ पक्षावेको मासः । मागादि द्वो द्वौ मामौ ऋतुः एकः । स च हेमन्तादिसंज्ञः। तै ऋनुभिास्त्रभिरेकम् अयनम् । सूर्यगतिभेदात् तद्विधाअर्कस्यो टम्गतिः उत्तरायणम् । दक्षिगागतिस्तु दक्षिणायनम् । एवं द्वे अयने एको वत्सरः ॥-विषुवत् , विषुवम् , इति २ समं रात्रिंदिवं यस्मिंस्तस्मिकाले । तुलासंक्रान्ती मेषसंक्रान्तौ च दिनरात्री समे भवतस्तस्य कालस्येत्यर्थः।
२४२ ** **
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अमरकोषे
[५. कालवर्गः मार्गशीर्षे सहा मार्ग आग्रहायणिकश्च सः २४३ पौषे तैषसहस्यों द्वौ तपा माघेऽथ फाल्गुने २४४ स्यात्तपस्यः फाल्गुनिकः स्याच्चैत्रे चैत्रिको मधुः २४५ वैशाखे माधवो राधो ज्येष्ठे शुक्रः शुचिस्त्वयम् २४६ आषाढे श्रावणे तु स्यान्नभाः श्रावणिकश्च सः २४७ स्युर्नभस्यप्रौष्ठपदभाद्रभाद्रपदाः समाः
२४८ स्यादाश्विन इषोऽप्याश्वयुजोऽपि स्यात्तु कार्तिके २४९ बाहुलोजौ कार्तिकिको हेमन्तः शिशिरोऽस्त्रियाम् २५० वसन्ते पुष्पसमयः सुरभिीष्म उष्मकः
२५१ निदाघ उष्णोपगम उष्ण ऊष्मागमस्तपः
२५२ स्त्रियां प्रावृट् स्त्रियां भूम्नि वर्षा अथ शरत्स्त्रियाम् २५३ षडमी ऋतवः पुंसि मार्गादीनां युगैः क्रमात् २५४ मार्गशीर्षः, सहाः, मार्गः, आग्रहायणिकः इति ४ मार्गशीर्षस्य ॥-पोषः, तेषः, सहस्यः, इति ३ पोषस्य ॥-तपाः, माघः, इति २ माघस्य ॥-- फाल्गुनः, तपस्यः, फाल्गुनिकः, इति ३ फाल्गुनस्य ॥-चैत्रः चेत्रिकः, मधुः, इति ३ चैत्रस्य ॥-वैशाखः, माधवः, राधः, इति ३ वैशाखस्य॥-- ज्येष्ठः, शुक्रः, इति २ ज्येष्ठस्य ॥--शुचिः, आषाढः, इति २ आषाढस्य ॥-श्रावणः, नभाः, श्रावणिकः, इति ३ श्रावणस्य । तत्र नभाः सान्तः ॥-- नभस्यः, प्रौष्ठपदः, भाद्रः, भाद्रपदः, इति ४ भाद्रपदस्य ॥-आश्विनः, इषः, आश्वयुजः, इति ३ आश्विनस्य ॥ कार्तिकः, बाहुल:, ऊर्जः, कार्तिकिकः, इति ४ कार्तिकस्य ॥-हेमन्त इत्येकः ऋतुः ।।-शिशिर इत्यपरः ऋतुः । स च पुं-नपुंसकलिङ्गः ॥-वसन्तः, पुष्पसमयः, सुरभिः, इति ३ वसन्तस्य- ग्रीष्मः, उष्मकः, निदाघः, उष्णोपगमः, उष्णः, ऊष्मागमः, तपः, इति ७ ग्रीष्मस्य । 'तप' अकारान्तः पुंसि ॥-प्रावृट, वर्षाः, इति २ वर्षोंः । तत्र 'प्रावृट्'शब्दः षान्तः स्त्रियाम् । 'वर्षा' शब्दस्तु स्त्रीलिङ्गो भूनि नित्यं बहुवचनान्त इत्यर्थः ॥-शरत् इत्येक ऋतुः, स स्त्रीलिङ्गो दकारान्तः ॥-अमी हेमन्तादयः षडपि ऋतवः । 'ऋतु'शब्दः पुंलिङ्गः । ते च हेमन्तादयो मार्ग
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२५५
२५६
२५७ २५८
3
२५९
पक्रायः २४३-२६५] प्रथम काण्डम् संवत्सरो वत्सरोऽब्दो हायनोऽस्त्री शरत्समाः मासेन स्यादहोरात्रः पैत्रो वर्षेण दैवतः देवे युगसहस्र द्वे ब्राह्मः कल्पौ तु तौ नृणाम् मन्वन्तरं तु दिव्यानां युगानामेकसप्ततिः संवर्तः प्रलयः कल्पः क्षयः कल्पान्त इत्यपि अस्त्री पङ्क पुमान्पाप्मा पापं किल्बिषकल्मषम् कलुषं वृजिनैनोऽघमंहो दुरितदुष्कृतम् स्याद्धर्ममस्त्रियां पुण्यश्रेयसी सुकृतं वृषः मुत्प्रीतिः प्रमदो हर्षः प्रमोदामोदसंमदाः स्यादानन्दथुरानन्दः शर्मसातसुखानि च श्वःश्रेयसं शिवं भद्रं कल्याणं मङ्गलं शुभम्
२६० २६१
ur
२६२
ur
२६३ २६४
or
२६५
शीर्षादिमासानां षभियुगैर्युग्मैः क्रमाद्भवन्ति ॥-संवत्सरः, वत्सरः, अब्दः, हायनः, शरत् , समाः, इति ६ वर्षस्य । तत्र हायनान्ता अस्त्रियाम् । 'समाः' स्त्रियां बहुत्वे च ॥—मानुषेण मासेनकः पैत्रोऽहोरात्रः ॥-तथा मानुषेण वर्षेण देवतो देवानामहोरात्रः ॥~-मानुषाणां यत्कृतादि युगचतुष्टयं तद्देवं युगं ज्ञेयम् । एवं देवे द्वे युगसहस्रे ब्राह्मोऽहोरात्रः ॥-ये द्वे देवे युगसहस्रे तौ नृणां कल्पो; स्थितिप्रलयकालावित्यर्थः ॥ दिव्यानां युगानां या एकसप्ततिरेकाधिका सप्ततिस्तत् मन्वन्तरम् ॥-संवर्तः, प्रलयः, कल्पः, क्षयः, कल्पान्तः, इति ५ प्रलयस्य ॥--पङ्कम् , पाप्मा, पापम् , किल्बिषम् , कल्मषम् , कलुषम् , वृजिनम् , एनः, अघम् , अंहः, दुरितम् , दुष्कृतम् , इति १२ पापस्य। तत्र 'पङ्कम्' अस्त्री क्लीब-पुंसोः । 'पाप्मा नकारान्तः पुंसि । शेषं क्लीबे ॥धर्मम् , पुण्यम् , श्रेयः, सुकृतम् , वृषः, इति ५ सुकृतस्य । तत्र 'धर्मः' अस्त्रियां क्लोब-पुंसोः । वृषः पुंसि ॥-मुत्, प्रीतिः, प्रमदः, हर्षः, प्रमोदः, आमोदः, संमदः, आनन्दथुः, आनन्दः, शर्म , सातम् , सुखम् , इति १२ हर्षस्य । तत्र प्रीतिसाहचर्यान्मुदपि स्त्रियां दकारान्तः ॥-श्वःश्रेयसम् , शिवम् , भद्रम् , कल्याणम् ,
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२६
अमरकोषे
[७. कालवर्गः
२६६
w
भावुकं भविकं भव्यं कुशलं क्षेममस्त्रियाम् शस्तं चाथ त्रिषु द्रव्ये पापं पुण्यं सुखादि च २६७ मतल्लिका मचर्चिका प्रकाण्डमुद्धतल्लजी प्रशस्तवाचकान्यमून्ययः शुभावहो विधिः २६९ दैवं दिष्टं भागधेयं भाग्यं स्त्री नियतिर्विधिः २७० हेतुर्ना कारणं बीजं निदानं त्यादिकारणम् २७१ क्षेत्रज्ञ आत्मा पुरुषः प्रधानं प्रकृतिः स्त्रियाम् २७२ विशेषः कालिकोऽवस्था गुणाः सत्त्वं रजस्तमः जनुर्जननजन्मानि जनिरुत्पत्तिरुद्भवः
२७४ प्राणी तु चेतनो जन्मी जन्तुजन्युशरीरिणः २७५ मङ्गलम् , शुभम् , भावुकम्, भविकम् , भव्यम् , कुशलम् , क्षेमम् , शस्तम् , इति १२ कल्याणमात्रस्य । तत्र 'क्षेमम् ' 'शस्तम्' च पुं-नपुंसकयोः । पापपुण्य. शब्दा तथा सुखादिशब्दाः श्वः, श्रेयः, शिवभद्रादयः, शस्तान्ता द्रव्ये विशेष्ये वर्तमानास्त्रिषु । विशेष्यलिङ्गा इत्यर्थः । यथा--'पापा स्त्री', 'पापः पुमान्' 'पापं कुलन्' इत्यादि । मतल्लिका, मचर्चिका, प्रकाण्डम् , उद्धः, तल्लजः, अनि ५ प्रशस्त. वाचकानि । एते तु पञ्च नित्यं द्रव्य एव लिङ्गान्तरेग सामानाधिकरण्येऽपि ख लङ्गं न जहाति । यथा--प्रशस्तो ब्राह्मणः-ब्राह्मगमतल्लिका, प्रशस्ता गाः-गोमचर्चिका, गोप्रकाण्डम् , ब्राह्म गोद्धः, कुमारीतलः, -अयः शुभावदो विधिः । शुभोत्पादकं देवं सोऽय उच्यते ॥-देवम् , दिष्टम् , भागधेयम् , भाग्यम् , नियतिः, विधिः, इति ६ प्राक्तनकर्मणः । 'नियतिः' स्त्री । “विधिः' पुंसि ॥-हेतुः. कारणम् ,बीजम् , इति : हेतुमात्रस्य। 'हेतुः' ना पुंसि ॥ यदादिकारणं त न्नदानम्। १ उपादानकारणस्य ।। - क्षेत्रज्ञः, आत्मा, पुरुष, इति ३ शरीराधिदैवतस्य॥-प्रधानम् , प्रकृतिः, इति । सत्त्वादिगुणसाम्यावस्थायाः॥य कालिको विशेषः कालकृतो देहादेविशेषो योवनादिः सा अवस्थोन्यते ॥सत्त्वम् , रजः, तमः एतं गुणाः प्रकृताः । तत्र रजस्तमसी सान्ते ॥-जनुः जननम् , जन्म, जनिः, उत्पत्तिः, उद्भवः, इति ६ जन्मनः ॥-प्राणी, चेतनः, जन्मी, जन्तुः, जन्युः, शरीरी, इति ६ प्राणिनः ॥-जातिः, जातम् , सामा
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२७६ २७७
पतयः २६६-२८.] प्रथम काण्डम् जातिर्जातं च सामान्य व्यक्तिस्तु पृथगात्मता चित्तं तु चेतो हृदयं स्वान्तं हृन्मानसं मनः
८. धीवर्गः बुद्धिर्मनीषा धिषणा धीः प्रज्ञा शेमुषी मतिः प्रेक्षोपलब्धिश्चित्संवित्प्रतिपज्ज्ञप्तिचेतनाः धीर्धारणावती मेधा संकल्पः कर्म मानसम् 'अवधानं समाधानं प्रणिधानं तथैव च' चित्ताभोगो मनस्कारश्चर्चा संख्या विचारणा 'विमर्शो भावना चैव वासना च निगद्यते' अध्याहारस्तर्क ऊहो विचिकित्सा तु संशयः संदेहद्वापरौ चाथ समौ निर्णयनिश्चयौ मिथ्यादृष्टिर्नास्तिकता व्यापादो द्रोहचिन्तनम् समौ सिद्धान्तराद्धान्तौ भ्रान्तिर्मिथ्यामतिभ्रमः
२७८ २७९ २८०
*
२८१
*
२८२ २८३
२८४
२८५
न्यम् , इति ३ घटत्वादिजातेः ॥-व्यक्तिः, पृथगात्मता, इति २ घटादिव्यक्तः ॥-चित्तम् , चेतः, हृदयम् , वान्तम् , हृत् , मानसम् , मनः, इति ७ चित्तस्य ।
२७८-३११. बुद्धिः, मनीषा, धिषणा, धीः, प्रज्ञा, शेमुषी, मतिः, प्रेक्षा, उपलब्धिः , चित् , संवित् , प्रतिपत् , ज्ञप्तिः, चेतना, इति १४ बुद्धेः ॥-या धारणावती धीः सा मेधा॥-यन्मानसं कर्म मनोव्यापार:स संकल्पः॥-चित्ताभोगः, मनस्कारः, इति २ मनसः सुखादौ तत्परतायाः॥-चर्चा, संख्या, विचारणा, इति ३प्रमाणेरर्थपरीक्षणस्य॥---अध्याहारः, तर्क, ऊहः, इति ३ तर्कस्याविचिकित्सा, संशयः, संदेहः, द्वापरः, इति ४ संशयज्ञानस्य ॥-निर्णयः, निश्चयः, इति २ निश्चयज्ञानस्य ॥-मिथ्यादृष्टिः, नास्तिकता, इति २ परलो. काभाववादिज्ञानस्य ||-व्यापादः, द्रोहचिन्तनम् , इति २ परद्रोहचिन्तनस्य ॥-सिद्धान्तः, राधान्तः, इति २ सिद्धान्तस्य ।-भ्रान्तिः, मिथ्या
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अमरकोपे
[८. धीवर्गः
२८७ ૨૮૮
संविदागूः प्रतिज्ञानं नियमानवसंश्रयाः अङ्गीकाराभ्युपगमप्रतिश्रवसमायः मोक्षे धीझनमन्यत्र विज्ञानं शिल्पशास्त्रयोः मुक्तिः कैवल्यनिर्वाण)योनिःश्रेयसामृतम् मोक्षोऽपवर्गो थाज्ञानमविद्यामतिः स्त्रियाम् रूपं शब्दो गन्धरसस्पर्शाश्च विषया अमी गोचरा इन्द्रियार्थाश्च हृषीकं विषयीन्द्रियम् कर्मेन्द्रियं तु पाय्यादि मनोनेत्रादि धीन्द्रियम् तुवरस्तु कषायोऽस्त्री मधुरो लवणः कटुः तिक्तोऽम्लश्च रसाः पुंसि तद्वत्सु षडमी त्रिषु विमर्दोत्थे परिमलो गन्धे जनमनोहरे
२९० २९१ २९२ २९३ २९४ २९५ २९६
मतिः, भ्रमः, इति ३ अयथार्थज्ञानस्य ॥ संवित् , आगूः, प्रतिज्ञानम् , नियमः, आश्रयः, संश्रवः,अङ्गीकारः,अभ्युपगमः,प्रतिश्रवः, समाधिः, इति १० अङ्गीकारस्य । आगूर्वधूवत् ॥-~मोक्षविषये या धीवुद्धिस्तज्ज्ञानम् ॥-मोक्षशास्त्रादन्यत्र शास्त्र शिल्पे चित्रादौ च धीर्विज्ञानमुच्यते॥-मुक्तिः, कवल्यम् , निर्वाणम् ,श्रेयः, निःश्रेयसम् , अमृतम् , मोक्षः, अपवर्गः, इति ८ मोक्षम्य ॥---अज्ञानम् , अविद्या, अहंमतिः, इति ३ अज्ञानस्य ।। रू.पम् , शब्दः, गन्धः, रसः, स्पशः, एते ५विषया इति गोचरा इति इन्द्रियार्था इति चोच्यन्ते ।।-हृषीकम् , विषयि, इन्द्रियम् , इति ३ चक्षुरादेरिन्द्रियस्य ॥-पायवादि पायूपस्थादि कर्मेन्द्रिय. मुच्यते । आदिना वागादि । ('पायूपस्थं पाणिपादौ वाक् चेतीन्द्रियसंग्रहः । उत्सर्ग आनन्दादानगत्यालापाश्च तत्कियाः' ॥-मनोनेत्रादि धीन्द्रियमुच्यते, आदिना श्रोत्रादि । ('मनो कर्णस्तथा नेत्रं रसना च त्वचा सह । नासिका चेति षट् तानि धीन्द्रियाणि प्रचक्षते')॥--तुवरः, कषायः, इति २ तुवरस्य । मधुरः, लवणः,कटुः, तिक्तः, अम्लः, एते तुवराद्याः षडपि रसा उच्यन्ते। अमी तुवराद्याः षडपि रसमात्रे वर्तमानाः, पुंसि । तद्वत्सु रसवत्सु वर्तमानास्त्रिषु, वाच्यलिङ्गा इत्यर्थः॥-विमर्दोत्थे संघर्षणादिनोत्पन्ने जनमनोहरे गन्धे परिमल इति ॥-योऽतिनिर्हार्यत्यन्तसमाकर्षी
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२९८
०
०
३०५
०
पतयः २८६-३०८] प्रथमं काण्डम् आमोदः सोऽतिनिहोरी वाच्यलिङ्गत्वमागुणात्
२९७ समाकर्षी तु निर्हारी सुरभिर्घाणतर्पणः इष्टगन्धः सुगन्धिः स्यादामोदी मुखवासनः २९९ पूतिगन्धिस्तु दुर्गन्धो विस्रं स्यादामगन्धि यत् शुक्लशुभ्रशुचिश्वेतविशदश्येतपाण्डराः
३०१ अवदातः सितो गौरो वलक्षी धवलोऽर्जुनः ३०२ हरिणः पाण्डुरः पाण्डुरीषत्पाण्डुस्तु धूसरः कृष्णे नीलासितश्यामकालश्यामलमेचकाः ३०४ पीतो गौरो हरिद्राभः पालाशो हरितो हरित् लोहितो रोहितो रक्तः शोणः कोकनदच्छविः ३०६ अव्यक्तरागस्त्वरुणः श्वेतरक्तस्तु पाटलः श्यावः स्यात्कपिशो धूघधूमलों कृष्णलोहिते स गन्ध आमोद उच्यते ॥ - इतः परम् आ गुणात् 'गुणे शुक्लादयः' (३११) इति वक्ष्यमाणाद्गुणशब्दात्प्राग्वाच्यलिङ्गत्वमभिधेयानुसारेण निलिङ्गत्वम् ।।-समाकर्षी, निर्हारी, इति २ दरनिपातिनो गन्धद्रव्यस्य ।।-सुरभिः, घ्राणतर्पणः, इष्टगन्धः, मुगन्धिः, इति ४ शोभनगन्धयुक्तस्य ॥-आम दी, मुखवासनः, इति २ यन्मुखं वासयति तस्य ताम्बूलादेः॥ पूतिगन्धिः, दुर्गन्धः, इति २ अनिटगन्धयुक्तस्य ॥--- यदामगन्धि तद्विस्त्रम् । अपक्कमांसादिगन्धस्य ॥---शुक्लः, शुभ्रः, शुचिः, श्वेतः, विशदः, श्येतः, '1ण्डरः, अवदातः, सितः, गौरः, [अवलक्षः वलक्षः, धवलः, अर्जुनः, हरिणः, पाण्डुरः, पाण्डः, इति १६ शकस्य ॥-ईषत्पाण्डः, धूसरः, इति २ ईपद्धवलस्य ॥-कृष्णः, नीलः, असितः, श्यामः, कालः, श्यामलः, मेचकः, इति , नील्यादिगतवर्णस्य ॥-पीतः, गौरः, हरिद्राभः, इति ३ पीतस्य ॥-पालाशः, हरितः, हरित् , इति ३ शिरीषादिपत्रगतवर्णस्य ॥-लोहितः, रोहितः, रक्तः, इति ३ रक्तस्य ।।--यः कोकनदकछवी रक्तात्पलाभः स शोण इति ।।-योऽव्यक्तराग ईषद्रक्तः सोऽरुणः ॥यः श्वेतमिश्रो रक्तः स पाटल इति ॥-३यावः, कपिशः, इति २ धूसरारुणवर्णस्य ॥ धूम्रः, धूमलः, कृष्णलोहितः, इति ३ कृष्णमिश्नलोहितवर्णस्य
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[ ९. शब्दादिवर्गः कडारः कपिलः पिङ्गपिशङ्गो कदुपिङ्गलो . ___३०९ चित्रं किर्मीरकल्माषशवलैताश्च कबुरे । गुणे शुक्लादयः पुंसि गुणिलिङ्गास्तु तद्वति ३११
९. शब्दादिवर्गः ब्राह्मी तु भारती भाषा गीवाग्वाणी सरस्वती ३१२ व्याहार उक्तिर्लपितं भाषितं वचनं वचः ३१३ अपभ्रंशोऽपशब्दः स्याच्छास्त्रे शब्दस्तु वाचकः ३१४ तिड्-सुबन्तचयो वाक्यं क्रिया वा कारकान्विता श्रुतिः स्त्री वेद आम्नायस्त्रयी धर्मस्तु तद्विधिः ३१६ स्त्रियामृक्सामयजुषी इति वेदास्त्रयस्त्रयी ३१७
३१५
॥-कडारः, कपिलः, पिङ्गः, पिशङ्गः, कद्रुः, पिङ्गलः, इति ६ पिङ्गलवर्णस्य ॥-चित्रम् , किर्मीरः, कल्माषः, शबलः, एतः, कर्तुरः, इति ६ कर्बरस्य । विचित्रवर्णस्येत्यर्थः ।।-शुक्ला यो गुणे गुणमात्रे वर्तमानाः पुंसि, यथा-'अस्य पटस्य शुकं रूपम्' । तद्वति गुणवति वस्तुनि वर्तमांना गुणिलिङ्गा अभिधेयलिहाः । यथा-'शुक्ला शाटी', 'शुक्लः पटः', 'शुक्लं वस्त्रम्' । रोहितादीनां श्रीत्वे तु -'श्येनी श्येता, रोहिणी रोहिता, लोहिनी लोहिता' इत्यादि ॥
३१२-३६२. ब्राह्मी, भारती, भाषा, गीः, वाक् , वाणी, सरस्वती, व्याहारः, उक्तिः, लपिनम् , भाषितम् , वचनम् , वचः, इति १३ वचनस्य ॥-अपभ्रष्टः, शब्दः 'गावी, गोणी' इत्याद्यपशब्दः, सोऽपभ्रंश इत्युच्यते॥-शास्त्रे व्याकरणादौ यो वाचकः स शब्द इत्युच्यते, यथा-ओतप्रोतत तूनां वाचकः पटः इति ।तिसुबन्तच यः तिउन्तसुब-तपदसमूहो वाक्यम्। तिङन्तचयो यथा-पचतिभवति । पाको भवतीत्यर्थः । सुबन्तचयो यथा-'प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्' - कारकान्विता कारकैः संबद्धा क्रिया वाक्यमुच्यते। यथा-'देवदत्त! गामभिरक्ष शुक्लदण्डेन' ॥ श्रुतिः, वेदः, आम्रायः त्रयी, इति ४ वेदस्य ।।तद्विधिर्वेदिको विधिर्यागादिधर्म इत्युच्यते ॥ ऋक्, साम, यजुः, इति त्रयो
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३२४
पतयः ३०९-३२५] प्रथमं काण्डम्
३१ शिक्षेत्यादि श्रुतेरङ्गमोंकारप्रणवौ समौ
३१८ इतिहासः पुरावृत्तमुदात्ताद्यास्त्रयः स्वराः
३१९ आन्वीक्षिकी दण्डनीतिस्तर्कविद्यार्थशास्त्रयोः आख्यायिकोपलब्धार्था पुराणं पञ्चलक्षणम् ३२१ प्रबन्धकल्पना कथा प्रवलिका प्रहेलिका
३२२ स्मृतिस्तु धर्मसंहिता समाहृतिस्तु संग्रहः
३२३ समस्या तु समासार्थो किंवदन्ती जनश्रुतिः वार्ता प्रवृत्तिवृत्तान्त उदन्तः स्यादथाह्वयः
३२५ वेदा मिलितास्त्रयी ज्ञेया तत्र 'ऋ'शब्दः, झीलिङ्गः ॥—शिक्षेल्यादि श्रुतेवेदस्याङ्गं ज्ञेयम् । शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं ज्योतिषां गतिः । छन्दोविचिदिरियेप पडतो वेद उच्यते'।- ओंकारः, प्रणवः, इति २ समो॥ इतिहासः, पुरावृत्तम्, इति २ पूर्वचरितस्य महाभारतादः ॥-उदात्ताद्यास्त्रयः स्वरा उच्यन्ते । ( 'उदात्तश्चानुदात्तश्च स्वरितश्च स्वरास्त्रयः' ) ॥--आन्वीक्षिकी इति १ तर्कविद्यायां गातमादिप्रणीतायाम् । दण्डनीतिः इति १ अर्थशास्त्रे बृहस्पत्यादिप्रणीते ॥ -आख्यायिका, उपलब्धार्था, इति अनुभूतार्थप्रतिपादकस्य वासवदत्तादेः ।।-यत् पञ्चलक्षणं तत् पुराणमुच्यते। ('सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वशो मन्वन्तराणि च । वंश्यानुचरितं चेव पुगणं पञ्चलक्षणम्')।-प्रबन्धस्य वाक्यविस्तरस्य या कल्पना रचना सा कथा नाटकरामायणादेः ॥-प्रवह्निका, प्रहेलिका, इति २ यथा परैः संदिह्यते तादृशगुप्ताभिधानस्य । यथा'पानीयं पातुमिच्छामि त्वत्तः कमललोचने । यदि दास्यसि नेच्छामि नो दास्यसि पिबाम्यहम् ॥' [ दास्यसि दातुमिच्छसि इति व्यक्तोऽर्थः, दास्यसि दासी+असि इति गूढोऽर्थः ] इति ॥-या मन्वादिभिः प्रणीता धर्मसंहिता धर्मबोधार्थ रचिता संहिता सा स्मृतिः ॥ समाहृतिः, संग्रहः, इति २ संग्रहग्रन्थस्य ॥-या समासार्था पूरणीयार्था सा समस्या। यथा - 'शतचन्द्रं नभस्थलम्' । तत्पूरणं यथा-'दामोदरकराघातविह्वलीकृतचेतसा । दृष्टं चाणूरमल्लेन' इति ॥ किंवदन्ती, जनश्रुतिः, इति २ लोकप्रवादस्य ॥-वार्ता, प्रवृत्तिः, वृत्तान्तः, उदन्तः, इति ४ यथास्थितलोकवृत्तकथनस्य ॥-आलयः, आख्या,
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अमरकोषे
आख्या अभिधानं च नामधेयं च नाम च हूतिराकारणाह्वानं संहतिर्बहुभिः कृता विवादो व्यवहारः स्यादुपन्यासस्तु वाङ्मुखम् उपोद्घात उदाहारः शपनं शपथः पुमान् प्रश्नोऽनुयोगः पृच्छा च प्रतिवाक्योत्तरे समे मिथ्याभियोगोऽभ्याख्यानमथ मिथ्याभिशंसनम् अभिशापः प्रणादस्तु शब्दः स्यादनुरागजः यशः कीर्तिः समज्ञा च स्तवः स्तोत्रं स्तुतिर्नुतिः आम्रेडितं द्विस्त्रिरुक्तमुचैर्घुष्टं तु घोषणा काकुः स्त्रियां विकारो यः शोकभीत्यादिभिर्ध्वनेः अवर्णाक्षेप निर्वादपरीवादापवादवत् उपकोशो जुगुप्सा च कुत्सा निन्दा च गर्हणे
[ २. शब्दादिवर्गः
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आह्वा, अभिधानम्, नामधेयम्, नाम, इति ६ नाम्नः ॥ - हूतिः, आकारणा आह्वानम् इति ३ आह्वानस्य ॥ - या बहुभिः कृता हूतिः, सा संहतिःविवादः, व्यवहारः, इति २ ऋणदानादिनिमित्त विविधवादस्य ॥ उपन्यासः, वाङ्मुखम् इति २ वचनारम्भस्य ॥ उपोद्घातः, उदाहारः, इति २ प्रकृतसिद्ध्यर्थचिन्तनस्य ॥ - शपनम् शपथः, इति २ शपथस्य ॥ - प्रश्नः, अनुयोगः, पृच्छा, इति ३ प्रश्नस्य ॥ प्रतिवाक्यम्, उत्तरम् इति २ प्रतिवचनस्य ॥ मिथ्याभियोगः, अभ्याख्यानम्, इति २ 'शतं मे धारयसि' इत्यासत्याक्षेपस्य ॥ - मिथ्याभिशंसनम्, अभिशाप:, इति २ सुरापानादिमिथ्यापापोद्भावनस्य ॥ -- अनुरागजो गुणानुरागोत्थः शब्दः प्रणाद इत्युच्यते ॥ - यशः, कीर्तिः, समज्ञा, इति ३ कीर्तेः ॥ - स्तवः स्तोत्रं, स्तुतिः, नुतिः, इति ४ स्तुतेः ॥ - द्विर्द्विवारं चित्रिवारं चोकमाम्रडितमुच्यते । यथा-सर्पः सर्प इति ॥ उच्चैर्घुष्टम्, घोषणा, इति २ उच्चैर्घोषस्य ॥ - शोकभीतिकामादिभिर्ध्वनेर्यो विकारः सा काकुः ॥ अवर्णः, आक्षेपः, निर्वादः, परीवादः, अपवादः, उपकोशः, जुगुप्सा, कुत्सा, निन्दा, गर्हणम्, इति 10 निन्दायाः ।
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पतयः ३२६-३४६] प्रथमं काण्डम् पारुष्यमतिवादः स्याद्भर्त्सनं त्वपकारगीः यः सनिन्द उपालम्भस्तत्र स्यात्परिभाषणम् तत्र त्वाक्षारणा यः स्यादाक्रोशो मैथुनं प्रति स्यादाभाषणमालापः प्रलापोऽनर्थकं वचः अनुलापो मुहुर्भाषा विलापः परिदेवनम् विप्रलापो विरोधोक्तिः संलापो भाषणं मिथः सुप्रलापः सुवचनमपलापस्तु निह्नवः 'चोद्यमाक्षेपाभियोगौ शापाकोशौ दुरेषणा अस्त्री चाटु चटु श्लाघा प्रेम्णा मिथ्याविकत्थनम्' संदेशवाग्वाचिकं स्याद्वाग्भेदास्तु त्रिषूत्तरे रुशती वागकल्याणी स्यात्कल्या तु शुभात्मिका
३४३ ३४४ ** ** ३४५ ३४६
'अपवादवत्' इति वत्प्रत्ययेनावादीनामुपकोशस्य चैलिकतं ज्ञापितम् । उप क्रोशान्ता अवणादयः, पुंसीति तात्पर्यम् ॥–पारुष्यम् , अतिवादः, इति निष्ठुरभाषणस्य ॥-अपकारगी: अपकारार्थकं भावणं, तद् भर्सनमुच्यते॥कस्यांचित् व्यक्तौ क्रोधपूर्वकं दोषप्रतिपादनं उपालम्मः । स द्वेधा । यः सनिन्द निन्दायुक्त उपालम्भः तत्र परिभाषणमिति ॥--मथुनं प्रति परस्त्रीपुरुषसंयोगे निमित्तेन य आक्रोशस्तत्र आक्षारणेति ।-आभागना, आलापः, इति अन्योन्यसंवोधनपूर्वकभाषणस्य ॥ यदनर्थक वचः स प्रलाप इति ॥अनुलापः, मुहुर्भाषा, इति २ बहुशोभाषणस्य ॥-विलापः, परिदेवनम् , इति । रोदनपूर्वकभाषणस्य ॥–विप्रलापः, विरोधोक्तिः, इति २ अन्योन्यविरुद्धभाषणस्य ॥-मिथः परस्परमुक्तिप्रत्युक्तियुक्तं यद्भाषणं स संलापः ॥-सुप्रलापः, सुवचनम् , इति २ सुभाषितस्य ॥-आलापः, निलयः, इति २ गोपन कारिवचनस्य ॥-संदेशवाकू , वाचिकम् , इति २ दूताहि मुखेन संदि श्यमानवचनस्य ॥--उत्तरेऽतः परं वक्ष्यमाणा वार मेदाः सम्यगन्तामि त्रिलिङ्गाः । यथा---रुशन् शब्दः, शद्वचनम् । या अचल्याणी, सा रुदाती॥
अ. को. स. ३
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अमरकोषे
अत्यर्थमधुरं सान्त्वं संगतं हृदयंगमम् निष्ठुरं परुषं ग्राम्यमश्लीलं सूनृतं प्रिये सत्येss संकुल क्लिष्टे परस्परपराहते लुप्तवर्णपदं ग्रस्तं निरस्तं त्वरितोदितम् अम्बूकृतं सनिष्ठीवमबद्धं स्यादनर्थकम् अनक्षरमवाच्यं स्यादाहतं तु मृषार्थकम् 'सोल्लुण्ठनं तु सोत्प्रासं भणितं रतिकूजितम् श्राव्यं हृद्यं मनोहारि विस्पष्टं प्रकटोदितम् अथ लिष्टमविस्पष्टं वितथं त्वनृतं वचः सत्यं तथ्यमृतं सम्यगमूनि त्रिषु तद्वति शब्दे निनादनिनदध्वनिध्वानरवस्वनाः स्वाननिर्घोषनिर्ह्रादनादनिस्वान निस्वनाः
[ ९. शब्दादिवर्गः
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या शुभात्मिका वाक् सा कल्या ॥ - यदत्यर्थमतिशयेन मधुरं तत् सान्त्वम् ॥संगतम्, हृदयंगमम्, इति २ संबद्धवचनस्य ॥ -- निष्ठुरम्, परुषम्, इति २ ककेशवचनस्य ॥ - ग्राम्यम्, अश्लीलम् इति २ शिथिलवचसः ॥ - यत्प्रियं सत्यं वचनं तत्र सूनृतमिति ॥ - यत्परस्परेण 'माता मे वन्ध्या' इतिवत् पूर्वापर विरुद्धं तत्र संकुलम्, क्लिटम, इति नामद्वयम् । यथा - ' - ' पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः ' ॥ - यलुप्तवर्णपदमसंपूर्णोच्चारितं वचस्तत् ग्रस्तमिति ॥ यत्त्वरितोदितं तन्निरस्तम् ॥ सनिष्ठीवं लालायुक्तं तत् अम्बूकृतमुच्यते ॥ - यदनर्थकमर्थशून्यं तदबद्धं स्यात् ॥ - अनक्षरम्, अवाच्यम् इति २ वक्तुमनर्हस्य वचसः ॥ - मृषार्थकमत्यन्ताभूतार्थकं तत् आहतं ज्ञेयम् । यथा - 'एष वन्ध्यासुतो याति खपुष्पकृतशेखरः । भृगतृष्णाम्भसि स्नातः शशशृङ्गधनुर्धरः ॥' इति ॥ - लिष्टम्, अविस्पष्टम् इति २ अव्यक्तवचनस्य ॥ - यदनृतं वचः तत् वितथमित्युच्यते ।
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सत्यम्, तथ्यम्, ऋतम्, सम्यक् इति ४ सत्यस्य । अमूनि तद्वति सत्यवति त्रिषु । यथा -- सत्या स्त्री, सत्यः पुमान्, सत्यं कुलम् इति ॥ —शब्दः, निनादः, निनदः, ध्वनिः, ध्वानः, रवः, खनः, खानः, निर्घोषः, निर्ह्रादः, नादः,
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पतयः ३४७-३६६] प्रथम काण्डम् आरवारावसंरावविरावा अथ मर्मरः
३५७ स्वनिते वस्त्रपर्णानां भूषणानां तु शिञ्जितम् ३५८ निक्वाणो निक्कणः क्वाणः क्वणः वणनमित्यपि ३५९ वीणायाः क्वणिते प्रादेः प्रक्वाणप्रकणादयः कोलाहलः कलकलस्तिरश्चां वाशितं रुतम् ३६१ स्त्री प्रतिश्रुत्प्रतिध्वाने गीतं गानमिमे समे ३६२
१०. नाट्यवर्गः निषादर्षभगान्धारषड्जमध्यमधैवताः
३६३ पञ्चमश्चेत्यमी सप्त तन्त्रीकण्ठोत्थिताः स्वराः ३६४ काकली तु कले सूक्ष्मे ध्वनौ तु मधुरास्फुटे कलो मन्द्रस्तु गम्भीरे तारोऽत्युच्चैस्त्रयस्त्रिषु 'नृणामुरसि मध्यस्थो द्वाविंशतिविधो ध्वनिः स मन्द्रः कण्ठमध्यस्थस्तारः शिरसि गीयते' ** निस्वानः, निस्वनः, आरवः, आरावः, संरावः, विरावः, इति १७ शब्दमात्रस्य ॥-वस्त्रपर्णानां स्खनिते शब्दे मर्मर इति ॥-भूषणानां नूपुरादीनां स्खनिते, शिञ्जितमिति ॥ निक्वाणः, निक्कणः, क्वाणः, कणः, क्वणनम्, इति ५ वीणादिस्खनितस्य ॥ प्रादेरुपसर्गात् ये प्रकाणः, प्रक्वणः, इत्यादयस्ते वीगाया एव क्वणिते नान्यत्र ॥-कोलाहलः, कलकलः, इति २ बहुभिः कृतस्य स्पष्टशब्दस्य ॥ तिरश्चां पक्षिणां रुतं शब्दः वाशितम् ॥-प्रतिश्रुत् , प्रतिध्वानः, इति २ प्रतिशब्दस्य ॥ गीतम् , गानम् , इति २ गायनस्य ॥ ___३६३-४३८, निषादः, ऋषभः, गान्धारः, षड्जः, मध्यमः, धैवतः, पञ्चमः, इत्यमी तन्त्रीभ्यः कण्ठेभ्यश्वोत्थिताः सप्त स्वरा ज्ञेयाः । तत्र निषादं नर्दन्ति गजाः, ऋषभं गावः, गान्धारं अजादयः, षड्जं मयूराः, मध्यमं क्रौञ्चाः, धैवतमश्वाः, पञ्चमं कोकिलाः इति ॥-ईषत् कलः काकलीति ॥ मधुरः श्रुतिसुखः, स चासावस्फुटोऽव्यक्ताक्षरः; एतादृशे ध्वनौ कल इति । गम्भीरे ध्वनी मन्द्र इति । अत्युच्चेनौ तार इति। त्रयः कलमन्द्रतारास्त्रिषु ॥ यः समन्वितलयः सम्यगन्वितोऽनु
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अमरकोषे
समन्वितलयस्त्वेकतालो बीणा तु वल्लकी fara स तु तन्त्रीभिः सप्तभिः परिवादिनी ततं वीणादिकं वाद्यमानद्धं सुरजादिकम् वंशादिकं तु सुषिरं कांस्यतालादिकं घनम् चतुर्विधमिदं वाद्यं वादित्रातोद्यनामकम् मृदङ्गा मुरजा भेदास्त्वयालिज्योर्ध्वकास्त्रयः स्याद्यशःपटहो ढक्का भेरी स्त्री दुन्दुभिः पुमान् आनकः पटहोsस्त्री स्यात्कोणो वीणादिवादनम् वीणादण्डः प्रवाल: स्यात्ककुभस्तु प्रसेवकः कोलम्बस्तु कायोsस्या उपनाहो निबन्धनम् वाद्यप्रभेदा डमरुमड्डुडिण्डिमझर्झराः
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[ १०.
गतो लयो गीतादिसाम्यं यत्र स एकताल उच्यते ॥-- -वीणा, वाळकी, विपक्षी, इति ३ वीणायाः ॥ - सा वीणा तु सप्तभिस्तन्त्री मिरुपलक्षिता परिवादिनी ॥ योगादिकं वाद्यं तत् ततमुच्यते । आदिना सैरन्ध्रीरावणप्रहस्त किंनयादि ॥ - - यन्मुर जादिकं मृदङ्गादिकं आदिना पटहादि, मुखे चर्मगा बध्यते तदानद्धमुच्यते ॥ -- वंशादिकम् । आदिना शङ्खादि तत्सुषिरं ज्ञेयम् ॥ - यत्कांस्यमयतालादिकं, आदिना घण्टा झटयदि तद्धनं ज्ञेयम् ॥ इदं ततादिकं चतुर्विधं वाद्यं वादित्रातोधनामकं वादि
मातोयं च नाम यस्य तत् ॥ मृदङ्गाः, मुरजाः, इति २ मृदङ्गस्य । बहुविधत्वाद्बहुवचनम् ॥ अयः, आलिङ्ग्यः, ऊर्ध्वकः, एते ३ मृदङ्गस्य भेदाः ॥--यसे य आदी पटो वायते स यशःपटद्दः । स एव ढक्का इत्युच्यते । इति २ ढक्कायाः ॥ मेरी, दुन्दुभिः, इति २ दुन्दुभेः ॥ आनकः पटहः, इति र परहस्य || -- वीणादि वाद्यते येन तद्धनुराकृति काष्टं कोण उच्यते ॥ - वीणाया दण्डः प्रवालः ॥ - ककुभः प्रसेवकः इति २ वीणादण्डादधो दारुमयं भाण्डं शब्दगाम्भीर्यार्थ यच्चर्मणाच्छाद्यते तस्य ॥ -- अस्या वीणायाः कायन्त्ररहितो दण्डादिसमुदायः कोलम्बक इयुच्यते ॥ -- यत्र वीणाप्रान्ते तच्यो निमप्यन्ते तन्निबन्धनम्, उपनाह इत्युच्यते ॥ - डमरुः, मडुः, डिण्डिनः, झर्झरः,
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प्रथमं काण्डम्
पङ्क्तयः ३६७-३८९
मर्दः पणवोsन्ये च नर्तकीलासिके समे विलम्बितं दूतं मध्यं तत्त्वमोघो घनं क्रमात् तालः कालक्रियामानं लयः साम्यमथास्त्रियाम् ताण्डवं नटनं नाट्यं लास्यं नृत्यं च नर्तने तौर्यत्रिकं नृत्यगीतवाद्यं नाव्यमिदं त्रयम् कुंसश्च भ्रुकुंसश्च कुंसश्चेति नर्तकः स्त्रीवेषधारी पुरुषो नाट्योत्तौ गणिकाज्जुका भगिनीपतिरावुत्तो भावो विद्वानथावुकः जनको युवराजस्तु कुमारो भर्तृदारकः राजा भट्टारको देवस्तत्सुता भर्तृदारिका देवी कृताभिषेकायामितरासु तु भट्टिनी अब्रह्मण्यमवध्योक्ती राजश्यालस्तु राष्ट्रियः
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मर्दलः, पणवः, एते वाद्यप्रभेदा वाद्यविशेषा ज्ञेयाः । अन्ये च हुडुकगोमुखादयः सन्ति ॥ - नर्तकी, लासिका, इति २ नर्तक्याः ॥ करचरणादिभिर्यद्विलम्बितं नृत्यादिकं तत् तत्त्वमित्युच्यते ॥ —- यद्भुतं शीघ्रं नृत्यादिकं तत् ओघ इत्युच्यते ॥यन्मध्यं न विलम्बितं नापि द्रुतं तत् धनमित्युच्यते ॥ -- कालक्रिययोर्मानं नियमहेतुः ताल इत्युच्यते ॥ - गीतवाद्यपादादिन्यासानां क्रियाकालयोः साम्यं लय इत्युच्यते ॥ - - ताण्डवम्, नटनम्, नाट्यम्, लास्यम्, नृत्यम्, नर्तनम् इति ६ नृत्यस्य ॥ - -नृत्य-गीत- वाद्यमितीदं त्रयं मिलित्वा तौर्यत्रिकमिति चोच्यते ॥यः स्त्रीवेषधारी नर्तकः पुरुषस्तत्र भ्रकुंसः, भ्रुकुंसः, भ्रूकुंसः इति ३ नामानि ॥ नाट्योक्तौ नाट्यप्रकरणे, नाट्यादन्यत्र प्रयोगो नास्तीत्यर्थः । या गणिका सा अजुका ॥ - भगिन्याः पतिः आवृत्त इत्युच्यते ॥ - यो विद्वान् स भाव इत्युच्यते ॥ - जनकस्तु आवुक इत्युच्यते ॥ - युवराजस्तु कुमारः, भर्तृदारकः, इति २ ॥ - भट्टारकः, देवः, इति २ राज्ञः ॥ - तस्य राज्ञः सुता भर्तृदारिका ॥कृतोऽभिषेको यस्यास्तस्यां राज्ञ्यां देवीति ॥ - इतरासु राज्ञीषु भट्टिनीति ॥ - अवध्यस्य वधानस्य ब्राह्मणादेरुक्तौ दोषोक्तिकरणे अब्रह्मण्यमिति ॥ राज्ञः
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अमरकोष
[१०. नाट्यवर्गः
३९० ३९१ ३९२ ३९३
अम्बा माताऽथ बाला स्याद्वासूरार्यस्तु मारिषः अत्तिका भगिनी ज्येष्ठा निष्ठानिर्वहणे समे हण्डे हल्ले हलाहानं नीचां चेटीं सखी प्रति अङ्गहारोऽङ्गविक्षेपो व्यञ्जकाभिनयो समौ निवृत्ते त्वङ्गसत्त्वाभ्यां द्वे त्रिष्वाङ्गिाकसात्त्विके शृङ्गारवीरकरुणाद्भुतहास्यभयानकाः बीभत्सरौद्रौ च रसाः शृङ्गारः शुचिरुज्ज्वलः उत्साहवर्धनो वीरः कारुण्यं करुणा घृणा कृपा दयाऽनुकम्पा स्यादनुक्रोशोऽप्यथो हसः हासो हास्यं च बीभत्सं विकृतं त्रिष्विदं द्वयम् विस्मयोऽद्भुतमाश्चर्य चित्रमप्यथ भैरवम्
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श्यालो राष्ट्रिय उच्यते ॥-अम्बा, माता, इति २ मातायाः॥-बाला, वासूः, इति २ कुमार्याः ॥--आर्यः, मारिषः, इति २ आर्यस्य ॥-या ज्येष्ठा भगिनी सा अत्तिका ॥-निष्ठा, निर्वहणम् , इति २ समे इति समानार्थे, न तु समानलिङ्गे ॥-नीचां प्रत्याहाने हण्डे इति । चेटी प्रति आह्वाने हले इति । सखी प्रत्याहाने हला इति । अमूनि त्रीण्यव्ययानि ॥-अङ्गहारः, अङ्गविक्षेपः, इति २ नृत्यविशेषस्य ॥-व्यजकः, अभिनयः, इति २ हस्तादिमिर्मनोगतार्थप्रकाशनस्य ॥-अङ्गेन निवृत्ते निष्पने कर्मणि आह्निकम् । सत्त्वे. नान्तःकरणेन निवृत्ते सात्त्विकम् । इमे द्वे अपि त्रिषु ॥-शृङ्गारः, वीरः, करुणः, अद्भुतः, हास्यः, भयानकः, बीभत्सः, रौद्रः, एते ८ रसा मेयाः ॥शृङ्गारः, शुचिः, उज्वलः, इति ३ मारस्य ॥-उत्साहवर्धनः, वीरः, इति २ वीरस्य ॥-कारुण्यम् , करुणा, घृणा, कृपा, दया, अनुकम्पा, अनुक्रोशः, इति ७ करुणस्य ॥ हसः, हासः, हास्यम्, इति ३ हासस्य ॥-बीभत्सम् , विकृतम्, इति २ बीभत्सस्य । इदं द्वयं रसे पुंसि । तद्वति त्रिषु ॥-विस्मयः, अद्भुतम, आचर्यम् , चित्रम्, इति ४ भद्भुतस्य ॥-भैरवम्, शरणम् ,
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पक्लयः ३९०-४११] प्रथमं काण्डम् दारुणं भीषणं भीष्मं घोरं भीमं भयानकम् भयंकरं प्रतिभयं रौद्रं तग्रममी त्रिषु चतुर्दश दरस्त्रासो भीतिभॊः साध्वसं भयम् विकारो मानसो भावोऽनुभावो भाववोधकः गर्वोऽभिमानोऽहंकारो मानश्चित्तसमुन्नतिः 'दर्पोऽवलेपोऽवष्टम्भश्चित्तोद्रेकः स्मयो मदः' अनादरः परिभवः परीभावस्तिरस्क्रिया रीढावमाननावज्ञावहेलनमसूक्षणम् मन्दाक्षं ह्रीस्त्रपा ब्रीडा लज्जा साऽपत्रपाऽन्यतः शान्तिस्तितिक्षाऽभिध्या तु परस्य विषये स्पृहा अक्षान्तिरीयोऽसूया तु दोषारोपो गुणेष्वपि वैरं विरोधो विद्वेषो मन्युशोकौ तु शुक् स्त्रियाम्
४०६
४०७ ४०८
४०९
४१० ४११
भीषणम् , भीष्मम् , घोरम् , भीमम् , भयानकम् , भयंकरम् , प्रतिभयम् , इति ९ भयानकस्य ॥-रोद्रम् , उग्रम् , इति २ रौद्रस्य । अमी अनुतादय उप्रान्ताश्चतुर्दश शब्दाः रसे पुंसि । तद्वति तु त्रिषु वाच्यलिङ्गाः ॥-दरः, त्रासः, भीतिः, भीः, साध्वसम् , भयम् , इति ६ भयस्य ॥ मानसः, मनःसंबन्धि विकारो भाव उच्यते ॥-यो भावबोधकश्चित्तविकारस्य प्रकाशकः कटाक्षादिः सोऽनुभाव इत्युच्यते ॥-गर्वः, अभिमानः, अहंकारः, इति ३ गर्वस्य ॥चित्तस्य समुन्नतिः परस्मादुत्कर्षचिन्तनेनौनयं मान उच्यते ॥-अनादरः, परिभवः, परीभावः, तिरस्क्रिया, रीढा, अवमानना, अवज्ञा, अवहेलनम् , असूक्षणम्, इति ९ अनादरस्य ॥-मन्दाक्षम्, ह्रीः, त्रपा, नीडा, लजा, इति ५ लजायाः॥-सा लज्जा अन्यतः परस्मा चेत् अपत्रपा ॥ क्षान्तिः, तितिक्षा, इति २ पराभ्युदयसहनस्य ॥-परस्य विषये परकीयधने स्पृहा अभिध्या ॥ अक्षान्तिः. ईर्ष्या, इति २ पराभ्युदयासहनस्य ॥-गुणेष्वपि दोषारोपः मस्या ॥-वैरम्, विरोधः, विद्वेषः, इति ३ वैरस्य -
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[ १०. नाट्यवर्गः
पश्चात्तापोऽनुतापश्च विप्रतीसार इत्यपि कोपकोधामर्षरोपप्रतिधा रुधौ स्त्रियो शुचौ तु चरिते शीलमुन्मादश्चित्तविभ्रमः प्रेमा ना प्रियता हार्द प्रेम स्नेहोऽथ दोहदम् इच्छा काङ्क्षा स्पृहा तृड् वाञ्छा लिप्सा मनोरथः कामोऽभिलाषस्तर्पश्च सोऽत्यर्थ लालसा द्वयोः उपाधिर्ना धर्मचिन्ता पुंस्याधिर्मानसी व्यथा स्याच्चिन्ता स्मृतिराध्यानमुत्कण्ठोत्कलिके समे उत्साहोऽध्यवसायः स्यात्स वीर्यमतिशक्तिभाकु कपटोsस्त्री व्याजदम्भोपधयश्छद्मकैतवे कुसृतिर्निकृतिः शाठ्यं प्रमादोऽनवधानता
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४१२
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४२२.
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मन्युः, शोकः, शुक्, इति ३ शोकस्य ॥ - पश्चात्तापः, अनुतापः, विप्रतीसार:, इति ३ पश्चात्तापस्य ॥- - कोप:, क्रोधः, अमर्षः, रोषः, प्रतिघः, रुट्, कुम, इति ७ क्रोधस्य ॥ रुट्कुधौ स्त्रियाँ स्त्रीलिङ्गे ॥ शुचौ शुद्धे चरित आचरणे शीलम् ॥ उन्मादः, चित्तविभ्रमः इति २ चेतसोऽनवस्थितेः ॥प्रेमा, प्रियता, हार्दम्, प्रेम, स्नेहः, इति ५ प्रेम्णः ॥ तत्र 'प्रेमा' ना पुमान्, स्नेहश्व ॥ - दोहदम्, इच्छा, काङ्क्षा, स्पृहा, ईहा, तृट्, वाञ्छा, लिप्सा, मनोरथः, कामः, अभिलाषः, तर्षः, इति १२ स्पृहायाः ॥ स तर्षो महांश्चेत् लालसा । द्वयोः स्त्रीपुंसयोः ॥ - उपाधिः, धर्मचिन्ता, इति २ धर्मचिन्तनस्य । तत्र 'उपाधिः' पुंसि ॥ - आधिः, मानसी व्यथा, इति २ मनः पीडायाः । आधिः उच्यते पुंसि ॥ - चिन्ता, स्मृतिः, आध्यानम्, इति ३ स्मरणस्य ॥— उत्कण्ठा, उत्कलिका, इति २ उत्कण्ठायाः ॥ -- उत्साहः, अध्यवसायः, इति २' उत्साहस्य ॥ येन कृत्वा असाध्यसाधनेऽप्युद्यतो भवति, स उत्साहोऽतिशक्तिभाक् साऽतिशक्तिश्चेत् वीर्यमुच्यते ॥ कपटः, व्याजः, दम्भः, उपधिः, छद्म, कैतवम्, कुसृतिः, निकृतिः, शाम्यम्, इति ९ शाठ्यस्य ॥ -
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Acha
४२४
पतयः ४१२-४३३] प्रथमं काण्डम् कौतूहलं कौतुकं च कुतुकं च कुतूहलम् ४२३ स्त्रीणां विलासविबोकविभ्रमा ललितं तथा हेला लीलेत्यमी हावाः क्रियाः शृङ्गारभावजाः ४२५ द्रवकेलिपरीहासाः क्रीडा लीला च नर्म च ४२६ व्याजोऽपदेशो लक्ष्यं च क्रीडा खेला च कूर्दनम् ४२७ धर्मो निदाघः स्वेदः स्यात्प्रलयो नष्टचेष्टता अवहित्थाकारगुप्तिः समौ संवेगसंभ्रमा स्यादाच्छुरितकं हासः सोत्प्रासः स मनाक् स्मितम् ४३० मध्यमः स्याद्विहसितं रोमाञ्चो रोमहर्षणम् ४३१ क्रन्दितं रुदितं क्रुष्टं जम्भस्तु त्रिषु जम्भणम् विप्रलम्भो विसंवादो रिङ्गणं स्खलनं समे
४२८ ४२९
०
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0
प्रमादः, अनवधानता, इति २ कर्तव्यानवधानस्य ॥-कौतूहलम् , कौतुकम्, कुतुकम् , कुतूहलम् , इति ४ कौतुकस्य ॥-विलासः, बिब्योकः, [विव्वोकः] विभ्रमः, ललितम् , हेला, लीला, इति ६ स्त्रीगां शृङ्गारभावजाः, शृङ्गाररससमुद्भूताः क्रियाः चेष्टाः हावा उच्यन्ते॥-द्रवः, केलिः, परीहासः, क्रीडा, लीला, नर्म, इति ६ क्रीडामात्रस्य ॥-व्याजः, अपदेशः, लक्ष्यम् , इति ३ स्वरूपाच्छादनस्य ॥-क्रीडा, खेला, कूर्दनम् , इति ३ बाललीलायाः ॥--धर्मः, निदाघः, खेदः, इति ३ खेदस्य ॥-प्रलयः, नष्टचेष्टता, इति २ परिस्पन्दनाशस्य ॥-अवहित्था, आकारगुप्तिः, इति २ आकारगोपनस्य ॥ संवेगः, संभ्रमः, इति २ हर्षादिना कर्मसु त्वरणस्य ॥ सोत्प्रासः सामिप्रायो हास आच्छुरितकमुच्यते ॥–स हासो मनागीषच्चेत् स्मितमुच्यते ॥-स हासो मध्यमश्चेदनल्पाधिकस्तर्हि विहसितं स्यात् ॥-रोमाञ्चः, रोमहर्षणम् , इति २ रोमोद्गमस्य ॥-क्रन्दितम् , रुदितम् , कुष्टम् , इति ३ रुदितस्य ॥ जृम्भः, जृम्भणम् , इति २ जृम्भिकायाः। मुंभस्त्रिषु ॥–विप्रलम्भः, विसंवादः, इति २ वञ्चनायुक्तभाषणस्य ॥-रिङ्गणम . स्खलनम् , इति २ स्वधर्मादेश्चलनस्य
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[११. पातालभोगिवर्गः
स्यान्निद्रा शयनं स्वापः स्वमः संवेश इत्यपि तन्द्री प्रेमीला कुटिकुटिकुटिः स्त्रियाम् अदृष्टिः स्यादसौम्येऽक्षिण संसिद्धिप्रकृती त्विमे स्वरूपं च स्वभावश्च निसर्गश्चाथ वेपथुः कम्पोऽथ क्षण उद्धर्षो मह उद्धव उत्सवः
११. पातालभोगिवर्गः
अधोभुवनपातालं वलिसद्म रसातलम् नागलोकोऽथ कुहरं शुषिरं विवरं विलम् छिद्रं निर्व्यथनं रोकं रन्धं श्वभ्वं वपा शुषिः गतवटौ भुवि व सरन्ध्रे शुषिरं त्रिषु अन्धकारोऽस्त्रियां ध्वान्तं तमिस्रं तिमिरं तमः ध्वान्ते गाढेऽन्धतमसं क्षीणेऽवतमसं तमः
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॥ — निद्रा, शयनम्, स्वापः स्वप्नः संवेशः, इति ५ निद्रायाः ॥ - तन्द्री, प्रमीला, इति २ निद्राया आदावन्ते च यदालस्यं तस्य ॥ भ्रकुटिः, भ्रुकुटिः भ्रुकुटि:, इति ३ क्रोधादिजनितभ्रुवक्रतायाः ॥ - असौम्येऽक्ष्णि सरोषे चक्षुष अटिरिति ॥ - संसिद्धिः, प्रकृतिः, स्वरूपम्, स्वभावः, निसर्गः, इति ५ स्वभावस्य ॥ —– वेपथुः, कम्पः, इति २ कम्पस्य ॥ क्षणः, उद्धर्षः, महः, उद्धवः, उत्सवः, इति ५ उत्सवस्य । महोऽदन्तः ॥
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४३९-४६०,अधोभुवनम्, पातालम्, बलिसद्म, रसातलम्, नागलोकः, इति ५ पातालस्य ॥ - कुहरम्, शुषिरम् विवरम्, बिलम्, छिद्रम्, निर्व्यथनम्, रोकम्, रन्ध्रम्, श्वभ्रम्, वपा, शुषिः, इति ११ छिद्रमात्रस्य ॥ गर्तः, अवदः, इति २ भुवि यच्छुभ्रं तत्र ॥ शुषिर मिति सरन्ध्रे - रन्ध्रयुक्ते वस्तुनि, तत्रिषु वाच्यलिङ्गम् ॥—अन्धकारः ध्वान्तम्, तमिस्रम्, तिमिरम्, तमः, इति ५ अन्धका रस्य । तत्र 'अंधकारः' क्लीबपुंसोः ॥ -- गाढे ध्वान्ते सातिशये तमसि अन्धतमसमिति ॥ - क्षीणे ध्वान्ते अवतमसमिति ॥ - विष्वक् तमः सर्वव्यापि ध्वान्तं संत
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प्रथमं काण्डम्
पङ्कयः ४३४-४५५ ] विष्वक् संतमसं नागाः काद्रवेयास्तदीश्वरः शेषोऽनन्तो वासुकिस्तु सर्पराजोऽथ गोनसे तिलित्सः स्यादजगरे शयुर्वाहस इत्युभी अलगर्दो जलव्यालः समौ राजिलडुण्डुभौ मालुधानो मातुलाहिर्निर्मुक्तो मुक्तकञ्चुकः सर्पः वृदाकुर्भुजगो भुजंगोऽहिर्भुजंगमः आशीविषो विषधरश्चक्री व्यालः सरीसृपः कुण्डली गूढपाच्चक्षुःश्रवाः काकोदरः फणी दर्वीकरो दीर्घपृष्ठो दन्दशूको बिलेशयः उरगः पन्नगो भोगी जिह्मगः पवनाशनः 'लेलिहानो द्विरसनो गोकर्णः कञ्जुकी तथा कुम्भीनसः फणधरो हरिर्भोगधरस्तथा अहेः शरीरं भोगः स्यादाशी रप्य हिदंष्ट्रिका' त्रिपाहेयं विषास्थ्यादि स्फटायां तु फणा द्वयोः
४३
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मसमुच्यते॥-नागाः, काद्रवेयाः, इति २ नागानाम् ॥-तदीश्वरो नागानामीशः, शेषः, अनन्तः, इति चोच्यते ॥ - वासुकिः, सर्पराजः, इति २ नागराजस्य ॥गोनसः, तिलित्सः, इति २ गोनसस्य ॥ - अजगरः, शयुः, वाहसः, इति ३ अजगरस्य ॥ - अलगर्दः, जलव्यालः, इति २ जलसर्पस्य ॥ --राजिलः, डुण्डुभः, इति २ निर्विषस्य द्विमुख सर्पस्य ॥ - मालुधानः, मातुला हिः, इति २ खड्डाकारचित्रसर्पस्य ॥ - निर्मुक्तः, मुक्तकटुकः, इति २ त्यक्तकचुकस्य ॥ - सर्पः, पृदाकुः, भुजगः, भुजंगः, अहिः, भुजङ्गमः, आशीविषः, विषधरः, चक्री, व्यालः सरीसृपः, कुण्डली, गूढपात्, चक्षुःश्रवाः, काकोदरः, फणी, दवकरः, दीर्घपृष्ठः, दन्दशूकः, बिलेशयः, उरगः, पन्नगः, भोगी, जिह्मगः, पवनाशनः, इति २५ सर्पस्य ॥ -यद्विषास्थ्यादि व्यहिभवं तत् आहेयमुच्यते ॥ -- स्फटा फणा, इति २ फणायाः । द्वे अपि स्त्रीपुंसयोः ॥
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समौ निर्मोक वेडस्तु गरलं विषम् पुंसि क्लीवे च काकोलकालकूटहलाहलाः सौराष्ट्रकः शौक्लियो ब्रह्मपुत्रः प्रदीपनः दारदो वत्सनाभश्च विषभेदा अमी नव विषवैद्यो जाङ्गुलिको व्यालग्राह्य हितुण्डिकः १२. नरकवर्ग:
स्यान्नारकस्तु नरको निरयो दुर्गतिः स्त्रियाम् तद्भेदास्तपना वीचिमहारौरवरौरवाः
संघातः कालसूत्रं चेत्याद्याः सत्त्वास्तु नारकाः प्रेता वैतरणी सिन्धुः स्यादलक्ष्मीस्तु निर्ऋतिः विष्टिराजूः कारणा तु यातना तीव्र वेदना पीडा बाधा व्यथा दुःखमामनस्यं प्रसूतिजम् स्यात्कष्टं कृच्छ्रमाभीलं त्रिष्वेषां भेद्यगामि यत्
[ १२. नरकवर्गः
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कबुकः, निर्मोकः, इति २ सर्पत्वचः ॥ क्ष्वेडः, गरलम्, विषम् इति ३ विषमात्रस्य ॥ - काकोलः, कालकूटः, हलाहलः, सांराष्ट्रिकः, शौक्लिकेयः, ब्रह्मपुत्रः, प्रदीपनः, दारदः, वत्सनाभः इति ९ स्थावरविषभेदाः ॥ - विषवैद्यः, जाङ्गुलिकः, इति २ विपहरवैद्यस्य ॥ व्यालग्राही, अहितुण्डिकः, इति २ सर्पग्राहिणः ॥
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४६१-४६७. नारकः, नरकः, निरयः, दुर्गतिः, इति नरकस्य ॥ - तपनः, अवीचिः, महारौरवः, रौरवः, संघातः, कालसूत्रम्, इत्याद्या नरकभेदाः । आद्यशब्दात् तामिस्रकुम्भीपाकादयः ॥ - नारका नरके भवाः सत्त्वाः प्राणिनः प्रेता उच्यन्ते ॥ - - नारकी सिन्धुर्नदी वैतरणी ज्ञेया ॥ - नारक्यलक्ष्मीरशोभा निर्ऋतिरुच्यते ॥ विष्टिः, आजूः, इति २ नरके हठात्प्रक्षेपस्य ॥ - कारण, यातना, तीव्रवेदना, इति ३ नरकपीडायाः ॥ - पीडा, बाधा, व्यथा, दुःखम्, आमनस्यम्, प्रसूतिजम्, कष्टम्, कृच्छ्रम्, आभीलम् इति ९ दुःखस्य । एषां मध्ये यद्दुःखादिकं भेद्यगामि विशेष्यवृत्ति तत्रिषु । यथा - 'सेयं सेवा दुःखा च बहुरूपा', 'सोऽयं दुःखसुतोऽगुणः', 'सर्वं दुःखं विवेकिनः' इति ॥
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पचयः ४५६-४८० ]
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प्रथमं काण्डम्
१३. वारिवर्गः समुद्रोऽधिरकूपारः पारावारः सरित्पतिः उदन्वानुदधिः सिन्धुः सरस्यान् सागरोऽर्णवः रत्नाकरो जलनिधिर्यादः पतिरपांपतिः तस्य प्रभेदाः क्षीरोदो लवणोदस्तथापरे आपः स्त्री भूनि वार्वारि सलिलं कमलं जलम् पयः कीलालममृतं जीवनं भुवनं वनम् कबन्धमुदकं पाथः पुष्करं सर्वतोमुखम् अम्भोऽर्णस्तोयपानीयनीरक्षीराम्बुशम्बरम् मेघपुष्पं घनरसस्त्रिषु द्वे आप्यमम्मयम् भङ्गस्तरङ्ग ऊर्मिर्वा स्त्रियां वीचिरथोर्मिषु महत्सूलोलकल्लोलौ स्यादावर्तोऽम्भसां भ्रमः पृषन्तिबिन्दुपृषताः पुमांसो विप्रुषः स्त्रियाम् चक्राणि पुटभेदाः स्युमाश्च जलनिर्गमाः
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४६८-५५३, समुद्रः, अब्धिः, अकूपारः, पारावारः, सरित्पतिः, उदन्वान्, उदधिः, सिन्धुः, सरखान्, सागरः, अर्णवः, रत्नाकरः, जलनिधिः, यादःपतिः, अपपतिः, इति १५ समुद्रमात्रस्य ॥ -- तस्य समुद्रस्य प्रमेदास्तु-क्षीरोदः, लवणोदः, तथापरे दध्युद - घृतोद - सुरोद - इक्षूद- स्वादूदाः ॥ - आपः, वाः, वारि, सलिलम्, कमलम्, जलम्, पयः, कीलालम्, अमृतम्, जीवनम् भुवनम्, वनम्, कबन्धम्, उदकम्, पाथः, पुष्करम्, सर्वतोमुखम्, अम्भः, अर्णः, तोयम्, पानीयम्, नीरम्, क्षीरम्, अम्बु, शम्बरम्, मेघपुष्पम्, घनरसः, इति २७ जलस्य । तत्र 'आपः' स्त्रियां बहुत्वे च नित्यम्, ॥-आप्यम्, अम्मयम्, इति २ जलविकारस्य | त्रिषु ॥ - भङ्गः तरङ्गः, ऊर्मिः, वीचिः, इति ४ लहर्याः || – उल्लोलः, कल्लोलः, इति २ महत्सूर्मिषु ॥ - अम्भसां भ्रमो मण्डलाकारेण भ्रमणम् आवर्तः स्यात् ॥ पृषन्ति बिन्दवः, पृषतः, विप्रुषः, इति ४ जलबिन्दूनाम् । तत्र 'पृषत' क्लोबे, 'बिन्दु पृषती' पुंसि, 'विप्रुट्' स्त्री ॥ - चक्राणि, पुटमेदाः, भ्रमाः, जलनिर्गमाः इति ४ यानि चक्राकारेण जलान्यधो यान्ति
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४६
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कूलं रोधश्च तीरं च प्रतीरं च तटं त्रिषु पारावारे परार्वाची तीरे पात्रं तदन्तरम् द्वीपोsस्त्रियामन्तरीपं यदन्तर्वारिणस्तम् तोयोत्थितं तत्पुलिनं सैकतं सिकतामयम् निपद्वरस्तु जम्बालः पङ्कोऽस्त्री शादकर्दमौ जलोच्छ्रासाः परवाहाः कूपकास्तु विदारकाः नाव्यं त्रिलिङ्गं नौता स्त्रियां नौस्तरणिस्तरिः उडुपं तु प्लवः कोलः स्रोतोऽम्बुमरणं स्वतः आतरस्तरपण्यं स्याद्रोणी काष्ठाम्बुवाहिनी सांयात्रिकः पोतवणिक कर्णधारस्तु नाविकः
[१३. वारिवर्गः
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तेषाम् ॥ कूलम् रोधः, तीरम्, प्रतीरम्, तटम्, इति ५ तीरस्य । 'तटं' त्रिलिङ्गम् ॥ - परं च अर्वाक् च परार्वाची तीरे क्रमेण पारावारे उच्येते । नद्याः परतीरं पारम्, अर्वाक् तीरम् आवारमित्यर्थः ॥ - तयोः पारावारयोरन्तरं मध्यं पात्रमुच्यते ॥ - वारिणोऽन्तर्मध्ये यत्तरं तत् द्वीप इति अन्तरीपम् इति चोच्यते ॥ —– तोयोत्थितं तोयक्रमेणोत्थं तत् पुलिनमुच्यते ॥ - सैकतमू, सिकतामयम्, इति २ वालुकाप्रचुर स्थानस्य ॥ - निषद्वरः, जम्बालः, पङ्कः, शादः, इति ५ कर्दमस्य । तत्र 'पङ्कः' पुंनपुंसकयोः ॥ - जलोच्छ्रासाः, परीवाहाः, इति २ निर्गममार्गैः प्रवृद्धं जलं परिवहति तेषाम् ॥ -- कूपकाः, विदारकाः, इति २ शुष्कनद्यादौ हि जलार्थ गर्ताः क्रियन्ते तेषाम् ॥ - नौतायें नावा तारितुमर्हे जलादौ नाव्यम् । तत्रिषु ॥ - नौः, तरणिः, तरिः, इति ३ नौकायाः ॥ - उडुपम्, लवः, कोलः इति ३ अल्पनौकायाः ॥ खतो यदम्बुसरणं जलगमनं तत् स्रोत उच्यते ॥ - आतरः, तरपण्यम्, इति २ नद्यादितरणे देयमूल्यस्य ॥ - - काष्ठाम्बुवाहिनी काष्ठमयी जलवाहिनी सा द्रोणी उच्यते ॥ सांयात्रिकः, पोतवणिक, इति २ नौकया वाणिज्यकारिणः ॥ -- कर्णधारः, नाविकः, इति २ अरित्रं धृत्वा यस्तारयति तस्य ॥ — नियामकाः, पोतवाहाः, इति २ पोतमध्यस्थितकाष्ठा दुष्टजन्त्वा
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कर्दमः,
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प्रथमं काण्डम्
"यः ४८१-५०१ ]
नियामकाः पोतवाहाः कूपको गुणवृक्षकः नौकादण्डः क्षेपणी स्यादरित्रं केनिपातकः अभिः स्त्री काष्ठकुद्दालः सेकपात्रं तु सेचनम् क्लीवेऽर्धनावं नावोऽर्धेऽतीतनौकेऽतिनु त्रिषु त्रिष्वागाधात्प्रसन्नोऽच्छः कलुषोऽनच्छ आविलः निम्नं गभीरं गम्भीरमुत्तानं तद्विपर्यये अगाधमतलस्पर्शे कैवर्ते दाशधीवरौ
आनायः पुंसि जालं स्याच्छणसूत्रं पवित्रकम् मत्स्याधानी कुवेणी स्याद्वडिशं मत्स्यवेधनम् पृथुरोमा झषो मत्स्यो मीनो वैसारिणोऽण्डजः विसारः शकुली चाथ गडकः शकुलार्भकः
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५००
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दिज्ञानाय स्थित्वा ये नियन्तुं शक्तास्तेषाम् ॥ —कूपकः, गुणवृक्षकः, इति २ रज्वाद्याधारमध्यस्तम्भस्य ॥ - - नौकादण्डः, क्षेपणी, इति २ नौकावाहक दण्डस्य ॥ - अरित्रम् केनिपातकः, इति २ कर्णस्य ॥ - अभिः, काकुद्दालः, इति २ पोतादेर्मलापनयनार्थ काष्ठकुद्दालस्य ॥ - सेक - पात्रम्, सेचनम्, इति २ चर्मादिरचितस्य जलोत्सर्जन पात्रस्य ॥ - नावोऽर्धे अर्धनावम् | तक्क्लीबे ॥ - अतीतनौके नौकामतील वर्तमाने मनुष्यादौ अतिनु । त्रिलिङ्गम्, अतः परं आगाधात् 'अगाध' शब्दमभिव्याप्य त्रिषु वाच्यलिङ्गा इत्यर्थः ॥ -- प्रसन्नः, अच्छ:, इति २ निर्मलस्य ॥ कलुषः, अनच्छः, आविल:, इति ३ मलमिश्रस्य ॥ - निम्नम्, गभीरम्, गम्भीरम् इति ३ गम्भीरस्य ॥ तद्विपर्यये गम्भीरादितरस्मिन् उत्तान मिति ॥ अगाधम्, अतलस्पर्शम्, इति २ अत्यन्तगम्भीरस्य ॥ - कैवर्तः, दाशः, धीवरः, इति ३ कैवतस्य ॥ आनायः, जालम्, इति २ जालस्य ॥ - शणसूत्रम्, पवित्रकम् इति २ शणसूत्रजालस्य ॥ - मत्स्याधानी, कुवेणी, इति २ मत्स्यबन्धनकरण्डिकायाः ॥ - बडिशम्, मत्स्यवेधनम् इति २ मत्स्यवेधनस्य ॥ - - पृथुरोमा, झषः, मत्स्यः, मीनः, वैसारिणः, अण्डजः, विसारः, शफुली, इति ८
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अमरकोषे
सहस्रदंष्ट्रः पाठीन उलूपी शिशुकः समौ नलमीनश्चिलिचिमः प्रोष्ठी तु शफरी द्वयोः क्षुद्राण्डमत्स्यसंघातः पोताधानमथो झपाः रोहितो मद्गुरः शालो राजीवः शकुलस्तिमिः तिमिंगिलादयश्चाथ यादांसि जलजन्तवः तद्भेदाः शिशुमारोद्रशङ्कवो मकरादयः स्यात्कुलीरः कर्कटकः कूर्मे कमटकच्छपी ग्राहोऽवहारो नक्रस्तु कुम्भीरोऽथ महीलता गण्डूपदः किंचुलको निहाका गोधिका समे रक्तपा तु जलौकायां स्त्रियां भूम्नि जलौकसः मुक्तास्फोटः स्त्रियां शुक्तिः शङ्खः स्यात्कम्बुरस्त्रियों क्षुद्रशङ्खाः शङ्खनखाः शम्बूका जलशुक्तयः
,
[ १३. वारिवर्गः
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२०४
मत्स्यस्य ॥ - गडकः, शकुलार्भकः इति २ मत्स्यविशेषस्य ॥ - सहस्रदंष्ट्रः, पाठीन:, इति २ बहुदंष्ट्रस्य मत्स्यविशेषस्य ||---उलूपी, शिशुकः, इति २ शिशुमाराकारमत्स्यस्य ॥ नलमीनः, चिलिचिमः, इति २ जलतृणचारिमत्स्यविशेषस्य ॥ - प्रोष्टी, शफरी, इति २ शुभ्रमत्स्यविशे षस्य ॥ क्षुद्राश्च ते अण्डमत्स्याश्च तेषां संघातः पोताधानमुच्यते ॥ अथो झषा मत्स्यविशेषाः वक्ष्यन्ते, नतु पर्यायाः -- रोहितः, मद्गुरः, शालः, राजीवः, शकुलः, तिमिः, तिमिंगिलः, 'आदि' शब्दात् नन्यावतादयोऽन्ये ॥ - यादांसि, जलजन्तवः इति २ जलचरमात्रस्य ॥ - तद्भेदा जलजन्तूनां विशेषाः -- शिशुमारः, उद्रः, शङ्कुः, मकरः।‘आदि शब्दात् जलहस्त्यादयः ॥ - कुलीरः, कर्कटकः, इति २ कर्कटस्य ॥ - कूर्मः, कमठः, कच्छप:, इति ३ कूर्मस्य ॥ -- ग्राहः, अवहारः, इति २ ग्राहस्य ॥ -- नक्रः, कुम्भीरः, इति २ नक्रस्य ॥ महीलता, गण्डूपदः, किंचुलकः, इति ३ जलचरभेदस्य ॥ -- निहाका, गोधिका, इति २ जलगोधिकायाः ॥ -- रक्तपा, जलौका, जलौकसः, इति ३ जलौकायाः ॥ मुक्तास्फोटः, शुक्तिः, इति २ शुक्तिकायाः ॥ - शङ्खः, कम्बुः, इति २ शङ्खस्य ॥ क्षुद्रशङ्खाः शङ्खनखाः, इति २ सूक्ष्मशङ्खानाम् ॥ -- जलशुक्त यो
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५२२
पतयः ५०२-५२४] प्रथम काण्डम्
४९ भेके मण्डूकवर्षाभूशालूरप्लवदर्दुराः
५१४ शिली गण्डूपदी भेकी वर्षाभ्वी कमठी डुलिः ५१५ मद्गुरस्य प्रिया शृङ्गी दुर्नामा दीर्घकोशिका ५१६ जलाशयो जलाधारस्तत्रागाधजलो हृदः
५१७ आहावस्तु निपानं स्यादुपकूपजलाशये ।
५१८ पुंस्येवान्धुः प्रहिः कूप उदपानं तु पुंसि वा ५१९ नेमिस्त्रिकाऽस्य वीनाहो मुखबन्धनमस्य यत् ५२० पुष्करिण्यां तु खातं स्यादखातं देवखातकम् ५२१ पद्माकरस्तडागोऽस्त्री कासारः सरसी सरः वेशन्तः पल्वलं चाल्पसरो वापी तु दीर्घिका ५२३ खेयं तु परिखाधारस्त्वम्भसां यत्र धारणम्
५२४ जलमात्रजाः शुक्तयः शम्बूका उच्यन्ते ॥ भेकः, मण्डूकः, वर्षाभूः, शालूरः, सवः, दर्दुरः, इति ६ मेकस्य ॥-शिली, गण्डपदी, इति २ स्वल्पगण्डूपदजातेः ॥-मेकी, वर्षाभ्वी, इति २ क्षुद्रभेकजातेः ॥-कमठी, डुलिः, इति २ काः ॥--मद्गुराख्यस्य मत्स्यावशेषस्य प्रिया स्त्री शृङ्गीत्युच्यते ॥-- दुर्नामा, दीर्घकोशिका, इति २ जलूकाकारस्य जलचरविशेषस्य ॥-जलाशयः, जलाधारः इति २ तडागादीनाम् ।।-अगाधमतलस्पर्श जलं यस्य स जलाशयो हद उच्यते ॥-उपकूप जलाशये कृपसमीपे यो जलाशयः कूपोद्धृताम्बुस्थापनीयशिलादिरचितो गर्तः, यत्रत्यं जलं सुखेन गावः पिवन्ति, तत्र आहावः, निपानम् , इति ॥-अन्धुः, प्रहिः, कूपः, उदपानम् , इति ४ कृपस्य। तत्र 'उदपानं' पुंसि वा॥-अस्य कूपम्य नेमिरन्ते रज्वादिधारणार्थ दास्यत्रं सा त्रिका ॥-अस्य कूपस्य पाषणादिमियन्मुखनिवन्धनं स वीनाह उच्यते ॥-पुष्करिणी, खातम्, इति २ पुष्करिण्याः ॥-अखातम् , देवखातकम्, इति २ अकृत्रिमखातस्य ॥-पद्माकरः, तडागः, कासारः, सरसी, सरः, इति ५ तडागस्य ॥वेशन्तः,परम् , अल्पसरः, इति ३ स्वल्पसरसः ।।-वापी, दीर्घिका, इति २ वाप्याः ॥.-खेयम्, परिखा, इति २ दुर्गाद्वहिर्यत्परितः खातं क्रियते तस्य ॥-यत्र अम्भसां धारणं क्षेत्रादिसेकार्थ जलानां संग्रहणं स आधार
म. को. स. ४
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५३१
अमरकोषे [१३. वारिवर्गः स्यादालवालमावालमावापोऽथ नदी सरित्
५२५ तरङ्गिणी शैवलिनी तटिनी हादिनी धुनी स्रोतस्वती द्वीपवती स्रवन्ती निम्नगापगा
५२७ 'कूलंकषा निर्झरिणी रोधोवक्रा सरस्वती' गङ्गा विष्णुपदी जद्भुतनया सुरनिम्नगा
५२८ भागीरथी त्रिपथगा त्रिस्रोता भीष्मसूरपि
५२९ कालिन्दी सूर्यतनया यमुना शमनस्वसा
५३० रेवा तु नर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका करतोया सदानीरा बाहुदा सैतवाहिनी
५३२ शतद्रुस्तु शुतुद्रिः स्याद्विपाशा तु विपाट् स्त्रियाम् ५३३ शोणो हिरण्यवाहः स्यात् कुल्याऽल्पा कृत्रिमा सरित् ५३४ शरावती वेत्रवती चन्द्रभागा सरस्वती कावेरी सरितोऽन्याश्च संभेदः सिन्धुसंगमः ५३६ उच्यते ॥-आलवालम् , आवालम् , आवापः, इति ३ वृक्षादिमूले समन्ततोऽम्भसो धारणार्थ यद्वेटनं तस्य ॥-नदी, सरित् , तरङ्गिणी, शैवलिनी, तटिनी, हादिनी, धुनी, स्रोतखती, द्वीपवती, सवन्ती, निम्नगा, आपगा, इति १२ नद्याः ॥--गङ्गा, विष्णुपदी, जहुतनया, सुरनिम्नगा, भागीरथी, त्रिपथगा, त्रिस्रोताः, भीष्मसूः, इति ८ भागीरथ्याः ॥-कालिन्दी, सूर्यतनया, यमुना, शमनस्वसा, इति ४ यमुनायाः ॥-रेवा, नर्मदा, सोमोद्भवा, मेकलकन्यका, इति ४ नर्मदायाः । करतोया, सदानीरा, इति २ गौरीविवाहे कन्यादानोदकाजातायाः ॥-बाहुदा, सैतवाहिनी, इति .२ कार्तवीर्यार्जुनेन या अवतारिता तस्याः ॥- शतद्रुः, शुतुद्रिः, इति २ शतद्राः ॥ विपाशा, विपाट , इति २ पाशमोचिन्याः ॥-शोणः, हिरण्यवाहः, इति २ नदविशेषस्य ॥ -या अल्पा कृत्रिमा सरित् सा कुल्या॥-शरावती, वेत्रवती, चन्द्रभागा, सरखती, कावेरी, इति ५ सरिद्विशेषाः॥ अन्याश्च सरितः कौशिकीगण्डकी-चर्मण्वती-गोदा-वेण्याद्याः सन्तीति शेषः ॥-संभेदः, सिन्धुसंगमः,
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प्रथमं काण्डम्
पङ्कयः ५२५-५४८ ]
द्वयोः प्रणाली पयसः पदव्यां त्रिषु तूत्तरौ देविकायां सरय्वां च भवे दाविकसारवौ सौगन्धिकं तु कहारं हलकं रक्तसंध्यकम् स्यादुत्पलं कुवलयमथ नीलाम्बुजन्म च इन्दीवरं च नीलेऽस्मिन्सिते कुमुद कैरवे शालूकमेषां कन्दः स्याद्वारिपर्णी तु कुम्भिका जलनीली तु शेवालं शैवलोऽथ कुमुद्वती कुमुदिन्यां नलिन्यां तु बिसिनी पद्मिनीमुखाः वा पुंसि पद्मं नलिन मरविन्दं महोत्पलम् सहस्रपत्रं कमलं शतपत्रं कुशेशयम् पङ्केरुहं तामरसं सारसं सरसीरुहम् बिसप्रसूनराजीव पुष्कराम्भोरुहाणि च
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इति २ नदीमेलकस्य नदीसंगमस्य ॥ पयसो जलस्य पदव्यां निर्गमनमार्गे मकरमुखादिरूपा प्रणाली इति । तद्वयोः । पुंसि तु 'प्रणालः ' ॥ - - उत्तरौ दाविकसारवां त्रिषु । देविकायां नद्यां भवं दाविकम् । सरय्वां नद्यां भवं सारवम् ॥ - सौगन्धिकम्, कह्रारम्, इति २ संध्याविकासिनः शुक्लसरोजस्य ॥-हलकम, रक्तसंध्यम, इति २ रक्तकारस्य ॥ उत्पलम्, कुवलयम् इति २ कुमुदस्य ॥ नीलाम्बुजन्म, इन्दीवरम् इति २ नीलेऽस्मिन्नुत्पले ॥ कुमु दम्, कैरवम्, इति २ सिते शुभ्रेऽस्मिन्नुत्पले ॥ - एषामुत्पलविशेषाणां कन्दः शालूकं स्यात् ॥ - वारिपर्णी, कुम्भिका, इति २ जलकुम्भिकायाः ॥नीली, शेवालम्, शैवल:, इति ३ शैवालस्य ॥ -- कुमुद्वती, कुमुदिनी, इति २ कुमुदिन्याः ॥ - नलिनी, बिसिनी, पद्मिनी, इति ३ कमलिन्याः । ' मुख'शब्दात् सरोजिनीप्रभृतयः ॥ - पद्मम्, नलिनम्, अरविन्दम्, महोत्पलम्, सहस्रपत्रम्, कमलम्, शतपत्रम् कुशेशयम्, पङ्केरुहम्, तामरसम्, सारसम्, सरसीरुहम्, बिसप्रसूनम्, राजीवम्, पुष्करम्, अम्भोरुहम्, इति १६ कमलस्य
- जल
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अमरको
पुण्डरीकं सिताम्भोजमथ रक्तसरोरुहे रक्तोत्पलं कोकनदं नालो नालमथास्त्रियाम् मृणालं बिसमजादिकदम्बे षण्डमस्त्रियाम् करहाटः शिफाकन्दः किंजल्कः केसरोऽस्त्रियाम् संवर्तिका नवदलं बीजकोशो वराटकः
१४. काण्डसमाप्तिः
उक्तं स्वर्व्योमदिक्कालधीशब्दादि सनाव्यकम् पातालभोगि नरकं वारि चैषां च संगतम् इत्यमरसिंहकृतौ नामलिङ्गानुशासने स्वरादिकाण्डः प्रथमः साङ्ग एव समर्थितः
[ १३. वारिवर्ग :
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'वा पुंसि' इति षोडशभिरपि संबध्यते ॥ - तत्र पुण्डरीकम्, सिताम्भोजम्, इति २ सितकमलस्य ॥ - रक्तसरोरुहम्, रक्तोत्पलम्, कोकनदम् इति ३ रक्तकमलस्य ॥ - नालः, नालम्, इति २ पद्मादिदण्डस्य ॥ बिसम्, इति २ मृणालस्य । अस्त्रियां क्लीब- पुंसोः ॥ - अब्जादिकदम्बे कमलादीनां समूहे षण्डमिति ॥ - करहाट, शिफाकन्दः, इति २ पद्ममूलस्य ॥ -- किंजल्कः, केसरः, इति २ केसरस्य ॥ - संवर्तिका, नवदलम् इति २ पद्मादीनां नवपत्रस्य ॥ - बीजकोशः, वराटकः, इति २ बीजकोशस्य ॥
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५५७
- मृणालम्,
५५४-५५७. मया खर्-व्योम - दिक्-काल- धी-शब्द-नाट्य- पातालभोगि-नरकवारि उक्तम् । शब्दादीति रसगन्धादिग्रहणार्थमादिशब्दः । एषां स्वर्गादीनां संगतं संबन्धवशात्प्राप्तं देवासुरमेघादिकं तच्चोक्तम् ॥ एवममरसिंहस्य कृतौ नाम्नां लिङ्गानां चानुशासने स्वरादिशब्दानां काण्डः समूहः साङ्गोऽङ्गोपाङ्गसहितः प्रथमः समर्थितः कथितः ॥
श्रीमत्यमरविवेके महेश्वरेण विरचिते एव प्रथमः स्वरादिकाण्डः समाप्तः । इत्यमरकोशस्य प्रथमं काण्डं समाप्तम् ॥
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पङ्कयः ५४९-५६६ ]
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द्वितीयं काण्डम्
द्वितीयं काण्डम् १. वर्गभेदाः वर्गाः पृथ्वीपुरक्ष्माभृद्वनौषधिमृगादिभिः नृब्रह्मक्षत्रविट्शूद्रः साङ्गोपाङ्गेरि होदिताः २. भूमिवर्गः
