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॥ अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
॥ योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ॥
॥ कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ॥
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
Websiet : www.kobatirth.org Email: Kendra@kobatirth.org
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पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद
राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
श्री
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक : १
महावीर
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर - श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स: 23276249
जैन
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।।
॥ चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
अमृतं
आराधना
तु
केन्द्र कोबा
विद्या
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卐
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355
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जैन साहित्य संशोधक ग्रन्थनाला
आचाराङ्ग-सूत्रम्
मूलपाठ - विशिष्ट पाठभेद - शब्दकोष - समन्वितम्
( प्रथमः श्रुतस्कन्धः )
जैन साहित्य संशोधक समिति
पूना शहर, (दक्षिण)
नम्र सूचन
इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें.
JAINA-SAHITYA-SAMSODHAKA - GRANTHAMALA.
ACHARANG-SUTRAM"
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[ FIRST SRUTASKANDHA. ]
Text in Devanagari with various readings and a glossary.
Based upon the German edition of Dr. Walter Schubring, Leipzig.
Published by
Mahavira Samvat 2450. ]
THE JAINA SAHITYA SAMSODHAKA SAMITI.
Poona City (India
1924.
[ Vikrama Samvat 1980.
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पुण्य स्मरण अन धन्यवाद
-
आ ग्रन्थ प्रकाशित करवा माटे, अमदावा निवासी स्वर्गस्थ सेठ कालिदास मल्लीचंदनी धर्मपत्नी श्राविका मंगुबाइए, पोताना पतीना पुण्यस्मरणार्थ जे द्रव्य सहायता आपी छे, ते बदल तेमने धन्यवाद घटे छे.
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आचाराङ्ग-सूत्र
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जैन साहित्यसंशोधक ग्रन्थमाला
आचाराङ्ग-सूत्रम् मूलपाठ-विशिष्ट पाठभेद-शब्दकोष-समन्वितम्
(प्रथमः श्रुतस्कन्धः)
-DRE
जर्मनराष्ट्रनिवासि-डॉक्टर-इत्युपाधिधारि-वाल्टर शुबिंग-नामधेयेन विद्वद्वरेण संशोधितं, जर्मन-देशान्तर्गत-लाइजिग-नगर संस्थितप्राच्यविद्या-गवेषक समितिद्वारा रोमनलिप्यां
प्रकटभूितं च पुस्तकमनुसृत्य
भारतवर्षान्तर्गतपुण्यपत्तन-संस्थापित
जैन साहित्य संशोधक समिति नामकसंस्थायाः सञ्चालकेन देवनागराक्षरैः प्रकटी कृतम्
महावीर निर्वाणाब्द २४५०]
[विक्रम संवत्सर १९८०.
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प्रकाशक:-मुनि तिलकविजय, भारत जैन विद्यालय, पूना शहर. मुद्रकः-लक्ष्मण भाऊराव कोकाटे, हनुमान प्रेस, ३०० सदाशिव पेठ, पना शहर.
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॥ आयारंग-सुत्तं ॥
॥ ' बम्भचेराई' नाम पढमो सुयक्खन्धो ॥ सत्थ परिन्ना
१-१
(१) सुयं मे, आउ, तेण भगवया एवमक्खायं:
इमेसिनो सन्ना भवर, (२) तं-जहा: 'पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ...., पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ...., उत्तराओ वा दिसाओ...., उड्डाओ वा दिसाओ...., अहेदिसाओ वा...., अन्नयरीओ वा दिसाओ वा अणुदिताओ वा आगओ अहमंसि' - एवमेगेसिं नो नायं भवइः (३) 'अत्थि मे आया उववाइए, नत्थि मे आया उववा - 5 इए ? के अहं आसी के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ? ' । ( ४ ) से ज्जं पुण जाणेज्जा सह-सम्मुइयाए पर वागरणेणं अन्नेसिं वा अन्तिए सोच्चा, तं जहा :- ' पुरत्थमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि जाव अन्नयरीओ वा दिसाओ वा अणुदिताओ वा आगओ अहमंसि ' - एवमेगेसिं नायं भवइ :- अत्थि मे आया उववाइए; जो इमाओ दिसाओ अणुदिसाओ वा अणुसंचर, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणु 10 दिसाओ सोsहं ' ।
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( ५ ) से आया-वाई लोगा बाई कम्मा - वाई किरिया -वाई य ।
' करिस्तं च 'हं कारावेस्सं च'हं करओ यावि समणुन्ने भविस्सामि' – एयावन्ती सव्वावन्ती लोगंसि कम्म-समारम्भा परिजाणियव्वा भवन्ति । ( ६ ) अपरिन्नाय कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अणुदिसा सहेर, 15 अग-वाओ जोणीओ सन्धेइ, विरूव-रूवे फासे पडिसंवेएइ । ( ७ ) तत्थ खलु भगवया परिन्ना पवेइया इमस्स चेव जीवियस्स परिवन्दण माणण-पूयणाए, जाइ- मरण- मोयणाए दुक्ख-पडिघाय-हेडं—एयावन्ती सव्वावन्ती लोगंसि कम्मसमारम्भा परिजाणिव्वा भवन्ति । जस्से'ए लोगंांसि कम्म-समारम्भा परिन्नाया भवन्ति, से हु मुणी परिन्नाय -कम्मे —त्ति बेमि ॥
१-२
( १ ) अट्टे लोए परिजुष्णे दुस्संबोहे अविजाणए ।
स लोए पहिए
तत्थ तत्थ पुढो पास आउरा परियावन्ति ।
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आयारंग-सुत्तं
[ उद्दे० ३
(२) सन्ति पाणा पुढो-सिया ।
लजमाणा पुढो पास । " अणगारा मो" त्ति एगे पवयमाणा ।
जनिणं विरूव-रूवेहिं सत्थोहिं पुढवि-कम्मसमारम्भेणं पुढवि-सत्थं समारम्भमाणे अन्ने 5व' णेगरूवे पाणे विहिंसइ-( ३ ) तत्थ खलु भगवया परिन्ना पवेइया इमस्स चेव जीविस्स परिवन्दण-माणण-पूयणाए, जाइ-मरण-मोयणाए दुक्ख-पडिघाय-हेउं - से सयमेव पुढवि-सत्थं समारम्भइ अन्नेहिं वा पुढवि-सत्थं समारम्भावइ अन्ने वा पुढवि-सत्थं समारम्भन्ते समणुजाणइ; ( ४ ) तं से अहियाए, तं से अबोहीए । से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं,
समुट्ठाए - सोच्चा खलु भगवओ अणगारणं वा अन्तिए इहमेगेसिं नायं भवइ : एस खलु 10 गन्थे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए ।
इच्चत्थं गढिए लोए । जमिणं विरूव-रूवेहिं सत्यहिं पुढवि-कम्मसमारम्भेणं पुढवि-सत्थं समारम्भमाणे अन्ने वणे ग-रूवे पाणे विहिंसइ
(५) से बेमिः अप्पेगे अच्चमब्भे,अप्पेगे अच्चमच्छे:अप्पेगे पायमब्भे,अपेगे पायमच्छे.... 15 गुप्फ....जघं....जाणुं....ऊरु .... कडिं....नाभिं ....उयरं ....पासं ....पिट्टि....उरं....हिययं.... थणं....खन्धं....बाहुं....हत्थं....अंगुलिं....नहं....गीवं....हणुं....होहूं....दन्तं....जिब्भं....तालुं ....गलं....गण्डं....कणं....नासं....अच्छि....भमुहं....निलाडं....सीसं...., अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए।
(६) एत्थ सत्थं समारम्भमाणस्स इच्चेए आरम्भा अपरिन्नाया भवन्ति, एत्थ सत्थं 20 समारम्भमाणस्स इच्चेए आरम्भा परिन्नाया भवन्ति । तं परिन्नाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्थं
समारभेजा नेव'न्नेहिं पुढवि-सत्थं समारम्भावेजा नेव'न्ने पुवि-सत्थं समारभन्ते समणुजाणेज्जा। जस्से'ए पुढवि-कम्म-समारम्भा परिन्नाया भवन्ति, से हु मुणी परिन्नाय-कम्मे -त्ति बेमि ॥
(१) से बेमि : से जहा वि
अणगारे उज्जुकडे नियाग-पडिवन्ने अमायं कुब्वमाणे वियाहिए। 25 (२) जाए सद्धाएँ निक्खन्तो, तमेव अणुपालिया;
___ वियहित्तु विसोतियं पणया वारा महा-वीहिं लोगं च आणए अभिसमेच्चा अकुओभयं ।
(३) से बेमि:-ने'व सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा । जे लोगं 30 अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ, जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ ।
(४-६) 'लज्जमाणा....( यथा पं० २-१३. नवरं पुढवि स्थाने उदय भणनीयं )... विहिंसइ
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उद्दे० ४-५. ]
पढमं अज्झयण
सन्ति पाणा उदय निस्सिया जीवा अणेगा । इह च खलु भो अणगाराणं उदयं जीवा वियाहिया । सत्थं चेत्थ अणुवीs, पास पुढो सत्थं पवेइयं :
( ७ ) से बेभि:
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अदु वा अन्ना' याणं :
66
णे पाउं",
णे कप्पइ
कप्पइ
अदुवा विभूसा
पुढो सत्थेहिं विट्टन्ति । एत्थ वि तासं नो निकरणाए । (८) एत्थ सत्थं .... ( यथा २, १९ - २२. नवरं पुढवि स्थाने उदय भणनीयं )... परिन्नाय - कम्मे -चि बेमि ॥
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संजा सयाजए हिंसया अप्पमत्तहिं :
१-४
( १-२ ) से बेमि : नेव सयं... ( यथा २, २९ - ३० . ) ... लोगं अब्भाइक्खर । जे दीलोग - सत्थस्त खेयन्ने, से असत्थस्स खेयन्ने; जे असत्थस्स खेयन्ने, से दीह लोग - सत्थस्स खेयन्ने | 10 ( ३ ) वीरेहिं एयं अभिभूय दिट्ठ
5
जे पते गुणट्ठिए, से हु दण्डे पच्चर ; तं परिन्नाय मेहावी " इयाणि नो, जमहं पुव्वमकासी पमाएणं " ।
15
( ४ - ५ ) ' लज्जमाणा ... ( यथा २, २ - १३. नवरं पुढवि स्थाने अगणि भणनीय ) ..... विहिंसइ---
( ६ ) से बेमि: सन्ति पाणा पुढवि - निस्सिया तण निस्सिया पत्तनिस्सिया कट्ट- निस्तिया गोमय - निस्सिया कयवर - निस्सिया, 'सन्ति संपाइमा पाणा, आहच संपयन्ति य' । अगाणं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावज्जन्ति; जे तत्थ संघायमावज्जन्ति, ते तत्थपरियाविज्जन्ति; जे तत्थ परि- 20 याविज्जन्ति, ते तत्थ उद्दायन्ति ।
....
( ७ ) एत्थ सत्थं .... ( यथा २, १९-२२. नवरं पुढवि स्थाने अगणि भणनीयं ). परिन्नाय -कम्मे - ति बेमि ॥
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१-५
( १ ) " तं नो करिस्सामि समुट्ठाए मत्ता मइमं अभयं विज्ञता ।
25
तं जे नोकरए, एसोवरए; एत्थोवरए एस अणगारे त्ति पवच्च । ( २ ) जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे : उ अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रुवाई पास, सुणमाणे सद्दाई सुणइ; (३) उड्डुं अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छ्इ सद्देसु यावि । एत्थ अगु अणाणाए । एस लोए वियाहिए
पुणो-पुणो गुणासाएवं समायारे पत्ते गारमावसे ।
30
(४-५) 'लज्जमाणा.... ( यथा २,२-१३. नवरं पुढवि स्थाने वणस्स भणनीयं ) ... विहिंस -
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आयारंग सुत्तं
[उद्दे० ६-७.
(६) से बेमि : इमं पि जाइ-धम्मयं, एयं पि जाइ-धम्मयं; इमं पि वुद्धि-धम्मयं, एयं पि बुद्धि-धम्मयं;....चित्तमन्तयं....छिन्नं मिलाइ....आहारगं....अनिच्चयं....असास्यं.... चयावचइयं....विपरिणाम-धम्मयं ।।
(७) एत्थ सत्थं.... ( मथा २, १९-२२. नवरं पुढवि स्थाने वणस्सइ भणनीयं ) .... 6 परिन्नाय-कम्मे-त्ति बेमि ॥
10
१-६ (१) से बेमि : सन्ति'मे तसा पाणा, तं-जहा:-अण्डया पोयया जराउया रसया संसेयया सम्मुच्छिमा उब्भिया उववाइया।
एस संसारे ति पवुच्चइ (२) मन्दस्स अविजाणओ।
निज्झाइत्ता पडिले हित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं सव्वेसि पाणाणं, सव्वेसि भूयाणं, सव्वेसि जीवाणं, सव्वेसि सत्ताणं असायं अपरिणिव्वाणं ।
महब्भयं दुक्खं ति बेमि"।
तसन्ति पाणा पदिसो दिसासु य । तत्थ-तत्थ पुढो पास आउरा परियावेन्ति । (३) सन्ति पाणा पुढो-सिया। 18 (४) 'लज्जमाणा .... ( यथा २,२-१३. नवरं पुढवि स्थाने तसकाय भणनीय ) .... विहिंसइ
(५) से बेमि : अप्पेगे अचाए हणन्ति, अप्पेगे अजिणाए वहन्ति,....मसाए....सोणियाए...., एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दन्ताए दाढाए. नहाए हारुणीए अट्ठीए अद्विमिजाए-अट्ठाए अणढाए; अप्पेगे 'हिंसिसु मे' त्ति वा वहन्ति, अप्पेगे 'हिंसन्ति मे' त्ति वा वहन्ति, अपेगे 'हिसिस्सन्ति मे' त्ति वा वहन्ति ।
( ६ ) एत्थ सत्थं....( यथा २,१९-२२. नवरं पुढवि स्थाने तसकाय भणनीयं ).... परिन्नायकम्मे-त्ति बेमि ॥
-
१
-७
(१) पहू य एजस्सदुगुञ्छणाए ।
आयंक दंसी 'अहिय' ति नचा। 25 जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ; जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ : एयं तुलं अन्नसि ।
इह सन्ति-गया दविया नावकंखन्ति जीविउं । (२-३)' लजमाणा.... ( यथा २, २-१३. नवरं पुढवि स्थाले वाउ भणनीयं )....विहिंसइ
(४) से बेमिः 30 ..
सन्ति संपाइमा पाणा, आहच्च संपयन्ति य ।
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NownAAN
उहे. १.]
विईमं अज्झयणं फरिसं च खलु पुट्ठा .... ( यथा ३, १९-२१) .... उद्दायन्ति । (५) एत्थ सत्थं .... ( यथा २, १९-२२ नवरं पुढवि स्थाने वाउ भणनीयं ).... परिन्नाय-कम्मे-त्ति बेमि ॥
(६) एत्थं पि जाणे उवाईयमाणा जे आयारे न रमन्ति,
आरम्भमाणा विणयं वयन्ति; छन्दोवणीया अज्झोववन्ना
आरम्भसत्तां पकरेन्ति संग। से वसुमं सव्व-समन्नागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज पाबं कम्मन्तं नो अन्नेसि ।
(७) तं परिन्नाय मेहावी .... ( यथा २, २०-२२ नवरं पुढवि स्थाने छाजीवनिकाय 10 भणनीय) परिन्नाय-कम्मे-त्ति बेमि ॥
लोग वि ज ओ
२-१ (१) जे गुणे से मूल-हाणे, जे मूल-टाणे से गुणे ।
इति से गुणट्ठी
महया परियावेण वसे पमत्ते, तं-जहा:- 'माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, 16 सुण्हा मे, सहि-सयण-संगन्थ-संथुया मे, विचित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण'च्छायणं मे' 'इच्चत्थं गढिए लोए'। ' वसे पमत्ते'
___ अहो य राओ परितप्पमाणे कालाकाल-समुट्ठाई संजोगट्ठी अस्थालोभी आलुम्पे
सहसाकारे विनिविट्ठ-चित्ते 'एत्थ सत्थे पुणो-पुणो'।
(२) अप्पं च खलु आउं इहमेगास माणवाणं, तं-जहा:-सोय-परिन्नाणेहिं परिहायमाणेहिं, चक्खु-प० प०, घाण- प० प०, रस-प० प०, फास-प० ५०, अभिकन्तं च खलु वयं संपेहाए-तओ से एगया मूढभावं जणयन्ति; जेहिं वा सद्धि संवसइ, ते व णं एगया नियगा पुचि परिवयन्ति सो वा ते 25 नियगे पच्छा परिवएज्जा।।
नालं ते तव ताणाए वा सरणा ए वा, तुमम्पि तेसि नालं ताणाए वा सरणाए वा । ( ३ ) ' से न हस्साए, न किड्डाए,न रईए,न विभूसाए' इच्चेवं समुट्ठिए 'अहो विहाराए'। अन्तरं च खलु इमं सॅपेहाए
धीरे मुहुत्तमवि नो पमायए; वओ अच्चेइ जोन्वणं च जीविए
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मायारंग- सुप्तं
इह जे पमत्ता, -
से हन्ता छेता भेत्ता लुम्पिता विलुम्पित्ता उद्दवेत्ता उत्तासत्ता ' अकडं करिस्सामि ' ति मन्नमाणे । जो वा ..... ( यथा ५, २५-२८. नवरं परिवयन्ति तथा परिवएजा स्थाने पोसेन्ति तथा पोसेज्जा भणनीयं ) .... सरणाए वा । ( ४ ) उवाईय - सेसन्तेण वा सन्निहि- सन्निचओ कज्जइ 6इहमेगिस माणवाणं भोयणाए । तओ से एगया रोग - समुप्पाया समुप्पज्जन्ति; जहि वा ( यथा ५, २५-२८. नवरं परिहरन्ति तथा परिहरेजा पठनीयं ) ... सरणाए वा । (५) जाणित दुक्खं पत्तेय - सायं
रस-प० अ०,
घाण प० अ०, "
अणभिक्कन्तं च खलु वयं सपेहाए खणं जाणाहि पण्डिए जाव सोत्त-परिनाहिं अपरिहायमाणोहिं, नेत्त-प० अ० फास-प० अ०; इच्चेएहिं विरूव-रूवेहिं परिन्नाणेहिं अपरिहायमाणेहिं । आय सम्मं समणुवासेज्जासि-त्ति बेमि ॥
10
२-२
( १ ) अरई आउट्टे से मेहावी;
खणंसि मुक्के अणाणाए
पुट्ठा वि एगे नियट्टन्ति मन्दा मोहेण पाउडाः
" अपरिग्गहा भविस्सामो " समुट्ठाए लद्धे कामे' भिगाइ । अणाणाए मुणिणो पडिलेहन्ति; एत्थ मोहे पुणो पुणो
सन्ना नो हव्वाए नो पाराए ।
विमुता हु ते जणा, जे जणा पार-गामिणो । लोभ अलोभेण दुगुञ्छमाणे
लद्धे कामे नो' भिगाइ ।
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वित्तु लोभ निक्खम्म
[ उद्दे० २-३
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....
एस अकम्मे जाणइ पासर, पडिलेहाए नावकखइ, एस अणगारे ति पवुच्चर |
25
( २ ) ' अहो य राओ.... ( यथा ५, १९ - २१ ) .... पुणो-पुणो से आय-बले, से ना - बले, सेमित्त - बले, से पेच्च बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अइहि-बले, से किवण - बले, से समण-बले, ( ३ ) इच्चेएहिं विरूव-रूवेहिं कज्जेहिं दण्ड- समायाणं संपेहाए भया कज्जइ ' पाव- मोक्खो' ति मन्नमाणे अदु वा आसंसाए । तं परिन्नाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दण्डं समारम्भेज्जा, नेव'न्नं एएहिं कज्जेहिं दण्डं समारम्भा वेज्जा, नेव'न्नं 30 एएहिं दण्डं समारभन्तं समणुजाणेज्जा । एस मग्गे आरिएहि पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिप्पेज्जासि-त्ति बेमि ॥
२-३
( १ ) से असई उच्चा - गोए, पहिए ! इति संखाए के गोया - वाई,
असई नीया - गोए, नो होणे, नो अइरिते : नो माणा - वाई, कंसि वा एगे गिज्झे ? ( २ ) तम्हा
के
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10
उद्दे० ४.]
बिईयं अज्झयणं पण्डिए नो हरिसे, नो कुज्झे
भूएहिं जाण पडिलेह सायं
समिए एयाणुपस्सी, तं-जहा : अन्धत्तं बहिरतं मूयत्तं काणत्तं कुण्टत्तं खुज्जतं वडभत्तं सामतं सबलतं, सह पमाएणं अणेग-रूवाओ जोणी मो संधेइ,विरूव-रूवे फासे पडिसंवेएइ । (३) से अबुज्झनाणे हओवहए ।
जाई-मरणं अणुपरियट्टमाणे। जीवियं पुढो पियं इह मेगेसि माणवाणं खेत-वत्थु ममायमाणाणं; आरतं विरतं माणकुण्डलं सह हिरण्णेणं, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता, न एत्थ तवो वा दमो वा नियमो वा दिस्सइ;
संपुण्णं बाले जीविउ-कामे लालप्पमाणे
मूढे विप्परियासु'वेइ। ( ४ ) इणेमव नावकंखन्ति जे जणा धुव-चारिणो;
जाई-मरणं परिन्नाय चरे संकमणे दढे।
नत्थि कालस्सणागमो-सव्वे पाणा पिया'ऊया सुह-साया दुक्ख-पडिकूला .
