Book Title: Akaal ki Rekhaein
Author(s): Pawan Jain
Publisher: Garima Creations
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ ॐ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय परम पूज्य अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के जीवन चारित्र पर आधारित चित्रकथा 'अकाल की रेखाएँ' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है। इस कथा के अनुशीलन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आपत्तिकाल की विषम परिस्थिति में भी जिनागम समस्त परम्पराओं से समझौता आगे चलकर किस तरह एक विशाल विकृति के रूप में परिणमित हो जाता है। इस चित्रकथा में जहाँ मुनिदशा के गरिमामय स्वरूप का दिग्दर्शन हुआ है, वही मुनिदशा में प्रारम्भ शिथिलाचार का बीज एक नये सम्प्रदाय के रूप में पल्लवित हो जाता है, इस बात का परिज्ञान भी हुआ है। ____ नन्हें-मुन्ने बालकों के लिए उपयोगी इस चित्रकथा के लेखन के लिए डॉ. योगेश जैन, अलीगंज के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए उनसे इस दिशा में अनवरत कार्य करने का हार्दिक अनुरोध करते है। इस चित्रकथा के प्रकाशन में सहयोग हेतु श्री मनीषजी, गरिमा क्रिएशन, दिल्ली के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। यह सम्पूर्ण चित्रकथा मङ्गलायतन (मासिक पत्रिका) में प्रकाशित हो चुकी है। पाठकों की की माँग पर इसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है। सभी पाठकगण इसका भरपूर लाभलें - यही भावना है। - पवन जैन प्रथम संस्करण : 2000 प्रतियाँ विक्रय मूल्य: पन्द्रह रुपये मात्र टाइप सेटिंग : मङ्गलायतन लेजर ग्राफिक्स मुद्रक : Garima Creations, New Delhi Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाए (आचार्य भद्रबाहु) आलेख : डॉ. योगेश जैन चित्र : अर्पित सिंह बात 2300 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। उन दिनों पुण्डवर्धन देश में राजा पद्मधर राज्य करता था। wwwwwww उसके राज्य में सोमशर्मा नामक पुरोहित था; जो वेद, वेदाङ्ग आदि का उच्चकोटि का विद्वान था। 27.97 P P ponlKhull THAZIRVILL Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 2 एक दिन उस राजपुरोहित की रूपवती पत्नी सोमश्री ने सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया। बधाई ! पण्डितजी !! पुत्ररत्न की प्रसन्नता में सोमशर्मा ने निर्धनों को भरपूर दान किया और खुशियाँ | मनायी गयीं । एक ज्योतिषी ने आकर..... वाह ! आज बहुत शुभ नक्षत्र है। हाँ! पण्डितजी !! आपके यहाँ पधारे नये मेहमान को आशीर्वाद है। MAAD सभी जगह आनन्द ही आनन्द है । तब तो पुत्र का नाम भद्रबाहु ही रखो । Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 3 दूज के चाँद की तरह भद्रबाहु भी दिनोंदिन बढ़ने लगा। कर | कुशाग्रबुद्धि भद्रबाहु ने एक दिन तो चमत्कार ही कर दिया। अरे वाह ! खेल-खेल में ही एक दो तीन... पूरी चौदह कितनी समझदारी और विवेक गोलियाँ । एक के ऊपर एक.. आश्चर्य ! यह तो महापुरुषों के लक्षण हैं। DATIKA | गिरनार पर्वत से लौटे गौवर्द्धनाचार्य सोचने लगे। अन्तिम श्रुतकेवली भी इन्हीं लक्षणों से जाना जा सकेगा। कहीं यही बालक तो.... ये तपस्वी मुझे इतनी वात्सल्यभरी दृष्टि