भूर्भूमिरचलानन्ता रसा विश्वंभरा स्थिरा धरा धरित्री धरणिः क्षोणिर्ज्या काश्यपी क्षितिः सर्वसहा वसुमती वसुधोर्वी वसुंधरा गोत्रा कुः पृथिवी पृथ्वी क्ष्माऽवनिर्मेदिनी मही ' विपुला गहरी धात्री गौरिला कुम्भिनी क्षमा भूतधात्री रत्नगर्भा जगती सागराम्बरा' मृन्मृत्तिका प्रशस्ता तु मृत्सा मृत्स्ना च मृत्तिका उर्वरा सर्वसस्याढ्या स्यादूषः क्षारमृत्तिका ऊपवानूषरो द्वावप्यन्यलिङ्गौ स्थलं स्थली
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५५८-५५९. इह वक्ष्यमाणेऽस्मिन्काण्डेऽङ्गैर्मृच्छाखानगरादिभिः, उपाङ्गैर्मृत्स्नावेशादिभिः सहितैः पृथ्वी-पुर-क्ष्माभृत् वनौषधि-मृग-नृ-ब्रह्म-क्षत्र-विट्शूद्र-शब्दैवर्ग उदिता वक्तुमारब्धाः । तत्र क्ष्माभृत शैलः । ' मृगादिभिः' इत्यादि - शब्देन पक्षिणां संग्रहः; यद्वा, - मृगानत्ति पुनः पुनः स मृगादी सिंहः, अस्मिन्नर्थे ताच्छील्ये णिनिः ॥
५६० - ५९३. भूः, भूमिः, अचला, अनन्ता, रसा, विश्वंभरा, स्थिरा, धरा, धरित्री, धरणिः, क्षोणिः, ज्या, काश्यपी, क्षितिः, सर्वसहा, वसुमती, वसुधा, उर्वी, वसुंधरा, गोत्रा, कुः, पृथिवी, पृथ्वी, क्ष्मा, अवनिः, मेदिनी, मही, इति २७ नामानि भूमेः ॥ – मृत्, मृत्तिका, इति २ मृदः ॥ -- मृत्सा, मृत्स्ना, इति २ प्रशस्तमृदः । प्रशस्ता मृत्तिका त्वित्यन्वयः ॥ – सर्वैः सस्यैराढ्या मृत्तिका र्चरेत्युच्यते ॥ कषः, क्षारमृत्तिका, इति २ क्षारमृत्तिकायाः ॥
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अमरकोषे
समानौ मरुधन्वानौ द्वे खिलाप्रहते समे त्रिष्वथ जगती लोको विष्टपं भुवनं जगत् लोकोऽयं भारतं वर्ष शरावत्यास्तु योऽवधेः देशः प्राग्दक्षिणः प्राच्य उदीच्यः पश्चिमोत्तर: प्रत्यन्तो म्लेच्छदेशः स्यान्मध्यदेशस्तु मध्यमः आर्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यं विन्ध्यहिमालयोः नीवृज्जनपदो देशविषयौ तूपवर्तनम् त्रिष्वागोष्ठान्नडप्राये नान्नडल इत्यपि कुमुद्वान् कुमुदप्राये वेतस्वान् बहुवेतसे शाद्वलः शादहरिते सजम्बाले तु पङ्किलः जलप्रायमनूपं स्यात् पुंसि कच्छस्तथाविधः
[ २. भूमिवगः
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ऊषवान्, ऊषरः, इति २ क्षारमृद्विशिष्टस्य । द्वावप्यन्यलिङ्गौ ॥ - स्थलम्, स्थली, इति २ अकृत्रिमस्थानस्य ॥ - मरुः, धन्वा, इति २ मरुदेशस्य ॥ - खिलम्, अप्रहतम्, इति २ अकृष्टस्य क्षेत्रादेः ॥ - जगती, लोकः, विष्टपम्, भुवनम्, जगत् इति ५ भूतलस्य ॥ - अयं जम्बुद्वीपवर्ती दृश्यमानो लोकः भारतनामकं वर्षं ज्ञेयम् ॥ - शरावत्या अवधेः यः प्राग्दक्षिणः प्राक्सहितो दक्षिणो देशः स प्राच्य इति ॥ - शरावत्या अवधेयः पश्चिमोत्तरः पश्चिमसहित उत्तरो देशः स उदीच्य इति ॥—प्रत्यन्तः, म्लेच्छदेशः, इति २ शिष्टाचाररहितस्य कामरूपादेः ॥ - मध्यदेशः, मध्यमः, इति २ मध्यदेशस्य ॥ - आर्यावर्तः, पुण्यभूमिः, इति २ विन्ध्यहिमाचलयोरन्तरस्य - ॥ नीवृत्, जनपदः, इति २ जनैर्वास्यमानराष्ट्रस्य मगधादेः ॥―देशः विषयः, उपवर्तनम् इति ३ ग्रामसमुदायलक्षणस्य देशमात्रस्य ॥ - अथ गोष्ठशब्दमभिव्याप्य वक्ष्यमाणास्त्रिषु लिङ्गेषु । नद्वान्, नवल:, इति २ नडबहुले देशे ॥ - कुमुद्वान्, इति १ कुमुदप्राये ॥ - वेतखान् इति १ बहुवेतसे ॥ - शादैर्बालतृणैर्हरिते देशे शाद्वल इति ॥ —सजम्बाले कर्दमयुक्ते देशे पङ्किल इति ॥ – जलप्रायम्, अनूपम्, इति २ जलबहुलदेशस्य ॥ - अनुगता आपोऽत्र अनूपं, 'नानाद्रुमलतावीरुन्नि र्जरप्रान्तञ्चीतलैः । वनेर्व्याप्तमनूपं तत् सस्यैर्त्रीहियवादिभिः ॥' तथाविधः
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पङ्कयः ५६७-५८९ ]
द्वितीयं काण्डम्
स्त्री शर्करा शर्करिलः शार्करः शर्करावति देश एवादिमावेवमुन्नेयाः सिकतावति देशो नद्यम्बुवृष्ट्यम्बुसंपन्नत्रीहिपालितः स्यान्नदीमातृको देवमातृकश्च यथाक्रमम् सुराज्ञि देशे राजन्वान् स्यात्ततोऽन्यत्र राजवान् गोष्ठं गोस्थानकं तत्तु गोष्ठीनं भूतपूर्वकम् पर्यन्तभूः परिसरः सेतुरालौ स्त्रियां पुमान् वामलूरश्च नाकुश्च वल्मीकं पुंनपुंसकम् अयनं वर्त्म मार्गाध्वपन्थानः पदवी सृतिः सरणिः पद्धतिः पद्या वर्तन्येकपदीति च अतिपन्थाः सुपन्थाश्च सत्पथश्चार्चितेऽध्वनि व्यध्वो दुरध्वो विपथः कदध्वा कापथः समाः
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-अनूपसदृशः कचिन्नयादेरुपान्तदेशः कच्छ इत्युच्यते ॥ - शर्करा, शर्करिलः, इति २ वालुकायुक्तदेशे ॥ - शार्करः शर्करावान् इति २ वालुकायुक्तस्य देशादेः । आदिमौ शर्कराशर्करिलौ देशे एव । एवं सिकतावत्युन्नेया ऊहनीयाः । सिकताः, सिकतिल इति २ सिकतायुक्तस्य देशस्य । सैकतः, सिकतावान् इति २ वालुकायुक्तस्य देशादेः ॥नयम्बुभिर्वृष्ट्यम्बुभिश्च संपन्नैव्रीहिभिः पालितो देशः क्रमेण नदीमातृको देवमातृकश्च स्यात् ॥ धर्मशीलः शोभनो रराजा यत्र स सुराजा, तस्मिन्देशे राजन्वान् इति । ततोऽन्यत्र राजमात्रयुक्ते देशे राजवान् इति ॥ - गोष्टम्, गोस्थानकम् इति २ गवां स्थानस्य ॥-तगोष्टं भूतपूर्वकं चेत् गौष्ठीनमित्युच्यते ॥ - पर्यन्तभूः परिसरः, इति २ नदीपर्वतादीनामुपान्तभुवः ॥ सेतुः, आलिः, इति २ सेतोः ः ॥ - वामलूरः नाकुः, वल्मीकम् इति ३ वल्मीकस्य ॥ अयनम्, वर्त्म, मार्गः, अध्वा, पन्थाः, पदवी, सृतिः, सरणिः, पद्धतिः, पया, वर्तनी, एकपदी, इति १२ मार्गस्य ॥ - अतिपन्थाः, सुपन्थाः, सत्पथः, इति ३ अर्चितेऽध्वनि शोभने मार्गे ॥–व्यध्वः, दुरध्वः, विपथः, कदध्वा, कापथः, इति ५ दुर्मार्गस्य
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अमरकोषे
अपन्थास्त्वपथं तुल्ये शृङ्गाटकचतुष्पथे प्रान्तरं दूरशून्योऽध्वा कान्तारं वर्त्म दुर्गमम् गव्यूतिः स्त्री क्रोशयुगं नल्वः किष्कुचतुःशतम् घण्टापथः संसरणं तत्पुरस्योपनिष्करम् 'द्यावापृथिव्यौ रोदस्यो द्यावाभूमी च रोदसी दिवस्पृथिव्यौ गञ्जा तु रुमा स्याल्लवणाकरः ३. पुरवर्ग: पूः स्त्री पुरीनगर्यौ वा पत्तनं पुटभेदनम् स्थानीयं निगमोऽन्यत्तु यन्मूलनगरात्पुरम् तच्छाखानगरं वेशो वेश्याजनसमाश्रयः आपणस्तु निषद्यायां विपणिः पण्यवीथिका रथ्या प्रतोली विशिखा स्याच्चयो वप्रमस्त्रियाम् प्राकारो वरणः सालः प्राचीनं प्रान्ततो वृतिः
[ ३. पुरवर्ग:
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तत्र कदध्वा नान्तः ॥ अपन्थाः, अपथम् इति २ अमार्गस्य ॥ शृङ्गाटकम्, चतुष्पथम्, इति २ चतुष्पथस्य ॥ - दूरश्चासौ शून्यश्च दूरशून्यः, , छायाजला दिवर्जितो दूरस्थोऽध्वा मार्गः प्रान्तरमित्युच्यते ॥ - यद्दुर्गमं चोरकण्टकाद्युपद्रवयुक्तं वर्त्म मार्गः कान्तारमित्युच्यते ॥ क्रोशयुगं गव्यूतिरित्युच्यते ॥ - किष्कूणां हस्तानां चतुःशतं नल्व इत्युच्यते ॥ घण्टापथः, संसरणम् इति २ राजपथमात्रस्य ॥ - तत्संसरणं पुरस्य नगरस्य चेत् उपनिष्करमिति ॥
५९४–६३३. पूः, पुरी, नगरी, पत्तनम्, पुटमेदनम्, स्थानीयम्, निगमः, इति ७ नगरस्य ॥ - यत् प्राकारादिवेष्टितं विस्तीर्ण पुरं तत् स्थानीयादिनामकमिति । यन्मूलनगरादन्यत्पुरं तच्छाखानगरमित्यन्वयः ॥ - वेश्याजनस्य समाश्रयो निवेशस्थानं वेश इत्युच्यते ॥ -- आपणः, निषद्या, इति २ क्रय्यवस्तुशालाः ॥ विपणिः पण्यवीथिका, इति २ क्रय्यवस्तुशाला पङ्कः ॥ रथ्या प्रतोली, विशिक्षा, इति ३ ग्रामाभ्यन्तरमार्गस्य ॥ चयः, वप्रम् इति २ पारखोद्धृतमृत्तिकाकूटस्य ॥ - प्राकारः, वरणः, सालः,
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पङ्कयः ५९० - ६१० ]
द्वितीयं काण्डम्
भित्तिः स्त्री कुड्यमेकं यदन्तर्न्यस्तकीकसम् गृहं गेहोदवसितं वेश्म सद्म निकेतनम् निशान्तपस्त्यसदनं भवनागारमन्दिरम् गृहाः पुंसि च भूम्येव निकाय्यनिलयालयाः वासः कुटी द्वयोः शाला सभा संजवनं त्विदम् चतुःशालं मुनीनां तु पर्णशालोटजोऽस्त्रियाम् चैत्यमायतनं तुल्ये वाजिशाला तु मन्दुरा आवेशनं शिल्पिशाला प्रपा पानीयशालिका मठरछात्रादिनिलयो गञ्जा तु मदिरागृहम् गर्भागारं वासगृहमरिष्टं सूतिकागृहम् 'कुट्टिमोsस्त्री निबद्धा भूश्चन्द्रशाला शिरोगृहम्' वातायनं गवाक्षोऽथ मण्डपोऽस्त्री जनाश्रयः
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इति ३ यष्टिकाकण्टकादिरचित वेनस्य ॥ - नगरादेः प्रान्तभागे या वृतिर्वेष्टनं वेणुकण्टकादीनां तत्प्राचीनमित्युच्यते ॥ -- भित्तिः, कुड्यम् इति २ भित्तेः ॥ - तत् कुड्यम् अन्तर्न्यस्त कीकसं चेत् एडूकसंज्ञम् ॥ – गृहम्, गेहम्, उदवरितम्, वेश्म, सद्म, निकेतनम्, निशान्तम्, पस्त्यम्, सदनम् भवनम् अगारम्, मन्दिरम् गृहाः, निकाय्यः, निलयः, आलय:, इति १६ गृहस्य ॥ - वासः, कुटी, शाला, सभा, इति ४ सभागृहस्य ॥ - संजवनम्, चतुःशालम्, इति २ अन्योन्याभिमुखशालाचतुष्कस्य ॥ - पर्णशाला, उटजः इति २ मुनिगृहस्य || - चैत्यम्, आयतनम् इति २ यज्ञायतनभेदस्य ॥ - वाजिशाला, मन्दुरा, इति २ अश्वशालायाः ॥ -- आवेशनम् शिल्पिशाला, इति २ स्वर्णकारादीनां शालायाः ॥ -- प्रपा, पानीयशालिका, इति २ जलशालायाः ॥ - छात्रा दिनिलयः शिष्यादीनां गृहं मठ इत्युच्यते । आदिना कापालादिसंग्रहः ॥ -- गजा, मदिरागृहम् इति २ मद्यस्थानस्यगर्भागारम्, वासगृहम्, इति २ गृहमध्यभागस्य ॥ अरिष्टम्, सूतिकागृहम्, इति २ प्रसवस्थानस्य ॥ - वातायनम्, गवाक्षः, इति २ गवाक्षस्य ॥
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[३. पुरवर्गः हादि धनिनां वासः प्रासादो देवभूभुजाम् ६११ सौधोऽस्त्री राजसदनमुपकार्योपकारिका
६१२ स्वस्तिकः सर्वतोभद्रो नन्द्यावर्तादयोऽपि च ६१३ विच्छन्दकः प्रभेदा हि भवन्तीश्वरसद्मनाम् ६१४ स्यगारं भूभुजामन्तःपुरं स्यादवरोधनम् शुद्धान्तश्चावरोधश्च स्यादट्टः क्षोममस्त्रियाम् ६१६ प्रघाणप्रघणालिन्दा बहिरप्रकोष्ठ के गृहावग्रहणी देहल्यङ्गणं चत्वराजिरे अधस्तादारुणि शिला नासा दारूपरि स्थितम् प्रच्छन्नमन्तारं स्यात् पक्षद्वारं तु पक्षकम् वलीकनीधे पटलप्रान्तेऽथ पटलं छदिः
६२१ गोपानसी तु वलभी छादने वक्रदारुणि
६२२ मण्डपः, जनाश्रयः, इति २ मण्डपस्य । तत्र 'मण्डपः' क्लीवपुंसोः ॥-धनिनां धनवतां वासो गृहं तत् हादि ॥--देवानां राज्ञां च गृहं प्रासाद इति ।सौधः, राजसदनम् , उपकार्या, उपकारिका, इति ४ राजगृहस्य ॥---स्वस्तिकादय ईश्वरसद्मनां राजगृहाणां प्रभेदाः स्युः । तत्र चतुारतोरणः स्वस्तिकः, उपर्युपरिगृहं सर्वतोभद्रः, वर्तुलाकृतिर्नन्द्यावर्तः, विस्तीर्णः सुन्दरो विच्छन्दकः ॥-भूभुजां राज्ञां ख्यगारं स्त्रीगृहं तत् अन्तःपुरम् , अवरोधनम् , शुद्धान्तः, अवरोधः, इति ४ ॥-अट्टः, क्षोमम्, इति २ हादिपृष्ठस्य ॥ प्रघाणः, प्रघणः, अलिन्दः, इति ३ द्वाराद्वहिर्यः प्रकोष्ठकस्तम्य ॥गृहावग्रहणी, देहली, इति २ गृहद्वाराधोभागस्य ।।-अङ्गणम् , चत्वरम् , अजिरम् , इति ३ प्राङ्गणस्य॥ शिला इति १ द्वारस्तम्भाधःस्थितकाष्ठस्य॥नासा इति १ द्वारस्तम्भोपरि स्थितस्य दारुणः॥--प्रच्छन्नम् , अन्तारम् , इति २ गुप्तद्वारस्य ॥----पक्षद्वारम् , पक्षकम् , इति २ पार्श्वद्वारस्य ॥--वलीकम् , नीध्रम्, इति २ पटलप्रान्ते गृहच्छादनस्य ॥-पटलम् , छदिः, इति २ छादनस्य। छदिः सान्तं स्त्रियाम् ॥-गोपानसी, वलभी, इति २ छादनाथ यद्
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पतयः ६११-६३३] द्वितीयं काण्डम् कपोतपालिकायां तु विटङ्क पुनपुंसकम् स्त्री द्वारिं प्रतीहारः स्याद्वितर्दिस्तु वेदिका तोरणोऽस्त्री बहिरं पुरद्वारं तु गोपुरम् कूटं पूभरि यद्धस्तिनखस्तस्मिन्नथ त्रिषु कपाटमररं तुल्ये तद्विष्कम्भोऽर्गलं न ना आरोहणं स्यात्सोपानं निश्रेणिस्त्वधिरोहिणी संमाजनी शोधनी स्यात् संकरोऽवकरस्तया क्षिप्ते मुखं निःसरणं संनिवेशो निकर्षणम् समौ संवसथग्रामों वेश्मभूऽस्तुरस्त्रियाम् ग्रामान्त उपशल्यं स्यात्सीमसीमे स्त्रियामुभे घोष आभीरपल्ली स्यात् पक्कणः शबरालयः
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वनदारु तत्र ॥-कपोतपालिका, विटङ्कम् , इति २ सौधादौ काष्ठादिरचितपक्षिगृहस्य ।।--द्वाः, द्वारम् , प्रतीहारः, इति ३ द्वारस्य। तत्र 'द्वाः' स्त्रियाम्॥वितर्दिः, वेदिका, इति २ वेद्याः । 'वितर्दिः' स्त्री॥-तोरणः, बहिद्वारम् , इति २ तोरणस्य ॥-पुरद्वारम् , गोपुरम् , इति २ नगरद्वारस्य ॥-पूारि नगरद्वारे सुखेनावतारणार्थ क्रमनिम्नं यन्मृत्कूटं क्रियते तत्र हस्तिनख इति 1||-कपाटम् , अररम् , इति २ कपाटस्य । ते त्रिपु ॥----तद्विष्कम्भस्तस्य कपाटस्यावष्टम्भकं यन्मुसलं तत् अगेलमित्युच्यते ॥- आरोहणम् , सोपानम्, इति २ सोपानस्य॥ -निश्रेणिः, अधिरोहिणी, इति २ काष्ठादिकृतारोहणसाधनस्य ॥--संमाजेनी, शोधनी, इति २ 'केरसुणी' इति ख्यातस्य ॥-संकरः, अवकरः इति २ तया संमार्जन्याऽपसारितस्य 'केर' इति ख्यातस्य ॥–मुखम् , निःसरणम् , इति २ गृहादेमुखभूतस्य द्वारप्रदेशस्य ||-संनिवेशः, निकर्षगम् , इति २ समीचीनवासस्थानस्य ॥-संवसथः, प्रामः, इति २ ग्रामस्य ॥–वेश्मभूः, वास्तुः, इति २ गृहभूमेः॥--ग्रामान्ते ग्रामस्य समीपप्रदेशे उपशल्यमिति ॥ -सीम, सीमा, इति २ ग्रामादेर्मर्यादायाम् ॥-घोषः, आभीरपल्ली, इति २ गोपालग्रामस्य ॥-पक्कणः, शबरालयः, इति २ भिल्लग्रामस्य ॥
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[४. शैलवर्गः ४. शैलवर्गः महीधे शिखरिक्ष्माभृदहार्यधरपर्वताः अद्रिगोत्रगिरिग्रावाचलशैलशिलोच्चयाः
६३५ लोकालोकश्चक्रवालस्त्रिकूटस्त्रिककुत्समौ
६३६ अस्तस्तु चरमक्ष्माभृदुदयः पूर्वपर्वतः
६३७ हिमवान्निषधो विन्ध्यो माल्यवान् पारियात्रकः ६३८ गन्धमादनमन्ये च हेमकूटादयो नगाः
६३९ पाषाणप्रस्तरग्रावोपलाश्मानः शिला दृषत्
६४० कूटोऽस्त्री शिखरं शृङ्गं प्रपातस्त्वतटो भृगुः ६४१ कटकोऽस्त्री नितम्बोऽद्रेः स्नुः प्रस्थः सानुरस्त्रियाम् ६४२ उत्सः प्रस्रवणं वारिप्रवाहो निझरो झरः दरी तु कंदरो वा स्त्री देवखातबिले गुहा
६४४ ६३४-६४९. महीध्रः, शिखरी, माभृत् , अहार्यः, धरः, पर्वतः, अद्रिः, गोत्रः, गिरिः, ग्रावा, अचलः, शैलः, शिलोचयः, इति १३ पर्वतसामान्यस्य ॥लोकालोकः, चक्रवालः, इति २ सप्तद्वीपवत्या भूमेः प्राकारभूते गिरौ॥त्रिकूटः, त्रिककुत्, इति २ त्रिकूटाचलस्य ॥ अस्तः, चरमक्ष्माभृत् , इति २ अस्ताचलस्य ॥-उदयः, पूर्वपर्वतः, इति २ उदयाचलस्य ॥-हिमवान् , निषधः, विन्ध्यः, माल्यवान् , पारियात्रकः, गन्धमादनः, हेमकूटः, इति पर्वतविशेषाः । आदिना मलय-चित्रकूट-मन्दरादयः ॥-पाषाणः, प्रस्तरः, ग्रावा, उपलः, अश्मा, शिला, दृषत् , इति ७ पाषाणस्य । 'शिलादृपदौ' स्त्रियाम् ॥ - कूटः, शिखरम् , शृङ्गम् , इति ३ पुंनपुंसकलिङ्गं पर्वताग्रस्य ॥-प्रपातः, अतटः, भृगुः, इति ३ पर्वतात्पतनस्थानस्य ॥-अनितम्बो मध्यभागः कटक इत्युच्यते ॥-नुः, प्रस्थः, सानुः, इति ३ पुंनपुंसकलिङ्गानि समभूभागे पर्वतकदेशे ।।-उत्सः, प्रस्रवणम् , इति २ यत्र पानीयं निपत्य बहुलीभवति तस्य स्थानस्य ॥~वारिप्रवाहः, निझरः, झरः, इति ३ निर्झरस्य ।।—दरी, कंदरः, इति २ पर्वतस्य गृहाकारकृत्रिमविवरस्य ।
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पङ्क्ङ्क्यः ६३४-६५४ ] द्वितीयं काण्डम्
गह्वरं गण्डशैलास्तु च्युताः स्थूलोपला गिरेः 'दन्तकास्तु बहिस्तिर्यक्प्रदेशान्निर्गता गिरेः खनिः स्त्रियामाकरः स्यात् पादाः प्रत्यन्तपर्वताः उपत्यकाद्रेरासन्ना भूमिरूर्ध्वमधित्यका धातुर्मनः शिलाद्यद्वेगैरिकं तु विशेषतः निकुञ्जकुञ्ज वा क्लीवे लतादिपिहितोदरे
५. वनौषधिवर्गः
अटव्यरण्यं विपिनं गहनं काननं वनम् महारण्यमरण्यानी गृहारामास्तु निष्कुटाः आरामः स्यादुपवनं कृत्रिमं वनमेव यत् अमात्यगणिका गेहोपवने वृक्षवाटिका पुमानाक्रीड उद्यानं राज्ञः साधारणं वनम्
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आकरः,
- गुहा, गह्वरम्, इति २ देवखाते अकृत्रिमे बिले बिलविषये ॥ गिरेः, सकाशाच्युताः, पतिता ये स्थूलपाषाणास्ते गण्डशैला इत्युच्यन्ते ॥ —खनिः, इति २ रत्नाद्युत्पत्तिस्थानस्य ॥ -- पादाः, प्रत्यन्तपर्वताः, इति २ पर्वतसमीपस्थात्पपर्वतानाम् ॥ अद्वेरधः संनिहिता भूमिरुपत्य केत्युच्यते ॥ - अद्रेरूर्ध्वा या भूमिः साऽधित्यका इति ॥ - अद्वेर्यन्मनः शिलादि स धातुरित्युच्यते । आदिना हरितालखर्णताम्रादिग्रहः । गैरिकं विशेषतो धातुः —निकुञ्जः, कुञ्जः, इति २ लतादिपिहितोदरे लताद्याच्छादितगर्भे स्थाने ॥
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६५०-९८९. अटवी, अरण्यम्, विपिनम्, गहनम्, काननम्, वनम्, इति ६ अरण्यस्य । तत्राटवी स्त्रियाम् ॥ - महारण्यम्, अरण्यानी, इति २ महतो वनस्य । भरण्यानी स्त्रियाम् ॥ - -गृहारामाः, निष्कुटाः, इति २ गृहसमीप - कृत्रिमवनेषु ॥ - यत् कृत्रिमं कृत्या निरृत्तं वनं तत्र आरामः, उपवनम्, वृक्षवाटिकेति १ अमात्यानां वेश्यानां च यद्गृहोपवनं तत्र ॥ - यत् राज्ञः साधारण प्रमदाभिरन्यैर्वा सह क्रीडाद्यर्थं वनं तत्र आक्रीडः, उद्यानम् इति २ ॥ -
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अमरकोषे
[५. वनौषधिवर्गः
६५६ ६५७
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स्यादेतदेव प्रमदवनमन्तःपुरोचितम्
६५५ वीथ्यालिरावलिः पतिः श्रेणी लेखास्तु राजयः वन्या वनसमूहे स्यादकरोऽभिनवोद्भिदि वृक्षो महीरुहः शाखी विटपी पादपस्तरुः
६५८ अनोकहः कुटः शालः पलाशी दुदुमागमाः वानस्पत्यः फलैः पुष्पात्तैरपुष्पाद्वनस्पतिः
ओषध्यः फलपाकान्ताः स्युरवन्ध्यः फलेग्रहिः ६६१ वन्ध्योऽफलोऽवकेशी च फलवान् फलिनः फली प्रफुल्लोत्फुल्लसंफुल्लव्याकोशविकचस्फुटाः फुल्लश्चैते विकसिते स्युरवन्ध्यादयस्त्रिषु
६६४ स्थाणुवा ना ध्रुवः शङ्कह स्वशाखाशिफः क्षुपः ६६५ अप्रकाण्डे स्तम्बगुल्मौ वल्ली तु व्रततिलता अत उद्यानं अन्तःपुरोचितं राजीनामेव क्रीडायामुचितं चेत् प्रमदवन स्यात् ॥वीथी, आलिः, आवलिः, पति, श्रेणी, इति ५ पतेः ॥-लेखाः, राजयः, इति २ लेखानाम् ॥-वनानां समूहे वन्येति १॥ अभिनवोद्भिदि नूतनप्ररोहे अङ्कर इत्येकम् ॥-वृक्षः, महीरुहः, शाखी, विटपी, पादपः, तहः, अनोकहः, कुटः, शालः, पलाशी, द्रुः, द्रुमः, अगमः, इति १३ वृक्षस्य । पुष्पाजातेः फलैरुपलक्षितो वृक्षो वानस्पत्यः आम्रादेः । अपुष्पात् पुष्पं विना जातैः फलैरुपलक्षितो वृक्षो वनस्पतिः एकं पनसोदुम्बरादेः । फलपाक एवान्तो यासां ता ओषध्यः स्युः, एकं व्रीहियवादेः ॥--अवन्ध्यः, फलेग्रहिः, इति २ यथाकालं फलधरस्य ॥ वन्ध्यः, अफलः, अवकेशी, इति ३ ऋतावपि फलरहितस्य ।-फलवान् , फलिनः, फली, इति ३ सफलस्य । फलिनोऽदन्तः ।।-~-प्रफुल्लः, उत्फुल्लः, संफुल्लः, व्याकोशः, विकचः, स्फुटः, फुलः, इति ७ विकसिते पुष्पिते स्युः। अवन्ध्यादयः अवन्ध्यः, अफल इत्यादयो विकसितान्ताः त्रिघु त्रिलिजयां स्युः ॥-स्थाणुः, ध्रुवः, शङ्कः, इति ३ छिन्नविटपस्य । प्रकाण्डे वा ना, स्थाणुशब्दो विकल्पेन पुंसीत्यर्थः ॥–शाखा प्रसिद्धा । शिफा वृक्षमूलम् । ह्रखे शाखाशिफे यस्य स क्षुप इत्युच्यते ॥ न विद्यते प्रकाण्डो यस्य तस्मिन् स्तम्बः, गुल्मः,
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पतयः ६५५-६७६] द्वितीयं काण्डम् लता प्रतानिनी वीरुद्गुल्मिन्युलप इत्यपि
६६७ नगाद्यारोह उच्छ्राय उत्सेधश्वोच्छ्यश्च सः ६६८ अस्त्री प्रकाण्डः स्कन्धः स्यान्मूलाच्छाखावधिस्तरोः ६६९ समे शाखालते स्कन्धशाखाशाले शिफाजटे
६७० शाखाशिफाऽवरोहः स्यान्मूलाच्चाग्रं गता लता शिरोऽयं शिखरं वा ना मूलं बुध्नोऽजिनामकः ६७२ सारो मजा नरि त्वक् स्त्री वल्कं वल्कलमस्त्रियाम् ६७३ काष्ठं दार्विन्धनं त्वेध इध्ममेधः समिस्त्रियाम् ६७४ निष्कुहः कोटरं वा ना वल्लरिर्मञ्जरिः स्त्रियो ६७५ पत्रं पलाशं छदनं दलं पर्ण छदः पुमान्
६७६
इति २ ।।-वल्ली, व्रततिः, लता, इति ३ लतायाः॥-वस्त् , गुल्मिनी, उलपः, इति ३ या प्रतानिनी शाखादिभिर्विस्तृता लता तत्रेत्यर्थः। तत्र वीरुत् धान्तः ॥ नगाद्यारोहो वृक्षादीनामुञ्चत्वं तत्र उच्छ्रायः, उत्सेधः, उच्छ्रयः, इति ३ ॥---प्रकाण्डः, स्कन्धः, इति २ तरोर्मलमारभ्य शाखापर्यन्तो यो भागस्तत्र ॥-- शाखा, लता, इति २ शाखायाः ॥ स्कन्धशाखा, शाला, इति २ प्रधानशाखायाः ॥ शिफा, जटा, इति २ तरुमलस्य ॥-शिखायाः शिफा मूलं अवरोह इत्युच्यते । मूलादृक्षमूलमारभ्याग्रपर्यन्तं गता लता गुडूच्यादिरपि अवरोह इत्युच्यते। शिरसोऽग्रं शिरोऽयं तत् शिखरमित्युच्यते॥मूलम् , बुनः, अभिनामकः, इति ३ वृक्षादेर्मूलस्य ॥ सारः, मजा, इति २ वृक्षादेः स्थिरांशे । तत्र मजा नान्तः । नरि पुंसि ॥ त्वक् , वल्कम् , वल्कलम् , इति ३ त्वचः । तत्र वल्कादिद्वयं क्लीबपुंसोः ॥-काष्टम् , दारु, इति २ काष्ठमात्रस्य ॥ इन्धनम् , एधः, इध्मम् , एधः, समित् , इति ५ शुष्कस्य तृणकाष्ठादेः । तत्र आद्य 'एधः'शब्दः सान्तः क्लीबे । अन्यस्त्वदन्तः पुंसि । समित् धान्तः स्त्रियाम् ॥-निष्कुहः, कोटरम् , इति वृक्षगतविवरस्य । कोटरं वा ना पक्षे पुमान् ।।-वल्लारेः, मञ्जरिः, इति २ तुलस्यादेरभिनवोद्भिदि ॥-पत्रम् , पलाशम् , छदनम् , दलम् , पर्णम् , उदः, इति ६ पत्रस्य ।
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अमरकोपे [५. वनौषधिवर्गः पल्लवोऽस्त्री किसलयं विस्तारो विटपोऽस्त्रियाम् ६७७ वृक्षादीनां फलं सस्यं वृन्तं प्रसवबन्धनम् ६७८ आमे फले शलाटुः स्याच्छुष्के वानमुभे त्रिषु ६७९ क्षारको जालकं क्लीवे कलिका कोरकः पुमान् ६८० स्याद्गुच्छकस्तु स्तबकः कुमलो मुकुलोऽस्त्रियाम् ६८१ स्त्रियः सुमनसः पुष्पं प्रसूनं कुसुमं सुमम् मकरन्दः पुष्परसः परागः सुमनोरजः द्विहीनं प्रसवे सर्व हरीतक्यादयः स्त्रियाम् ६८४ आश्वत्थवैणवप्लाक्षनैयग्रोधैङ्गदं फले बाहेतं च फले जम्ब्वा जम्बूः स्त्री जम्बु जाम्बवम् ६८६
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तत्र छदोऽदन्तः पुंसि ॥-पल्लवः, किसलयम् , इति २ पत्रादियुक्ते शाखायाः पवेणि । तत्र किसलयं पुंसि क्लीबे च ।।---विस्तारः शाखापल्लवसमुदायलक्षण आभोगः विटप उच्यते ॥-वृक्षादीनां फलं सस्यमित्युच्यते । प्रसवः पुष्पादिः बध्यते येन तत् वृन्तमुच्यते । आमेऽपक्के फले शलाटुरिति १ । शुष्के फले वानमिति १ । उभे शलाटुर्वानं च त्रिषु त्रिलिङ्गयाम् ॥ क्षारकः, जालकम् , इति २ नूतनकलिकायाः । तत्र जालकं क्लीबे एव ॥–कलिका, कोरकः, इति • अस्फुटितपुष्पस्य ॥—गुच्छकः, स्तबकः, इति २ कलिकादिभिराकीर्णस्य पल्लवग्रन्थेः । पुष्पादिस्तबके गुच्छ इति ॥–कुङ्मलः, मुकुलः, इति २ ईषद्विकसितकलिकायाम् ॥-सुमनसः, पुष्पम् , प्रसूनम् , कुसुमम् , सुमम् , इति ५ पुष्पस्य ॥-मकरन्दः, पुष्परसः, इति २ पुष्पमधुनि ॥परागः, सुमनोरजः, इति २ पुष्परेणोः । अश्वत्थकपित्थादीनामभिधानं प्रसवे पुष्पे फले मूले च वर्तमानं तत् द्विहीनं ज्ञेयम् । हरीतक्याः फलं हरीतकी । आदिना कोशातकी, कर्कटी, द्राक्षेत्यादि । अश्वत्थस्य फलं आश्वत्थम् । वेणोः फलं वैणवम् । प्लक्षस्य फलं साक्षम् । न्यग्रोधस्य फलं नैयग्रोधम् । इङ्गुद्याः फलं ऐङ्गुदम् । बृहत्याः फलं वाहतम् ॥-जम्बूः, जम्बु, जाम्बवम् , इति ३ जम्ब्वाः फले । जम्बूः स्त्री ॥-जातीयूथिकामल्लिकेत्यादयः पुष्पे वर्तमानाः
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पतयः ६७७-७००] द्वितीयं काण्डम् पुष्पे जातीप्रभृतयः स्वलिङ्गा व्रीहयः फले
६८७ विदार्याद्यास्तु मूलेऽपि पुष्पे क्लीवेऽपि पाटला ६८८ बोधिद्रुमश्चलदलः पिप्पलः कुञ्जराशनः
६८९ अश्वत्थेऽथ कपित्थे स्युर्दधित्थग्राहिमन्मथाः तस्मिन्दधिफलः पुष्पफलदन्तशठावपि
६९१ उदुम्बरो जन्तुफलो यज्ञाङ्गो हेमदुग्धकः ६९२ कोविदारे चमरिकः कुद्दालो युगपत्रकः
६९३ सप्तपर्णो विशालत्वक् शारदो विषमच्छदः ६९४ आरग्वधे राजवृक्षशम्पाकचतुरङ्गलाः
६९५ आरेवतव्याधिघातकृतमालसुवर्णकाः
६९६ स्युर्जम्बीरे दन्तशठजम्भजम्भीरजम्भलाः ६९७ वरुणो वरणः सेतुस्तिक्तशाकः कुमारकः
६९८ नागे पुरुषस्तुङ्गः केसरो देववल्लभः
६९९ पारिभद्रे निम्वतर्मन्दारः पारिजातकः
७०० वलिङ्गा एव स्युः, न तु क्लीबे । वीदयः फले स्खलिङ्गाः । विदारी बृहत्यंशुमतीत्याद्या मूलेऽपि स्वलिङ्गाः । 'अपि'शब्दात् पुष्पेऽपि स्वलिङ्गाः, पाटला पुष्पे वर्तमाना क्लीवे ॥-बोधिद्रुमः, चलदलः, पिप्पलः, कुञ्जराशनः, अश्वत्थः, इति ५ पिप्पलवृक्षस्य ।।---कपित्थः, दधित्थः, ग्राही, मन्मथः, दधिफलः, पुष्पफलः, दन्तशठः, इति ७ कपित्थस्य ।।----उदुम्बरः, जन्तुफलः, यज्ञाङ्गः, हेमदुग्धकः, इति ४ उदुम्बरस्य ॥—कोविदारः, चमरिकः, कुद्दालः, युगपत्रकः, इति ४ कोविदारस्य ॥-सप्तपर्णः, विशालत्वक् , शारदः, विषमच्छदः, इति ४ सप्तपर्णस्य ॥ आरग्वधः, राजवृक्षः, शम्पाकः, चतुरङ्गुलः, आरेवतः व्याधिघातः, कृतमालः, सुवर्णकः, इति ८ कृतमालस्य।-जम्बीरः, दन्तशठः, जम्भः, जम्भीरः, जम्भलः, इति ५ जम्बीरस्य ॥ वरुणः, वरणः, सेतुः, तिक्तशाकः, कुमारकः, इति ५ वरणस्य ॥--पुंनागः, पुरुषः, तुङ्गः, केसरः, देववल्लभः, इति ५ 'नागस्य ॥-पारिभद्रः, निम्बतरुः, मन्दारः, पारिजातकः,
१ कवठ. २ उंवर. ३ कांचन. ४ सांतवण. ५ बाहवा. ६ लघु इडनिंबू. ७ वायवर्णा. ८ उंडली.
अ. को. स. ५.
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अमरकोषे
तिनिशे स्यन्दनो नेमी रथगुरतिमुक्तकः वञ्जुलश्चित्रकृच्चाथ द्वौ पीतनकपीतनी आघात मधूके तु गुडपुष्पमधुद्रुमौ वानप्रस्थमधुष्ठीलौ जलजेऽत्र मधूलकः पीलौ गुडफलः स्रंसी तस्मिंस्तु गिरिसंभवे अटकन्दरालौ द्वावङ्कोटे तु निकोचकः पलाशे किंशुकः पर्णो वातपोथोऽथ वेतसे रथाभ्रपुष्पविदुरशीतवानीरवञ्जुलाः द्वौ परिव्याधविदुलौ नादेयी चाम्बुवेतसे शोभाञ्जने शिग्रुतीक्ष्णगन्धकाक्षीवमोचकाः रक्तोऽसौ मधुशिग्रुः स्यादरिष्टः फेनिलः समौ बिल्वे शाण्डिल्यशैलूषौ मालूर श्रीफलावपि प्रक्षो जटी पर्कटी स्यान्यग्रोधो बहुपाइटः
[ ५. वनौषधिवर्ग:
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इति ४ निम्बतरोः ॥ —तिनिशः, स्यन्दनः, नेमी, रथद्रुः, अतिमुक्तकः, वञ्जुलः, चित्रकृत्, इति ५ तिंनिशस्य ॥ पीतनः, कपीतनः, आम्रातकः, इति ३ अम्रातकस्य ॥ - मधूकः, गुडपुष्पः, मधुद्रुमः, वानप्रस्थः, मधुष्टीलः, इति ५ मधूकस्य ॥ जलजेऽत्र मधूके मधूलक इति १ ॥ - पीलुः, गुडफलः, स्रंसी, इति ३ पीलुवृक्षस्य ॥ अक्षोटः कन्दरालः, इति २ पर्वत - पीलोः ॥ अङ्कोटः, निकोचकः, इति २ अङ्कोटस्य ॥ पलाशः, किंशुकः, पर्णः, वातपोथः, इति ४ पलाशस्य ॥ - वेतसः, रथः, अभ्रपुष्पः, विदुरः, शीतः, वानीरः, वञ्जलः, इति ७ वेतसस्य ॥ - परिव्याधः, विदुलः, नादेयी, अम्बुवेतसः, इति ४ जलवेतसस्य । नादेयी स्त्री ॥ - शोभाञ्जनः, शिग्रुः, तीक्ष्णगन्धकः, अक्षीवः, मोचकः, इति ५ शिंग्रोः ॥ - असौ शोभाञ्जनो रक्तो रक्तपुष्पश्चेत मधुशिग्रुरित्युच्यते ॥ अरिष्टः, फेनिल:, इति २ अरिष्टस्य ॥― बिल्वः, शाण्डिल्यः, शैलूषः, मालूरः, श्रीफलः, इति ५ बिल्वैस्य ॥ - प्रक्षः, जटी, पर्कटी, इति ३ क्षस्य ॥ न्यग्रोधः, बहुपात्, वटः, इति वॅटस्य ॥
१ कडुनिंब. २ तिवस. ३ अंबाडा ४ मोहा. ५ लांबपानी मोहा. ६ अक्रोड. ७ डोंगरी अक्रोड. ८ पिस्ते. ९ फळस. १० वेत. ११ शेवगा, शेगट. १२ रिठा. १३ बेल१४ पिंपरी. १५ वड.
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द्वितीयं काण्डम्
पङ्क्तयः ७०१-७२६ ]
गालवः शाबरो लोध्रस्तिरीटस्तित्वमार्जनौ आम्रचतो रसालोऽसौ सहकारोऽतिसौरभः कुम्भोलूखलकं क्लीबे कौशिको गुग्गुलुः पुरः शेलुः श्लेष्मातकः शीत उद्दालो बहुवारकः राजादनं प्रियालः स्यात् सन्नकदुर्धनुः पटः गम्भारी सर्वतोभद्रा काश्मरी मधुपर्णिका श्रीपर्णी भद्रपर्णी च काश्मर्यश्चाप्यथ द्वयोः कर्कन्धूर्वदरी कोलिः कोलं कुवलफेनिले सौवीरं बदरं घोण्टाऽप्यथ स्यात् स्वादुकण्टकः विकङ्कतः स्रुवावृक्षो ग्रन्थिलो व्याघ्रपादपि ऐरावतो नागरङ्गो नादेयी भूमिजम्बुका तिन्दुकः स्फूर्जकः कालस्कन्धश्च शितिसारके काकेन्दुः कुलकः काकतिन्दुकः काकपीलुके
६७
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७१८
१९
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७२०
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७२६
,
- गालवः, शाबरः, लोध्रः, तिरीटः, तिल्वः, मार्जन:, इति ६ लोध्रस्य ॥आम्रः, चूतः, रसालः, इति ३ आम्रस्य । असौ आम्रोऽतिसौरभश्चेत् सहकार इति १ ॥—कुम्भः, उलूखलकम्, कौशिकः, गुग्गुलुः, पुरः, इति ५ गुग्गुलुवृक्षस्य ॥ शेलुः, श्लेष्मातकः, शीतः, उद्दालः, बहुवारकः, इति ५ उद्दालकस्य ॥ राजादनम्, प्रियालः सन्नकदुः, धनुः पटः, इति ४ प्रियालस्य । धनुः पटः इति व्यस्तमपि ॥ गम्भारी, सर्वतोभद्रा, काश्मरी, मधुपर्णिका, श्रीपर्णी, भद्रपर्णी, काश्मर्थः, इति ७ का मर्याः ॥ कर्कन्धूः, बदरी, कोलिः, इति ३ बर्दर्याः ॥ कोलम्, कुवलम्, फेनिलम्, सौवीरम्, बदरम्, घोण्टा, इति ६ बदरीफलस्य ॥ खादुकण्टकः, विकङ्कतः, स्रुवारृक्षः, ग्रन्थिलः, व्याघ्रपात्, इति ५ विर्कंङ्कतस्य ॥ -- ऐरावतः, नागरङ्गः, नादेयी, भूमिजम्बुका, इति ४ नागरङ्गस्य ॥ —तिन्दुकः, स्फूर्जकः, कालस्कन्धः, शितिसारकः, इति ४ तिन्दुकस्य ॥ —–काकेन्दुः, कुलकः, काकतिन्दुकः, काकपीलुकः, इति ४
१ शेलट, सालेट, भोकरी. २ चार. ३ शिवणी ४ बोर (वृक्ष) ५ बोर (फळ). ६ वेहळी ७ नारिंग. ८ तेंडू टेंभुरणी.
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७३१
अमरकोषे
[५. वनौषधिवर्गः गोलीढो झाटलो घण्टापाटलिर्मोक्षमुष्कको . तिलकः क्षुरकः श्रीमान् समौ पिचुलझावुको ७२८ श्रीपर्णिका कुमुदिका कुम्भी कैडर्यकट्फलौ ७२९ क्रमुकः पट्टिकाख्यः स्यात् पट्टी लाक्षाप्रसादनः तूदस्तु यूपः क्रमुको ब्रह्मण्यो ब्रह्मदारु च तूलं च नीपप्रियककदम्बास्तु हलिप्रियः
७३२ वीरवृक्षोऽरुष्करोऽग्निमुखी भल्लातकी त्रिषु ७३३ गर्दभाण्डे कन्दरालकपीतनसुपाचकाः
७३४ प्लक्षश्च तिन्तिडी चिञ्चाऽम्लिकाऽथो पीतसारके ७३५ सर्जकासनबन्धूकपुष्पप्रियकजीवकाः
७३६ साले तु सर्जकाश्याश्वकर्णकाः सस्यसम्बरः ७३७ नदीसों वीरतरुरिन्द्रगुः ककुभोऽर्जुनः
७३८ राजादनः फलाध्यक्षः क्षीरिकायामथ द्वयोः काकतिन्दुकस्य ॥-गोलीढः, झाटलः, घण्टापाटलिः, मोक्षः, मुष्ककः, इति ५ घेण्टापाटलेः ॥-तिलकः, क्षुरकः, श्रीमान् , इति ३ तिलकस्य ॥ -पिचुलः, झावुकः, इति २ झावुकस्य ॥–श्रीपर्णिका, कुमुदिका, कुम्भी, केडयः, कट फलः, इति ५ कुम्भ्याः ॥--कमुकः, पट्टिकाख्यः, पट्टी, लाक्षाप्रसादनः, इति ४ लोहितलोध्नस्य ॥-तूदः, यूपः, क्रमुकः, ब्रह्मण्यः, ब्रह्मदारु, तूलम् , इति ६ अश्वत्थाकारे वृक्षभेदे ।। नीपः, प्रियकः, कदम्बः, हलिप्रियः, इति ४ कदम्बस्य ॥ वीरवृक्षः, अरुष्करः, अग्निमुखी, भल्लातकी, इति ४ भल्लातक्याः । त्रिषु स्त्रीपुंनपुंसकेपु-गर्दभाण्डः, कन्दरालः, कपीतनः, सुपार्श्वकः, प्लक्षः, इति ५ प्लेक्षस्य ॥-तिन्तिही, चिच्चा, अम्लिा , इति ३ चिश्चायाः ॥ --पीतसारकः, सर्जकः, असनः, बन्धूकपुष्पः, प्रियकः, जीवकः, इति ६ जीवकस्य ॥-सालः, सर्जः, कार्यः, अश्वकर्णकः, सस्यसम्बरः, इति ५ शोलवृक्षस्य ॥-नदीसर्जः, वीरतरुः, इन्द्रद्रुः, ककुभः, अर्जुनः, इति ५ अर्जुनवृक्षस्य ॥-राजादनः, फलाध्यक्षः, क्षीरिका, इति ३ क्षीरिकायाः ॥. १ कडु टेंभुरणी, काजरा, कुचला. २ मोरवा. ३ तिळवा, तिलकपुष्प. ४ तिलकभेद (कोबी?). ५ कायफळ. ६पारसा पिंपळ. ७ कळंब. ८ विरवा. ९ लाखी पिंपरी. २० चिंच. ११ असणा (भेद २) १२ सालई. १३ अर्जुनवृक्ष. १४ खिरणी.
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पङ्कयः ७२७-७५२ ]
द्वितीयं काण्डम्
इङ्गुदी तापसतरुर्भूर्जे चर्मिमृदुत्वचौ पिच्छिला पूरणी मोचा स्थिरायुः शाल्मलिर्द्वयोः पिच्छा तु शाल्मलीवेष्टे रोचनः कूटशाल्मलिः चिरबिल्वो नक्तमालः करजश्च करञ्जके प्रकीर्यः पूतिकरजः पूतिकः कलिमारकः करञ्जभेदाः षड्ग्रन्थो मर्कट्यङ्गारवल्लरी रोही रोहितकः प्लीहशत्रुर्दा डिमपुष्पकः गायत्री बालतनयः खदिरो दन्तधावनः अरिमेो विखदिरे कदरः खदिरे सिते सोमवल्कोऽप्यथ व्याघ्रपुच्छगन्धर्वहस्तकौ एरण्ड उरुबूकश्च रुचकश्चित्रकश्च सः चक्षुः पञ्चाङ्गुलो मण्डवर्धमानव्यडम्बकाः अल्पा शमी शमीरः स्याच्छमी सक्तुफला शिवा
७४०
७४१
७४२
७४३
७४४
७४५
७४६
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७५१
७५२
इङ्गुदी, तापसतरुः, इति २ ईङ्गयाः ॥ - भूर्जः, चर्मी, मृदुत्वक्, इति ३ भूर्जवृक्षस्य ॥ - पिच्छिला, पूरणी, मोचा, स्थिरायुः, शाल्मलिः, इति ५ शौल्मल्याः । द्वयोः स्त्रीपुंसयोः ॥ - शाल्मल्या वेष्टे निर्यासे पिच्छा इति १ ॥ — रोचनः, कूटशाल्मलिः, इति २ कूटशाल्मल्याः ॥ चिरबिल्वः, नक्तमालः, करजः, करञ्जकः, इति ४ करञ्जवृक्षस्य ॥ - प्रकीर्यः, पूतिकरजः, पूतिकः, कलिमारकः, इति ४ पूँतिकस्य ॥ षड्ग्रन्थः, मर्कटी, अङ्गारवहरी, एते ३ करञ्जभेदाः ॥ - रोही, रोहितकः, प्लीहशत्रुः, दाडिमपुष्पकः, इति ४ रोहितकस्य ॥ गायत्री, बालतनयः, खदिरः, दन्तधावनः, इति ४ खंदिरस्य ॥ अरिमेदः, विट्खदिरः, इति २ दुर्गन्धिखदिरस्य ॥ - सिते शुक्लसारे खदिरे कदरः, सोमवल्कः, इति २ ॥ व्याघ्रपुच्छः, गन्धर्वहस्तकः, एरण्डः उरुबूकः, रुचकः, चित्रकः, चक्षुः, पञ्चाङ्गुलः, मण्डः, वर्धमानः, व्यडम्बकः, इति ११ एरण्डस्य ॥– या अल्पा खल्पाकारा शमी स शंमीर इति ॥ -
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१ हिंगणबेट. २ भूर्जपृ. ३ सांबरी. ४ सांवरीचा डिंक. ५ काळी सांबरी. ६ करंजवृक्ष. ७ घाणेरा करंज, कांटे करंज. ८ रक्तरोहिडा ९ खैर. १० लहान शमी.
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पिण्डीतको मरुवकः श्वसनः करहाटकः शल्यश्च मदने शक्रपादपः पारिभद्रकः भद्रदारु दुकिलिमं पीतदारु च दारु च पूतिकाष्ठं च सप्त स्युर्देवदारुण्यथ द्वयोः पाटलि: पाटलाSमोघा काचस्थाली फलेरुहा
कृष्णवृन्ता कुबेराक्षी श्यामा तु महिलाह्वया लता गोवन्दिनी गुन्द्रा प्रियङ्गुः फलिनी फली विष्वक्सेना गन्धफली कारम्भा प्रियकश्च सा मण्डूकपर्णपत्रोर्णनटकटुङ्गटुण्डुकाः स्योनाकशुकनासर्क्ष दीर्घवृन्तकुटन्नटाः शोणश्चारलौ तिष्यफला त्वामलकी त्रिषु अमृता च वयस्था च त्रिलिङ्गस्तु विभीतकः नाक्षस्तुपः कर्षफलो भूतावासः कलिद्रुमः
[ ५. वनौषधिवर्ग:
शर्मा, सक्तफला, शिवा, इति ३ शम्याः ॥ पिण्डीतकः, मरुवकः, श्वसनः, करहाटकः, शल्यः, मदनः, इति ६ मदनस्य ॥ शक्रपादपः, पारिभद्रकः, भद्रदारु, दुविलिमम्, पीतदार, दारु, पूतिकाष्टम्, इति ७ देवदारुणि ॥ - पालिः, पाटला, अभोवा, काचस्थाली, फलेरुहा, कृष्णवृन्ता, कुबेराक्षी, इति ७ पालायाः ॥ - तत्र पाटलिर्द्वयोः स्त्रीपुंसयोः ॥ श्यामा, महिलाह्वया, लता, गोवन्दिनी, गुन्द्रा, प्रियङ्गुः फलिनी, फली, विष्वक्सेना, गन्धफली, कारम्भा, प्रियः, इति १२ प्रियवृक्षे । तत्र प्रियकः पुंसि । शेषं स्त्रियाम् ॥ - मण्डूकपर्णः, पत्रोर्णः, नटः, कवः, टुण्टुकः, स्योनाकः, शुकनासः, ऋक्षः, दीर्घवृन्तः, कुटन्नटः, शोणकः, अरलः, इति १२ शोणकस्य ॥ - तिष्यफला, आमलकी, अमृता, वयस्था, इति ४ आमलक्या: । 'त्रिष्वित्युक्तेः आमलकः, आमलकम् ॥ - बिभीतकः, अक्षः, तुषः, कर्मफलः, भूतावासः, कलिद्रुमः, इति ६ बिभीतकस्य ॥
७५३
७५४
७५५
७५६
७५७
७५८
७५९
७६०
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७६३
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७६५
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१ गोळा. २ देवदार ३ पाइट. ४ वाघांटी, टेंटू. ५ दिंडा. ६ आंवळी. ७ घाटिंग, (बेहटा ).
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3
पतयः ७५३-७७८]
द्वितीयं काण्डम्
w
w
७६८
७७२
७७६
अभया त्वव्यथा पथ्या कायस्था पूतनाऽमृता हरीतकी हैमवती चेतकी श्रेयसी शिवा
७६७ पीतद्रुः सरलः पूतिकाष्ठं चाथ द्रुमोत्पलः कर्णिकारः परिव्याधो लकुचो लिकुचो डहुः ७६९ पनसः कण्टकिफलो निचुलो हिज्जलोऽम्बुजः ৩৩০ काकोदुम्बरिका फल्गुमलयूर्जघनेफला अरिष्टः सर्वतोभद्रहिङ्गनिर्यासमालकाः पिचुमन्दश्च निम्बेऽथ पिच्छिलाऽगुरुशिंशपा ७७३ कपिला भस्मगी सा शिरीषस्तु कपीतनः ७७४ भण्डिलोऽप्यथ चाम्पेयश्चम्पको हेमपुष्पकः एतस्य कलिका गन्धफली स्यादथ केसरे बकुलो व लोऽशोके समौ करकदाडिमौ
७७७ चाम्पेयः केसरो नागकेसरः काञ्चनाह्वयः त्रिलिङ्गत्वाद्विभीतकी विभीतकमिति च ॥-अभया, अव्यथा, पथ्या, कायस्था, पूतना, अमृता, हरीतकी, हैमवती, चेतकी, शेयसी, शिवा, इति ११ हरीतक्याः ।-पीतद्रुः, सरलः, पुतिकाष्ठम् , इति ३ सरलस्य ॥ दुमोत्पलः, कर्णिकारः, परिव्याधः, इति ३ कर्णिकारस्य॥-लकुचः, लिकुचः,डहुः, इति ३ लिकुचस्य 1-पनसः, कण्टकिफलः, इति २ पेनसस्य ।।-निचुलः, हिजलः, अम्बुजः, इति ३ जलवेतसमेदस्य ॥--काकोदुम्बरिका, फल्गुः, सलयूः, जघनेफय, इति ४ मैलयोः॥-अरिष्टः, सर्वतोभद्रः, हिङ्गुनिर्यासः, मालकः, पिचुमन्दः, निम्बः, इति ६ निम्बस्य ॥-पिच्छिला, अगुरुशिंशपा, कपिला, भस्मगर्भा, इति ४ कपिलायाः । अगुरु इति पृथक् पदं वा ॥-शिरीषः, कपीतनः, भण्डिलः, इति ? शिरीषस्य ।।-चाम्पेयः, चम्पकः, हेमपुष्पकः, इति ३ चम्पकस्य ॥
--एतस्य चम्पकस्य कलिका गन्धफली इति १ ॥-केसरः, बकुलः, इति २ बलम्य ॥-वजुलः, अशोकः, इति २ अशोकस्य ॥-करकः, दाडिमः, इति २ दौडिमस्य ॥-चाम्पेयः, केसरः, नागकेसरः, काञ्चनाह्वयः, इति ४
१ हरडा. २ देवदार. ३ पांगारा. ४ ओट. ५ फणस. ६ इजर, (समुद्रफळ ! ). ७ काळा उंबर, खर्वत, बोखाटा. ८ शिसवा. ९ शिरस. १० सोनचाफा. ११ ओवळ. १२ डाळिब.
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अमरकोषे
जया जयन्ती तर्कारी नादेयी वैजयन्तिका श्रीपर्णमग्निमन्थः स्यात् कणिका गणिकारिका जयोऽथ कुटजः शक्रो वत्सको गिरिमल्लिका एतस्यैव कलिङ्गेन्द्रयवभद्रयवं फले कृष्णपाकफलाविग्नसुषेणाः करमर्दके कालस्कन्धस्तमालः स्यात्तापिच्छोऽप्यथ सिन्दुके सिन्दुवारेन्द्रसुरसौ निर्गुण्डीन्द्राणि केत्यपि वेणी खरा गरी देवताडो जीमूत इत्यपि श्रीहस्तिनी तु भूरुण्डी तृणशून्यं तु मल्लिका भूपदी शीतभीरुश्च सैवास्फोटा वनोद्भवा शेफालिका तु सुवहा निर्गुण्डी नीलिका च सा सिताऽसौ श्वेतसुरसा भूतवेश्यथ मागधी गणिका यूथिकाऽम्बष्ठा सा पीता हेमपुष्पिका
[ ५. वनौषधिवर्ग:
७७९
७८०
७८१
७८२
७८३
७८४
७८५
७८६
७८७
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७८८
७८९.
७९०
७९१
,
चाम्पेयस्य ॥ जया, जयन्ती, तर्कारी, नादेयी, वैजयन्तिका, इति ५ वैजयन्तिकायाः ॥ श्रीपर्णम्, अग्निमन्थः, कणिका, गणिकारिका, जयः, इति ५ कणिकायाः ॥ - कुटजः शक्रः, वत्सकः, गिरिमल्लिका, इति ४ कुजस्य ॥ - एतस्यैव कुटजस्य फले कलिङ्गम्, इन्द्रयवम् भद्रयवम्, इति ३ ॥ —–कृष्णपाकफलः, अविन्नः, सुषेणः, करमर्दकः, इति ४ कैरमर्दकस्य ॥ —– कालस्कन्धः, तमालः, तापिच्छ:, इति ३ तमालस्य ॥ - सिन्दुकः, सिन्दुवारः, इन्द्रसुरसः, निर्गुण्डी, इन्द्राणिका, इति ५ सिन्दुवारस्य ॥ वेणी, खरा, गरी, देवताडः, जीमूतः, इति ५ देवतालस्य ॥ - श्रीहस्तिनी, भूरुण्डी, इति २ हस्तिकर्णाभपत्रस्य शाकमेदस्य ॥ तृणशून्यम्, मल्लिका, भूपदी, शीतभीरुः, इति ४ मल्लिकायाः ॥ सैव माल्लिका वनोद्भवा ऑस्फोटेत्युच्यते ॥ - शेफालिका, सुवद्दा, निर्गुण्डी, नीलिका, इति ४ कृष्णपुष्पाया निर्गुण्ड्याः ॥ असौ निर्गुण्डी, सिता, श्वेतसुरसा, भूतवेशी, इति चोच्यते ॥ — मागधी, गणिका, यूथिका, अम्बष्ठा, इति ४ यूथिकायाः ॥
१ नागचाफा. २ टाहाकळ, थोर ऐराण. ३ नरवेल. ४ कुडा. ५ करवंद. ६ निगडी, निर्गुडी. ७ देवडांगरी. ८ थोर कुर्डई. ९ मोगरी १० रानमोगरी ११ रान निर्गुडी१२ कातरी निर्गुडी. १३ जुई.
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पतयः ७७९-८०३] द्वितीयं काण्डम् अतिमुक्तः पुण्डूकः स्याद्वासन्ती माधवी लता ७९२ सुमना मालती जातिः सप्तला नवमालिका
७९३ माध्यं कुन्दं रक्तकस्तु बन्धूको बन्धुजीवकः ७९४ सहा कुमारी तरणिरम्लानस्तु महासहा
७९५ तत्र शोणे कुरबकस्तत्र पीते कुरण्टकः
७९६ नीली झिण्टी द्वयोबाणा दासी चार्तगलश्च सा ७९७ सैरेयकस्तु झिण्टी स्यात्तस्मिन् कुरबकोऽरुणे ७९८ पीता कुरण्टको झिण्टी तस्मिन् सहचरी द्वयोः ७९९
ओण्ड्रपुष्पं जपापुष्पं वज्रपुष्पं तिलस्य यत् प्रतिहासशतप्रासचण्डातहयमारकाः करवीरे करीरे तु करग्रन्थिलावुभौ
८०२ उन्मत्तः कितवो धूर्तो धत्तूरः कनकाह्वयः ८०३ सा यूथिका पीता पीतपुष्पा चेत् हेमपुष्पिका स्यात् ॥ अतिमुक्तः, पुण्ड्रकः, वासन्ती, माधवी, लता, इति ५ कुन्दभेदस्य ॥-सुमनाः, मालती, जातिः, इति ३ जातेः। तत्र सुमनाः सान्तः॥-सप्तला ॥-नवमालिका, इति २ नवमालिकायाः ॥--माध्यम , कुन्दम्, इति २ कुन्दस्य ॥-रक्तकः, बन्धूकः बन्धुजीवकः, इति ३ बन्धूकस्य ॥-सहा, कुमारी, तरणिः, इति ३ कुमार्याः॥-अम्लानः, महासहा, इति २ महासहायाः॥-तत्राम्लाने शोणे रक्त कुरवक इत्येकम् ॥-तत्राम्लाने पीतवर्णे कुरण्टक इत्येकम् ॥-नीली नीलवर्णा या झिण्टी तत्र बाणा, दासी, आर्तगलः, इति ३ ॥ द्वयोरित्युक्तेर्वाण इत्यपि ॥-सैरेयकः, झिण्टी, इति २ झिंण्टीमात्रस्य॥तस्मिन्सरेयकेऽरुणे रक्तवर्णे कुरबक इत्येकम् ॥-या पीतपुष्पा झिण्टी सा कुरण्टक इत्युच्यते । तस्मिन्कुरण्टके सहचरीत्यपि । द्वयोरित्युक्तेः सहचर इत्यपि ॥-ओण्डुपुष्पम् , जपापुष्पम् , इति २ जपापुष्पस्य ॥-यत्तिलस्य पुष्पं तद्वज्रपुष्पसंज्ञकमेकम्॥प्रतिहासः, शतप्रासः, चण्डातः, हयमारकः, करवीरः, इति ५ करवीरस्य - करीरः, ऋकरः, ग्रन्थिलः, इति ३ कैरीरस्य॥-उन्मत्तः, कितवः, धूर्तः, धत्तूरः,
१ कस्तुरमोगरी. २ चमेली. ३ बटमोगरा. ४ दुपारी. ५ कटिशेवती, लहान रानशेवती. ६ आबोली. ७ कोरांटी. ८ जास्वंद. ९ कण्हेर. १० नेववी.
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[५. वनौषधिवर्गः
०
८०७
०
०
०
मातुलो मदनश्चास्य फले मातुलपुत्रका
८०४ फलपूरो बीजपूरो रुचको मातुलुङ्गके
८०५ समीरणो मरुबकः प्रस्थपुष्पः फणिजकः जम्बीरोऽप्यथ पर्णासे कठिञ्जरकुठेरको सितेऽर्जकोऽत्र पाठी तु चित्रको वह्निसंज्ञकः अाह्ववसुकास्फोटगणरूपविकीरणाः मन्दारश्चार्कपर्णोऽत्र शुक्लेऽलर्कप्रतापसौ शिवमल्ली पाशुपत एकाष्ठीलो बुको वसुः
८११ वन्दा वृक्षादनी वृक्षरुहा जीवन्तिकेत्यपि वत्सादनी छिन्नरुहा गुडूची तत्रिकाऽमृता जीवन्तिका सोमवल्ली विशल्या मधुपर्ण्यपि मूर्वा देवी मधुरसा मोरटा तेजनी युवा ८१५ मधूलिका मधुश्रेणी गोकर्णी पीलुपर्ण्यपि ८१६ पाठाऽम्बष्ठा विद्धकर्णी स्थापनी श्रेयसी रसा कनकाह्वयः, मातुलः, मदनः, इति ७ घेत्तूरस्य । अस्य धत्तूरस्य फले मातुलपुत्रक इत्येकम् ॥-फलपूरः, बीजपूरः, रुचकः,मातुलुङ्गकः, इति ४ मोतुलुङ्गस्य॥समीरणः, मरुबकः, प्रस्थपुष्पः, फणिजकः, जम्बीरः, इति ५ जम्बीरस्य ॥-पर्णासः, कठिञ्जरः, कुठेरकः, इति ३ पर्णासस्य ॥-अत्र पर्णासे सिते काण्डपुष्पाभ्यां श्वेते अर्जक इत्येकम् ॥-पाठी, चित्रकः, वह्निसंज्ञकः, इति ३ चित्रकस्य ॥-अर्कालः, वसुकः, आस्फोटः, गणरूपः, विकीरणः, मन्दारः, अर्कपर्णः, इति ७ अर्कस्य ।अत्रा शुक्ले अलकः,प्रतापसः,इति २॥-शिवमल्ली,पाशुपतः,एकाष्टीलः,बुकः, वसुः, इति ५ बुकस्य ॥-वन्दा, वृक्षादनी, वृक्षरुहा, जीवन्तिका, इति ४ वृक्षोपरिजातलताविशेषस्य ॥-वत्सादनी, छिन्नरुहा, गुडूची, तत्रिका, अमृता, जीवन्तिका, सोमवल्ली, विशल्या, मधुपर्णी, इति ९ गुंडच्याः ॥- मूर्वा, देवी, मधुरसा, मोरटा, तेजनी, युवा, मधुलिका, मधुश्रेणी, गोकर्णी, पीलुपर्णी, इति १० मायाः॥-पाठा,अम्बष्ठा, विद्धकर्णी, स्थापनी, श्रेयसी, रसा. एकाष्ठीला, पाप
१ धोतरा. २ महाळुग. ३ सफेत मरवा. ४ आजवला, वावरी. ५ रुई. ६ रुईमंदार, ( थोर बकुळी?). ७ बेदर्ल, बायें. ८ गुळवेल. ९ मोरवेल, (मूर).
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पङ्क्तयः ८०४-८३२]
द्वितीयं काण्डम्
एकाष्ठीला पापचेली प्राचीना वनतिक्तिका कटुः कटं भरा शो करोहिणी कटुरोहिणी मत्स्यपित्ता कृष्णभेदी चक्राङ्गी शकुलादनी आत्मगुप्ताऽजहाऽत्र्यण्डा कण्डुरा प्रावृषायणी ऋष्यप्रोक्ता शूकशिम्बिः कपिकच्छुश्च मर्कटी चित्रोपचित्रा न्यग्रोधी द्रवन्ती शम्बरी वृषा प्रत्यक्श्रेणी सुतश्रेणी रण्डामूषिकपर्ण्यपि अपामार्गः शैखरिको धामार्गव मयूर कौ प्रत्यक्पर्णी केशपर्णी किणिही खरमञ्जरी afrat ब्राह्मणी पद्मा भाग ब्राह्मणयष्टिका अङ्गारवली बालेयशाकवर्वरबर्धकाः मञ्जिष्ठा विकसा जिङ्गी समङ्गा कालमे पिका मण्डूकपर्णी भण्डीरी भण्डी योजनवल्लयपि यासो यवासो दुःस्पर्शो धन्वयासः कुनाशकः रोदनी कच्छुराऽनन्ता समुद्रान्ता दुरालभा
७५
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चेली, प्राचीना, वनतिक्तिका, इति १० पीठायाः ॥ कटुः, कटम्भरा, अशोकरोहिणी, कटुरोहिणी, मत्स्यपित्ता, कृष्णभेदी, चक्राङ्गी, शकुलादनी, इति ८ कैटुरोहिण्या: ॥ -- आत्मगुप्ता, अजहा, अव्यण्डा, कण्डुरा, प्रावृषायणी, ऋष्य प्रोक्ता, शुकशिम्बिः, कपिकच्छुः, मर्कटी, इति ९ मर्कट्याः ॥ - चित्रा, उपचित्रा, न्यग्रोधी, द्रवन्ती, शम्बरी, वृषा, प्रत्यक्श्रेणी, सुतश्रेणी, रण्डा, मूषिकपर्णी, इति १० मूषिकपपर्याः ॥ - अपामार्गः, शैखरिकः, धामार्गवः, मयूरकः, प्रत्यक्पर्णी, केशपर्णी, किणिही, खरमञ्जरी, इति ८ अपामार्गस्य ॥ - हञ्जिका, ब्राह्मणी, पद्मा, भार्गी, ब्राह्मणयष्टिका, अङ्गारवल्ली, बालेयशाकः, बर्बरः, वर्धकः, इति ९ भाग्यः ॥ मञ्जिष्ठा, विकसा, जिङ्की, समङ्गा, कालमेषिका, मण्डूकपर्णी, भण्डीरी, भण्डी, योजनवल्ली, इति ९ मञ्जिष्ठायाः ॥ - यासः, यवासः, दुःस्पर्शः, धन्वयासः, कुनाशकः, रोदनी, कच्छुरा, अनन्ता, समुद्रान्ता, दुरालभा, इति १० धन्वयासस्य ॥ – पृश्नि
१ पहाडमूळ. २ केदारकुटकी. ३ कुहिली. ४. उंदिरकानी. ५. आघाडा ६ भारंग. ७ मंजिष्ठ. ८ धमासा.
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अमरकोषे
पृश्निपर्णी पृथक्पर्णी चित्रपर्ण्यविल्लिका क्रोष्टुविन्ना सिंहपुच्छी कलशिर्घावनिर्गुहा निदिग्धिका स्पृशी व्याघ्री बृहती कण्टकारिका प्रचोदनी कुली क्षुद्रा दुःस्पर्शा राष्ट्रिकेत्यपि नीली काला क्लीकिका ग्रामीणा मधुपर्णिका रञ्जनी श्रीफली तुत्था द्रोणी दोला च नीलिनी अवल्गुजः सोमराजी सुवल्लि: सोमवल्लिका कालमेषी कृष्णफला बाकुची पूतिफल्यपि कृष्णोपकुल्या वैदेही मागधी चपला कणा उषणा पिप्पली शौण्डी कोलाऽथ करिपिप्पली कपिवल्ली कोलवल्ली श्रेयसी वशिरः पुमान् चव्यं तु चविका काकचिञ्चीगुझे तु कृष्णला पलंकषा त्विक्षुगन्धा श्वदंष्ट्रा स्वादुकण्टकः गोकण्टको गोक्षुरको वनश्टङ्गाट इत्यपि
[ ५. वनौषधिवर्ग:
८३३
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८४५
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पर्णी, पृथक्पर्णी, चित्रपर्णी, अङ्घ्रिवल्लिका, क्रोष्टुविन्ना, सिंहपुच्छी, कलशिः, धावनिः, गुहा, इति ९ सिंहपुच्छ्याः ॥ - निदिग्धिका, स्पृशी, व्याघ्री, बृहती, कण्टकारिका, प्रचोदनी, कुली, क्षुद्रा, दुःस्पर्शा, राष्ट्रिका, इति १० कण्टकारिकायाः ॥ नीली, काला, क्लीतकिका, ग्रामीणा, मधुपर्णिका, रञ्जनी, श्रीफली, तुत्था, द्रोणी, दोला, नीलिनी, इति ११ नील्याः ॥ —अवल्गुजः, सोमराजी, सुवल्लिः, सोमवल्लिका, कालमेषी, कृष्णफला, बाकुची, पूतिफली, इति ८ बाकुच्याः ॥-कृष्णा, उपकुल्या, वैदेही, मागधी, चपला, कणा, उषणा, पिप्पली, शौण्डी, कोला, इति १० ॥ पिप्पल्याः ॥ - करिपिप्पली, कपिवल्ली, कोलवल्ली, श्रेयसी, वशिरः, इति ५ गजपिप्पल्याः ॥ चव्यम्, चविका, इति २ चव्यस्य ॥ - काकचिच, गुञ्जा, कृष्णला, इति ३ गुञ्जायाः ॥ - पलंकषा, इक्षुगन्धा, श्वदंष्ट्रा, खादुकटकः, गोकण्टकः, गोक्षुरकः, वनशृङ्गाटः, इति ७ गोक्षु
१ पिठवण. २ रिंगणी. ३ नीळी. ४ बावची. ५ पिंपळी. ६ चरक- ७ गुंज. ८ गोक्षुर, सरांटा.
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८४७
८४८
८५३
पतयः ८३३-८६०] द्वितीयं काण्डम् विश्वा विषा प्रतिविषाऽतिविषोपविषाऽरुणा शृङ्गी महौषधं चाथ क्षीरावी दुग्धिका समे शतमूली बहुसुताऽभीरुरिन्दीवरी वरी
८४९ ऋष्यप्रोक्ताऽभीरुपत्रीनारायण्यः शतावरी ८५० अहेरुरथ पीतद्रुकालीयकहरिद्रवः ।।
८५१ दार्वी पचंपचा दारुहरिद्रा पर्जनीत्यपि
८५२ वचोग्रगन्धा षड्ग्रन्था गोलोमी शतपर्विका शुक्ला हैमवती वैद्यमातृसिंह्यौ तु वाशिका ८५४ वृषोऽटरूषः सिंहास्यो वासको वाजिदन्तकः ८५५ आस्फोटा गिरिकर्णी स्याद्विष्णुकान्ताऽपराजिता इक्षुगन्धा तु काण्डेक्षुकोकिलाक्षेक्षुरक्षुराः शालेयः स्याच्छीतशिवश्छत्रा मधुरिका मिसिः ८५८ मिश्रेयाप्यथ सीहुण्डो वज्रः स्नुक स्त्री स्नुही गुडा ८५९ समन्तदुग्धाऽथो वेल्लममोघा चित्रतण्डुला रस्य ॥-विश्वा, विषा, प्रतिविषा, अतिविषा, उपविषा, अरुणा, शृङ्गी, महौषधम् , इति ८ अतिविषायाः ॥-क्षीरावी, दुग्धिका, इति २ दुग्धैिकायाः ॥शतमूली, बहुसुता, अभीरुः, इन्दीवरी, वरी, ऋष्यप्रोक्ता, अभीरुपत्री, नारायणी, शतावरी, अहेरुः, इति १० शैतावर्याः ॥-पीतद्रुः, कालीयकः, हरिद्रुः, दार्वी, पचंपचा, दारुहरिद्रा, पर्जनी, इति ७ पर्जन्याः ॥-वचा, उग्रगन्धा, षड्मन्था, गोलोमी, शतपर्विका, इति ५ वेचायाः ॥-या शुक्ला वचा सा हैमवाति १॥-वैद्यमाता, सिंही, वाशिका, वृषः, अटरूषः, सिंहास्यः, वासकः, वाजिदन्तकः, इति ८ अंटरूषस्य ॥-आस्फोटा, गिरिकर्णी, विष्णुकान्ता, अपराजिता, इति ४ विष्णुकान्तायाः ॥-इक्षुगन्धा, काण्डेक्षुः, कोकिलाक्षः, इक्षुरः, क्षुरः, इति ५ कोकिलाक्षस्य ॥–शालेयः, शीतशिवः, छत्रा, मधुरिका, मिसिः, मिश्रेया, इति ६ मधुरिकायाः ॥-सीहुण्डः, वज्रः, नुक्, स्नुही, गुडा, समन्तदुग्धा, इति ६ वज्रद्रुमस्य । तत्र स्नुक् स्त्री ॥-वेल्लम् , अमोघा,
१ अति विष. २ दुग्धी. ३ शतावरी. ४ दारुहळद. ५ वेखंड. ६ अडुळसा. ७ विष्णुक्रांता. ८ कोळिस्ता, तालिमखाना. ९ बडिशेप. १० शेरनिवडुंग.
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अमरकोषे
तण्डुलश्च कृमिघ्नश्च विडङ्गं पुंनपुंसकम् बला वाट्यालका घण्टारवा तु शणपुष्पिका मृद्वीका गोस्तनी द्राक्षा स्वाद्वी मधुरसेति च सर्वानुभूतिः सरला त्रिपुटा त्रिवृता त्रिवृत् त्रिभण्डी रोचनी श्यामापालिन्द्यौ तु सुषेणिका काला मसूरविदलाऽर्धचन्द्रा कालमेषिका मधुकं क्लीतकं यष्टिमधुकं मधुयष्टिका विदारी क्षीरशुक्लेक्षुगन्धा क्रोष्ट्री तु या सिता अन्या क्षीरविदारी स्यान्महाश्वेतर्क्षगन्धिका लाङ्गली शारदी तोयपिप्पली शकुलादनी
ख़राश्वा कारवी दीप्यो मयूरो लोचमस्तकः गोपी श्यामा शारिवा स्यादनन्तोत्पलशारिवा योग्यमृद्धिः सिद्धिलक्ष्म्यौ वृद्धेरप्याह्वया इमे
[ ५. वनौषधिवर्गः
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७
चित्रतण्डुला, तण्डुलः, कृमिघ्नः, विडङ्गम्, इति विडङ्गस्य ॥ बला, वाट्याला, इति २ बलीयाः ॥ —घण्टारवा, शणपुष्पिका, इति २ शेणपुष्पिकायाः ॥मृद्वीका, गोस्तनी, द्राक्षा, खाद्वी, मधुरसा इति ५ द्राक्षायाः ॥ - सर्वानुभूतिः, सरला, त्रिपुटा, त्रित्रता, त्रित्रत्, त्रिभण्डी, रोचनी, इति • त्रिवृतायाः श्यामा, पालिन्दी, सुषेणिका, काला, मसूरविदला, अर्धचन्द्रा, कालमेषिका, इति ७ कृष्णवर्णायास्त्रिवृतायाः ॥ मधुकम्, क्लीतकम्, यष्टिमधुकम् मधुयष्टिका, इति ४ यष्टिमधुकस्य ॥ -- विदारी, क्षीरशुक्ला, इक्षुगन्धा, कोष्टी, इति ४ ईक्षुगन्धायाः ॥ - क्षीरविदारी, महाश्वेता, ऋक्षगन्धिका, इति ३ कृष्णभूमिकूष्माण्डस्य ॥ - लाङ्गली, शारदी, तोयपिप्पली, शकुलादनी, इति ४ शांकमेदस्य ॥ - खराश्वा, कारवी, दीप्यः, मयूरः, लोचमस्तकः, इति ५ मयूरशिखायाः ॥ - गोपी, श्यामा, शारिवा, अनन्ता, उत्पलशारिवा, इति ५ उत्पलशारिवायाः ॥ -- योग्यम्, ऋद्धिः सिद्धिः, लक्ष्मीः, इति ४ ऋद्धिनामकस्य
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-11
१ वावडिंग. २ चिकणा. ३ घागरी, लहान ताग ४ द्राक्षा ५ श्वेन निशोत्तर, तेंडू ६ निगडी, तिधारें. ७ जेष्ठमध ८ श्वेत भुईकोहळा. ९ काळा भुईकोहळा : १० मोगुड, जल पिंपळी. ११ मोरशेंडा, ( अजमोद ? ). १२ उपळसरी १३ केवणी, मुरुडशेंग.
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८७४
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८८५
पतयः ८६१-८८६] द्वितीयं काण्डम् कदली वारणबुसा रम्भा मोचांशुमत्फला काष्ठीला मुद्गपर्णी तु काकमुद्दा सहेत्यपि वार्ताकी हिङ्गली सिंही भण्टाकी दुष्प्रधर्षिणी ८७६ नाकुली सुरसा रास्ता सुगन्धा गन्धनाकुली ८७७ नकुलेष्टा भुजंगाक्षी छत्राकी सुवहा च सा विदारिगन्धांऽशुमती सालपर्णी स्थिरा ध्रुवा तुण्डिकेरी समुद्रान्ता कापोसी बदरेति च भारद्वाजी तु सा वन्या शृङ्गी तु ऋषभो वृषः गाङ्गेरुकी नागबला झषा ह्रस्वगवेधुका धामार्गवो घोषकः स्यान्महाजाली स पीतकः ज्योत्स्नी पटोलिका जाली नादेयी भूमिजम्बुका स्याल्लाङ्गलिक्यग्निशिखा काकाङ्गी काकनासिका गोधापदी तु सुवहा मुसली तालमूलिका ओषधिविशेषस्य ॥-कदली, वारणबुसा, रम्भा, मोचा, अंशुमुत्फला, काष्टीला, इति ६ कदल्या:॥-मुद्गपर्णी, काकमुद्गा, सहा, इति ३ काकमुद्गायाः॥वार्ताकी, हिङ्गुली, सिंही, भण्टाकी, दुष्प्रधर्षिणी, इति ५ वार्ताक्याः ॥-नाकुली, सुरसा, राना, सुगन्धा गन्धनाकुली, नकुलेष्टा, भुजङ्गाक्षी, छत्राकी, सुवहा, इति ९ रास्तायाः ॥--विदारिगन्धा, अंशुमती, सालपर्णी, स्थिरा, ध्रुवा, इति ५ सालपाः ॥--तुण्डिकेरी, समुद्रान्ता, कापासी, बदरा, इति ४ कापास्याः॥-सा कार्पासी वन्या चेत् भारद्वाजीति १ ॥ शृङ्गी, ऋषभः, वृषः, इति ३ ऋषभाख्यौषधिविशेषस्य ॥-गाङ्गेरुकी, नागबला, झषा, ह्रखगवेधुका, इति ४ बालविशेषस्य ॥-धामार्गवः, घोषकः, इति २ घोषवल्याः ॥-स घोषकः पीतकः पीतपुष्पश्चेत् महाजालीत्युच्यते । स्त्रीलिङ्गम् ॥-ज्योत्स्नी, पटोलिका, जाली, इति ३ पटोलिकीयाः॥ नादेयी, भूमिजम्बुका, इति २ भूजम्ब्वाः ॥-लाङ्गलिकी, अग्निशिखा, इति २ लाङ्गल्याः ॥काकाङ्गी, काकनासिका, इति काकजवाख्यौषधिविशेषस्य ॥-गोधापदी, सुवहा, इति २ हंसैपादिकायाः ॥-मुसली, तालमूलिका, इति २
१रानमूग. २ रानवांगी, डोली. ३ मुंगुसवेल. ४ डवला, साळवण. ५ बैलघांटी. ६ लहान चिकणा. ७ घोसाळी, दोडकी. ८ पडवळी. ९ भुईजांभळी. १० कळलावी, वाघचबका. ११ कावळी. १२ लाल लाजाळू.
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अमरकोषे
[५. वनौषधिवर्गः
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अजशृङ्गी विषाणी स्याद्गोजिह्वादाविके समे ८८७ ताम्बूलवल्ली ताम्बूली नागवल्यप्यथ द्विजा ८८८ हरेणू रेणुका कौन्ती कपिला भस्मगन्धिनी ८८९ एलावालुकमैलेयं सुगन्धि हरिवालुकम् वालुकं चाथ पालयां मुकुन्दः कुन्दकुन्दुरू ८९१ वालं ह्रीबेरबर्हिष्ठोदीच्यं केशाम्बुनाम च कालानुसार्यवृद्धाश्मपुष्पशीतशिवानि तु शैलेयं तालपर्णी तु दैत्या गन्धकुटी मुरा ८९४ गन्धिनी गजभक्ष्या तु सुवहा सुरभी रसा महेरणा कुन्दुरुकी सल्लकी ह्लादिनीति च अग्निज्वालासुभिक्षे तु धातकी धातुपुष्पिका पृथ्वीका चन्द्रवालैला निप्कुटिवहुलाऽथ सा सूक्ष्मोपकुञ्चिका तुत्था कोरङ्गी त्रिपुटा त्रुटिः मुसल्याः ॥-अजशृङ्गी, विषाणी, इति २ अजैशृङ्गयाः ॥-गोजिह्वा, दार्विका, इति २ गोजिह्वायाः॥-ताम्बूलवल्ली, ताम्बूली, नागवली, इति ३ नागवल्याः ॥-द्विजा, हरेणुः, रेणुका, कोन्ती, कपिला, भस्मगन्धिनी, इति ६ रेणुकाख्यगन्धद्रव्यस्य ॥-एलावालुकम् , ऐलेयम् , मुगन्धि, हरिवालुकम् , वालुकम्, इति ५ वालुकाख्यगन्धद्रव्यस्य ॥-पालकी, मुकुन्दः, कुन्दः, कुन्दुरुः, इति ४ कुन्दस्य ।।-बालम् , ह्रीबेरम् , बर्हिष्टम् , उदीच्यम् , केशाम्बुनाम , इति ५ हीबेरस्य ॥ कालानु सायम् , वृद्धम् , अश्मपुष्पम् , शीतशिवम् , शेलेयम् , इति ५ शैलेयस्य ।।-तालपणों, देल्या, गन्धकुटी, मुरा, गन्धिनी, इति ५ मुरायाः॥-गजभक्ष्या, सुवहा, सुरभी, रसा, महेरणा, कुन्दुरुकी, सहकी, हादिनी, इति ८ कुन्दुरुक्याः ॥-अग्निज्वाला, सुभिक्षा, धातकी, धातुपुष्पिका, इति ४ धातक्याः ॥-पृथ्वीका, चन्द्रवाला, एला, निष्कुटिः, बहुला, इति ५ एलायाः ॥-उपकुञ्चिका, तुत्था, कोरङ्गी, त्रिपुटा, त्रुटिः, इति ५ सूक्ष्मै
१ मुमळकंद. २ मेडशिंगी. ३ दवली, पाथरी. ४ पानवेल. ५ रेणुकबीज ६ वाजुक, कांकडी (?). ७ पालक. ८ वाळा. ९ शिलाजित. १० मोरमांसी. ११ सालई. १२ धायटी, धायफूल. १३ एळिया.
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पतयः ८८७-११]
द्वितीयं काण्डम्
ا
०००
९०३ ९०४ ९०५
व्याधिः कुष्टं पारिभाव्यं वाप्यं पाकलमुत्पलम् शङ्खिनी चोरपुष्पी स्यात् केशिन्यथ वितुन्नकः झटामलाऽज्झटा ताली शिवा तामलकीति च प्रपौण्डरीकं पौण्डर्यमथ तुन्नः कुबेरकः कुणिः कच्छः कान्तलको नन्दिवृक्षोऽथ राक्षसी चण्डा धनहरी क्षेमदुप्पत्रगणहासकाः व्याडायुधं व्याघनखं करजं चक्रकारकम् सुपिरा विद्रुमलता कपोतार्निटी नली धमन्यञ्जनकेशी च हनुहट्टविलासिनी शुक्तिः शङ्खः खुरः कोलदलं नखमथाढकी काक्षी मृत्स्ना तुवरिका मृत्तालकसुराष्ट्रजे कुटन्नटं दाशपुरं वानेयं परिपेलवम्
९०६
९०८
९१०
९११
लायाः ॥-व्याधिः, कुष्टम् , पारिभाव्यम् , वाप्यम् , पाकलम् , उत्पलम् , इति ६ कुष्ठस्य ॥–शसिनी, चोरपुष्पी, केशिनी, इति ३ चोरेवल्याः ॥-वितुनकः, झटामला, अज्झटा, ताली, शिवा, तामलकी, इति ६ भूम्यामलक्याः ॥प्रपौण्डरीकम् , पौण्डर्यम् , इति २ पौण्डर्यस्य ॥--तुन्नः, कुबेरकः, कुणिः, कच्छः, कान्तलकः, नन्दिवृक्षः, इति ६ नन्दिवृक्षस्य॥-राक्षसी, चण्डा, धनहरी, क्षेमः, दुष्पत्रः, गणहासकः इति ६ चोराख्यगन्धद्रव्यस्य ॥-व्याडायुधम् , व्याघ्रनखम् , करजम् , चक्रकारकम् , इति ४ व्याघ्रनखनामकगन्धद्रव्यस्य ॥सुषिरा, विद्रुमलता, कपोताङ्गिः, नटी, नली, धमनी, अञ्जनकेशी, इति ७ नलीनामकगन्धद्रव्यस्य ॥-हनुः, हट्टविलासिनी, शुक्तिः, शङ्खः, खुरः, कोलदलम् , नखम् , इति ७ नखाख्यगन्धद्रव्यस्य ॥ आढकी, काक्षी, मृत्स्ना, तुवरिका, मृत्तालकम् , मुराष्ट्र जम्, इति ६ तवरिकायाः॥--कुटनटम, दाश
१ गोडे कोष्ठ. २ सांखवेल. ३भुई आंवळी. ४ स्थलपद्म(?). ५ नांदरखी. ६ चोर ओंवा, किरमाणी ओंवा. ७ लघु नखला, वाघनख. ८ पवारी, नली. ९ नखला. १० तूर.