15 अप्पिय-वहा पिय-जीविणो जीविउ-कामा। सबोस जीवियं पियं, (५) तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं
__ अभिजुञ्जियाणं संसंचियाणं तिविहेणं-जा वि से तत्थ मत्ता भवइ अप्पा वा बहुगा वा, से तत्थ गढिए चिट्ठइ भोयणाए । तओ से एगया विपरिसिह संभूयं महोवगरणं भवइ, तं पि से एगया दायादा विभ-20 यन्ति, अदत्तहारो वा से अवहरइ, रायाणो वा से विलुम्पन्ति; नस्सइ वा से, विनस्सइ वा से, अगार-दाहेण वा से डज्झइ । इति से परस्सद्वाए
कूराई कम्माई बाले पकुब्वमाणे
तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ । मुणिणा हु एयं पवेइयं :
25 _ अणोहन्तरा एए, नो य ओहं तरित्तए; अतीरंगमा एए, नो य तीरं गमित्तए ; अपारंगमा एए, नो य पारं गमित्तए ।
आयाणिजं च आयाय तम्मि ठाणे न चिट्ठइ,
वितहं पप्प'खेयन्ने तम्मि ठाणम्मि चिट्ठइ । उद्देसो पासगस्स नत्थि; बाले पुण निहे काम-समणुन्ने असमिय-दुक्खे दुक्खी 30 दुक्खाणमेव आवट्टमणुपरियट्टइ-त्ति बेमि ॥
(१) तओ से एगया....( यथा ५, १५-२८. नवरं परिहरन्ति तथा परिहरेज्जा स्थाने
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MAAN
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आयारंग-सुतं
[उद्दे० ५. परिच्चान्ति तथा परिचएन्जा भणनीयं )... सरणाए वा ।
(२) जाणितु दुक्खं पत्तये-सायं भोगामेव अणुसोयन्ति-इह मेगसिं माणवाणं-तिविहेणं....(यथा७,१९-२२.नवरं अवहरइ स्थाने हरइ भणनीयं )....विप्परियासुवेइ':--
(३) आसं च छन्दं च विगिंच धीरे, तुम चेव,
तं सलं आह? जेण सिया, तेण नो सिया ।
इणमेव नावबुज्झन्ति जे जणा मोह-पाउडा । थीभि लोए पव्वहिए; ते भो वयन्तिः " एयाई आययणाई"। से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नल-तिरिक्खाए ! सययं मूढे धम्मं नाभिजाण । 10
___ उयाहु वीरेः अप्पमाओ महा-मोहे ! ( ४ ) अलं कुसलस्स पमाएणं सन्ति-मरणं संपेहाए, भेउर-धम्म संपेहाए !
" नालं पास "-अलं तव एएहिं ! एयं पास, मुणी, महब्भय, नाइवाएज्ज कंचणं । एस वीरे' पसंसिए, जे न निविज्जइ आयाणाए:
'न मे देइ ' न कुप्पेजा, थोवं लध्दं न खिंसए, पडिसेहिओ परिणमेजा। एवं मोण समणुवासेज्जासि-त्ति बेमि ॥
16
२-५ (१) जमिणं विरूव-रूवेहिं सत्यहिं लोगस्स कम्म-समारम्भा कज्जन्ति, तं-जहाः अप्पणो से पुत्ताणं धूयाणं सुण्हाणं नाईणं धाईणं राईणं दासाणं दासीणं कम्म-कराणं कम्म20 करीणं आएसाए, पुढो पहेणाए, सा'मासाए पायरासाए सन्निहि-सन्निचओ कजइ ( २ ) इह भेगेसिं माणवाणं भोयणाए
समुट्ठिए अणगारे आरिए आरिय-पन्ने आरिय-दंसी 'अयं संधी ' ति अदक्खु से नाइए नाइयावए न समणुजाणाइ ।
सव्वामगन्धे परिन्नाय निरामगन्धे परिव्वए । (३) अदिस्समाणे कय-विक्कएसु से न किणे, न किणावए, किणन्तं न समणुजाणए । से भिक्खू कालन्ने बलन्ने मायने खेयन्ने खणयन्ने विणयन्ने स-समयन्ने पर-समयन्ने भावन्ने,
परिग्गह, अममायमाणे, काले'णुढाई अपडिन्ने, दुहओ छित्ता नियाइ ।
वत्थं पडिग्गई, कम्बलं पाथ-पुञ्छणं ओग्गहं च कडासणंः
25
(३)अनिल
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उद्दे ६०. ]
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विइयं अज्झयणं
एएस व जाज्जा
द्वे आहारे अणगारो मायं जाणेज्जा
परिहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा, अन्नहा णं पास पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिप्पज्जासि — त्ति बेमि ।
से जहे यं भगवया पवेइयं :
लाभो ' त्ति न मज्जेज्जा, अलाभो ' ति न सोयए, बहु पि ल न नि ।
परिहरेज्जा । एस मग्गे आरिएि
२
( ४ ) कामा दुरइकमा, जीवियं दुप्पडिवूहणं; काम-कामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ जूरह तिप्पर पिट्ट परितप्पर । आयय-चक्खू लोग-विपस्सी
10
लोगस्स अहे - भागं जाणइ, उड्डुं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ गढिए अणुप
रियट्टमाणे;
संधि विइत्ता इह मच्चिएहिं
6 एसवीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए ' ।
1
( ५ ) जहा अन्तो तहा वाहिं, जहा बाहिं तहा अन्तो । अन्तो- अन्तो पूइ-देह- 16 न्तराणि पास पुढो विसवन्ताई पण्डिए पडिलेहाए,
से मइमं परिन्नाए ।
माय हु लाल पच्चासी,
मा तेसु तिरिच्छं अप्पाणं आवायए । कासंकसेयं खलु पुरिसे, बहु-ताई, कडेण मूढे पुणो तं करेइ लोभ
20
वेरं वेहि अप्पणी । जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए
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अमराय महा सड्डी,
अमेयं तु पेहार अपरिनाऍ कन्दर;
""
'से तं जाणह, जमहं बोम ! "
जस्स वि य णं करेइ,
अलं बालस्स संगेणं, जेवा से कारे, बाले ।
25
( ६ ) इच्छं पण्डिए पवयमाणे । से हन्ता छेता भेत्ता लुम्पिता विलुम्पिता उद्दव - इता ' अकडं करिस्सामि ' त्ति मन्त्रमाणे ।
5
न एवं अणगारस्त जायइ-त्ति बेमि ||
२-६
( १ ) से तं संबुज्झमाणे आयाणयिं समुट्ठाए - तम्हा पावं कम्मं
नेव कुंजा न कारये ।
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आयारंग-सुत्तं
[उद्दे०६
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सिया तत्थे गयरं विपरामुसइ,
छसु अन्नयरम्मि कप्पा । सुहट्ठी लालप्पमाणे ___सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ ।
सएण वि प्पमाएणं पुढो वयं पकुव्वइ, जास मे पाणा पवाहिया । पडिलेहाए " नो निकरणाए :
एस परिन्ना पवुच्चइ, कम्मोवसन्ती । जे ममाइय-मई जहाइ, से जहाइ ममाइयं; से हु दिट्ठ-भए मुणी, जस्स नस्थि ममाइयं । तं परिन्नाय मेहावी . विइत्ता लोग, वन्ता लोग-सन्नं
___ से मइमं परक्कमेज्जासि–ति बेमि। ( ३ ) नारई सहए वीरे, वीरे नो सहए रई;
जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जई । सद्दे य फासे अहियासमाणे ।
निम्विन्द नन्दि इह जीवियस्स । मुणी मोणं समायाय धुणे कम्म-सररिंग;
पन्तं लुहं सेवन्ति वीरा सम्मत्त-दंसिणो ।
एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए --त्ति बेमि । 80 (४) दुव्वसु-मुणी अणाणाए तुच्छए गिलाइ वट्टए: 'एस वीरे पसंसिए', 'अच्चेइ लोग-संजोगं, एस नाए पवुच्चइ'; जं दुक्खं पवेइयं 'इह माणवाणं' तस्स 'दुक्खस्स कुसला परिन्नं उदाहरन्ति ': (५) ' इति कम्म परिन्नाय सव्वसो' जे अणन्न-दंसी से अणन्नारामे, जे अणन्नारामे से अणन्न-दंसी:
जहा पुण्णस्स कत्थई, तहा तुच्छस्स कत्थइ । 25 जहा तुच्छस्स कथई, तहा पुण्णस्स कथई । अवि य हणे अणाइय माणेः
एथम्पि जाणः सेयं ति नत्थि " केयं पुरिसे कं च नए ? !" ' एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए !'
उर्दू अहं तिरियं दिसासु, से सव्वओ सव्व-परिन्न-चारी ।
. न लिप्पई छण-पएण वीरे। से मेहावी, जे अणुग्घायणस्स खयन्ने, जे य बन्ध-पमोक्खमन्नेसीः
___कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के से ज्जं च आरभे जं च नारभे !
(५) अणारद्धं च नारभे,
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उद्दे० १.]
तइयं अज्झयणं छणं-छणं परिन्नाय लोग-सन्नं च सव्वसो । उद्देसो पासगस्स...( यथा ७,३०.) ... आवट्ट अणुपरियट्टइ-त्ति बेमि ॥
सी ओ स णि जं
10
(१) सुत्ता अमुणी, मुणिणो सययं जागरन्ति;
लोगंसि जाण अहियाय दुक्खं ।
समयं लोगस्स जाणित्ता एत्थ सत्थोवरए । जस्सि'मे सदा य रूवा य गन्धा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवन्ति, (२) से आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बम्भवं, पन्नाणेहिं परिजाणइ लोगं ।
मुणी ति वच्चे, धम्मविउ त्ति अनु,
आवट्ट-सोए संगमिणं'भिजाणइ । सीओसिण-चाई से निग्गन्थे अरइ-रइ-सहे फरुसियं नो वेएइ ।
जागर-वेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमोक्खसि । (३) जरा-मच्चु-वसोवणीए नरे, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ । पासिय आउरे पाणे अपमत्तो परिव्वए । मन्ता एवं अहियं ति पास
15 आरम्भजं दुक्ख मिणं ति नच्चा
माई पमाई पुनरइ गभं । उवेहमाणो सह-रूवेसु उज्जू
माराभिसंकि मरणा पमुच्चइ । अप्पमत्तो कामेहिं, उवरओ पाव-कम्मे हि, वीरे आय-गुत्ते, जे खेयन्ने । ( ४ ) जे 20 पज्जवजाय-सत्थस्स खेयन्ने; से असत्थस्स खेयन्ने; जे असत्थस्स खेयन्ने, से पज्जवजायसत्थस्स खेयन्ने ।
अकम्मस्स ववहारो न विज्जह कम्मुणा उवाही जायद ।
कम्मं च पडिलेहाए कम्म-मूलं च जं छणं पडिलेहिय, सव्वं समायाय
दोहिं अन्तेहिं अदिस्समाणे । तं परिन्नाय मेहावी विइत्ता लोग, वन्ता लोग-सन्नं
से मइमं परकमेज्जासि-ति बेमि ॥
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आयारंग-सुतं
[उद्दे०२
15
३-२ १. जाई च बुद्धिं च इह'ज्ज पास,
भएहिं सायं पडिलेह जाणे; तम्हा'इविज्जो 'परमं' ति नच्चा
सम्मत्त-दंसी न करेइ पावे ॥ २. उम्मुञ्च पासं इह मच्चिएहिः
आरम्भ-जीवी उभयाणुपस्सी कामेसु गिद्धा निचयं करेन्ति,
संसिच्चमाणा पुनरेन्ति गब्भं ॥ ३. अवि से हासमासज्ज ' हन्ता नन्दी' ति मन्नइ ।
अलं बालम्स संगेण, वेरं वड्डइ अप्पणो । ४. तम्हा' इविज्जं 'परमं ' ति नच्चा
आयक-दंसी न कोइ पावं; अगं च मुलं च विगिच्च धीरे
पलिच्छिन्दियणं निकम्म-दंसी ॥ (१) एस मरणा पनुच्चइ, से हु दिट्ठ-भए मुणी;
___ लोगसि परम-दंसी विवित्त-जीवी उवसन्ते समिए सहिए सया जए
कालखी परिव्वए। बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं। 20
सच्चम्मि घिई कुव्वहा । एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावं कम्मं झोसेइ । (२) अणेग-चित्ते खलु अयं पुरिसे : से केयणं अरिहइ पूरइत्तए, से अन्न-वहाए अन्न-परियावाए अन्न-परिगहाए, जणवय-वहाए जणवय-परियावाए जणवय-परिग्गहाए ।
(३) आसेवित्ता एयम8 इच्चेवेगे समुट्ठिया;
तम्हा तं बिइयं नो सेवए निस्सारं पासिय नाणी । उववायं चवणं नच्चा अणन्नं चर माहणे । से न छणे न छणावए छणन्तं नाणुजाणए । निम्विन्द नान्द अरए पयासु
अणोमदंसी 30 निसण्णो पावहिं कम्महि ।
५ कोहाइमाणं हणिया य वारे,
___ लोभस्स पासे निरयं महन्तं; तम्हा हि वीरे विरओ वहाओ
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उद्दे०३.]
तइयं अज्झयणं
छिन्देज्ज सोयं लहुभूय-गामी । ६. गन्थं परिन्नाय इह'ज्ज वीरे
सोयं परिन्नाय चरेज्ज दन्ते; उम्मुग्गा लध्दं इह माणहि __ नो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि-त्ति बेमि ॥
(१) संद्धि लोगस्स जाणित्ता
आयओ बहिया पास, तम्हा न हन्ता न वि घायए ।
जमिणं अन्नमन्न-विइगिन्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्म,
किं तत्थ, मुणी, कारणं सिमा ? १. समयं तत्थु वेहाए अप्पाणं विप्पसायए;
अणन्न-परम-न्नाणी नो पमाए कयाइ वि ॥
आय-गुत्ते सथा धीरे जाया-मायाऍ जावए, (२) विरागं रूवेसु गच्छेज्जा महया खुड्डएहि वा ।
आगई गई परिन्नाय
दोहिं वि अन्तेहिं अदिस्समाणे से न छिज्जइ न भिजाइ न डज्झइ,
न हम्मइ (३) कंचणं सव्व लोए। अवरेण पुव्वं न सरन्ति एगे
किमस्स'ईयं किं वा गमिस्स; भासन्ति एगे इह माणवा उः
जमस्स'ईयं तमा गमिस्सं । नाईयमद्धं न य आगमिम्स
अद्धं नियच्छन्ति तहागया उ; विधूय कप्पे एयाणुपस्ति
निज्झोसइत्ता खवए महेसी। २. का अरइ के या'णन्दे ? एथं पि अगहे चरे;
सव्वं हासं परिच्चज्ज अल्लीण-गुत्तो परिव्वए । ( ४ ) पुरिसा ! तुममेव तुमं-मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसी ? जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेजा दूरालइयं; जं जाणेज्जा दूरालइयं; तं आणेज्जा30 उच्चालइयं ।
पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिनिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ।
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१४
आयारंग--सुत्तं
[उद्दे०४४-१.
परिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि ! सच्चस्स आणाए उवट्ठिए मेहावी मारं तरह ।
सहिए धम्ममायाय सेयं समणुपस्सइ । दुहओ : जीवियस्स परिवन्दण-माणण-प्यणाए, जंसि एगे पमायन्ति; सहिए दुक्खमत्ताए पुट्ठो; नो झझाए।
पासिमं दविए लोए लोगालोग-पवञ्चाओ पमुच्चइ-त्तिबेमि ।।
(१) से वन्ता कोहं च माणं च मायं च लोभं च एयं पासगस्स दसणं, उवरयसत्थस्स पलियन्त-करस्स आयाणं सगडभि । जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ; जे सव्वं जाणइ, से एगं जाणइ । सव्वओ पमत्तस्स भयं, सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं । २ जे 'एग' नामे.
से ' बहुं ' नामे; जे 'बहुं ' नामे, से ' एग' नामे। 10
दुक्खं लोगस्स जाणित्ता वन्ता लोगस्स संजोगं
जन्ति वीरा महा-जाणं, परेण परं जन्ति, नावकंखन्ति जीवियं । (३) एग विगिश्चमाणे पुढो विगिञ्चइ, पुढो विगिञ्चमाणे एगं विगिश्चइ ।
सड्डी आणाऍ मेहावी,
लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुओभयं । 16
अस्थि सत्थं परेण परं, नस्थि असत्थं परेण परं : (४) जे कोह-दंसी से माण-दंसी, जे माण-दंसी से माय-दंसी, ....लोभ-दं०.... पेज-दं० .... दोस-दं० .... मोह-दं० ....गम्भ दं०....जम्म-दं० .... नार-दं० .... नस्य-दं० तिरिय-दं० .... दुक्ख-दंसी । से मेहावी अभिनिव्वत्तेज्जा कोहं च माणं च
मायं च लोभं च पेज्जं च दोसं च मोहं च गभं च जम्मं च मारं च नरयं च तिरियं 20च दुक्खं च । एयं .... ( यथा ६.) .... आयाणं निसिद्धा सगडभि । किमथि उवाही
पासगस्स ? न विज्जइ, नन्थि-त्ति बेमि ॥
सम्म तं
(१) से बेमिः जे य अईया जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरहन्ता भगन्वतो, सव्वे ते एवमाइक्खन्ति एवं भासन्ति एवं पन्नवेन्ति एवं परूवेन्तिः-सव्वे पाणा
सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हन्तव्वा न अज्जावेयव्वा न परिघेतवा न परियावेयव्वा 25 न उद्दवेयव्वा । ( २ ) एस धम्मे सुद्धे नितिए सासए समेच्च लोग खेयन्नहिं पवेइए, तं-जहा__ उढिएसु वा अणुट्ठिएसु वा, उवट्टिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा, उवरय-दण्डेसु वा अणुवरयः दण्डेसु वा, सोवहिएसु वा अणुवहिएसु वा, संजोग-रएसु वा असंजोग-रएमु वा ।
तच्चं चेय तहा चेयं, अस्सि चेय पवुच्चइ । (३) तं आइत्तु न निहे, न निक्खिवे, जाणितु धम्मं जहा-तहा ।
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उद्दे०२]
चउत्थे अज्झयणं
दिवहिं निव्वेयं गच्छेज्जा, नो लोगस्से'सणं चरे।
जस्स नत्थि इमा नाई, अन्ना तस्स कओ सिया ? दिलु सुयं मयं विन्नायं, जं एवं परिकहिज्जइ । समेमाणा चलेमाणा ' पुणो-पुणो जाई पकप्पेन्ति'; ' अहो य राओ जयमाणे धीरे,' सया आगय-पन्नाणे ।
पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परकमेज्जासि-त्ति बेमि ॥
16
४-२ (१)जे आसवा ते परिस्सवा, जे परिस्सवा ते आसवा । जे अणासवा ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा ते अणासवा । एए पए संबुज्झमाणे लागं च आणाए अभिसमेच्चा पुढो पवेश्यं
___ आघाइ नाणी इह माणवाणं संसार पडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विन्नाण-पत्ताणं: (२) अट्टा वि सन्ता अदुवा पमत्ता !
अहा-सच्चमिणं ति बेमिः ना'णागमो मच्चु-मुहस्त अस्थि
इच्छा-पणीया वंकानिकेया काल-गहीया निचए निविट्ठा
पुढो-पुढो जाइं पकप्पयन्ति । (३) एगे वयन्ति अदु वा वि नाणी
नाणी वयन्ति अदुवा वि एगे: आवन्ती केया'वन्ती लोगंसि समणा य माहणा य पुढो विवायं वयन्तिः-" से दिटुं च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विनायं च णे,
उडूं अहे याँ तिरियं दिसासु सव्वओ सुपडिलहियं च णेः सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हन्तन्वा अज्जावेयव्या परिघेत्तव्वा उद्दवेयव्वा,
एत्थं पि जाणहः नत्थेत्थ दोसो"। ( ४ ) अणारिय-वयणमेयं । तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी:-" से दुद्दिदं च भे, दुस्सुयं च भे, दुम्मयं भे, दुम्विन्नायं च भे, 'उड्ढे .... दुप्पडिलेहियं च भे, 25 जं णं तुम्भे एवमाइक्खह एवं भासह एवं पन्नवेह एवं परूवेहः सम्वे....दोसो' । अणारियवयणमयं । (५) वयं पुण एवमाइक्खामो एवं भासामो एवं पन्नवेमो एवं परूवेमोः सव्वे पाणा ४ न हन्तव्वा न अज्जावेयव्या न परियावेयवा न परिघेत्तव्वा न उद्दवेयवा; 'एत्थं पि जाणहः नत्थेत्थ दोसो।' आरिय-वयणमेयं"। पुवं निकाय समयं पत्तेयं-पत्तेयं पुच्छिस्सामो:--" हं भो पावाउया! किं भे सायं दुक्खं उयाहु आसायं?" समिया-पडिवन्ने यावि 30 एवं बूया:-" सव्वेसिं पाणाणं ४ असायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं " ति-ति बेमि ।।
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आयारंग-सुतं
४- ३
( १ ) उवेह एवं बहिया य लोग !
से सव्व-लोगंसि जे केइ विन्नू ; अणुवी पास निक्खित्त - दण्डा
जे के सत्ता पलियं चयन्ति । नरा मुय'च्चा धम्मविउ ति अजू
' आरम्भजं दुक्खमिणं ' ति नच्चा एवमाहु सम्मत्तदंसिणो ( २ ) ते सव्वे पावाश्या; दुक्खस्स कुसला परिन्नमुदाहरन्तिः
' इति कम्म परिन्नाय सव्वसो ' । इह आणा - कंखी पण्डिए अनि एगमपाणं सोपेहाए धुणे सरीरगं,
कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं
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जहा जुणाई कट्ठाई हव्ववाहो पत्थर ।
एवमत- समाहिए अनि
विगिञ्च कोहं अविकम्पमाणे
इमं निरुद्धा' उयं संपेहाए,
दुक्खं च जाण अदुवा 'गमिस्तं;
पुढो फासाई च फासए:
लोगं च पास विफन्दमाणं,
( ३ ) जे निव्वुडा पावेहिं कम्मेहिं अनियाणा ते वियाहिया ।
सम्हा' विज्जो नो पडिसजलेज्जासि-त्ति बेमि ॥
४--४
आवीलए पवीलए निप्पीलए
जहिता पुन्व-संजोगं
( १ )
हिच्चा उवसमं;
तुम्हा अविणे वीरे
सारए समिए सहिए या जए - दुरणुचरो मग्गो वीराणं अनियट्ट - गामीणविगिञ्च मंस - सोणियं ।
(२) एस पुरिसे दविए बीरे आयाणिज्जे बियाहिए,
जे धुणार समस्सय
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[ उद्दे० ३-४
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वसिता बम्भरंसि । तेहि पलिच्छन्नो
आयाण - सोय - गढिए बाले अव्वोच्छिन्न-बन्धणे अणभिक्कन्त- संजोए,
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पञ्चमं अज्झयणं
आणाए लम्भो नस्थिति बेमि,
( ३ ) जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कुओ लिया ? से हु पन्नाणमन्ते बुद्धे आरम्भोवरए;
तमसि अविजाणओ
6
सम्ममेयं ति पासा ।
लोग सा रो
( आवन्ती )
५- १
( २ ) पासह एगे
रूवे
जेण बन्धं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिच्छिन्दिय बाहिरगं च सोयं निक्कम्म- दंसी इह मच्चिए हिं,
कम्मुणा सफलं दहुं तओ निज्जार वेयवी ।
( ४ ) जे खलु भो वीरा समिया सहिया सया जया संघड- दंसिणो आओवरया 10 अहा तहं लोगं उवेहमाणा,
पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं इति, सच्चसि परिविचिट्ठियु, साहिस्सामा नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सया जयाणं संघड-दंसीणं आओवरयाणं अहा- तहा लोगं समुहमाणाणं । किमत्थि उवाही पासगस्स ? न विज्जर, नस्थि - तिबेमि ॥
जे छेए, सागारियं न सेवए, कट्टु एवमवयाणओ बिइया मन्दस्त बालिया लद्धा हुरत्था । पडिलेहाए आयमेत्ता अणासेवणाए – ति बेमि ।
15
( १ ) आवन्ती केयवन्ती लोगंसि विप्परामुसन्ती अड्डाए अणट्ठाए वा सु चेव विप्परा मुसन्ती । गुरू से कामा, तओ से मारस्स अन्तो; जओ से मारस्त अन्तो, तसे दूरे । नेव से अन्तो, नेव से दूरे । से पासइ कुसियमिव कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरिय एवं बालस्स जीवियं मन्दस्त अविजाणओ । कुराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे
ते दुक्खेण मूढे विपरियासमेइ, मोहेण गब्र्भ मरणाइ एइ,
"
एत्थ मोहे पुणो- पुणो' । संसयं परिजाणओ संसारे परिन्नाए भवइ संसयं अपरिजाणओ संसारे अपरिन्नाए भवइ ।
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गिद्धे परिणिजाणे,
१७
फासे पुणो- पुणो ' ।
आवन्ती केया 'वन्ती लोगंसि आरम्भजीवी, एएस चेव आरम्भजीवी
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आयारंग-सुतं
[उद्दे० २. एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमइ पावेहि कम्मे हिं
___ असरणं ' सरणं ' ति मन्नमाणे । इहमेगेसि एग-चरिया भवइ । ( ३ ) से बहु-कोहे बहु-माणे बहु-माए बहु-लोभे, बहु-रए 5 बहु-नदे बहु-सढे बहु-संकप्पे आसव-सकी पलिओच्छन्ने; उट्ठिय-वायं पवयमाणे-'मा मे केइ अदक्खू ' । अन्नाण-पमाय-दोसेणं सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ ।
अट्टा पया, माणव, कम्म-कोविया, जे अणुवरया अविज्जाए पलिमोक्खमाहु; आवट्टमेव अणुपरियदृन्ति-ति बेमि ॥
५-२ (१) आवन्ती केया'वन्ती लोगांस अणारम्भ-जीवी, एएसु चेव अणारम्भजीवी । 10
एत्थोवरए तं झोसमाणे । अयं संधी ' ति अद्दक्खू, जे ' इमस्स विग्गहस्स अयं खणे'
ति अन्नेसी। एस मग्गे आरिएहिं पवइए।
( २ ) उठ्ठिए नो पमायए। 'जाणित्तु दुक्खं पत्तेय-सायं';
पुढो-छन्दा इह माणवा-पुढो दुक्खं पवेइयं । से अविहिंसमाणे अनवयमाणे पुढो फासे विपणोलए, एस समिया-परियाए वियाहिए ।
(३) जे असत्ता पावहिं कम्मेहिं उयाहु : " ते आयका फुसन्ति ” इति, उयाहु 20वीरे : ' ते फासे पुढे'हियासए'। से पुव्वं पेयं पच्छा वेयं भेउर-धम्मं विद्धसण-धम्म अधुवं
अनितियं असासयं चयावचइयं विपरिणाम-धम्मं पासह । एवंरूव-संधि समुवेहमाणस्स एगाययण-रयस्स इह विप्पमुक्कस्स नत्थि मग्गे विरयस्स-त्ति बेमि ।
( ४ ) आवन्ती केया'वन्ती लोगंसि परिगहावन्ती : से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमन्तं वा अचित्तं वा, एएसु चेव परिग्गहावन्ती, एयदेवेगेसिं महब्भयं भवइ ।
लोग-वित्तं च णं उवेहाए, एए संगे अविजाणओ, से सुप्पडिबुद्धं सूवणीयं ' ति नच्चा
पुरिसा ! परम-चक्खू विप्परकम एएसु चेव बम्भचेरं ! ति बेमि; (५)" से सुयं च मे अज्झत्थं च मे " :
बन्ध-प्पमोक्खो तुज्झ'ज्झत्थेव । एत्थ विरए अणगारे दीह-रायं तिइक्खए;
पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते परिव्वए । एवं मोणं सम्म अणुवासेज्जासि--त्ति बाम ।
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उद्दे० ३-४.]