से क्यों देख रहे हैं? ACER Suu । Minudulen) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 4 और फिर कुछ सोचकर गोवर्द्धनाचार्य ने बालक को शिक्षा देने की इच्छा से पूछा - रे महाभाग्यशाली कुमार! तेरा नाम क्या है ? प्रभो! मैं ब्राह्मणवंशी सोम शर्मा व तेरे पिता कौन हैं और वे कहाँ हैं ? माता सोमश्री का पुत्र भद्रबाहु हूँ। अच्छा! तो क्या तुम हमें अपने माता-पिता से मिलवाओगे। क्यों नहीं, पूज्यवर! मैं अभी उन्हें बुलाकर लाता हूँ मुनिराज को दूर से देख भद्रबाहु के माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए और पास आकर बोले... नमोऽस्तु! भगवन् ! आपके चरण-कमलों के प्रताप से यह भूमि पवित्र हुई। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ । 5 योग्य सेवा करने के लिए अत्यन्त आग्रह करने पर मुनिराज बोले - | अरे सोम शर्मा ! तुम्हारा यह प्रिय पुत्र /गुरुदेव! योग्य पुत्र पर उत्तम गुरु का प्रथम महाभाग्यशाली व समस्त विद्याओं में अधिकार है और फिर आप जैसे श्रेष्ठ पारङ्गत होगा, अतः उत्तम शिक्षा हेतु हमारे दिगम्बर गुरु तो विशेष भाग्य से मिलते हैं। ___ साथ में रहे तो श्रेष्ठ है। आप इसे अवश्य ले जावें। सोमश्री को चुप देख मुनिराज उधर देखते हैं... तो... हे भगवन् ! आपकी इच्छा ही मेरा सद्भाग्य है। माता-पिता तो हर जन्म में सभी को मिलते ही हैं, पर उत्तम गुरु नहीं, गुरुदेव! आज तो मेरी कोख सफल हो गयी। तुम दोनों को धर्मप्राप्ति हो।। धन्य है तुम्हारा गृहस्थ जीवन! | फिर माता-पिता के चरण छूकर...|| ...भद्रबाहु अपने भाग्य-विधाता के साथ चल दिया। rond 15234560 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ /6 | गोवर्द्धनाचार्य, भद्रबाहु को अन्य शिष्यों के साथ जङ्गल में पढ़ाने लगे। ॐ नमः सिद्धेभ्यः। ॐ नमः सिद्धेभ्यः। ANTRA | धीरे-धीरे भद्रबाहु ने धर्म, दर्शन, न्याय-व्याकरण, साहित्य आदि विषयों के ग्रन्थ पढ़ लिये। (बताओ, ज्योतिष शास्त्र का सार क्या है? जीव के पाप-पुण्यमय भावों व कर्मसिद्धान्त की सिद्धि तथा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धों की प्रसिद्धि र S वाह ! भद्रबाहु तो समस्त विद्याओं में इतने शीघ्र पारङ्गत हो गये। /हाँ मुनिवर! पर आप जानते नहीं, मनुष्य चाहे कितना) भी सूक्ष्मदर्शी नेत्रवाला क्यों न हो, पर रोशनी तो उसे चाहिए ही। ENimun Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ/7 हाँ भाई! इतना होने पर भी योग्यता तो उसकी अपनी ही थी। | समझा! इसी तरह भद्रबाहु भी तीक्ष्ण बुद्धिवाला ही क्यों न हो, तो भी गुरु के उपदेशरूपी वचनामृतों की/ रोशनी के निमित्त से ही उसने सब विद्याएँ व्यवस्थितरूप से पढ़ी हैं। 95305 समस्त विद्याओं में पारङ्गत होकर एक दिन भद्रबाहु ने अपने गुरु से कहा - ( गुरुदेव! आपकी कृपा से मुझे उत्तम शिक्षा - हाँ! हाँ! क्यों नहीं? तुम सानन्द जा मिली, आपका महान उपकार है..., अब यदि सकते हो। तुम्हारा कल्याण हो। आज्ञा दें तो अपने माता-पिता के पास.... 12000 MANO WOMA और भद्रबाहु अपने घर आ गया... वाह ! मेरा पुत्र अब कितना जवान हो गया है। और कितना सुन्दर प्यारा... प्यारा... Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 8 | भद्रबाहु के वापस घर आने का समाचार मोहल्ला-पड़ोस में फैल गया। अरे ! तूने कुछ सुना, काफी वर्षों पूर्व भद्रबाहु) इतना योग्य, सदाचारी विद्वान् पुत्र पाकर भी । को एक दिगम्बर जैन साधु ले गये थे, अब । ( माता-पिता खुश न हों... क्या सोने में जड़ा रत्न) वह आ गया, सोमश्री तो अब बहुत सबको अच्छा नहीं लगता? खुश है। - . M __ॐ नमः मितिभ्यः । वीतरागी तत्त्वज्ञान की विशेष प्रभावना हेतु भद्रबाहु एक दिन राजा पद्मधर के दरबार में गया। आओ द्विजोत्तम! हमारे राजपुरोहित के विद्वान् । राजन्! अपने सत्स्वरूप भगवान आत्मा पुत्र! तुम्हारा सभा में सत्कार है। का आदर ही सच्चा सत्कार है। कल्याणमस्तु राजन्! N ११ । राजा ने भद्रबाहु की धर्मोपदेश देने की योग्यता से प्रभावित होकर वीतरागी तत्त्वज्ञान का लाभ लिया और वस्त्राभूषण से उसका विशेष सम्मान किया। भ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | | ... लेकिन वैरागी भद्रबाहु का मन घर में नहीं लगा। एक दिन वे अपने माता-पिता से बोले - | हे माँ! इस असार संसार में धर्म ही /पुत्र! तेरी ये बाल्यावस्था, उस पर कोमल शरीर एकमात्र शरण है; अत: मैं मुनिधर्म को ।। और कहाँ वह कठोर तपश्चरण... मुझे आघात आराधना करना चाहता हूँ। माँ! मुझे सहर्ष/ पहँचानेवाले तेरे ये निष्ठुर वचन योग्य नहीं। आज्ञा प्रदान करें। S । AL [अरी माँ! संयम के बिना तो यह जन्म वैसे ही || और फिर भद्रबाहु ने मोहीजनों को समझाकर, निष्फल है, जैसे सुगन्धरहित फूल। फिर क्या जङ्गल में जाकर केशलोंच करके गोवर्द्धनाचार्य जर्जरित वृद्धावस्था में धर्म - से जिनदीक्षा अङ्गीकार कर ली। उत्तम हैं, पर मेरा मोह.. किया जाएगा? / पुत्र! तेरे वचन तो BY Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 10 | दीक्षा के बाद गोवर्द्धनाचार्य ने भद्रबाहु को द्वादशाङ्ग की शिक्षा दी, फलस्वरूप श्रावकों में उत्साह.... । आज मुनि भद्रबाहु के श्रुतज्ञान की पूर्णता हुई, अरे वाह ! देव लोग भी इस शुभ हमें उनका पूजन करना चाहिए। प्रसङ्ग पर आ रहे हैं। M कुछ काल बाद वृद्ध होने पर गोवर्द्धनाचार्य ने भद्रबाहु को अपने पद पर प्रतिष्ठित किया। A Ny O WHI और समाधि-साधना हेतु संघ का परित्याग कर दिया। | नये आचार्य भद्रबाहु ने विशाल संघ के साथ | देश-देशान्तर में विहार किया। SIN Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 11 | विहार करते हुए एक बार भद्रबाहु उज्जैनी नगरी पहुँचकर एक उद्यान में ठहरे। 523 आश्चर्य ! कल तक तो ये वृक्ष सूखे थे और आज इनमें फल फूल... अवश्य ही इन महात्माजी का ही चमत्कार है। 36645 8 || Laxm.in. HERE । KARA000 - NORE संयोग से उसी रात्रि में मगधदेश के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने रात्रि में सोते समय सोलह स्वप्न देखे। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 12 प्रातः काल जब सम्राट चन्द्रगुप्त शयनकक्ष से बाहर आये, तो उन्हें राजकीय उद्यान का माली दिखा। । कपाल सम्राट की जय हो। /अरे! ये क्या! आम. अमरुद. सेब परन्त स्वामी! ये फल स्वीकार कर तो अभी मौसम ही नहीं... कहाँ से लाए? हम पर कृपा करें। २मका स्वामी ! यही निवेदन करने आया हूँ, हमारे उपवन में भद्रबाहु नाम के महर्षि पधारे हैं, उन्हीं के माहात्म्य से ये फल-फूल... । अच्छा! तब तो निश्चित ही