अ. को. स. ६
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८२
अमरकोषे
[५. वनौषधिवर्गः प्लवगोपुरगोनर्दकैवर्तीमुस्तकानि च
९१२ ग्रन्थिपर्ण शुकं बर्हपुष्पं स्थौणेयकुक्कुरे
९१३ मरुन्माला तु पिशुना स्पृक्का देवी लता लघुः
९१४ समुद्रान्ता वधूः कोटिवर्षा लङ्कोपिकेत्यपि ९१५ तपस्विनी जटामांसी जटिला लोमशा मिसी ९१६ त्वक्पत्रमुत्कटं भृङ्गं त्वचं चोचं वराङ्गकम् ९१७ कचूरको द्राविडकः काल्पको वेधमुख्यकः ९१८
ओषध्यो जातिमात्रे स्युरजातौ सर्वमौषधम् ९१९ शाकाख्यं पत्रपुष्पादि तण्डुलीयोऽल्पमारिषः विशल्याग्निशिखानन्ता फलिनी शक्रपुष्पिका ९२१ स्यादृक्षगन्धा छगलाळ्यावेगी वृद्धदारकः ९२२ जुङ्गो ब्राह्मी तु मत्स्याक्षी वयस्था सोमवल्लरी ९२३ पुरम् , वानेयम् , परिपेलवम् , प्लवम् , गोपुरम् , गोनर्दम् , कैवर्तीमुस्तकम् , इति ८ कैवर्तीमुस्तकस्य ॥ ग्रन्धिपर्णम् , शुकम् , बर्हपुष्पम् , स्थौणेयम् , कुकुरम् , इति ५ ग्रन्थेिपर्णस्य ॥ मरुन्माला, पिशुना, स्पृक्का, देवी, लता, लघुः, समुद्रान्ता, वधूः, कोटिवर्षा, लङ्कोपिका, इति १० स्पृकायाः॥ तपखिनी, जटामांसी, जटिला, लोमशा, मिसी, इति ५ जटामांस्याः ॥ त्वक्पत्रम् , उत्कटम् , भृङ्गम् , त्वचम् , चोचम् , वराङ्गकम् , इति ६ त्वक्पत्रस्य ॥-कचूंरकः, द्राविडकः, काल्पकः, वेधमुख्यकः, इति ४ कर्चुरकस्य ॥-फलपाकान्तानां व्रीह्यादीनां जातावेव ओषध्यः स्युः ॥ यदा तु ओषधेः रोगहारित्वमात्रं प्रतीयते न त्वन्यत् तदा औषधशब्दप्रयोगः॥ यत् पत्रपुष्पादि तत् शाकसंज्ञकम् १ ॥ तण्डुलीयः, अल्पमारिषः, इति २ तण्डुलीयस्य ॥-विशल्या, अग्निशिखा, अनन्ता, फलिनी, शक्रपुष्पिका, इति ५ अग्निशिखायाः ॥ऋक्षगन्धा, छगलान्त्री, आवेगी, वृद्धदारकः, जुङ्गः, इति ५ वृद्धदारकस्य ॥ब्राह्मी, मत्स्याक्षी, वयस्था, सोमवल्लरी, इति ४ सोमलतायाः ॥-पटुपर्णी,
१ केवडी.मोथा. २ गंठीवन, भटोरा. ३ पिंडका. ४ जटामांसी. ५ दालचिनी. ६ कचर, कचरी.७ तांदुळजा. ८ कळलावी. ९ वरधारा, जीर्णफंबी. १० सोमवेल.
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९२६
९२८
९२९
पतयः ९२३-९३६] द्वितीयं काण्डम् पटुपर्णी हैमवती स्वर्णक्षीरी हिमावती
९२४ हयपुच्छी तु काम्बोजी माषपर्णी महासहा ९२५ तुण्डिकेरी रक्तफला विम्बिका पीलुपर्ण्यपि बर्बरा कबरी तुझी खरपुष्पाऽजगन्धिका
९२७ एलापर्णी तु सुवहा रास्ना युक्तरसा च सा चाङ्गेरी चुक्रिका दन्तशठाम्बष्ठाम्ललोणिका सहस्रवेधी चुक्रोऽम्लवेतसः शतवेध्यपि नमस्कारी गण्डकारी समङ्गा खदिरेत्यपि जीवन्ती जीवनी जीवा जीवनीया मधुस्रवा कूर्चशीर्षो मधुरकः शृङ्गह्रस्वाङ्गजीवकाः किराततिक्तो भूनिम्बोऽनायेतिक्तोऽथ सप्तला विमला सातला भूरिफेना चर्मकषेत्यपि
९३५ वायसोली स्वादुरसा वयस्थाऽथ मकूलकः ९३६ हैमवती, स्वर्णक्षीरी, हिमावती, इति ४ स्वर्णक्षीयः ॥-हयपुच्छी, काम्बोजी, माषपणी, महासहा, इति ४ माषपाः ॥-तुण्डिकेरी, रक्तफला, बिम्बिका, पीलुपी, इति ४ तुण्डिकेर्याः ॥--बर्बरा, कबरी, तुङ्गी, खरपुष्पा, अजगन्धिका, इति ५ खरपुष्पायाः ॥--एलापर्णी, सुवहा, रास्ना, युक्तरसा, इति ४ एलापाः ॥-चाङ्गेरी, चुकिका, दन्तशठा, अम्बष्टा, अम्ललोणिका, इति ५ अललोणिकायाः ॥-सहस्रवेधी, चुक्रः, अम्लवेतसः, शतवेधी, इति ४ अभ्लैंवेतसस्य ॥-नमस्कारी, गण्डकारी, समगा, खदिरा, इति ४ खदिरायाः ।।- जीवन्ती, जीवनी, जीवा, जीवनीया, मधुस्रवा, इति ५ जीवन्त्याः । कूर्चशीर्षः, मधुरकः शृङ्गः, ह्रस्वागः, जीवकः, इति ५ जीवंकस्य ॥-किराततिक्तः, भूनिम्बः, अनार्यतिकः, इति ३ अनिम्बस्य ॥-सप्तला, विमला, सातला, भूरिफेना, चर्मकषा, इति ५ सप्तलायाः॥-वायसोली, खादुरसा, वयस्था, इति ३
१ पिसोळा. २ रानउडीद. ३ तोंडली. ४ तिळवणी, कानफोडी. ५ कोळिंदण. ६ चुका. ७ अम्लवेतस. ८ लाजाळू. ९हरणवेल, हरणदोडी. १० जीवक. ११ किराईत. १२ शिकेकाई.
س سہ سہ سہ سر سم سم ہ ہ س سر هم
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अमरकोषे
निकुम्भो दन्तिका प्रत्यक्श्रेण्युदुम्बरपर्ण्यपि अजमोदा तूग्रगन्धा ब्रह्मदर्भा यवानिका मूले पुष्कर काश्मीरपद्मपत्राणि पौष्करे अव्यथाऽतिचरा पद्मा चारटी पद्मचारिणी काम्पिल्यः कर्कशश्चन्द्रो रक्ताङ्को रोचनीत्यपि प्रपुन्नास्त्वेडगजो दद्रुघ्नश्चक्रमर्दकः
पद्माट उरणाख्यश्च पलाण्डुस्तु सुकन्दकः लतार्कद्रुमौ तत्र हरितेऽथ महौषधम् लशुनं गृञ्जनारिष्टमहाकन्दरसोनकाः पुनर्नवा तु शोघ्नी वितुन्नं सुनिषण्णकम् स्याद्वातकः शीतलोsपराजिता शणपर्ण्यपि पारावताङ्घ्रिः कटभी पण्या ज्योतिष्मती लता
[ ५. वनौषधिवर्गः
९३७
९३८
९३९
९४०
९४१
९४२
९४३
९४४
९४५
९४६
૯૪૭
९४८
वयस्थायाः ॥ - मकूलकः, निकुम्भः, दन्तिका, प्रत्यक्श्रेणी, उदुम्बरपर्णी, इति ५ दन्त्याः ॥ - अजमोदा, उग्रगन्धा, ब्रह्मदर्भा, यवानिका, इति ४ यवान्याः ॥पुष्करम्, काश्मीरम्, पद्मपत्रम्, इति ३ पौष्करमूले ॥ - अव्यथा, अतिचरा, पद्मा, चारटी, पद्मचारिणी, इति ५ पद्मचारिण्याः ॥ - - काम्पिल्यः, कर्कशः, चन्द्रः, रक्ताङ्गः, रोचनी, इति ५ रोचयाः ॥ - प्रपुन्नाड, एडगजः, दन्नः, चक्रमर्दकः, पद्माटः, उरणाख्यः, इति ६ पद्माटस्य ॥ - पलाण्डुः, सुकन्दकः, इति २ पलाण्डोः ॥ - हरिते हरिद्वर्णे पलाण्डौ लतार्कः, दुद्रुमः, इति २ ॥ - महौषधम्, लशुनभू, गृञ्जनम्, अरिष्टः, महाकन्दः, रसोनकः, इति ६ लैशुनस्य ॥पुनर्नवा, शोथनी, इति २ पुनर्नवायाः ॥ - वितुन्नम्, सुनिषण्णकम् इति २ वितुनस्य ॥ वातकः, शीतलः, अपराजिता, शणपण, इति ४ शणपयः ॥पारावताङ्घ्रिः, कटभी, पण्या, ज्योतिष्मती, लता, इति ५ ज्योतिष्मत्याः ॥—
,
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१ काकोली, लहान कावळी. २ दांती, जेपाळ (बीज). ३ ओवा. ४ पुष्करमूळ. ५ स्थलकमळ. ६ शुंडा रोचनी. ७ टाकळा. ८ कांदा, प्याज. ९. सफेत कांदा. १० लसूण. ११ पुनर्नवा, घेटुळी. १२ कुरडू ( भाजी ) १३ असनपणी, गोकर्णी. १४ मालकांगणी.
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पङ्क्तयः ९३७-९६० ] द्वितीयं काण्डम्
वार्षिकं त्रायमाणा स्यात्रायन्ती वलभद्रिका विष्वक्सेनप्रिया गृष्टिर्वाराही वदरेत्यपि मार्कवो भृङ्गराजः स्यात् काकमाची तु वायसी शतपुष्पा सितच्छत्राऽतिच्छत्रा मधुरा मिसिः अवाक्पुष्पी कारवीच सरणा तु प्रसारिणी तस्यां कटंभरा राजवला भद्रबलेत्यपि जनी जतूका रजनी जतुकृच्चक्रवर्तिनी संस्पर्शीऽथ शटी गन्धमूली षड्ग्रन्थिकेत्यपि कर्चूरोऽपि पलाशोऽथ कारवेल्लः कठिल्लकः सुपवी चाथ कुलकं पटोलस्तिक्तकः पटुः कूष्माण्डकस्तु कर्कारुरुवीरुः कर्कटी स्त्रियो इक्ष्वाकुः कटुतुम्बी स्यात्तुम्ब्यलावूरुभे समे
९४९
९५०
९५१
९५२
९५३
९५४
९५५
९५६
९५७
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९५९
९६०
वार्षिकम्, त्रायमाणा, त्रायन्ती, बलभद्रिका, इति ४ त्रायमाणायाः ॥ - विष्वक्सेनप्रिया, गृष्टिः, वाराही, बदरा, इति ४ वाराह्याः ॥ - मार्कवः, भृङ्गराजः, इति २ भृङ्गराजस्य । अयं सान्तोऽदन्तोऽपि ॥ - काकमाची, वायसी, इति २ वायस्याः ॥ - शतपुष्पा, सितच्छत्रा, अतिच्छत्रा, मधुरा, मिसिः, अवाक्पुष्पी, कारवी, इति ७ मधुरायाः ॥ - सरणा, प्रसारिणी, कटंभरा, राजबला, भद्रबला, इति ५ प्रसारिण्याः ॥ - जनी, जतूका, रजनी, जतुकृत्, चक्रवर्तिनी, संस्पर्शा, इति ६ चक्रवर्तिन्याः ॥ - शटी, गन्धमूली, षड्ग्रन्थिका, कर्चूरः, पलाश:, इति ५ शम्याः ॥ - - कारवेल्लः, कठिल्लकः, सुषवी, इति ३ कारवेल्लस्य ॥ कुलकम्, पटोल:, तिक्तकः, पटुः, इति ४ पटोलस्य ॥ -- कूष्माण्डकः, कर्कारुः, इति कूष्माण्डस्य ॥ - उर्वारुः कर्कटी, इति २ कैर्कट्याः ॥ इक्ष्वाकुः कटु तुम्बी इति २ क तुम्ब्याः ॥ तुम्बी, अलाबू:, इति २ तुर्खेयाः ॥ - चित्रा,
१२.
---
१ श्रायमाण. २ डुकरकंद ३ माका, भृंगराज. ४ कावळी, काकजघा. ५ शोष. ६ चांदवेल. ७ चाकवत. ८ कापूरकाचरी, आंबेहळद. ९ कारली. १० पडवळ ११ कोहळा.. १२ कांकडी• १३ दुध्या कडु भोपळा. १४ काळा भोपळा.
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अमरकोषे
[५. वनौषधिवर्गः चित्रा गवाक्षी गोडुम्बा विशाला विन्द्रवारुणी अर्शोघ्नः सूरणः कन्दो गण्डीरस्तु समष्ठिला ९६२ कलम्ब्युपोदिका स्त्री तु मूलकं हिलमोचिका वास्तुकं शाकभेदाः स्युर्दूर्वा तु शतपर्विका ९६४ सहस्रवीर्याभार्गव्यौ रुहाऽनन्ताऽथ सा सिता गोलोमी शतवीर्या च गण्डाली शकुलाक्षका ९६६ कुरुविन्दो मेघनामा मुस्ता मुस्तकमस्त्रियाम्
९६७ स्याद्भद्रमुस्तको गुन्द्रा चूडाला चक्रलोचटा
९६८ वंशे त्वक्सारकारत्वचिसारतृणध्वजाः
९६९ शतपर्वा यवफलो वेणुमस्करतेजनाः
९७० वेणवः कीचकास्ते स्युर्ये स्वनन्त्यनिलोद्धताः ९७१
९६५
गवाक्षी, गोडुम्बा, इति ३ गोडुम्बायाः ॥-विशाला, इन्द्रवारुणी, इति २ इन्द्रवारुण्याः ॥--अर्शीघ्नः, सूरणः, कन्दः, इति ३ सूरणस्य ॥-गण्डीरः, समष्टिला, इति २ गण्डीराख्यशाकभेदस्य ॥-कलम्ब्यादयः ५शाकभेदाः स्युः, एकैकम् । कैलम्बी, उपोदिका, मूलकम् , हिलमोचिका, वास्तुकम्, इति ५ ॥-दूर्वा, शतपर्विका, सहस्रवीया, भार्गवी, रुहा, अनन्ता, इति ६ दायाः ॥-सा दर्वा सिता शुक्ला चेत् तत्र-गोलोमी, शतवीर्या, गण्डाली, शकुलाक्षका, इति ४ ॥-कुरुविन्दः, मेघनामा, मुस्ता, मुस्तकम् , इति ४ मुस्तायाः। मुस्तकं पुंनपुंसकयोः॥-भद्रमुस्तकः, गुन्द्रा, इति २ भद्रेमुस्तकस्य ॥चूडाला, चक्रला, उच्चटा, इति ३ उच्चटामूलस्य ॥-वंशः, त्वक्सारः, कारः, त्वचिसारः, तृणध्वजः, शतपर्वा, यवफलः, वेणुः, मस्करः, तेजनः, इति १०१ वेणोः ॥-ये वेणवः अनिलेन कीदादिकृतरन्ध्रगतवायुनोद्धताः स्वनन्ति, ते कीचकाः mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmww~~~mmmmmmmmmmmmmmmm
१ कंडळ. २ मोठी कंबडळ. ३ सूरण. ४ कडू सुरण. ५ कळंबी. ६ थोर मायाळू, वाळीची भाजी. ७ मुळा. ८ हलांची, चाकवत. ९ चंदनबटुवा. १० दूर्वा. ११ मोथा. १२ नागरमोथा. १३ मोषाभेद, फुरडी. १४ वेणु, वेळू.
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९७४
९७६
९८१
पतयः ९६१-९८३] द्वितीयं काण्डम् ग्रन्थि। पर्वपरुषी गुन्द्रस्तेजनकः शरः ९७२ नडस्तु धमनः पोटगलोऽथो काशमस्त्रियाम् ९७३ इक्षुगन्धा पोटगलः पुंसि भूम्नि तु बल्वजाः रसाल इक्षुस्तद्देदाः पुण्डूकान्तारकादयः
९७५ स्याद्वीरणं वीरतरं मूलेऽस्योशीरमस्त्रियाम् अभयं नलदं सेव्यममृणालं जलाशयम्
९७७ लामज्जकं लघुलयमवदाहेष्टकापथे नडादयस्तृणं गर्मुच्छयामाकप्रमुखा अपि
९७९ अस्त्री कुशं कुथो दर्भः पवित्रमथ कत्तृणम् ९८० पौरसौगन्धिकध्यामदेवजग्धकरौहिषम् छत्राऽतिच्छत्रपालघ्नौ मालातृणकभूस्तृणे ९८२ शष्पं बालतृणं घासो यवसं तृणमर्जुनम् स्युरिति १ ॥-ग्रन्थिः, पर्व, परुः, इति ३ वंशादिअन्धेः । ग्रन्थिः पुंसि ॥गुन्द्रः, तेजनकः, शरः, इति ३ शरस्य ॥–नडः, धमनः, पोटगलः, इति ३धमनस्य ॥-इक्षुगन्धा, पोटगलः, बल्वजाः, इति ३ काशस्य । तत्र बल्वजा इत्येक पुंल्लिङ्गं बहुवचनान्तम् ॥-रसालः, इक्षुः, इति २ इक्षोः॥-पुण्डः, कान्तारकः, इति २ इक्षोर्भेदाः ॥ वीरणम् , वीरतरम् , इति २ तृणभेदस्य ॥-उशीरम् , अभयम् , नलदम् , सेव्यम् , अमृणालम् , जलाशयम् , लामजकम् , लघुलयम् , अवदाहम् , इष्टकापथम् , इति १० वीरँणमूलस्य ॥-नडादयः नड-काशादयः, तृणं तृणजातीया इत्यर्थः । ये च गर्मुच्छयामाकप्रमुखाः ॥ कुशम् , कुथः, दर्भः, पवित्रम्, इति ४ कुशस्य । तत्र कुशं क्लीब-पुंसोः ॥-कत्तृणम् , पौरम् , सौगन्धिकम् , ध्यामम् , देवजग्धकम् , रोहिषम् , इति ६ तृणभेदस्य ॥छत्रा, अतिछत्रः, पालघ्नः, मालातृणकम् , भूस्तृणम् , इति ५ वचाकृतेर्जलेतृणमेदस्य ॥–शष्पम् , बालतृणम् , इति २ कोमलतृणस्य ॥-घासः, यवसम् , इति २ गवादीनां भक्ष्यतृणस्य ॥--तृणम् , अर्जुनम् , इति २. तृणमात्रस्य
१ पेर. २ शर.३ देवनळ. ४ लन्हाळे, लवा. ५ ऊस. ६ काळा वाळा. ७ वीरणमूळ, (वाळा ). ८ तृणमेद. ९ तृणधान्यभेद. १०दर्भ ११ रोहिस गवत. १२ शेतगवत.
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अमरकोषे [६. सिंहादिवर्गः तृणानां संहतिस्तृण्या नड्या तु नडसंहतिः । ९८४ तृणराजाह्वयस्तालो नालिकेरस्तु लागली ९८५ घोण्टा तु पूगः क्रमुको गुवाकः खपुरोऽस्य तु ९८६ फलमुद्रेगमेते च हिन्तालसहितास्त्रयः
९८७ खर्जूरः केतकी ताली खर्जूरी च तृणद्रुमाः ૧૮૮
६. सिंहादिवर्गः सिंहो मृगेन्द्रः पञ्चास्यो हर्यक्षः केसरी हरिः 'कण्ठीरवो मृगरिपुर्मुगदृष्टिमंगाशनः
** पुण्डरीकः पञ्चनखचित्रकायमृगद्विषः'
** शार्दूलद्वीपिनौ व्याघे तरक्षुस्तु मृगादनः वराहः सूकरो घृष्टिः कोलः पोत्री किरिः किटिः ९९१ दंष्ट्री घोणी स्तब्धरोमा क्रोडो भूदार इत्यपि कपिप्लवंगप्लवगशाखामृगवलीमुखाः
९९३
९८९
॥-तृणानां संहतिः समूहः तृण्येत्युच्यते १ ॥–नडानां संहतिर्नड्यत्युच्यते १ ॥ तृणराजः, तालः, इति २ तालस्य ॥-नालिकेरः, लागली, इति २ नालिकेरस्य ॥-घोण्टा, पूगः, क्रमुकः, गुवाकः, खपुरः, इति ५ पूंगवृक्षस्य ॥ अस्य फलं उद्वेगमित्युच्यते १ ॥-हिन्तालस्तालमेदः ॥खर्जुरः, केतकी, ताली, खजूरी, इति ४ तृणंद्रुमभेदाः॥
९८९-१०७४-सिंहः, मृगेन्द्रः, पञ्चास्यः, हर्यक्षः, केसरी, हरिः, इति ६ सिंहस्य ॥–शार्दूलः, द्वीपी, व्याघ्रः, इति ३ व्याघ्रस्य ॥ तरक्षुः, मृगादनः, इति २ कुक्कुराकृतेः कृष्णरेखाचित्रितस्य मृगविशेषस्य ॥-वराहः, सूकरः, घृष्टिः, कोलः, पोत्री, किरिः, किटिः, दंष्ट्री, घोणी, स्तब्धरोमा, कोडः, भूदारः, इति १२ सूकरस्य ॥---कपिः, प्लवङ्गः, प्लवगः, शाखामृगः, वलीमुखः,
१ नारळ. २ सुपारी, पोफळी. ३ केतकी.
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९९५
९९६
९९७
९९८
पतयः ९८४-१००५] द्वितीयं काण्डम् मर्कटो वानरः कीशो वनौका अथ भल्लुके ऋक्षाच्छभल्लभल्लूका गण्डके खड्गखगिनौ लुलायो महिषो वाहद्विषत्कासरसैरिभाः स्त्रियां शिवा भूरिमायगोमायुमृगधूर्तकाः शृगालवञ्चकक्रोष्टुफेरुफेरवजम्बुकाः ओतुर्बिडालो मार्जारो वृषदंशक आखुभुक् त्रयो गौधेरगौधारगौधेया गोधिकात्मजे श्वावित्तु शल्यस्तल्लोम्नि शलली शललं शलम् वातप्रमीर्वातमृगः कोकस्त्वीहामृगो वृकः मृगे कुरङ्गवातायुहरिणाजिनयोनयः ऐणेयमेण्याश्चर्माद्यमेणस्यैणमुभे त्रिषु . कदली कन्दली चीनश्चमूरुप्रियकावपि
१००० १००१ १००२ १००३ १००४ १००५
मर्कटः, वानरः कीशः, वनौकाः, इति ९ वानरस्य ।।--भन्छुकः, ऋक्षः, अच्छभलः, भट्टकः, इति ४ अच्छभल्लस्य ॥-गण्डकः, खड्गः, खड्गी, इति ३ गण्डङ्गस्य ॥-लुलायः, महिषः, वाहद्विषत् , कासरः, सैरिभः, इति ५ महिषस्य ।।-शिवा, भूरिमायः, गोमायुः, मृगधूर्तकः, शृगालः, वञ्चकः, कोष्टा, फेरुः, फेरवः, जम्बुकः, इति १० जम्बुकस्य । 'शिवा'शब्दः स्त्रियामेव ॥ओतुः, बिडालः, मार्जारः, वृषदंशकः, आबुभुक् , इति ५ मार्जारस्य ॥--गौधारः, गोंधेरः, गोंधेयः, इति ३ स्थलगोधिकाया अपत्ये ॥-श्वावित् , शल्यः, इति २ शल्यस्य ॥ तस्य शल्यस्य लोम्नि शलली, शललम्, शलम्, इति ३ ॥-वातप्रमीः, मातमृगः, इति २ वातमृगस्य ॥-कोकः, ईहामृगः, वृकः, इति ३ वृकस्य ॥ मृगः, कुरङ्गः, वातायुः, हरिणः, अजिनयोनिः, इति ५ हरिणस्य ॥-एण्या हरिण्याश्चर्माद्यं ऐणेयमित्युच्यते । एणस्य तु चर्माद्यं ऐणमित्युच्यते । उभे ऐणेयम् , ऐणं च त्रिषु स्पष्टम् ॥-- कदली , कन्दली, चीनः, चमूरुः, प्रियकः, समूहः, इति ६ हरिणभेदाः ॥
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अमरकोषे [६. सिंहादिवर्गः समूरुश्चेति हरिणा अमी अजिनयोनयः
१००६ कृष्णसाररुरुन्यकुरङ्कुशम्बररोहिषाः
१००७ गोकर्णपृषतैणयरोहिताश्चमरो मृगाः गन्धर्वः शरभो रामः समरो गवयः शशः इत्यादयो मृगेन्द्राद्या गवाद्याः पशुजातयः १०१० "अधोगन्ता तु खनको वृकः पुंध्वज उन्दुर' उन्दुरुर्मूषकोऽप्याखुर्गिरिका वालमूपिका १०११ सरटः कृकलासः स्यान्मुसली गृहगोधिका
१०१२ लूता स्त्री तन्तुवायोर्णनाभमर्कटकाः समाः
१०१३ नीलगुस्तु कृमिः कर्णजलौकाः शतपद्युभे १०१४ वृश्चिकः शूककीटः स्यादलिगुणौ तु वृश्चिके १०१५ पारावतः कलरवः कपोतोऽथ शशादनः
१०१६ पत्री श्येन उलूकस्तु वायसारातिपेचको
१०१७ अमी ६ हरिणाः, वक्ष्यमाणाः कृष्णसारादयश्च अजिनयोनय उच्यन्ते । यत एते चर्मण्युपयुक्ताः ॥-कृष्णसारः, रुरुः, न्यथैः, रङ्घः, शम्बरः, रोहिषः, गोकर्णः, पृषतः, एणः, ऋश्यः, रोहितः, चमरः, इति १२ मृगाः मृगभेदाः, एकैकम् । गन्धर्वः, शरभः, रामः, सृमरः, गवयः, शशः, इति ६ मृगभेदाः ॥ मृगेन्द्रायाः सिंहाद्याश्चमरान्ता ये च वर्गान्तरे वक्ष्यमाणा गवाद्या गोहस्त्यश्वादयः ते सर्वे पशुजातयः पशुशब्दवाच्या इत्यर्थः ॥-उन्दुरुः, मूषकः, आखुः, इति ३ मूषकस्य ॥-गिरिका, बालमूषिका, इति २ स्वल्पमूषकजातेः॥-सरटः, कृकलासः, इति २ सरटस्य ॥ मुसली, गृहगोधिका, इति २ गृहगोधायाः॥लूता, तन्तुवायः, ऊर्णनाभः, मकेटकः, इति ४ ऊर्णनाभस्य । तत्र लूता नित्यं स्वी ॥-नीलङ्गुः, कृमिः, इति २ क्षुद्रकीटमात्रस्य ॥ - कर्णजलौकाः, शतपदी, इति २ कर्णजलौकायाः ॥-वृश्चिकः, शूककीटः, इति २ शूककीटस्य ॥-अलिः, द्रुणः, वृश्चिकः, इति ३ वृश्चिकस्य ।।-पारावतः, कलरवः, कपोतः, इति ३ पारावतस्य ॥–शशादनः, पत्री, श्येनः, इति ३ श्येनस्य ॥-उलूकः, वायसारातिः, पेचकः, इति ३ उलूकस्य ॥
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पचयः १००६-१०२८]
द्वितीयं काण्डम्
'दिवान्धः कौशिको घूको दिवाभीतो निशाटनः' व्याघ्राटः स्याद्भरद्वाजः खञ्जरीटस्तु खञ्जनः लोहपृष्ठस्तु कङ्कः स्यादथ चापः किकीदिविः कलिङ्गभृङ्गधूम्याटा अथ स्याच्छतपत्रकः दाघाटोsथ सारङ्गस्तोककश्चातकः समाः कृकवाकुस्ताम्रचूडः कुक्कुटश्चरणायुधः चटकः कलविङ्कः स्यात्तस्य स्त्री चटका तयोः पुमपत्ये चाटकैरः ख्यपत्ये चटकैव सा कर्क रेटुः करेदुः स्यात् कृकणक्रकरौ समौ वनप्रियः परभृतः कोकिलः पिक इत्यपि का तु करटारिष्टबलिपुष्टसकृत्प्रजाः ध्वाङ्क्षात्मघोषपरभृद्वलिभुग्वायसा अपि ' स एव च चिरञ्जीवी चैकदृष्टिश्च मौकुलि:'
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,
**
१०१८
१०१९
१०२०
१०२१
J
व्याघ्राटः, भरद्वाजः इति २ भरद्वाजपक्षिणः ॥ -- खञ्जरीटः खञ्जनः, इति २ खञ्जनस्य ॥ — लोहपृष्ठः, कङ्कः, इति २ वाणोपयोगिपत्रस्य पक्षिभेदस्य ॥ ― चाषः, किकीदिविः, इति २ चाषस्य ॥ -- कलिङ्गः, भृङ्गः, धूम्याटः, इति ३ भृङ्गस्य ॥ - शतपत्रकः, दार्याघाटः इति २ काष्ठकुट्टस्य ॥ - सारङ्गः, तोककः, चातकः, इति ३ चातकस्य ॥ कृकवाकुः, ताम्रचूडः, कुक्कटः, चरणायुधः, इति ४ कुक्कुटस्य ॥ - चटकः, कलविङ्कः, इति २ चटकस्य । तस्य चटकस्य स्त्री चटका इति १ । तयोश्चटकस्य चटकायाश्च पुमपत्ये चाटकैर इति १ । तयोः त्र्यपत्ये स्त्रीरूपेऽपत्ये चटका इति १ ॥ - कर्करेटुः, करेटुः, इति २ अशुभवादिनि पक्षिभेदे ॥ कृकणः, ककरः, इति २ करेटुभेदस्य ॥-वनप्रियः, परभृतः, कोकिलः, पिकः, इति ४ कोकिलस्य ॥ काकः, करटः, अरिष्टः, बलिपुष्टः, सकृत्प्रजः, ष्वाक्षः, आत्मघोषः, परभूत्, बलिभुक्, यसः,
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अमरकोषे
__[६. सिंहादिवर्गः द्रोणकाकस्तु काकोलो दात्यूहः कालकण्ठकः १०२९ आतापिचिल्लो दाक्षाय्यगृध्रौ कीरशुकौ समौ १०३० क्रुङ् क्रौञ्चोऽथ बकः कह्वः पुष्कराह्वस्तु सारसः १०३१ कोकश्चक्रश्चक्रवाको रथाङ्गाह्वयनामकः
१०३२ कादम्बः कलहंसः स्यादुत्कोशकुररौ समो हंसास्तु श्वेतगरुतश्चक्राङ्गा मानसौकसः
१०३४ राजहंसास्तु ते चनुचरणैर्लोहितः सिताः १०३५ मलिनेमल्लिकाक्षास्ते धार्तराष्ट्राः सितेतरैः १०३६ शरारिराटिराडिश्च बलाका बिसकण्ठिका
१०३७ हंसस्य योषिद्वरटा सारसस्य तु लक्ष्मणा
१०३८ जतुकाजिनपत्रा स्यात् परोष्णी तैलपायिका १०३९ वर्वणा मक्षिका नीला सरघा मधुमक्षिका
१०४० इति १० काकस्य ॥-द्रोणकाकः, काकोलः, इति २ काकभेदस्य ॥दात्यूहः, कालकण्ठकः, इति २ दात्यहस्य ॥-आतापी, चिल्लः, इति २ चिल्लस्य ॥-दाक्षाय्यः, गृध्रः, इति २ गृध्रस्य ॥-कीरः, शुकः, इति २ कीरस्य ॥-क्रुङ्, क्रौञ्चः, इति २ क्रौञ्चस्य ॥-बकः, कहः, इति २ बकस्य ॥-पुष्कराह्वः, सारसः, इति २ सारसस्य ॥-कोकः, चक्रः, चक्रवाकः, रथाङ्गः, इति ४ चक्रवाकस्य ॥-कादम्बः, कलहंसः, इति २ काद. म्बस्य ॥-उत्क्रोशः, कुररः, इति २ कुररस्य ।-हंसः, श्वेतगरुत् , चक्राङ्गः, मानसौकाः, इति ४ हंसस्य । ये सिता देहेन शुक्लाः, चञ्चुचरणैर्लोहितैरुपलक्षिता हंसास्ते राजहंसाः स्युः इति १॥ मलिनरीषद्धनैश्वशुचरणैः सिता हंसास्ते मल्लिकाक्षा इत्युच्यन्ते। सितेतरैः कृष्णवर्णेश्चञ्चुचरणैरुपलक्षितास्ते धार्त
राष्ट्राः स्युः ॥–शरारिः, आटिः, आडिः, इति ३ शरार्याः ॥-बलाका, बिसकण्ठिका, इति २ बलाकायाः । हंसस्य योषित् की वरटा स्यादिति १ । सारसस्य स्त्री तु लक्ष्मणा इत्युच्यते १॥-जतुका, अजिनपत्रा, इति २ जतुकायाः ॥-परोष्णी, तैलपायिका, इति २ पक्षयुक्ते कीटकविशेषे ॥-वर्वणा, मक्षिका, नीला, इति ३ मक्षिकायाः॥-सरघा.मधुमक्षिका, इति २ मधुमक्षि.
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पतयः १०४०-१०५३] द्वितीयं काण्डम् पतङ्गिका पुत्तिका स्यादंशस्तु वनमक्षिका १०४१ दंशी तजातिरल्पा स्याद्गन्धोली वरटा द्वयोः १०४२ भृङ्गारी झीरुका चीरी झिल्लिका च समा इमाः १०४३ समौ पतङ्गशलभौ खद्योतो ज्योतिरिङ्गणः १०४४ मधुव्रतो मधुकरो मधुलिण्मधुपालिनः
१०४५ द्विरेफपुष्पलिभृङ्गपट्पदभ्रमरालयः
१०४६ मयूरो बर्हिणो बहीं नीलकण्ठो भुजंगभुक् १०४७ शिखावलः शिखी केकी मेघनादानुलास्यपि १०४८ केका वाणी मयूरस्य समौ चन्द्रकमेचको १०४९ शिखा चूडा शिखण्डस्तु पिच्छबर्हे नपुंसके १०५० खगे विहंगविहगविहंगमविहायसः
१०५१ शकुन्तिपक्षिशकुनिशकुन्तशकुनद्विजाः
१०५२ पतत्रिपत्रिपतगपतत्पत्ररथाण्डजाः
१०५३ कायाः ॥--पतङ्गिका, पुत्तिका, इति २ मधुमक्षिकाभेदस्य ॥-दंशः, वनमक्षिका, इति २ वनमक्षिकायाः। तेषां दंशानां जातिर्या अल्पा सा दंशी इत्युच्यते १॥-गन्धोली, वरटा, इति २ वरटायाः॥-मृङ्गारी, झीरुका, चीरी, झिल्लिका, इति ४ झिल्लिकायाः ॥-पतङ्गः, शलभः, इति २ पतङ्गस्य ॥खद्योतः, ज्योतिरिङ्गणः, इति २ खद्योतस्य ।।--मधुव्रतः, मधुकरः, मधुलिट्, मधुपः, अली, द्विरेफः, पुष्पलिट्, भृङ्गः, षट्पदः, भ्रमरः, अलिः, इति ११ भ्रमरस्य ॥-मयूरः, बर्हिणः, वहीं, नीलकण्ठः, भुजंगभुरु, शिखावलः, शिखी, केकी, मेघनादानुलासी, इति ९ मयूरस्य । मयूरवाणी केका इत्युच्यते इति १॥ -चन्द्रकः, मेचकः, इति २ पिच्छस्य नेत्राकारचिह्नस्य ॥-शिखा, चूडा, इति २ मयूरशिखायाम् ॥-शिखण्डः, पिच्छम् , बर्हम् , इति ३ मयूरपिच्छस्य ॥-खगः, विहंगः, विहगः, विहंगमः, विहायाः, शकुन्तिः, पक्षी, शकुनिः, शकुन्तः, शकुनः, द्विजः, पतत्री, पत्री, पतगः, पतन् , पत्ररथः, अण्डजः, नगाकाः, वाजी, विकिरः, विः, विष्किरः, पतत्रिः,
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अमरकोषे
[६. सिंहादिवर्गः
१०६२
नगाकोवाजिविकिरविविष्किरपतत्रयः
१०५४ नीडोद्भवा गरुत्मन्तः पित्सन्तो नभसंगमाः
१०५५ तेषां विशेषा हारीतो मद्गुः कारण्डवः प्लवः १०५६ तित्तिरिः कुकुभो लावो जीवंजीवश्चकोरकः कोयष्टिकष्टिट्टिभको वर्तको वर्तिकादयः
१०५८ गरुत्पक्षच्छदाः पत्रं पतत्रं च तनूरुहम्
१०५९ स्त्री पक्षतिः पक्षमूलं चञ्चुस्त्रोटिरभे स्त्रियो १०६० प्रडीनोड्डीनसंडीनान्येताः खगगतिक्रियाः १०६१ पेशी कोषो द्विहीनेऽण्डं कुलायो नीडमस्त्रियाम् । पोतः पाकोऽर्भको डिम्भः पृथुकः शावकः शिशुः १०६३ स्त्रीपुंसौ मिथुनं द्वन्द्वं युग्मं तु युगलं युगम् १०६४ समूहो निवहव्यूहसंदोहविसरबजाः स्तोमौघनिकरवातवारसंघातसंचयाः
१०६६ समुदायः समुदयः समवायश्चयो गणः
१०६७ नीडोद्भवः, गरुत्मान् , पित्सन् , नभसंगमः, इति २७ पक्षिमात्रस्य । अथ तेषां विशेषाः-हारीतः, मद्गः, कारण्डवः, प्लवः, तित्तिरिः, कुक्कभः, लावः, जीवंजीवः, चकोरकः, कोयष्टिकः,टिटिभकः, वर्तकः,वर्तिका, इति १३॥--गरुत्, पक्षः, छदः, पत्रम् , पतत्रम् , तनूरुहम् , इति ६ पक्षस्य ॥-पक्षस्य मूलं पक्षतिरित्युच्यते । पक्षतिः स्त्रियाम् ॥-चक्षुः, त्रोटिः, इति २ पक्षितुण्डस्य ॥ उमे स्त्रियोः ॥प्रहीनम् , उड्डीनम्, संडीनम् , इति ३ खगानां गतिक्रियासु ॥पेशी, कोषः, अण्डम् , इति ३ अण्डस्य। पेशी स्त्री । कोषोऽस्त्रियाम् । अण्ड द्विहीने क्लीबे ॥--कुलायः, नीडम्, इति २ पक्षिगृहस्य ॥-पोतः, पाकः, अर्भकः, डिम्भः, पृथुकः, शावकः, शिशुः, इति ७ शिशुमात्रस्य ॥-स्त्रीपुंसी, मिथुनम् , द्वन्द्वम् , इति ३ स्त्रीपुरुषरूपयुग्मस्य ॥-युग्मम् , युगलम् , युगम् , इति ३ युग्मस्य ।।-समूहः, निवहः, व्यूहः, संदोहः, विसरः, व्रजः, स्तोमः, ओषः, निकरः, बातः, वारः, संघातः, संचयः, समुदायः, समुदयः, समवायः,
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पतयः १०५४-१०७८] द्वितीयं काण्डम् स्त्रियां तु संहतिवृन्दं निकुरम्बं कदम्बकम् वृन्दभेदाः समैर्वर्गः संघसार्थों तु जन्तुभिः सजातीयैः कुलं यूथं तिरश्चां पुनपुंसकम् पशूनां समजोऽन्येषां समाजोऽथ सधर्मिणाम् स्यान्निकायः पुञ्जराशी तूत्करः कूटमस्त्रियाम् कापोतशोकमायूरतैत्तिरादीनि तद्गणे गृहासक्ताः पक्षिमृगाश्छेकास्ते गृह्यकाश्च ते
७. मनुष्यवर्गः मनुष्या मानुषा मां मनुजा मानवा नराः स्युः पुमांसः पञ्चजनाः पुरुषाः पूरुषा नरः स्त्री योषिदवला योषा नारी सीमन्तिनी वधूः। प्रतीपदर्शिनी वामा वनिता महिला तथा
१०६८ १०६९ १०७० १०७१ १०७२ १०७३ १०७४
१०७५ १०७६ १०७७ १०७८
चयः, गणः, संहतिः, वृन्दम् , निकुरम्बकम् , कदम्बकम् , इति २२ समूहस्य। संहतिः स्त्रियाम् ॥-तत्र वृन्दभेदाः । समैः सजातीयैः प्राणिभिरपाणिभिर्वा समूहो वर्ग इत्युच्यते इति १। सजातीयर्विजातीयैरपि जन्तुभिः प्राणिभिरेव समूहःसंघः, सार्थः, इति २ । सजातीयैर्जन्तुभिरेव कुलम् १ । तिरश्चामेव सजातीयानां समूहे यूथम् १। पशूनामेव वृन्दं समज इत्युच्यते इति १। अन्येषां पश्वतिरिक्तानां वृन्दं समाजः । सधर्मिणां एकधर्मवतां समूहो निकायः १॥-पुञ्जः, राशिः, उत्करः, कूटम् , इति ४ धान्यादिराशेः॥--तद्गणे तेषां कपोतादीनां समूहे कापोतादीनि स्युः । यथा कपोतानां समूहः कापोतम् १ । शुकानां समूहः शोकम् १। एवं मयूराणां समूहः मायूरम् १ । तित्तिराणां समूहस्तैत्तिरम् १ । 'आदि'शब्दात् काकमित्यादि॥ये गृहासक्ताः पक्षिमृगास्ते छेकाः, गृह्यकाः, इति २ ॥
१०७५-१३५३ मनुष्याः,मानुषाः, माः, मनुजाः, मानवाः, नराः, पुमांसः, पञ्चजनाः, पुरुषाः, पूरुषाः, नरः, इति ११ मनुष्याणाम् ॥–श्री, योषित, भवला, योषा, नारी, सीमन्तिनी, वधूः, प्रतीपदर्शिनी, वामा, वनिता, महिला,
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अमरकोषे
विशेषास्त्वङ्गना भीरुः कामिनी वामलोचना प्रमदा मानिनी कान्ता ललना च नितम्बिनी सुन्दरी रमणी रामा कोपना सैव भामिनी वरारोहा मत्तकाशिन्युत्तमा वरवर्णिनी कृताभिषेका महिषी भोगिन्योऽन्या नृपस्त्रियः पत्नी पाणिगृहीती च द्वितीया सहधर्मिणी भार्या जायाऽथ पुंभूनि दाराः स्यात्तु कुटुम्बिनी पुरंध्री सुचरित्रा तु सती साध्वी पतिव्रता कृतसापलिकाऽध्यूढाऽधिविन्नाथ स्वयंवरा पतिंवरा च वर्याथ कुलस्त्री कुलपालिका कन्या कुमारी गौरी तु नग्निकाऽनागतार्तवा स्यान्मध्यमा दृष्टरजास्तरुणी युवतिः समे
[ ५. सिंहादिवर्ग:
१०७९
१०८०
१०८१
१०८२
१०८३
१०८४
१०८५
१०८६
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,
इति ११ स्त्रियाः ॥ - विशेषाः स्त्रीगां भेदाः । अङ्गना, भीरुः, कामिनी, वामलोचना, प्रमदा, मानिनी, कान्ता, ललना, नितम्बिनी, सुन्दरी, रमणी, रामा, इति १२॥कोपना, भामिनी, इति २ कोपशीलायाः ॥ - वरारोहा, मत्तकाशिनी, उत्तमा, वरवर्णिनी, इति ४ गुणैरुत्कृष्टायाः स्त्रियाः । या कृताभिषेका नृपस्त्री सा महिषी इति १ ॥ - अन्या अकृताभिषेका नृपस्त्रियो भोगिन्य इत्युच्यन्ते इति १ ॥-पत्नी, पाणिगृहीती, द्वितीया, सहधर्मिणी, भार्या, जाया, दाराः, इति ७ परिणीतायाः स्त्रियाः । तत्र 'दारा' शब्दो नित्यं पुंसि बहुवचनान्तश्च ॥ कुटुम्बिनी, पुरंध्री, इति २ पतिपुत्रादिमत्याः ॥ - सुचरित्रा, सती, साध्वी, पतिव्रता, इति ४ पतिसेवातत्परायाः ॥ कृतसापत्त्रिका, अध्यूढा, अधिविन्ना, इति ३ कृतानेकविवाहस्य पुंसो या प्रथमोढा स्त्री तस्याः ॥ — स्वयंवरा, पतिंवरा, वर्षा इति ३ स्वेच्छया पतिवरणोद्युक्तायाः ॥ — कुलस्त्री, कुलपालिका, इति २ कुलवत्याः ॥ - कन्या कुमारी, इति २ प्रथमवयसि वर्तमानायाः ॥ गौरी, नशिका, अनागतार्तवा, इति ३ अदृष्टरजस्कायाः ॥– मध्यमा, दृष्टरजाः, इति २ प्रथमप्राप्तरजोयोगायाः ॥
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पक्लयः १०७९-११०१] द्वितीयं काण्डम् समाः स्नुषाजनीवध्वश्चिरिण्टी तु सुवासिनी इच्छावती कामुका स्याद्वषस्यन्ती तु कामुकी कान्तार्थिनी तु या याति संकेतं साऽभिसारिका पुंश्चली धर्षिणी बन्धक्यसती कुलटेत्वरी स्वैरिणी पांसुला च स्यादशिश्वी शिशुना विना अवीरा निष्पतिसुता विश्वस्ताविधवे समे आलिः सखी वयस्याऽथ पतिवत्नी सभर्तृका वृद्धा पलिक्की प्राज्ञी तु प्रज्ञा प्राज्ञा तु धीमती शूद्री शूद्रस्य भायों स्याच्छूद्रा तजातिरेव च आभीरी तु महाशूद्री जातिपुंयोगयोः समा अर्याणी स्वयमर्या स्यात् क्षत्रिया क्षत्रियाण्यपि
१०९१ १०९२ १०९३ १०९४ १०९५ १०९६ १०९७ १०९८ १०९९ ११०० ११०१
तरुणी, युवतिः, इति २ मध्यमवयसि वर्तमानायाः ॥-नुषा, जनी, वधूः, इति ३ पुत्रादिभार्यायाः ॥-चिरिण्टी, सुवासिनी, इति २ किंचिल्लब्धयोवनायां परिणीतायाम् ।।--इच्छावती, कामुका, इति २ यभनादीच्छावस्याः ॥-वृषस्यन्ती, कामुकी, इति २ मैथुनेच्छावत्याम् ॥ या कान्तार्थिनी भर्तुः संकेतस्थानं गच्छति साऽभिसारिका॥-पुंश्चली, धर्षिणी, बन्धकी, असती, कुलटा, इत्वरी, खरिणी, पांसुला, इति ८ स्वैरिण्याः । या शिशुना रहिता सा अशिश्वी इति १ । निष्पतिसुता पतिपुत्ररहिता अवीरा इति १ ॥विश्वस्ता, विधवा, इति २ रण्डायाः ॥-आलिः, सखी, वयस्या, इति ३ सख्याः ॥-पतिवनी, सभर्तृका, इति २ जीवद्भर्तृकायाः ॥-वृद्धा, पलिनी, इति २ पक्ककेश्याः ॥-प्राज्ञी, प्रज्ञा, इति २ या यत्किमपि स्वयं प्रकपेण जानाति तस्याः ॥-प्राज्ञा, धीमती, इति २ बुद्धिमत्याः । या शूद्रस्य भार्या सा विजातीयाऽपि शूद्रीत्युच्यते इति १। तजातिः शूद्रजातिः शूद्रेत्युच्यते ॥-श्रामीरी, महाशूद्री, इति २ गोपालिकायाः । जातिपुंयोगयोः महाशूद्रस्य जाती महाशूद्रस्य स्त्रीत्येवंरूपं, पुंयोगे च समा॥-अर्याणी, अर्या इति २ वैश्यजात्युत्पत्रायाः स्रियाः ॥-क्षत्रिया, क्षत्रियाणी, इति २ क्षत्रिय
ब. को. स. ७
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अमरकोषे
उपाध्यायाप्युपाध्यायी स्यादाचार्यापि च स्वतः आचार्यानी तु पुंयोगे स्यादय क्षत्रियी तथा उपाध्यायान्युपाध्यायी पोटा स्त्रीपुंसलक्षणा वीरपली वीरभार्या वीरमाता तु वीरसूः जातापत्या प्रजाता च प्रसूता च प्रसूतिका स्त्री नग्नका कोटवी स्याहृतीसंचारिके समे कात्यायन्यर्धवृद्धा या काषायवसनाऽधवा सैरन्ध्री परवेश्मस्था स्ववशा शिल्पकारिका असिक्की स्यादवृद्धा या प्रेष्याऽन्तःपुरचारिणी वारस्त्री गणिका वेश्या रूपाजीवाऽथ सा जनैः सत्कृता वारमुख्या स्यात् कुट्टनी शम्भली समे विप्रश्नका त्वीक्षणिका दैवज्ञाऽथ रजस्वला
[ ७. मनुष्यवर्गः
११०२
११०३
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११०५
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जातीयायाः ॥ - उपाध्याया, उपाध्यायी, इति २ स्वयं या अध्यापिका तस्याम् । तथा स्वतः स्वयं मन्त्रव्याख्याकृदाचार्या स्यादिति १ । पुंयोगे आचार्यस्य स्त्रीत्येवंरूपेऽर्थे आचार्यानीति १ । तथा अर्यस्य स्त्रीत्यर्थे अर्थीति १ । एवं क्षत्रियस्य स्त्रीत्यर्थे क्षत्रियी इति १ । उपाध्यायानी, उपाध्यायी, इति २ उपाध्यायस्य भार्यायाम् । स्त्रीपुंसलक्षणा स्तनश्मश्रुरूपेण स्त्रीपुंसचिन युक्ता पोटा इति १ ॥ - वीरपत्नी, वीरभार्या, इति २ वीरस्य भार्यायाः ॥ - वीरमाता, वीरसूः, इति २ वीरस्य मातरि ॥ - जातापत्या, प्रजाता, प्रसूता, प्रसूतिका, इति ४ प्रसूतायाः । या नमिका नमा स्त्री सा कोटवीति १ ॥ दूती, संचारिका, इति २ दूतिकायाः, अर्धवृद्धा काषायवस्त्रा अधवेति विशेषणत्रयविशिष्टा या सा कात्यायनीत्युच्यते इति १ ॥ - या परवेश्मस्था स्वतन्त्रा केशप्रसाधनादिशिल्पकारिणी चेति विशेषणत्रयोपेता तस्यां सैरन्ध्रीति नाम १ । अवृद्धा प्रेष्याऽन्तःपुरचारिणीति च विशेषणत्रयोपेता या साऽसिनो स्यादिति १ ॥ — वारस्त्री, गणिका, वेश्या, रूपाजीवा, इति ४ वेश्यायाः । सा वेश्या गुणवत्त्वाज्जनैः सत्कृता सती वारमुख्या स्यात् इति १ ॥ कुट्टनी, शम्भली, इति २ परनारीं पुंसा योजयित्र्याम् ॥ विप्रनिका, ईक्षणिका, दैवज्ञा, इति ३
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पतयः ११०२-११२५] द्वितीयं काण्डम् स्त्रीधर्मिण्यविरात्रेयी मलिनी पुष्पवत्यपि १११४ ऋतुमत्यप्युदक्यापि स्याद्रजः पुष्पमार्तवम् १११५ श्रद्धालुर्दोहदवती निष्कला विगतार्तवा
१११६ आपन्नसत्त्वा स्याद्गुर्विण्यन्तर्वत्नी च गर्भिणी १११७ गणिकादेस्तु गाणिक्यं गार्भिणं यौवतं गणे १११८ पुनर्भूदिधिषूरूढा द्विस्तस्या दिधिषुः पतिः १११९ स तु द्विजोऽग्रेदिधिषूः सैव यस्य कुटुम्बिनी ११२० कानीनः कन्यकाजातः सुतोऽथ सुभगासुतः ११२१ सौभागिनेयः स्यात्पारस्त्रैणेयस्तु परस्त्रियाः ११२२ पैतृष्वसेयः स्यात्पैतृष्वस्रीयश्च पितृष्वसुः ११२३ सुतो मातृष्वसुश्चैवं वैमात्रेयो विमातृजः
११२४. अथ बान्धकिनेयः स्याद्वन्धुलश्चासतीसुतः ११२५ शुभाशुभनिरूपिण्याः ॥-रजखला, स्त्रीधर्मिणी, अविः, आत्रेयी, मलिनी, पुष्पवती, ऋतुमती, उदक्या, इति ८ रजखलायाः ॥-रजः, पुष्पम् , आर्तवम्, इति ३ स्त्रीरजसः ॥–श्रद्धालुः, दोहदवती, इति २ गर्भवशादनादिविशेषाभिलाषिण्याः ॥-निष्कला, विगतार्तवा, इति २ हीनरजस्कायाः ॥-आपन्नसत्त्वा, गुर्विणी, अन्तर्वनी, गर्भिणी, इति ४ गर्भिण्याः ॥गणिकानां समूहो गाणिक्यम् १ । गर्भिणीनां समूहो गार्भिणम् १ । युवतीनां समूहो यौवतम् १ । या द्विरूढा द्विवारं वृता तत्र पुनर्भूः, दिधिषः, इति २ । तस्या द्विरूढायाः पतिर्दिधिषुरित्युच्यते इति १ ॥-सा पुनर्भूर्यस्ख द्विजस्य कुटुम्बिनी कुटुम्बं पुत्रादिपोष्यवर्गस्तद्वती सोऽग्रेदिधिषूरिति १ ॥कन्यकाया अनूढाया जातः सुतः कानीन इत्युच्यते इति १॥-सुभगासुतः, सौभागिनेयः, इति २ सुभगापुत्रस्य । यः परस्त्रियाः सुतः पारस्त्रैणेयः इति १॥ पितृष्वसुः पितृभगिन्याः सुतः पैतृष्वसेयः, पैतृष्वस्त्रीयः, इति २॥-मातृध्वसुः सुतोऽप्येवम् , यथा-मातृष्वसेयः,मातृष्वनीयः, इति २॥-विमाता मातुः सपत्नी तस्याः पुत्रौ वैमात्रेय इत्युच्यते इति १॥–बान्धकिनेयः, वन्धुलः,
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अमरकोषे
कौलटेरः कौलटेयो भिक्षुकी तु सती यदि तदा कौलटिनेयोऽस्याः कौलटेयोऽपि चात्मजः आत्मजस्तनयः सूनुः सुतः पुत्रः स्त्रियां त्वमी आहुर्दुहितरं सर्वेऽपत्यं तोकं तयोः समे स्वजाते त्वौरसोरस्यौ तातस्तु जनकः पिता जनयित्री प्रसूर्माता जननी भगिनी स्वसा ननान्दा तु स्वसा पत्युर्नत्री पौत्री सुतात्मजा भार्यास्तु भ्रातृवर्गस्य यातरः स्युः परस्परम् प्रजावती भ्रातृजाया मातुलानी तु मातुली पतिपत्त्योः प्रसूः श्वश्रूः श्वशुरस्तु पिता तयोः पितुर्भ्राता पितृव्यः स्यान्मातुर्भ्राता तु मातुलः श्यालाः स्युर्भ्रातरः पत्न्याः स्वामिनो देवृदेवरी
[ ७. मनुष्यवर्गः
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असतीसुतः, कौलटेरः, कौलटेयः, इति ५ कुलटापुत्रस्य ॥ - यदि तु सती मिक्षुकी मिक्षार्थिनी तर्हि तस्या आत्मजः कौलटिनेयः, कौलटेयः, इति २ ॥ कुलानि भिक्षार्थं अटति, न तु जारार्थं तस्याः कुलटायाः पुत्रः कौलटेयः, इतरस्याः कौलटेर इति मेदः ॥ - आत्मजः, तनयः, सूनुः, सुतः, पुत्रः, इति ५ पुत्रस्य ॥-अमी आत्मजादयः सर्वे स्त्रियां वर्तमाना दुहितरं आहुः ॥ - अपत्यम्, तोकम्, इति २ पुत्रे दुहितरि च क्लीबलिङ्गे एव ॥ - औरसः, उरस्यः, इति २ सवर्णायां ऊढायां स्वस्माज्जाते पुत्रे ॥ - तातः, जनकः, पिता, इति ३ पितुः ॥ -- जनयित्री, प्रसूः, माता, जननी, इति ४ जनन्याः ॥ - भगिनी, वसा, इति २ स्वसुः । या पत्युः खसा सा ननान्दा इति १ ॥ - नप्त्री, पौत्री, इति २ सुतस्य सुतायाश्वात्मजायाः ॥ भ्रातृवर्गस्य भार्याः परस्परं यातरः स्युः इति १ ॥ -- प्रजावती, भ्रातृजाया, इति २ भ्रातुर्जायायाम् ॥ मातुलानी, मातुली, इति २ मातुलभार्यायाः । पत्युः पत्न्याश्च प्रसूर्माता श्वरित्युच्यते इति १ ॥ --- तयोः पतिपन्योः पिता श्वशुर इत्युच्यते १ ॥ - पितुः भ्राता पितृव्यः १ ॥ मातुः भ्राता मातुल इत्युच्यते १ ॥ - पत्न्याः भ्रातरः श्याला इति १ ॥ - स्वामिनः पत्युर्भ्रातरि
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पङ्क्यः ११२६-११४९ ]
द्वितीयं काण्डम्
स्वस्रीय भागिनेयः स्याज्जामाता दुहितुः पतिः पितामहः पितृपिता तत्पिता प्रपितामहः मातुर्मातामहाद्येवं सपिण्डास्तु सनाभयः समानोदर्य सोदर्यसग सहजाः समाः सगोत्रवान्धव ज्ञातिबन्धुस्वस्वजनाः समाः ज्ञातेयं बन्धुता तेषां क्रमाद्भावसमूहयोः थवः प्रियः पतिर्भर्ता जारस्तूपपतिः समौ अमृते जारजः कुण्डो मृते भर्तरि गोलकः भ्रात्रीयो भ्रातृजो भ्रातृभगिन्यौ भ्रातरावुभौ मातापितरौ पितरौ मातरपितरौ प्रसूजनयितारौ श्वश्रूश्वशुरौ श्वशुरौ पुत्रौ पुत्रश्च दुहिता च दंपती जंपती जायापती भार्यापती च तौ
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कनिष्ठे देवा, देवरः, इति २ ॥ - स्वस्रीयः, भागिनेयः, इति २ भगिन्याः पुत्रे ॥ दुहितुः पतिः जामाता स्यात् १ ॥ पितामहः, पितृपिता, इति २ पितुः पितरि । तस्य पितामहस्य पिता प्रपितामहः इति १ । एवं मातुः पित्रादौ मातामहादिः, यथा - मातुः पिता मातामहः १ । सपिण्डाः, सनाभयः, इति २ सप्तपुरुषावधिज्ञातिषु ॥ - समानोदर्यः, सोदर्यः, सगर्भ्यः, सहजः, इति ४ एकोदरस्य भ्रातुः ॥ सगोत्रः, बान्धवः ज्ञातिः, बन्धुः खः, खजनः, इति ६ सगोत्रस्य ॥ - तेषां भावसमूहयोः क्रमात् ज्ञातेयम्, बन्धुता, स्यात् ॥ धवः, प्रियः, पतिः, भर्ता, इति ४ पत्युः ॥ —जार:, उपपतिः इति २ मुख्यादन्यस्य भर्तुः ॥ अमृते भर्तरि जाराज्जातः कुण्ड इत्युच्यते ॥ - मृते भर्तरि जाराज्जातो गोलक इति १ ॥ - श्रात्रीयः, भातृजः, इति २ भ्रातृपुत्रस्य ॥ - भातृभगिन्या भ्रातराविति स्याताम् ॥ मातापितरौ, पितरौ, मातरपितरी, प्रसूजनयितारी, इति ४ मातापित्रोः ॥ श्वश्रूश्वशुरी, श्वरी, इति २ सहोकयोः श्वश्रूश्वशुरयोः ॥ - पुत्रश्च दुहिता च एकशेषे पुत्रौ स्याताम् ॥ दंपती, जंपती, जायापती, भार्यापती, इति ४ दम्पत्योः ॥ -
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अमरकोषे
[७. मनुष्यवर्गः गर्भाशयो जरायुः स्यादुल्वं च कललोऽस्त्रियाम् ११५० सूतिमासो वैजननो गर्भो भ्रूण इमौ समौ ११५१ तृतीयाप्रकृतिः षण्ढः क्लीवः पण्डो नपुंसके ११५२ शिशुत्वं शैशवं बाल्यं तारुण्यं यौवनं समे ११५३ स्यात्स्थाविरं तु वृद्धत्वं वृद्धसंघेऽपि वार्धकम् ११५४ पलितं जरसा शौक्ल्यं केशादौ विनसा जरा ११५५ स्यादुत्तानशया डिम्भा स्तनपा च स्तनंधयी
११५६ बालस्तु स्यान्माणवको वयस्यस्तरुणो युवा ११५७ प्रवयाः स्थविरो वृद्धो जीनो जीर्णो जरन्नपि ११५८ वर्षीयान्दशमी ज्यायान् पूर्वजस्त्वग्रियोऽग्रजः ११५९ जघन्यजे स्युः कनिष्ठयवीयोऽवरजानुजाः ११६० अमांसो दुर्बलश्छातो बलवान्मांसलोंऽसलः गर्भाशयः, जरायुः, उल्बम् . इति ३ गर्भवेष्टितचर्मणः ॥-कललः, इति १ शुक्रशोणितसन्निपातस्य । पुंनपुंसकयोः । उल्बपर्यायः कलल इति ।सूतिमासः, वैजननः, इति २ प्रसवमासस्य ॥-गर्भः, भ्रूणः, इति २ कुक्षिस्थस्य प्राणिनः ॥ तृतीयाप्रकृतिः, षण्डः, क्लीबः, पण्डः, नपुंसकः, इति ५ नपुंसकस्य ॥-शिशुत्वम् , शैशवम् , बाल्यम् , इति ३ वालत्वे ॥तारुण्यम् , यौवनम्, इति २ तारुण्यस्य ।।-स्थाविरम् , वृद्धत्वम् , वाधकम् , इति ३ वृद्धत्वे ॥- केशादी जरसा यत् शोकल्यं धवलिमा तत् पलितमुच्यते इति १॥-विस्रसा, जरा, इति २ जरायाः॥-उत्तान शया, डिम्भा, स्तनपा, स्तनंधयी, इति ४ स्तनंधयस्य -बालः, माणवकः, इति २ बालस्य ॥-वयस्यः, तरुणः, युवा, इति ३ यूनः ॥ प्रवयाः, स्थविरः, वृद्धः, जीनः, जीर्णः, जरन् , इति ६ वृद्धस्य ॥--वर्षीयान् , दशमी, ज्यायान् , इति ३ अतिवृद्धस्य ॥-पूर्वजः, अग्रियः अग्रजः, इति ३ ज्येष्ठभ्रातुः ॥-जघन्यजः, कनिष्टः, यवीयान् , अवरजः, अनुजः, इति ५ कनिष्टभ्रातुः ॥-अमांसः, दुबेलः, छातः, इति ३ अबलस्य ।।-बलवान्, मांसलः, अंसलः, इति ३
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पङ्कयः ११५० - ११७१] द्वितीयं काण्डम्
तुन्दिलस्तुन्दिभस्तुन्दी बृहत्कुक्षिः पिचण्डिलः अवटीटोऽवनाटश्चावटो नतनासिके
केशवः केशिकः केशी वलिनो वलिभः समौ विकलाङ्गस्त्वपोगण्डः खर्वो ह्रस्वश्च वामनः खरणाः स्यात्खरणसो विग्रस्तु गतनासिकः खुरणाः स्यात्खुरणसः प्रज्ञः प्रगतजानुकः ऊर्ध्वजुरूर्ध्वजानुः स्यात् संज्ञः संहतजानुकः स्यादेडे बधिरः कुब्जे गडुलः कुकरे कुणिः पृश्निरपतनौ श्रोणः पङ्गौ मुण्डस्तु मुण्डिते बलिर : केकरे खोडे खञ्जस्त्रिषु जरावराः
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बलवतः ॥—तुन्दिलः, तुन्दिभः, तुन्दी, बृहत्कुक्षिः, पिचण्डिलः, इति ५ बृहदुदरस्य ॥ अवटीटः, अवनाटः, अवभ्रटः, नतनासिकः इति ४ चिपिटनासिकस्य ॥ केशवः केशिकः, केशी, इति ३ प्रशस्तकेशस्य ॥ - वलिनः, वलिभः, इति २ जरया लथचर्मणः ॥ - विकलाङ्गः, अपोगण्डः, इति २ निसर्गतो न्यूनावयवस्य ॥ खर्वः, हखः, वामनः, इति ३ ह्रस्वस्य ॥—खरणाः, खरणसः, इति २ तीक्ष्णनासिकस्य । खरणाः सान्तः, खरणसः अकारान्तः ॥ - विग्रः, गतनासिकः, इति २ गतनासिकस्य ॥ खुरणाः, खुरणसः, इति २ विकटनासिकस्य ॥ - प्रज्ञः, प्रगतजानुः, इति २ यस्य जान्वो महदन्तरालं वर्तते तस्य ॥ ऊर्ध्वज्ञः, ऊर्ध्वजानुः, इति २ तिष्ठतो यस्य जानुनी ऊर्ध्वं भवतस्तस्य ॥ - संज्ञः, संहतजानुकः, इवि २ संलग्नजानु - कस्य ॥–एडः, बधिरः, इति २ श्रवणेन्द्रियहीनस्य ॥ कुब्ज:, गड्डुलः, इति २ कुब्जस्य ॥—कुकरः, कुणिः, इति २ रोगादिना दूषितकरस्य ॥ पृश्निः, अल्पतनुः, इति २ अल्पा तनुर्यस्य तस्य ॥ - श्रोणः, पट्टः, इति २ जङ्घाविकलस्य ॥ मुण्डः, मुण्डितः, इति २ कृतवपनस्य ॥ बलिरः, केकर:, इति २ नेत्रवियुक्तस्य ॥ -- खोडः, खजः, इति २ गतिविकलस्य ॥ -- जरावराः 'जरा 'शब्दादवराः अर्वाक्पठिता उत्तानशयाद्याः खजान्तास्त्रिषु स्त्रीपुंनपुंसकेष्वि
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अमरकोषे
[ ७. मनुष्यवर्गः
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जडुलः कालकः पिप्लस्तिलकस्तिलकालकः अनामयं स्यादारोग्यं चिकित्सा रुक्प्रतिक्रिया भेषजौषध भैषज्यान्यगदो जायुरित्यपि स्त्री रुजा चोपतापरोगव्याधिगदामयाः क्षयः शोषश्च यक्ष्मा च प्रतिश्यायस्तु पीनसः स्त्री क्षुत्तं क्षवः पुंसि कासस्तु क्षवथुः पुमान् शोफस्तु श्वयथुः शोथ: पादस्फोटो विपादिका किलाससिध्मे कच्छां तु पामपामे विचर्चिका कण्डूः खर्जूश्च कण्डूया विस्फोटः पिटकः स्त्रियाम् ११८० व्रणोऽस्त्रियामीर्ममरुः क्लीवे नाडीव्रणः पुमान् कोठो मण्डलकं कुष्ठश्वित्रे दुर्नामकार्शसी
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त्यर्थः ॥—–—जडुलः, कालकः, पिप्लुः, इति ३ कृष्णवर्णस्य देहगतचिह्नविशेबस्य ॥ — तिलकः, तिलकालकः, इति २ कृष्णतिलतुल्यस्य देहगतचिह्नस्य ॥ - अनामयम्, आरोग्यम्, इति २ रोगाभावस्य ॥ -- चिकित्सा, रुक्प्रतिक्रिया, इति २ रोगप्रतीकारस्य ॥ -- भैषजम्, औषधम्, भैषज्यम्, अगदः, जायुः, इति ५ औषधस्य ॥ - रुक्रू, रुजा, उपतापः, रोगः, व्याधिः, गदः, आमयः, इति ७ रोगमात्रस्य ॥ उमे स्त्रियौ ॥ -क्षयः, शोषः, यक्ष्मा, इति ३ क्षयरोगस्य ॥ प्रतिश्यायः, पीनसः, इति २ पीनसरोगस्य ॥ -- क्षुत् क्षुतम्, क्षवः, इति ३ श्रुतः । क्षुत् स्त्रियाम् ॥ कासः, क्षवथुः, इति २ कासरोगस्य । उभे पुंसि ॥ - शोफः, श्वयथुः, शोथ:, इति ३ शोधस्य ॥पादस्फोटः, विपादिका, इति २ पादस्फोटस्य ॥ - किलासम्, सिध्मम् इति २ सिध्मस्य ॥—कच्छूः, पाम, पामा, विचर्चिका, इति ४ खर्जूविशेषस्य । अत्र पामेत्येकं नान्तम् ॥—कण्डः, खर्जूः, कण्ड्या, इति ३ खवः । स्त्रीलिङ्गम् ॥ विस्फोटः, पिटकः, इति २ पिटकस्य । स्त्रियामपि पिटिका ॥ व्रणः, ईर्मम्, अरुः, इति ३ व्रणस्य । व्रणः पुंनपुंसकयोः । ईमें अरुः क्लीबे । यो व्रणः सदा गलति तत्र नाडीव्रण इत्युच्यते १ ॥ -- - कोठः, मण्डलकम्, कुष्ठम्, श्वित्रम् इति ४ कुष्ठस्य ॥ -
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पङ्कयः ११७२-११९३ ]
द्वितीयं काण्डम्
११८६
११८७
आनाहस्तु निबन्धः स्याग्रहणीरुक प्रवाहिका प्रच्छर्दिका वमिश्च स्त्री पुमांस्तु वमथुः समाः व्याधिभेदा विद्रधिः स्त्रीज्वरमेहभगंदराः 'श्लीपदं पादवल्मीकं केशन स्त्विन्द्रलुप्तकः ' अश्मरी मूत्रकृच्छ्रं स्यात् पूर्वे शुक्रावधेस्त्रिषु रोगहार्य गदकारी भिषग्वैद्यौ चिकित्सके वार्तो निरामयः कल्य उल्लाघो निर्गतो गदात् 'लानग्लास्तू आमयावी विकृतो व्याधितोऽपटुः आतुरोऽभ्यमितोऽभ्यान्तः समौ पामनकच्छुरौ दगुणो दरोगी स्यादर्शोरोगयुतोऽर्शसः वातकी वातरोगी स्यात् सातिसारोऽतिसार की स्युः क्लिन्नाक्षे चुलचिलपिल्लाः क्लिन्नेऽक्षिण चाप्यमी १९९३
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दुर्नामकम्, अर्शः, इति २ अर्शोरोगस्य ॥ - आनाहः, निबन्धः, इति २ मलमूत्रनिरोधस्य ॥ - ग्रहणीरुकू, प्रवाहिका, इति २ संग्रहणीरोगस्य ॥ -प्रच्छर्दिका, वमिः, वमधुः, इति ३ वमनरोगस्य । तत्राद्यं द्वयं स्त्रियाम् वमधुः पुंसि । अथ व्याधिभेदा वक्ष्यन्ते – विद्रधिः, ज्वरः, मेहः, भगंदरः इति ४ ॥ —अश्मरी, मूत्रकृच्छ्रम्, इति २ अश्मर्याः ॥ - इतः परं शुक्रावधैर्वक्ष्यमाणाच्छुक्रशब्दात्पूर्वे मूच्छितान्तास्त्रिषु वाच्यलिङ्गाः ॥ - रोगहारी, अगदंकारः, भिषक, वैद्यः, चिकित्सकः, इति ५ वैद्यस्य ॥ वार्तः, निरामयः, कल्यः, इति ३ रोगरहितस्य ॥ - उल्लाघ इत्येकं रोगान्मुक्तस्य ॥ ग्लानः, ग्लाम्नुः, इति २ रोगादिवशाद्धर्षरहितस्य ॥ -- आमयावी, विकृत, व्याधितः, अपटुः, आतुरः, अभ्यमितः, अभ्यान्तः, इति ७ रोगिणः ॥ - पामनः, कच्छुरः, इति २ पामायुक्तस्य ॥ - दगुणः, दरोगी, इति २ दद्रुयुक्तस्य ॥ -अशरोगेण युतः अर्शस इत्युच्यते १ | वातकी वातोऽतिशयितोऽस्य १ ॥ सातिसारः, अतिसारकी, इति २ अतिसारयुक्तस्य ॥ - क्लिन्नाक्षः, चुल्लः, चिल्लः, पिहः, इति ४ क्लदयुक्ताक्षस्य ॥ - अमी चुल्ल- चिल्ल- पिल्लास्त्रयः क्लिन्नेऽक्ष्णि च क्लेदयुक्ते नेत्रेऽपि
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अमरकोषे
[७. मनुष्यवर्गः
उन्मत्त उन्मादवति श्लेष्मलः श्लेष्मणः कफी ११९४ न्युब्जो भुग्ने रुजा वृद्धनाभौ तुन्दिलतुन्दिभौ ११९५ किलासी सिध्मलोऽन्धोऽहमूर्छाले मूर्तमूछितौ ११९६ शुक्रं तेजोरेतसी च बीजवीर्येन्द्रियाणि च ११९७ मायुः पित्तं कफः श्लेष्मा स्त्रियां तु त्वगसृग्धरा ११९८ पिशितं तरसं मांसं पललं क्रव्यमामिषम् ११९९ उत्तप्तं शुष्कमांसं स्यात्तद्वल्लूरं त्रिलिङ्गकम् १२०० रुधिरेऽसृग्लोहितास्ररक्तक्षतजशोणितम्
१२०१ बुक्काऽग्रमांसं हृदयं हृन्मेदस्तु वपा वसा
१२०२ पश्चाद्रीवाशिरा मन्या नाडी तु धमनिः शिरा १२०३ तिलकं क्लोम मस्तिष्कं गोर्दै किमु मलोऽस्त्रियाम् १२०४ वर्तन्ते॥-उन्मत्तः, उन्मादवान् , इति २ उन्मादयुक्तस्य॥–श्लेष्मलः,श्लेष्मणः, कफी, इति ३ कफयुक्तस्य ॥-रुजा रोगेण भुग्नो चक्रपृष्ठोऽधोमुखस्तत्र न्युज इति । वृद्धनाभिः, तुन्दिलः, तुन्दिभः, इति ३ वातादिनोन्नतनामः ॥ किलासी, सिध्मलः, इति २ सिध्मयुक्तस्य ॥-अन्धः, अक्, इति २ दृष्टिहीनस्य ॥-मूर्छालः, मृर्तः, मृतिः , इति ३ मूर्छायुक्तस्य ॥-शुक्रम् , तेजः, रेतः, बीजम् , वीर्यम् , इन्द्रियम् , इति ६ रेतसः ॥मायुः, पित्तम् , इति २ पित्तस्य ॥-कफः, श्लेष्मा, इति २ कफस्य ॥त्वक्, असृग्धरा, इति २ चर्मणः ॥–पिशितम् , तरसम् , मांसम् , पललम् , क्रव्यम् , आमिषम् , इति ६ मांसस्य ॥-उत्तप्तम् , शुष्कमांसम् , वल्लूरम् , इति ३ शुष्कमांसस्य ॥ तत्र वल्लूरं त्रिषु ॥-रुधिरम् , असृक्, लोहितम् , अस्रम् , रक्तम् , क्षतजम् , शोणितम् , इति ७ रक्तस्य ॥-बुक्का, अग्रमांसम् , इति २ हृदयान्तर्गतपद्माकारमांसभेदस्य ॥-हृदयम् , हृत् , इति २ हृदयाख्यनिम्नदेशस्य ॥-मेदः, वपा नसा, इति ३ मांसजन्यस्नेहस्य ॥-या पश्चात्स्थिता ग्रीवाशिरा सामन्येत्यु गते १॥--नाडी, धमनिः, शिरा, इति ३ शिरायाः॥तिलकम् , क्लोम, इति २ मांसपिण्डविशेषस्य । क्लोमं इत्यदन्तमपि ॥-मस्तिकम् , गोर्दम्, इति २ मस्तकसंभूतघृताकारस्नेहस्य ॥-किट्टम् , मलः,
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पतयः ११९४-१२१६] द्वितीयं काण्डम्
१०७ अन्त्रं पुरीतद्गुल्मस्तु प्लीहा पुंस्यथ वस्नसा
१२०५ स्नायुः स्त्रियां कालखण्डयकृती तु समे इमे १२०६ सृणिका स्यन्दिनी लाला दूषिका नेत्रयोर्मलम् १२०७ 'नासामलं तु सिंघाणं पिञ्जपं कर्णयोर्मलम्'
** मूत्रं प्रस्राव उच्चारावस्करौ शमलं शकृत् १२०८ पुरीषं गूथवर्चस्कमस्त्री विष्ठाविशी स्त्रियो १२०९ स्यात्कर्परः कपालोऽस्त्री कीकसं कुल्यमस्थि च १२१० स्याच्छरीरारिन कंकालः पृष्ठास्नि तु कशेरुका १२११ शिरोस्थनि करोटिः स्त्री पास्थिनि तु पशुका १२१२ अङ्गं प्रतीकोऽवयवोऽपघनोऽथ कलेवरम्
१२१३ गानं वपुः संहननं शरीरं वर्म विग्रहः
१२१४ कायो देहः क्लीबपुंसोः स्त्रियां मूर्तिस्तनुस्तनूः १२१५ पापायं प्रपदं पादः पदद्धिश्चरणोऽस्त्रियाम् १२१६ इति २ कर्णादिगतमलस्य ॥ अन्त्रम् , पुरीतत् , इति २ अन्त्रस्य ॥-गुल्मः, प्लीहा, इति २ वामकुक्षिस्थमांसपिण्डविशेषस्य ॥-वनसा, स्नायुः, इति २ अङ्गप्रत्यङ्गसंधिबन्धनरूपायाः स्नायोः ॥-कालखण्डम् , यकृत् , इति २ दक्षिणकुक्षिगतमांसपिण्डस्य ॥-रणिका, स्यन्दिनी, लाला, इति ३ लालायाः ॥ दूषिकेत्येकं नेत्रयोर्मलस्य ॥-मूत्रम् , प्रस्रावः, इति २ मूत्रस्य
-उच्चारः, अवरकरः, शमलम् , शकृत् , पुरीषम्, गूथम् , वर्चस्कम् , विष्टा, विट, इति ९ विष्टायाः । गृथं वर्चस्कं पुंसि क्लीबे च ॥कर्परः, कपालः, इति २ शिरोऽस्थिखण्डस्य । कपालमस्त्रियाम् ॥-कीकसम् , कुल्यम्, अस्थि, इति ३ अस्थिमात्रस्य ॥-कडाल इत्येकं शरीरगतास्थिपञ्जर स्य । कशेरुकत्येक पृष्टमध्यगतास्थिदण्डस्य । करोटिरित्येकं शिरोगतास्थिसवस्य । पशुकेखेकं पार्श्वगतास्थनि ।-अङ्गम् , प्रतीकः, अवयवः, अपनः, इति ४ देहावयवस्य॥-कलेवरम् ,गात्रम् , वपुः, संहननम्, शरीरम् , वर्म, विग्रहः, कायः, देहः, मूर्तिः, तनुः, तनूः, इति १२ देहस्य ॥पादाग्रम् , प्रपदम् , इति २ पादाग्रस्य ॥-पादः, पर, अङ्गिः, चरणः, इति
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मरकोषे
[ ७. मनुष्यवर्गः
तग्रन्थी घुटिके गुल्फौ पुमान् पाष्णिस्तयोरधः १२१७
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जङ्घा तु प्रसृता जानूरुपर्वाष्ठीवदस्त्रियाम् सक्थि क्लीने पुमानूरुस्तत्संधिः पुंसि वङ्क्षणः गुदं त्वपानं पायुर्ना बस्तिर्नाभेरधो द्वयोः कटो ना श्रोणिफलकं कटिः श्रोणिः ककुद्मती पश्चान्नितम्बः स्त्रीकट्याः क्लीबे तु जघनं पुरः कूपकौ तु नितम्बस्थौ द्वयहीने कुकुन्दरे स्त्रियां स्फिची कटिप्रोथावुपस्थो वक्ष्यमाणयोः भगं योनिर्द्वयोः शिश्नो मेट्रो मेहनशेफसी मुष्कोऽण्डकोशो वृषणः पृष्ठवंशाधरे त्रिकम् पिचण्डकुक्षी जठरोदरं तुन्दं स्तनौ कुचौ
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४ चरणस्य । चरणं पुंनपुंसकयोः ॥ तद्रन्थी पादस्य पार्श्वस्थ ग्रन्थिविशेषौ घुटिके, गुल्फौ इति २ | घुटिके स्त्रियाम् ॥ - तयोः गुल्फयोरधःप्रदेशः पाणिः इति १ ॥ - जङ्घा, प्रसृता इति २ जङ्घायाः ॥ -- जानु, ऊरुपर्व, अष्ठीवत् इति ३ जानूरुसंधेः ॥ तत्र अष्टीवदस्त्रियाम् ॥ —सक्थि, ऊरुः, इति २ जानूपरिभागस्य ॥ तत्र सक्थि क्लीबे, ऊरुः पुमान् तस्योरोः संधिर्वङ्क्षणः पुंसि १ ॥ – गुदम्, अपानम्, पायुः, इति ३ विष्ठानिर्गमद्वारस्य । पायुः ना पुमान् ॥ - बस्तिरित्येक स्त्रीपुंसलिङ्गं नामेरघो मूत्राशयस्य ॥ - श्रोणिः कटिस्तस्याः फलकं कट इत्युच्यते स पुमान् ॥ - कटिः, श्रोणिः, ककुद्मती, इति ३ कट्याः ॥ - स्त्रियाः कटिपञ्चाद्भागो नितम्ब इति १ । जघनमित्येकं स्त्रीकट्याः पुरोभागे । नितम्बस्यौ पृष्ठवंशादधोभागे विद्यमानौ कुपकौ, गर्तौ, कुकुन्दरे स्याताम् । द्वयहीने क्लीवे ॥ - स्फिची, कटिप्रोथौ, इति २ कटिस्थमांसपिण्डयोः ॥ वक्ष्यमाणयोर्भगे शिने च उपस्थ इति १ ॥ - भगम्, योनिः इति २ स्त्रीणामुपस्थस्य । द्वयोरित्यस्य योनिनान्वयः ॥ - शिश्नः, मेढ्रः, मेहनम् शेफः इति ४ शिनस्य ॥ मुष्कः, अण्डकोशः, वृषणः, इति ३ अण्डकोशस्य । पृष्ठवंशाधरे त्रिभिरस्थिभिर्घटितं स्थानं त्रिकमिति १ ॥ पिचण्डः, कुक्षिः, जठरम्, उदरम्, तुन्दम् इति ५
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पछ्यः १२१७-१२३९] द्वितीयं काण्डम्
चूचुकं तु कुचाग्रं स्यान्न ना कोडं भुजान्तरम् १२२८ उरो वत्सं च वक्षश्च पृष्ठं तु चरमं तनोः १२२९ स्कन्धो भुजशिरोंसोऽस्त्री संधी तस्यैव जत्रुणी १२३० बाहुमूले उभे कक्षौ पार्श्वमस्त्री तयोरधः । १२३१ मध्यमं चावलग्नं च मध्योऽस्त्री द्वौ परौ द्वयोः १२३२ भुजबाहू प्रवेष्टो दोः स्यात् कफोणिस्तु कूर्परः १२३३ अस्योपरि प्रगण्डः स्यात् प्रकोष्ठस्तस्य चाप्यधः १२३४ मणिबन्धादाकनिष्ठं करस्य करभो बहिः
१२३५ पञ्चशाखः शयः पाणिस्तर्जनी स्यात्प्रदेशिनी १२३६ अङ्गुल्यः करशाखाः स्युः पुंस्यङ्गुष्ठः प्रदेशिनी १२३७ मध्यमाऽनामिका चापि कनिष्ठा चेति ताः क्रमात् १२३८ पुनर्भवः कररुहो नखोऽस्त्री नखरोऽस्त्रियाम् १२३९ जठरस्य ॥-स्तनः, कुचः, इति २ वक्षोजस्य ।। चूचुकम् , कुचाग्रम् , इति २ स्तनाग्रस्य ॥ क्रोडम् , भुजान्तरम् , उरः, वत्सम् , वक्षः, इति ५ वक्षसि। तत्र कोडं न ना, किंतु स्त्रीनपुंसकयोः । तनोः शरीरस्य चरमं पश्चाद्भागः पृष्ठमिति १ ॥-स्कन्धः, भुजशिरः, अंसः, इति ३ भुजशिरसः । तस्य स्कन्धस्य संधी जत्रुशब्दवाच्या इति १ ॥-बाहुमूलं, कक्षः, इति २ कक्षस्य तयोरधोभागः पार्श्वमिति १ ॥-मध्यमम् , अवलग्नम् , मध्यः, इति ३ तनुमध्यस्य ॥-अस्त्रीति मध्यमादिशब्दत्रयेऽप्यन्वेति ॥ परी द्वौ भुज-बाहुशब्दो स्त्रीपुंसयोः ॥-भुजः, बाहुः, प्रवेष्टः, दोः, इति ४ भुजस्य ॥-कफोणिः, कूर्परः, इति २ कूपरस्य । अस्य कूर्परस्योपरिभागे प्रगण्ड इति १ । तस्य कूर्परस्थाधोभागे प्रकोष्ट इति १ । मणिबन्धमारभ्य कनिष्ठापर्यन्तं करस्य मांसलो बहिर्भागः करम इत्युच्यते १॥-पञ्चशाखः, शयः, पाणिः, इति ३ करस्य । -~-तर्जनी, प्रदेशिनी, इति २ अङ्गुष्टसमीपाडल्याः ।-अङ्गुली, करशाखा, इति २ अकुलीमात्रस्य । ता अनुल्यः, क्रमेण- अङ्गुष्ठः, प्रदेशिनी, मध्यमा, बनामिका, कनिष्ठिका, इति ५ । तत्रागुष्टः पुंसि ॥-पुनर्भवः, कररहः, नखः,
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११०
अमरकोषे
[५. मनुष्यवर्गः प्रादेशतालगोकर्णास्तर्जन्यादियुते तते
१२४० अङ्गुष्ठे सकनिष्ठे स्याद्वितस्ति-दशाङ्गुलः १२४१ पाणौ चपेटप्रतलप्रहस्ता विस्तृताङ्गलौ
१२४२ द्वौ संहतो संहतलः प्रतलौ वामदक्षिणौ
१२४३ पाणिनिकुब्जः प्रसृतिस्तौ युतावञ्जलिः पुमान् १२४४ प्रकोष्ठे विस्तृतकरे हस्तो मुश्या तु बद्धया १२४५ स रत्निः स्यादरनिस्तु निष्कनिष्ठेन मुष्टिना १२४६ व्यामो बाह्वोः सकरयोस्ततयोस्तिर्यगन्तरम् १२४७ ऊर्ध्वविस्तृतदो पाणिनृमाने पौरुषं त्रिषु
१२४८ कण्ठो गलोऽथ ग्रीवायां शिरोधिः कंधरेत्यपि १२४९ कम्बुग्रीवा त्रिरेखा साऽवटुर्घाटा कृकाटिका १२५० वक्त्रास्ये वदनं तुण्डमाननं लपनं मुखम्
१२५१ नखरः, इति ४ नखस्य ॥ नखरः, नखः, द्वौ पुंसि क्लीबे च ॥-तर्जनीसहितापृष्ठे विस्तृते प्रादेशः १। मध्यमासहिताङ्गुष्टविस्तारे तालः १ । अनामिकायुतेऽङ्गुष्ठे गोकर्णः । कनिष्ठासहितेऽङ्गुष्ठे विस्तृते वितस्तिः द्वादशाङ्गुलः १ ॥-चपेटः, प्रतलः, प्रहस्तः, इति ३ विस्तृताङ्गलिके पाणी । वामदक्षिणी द्वौ प्रतली संहतो चेत् संहतलः स्यात् १। निकुब्जो निःशेषेण कुब्जीकृतः पाणिः प्रसूतिः स्यात् १। द्वौ द्वौ प्रसृती संहता चेदअलिरियेकं पुंसि । विस्तृतः करो यत्र तादृशे प्रकोष्ठे कूपराधोभागे हस्त इति १ । स तु बद्धया मुष्टयोपलक्षितः रत्निरिति १ । निष्कनिष्ठेन विस्तृतकनिष्टेन मुष्टिनोपलक्षितो हस्तः अरनिरिति १ । तिर्यक् ततयोविस्तृतयोः करसहितयोर्बाह्वोरन्तरं व्यामः १। ऊर्ध्व विस्तृतदोषी भुजौ पाणी च येन तस्य नुः पुंसो यन्मानं तत्र पौरुषमिति १ । त्रिषु॥-कण्ठः, गलः, इति २ ग्रीवाग्रभागस्य ॥-प्रीवा, शिरोधिः, कंधरा, इति ३ कंधरायाः, सा ग्रीवा तिसभी रेखाभिर्विशिष्टा कम्वुग्रीवा स्यादिति १ ॥-अवटुः, घाटा, कृकाटिका, इति३ग्रीवाशिरःसंधेः पश्चाद्भागस्य। वक्त्रम् ,आस्यम् , वदनम् ,