पञ्चमं अज्झयणं
( १ ) आवन्ती केया'वस्ती लोगंसि अपरिग्गहावन्ती, एएसु चेव अपरिग्गहावन्ती ।
सोच्चा वई मेहावी पण्डियाण निसामिया -सामियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए-"जहेत्थ मए संधी शोसिए, एवं अन्नत्थ; संधी दुज्झोसए भवइ । तम्हा बेमि" :
नो निण्हवेज्ज वीरियं । । (२) जे पुवुट्ठायी नो पच्छा-निवाई, जे पुवुढाई पच्छा-निवाई, जे नो पुवुढाई नो पच्छा-निवाई
से वि तारिसए सिया, जे परिन्नाय लोगमन्नेसिए ।
__ एयं नियाय मुणिणा पवेइयं, इह आणा-खी पण्डिए अनिहे पुवावर-रायं जयमाणे
10 सया सीलं सॉपेहाए सुणिया भवे अकामे अझञ्झे । इमेण चेव जुज्झाहि ! किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
जुद्धारिहं खलु दुल्लभं । जहेत्थ कुसलेहिं परिन्ना-विवेगे भासिए ।।
चुए हु बाले गन्भाइ रिज्जइ; (३ ) · अस्सि चेयं पवुच्चई । रूवांस वा छणंसि वा ' से हु एगे संविद्धभए मुणी'
अन्नहा लोगमुवेहमाणे ' इति कम्मं परिन्नाय सव्वसो से न हिंसइ',
संजमई, नो पगभई । (४) उवेहमाणो पत्तेय-सायं वण्णाएसी
नारभे कंचणं सव्व-लोए, एग-प्पमुहे विदिस-प्पइण्णे
निविण्ण-चारी अरए पयासु । से वसुमं सव्व-समन्नागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मन्तं नो अन्नेसी । जं सम्मं ति पासहा, तं मोणं ति पासहा; जं मोणं ति पासहा तं सम्मं ति पासहा । न इमं सकं सिढिलेहिं आइज्जर्माणहिँ गणासाएहिं वंक-समायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसन्तेहिं ।
(५) मुणी मोणं समायाए धुणे कम्म-सरीरगं;
पन्तं लूहं च सेवन्ती वीरा सम्मत्त-दसिणो । एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए-त्ति बेमि ॥
30
(१) गामाणु-गामं दूइज्जमाणस्स ।
दुज्जायं दुप्परक्वन्तं भवइ अवियत्तस्स भिक्खुणोः
वयसा वि एगे बुझ्या कुप्पन्ति माणवा,
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२०
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आयारंग-सुतं
[ उद्दे०५ उन्नयमाणे य नरे महया मोहेण मुज्झइ(२) संवाहा बहवे भुज्जो दुरइक्कमा अजाणओ अपासओ। एयं ते मा होउ ! एयं कुसलस्स दंसणं,
सद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सन्नी तन्निवेसणे जयं-विहारी चित्त-निवाई
पन्थ-निज्झाई बलि-बाहिरे
पासिय पाणे गच्छेज्जा। (३) से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे, संकुचेमाणे पसारमाणे
विनियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे । एगया गुण-समियस्स रीयओ काय-सफासं अणुचिण्णा एगइया पाणा उद्दायन्ति; इह लोग-वेयण-वेज्जावडियं ।
जं आउट्टी-कयं कम्म, तं परिन्नाय विवेगमेह;
एवं से अप्पमाएणं विवेगं किट्टइ वेयवी । (४) से पहूय-दंसी पहूय-परिन्नाणे उवसन्ते सहिए सया जए दुई
विप्पडिवेएइ अप्पाणं : ' किमेस जणो करिस्सइ ?
एस से परमारामे, जाओ लोगम्मि इथिओ'। मुणिणा हु एयं पवेइयं : (५) उब्बाहिज्जमाणे गाम-धम्मोहिं अविनिब्बलासए, अवि ओमोयरियं कुज्जा, अवि उड्डूं ठाणं ठाएज्जा, अवि गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अवि माहारं वोच्छिन्देज्जा, अवि चए इत्थीसु मणं : पुव्वं दण्डा पच्छा फासा, पुव्वं फासा पच्छा दण्डा-इच्चेए 20 ककहा संगकरा भवन्ति । पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए–त्ति बेमि ।
से नो काहिए नो पासणिए नो संपसारए नो मामए नो कय-किरिए; 'वइ-गुत्ते अज्झप्प-संवुडे ' परिवज्जए सया पावं । एयं मोणं समणुवासेज्जासि–ति वेमि ।
५-५ (१) से बेमि तं-जहा :
___ अवि हरए पडिपुण्णे समांस भोमें चिट्ठइ, 26 उवसन्त-रए सारक्खमाणे से चिठ्ठइ सोयमज्झ-गए ।
से पास सव्वओ गुत्ते पास लोए महेसिणो, जे य पन्नाणमन्ता पबुद्धा आरम्भोवरया;
समम्मेयं ति पासहा। 'कालस्स कंखाए परिव्वयन्ति'- त्ति बेमि । 30 (२) विगिञ्छ-समावन्नेणं अप्पाणेणं नो लभइ समाहिं । 'सिया वेगे अणुगच्छन्ति ?, आसिया वे'गे अणुगच्छन्ति ? ' अणुगच्छमाणेहिं अणुगच्छमाणे कहं न निविज्जे ?
(३) तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं । सद्धिस्स गं समणुन्नस्स संपव्वयमाणस्स " समियं ' ति मन्नमाणस्स एगया समिया
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उद्दे० ६.]
पञ्चम अज्झयण होइ, स०' ति म० ए० ' असमिया' हो,' असमियं ' ति० म० ए० समिया हो० अ० ' तिम० ए० असमिया होइ। ५ । समियं ' ति म० 'समिया वा असमिया वा', समिया होइ उहाए, 'असमिय' ति म० स०वा अ० वा' असमिया होइ उवेहाए । उवेहमाणं अणुवेहमाणं बूया : " उवेहाहि समियाए" । इच्चेवं तत्थ संधी झोसिए भवइ ।
( ४ ) से उट्ठियस्स ठियस्स गई समणुपस्तह, एत्थ वि बाल-भावे अप्पाणं नो उवदंसेज्जा।
तुमं सि नाम तं चेव जं' हन्तव्वं ' ति मन्नसि !
तुमं सि नाम तं चेव जं 'अज्जावेयव्वं ' ति मन्नसि, . . . 'परियावेयव्वं' ... 'परिघेत्तव्वं ' ... ' उद्दवेयव्वं' ... ' अञ्जू चेयंपडिबुद्ध-जीवी ।' तम्हा न हन्ता न वि घायए।
10 (५) अणुसंवेयणं अप्पाणेणं 'जं हन्तव्वं ' ति नाभिपत्थए ।
___ जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया : जेण विजाणइ से आया । तं पडुच्च पडिसखाए एस आया-वाई।।
समियाए परियाए वियाहिए-त्ति बेमि ॥
__20
(१) अणाणाए एगे सोवढाणा, आणाए एगे निरुवढाणा एयं ते मा होउ !15 एवं कुसलस्स दसणं, ' तद्दिट्टीए तम्मुत्तीए, तप्पुरकारे तस्सन्नी तन्निवेसणे।'
अभिभूय अदक्खू अणभिभूए; पहू निरालम्बणयाए जे महं अबही-मणे । पवाएणं पवायं जाणेज्जा सह-सम्मुइयाए पर-वायरणेणं अन्नोस वा अन्तिए सोच्चा,
(५) निद्देसं नाइवत्तेज्जा मेहावी । सुपडिलहिय सव्वओ सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया ।
इहारामं परिन्नाय अलणि-गुत्तो परिवए;
निट्ठियही वीरे आगमेणं सया परकमेज्जासि-ति बेमि । (२) उडूं सोया अहे सोया तिरियं सोया वियाहिया;
एए सोया वियखाया जेहिं संगं ति पासहा । आवढे तु उवेहाए एत्थ विरमेज्ज वेयवी,
विणइत्तु सोय निक्खम्म एस महमकम्मा जाणइ पासइ, पडिलेहाए नावकंखइ; (३) इह आगई गई परिन्नाय अच्चेइ जाइ-मरणस्स वडुमगं विक्खाय-रए;
सव्वे सरा नियन्ति। __तका जत्थ न विज्जइ, मई तत्थ न गाहिया ।।
30 ओए अप्पइट्टाणस्स खेयन्ने : ( ४ ) से न दोहे न हस्ले न वढे न तसे न चउरंसे न परिमण्डले, न किण्हे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न सुकिले, न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे, न तित्ते न कडुए न कसाए न अंबिले न महुरे, न कक्खडे न मउए, न गुरुए न लहुए, न सीए न उण्हे,
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२२
आयारंग-सुत्तं
[उद्दे० १.
न निद्धे न लुक्खे, न काऊ, न रुहे न संगे, न इत्थी न पुरिसे न अन्नहा । ' परिन्ने सन्ने उवमा न विज्जइ' । अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं नत्थि । से न सद्दे न रूवे न गन्धे न रसे न फासे इच्चेयावन्ति-त्ति बेमि॥
धु यं
10
(१) ओबुज्झमाणे इह माणवेसु
आघाइ से नरे जस्सि'माओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवन्ति, अग्घाइ से धुयं णाणमणेलिसं ।
से किट्टइ तेसि समुट्ठियाणं निक्खित्त-दण्डाणं ।
_____ समाहियाणं पन्नाणमन्ताणं इह मुत्ति-मन्गं । एवं पेगे महावीरा विपरक्कमन्ति,
पासह एगे अवसीयमाणे अणत्त-पन्ने । (२) से बेमि : से जहा वि कुम्मे हरए विनिविट्ठ-चित्ते पच्छन्न-पलासे उम्मुग्गं से नो लभइ।
भञ्जगा इव सन्निवेसं नो चयन्ति,
___ एवं पेगे अणेग-रूवेहिं कुलेहिं जाया 15
रूवेहि सत्ता कलुणं थणन्ति,
नियाणओ ते न लभन्ति मोक्खं । अह पास तेहिं कुले हिं आयत्ताए जाया १. गण्डी अदु वा कोट्ठी रायंसी, अवमारियं
काणियं झिम्मियं चेव कुणियं खुज्जियं तहा, २. उयरिं च पास मुत्तिं च सणिय च गिलासिणं
वेवयं पीढ-सपि च सिलिवई महु-मेहिणं३. सोलस एए रोगा अक्खाया अणुपुव्वसो ।
अह णं फुसन्ति आयंका फासा य असमञ्जसा । ४. मरणं तेसिं सॉपेहाए उववायं चवणं च नच्चा
परिपागं च सॉपेहाए तं सुणेह जहा तहा । (३) सन्ति पाणा अंधा तमांस वियाहिया । तामेव सइमसइमइयच्च उच्चावए फासे पडिसंवेएइ ।
बुद्धेहे'यं पवेइयं । ( ४ ) सन्ति पाणा वासगा रसगा उदए उदय-चरा आगास-गामिणो
पाणा पाणे किलेसन्ति : पास लोए महब्भयं । बहु-दुक्खा हु जन्तवो : सत्ता कामेहिं माणवा ।
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उद्दे० २. ]
छ अज्झयणं
अबलेण वहं गच्छन्ति सरीरेण पभंगुरेण; अट्टे से बहु- दुक्ख इती बाले पकुब्वर;
एए रोगे बहू नच्चा आउरा परियावए ।
" नालं पास " - अलं तवे' एहिं ! एयं पास, मुणी, महब्भयं नाइवाएज्ज कंचणं । आयाण भो सुस्सूस भो !
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धूय-वायं पवेएस्सामि ।
( ५ ) इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूया अभिसंजायां अभिनिव्वट्टा अभिसंवुड अभिसंबुद्धा अभिनिक्खन्ता अणुपुव्वेण महागुणी । तं परक्कमन्तं परिदेवमाणा
"
( ६ ) छन्दोवणीया अज्झोववन्ना
माणे चयाहि " इति ते वयन्ति;
हिच्चा उवसमं
६-२
( १ ) आउरं लोग मायाए चइत्ता पुव्व-संजोग
वसित्ता बम्भचेरंसि
वसु वा अणुवसु वा
अक्कन्द-कारी जणगा रुयन्ति ।
अतारिसे मुणी ओतरए, जणगा जेण विप्पजढा; सरणं तत्थ नो समेइ । किह नाम से तत्थ रमइ ? एयं नाणं सया समणुवासेज्जासि त्ति - बोम ॥
15
जाणि धम्मं जहां-तहा अहेगे तमच्चाई
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२३
सव्वं गेहिं परिन्नाय एस पणए महा- मुणी, अइयच्च सव्वओ संग
' न महं अत्थी ' ति । इति ' एगो अहमंसि ' जयमाणे एत्थ विरए अणगारे सव्वओ मुण्डे रीयए । जे अचेले परिवुसिए संचिक्खर ओमोयरियाए, से
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कुसीला वत्थं पाडेग्गहं. कम्बलं पाय-पुञ्छणं विओसिज्जा अणुपुवेण अणहियासेमाणा परसिहे दुरहियासए । कामे ममायमाणस्स इयाणिं वा मुहुत्ते वा अपरि-माणाए भेओ एवं से अन्तराइएहिं कामेहिं आकेवलिएहिं अविइण्णा चे 'ए ।
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( २ ) अहे 'गे धम्ममायाएआयाण-भि-सुप्पणिहिए चरे अपलीयमाणे दढे;
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आधारंग-सुतं
अट्ठे व हए व लूसिवा पलिय-पगन्थे अदुवा पगन्थे अहिं
25
सद्द- फासेहिं । इति संखाए एगयरे अन्नयरे
अभिन्नाय तिक्खमाणे परिव्वए ।
जे य हिरी । जे उ अहिरीमाणे
चेच्चा सव्वं विसोत्तियं संफासे फासे समिय-दंसणे । ( ३ ) एए भो नगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अणागमण-धम्मिणो आणाए मामगं धम्मं, एस उत्तर-वाए इह माणवाणं वियाहिए । एत्थोवर तं झोसमाणे
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आयाणिज्जं परिन्नाय परिवारणं विगिञ्च ।
इहसि एग चरिया होई । तत्थि 'यरा - इयरेहिं कुलेहिं सुद्धे 'सणाए सव्वे'सणाए से मेहावी परिव्वए;
६--३
[ उद्दे० ३.
सुभ वा अदुवा दुब्भि अदु वा तत्थ भैरवाः
6
पाणा पाणे किलेसन्ति । ते फासे ' पुट्ठो वीरे' हियासएज्जासि'- त्ति बेमि ॥
( १ ) एवं खु, मुणी, आयाणं ।
"
या सुक्खाय धम्मे, ' ' विधूय - कप्पे निज्झोसहत्ता ' । जे अचेले परिवुसिए, तस्स भिक्खुस्स नो एवं भवइ : ' परिजुण्णे मे वत्थे; वत्थं जाइस्तामि, सुत्तं जाइस्तामि, सूई जाइस्ता - मि, संधिस्तामि, सिव्विस्सामि, उक्कसिस्सामि, वुक्कसिस्सामि, परिहिस्सा मि, पाउणिस्सामि ' । ( २ ) अदु वा तत्थ परकमन्तं भुज्जो अचेलं तण - फासा फुसन्ति, सीय- फा० 20 फु०, तेओ-फा० फु०, दंसमसग फा० फु० -- एगयरे अन्नयरे विरूव-रूवे फासे अहियासेर अचेले लाघवमागममीणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जहे 'यं भगवया पवेश्यं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वओ सव्वयाए समत्तमेव समभिजाणिया ।
एवं तेसि महावीराणं चिर-रायं पुव्वाई वासाई रीयमाणाणं दवियाणं पास' हियासिय; आगय-पन्नाणा किसा बाहा भवन्ति पयणुए य मंस - सोणिए । वणी - परिन्नाय एस तिष्णे भुत्ते विरए वियाहिए ―त्ति बेमि । ( ३ ) विरयं भिक्खु रीयन्तं चिर- राओसियं अरई तत्थ किं विधारए ? संघेमाणे समुट्ठिए;
जहा से दीवे असंदी एवं से धम्मे आरिय- देसिए ।
30
अवखमाणा अणइवाएमाणा दइया मेहाविणो पण्डिया । एवं तेसि भगवओ अणुट्ठाणे । जहा से दिया- पोए, एवं ते
सिस्सा दिया य राओ य अणुपुव्वेण वाइय-ति बेमि ॥
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उद्दे० ४-५.]
छठं अज्झयणं
15
(१) एवं ते 'सिस्सा दिया य राओ य अणुपुब्वेण वाइया' सेहिं महावीरेहिं पन्नाणमन्तेहिं, तेस'न्तिए पन्नाणं उवलब्भ हिच्चा उवसमं फारुसियं समाइयन्ति, 'वसित्ता बम्भरंसि' आणं ' तं नो' त्ति मन्नमाणा आघायं तु सोच्चा निसम्म 'समणुन्ना जीविस्सामो' एगे निक्खम्म ते
असंभवन्ता विडज्झमाणा
कामेहिं गिद्धा अज्झोववन्ना समाहिमाघायमझोसयन्ता
सत्थारमेव फरुसं वयन्ति । सीलमन्ता उवसन्ता संखाएँ रीयमाणा
'असीला' अणुवयमाणस्स बिइया मन्दस्स बालिया। 10 नियट्टमाणा वेगे आयार-गोयरमाइक्खन्तिः
नाण-भट्ठा दंसण-लूसिणो नममाणा एगे जीवियं विप्परिणामेन्ति; ___पुट्ठा वे'गे नियट्टन्ति जीवियस्सेव कारणा। निक्खन्तं पि तेसिं दुण्णिक्खन्तं भवइ । (२) 'बाला-'वयण्णिज्जा हु ते नरा; 'पुणो-पुणो जाई पगप्पेन्ति' ।
अहे संभवन्ता विदायमाणा " अहमंसीति " विउक्कसे, उदासीणे — फरुसं वयन्ति' पलियप्पगन्थे अदु वा पगन्थे अतहेहिं तं मेहावी जाणेज्जा थम्मं । अहमट्ठी " तुम सि नाम बाले", आरम्भट्ठी अणुवयमाणेः " हण पाणे !" घायमीणे हणओ यावि समणुजाणमीणेः ।।
"घोरे धम्मे उदीरिए !" उवेहइ णं अणाणाए, एस विसण्णे वितण्डे वियाहिए-त्ति बेमि ।
20 (३) 'किमणेण भो जणेण करिस्सामि ?' त्ति मन्नमाणा एवं पे'गे विइत्ता।
___मायरं पियरं हेच्चा नायओ य परिग्गह वीरायमाणे समुट्ठाए
अविहिंसे सुव्वए दन्ते पास दीणे उप्पइए पडिवयमाणे ।
वसट्टा कायरा जणा लूसगा भवन्ति । अहमेगेसि सिलोए पावए भवइः “से समण-विन्भन्ते, से समण-विब्भन्ते !" पासहे'गे समन्नागएहिं असमन्नागए, नममाणेहिं अनममाणे, विरएहिं अविरए, दविएहिं अदविए । अभिसमेच्चा पण्डिए मेहावी
30 निट्ठियढे वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि-त्ति बेमि ।।
(१) से गिहेसु वा गिहन्तरेसु वा गामेसु वा गामन्तरेसु वा नगरेसु वा नगरन्तरेसु
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5
२६
आयारंग-सुतं
[ उद्दे० ५.
वा जणवसु वा जणवयन्तरेसु वा सन्ते' गइया ' जणा लूसगा भवन्ति, ' अदु वा फासा फुसन्ति ते फासे 'पुट्ठो वीरो' हियासए ' ।
(२) ओए समय- दंसणे दयं लोगस्स जाणिता
15
पाइणं पडणं दाहिणं उदीर्ण
Sara are aट्टे वेयवी;
से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सुसमाणेसु पवेयए ( ३ ) सन्ति विरई उवसमं निव्वाणं सोयं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणइ-वत्तियं; सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अणुवी भिक्खु धम्म माइक्खज्जा । ( ४ ) अणुवह भिक्खु धम्ममा इक्ख10 माणे नो अत्ताणं आसाएजा नो परं आसाएज्जा, नो अन्नाई पाणाई भुयारं जीवाई सत्ताई आसाएज्जा : से अणासायए अणासायमीणे ।
25
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वज्झमाणाणं पाणाणं
भूयाणं जीवाणं सत्ताणं ' जहा से दीवे असंदीणे ' एवं
( ५ ) एवं से उट्ठिए ठियप्पा
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अनि अचले चले अबहि-लेसे परिव्वए ।
संखाय पेसलं धम्मं दिट्टिमं परिणिव्वुडे ।
तम्हा संगं ति पासहा |
गन्धेहिं गढिया नरा, विसण्णा काम विप्पिया ।
20
तम्हा लहाओ नो परिवित्तसेज्जा, जस्सिमे आरम्भा सव्वओ सव्वयाए सुपरिन्नाया भवन्ति, जोसे' मे लूसिणो नो परिवित्तसन्ति । से वन्ता कोहं च माणं च मायं च लोभं च
6
से भवइ सरणं महा- मुणी ।
एस उट्टे वियाहि-ति बोम |
( ६ ) कायस्स विओवाए एस संगाम सीसे वियाहिए । से हूं पारंग मुणी ।
अविहम्ममाणे फलगावयट्ठी
कालोवणीए कंखेज्ज कालं जाव सरीर - भेओ - ति बेमि ॥
महापरिना' नाम सप्तममध्ययनं विनष्टमिति प्राचीनः प्रवादः श्रूयते ।
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उद्दे० १-२. ]
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अट्टम अञ्झयणं.