हमारे महान पुण्य का उदय हुआ है, अवश्य उनके दर्शन से हम धन्य होंगे...। ___और जङ्गल में पहुँचकर मुनिराज के दर्शन कर रात्रिकालीन स्वप्न का फल जानने की जिज्ञासा प्रगट की। < राजन! ये स्वप्न इस देश में अत्यन्त । बुरे समय का सूचक है। ये दुर्दिन... - - Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 13 स्वप्नफल को सुन विचारमग्न सम्राट का हृदय वैराग्य से भर गया और मुनिराज के पास जाकर.... हे स्वामी! ये स्वप्न मेरे विवेक व वैराग्य के कारण बन रहे तथास्तु भव्य! हैं, मैं संसार के दुःखों से भयभीत हूँ, अतः मुझे भी दीक्षादान देकर धन्य कीजिए। R एक दिन आहार के लिए जाते समय सेठ जिनदास ने पड़गाहन किया। परन्तु उसी समय मुनिराज ने पालने में| | एक बालक को रोते देखा... ES SM Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 14 आवाज सुनकर मुनिराज बच्चे के पास आये और दयालु मुनिराज ने ज्योतिष ज्ञान से सब निमित्तज्ञान का प्रयोग किया । जाना व बिना आहार किए वापिस वन में चले गये । वत्स कहो ! कितने वर्ष तक ? बा... रा... तक वन में जाकर भद्रबाहु ने सभी साधुओं को बुलाकर कहा... हे मुनिराजों ! इस उत्तरभारत में 12 वर्ष का भयङ्कर अकाल पड़नेवाला है, वर्षा नहीं होगी। प्रजा भूखों मरेगी, > अतः संयमियों को यहाँ रहना उचित नहीं है । आचार्य भद्रबाहु के इस कथन का परिज्ञान होने पर नागरिकों ने उनसे विनती की... स्वामी! आप इस देश से न जाएँ, आपके जाने पर तो यहाँ से मोक्षमार्ग ही चला जाएगा। हे महाराज ! आप कोई चिन्ता भी न करें। आपके आशीर्वाद से हमारे पास बहुत धन है । हम वैसा ही करेंगे, जिससे धर्म की वृद्धि हो । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ अकाल की रेखाएँ / 15 आप लोग ध्यान से जरा मेरी बात सुनें! यद्यपि आप समर्थ हैं तो भी दुर्भिक्ष स्थल पर संयमीजनों का संयम नहीं पलता, अतः हम दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान कर रहे हैं । IN T हे दयानिधे ! पुण्योदय से हमारे पास नौ वर्षों तक यथेच्छ दान देने की सामर्थ्य है । आपके चरणों की सौगन्ध, जिनशासन की प्रभावना में सब कुछ न्यौछावर.... जब श्रावकों ने भद्रबाहु को जाते देखा तो वे रामल्य व स्थूलभद्रादि साधुओं से प्रार्थना करने लगे । हे दयासिन्धु ! अब आप ही हम पर कृपा कीजिए, आपके बिना तो हम अनाथ हो जायेंगे । ठीक है, आप लोगों का अत्यधिक आग्रह है तो हम रुक जाते हैं I भद्रबाहु की आज्ञा न मानकर, गृहस्थों के लोभ में पड़कर, स्थूलभद्रादि ने यह ऐतिहासिक भूल की... जिसके परिणामस्वरूप थोड़े ही समय बाद जैनधर्म दो भागों में विभक्त हो गया - दिगम्बर और श्वेताम्बर । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 16 भद्रबाहु के जाने के पश्चात् कई दिनों तक देश में शोक रहा । अरे! अब निःस्वार्थभाव से हम पर कौन उपकार करेगा ? वही देश भाग्यशाली है, जहाँ श्रेष्ठ चारित्रधारी मुनिराज विहार करते हों । उधर जब भद्रबाहु कर्नाटक पहुँचे तो भयङ्कर जङ्गल में मुझे आचार्यपद एवं संघ का आश्चर्यजनक ध्वनि सुनी। परित्याग करके समाधि लेना ही योग्य है। अरे! ये अपशकुन... !! लगता है अब मेरी आयु थोड़ी रह गयी है। जब समाधि का दृढ़ निश्चय करके आचार्य भद्रबाहु ज्येष्ठ मुनि विशाख को आचार्यपद सौंपकर जाने लगे, तो नवदीक्षित चन्द्रगुप्त मुनि बोले..... Eure भगवन्! मैं समाधि के 12 वर्ष तक आपकी सेवा करता रहूँगा, अपने चरणों में शरण दें नाथ । नहीं ! नहीं !! तुम सब जाओ। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 17 परन्तु चन्द्रगुप्त के अत्यधिक आग्रह करने पर भद्रबाहु ने उन्हें अपने पास रुकने की स्वीकृति दे दी। MU . । परन्तु घनघोर जङ्गल में श्रावकों का अभाव होने से चन्द्रगुप्त भोजन बिना रहे तो एक दिन... वत्स! निराहार रहना उचित नहीं, अतः वन में ही सही, तुम आहारचर्या के लिए अवश्य जाओ। गुरु आज्ञा से चन्द्रगुप्त आहार के लिए वन में गये। वनदेवी ने गुरुभक्त चन्द्रगुप्त के निर्मल आचार-विचार की परीक्षा करने के उद्देश्य से अदृश्य होकर आहार की व्यवस्था की। - । Aka ET ROMANOARNSE FEATURE mi Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 18 | लेकिन मुनि चन्द्रगुप्त सोचने लगे - और गुरु के पास आकर सारा समाचार कहा- । आश्चर्य! आहारदाता नहीं? ठीक ही तो / वत्स! तुमने बहुत अच्छा किया, क्योंकि है, शुद्ध भोजन भले ही हो, पर हमारे लिए । विधिपूर्वक दिया गया आहार ही लेना खाने अयोग्य है। योग्य है। इसी तरह दो दिन बीत जाने पर जब तीसरे दिन पुनः आहार हेतु गये तो (आहार देने के लिए अकेली स्त्री? अतः आज भी आहार ग्रहण किये बिना ही लौट गये। और पुनः आचार्य से निवेदन किया - चौथे दिन पुनः जब आहार हेतु हे मुनि! तुमने ठीक किया। जहाँ गये तो वनदेवी ने शहर बसा दिया। अकेली स्त्री आहार दे, वहाँ आहार लेना अनुचित है। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 19 | इस तरह उस शहर में आहार करते हुए चन्द्रगुप्त अपने गुरु की सेवा करते रहे। एक दिन वह घड़ी भी आ गयी तो चन्द्रगुप्त उत्कृष्ट रीति से अपने गुरु की समाधि करायी । तो तुमरे जिय कौन दुःख है, मृत्यु महोत्सव भारी इधर भद्रबाहु ने शरीर छोड़ा, उधर उज्जैन सहित सम्पूर्ण उत्तर प्रान्तों में भयङ्कर अकाल पड़ने लगा। दयालु लोगों ने भरपूर दान देना शुरु किया । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 20 दान की खबर सुनकर अन्य शहरों के लोग भी उज्जैन आने लगे, इससे भीड़ बढ़ गयी, लोग | | निर्लज्ज होकर घुमने लगे। (भागो! भागो! उधर रोटी... पानी ! पानी! (उधर पानी! अरे रोटी खत्म? ( 40 ऐसे विकराल काल में एक दिन रामल्यादि मुनि आहार करके लौट रहे थे। । अरे, इसका पेट भरा है। (पेट फाड़कर भोजन निकालो। मारो ! मारो!) R Un 17 S DIA Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 21 यह समाचार सुनकर श्रावकों में हाहाकार मच गया। सभी ने मुनिसंघ से निवेदन किया - स्वामी! यह काल अत्यन्त भीषण है, अत: आप कुछ दिन को वनवास त्याग दें... (और सुरक्षित स्थान पर आकर रहें,) - ताकि आपको आहार आदि में कष्ट ( न हो और आपकी रक्षा भी हो सके। ST मुनिसंघ ने श्रावकों के कथन को स्वीकार कर लिया। फलस्वरूप श्रावक मुनियों को उत्सवपूर्वक नगर के मध्य सुरक्षित स्थान पर ले जाने लगे। अरे ! ये मुनि का उत्सव है या (वाह ! कितना अच्छा शहररूपी श्मशान में मुनिधर्म की उत्सव. शवयात्रा? क्या ? AR AT 4 - THE Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 22 | आहारार्थ जाते समय जब भूखे दीन-दुःखी उनको घेर लेते तो... 