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पतयः १२४०-१२६३] द्वितीयं काण्डम् क्लीवे घ्राणं गन्धवहा घोणा नासा च नासिका
१२५२ ओष्ठाधरौ तु रदनच्छदौ दशनवाससी
१२५३ अधस्ताच्चिबुकं गण्डौ कपोलौ तत्परा हनुः १२५४ रदना दशना दन्ता रदास्तालु तु काकुदम् १२५५ रसज्ञा रसना जिह्वा प्रान्तावोष्ठस्य सूक्विणी
१२५६ ललाटमलिकं गोधिरूचे दृग्भ्यां ध्रुवौ स्त्रियौ १२५७ कूर्चमस्त्री भ्रुवोर्मध्यं तारकाऽक्ष्णः कनीनिका १२५८ लोचनं नयनं नेत्रमीक्षणं चक्षुरक्षिणी
१२५९ दृग्दृष्टी चासु नेत्राम्बु रोदनं चास्रमश्रु च १२६० अपाङ्गो नेत्रयोरन्तौ कटाक्षोऽपाङ्गदर्शने १२६१ कर्णशब्दग्रही श्रोत्रं श्रुतिः स्त्री श्रवणं श्रवः १२६२ उत्तमाङ्गं शिरः शीर्ष मूर्धा ना मस्तकोऽस्त्रियाम् १२६३ तुण्डम् ,आननम् , लपनम् , मुखम् , इति ७ मुखस्य ॥–घ्राणम् , गन्धवहा,घोणा, नासा, नासिका, इति ५ नासिकायाः ॥-ओष्टः, अधरः, रदनच्छदः, दशनवासः, इति ४ ओष्ठस्य ॥-चिबुकमित्येकं अधस्तात् अधराधोभागे ॥गण्डः, कपोलः, इति २ कपोलस्य ॥ ताभ्यां कपोलाभ्यां परा चिबुकस्याधो हनुरिति १। रदनः, दशनः, दन्तः, रदः, इति ४ दन्तस्य ॥-तालु, काकुदम्, इति २ तालनः ॥-रसज्ञा, रसना, जिह्वा, इति ३ जिह्वायाः प्रान्तावित्योष्ठद्वयस्य वामदक्षिणी प्रान्तौ सृकिणी स्याताम् ॥-ललाटम, अलिकम् , गोधिः, इति ३ भालस्य॥-दृग्भ्यामूर्श्वभागौ भ्रवौ इति १। नासोपरि भ्रुवोर्मध्ये कूर्च इलेकम् । अशः कनीनिकामध्यगतकृष्णमण्डलं तारकेत्युच्यते इति १॥लोचनम्, नयनम् , नेत्रम् , ईक्षणम्, चक्षुः, अक्षि, दृक् , दृष्टिः, इति ८ नेत्रस्य ॥-अनु, नेत्राम्बु, रोदनम् , अस्रम् , अश्रु, इति ५ नेत्रोदकस्य-नेत्रयोरन्तौ अपाङ्गौ इति १। अपाङ्ग्रेन दर्शने चेष्टायो कटाक्ष इत्युच्यते १। कर्णः, शब्दग्रहः, श्रोत्रम्, श्रुतिः, श्रवणम् , श्रवः, इति ६ कर्णस्य । तत्र श्रुतिः स्त्रियाम् ॥उत्तमाङ्गम् , शिरः, शीर्षम् , मूर्धा, मस्तकः, इति ५शिरसः । मूर्धा ना पुमान् ।
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अमरकोपे
[७. मनुष्यवर्गः
१२६६
चिकुरः कुन्तलो वालः कचः केशः शिरोरुहः १२६४ तद्वन्दे कैशिकं कैश्यमलकाचूर्णकुन्तलाः १२६५ ते ललाटे भ्रमरकाः काकपक्षः शिखण्डकः कवरी केशवेशोऽथ धम्मिल्लः संयताः कचाः १२६७ शिखा चूडा केशपाशी व्रतिनस्तु सटा जटा
१२६८ वेणिः प्रवेणी शीर्षण्यशिरस्यौ विशदे कचे १२६९ पाशः पक्षश्च हस्तश्च कलापार्थाः कचात्परे १२७० तनूरुहं रोम लोम तद्वद्धौ श्मश्रु पुंमुखे १२७१ आकल्पवेषौ नेपथ्यं प्रतिकर्म प्रसाधनम्
१२७२ दशैते विष्वलंकर्ताऽलंकरिष्णुश्च मण्डितः १२७३ प्रसाधितोऽलंकृतश्च भूषितश्च परिष्कृतः
१२७४ विभ्राड् भ्राजिष्णुरोचिष्णू भूषणं स्यादलंक्रिया १२७५ मस्तकः, पुंसि क्लीबे च ॥-चिकुरः, कुन्तलः, वालः, कचः, केशः शिरोरुहः, इति ६ केशस्य ॥-कैशिकम् , कैश्यम् , इति २ केशानां समूहे ॥अलकाः, चूर्णकुन्तलाः, इति २ कुटिलकेशानाम् । ते अलकाः ललाटे लम्बमाना भ्रमरकाः स्युः॥-काकपक्षः,शिखण्डकः, इति २ कुमारचूडायाः॥कबरी, केशवेशः, इति २ केशवन्धरचनायाः। कबरी स्त्री। संयता बद्धाः कचाः केशसमूहो धम्मिल्ल इति १ ॥-शिखा, चूडा, केशपाशी, इति ३ शिखायाः ॥-सटा, जटा, इति २ वतिनः शिखायाम् ॥-वेणिः, प्रवेणी, इति २ सर्पाकाररचितकेशवेशस्य॥-शीर्षण्यः, शिरस्यः, इति २ विशदे निर्मले केशे ॥ तेन कचपर्यायात्परे पाशादयस्त्रयः कलापार्थाः केशसमूहवाचिन:-कचपाशः, केशपक्षः, कुन्तलहस्तः, इति२॥-तनूरुहम् , रोम, लोम, इति ३ रोम्णः ॥-पुंमुखे पुंसो वके तस्य रोम्णो वृद्वौ सत्यां तद्रोम श्मश्रु स्यात् ।।-आकल्पः, वेषः,नेपथ्यम्, प्रतिकर्म, प्रसाधनम् , इति ५ अलंकृतस्य शोभायाम् । प्रतिकर्मादिद्वयमलंकरणस्य । एते अलंकादयः वक्ष्यमाणा दश शब्दास्त्रिषु वाच्यलिङ्गाः।-अलंकर्ता,अलकरिष्णुः इति रअलंकर्तरि॥-मण्डितः, प्रसाधितः, अलंकृतः, भूषितः, परिष्कृतः, इति ५ अलंकृतस्य ॥-विभ्राट्, भ्राजिष्णुः, रोचिष्णुः, इति ३ अतिशयेन
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पतयः १२६४-१२८७] द्वितीयं काण्डम्
m अलंकारस्त्वाभरणं परिष्कारो विभूषणम् मण्डनं चाथ मुकुटं किरीटं पुंनपुंसकम्
१२७७ चूडामणिः शिरोरतं तरलो हारमध्यगः
१२७८ वालपाश्या पारितय्या पत्रपाश्या ललाटिका १२७९ कर्णिका तालपत्रं स्यात् कुण्डलं कर्णवेष्टनम् १२८० अवेयकं कण्ठभूषा लम्बनं स्याललन्तिका १२८१ स्वर्णैः प्रालम्बिकाऽथोरसूत्रिका मौक्तिकैः कृता । १२८२ हारो मुक्तावली देवच्छन्दोऽसौ शतयष्टिका १२८३ हारभेदा यष्टिभेदाद्गुच्छगुच्छार्धगोस्तनाः १२८४ अर्धहारो माणवक एकावल्येकयष्टिका
१२८५ सैव नक्षत्रमाला स्यात् सप्तविंशतिमौक्तिकैः १२८६ आवापकः पारिहार्यः कटको वलयोऽस्त्रियाम् १२८७ शोभमानस्य ॥-भूषणम् , अलक्रिया, इति २ भूषणक्रियायाः ॥अलंकारः, आभरणम् , परिष्कारः, विभूषणम् , मण्डनम् , इति ५ अलंकारस्य ॥ -मुकुटम् , किरीटम् , इति २ किरीटस्य ॥-किरीटं पुसि, क्लीबे च ॥-चूडामणिः, शिरोरत्नम्, इति २ शिरोमणेः ॥ हारमध्यगः हारमध्यगतो नायकमपिः तरल: स्यात् ।।-वालपाश्या, पारितथ्या, इति २ सीमन्तभूषणस्य ॥ पत्रपाश्या, ललाटिका, इति २ ललाटभूषणस्य ॥-कर्णिका, तालपत्रम्, इति २ ताटङ्कस्य॥-कुण्डलम् , कर्णवेष्टनम् , इति २ कुण्डलस्य ॥-प्रैवेयकम् , कण्ठभूषा, इति २ ग्रीवाभरणस्य ।।-लम्बनम्, ललन्तिका, इति २ आनामिलम्बितकण्ठिकायाम् । सैव ललन्तिका खणैः कृता प्रालम्बिका स्यात् , इति १ । सैव ललन्तिका मौक्तिकै रचिता चेत् उरसूत्रिकेति १॥हारः, मुक्तावली, इति २ मुकाहारस्य। असौ मुक्ताक्ली शतयष्टिका शतसतिका चेत् देवच्छन्दः, इति । यष्टिमेदालतानां मेदात् गुच्छादयो हारभेदाः स्थः॥-गुच्छः, गुच्छाधः, गोस्तनः, अर्धहारः, माणवकः, एकावली, एकयष्टिका, इति ७ एकावल्याः ॥ सैव सप्तविंशतिमौक्तिकैः कृता नक्षत्रमाला स्यात् ।।भावापकः, पारिहार्यः, कटकर, वख्यः, इति । प्रकोष्ठाभरणस्य । केयूरम् ,
म. को. स. ८
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अमरकोषे
[५. मनुष्यवर्गः
केयूरमदं तुल्ये अङ्गुलीयकमूर्मिका साऽक्षराङ्गुलिमुद्रा स्यात् कङ्कणं करभूषणम् स्त्रीकव्यां मेखला काञ्ची सप्तकी रशना तथा क्लीबे सारसनं चाथ पुंस्कटयां शृङ्खलं त्रिषु पादाङ्गदं तुलाकोटिमञ्जीरो नूपुरोऽस्त्रियाम् हंसकः पादकटकः किङ्किणी क्षुद्रघण्टिका त्वक्फलकृमिरोमाणि वस्त्रयोनिर्देश त्रिषु वाल्कं क्षौमादि फालं तु कार्पासं बादरं च तत् कौशेयं कृमिकोशोत्थं राङ्कवं मृगरोमजम् अनाहतं निष्प्रवाणि तन्त्रकं च नवाम्बरम् तत्स्यादुद्गमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोर्युगम् पत्रोर्ण धौतकौशेयं बहुमूल्यं महाधनम् क्षीमं दुकूलं स्यावे तु निवीतं प्रावृतं त्रिषु
१२८८ १२८९ १२९० १२९१ १२९२ १२९३ १२९४ १२९५ १२९६ १२९७ १२९८ १२९९ १३००
अङ्गदम् , इति २ प्रगण्डभूषणस्य ॥-अङ्गुलीयकम् , ऊर्मिका, इति २ अङ्गुल्याभरणस्य । ऊर्मिकैव रामनामाद्यक्षरयुता चेदङ्गुलिमुद्रा इति १। कङ्कणम् , करभूषणम् , इति २ मणिबन्धभूषणस्य ॥ मेखला, काञ्ची, सप्तकी, रशना, सारसनम्, इति .५ स्त्रीणां. कटिभूषणस्य। शृङ्खलमिति १ पुंसः कटि. भूषणस्य । त्रिषु स्त्रीपुनपुंसकेषु ॥--पादाङ्गदम् , तुलाकोटिः, मजीरः, नूपुरः, हंसकः, पादकटकः, इति ६ नपरस्य । तुलाकोटिः स्त्री। मजीरो न स्त्रियाम् ॥किङ्किणी, क्षुद्रघण्टिका, इति २ क्षुद्रघण्टिकायाः ॥ त्व, फलम् , कृमि, रोम, इति ४ वस्त्राणां योनिः॥-वाल्कफालादयो निष्प्रवाण्यन्ताः १० त्रिषु ॥वाल्कम् , क्षोम, फालम् , कार्पासम् , बादरम् , कौशेयम् , राधम्, इति ७ वस्त्रस्य ॥-अनाहतम् , निष्प्रवाणि, तन्त्रकम् , नवाम्बरम्, इति ४ नूतनवस्त्रस्य। धौतयोर्वस्त्रयोर्युगं यत्तदुवमनीयमिति १। यद्धोतं काशेयं तत् पत्रोणे इति १ बहुमूल्यं यद्वस्त्रादिकं तत् महाधनमिति १ । त्रिलिङ्गम् । क्षौनम् , दुकूलम् , इति २
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पतयः १२८८-१३१२] द्वितीयं काणम् स्त्रियां बहुत्वे वस्त्रस्य दशाः स्युर्वस्तयोद्धयोः दैर्घ्यमायाम आरोहः परिणाहो विशालता पटच्चरं जीर्णवस्त्रं समौ नक्तककर्पटौ वस्त्रमाच्छादनं वासश्चैलं वसनमंशुकम् सुचेलकः पटोऽस्त्री स्याद्वराशिः स्थूलशाटकः निचोलः प्रच्छदपटः समौ रल्लककम्बलौ अन्तरीयोपसंव्यानपरिधानान्यधोंशुके द्वौ प्रावारोत्तरासङ्गौ समौ बृहतिका तथा संव्यानमुत्तरीयं च चोलः कूसकोऽस्त्रियाम् नीशारः स्यात्प्रावरणे हिमानिलनिवारणे अर्घोरुकं वरस्त्रीणां स्याञ्चण्डातकमस्त्रियाम् स्यात्रिष्वाप्रपदीनं तत्प्रामोत्याप्रपदं हि यत्
१३०१ १३०२ १३०३ १३०४ १३०५ १३०६ १३०७ १३०८ १३०९ १३१०
१३१२
पट्टवस्त्रस्य॥-निवीतम् , प्रावृतम् , इति २ प्रावृतवस्त्रस्य । वस्त्रस्य द्वयोवस्तयोः प्रान्तयोः दशाः स्युः १ । एकं स्त्रीलिङ्गं बहुवचनान्तं च नित्यम् ॥दैर्घ्यम् , आयामः, आरोहः, इति ३ वस्त्रादेर्दैर्घ्यस्य ॥ परिणाहः, विशालता, इति २ विस्तारस्य ॥-पटचरम् , जीर्णवस्त्रम् , इति २ जीर्णवस्त्रस्य ॥नक्तकः, कर्पटः, इति २ जीर्णवस्त्रखण्डस्य ॥-वनम् , आच्छादनम्, वासः, चेलम् , वसनम् , अंशुकम्, इति ६ वस्त्रस्य ॥-सुचेलकः, पटः, इति २ शोभनवस्त्रस्य। तत्र पटोऽस्त्री ॥–वराशिः, स्थूलशाटकः, इति २ स्थूलवाससः॥-निचोलः, प्रच्छदपटः,इति २ वीणाडोलिकादिपिधानस्य ।।रलका, कम्बलः, इति २ कम्बलस्य-अन्तरीयम् , उपसंव्यानम् , परिधानम् , अधोंशुकम् , इति ४ परिहिते वाससि ॥-प्रावारः, उत्तरासाः, बृहतिका, संव्यानम् , उत्तरीयम्, इति ५ वामस्कन्धे धृतोत्तरीयस्य ॥-चोलः, कूपोसकः, इति २ स्त्रीणां स्तनादिपिघायकस्य । पुंसि, क्लीवेच। हिमानिलयोनिवारणं यस्मात्ताह प्रावरणे नीशार इति १ । यद्वरत्रीणां अर्धारुक अोरुपिधायकं बलं तत् खण्डातकं स्यात् १। यत् भाप्रपदं पादाप्रपर्यन्तं प्रामोति
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ममरकोपे
[७. मनुष्यवर्गः अस्त्री वितानमुल्लोचो दृष्याचं वस्त्रवेश्मनि १३१३ प्रतिसीरा जवनिका स्यात्तिरस्करिणी च सा १३१४ परिकर्माङ्गसंस्कारः स्यान्मार्टिार्जना मृजा १३१५ उद्वर्तनोत्सादने द्वे समे आप्लाव आप्लवः स्नानं चर्चा तु चार्चिक्यं स्थासकोऽथ प्रबोधनम् १३१७ अनुबोधः पत्रलेखा पत्राङ्गलिरिमे समे
१३१८ तमालपत्रतिलकचित्रकाणि विशेषकम्
१३१९ द्वितीयं च तुरीयं च न स्त्रियामथ कुङ्कमम् १३२० काश्मीरजन्माग्निशिखं वरं बाह्रीकपीतने १३२१ रक्तसंकोचपिशुनं धीरं लोहितचन्दनम् १३२२ लाक्षा राक्षा जतु क्लीवे यावोऽलक्तो द्रुमामयः १३२३ लवङ्गं देवकुसुमं श्रीसंज्ञमथ जायकम्
१३२४ वस्रादि तत् आप्रपदीनम् । त्रिषु एकम् ॥--वितानम् , उल्लोचः, इति २ आतपाद्यपनयार्थमुपरिबद्धस्य वाससः । पुंसि वितानः । दष्यमित्यादिक वस्त्रवेश्मनि वस्त्ररचितगृहे इति १ । प्रतिसीरा, जवनिका, तिरस्करिणी, इति ३ जवनिकायाः ॥-परिकर्म, अङ्गसंस्कारः, इति २ कुकमादिना शरीरे संस्कारमात्रस्य ॥-उद्वर्तनम् , उत्सादनम् , इति २ पिष्टादिना शरीरमलापाकरणस्य ।-आलावः, आप्लवः, स्नानम् , इति ३ स्नानस्य ॥-चर्चा, चार्चिक्यम , स्थासकः, इति ३ चन्दनादिना देहविलेपनस्य ॥-प्रबोधनम् , अनुबोधः, इति २ गतगन्धस्य पुनर्गन्धव्यक्तीकरणे ॥-पत्रलेखा, पत्राझुलिः, इति २ कस्तूरिकाकेशरादिना कपोलादौ रचितपत्रावल्याः।--- तमालपत्रम् , तिलकम् , चित्रकम् , विशेषकम् , इति ४ ललाटे कस्तूर्यादिना कृततिलकस्य । अत्र तिलकम् , विशेषकम् , इति द्वौ पुं-नपुंसकयोः । कुखमम् , काश्मीरजन्म, अग्निशिखम् , वरम , बाहीकम् , पीतनम , रक्तम् , संकोचम् , पिशुनम् , धीरम् , लोहितचन्दनम् , इति ११ कुकुमस्य । लाक्षा, राक्षा, जतु, यावः, अलक्तः, द्रमामयः, इति ६ लाक्षायाः॥-लवङ्गम् , देवकुसुमम् , श्रीसंज्ञम् , इति ३
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पक्तयः १३१३-१३३८] द्वितीयं काण्डम्
११. कालीयकं च कालानुसार्य चाथ समार्थकम् १३२५ वंशिकागुरुराजाहलोहकृमिजजोङ्गकम्
१३२६ कालागुर्वगुरु स्यात्तु मङ्गल्या मल्लिगन्धि यत् १३२७ यक्षधूपः सर्जरसो रालसर्वरसावपि
१३२८ बहुरूपोऽप्यथ वृकधूपकृत्रिमधूपको
१३२९ तुरुष्कः पिण्डकः सिहो यावनोऽप्यथ पायसः १३३० श्रीवासो वृकधूपोऽपि श्रीवेष्टसरलद्रवौ १३३१ मृगनाभिर्मुगमदः कस्तूरी चाथ कोलकम् १३३२ कंकोलकं कोशफलमथ कर्पूरमस्त्रियाम्
१३३३ घनसारश्चन्द्रसंज्ञः सिताभ्रो हिमवालुका
१३३४ गन्धसारो मलयजो भद्रश्रीश्चन्दनोऽस्त्रियाम् १३३५ तैलपर्णिकगोशीर्षे हरिचन्दनमस्त्रियाम् १३३६ तिलपर्णी तु पत्राङ्गं रञ्जनं रक्तचन्दनम् १३३७ कुचन्दनं चाथ जातीकोशजातीफले समे
१३३८ लवङ्गम्य ॥---जायकम् , कालीयकम् , कालानुसार्यम् , इति ३ जायकाख्यगंध. द्रव्यस्य। वंशिकम् , अगुरु, राजाहम् , लोहम् , कृमिजम् , जोङ्गकम् , कालागुरु, इति ७ समार्थकम् । यदगुरु, मल्लिगन्धि सा मङ्गल्या स्यादिति १॥-यक्षधूपः, सर्जरसः, रालः, सर्वरसः, बहुरूपः, इति ५ धूपस्य॥-वृकधूपः, कृत्रिमधूपकः, इति २ अनेकपदार्थकृतधूपस्य ।।--तुरुष्कः, पिण्डकः, सिहः, यावनः, इति ४ सिलाख्यगन्धद्रव्यस्य । पायसः, श्रीवासः, वृकधूपः, श्रीवेटः, सरलद्रवः, इति ५सरलद्रवस्य॥-मृगनामिः, मृगमदः, कस्तूरी, इति ३ कस्तूर्याः। मृगनाभिः पुंसि ॥--कोलकम् , कंकोलकम, कोशफलम , इति ३ कंकोलकस्य-कपूरम् , घनसारः, चन्द्रः, सिताभ्रः, हिमवालुका, इति ५कपरस्य। पुंसि कपूरः।-गन्धसारः, मलयजः, भद्रश्रीः, चन्दनः, इति ४ चन्दनस्य ॥-तैलपर्णिकम् , गोशीर्षम् , हरिचन्दनम् , इति ३ चन्दनभेदस्य ॥-तिलपर्णी, पत्राङ्गम् , रजनम् , रक्तचन्दनम् , कुचन्दनम् , इति ५ रक्तचन्दनस्य ॥ जातीकोशम् , जातीफलम् , इति २
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अमरको
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[७. मनुष्यवर्गः कर्पूरागरुकस्तूरीककोलैर्यक्षकर्दमः
१३३९ गात्रानुलेपनी वर्तिर्वर्णकं स्थाद्विलेपनम्
१३४० चूर्णानि वासयोगाः स्यु वितं वासितं त्रिषु १३४१ संस्कारो गन्धमाल्याधैर्यः स्यात्तदधिवासनम् १३४२ माल्यं मालाम्रजौ मूर्ध्नि केशमध्ये तु गर्भकः १३४३ प्रचष्टकं शिखालम्बि पुरोन्यस्तं ललामकम् १३४४ प्रालम्बमृजुलम्बि स्यात् कण्ठाद्वैकक्षिकं तु तत् १३४५ यत्तिर्यविक्षप्तमुरसि शिखास्वापीडशेखरौ रचना स्यात्परिस्यन्द आभोगः परिपूर्णता १३४७ उपधानं तूपबर्हः शय्यायां शयनीयवत्
१३४८ शयनं मञ्चपर्यङ्कपल्यङ्काः खट्या समाः
१३४९ गेन्दुकः कन्दुको दीपः प्रदीपः पीठमासनम् जातीफलस्य ॥-कर्पूरादिभिः समभागैः पिण्डीकृतो लेपविशेषो यक्षकर्दम इति १ ॥-गात्रानुलेपनी, वर्तिः, वर्णकम् , विलेपनम् , इति ४ गात्रलेपनद्रव्यस्य ॥-चूर्णम् , वासयोगः, इति २ पटवासादिचूर्णमात्रस्य॥-भावितम् , वासितम् , इति २ गन्धद्रव्येण वासितस्य वस्तुनः। त्रिषु । गन्धमाल्यधूपादिभिर्यः संस्कारः सौरभाधानं तदधिवासनमिन्युच्यते १॥-माल्यम् , माला, सक्, इति ३ मूनि धृतायाः कुसुमावलेः। केशमध्ये धृता माला गर्भक इत्युच्यते । यन्माल्यं शिखायां लम्बमानं तत् प्रभ्रष्टकमिति १ । पुरोन्यस्तं ललाटपर्यन्तं क्षिप्त ललामकमिति १ । यन्माल्यं कण्ठाजुलाम्ब सरलं लम्बमानं तत् प्रालम्बमिति १ । यन्माल्यं तिर्यगुपनीतमन्जु उरसि क्षिप्तं तत् वैकक्षिकमिति १ ॥-आपीडः, शेखरः, इति २ शिखासु न्यस्तमाल्यमात्रस्य ॥-रचना, परिस्यन्दः, इति २ माल्यादिरचनायाः ॥-आभोगः, परिपूर्णता, इति २ सर्वोपचारपरिपूर्णतायाः॥-उपधानम् , उपबर्हः, इति र उच्छीर्षस्य । शय्या, शयनीयम् , शयनम्, इति ३ शय्यायाः ॥-मञ्चः, पर्यः, पल्यङ्कः, खट्वा, इति ४ खवायाः॥-गेन्दुकः, कन्दुकः, इति २ कन्दुकस्य ॥-दीपः, प्रदीपः, इति २
१३५०
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पतयः १३३९-१३६२] द्वितीयं काण्डम्
समुद्गकः संपुटकः प्रतिग्राहः पतगृहः
१३५१ प्रसाधनी कङ्कतिका पिष्टातः पटवासकः दर्पणे मुकुरादशौं व्यजनं तालवृन्तकम् १३५३
८. ब्रह्मवर्गः सन्ततिर्गोत्रजननकुलान्यभिजनान्वयौ
१३५४ वंशोऽन्ववायः संतानो वर्णाः स्युाह्मणादयः
१३५५ विप्रक्षत्रियविट्शूद्राश्चातुर्वर्ण्यमिति स्मृतम् १३५६ राजबीजी राजवंश्यो बीज्यस्तु कुलसंभवः १३५७ महाकुलकुलीनार्यसभ्यसजनसाधवः
१३५८ ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थो भिक्षुश्चतुष्टये १३५९ आश्रमोऽस्त्री द्विजात्यग्रजन्मभूदेववाडवाः १३६० विप्रश्च ब्राह्मणोऽसौ षट्कर्मा यागादिभिवृतः १३६१ विद्वान् विपश्चिद्दोषज्ञः सन्सुधीः कोविदो बुधः १३६२ दीपस्य ॥-पीठम् , आसनम् , इति २ आसनस्य ॥-समुद्गकः, संपुटकः, इति २ संपुटस्य ॥---प्रतिग्राहः, पतगृहः, इति २ पतनहस्य ।-प्रसाधनी, ककृतिका, इति २ केशमार्जन्याः ॥-पिष्टातः, पटवासकः, इति २ पिष्टातस्य ।- दर्पणः, मुकुरः, आदर्शः, इति ३ दर्पणस्य ॥-व्यजनम् , तालवृन्तकम्, इति २ व्यजनस्य ॥
१३५४-१४६८ सन्ततिः, गोत्रम् , जननम् , कुलम् , अभिजनः, अन्वयः, वंशः, अन्ववायः, संतानः, इति ९ वंशस्य । ब्राह्मणादयो वर्णाः स्युः, इति १ । ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्रा वर्णाश्चातुर्वर्ण्यमिति १॥-राजबीजी, राजवंश्यः, इति २ राजवंशोत्पन्नस्य ॥-बीज्यः, कुलसंभवः, इति २ कुलमात्रोत्पन्नस्य ॥-महाकुलः, कुलीनः, आर्यः, सभ्यः, सज्जनः, साधुः, इति ६ सजनस्य । ब्रह्मचारी, गृही, वानप्रस्थः, मिक्षुः, इति ४ आश्रमशब्दवाच्याः ॥द्विजातिः, अप्रजन्मा, भूदेवः, वाडवः, विप्रः, ब्राह्मणः, इति ६ ब्राह्मणस्य । असौ ब्राह्मणो यागादिभिर्वृतः षद्कर्मा स्यात् १॥-विद्वान् , विपश्चित् , दोषज्ञः,
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१२०
अमरकोषे
[ ८. ब्रह्मवर्गः
१३६४
१३६५
धीरो मनीषी ज्ञः प्राज्ञः संख्यावान् पण्डितः कविः १३६३ धीमान् सूरिः कृती कृष्टिर्लब्धवर्णो विचक्षणः दूरदर्शी दीर्घदर्शी श्रोत्रियच्छान्दसौ समौ 'मीमांसको जैमिनीये वेदान्ती ब्रह्मवादिनि वैशेषिके स्यादौलूक्यः सौगतः शून्यवादिनि नैयायिकस्त्वक्षपादः स्यात् स्याद्वादिक आर्हकः चार्वाकलोकायतिको सत्कार्ये साङ्ख्यकापिली' उपाध्यायोऽध्यापकोऽथ स्यान्निषेकादिकृद्गुरुः मन्त्रव्याख्याकृदाचार्य आदेष्टा त्वध्वरे व्रती यष्टा च यजमानश्च स सोमवति दीक्षितः इज्याशी यायजूको यज्वा तु विधिनेष्टवान् स गीष्पतीष्ट्या स्थपतिः सोमपीथी त सोमपाः तु सर्ववेदाः स येनेष्टो यागः सर्वस्वदक्षिणः अनूचानः प्रवचने साङ्गेऽधीती गुरोस्तु यः
**
***
**
***
१३६६
१३६७
१३६८
१३६९
१३७०
१३७१
१३७२
सन्, सुधीः, कोविदः, बुधः, धीरः, मनीषी, ज्ञः, प्राज्ञः, संख्यावान्, पण्डितः, कविः, धीमान्, सूरिः, कृती, कृष्टिः, लब्धवर्णः, विचक्षणः, दूरदर्शी, दीर्घदर्शी, इति २२ पण्डितस्य ॥ - श्रोत्रियः, छान्दसः, इति २ वेदाध्यायिनः ॥ - उपाध्यायः, अध्यापकः, इति २ उपाध्यायस्य ॥ - निषेककर्ता पित्रादिर्गुरुः स्यात् १ । मन्त्रो वेदस्तस्य व्याख्याकृत् आचार्यः स्यात् १ । अध्वरे यागविषये य ऋत्विजामादेष्टा स व्रती, यष्टा, यजमानः, इति ३ । स यजमानः सोमवति यागे आदेष्टा दीक्षित इत्युच्यते इति १ ॥ - इज्याशीलः, यायजूकः, इति २ यजनशीलस्य । विधिना यागं कृतवान् स यज्वा स्यात् १ | यः गीष्पतीष्ट्या बृहस्पतिसव विधिना इष्टवान् स स्थपतिरित्युच्यते १ ॥ - सोमपीथी, सोमपाः, इति २ सोमयाजिनः ॥ येन सर्वस्वदक्षिणो विश्वजिन्नामा याग इष्टः जः सर्ववेदाः स्यात् १ | साङ्गे प्रवचने वेदे अधीती कृताध्ययनोऽनूचान इति १ । योऽनूचानो गुरोर्लब्धानुशः स समावृतः
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पङ्क्यः १३६३ - १३८५ ]
द्वितीयं काण्डम्
लब्धानुज्ञः समावृत्तः सुत्वा त्वभिषवे कृते छात्रान्तेवासिनी शिष्ये शैक्षाः प्राथमकल्पिकाः एकब्रह्मव्रताचारा मिथः सब्रह्मचारिणः सतीर्थ्यास्त्वेकगुरवश्चितवानग्निमग्निचित् पारम्पर्योपदेशे स्यादैतिह्यमितिहाव्ययम् उपज्ञा ज्ञानमाद्यं स्याज्ज्ञात्वारम्भ उपक्रमः यज्ञः सवोऽध्वरो यागः सप्ततन्तुर्मखः क्रतुः पाठो होमश्वातिथीनां सपर्या तर्पणं बलिः एते पञ्चमहायज्ञा ब्रह्मयज्ञादिनामकाः समज्या परिषद्गोष्ठी सभासमिति संसद: आस्थानी क्लीबमास्थानं स्त्रीनपुंसकयोः सदः प्राग्वंशः प्राग्घविर्गेहात् सदस्या विधिदर्शिनः सभासदः सभास्ताराः सभ्याः सामाजिकाश्च ते
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१३७३
१३७४
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१३७८
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स्यात्, इति १ । अभिषवे स्नाने कृते सति सुत्वा स्यात् १॥ - छात्रः, अन्तेवासी, शिष्यः, इति ३ शिष्यस्य ॥ - शैक्षाः, प्राथमकल्पिकाः, इति २ आरब्धाध्ययनानां बहूनाम् । एकशाखाखाध्यायिनो ब्रह्मचारिणस्ते मिथः परस्परं सब्रह्मचारिण इत्युच्यन्ते १ । एकः समानो गुरुर्येषां ते परस्परं सतीर्थ्याः स्युः १ । योऽग्निं चितवान् सोऽभिचित इति १ कृताग्निचयनस्य ॥ ऐतिह्यं, इतिह, इति २ पारम्पर्येण य उपदेशस्तस्मिन् । यत्प्रथमं ज्ञानं सा उपज्ञा स्यात् । ज्ञात्वा य आरम्भः स उपक्रमः ॥ यज्ञः, सवः, अध्वरः, यागः, सप्ततन्तुः, मखः, ऋतुः, इति ७ यज्ञस्य ॥ पाठादयः पञ्च ब्रह्मयज्ञादिनामका महायशाः स्युः, १ ॥ - पाठः, होमः, अतिथीनां सपर्या, तर्पणम्, बलिः, इति ५ पञ्चमहायज्ञानाम् ॥ - समज्या, परिषत्, गोष्टी, सभा, समितिः, संसत, आस्थानी, आस्थानम्, सदः, इति ९ सभायाः । सदः सान्तं क्लोबे, स्त्रीत्वे सदाः । आस्थानी क्लीबेऽपि ॥ हविर्गेहात्प्राक्रू सदस्यादीनां यद्गृहं स प्राग्वंशः इति १ । यज्ञकर्मणि विधिं वेदोक्तक्रियाकलापं ये पश्यन्ति ते सदस्याः इति १ ॥ सभासदः, सभास्ताराः, सभ्याः, सामाजिकाः, इति ४ सभ्येषु ।
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अमरकोषे
[८. ब्रह्मवर्गः
अध्वर्युगातृहोतारो यजुः सामग्विदः क्रमात् १३८६ आग्नीध्राद्या धनैर्वार्या ऋत्विजो याजकाश्च ते १३८७ वेदिः परिष्कृता भूमिः समे स्थण्डिलचत्वरे १३८८ चषालो यूपकटकः कुम्बा सुगहना वृतिः १३८९ यूपाग्रं तर्म निर्मन्थ्यदारुणि त्वरणियोः १३९० दक्षिणाग्निर्हपत्याहवनीयौ त्रयोऽग्नयः १३९१ अग्नित्रयमिदं त्रेता प्रणीतः संस्कृतोऽनलः १३९२ समूह्यः परिचाय्योपचाय्यावग्नौ प्रयोगिणः १३९३ यो गार्हपत्यादानीय दक्षिणाग्निः प्रणीयते १३९४ तस्मिन्नानाय्योऽथानायी स्वाहा च हुतभुप्रिया १३९५ ऋक् सामिधेनी धाय्या च या स्यादग्निसमिन्धने १३९६ गायत्रीप्रमुखं छन्दो हव्यपाके चरुः पुमान् १३९७ आमिक्षा सा शुतोष्णे या क्षीरे स्याद्दधियोगतः १३९८ यजुर्विदृत्विक अध्वर्युः, इति १ । सामविदुद्गाता इति १ । ऋग्वेदवित् होता इति १ । धनैर्वायाः ये आग्नीध्राद्यास्ते ऋत्विजः, याजकाः, इति २ । परिकृता भूमिर्वेदिरित्युच्यते 10- स्थाण्डलम् , चत्वरम् , इति २ यशार्थ संस्कृतस्य भूभागस्य। यूपकटकः काष्ठविकारश्वषाल: स्यात्, इति १। सुगहना वृतिर्वेष्टनं कुम्बा स्यात् , इति १ स्त्रियाम् ॥—यूपाग्रम् , तर्म, इति २ यूपाने । निमन्थ्यदारुणि अरणिरिति १ । स्त्रीपुंसयोः ॥-दक्षिणामिः, गार्हपत्यः, आहवनीयः, इति ३ अग्निविशेषाः । इदमग्नित्रयं त्रेता स्यात् ,इति ११ मन्त्रादिना संस्कृतोऽग्निः प्रणीत इति १ ॥-समूह्यः, परिचाय्यः, उपचाय्यः, इति ३ अग्नौ प्रयोगिणः। गार्हपत्यादानीय यो दक्षिणामिः प्रणीयते प्रवेश्यते तत्र आनाय्य इति १॥अमायी, खाहा, हुतभुक्प्रिया इति ३ अग्निप्रियायाम् । अग्निसमिन्धने वाह्नज्वलने या ऋक् प्रयुज्यते, सा सामिधेनी, धाय्या, इति २ । गायत्र्युष्णिगित्यादि छन्दः स्यादिति १ । हव्यपाकेऽमिमुखे हूयमानेऽन्ने चरुरिति १ । क्षीरे दधियोगतो या विकृतिः सा आमिक्षा स्यात् १। मृगचर्मणा रचितं यद्यजनं तत् धुवित्रमिति १।
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पङ्क्तयः १३८६ - १४१२] द्वितीयं काण्डम्
धुवित्रं व्यजनं तद्यद्रचितं मृगचर्मणा पृषदाज्यं सदध्याज्ये परमान्नं तु पायसम् हव्यकव्ये दैवपित्र्ये अन्ने पात्रं स्रुवादिकम् ध्रुवोपभृज्जुहूर्ना तु स्रुवो भेदाः स्रुचः स्त्रियः उपाकृतः पशुरसौ योऽभिमन्त्र्य ऋतौ हतः परम्पराकं शमनं प्रोक्षणं च वधार्थकम् वाच्यलिङ्गाः प्रमीतोपसंपन्नप्रोक्षिता हते सांनाय्यं हविरग्नौ तु हृतं त्रिषु वषट्कृतम् दीक्षान्तोऽवभृथो यज्ञे तत्कर्मार्ह तु यज्ञियम्
त्रिष्वथ क्रतुकर्मेष्टं पूर्त खातादि कर्म यत् अमृतं विघसो यज्ञशेषभोजनशेषयोः त्यागो विहापितं दानमुत्सर्जनविसर्जने विश्राणनं वितरणं स्पर्शनं प्रतिपादनम् प्रादेशनं निर्वपणमपवर्जनमंहतिः
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,
दधियुक्त घृते पृषदाज्य मिति १ ॥ - परमान्नम्, पायसम् इति २ क्षीरान्नस्य । दैवपित्र्येऽन्ने क्रमेण हव्यकव्ये स्याताम् २ | स्रुवचमसादिकं पात्रं स्यात् १॥— ध्रुवा, उपभृत्, जुहूः, इति ३ स्रुवो भेदाः । स्त्रियाम् । स्रुव इत्येकं पुंसि । ऋतौ यः पशुरभिमन्त्रय हतः स उपाकृतः स्यात् १ ॥ - परम्पराकम्, शमनम्, प्रोक्षणम् इति ३ वधार्थकम् ॥ - प्रमीतः, उपसंपन्नः, प्रोक्षितः, इति ३ यागार्थ हते पशुमात्रे । हविर्विशेषः सान्नाय्यं स्यात् १ | अन्नौ हुतं याज्यादि वषट्कृतं स्यात् १ । तन्त्रिषु । यज्ञे दीक्षान्तः अवभृथः । तत्कर्मार्ह वस्तु यशियम् १ | त्रिषु । यत्क्रतुकर्म तदिष्टं स्यात् १ । खातादि यत्कर्म तव पूर्त स्यात् १ | यज्ञशेषे पुरोडाशादौ अमृतमिति १ । भोजनशेषे विघस इति १ ॥ - त्यागः, विज्ञापितम्, दानम्, उत्सर्जनम्, विसर्जनम् विश्राणनम्, वितरणम्, स्पर्शनम्, प्रतिपादनम्, प्रादेशनम्, निर्वपणम्, अपवर्जनम्, अंहतिः, इति १३ दानस्य ।
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१२४
अमरकोषे
[८. ब्रह्मवर्गः
मृतार्थ तदहे दानं त्रिषु स्यादौर्ध्वदेहिकम्
१४१३ पितृदानं निवापः स्याच्छ्राद्धं तत्कर्म शास्त्रतः १४१४ अन्वाहार्य मासिकेंऽशोऽष्टमोऽह्नः कुतपोऽस्त्रियाम् १४१५ पर्येषणा परीष्टिश्चान्वेषणा च गवेषणा
१४१६ सनिस्त्वध्येषणा याञाऽभिशस्तिर्याचनार्थना १४१७ षट् तु त्रिष्वय॑मर्घार्थे पाद्यं पादाय वारिणि १४१८ क्रमादातिथ्यातिथेये अतिथ्यर्थेऽत्र साधुनि १४१९ स्युरावेशिक आगन्तुरतिथिर्ना गृहागते
१४२० 'प्राघूर्णिकः प्राघुणकश्चाभ्युत्थानं तु गौरवम्' ** पूजा नमस्याऽपचितिः सपर्यार्चाहणाः समाः
१४२१ वरिवस्यां तु शुश्रूषा परिचर्याप्युपासना
१४२२ व्रज्याटाट्या पर्यटनं चर्या त्वीर्यापथे स्थितिः १४२३ उपस्पशेस्त्वाचमनमथ मौनमभाषणम्
१४२४ तत्र अंतिः स्त्री। मृतार्थ तदहे दानं और्वदेहिकं स्यात् १। तत्रिषु ॥-पितृदानम् , निवापः, इति २ पित्रर्थे दानस्य १ शास्त्रतस्तत्कर्म श्राद्धं स्यात् १ । मासिकेऽन्वाहार्यमिति १। अहोऽष्टमोऽशः कुतपः स्यात् १। क्लीबे तु कुतपम् ॥पर्येषणा, परीष्टिः, इति २ श्राद्धे द्विजभक्तिशुश्रूषायाः॥-अन्वेषणा, गवेषणा, इति २ धर्मादिमार्गणस्य ॥–सनिः, अध्येषणा, इति २ अध्येपणायाः ॥-याच्या, अभिशस्तिः, याचना, अर्थना, इति ४ याचनायाः । अर्घार्थे वारिणि अर्ध्यमिति १। पादाय वारिणि पाद्यम् १ । अतिथ्यर्थ आतिथ्यमिति १। अतिथौ यत् साधु तत्र आतिथेयमिति १॥-आवेशिकः, आगन्तुः, अतिथिः, गृहागतः, इति ४ गृहागतस्य । ना पुमान् ॥-पूजा, नमस्या, अपचितिः, सपर्या, अर्चा, अर्हणा, इति ६ "नायाः ॥-वरिवस्या, सुश्रूषा, परिचर्या, उपासना, इति ४ उपासनस्य-व्रज्या, अटा, अट्या, पर्यटनम् , इति ४ पर्यटनस्य । ईपिथे योगमार्गे स्थितिः चर्या स्यात् १॥-उपस्पर्शः, आचमनम्, इति २ आचमनस्य ॥-मौनम् , अभाषणम् , इति २ मौनस्य ॥-आनुपूर्वा, आवृत्,
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पक्कयः १४१३-१४३६ ] द्वितीयं काण्डम्
'प्राचेतसश्चादिकविः स्यान्मैत्रावरुणिश्च सः वाल्मीकश्चाथ गाधेयो विश्वामित्रश्च कौशिकः व्यासो द्वैपायनः पाराशर्यः सत्यवतीसुतः' आनुपूर्वी स्त्रियां वावृत् परिपाटी अनुक्रमः पर्यायश्चातिपातस्तु स्यात्पर्यय उपात्ययः नियमो व्रतमस्त्री तोपवासादि पुण्यकम् औपवस्तं तूपवासो विवेकः पृथगात्मता स्याद्ब्रह्मवर्चसं वृत्ताध्ययनर्द्धिरथाञ्जलिः पाठे ब्रह्माञ्जलिः पाठे विप्रुषो ब्रह्मविन्दवः ध्यानयोगासने ब्रह्मासनं कल्पे विधिक्रमौ मुख्यः स्यात्प्रथमः कल्पोऽनुकल्पस्तु ततोऽधमः संस्कारपूर्व ग्रहणं स्यादुपाकरणं श्रुतेः समे तु पादग्रहणमभिवादनमित्युभे भिक्षुः परिव्राट् कर्मन्दी पाराशर्यपि मस्करी तपस्वी तापसः पारिकाङ्क्षी वाचंयमो मुनिः
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उपा
परिपाटी, अनुक्रमः पर्यायः, इति ५ अनुक्रमस्य ॥ अतिपातः, पर्ययः, त्ययः, इति ३ अतिक्रमस्य ॥ नियमः, व्रतम् इति २ व्रतमात्रस्य ॥औपवस्तम्, उपवासः, इति २ उपवासस्य । पृथगात्मता विवेकः स्यात् १ | वृत्तमध्ययनं तयोर्ऋद्धिः ब्रह्मवर्चसमिति १ । पाठे वेदपठने योऽञ्जलिः स ब्रह्माञ्जलिः, अध्ययन स्यादा हस्तयोर्हि प्रणवोच्चार पूर्वकमञ्जलिः क्रियते । वेदपाठे विप्रुषो ब्रह्मबिन्दवः स्युः । ध्यानयोगयोरासने ब्रह्मासनमिति १॥ कल्पः, विधिः, क्रम:, इति ३ नियोगशास्त्रस्य । यः प्रथमः कल्पः स मुख्यः स्यात् १ | ततोऽधमः अनुकल्पः स्यात् १॥ संस्कारपूर्वकं श्रुतेर्ग्रहणं उपाकरणं स्यात् १| पादग्रहणम्, अभिवादनम्, इति २ नामगोत्रोक्तिपूर्वकस्य नमस्कारविशेषस्य ॥ - मिक्षुः, परिवाद, कर्मन्नी, पाराशरी, मस्करी, इति ५ संन्यासिनः॥ तपखी, तापसः, पारि
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तपः क्लेशहो दान्तो वर्णिनो ब्रह्मचारिणः ऋषयः सत्यवचसः स्नातकस्त्वाप्लुतो व्रती ये निर्जितेन्द्रियग्रामा यतिनो यतयश्च ते यः स्थण्डिले व्रतवशाच्छेते स्थण्डिलशाय्यसौ स्थाण्डिलश्चाथ विरजस्तमसः स्युर्द्वयातिगाः पवित्रः प्रयतः पूतः पाखण्डाः सर्वलिङ्गिनः पालाशो दण्ड आषाढो व्रते राम्भस्तु वैणवः अस्त्री कमण्डलुः कुण्डी व्रतिनामासनं वृषी अजिनं चर्म कृत्तिः स्त्री भैक्षं भिक्षाकदम्बकम् स्वाध्यायः स्याज्जपः सुत्याऽभिषवः सवनं च सा सर्वैनसा मपध्वंसि जप्यं त्रिष्वघमर्षणम् दर्शश्च पौर्णमासश्च यागौ पक्षान्तयोः पृथक् शरीरसाधनापेक्षं नित्यं यत्कर्म तद्यमः
[ ८. ब्रह्मवर्गः
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काङ्क्षी, इति ३ तपोयुक्तस्य ॥ - वाचंयमः, मुनिः, इति २ वाग्यतस्य ॥ तपसः क्लेशेऽनुद्विग्नो दान्तः स्यात् १ ॥ - वर्णी, ब्रह्मचारी, इति २ ब्रह्मचारिणः ॥— ऋषिः, सत्यवचाः, इति २ ऋषिसामान्यस्य । यो व्रती आप्लुतः स स्नातक इत्युच्यते १ । निर्जितः स्ववशस्थ इन्द्रियसमूहो यैस्ते यतिनः, यतयः, इति २ ॥ यो नियमवशात् भूमिविशेषे शेते असौ स्थण्डिलशायी, स्थाण्डिलः, इति २ ॥ - विरजस्तमाः, द्वयातिगः, इति २ सवैकनिष्ठेषु व्यासादिषु ॥ - पवित्रः, प्रयतः, पूतः, इति ३ पवित्रस्य ॥ - पाखण्डः, सर्वलिङ्गी, इति २ बौद्धादिदुःशास्त्रवर्तिषु । व्रते ब्रह्मचारिणः पलाशसंबन्धी दण्ड आषाढ इत्युच्यते १ । वेणुसंबन्धी दण्डो राम्भ इति १ ॥ - कमण्डलुः, कुण्डी, इति २ व्रतिनां जलपात्रस्य । व्रातनां यदासनं सा ऋषी १ ॥ - अजिनम्, चर्म, कृत्तिः, इति ३ मृगादेश्वर्मणि । कृत्तिः स्त्रियाम् । भिक्षाणां समूहो भैक्षम् १ ॥ खाध्यायः, जपः, इति २ वेदाभ्यासस्य ॥ - सुत्या, अभिषवः, सवनम् इति ३ सोमामिषवस्य । सर्वैनसां नाशर्क जप्यम् १ | ऋगादि अघमर्षणं स्यात् १ । त्रिषु । पक्षान्तयोरमावास्यायां पौर्णमास्यां च विहितौ यागौ क्रमेण दर्शः, पौर्णमासञ्च स्याताम् २ । शरीरसाधनापेक्षं नित्यं
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पतयः १४३७-१४६२ ] द्वितीयं काण्डम् नियमस्तु स यत्कर्म नित्यमागन्तुसाधनम् 'क्षौरं तु भद्राकरणं मुण्डनं वपनं त्रिषु' उपवीतं ब्रह्मसूत्रं प्रोद्धृते दक्षिणे करे प्राचीनावीतमन्यस्मिन्निवीतं कण्ठलम्बितम् अङ्गल्यग्रे तीर्थ दैवं स्वल्पाङ्गल्योर्मूले कायम् मध्येऽङ्गुष्ठाङ्गुल्योः पित्र्यं मूले त्वङ्गष्ठस्य ब्राह्मम् स्याद्ब्रह्मभूयं ब्रह्मत्वं ब्रह्मसायुज्यमित्यपि देवभूयादिकं तद्वत्कृच्छ्रे सांतपनादिकम् संन्यासवत्यनशने पुमान्प्रायोऽथ वीरहा नष्टाग्निः कुहना लोभान्मिथ्येर्यापथकल्पना व्रात्यः संस्कारहीनः स्यादस्वाध्यायो निराकृतिः धर्मध्वजी लिङ्गवृत्तिरवकीर्णी क्षतव्रतः सुप्ते यस्मिन्नस्तमेति सुप्ते यस्मिन्नुदेति च अंशुमानभिनिर्मुक्ताभ्युदितौ च यथाक्रमम्
१४५०
*** १४५१ १४५२ १४५३ १४५४ १४५५ १४५६ १४५७ १४५८ १४५९ १४६० १४६१ १४६२
यत्कर्म तत् यमः,यत्कर्म आगन्तु बाह्यं साधनं नित्यं स नियमः । दक्षिणे करे प्रोद्धृते यद्ब्रह्मसूत्रं तदुपवीतं स्यात् १।अन्यस्मिन्वामे करे प्रोद्धृते प्राचीनावीतं स्यात् १ । कण्ठे लम्बितं तत् निवीतमिति१।अङ्गुलीनामग्रे दैवंतीर्थे ज्ञेयम्पाखल्पाङ्गुल्योरनामिकाकनिष्ठिकयोर्मूले कायम् १ । अङ्गुष्ठतजेन्योर्मध्यभागे पिम्पम् १ । अङ्गुष्ठस्य मूले तु ब्राझं तीर्थम् १। ब्रह्मभूयम् , ब्रह्मत्वम् , ब्रह्मसायुज्यम् , इति ३ ब्रह्मभावस्य॥ -तद्वत् देवभूयम् , देवत्वम् , देवसायुज्यम्, इति ३ देवभावस्य । सांतपनादिकं कृच्छ्रे स्यात् १।आदिना प्राजाप यादिग्रहः। संन्यासपूर्वके भोजनत्यागे प्राय इति १॥ -वीरहा, नष्टामिः, इति २ नष्टाग्ने लोभाद्या मिध्येयोपथकल्पना साकुहनेति १। संस्कारेणोपनयनेन हीनो व्रात्य इति १। अखाध्यायः निराकृतिः १॥-धर्मध्वजी, लिङ्गवृत्तिः, इति २ जीविका जटादिधारणवतः॥-अवकीर्णी, क्षतव्रतः, इति नब्रह्मचर्यस्य। अंशुमान रविः यस्मिन् सुप्तेऽस्तमेति सोऽभिनिर्मुकः।यस्मि
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अमरको
परिवेत्ताऽनुजोऽनूढे ज्येष्ठे दारपरिग्रहात् परिवित्तिस्तु तज्ज्यायान् विवाहोपयमौ समौ तथा परिणयोद्वाहोपयामाः पाणिपीडनम् व्यवायो ग्राम्यधर्मो मैथुनं निधुवनं रतम् त्रिवर्गो धर्मकामार्थैश्चतुर्वर्गः समोक्षकैः सबलैस्तैश्चतुर्भद्रं जन्याः स्निग्धा वरस्य ये
९. क्षत्रियवर्गः
मूर्धाभिषितो राजन्यो बाहुजः क्षत्रियो विराट् राजा राट् पार्थिवक्ष्माभृन्नृपभूपमहीक्षितः राजा तु प्रणताशेषसामन्तः स्यादधीश्वरः चक्रवर्ती सार्वभौमो नृपोऽन्यो मण्डलेश्वरः येनेष्टं राजसूयेन मण्डलस्येश्वरश्च यः शास्ति यश्चाज्ञया राज्ञः स सम्राडथ राजकम्
९. क्षत्रियवर्गः
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,
न्युप्तेंऽशुमानुदेति सोऽभ्युदितः । ज्येष्ठे भ्रातर्यकृतदारपरिग्रहे सति कृतदारपरिग्रहः कनिष्ठः परिवेत्ता स्यात् १ । तस्य परिवेत्तुर्ज्यायान् ज्येष्ठः परिवित्तिः स्यात् १| विवाहः, उपयमः, परिणयः, उद्वाहः, उपयामः, पाणिपीडनम् इति ६ विवाहस्य ॥–व्यवायः, प्राम्यधर्मः, मैथुनम् निधुवनम् रत्मू, इति ५ मैथुनस्य ॥ धर्मः वेदविहितो यागादिः, कामः यथाविधि स्त्रीसेवनम् अर्थः धनम्, एभिस्त्रिभिः समुदितस्त्रिवर्गः १। समोक्षकैः धर्मार्थकाममोक्षैः समुदितवतुर्वर्ग इति १ | तेर्धर्मादिभिः सबलैश्चतुर्भद्रमिति १| वरस्य स्निग्धा वयस्याः जन्याः स्युः ॥
1
१४६९-१७०७ मूर्धाभिषिक्तः, राजन्यः, बाहुजः, क्षत्रियः, विराट् इति ५ क्षत्रियस्य ॥ --- राजा, राट्, पार्थिवः, क्ष्माभृत्, नृपः, भूपः, महीक्षित, इति राज्ञः । प्रणता अशेषसामन्ता यस्य स राजा अधीश्वर इति १ । चक्रवर्ती, सार्वभौमः, इति २ आसमुद्र क्षितीशस्य । तदन्यो नृपो मण्डलेश्वर इति १ । राजसूयाख्यऋतु विशेषेण येनेष्टं, द्वादशमण्डलस्येश्वरश्व यः, यश्च स्वाज्ञया सर्वभूपान् शास्ति, ईदृशविशेषणत्रयेण विशिष्टो राजा सम्राट् स्यात् १ । नृपतीनां गणे राजक
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पङ्क्तयः १४६३-१४८७] द्वितीय काण्डम्
राजन्यकं च नृपतिक्षत्रियाणां गणे क्रमात् मन्त्री घीसचिवोऽमात्योऽन्ये कर्मसचिवास्ततः महामात्राः प्रधानानि पुरोधास्तु पुरोहितः द्रष्टरि व्यवहाराणां प्राड्रिवाकाक्षदर्शकौ प्रतीहारो द्वारपालद्वास्थद्वास्थितदर्शकाः रक्षिवर्गस्त्वनीकस्थोऽथाध्यक्षाधिकृतौ समौ स्थायुकोऽधिकृतो ग्रामे गोपो ग्रामेषु भूरिषु भौरिकः कनकाध्यक्षो रूप्याध्यक्षस्तु नैष्किकः अन्तःपुरे त्वधिकृतः स्यादन्तर्वेशिको जनः सौविदल्लाः कञ्चुकिनः स्थापत्याः सौविदाश्च ते शण्ढो वर्षवरस्तुल्यौ सेवकार्थ्यनुजीविनः विषयानन्तरो राजा शत्रुर्मित्रमतः परम् उदासीनः परतरः पाणिग्राहस्तु पृष्ठतः
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मिति १ | क्षत्रियाणां गणे राजन्यकमिति १ ॥ -- मन्त्री, धीसचिवः, अमात्यः, , इति ३ बुद्धिसहायस्य । ततो धीसचिवादन्ये कर्मोपयुक्ताः सचिवाः कर्मसचिवाः स्युरिति १ ॥ - महामात्राः, प्रधानानि, इति २ मुख्यानां राजसहायानाम्॥पुरोधाः, पुरोहितः, इति २ व्यवहाराणां निर्णेतरि ॥ - प्राह्निवाकः, अक्षदर्शकः, इति २ प्राद्विवाकस्य ॥ - प्रतीहारः, द्वारपालः, द्वास्थः, द्वास्थितः, दर्शकः, इति ५ द्वारपालस्य ॥ - रक्षिवर्गः, अनीकस्थः, इति २ राजरक्षकगणस्य ॥ अध्यक्षः, अधिकृतः, इति २ अध्यक्षस्य । एकस्मिन् ग्रामे अधिकृतः स्थायुकः स्यात् १। भूरिषु ग्रामेष्वधिकृतो गोप इति १ ॥ - भौरिकः, कनकाध्यक्षः, इति २ स्वर्णाध्यक्षस्य ॥ रूप्याध्यक्षः, नैष्किकः, इति २ रुप्याधिकृतस्य ॥ अन्तःपुरेऽधिकृतो जनः अन्तर्वेशिकः स्यात् १ ॥ - सौविदलाः, कचुकिनः, स्थापत्याः, सौविदाः, इति ४ राजसन्निधिवर्तिवेत्रधारस्य ॥ - शण्ढः, वर्षवरः, इति २ अन्तःपुरचारिणः क्लीवमात्रस्य ॥ - सेवकः, अर्थी, अनुजीवी, इति ३ सेधकस्य । विषयात् स्वदेशात् अनन्तरो राजा शत्रुः स्यात् १ । अतः शत्रोः परं मित्रम् १ | पतरः राजा उदासीनः स्यात् १ । पृष्ठतः वर्तमानो राजा पाणिग्राहः १ ॥-म. को. स. ९
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अमरकोषे
[ ९. क्षत्रियवर्गः रिपौ वैरिसपत्नारिद्विषद्वेषणदुहृदः
१४८८ द्विडिपक्षाहितामित्रदस्युशात्रवशत्रवः
१४८९ अभिघातिपरारातिप्रत्यर्थिपरिपन्थिनः
१४९० वयस्यः स्निग्धः सवया अथ मित्रं सखा सुहृत् १४९१ सख्यं साप्तपदीनं स्यादनुरोधोऽनुवर्तनम् १४९२ यथार्हवर्णः प्रणिधिरपसर्पश्चरः स्पशः
१४९३ चारश्च गूढपुरुषश्चाप्तप्रत्ययितौ समो
१४९४ सांवत्सरो ज्योतिषिको दैवज्ञगणकावपि
१४९५ स्युौहूर्तिकमौहूर्तज्ञानिकाान्तिका अपि
१४९६ तान्त्रिको ज्ञातसिद्धान्तः सत्री गृहपतिः समो १४९७ लिपिकारोऽक्षरचणोऽक्षरचुञ्चुश्च लेखके
१४९८ लिखिताक्षरविन्यासे लिपिलिबिरुभे स्त्रियौ १४९९ स्यात्संदेशहरो दृतो दूत्यं तद्भावकर्मणी रिपुः, वैरी, सपत्नः, अरिः, द्विषन् , द्वेषणः, दुहृद्, द्विद , विपक्षः, अहितः, अमित्रः, दस्युः,शात्रवः,शत्रुः,अभिघाती, परः, अरातिः, प्रत्यर्थी, परिपन्थी, इति १९ शत्रोः ॥-वयस्यः, स्निग्धः, सवयाः, इति ३ तुल्यवयसः प्रियस्य ॥-मित्रम् , सखा, सुहृत् , इति ३ मित्रस्य॥-सख्यम् , साप्तपदीनम् , इति २ मैत्र्याः ॥-अनुरोधः, अनुवर्तनम्, इति २ आनुकूल्यस्य ॥-- यथार्हवर्णः, प्रणिधिः, अपसर्पः, चरः, स्पशः, चारः, गूढपुरुषः, इति ७ घारपुरुषस्य ॥-आप्तः, प्रत्ययितः, इति २ विसंवादरहितस्य ॥-सांवत्सरः, ज्योतिषिकः, दैवज्ञः, गणकः, मौहूर्तिकः, मौहूर्तः, ज्ञानी, कार्तान्तिकः, इति ८ ज्योतिषिकस्य ॥-तान्त्रिकः, ज्ञातसिद्धान्तः, इति २ शास्त्रवेत्तुः ॥ सत्री, गृहपतिः, इति २ गृहपतिनः ॥लिपिकारः, अक्षरचणः, अक्षरचुच्चः, लेखकः, इति ४ लेखकस्य ।।-लिखितम् , अक्षरविन्यासः, लिपिः, लिबिः, इति ४ लिखिताक्षरस्य ॥-संदेशहरः, दूतः, इति २ संदेशहरस्य। तद्भावे कर्मणि च दूत्यमिति १॥-अध्वनीनः, अध्वगः,
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पङ्क्तयः १४८८-१५१४ ] द्वितीयं काण्डम्
अध्वनीनोऽध्वगोऽध्वन्यः पान्थः पथिक इत्यपि स्वाम्यमात्य सुहृत्कोशरा प्रदुर्गबलानि च राज्याङ्गानि प्रकृतयः पौराणां श्रेणयोऽपि च संधिर्ना विग्रहो यानमासनं द्वैधमाश्रयः षङ्गणाः शक्तयस्तिस्रः प्रभावोत्साहमन्त्रजाः क्षयः स्थानं च वृद्धिश्च त्रिवर्गो नीतिवेदिनाम् स प्रतापः प्रभावश्च यत्तेजः कोशदण्डजम् भेदो दण्डः साम दानमित्युपायचतुष्टयम् साहसं तु दमो दण्डः साम सान्त्वमथो समौ भेदोपजापापधा धर्माद्यैर्यत्परीक्षणम् पञ्च त्रिष्वपक्षीणो यस्तृतीयाद्यगोचरः विविक्तविजनच्छन्ननिःशलाकास्तथा रहः रोपांशु चालि रहस्यं तद्भवे त्रिषु समौ विस्रम्भविश्वास पो भ्रंशो यथोचितात्
,
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१५०१
१५०२
१५०३
अध्वन्यः, पान्थः, पथिकः, इति ५ पान्थस्य ॥ - स्वामी, अमात्यः, सुहृत्, कोशः, राष्ट्रम, दुर्गम्, बलम् इति ७ राज्याङ्गानि एतान्येव प्रकृतिशब्दवाच्यानि
। पौराणां श्रेणयोऽपि प्रकृतयः स्युः इति २ । संधिः, विग्रहः, यानम्, आसनम्, द्वैधम्, आश्रयः, इति षट्गुणाः १ ॥ - प्रभावः, उत्साहः, मन्त्रजः, इति तिस्रः शक्तयः १ । क्षयः, स्थानम्, वृद्धि:, इति ३ नीतिवेदिनां त्रिवर्गः १ । कोशदण्डतेजोभ्यो जातः प्रतापः, प्रभावः, इति २ ॥ - -भेदः, दण्डः, साम, दानम्, इति ४ उपायच तुष्टयम् ॥ - साहसम्, दमः, दण्डः, इति ३ दण्डस्य ॥ - साम, सान्त्वम्, इति २ साम्नः॥ - मेदः, उपजापः, इति २ संहतयोद्वैधीकरणस्य । धर्मार्थकामैः भयेन च परीक्षणं सा उपधा स्यात् १ । अथाषडक्षीगादिनिःश : शलाकान्ताः पञ्च शब्दास्त्रिषु वाच्यलिङ्गाः । यस्तृतीयाद्यगोचरो मन्त्रादिः स अषडक्षीण इति ॥ विविक्तः, विजनः, छन्नः, निःशलाकः, रहः, रहः, उपांशु, इति ७ विजनस्य १ ॥ रहः उपांशु, इति द्वे अलिङ्गे अव्यये । तद्भवे रहो भवे रहस्य मिति १ । त्रिषु ॥ - विस्रम्भः, विश्वासः, इति २ विश्वासस्य । यथोचिताशः पतनं द्वेष इति १ ॥
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भमरकोपे
[९. क्षत्रियवर्गः अभ्रेषन्यायकल्पास्तु देशरूपं समञ्जसम्
१५१५ युक्तमौपयिकं लभ्यं भजमानाभिनीतवत् १५१६ न्याय्यं च त्रिषु षट् संप्रधारणा तु समर्थनम् १५१७ अववादस्तु निर्देशो निदेशः शासनं च सः १५१८ शिष्टिश्चाज्ञा च संस्था तु मर्यादा धारणा स्थितिः १५१९ आगोऽपराधो मन्तुश्च समे तुद्दानबन्धने १५२० द्विपाद्यो द्विगुणो दण्डो भागधेयः करो बलिः
१५२१ घट्टादिदेयं शुल्कोऽस्त्री प्राभृतं तु प्रदेशनम् १५२२ उपायनमुपग्राह्यमुपहारस्तथोपदा
१५२३ यौतकादि तु यदेयं सुदायो हरणं च तत् १५२४ तत्कालस्तु तदात्वं स्यादुत्तरः काल आयतिः १५२५ सांदृष्टिकं फलं सद्य उदः फलमुत्तरम्
१५२६ अदृष्टं वह्नितोयादि दृष्टं स्वपरचक्रजम्
१५२७ अभ्रेषः, न्यायः, कल्पः, देशरूपम् , समञ्जसम् , इति ५ नीतेः ॥--युक्तम् , औपयिकम् , लभ्यम् , भजमानम् , अभिनीतम् , न्याय्यम् , इति ६ न्यायादनपेतस्य द्रव्यादेः। एते षडपि त्रिषु ॥-संप्रधारणा, समर्थनम् , इति २ युक्तायुक्तपरीक्षायाः॥-अववादः, निर्देशः, निदेशः, शासनम् , शिष्टिः, आज्ञा, इति ६ कर्माज्ञापनस्य ॥-संस्था, मर्यादा, धारणा, स्थितिः, इति ४ न्याय्यमार्गस्थितेः।-आगः, अपराधः, मन्तुः, इति ३ अपराधस्य । आगः सान्तम् ।।-उद्दानम् , बन्धनम् , इति २ बन्धनस्य । द्विगुणो दण्डो द्विपाद्यः स्यात् १॥-भागधेयः, करः, बलिः, इति ३ कर्षकादिभ्यो राजग्राह्यभागस्य । नेतण्यानेतव्यसंबन्धी राजग्राह्यो भागः शुल्कः स्यात् १ ॥प्राभृतम् , प्रदेशनम्, उपायनम् , उपग्राह्यम् , उपहारः, उपदा, इति ६ उपायनस्य। यौतकादि बन्धुदेयादि, यद्देयं तत्सुदायः, हरणम् , इति २ ॥ तत्कालः, तदात्वम् , इति २ वर्तमानकालस्य । उत्तर आगामी काल आयतिः स्यात् । यत्सद्यः फलं तत्सांदृष्टिकमिति १॥ उत्तर भावि फलं उदर्कः स्यात् १। वह्नितोयमतिवृष्ट्यादिकृतं यद्यं तत् अष्टमिति ११ खपरराष्ट्रजन्यं यद्भयं तत् दृष्टम् ।
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पतयः १५१५-१५४०] द्वितीय काण्डम्
महीभुजामहिभयं स्वपक्षप्रभवं भयम्
१५२८ प्रक्रिया त्वधिकारः स्याच्चामरं तु प्रकीर्णकम् १५२९ नृपासनं यत्तद्भद्रासनं सिंहासनं तु तत्
१५३० हैमं छत्रं त्वातपत्रं राज्ञस्तु नृपलक्ष्म तत् १५३१ भद्रकुम्भः पूर्णकुम्भो भृङ्गारः कनकालुका १५३२ निवेशः शिबिरं षण्ढे सजनं तूपरक्षणम्
१५३३ हस्त्यश्वरथपादातं सेनाङ्गं स्याच्चतुष्टयम् १५३४ दन्ती दन्तावलो हस्ती द्विरदोऽनेकपो द्विपः १५३५ मतङ्गजो गजो नागः कुञ्जरो वारणः करी १५३६ इभः स्तम्बरमः पद्मी यूथनाथस्तु यूथपः १५३७ मदोत्कटो मदकलः कलभः करिशावकः १५३८ प्रभिन्नो गर्जितो मत्तः समावुद्वान्तनिर्मदौ १५३९ हास्तिकं गजता वृन्दे करिणी धेनुका वशा १५४० राज्ञां स्वपक्षप्रभवं भयं अहिभयं स्यात् १॥-प्रक्रिया, अधिकारः, इति २ व्यवस्थास्थापनस्य ॥-चामरम् , प्रकीर्णकम् , इति २ चामरस्य ॥-नृपासनम् , भद्रासनम् , इति २ मण्यादिकृतराजासनस्य । तन्नृपासनं स्वर्णनिर्मितं चेत्सिहा. सनं स्यात् १॥-छत्रम् , आतपत्रम् , इति २ छत्रस्य । राज्ञश्वेच्छत्रं तर्हि नृपलक्ष्म स्यात् १ ॥---भद्रकुम्भः, पूर्णकुम्भः, इति २ पूर्णघटस्य ॥-मृङ्गारः, कनकालुका, इति २ स्वर्णरचितपात्रविशेषस्य ।।-निवेशः, शिबिरम्, इति २ सैन्यवासस्थानस्य ॥-सजनम् , उपरक्षणम् , इति २ सैन्यरक्षणाय नियुक्तप्रहरिकादिविन्यासस्य । हस्त्यादिचतुष्टयं सेनाङ्गं स्यात् १॥-दन्ती, दन्तावलः, हस्ती, द्विरदः, अनेकपः, द्विपः, मतङ्गजः, गजः, नागः, कुञ्जरः, वारणः, करी, इभः, स्तम्बेरमः, पद्मी, इति १५ हस्तिनः ॥-यूथनाथः, यूथपः, इति २ यूथमुख्यस्य गजस्य ॥-मदोत्कटः,मदकलः, इति २ मन्दोन्मत्तस्य॥-कलभः, करिशावकः, इति २ करिपोतस्य ॥-प्रभिन्नः, गर्जितः, मत्तः, इति ३ क्षरन्मदस्य ॥-उद्वान्तः, निर्मदः, इति २ गतमदस्य ॥ हास्तिकम् , गजता, इति २
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अमरकोपे
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[९. क्षत्रियवर्गः गण्डः कटो मदो दानं वमथुः करशीकरः १५४१ कुम्भौ तु पिण्डौ शिरसस्तयोर्मध्ये विदुः पुमान् १५४२ अवग्रहो ललाटं स्यादीषिका त्वक्षिकूटकम् १५४३ अपाङ्गदेशो निर्याणं कर्णमूलं तु चूलिका १५४४ अधः कुम्भस्य वाहित्थं प्रतिमानमधोऽस्य यत् १५४५ आसनं स्कन्धदेशः स्यात् पद्मकं बिन्दुजालकम् १५४६ पाश्वभागः पक्षभागो दन्तभागस्तु योऽग्रतः १५४७ द्वौ पूर्वपश्चाजवादिदेशौ गात्रावरे क्रमात् १५४८ तोत्रं वेणुकमालानं बन्धस्तम्भेऽथ शृङ्खले १५४९ अन्दुको निःाडोऽस्त्री स्यादङ्कुशोऽस्त्री सृणिः स्त्रियाम् १५५० दूष्या कक्ष्या वरत्रा स्यात् कल्पना सजना समे १५५१ प्रवेण्यास्तरणं वर्णः परिस्तोमः कुथो द्वयोः १५५२ हस्तिनां वृन्दे ॥–करिणी, धेनुका, वशा, इति ३ हस्तिन्याः । हस्तिनो गण्डः कपोलः कटः स्यात् १॥-मदः, दानम् , इति २ मदोदकस्य ॥ वमथुः, करशीकरः, इति २ करिकरान्निर्गतजलकणस्य शिरसः पिण्डौ कुम्भो स्याताम् । तयोः कुम्भयोर्मध्ये आकाशस्थानं विदुः स्यात् १ । गजस्य ललाटं अवग्रहः १॥-ईषिका, अक्षिकूटकम् , इति र नेत्रगोलकस्य। हस्तिनः अपाङ्गदेशो निर्याणम् १। कर्णस्य मूलं चूलिका स्यात् १। कुम्भस्याधोभागे वाहित्थम् १। इदं ललाटस्याप्यधः । अस्य वाहित्थस्याधोभागे दन्तयोर्मध्यं प्रतिमानं स्यात् १ । गजस्य स्कन्धदेश आसनम् १ । बिन्दुजालकं पद्मकं स्यात् १ । गजस्य पार्श्वभागः पक्षभागः स्यात् १।अग्रतो यो भागः सः दन्तभागः स्यात् १। हस्तिनः पूर्वजङ्घादिदेशोगात्रं स्यात् १ । पश्चाजवादिदेशोऽवरं स्यात् १ । तोत्रम् , वेणुकम् , इति २ तोदनदण्डस्य । बन्धनाधारस्तम्मे आलानमिति १॥--शृङ्खलम् , अन्दुकः, निगडः, इति ३ शृङ्खलस्य ॥-अङ्कुशः, सृणिः, इति २ अङ्कुशस्य । सृणिः स्त्रियाम् ॥-दूष्या, कक्ष्या, वरत्रा, इति ३ मध्यबन्धनोपयोगिन्याश्चर्मरज्वाः ॥-कल्पना, सज्जना, इति २ नायकारोहणार्थ गजसजीकरणे ॥--प्रवेणी, आस्तरणम् , वर्णः, परिस्तोमः, कुथः, इति ५ गजपृष्ठवर्तिन आस्तरणस्य
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पङ्क्तयः १५४१-१५६५ ] द्वितीयं काण्डम्
वीतं त्वसारं हस्त्यश्वं वारी तु गजबन्धनी घोटके वीतितुरगतुरंगाश्वतुरंगमाः वाजिवाहार्वगन्धर्वहय सैन्धवसप्तयः आजानेयाः कुलीनाः स्युर्विनीताः साधुवाहिनः वनायुजाः पारसीकाः काम्बोजा बाहिका हयाः ययुरश्वोऽश्वमेधीयो जवनस्तु जवाधिकः पृष्ठयः स्थौ सितः कर्को रथ्यो वोढा रथस्य यः बालः किशोरो वाम्यश्वा वडवा वाडवं गणे त्रिष्वाश्वीनं यदश्वेन दिनेनैकेन गम्यते कश्यं तु मध्यमश्वानां हेपा हेपा च निस्वनः निगालस्तु गलोदेशो वृन्दे त्वश्वीयमाश्ववत् आस्कन्दितं धौरितकं रेचितं वल्गितं लुतम् गतयोऽमूः पञ्च धारा घोणा तु प्रोथमस्त्रियाम्
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स्त्रियां तु कुथा । यत् असारं हस्त्यश्वं तद्वीतमुच्यते १ | गजबन्धनी गजालानभूः वारी इति १ गजबन्धनस्थानस्य ॥ - घोटकः, वीतिः, तुरगः, तुरगः, अश्वः, तुरंगमः, वाजी, वाहः, अर्वा, गन्धर्वः, हयः, सैन्धवः, सप्तिः, इति १३ घोटकस्य । ये कुलीना अश्वास्ते आजानेयाः । ये साधुवाहिनः ते विनीताः स्युः ॥ - वनायुजा, पारसीकाः, कम्बोजाः बाह्निकाः, इति ४ तत्तद्देशजाश्वानाम् । योऽश्वमेधीयोऽश्वः स ययुरिति । यो जवेनाधिकः स जवनः ॥ - पृष्ठ्यः, स्थारी, इति २ जलादिभार वाहिनोऽश्वस्य । सितोऽश्वः, कर्क इति १ । यो रथस्य वोढा स रथ्य इति १ । अस्य बालः किशोरः ॥ -वामी, अश्वा, वडवा, इति ३ अभ्वायाः । गणे वडवानां समूहे वाडवम् १ ॥ - अश्वेन एकेन दिनेन गम्यते यद्वर्त्म तदाश्वीनम् १ | त्रिषु । अश्वानां मध्यं कश्यम् स्यात् १ । अश्वस्य निस्वनः शब्दः हेषा, द्वेषा, इति २ । गलोद्देशः निगालः स्यात् १ । अश्वीयम्, आश्वम्, इति २ अश्वानां वृन्दे ॥ - आस्कन्दितम् धौरितकम्, रेचितम्, वल्गितम्, शम्, अमूः आस्कन्दिताद्याः, अश्वानां ५ गतयः, धाराख्याः ॥ अश्वस्य घोणा
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[९. क्षत्रिमवगः
कविका तु खलीनोऽस्त्री शर्फ क्लीबे खुरः पुमान् १५६६ पुच्छोऽस्त्री लूमलाङ्गले वालहस्तश्च वालधिः १५६७ त्रिषूपावृत्तलुठितौ परावृत्ते मुहुर्भुवि
१५६८ याने चक्रिणि युद्धार्थे शताङ्गः स्यन्दनो रथः १५६९ असौ पुष्यरथश्चक्रयानं न समराय यत्
१५७० कर्णीरथः प्रवहणं डयनं च समं त्रयम्
१५७१ क्लीबेऽनः शकटोऽस्त्री स्याद्गत्री कम्बलिवाह्यकम्। १५७२ शिबिका याप्ययानं स्याहोला प्रेक्षादिका स्त्रियाम् १५७३ उभौ तु द्वैपवैयाघौ द्वीपिचर्मावृते रथे । १५७४ पाण्डुकम्बलसंवीतः स्यन्दनः पाण्डुकम्बली १५७५ रथे काम्बलवास्त्राद्याः कम्बलादिभिरावृते १५७६ त्रिषु द्वैपादयो रथ्या रथकट्या रथव्रजे
१५७७ धूः स्त्री क्लीबे यानमुखं स्याद्रथाङ्गमपस्करः १५७८ नासिका प्रोथमिति १॥-कविका, खलीनः, इति २ लोहादिनिर्मितस्य अश्वमुखमध्ये निहितस्य ॥–शफम् , खुरः, इति २ खुरस्य ॥-पुच्छः, लूमम् , लालम् , इति ३ पुच्छस्य॥-वालहस्तः, वालधिः, इति२ केशसमूहयुक्तस्य पुच्छाग्रभागस्य ॥-उपावृत्तः, लुठितः, इति २ लठितस्याश्वस्य । युद्धमर्थः यस्य तस्मिन् चक्रयुक्ते याने शताङ्गः, स्यन्दनः, रथः, इति ३ । युच्चक्रयुतं इति समराय न भवति असौ पुष्यरथः स्यात् ॥-कीरथः, प्रवहणम् , डयनम् , इति ३ स्त्रीणां वाहनार्थकृतरथविशेषस्य॥-अनः, शकटः, इति २ शकटस्य। अनः सान्तं क्लीबे। शकटः पुं-नपुंसकयोः। कम्बलिभिर्वाह्यं यच्छकटं सा गन्त्री १॥ -शिबिका,याप्ययानम् , इति २ पुरुषवाह्यस्य यानस्य ॥-दोला, प्रेवा, इति २ दोलायाः। आदिशब्दाच्छयनखवावाह्यादि दोला । द्वीपी व्याघ्रस्तच्चर्मणा प्रावृते रथे द्वैपः, वैयाघ्रः इति २। पाण्डुकम्बलेन प्रावृतो रथः पाण्डकम्बलीति ११ कम्बलादिभिरावृते रथे काम्बलः, वास्त्रः, इति २ ॥-रथ्या, रथकट्या, इति २ रथसमूहे ॥-धूः, यानमुखम् , इति २ रथादेरग्रभागस्य ॥-रथाङ्गम् ,
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पलयः १५६६-१५९१] द्वितीयं काण्डम् चक्रं रथाङ्गं तस्यान्ते नेमिः स्त्री स्यात्प्रधिः पुमान् १५७९ पिण्डिका नाभिरक्षाग्रकीलके तु द्वयोरणिः १५८० रथगुप्तिर्वरूथो ना कूबरस्तु युगंधरः
१५८१ अनुकर्षो दार्वधःस्थं प्रासङ्गो ना युगायुगः १५८२ सर्व स्याद्वाहनं यानं युग्यं पत्रं च धोरणम् १५८३ परम्परावाहनं यत्तद्वैनीतकमस्त्रियाम् ।
१५८४ आधोरणा हस्तिपका हस्त्यारोहा निषादिनः १५८५ नियन्ता प्राजिता यन्ता सूतः क्षत्ता च सारथिः १५८६ सव्येष्ठदक्षिणस्थौ च संज्ञा रथकुटुम्बिनः
१५८७ रथिनः स्यन्दनारोहा अश्वारोहास्तु सादिनः १५८८ भटा योधाश्च योद्धारः सेनारक्षास्तु सैनिकाः १५८९ सेनायां समवेता ये सैन्यास्ते सैनिकाश्च ते १५९० बलिनो ये सहस्रेण साहस्रास्ते सहस्रिणः १५९१ अपस्करः, इति २ रथावयवमात्रस्य॥-चक्रम , रथाङ्गम् , इति २ चक्रस्य॥-- नेमिः, प्रधिः, इति २ चक्रस्यान्तस्य ॥-पिण्डिका, नाभिः, इति २ चक्रमध्यस्य। अक्षस्याग्रे यत्कीलकमारोप्यते तत्र अणिरिति १ । स्त्री-पुंसयोः॥-रथगुप्तिः, वरूथः, इति २ वरूथस्य । ना पुमान् ॥-कूबरः, युगन्धरः, इति २ रथस्याश्वबन्धनकाष्ठस्य। रथाधःस्थं काष्टं अनुकर्षः १। युगायुगः प्रासङ्ग इति १। ना पुमान् । सर्वं हस्त्यश्वादिवाहनं यानादिशब्दवाच्यम् १ ॥-यानम् , युग्यम् , पत्रम , धोरणम् , इति ४ यत्परम्परावाहनं शिबिकादि तत् वैनीतकं स्यात् ॥-आधोरणाः, हस्तिपकाः, हस्त्यारोहा, निषादिनः, इति ४ हस्तिपकेषु ॥-नियन्ता, प्राजिता, यन्ता, सूतः, क्षत्ता, सारथिः, सव्येष्ठः, दक्षिणस्थः, इति ८ रथकुटुम्बिनः ॥-रथिनः, स्यन्दनारोहाः, इति २ रथानारुह्य युध्यताम् ॥-अश्वारोहाः, सादिनः, इति २ अश्ववाराणाम् ॥-भटः, योधः, योद्धा, इति ३ योद्धः ॥-सेनारक्षाः, सैनिकाः, इति २ सेनारक्षकाणाम् । ये सेनायां समवेतास्ते सैन्याः , सैनिकाः; इति २। ये सहस्रेण बलिनस्ते साहस्राः, सहनिणः, इति २॥-परिधिस्थः, परिचरः, इति २ दण्ड
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[ ९. क्षत्रियवर्गः परिधिस्थः परिचरः सेनानीर्वाहिनीपतिः १५९२ कञ्चको वारबाणोऽस्त्री यत्तु मध्ये सकञ्चकाः १५९३ बन्नन्ति तत्सारसनमधिकाङ्गोऽथ शीर्षकम् १५९४ शीर्षण्यं च शिरस्त्रेऽथ तनुत्रं वर्म दंशनम् १५९५ उरश्छदः कङ्कटको जगरः कवचोऽस्त्रियाम् १५९६ आमुक्तः प्रतिमुक्तश्च पिनद्धश्चापिनद्धवत् १५९७ संनद्धो वर्मितः सजो दंशितो व्यूढकङ्कटः १५९८ त्रिष्वामुक्तादयो वर्मभृतां कावचिकं गणे १५९९ पदातिपत्तिपदगपादातिकपदाजयः
१६०० पद्गश्च पदिकश्चाथ पादातं पत्तिसंहतिः
१६०१ शस्त्राजीवे काण्डपृष्ठायुधीयायुधिकाः समाः १६०२ कृतहस्तः सुप्रयोगविशिखः कृतपुङ्खवत्
१६०३ अपराद्धपृषत्कोऽसौ लक्ष्याद्यश्चयुतसायकः १६०४ धन्वी धनुष्मान् धानुष्को निषङ्गयस्त्री धनुर्धरः १६०५ नायकस्य ॥–सेनानीः, वाहिनीपतिः, इति २ सेनापतेः॥-कञ्चकः, वारवाणः, इति २ सन्नाहस्य चोलकादेः । सकच्चु काः पुरुषामध्ये यश्नन्ति तत्सारसनम्, अधिकाङ्गः, इति २ ॥ शीर्षकम् , शीर्षण्यम् , शिरस्त्रम् , इति ३ शिरस्त्रस्य ॥तनुत्रम् , वर्म, दंशनम् , उरश्छदः,कङ्कटकः,जगरः, कवचः, इति ७ कवचस्याआमुक्तः, प्रतिमुक्तः, पिनद्धः, अपिनद्धः, इति ४ परिहितकञ्चकादेः ।संनद्धः, वर्मितः, सजः, दंशितः, व्यूढ कङ्कटः, इति ५ कवचभृतः । आमु. क्तादयस्त्रिषु। वर्मभृतां कवचिनां गणे कावचिकमिति १ । पदातिः, पत्तिः, पदगः, पादातिकः, पदाजिः, पदः पदिकः, इति ७ पदातेः । पत्तिसंहतिः पादातमिति १ ॥- शस्त्राजी :, काण्डपृष्ठः, आयुधीयः, आयुधिकः, इति ४ आयुधजीविनः ॥-कृतहस्तः, सुप्रयोगविशिखः, कृतपुतः, इति ३ शरनिक्षेपनिष्णातस्य। लक्ष्याद्वेध्यात् च्युतः सायको यस्य सोऽपराद्धपृषत्कः स्यात् १॥धन्वी, धनुष्मान् , धानुष्कः, निषङ्गी, अस्त्री, धनुर्धरः, इति ६ धनुर्धरस्य ॥
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पतयः १५९२-१६१८] द्वितीयं काण्डम् स्यात्काण्डवांस्तु काण्डीरः शाक्तीकः शक्तिहेतिकः १६०६ याष्टीकपारश्वधिको यष्टिपर्श्वधहेतिको
१६०७ नैस्त्रिंशिकोऽसिहेतिः स्यात्समौ प्रासिककौन्तिकौ १६०८ चर्मी फलकपाणिः स्यात् पताकी वैजयन्तिकः १६०९ अनुप्लवः सहायश्चानुचरोऽभिसरः समाः १६१० पुरोगाग्रेसरप्रष्ठाग्रतःसरपुरःसराः
१६११ पुरोगमः पुरोगामी मन्दगामी तु मन्थरः १६१२ जङ्घालोऽतिजवस्तुल्यौ जवाकारिकजाडिको १६१३ तरस्वी त्वरितो वेगी प्रजवी जवनो जवः १६१४ जय्यो यः शक्यते जेतुं जेयो जेतव्यमात्रके