विमो हो
नेव गामेनेव रणे
८-१
( १ ) से बेमि : समणुन्नस्स वा असमणुन्नस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कम्बलं वा पाय पुञ्छणं वा नो पाएज्जा नो निमन्तेज्जा, नो कुज्जा darasi परं आढायमीणे- त्ति बेमि ।
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( २ ) धुवं चेयं जाणेज्जा असणं वा जाव पाय- पुञ्छणं वा लभिय नो लभिय, भुजिय नो भुजिय- पन्थं विवत्तूण विउक्कम्म विभतं धम्मं झोसेमाणे समेमाणे पाएज्जा निम-5 तेज्जा, कुज्जा वेयावडियं परं अणादायमी - ति बेमि ।
66
6
"
( ३ ) इहमेगेसिं आयार - गोयरे नो सुनिसन्ते भवइ । ते इह आरम्भट्ठी, अणुवयमाणा : पाणे J " घामीण हणओ यावि समणुजाणमीणा, अदु वा अदिन्नमाइयन्ति अदु वा वायाओ विउब्जन्ति, तं जहा :- अत्थि लोए, नत्थि लोए; धुवे लोए, अधुवे लोए; साइए लोए, अाइए लोए; स-पज्जवसिए लोए, अपज्जवसिए लोए; ' सुकडे ' त्ति वा 'दुक्कडे ' 10 " कलाणे 'तिवा 6 वा, पावए 'त्ति वा, ' त्ति वा साहु ' असाहु ति वा, सिद्धि ' त्ति वा ' असिद्धि ' त्ति वा, ' निरए ' ति वा 'अनिरए ' त्ति वा । जमिणं विप्पडिवन्ना मामगं धम्मं पन्नवेमाणाः एत्थ वि जाणेह ' अकस्मात् ' । एवं तेसिं नो सुयक्खाए नो सुपनते धम्मे भवइ - से जहे यं भगवया पवेश्यं आसु- पन्नेणं जाणया पासया -अदुवा गुती वओ - गायरस - ति बेमि ।
"
"
( ४ ) सन्वत्थ सम्मयं पावं; तमेव उवाइकम्म एस महं विवेगे वियाहिए । गामे वा अदुवा रणे
२७
८-२
( १ ) से भिक्खू परक्कमेज्ज वा चिट्ठेज्ज वा निसिएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा सुसाणंसि वा सुन्नागारंसि वा गिरि-गुहंसि वा रुक्ख-मूलांस वा कुम्भाराययणंसि वा हुरत्था वा । काहींचे विह
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धम्मायाण पवेश्यं माहणेण मईमया
जामा तिणि उदाहिया, जेसु इमे आरिया सम्बुज्झमाणा समुट्ठिया । 20 जे निव्वडा पावेहिं कहिं अनियाणा ते वियाहिया ।
उडूं अहं तिरियं दिसासु
सव्वओ सव्वावन्ती च णं पडिक्कं जीवेहिं कम्म समारम्भेणं - तं परिन्नाय मेहावी नेव सयं एहिं काहिं दण्डं समारभेज्जा, नेव' ने हिं एएहिं काएहिं दण्डं समारम्भावेज्जा, ने' वन्ने एएहिं काहिं दण्डं समारम्भन्ते विसमणुजाणेज्जा । जे व'ने एएहिं काएहिं दण्डं समारमन्ति, तेसिपि वयं 25 लज्जाम । तं परित्राय मेहावी तं वा दण्डं अन्नं वा दण्डं -
1
नो दण्ड भी दण्डं समारभेज्जासि-त्ति बेमि ॥
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आयारंग-सुतं रमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावई बूया:-" आउसन्तो समणा! अहं खलु तव अट्ठाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई ४ समारब्भ समुदिस्त कीयं पामिच्चं अच्छेज्छ अनिसटुं अमिहडं आहटु चेएमि, आवसहं वा समुस्सिणामि, से भुञ्जह वसह, (२)आउसन्तो समणा!" भिक्खू तं गाहावई समणसं सवयसं पडियाइक्खे:-" आउसन्तो गाहावइ ! नो खलु ते वयणं 5आढामि, नो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुम मम अट्ठाए असणं वा ४ वत्थं वा ४ पाणाई
४ समारब्भ.... आहहु चेएसि, आवसहं वा समुस्सिणासि । से विरओ, आउसो, गाहावई एयस्साकरणयाए"।
(३) से भिक्खू परक्कमेज्ज वा जाव हुरत्था वा .... गाहावई आयगयाए पेहाए असणं....आहटु चेएइ, आवसहं वा समुस्सिणाइ, भिक्खुं तं परिघासेउं । तं च भिक्खू जाणेज्जा 10 सह-सम्मुइयाए परवागरणेणं अन्दसि वा अन्तिए सोचा : 'अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं....समुस्सिणाई' । तं च भिक्ख पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए-त्ति बेमि ।
(४) भिक्खुं च खलु पुट्ठा वा अपुट्ठा वा-जे इमे आहच्च गन्था फुसन्तिः “से हन्ता, हणह खणह छिन्दह दहह पयह आलुम्पह विलुम्पह सहस-क्कारेह विप्परामुसह !" ते फासे 'पुढे वीरो अहियासए'।
अदु वा आयार-गोयरं आइक्खे तकिया णमणेलिसं,
अदु वा वइ-गुत्तीए गोयरस्स अणुपुट्वेणं सम्म पडिलेहाए आय-गुत्ते ।
'बुद्धेहे'यं पवेइयं.'।
स समणुन्ने असमणुन्नस्स असणं वा....( यथा २७, १-३.)....परं आढायमीणाए-ति बेमि। 20 (५) 'धम्ममायाणह पवेइयं माहणेण मईमया' । समणुन्ने समणुन्नस्स असणं
वा....( यथा २७, १-३ . नवरं नो न भणनीयं ) .... परं आढायमीणेति बोमि ॥
15
(१) मज्झिमेणं वयसा वि एगे सम्बुज्झमाणा समुट्ठिया
सोच्चा वाई मेहावणिं पण्डियाणं निसामिया । समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए ते अणवकखमाणा अणइवाएमाणा अपरिग्गहमीणा नो 25 परिग्गहावन्ती । सव्वावन्ती च णं लोगंसिनिहया दण्डं पाणेहिं पावं कम्मं अकुब्वमाणे एसमहं अगन्थे वियाहिए। (२) ओए जुइमस्स खेयन्ने उववायं चवणं च नच्चा;
आहारोवचया देहा परीसह-पभंगुरा।। . पासहे'गे सव्विन्दिएहि परिगिलायमाणेहिं ओए; दयं दयइ जे संनिहाण-सत्थस्स 30 खेयन्ने । से भिक्खु कालन्ने बलन्ने मायन्ने खणन्ने विणयन्ने समयन्ने 'परिगहं अममायमणि' काले'णुढाई अपडिन्ने दुहओ ' छित्ता नियाइ ।
(३) सं भिक्खुं सीयफास-परिवेवमाण-गावं उवसंकमितु गाहावई बूया:-" आउसन्तो समणा ! नो खलु ते गाम-धम्मा उब्बाहन्ति ? " " आउसन्तो गाहावई ! नो खलु मे
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उद्दे० ४-५. ]
अट्ठम अझयणं
२९
गाम-धम्मा उब्जाहन्ति, सीय- फासं च नो खलु अहं संचाए म अहियासेत्तए । नो खलु मे कप्पर अगणि-कायं उज्जालेत्तए वा पज्जालेत्तए वा कार्य आयावेत्तए वा पयावेत्तए वा, अन्नेसिं वा वयणाओ " । सिया से बं वयन्तस्त परो अगणि-कार्य उज्जालेत्ता कार्य आयावेज्जा वा पयावेज्जा वा । तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमेत्ता आणवेज्जा अणासेवणाए - तिबेमि ||
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८-४
( १ ) जे भिक्खू तिहिं वत्थेहिं परिवुसिए पाय - चउत्थेहिं, तस्स णं नो एवं भवइ : 5 ' चउत्थं वत्थं जाइस्साभि ' । से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएज्जा, अहा- परिग्गहियाई वत्थाई धारेज्जा, नो धोवेज्जा नो रएज्जा, नो धोय - रताई वत्थाई घारेज्जा, अपलिउच्चमाणे गामन्तरेसु ओमचेलिए । एयं खु वत्थ-धारिस्त सामग्गियं । अह पुण एवं जाणेज्जा : ' उवाइक्कन्ते खलु हेमन्ते, गिम्हे पडिवन्ने, ' अहा परिण्णारं वत्थाई परिवेज्जा, अहा- परिजुष्णाई वत्थाई परिठवेत्ता अदुवा सन्तरुतरे अदु वा ओमचेलिए अदु वा एग-साडे अदु वा अचेले 10 लाघवयं आगमम तवे से अभिसमन्नागए भवइ । जहे यं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमेसव्वओ सव्वयाए समत्तमेव समभिजाणिया ।
( २ ) जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ : 6 पुट्ठो खलु अहमंसि, नालं अहमंसि सीयफास अहियासेतर 'से वसुमं सव्व- समन्नागय - पन्नाणेणं अम्पाणेणं केइ अकरणाए आउट्टे, तवसिणो हु तं सेयं जं सेगे विमाइए ।
तत्थावि तस्स काल-परियार, से वि तत्थ वियन्त - कारए । इच्चेयं विमोहाययणं हियं सुहं खमं निस्सेसं आणुगामियं - तिमि ॥
www.
( १ ) जे भिक्खू दोहिं वत्थेहि परिवुसिए पाय - तइएहि, तस्स णं नो एवं भवइ तइयं वत्थं जाइस्सामि' । से अहेसणिज्जाई वत्थाई जाएजा ( यथा ६-१३, मवरं अदु वा सन्तरुतरे पाठो वर्जनीयः, तथा वत्थधारिस्स स्थाने तस्स भिक्खुस्स पाठः पठनीय : ) 20 एवं भवइ : ' पुट्ठो अबलो अहमंसि, नालमहमंसि गिहन्तर-संक्रमणं भिक्खायरियं गमणाए, ' ( २ ) से एवं वय तस्स परो अभिहडं असणं वा ४ आहट्टु वलएज्जा; से पुव्वामेव आलोएज्जा : “ आउसन्तो गाहावई ! नो खलु मे कप्पर अभिहडे असणे बा ४ भोतए ना पायए वा अन्ने वा तहप्पगारे " ।
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15
....
( ३ ) जस्स णं भिक्खुस्स अयं पगप्पे: - ' अहं च खलु पडिन्नतो अपडिन्नतहिं, 25 गिलाणो अगिलाणेहिं अभिकख - साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जिस्सामि, अहं चावि खलु अपडिन्नत्तो पन्नित्तस्स अगिलाणो गिलाणस्स अभिकख - साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए : ( ४ ) ' आहद्दु परिन्नं आनक्खेस्सामि आहडं च साइज्जिस्सामि, आ० प० आ० आ० च नो सा०, 'आ० प० नो० आ० आ० च सा०, • नो आ० आ० च
आ०
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३०
आयारंग-सुत
उद्दे० ६-७.
नो सा०,'–एवं से अहा-किट्टियमेव धम्म समाभजाणमाणे सत्ते विरए सुसमाहिय-लेस्से । तत्थावि .... ( यथा २९, १६.) .... आणुगामियं-ति बेमि ॥
(१) जे भिक्खू एगेण वत्थेण परिसिए पाय-बिइएण, तस्स नो एवं भवद : 'बिइयं वत्थं जाइस्सामि'। से अहेसणिजं वत्थं जाएजा ....( यथा २९, ६-१३. नवरं
णवत्थाई स्थाने जणं वत्थं पठनीयं; अपलि. गाम ओमक तथा अदु वा सन्तरुत्तरे अद् वा ओमचेलए वर्जनीयं ; तथैव वत्थधारिस्स स्थाने तस्स भिक्खुस्स भणनीय )....एवं मवई : ' एगो अहमंसि; न मे अत्थि कोइ न याहमवि कस्सइ,' एवं स एगाणियमेव अप्पाणं समभिजाणेज्जा ; लावियं....( यथा २९, ११.)....समभिजाणिया ।
(२) से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ आहारेमाणे नो वामाओ हणु10 याओ दाहिणं हणुयं संचारेज्जा आसाएमाणे, दाहिणाओ वा हणुमाओ वामं हणुयं नो संचारेज्जा आसाएमाणे । से अणासायमाणे लावियं....( यथा २९, ११.).... समभिजाणिया ।
(३) जस्स णं भिक्खुस्त एवं भवड : ' से गिलामी च खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेणं परिवहित्तए, ' से अणुपुत्वेणं आहारं संवदे॒ज्जा, अणुप्पुव्वेणं आहारं 16 संवढेता ' कसाए पयणुए किच्चा'
समाहियच्चे फलगावयट्ठी
उहाय भिक्खू अभिनिव्वुडच्चे (४) अणुपविसित्ता गामं वा नगरं वा खेडं वा कब्बडं वा मडम्बं वा पट्टणं वा दोण-मुहं वा आगरं वा आसमं वा सन्निवेसं वा निगमं वा रायहाणि वा तणाई जाएजा, तणाई 20 जाइसा से समायाए एगन्तमवक्कमेज्जा, एगन्तमवक्कमित्ता अप्पण्डे अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्प-हरिए
अप्पोसे अप्पुदए अप्पुतिंग-पणग-दग-मट्टिय-मकहा-सन्ताणए पडिलेहिय २ पमजिय २ तणाई सन्थरेजा, तणाई सन्थोत्ता एत्व वि समए इत्तिरिय कुजा । (५) तं सच्चं : सच्चा-बाई ओए तिण्टो छिन्न-कहकहे
आईयढे आणाईए चेच्चाण भेउरं कायं 25 संबिहुणिय विरूव-रूवे परीसहोवसन्गे अस्सि विस्तम्भणयाए भेरवमणुचिण्णे । तत्थावि....
(यथा २९, १६.)....आणुगामियं'–ति बेमि ॥
८-७ (१) जे भिक्खू अचेले परिवुसिए, तस्स णं एवं भवइः 'चाएमि अहं तण-फासं अहियासेतए, सीय- फा० अ०, तेओ-फा० अ०, दंस-मसग-फा० अ०, एगयरे अन्नयरे विरूव.
रूवे फासे अहियासेत्तए; हिरिपडिच्छावणं च'हं नो संचाएमि अहियासेत्तए,' एवं से कप्पड 3. कडिबन्धणं धारेत्तए । अदु वा तत्थ परक्कमन्तं भुज्जो अचलें तण-फासा फुसन्ति, सीय- फा० फु०, तेओ-फा० फु०, दंसमसग-फा० फु०, एगयरे अन्नयरे विरूव-रूवे फासे अहियासेइ । अचले लाघावयं....( यथा २९, ११.)....सम भिजाणिया ।
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उद्दे०८.1
अट्ठमं अज्झयणं
(२) 'जस्स गं भिक्खुस्स एवं भवइ : ' अहं च खलु अन्नेसि भिक्खूणं असणं वा ४ आहट्ट दलइस्सामि आहडं च साइज्जिस्सामि, जस्स....द० आ० च नो सा०, जस्स ....नो द० आ० च सा०, जस्स....नो द. आ० च नो सा०, (३) अहं च खलु तेण अहाइरितेण अहेसणिज्जेण अहा-परिन्गहिएण असणेण वा ४ अभिकंख साहाम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए, अहं चावि तेण....साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडिय साइज्जिस्सामि'-5 (३) लाघवियं....(यथा २९, 11.)....समभिजाणिया।
(४) जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ : ' से गिलामी....( यथा ३०, १३-२२.).... समए कायं च जोग च इरियं च पच्चक्खाएज्जा। तं च सच्चं....( यथा ३०,२३-२६.).... आणुगामियं-ति बेमि ॥
८-८ १. अणुपुत्रेण विमोहाइं जाई धीरा समासज्ज
वसुमन्तो मइमन्तो सव्वं नच्चा अणेलिसं २. दुविहं पि विइत्ताणं बुद्धा धम्मस्त पारगा
अणुपुवीए संखाए कम्मुणाओ तिउट्टइ । कसाए पयणुए किच्चा अप्पाहारो तिइक्लए;
अह भिक्खू गिलाएज्जा आहारस्सेव अन्तियं, ४. जीवियं नाभिकंखेज्जा मरणं नो वि पत्थए:
दुहओ विन सज्जेज्जा जीविए मरणे तहा । मज्झत्यो निज्जरा-पेही समाहिमणुपालए; अन्तो बहिं विओसज्ज अज्झत्थं सुद्धमेसए । जं किंचुवक जाणे आउखेमस्समप्पणो, तस्सेव अन्तरद्धाए खिप्पं सिक्खेज्ज पण्डिए । गामे वा अदु वा रणे थण्डिलं पडिलेहिया अप्प-पाणं तु विन्नाय तणाई सन्थरे मुणी । अणाहारो तुयट्टेज्जा, पुट्ठो तत्थ'हियासए, नाइवेलं उवचरे माणुस्सेही वि पुट्ठवं । संसप्पगा य जे पाणा जे य उड्डमहेचरा
भुञ्जन्ते मंस-सोणीयं न छणे न पमज्जए । १०. पाणा देहं विहिंसन्ति-ठाणाओ न विउब्भमे,
आसवोहं विचित्तोहं तिप्पमाणो'हियासए । ११. गन्थेहि विचित्तेहिं आउ-कालस्स पारए;
पग्गहीयतरं चेयं दवियस्स वियाणओ: १२. अयं से अवरे धम्मे नायपुत्तेण साहिए :
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आयारंग-सुत्तं
[उद्दे०८,
आय-वजं पडीयारं विजहेजा तिहा-तिहा । १३ हरिएसु न निवज्जेज्जा, थण्डिलं मुणिया सए,
विओसेज्ज अणाहारो पुट्ठो तत्थ हियासए । १४ इन्दिएहिं गिलायन्तो समियमाहरे मुणी,
तहावि से अगरहे अचले जे समाहिए । १५ आभक्कमे पडिक्कमे संकुचए पसारए
काय-साहारणट्ठाए एत्थं वा वि अचेयण । १६. परिक्कमे परिकिलन्ते अदु वा चिट्टे अहा-यए,
ठाणेण परिकिलन्ते निसिएज्जा य अन्तसो; १७. आसणिणेलिसं मरणं इन्दियाणि समीरए ।
कोला'वासं समासज्ज वितहं पादुरेसए, १८. जओ वजं समुप्पज्जे न तत्थ अवलम्बए,
तओ उक्कसे अप्पाणं, सव्वे फासे'हियासए । १९. अयं चाययतरे सिया:जो एवं अणुपालए :
सव्वगाय-निरोधे वि ठाणाओ न विउब्भमेः २०. अयं से उत्तमे धम्मे पुवठ्ठाणस्स परगहे।
अचिरं पडिलेहिता विहरे चिट्ठा माहणे, २१. अचित्तं तु समासज्ज ठावए तत्थ अप्पगं.
वोसिरे सव्वसो कायं : 'न मे देहे परीसहा'। २२. जावज्जीवं परीसहा उवसग्गा य संखाय
संवुडे देह-भेयाए इति पन्ने हियासए । २३. भेउरेसु न रज्जेज्जा कामेसु बहुयरेसु वि,
इच्छा-लोभं न सेवेज्जा धुवं वणं सॉपेहिया, २४, 'सासएहिं ' निमन्तेज्जा---: दिव्बं मायं न सद्दहे ।
तं पडिबुज्झ माहणे सव्वं नूमं विहूणिया । २५. सव्वट्ठहिं अमुच्छिए आउ-कालस्स पारए;
तिइक्खं परमं नच्चा विमोहन्नयरं हियं-ति बेमि ॥
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उद्दे०१]
नवमं अज्झयणं
उ व हा ण सुयं
९-१
१. अहा-सुयं वइस्सामि जहा से समणे भगवं उठाय
संखाएँ तसि हेमन्ते अहुणा-पव्वाइए रीइत्था । २. 'नो चेवि'मेण वत्थेणं पीहिस्सामि तंसि हेमन्ते-'
से पारऍ आवकहाए, एयं खु अणुधम्मियं तस्स । ३. चत्तारि साहिए मासे बहवे पाण-जाइयागम्म
आभिरुज्झ कायं विहरिंसु, आरुसियाणं तत्थ हिंसिसु । ४. संवच्छरं साहियं मासं जं न रिकासि क्स्थगं भगवं,
अचेलए तओ चाई तं वोसज्ज वत्थमणगारे । ५. अदु पोरिसिं तिरिय-भित्ति चक्खुमासज्ज अन्तसो झाइ :
अह चक्खु-भीय-सहिया ते " हन्ता हन्ता" बहवे कन्दिसु । ६. सयणहिं वीइमिस्सेहिं इथिओ तत्थ से परिन्नाया:
सागारियं न से सेवे, इति से सयं पवेसिया झाइ । ७. जे के'इमे अगारत्था, मीसी-भावं पहाय से झाइ
पुट्ठो वि नाभिभासिंसु, गच्छइ नाइवत्तई अञ्जू । ८. नो सुकरमेगेसिंः नाभिभासे अभिवायमीणे,
हय-पुव्वों तत्थ दण्डेहि, लूसियपुवा अप्प-पुण्णेहिं । फरुसाई दुत्तिइक्खाई अइयच्चे मुणी परकममाणे आघाय-नट्ट-गीयाई दण्ड-जुज्झाई मुहि जुज्झाई गढिए मिहुं-कहासु समयम्मि नाइ-सुए विसोऍ अद्दक्खू । एयाई सो उरालाई गच्छइ नायपुत्ते असरणाए । अवि साहिए दुवे वासे सीओदं अभोच्चा निक्सन्ते;
एगत्त-गए पिहियच्चे से अभिन्नाय-दंसणे सन्ते । १२. पुढविं च आउ-कायं च तेउ कायं च वाउ-कायं च
पणगाई बीय-हरियाई तस-कायं च सव्वसो नच्चा १३. 'एयाई सन्ति ' पडिलेहे ' चित्तमन्ताई । से अभिन्नाय
परिवज्जियाण विहरित्था इति संखाएँ से महावीरेः १४. 'अदु थावरा य तसत्ताए तसजीवा य थावरत्ताए,
अदु सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला'।
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२३.