1. अरे! इतने भिखारी.. दरवाजे बन्द करो। इससे दुःखी होकर श्रावकों ने पुन: निवेदन किया कि ( स्वामी ! इस सङ्कट से बचने का ) जब तक सुकाल न आवे तब तक आप लोग रात के अन्धेरे में घरों से बर्तनों में भोजन ले जाया करें, एक ही उपाय है। ~ बर्तन हम आपको दे रहे हैं। इसे स्वीकार कर साधु बर्तन आदि रखने लगे। एक दिन एक साधु रात में यशोभद्र सेठ के यहाँ आहार लेने पहँचे। उसकी गर्भवर्ती सेठानी अन्धेरे में भ्रमित हो गयी... अरे! राक्षस... बचाओ...बचाओ.. और भयभीत होकर उसका गर्भपात हो गया। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 23 तब पुनः गृहस्थजन दुःखी होकर आये। (ठीक है आपात्काल में धर्म में गुरुदेव! आप हमारे यहाँ घरों में आते समय छोटी शिथिलता हो ही जाती है। सी लंगोट बाँध लिया करें। ताकि... U और इस तरह साधु धीरे-धीरे बस्ता-बर्तन-डण्डा आदि परिग्रह भी रखने लगे। बारह वर्ष समाप्त होने पर उधर दक्षिण गये विशाखाचार्य उत्तर भारत को लौटने लगे तो रास्ते में भद्रबाहु की समाधिस्थल श्रवणबेलगोला गये। AR Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 24 | यहाँ विराजमान चन्द्रगुप्त मुनि ने विशाखाचार्य की वन्दना की। । यहाँ तो श्रावक भी नहीं है, तब यह साधु कैसे रहा? अवश्य ही भ्रष्ट है, अतः प्रतिवन्दना के योग्य नहीं। अतः श्रावकों का अभाव जानकर मुनिसंघ उपवास करने लगा तो चन्द्रगुप्त मुनि बोले - आचार्यवर ! यहाँ पास में बहुत बड़ा शहर है, वहाँ श्रावकों के यहाँ > आहारचर्या हो जाएगी। 066 यह सुनकर सभी साधु आश्चर्यचकित हुए... |...और आहारचर्या के लिए गये। योग्यविधि से सभी साधुओं का आहार हुआ। लेकिन... - Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 25 आहार के बाद जब एक क्षुल्लक अपना भूला | उन्होंने कमण्डल पेड़ पर लटका देखा। हुआ कमण्डल लेने वापस शहर में गये तो... अरे! यहाँ तो कोई घर नहीं है? . SA परन्तु देवताओं द्वारा दिया गया आहार मुनि को लेना उचित नहीं। तो उसने सारा समाचार आचार्यश्री से निवेदन किया। अहा! बहुत गलती हुई, चन्द्रगुप्त शुद्ध चारित्र का धारक है, तभी तो इसके प्रताप से देवों ने शहर की रचना की। .50 5 अतः उसी समय पूरे संघ को बुलाकर दोषों को दूर करने के लिए प्रायश्चित किया। चन्द्रगुप्त ने भी प्रायश्चित लिया। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ / 26 उसके बाद विशाखाचार्य उज्जैन आये । जब स्थूलभद्राचार्य ने सुना तो वे भी दर्शनार्थ आये । अरे ! तुमने ये कौनसा भेष बना रखा है ? ये अनुचित है ? मैं बहुत लज्जित हूँ आचार्य ! परन्तु करते ? समय इतना खराब था कि जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। और पूरी घटना कह सुनायी, तब विशाखाचार्य के समझाने पर वे भी कपड़े छोड़कर मूलस्वरूप में आ गये । परन्तु कुछ युवा साधुओं ने ऐसा नहीं किया, उन्होंने भ्रष्ट रहकर अपना अलग मत चलाया। तब से महावीर के शासन में भेद हुआ। हा ! हा! जिनशासन की ये दुर्दशा देखी नहीं जाती । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ | 27 चन्द्रगुप्त को मुनिसंघ में न पाकर अनेक नगरवासियों को शङ्का हुई - आश्चर्य! हमारे राजा भी 13 वर्ष पूर्व इस /कौन? वही चाणक्य का शिष्य, मगध संघ के साथ दक्षिण गये थे, लेकिन वे नरेश, उज्जैनी का सिरताज, सम्राट अब दिख नहीं रहे.. शिरोमणि चन्द्रगुप्त! चलो! विशाखाचार्य से ही पूछते हैं? USA HERS S8615205 । इस काल के अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु की अभूतपूर्व चिरस्मरणीय सेवा एवं गुरुभक्ति के भाव रखते हुए चन्द्रगुप्त क्या? श्रवणबेलगोला में भद्रबाहु की समाधि कराने के बाद स्वयं भी अपनी देहयात्रा सम्पन्न की) ने भी... हाँ! अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु !! लेकिन ये विभाजन? आखिर कब तक और कहाँ तक? IN 10: Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्मशिनर पशु से परमात्मा बनने की कला आत्मकल्याण का अधिकार मात्र मनुष्यों को ही नहीं, अपितु पशुपक्षियों को भी है | जैन पुराणों में ऐसे सैकड़ों उल्लेख प्राप्त हैं। भगवान महावीर ने शेर की पर्याय में, भगवान पार्श्वनाथ ने हाथी की दशा में आत्मकल्याण का मङ्गल प्रारम्भ किया।ये प्रसङ्ग सर्वविदित है - __ यह हाथी भगवान पार्श्वनाथ का जीव है, क्रोध से अन्ध बनकर यह हाथी अनेक मनुष्यों का घात करने में तत्पर था। इतने में इसने एक मुनिराज को देखा | मुनिराज के दर्शन से उसे जातिस्मरणज्ञान हुआ, इतना ही नहीं उनके उपदेश से उसे सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ। मदोन्मत्त हाथी मुनिराज के सङ्ग से धर्मात्मा होकर परमात्मा पार्श्वनाथ बन गया। अहा धन्य मुनिराज का उपदेश! धन्य हाथी की सत्पात्रता!! (- सम्यग्दर्शन, भाग-८) Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकाल की रेखाएँ Available At - INDIA - Teerthdham Mangalayatan, Sasni-204216, Aligarh (U.P.) e-mail: info@mangalayatan.com Pandit Todarmal Smarak Bhawan, A-4, Bapu Nagar, Jaipur-302015(Raj.) Shri Hiten A. Sheth, Shree Kundkund-kahan Parmarthik Trust 302, Krishna-Kunj, Plot No. 30, Navyug CHS Ltd., V.L. Mehta Marg, Vile Parle (W), Mumbai - 400056 e-mail: vitragva@vsnl.com / shethhiten@rediffmail.com – Shri Kundkund Kahan Jain Sahitya Kendra, Songarh (Guj.) - Vitrag Sat Sahitya Prasarak Trust, 580, Old Manekwadi, Bhavnagar - 364007 (Guj.) e-mail: jain 92002@yahoo.com U.S.A. SECRETARY, DIG. JAIN SWADHIAYA MANDIR SONGARH 304, Tall Oak Trail, Tarpon Springs, Florida 34688, U.S.A. e-mail: kahanguru@hotmail.com - DR. KIRIT P. GOSALIYA 14853, North 12th Street, Phoenix, Arizona, 85022 U.S.A. e-mail: digjain@aol.com Smt. JYOTSANAV. SHAH 602, Hamilton Ave., Kingston, PA 18704-5622, U.S.A. e-mail: jyotsana2@yahoo.com U.K. ---- PRESIDENT, SHRI DIGAMBER JAIN ASSOCIATION 1, The Broadway, Wealdstone, Harrow, Middlesex, HE3 7EH, U.K. - SMT. SHEETAL V. SHAH Flat No. 9, Maplewood Court, 31-Eastbury Ave., Northwood, Middlesex, U.K. (HA6 3LL) e-mail: sheetalvs@aol.com KENYA PRESIDENT, DIG. JAIN MUMUKSHU MANDAL-NAIROBI M/s. Coblantra Ltd., G.P.0.00100, P.O.Box-41619, Nairobi, Kenya e-mail: spraja@mitsuminet.com UGG UCIUSET ERITT Garima Creations, New Delhi Page #32 -------------------------------------------------------------------------- _