१६१५ जैवस्तु जेता यो गच्छत्यलं विद्विपतः प्रति १६१६ सोऽभ्यमित्र्योऽभ्यमित्रीयोऽप्यभ्यमित्रीण इत्यपि १६१७ ऊर्जस्वलः स्यादर्जस्वी य ऊर्जातिशयान्वितः १६१८ काण्डवान् , काण्डीरः, इति २ शरधारिणः ॥-शाक्तीकः, शक्तिहेतिकः, इति २ शक्त्यायुधधारिणः । यष्टिहेति को याष्टीकः । परश्वधः, परशुः हेतियस्य स पारश्वधिकः स्यात् १॥-असिः हेतिर्यस्य स नैस्त्रिंशिकः १॥प्रासिकः, कौन्तिकः, इति २ तत्तदायुधधारिणः । चर्मी, फलकपाणिः, इति २ चर्मधारिणः ॥ पताकी, वैजयन्तिकः, इति २ पताकां बिभ्रतः ॥-अनुप्लवः, सहायः, अनुचरः, अभिसरः, इति ४ अनुचरस्य ॥-पुरोगः, अग्रेसरः, प्रष्ठः, अग्रतः. सरः, पुरःसरः, पुरोगमः, पुरोगामी, इति ७ पुरोगामिनः ॥-मन्दगामी, मन्थरः, इति २ मन्थरस्य ॥-जङ्घालः, अतिजवः, इति २ अतिवेगवतः ॥-जङ्घाकरिकः, जाचिकः, इति २ जवाबलजीविनः ॥-तरखी, त्वरितः, वेगी, प्रजवी, जवनः, जवः, इति ६ त्वरितमात्रस्य ॥ यो जेतुं शक्यते स जय्यः जेय इति १ जेतव्यमात्रके १॥-जैत्रः, जेता, इति २ जेतुः। यो विद्विषतः प्रति अलं योद्धुं गच्छति स अभ्यमित्र्यः, अभ्यमित्रीयः, अभ्यमित्रीणः, इति ३ । य ऊर्जस्य पराक्रमस्यातिशयेन युक्तः स ऊर्जखलः, ऊर्जस्वी, इति २ ॥
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स्यादुरस्वानुरसिलो रथिरो रथिको रथी कामंगाम्यनुकामीनो ह्यत्यन्तीनस्तथा भृशम् शूरो वीरश्च विक्रान्तो जेता जिष्णुश्च जित्वरः सांयुगीनो रणे साधुः शस्त्राजीवादयस्त्रिषु ध्वजिनी वाहिनी सेना पृतनाऽनीकिनी चमूः वरूथिनी बलं सैन्यं चक्रं चानीकमस्त्रियाम् व्यूहस्तु बलविन्यासो भेदा दण्डादयो युधि प्रत्यासारो व्यूहपाष्णिः सैन्यपृष्ठे प्रतिग्रहः एकेभैकरथा त्र्यश्वा पत्तिः पञ्चपदातिका पत्यङ्गैस्त्रिगुणैः सर्वैः क्रमादाख्या यथोत्तरम् सेनामुखं गुल्मगणौ वाहिनी पृतना चमूः अनीकिनी दशानीकिन्यक्षौहिण्यथ संपदि संपत्तिः श्रीश्च लक्ष्मीश्च विपत्त्यां विपदापदौ आयुधं तु प्रहरणं शस्त्रमस्त्रमधास्त्रियों
[ ९. क्षत्रियवर्गः
१६१९
१६२०
१६२१
१६२२
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१६२४
१६२५
१६२६
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१६२८
१६२९
१६३०
१६३१
१६३२
,
उरखान्, उरसिलः, इति २ विशालवक्षसः ॥ - रथिरः, रथिकः, रथी, इति ३ रथस्वामिनः । यः कामंगामी सोऽनुकामीनः स्यात् १ | यो भृशंगामी सोऽत्यन्तीनः १ ॥ - शूरः, वीरः, विक्रान्तः, इति ३ शूरस्य ॥ जेता, जिष्णुः, जित्वरः, इति ३ जयनशीलस्य । रणे साधुः सांयुगीनः १| शस्त्राजीवादयः सांयुगीनान्तास्त्रिषु ॥ - ध्वजिनी, वाहिनी, सेना, पृतना, अनीकिनी, चमूः, वरूथिनी, बलम्, सैन्यम्, चक्रम्, अनीकम् इति ११ सेनायाः ॥ -- बलस्य युद्धार्थे विन्यासो व्यूह इति १ | युधि दण्डादयो व्यूहस्य मेदाः । प्रत्यासारः, व्यूहपाणिः, इति २ व्यूहपश्चाद्भागस्य ॥ - सैन्यपृष्ठः, प्रतिग्रहः, इति २ सेनायाः पश्चाद्भागस्य । एकेभा, एकरथा, त्र्यश्वा, पञ्चपदातिका, सेना पत्तिः स्यात् १ । पत्त्यङ्गैः त्रिगुणैर्यथोत्तरं क्रमात्सेनामुखादय आख्याः स्युः ॥ तद्यथा - सेनामुखम्, गुल्मः, गणः, वाहिनी, पृतना, चमूः, अनीकिनी, दशानीकिनी, अक्षौहिणी, इति ॥ - संपत, संपत्तिः, श्रीः, लक्ष्मीः, इति ४ संप्रदः ॥ विपत्तिः, विपत्, आपत्, इति ३ आपदः ॥ -- आयुधम् प्रहरणम्, शस्त्रम्, अस्त्रम् इति ४ शस्त्र
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पलयः १६१९-१६४५] द्वितीयं काण्डम् धनुश्चापौ धन्वशरासनकोदण्डकार्मुकम्
१६३३ इष्वासोऽप्यथ कर्णस्य कालपृष्ठं शरासनम् १६३४ कपिध्वजस्य गाण्डीवगाण्डिवी पुनपुंसको १६३५ कोटिरस्याटनी गोधे तले ज्याघातवारणे १६३६ लस्तकस्तु धनुर्मध्यं मौर्वी ज्या शिञ्जिनी गुणः १६३७ स्यात्प्रत्यालीढमालीढमित्यादि स्थानपञ्चकम् १६३८ लक्षं लक्ष्यं शरव्यं च शराभ्यास उपासनम १६३९ पृषत्कबाणविशिखा अजिह्मगखगाशुगाः
१६४० कलम्बमार्गणशराः पत्री रोप इषुद्धयोः
१६४१ प्रक्ष्वेडनास्तु नाराचाः पक्षो वाजस्त्रिघूत्तरे १६४२ निरस्तः प्रहिते बाणे विषाक्ते दिग्धलिप्तको १६४३ तूणोपासङ्गतूणीरनिषङ्गा इषुधियोः
१६४४ तूण्यां खड्ग तु निस्त्रिंशचन्द्रहासासिरिष्टयः १६४५ मात्रस्य ॥-धनुः, चापः, धन्व, शरासनम् , कोदण्डम् , कार्मुकम् , इष्वासः, इति धनुषः। तत्र धनुश्वापे क्लीबे पुंसि च । कर्णस्य धनुः कालपृष्ठं स्यात् १॥ ----गाण्डीवः, गाण्डिवः, इति २ अर्जुनस्य धनुषि । क्लीवेऽपि । कोटिः, अटनी, इति २ धनुषः प्रान्ते ॥-गोधा, तलम् , इति २ ज्याघातवारणे । धनुषो मध्यं लस्तक इति १ ॥--मौर्वी, ज्या, शिजिनी, गुणः, इति ४ धनुगुणस्य । प्रत्यालीढं, आलीढं इत्यादयः पञ्च धनुर्धराणां स्थितिमेदाः । आदिना समपदम्, वैशाखम् , मण्डलं च ।।-लक्षम् , लक्ष्यम् , शरव्यम्, इति ३ वेध्यस्य।-शराभ्यासः, उपासनम् , इति २शरक्षेपाभ्यासस्य।-पृषत्कः बाणः, विशिखः, अजिह्मगः, खगः, आशुगः, कलम्बः, मार्गणः, शरः, पत्री, रोपः, इषुः, इति १२ बाणस्य । तत्रेषुः स्त्रीपुंसयोः ॥-प्रक्ष्वेडनः, नाराचः, इति २ लोहमयस्य बाणस्य ॥-पक्षः, वाजः, इति २ कड्वादिपक्षस्य । उत्तरे निरस्तादिलिप्तकान्तास्त्रिषु । प्रहिते बाणे निरस्त इति १ ॥ विषाकः, दिग्धः, लिप्तकः, इति ३ विषाक्त बाणे ॥-तूणः, उपासकः, तूणीरः, निषङ्गः, इषधिः, तूणी, इति ६ इषुधेः । इषुधिः स्त्रीपुंसयोः।-साः,निविंशः, चन्द्रहासः,
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[९. क्षत्रियवर्गः
कौक्षेयको मण्डलायः करवालः कृपाणवत् १६४६ त्सरुः खड्गादिमुष्टौ स्यान्मेखला तन्निबन्धनम् फलकोऽस्त्री फलं चर्म संग्राहो मुष्टिरस्य यः १६४८ द्रुघणो मुद्रघनौ स्यादीली करवालिका
१६४९ भिन्दिपालः सृगस्तुल्यौ परिघः परिघातिनः द्वयोः कुठारः स्वधितिः परशुश्च परश्वधः १६५१ स्याच्छस्त्री चासिपुत्री च छुरिका चासिधेनुका वा पुंसि शल्यं शहना सर्वला तोमरोऽस्त्रियाम् १६५३ प्रासस्तु कुन्तः कोणस्तु स्त्रियः पाल्यश्रिकोटयः १६५४ सर्वाभिसारः सर्वोघः सर्वसनहनार्थकः
१६५५ लोहाभिसारोऽस्त्रभृतां राज्ञां नीराजनाविधिः १६५६ यत्सेनयाभिगमनमरौ तदभिषेणनम्
१६५७ यात्रा ज्याऽभिनियोणं प्रस्थानं गमनं गमः १६५८ असिः, रिष्टिः, कोक्षेयकः, मण्डलाग्रः, करवालः, कृपाणः, इति ९ खङ्गस्य । खड्गस्य मुष्टौ त्सरुरिति १ । तस्य खड्गस्य मुष्टेः निबन्धनं मेखला स्यात् १॥-फलकः, फलम् , चर्म, इति ३ चर्मणः।-अस्य फलकस्य यो मुष्टिः स संग्राहः १॥द्रुघगः, मुद्गरः, घनः, इति ३ मुद्गरस्य ॥-ईली, करवालिका, इति २ हवखङ्गाकृतेरेकधारस्य शस्त्रस्य ॥-मिन्दिपालः, सृगः, इति २ अश्मप्रक्षेपसाधनस्य ॥-परिघः, परिघातिनः, इति २ लोहबद्धहस्तप्रमाणलगुडस्य ॥ कुठारः, खधितिः, परशुः, परश्वधः, इति ४ कुठारस्य ॥-तत्र कुठारः स्त्रीपुंसयोः ॥-शस्त्री, असिपुत्री, छुरिका, असिधेनुका, इति ४ रिकायाः ॥-शल्यम् , शङ्खः, इति २ बाणाग्रस्य। शङ्कुः ना पुमान् ॥-सर्वला, तोमरः, इति २ मन्थदण्डाकारशस्त्रभेदस्य ॥ प्रासः, कुन्तः, इति २ प्रासस्य॥ कोणः, पालिः, अश्रिः, कोटिः, इति ४ खड्गादिप्रान्तभागस्य ॥-सर्वामिसारः, सर्वोघः, सर्वसंनहनम् , इति ३ चतुरङ्गसैन्यसंनहनस्य। अस्त्रभृतां राज्ञां नीराजने शस्त्रादिसमर्पणविधिः स लोहाभिसार इति १। अरौ यत्सेनया सहाभिगमनं तदभिषेणनं स्यात् १॥यात्रा, व्रज्या, अभिनिर्याणम् , प्रस्थानम् , गमनम् , गमः,
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पतयः १६४६-१६७१] द्वितीयं काण्डम् स्यादामारः प्रसरणं प्रचक्रं चलितार्थकम्
१६५९ अहितान्प्रत्यभीतस्य रणे यानमभिक्रमः वैतालिका बोधकराश्चाक्रिका घाण्टिकार्थकाः १६६१ स्युगिधास्तु मगधा बन्दिनः स्तुतिपाठकाः १६६२ संशप्तकास्तु समयात्सङ्ग्रामादनिवर्तिनः
१६६३ रेणुद्धयोः स्त्रियां धूलिः पांशुर्ना न द्वयो रजः १६६४ चूर्णे क्षोदः समुत्पिञ्जपिञ्जलौ भृशमाकुले १६६५ पताका वैजयन्ती स्यात् केतनं ध्वजमस्त्रियाम् १६६६ सा वीराशंसनं युद्धभूमिर्याऽतिभयप्रदा
१६६७ अहंपूर्वमहंपूर्वमित्यहपूर्विका स्त्रियाम्
१६६८ आहोपुरुषिका दाद्या स्यात्संभावनात्मनि १६६९ अहमहमिका तु सा स्यात् परस्परं यो भवत्यहंकारः १६७० द्रविणं तरः सहोबलशौर्याणि स्थाम शुष्मं च १६७१ इति ६ प्रयाणस्य ॥--आसारः, प्रसरणम् , इति २ सैन्यस्य सर्वतोव्याप्तेः ॥ प्रचक्रम् , चलितम् , इति २ प्रस्थितसैन्यस्य । रणे अहितान्प्रति भयरहितम्य शूरस्य यद्गमनं सोऽभिकम इति १॥-वैतालिकाः, बोधकराः, इति २ प्रातः स्तुतिपाठेन वोधकानाम् ॥-चाक्रिकाः, घाण्टिकाः, इति २ बन्दिविशेषेषु। मागधाः, मगधाः, इति २ राजवंशक्रमस्तावकानाम्॥-बन्दिनः, स्तुतिपाठकाः, इति २ राजादिस्तुतिपाठकेषु । समयात्सङ्ग्रामादनिवर्तिनः संशप्तकाः स्युः १॥ रेणुः, धूलिः, पांशुः, रजः, इति ४ धूल्याः । रेणुः स्त्रीपुंसयोः। धूलिः बियाम् । पांशुः पुंसि । रजः क्लीबे ॥-चूर्णम् , क्षोदः, इति २ पिष्टस्य रजसः । चूर्णः पुंस्यपि ॥-समुत्पिनः, पिञ्जलः, इति २ अत्यन्तमाकुले सैन्यादी॥-पताका, वैजयन्ती, केतनम् , ध्वजम् , इति ४ पताकायाः। ध्वजः पुनपुंसकयोः । या युद्धभूमिः अतिभयदा सा वीराशंसनं स्यात् १ । अहंपूर्वमहंपूर्वीमति युद्धं अहंपूर्विका स्यात् १ । स्त्रियाम् । दोदात्मविषये या संभावना सा आहोपुरुषिकेत्युच्यते १। यः परस्परम् 'अहं शक्तोऽहं शक्तः' इत्यहंकारः सा अहमहमिका स्यात् १॥-द्रविणम् , तरः, सहः, बलम्, शौर्यम् ,स्थाम, शुष्मम् ,
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ममरकोपे
[९. क्षत्रियवर्गः
शक्तिः पराक्रमः प्राणो विक्रमस्त्वतिशक्तिता १६७२ वीरपानं तु यत्पानं वृत्ते भाविनि वा रणे १६७३ युद्धमायोधनं जन्यं प्रधनं प्रविदारणम्
१६७४ मृधमास्कन्दनं संख्यं समीकं सांपरायिकम् १६७५ अस्त्रियां समरानीकरणाः कलहविग्रही संप्रहाराभिसंपातकलिसंस्फोटसंयुगाः अभ्यामर्दसमाघातसङ्ग्रामाभ्यागमाहवाः
१६७८ समुदायः स्त्रियः संयत्समित्याजिसमिधुधः १६७९ नियुद्धं बाहुयुद्धेऽथ तुमुलं रणसंकुले श्वेडा तु सिंहनादः स्यात् करिणां घटना घटा १६८१ क्रन्दनं योधसंरावो बृंहितं करिगर्जितम् १६८२ विस्फारो धनुषः स्वानः पटहाडम्बरौ समौ प्रसभं तु बलात्कारो हठोऽथ स्खलितं छलम् १६८४ अजन्यं क्लीबमुत्पात उपसर्गः समं त्रयम्
१६८५ शक्तिः, पराक्रमः, प्राणः, इति १० पराक्रमस्य ॥-विक्रमः, अतिशक्तिना, इति २ अतिपराक्रमस्य।रणे वृत्ते सति भाविनि वा रणे तदुत्साहवृद्ध्यर्थं यद्वीराणां मद्यपानं तत् वीरपानं स्यात् १॥-युद्धम् , आयोधनम् ,जन्यम् ,प्रधनम्, प्रविदारणम्, मृधम् , आस्कन्दनम् , सङ्ख्यम् , समीकम् , सांपरायिकम् , समरः, अनीकः, रणः, कलहः, विग्रहः, संप्रहारः, अभिसंपातः, कलिः, संस्फोटः, संयुगः, अभ्यामर्दः, समाघातः, संग्रामः, अभ्यागमः, आहवः, समुदायः, संयत् , समितिः, आजिः, समित् ,युत् , इति ३१ युद्धस्य। समरादित्रयं अस्त्रियाम् ॥--नियुद्धम् , बाहुयुद्धम् , इति २ बाहुयुद्धस्या तुमुलमिति रणस्य संकुले १॥-वेडा, सिंहनादः, इति २ वीराणां सिंहनादतुल्यनादस्य। करिणां घटना युद्धे संघट्टनं घटा स्यात् ११ योधानां संरावः स्पर्धयाऽऽह्वानं क्रन्दनं स्यात् १। करिणां गर्जितं बृंहितं स्यात् १ । धनुषः शब्दो विस्फार इति ॥-पटहः, आडम्बरः, इति २ संग्रामध्वनेः।प्रसभम् , बलात्कारः, हठः, इति ३ बलात्कारस्य ॥-स्खलितम् , छलम् , इति २ युद्धमर्यादायाश्चलनस्य ।-अजन्यम् , उत्पातः, उपसर्गः, इति ३ उत्पा
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पतयः १६७२-१६९९] द्वितीयं काण्डम् मूछा तु कश्मलं मोहोऽप्यवमर्दस्तु पीडनम् १६८६ अभ्यवस्कन्दनं त्वभ्यासादनं विजयो जयः १६८७ वैरशुद्धिः प्रतीकारो वैरनिर्यातनं च सा
१६८८ पद्रावोद्रावसंद्रावसंदावा विद्रवो द्रवः
१६८९ अपक्रमोऽपयानं च रणे भङ्गः पराजयः १६९० पराजितपराभूतौ त्रिषु नष्टतिरोहितौ
१६९१ प्रमापणं निबर्हणं निकारणं विशारणम्
१६९२ प्रवासनं परासनं निषदनं निहिंसनम्
१६९३ निर्वासनं संज्ञपनं निर्ग्रन्थनमपासनम्
१६९४ निस्तहणं निहननं क्षणनं परिवर्जनम् निर्वापणं विशसनं मारणं प्रतिघातनम्
१६९६ उद्वासनप्रमथनक्रथनोजासनानि च
१६९७ आलम्भपिञ्जविशरघातोन्माथवधा अपि
१६९८ स्यात्पञ्चता कालधर्मो दिष्टान्तः प्रलयोऽत्ययः १६९९ तस्य ॥--मूर्छा, कश्मलम् , मोहः, इति ३ मूछीयाः॥-अवमर्दः, पीडनम् , इति २ सस्यादिसंपन्नदेशे परचक्रपीडनस्य॥--अभ्यवस्कन्दनम् , अभ्यासादनम् , इति २ छलादाक्रमणस्य ॥---विजयः, जयः, इति २ लब्धस्योत्कर्षस्य ॥--वैरशुद्धिः, प्रतीकारः, वैरनिर्यातनम्, इति ३ वैरप्रतीकारस्य ॥ प्रदावः, उद्रावः, संद्रावः, संदावः, विद्रवः, द्रवः, अपक्रमः, अपयानम् , इति । पलायनस्य । यः रणे भङ्गः स पराजय इति १॥-पराजितः, पराभूतः, इति २ निर्जितस्य । नष्टः, तिरोहितः, इति २ निलीनस्य । त्रिष्विति उभयत्र युज्यते॥-प्रमापणम् ,निबर्हणम् , निकारणम् , विशारणम् , प्रवासनम् , परासनम् , निषूदनम् , निहिंसनम् , निर्वासनम् , संज्ञपनम् , निम्रन्थनम् , अपासनम् , निस्तहणम् , निहननम् , क्षणनम्, परिवर्जनम् , निर्वापणम् , विशसनम् , मारणम् , प्रतिघातनम् , उद्वासनम् , प्रमथनम् , कथनम् , उज्जासनम् , आलम्भः, पिञ्जः, विशरः, धातः, उन्मायः, वधः, इति ३० वधस्य ॥ पञ्चता, कालधर्मः, दिष्टान्तः, प्रलयः,
अ. को, स. १०
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१४६
अमरकोषे
[१०. वैश्यवर्गः
अन्तो नाशो द्वयोर्मृत्युर्मरणं निधनोऽस्त्रियाम् १७०० परासुप्राप्तपञ्चत्वपरेतप्रेतसंस्थिताः
१७०१ मृतप्रमीतौ त्रिष्वेते चिता चित्या चितिः स्त्रियाम् १७०२ कबन्धोऽस्त्री क्रियायुक्तमपमूर्धकलेवरम्
१७०३ श्मशानं स्यात्पितृवनं कुणपः शवमस्त्रियाम्
१७०४ प्रग्रहोपग्रही बन्द्यां कारा स्याद्वन्धनालये
१७०५ पुंसि भूम्यसवः प्राणाश्चैवं जीवोऽसुधारणम् १७०६ आयुर्जीवितकालो ना जीवातुर्जीवनौषधम् १७०७
१०. वैश्यवर्गः ऊरव्या ऊरुजा अर्या वैश्या भूमिस्पृशो विशः १७०८ आजीवो जीविका वार्ता वृत्तिर्वर्तनजीवने १७०९ स्त्रियां कृषिः पाशुपाल्यं वाणिज्यं चेति वृत्तयः १७१० सेवा श्ववृत्तिरनृतं कृषिञ्छशिलं त्वृतम्
१७११ अत्ययः, अन्तः, नाशः, मृत्युः, मरणम्, निधनः, इति १० मरणस्य । तत्र मृत्युद्धयोः । निधनमस्त्रियाम् ॥--परासुः, प्राप्तपञ्चत्वः, परेतः, प्रेतः, संस्थितः, मृतः, प्रमीतः, इति ७ मृतस्य । एते त्रिषु ॥-चिता, चित्या, चितिः, इति ३ प्रेतदाहाधारचुल्लेः । अपमूर्ध नर्तन क्रियायुक्तं यत्कलेवरं स कबन्धः स्यात् , इति । पुं-नपुंसकयोः ॥–श्मशानम् , पितृवनम् , इति २ प्रेतभूमेः ॥-कुणपः, शवम् , इंति २ निर्जीवशरीरस्य । शवं पुं-नपुंसकयोः ॥-प्रग्रहः, उपग्रहः, बन्दी, इति ३ चौरादेराकर्षणस्य । बन्धनगेहे कारेति ॥-असवः, प्राणाः, इति २ प्राणानाम् । उभे भूनि । जीवः, असुधारणम् , इति २ प्राणधारणस्या जीवितावच्छिन्नः काल आयुः स्यात् १। जीवितस्योषधं जीवातुः स्यात् १। ना पुमान् ।
१७०८-१९२९ ऊरव्यः, ऊरुजः, अर्यः, वैश्यः, भूमिस्पृक्, विद , इति ६ वैश्यस्य ॥ आजीवः, जीविका, वार्ता, वृत्तिः, वर्तनम् , जीवनम् , इति ६ जीविकामात्रस्य ॥-कृषिः, पाशुपाल्यम् , वाणिज्यम् , इति ३ वैश्यानां वृत्तयः। सेवा श्ववृत्तिरिति १। कृषिरनृतं स्यात् १। उन्छशिलं ऋतमित्युच्यते ।
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द्वितीयं काण्डम्
पङ्क्तयः १७०० - १७२४ ] द्वे याचितायाचितयोर्यथासंख्यं मृतामृते सत्यानृतं वणिग्भावः स्यादृणं पर्युदञ्चनम् उद्धारोऽर्थप्रयोगस्तु कुसीदं वृद्धिजीविका याच्ञयाप्तं याचितकं निमयादापमित्यकम् उत्तमर्णाधमर्णौ द्वौ प्रयोक्तृग्राहकौ क्रमात् कुसीदिको वार्धुषिको वृद्ध्याजीवश्च वार्धुषिः क्षेत्राजीवः कर्षकश्च कृषिकक्ष कृषीवलः क्षेत्रं वैहेयशालेयं व्रीहिशाल्युद्भवोचितम् यव्यं यवक्यं षष्टिक्यं यवादिभवनं हि यत् तिल्यं तैलीनवन्माषोमाणुभङ्गा द्विरूपता मौद्गीनको द्रवीणादिशेषधान्योद्भवक्षमम् 'शाकक्षेत्रादिके शाकशाकटं शाकशाकिनम्' बीजाकृतं तूप्तकृष्टे सीत्यं कृष्टं च हल्यवत् त्रिगुणाकृतं तृतीयाकृतं त्रिहल्यं त्रिसीत्यमपि तस्मिन् १७२४
१७२३
१४७
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१७१२
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**
प्रत्यहं याचिते मृतमिति १ । अयाचिते अमृतमिति १ । वणिग्भाव सत्यानृतं स्यात् १ ॥ - ऋणम्, पर्युदञ्चनम् उद्धारः, इति ३ ऋणस्य ॥ - अर्थप्रयोगः, कुसीदम्, वृद्धिजीविका, इति ३ ऋण संबन्धिकालान्तरद्रव्येण जी विकायाम् । याच्जया यदाप्तं तत याचितकमिति १ । निमयात् आप्तं आपमित्यकम् १ प्रयोक्ता ऋणदाता उत्तमर्ण इति १ । ऋणग्राहकोऽधमर्ण इति १ ॥ कुसीदिकः, वार्धुषिकः, वृद्ध्याजीवः, वार्धुषिः, इति ४ ऋणं दत्वा तद्वृद्ध्याजीविनः ॥ - क्षेत्राजीवः कर्षकः, कृषिकः, कृषीवलः, इति ४ कृषीवलस्य त्रीद्भवोचितं क्षेत्रं वैहेयमिति १ । शाल्युद्धवोचितं क्षेत्रं शालेयमिति १ । यवादीनां भवनं यव्यं, यवक्यं, षष्टिक्यं, इति ३ तिल्यं तैलीन वन्माषोमाणुभङ्गानां क्षेत्रविषये द्विरूपता स्यात् । तिल्यम्, तैलीनम्, इति २ ॥ - शेषाणां व्रीह्यादिभ्य उक्तेभ्योऽन्येषां मुद्रादीनां धान्यानामुद्भव द्ववोचितं क्षेत्र मौद्गीनादि स्यात् एकैकम् उप्तकृष्टे बीजाकृत मिति १ ॥ - सीत्यम्, कृष्टम्, हल्यम् इति ३ कृष्टमात्रस्य ॥ - त्रिगुणाकृतम्, तृतीयाकृतम्, त्रिहल्यम्, त्रिसीत्यम्, इति ४ वारत्रयकृष्टस्य । द्विगुणाकृतेऽपि सर्व पूर्व योज्यम् । इह
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अमरकोषे
द्विगुणाकृते तु सर्व पूर्व शम्बाकृतमपीह द्रोणाढकादिवापादौ द्रौणिकाढकिकादयः खारीवापस्तु खारीक उत्तमर्णादयस्त्रिषु पुंनपुंसकयोर्वप्रः केदारः क्षेत्रमस्य तु कैदारकं स्यात्कैदार्य क्षेत्रं कैदारिकं गणे लोष्टानि लेष्टवः पुंसि कोटिशो लोष्टभेदनः प्राजनं तोदनं तोत्रं खनित्रमवदारणे दात्रं लवित्रमाबन्धो योत्रं योक्त्रमथो फलम् निरीशं कुटकं फालः कृषको लाङ्गलं हलम् गोदारणं च सीरोऽथ शम्या स्त्री युगकीलकः ईषा लाङ्गलदण्डः स्यात् सीता लाङ्गलपद्धतिः पुंसि मेधिः खलेदारु न्यस्तं यत्पशुबन्धने आशुत्रीहिः पाटलः स्याच्छितशुकयवौ समौ
[ १०. वैश्यवर्गः
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१७२५
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१७२८
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१७३०
१७३१
१७३२
१७३३
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१७३६
१७३७
"
द्विःकृष्टे शम्बा कृतमित्यपि १ । द्रोणाढका दिवापादौ द्रौणिकाढकिकादयः स्युः । खारीवापः खारीक इति १ । उत्तमर्णादयः खारीकान्ताः त्रिलियाम् ॥वप्रः, केदारः, क्षेत्रम्, इति ३ क्षेत्रस्य । क्षेत्रस्य गणे कैदारकम्, कैदार्यम्, क्षेत्रम्, कैदारिकम् इति ४ ॥ - लोष्टम् लेष्टुः इति २ मृत्तिकाखण्डस्य । लोष्टं पुंस्यपि ॥ - कोटिशः, लोष्टभेदन:, इति २ लोटभञ्जनमुद्गरस्य ॥ -- प्राजनम्, तोदनम्, तोत्रम् इति ३ वृषादेस्ताडनोपयोगिनस्तोत्रस्य खनित्रम्, अवदारणम्, इति २ कुद्दालादेः ॥ - दात्रम्, लवित्रम् इति २ लवित्रस्य ॥ - आबन्धः, योत्रम्, योक्त्रम् इति ३ युगबन्धनोपयोगिन्यां रज्जौ ॥ -- फलम्, निरीशम्, कुटकम्, फाल:, कृषकः, इति ५ लाङ्गलस्याधः स्थिते लोहमय काष्ठे ॥ - लाङ्गलम् हलम्, गोदारणम्, सीरः, इति ४ हलस्य ॥—शम्या, युगकीलकः, इति २ युगस्य कीलके । लाङ्गलस्य दण्ड ईषा स्यात् १ । लाङ्गलपद्धतिः हलरचिता रेखा सीता स्यात् १ । पशुबन्धने यत्काष्टं न्यस्तं तत्र मेधिः, खलेदारु, इति २ ॥ आशुः व्रीहिः, पाटल:, इति ३ व्रीहेः ॥
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पतयः १७२५-१७५० ] द्वितीयं काण्डम् तोक्मस्तु तत्र हरिते कलायस्तु सतीनकः १७३८ हरेणुखण्डिको चास्मिन्कोरदूषस्तु कोद्रवः १७३९ मङ्गल्यको मसूरोऽथ मकुष्टकमयुष्टको
१७४० वनमुन्द्रे सर्षपे तु द्वौ तन्तुभकदम्बको
१७४१ सिद्धार्थस्त्वेष धवलो गोधूमः सुमनः समौ १७४२ स्याद्यावकस्तु कुल्मापश्चणको हरिमन्थकः १७४३ द्वौ तिले तिलपेजश्च तिलपिञश्च निष्फले १७४४ क्षवः क्षुताभिजननो राजिका कृष्णिकासुरी १७४५ स्त्रियो कङ्गुप्रियङ्ग द्वे अतसी स्यादुमा रुमा १७४६ मातुलानी तु भङ्गायां व्रीहिभेदस्त्वणुः पुमान् १७४७ किंशारुः सस्यशूकं स्यात् कणिशं सस्यमञ्जरी १७४८ धान्यं व्रीहिः स्तम्बकरिः स्तम्बो गुच्छस्तृणादिनः १७४९ नाडी नालं च काण्डोऽस्य पलालोऽस्त्री स निष्फलः १७५० शितशूकः, यवः, इति २ यवानाम् । तत्र यवे हरिते तोक्म इति १॥कलायः, सतीनकः, हरेणुः, [ रेणुकः ], इति ४ रेणुकस्य ॥-कोरदूषः, कोद्रवः, इति २ कोद्रवस्य । मङ्गल्यकः, मसूरः, इति २ मसूरस्य ॥-मकुष्टकः, मयुष्टकः, वनमुद्गः, इति ३ वनमुद्स्य , ॥-सर्षपः, तन्तुभः, कदम्बकः, इति ३ सर्षपस्य । एष सर्षपो धवलः सिद्धार्थ इति १॥-गोधूमः, सुमनः, इति २. गोधूमस्य । सुमनो दन्तः॥-- यावकः, कुल्माषः, इति २ अर्धसिनस्य यवादेः ॥-चणकः, हरिमन्थकः, इति २ चणकस्य ।।--तिलपेजः, तिलपिजः, इति २ निष्फले.तिले ॥ क्षषः, अताभिजननः, राजिका, कणिका, भासुरी, इति... कृष्णसर्षपस्य ॥-कङ्गुः, प्रियनुः, इति २ प्रियकोः, ॥-अतसी, उमा, क्षुमा, इति ३ अतस्याः ॥---मातुलानी, भङ्गा, इति २ भङ्गायाः ॥ व्रीहिभेदः अणुः स्यात् १। सस्यस्य शूकं किंशारुः स्यात् १। सस्यस्य मजरी कणिशमिति १॥ --धान्यम् , व्रीहिः, स्तम्बकरिः, इति ३. वीहियवादेः । स्तम्बकरिः पुंसि । तृणयवादेगुच्छस्य स्तम्बः स्यात् १ । अस्य गुच्छस्य यः काण्डः स नाही, नालम् , इति
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१५०
अमरकोपे
[१०. वैश्यवर्गः
कडङ्गरो बुसं क्लीबे धान्यत्वचि तुषः पुमान् १७५१ शूकोऽस्त्री श्लक्ष्णतीक्ष्णाग्रे शमी शिम्बा त्रिषूत्तरे १७५२ ऋद्धमावसितं धान्यं पूतं तु बहुलीकृतम्
१७५३ माषादयः शमीधान्ये शूकधान्ये यवादयः १७५४ शालयः कलमाद्याश्च षष्टिकाद्याश्च पुंस्यमी १७५५ तृणधान्यानि नीवाराः स्त्री गवेधुर्गवेधुका १७५६ अयोग्रं मुसलोऽस्त्री स्यादुदूखलमुलूखलम् १७५७ प्रस्फोटनं शूर्पमस्त्री चालनी तितउः पुमान् १७५८ स्यूतप्रसेवौ कण्डोलपिटौ कटकिलिञ्जको १७५९ समानौ रसवत्यां तु पाकस्थानमहानसे
१७६० पौरोगवस्तदध्यक्षः सूपकारास्तु बल्लवाः
१७६१ २ । सकाण्डो निष्फलः पलालः स्यात् १ ॥-कड गरः, बुसम् , इति २ पलालादिक्षोदस्य । घुसं क्लीबेऽपि । धान्यत्वचि तुष इति १ । लक्ष्णं तीक्ष्णं यदग्रं तत्र शक इति १ क्लीब-पुंसोः ॥-शमी, शिम्बा, इति २ शिम्बायाः। उत्तरे ऋद्धादयश्चत्वारस्त्रिषु ॥-ऋद्धम् , आवसितम्, इति २ अपनीततृणस्य राशीकृतस्य धान्यस्य ।।-पूतम्, बहुलीकृतम्, इति २ अपनीतबुसस्य धान्यस्य । शमीप्रभवे धान्ये माषमुद्रादयो भेदाः । शूकसहितं धान्य यवगोधूमादयो झेयाः । कलमाद्याः षष्टि काद्याः शालयः स्युः १ । अमी पुंसि । नीवाराः बहुवचनात् श्यामाकादयो तृणधान्यानि स्युः ॥-गवेधुः, गवे. धुका, इति २ मुन्यन्नविशेषस्य ॥-अयोग्रम् , मुसलः, इति २ मुसलस्य। क्लीबे मुसलम् ॥-उदूखलम् , उलूखलम्, इति २ उलूखलस्य॥-प्रस्फोटनम् , शूर्पम्, इति २ शूर्पस्य ।।-चालनी, तितउः, इति २ चालन्याः ॥–स्यूतः, प्रसेवः, इति २ धान्यादिभरणार्थ कृतस्य वस्त्रभाण्डस्य ॥ कण्डोलः, पिटः, इति २ वेणुवलादिरचितभाण्डस्य ॥--कटः, किलिञ्जकः, इति २ वंशादिविकारस्य । समानाविति स्यूतादिभिर्युगलैः संबध्यते ॥-रसवती, पाकस्थानम्, महानसम् , इति ३ पाकस्थानस्य । तस्याध्यक्षः पौरोगवः
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पतयः १७५१-१७७३] द्वितीयं काण्डम्
आरालिका आन्धसिकाः सूदा औदनिका गुणाः १७६२ आपूपिकः कान्दविको भक्ष्यकार इमे त्रिषु १७६३ अश्मन्तमुद्धानमधिश्रयणी चुल्लिरन्तिका १७६४ अङ्गारधानिकाङ्गारशकट्यपि हसन्त्यपि
१७६५ हसन्यप्यथ न स्त्री स्यादङ्गारोऽलातमुल्मुकम् १७६६ क्लीवेऽम्बरीषं भ्राष्ट्रो ना कन्दुर्वा स्वेदनी स्त्रियाम् १७६७ अलिञ्जरः स्यान्मणिकः कर्कर्यालुर्गलन्तिका १७६८ पिठरः स्थाल्युखा कुण्डं कलशस्तु त्रिषु द्वयोः १७६९ घटः कुटनिपावस्त्री शरावो वर्धमानकः
१७७० ऋजीषं पिष्टपचनं कंसोऽस्त्री पानभाजनम् १७७१ कुतूः कृत्तेः स्नेहपात्रं सैवाल्पा कुतुपः पुमान् १७७२ सर्वमावपनं भाण्डं पात्रामत्रं च भाजनम्
१७७३ स्यात् १॥-सूपकारः, बल्लवः, आरालिकः, आन्धसिकः, सूदः, औदनिकः, गुणः इति ७ पाककर्तुः ॥-आपूपिकः, कान्दविकः, भश्यकारः, इति ३ भक्ष्यकारस्य । इमे त्रिषु ॥ अश्मन्तम् , उद्धानम् , अधिश्रयणी, चुलिः, अन्तिका, इति ५ चुल्लेः ॥-अङ्गारधानिका, अङ्गारशकटी, हसन्ती, हसनी, इति ४ अङ्गारशकट्याः ॥ अङ्गारः, अलातम् , उल्मुकम्, इति ३ प्रज्वलत्काष्टस्य ॥-अम्बरीषम्, भ्राष्ट्रः, इति २ चणकादिभजेनपात्रस्य ॥--- कन्दुः, खेदनी, इति २ मद्यनिर्माणोपयोगिपात्रस्य ॥-अलिञ्जरः, मणिकः, इति २ महाकुम्भस्य ॥-करी, आलुः, गलन्तिका, इति ३ गलन्तिकायाः॥-पिठरः, स्थाली, उखा, कुण्डम् , इति ४ स्थाल्याः ॥कलशः, घटः, कुटः, निपः, इति ४ कलशस्य । कलशस्त्रिषु । घटः स्त्रीपुंसयोः ।।--शरावः, वर्धमानकः, इति २ पात्रभेदस्य। शरावः पुंन्नपुंसकयोः॥ऋजीषम् , पिष्टपचनम्, इति २ पिष्टपाकोपयोगिनः पात्रस्य ॥-कंसः, पानभाजनम्, इति २ पानपात्रस्य ।।-कृत्तेः स्नेहपाने कुतूः स्यात् १। सैद कुतूरल्पा चेत् कुतुपः । सर्व पात्रमात्रमावपनादिसंज्ञम् १ ॥ आवपनम् ,
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१५२
अमरकोषे
[१०. वैश्यवर्गः दर्विः कम्बिः खजाका च स्यात्तारुहस्तकः । अस्त्री शाकं हरितकं शिरस्य तु नाडिका १७७५ कलम्बश्च कडम्बश्च वेसवार उपस्करः
१७७६ तिन्तिडीकं च चुकं च वृक्षाम्लमथ वेल्लजम् १७७७ मरीचं कोलकं कृष्णमूषणं धर्मपत्तनम्
१७७८ जीरको जरणोऽजाजी कणा कृष्णे तु जीरके १७७९ सुषवी कारवी पृथ्वी पृथुः कालोपकुञ्चिका १७८० आर्द्रकं शृङ्गवेरं स्यादथ छत्रा वितुन्नकम्
१७८१ कुस्तुम्बुर च धान्याकमथ शुण्ठी महौषधम् १७८२ स्त्रीनपुंसकयोर्विश्वं नागरं विश्वभेषजम्
१७८३ आरनालकसौवीरकुल्माषाभिषुतानि च
१७८४ अवन्तिसोमधान्याम्लकुञ्जलानि च काञ्जिके १७८५
भाण्डम् , पात्रम् , अमत्रम्, इति ५ भाण्डस्य ॥–दर्विः, कम्बिः, खजाका, इति ३ दव्याः ।।-तदूः, दारुहस्तकः, इति २ दर्षिभेदस्य - शाकम् , हरितकम् , शिग्रुः, इति ३ वास्तुकादेः शाकस्य । सौभाजनेऽपि शिग्रुरुक्तः । अस्य नाडिका कलम्बः, कडम्बः, इति २॥-वेसवारः, उपस्करः, इति २ हरिदासर्षपमरीचादिचूर्णस्य ॥-तिन्तिडीकम् , चुक्रम् , वृक्षा. म्लम् , इति ३ तिन्तिडीकस्याम्लभेदस्य ॥-वेलजम् , मरीचम् , कोल. कम् , कृष्णम् , ऊषणम् , धर्मपत्तनम्, इति ६ मरीचस्य ॥-जीरकः, जरणः, अजाजी, कणा, इति ४ जीरकस्य ॥--सुषवी, कारवी, पृथ्वी, पृथुः, काला, उपकुच्चिका, इति ६ कृष्णवर्णे जीरके । आर्द्रकम् , शृङ्गवेरम् , इति २ आर्द्रकस्य ॥--छत्रा, वितुन्नकम् , कुस्तुम्बुरु, धान्याकम् , इति ४ धान्याकस्य ॥–शुण्ठी, महौषधम् , विश्वम्, नागरम्, विश्वमेषजम्, इति ५ शुण्ठ्याः । स्त्री-नपुंसकयोः ॥-आरनालकम् , सौवीरम्, कुल्माषाभिषुतम्, अवन्तिसोमम , धान्याम्लम् , कुजलम् , काजिकम् , इति ७ कालिकस्य ॥
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पङ्कयः १७७४-१७९७ ]
द्वितीयं काण्डम्
सहस्रवेधि जतुकं बाह्रीकं हिङ्ग रामठम् तत्पत्री कारवी पृथ्वी बाष्पिका कबरी पृथुः निशाख्या काञ्चनी पीता हरिद्रा वरवर्णिनी सामुद्रं यत्तु लवणमक्षीवं वशिरं च तत् सैन्धवोऽस्त्री शीतशिवं मणिमन्थं च सिन्धुजे रोमकं वसुकं पाक्यं बिडं च कृतके द्वयम् सौवर्चलेऽक्षरुचके तिलकं तत्र मेचके मत्स्यण्डी फाणितं खण्डविकारः शर्करा सिता कूर्चिका क्षीरविकृतिः स्याद्रसाला तु मार्जिता स्यात्तेमनं तु निष्ठानं त्रिलिङ्गा वासितावधेः शूलाकृतं भटित्रं स्याच्छूल्यमुख्यं तु पैठरम् प्रणीतमुपसंपन्नं प्रयस्तं स्यात्सुसंस्कृतम्
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सहसंबंध, जतुकम् बालीकम्, हिङ, रामठम् इति ५ हिङ्गवृक्षस्य निर्यासे ॥ कारवी, पृथ्वी, बाष्पिका, कबरी, पृथुः, इति ५ हिङ्गुतरोः पत्र्याम् ॥ निशा, काञ्चनी, पीता, हरिद्रा, वरवर्णिनी, इति ५ हरिद्रायाः । यत्सामुद्रं लवणं तत् अक्षीवम्, वशिरम् इति २ ॥ - सैन्धवः, शीतशिवम्, मणि-मन्थम, सिन्धुजम्, इति ४ सिन्धुजे लवणे ॥ रौमकम्, वसुकम्, इति २ साम्भरलवणस्य ॥ पाक्यम्, बिडम् इति २ कृतके लवणे ॥सौवर्चलः, अक्षम्, रुचकम् इति ३ मधुरलवणस्य ॥ तत्र सौवर्चले मेचके तिलकमिति १ ॥ मत्स्यण्डी, फाणितम्, इति २ फाणितस्य ॥ खण्ड विकारः, शर्करा, सिता, इति ३ शर्करायाः ॥ - क्षीरस्य विकृतिः कूर्चिका इति १ ॥ - रसाला, मार्जिता, इति २ दधिमधुशर्करामरीचार्द्रादिभिः कृतस्य लेह्यस्य ॥ - तेमनम् निष्ठानम्, इति २ व्यञ्जनस्य दध्यादेः । इतः परं वासितान्तास्त्रिलिङ्गाः ॥— शृलाकृतम्, भटित्रम्, शूल्यम् इति ३ शूलेन संस्कृतस्य मांसादेः ॥ - उख्यम्, पैठरम् इति २ स्थालीसंस्कृतस्यानादेः ॥ - प्रणीतम्, उपसंपन्नम् इति २ रसादिसंपन्नस्य व्यञ्जनादेः ॥प्रयस्तम्, सुसंस्कृतम्, इति २ प्रयत्ननिष्पन्नस्य घृतपक्कादेः ॥ - पिच्छिलम्,
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१५४
अम कोषे
[१०. वैश्यवर्गः
स्यात्पिच्छिलं तु विजिलं संमृष्टं शोधितं समे
१७९८ चिक्कणं मसणं स्निग्धं तुल्ये भावितवासिते १७९९ आपकं पौलिरभ्यूषो लाजाः पुंभूम्नि चक्षिताः १८०० पृथुकः स्याच्चिपिटको धाना भृष्टयवे स्त्रियः पूपोऽपूपः पिष्टकः स्यात् करम्भो दधिसक्तवः १८०२ भिःसा स्त्री भक्तमन्धोऽन्नमोदनोऽस्त्री स दीदिविः १८०३ भिःसटा दग्धिका सर्वरसाग्रे मण्डमस्त्रियाम् १८०४ मासराचामनिस्रावा मण्डे भक्तसमुद्भवे
१८०५ यवागूरुष्णिका श्राणा विलेपी तरला च सा १८०६ 'म्रक्षणाभ्यञ्जने तैलं कृसरस्तु तिलौदन'
** गव्यं त्रिषु गवां सर्व गोविट् गोमयमस्त्रियाम् तत्तु शुष्कं करीषोऽस्त्री दुग्धं क्षीरं पयः समम् १८०८ विजिलम् , इति २ मण्डयुक्तदध्यादेः ॥-संमृष्टम् , शोधितम् , इति २ केशकीटाद्यपनयनेन शोधितस्यानादेः॥-चिकणम् , मसृणम् , स्निग्धम् , इति ३ स्निग्धस्य ॥-भावितम् , वासितम्, इति २ पुष्पादिद्रव्यान्तरेणाधिवासितस्य । यथा धूपेन भावितास्तिलाः ॥-आपक्वम् , पौलि , अभ्यूषः, इति ३ अर्धविनयवादेः । लाजाः भर्जितव्रीहयः १। पुंसि बहुत्वे । एवमक्षता अपि पुं-भूम्नि ॥-पृथुकः, चिपिटकः, इति २ आर्द्रभृष्टवीहितण्डुलस्य । धाना इति भृष्टयवे १ । नित्यं त्रियां बहुत्वे च ॥-पूपः, अपूपः, पिष्टकः, इति ३ तण्डुलपिष्टरचितस्य भक्ष्यभेदस्य । दधियुक्ताः सक्तवः करम्भः स्यात् १॥-भिःसा, भक्तम् , अन्धः, अन्नम् , ओदनः, दीदिविः, इति ६ अन्नस्य । अन्धः सान्तम् । ओदनोऽस्त्री । दीदिविः, पुंसि ॥-भिःसटा, दग्धिका, इति २ दग्धान्नस्य ॥--सर्वेषां रसानामग्रं अग्रिमो द्रवो मण्ड: स्यात् १। स पुं-नपुंसकयोः । मासरः, आचामः, निस्रावः, इति ३ भक्तसमुद्भवे मण्डे ॥ यवागूः, उष्णिका, श्राण, विलेपी, तरला, इति ५ द्रवदोदनस्य । गवां सर्व गव्यं स्यात् १। त्रिषु ॥-गोविट्, गोमयम्, इति २ गोः पुरीये। गोमयं पुं-नपुंसकयोः। तद्गोमयं शुष्कं करीषं स्यात् १॥ दुग्धम् , क्षीरम् ,
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१८१७
पतयः १७९८ - १८२१] द्वितीयं काण्डम् पयस्यमाज्यदध्यादि द्रप्सं दधि घनेतरत्
१८०९ घृतमाज्यं हविः सर्पिनेवनीतं नवोद्धृतम्
१८१० तत्तु हैयंगवीनं यद्ध्योगोदोहोद्भवं घृतम्
१८११ दण्डाहतं कालशेयमरिष्टमपि गोरसः
१८१२ तकं ह्युदश्विन्मथितं पादाम्ब्बर्धाम्बु निर्जलम् १८१३ मण्डं द्रधिभवं मस्तु पीयूषोऽभिनवं पयः १८१४ अशनाया बुभुक्षा क्षुद्रासस्तु कवलः पुमान् १८१५ सपीतिः स्त्री तुल्यपानं सग्धिः स्त्री सहभोजनम्
१८१६ उदन्या तु पिपासा तृट् तर्षो जग्धिस्तु भोजनम् जेमनं लेह आहारो निघसो न्याद इत्यपि १८१८ सौहित्यं तर्पणं तृप्तिः फेला भुक्तसमुज्झितम् १८१९ कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम् १८२० गोपे गोपालगोसंख्यगोधुगाभीरबल्लवाः
१८२१ पयः, इति ३ दुग्धस्य । यदाज्यदध्याद तत् पयस्यम् १ । यद्धनादितरत् दधि तत् द्रप्सं स्यात् १ । घृतम्, आज्यम् , हविः, सर्पिः, इति ४ घृतस्य ।।नवनीतम् , नवोद्धृतम् , इति २ नवनीतम्य । ह्योगोदोहोद्भवं घृतं हैयङ्गवीनं स्यात् १॥--दण्डाहतम् , कालशेयम् , अरिष्टम् , गोरसः, इति ४ दण्डमथितस्य गोरसमात्रस्य । तद्विशेषमाह-पादाम्बु यत्र तद्दण्डाहतं तक्रमिति १। अधोम्बु यत्र गोरसे तदुदश्वित् १ । निर्जलं दधिमन्थनमात्रेण मथितमिति १ । दधिभवं मस्तु स्यात् १ । अभिनवं पयःपीयूषः स्यात् १॥-अशनाया, बुभुक्षा,क्षुत , इति ३ क्षुधः,क्षुत् स्त्री धकारान्तः । प्रासः, कवलः, इति २ कवलस्य ॥-सपीतिः, तुल्यपानम् , इति २ सहपानस्य ॥ सग्धिः, सहभोजनम् , इति २ सहभोजनस्य॥उदन्या, पिपासा, तृद, तर्षः, इति ४ तृषः।-जग्धिः , भोजनम् , जेमनं, लेहः, आहारः, निघसः, न्यादः, इति ७ भोजनस्य ॥-सौहित्यम् , तर्पणम् , तृप्तिः, इति ३ तृप्तेः । पूर्व भुक्तं पश्चात् समुज्झितं फेला स्य त् १॥-कामम् , प्रकामम् , पर्याप्तम् , निकामम् , इष्टम् , यथेप्सितम्, इति ६ यथेप्सितस्य ॥-गोपः, गोपालः, गोसंख्यः, गोधुक् , आभीरः, बालवः, इति ६ गोपालस्य ॥-गोमहिष्यादिकं
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अमरकोषे
[१०. वैश्यवर्गः
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गोमहिष्यादिकं पादबन्धनं द्वौ गीश्वरे १८२२ गोमान् गोमी गोकुलं तु गोधनं स्याद्गवां व्रजे त्रिवाशितंगवीनं तद्गावो यत्राशिताः पुरा १८२४ उक्षा भद्रो बलीवर्द ऋषभो वृषभो वृषः
१८२५ अनड़ान् सौरभेयो गौरुक्ष्णां संहतिरीक्षकम् १८२६ गव्या गोत्रा गवां वत्सधेन्वोत्सिकधैनुके १८२७ वृषो महान् महोक्षः स्याद्वृद्धोक्षस्तु जरद्गवः १८२८ उत्पन्न उक्षा जातोक्षः सद्योजातस्तु तर्णकः १८२९ शकृत्करिस्तु वत्सः स्याद्दम्यवत्सतरौ समो १८३० आर्षभ्यः षण्डतायोग्यः षण्डो गोपतिरिट्चरः स्कन्धदेशे त्वस्य वहः सास्ना तु गलकम्बलः स्यान्नस्तितस्तु नस्योतः प्रष्ठवाड् युगपार्श्वगः १८३३ युगादीनां तु वोढारो युग्यप्रासङ्ग्यशाकटाः १८३४ पादबन्धनमिति ॥-गोमान् , गोमी, इति २ गवां स्वामिनि ॥-गोकुलम् , गोधनम् , इति २ गवां व्रजे। यत्र पुरा गाव आशिता भोजिताः तत्स्थानं आशितंगवीनमिति १ लिङ्गत्रये ॥---उक्षा, भद्रः, बलीवर्दः, ऋषभः, वृषभः, वृषः, अनड्वान् , सौरभेयः, गौः, इति ९ वृषभस्य । उक्ष्णां संहतिः, औक्षकं स्यात् १ । गवां संहतिः समूहो गव्या, गोत्रा, इति २ । वत्सानां संहतिर्वात्सकम् १ । धेनूनां संहतिर्धनुकम् १ । महान्वृषो महोक्षः १ ॥-वृद्धोक्षः, जरद्गवः, इति २ वृद्धवृषभस्य ॥-उत्पन्नः उक्षा जातोक्षः स्यात् १। सद्योजातस्तर्णका स्यात् १ ॥---शकृत्करिः, वत्सः, इति २ वत्सस्य ॥--दम्यः, वत्सतरः, इति २ स्पष्टतारुण्यस्य । षण्डता गोपतित्वं तद्योग्य आर्षभ्यः १॥-षण्डः, गोपतिः, इट्चरः, इति ३ खेच्छाचारिणो वृपभस्य। अस्य स्कन्धदेशे वहः स्यात् १॥सास्ना, गलकम्बल:, :ति २ गोः कण्ठे लम्बमानस्य चर्मणः।-नस्तितः, नस्योतः, इति २ स्यूतनासिकस्य ॥-प्रष्टवाद , युगपार्श्वगः, इति २ दमनार्थ युग्येन सह स्कन्धे नरकाषा । युगस्य वोढा यग्यः, प्रासङ्गया,
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पतयः १८२२-१८४७] द्वितीयं काण्डम् खनति तेन तद्वोढाऽस्येदं हालिकसैरिको १८३५ धूर्वहे धुर्यधौरेयधुरीणाः सधुरंधराः
१८३६ उभावेकधुरीणैकधुरावेकधुरावहे
१८३७ स तु सर्वधुरीणः स्याद्यो वै सर्वधुरावहः
१८३८ माहेयी सौरभेयी गौरुस्रा माता च शृङ्गिणी १८३९ अर्जुन्यन्या रोहिणी स्यादुत्तमा गोषु नैचिकी १८४० वर्णादिभेदात्संज्ञाः स्युः शबलीधवलादयः १८४१ द्विहायनी द्विवर्षा गौरेकाब्दा त्वेकहायनी १८४२ चतुरब्दा चतुर्हायण्येवं व्यब्दा त्रिहायणी १८४३ वशा वन्ध्याऽवतोका तु स्रवद्गर्भाथ संधिनी १८४४ आक्रान्ता वृपभेणाथ बेहद्गर्भोपघातिनी
१८४५ काल्योपसर्या प्रजने प्रष्ठाही बालगर्भिणी १८४६ स्यादचण्डी तु सुकरा बहुसूतिः परेष्टुका
१८४७ शाकटः, इति ३ । तेन खनतीत्याद्यर्थे हालिकः, सैरिकः, इति २ ॥---- धूर्वहः, धुर्यः, धौरेयः, धुरीगः, धुरंधरः, इति ५ धुरंधरवृषभस्य ॥एकधुरीणः, एकधुरः, एकधुरावहः, इति ३ य एकामेव धुरं वहति तस्य । यः सर्वामपि धुरै वहति स सर्वधुरीण इति १ ॥-माहेयी, सौरमेयी, गौः, उस्रा, माता, शृङ्गिणी, अर्जुनी, अध्या, रोहिणी, इति ९ गवि । या गोषु उत्तमा सा गोंचिकीति १ । वर्णावयवप्रमाणादीनां भेदात् गवां संज्ञाः शबली, धवला, इत्यादयः । द्विवर्षा गौर्द्विहायनी इति । एकाब्दा गौः एकहायनी इति १ । चतुरब्दा गौश्चतुर्हायणी इति १ । त्रिवर्षा त्रिहायणी स्यात् १॥-वशा, बन्ध्या, इति २ वन्ध्यायाः॥-अवतोका, स्रवद्गर्भा, इति २ अकस्मात्पतितगर्भायाः। वृषभेण मैथुनार्थे आकान्ता संधिनी १ । विहन्ति गर्भ इति वृषोपगमनाद्गर्भोपघातिनी वेहदित्युच्यते १ । स्त्रियाम् । प्रजने काल्या गौरुपसर्या इति १। बालगर्भिणी प्रष्ठौही इति १ ॥-अचण्डी, सुकरा, इति २ अकोपनायाः ॥बहुसूतिः, परेष्ठका, इति २ बहुप्रसवायाः ॥-चिरप्रसूता, बष्कयणी, इति
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१५८
अमरकोषे
[१०. वैश्यवर्गः चिरप्रसूता बष्कयणी धेनुः स्यान्नवसूतिका १८४८ सुव्रता सुखसंदोह्या पीनोनी पीवरस्तनी
१८४९ द्रोगक्षीरा द्रोणदुग्धा धेनुष्या बन्धके स्थिता १८५० समांसमीना सा यैव प्रतिवर्ष प्रसूयते ।
१८५१ ऊधस्तु क्लोबमापीनं समौ शिवककीलको
१८५२ न पुंसि दाम संदानं पशुरजुस्तु दामनी
१८५३ वैशाखमन्थमन्थानमन्थानो मन्थदण्डके
१८५४ कुठरो दण्डविष्कम्भो मन्थनी गर्गरी समे
१८५५ उष्टे क्रमेलकमयमहाङ्गाः करभः शिशुः । १८५६ करभाः स्युः शृङ्खलका दारवैः पादबन्धनैः १८५७ अजा छागी शुभच्छागबस्तच्छगलका अजे १८५८ मेदोरञोरणोर्णायुमेषवृष्णय एड के
१८५६ २ दीर्घकालेन प्रसूतायाः ॥-धेनुः, नवसूतिका, इति २ नूतन प्रसूतायाः । सुव्रता, सुखसंदोह्या, इति २ सुशीलायाः ॥-पीनोनी, पीवरस्तनी, इति २ स्थूलस्तन्याः ॥--द्रोणक्षीरा, द्रोणदुग्धा, इति २ द्रोणपरि. मितदुग्धदाच्याम् । बन्धकं आधिः, तत्र स्थिता सा धेनुष्या इति १ । या वर्षे वर्षे प्रसूयते सा समांसमीनेति १॥-ऊधः, आपीनम् , इति २ गोस्तनस्य । ऊधः क्लीबम् ॥-शिवकः, कीलकः, इति २ गोबन्धनकाष्ठस्य ॥-दाम, संदानम् , इति २ बन्धनरजोः । दाम स्त्री-पुंसयोः ॥-पशुरजुः, दामनी, इति २ यस्यामेकस्यां बहवो वृषा बध्यन्ते तस्या रज्जोः ॥-वैशाखः, मन्थः, मन्थानः, मन्था, मन्यदण्डकः, इति ५ मन्थनदण्डस्य ॥ कुठरः, दण्ड विष्कम्भः, इति २ यत्र मन्थदण्डो बध्यते तस्य स्तम्भस्य ॥-मन्थनी, गर्गरी, इति २ मथ्यमानदाधिपात्रस्य ॥-उष्ट्रः, क्रमेलकः, मयः, महाङ्गः, इति ४ उष्ट्रस्य । उष्ट्रस्य शिशुः करभ इति १ दारवैः पादबन्धनैरुपेताः करभाः शृङ्गालकाः स्युरिति १॥-अजा, छागी, इति २ अजायाः॥–शुभः, छागः, बस्तः, छगलकः, अजः, इति ५ अजस्य ॥ मेढ़ः, उरभ्रः, उरणः, ऊर्णायुः, मेषः,
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पङ्क्तयः १८४८- १८७२ ] द्वितीयं काण्डम्
१५९ उष्ट्रोरभ्राजवृन्दे स्यादौष्ट्र कौरभ्रकाजकम् १८६० चक्रीवन्तस्तु वालेया रासभा गर्दभाः खराः १८६१ वैदेहकः सार्थवाहो नैगमो वाणिजो वणिक १८६२ पण्याजीवो ह्यापणिकः क्रयविक्रयिकश्च सः
१८६३ विक्रेता स्याद्विक्रयिकः क्रायिकक्रयिकौ समौ १८६४ वाणिज्यं तु वणिज्या स्यान्मूल्यं वस्नोऽप्यवक्रयः १८६५ नीवी परिपणो मूलधनं लाभोऽधिकं फलम् १८६६ परिदानं परीवर्तो नैमेयनिमयावपि
१८६७ पुमानुपनिधिया॑सः प्रतिदानं तदर्पणम्
१८६८ क्रये प्रसारितं क्रय्यं क्रेयं क्रेतव्यमात्रके १८६९ विक्रेयं पणितव्यं च पण्यं क्रय्यादयस्त्रिषु १८७० क्लीबे सत्यापनं सत्यंकारः सत्याकृतिः स्त्रियाम् १८७१ विपणो विक्रयः संख्याः संख्येये ह्यादश त्रिषु १८७२ वृष्णिः, एडकः, इति ७ मेषस्य । उष्ट्राणां वृन्दे औष्ट्रकम् १ । उरभ्राणां वृन्दे औरभ्रकम् १।अजानां वृन्दे आजकम् १॥-चक्रीवान् , बालेयः, रासभः, गर्दभः, खरः, इति ५ गर्दभस्य ॥--वैदेहकः, सार्थवाहः, नैगमः, वाणिजः, वणिक , पण्याजीवः, आपणिकः, क्रय विक्रयिकः, इति ८ क्रयविक्रयाभ्यां वर्तमानस्य ॥-विक्रेता, विक्रयिकः, इति २ वस्नपात्रादि दत्त्वा तन्मूल्यं गृह्णतः ॥-क्रायिकः, ऋयिकः, इति २ मूल्येन वस्त्रादि गृह्णतः॥ वाणिज्यम् , वणिज्या, इति २ वणिजां कर्मणि ॥-मूल्यम् , वस्नः, अवक्रयः, इति ३ विक्रेयवस्तूनां मूल्यस्य ॥-नीवी, परिपणः, मूलधनम्, इति ३ क्रयवि. क्रयादिव्यवहारे यन्मूलधनं तस्य । मूलधनादधिकं फलं लाभः स्यात॥परिदानम् , परीवर्तः, नैमेयः, निमयः, इति ४ परिवर्तनस्य ॥--उपनिधिः, न्यासः, इति २ निक्षेपस्य । उपनिधिः पुंसि । तस्य अर्पणं प्रतिदानमित्युच्यते १। कये प्रसारितं क्रय्यमिति १ । यत् क्रेतव्यमानं तत् केयम् १॥-विक्रेयम् , पणितव्यम् , पण्यम् , इति ३ विकेयस्य वस्तुनः। त्रिषु ॥ सत्यापनम् , सत्यंकारः, सत्याकृतिः, इति ३ सत्यंकारस्य ॥-विपणः, विक्रयः, इति २ विक्रयस्य।
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१६० ____ अमरकोषे
[१०. वैश्यवर्गः विंशत्याद्याः सदैकत्वे सर्वाः संख्येयसंख्ययोः १८७३ संख्यार्थे द्विबहुत्वे स्तस्तासु चानवतेः स्त्रियः १८७४ पतेः शतसहस्रादि क्रमादशगुणोत्तरम्
१८७५ यौतवं द्रुवयं पाय्यमिति मानार्थकं त्रयम् १८७६ मानं तुलाङ्गलिप्रस्थैर्गुञ्जाः पञ्चाद्यमाषकः
१८७७ ते षोडशाक्षः कर्षोऽस्त्री पलं कर्षचतुष्टयम् १८७८ सुवर्णबिस्तौ हेम्नोऽक्षे कुरुबिस्तस्तु तत्पले १८७९ तुला स्त्रियां पलशतं भारः स्यादिशतिस्तुलाः
१८८० आचितो दश भाराः स्युः शाकटो भार आचितः १८८१ कार्षापणः कार्षिकः स्यात् कार्षिके ताम्रिके पणः १८८२ अस्त्रियामाढवद्रोणी खारी वाहो निकुञ्चकः १८८३ कुडवः प्रस्थ इत्याद्याः परिमाणार्थकाः पृथक्
१८८४ पादस्तुरीयो भागः स्यादंशभागौ तु वण्टके १८८५ एकाद्या अष्टादशान्ताः संख्याशब्दाः संख्येये वर्तमानास्त्रिषु । विंशत्याद्याः सर्वाः सदैकत्वे नित्यमेकवचनान्ताः संख्येये संख्यायां च वर्तन्ते । संख्यार्थे द्विबहुवचने स्तः । तासु नवतिपर्यन्ताः स्त्रियाम् । पतिर्दशसंख्या, तामारभ्य दशगुणं उत्तरं यत्रतादृशं संख्यानं कमात् शतम सहस्रम, इत्यादि स्यादित्येकैकम्।।-यौतवम् , दुवयम् , पाय्यम् , इति ३ मानार्थकस्य । तन्मानं तुलाहुलिप्रस्थैर्भिद्यते । पक्षगुञ्जाः आद्यमाषकः। ते षोडश माषा अक्षः, कर्षः, इति २ । कर्षचतुष्टयं पलं स्यात् १॥-सुवर्णः, बिस्तः, इति २ हेम्नः सुवर्णस्याक्षे । तस्य पले कुरुबिस्त इति १। पलानां शतं तुला स्यात् १ । स्त्रियाम् । विंशतिस्तुलाः भारः स्यात् १। दश भाराः आचित इति १। यः शाकटः सोऽप्याचित इति १॥कार्षापणः कार्षिकः, इति २ राजतकर्षपरिमितरूप्यकस्य । ताम्रिके तस्मि
कार्षिके पण इति १।-आढकः, द्रोणः, खारी, वाहः, निकुञ्चकः, कुडवः, प्रस्थः, इति ७ परिमाणार्थकाः प्रत्येकं भिन्नार्थकाः। तुर्यो मागःपाद इति १॥अंशः, भागः, वण्टकः, इति ३ भागमात्रस्य । द्रव्यम् , वित्तम् , खापतेयम् ,
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पतयः १८७३-१८९९] द्वितीयं काण्डम् द्रव्यं वित्तं स्वापतेयं रिक्थमृक्थं धनं वसु हिरण्यं द्रविणं द्युम्नमर्थरैविभवा अपि स्यात्कोशश्च हिरण्यं च हेमरूप्ये कृताकृते ताभ्यां यदन्यत्तत्कुप्यं रूप्यं तवयमाहतम् गारुत्मतं मरकतमश्मगर्भो हरिन्मणिः शोणरत्नं लोहितकः पद्मरागोऽथ मौक्तिकम् मुक्ताथ विद्रुमः पुंसि प्रवालं पुनपुंसकम् रत्नं मणियोरश्मजातौ मुक्तादिकेऽपि च स्वर्ण सुवर्ण कनकं हिरण्यं हेम हाटकम् तपनीय शातकुम्भं गाङ्गेयं भर्म कर्बुरम् चामीकर जातरूपं महारजतकाञ्चने रुम बालस्वरं जाम्बूनदमष्टापदोऽस्त्रियाम् अलंकारसुवर्ण यच्छ्रङ्गीकनकमित्यदः दुर्वर्ण रजनं रूप्यं खरं श्वेतमित्याप
१८८६ १८८७ १८८८ १८८९ १८९० १८९१ १८९२ १८९३ १८९४ १८९५
रिक्थम् , रथम, धनम् , वसु, हिरण्यम् , द्रविणम् , घम्सम् , अर्थः, राः, विभवः, इति १३ घनस्य ॥----कोशः, हिरण्यम्, इति २ घटिताघटितयोहेमरूप्ययोः। ताभ्यां यदन्यत्तत्कुप्यं स्यात् । तद्वयमाहत रूप्यम् १॥-गारुत्मतम् , मरकतम्, अश्मगर्भः, हरिन्मणिः, इति ४ मरकतस्य ॥-शोणरत्नम् , लोहितकः, पद्मरागः, इति ३ पनरागस्य ॥-मौक्तिकम् , मुक्ता, इति २ मुक्तायाः ॥-विद्रुमः, प्रवालः, इति २ प्रवालस्य ॥---रत्नम् , मणिः, इति २ अश्मजातौ मुक्तादिक अपि वर्तेते । मणिः स्त्री-पुंसयोः ॥-स्वर्णम् , सुवर्णम् , कनकम् , हिरण्यम्, हेस, हाटकम् , तपनीयम्, शातकुम्भम् , गाङ्गेयम् , भर्म, कर्बुरम् , चामीकरम् , जातरूपम् , महारजतम् , काञ्चनम् , रुक्मम् , कार्तखरम् , जाम्बूनदम् , अष्टापदम्, इति १९ सुवर्णस्य । अष्टापदं क्लीब-पुंसयोः। यदमंकाररूपं सुवर्ण तत् शीकनकमिति १॥-दुर्वर्णम् , रजतम् , रूप्यम् , खजूरम् ,
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१०. वैश्यवर्गः रीतिः स्त्रियामारकूटो न स्त्रियामथ ताम्रकम् शुल्ब म्लेच्छमुखं व्यष्टवरिष्टोदुम्बराणि च १९०१ लोहोऽस्त्री शस्त्रकं तीक्ष्णं पिण्डं कालायसायसी १९०२ अश्मसारोऽथ मण्डूरं सिंहाणमपि तन्मले १९०३ सर्व च तैजसं लोहं विकारस्त्वयसः कुशी १९०४ क्षारः काचोऽथ चपलो रसः सूतश्च पारदे १९०५ गवलं माहिषं शृङ्गमनकं गिरिजामले
१९०६ स्रोतोञ्जनं तु सौवीरं कापोताञ्जनयामुने
१९०७ तुत्थाजनं शिखिग्रीवं वितुन्नकमयूरके
१९०८ कर्परी दार्विकाक्काथोद्भवं तुत्थं रसाञ्जनम् १९०९ रसगर्भ तायशैलं गन्धाश्मनि तु गन्धिकः
१९१० सौगन्धिकश्च चक्षुष्याकुलाल्यौ तु कुलत्थिका १९११ रीतिपुष्पं पुष्पकेतु पुष्पकं कुसुमाञ्जनम् १९१२ श्वेतम्, इति ५ रजतस्य ॥रीतिः, आरकूटः, इति २ पित्तलस्य ॥-ताम्रकम् , शुल्बम् , म्लेच्छमुखम् , यष्टम् , वरिष्टम् , उदुम्बरं , इति ६ ताम्रस्य ॥--लोहः, शस्त्रकम् , तीक्ष्णम् , पिण्डम् , कालायसम् , अयः,अश्मसारः, इति लोहस्य।मण्डूरम् , सिंहाणम् , इति २ लोहमलस्य। सर्वमपि तैजसं लोहमिति १ । अयसो विकारः कुशी स्यात् १॥-क्षारः, काचः, इति २ काचस्य ।।---चपलः,रसः, सूतः,पारदः, इति ४ पारदस्य। यन्माहिषं शृङ्गं तत् गवलमिति १॥-अभ्रकम् , गिरिजाभलम् , इति २ अभ्रकस्य ॥-स्रोतोञ्जनम् , सौवीरम , कापोताजनम् , यामुनम्, इति ४ सौवीराअनस्य ॥--तुत्थाजनम् , शिखिग्रीवम् , वितु. नकम् , मयूरकम् , कपरी, इति ५ तत्थाञ्जनस्य ॥-तुत्थम्, रसाञ्जनम् , रसगर्भम् , तार्यशैलम्, इति ४ रसाञ्जनस्य । तत्र तुत्यं दार्विकाक्वाथोद्भवम् ।।-गन्धाश्मा, गन्धिकः, सौगन्धिकः, इति ३ गन्धकस्य ॥--चक्षुष्या, कुलाली, कुलत्थिका, इति ३ तुत्थविशेषस्य ॥ रीतिपुष्पम् , पुष्पकतु, पुष्पकम् , कुसुमाञ्जनम्, इति ४ संतप्तपित्तलादुत्पन्नस्य ॥-पिञ्जरम् ,पीत
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पङ्क्तयः १९०० - १९२४ ]
द्वितीयं काण्डम्
पिञ्जरं पीतनं तालमालं च हरितालके गैरेयमर्थ्यं गिरिजमश्मजं च शिलाजतु बोलगन्धरसप्राणपिण्डगोपरसाः समाः डिण्डीरोऽब्धिकफः फेनः सिन्दूरं नागसंभवम् नागसीसकयोगेष्टवप्राणि त्रपु पिच्चटम् रङ्गवङ्गे अथ पिस्तूलोऽथ कमलोत्तरम् स्यात्कुसुम्भं वह्निशिखं महारजनमित्यपि मेषकम्बल ऊर्णायुः शशोणं शशलोमनि मधु क्षौद्रं माक्षिकादि मधूच्छिष्टं तु सिक्थकम् मनःशिला मनोगुप्ता मनोह्वा नागजिह्विका नैपाली कुनटी गोला यवक्षारो यवाग्रजः पाक्योऽथ सर्जिकाक्षारः कापोतः सुखवर्चकः
"
१६३
- त्रपु,
नम्, तालम्, आलम्, हरितालकम् इति ५ हरितालस्य ॥-रेयम्, अर्थ्यम्, गिरिजम्, अश्मजम्, शिलाजतु, इति ५ शिलाजतुनः ॥ - बोलः, गन्धरसः, प्राणः, पिण्डः, गोपरसः, इति ५ गन्धरसस्य ॥ - डिण्डीरः, अब्धिकफः, फेनः, इति ३ समुद्रफेनस्य ॥ - सिन्दूरम्, नागसंभवम्, इति २ सिन्दूरस्य ॥ - नागम्, सीसकम्, योगेष्टम्, वप्रम्, इति ४ सीसस्य ॥ - पिच्चटम्, रङ्गम्, वङ्गम् इति ४ वङ्गस्य ॥ - पिचुः, तूलः, इति २ कार्पासस्य ॥ कमलोत्तरम्, कुसुम्भम्, वह्निशिखम्, महारजनम्, इति कुसुम्भस्य ॥मेषकम्बलः, ऊर्णायुः, इति २ कम्बलस्य ॥ -- शशोर्णम्, शशलोम, इति २ शशलोम्नः ॥ - मधु, क्षौद्रम्, माक्षिकम् इति ३ मधुनः ॥ - मधूच्छिष्टम्, सिक्थकम् इति २ मधूच्छिष्टस्य ॥ - मनःशिला, मनोगुप्ता, मनोहा, नागजिह्निका, इति ४ मनःशिलायाः ॥ - नेपाली, कुनटी, गोला, इति ३ नेपालदेशोद्भवमनः शिलायाः ॥ - यवक्षारः, यवाग्रजः, पाक्य:, इति ३ यवक्षारस्य ॥ - सर्जिकाक्षारः, कापोतः, सुखवर्चकः, इति ३ क्षारभेदस्य ॥-
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१९१३
१९१४
१९१५
१९१६
१९१७
१९१८
१९१९
१९२०
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१९२३
१९२४
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१६४
अमरकोषे
[11. शूद्रवर्ग: सौवर्चलं स्यादुचकं त्वक्क्षीरी वंशरोचना १९२५ शिगुजं श्वेतमरिचं मोरटं मूलमैक्षवम्
१९२६ ग्रन्थिकं पिप्पलीमूलं चटकाशिर इत्यपि
१९२७ गोलोमी भूतकेशो ना पत्राङ्गं रक्तचन्दनम् १९२८ त्रिकटु त्र्यूषणं व्योपं त्रिफला तु फलत्रिकम् १९२९
११. शूदवर्गः शूद्राश्चावरवर्णाश्च वृषलाश्च जघन्यजाः आचण्डालात्तु संकीर्णा अम्बष्ठकरणादयः शूद्राविशोस्तु करणोऽम्बष्ठो वैश्याद्विजन्मनोः १९३२ शूद्राक्षत्रिययोरुनो मागधः क्षत्रियाविशोः माहिष्योक्षित्रिययोः क्षत्तार्याशूद्रयोः सुतः ब्राह्मण्यां क्षत्रियात्मृतस्तस्यां वैदेहको विदाः बचलम , रुचकम, इति - क्षारमेदस्य ---- त्वरक्षा चशाना. इति २ वणुजन्यस्यौषधिविशेषस्य -शिग्रजम् , श्रतमारनामा, इति २ सौभाअनबीजस्य। इक्षुसंवन्धि मूलकं भोरटं स्यात् १ ॥-प्रन्धिकम् , पिप्पलीमृलम्, चटकाशिरः, इति ३ पिप्पलीमूलस्य ॥ गोलोमी, भूत केशः, इति २ भूतकेशस्य ।।-पत्राङ्गम् , रक्तचन्दनम्, इति २ रक्तचन्दनसशस्य रक्तसारस्य ॥ त्रिकटु, त्र्यूषणम् , व्योषम् , इति ३ शुण्ठीपिप्पलीमरी. चानां समाहारस्य । त्रिफला, फलत्रिकम् , इति २ हरीतक्यामलकबिभीतकफलानां समाहारस्य ।।
१९३०-२०२३ शूद्रः, अवरवर्णः, वृषलः, जघन्यजः, इति ४ शुद्रस्य । चण्डालो ब्राह्मण्यां शूद्राजातस्तमभिव्याप्य वक्ष्यमाणा अम्बष्ठकरणादयः संकी
र्णाः । शूद्रावैश्ययोः सुतः करण इति १। वैश्यायां ब्राह्मणाजातः सुतोऽम्बष्ठः १। शूद्रायां क्षत्रियाजातः उग्रः १ । क्षत्रियायां वैश्याबातो मागधः १ । वैश्यायां क्षत्रियाज्जातो माहिष्यः १ । क्षत्रियायां शुद्राजातः क्षत्ता १। ब्राह्मण्यां क्षत्रियाज्जातः सूत इति १ । ब्राह्मण्यां वैश्याजातो वैदेहका १।
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पङ्क्यः १९२५ - १९४७ ]
द्वितीयं काण्डम्
स्थकारस्तु माहिष्यात्करण्यां यस्य संभवः स्याच्चण्डालस्तु जनितो ब्राह्मण्यां वृषलेन यः कारुः शिल्पी संहतैस्तैर्द्वयोः श्रेणिः सजातिभिः कुलकः स्यात्कुलश्रेष्ठी मालाकारस्तु मालिकः कुम्भकारः कुलालः स्यात् पलगण्डस्तु लेपकः तन्तुवायः कुविन्दः स्यात्तुन्नवायस्तु सौचिकः रङ्गाजीवश्चित्रकरः शस्त्रमार्जोऽसिधावकः पादूकुच्चर्मकारः स्याद्वयोकारो लोहकारकः नाडिंधमः स्वर्णकारः कलादो रुक्मकारकः स्याच्छाङ्गिकः काम्बविकः शौल्बिकस्ताम्रकुट्टकः तक्षा तु वस्त्विष्टा रथकारस्तु काष्ठतद् ग्रामाधीनो ग्रामतक्षः कौटतक्षोऽनधीनकः
१६५
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१९३६
१९३७
१९३८
१९३९
१९४०
१९४१
१९४२
१९४३
१९४४
१९४५
१९४६
१९४७
करण्यां माहिष्याज्जातो रथकारः स्यात् १ | ब्राह्मण्यां वृषलेन य उत्पादितः स चण्डालः स्यात् १ ॥ -- कारुः, शिल्पी, इति २ चित्रकारादेः । तैः सजातिभिः संहतैः श्रेणिः १ स्त्रीपुंसयोः ॥ - कुलकः, कुलश्रेष्ठी, इति २ शिल्पिकुलप्रधानस्य ॥ -- मालाकारः, मालिकः, इति २ मालाकारस्य ॥ कुम्भकारः, कुलाल:, इति २ कुलालस्य ॥ - पलगण्डः, लेपकः, इति २ गृहादौ लेपकारस्य ॥ - तन्तुवायः, कुविन्दः, इति २ पटानां निर्मातरि ॥ तुन्नवायः, सौचिकः, इति २ कञ्चक्यादेर्निर्मातरि ॥ रङ्गाजीवः, चित्रकरः, इति २ चित्रकारस्य ॥ - शस्त्रमार्जः, असिधावकः, इति २ शस्त्रघर्षणोपजीविनः ॥ : ॥ - पादूकृत्, चर्मकार:, इति २ चर्मकारस्य ॥—व्योकारः, लोहकारकः, इति २ लोहकारस्य ॥ -- नाडिधमः, स्वर्णकारः, कलादः, रुक्मकारकः, इति ४ स्वर्णकारस्य ॥ - शाङ्खिकः, काम्बविकः, इति २ शङ्खवलयादेः कर्तरि ॥ -- शौल्बिकः, ताम्रकुट्टकः, इति २ ताम्रकुट्टकस्य ॥ -- तक्षा, वर्धकः, त्वष्टा, रथकारः, काष्ठतद, इति ५ वर्धकेः । प्रामाधीनो यस्तक्षा स ग्रामतक्षः इति १ । अनधीनकः कौटतक्षः स्यात ॥ क्षुरी, मुण्डी,
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अमरकोपे
[११. शूद्रवर्गः क्षुरी मुण्डी दिवाकीर्तिनापितान्तावसायिनः १९४८ निर्णेजकः स्याद्रजकः शौण्डिको मण्डहारकः १९४९ जाबालः स्यादजाजीवो देवाजीवस्तु देवल: १९५० स्यान्माया शाम्बरी मायाकारस्तु प्रतिहारकः १९५१ शैलालिनस्तु शैलूषा जायाजीवाः कृशाश्विनः १९५२ भरता इत्यपि नटाश्चारणास्तु कुशीलवाः
१९५३ मार्दङ्गिका मौरजिकाः पाणिवादास्तु पाणिघाः १९५४ वेणुध्माः स्युर्वैणविका वीणावादास्तु वैणिकाः १९५५ जीवान्तकः शाकुनिको द्वौ वागुरिकजालिको वैतंसिकः कौटिकश्च मांसिकश्च समं त्रयम् १९५७ भृतको भृतिभुक्कर्मकरो वैतनिकोऽपि सः वातावहो वैवधिको भारवाहस्तु भारिकः
१९५९ दिवाकीर्तिः, नापितः, अन्तावसायी, इति ५ नापितस्य ॥--निर्णेजकः, रजकः, इति २ वस्त्राणां धावकस्य ॥-शौण्डिकः, मण्डहारकः, इति २ सुराजीविनः॥-जाबालः, अजाजीवः, इति २ अजापालस्य ।।—देवाजीवः, देवलः, इति २ देवसेवोपजीविनः ॥—माया, शाम्बरी, इति २ इन्द्रजालस्य ॥मायाकारः, प्रतिहारकः, इति २ मायाविनः ॥--शैलाली, शैलूषः, जायाजीवः, कृशाश्वी, भरतः, नटः, इति ६ नटानाम् ॥चारणः, कुशीलवः, इति २ कथकानाम्॥-मार्दनिकाः, मौरजिकाः, इति २ मृदङ्गवादनकुशलानाम् ॥ पाणिवादाः, पाणिघाः, इति २ पाणिवादानाम् ॥-वेणुध्माः, वैणविकाः, इति २ वेणुवादिनाम् ॥-वीणावादाः, वैणिकाः, इति २ वीणावादनं शिल्पमेषाम् ॥ जीवान्तकः, शाकुनिकः, इति २ पक्षिणां हन्तरि ॥वागुरिकः, जालिकः, इति २ जालेन मृगान्बनतः ॥ वैतंसिकः, कौटिकः, मासिकः, इति ३ मांसविक्रयजीविनः ॥-मृतकः, भृतिभुक, कर्मकरः, वैतनिकः, इति ४ वेतनोपजीविनः॥-वार्तावहः, वैवधिकः, इति २ वार्ताया वाहके ॥–भारवाहः, भारिकः, इति २ भारिकस्य ॥ विवर्णः, पामरः,
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पतयः १९४८-१९७३ ] द्वितीयं काण्डम् विवर्णः पामरो नीचः प्राकृतश्च पृथग्जनः १९६० निहीनोऽपसदो जाल्मः क्षुल्लकश्चेतरश्च सः १९६१ भृत्ये दासेरदासेयदासगोप्यकचेटकाः
२९६२ नियोज्यकिङ्करप्रैष्यभुजिष्यपरिचारकाः
१९६३ पराचितपरिस्कन्दपरजातपरैधिताः
१९६४ मन्दस्तुन्दपरिमृज आलस्यः शीतकोऽलसोऽनुष्णः १९६५ दक्षे तु चतुरपेशलपटवः सूत्थान उष्णश्च
१९६६ चण्डालप्लवमातङ्गदिवाकीर्तिजनंगमाः
१९६७ निषादश्वपचावन्तेवासिचाण्डालपुक्कसाः
१९६८ भेदाः किरातशबरपुलिन्दा म्लेच्छजातयः १९६९ व्याधो मृगवधाजीवो मृगयुटुब्धकोऽपि सः
१९७० कोलेयकः सारमेयः कुक्कुरो मृगदंशकः
१९७१ शुनको भषकः श्वा स्यादलकंस्तु स योगितः १९७२ श्वा विश्वकद्रुमृगयाकुशलः सरमा शुनी
१९७३ नीचः, प्राकृतः, पृथरजनः, निहीनः, अपसदः, जाल्मः, क्षुल्लकः, इतरः, इति १० नीचस्य ॥-भृत्यः, दासेरः, दासेयः, दासः, गोप्यकः, चेटकः, नियोज्यः, किङ्करः, प्रेष्यः, भुजिष्यः, परिचारकः,इति ११ दासस्य ॥-पराचिसः, परिस्कन्दः, परजाः, परैधितः, इति ४ परेण संवर्धितस्य ॥-मन्दः, तुन्दपरिमृजः, आलस्यः, शीतकः, अलसः, अनुष्णः, इति ६ अलसस्य ॥दक्षः, चतुरः, पेशलः, पटुः, सूत्थानः, उष्णः, इति ६ दक्षस्य ॥ चण्डालः, प्लवः, मातङ्गः, दिवाकीर्तिः, जनंगमः, निषादः, श्वपचः, अन्तेवासी, चाण्डालः, पुक्कसः, इति १०चाण्डालस्य॥-किरातः,शबरः,पुलिन्दः, इति ३ चण्डालमेदाः।व्याधः, मृगवधाजीवः, मृगयुः, लुब्धकः, इति ४ व्याधस्य ॥-कोळेयकः, सारमेयः, कुकुरः, मृगदंशकः, शुनकः, भषकः, श्वा, इति ७ शुनकस्य । योगितः वा अलर्कः स्यात् १। यो मृगयाकुशलः श्वा स विश्वकगुरिति । शुनी
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१६०
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अमरकोषे
पिचरः सूकरो ग्राम्यो वर्करस्तरुणः पशुः आच्छोदनं मृगव्यं स्यादाखेटो मृगया स्त्रियाम् दक्षिणारुर्लुब्धयोगाद्दक्षिणेर्मा कुरङ्गकः चौरैकागारिकस्तेनदस्युतस्कर मोषकाः प्रतिरोधिपरास्कन्दिपाटच्चरमलिम्लुचाः चौरिका स्तैन्यचौर्ये च स्तेयं लोप्त्रं तु तद्धने वीतंसस्तूप करणं बन्धने मृगपक्षिणाम् उन्माथः कूटयन्त्रं स्याद्वागुरा मृगबन्धनी शुल्वं वराटकं स्त्री तु रज्जुस्त्रिषु वटी गुणः उद्घाटनं घटीयन्त्रं सलिलोद्वाहनं प्रहेः पुंसि वेमा वायदण्डः सूत्राणि नरि तन्तवः वाणिर्व्यूतिः स्त्रियौ तुल्ये पुस्तं लेप्यादिकर्मणि पाञ्चालिका पुत्रिका स्याद्वस्त्रदन्तादिभिः कृता
[ ११. शूद्रवर्ग::
१९७६
१९७५
१९७६
१९७७
१९७८
१९७९
१९८०
१९८१
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?