आयरिंग-सुतं
;
१५. भगवं च एवमन्नेसी : ' सोवहिए हु लुप्पई बाले ' कम्मं च सव्वसो नच्चा तं पडियाइक्ख पावगं भगवं । १६. दुविहं समेच्च मेहावी किरियमक्खाय' णेलिस-नाणी आयाणसोयमवाय- सोयं जोगं च सव्वसो नच्चा १७. अइवत्तियमणाउट्टैि समयन्नो अकरणयाए :
जस्ति थिओ परिन्नाया सव्वकम्मावहाओ अक्खू । १८. अहा-कडं न से सेवे, सव्वसो कम्मुणा य अद्दक्खू
जं किञ्चि पावगं, भगवं तं अकुब्वं वियर्ड भुञ्जित्था । १९. नासेवई य परवत्थं, पर-पाए विसे न भुञ्जत्था,
परिवज्जियाण ओमाणं गच्छइ संखर्डि असरणाए । २०. मायन्न असण- पाणस्स नाणुगिद्धे रसेसु अपडिन्ने;
अच्छि पिनो पमज्जिया, नो वि य कण्डूयए मुणी गायं । २१. अप्पं तिरियं पेहाए अप्पं पिट्टओ व पेहाए
अप्पं बुइपाणी पन्थ - पेही चरे जयमाणे । २२. सिसिरंसि अद्ध- पडिवने तं वोसज्ज वत्थमणगारे पसारेतु बाहू परक्कमे नो अवलम्बियाण खन्धंसि । एस विही अणुक्कन्तो माहणेण मईमया बहुसो अपडिने भगवया एवं रीयन्ते - ति बेमि ॥
९-२
१. चरियासणाई सेज्जाओ एगइयाओं जाओ बुइयाओ, आइक्ख ताई सयणासणाई जाई सेविव्थ से महा-वीरे । २. आवेसण सभा पवासु पणिय सालासु एगया वासो
अदुवा पलिय-द्वासु पलाल - पुञ्जेसु एगया बासो । ३. आगन्तारे आरामागारे नगरे वि एगया वासो
४.
सुसा सुन्न-गारे वा रुक्ख मूले वि एगया वासो । एएहिं मुणी सयणेोहं समणे आसि प-तेलस वाले; राइदियं पि जयमाणे अप्पमत्ते समाहिए झाइ; ५. निहं पि नोपगामाए सेवइ य भगवं उट्ठाए;
जावई अप्पाणं, ईसि साइयासी अपडिने । ६. सम्बुज्झमाणे पुनरावि आसिंसु भगवं उट्ठाए
निक्खम्म एगया राओ बहिं चंकमिया मुहुत्तागं । ७ सयणेहिं तस्सुवसग्गा भीमा आसी अणेग-रूवा यः
संसप्पगा य जे पाणा अदु वा पक्खिणो उवचरन्ति । ८. अदु कुचरा उवचरन्ति गाम- रक्खा य सत्ति हत्था य
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[ उद्दे० २
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नवमं अज्झयणं
अदु गामिया उवसम्गा : इत्थी एगइया पुरिसो वा । ९. इह-लोइयाई पर-लोइयाई भीमाई अणेगरूवाई,
अवि सुब्भि-दुब्भि-गन्धाई सद्दाई अणेग-रूवाई अहियासए सया समिए फासाई विरूव-रूवाई। अरई रहं च अभिभूय रीयई माहणे अबहु-वाई । सयोहं तत्थ पुच्छिसु एग-चरा वि एगया राओ, अव्वाहिए कसाइत्था; पेहमाणे समाहिं अपडिन्ने । " अयमन्तरंसि; को एत्थं ? " " अहमंसि" ति " भिक्खु" आह१ अयमुत्तमे से धम्मे : तुसिणाएँ स कसाइए झाइ । जंसि पेगे पवेवन्ति सिसिरे मारुए पवायन्ते
संसि प्पेगे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्तिः २५. 'संघाडीओ पविसिस्सामो, एहा य समादहमाणा
पिहिया वा सक्खामो; अइदुक्खं हिमग-संफासा!' संसि भगवं अपडिन्ने अहे-वियडे अहियासए दविए, निक्खम्म एगया राओ चाएइ भगवं समियाए ।
एस विही अणुकन्तो माहणेण मईमया बहुसो अपडिन्नणं भगवया एवं रीयन्ते - त्ति बेमि ॥
१. सण-फास सीय-फासे य तेओ-फासे य दंस-मसए य
अहियासए सया समिए फासाई विरूव-रूवाई। अह दुच्चर-लाढं अचारी वज्ज-भूमि च सुब्भ-भामं च, पन्तं सेज्ज सेविसु आसणगाई चेव पन्ताई। लाढेहिं तस्सुवसग्गा बहवेः जाणवया लूसिंसु,
अह लुक्ख-देसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु निवइंसु । ४. अप्पे जणे निवारेइ लसणए सुणए डसमाणे,
'छुच्छुक् ' कारेन्ति आहन्तुं " समणं कुकुरा डसन्तु" ति । एलिक्खए जणे भुज्जो बहवे वज्ज-भूमि फरुसासी, लहि गहाय नालीयं समणा तत्थ एव विहरिसु; एवं पि तत्थ विहरन्ता पुट्ठ-पुव्वा अहेसि सुणएहिं,
संलुश्चमाणा सुणएहिंदुच्चरगाणि तत्थ लाढहिं । ७. निहाय दण्डं पाणेहिं तं कायं वोसज्जेमणगोर
अह गाम-कण्टए, भगवं ते अहियासए अभिसमेच्चा, ८. 'नाओ' संगाम-सीसे व पारए तत्थ से महावीरे ।
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आयारंग-सुत्तं
[उ०४
एवं पि तत्थ लाढेहिं अलद्ध-पुव्वो वि एगया गामो; ९. उवसंकमन्तमपडिन्नं गामन्तियं पि अप्पत्तं
पडिनिक्ख मित्तु लूसिंसु : " एयाओ परं पलेहि !" ति । १०. हय-पुव्वा तत्थ दण्डेणं अदु वा मुट्ठिणा अदु फलेणं ।
अदु लेलुणा कवालणं ; “ हन्ता हन्ता" बहवे कन्दिसु । मंसाण छिन्न-पुव्वाई, ओट्ठभियाएँ एगया कायं परिस्सहाई लुञ्चिसु अदु वा पंसुणा उवकरिसु, उच्चालइय निहाणिंसु अदु वा आसणाओं खलइंसुवोसट्ठ-काएँ पणयासी दुक्ख-सहे भगवं अपडिन्ने । सूरो संगामसीसे व संवुडे तत्थ से महावीरे पडिसेवमाणों फरसाइं अचले भगवं रीइत्था । ____एस विही अणुक्वन्तो माहणेण मईमया
बहुसो अपडिन्नेणं भगववया एवं रीयन्ते-त्ति बेमि ।।
१. ओमोयरियं चाएई अपुढे वि भगवं रोगहि
पुट्ठो व से अपुट्ठो वा नो से साइज्जर तेइच्छं। २. संसोहणं च वमणं च गायब्भंगणं सिणाणं च
संबाहणं न से कप्पे दन्त-पक्खालणं परिन्नाए । विरए य गाम-धम्महिं रीयइ माहणे अबहु-वाई, सिसिरम्मि एगया भगवं छायाएँ झाइ आसी य । मायावई य गिम्हाणं अच्छइ उक्कुडुए अभितावे, अदु जावइत्थ लहेणं ओयण-मन्थु-कुम्मासेणं । एयाणि तिण्णि पडिसेवे अट्ठ मासे य जावए भगवं, अपिइत्थ एगया भगवं अद्ध-मासं अदु वा मासं पि । अवि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदु वा अपिवित्था,
राओविरायं अपडिन्ने अन्न-गिलायमेगया भुञ्जे । __ छटेणमेगया भुले अदु वा अट्ठमेण दसमेणं,
दुवालसमेण एगया भुञ्जे पेहमाणे समाहिं अपडिन्ने । ८. नच्चाण से महावीरे नो वि य पावगं सयमकासी
अन्नेहिं वी न कारेत्था कीरन्तं पि नाणुजाणित्था । गामं पविस्स नगरं वा घासमेसे कडं परट्ठाए
सुविसुद्धमेसिया भगवं आयय-जोगयाएँ सेवित्था । १०. अदु वायसा दिगिच्छन्ता, जे अन्ने रसेसिणो सत्ता
घासेसणाएँ चिट्ठन्ते सययं निवइए य पेहाए,
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उद्दे० ४ ]
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नव अक्षयण
११. अदु माहणं व समणं वा गाम - पिण्डालगं व अइहिं वा सोवा मूसियारिं वा कुक्कुरं वा विविहं ठियं पुरओ, १२. वित्ति-च्छेयं वज्जन्तो तेस 'प्पत्तियं परिहरन्तो
१७.
१३.
१४.
१५.
मन्दं परक्कमे भगवं, अहिंसमाणो घाउमेसित्था । अवि सूइयं व सुक्कं वा सीय-पिण्डं पुराण- कुम्मासं अदु बोक्क पुलागं वा लद्धे पिण्डे अलद्धए दविए । अवि झाइ से महावीरे आसत्थे अकुक्कुए झाणं, उ अहे य तिरियं च लोऍ झायइ समाहिमपडिने । अकासी विगय-गेही य सद्द-रूवेसु अमुच्छिए झार छत्थो वि परक्कममाणे न पमायं सई पि कुव्वित्था । १६. सयमेव अभिसमागम्म आयय-जोगमाय- सोहीए अभिनिogs अमाइले आवकहं भगवं समियासी । एस विही अणुक्कन्तो माहणेण मईमया । बहुसो अपने भगवया एवं रीयन्ते - तिबेमि ॥ ॥ समत्तो पढमो सुक्खन्धो ||
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अकारादि-शब्दानुक्रमणिका
अ च आइदुक्ख अतिदुःख अइमाण अतिमान अइवत्तिय अतिवृत्तिक अइवाइय अतिपातिक अइवाय अतिपात अइविज्ज अतिविद्य अइविजं अतिविद्वान् अइविण्णू अतिविज्ञ अइवेल अतिवेल माइहि अतिथि अवन्द आक्रन्द अगाणि अग्नि अगार (गृह) अग्ग अग्र
मुलि - अथा अर्चा अच्छायण आच्छादन अच्छि अक्षि मजिण अजिन १ अज अद्य, २ अज आर्य अजव आर्जव अजविया आर्जवता १अज्झत्थ अध्यात्म २ अज्झत्थ अध्यस्त अज्झस्थिय भध्यात्मिक अज्सप्प अध्यात्म अट्ट आत १ अट्ठ अर्थ २ अट्ठ अष्टन् अट्ठम अष्टम भट्ठया भर्यता
'आविण्० अर्थिन् , २ अद्विण अस्थिन् अट्रिय आर्थिक १ अणु अणु, २ अणु अनु अणुगामं अनुग्रामम् अणुगामिय अनुग्रामिक अणुट्टइण्० अनुस्थायिन् अणुट्ठाण अनुष्ठान अणुदिसा अनुदिश् अणुधम्मिय अनुधर्मिक अणुपस्सिण्० अनुदर्शिन् अणुपुत्व अनुपूर्व अणुवसु अनुवसु अणुवीइ अनुविचि अणुसंवेयण अनुसंवेदन अण्डय अण्डज अत्तणू० आत्मन् अत्तत्त आत्मत्व अत्तत्ता आत्मता,-आत्मत्राण अत्थ अर्थ आस्थ अर्थिन् अदु यद् उ अदुवा यद् उ वा,-यदि का,
यदूवा १ अद्ध अध्वन्, २ अद्ध-अर्ध अन्तराइय आन्तरायिक अन्तसो अन्तशः अन्तिय अन्तिक अन्तो अन्तर् अन्धत्त अन्धत्व अत्र अन्य
अन्नत्थ अन्यत्र अन्नयर अन्यतर अन्नहा अन्यथा अन्नोसिय अन्वेषिक अप्प अल्प अप्पग आत्मक अप्पण्० आत्मन् अब्भंगण अभ्यङ्ग,-अभ्यञ्जन अभिताव भभिताप अभिवाय आभिवात अभिसंकिण्० अभिशकिन् अभिसेय अभिषेक अमरायइ अमरायत ( अमर इवा.
चरति) आम्बिल आम्ल अयं ( सर्वनाम) अयं, अणेण,अ.
स्स, भस्सि अरहन्त० अर्हत् अरिह अर्ह अरिहर अर्हति अलद्धग अलब्धक अवं अवाञ्च अवचइय अपचयिक अवम हीन अवमारिय अपस्मारिक अवयहि भवतष्टि अवर अपर अवसकिण भपष्वष्किन् अवि आप अस् (धातु) अंसि, भत्थि, सन्ति, सिया, असिया, आमि, सन्त, अणुसिया
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असण-इरय]
अकारादि-शब्दानुक्रमणिका
जानुधामक
इत्तिरिय । इत्वरक
असण अशन
आणुधम्मिय आनुधर्मिक आहञ्च (आहत्य) अह (धातु) आहु, उयाहु, आइय आप् (धातु) आयतर, आत्ततर, आहरण -
आहाकड यथाकृत १ अह
पत्त, अपत्त, पप्प अथ आम अपक्क
आहार २ अह अधस् अहं ( सर्व०) आय,-या
आहारग आहारक अहं, मे, मए, मम,
आत्मन्
आयग आत्मक ___ महं, मे
इ (धातु) एन्ति, उवेइ, एचा, भआयंक आतक अहा यथा
बेइ, अईय; समेई, समिय, समेच्चा, आयत्त आत्मत्व अहिय अधिक
अभिसमेच्चा आययण आयतन अहुणा अधुना
इओ इतस् आयरिय आचार्य अहे अधस्
इच्च्० इति ( इच्चस्थ इत्यर्थ ) आयवन्त्० आत्मवन्त् अहो अधस्
इच्छा - आयाण आदान १ अहो अहर
इण ( एण) इदमर्थक आयार आचार २ अहो (आश्चर्य) आरम्भ (पापजनक प्रवृत्ति) इति (इच्च्०)
इत्तरिय । आराम आइ आदि आइय आदिक आरिय आर्य,-आचार्य
इत्थिया स्त्रीका आईय आदिक,-आ अतीत आलइय आलायक
इत्थी स्त्री १ आउ
आलुम्प - आपस् आलोभिण आलोभिन्
इन्दिय इन्द्रिय २ आउ आयुस्
इम ( सर्वनाम ) इम, इमा, इमेण, आउट्टी आकुटी आवकहा यावत्कथा
इमस्स, इमाम्म, इमे, इमाओ आवद्ध आवत आउय आयुक
इय इति आवन्त्० यावन्त आउर आतुर
इयर इतर आवसह आवसथ आउरिय आतुरक
इयाणि इदानिम् आवह आउसन्त्० आयुष्मन्त्
इरिया ईर्या आएस आवेश आवास
इव, व इवार्थक आएसिण आदेशिन् आवेसण आवेशन ( शन्यगृह)
१इष (धातु) एसे, एसन्ति,एसए, आकंखिण आकांक्षिन् आस ( धातु) आसंसु, आसिसु,
एसित्या, एसिया; अन्नेसन्ति, सि. आकेवलिय आकेवलिक
आसीण, उदासीन
न्ति; पादुरेसए, पाउडएसए आगइ आगति आस आश (प्रातराश दि)
२ इष् (धातु) इच्छसि, इच्छियाआगन्तार प्रसङ्गा यात्वा आगर आसंसा आशंसा
निच्छिय वा यत्र तिष्ठन्ति (व्याख्या) आसण आसन
इसि ऋषि आगमण आगमन आसण आसनक
इह-हिं) इहार्थक भागमिस्स आगमिष्य
असम आश्रम
ईक्ष् (धातु) उवेहइ, उवेह, उवेआगर आकर आसव आश्रव
हाइ, उवेहमाण; अणुवे०; अणुवेआगास आकाश आसा आशा
हाए, उहा; समुप्पेहमाण, समुवेआघवेत्तग आख्यापयितृक आसाय आस्वाद
हमाण, पेहमाण, • मीण; पहाए, आणन्द आनन्द आसु आशु
सॅपेहाए-पेहाए, सपेडिया आणा आज्ञा
आसेवणा आसेवना ईरय् (धातु) रिय, उदीरिय, सआणुगामिय आनुगामिक आसेवणया आसेवनता
मारए
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आचारांग सूत्रस्य
[इर्सि-कथय
इसि ईषद् उवराय उपरात्र
एवं एवमर्थक उ (ओ) वचाइय औपपादि (ति)क एस एष उववाय उपपात
एसग एषक उक्कुडुय उत्कटुक
उवस (स्स) ग्ग उपसर्ग एसणा एषणा उग्घायण उरातन उवसन्ति उपशान्ति
एसिण्० एषिन् उच्चा उरचार्थक उवसम उपशम
एह एध उच्चालइत्तर-1 उच्चालयितृ उञ्चालइय उच्चालयिक उवहाण उपधान
ओ वाक्यपूरणार्थक उच्चावय उच्चावच उवहि उधि
ओग्गह अवग्रह उवहिय उपधिक उजु-उज्जु ऋजु, अञ्जु
ओह ओष्ठ उवाय उपाय उज्जुकड,-डे. ऋजुकृत, ऋजुकारी उपाय
ओम अवम-हीन उवाहि उपाधि उठाइण्० उत्थायिन्
ओमाण अवमान उड्ढ ऊर्व उवेहा उपेक्षा
ओय ओज उव्वेग उद्वेग उण्ह ऊष्ण
ओयण ओदन उसणिज उष्णीय उत्तम -
ओयरिया औदर्य उसिण उष्ण उत्तर -
ओसा अवश्या उत्तासइत्त० उत्त्रासयित
ओक्वाइय औपपादि(ति)क उत्तिग -
ओह ओघ ऋ (धातु) अच्छइ उद् उदकार्थक ए-(सर्वनाम) एहि
ओहाण अवधान उदय उदक एक्क एक
क (सर्वना०) के, को, का, कि, उदीण उदीचीन
एग (अणेग) एक ( अनेक ) के, अकस्मात्, कंसि; केई, कोइ. एगइय एकतिक
विचि, आकिंचण, कंचणं, कस्सई, उद्दवेत्त० । एगओ एकतस्
कहिंचि, केह (बहु.), केय उद्देस उद्देश पगत्त एकत्व
कओ कतस् उभि उद्भिद् एगन्त एकान्त
कक्खड , कर्कश उभय -- एगयर एकतर
कंखा कांक्षा एगया एकदा
कंखिण. काक्षिन् उम्मुग्गा
एगागिण्० एकाकिन् उम्मज्जा
कज कार्य उन्मज्जा
एगाणिय उम्मुजा
कट्ठ काष्ठ उयर उदर एज वायु
कड,-०८ कृत उयरिण० उदरिन्
एण, इण ( सर्व०) एन-एणं, इणं कडि कटि उयाहु उताहो एत्थ (त्थं) अत्र
कडुय कटुक उर उरस्
एय (सर्व०) एतदर्थक–एयं, ए- कण्टग कण्टक उराल उदार
याओ, एयस्स, एए, एयाई, एयानि कण्डग काण्डक उवक्कम उपक्रम
एएहि, एएम
कण्ड्य् (धातु) कण्डूयए उवगरण उपकरण एयावन्त०एतावन्तु
कण्ण कर्ण उपचइय उपचयिक एलिक्खग ईदशक
कत्थ कुत्र उवचय उपचय
एलिस (अणेलि.) ईदृश (भनीद०) कत्था कुत्रचित् । उवरह उपरति एव, व एवार्थक
कथय (धातु) कहिय, परिकहिज्जा
उद्दवइत्त० १ उद्यापयित
उम्मग्गा । उन्मन्ना
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कन्ध-
]
अकारादि-शब्दानुक्रमणिका
.
कुछिन्
कन्ध स्कन्ध कासकस काषंकष
करिस्सामो, करन्न,-अकुर्वन्त, कप्प का काहीय कथिक
कुव्वमाण; गड, अकड, दुक्कड, सुकड, कब्बड कर्बट
कि -
कय, किरिय, कायव्य, अकरणिज्ज, कम्प (धातु) अविकम्पमाण पिडा क्रिडा
अकरणीय;कट्ट,किच्चा कज्जइ,किज्जइ, कम्बल किण्ह कृष्ण
कज्जन्ति, कीरन्त, कीरमाण; कारेइ कम्म कर्मन्
कित्ति ( अकि० ) कीर्ति (अकी.) कारेन्ति, कारवे, कारेत्था, कारॉवेसुं, कय (विक्य) क्रय ( विक्रय) किमण कृपण
काराविस्सं, काराविस्सु, कारावेस्स; कयवर कवर किरिया क्रिया
पकरन्ति, पकरेन्ति, पकुव्वइ, पकुकयाइ कदाचित् किव (वि)ण कृपण
व्वमाण; पगड, संखय कर ,री - किस कृश
२ कृ (धातु) उवकरिंसु करण - किह कथा
कृश (,) कसेइ करणया करणता
कीर्तय (धातु) किट्टइ, कि? कृष् (,) उकसे, उक्कसिस्सामि, कलह कुआ कुतस्
विउकसे, वुकिसिस्सामि, अवकस्सणं कलुण करुण कुक्कुय कोकृत
क्लप (धातु) कप्पइ, पकप्पेइ,कप्पे, कल्लाण कल्याण कुक्कुर
कप्पिया; पकप्पयन्ति, पकप्पेन्ति कवाल कपाल
कुच् (धातु) अपलिउञ्चमाण, स- केयण केतन कशाय (धातु) कसाइत्था
कुचए, संकुचिय, संकुचमाण को कोष्ठ कषायय, कसाइय, संकसाइय कुचर चोरो पारदारिया य (व्याख्या) कसाइए
कुट्ट (धातु) आउद्दे, विउट्टन्ति कोणि - 8 कसाइण. कषायिन् कुट्टिण्० कुष्ठिन्
कोल (घुणा,उद्देहिया वा;व्याख्या) कसाय कषाय कुणिय कुणिक
कोविय कोविद कसायय कषायक कुण्टत्त कुण्टत्व
कोह क्रोध कहंकहा कथंकथा कुण्डल -
ऋन्द (धातु) कन्दइ, कन्दिसु कहा कथा कुन्त
क्रम् (धातु) चंकमित्ता, चंकभिय, काउ काय कुन्तग कुन्तक
चकमिय, उवाइकन्त, उपाइकम्म; कांक्ष (धातु) खेज्जा, अभि. कुप् (धातु) कुप्पन्ति, कुप्पेज्जा
अभिकभ, अभिकममाण, अणमिकमे, खेज्जा, अवकंखइ, अवकंसन्ति, कुम्भार -
अणमिकममाण, अवकज्जा , अवअणवकखमाण, • कंखे. कुम्म कूर्म
कभित्ता; अक्कन्त; अणुकन्त, विउकाणत्त काणत्व कु.म्मास कुल्माष
कम्म; निकन्त, दुणिकन्त, निकम्म, काणिय काणक
अमिनिकन्त; पडिनिकमित्त; पडिकाम - कुस कुश
कमे, पडिकममाण; परकमे, परककामिण कामिन् कुसल कुशल
भेजा, परकमेज्जासि; परकमन्त, काय कुसील कुशील
परकममाण; दुप्परकन्त, विपरिकायर कातर
कमन्ति, विप्परिकम्म; उवसंकमन्त, कूर क्रूर कार -
१ क (धातु) करेमि, करेइ, करेन्ति, उपसंकमित्ता, उवसंकभित्त कारण -
करए, कुज्जा, कुबह, अकरेसुं, फ्री ( धातु) किणे, किणावेइ, किकारिण० कारिन्
अकरिस्मुं, अकासी, अगासं, कुव्वि- णन्त, कीय काल -
स्था; करिस्स, करिस्सामि करिस्सइ, क्रुध ,,) कुज्झे
कुल
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४२
यतरा
आचारांग सूत्रस्य
[क्रुश्चत्तारि क्रुश् (धातु) अक्कुट, आकुछ गण्डिण. गण्डिन्
गुप्फ गुल्फ क्लम (,) किलामेयव्य, परिकि- गन्ध ग्रन्थ
मुप्फग गुल्फक गन्ध - क्लिश (,) किलेसन्ति, परिकि. गम्भ गर्भ
मुरुग गुरुक लेसन्ति
गम् । धातु) गच्छइ, गच्छन्ति, गुहा --- क्षण (,) छणे
गच्छेज्जा, गम, गभित्तए; अइयच्च; ग्र(धातु) जा रन्ति, जागित्ता, क्षिप् (,) निक्खिवे, निक्खित्त- अणुगच्छन्ति, अणुगच्छमाण, अण- जनावइ खण क्षण
गुगच्छमाण; आगममाण, ० मीण, गृध् (धातु ) गिज्झे, गिद्ध, अणुखणय क्षणक
आगय, आगमेत्ता, आगम्म, सम• गिद्ध, परिगिज्झइ खन् (धातु) खणह
नागय, असम, अभिसमन्नागय, गेहि गृद्धि खन्ध स्कन्ध
अभिसमागम्म; नियच्छन्ति,विगय-गोमय - खम क्षम
गम-यथा पारंगम, तीरंगम गोय गोत्र खय क्षय गमण गमन
गोयर गोचर खलु, खु, हु खल्वर्थक गरहा ( अगरहा ) गहीं (अगर्दा) प्रश् (धातु ) गढिय खवय क्षपक गरुय गुरुक
ग्रम् अह , गहिय, गहाय, अखाइम खादिम गल -
मिनिगिज्झ,अपरिग्गहमाण, मीण, खिस (धातु) खिसए गल्भ् (धातु) पगब्भइ
अपरिगहेमाण, परिगिज्झ, पगहीखिप्प क्षिप्र
गवेष , गवेसित्था खु खलु गवेसग गवेषक
ग्ला (धातु) गिलाए मे, गिलाखुजिय कुब्जक
गह (अग्गह ) ग्रह (अग्रह) णामि, गिलामी, गिलाइ, गिलाखुड्डग-खुड्डिय क्षुद्रक गाम ग्राम
एज्जा, गिलायन्त, गिलाण, अगिखेड खेट गामिण० गामिन्
लाण, गिलाय, परिगिलायमाण खेत्त क्षेत्र गामिय ग्रामिक
घर गृह खम क्षेम गाय गात्र
घस् (धातु) परिघासेत्त, दिगिखेय क्षेत्र गार अगार
च्छन्त, दिगिच्छिन्त, दिगिच्छिन्ता, खेयन्न खेदश,-क्षेत्रज्ञ गाह (धातु) अभिगाहा
दिगिच्छन्ता ख्या (धातु) अक्खाइ, अग्घाइ, गाहय (गाहिया) ग्राहक (ग्राहिका) घाण घ्राण आघाइ, आइक्खामो, आइक्खह, गाहावइ गृहपति
घातय् (धातु ) घायए, घायमाण, आइक्खन्ति,आइक्खे,आइक्खेज्जा, गिद्धि गृद्धि
चायमीण अक्खाति,आइक्ख, अग्याइस्सामो, गिम्ह ग्रीष्म
घास ग्रास आइक्खमाण, अक्खाय, अग्याय, गिरि -
घृप ( पातु ) परिघेत्तव्य, परिधेयव्व आघाय, आखाय; अब्भाइक्खइ, गिलासिण- ग्रासिन्
घोर - अन्भाइक्खेज्जा; उदाहिय; पच्च- गिलासिणी ग्रासिणी क्खाएज्जा; पडियाइक्खे, अव्वा-गिह गृह
च, (यॉ, या, अ) च आर्थक हिय,वाहिय, विक्खाय,-वियक्खाय, गीय गति
चउत्थ चतुर्थ वियाहिय; संचिक्खइ, संखाए, गीव प्रीव
चउप्पय चतुष्पद संखाय; पडिसंखाय मुण -
चउरंस चतुरंश ग यथा पारग रसग मुत्ति गुप्ति
चक्खु चक्षु गह गति
गुप् (धातु) गुत्त, अगुत्त, दुगुञ्छमाण चत्तारि चत्वारि
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चम्म-शा
~www.
चम्म चर्मन
चयण च्यवन
--
घर
चरिया चर्या
चलू (धातु) बॉलेमाण, उच्चा लिय
चल ( अचल )
चवण ( चयण) भयवन चाइण त्यागिन्
चायू (धातु) निकाय, ( निकाध्य निवारय निकाएकण, निकाएयंव्वा ) चारिण- चारिन्
१चि (धातु) संसंचियाणं
२ चि
"
wwwww..
पण यान
चय
जाणवय जानपद जाणु जानु
लपण क्षणन
चर् (धातु) करे, रेज्जा, अचारी, छद् (धातु) पछि पनि जाम याम अणुविष्ण उवचरन्ति उवबरे, बिय
,
च्छन्न, परछन्न
जाय जात
रिंसु, संचरिज्जा, अणुसंचरइ
चोर चौर
च्यु
छ षटू
--
चिट्ठा चेष्टा
चित् (धातु) ए चित्त (आवे )
चित्तमन्त चित्तमन्त् चित्तान्तग चिन्तषु (धातु) अणुविचिन्निय चिर
39
अणुवाइ ( य )
अणुविचिय
बुद ( धातु ) चुइय ( चोइओ ) च चयइ ( यजू )
चेयण ( अचे० ) चेतन ( अचे० ) चेल (अर्थ) वस्त्रार्थक चेलग, वेलिय चेट (धातु) विपरिचिहर, परिवि
चिलक
चिह्नि
( धातु ) चुय
अकारादिशब्दानुकणिका
छह पत्र
ला क्षण
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www
ज
जाया यात्रा
छन्द छन्दसू छाया
जावन्त्, जाव यावन् यासमी छिद (धातु) छिबर, छिन्देज, वमू, यावन्ती छिन्दह, छिन्न, छिताः वोच्छिन्दे- जि (धातु) वित्ता, बिएनु या अवोच्छिन्न अच्छे अच्छेन जिण जिन परिच्छिन्दिय, पलि०
,
जिम्मा जिन्दा
छु
छेतर् छे
छ- (छ्क्कारेति )
१ छेय छेक
२ छे
छेद
यथा अण्डज पोतज
ज ( सर्वनाम य ) जे, (एक बहु० ) जइमन्त्० द्युतिमन्त् जो, जं, जा, जेन, जाए, जुज्झ युध्य
जस्स, जसि, जाई, जाओ, जेहिं, जुद्ध युद्ध
जेसिं, गु
जनकं
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जन्तु
जम्म
जरा
जराउ जरायु
जहा यथा
जाद जाति
जाइय जातिक
जागर
जन्म
जी (धातु) जीविसामो जी विउ, जीविउ-काम
जर यदि
जओ यतः
जंघ
जण जन
जणग
जणवय जनपद
जोग योग जोगया योगता जोणि योनि
जत्थ यत्र
जन्, जा (धातु) जायद, जाय, जोणिय योनिक जणयन्ति, अभिसंज्ञाय
जोग्वण यौवन
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जीव
जीविण जीविन् जीविय जीवित जीटा जिव्हा
जुष् (धातु) क्षोसेमाण, अझो
सयन्त
जर (धातु) जूर, जूरह
ज्ञ
"
जरेहि, जुण्ण, परि
जुण्ण
ज्ञा (धातु) जाणइ, जाणेज्जा, जाण, जाणे; जाणाहि जाणह, जाणेह अनेसी, अन्नेसिं, जाणन्तू अजाणन्त्, अयाणन्तू, जाणित्ता, जाणि
नवा नवाण अणुजाण, अणुजाणए, अणुनाइ, अनुजाणित्या, समगुजाण, स० जागाइ, स जाणेना, स० जाण माण,
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રા
तण
• मणि, अभिजाणइ, व्याणइ, अ भिश्राय, समभिजाणिया, स० तप्तो
,
झझा ( माया-लोभेच्छा व्याख्या) झाणि - ध्यायिन्
झाण ध्यान
झिमिय जिम्हिक ( अलस्यवाही अस् (धातु) झोसेइ झोसमाण, •मीण, शोसिय, दुज्झोखिय
)
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ठाण स्थान
डण्ड दण्ड
डाह दाह णं नूनम् हारुणी खायुनी
त (सर्वना० ) तदर्थक तं, तो समासगत तद् यथा राज्झोसमाण, तद्दिद्वय तेण ( - ), तम्हा, त स्स, तंसि, तम्मि; ते, ताई, तेोहें, तेखि, तेसु
तइय तृतीय तभी ततः तंस यंश
तक्का तर्का तच्च तत्त्व
आचारांग सूत्रस्य
तृण
ततः
जाणेज्जा, स० जाणाहि, स० जाण १ तत्थ
तत्र
तिविह त्रिविध
अवयाण, अवयाणन्तू आ २ तत्थ ( अत० ) तथ्य ( अत०) तिहा शिवा जाण, आयाण, आयाणह, आ
तीर
- अतीरंगम
तद्
} तदर्थक
तु उ तु तुह वृन्
',
पाए, आणवेना, आणावेजा, तन्अजावेयव्य आणावे, परिजा तप्नाभि, परिजाणदः परिजानन्नू, तप अप: परित्राय, अप, सुप०, सु० जाणियव्व, सु० नाए, स० न्नाया; सुपनत्त, पनवेमो, पनवेह, पन्नवेन्ति; पडिन्नत्त, अप०; विजाणइ, विजानन्तु विया, अवि०, वि प्राय, दुब्बि०, वियाणिस्ता ज्वल (धातु) उज्जालेत्तए, पञ्जालेत्तए, पज्जालेत्ता
(धातु) आयावेजा आया तुच्छ बई, अभिताव आयावयह, आयावेतुच्छग तुच्छक त्तए; पयाबेज्जा, पयावेत्तए, परित- तुमं ( सर्वनाम ) स्वम् तव, ते, प्पड़, परितप्यमाण, परिवानि तुब्भ, तुझ, भ न्ति •बावज्जन्ति •यावेन्ति, तुला
3
"
• यावए, व्याचिय, •यांवेयम्य तम्- सद्
तम
तमसू
तर ( ग ) - ( ० क तर्क (धातु) सहियाणं
तव तपसू तवस्सिण तपस्विन्
तस् तद्
तस त्रस
तिरिच्छ तिरिय
دو
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} तिर्यक्
ताव तावत्
ति इति तिइक्खा तितिक्षा
तिक् (धातु) तिप्पइ, तिप्पमाण थी स्त्री तिज् तिइक्सए, तिक्खमाण शूल तिणि त्रीणि-तिहि तित्त तिक्त
स्थूल धोय स्तोक
तिय त्रिक तिरिक्ख तिर्यक्
[ ज्वल-स्
अवइण्ण, पइण्ण,
तेइच्छा चिकित्सा ते ते तेजस्
तो अम् त्यज (धातु) यह चयग्नि, चए, चाएमि, चाएस्सामो, चयाहि, चड़ता, मेथा ( ०णं), चाएमि चाण्ड: परिचयन्ति परिषएना परिश्वजः संचाएमि
तसत्त
त्रसत्व
तह ( तथ्य )
तहा तथा
तहागय तथागत
त्रस ( धातु ) तसन्ति; परिवित्तसन्ति, परिवित्तसेज्जा त्वग्वर्तय तारिस (अता० ) तादृश (अता ) थ स्थ यथा अगारस्थ आसणत्थ, तारिसय तादृशक
ताण त्राण
( धातु ) तुयहेज्जा
तालु
छाउमत्थ, भवत्थ, मज्झत्थ थण स्तन थंडिल स्थण्डिल थावर स्थावर
तासणीय तूष्णांक
तु (धातु) तर तिष्ण, सारंक्षण आंवष्ण
थावरत्त स्थावरत्व
दंस् (धातु) दसन्तु सन्तु द सन्तु, उसमाण, डंसमाण, दंसमाण
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स- ]
अकारादि-शब्दानुक्रमणिका दस दंश
दिश् (धातु ) देसिय, समुद्दिस्स, देह - सण दर्शन
पदेसिय
दो द्वौ दसिण० दर्शिन् दिसा दिर
दोणमुह द्रोणमुख दग उदक
दि (धातु) क्षये-दीण, असंदीण; दोस दोष संदइ संदिज्जइ वा संदीणो
धम्म धर्म दण्ड, डण्ड --- दवि दीप
धम्मय धर्मक दन्त - दहि दर्घि
धम्मवन्त्- धर्मवन्त ई दन्त दुक्ख दुःख
धम्मिण- धर्मिन् दम - दुक्खिण- दुःखिन्
धा (धातु) हिय, अहिय; भाढाएदय् (धातु ) दयइ, दइय दुगञ्छणा, दुगु० जुगुप्सा
मि, आढायमाण, मीण, आढायदया --- दुग्गइ दुर्गति
माणाग, अणाढा०; समाहिय, सुदरिसण दर्शन दुचर दुश्चर
समाहिय-; निह, निहेज, निहाय, दविय द्रव्य दुच्चरग दुश्चरक
सुप्पणिहिय; परिहिस्सामि; पीहिदसम दशम दुज्झोसग दुग्णुपाल्य
स्सामि, पहेसामि, पिहिय-; संदह ( धातु ) दहह, डहह, डउझइ, दुत्तिइक्ख दुस्तितिक्ष
धाएइ, संधए, अभिसंधए; आढा. द०, समादहमाण, डह०, विडज्झ- दुपय द्विपद
एमाण माण
दुप्पडिवूहग, वृहण दुःप्रांत. धाई धात्री दा ( धातु ) दयाइ, देइ, दलइस्सामि, बृहणीय
धारिण. दासामि, दाहामि, दत्त-, अदत्त-, दुब्भि, भि दुरभि धारिय धारिक अण्ण-; आइयन्ति, आइए, आइ- दुरइक्कम दुरतिक्रम
धाव् (धातु ) संधावइ यावए; आइजर्माण, अणायमाण, दुरणुचर -
धीर - -०मीण, आईट्ठ-आइडिग्- (आ- दुरभि -
धुव, धुय ध्रुव दत्तार्थ ); अणाईय; आयाणिज्ज, दुरहियासग दुरधिवासनीय
धू (धातु ) धुणाइ, धुणे, धूय-, आयाणीय; आइत्तु, आयाए, आयः दुल्लभ दुर्लभ
_ विहूणिया, विधूय-, संविहूणिय उवाईयमाण; पाएज्जा; समाइयन्ति, दुवालसम द्वादश
धूयर्- दुहित समायाए, समाय दुविद द्विविध
धृ (धातु ) धारेज्जा, धारेत्तए, विदाढ दंष्ट्र दुव्वसु दुर्वसु(-मुनि)
धारए दायाद - दुसंबोह दुःसम्बोध
धौ (,) धोवेना, धोय दारुण - दुहओ द्विधातस्
ध्या (,) झाइ, झायइ, निज्मादास -
दूतम् (धातु ) दूइज्जा, दूइज्जेज्जा, दासी -
दूइज्जमाण, ( हेमन्तगिम्हासु दोसु, - दाह डाह -
रिजइ दूइज्जइ, दोहि वा पाएहि १ न ज्ञ दाहिण दक्षिण
रिजइ दूइज्जइ-व्याख्या) २न - दिट्ठिमन्त् - दृष्टिमन्त्
नक्ष (धातु) आणक्खेस्सामि, भण०, दिट्ठीय दृष्टिक
दृश् (धातु ) अद( ६ )क्खू , आणि. दिय द्विज
दिट्ट, दुद्दिट्ट, दटुं, दट्टण; दिस्सइ, नगर - दिया दिवा
दीसई, अद्दिस्समाण, उवदंसेज्जा नगिण नग्न दिव (धातु ) परिदेवमाण देव -
मट्ट नृत्य दिव्व दिव्य देसिय देशिक
नड नट
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भावारांगसूत्रस्य
[नन्दि-पत निझोसइत्तर- निझोषयित पइट्ठाण ( अप्प०) प्रतिष्ठान, नम् (धातु) नममाण, अनममाण, निडाल ललाट
(अप्र.) नय, अनवयमाण, उन्नयमाण, परि. नितिय ( आन०) नित्य (अनि०) पंसु पशु णमेज्जा, विप्परिणामन्ति, विपरि- निदा निद्रा
पक्कस दृष्टव्य वक्कस णामेन्ति, पणय निस निर्देश
पक्खालण प्रक्षालन नमस्य धातु) नमंसिय नियग -
पक्षिण- पक्षिन् नर
नियट्ट (अनि०) निवर्त (अनि०) पगन्थ प्रग्रन्थ गरग नरक नियम
पगप्प प्रकल्प ( सामाचारी = नश् (धातु) नस्सइ, नासइ, वि- नियाग न्याय
आचार) णस्सइ, नियाण निदान
पगाम प्रकाम नह नख निरय -
पगार प्रकार १नाइ ज्ञाति (ज्ञाति पुत्र-महा- निरामगन्ध -
पग्गह प्रग्रह वीर)
निरालस्वनया निरालम्बनता पर (धातु ) पयह, परिपञ्चमाण २ नाइ ज्ञाति ( शाति-बल) निरुववाण निरुपस्थान
पारव० नाग - निरोह निराध
पश्चात्तम प्रन्यक्तिम नाण ज्ञान निलाट ललाट
पचारमण- प्रत्याशिन् नाणवन्त- ज्ञानवन्त निवाइण- निपातिन्
বা এস্কা नाणिण- ज्ञानिन् नियाय निवात
पज्जव पयय नाभि - निवेसण निवेशन
पजवासिय दृष्टव्य सन् (धातु) नाम नामन् निव्वाण (२०) निर्वाण
पंचग पञ्चक (शब्द, रूप, रस, नामय नामक निव्वेय निर्वेद
गन्ध, स्पश) नाय ज्ञात निस्सार निःसार
पट्टण पट्टन २ नाय ज्ञात निस्सयस निःश्रेयस
पटिकल प्रतिकूल नायपुत्त ज्ञातृपुत्र निस्सेस ( नी०) निःशेष
पनिक पाडियक) प्रत्येक नालीय नालिक निस्समिय नि:शेषिक
पानग्गड प्रतिग्रह नास नाश
निह ( अनि०) निघ (हन् धातु ) पारमाय प्रा घात निकरण (नो निकरणाए त्ति, नो नी (धातु) उवणीय, सुवीय, पटनायण प्रातच्छादन
निश्चयं कर्तुं समर्थः,-व्याख्या) परिणिज्जमाण, विणइत्तु, विणएत्ता पाडल ( अप०) प्रानज्ञ (अप्र०) निकरणया निकरणता नीया नीचा
पाडयक दृष्टव्य पडिक्क १निकाय ---
नील - २निकाय दृष्टव्य चाय (धातु) नीसंक निःशक
पडिलेहा प्रातलेखा ( लिख धातु) निकेत ( अनि०) --
पडिहणया प्रतिवृहणता नीसेस दृष्टव्य निस्सेस
पड़ीण प्रताचीन निकम्म निष्कर्म नुद (धातु) पणुन, विप्पणोल्लए
पडीयार प्रतीकार निगम -
विपु० निग्गन्थ निर्ग्रन्थ नूम कर्म, माया ( अभिन्म अभि-.
पदुच्च दृष्टव्य व्रज (धातु) निचय -
पणग पनक ___ मुख्येन कर्म माया वा) निश्चग (अनि०) मित्यक (अनि०) नेत्त, नेय नेत्र
पाणय पण्य
पाडय पण्डित निजरा निर्जरा
नेव्वाण निर्वाण निज्झाइण- निध्यायिन्
पत् (धातु) अइनाएज्जा, अणइ. नो न
बाएमाण, आवडिय, अप्पइय, निव
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पतलस-पीड
अकारादि-शब्दानुक्रमणिका
इंज, निवइय; पडिवयमानः संप. परिस्मा परिक्षा
पाईण प्राचीन परिमाण परिक्षान
पाउ प्रादुस् पतेलस (पतेरस) प्रत्रयोदश- परिपाग (पलि०) परिपाक पाडियक दृष्टव्य पडिक पनयं पत्थियं वा तेरसमं वरिसं परिसंडल --
पाण पान जेसि परिसाण- प्रण त्रयोदशः परिमाण ---
२ पाण प्राण वर्षम्. व्याख्या)
परिमोक्न दृष्टव्य पलिमोक्ख पाणिण- प्रागिन् पत्त पत्र परिया परिवर्तन
पामिञ्च प्राभित्य (पामिचंति अपपत्तिय प्रतीत परियंदण परिवन्दन
रस्मादुच्छिन्नमुद्यत्कम्, व्याख्या) पत्तय प्रत्येक
परियाय पर्याय (श्रामण्यकाल) पाय पात्र पद् (धातु ) आवजन्ति, आवा. ५ परियाव परिताप
२ पाय पाद यए, परियावज्जन्ति, समावन्न, परिवन्दण ( परिय०) परिवन्दन पायर् - प्रातर् ( यथा प्रातराश ) .
पार -(यथा पारग, पारगामिन् , अझोववन्न, पड्डान, समुपज्जेन्ति, परिस दृष्टव्य फरिस समुपज्ने, निवज्जइ, नियोजना. परिस्सव परिस्रव
पारंगम) पडिवन, विप्पडियन, संपन्न परिस्सह परीषह
पारुसिया पारुषता पडिसो प्रदिशस् परीसह ,
पालय् (धातु) पालेमाण, अणुपन्त प्रान्त पलाल -- (पलालपुञ्ज )
पालए, पालिय, पालिज्जा,
०पालेज्जासि पन्थ पन्थन् (पथिन् )
पलास पलाश पन्न प्राज्ञ
पलिपाग दृष्टव्य परिपाग पाव पाप पन्ना प्रज्ञा
पलिबाहर ( हिर) प्रतीपं आहरे पावग पापक पन्नाण प्रज्ञान
चरणं संकोचए देसी भासाए- पावाइय प्रावादिक पन्नाणमन्त्- प्रज्ञानवन्स्
व्याख्या
पावाउय प्राबादुक पभंगुर प्रभङ्गुर
पलिमोक्ख (परि०) परिमाक्ष १ पास पार्श्व पभिइ प्रभृति
पलिय कर्म (पलियट्ठाण, पलिय- २ पास पाश पमाइण् . प्रमादिन
प्पगन्य-इत्यादि)
पासग पश्यक पमाय प्रमाद पवंच प्रपञ्च
पासणिय प्रानिक पमुह प्रमुख पवा प्रपा
पासिम दर्शनीय पमोक्ख प्रमोक्ष पवाय प्रवाद
पासिमन्त्- (पस्सतीति पस्सिम १ पय पद
पश् (धातु) पासइ, पासे, पस्स, पास, व्याख्या) २ पय प्रज
पासह, पासन्तू-, अपासन्त-,पस्स- पिच्छ, पिञ्छ पिच्छ पयणु प्रतनु
माण, पासमाण, पासिय; समणुप- पिट्ट (धातु) पिट्टा पयांग प्रतनुक
स्सइ, स० पस्सह, स० पासह पिट्ट पृष्ठ पया प्रजा
पतु (अप०) पशु ( स०) पिट्टि पृष्टि पर -- (परेण पर) परसुग(अप०) पशुक (अप०) पिण्ड - परम - पह पथ
पिण्डोलग पिण्डोलक परिग्गह ( अप०) परिग्रह (अप०) पहु प्रभु
पित्त - परिग्गहावन्त परिग्रहवन्त् पहेण (प्रहेणक)
पिय ( अवि०) अय ( भप्रि.) परिणिन्वाण ( अप० ) परिनिर्वाण पा (धातु) अपिइत्थ, अपिवित्था, पियर- पितृ (अप०)
पाउं, पायए, अपिबित्ता पीड् (धातु) पिइ, आलिए,
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आचारांगसूत्रस्य
[पढि-भुजो
परुष
बूया
पुराण
पवीलए, निप्पीलए
अवबुज्झन्ति, ओबुज्झभाण; पबुद्ध, पीढ पीठ
फरुसया-सिया परुषता पडिबुद्ध; सुपडिबुद्ध, पडिबुज्झ, पुच्छ - १फल --
संबुज्झमाणा, अभिसंबुद्ध पुञ्छण प्रोञ्छन २फल फलक
बुसिमन्त बुसी संजमो-व्याख्या पुञ्ज - फलग ,
बेहि बोधि पुढवी प्रथिवी फलत्त फलत्व
ब्रू (धातु ) बेमि, बुइत्त, बुइय; पुढो पृथक्
फारुसिया पारुषता
फास स्पर्श पुण पुनर्
भइणी भगिनी फुसिय स्पष्ट पुणर् " पुणो ,
भगवन्त् पुण्ण पुण्य बज्झओ बाह्यतस्
भज् (धातु) विभयन्ति, विभए, पुत्त पुत्र बन्ध् (धातु) बद्ध
विभत्त पुरओ पुरतस् बन्ध -
भजा भार्या बन्धण बन्धन
भंजन पुरक्कार पुरस्कार
भञ्जक (भू ति भूमी, पुरथिम पुरस्तिम बंभ ब्रह्मन्
तीए जाया भंजगा, भंजगा वृक्षाः)
भण (धातु )पडिभाणी बंभवन्त ब्रह्मवन्त् पुरा
भत्त भक्त पुरिस पुरुष बलि -
भमुहा ध्रुवुका पुरे पुरस् बहिं बहिस्
भय बहिया बाह्यात्
भव पुलाग पुलाक
- पुव्व पूर्व
बहिरत्त बधिरत्व पुव्वं बहु
भायर भ्रातृ पूर्व
-
भाव पुवि ,
बहुग बहुक पुष् (धातु) पोसन्ति, पोसेन्ति, बहुयर बहुतर
भाष् (धातु ) भासामो, भासह, भापोसज्जा, पोसिय
सन्ति; भासिय; अभिभासे, अभि
भासिंसु पूर पूति
बहुसो बहुशस् पूयणा पूजन बाध् (धातु ) बज्झमाण, उब्बा.