सरमा स्यात् १। ग्राम्यः सूकरः विट्चरः स्यात् १ | यस्तरुणः पशुः स वर्कर इति १ ॥ - आच्छोदनम्, नगव्यम्, आखेटः, मृगया, इति ४ पापर्देः ॥ लुब्धयोगाद्दक्षिणारुः पार्श्वत्रणी कुरङ्गको दक्षिणेर्मा स्यात् १ ॥ चौरः, ऐकागारिकः, स्तेनः, दस्युः, तस्करः, मोषकः, प्रतिरोधिः, परास्कन्दिः, पाटचरः, मलिम्लुचः, इति १० चोरस्य । चौरिका, स्तैन्यम, स्तेयम्, चौर्यम् इति ४ स्तेयस्य । चौर्य धनं लोप्त्रं स्यात् । मृगपक्षिणां बन्धने यदुपकरणं स वीतंस इति १ ॥——उन्माथः, कूटयन्त्रम् इति २ मृगपक्षिबन्धनयन्त्रस्य ॥वागुरा, मृगबन्धनी, इति २ जालीकृत रज्जुविशेषे ॥ -शुल्बम् वराटकम्, रज्जुः वटी, गुणः, इति ५ रजोः । रज्जः स्त्रियाम् । वटी त्रिषु । प्रहेः सलिलोद्वाहने उद्घाटनम्, घटीयन्त्रम् इति २ ॥ वेमा, वायदण्डः, इति २ वस्त्रव्यूतिदण्डस्य ॥ - सूत्राणि, तन्तवः, इति २ सूत्राणाम् । तन्तुः पुंसि ॥–वाणिः, व्यूतिः, इति २ तन्तुवानस्य । लेप्यादिकर्मणि पुस्तमिति १ । वस्त्रदन्तादिभिः कृता पुत्रिका पाञ्चालिका स्यात् १ । दन्तो गजदन्तः,
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पङ्कयः १९७४-१९९७ ] द्वितीयं काण्डम्
जतुत्रपुविकारे तु जातुषं त्रापुषं त्रिषु पिटकः पेटकः पेटा मञ्जूषाथ विहङ्गिका भारयष्टिस्तदालम्ब शिक्यं काचोऽथ पादुका पादूरुपानत्स्त्री सैवानुपदीना पदायता नधी वधी वरत्रा स्यादश्वादेस्ताडनी कशा चण्डालिका तु कण्डोलवीणा चण्डालवल्लकी नाराची स्यादेषणिका शाणस्तु निकषः कषः ब्रश्चनः पत्र परशुरीपिका तूलिका समे तैजसावर्तनी मूषा भस्त्रा चर्मप्रसेविका आस्फोटनी वेधनिका कृपाणी कर्तरी समे वृक्षादनी वृक्षभेदी टङ्कः पाशणदारणः
१६९
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११८७
१९८८
१९८९
१९९०
१९९१
१९९२
१९९३
१९९४
१९९५
१९९६
१९९७
आदिना चर्मकाष्ठमृच्छिलेत्यादिग्रहणम् । जतुविकारो जातुषम् १ । त्रपुविकारस्त्रापुषम् १॥ - पिटकः, पेटकः, पेटा, मञ्जूषा, इति ४ वस्त्रालङ्कारादिस्थापनमञ्जुपायाः ॥ विङ्गिका, भारयष्टिः, इति २ शिक्याधारलगुडस्य। तस्यां भारयष्ट्यामालम्बते शिक्यम, काचः, इति २ ॥ - पादुका, पादू:, उपानम् इति ३ पादत्राणस्य । संवोपानत् पदायता अनुपदीना इति १ ॥— नधी, बधी, तरत्रा, इति ३ चर्ममय्या रज्वाः ॥ -- अश्वादेस्ताडनी रज्जुः कशा स्यात् ५ ॥ चाण्डालिका, कण्डोलवीणा, चण्डालवल्लकी, इति ३ किंनर्याख्याया अन्त्यजवीणायाः ॥ - नाराची, एषणिका, इति २ स्वर्णकाराणां नाराचाकृतिलोहशलाकायाः ॥ - शाणः, निकषः, कषः, इति ३ स्वर्णघर्षणशिलायाः ॥ - ब्रश्वनः, पत्रपरशुः, इति २ स्वर्णादिच्छेदनार्थस्य परशोः ॥ — ईषिका, तूलिका, इति २ शलाकाभेदस्य । तैजसावर्तनी मूषा स्यात् १ ॥ भस्त्रा, चर्मप्रसेविका, इति २ अग्निज्वलनार्थस्य चर्मप्र सेवकस्य ॥-आस्फोटनी, वेधनिका, इति २ मण्यादेर्वेधोपयुक्तस्य शस्त्र मेदस्य ॥कृपाणी, कर्तरी, इति २ कर्तर्याः ॥ वृक्षादनी, वृक्षभेदी, इति २ वृक्षभेदनार्थस्य शस्त्रभेदस्य ॥ - टङ्कः, पाषाणदारणः, इति २ पाषाणदारणा
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[११. शूद्रवर्गः क्रकचोऽस्त्री करपत्रमारा चर्मप्रभेदिका
१९९८ सूर्मी स्थूणायःप्रतिमा शिल्पं कर्म कलादिकम् प्रतिमानं प्रतिबिम्ब प्रतिमा प्रतियातना प्रतिच्छाया २००० प्रतिकृतिरर्चा पुंसि प्रतिनिधिरुपमोपमानं स्यात् २००१ वाच्यलिङ्गाः समस्तुल्यः सदृक्षः सदृशः सदृक् २००२ साधारणः समानश्च स्युरुत्तरपदे त्वमी
२००३ निभसंकाशनीकाशप्रतीकाशोपमादयः कर्मण्या तु विधाभृत्याभृतयो भर्म वेतनम् २००५ भरण्यं भरणं मूल्यं निवेशः पण इत्यपि
२००६ सुरा हलिप्रिया हाला परिवरुणात्मजा २००७ गन्धोत्तमाप्रसन्नेराकादम्बर्यः परिघुता
२००८
०
०
०
र्थस्य धनभेदस्य ॥-ऋकचः, करपत्रम् , इति २ काष्ठादिविदारणार्थस्य शस्त्रस्य ॥--आरा, चर्मप्रभेदिका, इति २ चर्मखण्डनार्थस्य शस्त्रभेदस्य ॥-सूमी, स्थूणा, अयःप्रतिमा, इति ३ लोहप्रतिमायाः । कला गीतनृत्यादिकं यत्कर्म तच्छिल्पम् १॥-प्रतिमानम् , प्रतिबिम्बम , प्रतिमा, प्रतियातना, प्रतिच्छाया, प्रतिकृतिः, अर्चा, प्रतिनिधिः, इति ८ प्रतिमायाः ।-प्रतिनिधिः, पुंसि ॥-उपमा, उपमानम्, इति २ उपमितकरणस्य ॥-समः, तुल्यः सदृक्षः, सदृशः, सहक, साधारणः, समानः, इति ७ समान्तरस्य ॥--अमी उत्तरपदे स्थिताः सदृशपर्यायाः-निभः, संकाशः, नीकाशः, प्रतीकाशः. उपमा, इति ५ ॥-कर्मण्या, विधा, भृत्या, भृतिः, भर्म, वेतनम् , भरण्यम् , भरणम् , मूल्यम् , निर्वेशः, पणः, इति ११ वेतनस्य ॥सुरा, हलिप्रिया, हाला, परित् , वरुणात्मजा, गन्धोत्तमा, प्रसन्ना, इरा, कादम्बरी,
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पङ्कयः १९९८- २०१८ ]
द्वितीयं काण्डम्
मदिरा कश्यमद्ये चाप्यवदंशस्तु भक्षणम् शुण्डापानं मदस्थानं मधुवारा मधुक्रमाः मध्वासवो माधवको मधु माध्वीकमद्वयोः मैरेयमासवः सीधुर्वेदको जगलः समौ संधानं स्यादभिपत्रः कण्त्रं पुंसि तु नग्नहूः कारोत्तर: सुरामण्ड आपानं पानगोष्ठिका चपकोsस्त्री पानपात्रं सरकोऽप्यनुतर्षणम् धूर्तोऽक्ष देवी कितवोऽक्षधूर्तो द्यूतकृत्समाः स्युर्लनकाः प्रतिभुवः सभिका द्यूतकारकाः द्यूतोsस्त्रियामक्षवती कैतवं पण इत्यपि
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२००९
२०१०
२०११
२०१२
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२०१८
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परि, मदिरा, कश्यम्, मद्यम् इति १३ मद्यस्य । तत्र यद्भक्षणं सोऽचदंश इति १ ॥ शुण्डापानम्, मदस्थानम्, इति २ मद्यगृहस्य || - मधुवारः, मधुक्रमः, इति २ मधुपानपरिपाट्याः ॥ -- मध्वासवः, माधवकः, मधु, माध्वीकम्, इति ४ मधुकपुष्पोद्भवस्य मद्यस्य । तत्र माध्वीकं मधु च द्वयोर्नतु क्लीत्रे एव ॥—मैरेयम्, आसवः, सीधुः, इति ३ इक्षुशाकादिजन्यस्य मद्यस्य ।:मेदकः, जगलः, इति २ सुराकल्कस्य ॥ - संधानम्, अभिषवः, इति २ मद्यसंधानस्य ॥ - किण्वम्, नमहूः, इति २ तण्डुलादिद्रव्यकृतसुराबीजस्य ॥ - सुराया मण्डः कारोत्तर इति १ ॥ - आपानम्, पानगोष्ठिका, इति २ पानार्थायाः सभायाः ॥ चषकः, पानपात्रम्, इति २ मद्यपात्रस्य । चषकः पुंनपुंसकयोः ॥ -- सरकः, अनुतर्षणम् इति २ मद्यपानस्य ॥ धूर्तः, अक्षदेवी, कितवः, अक्षधूर्तः, द्यूतकृत् इति ५ द्यूतकृतः ॥ - लग्नकः, प्रतिभूः, इति २ ऋणादौ प्रतिनिधिभूतस्य ॥ - सभिकाः द्यूतकारकाः, इति २ ये द्यूतं कारयन्ति तेषाम् । द्यूतः, अक्षवती, कैतवम्, पणः, इति ४ द्यूतस्य ॥–
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मरकोषे
[११. शूद्रवर्गः
पणोऽक्षेषु ग्लहोऽक्षास्तु देवनाः पाशकाश्च ते परिणायस्तु शारीणां समन्तान्नयनेऽस्त्रियाम् अष्टापदं शारिफलं प्राणियूतं समाह्वयः उक्ता भूरिप्रयोगत्वादेकस्मिन्येऽत्र यौगिकाः ताद्धयांदन्यतो वृत्तावूह्या लिङ्गान्तरेऽपि ते
१२. काण्डसमाप्तिः इत्यमरसिंहकृतौ नामलिङ्गानुशासने द्वितीयः काण्डो भूम्यादिः साङ्ग एव समर्थितः
२०१९ २०२० २०२१ २०२२ २०२३
२०२४ २०२५
पणः, ग्लहः, इति २ पणस्य ॥-अक्षः, देवनः, पाशकः, इति ३ पाशकस्य । शारीणामितस्ततो नयने परिणाय इति १ ॥-अष्टापदम् , शारिफलम् , इति २ शारीणामाधारस्य ॥-प्राणिद्यूतं समाह्वय इति १ ॥-अत्र केषांचिल्लिङ्गभेदविधानाभावात्प्राप्तमपूर्णत्वं परिहरति-उक्ता इति । अत्र शूदवर्ग यौगिकाः भूरि प्रयोगत्वादेकस्मिन्नेव लिने उक्ता अन्यतस्ताद्धयालिझान्तरेऽप्यूहनीयाः । अपिशब्दात करणकुलालादयः पुंसि स्त्रियां च वर्तन्त इति ज्ञेयम् ॥
२०२४-२०२५ इति मया अमरसिंहकृतौ नामलिङ्गानुशासने भूम्यादिर्द्वितीयः काण्डः साङ्ग एव समर्थितः ॥ श्रीमत्यमरविवेके महेश्वरेण चिरचित एवमयं भूम्यादि
र्द्वितीयः काण्डः समाप्तः ॥
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पङ्क्लयः २०१९-२०३२ ]
तृतीयं काण्डम्
तृतीयं काण्डम् १. वर्गभेदाः
विशेष्यनिघ्नैः संकीर्णैर्नानार्थैरव्ययैरपि लिङ्गादिसंग्रहैर्वर्गाः सामान्ये वर्गसंश्रयाः
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२. परिभाषा
स्त्रीदाराद्यैर्यद्विशेष्यं यादृशैः प्रस्तुतं पदैः गुणद्रव्यक्रियाशब्दास्तथा स्युस्तस्य भेदकाः
३. विशेष्यनिघ्नवर्गः
सुकृती पुण्यवान्धन्यो महेच्छस्तु महाशयः हृदयालुः सुहृदयो महोत्साहो महोद्यमः प्रवीणे निपुणाभिज्ञविज्ञनिष्णात शिक्षिताः
१७३
२०२६
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२०२८
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२०३२
२०२६-१०२७ वक्ष्यमाणवर्गानाह-सामान्ये साधारणत्वात्सामान्याख्येऽस्मिन्काण्डे विशेष्यनिघ्नैर्विशेष्यं स्त्रीदारादिपूर्वोक्तं तदधीनलिङ्गवचनैः सुकृत्यादिभिः शब्दः तथा संकीर्णैः परस्परविजातीयार्थैः, तथा नानार्थैरनेकार्थेषु वर्तमानैर्ना कलोकादिभिः अव्ययैरावादिभिर्लिन परुपलक्षितास्तत्तनामका वर्गाः । वक्ष्यन्त इति शेषः ॥
२०२८-२०२९ यादृशेः स्त्रीलिङ्गत्वादियुक्तैः स्त्रीदाराद्यैः पदैर्यद्विशेष्यं स्त्रीदारादिरूपं यथा प्रस्तुतं प्रकान्तं तस्य विशेष्यस्य भेदका व्यावर्तका गुणद्रव्य क्रियाविशिष्टाः शब्दास्तथा स्युः । तत्र गुणः सुकृतादिः । तद्विशिष्टो यथा - - 'सुकृतिनी स्त्री', 'सुकृतिनो दाराः', 'सुकृति फुलम्' 'द्रव्यं दण्डादि' । तद्विशिष्टो यथा'दण्डिनी स्त्री', 'दण्डिनो दाराः', 'दण्डि कुलम्' । क्रियावचनादिव्यापारः । तद्विशिष्टो यथा -- 'पाचिका स्त्री', 'पाचका दाराः', 'पाचकं कुलम् ' ॥
२०३० - २२५० सुकृती, पुण्यवान्, धन्यः, इति ३ भाग्यसंपन्नस्य ॥ — महेच्छः, महाशयः, इति २ उदारचित्तस्य दयालोः ॥ हृदयालुः, सुहृदयः, इति २ प्रशस्तचित्तस्य ॥ - महोत्साहः, महोद्यमः इति २ महोद्यमस्य ॥ - प्रवीणः, निपुणः, अभिज्ञः, विज्ञः, निष्णातः, शिक्षितः, वैज्ञानिकः, कृतमुखः,
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१७४
अमरकोषे [३. विशेष्यनिघ्नवर्गः वैज्ञानिकः कृतमुखः कृती कुशल इत्यपि
२०३३ पूज्यः प्रतीक्ष्यः सांशयिकः संशयापन्नमानसः २०३४ दक्षिणीयो दक्षिणार्हस्तत्र दक्षिण्य इत्यपि
२०३५ स्युर्वदान्यस्थूललक्ष्यदानशौण्डा बहुप्रदे
२०३६ जैवातृकः स्यादायुष्मानन्तर्वाणिस्तु शास्त्रवित् २०३७ परीक्षकः कारणिको वरदस्तु समर्धकः
२०३८ हर्षमाणो विकुर्वाणः प्रमना हृष्टमानसः २०३९ दुर्मना विमना अन्तर्मनाः स्यादुत्क उन्मनाः २०४० दक्षिणे सरलोदारौ सुकलो दातृभोक्तरि
२०४१ तत्परे प्रसितासक्ताविष्टार्थोद्युक्त उत्सुकः २०४२ प्रतीते प्रथितख्यातवित्तविज्ञातविश्रुताः
२०४३ गुणैः प्रतीते तु कृतलक्षणाहतलक्षणी
२०४४
कृती, कुशलः, इति १० प्रवीणस्य ॥-पूज्यः, प्रतीक्ष्यः, इति २ पूज्यस्य ॥सांशयिकः, संशयापन्नमानसः, इति २ संशयापनमानसस्य ॥--दक्षिणीयः, दक्षिणाः, दक्षिण्यः, इति ३ दक्षिणार्हस्य ॥ वदान्यः, स्थूललक्ष्यः, दानशोण्डः, बहुप्रदः, इति ४ दानशूरस्य ॥-जैवातृकः, आयुष्मान , इति २ आयुन्मतः ॥-अन्तर्वाणिः, शास्त्रवित् , इति २ शास्त्रज्ञस्य ॥ --परीक्षकः, कारणिकः, इति २ प्रमाणैरर्थ निश्चायकस्य ॥ वरदः, समर्धकः इति २ वराणां दातरि ॥ हर्षमाणः, विकुर्वाणः, प्रमनाः, हृष्टमानसः, इति ४ हृष्चेतसः ॥--दुर्मनाः, विमनाः, अन्तर्मनाः, इति ३ व्याकुलचेतसः ॥ -उत्कः, उन्मनाः, इति २ उत्कण्ठितस्य ॥–दक्षिणः, सरलः, उदारः, इति ३ सरलस्य ॥-दातृभोक्तरि सुकल इति १ ॥ तत्परः, प्रसितः, आसक्तः, इति ३ तत्परस्य ।।----इष्टार्थोद्युक्तः, उत्सुकः, इति २ अभिमतार्थे सोद्योगस्य ॥-प्रतीतः, प्रथितः, ख्यातः, वित्तः, विज्ञातः, विश्रुतः, इति ६ ख्यातस्य ॥-कृतलक्षणः, आहतलक्षणः, इति २ शौर्यादिभिः ख्याते ॥
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पङ्कयः २०३३-२०५७ ]
तृतीयं काण्डम्
इभ्य आढ्यो धनी स्वामी त्वीश्वरः पतिरीशिता अधिभूर्नायको नेता प्रभुः परिवृढोऽधिपः अधिकर्द्धिः समृद्धः स्यात् कुटुम्बव्यापृतस्तु यः स्यादभ्यागारिकस्तस्मिन्नुपाधिश्च पुमानयम् वराहरूपोपेतो यः सिंहसंहननो हि सः निर्वार्यः कार्यकर्ता यः संपन्नः सत्त्वसंपदा अवाचि मूकोऽथ मनोजवसः पितृसंनिभः सत्कृत्यालंकृतां कन्यां यो ददाति स कूकुदः लक्ष्मीवाँलक्ष्मणः श्रीलः श्रीमान्स्निग्धस्तु वत्सलः स्यादयालुः कारुणिकः कृपालुः सूरतः समाः स्वतन्त्रोऽपावृतः स्वैरी स्वच्छन्दो निरवग्रहः परतन्त्रः पराधीनः परवान्नाथवानपि अधीनो निघ्न आयत्तोऽस्वच्छन्दो गृह्यकोऽप्यसौ
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इभ्यः, आढ्यः, धनी, इति ३ धनिनः ॥ - स्वामी, ईश्वरः पतिः, ईशिता, अघिनूः, नायकः, नेता, प्रभुः, परिवृढः, अधिपः, इति १० प्रभोः ॥ - अधिकर्द्धिः, समृद्धः, इति २ सुसंपन्नस्य ॥ कुटुम्बव्यापृतः, अभ्यागारिकः, उपाधिः, इति ३ कुटुम्बपोषणादिव्यापारयुक्तस्य । वरैरङ्गरूपैरुपेतो यः स सिंहसंहनन इति १ ॥ यः सत्त्वसंपदा संपन्नः सन् कार्यं करोति स निर्वार्य इति १ ॥ -- अवाक्, मूकः, इति २ मूकस्य ॥ - मनोजवसः, पितृसन्निभः, इति २ पितृतुल्यस्य । आदरपूर्वकमलंकृतां कन्यां यो ददाति स कूकुद इति १ ॥ - लक्ष्मीवान्, लक्ष्मणः, श्रीलः, श्रीमान् इति ४ लक्ष्मीवतः ॥ - स्निग्धः, वत्सलः, इति २ स्नेहयुक्तस्य ॥ - दयालुः कारुणिकः, कृपालुः, सूरतः, इति ४ दयाशीलस्य ॥ स्वतन्त्रः, अपावृतः, खैरी, स्वच्छन्दः, निरवग्रहः, इति ५ स्वच्छन्दस्य ॥ - परतन्त्रः, पराधीनः, परवान्, नाथवान् इति ४ पराधीनस्य ॥ - अधीनः, निघ्नः, आयतः, अस्वच्छन्दः, गृह्यकः इति ५
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अमरकोपे . [३. विशेष्यनिम्नवर्ग: खलपूः स्याद्बहुकरो दीर्घसूत्रश्चिरक्रियः २०५८ जाल्मोऽसमीक्ष्यकारी स्यात्कुण्ठो मन्दः क्रियासु यः २०५९ कर्मक्षमोऽलंकर्माणः क्रियावान्कर्मसूद्यतः २०६० स कार्मः कर्मशीलो यः कर्मशूरस्तु कर्मठः २०६१ भरण्यभुकर्मकरः कर्मकारस्तु तक्रियः
२०६२ अपस्नातो मृतस्त्रात आमिषाशी तु शौष्कलः २०६३ बुभुक्षितः स्यात्क्षुधितो जिघत्सुरशनायितः २०६४ परान्नः परपिण्डादो भक्षको घस्मरोऽद्मरः आद्यूनः स्यादौदरिको विजिगीषाविवर्जिते २०६६ उभौ त्वात्मभरिः कुक्षिभरिः स्वोदरपूरके २०६७ सर्वान्नीनस्तु मर्वान्नभोजी गृध्नस्तु गर्धनः २०६८ लुब्धोऽभिलाषुकस्तृष्णक्समौ लोलुपलोलुभौ २०६१ अधीनस्य ॥-खलपूः, बहुकाः, इति । संमार्जनादिकारणः ---- दीधसूत्रः, चिरक्रियः, इति २ आलस्ययुक्तस्य ॥----डाल क री, इति २ गुणदोषानविमृश्यकारिणः । यः क्रियागु मन्दः स कुठल 11 ..... कर्मक्षमः, अलंकर्मीणः, इति २ कर्मणि शक्तस्य ॥ कमेगु य उद्युक्तः स क्रियावानिति ९॥-कार्मः, कर्मशीलः, इति २ नित्यं कर्मण्येव प्रवृत्तस्य ।। कर्मशूरः, कर्मठः, इति २ कर्मशरस्य ॥-भरण्यभुक, कर्मकरः, इति २ वेतनं गृहीत्वा कर्म करोति तस्य । वेतनं विनापि क्रियावान् स कर्मकार: इति १॥----अपनातः, मृतस्नातः, इति २ मृतमुद्दिश्य स्नातस्य ॥-आमिषाशी, शौष्कलः, इति २ मत्स्यमांसभक्षकस्य ॥-बुभुक्षितः, क्षुधितः, जिघत्सुः, अशनायितः, इति ४ बुभुक्षितस्य ।।--परान्नः, परपिण्डादः, इति २ परानोपजीविनः ।।-भक्षकः, घस्मरः, अदरः, इति ३ भक्षणशीलस्य ।।आयूनः, औदरिकः, इति ? विजिगीषाविवर्जिते ॥-आर्मभरिः, कुक्षिभरिः, इति २ यः खोदरं बिभर्ति तस्य ।।-सर्वानीनः, सर्वानभोजी, इति २ सर्वानमोजिनः । गृभुः गर्धनः, इति २ आकाशाशीलस्य ॥-लुब्धः, अमिलाषुकः, तृष्णक्, इति ३ अभिलाषशीलस्य ।।-लोलुपः, लोलुभः,
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पङ्क्क्लमः २०५८-२०८१]
तृतीयं काण्डम्
सोन्मादस्तून्मदिष्णुः स्यादविनीतः समुद्धतः मत्ते शौण्डोत्कटक्षीबाः कामुके कमिताऽनुकः कामयिताऽभीकः कमनः कामनोऽभिकः विधेयो विनयग्राही वचनेस्थित आश्रवः वश्यः प्रणेयो निभृतविनीतप्रश्रिताः समाः धृष्टे धृष्णग्वियातश्च प्रगल्भः प्रतिभान्विते स्यादधृष्टे तु शालीनो विलक्षो विस्मयान्विते अधीरे कातरस्त्रस्ते भीरुभीरुकभीलुकाः आशंसुराशंसितरि गृहयालुर्ग्रहीत रि श्रद्धालुः श्रद्धया युक्ते पतयालुस्तु पातुके लज्जाशीलेऽपत्रपिष्णुर्वन्दारुरभिवादके शरारुर्घातुको हिंस्रः स्याद्वर्धिष्णुस्तु वर्धनः
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—विलक्षः,
इति २ अतितृष्णाशीलस्य || सोन्मादः उन्मदिष्णुः, इति २ उन्मादशीलस्य ॥ - - अविनीतः समुद्धतः, इति २ दुर्विनीतस्य ॥ मत्तः, शौण्डः, उत्कटः, क्षीब:, इति ४ मत्तस्य ॥ - कामुकः, कमिता, अनुकः, कम्रः, कामयिता, अभीकः, कमनः, कामनः, अभिकः, इति ९ कामुकस्य ॥ विधेयः, विनयग्राही, वचनेस्थितः, आश्रवः, इति वचनग्राहिणि ॥ वश्यः प्रणेयः, इति २ वशंगतस्य ॥ - निभृतः, विनीतः, प्रश्रितः, इति ३ विनीतस्य ॥ - धृष्टः, धृष्णक्, वियातः, इति ३ अविनीतस्य ॥ -- प्रगल्भः, प्रतिभान्वितः इति २ सप्रतिभस्य ॥ अधृष्टः, शालीन:, इति २ सलज्जस्य ॥ - विस्मयान्वितः इति २ प्राप्ताश्चर्यस्य ॥ अधीरः, कातरः, इति २ भयक्षुपिपासादिव्याकुलस्य ॥ - त्रस्तः, भीरुः, भीरुकः, मीलुकः, इति ४ भयशीलस्य ॥ -- आशंसुः, आशंसिता, इति २ वाञ्छाशीलस्य ॥ - गृहयालुः, ग्रहीता, इति २ ग्रहणशीलस्य । श्रद्धया युक्ते श्रद्धालुरिति १ ॥ - पतयालुः, पातुकः, इति २ पतनशीलस्य ॥ - लज्जाशीलः, अपत्रपिष्णुः, इति २ लोकलज्जायुक्तस्य ॥ - - वन्दारुः, अभिवादकः, इति २ वन्दनशीलस्य ॥ - शरारुः, धातुकः, हिंस्रः, इति ३ हिंसाशीले ॥ - वर्धिष्णुः, वर्धनः, इति २ स. को. स. १२
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अमरकोषे [३. विशेष्यनिन्नवर्ग: उत्पतिष्णुस्तूत्पतिताऽलंकरिष्णुस्तु मण्डनः २०८२ भूप्णुर्भविष्णुर्भविता वर्तिष्णुर्वर्तनः समो २०८३ निराकरिष्णुः क्षिप्नुः स्यात् मान्द्रस्निग्धस्तु मेदुरः ज्ञाता तु विदुरो विन्दुर्विकासी तु विकस्वरः २०८५ विसृत्वरो विसमरः प्रसारी च विसारिणि २०८६ सहिष्णुः सहनः क्षन्ता तितिक्षुः क्षमिता क्षमी २०८७ क्रोधनोऽमर्षणः कोपी चण्डस्यत्यन्तकोपनः २०८८ जागरूको जागरिता घूर्णितः प्रचलायितः २०८९ स्वप्नक्शयालुनिंद्रालुनिंद्राणशयिती समो २०९० पराङ्मुखः पराचीनः स्यादवाडप्यधोमुखः देवानञ्चति देवद्यङ् विष्वद्यङ् विश्वगश्चति २०९२ यः सहाञ्चति सध्यङ् स स तिर्य यस्तिरोऽञ्चति २०९३ वर्धनशीलस्य ॥--उत्पतिष्णः, उत्पतिता, इति २ उत्पतनशीलस्य ।।--- अलंकरिष्णुः, मण्डनः, इति २ अलंकरणशीले ॥-भूष्णुः, भविष्णः, भविता, इति ३ भवनशीले ॥-वर्तिष्णुः, वर्तनः, इति २ वर्तनशीले ॥--निराकरिष्णुः, क्षिः, इति २ निराकर्तरि । सान्द्रनिग्धः मेदरः स्यात् १॥-ज्ञाता, विदुर , विन्दुः, इति ३ ज्ञानरि ॥--विकामी, विकस्बरः, इति २ विकासशीले ||--- विसत्वरः, विनमरः, प्रसारी, विसारी. दति ४ प्रसरणशीले ॥-सहिष्णुः, सहनः, क्षन्ता, तितिक्षुः, क्षमिता, क्षमी, इति । क्षमाशीले ॥---क्रोधनः, अमपणः, कोपी, इति ३ कोपशीलम्ब!!---चण्ड : अत्यन्तकोपनः, इति २ अतिक्रोधशीले ॥-जागरूकः, जागरिता, इति । जागरणशीले ॥-घूर्णितः, प्रचलायितः, इनि २ निद्राघुर्णितस्य ।।वनक्, शयालः, निद्रालुः, इनि ३ निद्राशीलस्य ॥-निद्राणः, शयितः, इति २ सुप्तस्य ।।-परामुखः, पराचीनः, इनि २ विमुखस्य ।। -अवाङ्ग, अपोमुखः, इति २ अवामुखस्य । यो देवानवनि स देवद्यड़ १ । यो विष्वगञ्चति स विष्वद्य १ । यः सहाञ्चति स सध्यङ् १ । यस्तिरोऽधति स
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लियः २०८२-२१०५ ] तृतीयं काण्डम्
दो वदावो वक्ता वागीशो वाक्पतिः समौ चोयुक्तिपर्वाग्मी वावदूकोऽतिवक्तरि व्याज्जल्पाकस्तु वाचालो वाचाटो बहुगर्ह्यवाक् दुर्मुखे मुखरावद्धमुखौ शक्कुः प्रियंवदे होहलः स्यादस्फुटवाग्गर्ह्यवादी तु कद्वदः कुवाकु स्यादसौम्य स्वरोऽस्वरः विणः शब्दनो नान्दीवादी नान्दीकरः समौ asisज्ञ एडमूकस्तु वक्तुं श्रोतुमशिक्षिते तूर्णीशीलस्तु तूष्णीको नग्नोऽवासा दिगम्बरे निष्कासितोऽवकृष्टः स्यादपध्वस्तस्तु धिक्कृतः आत्तगर्वोऽभिभूतः स्याद्दापितः साधितः समौ प्रत्यादिष्टो निरस्तः स्यात् प्रत्याख्यातो निराकृतः
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तिर्यङ् ५ ॥ - वदः, वदावदः, वक्ता, इति ३ वक्तरि ॥ - वागीशः, वाक्पतिः, इति २ अनवद्योद्दामवादिनि ॥ - वाचोयुक्तिपटुः, वाग्मी, इति २ नैयायिकस्य ।।—वावदूकः, अतिवक्ता, इति २ बहुभाषिणि ॥ — जल्पाकः, वाचाल, वाचाटः, बहुगर्धवाक्, इति ४ बह्ववाच्यवाचालस्य ॥ - दुर्मुखः, मुखरः, अबद्धमुखः, इति ३ अनर्गलमुखस्य ॥ शक्लः, प्रियंवदः, इति २ प्रियचादिनि —— लोहल: अस्फुटवाक, इति २ अस्फुटवादिनि ॥ - गवादी, कद्वदः, इति २ कुत्सितभाषिणि 11- - कुवादः, कुचरः, इति २ दोषकथनशीले ॥——असौम्यस्त्ररः, अखरः, इति २ काकादिखरवदपस्वरयुक्तस्य ॥ रवणः, शब्दनः, इति २ शब्दशीलस्य ॥ -- नान्दीवादी, नान्दीकरः, इति २ स्तुतिविशेषवादिनः ॥ - जडः, अज्ञः, इधि २ अत्यन्तमूढस्य ॥ यो वक्तुं श्रोतुं
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शिक्षितो न भवति स एडमूकः १ ॥ - तूष्णींशीलः तूष्णीकः, इति २ तूष्णींभावयुक्तस्य ॥ नमः, अवासाः, दिगम्बरः, इति ३ नग्नस्य ॥ निष्कासितः, अवकृष्टः, इति २ निर्गमितस्य ॥ - अपध्वस्तः, धिक्कतः, इति २ निर्भसितस्य ॥ - आत्तगर्वः, अभिभूतः, इति २ भग्नदर्पस्य ॥ - दापितः, साधितः, इति २ प्रदापितस्य ॥ - प्रत्यादिष्टः, निरस्तः, प्रत्याख्यातः, निराकृतः, इति ४
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अमरकोषे [३. विशेष्यनिम्नवर्गः निकृतः स्याद्विप्रकृतो विप्रलब्धस्तु वञ्चितः २१०६ मनोहतः प्रतिहतः प्रतिबद्धो हतश्च सः । अधिक्षिप्तः प्रतिक्षिप्तो बद्धे कीलितसंयतौ
२१०८ आपन्न आपत्प्राप्तः स्यात् कांदिशीको भयद्रुतः २१०९ आक्षारितः क्षारितोऽभिशस्ते संकसुकोऽस्थिरे २११० व्यसनातॊपरक्तौ द्वौ विहस्तव्याकुली समौ २१११ विक्लवो विह्वलः स्यात्तु विवशोऽरिष्टदुष्टधीः
२११२ कश्यः कशाहे संनद्धे त्वाततायी वधोद्यते द्वेष्ये त्वक्षिगतो वध्यः शीर्षच्छेद्य इमौ समौ
२११४ विष्यो विषेण यो वध्यो मुसल्यो मुसलेन यः
२११५ शिश्विदानोऽकृष्णकर्मा चपलश्चिकुरः समौ दोका पुरोभागी निकृतस्त्वनृजुः शठः २११७ निराकृतस्य ।—निकृतः, विप्रकृतः, इति २ विवर्णीकृतस्य ॥-विप्रलब्धः, वञ्चितः, इति २ वश्चनं प्राप्तस्य ॥-मनोहतः, प्रतिहतः, प्रतिबद्धः, हतः, इति ४ मनसि हतस्य ॥-अधिक्षिप्तः, प्रतिक्षिप्तः, इति २ कृताक्षेपस्य ॥बद्धः, कीलितः. संयतः, इति ३ रजवादिना निबद्धस्य॥-आपन्नः,आपत्प्राप्तः, इति २ आपदं गतस्य ।।-कांदिशीकः, भयद्रुतः, इति २ भयात्पलायितस्य ॥-आक्षारितः, क्षारितः, अभिशस्तः, इति ३ लोकापवादेन दूषितस्य ॥-संकसुकः, अस्थिरः, इति २ चलप्रकृतेः । व्यसनातः, उपरक्तः, इति २ व्यसनपीडितस्य ॥-विहस्तः, व्याकुलः, इति २ शोकादिभिरितिकर्तव्यतामूढस्य ॥-विक्लवः, विह्वलः, इति २ शोकादिना गात्रभङ्गं प्राप्तम्य ॥- विवशः, अरिष्टदुष्टधीः, इति २ आसन्नमरणदूषितबुद्धेः ॥---कश्यः, कशाहः, इति २ कशाघातमहतः । वधोद्यते संनद्धे आततायीति १॥द्वेष्यः, अक्षिगतः, इति २ द्वेषाहस्य । वध्यः, शीर्षच्छेद्यः, इति २ वधार्हस्य। यो विषेण वध्यः स विष्य इति १ । यो मुसलेन वध्यः स मुसल्य इति १। शिश्विदानः, अकृष्णकर्मा, इति २ पुण्यकर्मणः ॥-चपलः, चिकुरः, इति २ चपलस्य ॥-दोषैकदृक्, पुरोभागी, इति २ दोषमात्रं पश्यतः ॥-.
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पतयः २१०६-२१२९] तृतीयं काण्डम्
१८. कर्णेजपः सूचकः स्यात् पिशुनो दुर्जनः खलः २११८ पृशंसो घातुकः क्रूरः पापो धूर्तस्तु वञ्चकः २११९ अज्ञे मूढयथाजातमूर्खवैधेयबालिशाः
२१२० कदर्ये कृपणक्षुद्रपिचानमितंपचाः ।
२१२१ नेःस्वस्तु दुर्विधो दीनो दरिद्रो दुर्गतोऽपि सः २१२२ नीयको याचनको मार्गणो याचकार्थिनौ अहंकारवानहंयुः शुभंयुस्तु शुभान्वितः
२१२४ देव्योपपादुका देवा नृगवाद्या जरायुजाः २१२५ वेदजाः कृमिदंशाद्याः पक्षिसादयोऽण्डजाः २१२६ उद्भिदस्तरुगुल्माद्या उद्भिदुद्भिजमुद्भिदम् २१२७ सुन्दरं रुचिरं चारु सुषमं साधु शोभनम् २१२८ कान्तं मनोरमं रुच्यं मनोज्ञं मञ्ज मञ्जलम् २१२९ निकृतः, अनृजुः, शठः, इति ३ यस्यान्तःकरणं वकं तस्य । कर्णेजपः, सूचकः, इति २ कर्णे परापवादं वदतः ॥-पिशुनः, दुर्जनः, खलः, इति ३ परस्परमेदनशीलस्य ॥-नशंसः, घातुकः, क्रूरः, पापः, इति ४ परद्रोहशीले ॥--धूर्तः, वञ्चकः, इति २ प्रतारणशीलस्य ॥-अज्ञः, मूढः, यथाजातः, मूर्खः, वैधेयः, बालिशः, इति ६ मूर्खस्य ॥-कदर्यः, कृपणः, क्षुद्रः, किंपचानः, मितंपचः, इति ५ कृपणस्य ॥--निःस्वः, दुर्विधः, दीनः, दरिद्रः, दुर्गतः, इति ५ दरिद्रस्य ॥---वनीयकः, याचनकः, मार्गणः, याचकः, अर्थी, इति ५ याचकस्य ।।--अहंकारवान् , अहंयुः, इति २ अहंकारिणः ॥-शुभंयुः, शुभान्वितः, इति २ शुभयुक्तस्य। देवा दिव्योपपादुका उच्यन्ते १ । नृगवाद्या जरायुजाः स्युः १ । कृमिदंशाद्याः खेदजाः स्युः १ । खेदहेतुत्वादूष्मा खेदः, ततो जाताः खेदजाः। पक्ष्यादयोऽण्डजा इति १। तहगुल्माद्या उद्भिदः १॥-उद्भित्, उद्भिज्जम् , उद्भिदम् , इति ३ उद्भिदि ॥-सुन्दरम् , रुचिरम् , चारु, सुषमम् , साधु, शोभनम् , कान्तम् , मनोरमम् , रुच्यम् , मनोज्ञम्, मजु, मञ्जुलम्, इति १२ सुन्दरस्य ॥ यस्य दर्शनात् दृङ्मनसोस्तृप्तेरन्तो नास्ति तदासे
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अमरकोपे [३. विशेष्यनिम्नवर्गः तदासेचनकं तृप्तेर्नास्त्यन्तो यस्य दर्शनात्
२१३० अमीष्टेऽभीप्सितं हृद्यं दयितं वल्लभं प्रियम् २१३१ निकृष्टप्रतिकृष्टावरेफयाप्यावमाधमाः
२१३२ कुपूयकुत्सितावद्यखेटगर्याणकाः समाः
२१३३ मलीमसं तु मलिनं कच्चरं मलदूषितम्
२१३४ पूतं पवित्रं मेध्यं च वीभ्रं तु विमलार्थकम् २१३५ निर्णिक्तं शोधितं मृष्टं निःशोध्यमनवस्करम् २१३६ असारं फल्गु शून्यं तु वशिकं तुच्छरिक्तके २१३७ क्लीबे प्रधानं प्रमुखप्रवेकानुत्तमोत्तमाः
२१३८ मुख्यवर्यवरेण्याश्च प्रवर्णोऽनवराय॑वत्
२१३९ परााग्रप्राग्रहरप्राय्याग्र्याग्रीयमग्रियम्
२१४० श्रेयान् श्रेष्ठः पुष्कलः स्यात् सत्तमश्चातिशोभने
२१४१ स्युरुत्तरपदे व्याघ्र पुंगवर्षभकुञ्जराः
२१४२ सिंहशार्दूलनागाद्याः पुसि श्रेष्ठार्थगोचराः चनकं स्यात् १ ॥-अभीष्टम् , अभीप्सितम् , हृद्यम् , दयितम् , वल्लभम्, प्रियम्, इति ६ अभीष्टस्य ॥-निकृष्टः, प्रतिकृष्टः, अवो, रेफः, या यः, अवमः, अधमः, कुपूयः कुत्सितः, अवद्यः, खेटः, गद्यः, अणकः, इति १३ अधमस्य ॥-मलीमसम् , मलिनम् , कच्चरम् , मलदूषितम् , इति ४ अनुज्वलस्य। पूतम् ,पवित्रम् , मेध्यम्, इति ३ पवित्रस्य॥वीभ्रमिति विमलार्थकम् १॥ निर्णिक्तम् , शोधितम् , मृष्टम् , निःशोध्यम् , अनवस्करम् , इति ५ अपनीतमलस्य ।।-असारम् , फल्गु, इति २ निर्बलस्य। शून्यम् , वशिकम् , तुच्छम् , रिक्तकम् , इति ४ रिक्तस्य ॥ प्रधानम् , प्रमुखः, प्रवेकः, अनुत्तमः, उत्तमः, मुख्यः, वर्यः, वरेण्यः, प्रवर्हः, अनवरार्यः, परायः, अग्रः, प्राग्रहरः, प्रायः, अग्र्यः, अग्रीयः, अप्रियः, इति १७ प्रधानस्य । प्रधानं नित्यं क्लीबे ॥-श्रेयान् , श्रेष्ठः, पुष्कलः, सत्तमः, अतिशोभनः, इति ५ अत्यन्तशोभनस्य। म्याघ्रादय एते शब्दा उत्तरपदे पुंसि श्रेष्ठार्थगोचराः। 'आद्य'शब्दात्सोमादयः।-अप्राग्यम् , अप्रधानम्,
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पङ्क्यः २१३० - २१५६ ]
तृतीयं काण्डम्
अप्राग्र्यं द्वयीने द्वे अप्रधानोपसर्जने विशङ्कटं पृथु बृहद्विशालं पृथुलं महत् वोरुविपुलं पीनपीनी तु स्थूलपीवरे स्तोकाल्पक्षुल्लकाः सूक्ष्मं श्लक्ष्णं दत्रं कृशं तनु स्त्रियां मात्रा त्रुटि: पुंसि लवलेशकणाणवः अत्यल्पेऽल्पिष्ठमल्पीय: कनीयोऽणीय इत्यपि प्रभूतं प्रचुरं प्राज्यमदत्रं बहुलं बहु पुरुहूः पुरु भूयिष्ठं स्फारं भूयश्च भूरि च परःशताद्यास्ते येषां परा संख्या शतादिकात् गणनीये तु गणेयं संख्याते गणितमथ समं सर्वम् विश्वमशेषं कृत्स्नं समस्त निखिला खिलानि निःशेषम् २१५४ समग्रं सकलं पूर्णमखण्डं स्यादनून के
२१५३
२१५५
घनं निरन्तरं सान्द्रं पेलवं विरलं तनु
२१५६
१८३
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२१४४
२१४५
२१४६
२१४७
२१४८
२१४९
२१५०
२१५१
२१५२
,
उपसर्जनम्, इति अप्रधानस्य । तत्राप्रधानोपसर्जने द्वे द्वयहीने स्त्रीपुंसाभ्यां हीने क्लीबे ॥-विशङ्कटम्, पृथु, बृद्दत्, विशालम्, पृथुलम्, महत्, वडूम्, उरु, विपुलम्, इति ९ विस्तीर्णस्य ॥ पीनम्, पीव, स्थूलम्, पीवरम् इति ४ स्थूलस्य ॥ - स्तोकः, अल्पः, क्षुल्लक:, इति ३ अल्पस्य ॥ सूक्ष्मम्, श्लक्ष्णम्, दभ्रम्, कृशम्, तनु, मात्रा, त्रुटि:, लवः, लेशः, कणः, अणुः, इति ११ सूक्ष्मस्य । मात्रात्रुटी स्त्रियौ । लवादिः पुंसि ॥ - अल्मिष्ठम् अल्पीयः, कनीयः, अणीयः, इति ४ अत्यल्पे ॥ -- - प्रभूतम्, प्रचुरम्, प्राज्यम्, अदभ्रम्, बहुलम्, बहु, पुरुहूः, पुरु, भूयिष्ठम्, स्फारम्, भूयः, भूरि इति १२ बहुलस्य । येषां संख्या शतात्सहस्राच्च परा ते क्रमेण परःशताः, परः सहस्राः स्युरेकैकम् ॥ - गणनीयमू, गणेयम्, इति २ गणयितुं शक्यस्य ॥ - संख्यातम्, गणितम्, इति २ संख्यातस्य ॥ - समम्, सर्वम्, विश्वम्, अशेषम, कृत्स्नम्, समस्तम्, निखिलम्, अखिलम्, निःशेषम्, समग्रम्, सकलम् पूर्णम्, अखण्डम्, अनूनकम्, इति १४ समग्रस्य ॥ घनम्, निरन्तरम्, सान्द्रम्, इति ३ निबिडस्य || - पेल
,
--
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१८४
अमरकोषे
[३. विशेष्यनिम्नवर्गः
समीपे निकटासन्नसंनिकृष्टसनीडवत्
२१५७ सदेशाभ्याशसविधसमर्यादसवेशवत्
२१५८ उपकण्ठान्तिकाभ्याभ्यग्रा अप्यभितोऽव्ययम् २१५९ संसक्ते त्वव्यवहितमपदान्तरमित्यपि
२१६० नेदिष्ठमन्तिकतमं स्याद्रं विप्रकृष्टकम्
२१६१ दवीयश्च दविष्ठं च सुदूरं दीर्घमायतम्
२१६२ वर्तुलं निस्तलं वृत्तं बन्धुरं तून्नतानतम्
२१६३ उच्चप्रांशून्नतोदग्रोच्छ्रितास्तुङ्गेऽथ वामने
२१६४ न्यङ्नीचखर्वहस्वाः स्युरवाग्रेऽवनतानतम् २१६५ अरालं वृजिनं जिह्ममूर्मिमत्कुश्चितं नतम् २१६६ आविद्धं कुटिलं भुग्नं वेल्लितं वक्रमित्यपि २१६७ ऋजावजिह्मप्रगुणौ व्यस्ते त्वप्रगुणाकुलो
२१६८ वम् , विरलम् , तनु, इति ३ विरलस्य ॥-समीपः, निकटः, आसन्नः, सनिकृष्टः, सनीडः, सदेशः, अभ्याशः, सविधः, समर्यादः, सवेशः, उपकण्ठः, अन्तिकः, अभ्यर्णः, अभ्यग्रः, अभितः, इति १५ समीपस्य । तत्राभित इत्यव्ययम् ॥-संसकम्, अव्यवहितम् , अपदान्तरम्, इति ३ संलग्नस्य ।-नेदिष्ठम् , अन्तिकतमम्, इति २ अतिनिकटस्य ॥-दूरम् , विप्रकृष्टकम् , इति २ दूरस्य ॥दवीयः, दविष्ठम् , सुदूरम् , इति ३ अत्यन्तदूरस्य । दीर्घम् , आयतम् , इति २ दीर्घस्य ॥-वर्तुलम् , निस्तलम् , वृत्तम् , इति ३ वर्तुलस्य । उनतानतं स्वभावत उन्नतमुपाधिवशादीषन्नतं तत् बन्धुरमिति १॥-उच्चः, प्रांशुः, उन्नतः, उदग्रः, उच्छ्रितः, तुङ्गः, इति ६ उन्नतस्य ॥-वामनः, न्यक्, नीचः, खर्वः, ह्रखः, इति ५ हस्खस्य ॥-अवाग्रम् , अवनतम् , आनतम् , इति ३ अधोमुखस्य ॥अरालम् , वृजिनम् , जिह्मम् , ऊर्भिमत् , कुच्चितम् , नतम् , आविद्धम् , कुटिलम् , भुग्नम् , वेलितम् , वक्रम् , इति ११ वक्रस्य ॥-ऋजुः, अजिह्मः, प्रगुणः, इति ३ अवक्रस्य ।।-व्यस्तः, अप्रगुणः, आकुलः, इति ३ आकुलस्य॥-शाश्वतः,
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पतयः २१५७-२१८१]
तृतीयं काण्डम्
शाश्वतस्तु ध्रुवो नित्यसदातनसनातनाः स्थास्नुः स्थिरतरः स्थेयानेकरूपतया तु यः २१७० कालव्यापी स कूटस्थः स्थावरो जङ्गमेतरः २१७१ चरिष्णु जङ्गमचरं त्रसमिङ्गं चराचरम्
२१७२ चलनं कम्पनं कम्प्रं चलं लोलं चलाचलम् २१७३ चञ्चलं तरलं चैव पारिप्लवपरिप्लवे
२१७४ अतिरिक्तः समधिको दृढसंधिस्तु संहतः
२१७५ कर्कशं कठिनं क्रूरं कठोरं निष्ठुरं दृढम्
२१७६ जरठं मूर्तिमन्मूर्त प्रवृद्धं प्रौढमेधितम्
२१७७ पुराणे प्रतनप्रत्नपुरातनचिरंतनाः
२१७८ प्रत्यग्रोऽभिनवो नयो नवीनो नूतनो नवः २१७९ नूतश्च सुकुमारं तु कोमलं मृदुलं मृदु
२१८० अन्वगन्वक्षमनुगेऽनुपदं क्लीबमव्ययम् ध्रुवः, नित्यः, सदातनः, सनातनः, इति ५ नित्यस्य ॥-स्थास्नुः, स्थिरतरः, स्थेयान् , इति ३ अतिस्थिरस्यीय एकरूपतया कालव्यापी सकटस्थ इति १॥स्थावरः, जङ्गमेतरः, इति २ अचरस्य ॥-चरिष्णु, जङ्गमम् , चरम् , त्रसम् , इङ्गम् , चराचरम् , इति ६ चरस्य ॥--चलनम् , कम्पनम् , कम्प्रम् , इति ३ कम्पशीलस्य ॥-चलम् , लोलम् , चलाचलम् , चञ्चलम् , तरलम्, पारिप्लवम् , परिशवम् , इति ७ चलस्य ॥-अतिरिक्तः, समधिकः, इति २ अधिकभृतस्य ॥-दृढसंधिः, संहतः, इति २ दृढसंधानयुक्तस्य ॥-कर्कशम् कठिनम् , क्रूरम् , कठोरम् , निष्ठुरम् , दृढम् , जरठम् , मूर्तिमत् , मूर्तम्, इति ९ कठिनस्य ॥ प्रवृद्धम् , प्रौढम् , एधितम् , इति ३ प्रवृद्धस्य ॥-पुराणम् , प्रतनम् , प्रत्नम् , पुरातनम् , चिरन्तनम् , इति ५ पुरातनस्य ॥-प्रत्यग्रः, अभिनवः, नव्यः, नवीनः, नूतनः, नवः, नूनः, इति ७ नूतनस्य ॥-सुकुमारम् , कोमलम् , मृदुलम् , मृदु, इति ४ कोमलस्य ॥--अन्वक् , अन्वक्षम्, अनुगम् , अनुपदम्, इति ४ पश्चादित्यर्थे । अनुपदं क्लीबमव्ययं च ॥-प्रत्यक्षम् ,
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१८६
अमरकोषे
[३. विशेष्यनिन्नवर्गः
२१८६
प्रत्यक्षं स्यादैन्द्रियकमप्रत्यक्षमतीन्द्रियम्
२१८२ एकतानोऽनन्यवृत्तिरेका|कायनावपि
२१८३ अप्येकसर्ग एकाग्र्योऽप्येकायनगतोऽपि सः २१८४ पुंस्यादिः पूर्वपौरस्त्यप्रथमाद्या अथास्त्रियाम् २१८५ अन्तो जघन्यं चरममन्त्यपाश्चात्यपश्चिमाः मोघं निरर्थकं स्पष्टं स्फुटं प्रव्यक्तमुल्बणम् २१८७ साधारणं तु सामान्यमेकाकी त्वेक एककः २१८८ भिन्नार्थका अन्यतर एकस्त्वोऽन्येतरावपि
२१८९ उच्चावचं नैकभेदमुच्चण्डमविलम्बितम्
२१९० अरुंतुदं तु मर्मस्पृगवाधं तु निरर्गलम्
२१९१ प्रसव्यं प्रतिकूलं स्यादपसव्यमपठु च
२१९२ वामं शरीरं सव्यं स्यादपसव्यं तु दक्षिणम् २१९३ संकटं ना तु संबाधः कलिलं गहनं समे ऐन्द्रियकम् , इति २ इन्द्रियग्राह्यस्य ॥ अप्रत्यक्षम् , अतीन्द्रियम् , इति २ इन्द्रियैरग्राह्यस्य धर्मादेः ॥-एकतानः, अनन्यवृत्तिः, एकाग्रः, एकायनः, एकसगः, एकाग्र्यः, एकायन गतः, इति ७ एकाग्रस्य ॥-~-आदिः, पूर्वः, पौरस्त्यः, प्रथमः, आद्यः, इति ५ आद्यस्य ॥ तत्रादिः पुंस्येव ॥---अन्तः, जघन्यम् , चरमम् , अन्त्यम् , पाश्चात्यम् , पश्चिमम् , इति ६ अन्त्यस्य । तत्रान्तः पुं-नपुंसकयोरेव ॥-मोघम् , निरर्थकम् , इति २ व्यर्थस्य ॥-स्पष्टम् , स्फुटम् , प्रव्यक्तम् , उल्बणम् , इति ४ स्पष्टस्य ॥ साधारणम् , सामान्यम् , इति २ साधारणस्य ॥-एकाकी, एकः, एककः, इति ३ असहायस्य ॥भिन्नः, अन्यतरः, एकः, त्वः, अन्यः, इतरः, इति ६ भिन्नार्थकाः ॥-उच्चावचम् , नैकमेदम्, इति २ बहुविधस्य ॥ उच्चण्डम् , अविलम्वितम्, इति २ तूर्णस्य ॥-अरुंतुदम् , मर्मस्पृक्, इति २ मर्ममेदिनः ॥-अवाधम् , निरर्गलम्, इति २ निर्वाधस्य ॥ प्रसव्यम् , प्रतिकूलम् , अपसव्यम् , अपष्ठु, इति ४ विपरीतस्य । यद्वामं शरीरं तत् सव्यमिति १। यद्दक्षिणं शरीरं तत् अपसव्यमिति १॥-संकटम् , संबाधः, इति २ अल्पावकाशे वादौ । ना पुमान् ॥
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पतयः २१८२-२२०४] तृतीयं काण्डम्
१८७ संकीर्णे संकुलाकीर्णे मुण्डितं परिवापितम् २१९५ ग्रन्थितं संदितं दृब्धं विसृतं विस्तृतं ततम् २१९६ अन्तर्गतं विस्मृतं स्यात् प्राप्तप्रणिहिते समे २१९७ वेल्लितप्रेड्डिताधूतचलिताकम्पिता धुते
२१९८ नुत्तनुन्नास्तनिष्ठ्यूताविद्धक्षिप्तेरिताः समाः २१९९ परिक्षिप्तं तु निवृतं मूषितं मुषितार्थकम्
२२०० प्रवृद्धप्रसृते न्यस्तनिसृष्टे गुणिताहते
२२०१ निदिग्धोपचिते गूढगुप्ते गुण्ठितरूषिते
२२०२ द्रुतावदीर्णे उद्गोंद्यते काचितशिक्यिते
२२०३ घ्राणघाते दिग्धलिप्ते समुदक्तोद्धृते समे
२२०४ ---कलिलम , गहनम् , इति २ दुरधिगम्यस्य ॥-संकीर्णम् , संकुलम् , आकीर्णम् , इति ३ जनादिभिरत्यन्तमिश्रस्य ॥-मुण्डितम् , परिवापितम् , इति २ कृतमुण्डनस्य ॥ ग्रन्थितम् , संदितम् , दृब्धम् , इति ३ गुम्फितस्य ॥-विसृतम्, विस्तृतम्, ततम्, इति ३ लब्धप्रसरस्य ।-अन्तगतम् , विस्मृतम्, इति २ विस्मृतस्य ॥-प्राप्तम् , प्रणिहितम् , इति २ लब्धस्य ।।-वेल्लितः, प्रेसितः, आधुतः, चलितः, आकम्पितः, धुतः, इति ६ ईषत्कम्पितस्य ।-नुत्तः, नुन्नः, अस्तः, निष्टयूतः, आविद्धः, क्षिप्तः, ईरितः, इति ७ प्रेरितस्य ॥-परिक्षिप्तम् , निवृतम् , इति २ प्राकारादिना सर्वतोवेष्टितस्य ॥ मूषितम् , मुपितम् , इति २ चोरितस्य ॥--प्रवृद्धम् , प्रसृतम् , इति २ प्रसरणयुक्तस्य ॥-न्यस्तम् , निसृष्टम् , इति २ निक्षिप्तस्य ॥गुणितम् , आहतम् , इति २ अभ्यावर्तितस्य ॥-निदिग्धम्, उपचितम् , इति २ समृद्धस्य ॥-गूढम् , गुप्तम् , इति २ गोपनयुक्तस्य ॥-गुण्ठितम् , रूपितम् , इति २ धूलिलिप्तस्य ॥-द्रुतम् , अवदीर्णम् , इति २ द्रवीभूतस्य ॥-उद्गूर्णम् , उद्यतम्, इति २ उत्तोलितस्य शस्त्रादेः॥-काचितम् , शिक्यितम् , इति २ शिक्ये स्थापितस्य ॥--ध्राणम् , घातम् , इति २ नासिकया गृहीतगन्धस्य ॥-दिग्धम् , लिप्तम् , इति २ विलिप्तस्य ॥
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अमरकोषेर
[३. विशेष्यनिघ्नवर्गः वेष्टितं स्याद्वलयितं संवीतं रुद्धमावृतम्
२२०५ रुग्णं भुग्नेऽथ निशितक्ष्णुतशातानि तेजिते
२२०६ स्याद्विनाशोन्मुखं पक्कं ह्रीणहीतौ तु लज्जिते २२०७ वृत्ते तु वृतव्यावृत्तौ संयोजित उपाहितः २२०८ प्राप्यं गम्यं समासाद्यं स्यन्नं रीणं स्नुतं श्रुतम् २२०९ संगूढः स्यात्संकलितोऽवगीतः ख्यातगहणः २२१० विविधः स्याद्बहुविधो नानारूपः पृथग्विधः २२११ अवरीणो धिकृतश्चाप्यवध्वस्तोऽवचूर्णितः २२१२ अनायासकृतं फाण्टं स्वनितं ध्वनितं समे २२१३ बद्धे संदानितं मूतमुदितं संदितं सितम्
२२१४ निष्पक्के कथितं पाके क्षीराज्यहविषां शृतम् २२१५ निर्वाणो मुनिवह्नयादौ निर्वातस्तु गतेऽनिले २२१६
-समुदक्तम् , उद्धृतम् , इति २ उन्नीतस्य । वेष्टितम् , वलयितम् , संवीतम् , रुद्धम् , आवृतम् , इति ५ वेष्टितस्य ।। --- रुग्णम् , भुमम् , इति २ व्यथितस्य ॥-निशितम् , क्ष्णुतम् , शातम् , तेजितम्, इति ४ तीक्ष्णीकृतस्य शस्त्रादेः। विनाशोन्मुखं पक्कं स्यात् १॥-हीणः, ह्रीतः,लजितः, इति ३ संजातलजस्य॥ वृत्तः, वृतः, व्यावृत्तः, इति ३ कृतवरणस्य ॥---संयोजितः, उपाहितः, इति २ संयोगं प्रापितस्य ।।-प्राप्यम् , गम्यम् , समासाद्यम् , इति ३ प्राप्तुं शक्यस्य ॥ स्यन्नम् , रीणम् , स्नुतम् , स्रतम् , इति ४ प्रस्नुतस्य ॥-संगूढः, संकलितः, इति २ योजितस्याङ्कादेः ॥---अवगीतः, ख्यातगर्हणः, इति २ निन्दितस्य ॥-विविधः, बहुविधः, नानारूपः, पृथग्विधः, इति ४ नानारूपस्य ॥--अवरीणः, धिकृतः, इति २ निन्दितमात्रस्य ॥-अवध्वस्तः, अवचूर्णितः, इति २ चूर्णीमतस्य । अनायासकृतं फाण्टं स्यात् १ ॥-स्खनितम् ध्वनितम् , इति २ाब्दतस ॥-बद्धम् , संदानितम् , मूतम् , उद्दितम् , संदितम् , सितम्, इति ६ बद्धस्य॥-निष्पकम् , कथितम् , इति २ साकल्येन पक्कस्य। क्षीरादीनां पाके शतमिति १ । निर्वाण इति १ मुनिवह्नयादी प्रयुज्यते,
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२२२२
पतयः २२०५-२२२७] तृतीय काण्डम् पक्कं परिणते गून हन्ने मीढं तु मूत्रिते
२२१७ पुष्टे तु पुषितं सोढे क्षान्तमुद्वान्तमुद्गते
२२१८ दान्तस्तु दमिते शान्तः शमिते प्रार्थितेऽदितः २२१९ ज्ञप्तस्तु ज्ञपिते छन्नश्छादिते पूजितेऽञ्चितः
२२२० पूर्णस्तु पूरिते क्लिष्टः क्लिशितेऽवसिते सितः २२२१ अष्टप्लष्टोपिता दग्धे तष्टत्वष्टौ तनूकृते वेधितच्छिद्रितौ विद्ध विन्नवित्ती विचारिते २२२३ निष्प्रभे विगतारोको विलीने विद्रुतद्रुतौ
२२२४ सिद्धे निवृत्तनिष्पन्नौ दारिते भिन्नभेदितौ
२२२५ ऊतं स्यूतमुतं चेति त्रितयं तन्तुसंतते
२२२६ स्यादर्हिते नमस्यितनमसितमपचायितार्चितापचितम् २२२७ न तु वाते । गते अनिले निर्वात इति १ ॥–पक्वम् , परिणतम् , इति २ पाकं प्राप्तस्य ॥--गूनम् , हन्नम् , इति २ कृतपुरीषोत्सर्गस्य ॥-मीढम् , मूत्रितम् , इति २ कृतमूत्रोत्सर्गस्य ॥-पुष्टम् , पुषितम् , इति २ कृतपोषणस्य ॥ ---सोढम् , क्षान्तम् , इति २ शमां प्रापितस्य ॥-उद्वान्तः, उद्गतः, इति २ वमनेन त्यक्तस्यान्नादेः॥ दान्तः, दमितः, इति २ दमं प्रापितस्य ॥ शान्तः, शमितः, इति २ शमनं प्रापितस्य ॥ प्रार्थितः, अर्दितः, इति २ याचितस्य ॥-ज्ञप्तः, ज्ञपितः, इति २ बोधं प्रापितस्य ॥ छन्नः, छादितः, इति २ आच्छादितस्य ॥-पूजितः, अश्चितः, इति २ पूजितस्य ॥पूर्णः, पूरितः, इति २ पूर्णस्य ॥ क्लिष्टः, क्लिशितः, इति २ केशं प्राप्तस्य ।। अवसितः, सितः, इति २ समाप्तस्य ॥-पुष्टः, पुष्टः, उषितः, दग्धः इति ४ दग्धस्य ॥--तष्टः, त्वष्टः, तनूकृतः, इति ३ शनणाल्पीकृतस्य। वेधितः, छिद्रितः, विद्धः, इति ३ विद्धस्य ॥-विन्नः, वित्तः, विचारितः, इति ३ प्राप्तविचारस्य ।।-निष्प्रभः, विगतः, अरोकः, इति ३ दीप्तिहीनस्य ॥ विलीनः, विद्रुतः, द्रुतः, इति ३ द्रवीभूतस्य ॥-सिद्धः, निवृत्तः, निष्पन्नः, इति ३ सिद्धस्य ॥-दारितः, भिन्नः, भेदितः, इति ३ मेदं प्रापितस्य ।।-ऊतम् , स्यूतम् , उतम् , इति ३ तन्तुसंतते ॥-अर्हितम् , नमस्थितम् , नमसितम् ,
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१९०
[ ३. विशेष्यनिघ्नवर्गः
वरिवसिते वरिवस्यितमुपासितं चोपचरितं च संतापित संतप्तौ धूपितधूपायितौ च दूनश्च हृष्टे मत्तस्तृप्तः प्रहृन्नः प्रमुदितः प्रीतः छिन्नं छातं लूनं कृत्तं दातं दितं छितं वृक्णम् स्रस्तं ध्वस्तं भ्रष्टं स्कन्नं पन्नं च्युतं गलितम् लब्धं प्राप्तं विन्नं भावितमासादितं च भूतं च अन्वेषितं गवेषितमन्विष्टं मार्गितं मृगितम् आर्द्र साईं किन्न तिमितं स्तिमितं समुन्नमुत्तं च त्रातं त्राणं रक्षितमवितं गोपायितं च गुप्तं च अवगणितमवमतावज्ञातेऽवमानितं च परिभूते त्यक्तं हीनं विधुतं समुज्झितं धूतमुत्सृष्टे उक्तं भाषितमुदितं जल्पितमाख्यातमभिहितं लपितम् २२३९
२२३५
२२३६
२२३७
२२३८
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इति ६
अपचायितम्, अर्चितम् अपचितम् इति ६ अर्चितस्य ॥ - वरिवसितम् वरिवस्थितम्, उपासितम्, उपचरितम् इति ४ शुश्रूषितस्य - संतापितम्, संतप्तम्, धूपितम्, धूपायितम्, दूनम् इति ५ संतापितस्य ॥ हृष्टः, मत्तः, तृप्तः, प्रहृन्नः प्रमुदितः प्रीतः, इति ६ प्रमुदितस्य ॥ - छिन्नम्, छातम्, लूनम् कृत्तम्, दातम् दितम्, छितम्, वृक्णम् इति ८ खण्डितस्य ॥स्रस्तम्, ध्वस्तम्, भ्रष्टम्, स्कन्नम्, पन्नम्, च्युतम् गलितम् इति च्युतस्य ॥ - लब्धम्, प्राप्तम्, दिन्नम्, भावितम, आसादितम्, भूतम्, 11-प्राप्तस्य ॥ अन्वेषितम्, गवेषितम्, अन्विष्टम्, मार्गितम्, मृगितम्, इति ५ गवेषितस्य ॥ -आर्द्रम्, साईम्, क्लिन्नम् तिमितम्, स्तिमितम्, समुन्नम्, उत्तम्, इति ७ क्लिन्नस्य ॥ त्रातम्, त्राणम्, रक्षितम्, अवितम्, गोपायितम्, गुप्तम्, इति ६ रक्षितस्य ॥ - अवगणितम्, अवमतम्, अवज्ञातम्, अवमानितम्, परिभूतम् इति ५ अवमानितस्य ॥ त्यक्तम्, हीनम् विधुतम्, समुज्झितम् धूतम् उत्सृष्टम्, इति ६ उत्सृष्टस्य ॥ उक्तम्, भाषितम्, उदितम्, जल्पितम्, आख्यातम्, अभिहितम्, लपितम्, इति उदितस्य ॥
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२२२८
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२२३२
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पतयः २२२८-२२५२ ] तृतीयं काण्डम्
१९१ बुद्धं बुधितं मनितं विदितं प्रतिपन्नमवसितावगते २२४० ऊरीकृतमुररीकृतमङ्गीकृतमाश्रुतं प्रतिज्ञातम् २२४१ संगीर्णविदितसंश्रुतसमाहितोपश्रुतोपगतम् २२४२ ईलितशस्तपणायितपनायितप्रणुतपणितपनितानि २२४३ अपि गीर्णवर्णिताभिष्टुतेडितानि स्तुतार्थानि २२४४ भक्षितचर्वितलीढप्रत्यवसितगिलितखादितप्सातम् २२४५ अभ्यवहृतान्नजग्धग्रस्तग्लस्ताशितं भुक्ते
२२४६ क्षेपिष्ठक्षोदिष्ठप्रेष्ठवरिष्ठस्थविष्ठबंहिष्ठाः
२२४७ क्षिप्रक्षुद्राभीप्सितपृथुपीवरबहुलप्रकर्षार्थाः
२२४८ साधिष्ठद्राधिष्ठस्फेष्ठगरिष्ठहसिष्ठवृन्दिष्ठाः
२२४९ बाढव्यायतबहुगुरुवामनवृन्दारकातिशये २२५०
४. संकीर्णवर्गः प्रकृतिप्रत्ययार्थाद्यैः संकीर्णे लिङ्गमुन्नयेत
२२५१ कर्म क्रिया तत्सातत्ये गम्ये स्युरपरस्पराः
२२५२ बुद्धम् , बुधितम् , मनितम् , विदितम् , प्रतिपन्नम् , अवसितम् , अवगतम् , इति । अवगतस्य ।।-ऊरीकृतम् , उररीकृतम् , अङ्गीकृतम् , आश्रुतम् , प्रतिज्ञातम् , संगीर्णम् , विदितम् , संश्रुतम् , समाहितम् , उपश्रुतम् , उपगतम् , इति ११ अङ्गीकृतस्य ।।----ईलितम , शस्तम् , पणायितम् , पनायितम् , प्रणुतम् ,पणितम् , पनितम् , गीर्णम् , वर्णितम् , अभिष्णुतम्, इडितम् , स्तुतम् , इति १२ स्तुताथोनि ।।भक्षितम , चर्वितम ,लीढम् , प्रत्यवसितम् , गिलितम् , खादितम् , प्सातम् , अभ्यवहृतम् , अन्नम् , जग्धम् , ग्रस्तम् , ग्लस्तम् , अशितम् , भुक्तम् , इति १४ खादितस्य ।। ----यथा अतिशयेन क्षिप्रः क्षेपिष्ठः, एवं क्षोदिष्ठ-प्रेष्ठ-वरिष्ठ-स्थविष्टबंहिष्ठाः । बाढादीनामतिशये साधिष्ठादयः स्युः । अतिशयेन बाढः साधिष्ठः १। एवं द्राष्टि-स्फेष्ठ-गरिष्ठ-हसिष्ठ वृन्दिष्ठाः ॥
२२५१-२३३५ प्रकृतीति । संकीर्णनाम्नि अत्र वर्गे वक्ष्यमाणलिङ्गसंग्रहोक्तरीत्या प्रकृत्यर्थेन प्रत्ययार्थेन च आद्यशब्दात्वचिद्रूपभेदादिना लिङ्गमुन्नयेद्हेत् । कर्म क्रिया २ क्रियायाः। तच्छन्देन क्रिया परामृश्यते । क्रियासातये गम्ये सति
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अमरकोषे
[४. संकीर्णवर्गः
२२५५
साकल्यासङ्गवचने पारायणतुरायणे
२२५३ यदृच्छा स्वैरिता हेतुशून्या त्वास्या विलक्षणम् २२५४ शमथस्तु शमः शान्तिर्दान्तिस्तु दमथो दमः अवदानं कर्म वृत्तं काम्यदानं प्रवारणम्
२२५६ वशक्रिया संवननं मूलकर्म तु कार्मणम्
२२५७ विधूननं विधुवनं तर्पणं प्रीणनावनम्
२२५८ पर्याप्तिः स्यात्परित्राणं हस्तवारणमित्यपि
२२५९ सेवनं सीवनं स्यूतिर्विदरः स्फुटनं भिदा
२२६० आक्रोशनमभीषङ्गः संवेदो वेदना न ना
२२६१ संमूर्च्छनमभिव्याप्तिर्याच्या भिक्षार्थनार्दना
२२६२ वर्धनं छेदनेऽथ द्वे आनन्दनसभाजने
२२६३ आप्रच्छन्नमथाम्नायः संप्रदायः क्षये क्षिया
२२६४ अपरस्परा इति १ । साकल्यवचनं पारायणमिति १ । आसङ्गवचनं तुरायणमिति १॥-यदृच्छा, स्वैरिता, इति २ स्वच्छन्दतायाः । हेतुशून्या आस्या स्थितिर्विलक्षणं स्यात् १॥-शमथः, शमः, शान्तिः, इति ३ चित्तोपशमस्य। दान्तिः, दमथः, दमः, इति ३ इन्द्रियनिग्रहस्य । वृत्तं कर्म तदवदानमिति । काम्यदानं तत्प्रवारणमिति १॥-वशक्रिया, संवननम् , इति २ वशीकरणस्य १। ओषधीनां मूलैरुच्चाटनादि यत्कर्म तत्कार्मणमिति १ ॥-विधूननम् , विधुवनम् , इति २ कम्पनस्य । तर्पणम् , प्रीणनम्, अवनम्, इति ३ तृप्तः।--पर्याप्तिः, परित्राणम् , हस्तवारणम्, इति ३ वधोद्यतनिवारणस्य ॥--सेवनम् , सीवनम् , स्यूतिः, इति ३ सूचीक्रियायाः ॥-विदरः, स्फुटनम् , भिदा, इति ३ द्विधाभावस्य ॥-आक्रोशनम् , अभीषङ्गः, इति २ गालिप्रदानस्य ॥ --संवेदः, वेदना, इति २ अनुभवस्य । तत्र वेदना न पुमान् ।।-संमूर्छनम् , अभिव्याप्तिः, इति २ सर्वतोव्याप्तेः ॥-याच्ञा, भिक्षा, अर्थना, भर्दना, इति ४ याचनस्य ॥-वर्धनम् , छेदनम् , इति २ कर्तनस्य ।।---आनन्दनम् , सभाजनम् , आप्रच्छन्नम् , इति ३ स्वागतसंप्रश्नादिना विहितस्यानन्दनस्य ॥-आम्नायः, संप्रदायः, इति २ गुरुपरम्परागतस्य समुपदेशस्य ॥
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पतयः २२५३-२२७३] तृतीयं काण्डम्
१९३ ग्रहे ग्राहो वशः कान्तौ रक्ष्णस्त्राणे रणः कणे २२६५ व्यधो वेधे पचा पाके हवो हूतौ वरो वृतौ २२६६ ओषः प्लोषे नयो नाये ज्यानि ौँ भ्रमो भ्रमौ २२६७ स्फातिवृद्धौ प्रथा ख्यातौ स्पृष्टिः पृक्तौ स्वः सवे २२६८ एधा समृद्धौ स्फुरणे स्फुरणा प्रमितौ प्रमा २२६९ प्रसूतिः प्रसवे श्योते प्राधारः क्लमथः क्लमे २२७० उत्कर्षोऽतिशये संधिः श्लेषे विषय आश्रये २२७१ क्षिपायां क्षेपणं गीर्णिगिरौ गुरणमुद्यमे
२२७२ उन्नाय उन्नये श्रायः श्रयणे जयने जयः
२२७३
क्षयः, क्षिया, इति २ अपचयस्य ।।-ग्रहः, ग्राहः, इति २ ग्रहणस्थ ।।--- वशः, कान्तिः, इति २ इच्छायाः ॥-रक्ष्णः, त्राणः, इति २ रक्षणस्य ॥--- रणः, क्वणः, इति २ शब्दकरणस्य ॥-व्यधः, वेधः, इति २ वेधनस्य ॥पचा, पाकः, इति २ पचनस्य ॥-हवः, हूतिः, इति २ आह्वानस्य ॥--वरः, वृतिः, इति २ वेष्टने संभकौ च ॥-ओषः, प्लोषः, इति २ दाहस्य ।-नयः, नायः, इति २ नीतेः॥-ज्यानिः, जीणिः, इति २ जीर्णतायाः॥-भ्रमः, भ्रमिः, इति २ भ्रान्तेः ॥ स्फातिः, वृद्धिः, इति २ वृद्धः ॥---प्रथा, ख्यातिः, इति २ प्रख्यातेः ॥--स्पृष्टिः, पृक्तिः, इति २ स्पर्शस्य ॥-सवः, स्वः, इति २ प्रस्त्रवणस्य ॥-एषा, समृद्धिः, इति २ उपचयस्य ॥ स्फुरणम् , स्फुरणा, इति २ स्फुरणस्य ।।-प्रमितिः, प्रमा, इति २ यथार्थशानस्य ॥ - प्रसूतिः, प्रसवः, इति २ गर्भविमोचनस्य ॥–श्श्योतः, प्राधारः, इति २ घृतादेः क्षरणे ॥ क्रमथः, क्लमः, इति २ ग्लानेः ॥-उत्कर्षः, अतिशयः, इति २ प्रकर्षस्य ।।--संधिः, श्लेषः, इति २ संघानस्य ॥-विषयः, आश्रयः, इति २ आश्रयस्य ।-क्षिपा, क्षेपणम् , इति २ प्रेरणस्य ॥-- गीर्णिः, गिरिः, इति २ निगरणस्य ॥-गुरणम् , उद्यमः, इति २ भारायुधमनस्य-उमायः, उन्नयः, इति २ ऊच नयनस्य ऊहस्य च ॥–श्रायः, श्रयणम्, इति २ सेवायाः ॥-जयनम् , जयः, इति २ जयस्य ॥
अ. को. स. १३
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१९४
भमरकोपे
[४. संकीर्णवर्गः
२२७४
२२७५ २२७६
निगादो निगदे मादो मद उद्वेग उद्भमे विमर्दनं परिमलोऽभ्युपपत्तिरनुग्रहः निग्रहस्तद्विरुद्धः स्यादभियोगस्त्वभिग्रहः मुष्टिबन्धस्तु संग्राहो डिम्बे डमरविप्लवी बन्धनं प्रसितिश्चारः स्पर्शः स्पष्टोपतप्तरि निकारो विप्रकारः स्यादाकारस्त्विङ्ग इङ्गितम् परिणामो विकारो द्वे समे विकृतिविक्रिये अपहारस्त्वपचयः समाहारः समुच्चयः प्रत्याहार उपादानं विहारस्तु परिक्रमः अभिहारोऽभिग्रहणं निहारोऽभ्यवकर्षणम् अनुहारोऽनुकारः स्यादर्थस्यापगमे व्ययः
२२७७ २२७८ २२७९ २२८० २२८१ २२८२ २२८३ २२८४
निगादः, निगदः, इति २ कथनस्य ॥-मादः, मदः, इति २ हर्षस्य ॥उद्वेगः, उद्रमः, इति २ उद्वेजनस्य ॥--विमर्दनम् , परिमलः, इति २ कुल मादिमर्दनस्य ॥ अभ्युपपत्तिः, अनुग्रहः, इति २ अङ्गीकारस्य । ततो. ऽनुग्रहाद्विरुद्धो निग्रहः स्यात् १ ॥-अभियोगः, अभिग्रहः, इति २ कलहाहा. नस्य ॥ मुष्टिबन्धः, संग्राहः, इति २ मुष्टिना दृढग्रहणस्य ॥-डिम्बः, डमरः, विप्लवः, इति ३ नरलुण्ठनादेरुपसर्गविशेषस्य ॥-बन्धनम्, प्रसितिः, चारः, इति ३ बन्धनस्य ॥-स्पर्शः, स्प्रष्टा, उपतप्ता, इति ३ उपतापाख्यरोगविशेषस्य ॥ -- निकारः, विप्रकारः, इति २ अपकारस्य ॥-आकारः, इङ्गः, इङ्गितम्, इति ३ अभिप्रायानुरूपचेष्टितस्य ॥ -परिणामः, विकारः, इति २ प्रकृतेरन्यथाभावे ॥-विकृतिः, विक्रिया, इति २ विरुद्धक्रियायाः ॥-अपहारः, अपचयः, इति २ अपहरणस्य।
-समाहारः, समुच्चयः, इति २ राशीकरणस्य ॥-प्रत्याहारः, उपादानम्, इति २ इन्द्रियाकर्षणस्य ॥-विहारः, परिक्रमः, इति २ पल्यां गतेः॥
-अभिहारः, अभिग्रहणम्, इति २ चौर्यकरणस्य ॥-निर्हारः, अभ्यवकर्षणम्, इति २ शल्यादेनिष्कासनस्य ॥-अनुहारः, अनुकारः, इति २
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१९५
पतयः २२७४-२२९५] तृतीयं काण्डम् प्रवाहस्तु प्रवृत्तिः स्यात् प्रवहो गमनं बहिः वियामो वियमो यामो यमः संयामसंयमौ हिंसाकर्माऽभिचारः स्याजागर्या जागरा द्वयोः विघ्नोऽन्तरायः प्रत्यूहः स्यादुपन्नोऽन्तिकाश्रये निर्वेश उपभोगः स्यात् परिसर्पः परिक्रिया विधुरं तु प्रविश्लेषेऽभिप्रायश्छन्द आशयः संक्षेपणं समसनं पर्यवस्था विरोधनम् परिसर्या परीसारः स्यादास्या त्वासना स्थितिः विस्तारो विग्रहो व्यासः स च शब्दस्य विस्तरः संवाहनं मर्दनं स्याद्विनाशः स्याददर्शनम् संस्तवः स्यात्परिचयः प्रसरस्तु विसर्पणम्
२२८५ २२८६ २२८७ २२८८ २२८९ २२९० २२९१ २२९२ २२९३ २२९४ २२९५
विडम्बनस्य ॥-अर्थस्य धनादेरपगमे व्यय इति १॥-प्रवाहः, प्रवृत्तिः, इति २ जलादीनां निरन्तरगतेः । यद्वहिर्गमनं स प्रवह इति १॥-वियामः, वियमः, यामः, यमः, संयामः, संयमः, इति ६ संयमस्य योगाङ्गस्य । हिंसाकर्म जारणमारणादि अभिचारः स्यात् १॥-जागो, जागरा, इति २ जागरणस्य । तत्र जागरा स्त्री-पुंसयोः॥-विघ्नः, अन्तरायः, प्रत्यूहः, इति ३ विघ्नस्य । समीपभूत आश्रये उपघ्न इति १ ।।-निर्देशः, उपभोगः, इति २ उपभोगस्य ॥-परिसर्पः, परिक्रिया, इति २ परिजनादिवेष्टनस्य ॥विधुरम् , प्रविश्लेषः, इति २ अत्यन्तवियोगस्य ।।-अभिप्रायः, छन्दः, आशयः, इति ३ अभिप्रायस्य ॥-संक्षेपणम् , समसनम् , इति २ अविस्तारस्य ॥पर्यवस्था, विरोधनम्, इति २ विरोधस्य ॥-परिसो, परीसारः, इति २ परितःसरणस्य ॥-आस्या, मासना, स्थितिः, इति ३ आसनस्य - विस्तारः विग्रहः, व्यासः, इति ३ विस्तृतेः । विस्तारः, शब्दसंबन्धी चेत् विस्तर इति १॥-संवाहनम् , मर्दनम्, इति २ अङ्गमर्दनस्य ॥-विनाशः, मदर्शनम्, इति २ तिरोधानस्य ॥-संस्तवः, परिचयः, इति २ परिचितो ॥-प्रसरः, विसर्पणम्, इति २ प्रणादिप्रसरणस्य ॥-नीवाकः, प्रयामः,
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१९६ ममरको
[४. संकीर्णवर्गः नीवाकस्तु प्रयामः स्यात् संनिधिः संनिकर्षणम् २२९६ लवोऽभिलावो लवने निष्पावः पवने पवः २२९७ प्रस्तावः स्यादवसरत्रसरः सूत्रवेष्टनम्
२२९८ प्रजनः स्यादुपसरः प्रश्रयप्रणयौ समौ
२२९९ धीशक्तिनिष्क्रमोऽस्त्री तु संक्रमो दुर्गसंचरः
२३०० प्रत्युत्क्रमः प्रयोगार्थः प्रक्रमः स्यादुपक्रमः
२३०१ स्यादन्यादानमुद्धात आरम्भः संभ्रमस्त्वरा २३०२ प्रतिबन्धः प्रतिष्टम्भोऽवनायस्तु निपातनम् २३०३ उपलम्भस्त्वनुभवः समालम्भो विलेपनम् २३०४ विप्रलम्भो विप्रयोगो विलम्भस्त्वतिसर्जनम् २३०५ विश्रावस्तु प्रतिख्यातिरवेक्षा प्रतिजागरः
२३०६ इति २ धनधान्यादिषु जनानामादरातिशयस्य ॥-संनिधिः, संनिकर्षणम् , इति २ नैकट्यस्य ॥ लवः, अभिलावः, लवनम् , इति ३ धान्यादिच्छेदनस्य ॥-निष्पावः, पवनम् , पवः, इति ३ धान्यादीनां पूतीकरणस्य ॥--प्रस्तावः, अवसरः, इति २ प्रसंगस्य ॥-त्रसरः, सूत्रवेष्टनम् , इति २ तन्तुघायकृतसूत्रवेष्टनमेदस्य ॥-प्रजनः, उपसरः, इति २ गर्भग्रहणस्य ॥-प्रश्रयः, प्रणयः, इति २ प्रेम्णः ॥-धीशक्तिः, निष्क्रमः, इति २ बुद्धिसामर्थ्य ॥-संक्रमः, दुर्गसंचरः, इति २ दुर्गमार्गस्य । स न स्त्रियाम् ॥–प्रत्युत्क्रमः, प्रयोगार्थः, इति २ युद्धार्थमतिशयितोद्योगस्य ॥प्रक्रमः, उपक्रमः, इति २ प्रथमारम्भस्य ॥-अभ्यादानम् , उद्धातः, आरभ्भः, इति ३ आरम्भमात्रस्य ॥-संभ्रमः, त्वरा, इति २ संवेगस्य ।।प्रतिबन्धः, प्रतिष्टम्भः, इति २ कार्यप्रतिघातस्य ॥--अवनायः, निपातनम् , इति २ अघोनयनस्य ॥-उपलम्भः, अनुभवः, इति २ साक्षात्कारस्य ॥-समालम्भः, विलेपनम् , इति २ कुडमादिना विलेपने ॥–विप्रलम्भः, विप्रयोगः, इति २ रागिणोर्विच्छेदस्य ॥-विलम्भः, अतिसर्जनम्, इति २ अतिदानस्य ।-विश्रावः, प्रतिख्यातिः, इति २ अतिप्रसिद्धः ॥-अवेक्षा, प्रतिजागरः, इति २ वस्तूनां अवेक्षणस्य ॥-निपाठः, निपठः, पाठः,
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पतयः २२९६-२३१९ ] तृतीयं काण्डम्
१९७ निपाठनिपठी पाठे तेमस्तेमौ समुन्दने
२३०७ आदीनवासवा क्लेशे मेलके सङ्गसंगमौ
२३०८ संवीक्षणं विचयनं मार्गणं मृगणा मृगः
२३०९ परिरम्भः परिप्वङ्गः संश्लेष उपगृहनम्
२३१० निर्वर्णनं तु निध्यानं दर्शनालोकनेक्षणम्
२३११ प्रत्याख्यानं निरसनं प्रत्यादेशो निराकृतिः २३१२ उपशायो विशायश्च पर्यायशयनार्थको
२३१३ अर्तनं च ऋतीया च हणीया च घृणार्थकाः २३१४ स्याव्यत्यासो विपर्यासो व्यत्ययश्च विपर्यये २३१५ पर्ययोऽतिक्रमस्तस्मिन्नतिपात उपात्ययः
२३१६ प्रेषणं यत्समाहूय तत्र स्यात्प्रतिशासनम्
२३१७ स संस्तावः क्रतुषु या स्तुतिभूमिर्द्विजन्मनाम् २३१८ निधाय तक्ष्यते यत्र काष्ठे काष्ठं स उद्धनः २३१९ इति ३ पठनस्य ॥-तेमः, स्तेमः, समुन्दनम् , इति ३ आर्दीभावस्य ॥आदीनवः, आस्रवः, क्लेशः, इति ३ क्लेशस्य ॥--मेलकः, सङ्गः, सङ्गमः, इति ३ सङ्गमस्य ॥-संवीक्षणम् , विचयनम् , मार्गणम् , मृगणा, मृगः, इति ५ तात्पर्येण वस्तूनां गवेषणस्य ॥ परिरम्भः, परिष्वङ्गः, संश्लेषः, उपगूहनम् , इति ४ आलिङ्गनस्य ॥-निर्वर्णनम् , निध्यानम् , दर्शनम् , आलोकनम् , ईक्षणम्, इति ५ निरीक्षणस्य ॥-प्रत्याख्यानम् , निरसनम्, प्रत्यादेशः, निराकृतिः, इति ४ निराकरणस्य ॥ उपशायः, विशायः, इति २ पर्यायेण प्रहरकादौ शयनार्थस्य ।।-अर्तनम् , ऋतीया, हृणीया, घृणा, इति ४ जुगुप्सायाः॥-व्यत्यासः, विपर्यासः, व्यत्ययः, विपर्ययः, इति ४ व्यतिक्रमस्य ॥--पर्ययः, अतिक्रमः, अतिपातः, नपात्ययः इति ४ अतिक्रमस्य ॥ समाहूय यद्भुत्यादीनां प्रेषणं तत्र प्रतिशासनं स्यात् १। ऋतुषु द्विजन्मनां स्तुतिभूमिः संस्ताव इति १। यस्मिन्काष्ठे काष्ठं निधाय तक्ष्यते स काष्ठरूप आधारः उद्धन
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मरकोषे
स्तम्बघ्नस्तु स्तम्बघनः स्तम्बो येन निहन्यते आविधो विध्यते येन तत्र विष्वक्समे निघः उत्कारश्च निकारश्च द्वौ धान्योत्क्षेपणार्थकौ निगारोद्गारविक्षावोद्राहास्तु गरणादिषु आरत्यवरतिविरतय उपरामेऽथास्त्रियां तु निष्ठेवः निष्ठयूतिर्निष्ठेवनं निष्ठीवनमित्यभिन्नानि वने जूतिः सातिस्त्ववसाने स्यादथ ज्वरे जूर्तिः उदजस्तु पशुप्रेरणमकरणिरित्यादयः शापे गोत्रान्तेभ्यस्तस्य वृन्दमित्यौपगवकादिकम् आपूपिकं शाष्कुलिकमेवमाद्यमचेतसाम् माणवानां तु माणव्यं सहायानां सहायता हल्या हलानां ब्राह्मण्यवाडव्ये तु द्विजन्मनाम् द्वे पशुकानां पृष्ठानां पार्श्व पृष्ठ्य मनुक्रमात्
[ ४. संकीर्ण वर्ग:
२३२०
२३२१
२३२२
२३२३
२३२४
२३२५
२३२६
२३२७
२३२८
२३२९
२३३०
२३३१
२३३२
,
।
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इति १ ॥ -- स्तम्बघ्नः स्तम्बघनः इति २ स्तम्बघ्नस्य । येन विध्यते तत्र शस्त्रादौ आविध इति १ । विष्वक्समे सर्वतः समाने वृक्षे निघ इति १ ॥ - उत्कारः, निकारः, इति २ निकारस्य ॥ निगारादयो गरणादिषु । यथा गरणे अभ्यवहारे निगारः । एवं वमने उद्गारः शब्दे विक्षावः, उद्ग्रहणे उद्ग्राहः, इत्येकैकम् ॥ —-आरतिः, अवरतिः, विरतिः, उपरामः, इति ४ उपरतेः ॥ - निष्ठेवः, निष्फ्यूतिः, निष्ठेवनम्, निष्ठीवनम् इति ४ मुखेन श्लेष्मोत्सर्गस्य ॥ - जवनम्, जूतिः, इति २ वेगस्य । सातिः, अवसानम् इति २ अन्तस्य ॥ - ज्वरः, जूर्तिः, इति २ ज्वरस्य । पशूनां प्रेरणं उदजः स्यात् १ । शापे आक्रोशे द्योत्ये अकरणिरित्यादयः । 'आदि'शब्दादजीवनिः । गोत्रान्तेभ्य औपगवादिशब्देभ्यस्तस्य वृन्दमित्यर्थे औपगवकादिकं स्यात् १ । 'आदि' शब्दाद्गार्गकं दाक्षकमित्यादि । इतः परमावर्गसमाप्तेर्वृन्दमित्यधिकारः ॥ - आपूपिकम् शाष्कुलिकम्, साक्तकम्, इत्यादि । माणवानां समूहो माणव्यम् १ | सहायानां समूहः सहायता १ । हलानां समूहो हल्या इति १ ॥ ब्राह्मण्यम्, वाडव्यम् इति २ ब्राह्मणानां समूहस्य । पर्शुका अस्थिविशेषास्तासां समूहः, पार्श्वम् १ । पृष्ठानां समूहः
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१९९
२३३३ २३३४ २३३५
पतयः २३२०-२३४२ ] तृतीयं काण्डम् खलानां खलिनी खल्याप्यथ मानुष्यकं नृणाम् ग्रामता जनता धूम्या पाश्या गल्या पृथक्पृथक् अपि साहस्रकारीषवार्मणाथर्वणादिकम्
५. नानार्थवर्गः नानार्थाः केऽपि कान्तादिवर्गेष्वेवात्र कीर्तिताः भूरिप्रयोगा ये येषु पर्यायेष्वपि तेषु ते आकाशे त्रिदिवे नाको लोकस्तु भुवने जने पद्ये यशसि च श्लोकः शरे खड्ने च सायकः जम्बुको क्रोष्टुवरुणौ पृथुको चिपिटाभको आलोकौ दर्शनद्योती भेरीपटहमानको उत्सङ्गचिह्नयोरङ्कः कलङ्कोऽङ्कापवादयोः
२३३६ २३३७ २३३८ २३३९ २३४० २३४१ २३४२
पृष्टयम् १ ॥-खलिनी, खल्या, इति २ खलानां समूहस्य । मनुष्याणां समूहो मानुष्यकम् १ । ग्रामता, जनता, धूम्या, पाश्या, गल्या, साहस्रम् , कारिषम् , वार्मणम् , आथर्वणम् , इत्यादयः ॥
२३३६-२८४९ अत्र वक्ष्यमाणेषु । कान्तादिवर्गेष्वेव केऽपि नानार्था उक्का नतु प्रागुक्तपयोयेषु । यथा 'मारते वेधसि ब्रने पुंसि. कः कं शिरोऽम्बुनोः' इति । भूरिप्रयोगा यत्र कुत्रापि काव्यादिषु कविभिः प्राचुर्येण प्रयुक्ता ये नाकलोकादयः शब्दास्ते पूर्वोक्तेषु येषु पयोयेषु दृश्यन्ते तेषु पर्यायेषु 'अपि'शब्दादत्रापि कान्तादिषु कीर्तिताः।यथा नाकशब्दः प्रचुरप्रयोगत्वात्प्राक् खर्याकाशयोरुक्तोऽपि पुनरिहोकः। जम्बुकशब्दस्तु शृगालपर्यायेष्वेवोक्तो नतु वरुणपर्यायेषु; भूरिप्रयोगत्वाभावात् । इह तु 'जम्बुको क्रोष्टुवरुणौ' इत्युभयत्रोच्यते । नाक इति आकाशे खर्गे च वर्तते । भुवने जने च लोक इति १ । पद्ये यशसि च श्लोक इति १ । शरे खड़े च सायकः । कोष्टा मृगालः, वरुणः प्रसिद्धः, उभौ जम्बुकशब्दवाच्यौ । चिपिटः, अर्भकः, एतावुभौ पृथुको। दर्शनं प्रकाशश्चालोको। मेरी पटहं उभावानको। उत्सझे चिहे चाडः । चिह्न दोषारोपे च कलङ्कः । नागविशेषे त्वष्टरि च
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अमरकोषे
[५. नानार्थवर्गः तक्षको नागवर्धक्योरः स्फटिकसूर्ययोः २३४३ मारुते वेधसि बने पुंसि कः कं शिरोऽम्बुनोः । २३४४ स्यात्पुलाकस्तुच्छधान्ये संक्षेपे भक्तसिक्थके
२३४५ उलूके करिणः पुच्छमूलोपान्ते च पेचकः २३४६ कमण्डलौ च करकः सुगते च विनायकः
२३४७ किष्कुर्हस्ते वितस्तौ च शूककीटे च वृश्चिकः २३४८ प्रतिकूले प्रतीकस्विष्वेकदेशे तु पुंस्ययम्
२३४९ स्याद्भूतिकं तु भूनिम्बे कत्तृणे भूस्तृणेऽपि च २३५० ज्योनिकायां च घोषे च कोशातक्यथ कट्रफले २३५१ सिते च खदिरे सोमवल्कः स्यादथ सिहके २३५२ तिलकल्के च पिण्याको बाह्रीकं रामठेऽपि च २३५३ महेन्द्रगुग्गुलूलूकव्यालग्राहिषु कौशिकः
२३५४ रुक्तापशङ्कास्वातङ्कः स्वल्पेऽपि क्षुल्लकस्त्रिषु २३५५ जैवातृकः शशाङ्केऽपि खुरेऽप्यश्वस्य वर्तकः २३५६ तक्षकः । स्फटिकसूर्ययोरर्क इति । मारुते वेधसि ब्रने क इति पुंसि । शिरसि जले च के इति क्लीबम् । तुच्छधान्ये संक्षेपे भक्तसिक्थके पुलाक इति । करिणः पुच्छमूलोपान्ते गुदाच्छादकमांसपिण्डे उलूके च पेचकः। कमण्डलौ चकाराद्वर्षोंपले दाडिमादौ च करकः । सुगते चकाराद्विघ्नराजे गरुडे च विनायकः । हस्ते वितस्तो च किष्कः । शूककीटे चकारादलौ कटे वृक्षविशेषेऽष्टमराशौ च वृश्चिकः । प्रतिकूले च प्रतीकः । तत्र प्रतिकूले त्रिषु । अवयवे पुंसि । भूनिम्बे कत्तृणे भूस्तृणे च भूतिकं स्यात् । ज्योत्स्निकायां घोषे च कोशातकी । कट्फले शुक्लखदिरे च सोमवल्कः । सिहके तिलकल्के निःस्नेहतिलचूर्णे च पिण्याकः । रामठे चकाराद्वाहीके देशेऽश्वे धीरे च बाहीकमिति । महेन्द्रे गुग्गुलौ उलूके व्यालग्राहिणि च कौशिकः । रुक् तापः शङ्का अत्र आतङ्क इति । खल्पे अपि. शब्दानीचकनिष्टदरिद्रेष्वपि क्षुल्लकः । क्षुल्लकत्रिषु । शशाङ्कः कुशव जैवातकः । अश्वखुरे 'अपि'शब्दात्पक्षिभेदे च वर्तकः व्याघ्र 'अपि'शन्दादमी दिग्गजादै
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पतयः २३४३-२३६९] तृतीयं काण्डम् । व्याघेऽपि पुण्डरीको ना यवान्यामपि दीपकः २३५७ शालावृकाः कपिक्रोष्टुश्वानः स्वर्णेऽपि गैरिकम् २३५८ पीडार्थेऽपि व्यलीकं स्यादलीकं त्वप्रियेऽनृते २३५९ शीलान्वयावनूके द्वे शल्के शकलवल्कले २३६० साष्टे शते सुवर्णानां हेम्युरोभूषणे पले
२३६१ दीनारेऽपि च निष्कोऽस्त्री कल्कोऽस्त्री शमलैनसोः २३६२ दम्भेऽप्यथ पिनाकोऽस्त्री शूलशंकरधन्वनोः २३६३ धेनुका तु करेण्वां च मेघजाले च कालिका २३६४ कारिका यातनावृत्त्योः कर्णिका कर्णभूषणे २३६५ करिहस्तेऽङ्गलौ पद्मबीजकोश्यां त्रिषूत्तरे
२३६६ वृन्दारको रूपिमुख्यावेके मुख्यान्यकेवलाः २३६७ स्थाद्दाम्भिकः कौकुटिको यश्चादूरेरितेक्षणः २३६८ लालाटिकः प्रभोर्भालदर्शी कार्याक्षमश्च यः २३६९ 'भूभृन्नितम्बवलयचक्रेषु कटकोऽस्त्रियाम्
* * सूच्यग्रे क्षुद्रशत्रौ च रोमहर्षे च कण्टकः
* * च पुण्डरीकः पुंसि । यवान्यां 'अपि'शब्दादर्हिचूडे प्रकाशेऽपि दीपकः । कपिक्रोष्टुश्वानः शालावृकाः स्युः । वर्णे अपि'शब्दाद्गारेकधातौ च गैरिकम् । पीडार्थेऽपिशब्दाद्वैलक्ष्येऽपि व्यलीकम् । अप्रियेऽनृते च अलीकम् । शीलं खभावोऽन्वयो वंशः तत्र अनूकमिति । शकलं, वल्कलं, २ शल्के इति। सुवर्णानां साष्टे शते हेन्नि उरसो भूषणे हेमपले दीनारे च निष्कः। शमलं एनः दम्भः त्रिषु कल्कः । पुं-नपुंसकयोः । शूले शंकरधन्वनि च पिनाकः अस्त्रियाम् । करेण्वां हस्तिन्यां चकारानवप्रसूतायां गवि धेनुका । मेघजाले चकाराद्देवताविशेषेऽपि कालिका। यातनायां वृत्तौ च कारिका । कर्णभूषणे करिहस्तेऽङ्गुलौ कमलान्तर्गतकोषे च कर्णिका । उत्तरे खान्तेभ्यः प्राक् शब्दात्रिषु । रूपिमुख्ययोः वृन्दारक इति । मुख्य अन्ये केवलं एकः । दाम्भिकः योऽदूरेरितेक्षणः स कौकुटिक इति । यो भृत्यः प्रभो लं पश्यति यश्च कार्याक्षमः तावुभौ लालाटिको।
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२०२
अमरकोषे
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पाकौ पक्तिशिशू मध्यरले नेतरि नायकः पर्यङ्कः स्यात्परिकरे स्याद्व्याघ्रेऽपि च लुब्धकः पेटकस्त्रिषु वृन्देऽपि गुरौ देश्ये च देशिकः खेटक ग्रामफलकौ धीवरेऽपि च जालिकः पुष्परेणौ च किञ्जल्कः शुल्कोऽस्त्री स्त्रीधनेऽपि च स्यात्कल्लोलेऽप्युत्कलिका वार्धकं भाववृन्दयोः करिण्यां चापि गणिका दारकौ बालभेदकौ अन्धेऽप्यनेडमूकः स्याट्टङ्कौ दर्पाश्मदारणौ' मयूखस्त्विट् करज्वालास्वलिबाणौ शिलीमुखौ शङ्खो निधौ ललाटास्नि कम्बौ न स्त्रीन्द्रियेऽपि खम् २३७१ घृणिज्वाले अपि शिखे शैलवृक्षौ नगावगौ आशुगौ वायुविशिखौ शरार्कविहगाः खगाः पतङ्गौ पक्षिसूर्यौ च पूगः क्रमुकवृन्दयोः पशवोऽपि मृगा वेगः प्रवाहजवयोरपि परागः कौसुमे रेणौ स्नानीयादौ रजस्यपि गजेsपि नागमातङ्गावपाङ्गस्तिलकेऽपि च
२३७०
२३७२
२३७३
२३७४
२३७५
२३७६
२३७७
[ ५. नानार्थवर्ग:
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त्विट्करज्वालासु मयूखः । भ्रमरशरौ शिलीमुखौ । निधौ ललाटास्प्रि कम्बौ च शङ्खः । इन्द्रिये 'अपिशब्दादाकाशे शून्येऽपि खम् । घृणिः ज्वाला 'अपि शब्दाच्चूडायां प्रपदे बर्हिचूडायां च शिखा । शैलवृक्षौ नगसंज्ञकावगसंज्ञकौ च । वायुविशिखौ आशुगौ । बाणार्कपक्षिणः खगशब्दवाच्याः । पक्षिसूर्ययोः । चकाराच्छालिप्रमेदे पतङ्गः । क्रमुके वृन्दे च पूगः । पशुषु 'अपिशब्दात् मृग मार्गणायां च मृगः । प्रवाहजवयोः 'अपि ' शब्दाद्विष्ठादेर्बहिर्निर्गमेऽपि वेगशब्दः स्यात् । कुसुमसंबन्धिनि रेणी, स्नानीये गन्धचूर्णविशेषे, आदिना सुरतादिश्रमशान्तये कामशास्त्राद्युक्ते यत्कर्पूरादि चूर्णे, 'अपि' शब्दादुपरागे, रजसि परागः । नागमातङ्गौ गजे वर्तेते । 'अपिशब्दात्काद्रवेयनाग
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पतयः २३७०-२३८८] तृतीयं काण्डम् सर्गः स्वभावनिर्मोक्षनिश्चयाध्यायसृष्टिषु
२३७८ योगः संनहनोपायध्यानसंगतियुक्तिषु
२३७९ भोगः सुखे स्यादिभृतावहेश्च फणकाययोः २३८० चातके हरिणे पुंसि सारङ्गः शबले त्रिषु २३८१ कपौ च प्लवगः शापे त्वभिषङ्गः पराभवे २३८२ यानाद्यङ्गे युगः पुंसि युगं युग्मे कृतादिषु
२३८३ स्वर्गेषुपशुवाग्वज्रदिनेत्रघृणिभूजले
२३८४ लक्ष्यदृष्ट्या स्त्रियां पुंसि गौर्लिङ्गं चिह्नशेफसोः ३८५ शृङ्गं प्राधान्यसान्वोश्च वराङ्गं मूर्धगुह्ययोः २३८६ भगं श्रीकाममाहात्म्यवीर्ययत्नार्ककीर्तिषु
२३८७ परिघः परिघातेऽस्त्रेऽप्योघो वृन्देऽम्भसा रये २३८८ केशरनागवल्लीहास्तिनपुरमेघमुस्तकादौ । 'अपि'शब्दाच्चण्डालेऽपि मातङ्गः। नेत्रस्यान्तेऽङ्गहीने चापाङ्गः । स्वभावः प्रकृतिः, निर्मोक्षस्त्यागः, निश्चयः, अध्यायः काव्यादिविरामस्थानम् , सृष्टिर्निर्माणम् , एतेषु सर्गः । संननं कवचः, उपायः सामादिः, ध्यानं चित्तवृत्तिनिरोधः, संगतिः संगम इत्यादिषु योगशब्दः । सुखे, रुयादिमृतौ पण्यस्त्रीणां भोगे, 'आदि'शब्दाद्धस्त्यश्वादिकर्म कराणां भृतौ मूल्ये पालने भरणे वा भोगः। अहेः सर्पस्य फणकाययोरपि । सारङ्गः पुंसि हरिणे चातके, त्रिषु शबले । कपी वानरे चकाराढ़े के सारथ्यादौ च प्लवगः । शापे आक्रोशे पराभवे तिरस्कारेऽभिषङ्गः । यानाद्यङ्गे रथशकटादीनामवयवे युगः । युग्मे द्वये कृतत्रेतादिपु हस्तचतुष्टये औषधमेदे च युगम् । स्वर्गः, इषुः, पशू सुरभिवृषो, वाक्, वज्रम् , दिक्, नेत्रम् , धृणिः, भूः, जलम् , एतेषां लक्ष्यदृष्ट्या प्रयोगानुसारेण गोशब्दः त्रियां पुंसि चोन्नेयः । चिह्नशेफसोः लिङ्गम् । प्राधान्यं प्रभुत्वम् , सानु शिखरम् , चकारात् पशोरवयवे शृङ्गम् । मूर्धा मस्तकः, गुह्यं योनिरेतयोर्वराङ्गम, । श्रीः संपच्छोभा, काम इच्छा च, माहात्म्यं ऐश्वर्यम् । वीर्य, यनः प्रयनः, अर्ककीर्तिः, सूर्ययशः, एतेषु भगम् । परिघातेऽने लोहमयल• गुडे अपिशन्दाद्योगमेदे च परिघः । वृन्दे समूहे, मम्मसां रये जलप्रवाहे
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२०४
१ परकोषे
५. नानार्थवर्गः
मूल्ये पूजाविधावर्षोऽहोदुःखव्यसनेष्वघम् २३८९ त्रिविष्टेऽल्पे लघुः काचाः शिक्यमृद्भेददृशुजः विपर्यासे विस्तरे च प्रपञ्चः पावके शुचिः २३९१ मास्यमात्ये चात्युपधे पुंसि मेध्ये सिते त्रिषु २३९२ अभिष्वङ्गे स्पृहायां च गभस्तौ च रुचिः स्त्रियाम् 'प्रसन्ने भल्लुकेऽप्यच्छो गुच्छः स्तबकहारयोः
* * परिधानाञ्चले कच्छो जलप्रान्ते त्रिलिङ्गकः' केकिताावहिभुजौ दन्तविप्राण्डजा द्विजाः २३९४ अजा विष्णुहरच्छागा गोष्ठाध्वनिवहा व्रजाः २३९५ धर्मराजौ जिनयमौ कुञ्जो दन्तेऽपि न स्त्रियाम् २३९६ वलजे क्षेत्रपूारे वलजा वल्गुदर्शना
२३९७ समे आमांशे रणेऽप्याजिः प्रजा स्यात्संततो जने २३९८ अब्जौ शङ्कशशाङ्कौ च स्वके नित्ये निजं त्रिषु २३९९ ओघः । मूल्ये पण्ये, पूजोपहारे चार्घः । अंहः पापम् , दुःखं जरामरणादिकम् , व्यसनं मृगयाछूतादि, विपद्रागद्वेषादि वा तत्र अघम् । इष्टे अल्पे च लघुः । त्रिषु । विशक्यं, मृद्भेदो मृद्विशेषः, दृक् नेत्ररोगः पटलप्रायः, एते त्रयः काचाः । विपर्यासे वैपरीत्ये, विस्तरे चात्प्रतारणे प्रपञ्चः । पावकेऽमौ शुचिः । पुंसि । मास्याषाढे, अमात्ये सचिवे, अत्युपधे, मेध्ये पवित्रे, सिते शुक्ने, च शुचिः त्रिषु । स्पृहायामत्यासत्तौ गभस्तौ किरणे चकाराद्दीप्तौ शोभायां च रुचिः । केकिताझ्यौँ मयूरगरुडौ अहिभुजौ । दन्तः । विप्रेत्युपलक्षणं क्षत्रवैश्ययोः, अण्डजाः पक्षिणः, एते द्विजाः । विष्णुहरी, छागो बस्तः, एते अजाः । गोष्ठं गोस्थानकम् , अध्वा मार्गः, निवहः संघः, एते ब्रजाः । जिनो बुद्धः, यमः, एतयोः धर्मराजशब्दः । दन्तिदन्ते कुजः। 'अपि'शब्दान्निकुञ्जऽपि । पुनपुंसकलिङ्गः । क्षेत्रे नगरद्वारे च वलजम् । वल्गुदर्शना वलजा । समे क्षमाशे भूभागे, रणे संग्रामे आजिरिति । संततिरपत्यम् , जनेऽपि प्रजा । शङ्खशशाइयोः चकाराद्धन्वन्तरावजः । खके आत्मीये नित्ये चिरस्थिते निजः । त्रिषु ।
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'ङ्कयः २३८९-२४१२]
तृतीयं काण्डम्
२४०३
२४०४
२४०५
पुंस्यात्मनि प्रवीणे च क्षेत्रज्ञो वाच्यलिङ्गकः संज्ञा स्याच्चेतना नाम हस्ताद्यैश्चार्थसूचना काकेभगण्डौ करौ गजगण्डकटी कटौ शिपिविष्टस्तु खलतौ दुश्चर्मणि महेश्वरे देवशिल्पिन्यपि त्वष्टा दिष्टं दैवेऽपि न द्वयोः रसे कटुः कटुकार्ये त्रिषु मत्सरतीक्ष्णयोः रिष्टं क्षेमाशुभा भावेष्वरिष्टे तु शुभाशुभे मायानिश्चलयन्त्रेषु कैतवानृतराशिषु अयोघने शैलशृङ्गे सीराङ्गे कूटमस्त्रियाम् सूक्ष्मैलायां त्रुटि: स्त्री स्यात् कालेऽल्पे संशयेऽपि सा २४०९ आर्युत्कर्षाश्रयः कोट्यो मूले लग्नकचे जटा व्युष्टिः फले समृद्धौ च दृष्टिर्ज्ञानेऽक्षिण दर्शने दृष्टिर्यागेच्छयोः सृष्टं निश्चिते बहुनि त्रिषु
२४०६.