भि भिद्
मिउर,-भे० भिदुर पृश् (धातु) पुच्छिमु, पुच्छि- हन्ति, उब्बाहिज्जमाण
भिक्खायरिया भिक्षाचर्या स्सामो, पुढ, अपुठ्ठ; पडिपुच्छमाण बाल -
भिक्खु भिक्षु पृ (धातु) पुण्ण, पूरइत्तए, पूरेइत्तए, बालया,-लिया बालता
भिक्खुणी भिक्षुणी पडिपुण्ण, संपुण्ण बाहा बाहू
भित्त पेच प्रेत्य बाहिं बाह्यम्
भिद् (धातु) भिज्जइ, अन्भे पेज प्रेयस् बाहिर-हर बाहिर
भी पेसल पेशल
- बाहिरग बाह्य
भीम - पहा प्रेक्षा ( ईक्ष धातु) बाहु - पहिण- प्रेक्षिन् बिईय, बी० द्वितीय
भीय भीत पोरिसी पौरुषी १बीय
भुज् (धातु ) भुंजे, भुजह, भुंजित्था, २बीय बीज
भुंजंत, भुजिय, अभोच्चा, भोत्तए फरिस स्पर्श
घुध् (धातु ) अबुज्झमाण, युद्ध; भुजो भूयस्
भाग
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४९
भो भोस् भोरण भोजिन्
भू-मोह]
अकारादि-शब्दानुक्रमणिका भू (धातु) भवइ ( होइ ), भव.. मद (धातु) मज्जेजा,पमज्जेजा; पमत्त, मीसी मिस्री लि, भवे, भविस्सामि, भविस्सा- अप्पमत्त ।
मुच् (धातु) मुच्चइ, मुक्क, मुत्त; मो; होइ ( भवइ ), होन्ति, होउ. मद्दविया मार्दवता
उम्मुच, मुञ्च; पमुच्चास, पमुच्चइ, अहेखि भूय, अगभिभूय, अभि- मन (धातु) मनसि, मनइ, मन्नमाण पोवसतिपिप्पमुवक पडिमाए। भूय, पभूय, संभवन्त, असं०, स- मय, दुम्मय, मणुया; मत्ता, भन्ता, विमुक्क, पिमुत्त भय, अभिभूय सम्मय
मुष्टि (मुंठि) मुष्टि भमि -
मंत्रय् (धातु) निमन्तेज्जा मुणि मुनि भूय भूत मन्शु -
मुण्ड - भेउर, भि० भिदुर मन्द -
मुत्ति मुक्ति भेत्तर भेत्तु ममाइय ममायित
मुत्तिण- मूत्रिन् भेय भेद
ममाय् (धातु) ममायमाण, अममा- मुत्तिय मुकिक भेरव भैरव
यमाण, अम्मायमीण मुन् (धातु) मुय, मुणिया, सम्मुय ममाग (मामग) नमक
मुह , मुज्झइ, मूड, सम्मूढ मरण -
मुह मुख भोग - मस मशक
मुहत्त मुहूर्त भोम भाम भोयण भोजन
मुहुत्ताग मुहूर्तक महु मधु भ्रंश् (धातु) भट्ट
मूक्षण- मुपिन् महुर मधुर भ्रम -
मूय मूक (मू, मूई) मा -- मह मति
मूयत्त मूत्व माइण- मायिन् मईमन्त मातमन्त्
मूर्छ (धातु) मुच्छइ, मुच्छमाण. माइल्ल ( अमा० ) ,, ( अमा०)
अमुच्छिय मउय मृदुक
माण मान मंकड मर्कटक
माणण मानन ( यथा वन्दन, मानन, मलियारी मूषिकारी (नाजी ) मंस मांस
पूजन) भंसु इमश्रु
मृ (यातु) मुयच्च ( मृता; मा माणव मानव
विनष्ट, अपां (तेमस् ) कषाय li मक्कडग मर्केटक माणुस्स मानुष्य
येवात मृताचा:-न्यार.) सामरिए मग्ग मार्ग
मामग भालक (मदीय) मच्चिय मर्त्य
मृज , संलिगन्जमाण; पमज्जए; पममायर्- मातृ
जिजा, पमाजया, मनजिन्य मच्चु मृत्यु १ माया मात्रा
मृप (पति) आनुसन्त; विपर.नसइ. मझ मध्य
२ माया माता मज्झिम मध्यम
નુતર, મૈતન્દુ, મુસદ્ધ કુતil ३ माया - मट्टिया मृत्तिका
मेहाविन् मेवान्ि मारसब -
महणिय मेहनिक मारुय मारुत
महिण- मेहिन मण मनस् मास -
मोक्ख मोक्ष मगस मनस् माहण (बंभण, बम्हण) ब्राह्मण
मोग मौन निजा मज्जा
मोत्तिय भौक्तिक मणुस ( •स्स) मनुव ( ००) मित्त मित्र मत्ता मात्रा
मोयण मोचन लिहुं मिथुन् मथु ( धातु) पमत्थइ, पमन्यई मिह मिथस्
मोह
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५०
आचारांगसूत्रस्य
[म्ला-यह
लंपइत्तर ) लम्पयित
लुपित्तर
लम्पयित
म्ला (धातु)मिलाइ राय रान
पडिलोहत्ता, पडिलहिय, सुपडिले१य च रायसिण-राजासिन्
हिया २ य ज ( यथा अण्डय, उभिय, रायण-राजन्
लिए , लिपइ, ओलिंपेज्जा, जराउय, पोयय, रसय, संसेयय रायहाणी राजधानी
उलि जासि, लिपे०, लिंपेज्जा इत्यादि)
ऋ (धातु) रिज्जइ, रीयइ, रीयए, ली ,, दृष्टव्य व्ली ? यत् (धातु ) जयाहि, जयमाण रीयन्तेरीयन्तू-, रीइत्था, रीयमाण लुक्ख रुक्ष यम् ,, जय ( यतेत् ), आयय, रिच ( धातु ) रिक्क, अइरित्त, रि- लुञ्च ( धातु ) लुधिंसु, लुचिय, सखेंआयतर, नियच्छन्ति, संजमइ, क्कासि (त्यक्तवान् ।)
चमाण संजय, असंजय रीया ईया
लप , लुप्पइ, आलुपह, विलुपह १ या च रुक्ख रक्ष
विलुपन्ति २ या (धातु) जन्ति, दुजाय; रुद (धातु ) रुयन्ति, रोयन्ति
जावए, जावइत्य, निज्जाई, नियाइ रुध् निरुद्ध याच , जाएज्जा, जाइस्सामि, रुश् , आरुसियाणं लुस् (धातु ) लूसिंसु, (पिन्ति, जाइत्ता
रुह , अभिरुज्झ, आरुज्झ, जिहिंसु) लूसिय युज् , अभिजुंजियाणं, "जुजिया; समारुहन्ति ।
लूसग लूषक विप्पांजन्ति
रुह (रह बीजजन्मनि ) लसणग लूषणक युथ , जुज्झाहि
रूपम् ,, परुवमो, परूवेइ, पख्वेन्ति लूसिण-लूषिन् रूव रूप
लूह ( लुक्ख ) रूक्ष रह (अर.) रति ( अर०)
रूविण ( अरू० ) रूपिन् ( अरू०:) लेख, लेलु लेष्टु रक्ख रक्ष रोग ----
लेस्सा लेध्या रक्ष (धातु ) सारक्खमाण, मीण रज , रज्जइ, रएज्जा, रत्त, लज्ज (धातु ) लज्जामो, लज्जमाण लाइय लाकिक आरत, विरज्जए, विरत्त लहि यष्टि
लोग लोक
लोच (धातु) आलोएइ, आलोग लद्धि लब्धि रण्ण अरण्य
लोभ -- रम् (धातु) आरमे, आरममाण, लप् (धातु) लालप्पमाण
लोव लोप .मीण, अणारद्ध; समार (२) भइ लभ लभइ, लभन्ति, लद्ध,
लोहिय लोहित ०र भन्ति,र(२)भज्जासि, उजा अलद्ध, द्धग, लब्दु, लभिय; र (२) भन्त, र (२) भमाण, उपलब्भ, पइलब्भ, पडिलाभिय व इव, एव, वा असमारब्म, रंभ; समारंभावेइ, लम्ब् (धातु) अवलंबए, अवलंबि- वई वाच्
याण
वओ वचस् रम् , रमइ, रमन्ति, रय, अरय लवण --
वक्कस, प. चिरन्तनधान्योदनम् , उवरय, अणुवरय,विरमेउजा, विरय, लहु लघु
पुरातनसक्तुपिण्डम् , बहुदिवस. अविरय लहुग लघुक
सभृतगोरसगाधूममण्डकम् --च्या रय रजस् लाघव -
बंक चक्र लाविया लाघवता
वच् (धातु) वुत्त, वत्तए, वाइथ, रसण रसन लाढ राढा
पवुच्चद राइ रात्रि लाला -
वञ्च वय, वाच्य राहन्दिय रात्रिंदिव
लिख ( धातु ) पडिलेहन्ति, पडिलेहे, वज वज्र (-भूमि)
पडिलेह, सडिलहिया पडिलेहाए, वह वृत्त
वेज्जा
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वट्टमग-विश्]
अकारादि-शब्दानुक्रमणिका
armerrrram
घट्टमग वर्मक
२चा (धातु) पचायन्त वित्त - पद्यमग्ग वर्मन मार्ग
३ चा (धातु) उहायन्ति, उद्दवए, वित्ति वृत्ति बडमत्त बडभत्व
उद्दवेयव्व
१ विद् ( धातु ) वित्ता, विइत्ताणं, बहुमग, डु, वर्मक वाइण वादिन्
वेएइ, वेएज्जा, बेयण, पवेएन्ति, बणस्सा वनस्पति चाउ वायु
पवेयन्ति, पवेयए, पवेएस्सामि, घण्ण वर्ण वागरण व्याकरण
पवेयइस्सामि, पवेश्य, पडिवेयमाण; वत्थ वस्त्र बाम
विप्पडिवेएइ, पडिसंवेयइ, प० वेदइ, पत्थग वस्त्रक १वाय वात
प० एइ प० वेय (य) न्ति । वत्थु वास्तु २ वाय वाद
विद् (धातु विज्जइ, विज्जए, वद् (धातु ) वयन्ति, वयासी. वइ. वायस -
निधिज्जा निविज्जे, निविद, स्सामि, वयन्त, वयमाण, अनवयः वाया ( वाच )
निधिण्ण माण; वइत्ता, अणुवयमाण, मीणः चाला (चमरी)
विदिसा विदिश परिवयन्ति, वएज्जा, पवयमाण, १ वास वर्ष
विद्वाय (धातु) विद्दायमाण, मणि २ वास -
(विद्वांसो चयमित्येवमात्मानं मन्यवध , पहन्ति, वहन्ति; आभि- १ वासग वर्षक,
मानाः --व्याख्या ) निव्वदेज्जा, निव्वह २ वासग वाशक
विन्नाण विज्ञान वम् , वन्ता
वि अपि
विनयर--विज्ञान घमण वमन २वि विद
विन्नु विज्ञ १ वय वयम्
विइगिच्छा, गिच्छा विचिकित्सा विप् (धातु) परिवेपमाण, पवेवन्ति २ वय व्रत विइमिस्स व्यतिसिंथ
विपरिमण्-(विदर्शिन् ) वयण वदन विउ विदु
विष्परिणाम विपरिणाम २ वयण वचन
विओवाय व्यवपाद, व्यापात; व्य- विपरियास विपर्यास वयस वचस्
तिपात
विप्पिय विप्रिय ववहार व्यवहार विक्रय विक्रय
विमोक्खण विमोक्षण वस् ( धातु) वसे, वसह, वसित्ता, विग्गह विग्रह
विमोह विमोक्ष अहियासेइ, अहियासए, अहिसे- विच् (धातु ) विगिचइ, विगिच- विथड विकट जासि, अहियासमाण, अहि- माण, विवित्त, विर्गिचित्ता
वियड विकृत यासेमाण, अहियासिय, अहिया- विचित्त विचित्र
वियन्त-कारग व्यन्तिकारक सेत्तए; अणुवासेज्जासि; आवसे, विजय -
वियाघाय व्याघात आवसन्त, परिवासिय; संवसइ. विजा (या) णग विजानक
विरह विरति वस वश विजंत् विद्वन्
विराग - वसा - विजा विद्या
विरुव विरूप वसु (वसु द्रव्यम् ) विणइण-विनयिन् वसुमन्त् विणय विनय
विलुपित्तर । वह ( धातु) वज्झमाण; परिव- विणा विना
विवाय विवाद हित्तए वितण्ड -
विवेग विवेक वह वध वितद्द वितर्द
विश् (धातु) पाविट्टयर (ग), १ वा व वा ( विकल्पार्थक) वितह वितथ
निविट, विनिविटः पविसए, पविसि
विलंपयित्तर विलम्पयित
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মন্তিৰাগৰ
[विसंहण-सन्ति
स्पामो,परिस्स,पवेसिया,अणुपविसित्ता च पैर
संवच्छर संवत्सर विसंहण विश्रमण वेवय वेएक
संसप्पग संसर्पक विसय विषय व्यथ् (धातु ) पचहिय
संसय संशय विसाण विषाण
व्यथ् , संविद्ध, वहिय संसार - विसोग विशोक
व्र परिव पन्ति , परिव्वए; संसेय संस्वेद विमोत्तिया स्रिोतसिका __ परिवएज्जास. पव्वइय
संसोहण संशोधन विस्स पणया विधानणता ब्ली, अलीण, अलीण संहारण विस्सेणी विश्रयणी
सक्कि सक्ति शंस् (धातु ) पसंसिय विह विख
संकप्प संकल्प शक्, सक्खामो, सक्क, सक्का विहार --
संकमण संक्रमण शत् ,, आसाएज्जा, (संस्कृत-आदिहि विधि
संखडि संस्कृति
शातयत् ) अणासायमाण, मीण। विहारिण - विहारिन्
- संग -
१ शम्, सन्त, सगिय समेमाण पिसा -
संगंथ संग्रन्थ विहिंसग विहंसक २ शम् , सुनिसन्त (सं० सुनि
संगम संग्राम वीइनिस्स व्यतिमिश्र
श्रान्त ) नसम्म, निसामिया, '
'' संघाडी संघाटी
निसामेत्ता चीर -
संघाय संघात पीराय (धातु ) वीरायमाण ( अ- शिश् , सिखज्ना, सुसिक्खेज्जा.
सच सय सुसिक्ख वीरा वीरा-भवित्ता)
- सञ्ज (धातु ) सज्जेज्जा, सत्त वीरिय वीर्य शिश् ,, विप्पसिट्ट, परिसिट्ट, मु
* संजोग संयोग वीहि वीथि शी , सए
सण- द्धिन् वुक्कम व्युत्क्रम बुड्डि वृद्धि गुच् , संयइ, सोएज्जा. सोयए सढ शठ
सत्त सत्त्व वृ (धतु ) पाउणिस्मामि. पाद्ध अणुसोयन्ति
सत्ता निवरेइ, निव्वुड, अभिनिव्वुड, शुध्
-- । सुद्ध, सुविसुद्ध
सत्ति शक्ति 'श्रद-धा परिनिव्वुड, संवुड
, सद्दहे वृज् , वजजा, वजन्त, वज श्री , सिय अणुापेय, अणास्सया १सत्थ शत्र
परिवज्जए, परिवनियाणं अणुस्पित्ति, समास्पणामि. जोरि २ सत्य शास्त्र वृत् ,अइवत्त १)इ०,वत्ते (जन समास्स'मासि. ०णा से, णाड. सत्थर- शास्तृ
सः (धातु) सन्न, निस्मिय त उइ. तिउद्या तुट्टे
अनीयमाण, आउट वट्ट, नियन्नि, नियमाण, अभिनिन. श्रु , सुणइ सुगेइ सणेह, सण- आ ज; निमिए उजा, समासज्ज
निमण्ण, विग्यसायए, विपीयमाण, त्तेज्जा, विनिमाण; अणुपरियटइ, माण, सय, दुम्सुथ, सुणिया, साचा;
विसण्ण ०यमाण;वियत्तण,वि उट्टाणं वियत्ता. सस्सूस, मुम्म्ममाण
सद्द शब्द संज्जा, संवइत्ता, संबंता प्वक ,, अवसजा सद्धा श्रद्धा वृथ् , वह, वह, अभिसंयुद्ध १ स.. सो सः ( तत सर्वनाम. सहि सधाम् वेय वेद
पुल्लिङ्ग-प्रथमैकवचन )
सन् (धातु) अपज्जवसिय, पज्जववेयण वेदन २ स सद्दार्थ
सिय, सपज्जवसाण वेयवंत- वेदवन्त३ स व
संताणग सन्तानक वेयावडिय वैयापत्य सई सकृद्
संति शान्ति
विसिह
वज .. वजेजा, वजन्त, वज, अत्पित्ति, समुास्पणामि, णामि, पर- शास्त
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सैलेगइय-सुणिम]
अकारादि-शब्दानुक्रमाका
संतेगइय सत्येकसंथर सस्तर संथव संस्तव संथारग संस्तारक मथुय सन्तुन संघण मन्त्रा संधि - सन्ना सम्मा संनिचय - संनिवेस संनिवेश संनिहाण सनिधान संनिहि संनिधि सप्पिण- सर्पिन सवलत्त शालन सभा -
समंजस
समान मानत समय - ससया समता समायाण समादान समायार समाचार समाभ - समाहि समाधि समिय, या सम्यक् समुट्टाइण- समुत्थायिन् समुप्पाय समुत्पाद सम्मुम्पय समुच्छ्य संपसारग संप्रसारक संपाइम संपालिम संफास संस्पर्श संवाह सम्बाध संवाहण सम्बाधन सम्पइ सम्मति सम्पइया सम्पतिता सम्मं सम्पक सम्मत्त सम्यक्व सम्मुइ सम्मुति
सामगिय सामान्य सम्मुच्छिम सम्छिन सात यामख १ सय शय
सानिण- कान्ि २ सय स्वक
सय शयन २ सयण वजन
२सार स्मार सयं स्वयम्
सारग स्मारना सयय सततम्
साला शाला सया सदा
साम्य शाश्वत सर स्मर
साहस्मिय साधर्मिक सरण शरण
साहारण साधारण २ सरण करण
साहु साधु १सरणया शरमाता २ सरणया स्मरणता सिच् (धातु ) संसिञ्चमाण, सी सरीर शरीर
०, सांसञ्चियाणं सरीरग शरीरक
सिदिल शिथिल सल्ल शल्य
मिणाण खान सवण श्रवण सव्व सर्व
सिध् (धातु) निसिद्धा, पडिसेहिय सध्या सर्वतम
सिर शिरस् सव्वत सर्वत्व
सिलिवइण- लीपदिन् (श्लीपदं सध्यन्थ सर्वत्र
पदादी काठिन्यम्-व्यापा) सव्वया सर्वदा
सिलीग टोक सचसो सर्वशस्
सिसिर शिशिर सव्वावन्त -सर्वावन्त
सिस्स शिष्य सस्सय दृष्टव्य सासय सीय शीत सह् (धातु) सहइ, सहए सील शील १ सह -
सीलमंत शीलवन्त २ सह स्वक (नह सम्मइ- सीव् (धातु) सिविस्सामि, या-स्वकसन्मत्या)
सीमित सहसाकारय् (धातु) सहस- सीस शीर्ष
कारह सहि सखि
स्वर - साइण-शायिन
सुकरण -- साइम स्वादिम
सुफ शुष्क सागारिय नगारिक
सुकिल शुरु साड शाट साथ् (धातु) साहेइ, साह, सुणा उनक साहिस्सामा, साहिय
सुणिम ...