२४०७
२४०८
२४१०
२४११
२४१२
२०५
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२४००
२४०१
२४०२
आत्मनि पुरुषे क्षेत्रज्ञः । पुंसि । प्रवीणे तु वाच्यलिङ्गकः । चेतना धीः नामाभिधानम् । हस्तायैईस्त भूलोचनादिभिर्या अर्थसूचना प्रयोजनविज्ञापनं सापि संज्ञा । काकेभगण्डौ करौ । गजगण्डः कटिश्च कटौ स्याताम् । रुजा निष्केशशिराः खलतिः तस्मिन्दुश्चर्मणि च महेश्वरे शिपिविष्टः । देवशिल्पिनि विश्वकर्मणि 'अपि'शब्दाद्रविभेदे काष्ठतक्षे त्वष्टा । देवे प्राक्तनकर्मणि दिष्टम् नपुंसकम् । अपिशव्दात्काले तु ना । रसे पिप्पल्यादिरसभेदे कटुः । पुंसि । अकार्ये करणानर्हे कटु । क्लीबम् । मत्सरतीक्ष्णयोत्रिषु । क्षेमे कल्याणे, अशुमेऽमङ्गले, अभावेऽशुभस्यैवाभावे रिटमिति । शुभाशुभे अरिष्टे । सूतिकागृहं चारिष्टम् । मायादिषु नवसु कूटम् । तदस्त्रियाम् । सूक्ष्मैला प्रसिद्धा काले हस्ताक्षर चतुर्थभागग्रहणात्मके कालमेदे, अल्पे लेशे, संशये संदेहेऽपि त्रुटि: । व्यर्तिश्चापाग्रम्, उत्कर्षः, प्रकर्षः, अश्रिः कोणः, संख्याभेदेऽपि, कोटिः । मूले संष्टिकेशे जटामांस्यां वेदविकृतौ च जटा । फले साध्ये, समृद्धौ, संपदि व्युष्टिः । ज्ञानेऽक्ष्णि चक्षुषि दर्शने च दृष्टिः । यागो यज्ञः, इच्छा स्पृहा, एतयोरिष्टिः । सृष्टे बहुनि
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२०६
अमरकोषे
कष्टे तु कृच्छ्रगहने दक्षामन्दागदेषु च पटुर्द्वी वाच्यलिङ्गौ च नीलकण्ठः शिवेऽपि च पुंसि कोष्ठोऽन्तर्जठरं कुसूलोऽन्तर्गृहं तथा निष्ठा निष्पत्तिनाशान्ताः काष्ठोत्कर्षे स्थितौ दिशि त्रिषु ज्येष्ठोऽतिशस्तेऽपि कनिष्ठोऽतियुवाल्पयोः दण्डोsस्त्री लगुडेऽपि स्याद्गुडो गोलेक्षुपाकयोः सर्पमांसात्पशू व्याडौ गोभूवाचस्त्विडा इलाः क्ष्वेडा वंशशलाकापि नाडी नालेऽपि षट्क्षणे काण्डोsस्त्री दण्डबाणार्ववर्गावसरवारिषु स्याद्भाण्डमश्वाभरणेऽमत्रे मूलवणिग्धने भृशप्रतिज्ञयोर्बाढं प्रगाढं भृशकृच्छ्रयोः शक्तस्थूलौ त्रिषु दृढौ व्यूढी विन्यस्तसंहतौ
[ ५. नानार्थवर्ग:
२४१३
२४१४
२४१५
२४१६
२४१७
२४१८
२४१९
२४२०
२४२१
२४२२
२४२३
२४२४
2
प्रचुरे, मुक्तानिर्मितयोश्च कष्टे सृष्टम् । कृच्छ्रं दुःखम् गहनं दुरधिगमान्तःप्रान्तम्, उमे कष्टे । दक्षोऽनलसः, अमन्दस्तीक्ष्णः, अगदो रोगहीनः, एते पटवः ॥ द्वौ कष्टपटू वाच्यलिङ्गौ । शिवे 'अपि ' शब्दान्मयूरेऽपि नीलकण्ठः । अन्तर्जठरं जठरस्यान्तरम् । कुसूलो धान्यागारम् । अन्तर्गृहं गृहाभ्यन्तरं च एतेषु कोष्ठः । पुंसि । निष्पत्तिर्निष्पादनम् । नाशः अदर्शनम् । अन्तः प्रध्वंसः निष्ठा । उत्कर्षे स्थितौ मर्यादायां दिशि च काष्ठा । अतिशस्ते सुप्रशस्ते, अपिशब्दादतिवृद्धे, अग्रजे मासि च ज्येष्ठः । अतियूनि बाले । अनुजेऽपि कनिष्ठः । लगुडेपि - शब्दादश्वेऽपि दण्डः । गोलो मृदादिगुडकः, इक्षुपाकः इक्षुविकारेऽपि गुडः । सर्पः मांसात्पशुर्व्याघ्रः । उभे व्याडौ । गौर्धेनुः । भूः । वाक् । एते डलयोरैक्यादिडा इलाश्च । इला बुधपत्नी च । वंशशलाका पञ्जराद्यर्था वा शूर्पाद्यर्था - वेणुशलाका क्ष्वेडा । 'अपि' शब्दाद्विषे पुंसि । षट्क्षणमिते काले नाले 'अपि' शब्दाच्छिरादिषु च नाडी । दण्डादिषु षट्सु काण्डः । स च पुंनपुंसकयोः । अश्वाभरणे । अमत्रे पात्रे । मूलं यद्वणिग्धनं तत्र च भाण्डम् । भृशमत्यर्थ प्रतिज्ञास्वीकारयोर्बाढम् । मृशकृच्छ्रयोर्हदेऽपि प्रगाढम् । शक्तः समर्थः तत्र स्थूळे
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पङ्क्रयः २४१३-२४३६ ] तृतीयं काण्डम्
भ्रूणोऽर्भके स्त्रैणगर्भे बाणो बलिसुते शरे कणोऽतिसूक्ष्मे धान्यांशे संघाते प्रमथे गणः पणो द्यूतादिषूत्सृष्टे भृतौ मूल्ये धनेऽपि च मौन्य द्रव्याश्रिते सत्त्वशौर्य संध्यादिके गुणः निर्व्यापार स्थितौ कालविशेषोत्सवयोः क्षणः वर्णो द्विजादौ शुक्लादौ स्तुतौ वर्ण तु वाक्षरे अरुण भास्करेऽपि स्याद्वर्णभेदेऽपि च त्रिषु स्थाणुः शर्वेऽप्यथ द्रोणः काकेऽप्याज रखे रणः ग्रामणीर्नापिते पुंसि श्रेष्ठे ग्रामाधिपे त्रिषु ऊर्णा मेषादिलोम्नि स्यादावर्ते चान्तरा भ्रुवोः हरिणी स्यान्मृगी हेमप्रतिमा हरिता च या त्रिषु पाण्डौ च हरिणः स्थूणा स्तम्भेऽपि वेश्मनः
२०७
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२४३५
२४३६
च दृढः । विन्यस्ते संहते च व्यूढः । अर्भके स्त्रैणगर्भे च भ्रूणः । वलिपुत्रे शरे च बाणः । अति सूक्ष्मवस्तुनि धान्यांशे च कणः । संघाते समूहे । प्रमथे रुद्रानुचरे च गणः । द्यूतमक्षादिभिः क्रीडा । आदिना मेषकुक्कुटादियुद्धादिकं तत्र उत्सृष्टे न्यस्तार्थे । भृतौ वेतने मूल्ये विक्रेयवस्तुद्रव्ये धने काकिणीचतुष्टये च पणः । मांय ज्यायां द्रव्याश्रिते रसगन्धादौ । 'आदि' शब्दस्य प्रत्येकं संबन्धात्सत्त्वरजआदौ शौर्यचातुर्यादौ संधिविग्रहादौ इन्द्रिये च गुणः । निर्व्यापारस्थितौ तूष्णीमधःस्थाने कालविशेषे मुहूर्तस्य द्वादशे भागे उत्सवे पुत्रजन्मादौ क्षणः । विप्रक्षत्रियादी शुक्लपीतादौ स्तुतौ स्तवे च वर्णः । अक्षरे वर्ण क्लोबे वा पुंसि । भास्करे सूर्ये । 'अपि’शब्दात्सूर्यसारथौ च । सोऽरुणशब्दः वर्णमेदे, त्रिषु स्तम्भादौ स्थेयुषि शर्वे च स्थाणुः । काके 'अपिशब्दादश्वत्थाम्नः पितरि परिमाणविशेषे च द्रोणः । आजी युद्धे रवे शब्दे च रणः । श्रेष्ठे नापिते प्रामाधिपे च ग्रामणीः । मेलोनि भ्रुवोरन्तरावर्ते च ऊर्णा । मृगी हेनः सुवर्णस्य प्रतिमा या चहरिता हरिद्वर्णा सा हरिणी । पाण्डौ पाण्डुरवर्णे चकारात् मृगमेदे वेश्मनो गृहस्य स्तम्मे स्थूणा । 'अपि ' शब्दाोहस्य प्रतिमायाम् । स्पृहा वाञ्छा । पिपासा
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अमरकोषे
तृष्णे स्पृहापिपासे द्वे जुगुप्साकरुणे घृणे वणिक्पथे च विपणिः सुरा प्रत्यक्च वारुणी करेणुरिभ्यां स्त्री नेभे द्रविणं तु बलं धनम् शरणं गृहरक्षित्रोः श्रीपर्ण कमलेऽपि च विषाभिमरलोहेषु तीक्ष्णं क्लीवे खरे त्रिषु प्रमाणं हेतुमर्यादाशास्त्रेयत्ताप्रमातृषु करणं साधकतमं क्षेत्रगात्रेन्द्रियेष्वपि प्राण्युत्पादे संसरणमसंबाधचमूगतौ घण्टापथेऽथ वान्तान्ने समुद्गिरणमुन्नये अतस्त्रिषु विषाणं स्यात्पशुशृङ्गेभदन्तयोः प्रवणं क्रमनिम्नो प्रह्वे ना तु चतुष्पथे संकीर्णौ निचिताशुद्धाविरिणं शून्यमूषरम् 'सेतौ च वरणो वेणी नदीभेदे कचोच्चये'
[ ५.
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नानार्थवर्ग:
२४३७
२४३८
२४३९
२४४०
२४४१
२४४२
२४४३
२४४४
२४४५
२४४६
२४४७
२४४८
**
पानेच्छा । उमे तृष्णे । जुगुप्सा निन्दा करुणा च घृणा । वणिक्पथे पण्यवीथ्यां आपणे पण्ये च विपणिः । सुरा मद्यम् । प्रत्यक् प्रतीची दिक् । उमे वारुण्यौ । इभ्यां हस्तिन्यां करेणुः । स्त्रीलिङ्गा । इभी हस्तिनी । करेणुर्ना पुंल्लिङ्गः । बलं पराक्रमः । धनं च द्रविणम् । गृहे रक्षितरि शरणम् । कमले चकारादग्निमन्ये च श्रीपर्णम् । विषं अभिमरो युद्धम् । लोहं च तीक्ष्णम् । लीचमू । खरे तिग्मे त्रिषु । हेतुर्धूमादिः । मर्यादा सीमा । इयता परिच्छेदः । प्रमाता ज्ञाता एष्वर्थेषु प्रमाणशब्दो वर्तते । साधने क्रियासिद्धी प्रकृष्टो हेतुः साधकतमं करणमिति । गात्रेन्द्रियेषु 'अपि ' शब्दात्कर्मादि । प्राणिनामुत्पादे जन्मनि । असंबाधचमूगतौ निर्बाध सैन्यगमने घण्टापथे च संसरणम् । वान्तान्ने भुक्तोज्झितान्ने उन्नये जलपात्रादेरूर्ध्वनयने उन्मूलिते च उद्भिरणम् । अतः परं वक्ष्यमाणा णान्तशब्दास्ते त्रिषु । पशुशृङ्गं चेभदन्तश्च तयोः विषाणम् । क्रमेण निना सा चासौ उर्वी च पृथ्वी तत्र । प्रह्ने नम्रे चतुष्पथे प्रवणः । पुंस्येव । निचितो व्याप्तः । अशुद्धः अमित्रः । उमे संकीर्णौ । शून्यं निराश्रयो देशः । ऊषरं स्थलमेदः तदि
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पतयः २४३७-२४६१] तृतीयं काण्डम् देवसूर्यों विवस्वन्तौ सरस्वन्तौ नदार्णवौ
२४४९ पक्षिताक्ष्यों गरुत्मन्तौ शकुन्तौ भासपक्षिणी
२४५० अग्युत्पातौ धूमकेतू जीमूतौ मेघपर्वतो
२४५१ हस्तौ तु पाणिनक्षत्रे मरुतौ पवनामरौ
२४५२ यन्ता हस्तिपके सूते भर्ता धातरि पोष्टरि २४५३ यानपात्रे शिशौ पोतः प्रेतःप्राण्यन्तरे मृते २४५४ ग्रहभेदे ध्वजे केतुः पार्थिवे तनये सुतः
२४५५ स्थपतिः कारुभेदेऽपि भूभृद्भूमिधरे नृपे
२४५६ मूर्धाभिषिक्तो भूपेऽपि ऋतुः स्त्रीकुसुमेऽपि च २४५७ विष्णावप्यजिताव्यक्तौ सूतस्त्वष्टरि सारथौ २४५८ व्यक्तः प्राज्ञेऽपि दृष्टान्तावुभौ शास्त्रनिदर्शने २४५९ क्षत्ता स्यात्सारथौ द्वाःस्थे क्षत्रियायां च शूद्रजे '२४६० वृत्तान्तः स्यात्प्रकरणे प्रकारे कार्यवार्तयोः २४६१ रिणमिति स्यात् । देवसूर्यो विवस्वन्तौ । नदार्णवौ सरवन्तौ । पक्षिताक्ष्यो गरुत्मन्तौ । भासपक्षिणौ शकुन्तौ । अन्युत्पातौ धूमकेतू । मेघपर्वतौ जीमूतौ । पाणिः करः नक्षत्रं त्रयोदशम् । उमे हस्तौ । पवनो वायुरमरश्च मरु- . संज्ञौ । महामात्रसारथी यन्तारौ । धाता धारकः । पोष्टा च भर्ता । यानपात्रे चहित्रे शिशौ पोतः। प्राण्यन्तरे भूतान्तरे मृते च प्रेतः । ग्रहमेदे ध्वजे च केतुः। पार्थिवे राज्ञि। तनये पुत्रे च सुतः। कारुः शिल्पी तनेदे, अपि'शब्दात्कअकिनि जीवेष्टियाजके च स्थपतिः। भूमिधरे शैले नृपे च भूभृत्। भूपे 'अपि'शब्दात् प्रधाने क्षत्रियमात्रे च मूर्धाभिषिक्तः । स्त्रीकुसुमे रजसि हेमन्तादौ च ऋतुः। अजितश्चाव्यक्तश्चेति विष्णावपि वर्तेते। 'अपि'शब्दादपरिभूते शंकरे चाजितः । त्वष्टार शिल्पिमेदे । सारथौ च सूतः। प्राज्ञे स्फुटेऽपि व्यकः । शास्त्रं तर्कोदि । निदर्शनमुदाहरणम् । उभौ दृष्टान्तौ। सारथी द्वाःस्थे द्वारपाले शूद्राक्षत्रियायां जाते च सत्ता। चात् भुजिष्यातनये । प्रकरणं प्रस्तावः, प्रकारो भावः, काय साकल्यम् , वार्ता जनश्रुतिः, एतेषु वृत्तान्तः । समरे युद्धे ।
अ. को. मा. ११
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अमरकोषे
[५. नानार्थवर्गः आनर्तः समरे नृत्यस्थाननीवृद्विशेषयोः २४६२ कृतान्तो यमसिद्धान्तदैवाकुशलकर्मसु
२४६३ श्लेष्मादि रसरक्तादि महाभूतानि तद्गुणाः २४६४ इन्द्रियाण्यश्मविकृतिः शब्दयोनिश्च धातवः २४६५ कक्षान्तरेऽपि शुद्धान्तो नृपस्यासर्वगोचरे
२४६६ कासूसामर्थ्ययोः शक्तिमूर्तिः काठिन्यकाययोः २४६७ विस्तारवल्लयोव्रततिर्वसती रात्रिवेश्मनोः
२४६८ क्षयार्चयोरपचितिः सातिर्दानावसानयोः २४६९ अर्तिः पीडाधनुष्कोट्योर्जातिः सामान्यजन्मनोः २४७० प्रचारस्यन्दयो रीतिरीतिर्डिम्बप्रवासयोः २४७१ उदयेऽधिगमे प्राप्तिस्त्रेता त्वग्नित्रये युगे
२४७२ वीणाभेदेऽपि महती भूतिभस्मनि संपदि
२४७३ नदीनगर्यो गानां भोगवत्यथ संगरे
२४७४ नृत्यस्थाने नृत्यमण्डपे । नीवृद्विशेषो जनपदविशेषः, एतेष्व नर्तः । यमो धर्मराजः । सिद्धान्तः, दैवं प्राकनं कर्म, अकुशलकर्म पापम् , एतेषु कृतान्तः। श्लेष्मादयो धातुशब्दवाच्याः । आदिशब्दात्पित्तादिग्रहः । नृपस्य कक्षान्तरे राज. धानीस्थानविशेषे । असर्वगोचरे इति कक्षान्तरस्य विशेषणम् । 'अपि'शब्दादन्तःपुरे आमचान्ते च शुद्धान्तः । आयुधभेदः सामर्थ्य च शक्तिः । काठिन्यकाययोमूर्तिः । विस्तारे वलयां च व्रततिः। रात्रौ गृहे च वसतिः। क्षयो हानिः। अर्चा पूजा । तत्रापचितिः । निष्कृतो व्यये च । दाने अवसाने च सातिः । पीडायां धनुष्कोव्यां च आर्तिः । सामान्यं गोत्वादि जन्मनि च जातिः । प्रचारः लोकाचारः । स्यन्दः प्रस्रवणम् । तत्र रीतिः । डिम्बे प्रवासे च ईतिः । उदये उत्पत्तौ । अधिगमे लामे च प्राप्तिः । अग्नित्रये दक्षिणगाईपत्याहवनीयाख्ये। द्वितीये युगे त्रेताशब्द आवन्तः । वीणामेदो नारदी वीणा । महत्त्वयुक्तायां भार्यादौ च महती। भस्मनि संपदि अणिमादौ च भूतिः।
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पङ्क्यः २४६२-२४८६ ]
तृतीयं काण्डम्
सङ्गे सभायां समितिः क्षयवासावपि क्षिती रवेरर्चिश्व शस्त्रं च वह्निज्वाला च हेतयः जगती जगति च्छन्दोविशेषेऽपि क्षितावपि पश्छिन्दोऽपि दशमं स्यात्प्रभावेऽपि चायतिः पत्तिर्गतौ च मूले तु पक्षतिः पक्षभेदयोः प्रकृतिर्योनिलिङ्गे च कैशिक्याद्याश्च वृत्तयः सिकताः स्युर्वालुकापि वेदे श्रवसि च श्रुतिः वनिता जनितात्यर्थानुरागायां च योषिति गुप्तिः क्षितिव्युदासेऽपि धृतिर्धारणधैर्ययोः बृहती क्षुद्रवार्ताकी छन्दोभेदे महत्यपि वासिता स्त्रीकरिण्योश्च वार्ता वृत्तौ जनश्रुती वार्त फल्गुन्यरोगे च त्रिष्वप्सु च घृतामृते
२११
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२४७५
२४७६
२४७७
२४७८
२४७९
२४८०
२४८१
२४८२
२४८३
२४८४
२४८५
२४८६
नद्यां नागानां नगर्यां च भोगवती । संगरादित्रये समितिः । क्षयो नाशः । वासो निवासः । ‘अपि’शब्दात् मेदिन्यां कालिमेदे च क्षितिः । सूर्यप्रभादिषु हेतिः । जगति लोके क्षितौ भुवि छन्दोविशेषे द्वादशाक्षरपादकवृत्ते जगती । 'अपि'शब्दाज्जनेऽपि । दशमं छन्दः दशाक्षरणदकं आवलिरपि पङ्किः । प्रभावे उत्तरकालेऽप्यायतिः । गतौ वीरमेदे सैन्यमेदे च पत्तिः । पक्षमेदयोर्मासार्धस्य च मूले प्रतिपदि पक्षिपक्षस्य मूलेऽधोदेशे च पक्षतिः । योनौ लिङ्गे च प्रकृतिः । चकारात्प्रधानत्वे अमात्यादौ खभावे च । 'आद्य' शब्दात् आरभटी- सात्त्वती -भारत्यो वृत्तयः । चकाराज्जीविकायां सूत्रविवरणे च वृत्तिः । सिकताशब्दो वालुकायाम् । 'अपि' शब्दात्सिकतान्वितदेशे च शर्करायां च कीर्तितः । वेदे श्रवसि कर्णे च श्रुतिः । जनितोऽत्यन्तानुरागो यस्यां तस्यां योषिन्मात्रे च वनिता । क्षितिव्युदासे भूविवरे । अपिशब्दाद्रक्षणे च गुप्तिः । धारणायां धैर्ये [तुष्टौ योगमेदे] च धृतिः । क्षुद्रवार्ताकी ओषधिविशेषो बृहती । छन्दोमेदो नवमं छन्दो बृहती । महती विपुला सापि बृहती स्यात् । स्त्रीकरिण्यो योषिद्धस्तिन्योर्वासिताशब्दः । वृत्तौ जीविकायाम् । जनश्रुतौ वृत्तान्ते वार्ता । फल्गुन्यसारे वार्तम् । रोगरहिते
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अमरको
कलधौतं रूप्यहेम्नोर्निमित्तं हेतुलक्ष्मणोः श्रुतं शास्त्रावधृतयोर्युगपर्याप्तयोः कृतम् अत्याहितं महाभीतिः कर्म जीवानपेक्षि च युक्ते क्ष्मादावृते भूतं प्राण्यतीते समे त्रिषु वृत्तं पद्ये चरित्रे त्रिष्वतीते दृढनिस्तले महद्राज्यं चावगीतं जन्ये स्याद्गर्हिते त्रिषु श्वेतं रूप्येऽपि रजतं हेम्नि रूप्ये सिते त्रिषु त्रिष्वतो जगदिङ्गेऽपि रक्तं नील्यादिरागि च अवदातः सिते पीते शुद्धे बद्धार्जुनौ सितौ युक्तेऽतिसंस्कृते मर्षिण्यभिनीतोऽथ संस्कृतम् कृत्रिमे लक्षणोपेतेऽप्यनन्तोऽनवधावपि ख्याते दृष्टे प्रतीतोऽभिजातस्तु कुलजे बुधे
[ ५. नानार्थवर्गः
२४८७
२४८८
२४८९
२४९०
२४९१
२४९२
२४९३
२४९४
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२४९५
२४९६
२४९७
२४९८
त्रिषु । घृतामृते द्वे अप्सु वर्तेते । चकारात् घृतमाज्ये जले क्लीबम् । अमृतं तु घृते पीयूषे यज्ञशेषे च । रूप्यं रजतम्, हेम सुवर्णम्, लक्ष्म चिह्नम्, एतेषु कलधौतम् । शास्त्रे अवधृते च श्रुतम् । युगे प्रथमयुगे, पर्याप्ते अलमर्थे कृतम् । जीवानपेक्षि साहसरूपं कर्म महाभीतिर्महद्भयं च अत्याहितं स्यात् । युक्ते न्याय्ये । क्ष्मादौ क्षित्यादिपश्चके । ऋते सत्ये । प्राणिनि जन्तौ । अतीते वृत्ते । समे सदृशे भूतम् । पद्ये श्लोके अतीते भूते दृढे गाढे निस्तले वर्तुलेsतीतादौ त्रिलियां वृत्तम् । राज्यं चकारात् बृहच्च महत् । जन्ये जनापवादे गर्हिते निन्दितेऽवगीतम् । रूप्ये 'अपि शब्दाच्छुश्रेऽपि श्वेतम् । हेनि रूप्ये सिते च रजतम् । अतो रजतात् परे तान्ताः शब्दास्त्रिषु । इङ्गे जंगमे भुवने च जगत् । नील्यादिरागयुक्तं रक्तम् । सितादित्रयेऽवदातः । अर्जुनः शुक्लः बद्धव सितः । युके न्याय्ये अतिप्रशस्ते भूषिते मर्षिणि क्षन्तरि च अभि नीतः । कृत्रिमे घटादौ लक्षणोपेते शास्त्रोपलक्षणयुक्ते च संस्कृतम् । अनवध निःसीमे, 'अपिशब्दाच्छेषादौ अनन्तः । ख्याते प्रसिद्धे हृष्टे च प्रतीतः । कुलजे कुलीने बुधे पण्डितेऽभिजातः । पूतं पवित्रम् । विजनो विगतजनः । एतौ
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पतयः २४८७-२५१०] तृतीयं काण्डम् विविक्तौ पतविजनौ मच्छितौ मुढसोच्छयौ २४९९ द्वौ चाम्लपरुषौ शुक्तौ शिती धवलमेचको २५०० सत्ये साधौ विद्यमाने प्रशस्तेऽभ्यर्हिते च सत् २५०१ पुरस्कृतः पूजितेऽरात्यभियुक्तेऽग्रतः कृते २५०२ निवातावाश्रयावातौ शस्त्राभेद्यं च वर्म यत् २५०३ जातोन्नद्धप्रवृद्धाः स्युरुच्छ्रिता उत्थितास्त्वमी
२५०४ वृद्धिमत्प्रोद्यतोत्पन्ना आहतौ सादरार्चितौ
२५०५ अर्थोऽभिधेयरैवस्तुप्रयोजननिवृत्तिषु
२५०६ निपानागमयोस्तीर्थमृषिजुष्टे जले गुरौ
२५०७ समर्थस्त्रिषु शक्तिस्थे संबद्धार्थे हितेऽपि च २५०८ दशमीस्थौ क्षीणरागवृद्धौ वीथी पदव्यपि २५०९ आस्थानीयत्नयोरास्था प्रस्थोऽस्त्री सानुमानयोः २५१० 'शास्त्रद्रविणयोर्ग्रन्थः संस्थाधारे स्थिती मृतौ ** विविक्तौ । मूढो मोहं गतः सोच्छ्यो वृद्धियुक्तः द्वौ मूञ्छितौ । अम्लं चुक्रम् । परुषो निष्ठुरः । द्वौ शुक्ताख्यौ । धवलः शुभ्रः । मेचकः कृष्णवर्णः । उभयोः शितिः। सत्ये साधी विद्यमाने प्रशस्ते अभ्यर्हिते च सत । अरात्यभियुक्त शत्रुणाक्रान्ते अग्रतः कृते पुरःस्थिते पूजिते च पुरस्कृतः। आश्रयो निवासः । अवातो वातवर्जितः । उभौ निघाती। यच्छस्त्राभेद्यं वर्म कवचं तदपि निवाताख्यम् । जात त्पन्नः । उन्नद्धो दृप्तः । प्रवृद्धश्चैते उच्छ्रिताः । वृद्धिमत्, प्रोद्यतः, उत्पन्नं, एते उत्थिताः। सादरार्चितो आहतौ । अभिधेयो वाच्यः । राः धनम् । वस्तु तत्त्वम् । निवृत्तिनिवर्तनम् । अत्र विषयेऽप्यर्थः । निपानमुपकूपजलाशयः । आगमो बौद्धशास्त्रादन्यच्छास्त्रम् । ऋषिमुष्टे जले ऋषिभिः सेवितोदके गुरावुपाध्याये च तीर्थम् । शक्तिस्थे शक्तिमति । संबद्धार्थे हितेऽनुकूले च समर्थः । क्षीणो रागो रसोऽस्य क्षीणरागः । वृद्धोऽतिवृद्धः । उभौ दशमीस्थौ । पदवी मार्गः। 'अपि'शब्दात् पकिरपि वीथी। आस्थानी सभा। यनः प्रयत्नः । उभौ आस्था । सानु पर्वताप्रम् । मानं परि
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अमरकोषे
अभिप्रायवश छन्दावन्दी जीमूतवत्सरौ अपवादौ तु निन्दाज्ञे दायादौ सुतबान्धवी पादा रश्म्यङ्गितुर्याशाश्चन्द्राग्यकोस्तमोनुदः निर्वादो जनवादेऽपि शादो जम्बालशष्पयोः आवे रुदिते त्रातर्याक्रन्दो दारुणे रणे स्यात्प्रसादोऽनुरागेऽपि सूदः स्याद्व्यञ्जनेऽपि च गोष्ठाध्यक्षेऽपि गोविन्दो हर्षेऽप्यामोदवन्मदः प्राधान्ये राजलिङ्गे च वृषाङ्गे ककुदोऽस्त्रियाम् स्त्री संविज्ज्ञानसंभाषाक्रियाकाराजिनामसु धर्मे रहस्युपनिषत्स्यादृतौ वत्सरे शरत् पदं व्यवसितित्राणस्थानलक्ष्माङ्गिवस्तुषु गोष्पदं सेविते माने प्रतिष्ठा कृत्यमास्पदम्
[ ५. नानार्थवर्ग:
२५११
२५१२
२५१३
२५१४
२५१५
२५१६
२५१७
२५१८
२५१९
२५२०
२५२१
२५२२
माणमेदः प्रस्थः । अभिप्राय आशयः । वशोऽधीन छन्दः । जीमूतो मेघः । वत्सरो वर्षम् । तत्र अब्दः । निन्दा गर्हा । आशा शासनं तत्रापवादः । पुत्रो ज्ञातिश्च दायादौ । रश्मिः किरणः, अतिचरणः, तुर्यांशश्चतुर्थो भागः पादः । चन्द्रे अग्नौ अर्के च तमोनुद् । जनवादे लोकापवादे, 'अपि शब्दान्निर्णीतवादे निर्वादः । कर्दमे । बालतृणे च शादः । आरावे आर्तध्वनौ । त्रातरि रक्षके दारुणे रणे भीषणे युद्धे रुदिते च आक्रन्दः । अनुरागेऽनुग्रहे, प्रसन्नतायां काव्यगुणे च प्रसादः । व्यञ्जने तेमने सूपकारे च सूदः । गोष्ठं गोस्थानं तस्याध्यक्षे गोपालादौ वृहस्पतौ कृष्णेऽपि गोविन्दः । आमोदशब्दो यथा हर्षे वर्तते 'अपि’शब्दादतिनिर्ह्रारिगन्धे च तथा मदोऽपि हर्षे । 'अपि शब्दाद्दर्व गजदान रेतस्सु च । प्रधानमेव प्राधान्यम् । राजलिङ्गे छत्रादौ वृषावयवे ककुदः । संभाषा संभाषणम् । क्रियाकारः कर्मनियमः, आजिर्युद्धम्, नाम संज्ञा, एतेषु संकेते च स्त्रीलिङ्गं संविदिति नाम । धर्मे रहसि वेदान्ते च उपनिषद् । ऋतौ वत्सरे च शरद् । व्यवसितिर्व्यवसायस्ततो वस्त्वन्तेषु पदम् । सेविते गोभिरेव सेविते देशे माने खुरप्रमाणे गोष्पदम् । प्रतिष्ठा स्थानम् । कृत्यं कार्यम् । प्रतिष्ठाकृत्ये
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पङ्खयः २५११-२५३३] तृतीयं काण्डम् त्रिविष्टमधुरौ स्वादू मृदू चातीक्ष्णकोमलौ । मूढाल्पापटुनिर्भाग्या मन्दाः स्युद्वौ तु शारदौ प्रत्ययाप्रतिभौ विद्वत्सुप्रगल्भौ विशारदौ व्यामो वटश्च न्यग्रोधावुत्सेधः काय उन्नतिः पर्याहारश्च मार्गश्च विवधौ वीवधौ च तौ परिधिर्यज्ञियतरोः शाखायामुपसूर्यके बन्धकं व्यसनं चेतःपीडाधिष्ठानमाधयः स्युः समर्थननीवाकनियमाश्च समाधयः दोषोत्पादेऽनुबन्धः स्यात् प्रकृत्यादिविनश्वरे मुख्यानुयायिनि शिशौ प्रकृतस्यानुवर्तने विधुर्विष्णौ चन्द्रमसि परिच्छेदे बिलेऽवधिः
२५२३ २५२४ २५२५ २५२६ २५२७ २५२८ २५२९ २५३० २५३१ २५३२ २५३३
आस्पदशब्दो वर्तते । अतः परं आवर्गसमाप्तेर्दान्तास्त्रिषु । इष्टः । मधुरः । उभौ स्वाद् । अतीक्ष्णोऽतिग्मः, कोमलोऽकठिनः, उभौ मृदू, मूढो मूर्खः । अल्पः, अपटुरतीक्ष्णः, निर्भाग्यो हीनभाग्यः, एते मन्दाः । प्रत्यग्रोऽमिनवः । अप्रतिभोप्रगल्भः । द्वाविमौ शारदौ । विद्वत्सुप्रगल्भौ विशारदौ । प्रसारितभुजद्वयकुण्डलं व्यामः । वटो वृक्षभेदः द्वयं न्यग्रोधाख्यम् । कायो देहः । उन्नतिरुच्छ्राय उत्सेधः। पर्याहारो ध्यानादिः । मार्गः पन्थाः । एतौ विवधसंज्ञौ वीवघावपि च । यज्ञियतरोः पलाशादेः शाखायां समिधि । तत्र उपसूर्यके सूर्यसमीपमण्डले परिवेषाख्ये च परिधिः । उत्तमर्णगृहे ऋणमोचनपर्यन्तं विश्वासार्थ यद्वस्तु स्थाप्यते तद्वन्धकं प्रसिद्धम् । व्यसनमापत्तिः । चेतःपीडा मानसी व्यथा । अधिष्ठानमध्यासनं एते आधयः । समर्थनं चोद्यपरिहारः । नीवाको वचनामावः । नियमोऽङ्गीकारः एते समाधयः । दोषोत्पादनं दोषोत्पादखत्र प्रकृत्यादिषु प्रकृतिप्रत्ययागमादेशेषु इक्-यण-सुडादिषु यनश्वरमदर्शनशीलमक्षरं तत्र । यो मुख्यं पित्रादिकमनुयाति तस्मिन् शिशौ । प्रकृतस्य प्रक्रान्तस्य पदनिवृत्त्यभावः तत्रैतेषु अनुबन्धः । विधुः शशाङ्के हृषीकेशे च । परिच्छेदे सीन्नि । वि गर्ने । कालेऽपि अवधिः । विधाने कर्तव्ये दैवे प्राकनशुभा
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भमरकोपे
[५. नानार्थवर्गः विधिविधाने दैवेऽपि प्रणिधिः प्रार्थने चरे २५३४ बुधवृद्धौ पण्डितेऽपि स्कन्धः समुदयेऽपि च २५३५ देशे नदविशेषेऽन्धौ सिन्धुना सरिति स्त्रियाम्
२५३६ विधा विधौ प्रकारे च साधू रम्येऽपि च त्रिषु २५३७ वधूर्जायां स्नुषा स्त्री च सुधा लेपोऽमृतं स्नुही २५३८ संधा प्रतिज्ञा मर्यादा श्रद्धा संप्रत्ययः स्पृहा २५३९ मधु मद्ये पुष्परसे क्षौद्रेऽप्यन्धं तमस्यपि
२५४० अतस्त्रिषु समुन्नद्धौ पण्डितंमन्यगर्वितौ
२५४१ ब्रह्मबन्धुरधिक्षेपे निर्देशेऽथावलम्बितः
२५४२ अविदूरोऽप्यवष्टब्धः प्रसिद्धौ ख्यातभूषितौ २५४३ सूर्यवह्नी चित्रभानू भानू रश्मिदिवाकरौ
२५४४ भूतात्मानौ धातृदेही मूर्खनीचौ पृथग्जनौ २५४५ शुभकर्मणि ब्रह्मण्यपि विधिः । प्रार्थने चरे च प्रणिधिः । बुधवृद्धौ पण्डितेऽपि वर्तते । 'अपि'शब्दात् बुधः सौम्ये। वृद्धः स्थविरे। समुदये समूहे। 'अपि'शब्दात्काण्डे नृपेंडसे च स्कन्धः । देशभेदेऽब्धी समुद्रे सिन्धुशब्दः पुंसि । नदीसामान्ये तु स्त्रीलिङ्गे । सिन्धुः । विधौ विधाने, प्रकारे विधाशब्दः स्यात् । रम्ये, 'अपि'शब्दाद्वार्धषिके सजने साधुः । जाया भार्या । मुषा पुत्रस्य पत्नी। तत्र स्त्रीमात्रे च वधूः । देवालयादि येन लिप्यते स लेपचूर्णविशेषः । अमृते सुह्यामपि सुधा । प्रतिज्ञा स्वीकारः । मर्यादा च संधा । संप्रत्यय आदरः । स्पृहा काटा तत्र श्रद्धेति । मद्ये पुष्परसे, क्षौद्रे माक्षिके च मधु । तमसि अक्षिहीनेऽपि अन्धशब्दः । अतः परे धान्तवर्गपर्यन्तास्त्रिषु । पण्डितमात्मानं मन्यते पण्डितमन्यः । गर्वितश्च समुन्नद्धः । अधिक्षेपे निन्दाप्रयोगे निर्देशे च ब्रह्मबन्धुरिति । अवलम्बितः आश्रितः । अविदूरः सन्निहितः । उभाषवष्टब्धौ। 'अपि'शब्दाद्बद्धोऽपि। ख्यातभूषितौ प्रसिद्धौ । सूर्ये वहौ चचित्रभानुः । रश्मिर्दिवाकरश्च भानुः । भूतं चात्मा च । धाता च देहश्च । मूखो नीचो हीन
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पङ्क्तयः २५३४-२५५८ ]
तृतीयं काण्डम्
ग्रावाणौ शैलपाषाणौ पत्रिणौ शरपक्षिणी तरुशैलौ शिखरिणौ शिखिनो वह्निर्हिणौ प्रतियत्नावुभौ लिप्सोपग्रहावथ सादिनौ द्वौ सारथियारोौ वाजिनोऽश्वेषुपक्षिणः कुलेऽप्यभिजनो जन्मभूम्यामप्यथ हायनाः वर्षाचित्रहिभेदाश्च चन्द्राग्नयक विरोचनाः
शेऽपि वृजिनो विश्वकर्मार्कसुर शिल्पिनोः आत्मा यत्रो धृतिर्बुद्धिः स्वभावो ब्रह्म वर्ष्म च शको घातुकमत्तेभो वर्षुकाब्दो घनाघनः घनो मेघे मूर्तिगुणे त्रिषु मूर्ते निरन्तरे अभिमानोऽर्थादिदर्पे ज्ञाने प्रणयहिंसयोः इनः सूर्ये प्रभौ राजा मृगाङ्के क्षत्रिये नृपे वाणिन्यौ नर्तकी दूत्यौ स्रवन्त्यामपि वाहिनी
२१७
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२५४६
२५४७
२५४८
२५४९
२५५०
२५५१
२५५२
२५५३
२५५४
२५५५
२५५६
२५५७
२५५८
जातिः । एतेषु पृथग्जन इति चतुरक्षरम् । शैले पाषाणे व ग्रावन् । श पक्षिणि च पत्रिन् । तरौ शैले च शिखरिन् । वहौ बर्हिणि मयूरे च शिखिन् । लिप्सा वाञ्छा । उपग्रह अनुकूलनम् । उभौ प्रतियत्नौ । सारथिरश्वारोहश्व सादिनौ । अश्वो हयः इषुः शरः पक्षी चैते वादिनः । कुले कुलमुख्ये च जन्मभूम्यां जननस्थाने अभिजनः । वर्षोऽब्दः । अर्चीीं रश्मिः व्रीहिभेदते हायनाः । चन्द्रेऽग्नावर्के प्रह्लादपुत्रेऽपि विरोचनः । क्लेशे कल्मषेऽपि क्लीबं वृजिनम् । अर्के सुरशिल्पिनि च विश्वकर्मा । अततीत्यात्मा, धृतिः बुद्धिः स्वभावः ब्रह्म वर्ष्म च यत्नः । शक्र इन्द्रः । धातुकश्चासौ मत्तेभश्चेति कर्मधारयः, तथा वर्षुकश्चासावब्दश्चेति घनाघनः इति चतुरक्षरं नाम । मूर्तिगुणे काठिन्ये मेघे च घनः पुंसि, मूर्ते कठिने निरन्तरे सान्द्रे च त्रिषु । अर्थपशुकुलगुणादिभिर्यो दर्पस्तस्मिन् ज्ञाने प्रणये हिंसायां चाभिमानः । प्रभौ नृपे च पत्यो वा इनः । मृगाङ्के क्षत्रिये नृपे च राजशब्दः । नर्तकीदूत्यौ वाणिन्यौ । स्रवन्त्यां नयां सेनायामपि वाहिनी । वज्रं कुलिशम् । तडिद्विद्युत् ह्रादिनी ।
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२१८
असरकोषे
[५. नानार्थवर्गः हादिन्यौ वज्रतडितौ वन्दायामपि कामिनी २५५९ त्वग्देहयोरपि तनुः सूनाऽधोजिहिकापि च २५६० ऋतुविस्तारयोरस्त्री वितानं त्रिषु तुच्छके
२५६१ मन्देऽथ केतनं कृत्ये केतावुपनिमन्त्रणे
२५६२ वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म ब्रह्मा विप्रः प्रजापतिः उत्साहने च हिंसायां सूचने चापि गन्धनम् २५६४ आतञ्चनं प्रतीवापजवनाप्यायनार्थकम्
२५६५ व्यञ्जनं लाञ्छनं श्मश्रुनिष्ठानावयवेष्वपि २५६६ स्यात्कौलीनं लोकवादे युद्धे पश्चहिपक्षिणाम् २५६७ स्यादुद्यानं निःसरणे वनभेदे प्रयोजने
२५६८ अवकाशे स्थितौ स्थानं क्रीडादावपि देवनम् २५६९ उत्थानं पौरुषे तन्त्रे संनिविष्टोद्गमेऽपि च
२५७० व्युत्थानं प्रतिरोधे च विरोधाचरणेऽपि च २५७१ वन्दावृक्षे विजातीयप्ररोहे । योषिन्मात्रे विलासिन्यामपि कामिनीशब्दो वर्तते । तनुः काये त्वचि च । अधोजिह्निका गलकण्ठिका सा सूना। 'अपि'शब्दात्पुत्र्यां वधस्थानेऽपि । ऋतुर्यज्ञः, विस्तारश्च वितानम् । तुच्छके शून्ये मन्दे च वितानं त्रिषु। केतौ ध्वजे उपनिमन्त्रणे निवासेऽपि केतनम् । तत्त्वं चैतन्यम् , तपो ब्रह्मा वेदादित्रये ब्रह्मशब्दः क्लीबे । विप्रवेधसोः पुंसि । उत्साहने हिंसायां सूचने, 'अपि'शब्दादाशयप्रकाशने च गन्धनम् । प्रतीवापः क्षीरादौ तक्रादेनिक्षेपः । जवनं वेगः । आप्यायनं प्रीणनम् । एतदर्थकमातञ्चनम् । लाञ्छनं चिह्नम् । निष्ठानं तेमनम् । अवयवोऽवयवभेदः । एतेषु व्यञ्जनं नाम । लोकवादे लोकापवादे पश्वादीनां युद्धे च कौलीनम् । निःसरणे प्रहादेर्निर्गमे वनभेदे उपवने प्रयोजने च उद्यानं नाम । स्थानमिति स्थित्यवकाशयोः । क्रीडायां व्यवहारे जिगीषादौ देवनम् । पौरुषे उद्योगे । तत्रे कुटुम्बकृत्ये सिद्धान्ते चौषधोत्तमे । सन्निविष्ट स्योद्गमे ऊर्वीभवनेऽपि उत्थानम् । प्रतिरोधे तिरस्कारे ।
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पक्लयः २५५९-२५८४ ] तृतीय काण्डम्
मारणे मृतसंस्कारे गतौ द्रव्येऽर्थदापने निर्वर्तनोपकरणानुव्रज्यासु च साधनम् निर्यातनं वैरशुद्धौ दाने न्यासार्पणेऽपि च व्यसनं विपदि भ्रंशे दोषे कामजकोपजे पक्ष्माक्षिलोनि किंजल्के तन्त्वाद्यंशेऽप्यणीयसि तिथिभेदे क्षणे पर्व वर्त्म नेत्रच्छदेऽध्वनि अकार्यगु कौपीनं मैथुनं संगतौ र प्रधानं परमात्मा धीः प्रज्ञानं बुद्धिचिह्नयोः प्रसूनं पुष्पफलयोर्निधनं कुलनाशयोः क्रन्दने रोदनाह्वाने वर्ष्म देहप्रमाणयोः गृहदेहत्विट्प्रभावा धामान्यथ चतुष्पथे संनिवेशे च संस्थानं लक्ष्म चिह्नप्रधानयोः आच्छादने संपिधानमपवारणमित्युभे
२१९
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२५७२
२५७३
२५७४
२५७५
२५७६
२५७७
२५७८
२५७९
२५८०
२५८१
२५८२.
२५८३.