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५४
आचारांग सूत्रस्य
[सुन्हा
सूइ शूचि
सुण्हा स्नुषा
सोवाग ३वपाक सुत्त सूत्र सोहि सोधि
२ हस्स, हु० इस्व सुन्न शून्य स्खल (धातु) खलयिंसु
हा (धातु) जहाइ, जहंति, जहाहि, सुप् (धातु) सुत्त स्तन् , थणंति
हीण,जहित्ता,विज०,हिच्चा; परिहा. सुष्म शुभ्र
स्तम् ,, ओटुंभियाए, ओटुंभिया यमाण, अप०, अपरिहीण, पहाय, सुभि सुरभि
स्तु , संथरए, संथरेजा, संथ- विपजढ, विजहित्ता, वियहित्तु १सुय श्रुत
रित्ता
हार --- २ सुय सुत
स्था , चिट्ठइ, चिट्ठे, चिज्जा, हालिद्द हारिद्र सुरभि -गन्ध
ठाएज्जा, चिट्ठल-, अचिट्ठत, ठिय, १ हास हर्ष सुवसु -
ठावए; उहिय, अणुट्टिय, उहाए, उट्टाय; २ हास सुव्वय सुव्रत
समुट्ठिय, समुद्याय, उवष्ट्रिय, अणुव०: हि -- सुसाण श्मशान
परिट्टवेज्जा, परिदृवेत्ता, विपरिचिट्टइ, हिंस (धातु) हिंसइ, हिंसन्ति, सुह सुख विट्टिय, परिविचिट्ठइ
हिंसिस्सन्ति, हिंसिसु, अहिंसमाण; स्पंद् , विष्फन्दमाण
विहिंसइ, विहिंसन्ति, अविहिंसमाण स्पृश् ,, फुपन्ति, फासए, पुट्ठवन्त्-, हिंसा - सूइय सूप्य; अथवा सपिक
हिमग हिमक सुणिय शूनिक स्पृह ,, पीहए
हिमवाय हिमपात सूर शूर
हिय हृद् ' स्मृ , स (म) रन्ति, अणुसं- हियय हृदय पसारिय, पसारेत्तु, संपसारए;
सरह
हिरण्ण हिरण्य अणुसंसरइ नु , वीसवन्त
हिरिण- (-हीमन्त) सज ,, वोसिरे, वासह, विओसज्ज, ,
स्वाद् ,, साइज्जइ, साइज्जिस्सामि, हिरी ही सिज्ज, सेज, वासज्ज, आणसट्ट साय, असाय, अस्साय
हु खल सेन्जा शय्या
हंता हन्त सेय श्रेयस् - हंभो -
हुरत्था हुरस्तात् सेत् (धातु ) सेवइ, • ए, सेवन्ति, हणु हनु
हुस्स ह्रस्व सेवेज्जा, सेवित्था, सेविंसु, सेवित्ता, हणुय हनुक
ह (धातु) अभिहड, अवहरन्ति, आसेवइ, ० ए, आसेवित्ता, पडि- हत्थ हस्त
आहरे, आइड, आहटु, सेवे, पडिसेवमाण
हन् (धातु ) हणंति, हणिया, हणे, आहारेमाण, उदाहरन्ति, उदाहड, सेस शेष
हण, हणह, हणं--, हंतव्व, हय, परिहरन्ति, परिहरेज्जा, परिहरन्त सेहि (सिद्धि )
(हओवय); हम्मइ, हन्नइ आहेतु विहरे, विहरित्था, विहरिसु, विहसोणि ( णी) य शोणित
उवहय, निहणिज्ज,निहाणिंसु,अविह- रन्त, विहरमाण, विहरेजा सोत्त श्रोत्र
म्ममाग,
हृष् (धातु) हरिसे १ सोय शौच
हंतर- हन्तु २ सोय श्रोत्र हरय हद
हेमंत हैमन्त ३ सोय स्रोतस् हरिय हरित
होट्ट हु० ओष्ठ सोयविया शौचवता १हव्व अर्वाक
हुनु (धातु) निण्हवइ, निण्हवेज्जा सोलस षोडश २ हव्व हव्य
ही, अहिरीमाण
स् (धातु ) पसारए, पसारेमाणे स्फुट विफुडमाण
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कतिपया विशिष्टाः पाठ-भेदाः।
पृ. १. पं. १. आउसतेणं; आमुसतेण; आवसंतेणं.
ताव जीवाभिगमे कायव्वे जाव इच्छि१०. अणुसंचरइ, स्थाने अणुसंसरइ.
याणिच्छियं सायासायं वियाणित्ता १६. सन्धेइ स्थाने सन्धावइ.
हिंसोवरई कायव्वा' एतादृशो ,,१७. मोयणाए स्थाने भोयणाए.
नागार्जुनीयो पि पाठभेदः। पृ. २.पं. २४. नियाग स्थाने नियाय; निकाय.
,, १४. पियाउया स्थाने पियायया. ,, २६. वियहित्तु विसोत्तियं स्थाने विजहिता पृ. ८. पं. १४. वीरे पसंसिए स्थाने धीरे तथा (वियहियं, वा ) पुव्वसंजोगं.
नमंसिओ. पृ. ३. पं. ३. सत्थं चेत्थ स्थाने पास चेत्य.
,,१६. पडिसहिओ स्थाने पडिलाभिओ. , ७. पासमाणे रूवाई स्थाने पासमाणो , १८. कवेहिं सत्थेहिं इत्यादि पाठस्थाने पासिमाई; सुणमाणे सद्दाई स्थाने सुण
संस्थेहिं विरूव-रूवाणं अट्ठाए, तं-जहा माणो सुणिमाई.
एषः पाठः। पृ. ४.पं. २३. एजस्स स्थाने एयस्स; एगस्स.
,, २३. अयं सन्धीति० स्थाने अयं सन्धि , २७. इह स्थाने इति.
अदक्खु. पृ. ५., २०. चित्ते स्थाने चिट्ठे
पृ. ९.पं. ६. अन्नहा णं पासए स्थाने भन्नयरेण , २१. सत्थे स्थाने सत्ते
पासएण. ,,२२. माणवाणं स्थाने असमंजयाण.
,, २५. से तं जाणह, जमहं बेमि स्थाने से २३. परिन्नाणेहि स्थाने पन्नाणे िहैं.
एवमायाणह जं बेमि. ६. पं. १०. जावसोत्तपरिनाणेहिं अपरिहायमाणेहिं पृ. १०. पं. ९. दिट-भए स्थाने दिठ्ठ-पहे. स्थाने जाव सोत्तपन्नाणा भपरिहीणा.
१४. तम्हा वीरे न रज्जइ स्थाने तम्हादेव ,. १५. क्वचित् वि एगे नास्ति.
विरज्जए. ,, २३. विणइत्तु स्थाने विणा वि.
, २१. क्वचित् एस वीरे पसंसिए नास्ति. २६. क्वचित् णाइबले अग्रे सयणबले
क्वचित् सुवसु वीरे प. अधिकपाठः
__ पृ. ११. पं. २. ...आवटै अणु० स्थाने दुक्खावट्टमेव , २७. दण्ड-समायाणं स्थाने दण्डं समारभइ;
अणु०. भया दण्ड-समायाणं सपहाए; इति वा. , ७. आयवं नाणवं स्थाने आयवी नाणवी. ,, ३२. से असई इत्यादि पाठस्थाने
११. माराभिसंकी स्थाने मारावसक्की, 'एगमेगे खलु जीवे अईयद्धाए असई
., २५. कम्म-मूलं च जं स्थाने कम्ममाहू य जं. उच्चागोए असई नीया-गोए; कण्डगढ़याए नो होणे नो भइरित्ते. एतादृशो
,, २९. मइमं स्थाने मेहावी. नागार्जुनीयः पाठः।
पृ. १२. पं. १३. अगं च इत्यादि स्थाने क्वचित् मूलं पृ. ७.पं. २. क्वचित् सायं नास्ति । तथैव 'पुरि
च अग्गं च विएत्तु वीरे, इति तथैव सेण खाल दुक्खुवेगसुईसएणं पुब्धि
मूलं च अग्गं च बिएतु वीरे, कम्मासवं
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चेइ विकणं च इति नागार्जुनीयः पाठभेदः ।
""
२६. नाणुजाणए अत्रे कचित् छगन्तं नापुमोएय अधिकः पाठः ।
३०. निसण्णो पावेर्हि कम्मेहिं स्थाने तेस् कम्मे पावं.
पृ. १३. पं. १. गामी स्थाने गामं.
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,, १३. धीरे स्थाने वीरे. तथा विषय पञ्चगम्मि वि
दुविहम्मि तिथे तिथे
भावओ सुद्र जाणिता से न लिप्पइ दोसु वि.
(१ विसय पचइयपि प्रत्यन्तरे) इत्येवंरूपो नागार्जुनीयः प उभेदः । ,, १९. अवरेण पुव्वं न खरन्ति एगे इत्यादि पंक्तिस्थाने
33
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अवरेण पुव्वं हि से अईयं
किह आगास्वं न सरन्ति एगे; भासन्ति एंगे इह माणवा उ (ओ) जह से अईय तह आगमिस्सं । परूपाः पंक्तयः ।
२३. अर्द्ध स्थाने अत्थं; अहं वा पाठः ।
23
पृ. १४. पं. २. दुक्ख मत्ताए स्थाने दुक्खमायाएः
धम्ममायाव. इति वा पाठः ।
33
49
१९. कचित् सारं स्थाने मरणं; क्वचिच मारं च मरणं च उभयमपि । पृ. १५. पं. १, नो लोग० एतद्वाक्यस्थाने नो य
लोगेसणं वरे.
६. चूर्णि पुस्तके उवश्य जाव सगडन्भि पाठो नोपलभ्यते ।
४. जयमागे धीरे स्थाने जयादि एवं. ८. आघाइ स्थाने अक्वाइ. तत्रैवै नागार्जुनीयः पाठभेदः -- आइ धम्मं खलु से जीवाण, तं-जहाः संसारपडिवन्नाणं मणुस भवस्थाणं आरम्भविणणं दुक्खुवेग मुद्देसगाणं धनैश्रवण- गवेसगाणं निक्खित्त-सत्याणं सु सुसमाणाणं पडिपुच्छमाणाणं विभाणपत्ताणं.
33
२४. ते एवं व्यास स्थाने एवमाइक्खन्ति. २५. चूर्णपुस्तके नास्ति.
अणायरियवयणमेयं
३०. पावाडया स्थाने चूर्णिपुस्तके समणा
25
माहणा.
पृ. १७ पं. १ तमसि स्थाने तं अस्त
"
९. कम्मुणा सफलं स्थाने क्रम्माण सफलतं. १५. आवन्ती इत्यादिवाक्यस्थाने नागार्जुनीयमेतादृशं पाठान्तरम् -- जाति के लोए क्काय वह समार भन्ति अढाए अहाए वा
,, २१. मरणाइ एइ स्थाने मरणादुवेइ. २५. कटू एवमवाण इत्यादि पंक्तिस्थाने नागार्जुनीय पाठभेदो यथाजे खलु विसए सेवइ, सेवित्ता वा नालाएइ परेग हो निण्हवइ, अहवा तं परं सण वा दोसे पाविहारएण वा दोसेण उवलिपेज्जा ।
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१५. पुढो पुढो इत्यादि पंक्तिस्थाने एतादर्श पाठान्तरम् -- एत्थ मोह पुगो पुणो, इहमेगेसि तत्थ-तत्य संथवी भवइ, अहो वाइए फासे पडिसवेययन्ति; चित्तं कूरेहिं कम्मेहिं चित्तं परिविचिदृइ; अचित्तं कुरेहिं कम्मेद्दि नो चित्तं परिविचिइ.
२९.
59
पृ. १८. पं. १. पचमाणे स्थाने तपमाणे.
फामे स्थाने मोहे; कृचित् पुणो अप्रे संस्यं परिजाणओ विशेषः ।
१६. छन्द इ६ मागवा स्थाने छन्दाणं इह
माणवाणं.
22
२६. से सुम्पडि० एतत्पंक्तिस्थाने से सु अणुविचिन्तयनच्चा.
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,, ३१. अप्पमत्त परिव्वए स्थाने चूर्णिपुस्तके अप्पमायें सुसिक्खेज्जा.
,, ३२. अणुवासेज्जासि स्थाने अणुपालेज्जासि.
पृ. १९. पं. ८. सिया स्थाने चे; अन्नेसिए स्थाने
अणुस्सित्ति; अणुस्सित्ता.
१३. जुद्रा० एतत्पत्तिस्थाने जुद्धारिय
ब्रहम.
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कतिपया विशिष्टाः पाठ-भेदाः ।
, १६. भए स्थाने पहे.
" समणा भविस्सामो अणगारा अर्किपृ. २१. पं. २६. एत्थ विरमेज्ज वेयवी स्थाने विवेगं
चणा अपुत्ता अपसू अविहिंसगा सुव्वय किट्टेइ वेयवी.
दन्ता परदत्त-भोइणो; पावं कम्म नो ,, २७. विणइत्तु स्थाने विणएत्ता.
करिस्सामो" समुहाए। २९. वडुमगं स्थाने वट्टमगं.
,, ३१. सया परक्कमज्जासि स्थाने चूर्णिपृ. २२. पं. १४. अणेग-रूवेहिं कुलेहिं जाया स्थाने
पुस्तके सव्वओ परिव्वएउजासि. अणेगओ तेसु कुलेसु.
पृ. २६. पं. ६. आइक्खे वि• एतत्पंक्तिस्थाने , १५. स्वेहिं सत्ता स्थाने सवेसु गिद्धा.
नागार्जुनीयमेतत्पाठान्तरम्--जे पृ. २३. पं. २, पकुव्वइ स्थाने पगभइ.
खलु भिक्खू बहु-स्सए बब्भागमे आह, ७. धूयवायं ५० एतत्पक्तिस्थाने धुव;
रण-हेड कुपले धम्म कहा-लद्धि-सम्पन्ने धुय इति वा पाठः । तथैव धूयो
खेत्तं कालं पुरिसं समासज्ज ' के अयं वायं पवेयइस्लामि इति नागार्जुनीय
पुरिसे कं वा दरिसणं अभिसंपन्ने ?' मपि पाठान्तरम्।
एवं गुणजाईए पभू धम्मस्स आघवेत्तए। , १७. चइत्ता पुव्व संजोगंस्थाने चूर्णिपुस्तके ,, २०. तम्हा लहाओ नो परिवित्तसेज्जा जहित्ता पुव्वमाययण.
स्थाने चूर्णिपुस्तके सिमे लूसिणो , २६. अहेगे धम्ममायाए स्थाने सहिए धम्म
नो परिवित्तसन्ति इति पाठान्तरम् । मायाय.
,, २५. विओवाए स्थाने वियाघाए, वियावाए, २८. गेहिं स्थाने गत्थं; गिद्धि,
विवायाए, विवाघाए; इति पाठापृ.२४. पं. १४. वीरे स्थाने धीरे.
न्तराणि। , १५. एयं खु मुणी स्थाने एस मुणी.
, २७. कालोवणीए• इत्यादि वाक्यस्थाने ,, २१. लाघवमा० इत्यादिपंक्तिस्थाने एता
नागार्जुनीयाः पठन्तिदृशो नागार्जुनीयः पाठभेदः--
जाइ खलु अहं अपुण्ये आउ-तेउ-कालं एवं खलु से उवगरण-लाघवियं तवं
करिस्सामि, तो परिणा-लोवे अकित्ती कम्म-क्खयकारणं करे।
दुग्गइ-गगणागमणं च भविस्सइ । , २२. सव्वओ सव्वत्ताए स्थाने नागार्जुनीय पृ. २७. प. १३. नो सुय० इत्यादि शब्दस्थाने चूर्णि पाठान्तरं-सव्वं सव्वत्ताए.
पुस्तके न एस धम्मे सुयक्खाए सुप२८. संघमाणे स्थाने सन्धणाए; समुहिए
भत्ते भवइ एते शब्दाः । स्थाने समुहिए.
२०. उदाहिया स्थाने उदाहडा. ,, ३०. अणवकंखमाणा स्थाने अणवखेमाणा
, २३. पडिकं स्थाने परिक, पाडियकं, (णे); अवयमाणा; इति वा.
पडिइवं, पडियक्कं, पाठान्तराणि पृ. २५. पं. १. तेहिं महावीरेहि स्थाने चूर्णिपुस्तके
तत्रैव जीवहिं कम्मसमारतेसि महावीराणं.
म्भेणं स्थाने दण्डं समारभन्ते पाठा, २. उवलब्भ स्थाने पइलब्भ; हिचा उव०
न्तरम्। इत्यादिवाक्यस्थाने हिच्चा उवसमं पृ. २८. पं. ३. चेएमि स्थाने चर्णिपुस्तके ( कडे. अहेंगे फारुसियं समारभन्ति ।
भणन्ति ) करोमि (तं तु न जुज्जइ). , जाइं स्थाने गब्भाइ.
,,२३. सोच्चावई मेहा० इत्यादिशब्दस्थाने भविहिंसे इत्यादिशब्दस्थाने अवि
सोच्चा मेहावी वयणं प०। हिंसगा. सुक्या. दन्ता अहेग. पस्स. ,, २९. सनिहाण-सत्थस्स स्थाने चूर्णिपुस्तइत्येवंरूपाःशब्दाः, तथा-एता
के सीनहाणस खेयन्ने (भन्नवायणाए) दृशो नागार्जुनीयः पाठभेदः
संनिहाणसत्थस्स खेल।
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२९.
29
पू. ३०.,,
पू. ३१.
"
१०. ओम चेलिए स्थाने अवम-चेलए;
"
चूर्णि पुस्तके अदुवा अचेले पाठो नोपलभ्यते.
,, १७. निस्से स्थाने निस्सेसिय; निस्सेयसं; पृ. ३३. नीसेसं; इति पाठाः
२२. एवं स्थाने य, अत्रैव टीकाकारसं
""
३१. "
गृहीतमेतादृशं पाठान्तरम् ः- ०गमre] तं भिक्खु केइ गाहावई अवसंकमित्त बूया: " आउसन्तो समणा ! अहं णं तव अट्ठाए असणं वा ४ अभि दलामि । " से पुव्वामेव जाणेज्जाः " आउसन्तो गाहावई ! जं गं तुमं मम अहाए असणं वा ४ चेएसि, नो पृ. ३४. खलु मे कप्पइ एय-पगार असणं वा ४
भोत्तर वा पाय वा अन्ने वा तह-प्रगारए ।
"
७. एगाणियं स्थाने एगा गिणं.
22
११. संचारेज्जा स्थाने साहोज्जा ०; आसाएमाणे स्थाने आढायमी (मा) णे पाठान्तरं . टी. पुस्तके.
२०. पडिलेहिय - इत्यादि शब्दस्थाने पांडेकेहित्ता संथारगं संथरेज्जा एतादृशः शब्दभेदः ।
२७. णं एवं स्थाने णं भिक्खुस्स एवं । चा एमि स्थाने संचा
२. दलइस्सामि स्थाने दाहामि; दासामि, वा पाठ: ।
"
"
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"
आचारांगसूत्रस्य
११. वसुमन्तो स्थाने वुसिमन्तो.
१२. वित्ताणं स्थाने विगिश्चित्ता
१३. ०पु०वी स्थाने •पुव्वियं; कम्युणाओ स्थाने आरंभाओ ।
,, १५. अन्तियं स्थाने कारणा
""
२३. तु विन्नाय स्थाने वियाणित्ता.
२४. तुयहेज्जा स्थाने तु वज्जेज्जा; निवज्जेज्जा; वा पाठ: ।
35
३१. पग्गहीय तरं स्थाने • हीय तरगं ; ०हीयतरागं; वा पाठ: ।
و
पृ. ३२., ११. पादुरेसए स्थाने पाउडुएसए.
१४. चाययतरे स्थाने चायतरे.
पू. ३४.
पृ. ३६.
"
२३. धुवं वण्णं सुमं व
२६. सव्वट्टे • स्थाने सव्त्रत्थे •
33
६. अभिज्झ स्थाने आरुज्झ, विहरिंषु स्थाने वियरिं
१४. प्रो विनाभिभासिसु स्थाने पुढे व से
अपुट्ठे वा इति चूर्णिसम्मतपाठः । तथैव
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22
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पू. ३५.,,
23
२१. पणियसालासु स्थाने सालाधराणं २७. ' निद्दं पि नोपगामाए सेवइ य भगवं
"
'
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उट्टाए एतद्वाक्यस्थाने निद्दावि न पगामा आसी तद्देव उट्टाए एतादृशो नागार्जुनीयः पाठः ।
२९. सिसु भगवं उहाए स्थाने न चिरं जॉगिता ईसाइयासि इति चूर्णि - पुस्तके पाठः ।
३१. तस्सुग्गा स्थाने तत्थुवसग्गा. ४. समिए फासाई विरूववाई स्थाने सहिए इति मन्ता भगवं भणगारे इति चूर्णिगतपाठः ।
९. अयमुत्तमे से धम्मे स्थाने " को एत्थ साक्षी ठिओ " एषः पाठः चूर्णिपु० । १३. पहिया वा सक्खामो स्थाने पिहिया य चाएस्सामो चूर्णि •
33
४. अदुफलेण स्थाने अह कुन्ते (न्तए) ण. ६. मोहमियाए स्थाने उटुंबिया
"
स्थाने धुवं अनं तथैव इति पाठान्तरं
""
वो अहो वा ।
नो अन्नाइ पावगं भगवं । इति नागार्जुनीयः पाठभेदः ।
१९. नाइ- सुए स्थाने नाइ पुत्ते
७. अहाकडं स्थाने आहाकम्भ
१६. खन्धंसि स्थाने कहंसि.
१८. बहुसो अपने स्थाने भपडित्रेण वीरेण.
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,, ३०. घासमेसे कडं स्थाने घासमातं कडं.
""
३१. सुविसुद्धं स्थाने सुविसिहं; • गयाए सेवित्था स्थाने ● गया गवेसित्था चूर्णिο
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२०. य संखाय स्थाने इति संख्या.
३३. सययं स्थाने सन्थरे.
,
"
२२. भेउरेसु स्थाने भिउरेसु; तथैव बहु- पृ. ३७. लेसु वि इत्यपि पाठान्तरं.
""
११
,, १७. न से कप्पे स्थाने न सेवित्था.
२४. अपिवित्था स्थाने विहरित्था.
८. झाय समाहिमपडिने स्थाने शाय समियं पेहमाणो चूर्णि
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SOME INVALUABLE PUBLICATIONS FOR THE STUDENTS
PALI AND PRAKRIT. 1. Abhidhanappadipika ( A dictionary of the Pali language) by Moggallana Thera, edited in Devanagari with an index of the words by Muni Jinavijaya.
5-0-0 2. Palipathavali, A Pali Reader for beginners,by Muni Jinavijaya 0-12-0
3. Prakritkathasamgraha, A Prakrit Reader for Beginners by Muni Jinavijaya.
0-14-0 1.4. Kumarapalapratibodha, A rare Prakrit work of very great importance edited by Muni Jinavijaya ( Gaekwar Oriental Series.) 7-8-4
5. Chedasutrani ( Brihatkalpa, Vyavahara and Nisitha) Three invaluable books of the Jain Canon, edited for the first time in Devanagari.
2-8-0 6. Supasanahacariyam, Life of the Seventh Jain Tirthankara in Prakrit cdited with sanskritisation of the Prakrit original.
2-8-0 8. The Date of Haribhadra, An Essay in Sanskrit read before the 1st Oriental Conference, Poona by Muni Jinavijaya.
पाली-प्राकृत-भाषाजिज्ञासूनां कतिपया अत्युपयोगिग्रन्थाः।
आभिधानप्पदीपिका (पालीशब्दकोष ) संपादक:--मुनि जिनविजयः; प्रका० गुजरात पुरातत्त्वमंदिर, अमदाबाद.
मूल्यम् ५-०-० पाली पाठावली. सं. मुनि जिनविजयः
" ०-१२-. प्राकृत कथासंग्रह
" ०-१४-० कुमारपाल प्रतिबोधः (प्राकृतभाषामयः सुमहान् बोधप्रदः ग्रन्थः) सं० मुनि जिनविजयः, गायकवाडस् ओरिएन्टल सिरीज' नामक ग्रंथमालायां प्रकटीभूतः। ,, ७-८-०
त्रीणि छेदसूत्राणि (बृहत्कल्प-व्यवहार-निशीथ-नामनि जैनागमरहस्य भूतानि प्राचीनतराणि सिद्धान्तरत्नानि )
, २-८-० सुपासनाहचरियं (प्राकृतभाषाग्रथितं सप्तमतीर्थकरचरितम्संस्कृतच्छायासमन्वितं प्राकृतभाषाजिज्ञासूनामावोपकारकं ग्रन्थरत्नम् ) , ७-८-.
सुरसुन्दरीचरियं (प्राकृतपद्यमयी सरला सरसा सुबोधा कथा ) , २-८-०
हरिभद्राचार्यसमयनिर्णयः ( अद्वितीय ऐतिहासिकनिबन्धः ) लेखक:-मुनि जिन विजयः
For books apply to:- प्राधिस्थानम् - The Manager, Bharata Jain Vidyalaya.. व्यवस्थापक-भारत जैन विद्यालय, Poona City. ( India)
पूना सीटि ( दक्षिण)
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