२५८४
स्वातन्त्र्यकृत्येऽपि व्युत्थानम् । मारणाद्यष्टके सैन्ये मेद्रे च साधनमिति नाम । वैरशुद्धौ दाने त्यागे न्यासार्पणे निक्षिप्तद्रव्यस्य अर्पणे निर्यातनम् । भ्रंशे अपाये पतने वा । दोष इत्यस्य प्रत्येकं संबन्धः । कामजदोषस्तु मृगयाद्यूतस्त्रीमद्यपानेषु प्रसक्तिः । कोपजदोषस्तु वाक्पारुष्यादिः, तत्र व्यसनम् । अक्षिलोम्नि चक्षुर्लोनि, किञ्जल्के केसरे, अणीयसि तन्त्वायंशे अल्पतरे सूत्राद्यंशे पक्ष्मेति । तिथिभेदेऽष्टमीदर्शादौ क्षणे उत्सवे पर्व । नेत्रपिधायकचर्मपुटे अध्वनि मार्गे वर्त्म | अकार्ये अकरणार्हे गुह्य उपस्थे कौपीनम् । संगतौ भार्यादिसंबन्धे । रते सुरते मैथुनं स्यात् । धीः बुद्धिः । महामात्रे परमात्मनि च प्रधानम् । बुद्धिचिह्नयोः प्रज्ञानम् । पुष्पे फले च प्रसूनम् । कुलनाशयोर्निधनम् । रोदनमाह्वानमारावः । उभे क्रन्दनसंज्ञे । देहः प्रमाणमियप्ता । उभयोर्वर्ष्म । गृहादीनि चत्वारि धामशब्दवाच्यानि । चतुष्पथे शृङ्गाटके । संनिवेशे अवयवविभागे संस्थानम् । चिह्ने प्रधाने लक्ष्म । संपिधानं तिरोधानम् । अपवारणं वस्त्रादिना परिवृतिः । वस्त्रेऽपि आच्छादनम् । साधने निष्पादने । अवाप्तौ लाभे । तोषणे तुष्टौ आराधनं
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२२०
अमरकोषे
[५. नानार्यवर्गः आराधनं साधने स्यादवाप्तौ तोषणेऽपि च २५८५ अधिष्ठानं चक्रपुरप्रभावाध्यासनेष्वपि
२५८६ रत्नं स्वजातिश्रेष्ठेऽपि वने सलिलकानने
२५८७ तलिनं विरले स्तोके वाच्यलिङ्गं तथोत्तरे २५८८ समानाः सत्समैके स्युः पिशुनौ खलसूचको २५८९ हीनन्यूनावूनगौं वेगिर्रौ तरस्विनी
२५९० अभिपन्नोऽपराद्धोऽभिग्रस्तव्यापद्गतावपि
२५९१ कलापो भूषणे बर्हे तूणीरे संहतावपि
२५९२ परिच्छदे परीवापः पर्युप्तौ सलिलस्थितौ
२५९३ गोधुग्गोष्ठपती गोपौ हरविष्णू वृषाकपी
२५९४ बाष्पमूष्माश्रु कशिपु वन्नमाच्छादनं द्वयम् २५९५ तल्पं शय्याट्टदारेषु स्तम्वेऽपि विटपोऽस्त्रियाम् २५९६ स्यात् । चक्रं रथाङ्गम् । पुरं नगरम् । अध्यासनमाक्रमणं अधिष्ठानं स्यात् । खजातिश्रेष्ठे रत्नम् । सलिलं जलम् । काननमरण्यम् । उभे वने । विरले सान्तरे । स्तोकेऽल्पे तलिनम् । यथा तलिनं वाच्यलिङ्गं तथा उत्तरेऽपि नान्तसमाप्तिपर्यन्तं वाच्यलिङ्गाः । सन् पण्डितः समः सदृशः एकश्चैते समानाः स्युः । खलो दुर्जनः सूचकः कर्णेजपः । उभी पिशुनौ । ऊनोऽल्पः, गर्यो निन्द्यः, द्वावेतो हीन न्यूनशब्दवाच्यौ । वेगी बंगयुक्तः । शूरो बली । उभौ तरविनौ। अपराद्धोऽपराधवान्, अभिग्रस्तः शत्रुणाकान्तः, व्यापद्गतः प्राप्तविपत्कः, एते अभिपन्नवाच्याः। भूषणे बर्हे मयूरपिच्छे । तूणीरे इषुधौ, संहतौ समुदाये, काभ्यां च कलापशब्दः । परिच्छदः पटमण्डपाद्युपकरणम् । पर्युप्तिः सर्वतोवपनम् । सलिलस्थितौ जलाधारे परीवापः । गां दोग्धीति गोधुग्गोपालः गोष्ठाध्य व गोपौ । वृषाकपिसंज्ञौ हरो विष्णुश्च । ऊष्मोष्णम् , अश्रु नेत्रोदकं च बाष्पसंज्ञम् । अन्नं भोजनम् , आच्छादनं वस्त्रम् । एतत् द्वयं कशिपुसंज्ञम् , अटोऽटालिका । दाराः, स्त्री, शय्या च तल्पम् । स्तम्बे तृणादिगुच्छे । 'अपि'शब्दाद्विस्तारशाखयोश्च विटपः। अमी प्राप्तरूपः, खरूपः
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पङ्क्लयः २५८५-२६०८ ]
तृतीय काण्डम्
प्राप्तरूपस्वरूपाभिरूपा बुधमनोज्ञयोः भेद्यलिङ्गा अभी कुर्मी वीणाभेदश्च कच्छपी 'कुतपो मृगरोमोत्थपटे चाह्नोऽष्टमें शके' वर्णे पुंसि रेफः स्यात्कुत्सिते वाच्यलिङ्गकः अन्तराभवसत्त्वेऽश्वे गन्धर्वो दिव्यगायने कम्बुर्ना वलये शङ्खे द्विजिह्रौ सर्पसूचकौ पूर्वोऽन्यलिङ्गः प्रागाह बहुत्वेऽपि पूर्वजान् कुम्भौ घटेभमूर्धाशौ डिम्भौ तु शिशुबालिशौ स्तम्भ स्थूणाजडीभाव शंभू ब्रह्मत्रिलोचनौ कुक्षिभ्रूणार्भका गर्भा विस्रम्भः प्रणयेऽपि च स्याद्वेय दुन्दुभिः पुंसि स्यादक्षे दुन्दुभिः स्त्रियाम् स्यान्महारजने क्लीवं कुसुम्भं करके पुमान् क्षत्रियेऽपि च नाभिर्ना सुरभिर्गवि च स्त्रियाम्
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२५९७
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अभिरूपः, पान्ता भेद्यलिङ्गा बुधे पण्डिते मनोज्ञे मनोहरे च वर्तन्ते । कूर्मी कमठी । वीणा मेदः सारस्वती वीणा । द्वे कच्छपीसंज्ञे । रवर्णे राक्षरे रेफः पुंसि कुत्सिते रेफो वाच्यलिङ्गकः । अथ बवयोः सावर्ण्यात् बान्तान्वातांश्चाह । यो मरणजन्मनोरन्तकाले स्थितः प्राणी सोऽन्तराभवसत्त्वः तस्मिन् । अश्वे घोटके | दिव्यगायने विश्वावसुप्रभृतौ गायनमात्रे च गन्धर्वः । पुंसीत्यर्थः । जम्बूकयोरपि कम्बुः । सूचकः पिशुनः । सर्पश्च द्विजिह्नः पूर्वशब्दः प्राग्वाची वाच्यलिङ्गकः । यदा तु पूर्वजान् पितामहादीनाह तदा पुंसि बहुत्वे वर्तते । घटः कलशः । इभस्य गजस्य मूर्धांशः शिरोभागः कुम्भः । बालिशो मूर्खः । शिशुश्व डिम्भः । स्थूणा गृहस्तम्भः । जडीभावो जडत्वम् । उभो स्तम्भौ । ब्रह्मा त्रिलोचनव शम्भुः । भ्रूणो गर्भस्थो जन्तुः । अर्भकः शिशुः । एते गर्भाः । प्रणये शृङ्गारप्रार्थनायां, ‘अपि’शब्दाद्विश्वासादौ विस्रम्भः । दुन्दुभिर्भेय पुंसि । अ बालक्रीडोपकरणे स्त्रियाम् । महारजने पुष्प मेदे कुसुम्भं क्लीनम् । करके कम
लौ पुंसि । क्षत्रिये नाभिः पुंसि । 'अपि' शब्दान्मुख्यनृपे चक्रमध्ये च । प्राणज्य तुइयोः मृगमेदे तु स्त्रियाम् । गवि सौरमेय्यां सुरभिः स्त्री । चकाराद्व
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२२२
अमरकोषे
सभा संसदि सभ्ये च त्रिष्वध्यक्षेऽपि वल्लभः किरणप्रग्रह रश्मी कपिभेकौ लवंगमौ इच्छा मनोभवौ कामौ शौर्योद्योगौ पराक्रमौ धर्माः पुण्ययमन्याय स्वभावाचारसोमपाः उपायपूर्व आरम्भ उपधा चाप्युपक्रमः वणिक्पथः पुरं वेदो निगमो नागरो वणिक् नैगमौ द्वौ बले रामो नीलचारुसिते त्रिषु शब्दादिपूर्वो वृन्देऽपि ग्रामः क्रान्तौ च विक्रमः स्तोमः स्तोत्रेऽध्वरे वृन्दे जिह्मस्तु कुटिलेऽलसे उष्णेऽपि धर्मश्चेष्टालंकारे भ्रान्तौ च विभ्रमः गुल्मा रुक्स्तम्बसेनाश्च जामिः स्वसृकुलस्त्रियोः क्षितिक्षान्त्योः क्षमा युक्ते क्षमं शक्ते हिते त्रिषु
[ ५. नानार्थवर्ग:
२६०९
२६१०
२६११
२६१२
२६१३
२६१४
२६१५
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२६१८
२६१९
२६२०
सन्तजातीफलचम्पकेषु ना सुगन्धिमनोज्ञयोस्त्रिषु । सुवर्णे पङ्कजे च क्लीबम् । संसदि सदसि सभ्यः सदस्यः सभा । अध्यक्षे अपिशब्दाद्दयिते च वल्लभः । अश्वादेर्बन्धनरज्जुः प्रग्रहः किरणश्च रश्मिः । कपौ मेके च प्लवंगमः । मनोभवो मदनः इच्छा च कामः । शौर्य सामर्थ्यम् । उद्योगश्च पराक्रमः । पुण्या दिषट्के धर्मशब्दः । उपायं ज्ञात्वा य आरम्भः स उपायपूर्वः । अमात्यशीलपरीक्षोपाय उपधा । चिकित्सायां चोपक्रमः । वणिक्पथो वणिज्यम् । पुरं नगरम् । वेद आम्नायः । एते निगमाः । नगरे भवो नागरः वणिकू चैतौ नैगमौ । बले बलदेवे पुंसि । नीलादिषु त्रिलिनयां रामशब्दः । शब्दादिपूर्वो ग्रामशब्दो वृन्दे वर्तते । 'अपि' शब्दात्संवसथे ग्रामः । क्रान्तौ विक्रमे परक्रमे च विक्रमः । स्तोत्रेऽध्वरे वृन्दे च स्तोमः । कुटिले खले अलसे जडे च जिह्नः । उष्णे धर्मः । चेष्टायां अलंकारे भ्रान्तौ च विभ्रमः । रुक् रोगभेदः प्लीहाख्यः । स्तम्बः कुशादिगुच्छः । सैन्यरक्षणे च गुल्मशब्दः । स्वसा भगिनी, कुलस्त्री कुलवधूः तयोर्खामिशब्दः । क्षितिर्भूमिः । क्षान्तिस्तितिक्षा तयोः क्षमा । युके योग्ये क्षमं क्लीवम् । शक्ते हिते क्षमस्त्रिलिङ्गः । हरित्पाकशः
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पतयः २६०९-२६३४ ] तृतीयं काण्डम्
२२३ त्रिषु श्यामौ हरित्कृष्णौ श्यामा स्याच्छारिवा निशा २६२१ ललामं पुच्छपुण्ड्राश्वभूषाप्राधान्यकेतुषु
२६२२ सूक्ष्ममध्यात्ममप्याद्ये प्रधाने प्रथमस्त्रिषु,
२६२३ वामौ वल्गुप्रतीपौ द्वावधमौ न्यूनकुत्सितौ २६२४ जीर्ण च परिभुक्तं च यातयाममिदं द्वयम् २६२५ तुरंगगरुडौ ताक्ष्यों निलयापचयौ क्षयौ ।
२६२६ श्वशुर्यो देवरश्यालौ भ्रातृव्यौ भ्रातृजद्विषौ
२६२७ पर्जन्यौ रसदब्देन्द्रौ स्यादर्यः स्वामिवैश्ययोः २६२८ तिष्यः पुष्ये कलियुगे पर्यायोऽवसरे क्रमे २६२९ प्रत्ययोऽधीनशपथज्ञानविश्वासहेतुषु
२६३० रन्ध्रे शब्देऽथानुशयो दीर्घद्वेषानुतापयोः २६३१ स्थूलोच्चयस्त्वसाकल्ये नागानां मध्यमे गते २६३२ समयाः शपथाचारकालसिद्धान्तसंविदः
२६३३ व्यसनान्यशुभं दैवं विपदित्यनयास्त्रयः
२६३४ कृष्णः कालः उभौ श्यामौ । शारिवा शतावरी निशा च श्यामा । पुच्छम् । पुण्डमवादीनां ललाटचित्रम् । अश्वो घोटकः । प्रधानमेव प्राधान्यम् । केतुर्वजः षट्रसु ललामम् । अध्यात्म आत्मन्यधिकृतं लिङ्गदेहम् । 'अपि'शब्दारकैतवे सूक्ष्मम् । आये आदौ प्रधाने मुख्ये प्रथमः । त्रिष्विति यावन्मान्तमधिकारः। प्रतीपो विपरीतः । वल्गुश्च चामौ । न्यूनश्च कुत्सितश्चाधमौ । जीणे प्राप्तपरिणामम् । परिभुक्तं भुक्तोज्झितम् । द्वयं यातयामसंज्ञम् । अश्वगरुडौ ताक्ष्यसंज्ञौ । निलयो गृहम् । अपचयो ह्रासः।उभौ क्षयौ। देवरो भर्तृभ्राता, श्यालो भार्याभ्राता, एतयोः श्वशुर्यः । भ्रातृपुत्रः शत्रुपुत्रश्च भ्रातृव्यौ। रसदब्दो ध्वनदम्बुदः । इन्द्रः शक्रः । उभौ पर्जन्यौ । प्रभुवैश्ययोरर्यः । पुष्यः तुर्ययुगे च तिष्यः । अवसरे प्रस्तावे क्रमे च पर्यायः । प्रत्ययशब्दः अधीनादिषु सप्तसु । चिरद्वेष पश्चात्तापे चानुशयः । असाकल्येऽकात्स्यें । नागानां हस्तिनां यन्न शीघ्रं नापि मन्दं गमनं तत्र च स्थूलोषयः । शपथाचारकालसिद्धान्तसंवित्सु समयः व्यसनानि द्यूतादीनि । अशुभमिति दैवविशेषणम् , विपत् , विपत्तिः, एतत्रयं
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२२४
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[ ५. नानार्थवर्ग:
२६३५
२६३६
अत्ययोsतिक्रमे कृच्छ्रे दोषे दण्डेऽप्यथापदि
युद्धायत्योः संपरायः पूज्यस्तु श्वशुरेऽपि च पश्चादवस्थायि बलं समवायश्च संनयौ संघाते संनिवेशे च संस्त्यायः प्रणयास्त्वमी विस्रम्भयाच्ञाप्रेमाणो विरोधेऽपि समुच्छ्रयः विषयो यस्य यो ज्ञातस्तत्र शब्दादिकेष्वपि निर्यासेऽपि कषायोऽस्त्री सभायां च प्रतिश्रयः प्रायो भूम्यन्तगमने मन्युर्दैन्ये ऋतौ क्रुधि रहस्योपस्थयोर्गुह्यं सत्यं शपथतथ्ययोः वीर्य बले प्रभावे च द्रव्यं भव्ये गुणाश्रये धिष्ण्यं स्थाने गृहेभेनौ भाग्यं कर्म शुभाशुभम् कशेरुहेम्नोर्गाङ्गेयं विशल्या दन्तिकापि च वृषाकपायी श्रीगौर्योरभिख्या नामशोभयोः
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२६३७
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अनयसंज्ञम् । अतिक्रमे उल्लङ्घने कृच्छ्रे दोषे दण्डे, 'अपि ' शब्दानाशेऽपि अत्ययः आपदादित्रये संपरायः । श्वशुरे, 'अपिशब्दात्पूजार्हेऽपि पूज्यः । सेनायाः पृष्ठभागे तिष्ठति यत्सैन्यं तत्पश्चादवस्थायि बलम् । समवायः समूहः । उभौ संनयौ । संघाते संनिवेशे स्थान विशेषे च संस्त्यायः । अमी विस्रम्भादयस्त्रयः प्रणयाः । विरोधे, 'अपि शब्दादुन्नत्यामपि समुच्छ्रयः । यस्य मत्स्यादेर्यो जलादिर्शातो नित्यसेवितस्तस्य तत्र विषयः । शब्दादिकाः शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाश्च विषयाः । निर्यासः क्वाथरस:, 'अपि शब्दाद्विलेपनादौ कषायः । सभायां आश्रये च प्रतिश्रयः । भूम्नि बाहुल्ये । अन्तो नाशो गम्यतेऽनेन तत्र प्रायः । ऋतौ यज्ञे कोपे च मन्युः । रहस्यं, गोप्यं, उपस्थं च गुह्यम् । शपथः । पथ्यमृतं च सत्यम् । बलं सामर्थ्यम् । प्रभावस्तेजोविशेषः, तत्र वीर्यम् । भव्ये सत्त्वे गुणाश्रये पृथिव्यादौ द्रविणे च द्रव्यम् । स्थाने गृहे मे नक्षत्रे अग्नौ वहौ च धिष्ण्यम् । शुभाशुभमिति शुभमशुभं वा जन्मान्तरीयं यत्कर्म तद्भाग्यमित्युच्यते, ऐश्वर्येऽपि । कशेरुहेन्रोः गाङ्गेयम् । दन्तिका निकुम्भः । 'अपिशब्दादग्निशिखा गुडूच्यपि विशल्या । श्रीलक्ष्मीः गौरी व वृषाकपायी ।
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पतयः २६३५-२६६०] तृतीयं काण्डम्
२२५ आरम्भो निष्कृतिः शिक्षा पूजनं संप्रधारणम् २६४८ उपायः कर्म चेष्टा च चिकित्सा च नव क्रियाः २६४९ छाया सूर्यप्रिया कान्तिः प्रतिबिम्बमनातपः २६५० कश्या प्रकोष्ठे हादेः काञ्च्यां मध्येभबन्धने २६५१ कृत्या क्रियादेवतयोस्त्रिषु भेये धनादिभिः २६५२ जन्यं स्याजनवादेऽपि जघन्योऽन्त्येऽधमेऽपि च २६५३ गाहीनौ च वक्तव्यौ कल्यौ सन्जनिरामयौ २६५४ आत्मवाननपेतोऽर्थादथ्यौँ पुण्यं तु चार्वपि २६५५ रूप्यं प्रशस्तरूपेऽपि वदान्यो वल्गुवागपि २६५६ न्याय्येऽपि मध्यं सौम्यं तु सुन्दरे सोमदैवते २६५७ निवहावसरौ वारौ संस्तरौ प्रस्तराध्वरौ
२६५८ गुरू गीष्पतिपित्राद्यौ द्वापरौ युगसंशयौ । २६५९ प्रकारौ भेदसादृश्ये आकाराविङ्गिताकृती २६६० नामामिधा । शोभा कान्तिः तत्र अभिख्येति । आरम्भादयो नव शब्दाः क्रियाशब्दवाच्याः । सूर्यप्रियादिचतुष्के छायाशब्दः । हादेः राजगृहादेः प्रकोछेऽन्तहे । काञ्ची मेखला । मध्येभवन्धने वरत्रायां च कक्ष्या । क्रिया कर्म । देवतानामासन्नदैवतविशेषः धनादिमिर्भेये कृत्या । जनवादे निन्दितवादे। अपि'शब्दाघुद्धादी जन्यम् । अन्त्येऽधमे च जघन्यः । 'अपि'शब्दाच्छिश्ने । गाही. नयोः, चकाराद्वचनाहेऽपि वक्तव्यशब्दः । सजः सोपकरणः, निरामयो नीरोगः, उभौ कल्यौ । आत्मवान् । धीमान् अर्थाद्योऽनपेतः अपगतो न भवति स चार्थ्यः ! चारु सुन्दरम् , 'अपिशब्दात्सुकृतधर्मयोः पुण्यम् । प्रशस्तं रूपं यस्य तस्मिन् । 'अपि'शब्दाद्रजते रुप्यम् । वल्गुवाचि ‘अपि'शब्दादातर्यपि वदान्यः। न्याय्ये उचिते, 'अपि'शब्दादवलमेच मध्यम्। सुन्दरे सोमदैवते च सौम्यम्। निवहो वृन्दः, अवसरः प्रस्तावः, उभौ वारौ। प्रस्तरो दर्भमुष्टिदर्भशय्या वा। अध्वरः ऋतुरुभौ संस्तरौ । गीपतिः पिता, 'आद्य शब्दावेदशास्त्राध्यापकश्च गुरुः। युगसंशययोद्धापरः । मेदे सादेश्ये प्रकारः । इजितं चेष्टितम् । कृतिरप्याकारः।
म. को. स. १५
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भामरको
२२६
[५. नानार्यवर्ग: किंशारू सस्यशकेषु मरू धन्वधराधरौ
२६६१ अद्रयो द्रुमशैलार्काः स्त्रीस्तनाब्दी पयोधरौ २६६२ ध्वान्तारिदानवा वृत्रा बलिहस्तांशवः करा: २६६३ प्रदरा भङ्गनारीरुग्बाणा अस्राः कचा अपि २६६४ अजातशृङ्गो गौः कालेऽप्यश्मश्रुर्ना च तूबरौ २६६५ स्वर्णेऽपि राः परिकरः पर्यङ्कपरिवारयोः
२६६६ मुक्ताशुद्धौ च तारः स्याच्छारो वायौ स तु त्रि २६६७ कबुरेऽथ प्रतिज्ञाजिसंविदापत्सु संगर:
२६६८ वेदभेदे गुप्तवादे मन्त्रो मित्रो रवावपि
२६६९ मखेषुयूपखण्डेऽपि स्वरुर्गुह्येऽप्यवस्करः
२६७० आडम्बरस्तूर्यरवे गजेन्द्राणां च गर्जिते
२६७१ अभिहारोऽभियोगे च चौर्ये संनहनेऽपि च २६७२ स्याजङ्गमे परीवारः खड्गकोशे परिच्छदे
२६७३ सस्ये शूके च किंशारुः । धन्वा निर्जलदेशः । धराधरः पर्वतः । सोऽपि मरुस्थलीसंबन्धान्मरुः । दुमशैलार्केषु अद्रिशब्दो वर्तते । त्रियाः स्तनः कुचः, अब्दो मेघः, उभौ पयोधरौ। ध्वान्तमन्धकारः, मरिः शत्रुः, दानवो दनुजमेदः, एते वृत्राः। राज्ञा ग्राह्यभागो बलिः । अंशू रश्मिः । हस्तश्च करः । नारीरुक् स्त्रीणां रोगमेदखत्र, भावाणयोश्च प्रदरः। कचाः केशाः, 'मपि'शब्दात्कोणेऽप्यन्नः। न जाते शृङ्गे यस्य स एवंभूतो गौः। काले श्मश्रूत्थानसमयेऽपि यो ना पुरुषोऽश्मश्रुः श्मश्रुरहितस्तावुभावपि तबरौ। खणे, 'अपि'शब्दाद्वित्तमात्रे रा इत्येकाक्षरम्। पर्यकपरिवारयोः परिकरः । मुक्तादिसंशुद्धौ तारः । वायो शारः। स तु शारशब्दः कर्बुरे शबलवर्णे त्रिषु । आजियुद्धम् । संवित् क्रियाकारः। आपदि प्रतिज्ञायां च संगरः। वेदमेदे गुप्तवादे रहसि कर्तव्यावधारणे मन्त्रःरवो मिन्टः, 'अपि'शब्दात्सख्यौ मित्रं क्लीबम् । वज्रध्वनी, बाणे, यूपमण्डे, अपि'शब्दाहम्भोली च स्वरुः । गुह्ये उपस्थे, 'अपि'शब्दाद्येऽप्यवस्करः । र्यरवे वाधध्वनी, गजगार्जिते तूर्ये च आडम्बरः । अभियोगोऽभिप्रहणम् , चोरस्य कर्म चौर्यम्। सबहनं कवचादिग्रहणम्, एतेष्वभिहारः । बामे बामविशेषे सड़कोशे असिपिधायके चर्मादौ परिच्छदे उपकरणे परीवारः । विटपी वृक्षः ।
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पङ्कयः २६६१-२६८५] तृतीयं काण्डम् विष्टरो विटपी दर्भमुष्टिः पीठाद्यमासनम् द्वारि द्वाःस्थे प्रतीहारः प्रतीहार्यप्यनन्तरे विपुले नकुले विष्णो बर्ना पिङ्गले त्रिषु सारो बले स्थिरांशे च न्याय्ये क्लीबं वरे त्रिषु दुरोदरो द्यूतकारे पणे द्यूते दुरोदरम् महारण्ये दुर्गपये कान्तारं पुंनपुंसकम् मत्सरोऽन्यशुभद्वेषे तद्वत्कृपणयोस्त्रिषु देवाद्वृते वरः श्रेष्ठे त्रिषु क्लीबं मनाक्प्रिये वंशाङ्कुरे करीरोऽस्त्री तरुभेदे घटे च ना ना चमूजघने हस्तसूत्रे प्रतिसरोऽस्त्रियाम् यमानिलेन्द्रचन्द्रार्कविष्णुसिंहांशुवाजिषु शुकाहिकपिभेकेषु हरिर्ना कपिले त्रिषु
२२७
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२६७४
२६७५
२६७६
२६७७
२६७८
२६७९
२६८०
२६८१
२६८२
२६८३
२६८४
२६८५
दर्भमुष्टिः 1 पीठमाद्यं यस्य तदासनं च विष्टरः । 'आय' शब्दात् कृष्णाजिनादि । द्वारि, द्वाःस्थे द्वारपाले च प्रतीहारः । अनन्तरोके प्रतीहारे प्रतीहारीत्यपिशब्दः । विपुल इति नकुलविशेषणम् । तेन विशाले नकुले विष्णौ च बभ्रुः पुंसि । पिङ्गले त्रिषु । स्थिरांशो वृक्षादेः कठोरभागः । तत्र यथा - शिंशपासारः । न्याय्ये न्यायादनपेते वरे श्रेष्ठे बले व सारः । द्यूतकारे दुरोदरश्चतुरक्षरः । द्यूते दुरोदरं क्लीबम् । महारण्ये दुर्गपथे दुर्गमवर्त्मनि च कान्तारम् । पुं-नपुंसकम् । अन्यशुभ्रद्वेषे परसंपत्यसहने मत्सरः । पुंसि । तद्वति मात्सर्ययुके कृपणे च मत्सरोऽभिधेयलिङ्गकः । देवाद्देवसकाशाद्भुवेऽमीप्सिते वरः । पुंसि । श्रेष्ठे त्रिषु । मनाप्रिये ईषदिष्टे क्लीबम् । वंशस्य वेणोरङ्कुरे करीरः । पुं- नपुंसकयोः । तरुमेदे घटे च ना पुमान् । चमूजधने सेनापश्चाद्भागे प्रतिसरो ना पुंल्लिङ्गः । हस्तसूत्रे पुंनपुंसकयोः । यमादिषु चतुर्दशसु हरिशब्दो वर्तते । तत्र त्रयोदशसु ना पुमान् । कपिलवर्णे त्रिलिङ्गः । कर्परांशे सिकतासु
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२२८
अमरको
[५. नानार्थवर्गः
शर्करा कर्परांशेऽपि यात्रा स्याद्यापने गतौ
२६८६ इरा भूवाक्सुराप्सु स्यात्तन्द्री निद्राप्रमीलयोः २६८७ धात्री स्यादुपमातापि क्षितिरप्यामलक्यपि २६८८ क्षुद्रा व्यङ्गा नटी वेश्या सरघा कण्टकारिका २६८९ त्रिषु क्रूरेऽधमेऽल्पेऽपि क्षुद्रं मात्रा परिच्छदे २६९० अल्पे च परिमाणे सा मात्रं कार्येऽवधारणे २६९१ आलेख्याश्चर्ययोश्चित्रं कलत्रं श्रोणिभार्ययोः २६९२ योग्यभाजनयोः पात्रं पत्रं वाहनपक्षयोः
२६९३ निदेशग्रन्थयोः शास्त्रं शस्त्रमायुधलोहयोः
२६९४ स्थाज्जटांशुकयोर्नेत्रं क्षेत्रं पत्नीशरीरयोः
२६९५ मुखाग्रे कोडहलयोः पोत्रं गोत्रं तु नानि च २६९६ सत्रमाच्छादने यज्ञे सदादाने वनेऽपि च
२६९७ अजिरं विषये कायेऽप्यम्बरं व्योनि वाससि २६९८ 'अपि'शब्दात्खण्ड विकृत्यादौ शर्कराशब्दः । याप्यतेऽनेन यापनं तस्मिन् । गती च यात्रा। भ्वादिषु चतुर्यु इराशब्दः । श्रमादिना सर्वेन्द्रियापटुत्वं प्रमीला। निद्रा च तन्द्री । उपमाता क्षीरप्रदा। क्षितिः पृथ्वी । आमलकी वृक्षभेदः । अपिना जनन्यपि धात्री । व्यङ्गा हीनाङ्गी । नटी नर्तनशीला। सरधा मधुमक्षिका। कण्टकारिका बृहती। वेश्या चक्षद्रा । क्रूरादित्रये क्षुद्रम् । त्रिषु । परिच्छदादित्रये मात्रा । स्त्रियाम् । काावधारणयोः मात्रम् । क्लीबम् । आलेख्ये भित्त्यादौ नानावर्णलेखने आश्चर्ये च चित्रम् । श्रोणिः कटिः, भार्या स्त्री, द्वयोः कलत्रम् । योग्ये भाजने च पात्रम् । वाहनपक्षयोः पत्रम् । निदेश आज्ञा, ग्रन्थो व्याकरणादिः, तत्र शास्त्रम् । आयुधे लोहे च शस्त्रम् । जटा वृक्षमूलम् , अंशुकं बनभेदः, द्वयोः नेत्रम् । पन्यां देहे च क्षेत्रम् । क्रोडः सूकरः, तस्य हलस्य च मुखाग्रे पोत्रम् । नानि चकाराच्छैले कुलेऽपि च गोत्रम्। आच्छादनं वस्त्रम् । सदादानं नित्यत्यागः । यज्ञः वनम् , 'अपि'शब्दात्कैतवश्च सत्रशब्दवाच्यः । विषयेरूपादौ दाये देहे अपिना चत्वरे अजिरम् । व्योम्न्याकाशे, वाससि वस्त्रे चाग्न
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पतयः २६८६-२७११] तृतीयं काण्डम्
२२९
चक्रं राष्ट्रेऽप्यक्षरं तु मोक्षेऽपि क्षीरमप्सु च २६९९ स्वर्णेऽपि भूरिचन्द्रौ द्वौ द्वारमात्रेऽपि गोपुरम् २७०० गुहादम्भौ गहरे द्वे रहोऽन्तिकमुपहरे
२७०१ पुरोऽधिकमुपर्यनाण्यगारे नगरे पुरम्
२७०२ मन्दिरं चाथ राष्ट्रोऽस्त्री विषये स्यादुपद्रवे २७०३ दरोऽस्त्रियां भये श्वभ्रे वज्रोऽस्त्री हीरके पवौ
२७०४ तन्त्रं प्रधाने सिद्धान्ते सूत्रवाये परिच्छदे
२७०५ औशीरश्चामरे दण्डेऽप्यौशीरं शयनासने
२७०६ पुष्कर करिहस्ताग्रे वाद्यभाण्डमुखे जले
२७०७ व्योनि खड्गफले पद्मे तीर्थौषधिविशेषयोः २७०८ अन्तरमवकाशावधिपरिधानान्तर्धिभेदतादर्थे
२७०९ छिद्रात्मीयविनाबहिरवसरमध्येऽन्तरात्मनि च २७१० मुस्तेऽपि पिठरं राजकशेरुण्यपि नागरम्
२७११ रम्। राष्ट्र, 'अपि'शब्दात्सैन्यरथाङ्गयोश्चक्रम् । मोक्षे, 'अपि'शब्दाद्वर्णब्रह्मणोरप्यक्षरम्। अप्सु, चकारादुग्धे क्षीरम् । भूरिशब्दश्चन्द्रश्चैतौ द्वौ रान्ती खर्णेऽपि वर्तेते। न केवलं पूरे किंतु द्वारमात्रेऽपि गोपुरम् । गुहादम्भयोगबरम । रहो विजनम् । अन्तिक समीपम् । द्वे उपह्वरसंज्ञे। पुर इत्यादीनि त्रीणि अग्रशब्दवाच्यानि । पुरं मन्दिरं चेति द्वयमगारे गृहे नगरे च वर्तेते । विषये जनपदे उपद्रवे मरणादौ च राष्ट्रः । श्वश्रे गर्ने । भये च दरः । हीरके मणिभेदे । पवौ भिदुरे च वज्रः । प्रधाने सिद्धान्ते सूत्रवायपरिच्छदयोश्च तन्त्रशब्दः । चमरस्यायं चामरस्तत्र दण्डे च औशीरः । शयनासन औशीरम् । गजशुण्डादिष्वष्टसु पुष्करम्, वाद्यभाण्डं वादनीयपात्रं तन्मुखे, खगफले खामध्ये, पद्मे नलिने, तीर्थविशेषे, कुष्टाख्यौषधिविशेषे, जले, व्योनि, गजशुण्डाग्रे च पुष्करम् । अवकाशादिषु त्रयोदशसु अन्तरशब्दः । पिठरशब्दः । मुस्ते मुस्तके, 'अपि'शब्दान्मन्याने, राजकशेरु जलजतृणमूलं तत्र, 'अपि'शब्दारछुण्ठ्यामपि नागरम् । अन्धतमसे गाढान्धकारे घातुके हिंसे
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२३०
भमरको
शार्वरं त्वन्धतमसे घातुके मेद्यलिङ्गकम् गौरोऽरुणे सिते पीते व्रणकार्यप्यरुष्करः जठरः कठिनेऽपि स्यादधस्तादपि चाधरः अनाकुलेऽपि चैकाग्रो व्यग्रो व्यासक्त आकुले उपर्युदीच्य श्रेष्ठेष्वप्युत्तरः स्यादनुत्तरः एषां विपर्यये श्रेष्ठे दूरानात्मोत्तमाः पराः स्वादुप्रियौ तु मधुरौ क्रूरौ कठिननिर्दयौ उदारो दातृमहतोरितरस्त्वन्यनीचयोः मन्दस्वच्छन्दयोः स्वैरः शुभ्रमुद्दीप्तशुक्लयोः चूडा किरीटं केशाश्च संयता मौलयस्त्रयः द्रुमप्रभेदमातङ्गकाण्डपुष्पाणि पीलवः कृतान्तानेहसोः कालश्चतुर्थेऽपि युगे कलिः स्यात्कुरङ्गेऽपि कमलः प्रावारेऽपि च कम्बलः करोपहारयोः पुंसि बलि: प्राण्यङ्गजे स्त्रियाम्
[ ५. नानार्थवर्ग:
२७१२
२७१३
२७१४
२७१५
२७१६
२७१७
२७१८
२७१९
२७२०
२७२१
२७२२
२७२३
२७२४
२७२५
शार्वरशब्दः । अरुणे सिते पीते च गौरः । व्रणकारिणि भल्लातकफलेऽप्यरुष्करः । कठिने उदरेऽपि जठरः । अधस्तादनुवें ओष्ठेऽपि अधरः । अनाकुळे स्वस्थे, 'अपि' शब्दादेकतानेऽपि एकाग्रः । व्यासके द्विधा व्यापृते, आकुलेsनेकार्थन्यस्तचित्ते व्यग्रः, उपर्यादित्रये उत्तरः, एषामुपर्यादीनां विपर्यये वैपरीत्ये श्रेष्ठे च अनुत्तरः । दूरादयस्त्रयः पराः । दातरि महति च उदारः । खादुनि, प्रिये रसे च मधुरः । कठिने निर्दये च क्रूरः । नीचः पामरः, अन्यश्चेतरः । स्वच्छन्दः स्वाधीनः मन्दश्च स्वैरः । उद्दीप्ते शुक्ले च शुभ्रम् । चूडा शिखा, किरीटं मुकुटम् । संयता बद्धा ये च केशास्ते त्रयो मौलयः ।
,
मप्रमेदे मातङ्गे गजे, काण्डे बाणे, पुष्पे च पीलुशब्दः । अनेहाः समयः कृतान्तश्च कालः । चतुर्थे युगे कलहेऽपि कलिः । कुरते, 'अपिशब्दात्कमलेऽपि कमलः । प्राक्रियत इति प्रावारः, 'अपि' शब्दानागराजेऽपि कम्बलः । करो राजदेयभागः । उपहार उपचारः । तत्र बलिः पुंसि । प्राप्यहजे त्वक्सकोचे बलिः
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पञ्जयः २७१२-२७३०] पूवीर्य काण्डम् स्थौल्यसामर्थ्यसैन्येषु बलं ना काकसीरिणोः २७२६ वातूलः पुंसि वात्यायामपि वातासहे त्रिषु
२७२७ भेद्यलिङ्गः शठे व्यालः पुंसि श्वापदसर्पयोः
२७२८ मलोऽस्त्री पापविकिट्टान्यस्त्री शूलं रुगायुधम् २७२९ शङ्कावपि द्वयोः कीलः पालिः स्यश्यङ्कपतिषु २७३० कला शिल्पे कालभेदेऽप्याली सख्यावली अपि २७३१ अब्ध्यम्बुविकृतौ केला कालमर्यादयोरपि २७३२ बहुलाः कृत्तिका गावो बहुलोऽनौ शितौ त्रिषु २७३३ लीला विलासक्रिययोरुपला शर्करापि च
२७३४ शोणितेऽम्भसि कीलालं मूलमाये शिफाभयोः २७३५ जालं समूह आनायगवाक्षक्षारकेष्वपि
२७३६ शीलं स्वभावे सद्वत्ते सस्ये हेतुकृते फलम् २७३७ स्त्रियाम् । स्थौल्यादित्रये बलम् । काके, सीरिणि हलायुधे च बलो ना पुमान् । वात्सायां वातसमूहे, वातूलः पुंसि । वातविकारासहे प्राणिनि च त्रिषु । शठे व्यालो पाच्यलिङ्गः, श्वापदे स च व्यालः । विद विष्ठा । किटं खेदादिजन्यं पापं च मलम् । रुगायुधयोः शूलम् । शङ्को लोहादिमयकीलके, 'अपि'शब्दाज्वालायामपि कीलः । पुं-नपुंसक्योः । पालिः स्त्रीलिङ्गा । अतः पाली च । अश्रिर्धारा कोणो वा, अङ्ग उत्साः चिहं वा, पशिः श्रेणिः, एतेषु पालिः। स्त्रीलिङ्गा शिल्पे गीतवाद्यादिनैपुण्ये । कालमेदे त्रिंशत्काष्ठात्मके काले कला । सख्यां पकौ च आलिः । अन्ध्यम्बुविकृतौ चन्द्रोदयादिना जलधिजलवृद्धौ काले मर्यादायां च वेला कृत्तिकाः ताराः, बहुत्वात् बहुत्वम् । गावो धेनवो बहुलाख्याः । अमौ च बदुलः पुंसि । शितो कृष्णवर्णे च त्रिषु । विलासे क्रियायां च लीला । शर्करा सिकताः सण्डविकृतिर्वा उपला। अस्मनि पुंसि । शोणिते रके अम्मसि बळे व कीलालं नाम । आये शिफायां, वृक्षजटायां, मे नक्षत्रविशेषे मूलम् । समहः, मानायः शणसूत्रादिकृतो रजुसाः, गवाक्षो वातायनम्, क्षारकोऽस्फुटकटिका, एवेनु जालम् । खभावे प्रकृता सहत्ते सपरिते शीलम् ।
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२३२
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अमरको
छदिनैत्ररुजोः क्लीवं समूहे पटलं न ना अधः स्वरूपयोरस्त्री तलं स्याच्चामिषे पलम् और्वानलेsपि पातालं चैलं वस्त्रेऽधमे त्रिषु कुकूलं शङ्कुभिः कीर्णे श्वभ्रे ना तु तुषानले निर्णीते केवलमिति त्रिलिङ्गं त्वेककृत्स्नयोः पर्याप्तिक्षेमपुण्येषु कुशलं शिक्षिते त्रिषु प्रवालमङ्करेऽप्यस्त्री त्रिषु स्थूलं जडेऽपि च करालो दन्तुरे तुङ्गे चारौ दक्षे च पेशल: ' मूर्खेऽर्भकेऽपि नालः स्याल्लोलश्चलसतृष्णयोः Gaarat वनारण्यवह्नी जन्महरौ भवौ मन्त्री सहायः सचिवौ पतिशाखिनरा धवाः अवयः शैलमेषार्का आज्ञाह्नानाध्वरा हवाः भावः सत्तास्वभावाभिप्रायचेष्टात्मजन्मसु
[ ५. नानार्थवर्गः
२७३८
२७३९
२७४०
२७४१
२७४२
२७४३
२७४४
२७४५
२७४६
२७४७
२७४८
२७४९
२७५०
,
सस्ये वृक्षादीनां फले सस्यमित्युक्ते हेतुकृते हेतुना साधिते फलम् । छदिश्च नेत्ररुक् च छदिर्नेत्ररुजौ तयोः । छदिषि गृहाच्छादने । समूहे न नेत्युक्ते पटलं पटलेति । अधःखरूपयोः तलम् । आमिषे पलम् । और्वानले वाडवानौ । 'अपि ' शब्दाद्विवरेऽपि पातालम् । वस्त्रे चैलं क्लीबम् । अधमे त्रिषु । शत्रुभिः कीर्णे कीलैर्व्याप्ते श्वभ्रे गर्ते च कुकूलम् । तुषानौ कुकूलः । निणींते निश्चिते केवलम् । एकस्मिन् कृत्स्ने च केवलं त्रिषु । पर्याप्तिः सामर्थ्यम्, क्षेमं पुण्यं च कुशलम् । शिक्षिते कुशलं त्रिषु । अङ्कुरे, 'अपि' शब्दात्प्रवालेऽपि प्रवालम् + जडे, ‘अपि’शब्दात् पीवरेऽपि । स्थूलं त्रिषु । दन्तुर उन्नतर्दन्तयुक्तः, तुम उन्नतः, द्वयोः करालः । चारुदक्षयोः पेशलः । मूर्खेऽर्भके व बालः । सतृष्णः साकाङ्क्षः । चलश्च लोलः । वनं काननम्, अरण्यवह्निः वनाभिः, तत्र दवदावौ । जन्महरयोर्भवः । मन्त्री प्रधानः, सहायः सखा, एतयोरर्थे सचिवशब्दः । पतिर्भर्ता, शाखी वृक्ष मेदः, नरो मनुष्यः, एते धवाः । शैलमेषार्केषु अविः आज्ञाह्नानाध्वरेषु हवः । सत्तादिषट्के भावः । उत्पादे उत्पत्तौ, गर्भमोचने, प्रसूती, फळे, पुष्पे छ
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पतयः २७३८-२७६३] तृतीयं काण्डम्
२३३ स्यादुत्पादे फले पुष्पे प्रसवो गर्भमोचने
२७५१ अविश्वासेऽपह्नवेऽपि निकृतावपि निह्नवः
२७५२ उत्सेकामर्षयोरिच्छाप्रसरे मह उत्सवः
२७५३ अनुभावः प्रभावे च सतां च मतिनिश्चये
२७५४ स्याजन्महेतुः प्रभवः स्थानं चाधोपलब्धये २७५५ शूद्रायां विप्रतनये शस्त्रे पारशवो मतः
२७५६ ध्रुवो भभेदे क्लीबं तु निश्चिते शाश्वते त्रिषु
२७५७ स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं त्रिष्वात्मीये स्वोऽस्त्रियां धने २७५८ स्त्रीकटीवस्त्रबन्धेऽपि नीवी परिपणेऽपि च २७५९ शिवा गौरीफेरवयोर्द्वन्द्वं कलहयुग्मयोः
२७६० द्रव्यासुव्यवसायेषु सत्त्वमस्त्री तु जन्तुषु २७६१ क्लीबं नपुंसकं षण्ढे वाच्यलिङ्गमविक्रम
२७६२ द्वौ विशौ वैश्यमनुजौ द्वौ चराभिमरौ स्पशौ २७६३
प्रसवः ।अपह्नवे अपलापे, निकृतौ शाठ्ये, अविश्वासेऽपि निह्नवः। उत्सेक उद्गतिः, अमर्षः कोपः, इच्छायाः प्रसरो वेगः, महः क्षणः, आनन्दावसर इति यावत् । एतेषु उत्सवः। सतां मतानस्य निश्चये, प्रभावे च अनुभावः। आद्योपलब्धये प्रथमज्ञानाय यत्स्थानम् , जन्महतुश्च प्रभवः। शूद्रायां विप्राजाते तनये शस्त्रे परश्वधाख्ये पारशवः । भभेदे नक्षत्रविशेषे ध्रुवः। पुंसि । निश्चिते अवधारिते ध्रुवं क्लीयम् । शाश्वते नित्ये ध्रुवस्त्रिषु । ज्ञातौ सगोत्रे आत्मनि क्षेत्रज्ञे स्वः पुंसि । आत्मीये खसंबन्धिनि खं त्रिलिङ्गम् । धने खः पुं-नपुंसके । स्त्रीकट्यां यो वस्त्रस्य बन्धस्तत्र, परिपणे राजपुत्रादेर्बन्धके, अपिना वणिजां मूलधने नीवी । फेरवः शृगालः । गौरी च शिवा । कलयुग्मयोः द्वन्द्वम् । द्रव्ये वस्तुनि, असुषु प्राणेषु, व्यवसाये वीर्यातिशये च सत्त्वम् । जन्तुषु सत्त्वमस्त्रियाम् । षण्ढे तृतीयप्रकृतौ क्लीवमिति बकारान्तं नाम नपुंसकम् । अविक्रमेऽलसे क्लीबो वाच्यलिङ्गः ।बवयोः सावादस्यात्र पाठः । मनुजो मनुष्यः, वैश्यश्च विशः । चरो गूढपुरुषः ।
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ममरको
[५. नानार्थवर्गः द्वौ राशी पुञ्जमेषाद्यौ द्वौ वंशौ कुलमस्करी २७६४ रहःप्रकाशो वीकाशी निवेशो भृतिभोगयोः २७६५ कृतान्ते पुंसि कीनाशः क्षुद्रकर्षकयोखिषु २७६६ पदे लक्ष्ये निमित्तेऽपदेशः स्यात्कुशमप्सु च २७६७ दशावस्थानेकविधाप्याशा तृष्णापि चायता २७६८ वशा स्त्री करिणी च स्यादृग्ज्ञाने ज्ञातरि त्रिषु २७६९ स्यात्कर्कशः साहसिकः कठोरामहणावपि
२७७० प्रकाशोऽतिप्रसिद्धेऽपि शिशावज्ञे च बालिशः । २७७१ कोशोऽस्त्री कुङमले खगपिधानेऽथौं दिव्ययोः २७७२ सुरमत्स्यावनिमिषौ पुरुषावात्ममानवौ
२७७३ काकमत्स्यात्खगौ ध्वासने कक्षौ तु तृणवीरुधौ २७७४ अभीषुः प्रग्रहे रश्मौ प्रैषः प्रेषणमर्दने
२७७५ पक्षः सहायेऽप्युष्णीषः शिरोवेष्टकिरीटयोः २७७६ अभिमरो युद्धं तत्र स्पशः। पुञ्जमेषौ, 'आद्य'शब्दादृषभादिरपि राशिः।मस्करो वेणुः, कुलं च वंशः । रहो विजनः, प्रकाशश्च वीकाशः । मृतिवेतनम् , भोगश्व निर्वेशः । कृतान्ते यमे कीनाशः । क्षुद्रः कृपणः, कर्षक: कृषीवलः, एतयोः कीनाशस्त्रिषु । पदे व्याजे, लक्ष्ये निमित्ते च अपदेशः । अप्सु कुशम्। चकाराद्रामसुते, दर्भे च कुशः।जले क्लीबम् । अनेकविधबाल्यादिरूपा दशा। 'अपि'शब्दाद्वस्वान्तेऽपि दशाः । स्त्रियां बहुत्वे । आयता दीर्घा या तृष्णा स्पृहा सा, चकारादिगपि आशा । योषाहस्तिन्योर्वशा । ज्ञाने बुद्धो हक स्त्रियाम् । ज्ञातरि त्रिषु । साहसिको विवेकरहितः, अमस्णो दुःस्पर्शः, कठोरच कर्कशः । अतिप्रसिद्ध, 'अपि'शब्दादातपेऽपि प्रकाशः । अझे, शिशौ च बालिशः । कुमले मुकुले, खास्य पिधाने आच्छादने । अर्थोघे धनसमूहे । दिव्ये शपथमेदे कोशः । सुरमत्स्यावुभौ निमिषी स्तः । आत्मा क्षेत्रशः, मानवच पुरुषः, काकः, मत्स्यमत्ति खादति मत्स्यात् यो बकादिः खगः, स च ध्वाः । वीरुल्लता तृणं च कक्षः प्राहेऽश्वाविरज्वौ । रश्मी किरणे च अभीषुः । मर्दनं पीडा
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पङ्कयः २७६४-२७८८ ] तृतीयं काण्डम्
शुक्रले मूषिके श्रेष्ठे सुकृते वृषभे वृषः द्यूतेऽक्षे शारिफलकेऽप्याकर्षोऽथाक्षमिन्द्रिये ना यूताङ्गे कर्षचक्रे व्यवहारे कलिद्रुमे कर्वार्ता करीषाग्निः कर्षः कुल्याभिधायिनी पुंभावे तत्क्रियायां च पौरुषं विषमप्सु च उपादानेऽप्यामिषं स्यादपराधेऽपि किल्मिषम्
दृष्ट लोकधात्वंशे वत्सरे वर्षमस्त्रियाम् प्रेक्षा नृत्येक्षणं प्रज्ञा भिक्षा सेवार्थना भृतिः विट् शोभापि त्रिषु परे न्यक्षं कार्य निकृष्टयोः प्रत्यक्षेऽधिकृतेऽध्यक्षो रूक्षस्त्वप्रेम्ण्यचिक्कणे रविश्वेतच्छदो हंसो सूर्यवही विभावसू वत्सौ तर्णकवर्षो द्वौ सारङ्गाश्च दिवौकसः
२३५
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२७७७
२७७८
२७७९
२७८०
२७८१
२७८२
२७८३
२७८४
२७८५
२७८६
२७८७
२७८८
1
,
प्रेषणं च प्रैषः । सहाये, 'अपि शब्दान्मासार्धादी पक्षः । वस्त्रकृतं शिरसो वेष्टनं .शिरोवेष्टः, किरीटं मुकुटम् उभयोः उष्णीषः । शुकं लातीति शुकलो वृषणः तत्र, मूषिके उन्दुरे, सुकृते धर्मे, वृषभे श्रेष्ठे च वृषः । द्यूतादित्रये आकर्षः । -इन्द्रियेऽक्षं क्लीम् । द्यूताने पाशके, कर्षे मानभेदे, चक्रे, रथावयवे, कलिद्रुमे विभीतके व्यवहारे चाक्षः । पुंसि । वार्ता जीविका । करीषाभिः शुष्क गोमयानलः । तत्र कर्षुः पुंसि । कुल्या नदीमेदः । तत्र कर्षुः स्त्रियाम् । पुंभावे पुरुषस्य भावे तत्क्रियायां पुरुषस्य कर्मणि पौरुषम् । जले, चकाराद्गरलेऽपि विषम् । उपादाने उत्कोचेऽप्यामिषम् । अपराधे पापेऽपि किल्मिषम् । ऋष्टौ मेघवर्षणे, लोकं धत्ते लोकधातुर्जम्बुद्वीपस्तस्यांशे भारतादिखण्डे । वत्सरेऽब्दे वर्षशब्दः स्यात् । नृत्येक्षणं प्रज्ञा चेति द्वयं प्रेक्षासंज्ञम् । अर्थना यात्रा, मृतिर्वेतनम्, तत्र भिक्षा। शोभायाम्,‘अपि’शब्दात्कान्तौ वाचि रुचौ च त्विट् । परे वक्ष्यमाणास्त्रयः शब्दात्रिषु । कायें साकल्ये । निकृष्टेऽधमे । द्वयोर्न्यक्षम् । प्रत्यक्षे साक्षात्प्रमिते अधिकृते नियुक्तेऽध्यक्षः । अप्रेम्णि स्नेहाभावे, अचिक्कणे अमसृणे रूक्षः । श्वेतच्छदो विहगमेदः, रविश्व हंसः । सूर्ये वहौ विभावसुः । तर्णको गोवत्सः । वर्षेश्व
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२३६
भरकोषे
[५. नागार्थवर्ग: शृङ्गारादौ विषे वीर्ये गुणे रागे द्रवे रसः २७८९ पुंस्युत्तंसावतंसौ द्वौ कर्णपूरे च शेखरे
२७९० देवभेदेऽनले रश्मौ वसू रत्ने धने वसु
२७९१ विष्णौ च वेधाः स्त्री त्वाशीहिताशंसाहिदंष्ट्रयोः २७९२ लालसे प्रार्थनौत्सुक्ये हिंसा चौर्यादिकर्म च प्रसूरश्वापि भूद्यावौ रोदस्यौ रोदसी च ते २७९४ ज्वालाभासौं न पुंस्यर्चियोतिर्भद्योतदृष्टिषु २७९५ पापापराधयोरागः खगबाल्यादिनोर्वयः
२७९६ तेजःपुरीषयोर्व! महस्तूत्सवतेजसोः ।
२७९७ रजो गुणे च स्त्रीपुष्पे राहो ध्वान्ते गुणे तमः २७९८ छन्दः पद्येऽभिलाषे च तपः कृच्छादिकर्म च २७९९ सहो बलं सहा मार्गो नभः खं श्रावणो नभाः २८०० वत्सः । सारङ्गाथातकाः । देवा अपि दिवौकसः । शृङ्गारादौ शृङ्गारवीरकरुणादौ नवविधे। विषे गरले । वीर्ये तेजसि । गुणे स्वाद्वम्लादौ । रागे द्रवे सरशब्दः स्यात् । उत्तंसश्च वतंसश्चेति द्वयं कर्णपूरे कर्णाभरणविशेषे, शेखरे शिरोभूषणे च वर्तते । देवभेदेऽनले वह्नौ रश्मी वसुः रत्ने धने वसु । विष्णौ चकाराद्विरिञ्चोऽपि वेधाः । हितस्याशंसा हिताशंसा, अहेः सर्पस्य दंष्ट्रा च तयोराशीरिति । स्त्रियाम् । प्रार्थना याच्या, औत्सुक्यमुद्युक्तता, उभे लालसे । चौर्ये चशब्दावधेऽपि हिंसा । आदिना वृत्तिनाशादिकर्म, अश्वा वडवा । जनन्यामपि प्रसूः । रोदसी रोदस्यौ इति सान्तद्विवचनान्ते स्यातामेकयोक्त्या भूमिद्यावों द्वे अप्युच्यते । ज्वालायां भासि दीप्तौ च अर्चिः। भं नक्षत्रम्, द्योतः प्रकाशः, दृष्टिः कनीनिकामध्यभागः, एतेषु ज्योतिः आगः । पापेऽपराधे च खगः । बाल्यमादिना यौवनादि वयः पुरीष गूथम् । तेजश्च वर्चः । उत्सवे तेजसि च महः । स्त्रीणां पुष्पे आर्तवे गुणे च रजः । राह्वादिप्रये च तमः । पद्ये गायत्र्यादिवृत्ते । अभिलाषे इच्छायां छन्दः । कृच्छं सांतपनादिव्रतम् । आदिना वान्द्रायणादि तपः ।
कृच्छ्रे समांतपनादिवतम् । आदिना चान्द्रायणादि तपः बले सहः । क्लोबम् मार्गो। मार्गशीर्षः । तत्र सहः पुंसि । खमा
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पतयः २७८९-२८११] तृतीयं काण्डम्
२३७ ओकः सद्माश्रयश्चौकाः पयः क्षीरं पयोऽम्बु च ओजो दीप्तौ वले स्रोत इन्द्रिये निम्नगारये २८०२ तेजः प्रभावे दीप्तौ च बले शुक्रेऽप्यतस्त्रिषु २८०३ विद्वान्विदंश्च बीभत्सो हिंस्रोऽप्यतिशये त्वमी
२८०४ वृद्धप्रशस्ययोायान्कनीयांस्तु युवाल्पयोः २८०५ वरीयांस्तूरुवरयोः साधीयान्साधुबाढयोः २८०६ दलेऽपि बहं निर्बन्धोपरागार्कादयो ग्रहाः
२८०७ द्वार्यापीडे काथरसे नि!हो नागदन्तके
२८०८ तुलासूत्रेऽश्वादिरश्मौ प्रग्राहः प्रग्रहोऽपि च
२८०९ पत्नीपरिजनादानमूलशापाः परिग्रहाः
२८१० दारेषु च गृहाः श्रोण्यामप्यारोहो वरस्त्रियाः २८११ काशः । तत्र नभः क्लीबे । श्रावणे पुंसि । सद्मनि गृहे ओकः । आश्रय आश्रयमानं ओकाः । क्षीरे पयसि अम्बुनि च पयः । दीप्तौ बले ओजः । इन्द्रियनदीवेगयोः स्त्रोतः । प्रभवादिचतुष्के तेजः । अतः परं सान्तसमाप्तिपर्यन्ता वाच्यलिङ्गाः । विदन् ज्ञाता । चकारादात्मज्ञोऽपि विद्वान् । हिंस्र क्रूरे । 'अपि'शब्दाद्रसमेदेऽपि बीभत्सः। अमी वक्ष्यमाणा ज्यायआदयः साधीयःपर्यन्ताः सान्ता वृद्धादीनां बाढपर्यन्तानां अतिशये ज्ञेयाः । अतिशयेन वृद्धे प्रशस्ये स्तुत्ये च ज्यायान् । अतिशयितयोर्युवाल्पयोः कनीयान् । उरुर्महान् वरः श्रेष्ठस्तयोरतिशयितयोर्वरीयान् । अतिशयेन साधुः साधीयान् । अतिशयितं बाढं साधीयः । दले पत्रे, 'अपि'शब्दापिछेऽपि वहम् । निर्बन्ध आग्रहविशेषः, उपरागश्चन्द्रार्कप्रहणम् । तत्र ग्रहः । द्वारि द्वारे, आपीडे शेखरे, क्वाथरसे कथितद्रव्यरसे, नागदन्तके गृहादिभित्तिस्थकीलद्वये निर्ग्रहः । हस्ते यद्गृहीत्वा तुलया द्रव्यमुन्मीयते तत्तुलासूत्रं तत्र । अश्ववृषादिरश्मौ च प्रग्राहप्रग्रहौ । परिजनः परिवारः, आदानं खीकारः । तत्र पन्नीमूलशापेषु च परिग्रहः । दारेषु पन्यां, चकारात्सानि गृहाः पुंभूग्नि । या वरस्त्री उत्तमा स्त्री तस्याः श्रोण्यां कय्यामारोहः। 'अपि'शब्दादवरोहे गजारोहे च । वृन्दे, 'अपि'शब्दावल
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२३८
अमरकोषे
[ ५. नानार्थवर्गः
२८१२
२८१३
२८१४
व्यूहो वृन्देऽप्यहिर्वृत्रेऽप्यग्नीन्द्र को स्तमोपहाः परिच्छदे नृपाऽर्थे परिबर्होऽव्ययाः परे आङीषदर्थेऽभिव्याप्तौ सीमार्थे धातुयोगजे आ प्रगृह्यः स्मृतौ वाक्येऽप्यास्तु स्यात्कोपपीडयोः २८१५ पापकुत्सेषदर्थे कु धिङ निर्भर्त्सननिन्दयोः चान्वाचयसमाहारेतरेतरसमुच्चये
२८१६
स्वस्त्याशीः क्षेमपुण्यादौ प्रकर्षे लङ्घनेऽप्यति स्वित्प्रश्ने च वितर्के च तु स्याद्भेदेऽवधारणे सकृत्सहैकवारे चाप्याराद्दरसमीपयोः प्रतीच्यां चरमे पश्चादुताप्यर्थविकल्पयोः पुनः सहार्थयोः शश्वत्साक्षात्प्रत्यक्षतुल्ययोः खेदानुकम्पासंतोषविस्मयामन्त्रणे बत
२८१७
२८१८
२८१९
२८२०
२८२१
२८२२
२८२३
विन्यासेऽपि व्यूहः । वृत्रासुरे सर्वेऽप्यहिः । वह्निचन्द्रसूर्यास्तमोपहाः । नृपाहैं ये राजयोग्यद्रव्ये सितच्छत्रादौ परिबर्हः । परेऽत ऊर्ध्व वक्ष्यमाणा आादिशब्दा अव्यया उच्यन्ते । तेषामत्र वर्गे उपन्यासस्तु पूर्ववन्नानार्थत्वात् । आङित्यव्ययं ईषदर्थे अभिव्याप्तौ सीमार्थे धातुयोगजे क्रियायोगजेऽर्थे यः प्रगृत्यसंज्ञकः आ इति निपातः स स्मृतौ स्मरणे वाक्ये वाक्यपूरणे च वर्तते । सविसर्गस्तु आ इति निपातः, स पीडायां कोपे च वर्तते । पापे कुत्सायां ईषदर्थे कुशब्दः । अपकारशब्देर्भयोत्पादनं निर्भर्त्सनम् । तत्र निन्दायां च धिक् । अन्यतरस्यानुषङ्गिकत्वेऽन्वाचयः, समाहारः समूहः, मिलितानामन्वय इतरेतरयोगः, परस्परनिरपेक्षस्यानेकस्यैकस्मिन्नन्वयः, समुच्चयः, एतेषु चशब्दः । आशीराशीर्वादः, तत्र क्षेमे निरुपद्रवे, पुण्ये, आदिना मङ्गलेऽपि स्वस्ति । प्रकर्षे, लङ्घने, अपिना मृशेऽप्यति । प्रश्नवितर्कयोः स्वित् । मेदावधारणयोः तुशब्दः । सहार्थे एकवारे च सकृत् । दूरे समीपे तु आरात् । प्रतीच्यां पश्चिमदिशि । चरमेऽन्त्ये च पश्चात् । अपिशब्दस्यार्थः समुष्ययस्तत्र विकल्पे च उतशब्दः । पुनरर्थे पौनःपुन्ये सहार्थे च शश्वत् । प्रत्यक्षे तुल्ये च साक्षात् ।
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पतयः २८१२-२८३६] तृतीयं काण्डम् हन्त हर्षेऽनुकम्पायां वाक्यारम्भविषादयोः प्रति प्रतिनिधौ वीप्सालक्षणादौ प्रयोगतः इति हेतुप्रकरणप्रकाशादिसमाप्तिषु प्राच्यां पुरस्तात्प्रथमे पुरार्थेऽग्रत इत्यपि यावत्तावच्च साकल्येऽवधी मानेऽवधारणे मङ्गलानन्तरारम्भप्रश्रकार्येष्वथो अथ वृथा निरर्थकाविध्यो नाऽनेकोभयार्थयोः नु पृच्छायां विकल्पे च पश्चात्सादृश्ययोरनु प्रभावधारणानुज्ञानुनयामन्त्रणे ननु गहासमुच्चयप्रश्नशङ्कासंभावनास्वपि उपमायां विकल्पे वा सामि त्वर्धे जुगुप्सिते अमा सह समीपे च कं वारिणि च मूर्धनि इवेत्थमर्थयोरेवं नूनं तर्केऽर्थनिश्चये
२८२४ २८२५ २८२६ २८२७ २८२८ २८२९ २८३० २८३१ २८३२ २८३३ २८३४ २८३५ २८३६
खेदाद्यर्थपश्चके बत । हर्षादिचतुष्के हन्तशब्दः । यो मुख्येन सदृशः प्रतिनिधिखत्र वीप्सायां लक्षणायां च, आदिना इत्यंभूताख्यानादौ, प्रयोगत इति शिष्टप्रयोगानुसारेण प्रतिशब्दस्य प्रक्षेपः । हेत्वर्थे प्रकरणे प्रकाशे, 'आदि'शब्दादेवमर्थे समाप्ताववसाने इतिशब्दः । प्राच्याद्यर्थचतुष्के पुरस्तात् । अपिशब्दः प्राच्या. द्यर्थे स्यात् । साकल्ये अवधौ माने परिमाणे अवधारणे निश्चये यावत्तावच्छब्दः । अथो अथ इमो शब्दो मालामङ्गले । अनन्तरे आरम्मे प्रश्ने कार्ये अथो अथ इति शब्दौ । निरर्थक अविधौ विधिहीने वृथाशन्दः । अनेकार्थे उभयार्थे च नानाशब्दः । पृच्छायां विकल्पे नुशब्दः । पश्चादर्थे सादृश्ये अनुशब्दः । प्रश्ने अवधारणे अनुज्ञायां अनुनये सान्त्वने आमत्रणे ननुशब्दः । गोंयां समुच्चये प्रश्ने शङ्कायां संभावनायां अपिशब्दः । उपमायां विकल्पे वाशब्दः । अर्धे जुगु. प्सिते च सामि। सहार्थे समीपे अमा। वारिणि मूर्धनि च कम । इवार्थे इत्थमर्षे च एवंशब्दः । तर्के अर्थनिश्रये च नूनम् । तूष्णीमर्थे मौने मुखे च
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अमरकोषे
[६. अव्ययवर्गः
तूष्णीमर्थे सुखे जोषं किं पृच्छायां जुगुप्सने २८३७ नाम प्राकाश्यसंभाव्यत्रोधोपगमकुत्सने
२८३८ अलं भूषणपर्याप्तिशक्तिवारणवाचकम्
२८३९ हुँ वितर्के परिप्रश्ने समयान्तिकमध्ययोः
२८४० पुनरप्रथमे भेदे निर्निश्चयनिषेधयोः
२८४१ स्यात्प्रबन्धे चिरातीते निकटागामिके पुरा २८४२ ऊर!री चोरी च विस्तारेऽङ्गीकृतौ त्रयम् २८४३ स्वर्गे परे च लोके स्वर्वार्तासंभाव्ययोः किल २८४४ निषेधवाक्यालंकारजिज्ञासानुनये खलु
२८४५ समीपोभयतः शीघसाकल्याभिमुखेऽभितः २८४६ नामप्राकाश्ययोः प्रादुर्मिथोऽन्योन्यं रहस्यपि
२८४७ तिरोऽन्तौ तिर्यगर्थे हा विषादशुगर्तिषु
२८४८ अहहेत्यद्भुते खेदे हि हेताववधारणे
२८४९ ६. अव्ययवर्गः चिरायचिररात्रायचिरस्याद्याश्चिरार्थकाः
२८५० मुहुः पुनःपुनः शश्वदभीक्ष्णमसकृत्समाः
२८५१ जोषम् । पृच्छायां जुगुप्सने किम् । प्राकाश्यादिपञ्चके नामशब्दः । भूषणमलंकारः पर्याप्तिः परिपूर्णता, शक्तिः सामर्थ्य, वारणं च, एतदर्थेऽलंशब्दः क्रमेण । वितर्कपरिप्रश्नयोहंकारः । समीपमध्ययोः समया। प्रथमाभावे भेदे च पुनः । निश्चये निषेधे च निः । प्रबन्धे चिरातीते निकटे आगामिके पुराशब्दः । विस्तारेऽङ्गीकृतौ च ऊररी, ऊरी, उररी, इति ३ । खर्गे परलोके च स्वः। वार्तायां संभाव्ये संभावनीये किल । निषेधे वाक्यालंकारे जिज्ञासायां अनु. नये खलुशब्दः । समीपादिपञ्चकेऽभितः । नाम्नि प्राकाश्ये च प्रादुः । अन्योन्यार्थे रहसि च मिथः। अन्तधाने तिर्यगर्थे च तिरः। विषादाद्यर्थत्रयेहाकारः। अद्भुते खेदे च अहहशब्दः । हेताववधारणे च हिशब्दः ॥
२८५०-२८९५.चिराय,चिररात्राय, चिरस्य, 'आध'शब्दात् चिरेण, चिरात्, चिरम्, इति ६ चिरार्थकाः।-मुहुः, पुनःपुनः, शश्वत्, अभीक्ष्णम् , असकृत् ,
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पतयः २८३७-२८६४] तृतीय काण्डम् वाग्झटित्यञ्जरााहाय द्राङ् मङ्ख सपदि द्रुते २८५२ बलवत्सुष्ठ किमुत स्वत्यतीव च निर्भरे
२८५३ पृथग्विनान्तरेणर्ते हिरु नाना च वर्जने २८५४ यत्तद्यतस्ततो हेतावसाकल्ये तु चिच्चन
२८५५ कदाचिजातु सार्ध तु साकं सत्रा समं सह २८५६ आनुकूल्यार्थकं प्राध्वं व्यर्थके तु वृथा मुधा २८५७ आहो उताहो किमुत विकल्पे किं किमुत च २८५८ तु हि च म ह वै पादपूरणे पूजने स्वति २८५९ दिवाहीत्यथ दोषा च नक्तं च रजनावपि २८६० तिर्यगर्थे साचि तिरोऽप्यथ संबोधनार्थकाः २८६१ स्युः प्याट् पाडङ्ग हे है भोः समया निकषा हिरुक् २८६२ अतर्किते तु सहसा स्यात्पुरः पुरतोऽप्रतः २८६३ स्वाहा देवहविदोने औषट् वौषट् वषट् स्वधा २८६४ इति ५ समाः।-साक् , झटिति, अलसा, अहाय, द्राक् , मल, सपदि, इति . शीघ्र।-बलवत् , सुधु, किमुत, सु, अति, अवीव, इति ६ अतिशये।-पृथक् , विना, अन्तरेण, ऋते, हिरुक् , नाना, इति ६ वर्जने। यत् , तत् , यंतः, ततः, इति । हेतौ-चित्, चन, इति २ असाकस्ये।-कदाचित् , जातु, इति २ कस्मिंश्चिकाले।-साम, साकम् , सत्रा, समम्, सह, इति ५ सहेत्यर्थे । प्राध्वमित्येकमानुकूल्ये।-qथा, मुधा, इति २ व्यर्थके। श्राहो, उताहो, किमुत, किं, किम, उत, इति ६ विकल्पे।-तु, हि, च, स्म, ह, बै, इति ६ श्लोकचरणपूर्णतायाम् ।-सु, मति, इति २ पूजने । अह्रीत्यर्थे दिवाशब्दः । -दोषा, नकम्, इति २ रात्रावित्यर्थे ॥-साचि, तिरः, इति २ तिर्यगर्थे। प्याद, पाद, अझ, के, है, भोः, इति ६ संबोधनार्थकाः।-समया, निकषा, हिरुक्, इति ३ सामीप्ये । अतर्कितार्थे सहसेति १।-पुरः, पुरतः, मप्रतः, इति ३ अग्रे इत्यर्थे । खाहा, श्रौषट् , वौषट् , वषद, खधा, इति ५ देवेभ्यो
म. को. स. १६
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२४२
अमरकोपे
[५. अव्ययवर्गः
किंचिदीषन्मनागल्पे प्रेत्यामुत्र भवान्तरे
२८६५ व वा यथा तथेवैवं साम्येऽहो ही च विस्मये २८६६ मौने तु तूष्णी तूष्णीकां सद्यः सपदि तत्क्षणे २८६७ दिल्या समुपजोषं चेत्यानन्देऽथान्तरेऽन्तरा २८६८ अन्तरेण च मध्ये स्युः प्रसह्य तु हठार्थकम् २८६९ युक्ते द्वे सांप्रतं स्थानेऽभीक्ष्णं शश्वदनारते २८७० अभावे नह्य नो नापि मास्म मालं च वारणे २८७१ पक्षान्तरे चेद्यदि च तत्त्वे त्वद्धाञ्जसा द्वयम्
२८७२ प्राकाश्ये प्रादुराविः स्यादोमेवं परमं मते
२८७३ समन्ततस्तु परितः सर्वतो विष्वगित्यपि
२८७४ अकामानुमतौ काममसूयोपगमेऽस्तु च
२८७५ ननु च स्याद्विरोधोको कञ्चित्कामप्रवेदने २८७६ निःषमं दुःषमं गर्थे यथास्वं तु यथायथम् हवि नविशेषे ॥–किंचित् , ईषत् , मनाक्, इति ३ अल्पे ॥-प्रेय, अमुत्र, इति २ जन्मान्तरे।-व, वा, यथा, तथा, इव, एवं, इति ६ साम्ये।-अहो ही, इति २ विस्मये। तूष्णीम् , तूष्णीकाम्, इति २ मौने ।-सद्यः, सपदि, इति २ तत्काले ।-दिष्ट्या, समुपजोषम्, इति २ आनन्दे । अन्तरे, अन्तरा, अन्तरेण, इति ३ मध्ये। प्रसोत्येकं हठार्थकम् ॥-सांप्रतम् , स्थाने, इति २ युके ॥ अभीक्ष्णम् , शश्वत् , इति २ अजने ॥ नहि, अ, नो, न, इति ४ अभावे ॥-माल, मा, अलम् , इति ३ वारणे ॥-चेत्, यदि, इति २ पक्षान्तरे ॥-अद्धा, अजसा, इति २ तत्त्वार्थे ॥-प्रादुः, आविः, इति २ स्पष्टत्वे॥ओम् , एवम्, परमम् , इति ३ अङ्गीकारे॥-समन्ततः, परितः, सर्वतः, विष्वक, इति ४ सर्वत इत्यर्थे । अकामानुमतौ अनिच्छयानुमतौ काममिति । अस्यापूर्वकखीकारे मस्त्विति । चकारात्काममित्यपि । नन्विति विरोधोको । कचिदिति काभप्रवेदने इष्टपरिप्रश्ने ॥ निःषमम् , दुःषमम् , इति २ निन्छ। यथाखम् , यथायथम् , इति २ यथायोग्ये ॥-मृषा.मिथ्या. इति
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२४३
पतयः २८६५-२८९०] तृतीयं काण्डम् मृषा मिथ्या च वितथे यथार्थ तु यथातथम् ૨૮૭૮ स्युरेवं तु पुनर्वै वेत्यवधारणवाचकाः
२८७९ प्रागतीतार्थकं नूनमवश्यं निश्चये द्वयम्
२८८० संवद्वर्षेऽवरे त्वर्वागामेवं स्वयमात्मना
२८८१ अल्पे नीचैर्महत्युच्चैः प्रायो भूम्यद्भुते शनैः २८८२ सना नित्ये बहिर्वाह्ये स्मातीतेऽस्तमदर्शने २८८३ अस्ति सत्त्वे रुषोक्तावु ऊं प्रश्रेऽनुनये त्वयि २८८४ हुँ तर्के स्यादुषा रात्रेरवसाने नमो नतौ
२८८५ पुनरर्थेऽङ्ग निन्दायां दुष्टु सुष्टु प्रशंसने
२८८६ सायं साये प्रगे प्रातः प्रभाते निकषान्तिके ૨૮૮૭ परुत्परायैषमोऽब्दे पूर्वे पूर्वतरे यति
૨૮૮૮ अद्यात्रालयथ पूर्वेऽहीत्यादौ पूर्वात्तरापरात्
२८८९ तथाऽधरान्यान्यतरेतरात्पूर्वेधुरादयः
२८९० २ वितथे ॥ यथार्थम् , यथातथम्, इति २ सत्ये ॥-एवम् , तु, पुनः, वै, वा, इति ५ निश्चयार्थकाः । प्रागिति अतीतार्थकम् । नूनम् , अवश्यम् , इति २ निश्चिते । संवदिति वर्षे । अर्वागिति अवरे ॥-आम्, एवम्, इति २ अङ्गीकारे । स्वयमिति आत्मनेत्यर्थे । नीचैरित्यल्पे । उच्चैरिति महति । प्राय इति भूनि । शनैरिति अद्वते । सनेति निये । बहिरिति बाह्ये । स्मेत्यतीते । अस्तमिति दर्शनाभावे । अस्तीति सत्त्वे । कोपेनोको उ। ऊमिति प्रश्ने । अयीत्यनुनये। हुमिति तर्के । उपेति रात्रेरवसाने । नमः प्रणाम। अनेति पुनरर्थे । दुष्टु निन्दायाम् । सुष्टु प्रशंसने। सायमिति साये।-प्रगे, प्रातः, इति २ प्रभाते। निकषेति समीपार्थे । पूर्वेऽब्दे गते वर्षे परुदिति । पूर्वतरे गतवर्षात्पूर्ववर्षे परारीति। यति वर्तमानेऽन्दे ऐषम इति । अत्राहि अस्मिन्नहनीत्यर्थे अघशब्दः । अथ पूर्वेऽहोत्यादिशब्देन उत्तरेऽहीत्यादिषट्कस्य ग्रहणम् । पूर्वस्सिनहनीत्यर्थे पूर्वेधुः । उत्तरस्मिनहनि उत्तरेधुः। अपरमिनहनि अपरेघुः । अधरस्मिनहनि अघरेधुः । अन्यस्मिनहनि अन्येधुः ।
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२८९१
२८९६
२४.४
अमरकोषे [७. लिङ्गादिसंप्रहवर्गः उभयधुश्चोभयेयुः परे त्वहि परेद्यवि ह्यो गतेऽनागतेऽहि श्वः परश्वस्तु परेऽहनि २८९२ तदा तदानीं युगपदेकदा सर्वदा सदा
२८९३ एतर्हि संप्रतीदानीमधुना सांप्रतं तथा
२८९४ दिग्देशकाले पूर्वादौ प्रागुदक्प्रत्यगादयः
२८९५ ___७. लिङ्गादिसंग्रहवर्गः
(अथ स्त्रीलिङ्गसङ्ग्रहः) सलिङ्गशास्त्रैः सन्नादिकृत्तद्धितसमासः अनुक्तैः संग्रहे लिङ्गं संकीर्णवदिहोन्नयेत्
२८९७ लिङ्गशेषविधिापी विशेषैर्यद्यबाधितः
२८९८ स्त्रियामीदूद्विरामैकाच्सयोनिप्राणिनाम च २८९९ अन्यतरस्मिन्नहनि अन्यतरेधुः । इतरस्मिनहनि इतरेधुः ॥-उभयद्युः, उभयेधुः, इति २ उभयस्मिन्नहनीत्यर्थे । परेघवीत्येकं परेऽहनि । ह्य इत्येक गतेऽहनि । श्व इत्येकमनागते आगामिन्यहनि। ततः परेऽहनि परश्व इति ।तदा, तदानीम्, इति २ तस्मिन्काल.इत्यर्थे । युगपदित्येकदैकस्मिन्काले ॥
-सर्वदा, सदा, इति २ सर्वस्मिन्काले ॥-एतर्हि, संप्रति, इदानीम् , अधुना, सांप्रतम् , इति ५ अस्मिन् काले । तथेति समुच्चये। पूर्वादौ दिग्देशकाले । प्रत्यगादय इत्यादिशब्देन त्ववागित्यादिग्रहः ॥
२८९६-२९८७ सलिङ्गशास्त्रैः पाणिन्यायुक्तलिशानुशासनसहितैः सन्नादिप्रत्ययजैश्चिकीर्षादिशब्दैः, कृज्जैः श्वपाकादिभिः, तद्धितप्रत्ययजैः अणायन्तैः, समासजैरदन्तोत्तरपदो द्विगुरित्यादिनोक्तैः, बाहुल्येन पूर्वमनुकैः शब्दैरमं सङ्ग्रहः क्रियते। इहास्मिन्सङ्गहवर्गे लिामुलकेदूहेत् । कथं ? संकीर्णनत् । यथा संकीर्णवर्गे प्रकृत्यादिभिरुन्नेयं तथात्राप्युधयेत् । सन्मादिकृत्तद्धितसमासजविषयं पूर्वोकशब्दलिङ्गादन्यलिङ्गं लिङ्गशेषः तस्य विधिः व्यापी खविषयस्य व्यापको भवति । यदि प्रागुक्कैरिहोक्तैश्च विशेषविधिभिः न बाधितः स्यात् ताव व्यापी भवेदित्यर्थः । नियामित्यधिकारोऽयं मसीशब्दपर्यन्तं ज्ञेयः । ईदूतौ ईकारोकारौ विरामौ अवसानस्थौ यस्य तदीदू: द्विरामं,तच तदेकाच ईदूद्विरामैकाच् , ईदन्तमूदन्तं वा यदेकखरं शब्दरूपं तत्स्त्रि
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पतयः २८९१-२९०८] तृतीयं काण्डम्
२४५ नाम विद्युन्निशावल्लीवीणादिग्भूनदीहियाम् २९०० अदन्तैर्द्विगुरेकार्थो न स पात्रयुगादिभिः
२९०१ तल्वृन्दे येनिकट्यत्रा वैरमैथुनिकादिवुन्
२९०२ स्त्रीभावादावनिक्तिण्ण्वुल्णच्ण्वुच्क्यव्युजिञडिशाः २९०३ उणादिषु निरूरीश्च डन्याबूडन्तं चलं स्थिरम् २९०४ तत्क्रीडायां प्रहरणं चेन्मौष्टा पालवा ण दिक् २९०५ घजो अः सा क्रियाऽस्यां चेदाण्डपाता हि फाल्गुनी २९०६ श्यनंपाता च मृगया तैलंपाता स्वघेति दिक २९०७ स्त्री स्यात्काचिन्मृणाल्यादिविवक्षापचये यदि याम् । योनिर्भगं तत्सहिताना प्राणिना नाम स्त्रियाम् । विद्युत्, निशा, वल्ली वीणा, दिक् . भू , नदी, ह्री, इत्यष्टानां यन्नाम तत्स्त्रियाम् । अदन्तैर्मूलादिशब्दैर्य एकार्थः समाहारार्थो द्विगुसमासः स स्त्रियां स्यात् । पात्रयुगाधुत्तरपदैः अदन्तरेकार्थो द्विगुः स्त्रियां न स्यात् । तलप्रत्ययः स्त्रियाम् , स तु भावाद्यर्थे विहितः । वृन्दे समूहे य इनि कटी अत्र एते चत्वारः प्रत्ययाः स्त्रियाम् । मिथुनस्य कर्म मैथुनिका । पैर मैथुनादौ च यो वुन्प्रत्ययः स स्त्रियाम् । आदिना वीप्सादौ वुनो प्रहगम् । स्त्रियां भावादिः स्त्रीभावादिस्तसिन् । नियामित्यधिकृत्य भावादौ ये विहिताः प्रलया अनि, क्तिन् , ण्वुल, णच् , चुच् , क्यप् , युन्, इञ् , अङ्, निशा, इति स्त्रियां स्युः । उणादिषु निः, ऊः, ईः; एते त्रयः, स्त्रियां स्युः । उयन्तम् , आबन्तम् , ऊछन्तं च यञ्चलं जंगमं स्थिरं स्थावर वा तस्त्रियां स्यात् । तच्छब्देनात्र मुष्ट्यादिकं निर्दिश्यते । तन्मुष्ट्यादिकं प्रहरणं यदि क्रीडायां वर्तते तर्हि तस्मिन्नर्थे विहितो णप्रत्ययः स्त्रियाम् । दिगित्यनेनोक्तोदाहरणोद्देशः । सा घमन्तवाच्या। दण्डपातादिक्रियाऽस्यां फाल्गुन्यादिकायामित्यर्थे घबन्ताद्विहितो यो अप्रत्ययः स स्त्रियां स्यात् । दण्डपातोऽस्यां फाल्गुन्यां सा दाण्डपाता फाल्गुनी । एवम्-श्येनपातोऽस्यां श्यैनंपाता मृगया। तिलपातोऽस्यां स्वधाक्रियायां तैलंपाता । 'इति'शब्देन मुसलपातोऽस्यां मौसलपाता भूमिरित्यादिसिद्धिः । दिगित्यनेन दाण्डपातादिकं उदाहरणमिति सूचितम् । यदि अपचयेऽल्पत्वे विवक्षा वक्तुमिच्छा स्यात्तर्हि मृणाल्यादयः स्त्रीलिङ्गाः स्युः । अय व्याबूउन्तमित्यादिनोक्कलिङ्गानामपि केषां
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२४६
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अमरकोषे
लङ्का शेफालिका टीका धातकी पञ्जिकाढकी सिधका सारिका हिक्का प्राचिकोल्का पिपीलिका तिन्दुकी कणिका भङ्गिः सुरङ्गासूचिमाढयः पिच्छावितण्डाकाकिण्यवर्णिः शाणी गुणी दरत् सातिः कन्था तथासन्दी नाभी राजसभापि च झल्लरी चर्चरी पारी होरा लट्टा च सिध्मला लाक्षा लिक्षा च गण्डूषा गृध्रसी चमसी मसी ( अथ पुल्लिङ्गशेषसङ्ग्रहः )
पुंस्त्वे सभेदानुचराः सपर्यायाः सुरासुराः स्वर्गयागाद्विमेघाब्धिकालासिशरारयः करगण्डोष्ठदोर्दन्तकण्ठकेशनखस्तनाः
अह्नाहान्ताः क्ष्वेडभेदा रात्रान्ताः प्रागसंख्यकाः श्रीवेष्टाद्याश्च निर्यासा असन्नन्ता अबाधिताः
[ ७. लिङ्गादिसंग्रह वर्ग:
२९०९
२९१०
२९११
२९१२
२९१३
२९१४
२९१५
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२९१६
२९१७
२९१८
२९१९
२९२०
चिन्नाम्नां सुखेन लिङ्गज्ञानाय पृथक् पाठं कान्तादिक्रमेणाह - लङ्केति । लङ्का, शेफालिका, टीका, घातकी, पञ्जिका, आढकी, सिध्रका, सारिका, हिका, प्राचिका, उल्का, पिपीलिका, तिन्दुकी, कणिका, भङ्गिः, सुरङ्गा, सूचिः, माढिः, पिच्छा, वितण्डा, काकिणी, चूर्णिः, शाणी, गुणी, दरतू, सातिः, कन्था, आसन्दी नाभिः, राजसभा, झल्लरी, चर्चरी, पारी, होरा, लङ्का, सिध्मला, लाक्षा, लिक्षा, गण्डूषा, गृध्रसी, चमसी, मसी, इति । पुंस्त्वे इति पतद्रहशब्दपर्यन्तमधिकारः । मेदास्तुषितसाध्यादयः, अनुचराः सुनन्दादयः तैः सहिताः सुरासुरा देवदैत्याः पर्यायैः सह पुंसि । स्वर्गः, यागः, अद्रिः, मेघः, अब्धिः, दुः, कालः, असिः, शरः, अरिः, करः, गण्डः, ओष्ठः, दोः, दन्तः, कण्ठः, केशः, नखः, स्तनः, एते ऊनविंशतिः समेदाः सपर्यायाश्च पुंसि स्युः । अह्नः अहश्च एतदन्ताः पुंसि स्युः क्ष्वेडभेदा विषविशेषाः पुंस्त्वे स्युः । रात्रान्ता इति समासान्तस्यैकदेशानुकरणम् । एवमुत्तरत्रापि । रात्रशब्दोऽन्ते येषां ते यदि प्राकू असंख्यावाचकशब्दरहितास्तर्हि पुंसि । श्रीवेष्टादयो ये निर्यासाः द्रवसारवाचकास्ते पुंसि स्युः । आद्येन श्रीवासवृक
,
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पङ्कयः २९०९-२९२७ ] तृतीयं काण्डम्
कशेरुजतुवस्तूनि हित्वा तुरुविरामकाः कषणभमरोपान्ता यद्यदन्ता अमी अथ पथनयसटोपान्ता गोत्राख्याश्चरणाह्वयाः नामकर्तरि भावे च घञजब्नङ्गघाथुचः ल्युः कर्तरीमनिज्भावे को घोः किः प्रादितोऽन्यतः २९२५ द्वन्द्वेऽश्ववडवावश्ववडवा न समाहृते कान्तः सूर्येन्दुपर्यायपूर्वोऽयः पूर्वकोऽपि च
२९२४
२९२६
२९२७
२४७
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२९२१
२९२२
२९२३
1
धूपादयः । चकाराद्गुग्गुलुसिह्नकादयः । अस् च अन् च तावन्तौ येषां ते असन्नन्ता द्व्यच्कमसि सुसन्नन्तमित्यादिना वक्ष्यमाणेन अप्सरभहीनां पूर्वोक्तेन च बाधकेनाबाधिताश्चेत्पुंसि स्युः। अबाधिता इति किम् ? इदं वयः । इदं लोम । तुश्च रुश्च तुरू तौ विरामे येषां ते तुरुविरामकाः । कशेरुजतुवस्तूनि हित्वा तुराब्दान्ताश्च रुशब्दान्ताश्च पुंसि स्युः । कषणभमराः षड्वर्णा उपान्ते अन्त्यसमीपे येषां ते तथा । यदीति । यदि एते कादिवर्णषट्कोपान्ता अदन्ताः स्युस्तर्हि पुंसि भवन्ति । पथनयसटवर्णषट्कोपान्ताः अबाधिताश्चेत्पुंसि स्युः । अत्र ययदन्ता इति पूर्वोक्तं न संबध्यते । अथादित्वात् । गोत्रेति । गोत्रं वंशः तस्मिन्नाख्या संज्ञा येषां ते गोत्राख्या ऋषिसंज्ञकाः गोत्रस्यादिपुरुषाः ये प्रवराध्यायपठिताः येऽप्यन्ये अपत्यप्रत्ययं विना गोत्रवाचि - त्वेन लोके प्रसिद्धास्ते पुंसि स्युः । चरणस्य वेदशाखाया आह्वायाः संज्ञाः पुंसि स्युः । नाम्नि संज्ञायां अकर्तरि च कारके भावमात्रे च विहितास्ते घञ्, अच्, अपू, नब्, ण, घ, अथुच्, एते सप्त प्रत्ययाः पुंसि स्युः । भावे चेति चकाराद, संज्ञायां च घञ्, गृहीतः । ल्युरिति । कर्तरि नन्द्यादिल्युः पुंसि स्यात् । भावे पृथ्वादिभ्यो य इमनिच् स पुंसि स्यात् । भाव इति किम् ? वृणोतीति वरिमा पृथ्वी । अत्र भावे इति शब्दो देहलीदीपन्यायेन पूर्वत्र परत्र च संबध्यते । प्रादितः अन्यतश्च परो यो घुसंज्ञो धातुस्तस्माद्विहितः किप्रत्ययः पुंसि स्यात् । द्वन्द्वे समाहारादन्यत्र द्वन्द्वसमासेऽश्ववडवौ पुंसि । स्वयमेवोदाहरति — अश्वाथ वडवाश्चाश्ववडवाः । एवमश्ववडवान्, अश्ववड वैरित्यादिप्रयोगः । समाहारे त्वश्ववडवमिति क्लीबम् । सूर्यचन्द्रपर्यायपूर्वकः कान्तशब्दः पुंसि । भयोवाचकपूर्वकोऽपि कान्तः पुंसि । इदानीं पुल्लिङ्गविशेषपर्यन्तमनुक्तानां कान्तादिक्रममनतिक्रम्याह
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२४०
अमरकोषे
[७. लिङ्गादिसंग्रहवर्गः
वटकश्चानुवाकश्च रल्लकश्च कुडङ्गकः
२९२८ पुलो न्यूजः समुद्गश्च विटपट्टधटाः खटाः २९२९ कोट्टारघट्टहट्टाश्च पिण्डगोण्डपिचण्डवत्
२९३० गडुः करण्डो लगुडो वरण्डश्च किणो घुणः २९३१ पतिसीमन्तहरितो रोमन्थोद्गीथबुद्बुदाः
२१३२ समर्दोऽर्बुदः कुन्दः फेनस्तूपौ सयूपको २९३३
तपः क्षत्रिये नाभिः कुणपक्षुरकेदराः २९३४ पूरक्षुरप्रचुक्राश्च गोलहिङ्गुलपुद्गलाः
२९३५ वेतालभल्लमल्लाश्च पुरोडाशोऽपि पट्टिशः २९३६ कुल्माषो रभसश्चैव सकटाहः पतन्द्रहः
२९३७ ( अथ पुंनपुंसकसङ्ग्रहः) द्विहीनेऽन्यच्च खारण्यपर्णश्वभ्रहिमोदकम् २९३८ शीतोष्णमांसरुधिरमुखाक्षिद्रविणं बलम्
२९३९ फलहेमशुल्बलोहसुखदुःखशुभाशुभम्
२९४० वटकः, अनुवाकः, रल्लकः, कुडङ्गकः, पुङ्खः, न्यूजः, समुद्रः, विटः, पहः, घटः, खटः, कोट्टः, अरपट्टः, हट्टः, पिण्डः, गोण्डः, पिचण्डः, पिचण्डवत् गण्ड्वादयोऽपि पुंसि स्युरिति वता निर्दिश्यते । गडः, करण्डः, लगुडः, वरण्डः, किणः, धुणः, दृतिः, सीमन्तः, हरित् , रोमन्थः, उद्गीथः, बुद्बुदः, कासमर्दः, अर्बुदः, कुन्दः, फेनः, स्तूपः, यूपः, आतपः, क्षत्रिये नाभिः, कुणपः, शुरः, केदरः, पूरः, क्षुरप्रः, चुक्रः, गोलः, हिङ्गलः, पुद्गलः, वेतालः, भल्लः, मलः, पुरोडाशः, पट्टिशः, कुल्माषः, रभसः, सकटाहः, पतगृहः, इति ॥ द्विहीने द्वाभ्यां स्त्रीपुंसाभ्यां हीने नपुंसके । अधिकारोऽयमाबाहिकात् । श्लोकद्वये प्राधान्येन निर्दिष्टाः खादिशब्दाः षड्विंशतिः पर्यायैः सह क्लीबे । अत्रान्यदिति बाधितात् यदन्यत्तदेव क्लीवमिति सावधानार्थमुक्तम् । चकाराद्वस्त्राभरणादिसंग्रहः । खम् , अरण्यम्, पर्णम् , श्वभ्रम् , हिमम् , उदकम्, शीतम् , उष्णम्, मांसम्, रुधिरम् , मुखम् , अक्षि, द्रविणम् , बलम् , फलम् , हेम, शुल्बम् , लोहम् , सुखम् , दुःसम् , शुभम् , अशु
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पतयः २९२८-२९४९] तृतीयं काण्डम्
२४९ जलपुष्पाणि लवणं व्यञ्जनान्यनुलेपनम्
२९४१ कोव्याः शतादिसंख्याऽन्या वा लक्षा नियुतं च तत् २९४२ घ्यच्कमसिसुसन्नन्तं यदनान्तमकर्तरि
२९४३ त्रान्तं सलोपधं शिष्टं रात्रं प्राक्संख्ययान्वितम् २९४४ पात्राद्यदन्तरेकार्थो द्विगुर्लक्ष्यानुसारतः
२९४५ द्वन्द्वैकत्वाव्ययीभावौ पथः संख्याव्ययात्परः २९४६ षष्ट्याश्छाया बहूनां चेद्विच्छायं संहतौ सभा २९४७ शालार्थापि पराराजामनुष्यार्थादराजकात् २९४८ दासीसभं नृपसभं रक्षःसभमिमा दिशः
२९४९
भम् , जलपुष्पाणि, लवणम् , व्यञ्जनं अनुलेपनम् , इति । अत्र बाधितादन्यत् इति कम् । आकाशो विहायाः द्यौः। अटवी अरण्यानीत्यादिकम् । एवमन्यदप्यूह्यम् । कोट्या अन्या कोटिशब्दं विना या शतादिसंख्या सा क्लीबे स्यात् । लक्षाशब्दो वा क्लीबे । पक्षे स्त्रियाम् । तदिति लक्षस्य पर्यायो नियुतम् । असन्तमिसन्तमुसन्तमन्नन्तं च यत् यच्कं द्विस्वरं तत्क्लीबे । अकर्तरि कर्तुरन्यत्र यदनान्तं अनेत्यन्ते यस्य तत्कीबे । त्रान्तं क्लीबे । सकारो लकारो वा उपधा अन्त्यात्पूर्वो यस्य तत् सलोपधम् । शिष्टमिति यदवशिष्टं प्रागुक्तादन्यत् तच्च प्रागुक्तम् । संख्यापूर्वो रात्रशब्दः क्लीवे। पात्रादिभिरदन्तैरेकार्थो यो द्विगुः स क्लीबे। आदिना चतुर्युगम् । लक्ष्यानुसारतः शिष्टप्रयोगानुगमेनेत्यर्थः । द्वन्द्वसमासस्यैकत्वं अव्ययीभावश्च क्लीवे । संख्याया अव्ययाच परः पथः क्लीबे । समासे षष्ठीविभक्त्यन्तात्परा छाया क्लीबे । सा चेद्बहूनां संबन्धिनी तयव तदुदाहरति-वीनां पक्षिणां छाया विच्छायमिति । बहूनामिति किम् ? कुड्यच्छाया कुज्यच्छायमिति वा । संहतो समूहविषये सभाशब्दः क्लीबे । अत्रापि षष्ट्या इत्यनुवर्तते। शालार्था, गृहार्था 'अपि'शब्दात् संहत्यर्था च या सभा सा अराजकात् राजशब्दविवर्जितात् राजामनुष्यार्थात् राजार्थाद्राजपर्यायात् अमनुष्यार्थाद्रक्षआदिशब्दात्षष्ट्यन्तात्परा चेत् क्लीबे । षष्ट्या इति किम् ? नृपतिविषये सभा नृपतिसभा । नृणां पतिर्यस्यां सा चासौ सभा चेति वा नृपतिसभा। अमनुष्यार्थादिति किम् ? दासीसभा। इमा दिश इति दासीसभमित्या
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अमरकोषे
[७. लिङ्गादिसंग्रहवगेः
उपज्ञोपक्रमान्तश्च तदादित्वप्रकाशने
२९५० कोपज्ञकोपक्रमादि कन्थोशीनरनामसु
२९५१ भावे नणकचियोऽन्ये समूहे भावकर्मणोः २९५२ अदन्तप्रत्ययाः पुण्यसुदिनाभ्यां त्वहः परः
२९५३ क्रियाव्ययानां भेदकान्येकत्वेऽप्युक्थतोटके २९५४ चोचं पिच्छं गृहस्थूणं तिरीटं मर्म योजनम्
२९५५ राजसूयं वाजपेयं गद्यपद्ये कृतौ कवेः
२९५६ माणिक्यभाष्यसिन्दूरचीरचीवरपिञ्जरम्
२९५७ लोकायतं हरितालं विदलस्थालवाह्निकम्
२९५८ (अथ पुनपुंसकसंग्रहः) पुनपुंसकयोः शेषोऽर्धर्चपिण्याककण्टकाः
२९५९ मोदकस्तण्डकष्टङ्कः शाटकः कर्पटोऽर्बुदः २९६० पातकोद्योगचरकतमालामलका नडः
२९६१ दीनि क्रमेण त्रीण्युदाहरणानि, तत्र दासीसभमित्यादि तु संहतावित्यस्यैव । इतरे तु शालासंहतिसाधारणे । तयोरुपज्ञोपक्रमयोरादित्वं प्राथम्यं तस्य प्रकाशने द्योतने उपशान्त उपक्रमान्तश्च समासः क्लीबे स्यात् । उदाहरणमाह-को ब्रह्मा तस्योपज्ञा कोपझं प्रजा । कस्योपक्रमः कोपक्रमं लोकाः । अत्रापि षष्ट्या इत्यनुवर्तते, उशीनराणां नामसु मध्ये षष्ठ्यन्तात्परा कन्था क्लीबे । चकार इत् अनुबन्धो यस्य स चित् । नश्च णश्च कश्च चिच्च नणकचितः । तेभ्योऽन्ये ये तव्यदादयोऽदन्ता धातुप्रत्यया भावे विहितास्ते क्लीबे । पुण्यसुदिनाभ्यां परो विहितसमासान्तोऽहनशब्दः क्लीबे । क्रियाणामव्ययानां च भेदकानि विशेषणानि क्लीबे एकवचने च स्युः । अथ कानिचित्कण्ठरवेणाह-उक्थम् , तोटकम्, चोचम् , पिच्छम् , गृहस्थूणम् , तिरीटम् , मर्म , योजनम् , राजसूयम् , वाजपेयम् , कवेः कृतौ वर्तमानं गद्यम् , पद्यम् ,माणिक्यम् ,भाष्यम् , सिंदूरम् , चीरम् , चीवरम् , पिञ्जरम् , लोकायतम् , हरितालम्, विदलम् , स्थालम् , बाह्निकम्, इति । अथ चिक्कसपर्यन्ताः पुंसि क्लीबे च स्युः । उक्तादन्यः शेषः। ऋचोऽर्धमर्धर्चः, पिण्याकम् , कण्टकम् , मोदकम् , तण्डकः, टङ्कः, शाटकः, कर्पटः, अर्बुदः, पातकम् , उद्योगः, चरकम् , तमालः,
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पङ्क्तयः २९५०-२९७३ ]
तृतीयं काण्डम्
कुष्टं मुण्डं शीधु बुस्तं क्ष्वेडितं क्षेमकुट्टिमम् संगम शतमानार्मशम्बलाव्ययताण्डवम् कवियं कन्दकार्पासं पारावारं युगंधरम् यूपं प्रग्रीवपात्रीवे यूषं चमसचिक्कसौ अर्धर्चादौ घृतादीनां पुंस्त्वाद्यं वैदिकं ध्रुवम् तन्नोक्तमिह लोकेऽपि तच्चेदस्त्यस्तु शेषवत् स्त्रीपुंसयोरपत्यान्ता द्विचतुः षट्पदोरगाः जातिभेदाः पुमाख्याश्च स्त्रीयोगैः सह मल्लकः ऊर्मिर्वराटकः स्वातिर्वर्णको झाटलिर्मनुः मूषा पाटी कर्कन्धूर्यष्टिः शाटी कटी कुटी
( अथ स्त्रीनपुंसकशेषः )
स्त्रीनपुंसकयोर्भावक्रिययोः ष्यञ्वचिच्च वुञ् औचित्य मौचिती मैत्री मैत्र्यं वुञ्प्रागुदाहृतः
२५१
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२९६२
२९६३
२९६४
२९६५
२९६६
२९६७
२९६८
२९६९
२९७०
२९७१
२९७२
२९७३
आमलकः, नडः, कुष्टम्, मुण्डम्, शीधु, बुस्तम्, क्ष्वेडितम्, क्षेमम्, कुट्टिमम्, संगमम्, शतमानम्, अर्मम्, शम्बलम्, अव्ययम्, ताण्डवम्, कवियम्, कन्दम्, कार्पासम्, पारावारम्, युगंधरम्, यूपम्, प्रग्रीवम्, पात्रीवम्, यूषम्, चमसः, चिक्कसः, इति । अर्धर्चादौ अस्मिन्वर्गे पुंनपुंसकाधिकारेऽघृतादीनां पुंस्त्वाद्यं पाणिन्यादिभिरुक्तं तत्तु वैदिकम्; अतस्तदिह नोक्तम् । तल्लोकेऽप्यस्ति चेत् शेषवत्, उक्तादन्यः शेषस्तद्वदस्तु शिष्टप्रयोगतो ग्राह्यम्, अपत्यान्ता अपत्यप्रत्ययान्ताः स्त्रीपुंसयोः स्युः । द्विचतुः षट्पदोरगाः । द्विपदचतुष्पदषट्पदवाचिनो भुजगवाचिनश्च जातिमेदाः स्त्रीपुंसयोः । स्त्रीयोगैः सह पुमाख्याः पुंनामानि स्त्री-पुंसयोः । मल्लकादयश्च स्त्रीपुंसयोः । ऊर्मिः, वराटकः, स्वातिः, वर्णकः, झाटलिः, मनुः, मूषा, सृपाटी, कर्कन्धूः, यष्टिः, शाटी, कटी, कुटी, इति । भावक्रिययोः ष्यञ् कर्मणि च वर्तमानः, ष्यञ्प्रत्ययो वुञ्प्रत्ययश्च क्वचित्स्त्री - नपुंसकयोर्वर्तते । तत्र ष्वञ्प्रत्ययमुदाहरति - उचितस्य भाव औचित्यम्, औचिती च । मित्रस्य कर्म मैत्र्यं मैत्री वा : वुञ्प्रत्ययस्तु वैर मैथुनिकादिवुन् इत्थं प्रागुदाहृतः । तथा मिथुनस्य भावः कर्म वा मैथुनिका मैथुनकं च । तत्पुरुषे षष्ठ्यन्तं षष्ठीविभक्त्यन्तं
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२५२
अमरकोषे
[५. लिङ्गादिसंग्रहवर्गः
षष्ठयन्तप्राक्पदाः सेनाछायाशालासुरानिशाः २९७४ स्याद्धा नृसेनं श्वनिशं गोशालमितरे च दिक्
२९७५ आवन्नन्तोत्तरपदो द्विगुश्चापुंसि नश्च लुपू २९७६
(अथ त्रिलिङ्गशेषसंग्रहः ) त्रिखद्रं च त्रिखट्टी च त्रितक्षं च त्रितक्ष्यपि २९७७
(अथ लिङ्गादिसंग्रहवर्गः ) त्रिषु पात्री पुटी वाटी पेटी कुवलदाडिमौ २९७८ परं लिङ्गं स्वप्रधाने द्वन्द्वे तत्पुरुषेऽपि तत् २१७९ अर्थान्ताः प्राद्यलंप्राप्तापन्नपूर्वाः परोपगाः २९८० तद्धितार्थो द्विगुः संख्यासर्वनामतदन्तकाः २९८१ बहुव्रीहिरदिङ्नाम्नामुन्नेयं तदुदाहृतम्
२९८२ गुणद्रव्यक्रियायोगोपाधिभिः परगामिनः
२९८३ कृतः कर्तयेसंज्ञायां कृत्याः कर्तरि कर्मणि
२९८४ प्राक्पदं यासां ताः पठ्यन्तप्राक्पदाः सेना, छाया, शाला, सुरा, निशा, एते शब्दाः स्त्रियां क्लीबे च स्युः । उदाहरति-नृसेनं नृसेना का इतर इति । एवमन्यत्राप्युदाहर्तव्यम् । आबन्तोत्तरपदोऽन्नन्तोत्तरपदश्च द्विगुसमासः पुंसि न स्यात् । किंतु झी-नपुंसकयोः । अन्नन्तोत्तरपदस्य योऽन्त्यन कारस्तस्य लप लोपक्ष स्यात् । आवन्तान्त्यपदमुदाहरति-त्रिखट्वं त्रिखट्वी च । त्रितक्षं त्रितक्षी च । तक्षशब्दस्थान्त्यनकारो लुप्तः ॥ पात्री, पुटी, वाटी, पेटी, कुवलः, दाडिमः, इति शब्दाः त्रिषु त्रिलिङ्गाः द्वन्द्वैकत्वस्याव्ययीभावस्य च लिङ्गं प्रागुक्तम् । स्वप्रधाने उभयपदप्रधाने । इतरेतराख्ये द्वन्द्वसमासे च तत्पुरुषे च यत्परमग्रिमपदस्थं लिङ्गं तदेव लिङ्गं स्यात् । उक्तस्य तत्पुरुषलिङ्गस्यापवादमाह-अर्थेति । अर्थान्तशब्दाः परोपगाः परगामिनः वायलिङ्गाः । प्राद्यलंप्राप्तापन्नपूर्वाः परोपगाः । तद्धितार्थो द्विगुर्वाच्यलिङ्गः । संख्याशब्दाः सर्वनामसंज्ञकास्तदन्तकाश्च परलिङ्गभाजः । अदिङ्नानां बहुव्रीहिरन्यलिङ्गभाक् । तदुदाहरणं खयमुन्नेयम् । गुणयोगेन द्रव्ययोगेन क्रियायोगेन च य उपाधिर्विशेषणं तेन धर्मिणि प्रवृत्तास्ते धर्मिलिङ्गभाजः । असंज्ञायां कर्तरि कृत्प्रत्ययाः । कर्मणि कर्तरि च वर्तमानाः कृत्प्रत्ययाः परगामिनः।
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२९८५ २९८६ २९८७
पतयः २९७४-२९८९] तृतीयं काण्डम् अणाद्यन्तास्तेन रक्ताद्यर्थे नानार्थभेदकाः पदसंज्ञकास्त्रिषु समा युष्मदस्मत्तिडव्ययम् परं विरोधे शेषं तु ज्ञेयं शिष्टप्रयोगतः
८. काण्डसमाप्तिः इत्यमरसिंहकृती नामलिङ्गानुशासने सामान्यकाण्डस्तृतीयः साङ्ग एव समर्थितः
इत्यमरसिंहकृतोऽमरकोषः समाप्तः ।
२९८८ २९८९
तेन रक्तमित्याद्यर्थे अणादितद्धितप्रत्ययान्ता नानार्थभेदका अनेकार्थविशेषणभूताः विशिष्ट याद्वाच्यलिङ्गा इत्यर्थः । रक्ताद्यर्थ इत्यादिशब्दान्मथुराया आगतो माथुरोऽयम् । षट्संज्ञकाः षान्तनान्तसंख्या कतिशब्दश्च त्रिलिङ्गयां समाः सरूपा नित्यं बहुषु वर्तमानाः अतो बहुवचनान्ताश्च । युष्मदस्मच्छन्दौ तिङन्तपदान्यव्ययानि च त्रिषु समानि । परमिति । विरोधे विप्रतिषेधे सति परं लिङ्गानुशासनं प्रवर्तते । अभिधानादिकं शिष्टानां महाकवीनां भाष्यकारादीनां प्रयोगतो ज्ञेयम् । यद्वा अनुक्तं शब्दलिङ्गं शिष्ट प्रयोगतो बोद्धव्यम् ॥
२९८८-२९८९ उक्तमुपसंहरति-इतीति । इत्येवंप्रकारेणामरसिंहस्य कृती नामलिङ्गशास्त्रे सामान्यनामा तृतीयः काण्डः प्रस्तावो वर्गसमूहो वा अङ्गैः सहितः समर्थितो निरूपितः ॥
इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः ।
पाणिन्यमरजैनेन्द्री जयन्त्यष्टादिशब्दिकाः ॥ इति श्रीमत्यमरविवेके महेश्वरेण विरचित इत्यं सामान्यकाण्ड
एषोऽन्तिमः समाप्तः।
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेकार्थसंग्रह नामकोशः। हेमचन्द्रकृत। सं. जगन्नाथशास्त्री। (का. 68) नामलिङ्गानुशासनम् नाम अमरकोशः। अमरसिंह कृत। भानुजी दीक्षित (रामाश्रय) कृत 'रामाश्रमी' (वाक्यसुधा) संस्कृत टीका तथा हरगोबिन्द शास्त्री कृत 'मणिप्रभा' (प्रकाश) हिन्दी टीकादि। (का. 198) मङ्खकोश। स्वोपज्ञ टीकासारयुक्त। सम्पादकथियोडोरजकारिया। (का. 216) मेदिनीकोशः। मेदिनीकरकृत। भिन्नार्थकोश। जगन्नाथ शास्त्री होशिंग कृत भूमिका। (का. 41) वाल्मीकि रामायणकोशः। वाल्मीकि रामायण के नामों और विषयों की विस्तृत व्याख्यात्मक अनुक्रमणिका हिन्दी में रामकुमार राय। (का. 168) लघुसिद्धान्तकौमुदी। वरदराज कृत। 'ललिता' संस्कृत हिन्दी टीका सहित, डॉ. दीनानाथ तिवारी डॉ. कौशलकिशोर पाण्डेय। (का. 284) अनुवाद चन्द्रिका। डॉ. राजू (राजेश्वर) शास्त्री मुसलगाँवकरा सं. डॉ. केशव राव मुसलगाँवकर! (चौ.सं.भ. 41) वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी। भट्टोजि दीक्षितकृत। बालकृष्ण पञ्चोली कृत रत्नप्रभा हिन्दी टीका। कारकान्त (प्रथम भाग), समासादि द्विरुक्तान्त (द्वितीय भाग), भ्वाद्यादि चतुराद्यन्त (तृतीय भाग), ण्वन्तादि कृण्यन्तान्त | (चतुर्थ भाग:erving Jinshaasan gyanmandirakob. thory प्रधान कार्याल132694 सहयोगी शाखाः चौखम्भा सस्कृत सस्थान चौखम्भा पब्लिकेशन्स पोस्ट बाक्स नं0 1139 4262/3,अंसारी रोड, दरियागंज के. 37/116, गोपाल मन्दिर लेन नई दिल्ली-110002 वाराणसी-221001 (भारत) फोन: 011-23268639,23259050 फोन : 0542-2333445 E-mail:chaukhambha@mantraonline.com For Private and Personal Use Only